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\id JOS Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h यहोशू
\toc1 यहोशू की किताब
\toc2 यहोशू
\toc3 jos
\mt1 यहोशू
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहोवा के दास मूसा, के मरने के बाद, यहोवा ने नून के पुत्र यहोशू से, जो मूसा का सेवक अगुवा था यह कहा:
\v 2 "तू जानता है कि मेरा दास मूसा अब मर चुका है। इसलिए अब तू इन सब लोगों के साथ यरदन नदी पार करने के लिए तैयार हो जा। उस देश में प्रवेश करो जिसे मैं शीघ्र ही इस्राएलियों को दूँगा।
\v 3 तुम इस देश में जहाँ भी पाँव रखोगे, वह स्थान मैं तुमको दे दूँगा, जैसा मैंने मूसा से प्रतिज्ञा की थी।
\s5
\v 4 वह देश दक्षिण की मरुभूमि से लेकर उत्तर-पश्चिम में लबानोन के पहाड़ों तक, परात नदी तक और पश्चिम में भूमध्य सागर तक फैला होगा। इसमें हित्तियों का पूरा देश भी है।
\v 5 जब तक तू जीवित रहता है तब तक कोई जाति तुझे पराजित नहीं कर पाएगी। मैं तेरी सहायता करूँगा जिस प्रकार मैंने मूसा की सहायता की थी। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं न तो तुझे त्यागूँगा और न ही कभी छोड़ूँगा।
\p
\s5
\v 6 दृढ़ हो जा और बहादुर बन, क्योंकि तुझे इन लोगों की अगुआई करनी है कि वे इस देश पर अधिकार कर पाएँ, जिसे मैंने उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की थी।
\v 7 बस दृढ़ हो जा और बहुत बहादुर बन। मेरे दास मूसा द्वारा तुझे सिखाए गए सभी नियमों का पालन करने का निश्चय कर ले; उनमें से हर एक नियम का पालन करना। यदि तू ऐसा करता है, तो जहाँ कहीं भी तू जाएगा वहाँ सफल होगा।
\s5
\v 8 मूसा ने तुमको जो नियम सिखाए हैं उनकी पुस्तक पर आपस में चर्चा करना। दिन रात उन नियमों के बारे में सोचते रहना। उन नियमों का पालन करना और उसमें दी गई शिक्षा के अनुसार चलना। वे तुम्हें जीवन जीना सिखाते हैं कि तुम धन प्राप्त कर सको और सफल हो सको।
\v 9 यह मत भूलना कि मैंने तुझे दृढ़ होने और बहादुर होने का आदेश दिया है। मत डर और निराश न हो। मैं, यहोवा तेरा परमेश्वर हूँ, तू जहाँ कहीं भी जाएगा, मैं तेरे साथ रहूँगा।"
\p
\s5
\v 10 तब यहोशू ने इस्राएल के लोगों के अगुओं को आज्ञा दी,
\v 11 "पूरे शिविर में जाओ और लोगों को ये आदेश सुनाओ: 'जो भोजन तुम अपने साथ ले जाओगे, उसे तैयार करलो। तीन दिन में तुम अपने सामने यरदन नदी को पार करोगे, और जाकर उस देश पर कब्जा करोगे जिसे यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें देने वाले हैं।'"
\p
\s5
\v 12 तब यहोशू ने रूबेन और गाद के वंशजों के परिवारों से और मनश्शे के आधे गोत्र से जो यरदन नदी के पूर्व की ओर बसने वाले थे, कहा:
\v 13 "उन आदेशों को स्मरण रखना जो यहोवा के दास मूसा ने तुम्हें दिये थे। मूसा ने कहा था, तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुमको सदा के लिए बस जाने हेतु स्थान देने की प्रतिज्ञा की है- यही वह देश होगा जहाँ तुम निवास करोगे।
\s5
\v 14 यरदन नदी के पूर्व की ओर इस देश में तुम्हारी पत्नियाँ, छोटे बच्चे और मवेशी रह सकते हैं, परन्तु तुम्हारे सब सैनिकों को और तुम्हारे साथी गोत्र के पुरुषों को उनके अन्य साथी इस्राएलियों के आगे उनकी मदद करने के लिये, नदी पार करनी होगी।
\v 15 तुमको युद्ध में उनकी सहायता करनी होगी जब तक कि यहोवा तुम्हारे साथी इस्राएलियों को उस देश में जिस पर वे अधिकार करेंगे स्थायी रूप से बसने के लिए सक्षम नहीं कर दे, यही वह देश है जिसे तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें दे रहा है। इसके बाद ही तुम इस भूमि पर लौट आओगे जहाँ तुम बस जाओगे, और रहने लगोगे- मेरे कहने का अर्थ है, कि जिस भूमि को यहोवा के दास मूसा ने तुम्हें यहाँ यरदन नदी के पूर्व में दिया था।"
\p
\s5
\v 16 लोगों ने यहोशू को उत्तर दिया, "जो भी आदेश तू ने हमें दिए हैं, हम उसका पालन करेंगे, और जहाँ भी तू हमें जाने के लिए कहेगा, हम जाएँगे।
\v 17 जैसे हम मूसा की आज्ञा मानते थे, हम तेरी भी आज्ञा मानेंगे। हम प्रार्थना करते हैं कि यहोवा तेरे साथ भी वैसे ही रहे जैसे वह मूसा के साथ था।
\v 18 जो कोई भी विद्रोह करके और तेरे आदेशों का पालन करने से इन्कार करे उसे हम मार डालेंगे। यहोशू, बस दृढ़ हो और बहादुर बन!"
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब यहोशू ने शित्तीम में उनके शिविर से दो पुरुष चुने। उसने उनसे कहा, "जाकर उस देश के बारे में पूरी खोजबीन करो, विशेष करके यरीहो के बारे में।" उन्होंने शिविर छोड़ दिया, और वे यरीहो में एक वेश्या के घर गए, जिसका नाम राहाब था। वे वहाँ रहे।
\v 2 किसी ने यरीहो के राजा से कहा, "देखो! आज रात कुछ इस्राएली पुरुष हमारे देश के बारे में खोजबीन करने के लिए आए हैं!"
\v 3 अतः राजा ने राहाब के पास एक दूत के हाथ सन्देश भेजा, "जो पुरुष तेरे पास आए हैं और तेरे घर में ठहरे हैं उनको बाहर लेकर आ, क्योंकि वे हमारे देश के बारे में खोजबीन करने के लिए यहाँ आए हैं!"
\s5
\v 4 उस स्त्री ने उन पुरुषों को अपने घर में छिपा दिया था। इसलिए उसने राजा के लोगों से कहा, "हाँ, यह सच है कि वे लोग मेरे पास आए थे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वे कहाँ से आए थे।
\v 5 जब अंधेरा हो जाने पर वे चले गए, उस समय के लगभग जब पहरेदार शहर के फाटक को बन्द करते हैं। मुझे नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे थे। यदि तुम फुर्ती करो, तो उनको पकड़ सकते हो। "
\s5
\v 6 परन्तु सच तो यह है कि उस स्त्री ने उन दोनों को अपने घर की सपाट छत पर सूखने वाले सन के पूलों के नीचे छिपा दिया था।
\v 7 राजा के लोग उन्हें ढूँढ़ने के लिए शहर से बाहर निकले और उस मार्ग पर गए जो यरदन नदी के पुल की ओर जाता है। जैसे ही राजा के लोग बाहर गए पहरेदारों ने शहर के फाटक बन्द कर दिए।
\p
\s5
\v 8 उस रात उन इस्राएली पुरुषों के सोने से पहले, राहाब छत पर गई
\v 9 और उनसे कहा, "हम जानते हैं कि यहोवा ने तुमको यह देश दे दिया है। हमारे सभी लोग तुम से डरते हैं- हम तुम से इतना अधिक डरते हैं कि हम तुम्हारा बिलकुल भी विरोध नहीं करेंगे।
\s5
\v 10 हमने सुना है कि मिस्र छोड़ने के बाद यहोवा ने तुम्हें पार कराने के लिए लाल समुद्र के पानी को कैसे सुखा दिया था। हमने यह भी सुना है कि तुमने एमोरियों के राजाओं सीहोन और ओग के साथ क्या किया था, जो यरदन नदी के दूसरी ओर रहते थे, और तुमने उनके राज्यों में हर एक स्त्री-पुरुष को और हर एक वस्तु को नष्ट कर दिया था।
\v 11 जब हमने उन कामों के बारे में सुना, तो हम बहुत डर गए थे। अब हम में तुमसे युद्ध करने का साहस नहीं है, क्योंकि यहोवा परमेश्वर है, और वह स्वर्ग में और यहाँ नीचे पृथ्वी पर सम्पूर्ण शासन करते हैं।
\s5
\v 12 इसलिए अब मैं चाहती हूँ कि तुम यहोवा के सामने गम्भीरता से प्रतिज्ञा करो, कि तुम जो कहते हो उसे नहीं करोगे तो वह तुम्हें दण्ड दे। मुझे वचन दो कि तुम मुझ पर और मेरे परिवार पर दया करोगे। मुझे आश्वासन दो कि तुम अपना वचन निभाओगे।
\v 13 और तुम मेरे पिता और मेरी माता, मेरे भाइयों और बहनों, और उनके सभी परिवारों को छोड़ दोगे, और जब इस्राएली इस शहर को नष्ट करेंगे तब तुम मेरे परिवार को बचाओगे।"
\s5
\v 14 उन दो पुरुषों ने उत्तर दिया, "अगर हम वैसा नहीं करते हैं जैसा कि हम कहते हैं तो हम जान दे देंगे! अगर तू किसी को भी हमारी योजना नहीं बताएगी तो, जब यहोवा हमें यह देश देगा तब हम तेरे परिवार के साथ दया का व्यवहार करेंगे।"
\s5
\v 15 राहाब के घर की बाहरी दीवार शहर की दीवार का हिस्सा थी। उसने दीवार की खिड़की में एक रस्सी बाँध दी, इसलिए वे पुरुष खिड़की से बाहर होकर दीवार से नीचे उतर गए थे।
\v 16 तब उसने उनसे कहा, "नगर छोड़ने के बाद, पहाड़ियों पर चढ़ जाना जिससे कि जो लोग तुम्हें खोज रहे हैं वे तुमको नहीं ढूँढ़ पाएँ। पहाड़ों की गुफाओं में तीन दिनों तक छिपे रहना जब तक कि वे पुरुष वापस न आ जाएँ जो तुम्हारी खोज कर रहे हैं। तब अपने शिविर में लौट जाना हैं।"
\v 17 उन दो पुरुषों ने उसे एक लाल रस्सी दी और उससे कहा, "अब तुझे जो करना है, वह यह है, यदि तू ऐसा नहीं करेगी, तो हमें आवश्यकता नहीं कि हम अपनी गम्भीर प्रतिज्ञा को पूरा करें।
\s5
\v 18 तुझे इस लाल रस्सी को उस खिड़की से बाँधना है जिससे हमें नीचे उतारेगी, और अपने पिता और अपनी माता और अपने भाइयों, और तेरे पिता के घर के सभी सदस्यों को एक साथ यहाँ इकट्ठा करके रखना।
\v 19 यदि तेरे परिवार का कोई भी सदस्य इस घर के बाहर मार्ग में जाता है, तो वह अपने जीवन को खतरे में डाल देगा, और यदि वह मार दिया जाता है तो हम उसके उतरदायी नहीं होंगे। परन्तु तेरे घर में उपस्थित कोई भी घायल हो गया है, तो हम दोषी ठहरेंगे।
\s5
\v 20 इसके अतिरिक्त यदि तू किसी को बताती है कि हम क्या करने की योजना बना रहे हैं, तो हमें तेरे परिवार की रक्षा की अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की आवश्यकता नहीं होगी।"
\v 21 राहाब ने कहा, "तुम जो कहते हो वह करने के लिए मैं तैयार हूँ।" उसने उन्हें वचन दिया, और वे उसके पास से चले गए। और उसने लाल रस्सी को खिड़की से बाहर लटका कर बाँध दिया।
\s5
\v 22 शहर छोड़कर वे पुरुष ऊपर पहाड़ियों में चले गए। वे वहाँ तीन दिन तक रहे, जब राजा के दूत उन्हें खोज रहे थे। उन्होंने पूरे मार्ग की खोज की, परन्तु उन्हें वे दो पुरुष नहीं मिले।
\s5
\v 23 तब वे दो पुरुष उनके शिविर की ओर वापस लौट आए। वे नदी के पास गए, उसे पार किया और लौट आए ताकि वे यहोशू को सूचना दे सकें। उनके साथ जो कुछ भी हुआ था उन्होंने उसे बताया।
\v 24 उन्होंने यहोशू से कहा, "यहोवा ने सचमुच यह देश हमें दे दिया है। वहाँ के लोग हमारा विरोध कर पाने में सक्षम नहीं होंगे क्योंकि वे हमसे बहुत डरते हैं।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 यहोशू और अन्य सभी इस्राएली अगली सुबह जल्दी उठ गए। उन्होंने शित्तीम से उनके शिविर को छोड़ दिया और यरदन नदी के तट पर गए। वहाँ उन्होंने नदी पर पार होने से पहले शिविर लगाए।
\s5
\v 2 तीन दिन बाद, अधिकारी शिविर के बीच में गए।
\v 3 उन्होंने लोगों को निर्देश दिया, "जैसे ही तुम लेवी के वंशजों- याजकों को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाए हुए देखो तो समझ लेना कि इस स्थान को छोड़ने और पवित्र सन्दूक के पीछे चलने का समय आ गया है।
\v 4 उससे नौ सौ मीटर दूर रहना। उसके निकट नहीं जाना। तुमको नहीं पता कि किस रास्ते जाना चाहिए, क्योंकि तुम पहले इस मार्ग पर नहीं गए हो।"
\p
\s5
\v 5 तब यहोशू ने लोगों से कहा, "यहोवा को स्वीकार्य होने के लिये और उसे सम्मान देने के लिए आवश्यक अनुष्ठानों का पालन करो, क्योंकि कल वह तुम्हारे लिए ऐसे कामों को करने जा रहा है जो तुम्हें आश्चर्यचकित कर देंगे।"
\p
\v 6 तब यहोशू ने याजकों से कहा, "सन्दूक को उठाओ और लोगों के आगे आगे चलो।" इसलिए उन्होंने पवित्र संदूक को उठा लिया और लोगों के आगे आगे चले।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "यह वह दिन है जब मैं इस्राएलियों को दिखाना आरंभ करूँगा कि तुम एक महान अगुवे हो। तब वे तेरा सम्मान करेंगे और जान लेंगे कि जैसे मैं मूसा के साथ था, वैसे ही मैं तेरे साथ भी हूँ।
\v 8 पवित्र सन्दूक उठानेवाले याजकों से कह, 'जब तुम यरदन नदी के किनारे पर आते हो, तब यरदन में खड़े रहना।'"
\s5
\v 9 तब यहोशू ने इस्राएलियों से कहा, "यहाँ आओ और सुनो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने क्या कहा है।
\v 10 अब तुम जान लोगे कि परमेश्वर, जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है तुम्हारे बीच में है। तुम अपनी आँखों से देखोगे कि वह कैसे कनानियों, हित्तियों, हिव्वीयों, परिज्जियों, गिरगाशियों, एमोरियों और यबूसियों के देश पर अधिकार करेगा।
\v 11 देखो! पवित्र सन्दूक जो उस परमेश्वर का है, जो पूरी धरती पर शासन करता है, वह तुम्हारे आगे आगे यरदन नदी में ले जाया जा रहा है।
\s5
\v 12 इसलिए बारह पुरुषों, इस्राएल के हर एक गोत्रों में से एक का चयन करो।
\v 13 जब सन्दूक को उठानेवाले याजक, यरदन नदी के पानी में अपने पाँव रखेंगे, तो पानी का बहना रुक जाएगा। ऊपर से बह कर आने वाला पानी रुक जाएगा और एक ढेर में ठहरा रहेगा। यह नदी के नीचे की ओर नहीं बहेगा।"
\p
\s5
\v 14 तब जब इस्राएलियों ने नदी को पार किया, तो याजक जो पवित्र सन्दूक को उठाए हुए थे, उनके आगे आगे चले।
\v 15 और जैसे ही याजक यरदन नदी के किनारे पहुँचे और पानी में उतरे (अब यह वसंत ऋतु का समय था, जब नदी उनके तटों के ऊपर बहती है)
\v 16 वैसे ही पानी का बहना रुक गया और बहुत दूर तक ऊपर की ओर उसका ढेर हो गया। पानी सारतान के पास आदम नामक शहर से अराबा के सागर (जिसे मृत सागर कहा जाता है) तक रुका रहा, इसलिए इस्राएली यरीहो के पास नदी पार कर पाए।
\s5
\v 17 जो याजक यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाए हुए थे, वे यरदन नदी के बीच में सूखी भूमि पर खड़े थे; जब तक कि सब इस्राएली लोगों ने सूखे तल पर नदी पार नहीं कर ली तब तक वे वहाँ खड़े रहे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 इस्राएलियों ने यरदन नदी पार कर लिया तब, यहोवा ने यहोशू से कहा,
\v 2 "बारह पुरुष चुनो, हर एक गोत्र में से एक, और उनको यरदन के सूखे तल से जहाँ याजक खड़े है; बारह बड़े बड़े पत्थर उठाने की आज्ञा दे।
\v 3 उन पत्थरों को उस जगह पर रख जहाँ तुम आज रात रहोगे।"
\p
\s5
\v 4 तब यहोशू ने बारह पुरुष चुने, हर एक गोत्र में से एक। यहोशू ने उन्हें एक साथ बुलाया
\v 5 और उनसे कहा, "यरदन नदी के तल के बीच में जाओ और उस स्थान पर जहाँ तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का पवित्र सन्दूक लिए याजक खड़े हैं एक-एक बड़ा पत्थर कंधे पर उठा कर ले आओ, हर एक गोत्र के लिए एक, इस्राएलियों के बारह गोत्रों के लिए बारह पत्थर।
\s5
\v 6 ये पत्थर तुम लोगों के लिए स्मारक होंगे। भविष्य में, तुम्हारे बच्चे पूछेंगे, 'इन पत्थरों का क्या अर्थ है?'
\v 7 उनसे कहना कि यहोवा ने हमें जो पवित्र सन्दूक दिया था उसे उठाकर याजक यरदन में उतरे तो नदी के पानी का बहना रुक गया था। ज्यों ही सन्दूक नदी में लाया गया त्यों ही पानी का बहाव रुक गया कि हम नदी के सूखे तल में से होकर पार हो गए थे। इन पत्थरों को हम ने यहाँ रख दिया था कि यह स्थान हमें सदा स्मरण कराता रहे कि परमेश्वर ने इस्राएलियों के लिए क्या किया था।"
\p
\s5
\v 8 तब इस्राएलियों ने वह सब किया जिसकी आज्ञा यहोशू ने उन्हें दी थी। वे गए और यरदन नदी के तल के बीच से बारह बड़े-बड़े पत्थर उठा लिए, हर एक इस्राएली गोत्र के लिए एक पत्थर, जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा था, और वे उन पत्थरों को वहाँ ले गए जहाँ वे रह रहे थे, और उन्होंने पत्थरों को वहाँ रख दिया।
\v 9 तब यहोशू ने बारह अन्य पत्थरों को लिया और उन्हें यरदन नदी के बीच में खड़ा कर दिया, जहाँ याजक यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाकर खड़े थे और वह स्मारक आज इस दिन भी वहाँ है।
\p
\s5
\v 10 सन्दूक को उठाकर याजक यहोशू को दी गई परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार यरदन नदी के बीच में खड़े रहे जब तक कि लोगों ने नदी पार नहीं कर ली। यह ठीक वैसा ही था जैसा मूसा ने यहोशू को करने का आदेश दिया था। लोगों ने नदी को शीघ्र ही पार किया।
\v 11 जैसे ही सब लोगों ने नदी को पार किया और यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठानेवाले याजक भी पार चले गए। वहाँ उपस्थित सब लोग देख रहे थे।
\s5
\v 12 रूबेन और गाद के गोत्र के सैनिक और मनश्शे के गोत्र के आधे सैनिक पार होकर शेष इस्राएलियों से आगे निकल गए। जैसा कि मूसा ने उन्हें आदेश दिया था, वे एक सेना के रूप में आगे बढ़ गए।
\v 13 लगभग 40 हजार लोग यहोवा के सामने चल रहे थे। ये लोग हथियार लिए हुए थे और युद्ध के लिए तैयार थे, और वे यरीहो के मैदानी क्षेत्र की ओर जा रहे थे जहाँ वे युद्ध करेंगे।
\v 14 उस दिन, इस्राएलियों ने देखा कि यहोवा ने यहोशू को एक महान अगुवा बना दिया था। और उन्होंने यहोशू के जीवन भर उसका सम्मान किया - ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने मूसा का सम्मान किया था।
\s5
\v 15 यहोवा ने यहोशू से कहा,
\v 16 "अब पवित्र सन्दूक को उठानेवाले याजकों को आदेश दे कि वे सूखी यरदन नदी के तल से बाहर निकल आएँ।"
\s5
\v 17 तब यहोशू ने पुजारियों को नदी से बाहर आने का आदेश दिया।
\v 18 तब यहोवा द्वारा मूसा को दी गई दस आज्ञाओं के पवित्र सन्दूक को उठानेवाले याजक नदी के तल से बाहर निकल आए। और जैसे ही वे नदी के तल से बाहर निकले, यरदन नदी का पानी बहने लगा, और नदी फिर से भर गई, जैसी वह चार दिन पहले थी।
\p
\s5
\v 19 उस वर्ष के पहले महीने के दसवें दिन उन लोगों ने यरदन नदी को पार किया था और उन्होंने गिलगाल नामक एक स्थान पर छावनी डाली (जो यरीहो शहर के पूर्व में है)।
\v 20 यहोशू ने उन बड़े पत्थरों को गिलगाल में रखा।
\v 21 उसने इस्राएल के लोगों से कहा, "भविष्य में, तुम्हारे वंशज पूछेंगे, 'ये पत्थर यहाँ क्यों हैं?'
\s5
\v 22 उन्हें बताना कि, 'यह वह स्थान है जहाँ इस्राएलियों ने यरदन नदी को उसके सूखे तल पर पार किया था।'
\v 23 तुम्हारे परमेश्वर, यहोवा ने, नदी को सुखा दिया कि तुम सब उसके पार हो जाओ। जिस परमेश्वर यहोवा की तुम उपासना करते हो, उसने यरदन नदी के साथ भी ठीक वैसा ही किया जैसा उसने लाल समुद्र के साथ किया था, कि हम सब के पार हो जाने तक उसने उसे सुखा रखा ठीक वैसा ही जैसा उसने यहाँ किया है।
\v 24 यहोवा ने ऐसा इसलिए किया कि पृथ्वी के सब लोग जान सकें कि वह महा शक्तिशाली है, और तुम उसे उसके योग्य सम्मान दो।"
\s5
\c 5
\p
\v 1 यरदन नदी के पश्चिम में एमोरियों के सब राजाओं ने और भूमध्य सागर के तट के निकट रहने वाले सब राजाओं ने सुना कि यहोवा ने कैसे यरदन नदी के पानी को सुखा दिया था जब तक कि सब इस्राएली पार नहीं हो गए थे। वे इतना डरे हुए थे कि इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए साहस नहीं रहा क्योंकि उन्होंने उनके बारे में सब कुछ सुना था।
\p
\s5
\v 2 उस समय यहोवा ने यहोशू से कहा, "अब चकमक के पत्थरों से चाकू बनाओ और उन सभी इस्राएली पुरुषों का खतना करो जिनका खतना नहीं किया गया है।"
\v 3 तब यहोशू ने तेज पत्थरों के चाकू बनाए और उस जगह पर इस्राएली पुरुषों का खतना किया, जिसे अब गिबाथ हारलोथ कहा जाता है।
\s5
\v 4 ऐसा इसलिए किया गया कि जो पुरुष मिस्र से निकले थे, वे सैनिक बनने की आयु के थे, उन सभी का खतना हुआ था, लेकिन मिस्र छोड़ने के बाद वे सब मरुभूमि में मर गए थे।
\v 5 मिस्र में उनका खतना हुआ था, परन्तु जिन पुरुषों का जन्म मिस्र छोड़ने के बाद मरुभूमि में विचरण करते समय हुआ था, उनका खतना नहीं हुआ था।
\s5
\v 6 इस्राएली चालीस वर्ष तक मरुभूमि में ही भटकते रहे थे, उन्हीं वर्षों में वे सब पुरुष, जो सैनिक होने के लिए उचित आयु के थे, सब मर गए थे। उन्होंने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी थी, इसलिए यहोवा ने कहा कि वे उस देश को नहीं देख पाएँगे जिसकी प्रतिज्ञा उसने उनसे की थी- वह एक ऐसा देश है जो बहुत उपजाऊ था ऐसा उपजाऊ था कि उसके लिए कहा गया था कि उसमें दूध और मधु ऐसे बहता है, जैसे नदियों में पानी।
\v 7 ये पुरुष उन लोगों की संतान थे जो मर गए थे, यहोवा ने उनके स्थान पर उत्पन्न किया था। उसने उनका खतना किया क्योंकि जब वे मरुभूमि में भटक रहे थे तब उनका खतना नहीं हुआ था।
\s5
\v 8 सभी इस्राएली पुरुषों का खतना किए जाने के बाद, ये इस्राएली पुरुष शिविर में ही रहे और जब तक वे स्वस्थ नहीं हो गए तब तक उन्होंने विश्राम किया।
\v 9 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "आज मैंने तुम पर से मिस्र के अपमान को दूर कर दिया है।" इसलिए, उस जगह का नाम आज तक भी गिलगाल है।
\p
\s5
\v 10 उस महीने के चौदहवें दिन की शाम, जब इस्राएली यरीहो शहर के पास मैदान में गिलगाल में छावनी डाले हुए थे; वहाँ उन्होंने फसह का पर्व मनाया।
\v 11 फसह के अगले दिन उन्होंने बिना खमीर के आटे की रोटी खाई, और उन्होंने अनाज भूना।
\s5
\v 12 अगले दिन से परमेश्वर ने उन्हें खाने के लिए मन्ना भेजना बन्द कर दिया। उस वर्ष के आरम्भ में उन्होंने कनान देश में उगने वाले भोजन को खाया।
\p
\s5
\v 13 जब यहोशू यरीहो के पास खड़ा था, उसने ऊपर दृष्टि की और अपने सामने एक पुरुष को देखा। उस पुरुष ने अपनी तलवार खींची हुई थी। यहोशू उसके पास गया और उससे पूछा, "क्या तू हमारी ओर है, या हमारे शत्रुओं की ओर है?"
\s5
\v 14 उस पुरुष ने उत्तर दिया, "किसी की ओर नहीं। मैं यहोवा की सेना का सरदार हूँ, और अब मैं आ गया हूँ।" तब यहोशू मुँह के बल भूमि पर गिर गया कि उसका सम्मान करे। यहोशू ने उससे कहा, "हे स्वामी, तुम मुझे क्या करने का आदेश देते हो? मैं तुम्हारा सेवक हूँ।"
\v 15 यहोवा की सेना के सरदार ने उत्तर दिया, "अपनी जूतियों को अपने पैरों से उतार दे, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्र है।" अतः यहोशू ने अपनी जूतियाँ उतार दीं।
\s5
\c 6
\p
\v 1 अब यरीहो शहर के हर फाटक को दृढ़ता से बन्द कर दिया गया था, क्योंकि लोग इस्राएल की सेना से डरते थे। कोई भी शहर में प्रवेश नहीं कर सकता था या शहर से बाहर नहीं जा सकता था।
\v 2 यहोवा ने यहोशू से कहा, "देख, मैं क्या करता हूँ! मैं यरीहो तुझे दे रहा हूँ। यह तेरा होगा- इसके राजा और इसके सभी बहादुर सैनिकों के साथ।
\s5
\v 3 तुम शहर के चारों ओर चक्कर लगाओगे, एक बार। तेरे सब बहादुर सैनिक छः दिन तक प्रति दिन इसके चारों ओर एक बार चक्कर लगाएँ।
\v 4 सात याजकों को आज्ञा दे कि उनके साथ चक्कर लगाएँ। जब वे यहोवा के पवित्र सन्दूक के आगे आगे चलेंगे तब उनके हाथ में तुरहियाँ हों। सातवें दिन, सेना को सात बार शहर के चारों ओर चक्कर लगाने हैं, और याजकों को चक्कर लगाते समय बहुत ऊँचे शब्द में नरसिंगे फूँकने है।
\s5
\v 5 शहर के चारों ओर सात बार चक्कर लगाने के बाद, याजकों को मेढ़े के सींग के नरसिंगे को बहुत लम्बा फूँकना है। यह सुनते ही इस्राएलियों को बहुत ज़ोर से चिल्लाना है, और शहर की दीवार गिर जाएगी। तब हर एक सैनिक को सीधा शहर में घुस जाए।"
\p
\s5
\v 6 अतः यहोशू ने याजकों को बुला कर उनसे कहा, "चार याजकों को यहोवा के पवित्र सन्दूक उठा कर चलने के लिए कहो, और याजकों से कहो कि वे मेढ़े के सींग से बने सात नरसिंगे भी लें। उन्हें यहोवा के पवित्र सन्दूक के आगे आगे चलना होगा।"
\v 7 उसने लोगों से कहा, "जाओ और शहर के चारों ओर चक्कर लगाओ और हथियार लिए हुए पुरुषों को यहोवा के पवित्र सन्दूक के आगे चलने दो।"
\p
\s5
\v 8 यहोशू की सेना ने उसके आदेश अनुसार ही किया, सात याजक अपने अपने नरसिंगे लिए हुए, चक्कर लगाने लगे जैसे यहोवा ने कहा था। उन्होंने शहर के चक्कर लगाए और याजकों ने अपने नरसिंगे को बहुत ऊँचे शब्द से फूँका। यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठानेवाले, वे उनके पीछे पीछे चले।
\v 9 हथियार लिए हुए सैनिक नरसिंगे फूँकने वाले याजकों के आगे आगे गए। शेष सैनिक सन्दूक के पीछे पीछे चलते थे, जब वे चक्कर लगा रहे थे, तब याजक अपने नरसिंगों को लगातार फूँक रहे थे।
\s5
\v 10 परन्तु अन्य लोग चुप थे, क्योंकि यहोशू ने उन्हें यह कह कर आज्ञा दी थी, "युद्ध की ललकार मत करना। उस दिन तक न तो जयजयकार करना न ही एक शब्द भी मुँह से निकालना जब तक कि मैं तुम को जयजयकार करने के लिए नहीं कहता। उस दिन, तुमको जयजयकार करना है!"
\v 11 अतः यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाने वाले पुरुषों ने और अन्य सभी लोगों ने वही किया, जिसकी आज्ञा यहोशू ने उनको दी थी। उन्होंने प्रति दिन शहर के चारों ओर एक बार चक्कर लगाया। तब वे सभी शिविर में लौट आए और रात में वहाँ रहे।
\p
\s5
\v 12 अगले दिन सुबह, यहोशू और याजक शीघ्र उठे और यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठा लिया।
\v 13 वे सात याजक जो मेढ़ों के सींगों से बने नरसिंगे लिए हुए थे, पवित्र सन्दूक उठाए हुए याजकों के आगे आगे गए। जब वे चले, उन्होंने उनके ऊँचे शब्द से नरसिंगे फूँके। सैनिक उनके आगे आगे चले और सेना के पीछे के पहरेदार यहोवा के पवित्र सन्दूक के पीछे पीछे चले। याजक अपने नरसिंगों को लगातार फूँकते जा रहे थे।
\v 14 अतः उस दूसरे दिन, एक बार फिर से उन्होंने शहर के चारों ओर एक बार चक्कर लगाया और फिर शिविर में लौट आए। उन्होंने ऐसा छः दिन तक किया।
\p
\s5
\v 15 सातवें दिन, वे भोर को ही उठ गए उन्होंने शहर के चारों ओर वैसे ही चक्कर लगाया जैसे उन्होंने पहले किया था, लेकिन इस बार उन्होंने शहर के चारों ओर सात बार चक्कर लगाया।
\v 16 जब वे सातवीं बार चक्कर लगा रहे थे, और याजक अपने नरसिंगों पर लम्बा शब्द फूँकने को थे, तब यहोशू ने लोगों को आज्ञा दी, "जयजयकार करो! क्योंकि यहोवा तुमको यह शहर दे रहा है!
\s5
\v 17 यहोवा ने घोषणा की है कि यह शहर और जो कुछ इसमें है सब नष्ट करना होगा जिससे स्पष्ट हो कि यह उसका है। केवल राहाब वेश्या ही जीवित रहेगी - और उसके साथ जो लोग उसके घर में होंगे, क्योंकि उसने उन जासूसों को छिपाया था जिन्हें हमने भेजा था।
\v 18 और क्योंकि यहोवा की आज्ञा है कि सबकुछ नष्ट किया जाना चाहिए, तुम्हें इस शहर की किसी भी वस्तु को नहीं लेना है यदि तुम वहाँ से कुछ भी लेते हो, तो तुम यहोवा को विवश करोगे कि वह इस्राएल के शिविर को नष्ट करे और उस पर परेशानी डाले।
\v 19 परन्तु सभी चाँदी और सोना, और लोहे और काँसे से बनी वस्तुएँ जो तुमको मिलती हैं, उन्हें यहोवा के लिए अलग करना होगा। तुमको उन वस्तुओं को उनके भण्डार में रखना होगा।"
\p
\s5
\v 20 इसलिए उन्होंने यहोशू की आज्ञा के अनुसार ही किया। जब याजकों ने अपने नरसिंगों पर एक स्वर खींचा, तब लोगों ने जोर से जयजयकार किया, और शहर की दीवार गिर गई! तब लोग जहाँ भी थे वहीं से वे सीधे शहर में चले गए थे, और उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया।
\v 21 उन्होंने शहर में सभी जीवित प्राणियों को मार डाला पुरुष और स्त्री, जवान और बूढ़े, यहाँ तक कि मवेशी और भेड़ों और गधों को भी।
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने उन दो पुरुषों से जो उस देश का भेद लेने गए थे, कहा, "उस वेश्या के घर जाओ और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसे और उसके पूरे परिवार को बाहर ले आओ।"
\s5
\v 23 अतः जिन दो युवकों ने उस देश की छान-बीन की, वे राहाब और उसके पिता, माता, भाइयों और सभी सम्बन्धियों को बाहर लाए। वे उन्हें इस्राएल के शिविर के बाहर एक स्थान पर लाए।
\v 24 तब उन्होंने शहर को और जो कुछ उसमें था सब को जला दिया। उन्होंने चाँदी, सोना, और काँसे और लोहे के सभी पात्रों को बचा लिया, जिन्हें उन्होंने यहोवा के भवन के भण्डार में रखा जाना था।
\s5
\v 25 परन्तु यहोशू ने राहाब वेश्या को, और उसके पिता के घराने को, उसके साथ सब को जीवित रहने दिया। आज के दिन तक उसके वंशज इस्राएल में रहते हैं क्योंकि उसने उन भेदियों को छिपाया था जिनको यहोशू ने यरीहो की छान-बीन करने के लिए भेजा था। उन्होंने उनके जीवन की सुरक्षा की प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 26 उस समय, यहोशू ने बहुत ही गम्भीर घोषणा की थी: "यहोवा इस यरीहो शहर को फिर से बनानेवाले को शाप दे। जब वह व्यक्ति इसकी नींव रखता है, तो उसका सबसे बड़ा पुत्र मर जाए। और जब वह शहर की दीवार का निर्माण कर लेता है और इसके फाटकों को लगा देता है, तब उसका सबसे छोटा पुत्र मर जाए।"
\p
\v 27 यहोवा यहोशू के साथ था, और देश में हर कोई जानता था कि यहोशू कौन है।
\s5
\c 7
\p
\v 1 यहोवा ने यह आज्ञा दी थी कि यरीहो में जो कुछ उन्होंने अधिकार में कर लिया था, उसे नष्ट कर दिया जाए जिससे स्पष्ट हो कि वह यहोवा का है। परन्तु यहूदा के गोत्र में आकान नाम का एक व्यक्ति था। वह कर्म्मी का पुत्र, और जब्दी का पोता, और जेरा का परपोता था। उसने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना और उन वस्तुओं में से कुछ वस्तुएँ स्वयं के लिए रख लीं। इसलिए यहोवा इस्राएलियों से बहुत क्रोधित हो गए।
\p
\s5
\v 2 अब यहोशू ने अपने कुछ पुरुषों को यरीहो से ऐ शहर में जाने के लिए कहा, जो बेतेल के पूर्व और बेतावेन के पास था। उसने उनसे कहा, "ऐ को जाओ और उस क्षेत्र की जासूसी करो।" अतः उन पुरुषों ने जाकर शहर की जासूसी की।
\p
\v 3 जब वे यहोशू के पास लौट आए तो उन्होंने कहा, "ऐ में केवल कुछ ही लोग हैं। इसलिए उन पर आक्रमण करने के लिए केवल दो या तीन हजार को ही भेज। हमारे सभी सैनिकों को भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
\s5
\v 4 इसलिए लगभग तीन हजार इस्राएली पुरुष ऐ पर आक्रमण करने गए। परन्तु वे उन्हें पराजित नहीं कर पाए। इसकी अपेक्षा, उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा।
\v 5 शत्रु ने लगभग छत्तीस इस्राएली लोगों को मार डाला और शहर के फाटक से पहाड़ी के नीचे तक बचे हुओं का पीछा किया, वरन उस स्थान तक जहाँ उन लोगों ने एक पहाड़ी से पत्थर काटे थे। जब इस्राएल के लोगों ने यह देखा, तो वे बहुत डर गए और उनका साहस जाता रहा।
\p
\s5
\v 6 यहोशू ने अपना दुःख प्रकट करने के लिए अपने कपड़े फाड़ लिए। उसने और इस्राएल के अगुवों ने दुःख एवं क्रोध के कारण स्वयं को धरती पर मुँह के बल गिराया। वे यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने अंधेरा होने तक पड़े रहे।
\v 7 तब यहोशू ने प्रार्थना की और कहा, "हे यहोवा परमेश्वर, आप हम इस्राएलियों को यरदन नदी के पार सुरक्षित ले आए हैं; तो अब आप एमोरियों को हमें नाश करने की अनुमति क्यों दे रहे हैं? हमें यरदन नदी की दूसरी ओर ही रुक जाने का निर्णय लेना था।
\s5
\v 8 हे परमेश्वर, मेरे पास आपसे कहने के लिए और शब्द नहीं हैं। इस्राएल पराजय में भाग खड़ा हुआ है। अपने शत्रुओं को पीठ दिखाकर हम लज्जित हैं क्योंकि हम अपने शत्रुओं के सामने से भाग खड़े हुए हैं। मैं नहीं जानता कि क्या कहूँ।
\v 9 कनानी और इस क्षेत्र में रहनेवाले अन्य सभी लोग, इसके बारे में सुनेंगे। तब वे हमें चारों ओर से घेर लेंगे और हम सब को मार डालेंगे! तब आप अपने सम्मान की रक्षा के लिए क्या करेंगे?"
\p
\s5
\v 10 परन्तु यहोवा ने यहोशू से कहा, "खड़ा हो जा! अपने चेहरे को गन्दगी में डाल कर लेटा मत रह!
\v 11 इस्राएल ने पाप किया है। तुम लोगों ने मेरी आज्ञाओं को नहीं माना है। उन्होंने झूठ बोला है, उन्होंने चोरी की है, और चोरी के सामान को उसे रख लिया है और उसे छिपाने के लिए अपनी सम्पत्ति के साथ रखा है।
\v 12 यही कारण है कि इस्राएली अपने शत्रुओं को हराने में असमर्थ रहे हैं। यही कारण है कि वे भाग खड़े हुए हैं, और अब तुम स्वयं ही नष्ट हो जाओगे। यदि तुम मेरी आज्ञा के अनुसार यरीहो से ली गई सब वस्तुओं को नष्ट नहीं कर देते हैं, तो मैं अब से तुम्हारी सहायता नहीं करूँगा!
\p
\s5
\v 13 अब जा और लोगों से कह कि कल उन्हें स्वयं को अलग करना होगा और यहोवा का सम्मान करने के लिए तैयार रहना होगा। यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर यों कहता है, "तुमने उन वस्तुओं को अपने लिए रख लिया है जिन्हें मैंने नष्ट करने की आज्ञा दी थी। वे वस्तुएँ मुझे दी जानी चाहिए थी। जब तक तुम यरीहो से ली गई वस्तुओं से छुटकारा नहीं पाते हो जिन्हें तुमने अपनी सम्पत्ति के साथ छिपाया हुआ है, तब तक तुम अपने शत्रुओं को कभी पराजित नहीं कर पाओगे।"
\p
\s5
\v 14 कल सुबह तुम मेरे सामने गोत्र गोत्र करके उपस्थित होगे। तब मैं जिस गोत्र का नाम चिट्ठी डालने के द्वारा चुना जाएगा वह मेरे सामने अपने परिवारों के साथ एक एक करके आएगा और जिस परिवार को मैं चिट्ठी के द्वारा चुनता हूँ वह उनके घराने के हर एक सदस्य के साथ निकट आ जाएगा। जिस घराने को मैं चिट्ठी के द्वारा चुनता हूँ, उनमें से हर एक सदस्य, मेरे सामने आएगा।
\v 15 तब जिसने वे वस्तुएँ ले ली हैं जो मुझे दी जानी चाहिए थीं वह आग में नष्ट हो जाएगा। वह और उसके पास जो कुछ भी है वह जला दिया जाएगा, क्योंकि उसने यहोवा की ओर से हमारे साथ की गई प्रतिज्ञा और समझौते की अवज्ञा की है, और उसने इस्राएल के लोगों के बीच एक अपमानजनक पाप किया है।"
\p
\s5
\v 16 अगली सुबह भोर के समय, यहोशू ने सब इस्राएलियों को, गोत्र गोत्र करके आराधना के स्थान के पास आने के लिए कहा। जब उन्होंने ऐसा किया, तब यहोवा ने संकेत दिया कि यहूदा के गोत्र का एक व्यक्ति चुना गया है।
\v 17 तब यहूदा के कुलों ने स्वयं को उपस्थित किया, और यहोवा ने जेरह के वंश को चुना। तब जेरह के वंश के परिवारों ने स्वयं को उपस्थित किया, और यहोवा ने संकेत दिया कि वह व्यक्ति जब्दी के परिवार से है।
\v 18 तब यहोशू ने उस परिवार के पुरुषों को आज्ञा दी कि वे एक एक करके उपस्थित हों जिससे कि दोषी व्यक्ति का चयन किया जा सके। तब यहोवा ने संकेत दिया कि आकान ही वह दोषी व्यक्ति था और उसे यहूदा के लोगों से बाहर ले जाया गया। आकान कर्म्मी का पुत्र था; कर्म्मी जब्दी का पुत्र था; और जब्दी जेरह का पुत्र था।
\p
\s5
\v 19 तब यहोशू ने आकान से कहा, "हे पुत्र, इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के प्रति अपना अपराध मान ले। मुझे बता कि तू ने क्या किया है, और मुझसे छिपाने का प्रयास मत कर।"
\p
\v 20 आकान ने उत्तर दिया, "यह सच है। मैंने इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। मैंने जो किया वह यह है:
\v 21 यरीहो में मिली वस्तुओं के बीच में मैंने बेबीलोन का एक सुन्दर अंगरखा देखा था। वहीँ पर मैंने दो किलोग्राम चाँदी और कुछ सोना भी देखा जो छः सौ ग्राम वजन का था। मैं उन वस्तुओं का लालच करने लगा, इसलिए मैंने उन्हें ले लिया। मैंने उन्हें अपने तम्बू के नीचे भूमि में गाड़ा है। तू उन्हें वहीं पाएगा। चाँदी को उन सब के नीचे गाड़ दिया है।"
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने उन वस्तुओं को खोजने के लिए कुछ पुरुषों को भेजा। वे आकान के तम्बू में भाग कर गए और वहाँ छिपी हुई सब वस्तुएँ निकाल लीं।
\v 23 उन पुरुषों ने वह सब सामान तम्बू से बाहर निकाला और उन्हें यहोशू और इस्राएलियों के पास लेकर आए। तब उन्होंने यहोवा के लिए भेंट के जैसे उन्हें बाहर रखा।
\p
\s5
\v 24 तब यहोशू और सब लोग आकान को नीचे घाटी में ले गए। वे चाँदी, अंगरखा, सोना, आकान की पत्नी और पुत्रों और पुत्रियों, और उसके पशुओं और गधे, और भेड़, और उसके तम्बू और उसके पास जो कुछ भी था, वह सब ले गए।
\s5
\v 25 यहोशू ने कहा, "मुझे नहीं पता कि तू ने हमारे लिए इतनी परेशानी क्यों उत्पन्न की, परन्तु अब यहोवा तुम पर परेशानी डालेंगे।" तब सभी लोगों ने आकान पर पत्थर फेंके कि वह मर जाए, और उन्होंने उन सब को आग से जला दिया, और उन्होंने उन सब पर पत्थर फेंके।
\p
\v 26 उन्होंने उनकी लाशों की राख पर चट्टानों का ढेर लगा दिया, वे चट्टानें आज भी वहाँ हैं। यही कारण है कि उस घाटी को आज तक परेशानी की घाटी कहा जाता है।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "डर मत या निराश न हो। अपने साथ अपने सब सैनिकों को लेकर फिर से वहाँ जा। ऐ पर चढ़ाई कर। देख! मैं तुम्हें ऐ के राजा पर विजय दिला रहा हूँ, और तुम उसके लोगों, और उसके शहर, और उसके देश पर अधिकार करोगे।
\v 2 तेरी सेना ऐ और उनके राजा और वहाँ के लोगों के साथ वैसा ही करेगी जैसा तुमने यरीहो के लोगों और उनके राजा के साथ किया था। लेकिन इस बार मैं तुम्हें उनकी सारी संपत्ति लेने और उन्हें अपने लिए रखने की अनुमति दूँगा। परन्तु पहले, अपने कुछ सैनिकों को शहर के पीछे छिपने और हमला करने के लिए तैयार रहने के लिए कह।"
\p
\s5
\v 3 अतः यहोशू अपनी सारी सेना को ऐ की ओर ले गया। उसने तीस हजार पुरुषों को चुना उसके सबसे शक्तिशाली पुरुष, ऐसे पुरुष जो युद्ध में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे और उसने उनको रात के समय बाहर भेज दिया।
\v 4 उसने उनसे कहा, "ध्यान से सुनो! तुम में से कुछ को शहर पर अकस्मात आक्रमण करने के लिए तैयार रहना है जो शहर के पीछे की ओर से किया जाएगा। शहर से दूर मत जाना। तुम सब आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाओ।
\s5
\v 5 मैं और मेरे साथ रहने वाले पुरुष सुबह शहर की ओर बढ़ेंगे। शहर में रहने वाले लोग हमसे लड़ने के लिए बाहर आएँगे, जैसा कि उन्होंने पहले किया था। तब हम पीछे की ओर मुड़ेंगे और उनके सामने से भागने लगेंगे।
\v 6 वे सोचेंगे कि हम उनसे डर कर भाग रहे हैं जैसे हमने पहले किया था। इसलिए वे हमारा पीछा करते हुए शहर से दूर निकल आएँगे।
\v 7 तब तुम में से जो छिपे हुए होंगे, उन्हें बाहर आना होगा और भाग कर शहर में घुस जाना है और उस पर अधिकार कर लेना है। यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, यह शहर तुमको दे देगा।
\s5
\v 8 शहर पर अधिकार कर लेने के बाद, उसे जला देना। यहोवा ने हमें जो आदेश दिया है वह करो। यही वे आदेश है जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ।"
\p
\v 9 तब यहोशू ने उनमें से कुछ को ऐ नगर के पश्चिम में, ऐ और बेतेल के बीच छिप कर रहने और प्रतीक्षा करने के लिए भेजा। लेकिन यहोशू उस रात सैनिकों के मुख्य बल के बीच सो गया।
\p
\s5
\v 10 अगली सुबह भोर के समय, यहोशू ने अपने सैनिकों को एकत्र किया। उसने सैनिकों का और अन्य इस्राएली अगुवों का नेतृत्व किया; वे सब ऐ के लोगों पर आक्रमण करने गए।
\v 11 उन सब ने शहर के ठीक उत्तर में, ऐ के निकट अपने तम्बू खड़े किए, कि शहर के सब लोग उन्हें देख सकें। उनके और ऐ शहर के बीच एक घाटी थी।
\v 12 यहोशू ने लगभग पाँच हजार लोगों को ले लिया और उन्हें शहर के ठीक पश्चिम में ऐ और बेतेल के बीच जाने और छिप कर रहने के लिए कहा ताकि वे अकस्मात आक्रमण कर सकें।
\s5
\v 13 अतः उन पुरुषों ने ऐसा ही किया। सैनिकों का मुख्य दल शहर के उत्तर में था, और अन्य शहर के पश्चिम में छिपे हुए थे। उस रात यहोशू नीचे घाटी में चला गया।
\p
\v 14 जब ऐ के राजा ने इस्राएली सेना को देखा, तो वह और उसके सैनिक अगली सुबह भोर के समय उठ गए और शीघ्र ही शहर से बाहर उनसे लड़ने के लिए निकल आए। वे शहर के पूर्व में एक स्थान पर गए वहाँ से वे यरदन नदी के मैदान को देख सकते थे, परन्तु उन्हें नहीं पता था कि कुछ इस्राएली सैनिक शहर पर पीछे से आक्रमण करने के लिए तैयार होकर छिपे हुए थे।
\s5
\v 15 यहोशू और उसके साथ इस्राएली सैनिकों ने उन्हें खदेड़ने के लिए ऐ की सेना को अवसर दिया। और इस्राएल की सेना जंगल की ओर भागी।
\v 16 ऐ के पुरुषों को यहोशू और उसके लोगों का पीछा करने का आदेश दिया गया था। इसलिए उन्होंने शहर छोड़ दिया और यहोशू और उनकी सेना का पीछा किया।
\v 17 ऐ के और बेतेल के सब पुरुषों ने इस्राएलियों की सेना का पीछा किया। उन्होंने रक्षा के लिए ऐ में एक भी पुरुष को नहीं छोड़ा। उन्होंने शहर के फाटकों को खुला छोड़ दिया था।
\p
\s5
\v 18 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "अपना भाला उठा और ऐ की ओर संकेत कर, क्योंकि मैं तेरे सैनिकों को उस पर अधिकार करने के लिए योग्य कर दूँगा!" तो यहोशू ने अपने भाले से ऐ की ओर संकेत किया।
\v 19 जब छिपे हुए इस्राएली पुरुषों ने यह देखा तो वे अतिशीघ्र अपने छिपने के स्थान से निकले और भाग कर शहर में घुस गए। उन्होंने इस पर अधिकार कर लिया और इसमें आग लगा दी।
\p
\s5
\v 20 जब ऐ के पुरुषों ने मुड़ कर पीछे देखा, तो उन्हें अपने शहर से धुआँ उठता हुआ दिखाई दिया। परन्तु वे बच नहीं पाए, क्योंकि इस्राएली सैनिकों ने भागना बन्द कर दिया और अब वे उनके पीछे आने वाली सेना का सामना करने लगे।
\v 21 यहोशू और उसके पुरूषों ने देखा कि जो लोग छिपे हुए थे, उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया है और उसे जला रहे हैं, उन्होंने वहाँ से धुआँ उठता हुआ देखा। तो वे लौटे और ऐ के लोगों की हत्या करना शुरू कर दिया।
\s5
\v 22 इस बीच, जिन सैनिकों ने शहर पर अधिकार कर लिया था, वे बाहर आए और उन पर पीछे से आक्रमण किया। इसलिए ऐ के पुरुष इस्राएली सैनिकों के दो दलों से घिर गए थे। ऐ का कोई भी पुरुष बच नहीं पाया। इस्राएली तब तक लड़े जब तक कि उन्होंने उन सब को मार नहीं डाला।
\v 23 उन्होंने ऐ के राजा को बंदी बना लिया और उसे यहोशू के पास ले आए।
\p
\s5
\v 24 जब वे लड़ रहे थे, तब इस्राएली सेना ने ऐ के पुरुषों का खेतों में और जंगल में ऐ के पुरुषों का पीछा किया, और उन सब को मार डाला। तब वे ऐ के भीतर गए और जो कुछ अब भी जीवित था, मार डाला।
\v 25 उन्होंने बारह हजार पुरुषों और महिलाओं को मार डाला।
\v 26 यहोशू ऐ की ओर उसके भाले से तब तक संकेत करता रहा जब तक कि ऐ में रहने वाले सब लोग मार नहीं डाले गए।
\s5
\v 27 इस्राएली सैनिकों ने स्वयं के लिए जानवरों और अन्य वस्तुओं को ले लिया जो ऐ के लोगों की थीं, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने यहोशू से कहा था।
\p
\v 28 यहोशू और उसके सैनिकों ने ऐ को जला दिया और उसे सदा के लिए खंडहरों का ढेर बना दिया। यह आज भी एक त्यागा हुआ स्थान है।
\s5
\v 29 यहोशू ने ऐ के राजा को एक पेड़ पर फाँसी दी और शाम तक उसकी लाश को वहीं लटका रहने दिया। सूरज के ढलने के समय यहोशू ने अपने लोगों से राजा के शरीर को पेड़ से नीचे उतारने और उसे शहर के फाटक के पास फेंक देने की आज्ञा दी। ऐसा करने के बाद, उन्होंने उसके शरीर के ऊपर चट्टानों का एक बड़ा ढेर लगा दिया। चट्टानों का वह ढेर आज भी वहाँ है।
\p
\s5
\v 30 तब यहोशू ने अपने लोगों को आज्ञा दी कि एबाल पर्वत पर इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के लिए एक वेदी बनाएँ।
\v 31 उन्होंने उसे ठीक वैसा ही बनाया जैसा परमेश्वर के सेवक मूसा ने उन नियमों में लिखा था जिन्हें परमेश्वर ने उसे दिए थे। उन्होंने इसे उन पत्थरों से बनाया जो काटे नहीं गए थे, ऐसे पत्थर जिन पर उन्होंने लोहे के औज़ार का उपयोग नहीं किया था। तब इस्राएली लोगों ने यहोवा के लिए बलि चढ़ाई जिसे वेदी पर जला दिया गया था। उन्होंने उसके साथ मेल करने की प्रतिज्ञा करके भी बलि चढ़ाई।
\v 32 इस्राएलियों की आँखों के सामने, यहोशू ने पत्थरों पर मूसा को दिए गए परमेश्वर के नियमों की एक नकल तैयार की।
\s5
\v 33 इस्राएल के अगुवे, अधिकारी, न्यायी और अन्य इस्राएली वहीं पास में खड़े हुए थे। बहुत से ऐसे लोग जो इस्राएली नहीं थे, वे भी वहाँ थे। आधे लोग एक ओर एबाल पर्वत के नीचे की घाटी में खड़े थे, और अन्य आधे लोग दूसरी ओर गिरिज्जीम पर्वत के नीचे की घाटी में खड़े थे। पवित्र सन्दूक दो समूहों के बीच घाटी में था। और उन्होंने इस्राएल के लोगों को आशीर्वाद दिया जैसा यहोवा के दास मूसा ने उन्हें आरम्भ ही में करने के लिए कहा था।
\p
\s5
\v 34 तब यहोशू ने उन सब के सामने जो मूसा द्वारा लिखी गई बातें थीं पढ़ीं; इसमें वह सब था जो यहोवा ने उन्हें सिखाया था और उनके आज्ञा मानने पर आशीषों तथा आज्ञा न मानने पर श्रापों की प्रतिज्ञा की गई थी।
\v 35 यहोशू ने मूसा द्वारा दिए गए सब आदेशों को ध्यान से पढ़ा; उसने इस्राएल की सभा के सामने हर एक शब्द को पढ़ा। महिलाएँ और छोटे बच्चे भी वहाँ थे, और इस्राएलियों के मध्य रहने वाले परदेशी भी वहाँ थे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 यरदन नदी के पश्चिमी तट के क्षेत्रों पर राज करनेवाले अनेक राजा थे। वे हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों के राजा थे। वे पहाड़ी क्षेत्र में, पश्चिम की ओर निचली पहाड़ियों में और भूमध्य सागर के निकट के मैदानों में रहते थे। ऐ के साथ जो हुआ उसके बारे में उन्होंने सुना।
\v 2 इसलिए उन सब ने यहोशू और इस्राएली सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए एक अगुवे के अधीन अपनी सेनाएँ एकत्र कीं।
\p
\s5
\v 3 जब गिबोन शहर में रहने वाले लोगों ने सुना कि यहोशू की सेना ने यरीहो और ऐ के लोगों को पराजित किया है,
\v 4 तो उन्होंने इस्राएलियों को धोखा देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने कुछ लोगों को भेजा जिन्होंने उनके राजदूत होने का नाटक किया। इन पुरुषों ने कुछ पुराने बोरे और कुछ पुराने चमड़े के शराब के थैले लिए जिन्हें फट जाने के बाद जोड़ा गया था, और उन्हें गधों की पीठ पर लाद दिया।
\v 5 उन्होंने पुरानी जूतियों को पहन लिया जिन पर जोड़ लगा हुआ था और फटे पुराने वस्त्र पहने। और अपने साथ सूखी और फफूंदी लगी रोटी ले ली।
\s5
\v 6 वे गिलगाल गए जहाँ यहोशू और इस्राएलियों के तम्बू थे। उन्होंने उनसे कहा, "हम बहुत दूर के देश से यात्रा करके आए हैं। कृपया हमारे साथ शान्ति का समझौता करो।"
\p
\v 7 इस्राएली अगुवों ने गिलाद के उन लोगों से कहा (वे हिब्बी थे), "ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लोग निकट के ही रहनेवाले हो। हम तुम्हारे साथ समझौता कैसे कर सकते हैं?"
\p
\v 8 उन्होंने बल देकर यहोशू को उत्तर दिया, "हम आपके सेवक हैं!"
\p परन्तु यहोशू ने उत्तर दिया, "तुम कौन हो? तुम वास्तव में कहाँ से आते हो?"
\p
\s5
\v 9 गिबोन के लोगों ने उत्तर दिया, "हम आपके सेवक बनना चाहते हैं। हम आपके परमेश्वर यहोवा की प्रसिद्धि के कारण दूर देश से यहाँ आए हैं। हमने मिस्र में उसके द्वारा किए गए सब महान कामों के बारे में सुना है।
\v 10 और हमने सुना है कि उसने एमोरियों के उन दो राजाओं के साथ क्या किया जो यरदन नदी के पूर्व की ओर हैं सीहोन, जो राजा हेशबोन में शासन करता था, और ओग, बाशान का राजा जो अश्तारोत में रहता था।
\s5
\v 11 इसलिए हमारे अगुवों और हमारे लोगों ने हमसे कहा, 'कुछ खाना लो और इस्राएलियों से बात करने के लिए जाओ। उन्हें बताओ, "हम आपके सेवक बनना चाहते हैं। तो हमारे साथ शान्ति का समझौता करो।"
\v 12 "हमारी रोटी को देखो। जब हमने यहाँ तुम्हारे पास आने के लिए अपने घरों को छोड़ा था तब ये रोटियाँ ताज़ी और गर्म थीं। परन्तु अब यह सूखी और फफूंदी लगी हुई हैं।
\v 13 हमारे चमड़े के शराब के थैलों को देखो, हमारे निकलने से पहले हमने उन्हें शराब से भर दिया था तब वे नए थे, लेकिन अब वे फटे हुए और पुराने हैं। यहाँ आने के लिए लम्बी यात्रा करने के कारण हमारे कपड़े और हमारी जूतियाँ फट गई हैं।"
\p
\s5
\v 14 इस्राएली अगुवों ने उनके कुछ पुराने भोजन को स्वीकार कर लिया और शान्ति समझौता करने के लिए उनके साथ भोजन खाया। उन्होंने यहोवा से पूछने के बारे में नहीं सोचा कि उन्हें क्या करना चाहिए।
\v 15 इस प्रकार, यहोशू उनके साथ शान्ति हेतु तैयार हो गया। इस्राएलियों ने गिबोन के लोगों के साथ समझौता किया, जिसमें वे इन परदेशियों को न मारने के लिए सहमत हो गए थे। सब इस्राएली अगुवों ने इसके निमित्त गम्भीर शपथ खाई।
\p
\s5
\v 16 परन्तु, तीन दिन बाद इस्राएलियों ने जान लिया कि वे पुरुष गिबोन से आए थे और वे वास्तव में निकट ही रहते थे।
\v 17 इसलिए वे वहाँ गए जहाँ गिबोन के लोग रहते थे। केवल तीन दिन की यात्रा करने के बाद, वे उनके शहरों में आए: गिबोन, कपीरा, बेरोत और किर्यत्यारीम।
\s5
\v 18 परन्तु इस्राएलियों ने उन शहरों पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि उन्होंने उनके साथ शान्ति की गम्भीर शपथ खाई थी, और यहोवा ने उनकी इस प्रतिज्ञा को सुना था।
\p इस समझौते के कारण सब इस्राएली अपने अगुवों के प्रति क्रोधित थे।
\v 19 परन्तु अगुवों ने उत्तर दिया, "हमने उनके साथ शान्ति से रहने की शपथ खाई है और इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा ने हमारी इस शपथ को सुना है। इसलिए अब हम उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचा सकते।
\s5
\v 20 यदि हम उन्हें मार डालते हैं, तो परमेश्वर हमसे बहुत क्रोधित होगा और हमें दण्ड देगा क्योंकि हमने उनके साथ खाई अपनी शपथ को पूरा नहीं किया है, यह हमें गम्भीर शपथ से बाँधता है। परन्तु हम ऐसा कर सकते हैं:
\v 21 हम उन्हें जीने देंगे, परन्तु वे हमारे दास बने रहेंगे; वे लकड़ी काटेंगे और सब लोगों के लिए पानी भर कर लाएँगे।" अगुवों ने जैसी योजना बनाई थी वैसा ही हुआ।
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने गिबोन से लोगों को बुलाया और उनसे पूछा, "तुमने हमसे झूठ क्यों बोला? तुम्हारे घर हमारे निकट हैं; तुम हमारे निकट रहते हो, परन्तु हमें बताया कि तुम बहुत दूर देश से आए थे!
\v 23 अब तुम एक श्राप के अधीन रहोगे। तुम सदा के लिए हमारे दास होगे और हमारे परमेश्वर के घर के लिए लकड़ी काट कर लाओगे तथा पानी भरोगे।"
\p
\s5
\v 24 गिबोन के लोगों ने उत्तर दिया, "हमने आपसे झूठ बोला क्योंकि हम डर गए थे कि आप हमें मार डालेंगे। हमने सुना है कि यहोवा, जो तुम्हारा परमेश्वर है, उसने अपने दास मूसा को कह दिया था कि वह आपके लोगों को कनान में रहनेवाले हम सब को मारने में सक्षम करेंगे, और वह तुम्हें हमारा देश दे देंगे।
\v 25 तो अब आपको यह निर्णय लेना होगा कि तुम हमारे साथ क्या करोगे। जो कुछ भी तुम्हें अच्छा और सही लगता है वह तुम हमारे साथ करो।"
\p
\s5
\v 26 अतः यहोशू ने गिबोन के लोगों की जान बचाई; उसने इस्राएल की सेना को अनुमति नहीं दी कि उनकी हानि करें।
\v 27 उसने उन्हें इस्राएलियों के दास होने के लिए विवश किया। वे लकड़ी काटते थे और इस्राएल के लिए पानी भरते थे। साथ ही वे यहोवा की पवित्र वेदी के लिए आवश्यक लकड़ी और पानी भी लाते थे। और गिबोन के लोग आज भी, इस समय तक, ऐसा कर रहे हैं।
\s5
\c 10
\p
\v 1 यरूशलेम शहर के राजा अदोनीसेदेक ने सुना कि यहोशू की सेना ने ऐ पर अधिकार कर लिया है और शहर में सब कुछ नष्ट कर दिया है। उसने सुना कि उन्होंने ऐ के लोगों और उनके राजा के लोगों के साथ वैसा ही किया था जैसा उन्होंने यरीहो के लोगों और उनके राजा के साथ किया था। उसने यह भी सुना कि गिबोन शहर के लोगों ने इस्राएली लोगों के साथ शान्ति स्थापित कर ली है और वे अब इस्राएली लोगों के बीच रह रहे थे।
\v 2 यरूशलेम के लोग बहुत डर गए क्योंकि गिबोन अन्य शहरों के समान एक महत्वपूर्ण शहर था, जिनके राजा थे। गिबोन ऐ से भी बड़ा था, और उसके सभी सैनिक बहुत अनुभवी थे।
\s5
\v 3 तब राजा अदोनीसेदेक ने हेब्रोन के राजा होशाम को, यर्मुत के राजा पिराम, लाकीश के राजा यापी और एग्लोन के राजा दबीर को संदेश भेजे।
\v 4 संदेश में उसने कहा, "कृपया चले आओ और गिबोन पर आक्रमण करने में मेरी सहायता करो, क्योंकि गिबोन के लोगों ने यहोशू और इस्राएलियों के साथ शान्ति स्थापित कर ली है।"
\p
\s5
\v 5 अतः वे पाँच राजा जो उन समूहों पर शासन करते थे जो अमोर के वंशज थे यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मुत, लाकीश और दबीर के राजा अपने सैनिकों के साथ गिबोन आए और उससे युद्ध करने के लिए शहर को घेर लिया।
\p
\s5
\v 6 गिबोन के लोगों ने यहोशू को एक संदेश भेजा। उस समय वह गिलगाल में शिविर डाले हुए था। उन्होंने कहा, "हम आपके दास हैं। इसलिए हमें मत छोड़ो। हमारे पास शीघ्र चले आओ और हमें बचाओ! हमारी सहायता करो, क्योंकि एमोरियों के राजा और उनकी सेनाओं ने हम पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेनाओं को संगठित किया है!"
\p
\v 7 अतः यहोशू और उसकी सारी सेना, सैनिक और सबसे अच्छे योद्धा, गिलगाल से चल दिए।
\s5
\v 8 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "उन सेनाओं से मत डर! मैं उन्हें पराजित करने में तेरी सेना की सहायता करूँगा। उनका एक भी सैनिक तेरा विरोध नहीं करेगा।"
\p
\s5
\v 9 यहोशू की सेना पूरी रात चली और सुबह भोर के समय वहाँ पहुँच गई।
\v 10 जब उन्होंने इस्राएलियों की सेना को देखा तब यहोवा ने उन्हें घबरा दिया। यहोशू ने सेना का नेतृत्व किया और उसने उन्हें मार डाला गिबोन में उनके शत्रु बड़ी संख्या में मारे गए, और उनमें से बचे हुए जब बेथोरोन के मार्ग पर जा रहे थे। तब उसने उनका पीछा किया और अजेका और मक्केदा शहरों को जानेवाले मार्गों पर उन्हें मारा।
\s5
\v 11 जब वे इस्राएली सेना के सामने से भाग रहे थे तब यहोवा ने आकाश से उन पर बड़े बड़े पत्थर बरसाए। इस्राएल की सेना की तलवारों से मरने वालों की तुलना में ओलों के गिरने से मरनेवालों की संख्या कहीं अधिक थी।
\p
\s5
\v 12 जिस दिन यहोवा ने एमोरियों को पराजित करने में इस्राएलियों को सक्षम बनाया, उस दिन इस्राएलियों की आँखों के सामने यहोशू ने यहोवा से कहा था,
\q "हे सूर्य, गिबोन पर ठहर जा,
\q और हे चंद्रमा, तू अय्यालोन की घाटी पर ठहरा रह।"
\p
\s5
\v 13 और सूर्य ठहरा रहा और चंद्रमा हिला नहीं, जब तक कि इस्राएली सेना ने उनके शत्रुओं को मार नहीं डाला। क्या यह याशार की पुस्तक में नहीं लिखा गया था?
\q "सूर्य रुक गया; उस समय वह आकाश के बीच में था,
\q और लगभग एक पूरे दिन के लिए नहीं डूबा था।"
\p
\v 14 उस दिन, यहोवा ने एक महान चमत्कार किया। पहले कभी ऐसा दिन नहीं था, और तब से ऐसा कोई दिन कभी नहीं रहा है, जब यहोवा ने एक मनुष्य के कहने पर ऐसा काम किया था। उस दिन, यहोवा वास्तव में इस्राएल की ओर से युद्ध करने गए थे।
\p
\s5
\v 15 यहोशू और उसके साथ समस्त इस्राएल गिलगाल में अपने शिविर में लौट आए।
\p
\v 16 अब पाँच राजा भाग गए और मक्केदा में एक गुफा में छिप गए।
\v 17 तब किसी ने यहोशू से कहा, "हमने उन पाँच राजाओं को मक्केदा में एक गुफा में छिपे हुए देखा है!"
\s5
\v 18 जब यहोशू ने यह सुना, तो उसने कहा, "गुफा के प्रवेश द्वार पर कुछ बहुत बड़े पत्थरों को लुड़का दो, और उन पर पहरा देने के लिए वहाँ कुछ सैनिकों को छोड़ दो।
\v 19 लेकिन वहाँ मत रुको! अपने शत्रुओं का पीछा करो! उन पर पीछे से आक्रमण करो! उन्हें उनके शहरों से भागने मत दो, क्योंकि यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, उन पर विजय पाने में तुम्हारी सहायता करेंगे।"
\p
\s5
\v 20 तब यहोशू की सेना ने वही किया जो उसने उनसे कहा था। उन्होंने शत्रु के लगभग सब सैनिकों को मार डाला, परन्तु उनमें से कुछ बच कर अपने अपने शहर पहुँच गए थे।
\v 21 तब यहोशू की सेना यहोशू के पास लौट आई, जो अभी भी मक्केदा में अपने शिविर में था। तब देश में किसी ने भी इस्राएलियों की आलोचना करने का साहस नहीं किया।
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने कहा, "गुफा का प्रवेश द्वार खोलो और उन पाँच राजाओं को बाहर मेरे पास ले आओ!"
\v 23 अतः सैनिक उन पाँच राजाओं को गुफा से बाहर लेकर आए यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मुत, लाकीश और एग्लोन के राजा।
\s5
\v 24 जब वे उन राजाओं को यहोशू के पास लाए और उन्हें जमीन पर लेटने के लिए विवश किया, तब उसने सब इस्राएली सैनिकों को बुलाया और सेना के सरदारों से कहा, "यहाँ आओ और अपने पाँव इन राजाओं की गर्दनों पर रखो!" अतः सरदारों ने ऐसा किया।
\v 25 तब यहोशू ने उनसे कहा, "अपने किसी भी शत्रु से मत डरो! कभी निराश न हो! दृढ़ रहो और साहसी बनो। यहोवा तुम्हारे सब शत्रुओं के साथ ऐसा ही करेंगे जिनसे तुम युद्ध करोगे!"
\s5
\v 26 तब यहोशू ने पाँच राजाओं में से हर एक को अपनी तलवार से मार डाला और उनके शरीरों को पाँच पेड़ों से लटका दिया। उसने उनके शरीरों को सूरज ढलने तक पेड़ों पर लटका रहने दिया।
\v 27 सूर्य ढलने के समय, यहोशू ने उनके शवों को पेड़ों पर से नीचे उतरवाया और आज्ञा दी कि उन्हें उसी गुफा में फेंक दिया जाए जहाँ वे छिपे हुए थे। अतः सैनिकों ने ऐसा ही किया, और तब उन्होंने गुफा के प्रवेश द्वार पर उन बड़ी चट्टानों को फिर से रख दिया। और उन राजाओं की हड्डियाँ उस गुफा में आज तक हैं।
\p
\s5
\v 28 इसी प्रकार यहोशू की सेना ने मक्केदा पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। उन्होंने शहर में राजा को और हर एक को मार डाला। यहाँ तक कि उन्होंने किसी भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ा। उन्होंने मक्केदा के राजा के साथ वैसा ही किया जैसा उन्होंने यरीहो के राजा के साथ किया था।
\p
\s5
\v 29 तब यहोशू और सब इस्राएली दक्षिण-पश्चिम में मक्केदा से लिब्ना को गए और उस पर आक्रमण किया।
\v 30 यहोवा ने इस्राएलियों को उस शहर और उसके राजा को विजय दिलाई। यहोशू ने उस शहर में हर एक जीव को मार डाला; उसने एक व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा। यहोशू ने लिब्ना के राजा को मार डाला जैसे उसने यरीहो के राजा को मार डाला था।
\p
\s5
\v 31 तब यहोशू और उसकी सेना दक्षिण में लिब्ना से लाकीश तक गई। उन्होंने शहर को घेर लिया और इसके विरुद्ध युद्ध करना आरम्भ किया।
\v 32 युद्ध के दूसरे दिन, यहोवा ने इस्राएलियों को वह नगर दे दिया, और उन्होंने उसे जीत लिया। उन्होंने सभी लोगों सहित इसमें रहने वाले हर प्राणी को मार डाला। उसने लाकीश में वही काम किया जो उसने लिब्ना में किया था।
\s5
\v 33 गेजेर का राजा होराम और उसकी सेना लाकीश के सैनिकों की सहायता करने आए, लेकिन यहोशू की सेना ने होराम और उसकी सेना को पराजित कर दिया, और उनमें से एक को भी जीवित रहने नहीं दिया।
\p
\s5
\v 34 तब यहोशू और उसकी सेना पश्चिम में लाकीश से एग्लोन शहर गई। उन्होंने उसे घेर लिया और उस पर आक्रमण किया।
\v 35 उसी दिन, उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया और उसमें रहने वाले सब लोगों को मार डाला, जैसा कि उन्होंने लाकीश में किया था।
\p
\s5
\v 36 तब यहोशू और उसकी सेना एग्लोन से ऊपर पहाड़ियों में हेब्रोन शहर तक चली गई। उन्होंने इसके विरुद्ध युद्ध किया।
\v 37 और उस पर अधिकार कर लिया। उन्होंने राजा और हर जीवित प्राणी को मार डाला, जैसा कि उन्होंने एग्लोन में किया था। उन्होंने एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ा।
\p
\s5
\v 38 तब यहोशू और उसकी सेना मुड़ गई और दबीर शहर चली गई और इसके विरुद्ध युद्ध किया।
\v 39 उन्होंने उस शहर और उसके राजा पर अधिकार कर लिया, और पास के गाँवों पर भी अधिकार कर लिया। तब उन्होंने उसमें हर एक जीवित प्राणी को मार डाला; उन्होंने एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं रहने दिया। उन्होंने इन लोगों के साथ ऐसा किया जैसा उन्होंने हेब्रोन और लिब्ना में किया था।
\p
\s5
\v 40 इस प्रकार, यहोशू और उसकी सेना ने कनान के पूरे दक्षिणी भाग पर विजय प्राप्त की। उन्होंने उन राजाओं को पराजित कर दिया जिन्होंने पहाड़ी देश, दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि, निचले देशों में और तलहटी में शासन किया था। उन्होंने उन स्थानों में हर एक जीवित प्राणी को मार डाला, जैसी आज्ञा यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर ने उन्हें दी थी।
\v 41 यहोशू के सैनिकों ने कादेशबर्ने से गाजा तक के सब शहरों में लोगों को मार डाला, जिसमें गोशेन से गिबोन तक का सारा प्रदेश था।
\s5
\v 42 यहोशू की सेना ने एक ही बार में उन सब राजाओं पर विजय प्राप्त की और उनके क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया, क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा उनके लिए युद्ध कर रहे थे।
\p
\v 43 तब यहोशू और उसकी सेना गिलगाल में उनके शिविर में लौट आई।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब हासोर के राजा याबीन ने इन सब बातों के बारे में सुना जो हुई थीं, तो उसने मदोन के राजा योबाब को, शिम्रोन के राजा को और अक्षाप के राजा को संदेश भेजे, और उनसे अनुरोध किया कि वे अपनी अपनी सेना को भेजें और आकर इस्राएलियों से युद्ध करने में उसकी सहायता करें।
\v 2 उसने उत्तरी पहाड़ियों के राजाओं को और यरदन के मैदानी क्षेत्रों के राजाओं को, तथा गलील सागर के दक्षिण में, निचले देशों में भी संदेश भेजे थे। उसने पश्चिम में ऊँचे देश दोर के राजा को,
\v 3 पूर्व और पश्चिम दोनों में कनानियों, एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों और पहाड़ी देश में रहने वाले यबूसियों और मिस्पा के क्षेत्र में हर्मोन पर्वत से हिव्वियों के राजाओं को भी संदेश भेजे।
\s5
\v 4 इसलिए उन सब राजाओं की सेनाएँ एकत्र हुईं। उनके पुरुष समुद्र के किनारे की रेत के किनकों जितने थे। वे बड़ी संख्या में घोड़ों और रथों के साथ आए थे।
\v 5 वे सब राजा एक निश्चित समय पर आए और इस्राएल से युद्ध करने के लिए मेरोम के ताल पर एक शिविर में अपनी सेनाएँ रखीं।
\p
\s5
\v 6 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "उन से मत डर, क्योंकि कल इसी समय मैं उन्हें तुझे दे दूँगा। तुम उन्हें पराजित करोगे और उन सब को मार डालोगे। तब तुम्हें उनके सब घोड़ों को अपंग करना होगा और उनके सारे रथों को जला देना होगा।"
\p
\v 7 तब यहोशू और उसकी सेना मेरोम के ताल पर आई और बिना किसी चेतावनी के अपने शत्रुओं पर आक्रमण कर दिया।
\s5
\v 8 यहोवा ने इस्राएलियों के हाथों उन्हें पराजित किया और उन्होंने सीदोन शहर, मिस्रपोतमैत और पूर्व में मिस्पा तक उनका पीछा किया। जब तक उन्होंने उन सब को मार नहीं डाला तब तक उन पर आक्रमण करते रहे।
\v 9 तब यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया: उसने उनके शत्रुओं के घोड़ों को अपंग कर दिया और उसने उनके रथों को जला दिया।
\p
\s5
\v 10 तब यहोशू और उसकी सेना लौटकर हासोर शहर चली गई, और उस पर अधिकार कर लिया, और उनके राजा को मार डाला। हासोर उन सब साम्राज्यों का सबसे महत्वपूर्ण शहर था जो इस्राएल से युद्ध कर रहे थे।
\v 11 उन्होंने हासोर में रहने वाले हर एक प्राणी को मार डाला, और शहर को जला कर राख कर दिया।
\p
\s5
\v 12 यहोशू की सेना ने उन सब शहरों पर अधिकार कर लिया और उनके राजाओं को मार डाला। उन्होंने यह ठीक वैसे ही किया जैसा यहोवा के सेवक मूसा ने, उन्हें आदेश दिया था।
\v 13 यहोशू के लोगों ने हासोर को जला दिया, परन्तु उन्होंने उन अन्य शहरों को नहीं जलाया जो टीलों पर बने थे और दीवार से घिरे थे।
\s5
\v 14 इस्राएलियों ने अपने लिए उन पशुओं को ले लिया जो उनको खेतों में मिले थे और हर एक वस्तु जो मूल्यवान थी, ले लिया परन्तु उन्होंने शहरों में मिले हर मनुष्य और हर जीवित प्राणी को मार डाला।
\v 15 यहोवा ने मूसा को काम करने के जो निर्देश दिए थे, वही निर्देश मूसा ने यहोशू को दिए। और यहोशू ने वह सब कुछ किया जो यहोवा ने मूसा को करने का आदेश दिया था।
\p
\s5
\v 16 यहोशू की सेना ने उन सब जातियों को पराजित कर दिया था जो उस देश में रह रही थीं। उन्होंने पहाड़ी देश और दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि, गोशेन के सब क्षेत्र, पश्चिमी तलहटी, और यरदन के मैदान पर अधिकार कर लिया। उन्होंने इस्राएल के सब पहाड़ों और पहाड़ों के पास के सब निचले क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
\v 17 उन्होंने एदोम के दक्षिण में हलाक पर्वत से उत्तर में लबानोन के क्षेत्र के पास की घाटी में हेर्मोन पर्वत के पास बालगाद तक सारे देश पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उन क्षेत्रों के सब राजाओं को पकड़ कर मार डाला।
\s5
\v 18 यहोशू के लोगों ने लम्बे समय तक उन सब राजाओं के विरूद्ध युद्ध किया था।
\v 19 केवल एक ही शहर था जिसने इस्राएलियों के साथ शान्ति समझौता किया था; वे गिबोन में रहने वाले हिव्वियों के लोग थे। इस्राएलियों ने युद्ध में सब अन्य शहरों पर अधिकार कर लिया था।
\v 20 यहोवा ने सब अन्य जातियों को हठीला कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने इस्राएली सेना से युद्ध किया, और परमेश्वर ने उन सब को नष्ट करने के लिए इस्राएली सेना का उपयोग किया। परमेश्वर ने इस्राएली सेना को उनके शत्रुओं को पूरी तरह से नष्ट करने से नहीं रोका। यहोवा ने मूसा को ऐसा ही करने का आदेश दिया था।
\p
\s5
\v 21 यहोशू की सेना ने हेब्रोन, दबीर और अनाब के पास की पहाड़ियों में रहने वाले अनाकी दानवों से भी युद्ध किया। उन्होंने यहूदा और इस्राएल के पहाड़ी देश में रहने वाले लोगों से भी युद्ध किया, और उन्होंने उन सब लोगों को मार डाला और उनके शहरों को भी नष्ट कर दिया।
\v 22 जिसके परिणामस्वरूप, इस्राएल में अनाक के कोई भी वंशज जीवित नहीं बचे थे। केवल गाजा, गत और अश्दोद में ही कुछ जीवित बचे थे।
\s5
\v 23 यहोशू की सेना ने पूरे देश पर अधिकार कर लिया, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने बहुत पहले मूसा को कहा था। यहोवा ने इस्राएलियों को वह देश दे दिया, क्योंकि उन्होंने वह देश उन्हें देने की प्रतिज्ञा की थी। तब यहोशू ने उस देश को इस्राएली गोत्रों के बीच बाँट दिया। और उसके बाद, देश में शान्ति हो गई।
\s5
\c 12
\p
\v 1 इस्राएलियों ने यरदन नदी के पूर्व में अर्नोन नदी के किनारे से उत्तर में पर्वत हर्मोन तक यरदन नदी के पूर्व के देश पर अधिकार किया, जिसमें यरदन के मैदान के पूर्वी भाग में सम्पूर्ण देश भी था।
\m
\v 2 सीहोन एमोरियों का राजा था। वह हेशबोन में रहता था और अर्नोन नदी के किनारे पर अरोएर के क्षेत्र पर, उत्तर में यब्बोक नदी तक शासन करता था। उसका देश नदी के किनारे के मध्य से आरम्भ होता था, जो उसके देश और अम्मोनियों की देश के बीच की सीमा थी। सीहोन ने गिलाद के आधे हिस्से पर भी शासन किया।
\s5
\v 3 सीहोन ने यरदन के पूर्वी मैदान के देश पर गलील सागर के दक्षिण से लेकर मृत सागर तक शासन किया था। उसने मृत सागर के पूर्व में बेत्यशीमोत के दक्षिण से पिसगा पर्वत तक भी शासन किया था।
\m
\v 4 अन्य राजा जिसे इस्राएली सेना ने पराजित किया वह बाशान के क्षेत्र के राजा ओग था। वह राफा के दानवों के वंशजों में से अंतिम था। वह अश्तारोत और ऐद्रई के नगरों में रहता था।
\v 5 उसने उत्तर में पर्वत हेर्मोन और सलीकाह से, और पूर्व में सारे बाशान पर और पश्चिम में गेशूरियों और माकाथी लोगों की सीमाओं पर शासन किया। ओग ने गिलाद के आधे से अधिक राज्यों पर शासन किया, जहाँ तक हेशबोन के राजा सीहोन द्वारा शासित देश की सीमा थी।
\p
\s5
\v 6 मूसा, यहोवा के सेवक, और सारी इस्राएली सेना ने उन राजाओं की सेनाओं को पराजित कर दिया था। तब मूसा ने उस देश को रूबेन और गाद के गोत्र और मनश्शे के आधे गोत्र को दे दिया।
\p
\s5
\v 7 यहोशू और इस्राएली सेना ने उन राजाओं को भी पराजित किया जिन्होंने यरदन नदी के पश्चिमी किनारे के देश पर शासन किया था। वह देश लबानोन के पास घाटी में बालगाद से हलाक पर्वत के बीच था, जो एदोम तक जाता है। यहोशू ने इस्राएल के गोत्रों को उनका भाग होने के लिए वह भूमि दी,
\v 8 साथ ही पहाड़ी देश, निचले भाग, यरदन के मैदान, पहाड़ियाँ, मरुभूमि में, और दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि में, हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों के देश।
\s5
\v 9 जिन राजाओं पर इस्राएलियों ने विजय प्राप्त की थी वे निम्नलिखित शहरों में से थे: यरीहो, ऐ (जो बेतेल के पास था)
\v 10 यरूशलेम, हेब्रोन,
\v 11 यर्मुत, लाकीश,
\v 12 एग्लोन, गेजेर,
\s5
\v 13 दबीर, गेदेर,
\v 14 हेर्मा, अराद,
\v 15 लिब्ना, अदुल्लाम,
\v 16 मक्केदा, बेतेल,
\s5
\v 17 तप्पूह, हेपेर,
\v 18 अपेक, लश्शारोन,
\v 19 मदोन, हासोर,
\v 20 शिम्रोन्मरोन, अक्षाप,
\s5
\v 21 तानाक, मगिद्दो,
\v 22 केदेश, कर्मेल क्षेत्र में योकनाम,
\v 23 नापोत दोर क्षेत्र में दोर, गिलगाल के क्षेत्र में गोयीम,
\v 24 और तिर्सा।
\m वहाँ कुल इकतीस राजा थे जिन्हें इस्राएली सेना ने पराजित किया था।
\s5
\c 13
\p
\v 1 जब यहोशू बहुत बूढ़ा हो गया था, तब यहोवा ने उससे कहा, "यहोशू, अब तू बूढ़ा हो गया है, परन्तु तेरी सेना को अब भी बहुत भूमि पर अधिकार करना है।
\s5
\v 2 यहाँ उन देशों की एक सूची है जो रह गए हैं: पलिश्तियों का क्षेत्र और सारे गशूरी,
\v 3 (मिस्र के पूर्व में स्थित शीहोर से, और उत्तर में एक्रोन तक; पलिश्ती, गाजा, अश्दोद, अश्कलोन, गत और अक्रोन के नगरों के पाँच शासक अव्वियों का क्षेत्र)।
\s5
\v 4 दक्षिण में, तुझे अब भी उन क्षेत्रों पर अधिकार करना है जहाँ कनानी जाति के लोग रहते हैं; और अराह जो सीदोनियों का है, अपेक के पास, एमोरियों की सीमा तक;
\v 5 गबालियों का देश, पूरब की ओर सारा लबानोन, हर्मोन पर्वत के नीचे बालगाद से लेबोहमात तक।
\p
\s5
\v 6 अब भी लबानोन के पहाड़ी देश से मिस्रपोतमैम तक रहने वाले सभी लोगों पर तुझे अधिकार करना है, जिसमें सीदोन शहर के सब लोग हैं। मैं उन्हें तेरी सेना के पहुँचने से पहले बाहर निकाल दूँगा। जब तू इस्राएलियों में उस देश को बाँटेगा तब उन्हें यह भी देना सुनिश्चित करना क्योंकि मैंने तुझे ऐसा करने का आदेश दिया था।
\v 7 उस सारे देश को नौ गोत्रों और मनश्शे के आधे गोत्र में उत्तराधिकार के रूप में विभाजित करना।"
\m
\s5
\v 8 मनश्शे के आधे गोत्र के साथ, रूबेनियों और गादियों ने यरदन नदी के पूर्व की ओर अपना अपना भाग प्राप्त कर लिया, जो मूसा ने उन्हें दे दिया था।
\v 9 वह देश अरोएर से फैला हुआ है, जो अर्नोन (किनारे के बीच में स्थित शहर समेत) के किनारे पर है, मेदेबा के पठार तक, जो दीबोन शहर तक फैला हुआ है।
\s5
\v 10 इन देशों में एमोरियों के राजा सीहोन के नगर भी थे, जो हेशबोन में रहकर राज्य करता था, और वे अम्मोनियों की सीमा तक फैले थे;
\v 11 गिलाद, और गशूरियों और माकाथी लोगों का क्षेत्र, हेर्मोन पर्वत समेत, और बाशान का सम्पूर्ण क्षेत्र सलीका शहर में फैला हुआ है;
\v 12 बाशान के क्षेत्र में ओग के सब राज्य, जिसने अश्तारोत और एद्रेई के नगरों में राज्य किया था (रेफैम के बचे हुए लोगों को छोड़ दिया गया था); इन लोगों पर मूसा ने तलवार से आक्रमण किया था और दूर कर दिया था।
\s5
\v 13 परन्तु इस्राएलियों ने गशूर और माकाथी लोगों को कनान से नहीं निकाला था। ये लोग आज भी इस्राएलियों के साथ रहते हैं।
\p
\s5
\v 14 लेवियों को देश का कोई भाग नहीं मिला; वे एकमात्र गोत्र थे जिन्हें कोई भूमि नहीं मिली थी। मूसा ने उन्हें कोई भाग नहीं दिया। इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने उनसे कहा कि उसको दिए गए चढ़ावे उनके भाग होंगे।
\p
\s5
\v 15 मूसा ने रूबेन के गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी।
\v 16 इसलिए उनका क्षेत्र अरोने नदी की घाटी के किनारे पर अरोएर से और घाटी के बीच में जो शहर है, और जिसमें मेदेबा के पास पठार का क्षेत्र भी है।
\s5
\v 17 इसमें हेशबोन और उसके सारे शहर भी हैं जो पठार में हैं, जिनमें दीबोन, बामोतबाल और बेतबाल्मोन हैं;
\v 18 और यहास, कदेमोत, और मेपात,
\v 19 और किर्यातैम, सिबमा, और येरेथश्शहर जो घाटी में एक पहाड़ी पर खड़ा है।
\s5
\v 20 इस क्षेत्र में बेतपोर, पिसगा पर्वत की ढलानें, बेत्यशीमोत,
\v 21 पठार पर स्थित सभी नगर, और एमोरियों के राजा सीहोन का सम्पूर्ण राज्य; उसने हेशबोन में रहकर राज्य किया था; उन्हें मूसा ने मिद्यान के अगुवों के साथ पराजित किया था, और वहाँ राज्य करनेवाले सीहोन के प्रधान एवी, रेकेम, सूर, हूर और रेबा भी थे।
\s5
\v 22 इस्राएल के लोगों ने तलवार से बोर के पुत्र बिलाम को मार डाला, जो शकुन विचारता था। इस्राएलियों ने उसी समय तलवार से कई अन्य लोगों को भी मार डाला।
\v 23 रूबेन के गोत्र के लोगों की सीमा यरदन नदी है। यह रूबेन के लोगों को दिया गया, उत्तराधिकार था और उनके सब कुलों में बाँटा गया था। वे वहाँ उनके शहरों और गाँवों में रहते थे।
\p
\s5
\v 24 मूसा ने गाद के गोत्र को भी, गाद के लोगों के लिए वह देश दिया, और उनके हर एक परिवार को रहने के लिए आवश्यकता के अनुसार उस भूमि का भाग दिया।
\v 25 वे याजेर के समीप गिलाद के सब शहरों में, और अम्मोनियों के आधे देश में अरोएर तक, जो रब्बा के पूर्व में एक शहर है, रहने लगे।
\v 26 उनका क्षेत्र हेशबोन से रामतमिस्पे और बतोनीम तक, महनैम और दबीर तक फैला था।
\s5
\v 27 उनका देश घाटी में भी था: बेतहारम, बेतनिम्रा, सुक्कोत और सापोन, हेशबोन के राजा सीहोन का देश भी जिसकी सीमा यरदन नदी पर थी और गलील सागर के निचले सिरे तक फैली हुई थी, जो पूर्व में यरदन नदी के पार था।
\v 28 यह गाद के लोगों का उत्तराधिकार है जो उन्हें उनके कुलों की आवश्यकता के अनुसार दिया गया था, और उन शहरों और गाँवों के साथ था जहाँ वे रहते थे।
\p
\s5
\v 29 मूसा ने मनश्शे के आधे गोत्र को रहने के लिए उस क्षेत्र का एक भाग उत्तराधिकार में दिया। यह मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों को उनके कुलों की आवश्यकता के अनुसार दिया गया था।
\v 30 उनका क्षेत्र महनैम से आगे था, जिसमें बाशान का सम्पूर्ण क्षेत्र, बाशान के राजा ओग का सम्पूर्ण राज्य और बाशान में जोएर के सब नगर थे। इस क्षेत्र में साठ शहर हैं।
\v 31 उनके देश में गिलाद के आधे हिस्से के साथ-साथ अश्तारोत और एद्रेई के नगर भी थे (कभी-कभी उनको बाशान में ओग के राजसी शहरों के रूप में जाना जाता था)। ये मनश्शे के पुत्र माकीर के लोगों को दिए गए थे, और इसमें माकीर के आधे वंशज थे। उनकी आवश्यकता के अनुसार उनके कुलों को दिया गया था।
\p
\s5
\v 32 ये वे देश थे जिन्हें यरीहो के पूर्व में यरदन पार मूसा ने मोआब के मैदानों में रहते समय मूसा ने इस्राएलियों में बाँट दिया था।
\v 33 परन्तु लेवी के गोत्र को मूसा ने उत्तराधिकार में भूमि नहीं दी थी। यहोवा, जो इस्राएल का परमेश्वर है, उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वह उनका उत्तराधिकार होगा।
\s5
\c 14
\p
\v 1 याजकों के अगुवे एलीआजार, यहोशू, और बारह गोत्रों के अगुवों ने निर्णय लिया कि कनान में हर एक इस्राएली गोत्र को कौन सी भूमि दी जाए।
\s5
\v 2 साढ़े नौ गोत्रों में से हर एक के लिए चिट्ठियाँ डाल कर ऐसा किया गया था। यह ठीक वैसा ही था जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था, जिससे कि वह देश हर एक गोत्र और उसके कुलों को दिया जा सके।
\v 3-4 अब मूसा ने यरदन नदी पर पार होने से पहले ढाई गोत्रों के स्थायी अधिकार के रूप में भूमि दे दी थी। परन्तु लेवियों को उसने कोई उत्तराधिकार नहीं दिया था; उनके याजकीय कर्तव्यों के कारण उनके साथ अलग व्यवहार किया गया था। लेवियों को उस देश का कोई भाग नहीं दिया गया था। परन्तु उनके पशुओं के लिए चरागाह समेत रहने के लिए शहर दिए गए थे जिससे कि उनके परिवारों का पालन हो सके और यूसुफ के वंशजों को मनश्शे और एप्रैम दो गोत्रों में बाँटा गया था।
\v 5 इस्राएल के लोगों ने वही किया जिसकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी: उन्होंने देश के विभिन्न भागों को स्थायी सम्पत्ति के रूप में बाँट दिया।
\p
\s5
\v 6 यहूदा के गोत्र के कुछ लोग यहोशू के पास गए, जिस समय यहोशू और सब इस्राएली गिलगाल में थे उस समय यहूदा के गोत्र के कुछ लोग जिनमें यपुन्ने का पुत्र कालेब भी था यहोशू के पास गए। उसने यहोशू से कहा, "मुझे विश्वास है कि जब हम कादेशबर्ने में थे, तब यहोवा ने तेरे और मेरे बारे में भविष्यद्वक्ता मूसा से जो कहा था, वह तुझे स्मरण है।
\v 7 उस समय मैं चालीस वर्ष का था। मूसा ने कादेशबर्ने से इस देश का भेद लेने के लिए मुझे और तुझे और कुछ अन्य लोगों को भेजा। जब हम लौट आए थे, तब मैंने जो देखा था उसके बारे में मूसा को एक सच्चा समाचार सुनाया था।
\s5
\v 8 हमारे साथ गए अन्य पुरुषों ने जो समाचार सुनाया था, उसे सुनकर लोग डर गए थे। परन्तु मैं यहोवा के पीछे ही चला और उसने हमें जो आदेश दिया, उसका पालन किया।
\v 9 मूसा ने मुझसे प्रतिज्ञा की थी, 'जिस देश पर तू चला है वह तेरा स्थायी अधिकार होगा, यह एक अटल प्रतिज्ञा है। वह तेरे और तेरे वंशजों के लिए सदा का होगा। मैं तुझे यह दे रहा हूँ क्योंकि तू ने जो कुछ किया है, उसमें तू ने, मेरे परमेश्वर, यहोवा, की आज्ञा मानी है।
\p
\s5
\v 10 अब यहोवा ने मेरे लिए अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार ही किया है। मूसा ने जब यह कहा था उस समय हम मरुभूमि में ही थे और इस बात को आज पैंतालीस साल हो गए हैं और यहोवा ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मुझे इस पूरे समय जीवित और अच्छा रखा है। मुझे देख! मैं पचासी वर्ष का हूँ।
\v 11 आज मैं उतना ही बलवन्त हूँ जितना कि उस दिन था जब मूसा ने मुझे इस देश का भेद लेने के लिए भेजा था। मुझ में अब भी वैसी ही शक्ति है जैसी तब थी जब मैं जवान था। मैं युद्ध कर सकता हूँ या मैं बहुत दूर की यात्रा कर सकता हूँ और घर लौट आने की शक्ति भी मुझ में है।
\s5
\v 12 इसलिए कृपया मुझे वह पहाड़ी देश दे जिसे बहुत पहले, उस दिन यहोवा ने मुझे देने की प्रतिज्ञा की थी। उस समय, तू ने मुझे कहते सुना था कि वहाँ अनाकवंशी रहते हैं। तू ने मुझे यह भी कहते सुना था कि उनके शहर बड़े हैं और उनके चारों ओर उनकी रक्षा करने के लिए दीवारें हैं। परन्तु अब, सम्भवतः यहोवा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार हमारी सेना के साथ उन्हें खदेड़ने में मेरी सहायता करेगा।"
\p
\s5
\v 13 तब यहोशू ने परमेश्वर से विनती की कि वह कालेब को आशीर्वाद दे, और उसने कालेब को हेब्रोन शहर दे दिया।
\v 14 इस प्रकार, हेब्रोन कनजी यपुन्ने के पुत्र कालेब का निज भाग और घर बन गया। आज तक उसके वंशज वहाँ रहते हैं क्योंकि कालेब ने वह सब कुछ किया जो इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा ने उसे करने को कहा था।
\v 15 अब से पहले हेब्रोन का नाम किर्यतर्बा था (अर्बा अनाकवंशियों के बीच सबसे बड़ा मनुष्य था)। और देश में शान्ति थी; उन्होंने अब कोई युद्ध नहीं किया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 यहूदा के गोत्र को सौंपा गया देश उनके कुलों के बीच बाँटा गया था। उनका क्षेत्र दक्षिण में एदोम की सीमा पर सीन की मरुभूमि तक फैला हुआ था।
\v 2 यहूदा के गोत्र को दिए गए देश की दक्षिणी सीमा नमक सागर (जिसे मृत सागर भी कहा जाता है), के अन्त से दक्षिण की ओर जाने वाली खाड़ी से आरम्भ हुई थी।
\s5
\v 3 तब वह दक्षिण की ओर और अक्रब्बीम की पहाड़ी पर चली गई और सीन के साथ होती हुई एक बार फिर कादेशबर्ने के दक्षिण में, हेस्रोन के पास, अद्दार तक चली गई, और फिर कर्काआ की ओर मुड़ गई।
\v 4 वहाँ से वह अस्मोन होती हुई आगे बढ़ी, और वहाँ से मिस्र के ताल के साथ होती हुई पश्चिम में भूमध्य सागर की ओर मुड़ गई। यह तेरी दक्षिण सीमा होगी।
\s5
\v 5 यहूदा के गोत्र के देश की पूर्वी सीमा मृत सागर थी। वह उत्तर में यरदन नदी के अंत तक फैली हुई थी, जहाँ यह मृत सागर में गिरती है।
\v 6 उत्तरी सीमा उस बिंदु से आरम्भ होकर उत्तर में बेथोग्ला तक पहुँची। वहाँ से वह बेतराबा के उत्तर से बोहन के पत्थर (एक पत्थर जिसे रूबेन के पुत्र बोहन द्वारा स्थापित किया गया था) तक चली गई।
\s5
\v 7 उस बिंदु से सीमा पश्चिम की ओर मुड़ गई और आकोर की घाटी से दबीर तक चली गई। वहाँ से वह फिर से गिलगाल जाने के लिए उत्तर में मुड़ गई। गिलगाल उस मार्ग के उत्तर में है जो नदी की घाटी के दक्षिण की ओर अदुम्मीम की पहाड़ी पर जाता है। गिलगाल से सीमा पश्चिम में एनशेमेश में सोतों तक थी, और वहाँ से एनरोगेल तक।
\v 8 उस बिंदु से सीमा यबूसी शहर (यानी, यरूशलेम) के दक्षिणी ढलान के साथ है। वह सीमा रपाईम की घाटी के उत्तरी छोर पर हिन्नोम घाटी के पश्चिमी ओर वाली पहाड़ी के शीर्ष पर जाती है।
\s5
\v 9 वहाँ से सीमा उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियों के शीर्ष तक चली गई, जो नेफतोह के सोते तक और वहाँ से एप्रोन पर्वत के पास के नगरों तक पहुँची। वहाँ से सीमा पश्चिम की ओर बाला की ओर बढ़ी (जिसे अब किर्यत्यारीम नाम दिया गया है)।
\v 10 तब वह सीमा पश्चिम की ओर बाला के पार सेईर पर्वत की ओर बढ़ती गई। तब यह दक्षिण-पश्चिम में पर्वत यरीम के उत्तर की ओर चली गई (जिसे कसालोन भी कहा जाता है), और नीचे बेतशेमेश के पास गई। वहाँ से यह तिम्ना के पास से होती हुई निकली।
\s5
\v 11 तब वह सीमा उत्तर पश्चिम में एक्रोन के उत्तर में पहाड़ी पर चली गई। वहाँ से वह पश्चिम में बाला पर्वत से होती हुई शिक्करोन को गई और यब्नेल तक पहुँची और फिर उत्तर-पश्चिम में भूमध्य सागर तक चली गई।
\v 12 यहूदा के गोत्र को दिए गए क्षेत्र की पश्चिमी सीमा भूमध्य सागर थी। यहूदा के सब कुल उन सीमाओं के भीतर रहते थे।
\p
\s5
\v 13 यहोवा ने यहोशू को आज्ञा दी कि यहूदा के गोत्र के क्षेत्र का कुछ भाग कालेब को दे। इसलिए उसने किर्यतर्बा शहर कालेब को दिया, जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है। (अर्बा अनाक का पिता था।)
\v 14 कालेब ने अनाक लोगों के समूह के तीन कुलों को हेब्रोन छोड़ने के लिए विवश कर दिया। वे शेशै, अहीमन और तल्मै के कुल थे।
\v 15 तब कालेब वहाँ निकला और दबीर में रहने वाले लोगों के विरुद्ध युद्ध करने गया (जिसे पहले किर्यत्सेपेर नाम दिया गया था)।
\s5
\v 16 कालेब ने कहा, "यदि कोई किर्यत्सेपेर में लोगों पर आक्रमण करता है और उनके शहर पर अधिकार कर लेता है, तो मैं अपनी पुत्री अकसा को विवाह में उसे दे दूँगा।"
\v 17 कालेब के भाई केनाज के पुत्र ओत्नीएल ने उस शहर पर अधिकार कर लिया। अतः कालेब ने अपनी पुत्री अकसा को विवाह में उसे दे दिया।
\p
\s5
\v 18 जब कालेब की पुत्री ने ओत्नीएल से विवाह किया, तब उसने कहा कि वह अपने पिता से एक खेत देने के लिए कहे। तब अकसा अपने पिता कालेब से बात करने गई। जैसे ही वह उसके गधे से उतरी, कालेब ने उससे पूछा, "क्या तू कुछ चाहती है?"
\p
\s5
\v 19 अकसा ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं चाहती हूँ कि आप मेरे लिए कुछ करो। तू ने मुझे दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि दी है, परन्तु वहाँ पानी नहीं है। इसलिए कृपया मुझे कुछ ऐसी भूमि दो जिसमें सोते हों।" अतः कालेब ने उसे हेब्रोन के पास ऊपरी और निचले सोते दिए।
\p
\s5
\v 20 यहाँ देश के उन नगरों की एक सूची दी गई है जिन्हें परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र को देने की प्रतिज्ञा की थी। हर एक कुल को कुछ भूमि दी गई थी।
\m
\s5
\v 21 यहूदा के गोत्र को दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि में एदोम के क्षेत्र की सीमा के पास शहर दिए गए थे: कबसेल, एदेर, यागूर,
\v 22 कीना, दीमोना, अदादा,
\v 23 केदेश, हासोर, यित्नान,
\v 24 जीप, तेलेम, और बालोत।
\s5
\v 25 इसके साथ हासोर्हदत्ता, करिय्योथेस्रोन (जिसे हासोर भी कहा जाता है)
\v 26 अमाम, शमा, मोलादा,
\v 27 हसर्गद्दा, हेशमोन, बेत्पेलेत,
\v 28 हसर्शूआल, बेर्शेबा और बिज्योत्या।
\s5
\v 29 बाला, इय्यीम, एसेम,
\v 30 एलतोलद, कसील, होर्मा,
\v 31 सिकलग, मदमन्ना, सनसन्ना,
\v 32 लबाओत, शिल्हीम, ऐन और रिम्मोन। इन गाँवों के साथ उन्तीस शहर भी थे।
\m
\s5
\v 33 यहूदा के गोत्र को ये शहर पश्चिमी तलहटी के उत्तरी भाग में दिए गए थे: एशताओल, सोरा, अश्ना,
\v 34 जानोह, एनगन्नीम, तप्पूह, एनाम,
\v 35 यर्मूत, अदुल्लाम, सोको, अजेका,
\v 36 शारैम, अदीतैम, और गदेरा (जिसे गदेरोतैम भी कहा जाता है)। आसपास के गाँवों के साथ ये चौदह शहर थे।
\s5
\v 37 यहूदा के गोत्र को ये शहर पश्चिमी तलहटी के दक्षिणी भाग में दिए गए थे: सनान, हदाशा, मिगदलगाद,
\v 38 दिलान, मिस्पा, योक्तेल,
\v 39 लाकीश, बोस्कत और एग्लोन।
\s5
\v 40 इसके अतिरिक्त कब्बोन, लहमास, कितलीश,
\v 41 गदेरोत, बेतदागोन, नामा, और मक्केदा। आसपास के गाँवों के साथ ये सोलह शहर थे।
\s5
\v 42 यहूदा के गोत्र को ये शहर पश्चिमी तलहटी के मध्य भाग में दिए गए थे: लिब्ना, ऐतेर, आशान,
\v 43 यिप्ताह, अश्ना, नसीब,
\v 44 कीला, अकजीब, और मारेशा। आसपास के गाँवों के साथ ये नौ शहर थे।
\s5
\v 45 आसपास के नगरों और उनके गाँवों के साथ एक्रोन शहर भी था।
\v 46 एक्रोन से भूमध्य सागर तक, यहूदा के क्षेत्र में उनके गाँवों सहित अश्दोद शहर के पास का सारा क्षेत्र भी था।
\p
\v 47 अश्दोद और उसके आसपास के नगर और गाँव; गाजा और उसके आसपास के नगर और गाँव नीचे मिस्र के ताल और भूमध्य सागर के तट तक जितने नगर और गाँव हैं। यह सीमा तटीय रेखा के साथ-साथ थी।
\s5
\v 48 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के दक्षिण-पश्चिम भाग में भी नगर दिए गए थे: शामीर, यत्तीर, सोको,
\v 49 दन्ना, किर्यत्सन्ना (जिसे दबीर भी कहा जाता है)
\v 50 अनाब, एशतमो, आनीम,
\v 51 गोशेन, होलोन, और गीलो। आसपास के गाँवों के साथ ये ग्यारह शहर थे।
\s5
\v 52 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के दक्षिण मध्य भाग में भी नगर दिए गए थे: अराब, दूमा, एशान,
\v 53 यानीम, बेत्तप्पूह, अपेका,
\v 54 हुमता, किर्यतर्बा (अब हेब्रोन कहा जाता है), और सीओर। उनके आसपास के गाँवों के साथ ये नौ शहर थे।
\s5
\v 55 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के दक्षिणी भाग में भी नगर दिए गए थे: माओन, कर्मेल, जीप, यूता,
\v 56 यिज़्रेल, योकदाम, जोनाह,
\v 57 कैन, गिबा, और तिम्ना। आसपास के गाँवों के साथ ये दस शहर थे।
\s5
\v 58 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के मध्य भाग में भी नगर दिए गए थे: हलहूल, बेतसूर, गदोर,
\v 59 मरात, बेतनोत और एलतकोन। आसपास के गाँवों के साथ ये छः शहर थे।
\s5
\v 60 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के उत्तरी भाग, रब्बा और किर्यतबाल (जिसे किर्यत्बारीम भी कहा जाता है) में दो नगर दिए गए थे।
\v 61 यहूदा के गोत्र को मृत सागर के पास मरुभूमि में भी नगर दिए गए थे: बेतराबा, मिद्दीन, सकाका,
\v 62 निबशान, लोनवाला शहर, और एनगदी। आसपास के गाँवों के साथ ये छः शहर थे।
\p
\s5
\v 63 यहूदा के गोत्र की सेना यबूसी लोगों को बाहर निकालने में सफल नहीं हुई थी इसलिए वे यरूशलेम में ही रहे। वे आज भी यहूदा के गोत्र के मध्य में रह रहे हैं।
\s5
\c 16
\p
\v 1 एप्रैम और मनश्शे के दो गोत्रों को जो क्षेत्र दिया गया था ये दो गोत्र यूसुफ के वंशज थे वह यरीहो के पूर्व में यरदन नदी से आरम्भ हुआ था।
\v 2 यह यरीहो से बेतेल तक और फिर लूज तक पश्चिम में फैला हुआ था, और अतारोत के पास तक गया था, जहाँ एरेकी रहते हैं।
\s5
\v 3 वहाँ से पश्चिम में उस देश की सीमा तक फैला था जहाँ यपलेती लोग रहते थे, और फिर पश्चिम में निचले बेथोरोन के पास के क्षेत्र तक गया। वहाँ से यह पश्चिम में गेजेर तक और वहाँ से भूमध्य सागर तक रहा।
\v 4 यह वह क्षेत्र था जो यूसुफ, मनश्शे और एप्रैम के लोगों को उनके स्थायी अधिकार के रूप में प्राप्त हुआ था।
\s5
\v 5 एप्रैम के गोत्र के कुलों को दिए गए क्षेत्र की सीमा पूर्व में अत्रोतदार से आरम्भ हुई थी। यह ऊपरी बेथोरोन तक गई थी
\v 6 और भूमध्य सागर तक गई। उत्तर में मिकमतात से यह पूर्व की ओर तानतशीलो की ओर मुड़ गई, और पूर्व की ओर यानोह तक चली गई।
\v 7 यानोह से नीचे अतारोत तक गई और फिर नारा तक। वहाँ से यह यरीहो शहर पहुँची, और यरदन नदी पर समाप्त हुई।
\s5
\v 8 उत्तरी सीमा तप्पूह से पश्चिम में काना के नाले तक फैली हुई थी, और भूमध्य सागर में समाप्त हुई। यह वह क्षेत्र था जिसे एप्रैम के गोत्र के सब कुलों को दिया गया था।
\v 9 कुछ शहर और उनके आश्रित गाँव जिन्हें एप्रैम के लोगों के लिए अलग किया गया था, वे वास्तव में मनश्शे के लोगों को दिए गए क्षेत्र में थे।
\m
\s5
\v 10 एप्रैम के गोत्र के लोग कनानियों को गेजेर से निकाल नहीं पाए थे। कनानी अब भी वहाँ रहते हैं। परन्तु एप्रैम के लोगों ने उन्हें अपना दास बना लिया था।
\s5
\c 17
\p
\v 1 यह मनश्शे के गोत्र को दिए गए क्षेत्र की एक सूची है। मनश्शे का सबसे बड़ा पुत्र माकीर था, और उसका पोता गिलाद था। माकीर के सम्मान में, जो एक महान सैनिक था, उनके वंशजों को गिलाद और बाशान के क्षेत्रों में भूमि दी गई थी।
\v 2 मनश्शे के गोत्र में अन्य कुलों को भी भूमि दी गई थी: अबीएजेर, हेलेक, अस्रीएल, शेकेम, हेपेर और शमीदा के कुलों को। ये मनश्शे के वंशजों के नाम थे (वह स्वयं यूसुफ का पुत्र था)। हर एक कुल के लिए भूमि दी गई थी।
\p
\s5
\v 3 अब हेपेर का पुत्र सलोफाद, गिलाद का वंशज, जो माकीर का पुत्र था और मनश्शे का पोता था, उसके पुत्र नहीं थे। उसके पास केवल पुत्रियाँ थीं, और उनके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिल्का और तिर्सा थे।
\v 4 ये स्त्रियाँ एलीआजार (सभी पुजारियों के अगुवे), और यहोशू और अन्य इस्राएली अगुवों के पास गईं। उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि आप हमें कुछ भूमि दें, क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा था कि जैसे तुमने हमारे गोत्र में पुरुषों को भूमि दी है वैसे ही हमें भी दी जाए।" इसलिए एलीआजार ने यहोवा के आदेश के अनुसार ही किया: उसने उन्हें भी भूमि दी, जैसा उसने उनके चाचाओं के लिए किया था।
\s5
\v 5 तब मनश्शे के गोत्र के पास अंततः यरदन नदी के पश्चिम में देश के दस भाग और गिलाद में यरदन नदी के पूर्व की ओर दो भाग थे।
\v 6 और मनश्शे के गोत्र में इन स्त्रियों को भी पुरुषों के समान नदी के पश्चिमी तट पर भूमि दी गई थी। गिलाद के अन्य भाग मनश्शे के लोगों को दिए गए थे।
\s5
\v 7 मनश्शे के गोत्र को जो क्षेत्र दिया गया था वह शकेम के पास या जहाँ आशेर का गोत्र रहता था और मिकमतात के मध्य का था। इसकी सीमा दक्षिण में तप्पूह के सोते तक फैली हुई थी।
\v 8 तप्पूह शहर के पास का देश मनश्शे के गोत्र का था। परन्तु तप्पूह सीमा पर एप्रैम के गोत्र के पास था और वास्तव में एप्रैमी लोगों का था।
\s5
\v 9 इसकी सीमा दक्षिण में काना नदी के तट तक थी, और उस धारा के दक्षिण के सभी नगर मनश्शे के थे। मनश्शे की सीमा काना के ताल के उत्तर की ओर थी; और भूमध्य सागर तक गई थी।
\v 10 दक्षिण की ओर का क्षेत्र एप्रैम का था और उत्तरी क्षेत्र मनश्शे के गोत्र का था; भूमध्य सागर मनश्शे की सीमा थी। आशेर का गोत्र सीमा के उत्तर की ओर था, जबकि इस्साकार का गोत्र पूर्व में था।
\s5
\v 11 परन्तु इस्साकार और आशेर के गोत्रों को दी गई भूमि की सीमा के भीतर कुछ शहर थे, जो आसपास के गाँवों के साथ, वास्तव में मनश्शे के गोत्र के लोगों को दिए गए थे। ये शहर बेतशान, यिबलाम, दोर, एंदोर, तानाक और मगिद्दो थे (और सूची में तीसरा शहर नेपेत है)।
\m
\v 12 मनश्शे के गोत्र के लोग उन शहरों में रहने वाले लोगों को वहाँ से निकालने में सफल नहीं हुए थे, इसलिए कनानी लोग उनके देश में रहते थे।
\s5
\v 13 जब इस्राएली शक्तिशाली हो गए तब उन्होंने उन कनानियों को दास बना लिया था परन्तु वे उनकी भूमि को उनसे ले लेने में सफल नहीं हो पाए थे।
\p
\s5
\v 14 यूसुफ के वंशज (यानी, एप्रैम और मनश्शे के गोत्र) ने यहोशू से कहा, "आपने हमें केवल देश का एक ही क्षेत्र सौंपा है, परन्तु हमारे गोत्रों में लोगों की संख्या बहुत हैं। यहोवा ने हमें बहुत आशीषें दी हैं, तुमने हमें रहने के लिए भूमि का केवल एक छोटा सा भाग ही क्यों दिया?"
\p
\v 15 यहोशू ने उनसे कहा, "तुम्हारे लोग संख्या में अधिक हैं, तो जाओ और परिज्जियों और रपाइयों के देश में पेड़ों को काटकर अपनी फसलों के लिए और रहने के लिए स्थान तैयार करो। तुम्हें ऐसा ही करना होगा, क्योंकि पहाड़ी देश तुम्हारे रहने के लिए बहुत कम है।"
\p
\s5
\v 16 एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के लोगों ने उत्तर दिया, "पहाड़ी देश हमारे लिए पर्याप्त नहीं है, परन्तु हम वहाँ रहनेवाले कनानी लोगों के कारण मैदान में फैल नहीं सकते हैं। बेतशान और आसपास के गाँवों में रहने वाले कनानी लोगों के पास लोहे के पहियों वाले रथ हैं।"
\p
\v 17 यहोशू ने यूसुफ के घराने को, अर्थात् एप्रैम और मनश्शे को; उत्तर दिया, "तुम्हारे लोग वास्तव में संख्या में बहुत अधिक हैं और बहुत शक्तिशाली भी हैं इसलिए मैं तुम्हें देश का एक और भाग दूँगा:
\v 18 वह पहाड़ी देश भी तुम्हारा होगा। तुम्हें वहाँ पेड़ों को काटकर अपने रहने के लिए स्थान तैयार करना होगा। तुम कनानियों को निकाल पाओगे चाहे उनके पास लोहे के पहियों वाले रथ हों और वे शक्तिशाली ही क्यों न हों।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 इस्राएलियों की सारी सभा शीलो में एकत्र हुई और उन्होंने वहाँ एक तम्बू स्थापित किया जहाँ उन्होंने यहोवा की उपासना की, देश में अब और युद्ध नहीं हुए।
\v 2 तथापि, इस्राएल के सात गोत्रों को अभी तक कोई भूमि नहीं दी गई थी।
\s5
\v 3 यहोशू ने इस्राएल के लोगों से कहा, "तुम इतने लम्बे समय तक क्यों रुके हुए हो? तुम उस देश पर अधिकार करने में कितनी देरी करोगे जिसे देने की प्रतिज्ञा तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने की है।
\p
\v 4 अपने सातों गोत्रों में से प्रत्येक के तीन पुरुष चुनो। मैं उनको देश के उन भागों का भेद लेने के लिए उन्हें भेजूँगा जिन पर तुमने अब तक अधिकार नहीं किया है। जब वे ऐसा कर लें तब वे उसका लिख कर वर्णन करें कि वह देश कैसा है। वे एक नक्शा बनाकर वहाँ के नगरों और महत्वपूर्ण स्थानों की स्थिति दिखाएँगे और सपष्ट करेंगे कि वहाँ कौन सी जनजाति रहती है।
\s5
\v 5 वे शेष देश को सात भागों में विभाजित करेंगे। यहूदा का गोत्र दक्षिण में अपना स्थान रखेगा, और एप्रैम और मनश्शे के गोत्र उत्तर में अपना अपना स्थान रखेंगे।
\v 6 परन्तु वर्णन करते समय सातों गोत्रों के पुरुषों को उस देश के उन सात भागों का शेष देश के सात वर्णन करना होगा जिन्हें वे प्राप्त करना चाहते हैं, और उस लिखित वर्णन को मेरे पास लाना। यहोवा की आँखों के सामने मैं चिट्ठियाँ डाल कर निश्चित करूँगा कि किस गोत्र को कौन सा भाग दिया जाना चाहिए।
\s5
\v 7 परन्तु लेवी के गोत्र को कोई भाग नहीं दिया जाएगा, क्योंकि उनका प्रतिफल यहोवा के याजक होना है। गाद, रूबेन और मनश्शे के आधे गोत्र को पहले ही यरदन नदी के पूर्व का क्षेत्र दे दिया गया था। जैसा परमेश्वर के दास मूसा ने निर्णय लिया था, इसलिए उन्हें और भूमि नहीं मिलेगी।"
\p
\s5
\v 8 जब चुने गए लोग निकलने के लिए तैयार हो गए, तो यहोशू ने उनसे कहा, "जाओ और देश का भेद लो। फिर जो कुछ तुमने देखा है उसका वर्णन लिख कर ले आओ। तब मैं यहोवा की आँखों के सामने शीलो में चिट्ठियाँ डालकर निश्चित करूँगा कि कौन सा क्षेत्र किस गोत्र को दिया जाए।"
\v 9 अतः वे लोग चले गए और उस क्षेत्र में घूमे फिरे। तब उन्होंने उस देश के विभाजित सात भागों में से हर एक का वर्णन एक पुस्तक में किया। उन्होंने उस देश को उनके शहरों के साथ विभाजित किया था। तब वे शीलों में यहोशू के पास लौट आए।
\s5
\v 10 उनके लिखित वर्णन को पढ़ने के बाद, यहोशू ने यहोवा की उपस्थिति में चिट्ठियाँ डालीं कि सात इस्राएली गोत्रों में से प्रत्येक को कौन सी भूमि दी जाए।
\m
\s5
\v 11 पहला गोत्र जिसे उस देश की भूमि दी गई वह बिन्यामीन का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को कुछ भूमि दी गई थी। वह यहूदा के गोत्र और एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों को दी गई भूमि के बीच में थी।
\v 12 इसकी उत्तरी सीमा यरदन नदी से आरम्भ होकर पहाड़ी देश में यरीहो के उत्तरी किनारे के साथ पश्चिम तक गई थी। वहाँ वह सीमा पश्चिम में बेतावेन के पास मरुभूमि तक गई थी।
\s5
\v 13 वहाँ से यह दक्षिण से लूज तक (जिसे अब बेतेल कहा जाता है)। और नीचे अत्रोतदार तक गई है, जो निचले बेथोरोन के दक्षिण में पहाड़ी पर है।
\v 14 बेथोरोन के दक्षिण की पहाड़ी पर, सीमा मुड़ गई और दक्षिण में किर्यतबाल (जिसे किर्यत्यारीम भी कहा जाता है) तक गई थी। उस नगर में यहूदा के गोत्र के लोग रहते थे। वह उनकी पश्चिमी सीमा थी।
\s5
\v 15 उनके देश की दक्षिण सीमा किर्यत्यारीम के पास आरम्भ होकर पश्चिम में नेप्तोह के सोतों तक गई।
\v 16 वहाँ से यह रपाईम की घाटी के उत्तर की ओर बेन हिन्नोम की घाटी के पास पहाड़ी के तल तक गई। सीमा को शहर के दक्षिण में हिन्नोम घाटी के साथ यबूसियों के नगर एनरोगेल तक ले जाया गया।
\s5
\v 17 वहाँ से उनकी सीमा पश्चिम में एनशेमेश तक गई और अदुम्मीम की पहाड़ी के पास गलीलोत तक गई। और रूबेन के पुत्र बोहन के महान पत्थर तक हुई।
\v 18 वहाँ से सीमा बेतराबा के उत्तरी छोर तक और नीचे यरदन के मैदान तक गई थी।
\s5
\v 19 वहाँ से वह पूर्व में बेथोग्ला के उत्तरी छोर तक गई और मृत सागर के उत्तरी छोर पर समाप्त हुई, जहाँ यरदन नदी मृत सागर में गिरती है। वह उनकी दक्षिणी सीमा थी।
\v 20 यरदन नदी बिन्यामीन के गोत्र को दिए गए देश की पूर्वी सीमा थी। यह उन्हें दिए गए क्षेत्र की सीमाएँ थीं, हर एक सीमा का वर्णन स्पष्ट है।
\m
\s5
\v 21 बिन्यामीन के गोत्र को सौंपे गए देश थेः यरीहो, बेथोग्ला, एमेक्कसीस,
\v 22 बेतराबा, समारैम, बेतेल,
\v 23 अव्वीम, पारा, ओप्रा,
\v 24 कपरम्मोनी, ओप्नी, और गेबा। वहाँ कुल चौदह शहर थे, उनके गाँवों की गिनती नहीं की गई है।
\s5
\v 25 बिन्यामीन के गोत्र के पास ये शहर भी थेः गिबोन, रामा, बेरोत,
\v 26 मिस्पा, कपीरा, मोसा,
\v 27 रेकेम, यिर्पेल, तरला,
\v 28 सेला, एलेप, यबूस (वह शहर जहाँ यबूसी रहते थे, जिसे अब यरूशलेम कहा जाता है), गिबा और किर्यत। वहाँ कुल चौदह शहर थे, उनके गाँवों की गिनती नहीं की गई है। वह सारा क्षेत्र बिन्यामीन के गोत्र के कुलों को दिया गया था।
\s5
\c 19
\p
\v 1 दूसरा गोत्र जिसे भूमि दी गई थी वह शिमोन का गोत्र था। उस गोत्र के प्रत्येक कुल को भूमि दी गई थी जो यहूदा के क्षेत्र के मध्य में थी।
\s5
\v 2 शिमोन के क्षेत्र में निम्नलिखित शहर थे: बेर्शेबा, शेबा, मोलादा,
\v 3 हसर्शुआल, बाला, एसेम,
\v 4 एलतोलद, बतूल और होर्मा।
\s5
\v 5 शिमोन के क्षेत्र में सिकलग, बेत्मर्काबोत नगर भी शामिल थे। हसर्शूसा,
\v 6 बेतलबाओत, और शारूहेन। आसपास के गाँवों के साथ वे तेरह शहर थे।
\v 7 शिमोन को सौंपे गए क्षेत्र में चार नगर थे, ऐन, रिम्मोन, ऐतेर और आशान और उनके आसपास के गाँव।
\s5
\v 8 उन्हें एक ऐसे क्षेत्र में भी गाँव भी दिए गए थे जो दक्षिण में बालत्बेर (जिसे दक्षिणी मरुभूमि में रामा भी कहा जाता है) तक फैले हुए थे। यह शिमोन के गोत्र के कुलों को दिया गया क्षेत्र था।
\m
\v 9 यहूदा के गोत्र को आवश्यकता से अधिक भूमि दी गई थी, इसलिए उनका कुछ भाग शिमोन के गोत्र को दिया गया।
\m
\s5
\v 10 तीसरा गोत्र जिसे भूमि दी गई थी, वह जबूलून का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी। उनकी दक्षिणी सीमा सारीद से आरम्भ हुई।
\v 11 और पश्चिम में मरला और दब्बेशेत तक गई, और योकनाम शहर के सामने नदी के किनारे तक गई।
\s5
\v 12 सारीद से यह सीमा पूर्व की ओर मुड़ गई और किसलोत्ताबोर के पास के क्षेत्र में और फिर दाबरत तक और यापी तक चली गई।
\v 13 वहाँ से पूर्व में गथेपेर और इत्कासीन और उत्तर में रिम्मोन तक पहुँची। वहाँ से यह सीमा नेआ की ओर मुड़ गई।
\s5
\v 14 नेआ से यह सीमा दक्षिण में हन्नातोन तक और वहाँ से यिप्तहेल की घाटी तक पहुँची।
\v 15 जबूलून के क्षेत्र में कत्तात, नहलाल, शिम्रोन, यिदला और बैतलहम के नगर थे। आसपास के गाँवों के साथ वे कुल बारह शहर थे।
\m
\v 16 यह वह क्षेत्र था जो जबूलून के गोत्र के कुलों को दिया गया था, जिसमें शहर और उनके आसपास के गाँव भी थे।
\m
\s5
\v 17 चौथा गोत्र जिसे भूमि दी गई, वह इस्साकार का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी।
\v 18 उनके क्षेत्र में यिज्रेल, कसुल्लोत, शूनेम,
\v 19 हपारैम, शीओन, और अनाहरत शहर थे।
\s5
\v 20 इस्साकार के देश में रब्बीत, किश्योत, एबेस,
\v 21 रेमेत, एनगन्नीम, एनहद्दा, और बेत्पस्सेस शहर भी थे।
\v 22 इस्साकार के गोत्र को सौंपे गए क्षेत्र की सीमा ताबोर, शहसूमा और बेतशेमेश के नगरों के निकट थी, और पूर्व में यरदन नदी में समाप्त हो गई थी। आसपास के गाँवों के साथ कुल सोलह शहर थे।
\m
\s5
\v 23 वे नगर और आसपास के गाँव इस्साकार के गोत्र के कुलों को दिए गए थे।
\m
\s5
\v 24 पाँचवाँ गोत्र जिसे भूमि दी गई थी वह आशेर का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी।
\v 25 उनके देश में हेल्कत, हली, बेतेन, अक्षाप,
\v 26 अलाम्मेल्लेक, अमाद और मिशाल शहर थे। उनकी पश्चिमी सीमा कर्मेल पर्वत और शाहोर्लिब्नात से आरम्भ हुई।
\s5
\v 27 वहाँ से वह दक्षिण-पूर्व में बेतदागोन शहर तक और जबूलून के गोत्र को दी गई भूमि तक थी, और आगे यिप्तहेल की घाटी तक गई। वहाँ से सीमा पूर्व में और फिर उत्तर में बेतेमेक और नीएल और काबुल तक गई।
\v 28 तब पश्चिम में अब्दोन, रहोब, हम्मोन और काना के शहरों तक गई, और सीदोन तक आगे बढ़ी, जो एक बहुत बड़ा शहर था।
\s5
\v 29 सीदोन से सीमा दक्षिण में रामा की ओर बढ़ी और बहुत बड़े शहर सूर की ओर गई जिसके चारों ओर मजबूत दीवारें थीं, वहाँ से सीमा पश्चिम से होसा तक गई और अकजीब के क्षेत्र में भूमध्य सागर में समाप्त हो गई,
\v 30 उम्मा, अपेक, और रहोब तक गई। आसपास के गाँवों के साथ वे कुल बाईस शहर थे।
\m
\s5
\v 31 उनके नगर और गाँव उस क्षेत्र में थे जो आशेर के गोत्र के कुलों को दिया गया था।
\m
\s5
\v 32 छठा गोत्र जिसे भूमि दी गई वह था जो देश सौंपा गया था नप्ताली का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई।
\v 33 नप्ताली के देश की सीमा पश्चिम में हेलेप शहर के पास, सानन्नीम में विशाल बांज वृक्ष से आरम्भ हुई। और पूर्व में अदामीनेकेब और यब्नेल तक होती हुई यरदन नदी पर समाप्त हो गई।
\v 34 इसकी पश्चिमी सीमा अजनोत्ताबोर से होती हुई हुक्कोक तक गई और दक्षिण में जबूलून के गोत्र की सीमा तक, पश्चिम में आशेर के गोत्र की सीमा तक और पूर्व में यरदन नदी तक गई ।
\s5
\v 35 उनके क्षेत्र में दृढ़ दीवारों वाले कई शहर थे। ये शहर थेः सिद्दीम, सेर, हम्मत, रक्कत, किन्नेरेत,
\v 36 अदामा, रामा, हासोर,
\v 37 केदेश, एद्रेई, और एन्हासेर।
\s5
\v 38 नप्ताली के शहरों ने दृढ़ दीवारों वाले यिरोन, मिगदलेल, होरेम, बेतनात और बेतशेमेश भी थे। आसपास के गाँवों के साथ वे कुल उन्नीस शहर थे।
\m
\v 39 ये नगर और उनके आसपास के गाँव उस क्षेत्र में थे जो नप्ताली के गोत्र के कुलों को दिया गया था।
\m
\s5
\v 40 सातवाँ गोत्र जिसे भूमि दी गई थी वह दान का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी।
\v 41 उनके देश में ये शहर थेः सोरा, एशताओल, ईरशमेश,
\v 42 शालब्बीन, अय्यालोन और यितला।
\s5
\v 43 दान के देश में यह शहर भी थेः एलोन, तिम्ना, एक्रोन,
\v 44 एलतके, गिब्बतोन, बालात,
\v 45 यहूद, बनेबराक, गत्रिम्मोन,
\v 46 मेयर्कोन, रक्कोन, और यापो के पास का क्षेत्र।
\p
\s5
\v 47 परन्तु दान गोत्र के लोग उस देश पर अधिकार नहीं कर पाए जो उन्हें दिया गया था। तो वे पूर्वोत्तर में गए और लेशेम शहर में रहने वाले लोगों से युद्ध किया। उन्होंने उन सब लोगों को मार डाला। तब वे लेशेम में बस गए, और शहर के नाम को बदल कर दान कर दिया; दान उनके मूल पिता का नाम था।
\m
\v 48 ये सब नगर और उनके आसपास के गाँव उस क्षेत्र में थे जो दान के गोत्र में कुलों को दिया गया था।
\p
\s5
\v 49 इस्राएलियों के अगुवों द्वारा जनजातियों के बीच देश को विभाजित करने के बाद, कुछ क्षेत्र यहोशू को भी दिया गया।
\v 50 उन्होंने उसे तिम्नत्सेरह शहर दिया। यहोवा ने कहा था कि वह जो भी शहर चाहता था वह ले सकता था, और वही शहर था जिसे उसने चुना था। यह उस पहाड़ी क्षेत्र में था जिसे एप्रैम के गोत्र को दिया गया था। यहोशू ने उस शहर का फिर से निर्माण किया और वहाँ रहने लगा।
\p
\s5
\v 51 यह वे क्षेत्र थे जो इस्राएल के विभिन्न गोत्रों को दिए गए थे। एलीआजार (सभी पुजारियों के अगुवे), यहोशू और हर एक गोत्र के अगुवों ने देश को विभाजित कर दिया; उस समय वे शीलो में थे, और चिट्ठियाँ डाल कर निर्णय लिया गया कि कौन सा क्षेत्र किस गोत्र को प्राप्त होगा। यहोवा पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार से उनको देख रहे थे। इस प्रकार उन्होंने देश को विभाजित करना समाप्त कर लिया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 तब यहोवा ने यहोशू से कहा,
\v 2 "इस्राएली लोगों से कह कि उन्हें कुछ शहरों का चयन करना होगा, जैसा मैं ने मूसा से कहा था कि लोग वहाँ सुरक्षित होने के लिए भाग कर जा सकते हैं।
\v 3 यदि कोई व्यक्ति हत्या का विचार न रखते हुए, किसी को गलती से मार डालता है, तो वह इन शहरों में से किसी एक में भाग कर जा सकता है कि सुरक्षित रहे।
\p
\s5
\v 4 जब वह व्यक्ति उन शहरों में से किसी एक के फाटक पर आता है, तो उसे वहाँ के अगुवों को बताना होगा कि क्या हुआ है। अगर वे उसका विश्वास करें, तो उसे शहर में प्रवेश करने की अनुमति दें और उनके बीच रहने के लिए उसे स्थान दें।
\s5
\v 5 यदि मृतक व्यक्ति के सम्बन्धी उस शहर में बदला लेने के विचार से आते हैं, तो उस शहर के अगुवे उन्हें हत्यारे को ले जाने की अनुमति नहीं दें, क्योंकि जो हुआ वह एक आकस्मिक घटना थी। वह उस व्यक्ति से बैर नहीं रखता था; उसने जानबूझकर उसकी हत्या नहीं की थी।
\v 6 जिस व्यक्ति ने किसी की हत्या की है उसे उस शहर में तब तक रहना है जब तक कि शहर के न्यायाधीश उस पर मुकदमा न चलाएँ। अगर न्यायाधीश निर्णय लेते हैं कि वह व्यक्ति जो उनके शहर में भाग कर आया है, उसने जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को नहीं मारा है, तो वे उसे उस शहर में रहने की अनुमति दें, और जब तक कि उस समय सेवा कर रहे प्रधान याजक की मृत्यु न हो जाए तब तक उसे वहाँ रहना होगा। तब वह व्यक्ति सुरक्षित रूप से अपने घर लौट सकता है।"
\p
\s5
\v 7 इसलिए इस्राएलियों ने कुछ शहरों को चुना जहाँ लोग सुरक्षित रहने के लिए भाग कर जा सकते थे: गलील के क्षेत्र में केदेश को, पहाड़ी क्षेत्र को जहाँ नप्ताली का गोत्र रहता था; पहाड़ी क्षेत्र में शकेम को, जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था; और किर्य्यातर्बा के (जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है), पहाड़ी क्षेत्र को जहाँ यहूदा का गोत्र रहता था;
\v 8 मरुभूमि में, यरीहो के पास यरदन नदी के पूर्व में बेसेर को, जहाँ रूबेन का गोत्र रहता था; गाद के गोत्र के क्षेत्र में गिलाद के रामोत को और मनश्शे के गोत्र के क्षेत्र में बाशान के गोलान को चुना।
\s5
\v 9 उनके मध्य रहनेवाला कोई भी इस्राएली या कोई भी परदेशी जिसने किसी को गलती से मार डाला, उसे उन शहरों में से एक में भाग जाने की अनुमति थी। वहाँ वह मृतक के सम्बन्धियों से सुरक्षित होगा जो उससे बदला लेने के लिए उसे मार डालना चाहते हैं। वह उस शहर में तब तक रह सकता था जब तक कि उस पर मुकदमा करके सिद्ध न कर लिया जाए कि उसके हाथों हत्या सोच समझ कर नहीं की गई थी।
\s5
\c 21
\p
\v 1 लेवियों के कुलों के अगुवे याजक एलीआजार, नून के पुत्र यहोशू और इस्राएली लोगों के कुलों के प्रधानों से बात करने के लिए शीलो आए।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी कि हमें ऐसे शहर दिए जहाँ हम रह सकें और जहाँ हमें अपने पशुओं के लिए चरागाह मिलें।"
\s5
\v 3 अतः इस्राएली अगुवों ने यहोवा के इस आदेश का पालन किया। उन्होंने लेवी के गोत्र को अपने अपने क्षेत्र से बाहर शहर और चरागाह दिए।
\p
\s5
\v 4 इस्राएली अगुवों ने सबसे पहले कहात के वंशजों को शहर देने के लिए चिट्ठियाँ डालीं। यह कुल हारून का वंशज था। उन्होंने उसे तेरह शहर यहूदा, शिमोन और बिन्यामीन के गोत्र से दिए।
\v 5 कहात से निकले अन्य कुलों के लिए, इस्राएली अगुवों ने उन क्षेत्रों में से दस शहरों को दिया जो एप्रैम और दान के गोत्रों के पास थे, और साथ ही मनश्शे के गोत्र का भाग जो यरदन नदी के पश्चिम की ओर था, दिया।
\p
\s5
\v 6 गेर्शोन के कुलों के लोगों को, इस्राएली अगुवों ने इस्साकार, आशेर और नप्ताली के क्षेत्रों में से बाशान के क्षेत्र में से जहाँ मनश्शे का आधा गोत्र रहता था, तेरह शहर दिए गए।
\p
\v 7 मरारी से निकले कुलों के लोगों के लिए, इस्राएली अगुवों ने रूबेन, गाद और जबूलून के गोत्रों के क्षेत्रों में से बारह शहर दिए।
\p
\s5
\v 8 इस तरह, इस्राएली अगुवों ने लेवी के गोत्र को नगर और चरागाह दिए। यह मूसा को दी गई यहोवा की आज्ञा थी।
\m
\v 9 इस्राएली अगुओं द्वारा यहूदा और शिमोन के गोत्रों के क्षेत्र से लेवी के गोत्र को दिए गए नगरों तथा चारागाहों के नाम इस प्रकार हैंः
\v 10 सबसे पहले, हारून के वंशजों में से लेवी वंश के कहात के कुलों को इस्राएली अगुओं द्वारा चिट्ठियाँ डालीं। ये लोग याजकीय सेवा में थे।
\s5
\v 11 इस्राएल के अगुवों ने उन्हें यहूदा के पहाड़ी देश (अर्बा अनाक का पिता था) में किर्यतर्बा (जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है) और आस पास के चारागाह दिए।
\v 12 इस्राएली अगुवों ने पहले ही किर्यतर्बा के आसपास की खेती की जमीन और गाँवों को यपून्ने के पुत्र कालेब को सौंप दिया था।
\s5
\v 13 अतः इस्राएली अगुवों ने याजक हारून के वंशजों को हेब्रोन दे दिया। हेब्रोन उन शहरों में से एक था जहाँ लोग गलती से किसी व्यक्ति को मार डालने के बाद भाग कर जा सकते थे। हारून के वंशजों को उन्होंने ये नगर भी दिएः लिब्ना,
\v 14 यत्तीर, एशतमो,
\v 15 होलोन, दबीर,
\v 16 ऐन, युत्ता, और बेतशेमेश चरागाहों के साथ ये नौ शहर थे। ये शहर उन क्षेत्रों में स्थित थे जो यहूदा और शिमोन के गोत्रों के थे।
\s5
\v 17 इस्राएलियों के अगुवों ने हारून के वंशजों को बिन्यामीन के क्षेत्र में से भी कुछ नगर दिए: गिबोन, गेबा,
\v 18 अनातोत, और अल्मोन और उनकी चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\m
\v 19 आसपास की चरागाहों के साथ ये तेरह नगर थे, जो इस्राएली अगुवों ने, हारून के वंशज याजकों को दिए थे।
\m
\s5
\v 20 कहात से निकले अन्य कुलों को एप्रैम के गोत्र के क्षेत्र से चार नगर प्राप्त हुए।
\v 21 वे शहर थे, शकेम (जो उन शहरों में से एक था जहाँ लोग किसी को अनजाने में मार डाले जाने पर भाग कर जा सकते थे), गेजेर,
\v 22 कीबसैम, और बेथोरोन चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 23 कहात से निकले इन विशेष कुलों को दान के गोत्र के क्षेत्र में से आसपास की चरागाहों के साथ चार शहर प्राप्त हुए। ये शहर थेः एलतके, गिब्बतोन,
\v 24 अय्यालोन, और गत्रिम्मोन चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 25 कहात से निकले इन कुलों को मनश्शे के गोत्र को दिए गए क्षेत्र में से दो नगर भी मिले। तानाक और गत्रिम्मोन दो शहर - चरागाहों के साथ थे।
\m
\v 26 ये सब आसपास की चरागाहों के साथ दस नगर थे, जो कहात के इन विशेष कुलों से मिले थे।
\m
\s5
\v 27 इस्राएली अगुवों ने गेर्शोन से निकलने वाले कुलों को शहरों और आसपास की चरागाहों के साथ देने के लिए चिट्ठियाँ डालीं। ये कुल भी लेवी के वंशज थे। इसलिए इन कुलों को मनश्शे के आधे गोत्र से जो यरदन नदी के पूर्वी भाग में बस गया था दो शहर मिले वे शहर थे बाशान के क्षेत्र में गोलान, जो उन शहरों में से एक था जहाँ लोग सुरक्षा के लिए भाग कर जा सकते थे, और बेशतरा
\s5
\v 28 इन कुलों को इस्साकार के क्षेत्र से भी कुछ नगर मिले। वे शहर थेः किश्योन, दाबरत,
\v 29 यर्मूत, और एनगन्नीम चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\v 30 इन कुलों को आशेर के क्षेत्र से भी कुछ नगर प्राप्त हुए। ये शहर थेः मिशाल, अब्दोन,
\v 31 हेल्कात, और रहोब चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 32 इन कुलों को नप्ताली के क्षेत्र से कुछ नगर प्राप्त हुए। ये शहर थेः गलील के क्षेत्र में केदेश (उन शहरों में से एक जहाँ लोग अनजाने में किसी को मार डालने पर सुरक्षा के लिए भाग कर जा सकते थे), हम्मोतदोर और कर्तान चरागाहों के साथ ये तीन शहर थे।
\m
\v 33 अतः गेर्शोनियों को आसपास की चरागाहों के साथ तेरह शहर प्राप्त हुए।
\m
\s5
\v 34 इस्राएली अगुवों ने बाकी लेवियों को भी शहर दिए, अर्थात्, वे लोग जो मरारी के वंशजों से निकले कुलों से संबंधित थे। इन कुलों को जबूलून के क्षेत्र में से कुछ शहर मिले। ये शहर थेः योक्नाम, कर्ता,
\v 35 दिम्ना, और नहलाल चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 36 मरारी से निकले कुलों को रूबेन के क्षेत्र में से भी शहर प्राप्त हुए। ये शहर थेः बेसेर, यहसा,
\v 37 केदेमोत, और मेपाथ चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\v 38 मरारी से निकले कुलों को गाद के क्षेत्र में से भी शहर मिले। ये शहर थेः रामोत, जो गिलाद के उन शहरों में से एक था जहाँ लोग अनजाने में किसी को मार डालने पर सुरक्षा के लिए भाग कर जा सकते थे, और महनैम।
\s5
\v 39 वहाँ हेशबोन और याजेर के शहर भी थे चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\m
\v 40 मरारी से निकले वंशजों के सब कुलों को बारह शहर प्राप्त हुए क्योंकि इस्राएली अगुवों ने उनके लिए चिट्ठियाँ डाली थीं।
\p
\s5
\v 41 अतः लेवियों को सब इस्राएली गोत्रों के क्षेत्रों में से अड़तालीस शहर प्राप्त हुए। साथ ही उन शहरों के आस पास की चरागाहें भी मिली थीं।
\v 42 इन शहरों में से हर एक के आसपास चरागाह थी।
\p
\s5
\v 43 इस प्रकार यहोवा ने इस्राएली लोगों को वह सारा देश दे दिया जिसे उसने उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की थी। इस्राएलियों ने इन क्षेत्रों पर अधिकार किया और उनमें बस गए।
\v 44 जैसे उसने उनके पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी, यहोवा ने उनके चारों ओर के शत्रुओं से उन्हें शान्ति दिलाई। उनके किसी भी शत्रु ने उन्हें पराजित नहीं किया। यहोवा ने इस्राएलियों के सब शत्रुओं को पराजित करने में उनकी सहायता की थी।
\v 45 यहोवा ने इस्राएलियों से की गई अपनी प्रत्येक प्रतिज्ञा को पूरा किया। उसकी प्रत्येक प्रतिज्ञा सच्ची सिद्ध हुई।
\s5
\c 22
\p
\v 1 यहोशू ने तब रूबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे गोत्र के अगुवों को बुलाया।
\v 2 उसने उनसे कहा, "तुम ने यहोवा के दास मूसा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। तुमने वह भी किया है, जो मैंने आदेश दिया था।
\v 3 तुमने अन्य गोत्रों के साथ शत्रुओं को हराने में सहायता की है। तुमने परमेश्वर यहोवा की सिखाई हुई बातों और आज्ञाओं का पालन किया है।
\s5
\v 4 उसने तुम्हारे साथी इस्राएलियों को शान्ति देने की प्रतिज्ञा की थी, और उसे पूरा भी किया है। इसलिए अब तुम यरदन नदी के पूर्व में, जो स्थान मूसा ने तुम्हें दिया था, वहाँ अपने घर लौट सकते हो।
\v 5 मूसा ने यह आज्ञा भी दी थी कि तुम अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो और उसकी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीओ। उसने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करने और उस पर भरोसा रखने और अन्य सब से दूर रहने के लिए भी कहा था। अपने विचारों और कार्यों द्वारा उसकी सेवा करो और उसकी उपासना करो।"
\p
\v 6 तब यहोशू ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें विदा किया, वे अपने तम्बू में लौट आए।
\s5
\v 7 मूसा ने यरदन नदी के पूर्व में बाशान का क्षेत्र मनश्शे के आधे गोत्र को दिया था, और यहोशू ने यरदन नदी के पश्चिम में उस गोत्र के दूसरे आधे भाग को भूमि दी। जब यहोशू ने उन्हें उनके तम्बू में भेज दिया, तब उसने परमेश्वर से विनती की कि उनको आशीर्वाद दे।
\v 8 उसने उनसे कहा, "बहुत धन, कई जानवरों, और चाँदी, सोने, काँसे, और लोहे, और कई सुन्दर कपड़ों के साथ अपने तम्बुओं में लौट जाओ। परन्तु अपने शत्रुओं से मिली लूट को अपने भाइयों और बहनों के साथ अवश्य बाँटना।"
\p
\s5
\v 9 तब रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों ने कनान क्षेत्र के शीलो में अन्य इस्राएलियों से विदा ली और घर, गिलाद लौट आए यहोवा के आदेश से मूसा ने उन्हें यह स्थान दिया था।
\p
\s5
\v 10 वे कनान देश में यरदन नदी के पश्चिमी तट पर पहुँचे। वहाँ रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों ने एक वेदी बनाई एक बहुत बड़ी और प्रभावशाली वेदी।
\v 11 इस्राएल के अन्य लोगों ने इस वेदी के बारे में सुना; वे रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों की इस रचना पर चिन्तित हुए। यह वेदी कनान देश के प्रवेश स्थान पर गलीलोत शहर में, यरदन के पास, इस्राएल देश के एक भाग में बनाई गई थी।
\s5
\v 12 इस्राएलियों ने इस बारे में सुना, और लोगों की सारी सभा शीलो में एकत्र हुई। इस वेदी के कारण उन्होंने जाकर उनसे युद्ध करने का निर्णय लिया।
\p
\s5
\v 13 परन्तु पहले, इस्राएलियों ने एलीआजार के पुत्र और सब याजकों के अगुवे पीनहास को रूबेन, गाद और मनश्शे के लोगों से बात करने के लिए भेजा।
\v 14 उन्होंने यरदन नदी के पश्चिम में इस्राएल के दस गोत्रों में से एक एक अगुवे को भी उसके साथ भेजा। हर एक अगुवा उनके स्वयं के कुल में एक महत्वपूर्ण मनुष्य था।
\p
\s5
\v 15 वे अगुवे गिलाद के क्षेत्र में रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों से बात करने आए। उन्होंने कहा,
\v 16 "सब इस्राएली पूछ रहे हैं, 'तुमने यह क्या किया है? तुमने अपने परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ा है। इस स्थान पर अपनी वेदी बनाकर तुम यहोवा के विरोधी हो गए हो। तुमने यहोवा से विद्रोह किया है।
\s5
\v 17 क्या तुम भूल गए कि पोर में जब हम यहोवा को छोड़ अन्य देवताओं की पूजा करने लगे थे तब यहोवा ने हमें कैसा दण्ड दिया था? यहोवा ने इस्राएल के लोगों में एक घातक महामारी भेजी थी, जिससे बहुत से लोग मर गए थे।
\v 18 इस वेदी को बनाने में तुम्हारा विचार यहोवा की उपासना बंद करना है। यदि यह सच है, तो तुमने ऐसा करके उससे विद्रोह किया है; इसके कारण वह इस्राएल के सब लोगों से क्रोधित होगा।'
\p
\s5
\v 19 "यदि तुम सोचते हो कि यहोवा तुम्हारे देश को उसकी उपासना के लिए उचित नहीं मानता है, तो हमारे देश में लौट आओ जहाँ यहोवा का पवित्र तम्बू है। हम अपने देश को तुम्हारे साथ बाँट सकते हैं। लेकिन हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए एक और वेदी बनाकर यहोवा के विरुद्ध या हमारे विरुद्ध विद्रोह न करो।
\v 20 तुम्हें निश्चय ही स्मरण होगा कि जब जेरह के पुत्र आकान ने यरीहो में सब कुछ नष्ट करने के यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया था तब क्या हुआ था? उस व्यक्ति ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी थी और उसके कारण अन्य इस्राएली लोगों को दण्ड दिया गया था।"
\p
\s5
\v 21 रूबेन, गाद के गोत्रों और मनश्शे के आधे गोत्र के अगुवों ने उत्तर दिया,
\v 22 "सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जानता है कि हमने ऐसा क्यों किया, और हम चाहते हैं कि तुम भी जान लो। यदि हम यहोवा की सेवा करने की अपनी प्रतिज्ञा में विश्वासयोग्य नहीं हैं, तो हम पर कोई दया न करे, और हमारा जीवन ले लें।
\v 23 यदि हमने यह वेदी इसलिए बनाई है, कि हम यहोवा की आज्ञाओं का पालन करना बंद कर दें, या यदि हमने इस वेदी को बलिदान चढ़ाने, अन्नबलि चढ़ाने या उसके साथ मित्रता की वाचा के बलिदान चढ़ाने के लिए बनाया है, तो कानून के उल्लंघन में, यहोवा हमें दण्ड दे, यहाँ तक कि हमारे जीवन ले ले।
\p
\s5
\v 24 नहीं, हमने यह वेदी इसलिए बनाई कि हमें डर था कि भविष्य में एक दिन आपके बच्चे हमारे बच्चों से बात कर सकते हैं और पूछ सकते हैं, 'इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के साथ आपका क्या लेना देना है?'
\s5
\v 25 हमें डर है कि वे हमारे बच्चों से कहेंगे, "यहोवा ने यरदन नदी को हमारे और रूबेन के और गाद के लोगों के बीच सीमा निर्धारित की है। तुम्हारा यहोवा के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। और तुम्हारे बच्चे हमारे बच्चों को यहोवा की उपासना करने से रोकने का प्रयास कर सकते हैं।
\p
\s5
\v 26 इसलिए हमने कहा, 'आओ अब हम एक वेदी बनाएँ, परन्तु बलि चढ़ाने के लिए और भेंट चढ़ाने के लिए नहीं।
\v 27 हम तो चाहते हैं कि यह वेदी आपके और हमारे लिए, और हमारे बाद हमारे वंशजों के लिए एक स्मारक हो, कि हम वास्तव में यहोवा की उपासना करें। हम वास्तव में जलाने वाली बलियों और हमारे चढ़ावों, और परमेश्वर के साथ मेल की वाचा के हमारे चढ़ावों के द्वारा उसकी उपासना करते हैं। हमने इस वेदी को इसलिए बनाया कि तुम्हारे वंशज भविष्य में हमारे वंशजों से कभी न कहें, "यहोवा ने तुमको इस देश का कोई भाग नहीं दिया है, तुम यहाँ के नहीं हो।"
\p
\s5
\v 28 भविष्य में, यदि तुम्हारे वंशज ऐसा कहें तो, हमारे वंशज कह सकते हैं, 'हमारे पूर्वजों ने जो वेदी बनाई है उसे देखो! यह शीलो में यहोवा की वेदी जैसा है, परन्तु हम उस पर बलि नहीं जलाते हैं। यह एक स्मारक है जिसका अर्थ है कि हम और तुम एक साथ यहोवा की उपासना करते हैं।
\v 29 हम यहोवा से विद्रोह कदापि नहीं करना चाहते हैं या उसकी इच्छा को पूरा करना बंद नहीं करना चाहते हैं। इस वेदी को कभी भी बलि चढ़ाने, अन्न के चढ़ावे जलाने या अन्य कोई बलि देने के विचार से कभी नहीं बनाया गया है। हम जानते हैं कि हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए केवल एक ही सच्ची वेदी है और वह पवित्र तम्बू के सामने है।"
\p
\s5
\v 30 जब याजक पीनहास और इस्राएलियों के दस अगुवों ने सुना, कि रूबेन, गाद और मनश्शे के लोगों ने क्या कहा, तो वे प्रसन्न हुए।
\v 31 तब पीनहास ने उनसे कहा, "अब हम जानते हैं कि यहोवा सब इस्राएलियों के साथ है, और उस वेदी को बनाकर तुम उससे विद्रोह नहीं कर रहे थे। तुमने जो किया है वह यहोवा के नियमों को नहीं तोड़ता है, हमें निश्चय है कि वह हमें दण्ड नहीं देगा।
\p
\s5
\v 32 तब पीनहास और इस्राएली अगुवों ने रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों से विदा ली, और गिलाद से कनान लौट आए। वहाँ उन्होंने अन्य इस्राएलियों को बताया कि क्या हुआ था।
\v 33 वे प्रसन्न हुए, और उन्होंने परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों से युद्ध करके उनको नष्ट कर देने के बारे में और चर्चा नहीं की।
\p
\s5
\v 34 रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों ने अपनी नई वेदी को "स्मारक" नाम दिया, और उन्होंने कहा, "यह हम सब के लिए एक स्मारक है कि यहोवा ही परमेश्वर है।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 बहुत समय तक, यहोवा ने इस्राएलियों को शत्रुओं के भय से मुक्त शान्ति में रहने का समय दिया। अब यहोशू बहुत बूढ़ा हो गया था।
\p
\v 2 यहोशू ने इस्राएल के सब बुजुर्गों और अगुवों को, उनके न्यायाधीशों और अधिकारियों के साथ बुलाया कि उसकी बात सुनें। जब वे पहुँचे, तब उसने उनसे बात करना आरम्भ किया: "अब मैं बहुत बूढ़ा हूँ।
\v 3 हम सब ने देखा है कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने इस देश की सब जातियों के साथ क्या किया है। हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे लिए युद्ध किया।
\s5
\v 4 मैंने तुम्हें बची हुई जातियों को भी दे दिया है जो यहाँ रहती हैं। उनके देश भी इस्राएल के गोत्रों के लिए स्थायी अधिकार होंगे, जैसे उन जातियों के देश जिनको हमारे लोगों ने मेरी अगुआई में नष्ट कर दिया था। उन सभी अन्य जातियों को जिन्हें मेरी अगुआई में इस्राएलियों ने यरदन से लेकर भूमध्य सागर तक नष्ट कर दिया था।
\v 5 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उन लोगों को उनके देश से बाहर निकलने के लिए विवश कर देगा। वह उनसे उनके देश को छीन लेगा, कि तुम उन देशों में बस जाओ। उसने तुम्हारे लिए यही प्रतिज्ञा की है।
\p
\s5
\v 6 सावधानीपूर्वक ध्यान दो कि तुम मूसा द्वारा लिखे नियमों की पुस्तक में सब बातों का पालन करो। उन नियमों को नहीं तोड़ना या उनमें से किसी को भी नहीं बदलना।
\v 7 यदि तुम मूसा के नियमों का पालन करोगे, तो तुम हमारे लोगों को उन लोगों के साथ मिलने नहीं दोगे। उनके देवताओं के नामों की भी चर्चा नहीं करना, और प्रतिज्ञा करते समय या शपथ खाते समय उनके देवताओं के नामों का उपयोग नहीं करना। उन देवताओं की पूजा नहीं करना। उनके आगे भी नहीं झुकना।
\v 8 यहोवा से प्रेम करो और उस पर भरोसा रखो, जैसा तुम करते भी हो। उसकी उपासना करना बंद मत करना।
\p
\s5
\v 9 जब तुम आगे बढ़ रहे थे तब यहोवा ने कई महान और शक्तिशाली जातियों को तुम्हारे मार्ग से हटने के लिए विवश कर दिया था। तुम्हें रोकने में कोई भी सक्षम नहीं था।
\v 10 तुम्हारा एक अकेला सैनिक, शत्रु की सेना के साथ युद्ध में एक हजार लोगों को भागने योग्य हो जाएगा, क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे लिए युद्ध करता है। उसकी यह प्रतिज्ञा है।
\v 11 इसलिए अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करने के लिए जो कुछ तुम कर सकते हो करो।
\p
\s5
\v 12 परन्तु यदि तुम यहोवा की इच्छाओं को पूरा नहीं करते और युद्धों में हम से बचे अन्यजाति लोगों से मेल करते, उनसे विवाह करते और उनके मित्र बन जाते हो, और यदि वे तुम्हारे मित्र बन जाते हैं,
\v 13 तब निश्चय जान लो कि हमारा परमेश्वर यहोवा उनको देश से बाहर करने में तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे। वे तुम्हारे लिए जाल जैसे हो जाएँगे और तुम फंस जाओगे। वे तुम्हारी पीठ पर चाबुकों के समान और आँखों में काँटों के समान होंगे। तुम लोगों का समूह निर्बल हो जाएगा और ऐसा ही रहेगा जब तक कि तुम इस अच्छे देश में जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें दिया, मर न जाओ।
\p
\s5
\v 14 मनुष्य के अन्त समय के समान मेरा भी अन्त समय आ गया है। तुम मन की गहराई से जानते हो, कि हर एक बात जिसकी यहोवा ने प्रतिज्ञा की थी, उसने उसे पूरा किया है।
\v 15 उसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हें सब अच्छी वस्तुएँ दी हैं। वैसे ही, यदि तुम बुरा करोगे तो वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हें वह सब देगा जो अच्छा नहीं है। ऐसी स्थिति में वह तुम्हारे जीवन और उस देश को तुमसे छीन लेंगे।
\s5
\v 16 यदि तुम यहोवा और तुम्हारे बीच बंधी वाचा का पालन नहीं करते, और यदि आप उसे छोड़कर अन्य देवताओं की पूजा करते और उनके आगे झुकते, तो यहोवा तुमसे क्रोधित हो जाएँगे, जैसे एक चिंगारी से आग भड़क उठती है। वह शीघ्र ही तुम्हारे जीवन का अन्त कर देंगे, और इस अच्छे देश को जिसे आज उसने तुम्हें दिया है ले लेंगे।"
\s5
\c 24
\p
\v 1 यहोशू इस्राएल के बुजुर्गों, अगुवों, न्यायाधीशों और अधिकारियों को एक साथ लाया, और उन्होंने स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत किया।
\v 2 यहोशू ने उन सब से कहा, "यहोवा, वह परमेश्वर है जिसकी हम इस्राएली उपासना करते हैं, यह कहता है: 'बहुत पहले, आपके पूर्वज, अब्राहम और उसका पिता तेरह और उसका छोटा भाई नाहोर, परात नदी के उस पार रहते थे, जहाँ वे अन्य देवताओं की पूजा करते थे।
\s5
\v 3 परन्तु मैंने तुम्हारे पूर्वज अब्राहम को चुन लिया, और मैं उसे कनान देश में ले गया। मैंने उसे उसके पुत्र इसहाक के द्वारा उसे अनेक वंशज दिए।
\v 4 मैंने इसहाक को उसके अपने दो पुत्र, याकूब और एसाव दिए। मैंने एसाव को एदोम का पहाड़ी देश उसका होने के लिए दे दिया, परन्तु याकूब को मिस्र भेजा। वह अपनी सन्तानों के साथ मिस्र गया, जहाँ वे कई सालों तक रहे।
\p
\s5
\v 5 मैंने मूसा और उसके भाई हारून को मिस्र भेजा, और मैंने मिस्र के लोगों पर अनेक भयानक विपत्तियाँ डालीं। उसके बाद, मैं तुम्हारे लोगों को मिस्र से बाहर निकाल लाया।
\v 6 जब मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया, तो वे समुद्र के पास आए। मिस्र की सेना ने रथों और घोड़ों से लाल समुद्र के पास तक उनका पीछा किया।"
\s5
\v 7 यहोशू आगे कहता गया: "जब तुमने यहोवा से सहायता की विनती की तब उसने इस्राएल और मिस्र की सेना के बीच अंधेरा उत्पन्न कर दिया, और उसने मिस्र की सेना को समुद्र के पानी से ढाँप दिया अर्थात तुम्हारे शत्रु डूब गए थे। यहोवा यही कहता है: 'तुमने देखा कि मैंने मिस्र में क्या किया था। तुम कई वर्ष मरुभूमि में रहे थे।
\p
\s5
\v 8 तब मैं तुम्हें एमोरियों के देश में लाया। वे यरदन नदी के पूर्व में रहते थे (आज हमारे यहाँ से यरदन नदी की दूसरी ओर)। उन्होंने तुमसे युद्ध किया, परन्तु मैंने उन्हें तुम्हारे हाथों पराजित और नष्ट किया; तुमने उनकी भूमि पर अधिकार कर लिया। उन्हें वास्तव में नष्ट करनेवाला मैं ही था, और मैंने तुम्हारे लिए जो किया उसे तुमने स्वयं देखा है।
\s5
\v 9 तब मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक ने अपनी सेना तैयार की और इस्राएल पर आक्रमण किया। उसने बोर के पुत्र बिलाम को लाने के लिए भेजा, और उसने तुम लोगों पर यहोवा से अभिशाप का निवेदन किया।
\v 10 लेकिन मैंने बिलाम की नहीं सुनी, इसकी अपेक्षा, मैंने उससे तुम्हें आशीर्वाद दिलवाया, और मैंने तुम्हें उसके अभिशाप से बचाया।
\p
\s5
\v 11 तब तुम सब यरदन नदी पार कर गए और यरीहो में आए। एमोरी, परिज्जी, कनानी, हित्ती, गिरगाशी, हिब्बी और यबूसी लोगों की सेनाओं के समान यरीहो के अगुवों ने तुमसे युद्ध किया। मैंने तुम सब को अधिक शक्तिशाली बना दिया, और तुमने उन सब को पराजित कर दिया।
\v 12 वह मैं ही हूँ जिसने उन्हें घबरा दिया। वे ऐसा व्यवहार करने लगे कि जैसे बर्रों द्वारा उनका पीछा किया जा रहा था। और जब तुम आगे बढ़े तब मैं ने एमोरियों के दो राजाओं को बाहर निकाल दिया, और उन्हें दूर धकेल दिया। लेकिन यह तुम्हारी तलवारों या धनुषों और तीरों के कारण नहीं था, मैं, यहोवा, तुम्हारी ओर से युद्ध कर रहा था।
\s5
\v 13 मैंने तुम्हें एक ऐसा देश दिया जिसे तुमने न तो साफ किया और न ही उसमें हल चलाया था, और मैंने तुम्हें ऐसे शहर दिए जिन्हें तुमने नहीं बनाया था। अब तुम उन शहरों में रहते हो, और उनकी दाखलताओं से अंगूर खाते हो जिन्हें तुमने नहीं लगाया था, और जिन पेड़ों को तुमने नहीं लगाया, उनसे जैतून खाते हो।'
\p
\s5
\v 14 यहोशू अपनी बात कहता गया: "अब डरो और यहोवा के भय में रहो। उसकी सच्ची उपासना करो, और जब उससे प्रतिज्ञा करो तो विश्वासयोग्य ठहरो। उन मूर्तियों को फेंक दो जिनकी तुम्हारे पूर्वजों ने परात नदी के उस पार रहते समय वरन मिस्र में रहते समय पूजा की थी। एकमात्र परमेश्वर की उपासना करो।
\v 15 यदि तुम यहोवा की उपासना नहीं करना चाहते हो, तो आज निर्णय लो कि कौन से देवताओं की पूजा करोगे। तुम्हें निर्णय लेना होगा कि तुम अपने पूर्वजों के देवताओं की पूजा करोगे, जिन देवताओं की वे उस समय पूजा करते थे जब वे परात नदी के पार रहते थे, या तुम इस देश के एमोरियों के देवताओं की पूजा करोगे जहाँ, आज तुम रहते हो। परन्तु मैं और मेरा परिवार हम यहोवा ही की उपासना करेंगे।"
\p
\s5
\v 16 इस्राएली लोगों ने उत्तर दिया, "हम हमेशा यहोवा की उपासना करेंगे! हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम कभी भी किसी अन्य देवताओं की पूजा नहीं करेंगे या उनके सामने नहीं झुकेंगे!
\v 17 यहोवा ही तो थे जिन्होंने हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला था। उन्होंने हमें उस देश से बचाया, जहाँ वे दास थे। हमने उन्हें अद्भुत काम करते देखा है, और जब हम यात्रा कर रहे थे तब यहोवा ने हमें सुरक्षित रखा। जहाँ भी हम गए, उन्होंने हमें संभाला; उन्होंने हमें कई राजाओं की सेनाओं से सुरक्षित रखा। हम एक महान राष्ट्र बन गए, और हमने इस देश में प्रवेश किया है।
\v 18 यहोवा ने हमारे सामने से सब जातियों को बाहर निकाला। उन्होंने इस देश के एमोरियों को पराजित किया। इसलिए हम यहोवा की ही उपासना करेंगे और उनके सामने ही झुकेंगे, क्योंकि वह हमारे परमेश्वर हैं।"
\p
\s5
\v 19 परन्तु यहोशू ने लोगों से कहा, "आप यहोवा की सेवा नहीं कर सकते! वह एक पवित्र परमेश्वर हैं, और वह तुम्हें अन्य देवताओं की पूजा करने की अनुमति नहीं देंगे। उनके नियमों को तोड़ने के लिए, या पाप करने पर वह तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे,
\v 20 यदि तुम यहोवा को त्याग दोगे और अन्य देवताओं की पूजा करोगे तब वह तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे। यदि तुम उन्हें भूल जाते हो, तो वह भी पलट जाएँगे और तुम्हारी हानि करेंगे, नुकसान करेंगे जैसी उन्होंने तुम्हारे शत्रुओं की हानि की थी, और वह तुमको आग के समान जला देंगे! तुम्हारे साथ इतने अच्छे रहने के बाद यदि तुम उनकी ओर अपनी पीठ कर लोगे और उन्हें छोड़ दोगे तो वह तुम्हारे साथ ऐसा ही करेंगे।"
\s5
\v 21 परन्तु लोगों ने यहोशू को उत्तर दिया, "नहीं, हम यहोवा की ही उपासना करेंगे।"
\p
\v 22 तब यहोशू ने कहा, "तुमने जो कहा है, उसके तुम ही गवाह हो। तुमने यहोवा को चुना है और तुम एकमात्र उनकी ही उपासना करने की प्रतिज्ञा कर रहे हो।" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, हम इसकी प्रतिज्ञा करते हैं।"
\v 23 तब यहोशू ने कहा, "तुम्हें अपनी सब मूर्तियों को फेंक देना होगा, और पूरी शक्ति के साथ, यहोवा की ओर मुड़ना होगा और अपना परमेश्वर मानकर उनकी उपासना करनी होगी, अन्य किसी की नहीं।"
\s5
\v 24 लोगों ने उत्तर दिया, "हम यहोवा, हमारे परमेश्वर की ही उपासना करेंगे, और हम केवल उसका ही आज्ञापालन करेंगे।"
\p
\v 25 उसी दिन, यहोशू ने लोगों के साथ एक वाचा बाँधी। शकेम में, उसने उन सब नियमों और आज्ञाओं को लिखा जिनका पालन करने के लिए यहोवा ने उन्हें आदेश दिया था।
\v 26 उसने उन सभी शब्दों को लिखा जो परमेश्वर के नियम की पुस्तक में थे। उसने एक बड़ा पत्थर लिया और उसे एक बड़े बांज वृक्ष के नीचे वहाँ शकेम में स्थापित कर दिया। वह वृक्ष यहोवा के उपासना स्थल के निकट था।
\s5
\v 27 यहोशू ने सब लोगों से कहा, "देखो, यह पत्थर हमारे विरुद्ध गवाही देगा। यही वह स्थान है जहाँ हमने प्रतिज्ञा की है कि हम यहोवा की ही सेवा करेंगे। यह पत्थर यहोवा से की गई हमारी प्रतिज्ञा को स्मरण कराएगा, और यह भी स्मरण कराएगा कि यदि हम परमेश्वर से की गई प्रतिज्ञा को पूरा नहीं करते तो हमारे साथ क्या होगा।"
\v 28 तब यहोशू ने लोगों को विदा किया, और वे अपने अपने स्थानों पर चले गए।
\p
\s5
\v 29 इन बातों के बाद, यहोवा के दास नून के पुत्र यहोशू की मृत्यु हो गई। जब वह मरा तब वह 110 साल का था।
\v 30 उन्होंने उसके शरीर को तिम्नत्सेरह में उसकी भूमि में दफनाया। यह गाश पर्वत के उत्तर में एप्रैम के उत्तरी पहाड़ी देश में है।
\s5
\v 31 जब तक यहोशू के साथ सेवा करने वाले बुजुर्ग जीवित थे, तब तक इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना की; इस्राएल के लिए किए गए यहोवा के सब कामों को उन्होंने देखा था।
\s5
\v 32 यूसुफ की हड्डियों को, जो इस्राएल के लोग मिस्र से बाहर लाए थे, शकेम में उस भूमि के टुकड़े में दफनाया गया था, जो कि बहुत पहले याकूब ने चाँदी के एक सौ टुकड़ों की कीमत में खरीदा था। उसने शकेम के पिता हमोर से इसे खरीदा था। यूसुफ के वंशजों के लिए भूमि का वह टुकड़ा स्थायी अधिकार बन गया।
\v 33 हारून का पुत्र एलीआजार भी मर गया। उन्होंने एप्रैम के पहाड़ी देश में उसके पुत्र पीनहास के नगर गिबा में उसके शरीर को दफनाया।