hi_udb/02-EXO.usfm

2039 lines
418 KiB
Plaintext
Raw Permalink Blame History

This file contains ambiguous Unicode characters

This file contains Unicode characters that might be confused with other characters. If you think that this is intentional, you can safely ignore this warning. Use the Escape button to reveal them.

\id EXO Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h निर्गमन
\toc1 निर्गमन
\toc2 निर्गमन
\toc3 exo
\mt1 निर्गमन
\s5
\c 1
\p
\v 1 ये याकूब के पुत्र थे (ये सब याकूब, उनके पिता और अपने परिवारों के साथ मिस्र देश गए थे)। याकूब के पुत्रों के नाम ये हैं:
\v 2 रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा,
\v 3 इस्साकर, जबूलून, बिन्यामीन,
\v 4 दान, नप्ताली, गाद, आशेर।
\v 5 कुल मिलाकर, सत्तर लोग याकूब के साथ गए थे। उसका बेटा यूसुफ पहले से ही मिस्र में था।
\p
\s5
\v 6 कुछ समय बाद, यूसुफ, उसके भाई और उस पीढ़ी के सभी लोग मर गए।
\v 7 लेकिन याकूब के वंशजों की बहुत सन्तान उत्पन्न हुईं। उनके वंशजों की संख्या बढ़ती ही गई। और परिणाम यह हुआ कि मिस्र देश इन लोगों से भर गया।
\s5
\v 8 कई सालों बाद मिस्र में एक नया राजा राज करने लगा। वह मिस्र के लोगों के लिए यूसुफ के द्वारा किए गए अच्छे कामों के बारे में नहीं जानता था।
\v 9 उसने अपने लोगों से कहा, "इस्राएल के लोगों को देखो, इनकी संख्या अत्यधिक है। ये लोग इतने अधिक और शक्तिशाली हो गए हैं कि वे हमारे लिए संकट का कारण हो सकते है!
\v 10 हमें उनको वश में रखने की एक योजना बनानी होगी! यदि हम ऐसा नहीं कर पाए तो वे हमसे अधिक हो जाएँगे। फिर, यदि शत्रु हम पर आक्रमण करें तो इस्राएली हमारे शत्रुओं के साथ हो जाएँगे और हमारे विरूद्ध युद्ध करेंगे, और वे लोग हमारे देश से निकल जाएँगे।"
\p
\s5
\v 11 तब राजा और उसके मंत्रियों ने इस्राएलियों पर स्वामी नियुक्त किए कि उनसे कठोर परिश्रम करवा कर उन्हें कष्ट दें। उन्होंने इस्राएलियों को राजा के लिए सामान एकत्र करने के किए दो शहरों का निर्माण करवाया। उन शहरों को पितोम और रामसेस नाम दिया गया।
\v 12 परन्तु जितना अधिक उन्होंने इस्राएली लोगों से बुरा व्यवहार किया, उतना ही इस्राएली लोग बढ़ते गए और वे इतने अधिक हो गए कि वे संपूर्ण देश में भर गए। इसलिए मिस्र के लोग इस्राएलियों से डरने लगे।
\s5
\v 13 उन्होंने इस्राएलियों से बहुत कठोर परिश्रम करवाया।
\v 14 दासत्व के जीवन से इस्राएली बहुत दु:खी थे। उन्हें गारे और ईंटों के साथ कई इमारतों का निर्माण करना पड़ा। उन्हें खेतों में भी काम करना पड़ा। उनके मिस्र के स्वामियों ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया।
\p
\s5
\v 15 वहाँ शिप्रा और पूआ नाम की दो दाइयाँ थी। मिस्र के राजा ने उन दोनों दाइयों से कहा,
\v 16 “जब तुम इब्री स्त्रियों को उनके बच्चों को जन्म देने में सहायता करो तो, यदि बच्चा लड़का है, तो तुमको उसे मारना है। अगर बच्चा एक लड़की है तो तुम उसे जीवित रहने दे सकती हो।”
\v 17 परन्तु दाइयों को डर था कि अगर वे राजा की आज्ञा मानती है तो परमेश्वर उन्हें दण्ड देंगे। इसलिए उन्होंने राजा की आज्ञा का पालन नहीं किया। उन्होंने लडकों को भी जीवित रहने दिया।
\s5
\v 18 उनका यह व्यवहार देख कर राजा ने उन्हें बुला कर पूछा, “क्या कारण है कि तुम इब्री लडकों को जीवित रहने देती हो?”
\v 19 उन धाइयों में से एक ने राजा को उत्तर दिया, “इब्री स्त्रियों और मिस्री स्त्रियों में बहुत अन्तर है। उनमें शारीरिक फुर्ती है। इससे पहले कि हम उनके पास पहुँचे वे बच्चे को जन्म दे चुकी होती है।”
\p
\s5
\v 20 इसलिए परमेश्वर ने धाइयों पर कृपा-दृष्टी रखी।
\v 21 धाइयों को परमेश्वर का भय था इसलिए परमेश्वर ने उनको उनकी-अपनी संतान दी।
\p
\v 22 तब राजा ने मिस्र के सब लोगों को आज्ञा दी, “तुम जन्म लेनेवाले प्रत्येक इब्री पुत्र को नील नदी में फेंक दो! हालांकि, सभी बेटियों को जीवित रहने दे सकते हो।”
\s5
\c 2
\p
\v 1 उनमें याकूब के पुत्र, लेवी के परिवार का एक व्यक्ति वहाँ था। उसने लेवी के परिवार की ही एक स्त्री से विवाह किया।
\v 2 वह स्त्री गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जब उसने देखा कि वह एक स्वस्थ बच्चा है तो उसने उसे तीन महीने तक छिपाकर रखा क्योंकि वह राजा के आदेश के अनुसार करने को तैयार नहीं थी।
\s5
\v 3 जब उसे छिपाना असंभव हो गया तो वह लंबे सरकंडों से बनी एक टोकरी लाई। उसने टोकरी पर तारकोल लगाया ताकि वह जल में तैर सके। तब उसने बच्चे को टोकरी में रखा और टोकरी को जल में छोड़ दिया। बच्चे को नील नदी के किनारे ऊँचे-ऊँचे सरकंडों के बीच रखा गया था।
\v 4 उसकी बड़ी बहन निकट ही छिप कर खड़ी थी कि देखे बच्चे के साथ क्या होगा।
\p
\s5
\v 5 उसी समय राजा की पुत्री नदी में स्नान करने के लिए आई। उसकी दासियाँ नदी के किनारे टहलने गई। राजा की पुत्री ने टोकरी को नदी में ऊंचे सरकंडों में देखा। उसने अपनी एक दासी को उसे लाने के लिए भेजा।
\v 6 जब दासी टोकरी लेकर आई और राजा की पुत्री ने उसे खोला तब रोते हुए एक बच्चे को देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुई। वह उसके लिए उदास हुई और कहा, “निश्चय ही यह इब्री बच्चा है।”
\p
\s5
\v 7 तब बच्चे की बड़ी बहन राजा की पुत्री के पास आई और कहा, “क्या तू चाहती है कि मैं इस बच्चे के लिए एक इब्री स्त्री की खोज करूँ कि वह तेरे लिए इस बच्चे को दूध पिला कर इसकी देख-रेख करे?”
\v 8 राजा की पुत्री ने उससे कहा, “हाँ, जा और ढूंढ़।” तो लड़की चली गई और बच्चे की माँ को लेकर आई।
\s5
\v 9 राजा की पुत्री ने माँ से कहा, “इस बच्चे को ले जा और मेरे लिए इसे पाल। इस बच्चे को अपना दूध पिला मैं तुझे वेतन दूँगी।” तो बच्चे की मां ने उसे ले लिया और उसका पालन पोषन किया।
\v 10 कई सालों बाद, जब वह बालक बड़ा हुआ तब वह उसे राजा की पुत्री के पास ले गई। राजा की पुत्री ने उसे गोद लेकर अपना पुत्र बना लिया और उसका नाम मूसा रखा जिसका अर्थ है “पानी से बाहर निकाला हुआ” क्योंकि उसने कहा, “मैंने इसे जल में से निकाला है।”
\p
\s5
\v 11 मूसा बड़ा होने के बाद एक दिन अपने लोगों, अर्थात इब्री लोगों को देखने के लिए महल से बाहर गया। उसने देखा कि उन्हें कितना परिश्रम करना पड़ रहा है। उसने देखा कि एक मिस्री व्यक्ति एक इब्री व्यक्ति को मार रहा है।
\v 12 उसने चारों ओर देखा कि कोई देख रहा है या नहीं। किसी को देखता नहीं पाकर मूसा ने मिस्री को मार डाला और उसे रेत में गाड़ दिया।
\p
\s5
\v 13 अगले दिन मूसा फिर उसी स्थान में गया। वहाँ उसने दो इब्रियों को आपस में मारपीट करते देखा। मूसा ने उस व्यक्ति से जिसकी गलती थी, कहा, “तू अपने इब्री साथी को क्यों मार रहा है?”
\v 14 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “तुझे हमारे बीच शासक और न्यायाधीश किसने बनाया? क्या तू मुझे भी उस मिस्री के समान मार डालना चाहता है जिसकी तूने कल हत्या की थी?” यह सुन कर मूसा डर गया क्योंकि उसने सोचा, “यदि इसे यह बात पता है तो और लोगों को भी इसके बारे में पता चल गया होगा।”
\p
\s5
\v 15-16 जब राजा ने सुना कि मूसा ने एक मिस्री व्यक्ति को मार डाला है तो उसने अपने सैनिकों को मूसा को मारने का आदेश दिया। लेकिन मूसा मिस्र छोड़कर भाग गया। वह पूर्व दिशा में मिद्यान देश चला गया और वहाँ रहने लगा। वहाँ के याजक का नाम यित्रो था। उसकी सात पुत्रियाँ थी। एक दिन मूसा वहाँ एक कुएँ के पास बैठा था। वहाँ उस याजक की सातों पुत्रियाँ आई कि कुएँ से जल निकाल कर अपने पिता की भेड़-बकरियों को पिलाने के लिए नांद में भरें।
\v 17 परन्तु वहाँ कुछ चरवाहे आए और उन लडकियों को भगाने लगे। मूसा ने लड़कियों की सहायता की और उनकी भेड़ों के लिए जल निकाला।
\s5
\v 18 जब लड़कियाँ अपने पिता यित्रो के पास लौट कर आई, जिसको रूएल भी कहा जाता था, तो उसने उनसे पूछा, “आज तुम भेड़ बकरियों को जल पिला कर इतनी जल्दी कैसे लौट आई हो?”
\v 19 उन्होंने उत्तर दिया, “मिस्र से आए एक व्यक्ति ने चरवाहों को दूर करके जल निकालने में हमारी सहायता की और भेड़-बकरियों को जल पिलाया।”
\p
\v 20 उसने अपनी पुत्रियों से कहा, “वह कहाँ है? तुमने उसे वहाँ क्यों छोड़ा? उसे घर आमंत्रित करती कि वह कुछ भोजन करे!”
\s5
\v 21 पुत्रियों ने ऐसा ही किया और मूसा ने उनके साथ भोजन किया। मूसा ने वहाँ रहने का निर्णय लिया। बाद में, यित्रों ने अपनी पुत्री सिप्पोरा का विवाह मूसा के साथ कर दिया।
\v 22 बाद में उसने एक पुत्र को जन्म दिया, और मूसा ने अपने उस पुत्र का नाम गेर्शोन रखा, जिसका अर्थ है, “परदेशी”, क्योंकि मूसा ने कहा, “मैं एक विदेशी इस देश में निवास कर रहा हूँ।”
\p
\s5
\v 23 कुछ वर्षों बाद मिस्र का वह राजा मर गया। परन्तु मिस्र में इस्राएली दास होने के कारण परिश्रम के बोझ से दब कर रो रहे थे। उन्होंने किसी को सहायता के लिए पुकारा, और परमेश्वर ने उन्हें सुना।
\v 24 जब परमेश्वर ने उन्हें रोते हुए देखा तो उन्होंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की गई अपनी प्रतिज्ञा को याद किया।
\v 25 इस्राएली लोगों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार को देखकर परमेश्वर ने उनकी सहायता करने का विचार किया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 एक दिन मूसा मिद्यानी याजक, अपने ससुर यित्रों की भेड़ बकरियों को जंगल में चरा रहा था। उन्हें चराते-चराते वह होरेब पर्वत पर गया।
\v 2 उस पर्वत पर परमेश्वर ने स्वर्गदूत के रूप में एक जलती हुई झाड़ी में मूसा को दर्शन दिया। जब मूसा ने उस झाड़ी को देखा कि वह झाड़ी आग से जल तो रही थी परन्तु भस्म नहीं हो रही थी।
\v 3 मूसा ने सोचा, “मैं निकट जाकर इस विचित्र दृश्य को देखूंगा हूँ। यह झाड़ी आग में जलकर भस्म क्यों नहीं हो रही है?”
\p
\s5
\v 4 यहोवा ने मूसा को झाड़ी के निकट आते देखा, तो उन्होंने मूसा से कहा, “मूसा, मूसा!” मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं यहाँ हूँ।”
\v 5 परमेश्वर ने कहा, “झाड़ी के निकट मत आ! क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ, जिस भूमि पर तू खड़ा है, वह मेरी है। इसलिए मेरे सम्मान में अपने जूते उतार दे।”
\v 6 परमेश्वर ने कहा, “मैं परमेश्वर हूँ, मैं तेरे पूर्वज अब्राहम, इसहाक और याकूब का पूजनीय परमेश्वर हूँ।” मूसा डर गया था कि अगर वह परमेश्वर को देखेगा तो परमेश्वर उसे मार डालेंगे इसलिए वह पीछे मुड़ गया।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने कहा, “मैंने देखा है कि मिस्र में मिस्रियों ने मेरे लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया है। मैंने सुना है कि दासों के सरदार उनके साथ क्या कर रहे है। मुझे ज्ञात है कि मेरे लोग कैसे पीड़ित हो रहे है।
\v 8 इसलिए मैं उनको मिस्रियों से मुक्ति दिलाने के लिए स्वर्ग से उतर आया हूँ। मैं उन्हें एक उत्तम और विशाल देश में ले जाऊँगा। एक ऐसी भूमि में जहाँ वे अपने लिए फसलों का उत्पादन कर सकते हैं और अधिक पशुओं को पाल सकते हैं। यह वही स्थान है जहाँ कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी रह रहे है।
\s5
\v 9 यह सच है कि मैंने अपने इस्राएली लोगों को रोते हुए सुना है। मैंने देखा है कि मिस्र के लोग उनके साथ कैसा बुरा व्यवहार करते है।
\v 10 इसलिए मैं तुझे मिस्र के राजा के पास भेज रहा हूँ। तू मेरे इस्राएली लोगों को मिस्र से निकाल कर ले जाने में उनकी अगुवाई करेगा।”
\p
\s5
\v 11 परन्तु मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं अपने लोगों को मिस्र से बाहर लाने के लिए राजा के पास जाने के योग्य नहीं हूँ।”
\v 12 परमेश्वर ने कहा, “मैं अपने लोगों को मिस्र से निकालने में तेरे साथ रहूंगा। जब तू उन्हें मिस्र से निकाल कर लाएगा तब तुम लोग इसी पर्वत पर, ठीक इसी स्थान पर, मेरी आराधना करना। इससे प्रकट होगा कि मैंने ही तुझे उनके पास भेजा था।"
\p
\s5
\v 13 मूसा ने परमेश्वर से कहा, “यदि मैं इस्राएलियों के पास जाकर कहूँ, ‘तुम्हारे पूर्वजों के पूजनीय परमेश्वर ने मुझे भेजा है, तो वे मुझसे पूछेंगे, ‘उनका नाम क्या है? तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगा?"
\v 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं जो हूँ वह हूँ। इस्राएलियों से कहना कि “मैं हूँ” ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।"
\p
\v 15 परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “आवश्यक है कि तू इस्राएलियों से कहे, ‘तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर, जिनकी आराधना अब्राहम, इसहाक और याकूब ने की, उन्ही ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। मेरा सदाकालिन नाम यहोवा है। और तुम्हारी सब पीढ़ियाँ मुझे इसी नाम से जानेंगी।'
\s5
\v 16 मिस्र जा और बुजुर्गों को एकत्र कर। उनसे कह, ‘यहोवा, जिस परमेश्वर की अब्राहम, इसहाक और याकूब ने आराधना की थी, उस परमेश्वर ने मुझे दर्शन देकर कहा है, 'तुम पर हो रहे मिस्रियों के अत्याचार को मैंने देखा है।
\v 17 मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुम्हें मिस्र के इस अत्याचार से मुक्ति दिलाऊँगा और तुम्हें कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों के देश में ले जाऊँगा। वह एक अति उत्तम स्थान है जहाँ तुम लोग अच्छी फसल उगा पाओगे और पशु पालन भी कर पाओगे।'
\v 18 इस्राएली बुजुर्ग वहीं करेंगे जो तू उनसे कहेगा। तब तू और बुजुर्ग मिस्र के राजा के पास जाओगे और तुम उससे कहोगे, ‘इब्री लोगों का परमेश्वर यहोवा है। हमारे परमेश्वर हम लोगों के पास आए थे। उन्होंने हम लोगों से तीन दिन तक मरूभूमि में यात्रा करने के लिए कहा है कि हम यहोवा, हमारे परमेश्वर के लिए बलियाँ चढ़ा सकें।'
\s5
\v 19 लेकिन मैं जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम्हें तब ही जाने देगा जब वह देखेगा कि उसके पास कोई अन्य मार्ग नहीं है।
\v 20 इसलिए मैं अपनी शक्ति का उपयोग करके वहाँ कई चमत्कार करूँगा। फिर वह तुम लोगों को जाने देगा।
\v 21 और जब ऐसा होगा तब मैं अपने लोगों को मिस्रियों में सम्मान के योग्य बनाऊँगा कि जब वे वहाँ से निकलें तब वे उन्हें यात्रा के लिए आवश्यक सामान दें।
\v 22 उस समय, प्रत्येक इब्री स्त्री अपने पड़ोस में रहने वाली मिस्री स्त्रीयों के सामने अपनी मांग रखेगी। मिस्र के लोग तुमको अपने चाँदी और सोने के गहने और कपड़े देंगे। तुम इन वस्तुओं को अपने बच्चों को पहनाना। इस प्रकार तुम मिस्र के लोगों से सब कुछ ले लोगे। “
\s5
\c 4
\p
\v 1 मूसा ने परमेश्वर से कहा, “यदि मैं इस्राएल के लोगों से कहूँ कि आपने मुझे भेजा है और वे मुझ पर विश्वास नहीं करें और मेरी बात नहीं सुनें, तो मैं क्या करूँगा? यदि वे कहें, ‘यहोवा तुझे दर्शन नहीं दिख, तो मुझे क्या करना होगा?'
\v 2 यहोवा ने उससे कहा, “तेरे हाथ में क्या है?” मूसा ने उत्तर दिया, “एक लाठी।”
\v 3 यहोवा ने कहा, “इसे भूमि पर फेंक दे!” मूसा ने लाठी को भूमि पर फेंक दिया और वह साँप बन गई। मूसा उससे डरकर भागा।
\s5
\v 4 परन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “साँप को उसकी पूंछ पकड़ कर उठा।” मूसा ने सांप की पूंछ पकड़ कर उठाया और साँप फिर से उसके हाथ में लाठी बन गया।
\p
\v 5 यहोवा ने कहा, “इस्राएलियों के सामने यही करना कि वे विश्वास कर सकें कि मैं, यहोवा, वही परमेश्वर हूँ जिसकी आराधना अब्राहम, इसहाक और याकूब करते थे, उसी ने तुझे वास्तव में दर्शन दिया है।”
\p
\s5
\v 6 यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ अपने वस्त्र में डाल।” मूसा ने अपना हाथ अपने वस्त्र में डाला। जब वह अपना हाथ बाहर लाया तो उसके हाथ को एक ऐसी बीमारी लगी जिसने उसकी हाथ की त्वचा को बर्फ के समान सफ़ेद कर दिया।
\v 7 तब यहोवा ने कहा, “अपना हाथ फिर से अपने वस्त्र में डाल।” मूसा ने अपना हाथ फिर से अपने वस्त्र में डाला। इस बार जब हाथ बाहर निकला तो वह रोग से ठीक हो गया। यह हाथ उसके दूसरे हाथ की समान दिया रहा था।
\s5
\v 8 यहोवा ने कहा, “तू इस्राएली लोगों के सामने यह भी कर सकता है। यदि वे पहले चमत्कार को देखने के बाद तुझ पर विश्वास नहीं करें तो वे तेरा दूसरा चमत्कार देखते ही तेरा विश्वास करेंगे।
\v 9 परन्तु यदि वे इन दोनों चमत्कारों को देख कर भी तुझ पर विश्वास न करें और तेरी बात न मानें तो नील नदी से कुछ जल को लेकर भूमि पर डाल देना तो वह जल भूमि पर गिरते ही रक्त बन जाएगा।"
\p
\s5
\v 10 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “हे परमेश्वर, मैं लोगों से बात करने में कभी अच्छा नहीं रहा हूँ। मैं आपसे अभी भी अटक-अटक कर बोल रहा हूँ। मैं धीरे-धीरे बोलता हूँ और मैं नहीं जानता कि क्या कहूं।”
\v 11 तब यहोवा ने उससे कहा, “किसने मनुष्य का मुंह बनाया? वे कौन है जो मनुष्य को बोलने, सुनने या देखने योग्य बनाता है? क्या वह मैं यहोवा नहीं हूँ?
\v 12 तो अब जा और मैं तुझे बोलने में सहायता करूँगा। मैं तुझे बताऊँगा कि क्या कहना है। “
\v 13 परन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “हे परमेश्वर, मेरा आपसे निवेदन है कि मेरे स्थान में किसी और को भेज दें!”
\p
\s5
\v 14 इस पर यहोवा मूसा से क्रोधित हुआ और कहा, “तेरे भाई लेवी हारून के बारे में क्या विचार है? उसकी बोली तो स्पष्ट है। वह इसी ओर आ रहा है और तुझसे भेंट करके अति प्रसन्न होगा।
\v 15 तू उससे इसकी चर्चा कर। मैं तुम दोनों को बताऊँगा कि क्या करना है।
\v 16 वह तेरी ओर से इस्राएलियों से बात करेगा। वह तेरा मुँह होगा, और वह तुझे मेरे समान मानेगा।
\v 17 अपने साथ यह लाठी जो तेरे हाथ में है अवश्य रखे रहना क्योंकि इसके द्वारा तू चमत्कार दिखाएगा।"
\p
\s5
\v 18 मूसा अपने ससुर यित्रो के पास गया और उससे कहा, “मुझे मिस्र में अपने लोगों के पास वापस जाने दे कि मैं जान सकू कि वे जीवित है या नहीं।” यित्रो ने मूसा से कहा, “जा, परमेश्वर तुझे शान्ति दें।”
\p
\v 19 यहोवा ने मिद्यान में मूसा से कहा, “मिस्र वापस जा क्योंकि जो लोग तेरी खोज में थे वे अब मर चुके है।"
\v 20 तब मूसा ने अपनी पत्नी और पुत्रों को ले लिया और उन्हें एक गधे पर बिठाकर मिस्र वापस चला गया। उसने परमेश्वर के कहे अनुसार अपनी लाठी को अपने हाथ में रख लिया।
\p
\s5
\v 21 यहोवा ने मूसा से कहा, “जब तू मिस्र पहुँच जाए तब उन सब आश्चर्यकर्मों को राजा के सामने दिखाना जिनकी शक्ति मैंने तुझे दी है। परन्तु मैं उसका हृदय कठोर कर दूँगा और वह इस्राएलियों को मिस्र से जाने नहीं देगा।
\v 22 तब उससे कहना, ‘यहोवा कहते हैं, इस्राएल मेरे पहले पुत्र के समान है।
\v 23 मैं तुझ से कहता हूँ, “मेरे पुत्र को मेरी आराधना के लिए जाने दे। परन्तु तूने मेरे पुत्र को जाने नहीं दिया इसलिए मैं तेरे पहले पुत्र को मारूंगा! ‘”
\p
\s5
\v 24 एक रात जब मूसा अपने परिवार के साथ मिस्र के मार्ग पर था तब यहोवा ने मूसा को दर्शन देकर उसे मारना चाहा।
\v 25 तब मूसा की पत्नी, सिप्पोरा ने एक चाकू लिया और अपने पहले पुत्र की खाल काट दी। उसने मूसा के पैरों में उस खलड़ी को छुआ कर कहा, “तू खून बहाने वाला पति है।”
\v 26 यहोवा ने मूसा को मारा नहीं। सिप्पोरा ने कहा, “खतना के कारण तू मेरा खून बहाने वाला पति है”।
\p
\s5
\v 27 इस बीच, यहोवा ने हारून से कहा, “मूसा से भेंट करने जंगल की ओर जा।” हारून गया और परमेश्वर के पर्वत पर मूसा से भेंट की और उसको चूमा।
\v 28 मूसा ने हारून को सब कुछ बताया और उन सब चमत्कारों के बारे में भी बताया जिन्हें करने के लिए उन्होंने उसे निर्देश दिए थे।
\p
\s5
\v 29 तब हारून और मूसा ने इस्राएलियों के सब बुजुर्गों को एकत्र किया।
\v 30 हारून ने उन्हें सब कुछ बताया जो यहोवा ने मूसा से कहा था। मूसा ने उन सब चमत्कारों को किया और लोगों ने देखा।
\v 31 इस्राएलियों ने हारून और मूसा पर विश्वास किया। जब उन्होंने सुना कि यहोवा ने देखा है कि इस्राएली लोगों के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है और वह उनकी सहायता करेंगे। उन्होंने झुककर परमेश्वर की आराधना की।
\s5
\c 5
\p
\v 1 तब मूसा और हारून राजा के पास गए। उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर यहोवा, जिनकी हम इस्राएल के लोग आराधना करते है, तुझ से कहते हैं: ‘मेरे लोगों को मरुभूमि में जाने दे कि वे मेरे सम्मान में वहाँ पर्व मनाएँ!'"
\v 2 परन्तु राजा ने कहा, “यहोवा मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं रखता है। मुझे उसकी बातें मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं इस यहोवा को नहीं जानता हूँ! मैं इस्राएलियों को नहीं जाने दूँगा, यहाँ से चले जाओ!"
\s5
\v 3 मूसा और हारून ने उत्तर दिया, “हे परमेश्वर यहोवा, जिनकी हम इब्री लोग आराधना करते है, उन्होंने हम लोगों को दर्शन दिया है और हमें बताया है कि तुझसे क्या कहना है। इसलिए हम लोग तुझ से प्रार्थना करते है कि तू हम लोगों को तीन दिन तक मरुभूमि में यात्रा करने दे। वहाँ हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाएँगे। यदि हम लोग ऐसा नहीं करेंगे तो वह बीमारियों से या हमारे शत्रुओं के आक्रमण से हमारे मरने का कारण उत्पन्न कर देंगे।"
\v 4 परन्तु मिस्र के राजा ने उन से कहा, “मूसा और हारून, तुम इस्राएली लोगों को काम करने से क्यों रोक रहे हो? उन दासों से कहो कि वे अपने काम पर लौट जाएँ!"
\v 5 राजा ने यह भी कहा, “सुनो! तुम लोग जो इस देश में रहते हो, संख्या में मिस्रियों से अधिक हो। तुम उन्हें काम करने से क्यों रोक रहे हो?”
\p
\s5
\v 6 उसी दिन राजा ने दासों के मिस्री सरदारों और उनके प्रबन्धकों को आज्ञा दी,
\v 7 “इन इब्रियों को ईंटें बनाने के लिए अब भूसा मत देना। वे खेतों में जाकर भूसा एकत्र करेंगे।
\v 8 परन्तु, वे उतनी ही ईंटें बनाएँगे जितनी वे पहले बनाते थे। ईंटों की संख्या कम न हो। वे काम करना नहीं चाहते है इसलिए अपने देवता की आराधना के बहाने जंगल में जाना चाहते है और मुझसे अनुमति मांग रहे है।
\v 9 पुरुषों से और अधिक काम करवाओ ताकि उनके पास उनके अगुओं का झूठ सुनने का समय न हो!"
\p
\s5
\v 10 तब दासों के सरदार और इस्राएली सहायक वहाँ गए जहाँ इस्राएली लोग थे और उनसे कहा, “राजा की आज्ञा है कि तुम्हें भूसा न दिया जाए।
\v 11 तो अब तुम्हें स्वयं ही भूसा खोजकर लाना होगा परन्तु ईंटें बनाने में संख्या की कमी न आए।"
\s5
\v 12 तब इस्राएली लोग मिस्र भर में भूसे को खोजने के लिए गए।
\v 13 दासों के सरदारों ने उन पर बल डालकर कहा, "हर दिन का अपना सौंपा हुआ काम पूरा करो। तुम्हे उतनी ही ईंटें बनानी है जितनी तुम पहले बनाया करते थे!”
\v 14 जब उनका उत्पाद घटा तो फ़िरौन के मिस्री श्रम अधिकारियों ने इस्राएली सहायकों को छड़ी से मारा और उनसे पूछा, “तुम्हारे अधीन रखे गए दासों ने आज पहले के जितनी ईंटें क्यों नहीं बनाई?”
\p
\s5
\v 15 तब इस्राएली सहायक राजा के पास गए और पुकारकर कहा, “महामहिम, तू हमारे साथ ऐसा कठोर व्यवहार क्यों कर रहा है?
\v 16 अब हम लोगों को भूसा नहीं दिया जाता किन्तु हम लोगों को आदेश दिया गया कि उतनी ही ईंटें बनाएँ जितनी पहले बनती थीं। और वे हमें मारते हैं। यह तेरे अपने दासों के सरदारों के कारण है कि हम पहले के समान ईंटें नहीं बना पा रहे है!"
\v 17 परन्तु राजा ने कहा, “तुम आलसी हो और काम नहीं करना चाहते! यही कारण है कि तुम कहते रहते हो, ‘हमें जंगल जाकर यहोवा की आराधना करने की अनुमति दे।’
\v 18 अत: काम पर वापस जाओ! तुम्हें भूसा नहीं दिया जाएगा और ईंटों की संख्या कम नहीं होनी चाहिए!"
\p
\s5
\v 19 इस्राएली सहायकों को पता था कि उनका बुरा समय था क्योंकि उन्हें बताया गया था, “हम तुम्हारे लिए प्रतिदिन की ईंटों की संख्या कम करने वाले नहीं है।”
\v 20 तब वे राजा के महल से निकल गए और उनकी भेंट हारून और मूसा से हुई। हारून और मूसा उनकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे।
\v 21 उन्होंने हारून और मूसा से कहा, “यहोवा तुम्हारे कर्म का परिणाम देखें। परमेश्वर तुम्हें दण्ड दें क्योंकि तुम्हारे कारण राजा और उसके अधिकारी हमसे घृणा करने लगे है। तुमने हमें मार डालने का कारण उन्हें सुझा दिया है!”
\p
\s5
\v 22 मूसा ने उनके पास से निकलकर यहोवा से प्रार्थना की, “हे यहोवा, आपने अपनी प्रजा पर ये सब बुराइयाँ क्यों आने दी हैं? और आपने मुझे यहाँ क्यों भेजा है?
\v 23 मैं राजा के पास गया और उससे वही कहा जो आपने मुझसे कहा था तब से उसने आपके लोगों के साथ और अधिक बुरा व्यवहार करना आरंभ कर दिया है। आपने उनकी सहायता करने के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया है।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तुम देखोगे कि मैं राजा और उसके लोगों के साथ क्या करूँगा। मैं उसे विवश कर दूँगा कि वह मेरे लोगों को जाने दे। सच तो यह है कि मैं अपनी शक्ति से उसे विवश कर दूँगा कि वह तुम्हें इस देश से भगाए।"
\p
\s5
\v 2 परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “मैं यहोवा हूँ।
\v 3 मैं वह हूँ जिसने अब्राहम, इसहाक और याकूब को दर्शन देकर कहा था कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ परन्तु उन्हें यह नहीं बताया था कि मेरा नाम यहोवा है।
\v 4 मैंने उनके साथ वाचा भी बांधी और उन्हें कनान देश देने की प्रतिज्ञा की थी। यह वही भूमि थी जिसमें वे परदेशियों के रूप में रह रहे थे।
\v 5 इसके अतिरिक्त मिस्री उन्हें दास बनाकर जो कठोर परिश्रम करवा रहे हैं उसके कारण कष्ट भोगते हुए उनकी पुकार को मैंने सुना है मैंने अपनी उस वाचा को याद किया है जो मैंने बाँधी थी।
\s5
\v 6 तो इस्राएलियों से कह कि मैंने कहा है, “मैं यहोवा हूँ। मैं तुम्हें उस कठोर परिश्रम से मुक्ति दिलाऊँगा जो मिस्री तुमसे करवाते है। मैं तुम्हें दासत्व से मुक्त कराऊँगा। मैं अपनी महा-सामर्थ से उन्हें कठोर दण्ड देकर, तुम्हे बचाऊँगा।
\v 7 मैं तुम्हें अपने लोग बनाऊँगा और तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा, जिसकी तुम आराधना करते हो। तुम सच में जानोगे कि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ, जिसने तुम्हें मिस्रियों के दासत्व के बोझ से मुक्त किया है।
\s5
\v 8 मैं तुम्हें उस देश में लाऊँगा जिसे मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की। जिस में तुम सदा के लिए रहोगे। मैं, यहोवा, तुमसे यह प्रतिज्ञा कर रहा हूँँ।'"
\p
\v 9 मूसा ने जाकर इस्राएलियों को यहोवा का यह वचन सुनाया परन्तु उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया। वे अपने दासत्व के कठोर परिश्रम के कारण बहुत दु:खी थे।
\p
\s5
\v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 11 “जा और मिस्र के राजा से फिर कह कि उसे इस्राएलियों को इस देश से जाने की अनुमति देनी ही होगी।"
\v 12 परन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया मेरी बात सुनो। यहाँ तक कि इस्राएल के लोगों ने भी मेरी बात ध्यान नहीं दिया है। मैं बोलने में बहुत बुरा हूँ तो राजा मेरी बातें क्यों सुनेगा?"
\v 13 परन्तु यहोवा ने हारून और मूसा से कहा, “इस्राएलियों से और मिस्र के राजा से कहो कि मैंने तुम दोनों को बुलाया है कि मिस्र से बाहर निकालने में इस्राएलियों की अगुवाई करो।"
\p
\s5
\v 14 मूसा और हारून के पूर्वजों की सूची यह है।
\p याकूब के सबसे बड़े पुत्र रूबेन के पुत्र थे: हनोक, पल्लू, हेस्रोन, और कर्मी वे उन कुलों के पूर्वज थे जिनके नाम यही हैं।
\p
\v 15 शिमोन के ये पुत्र थेः यमूएल, यामीन, ओहद, याकिन और सोहर और एक कनानी स्त्री का पुत्र शाऊल। इन्हीं से शिमोन के कुल निकले थे। इन्हीं नामों से उनके कुल निकले थे।
\p
\s5
\v 16 लेवी के ये पुत्र अपने जन्म के क्रम में थेः गेर्शेन, कहात, और मरारी। लेवी की कुल आयु 137 वर्ष की थी।
\p
\v 17 गेर्शोन के ये पुत्र थेः लिबनी और शिमी। इन्हीं से उसके कुल निकले थे जिनके नाम इन्हीं पर चले।
\p
\v 18 कहात के पुत्र थेः अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल। कहात की कुल आयु 133 वर्ष की थी।
\p
\v 19 मरारी के ये पुत्र थेः महली और मूशी। इन्हीं से लेवियों के कुल निकले थे। और उनकी वंशावलियाँ भी इन्हीं के जन्म के क्रम से चलीं।
\p
\s5
\v 20 अम्राम ने अपने पिता की बहन से विवाह किया जिसका नाम योकेबेद था। वह हारून और मूसा की माता हुई। अम्राम 137 साल जीवित रहा।
\p
\v 21 यिसहार के ये पुत्र थेः कोरह, नेपेश और जिक्री।
\p
\v 22 उज्जीएल के ये पुत्र थेः मीशाएल, एलसापन और सित्री।
\p
\s5
\v 23 हारून ने एलीशेबा से विवाह किया। वह अम्मीनादाब की पुत्री और नहशोन की बहन थी। उसके पुत्र ये थेः नादाब, अबीहू, एलाजार और ईतामार।
\p
\v 24 कोरह के ये पुत्र थेः अस्सीर, एल्काना और अबीआसाप। इन्हीं से कोरहियों के कुल निकले और ये कोरह-वंशियों के पूर्वज थे।
\p
\v 25 हारून के पुत्र एलाजार ने पूतीएल की पुत्री से विवाह किया और उससे उसके पुत्र पीनहास का जन्म हुआ। लेवियों के घरानों के मूल पुरुष ये ही थे। इन्हीं से उनके कुल निकले थे।
\s5
\v 26 हारून और मूसा वही थे जिनसे यहोवा ने कहा था, “इस्राएलियों के सब गोत्रों को मिस्र से बाहर निकालकर ले जा।”
\v 27 वे ही थे जिन्होने इस्राएली लोगों को मिस्र से बाहर लाने के लिए मिस्र के राजा से बातें की थीं।
\s5
\v 28 जिस दिन यहोवा ने मूसा से मिस्र में बातें कीं,
\v 29 उस दिन उसने मूसा से कहा, "मैं यहोवा हूँ। तू जाकर राजा से वह सब कह जिसकी आज्ञा मैं देता हूँ।"
\v 30 परन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया मेरी बात सुनो। मैं बोलने में अच्छा नहीं हूँ। तो इसलिए राजा मेरी बात का मान नहीं रखेगा?"
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरी बात सुन! मैं राजा के लिए तुझे ईश्वर बना दूँगा और क्योंकि हारून तेरी ओर से बातें करेगा इसलिए वह भविष्यद्वक्ता की तरह होगा।
\v 2 इसलिए तू मेरी हर एक बात अपने बड़े भाई हारून को बताएगा और वह राजा से सब कुछ ज्यों का त्यों कहेगा। उसे राजा से कहना होगा कि वह इस्राएलियों को मिस्र देश से जाने दे।
\s5
\v 3 परन्तु मैं राजा को हठीला बना दूँगा। इसका परिणाम होगा कि, मिस्र में कई प्रकार के चमत्कार किए जाएँगे,
\v 4 राजा तुम्हारी बात नहीं मानेगा। तब मैं मिस्रियों को कठोर दण्ड दूँगा और मैं इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले जाऊँगा।
\v 5 तब, जब मैं मिस्र-वासियों पर मेरी महा-शक्ति का प्रदर्शन करूँगा और इस्राएलियों को उनके बीच से निकालकर ले जाऊँगा तब वे जानेंगे कि मैं सर्व-शक्तिमान परमेश्वर हूँ।"
\p
\s5
\v 6 हारून और मूसा ने सबकुछ किया जो यहोवा ने उन्हें करने के लिए कहा था।
\v 7 उस समय, मूसा 80 वर्ष और हारून 83 वर्ष का था।
\p
\s5
\v 8 यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
\v 9 "यदि राजा तुम से कहता है, 'चमत्कार द्वारा सिद्ध करो कि तुम्हें परमेश्वर ने भेजा है’, तब हारून से कहना, ‘राजा के सामने तेरी लाठी फेंक कि वह साँप बन जाए।'"
\v 10 तब हारून और मूसा राजा के पास गए और वही किया जो यहोवा ने उनसे करने को कहा था। हारून ने राजा के कर्मचारियों और उसके अधिकारियों के सामने अपनी लाठी को फेंक दिया, और वह साँप बन गयी।
\s5
\v 11 तब राजा ने अपने जादूगरों को बुलाया। उन्होंने भी अपने जादू से वैसा ही कर दिखाया।
\v 12 उन्होंने भी अपनी-अपनी लाठी फेंक दी और वे साँप बन गई परन्तु हारून की लाठी जो साँप बन गयी थी उनके सब साँपों को खा गयी।
\v 13 परन्तु राजा हठीला ही बना रहा जैसा यहोवा ने कहा था। उसने हारून और मूसा की बात नहीं मानीं।
\p
\s5
\v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा ने हठ कर के मेरे लोगों को मिस्र से निकलने नहीं दिया।
\v 15 तो कल सुबह जब वह नील नदी में स्नान करने जाएगा तब उसके पास जाना और तट पर उसकी प्रतीक्षा करना। जब वह पानी से निकलकर बाहर आए तब उसे वही लाठी दिखाना जो साँप बन गई थी।
\s5
\v 16 तब उससे कहना, “जिस परमेश्वर यहोवा की हम इब्री लोग आराधना करते है, उन्होंने मुझे भेजा है कि तुझ से निवेदन करूं कि उनकी आराधना करने के लिए हमें मरुभूमि में जाने दे। हमने तुझसे यही कहा था परन्तु तू ने हमारी बात नहीं सुनी।
\v 17 इसलिए अब यहोवा यह कहते हैं: “अब तू जानेगा कि मैं यहोवा हूँ जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। मेरे हाथ में जो यह लाठी है उसे मैं नील नदी के जल पर मारूंगा। जब मैं ऐसा करूँगा तब जल खून बन जाएगा।
\v 18 तब नील नदी की मछलियाँ मर जाएगी और नदी के जल में से दुर्गंध आएगी। मिस्रवासी नदी का जल नहीं पी पाएँगे ।"
\p
\s5
\v 19 यहोवा ने मूसा से कहा, “जब तू राजा से बातें कर रहा हो तब हारून से कहना, ‘अपनी लाठी को मिस्र के सब जल स्रोतों, नदियों, नहरों, झीलों और जलाशयों की ओर उठाए ताकि वे सब खून बन जाएँ।' जब हारून ऐसा करेगा, तो पूरे मिस्र में, लकड़ी के बर्तनों और पत्थर के पात्रों में भी खून होगा।"
\p
\s5
\v 20 हारून और मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। जब राजा और उसके कर्मचारी देख रहे थे हारून ने अपनी लाठी नील नदी के जल पर मारी। नदी का जल उसी समय खून में बदल गया।
\v 21 और सब मछलियाँ मर गई और जल में दुर्गंध आने लगी गया। इस कारण मिस्रवासी नदी के जल को पी नहीं सकते थे। मिस्र में जहाँ भी जल था, वह खून के समान लाल हो गया।
\v 22 परन्तु मिस्र के जादूगरों ने भी अपने जादू से वैसा ही कर दिखाया। इसलिए राजा ने हठ करके हारून और मूसा की बात नहीं मानी। यहोवा ने तो उनसे यह कह ही दिया था।
\s5
\v 23 राजा मुंह फेरकर अपने महल में चला गया। और इसके बारे में और कुछ नहीं सोचा।
\v 24 सभी मिस्रवासी नील नदी के समीप भूमि का जल पीते थे क्योंकि वे नदी का जल पीने योग्य नहीं था।
\p
\v 25 यहोवा द्वारा नील नदी के पानी को खून में बदले जाने के बाद एक सप्ताह हो गया था।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा के पास वापस जा और उससे कह, ‘यहोवा कहते हैं कि तू मेरे लोगों को जाने दे जिससे कि वे मरुभूमि में मेरी आराधना करें।
\v 2 यदि तू उन्हें जाने नहीं देगा तो मैं तुझे दण्ड देने के लिए तेरे देश को मेंढ़कों से भर दूँगा।
\v 3 न केवल नील नदी मेंढकों से भरी होगी, बल्कि मेंढक नदी से निकल कर तुम्हारे सब के घर में भी जाएँगे। वे तुम्हारे सोने के कमरों और तुम्हारे बिस्तर में होंगे। मेढ़क तुम्हारे अधिकारियों के और सब लोगों के घरों में होंगे। वे तुम्हारी रसोई में भी पहुँच जाएँगे।
\v 4 मेंढक तेरे और तेरे अधिकारियों और तेरे सभी लोगों पर कूदेंगे'"
\p
\s5
\v 5 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “हारून से यह कह: ‘अपनी लाठी को अपने हाथ में पकड़ और इस प्रकार उठा जैसे कि सब नदी, नहरों और तालाबों के ऊपर हो और मिस्र देश को ढकने के लिए मेंढकों को जल से बाहर ला । ‘”
\v 6 मूसा ने उस से कहा, तब उसने अपनी लाठी मिस्र के सब जल स्रोतों के ऊपर उठाई और मेंढक जल से निकल कर संपूर्ण मिस्र में भर गए।
\v 7 परन्तु मिस्र के जादूगरों ने भी ऐसा ही कर दिखाया और वे भी मिस्र देश में और अधिक मेंढ़क ले आए।
\s5
\v 8 तब राजा ने मूसा को बुलाकर कहा, “अपने परमेश्वर से कहो कि वे इन मेंढकों को मुझ से और मेरे लोगों से दूर करें तब मैं तेरे लोगों को यहोवा की आराधना के लिए जाने दूँगा।”
\v 9 मूसा ने राजा से कहा, “तेरे लिए, तेरे कर्मियों के लिए और प्रजा के लिए प्रार्थना करके मुझे प्रसन्नता ही होगी। मैं परमेश्वर से विनती करूँगा कि वह तेरे देश से सब मेंढकों को हटा दे। वे केवल नील नदी में पाए जाएँ। मुझे समय बता दे कि कब ऐसा करूँ।"
\s5
\v 10 राजा ने उत्तर दिया, “कल।” मूसा ने उससे कहा, “मैं तेरे कहने के अनुसार ही करूँगा तब तू जानेगा कि जिस परमेश्वर यहोवा की हम आराधना करते है, वही सच्चा परमेश्वर है अन्य कोई ईश्वर नहीं है।
\v 11 मेंढक तेरे पास से और तेरे लोगों और तेरी प्रजा के पास से हटकर नील नदी तक सीमित हो जायेंगे। एक भी मेंढक बाहर नहीं होगा।"
\p
\v 12 तब मूसा और हारून ने राजा को छोड़ दिया। मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की, कि वह उन सब मेंढकों को राजा के देश से दूर कर दें।
\s5
\v 13 यहोवा ने वही किया जो मूसा ने उन्हें करने के लिए कहा था। इस प्रकार उनके घरों में, आँगनों में, और खेतों में सब मेंढक मर गए।
\v 14 लोगों ने जब मरे हुए मेंढकों को निकाला तो ढेर लग गए और संपूर्ण देश दुर्गंध से भर गया।
\v 15 लेकिन जब राजा ने देखा कि राहत मिल गई तब उसने फिर हठ किया और मूसा की बात नहीं मानी। यहोवा ने तो मूसा से इस विषय में पहले ही कह दिया था।
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून से कह कि अपनी लाठी भूमि पर मारे। जब वह ऐसा करेगा तब धूल के कण कुटकियाँ बन कर मिस्र देश पर छा जाएँगे।”
\v 17 मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। और हारून ने भूमि पर लाठी मारी और धूल के कण कुटकियाँ बन कर मिस्र देश पर छा गए। कुटकियाँ सब पशुओं और मनुष्यों पर जाकर बैठ गई।
\s5
\v 18 राजा के जादूगरों ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया परन्तु वे सफल न हुए। किन्तु कुटकियाँ सब मनुष्यों और पशुओं पर बैठी रहीं।
\v 19 राजा के जादूगरों ने कहा, “यह तो परमेश्वर का ही काम है। यह उसी की शक्ति से है!” परन्तु राजा ने अपना मन कठोर करके हारून और मूसा की बात नहीं मानीं जैसा यहोवा ने कहा था।
\p
\s5
\v 20 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “कल प्रातः काल नील नदी पर जाकर राजा की प्रतीक्षा करना। जब वह स्नान करने वहाँ आए तब उससे कहना, ‘यहोवा तेरे लिए कहता है, मेरे लोगों को मरुभूमि में मेरी आराधना के लिए जाने दे।
\v 21 मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि यदि तू उन्हें नहीं जाने देगा तो मैं तुझ पर, तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा पर डांस भेजूँगा। जो सब मिस्रियों के घरों में भर जायेंगे। तुम्हारे खड़े रहने का स्थान भी उनसे नहीं बचेगा।
\s5
\v 22 परन्तु जब ऐसा होता है, तो मैं गोशेन के क्षेत्र के साथ अलग व्यवहार करूँगा, क्योंकि मेरे लोग वहाँ रहते है। वहाँ एक भी डांस न होगा। इस तरह, तू जान लेगा कि मैं, यहोवा, ही तेरे देश पर यह विपत्ति डालता हूँ।
\v 23 मैं तुझे दिखाऊँगा कि मैं अपने लोगों के प्रति कैसे कार्य करता हूँ और तेरे लोगों के प्रति कैसे कार्य करता हूँ। यह चमत्कार कल होने वाला है!"'"
\p
\v 24 अगले दिन सुबह मूसा ने राजा को यह सन्देश दिया परन्तु राजा ने नहीं सुना। इसका परिणाम यह हुआ कि यहोवा ने वही किया जो उसने कहा था। यहोवा ने राजा के महल और उसके कर्मचारियों के घरों में डांस भेज दिए। मिस्र का संपूर्ण देश डांसों से नष्ट हो गया।
\s5
\v 25 तब राजा ने हारून और मूसा को बुला कर कहा, "तुम इस्राएली अपने परमेश्वर की आराधना करने जाओ परन्तु मिस्र से बाहर नहीं जाना।"
\v 26 मूसा ने राजा से कहा, “हमारे लिए ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि जिन पशुओं की हम बलि चढ़ायेंगे वे मिस्रियों के लिए आपत्ति जनक है और वे हमें पत्थर फेंककर मार देंगे।
\v 27 हमें तीन दिन चल कर मरुभूमि में जाना होगा। वहाँ हम हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए बलि चढ़ायेंगे। जैसी आज्ञा उसने हमें दी है।"
\s5
\v 28 तब राजा ने कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें अपने परमेश्वर के लिए बलि चढ़ाने को जंगल में जाने दूँगा परन्तु तुम बहुत दूर नहीं जाओगे। मेरे लिए भी विनती करना।"
\v 29 मूसा ने राजा से कहा, “मैं यहाँ से जाने के बाद यहोवा से विनती करूँगा कि कल वह डांसों के झुंड तेरे और तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा से दूर कर दें। लेकिन तू कपट करके हमें बलि चढ़ाने से मत रोकना।"
\p
\s5
\v 30 तब मूसा राजा के पास से चला गया और यहोवा से प्रार्थना की।
\v 31 यहोवा ने मूसा की विनती स्वीकार करके डांसों को राजा और उसके कर्मचारियों और मिस्रियों से दूर कर दिया। एक भी डांस बचा न रहा।
\v 32 परन्तु राजा ने फिर हठ किया और उसने इस्राएलियों को जाने की अनुमति नहीं दी।
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा के पास जाकर उससे कह, 'यहोवा, जिसकी हम इब्री आराधना करते है, वे कहते है: "मेरे लोगों को मेरी आराधना के लिए जाने दे।
\v 2 यदि तू अब भी उन्हें जाने नहीं देगा,
\v 3 तो मैं तेरे पशुओं को- तेरे घोड़े, गधे, ऊंट, गाय-बैल, भेड़-बकरियों सब को रोग से मार डालूँगा। ये तुझे मेरी चेतावनी है।
\v 4 परन्तु मैं, यहोवा, इस्राएलियों को हानि नहीं पहुँचाऊँगा। उनका एक भी पशु नहीं मरेगा और तू स्वयं देखेगा।"
\s5
\v 5 फ़िरौन से कहना कि कल संपूर्ण देश में ऐसा ही होगा।"'"
\p
\v 6 अगले दिन यहोवा ने वही किया जो उसने कहा था। एक भयानक रोग मिस्र के सब पशुओं पर आया और मिस्रियों के पशु रोग से मर गए परन्तु इस्राएलियों का एक भी पशु नहीं मरा।
\v 7 राजा ने अपने सेवकों को देखने के लिए भेजा और उन्होंने देख कर अचंभा किया कि इस्राएलियों का एक भी पशु नहीं मरा था। परन्तु राजा ने अपना मन कठोर करके इस्राएलियों को जाने नहीं दिया।
\p
\s5
\v 8 तब यहोवा ने हारून और मूसा से कहा, “भट्ठी में से एक मुट्ठी राख ले लो और मूसा उन्हें राजा के सामने हवा में उड़ा दे।
\v 9 राख पूरी तरह से मिस्र के देश में धूल की तरह फैल जाएगी। यह राख सब मिस्रियों पर और उनके पशुओं पर फोड़े बन कर प्रकट होगी।"
\v 10 इसलिए उन्होंने राख से मुट्ठियाँ भरीं और राजा के सामने जाकर मूसा ने वह राख हवा में उड़ा दी। राख पूरी तरह से फैल गई। वह राख हवा के साथ मिस्रियों और उनके पशुओं पर जाकर गिरी जिससे उनके शरीरों पर फोड़े निकल आए। सब फोड़े खुले घाव बन गए।
\s5
\v 11 यहाँ तक कि उनके जादूगरों के शरीरों पर भी फोड़े घाव बन गए जिसके कारण वे मूसा का सामना नहीं कर पाए। जादू करने वाले पुरुष पर भी साधारण जनता के समान घाव हो गए थे।
\v 12 परन्तु यहोवा ने राजा को हठीला बनाए रखा। उसने मूसा और हारून की बात को नहीं माना। यहोवा ने तो उन्हें पहले ही कह दिया था कि वह ऐसा ही करेगा।
\p
\s5
\v 13 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “कल सुबह जाकर राजा से कहना, ‘जिस परमेश्वर यहोवा की हम आराधना करते है, वह कहते है, मेरे लोगों को जाने दे कि वे मरुभूमि में मेरी आराधना करें।
\v 14 यदि तू उन्हें नहीं जाने देता है तो मैं इस बार विपत्तियों के साथ दण्ड भी दूँगा। मैं तेरे राजकर्मियों और प्रजा को ही नहीं तुझे भी विपत्तियों में डालूँगा जिससे तू जानेगा कि संपूर्ण पृथ्वी पर मेरे अतिरिक्त कोई परमेश्वर नहीं है।
\s5
\v 15 इस समय तक मैं तुझे और तेरे लोगो को भयानक बीमारियों से मारने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग कर सकता था।
\v 16 लेकिन मैंने तुझे जीवित रहने दिया है कि मैं अपनी शक्ति दिखा सकूँ जिससे संपूर्ण पृथ्वी के मनुष्य जान सकें कि मैं कैसा महान हूँ।
\v 17 तू अब भी अहंकार के कारण मेरे लोगों को जाने नहीं देता है।
\s5
\v 18 तो इस बात को सुन, कल इसी समय मैं मिस्र में बड़े-बड़े ओले बरसाऊँगा। जब से मिस्र एक राष्ट्र बना उस समय से अब तक ऐसे बड़े-बड़े ओले मिस्र में कभी नहीं बरसे होंगे।
\v 19 इसलिए तू अपनी प्रजा को संदेश भेज कि वे अपने पशुओं और जो कुछ भी उनका हो उसका आश्रय में ही रखें। ओले हर व्यक्ति पर और खेतों में हर पशु पर गिरेंगे जो आश्रय के नीचे नहीं लाया जाएगा और वे सब मर जाएँगे।" इसलिए मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया।
\p
\s5
\v 20 राजा के कुछ कर्मचारी यहोवा की चेतावनी सुन कर बहुत डर गए इसलिए उन्होंने अपने सब पशुओं और दासों को छत के नीचे ले आये।
\v 21 परन्तु कुछ लोगों ने यहोवा की बात को नहीं सुना और उन्होंने अपने पशुओं और दासों को खेतों में ही रहने दिया।
\s5
\v 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि संपूर्ण मिस्र के लोगों, पशुओं और खेतों पर ओले गिरें। “
\v 23 तब मूसा ने आकाश की ओर अपनी लाठी उठाई और यहोवा ने संपूर्ण मिस्र पर बड़े-बड़े ओले बरसाए। ओलों के साथ बिजली चमकी और गर्जन हुई।
\v 24 ओलों के साथ बिजली गरज कर पृथ्वी पर गिरी। जब से मिस्र एक राष्ट्र बना तब से ऐसे ओले कभी नहीं गिरे थे।
\s5
\v 25 ओलो ने पूरे मिस्र के खेतों में रुके हर व्यक्ति और हर पशु को मार डाला। ओलों के कारण खेतों के वृक्ष नष्ट हो गए और पत्ते झड़ गए।
\v 26 परन्तु गोशेन में जहाँ इस्राएली रहते थे, वहाँ ओले नहीं बरसे।
\p
\s5
\v 27 तब राजा ने हारून और मूसा को बुलाने के लिए किसी को भेजा। उसने उनसे कहा, “इस बार मैं मानता हूँ कि मैंने पाप किया है। यहोवा ने जो किया है वह सही है और मैंने और मेरे लोगों ने जो किया है वह गलत है।
\v 28 यहोवा से प्रार्थना कर! हम इस गर्जन और बर्फ को और अधिक सहन नहीं कर सकते हैं! मैं तुम लोगों को जाने दूँगा। तुम्हें अब मिस्र में रहने की आवश्यकता नहीं है।"
\p
\s5
\v 29 मूसा ने उत्तर दिया, “इस नगर से निकलते ही मैं अपने हाथ उठा कर यहोवा से विनती करूँगा और गर्जन रूक जाएगी और ओलो का अन्त होगा। यह इसलिए होगा कि तू जान ले कि तेरे देवता नहीं, यहोवा पृथ्वी पर सब कुछ नियंत्रित करते हैं।
\v 30 किन्तु मैं जानता हूँ कि तू और तेरे अधिकारी अब भी यहोवा से नहीं डरते हैं।"
\p
\s5
\v 31 जब ओले गिरे तो सन में फूल आ चुके थे। क्योंकि जौ पहले ही पक चुकी थी इसलिए फसलें नष्ट हो गई।
\v 32 लेकिन गेहूं नष्ट नहीं हुए क्योंकि वे बड़े नहीं हुए थे।
\p
\v 33 इसलिए मूसा राजा के सामने से निकल कर नगर से बाहर गया और हाथ उठा कर यहोवा से प्रार्थना की। तब गर्जन और ओलो का तूफान बंद हो गया। मिस्र पर वर्षा होनी भी बन्द हो गई।
\s5
\v 34 परन्तु जब राजा ने देखा कि वर्षा, ओलो का तूफान और गर्जन बंद हो गया है तब राजा ने फिर से पाप किया। राजा और उसके अधिकारी हठीले हो गए।
\v 35 यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था। राजा ने इस्राएलियों को जाने की अनुमति नहीं दी।
\s5
\c 10
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा के पास फिर जा। मैंने उसे और उसके कर्मचारियों को हठीला बना दिया है। मैंने यह इसलिए किया है कि उनके मध्य चमत्कार करने का उचित कारण मेरे पास हो।
\v 2 मैंने ऐसा इसलिए भी किया है कि तुम अपने बच्चों और अपने नाती-पोतों को यह बता सको कि मैंने इन सब चमत्कारों के द्वारा मिस्र के लोगों से कैसे मूर्खतापूर्ण कार्य करवाया। तब तुम सब जानोगे कि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ।"
\p
\s5
\v 3 अत: हारून और मूसा ने राजा के पास जाकर कहा, “परमेश्वर यहोवा जिसकी हम इब्रानी आराधना करते है, वह कहते हैं, ‘तू कब तक मेरे सामने ढीठ बन कर मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेगा? मेरे लोगो को जाने दे कि वे मरुभूमि में मेरी आराधना करें।
\v 4 यदि तू उन्हें जाने नहीं देगा तो मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि कल तेरे देश में टिड्डियाँ भेजूँगा।
\s5
\v 5 टिड्डियाँ पूरी भूमि को ऐसे ढ़ाँक लेंगी कि तुम भूमि नहीं देख सकोगे। जो कुछ भी ओले भरी आँधी से बच गया है उसे टिड्डियाँ खा जाएँगी। टिड्डियाँ पेड़ों की सारी पत्तियाँ खा लेंगी।
\v 6 वे तेरे और तेरे कर्मचारियों और सब नागरिकों के घरों में भर जाएँगी। न तूने, न तेरे पूर्वजों ने इस देश में आने से लेकर अब तक कभी इतनी टिड्डियाँ नहीं देखी होंगी।'" तब मूसा और हारून राजा के पास से चले गए।
\p
\s5
\v 7 राजा के कर्मचारियों ने राजा से कहा, “यह पुरूष कब तक हम पर विपत्तियाँ लाता रहेगा? इस्राएलियों को अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करने के लिए जाने दे। क्या तू नहीं समझ पा रहा है कि इसने मिस्र का विनाश कर दिया है?"
\v 8 तब वे हारून और मूसा को राजा के पास ले आए। राजा ने उनसे कहा, “ठीक है, तुम लोग जाकर अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना कर सकते हो। किन्तु मुझे बताओ कि कौन—कौन जा रहा है?"
\s5
\v 9 मूसा ने उससे कहा, “हम सभों को ही जाना होगा, छोटे हो या वृद्ध सब को। हमें अपने पुत्र-पुत्रियों को और अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को भी ले जाना होगा क्योंकि वहाँ हम यहोवा के लिए पर्व मनायेंगे।"
\p
\v 10 तब राजा ने उससे कहा, “मैं कभी नहीं चाहता कि तुम्हारा यहोवा तुम्हारी सहायता करे। मैं तुम्हारी संतानों और पत्नियों को जाने नहीं दूँगा। ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लौट कर नहीं आने की योजना बना रहे हो।
\v 11 नहीं, मैं तुम सभी को नहीं जाने दूँगा। यदि तुम चाहते हो तो केवल पुरूष जाकर आराधना कर सकते हो।" तब राजा ने मूसा और हारून को अपने महल से निकाल दिया।
\p
\s5
\v 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ उस देश पर उठा जैसे कि टिड्डियों को आमंत्रित कर रहा है कि वे आ कर ओलों से बचे हुए हर एक पौधे और वृक्ष को खा जाएँ।"
\p
\v 13 मूसा ने अपनी लाठी ऐसे उठाई कि जैसे वह उसे उस संपूर्ण देश पर उठा रहा हो। तब यहोवा ने उस दिन और रात पूर्व से तेज हवा बहाई और सुबह होते-होते वहाँ टिड्डियाँ आ गईं।
\s5
\v 14 टिड्डियाँ पूरे मिस्र में भर गई। टिड्डियों की ऐसी बड़ी संख्या मिस्र में कभी देखी नहीं गई थी। और न ही देखी जाएगी।
\v 15 वे धरती पर ऐसे छा गई कि पूरे देश में अँधेरा छा गया। वे ओलो से बचे हुए वृक्षों और सब पौधों को खा गईं। मिस्र में कहीं भी हरियाली नहीं बची।
\p
\s5
\v 16 राजा ने जल्दी ही हारून और मूसा को बुलाया और कहा, “मैंने तुम्हारे परमेश्वर यहोवा और तुम्हारे विरुद्ध पाप किया है।
\v 17 इसलिए केवल इस बार मेरा पाप क्षमा करो और अपने परमेश्वर यहोवा से विनती करो कि वह हमें इस सर्वनाश से बचाए अन्यथा हम नष्ट हो जायेंगे।"
\p
\v 18 तब मूसा और हारून राजा के सामने से निकल आए और मूसा ने यहोवा से विनती की।
\s5
\v 19 तब यहोवा ने हवा का रूख बदल दिया। यहोवा ने पश्चिम से तेज़ हवा चलाई और उन्होंने टिड्डियों को दूर लाल सागर में उड़ा दिया। एक भी टिड्डी मिस्र में नहीं बची।
\p
\v 20 परन्तु यहोवा ने राजा को हठीला बना दिया और उसने इस्राएलियों को जाने नहीं दिया।
\p
\s5
\v 21 यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर उठा कि संपूर्ण मिस्र पर अंधकार छा जाए। अंधकार इतना गहरा हो कि लोगों को टटोल-टटोल के चलना पड़े।"
\v 22 तब मूसा ने आकाश की ओर हाथ उठाया और संपूर्ण मिस्र पर गहरा अंधकार छा गया। मिस्र में तीन दिन और तीन रात तक अधंकार रहा।
\v 23 कोई भी किसी को नहीं देख सकता था और तीन दिन तक कोई अपनी जगह से नहीं उठ सका। किन्तु उन सब स्थानों में जहाँ इस्राएल के लोग रहते थे, प्रकाश था।
\p
\s5
\v 24 राजा ने मूसा को बुलाकर कहा, “ठीक है, तुम जाकर यहोवा की आराधना कर सकते हो। तुम्हारी पत्नियाँ और तुम्हारे बच्चे तुम्हारे साथ जा सकते है। परन्तु अपने भेड़, बकरियों और मवेशियों को यहीं रहने दो।"
\v 25 परन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “नहीं, हमें अपनी भेड़-बकरियाँ भी ले जानी होंगी कि हम अपने परमेश्वर के लिए उनकी होम-बलि चढ़ाएँ।
\v 26 हमारे पशु हमारे साथ जाएँगे। हम एक भी पशु को छोड़ कर नहीं जाएँगे। यहोवा की आराधना के लिए उनकी भी आवश्यकता होगी। जब तक हम वहाँ नहीं पहुँचें तब तक हमें समझ में नहीं आएगा कि यहोवा की आराधना में कौन सा पशु चढ़ाएँ।"
\p
\s5
\v 27 परन्तु परमेश्वर ने राजा का मन हठीला कर दिया और राजा ने इस्राएलियों को जाने नहीं दिया।
\v 28 राजा ने मूसा और हारून से कहा, “यहां से निकल जाओ! याद रखना कि तुम मुझे फिर से देखने के लिए कभी नहीं आओगे! जिस दिन तुम मुझे फिर से दिखोगे, मैं तुम्हें मार दूँगा!”
\v 29 मूसा ने उत्तर दिया, “तू सही कहता है, अब तू मेरा मुंह कभी नहीं देखेगा!”
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं मिस्र के राजा और उसके सब लोगों पर एक और विपत्ति लाऊँगा। इसके बाद वह तुम लोगों को मिस्र से भेज देगा। वास्तव में, वह तुम्हें मिस्र से भगा देगा।
\v 2 तो अब जाकर सब इस्राएलियों से कह कि वे अपने मिस्री पड़ोसियों अर्थात स्त्री-पुरूष सब से कहें कि वे उन्हें अपने सोने-चाँदी के गहने दें।"
\v 3 यहोवा ने मिस्रियों में इस्राएलियों के प्रति बहुत सम्मान उत्पन्न कर दिया था। सच तो यह है कि राजा के कर्मचारी और उसकी प्रजा मूसा को एक महापुरूष मानती थी।
\p
\s5
\v 4 तब मूसा राजा के पास गया और कहा, "यहोवा यह कहते हैं: 'आज आधी रात के समय, मैं मिस्र से होकर निकलूँगा,
\v 5 और मैं सभी पहले पुत्रों के मरने का कारण बनूंगा। मैं राजा के पहले पुत्र से लेकर दासी जो अनाज पीसती है उसके पहले पुत्र सहित सबके पहले पुत्र को मार डालूँगा। मैं तुम्हारे पशुओं के पहले नरों को भी मार दूँगा।
\s5
\v 6 ऐसा होने पर संपूर्ण प्रजा चिल्ला-चिल्ला कर विलाप करेगी। ऐसा विलाप जैसा न तो उन्होंने पहले कभी किया और न ही फिर कभी करेंगे।
\v 7 परन्तु इस्राएल में ऐसी शान्ति होगी कि कुत्ता भी नहीं भौंकेगा। तब तुम निश्चय जान लोगे कि मैं यहोवा इस्राएलियों के साथ पक्षपात करता हूँ।'
\v 8 तब तेरे सब अधिकारी आएँगे और मेरे सामने झुककर आग्रह करेंगे, ‘तुम अपने सारे इस्राएली को लेकर मिस्र से निकल जाओ! उसके बाद, हम मिस्र से निकल जाएँगे!" यह कह कर मूसा क्रोध में राजा के सामने से चला गया।
\p
\s5
\v 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा तेरी बात नहीं मानेगा इसलिए मैं मिस्र देश में और भी चमत्कार करूँगा।"
\p
\v 10 हारून और मूसा ने राजा के सामने ये सब चमत्कार किए परन्तु यहोवा ने राजा को हठीला बना दिया था। राजा ने इस्राएली लोगों को अपनी भूमि छोड़ने नहीं दी।
\s5
\c 12
\p
\v 1 यहोवा ने मिस्र में हारून और मूसा से कहा,
\v 2 “अब से तुम इस्राएलियों के लिए यह वर्ष का पहला महीना होगा।
\s5
\v 3 सब इस्राएलियों से कह कि प्रत्येक परिवार में जो पुरूष मुखिया है वह अपने परिवार के लिए एक भेड़ का बच्चा या बकरी का बच्चा ले।
\v 4 यदि परिवार में उस मेम्ने को पका कर खाने के लिए लोगों की कमी है तो वह परिवार अपने पड़ोस के किसी परिवार के साथ उसे बाँट कर खाए। प्रत्येक परिवार में सदस्यों की संख्या के अनुसार निश्चित करो कि तुम कितना खा सकते हो।
\s5
\v 5 जो मेम्ना या बकरी का बच्चा तुम चुनोगे वह एक वर्ष का हो और नर पशु हो और उनमे कोई दोष नहीं होना चाहिए।
\v 6 महीने के चौदहवें दिन तक तुम्हे इन पशुओंं की विशेष देखभाल करनी होगी। चौंदहवें दिन तुम सब अपना-अपना मेम्ना या बकरी के बच्चे को संध्या के समय मारना।
\v 7 और उसका खून अपने द्वार की चौंखटों पर दोनों ओर और ऊपर की ओर लगाना, जिस घर में वे उसका माँस खायेंगे।
\v 8 तुम उसका माँस तुरन्त भून कर उसी रात खाना। उन्हें कड़वे साग-पात और अखमीरी रोटी के साथ खाना है।
\s5
\v 9 तुम न तो उस का कच्चा माँस खाना और न ही उसे उबाल कर खाना। उसके सिर या पैरों को काटना नहीं और न ही उसके भीतर के अंग अलग करके भूनना है।
\v 10 तुम्हें उस शाम को सारा माँस अवश्य खा लेना होगा। दूसरे दिन सुबह खाने के लिए उसका माँस नहीं बचाना। यदि थोड़ा माँस सबेरे तक बच जाये तो उसे आग में अवश्य ही जला देना चाहिए।
\v 11 जब तुम इसे खाओगे तब तुम्हें यात्रा के लिए तैयार रहना है। तुम्हारे पैरों में जूते हों और हाथों में लाठियाँ हों। भोजन करने में शीघ्रता करना। यह मेरे, यहोवा के सम्मान में फसह का पर्व होगा।
\s5
\v 12 उस रात मैं संपूर्ण मिस्र देश से निकलूँगा और मनुष्य और पशु सब के पहले नर को मार दूँगा। इस प्रकार मैं मिस्र के सब देवताओं को दण्ड दूँगा। मैं यहोवा तुम से यह कहता हूँ।
\v 13 तुम्हारे द्वारों पर लगा हुआ खून इस बात को दर्शाएगा कि उस घर में मेरे इस्राएली रहते है। खून देख कर मैं उस घर के लोगों को हानि नहीं पहुँचाऊँगा और आगे बढ़ जाऊँगा।
\p
\v 14 तुम्हें प्रतिवर्ष यह पर्व मनाना होगा और याद रखना होगा कि मुझ यहोवा ने तुम्हारे लिए क्या किया है। तुम्हारी आने वाली हर एक पीढ़ी में यह पर्व मनाया जाए। यह सदा का पर्व हो।
\s5
\v 15 तुम सात दिन तक अखमीरी रोटी खाना। सप्ताह के पहले दिन तुम अपने-अपने घर में खमीर पूर्णतः हटा देना। उन सातों दिनों में एक बार भी यदि किसी ने खमीरी रोटी खाई तो उसे अपने बीच से निकाल देना।
\v 16 उस सप्ताह के पहले दिन तुम पवित्र सभा करोगे और सातवें दिन भी ऐसा ही करोगे। उन दो दिन कोई भी किसी भी प्रकार का काम नहीं करे। एकमात्र काम तुम जो करोगे वह भोजन पकाने का होगा।
\p
\s5
\v 17 प्रतिवर्ष तुम अखमीरी रोटी का पर्व मनाओगे जिससे तुम्हें याद रहे कि मैं तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया था। इसलिए हर एक पीढ़ी में प्रतिवर्ष इस दिन पर्व मनाना। यह सदा के लिए करते रहना।
\v 18 वर्ष के पहले महीने के चौंदहवें दिन तुम वही रोटी खाओगे। जिसमें खमीर न हो। और उस महीने के इक्कीसवें दिन तक तुम वही सब खाओगे जिसमें खमीर नहीं है। ऐसा इक्कीसवें दिन तक प्रतिदिन करना।
\s5
\v 19 उन सातों दिन तुम्हारे घर में कहीं भी खमीर न हो। यदि कोई इस्राएली या विदेशी इन दिनों खमीरी रोटी खाए तो वह इस्राएल का भाग न हो।
\v 20 अपने घरों में, उन सातों दिन तुम किसी प्रकार का खमीर मिला भोजन नहीं करना।"
\p
\s5
\v 21 तब मूसा ने सब इस्राएली बुजुर्गों (नेताओं) को एकत्र किया और उनसे कहा, “प्रत्येक परिवार एक मेम्ना चुन कर उसे मारे कि तुम इस पर्व को मनाने के लिए खा सको, इस पर्व को ‘फसह’ कहा जाएगा।
\v 22 उस मेम्ने का खून एक कटोरे में लेकर उसमें जूफा का गुच्छा डुबो कर अपने घरों के द्वारों की चौंखटों पर लगा देना। सुबह होने तक कोई भी घर से बाहर न निकले।
\s5
\v 23 जब रात में यहोवा मिस्रियों के पहले नरों को मारने निकलेंगे तब वह तुम्हारे द्वारों की चौंखटों पर खून देख कर आगे बढ़ जाएंगे और उनके मारने वाले दूत तुम्हारे पहले नरों को नहीं मारेंगे।
\s5
\v 24 तुम और तुम्हारे वंशजों को सदा के लिए इस पर्व को मनाना है।
\v 25 जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो यहोवा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हें देंगे तब भी तुम प्रतिवर्ष इस पर्व को मनाना।
\s5
\v 26 जब तुम्हारी संतान तुमसे पूछे, “इस पर्व का अर्थ क्या है?”
\v 27 तब तुम उन्हें अवश्य बताना, “यह पर्व इस बात की याद में है कि जब यहोवा का स्वर्गदूत मिस्र में से निकला था तब तुम्हारे पूर्वजों ने मेम्ना बलि किया था और उसका खून अपने द्वारों की चौखटों पर लगाया था कि वह स्वर्गदूत उनके पहले नरों को न मारे। उसने सब मिस्रियों के पहले नरों को मार दिया था। परन्तु हमारे पूर्वजों के पहले नर को छोड़ दिया।" जब मूसा यह सब कह चुका तब सब ने अपने सिर झुकाकर यहोवा की आराधना की।
\v 28 तब इस्राएली लोगों ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने हारून और मूसा से करने के लिया कहा था।
\p
\s5
\v 29 आधी रात में यहोवा ने मिस्र के सब पहले पुत्रों को मार डाला। राजा का पहले पुत्र, कारागार में पड़े हुए बन्दी का पहले पुत्र, और हर एक मिस्री के पहले नर को मार दिया। उन्होंने उनके पशुओं के पहले नरों को भी मार दिया।
\v 30 उस रात राजा, उसके सब अधिकारी, और सब मिस्री लोग जागे तो उन्हें पता चला कि क्या हुआ है। सब लोग जोर-जोर से रोने चिल्लाने लगे क्योंकि हर घर में किसी न किसी के पुत्र की मृत्यु हुई थी।
\p
\s5
\v 31 उस रात राजा ने हारून और मूसा को बुलाया और कहा, “उठो, तुम और अन्य सब इस्राएली लोग मेरा देश छोड़ कर जाओ और यहोवा की आराधना करो, जैसा तुमने अनुरोध किया था!
\v 32 भेड़ों, बकरियों और मवेशियों के झुंड को अपने साथ ले जाओ, और यहाँ से निकल जाओ। मुझे आशीर्वाद देने के लिए यहोवा से विनती करो!"
\p
\v 33 मिस्रियों ने इस्राएली लोगों को उनके देश से जल्दी से निकल जाने के लिये कहा। उन्होंने कहा, “यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो हम सब मर जाएँगे!"
\s5
\v 34 इस्राएली लोग जाने के लिए तैयार तो थे ही। उन्होंने गुँदे आटे की परातों को अपने कपड़ों में लपेटा और अपने कंधों पर रख कर वहा से निकले।
\v 35 इस्राएलियों ने मूसा के कहने के अनुसार अपने पड़ोसियों से सोने-चाँदी के गहने और वस्त्र मांग लिए। यहोवा ने मिस्रियों को इस्राएलियों पर ऐसा कृपालु कर दिया था कि उन्होंने जो कुछ मांगा, मिस्रियों ने दे दिया।
\v 36 यहोवा ने मिस्र के लोगों की दृष्टी में इस्राएली लोगों के लिए सम्मान का कारण उत्पन्न कर दिया था। इस्राएली लोगों ने उनसे जो कुछ भी माँगा उन्हें दिया। इस प्रकार, इस्राएली लोग मिस्र के लोगों की संपत्ति ले गए।
\p
\s5
\v 37 इस्राएली रामसेस से निकल के सुपकोत की ओर चले। स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त 600,000 पुरूषों ने वहाँ से प्रस्थान किया।
\v 38 उनके साथ कुछ ऐसे लोग भी थे जो इस्राएली नहीं थे। उनके साथ अनेक भेड़ें, बकरियाँ और अन्य पशु थे।
\v 39 मार्ग में उन्होंने उसी गूंधे हुए आटे से रोटियां पकाई जिसे वे अपने साथ लेकर आए थे जब उन्हें मिस्र से निकल जाने की आज्ञा दी गई थी। उस आटे में खमीर नहीं था क्योंकि मिस्र से निकल जाने की आज्ञा ऐसी तात्कालिक थी कि उनके पास मार्ग के लिए भोजन तैयार करने का समय नहीं था और न ही आटे में खमीर मिलाकर रखने का समय उनके पास था।
\p
\v 40 इस्राएल के लोग मिस्र में 430 वर्ष तक रहे।
\s5
\v 41 जिस दिन 430 वर्ष समाप्त हुए, उसी दिन, यहोवा के लोगों के सब गोत्रों ने मिस्र छोड़ा।
\v 42 वह एक ऐसी रात थी कि इस्राएलियों को जागते रहना पड़ा क्योंकि यहोवा उन्हें मिस्र से निकाल कर ले जाने वाले थे। इसलिए वह रात यहोवा के लिए समर्पित हो गई थी। उस रात को प्रतिवर्ष, प्रत्येक पीढ़ी में याद किया जाना था क्योंकि यहोवा ने उनके पूर्वजों को सुरक्षित रखा था।
\p
\s5
\v 43 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “फसह के संस्कार की विधि यह हैः कोई विदेशी फसह पर्व में से नहीं खाएगा।
\v 44 परन्तु तुम्हारे द्वारा मोल लिए गए दास खतने के बाद इसे खा सकते है।
\s5
\v 45 परन्तु यदि कोई व्यक्ति केवल तुम लोगों के देश में रहता है या किसी व्यक्ति को तुम्हारे लिए मजदूरी पर रखा गया है तो उस व्यक्ति को उस में से नहीं खाना है।
\v 46 प्रत्येक परिवार को घर के अन्दर ही भोजन करना चाहिए। कोई भी भोजन घर के बाहर नहीं ले जाना चाहिए। मेम्ने की किसी हड्डी को न तोड़ें।
\s5
\v 47 सारे इस्राएली लोग इस पर्व को अवश्य मनाएँ।
\v 48 यदि कोई ऐसा व्यक्ति तुम लोगों के साथ रहता है जो इस्राएल की जाति का सदस्य नहीं है परन्तु वह फसह पर्व में सम्मिलित होना चाहता है तो उसका खतना अवश्य होना चाहिए। तब वह इस्राएल के नागरिक के समान होगा, और वह भोजन में भाग ले सकेगा। किन्तु यदि उस व्यक्ति का खतना नहीं हुआ हो तो वह इस फसह पर्व के भोजन को नहीं खा सकता।
\s5
\v 49 ये नियम उन लोगों पर लागू होते हैं जो जन्म से इस्राएली है और जो तुम्हारे बीच में रहने वाले विदेशी हैं।"
\p
\v 50 सब इस्राएलियों ने मूसा और हारून की बात मान ली और यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया।
\v 51 उसी दिन, यहोवा मिस्र से इस्राएल के सब गोत्रों को बाहर ले गये।
\s5
\c 13
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “पहले सब पुरुषों को समर्पित करो कि वह मेरे लिए हों। इस्राएलियों और उनके पशुओं के सब पहले नर मेरे होंगे।”
\p
\s5
\v 3 मूसा ने लोगों से कहा, “इस दिन को मत भूलना! यह वह दिन है जब तुम्हें मिस्र देश से निकाला गया था। इस दिन तुम उनके दासत्व से मुक्त किए गए थे। यहोवा ने तुम्हें अपनी महा-शक्ति से उस देश से निकाला था। जब भी तुम इस दिन का पर्व मनाते हो तब यह सुनिश्चित करना कि तुम्हारी रोटी खमीर से रहित हो।
\v 4 आज के दिन तुम लोग मिस्र से प्रस्थान कर रहे हो जो आबीब के महीने का पहला दिन है।
\v 5 आगे चलकर, जब परमेश्वर तुम्हें उस देश में ले आएँगे जहाँ इस समय कनानी, हित्ती, एमोरी, हिब्बी और यबूसी जातियाँ वास करती है, जिसे तुम्हें देने की प्रतिज्ञा परमेश्वर कर चुके हैं। यह वह देश है जो पशु-पालन और खेती के लिए अति उत्तम स्थान है। तुम्हें प्रतिवर्ष इसी महीने में यह पर्व मनाना अनिवार्य है।
\s5
\v 6 सात दिनों तक जिस रोटी को तुम खाते हो, उसमें कोई खमीर नहीं होना चाहिए। सातवें दिन यहोवा का सम्मान करने के लिए एक पर्व होना चाहिए।
\v 7 उसमें सात दिन तक तुम जो रोटी खाओगे वह पूरी तरह खमीर रहित हो। सातवें दिन यहोवा के सम्मान में यह पर्व मनाया जाए।
\s5
\v 8 जिस दिन तुम्हारा यह पर्व आरंभ हो, तुम उस दिन अपनी सन्तान से कहोगे, ‘हम यह पर्व इसलिए मना रहे है कि याद करें कि यहोवा ने हमारे पूर्वजों के लिए मिस्र से प्रस्थान के समय क्या किया था।’
\v 9 यह अनुष्ठान तुम्हें याद कराने के लिए होगा कि यहोवा ने किस प्रकार अपनी महा-शक्ति से तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से छुड़वाया था। यह अनुष्ठान ऐसा होगा जैसा तुम किसी वस्तु को अपने माथे पर या बाजू पर बान्धते हो। यह तुम्हें याद कराएगा कि अन्य मनुष्यों के सामने यहोवा के निर्देशों का वर्णन करो।
\v 10 इसलिए तुम्हें प्रतिवर्ष यहोवा द्वारा निश्चित समय पर यह पर्व मनाना है।
\p
\s5
\v 11 यहोवा तुम्हें उस देश में ले जाएँगे जहाँ कनानियों के वंशज रहते है क्योंकि उन्होंने तुमसे और तुम्हारे पूर्वजों से यह प्रतिज्ञा की है। जब वे तुम्हें वह भूमि दे दें,
\v 12 तुम्हें यहोवा को अपने सभी पशुओंं के पहले नर देने होंगे। ये सब यहोवा के होंगे।
\v 13 तुम अपने गदहों के नर पहले रख सकते हो परन्तु तुम उसके स्थान में एक मेम्ना मारना जो उसके मूल्य के लिए होगा। यदि तुम गधे के उस बच्चे को मेम्ना देकर लेना नहीं चाहते तो उसकी गर्दन तोड़ कर उसको मार देना। तुम्हारे लिए अनिवार्य है कि तुम अपने हर एक पहले पुत्र का मूल्य चुका कर लो।
\s5
\v 14 भविष्य में जब तुम्हारी सन्तान पूछें, ‘इसका अर्थ क्या है? तब तुम उनसे कहना, “यहोवा हमारे पूर्वजों को अपनी महा-शक्ति से छुड़ा कर मिस्र से निकाल लाया था और उन्हें दासत्व से मुक्त कराया था।"
\v 15 मिस्र का राजा उन्हें मुक्त करना नहीं चाहता था इसलिए यहोवा ने मिस्र के हर एक पहले बच्चे को मार दिया था- प्रत्येक पुत्र और पशु का बच्चा। यही कारण है कि हम अपने पशुओं का पहला बच्चा यहोवा को अर्पित कर देते हैं और अपने पहले पुत्र को उससे मोल लेते है।'
\v 16 इससे तुम्हें याद रहेगा कि यहोवा ने किस प्रकार अपनी महा-शक्ति से हमारे पूर्वजों को मिस्र देश से मुक्ति दिलाई थी। यह वैसा ही एक स्मारक है जैसा तुम किसी बात को याद रखने के लिए अपने माथे या बाजू पर कुछ बान्ध लेते हो।"
\p
\s5
\v 17 जब मिस्र के राजा ने इस्राएलियों को अपने देश से निकल जाने दिया तब यहोवा उन्हें छोटे रास्ते से अर्थात पलिश्तियों के देश से लेकर नहीं चला। परमेश्वर ने कहा, “यदि मेरी प्रजा पलिश्तियों से युद्ध करने के विचार से उस देश पर अधिकार करने से पीछे हट गई तो वे फिर से मिस्र वापस जाने का निर्णय लेंगे।"
\v 18 इसकी अपेक्षा, परमेश्वर उन्हें मरुभूमि का चक्कर कटा कर लाल सागर की ओर ले चला। मिस्र से निकलते समय इस्राएलियों ने हथियार भी ले लिए थे कि विरोधियों से लड़ने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
\p
\s5
\v 19 मूसा ने यूसुफ की अस्थियाँ भी उनसे उठवा ली थीं क्योंकि यूसुफ ने अपने जीवित रहते समय ही उनसे यह प्रतिज्ञा करवाई थी। यूसुफ ने उनसे कहा था, “परमेश्वर तुम्हारे वंशजों को मिस्र से छुड़वाएंगे और जब यहोवा ऐसा करें तब तुम मेरी अस्थियाँ अपने साथ लेकर यहाँ से जाना।”
\p
\v 20 इस्राएली लोग सुक्कोत से निकल के एताम पहुँचे जो मरुभूमि की छोर पर था और वहाँ डेरा डाला।
\v 21 जब वे दिन के समय यात्रा करते थे तब यहोवा की उपस्थिति बादल के खम्भे के रूप में उनके साथ होती थी कि उनके आगे-आगे मार्गदर्शन करते हुए चले। रात के समय यहोवा की उपस्थिति आग के खम्भे के रूप में उनका मार्गदर्शन करती थी। इस प्रकार यहोवा दिन में और रात में उनकी यात्रा को सुलभ बनाते थे।
\v 22 ऊँचे खम्भे के रूप में बादल ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह सदैव उनके आगे-आगे चलता था, दिन में बादल का एक ऊँचा खम्भा और रात में आग के खम्भे के रूप में।
\s5
\c 14
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएली लोगों से कह कि वे पीछे मुड़कर पीहाहीरोत में अपने तम्बू लगाएँ। यह नगर मिगदोल और समुन्द्र के बीच में है। वहीँ समुद्र के समीप अपने तम्बू लगाओ।
\v 3 जब राजा को यह जानकारी मिलेगी कि तुमने ऐसा किया है, तब वह सोचेगा, ‘इस्राएली जंगल में भटक गए और रेगिस्तान के कारण उनके मार्ग में रुकावट आ गयी है। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि अब क्या करें।'
\s5
\v 4 परन्तु मैं राजा को फिर से हठीला बना दूँगा और वह अपनी सेना के साथ तुम्हारे पीछे आएगा। तब मेरे लोग राजा और उसकी सेना पर मेरी विजय के कारण मेरा गुणगान करेंगे और मिस्री लोग जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।" इसलिए मूसा ने इस्राएलियों को परमेश्वर का यह निर्देश सुनाया और उन्होंने वही किया जो मूसा ने कहा था।
\p
\v 5 जब राजा को यह समाचार मिला कि इस्राएली रातों-रात वहाँ से निकल गए तब उसने और उसके कर्मचारियों ने अपना विचार बदलकर कहा, “हमने यह क्या कर दिया? इस्राएली तो हमारे दासत्व से निकल गए!”!”
\s5
\v 6 राजा ने अपना रथ और अपनी सेना तैयार की।
\v 7 राजा ने छः सौ सर्वश्रेष्ठ रथों का चयन किया और प्रत्येक पर एक सारथी, एक सैनिक और एक सेनानायक थे, और वे चले गए।
\v 8 यहोवा ने मिस्र के राजा को हठीला बना दिया इसलिए उसने और उसकी सेना ने इस्राएलियों का पीछा किया। इस्राएली निश्चिन्त होकर बढ़ते चले जा रहे थे।
\v 9 राजा अपने घुड़सवारों, रथों और घोड़ों के साथ इस्राएलियों के पीछे गया और बाल-सपोन के सामने पीहाहीरोत के समीप समुद्री तट पर इस्राएलियों के डेरे के निकट पहुँच गया।
\p
\s5
\v 10 राजा की सेना को निकट आते देख इस्राएली लोग आश्चर्यचकित हुए। इस्राएली लोग बुरी तरह से डर गए और उन्होंने सहायता के लिए यहोवा को पुकारा।
\v 11 तब उन्होंने मूसा से कहा, “क्या मिस्र में स्थान नहीं था कि हम दफ़न किए जाएँ? तू हमारी कब्रें खुदवाने के लिए हमें मरुभूमि में क्यों ले आया है? अब देख मिस्र से हमें निकालकर तूने हमारे लिए कैसा अनर्थ उत्पन्न कर दिया है।
\v 12 जब हम मिस्र में थे तब हमने तुझे बताया था कि, 'हमें अकेला छोड़ दे और हमें मिस्र के लोगों के लिए काम करने दे।’ मरुभूमि में यहाँ मरने से बेहतर होता कि हम मिस्र के लोगों के दास बनकर रहते!"
\p
\s5
\v 13 मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत! दृढ़ रहो और देखो कि आज तुम लोगों को यहोवा कैसे बचाते हैं। आज के बाद तुम लोग इन मिस्रियों को कभी नहीं देखोगे।
\v 14 यहोवा तुम्हारे लिए लड़ेंगे! तुम लोगों को शान्त रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करना है।"
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस स्थिति में तुम्हें मुझको पुकारना नहीं पड़ेगा; इस्राएल के लोगों को आगे चलने का आदेश दो।
\v 16 अपने हाथ की लाठी को लाल सागर के ऊपर उठाओ और लाल सागर फट जाएगा। तब लोग सूखी भूमि से समुद्र को पार कर सकेंगे।
\v 17 मैं मिस्रियों को हठीला बना दूँगा और वे इस्राएलियों का पीछा करेंगे। तब मैं राजा, उसकी सेना, उसके रथों और उसके घुड़सवारों के साथ जो करूँगा उसके कारण इस्राएली मेरा गुणगान करेंगे।
\v 18 जब मैं राजा, उसके रथों और उसके घुड़सवारों पर विजयी हो जाऊँगा तब मिस्री जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ, ऐसा परमेश्वर जो कुछ भी कर सकता है।"
\p
\s5
\v 19 तब परमेश्वर का दूत, जो इस्राएलियों के आगे-आगे चलता था, उनके पीछे आ गया। बादल का खम्भा लोगों के आगे से हट गया और उनके पीछे आ गया।
\v 20 वह मिस्र की सेना और इस्राएलियों के बीच खड़ा हुआ। उस बादल के कारण मिस्रियों पर अन्धकार छा गया परन्तु इस्राएलियों को प्रकाश मिलता रहा। इसलिए न तो इस्राएली और न ही मिस्री एक-दूसरे के निकट आ पाए।
\p
\s5
\v 21 उसी शाम को मूसा ने अपना हाथ उठाया जैसे कि वह समुद्र पर हाथ फैला रहा हो। तब यहोवा ने पूर्व से एक तेज आँधी भेजी। पूरी रात आँधी समुद्र पर बहती रही और समुद्र के जल को विभाजित करके भूमि को सुखा दिया।
\v 22 तब इस्राएली लोग समुद्र के बीच में सूखी भूमि पर गए। समुद्र का जल बायीं ओर और दाहिनी ओर दीवार के जैसा थम गया।
\s5
\v 23 मिस्र की सेना उनका पीछा करते हुए अपने घोड़ों, रथों और सारथियों समेत समुद्र के बीच जा पहुँची।
\v 24 सुबह होने से कुछ समय पहले, यहोवा ने आग के बादल से नीचे देखा और मिस्री सेना को भयभीत कर दिया।
\v 25 उन्होंने उनके रथों के पहिये समुद्री भूमि में फंसा दिए कि वे न आगे बढ़ सके न पीछे हट सके। इस पर मिस्री एक-दूसरे से कहने लगे, “यहोवा इस्राएलियों की ओर से हमारे विरुद्ध लड़ रहे है। आओ! हम यहाँ से भाग निकलें!”
\p
\s5
\v 26 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपनी बाहों को ऐसे बढ़ा जैसे कि तू इसे समुद्र में फैला रहा है। तब समुद्र का जल मिस्रियों के रथों और उनके घुड़सवारों पर आ जाएगा।”
\v 27 मूसा ने समुद्र पर अपना हाथ उठाया और सूर्योदय के समय जल का स्तर समतल होकर सामान्य स्थिति में आ गया। मिस्रियों ने बचकर निकलने का प्रयास किया परन्तु यहोवा ने मिस्रियों को समुद्र से नहीं निकलने दिया।
\v 28 समुद्र का जल अपने उचित तल तक लौटा और इस्राएलियों का पीछा करने वाली मिस्री सेना को उसके रथों और घुड़सवारों के साथ जल में डूबा दिया। हर एक मिस्री मारा गया।
\s5
\v 29 किन्तु इस्राएल के लोगों ने सूखी भूमि पर चलकर समुद्र पार किया। उनकी दाहिने और बायें ओर जल दीवार की तरह खड़ा था।
\p
\v 30 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को मिस्री सेना के हाथ से बचाया। इस्राएल के लोगों ने मिस्रियों के शवों को देखा। उनके शव लाल सागर के किनारों पर जल में थे।
\v 31 इस्राएलियों ने देखा कि यहोवा ने अपनी महा-शक्ति से मिस्रियों के साथ क्या किया और उनमें यहोवा का भय समा गया। उन्होंने यहोवा और मूसा पर भरोसा रखा।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब मूसा और सब इस्राएली लोगों ने यहोवा के लिए एक गीत गाया। उन्होंने यह गीत गाया,
\q1 “मैं यहोवा का भजन गाऊँगा क्योंकि उन्होंने महान विजय प्राप्त की हैं;
\q2 उन्होंने घोड़ों और उनके सवारों को समुद्र में फेंक दिया हैं!
\q1
\s5
\v 2 यहोवा ही हैं जो मुझे बल देते है, मैं उन्हीं का भजन गाऊँगा।
\q2 वह वही हैं जिन्होंने मुझे बचाया है।
\q1 वह मेरे परमेश्वर है और मैं उनकी स्तुति करूँगा।
\q2 वह मेरे पिता के परमेश्वर है, मैं उनकी आराधना करूँगा,
\q2 और मैं उनकी महानता का वर्णन दूसरों से करूँगा।
\q1
\v 3 यहोवा एक योद्धा हैं;
\q2 यहोवा उनका नाम है।
\q1
\s5
\v 4 उन्होंने राजा के रथों और उसकी सेना को समुद्र में फेंक दिया है;
\q राजा के सर्वोत्तम अधिकारी सब लाल सागर में डूब गए।
\q1
\v 5 जल ने उन्हें बाढ़ के समान ढ़ाँक दिया;
\q2 वे पत्थर के समान समुद्र तल में डूब गए।
\q1
\s5
\v 6 हे यहोवा, आपकी शक्ति अपार है;
\q2 उस शक्ति के साथ, हे यहोवा, आपने दुश्मनों को टुकड़े-टुकड़े कर डाला है।
\q1
\v 7 हम आपका बहुत सम्मान करते हैं क्योंकि आपने हमारे दुश्मनों को पराजित किया है।
\q1 क्योंकि आप उनसे क्रोधित थे, आपने उन्हें ऐसे नष्ट कर दिया है
\q2 जैसे आग पुआल को जला कर नष्ट कर देती है।
\q1
\v 8 आप समुद्र पर उड़े,
\q2 और जल एकत्र हो गया;
\q1 पानी दो दीवारों के समान खड़ा था।
\q1 समुद्र के गहनतम भाग में पानी ऐसे एकत्र हो गया,
\q2 जैसे कि जम गया हो।
\q1
\s5
\v 9 हमारे दुश्मनों ने कहा, ‘हम उनका पीछा करके
\q2 उन्हें पकड़ लेंगे।
\q1 हम अपनी तलवारें खींचकर
\q2 उन पर वार करेंगे।
\q1 हम उन्हें हराकर,
\q2 हम लूट में प्राप्त की गई सभी वस्तुओं को विभाजित कर के आपस में बाँट लेंगे।'
\q1
\v 10 परन्तु आपने उन पर अपना श्वास फूंक कर उडा दिया,
\q2 और फिर समुद्र ने उन्हें डूबा दिया।
\q1 वे बड़ी-बड़ी लहरों में सीसे के समान डूब गए।
\q1
\v 11 हे यहोवा, उनके देवताओं के बीच में आपके समान कोई परमेश्वर नहीं है।
\q2 आप महिमामय, हैं आपके द्वारा बनाये सब से बिल्कुल अलग है।
\q1 आपके जैसा कोई नहीं है!
\q2 आपके द्वारा किए गए सब चमत्कारों के कारण सब आपसे डरते हैं और आपकी स्तुति करते हैं!
\q1
\s5
\v 12 जब आपने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया,
\q2 तब पृथ्वी ने हमारे दुश्मनों को निगल लिया!
\q1
\v 13 आपने कभी भी हमसे प्रेम करना नहीं छोड़ा है, हमें जिन्हें आपने बचाया है;
\q2 अपनी शक्ति के साथ आप हमें उस देश में ले जा रहे है जहाँ आप स्वयं रहते हैं।
\q1
\s5
\v 14 अन्य जातियों के लोग सुनेंगे कि आपने क्या किया है,
\q2 तो वे कांपने लगेंगे।
\q1 पलिश्त के लोग भयभीत होंगे।
\q1
\v 15 एदोम के प्रधान निराश होंगे।
\q2 मोआब के प्रधान इतना डर जाएँगे कि वे थरथराएँगे। कनान में रहने वाले सभी लोग बेहोश हो जाएँगे।
\q1
\s5
\v 16 वे आपकी महान शक्ति के कारण भयभीत होंगे।
\q2 लेकिन वे पत्थरों के समान चुप हो जाएँगे
\q2 जब तक हम, आपके लोग, उनके पास से चल कर निकल न जाएँ-
\q2 जिन्हें आपने मिस्र में दास होने से निकाला है।
\q2
\s5
\v 17 आप हमें प्रतिज्ञा के देश कनान में ले जाएँगे।
\q1 आप हमें अपने पर्वत पर वास करने योग्य बनाएँगे,
\q2 हे प्रभु, उस स्थान पर जिसे आप, यहोवा ने, उस पवित्र स्थान में, जिसका आप स्वयं निर्माण करेंगे अपना देश होने के लिए चुन लिया है।
\q1
\v 18 हे यहोवा, आप सदा के लिए शासन करेंगे!"
\p
\s5
\v 19 जब राजा के घोड़ों रथों और घुड़सवारों ने समुद्र में से होकर आगे बढ़ना चाहा तब यहोवा ने समुद्र के पानी को ज्यों का त्यों कर दिया और वे पानी में डूब गए। परन्तु इस्राएली समुद्र पार करके सूखी भूमि पर आ चुके थे।
\v 20 तब मरियम ने जो हारून की बड़ी बहन और भविष्यद्वक्तिन थी, अपना डफ लिया और अन्य स्त्रियों के साथ जिनके हाथों में भी डफ थे नाचती हुई निकली।
\v 21 मरियम ने इस गीत को गाया:
\q1 “यहोवा के लिए गाओ
\q2 क्योंकि उन्होंने अपने दुश्मनों पर भव्य विजय प्राप्त की है।
\q1 उन्होंने घोड़ों और उनके सवारों को समुद्र में फेंक दिया है।"
\p
\s5
\v 22 तब मूसा इस्राएलियों को लाल सागर के तट से लेकर आगे बढ़ा और वे शूर नामक मरुभूमि में आए। उस जंगल में यात्रा करते समय तीन दिन तक उन्हें कोई जल स्रोत नहीं मिला।
\v 23 वे चलते-चलते मारा नामक एक स्थान में पहुँचे। वहाँ जल स्रोत तो था परन्तु वह पानी खारा होने के कारण पीने योग्य न था। इस कारण उन्होंने उस स्थान का नाम मारा रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है, “कड़वा।”
\s5
\v 24 लोगों ने मूसा से शिकायत की, “हमारे पास पीने के लिए जल नहीं है।”
\v 25 मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की। तब यहोवा ने उसे एक पेड़ दिखाया। तो मूसा ने शाखाओं में से एक शाखा ली और उसे पानी में फेंक दिया। पानी पीने के योग्य हो गया। इस स्थान पर यहोवा ने उनके पालन करने के लिए नियम दिया। वहाँ यहोवा ने उनकी परीक्षा भी ली कि देखे वे उसकी आज्ञा मानेंगे या नहीं।
\v 26 उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। यदि तुम मेरा कहना मानोगे और जो मेरी दृष्टि में उचित है वही करोगे और मैं जो भी आज्ञा दूं उसका पालन करोगे तो मैं उन सब विपत्तियों से तुम्हारी रक्षा करूँगा जो मैंने मिस्र पर डाली थी। कभी मत भूलना कि मैं यहोवा हूँ जो तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।”
\p
\s5
\v 27 इस प्रकार वे मारा से चलकर एलीम नामक स्थान पहुँचे। वहाँ पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे। उन्होंने वहाँ अपनी छावनी डाली।
\s5
\c 16
\p
\v 1 तब उन्होंने ने एलीम से यात्रा की और सीनै की मरुभूमि में पहुँचे। यह स्थान एलीम और सीनै के बीच था। यह मिस्र से निकलने के बाद दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन की घटना है।
\v 2 मरुभूमि में, इस्राएली लोगों ने हारून और मूसा से शिकायत करनी शुरु की।
\v 3 उन्होंने उनसे कहा, “हमारे लिए अच्छा होता कि यहोवा हमें मिस्र में मार डालता। मिस्र में हम लोगों के पास खाने के लिए माँस और रोटी थी। किन्तु अब तू हमें मरुभूमि में ले आया है कि हम सब यहाँ भूख से मर जाएँ।"
\p
\s5
\v 4 यहोवा ने मूसा से कहा, “अब सुन मैं क्या करने जा रहा हूँ। मैं आकाश से कुछ बरसाऊँगा जो तुम्हारे लिए रोटी होगी। जब मैं उसे बरसाऊँगा तब उन्हें प्रतिदिन सुबह-सुबह बाहर निकल कर उसे एकत्र करना होगा परन्तु केवल इतनी ही मात्रा में जो एक दिन के लिए आवश्यक है। इससे मैं उनको परखूंगा कि वे मेरी आज्ञाओं पर चलेंगे या नहीं।
\v 5 जब मैं उनके लिए ऐसा प्रबन्ध कर दूँगा तब वे सप्ताह के छठवें दिन प्रतिदिन की तुलना में दो गुणा एकत्र करेंगे कि सातवें दिन उन्हें उसे एकत्र करने का काम न करना पड़े। वे छठवें दिन एकत्र किया गया भोजन अगले दिन खाने के लिए रख लें।"
\p
\s5
\v 6 तब हारून और मूसा ने सब इस्राएली लोगों से कहा, “आज की इस शाम को तुम्हें यह समझ लेना है कि तुम्हे मिस्र देश से निकालना हमारा नहीं यहोवा का काम था।
\v 7 कल सुबह तुम देखोगे कि यहोवा कितने महान है। उन्होंने तुम्हारी शिकायत सुनी है। तुम लोग हम लोगों से शिकायत पर शिकायत कर रहे हो, तुम्हारी शिकायत वास्तव में यहोवा से है क्योंकि हम तो केवल उसके दास हैं।"
\v 8 मूसा ने यह भी कहा, “यहोवा हर शाम के समय तुम्हें माँस देंगे और हर सुबह रोटी देंगे क्योंकि उन्होंने तुम्हारी शिकायत सुनी है। तुमने हमारे विरुद्ध नहीं यहोवा ही के विरुद्ध शिकायत की है। हम तो केवल उसके दास हैं।"
\p
\s5
\v 9 तब मूसा ने हारून से कहा, “सब इस्राएलियों से कह कि वे आकर मेरी उपस्थिति में खड़े हों क्योंकि मैंने उनकी शिकायत सुनी है जो वास्तव में मेरे ही विरुद्ध है।"
\p
\v 10 इसलिए हारून ने परमेश्वर का सन्देश सुना दिया। जब हारून इस्राएलियों से बातें कर ही रहा था तब बादलों में यहोवा की महिमा को प्रकट होते देखकर सब आश्चर्यचकित हुए।
\v 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 12 “मैंने इस्राएलियों की शिकायत सुनी है। इसलिए उनसे कह, 'आज शाम के समय तुम्हें माँस खाने को मिलेगा और कल सुबह तुम रोटियाँ खाओगे। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ।'"
\p
\s5
\v 13 उस शाम के समय इतनी बटेरें उतरीं कि छावनी का मैदान ढंक गया। अगली सुबह छावनी के चारों ओर पानी की छोटी बूंदों के समान कुछ था।
\v 14 जब पानी सूख गया, भूमि पर छोटे सफेद गुच्छे की तरह दिखने वाली पतली परतें थीं। वे भूमि पर बर्फ की परतों के समान रही थी।
\v 15 इस्राएलियों ने उसे पहले कभी नहीं देखा था और वे नहीं जानते थे कि वह क्या है, उन्होंने एक-दूसरे से पूछा, “यह क्या है?” मूसा ने उनसे कहा, “यह तुम्हारी रोटी के लिए यहोवा ने दिया है।
\s5
\v 16 यहोवा की आज्ञा है कि तुम उतना ही इसे उठाना जितना दिन भर के लिए आवश्यक हो। प्रति व्यक्ति दो टोकरी (1820 ग्राम) एकत्र करना।”
\p
\v 17 इस्राएलियों ने उसके आदेश के अनुसार ही किया, किसी ने अधिक और किसी ने कम एकत्र किया।
\v 18 परन्तु जब उन्होंने उसे नापा जो एकत्र किया था तब अधिक एकत्र करने वालों के पास आवश्यकता से अधिक नहीं था और कम एकत्र करने वालों के पास आवश्यकता से कम नहीं था। हर एक के पास पर्याप्त मात्रा में था।
\p
\s5
\v 19 मूसा ने उन से कहा, “कल सुबह के लिए कुछ नहीं बचाना।”
\v 20 परन्तु उनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने मूसा की बात पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने अगले दिन के लिए भी कुछ बचा लिया और उसमें कीड़े पड़ गए जिससे वह दुर्गन्ध देने लगा। उनके इस काम के कारण मूसा उन लोगों पर क्रोधित हुआ।
\p
\v 21 हर सुबह वे आवश्यकता के अनुसार ही एकत्र करते थे। और जो भूमि पर रह जाता था वह सूर्योदय के समय गल जाता था।
\p
\s5
\v 22 छठवें दिन प्रत्येक व्यक्ति उस वस्तु को (360 ग्राम) एकत्र करता था जो प्रतिदिन इकट्ठी की गई मात्रा का दो गुणा होता था। यह देख समुदाय के मुखियों ने मूसा को इसकी जानकारी दी।
\v 23 मूसा ने उन से कहा, “यहोवा ने यही कहा है: कल तुम्हारे लिए विश्राम करने का दिन होगा। यह दिन यहोवा के लिए होगा। तो आज तुम कल के लिए भी खाना पकाकर रख लो। आज जो कुछ बचेगा उसे कल के भोजन के लिए रख लेना।"
\p
\s5
\v 24 इसलिए उन्होंने वैसा ही किया जैसा निर्देश मूसा ने उन्हें दिया था, उन्होंने अगले दिन के लिए भी उसे बचाकर रख लिया। वह न तो बासी हुआ और न ही उसमें कीड़े पड़े।
\v 25 उस दिन, मूसा ने कहा, “आज तुमने जो बचाया है वह खाओ क्योंकि आज यहोवा का विश्राम करने का दिन है। आज तुम्हें उस भोजन में से कुछ भी नहीं मिलेगा।
\s5
\v 26 हर हफ्ते, तुम इसे छः दिन तक एकत्र करना। लेकिन सातवें दिन, जो तुम्हारे लिए विश्राम का दिन होगा, तुमको कुछ नहीं मिलेगा।"
\v 27 परन्तु उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो सातवें दिन बाहर निकले कि उस भोजन वस्तु को एकत्र करें लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था।
\s5
\v 28 तब यहोवा ने लोगों से यह कहने को मूसा से कहा: “यहोवा क्रोधित हैं क्योंकि तुम लोग लम्बे समय से यहोवा की आज्ञाओं को टाल रहे हो।
\v 29 सुनो! यहोवा ने तुम्हें विश्राम का एक दिन दिया है। इसीलिए वह तुम्हें सप्ताह के छठवें दिन इतना भोजन देते हैं कि वह दो दिन के लिए पर्याप्त हो। तुम में हर एक व्यक्ति को अपनी ही छावनी में रहना है और सातवें दिन कोई भी किसी प्रकार का काम नहीं करेगा।"
\v 30 इसलिए लोगों ने सातवें दिन पूरा विश्राम किया।
\p
\s5
\v 31 इस्राएली लोगों ने उस भोजन को ‘मन्ना’ कहा, जो इब्रानी शब्द के समान लगता है जिसका अर्थ है ‘यह क्या है? यह धनिये के बीज के समान सफ़ेद दिखता था और स्वाद में वह शहद से बने पापड़ जैसा था।
\v 32 मूसा ने कहा, “यहोवा ने आदेश दिया कि, ‘तुम इस भोजन की दो टोकरियां (1820 ग्राम) मात्रा को संजो कर अपने आने वाले वंशजो के लिए रखना। तब वे उस भोजन को देख सकेंगे जिसे मैंने तुम लोगों को मरुभूमि में तब दिया था जब मैंने तुम लोगों को मिस्र से निकाला था।’”
\s5
\v 33 और मूसा ने हारून से कहा, “एक पात्र में दो लीटर मन्ना भर ले और उसे ऐसे स्थान में रख कि यहोवा की दृष्टि उस पर हो। उसे सब आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐसे ही रखा रहना है।”
\v 34 यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी थी, उसी के अनुसार हारून ने मन्ना से भरा वह पात्र उस सन्दूक के सामने रख दिया जिसमें दस आज्ञाओं की पत्थर की पट्टियाँ रखी थीं।
\v 35 इस्राएलियों ने चालीस वर्षों तक प्रतिदिन मन्ना खाया, जब तक कि वे कनान की सीमा पर नहीं पहुँचे।
\v 36 दो लीटर एपा का दसवां भाग है।
\s5
\c 17
\p
\v 1 यहोवा की आज्ञा के अनुसार इस्राएली लोगों ने सीन नामक मरुभूमि से चले और एक स्थान से दूसरे स्थान यात्रा करते हुए रपीदीम नामक एक स्थान में पहुँचे। वहाँ उन्होंने अपनी छावनी डाली परन्तु वहाँ पीने के लिए पानी नहीं था।
\v 2 इसलिए वे मूसा के विरुद्ध हो गए और कहा, “हमारे पीने के लिए कहीं से भी पानी ला।” मूसा ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे विरुद्ध क्यों बोल रहे हो? तुम यहोवा की परीक्षा क्यों लेना चाहते हो कि उनमें तुम्हारी आवश्यकताओ को पूरा करने की शक्ति है या नहीं?”
\v 3 परन्तु प्यास के कारण वे व्याकुल थे। इसलिए वे मूसा से कहते रहे, “तू हमें मिस्र से क्यों निकाल लाया? क्या तू हमें इसलिए ले आया है कि हम और हमारी सन्तान और हमारे पशु प्यास से मर जाएँ?”
\s5
\v 4 मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की, “मैं इन लोगों को कैसे संभालूं? वे तो मुझे पत्थरवाह करके मार डालने पर है।”
\v 5 यहोवा ने मूसा से कहा, “इन लोगों को लेकर आगे-आगे चल। अपने साथ इस्राएल के कुछ प्रधानों को ले और अपने हाथ में तेरी वही लाठी पकड़ जिससे तूने नील नदी पर चोट की थी।
\v 6 और सुन! मैं तेरे सामने सीनै पर्वत की एक बड़ी चट्टान पर खड़ा दिखाई दूँगा। उस चट्टान पर अपनी लाठी मारना। जैसे ही तू उस चट्टान को मारेगा वैसे ही उस चट्टान से पानी निकलने लगेगा।” मूसा ने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार ही किया और इस्राएल के बुजुर्गों के सामने उस चट्टान से पानी निकाला।
\v 7 मूसा ने उस स्थान के दो नाम रखें: “मस्सा” जिसका अर्थ है, “परीक्षा” और “मरीबा” जिसका अर्थ है, “वाद-विवाद।” मूसा ने उस स्थान का नाम “मस्सा” इसलिए रखा कि इस्राएली यहोवा की परीक्षा लेते हुए कह रहे थे, “क्या यहोवा वास्तव में हमारे बीच हैं और वह हमारी सहायता कर पाएँगे या नहीं?” और उस स्थान का नाम मूसा ने “मरीबा” इसलिए रखा कि वे मूसा से वाद-विवाद कर रहे थे।
\s5
\v 8 जब इस्राएली रपीदीम में ही थे तब अमालेकियों ने आकर उनसे युद्ध किया।
\v 9 इसलिए मूसा ने यहोशू से कहा, “कुछ पुरुषों को चुन ले कि वे कल अमालेकियों से युद्ध करें और मैं कल अपने हाथ में वह लाठी लेकर जिसे यहोवा ने मुझे साथ रखने के लिए कहा है, पर्वत की चोटी पर खड़ा रहूंगा।”
\v 10 यहोशू ने मूसा की आज्ञा का पालन करते हुए कुछ पुरुषों को चुन लिया और अमालेकियों से युद्ध करने गया। जब युद्ध होने लगा तब मूसा, हारून और हूर पर्वत की चोटी पर चढ़ गए कि युद्ध क्षेत्र को देख सकें।
\s5
\v 11 मूसा ने अपने हाथ उठाए हुए थे जिसके कारण इस्राएली विजयी हो रहे थे परन्तु जब वह अपने हाथ नीचे करता था तब अमालेकी विजयी होने लगते थे।
\v 12 हारून ने देखा कि मूसा हाथ उठाए-उठाए बहुत थक गया है इसलिए उसने और हूर ने एक बड़ा पत्थर लुड़काकर मूसा के निकट किया कि वह उस पर बैठ जाए और जब मूसा उस पर बैठ गया तब इन दोनों ने मूसा का एक-एक हाथ थाम कर उसे उठाए रखा और इस प्रकार शाम तक वे मूसा के हाथ उठाए रहे।
\v 13 इस प्रकार, यहोशू और उसके सैनिकों ने अमालेकियों को युद्ध में हरा दिया।
\s5
\v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस युद्ध के बारे में लिखकर हारून को पढ़कर सुना और यह भी लिख ले कि मैं अमालेकियों का सर्वनाश कर दूँगा।”
\v 15 तब मूसा ने वहाँ पत्थरों की एक वेदी बनाकर उसका नाम रखा, “यहोवा मेरा ध्वज है।”
\v 16 और मूसा ने कहा, “यहोवा के सिंहासन के सामने यह प्रतिज्ञा की गई है कि यहोवा अमालेकियों से सदा युद्ध करते रहेंगे!”
\s5
\c 18
\p
\v 1 मूसा का ससुर यित्रो मिद्यान में याजक था। उसने सुना कि यहोवा ने इस्राएलियों के पक्ष में कैसे-कैसे शक्तिशाली काम किए हैं। उसने यह भी सुना कि यहोवा कैसे इस्राएलियों को मिस्र से निकाल कर बाहर लाए।
\v 2 मूसा जब मिस्र लौट रहा था तब उसने अपनी पत्नी सिप्पोरा और अपने पुत्रों को घर भेज दिया था। अब यित्रो मूसा के पास आया।
\v 3 वह मूसा की पत्नी सिप्पोरा और उसके पुत्रों को भी साथ लाया। मूसा ने अपने एक पुत्र का नाम गेर्शोन रखा था क्योंकि उसे जन्म पर उसने कहा था, “मैं विदेशी होकर अन्य देश में रहता हूँ।”
\v 4 उसके दूसरे पुत्र का नाम उसने एलिएज़ेर रखा था, इसका इब्रानी में अर्थ है "परमेश्वर मेरी सहायता करते हैं। एलिएज़ेर के जन्म पर मूसा ने कहा था, “मेरा पिता जिस परमेश्वर की आराधना करता है उन्होंने मेरी सहायता की और मिस्र के राजा के हाथों मरने से बचाया।”
\s5
\v 5 जिस समय मूसा इस्राएलियों के साथ परमेश्वर के पवित्र पर्वत सीनै के निकट मरुभूमि में डेरा डाले था तब यित्रो उसके पास पहुँचा। मूसा की पत्नी और उसके दो पुत्र यित्रो के साथ थे।
\v 6 यित्रों ने मूसा को पहले ही सन्देश भेज दिया था, “मैं तेरा ससुर यित्रो हूँ और मैं तेरी पत्नी और तेरे दोनों पुत्रों को तुम्हारे पास ला रहा हूँ।”
\s5
\v 7 इसलिए मूसा अपने ससुर से मिलने गया। मूसा उसके सामने झुका और उसके गालो को चूमा। दोनों ने एक-दूसरे के बारे में पूछा और छावनी में मूसा के तम्बू में आए।
\v 8 मूसा ने यित्रो को हर एक बात बताई कि यहोवा ने इस्राएल के लोगों के लिए मिस्र के राजा और उसकी प्रजा के साथ क्या-क्या किया। मूसा ने उसे मार्ग की समस्याओं और यहोवा द्वारा इस्राएली लोगों को बचाए जाने के बारे में भी बताया।
\s5
\v 9 इस्राएलियों के लिए यहोवा के किये गए कार्यों के बारे में सुनकर यित्रों बहुत प्रसन्न हुआ।
\v 10 उसने कहा, “यहोवा की स्तुति करो। उन्होंने तुम्हें मिस्र की सेना की शक्ति से बचाया। उन्होंने तुम्हे मिस्र के राजा (जिसका नाम फिरोन था) से मुक्ति दिलाई और मिस्रियों के बन्धन से स्वतंत्र कराया।
\v 11 अब मैं जान गया हूँ कि यहोवा सब देवताओं से महान हैं क्योंकि उन्होंने तुम्हें अहंकारी मिस्रियों के अत्याचार से मुक्ति दिलाई है।
\s5
\v 12 तब यित्रों ने वेदी पर होम-बलि चढ़ाई और साथ अन्य बलियाँ भी चढ़ाई। हारून और इस्राएल के बुजुर्ग भी परमेश्वर के सम्मान में यित्रों के साथ भोजन करने को उपस्थित हुए।
\s5
\v 13 अगले दिन मूसा इस्राएलियों की समस्याओं को सुनने के लिए बैठा और लोग सुबह से शाम तक उसे घेरे रहे।
\v 14 यित्रो ने मूसा को न्याय करते देखकर उससे कहा, “तू इन लोगों के लिए यह सब क्या कर रहा है? तू अकेला ही बैठता है और लोग तुझे सुबह से शाम तक घेरे रहते है कि तू उनका न्याय करे।”
\s5
\v 15 मूसा ने कहा, “लोग मेरे पास आते हैं और अपनी समस्याओं के बारे में मुझ से परमेश्वर का निर्णय पूछते हैं।
\v 16 यदि उन लोगों का कोई विवाद होता है तो वे मेरे पास आते है कि मैं न्याय करूँ। मैं परमेश्वर के नियमों और निर्देशों को भी उन्हें सुनाता हूँ।
\s5
\v 17 यित्रो ने उससे कहा, “जिस प्रकार तू यह कर रहा है वह लोगों के लिए ठीक नहीं है।
\v 18 इस प्रकार तो तू और ये लोग जो न्याय के लिए तेरे पास आते है थक जाएँगे। तू अकेला यह काम नहीं कर सकता।
\v 19 अब मेरी बातों को ध्यान से सुन और मैं बताऊँगा कि तुझे क्या करना चाहिए। अगर तू मेरे सुझाव के अनुसार काम करेगा तो परमेश्वर तेरा सदा साथ देंगे। तुझे परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित होकर लोगों के विवादों को परमेश्वर के सामने लाता रह।
\v 20 और तुझे परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देनी चाहिए। तू उन्हें जीवन-आचरण और जीने की ठीक राह बताना।
\s5
\v 21 परन्तु इसके साथ ही तुझे अपनी सहायता के लिए कुछ लोगों को चुनना होगा। ये ऐसे व्यक्ति हों जिनमें परमेश्वर का भय हो और वे रिश्वत न लेते हों। इन चुने हुए व्यक्तियों को तू दस के समूहों, पचास के समूहों, सौ के समूहों और हज़ार के समूहों पर प्रधान नियुक्त कर दे।
\v 22 ये चुने हुए प्रधान, लोगों के झगड़ों को सुलझाएँ। यदि कोई बहुत ही गंभीर मामला हो जिसका निर्णय लेने में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़े तो वे प्रधान निर्णय के लिए तेरे पास आ सकते हैं। इस प्रकार उनकी सहायता से तेरा काम आसान हो जाएगा।
\v 23 यदि यह परमेश्वर की इच्छा हो और तू ऐसा करे तो तू अपने काम का बोझ झेल पाएगा। इसके साथ ही लोग अपनी समस्याओं के हल हो जाने से शान्तिपूर्वक घर लौट सकेंगे।”
\s5
\v 24 मूसा ने अपने ससुर के सुझाव को स्वीकार किया और वैसा ही किया।
\v 25 मूसा ने इस्राएलियों में से योग्य पुरुषों को चुनकर हज़ार-हज़ार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस के समूहों पर प्रधान नियुक्त कर दिया।
\v 26 मूसा ने उन्हें लोगों के झगड़ों का न्याय करने के लिए नियुक्त कर दिया। वे कठिन विषयों को ही मूसा के पास लाते थे। साधारण विषयों का निर्णय वे स्वयं ही लिया करते थे।
\v 27 कुछ समय के बाद मूसा ने अपने ससुर को विदा किया और यित्रो घर लौट गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 मिस्र से निकलने के तीसरे महीने के बाद इस्राएल के लोग सीनै की मरुभूमि में पहुँचे।
\v 2 रपीदीम को छोड़ कर वे सीनै मरुभूमि में आए और पर्वत के समीप डेरा डाला।
\s5
\v 3 मूसा परमेश्वर से बातें करने के लिए पर्वत पर चढ़ गया। यहोवा ने उसे पर्वत की चोटी पर से पुकारकर कहा, “मैं चाहता हूँ कि तू याकूब के वंशजों, इस्राएलियों से यह कह,
\v 4 ‘तुमने देखा है कि मैंने मिस्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया है। तुमने यह भी देखा है कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है। मैं तो तुम्हें मानो उकाब के पंखों पर बैठाकर अपने पास ले आया हूँ।
\v 5 इसलिए, अब मैं कहता हूँ, यदि तुम लोग मेरा आदेश का पालन करोगे तो तुम मेरे लोग होगे। तुम लोग मेरी विशेष सम्पति होगे क्योंकि संपूर्ण पृथ्वी मेरी है।
\v 6 तुम लोगों पर मेरा राज्य होगा। तुम एक ऐसा राज्य होगे जिसमें हर एक व्यक्ति याजकों के समान मेरी आराधना करेगा। तुम मेरे लिए एक राष्ट्र होगे।’ यह बातें तुझे इस्राएलियों से कहनी है।”
\s5
\v 7 इसलिए मूसा पर्वत से नीचे आया और इस्राएलियों के बुज़ुर्गों को एकत्र किया। मूसा ने उन बुज़ुर्गों से वह बातें कहीं जिन्हें कहने का आदेश यहोवा ने उसे दिया था।
\v 8 उसकी बात सुनकर सभी लोग बोले, “हम लोग यहोवा की कही हर बात मानेंगे।” तब मूसा परमेश्वर के पास पर्वत पर लौट आया। मूसा ने कहा कि लोग आपके आदेश का पालन करेंगे।
\v 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “ध्यान से सुन, मैं घने बादल में तुम्हारे पास आऊँगा। जब तुझसे बातें करूँगा तब सब लोग सुनेंगे और वे स्वीकार करेंगे कि तू उनका अगुवा है।” तब मूसा ने परमेश्वर को वे सब बातें बताई जो लोगों ने कही थी।
\s5
\v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इन लोगों के पास जा और उनसे कह कि वे मेरे आने के लिए तैयारी करें। वे आज और कल अपने को शुद्ध करें और अपने वस्त्रों को धोएँ।
\v 11 उन्हें ऐसा करके तीसरे दिन की तैयारी करना है। उस दिन सीनै पर्वत पर मेरा आना होगा और सब लोग मुझे देख पाएँगे।
\s5
\v 12 तू पर्वत के चरण पर एक बाढ़ा बाँधना और उन्हें सतर्क करके कहना, ‘सावधान रहना कि तुम न तो पर्वत पर चढ़ना और न ही उसके निकट आना। यदि कोई पर्वत के चरण को भी छूएगा तो मर जाएगा।’
\v 13 यदि कोई मनुष्य या पशु उनका स्पर्श करे तो उस पर पत्थरवाह किया जाए या तीरों से बेधा जाएगा। परन्तु जब तुम तुरही बजने की ऊँची आवाज सुनो तब लोग पर्वत की चरण में एकत्र हो सकते है।
\s5
\v 14 मूसा ने पर्वत से उतरकर लोगों से कह दिया कि वे अपने को शुद्ध करके परमेश्वर के आगमन की तैयारी करें। उन्होंने वही किया जो मूसा ने उनसे करने को कहा था। उन्होंने अपने वस्त्र भी धोए।
\v 15 तब मूसा ने लोगों से कहा, “तीसरे दिन तुम सब तैयार रहना और उस समय तक कोई भी पुरुष स्त्री से सम्पर्क न करे।"
\s5
\v 16 तीसरे दिन पर्वत पर बिजली की चमक और बादल की गरज हुई। एक घना बादल पर्वत पर उतरा और तुरही का ऊँचा स्वर सुनाई दिया। डेरे के सभी लोग डर गए।
\v 17 तब मूसा इस्राएलियों को लेकर परमेश्वर से भेंट करने निकला। वे सब पर्वत के चरण में खड़े हो गए।
\v 18 तब यहोवा उस पर्वत पर उतरे और पूरा पर्वत धुएँ से भर गया। आग उसके चारों ओर प्रकट हुई। धूआँ इस प्रकार उठ रहा था जैसे कि किसी भट्ठी की चिमनी में से धूएँ का बादल निकल रहा हो और पूरा पर्वत भी काँपने लगा।
\s5
\v 19 तुरही की ध्वनि अधिक से अधिक बढ़ती चली गई। मूसा ने परमेश्वर से बात की और बादल की गरज में परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया।
\v 20 यहोवा पर्वत की चोटी पर उतर आया। तब यहोवा ने मूसा को अपने पास पर्वत की चोटी पर आने को कहा। इसलिए मूसा पर्वत पर चढ़ा।
\v 21 यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतरकर लोगों को चेतावनी दे कि वे बाढ़ा पार करके मुझे देखने का प्रयास न करें। यदि उन्होंने ऐसा किया तो बहुतों की मृत्यु हो जाएगी।
\v 22 याजकों से भी कह दे कि वे पवित्र होकर मेरे निकट आएँ। यदि वे ऐसा नहीं करते तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”
\s5
\v 23 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “इस्राएली तो पर्वत पर नहीं चढ़ेंगे क्योंकि आपने स्वयं ही आज्ञा दी थी कि, 'पर्वत को अलग करने के लिए उसके चारों ओर बाढ़ा बना दे।'"
\v 24 यहोवा ने मूसा से कहा, “पर्वत से उतरकर हारून को अपने साथ ऊपर ले आ। किन्तु याजकों और लोगों को बाढ़ा पार करके मत आने दे। यदि वे बाढ़ा पार करेंगे तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”
\v 25 इसलिए मूसा ने पर्वत से उतरकर इस्राएली लोगों को परमेश्वर के आदेश सुनाए।
\s5
\c 20
\p
\v 1 तब परमेश्वर ने इस्राएली लोगों से ये बातें कहीं,
\v 2 मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ, जिनकी आराधना तुम करते हो। मैं ही तुम्हें मिस्र देश से बाहर लाया और मैंने ही तुम्हें उनके दासत्व से मुक्ति दिलाई है।
\v 3 तुम्हें केवल मेरी आराधना करना है, अन्य किसी देवता की नहीं।
\s5
\v 4 तुम किसी भी प्रकार की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा नहीं करोगे, चाहे वह आकाश या पृथ्वी या जल में किसी का रूप हो।
\v 5 तुम किसी भी मूर्ति के सामने न झुकना और न ही उसकी आराधना करना क्योंकि मैं यहोवा हूँ और मैं इसे सहन नहीं करता हूँ। जो पाप करते हैं और मुझसे घृणा करते हैं उन्हें मैं दण्ड दूँगा और उन्हें ही नहीं, उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी को भी दण्ड दूँगा।
\v 6 परन्तु, मुझसे प्रेम करने वालों और मेरी आज्ञा का पालन करने वालों की हज़ारो पीढ़ियों तक मैं उनसे प्रेम करता रहूंगा।
\s5
\v 7 मेरा नाम व्यर्थ में मत लेना क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जिसकी तुम्हें आराधना करना है। यदि कोई व्यक्ति मेरे नाम का उपयोग गलत ढंग से करता है तो उसे मैं निश्चय ही दण्ड दूँगा।
\s5
\v 8 सप्ताह का सातवाँ दिन मेरा है इसलिए सातवें दिन को मेरे लिए समर्पित रखना।
\v 9 सप्ताह में तुम छः दिन अपना कार्य कर सकते हो।
\v 10 परन्तु सातवाँ दिन विश्राम दिवस है। सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को समर्पित है- तुम्हे परमेश्वर यहोवा की आराधना करनी है। तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ, तुम्हारे दास-दासियाँ कोई भी उस दिन काम नहीं करें। तुम अपने पशुओं से भी काम नहीं लोगे और तुम्हारे बीच वास करने वाले विदेशी को भी काम नहीं करने दोगे।
\v 11 मैं, यहोवा ने छः दिन में आकाश, पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है, सबको बनाया और सातवें दिन विश्राम किया। यही कारण है कि मैंने विश्राम दिवस को आशीष देकर पवित्र दिन ठहराया है।
\s5
\v 12 अपने पिता और अपनी माता का आदर कर। यह इसलिए कर कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा जिस देश को तुम्हें दे रहा है, उसमें तुम लम्बा जीवन जी सको।
\v 13 किसी की हत्या न करना।
\v 14 किसी के साथ व्यभिचार नहीं करना।
\s5
\v 15 चोरी नहीं करना।
\v 16 किसी पर भी अपराध का झूठा आरोप नहीं लगाना।
\v 17 किसी के घर, पत्नी, दास-दासी, जानवर, गधे या किसी भी वस्तु का लालच नहीं करना।
\p
\s5
\v 18 गर्जन सुनकर और बिजली की चमक देखकर और तुरही की ऊँची आवाज सुनकर और पर्वत पर धूएँ को देखकर इस्राएली बहुत डर गए और कांपने लगे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे।
\v 19 और तब लोगों ने मूसा से कहा, “यदि तू हम से कुछ कहेगा तो हम सुनेंगे। परन्तु परमेश्वर को हम लोगों से बात न करने दे। यदि ऐसा होगा तो हम लोग मर जाएँगे।”
\v 20 मूसा ने उनसे कहा, “मत डरो! परमेश्वर तो तुम्हारे व्यवहार को परखने आये हैं, वे चाहते हैं कि तुम उनका सम्मान करो और पाप न करो।
\v 21 इस्राएली लोग तो दूर ही खड़े देख रहे थे परन्तु मूसा उस काले बादल के निकट गया जिसमें परमेश्वर उपस्थित थे।
\s5
\v 22 यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएली लोगों से कह, ‘यहोवा ने स्वर्ग से मेरे साथ बातें की हैं और तुमने सुना है।
\v 23 मैं तुमसे कह चुका हूँ कि तुम सोने या चाँदी की कोई भी मूर्ति बनाकर, मेरे स्थान में उसकी आराधना नहीं करोगे।
\s5
\v 24 मेरे लिए मिट्टी की एक वेदी बनाना और उस पर मेरे लिए होम-बलि और मेलबलि चढ़ाना और अपने भेड़-बकरियों और बैलों को भी चढ़ाना। मैं जहाँ-जहाँ स्थान चुन लूं कि तुम मेरा सम्मान करो वहाँ-वहाँ मेरी आराधना करना। तुम ऐसा करोगे तो मैं आकर तुम्हें आशीष दूँगा।
\v 25 यदि तुम मेरे लिए पत्थरों की वेदी बनाओ तो पत्थरों को तराशना नहीं क्योंकि पत्थरों को औजारों से तराशने पर मैं वेदी को स्वीकार नहीं करूँगा।
\v 26 वेदी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ नहीं लगाना क्योंकि ऊपर चढ़ते समय तुम्हारे शरीर की नग्नता दिखाई दे सकती है।’”
\s5
\c 21
\p
\v 1 “इस्राएली लोगों के लिए यहाँ कुछ अन्य निर्देश दिए गए हैं।
\s5
\v 2 जब तुम किसी इब्रानी दास को मोल लेते हो तो वह केवल छ: वर्षों तक तुम्हारी सेवा करे। सातवें वर्ष तुम्हें उसे मुक्त करना होगा और वह तुम्हें मुक्ति के लिए धन नहीं देगा।
\v 3 यदि वह तुम्हारा दास होने से पूर्व अविवाहित था और तुम्हारे पास आने के बाद दास रहते समय किसी स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसके साथ उसकी पत्नी मुक्त न की जाए। परन्तु यदि वह दासत्व से पूर्व विवाहित था तो उसे और उसकी पत्नी दोनों को मुक्त किया जाए।
\v 4 यदि किसी दास के स्वामी ने उसका विवाह कराया और उसके दास रहने के समय उसकी पत्नी पुत्रों और पुत्रियों को जन्म देती है तो मुक्ति के समय वह अकेला ही जाए। उसकी पत्नी और सन्तान उसके स्वामी के दास-दासियाँ बने रहें।
\s5
\v 5 जब उस दास के मुक्त किए जाने का समय आए और वह दास कहे, “मैं अपने स्वामी, अपनी पत्नी और सन्तान से प्रेम करता हूँ- इसलिए मैं जाना नहीं चाहता”,
\v 6 तो उसका स्वामी उसे यहोवा की आराधना के स्थान में ले जाकर दरवाज़े या चौखट के पास खड़ा करे और सूआ लेकर उसका कान छेद दे और उसके कान में कुछ बाँध दे जिससे प्रकट हो कि वह आजीवन उसका दास रहेगा।
\p
\s5
\v 7 यदि कोई अपनी पुत्री को दासी होने के लिए बेच दे तो वह दास के समान छः वर्ष समाप्त होने पर मुक्त नहीं की जाए।
\v 8 अगर वह व्यक्ति जिसने उसे मोल लिया था वह उसे अपनी रखैल बनाना चाहे और बाद में वह उससे प्रसन्न नहीं हो तो उसे उसके पिता को वापस बेचे। वह किसी विदेशी को नहीं बेची जाए क्योंकि ऐसा करने पर वह उस लड़की के पिता के साथ बांधे गए अनुबंध को तोड़ेगा।
\s5
\v 9 यदि उस स्त्री को मोल लेने वाला उसे अपनी पुत्र की पत्नी बनाता है तो वह उसके साथ पुत्री का सा व्यवहार करे।
\v 10 यदि कोई एक और दासी को अपनी रखैल बनाता है तो वह अपनी पहली रखैल को उतना ही भोजन वस्त्र दे जितना वह उसे देता रहा है और पहले के समान उसके साथ सोया करे।
\v 11 यदि वह उसे यह तीन सुविधाएँ नहीं देता है तो वह उसे मुक्त कर दे। वह अपने स्वामी को मुक्ति का धन नहीं देगी।
\p
\s5
\v 12 यदि कोई किसी पर इस प्रकार प्रहार करे कि वह मर जाए तो उसे भी मार दिया जाए।
\v 13 परन्तु यदि उसके मन में हत्या करने की इच्छा नहीं थी तो वह उस स्थान में जाकर शरण ले सकता है जिसे मैं तुम्हारे लिए चुनूंगा और वह वहाँ सुरक्षित रहेगा।
\v 14 यदि कोई किसी से क्रोधित होकर उसकी हत्या करने के उद्देश्य से वार करे तो उसकी भी हत्या की जाए चाहे वह परमेश्वर की वेदी की ही शरण क्यों न ले।
\p
\s5
\v 15 कोई व्यक्ति जो अपने माता—पिता को चोट पहुँचाये वह अवश्य ही मार दिया जाये।
\p
\v 16 यदि कोई व्यक्ति किसी को दास के रूप में बेचने या अपना दास बनाने के लिए अपहरण करे तो उसे अवश्य मार दिया जाए।
\p
\v 17 कोई व्यक्ति, जो अपने माता—पिता को श्राप दे तो उसे अवश्य मार दिया जाए।
\p
\s5
\v 18 मान लीजिए कि दो लोग लड़ते है, और एक दूसरे को पत्थर या मुक्के से मारते है। मान लीजिए कि जिस व्यक्ति पर वार किया जाता है वह मरता नहीं है लेकिन घायल हो जाता है और उसे कुछ समय के लिए बिस्तर पर रहना पड़ता है,
\v 19 लेकिन बाद में वह एक लाठी के सहारे चलने लगे। तब उस पर वार करने वाला दण्ड के योग्य नहीं ठहरना चाहिए परन्तु उसे घायल व्यक्ति को मजदूरी और उपचार के लिए धनराशि का भुगतान करना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 20 यदि कोई स्वामी अपने दास या दासी को लाठी से मारे और वह मर जाए तो उसके स्वामी को दण्ड दिया जाए।
\v 21 परन्तु यदि वह दास या दासी एक-दो दिन जीवित रहकर मरे तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए। अब उसे उस दास या दासी की सेवा नहीं मिलेगी, यही उसका दण्ड है।
\p
\s5
\v 22 यदि दो व्यक्तियों की लड़ाई में किसी गर्भधारी स्त्री को गर्भपात हो जाए। परन्तु उस स्त्री को और किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँची तो जिसने उसे चोट पहुँचाई है उसे जुर्माना देना होगा। न्यायी के निर्णय के बाद उसके पति के कहे अनुसार दण्ड का भुगतान करना होगा।
\v 23 परन्तु यदि उस स्त्री को किसी प्रकार की हानि हो तो उसे हानि पहुँचाने वाले को भी वैसा ही कष्ट दिया जाए जैसा उस स्त्री को हुआ। यदि वह मर जाए तो वह व्यक्ति भी मार डाला जाए।
\v 24 यदि उसकी आंख फूट जाए या उसका दांत टूट जाए या उसका हाथ या पैर में चोट आ जाए,
\v 25 या यदि उसे जला दिया गया है या चोट लगी है, तो उसे चोट पहुँचाने वाले के साथ भी वैसा ही किया जाए।
\s5
\v 26 यदि किसी दास या दासी का स्वामी उस पर इस प्रकार प्रहार करे कि उसकी आँख फूट जाए तो उसकी आँख के बदले वह मुक्त किया जाए।
\v 27 यदि कोई स्वामी अपने दास-दासी का दांत तोड़ दे तो वह उसके दांत के बदले उसे मुक्त कर दे।
\p
\s5
\v 28 यदि कोई बैल किसी स्त्री या पुरुष को सींग मारकर उसकी हत्या कर दे तो वह बैल पत्थरवाह किया जाए और उसका माँस नहीं खाया जाए। उस बैल के स्वामी का इसमें कोई दोष नहीं है।
\v 29 यदि किसी का बैल लोगों पर आक्रमण कर चुका है और चेतावनी के उपरान्त भी उसके स्वामी ने उसे बाध कर नहीं रखा और वह बैल किसी स्त्री या पुरुष की हत्या कर देता है तो वह बैल और उसका स्वामी पत्थरवाह किया जाए।
\v 30 परन्तु यदि बैल का स्वामी अपने जीवन को बचाने के लिए जुर्माना चुका सकता है तो उसे न्यायाधीशों के कहे अनुसार पूरी राशि का भुगतान करना होगा।
\s5
\v 31 यदि किसी का बैल किसी के पुत्र या पुत्री को सींग मारे तो उस बैल के स्वामी के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाए जैसे नियम बनाए गए हैं।
\v 32 यदि किसी का बैल किसी दास या दासी को सींग मारे तो उस बैल का स्वामी उस दास या दासी के स्वामी को तीस टुकड़े चाँदी दे और उस बैल को पत्थरवाह करके मार दिया जाए।
\p
\s5
\v 33 मान लीजिये किसी ने गड़हा खोदकर उसे ढाँक कर नहीं रखा और उसमें किसी का बैल या गधा गिरकर मर जाता है, ।
\v 34 तो जिसने वह गड़हा खोदा है वह उस पशु का मूल्य चुकाए और उस मरे हुए पशु को ले ले और उसके साथ जो करना चाहे करे।
\s5
\v 35 यदि किसी का बैल दूसरे के बैल से लड़कर उसकी हत्या कर दे तो दोनों बैलों के स्वामी उस मारने वाले बैल को बेचकर उसके मूल्य को आधा-आधा बाँट लें। वे मरने वाले पशु का माँस भी आपस में बाँट लें।
\v 36 परन्तु यदि लोगों को पता है कि उस बैल ने पहले भी अन्य पशुओं पर हमला किया था और उसके स्वामी ने उसे बाँध कर नहीं रखा तो उस बैल का स्वामी मरे बैल के स्वामी को एक बैल दे और मरे हुए बैल को लेकर उसके साथ जैसा चाहे वैसा करे।”
\s5
\c 22
\p
\v 1 “यदि कोई किसी का बैल या भेड़ चुरा ले और उसे बेच दे या उस-को मार डाले तो उसे उस बैल के बदले में, जो उसने चुराया था, पाँच बैलों और चोरी की हुई भेड़ के बदले में चार भेड़ों का भुगतान करना होगा।
\p
\v 2 यदि चोर किसी के घर में चोरी करता हुआ पकड़ा जाता है और उसे पकड़ने वाले के हाथों वह चोर मारा गया तो हत्यारा दोषी न ठहराया जाए।
\v 3 परन्तु यदि दिन के समय ऐसा होता है, तो जिसने चोर को मारा है वह हत्यारा हत्या का दोषी ठहरे।
\p चोर चोरी का भुगतान करेगा। अगर उसके पास भुगतान करने के लिए कोई पशु नहीं है, तो उसे किसी और के दास बनने के लिए बेचा जाना चाहिए, और इस प्रकार प्राप्त पैसों से चोरी के सामान का भुगतान किया जाए।
\v 4 यदि चोर चोरी करते पकड़ा गया और उसके पास अपना बैल, गधा या भेड़ है और वह जीवित है तो चोर चुराया हुआ पशु लौटाए और उस पशु के साथ एक और वैसा ही पशु भी दे।
\p
\s5
\v 5 यदि किसी ने अपने पशुओं को अपने खेत में या अपनी दाख की बारी में चरने के लिए छोड़ दिया है और वह पशु चरते-चरते दूसरे के खेत में चला जाए और वहाँ पौधे खा ले तो उस पशु का स्वामी उस खेत के स्वामी को अपने खेत या दाख की बारी की सबसे अच्छी उपज में से भुगतान करे।
\p
\s5
\v 6 यदि किसी ने अपने खेत में आग जलाई और आग फैल कर पड़ोसी के खेत में उग रहे अन्न की काटी गई फसल को जला देती है तो जिस खेत के स्वामी ने आग जलाई थी वह पड़ोसी की हानि का भुगतान करे।
\p
\s5
\v 7 यदि कोई किसी को पैसा या कोई मूल्यवान वस्तु देता है कि वह कुछ समय के लिए उसे सुरक्षित रखे परन्तु चोर आकर उसे चुरा लेता है तो पकड़े जाने पर चोर दो गुणा भर दे।
\v 8 किन्तु यदि चोर का पता न चले तो परमेश्वर निर्णय करेंगे कि पड़ोसी अपराधी है या नहीं। घर का स्वामी परमेश्वर के सामने जाए और परमेश्वर ही निर्णय करेंगे कि उसने चुराया है या नहीं।
\p
\v 9 यदि किसी खोए हुए बैल या गधे या भेड़ या वस्त्र या अन्य किसी भी वस्तु के बारे में दो लोगों में विवाद हो रहा है कि वह किसकी है तो वे दोनों न्यायियों के सामने उपस्थित हों। न्यायियों के निर्णय के अनुसार झूठ बोलने वाला दूसरे पक्ष को जो उस पशु या वस्तु का वास्तविक स्वामी है, दो गुणा बैल या गधे या भेड़ें या वस्त्र दे।
\p
\s5
\v 10 मान लीजिए कि यदि किसी ने किसी के पास अपना गधा या बैल या भेड़ या अन्य कोई पशु कुछ समय देखरेख के लिए रखा और पशु मर जाता है या घायल हो जाता है या ऐसे समय में चोरी हुआ जब कोई नहीं देख रहा था।
\v 11 तब उस पशु की देखरेख करने वाला परमेश्वर को उपस्थित मानकर शपथ खाए कि उसने उस पशु को नहीं चुराया और उस पशु के स्वामी को स्वीकार करना होगा कि वह सच कह रहा है। उस व्यक्ति को पशु के स्वामी को कुछ भी नहीं देना होगा।
\v 12 परन्तु यदि उस व्यक्ति की देखरेख में वह पशु चुरा लिया जाता है तो वह व्यक्ति उस पशु के स्वामी की हानि का भुगतान करे क्योंकि उसने उसके पशु की सुरक्षा का वचन दिया था।
\v 13 यदि वह कहता है कि पशु जंगली पशुओंं द्वारा मारा गया था, तो उसे उस पशु के अवशेषों को लाना होगा जो मार डाला गया था और उसे पशु के मालिक को दिखाना होगा। अगर वह ऐसा करता है, तो उसे पशु के लिए कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 14 अब यदि वह कहता है कि उसका पशु- वन पशुओं द्वारा मार डाला गया है तो वह उसके अवशेष लाकर उस पशु के स्वामी को दिखाए। ऐसा करने पर वह भुगतान करने से मुक्त हो जाएगा।
\v 15 परन्तु यदि ऐसा होता है कि उस पशु का स्वामी वहाँ है तो उस पशु को भाड़ेे पर लेने वाला भुगतान से मुक्त है। यदि पशु को भाड़ेे पर लिया है तो उस पशु के स्वामी के लिए उसके पशु के चोट लगने या मर जाने का भुगतान भाड़े के पैसों से हो चुका है।"
\p
\s5
\v 16 “यदि कोई पुरुष किसी अविवाहित कुँवारी युवती, जिसकी मंगनी नहीं हुई हो, साथ सोने के लिए उसे विवश करे तो वह उससे निश्चय ही विवाह करे। और वह उस युवती के पिता को युवती का पूरा मूल्य दे।
\v 17 यदि पिता अपनी पुत्री को उसे विवाह के लिए देने से मना करता है तो भी उस व्यक्ति को युवती के पिता को युवती का पूरा मूल्य देना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 18 जादू टोना करने वाली स्त्री को मार डाला जाए।
\p
\v 19 जो कोई पशु के साथ यौन सम्बन्ध बनाए तो वह मार डाला जाए।
\p
\s5
\v 20 तुम्हें केवल यहोवा के लिए बलि चढ़ाना है। अन्य देवी-देवताओं के लिए बलि चढ़ाने वाला मार डाला जाए।
\p
\v 21 तुमको तुम्हारे बीच रहने आये किसी विदेशी व्यक्ति से दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। मत भूलना कि तुम भी पहले मिस्र में विदेशी थे।
\p
\s5
\v 22 विधवाओं और अनाथों के साथ बुरा व्यवहार मत करो।
\v 23 यदि तुम उनके साथ बुरा व्यवहार करो और वे मुझसे सहायता मांगे तो मैं निश्चय ही उनकी सहायता करूँगा।
\v 24 और मैं तुम से क्रोधित हो जाऊँगा और मैं तुम्हारे युद्ध में मरने का कारण बना दूँगा। इस प्रकार तुम्हारी पत्नियाँ भी विधवा हो जाएँगी और तुम्हारी सन्तान अनाथ हो जाएगी।
\p
\s5
\v 25 यदि तुम गरीबों में से किसी भी व्यक्ति को पैसा उधार देते हो, तो उससे साहूकार के समान ब्याज मत लेना।
\v 26 यदि वह तुमको उधार लिए हुए धन के भुगतान के लिए अपना वस्त्र गिरवी रखवाता है तो तुम सूरज डूबने के पहले उसका वह वस्त्र अवश्य लौटा देना।
\v 27 क्योंकि रात में ओढ़ने के लिए उसे उसकी आवश्यकता होगी। रात में ओढ़ने के लिए गरीबों के पास केवल वही एक वस्त्र होता है। यदि तुम उसका ओढ़ना लौटाने में दया न दिखाओ और वह मुझसे सहायता मांगे तो निश्चय ही उसकी सहायता करूँगा क्योंकि मैं कृपालू हूँ।
\p
\s5
\v 28 परमेश्वर का अपमान मत करो और न ही अपने लोगों के शासक की हानि के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करो।
\p
\s5
\v 29 अपनी फसल के सर्वोत्तम अन्न को मुझसे बचा कर नहीं रखना न ही जैतून या दाख की उपज। तुम अपने पहले पुत्रों को मुझे दो।
\p
\v 30 इसी तरह, पशुओं और भेड़ों के पहले बच्चे मेरे हैं। पशुओं के बच्चों को सात दिन तक मां के पास रहने देना। आठवें दिन उन्हें मुझे दे देना।
\p
\v 31 तुम मेरे लिए समर्पित किए गए लोग हो। वन पशुओं द्वारा मारे गए पशुओं का माँस मेरे लिए घृणित है इसलिए ऐसा माँस मत खाना। उसे ऐसे स्थान में फेंक देना जहाँ जंगली कुत्ते उसे खाएँ।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 “अन्य लोगों के बारे में झूठी बात मत कहना और झूठ कहकर किसी अपराधी की सहायता मत करना।
\p
\v 2 बुराई करने की योजना बना रहे समूह की सहभागिता मत करना और न्यायी के निर्णय को बिगाड़ने के लिए झूठों का साथ मत देना।
\v 3 न्यायालय में किसी गरीब का इसलिए पक्ष मत लो कि वह गरीब है और उसके लिए दया की भावना रखते हो।
\p
\s5
\v 4 तुम किसी के बैल या गधे को भटकता हुआ देखो तो उसे उसके स्वामी के पास पहुँचा दो, चाहे वह व्यक्ति तुम्हारा शत्रु ही क्यों न हो।
\v 5 यदि तुम किसी के गधे को देखो कि वह बोझ के कारण गिर गया है तो उस गधे को खड़ा करने में उसके स्वामी की सहायता अवश्य करना, चाहे वह तुमसे घृणा ही क्यों न करता हो। उसकी सहायता करे बिना मत जाना।
\p
\s5
\v 6 तुम्हें, लोगों को गरीबों के साथ अन्यायी नहीं होने देना चाहिए। उनके साथ भी अन्य लोगों के समान ही न्याय करना।
\p
\v 7 किसी पर झूठा दोष नहीं लगाना। निर्दोष और धार्मिक मनुष्यों के मृत्युदण्ड का कारण मत बनो क्योंकि मैं ऐसे दुष्ट व्यक्तियों को उनके दुष्ट काम का अवश्य दण्ड दूँगा।
\p
\v 8 रिश्वत का पैसा स्वीकार नहीं करना क्योंकि रिश्वत लेने वाले निष्पक्षता का व्यवहार नहीं कर पाते हैं। रिश्वत लेने वाले भले लोगों के साथ न्याय का व्यवहार नहीं करेंगे।
\p
\v 9 अपने बीच रहने वाले विदेशी लोगों से दुर्व्यवहार मत करना। तुम तो विदेशी की भावनाओं का अनुभव प्राप्त कर चुके हो क्योंकि जब तुम मिस्र देश में विदेशी थे तब उन्होंने तुम्हारे साथ उचित व्यवहार नहीं किया था।
\p
\s5
\v 10 छः वर्षों तक तो तुम अपने खेतों में फसल उगाना और फसल काटना।
\v 11 परन्तु सातवें वर्ष तुम कुछ मत उगाना। यदि बिना कुछ बोए तुम्हारी भूमि कुछ उपजाए तो वह गरीबों को लेने देना। यदि फिर भी उपज बचे तो वन पशुओं को खाने देना। अपनी दाख की बारी और जैतून के साथ भी ऐसा ही करना।
\p
\s5
\v 12 सप्ताह में छः दिन तुम परिश्रम करना परन्तु सातवें दिन तुम कोई काम नहीं करना, केवल विश्राम करना। सातवें दिन तुम्हारे पशु, तुम्हारे दास और तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी भी विश्राम करके फिर से परिश्रम करने योग्य हो जाएँ।
\p
\v 13 सुनिश्चित कर लो कि तुम मेरी हर एक आज्ञा को मानो और वैसा ही करो। देवी-देवताओं की पूजा नहीं करना। उनका नाम भी मत लेना।
\p
\s5
\v 14 तुम प्रतिवर्ष मेरे सम्मान में तीन पर्वों के लिए यात्रा करना।
\v 15 पहला पर्व है खमीर रहित रोटी का पर्व जिसे तुम आबीब के महीने में मनाओगे। यह वही महीना है जिसमें तुमने मिस्र से निकले थे। उसे मेरी आज्ञा के अनुसार ही मनाना। सात दिन तक खमीर रहित रोटी खाना। जब तुम मेरी आराधना के लिए आओ तब भेंट अवश्य लाना। खाली हाथ कभी नहीं आना।
\s5
\v 16 दूसरा पर्व फसल का पर्व है। इस पर्व में तुम अपनी उगाई हुई फसल का पहला अंश लेकर मुझे भेंट चढ़ाना। तीसरा पर्व है, अन्तिम फसल का पर्व। यह वह समय है जब तुम अपने अन्न की, अंगूरों की और फलों की अन्तिम फसल एकत्र करोगे।
\v 17 इस प्रकार प्रति वर्ष तीन बार सब पुरुष यहोवा परमेश्वर (मेरे) के सामने उपस्थित होंगे।
\p
\s5
\v 18 जब तुम किसी पशु की बलि चढ़ाओ और मुझे भेंट करो तब खमीरी रोटी नहीं चढ़ाना। बलि चढ़ाते समय पशुओं की चर्बी उसी समय पूरी तरह से जला देना जिससे कि अगले दिन सुबह तक चर्बी बची न रहे।
\p
\v 19 जब-जब तुम अपनी फसल काटो तब-तब सबसे पहले उसका सबसे अच्छा अंश लेकर आराधना स्थल में जाना और मुझ परमेश्वर यहोवा को चढ़ा देना। किसी पशु के बच्चे को मार के उसकी माँ के दूध में मत पकाना।
\p
\s5
\v 20 “तुम्हारी यात्रा में रक्षा करने के लिए, तुम्हें मेरे तैयार किए हुए स्थान तक पहुँचाने के लिए मैं अपना एक स्वर्गदूत तुम्हारे आगे-आगे भेज रहा हूँ।
\v 21 उसकी बातें ध्यान से सुनना और उनका पालन करना। उसका विद्रोह मत करना क्योंकि उसके पास मेरा अधिकार है और यदि तुम उसके विरुद्ध विद्रोह करते हो तो उसे तुम्हें दण्ड देने का अधिकार है।
\v 22 यदि तुम उसकी बात पर ध्यान दो और मेरी सब आज्ञाओं को मानो तो मैं तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करूँगा।
\s5
\v 23 मेरा स्वर्गदूत तुम्हारे आगे-आगे चलकर तुम्हें एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, कनानियों, हिब्बियों और यबूसियों के देश में पहुँचाएगा और मैं तुम्हे उनसे पूरी तरह से छुटकारा दिलाऊँगा।
\v 24 तुम उनके देवी-देवताओं के सामने मत झुकना और उनकी आराधना मत करना। उनके विचार में उनके देवी-देवता जो चाहते है वह तुम मत करना। उनके देवी-देवताओं को नष्ट कर देना और उनके पवित्र पत्थरों को चकनाचूर कर देना।
\p
\v 25 तुम केवल मेरी, अपने परमेश्वर यहोवा ही की आराधना करना। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हे भोजन-पानी से आशीष दूँगा और रोगों से तुम्हारी रक्षा करूँगा।
\s5
\v 26 तुम्हारे देश में किसी भी स्त्री का गर्भपात नहीं होगा, न ही कोई स्त्री बांझ रहेगी। मैं तुम लोगों को भरपूर लम्बा जीवन प्रदान करूँगा।
\p
\v 27 मैं तुम्हारे विरोधियों में अपना भय डाल दूँगा। तुम्हारे समीप आने वाले हर एक मनुष्य को मैं मार डालूँगा। मैं उन्हें विवश कर दूँगा कि वे तुम्हें पीठ दिखाकर भागें।
\v 28 मैं तुम्हारे शत्रुओं को भयभीत कर दूँगा। मैं तुम्हारे देश में से हिब्बियों, कनानियों और हित्तियों को निकाल दूँगा।
\v 29 मैं उन सभों को पहले ही वर्ष में नहीं निकालूंगा। अगर मैंने ऐसा किया, तो तुम्हारी भूमि निर्जन हो जाएगी और वहाँ वन-पशु आ जाएँगे और तुम्हें हानि पहुँचाएँगे।
\s5
\v 30 मैं उन लोगों के समूहों को धीरे-धीरे हटा दूँगा। कुछ समय में, तुम्हारी संख्या बढ़ती जाएगी और तुम संपूर्ण देश में फैल जाओगे।
\v 31 मैं तुम्हारी सीमाओं को दक्षिण पूर्व में लाल सागर से लेकर उत्तर पश्चिम में भूमध्य सागर तक और दक्षिण पश्चिम में सीनै की मरुभूमि से उत्तर पूर्व में फरात नदी तक फैला दूँगा। मैं तुम्हें सामर्थी बना दूँगा कि तुम वहाँ के मूल निवासियों को निकाल पाओ और उस देश पर अधिक से अधिक अधिकार करते जाओ।
\v 32 तुम्हें न तो उन लोगों के साथ और न ही उनके देवी-देवताओं के साथ किसी भी प्रकार का समझौता करना है।
\v 33 वहाँ के मूल निवासियों को अपने बीच मत रहने देना नहीं तो वे तुम्हें मेरे विरुद्ध पाप करने की प्रेरणा देंगे। यदि तुम उनके देवी-देवताओं की पूजा करोगे तो तुम इस पाप से नहीं निकल पाओगे। तुम उस प्रकार फँस जाओगे जैसे कोई फंदे में फंसता है।”
\s5
\c 24
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे निकट पर्वत की चोटी पर आ और साथ में हारून और उसके पुत्र नादाब और अबीहू भी हों। इस्राएलियों के सत्तर बुजुर्गों को भी साथ लेकर आ। पर्वत की चोटी से कुछ दूर ही रहकर मेरी आराधना करना।
\v 2 तब मूसा अकेले यहोवा के निकट आएगा। अन्य लोग यहोवा के निकट न आएँ, और शेष व्यक्ति पर्वत तक भी न आएँ।"
\p
\s5
\v 3 इस प्रकार मूसा ने यहोवा के सब नियम और आदेश लोगों को सुनाए। तब सब लोगों ने कहा, “यहोवा ने जो आदेश दिए हैं, उन सब का हम पालन करेंगे।”
\v 4 इसलिए मूसा ने यहोवा के सब आदेशों को लिखा। अगली सुबह मूसा ने एक पत्थर की वेदी बनाई। उसने इस्राएली गोत्रों की संख्या के अनुसार बारह पत्थरों को भी स्थापित किया।
\s5
\v 5 तब मूसा ने इस्राएल के युवकों को बलि चढ़ाने के लिए बुलाया। इन व्यक्तियों ने यहोवा के लिए होम-बलि और मेलबलि के रूप में मवेशियों की बलि चढ़ाई।
\v 6 मूसा ने इन पशुओंं के खून को एकत्र किया। मूसा ने आधा खून कटोरे में रखा और उसने दूसरा आधा खून वेदी पर छिड़का।
\s5
\v 7 तब मूसा ने पत्र पर लिखे यहोवा की वाचा की सब आज्ञाओं को इस्राएलियों को पढ़कर सुनाया। मूसा ने वाचा की सब आज्ञाओं को इसलिए पढ़ा कि सब लोग उसे सुन सकें और लोगों ने कहा, “हम यहोवा के हर एक आदेश का पालन करेंगे। हम पूरी तरह से उनका अनुसरण करने का वचन देते है।”
\p
\v 8 तब मूसा ने कटोरे का खून लिया और लोगों पर छिड़क दिया। उसने कहा, “यह वह खून है जो आज्ञाएँ देते समय तुम्हारे द्वारा बांधी गई वाचा की पुष्टि करता है।”
\p
\s5
\v 9 तब मूसा हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएलियों के सत्तर बुजुर्गों के साथ पर्वत के ऊपर चढ़ा।
\v 10 और उन्होंने परमेश्वर को देखा जिनकी आराधना इस्राएल के लोग करते हैं। उनके पाँवों के निचे नील मणि के जैसा आधार था जो बादल रहित आकाश के समान स्वच्छ था।
\v 11 इस्राएल के सब बुजुर्गों ने परमेश्वर को देखा, किन्तु परमेश्वर ने उन्हें नष्ट नहीं किया। उन्होंने परमेश्वर का दर्शन करके खाना-पीना किया।
\p
\s5
\v 12 यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे पास पर्वत पर आओ। मैंने अपने उपदेशों और आदेशों को दो पत्थर की पट्टियाें पर लिखा है। ये उपदेश लोगों के लिए है। मैं इन पत्थर की पट्टियाें को तुम्हें दूँगा।”
\v 13 तब मूसा और उसका सहायक यहोशू उस पर्वत तक गए जहाँ परमेश्वर थे।
\s5
\v 14 अब मूसा ने उन बुजुर्गों से कहा, “जब तक हम वापस न आएँ तब तक अन्य लोगों के साथ रहो! मत भूलना कि मेरी अनुपस्थिति में, हारून और हूर तुम लोगों के अधिकारी होंगे। यदि किसी को कोई समस्या हो तो वह उनके पास जाए।”
\v 15 तब मूसा पर्वत पर चढ़गया और बादल ने पर्वत को ढक लिया।
\s5
\v 16 यहोवा की महिमा उस पर्वत पर उतर आई और छः दिन तक उपस्थित रही। सातवें दिन यहोवा ने बादल में से मूसा को पुकारा।
\v 17 जब इस्राएली लोगों ने पर्वत की चोटी पर देखा तब वहाँ यहोवा की महिमा जलती हुई बड़ी आग के समान दिखाई दी।
\v 18 मूसा ने उस बादल में प्रवेश किया और वहाँ चालीस दिन और रात तक था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\p
\v 2 “इस्राएल के लोगों से मेरे लिए भेंट लाने को कह। उन लोगों से सारी भेंट ग्रहण कर जो वे मुझे स्वेच्छा से देना चाहते हैं।
\s5
\v 3 मेरे लिए भेंट की वस्तुओं में जो हो वह हैः सोना, चाँदी, पीतल,
\v 4 नीला, बैंजनी, और लाल ऊन, सुन्दर रेशमी कपड़ा, कपड़ा बनाने के लिए बकरियों के बाल।
\v 5 लाल रंग से रंगा भेड़ का चमड़ा, सुइसों की खालें, बबूल की लकड़ी,
\v 6 दीपकों को जलाने के लिए जैतून का तेल, याजकों के अभिषेक करने के लिए जैतून के तेल में डालने के लिए सुगन्ध द्रव्य और सुगन्धित धूप तैयार करने के लिए सुगन्धित द्रव्य।
\v 7 सुलैमानी रत्न और अन्य मूल्यवान रत्न भी जो याजकों के पहनने की एपोद और छाती की थैली पर जड़े जाएँ।
\s5
\v 8 लोगों से कह कि वे मेरे लिए एक बड़ा पवित्र तम्बू बनाएँ। तब मैं उनके साथ रह सकूँगा।
\v 9 वे उस तम्बू को बनाएँ और उसमें काम में आने वाली सब वस्तुएँ उस नक्शे के अनुसार तैयार करें जो मैं तुझे दिखाऊँगा।
\p
\s5
\v 10 लोगों को बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाने के लिए कह। यह सन्दूक एक मीटर लंबा, मीटर का तीन-चौथाई चौड़ा और मीटर का तीन-चौथाई ऊँचा हो।
\v 11 उस सन्दूक को अन्दर और बाहर शुद्ध सोने से मढ़ा जाए और सन्दूक के चारों ओर सोने की बाढ़ बनवाना।
\s5
\v 12 और सोने के चार छल्ले बनवाकर सन्दूक के पायों पर लगाना, सन्दूक की दोनों ओर दो-दो छल्ले लगाना।
\v 13 उन्हें बबूल की लकड़ी के दो बल्लियाँ बनाकर सोने से मढ़ने के लिए कहना।
\v 14 इन बल्लियों को सन्दूक के उन छल्लों में डाल देना कि वह सन्दूक इन बल्लियों द्वारा उठाया जा सके।
\s5
\v 15 वे बल्लियाँ छल्लों में से निकाली न जाएँ, वे सदैव उन छल्लों में लगी रहें।
\v 16 उस सन्दूक में पत्थर की उन दो पट्टियों को रखना जिन पर आज्ञाएँ मैंने लिखकर दी हैं।
\p
\v 17 उस सन्दूक के लिए शुद्ध सोने का ढक्कन बनाना। यह ढक्कन इस्राएलियों के पापों को ढांकने का स्थान होगा। यह ढक्कन भी एक मीटर लंबा तीन-चौथाई मीटर चौड़ा होना चाहिए।
\v 18 इस ढक्कन के सिरों के लिए सोने को पिघलाकर पंख वाले दो प्राणियों को बनवाना।
\s5
\v 19 ये प्राणी ढक्कन के दोनों सिरों पर एक-एक हों और उनका सोना सन्दूक के ढक्कन के सोने से जुड़ा होना चाहिए।
\v 20 इन प्राणियों को इस प्रकार स्थापित करना कि उनके पंख एक दूसरे का स्पर्श करते हुए ढक्कन पर फैले हो और एक-दूसरे के सामने सन्दूक के ढक्कन के केन्द्र को देखते हुए हों।
\v 21 मैं तुझे आज्ञाओं की जो पट्टियाँ दूँगा उन्हें उस सन्दूक में रखना और ढक्कन को सन्दूक पर रख देना।
\s5
\v 22 मैं वहाँ तुझसे बातें करने का समय निश्चित करूँगा। पंखों वाले उन दोनों प्राणियों के बीच, सन्दूक के ढक्कन पर से मैं तुझे इस्राएलियों के लिए नियम दिया करूँगा।
\p
\s5
\v 23 उन्हें बबूल की लकड़ी की एक मेज भी बनाने के लिए कह। यह एक मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी, और तीन-चौथाई मीटर ऊँची होना चाहिए।
\v 24 वह मेज पूरी तरह सोने से मढ़ी हुई हो और उस पर चारों ओर सोने की झालर लगाना।
\s5
\v 25 उस मेज़ के चारों ओर 80 सेन्टी मीटर चौड़ा घेरा बनवाकर उसे भी सोने से मढ़ना।
\v 26 मेज के चारों कोनों पर सोने का एक-एक छल्ला लगाना जो प्रत्येक पाए के पास लगा हो।
\v 27 ये छल्ले पायों के पास घेरे से जुड़े हुए हों जिससे कि वह मेज बल्लियाँ के द्वारा उठाई जा सके।
\s5
\v 28 बबूल की लकड़ी की दो बल्लियोँ बनाकर सोने से मढ़वाना जिन्हें मेज के उन छल्लों में डाल देना कि उसे उठाया जाए।
\v 29 परात, चम्मच, मर्तबान और कटोरे भी बनवाना जो शुद्ध सोने के हों क्योंकि कटोरों द्वारा याजक मुझे अर्घ चढ़ाएँगे। सभी शुद्ध सोने से बने होने चाहिए।
\v 30 उस मेज पर मेरे दर्शन के लिए प्रतिदिन रोटीयाँ रखी जाएँ। ये भेंट की रोटीयाँ होंगी।
\p
\s5
\v 31 शुद्ध सोने का एक दीवट बनवाना। उसके आधार और डंडियों को सोना पीटकर बनवाना। उस दीवट की शाखाएँ, तेल डालने के लिए फूलों की कलियाँ और फूलों की पंखुडियाँ जिनसे दीवट की शाखाओं को सजाया जाए, आधार और डंडियाँ आदि और सभी कुछ एक ही टुकड़े से बना होना चाहिए।
\v 32 उस दीवट की छः शाखाएँ हों, तीन एक ओर और तीन दूसरी ओर।
\s5
\v 33 प्रत्येक शाखा पर बादाम के फूलों जैसी तीन सजावट होना चाहिए। इन सजावटों में फूलों की कलियां और फूल की पंखुड़ियां भी होनी चाहिए।
\v 34 दीवट की डंडियों पर बादाम के चार फूल जैसी सजावट हो प्रत्येक में कली और पंखुड़ियाँ हों।
\s5
\v 35 दोनों ओर प्रत्येक शाखा के नीचे फूल की कली होनी चाहिए।
\v 36 ये सब कलियाँ, शाखाएँ और डंडियाँ सोने के एक ही पिण्ड को हथोडे से पीट कर बनाई जाएँ।
\s5
\v 37 उसमें सात छोटे-छोटे कटोरे भी हों जिनमें तेल डाला जाएगा। एक कटोरा डंडी के ऊपर हो और छः कटोरे छः शाखाओं पर एक-एक हों। ये कटोरे इस प्रकार बनाए जाएँ कि जब दीप जलें तो उनका प्रकाश दीवट के सामने गिरे।
\v 38 दीपक की जली हुई बतियों को काटने के लिए चिमटियाँ और राख रखने के पात्र सब शुद्ध सोने से बनाए जाएँ।
\v 39 दीवट, चिमटियाँ और तश्तरियाँ बनाने के लिए तैंतीस किलोग्राम शुद्ध सोने का उपयोग करने के लिए कह।
\v 40 सुनिश्चित करना कि ये सब मेरे निर्देशनों के अनुसार ही हों जो मैं आज तुझे इस पर्वत पर दे रहा हूँ।"
\s5
\c 26
\p
\v 1 “लोगों को पवित्र तम्बू में उत्तम मलमल के दस पर्दे बनाने के लिए कहना। कुशल हस्तकारों द्वारा नीले, बैंगनी और लाल धागे से इन पट्टियों पर उन पंख-वाले प्राणियों की कढ़ाई करवाना जो सन्दूक के ऊपर बनाए गए हैं।
\v 2 प्रत्येक पट्टी 12.5 मीटर लंबी और 1.8 मीटर चौड़ी होनी चाहिए।
\v 3 पाँच पट्टियों को जोड़कर एक पर्दा बनाना और पाँच पट्टियों को जोड़कर दूसरा।
\s5
\v 4 प्रत्येक जोड़े के अंत में नीले धागे के फंदे हों जो बांधने के लिए पर्दों के बाहरी सिरे पर लगे हों।
\v 5 पहले जोड़े के सिरे पर पचास फंदे हों और दूसरे जोड़े के सिरे पर भी पचास फंदे हों। वे इस प्रकार हों कि आमने सामने हों।
\v 6 दोनों जोड़ों को बान्धने के लिए सोने के पचास आँकड़े हों कि बन्ध जाने के बाद पवित्र तम्बू के भीतर से वे एक ही दिखाई दें।
\p
\s5
\v 7 पवित्र तम्बू की छत बकरी के बाल से बने ग्यारह पर्दों की हो।
\v 8 प्रत्येक पर्दा 13.5 मीटर लंबा और 1.8 मीटर चौड़ा हो।
\v 9 इन पाँच पर्दों को सिल कर जोड़ देना और शेष छः पर्दों को अलग सिल कर जोड़ना। छठवें पर्दे को तम्बू के सामने की ओर मोड़ कर दोहरा करना।
\s5
\v 10 और नीले कपड़े के सौ फंदे बनाना। इनमें से पचास फंदे एक जोड़े के बाहरी सिरे पर लगाना और पचास फंदे दूसरे जोड़े के बाहरी सिरे पर लगाना।
\v 11 पीतल के पचास आँकड़े बनवाना कि उन फंदों में डालकर पर्दों के दोनों जोड़ों को जोड़ा जाए जिससे कि पवित्र तम्बू की छत ऐसी हो जाए कि वह पूरी एक ही है।
\s5
\v 12 यह छत पवित्र तम्बू के सनी के कपड़े अधिक लम्बी होगी जिसे तम्बू के पीछे लटकने देना।
\v 13 छत के आवरण का आधा-आधा मीटर अतिरिक्त भाग जो मलमल के कपड़े के परे होगा वह पवित्र तम्बू के दाँये-बाँये सुरक्षा के लिए लटकता रहे।
\v 14 अब उस पवित्र तम्बू की दो और छत बनवाना। एक मेढ़े की खाल को लाल करके बनाई जाए और सबसे ऊपर की छत उत्तम चमड़े की बनवाना।
\s5
\v 15 फिर बबूल की लकड़ी के अड़तालीस चौखटे बनवाना जिन पर पवित्र तम्बू के पर्दे लटकाए जाएँ।
\v 16 प्रत्येक चौखटे की लम्बाई 4.5 मीटर और चौड़ाई 0.75 मीटर हो।
\v 17 चौखटे सब एक जैसे होना चाहिएं। हर एक चौखटे के नीचे जोड़ने के लिए दो-दो खूंटियाँ होनी चाहिए।
\v 18 तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस चौखटे बनाओ।
\s5
\v 19 चौखटे के ठीक नीचे चाँदी के दो आधार हर एक तख़्ते के लिए होने चाहिए। इस प्रकार बीस चौखटों के लिए चाँदी के चालीस आधार बनाने होंगे।
\v 20 इसी प्रकार पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के लिए बीस चौखटे और बनाओ।
\v 21 इन चौखटों के लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाओ, एक चौखटे के लिए दो आधार।
\s5
\v 22 पवित्र तम्बू का पिछला भाग जो पश्चिम दिशा में हो उसके लिए छः चौखटे हों।
\v 23 दो अतिरिक्त चौखटे भी बनवाना जो पवित्र तम्बू के पिछले दो कोनों को अधिक दृढ़ता प्रदान करने के लिए हों।
\v 24 कोने के दोनों चौखटे ऊपर से और नीचे से अलग हों एक साथ जोड़ देने चाहिए। कोन के इन दोनों चौखटों के ऊपर में एक-एक सोने के छल्ले हों जिनमें आड़ा डंडा डाला जाए।
\v 25 इस प्रकार पवित्र तम्बू के पिछले भाग के लिए आठ चौखट होंगे और प्रत्येक चौखटे के दो आधार होंगे।
\s5
\v 26 बबूल की लकड़ी के पन्द्रह आड़े डंडे बनवाना जिनमें से पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के लिए पाँच डण्डियाँ होंगी।
\v 27 पाँच दक्षिणी भाग के लिए और पाँच पवित्र तम्बू के पीछे के भाग के लिए जो पश्चिम की ओर है।
\v 28 उत्तर दक्षिण और पश्चिम के पक्षों के डंडे चौखटों के मध्य में हों और जो दो लम्बे डंडे हैं वे पवित्र तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हों और पश्चिम का आड़ा डंडा पवित्र तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो।
\s5
\v 29 इन चौखटों को सोने से मढ़वा कर चौखटों के डंडों को फँसाने के लिए सोने के कड़े लगवाना। डंडों को भी सोने से मढ़वाना।
\v 30 पवित्र तम्बू को ठीक वैसा ही बनवाना जैसा मैंने तुझे पर्वत पर समझाया था।
\s5
\v 31 उत्तम मलमल का एक और पर्दा बनवाना और एक उत्तम हस्तकार उस पर नीले, बैंजनी और लाल धागे से उन पंख वाले प्राणियों का चित्र कढ़ाई करके बनाए जो सन्दूक के ऊपर है।
\v 32 इस पर्दे को बबूल की लकड़ी की चार बल्लियों पर जो सोने से मढ़े हुए हों, लटकाना। प्रत्येक बल्ली चाँदी के आधार पर खड़ी की जाए।
\v 33 पर्दे का ऊपरी सिरा पवित्र तम्बू की छत में लगे खूँटियों के द्वारा लटकाया जाए। इस पर्दे के पीछे का भाग परम-पवित्र स्थान कहलाएगा जिसमें मेरी आज्ञाओं की पत्थर की पट्टियों के सन्दूक को रखना। यह पर्दा परम-पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करेगा।
\s5
\v 34 परम पवित्र स्थान में उस सन्दूक के ऊपर ढक्कन को रखना।
\v 35 परम पवित्र स्थान के बाहर के भाग में उत्तरी दिशा में भेंट की रोटियों की मेज रखना और दीवट को दक्षिणी ओर रखना।
\s5
\v 36 पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के लिए उत्तम मलमल का एक पर्दा बनवाना जो नीले, बैंजनी और लाल धागे द्वारा कढ़ाई करके बनवाया गया हो।
\v 37 इस पर्दे को जकड़ कर रखने के लिए बबूल की लकड़ी की पाँच बल्लियाँ बनवाना। ये बल्लियाँ भी सोने से मढ़ी जाएँ जिन पर सोने के आँकड़ें लगे हों। इनमें से प्रत्येक बल्लीे का आधार पीतल का हो।
\s5
\c 27
\p
\v 1 " लोगो से कहना कि बबूल की लकड़ी की एक वेदी भी बनाये जिसका आकार चौकोर हो जिसकी प्रत्येक भुजा 2.1 मीटर की हो और ऊँचाई 1.3 मीटर की हो।
\v 2 उसके प्रत्येक कोने पर सींग के रूप में उभार हों। ये सींग बबूल ही की लकड़ी से बनाए गए हों जिससे वेदी बनाई गई है। इस वेदी को पीतल से मढ़वाना।
\s5
\v 3 पशु-बलि की राख के लिए तसले बनवाना और राख उठाने के लिए फावड़ियां भी बनवाना। माँस पकाने के लिए चिलमचियाँ और माँस पलटने के लिए काटे बनवाना। ये सब सामान पीतल से बनाया जाए।
\v 4 जलती हुई लकड़ी और कोयले के लिए एक पीतल की जाली भी बनवाना। जाली के चारों कोनों पर पीतल के छल्ले लगवाना।
\s5
\v 5 पीतल की जाली वेदी के चारों ओर के घेरे के नीचे वेदी के भीतर आधी ऊँचाई तक हो।
\v 6 वेदी को उठाने के लिए बबूल की लकड़ी की बल्लियाँ पीतल से मढ़े हुए बनाए जाएँ।
\s5
\v 7 वेदी के दोनों ओर लगे कड़ो में इन बल्लियों को डालना कि वेदी इनके द्वारा उठाई जाए।
\v 8 वेदी भीतर से खोखली होगी और यह बबूल की लकड़ी के तख्तों से बनाई जाए। यह सब मेरे निर्देशनों के अनुसार ही बनवाना जैसा मैंने तुझे पर्वत पर दिखाया था।
\s5
\v 9 पवित्र तम्बू के बाहर आँगन होना चाहिए। इस आँगन के लिए उत्तम मलमल के पर्दे बनवाना। दक्षिणी ओर का पर्दा 45 मीटर लंबा हो।
\v 10 इस पर्दे को सम्भालने के लिए बीस पीतल के खम्भे बनाना जिनमें से प्रत्येक का एक पीतल का आधार हो। पर्दे को खम्भों पर रोकने के लिए चाँदी के आँकड़े और और धातु सरिए हों जो चाँदी से मढ़े हुए हों के ।
\s5
\v 11 आँगन के उत्तरी भाग के लिए भी उसी प्रकार का एक पर्दा हो जैसा दक्षिण की ओर था।
\v 12 परन्तु आँगन की पश्चिमी दिशा का पर्दा 22 मीटर लम्बा हों। इस पर्दे के लिए दस खम्भे हों जिनके आधार भी हों।
\v 13 पूर्वी दिशा में जहाँ प्रवेश द्वार होगा, वहाँ आँगन की चौढ़ाई 22 मीटर की हो।
\s5
\v 14-15 आँगन के प्रवेश द्वार के लिए दोनों ओर सात-सात मीटर के चौड़े पर्दे बनवाना जिसके तीन-तीन खम्भे हों और तीन-तीन आधार हों।
\v 16 ये पर्दे नीले, बैंजनी और लाल रंग के धागों की कढ़ाई किए हुए उत्तम मलमल के हों। ये पर्दे चार खम्भों पर डले हों और खम्भों के आधार हों।
\s5
\v 17 आँगन के चारों ओर के सब खम्भों को जोड़ने के लिए चाँदी की पट्टियाँ हों इनके आँकड़े चाँदी के और आधार पीतल के हों।
\v 18 पूर्वी प्रवेश द्वार से पश्चिम तक संपूर्ण आँगन 46 मीटर लंबा और 23 मीटर चौड़ा हो और उसके घेरे के पर्दे 2.3 मीटर ऊँचे हों। सब पर्दे उत्तम मलमल के हों और आधार सब पीतल के हों।
\v 19 वे सब वस्तुएँ जो सोने की बनी न हों वे पवित्र तम्बू और आँगन में काम आने वाली हों और पवित्र तम्बू और पर्दों के सब खूँटे पीतल के बने हों।
\s5
\v 20 इस्राएलियों को आज्ञा दे कि दीपक को जलाने के लिए वे सर्वोत्तम शुद्ध जैतून का तेल ले आएँ क्योंकि दीपक को सदा जलते रहना है।
\v 21 परम पवित्र स्थान में जहाँ यहोवा का पवित्र सन्दूक रखा होगा, उसके पर्दे के बाहर दीपक शाम से सुबह तक जलते रहने का उत्तरदायित्व हारून और उसके पुत्रों का होगा। इस्राएली समाज इस नियम का पालन पीढ़ियों तक करता रहे।”
\s5
\c 28
\p
\v 1 “अपने बड़े भाई हारून और उसके पुत्र, नादाब, अबीहू, एलीआजार और ईतामार को इस्राएल के लोगों में से समर्पित कर कि वे मेरे पास याजक के रूप में मेरी सेवा करें।
\v 2 इस्राएलियों से कह कि वे हारून के लिए विशेष वस्त्र तैयार करें, ऐसे वस्त्र जो आदर, गौरव और पवित्र सेवा करने वाले के लिए उचित हों।
\v 3 मैंने जिन कारीगरों को बुद्धि दी है उनसे कह कि वे हारून के लिए वस्त्र तैयार करें कि जब वह मेरी सेवा के लिए समर्पित किया जाता है तब उन्हें पहन ले।
\s5
\v 4 जो वस्त्र उन्हें तैयार करने है वे ये हैं, हारून के सीने पर धारण करने के लिए सीना-बन्द , एपोद, बागा, कढ़ाई किया हुआ अंगरखा, पगड़ी और कमर-बन्द । ये वस्त्र तेरा भाई हारून और उसके पुत्र मेरे सम्मुख याजकीय सेवा करते समय धारण करेंगे।
\v 5 कुशल कारीगर उत्तम मलमल पर नीले, बैंजनी और लाल धागों की कढ़ाई करके उनके वस्त्र तैयार करें।
\s5
\v 6 कुशल कारीगर उत्तम मलमल से पवित्र एपोद तैयार करें और उस पर नीले, बैंजनी, और लाल धागों और सोने के तार से कढ़ाई करें।
\v 7 उसके आगे पीछे के भाग से जोड़ने के लिए कन्धों पर दो फीते लगे हों।
\v 8 पवित्र एपोद के कपड़े से ही सावधानी-पूर्वक बुना हुआ पटुका एपोद पर सिला जाएँ।
\v 9 एक कुशल कारीगर दो सुलैमानी मणियों पर याकूब के बारहों पुत्रों के नाम खोदकर लिखें जो उनकी आयु के क्रम में हों।
\s5
\v 10 एक मणि पर वह छः नाम लिखें और दूसरे मणि पर छः नाम। नामों को वह आयु क्रम के अनुसार लिखें।
\v 11 उन दोनों मणियों पर नाम लिखवाकर उन मणियों को एपोद के कन्धों पर सोने से जड़वा देना।
\v 12 सोने में जड़े हुए इन दोनों मणियों को पवित्र एपोद के कन्धे के फंदों पर सिलवाना कि वे इस्राएल के बारहों गोत्रों का प्रतिनिधित्व करें। इस प्रकार हारून इस्राएली गोत्रों के नाम अपने कन्धों पर धारण किए रहेगा कि मैं, यहोवा अपने लोगों को सदा याद रखूं।
\s5
\v 13 इन मणियों को सोने में जड़ना।
\v 14 इन जड़े हुए मणियों में एक-एक सोने रस्सी जैसी की गूँथी हुई जंजीर हो।
\s5
\v 15 हारून के लिए किसी कुशल कारीगर द्वारा पवित्र सीना-बन्द भी बनवाना कि हारून उसे अपने सीने पर धारण करे। वह इसके द्वारा इस्राएल के लिए मेरी इच्छा ज्ञात करेगा। यह भी उन्हीं धागों और कपड़े का बना हो जिससे पवित्र एपोद बनाया गया है, अर्थात सोने के तार से नीले, बैंजनी और लाल धागे और उत्तम मलमल से।
\v 16 वह चौरस हो और कपड़ा दोहरा किया जाए जिससे कि वह 23 सेंटीमीटर लंबा और 23 सेंटीमीटर चौड़ा हो।
\s5
\v 17 इस सीना-बन्द पर एक कुशल कारीगर मूल्यवान मणियों की चार पंक्तियाँ जड़े। पहली पंक्ति में माणिक्य, पदमराग और लालड़ी हों।
\v 18 दूसरी पंक्ति में मरकत, नीलमणि और हीरा;
\v 19 तीसरी पंक्ति में लशम, सूर्यकांत और नीलम
\v 20 और चौथी पंक्ति में फीरौज़ा, सुलैमानी मणि और यशब हों। इन सबको सोने के खानों में जड़ना है।
\s5
\v 21 इनमें से प्रत्येक मणि पर याकूब के एक पुत्र का नाम खोदकर लिखा जाए। ये नाम इस्राएल के गोत्रों को प्रकट करेंगे।
\v 22 रस्सी जैसी दो गूंथी हुई जंजीरें जो शुद्ध सोने की हों वे पवित्र सीना-बन्द को पवित्र एपोद को साथ बान्धने के लिए है।
\v 23 पवित्र एपोद के ऊपरी कोनों पर सोने के छोटे छल्ले लगाए जाएँ।
\v 24 और इन छल्लों में सोने की जंजीरें बनाकर डाली जाएँ।
\s5
\v 25 उन जंजीरों के दूसरे सिरे मणियों के खानों में से एक-एक से जोड़े जाएँ। इस प्रकार पवित्र एपोद सीना-बन्द के कंधे के पट्टों से बन्धा रहेगा।
\v 26 सोने के दो छल्ले और बनवाना और पवित्र एपोद के निचले कोनों से उन्हें जोड़ना- पवित्र सीना-बन्द के पास भीतरी सिरों पर।
\s5
\v 27 और सोने के दो छल्ले बनवाकर कन्धे के पट्टे के सामने निचले भाग में लगवाना जो एपोद के पट्टे के ठीक ऊपर है लगवाना जहाँ कन्धे के बन्धन जुड़े हैं।
\v 28 एक कुशल कारीगर एपोद के छल्लों को पवित्र सीना-बन्द के साथ नीले फीते से बान्धे जिससे कि पवित्र सीना-बन्द कमर-बन्द के ऊपर रहे और पवित्र सीना-बन्द से ढीला होकर अलग न हो जाए।
\s5
\v 29 इस प्रकार हारून इस्राएल के बारह गोत्रों के नाम अपने सीने पर पवित्र एपोद में धारण किए रहेगा कि पवित्र-स्थान में प्रवेश करके निर्णय ले।
\v 30 उस पवित्र एपोद में ऊरीम और तुम्मीम को रखना जिनके द्वारा मैं उसके प्रश्नों के ऊपर प्रकट करूँगा। इस प्रकार वे उसके सीने पर ही रहेंगे जब वह मुझसे बातें करने के लिए पवित्र स्थान में प्रवेश करेगा। उनके माध्यम से वह इस्राएल के लिए मेरी इच्छा जान सकेगा।
\s5
\v 31 कारीगर याजक के पवित्र एपोद के नीचे पहनने के लिए बैंजनी वस्त्र का बागा बुनकर बनाए।
\v 32 उसमें खुला स्थान होना चाहिए जहाँ से याजक उसमें सिर डाल पाए। उसके सिरे बुने हुए हों कि उसे फटने से बचाया जाए।
\s5
\v 33 बागे के निचले सिरे पर एक फल बनवाना जो अनार जैसा दिखे, इसे नीले, बैंजनी, नीले और लाल धागों से कढ़ाई करके बनाना।
\v 34 इनके बीच-बीच में एक-एक सोने की घंटियाँ लगाना।
\v 35 जब हारून पवित्र तम्बू में पवित्र-स्थान में सेवा के लिए प्रवेश करेगा और वहाँ से निकलेगा तब उसके चलने से ये घंटियाँ बजेंगी। इस प्रकार हारून अवज्ञा के कारण मरेगा नहीं।
\s5
\v 36 शुद्ध सोने की एक पट्टी बनवाकर उस पर लिखवाना, “यहोवा को समर्पित।”
\v 37 इस पट्टी को पगड़ी के सामने नीले फीते से बाँधना।
\v 38 याजक उस पगड़ी को सदैव धारण किए रहे। इस्राएली यहोवा की आज्ञा के अनुसार पवित्र भेंटे यहोवा को अर्पित करने से चूक जाएँ तो हारून उनके दोष को अपने ऊपर लेगा। हारून के ऐसा करने पर यहोवा उनकी भेंटें स्वीकार करेगा।
\s5
\v 39 उत्तम मलमल का एक अंगरखा भी बनवाना जो बुना हुआ हो। उत्तम मलमल की पगड़ी और कमर-बन्द भी बनाया जाए जिस पर कढ़ाई हो।
\s5
\v 40 हारून के पुत्रों के लिए भी पूरी बांह के सुन्दर अंगरखे, कमर-बन्द , पटके और टोपियाँ बनवाना ये उन्हें गौरव और आदर देंगे। ।
\v 41 ये वस्त्र अपने बड़े भाई हारून और उसके पुत्रों को धारण करवाना और जैतून के तेल से उनका अभिषेक करके मेरी सेवा के लिए याजक बनने के लिए समर्पित कर देना।
\s5
\v 42 उनके लिए मलमल के जाँघिये भी बनवाना। जाँघिये कमर से जाँघ के निचले हिस्से तक हों कि उनकी नग्नता ढँकी रहे।
\v 43 हारून और उसके पुत्र पवित्र तम्बू में प्रवेश करते समय या पवित्र स्थान में बलि चढ़ाते समय वेदी के निकट आएँ तब जाँघिये पहने। यदि उन्होंने इस विधि का पालन नहीं किया तो मैं उन्हें मार डालूँगा। हारून और उसके बाद उसके वंश के लोगों को सदा इसी विधि पर चलना है।
\s5
\c 29
\p
\v 1 मेरे सम्मुख याजकीय सेवा करने के लिए हारून और उसके पुत्रों का अभिषेक इस प्रकार करनाः एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेढ़े लेना।
\v 2 अखमीरी मैदे से तीन प्रकार की रोटियां बनाना। कुछ रोटियों में जैतून का तेल कहीं न हो, कुछ रोटियों के आटे में जैतून का तेल मिला हो, कुछ पापड़ पका कर उन पर जैतून का तेल लगाना।
\s5
\v 3 इन रोटियों को एक टोकरी में रखकर बैल और दो मेढ़े चढ़ाते समय मेरे पास ले आना।
\v 4 हारून और उसके पुत्रों को पवित्र तम्बू के द्वार पर लाकर जल से स्नान कराना।
\s5
\v 5 तब हारून को याजक के विशेष वस्त्र धारण करवाना- लंबी बाँह का अंगरखा, पवित्र सीना-बन्द के नीचे पहनने के लिए बागा, पवित्र सीना-बन्द , पवित्र एपोद और काढ़ा हुआ पट्टा।
\v 6 उसके सिर पर पगड़ी पहनाना और पगड़ी पर वह सोने का पट्टा बान्धना जिस पर लिखा हो, “यहोवा को समर्पित।”
\v 7 तब तेल लेकर अभिषेक करते हुए उसके सिर पर उण्डेलना।
\s5
\v 8 तब उसके पुत्रों को लंबी बांह का अंगरखा पहनाना।
\v 9 उनके कमर पर पट्टे डालना और उनके सिर पर टोपियाँ पहनाना, उन्हें इसी विधि से याजक होने के लिए समर्पित करना। हारून और उसके वंशजों के पुत्र सदैव मेरे लिए याजकीय सेवा करते रहें।
\s5
\v 10 तब पवित्र तम्बू के द्वार पर बछड़ा लेकर आना और हारून और उसके पुत्रों से कहना कि वे अब बछड़े के सिर पर हाथ रखें।
\v 11 और उसी स्थिति में पवित्र तम्बू के द्वार पर बछड़े का गला काटना और उसका रक्त एक पात्र में ले लेना।
\s5
\v 12 अपनी उंगली से कुछ रक्त लेकर वेदी पर बने सींगों पर लगाना। शेष रक्त को वेदी के नीचे डाल देना।
\v 13 बछड़े के अन्दर की सारी चर्बी, कलेजी की झिल्ली, चर्बी समेत दोनों गुर्दे लेकर ‘मेरे लिए वेदी पर होम-बलि करके जलाना।’
\v 14 परन्तु बछड़े का माँस, खाल और अंतड़ियाँ छावनी के बाहर आग में जला देना। यह तुम्हारे पाप के लिए बलि होगी।
\s5
\v 15 तब मेढ़ों में से एक को चुनकर हारून और उसके पुत्रों से कहना कि उसके सिर पर हाथ रखें।
\v 16 मेढ़े को गला काट कर मारना। उसका कुछ रक्त लेकर वेदी के चारों सिरों पर छिड़कना।
\v 17 तब उस मेढ़े के टुकड़े करके उसकी अंतड़ियों और पैरों को धोकर उसके टुकड़ों और सिर के ऊपर रखना।
\v 18 तब सब कुछ वेदी पर पूरी तरह से जलाना। यह मुझ यहोवा के लिए होम-बलि होगी और इसकी सुगन्ध मुझे प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 19 अब दूसरे मेढ़े को लेकर हारून और उसके पुत्रों से कहना कि उसके सिर पर हाथ रखें।
\v 20 मेढ़े को गला काटकर मारना, उसका रक्त एक पात्र में लेना। उसमें से कुछ रक्त हारून और उसके पुत्रों के दाहिने कान के सिरे पर और उनके दाहिने हाथों के अंगूठों पर और दाहिने पैरों के अंगूठों पर लगाना। शेष रक्त वेदी के चारों ओर डाल देना।
\s5
\v 21 वेदी पर से कुछ रक्त लेकर अभिषेक के तेल में मिला के हारून और उसके पुत्रों के वस्त्रों पर छिड़क देना। ऐसा करके तू उन्हें और उनके वस्त्रों को मेेरे लिए समर्पित कर देगा।
\s5
\v 22 तब मेढ़े की चर्बी उसकी पूँछ के चारों ओर की चर्बी और अन्दर की चर्बी, कलेजे की झिल्ली और चर्बी समेत दोनों गुर्दे और दाहिनी जाँघ को काटकर अलग कर लेना। यह मेढ़ा हारून और उसके पुत्रों को मेरी याजकीय सेवा के लिए समर्पित करेगा।
\v 23 अब टोकरी में से तीनों प्रकार की अखमीरी रोटियों में से एक-एक रोटी लेकर- एक बिना तेल की, एक तेल युक्त और एक पापड़,
\s5
\v 24 सबको हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखना और उनसे कहना कि उन्हें मेरे लिए समर्पित करने के लिए उठाएँ।
\v 25 फिर उनके हाथों से लेकर उन्हें वेदी पर रखी अन्य भेंटों के साथ जला देना। वह मेरे लिए हवन होगा और इसकी सुगन्ध मुझे प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 26 अब दूसरे मेढ़े का सीना लेकर विशेष भेंट के रूप में मुझ यहोवा के सामने ऊँचा उठाना। लेकिन पशु-बलि का यह भाग तेरे लिए होगा।
\v 27 मेढ़े का वह सीना जिसे तूने मेरे सामने विशेष भेंट के रूप में ऊँचा उठाया था उसे अलग कर देना और मेढ़े के पुट्ठे भी जिन्हें मुझे अर्पित किया गया था अलग कर लेना। हारून और उसके पुत्रों को मेरे लिए याजक होने के लिए समर्पित करने के लिए बलि के मेढ़े के ये दोनों भाग को मेरे लिए अर्पित कर देना।
\v 28 भविष्य में जब-जब इस्राएली मेलबलि चढ़ायेंगे तो ये सीना और पुट्ठे हारून और उसके वंशजों के पुत्रों के होंगे।
\s5
\v 29 हारून के मरने के बाद उसके विशेष वस्त्र उसके पुत्रों के होंगे कि वे याजकीय सेवा के लिए समर्पित किए जाने पर धारण करें।
\v 30 हारून का जो पुत्र उसके बाद अगला महायाजक होगा, वह सात दिन तक उन वस्त्रों को पहनेगा, जब वह मिलापवाले तम्बू के पवित्र स्थान में सेवा करने आएगा।
\s5
\v 31 अब जो मेढ़ा हारून और उसके पुत्रों को समर्पित करने के लिए बलि किया गया था, उसका माँस आँगन में पकाया जाए।
\v 32 तब हारून और उसके पुत्र उस टोकरी में रखी हुई रोटियों के साथ पवित्र तम्बू के द्वार पर खाएँ।
\v 33 उन्हें तुम्हारे पापों को ढाँपने के लिए वे उस बलि का माँस खाएँगे, जिस बलि के द्वारा वे इस सेवा के लिए समर्पित किए गए थे। केवल उन्हें ही इस माँस को खाने की अनुमति है। जो याजक नहीं है उन्हें इस माँस को खाने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह केवल याजकों के लिए अलग किया गया है।
\v 34 यदि उस रात वह माँस और रोटी खाकर समाप्त नहीं की गई तो अगले दिन उसे खाने की अनुमति नहीं है। उसे पूरी तरह से जला दिया जाए क्योंकि वह पवित्र है।
\s5
\v 35 तुम्हें हारून और उसके पुत्रों को मेरी सेवा में समर्पित करते समय सात दिन तक इस संस्कार को करना है जिसकी आज्ञा मैंने तुम्हे दी है।
\v 36 उन सात दिनों में प्रतिदिन तुम एक बछड़ा मुझे चढ़ाओगे कि मैं तुम्हारे पाप क्षमा करूँ। तुम मेरी दृष्टि में वेदी को शुद्ध करने के लिए भी भेंट चढ़ाओगे। जैतून के तेल से वेदी का अभिषेक करके उसे शुद्ध करना।
\v 37 सात दिन तक प्रतिदिन ऐसा ही करना तब वेदी परम-पवित्र होगी और उसका स्पर्श करने वाली वस्तु भी पवित्र हो जाएगी।
\s5
\v 38 तुम मेम्नों की बलि भी चढ़ाना और वेदी पर उन्हें होमबलि करना। उन सातों दिनों में प्रतिदिन दो मेम्ने बलि करना।
\v 39 एक मेम्ना सुबह और एक संध्या के समय बलि करना।
\s5
\v 40 पहले मेम्ने के साथ 1.82 किलो ग्राम मैदा जो एक लीटर जैतून के उत्तम तेल में गूंधा हुआ हो और एक लीटर मदिरा भी चढ़ाना।
\s5
\v 41 संध्या समय जब दूसरा मेम्ना चढ़ाया जाए तब भी उतना ही मैदा, जैतून का तेल और दाखमधु चढ़ाना जैसा सुबह मेम्ना चढ़ाते समय किया था। यह मुझ यहोवा के लिए भेंट होगी और इसकी सुगन्ध मुझे प्रसन्न करेगी।
\v 42 तुम और तुम्हारे वंशज मुझ यहोवा के लिए पीढ़ियों तक ऐसा ही करेंगे। यह सब तुम पवित्र तम्बू के द्वार पर चढ़ाओगे। वहीं मैं तुम्हारे साथ भेंट करके बातें करूँगा।
\s5
\v 43 वहीं मैं इस्राएलियों से भेंट करूँगा और मेरी उपस्थिति का तेज उस स्थान को पवित्र बनाएगा।
\v 44 मैं पवित्र तम्बू और वेदी को समर्पित करूँगा। मैं हारून और उसके पुत्रों को भी मेरी सेवा के लिए याजक के रूप में समर्पित करूँगा।
\s5
\v 45 मैं इस्राएलियों के बीच निवास करके उनका परमेश्वर होऊँगा।
\v 46 वे जान लेंगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ जो उन्हें मिस्र देश से इसलिए निकाल लाये हैं कि मैं उनके बीच वास करूँ। मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूँ जिसकी वे आराधना करते है।”
\s5
\c 30
\p
\v 1 “अपने कुशल कारीगरों से बबूल की लकड़ी की एक वेदी बनवा जिस पर धूप जलाई जाए।
\v 2 यह आधा मीटर चौकोर हो और उसकी ऊँचाई लगभग 1 मीटर हो। उसके चारों कोनों पर सींग लगे होने चाहिए। सींग भी उसी लकड़ी के हों जिससे वेदी बनाई जाए।
\s5
\v 3 उस वेदी के ऊपरी सिरे और उसकी सभी भुजाओं को शुद्ध सोने से मढ़वाना। वेदी के ऊपर सिरों पर सोने की पट्टी लगवाना।
\v 4 उस वेदी को उठाने के लिए सोने के दो छल्ले लगाना जो पट्टी के नीचे वेदी पर दोनों ओर लगाए जाएँ।
\s5
\v 5 बबूल की लकड़ी के दो बल्लियाँ भी बनाकर सोने से मढ़वाना।
\v 6 धूप जलाने की यह वेदी उस पर्दे के सामने रखी जाए जो सन्दूक और ढक्कन के सामने है। यही वह स्थान है जहाँ मैं तुझसे बातें करूँगा।
\s5
\v 7 इस वेदी पर हारून सुखदायक सुगन्ध की धूप जलाया करे। प्रतिदिन सुबह जब वह दीपकों की देखभाल करने आए तब वह धूप जलाए।
\v 8 संध्या के समय जब वह दीपकों की देखभाल करने आए तब भी वह इस वेदी पर धूप जलाया करे। भविष्य में आने वाली सारी पीढ़ियों तक सदा धूप जलती रहे।
\v 9 याजक इस वेदी पर ऐसी धूप कभी न जलाए जिसकी आज्ञा मैंने नहीं दी है, न ही उस पर होम-बलि चढ़ाई जाए, न ही आटे की भेंट और न ही अर्घ चढ़ाया जाए।
\s5
\v 10 प्रतिवर्ष हारून एक बार इस वेदी को शुद्ध करने के लिए अनुष्ठान करे। लोगों के पापों के लिए जो बलि चढ़ाई जाए उसके रक्त को वह वेदी के चारों सींगों पर लगाए। हारून और उसके वंशज पीढ़ियों तक यह अनुष्ठान पूरा करें। यह वेदी मुझ यहोवा को समर्पित की जाए।”
\s5
\v 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 12 “जब तेरे अगुवे इस्राएलियों की जनगणना करें तब प्रत्येक पुरुष जिसकी गणना की गई है मुझे अपनी जीवन रक्षा का मूल्य चुकाए। यह इसलिए होगा कि जनगणना के समय तक उन पर कोई भी भयानक घटना नहीं घटी है।
\v 13 प्रत्येक पुरुष जिसकी गणना की जाए वह छः ग्राम चाँदी मुझे चढ़ाए। चाँदी का भार नापने के लिए वे पवित्र तम्बू के अधिकृत मापदण्ड के अनुसार नापें। यह चाँदी यहोवा के लिए भेंट होगी।
\v 14 तीस वर्ष के लगभग के सभी पुरुष जनगणना के समय मुझे यह चाँदी चढ़ाएँ।
\s5
\v 15 जब वे अपनी जीवन का मूल्य देंगे तो धनी लोग इस से अधिक नहीं देंगे और गरीब लोग इस से कम नहीं देंगे।
\v 16 तुम्हारे अगुवे, प्रजा से यह भेंट स्वीकार करके पवित्र तम्बू की सेवा करने वालों तक पहुँचा दें। तुम इस्राएली सुनिश्चित करना कि अगुवे यह चाँदी एकत्र करें और याद रखो कि तुम्हें यह देना है कि तुम जीवित रहो।”
\s5
\v 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 18 “अपने कुशल कारीगरों से पीतल की एक हौदी बनवा जिसको रखने के लिए उसमें आधार हो। उसे पवित्र तम्बू और वेदी के बीच रखकर पानी से भर देना।
\s5
\v 19 हारून और उसके पुत्र इस पानी से अपने हाथ-पैर धोएँ,
\v 20 तब वे पवित्र तम्बू में प्रवेश करें और वेदी पर भेंट चढ़ाने के लिए हाथ-पैर धोकर जाएँ। ऐसा करके वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे और मारे नहीं जाएँगे।
\v 21 वे मृत्यु से बचने के लिए अपने हाथ पैर धोकर जाएँ। वे और उनके वंशजों के पुत्र पीढ़ियों तक इस विधि का पालन करें।”
\s5
\v 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 23 लोगों से कहकर अति उत्तम सुगन्ध द्रव्य एकत्र करवा- छः किलो तरल गन्धरस, तीन किलो सुगन्धित दाल चीनी, तीन किलो सुगन्धित अगर और
\v 24 छः किलो अमलतास। इन वस्तुओं को नापने के लिए स्वीकृत बाटों का उपयोग करो।।
\v 25 एक कुशल अत्तार को नियुक्त करके निर्देश देना कि चार लीटर जैतून के तेल में इन सब वस्तुओं का मिश्रण तैयार करे। यह तेल पवित्र अभिषेक के लिए काम में लिया जाए।
\s5
\v 26 इस तेल से पवित्र तंबू, पवित्र सन्दूक,
\v 27 मेज और उससे सम्बन्धित उपयोग की सब वस्तुएँ, दीपदान और उससे सम्बन्धित उपयोग की सब वस्तुएँ, धूप जलाने की वेदी।
\v 28 बलि की वेदी और उससे सम्बन्धित सब वस्तुओं और हौदी और उसका आधार आदि सबका इसी तेल से अभिषेक किया जाए।
\s5
\v 29 अभिषेक द्वारा उन्हें मेरे लिए समर्पित करना जिससे कि वे केवल मेरे लिए अलग हो जाएँ। यदि कोई व्यक्ति या वस्तु जिसको स्पर्श करने की आज्ञा नहीं है, वह वेदी का स्पर्श करे तो उस मनुष्य या वस्तु का स्पर्श करने की अनुमति किसी को नहीं होगी।
\v 30 हारून और उसके पुत्रों का अभिषेक करना कि वे याजक होकर मेरी सेवा में समर्पित किए जाएँ।
\v 31 इस्राएलियों को निर्देश दे, ‘यह तेल मेरा विशेष तेल है जो पीढ़ियों तक काम में लिया जाएगा।
\s5
\v 32 इसे साधारण मनुष्यों के शरीर पर मत लगाना और न ही इन सब वस्तुओं को किसी और तेल में मिलाकर तैयार करना, यह तेल मेरे लिए आरक्षित है और तू इसे ज्यों का त्यों स्वीकार करे।
\v 33 जो ऐसा तेल किसी और उद्देश्य के लिए तैयार करे या इस तेल को याजकों के सामान किसी और पर लगाए तो वह व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में समाज से अवश्य अलग कर दिया जाए।’”
\s5
\v 34 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “किसी कुशल अत्तार की सहायता से सुगन्धित मसालों बोल (पौधे विशेष का रस), नखी (सीपी विशेष), कुन्दरू (एक पौधे विशेष का रस), और शुद्ध लोबान (पौधे का रस) आदि का मिश्रण बनवाकर
\v 35 उसमें शुद्धता के लिए कुछ नमक डालकर मेरे लिए अलग रखवा देना।
\v 36 इसका एक अंश कूट कर बारीक चूर्ण बनाना और उसे लेकर पवित्र तम्बू में पवित्र सन्दूक के सामने छिड़कना। इस धूप को मेरे लिए अलग मानना।
\s5
\v 37 इन द्रव्यों का मिश्रण तैयार करके कोई और अपने लिए धूप तैयार नहीं करे। यह धूप मुझ यहोवा के लिए समर्पित ठहरे।
\v 38 जो भी इस प्रकार की धूप इत्र के लिए काम में लेगा उसे मैं अपने लोगों से अवश्य अलग कर दूँगा।”
\s5
\c 31
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 मैंने यहूदा के गोत्र से हूर का पोता और ऊरी के पुत्र बसलेल को चुना है।
\s5
\v 3 उसमें मैंने अपना आत्मा डाला है और उसे हस्तकला की विशेष योग्यता प्रदान की है और उसे निपुर्णता से काम करने के योग्य बनाया है।
\v 4 वह सोने, चाँदी और पीतल के काम में निपुर्णता से तरह-तरह की बनावट तैयार कर सकता है।
\v 5 वह मणियों को तराश कर सोने में जड़ सकता है। वह लकड़ी पर नक्काशी कर सकता है और अन्य सब प्रकार की कारीगरी में निपुर्ण है।
\s5
\v 6 मैंने दान के गोत्र से अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके साथ काम करने के लिए नियुक्त किया है। मैंने अन्य पुरुषों को भी विशेष योग्यता प्रदान की है कि वे उन सब वस्तुओं को तैयार करें जिनकी आज्ञा मैंने तुझे दी है।
\v 7 ये सब वस्तुएँ हैं: पवित्र तम्बू का निर्माण, पवित्र सन्दूक और उसका ढक्कन, पवित्र तम्बू की और सब वस्तुएँ।
\v 8 मेज़ और उसके साथ काम में आने वाली सब वस्तुएँ, सोने का दीपदान और उसके उपयोग की सब वस्तुएँ, धूप जलाने की वेदी,
\v 9 बलि चढ़ाने की वेदी और उसके साथ उपयोग की सब वस्तुएँ और धोने के लिए पानी की हौदी और उसका आधार।
\s5
\v 10 इन सब वस्तुओं के साथ हारून और उसके पुत्रों के याजकीय सेवा के वस्त्र;
\v 11 अभिषेक का तेल और पवित्र स्थान के लिए सुखदायक सुगन्ध की धूप।
\s5
\v 12 कारीगर इन सब वस्तुओं को ठीक वैसा ही बनाएँ जैसा मैंने तुझे निर्देश दिया है।”
\v 13 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 14 इस्राएलियों से कह, ‘सब्त के दिन के बारे में मेरी आज्ञाओं को मानना और तुम इस दिन को मेरे लिए विशेष मानना। यदि कोई व्यक्ति सब्त के दिन को अन्य दिनों की तरह मानता है तो वह व्यक्ति अवश्य मार दिया जाना चाहिए और उसे अपने लोगों से अवश्य अलग कर दिया जाना चाहिए।
\v 15 तुम सप्ताह में छः दिन काम करना परन्तु सप्ताह का सातवाँ दिन पवित्र विश्राम का दिन हो जो मुझ यहोवा को समर्पित हो। जो मनुष्य सब्त के दिन में काम करे वह मार डाला जाए।
\s5
\v 16 तुम सब इस्राएलियों को सब्त के दिन का मान अवश्य रखना है और तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों को भी। मैं तुम्हारे लिए इसे अनिवार्य बनाता हूँ।
\v 17 सब्त का दिन तुम इस्राएलियों को और मुझे अपनी वाचा का स्मरण करा पाएगा क्योंकि मुझ यहोवा ने छः दिनों में आकाश और पृथ्वी को रचा और सातवें दिन रचने का कार्य समाप्त करके विश्राम किया था।
\s5
\v 18 जब यहोवा ने मूसा से सीनै पर्वत पर बात करना समाप्त किया। तब परमेश्वर ने उसे आदेश लिखे हुए दो पत्थर की पट्टियाँ दी जिस पर परमेश्वर ने अपनी उँगलियों से अपने नियमों को लिखा था।
\s5
\c 32
\p
\v 1 मूसा को उस पर्वत पर बहुत लम्बा समय लग गया। जब इस्राएलियों ने देखा कि मूसा पर्वत से नीचे नहीं उतरा, तब उन्होंने हारून के पास जाकर कहा, “हमारे लिए देवताओं को बना जो हमें इस यात्रा में आगे ले चले। हम नहीं जानते कि मूसा के साथ क्या हुआ है जो हमें मिस्र से निकाल के लाया था।”
\v 2 हारून ने उनसे कहा, “ठीक है। तुम एक काम करो। अपनी पत्नियों और संतानों से कहो कि वे अपनी सोने की बालियाँ निकाल कर मुझे दें।”
\s5
\v 3 इसलिए उन्होंने अपनी स्त्रियों की सोने की बालियाँ उतरवाकर हारून को दे दी।
\v 4 हारून ने सब सोना लेकर आग में पिघलाया और एक मूर्ति बनाकर उन्हें दी जो बछड़े जैसी दिखती थी। इस्राएलियों ने उस मूर्ति को देख कर कहा, “इस्राएल के लोगों, यह हमारा देवता है जो हमें मिस्र से बाहर लाया है।”
\s5
\v 5 हारून ने जब इस्राएलियों की प्रतिक्रिया देखी तब उसने बछड़े के आगे एक वेदी बना कर घोषणा की, “कल हम यहोवा के सम्मान में पर्व मनायेंगे।”
\v 6 इसलिए अगले दिन इस्राएली शीघ्र उठे और उस बछड़े की वेदी पर बलि चढ़ाने के लिए पशु ले आए कि होम-बलि चढ़ाएं। वे मेलबलि भी ले आए। उन्होंने भोजन खाया और मदिरापान किया और फिर उठकर अनुचित व्यवहार करने लगे।
\s5
\v 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “पर्वत से नीचे जा क्योंकि जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल कर ले आया है, वे भ्रष्ट हो गए हैं।
\v 8 वे मेरे बताए मार्ग से भटक गए है और मेरे आदेशों का पालन नहीं किया है। उन्होंने सोना पिघला कर एक मूर्ति को बनाया है और उसके सामने बलियाँ चढ़ा कर उसकी पूजा की है। वे कहते हैं, ‘यह इस्राएलियों का परमेश्वर है और यह ही है जो हमें मिस्र से निकाल कर बाहर लाया है।’
\s5
\v 9 मैं जानता हूँ कि वे हठीले हैं।
\v 10 मेरा क्रोध उन पर भड़क उठा है और मैं उन्हें नष्ट करने वाला हूँ इसलिए मुझे मत रोकना। मैं तुझे और तेरे वंशजों ही को एक महान जाति बनाऊँगा।”
\v 11 परन्तु मूसा ने अपने परमेश्वर, यहोवा से विनती की। उसने कहा, “हे यहोवा, अपनी प्रजा पर क्रोध न करें। ये वही लोग हैं जिन्हें आपने अपने महा-शक्ति से मिस्र से बचाया है।
\s5
\v 12 ऐसा मत करो कि मिस्रवासी कहें कि, ‘उनका परमेश्वर उन्हें हमारे देश से निकाल कर तो ले गए परन्तु इसलिए कि उन्हें पर्वतों में नष्ट करके उनसे पूरी तरह से हाथ धो ले! अपनी प्रजा के साथ ऐसा भयानक व्यवहार न करें जैसा आप करना चाहते हैं। ऐसा क्रोध मत करो और अपना विचार बदल दो।
\v 13 अपने दासों अब्राहम, इसहाक और याकूब को तो याद करो। आपने उनसे प्रतिज्ञा करके कहा था, ‘मैं तेरे वंशजों को आकाश के तारों के समान अनगिनत कर दूँगा।’ आपने यह भी तो कहा था, ‘मैं तेरे वंशजों को वह देश दूँगा जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की है। वह देश सदा के लिए उनका होगा।’”
\v 14 इसलिए यहोवा ने उनका भयानक अंत करने का विचार त्याग दिया। अर्थात वह नहीं किया जो उन्होंने करने के लिया कहा था।
\s5
\v 15 तब मूसा यहोवा के पास से निकल कर पर्वत के नीचे उतरा। उसके हाथ में परमेश्वर द्वारा लिखी गई आज्ञाओं की दो पत्थर की पट्टियाँ थी। परमेश्वर ने उन पट्टियों के दोनों ओर लिखा था।
\v 16 परमेश्वर ने स्वयं पत्थर की उन पट्टियों को खोदकर उन पर आज्ञाएँ लिखीं थी।
\s5
\v 17 यहोशू ने इस्राएलियों का शोर सुना। जब मूसा छावनी के निकट पहुँचा तब हारून ने मूसा से कहा, “छावनी में जो कोलाहल हो रहा है वह युद्ध के समान है।”
\v 18 मूसा ने हारून से कहा, “नहीं, यह युद्ध में विजय का शोर नहीं है। न ही यह युद्ध में पराजय का शोर है। मुझे तो यह गाने का सा सुनाई देता है।”
\s5
\v 19 छावनी के समीप पहुँच कर मूसा ने बछड़े की मूर्ति और लोगों का नाचना देखा तो वह बहुत क्रोधित हो गया और उसने पत्थर की वे पट्टियाँ पर्वत के नीचे फेंक दी जिससे वे टूट गई।
\v 20 तब मूसा ने सोने के उस बछड़े की मूर्ति को आग में पिघला दिया और ठंडा होने पर उसे पीस डाला और उसके चूर्ण को पानी में घोल कर इस्राएलियों को पिलाया।
\s5
\v 21 तब मूसा ने हारून से पूछा, “इन लोगों ने तेरे साथ क्या ऐसा किया था कि तू ने इनसे यह पाप करवाया।”
\v 22 हारून ने मूसा से कहा, “कृपा करके मुझ पर क्रोध न कर, मेरे प्रभु। तू जानता है कि ये लोग सदा गलत काम करने को तैयार रहते हैं।
\v 23 उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिए एक मूर्ति बना जो यात्रा में हमें आगे ले चले। जो मूसा हमें मिस्र देश से निकाल लाया है उसका क्या हुआ हम नहीं जानते।’
\v 24 इसलिए मैंने उनसे कहा, “तुम सब अपने कानों से सोने की बालियाँ उतार लाओ। उन्होंने अपनी सोने की बालियाँ लाकर मुझे दे दी। और मैंने उन्हें आग में डाल दिया तो बछड़े की यह मूर्ति निकल कर आई।”
\s5
\v 25 मूसा ने देखा कि हारून इस्राएलियों पर नियंत्रण नहीं रख पाया और कुछ ऐसा किया जिससे उनके शत्रु सोचेंगे कि वे मूर्ख थे।
\v 26 इसलिए वह छावनी के प्रवेश स्थान में खड़ा हो गया और पुकार कर कहा, “जो यहोवा का भक्त है, वह मेरे पास आ जाए।” यह सुन कर लैवी गोत्र के सब लोग उनके पास आ गए।
\v 27 मूसा ने उनसे कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है कि तुम अपनी-अपनी तलवार कमर से बाँध कर छावनी के इस द्वार से उस द्वार तक जाओ। हर एक सामने वाले को मार डालो। चाहे वह तुम्हारे भाई या मित्र या पड़ोसी ही क्यों न हों।”
\s5
\v 28 लेवियों ने मूसा की आज्ञा मानकर उस दिन तीन हजार लोगों को मार डाला।
\v 29 तब मूसा ने लेवियों से कहा, “आज तुम अपने पुत्रों और अपने भाइयों को मार कर यहोवा के विशेष सेवक बन गए हो। इसलिए यहोवा ने तुम्हें आशीष दी है।”
\s5
\v 30 अगले दिन मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “तुमने महापाप किया है। मैं यहोवा से बातें करने के लिए फिर से पर्वत पर चढूँगा। संभव है कि मैं तुम्हारे इस पाप की क्षमा के लिए उन्हें मना पाऊँ।”
\v 31 इसलिए मूसा ने पर्वत पर चढ़ कर यहोवा से कहा, “मैं बड़े दु:ख से स्वीकार करता हूँ कि इन लोगों ने बछड़े की मूर्ति बना कर उसकी पूजा की जो महापाप है।
\v 32 मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप उनका यह पाप क्षमा कर दें। यदि आप उन्हें क्षमा नहीं करते हैं तो मेरा नाम अपनी उस पुस्तक में से मिटा दें जिसमें आपने अपने लोगों के नाम लिखे हुए है।”
\s5
\v 33 यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं अपनी पुस्तक से उन्हीं लोगों के नाम मिटाऊँगा जिन्होंने पाप किया है।
\v 34 अब जाकर इस्राएलियों को उस स्थान में ले जा जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा है। याद रख कि मेरा स्वर्गदूत तेरी अगुआई करेगा परन्तु जिस समय मैं निर्णय ले लूँगा उस समय उन्हें उनके पाप का दण्ड दूँगा।”
\v 35 तब यहोवा ने उन्हें रोग ग्रस्त किया क्योंकि उन्होंने हारून से बछड़े की मूर्ति बनवाई थी।
\s5
\c 33
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस स्थान से निकल और उन लोगों के पास जा जिन्हें तू मिस्र से निकाल कर लाया है। उस देश को जा जिसकी प्रतिज्ञा मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की थी कि मैं उनके वंशजों को दूँगा।
\v 2 मैं अपना स्वर्गदूत तेरे आगे-आगे भेजूँगा। और उस देश से कनानियों, एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों को निकाल दूँगा।
\v 3 तुम उस देश में प्रवेश करोगे जो पशु-पालन और खेती के लिए एक अति उत्तम स्थान है। परन्तु मैं स्वयं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा। यदि मैं जाऊँगा तो इन हठीले लोगों को मार्ग में ही नष्ट कर दूँगा।
\s5
\v 4 यहोवा की यह बात सुन कर इस्राएली दु:खी हुए और उन्होंने अपने आभूषण उतार दिए।
\v 5 यहोवा मूसा से कह चुके थे, “इस्राएलियों से कह, ‘तुम हठीले लोग हो। यदि मैं एक पल भी तुम्हारे साथ चला तो तुम्हें मार डालूँगा। अपने अच्छे वस्त्रों को उतार दो कि पाप के कारण तुम्हारा दुःख दिखाई दे। तब मैं विचार करूँगा कि तुम्हे कैसे दण्ड देना है।’”
\v 6 सीनै पर्वत से निकलने के बाद इस्राएलियों ने अच्छे वस्त्र नहीं पहने।
\p
\s5
\v 7 इस्राएली जब भी यात्रा में अपनी छावनी डालते थे तब मूसा पवित्र तम्बू को छावनी से कुछ दूरी पर लगाता था। मूसा ने उस पवित्र तम्बू को “मिलापवाला तम्बू” कहा। जब कोई अपने बारे में यहोवा की इच्छा जानना चाहता था तब वह छावनी से निकल कर मिलापवाले तम्बू में जाता था।
\v 8 जब मूसा मिलापवाले तम्बू में जाता था तब सब इस्राएली अपने-अपने तम्बू के द्वार पर खड़े रहते थे और उसे तब तक देखते रहते थे जब तक कि वह मिलापवाले तम्बू में प्रवेश नहीं कर लेता था।
\v 9 और जब मूसा मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करता था तब बादल का खम्भा उतर कर तम्बू के द्वार पर खड़ा हो जाता था और यहोवा मूसा से बातें करते थे।
\s5
\v 10 जब इस्राएली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बादल के खम्भे को देखते तब वे सब अपने-अपने तम्बू के द्वार पर यहोवा को दण्डवत् करते।
\v 11 यहोवा मूसा से आमने-सामने बातें करते थे जैसे दो मित्र आपस में बातें करते हैं। उसके बाद मूसा छावनी में लौट आता था परन्तु उसका युवा सहायक नून का पुत्र यहोशू मिलापवाले तम्बू में ही रह जाता था।
\s5
\v 12 मूसा ने यहोवा से कहा, “यह सच है कि आपने मुझसे कहा, ‘इस्राएलियों को लेकर उस देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा परन्तु आपने मुझे यह नहीं बताया कि मेरे साथ किसको भेजोगे। और आपने यह कहा है कि आप मुझे अच्छी तरह से जानते है और मुझ से प्रसन्न है।
\v 13 यदि आप मुझसे प्रसन्न है तो मैं आपसे विनती करता हूँ कि मुझे अपनी योजना बताएँ जिससे कि मैं और गहराई से आपको जान सकूँ और प्रसन्न कर पाऊँ। कृपया याद रखें कि इस्राएली वे लोग है जिन्हें आपने अपने लोगों के रूप में चुना है।
\s5
\v 14 यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं तेरे साथ-साथ चलूँगा और तुझे विश्राम दूँगा।”
\v 15 मूसा ने यहोवा से कहा, “यदि आप मेरे साथ-साथ नहीं चलेंगे तो हमें इस स्थान से न जाने दें।
\v 16 आप मुझसे और अपनी प्रजा इस्राएल से प्रसन्न हैं तो इसका एकमात्र प्रमाण है कि आप हमारे साथ-साथ चलें। अगर आप हमारे साथ-साथ चलेंगे तो इससे प्रकट होगा कि हम पृथ्वी की सब जातियों से भिन्न हैं।”
\s5
\v 17 यहोवा ने मूसा से कहा, “तूने मुझसे जो मांगा है वह मैं तेरे लिए करूँगा क्योंकि मैं तुझे भलिभाँति जानता हूँ और तुझसे प्रसन्न हूँ।”
\v 18 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया मुझे अपनी पूरी शक्ति में दर्शन दें।”
\s5
\v 19 यहोवा ने उससे कहा, “मैं तुझ पर प्रकट करूँगा कि मैं कैसा महान और प्रतापी हूँ। और तुझे स्पष्ट बताऊँगा कि मेरा नाम यहोवा है। मैं अपने सब चुने हुए लोगों के प्रति अनुग्रहकारी और करूणामय हूँ।
\v 20 परन्तु मैं तुझे अपना मुख नहीं देखने दूँगा क्योंकि जो मेरा मुख देखे वह मर जाएगा।
\s5
\v 21 देख, मेरे निकट यहाँ एक स्थान है, तू उस बड़ी चट्टान पर खड़ा हो जा।
\v 22 जब मैं अपने पूरी शक्ति से तेरे पास से निकलूँगा तब मैं तुझे उस चट्टान की दरार में रखूँगा और गुजरते समय मैं तुझे अपने हाथ से ढाँकूँगा।
\v 23 और जब मैं अपना हाथ हटाऊँगा तब तू मेरा मुख नहीं देख पाएगा परन्तु मेरी पीठ देखेगा।
\s5
\c 34
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू पत्थरों में से दो पट्टियाँ काट ले जो उन पट्टियों के समान हों जिन्हें तूने तोड़ दिया है। मैं उन पर वहीं आज्ञाएँ फिर से लिखूँगा।
\v 2 कल सुबह तैयार होकर इस सीनै पर्वत पर चढ़ कर आना कि मैं तुझसे बातें करूँ।
\s5
\v 3 अपने साथ किसी और को मत आने देना। मैं नहीं चाहता कि अन्य कोई भी पर्वत पर चढ़े। पर्वत की तलहटी में किसी गाय-बैल या भेड़-बकरी को चरने मत देना।”
\v 4 इसलिए मूसा ने पत्थरों में से दो पट्टियाँ काटी और अगले दिन सुबह तैयार होकर उन पट्टियों को उठाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार सीनै पर्वत पर चढ़ गया।
\s5
\v 5 तब यहोवा बादल के खम्भे में आकर वहाँ मूसा के पास खड़ा हो गया और अपना नाम ‘यहोवा’ मूसा के सामने घोषित किया।
\v 6 यहोवा उसके आगे से गुज़रा और कहा, “मैं परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं मनुष्यों पर सदैव करूणा और दया दर्शाता हूँ। मैं शीघ्र क्रोध नहीं करता हूँ। मैं मनुष्यों से सच्चा प्रेम करता हूँ और उनसे प्रतिज्ञा करके पूरी करता हूँ ।
\v 7 मैं हजारों पीढ़ियों तक मनुष्यों से प्रेम करता हूँ। मैं उनको सब प्रकार के पापों से क्षमा करता हूँ परन्तु दोषी को सजा भी देता हूँ। मैं उन्हें ही नहीं उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी को भी दण्ड देता हूँ।”
\s5
\v 8 तब मूसा ने भूमि पर गिर कर यहोवा को दण्डवत् किया।
\v 9 उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मैं आपसे विनती करता हूँ कि हमारे साथ चलें और हमें हमारे सब पापों की क्षमा प्रदान करें और हमें सदा के लिए अपनी प्रजा स्वीकार करें।”
\s5
\v 10 यहोवा ने मूसा को उत्तर दिया, “मैं तेरे लोगों से अर्थात इन इस्राएलियों से वाचा बाँधूंगा। उनकी आंखों के सामने मैं ऐसे महान आश्चर्य के काम करूँगा जैसे इस पृथ्वी पर न तो कभी हुए है और न ही किसी जाति ने कभी देखे हैं। तुम में से हर एक जन उन सामर्थी कामों को देखेगा जो मैं करूँगा। मैं तुम्हारे बीच ऐसे काम करूँगा जो मेरे नाम का भय उत्पन्न करेंगे।
\v 11 आज मैं तुम्हें जो आज्ञाएँ देता हूँ उन्हें मानना। मैं एमोरियों, कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों को निकालने पर हूँ।
\s5
\v 12 परन्तु तुम सावधान रहो कि जिस देश में तुम प्रवेश करने पर हो वहाँ के निवासियों से किसी भी प्रकार का समझौता मत करना क्योंकि ऐसा करके तुम भी उनके जैसी बुराई में पड़ जाओगे जो फन्दे में फँसने जैसा होगा।
\v 13 तुम उनकी वेदियों को नष्ट कर देना और उनकी मूर्तियों को तोड़ देना और उन खम्भों को गिरा देना जो अशेरा की पूजा के हैं।
\v 14 तुम केवल मेरी ही आराधना करोगे अन्य किसी भी देवी-देवता की पूजा नहीं करोगे क्योंकि मैं यहोवा अपना सम्मान चाहता हूँ। मैं किसी और देवी-देवता की पूजा करने की अनुमति तुम्हें नहीं देता हूँ। उस देश में किसी भी जाति के साथ शान्ति की वाचा मत बाँधना।
\s5
\v 15 जब वे अपने देवी-देवताओं की पूजा करें और उन्हें बलि चढ़ाएँ तब तुम्हें आमंत्रित करें तो उनका निमंत्रण स्वीकार मत करना क्योंकि उनके साथ तुम उसके देवी-देवताओं को चढ़ाया हुआ भोजन खाओगे और मेरे साथ सच्चे नहीं रहोगे। तुम ऐसे हो जाओगे जैसे व्यभिचार करने वाली स्त्रियाँ जो अपने पति के साथ सच्ची नहीं रहती हैं।
\v 16 यदि तुम अपने पुत्रों के लिए उनकी पुत्रियाँ लाओगे तो वे मूर्ति पूजा करेंगी और तुम्हारे पुत्रों से भी मूर्ति पूजा करवायेंगी।
\v 17 आराधना के लिए धातु पिघला कर मूर्तियाँ मत बनाना।
\s5
\v 18 प्रतिवर्ष अाबीब के महीने में खमीर-रहित रोटी का पर्व मनाना क्योंकि यह मेरी आज्ञा है। पर्व के उन सात दिनों में तुम मेरी आज्ञा के अनुसार खमीरी रोटी मत खाना क्योंकि उस महीने में तुम मिस्र से बाहर आए थे।
\s5
\v 19 तुम्हारे पहले पुत्र और तुम्हारे पशुओं के पहले नर बच्चे सब मेरे हैं।
\v 20 तुम्हारे गधों के पहले बच्चे भी मेरे हैं। परन्तु उनके स्थान में मुझे एक मेम्ना बलि चढ़ा कर तुम उस गधे को बचा सकते हो। यदि तुम ऐसा न करो तो उनकी गर्दन तोड़ कर उनको मार देना। तुम अपने पहले पुत्रों के लिए भी बलि चढ़ा कर उनको छुड़ाना। तुम जब-जब मेरी आराधना के लिए आओ तब-तब भेंट लेकर आना।
\s5
\v 21 सप्ताह में छः दिन तुम काम करोगे परन्तु सातवें दिन तुम विश्राम करोगे, चाहे तुम खेत जोतो या फसल काटो, सातवाँ दिन विश्राम का ही होगा।
\v 22 प्रति वर्ष कटनी के समय पहली कटनी का पर्व मनाना और जब तुम्हारी अन्न की कटनी पूरी हो या फलों की फसल का अंतिम भाग इकट्ठा हो जाए तब समापन का पर्व मनाना।
\s5
\v 23 वर्ष में तीन बार सब पुरूष मेरी आराधना के लिए एकत्र होना क्योंकि मैं इस्राएलियों का परमेश्वर यहोवा हूँ।
\v 24 मैं उस देश में निवास करने वाली जातियों को निकाल दूँगा और तुम्हारी सीमाओं को बढ़ाऊँगा। जब तुम वर्ष में तीन बार अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना के लिए एकत्र होकर पर्व मनाओगे तब कोई तुम्हारे देश को जीतने का प्रयास नहीं करेगा।
\s5
\v 25 जब तुम मेरे लिए पशु-बलि चढ़ाओ तब खमीरी रोटी कभी मत चढ़ाना। फसह के पर्व में जब तुम मेम्ने की बलि चढ़ाओ तब अगले दिन सुबह तक उसका माँस मत रखना।
\v 26 मेरे पवित्र तम्बू में तुम्हारी फसल की कटनी का प्रथम अंश चढ़ाना अनिवार्य है। जब तुम किसी पशु के बच्चे को मारो तब उसकी माता के दूध में उसे मत पकाना।”
\s5
\v 27 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “मैंने जो आज्ञाएँ तुझे दी हैं, उन्हें लिख ले। इन आज्ञाओं के माध्यम से मैंने तेरे साथ और इस्राएलियों के साथ वाचा बाँधी है।”
\v 28 मूसा उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात यहोवा के साथ रहा। उस समय उसने न तो कुछ खाया और न ही कुछ पीया। उसने यहोवा की वाचा की दस आज्ञाओं को पत्थर की पट्टियों पर लिखा।
\s5
\v 29 जब मूसा हाथ में दस आज्ञाओं की वे दो पट्टियाँ लिए हुए पर्वत पर से उतरा तब उसे अपने चेहरे की चमक का ज्ञान नहीं था।
\v 30 जब हारून और इस्राएलियों ने मूसा को देखा तब वे उसके चेहरे की चमक को देख कर आश्चर्यचकित हो गए और उसके निकट आने से डर गए।
\v 31 परन्तु मूसा ने हारून और इस्राएली प्रधानों को बुलाया और उनसे बातें की।
\s5
\v 32 उसके बाद सब इस्राएली मूसा के सामने एकत्र हुए और मूसा ने उन्हें सीनै पर्वत पर दिए गए यहोवा के आदेश सुनाए।
\v 33 जब मूसा ने इस्राएलियों से बात करना समाप्त किया तब उसने अपने चेहरे पर पर्दा डाल लिया।
\s5
\v 34 परन्तु जब मूसा मिलाप वाले तम्बू में यहोवा से बातें करने जाता था तब वह अपने चेहरे पर से पर्दा हटा लिया करता था। और बाहर आकर वह इस्राएलियों को परमेश्वर के आदेश सुना दिया करता था।
\v 35 इस्राएली देखते थे कि मूसा का मुख अब भी चमकता था इसलिए वह फिर से अपने चेहरे पर पर्दा डाल लेता था। और जब तक वह यहोवा से बातें करने मिलापवाले तम्बू में प्रवेश न करता, अपने चेहरे पर पर्दा डाले रहता था।
\s5
\c 35
\p
\v 1 मूसा ने इस्राएलियों को इकट्ठा करके उनसे कहा, “यहोवा ने तुम्हारे लिए जो आज्ञाएँ दी है, वे हैं:
\v 2 सप्ताह के छः दिन तुम सब काम करोगे परन्तु सातवें दिन तुम विश्राम करोगे। वह दिन परमेश्वर को समर्पित एक पवित्र दिन होगा। उस दिन काम करने वाला अवश्य मार डाला जाए।
\v 3 विश्राम दिवसों पर अपने घरों में आग भी नहीं जलाना।”
\s5
\v 4 मूसा ने इस्राएलियों से यह भी कहा, “यहोवा की आज्ञा यह भी है।
\v 5 तुम सब यहोवा को अपनी इच्छा से भेंट चढ़ाओगे। भेंट में सोना, चाँदी, पीतल,
\v 6 उत्तम मलमल, नीला, बैंजनी और लाल बुना हुआ कपड़ा, बकरी के बाल का वस्त्र,
\v 7 भेड़ की लाल रंगी खाल, सुइसों का चमड़ा, बबूल की लकड़ी
\v 8 दीपकों के लिए तेल, अभिषेक के तेल के लिए सुगन्धित द्रव्य और मनमोहक सुगन्ध के लिए भी सुगन्धित द्रव्य,
\v 9 याजक के एपोद और सीना-बन्द के लिए सुलैमानी मणि और अन्य मणि।
\s5
\v 10 तुम्हारे बीच जितने भी कुशल कारीगर हैं वे यहोवा की आज्ञा की वस्तुओं को तैयार करने के लिए सामने आ जाएँ,
\v 11 अर्थात तम्बू और उसके पर्दे, उसके बन्ध, उसके चौखटे, उसकी बल्लियाँ, उसके खम्भे और आधारः
\v 12 पवित्र सन्दूक और उसे उठाने के लिए बल्लियाँ और उसका ढक्कन, पवित्र स्थान को परमपवित्र स्थान से विभाजित करने वाला पर्दा।
\s5
\v 13 कारीगरों ने मेज़ और उसको उठाने के लिए बल्लियाँ और मेज से सम्बन्धित सब वस्तुएँ, परमेश्वर के लिए भेंट की रोटीयाँ आदि सब तैयार कीं;
\v 14 दीपदान, उसकी देखरेख का सामान और तेल;
\v 15 धूप जलाने की वेदी और उसे उठाने के लिए बल्लियाँ; अभिषेक का तेल और मनमोहक सुगन्ध की धूप; पवित्र तम्बू में प्रवेश द्वार का पर्दा;
\v 16 होम-बलि की वेदी और उसकी पीतल की जाली, वेदी को उठाने के बल्लियाँ और उससे सम्बन्धित सब उपकरण; हौदी और उसका आधार आदि सब तैयार करें।
\s5
\v 17 कारीगर आँगन के पर्दे उनके खम्भे और खम्भों के आधार; आँगन के प्रवेश द्वार के पर्दे;
\v 18 पवित्र तम्बू के लिए खूंटे और रस्सियाँ;
\v 19 और हारून और उसके पुत्रों के लिए पवित्र स्थान में सेवा के लिए गौरवशाली वस्त्र भी तैयार करें।”
\s5
\v 20 तब सब इस्राएली अपने-अपने तम्बू में लौट गए।
\v 21 जिस-जिस के मन में यहोवा को भेंट देने की इच्छा उत्पन्न हुई उस-उस ने पवित्र तंबू, अनुष्ठानों में उपयोगी साधनों और याजकों के पवित्र वस्तुओं के निर्माण में आवश्यक वस्तुएँ भेंट की।
\v 22 सब स्त्री-पुरुषों ने अपनी इच्छा से सोने के आभूषण, बालियाँ, हार और सोने के अन्य सामान लाकर यहोवा को समर्पित कर दिए।
\s5
\v 23 जिन लोगों के पास बुने हुए नीले, बैंजनी और लाल कपड़े थे या उत्तम मलमल के कपड़े या बकरी के बालों के कपड़े या लाल रंग से रंगी भेड़ की खाल या सुइसों की खाल थी लेकर आए।
\v 24 जिनके पास चाँदी और पीतल था वे भी यहोवा को अर्पित करने के लिए वह सब ले आए। जिनके पास बबूल की लकड़ियाँ थी कि यहोवा की आराधना में काम आए, वे लकड़ियाँ भी ले आए।
\s5
\v 25 जो स्त्रियाँ कपड़ा बुनने में कुशल थी वे हाथ से तैयार मलमल का बारीक धागा, और नीला, बैंजनी और लाल ऊन ले आईं।
\v 26 जिन स्त्रियों में इच्छा थी उन्होंने बकरी के बालों से धागा काता।
\s5
\v 27 प्रधान हारून के याजकीय वस्त्र के लिए सुलैमानी पत्थर और मणि ले आए कि उसके एपोद और सीना-बन्द में जड़े जाएँ।
\v 28 वे मनमोहक सुगन्ध की धूप तैयार करने के लिए सुगन्धित द्रव्य भी लेकर आए। वे दीपकों के लिए और अभिषेक तेल तैयार करने के लिए और धूप में डालने के लिए जैतून का तेल भी लाए।
\v 29 इस्राएल के जितने भी स्त्री-पुरुषों के मन में उत्साह था, इन सब वस्तुओं को ले आए जिनकी आज्ञा परमेश्वर यहोवा ने मूसा को दी थी उसका कार्य पूरा हो।
\s5
\v 30 मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “ध्यान से सुनो। परमेश्वर ने हूर के पोते, ऊरी के पुत्र बसलेल को यहूदा के गोत्र में से चुन लिया है।
\v 31 यहोवा ने उसमें अपना आत्मा दिया है और उसे एक कुशल कारीगर की योग्यता और ज्ञान से परिपूर्ण किया है।
\v 32 वह सोने, चाँदी और पीतल की अति उत्तम कारीगरी कर सकता है।
\v 33 वह मणियों को तराशकर छोटे से छोटे जड़ने के काम में निपुण है। वह लकड़ी पर भी नक्काशी करने में कुशल है और सब प्रकार की कारीगरी में वह निपुण है।
\s5
\v 34 परमेश्वर ने उसे और दानवंशी अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को अपनी कला अन्यों को सिखाने की भी योग्यता प्रदान की है।
\v 35 यहोवा ने उन्हें शिल्पकारी के प्रत्येक काम में निपुणता प्रदान की है। जैसे कलाकृत्तियाँ बनाना, बारीक श्वेत मलमल बुनना, नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई करना और सनी का वस्त्र तैयार करना। वे नाना प्रकार की हस्तकला तैयार कर सकते है।
\s5
\c 36
\p
\v 1 बसलेल और ओहोलीआब उन सब पुरुषों को साथ लेकर जिन्हें यहोवा ने हस्तकौशल में निपुणता प्रदान की है, पवित्र तम्बू के निर्माण कार्य को पूरा करेंगे। इन लोगों ने यहोवा के द्वारा दिए गए सब निर्देशों का पालन किया।
\s5
\v 2 तब मूसा ने बसलेल, ओहोलीआब और अन्य सब निपुण हस्तकारों को, जिन्हें यहोवा ने प्रवीणता प्रदान की थी और जिनमें ऐसी इच्छा थी, बुलवाया।
\v 3 और उन्हें पवित्र तम्बू बनाने के लिए यहोवा ने अर्पित सब वस्तुएँ दे दी। लोग तो फिर भी प्रतिदिन सुबह बहुत अधिक भेंटे लेकर आ रहे थे।
\v 4 अन्त में पवित्र तम्बू का निर्माण करने वाले कारीगर जिन्हें यहोवा द्वारा कार्य सौंपे गए थे वे मूसा के पास आए।
\s5
\v 5 उन्होंने मूसा से कहा, “यहोवा की आज्ञा के अनुसार हमें जो कार्य सौंपा गया है उसमें सामान आवश्यकता से अधिक आ गया है।”
\v 6 तब मूसा ने पूरी छावनी में घोषणा करवा दी, “पवित्र तम्बू निर्माण के लिए अब और भेंट लाने की आवश्यकता नहीं है।” यह सुनकर इस्राएलियों ने भेंट लाना बन्द कर दिया।
\v 7 अब तक इस्राएलियों ने जितना सामान दिया था वह निर्माण के लिए आवश्यकता से अधिक था।
\s5
\v 8 कारीगरों में जो सबसे अधिक कुशल कारीगर थे, उन्होंने पवित्र तम्बू बनाया। उन्होंने उत्तम मलमल की सात पट्टियों पर सावधानीपूर्वक नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई करके पंखोंवाले प्राणियों के चित्र बनाए। यह सब बसलेल द्वारा बनाया गया था।
\v 9 मलमल की प्रत्येक पट्टी 12.8 मीटर लंबी और 1.8 मीटर चौड़ी थी।
\v 10 बसलेल और उसके लोगों ने इन पाँच पट्टियों को जोड़कर एक पर्दा बनाया और अन्य पाँच पट्टियों को जोड़कर दूसरा पर्दा बनाया।
\s5
\v 11 प्रत्येक पर्दे के लिए बसलेल और उसके लोगों ने नीले कपड़े के फीते बनाकर प्रत्येक पर्दे के बाहरी सिरे पर लगाए।
\v 12 उन्होंने एक पर्दे पर पचास फीते और दूसरे पर्दे के बाहरी सिरे पर पचास फीते लगाए।
\v 13 इन दोनों पर्दों को जोड़ने के लिए उन्होंने सोने के बन्धन लगाए। इस प्रकार पवित्र तम्बू भीतर से ऐसा दिखाई देता था कि वह एक ही है।
\s5
\v 14 बसलेल और उसके लोगों ने बकरी के बाल से बनाए गए ग्यारह कपड़ों से एक आवरण तैयार किया।
\v 15 प्रत्येक भाग 18.3 मीटर लंबा और 1.8 मीटर चौड़ा था।
\v 16 ऐसे पाँच भागों को जोड़कर एक आवरण तैयार किया गया और छः भागों द्वारा दूसरा आवरण तैयार किया गया।
\v 17 उन्होंने नीले कपड़े से एक सौ फीते बना कर एक आवरण के बाहरी सिरे पर पचास फीते सिले और दूसरे आवरण के बाहरी सिरे पर पचास फीते सिले।
\s5
\v 18 बसलेल और उसके लोगों ने पीतल के पचास अाँकड़े बना कर दोनों आवरणों को जोड़ दिया। इस प्रकार एक समूचा आवरण तैयार हो गया।
\v 19 पवित्र तम्बू के लिए दो आवरण और तैयार किए गए। एक लाल रंगे हुए खालों से और उसके ऊपर का दूसरा आवरण बकरी की खालों के चमड़े से बनाया गया।
\s5
\v 20 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी के 48 चौखटे भी बनाए और पवित्र तम्बू के आवरण के लिए उन्हें खड़ा किया।
\v 21 प्रत्येक चौखटा 4.6 मीटर लम्बा और 0.7 मीटर चौड़ा था। उन्होंने
\v 22 प्रत्येक चौखट के नीचे दो उभार जो नीचे आधार से जोड़े जाने थे।
\v 23 उन कुशल कारीगरों ने पवित्र तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस चौखट बनाए।
\s5
\v 24 बसलेल और उसके लोगों ने चाँदी के चालीस आधार बनाए कि उन चौखटों को रोकें- प्रत्येक चौखटे के लिए दो आधार। हर एक चौखटे के उभार इन आधारों में बैठाए जाते थे।
\v 25 इसी प्रकार उन्होंने पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के लिए भी बीस चौखट तैयार किए।
\v 26 और उनके लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाए- प्रत्येक के दो आधार।
\s5
\v 27 पवित्र तम्बू के पिछले भाग- पश्चिम की ओर, बसलेल और उसके लोगों ने छः चौखट तैयार किए।
\v 28 उन्होंने दो और चौखट बनाए जो पवित्र तम्बू के पिछले भाग के कोनों को दृढ़ता प्रदान करने के लिए थे।
\s5
\v 29 कोने में लगने वाले ये दोनों ढांचे नीचे तो एक दूसरे से अलग थे परन्तु ऊपर आपस में जुड़े थे। दोनों कोनों के चौखटों में से प्रत्येक के ऊपर बसलेल और उसके लोगों ने आड़ी डंडियाँ लगाने के लिए सोने के छल्ले लगाए थे।
\v 30 इस प्रकार, पवित्र तम्बू पिछले भाग के लिए आठ चौखट थी जिनमें से प्रत्येक के दो आधार थे अर्थात कुल सोलह आधार हुए तैयार की। उनमें से पाँच पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के चौखटों के लिए थीं,
\s5
\v 31 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से पन्द्रह आड़ी डंडियाँ बनाईं जिनमें से पांच दक्षिणी ओर के लिए और पवित्र तम्बू के पिछले भाग की चौखटों के लिए पांच थीं।
\v 32 पाँच दक्षिणी ओर के लिए और पवित्र तम्बू के पिछले भाग की चौखटों के लिए पाँच थीं।
\v 33 कारीगरों ने पवित्र तम्बू के उत्तरी दक्षिणी और पश्चिमी भाग के लिए आड़ी डंडियाँ बनाकर उन्हें चौखटों के बीच जोड़ा। दो लम्बी आड़ी डंडियाँ पवित्र तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगी थीं और पश्चिमी ओर की आड़ी डंडियाँ तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगी थीं।
\v 34 कारीगरों ने चौखटों को सोने से मढ़ दिया और खम्भों पर सोने के छल्ले लगा दिए और उन छल्लों में आड़ी डंडियाँ डाल दीं उन डंडियों को भी सोने से मढ़ दिया।
\s5
\v 35 बसलेल और उसके लोगों ने बारीक श्वेत मलमल का एक पर्दा भी बुना और उस पर नीले, बैंजनी और लाल ऊन से पंखों वाले प्राणियों की छवि की कढ़ाई की।
\v 36 उन्होंने बबूल की लकड़ी की उन चार बल्लियों पर जो सोने से मढ़े हुई थीं, पर्दे को लटकाया और प्रत्येक डंडे को चाँदी के आधार पर टिकाया।
\s5
\v 37 बसलेल और उसके लोगों ने पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के लिए भी एक पर्दा बनाया। उन्होंने उसे मलमल का बनाया और एक कुशल बुनकर ने उस पर नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई की।
\v 38 इस पर्दे को रोकने के लिए उन्होंने बबूल की लकड़ी के पाँच खंभे खड़े किए और उन पर सोने के आँकड़े जड़े। इन खंभों और उनकी छड़ियों को भी सोने से मढ़ा गया और उनके आधार पीतल से बनाए गए।
\s5
\c 37
\p
\v 1 तब बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से पवित्र सन्दूक बनाया जिसकी लम्बाई 1.1 मीटर और चौड़ाई 0.75 मीटर और ऊँचाई 0.75 मीटर थी।
\v 2 उस सन्दूक को उन्होंने भीतर और बाहर सोने से मढ़ दिया और उसके ऊपरी सिरे पर सोने की झालर लगाई।
\v 3 उस सन्दूक के पायों पर सोने के चार छल्ले लगाए- दो छल्ले सन्दूक की एक ओर और दो छल्ले दूसरी ओर।
\s5
\v 4 उन्होंने बबूल की लकड़ी के दो बल्लियाँ बनाकर उन पर सोना मढ़ा।
\v 5 और पवित्र सन्दूक की दोनों ओर लगाए गए छल्लों में उन्हें डाल दिया जिससे कि लेवी सन्दूक को उन बल्लियों के आधार पर उठाया करें।
\v 6 उस पवित्र सन्दूक के लिए उन्होंने एक ढक्कन भी बनाया। वह भी 1.0 मीटर लम्बा और 0.75 मीटर चौड़ा था।
\s5
\v 7 बसलेल और उसके लोगों ने सोना पीट कर दो पंख वाले प्राणी तैयार किए कि पवित्र सन्दूक के ढक्कन के दोनों सिरों पर एक-एक प्राणी रखा जाए।
\v 8 उन्होंने सन्दूक के एक सिर पर एक प्राणी और दूसरे सिरे पर दूसरा प्राणी इस प्रकार रख कर जोड़ा कि वे ढक्कन से जुड़े दिखते थे।
\v 9 उन्होंने उन पंख वाले प्राणियों को इस प्रकार जड़ा कि उनके पंख एक दूसरे का स्पर्श करते हुए ढक्कन पर छाए हुए थे और दोनों प्राणियों का मुख एक दूसरे को आमने-सामने ढक्कन के केन्द्र को देखते हुए थे।
\s5
\v 10 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से एक मेज भी बनाई जिसकी लम्बाई 1.0 मीटर और चौड़ाई 0.5 मीटर और ऊँचाई 0.75 मीटर की थी।
\v 11 उन्होंने उस मेज पर शुद्ध सोना चढ़ाया और उस पर सोने का झालर लगाया।
\v 12 उसके चारों ओर आठ सेंटीमीटर चौड़ा एक घेरा बना कर उस पर भी सोने का झालर लगाया।
\v 13 उस मेज के चारों कोनों पर पायों में उन्होंने सोने के छल्ले लगाए।
\s5
\v 14 बसलेल के लोगों ने उन छल्लों को मेज़ पर घेरे के निकट लगाया।
\v 15 उन्होंने बबूल की लकड़ी की दो बल्लियाँ भी बनाई और उन पर सोना चढ़ा दिया और उन बल्लियों को छल्लों में डाल दिया कि मेज उठाने का काम दें।
\v 16 मेज के उपयोगी उपकरण भी शुद्ध सोने से बनाए गए- थालियाँँ, गिलास, घड़े और कटोरे जिनसे याजक यहोवा के लिए मदिरा का अर्घ चढ़ायेंगे।
\s5
\v 17 बसलेल और उसके लोगों ने शुद्ध सोने का दीपदान भी बनाया। उसका आधार और बल्लियाँ सोने के पिंड को पीट कर बनाए गए थे। तेल के लिए कटोरे और फूलों की कलियों और दीपदान की भुजाओं को सजाने के लिए पंखुड़ियाँ, आधार और डंडी सब एक ही सोने के पिंड को पीट कर बनाए गए थे।
\v 18 दीपदान की छः भुजाएँ थी। डंडी की एक ओर तीन और दूसरी ओर तीन।
\v 19 प्रत्येक भुजा पर बादाम के फूलों के समान रचनाएँ थी। उन पर भी फूलों की कलियाँ और पंखुड़ियाँ बनाई गई थी।
\s5
\v 20 दीपदान की बल्लियों पर सोने की चार कटोरियाँ थी। वे भी बादाम के फूलों जैसी दिखाई देती थी। प्रत्येक में फूलों की कलियाँ और पंखुड़ियाँ थी।
\v 21 दोनों ओर, प्रत्येक भुजा के नीचे निकली हुई एक फूल की कली थी।
\v 22 ये सब फूल की कलियाँ, भुजाएँ और डालियाँ एक ही सोने के पिंड को पीट कर बनाई गई थी।
\s5
\v 23 बसलेल और उसके लोगों ने तेल डालने के लिए सात कटोरियाँ भी बनाई। जली हुई बत्तियाँ निकालने के लिए सोने की चिमटियाँ और जली हुई बत्तियाँ डालने के लिए तश्तरियाँ भी सोने की बनाई गई।
\v 24 दीपदान और उससे संबंधित उपकरणों को बनाने में 33 किलो शुद्ध सोना काम में लिया गया था।
\s5
\v 25 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से धूप जलाने की वेदी बनाई जो चौकोर थी जिसकी भुजाएँ 0.5 मीटर की और ऊँचाई 1.0 मीटर की थी जिसके प्रत्येक कोने पर सींग की आकृति के उभार थे। ये सींग वेदी की लकड़ी से ही तराशे गए थे।
\v 26 उन्होंने वेदी का ऊपरी भाग को, चारों ओर को और सींगों को सोने से मढ़ा। वेदी के ऊपरी सिरे पर चारों ओर सोने की झालर लगाई गई।
\s5
\v 27 वेदी को उठाने के लिए बसलेल और उसके साथियों ने दो सोने के छल्ले बनाकर झालर के नीचे, एक ओर एक छल्ला और दूसरी ओर दूसरा छल्ला लगाया। वेदी को उठाने के लिए इन सोने के छल्लों में बल्लियाँ डाली गईं।
\v 28 ये बल्लियाँ बबूल की लकड़ी से बनाई गईं और उन पर सोना चढ़ाया गया।
\v 29 उन्होंने अभिषेक के लिए पवित्र तेल और सुखदायक सुगंध की शुद्ध धूप भी तैयार की। एक कुशल अत्तार ने धूप तैयार की।
\s5
\c 38
\p
\v 1 बसलेल और उसके लोगों ने होम-बलि करने की वेदी बबूल की लकड़ी से बनाई। वह चौकोर थी, 2.33 मीटर की प्रत्येक भुजा। उसकी ऊँचाई 0.4 मीटर की थी।
\v 2 उसके प्रत्येक कोने पर एक सींग तराशा गया जो उसकी लकड़ी में से ही बनाया गया था जिससे वेदी बनाई गई थी। उस वेदी को पीतल से मढ़ा गया था।
\v 3 उन्होंने पशु-बलि की राख उठाने के लिए तसले भी बनाए और राख साफ करने के लिए बेलचे बनाए। माँस को पकाने के पात्र और पलटने के लिए काटे भी बनाए और कोयले के लिए बाल्टियाँ बनाई। यह सब वस्तुएँ पीतल से बनाई गई थी।
\s5
\v 4 जलती हुई लकड़ी और कोयले के लिए जाली भी बनाई गई। जिसे वेदी के चारों ओर के घेरे के नीचे लगाया गया जो वेदी के भीतर आधी ऊँचाई पर लगाई गई थी।
\v 5 वेदी को उठाने के लिए बल्लियाँ डालने के छल्ले भी लगाए जो वेदी के प्रत्येक कोने पर लगे।
\s5
\v 6 बल्लियाँ बबूल की लकड़ी की थी जिन पर पीतल चढ़ाया गया था।
\v 7 इन बल्लियों को वेदी के दोनों ओर के छल्लों में डाला गया कि वेदी उठाई जा सके। वेदी एक खुले सन्दूक के समान थी और बबूल के तख्तों से बनी थी।
\s5
\v 8 बसलेल के लोगों ने स्नान की हौदी और उसके आधार को पीतल से बनाया। यह पीतल पवित्र तम्बू के द्वार पर सेवारत स्त्रियों के दर्पणों का था।
\s5
\v 9 पवित्र तम्बू के चारों ओर बसलेल और उसके लोगों ने उत्तम श्वेत मलमल का आँगन भी बनाया। दक्षिणी ओर का पर्दा 45.75 मीटर लंबा था।
\v 10 पर्दे को रोकने के लिए पीतल के बीस खंभे बनाए गए जिनके आधार भी पीतल के थे, प्रत्येक खंभे का एक आधार था। पर्दों को खंभों पर बान्धने के लिए चाँदी के आँकड़े और धातु की बल्लियाँ चाँदी चढ़ाए हुए थे।
\s5
\v 11 उत्तरी ओर के लिए भी वैसे ही पर्दे, खंभे, आधार और आँकड़े बनाए गए।
\v 12 आँगन के पश्चिमी ओर 23.0 मीटर लम्बा पर्दा बनाकर लगाया गया और उसे रोकने के लिए दस खंभे और खंभों के दस आधार भी बनाए गए। उनके लिए भी चाँदी के आँकड़े और चाँदी से मढ़ी धातु की छड़ें थीं।
\s5
\v 13 पूर्वी ओर जहाँ प्रवेश द्वार था, आँगन 23.0 मीटर चौड़ा था।
\v 14 प्रवेश द्वार की एक ओर बसलेल और उसके लोगों ने लगभग सात मीटर चौथा पर्दा बनवाया जो तीन खंभों और तीन आधारों पर डला हुआ था।
\v 15 प्रवेश द्वार के बाहर भी उन्होंने सात मीटर चौड़ा पर्दा तीन खंभों पर डाला। ये खंभे तीन आधारों पर टिके हुए थे।
\v 16 आँगन के सब पर्दे उत्तम मलमल से बुने गए थे।
\s5
\v 17 आँगन के सब खंभे पीतल के बने थे और चाँदी से मढ़े हुए थे। इन खंभों को धातु की छड़ों से जोड़ा गया था जिन पर चाँदी चढ़ाई गई थी। उन्होंने चाँदी के आँकड़े भी घुंडियाँ बनाए।
\v 18 आँगन के प्रवेश द्वार के लिए उन्होंने उत्तम श्वेत मलमल के पर्दे बुने और उन पर कुशल बुनकर ने नीले बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई की। यह पर्दा लगभग 9.0 मीटर लंबा और 2.33 मीटर ऊँचा था जैसे आँगन के अन्य पर्दे थे।
\v 19 सब पर्दे उत्तम मलमल के थे और प्रत्येक खंभा एक पीतल के आधार पर टिका हुआ था। आँगन के सब खंभे धातु की छड़ से जुड़े हुए थे जिन पर चाँदी चढ़ाई गई थी। आँकड़े भी चाँदी के बने हुए थे और खंभों का ऊपरी सिरा चाँदी से मढ़ा हुआ था।
\v 20 पवित्र तम्बू के और आँगन के पर्दे सब के खूंटे पीतल के बने थे।
\s5
\v 21 पवित्र तम्बू के निर्माण में जो धातु लगी उसका लेखा इस प्रकार है। मूसा ने कुछ लेवियों को यह काम सौंपा कि जितनी भी धातु पवित्र तम्बू के निर्माण में लगी है उसका लेखा लिख लें। याजक हारून का पुत्र, ईतामार इन पुरुषों का काम देखता था।
\v 22 ऊरी के पुत्र, हूर के पोते ने वह सब वस्तुएँ बनाकर तैयार कर दी जिनकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी कि वह बनवाए।
\v 23 बसलेल का सहायक दान गोत्र के अहीसामाक का पुत्र ओहोलीआब था। ओहोलीआब एक कुशल नक्काशी करने वाला था जिसने सब कलाकृत्तियाँ तैयार की और नीले, बैंजनी और लाल ऊन से मलमल की कढ़ाई का सारा काम किया।
\s5
\v 24 पवित्र तम्बू के निर्माण में जितना सोना लगा था वह कुल 965 किलोग्राम था। सोने का भार नापने के लिए उन्होंने स्वीकृत माप काम में लिया था।
\v 25 प्रधानों ने जब गणना करके इस्राएलियों से चाँदी की भेंट स्वीकार की तब कुल चाँदी 3,320 किलोग्राम थी जिसे स्वीकृत माप से तौला गया था।
\v 26 जितने पुरुष कम से कम बीस वर्ष के थे उनकी गणना की गई थी और उनमें से हर एक ने आवश्यक मात्रा में भेंट दी थी। इन पुरुषों की कुल संख्या 603,550 थी।
\s5
\v 27 उन्होंने पवित्र तम्बू के पर्दों के खंभों के जो सौ आधार थे उनमें से प्रत्येक 33 किलोग्राम चाँदी का था और कुल चांदी 3,330 किलोग्राम काम में ली गई थी।
\v 28 बसलेल और उसके लोगों ने आधारों के अतिरिक्त बाइस किलोग्राम चाँदी से खंभों के अँकुड़े और छड़ें और खंभों के ऊपरी सिरों को संवारने का काम किया।
\v 29 लोगों ने जो पीतल दिया वह कुल 2,300 किलोग्राम था।
\s5
\v 30 उस पीतल से बसलेल और उसके लोगों ने पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के खंभों के आधार बनाए। उन्होंने होम-बलि की वेदी उसकी जाली और उपयोग में आने वाले सब उपकरण भी पीतल के बनाए थे।
\v 31 आँगन के पर्दों के खंभों के आधार और आँगन के प्रवेश द्वार के आधार और पवित्र तम्बू के खूंटे और आँगन के पर्दों के खूंटे, सब पीतल के बने थे।
\s5
\c 39
\p
\v 1 बसलेल, ओहोलीआब और अन्य कुशल कारीगरों ने पवित्र स्थान में सेवा करने के लिए हारून के विशेष वस्त्र भी तैयार किए। उन्होंने मूसा को दी गई यहोवा की आज्ञा के अनुसार नीले, बैंजनी और लाल ऊन के कपड़े से उन वस्त्रों को तैयार किया।
\s5
\v 2 पवित्र एपोद उत्तम श्वेत मलमल और नीले, बैंजनी और लाल ऊनी कपड़े से बनाया गया।
\v 3 उन्होंने सोने के तार की पतली चद्दर बनाकर उसके खींचे और मलमल, नीले, बैंजनी और लाल कपड़े में उनसे कढ़ाई की।
\s5
\v 4 पवित्र एपोद के कन्धे के दो-दो फीते थे जिनसे उसके आगे और पीछे के भाग बांधे जाते थे।
\v 5 पवित्र एपोद के कपड़े से सावधानीपूर्वक बुना गया एक पटुका एपोद में सिला गया। यह भी मूसा को दी गई परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार था।
\s5
\v 6 बसलेल और उसके लोगों ने दो सुलैमानी पत्थर तराशे और सोने की खानों में जड़ दिए। उन सुलैमानी पत्थरों पर एक कुशल मणि तराश के इस्राएल के बारह गोत्रों के नाम लिखे।
\v 7 उन्होंने उन मूल्यवान सुलैमानी पत्थरों को पवित्र एपोद के कन्धों के फीतों पर लगाया कि इस्राएल के बारह गोत्रों का प्रतिनिधित्व करें। यह भी मूसा को दी गई परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार था।
\s5
\v 8 उन्होंने सीना-बन्द भी उसी कपड़े का बनाया जिससे एपोद बनाया गया था और कढ़ाई भी उसी प्रकार की बनाई गई थी।
\v 9 उसका आकार चौकोर था और दोहरा बनाया गया था जिससे कि वह दोनों ओर 23 सेंटीमीटर था।
\s5
\v 10 उन्होंने पवित्र सीना-बन्द पर मणियों की चार पंक्तियाँ लगाई।
\v 11 पहली पंक्ति में मणिक्य, पद्मराग और लालड़ी लगाए गए।
\v 12 दूसरी पंक्ति में मरकत नीलमणि और हीरा। तीसरी पंक्ति में लशम, सूर्यकान्त और नीलम और चौथी पंक्ति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब लगाए गए।
\v 13 प्रत्येक मणि के चारों ओर सोने के खाने बनाए गए।
\s5
\v 14 इन बारह मणियों में से प्रत्येक पर याकूब के एक पुत्र का नाम लिखा गया जो इस्राएल के एक गोत्र का नाम दर्शाता था।
\v 15 तब उन्होंने शुद्ध सोने की जंजीरों को रस्सियों के समान गूँथकर, उनसे सीना-बन्द को एपोद से जोड़ा।
\v 16 तब उन्होंने सोने के दो छल्ले बनाए और उन्हें सीना-बन्द के दोनों सिरों पर लगाया।
\s5
\v 17 फिर उन सोने की जंजीरों के सिरों को अलग-अलग उन दोनों छल्लों में जोड़ा,
\v 18 और दूसरे सिरों को मणियों वाले एक-एक खाने में जड़ दिया और इस प्रकार पवित्र सीना-बन्द को पवित्र एपोद के कन्धों के फीतों से जोड़ दिया।
\s5
\v 19 उन्होंने सोने के दो और छल्ले बनाए और उन्हें पवित्र सीना-बन्द के निचले कोनों में भीतर की ओर लगा दिया जो पवित्र एपोद से लगा हुआ था।
\v 20 उन्होंने सोने के दो और छल्ले बनाए और कन्धे के फीतों के सामने की निचली ओर लगाया- जहाँ कन्धे के फीते पवित्र एपोद से जुड़े हुए थे- जो सावधानीपूर्वक बुने हुए कमर-बन्द के ठीक ऊपर थे।
\s5
\v 21 उन्होंने पवित्र सीना-बन्द के छल्लों को पवित्र एपोद के छल्लों से नीली रस्सी द्वारा आपस में बान्धा जिससे कि पवित्र सीना-बन्द कमर-बन्द से ऊपर रहे और पवित्र एपोद से अलग न हो। उन्होंने यह सब ठीक वैसे ही किया जैसे निर्देश यहोवा ने मूसा को दिए थे।
\s5
\v 22 उन्होंने याजक के लिए बागा भी बनाया जिसे पवित्र एपोद के नीचे धारण करना था, वह केवल नीले कपड़े का बनाया गया।
\v 23 उसमें याजक के सिर को डालने के लिए खुला स्थान छोड़ा गया जिसके सिरों को घेरा डालकर सिला गया कि फटे नहीं।
\v 24 बागे के नीचे के सिरों पर अनार के फलों जैसी सजावट की गई, उन्हें नीले, बैंजनी और लाल ऊन से बुना गया था।
\s5
\v 25 इन अनारों के बीच शुद्ध सोने की घन्टियाँ लगाई गई।
\v 26 याजकीय सेवा के समय हारून को यह बागा पहनना था। उन्होंने यह सब कुछ ठीक वैसे ही बनाया जैसे निर्देश यहोवा ने मूसा को दिए थे।
\s5
\v 27 उन्होंने हारून और उसके पुत्रों के लिए लंबी बांह के मलमल के अंगरखे भी बनाए।
\v 28 उत्तम मलमल की एक पगड़ी भी हारून के लिए बनाई गई जिसे वह सिर पर धारण करे। उन्होंने हारून के पुत्रों के लिए मलमल की टोपियाँ और जाँघिये भी बनाए।
\v 29 हारून के लिए उन्होंने उत्तम मलमल पर नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई करके कमर-बन्द भी बनाया। यह सब मूसा को यहोवा द्वारा दिए गए आदेशों के अनुसार बनाया गया था।
\s5
\v 30 उन्होंने शुद्ध सोने की एक पट्टी बनाई जिस पर एक कुशल कारीगर ने लिखा, “यहोवा को समर्पित।”
\v 31 यह पट्टी पगड़ी के सामने नीले फीते से बाँधी गई जैसा यहोवा ने मूसा को निर्देश दिया था।
\s5
\v 32 अन्त में उन्होंने पवित्र तम्बू का सब काम संपन्न किया और मूसा के पास ले आए। उन्होंने सब कुछ ठीक वैसा ही बनाया जैसे यहोवा ने निर्देश दिए थे।
\v 33 वे मूसा के पास पवित्र तम्बू और उसमें काम आने वाली सब वस्तुएँ ले आए- आँकड़े, चौखटे, आड़ी डंडियाँ, खंभे और उनके आधार;
\v 34 पवित्र तम्बू के आवरण जो लाल रंगी हुई भेड़ की खाल के थे; पर्दे;
\v 35 पवित्र सन्दूक जिसमें परमेश्वर की आज्ञाओं की पट्टियाँ रखी थी और सन्दूक का ढक्कन।
\s5
\v 36 कारीगरों ने पवित्र तम्बू के सामान भी बनाकर पूरे किएः मेज़ और उसके उपयोगी सब उपकरण और परमेश्वर की भेंट की रोटियाँ।
\v 37 शुद्ध सोने का दीपदान और उसके दीपक और उसके काम में आने वाली सब वस्तुएँ और दीपकों के लिए तेल।
\v 38 धूप जलाने के लिए सोने की वेदी, अभिषेक का तेल और सुगंधित धूप और पवित्र तम्बू के द्वार के पर्दे।
\v 39 होम-बलि की पीतल की वेदी, उसकी पीतल की जाली, उसे उठाने के बल्लियाँ और उसके उपयोग से संबंधित अन्य सब वस्तुएँ और हौदी और उसका आधार।
\s5
\v 40 वे आँगन के पर्दे, खंभे और उनके आधार, आँगन के द्वार के पर्दे, उसकी रस्सियाँ, खूंटे और पवित्र तम्बू में काम आने वाली सब वस्तुयें,
\v 41 हारून के वैभवशाली पवित्र वस्त्र, उसके पुत्रों के वस्त्र जिन्हें वह पवित्र स्थान में सेवा करते समय धारण करें और उसके पुत्रों के वस्त्र जिनको वह याजकीय सेवा के समय धारण करें।
\s5
\v 42 इस्राएलियों ने यह सब काम ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को निर्देश दिए थे।
\v 43 मूसा ने उसके द्वारा बनाई गई वस्तुओं का निरीक्षण किया। वास्तव में उन्होंने ठीक वैसा ही किया था जैसे यहोवा ने आदेश दिए थे। तब मूसा ने सब कारीगरों को आशीर्वाद दिया।
\s5
\c 40
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 अगले वर्ष पहले महीने के पहले दिन इस पवित्र तम्बू को खड़ा करने का आदेश इस्राएलियों को दे।
\s5
\v 3 इसके भीतर पवित्र सन्दूक रखना जिसमें दस आज्ञाओं की पट्टियाँ है और उसके सामने पर्दा लगा देना।
\v 4 पवित्र तम्बू में मेज रख कर उस पर वे सब वस्तुएँ रखना जो उसके लिए बनाई गई हैं। तब दीपदान लाकर उसमें दीपक लगाना।
\s5
\v 5 पवित्र तम्बू के सामने धूप जलाने की सोने की वेदी रखना और पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर पर्दे लगाना।
\v 6 पवित्र तम्बू के सामने होम-बलि की वेदी रखना।
\v 7 पानी की हौदी को पवित्र तम्बू और वेदी के बीच रखना और उसे पानी से भर देना।
\s5
\v 8 आँगन के चारों ओर पर्दे लगाना और आँगन के प्रवेश द्वार पर भी पर्दे लगाना।
\v 9 तब अभिषेक का तेल लेकर पवित्र तम्बू और उसके भीतर सब वस्तुओं का अभिषेक करके उन सब को मेरे लिए समर्पित करना। तब वे सब विशेष रूप से केवल मेरे लिए रहेंगी।
\v 10 कुछ तेल उस वेदी पर भी डालना जिस पर याजक मुझे चढ़ाई गई बलियों को जलाएगा। उस वेदी पर काम में आने वाले सब उपकरणों पर भी तेल डालना कि वे मेरे लिए समर्पित की जाएँ। तब वे केवल मेरे लिए अलग होकर समर्पित रहेगी।
\v 11 कुछ तेल हौदी और उसके आधार पर डालना कि वे मेरे लिए समर्पित रहे।
\s5
\v 12 तब हारून और उसके पुत्रों को पवित्र तम्बू के द्वार पर लाना और पानी से उनको स्नान करवाना।
\v 13 तब हारून को याजकीय वस्त्र पहना कर उस पर तेल डालकर उसे मेरे लिए समर्पित करना। उसके साथ ऐसा करना कि वह मेरे सामने आने वाला याजक होकर मेरी सेवा करे।
\s5
\v 14 हारून के पुत्रों को भी उनके विशेष वस्त्र पहनाना;
\v 15 उनके ऊपर भी उनके पिता के समान तेल डालना। ऐसा करना क्योंकि वे भी याजक होकर मेरी आराधना करेंगे। उन पर तेल डाल कर तू उन्हें और उनकी आने वाली पीढ़ियों को याजक ठहराएगा।
\v 16 मूसा और उसके साथ काम करने वालों ने यह सब कार्य ठीक वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था।
\s5
\v 17 अगले वर्ष के पहले महीने के पहले दिन, एक वर्ष बाद जब इस्राएली मिस्र से निकले थे, उन्होंने पवित्र तम्बू खड़ा किया।
\v 18 उन्होंने वही किया जो मूसा ने उनसे कहा था। उन्होंने पवित्र तम्बू को उसके आधार पर खड़ा किया, उन्होंने चौखटे खड़ी कि और उनमें आड़ी डंडियाँ लगाई और पर्दों के खंभे खड़े किए।
\v 19 तब उन्होंने पवित्र तम्बू पर आवरण डाला, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा को आदेश दिए थे।
\v 20 तब मूसा ने दस आज्ञाओं वाले पत्थर की पट्टियों को पवित्र सन्दूक में रखा और उसके छल्लों में बल्लियाँ डाल कर उस पर ढक्कन रखवाया।
\s5
\v 21 तब मूसा उस पवित्र सन्दूक को पवित्र तम्बू के पवित्र स्थान में ले गया और पर्दा डलवा दिया कि बाहर खड़े हुए लोग पवित्र सन्दूक को न देख पाएँ। उन्होंने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने आदेश दिया था।
\v 22 उसने कारीगरों से वह मेज़ पवित्र तम्बू के भीतर उत्तरी दिशा में पर्दे के बाहर रखवाई।
\v 23 मेज पर उन्होंने भेंट की रोटीयाँ यहोवा के सम्मुख रखवाईं, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने उनको आदेश दिया था।
\s5
\v 24 मूसा के कारीगरों ने पवित्र तम्बू के अन्दर दक्षिण दिशा में दीपदान खड़ा किया जो मेज के दूसरी ओर था।
\v 25 तब उन्होंने दीपदान में दीपक लगाए कि यहोवा की उपस्थिति में हो जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था।
\s5
\v 26 मूसा के कारीगरों ने धूप जलाने की सोने की वेदी को पवित्र तम्बू के भीतर परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करने वाले पर्दे के सामने रखा।
\v 27 उस वेदी पर उन्होंने मनमोहक सुगंध की धूप जलाई, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\s5
\v 28 मूसा के कारीगरों ने पवित्र तम्बू के द्वार पर पर्दे लगाए।
\v 29 पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर होम-बलि की वेदी रखी गई। जहाँ याजक होमबलि चढ़ाएगा। और उस पर उन्होंने भेंट चढ़ाया हुआ माँस और आटा जलाया, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा से कहा था।
\v 30 तब उन्होंने पीतल की हौदी को पवित्र तम्बू और वेदी के बीच रखा और पानी से भर दिया।
\s5
\v 31-32 मूसा, हारून और हारून के पुत्र पवित्र तम्बू में या वेदी के निकट जाते थे तब वे अपने हाथ और पैर धोते थे, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा के माध्यम से निर्देश दिए थे।
\v 33 मूसा के कारीगरों ने आँगन के पर्दे टांगे और आँगन के प्रवेश द्वार पर भी पर्दे टांगे। इस प्रकार मूसा ने संपूर्ण कार्य संपन्न करवाया।
\s5
\v 34 तब बादल के खंभे ने पवित्र तम्बू को ढाँक दिया और यहोवा की शक्ति और तेज़ पवित्र तम्बू में भर गया।
\v 35 अब क्योंकि तेज़ बहुत तीव्र था इसलिए मूसा पवित्र तम्बू में प्रवेश नहीं कर पाया।
\s5
\v 36 उस दिन से जब भी इस्राएलियों को चलना होता था, तब वे पवित्र तम्बू से बादल के निकल कर आगे बढ़ने पर ही चलते थे।
\v 37 यदि बादल रुका रहता तो वे भी रुके रहते थे।
\v 38 वे जब भी यात्रा करते थे, यहोवा की उपस्थिति का बादल दिन के समय पवित्र तम्बू पर छाया रहता था और रात में तेज़ आग उस पर ठहरी रहती थी। जब तक वे प्रतिज्ञा के देश की ओर यात्रा करते रहे तब तक इस्राएली उसे किसी भी समय देख सकते थे।