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\id GEN
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\h उत्पत्ति
\toc1 उत्पत्ति
\toc2 उत्पत्ति
\toc3 gen
\mt1 उत्पत्ति
\s5
\c 1
\p
\v 1 परमेश्वर ने आरंभ में आकाश और पृथ्वी की रचना की।
\v 2 जब उन्होंने पृथ्वी की रचना करना आरंभ किया तब पृथ्‍वी आकार रहित और सुनसान थी। गहरे जल की सतह पर अन्‍धकार था और परमेश्वर के आत्मा जल पर मण्डराते थे।
\s5
\v 3 परमेश्वर ने कहा, "मैं वहाँ प्रकाश होने का आदेश देता हूँँ," और वहाँ प्रकाश हो गया।
\v 4 परमेश्वर प्रकाश से प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने कुछ स्थानों को कुछ समय में प्रकाशित कर दिया, जबकि अन्य स्थानों पर अभी भी अन्‍धकार था।
\v 5 उन्होंने प्रकाश को "दिन" का नाम दिया और अन्‍धकार को "रात" का नाम दिया। शाम हुई फिर सुबह हुई, पहला दिन हो गया।
\p
\s5
\v 6 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं आदेश देता हूँँ कि जल दो भागों में बँट जाए और मध्य में विशाल मेहराब के समान खाली स्थान हो।"
\v 7 और ऐसा ही हुआ। परमेश्वर ने एक विशाल मेहराब के समान खाली स्थान बनाई और इसके ऊपर के जल को, इसके नीचे के जल से अलग किया।
\v 8 परमेश्वर ने विशाल मेहराब को "आकाश" का नाम दिया। शाम हुई फिर सुबह हुई, दूसरा दिन हो गया।
\p
\s5
\v 9 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं आकाश के नीचे के जल को एक स्‍थान पर एकत्र होने का आदेश देता हूँँ जिससे सूखी भूमि ऊपर आए और दिखाई दे।" और ऐसा ही हुआ।
\v 10 परमेश्वर ने सूखी भूमि को "पृथ्‍वी", और एकत्रित जल को "समुद्र" नाम दिया। परमेश्वर पृथ्वी और समुद्रों को देखकर प्रसन्न हुए।
\s5
\v 11 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं पृथ्वी को अनेक प्रकार के पौधे उगाने का आदेश देता हूँँ जो स्वयं का पुन: उत्पादन करें - जिनमें बीज वाले पौधे हों और ऐसे वृक्ष भी हों जो बीज वाले फल दें" और ऐसा ही हुआ।
\v 12 तब पौधे पृथ्वी पर बढ़े। प्रत्येक प्रकार के पौधे ने अपनी जाति के बीज को उत्पन्न किया, और प्रत्येक प्रकार के वृक्ष ने फल के साथ अपनी जाति के बीज भी उत्पन्न किये। परमेश्वर पौधों और वृक्षों से प्रसन्न हुए।
\v 13 शाम हुई फिर सुबह हुई, तीसरा दिन हो गया।
\p
\s5
\v 14 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं आकाश में कई ज्‍योतियों को चमकने का आदेश देता हूँँ। वे रात से दिन को अलग करेंगी। उनमें परिवर्तन दिखने के द्वारा वे विभिन्न पर्वों और अन्य बातों के लिए समय सूचित करेंगी जो लोग निश्चित समय और वर्षों में करते हैं।
\v 15 मैं इन ज्‍योतियों को पृथ्वी पर चमकने का आदेश भी देता हूँँ। " और ऐसा ही हुआ।
\s5
\v 16 परमेश्वर ने उनमें से दो को बहुत बड़ी ज्योति बनाया। परमेश्वर ने उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर शासन करने के लिए बनाया और छोटी को रात पर शासन करने के लिए। उन्होंने तारे भी बनाए।
\v 17 परमेश्वर ने इन ज्योतियों को आकाश में स्‍थित किया कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें,
\v 18 दिन और रात पर शासन करें और अन्‍धकार को प्रकाश से अलग करें। परमेश्वर ज्योतियों को देखकर प्रसन्न हुए।
\v 19 शाम हुई फिर सुबह हुई, इस प्रकार चौथा दिन हो गया।
\s5
\v 20 तब परमेश्वर ने कहा, "जल मेरे द्वारा बनाए गये सभी प्रकार के जलीय जीवों से भर जाए, और पृथ्वी के ऊपर उड़ने वाले पक्षियों से आकाश भर जाए।"
\v 21 इस प्रकार परमेश्वर ने समुद्र में बहुत बड़े-बड़े जल-जन्तु बनाए, और उन्होंने जल में अत्याधिक संख्या में अन्य सभी जल-जन्तु भी बनाए। उन्होंने पंखवाले हर प्रकार के पक्षियों को भी बनाया। ये सभी प्राणी स्वयं की संतान पैदा करने में सक्षम होंगे। परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था उसे देखकर वे प्रसन्न हुए।
\s5
\v 22 परमेश्वर ने इन जानवरों को आशीष दी। उन्होंने कहा, "संतान उत्पन्न करो और असंख्य हो जाओ। मैं चाहता हूँँ कि जल के जीव सभी जलाशयों में रहें, और पक्षी भी असंख्य हो जायें।"
\v 23 शाम हुई फिर सुबह हुई, इस प्रकार पांचवाँ दिन हो गया।
\s5
\v 24 तब परमेश्वर ने कहा, "मैं पृथ्वी को विविध प्रकार के जानवरों को उत्पन्न करने का आदेश देता हूँँ जो पृथ्वी पर रहने के लिए पुन: जन्म देने की क्षमता रखते हों। यहाँ अनेक प्रकार के घरेलू जानवर, जीव जो भूमि पर रेंगते हों, और बड़े जंगली जानवर भी हो जाएं।" और ऐसा ही हुआ।
\v 25 परमेश्वर ने सभी प्रकार के जंगली जानवरों, घरेलू जानवरों और सभी प्रकार के भूमि पर रेंगने वाले जानवरों को बनाया। वे सभी अपनी जाति के जानवरों को उत्पन्न कर सकते थे। परमेश्वर उनसे प्रसन्न हुए।
\p
\s5
\v 26 तब परमेश्वर ने कहा, " हम मनुष्य को अपने स्वरुप में बनाएँ। मैं चाहता हूँँ कि मनुष्य समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों, सभी घरेलू जानवरों और अन्य उन सभी जानवरों पर शासन करें जो पृथ्वी पर हैं।"
\v 27 परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया जो कई प्रकार से परमेश्वर जैसा था। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरुप में रचा। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी के रूप में बनाया।
\s5
\v 28 परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी और कहा, "बहुत से बच्चे पैदा करो, जो पूरी पृथ्वी पर निवास करें और उस पर शासन करें। मैं चाहता हूँँ कि तुम समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों और धरातल के सभी जीव जन्तुओं पर शासन करो।"
\v 29 परमेश्वर ने कहा, " मैंने तुम लोगों को धरती के सभी बीज वाले पौधे और सारे फलदार पेड़ दिए हैं। ये सब तुम्हारे लिए भोजन होंगे।
\s5
\v 30 मैंने सभी हरे पेड़-पौधे जंगली जानवरों, पक्षियों, और पृथ्वी के जीव-जन्तु के भोजन के लिए दिये है क्योंकि उनमें जीवन देने की क्षमता है। और ऐसा ही हुआ।
\v 31 परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया उससे वे प्रसन्न थे। वास्तव में, यह सब बहुत अच्छा था। शाम हुई फिर सुबह हुई, इस प्रकार छठा दिन हो गया।
\s5
\c 2
\p
\v 1 इसी प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी, आकाश और जो कुछ उनमें है, उन सभी जीवों की सृष्टी की जिनसे वे भर गये।
\v 2 सातवें दिन तक परमेश्वर ने सब कुछ रचने का काम पूरा कर लिया था, इसलिए परमेश्वर ने सातवें दिन कोई काम नहीं किया।
\v 3 परमेश्वर ने घोषित किया कि प्रत्येक सातवाँ दिन उनके द्वारा आशीषित होगा। इस दिन को विशेष दिन के रूप में अलग कर दिया गया, क्योंकि सातवें दिन परमेश्वर ने सब कुछ रच कर अपने काम को पूरा करने के बाद विश्राम किया।
\s5
\v 4 परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को कैसे रचा यह इसी का विवरण है।
\p परमेश्वर, जिनका नाम यहोवा है, उन्होंने आकाश और पृथ्वी की रचना की।
\v 5 तब पृथ्वी पर कोई पेड़ पौधा नहीं उगा था, क्योंकि यहोवा ने तब तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं भेजी थी। इसके अतिरिक्त, भूमि को जोतने और उस पर फसल उगाने के लिए कोई न था।
\v 6 परन्तु कोहरा पृथ्वी से उठता था कि पृथ्वी की सतह पर जल हो।
\s5
\v 7 तब यहोवा परमेश्वर ने कुछ मिट्टी उठाई और पुरुष को बनाया। उन्होंने पुरुष की नाक में अपनी साँस फूँकी जिससे उसमें जीवन आया, फलस्वरूप पुरुष एक जीवित प्राणी बन गया।
\v 8 यहोवा परमेश्वर ने अदन नामक स्थान में एक बाग लगाया, जो कनान देश के पूर्व में था। इसी बाग में यहोवा परमेश्वर ने अपने बनाए हुए पुरुष को रखा।
\s5
\v 9 यहोवा परमेश्वर ने प्रत्येक प्रकार के पेड़ों को उगाया जो कि देखने में सुंदर थे और जो ऐसे फल देते हैं जो खाने में अच्छे है। उन्होंने बाग के बीच में एक पेड़ लगाया जिसका फल यदि कोई खाए तो सदा जीवित रहेगा। उन्होंने वहाँ एक और पेड़ लगाया जिसके फल को खाने के बाद कोई भी जान लेगा कि कौन सा अच्छा कार्य और कौन सा बुरा कार्य है।
\p
\v 10 अदन से होकर एक नदी बहती थी और वह बाग़ को सींचती थी। अदन के बाहर, वह नदी चार छोटी नदियों में विभाजित हो जाती थी।
\s5
\v 11 पहली नदी का नाम पीशोन है। यह नदी हवीला प्रदेश से होकर बहती है, जहाँ सोना था।
\v 12 वह सोना बहुत शुद्ध है। वहाँ सुगंधित मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं।
\s5
\v 13 दूसरी नदी का नाम गीहोन है जो कूश देश के सारे प्रदेश से होकर बहती है।
\v 14 तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है। यह अश्शूर शहर के पूर्व में बहती है। चौथी नदी फरात है।
\p
\s5
\v 15 यहोवा परमेश्वर ने उस पुरुष को अदन में खेत जोतने और बाग की देख-भाल करने के लिए रखा।
\v 16-17 परन्तु यहोवा ने उस से कहा, "मैं तुझे उस पेड़ के फल खाने की अनुमति नहीं दूँगा जो तुझे यह जानने में सक्षम करेगा कि कौन सा काम अच्छा है और कौन सा बुरा। यदि तू ने उस पेड़ का फल खा लिया तो निश्चित है तू उसी दिन मर जाएगा। लेकिन तू बग़ीचे के अन्य किसी भी पेड़ का फल खा सकता है।"
\p
\s5
\v 18 यहोवा परमेश्वर ने कहा, "इस पुरुष का अकेला रहना ठीक नहीं है। मैं एक और साथी बनाऊँगा जो उसके लिए उपयुक्त होगा।"
\v 19 यहोवा परमेश्वर ने कुछ मिट्टी ली और सभी प्रकार के जानवरो और पक्षियों को मिट्टी से बनाया, और वे उन्हें पुरुष के पास लाये कि यहोवा सुन सकें कि पुरुष उन्हें क्या नाम देगा। और पुरुष ने यहोवा द्वारा बनाये गए प्रत्‍येक जीव-जन्‍तु को नाम दिया।
\v 20 तब पुरुष ने सभी प्रकार के पालतू पशुओं, पक्षियों और वन-पशुओं के नाम रखे, लेकिन इनमें से कोई भी जीव पुरुष का साथी बनने के उपयुक्त नहीं था।
\s5
\v 21 इसलिए यहोवा परमेश्वर ने पुरुष को गहरी नींद में सुला दिया। जब पुरुष सो रहा था, यहोवा परमेश्वर ने पुरुष के शरीर से एक पसली को निकाल लिया। फिर यहोवा ने उस खाली स्थान को बन्द कर के स्वस्थ कर दिया।
\v 22 तब यहोवा ने उसी पसली से जिसे उन्होंने पुरुष के शरीर से निकाला था, स्त्री की रचना की इसके पश्चात परमेश्वर स्त्री को पुरुष के पास लाए।
\v 23 पुरुष ने कहा, "अंततः यह वास्तव में मेरे जैसी है! इसकी हड्डियाँ मेरी एक हड्डी से आईं, और इसका मांस मेरे मांस से आया। इसलिए मैं इसको नारी कहूँगा, क्योंकि यह मुझ नर में से निकाली गई।"
\p
\s5
\v 24 प्रथम स्त्री, पुरुष के शरीर से निकाल कर बनाई गयी अतः स्त्री और पुरुष जब विवाह करते हैं तब पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से अत्यन्त निकटता से मिला रहेगा कि वे दोनों ऐसे रहें मानों एक व्यक्ति हों।
\p
\v 25 पुरुष और उसकी पत्‍नी नग्न होने पर भी अपनी नग्नता से लज्‍जित न थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 यहोवा द्वारा बनाए गए सभी जंगली जानवरों में साँप सबसे अधिक धूर्त था। साँप ने स्त्री से कहा, "क्या परमेश्वर ने सचमुच तुमसे कहा है कि तुम बाग के किसी भी पेड़ का फल ना खाना?"
\v 2 स्त्री ने उत्तर दिया, "परमेश्वर ने कहा था, 'बाग के बीच जो पेड़ है उसके फल तुम नहीं खा सकते, तुम उसे छूना भी नहीं, नहीं तो मर जाओगे।
\v 3 लेकिन तुम अन्य किसी भी पेड़ के फल खा सकते हो।'"
\s5
\v 4 साँप ने स्त्री से कहा, "नहीं, तुम निश्चित रूप से नहीं मरोगी। परमेश्वर ने यह इसलिए कहा
\v 5 क्योंकि वे जानते हैं कि जब तुम उस पेड़ का फल खाओगे तो नई बातों को समझोगे। तुम्हारी आंखें खुल जाएगी और तुम्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान हो जायेगा जैसे परमेश्वर को है।"
\v 6 स्त्री ने देखा कि उस पेड़ का फल खाने में अच्छा था, और देखने में बहुत सुंदर था। स्त्री को खाने की अभिलाषा हुई क्योंकि उसने सोचा कि यह उसे बुद्धिमान बनाएगा। तो उसने वह फल तोड़कर खा लिया। तब उसने अपने पति को भी उसमें से दिया, और उसने भी उसे खा लिया।
\s5
\v 7 तुरंत उन्हें ऐसा लगा कि उनकी आँखें खुल गई हैं, और उन्हें अनुभव हुआ कि वे नग्न थे, इसलिए वे लज्जित हुए। उन्होंने अंजीर के कुछ पत्तों को तोड़कर जोड़ा और स्वयं को उनसे ढंका।
\p
\v 8 दोपहर का समय समाप्त होने वाला था और ठंडी हवा बह रही थी। उन्होंने यहोवा परमेश्वर की आवाज़ सुनी मानों जैसे वे बाग में चल रहे थे। पुरुष और स्त्री दोनों बाग में पेड़ों के पीछे छिप गए, कि यहोवा परमेश्वर उन्हें न देख सकें।
\s5
\v 9 परन्तु यहोवा परमेश्वर ने पुरुष से कहा, "तू मुझसे छिपने का प्रयास क्यों कर रहा है?"
\v 10 पुरुष ने उत्तर दिया, "मैंने बगीचे में आपके कदमों की आवाज़ सुनी। मैं नग्न था इसलिए मैं डर कर आपसे छिप गया।"
\v 11 परमेश्वर ने कहा, "तुझे कैसे पता लगा कि तू नग्न था? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तूने उस विशेष पेड़ का फल खाया जिसके लिए मैंने आदेश दिया था कि इसका फल नहीं खाना " क्या तू ने ऐसा ही किया है?
\s5
\v 12 पुरुष ने कहा, "आपने जो स्त्री मेरे साथ रहने के लिए मुझे दी थी उसी ने पेड़ का फल मुझे दिया इसलिए मैंने उसे खाया।"
\v 13 तब यहोवा परमेश्वर ने उस स्त्री से कहा, "तू ने ऐसा क्यों किया?" स्त्री ने उत्तर दिया, "साँप ने मुझे धोखा दिया इसलिए मैंने फल खा लिया।"
\s5
\v 14 तब यहोवा परमेश्वर ने साँप से कहा, "क्योंकि तूने यह किया है, सभी घरेलू जानवरों और जंगली जानवरों में तू अकेला शापित है। इसी श्राप के कारण तू और बाकि सारे साँप अपने पेट के बल धरती पर रेंगेंगे और जब तक तू जीवित रहेगा जो कुछ तू खाएगा उसमें धुल होगी।
\v 15 मैं तुझे और स्त्री को एक दूसरे का शत्रु बनाऊँगा और तेरे वंशजों और उसके वंशजों को एक-दूसरे का शत्रु बनाऊँगा। तू इसके वंशज की एड़ी को डसेगा और वह तेरे सिर कुचल देगा।"
\s5
\v 16 तब यहोवा ने उस स्त्री से कहा, "जब तू संतान को जन्म देगी मैं तुझको अत्यधिक प्रसव पीड़ा दूंगा। तू अपने पति के साथ रहना चाहेगी, लेकिन वह तुझ पर शासन करेगा।"
\s5
\v 17 तब परमेश्वर ने पुरुष से कहा, "तूने अपनी पत्नी की बातें सुनी, और तूने उस पेड़ का फल खाया जिसे खाने की मैंने अनुमति नहीं दी थी। इसलिए जो कुछ तूने किया उसके कारण धरती पर फसल पैदा करना मैं कठिन बना दूंगा जब तक तू जीवित रहेगा इस धरती से फसल पैदा करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा।
\v 18 काँटे, कंटीली झाड़ियां और अन्य खर-पतवार बढ़ेंगे और तेरे द्वारा लगाये हुए फसलों को उगने में बाधा उत्पन्न करेंगे। जो कुछ भी तेरे खेत में उगेगा वही तेरा भोजन होगा।
\v 19 तुझे अपने पूरे जीवन काल में भोजन प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करके पसीना बहाना पड़ेगा। मृत्यु होने पर तेरे शरीर को भूमि में दफनाया जाएगा। मैंने तुझे मिट्टी से बनाया है, इसलिए तेरा शरीर फिर से मिट्टी बन जाएगा।"
\p
\s5
\v 20 मनुष्य जिसका नाम आदम था, उसने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा, जिसका अर्थ है "जीवित", क्योंकि वह सभी जीवनधारियों की पूर्वज बनी।
\v 21 तब यहोवा परमेश्वर ने कुछ जानवरों को मार के उनकी खाल से आदम और उसकी पत्नी के लिए कपड़े बनाए।
\p
\s5
\v 22 तब यहोवा परमेश्वर ने कहा, "ये दोनों हमारे जैसे बन गए हैं क्योंकि ये जानते हैं कि क्या करना अच्छा है और क्या करना बुरा। इसलिए अब यह उचित नहीं होगा कि ये दोनों उस जीवन के पेड़ से फल खा लें जो इन्हें सदैव जीवित रखने में सक्षम है"
\v 23 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी हव्वा को अदन के बाग से बाहर निकाल दिया। यहोवा परमेश्वर ने आदम को मिट्टी से बनाया था, और उसे उसी मिट्टी में हल चलाने के लिए विवश किया।
\v 24 यहोवा परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बाहर निकालने के बाद बाग के पूर्व में करुबीम को नियुक्‍त किया और एक आग की तलवार भी रख दी जो आगे और पीछे प्रकाश दे कर प्रवेश मार्ग को बाधित करती थी, कि वे उस पेड़ के पास वापस नहीं जा सकें जिसके फल खाने के बाद मनुष्य सदा जीवित रहने में सक्षम हो जाता है।
\s5
\c 4
\p
\v 1 आदम ने अपनी पत्नी हव्वा के साथ सहवास किया। हव्वा गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे उसने कैन नाम दिया, जिसका अर्थ है "उत्पादन", क्योंकि हव्वा ने कहा, "यहोवा की सहायता से मैंने एक पुत्र पैदा किया है।"
\p
\v 2 कुछ समय बाद उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया, और उसने उसे हाबिल नाम दिया। बड़े होने पर हाबिल ने भेड़ और बकरियां रखीं और कैन एक किसान बन गया।
\s5
\v 3 एक दिन कैन ने स्वयं की उगाई हुई कुछ फसलों की कटाई की और उन्हें परमेश्वर के लिए भेंट के रूप में लाया,
\v 4 और हाबिल के भेड़-बकरियों में से कुछ ने अपने पहिलौठे बच्चों को जन्म दिया उन्हें वह ले आया और उन्हें मार डाला और उपहार के रूप में, यहोवा को चर्बीयुक्‍त मांस के सबसे अच्छे हिस्से को भेंट चढ़ाया। यहोवा हाबिल और उसकी भेंट से प्रसन्न हुए,
\v 5 लेकिन वे कैन और उसकी भेंट से प्रसन्न नहीं थे। तो कैन बहुत क्रोधित हो गया, और उसका मुँह उतर गया।।
\s5
\v 6 यहोवा ने कैन से कहा, "तुझे क्रोधित नहीं होना चाहिए! तुझे ऐसा दिखावा नहीं करना चाहिए!
\v 7 यदि तू सही करेगा, तो मैं तुझे स्वीकार करूँगा। लेकिन यदि तू सही नहीं करता है तो जो बुराई तू करना चाहता है वही तुझे निगल जाएगी, ये मानो इस प्रकार है जैसे शेर तेरे दरवाजे के बाहर तुम पर हमला करने की प्रतीक्षा कर रहा है। पाप करने की तेरी इच्छा ही तुझे नियंत्रित करना चाहती है, लेकिन तुझे इसे नियंत्रित करना होगा।"
\p
\s5
\v 8 एक दिन कैन ने अपने छोटे भाई हाबिल से कहा, "आ हम मैदान में चलें।" कैन और हाबिल मैदान में गए और वे जब दूर चले गये तब अचानक कैन ने अपने भाई हाबिल पर हमला किया और उसे मार डाला।
\p
\v 9 यहोवा को ज्ञात था कि कैन ने क्या किया है, फिर भी उन्होंने कैन से कहा, "क्या तू जानता है कि तेरा छोटा भाई हाबिल कहां है?" कैन ने उत्तर दिया, "नहीं, मुझे नहीं पता। मेरा काम मेरे छोटे भाई की पहरेदारी करना नहीं है!"
\s5
\v 10 यहोवा ने कहा, "तूने जो किया है वह भयानक है! तेरे भाई का खून जो भूमि पर गिर गया है, वह तुझे दोषी ठहराता है।
\v 11 तूने अपने छोटे भाई को मार डाला है, और अब भूमि ने तेरे छोटे भाई के खून को सोख लिया है और यह भूमि अब तेरा स्वागत नहीं करेगी। और फसल उपजाने का तेरा प्रयास सफल नही होगा।
\v 12 जब तू खेती करने के लिए भूमि को जोतेगा तो वह तुझे बहुत कम फसल देगी। तू निरन्तर पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहेगा और स्थायी रूप से रहने के लिए कोई स्थान नहीं मिलेगी।"
\s5
\v 13 कैन ने यहोवा से कहा, "यह दण्ड इतना अधिक है कि मैं इसे सहन नहीं कर सकता।
\v 14 आप मुझे उस भूमि से बाहर निकालने वाले हैं जिसमे मैं खेती कर रहा था और अब मैं आपकी उपस्थिति में भी नहीं आ पाऊँगा। इसके अतिरिक्त, मैं निरन्तर पृथ्वी पर भटकता रहूँगा और मेरे पास स्थायी रूप से रहने के लिए कोई स्थान नहीं होगा और जो मुझे देखेगा वह मुझे घात करेगा। "
\v 15 परन्तु यहोवा ने उस से कहा, "नहीं, ऐसा नहीं होगा। मैं तुझ पर एक निशान लगाऊँगा जिसे देख कर हर कोई सावधान हो जाएगा। यदि कोई तुझको मारेगा तो मैं उस व्यक्ति को बहुत कठोर दण्ड दूँगा।" तब यहोवा ने कैन पर एक निशान लगाया।
\s5
\v 16 तब कैन यहोवा को छोड़कर नोद नामक प्रदेश में रहने के लिए चला गया। नोद का अर्थ है 'भटकना', और यह प्रदेश अदन के पूर्व में था।
\p
\v 17 कुछ समय उपरांत, कैन ने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया और वह गर्भवती हुई। उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम हनोक रख दिया। तब कैन ने एक नगर का निर्माण शुरू किया, और उसने नगर को 'हनोक' नाम दिया, वही नाम जो उसके पुत्र का था।
\s5
\v 18 हनोक बड़ा हुआ और उसका विवाह हुआ। वह एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने ईराद नाम दिया। जब ईराद बड़ा हुआ तो वह एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने महुयाएल नाम दिया। महुयाएल बड़ा हुआ और एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने मतूशाएल नाम दिया। मतूशाएल बड़ा हुआ और लेमेक का पिता बना।
\v 19 जब लेमेक बड़ा हुआ तो उसने दो स्त्रियों से विवाह किया। एक का नाम आदा था और दूसरे का नाम सिल्ला था।
\s5
\v 20 आदा ने याबाल नाम के एक पुत्र को जन्म दिया। बाद में, याबाल पहला व्यक्ति था जो तम्बू में रहता था और उसके लोग पशुओं का पालन करके जीवन निर्वाह करते थे। उन्हें पशुओ को खिलाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था।
\v 21 याबाल के छोटे भाई का नाम यूबाल था। वह पहला व्यक्ति था जिसने वीणा और बाँसुरी बनाई थी।
\v 22 लमेक की दूसरी पत्नी सिल्ला ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे उसने तूबलकैन नाम दिया। बाद में उसने सीखा कि काँसे और लोहे से चीजें कैसे बनायी जाती हैं। तूबलकैन की छोटी बहन का नाम नामा था।
\p
\s5
\v 23 एक दिन लमेक ने अपनी पत्नियों से कहा, "मेरी दोनों पत्नियों आदा और सिल्ला, मेरी बातों को सावधानी से सुनो। एक जवान पुरुष ने मुझे मारा और घायल कर दिया इसलिए मैंने उसे मार डाला।
\v 24 यहोवा ने बहुत समय पहले कहा था कि जो कोई भी कैन से बदला लेगा और दंडित करेगा, वह कैन से सात गुना ज्यादा दंडित किया जाएगा। तो यदि कोई मुझे मारने का प्रयास करता है तो उसे सतहत्तर गुना ज्यादा दंडित किया जा सकता है।"
\p
\s5
\v 25 आदम ने अपनी पत्नी के साथ सहवास जारी रखा और वह फिर गर्भवती हुई। हव्वा ने एक और पुत्र को जन्म दिया, जिसे उसने शेत नाम दिया। हव्वा ने कहा, "मैं इसे शेत नाम देती हूँँ क्योंकि परमेश्वर ने मुझे हाबिल की स्थान लेने के लिए एक और संतान दिया है, क्योंकि कैन ने उसे मार डाला था।"
\v 26 जब शेत बड़ा हुआ, तो वह एक पुत्र का पिता बना जिसे उसने एनोश नाम दिया। उस समय से लोग यहोवा की आराधना करने लगे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यह उन लोगों की सूची है जो आदम के वंशज हैं। जब परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाया, तो उन्होंने उन्हें कई प्रकार से अपने स्वरुप में बनाया।
\v 2 उन्होंने एक पुरुष और एक स्त्री बनाई। उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया और जिस दिन उन्होंने उन्हें बनाया, उन्हें 'मनुष्य' कहा।
\s5
\v 3 जब आदम 130 वर्ष का था तो वह एक पुत्र का पिता बना जो उसके जैसा था। आदम ने उसका नाम शेत रखा।
\v 4 शेत का जन्म होने के बाद आदम 800 वर्ष जीवित रहा और इन वर्षों में वह अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 5 आदम 930 वर्ष तक जीवित रहने के बाद मर गया।
\s5
\v 6 जब शेत 105 वर्ष का था, तब वह एनोश का पिता बना।
\v 7 एनोश का जन्म होने के बाद शेत 807 वर्ष और जीवित रहा, और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 8 शेत 912 वर्ष तक जीवित रहने के बाद मर गया।
\s5
\v 9 जब एनोश नब्बे वर्ष का था तो वह केनान नामक पुत्र का पिता बना।
\v 10 केनान के जन्म के बाद, एनोश 815 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 11 एनोश 905 वर्ष तक जीवित रहा और फिर मर गया।
\s5
\v 12 जब केनान सत्तर वर्ष का था, तब वह महललेल नाम के पुत्र का पिता बना।
\v 13 महललेल के जन्म के बाद केनान 840 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों के पिता बना।
\v 14 केनान 910 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
\s5
\v 15 जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ तब वह येरेद का पिता बना।
\v 16 येरेद के जन्म के बाद महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा और वह दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 17 महललेल 895 वर्ष तक जीवित रहा, और फिर वह मर गया।
\s5
\v 18 जब येरेद 162 वर्ष का हुआ तब वह हनोक का पिता बना।
\v 19 हनोक के जन्म के बाद येरेद आठ सौ वर्ष और जीवित रहा और वह अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 20 येरेद 962 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
\s5
\v 21 जब हनोक 65 का था तब वह मतूशेलह का पिता बना।
\v 22 हनोक मतूशेलह के जन्म के 300 वर्ष बाद तक परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संगति में रहता था और वह अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 23 हनोक 365 वर्ष जीवित रहा।
\v 24 वह परमेश्वर के साथ घनिष्ठ सहभागिता में था और एक दिन वह गायब हो गया क्योंकि परमेश्वर उसे अपने साथ रहने के लिए उठा लिया।
\s5
\v 25 जब मतूशेलह 187 वर्ष का था तब वह लेमेक का पिता बना।
\v 26 लेमेक के जन्म के बाद मतूशेलह 782 वर्ष और जीवित रहा, और दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 27 मतूशेलह 969 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
\s5
\v 28 जब लेमेक 182 वर्ष का था तो वह एक पुत्र का पिता बना।
\v 29 जिसे उसने नूह नाम दिया क्योंकि लेमेक ने कहा था, "वह हमें कड़ी परिश्रम से राहत देगा जो हम भूमि से पैदावार के लिए करते है क्योंकि यहोवा ने भूमि को शाप दे दिया था।"
\s5
\v 30 नूह के जन्म के बाद लेमेक 595 वर्ष जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\v 31 लेमेक 777 वर्ष तक जीवित रहा और फिर वह मर गया।
\s5
\v 32 जब नूह 500 वर्ष का था, तब वह पुत्रों का पिता बना जिसका नाम उसने शेम, हाम, और येपेत रखा।
\s5
\c 6
\p
\v 1 जब मनुष्यों की संख्या पृथ्वी पर बहुत अधिक होने लगी और तब उनसे लड़कियाँ पैदा हुईं।
\v 2 परमेश्वर के पुत्रों में से कुछ ने देखा कि मनुष्यों की लड़कियाँ सुन्दर थीं। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी बनाने के लिए उनमें से किसी को भी चुन लिया।
\v 3 तब यहोवा ने कहा, "मेरी सांस हमेशा लोगों में नहीं रहेगी कि वे जीवित रहे। वे कमजोर मांस से बने हैं। वे 120 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेंगे।"
\p
\s5
\v 4 जब ये परमेश्वर के पुत्र मनुष्यों की पुत्रियों के साथ सोये तो उन्होंने बच्चों को जन्म दिया। ये वही दैत्य थे जो पृथ्वी पर उस समय और उसके बाद भी रहे। ये दैत्य वीर सैनिक थे और ये बहुत पहले से प्रसिद्ध थे।
\p
\s5
\v 5 यहोवा ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्य बहुत अधिक दुष्ट हो गए हैं और जो कुछ मनुष्य अपने मन में विचार करते हैं वह निरन्तर बुरा होता था।
\v 6 यहोवा को इस बात का दुःख हुआ कि उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्यों को बनाया। इन बातो ने यहोवा को बहुत दुःखी किया।
\s5
\v 7 तब यहोवा ने कहा, "मैं अपनी बनाई पृथ्वी के सारे लोगों को खत्म कर दूँगा। मैं हर बड़े जानवर, पृथ्वी पर रेंगने वाले प्रत्येक जीवजन्तु और पक्षियों को भी नाश करूँगा। इनमें से कोई भी पृथ्वी पर जीवित नहीं रहेगा क्योंकि मैं इस बात से दुःखी हूँँ कि मैंने इन सभी को बनाया।"
\p
\v 8 परन्तु यहोवा नूह से प्रसन्न थे।
\s5
\v 9 नूह एक ऐसा व्यक्ति था जिसका व्यवहार हमेशा धार्मिक था। उस समय का कोई भी व्यक्ति नूह की आलोचना नहीं कर सकता था। नूह परमेश्वर के साथ रहता था।
\v 10 नूह के तीन पुत्र थे: शेम, हाम और येपेत।
\p
\s5
\v 11 परमेश्वर ने देखा कि पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति बहुत दुष्ट थे और पृथ्वी पर सभी स्थानों के लोग एक-दूसरे के प्रति क्रूर और हिंसक थे।
\v 12 परमेश्वर ने पृथ्वी पर दृष्टि की और देखा कि लोग कितने बुरे थे क्योंकि पृथ्वी पर सभी लोग एक-दुसरे के साथ दुष्टता का व्यवहार कर रहे थे।
\s5
\v 13 इसलिए परमेश्वर ने नूह से कहा, "मैंने सभी लोगों को नष्ट करने का निर्णय किया है क्योंकि सारी पृथ्वी पर लोग एक-दूसरे के प्रति हिंसक हैं। इसलिए मैं सभी जीवित प्राणियों से छुटकारा चाहता हूँ इसके साथ ही पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु से भी। मैं उनको पृथ्वी से मिटाऊँगा।
\v 14 गोपेर की लकड़ी से अपने लिए एक जहाज बना। इसके अंदर कमरे बना। जल अन्दर न आये इसलिए इसे राल से अन्दर और बाहर पोत दे।
\v 15 तुझे इसे ऐसे ही बनाना है: यह जहाज 138 मीटर लंबा, 24 मीटर चौड़ा और 14 मीटर ऊँचा होना चाहिए।
\s5
\v 16 जहाज के लिए छत बना। हवा और प्रकाश प्रवेश करने के लिए किनारों और छत के बीच लगभग आधे मीटर की स्थान छोड़ देना। इसके अंदर तीन मंजिलें बना और एक दरवाजा रख।
\v 17 ध्यान से सुन! मैं जल प्रलय लाने वाला हूँँ जो आकाश के नीचे रहने वाले और पृथ्वी के सभी प्राणियों को नष्ट कर देगा।
\s5
\v 18 किन्तु मैं तुझ से एक विशेष प्रतिज्ञा करता हूँ, तू और तेरी पत्नी, तेरे पुत्र और उनकी पत्नियाँ सभी जहाज में प्रवेश करेंगे।
\v 19 तुझे अपने साथ जहाज में सभी जीवित प्राणियों के एक नर और एक मादा को भी ले जाना है ताकि वे भी जीवित रह सकें।
\s5
\v 20 तेरे पास हर प्रकार के दो प्राणी आएंगे ताकि तू उन्हें जीवित रख सके। इसमें प्रत्येक प्रकार के दो पक्षी और प्रत्येक प्रकार के दो बड़े जानवर और प्रत्येक प्रकार के पृथ्वी पर रेंगने वाले दो जन्तु हों।
\v 21 तुमको सभी प्रकार के वैसे भोजन भी लेने हैं जिनकी आवश्यकता इन सभी प्राणियों को होगी। भोजन को जहाज में जमा कर लेना। "
\v 22 तब नूह ने सब कुछ किया जो परमेश्वर ने नूह से करने के लिए कहा था।
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब यहोवा ने नूह से कहा, "मैंने देखा है कि इस समय के सभी जीवित लोगों में तू ही एक अकेला है जो न्यायपूर्ण ढंग से काम करता है। इसलिए मैं चाहता हूँँ कि तू और तेरा परिवार जहाज में जा।
\v 2 तू अपने साथ हर प्रकार के जानवरो के सात जोड़े लेना जिनका बलिदान मैं स्वीकार करूँगा। सात नर और सात मादा ले। एक नर और एक मादा उन जानवरों का लेना जिनका बलिदान स्वीकार करने से मैंने मना कर दिया था।
\v 3 उनके वंश को पृथ्वी पर जीवित रखने के लिए हर प्रकार की पक्षियों के सात जोड़े भी लें।
\s5
\v 4 ऐसा इसलिए कर क्योंकि अब से सातवें दिन मैं पृथ्वी पर अत्याधिक वर्षा भेजूँगा। यह वर्षा चालीस दिन और चालीस रात होती रहेगी। इस प्रकार, मैंने पृथ्वी पर जो कुछ भी बनाया है उन सबको मैं नष्ट कर दूँगा।"
\p
\v 5 नूह ने वह सबकुछ किया जो यहोवा ने नूह को करने के लिए कहा था।
\s5
\v 6 धरती पर जल प्रलय आने के समय नूह छः सौ वर्ष का था।
\v 7 वर्षा शुरू होने से पहले, नूह और उसकी पत्नी और उसके बेटे और उनके बेटो की पत्नियाँ जलप्रलय से बचने के लिए जहाज में आ गए।
\s5
\v 8 उन जानवरों के जोड़े जिनको परमेश्वर ने कहा था कि वह बलिदान के लिए स्वीकार किए जाएँगे और वे जोड़े भी जो बलिदान के लिए स्वीकार नहीं किए जाएँगे, और पक्षियों के जोड़े और सभी प्रकार के प्राणियों के जोड़े जो भूमि पर रेंगते हैं,
\v 9 सभी प्रकार के नर और मादा जानवर नूह के पास आए और परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जहाज में चढ़े।
\v 10 सात दिनों बाद वर्षा शुरू हुई और जल पृथ्वी पर बढ़ने लगा।
\s5
\v 11 जब नूह छह सौ वर्ष का था तो दूसरे महीने के सत्रहवें दिन पृथ्वी के नीचे का सारा जल फूट के बहना शुरु हो गया। उसी दिन पृथ्वी पर अत्याधिक वर्षा होने लगी ऐसा लगा मानो आकाश फट गया हो।
\v 12 चालीस दिन और चालीस रात तक निरन्तर वर्षा पृथ्वी पर होती रही।
\s5
\v 13 जिस दिन वर्षा शुरू हुई उसी दिन नूह, उसकी पत्नी, उसके पुत्र शेम, हाम और येपेत और उनकी पत्नियाँ जहाज़ में प्रवेश कर गए।
\v 14 नूह और उसके परिवार सहित हर प्रकार के जंगली जानवर, हर प्रकार के पालतू पशु, धरती पर रेंगनेवाले प्रत्येक प्रकार के जन्‍तु, हर प्रकार के पक्षी और पंख वाले हर प्रकार के प्राणी जहाज में प्रवेश कर गए।
\s5
\v 15 सांस लेने वाले सभी प्राणियों के जोड़े नूह के पास आए और उन्होंने जहाज में प्रवेश किया।
\v 16 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सभी जानवरों के नर और मादा नूह के पास आये और जहाज़ में चढ़े। उनके अन्दर जाने के बाद यहोवा ने दरवाज़ा बन्द कर दिया।
\p
\s5
\v 17 चालीस दिन तक जल प्रलय होता रहा और जल बढ़ना शुरु हुआ। जल ने जहाज को भूमि से ऊपर उठा दिया।
\v 18 जल पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया और जहाज जल के ऊपर तैरता रहा।
\s5
\v 19 जल पृथ्‍वी पर इतना बढ़ गया कि ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और पृथ्वी पर सब कुछ उसमें डूब गए।
\v 20 जल यहाँ तक बढ़ा कि ऊँचे पहाड़ भी छह मीटर से अधिक जल से ढके थे और आकाश के नीचे स्थिर थे।
\s5
\v 21 इसके परिणामस्वरूप, पृथ्वी के सभी जीव मारे गए। इसमें पक्षियों, पालतू पशु, जंगली जानवरों, और अन्य सभी जीव पृथ्वी पर रेंगने वाले जीव शामिल थे। पृथ्वी पर सभी लोग मारे गए।
\v 22 पृथ्वी पर सांस लेने वाला प्रत्येक जीव मारा गया।
\s5
\v 23 इस प्रकार पृथ्वी के सभी जीव मर गये। मरने वालो में हर मनुष्य, हर एक बड़ा जानवर, हर एक रेंगने वाला जीव और हर एक पक्षी शामिल थे। जीवित बचने वालों में नूह और उसके साथ जहाज में रहने वाले थे।
\v 24 जल 150 दिनों तक पृथ्वी पूरी तरह जल प्रलय में डूबी रही।
\s5
\c 8
\p
\v 1 परन्तु परमेश्वर नूह को नहीं भूले, न ही परमेश्वर सभी जंगली जानवरों, और पालतू पशुओं को भूले जो नूह के साथ जहाज में थे। एक दिन परमेश्वर ने पृथ्वी पर हवा को बहाया और हवा बहने से सारा जल कम होने लगा
\v 2 परमेश्वर ने पृथ्वी के नीचे से जल को निकलने से रोका और आकाश से भी जल का गिरना रोका और वर्षा रूक गई।
\v 3 पृथ्वी पर जल धीरे-धीरे कम हो गया। बाढ़ के एक सौ पचास दिन बाद जल बहुत कम हो गया।
\s5
\v 4 सातवें महीने के सत्रहवें दिन जहाज अरारात के पहाड़ों में से किसी एक पर आ टिका।
\v 5 उस वर्ष के दसवें महीने के पहले दिन तक जल का कम होना जारी रहा और अन्य पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई देने लगीं।
\s5
\v 6 चालीस दिन बाद, नूह ने उस खिड़की को खोला जो उसने जहाज के किनारे पर बनायी थी, और एक कौवा बाहर भेजा।
\v 7 कौवा इधर-उधर उड़ता रहा जब तक कि पृथ्वी की सतह पूरी तरह से नहीं सूख गयी।
\s5
\v 8 तब नूह ने एक कबूतर भेजा यह पता लगाने के लिए कि जल पृथ्वी की सतह से कम हुआ है या नहीं।
\v 9 लेकिन कबूतर को कहीं बैठने का स्थान नहीं मिला क्योंकि अभी तक जल पृथ्वी पर फैला हुआ था। इसलिए वह जहाज में लौट आया और नूह ने अपने हाथ को बाहर निकालकर कबूतर को जहाज के अंदर वापस ले लिया।
\s5
\v 10 नूह ने सात दिन के बाद फिर कबूतर को जहाज से बाहर भेजा।
\v 11 इस बार कबूतर शाम को नूह के पास लौटा और आश्चर्य की बात है कि एक जैतून का पत्ता उसकी चोंच में था। तब नूह को ज्ञात हुआ कि अब जल पृथ्वी पर कम हो गया है।
\v 12 नूह ने फिर से सात दिन प्रतीक्षा की और सात दिनों के बाद कबूतर को फिर से भेजा लेकिन इस बार वह नूह के पास वापस नहीं आया।
\p
\s5
\v 13 नूह अब 601 वर्ष का था। उस वर्ष के पहले महीने के पहले दिन, भूमि से जल पूरी तरह सूख चुका था। नूह ने जहाज की छत की खिड़की खोल कर देखा, और वह देखकर आश्चर्यचकित हुआ कि भूमि की सतह सूख रही थी।
\v 14 अगले महीने के पच्चीसवें दिन तक, पृथ्वी पूरी तरह सूख गयी।
\s5
\v 15 तब परमेश्वर ने नूह से कहा,
\v 16 "तू, अपनी पत्नी, अपने पुत्र और उनकी पत्नियाँ सभी को लेकर अब जहाज से बाहर निकलो।
\v 17 तुम सभी पक्षियों, पालतू जन्तुओ, और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जीवों को बाहर लाओ, ताकि वे पूरी पृथ्वी पर फैल सकें और अनगिनत हो जाएँ।"
\s5
\v 18 तब नूह अपने पुत्रों, अपनी पत्नी, अपने पुत्रों की पत्नियों के साथ जहाज़ से बाहर आया।
\v 19 तब सभी जानवरों, सभी रेंगने वाले जीवों और सभी पक्षियों ने जहाज़ को छोड़ दिया। जहाज से वे अपनी जाती के जानवरों के साथ समूहों में निकले।
\p
\s5
\v 20 तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई। नूह ने कुछ जानवरों और पक्षियों को लिया जो बलिदान के रूप में स्वीकार्य थे और उनकी बलि दी। और नूह ने उनको वेदी पर पूरा जलाया।
\v 21 जब यहोवा ने बलियों की सुगन्ध पाई तो वे प्रसन्न हुए। तब परमेश्वर ने स्वयं से कहा, "मैं कभी भी लोगों के पाप के कारण पृथ्वी का विनाश नहीं करूँगा। भले ही मनुष्य छोटी आयु से ही बुरी बातें सोचे, जैसा मैंने इस बार किया है इस प्रकार मैं कभी भी सारे प्राणियों का विनाश नहीं करूँगा।
\v 22 जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक इस पर फसल उगाने और फ़सल काटने का समय, गर्मी, सर्दी, दिन और रात सदा होते रहेंगे।"
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब परमेश्वर ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी। परमेश्वर ने उनसे कहा, "मैं चाहता हूँँ कि तुम बहुत से संतान पैदा करो जो पूरी पृथ्वी पर भर जाएं।
\v 2 पृथ्वी के सभी बड़े जानवर, हर एक पक्षी, पृथ्वी पर रेंगने वाला हर एक जीव, हर एक मछली तुम से डरेंगे। तुम इन सभी के ऊपर शासन करोगे। मैं उन्हें तुम्हारे अधिकार में रखता हूँँ।
\s5
\v 3 पहले मैंने तुमको हरे पेड़-पौधे खाने की अनुमति दी थी। लेकिन अब तुम उन सभी को अपना भोजन बना सकते हो जिनमें प्राण है और जो चलते फिरते हैं।
\v 4 लेकिन तुम उस मांस को नहीं खाना जिसमें खून है, क्योंकि उसके खून में उसका जीवन है।
\s5
\v 5 जो कोई भी मनुष्य को मारेगा मैं उसे दण्डित करूँगा- ताकि वह यहोवा के प्रति उत्तरदायी हो- चाहे वह पशु हो या मनुष्य। हत्यारों को अपने अपराधों के लिए पीड़ा सहनी पड़ेगी और अपने जीवन से ही उसका भुगतान करना होगा। यहाँ तक कि जब एक जानवर किसी व्यक्ति को मारता है, तब भी उस जानवर की जान लेनी होगी क्योंकि उसने मनुष्य का जीवन लिया है।
\v 6 क्योंकि मैंने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया है इसलिए मैं जोर देकर कहता हूँ कि यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की हत्या करता है तो लोगों को उसे मार डालना चाहिए। कोई भी किसी और का खून बहाता है उसका अपना भी खून बहेगा।
\p
\v 7 तुमसे मैं यह चाहता हूँ कि तुम बहुत सारी संतान पैदा करो ताकि वे और उनके वंशज पूरी पृथ्वी पर रह सकें।"
\p
\s5
\v 8 परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों से यह भी कहा,
\v 9 "ध्यान से सुनो। अब मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को वचन देता हूँँ,
\v 10 मैं यह वचन तुम्हारे साथ उस हर प्राणी को देता हूँ जो जीवित है- पक्षियों, पालतू पशु, जंगली जानवरों सहित पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीवित प्राणी जो तुम्हारे साथ जहाज से निकले हैं।
\s5
\v 11 मैं तुमको वचन दे रहा हूँ: मैं कभी भी बाढ़ से जीवित प्राणी को नष्ट नहीं करूँगा और न ही बाढ़ से पृथ्वी की किसी भी वस्तु को नष्ट करूँगा।"
\p
\v 12 तब परमेश्वर ने उससे कहा, "मेरी प्रतिज्ञा यह आश्वासन देने के लिए है कि जो वचन मैंने तुझे और सभी जीवित प्राणियों को दिया है उसे मैं हमेशा याद रखूँगा:
\v 13 समय-समय पर मैं आकाश में मेघधनुष दिखलाऊँगा। यह तुम्हारे और पृथ्वी पर सबके मध्य दिये गए मेरी प्रतिज्ञा का चिन्ह होगा।
\s5
\v 14 जब मैं बादलों से वर्षा करवाऊँगा तब आकाश में एक मेघधनुष दिखाई पड़ेगा।
\v 15 यह मुझे उस प्रतिज्ञा को याद दिलाएगा जो मैंने तुम्हारे और सभी जीवित प्राणियों के साथ किया है। मेरी प्रतिज्ञा है कि बाढ़ फिर कभी पृथ्वी के प्राणियों को नष्ट नहीं करेगी।
\s5
\v 16 जब भी आकाश में मेघधनुष निकलेगा और मैं उसे देखूँगा तब मैं उस प्रतिज्ञा को याद करूँगा जो मैंने पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव के साथ की है और जिसे मैं सदा पूरा करता रहूँगा।"
\p
\v 17 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, "मेघधनुष उस प्रतिज्ञा का चिन्ह होगा जो मैंने पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों के साथ की है।"
\p
\s5
\v 18 नूह के पुत्र जो जहाज से निकले उनके नाम थे; शेम, हाम और येपेत। बाद में हाम कनान का पिता बना ।
\v 19 संसार के सभी लोग नूह के इन तीनों बेटों के वंशज हैं।
\p
\s5
\v 20 नूह ने भूमि पर खेती करना आरम्‍भ किया। उसने अंगूर के बाग़ लगाए।
\v 21 अंगूरों के फलने पर उसने अंगूरों से दाखरस बनाया। एक दिन उसने बहुत दाखरस पीलिया और मतवाला हो गया और वह अपने तम्बू में बिना कपड़े के लेट गया।
\s5
\v 22 कनान के पिता हाम ने अपने पिता को तम्बू में नंगा देखा। वह बाहर आया और हाम ने अपने बड़े भाइयों को जो देखा वह बताया।
\v 23 तब शेम और येपेत ने एक बड़ा कपड़ा लिया, उसे पीठ पर डाल कर पीछे की ओर तम्बू में ले गए। उन्होंने कपड़े से अपने पिता के नग्न शरीर को ढँक दिया और उन्होंने अपने पिता के शरीर से मुँह फेर रखा था इसलिए उन्होंने अपने पिता को नग्न नहीं देखा।
\s5
\v 24 बाद में जब नूह सोकर उठा, वह शांत हो गया था। उसे ज्ञात हुआ कि उसके सबसे छोटे पुत्र हाम ने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया था।
\v 25 उसने कहा, "मैं हाम के पुत्र कनान और उसके वंशजों को शाप देता हूँँ कि वे अपने चाचाओं के दास होंगे।
\q
\s5
\v 26 मैं उन यहोवा की स्तुति करता हूँँ जिनकी आराधना शेम करता है। कनान के वंशज शेम के वंशज के दास हों ।
\v 27 लेकिन परमेश्वर येपेत को अधिक भूमि दें। परमेश्वर येपेत के वंशजों को शेम के वंशजों के साथ शांतिपूर्वक रखे। कनान के वंशज शेम के वंशज के दास हों। "
\p
\s5
\v 28 जलप्रलय के बाद नूह 350 वर्ष जीवित रहा।
\v 29 950 वर्ष की उम्र में नूह मर गया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 ये नूह के पुत्र शेम, हाम, और येपेत के वंशज थे जो जलप्रलय के बाद वे अनेक संतानों के पिता बने।
\s5
\v 2 येपेत के पुत्र गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक और तीरास थे।
\v 3 गोमेर के पुत्र अश्कनज, रीपत और तोगर्मा थे।
\v 4 यावन के पुत्र एलीशा, तर्शीश, कित्ती और दोदानी थे।
\v 5 यावन के पुत्र और उनके परिवार जो यावन के वंशज थे, द्वीपों और समुद्र के तट की भूमि में रहते थे।उनके वंशजों से ही लोगों का समाज बना, जिनकी अपनी-अपनी भाषा, कुल और प्रदेश थे।
\s5
\v 6 हाम के पुत्र कूश, मिस्र, फूत और कनान थे।
\p
\v 7 कुश के पुत्र सबा, हवीला, सबता, रामा, सब्तका थे। रामा के पुत्र शबा और ददान थे।
\p
\s5
\v 8 कुश के पुत्रों में से एक पुत्र का नाम निम्रोद था। निम्रोद पृथ्वी का पहला शक्तिशाली योद्धा बना।
\v 9 यहोवा ने देखा कि वह एक महान शिकारी बन गया है। यही कारण है कि लोग कहते हैं वह महान शिकारी है, यहोवा की दृष्टी में निम्रोद के समान महान शिकारी।"
\v 10 निम्रोद एक राजा बन गया और उसने बाबेल प्रदेश पर शासन किया। बाबेल, एरेख अक्कद और कलने ये वो नगर थे जिन पर निम्रोद ने शासन किया था।
\s5
\v 11 वहाँ से वह अन्य लोगों के साथ अश्शूर भी गया, और वहाँ उसने निनवे, रहोबोतीर, कालह और रेसेन नाम के नगरों का निर्माण किया,
\v 12 रेसेन नीनवे और बड़े नगर कालह के बीच का एक बड़ा नगर था।
\p
\v 13 हाम का पुत्र मिस्र, लूदी, अनामी, लहाब और नप्तुह,
\v 14 पत्रूस, कसलूह और कप्तोर के लोगों के समुदाय का पूर्वज बना। पलिश्ती लोग कसलूह के वंशज थे।
\p
\s5
\v 15 हाम का सबसे छोटा पुत्र कनान, सीदोन का पिता था जो सीदोन कनान का बड़ा पुत्र और हित्त उसका छोटा पुत्र था।
\v 16 कनान के वंशज थे; यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी
\v 17 हिब्बी, अर्की, सीनी,
\v 18 अर्वदी, समारी, हमाती के समुदाय आगे चलकर कनान के वंशज एक बड़े क्षेत्र में फैल गये।
\s5
\v 19 उनकी भूमि उत्तर में सीदोन नगर से लेकर, दक्षिण में गाजा तक जो गरार के निकट पूर्व दिशा में सदोम और गमोरा, अदमा और सबोयीम के नगरों तक, वहाँ से लाशा तक थी।
\p
\v 20 ये सभी लोग हाम के वंशज हैं। इन सभी लोगों के अपने कुल, अपनी भाषा और अपनी भूमि थी।
\p
\s5
\v 21 शेम जो येपेत का बड़ा भाई था और उसके भी पुत्र थे, और शेम एबेर के सारे वंशजों का पूर्वज बना।
\v 22 शेम के पुत्र एलाम, अश्शूर, अर्पक्षद, लूद और अराम थे।
\v 23 अराम के पुत्र ऊस, हूल, गेतेर और मश थे।
\s5
\v 24 अर्पक्षद शेलह का पिता बना। शेलह एबेर का पिता बना।
\v 25 एबेर दो पुत्रों का पिता बना। उनमें से एक पुत्र का नाम पेलेग था, जिसका अर्थ है "विभाजन," क्योंकि उस समय के दौरान, पृथ्वी पर लोग विभाजित हो गए और हर स्थान बिखरे हुए थे। पेलेग का छोटा भाई योक्तान था।
\s5
\v 26 योक्तान अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, येरह,
\v 27 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला,
\v 28 ओबाल, अबीमाएल, शबा,
\v 29 ओपीर हवीला और योबाब का पिता था। ये सभी योक्तान के पुत्र थे।
\s5
\v 30 शेम के पुत्रों के कुल मेशा से सपारा तक फैलने लगे, जो पूर्व दिशा के पहाड़ी देश में है।
\v 31 वे शेम के पुत्रों के वंशज हैं। वे ऐसे समुदाय थे जिनके अपने स्वयं के समूह, अपनी भाषाएं और अपनी भूमि थी।
\p
\s5
\v 32 ये सभी कुल नूह के पुत्रों से निकले थे। प्रत्येक कुल की अपनी वंशावली थी और वे अलग समुदाय बने। इनके समुदाय जलप्रलय के बाद बढ़ते गये और पृथ्वी के चारों ओर फैल गए।
\s5
\c 11
\p
\v 1 इस समय, संसार के सभी लोग एक ही भाषा बोलते थे।
\v 2 जब लोग पूर्व दिशा की ओर बढ़े, वे बाबुल क्षेत्र के एक मैदान में पहुँचे और वहाँ रहने लगे।
\p
\s5
\v 3 तब उन्होंने एक दूसरे से कहा, "चलो हम ईंटें बनाते हैं और इन्हें आग में तपा कर ठोस करके इमारत बनाने में इसका प्रयोग करते हैं।" इसलिए उन्होंने पत्थरों की अपेक्षा ईंटों का प्रयोग किया, और गारे के स्थान पर राल का प्रयोग किया।
\v 4 उन्होंने कहा, "हम अपने लिए एक नगर बनाएँ! हम एक बहुत ऊँची इमारत बनाएँगे जो आकाश को छुएगी। इस प्रकार लोग जान लेंगे कि हम कौन हैं! यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हम पूरी पृथ्वी पर बिखर जाएँगे!"
\p
\s5
\v 5 एक दिन यहोवा नगर और उस इमारत को जो लोग बना रहे थे देखने के लिए नीचे आये।
\v 6 यहोवा ने कहा, "ये लोग एक समुदाय हैं जो एक ही भाषा बोलते हैं। यदि उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया है तो ऐसा कुछ भी नहीं है जो वे करने का निर्णय करें और उनके लिए वह असंभव होगा!
\v 7 इसलिए आओ हम नीचें चले और लोगों को अलग-अलग भाषाएँ बुलवाए ताकि वे एक-दूसरे की बातें समझ न सकें। "
\p
\s5
\v 8 ऐसा करके, यहोवा ने लोगों को पूरी पृथ्वी पर बिखेर दिया और लोगों ने नगर का निर्माण बंद कर दिया।
\v 9 नगर को बाबेल कहा जाता था, क्योंकि वहाँ यहोवा ने पूरी पृथ्वी के लोगों के साथ ऐसा किया कि अब सभी मात्र एक भाषा नहीं बोलते थे। और यहोवा ने उन्हें सारी पृथ्वी पर तितर-बितर कर दिया।
\p
\s5
\v 10 ये सभी शेम के वंशज हैं। जलप्रलय के दो वर्ष बाद, जब शेम एक सौ वर्ष का था, वह अर्पक्षद का पिता बना।
\v 11 अर्पक्षद के जन्म के बाद, शेम पांच सौ वर्ष जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियाँ का पिता बना।
\p
\s5
\v 12 जब अर्पक्षद पैंतीस वर्ष का था तब वह शेलह का पिता बना।
\v 13 शेलह के जन्म के बाद, अर्पक्षद 403 वर्ष और जीवित रहा और दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\s5
\v 14 जब शेलह तीस वर्ष का था तब वह एबेर का पिता बना।
\v 15 एबेर के जन्म के बाद शेलह 403 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\s5
\v 16 जब एबेर चौबीस वर्ष का था तो वह पेलेग का पिता बना।
\v 17 पेलेग के जन्म के बाद एबेर 430 और वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\s5
\v 18 जब पेलेग तीस वर्ष का था वह रु के पिता बना।
\v 19 रु के जन्म के बाद, पेलेग 209 और वर्ष जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\s5
\v 20 जब रु बत्तीस वर्ष का था तो वह सरूग का पिता बना।
\v 21 सरुग के जन्म के बाद, रु 207 और वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\s5
\v 22 जब सरुग तीस वर्ष का था, तब वह नाहोर का पिता बना।
\v 23 नाहोर के जन्म के बाद, सेरुग दो सौ वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\s5
\v 24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का था, तब वह तेरह का पिता बना।
\v 25 तेरह के जन्म के बाद, नाहोर 119 वर्ष और जीवित रहा और अन्य पुत्रों और पुत्रियों का पिता बना।
\p
\v 26 तेरह जब सत्तर वर्ष का था तब वह अब्राम, नाहोर और हारान का पिता बना।
\p
\s5
\v 27 यह तेरह के वंशजों का विवरण है: तेरह के पुत्र अब्राम, नाहोर और हारान थे। हारान के पुत्र का नाम लूत था।
\v 28 हारान के पिता हारान के साथ थे जब हारन की मृत्यु ऊर नगर में हुई जो कसदियों का देश था। यह वह भूमि थी जहाँ वह पैदा हुआ था।
\s5
\v 29 अब्राम और नाहोर दोनों विवाहित थे। अब्राम की पत्नी का नाम सारै था, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था। मिल्का और उसकी बहन यिस्का हारान की पुत्रियाँ थीं।
\v 30 सारै संतान को जन्म देने में असमर्थ थी।
\p
\s5
\v 31 तेरह ने ऊर छोड़ने और कनान देश में रहने का निर्णय किया। इसलिए उसने अपने पुत्र अब्राम और अपने पोते लूत (हारान के पुत्र) और अब्राम की पत्नी सारै को अपने साथ ले लिया। लेकिन कनान जाने की अपेक्षा, वे हारान नगर में रुके और वहाँ ठहरना तय किया।
\v 32 जब तेरह 205 वर्ष का था तो वह हारान में मर गया।
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, "अपने देश को छोड़ दे जहाँ तू रह रहा है। अपने पिता के कुल और उसके परिवार को छोड़ दे और उस देश को जा जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।
\v 2 मैं तेरे वंशजों को एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा। मैं तुझे आशीर्वाद दूँगा और प्रसिद्ध करूँगा। मैं तेरे लिए जो करूँगा वो दूसरो के लिए आशीर्वाद होगा।
\v 3 मैं उन लोगों को आशीर्वाद दूँगा, जो तुझको आशीर्वाद देंगे और मैं उन लोगों को श्राप दूँगा जो तेरा बुरा करेंगे। मैं तेरे माध्यम से पृथ्वी के सभी कुलों को आशीर्वाद दूँगा।"
\p
\s5
\v 4 तब अब्राम ने हारान देश को छोड़ दिया जैसा यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था। अब्राम जब अपने परिवार और लूत के परिवार के साथ वहाँ से निकला तब वह पचहत्तर वर्ष का था ।
\v 5 अब्राम अपनी पत्नी सारै, भतीजे लूत और हारान प्रदेश में जमा की गई सारी संपत्ति और दासों को भी अपने साथ ले लिया। वे वहाँ से कनान देश गए।
\s5
\v 6 कनान देश में शकेम के नगर तक उन्होंने यात्रा की और बड़े पेड़ के निकट जिसे मोरे का पेड़ कहते थे वहाँ छावनी लगाई। उस समय कनानी लोग उस देश में रहते थे।
\p
\v 7 तब यहोवा अब्राम के सामने प्रकट हुए और कहा, "मैं यह देश तेरे वंशजों को दूँगा।" तब अब्राम ने यहोवा को बलि चढ़ाने के लिए एक वेदी बनाई, क्योंकि यहोवा उसके लिए ही प्रकट हुए थे।
\s5
\v 8 शकेम से, अब्राम और उसका परिवार बेतेल के पूर्व दिशा की पहाड़ियों पर चढ़ गया। बेतेल वहाँ से पश्चिम में था जहाँ उन्होंने अपने तम्बू स्थापित किये थे, और आई नगर पूर्व दिशा में था। वहाँ उन्होंने एक और वेदी बनाई और बलि चढ़ाया और वहाँ यहोवा की आराधना की।
\v 9 तब वे वहाँ से चले गए और दक्षिण में नेगव रेगिस्तान की ओर यात्रा को जारी रखा।
\p
\s5
\v 10 उस देश में अकाल पड़ा था इसलिए वे मिस्र देश में थोडे समय तक प्रवास करने के लिए आगे दक्षिण की ओर चले गए। उस देश में भोजन की कमी थी और यह गंभीर समस्या थी।
\v 11 जब वे मिस्र देश के निकट पहुँचे तब अब्राम ने अपनी पत्नी सारै से कहा, "सुन, मुझे पता है कि तू बहुत सुंदर स्त्री है।
\v 12 जब मिस्र के लोग तुझे देखेंगे तो वे कहेंगे, 'यह स्त्री इसकी पत्नी है!' और वे मुझे मार डालेंगे लेकिन वे तुझे नहीं मारेंगे।
\v 13 इसलिए मैं तुझे जो कहने के लिए कहता हूँँ वही तू लोगों से कहना कि तू मेरी बहन है ताकि मैं सुरक्षित रहूँ और वे तेरे कारण मेरे जीवन को छोड़ देंगे।"
\p
\s5
\v 14 और यही हुआ, जैसे ही वे मिस्र पहुँचे, मिस्र के लोगों ने देखा कि उसकी पत्नी वास्तव में बहुत सुन्दर थी।
\v 15 जब राजा के अधिकारियों ने उसे देखा, तो उन्होंने राजा से कहा कि वह बहुत सुन्दर स्त्री है। तब राजा उसे अपने महल में ले आया।
\v 16 राजा ने सारै के कारण अब्राम से अच्छा व्‍यवहार किया और उसने अब्राम को भेड़ें, मवेशी और गदहे, स्त्री और पुरुष दास और ऊंट दिए।
\s5
\v 17 परन्तु राजा ने अब्राम की पत्नी सारै को रख लिया इसलिए यहोवा ने राजा और राजा के परिवार को भयंकर बीमारियों से पीड़ित किया।
\v 18 तब राजा ने अब्राम को बुलाया और कहा, "तूने मेरे साथ बहुत गलत किया है! तूने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि सारै तेरी पत्नी है?
\v 19 तूने क्यों कहा कि वह तेरी बहन है मैंने इसे इसलिए रखा कि यह मेरी पत्नी होगी। तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था! अब अपनी पत्‍नी को लेकर चले जाओ!"
\v 20 तब राजा ने अपने अधिकारियों को अब्राम और उसकी पत्नी और उसकी सारी संपत्ति को मिस्र से बाहर ले जाने का आदेश दिया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 अब्राम और सारै ने मिस्र छोड़ दिया और दक्षिणी जुदेन के जंगल में वापस चले गये। वे अपनी सारी सम्पत्ति साथ ले गये और लूत भी उनके साथ चला गया।
\v 2 अब्राम बहुत धनी हो गया था। उसके पास बहुत से जानवर, चाँदी और सोना था।
\s5
\v 3 वे दक्षिणी जुदेन के जंगल से बेतेल की ओर विभिन्न स्थानों की यात्रा करते हुए, बेतेल और आई के बीच के प्रदेश पहुँचे, जहाँ वे पहले अपने तम्बू लगाकर ठहरे थे।
\v 4 यह वही स्थान था जहाँ अब्राम ने एक वेदी बनाई थी; वहाँ उसने फिर से यहोवा की आराधना की।
\s5
\v 5 लूत, जो अब्राम के साथ यात्रा कर रहा था उसके पास भी भेड़, बकरी, पशुओं के झुण्ड और तम्‍बू भी थे।
\v 6 अब्राम और लूत के पास इतने अधिक जानवर थे कि वे सभी एक ही क्षेत्र में नहीं रह सकते थे।सभी जानवरों को जल और भोजन प्रदान करने के लिए पर्याप्त भूमि नहीं थी।
\v 7 इसके अतिरिक्त, अब्राम और लूत के लोग जो पशुओं की देखभाल करते थे वे एक-दूसरे के साथ झगड़ा शुरू कर देते थे । कनान और पेरेज़ के वंशज भी उस क्षेत्र में रहते थे।
\s5
\v 8 तब अब्राम ने लूत से कहा, "हम और हमारे उन लोगों का जो जानवरों की देखभाल करते हैं, आपस में झगड़ा करना अच्छा नहीं है क्योंकि हम करीबी रिश्तेदार हैं।
\v 9 हम दोनों के लिए बहुत अधिक भूमि है इसलिए हमें अलग हो जाना चाहिए। तू जो भी हिस्सा चाहता है उसे चुन सकता है। यदि तू वह स्थान चाहता है तो मैं यहाँ रहूँगा और यदि तू यहाँ रहना चाहता है तो मैं वहाँ जाऊँगा।"
\s5
\v 10 लूत ने सोअर की ओर देखा कि यरदन नदी के पास पूरे मैदान में बहुत अधिक जल है। यह बात उस समय की है जब यहोवा ने सदोम और गमोरा को नष्ट नहीं किया था। उस समय यरदन की घाटी यहोवा के बगीचे के समान थी, जो नील नदी के पास मिस्र देश की भूमि के समान थी।
\v 11 इसलिए लूत ने स्वयं के लिए यरदन नदी के मैदानी भूमि को चुना। उसने अपने चाचा, अब्राम को छोड़ दिया और पूर्व दिशा की ओर चला गया।
\s5
\v 12 अब्राम कनान देश में रहा, और लूत यरदन नदी के मैदानी नगरों में रहने के लिए चला गया और उसने सदोम के पास अपने तंबू लगाए।
\v 13 सदोम में रहनेवाले लोग बहुत दुष्ट थे और यहोवा के विरूद्ध भयानक पाप करते थे।
\p
\s5
\v 14 अब्राम और लूत के अलग होने के बाद, यहोवा ने अब्राम से कहा, "इस पूरे क्षेत्र को देखो जहाँ तू है। उत्तर, दक्षिण देख, पूर्व और पश्चिम देख।
\v 15 यह सारी भूमि, जिसे तू देखता है, मैं तुझे और तेरे वंशजो को दूँगा। मैं यह सदा के लिए तुझे दूँगा।
\s5
\v 16 मैं तेरे लोगों को पृथ्वी के कणों के समान अनगिनत बनाऊँगा। यदि कोई व्यक्ति पृथ्वी के कणों को गिन सकेगा तो वह तेरे लोगों को भी गिन सकेगा।
\v 17 हर दिशा में जा क्योंकि मैं यह सब तुझे देनेवाला हूँँ।"
\v 18 तब अब्राम ने अपना तम्बू हटाया और हेब्रोन चला गया और वह मम्रे के बड़े पेड़ों के पास रहने लगा। अब्राम ने यहोवा को बलिदान देने के लिए वहाँ पत्थर की एक वेदी बनाई।
\s5
\c 14
\p
\v 1 चार राजाओं का समूह था। वे शिनार का राजा अम्रापेल, एल्लासार का राजा अर्योक, एलाम का राजा कदोर्लाओमेर, गोयीम का राजा तिदाल था।
\v 2 इन सभी राजाओं ने पाँच राजाओं के समूह पर हमला करने की तैयार की: सदोम के राजा बेरा, गमोरा के राजा बिर्शा, अदमा के राजा शिनाब, सबोयीम के राजा शेमेबेर तथा बेला, जो नगर सोअर भी कहा जाता है।
\s5
\v 3 पाँच राजा और उनकी सेना सिद्दीम की घाटी में जिसे मृत सागर की घाटी भी कहा जाता है, चार राजाओं और उनकी सेनाओं से लड़ने के लिए इकट्ठा हुए।
\v 4 बारह वर्षों तक राजा कदोर्लाओमेर ने उन पर शासन किया था लेकिन तेरहवें वर्ष वे सभी उसके विरुद्ध हो गए और उन्होंने कर देने से मना किया।
\v 5 अगले वर्ष, राजा कदोर्लाओमेर और उसके साथ के अन्य राजाओं ने अपनी सेनाएँ इकट्ठी कीं और पाँच राजाओं के क्षेत्र की ओर आने लगे। उन्होंने अशतरोत-कर्नयिम में रापाइयों को, हाम में जूजियों और एमी लोगों को शाबेकिर्यातैम में पराजित किया।
\v 6 उन्होंने होरी लोगों को सेईर के पहाड़ी प्रदेश से लेकर एल्पारान के निकट मरूभूमि में हराया था।
\s5
\v 7 तब वे पीछे को मुडे और एन्मिशपात गये, जिसे अब कादेश कहा जाता है। उन्होंने अमालेकी लोगों और एमोरी लोगों को जो हसासोन्तामार में रहते थे उन पर विजय प्राप्त की।
\p
\v 8 तब सदोम, गमोरा , अदमा, सबोयीम और बेला के राजाओं की सेना सिद्दीम घाटी के चार राजाओं की सेनाओं से लड़ने के लिए बाहर निकली।
\v 9 वे एलाम के राजा कदोर्लाओमेर की सेना, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अम्रापेल और एल्लासार के राजा अर्योक के विरुद्ध लड़े। चार राजाओं की सेना पाँच राजाओं की सेनाओं के विरुद्ध लड़ रही थी।
\s5
\v 10 सिद्दिम की तराई में कोलतार के अनेक गड्ढ़े थे। तो जब सदोम और गमोरा की सेनाएँ इनके सामने से भागी तो बहुत से योद्धा उन गड़हो में गिर पड़े। अन्य सैनिक बच कर पहाड़ों पर भाग गए।
\v 11 जब वे युद्ध क्षेत्र से भाग गए तब शत्रु की सेना ने सदोम और गमोरा की सब मूल्यवान वस्तुओं तथा खाद्य सामग्री को जब्त कर लिया ।
\v 12 उन्होंने अब्राम के भतीजे लूत को बन्दी बना लिया और उसकी संपत्ति पर भी कब्जा कर लिया क्योंकि लूत उस समय सदोम में रहता था।
\s5
\v 13-14 उस समय अब्राम मेम्रे के बड़े वृक्षों के निकट रहता था। मेम्रे एमोरी कुल के थे। अब्राम ने मेम्रे और उसके दो भाइयों, एशकोल तथा आनेर के साथ प्रतिज्ञा की थी कि यदि युद्ध हुआ तो वे एक दूसरे की सहायता के लिए खड़े होंगे। युद्ध से बचकर आए एक व्यक्ति ने अब्राम को युद्ध का समाचार सुनाया कि शत्रु उसके भतीजे लूत को बन्दी बना कर ले गए हैं। अब्राम ने अपने 318 पुरूषों को अपने साथ लिया जो जन्म से ही उसके साथ थे और युद्ध करना जानते थे, उनको साथ लेकर अब्राम ने दान नगर तक शत्रुओं का पीछा किया।
\s5
\v 15 रात के समय अब्राम ने अपने पुरूषों को अनेक दलों में विभाजित किया और विभिन्न दिशाओं से शत्रु की सेना पर धावा बोल दिया। और उन्हें हरा के दमिश्क के उत्तर में होबा तक उनका पीछा किया।
\v 16 अब्राम के पुरुषों ने शत्रुओं द्वारा चुराई गई सभी चीजों को वापस ले लिया। उन्होंने लूत और उसकी सारी संपत्ति और उसकी पत्नी और अन्य लोगों को छुड़ा लिया और वापस ले आया।
\p
\s5
\v 17 जब अब्राम कदोर्लाओमेर और उसके साथ के राजाओं को पराजित करके घर लौट रहा था तब सदोम के राजा शाबे नाम की तराई में, जिसे वे राजा की तराई भी कहते थे, अब्राम से भेंट करने आया।
\v 18 उसी समय शालेम का मलिकिसिदक जो परम प्रधान परमेश्वर का याजक था, अब्राम के लिए रोटी और दाखमधु लेकर आया।
\s5
\v 19 मलिकिसिदक ने अब्राम को आशीर्वाद दिया और कहा: "अब्राम, सबसे परम प्रधान परमेश्वर, जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया, वे तुझे आशीष दें।
\v 20 मैं उन परम प्रधान परमेश्वर की स्तुति करता हूँ क्योंकि उन्होंने तुझे इस योग्य बनाया कि तू शत्रु को पराजित कर सके।" तब अब्राम ने मलिकिसिदक को अपनी लूट का दसवां भाग अर्पित किया।
\s5
\v 21 सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, "जो कुछ भी छुड़ाया है सब रख ले। मात्र अपने नगर से उन लोगों को जिन्हें तूने बन्दी बनाया है, उन्हें वापस लेने दे।"
\v 22 परन्तु अब्राम ने सदोम के राजा से कहा, "मैंने ईमानदारी से यहोवा, परम प्रधान परमेश्वर, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है, उनके सम्मुख यह शपथ ली है;
\v 23 कि जो कुछ तेरा है उसमें से मैं न तो एक सूत और न जूते का बंधन, कुछ भी नहीं लूंगा जिससे तू कभी न कह सके कि, "मैंने अब्राम को धनवान बनाया है।"
\v 24 केवल एक चीज जिसे मैं स्वीकार करूँगा वह है, भोजन जो मेरे युवकों ने खाया है। लेकिन आनेर, एशकोल और मेम्रे ने इस युद्ध में मेरा साथ दिया था, अतः लाए गए सामान का हिस्सेदार उन्हें बनने दे। "
\s5
\c 15
\p
\v 1 कुछ समय बाद अब्राम को दर्शन में यहोवा का आदेश मिला, "किसी से मत डर, मैं तेरी रक्षा करूँगा और मैं एक बड़ा पुरस्कार दूँगा।"
\v 2 परन्तु अब्राम ने भी उत्तर दिया, "हे यहोवा, मुझे वास्तव में जो चाहिए वह आप मुझे कैसे देंगे क्योंकि मेरी कोई संतान नहीं है। मेरी सम्पूर्ण सम्पदा का उत्तराधिकारी मेरा सेवक दमिश्कवासी एलीएजेर है।"
\v 3 अब्राम ने यह भी कहा, "आपने मुझे कोई संतान नहीं दी है इसलिए मेरे घर में एक दास है जो मेरे पास जो कुछ भी है उसका उत्तराधिकारी होगा!"
\s5
\v 4 यहोवा ने उत्तर दिया, "नहीं! वह तेरी सम्पति का उत्तराधिकारी नहीं होगा। तू ही अपनी सम्पदा के उत्तराधिकारी का पिता बनेगा।"
\v 5 तब यहोवा अब्राम को तम्बू के बाहर ले आए और कहा, "आकाश को देख! क्या तू सितारों को गिन सकता है? नहीं, तू नहीं गिन सकता क्योंकि वे अनगिनत हैं। तेरे वंशज भी सितारों के समान अनगिनत होंगे।"
\s5
\v 6 अब्राम ने परमेश्वर पर विश्वास किया कि यहोवा ने जो कुछ कहा है वह पूरा होगा। उसके इस विश्वास के कारण यहोवा ने उसे धर्मी माना।
\v 7 मैं ही तुझे कसदियों के ऊर नगर से निकाल कर लाया हूँ। मैं तुझे यहाँ इसलिए लाया कि तू इस सम्पूर्ण प्रदेश का स्वमी बने।"
\v 8 परन्तु अब्राम ने कहा, "हे प्रभु यहोवा, मुझे कैसे विश्वास हो कि यह प्रदेश मेरा हो जायेगा?"
\s5
\v 9 परमेश्वर ने उससे कहा, "मेरे लिए एक तीन वर्ष का बछड़ा और एक तीन वर्ष की बकरी और एक पेंडुकी और एक कबूतर का बच्चा ले आ।"
\v 10 तब अब्राम उन सभी को ले आया। उसने उन्हें आधा-आधा काट कर आमने-सामने रख दिया परन्तु उसने पेंडुकी और कबूतर को काट कर आधा-आधा नहीं किया।
\v 11 मृत जानवरों को खाने वाले पक्षी, शवों को खाने के लिए नीचे आए, लेकिन अब्राम ने उन्हें दूर कर दिया।
\s5
\v 12 जब सूर्य अस्त होने लगा, अब्राम चैन की नींद सो गया, और अचानक उसके चारों ओर सब कुछ अंधकारमय और डरावना हो गया।
\v 13 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, "मैं चाहता हूँँ तू जाने कि तेरे वंशज विदेशी बनेंगे और वे उस देश में जांएगे जो उनका नहीं होगा। वे वहाँ के स्वामियों के दास होंगे। चार सौ वर्षों तक उनके साथ उस क्षेत्र के स्वामी बुरा व्यवहार करेंगे।
\s5
\v 14 लेकिन फिर मैं उस राष्ट्र का न्याय करूँगा तथा उसे सजा दूँगा, जहाँ वे दास होंगे। तब तेरे वंशज उस देश को छोड़ देंगे और अपने साथ बहुत संपत्ति भी ले जाएँगे।
\v 15 लेकिन तू शान्ति से मरेगा और दफनाए जाएगा, तब जब तू अत्यधिक वृद्ध हो जाएगा।
\v 16 तेरे वंशज चार सौ वर्षों तक दास होकर रहेंगे इसके बाद जब वे लौट कर इस स्थान में आ जाएँगे। वे इस देश को अपने वश में करके एमोरियों को पराजित करेंगे। यह समय के पहले नही होगा क्योंकि अमोर के लोगों ने अब तक उस स्तर तक पाप नही किया है जिस में उन पापों के लिए सजा मिले।"
\s5
\v 17 जब सूर्य अस्त हो गया और अंधेरा छा गया, तब एक मशाल और मिट्टी का एक पात्र जिसमें जलते हुए कोयलों से धुँआ उठ रहा था वे प्रकट होकर आधे कटे हूए पशुओं के मध्य से निकले।
\v 18 उस दिन यहोवा ने अब्राम के साथ प्रतिज्ञा की। यहोवा ने उसे बताया, "मैं यह सम्पूर्ण प्रदेश तेरे वंशजों को दूँगा जो मिस्र की पूर्वी सीमा में बहने वाली नदी से लेकर दक्षिण तक और परात नदी के उत्तर के बीच का प्रदेश है।
\v 19 यह वह स्थान है जहाँ केनी, कनिज्जी, कदमोनी,
\v 20 हित्ती, परिज्जी, रपाई,
\v 21 एमोरी, कनानी, गिर्गाशी और यबूसी बसे हुए हैं।
\s5
\c 16
\p
\v 1 उस समय तक अब्राम की पत्नी सारै ने अब्राम के लिए किसी भी संतान को जन्म नहीं दिया था। लेकिन उसकी एक मिस्री दासी थी जिसका नाम हागार था।
\v 2 सारै ने अब्राम से कहा, "मेरी बात सुन! देख, यहोवा ने मुझे गर्भवती होने से वंचित रखा है। इसलिए मेरी दासी हागार के साथ सहवास कर। संभव है कि वह संतान उत्पन्न करे जिन्हें मैं अपना कह सकूँ।" अब्राम ने अपनी पत्नी सारै की बात मान ली।
\v 3 कनान में अब्राम और सारै के दस वर्ष रहने के बाद यह बात हुई, इस प्रकार अब्राम ने सारै की मिस्री दासी हागार को अपनी दूसरी पत्नी होने के लिए ले लिया।
\v 4 उसने हागार के साथ सहवास किया और वह गर्भवती हुई। जब उसे पता चला कि वह गर्भवती है तो उसने अपनी मालकिन सारै के साथ तुच्छ व्यवहार करना शुरू कर दिया।
\s5
\v 5 तब सारै ने अब्राम से कहा, "सारा दोष तेरा ही है। मैंने अपनी दासी तुझे दी कि तू उसके साथ सहवास कर और अब जब वह गर्भवती हो गई है तो मुझे तुच्छ समझती है। क्योंकि मैं संतान रहित हूँ। यहोवा तुझे मेरे साथ किए जा रहे इस दुर्व्यवहार का दोषी ठहराए।"
\v 6 तब अब्राम ने सारै से कहा, "मेरी बात सुन! वह तेरी दासी है, इसलिए उसके साथ जो भी तुझको अच्छा लगे वैसा व्यवहार कर सकती हो।" तब सारै ने उससे दुर्व्यवहार करना शुरू किया, इसलिए हागार वहाँ से भाग गई।
\s5
\v 7 जब वह मरूस्थल में जल के सोते के पास थी यहोवा का एक स्वर्गदूत प्रकट हुआ। यह सोता सूर के मार्ग पर था।
\v 8 उसने उससे कहा, "हागार, सारै की दासी, तू कहाँ से आयी है, और तू कहाँ जा रही है?" उसने उत्तर दिया, "मैं अपनी मालकिन सारै के यहाँ से भाग आई हूँँ।"
\s5
\v 9 यहोवा के स्वर्गदूत ने कहा, "अपनी मालकिन के पास वापस लौट जा और उसकी आज्ञा का पालन करना जारी रख।"
\v 10 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे यह भी कहा, "मैं तेरे वंशजों को इतना अधिक बढ़ा दूँगा कि उनकी गिनती कोई नहीं कर पाएगा!"
\s5
\v 11 यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे कहा, "सुन! अभी तू गर्भवती है और तू एक पुत्र को जन्म देगी। उसका नाम इश्माएल रखना, जिसका अर्थ है 'परमेश्वर सुनते हैं,' क्योंकि यहोवा ने तेरा रोना सुना है,क्योंकि तू बहुत दुखी थी।
\v 12 परन्तु तेरा पुत्र जंगली गदहे के समान अनियंत्रित होगा। वह सभी का विरोध करेगा, और सभी उसका विरोध करेंगे। वह अपने सभी रिश्तेदारों से दूर रहेगा।"
\s5
\v 13 हागार ने मन में कहा, "यहोवा ने मुझे देखा है फिर भी मैं अब तक जीवित हूँ।" इसलिए उसने यहोवा को "अत्ताएलरोई" कहा जिसका अर्थ है, "वह परमेश्वर जो मुझे देखते हैं।"
\v 14 यही कारण है कि उस कुएँ का नाम बएर-लहई-रोई पड़ा। "बएर-लहई-रोई", जिसका अर्थ है, "जीवित परमेश्वर जो मुझे देखते हैं उनका कुआँ।" यह अभी भी कादेश और बेरेद के बीच है।
\p
\s5
\v 15 तब हागार ने अब्राम के पुत्र को जन्म दिया और उसने उसका इश्माएल नाम दिया।
\v 16 अब्राम उस समय छियासी वर्ष का था जब हागार ने इश्माएल को जन्म दिया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 जब अब्राम नब्बे वर्ष का था, तब यहोवा ने अब्राम को पुनः दर्शन दिया और कहा, "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ। मैं चाहता हूँ कि तू मेरी इच्छा के अनुसार जीवन जीये। मैं चाहता हूँ कि तू कोई भी अनुचित काम न कर।
\v 2 हमारे मध्य में हुए अनुबन्ध को मैं दृढ़ करूँगा। और तुझे बहुत अधिक संख्या में वंशज पैदा करने का कारण बनाऊंगा।"
\s5
\v 3 अब्राम भूमि पर मुँह के बल गिरा और दण्डवत् किया। तब परमेश्वर ने उससे कहा,
\v 4 "सुन! मैं तेरे साथ जो अनुबन्ध करता हूँ वह यह हैः तू अनेक सामुदायों का पिता होगा।
\v 5 तेरा नाम अब से अब्राम न होकर अब्राहम होगा क्योंकि मैं तुझे अनेक समुदायों का पिता बनाऊँगा।
\v 6 मैं तेरे वंशजों की संख्या असीमित कर दूँगा और उनमें कई राष्ट्र और राजा होंगे।
\s5
\v 7 मैं यह प्रतिज्ञा तेरे और तेरे वंशजों की पीढ़ियों के बीच सदा के लिए करता हूँँ। इस अनुबन्ध के कारण तू और तेरे वंशज भी मेरी आराधना और मेरा अनुसरण करते रहोगे।
\v 8 मैं तुझे और तेरे वंशजों को कनान की सारी भूमि दूँगा जहाँ तू इस समय रहता है। यह प्रदेश सदा के लिए उनकी सम्पदा होगी और मैं उनका परमेश्वर रहूँगा। "
\p
\s5
\v 9 तब परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, "अब अनुबन्ध का यह तेरा पक्ष है जो मैं तेरे साथ और तेरे वंशजों के साथ कर रहा हूँ, और तेरे वंशजों को पीढ़ी-पीढ़ी तक इसका पालन करना होगा।
\v 10 यह अनुबन्ध की एक शर्त है जिसे मैं स्वयं के साथ, तेरे साथ और तेरे वंशजों के साथ करता हूँँ। तुम में से प्रत्येक पुरुष का खतना होना चाहिए।
\v 11 उनकी चमड़ी को काट देना जो एक चिन्ह होगा कि तू मेरे अनुबन्ध जो मैंने तेरे साथ किया हे उसे स्वीकार करता है।
\s5
\v 12 भविष्य की पीढ़ियों में प्रत्येक लड़का जब आठ दिन का हो जाए, तब तुझे उसका खतना करना होगा। प्रत्येक लड़का जो तेरे परिवार में पैदा हो या तेरे दास का हो, उसका भी खतना अवश्य होगा। उन विदेशियों का भी जो तेरे मध्य निवास करते हैं लेकिन तेरे परिवार के नही हैं
\v 13 चाहे उनके माता-पिता तेरे परिवार के या गुलामों के सदस्य हैं जिन्हें तू ने खरीदा है; उन सभी का खतना होना चाहिए। तेरे शरीर पर यह चिन्ह होगा यह दिखने के लिए कि तू ने मेरे हमेशा के लिए किये गये अनुबन्ध को स्वीकार किया है।
\v 14 हर एक पुरुष को जिसने खतना नहीं करवाया है तुझे उसे अपने समुदाय से निकालना होगा क्योंकि उसने मेरे अनुबन्ध का पालन नहीं किया है।"
\p
\s5
\v 15 परमेश्वर ने अब्राहम से यह भी कहा, "सारै को अब तू सारै कहकर नहीं पुकारना। मैं उसका नाम भी बदल दूँगा। अब से उसका नाम सारा होगा।
\v 16 मैं उसे आशीष दूँगा, और वह निश्चित रूप से तेरे लिए एक पुत्र को जन्म देगी। और मैं उसे इतनी आशीष दूँगा कि वह कई राष्ट्रों के लोगों की पूर्वज होगी। राजाओं और लोगों के समूह उससे निकलेगें। "
\p
\s5
\v 17 तब अब्राहम ने मुँह के बल गिरकर परमेश्वर को भक्ति अर्पित की परन्तु मन ही मन हँसा और स्वयं से उसने कहा, "क्या सौ वर्ष का व्यक्ति एक पुत्र का पिता हो सकता है? और सारा जो नब्बे वर्ष की हो चुकी है, वह पुत्र को जन्म कैसे दे सकती है?"
\v 18 तब अब्राहम ने परमेश्वर से कहा, "आप इश्माएल को अपना आशीर्वाद दे सकते हैं और जो कुछ मेरे पास है, वह उसका उत्तराधिकारी होगा।"
\s5
\v 19 तब परमेश्वर ने उत्तर दिया, "नहीं! तेरी पत्नी सारा तेरे लिए एक पुत्र पैदा करेगी। तू उसका नाम इसहाक रखना। उसके साथ मैं अपने अनुबन्ध दृढ़ करूँगा, यह उसके और उसके वंशजों के साथ एक अनन्त अनुबन्ध होगा।
\v 20 तू ने मुझसे इश्माएल के विषय में कहा था और मैंने तेरी बात सुनी कि तू ने उसके लिए क्या करने को मुझसे कहा। मैं उसे आशीष दूँगा। उसकी बहुत सी संताने होंगी। वह बारह बड़ी जातियों का पिता होगा। उसके वंशजों से एक बड़ा राष्ट्र बनेगा।
\v 21 परन्तु इसहाक के साथ जिसे सारा अगले वर्ष इसी समय जन्म देगी, मैं अपना अनुबन्ध दृढ़ करूँगा।"
\s5
\v 22 जब परमेश्वर ने अब्राहम से यह सब कह दिया तब परमेश्वर उसकी दृष्टि से ओझल हो गए।
\p
\v 23 उसी दिन, अब्राहम ने अपने पुत्र इश्माएल और घर में रहने वाले सभी पुरुषों का, अपने सभी दासों के सभी पुत्रों का खतना किया। उसने वैसा ही किया जैसा कि परमेश्वर ने उसे करने के लिए कहा था।
\s5
\v 24 जब खतना हुआ अब्राहम निन्यानबे वर्ष का था
\v 25 और उसका पुत्र इश्माएल खतना होने के समय तेरह वर्ष का था।
\v 26 अब्राहम और उसके पुत्र का खतना एक ही दिन हुआ।
\v 27 उसके घर में सभी पुरुष जो वहाँ पैदा हुए थे और जिन को अब्राहम ने विदेशियों से खरीदा था, उन सभी का खतना हुआ।
\s5
\c 18
\p
\v 1 उस वर्ष के दौरान एक दिन, जब अब्राहम मम्रे के बांज वृक्षों के बीच दिन की गर्मी में अपने तम्बू के द्वार पर बैठा था तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया।
\v 2 अब्राहम अपने निकट खड़े तीन पुरुषों को देखकर आश्चर्यचकित हुआ। जब अब्राहम ने उन्हें देखा तो वह दौड़ते हुए उनसे मिलने गया। और उन्हें सम्मान देने के लिए मुँह के बल धरती पर गिरकर उन्हें प्रणाम किया।
\s5
\v 3 उसने उनमें से एक से कहा, "हे प्रभु, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो थोड़ी देर के लिए यहाँ रहें।
\v 4 मेरे सेवकों को थोड़ा जल लाने और आपके पैरों को धोने की अनुमति दें, और फिर इस पेड़ के नीचे विश्राम करें।
\v 5 क्योंकि आप मेरे पास आए हैं तो मुझे अनुमति दें कि आपके लिए भोजन परोसूँ कि आप प्रस्थान करने से पहले बल प्राप्त करें।" उन पुरुषों ने कहा, "ठीक है, जैसा तू ने कहा, वैसा ही कर।"
\s5
\v 6 तब अब्राहम शीघ्रता से तम्बू में घुसा और सारा से कहा, "शीघ्र, सबसे अच्छे आटे में से बीस किलोग्राम आटा ला और कुछ रोटियाँ बना"
\v 7 तब उसने अपने जानवरों में से एक ऐसा बछड़ा चुना जिसका मांस कोमल और स्वादिष्ट हो और अपने सेवकों को दिया उन्होंने बछड़े को मारकर भोजन तैयार किया।
\v 8 जब मांस पक गया, तब अब्राहम दूध, दही और अपने सेवक द्वारा पकाया हुआ भोजन लेकर आया और उनके सामने रखा। जब वे भोजन कर रहे थे तब अब्राहम उनके पास एक वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया।।
\s5
\v 9 खाने के बाद, उन्होंने अब्राहम से पूछा, "तेरी पत्नी सारा कहा है?" उसने उत्तर दिया, "वह तम्बू में है।"
\v 10 तब समूह के अगुवे ने कहा, "मैं अगले वर्ष वसंत ऋतु में तेरे पास वापस आऊँगा, और सुन, उस समय तेरी पत्नी सारा के पास एक पुत्र होगा।" सारा तम्बू के द्वार पर खड़ी सुन रही थी, वह उस पुरुष के पीछे ही खड़ी थी।
\s5
\v 11 अब अब्राहम और सारा दोनों बहुत बूढ़े हो चुके थे। सारा प्रसव की उम्र को पार कर चुकी थी।
\v 12 तब सारा अपने मन में हँसी क्योंकि वह सोच रही थी कि, "मेरा शरीर तो ढल चुका है और मेरा पति भी बहुत बूढ़ा हो गया है। क्या मुझे पुत्र प्राप्ति की खुशी मिलेगी?"
\s5
\v 13 यहोवा ने अब्राहम से कहा, "सारा क्यों हँस रही थी? वह क्यों सोच रही थी, 'मैं इतनी बूढ़ी हूँँ तो मैं बच्चा कैसे पैदा कर सकती हूँँ?'
\v 14 क्या मेरे लिए कुछ असम्भव है? मैं अगले वर्ष के वसन्त ऋतु में फिर वापस आऊँगा। जो समय मैंने तय किया है उस समय सारा के पास एक पुत्र होगा। "
\v 15 तब सारा डर गई और उसने झूठ बोला, "मैं नहीं हंसी थी।" लेकिन यहोवा ने कहा, "मना मत कर! तू हंसी थी।"
\p
\s5
\v 16 जब तीन पुरुष जाने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने सदोम के नगर की ओर देखा और उसी ओर चल पड़े। अब्राहम उनको विदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ गया।
\v 17 यहोवा ने मन में कहा, "अपनी योजना को अब्राहम से छिपाना मेरे लिए उचित नहीं है।
\v 18 अब्राहम के वंशजों से एक महान और शक्तिशाली राष्ट्र बनेगा। और मैंने इसके लिए जो किया है उससे सब जातियों के लोग आशीषित होंगे।
\v 19 मैंने उसे इसलिए चुना है कि वह अपनी सन्तानों को और उनके परिवारों को निर्देश दे कि वे मेरी आज्ञाओं को मानें और वह काम करें जो उचित और न्यायपूर्ण है जिससे कि मैं अब्राहम के लिए वह सब करूं जिसकी मैंने उससे प्रतिज्ञा की है।"
\s5
\v 20 तब यहोवा ने अब्राहम से कहा, "मैंने सदोम और गमोरा के विषय में कुछ भयानक बातें लोगों को कहते सुनी हैं। उनके पाप बहुत बढ़ गए हैं।
\v 21 इसलिए मैं वहाँ जाऊँगा और देखूँगा कि मैंने जो भयानक बातें सुनी हैं, वे सच हैं या नहीं। "
\s5
\v 22 तब दो लोग मुड़े और सदोम की ओर चल पड़े। लेकिन अब्राहम यहोवा के सामने खड़ा रहा।
\v 23 अब्राहम उसके निकट आया और कहा, "क्या आप दुष्टों के साथ उन लोगों को भी नष्ट कर देंगे जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है?
\s5
\v 24 यदि उस नगर में पचास अच्छे लोग हों तो आप क्या करेंगे? क्या आप वास्तव में उन सभी को नष्ट कर देंगे और पचास धार्मिक लोगों के लिए नगर को नहीं छोड़ेंगे जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है?
\v 25 निश्चित रूप से आप ऐसा नहीं करेंगे कि दुष्टों के साथ सदाचारियों को भी नष्ट कर दें और अच्छे लोगों और दुष्टों एवं सदाचारियों के साथ एक सा व्यवहार करें। आप ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि आप पृथ्वी पर हर किसी के न्यायाधीश हैं। निश्चित रूप से सदोम के लोगों के साथ वही करेंगे जो उचित है! "
\v 26 यहोवा ने उत्तर दिया, "यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मनुष्य मिले जिन्होंने पाप नहीं किया तो उनके कारण मैं उस नगर को छोड़ दूँगा।"
\s5
\v 27 अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैं इस प्रकार आप से बात करने का साहस तो नहीं करता हूँँ क्योंकि मैं धूल और राख के समान मूल्यहीन हूँँ।
\v 28 लेकिन यदि वहाँ पैंतालीस निर्दोष सदाचारी हों तो आप क्या करेंगे? क्या आप पूरे नगर में हर किसी को नष्ट कर देंगे क्योंकि वहाँ पचास नहीं पैंतालीस ही सदाचारी हैं? "यहोवा ने उत्तर दिया," यदि मैं वहाँ पैंतालीस सदाचारियों को पाऊँगा तो उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा। "
\s5
\v 29 अब्राहम ने इस प्रकार परमेश्वर से बातें करना जारी रखा, और कहा, "यदि वहाँ केवल चालीस सदाचारी हुए तो आप क्या करेंगे?" यहोवा ने उत्तर दिया, " मैं नगर को नष्ट नहीं करूँगा यदि मुझे वहाँ चालीस सदाचारी मिलें तो"
\v 30 अब्राहम ने कहा, "कृपया मुझ पर क्रोधित न हों। मुझे एक बार और बोलने दें। यदि आपको केवल तीस सदाचारी मिलें तो आप क्या करेंगे?" उसने उत्तर दिया, "यदि वहाँ तीस सदाचारी भी हुए तो मैं ऐसा नहीं करूँगा।"
\v 31 अब्राहम ने कहा, "मुझे साहस तो नहीं करना चाहिए परन्तु यदि वहाँ बीस सदाचारी भी पाए गए तो आप क्या करेंगे?" उसने उत्तर दिया, "उन बीस सदाचारियों को ध्यान में रख कर मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा।"
\s5
\v 32 अंत में, अब्राहम ने कहा, "हे मेरे परमेश्वर, क्रोध न करें मैं एक बार पुनः निवेदन करता हूँँ, यदि वहाँ केवल दस सदाचारी हुए तो आप क्या करेंगे?" यहोवा ने उत्तर दिया, "उस दस के कारण मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा।"
\v 33 अब्राहम ने आगे कुछ नहीं कहा। जैसे ही यहोवा ने अब्राहम से बातें करना समाप्त किया, वे चले गये, और अब्राहम अपने घर लौट आया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 उस शाम, दो स्वर्गदूत सदोम नगर में आए। नगर के प्रवेश द्वार पर लूत बैठा था। जब उसने उन्हें देखा तो वह उनका स्वागत करने के लिए खड़ा हुआ और भूमि पर उनके सामने झुक गया।
\v 2 उसने उनसे कहा, "महोदय, कृपया आज रात मेरे घर में रहें। वहाँ आप लोग अपने पैर धो सकते हैं, और कल जल्दी आप अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।" लेकिन उन्होंने कहा, "नहीं, हम यहीं नगर के चौक में रात बिता लेंगें।"
\v 3 लेकिन लूत अपने घर में चल कर सोने के लिए बार-बार कहता रहा। इसलिए वे उसके साथ उसके घर गए, और लूत ने उनके लिए भोजन तैयार करवाया। उसने खमीर के बिना कुछ रोटी तैयार करवाई और उन्होंने उसे खा लिया।
\s5
\v 4 जब वे भोजन समाप्त कर चुके और सोने जा ही रहे थे, सदोम नगर के लोगों ने, जवान से बूढ़े तक सब ने लूत के घर को घेर लिया।
\v 5 उन्होंने लूत को बाहर बुलाकर कहा, "वे लोग कौन हैं जो आज शाम तेरे घर आए है? उन्हें बाहर लाओ, ताकि हम उनके साथ सहवास कर सकें!"
\s5
\v 6 लूत घर से बाहर निकला और पीछे से उसने घर का दरवाज़ा बन्द कर लिया, ताकि वे अंदर न जा सकें।
\v 7 उसने उनसे कहा, "मेरे मित्रों, ऐसे बुरे काम मत करो!
\v 8 मेरी बात सुनो। मेरी दो पुत्रियाँ हैं जिन्होंने कभी किसी पुरुष के साथ सहवास नहीं किया है। मैं उन्हें अब तुम्हारे लिए लाता हूँ, तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर के अतिथि हैं और मैं इनकी रक्षा अवश्य करूँगा।! "
\s5
\v 9 परन्तु उन्होंने उत्तर दिया, "हमारे रास्ते से हट जा! तू विदेशी है इसलिए तुझे हमको यह बताने का कोई अधिकार नहीं है कि क्या सही है! हम तेरे साथ उनसे भी अधिक बुरा करेंगे!" तब वे लूत की ओर झपटे, और दृढ़तापूर्वक दरवाजे को तोड़ने का प्रयास किया।
\s5
\v 10 परन्तु दोनों स्वर्गदूतों ने सावधानी से दरवाजा खोला और लूत को घर के अन्दर खींच लिया। फिर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया।
\v 11 तब उन्होंने उन सभी पुरुषों को अन्धा कर दिया जो घर के दरवाजे के बाहर थे। सब जवान और बूढ़े अंधे हो गए, वे दरवाजा नहीं ढूंढ सकें।
\s5
\v 12 दोनों स्वर्गदूतों ने लूत से पूछा, "यहाँ तेरे साथ ओर कौन-कौन है? यदि तेरे पास पुत्र या दामाद हैं या नगर में अन्य कोई जो तेरे साथ है, उन्हें नगर से बाहर ले जा।
\v 13 क्योंकि हम इस स्थान को नष्ट करने जा रहे हैं। यहोवा ने उन सभी बुराइयों को सुन लिया है जो इस नगर में है और यहोवा ने हमें इसे नष्ट करने के लिए भेजा है।"
\s5
\v 14 इसलिए लूत बाहर गया और उन लोगों से बात की जिन्होंने उसकी पुत्रियों से विवाह करने का वचन दिया था। उसने उनसे कहा, "जल्दी करो! इस नगर से निकल जाओ, क्योंकि यहोवा इसे नष्ट करने वाले हैं!" लेकिन उन लोगों ने समझा कि लूत मज़ाक कर रहा है।
\v 15 अगले दिन सुबह होते-होते उन स्वर्गदूतों ने लूत से कहा, "तुरन्त खड़ा हो जा और अपनी पत्नी और पुत्रियों के साथ इस नगर से बाहर निकल जा। यदि ऐसा नही करेगा तो जब हम इस नगर को नष्ट करेंगे तब तू भी नष्ट हो जाएगा।"
\s5
\v 16 जब लूत दुविधा में रहा, स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के हाथ पकड़ लिए। उन्होंने उन्हें सुरक्षित रूप से नगर के बाहर निकाला। स्वर्गदूतों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि लूत के परिवार पर यहोवा की कृपा-दृष्टि थी।
\v 17 जब वे नगर के बाहर आ गए तो एक स्वर्गदूत ने कहा, "यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो शीघ्र भागो और पीछे मत देखना! और घाटी में कहीं भी मत रुकना! पहाड़ों पर भाग जाओ! यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम मर जाओगे! "
\s5
\v 18 लेकिन लूत ने उनमें से एक से कहा, "नहीं, महोदय, मुझसे ऐसा मत करवाओ!
\v 19 कृपया, सुनो। आप मुझसे प्रसन्न हैं और मेरे लिए बहुत दयालु हैं और आप ने मेरी जान बचाई है। लेकिन मैं भाग कर पहाड़ों पर नहीं जा सकता। यदि मैं ऐसा करने का प्रयास करता हूँँ, तो मैं मारा जाऊँगा।
\v 20 कृपया मेरी बात सुनें। यहाँ पास में एक नगर है। मुझे वहाँ भागने दें। वह सिर्फ एक छोटा सा नगर है यदि आप उसे नष्ट न करें तो हम वहाँ जा कर अपना जीवन बचा पाएँगे।"
\s5
\v 21 स्वर्गदूतों में से एक ने लूत से कहा, "ठीक है, मैं तुझे ऐसा भी करने दूँगा। मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा जिसके विषय में तू कह रहा है।
\v 22 लेकिन जल्दी भाग के वहाँ जाओ क्योंकि जब तक तुम वहाँ पहुँचते नहीं मैं सदोम को नष्ट नहीं कर सकता।" लोगों ने बाद में इस नगर को सोअर नाम दिया, जिसका अर्थ है 'महत्वपूर्ण नहीं', क्योंकि लूत ने कहा कि यह एक छोटा सा गांव था।
\p
\s5
\v 23 सूर्योदय होते-होते लूत और उसका परिवार उस नगर में पहुँच गए जिसका नाम सोअर था।
\v 24 तब यहोवा ने सदोम और गमोरा पर आग और जलता हुआ गंधक बरसाया, जैसे कि आकाश से वर्षा हो रही हो।
\v 25 इस प्रकार यहोवा ने उन नगरों को जला दिया और पूरी घाटी के सभी लोगों को जो उन नगरों में निवास करते थे। उन्होंने घाटी के प्रत्येक को यहाँ तक की सभी पेड़ पौधों को भी नष्ट कर दिया।
\s5
\v 26 लेकिन लूत की पत्नी रुक कर पीछे पलटी कि देखें क्या हो रहा है इसलिए वह मर गई और उसका शरीर बाद में नमक का खंभा बन गया।
\p
\v 27 उसी सुबह अब्राहम उठकर उस स्थान पर गया जहाँ वह यहोवा के सामने खड़ा था।
\v 28 उसने सदोम और गमोरा की ओर देखा, और देखकर आश्चर्यचकित हुआ कि सारी घाटी से, एक विशाल भट्ठी के समान धुआँ निकल रहा था।
\p
\s5
\v 29 जब परमेश्वर ने घाटी में उन नगरों को नष्ट कर दिया, तब परमेश्वर अब्राहम की सहायता करना नहीं भूले और लूत के नगर को नष्ट करते समय लूत को बचा लिया।
\p
\s5
\v 30 लूत सोअर में रहने से डरता था इसलिए अपनी दोनों पुत्रियाेँ के साथ पहाड़ों पर चला गया और वे एक गुफा में रहने लगे।
\s5
\v 31 एक दिन बड़ी पुत्री ने छोटी पुत्री से कहा, "हमारा पिता बूढ़ा है और इस क्षेत्र में कोई पुरुष नहीं है जिससे हम यौन सम्बंध बनाएँ जैसा कि सारी पृथ्वी के लोग करते हैं।
\v 32 आओ, हम अपने पिता को मदिरापान करा कर बेसुध कर दें और उसके अनजाने ही उसके साथ सोएं। इस प्रकार हम अपने वंश के लिए संतान उत्पन्न करें जो संतान आगे हमारे पिता के वंशज होंगे।"
\v 33 इसलिए उस रात उन्होंने अपने पिता को दाखमधु पिलाकर नशे में किया। बड़ी पुत्री अंदर गई और अपने पिता के साथ सहवास किया, लेकिन वह इतना नशे में था कि उसे पता नहीं था कि वह कब उसके पास आई और कब चली गई।
\s5
\v 34 अगले दिन उसकी बड़ी पुत्री ने उसकी छोटी पुत्री से कहा, "मैं कल रात पिता के साथ सोई थी। हम उसे आज भी दाखमधु पिलाकर नशे में कर देंगे और आज तू जाकर उसके साथ सहवास करना, इस प्रकार तू भी गर्भवती होकर संतान प्राप्त कर सकती है।"
\v 35 इसलिए उस रात, उन्होंने अपने पिता को फिर से दाखमधु पिलाया और उसकी छोटी पुत्री अन्दर गयी और उसके साथ सो गई। लेकिन फिर, वह इतना अधिक नशे में था कि उसे पता नहीं था कि वह कब उसके पास आई और कब चली गई।
\s5
\v 36 इस कारण लूत अपनी दोनों पुत्रियों के गर्भवती होने का कारण बना।
\v 37 बड़ी पुत्री ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने लड़के का नाम मोआब रखा। वह मोआबियों का पूर्वज बना।
\v 38 छोटी पुत्री ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसे उसने बेनअम्मी नाम दिया। वह अम्मोनियों का पूर्वज बना।
\s5
\c 20
\p
\v 1 अब्राहम मम्रे को छोड़ कर दक्षिण-पश्चिम में नेगेव रेगिस्तान में चला गया। वहाँ वह कादेश और शूर के बीच गरार में रहने लगा। वह गरार नगर में एक विदेशी के समान रहता था।
\v 2 जब वह वहाँ था, उसने लोगों से कहा कि सारा उसकी बहन है, पत्नी नहीं। तब गरार के राजा अबीमेलेक ने अपने कुछ लोगों को सारा को अपने पास लाने के लिए भेजा कि वे उसे उसकी पत्नी बनाने के लिए लाए।
\v 3 परन्तु परमेश्वर रात में स्वप्न में अबीमेलेक के सामने प्रकट हुए और कहा, "मेरी बात सुन! तू मर जाएगा क्योंकि जिस स्त्री को तू ले आया है, वह किसी और की पत्नी है।"
\s5
\v 4 अबीमेलेक अभी सारा के साथ नहीं सोया था इसलिए उसने कहा, "हे प्रभु, मेरी प्रजा और मैं निर्दोष हूँँ, तो क्या आप हमें मारेंगे?
\v 5 अब्राहम ने मुझे बताया, 'यह स्त्री मेरी बहन है' और स्त्री ने भी कहा, 'यह पुरुष मेरा भाई है।' मेरा कुछ भी गलत करने का इरादा नहीं था और न ही मैंने कुछ भी गलत किया है।"
\s5
\v 6 परमेश्वर ने उससे कहा, "हाँ, मुझे पता है कि तू कुछ भी गलत नहीं करना चाहता था। यही कारण है कि मैंने तुझे पाप करने से रोका और तुझे उसे छूने तक नहीं दिया।
\v 7 उस पुरुष को उसकी पत्नी वापस कर दे क्योंकि वह एक भविष्यद्वक्ता है। वह तेरे लिए प्रार्थना करेगा और तू जीवित रहेगा। लेकिन यदि तू ने उसे उसकी पत्नी नहीं लौटाई तो तू मर जाएगा। और तेरे परिवार के सब सदस्य भी निश्चय ही मर जाएँगे।"
\s5
\v 8 अगली सुबह, अबीमेलेक ने अपने सभी अधिकारियों को बुलाया और स्वप्न में हुई सारी बातें उनको बताई। जब उन्होंने यह सुना, तो उसके लोग बहुत डर गए कि परमेश्वर उन्हें दंडित करेंगे।
\v 9 अबीमेलेक ने अब्राहम को बुलाया और उससे कहा, "तुझे यह नहीं करना चाहिए था! क्या मैंने तेरे साथ कुछ गलत किया है? क्या मैंने तुझे विवश किया था कि तू मुझे और मेरी प्रजा को एक महापाप का दोषी बनाए? तू ने मेरे साथ जो किया है, वह तुझे नहीं करना था।
\s5
\v 10 तू ने ऐसा क्यों किया?"
\v 11 अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैंने कहा कि वह मेरी बहन थी क्योंकि मैं डर गया था, 'इस स्थान के लोग निश्चित रूप से परमेश्वर का आदर नहीं करते हैं। मैंने सोचा कि सारा को पाने के लिए कोई मुझे मार डालेगा।'
\v 12 इसके अतिरिक्त, सारा को वास्तव में मेरी बहन भी माना जा सकता है क्योंकि वह मेरे पिता की पुत्री है हालांकि वह मेरी मां की पुत्री नहीं है। वह एक अन्य औरत की पुत्री है और मैंने उससे विवाह कर लिया।
\s5
\v 13 बाद में, जब परमेश्वर ने मुझे अपने पिता के घर-परिवार से दूर जाने के लिए कहा, तब मैंने उससे कहा, "तू अपनी स्वामीभक्ति इस प्रकार मुझ पर प्रकट करना कि हम जहाँ भी जाएँ, मेरे विषय यही कहना कि मैं तेरा भाई हूँ।"
\v 14 तब अबीमेलेक ने कुछ भेड़ और पशु अब्राहम को दिए। उसने उसे कुछ दास और दासी भी दिए। उसने अब्राहम की पत्नी सारा को लौटा दिया।
\s5
\v 15 और अबीमेलेक ने उससे कहा, "देख, मेरा देश तेरे सामने है। तू जिस स्थान में चाहे, रह सकता है।"
\v 16 और उसने सारा से कहा, "देख, मैंने तेरे भाई को एक हजार चाँदी के टुकड़े दिए हैं। यह इसलिए कि इस बात की चर्चा फिर कभी कोई नहीं कर पाए और कहे कि मैंने कोई अनुचित काम किया है।
\s5
\v 17 तब अब्राहम ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने अबीमेलेक की पत्नी और दासियों को चंगा किया ताकि वे बच्चो को जन्म दे सकें।
\v 18 ऐसा इसलिए था क्योंकि अबीमेलेक के परिवार की सभी स्त्रियों को यहोवा ने बच्चो को जन्म देने की क्षमता से वंचित कर दिया था क्योंकि अबीमेलेक अब्राहम की पत्नी सारा को ले आया था।
\s5
\c 21
\p
\v 1 यहोवा अपने वचन के अनुसार सारा पर दयालु हुए जैसा कि उन्होंने कहा था। उन्होंने सारा के लिए वही किया जो उन्होंने करने की प्रतिज्ञा की थी,
\v 2 वह गर्भवती हुई और अब्राहम के वृद्धावस्था में उसके लिए पुत्र को जन्म दिया, उसी समय पर जब परमेश्वर ने वचन दिया था वही हुआ।
\v 3 अब्राहम ने सारा द्वारा जन्मे पुत्र का नाम इसहाक रखा।
\v 4 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार इसहाक के आठ दिन के होने पर उसका खतना किया गया।
\s5
\v 5 अब्राहम सौ वर्ष का था जब उसके पुत्र इसहाक का जन्म हुआ।
\v 6 सारा ने कहा, " मैं पहले उदास थी क्योंकि मेरे पास कोई संतान नहीं थी लेकिन परमेश्वर ने अब मुझे प्रसन्नता से हँसने में सक्षम बनाया है और जो यह सुनता है की परमेश्वर ने मेरे लिए क्या किया, वह भी मेरे साथ प्रसन्न होता है।"
\v 7 उसने यह भी कहा, "अब्राहम से कोई भी नहीं कह सकता था कि एक दिन मैं अपनी संतान को दूध पिलाऊँगी परन्तु मैंने अब्राहम को उसकी वृद्धावस्था में पुत्र दिया है।"
\p
\s5
\v 8 जब बच्चा इतना बड़ा हो गया कि एक दिन उसने माँ का दूध छोड़ दिया। उस दिन अब्राहम ने जश्न मनाने के लिए एक बड़ी दावत तैयार की।
\v 9 एक दिन सारा ने देखा कि हागार का पुत्र इश्माएल इसहाक का मजाक उड़ा रहा था।
\s5
\v 10 तब उसने अब्राहम से कहा, "उस दासी स्त्री तथा उसके पुत्र को यहाँ से भेज दे। मैं नहीं चाहती कि उस दासी स्त्री के पुत्र को मेरे पुत्र इसहाक की विरासत में हिस्सा मिले।"
\v 11 अब्राहम इस बात से बहुत परेशान हुआ क्योंकि वह अपने पुत्र इश्माएल के विषय में भी चिंतित था।
\s5
\v 12 लेकिन परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, "अपने पुत्र, इश्माएल और अपनी दासी हागार के विषय में परेशान मत हो। सारा जो कुछ तुझे करने के लिए कह रही है उसे सुन, और वैसा ही कर। इसहाक ही वह है जो उन वंशजों का पूर्वज होगा जो मैंने तुझे देने का वादा किया है।
\v 13 परन्तु मैं तेरी दासी हागार के पुत्र को भी एक बड़ी जाति का पिता बनाऊँगा क्योंकि वह भी तेरा ही पुत्र है।"
\s5
\v 14 अब्राहम अगली सुबह जल्दी उठ गया। अब्राहम ने कुछ भोजन तैयार किया और मशक में जल डाला और हागार को दिया। उसने हागार के कंधे पर सामान रख दिया और उसे इश्माएल को भी सौंप दिया। वे निकल कर बेर्शेबा के जंगल में चले गए।
\p
\v 15 हागार और उसके पुत्र के पास जब पीने का जल समाप्त हो गया तो उसने लड़के को झाड़ियों के नीचे रखा।
\v 16 तब हागार वहाँ से उतनी दूर गई जितनी दूर धनुष से निकला तीर जाता है। उसने सोचा, "मैं अपने पुत्र को मरते हुए नहीं देख सकती!" वहाँ बैठते ही वह जोर-जोर से रोने लगी।
\s5
\v 17 शीघ्र ही परमेश्वर ने इश्माएल की आवाज़ सुनी, इसलिए उन्होंने स्वर्ग से एक दूत हागार के पास भेजा। उन्होंने कहा, "हागार, तुझे क्या परेशानी है? मत डर क्योंकि परमेश्वर ने तेरे पुत्र का रोना सुना है।
\v 18 जा और अपने पुत्र को उठा और उसकी सहायता कर ताकि वह बलवान बने क्योंकि मैं उसे लोगों के बड़े समुदाय का पिता बनाऊँगा।"
\s5
\v 19 तब परमेश्वर ने उसे जल का कुआँ दिखाया। वह कुएँ के पास गई और उसने उस कुएँ से जल भर कर इश्माएल को पिलाया।
\p
\v 20 परमेश्वर ने लड़के की सहायता की और वह जंगल में बड़ा हुआ। वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया।
\v 21 वह पारान नामक जंगल में रहने लगा। हागार मिस्र से अपने पुत्र इश्माएल के लिए एक पत्नी लाती है।
\p
\s5
\v 22 उस समय राजा अबीमेलेक और उसके सेनापति पीकोल ने अब्राहम से कहा, "हमें ज्ञात है कि परमेश्वर तेरे हर एक काम में तेरे साथ रहते हैं।
\v 23 इसलिए तू परमेश्वर के सामने वचन दे कि तू मेरे और मेरी संतानों से कभी छल नहीं करेगा। तू यह वचन दे कि मेरे प्रति और जहाँ तू रह रहा है उस देश के प्रति दयालु रहेगा। तू यह भी वचन दे कि मैं तेरे प्रति जितना विश्वस्त रहा उतना तू मुझ पर भी विश्वस्त रहेगा।
\v 24 तब अब्राहम ने ऐसा करने की शपथ ली।
\p
\s5
\v 25 अब्राहम ने अबीमेलेक से अपने एक कुएँ के जल के विषय शिकायत की जिस पर अबीमेलेक के सेवकों ने कब्ज़ा कर लिया था।
\v 26 लेकिन अबीमेलेक ने कहा, "मुझे ज्ञात नहीं कि किसने ऐसा किया है। तू ने भी इससे पहले इस विषय मुझे कुछ नहीं कहा। मैंने आज से पहले इसके विषय में कुछ नही सुना।"
\v 27 तब अब्राहम ने कुछ भेड़ों और पशुओं को लाकर उन्हें अबीमेलेक को दे दिया। और वे दोनों गंभीरता से अपने बीच शान्ति रखने के लिए सहमत हुए।
\s5
\v 28 अब्राहम अपने पशुओं के पास गया और उन में से भेड़ के सात मादा बच्चों को चुना।
\v 29 अबीमेलेक ने अब्राहम से पूछा, "तू ने इन भेड़ के सात मादा बच्चों को क्यों चुना है?"
\v 30 अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैं चाहता हूँँ कि तू मुझसे इन मादा मेम्नों को स्वीकार कर। इस प्रकार मेरी यह भेंट सब के समक्ष एक प्रमाण होगी कि यह कुँआ मेरा है। क्योंकि मैंने इसे खोदा है।"
\s5
\v 31 तब अबीमेलेक ने मेम्नों को स्वीकार किया। अब्राहम ने उस स्थान का नाम बेर्शेबा रखा, जिसका अर्थ है 'शपथ का कुँआ ', क्योंकि उसने और अबीमेलेक ने एक दूसरे के प्रति शान्ति रखने के लिए यहाँ शपथ ली थी।
\v 32 बेर्शेबा में संधि बनाने के बाद, अबीमेलेक और उसके सेनापति पीकोल लौट कर पलिश्तियों के देश आ गए।
\s5
\v 33 अब्राहम ने वहाँ झाऊ का एक सदाबहार पेड़ लगाया और वहाँ उसने यहोवा, शाश्वत परमेश्वर की आराधना की।
\v 34 अब्राहम लंबे समय तक पलिश्तियों के देश में परदेशी के रूप में रहा।
\s5
\c 22
\p
\v 1 कई सालों बाद, परमेश्वर ने अब्राहम की परीक्षा ली कि वह उसकी आज्ञा का पालन करेगा या नहीं। उसने अब्राहम को बुलाया और अब्राहम ने कहा, "मैं यहाँ हूँँ।"
\v 2 परमेश्वर ने कहा, "तेरा पुत्र, इसहाक, जिसे तू बहुत प्रेम करता है। वह एकमात्र पुत्र है जिसे मैंने तुझे देने की प्रतिज्ञा की थी। तू उसे अपने साथ ले कर मोरिय्याह के देश में, उस पहाड़ पर जाना जो मैं तुझे दिखाऊँगा और वहाँ तू उसे होमबलि के रूप में मुझे चढ़ाना।"
\v 3 अब्राहम अगली सुबह उठा, अपने गदहे पर एक गद्दी कस कर और दो सेवकों और अपने पुत्र, इसहाक को साथ लिया। उसने होमबलि की आग के लिए कुछ लकड़ियाँ भी काटकर तैयार की। तब उन्होंने उस स्थान के लिए यात्रा आरंभ की जहाँ जाने के विषय में परमेश्वर ने उन्हें बताया था।
\s5
\v 4 उनकी तीन दिन की यात्रा के बाद अब्राहम ने दूर से उस स्थान को देखा जहाँ परमेश्वर चाहते थे कि वह जाए।
\v 5 अब्राहम ने अपने सेवकों से कहा, "तुम दोनों यहाँ गदहे के पास रूको, इसहाक और मैं वहाँ जाते हैं कि परमेश्वर की आराधना करें। उसके बाद हम लौट कर आयेंगे।"
\v 6 तब अब्राहम ने होमबलि में आग लगाने के लिए लकड़ियाँ लीं और उसे अपने पुत्र इसहाक के कन्धों पर रखा। अब्राहम ने आग जलाने के लिए लकड़ियाँ और चाकू भी रखा और दोनों एक साथ चल पड़े।
\s5
\v 7 तब इसहाक ने अपने पिता अब्राहम से कहा, "पिताजी!" अब्राहम ने उत्तर दिया, "हाँ, मेरे पुत्र, मैं यहाँ हूँँ!" इसहाक ने कहा, "देखो, हमारे पास आग लगाने के लिए लकड़ी और कोयला भी हैं लेकिन होमबलि के लिए मेमना कहाँ है?"
\v 8 अब्राहम ने उत्तर दिया, "हे मेरे पुत्र, परमेश्वर स्वयं होमबलि के लिए मेमना देंगे।" वे दोनों साथ-साथ आगे बढ़ते रहे।
\s5
\v 9 वे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ जाने के लिए परमेश्वर ने कहा था। वहाँ, अब्राहम ने एक पत्थर की वेदी बनाई और उस पर लकड़ियाँ रखी। तब उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँध कर उसे लकड़ी के ऊपर वेदी पर रख दिया।
\v 10 तब अब्राहम ने अपने पुत्र को मारने के लिए छुरी बाहर निकाली।
\s5
\v 11 लेकिन यहोवा के दूत ने उसे स्वर्ग से आवाज देकर कहा, "अब्राहम! अब्राहम!" अब्राहम ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँँ!"
\v 12 उस स्वर्गदूत ने कहा, "तू अपने पुत्र को चोट न पहुँचा क्योंकि मैं जान गया हूँ कि तू मेरा सम्मान करता है और मेरी आज्ञा मानता है। मैंने देखा की तू ने अपने एकलौते पुत्र को मेरे लिए बलि देने से मना नही किया।"
\p
\s5
\v 13 तब अब्राहम ने पास की झाड़ियों में एक मेढ़े को सींगों से फँसा हुआ देखा। अब्राहम ने उस मेढ़े को पकड़ कर और उसे अपने पुत्र के स्थान पर मार कर होमबलि चढ़ाया।
\v 14 इसलिए अब्राहम ने उस स्थान का नाम "यहोवा प्रदान करेंगे" रखा। आज तक वह पर्वत, "यहोवा का पर्वत जहाँ वे प्रदान करते हैं", कहलाता है।
\p
\s5
\v 15 यहोवा के स्वर्गदूत ने अब्राहम को दूसरी बार स्वर्ग से पुकारा।
\v 16 उन्होंने अब्राहम से कहा, "मैं यहोवा, यह घोषणा करता हूँ कि तूने मेरी आज्ञा मानी और तू मेरे लिए अपने पुत्र को बलि करने के लिए भी तैयार था,
\v 17 अतः निष्ठापूर्वक मैं प्रतिज्ञा करता हूँ स्वयं मेरी ही गवाही के द्वारा, कि "एक दिन तेरे वंशज आकाश के सितारों और समुद्र की रेत के कणों के समान अनगिनत होंगे। तेरे वंशज अपने शत्रुओं को हरा कर उनके नगरों पर अधिकार कर लेंगे।
\s5
\v 18 तू ने मेरी आज्ञा मानी है। इस कारण संसार की सभी जातियां तेरे वंशजों के द्वारा आशीर्वाद पाएंगी।"
\v 19 इसके बाद अब्राहम और इसहाक अपने प्रतीक्षा करने वाले सेवकों के पास आए और वे सब बेर्शेबा को लौट गये। अब्राहम और उसके लोग वहीं रहते रहे।
\s5
\v 20 इन बातों के बाद किसी ने अब्राहम को समाचार दिया, "तेरे भाई नाहोर की पत्नी मिल्का ने भी बच्चों को जन्म दिया है।
\v 21 उसके बड़े पुत्र का नाम ऊज था और ऊज के भाई का नाम बूज और कमूएल था। कमूएल अराम का पिता था।
\v 22 कमूएल के बाद केसेद, फिर हजो, पिल्दाश, यिदलाप और बतूएल।
\s5
\v 23 बतूएल रिबका का पिता था। अब्राहम के भाई नाहोर की पत्नी मिल्का के ये ही आठ पुत्र थे।
\v 24 नाहोर की एक रखैल भी थी जिसका नाम रुमा था। उससे भी चार पुत्र हुए जिनके नाम तेबह, गहम, तहश और माका थे।
\s5
\c 23
\p
\v 1-2 सारा एक सौ सत्ताईस वर्ष तक जीवित रही। वह कनान प्रदेश के किर्यतअर्बा नगर में मरी, किर्यतअर्बा नगर को अब हेब्रोन कहा जाता है। अब्राहम ने उसके लिए शोक किया।
\s5
\v 3 वह अपनी पत्नी के शरीर को छोड़कर हित्त के वंशजों से बात करने गया। उसने कहा,
\v 4 "मैं तुम्हारे बीच रहने वाला अस्थाई निवासी हूँँ इसलिए मेरे पास यहाँ पर कोई भूमि नहीं है। मुझे यहाँ कुछ भूमि दो ताकि मैं अपनी पत्नी के शरीर को दफना सकूँ।"
\s5
\v 5 उन्होंने उसे उत्तर दिया,
\v 6 "महोदय, तू हमारे बीच एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है। अच्छी कब्रों में से एक को चुन और उसमें अपनी पत्नी के शरीर को दफना। हम लोगों में से कोई भी तुझे भूमि देने से मना नहीं करेगा कि तू अपनी पत्नी के शरीर को दफना कर उसके लिए गुम्बद बना।"
\s5
\v 7 तब अब्राहम ने खड़े होकर हित्तियों के सामने झुक कर नमस्कार किया, हित्ति उस देश के स्वामी और हेत के वंशज थे।
\v 8 उसने उनसे कहा, "यदि तुम लोग सचमुच चाहते हो की मेरी मरी हुई पत्नी को दफनाने में मेरी सहायता करो तो सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिए बात करो।
\v 9 कि वो मकपेला की गुफा मुझे बेच दे जो उसके क्षेत्र के अंतिम भाग में है। उससे कहो कि वह मुझे यह भूमि पूरी कीमत में बेचे जो वह चाहता है और वह तुम सब के सामने मुझे बेचे। इस प्रकार मुझे यह भूमि दफन-स्थल के रूप में प्राप्त हो जाएगी।"
\s5
\v 10 एप्रोन नगर के द्वार पर लोगों के बीच बैठा था जहाँ उसके साथ अनेक अन्य हित्ती के वंशज भी उपस्थित थे। उन्होंने उसे अब्राहम की बातें सुनाई।
\v 11 एप्रोन ने कहा, "नहीं, महोदय, मेरी बात सुन। मैं तुझे वह भूमि और गुफा बिना किसी मोल के देता हूँ और इसके गवाह ये सब उपस्थित लोग होंगे। कृपया अपनी पत्नी को यहाँ दफना।"
\s5
\v 12 अब्राहम ने फिर से हित्ती लोगों के सामने अपना सिर झुकाया, जो वहाँ निवास करते थे
\v 13 और सब के सामने एप्रोन से कहा, "नहीं, मेरी बात सुन। यदि तुझे स्वीकार हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दूँगा। मुझे उसकी कीमत बता और मैं तुझे वह दूँगा। यदि तुम कीमत स्वीकार करोगे तभी वह भूमि मेरी होगी और मैं अपनी पत्नी का शरीर वहाँ दफनाऊँगा।"
\s5
\v 14 एप्रोन ने अब्राहम से कहा,
\v 15 "महोदय, मेरी बात सुन। भूमि का मूल्य चाँदी के चार सौ टुकड़े के बराबर है लेकिन भूमि का मूल्य तेरे और मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मुझे इस भूमि का मूल्य दो और अपनी पत्नी के शरीर को दफना।"
\v 16 अब्राहम एप्रोन द्वारा कहे गए मूल्य से सहमत हो गया, और एप्रोन को चाँदी के चार सौ टुकड़े दिए, जिसके सब गवाह थे। उसने विक्रेताओं के मानक के अनुसार चाँदी तौल कर दी।
\p
\s5
\v 17 इस प्रकार मेम्रे के निकट मकपेला का वह खेत जो एप्रोन का था वह गुफा, सब वृक्ष तथा सब वृक्ष जो भूमि की सीमा को चिन्हित करते थे, अब्राहम की सम्पति हो गए।
\v 18 इस प्रकार अब्राहम ने संपत्ति खरीदी और नगर के फाटक पर जितने भी हित्ती उपस्थित थे वे उस सौदे के गवाह हुए।
\s5
\v 19 इसके बाद, अब्राहम ने अपनी पत्नी सारा के शरीर को मम्रे के पास मकपेला की गुफा में दफनाया जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है जो कनान में है।
\v 20 वह भूमि और गुफा आधिकारिक तौर पर हित्त के वंशजों द्वारा अब्राहम को बेची गई थी और इसका प्रयोग दफन-स्थल के रूप में हुआ।
\s5
\c 24
\p
\v 1 अब्राहम अब बहुत बूढ़ा हो गया था। यहोवा ने अब्राहम को कई आशिषें दी।
\v 2 एक दिन अब्राहम ने अपने परिवार के मुख्य दास जो अब्राहम के पूरी सम्पति का प्रबन्धक था उससे कहा, "अपने हाथ मेरी जाँघों के नीचे रख कर शपथ खा की जो मैं कहूँँगा वह तू करेगा।
\v 3 यह मानते हुए कि यहोवा, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को रचा है वे सुन रहे हैं, मुझे वचन दे कि तू कनान की पुत्रियों में से मेरे पुत्र, इसहाक के लिए पत्नी नहीं लाएगा।
\v 4 इसकी अपेक्षा, तू मेरे देश और मेरे रिश्तेदारों के पास जा। वहाँ से मेरे पुत्र इसहाक के लिए पत्नी ला। "
\s5
\v 5 दास ने उससे पूछा, "यदि मैं तेरे रिश्तेदारों में से किसी स्त्री को खोजूँ और वह मेरे साथ इस देश में आना न चाहे तो मैं क्या करूं? क्या मैं तेरे पुत्र को उस देश में ले जाऊ जहाँ से तू आया है कि वह पत्नी खोजे और वहीं रह जाए?"
\v 6 अब्राहम ने कहा, "नहीं! निश्चित कर कि तू मेरे पुत्र को वहाँ नहीं ले जाएगा!
\v 7 यहोवा, जिन्होंने स्वर्ग बनाया, वे मुझे यहाँ लाए। वे मुझे अपने पिता के घर, जहाँ मेरे रिश्तेदार रहते थे वहाँ से निकाल कर मुझे यहाँ लाये और मुझसे बातें की और मुझे वचन दिया। उन्होंने कहा, 'मैं कनान देश तेरे वंशजों को दूँगा।' यहोवा अपने एक स्वर्गदूत को तेरे आगे-आगे भेजेंगे जिससे तू मेरे पुत्र के लिए पत्नी चुन सके।
\s5
\v 8 परन्तु यदि वह स्त्री जिसे तू चुनेगा तेरे साथ आना न चाहे तो तू अपनी शपथ से मुक्त हो जाएगा। बस, एक ही काम जो तुझे नहीं करना है, वो यह है कि तू मेरे पुत्र को वहाँ नहीं ले जाएगा। "
\v 9 तब उस दास ने अब्राहम की जांघों के बीच अपना हाथ रखा और इस बात की शपथ खाई।
\p
\s5
\v 10 तब दास ने अपने स्वामी के ऊँटों में से दस ऊँटों को लिया और उन पर वह सब सामान रखा जो उसके स्वामी ने साथ ले जाने को दिया था। फिर वह उत्तरी मीसोपोतामिया के अरम्नहरैम नाहोर नगर के लिए निकला।
\v 11 जब वह दास नाहोर नगर पहुँचा तब दोपहर के बाद का समय हो गया था। यह वह समय था जब स्त्रियाँ कुएँ पर जल भरने आती थीं। उसने नगर के बाहर उस कुएँ के पास अपने ऊँटों को बैठा दिया।
\s5
\v 12 दास ने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर यहोवा जिनकी आराधना मेरा स्वामी करता है, आज मुझे सफलता प्रदान करें और मेरे स्वामी, अब्राहम के विश्वास का मान रखें!
\v 13 मेरी बात सुनो। मैं यहाँ इस कुएँ के पास खड़ा हूँँ और जल भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रही हैं।
\v 14 मैं आपसे विनती करता हूँँ कि मैं जिस कन्या से कहूँ, "कृपया अपना पात्र झुकाकर मुझे जल पिला दे", और वह कहे, 'ले, पीले, मैं तेरे ऊँटों के लिए भी जल निकाल दूंगी कि वे भी पीएं।' तो मुझे विश्वास हो जाएगा कि वही वो स्त्री है जिसे आपने अपने दास, इसहाक के लिए चुन लिया है और मुझे निश्चय हो जाएगा कि आपने मेरे स्वामी के विश्वास का मान रखा है।"
\s5
\v 15 दास की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक जवान स्त्री कुएँ पर आई। वह अब्राहम के छोटे भाई नाहोर की पत्नी मिल्का के पुत्र बतूएल की पुत्री थी।
\v 16 वह बहुत सुंदर और कुँवारी थी। कोई व्यक्ति कभी उसके साथ सोया नहीं था। वह कुएँ में उतरी और अपना पात्र जल से भरकर ऊपर आई।
\s5
\v 17 अब्राहम का दास तुरन्त उससे मिलने के लिए गया, और कहा, "कृपया करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दे।"
\v 18 उसने उत्तर दिया, "महोदय! अवश्य पी और पात्र को कंधे पर से उतार कर हाथों में लिया कि उसे जल पिलाए।"
\s5
\v 19 रिबका ने जल पिलाने के बाद कहा, "मैं तेरे ऊँटों को भी जल दूंगी, जब तक वे प्रयाप्त पी न ले।"
\v 20 उसने जल्दी-जल्दी घड़े का सारा जल ऊँटों के लिए बनी नाद में उड़ेल दिया। तब वह और जल लाने के लिए कुएँ की ओर दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को जल पिलाया।
\s5
\v 21 दास ने चुप-चाप उसे देखा। वह जानना चाहता था कि क्या यहोवा ने उसकी यात्रा सफल की है या नहीं।
\v 22 अन्त में जब ऊँट जल पी चुके तब उस दास ने छः ग्राम की नथ और दो सोने के कंगन जिनमें प्रत्येक का भार 110 ग्राम का था निकाले और रिबका को दिए कि वह उन्हें पहन ले।
\v 23 फिर उसने कहा, "मुझे बता कि तू किसकी पुत्री है। साथ ही, मुझे यह भी बता कि क्या तेरे पिता के घर में मेरे और मेरे साथियों के लिए आज रात सोने का स्थान हैं?"
\s5
\v 24 उसने उत्तर दिया, "मेरे पिता का नाम बतूएल है। वह नाहोर और उसकी पत्नी मिल्का का पुत्र है।
\v 25 हाँ, हमारे पास पर्याप्त स्थान है जहाँ तुम सभी आज रात सो सकते हो और ऊँटों को खिलाने के लिए हमारे पास बहुत सारा भूसा और अनाज भी है।"
\s5
\v 26 दास ने यहोवा की ओर सिर झुकाया और यहोवा की आराधना की।
\v 27 उसने कहा, "मैं यहोवा का धन्यवाद करता हूँँ, जिनकी मेरा स्वामी अब्राहम आराधना करता है। वह मेरे स्वामी के प्रति वफादार और भरोसेमंद हैं। यहोवा ने मुझे इस यात्रा में सीधा मेरे स्वामी के रिश्तेदारों में पहुँचा दिया है!"
\s5
\v 28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने माँ के घर में सबको बताया।
\v 29 रिबका का एक भाई था जिसका नाम लाबान था। लाबान तुरन्त दास के पास गया, जो कुएँ के पास खड़ा था।
\v 30 वह अपनी बहन को कंगन और नथ पहने देख तथा रिबका से उस पुुरुष की बातें सुनकर आश्चर्यचकित था। उसने जाकर देखा कि वह पुरुष ऊँटों के पास उस कुएँ के निकट खड़ा है।
\s5
\v 31 उसने अब्राहम के दास से कहा, "तू जो यहोवा द्वारा आशीषित है, तू यहाँ क्यों खड़ा है? मैंने तेरे लिए घर में एक स्थान तैयार किया है और तेरे ऊँटों के लिए भी स्थान तैयार किया है।"
\v 32 तब दास घर गया, और लाबान के दासों ने ऊँटों पर से सामान उतारा। वे ऊँटों के लिए भूसा और अनाज लाए और दास और उसके साथियों के लिए पैर धोने के लिए जल लाए।
\s5
\v 33 उन्होंने खाने के लिए भोजन परोसा लेकिन उसने कहा मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ जो मुझे बताना आवश्यक है।" लाबान ने कहा, "हमें बता!"
\v 34 दास ने कहा, "मैं अब्राहम का दास हूँँ।
\v 35 यहोवा ने मेरे स्वामी को बहुत आशीर्वाद दिया है और वह बहुत धनवान हो गया है। यहोवा ने उसे भेड़-बकरियाँ और मवेशी, बहुत सोना, चाँदी और दास-दासी,ऊँट और गदहे दिये हैं।
\s5
\v 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया।
\v 37 मेरे स्वामी ने मुझसे वचन लिया और कहा,"मेरे पुत्र के लिए कनानियों की पुत्रियों से पत्नी न लाना, जिनकी भूमि में हम रहते हैं।
\v 38 इसकी अपेक्षा, मेरे पिता के परिवार के पास वापस जा, जो मेरा अपना कुल है और मेरे पुत्र के लिए पत्नी ला।'
\s5
\v 39 तब मैंने अपने स्वामी से पूछा, 'यदि वह स्त्री मेरे साथ नहीं आएगी तो मैं क्या करू?'
\v 40 उसने उत्तर दिया था, 'मैं यहोवा, जिनकी आज्ञा का पालन मैंने सदैव किया है, वे अपना दूत तेरे आगे भेजेंगे और तेरी सहायता करेंगे। तुझे यहोवा ही सक्षम बनाएँगे कि तू मेरे ही कुल से, मेरे पिता के परिवार से मेरे पुत्र के लिए पत्नी प्राप्त कर सके।
\v 41 लेकिन यदि मेरा कुल तेरे साथ उसे आने की अनुमति न दे तब तू शापित होने से बच जाओगे की तू मेरी आज्ञा का पालन नहीं कर सका।'
\p
\s5
\v 42 जब मैं आज कुएँ पर आया तो मैंने प्रार्थना की, 'हे यहोवा परमेश्वर, जिनकी आराधना मेरा स्वामी अब्राहम, करता है यदि आप मुझे इस यात्रा में सफल बनाना चाहते हैं तो कृपया मेरे लिए ऐसा होने दें:
\v 43 मैं कुएँ के पास खड़ा हूँँ जहाँ लड़कियाँ जल लेने आएँगी। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँँ कि मैं जिस युवती से कहूँ, 'मुझे अपने घड़े से जल पिला दे',
\v 44 तो वह कहे, 'हाँ पी ले और मैं तेरे ऊँटों को भी जल पिला दूंगी', तो वह मेरे स्वामी के पुत्र के लिए आपकी ओर से चुनी हुई पत्नी होगी!
\s5
\v 45 मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर जल भरने आई। जल का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने जल भरा। मैंने इससे कहा, "कृपा करके मुझे पीने के लिए जल दे!'
\v 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए जल डाला और कहा, 'यह पी और मैं तेरे ऊँटों के लिए भी जल लाऊँगी।' इसलिए मैंने जल पीया और अपने ऊँटों को भी जल पिलाया।
\s5
\v 47 तब मैंने उससे पूछा, 'तू किसकी पुत्री है?' उसने कहा, 'नाहोर के पुत्र बतूएल और उसकी पत्नी मिल्का की पुत्री हूँ।' तब मैंने उसे नाक में पहनने को नथ और हाथों में पहनने को कंगन दिए।
\v 48 तब मैंने अपना सिर झुकाकर यहोवा की स्तुति की और यहोवा परमेश्वर को धन्यवाद दिया जिनकी मेरे स्वामी अब्राहम आराधना करते हैं, उन्होंने मुझे सही मार्ग दिखाया की मैं अपने स्वामी के भाई की पोती को अपने स्वामी के पुत्र की पत्नी बना सकूं।
\s5
\v 49 अब यदि तुम मेरे स्वामी केअपने विस्तारित परिवार के हिस्से के रूप में परिवार को बढ़ने के लिए विश्वसनीय कार्य करना चाहते हो तो बताओ की जो मैं निवेदन कर रहा हूँ तुम वही करोगे, यदि नहीं तो वह भी स्पष्ट कह दो कि मैं जान सकूं कि मुझे आगे क्या करना है।"
\s5
\v 50 लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, "यह स्पष्ट रूप से यहोवा से आया है। इसलिए हम नहीं कह सकते कि यह करना या न करना उचित है।
\v 51 रिबका तेरे सामने है। उसे ले जा, और उसे अपने स्वामी के पुत्र की पत्नी बना दे, जैसा यहोवा चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 52 जब अब्राहम के दास ने यह सुना, तो उसने यहोवा को दंडवत किया।
\v 53 तब दास ने सोने-चाँदी के आभूषण और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए और उसके भाई लाबान एवं उसकी माता को भेंट दी।
\s5
\v 54 फिर दास ने खान-पान किया। जो साथी अब्राहम के दास के साथ आये थे वे भी उस रात वहाँ सोये। अगली सुबह, दास ने कहा, "अब हमें अपने मालिक के पास जाने की अनुमति दे।"
\v 55 परन्तु उसके भाई और उसकी माँ ने उत्तर दिया, "लड़की को हमारे साथ दस दिन तक रहने दे। उसके बाद तू उसे ले जा सकता है।"
\s5
\v 56 परन्तु दास ने उनसे कहा, "मुझसे प्रतीक्षा न करवाओ। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। मुझे न रोको अब मुझे अपने स्वामी के पास लौट जाने दो!"
\v 57 उन्होंने कहा, "लड़की को बुलाओ और उससे पूछो कि वह क्या करना चाहती है।"
\v 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे पूछा, "क्या तू इसके साथ जाएगी ?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं जाऊँगी।"
\s5
\v 59 उन्होंने अब्राहम के दास के साथ रिबका को उसकी दासियों समेत विदा किया जो दासियां आजीवन उसकी सेवा करती रही थी।
\v 60 उन्होंने परमेश्वर से विनती की कि रिबका को आशीष दें और रिबका से कहा, "हमारी बहन, हमारा आशीर्वाद है कि यहोवा तुझे अनगिनत वंशजों की माता बनाएँ और जो उनसे घृणा करते हैं उनको पूरी तरह से पराजित करें।"
\s5
\v 61 तब रिबका और उसकी दासियाँ तैयार होकर ऊँटों पर सवार अब्राहम के दास के साथ चलीं। दास ने रिबका को साथ लिया और घर लौटने की यात्रा शुरू की।
\p
\v 62 इस समय इसहाक यहूदा के दक्षिणी जंगल में रहता था। वह बएर-लहई-रोई नाम के कुएँ से वहाँ आया था।
\s5
\v 63 एक दिन वह शाम के समय चिंतन मनन करने के लिए मैदान में गया और ऊँटों को उस ओर आते देख चकित हुआ।
\v 64 रिबका ने भी इसहाक को देखा। वह ऊँट पर से उतर गई
\v 65 और दास से पूछा, "यह पुरुष कौन है जो आ रहा है?" दास ने उत्तर दिया, "वह मेरा स्वामी इसहाक है।" इसलिए उसने उसके सामने शिष्टाचार के लिए अपने चेहरे पर परदा डाल लिया।
\s5
\v 66 दास ने इसहाक को वे सभी बातें बताई जो वहाँ घटित हुई थीं।
\v 67 तब इसहाक रिबका को अपनी माँ के तम्बू में ले आया और वह उसकी पत्नी हो गई। वह उससे बहुत प्रेम करता था। इस प्रकार इसहाक को उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् सांत्वना मिली।
\s5
\c 25
\p
\v 1 सारा की मृत्यु के कुछ समय बाद अब्राहम ने कतूरा नाम की महिला से फिर विवाह किया।
\v 2 कतूरा ने छह पुत्रों को जन्म दिया: जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक और शूह ।
\v 3 योक्षान दो पुत्रों शबा और ददान का पिता बना। ददान के वंशज अश्शूर और लुम्मी लोग थे।
\v 4 मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा और एल्दा थे। ये सब कतूरा की सन्तान थे।
\p
\s5
\v 5 अब्राहम ने घोषित किया कि उसकी मृत्यु के बाद इसहाक संपूर्ण सम्पति का उतराधिकारी होगा।
\v 6 परन्तु जब जीवित था तब उसने अपनी रखैलों के पुत्रों को उपहार दिये और उन्हें पूर्वी क्षेत्र में रहने के लिए स्थान दे दिया कि वे उसके पुत्र इसहाक से दूर रहें।
\s5
\v 7 अब्राहम एक सौ पचहत्तर वर्ष की उम्र तक जीवित रहा।
\v 8 वह बहुत वृद्ध होकर मरा और अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मर चुके थे।
\s5
\v 9 उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। इस क्षेत्र को अब्राहम ने सोहर के पुत्र एप्रोन से ख़रीदा था जो हित्त का वंशज था।
\v 10 इसहाक और इश्माएल ने अब्राहम को वहीं दफनाया जहाँ अब्राहम ने पहले अपनी पत्नी सारा को दफनाया था।
\v 11 अब्राहम की मृत्यु के बाद, परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को आशीष दी। इसहाक लहैरोई में रहता रहा।
\p
\s5
\v 12 अब आगे उनकी सूची है जो अब्राहम के पुत्र इश्माएल के वंश के थे, जिसे सारा की मिस्री दासी, हागार ने जन्म दिया था।
\s5
\v 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं: पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबएल, मिबसाम,
\v 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा,
\v 15 हदद, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए।
\v 16 ये इश्माएल के बारह पुत्रों के नाम थे। इश्माएल के बारह पुत्र अपने-अपने कुलों के प्रधान बने और उन्हीं के नाम पर उनके कुल आगे चले। उनमें से प्रत्येक की अपनी भूमि व्यवस्था और पड़ाव भूमि थी।
\s5
\v 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा और मरने के बाद अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मरे थे।
\v 18 उसके वंशज हवीला और शूर के मध्य बस गए। यह स्थान मिस्र की सीमा पर अश्शूर के मार्ग पर है। परन्तु वे आपस में शान्ति से नहीं रहे।
\p
\s5
\v 19 अब यह अब्राहम के पुत्र इसहाक के विषय विवरण है। अब्राहम इसहाक का पिता था।
\v 20 जब इसहाक चालीस वर्ष का था तब उसने बतू एल की पुत्री रिबका से विवाह किया। बतूएल पद्दनराम के अराम का वंशज था। रिबका लाबान की बहन थी, जो अरामियों से संबंधित था।
\s5
\v 21 शादी के बाद लंबे समय तक रिबका के पास कोई संतान नहीं थी। इसहाक ने अपनी पत्नी के लिए यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया। इसहाक की पत्नी रिबका गर्भवती हुई।
\v 22 उसके गर्भ में दो संतान थे और वे एक-दूसरे के साथ आपस में धक्का-मुक्की करते रहते थे। उसने यहोवा से पूछा, "मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?"
\s5
\v 23 यहोवा ने उस से कहा, "तेरे जुड़वा बच्चों से दो जातियाँ उत्पन्न होंगी और वे एक दूसरे से अलग हो जाएँगी। उनमें से एक दूसरे से अधिक शक्तिशाली होगी परन्तु बड़ा छोटे की सेवा करेगा।"
\p
\s5
\v 24 जब रिबका ने जन्म दिया, तो सच में जुड़वां लड़के पैदा हुए!
\v 25 पहला बच्चा लाल हुआ। उसकी त्वचा रोंएदार पोशाक के समान थी। इसलिए उसका नाम एसाव पड़ा।
\v 26 जब दूसरा बच्चा पैदा हुआ, वह एसाव की एड़ी को मज़बूती से पकड़े था। इसलिए उस संतान का नाम याकूब पड़ा। इसहाक की उम्र उस समय साठ वर्ष की थी। जब याकूब और एसाव पैदा हुए।
\p
\s5
\v 27 लड़के बड़े हुए। एसाव जंगली जानवरों का कुशल शिकारी बन गया। वह मैदानों में बहुत समय बिताता था। किन्तु याकूब शान्त व्यक्ति था वह अधिकांश समय अपने तम्बू के पास में रहता था।
\v 28 इसहाक एसाव को अधिक पसंद करता था क्योंकि एसाव इसहाक को शिकार का मांस खिलाता था। लेकिन रिबका को याकूब अधिक पसंद था।
\p
\s5
\v 29 एक दिन जब याकूब दाल पका रहा था तब एसाव भूखा मैदान से घर आया।
\v 30 उसने याकूब से कहा, "मुझे वह लाल दाल खाने के लिए दो क्योंकि मैं भूखा हूँँ!" (यही कारण है कि एसाव का दूसरा नाम एदोम था।)
\s5
\v 31 याकूब ने कहा, "मैं तुझे दाल तो दूँगा परन्तु तू मुझे पेहलौठे पुत्र होने का अपना अधिकार मुझे बेच दे ताकि पिता की अधिकांश सम्पति का मैं उत्तराधिकारी बन सकूं।"
\v 32 एसाव ने उत्तर दिया, "ठीक है, मैं भूख से मरने वाला हूँँ। यदि मैं अब मर जाऊँ तो मेरा अधिकार मेरी सहायता नहीं करेगा।"
\v 33 याकूब ने कहा, "तू शपथ खा कि तू मुझे पेहलौठे पुत्र होने का अधिकार दे रहा है।" तो एसाव ने यही किया। उसने याकूब को अपना पेहलौठा पुत्र होने का अधिकार बेच दिया।
\v 34 तब याकूब ने एसाव को कुछ रोटी और दाल दी। एसाव ने खाया, पिया और उठ कर चला गया। ऐसा करने के द्वारा, एसाव ने दिखाया कि वह पेहलौठे पुत्र होने के अपने अधिकार में रूचि नहीं रखता।
\s5
\c 26
\p
\v 1 कुछ समय बाद उस देश में एक भयंकर अकाल पड़ा। यह अकाल अब्राहम के समय के अकाल से अलग था। इसहाक दक्षिण पूर्व में गरार देश में चला गया ताकि पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक से मिलकर बात करें।
\s5
\v 2 परन्तु यहोवा ने उसे दर्शन दिया और कहा, "मिस्र मत जा! उसी देश में रह जिसमें रहने के लिए मैं तुझे कहूँगा!
\v 3 इसी देश में रह, और मैं तेरी सहायता करूँगा और तुझे आशीष दूँगा क्योंकि मैं तुझे और तेरे वंशजों को यह सारा प्रदेश दूँगा और मैं वही करूँगा जो मैंने तेरे पिता अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी।
\s5
\v 4 मैं तेरे वंशजों को आकाश के सितारों के समान असंख्य बनाऊँगा और यह पूरा देश उन्हें दूँगा और तेरे वंशजों को पृथ्वी के सब समुदायों के लिए आशीष का कारण बनाऊँगा।
\v 5 मैं यह इसलिए करूँगा क्योंकि तेरे पिता अब्राहम ने मेरी आज्ञा मानी थी। उसने उन सभी आज्ञाओं का पालन किया जो मैंने उसे आदेश दिये थे। अब्राहम ने उन सब नियमों का पालन किया जो मैंने उसे दिए थे।"
\p
\s5
\v 6 इसहाक अपनी पत्नी और अपने पुत्रों के साथ गरार में ही रहा।
\p
\v 7 जब गरार के लोगों ने इसहाक से रिबका के विषय में पूछा कि यह महिला कौन है, इसहाक ने कहा, "यह मेरी बहन है।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह यह कहने से डरता था कि, "वह मेरी पत्नी है।" उसने सोचा, "रिबका बहुत सुंदर है, इसलिए वे उसे पाना चाहेंगे। इसहाक को लगता था कि लोग उसकी पत्नी को पाने के लिए उसको मार डालेंगे।"
\v 8 जब इसहाक को वहाँ बहुत समय हो गया तब एक दिन पलिश्ती लोगों के राजा अबीमेलेक ने अपने महल की एक खिड़की से नीचे इसहाक को अपनी पत्नी रिबका के साथ प्रेम करते देखा और आश्चर्यचकित हुआ।
\s5
\v 9 तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलाया और कहा, "वह स्त्री तो निश्चय ही तेरी पत्नी है, फिर तू ने झूठ क्यों कहा कि वह तेरी बहन है? इसहाक ने उससे कहा, "मैं डरता था कि तुम उसे पाने के लिए मुझे मार सकते हो।"
\v 10 अबीमेलेक ने कहा, " तुझे हमारे साथ यह नहीं करना चाहिए था! हमारे बीच का कोई भी पुरुष तेरी पत्नी के साथ सो सकता था, तब वह बड़े पाप का दोषी बन जाता।"
\v 11 तब अबीमेलेक ने अपने सभी लोगों को आज्ञा दी कि इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को नुकसान न पहुंचाएं! और जो ऐसा करेगा उसे निश्चित रूप से मार डाला जाएगा!"
\p
\s5
\v 12 इसहाक ने उस साल उस भूमि पर खेती की और उस साल बहुत फसल हुई क्योंकि यहोवा ने उसे आशीष दी।
\v 13 इसहाक अधिक से अधिक धन तब तक बटोरता रहा जब तक वह बहुत धनी नहीं हो गया।
\v 14 उसके पास भेड़ों, बकरियों और मवेशियों के झुण्ड थे। उसके पास अनेक दास भी थे। उसकी समृद्धि देख पलिश्ती उससे ईर्ष्या करने लगे।
\s5
\v 15 इसलिए सभी कुएँ जो उसके पिता अब्राहम ने खुदवाये थे उन्हें लोगों ने मिट्टी से भर दिए।
\v 16 तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, "तुम हम से अधिक हो गए हो इसलिए मैं चाहता हूँँ कि तुम हमारे देश से निकल जाओ।"
\v 17 इसलिए इसहाक और उसका परिवार वहाँ से चले गए। वे गरार की घाटी में अपने तंबू लगाकर वहीं रहने लगे।
\s5
\v 18 उस स्थान पर अब्राहम के समय अनेक कुएँ खोदे गए थे जिन्हें अब्राहम के मृत्यु के बाद पलिश्तियों ने मिट्टी से भर दिए थे। इसहाक और उसके दासों ने उन कुओं को फिर से खोदा और इसहाक ने उन कुओं को वही नाम दिए जो उसके पिता ने दिए थे।
\s5
\v 19 इसहाक के दासों ने घाटी में खुदाई की और उन्हें वहाँ ताजे जल का कुआँ मिला।
\v 20 परन्तु गरार की घाटी के चरवाहों ने इसहाक के दासों से झगड़ा किया और कहा, "इस कुएँ का जल हमारा है।" इसलिए इसहाक ने उसका नाम एसेक रखा, जिसका अर्थ है "झगड़ा"। उसने यह नाम इसलिए दिया क्योंकि उसी स्थान पर उन लोगों में झगड़ा हुआ था।
\s5
\v 21 तब इसहाक के दासों ने एक और कुआँ खोदा। वहाँ के लोगों ने उस कुएँ के स्वामित्व के लिए भी झगड़ा किया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम सित्ना रखा, जिसका अर्थ है "विरोध"।
\v 22 वे वहाँ से चले गए और एक और कुआँ खोदा, लेकिन इस बार कोई भी उसके स्वामित्व को लेकर झगड़ा करने नहीं आया। इसहाक ने उस कुएँ का नाम रहोबोत रखा, जिसका अर्थ है "खाली जगह", यह कहते हुए कि, "यहोवा ने हमें रहने के लिए एक खाली स्थान दी है, ऐसा स्थान जिसे कोई नहीं लेना चाहता। हम यहाँ बहुत समृद्ध हो जाएँगे।"
\p
\s5
\v 23 वहाँ से इसहाक बेर्शेबा गया।
\v 24 वहीं पहली ही रात को यहोवा ने उसे दर्शन दिया और कहा, "मैं तेरे पिता अब्राहम का परमेश्वर हूँँ जिनकी आराधना अब्राहम करता था। तू किसी बात से मत डर। मैं तेरे साथ हूँँ और तुझे आशीष दूँगा और जो प्रतिज्ञा मैंने अपने दास अब्राहम से की है, उसके कारण तेरे वंशजों की संख्या बहुत बढ़ाऊँगा।"
\v 25 इसहाक ने वहाँ एक वेदी बनाई और यहोवा की आराधना करने के लिए बलि चढ़ाया। उसने वहाँ अपने तंबू लगाए, और उसके दासों ने एक और कुआँ खोदना शुरू किया।
\p
\s5
\v 26 जब वे कुआँ खोद रहे थे, तब राजा अबीमेलेक गरार से इसहाक को देखने आया। अबीमेलेक अपने साथ सलाहकार अहुज्जत और सेनापति पीकोल को लाया।
\v 27 इसहाक ने उनसे पूछा, " तू ने मुझे शत्रुतापूर्ण तरीके से दूर भेज दिया और तू अब मेरे पास क्यों आया है?"
\s5
\v 28 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "हमने देखा है कि यहोवा तेरी सहायता करते हैं। अतः हमनें एक दूसरे से कहा," हमारे और इसहाक के मध्य एक समझौता होना चाहिए।"अतः एक शान्ति संधि करनी होगी।
\v 29 तू हमें वचन दे कि तू हमें नुकसान नहीं पहुँचाएगा। इसी प्रकार हम भी तेरा अपमान नहीं करेंगे।हम सदैव तेरे साथ अच्छी तरह पेश आए है और हमने तुझे शांतिपूर्वक दूर भेजा और देख अब यहोवा तुझे आशीष दे रहें हैं।"
\s5
\v 30 तब इसहाक ने उन्हें दावत दी। सभी ने खाया और पीया।
\v 31 अगली सुबह उन्होंने एक-दूसरे को वचन दिया और शपथ खाई। कि वे वही करेंगे जिसके लिए उन्होंने वचन दिया है, इसके बाद इसहाक ने उन्हें शांतिपूर्वक घर भेज दिया।
\p
\s5
\v 32 उस दिन इसहाक का सेवक उसके पास आया और उस कुएँ के विषय में बताया जिसे वे खोद रहे थे। उन्होंने कहा, "हमें कुएँ में जल मिल गया है!"
\v 33 इसहाक ने उस कुएँ का नाम शिबा रखा। जो सुनने में इब्रानी शब्द के समान लगता था जिसका अर्थ "शपथ" है। अतः वह नगर अभी भी बेर्शेबा कहलाता है। जिसका अर्थ है, "शान्ति कि शपथ का कुआं"।
\p
\s5
\v 34 एसाव जब चालीस वर्ष का हो गया तब उसने बेरी की पुत्री यहूदीत और एलोन की पुत्री बासमत से विवाह किया। दोनों स्त्रीयां हित्त की वंशज थी, वे इसहाक के कुल की नही थीं।
\v 35 एसाव की दोनों पत्नियों ने इसहाक और रिबका के जीवन को दुखी बना दिया था।
\s5
\c 27
\p
\v 1 जब इसहाक बूढ़ा हुआ तब वह प्रायः अँधा हो गया। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया और उससे कहा, "पुत्र?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, पिताजी! मैं यहाँ हूँ "
\v 2 इसहाक ने कहा, "मेरी बात सुन। मैं बहुत बूढ़ा हूँँ, और पता नहीं कि मैं कब मर जाऊँगा।
\s5
\v 3 तो अब अपने धनुष और तीर लेकर शिकार पर जा। मेरे खाने के लिए एक जंगली जानवर का शिकार कर ला।
\v 4 उसे मार कर मेरे लिए मनपसन्द भोजन तैयार कर और ला कि मैं उसे खाऊँ और तृप्त हो कर मरने से पहले तुझे आशीर्वाद दे सकूँ।"
\s5
\v 5 इसहाक एसाव से यह सब कह रहा था तब रिबका सुन रही थी। जब एसाव तम्बू से निकल कर शिकार करने चला गया,
\v 6 तब रिबका ने अपने पुत्र याकूब को बुला कर कहा, "मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से बातें करते सुना है। उसने एसाव से कहा,
\v 7 'शिकार करके वन पशु ले आ और स्वादिष्ट भोजन बना कि मैं उसे खाऊँ और मरने से पहले मैं तुझे आशीष दूँ जब यहोवा सुन रहे हों। '
\s5
\v 8 तो अब, मेरे पुत्र सुन। मैं जो कहती हूँँ, वह कर।
\v 9 भेड़ बकरियों के झुण्ड से दो बकरी के स्वस्थ बच्चे मार कर मेरे पास उनका मांस ले आ तो मैं तेरे पिता का मनपसन्द भोजन तैयार कर दूंगी।
\v 10 तब तू उसे ले जाकर अपने पिता को देना कि वह उसे खाए। तब वह मरने से पहले तुझे आशीर्वाद देगा। "
\p
\s5
\v 11 परन्तु याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, "मेरे भाई एसाव के शरीर पर तो घने बाल है! मेरी त्वचा वैसी नहीं लेकिन चिकनी है!
\v 12 क्या होगा यदि मेरे पिता ने मुझे छू लिया? उन्हें पता चल जाएगा कि मैं उन्हें धोखा दे रहा हूँँ, और मैं स्वयं पर शाप लाऊँगा, आशीर्वाद नहीं!"
\s5
\v 13 उसकी माता ने कहा, "यदि ऐसा हुआ तो मेरे पुत्र को दिया गया श्राप मुझ पर आए! तू बस वही कर जो मैं कहती हूँ। जाकर मेरे लिए बकरी के बच्चे ले आ!"
\v 14 इसलिए याकूब बाहर गया और उसने बकरी के दो बच्चों को पकड़ा और अपनी माँ के पास लाया। उसकी माँ ने इसहाक की पसंद के अनुसार विशेष ढंग से उन्हें पकाया।
\s5
\v 15 तब रिबका ने अपने बड़े पुत्र एसाव के सबसे अच्छे कपड़े जो उसके पास तम्बू में थे, और उसने उन्हें अपने छोटे पुत्र याकूब को पहना दिये।
\v 16 रिबका ने बकरी के बच्चों के चमड़े को लिया और याकूब के हाथों और गले पर बांध दिया।
\v 17 तब रिबका ने रोटी और वह स्वादिष्ट मांस याकूब के हाथ में दिया।
\p
\s5
\v 18 याकूब ने उसे ले लिया और अपने पिता के पास गया और कहा, "पिताजी!" इसहाक ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँँ; हाँ पुत्र, तू कौन है?"
\v 19 याकूब ने अपने पिता से कहा, "मैं तेरा पहला पुत्र एसाव हूँँ। तू ने जो कहा है, मैंने कर दिया है। अब तू बैठ और भोजन कर। ताकि तू मुझे आशीर्वाद दे सके।"
\s5
\v 20 परन्तु इसहाक ने अपने पुत्र से पूछा, "हे मेरे पुत्र, यह कैसे हुआ कि तुझे इतनी जल्दी जानवर मिल गया और शिकार करके भी ले आया?" याकूब ने उत्तर दिया, "यहोवा जिनकी तू आराधना करता है, उन्होंने शिकार करने में मुझे सफल बनाया।"
\v 21 इसहाक ने याकूब से कहा, "मेरे पुत्र, मेरे पास आ ताकि मैं तुझे छू सकूँ और जान सकूँ कि तू वास्तव में मेरा पुत्र एसाव है या नहीं।"
\s5
\v 22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। इसहाक ने उसे छुआ और कहा, "आवाज याकूब की सी है, परन्तु हाथ बड़े भाई एसाव ही के समान रोम वाले हैं।"
\v 23 इसहाक उसे पहचान नहीं पाया क्योंकि वह अँधा था। क्योंकि याकूब के हाथ बालों से भरे थे बिलकुल एसाव के समान। इसहाक उसे आशीर्वाद देने के लिए तैयार हो गया।
\s5
\v 24 लेकिन पहले इसहाक ने पूछा, "क्या सचमुच तू मेरा पुत्र एसाव है?" याकूब ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं हूँँ।"
\v 25 इसहाक ने कहा, "हे मेरे पुत्र, जो भोजन तू ने तैयार किया है उसे ले आ कि मैं उसे खाकर तुझे आशीर्वाद दूँ।" याकूब भोजन ले आया। इसहाक ने भोजन किया और याकूब दाखमधु भी लाया और इसहाक ने वह भी पिया।
\s5
\v 26 तब उसके पिता, इसहाक ने उससे कहा, "मेरे पुत्र, यहाँ आ और मुझे चूम।"
\v 27 तब याकूब उसके पास गया, और उसके पिता ने याकूब के गाल को चूमा इसहाक ने याकूब के पहने वस्त्रों को सूंघा, और वह सुगन्ध एसाव के कपड़ो के समान थी अतः उसने कहा, "सचमुच, मेरे पुत्र की सुगन्ध यहोवा द्वारा आशीषित खेतों की सुगन्ध के समान है।
\s5
\v 28 इसलिए मैं परमेश्वर से निवेदन करूँगा कि परमेश्वर तेरे खेतों पर आकाश से ओस बरसाएँ और भूमि से बहुतायत फसल मिले, तथा अनाज की और दाखरस के लिए अंगूरों की अच्छी फसल हो।
\s5
\v 29 मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँँ कि सभी समुदाय के लोग तेरी सेवा करेंगे और तेरे सामने झुकेंगे और तू अपने भाइयों पर शासन करेगा और तेरी माता के वंशज भी तेरे सामने झुकेंगे। जो तुझे शाप देगा, शापित होगा और जो तुझे आशीर्वाद देगा, आशीर्वाद पाएगा।"
\p
\s5
\v 30 जब इसहाक याकूब को आशीर्वाद दे चुका तब याकूब अपने पिता के तम्बू को छोड़कर जैसे ही बाहर निकला। वैसे ही उसका बड़ा भाई एसाव शिकार करके वापस आया।
\v 31 एसाव ने स्वादिष्ट मांस पकाया और अपने पिता के पास ले आया। उसने अपने पिता से कहा, "मेरे पिता, कृपया बैठ और मैंने जो मांस पकाया है उसे खा ताकि मुझे आशीर्वाद दे सके!"
\s5
\v 32 उसके पिता, इसहाक ने उससे कहा, " तू कौन है?" उसने उत्तर दिया, "मैं एसाव हूँँ, तेरा पहला पुत्र!"
\v 33 यह सुनकर इसहाक काँपने लगा। उसने पूछा, "तो वह कौन था जिसने मुझे जानवर का शिकार करके उसका माँस खिलाया था? वह अभी-अभी तेरे आने के पहले ही यहाँ से निकला है। मैं तो उसे आशीर्वाद दे चुका हूँँ और उस आशीर्वाद को वापस नहीं ले सकता।"
\s5
\v 34 जब एसाव ने अपने पिता की बातें सुनी तो वह जोर-जोर से रोने लगा। वह बहुत निराश हुआ। उसने अपने पिता से कहा, "मेरे पिता, मुझे भी आशीर्वाद दे!"
\v 35 लेकिन उसके पिता ने कहा, "तेरा भाई आया था, मुझे धोखा देकर मुझसे आशीर्वाद ले गया!"
\s5
\v 36 एसाव ने कहा, "उसका नाम याकूब बिलकुल ठीक ही रखा गया है क्योंकि उसने मुझे दो बार धोखा दिया है। पहली बार उसने मुझसे पेहलौठे पुत्र होने का अधिकार ले लिया और इस बार उसने मेरा आशीर्वाद लिया!" फिर उसने पूछा, "क्या तेरे पास मेरे लिए कोई आशीर्वाद नहीं बचा है?"
\v 37 इसहाक ने एसाव से कहा, "मैं घोषित कर चुका हूँँ कि तेरा छोटा भाई तुझ पर शासक होगा और उसके रिश्तेदार उसकी सेवा करेंगे और परमेश्वर उसे बहुतायत से अन्न तथा दाखमधु दें। मेरे पुत्र, अब मैं तेरे लिए क्या करूं?"
\s5
\v 38 एसाव ने अपने पिता से कहा, "मेरे पिता, क्या तेरे पास केवल एक ही आशीर्वाद है? मेरे पिता, मुझे भी आशीर्वाद दे !" और एसाव जोर-जोर से रोया।
\s5
\v 39 उसके पिता इसहाक ने उत्तर दिया, " तू जहाँ निवास करेगा वह उपजाऊ भूमि से और आकाश की ओस की बूंदों से जो परमेश्वर खेतों को सींचने के लिए देते हैं, दूर रहेगा।
\v 40 तुझे जीने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनुष्यों को लूटना होगा और उनकी हत्या करनी पड़ेगी।
\q और तुझे अपने भाई के दास के समान जीना पड़ेगा।
\q लेकिन जब तू उससे विद्रोह करने का निर्णय लेगा तब तू उसके नियंत्रण से बाहर निकल जाएगा।"
\p
\s5
\v 41 उसके पिता ने याकूब को जो आशीर्वाद दिये थे उसके कारण एसाव ने अपने भाई से घृणा की। एसाव ने मन ही मन सोचा, "मेरे पिता जल्दी ही मर जाएंगे और मैं जैसे ही उनकी मृत्यु का शोक समाप्त कर लूँ , मैं याकूब को मार डालूँगा।!"
\v 42 रिबका ने जब देखा कि उसका बड़ा पुत्र एसाव क्या सोच रहा है तब उसने अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलाया, और उससे कहा, "मेरी बात सुन। तेरा बड़ा भाई एसाव धीरज धर कर तेरी हत्या करने के प्रतीक्षा कर रहा है कि तू ने पिता के साथ जो धोखा किया है उसका बदला ले।
\s5
\v 43 मेरे पुत्र, ध्यान से मेरी बात सुन। शीघ्र ही यहाँ से भाग जा और हारान में मेरे भाई लाबान के पास जा कर रह।
\v 44 उसके पास थोड़े समय तक ही रह जब तक तेरे भाई का गुस्सा नहीं शांत होता।
\v 45 जब तेरा भाई जो कुछ तू ने उसके साथ किया वह यह सब भूल जाएगा तब मैं सन्देश भेज कर तुझे बुलवा लूंगी। यदि एसाव तेरी हत्या कर दे तो दूसरे उसकी भी हत्या कर देंगे। मेरे दोनों पुत्र एक ही समय में मर जाएँगे!"
\p
\s5
\v 46 रिबका ने फिर इसहाक से कहा, " तेरे पुत्र एसाव ने हित्ती स्त्रियों से विवाह कर लिया है। जो हेत की वंशज हैं वे मुझे परेशान कर रही हैं। यदि याकूब भी इसी क्षेत्र की किसी हित्ती स्त्री से विवाह करेगा तो मेरा जीवन व्यर्थ हो जाएगा! "
\s5
\c 28
\p
\v 1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाया और उसे आशीर्वाद दिया। इसहाक ने कहा, " तू कनानी स्त्री से विवाह मत करना।
\v 2 इसलिए अपने नाना बतूएल के घर पद्दनराम जा। अपनी माता के भाई लाबान से उसकी एक पुत्री का हाथ मांग ले।
\s5
\v 3 मैं प्रार्थना करूँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुझे आशीर्वाद दें और तुझे अनगिनत वंशजों का मूल ठहराए कि वे अनेक जातियाँ बने।
\v 4 मैं यह भी प्रार्थना करूँगा कि वह तुझे और तेरे वंशजों को आशीषित करके इस देश का अधिकारी बना दें जिसमें आज तू परदेशी होकर रहता है जिस देश को परमेश्वर ने अब्राहम और उसके वंशजों को देने का वचन दिया था। "
\s5
\v 5 इसहाक ने याकूब को पद्दनराम के प्रदेश को भेजा ताकि वह रिबका के भाई लाबान के साथ रह सके, जो बतूएल का पुत्र था और अरामी समुदाय का व्यक्ति था। (इसी रिबका ने बाद में याकूब और एसाव को जन्म दिया था।)
\p
\s5
\v 6 एसाव को पता चला कि उसके पिता इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया है और फिर उसे पद्दनराम भेजा है। उसे यह भी पता चला कि जब उसके पिता ने याकूब को आशीर्वाद दिया, तो उसने उससे कहा, "कनानी स्त्री से विवाह मत करना।"
\v 7 और याकूब पिता और माता की आज्ञा मान कर पद्दनराम चला गया।
\s5
\v 8 एसाव ने इससे यह समझा कि उसका पिता कनानी स्त्री को पसंद नहीं करता।
\v 9 इसलिए एसाव अपने संबंधी इश्माएल से मिलने गया और इश्माएल की पुत्री महलत से विवाह किया। महलत नबायोत की बहन और अब्राहम की पोती थी।
\p
\s5
\v 10 इस बीच, याकूब बेर्शेबा से निकल कर हारान की ओर जाने लगा।
\v 11 सूर्यास्त के समय याकूब मार्ग ही में था और जिस स्थान पर वह था वहीँ उसने रात बिताने का निर्णय किया। याकूब ने एक पत्थर को तकिया बना कर उस पर सिर रखा और सो गया।
\s5
\v 12 याकूब ने स्वप्न देखा। उसने स्वप्न में देखा कि एक बड़ी सीढ़ी है। सीढ़ी के नीचे का सिरा पृथ्वी पर था और ऊपर का आकाश में। याकूब ने यह भी देखा कि परमेश्वर के स्वर्गदूत सीढ़ी से ऊपर और नीचे आ-जा रहे थे।
\v 13 और सीढ़ी के ऊपरी सिरे पर यहोवा खड़े थे। वे कह रहे थे, "मैं परमेश्वर यहोवा हूँ जिसकी आराधना तेरे दादा अब्राहम और तेरे पिता इसहाक करते थे। मैं तुझे और तेरे वंशजों को यह भूमि दूँगा जिस पर तू अभी सो रहे हो।
\s5
\v 14 तेरे वंशज पृथ्वी की धूल के कणों के समान अनगिनत होंगे और उनकी सीमाएँ दूर-दूर तक होंगी। वे पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण चारों दिशाओं में फैली हुई होंगी। मैं तेरे और तेरे वंशजों के द्वारा पृथ्वी के सब कुलों और जातियों को आशीष दूँगा।
\v 15 तू जहाँ भी जाएगा, मैं तेरी सहायता करूँगा और तेरी रक्षा करूँगा। और तुझे लौटा कर इसी देश में ले आऊँगा। मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा। मैं तेरे साथ किये गये अपने सब वचनों को पूरा करूँगा।"
\p
\s5
\v 16 जब रात को ही याकूब की नींद टूट गई वह उठकर सोचने लगा, "निश्चय ही यहोवा इस स्थान में उपस्थित हैं जिसके विषय में मुझे अब तक पता नहीं था!"
\v 17 याकूब डर गया और उसने कहा, "यह स्थान बड़ा भयानक है। यह निश्चय ही परमेश्वर का निवास स्थान और स्वर्ग का द्वार है!"
\s5
\v 18 याकूब दूसरे दिन सबेरे उठा और जिस पत्थर को उसने तकिया बनाया था उसे सीधा खड़ा करके परमेश्वर के दर्शन का स्मारक बनाया और उस पर जैतून का तेल डाल कर परमेश्वर के लिए पवित्र किया।
\v 19 याकूब ने उसे बेतेल नाम दिया, जिसका अर्थ है "परमेश्वर का घर।" पहले उसका नाम लुज़ था।
\p
\s5
\v 20 याकूब ने ईमानदारी से परमेश्वर से वादा किया, "यदि आप मेरी यात्रा में मेरी सहायता करें और रक्षा करें और मुझे पर्याप्त भोजन और वस्त्र दें
\v 21 कि मैं लौट कर अपने पिता के घर सुरक्षित पहुँच सकूँ तो आप यहोवा मेरे परमेश्वर होंगे और मैं आपकी आराधना करूँगा।
\v 22 इस स्थान पर जो मैंने यह पत्थर खड़ा किया है यहाँ परमेश्वर का पवित्र स्थान होगा और आप परमेश्वर जो कुछ मुझे देंगे उसका दसवां अंश मैं आपको दूँगा। "
\s5
\c 29
\p
\v 1 तब याकूब ने अपनी यात्रा जारी रखी और वह कनान देश के पूर्व के प्रदेश में पहुँच गया।
\v 2 वहाँ उसने मैदान में एक कुआँ देखा। वहाँ कुएँ के पास भेड़ों के तीन झुण्ड थे। यही वह कुआँ था जहाँ ये भेड़ें जल पीती थी। वहाँ एक बड़े पत्थर से कुएँ का मुँह ढँका हुआ था।
\v 3 जब सब चरवाहे अपनी भेड़ों को लेकर वहाँ आते थे तब वे सब एकजुट होकर उस पत्थर को हटाते थे और अपनी भेड़ों के लिए जल निकालते थे और फिर से उस पत्थर को कुएँ पर रख देते थे।
\p
\s5
\v 4 उस दिन, याकूब ने उन चरवाहों से पूछा जो वहाँ बैठे थे, " तू लोग कहाँ के हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "हम हारान देश के हैं।"
\v 5 उसने उनसे पूछा, "क्या आप नाहोर के पोते लाबान को जानते हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, हम उसे जानते हैं।"
\v 6 याकूब ने उनसे पूछा, "क्या लाबान कुशल से है?" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, वह कुशल से है। देखो उसकी पुत्री राहेल भेड़ों को लेकर आ रही है!"
\s5
\v 7 याकूब ने कहा, "अभी तो दिन ही का समय है। रात के लिए जानवरों को इकट्ठे करने का अभी समय नहीं है। इसलिए उन्हें जल देकर और उन्हें मैदान में लौट कर चरने के लिए जाने क्यों नहीं देते?"
\v 8 उन्होंने उत्तर दिया, "हम लोग यह तब तक नहीं कर सकते जब तक सभी चरवाहे इकट्ठे नहीं हो जाते। तब हम लोग पत्थर को कुएँ के ऊपर से हटाएँगे और सभी भेडों को जल दिया जाएगा।"
\p
\s5
\v 9 वह अभी उनके साथ बात कर ही रहा था, तब राहेल अपने पिता की भेड़ों के साथ आई। वही अपने पिता की भेड़ों को संभालती थी।
\v 10 राहेल, लाबान की बेटी और याकूब की माता के भाई की पुत्री, और लाबान की भेड़ों को देख कर उसने अकेले ही कुएँ के ऊपर से पत्थर हटा दिया और अपने मामा की भेड़ों के लिए जल निकाला।
\s5
\v 11 याकूब ने राहेल के गाल को चूमा और आनंद से रो पड़ा, क्योकि वह बहुत प्रसन्न था।
\v 12 याकूब ने राहेल से कहा कि वह उसके पिता का संबंधी है। उसकी बुआ रिबका का पुत्र। राहेल दौड़ कर घर गई और उसने अपने पिता को समाचार दिया।
\p
\s5
\v 13 जैसे ही लाबान ने सुना कि उसकी बहन का पुत्र याकूब आया है, वह उससे मिलने के लिए दौड़ता हुआ गया। उसने उसे गले लगा लिया और गाल पर चूमा। तब वह उसे अपने घर ले आया और फिर याकूब ने लाबान को सब कुछ बताया।
\v 14 तब लाबान ने उससे कहा, "सच, तू मेरे परिवार का हिस्सा है!"
\p याकूब लाबान के पास एक महीने तक रूका और उसके बदले उसने वहाँ काम किया।
\s5
\v 15 तब लाबान ने उससे कहा, " तू मेरा संबंधी है तुझसे बिना वेतन काम कराना उचित नहीं। मुझे बता की मैं तुझे कितना वेतन दूँ ।"
\v 16 लाबान की दो पुत्रियाँ थीं। बड़ी का नाम लिआ था और छोटी का राहेल।
\v 17 लिआ की सुंदर आँखें थीं लेकिन राहेल रूपवती और आकर्षक थी।
\v 18 याकूब राहेल से प्रेम करता था इसलिए उसने कहा, "मैं तेरे लिए सात वर्ष तक काम करूँगा और उसके बाद तू मुझे अपनी पुत्री राहेल से विवाह करने की अनुमति देगा, यही मेरा वेतन होगा।"
\s5
\v 19 लाबान ने उत्तर दिया, "यह मेरे लिए अच्छा है कि तू उससे विवाह करे इसके कि वह किसी और पुरूष से विवाह करे। इसलिए हमारे साथ यहाँ रह।"
\v 20 याकूब ने राहेल को पाने के लिए सात वर्ष लाबान के पास काम किया परन्तु वे सात वर्ष उसके लिए ऐसे बीत गए जैसे कुछ ही दिन हो क्योंकि वह राहेल को बहुत प्रेम करता था।
\p
\s5
\v 21 सात वर्ष समाप्त होने के बाद याकूब ने लाबान से कहा, "अब मेरा विवाह राहेल से करा दे क्योंकि तेरे पास काम करने का समय जो हमने तय किया था, वह पूरा हो गया है और मैं अब राहेल से विवाह करना चाहता हूँ।"
\v 22 तब लाबान ने उन सभी लोगों को इकट्ठा किया जो उस क्षेत्र में रहते थे और दावत दी।
\s5
\v 23 परन्तु उस शाम को राहेल की अपेक्षा, लाबान अपनी बड़ी पुत्री लिआ को याकूब के पास लाया। अंधकार के कारण याकूब देख नहीं पाया कि वह राहेल नहीं लिआ है। याकूब ने उसके साथ सहवास किया।
\v 24 (लाबान ने अपनी दासी जिल्पा को पुत्री लिआ की दासी होने के लिए दिया।)
\p
\v 25 अगली सुबह याकूब लिआ को देख आश्चर्यचकित हुआ। वह लाबान के पास गया और गुस्से में उसने कहा, " तू ने मेरे साथ अनुचित किया है, मैंने राहेल को पाने के लिए तेरा काम किया, तो तू ने मुझे धोखा क्यों दिया?"
\s5
\v 26 लाबान ने उत्तर दिया, "हमारे देश में छोटी पुत्री का विवाह बड़ी पुत्री से पहले करने की परंपरा नहीं है।
\v 27 उत्सव के इस सप्ताह के पूरा हो जाने के बाद हम तेरा विवाह छोटी पुत्री के साथ करा देंगे परन्तु तुझे राहेल के लिए मेरे साथ सात वर्ष और काम करना होगा। "
\p
\s5
\v 28 याकूब ने यही किया और जब एक सप्ताह का उत्सव बीत गया। तब लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को भी उसे उसकी पत्नी के रूप में दिया।
\v 29 लाबान ने अपनी दासी बिल्हा को राहेल की दासी के रूप में भी दिया।
\v 30 याकूब ने राहेल से भी विवाह किया, और उसे लिआ से अधिक प्रेम करता था। याकूब ने लाबान के लिए और सात वर्ष तक काम किया।
\p
\s5
\v 31 जब यहोवा ने देखा कि याकूब लिआ से अधिक प्रेम नहीं करता। इसलिए यहोवा ने लिआ को गर्भवती होने में सक्षम बनाया । लेकिन राहेल गर्भवती होने में सक्षम नहीं रही।
\v 32 लिआ ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसको रूबेन नाम दिया गया। उसने कहा, "यहोवा ने मेरे कष्टों को देखा है। जिनसे मैं दुखी हूँ, इसलिए परमेश्वर ने मुझे एक पुत्र दिया है मेरा पति मुझसे प्रेम करेगा क्योंकि मैंने उन्हें एक पुत्र दिया है।"
\s5
\v 33 कुछ समय बाद वह फिर से गर्भवती हुई और एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "यहोवा ने देखा कि मेरा पति मुझसे प्रेम नहीं करता है इसलिए उसने मुझे एक और पुत्र दिया है।" इसलिए उसने उसका नाम शिमोन रखा अर्थात "कोई सुनता है।"
\v 34 बाद में वह फिर से गर्भवती हो गई, और एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "अब अन्ततः में मेरा पति मुझे अपने पास ही रखेगा ।" इसलिए उसने उसका नाम लेवी रखा, जिसका अर्थ है "पास में रख।"
\s5
\v 35 बाद में वह फिर से गर्भवती हुई उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "अब मैं यहोवा की स्तुति करूँगी," इसलिए उसने उसका नाम यहूदा रखा। उसके बाद, उसने किसी और संतान को जन्म नहीं दिया।
\s5
\c 30
\p
\v 1 राहेल ने देखा कि वह गर्भवती नहीं हो पा रही थी इसलिए वह अपनी बड़ी बहन लिआ से ईर्ष्या करने लगी। लिआ चार पुत्रों को जन्म दे चुकी थी। उसने याकूब से कहा "मुझे भी संतान दे नहीं तो मैं मर जाऊँगी!"
\v 2 याकूब इस बात पर क्रोधित हुआ और राहेल से कहा, "मैं परमेश्वर नहीं हूँँ। तेरी कोख तो परमेश्वर ही ने बन्द कर रखी है!"
\s5
\v 3 तब उसने कहा, "देख, यह मेरी दासी है, बिल्हा। इसके साथ सो और वह मेरे लिए संतान को जन्म देगी। इस प्रकार मेरे पास भी मेरी भी संतान होंगी।"
\v 4 याकूब को बिल्हा को एक और पत्नी के रूप में दिया और याकूब उसके साथ सोया।
\s5
\v 5 वह गर्भवती हुई और याकूब को एक पुत्र पैदा हुआ।
\v 6 राहेल ने कहा, "परमेश्वर ने मेरे साथ न्याय किया है। उसने मेरी प्रार्थना सुन ली और पुत्र देकर मेरे साथ न्याय किया है।" उसने उसका नाम दान रखा जिसका उच्चारण इब्रानी शब्द के समान है जिसका अर्थ है, "उसने मेरा न्याय किया है।"
\s5
\v 7 कुछ समय बाद राहेल की दासी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब के लिए एक और पुत्र को जन्म दिया।
\v 8 राहेल ने कहा, "मैंने अपनी बड़ी बहन के समान सन्तान पाने के लिए बहुत संघर्ष किया है और वास्तव में पुत्र प्राप्त किया।" इसलिए उसने उसका नाम नप्ताली रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है, "संघर्ष।"
\p
\s5
\v 9 लिआ ने सोचा कि वह और अधिक बच्चों को जन्म नहीं दे सकती। इसलिए उसने अपनी दासी जिल्पा को याकूब की एक और पत्नी के रूप में याकूब को दिया।
\v 10 जिल्पा गर्भवती हुई और याकूब के लिए उसने एक पुत्र को जन्म दिया।
\v 11 लिआ ने कहा, "मैं वास्तव में भाग्यशाली हूँँ!" इसलिए उसने उसे गाद नाम दिया, जिसका अर्थ है "भाग्यशाली"।
\s5
\v 12 बाद में लिआ की दासी जिल्पा ने याकूब के लिए एक और पुत्र को जन्म दिया।
\v 13 लिआ ने कहा, "अब मैं वास्तव में धन्य हूँँ और लोग भी मुझे धन्य कहेंगे।" इसलिए उसने उसे आशेर नाम दिया, जिसका अर्थ है "धन्य।"
\p
\s5
\v 14 गेहूँ कटने के समय रूबेन खेतों में गया और कुछ दूदाफलो को देखा। रूबेन इन फलों को अपनी माँ लिआ के पास लाया। लेकिन राहेल ने लिआ से कहा, "कृपा कर अपने पुत्र के फलों में से कुछ मुझे दे !"
\v 15 लिआ ने राहेल से कहा, " तू ने मेरा पति छीनकर तो अच्छा नहीं किया, अब तू मेरे पुत्र के दूदाफल भी पाना चाहती है?" राहेल ने लिआ से कहा, "यदि तू मुझे दूदाफल देगी तो याकूब आज रात तेरे साथ सोएगा।" लिआ ने राहेल की बात मान ली।
\p
\s5
\v 16 संध्या के समय जब याकूब गेहूं के खेत से लौट कर आ रहा था तब लिआः उसके पास गई और उससे कहा, "आज रात तुझे मेरे साथ सोना है क्योंकि मैंने राहेल को दूदाफल देकर इसका दाम चुकाया है।"
\v 17 परमेश्वर ने लिआ की प्रार्थना सुनी और वह गर्भवती हो गई और याकूब के पांचवें पुत्र को जन्म दिया।
\v 18 लिआ ने कहा, "परमेश्वर ने मुझे अपनी दासी अपने पति को देने का प्रतिफल दिया है। इसलिए उसने अपने पुत्र का नाम इस्साकार रखा। इस्साकार का अर्थ है, "प्रतिफल।"
\p
\s5
\v 19 लिआ फिर से गर्भवती हो गई और याकूब के लिए छठे पुत्र को जन्म दिया।
\v 20 लिआ ने कहा, "परमेश्वर ने मुझे एक अनमोल उपहार दिया है। इस बार मेरे पति मेरा सम्मान करेंगे, क्योंकि मैंने उनके लिए छह पुत्रों को जन्म दिया है।" इसलिए उसने उसे जबूलून नाम दिया।
\p
\v 21 बाद में उसने एक पुत्री को जन्म दिया और उसका दीना नाम दिया।
\p
\s5
\v 22 अब परमेश्वर ने राहेल पर भी कृपा-दृष्टि की और उसकी प्रार्थना सुनी और उसे गर्भवती होने में सक्षम बनाया।
\v 23 वह गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया। उसने कहा, "परमेश्वर ने मुझे संतान पैदा न करने के कारण लज्जित नहीं किया।"
\v 24 उसने अपने इस पुत्र का नाम यूसुफ रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है, "यहोवा ने मुझे एक पुत्र दिया है।"
\p
\s5
\v 25 यूसुफ के जन्म के बाद, याकूब ने लाबान से कहा, "अब मुझे अपनी सेवा से मुक्त कर कि मैं अपने देश लौट जाऊँ।
\v 26 तू जानता है कि मैंने तेरी कैसी सेवा की है इसलिए मुझे मेरी पत्नियाँ और मेरी सन्तान दो कि मैं लौट जाऊँ।"
\s5
\v 27 परन्तु लाबान ने उससे कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो यहीं रह क्योंकि मैंने तांत्रिक गतिविधियाँ करके देखा है कि यहोवा ने तेरे कामों के कारण मुझे आशिषें दी हैं।
\v 28 मुझे बता कि अपनी सेवा के बदले मैं क्या दूं कि तू मेरे साथ रहे और मैं वह तुझे अवश्य दूँगा।"
\s5
\v 29 याकूब ने उससे कहा, " तू जनता है, कि मैंने तेरे लिए कठिन परिश्रम किया है। मेरी देख रेख में तेरा पशुधन बहुत बढ़ गया है।
\v 30 मेरे यहाँ आने से पहले तेरे पास केवल कुछ जानवर थे। लेकिन अब तेरे पास बड़ी संख्या में जानवर हैं। परन्तु अब मुझे अपने परिवार की आवश्यकताओं का ध्यान रखना है। "
\s5
\v 31 लाबान ने उत्तर दिया, " तू क्या चाहता है कि मैं तुझे दूं?" याकूब ने उससे कहा, "मैं तुझसे कुछ नहीं चाहता। मेरे लिए बस एक ही काम कर दे तो मैं तेरी भेड़ बकरियां चराऊँगा और उनकी रक्षा करूँगा।
\v 32 मुझे अनुमति दे की मैं आज तेरे पशुओं के झुण्ड में जाऊ तेरी भेड़ बकरियों में से जो भेड़ या बकरी चित्ती धारी और चितकबरी हो और जो भेड़ काली हो और जो बकरी चितकबरी या चित्तीधारी हो उनको लेने दे, यही मेरा वेतन होगा।
\s5
\v 33 इस प्रकार भविष्य में तू सरलता से जान लेगा कि मैं भुगतान के मामले में इमानदार हूँ। यदि मेरे पास चित्तीधारी और चितकबरी बकरियों और काली भेड़ों के अतिरिक्त अन्य कोई भेड़ बकरी हुई तो तू जान लेगा कि मैंने चोरी की है।"
\p
\v 34 लाबान सहमत हुआ और कहा, "ठीक है, हम ऐसा ही करेंगे जैसा तू ने कहा है।"
\s5
\v 35 परन्तु उसी दिन, लाबान ने सब धारी वाले और चितकबरे बकरों और सब चित्तीधारी बकरियों और सब काली भेड़ों को अलग करके अपने पुत्रों को सौंप दिया।
\v 36 तब लाबान और उसके पुत्र इन भेड़ बकरियों को लेकर याकूब से तीन दिन की दूरी पर चले गए। याकूब लाबान की शेष भेड़ बकरियों को संभालता रहा।
\p
\s5
\v 37 तब याकूब ने चिनार, और बादाम और अर्मोन वृक्षों की पतली टहनियाँ लेकर उन्हें बीच-बीच में से छील कर धारीदार बना दिया कि टहनियों की सफेदी दिखाई दे।
\v 38 और उन्हें उनके जल पीने के स्थान में गाड़ दिया कि जब भेड़ बकरियाँ जल पी लें तो वे छील कर धारीदार बनायी गयी टहनियाँ उनकी आंखों के सामने हों।
\s5
\v 39 इस प्रकार उन टहनियों को देखते हुए जब भेड़ें और बकरियाँ गाभिन हुई तो उनके संतान धारी वाले और चितकबरे और काले हुए।
\v 40 अगले कई वर्षों तक याकूब लाबान की भेड़ों और बकरियों को अन्य भेड़ बकरियों से अलग करके चित्ती वाले और सब काले बच्चों को साथ कर दिया जब उनके गाभिन होने के लिए मिलने का समय आता तो चितकबरी भेड़ों की ओर देखने की व्यवस्था करता। इस प्रकार उसी प्रकार के चिन्ह वाले पैदा होते फिर वह लाबान के झुण्ड से अलग करके अपने लिए रख लेता।
\s5
\v 41 इसके अतिरिक्त जब-जब बलवन्त भेड़ें गाभिन होती थीं तब याकूब उन छिली हुई टहनियों को उनके जल पीने के स्थान में गाड़ देता था। ताकि उसके सामने ही वे गाभिन हों।
\v 42 परन्तु जब दुर्बल भेड़ बकरियाँ जल पीने आतीं तब वह उन टहनियों को हटा देता था जिससे कि उनके संतान दुर्बल होते थे। इस प्रकार बलवन्त पशु याकूब के हुए और दुर्बल पशु लाबान के।
\s5
\v 43 इसके परिणाम स्वरूप याकूब बहुत धनी हो गया। उसके पास पशुओं के बड़े झुण्ड, बहुत से नौकर, ऊँट और गदहे थे।
\s5
\c 31
\p
\v 1 एक दिन, किसी ने याकूब से कहा कि लाबान के पुत्र शिकायत कर रहे थे, "याकूब हमारे पिता का सब कुछ लेकर बहुत समृद्ध हो गया है।"
\v 2 याकूब ने यह देखा कि लाबान पहले के समान प्रेम भाव नहीं रखता है।
\v 3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, "अपने देश और अपने रिश्तेदारों के पास वापस जा और मैं वहाँ तेरी सहायता करूँगा।"
\p
\s5
\v 4 याकूब ने राहेल और लिआ को सन्देश भेजा कि वे चारागाह में आएँ जहाँ उसकी भेड़ बकरियाँ चर रही थीं।
\v 5 जब वे दोनों वहाँ आ गई तब उसने उनसे कहा, "मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारा पिता पहले के जैसा मित्र-भाव अब नहीं रखता है परन्तु मेरा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्होंने मेरी सहायता की है।
\v 6 तुम दोनों जानती हो कि मैंने तुम्हारे पिता के लिए बहुत परिश्रम किया है।
\s5
\v 7 तुम्हारे पिता ने मुझे धोखा दिया। तुम्हारे पिता ने मेरा वेतन कई बार कम किया है। लेकिन हमेशा परमेश्वर ने लाबान के सारे धोखों से मुझे बचाया है।
\v 8 जब लाबान ने कहा, 'मैं तुझे चित्ती वाले पशु तेरे वेतन के रूप में तुझे देता हूँ।' तब सब भेड़ बकरियों ने चित्ती वाले बच्चे दिए। जब उसने अपना विचार बदल कर कहा, "जिन पर काली और सफेद धारियां होंगी वे सब भेड़ बकरियाँ तेरी होंगी।" तब सब भेड़ बकरियों ने धारी वाले बच्चे दिए।
\v 9 इस प्रकार परमेश्वर ने जानवरों को तुम लोगों के पिता से ले लिया है और मुझे दे दिया है।
\p
\s5
\v 10 एक बार जब भेड़ बकरियों के गाभिन होने का समय था तब मैंने स्वप्न देखा। और स्वप्न देख कर मैं चकित हुआ क्योंकि जो गाभिन होने के लिए मिल रहे थे उनमें कुछ पर सफेद और काली धारियां थीं। और कुछ चित्ती वाले थे और कुछ धब्बे वाले थे।
\v 11 स्वप्न में परमेश्वर के दूत ने मुझ से बातें की। स्वर्गदूत ने कहा, 'याकूब!' "मैंने उत्तर दिया, 'हाँ!' “मैं यहाँ हूँ।”
\s5
\v 12 स्वर्गदूत ने कहा, 'आँखें उठा कर देख कि सब बकरे चित्ती वाले, धारी वाले और धब्बे वाले हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि मैंने तेरे साथ लाबान का व्यवहार देखा है।
\v 13 मैं वही परमेश्वर हूँ जिसने तुझे बेतेल में दर्शन दिया था। उस स्थान पर तू ने पत्थर खड़ा किया और उस पर जैतून के तेल से उसका अभिषेक किया था और उस स्थान पर तू ने मुझसे एक प्रतिज्ञा की थी। अब, उठ और यह स्थान छोड़ दे और वापस अपने जन्म भूमि को लौट जा। '"
\p
\s5
\v 14 राहेल और लिआ ने उत्तर दिया, "हमारा पिता मरते समय भी हमें इससे अधिक कुछ नहीं देगा।
\v 15 वह तो हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे कि हम परदेशी हैं। तू ने इतने वर्ष उसके लिए जो परिश्रम किया है, वह हमारा मूल्य था जो तू ने चुकाया है परन्तु तू ने जो धन सम्पदा उसके लिए बढ़ाई है उसके हम कोई उत्तराधिकारी नहीं है। हम लोगों का सारा धन उसने खर्च कर दिया है।
\v 16 निश्चय ही परमेश्वर ने हमारे पिता से जो भी धन सम्पदा ले ली है वह हमारी और हमारी संतान की है। इसलिए परमेश्वर ने तुझसे जो कहा है वैसा ही कर।! "
\p
\s5
\v 17 तब याकूब ने अपनी पत्नियों और अपने बच्चों को ऊँटों पर बिठाया।
\v 18 याकूब अपना सारा पशुधन हाँकते हुए चल पड़ा। उसने पद्दनराम में जितनी भी धन संपदा एकत्र की थी सब साथ ले ली। इस प्रकार वह अपने पिता इसहाक के पास कनान देश के लिए निकल पड़ा।
\p
\s5
\v 19 इस समय लाबान अपनी भेड़ों का ऊन काटने गया था। उसकी अनुपस्थिति में राहेल उसके घर में घुसी और अपने पिता की लकड़ी की छोटी मूर्तियों को चुरा लाई।
\v 20 याकूब ने अरामी लाबान को यह ना बताकर धोखा दिया कि वे जाने की योजना बना रहे थे।
\v 21 इस प्रकार याकूब और उसका परिवार, अपनी संपूर्ण धन संपदा के साथ वहाँ से भागे। उन्होंने फरात नदी पार की और पर्वतीय क्षेत्र के दक्षिण की ओर गिलाद प्रदेश का मार्ग लिया।
\p
\s5
\v 22 तीन दिन बाद लाबान को पता चला कि याकूब अपने परिवार के साथ चला गया।
\v 23 इसलिए लाबान ने अपने कुछ रिश्तेदारों को अपने साथ लिया और याकूब का पीछा करना आरम्भ किया। वे सात दिन पैदल चल कर गिलाद के पर्वतीय क्षेत्र में याकूब के पास पहूँचे।
\s5
\v 24 उस रात परमेश्वर ने लाबान के स्वप्न में प्रकट होकर कहा, "जब तू याकूब से मिले तो सावधान रहना कि क्या कहना है।"
\p
\v 25 अगले दिन जब लाबान याकूब के पास पहुँचा तब याकूब ने अपना तम्बू गिलाद के पहाड़ों पर लगाया था। इसलिए लाबान और उसके परिजनों ने भी वहीं अपना तम्बू खड़ा किया।
\s5
\v 26 लाबान ने याकूब से कहा, " तू ने मुझे धोखा क्यों दिया? तू मेरी पुत्रियों को ऐसे क्यों ले जा रहा है मानो वे युद्ध में पकड़ी गई स्त्रियाँ हों!
\v 27 मुझसे बिना कहे तू क्यों भागा? यदि तू ने कहा होता तो मैं तुझे दावत देता और लोग संगीत की धुनें बजाते, मृदंग और वीणा बजाते तब मैं तुझे विदा करता।
\v 28 तू ने मुझे अपने नातियों को चूमने तक नहीं दिया और न ही पुत्रियों को विदा कहने दिया। तू ने यह करके बड़ी भारी मूर्खता की है।
\s5
\v 29 मेरे परिजनों में और मुझमें तुझे हानि पहूँचाने की क्षमता है परन्तु तेरा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्ही परमेश्वर ने रात को स्वप्न में प्रकट होकर कहा, 'सावधान रहना कि तू याकूब से कैसी बातें करेगा।'
\v 30 मैं जानता हूँ कि तू अपने घर लौटना चाहता है। यही कारण है कि तू वहाँ से चल पड़ा है। किन्तु तू ने मेरे घर से देवताओं को क्यों चुराया?"
\p
\s5
\v 31 याकूब ने लाबान से कहा, "मैंने तो अपने जाने की योजना तुझ पर प्रकट नहीं की क्योंकि मुझे भय इस बात का था कि तू बलपूर्वक अपनी पुत्रियों को मुझ से अलग कर देगा।
\v 32 परन्तु यदि तेरी मूर्तियाँ हमारे यहाँ किसी के भी पास मिलीं तो हम उसे मृत्युदण्ड देंगे। हमारे परिजनों के सामने खोज करके देख ले कि तेरा कुछ भी मेरे पास नहीं है। यदि तुझे मिले तो ले जा!" याकूब को यह पता नहीं था कि राहेल ने लाबान की मूर्तियाँ चुरा ली थीं।
\p
\s5
\v 33 तब लाबान याकूब के तम्बू में गया, फिर लिआ के तम्बू में। तब दोनों दासियों के तम्बू में गया और अपनी मूर्तियों की खोज की, परन्तु उसे मूर्तियाँ नहीं मिलीं। वहाँ से निकल कर वह राहेल के तम्बू में गया।
\s5
\v 34 परन्तु राहेल ने उन्हें ऊँट की काठी में छिपा दिया था जिस पर वह बैठी थी। लाबान ने सर्वत्र खोज करके भी उन मूर्तियों को नहीं पाया।
\v 35 राहेल ने अपने पिता से कहा, "पिताजी, मुझ से अप्रसन्न न हो। मैं तेरे सम्मान में खड़ी नहीं हो सकती क्योंकि मैं माहवारी में हूँ।" इसलिए लाबान को मूर्तियाँ तम्बू में नहीं मिलीं।
\p
\s5
\v 36 तब इस पर याकूब ने क्रोधित होकर लाबान से कहा, "मैंने क्या अपराध किया है? तू ने किस पाप के दोष में मेरा पीछा किया है?
\v 37 तू ने स्वयं ही मेरे तम्बू में खोज की और तेरी कोई वस्तु तुझे नहीं मिली। अब तेरे और मेरे परिजनों के समक्ष वह रख जो तुझे मेरे यहाँ मिला कि वे ही निर्णय लें कि कौन सही है, तू या मैं।
\p
\s5
\v 38 मैं बीस वर्ष तेरे साथ था। उस संपूर्ण समय तेरी भेड़ बकरियों के गर्भ कभी नहीं गिरे और न ही मैंने तेरी भेड़ बकरियों में से किसी मेढ़े को मार कर खाया।
\v 39 यदि वन पशु तेरी भेड़ या बकरी को फाड़ देता था तो मैं उसे तेरे पास नहीं लाता था। उसकी हानि मैं ही भरता था। उनके स्थान पर मैं अपना जीवित पशु तुझे देता था। दिन हो या रात, यदि तेरे एक भी पशु की चोरी हो जाती थी तो तू उसकी कमी मुझसे पूरी करवाता था।
\v 40 मैं दिन को गरमी और रात को ठंड की पीड़ा सहता था। मैं रात में सो भी नहीं पाता था।
\s5
\v 41 बीस वर्ष मैं तेरे घर में रहा। मैंने तेरी पुत्रियों से विवाह करने के लिए चौदह वर्ष तेरी सेवा की और तुझसे भेड़ बकरियाँ पाने के लिए छः वर्ष और तेरी सेवा की। उस समय तू ने मेरा वेतन दस गुणा घटा दिया था।
\v 42 मेरे दादा अब्राहम जिन परमेश्वर की आराधना करता था और जिनके सामने मेरा पिता इसहाक डर कर कांपता था, यदि वे मेरे साथ मेरे सहायक नहीं होते तो तू मुझे खाली हाथ भेज देता। परन्तु परमेश्वर ने मेरे कष्टों को देखा और मेरे कठोर परिश्रम पर दृष्टि की, इस कारण उन्होंने पिछली रात तुझे बताया कि तू ने जो मेरे साथ किया वह उचित नहीं था।"
\p
\s5
\v 43 लाबान ने उत्तर दिया, "ये दोनों स्त्रियाँ मेरी पुत्रियाँ हैं और उनकी संतान मेरे नाती है। और यह सब पशु मेरे हैं। यहाँ जो कुछ तू देखता है, वह सब मेरा है।
\v 44 परन्तु मैं उन्हें अपने पास रखने के लिए कुछ नहीं कर सकता हूँ इसलिए हमें एक शान्ति समझौता करना चाहिए। यह शान्ति समझौता तेरे और मेरे बीच गवाह के रूप में रहेगा।"
\p
\s5
\v 45 तब याकूब ने एक बड़ा पत्थर सीमा पर खड़ा किया।
\v 46 तब याकूब ने अपने परिजनों से कहा, "पत्थरों को इकटठा करो।" उन्होंने बड़े-बड़े पत्थर लेकर ढेर लगा दिया। उस ढेर के पास उन्होंने भोजन किया।
\v 47 लाबान ने उस स्थान का नाम जैगर सहादुथा रखा। लेकिन याकूब ने उस स्थान का नाम गिलियाद रखा।
\s5
\v 48 लाबान ने याकूब से कहा, "यह पत्थरों का ढेर हम दोनों को हमारी सन्धि की याद दिलाने में सहायता करेगा।" यह कारण है कि याकूब ने उस स्थान को गिलियाद कहा।
\v 49 उन्होंने उस स्थान का नाम "मिस्पा" भी रखा, इब्रानी में इसका अर्थ है, "पहरे", क्योंकि लाबान ने कहा था, हम यहोवा से निवेदन करते हैं कि हमारे अलग हो जाने के बाद वे तेरी निगरानी करें कि हम एक दूसरे को हानि पहुँचाने का प्रयास न कर पाएं।
\v 50 यदि तू मेरी पुत्रियों को हानि पहुंचाएगा या अन्य स्त्रियों से विवाह करेगा जिसका समाचार कोई मुझे न भी दे तो मत भूलना कि परमेश्वर तेरे और मेरे कामों को देखते हैं!"
\p
\s5
\v 51 लाबान ने याकूब से कहा, " तू इस बड़े पत्थर और चट्टानों के ढेर को देखता है जिन्हें हमने हमारे बीच रखा है।
\v 52 पत्थरों का यह ढेर और यह बड़ा पत्थर हमें याद दिलाएगा कि मैं तुझसे लड़ने के लिए इन पत्थरो के पार कभी नहीं जाऊँगा और तू मुझसे लड़ने के लिए इन पत्थरो से आगे कभी नहीं आएगा।
\v 53 अब्राहम जिस परमेश्वर की आराधना करता था, नाहोर जिस परमेश्वर की आराधना करता था और उनके पूर्वज, तेरह जिस परमेश्वर की आराधना करता था वे हम में से जो भी हानि करना चाहे, उसे दण्ड दें।" याकूब ने भी गंभीरतापूर्वक अपने पिता के परमेश्वर की शपथ खा कर शान्ति की प्रतिज्ञा दी।
\p
\s5
\v 54 तब याकूब ने पहाड़ पर बलि समर्पित कि और उसने अपने परिजनों को भोजन में सम्मिलित होने के लिए बुलाया। भोजन करने के बाद उन्होंने पहाड़ पर रात बिताई।
\v 55 अगले दिन सुबह लाबान ने अपने नातियों को और अपनी पुत्रियों को चूमा और परमेश्वर के नाम में आशीर्वाद देकर अपने घर लौट आया।
\s5
\c 32
\p
\v 1 याकूब ने अपने परिवार के साथ आगे की यात्रा जारी रखी। मार्ग में उसे परमेश्वर के स्वर्गदूत दूत मिले।
\v 2 जब याकूब ने उन्हें देखा तो कहा, "यह परमेश्वर का पड़ाव है।" इसलिए याकूब ने उस स्थान का नाम महनैम रखा।
\p
\s5
\v 3 याकूब ने कुछ लोगों से कहा कि वो उसके बड़े भाई एसाव के पास जाएँ जो एदोम के सेईर में रहता था।
\v 4 उसने उनसे कहा, "मैं चाहता हूँ कि तू एसाव से कहना , 'मैं याकूब तेरा दास, तुझसे अपने स्वामी से यह कहता हूँ कि मैं अपने मामा लाबान के पास अब तक रह रहा था।
\v 5 अब मेरे पास बहुत भेड़ बकरियाँ, गदहे, गाय, बैल तथा दास-दासियाँ हैं। मेरे स्वामी के पास यह सन्देश भेजने का मेरा उद्देश्य यह है कि मेरे आने पर तू मुझसे मित्रवत व्यव्हार करे।'"
\p
\s5
\v 6 उसके सन्देशवाहकों ने जाकर एसाव को उसका सन्देश दिया। लौट आने पर उन्होंने याकूब से कहा, "हम तेरे भाई एसाव के पास गए थे। वह तुझसे भेंट करने को आ रहा है। उसके साथ चार सौ पुरूष हैं।"
\p
\v 7 यह सुन कर याकूब बहुत डर गया और चिन्ता में डूब गया। और उसने अपने समुदाय को दो दलों में विभाजित कर दिया। उसने अपनी भेड़ बकरियों, मवेशियों और ऊँटों को भी दो झुंडों में विभाजित किया।
\v 8 वह सोच रहा था, "यदि एसाव और उसके साथी आ कर आक्रमण करें तो कम से कम एक दल तो बच कर भाग पाएगा।"
\s5
\v 9 तब याकूब ने प्रार्थना की, "मेरे दादा अब्राहम और मेरे पिता इसहाक जिस परमेश्वर की आराधना करते थे उन्होंने मुझसे कहा था, 'अपने देश और अपने परिवार में लौट जा। मैं तेरी भलाई करूँगा।'
\v 10 मैं इस योग्य तो नहीं कि मैं आपका दास, विश्वास एवं निष्ठा के साथ निभाए गए आपके वचन के योग्य ठहरूँ। जब मैंने हारान जाने के लिए यरदन नदी को पार किया था तब मेरे पास मात्र एक छड़ी थी परन्तु अब मैं इतना धनवान हो गया हूँ कि मेरे परिवार और सम्पदा के दो बड़े समूह हैं।
\s5
\v 11 इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके मुझे मेरे भाई एसाव से बचाइए। मैं उससे डरा हुआ हूँ। इसलिए कि वह आएगा और हम सभी को, यहाँ तक कि बच्चों और उनकी माताओं को भी जान से मार डालेगा।
\v 12 परन्तु यह मत भूलें कि आपने मुझसे कहा था कि, 'मैं निश्चय ही तुझे समृद्धि प्रदान करूँगा। और तेरे वंशजों को समुद्र की रेत के समान अनगिनत कर दूँगा कि उनकी गणना कोई नहीं कर सकेगा।'"
\p
\s5
\v 13 याकूब उस रात वहीं सो गया। अगले दिन सुबह उसने कुछ पशु चुने कि अपने भाई एसाव को भेंट करे।
\v 14 याकूब ने दो सौ बकरियाँ, बीस बकरे, दो सौ भेड़ें तथा बीस नर भेड़े चुनी।
\v 15 याकूब ने तीस ऊँट और उनके बच्चे, चालीस गायें और दस बैल, बीस गदहियाँ और दस गदहे चुने।
\v 16 उनके अलग-अलग झुंड बना कर उसने उन्हें अपने दासों को सौंप दिया और उनसे कहा, "मेरे आगे-आगे चलो, एक के पीछे एक झुंड, लेकिन झुंडों के बीच में अन्तर रखना।"
\s5
\v 17 जो दास पहले झुंड को लेकर चल रहा था, उससे उसने कहा, "जब तू मेरे भाई एसाव के पास पहुँचोगे तो वह तुमसे पूछेगा, ' तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो और यह पशु किस के हैं?
\v 18 तो उससे कहना, "यह तेरे दास याकूब के हैं। मेरे स्वामी ने यह भेंट तेरे लिए भेजी हैं। वह हमारे पीछे आ रहा है।'"
\p
\s5
\v 19 उसने यही निर्देश दूसरे और तीसरे झुंड के रखवालों को और सब चरवाहों को भी दिया जो उन झुंडों के पीछे थे। उसने उनसे कहा, "जब तू एसाव से मिलो तो तुम भी वही कहना जो मैंने पहले झुंड के रखवाले से कहा है।
\v 20 और यह अवश्य कहना, 'तेरा दास याकूब हमारे पीछे-पीछे आ रहा है।" याकूब ने उनसे ऐसा कहने के लिए इसलिए कहा कि वह सोचता था, "संभव है कि इस भेंट के द्वारा जो मैं अपने आगे एसाव के लिए भेज रहा हूँ, वह मेरे प्रति शान्ति का व्यवहार करे और बाद में जब मैं उसके सामने पहुँचू तब वह दया प्रकट करे।"
\v 21 इसलिए भेंट लेकर उसके सेवक आगे-आगे चले परन्तु याकूब उस रात तम्बू में ही रूका।
\p
\s5
\v 22 उसी रात याकूब अपनी दोनों पत्नियों, दोनों दासियों और ग्यारह पुत्रों को लेकर यब्बोक नदी के घाट के पार हो गया।
\v 23 जब उसने अपने सभी लोगों को यब्बोक नदी के पार भेज दिया तो उसने अपना सब कुछ नदी के पार पहुँचा दिया।
\s5
\v 24 तब याकूब अकेला इस पार रह गया। लेकिन वहाँ एक पुरूष पूरी रात, भोर होने तक, उससे मल्लयुद्ध करता रहा।
\v 25 जब उसने देखा कि वह याकूब से जीत नहीं पा रहा है तो उसने याकूब के कूल्हे के जोड़ की हड्डी उतार दी।
\v 26 तब उसने याकूब से कहा, "मुझे जाने दे क्योंकि भोर का प्रकाश होने वाला है।" याकूब ने उससे कहा, "नहीं, जब तक तू मुझे आशीर्वाद नहीं देगा, मैं तुझे जाने नहीं दूँगा।"
\s5
\v 27 उससे कहा, " तेरा नाम क्या है?" उसने उत्तर दिया, "याकूब।"
\v 28 उसने कहा, " तेरा नाम अब से याकूब नहीं, इस्राएल होगा, जिसका अर्थ है, 'वह परमेश्वर से युद्ध करता है।' क्योंकि तू परमेश्वर और मनुष्यों से युद्ध करके प्रबल हुआ है।"
\s5
\v 29 याकूब ने उससे कहा, "कृपया अपना नाम मुझे बता दे।" उसने कहा, " तू मुझ से मेरा नाम क्यों पूछता है?" उसने याकूब को उस स्थान पर आशीष दी।
\v 30 तब याकूब ने उस स्थान का नाम "पनीएल" रखा। जिसका अर्थ है, "परमेश्वर का चेहरा," क्योंकि याकूब ने कहा, "मैंने परमेश्वर को अपने सामने देखा और मैं मरा नहीं।"
\p
\s5
\v 31 जैसे ही याकूब पनीएल से चला, तब सूर्योदय हो रहा था। वह लंगड़ा कर चल रहा था।
\v 32 उसके कुल्हे का जोड़ क्षतिग्रस्त हो गया था। इस कारण इस्राएली आज तक पशुओं के कूल्हे की हड्डी से जुड़ी मांसपेशी को नहीं खाते हैं।
\s5
\c 33
\p
\v 1 तब याकूब अपने परिवार के साथ शामिल हुआ। उसी दिन कुछ समय बाद, याकूब ने देखा कि एसाव आ रहा था और उसके साथ चार सौ पुरुष थे। उन्हें देख कर याकूब चिंतित हो गया। उसने बच्चों को अलग-अलग कर दिया। लिआ के बच्चों को उसने लिआ के साथ और राहेल के बच्चों को राहेल के साथ कर दिया और दासियों के बच्चों को दासियों के साथ।
\v 2 याकूब ने दासियों और उनके बच्चों को आगे रखा। उसके बाद उनके पीछे लिआ और उसके बच्चों को रखा और याकूब ने राहेल और यूसुफ को सबके अन्त में रखा।
\v 3 वह स्वयं सब से आगे चला। जब वह अपने बड़े भाई के निकट पहुँचा तब सात बार भूमि पर झुककर प्रणाम किया।
\s5
\v 4 लेकिन जब एसाव ने याकूब को देखा, वह उस से मिलने को दौड़ पड़ा। एसाव ने याकूब को अपनी बाहों में भर लिया और छाती से लगाया। तब एसाव ने उसकी गर्दन को चूमा और दोनों आनन्द से रो पड़े।
\v 5 जब एसाव ने नज़र उठाई तो स्त्रियों और बच्चों को देखा। उसने पूछा, "तेरे साथ ये लोग कौन हैं?" याकूब ने उत्तर दिया, "ये मेरी पत्नियाँ और बच्चे हैं। जिन्हें परमेश्वर ने मुझे बड़ी दया करके दिया है।"
\s5
\v 6 तब दोनों दासियों और उनके बच्चों ने आकर एसाव को झुककर प्रणाम किया।
\v 7 तब लिआ अपने बच्चों के साथ एसाव के सामने गई और उसने प्रणाम किया और अंत में राहेल और यूसुफ एसाव के सामने गए और उन्होंने भी प्रणाम किया।
\p
\v 8 एसाव ने पूछा, "ये जानवर जो मैं देखता हूँ उसका क्या अर्थ है?" याकूब ने उत्तर दिया, "मेरे स्वामी, यह सब तेरे लिए है कि तेरी दया दृष्टि मुझ पर हो।"
\s5
\v 9 लेकिन एसाव ने उत्तर दिया, "मेरे छोटे भाई, मेरे पास पर्याप्त जानवर हैं, तू अपने लिए अपने जानवरों को रखो!"
\v 10 परन्तु याकूब ने कहा, "नहीं! मैं तुझसे विनती करता हूँ। यदि तू सचमुच मुझे स्वीकार करता है तो कृपया जो भेट मैं देता हूँ तू उसे स्वीकार कर। मैं तुझको दुबारा देख कर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तू ने सहर्ष मेरा स्वागत किया है। मेरे प्रति तेरी मुस्कराहट देखकर मैं आश्वस्त हो गया कि तू ने मुझे क्षमा कर दिया है। यह तो परमेश्वर का चेहरा देखने जैसा है।
\v 11 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो भेंट मैं देता हूँ उसे स्वीकार कर। परमेश्वर मेरे ऊपर बहुत कृपालु रहे हैं। मेरे पास अपनी आवश्यकता से अधिक है।" इस प्रकार याकूब ने एसाव से भेंट स्वीकार करने का अनुरोध करते रहे। अंततः एसाव ने भेंट स्वीकार की।
\p
\s5
\v 12 तब एसाव ने कहा, "अब तू अपनी यात्रा जारी रख सकता है। मैं तेरे आगे चलता हूँ।"
\v 13 याकूब ने कहा, "हे मेरे भाई, तू तो जानता ही है कि मेरे बच्चे छोटे हैं और वे दुर्बल हैं और भेड़ बकरियों और गायों के दूध पीने वाले बछड़े भी हैं। यदि उन्हें अधिक हांका गया तो सब मर जाएँगे।
\v 14 इसलिए तू आगे चल और मैं धीरे—धीरे तेरे पीछे आऊँगा। लेकिन मैं जानवरों और बच्चों के समान तेज़ी से चलूँगा। मैं सेईर में तुझसे मिलूँगा।"
\s5
\v 15 एसाव ने कहा, "तो मैं ऐसा करता हूँ कि अपने साथियों में से कुछ को तेरी सुरक्षा के लिए छोड़ जाता हूँ।" याकूब ने उससे कहा, "इसकी क्या आवश्यकता है? मैं तो बस यही चाहता हूँ कि तेरी कृपा दृष्टि मुझ पर बनी रहे।"
\v 16 एसाव उसी दिन सेईर लौट आया।
\v 17 किन्तु याकूब सुक्कोत गया। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और अपने मवेशियों के लिए छोटी पशुशालाएँ बनाई। इसी के कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा, जिसका अर्थ है "आश्रय।"
\p
\s5
\v 18 इस प्रकार याकूब और उसका परिवार पद्दनराम से चले गए और कनान देश की सुरक्षित यात्रा की। वहाँ उन्होंने शकेम नगर के पास एक मैदान में अपने तम्बू खड़े किए।
\v 19 उस स्थान का एक प्रधान था जिसका नाम हमोर था। उसके अनेक पुत्र थे। याकूब ने उन्हें चाँदी के सौ टुकड़े दिए और उस स्थान को खरीद कर अपने तंबू लगा कर वहाँ रहा।
\v 20 वहाँ उसने पत्थर की एक वेदी बनाई जिसका नाम उसने "एल एलोहे इस्राएल" रखा, अर्थात् "परमेश्वर, इस्राएल का परमेश्वर।"
\s5
\c 34
\p
\v 1 एक दिन दीना, जो याकूब और लिआ की पुत्री थी, उस क्षेत्र की कुछ स्त्रीयों से मिलने गई।
\v 2 हिब्बी हमोर के पुत्रों में से एक, शकेम ने दीना को देखा। उसने उसे पकड़ लिया और अपने साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए विवश किया।
\v 3 वह उससे बहुत आकर्षित था और शकेम दीना से प्रेम करने लगा। वह उससे मधुर बातें भी करने लगा।
\s5
\v 4 शकेम ने अपने पिता से कहा, "कृपया इस लड़की को मेरे लिए ले आ, ताकि मैं इसके साथ विवाह कर सकूँ।"
\p
\v 5 जब याकूब को यह समाचार मिला कि शकेम ने उसकी पुत्री दीना के साथ ऐसी बुरी बात की है। याकूब के सभी पुत्र तब अपने पशुओं के साथ मैदान में गए थे। इसलिए वे जब तक नहीं लौटे, याकूब ने कुछ नहीं किया।
\p
\s5
\v 6 इसी बीच शकेम का पिता हमोर याकूब के पास गया।
\v 7 याकूब के पुत्र जब खेत से घर लौटे तब उन्हें पता चला कि क्या हुआ, तो वे चौंक गए और बहुत क्रोधित हुए। शकेम ने याकूब की पुत्री के साथ सो कर इस्राएल को कलंकित किया था। वह उनकी बहन थी! यह एक भयानक अपराध था जिसे कभी नहीं किया जाना चाहिए था।
\p
\s5
\v 8 परन्तु हमोर ने भाइयों से बात की। उसने कहा, "मेरा पुत्र शकेम दीना से बहुत प्रेम करता है। कृपया उसे इसके साथ विवाह करने दो।
\v 9 आओ हम एक ऐसा समझौता करते हैं कि हम तेरे युवकों के लिए अपनी पुत्रियाँ दें कि वे उनकी पत्नियाँ हों और तू हमारे युवकों के लिए अपनी पुत्रियाँ दो कि वे उनकी पत्नियाँ हों।
\v 10 तुम लोग हमारे साथ एक प्रदेश में रह सकते हो। यदि तुझे कोई भूमि पसन्द आए तो उसे खरीद भी ले। तू यहाँ बेच या खरीद सकता है।"
\p
\s5
\v 11 तब शकेम ने दीना के पिता और भाइयों से कहा, "यदि तुम सब की कृपा दृष्टि मुझ पर हो तो जो तुम चाहो, मैं दूँगा।
\v 12 तुम जो कुछ मुझसे कहोगे मैं दीना के वधू मूल्य में दूँगा। मुझे केवल तेरी पुत्री से विवाह करना है।"
\p
\v 13 परन्तु शकेम ने उनकी बहन दीना के साथ अभद्र व्यवहार किया था, याकूब के पुत्र शकेम और उसके पिता, हमोर को धोखा दे रहे थे।
\s5
\v 14 उन्होंने उनसे कहा, "नहीं, हम अपनी बहन को किसी खतना-रहित की पत्नी होने के लिए नहीं दे सकते क्योंकि ऐसा करना हमारे लिए लज्जा की बात है।
\v 15 ऐसा तब ही हो सकता है जब तुम लोग अपने सब पुरूषों का खतना करके हमारे जैसे हो जाओ।
\v 16 तब हम अपनी पुत्रियाँ तुम्हारे युवकों की पत्नियाँ होने के लिए दे देंगे और तुम्हारी पुत्रियों को अपने युवकों की पत्नियाँ होने के लिए ले लेंगे। तब हम तुम्हारे साथ रहेंगे और हम सब एक ही समुदाय होंगे।
\v 17 लेकिन यदि तुम खतना नहीं कराओगे तो हम अपनी बहन को लेकर यहाँ से चले जाएँगे। "
\p
\s5
\v 18 उनकी बात से हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए।
\v 19 शकेम तो याकूब की पुत्री को पत्नी बनाना चाहता था और वह अपने पिता के परिवार में माननीय भी था। वह याकूब के पुत्रों की शर्त मानने के लिए तुरन्त तैयार हो गया।
\s5
\v 20 हमोर और शकेम अपने नगर के सभास्थल गए। उन्होंने नगर के प्रधानो से बातें की और कहा,
\v 21 "ये लोग हमारे साथ मित्रभाव रखते हैं। इसलिए यह उचित है कि हम उन्हें अपने बीच रहने दें। इन्हें स्वतंत्रता से घूमने-फिरने दें। यह देश पर्याप्त बड़ा है कि हम सब का निर्वाह हो जाता है। हमारे पुत्र उनकी पुत्रियों से विवाह करें और उनके पुत्र हमारी पुत्रियों से विवाह करें।
\s5
\v 22 परन्तु हमारे साथ मिलकर रहने के लिए उनकी एक शर्त है, हमारे सब पुरूष उनके समान खतना करवाएँ, जैसा उन्होंने कराया है।
\v 23 यदि हम ऐसा करते हैं तो उनका पशु धन और संपूर्ण संपदा भी तो हमारी हो जाएगी। इसलिए हम लोग उनके साथ यह सन्धि करें और वे यहीं हम लोगों के साथ रहेंगे!"
\s5
\v 24 नगर के फाटक पर उपस्थित सब लोग हमोर और उसके पुत्र के सुझाव से सहमत हो गए। इस प्रकार उस नगर के हर एक पुरूष का खतना किया गया।
\p
\v 25 इसके पश्चात तीसरे दिन जब उस नगर के पुरूष खतना के कारण पीड़ित थे तब शिमोन और लेवी, दीना के भाई जो याकूब के पुत्र थे, तलवार लेकर उस नगर में घुस गए, उन्हें किसी ने नही रोका और सब पुरूषों को मार डाला।
\v 26 उन्होंने हमोर और उसके पुत्र शकेम को भी मार डाला। तब वे दीना को शकेम के घर से बाहर ले आए और नगर छोड़ कर वहाँ से चले गए।
\s5
\v 27 तब याकूब के अन्य पुत्रों ने नगर में प्रवेश किया जहाँ शव पड़े हुए थे और उस नगर को लूट कर अपनी बहन के साथ हुए लज्जा के कृत्य का बदला लिया।
\v 28 उन्होंने उस नगर के अन्दर और बाहर कि भेड़ बकरियाँ, गाय, बैल, गदहे और धन संपदा सब कुछ लूट लिया।
\v 29 उन्होंने सब मूल्यवान वस्तुएँ यहाँ तक कि उनके बच्चों और स्त्रियों को भी उठा लिया। घरों में जो कुछ लूट कर ले गए।
\p
\s5
\v 30 तब याकूब ने इस पर शिमोन और लेवी से कहा, " तुमने मेरे लिए महासंकट उत्पन्न कर दिया है। अब कनानी और परिज्जी और इस देश के सब निवासी मुझसे घृणा करेंगे। मेरे पास तो इतने पुरूष भी नहीं कि यदि वे मुझ से युद्ध करने आए तो उनका सामना कर पाऊँ। वे तो हमें और हमारे संपूर्ण समुदाय को नष्ट कर देंगे! "
\v 31 परन्तु उन्होंने उत्तर दिया, "क्या हमें शकेम को हमारी बहन के साथ वैश्या के समान व्यवहार करने देना चाहिए था?"
\s5
\c 35
\p
\v 1 कुछ समय बाद, परमेश्वर ने याकूब से कहा, "यहाँ से बेतेल नगर को जा, वहाँ बस जा और वहाँ आराधना के लिए वेदी बना। मैं वही परमेश्वर हूँ जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया था जब तू अपने भाई एसाव से भाग रहा था।"
\v 2 तब याकूब ने अपने परिवार और साथ के सब लोगों से कहा, "अपने पास से मीसोपोतामिया के सब देवी-देवताओं की मूर्तियों को निकाल दो, स्नान करो और साफ कपड़े पहनो।
\v 3 तब हम सब तैयार होकर बेतेल को जाएँगे। वहाँ मैं परमेश्वर की आराधना करने के लिए एक वेदी बनाऊँगा क्योंकि जब मैं बड़े संकट में था और मुझ पर भय छाया हुआ था तब उन्होंने मेरी सहायता की थी और मैं जहाँ भी गया वहाँ वह मेरे साथ रहे।"
\s5
\v 4 अतः उन्होंने अपनी मूर्तियाँ और कान के कुंडल याकूब को दे दिए और याकूब ने उन्हें शकेम नगर के निकट एक बांज वृक्ष के नीचे गाड़ दिया।
\p
\v 5 जब वे वहाँ जाने के लिए तैयार थे, तो परमेश्वर ने वहाँ के सब निवासियों के मन में याकूब के परिवार का भय भर दिया जिससे कि उन्होंने उनका पीछा नहीं किया।
\s5
\v 6 इसलिए याकूब और उसके लोग लूज पहुँचे। अब लूज को बेतेल कहते हैं। यह कनान प्रदेश में है।
\v 7 वहाँ उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई और उसका नाम एलबेतेल रखा अर्थात "बेतेल का परमेश्वर" क्योंकि जब याकूब अपने भाई एसाव से डर कर भाग रहा था तब परमेश्वर का दर्शन उसे वहीं हुआ था।
\p
\v 8 वहाँ इसहाक की पत्नी रिबका को दूध पिलाने वाली धाय, दबोरा, जो अब बहुत वृद्ध थी, उसका देहान्त हो गया और उसे बेतेल के दक्षिण में एक बांज वृक्ष के नीचे दफन कर दिया गया। इसलिए उस स्थान का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया जिसका अर्थ है, "शोक का बांज वृक्ष।"
\p
\s5
\v 9 जब याकूब पद्दनराम से लौटा तब परमेश्वर उसके सामने फिर से प्रकट हुए। परमेश्वर ने याकूब को आशीर्वाद दिया।
\v 10 परमेश्वर ने उससे फिर कहा, " तेरा नाम अब याकूब नहीं इस्राएल होगा।" तब से याकूब "इस्राएल" कहलाने लगा।
\s5
\v 11 तब परमेश्वर ने उससे कहा, "मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ। तेरी अनगिनत संतान होगी। तुम्हारे वंशजों से अनेक राष्ट्र बनेगे और तुम्हारे वंशजों में से राजा निकलेंगे।
\v 12 जिस देश को मैंने अब्राहम और इसहाक को देने का वादा किया था अब वो मैं तुझे दूँगा। मैं इसे तेरे वंशजों को भी दूँगा।"
\p
\v 13 जब परमेश्वर ने याकूब के साथ वार्तालाप समाप्त की और वहाँ से चले गये।
\s5
\v 14 याकूब ने उस स्थान में जहाँ परमेश्वर ने उससे बातें की थी, एक बड़ा पत्थर खड़ा किया और उस पर दाखमधू और तेल चढ़ा कर परमेश्वर के लिए उसका अभिषेक किया।
\v 15 याकूब ने उस स्थान का नाम बेतेल रखा अर्थात "परमेश्वर का घर" क्योंकि परमेश्वर ने उससे वहाँ बातें की थीं।
\p
\s5
\v 16 याकूब और उसका समुदाय बेतेल से निकल के दक्षिण में एप्राता की ओर बढ़ा। अभी एप्राता थोड़ी ही दूर था कि राहेल को प्रसव पीड़ा उठी।
\v 17 जब उसकी पीड़ा बहुत बढ़ गई तब धाय ने उससे कहा, "मत डर क्योंकि तू ने एक और पुत्र को जन्म दिया है।"
\v 18 लेकिन वह जीवित न रह पाई और अंतिम सांस लेते समय उसने उस पुत्र का नाम बेनोनी रखा अर्थात "मेरे दुख का पुत्र" परन्तु उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा अर्थात "पुत्र जो मेरा दाहिना हाथ है।"
\p
\v 19 राहेल की मृत्यु के बाद, और उसे एप्राता के मार्ग के किनारे दफन किया गया। एप्राता का नाम बाद में बैतलहम हुआ।
\v 20 याकूब ने उसकी कब्र पर एक बड़ा पत्थर रख दिया जो आज भी वहाँ है और वहाँ राहेल की कब्र। यह दर्शाता है।
\p
\s5
\v 21 याकूब जिसका नाम अब इस्राएल था परिवार के साथ यात्रा करते हुए आगे बढ़ गया और एदेर नामक मीनार के दक्षिण में अपने तम्बू खड़े किए।
\v 22 उस स्थान में निवास करते समय रूबेन अपने पिता की एक रखैल बिल्हा के साथ सो गया। किसी ने याकूब को यह बात बता दी तो याकूब अत्यधिक क्रोधित हुआ।
\p अब याकूब के बारह पुत्र थे।।
\s5
\v 23 लिआ से उसके छः पुत्र थे: रूबेन (सबसे बड़ा), शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून।
\v 24 राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे।
\v 25 राहेल की दासी बिल्हा के पुत्र दान और नप्ताली थे।
\s5
\v 26 लिआ की दासी जिल्पा के पुत्र गाद और आशेर थे। बिन्यामीन को छोड़कर याकूब के सभी पुत्रों के जन्म के समय वे पद्दनराम में रह रहे थे।
\p
\v 27 याकूब अपने पिता इसहाक से भेंट करने के लिए मेम्रे गया जिसका नाम किर्यतअर्बा था जिसे अब हेब्रोन कहते हैं। इसहाक का पिता अब्राहम भी वहाँ रह चुका था।
\s5
\v 28 इसहाक 180 वर्ष तक जीवित रहा।
\v 29 जब वह मरा, वह बहुत बूढ़ा था। वह मर कर अपने पूर्वजों में शामिल हो गया जो पहले मर गए थे। उसके पुत्र एसाव और याकूब ने इसहाक के शरीर को दफनाया।
\s5
\c 36
\p
\v 1 एसाव जिसका नाम एदोम भी था, उसी एसाव के परिवार का यह विवरण है।
\v 2 एसाव ने तीन कनानी स्त्रियों से विवाह किया थाः हित्ती एलोन की पुत्री आदा, हिब्बी सिबोन की नातिन, अना की पुत्री ओहोलीबामा;
\v 3 और बासमत, जो इश्माएल की पुत्री और नबायोत की बहन थी।
\s5
\v 4 एसाव की पत्नी आदा ने एलीपज को और बासमत ने रूएल को जन्म दिया।
\v 5 ओहोलीबामा ने यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। एसाव के ये सभी पुत्र पैदा हुए थे जब वह कनान देश में रहता था।
\p
\s5
\v 6-7 याकूब और एसाव की बहुत संपत्ति थी और इसी के कारण, उन्हें अपने पशुओं के लिए और भूमि की आवश्यक्ता थी। वह जिस भूमि पर रह रहे थे वो उनके पशुओं के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसलिए एसाव, जिसका दूसरा नाम एदोम था, अपने परिवार के साथ याकूब से अलग हो कर दूर देश को चला गया।
\v 8 वे सेईर के पहाड़ी प्रदेश में जाकर रहने लगे।
\p
\s5
\v 9 एसाव एदोम के लोगों का पिता है। सेईर एदोम के पहाड़ी प्रदेश में रहने वाले एसाव के वंशजों के ये नाम हैं।
\v 10 एसाव की पत्नी आदा ने एलीपज को जन्म दिया था और उसकी दूसरी पत्नी बासमत ने रूएल को जन्म दिया।
\v 11 एलीपज के पुत्र मान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज थे।
\v 12 एसाव के पुत्र एलीपज की एक तिम्ना नामक रखैल भी थी। तिम्ना और एलीपज ने अमालेक को जन्म दिया। ये छः पुत्र एसाव की पत्नी आदा के पोते थे।
\p
\s5
\v 13 रूएल के ये पुत्र थे, नहत, जेरह, शम्मा और मिज्जा। ये सब एसाव की पत्नी बासमत के पोते थे।
\p
\v 14 एसाव की पत्नी ओहोलीबाह जो सिबोन की नातिन और अना की पुत्री थी, उसने एसाव के इन पुत्रों को जन्म दिया। यूश, पालाम और कोरह।
\p
\s5
\v 15 ये एसाव के वंशजों में से प्रमुख हैं। उसके पहले पुत्र एलीपज के वंशज ये थे: तेमान, ओमार, सपो, कनज,
\v 16 कोरह, गाताम, अमालेक और एलीपज के वंशजों में, एदोम देश के यही प्रधान थे और वे आदा से आए।
\p
\s5
\v 17 एसाव के पुत्र रूएल के वंश में जो प्रधान हुए वे थेः नहत, जेरह, शम्मा, मिज्जा। एदोम देश में ये प्रधान बासमत नामक एसाव की पत्नी के वंश से आए।
\p
\v 18 एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के पुत्र, जो अना की माँ थी,अना जो यूश, यालाम और कोरह लोगों के समूह के पूर्वज थे।
\p
\v 19 यह सूची एसाव के पुत्रों और उन समुदाय की है जो उनके वंशज थे।
\p
\s5
\v 20 एदोम में सेईर नामक एक होरी समुदाय का व्यक्ति रहता था। सेईर के पुत्र ये हैं: लोतान, शोबाल, शिबोन, अना,
\v 21 दीशोन, एसेर, दिशान। ये प्रत्येक सात पुरुष अपने-अपने समूह के पूर्वज बने। प्रत्येक समूह का नाम अपने पूर्वजों के नाम पर था।
\p
\v 22 लोतान के दो पुत्र थे: होरी और हेमाम। लोतान की बहन तिम्ना थी।
\p
\s5
\v 23 शोबाल के पुत्र आल्वान, मानहत, एबाल, शपो और ओनाम थे।
\p
\v 24 सिबोन के पुत्र अय्या और अना थे। अना ने अपने पिता सिबोन के गदहों को जंगल में चराते हुए गर्म जल के झरने खोजे थे।
\p
\s5
\v 25 अना का एक पुत्र, दीशोन और एक पुत्री ओहोलीबामा थी।
\p
\v 26 दीशोन के पुत्र हेमदान, एशबान, यित्रान और करान थे।
\p
\v 27 एसेर के पुत्र बिल्हान, जावान और अकान थे।
\p
\v 28 दीशान के पुत्र ऊस और अरान थे।
\p
\s5
\v 29-30 सेईर भूमि में होरी के वंशजों के समूह रहते थे। लोतान, शोबाल, शिबोन, अना, दिशोन, एसेर, दीशोन ये लोगों के समुदाय के नाम थे।
\p
\s5
\v 31 ये राजाओं के नाम हैं जिन्होंने एदोम में शासन किया था, इससे पहले किसी भी राजा ने इस्राएलियों पर शासन नहीं किया।
\v 32 बोर का पुत्र बेला एदोम का पहला राजा था। वह नगर जहाँ वह रहता था उसे दिन्हाबा नाम दिया गया था।
\p
\v 33 बेला की मृत्यु के बाद, जेरह का पुत्र योबाब राजा बना। वह बोस्रा नगर का था।
\p
\s5
\v 34 योबाब की मृत्यु के बाद तेमानियों के देश का हूशाम उसके स्थान पर राजा बना।
\p
\v 35 हूशाम की मृत्यु के बाद बदद का पुत्र हदद राजा बना। हूशाम की सेना ने मोआब में मिद्यानियों की सेना को हराया था। उसकी राजधानी अबीत थी।
\p
\v 36 हदद की मृत्यु के बाद सम्ला राजा बना था। सम्ला मस्रेका से था।
\p
\s5
\v 37 जब सम्ला के मृत्यु के बाद शाऊल राजा बन गया। शाऊल फरात नदी के किनारे रहोबोत का था।
\p
\v 38 शाऊल की मृत्यु के बाद अकबोर का पुत्र बाल्हानान राजा बना।
\p
\v 39 अकबोर के पुत्र बाल्हानान की मृत्यु के बाद हदर उसके स्थान पर राजा बना। उसकी राजधानी का नाम पाऊ था और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल था जो मत्रेद की पुत्री थी और वह मेज़ाहब की पुत्री थी।
\p
\s5
\v 40-43 यह एसाव वंशियों की सूची हैः तिम्ना, अल्वा, यतेत, ओहोलीबामा, एला, पीनोन, कनज, तेमान, मिबसार, मग्दीएल, ईराम। ये सब एदोम देश के निवासी थे। जिस स्थान पर उनका जो समुदाय रहता था वही उस देश का नाम पड़ गया।
\s5
\c 37
\p
\v 1 याकूब कनान देश में रहने लगा जहाँ पहले उसका पिता रहता था।
\v 2 याकूब के परिवार का वृतान्त यह है।
\p जब याकूब का पुत्र यूसुफ सत्रह वर्ष का था तब वह भी अपने भाइयों के साथ भेड़-बकरियाँ चराने लगा। वह अपने पिता की दासी-पत्नियों बिल्हा और जिल्पा के पुत्रों के साथ जाया करता था और उनकी बुराइयों का समाचार अपने पिता को देता था।
\p
\s5
\v 3 याकूब यूसुफ से अन्य सब पुत्रों से अधिक प्रेम करता था क्योंकि यूसुफ उस समय उत्पन्न हुआ जब उसका पिता बहुत बूढ़ा था। उसने यूसुफ के लिए एक रंग-बिरंगा वस्त्र भी बनवाया था। जिसकी बाहें लम्बी थी।
\v 4 जब यूसुफ के भाइयों को लगा कि उनका पिता उनकी अपेक्षा यूसुफ को अधिक प्रेम करता है। वे इसी कारण अपने भाई से घृणा करने गये। वे यूसुफ से अच्छी तरह बात भी नहीं करते थे।
\p
\s5
\v 5 एक रात यूसुफ ने स्वप्न देखा और अपने भाइयों को वह स्वप्न सुनाया जिसे सुनकर वे और भी अधिक ईर्ष्या से भर गए।
\v 6 उसने उनसे कहा, "मैंने जो स्वप्न देखा वह यह था, सुनो!
\s5
\v 7 मैंने देखा कि हम सब खेत में गेहूँ की फसल के गट्ठे बाँध रहे हैं। मेरा गट्ठा एकदम खड़ा हो गया और तुम सबके गट्टे उसके चारों ओर एकत्र होकर उसे झुक कर प्रणाम करने लगे!"
\v 8 उसके भाइयों ने उससे कहा, क्या, तू ये सोचता है कि इसका अर्थ है कि तू हम लोगों पर शासन करेगा? उसके भाइयों ने यूसुफ से अब और अधिक घृणा करनी आरम्भ की क्योंकि उसने उनको अपने स्वप्न के विषय बताया था।
\p
\s5
\v 9 बाद में उसने एक और स्वप्न देखा और फिर उसने अपने बड़े भाइयों को इसके विषय में बताया। उसने कहा, " सुनो! मैंने एक और स्वप्न देखा है। इस स्वप्न में, सूर्य और चंद्रमा और ग्यारह सितारे मेरे सामने झुक रहे थे!"
\v 10 उसने अपने पिता को भी इस स्वप्न के बारे बताया। उनके पिता ने उन्हें समझाते हुए कहा, " तू क्या कहना चाहता है? तेरे कहने का अर्थ है कि तेरी माता और मैं तेरे बड़े भाई एक दिन झुककर तुझे प्रणाम करेंगे?"
\v 11 यूसुफ के बड़े भाई तो यह सुनकर उससे ईर्ष्या करने लगे लेकिन उसके पिता ने उसका यह स्वप्न स्मरण रखा।
\p
\s5
\v 12 एक दिन जब यूसुफ के भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराते हुए शकेम के निकट पहुँच गये थे।
\v 13 तब याकूब ने यूसुफ ने कहा, "तुम्हारे भाई शकेम में भेड़-बकरियाँ चरा रहे होंगे, मैं तुझे उनका समाचार पूछने के लिए भेज रहा हूँ।" यूसुफ ने कहा, "मैं जाऊंगा।"
\v 14 याकूब ने कहा, "जाकर अपने भाइयों और भेड़-बकरियों का हाल देखो कि वे सब कुशल से तो हैं भेड़ बकरियाँ शी सलामत हैं और मुझे समाचार दो।" याकूब ने यूसुफ को उस तराई से जहाँ हेब्रोन बसा हुआ है, उसके भाइयों के पास भेजा।
\p और यूसुफ शकेम नगर के निकट पहुँचा।
\s5
\v 15 शकेम में एक व्यक्ति ने यूसुफ को खेतों में भटकते हुए पाया। वह अपने भाइयों को खोज रहा था, तब उस व्यक्ति ने कहा, " तू क्या खोज रहे हो?"
\v 16 यूसुफ ने उत्तर दिया, "मैं अपने बड़े भाईयों की तलाश में हूँ। क्या तू बता सकते हो कि वे अपनी भेड़ों के साथ कहाँ हैं?"
\v 17 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "वे अब यहाँ नही हैं। मैंने किसी को यह कहते हुए सुना कि "चलो भेड़ बकरियों को लेकर दोतान नगर चलें।'"
\p यूसुफ ने वह स्थान छोड़ा और उत्तर की ओर गया जहाँ उसने अपने भाइयों को दोतान के समीप पाया।
\s5
\v 18 जब यूसुफ दूर ही था तब उसके भाइयों ने उसे देखकर उसकी हत्या करने की योजना बनाई।
\v 19 वे आपस में कहने लगे, "देखो वह स्वप्न देखने वाला आ रहा है!"
\v 20 "चलो उसे मार डालें और उसके शव को किसी गड्ढे में डाल दें, और हम यह कहेंगे कि किसी जंगली जानवर ने उसे मारकर खा लिया है। तब देखते हैं कि उसके स्वप्न कैसे पूरे होते हैं!"
\p
\s5
\v 21 रूबेन ने उनकी बातें सुनी, उसने उन्हें फुसलाने का प्रयास की कि वे यूसुफ को न मारें अतः कहा "नहीं हमें उसे नही मारना चाहिए।"
\v 22 उसकी हत्या मत करो परन्तु उसे जंगल के इस गड्ढे में डाल दो। उसकी हानि नहीं करनी चाहिए।" यह कहकर वह वहाँ से चला गया। उसने योजना बनायी कि वह उसे बाद में गड्ढे से निकालकर पिता के पास पहुँचा देगा।
\p
\s5
\v 23 जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुँचा तब उन्होंने उसे पकड़कर उसका रंग-बिरंगा लम्बी बाँहों वाला वस्त्र उतार लिया।
\v 24 तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और उसे गड्ढे में फेंक दिया। वह गड़हा सूखा था, उसमें जल नहीं था।
\p
\s5
\v 25 इसके पश्चात वे भोजन करने बैठ गए। उसी समय उन्हें गिलाद प्रदेश से आता इश्माएल वंशियों का एक दल दिखाई दिया जो ऊँटों पर सुगन्ध द्रव्य और गन्धरस लादे हुए मिस्र देश को जा रहा था कि वहाँ उसे बेचें।
\v 26 यहूदा ने अपने बड़े और छोटे भाइयों से कहा, " अपने छोटे भाई को मार कर उसके शरीर को छिपाने से हमें क्या हासिल होगा?
\s5
\v 27 आओ उसे नुकसान पहुँचाने की अपेक्षा हम उन लोगों को बेच दें जो इश्माएल के वंशज हैं। मत भूलो कि वह हमारा छोटा भाई है!" सब उसकी बात से सहमत हो गए।
\p
\v 28 जब वे मिद्यानी व्यापारी उनके निकट आए तब यूसुफ के भाइयों ने उसे गड्ढ़े से बाहर निकाला और उसे चाँदी के बीस टुकड़ों में यूसुफ को उन्हें बेच दिया। वे व्यापारी उसे मिस्र देश ले गए।
\p
\s5
\v 29 जब रूबेन उस गड्ढ़े के पास आया तो यूसुफ उसका छोटा भाई, वहाँ नहीं था। वह बहुत दुखी हुआ और उसने अपने वस्त्र फाड़े।
\v 30 अपने छोटे भाइयों के पास जाकर कहने लगा, "यूसुफ तो वहाँ नहीं है! अब मैं क्या करू?"
\p
\s5
\v 31 उनकी हिम्मत नहीं हुई की वे यूसुफ के साथ हुई घटना पिता को बता दें, तब उन्होंने अपने पिता के भय से एक कहानी गढ़ी। उन्होंने उसका अंगरखा, एक बकरे को मारकर उसके खून में रंग दिया।
\v 32 वे कपड़े के टुकड़े को अपने पिता के पास ले आये और कहा, "हमने यह पाया! इसे देख। क्या यह तेरे पुत्र के कपड़े है?"
\v 33 उसने उसे पहचाना, और कहा, "हाँ, यह तो मेरे पुत्र का है। किसी खूंखार जानवर ने उस पर झपट कर उसकी हत्या कर दी होगी। मुझे पूरा विश्वास है कि उस जानवर ने यूसुफ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए होंगे!"
\p
\s5
\v 34 याकूब इतना दुःखी था कि उसने अपने कपड़े फाड़े और बोरे को शरीर पर लपेट कर शोक किया।
\v 35 उसके पुत्रों ने उसे शान्ति देने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा उस पर याकूब ने ध्यान ही नही दिया। वह यही कहता रहा, "मैं मरने तक शोक करता रहूँगा और फिर अपने पुत्र के पास चला जाऊँगा।" जो कुछ हुआ उसके लिए तथा अपने पुत्र के लिए रोता ही रहा।
\p
\v 36 उधर मिद्यानियों ने यूसुफ को मिस्र ले जाकर फ़िरौन के एक अधिकारी पोतीपर के हाथ बेच दिया। वह फ़िरौन राजा के अंगरक्षकों का प्रधान था।
\s5
\c 38
\p
\v 1 उस समय, यहूदा अपने भाइयों से अलग होकर अदुल्लाम जो पर्वतीय प्रदेश था वहाँ चला गया और वहाँ एक पुरुष के साथ रहने लगा। जिसका नाम हीरा था।
\v 2 वहाँ शूआ नाम के एक कनानी पुरुष की पुत्री को यहूदा ने देखा। उससे विवाह करके उसके साथ सोया।
\s5
\v 3 वह गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उनके पिता ने उसे एर नाम दिया।
\v 4 बाद में वह फिर गर्भवती हुई और उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया, जिसे उसने ओनान नाम दिया।
\v 5 कई सालों बाद यहूदा और उसका परिवार कजीब में रहने गए। वहाँ उसकी पत्नी ने एक और पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने शेला रखा।
\p
\s5
\v 6 यहूदा के पुत्र एर के बड़े हो जाने पर यहूदा ने उसका विवाह तामार नाम की एक युवती से करवाया।
\v 7 परन्तु एर ने यहोवा की दृष्टि में दुष्टता की इसलिए यहोवा ने उसको मार डाला।
\s5
\v 8 तब यहूदा ने ओनान से कहा, " तेरा बड़ा भाई बिना किसी पुत्र के मर गया। इसलिए उसकी विधवा से शादी कर और उसके साथ सो। हमारे रीति-रिवाज के अनुसार ऐसा ही करना चाहिए।"
\v 9 ओनान जानता था कि यदि वह ऐसा करेगा तो इससे पैदा हुई संतान उसकी नहीं मानी जाएंगी। ओनान ने जब भी तामार के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाया उसने भूमि पर अपना वीर्य फेंक दिया। जिससे कि तामार गर्भवती न हो कि उसके बड़े भाई के नाम से वंश चले।
\v 10 यहोवा ने उसके इस कर्म को दुष्टता मानकर उसे भी मार डाला।
\p
\s5
\v 11 तब यहूदा ने अपनी बहू तामार से कहा, "अपने पिता के पास चली जा लेकिन किसी से विवाह न करना। जब मेरा पुत्र शेला बड़ा हो जाएगा तब मैं तेरा विवाह उससे करा दूँगा। परन्तु सच तो यह था कि यहूदा नहीं चाहता था कि शेला तामार से विवाह करे क्योंकि वह डरता था कि शेला भी मर जाएगा जैसे उसके दो बड़े भाई मर गए थे। तामार यहूदा की बात मानकर अपने पिता के घर चली गई।
\p
\s5
\v 12 कुछ वर्षों बाद यहूदा की पत्नी, जो शूआ की पुत्री थी, मर गई और उसके शोक का समय पूरा हो गया तब यहूदा ने तिम्ना जाने का विचार किया क्योंकि वहाँ उसके सेवक उसकी भेड़ों का ऊन कतरवा रहे थे। उसका मित्र अदुल्लामवासी हीरा भी उसके साथ था।
\v 13 किसी ने तामार को समाचार दिया, "तेरा ससुर तिम्ना जा रहा है भेड़ों का ऊन कतरने वालों की सहायता करने के लिए।"
\v 14 वह जानती थी कि शेला वयस्क हो गया है परन्तु यहूदा ने उसे उसकी पत्नी नहीं बनाया। इसलिए उसने विधवा के वस्त्र उतारकर अपने मुख पर परदा डाला कि कोई उसे पहचान न सके और तिम्ना के मार्ग पर एनैम नगर के फाटक पर बैठ गई।
\s5
\v 15 उसे देखकर यहूदा ने समझा कि वह वेश्या है। वह उसे पहचान नहीं पाया क्योंकि उसका मुँह ढंका हुआ था। वह वहाँ बैठी थी जहाँ वेश्याएं अक्सर बैठती थीं।
\v 16 यहूदा को अनुभव नहीं हुआ कि वह उसकी बहू थी। तो उसने उससे कहा, "मुझे अपने साथ सोने दे।" उसने उत्तर दिया, " तू मुझे इसके बदले में क्या देगा?"
\s5
\v 17 उसने उत्तर दिया, "मैं अपनी बकरियों में से एक बच्चा तेरे पास भेज दूँगा।" उसने कहा, " तू जब तक वह बकरी का बच्चा भिजवाएगा तब तक मेरे पास कुछ रखवा दे।"
\v 18 उसने कहा, " तू क्या चाहती है कि मैं तेरे पास क्या रख दूँ?" उसने कहा "अपनी मुहर वाली अंगूठी और जिस पर तेरा नाम खुदा हुआ है जो एक धागे से तेरे गले में बंधी है तथा वह छड़ी जो तेरे हाथ में है।" उसने वह सब उसके पास रख दिया और उसके साथ सोया। परिणाम-स्वरूप वह गर्भवती हो गई।
\s5
\v 19 घर लौटने के बाद उसने परदा हटा लिया और फिर अपनी विधवा के कपड़े पहन लिए।
\p
\v 20 यहूदा ने अदुल्लाम के एक अपने मित्र के हाथ बकरी का बच्चा उस स्त्री के पास भिजवाया, जैसा उसने उसे वचन दिया था। लेकिन उसके मित्र को वह स्त्री कहीं नहीं मिली।
\s5
\v 21 इसलिए उसके दोस्त ने वहाँ रहने वाले लोगों से पूछा, "वह वेश्या कहाँ है जो एनैम के मार्ग के किनारे बैठी थी?" उन्होंने उत्तर दिया, "यहाँ कभी कोई वेश्या नहीं थी!"
\v 22 तब वह यहूदा के पास वापस गया और कहा, "मुझे वह नहीं मिली। इसके अतिरिक्त, उस नगर में रहने वाले पुरुषों ने कहा, 'यहाँ कोई वेश्या कभी नहीं थी।'"
\v 23 यहूदा ने कहा, "उसे वे वस्तुएं रखने दे क्योंकि यदि हम उसकी खोज करेंगे तो लोग हम पर हँसेगे। मैंने तो यह बकरी का बच्चा भेज कर अपना वचन निभाया लेकिन वह तुझे नहीं मिली कि उसे वह बकरी का बच्चा दे सके।"
\p
\s5
\v 24 लगभग तीन महीने बाद, किसी ने यहूदा से कहा, "तेरी बहू तामार एक वेश्या बन गई है और अब वह गर्भवती है!" यहूदा ने कहा, "उसे नगर के बाहर निकालो और उसे मार डालो!"
\p
\v 25 जब वे उसे नगर से बाहर ला रहे थे तब उसने अंगूठी और छड़ी किसी के हाथ यहूदा के पास भिजवा दी और कहलवाया कि जिस पुरूष से वह गर्भवती है, उसी की ये वस्तुएं हैं।" उसने उस वाहक से यह भी कहा कि उससे कहना, "इस अंगूठी और इसमें पिरोये गए धागे तथा छड़ी को पहचान ले कि वे किसके हैं?"
\v 26 जब उस व्यक्ति ने ऐसा किया, तो यहूदा ने अंगूठी और छड़ी को पहचाना। वह बोला, वह मुझसे ज्यादा सही है क्योंकि मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं शेला के साथ उसका विवाह करूँगा और अपने पुत्र शेला से उसका विवाह नहीं किया।" यहूदा फिर कभी उसके साथ नहीं सोया।
\p
\s5
\v 27 जब जन्म देने का समय आया, तो वह आश्चर्यचकित थी कि उसके गर्भ में जुड़वां लड़के थे।
\v 28 जब वह जन्म दे रही थी, उनमें से एक ने अपना हाथ बाहर निकला। दाई ने उसकी कलाई पर एक लाल रंग का धागा बांधा और कहा, "यह पहले पैदा हुआ है।"
\s5
\v 29 परन्तु उस संतान ने अपना हाथ वापस अन्दर खींच लिया। तब दूसरा बच्चा पहले पैदा हुआ। दाई ने कहा, " तू ही पहले बाहर निकलने में समर्थ हुए।" इसलिए उन्होंने उसका नाम पेरेस रखा। जो सुनने में इब्रानी शब्द के समान लगता है जिसका अर्थ है "खुल पड़ना।"
\v 30 तब उसका छोटा भाई, जिसकी कलाई पर लाल रंग का धागा बंधा था, बाहर निकला। उसने उसका नाम जेरह रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है "सुबह की लाली।"
\s5
\c 39
\p
\v 1 इस बीच इश्माएलवंशी यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे। वहाँ पोतीपर ने यूसुफ को उनसे खरीद लिया। पोतीपर एक मिस्री था जो राजा का अधिकारी था। वह राजा के महल के सुरक्षाकर्मियों का प्रधान था।
\v 2 यहोवा यूसुफ के साथ थे इसलिए वह अपना काम बहुत अच्छी तरह कर सका। वह अपने मिस्री स्वामी के घर में सेवा कार्य करता था।
\s5
\v 3 उसके स्वामी ने देखा कि यहोवा यूसुफ की सहायता कर रहे थे जो कुछ यूसुफ करता है, उसमें उसे सफल बनाने में सहायक थे।
\v 4 यूसुफ का स्वामी उससे प्रसन्न था, अतः उसके स्वामी ने उसे अपने निजी सेवक के रूप में नियुक्त किया। इसके पश्चात उसके स्वामी ने उसे अपने परिवार और संपूर्ण संपदा की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया।
\s5
\v 5 जब से पोतीपर (स्वामी) ने यूसुफ को अपने घर का अधिकारी बनाया तब से यहोवा ने यूसुफ के कारण पोतीपर के घर में रहने वाले सब को समृद्धि प्रदान करना आरंभ कर दिया। यहोवा ने पोतीपर की फसल को भी बढ़ा दिया।
\v 6 पोतीपर ने यूसुफ पर जो कुछ पोतीपर का था सबका पूरा प्रबंध सौप दिया अपने घर का पूरा प्रबंध छोड़ दिया। वह केवल अपने भोजन की चिन्ता करता था। उसे अपने घर में और किसी बात की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
\p यूसुफ अब सुगठित शरीर वाला और आकर्षक हो गया था।
\s5
\v 7 इसके कारण, उसके स्वामी की पत्नी उसको प्रेम भरी नजर से देखने लगी। एक दिन उसने यूसुफ से कहा, "मेरे साथ सो!"
\v 8 लेकिन उसने अपने स्वामी की पत्नी से कहा, "सुन! मेरा स्वामी इस घर की किसी बात की चिन्ता नहीं करता है। उसने अपनी सम्पूर्ण सम्पति की देख-रेख के लिए मुझे नियुक्त किया है।
\v 9 इस घर में मुझसे अधिक अधिकार और किसी के पास नहीं है। जिस एकमात्र पर उसने मुझे अधिकार नहीं दिया है वह तू है क्योंकि तू उसकी पत्नी है! मैं ऐसी दुष्टता कैसे कर सकता हूँ जिसके लिए तू मुझसे कह रही है? यदि मैंने ऐसा किया तो मैं परमेश्वर की दृष्टि में पाप करूँगा! "
\s5
\v 10 वह दिन-प्रतिदिन यूसुफ से उसके साथ सोने के लिए कहती रही लेकिन वह मना करता रहा। वह उसके निकट भी नहीं जाता था।
\p
\v 11 एक दिन जब यूसुफ घर में अपना काम करने के लिए गया तब घर में अन्य कोई सेवक नहीं था।
\v 12 पोतीपर की पत्नी ने उसके वस्त्र को पकड़ लिया और कहा, "मेरे साथ सो!" यूसुफ घर से बाहर भाग गया, लेकिन यूसुफ का वस्त्र उसके हाथ में ही रह गया।
\s5
\v 13 जब उसने देखा कि यूसुफ अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया,
\v 14 उसने घरेलू दासों को बुलाया। उसने उनसे कहा, "देखो! यह इब्रानी दास जिसे मेरा पति यहाँ लाया था। उसने मेरा अपमान किया है। वह मेरे पास अन्दर आया जहाँ मैं थी और मुझे अपने साथ सोने के लिए विवश करने का प्रयास किया, लेकिन मैं जोर से चिल्लाई।
\v 15 मेरा चिल्लाना सुन कर वह अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया।"
\s5
\v 16 उसने यूसुफ के स्वामी के घर आने तक उसका वस्त्र अपने पास रखा।
\v 17 तब उसे यह कहानी सुनाई, "वह इब्रानी दास जिसे तू यहाँ ले आया है, मेरे पास अन्दर आया और मेरे साथ सोने के लिए मुझे विवश करने लगा।
\v 18 परन्तु जब मैं चिल्लाई तो अपना वस्त्र छोड़ कर बाहर भाग गया।"
\s5
\v 19 यूसुफ के स्वामी ने अपनी पत्नी से जब यह कहानी सुनी जो वह सुना रही थी और जब उसने कहा, "तेरे दास ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया है।" वह बहुत क्रोधित हुआ।
\v 20 यूसुफ के स्वामी ने यूसुफ को ले जा कर कारावास में डाल दिया। उस कारावास में राजा के सभी कैदियों को रखा गया था, यूसुफ भी वहीं रहा।
\p
\s5
\v 21 परन्तु यहोवा यूसुफ के प्रति दयालु रहे। पूर्वजों के साथ अपने वचन के कारण उसकी सहायता करते रहे। यहोवा ने ऐसा किया कि कारावास के प्रबंधक यूसुफ से प्रसन्न हो गया।
\v 22 तब कारावास के प्रबंधक ने यूसुफ को कारावास के कैदियों का और अन्य सब कामों का प्रभारी बना दिया।
\v 23 कारावास के प्रबंधक को किसी बात की चिन्ता नहीं करनी थी क्योंकि यूसुफ काम संभाल रहा था। यहोवा ने यूसुफ को अपने सब काम अच्छी तरह से करने में सहायता की।
\s5
\c 40
\p
\v 1 कुछ समय बाद, मिस्र के राजा के दो अधिकारियों ने कुछ ऐसा किया जो राजा को अप्रसन्न करने वाला था। उनमें से एक उसके पिलाने वालों का प्रधान था और दूसरा उसके पकाने वालों का प्रधान था।
\v 2 राजा दोनों से अप्रसन्न हो गया।
\v 3 उसने उन्हें महल के सुरक्षा कर्मियों के प्रधान के कारावास में डलवा दिया। यूसुफ भी उसी कारावास में था।
\s5
\v 4 दोनों व्यक्ति लंबे समय तक कारावास में थे। उस समय, महल के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान ने यूसुफ को नियुक्त किया कि उनके लिए उनकी आवश्यकता की वस्तुओं का प्रबन्ध करे।
\p
\v 5 एक रात राजा के पिलाने वालों के प्रधान और पकाने वाले प्रधान, दोनों ने स्वप्न देखा। प्रत्येक स्वप्न का अलग अर्थ था।
\p
\s5
\v 6 अगली सुबह, जब यूसुफ उनके पास आया तो दोनों उदास दिख रहे थे।
\v 7 इसलिए उसने उनसे पूछा, "आज तुम इतने दुःखी क्यों दिख रहे हो?"
\v 8 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "हम दोनों ने कल रात को स्वप्न देखा, लेकिन कोई भी यहाँ नहीं है जो हमें हमारे स्वप्न का अर्थ बता सके।" यूसुफ ने उनसे कहा, "परमेश्वर ही हैं जो सपनों के अर्थ को बता सकते हैं। मुझे बताओ कि तुम ने क्या स्वप्न देखा और परमेश्वर मुझे अर्थ बताएँगे।"
\s5
\v 9 तो राजा को पिलाने वालों के प्रधान ने यूसुफ को अपना स्वप्न सुनाया। उसने कहा, "स्वप्न में मैंने देखा कि मेरे सामने अँगूर की बेल है।
\v 10 उस अंगूर की बेल की तीन शाखाएँ थी। शाखाओं में कलियाँ लगीं और उनमे फूल आए और फिर उसमें अंगूर के गुच्छे फलने लगे।
\v 11 मैं राजा का कटोरा हाथ में लिए हुए था इसलिए मैंने ताज़े अंगूरों को लिया और उनका रस निचोड़ा और कटोरे में भरकर राजा को पीने के लिए दे दिया।"
\s5
\v 12 परमेश्वर ने तुरंत यूसुफ को बताया कि स्वप्न का क्या अर्थ है। तो यूसुफ ने उससे कहा, "यह तेरा स्वप्न है: बेल की तीन शाखाओ का अर्थ है तीन दिन।
\v 13 तीन दिन में राजा तुझे कारावास से निकाल कर तेरे काम पर पुनः नियुक्त कर देगा। तू पहले के समान ही राजा के लिए वही काम करेगा जो तू पहले करता था।
\s5
\v 14 लेकिन जब तू कारावास से बाहर जाए और सब कुछ अच्छा हो जाए, तब कृपया मुझे मत भूलना।
\v 15 लोगों ने मुझे बलपूर्वक मेरे देश से, जहाँ मेरे इब्रानी साथी हैं, निकाल कर यहाँ बेच दिया। यहाँ मिस्र में भी मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया कि मुझे कारावास में डाल दिया जाए। इसलिए मुझ पर दया करके राजा से मेरी चर्चा करना कि वह मुझे कारावास से मुक्त करा दे!"
\p
\s5
\v 16 जब प्रधान पकाने वाले ने सुना कि पिलाने वालों के प्रधान के स्वप्न का अर्थ बहुत अच्छा था, तो उसने यूसुफ से कहा, "मैंने भी एक स्वप्न देखा। मैंने देखा कि मेरे सिर पर रोटियों की तीन टोकरियाँ हैं।
\v 17 ऊपर की टोकरी में राजा के लिए विभिन्न पके हुए व्यंजन हैं। लेकिन पक्षी आकर मेरे सिर पर रखी उस टोकरी में से खा रहे हैं।"
\s5
\v 18 परमेश्वर ने फिर यूसुफ को बताया कि स्वप्न का क्या अर्थ है। उसने कहा, "तीन टोकरियों का अर्थ है तीन दिन।
\v 19 तीन दिन के पश्चात राजा आज्ञा देगा कि तेरा सिर काटा जाए। तब तेरा शव पेड़ पर लटका दिया जाएगा और पक्षी तेरा मांस नोच-नोच कर खायेंगे।"
\p
\s5
\v 20 इस के बाद तीसरे दिन राजा का जन्मदिन था। उस दिन राजा ने अपने सब अधिकारियों को जन्मदिन मनाने के लिए भोज पर आमंत्रित किया और पिलाने वालों के प्रधान और पकाने वाले के प्रधान को भी कारावास से निकलवाया।
\v 21 पिलाने वालों के प्रधान को तो उसने दुबारा उसके पद पर नियुक्त कर दिया और वह राजा के हाथ में दाखरस का कटोरा देने लगा।
\v 22 परन्तु प्रधान पकाने वाले के लिए उसने आज्ञा दी कि उसे वृक्ष पर लटका दिया जाए। जैसा यूसुफ ने स्वप्नों का अर्थ बताया था सभी बातें बिलकुल वैसी ही हुई।
\p
\v 23 लेकिन पिलाने वालों के प्रधान ने यूसुफ के विषय में नहीं सोचा। वह यूसुफ के निवेदन को भूल गया।
\s5
\c 41
\p
\v 1 पूरे दो वर्षों के बाद मिस्र के राजा ने एक स्वप्न देखा। अपने स्वप्न में वह नील नदी के तट पर खड़ा था।
\v 2 अचानक वहाँ सात हष्ट पुष्ट गायें निकल कर नदी के तट पर घास चरने लगीं।
\v 3 शीघ्र ही और सात गायें नील नदी से निकलीं वे दुर्बल और सूखी हुई थीं, वे हष्ट पुष्ट गायों के पास खड़ी हो गई।
\s5
\v 4 इन सातों दुर्बल और सूखी गायों ने हष्ट पुष्ट सात गायों को खा लिया। तब राजा जाग गया।
\p
\v 5 राजा फिर से सो गया, और तब उसने एक और स्वप्न देखा। उसने देखा कि अनाज की सात बालें एक अनाज की टहनी के पीछे उगी हुई हैं, जो अच्छी और पक कर भरी हुई थीं।
\v 6 उसके बाद, राजा ने देखा कि अनाज के पीछे सात अन्य बालें उगी हैं। अनाज की ये बालें पतली थी और पूर्व की गर्म हवा से सूख गई थी।
\s5
\v 7 तब सात पतली बालों ने सात मोटी और अच्छी बालों को निगल लिया। राजा फिर जाग उठा और उसने समझा कि यह केवल स्वप्न ही है।
\p
\v 8 लेकिन अगली सुबह वह स्वप्न के अर्थ के विषय में चिंतित था। इसलिए उसने मिस्र में रहने वाले सभी जादूगरों और बुद्धिमान पुरुषों को बुलाया। उसने उन्हें अपने स्वप्न सुनाए लेकिन कोई भी स्वप्नों के अर्थ नहीं बता सका।
\p
\s5
\v 9 तब राजा के पिलाने वालों के प्रधान ने राजा से कहा, "अब मुझे कुछ याद आया है जो मुझे तुझे बताना चाहिए था! मैंने तुझे यह न बता कर गलती की।
\v 10 एक बार तू ने क्रोध में आकर मुझे और पकाने वाले के प्रधान को महल के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान के कारावास में डलवा दिया था।
\v 11 जब हम वहाँ थे, तो रात में हम दोनों ने एक-एक स्वप्न देखा था, और दोनों स्वप्नों के अलग-अलग अर्थ थे।
\s5
\v 12 वहाँ हमारे साथ एक इब्रानी युवक भी था। वह महल के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान का सेवक सा था। हमने उसे अपना-अपना स्वप्न सुनाया और उसने हमें स्वप्नों के अर्थ बताए।
\v 13 उसके बाद जो हुआ वह ठीक वैसा ही था जैसा उसने बताया था। तू ने मुझे मेरे पद पर नियुक्त कर दिया और पकाने वाले को वैसे ही पेड़ पर लटका कर मार दिया। "
\p
\s5
\v 14 यह सुनकर राजा ने सेवकों को भेज कर यूसुफ को बुलवाया। उन्होंने तुरन्त जाकर यूसुफ को कारावास से निकाला और बाल कटवा कर और वस्त्र बदल कर राजा के सामने उपस्थित किया।
\v 15 राजा ने यूसुफ से कहा, "मैंने दो स्वप्न देखे हैं जिनका अर्थ बताने में कोई भी समर्थ नही है। किसी ने मुझे बताया है कि तू स्वप्न का अर्थ बता सकता है।"
\v 16 परन्तु यूसुफ ने राजा से कहा, "नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। यह तो परमेश्वर हैं जो स्वप्न का अर्थ जानते हैं, वे ही मुझे स्वप्न का अर्थ बताने की क्षमता देते हैं और इनका अर्थ कुछ अच्छा होगा।"
\p
\s5
\v 17 राजा ने यूसुफ से कहा, "मेरे पहले स्वप्न में मैं नील नदी के तट पर खड़ा था।
\v 18 अचानक वहाँ सात हष्ट पुष्ट गायें नील नदी से निकलीं और नदी के तट पर घास चरने लगीं।
\s5
\v 19 शीघ्र ही नदी से सात दुर्बल और सूखी हुई गायें भी निकलीं। मैंने संपूर्ण मिस्र में इतनी बदसूरत गायें कभी नहीं देखी थीं।
\v 20 पतली बदसूरत गायों ने पहले आई हुए सात हष्ट पुष्ट गायों को खा लिया।
\v 21 लेकिन कोई नहीं कह सकता था कि उन दुर्बल गायों ने उन हष्ट पुष्ट गायों को निगल लिया है क्योंकि वे पहले के समान पतली थीं। फिर मैं जाग गया।
\p
\s5
\v 22 तब मैने एक और स्वप्न देखा था। मैंने अनाज की सात बालें देखी। वे अनाज की बालें भरी हुई, अच्छी और सुन्दर थीं और वे सभी एक ही अनाज की टहनी में लगी थीं।
\v 23 मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा कि एक ही अनाज के पीछे में से सात और बालें निकली। वे पतली थी और पूर्व दिशा की गर्म हवा से सूख गयी थी।
\v 24 अनाज की पतली बालों ने सात अच्छी बालों को निगल लिया। मैंने जादूगरों को ये स्वपने बताया, लेकिन उनमें से कोई भी मुझे नहीं समझा सका कि इन स्वप्नों का क्या अर्थ है।"
\p
\s5
\v 25 तब यूसुफ ने राजा से कहा, "तेरे दोनों स्वप्नों का अर्थ एक ही है। परमेश्वर तुझे स्वप्नों के द्वारा बता रहे है कि वह क्या करने वाले है।
\v 26 सात हष्ट पुष्ट गायों का अर्थ है सात वर्ष और सात पकी हुई और भरी हुई बालों का अर्थ भी सात वर्ष है। दोनों स्वप्नों का एक ही अर्थ है।
\s5
\v 27 सात दुर्बल गायों और सात सूखी हुई बालों का अर्थ है, अकाल के सात वर्ष।
\v 28 वही होगा जैसा मैंने तुझे बताया है, क्योंकि परमेश्वर ने तुझे बताया है कि वे क्या करने वाले हैं।
\v 29 यहाँ सात वर्ष पूरे मिस्र में अच्छी पैदावार और भोजन बहुत होगा।
\s5
\v 30 इसके बाद के सात वर्ष अकाल के वर्ष होंगे। उस समय लोग समृद्धि के उन सात वर्षों को भूल जाएँगे क्योंकि वह अकाल जो आने वाला है पूरे देश का विनाश कर देगा।
\v 31 भयंकर अकाल के कारण लोग पहले के प्रयाप्त भोजन को भूल जाएँगे।
\v 32 परमेश्वर ने तुझे ये दो स्वप्न इसलिए दिखाए हैं कि उन्होंने दृढ़ निर्णय लिया है कि ऐसा ही हो और शीघ्र ऐसा ही करेंगे।
\p
\s5
\v 33 अब मैं सुझाव देता हूँँ कि तू किसी बुद्धिमान व्यक्ति को चुन ले जो उचित निर्णय ले सकता हो और उसे संपूर्ण देश की व्यवस्था का काम सौंप दे।
\v 34 तू देश पर निरक्षकों को भी नियुक्त कर कि जब भोजन की बहुतायत का समय हो संपूर्ण फसल का पाँचवा भाग वह सात वर्ष तक बचाए। प्रत्येक नगर में इस प्रकार एकत्र किए हुए भोजन की निगरानी कर और उसे सुरक्षित कर।
\s5
\v 35 इन सात वर्षों के दौरान उन्हें अनाज इकट्ठा करना होगा। जब अत्याधिक अनाज होगा प्रत्येक नगर के जमा किए गए अनाज की निगरानी और रक्षा करनी होगी।
\v 36 यह अनाज जमा करके रखा जाना चाहिए ताकि इसे उन सात वर्षो के दौरान खाया जाए जब मिस्र में अकाल आएगा, ताकि इस देश के लोग भूख से न मरें।"
\p
\s5
\v 37 राजा और उसके अधिकारियों को यह योजना अच्छी लगी।
\v 38 तब राजा ने उनसे कहा, "क्या हमें यूसुफ जैसा कोई पुरूष मिल सकता है, ऐसा मनुष्य जिसे परमेश्वर ने अपना आत्मा दिया है?
\p
\s5
\v 39 तब राजा ने यूसुफ से कहा, "परमेश्वर ने तुझ पर यह सब प्रकाशित किया है इसलिए मुझे तो ऐसा लगता है कि तेरे समान बुद्धिमान और कोई नहीं है और ऐसा कोई नहीं जो तेरी तरह बुद्धि से निर्णय ले पाए।
\v 40 अतः मैं तुझे अपने महल के सब कुछ का अधिकारी बनाऊंगा। मिस्र में जनता तेरे आदेशों का पालन करेगी। मैं केवल इसलिए अधिक अधिकार रख लेता हूँ क्योंकि मैं राजा हूँ।"
\p
\v 41 तब राजा ने यूसुफ से कहा, "अब मैं तुझे मिस्र के पूरे देश का अधिकारी बना रहा हूँँ।"
\s5
\v 42 राजा ने अपनी उंगली से मुहर की अंगूठी उतार कर यूसुफ की उंगली में पहना दी। राजा ने उसे उत्तम वस्त्र पहना कर उसके गले में सोने का हार पहना दिया।
\v 43 फिर यूसुफ के लिए रथ की व्यवस्था की कि उसे संपूर्ण मिस्र देश में घुमाकर प्रजा को यह दिखाएँ कि राजा के बाद दूसरा महत्वपूर्ण व्यक्ति वही है। जब यूसुफ रथ में सवार होकर जा रहा था तब सेवक लोगों को पुकार कर कहते थे, "प्रणाम करो!" इस प्रकार यूसुफ अपना काम देखने के लिए पूरे मिस्र में भ्रमण करने लगा।।
\p
\s5
\v 44 राजा ने यूसुफ से कहा, "मैं राजा अवश्य हूँ परन्तु संपूर्ण मिस्र में तेरी अनुमति के बिना कोई कुछ नहीं कर सकेगा।"
\v 45 राजा ने यूसुफ को एक नया नाम दिया, सापनत-पानेह और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की पुत्री, आसनत से उसका विवाह करा दिया। इस प्रकार यूसुफ संपूर्ण मिस्र देश में प्रतिष्ठित हो गया।
\p
\s5
\v 46 यूसुफ तीस वर्ष का था जब उसने मिस्र के राजा के लिए काम करना आरम्भ किया था। यूसुफ ने अपना काम करने के लिए, महल छोड़कर पूरे मिस्र देश में यात्राएँ कीं।
\v 47 अगले पूरे सात वर्ष तक अतिशय उपज हुई, जिसके कारण भोजन सामग्री आवश्यकता से अत्याधिक हो गयी।
\s5
\v 48 यूसुफ ने देश की संपूर्ण उपज का पाँचवां भाग एकत्र करके नगरों के गोदामों में सुरक्षित कर दिया। उसने हर एक नगर में कर्मियों को नियुक्त किया कि वहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पन्न उपज को जमा करें।
\v 49 यूसुफ ने अन्न के बड़े-बड़े भंडार बना लिए और अन्न इतना हो गया जितना समुद्र के तटीय रेत के कण। अन्न इतना अधिक हो गया था कि उन्होंने उसका लेखा रखना छोड़ दिया क्योंकि अन्न मापने से कहीं अधिक था।
\p
\s5
\v 50 अकाल के सात वर्ष आरंभ होने से पहले यूसुफ की पत्नी आसनत ने दो पुत्रों को जन्म दिया।
\v 51 यूसुफ ने बड़े पुत्र का नाम मनश्शे रखा, जो इब्रानी शब्द के समान लगता है जिसका अर्थ है, "भूलना" क्योंकि उसने कहा, "परमेश्वर ने मुझे अपने कष्ट और परिवार को भूलने में सहायता की है।"
\v 52 उसने दूसरे पुत्र का नाम एप्रैम रखा जिसका अर्थ है, "संतान प्राप्ति" क्योंकि उसने कहा, "परमेश्वर ने मुझे इस देश में जहाँ मैंने कष्ट भोगा, मुझे संतान दी है।"
\p
\s5
\v 53 बहुतायत अनाज के सात वर्षों का अंत हुआ।
\v 54 तब सात वर्ष बाद अकाल के दिन शुरु हुए। यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा यूसुफ ने कहा था। सारी भूमि में चारों ओर कहीं भी अन्न पैदा न हुआ। मिस्र में भी अन्न की उपज नहीं हुई थी लेकिन लोगों के पास खाने के लिए काफी था, क्योंकि यूसुफ ने अन्न जमा कर रखा था।
\s5
\v 55 जब प्रजा के लोगों की भोजन सामग्री समाप्त हो गई और उन्हें भूख लगी तब उन्होंने राजा से भोजन माँगा। राजा ने लोगों से कहा, "यूसुफ के पास जाओ और जैसा वह कहता है वैसा ही करो।"
\p
\v 56 जब अकाल के कारण देश की दुर्दशा होने लगी तब यूसुफ ने अपने सहकर्मियों से कहा कि वे गोदामों को खोल दें। तब उन्होंने मिस्र के लोगों को अनाज बेचा, क्योंकि पुरे मिस्र में अकाल बहुत भयंकर था।
\v 57 आस-पास के कई देशों के लोग यूसुफ से अनाज खरीदने के लिए मिस्र आए, क्योंकि अकाल हर स्थान में बहुत भयंकर था।
\s5
\c 42
\p
\v 1 याकूब को जब यह समाचार मिला कि मिस्र में अन्न है और लोग जाकर खरीद सकते हैं तो उसने अपने पुत्रों से कहा, " तुम लोग यहाँ बैठ कर एक दूसरे की ओर क्यों देख रहे हो? हमें भी कुछ अनाज चाहिए!"
\v 2 उसने उनसे कहा, "किसी ने मुझे बताया कि मिस्र में बिक्री के लिए अनाज है। वहाँ जाओ और हमारे लिए कुछ खरीद लाओ, ताकि हम जीवित रह सकें!"
\p
\v 3 यूसुफ के दस बड़े भाई कुछ अनाज खरीदने के लिए मिस्र गए।
\v 4 लेकिन याकूब ने यूसुफ के छोटे भाई बिन्यामीन को भाइयो के साथ नहीं भेजा। वह डर गया था कि यूसुफ के साथ जो भयंकर घटना हुई उसके छोटे पुत्र के साथ भी वह न हो।
\s5
\v 5 तब याकूब के पुत्र अन्न खरीदने के लिए मिस्र गए। कनान से और भी लोग अन्न खरीदने वहाँ गए क्योंकि कनान में भी अकाल पड़ा था।
\p
\v 6 मिस्र देश का राज्यपाल यूसुफ ही था और वही सब लोगों को अन्न बेचता था। जो मिस्र और अन्य देशों से अन्न खरीदने के लिए आते थे । यूसुफ के भाई जब उसके पास आए तब उन्होंने उसे भूमि तक झुककर प्रणाम किया।
\s5
\v 7 जैसे ही यूसुफ ने अपने भाइयों को देखा तो उन्हें पहचान लिया परन्तु उसने जान बूझ कर नहीं पहचानने का नाटक करते हुए उनसे कठोरता से पूछा, " तुम लोग कहाँ से आए हो?" उनमें से एक ने उत्तर दिया, "हम लोग कनान देश से यहाँ अन्न खरीदने आए हैं।"
\p
\v 8 यद्यपि यूसुफ अपने भाइयों को पहचान गया था लेकिन वे उसे पहचान न पाए।
\s5
\v 9 यूसुफ को वर्षों पहले के अपने स्वप्न याद आए। परन्तु अभी वह उन पर प्रकट नहीं करना चाहता था कि वह उनका छोटा भाई यूसुफ है। उसने उन से कहा, " तुम लोग जासूस हो! तुम यह भेद लेने आए हो कि यदि तुम हमारे देश पर आक्रमण करोगे तो क्या हम स्वयं को बचाने में समर्थ हैं?"
\v 10 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "नहीं, महोदय! हम तो केवल यहाँ अनाज खरीदने आए हैं।
\v 11 हम सब एक ही पिता की संतान हैं। हम ईमानदार हैं, जासूस नहीं हैं।"
\s5
\v 12 उसने उनसे कहा, "मैं तुम पर विश्वास नहीं करता! तुम सिर्फ यह देखने के लिए आए हो कि हम पर हमला करने के बाद हम अपने आप को बचाने में समर्थ होंगे या नहीं!"
\v 13 परन्तु उनमें से एक ने उत्तर दिया, "नहीं, यह सच नहीं है! मूल रूप से हम एक परिवार के बारह भाई हैं। हम सब एक ही पिता की संतान हैं। हम लोगों का सबसे छोटा भाई अभी भी हमारे पिता के साथ घर पर है और दूसरा भाई बहुत समय पहले मर गया।"
\p
\s5
\v 14 यूसुफ ने उत्तर दिया, " तुम झूठ बोल रहे हो! मुझे लगता है जैसा मैंने तुम्हें कहा था तुम जासूस हो!
\v 15 तुम्हारा सत्य जानने का एक ही उपाय है। राजा के जीवन की शपथ तुम जासूस ही हो। तुम यहाँ से जा नहीं सकते जब तक कि तुम्हारा सबसे छोटा भाई यहाँ न आए!
\v 16 अपने में से एक को भेज कर अपने छोटे भाई को यहाँ ले आओ। शेष सब यहाँ कारावास में रहो। तभी मैं जान पाऊंगा कि तुम जो कह रहे हो वह सच है या नहीं। यदि ऐसा करने में तुम चूक गए तो राजा के जीवन की शपथ तुम निश्चय ही जासूस हो। "
\v 17 तब यूसुफ ने उन्हें तीन दिनों के लिए कारावास में डाल दिया।
\p
\s5
\v 18 उसके बाद तीसरे दिन यूसुफ कारावास में गया और उनसे कहा, "मैं परमेश्वर का भय मानता हूँ कि वे प्रतिज्ञा तोड़ने वाले को दण्ड देते हैं। इसलिए तुम मेरी बात मानों तो तुम जीवित रहोगे।
\v 19 यदि तुम सच्चे मनुष्य हो तो तुम में से एक भाई यहाँ कारावास में रहे और शेष सभी अन्न लेकर घर जाओ क्योंकि अकाल के कारण वे भूखे होंगे।
\v 20 यदि तुम यहाँ आओ तो अपने छोटे भाई को अवश्य लाना जिससे कि तुम अपनी बात को जो तुम ने मुझसे कही है, सत्य सिद्ध कर पाओ और मैं तुम्हें मृत्यु दण्ड न दूं।" उन्होंने उसकी बात मान ली।
\p
\s5
\v 21 उन्होंने एक दूसरे से कहा, "निश्चय ही यह यूसुफ के साथ किए गए हमारे दुष्कर्मों का परिणाम है। वह हमसे रो-रो कर विनती करता रहा परन्तु उसके जीवन को घोर संकट में देख कर भी हमने उस पर दया नहीं की। इसी के कारण हम भी अब संकट में पड़ गए हैं।"
\p
\v 22 रूबेन ने उनसे कहा, "मैं ने तुमसे कहा था कि उस लड़के को हानि मत पहुँचाओ लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी। अब हम उसकी हत्या का दण्ड भोग रहे हैं।"
\p
\s5
\v 23 जब वे यूसुफ से बातें कर रहे थे तो वे दुभाषिये के माध्यम से बातें करते थे लेकिन वे आपस में अपनी मातृभाषा में बातें करते थे और यह नहीं जानते थे कि यूसुफ उनकी बातें समझ रहा था।
\v 24 उन्होंने जो कुछ कहा, उससे यूसुफ को यह अनुभव हुआ कि उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने यूसुफ के साथ कई वर्षो पहले जो किया था वह गलत था इसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। वह जानता था कि वह अपने आपको रोने से रोक नहीं पाएगा और वह उनके सामने रोना नहीं चाहता था इसलिए यूसुफ वहाँ से निकल गया और कमरे में जा कर रोने लगा। बाद में वह उनके पास लौट आया और फिर यूसुफ ने उनसे बात की। तब उसने शिमोन को चुन लिया कि उसे उनके सामने ही नौकर से उसे बन्दी बना लेने को कहा। उसने शिमोन को कारावास में डाल दिया और दूसरों से कहा कि वे जा सकते हैं।
\p
\v 25 यूसुफ ने आज्ञा दी कि उनके बोरे अनाज से भर दिए जाएँ और उनका पैसा भी प्रत्येक के बोरे के ऊपर रख दिया जाए। उन्हें मार्ग के लिए भोजन भी दिया जाए और उसके भाइयों ने यूसुफ के सेवकों से भोजन प्राप्त किया।
\s5
\v 26 उन्होंने अपना-अपना बोरा गदहों पर लादा और वहाँ से निकल गए।
\p
\v 27 उस स्थान पर जहाँ वे रात को सोने के लिए रुके थे, उनमें से एक ने अपने गदहे के लिए कुछ अनाज निकालने के लिए अपना बोरा खोला। अपने बोरे में पैसा रखा देख कर चकित हो गया।
\v 28 आश्चर्यचकित स्वर में उसने अपने भाइयों से कहा, "किसी ने मेरा पैसा मुझे लौटा दिया है, वह मेरे बोरे में ही है। वे भय से कांपने लगे और आपस में कहा, "परमेश्वर ने हमारे साथ यह क्या किया है?"
\p
\s5
\v 29 जब वे कनान देश में अपने पिता के पास लौट आए, तो उन्होंने सब कुछ अपने पिता याकूब को बताया। उनमें से एक ने कहा,
\v 30 "जिस व्यक्ति के पास मिस्र की सारी भूमि का नियंत्रण है, वह हमारे साथ बहुत कठोरता से बातें कर रहा था। उसने हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे हम उसके देश की जासूसी करने गए थे।
\v 31 लेकिन हमने उससे कहा, "हम जासूस नहीं ईमानदार व्यक्ति हैं।
\v 32 हम वास्तव में एक ही पिता के बारह पुत्र हैं। एक भाई तो मर गया है और सब से छोटा भाई पिता ही के पास कनान में है।'
\s5
\v 33 परन्तु वहाँ के राज्यपाल ने हमारा विश्वास नहीं किया और हमसे कहा, "मैं कैसे जानूँगा की तुम सभी ईमानदार हो उसे प्रमाणित करने के लिए तुम में से एक यहाँ रह जाए और शेष जन अन्न लेकर अपने परिवार में जाओ क्योंकि वे भूख से परेशान होंगे।
\v 34 परन्तु जब तुम वापस आओगे, तो अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास लाओ, ताकि मैं जान सकूँ कि तुम जासूस नहीं हो बल्कि तुम ईमानदार व्यक्ति हो। तब मैं तुम्हारे इस भाई को मुक्त कर दूँगा और तुम इस देश में जो चाहे खरीद लेना।'"
\p
\s5
\v 35 और जब वे अपने-अपने बोरे खाली कर रहे थे तब बोरों में अपने-अपने पैसों की थैली देख आश्चर्यचकित हो गए। जब उन्होंने और उनके पिता ने पैसों की थैली देखि तब वे डर भी गये।
\v 36 उनके पिता याकूब ने उनसे कहा, " तुम ने मेरे दो पुत्रों को मुझसे अलग कर दिया है। यूसुफ मर चुका है और शिमोन भी घर नहीं लौटा और अब तुम बिन्यामीन को मुझ से दूर ले जाना चाहते हो। इन सब बातों से तो मुझे ही कष्ट हो रहा है।"
\p
\s5
\v 37 रूबेन ने अपने पिता से कहा, "मैं बिन्यामीन को लौटा कर लाऊंगा। मैं उसकी देख-रेख करूँगा। यदि मैं उसे लौटा कर नहीं लाया तो तुम मेरे दोनों पुत्रों को मरवा देना।"
\v 38 परन्तु याकूब ने कहा, "मैं अपने पुत्र को तुम्हारे साथ वहाँ नहीं जाने दूँगा। उस का बड़ा भाई मर चुका है और वही मेरी पत्नी राहेल की एकमात्र निशानी है। यदि यात्रा में उसे हानि हुई तो मैं इस बुढ़ापे में शोक से रो-रो कर मर जाऊँगा।"
\s5
\c 43
\p
\v 1 कनान में अकाल और भी अधिक भयंकर हो गया।
\v 2 आखिरकार, जब याकूब के परिवार में अन्न समाप्त हो गया तब याकूब ने अपने पुत्रों से कहा, "मिस्र जाकर हमारे लिए और अन्न ले आओ।"
\s5
\v 3 लेकिन यहूदा ने उससे कहा, "जिसने हमें अन्न बेचा था, उसने कठोर चेतावनी दी थी, 'यदि तुम आओ और तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे साथ नहीं होगा तो मैं तुम सब से नही मिलूँगा।'
\v 4 अतः यदि तू हमारे छोटे भाई को हमारे साथ भेजे तो हम मिस्र से अपने लिए अनाज खरीद सकेंगे।
\v 5 परन्तु यदि तू उसे नहीं भेजेगा तो हम वहाँ नहीं जाएँगे क्योंकि उस व्यक्ति ने हमसे कहा है, 'यदि तुम्हारा छोटा भाई साथ न हो तो मेरे सामने मत आना।' "
\s5
\v 6 याकूब ने उनसे कहा, " तुम ने मेरे लिए यह संकट क्यों उत्पन्न किया कि उसे बता दिया कि तुम्हारा एक छोटा भाई भी है?"
\v 7 उनमें से एक ने उत्तर दिया, "उसने हमारे और हमारे परिवार के विषय में पूरी पूछताछ की थी। उसने पूछा था, 'क्या तुम्हारा पिता जीवित है? क्या तुम्हारे और भी भाई हैं? हमें तो उसके प्रश्नों के उत्तर देने ही थे। हमें क्या मालूम था कि वह कहेगा, "अगली बार जब तुम आओगे तो तुम्हारे साथ तुम्हारा भाई भी हो।'"
\p
\s5
\v 8 तब यहूदा ने अपने पिता से कहा, "उसको हमारे साथ भेज दे कि हम जायें और अन्न ले आयें कि हम और तू और हमारी सन्तान भूख से मर न जाये।
\v 9 मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वह सुरक्षित रहेगा। मैं इसका उत्तरदायित्व लेता हूँ। यदि मैं उसे तेरे पास लौटाकर न लाऊँ तो तू सदा के लिए मुझे दोषी ठहरा सकता है।
\v 10 यदि हमने इतना समय बर्बाद नहीं किया होता, तो हम अब तक वहाँ दो बार जाकर लौट आते।"
\p
\s5
\v 11 तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, "यदि कोई दूसरा रास्ता नहीं है, तो ऐसा ही करो: इस देश में उपजने वाले कुछ श्रेष्ठ सामानों को अपने बोरे में रखो, और उसे उपहार के रूप में उस व्यक्ति को दो। कुछ बालसान, मधु, सुगन्ध द्रव्य, गन्धरस, पिस्ते और बादाम आदि भी रखो।
\v 12 इस समय, पहले से दुगुना धन भी ले लो क्योंकि पिछली बार देने के बाद पैसे लौटा दिये गये थे। तुम्हें उनको पिछली बार रखी गई चाँदी भी वापस करनी है जो तुम्हारे बोरो में रख दी गयी थी। संभव है कि गलती से तुम्हारे बोरो में रखी गई हो।
\s5
\v 13 अपने सबसे छोटे भाई को ले लो और उस व्यक्ति के पास वापस जाओ।
\v 14 मैं प्रार्थना करूँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर उस पुरुष के मन में तुम्हारे लिए दया डाल दे कि वह तुम्हारे उस भाई को और बिन्यामीन को तुम्हारे साथ लौटकर आने दे और यदि मेरे पुत्र मुझसे छीन लिए गए तो मैं निर्वंश हो जाऊँगा।"
\p
\v 15 याकूब ने जो कहा था उसके अनुसार उन्होंने उपहार लिए और अन्न के मूल्य से दो गुणा अधिक राशि लेकर, बिन्यामीन को भी साथ लेकर वे शीघ्रता से मिस्र गए। वहाँ पहुँच कर वे यूसुफ के सामने उपस्थित हुए।
\s5
\v 16 जब यूसुफ ने बिन्यामीन को देखा तो अपने घर के प्रबन्धक से कहा, "इन लोगों को मेरे घर ले जा और एक पशु को मार और भोजन तैयार कर क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वे दिन का भोजन मेरे साथ करें।" और उसने उसे समझाया कि उन्हें भोजन के लिए किस क्रम में बैठाया जाएगा।
\p
\v 17 उस सेवक ने जैसा यूसुफ ने कहा था वैसा ही किया। वह उन्हें यूसुफ के घर में ले गया।
\s5
\v 18 लेकिन वे डर गए क्योंकि वह उन्हें यूसुफ के घर के अन्दर ले जा रहा था। वे सोच रहे थे, "वह हमें उस चाँदी के कारण वहाँ ले जा रहा है जो पिछली बार हमारे बोरों में थी। जब हम भोजन करने बैठेंगे तब वह हम पर अपने दासों से आक्रमण कराएगा और हमें पकडकर दास बनने के लिए विवश करेगा और हमारे गधे भी छीन लेगा।"
\p
\v 19 वे यूसुफ के घर के प्रबन्धक के साथ यूसुफ के घर गए। जब वे घर के प्रवेश द्वार पर पहुँचे,
\v 20 उन भाइयों में से एक ने उससे कहा, " महोदय, कृपया मेरी बात सुन। हम पहले यहाँ आए थे और हमने कुछ अनाज खरीदा था।
\s5
\v 21 हम घर लौटने की यात्रा करते समय रात में जब रुके और हमने अपने बोरे खोले, तब हम यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि हम सभी के बोरे में उतने ही चाँदी के सिक्के थे जो हमने अनाज की कीमत के रूप में दिया था। अब हम वह कीमत भी वापस अपने साथ लाये हैं।
\v 22 इस बार हम अन्न खरीदने के लिए और अधिक चाँदी लाये हैं। हम नहीं जानते कि हमारे बोरे में चाँदी किसने रखी।"
\p
\v 23 यूसुफ के सेवक ने उत्तर दिया, "डरो नहीं, मुझ पर विश्वास करो। जो चाँदी तुम ले आए हो वह मुझे प्राप्त हो गयी तुम्हारा पिता जिन परमेश्वर की आराधना करता था उन्हीं परमेश्वर ने तुम लोगों के धन को तुम्हारी बोरियों में भेंट के रूप में रखा होगा।" और वह शिमोन को कारावास से निकाल कर उनके पास ले आया।
\p
\s5
\v 24 वह उन्हें यूसुफ के घर में ले गया और उन्हें पांव धोने के लिए जल दिया तथा उनके गदहों के लिए भी चारा दिया।
\v 25 उसने उनसे कहा कि वे दोपहर में यूसुफ के साथ भोजन करेंगे। उन लोगों ने यूसुफ के लिए उपहार तैयार किये ताकि जब यूसुफ आए तो उसे दें।
\p
\s5
\v 26 जब यूसुफ घर आया तब उन्होंने उसे वह उपहार दिए और उसके सामने धरती पर झुककर प्रणाम किया।
\v 27 यूसुफ ने उनकी कुशलता पूछी और पिता के विषय में भी जानकारी प्राप्त की क्या तुम्हारा बुढा पिता स्वस्थ है जिसके विषय में तुम ने पहले बताया था, क्या वह अब तक जीवित है?"
\s5
\v 28 उनमें से एक ने कहा, "हाँ तेरा दास, हमारा पिता जीवित है और वह भला चंगा है। पुनः यूसुफ के सामने झुककर उन्होंने प्रणाम किया।
\p
\v 29 तब उसने बिन्यामीन को जो उसकी माता का दूसरा पुत्र था, देखा और उनसे पूछा, "क्या यही तुम्हारा वह छोटा भाई है जिसके विषय में तुम ने मुझसे कहा था?" उन्होंने कहा, "हाँ"। तब उसने बिन्यामीन से कहा, "हे बिन्यामीन, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे तुझ पर दया करें।"
\s5
\v 30 यूसुफ शीघ्र ही कमरे से निकल गया। उसे लगा कि वह रोने ही वाला है। वह अपने छोटे भाई के प्रति भावुक हो गया था। वह अपने निजी कमरे में गया और वहाँ रोया।
\v 31 इसके पश्चात उसने अपने आँसू पोंछ लिए और अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण करके बाहर आया और अपने सेवक से कहा, "भोजन परोस।"
\p
\s5
\v 32 उन दिनों मिस्र वासियों के लिए इब्रानियों के साथ भोजन करना अपमानजनक था इसलिए सेवकों ने यूसुफ के लिए अलग भोजन परोसा और साथ बैठने वाले मिस्रियों के लिए अलग तथा यूसुफ के भाइयों के लिए अलग-अलग भोजन परोसा।
\v 33 उनके भाई यह देखकर आश्चर्यचकित हुए कि उनके बैठने के स्थान उनकी आयु के क्रम अनुसार रखे गए थे, सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े तक।
\v 34 उनके हिस्से का भोजन यूसुफ की मेज से लेकर परोसा गया, और बिन्यामीन को अन्य भाइयों से पाँच गुणा अधिक भोजन दिया गया। इस प्रकार उन्होंने यूसुफ के साथ भोजन किया और दाखमधु पिया और वे आनन्द से भर गए।
\s5
\c 44
\p
\v 1 जब उसके भाई घर लौटने लगे तब यूसुफ ने अपने प्रबन्धक से कहा, कि “उनके बोरों को उतना भर दे जितना उनके गदहे ढो सकते है। प्रत्येक व्यक्ति की बोरी के ऊपर वह चाँदी भी रख दे जो उन्होंने अनाज के लिए भुगतान की थी।
\v 2 और मेरा चाँदी का कटोरा सबसे छोटे भाई के बोरे के ऊपरी भाग में उसकी चाँदी के साथ रख दे।" और उसके सेवक ने वैसा ही किया।
\p
\s5
\v 3 अगले दिन सुबह वे अपने गदहों के साथ घर भेज दिए गए।
\v 4 जब वे नगर से दूर निकल गए तब यूसुफ ने अपने प्रबन्धक से कहा, "उनका शीघ्र पीछा कर और जब तू उनको पकड़े तो उनसे कहना, "हमने तो तुम्हारे साथ भलाई की परन्तु तुम ने भलाई का बदला बुराई से क्यों दिया?
\v 5 तुम ने वह कटोरा चुराया है जिसमें मेरे स्वामी पीते थे, यह वह कटोरा है जिसका उपयोग वे जानने के लिए करते हैं जिसे कोई नहीं जानता परन्तु तुम ने जो किया वह बहुत अधिक दुष्टता है! '"
\p
\s5
\v 6 जब दास ने उन्हें पकड़ा तब उनसे वही कहा जैसा यूसुफ ने उसे कहा था।
\v 7 परन्तु उनमें से एक ने प्रत्युत्तर में कहा, "मोहोदय, तू ऐसा क्यों कह रहा है? हम तेरे दास हैं, हम ऐसा कुछ कभी नहीं करेंगे।
\s5
\v 8 हम तो कनान से वह चाँदी भी लौटा लाए थे जो हमें बोरों के अन्दर मिली थी। निश्चय ही हम तेरे स्वामी के घर से चाँदी या सोना नहीं चुरा सकते।
\v 9 यदि तुझे हम में से किसी के पास वह कटोरा मिले तो उसे मृत्यु-दण्ड दे और हममें से बाकी लोग तेरे दास बन जाएँगे।"
\p
\v 10 उसने कहा, "ठीक है, मैं वैसा ही करूँगा परन्तु जिसके पास कटोरा मिलेगा वह मारा नहीं जाएगा। वह दास बना लिया जाएगा और शेष तुम सब घर लौट सकोगे।"
\p
\s5
\v 11 उन्होंने अपना-अपना बोरा गदहों पर से उतारा और खोला।
\v 12 तब सेवक ने उनके बोरों में वह कटोरा खोजना आरम्भ किया। और बड़े से लेकर छोटे तक के बोरों की खोज की तो वह कटोरा बिन्यामीन के बोरे में निकला और उसने वह कटोरा सबको दिखाया।
\v 13 उसके भाइयों ने निराशा के कारण अपने कपड़े फाड़े। उन्होंने गदहे पर बोरे फिर से लाद लिए और वापस नगर लौट आए।
\p
\s5
\v 14 जब यहूदा और उसके बड़े और छोटे भाई यूसुफ के घर पहुँचे तब यूसुफ वहीं था। यूसुफ के सेवक ने उसे पूरा वृत्तान्त सुनाया। सब भाइयों ने यूसुफ के पैर पकड़ लिए।
\v 15 उसने उनसे कहा, " तुम ने ऐसा क्यों किया? क्या तुम नहीं जानते कि मेरे जैसा मनुष्य अज्ञात बातों को जान लेता है?"
\p
\s5
\v 16 यहूदा ने उत्तर दिया, "महोदय, हम क्या कह सकते हैं? हम कैसे साबित कर सकते हैं कि हम निर्दोष हैं? परमेश्वर ने हमें हमारे वर्षों पुराने पाप का बदला दिया है। हम और जिसके पास कटोरा निकला है तेरे दास हो गए हैं।"
\v 17 परन्तु यूसुफ ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता। केवल जिसके पास मेरा कटोरा निकला है वही मेरा दास होगा। बाकी तुम सभी अपने पिता के पास शाँति से लौट सकते हो।"
\p
\s5
\v 18 तब यहूदा यूसुफ के पास आया और कहा, "महोदय, कृपया मुझे तुझ से कुछ कहने दे। तू राजा के समान है अतः मेरी हत्या की आज्ञा दे सकता है परन्तु तुझ से इस प्रकार बातें करने के कारण क्रोधित न हो।
\v 19 तू ने हमसे पूछा, क्या तुम्हारा पिता अब भी जीवित है और तुम्हारा और कोई भाई भी है?"
\s5
\v 20 हमने उत्तर दिया, 'हाँ, हमारा पिता जीवित है और वह बहुत वृद्ध है और हमारे पिता की वृद्धावस्था का एक पुत्र भी है और उसका बड़ा भाई मर चुका है। तो अब यह सबसे छोटा पुत्र जो जीवित है वह अपनी माता की एकमात्र निशानी है जिससे हमारा पिता अत्यधिक प्रेम करता है।'
\v 21 तब हमसे तू ने कहा, "अगली बार जब तुम आओ तो अपने छोटे भाई को अवश्य साथ लाना ताकि मैं उसे देख सकूँ।'
\v 22 हमने तुझसे कहा, 'नहीं, हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि लड़का अपने पिता को नहीं छोड़ सकता है। यदि वह अपने पिता को छोड़ देता है, तो उसका पिता दुःख के कारण मर जाएगा।'
\s5
\v 23 परन्तु तूने हमसे कहा था, 'यदि तुम्हारा सबसे छोटा भाई तुम्हारे साथ नहीं आएगा तो मैं तुमसे नहीं मिलूँगा।'
\v 24 जब हम अपने पिता के पास लौट आए, हमने अपने पिता से तेरी बात कह दी थी।
\v 25 कई महीनों बाद हमारे पिता ने कहा, 'मिस्र वापस जाओ और कुछ अनाज खरीद कर लाओ!'
\v 26 लेकिन 'हम लोगों ने अपने पिता से कहा, 'हम लोग अपने सबसे छोटे भाई के बिना नहीं जा सकते। हम उस व्यक्ति को देख ही नही सकते जो अनाज बेचता है यदि हमारा सबसे छोटा भाई हमारे साथ नहीं है।'
\s5
\v 27 हमारे पिता ने कहा, ' तुम जानते हो कि मेरी पत्नी राहेल ने दो ही पुत्रों को जन्म दिया था।
\v 28 जिनमें से एक गायब हो गया। उसके लिए मैंने सोचा कि किसी वन पशु ने उसे फाड़ खाया है। मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा।
\v 29 यदि तुम इस दूसरे को भी मुझसे ले लेते हो और इसे कुछ भी नुकसान पहुँचता है, तो मुझे इतना दुःख होगा कि मैं मर जाऊँगा।'
\p
\s5
\v 30 तो कृपया सुन। मेरा पिता तब जीवित रहेगा जब उनका सबसे छोटा पुत्र जीवित है।
\v 31 जब वह देखेगा कि छोटा लड़का हम लोगों के साथ नहीं लौटा है तो वे मर जाएगा और यह हम लोगों का दोष होगा। कि हम लोग अपने बूढ़े पिता के घोर दुःख का कारण बने कि वह मर गया ।
\v 32 मैंने इसके सुरक्षित लौटने का वचन दिया है। मैंने अपने पिता से कहा, " तू यही चाहता है की मैंने जो वचन दिया है वही करूं यदि मैं उसे तेरे पास लौटाकर न लाऊँ तो तू जीवनभर मुझे उसे ना लौटा लाने के लिए दोषी ठहरा सकता है।"
\p
\s5
\v 33 अतः ऐसी कृपा कर कि इस बालक के स्थान पर मुझे ही आपना दास बना ले और इस बालक को अपने भाइयों के साथ मेरे पिता के पास लौटने दे।
\v 34 इस बालक के बिना मैं अपने पिता के पास नहीं लौट सकता। मैं अपने पिता का दुःख देख नहीं पाऊँगा।"
\s5
\c 45
\p
\v 1 तब यूसुफ अपनी भावनाओं को और रोक नहीं सका। वह वहाँ उपस्थित सभी अपने सेवकों के सामने रोना नहीं चाहता था। इसलिए उसने ऊँचे स्वर में कहा, "इन सब को बाहर निकाल दो।" जब सब मिस्री बाहर चले गए तब यूसुफ ने अपने भाइयों पर प्रकट किया की वह कौन है।
\v 2 वह इतनी जोर से रो रहा था, कि बाहर के सब लोगों ने भी सुना। यहाँ तक कि राजा के महल के लोगों ने उसका रोना सुना।
\v 3 यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, "मैं यूसुफ हूँँ! क्या हमारा पिता अभी भी जीवित है?" किन्तु भाई उसको उत्तर नहीं दे सके। क्योंकि जो कुछ उसने कहा उससे वे डर गये थे।
\s5
\v 4 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, "मेरे पास आओ!" जब वे उसके निकट आए, तो उसने कहा, "मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूँ। मैं वहीं हूँ जिसे तुम ने व्यापारियों के हाथ बेच दिया था और वो मुझे लेकर मिस्र आ गए थे।
\v 5 परन्तु अब परेशान न हो, और अपने आप पर क्रोध मत करो कि तुम ने मुझे दास होने के लिए बेच दिया था। परमेश्वर ने मुझे तुमसे पहले यहाँ भेज दिया था कि तुम्हें अकाल में मरने से बचा लूँ।
\v 6 इस देश में दो वर्ष से अकाल है और यह पाँच वर्ष तक और रहेगा। इन दिनों कोई भी यहाँ फसल नहीं उगा सकता और यहाँ कोई फसल नहीं होगी की काटी जा सके।
\s5
\v 7 परमेश्वर ने मुझे तुम सब को भुखमरी से बचाने के लिए और तुम्हारे वंशजों को जीवित रखने के लिए ही यहाँ पहले भेज दिया था।
\v 8 इसलिए, मुझे यहाँ भेजने वाले तुम नहीं परमेश्वर हैं। उन्होंने मुझे राजा के पिता के समान इस देश में रखा है। ताकि मैं राजा के महल की हर वस्तु का प्रभारी रहूँ और मिस्र में प्रत्येक व्यक्ति का शासक बनूँ!
\s5
\v 9 अब मेरे पिता के पास जल्दी लौटकर उससे कहो, 'तेरा पुत्र यूसुफ यही कहता है, "परमेश्वर ने मुझे सम्पूर्ण मिस्र देश का राज्यपाल बना दिया है। इसलिए तुरन्त मेरे पास आ जाओ!
\v 10 तुम गोशेन देश में रह सकते हो। तुम और तुम्हारी संतान और तुम्हारी संतानों की संतान, तुम्हारी भेड़ बकरियाँ, गाय बैल और तुम्हारा सब कुछ मेरे पास रहेगा।
\v 11 क्योंकि अकाल के पाँच वर्ष और शेष हैं, मैं सुनिश्चित करूँगा कि तुम्हारा पालन-पोषण किया जाए। यदि तुम यहाँ नहीं आओगे तो तुम और तुम्हारा परिवार तथा तुम्हारे सब दास-दासियाँ भूख से मर जाएँगे।"
\p
\s5
\v 12 यदि तुम और बिन्यामीन भी ध्यान से देखो तब तुम सभी जान सकोगे कि मैं जो तुमसे बातें कर रहा हूँ, मैं वास्तव में यूसुफ ही हूँ।
\v 13 जाओ और मेरे पिता को बताओ कि यहाँ मिस्र में मेरी कैसी प्रतिष्ठा है और जो कुछ तुम ने देखा है उसका उससे वर्णन करो। मेरे पिता को यहाँ शीघ्र ले आओ।"
\p
\s5
\v 14 तब उसने अपनी बाँहें फैलाकर अपने छोटे भाई बिन्यामीन को गले लगाया और रोया और बिन्यामीन भी उसके गले लग कर रोया।
\v 15 फिर उसने अपने बड़े भाइयों के गालों को चूमा, और रोया। उसके बाद, सब भाई यूसुफ से बातें करने लगे।
\p
\s5
\v 16 किसी ने राजा को समाचार दिया कि यूसुफ के भाई आए हैं, तो राजा और उसके सब कर्मचारी बहुत प्रसन्न हुए।
\v 17 राजा ने यूसुफ से कहा, "अपने भाइयों से कह, 'अपने पशुओं पर अन्न लाद कर कनान जाएँ।
\v 18 फिर वे अपने पिता और अपने परिवारों को यहाँ वापस लाएँ। मैं उन्हें मिस्र की सर्वोत्तम भूमि दूँगा और सब से उत्तम भोजन जो यहाँ का है, उन्हें दिया जाएगा।'
\s5
\v 19 अपने भाइयों से यह भी कह, 'मिस्र देश से गाड़ियाँ ले जाओ और अपनी स्त्रियों और बच्चों को और अपने पिता को लेकर शीघ्र ही मिस्र आ जाओ।
\v 20 अपनी धन संपदा को लाने की चिन्ता मत करना क्योंकि मिस्र की सर्वोत्तम वस्तुएँ तुम्हारी होंगी। इसलिए तुम्हें कनान से कुछ भी लाने की आवश्यकता नहीं है।"
\p
\s5
\v 21 याकूब के पुत्रों ने राजा के आदेश के अनुसार किया। यूसुफ ने उन्हें राजा के आदेश के अनुसार गाड़ियाँ और मार्ग के लिए भोजन दिया।
\v 22 उसने उनमें से हर एक को नए वस्त्र दिए परन्तु बिन्यामीन को उसने पाँच जोड़ी नए वस्त्र और चाँदी के तीन सौ टुकड़े दिए।
\v 23 अपने पिता के लिए उसने जो भेजा यह उसका विवरण है: मिस्र की सर्वोत्तम वस्तुओं से लदे दस गदहे और अन्न, रोटी और मिस्र की यात्रा हेतु पिता के लिए भोजन से लदी दस गदहियाँ।
\s5
\v 24 तब उसने अपने भाइयों को यह कहते हुए विदा किया कि, "रास्ते में झगड़ा मत करना!"
\p
\v 25 इसलिए सभी भाई मिस्र से निकले और कनान देश में अपने पिता याकूब के पास आए।
\v 26 उनमें से एक ने पिता को बताया, "यूसुफ अभी भी जीवित है! वास्तव में, वह पूरे मिस्र का राज्यपाल है!" याकूब आश्चर्यचकित हुआ और वह विश्वास नहीं कर सका कि यह सच है।
\s5
\v 27 उन्होंने उसे वे सब बातें बताईं जो यूसुफ ने उनसे कहीं थी। उसने वे गाड़ियाँ भी देखीं जो यूसुफ ने उसे लाने के लिए और उसके परिवार और सम्पति के लिए भेजी थीं। तब याकूब सदमे से बाहर निकला।
\v 28 उसने कहा, "मेरे लिए तुम्हारी ये बातें विश्वास दिलाने के लिए पर्याप्त हैं कि मेरा पुत्र यूसुफ अभी भी जीवित है, और मैं मरने से पहले उसे देख सकूँगा!"
\s5
\c 46
\p
\v 1 तब याकूब अपनी सारी सम्पति और अपने पूरे परिवार के साथ वहाँ से चल पड़ा। जब वह बेर्शेबा पहुँचा तब उसने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाया जिनकी आराधना उसका पिता इसहाक करता था।
\v 2 उस रात, परमेश्वर ने दर्शन देकर याकूब से कहा, "याकूब! याकूब!" उसने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँँ!"
\v 3 परमेश्वर ने कहा, "मैं वह परमेश्वर हूँ जिसकी आराधना तेरा पिता करता था। मिस्र जाने से मत डर। मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊँगा और वे वहाँ एक बड़ी जाति बन जाएँगे।
\v 4 मैं तेरे साथ मिस्र जाऊँगा, और बाद में मैं तेरे वंशजों को फिर कनान में लाऊँगा। तेरे मरने के समय यूसुफ तेरे साथ होगा।"
\p
\s5
\v 5 तब याकूब बेर्शेबा से निकला। उसके पुत्रों ने अपने पिता को, अपनी पत्नियों और बच्चों को राजा द्वारा भेजी गई गाड़ियों में सवार किया और चल पड़े।
\v 6 इस प्रकार याकूब और उसका पूरा परिवार मिस्र गया। उन्होंने अपने साथ अपने सारे पशुओं और अन्य सभी संपत्तियाँ लीं जो उन्होंने कनान में प्राप्त की थीं।
\v 7 यह इस्राएल के उन पुत्रों, पुत्रियों, पोते-पोतियों के और परिवारों के नाम हैं जो उसके साथ मिस्र गए।
\p
\s5
\v 8 यह याकूब के परिवार के सदस्यों के नामों की एक सूची है जो उनके साथ मिस्र गए थे: रूबेन याकूब का पहला पुत्र था।
\v 9 रूबेन के पुत्र थे: हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कर्मी ।
\v 10 शिमोन के पुत्र: यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर और शाऊल। शाऊल कनानी पत्नी से पैदा हुआ था।
\v 11 लेवी के पुत्र: गेर्शोन, कहात और मरारी।
\s5
\v 12 यहूदा के पुत्र: एर, ओनान, शेला, पेरेस और जेरह। (उसके अन्य पुत्र, एर और ओनान कनान में रहते समय मर गये थे।) पेरेस के पुत्र: हेस्रोन और हामूल।
\v 13 इस्साकार और उसके पुत्र तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन।
\v 14 जबूलून, और उसके पुत्र सेरेद, एलोन और यहलेल।
\v 15 याकूब के ये पुत्र पद्दनराम में लिआ से जन्मे थे और उसकी पुत्री दीना भी थी। कुल पुत्र पुत्रियाँ तैंतीस थे।
\s5
\v 16 गाद और उसके पुत्र सिय्योन हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी और अरेली।
\v 17 आशेर और उसके पुत्र यिम्ना, यिश्बा, यिस्बी और बरीआ तथा उसकी पुत्री सेरह। बरीआ के पुत्र हेबेर और मल्कीएल।
\v 18 (ये सब याकूब और लिआ के पिता द्वारा लिआ को दी गई दासी से उत्पन्न हुए थे। ये कुल सोलह जन थे।)
\s5
\v 19 याकूब की पत्नी राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन।
\v 20 (यूसुफ के पुत्र एप्रैम और मनश्शे मिस्र नहीं गए क्योंकि उनका जन्म तो मिस्र ही में हुआ था। उनकी माता का नाम आसनत था जो ओन नगर के याजक पोतीपेरा की पुत्री थी।)
\v 21 बिन्यामीन, और उसके पुत्र बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम और अर्द थे।
\v 22 (ये राहेल और याकूब के पुत्र और पोते थे। वे चौदह लोग थे।)
\s5
\v 23 दान और उसका पुत्र हूशीम।
\v 24 नप्ताली और उसके पुत्रयहसेल, गूनी, सेसेर और शिल्लेम।
\v 25 (ये याकूब और बिल्हा के पुत्र थे, दास लड़की, जिसे लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को दिया था। वे सात लोग थे।)
\p
\s5
\v 26 याकूब का वंश जो उसके साथ मिस्र गया उनकी संख्या कुल छियासठ थी। उसके पुत्रों की पत्नियों की गणना नहीं की गई है।।
\v 27 याकूब और यूसुफ और यूसुफ के दोनों पुत्र जिनका जन्म मिस्र में हुआ था उनकी भी गणना करें तो मिस्र में उसके और उसके पुत्रों के परिवार के सत्तर पुरूष मिस्र में थे।
\p
\s5
\v 28 याकूब ने पहले यहूदा को यूसुफ के पास भेजा। यहूदा गोशेन प्रदेश में यूसुफ के पास गया। जब याकूब और उसके लोग उस प्रदेश में गए।
\v 29 जब वे वहाँ पहुँचे तब यूसुफ ने अपना रथ तैयार करवाया और अपने पिता से भेंट करने के लिए गोशेन गया। जब यूसुफ वहाँ पहुँचा तब अपने पिता के गले से लिपट कर बहुत देर तक रोया।
\v 30 याकूब ने यूसुफ से कहा, "मैंने तुझे देखा है, और अब मुझे पता है कि तू अभी भी जिंदा है! तो अब मैं मरने के लिए तैयार हूँँ।"
\p
\s5
\v 31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों और परिवार के सब सदस्यों से कहा, "मैं जाकर राजा से कहूँगा, 'मेरे भाई और मेरा पिता और उनका कुटुम्ब कनान से मेरे पास आ गया है।
\v 32 सभी पुरुष चरवाहे हैं। वे अपने पशुओं का ख्याल रखते हैं, और वे अपने साथ अपनी भेड़ें, बकरियाँ, पशु, और जो कुछ भी उनके पास है, साथ लाये है। '
\s5
\v 33 जब राजा तुम्हें बुला कर पूछे, ' तेरा व्यवसाय क्या है?'
\v 34 तो उससे कहना, "हमने तो अपनी युवावस्था से ही पशुपालन किया है क्योंकि हमारे पूर्वज भी ऐसा ही करते थे।' तुम उससे ऐसा कहोगे तो वह तुम्हें गोशेन में रहने देगा। यूसुफ ने ऐसा इसलिए कहा कि मिस्री चरवाहों को पसंद नहीं करते थे।
\s5
\c 47
\p
\v 1-2 यूसुफ ने अपने साथ राजा के पास जा कर बात करने के लिए अपने पाँच भाइयों को चुना। उसने उन्हें राजा के सामने पेश किया और कहा, "मेरे पिता और मेरे सब भाई कनान देश से आए हैं। ये अपनी सभी भेड़ें, बकरियाँ, जानवर और इनका जो कुछ था अपने साथ लाए हैं अन्य सभी चीजे भी लाये है। इस समय वे गोशेन प्रदेश में रह रहे हैं।"
\s5
\v 3 राजा ने यूसुफ के भाइयों से पूछा, " तुम क्या काम करते हो?" उन्होंने राजा से कहा, "हम अपने पूर्वजों के समान चरवाहे हैं।"
\v 4 उन्होंने उससे यह भी कहा, "हम कुछ ही समय के लिए यहाँ रहने आए हैं क्योंकि कनान में भयंकर अकाल पड़ा है। इस कारण हमारे पशुओं के लिए वहाँ चारा नहीं रहा। तो अब, कृपया हमें इस गोशेन क्षेत्र में रहने दे।"
\p
\s5
\v 5 राजा ने यूसुफ से कहा, " तेरे पिता और भाई तेरे पास आए हैं।
\v 6 वे मिस्र में जहाँ चाहें रह सकते हैं। अपने पिता और अपने भाइयों को भूमि का सबसे अच्छा भाग दे। वे गोशेन में रह सकते हैं। और यदि उनमें कोई पशुपालन में विशेष योग्यता रखता है तो वह मेरे भी पशुओं की देख-भाल कर सकता है।"
\p
\s5
\v 7 तब यूसुफ अपने पिता याकूब को महल में लाया और उसे राजा के सामने पेश किया। याकूब ने परमेश्वर से राजा को आशीर्वाद देने के लिए कहा।
\v 8 तब राजा ने याकूब से पूछा, "तेरी उम्र कितनी है?"
\v 9 याकूब ने उत्तर दिया, "मैं 130 वर्ष से यहाँ वहाँ की यात्रा कर रहा हूँ। मैंने अपने पूर्वजों के समान लम्बे समय तक जीवन नहीं जिया, और मेरा जीवन परेशानियों से भरा रहा है।"
\v 10 तब याकूब ने फिर से परमेश्वर से राजा को आशीर्वाद देने के लिए कहा और वहाँ से चला गया।
\p
\s5
\v 11 इस प्रकार यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को मिस्र में निवास करने के लिए सक्षम बनाया। जैसा कि राजा ने आज्ञा दी थी, उसने उन्हें गोशेन में भूमि के सबसे अच्छे भाग में संपत्ति दी, जिसे अब रामसेस नगर कहा जाता है।
\v 12 यूसुफ ने अपने पिता के परिवार के लिए भोजन भी उपलब्ध कराया। उसने उनकी संतानों की संख्या के अनुसार भोजन सामग्री देकर उनके पालन पोषण का प्रबन्ध किया।
\p
\s5
\v 13 भयंकर अकाल के कारण पूरे देश में अन्न नहीं उपजाया जा रहा था। मिस्र और कनान के लोग कमजोर हो गए क्योंकि उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं था।
\v 14 यूसुफ के पास मिस्र और कनान के लोगों का सारा पैसा आ गया था जो अन्न की बिक्री का पैसा था। उसने वह सब पैसा राजा के महल में पहुँचा दिया।
\s5
\v 15 जब मिस्र और कनान के लोगों का पैसा समाप्त हो गया तब वे यूसुफ के पास आ कर कहने लगे, "हमें भोजन दे क्योंकि अन्न के बिना हम मर जाएँगे। हमने अपना सारा पैसा अन्न खरीदने में लगा दिया है। अब हमारे पास कोई पैसा नहीं बचा है!"
\v 16 यूसुफ ने उत्तर दिया, "तुम्हारे पास पैसा नहीं है तो मुझे अपने पशु दे दो। यदि ऐसा करोगे तभी मैं तुम्हारे पशुओं के बदले में तुम्हें अन्न बेचूँगा।"
\v 17 इसलिए वे अपने पशुओं को यूसुफ के पास ले आए। यूसुफ ने उनके घोड़े, भेड़ बकरियाँ, गाय, बैल और गदहे के बदले उन्हें अन्न दिया।
\p
\s5
\v 18 जब वह वर्ष समाप्त हो गया, तो वे अगले वर्ष उसके पास आए और कहा, "हम तुमसे यह छिपा नहीं सकते: हमारे पास और पैसा नहीं है और अब हमारे सारे पशु तेरे पास हैं। अब तुझे देने के लिए हमारे पास केवल हमारे शरीर और भूमि है। हमारे पास कुछ और नहीं बचा है।
\v 19 यदि तू हमें अन्न नहीं देगा तो हम भूख के कारण मर जाएँगे। यदि तू हमें बीज नहीं देगा तो हमारी भूमि किस काम की। हमें और हमारी भूमि लेकर बदले में हमें अन्न दे। इस प्रकार हम राजा के दास बन जाएँगे और हमारी भूमि का स्वामी वही होगा। हमें बीज भी दे कि हम पौधे लगाएं भोजन उगाएं कि मर न जाएँ और हमारी भूमि मरुभूमि न बने।"
\p
\s5
\v 20 तब यूसुफ ने राजा के लिए मिस्र में सभी खेतों को खरीद लिया। भयंकर अकाल के कारण मिस्र के लोगों ने अपनी भूमि बेच दी। उनके पास भोजन खरीदने का कोई और उपाय नहीं था। अतः सभी खेत राजा के हो गए।
\v 21 इसके परिणाम स्वरुप यूसुफ ने देश की एक सीमा से दूसरी सीमा तक के लोगों को राजा का दास बना दिया।
\v 22 लेकिन उसने याजकों की भूमि नहीं खरीदी, क्योंकि उनके लिए राजा की ओर से नियमित रूप से भोजन सामग्री पहुँचाई जाती थी। यही कारण था की उन्होंने अपने खेत नहीं बेचे थे।
\p
\s5
\v 23 यूसुफ ने लोगों से कहा, "आज मैंने तुम्हें और तुम्हारे खेतों को राजा के लिए खरीद लिया है। इसलिए खेती करने के लिए तुम्हें बीज दिया जा रहा है।
\v 24 लेकिन जब तुम फसल काटोगे तुम्हें उसका पाँचवां भाग राजा को देना होगा। शेष फसल तुम्हारे लिए बीज बोने और तुम्हारे परिवार के बच्चों और प्रत्येक के लिए भोजन होगा।"
\s5
\v 25 उन्होंने उत्तर दिया, " तू ने हमारी जान बचाई है। हम तुझे प्रसन्न करना चाहते हैं। हम राजा के दास होंगे।"
\p
\v 26 तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि के लिए एक कानून बना दिया, जिसमें कहा गया था कि फसलों का पाँचवां भाग राजा का होगा। वह कानून आज तक स्थिर है। केवल याजकों की भूमि राजा की भूमि नहीं बनी।
\p
\s5
\v 27 याकूब और उसका परिवार मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगा। वहाँ की भूमि उन्हें मिल गई। वहीं उनकी संताने भी उत्पन्न हुईं और परिणामत: उनकी आबादी बहुत अधिक बढ़ गयी।
\p
\v 28 याकूब 17 वर्ष मिस्र में रहा। कुल मिलाकर वह 147 वर्ष तक जीवित रहा।
\s5
\v 29 जब याकूब का अंतिम समय आ गया तब उसने यूसुफ को बुलाया और उससे कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो मेरी जांघों के बीच अपना हाथ रखकर सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करो कि तू अपने पिता अर्थात मेरे प्रति विश्वासयोग्य रहेगा और जो मैं अब भरोसा करके कह रहा हूँ, वह करेगा: तू मेरे मरने के बाद मुझे मिस्र में दफन मत करना।
\v 30 इसकी अपेक्षा, जब मैं मर कर अपने पूर्वजों में शामिल हो जाऊँ जो पहले मर गए हैं, तब तू मेरे शव को कनान देश ले जाना जहाँ उनकी कब्र है।" यूसुफ ने उत्तर दिया , "मैं वहीं करूँगा जो तू ने कहा है।"
\v 31 याकूब ने कहा, "वचन दे कि तू ऐसा ही करेगा!" तब यूसुफ ने ऐसा करने की शपथ खाई। याकूब अपने बिस्तर पर सिरहाने की ओर झुका और परमेश्वर की आराधना की।
\s5
\c 48
\p
\v 1 इसके कुछ समय बाद, किसी ने यूसुफ से कहा, " तेरा पिता बीमार है।" यह सुन कर यूसुफ मनश्शे और एप्रैम, अपने दोनों पुत्रों को लेकर पिता से मिलने गया।
\v 2 किसी ने याकूब से कहा, " तेरा पुत्र यूसुफ तुझे देखने आया है!" याकूब, (जिसे इस्राएल भी कहा जाता है) ने प्रयास किया और बिस्तर पर बैठ गया, जबकि उसके लिए बैठना बहुत ही कठिन था।
\s5
\v 3 उसने यूसुफ से कहा, "जब मैं कनान के लूज नगर में था तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे दर्शन दिया और मुझे आशीष दी।
\v 4 और मुझसे कहा, 'मैं तुझे अनेक संतान का पिता बनाऊँगा। तेरे वंशज अनगिनत होंगे और वे अनेक समुदाय उत्पन्न करेंगे और मैं यह देश सदा के लिए उन्हें दे दूँगा।'
\p
\s5
\v 5 और अब मैं यह मानता हूँ कि तेरे ये दोनों पुत्र जिनका जन्म यहाँ, मिस्र में मेरे आने से पहले हुआ है, मेरी संतान हैं। एप्रैम और मनश्शे मेरे पुत्र होंगे और वे मेरे उत्तराधिकारी होंगे। ठीक वैसे ही जैसे रूबेन और शिमोन तथा अन्य पुत्र होंगे।
\v 6 यदि इसके बाद तेरे और भी पुत्र जन्में तो वे मेरे पुत्र नहीं पोते होंगे। उन्हें भूमि के बँटवारे के समय अपने भाइयों के वंश में गिना जाएगा और उन्हें विरासत में वही मिलेगा जो भाइयों को मिलेगा।
\v 7 वर्षो पूर्व, जब मैं पद्दनराम से लौट रहा था, तब तेरी माता राहेल का दुखद देहान्त कनान में हो गया था। उस समय हम मार्ग ही में थे जो एप्राता से अधिक दूर नहीं था। मैंने उसे एप्राता के मार्ग में ही दफन कर दिया। (एप्राता को अब बैतलहम कहते हैं।)
\p
\s5
\v 8 जब याकूब ने यूसुफ के पुत्रों को देखा और पूछा, "ये लड़के कौन हैं?"
\v 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, "ये मेरे पुत्र हैं जिन्हें परमेश्वर ने मुझे मिस्र में दिये है।" याकूब ने कहा, "उन्हें मेरे निकट ला कि मैं उन्हें आशीर्वाद दे सकूँ।"
\v 10 याकूब लगभग अँधा हो गया था क्योंकि वह बहुत बूढ़ा था। वह अच्छी तरह से नहीं देख सकता था। यूसुफ अपने पुत्रों को पिता के पास लाया और याकूब ने उन्हें चूमा और गले लगाया।
\s5
\v 11 याकूब ने यूसुफ से कहा, "मुझे तेरा चेहरा फिर से देखने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन देखो परमेश्वर ने न केवल तुझे देखना मेरे लिए संभव बनाया, परन्तु मुझे तेरे बच्चों को भी देखने का अवसर दिया!"
\p
\v 12 यूसुफ ने अपने लड़कों को याकूब के पैरों पर से ऊपर उठाया और यूसुफ ने अपने पिता को झुककर प्रणाम किया।
\v 13 तब यूसुफ अपने दोनों पुत्रों को पिता के पास बुलाया और एप्रैम को याकूब के बाएँ हाथ की ओर और अपनी दाएँ ओर तथा अपने बाएँ हाथ की ओर मनश्शे को याकूब के दाहिने हाथ के समीप बैठाया।
\s5
\v 14 लेकिन याकूब ने वैसा नहीं किया जैसा यूसुफ चाहता था, की वह करे। इसकी अपेक्षा, उसने अपना दाहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा यद्यपि वह छोटा पुत्र था और अपना बायां हाथ मनश्शे के सिर पर रखा यद्यपि मनश्शे बड़ा पुत्र था।
\v 15 तब उसने यूसुफ और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया, "मेरे दादा, अब्राहम और मेरे पिता इसहाक ने परमेश्वर की इच्छानुसार जीवन व्यतीत किया और उन्ही परमेश्वर ने मेरा आज तक चरवाहे के रूप में मेरा मार्गदर्शन किया है। जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों की देख-रेख करता है।
\v 16 जिस स्वर्गदूत को उन्होंने भेजा है, उसने मुझे किसी भी प्रकार की हानि नहीं होने दी।
\q मैं प्रार्थना करता हूँँ कि परमेश्वर इन लड़कों को भी आशीर्वाद दें।
\q मैं प्रार्थना करता हूँँ कि लोग मेरे और मेरे पूर्वज, अब्राहम और इसहाक को याद रखेंगे परमेश्वर ने जो उनके लिए किया है, उसके कारण।
\q मैं प्रार्थना करता हूँँ कि उनके अनगिनत वंशज होंगे जो पूरी पृथ्वी पर निवास करेंगे।"
\p
\s5
\v 17 जब यूसुफ ने देखा कि उसके पिता ने एप्रैम के सिर पर अपना दाहिना हाथ रखा था, मनश्शे के सिर पर नहीं, तो वह दुखी हो गया। इसलिए वह अपने पिता के हाथ को एप्रैम के सिर से मनश्शे के सिर तक ले गया।
\v 18 यूसुफ ने उससे कहा, "मेरे पिता, यह सही नहीं है! जिस पर तू ने अपना बायां हाथ रखा है वह मेरा बड़ा पुत्र है। अपना दाहिना हाथ इसके सिर पर रख।"
\s5
\v 19 परन्तु उसके पिता ने मना कर दिया, "पुत्र, मैं जानता हूँ। मनश्शे का जन्म पहले हुआ है और वह महान होगा। वह बहुत से समुदायों का पिता भी होगा। किन्तु छोटे भाई के वंशज बड़े भाई के वंशजों से बड़े होंगे और छोटे भाई के वंशज अनेक राष्ट्र बनेंगे।"
\v 20 उन्होंने उन दोनों को उसी दिन आशीर्वाद दिया, और कहा, "इस्राएल जाति के लोग तुम दोनों के नाम लेकर लोगों को आशीर्वाद दिया करेंगे। वे कहेंगे, 'हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर तुम्हें एप्रैम और मनश्शे के समान बना दें।" इस प्रकार, याकूब ने कहा कि एप्रैम मनश्शे की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होगा।
\p
\s5
\v 21 तब याकूब ने यूसुफ से कहा, "मैं मरने वाला हूँँ। परन्तु मुझे पता है कि परमेश्वर तेरी सहायता करेंगे। एक दिन वे तेरे वंशजों को तेरे पूर्वजों के देश में ले जाएँगे।
\v 22 तू जो अपने भाइयों से ऊपर है, मैं तुझे शकेम के प्रदेश में उपजाऊ पर्वतीय क्षेत्र देता हूँ। मैंने उस क्षेत्र को एमोरियों से अपनी तलवार और तीर धनुष के द्वारा कब्ज़ा किया है।"
\s5
\c 49
\p
\v 1 याकूब ने अपने सभी पुत्रों को बुलाया और उनसे कहा,
\v 2 "मेरे पास एकत्र हो जाओ कि मैं भविष्य के विषय में तुम्हें बताऊँ। हे मेरे पुत्रों, बात सुनो। मैं तुम्हारा पिता, याकूब हूँँ।
\p
\s5
\v 3 रूबेन, तू मेरा प्रथम पुत्र है। जब मैं जवान और उर्जावान था तब तेरा जन्म हुआ था। जब मैं जवान हुआ तब तू मुझसे उत्पन्न हुआ। तू मेरे शेष पुत्रों से अधिक अभिमानी और बलवन्त है।
\v 4 लेकिन तू समुद्र की लहरों के समान अस्थिर है। इसलिए तू अन्य भाइयों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकेगा क्योंकि तू उस स्त्री के साथ सोया जो तेरे पिता की रखैल थी। जिसके कारण मुझे अर्थात तेरे पिता को लज्जित होना पड़ा था।
\p
\s5
\v 5 शिमोन और लेवी, तुम दोनों भाइयों ने अपराधियों के समान काम किया है। तुम हिंसक कार्य करने के लिए अपनी तलवारों का उपयोग करते हो।
\v 6 तुम जब बुरी योजना बनाते हो तब मैं तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहता। मैं तुम्हारी सभाओं में सम्मान का भागी नहीं बनना चाहता क्योंकि तुम ने क्रोधित हो कर हत्याएँ की हैं और अपने मनोरंजन मात्र के लिए बैलों को चोट पहुँचाई है।
\p
\s5
\v 7 परमेश्वर कहते हैं, 'उनके अत्याधिक क्रोध के लिए मैं उन्हें श्रापित ठहराता हूँ क्योंकि क्रोध में आ कर वे निर्दयी हो गए थे। मैं उनके वंशजों को संपूर्ण इस्राएल में तितर-बितर कर दूँगा।'
\p
\s5
\v 8 यहूदा, तेरे बड़े और छोटे भाई तेरी प्रशंसा करेंगे। वे तेरे सामने झुकेंगे क्योंकि तू अपने शत्रुओं को अच्छी तरह से पराजित करेगा।
\p
\s5
\v 9 यहूदा एक जवान सिंह के समान है जो पशु का मांस खा कर संतोष से अपनी मांद में आ गया है। वह एक सिंह के सदृश्य है जो शिकार खा कर विश्राम करता है और उसके पास जाने का साहस किसी में नहीं होता।
\p
\s5
\v 10 यहूदा के वंशजों में हमेशा एक शासक होगा और उनमें से हर एक राजदंड पकड़ेगा यह दिखने के लिए कि उसके पास राजा के समान अधिकार है। वह ऐसा तब तक करेगा जब तक राष्ट्र उसकी आज्ञा का पालन न करें और उसकी स्तुति न करें।
\p
\s5
\v 11 उसके वंशजों के दाख के बागों में बहुत पैदावार होगी। परिणामस्वरूप वे उनमें युवा गदहों को बांधने पर आपत्ति नहीं जताएँगे और गदहे दाखलता की पत्तियाँ खायेंगे। उनके दाखो की फसल इतनी अधिक होगी कि वे उसके रस में अपने वस्त्र धोयेंगे। वे अपने वस्त्र दाखमधु में धोयेंगे जो रक्त के समान लाल रंग का होगा।
\v 12 बहुत अधिक दाखमधु पीने के कारण उनकी आँखें लाल होंगी, लेकिन गायों से दूध पीने के कारण उनके दाँत बहुत सफेद होंगे।
\p
\s5
\v 13 जबूलून, तेरे वंशज समुद्र तट पर वास करेंगे जहाँ जहाजों के लिए सुरक्षित बंदरगाह होंगे। उनका देश उत्तर दिशा में सीदोन तक फैल जाएगा।
\p
\s5
\v 14 इस्साकार, तेरे वंशज बलशाली गधों के समान होंगे जो भेड़ों के दो झुंडों के मध्य लेटते हैं। और इतने थके हुए होते हैं कि खड़े नहीं हो सकते।
\v 15 वे देखेंगे कि उनका विश्राम स्थान अच्छा है और उनकी भूमि उन्हें प्रसन्न कर देगी। लेकिन वे भारी बोझ उठाने के लिए झुकेंगे। और दूसरों के लिए परिश्रम करने के लिए विवश किए जाएँगे।
\p
\s5
\v 16 दान, यद्यपि तेरा गोत्र छोटा होगा परन्तु उसके अगुवे इस्राएल के अन्य गोत्रों के अगुवों के समान उनके लोगो पर शासन करेंगे।
\v 17 तेरे वंशज मार्ग के किनारे के विषैले साँपो के समान होंगे। जो आने जाने वाले घोड़ो के पैरों को डसेंगे की उनके सवार पीछे की ओर गिर पड़े और घोड़े डंसे हुए पैरों से आगे बढ़ जाएं।"
\p
\v 18 तब याकूब ने प्रार्थना की, "हे यहोवा, मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि आप आ के मुझे शत्रुओं से बचाएं।"
\p
\s5
\v 19 तब याकूब अपने पुत्रों को भविष्य के विषय में बताता गया। उसने कहा, "गाद, तेरे गोत्र पर लुटेरे आक्रमण करेंगे परन्तु तेरा गोत्र उनका पीछा करके उन पर वार करेगा।
\p
\v 20 आशेर, तेरे वंशज स्वादिष्ट भोजन खायेंगे। वे भोज्य सामग्री उपजाएंगे ऐसा भोजन जो राजाओं के खाने के लिए पर्याप्त स्वादिष्ट होता है।
\p
\v 21 नप्ताली, तेरे वंशज स्वतंत्र दौड़ने वाले हिरण के समान होंगे, हिरण जिनके पास खूबसूरत बच्चे होते हैं।
\p
\s5
\v 22 यूसुफ तेरे वंशज अनगिनत होंगे। तेरी संतान जल के स्रोत के निकट लगाई गई दाखलता के फलों के समान अनगिनत होगी, जिनकी शाखाएँ दीवार पर फैली हुई होंगी।
\v 23 शत्रु उन पर हमला करेंगे, और तीर धनुष से छोड़कर उनका पीछा करेंगे।
\s5
\v 24 लेकिन मेरे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामर्थ से उनके धनुष दृढ़ रहेंगे और उनकी भुजाएँ ताकतवर रहेंगी, क्योंकि यहोवा ही मेरे मार्गदर्शक और पालनहार हैं। वैसे ही जैसे चरवाहा अपनी भेंड़ो का मार्गदर्शक और पालनहार होता है। इस्राएल के लोग यहोवा से रक्षा करने के लिए कहेंगे, जैसे लोग एक ऊँची चट्टान के शिखर पर शरण लेते हैं।
\p
\s5
\v 25 जिन परमेश्वर की मैं आराधना करता हूँ, वे तेरे वंशजों के साथ होंगें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन्हें आकाश से वर्षा भेज कर आशीषित करेगें और उन्हें भूगर्भ का जल देगें। वह उन्हें अनेक संतान देकर पालन भी करेगें।
\p
\s5
\v 26 मैं तेरे लिए परमेश्वर से जो आशीष मांगता हूँ, वे आशीषे महान हैं। वे पहाडों से आने वाली आशीषों से और पर्वतों की आशीषों से भी अधिक महान है। उस शाश्वत पर्वत से आने वाली आशीषे भी महान हैं, यूसुफ मैं प्रार्थना करता हूँ कि ये आशीषे तुझे मिले क्योंकि तू ने अपने भाइयों का नेतृत्व किया है।
\p
\s5
\v 27 बिन्यामीन, तेरे वंशज खूंखार भेड़ियों के समान होंगे। सुबह के समय वे अपने शत्रुओं को ऐसा मारेंगें जैसे भेड़िया अपना शिकार फाड़ता है और शाम को वे अपने शत्रुओं से योद्धाओं द्वारा छिनकर लायी गई बची हुई लूट को बाटेंगे।"
\p
\s5
\v 28 वे बारह पुत्र इस्राएल के बारह गोत्रों के पूर्वज हैं। उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद देते समय प्रत्येक से उसके लिए उपयुक्त वचन कहे।
\p
\v 29 तब याकूब ने अपने पुत्रों से कहा, "मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और अपने पूर्वजों में शामिल हो जाऊँगा जो पहले से ही मर चुके हैं। मेरे शरीर को हित्ती एप्रोन से खरीदी गई गुफा में दफनाना जहाँ मेरे पूर्वजों को दफनाया गया था।
\v 30 मकपेला का खेत मेम्रे के पूर्व में है जो कनान देश है। अब्राहम ने उसे एप्रोन से खरीदा था कि वह दफन स्थल हो।
\s5
\v 31 वहीं अब्राहम और उसकी पत्नी को दफन किया गया था। वहीं मेरे पिता इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को रखा गया था। वहीं मैंने अपनी पत्नी लिआ के शरीर को दफनाया था।
\v 32 वह खेत और वह गुफा हित्तियों से खरीदी गई थी। मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे भी वहीं दफनाओ।"
\p
\v 33 अपने पुत्रों को ये निर्देश देकर वह अपने बिस्तर पर लेट गया और प्राण त्याग दिए।
\s5
\c 50
\p
\v 1 यूसुफ अपने पिता के मुँह पर गिर कर रोया और उसे चूमा।
\v 2 यूसुफ ने अपने सेवकों को जो शव दफन करने की तैयारी कर रहे थें आज्ञा दी कि उसके पिता के शव में सुगंध द्रव्य लगाये।
\v 3 याकूब के शव में सुगंध द्रव्य लगाने में चालीस दिन लगे क्योंकि उस काम में चालीस दिन ही लगते थे। मिस्र के लोग याकूब की मृत्यु के शोक में सत्तर दिनों तक रोये।
\s5
\v 4 जब शोक का समय समाप्त हो गया, तब यूसुफ ने राजा के अधिकारियों से कहा, "यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो कृपया यह संदेश राजा को दे:
\v 5 'जब मेरे पिता मरने वाले थे तो उन्होंने मुझे शपथ दी थी कि मैं उनके शरीर को कनान देश में ही दफन करूँ, उसी कब्र में जिसे उन्होंने स्वयं तैयार किया था। अतः कृपया मुझे कनान जाने दे ताकि मैं अपने पिता के शरीर को दफन सकूँ। दफन करने के बाद मैं वापस आ जाऊँगा।'"
\p
\v 6 राजा को जब यूसुफ का सन्देश मिला तब राजा ने उत्तर दिया, "जा और अपने पिता को दफन करके अपना वचन पूरा कर।"
\s5
\v 7 तब यूसुफ अपने पिता को दफनाने के लिए कनान गया। राजा के सभी अधिकारी, राजा के सभी सलाहकार, और मिस्र के सभी बुजुर्ग उसके साथ गए।
\v 8 उसके परिवार छोटे संतान और उनकी भेड़, बकरियाँ और उनके पशु गोशेन में ही रहे। लेकिन यूसुफ का परिवार, उसके भाई और उसके पिता का परिवार उसके साथ गया।
\v 9 रथों और घोड़ों पर सवार लोग भी उसके साथ गए। यह बहुत बड़ा समूह था।
\p
\s5
\v 10 वे यरदन नदी के पूर्व की ओर आताद पहुँचे। वहाँ एक स्थान था जहाँ लोग अन्न दांवते थे, गेहूँ के दानों को पुआल से अलग करने के लिए। वहाँ यूसुफ ने याकूब के लिए सात दिनों तक शोक समारोह का आयोजन करवाया।
\v 11 उनको शोक करते देख कनानियों ने कहा, "यह मिस्रियों का कोई भारी शोक प्रतीत होता है और उस स्थान का नाम आबेलमिस्रैम रखा गया है जिसका अर्थ है, 'मिस्रियों का शोक"।
\p
\s5
\v 12 इसके पश्चात याकूब के पुत्रों ने याकूब की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया।
\v 13 वे यरदन नदी पार कर याकूब के शरीर को कनान देश में ले गए। उन्होंने इसे मम्रे नगर के पूर्व में मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा मम्रे के निकट उस खेत में थी जिसे अब्राहम ने हित्ती एप्रोन से खरीदा था।
\p
\v 14 अपने पिता को दफन करने के बाद यूसुफ अपने भाइयों और उसके साथ कनान गये हुए सब लोगों के साथ लौट आया।
\p
\s5
\v 15 याकूब की मृत्यु के बाद, यूसुफ के भाई चिंतित हो गए। उन्होंने अनुभव किया कि आगे क्या हो सकता है। उन्होंने कहा, "यदि यूसुफ के मन में हमारे लिए घृणा है और वह वर्षों पूर्व के हमारे बुरे कामों का बदला लेना चाहे तो क्या होगा?"
\v 16 इसलिए उन्होंने यूसुफ के पास सन्देश भिजवाया, "हमारे पिता ने मरने से पहले हमसे कहा था:
\v 17 'यूसुफ से कहना, कृपया अपने भाइयों को तेरे साथ की गई बुराई की क्षमा प्रदान कर दे, तेरे विरूद्ध किये गये उनके उस भयानक पाप को क्योंकि उन्होंने तेरे साथ जो किया वह अनुचित था।' इसलिए अब हम जो तेरे पिता परमेश्वर के दास हैं, तुझसे प्रार्थना करते हैं कि उस अपराध को क्षमा कर दे जो हम ने तेरे साथ किया था।" उनका सन्देश पा कर यूसुफ रोया।
\s5
\v 18 तब यूसुफ के भाई उसके सामने गए और झुककर प्रणाम किया। उन्होंने कहा, "हम लोग तेरे दास बन जाएंगे।"
\v 19 परन्तु यूसुफ ने उन्हें उत्तर दिया, "डरो मत क्योंकि दण्ड देने वाले परमेश्वर हैं। क्या मैं परमेश्वर हूँ?
\v 20 तुम तो मेरे साथ बुराई ही करना चाहते थे परन्तु परमेश्वर ने उस में भी भलाई उत्पन्न की। वह अनगिनत लोगों को भूख से मरने से बचाना चाहते थे और ऐसा ही हुआ। आज वे जीवित हैं!
\v 21 मैं फिर से कहता हूँँ, डरो मत! मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि तुम और तुम्हारे बच्चों के पास खाने के लिए पर्याप्त हो।" इस प्रकार यूसुफ ने उन्हें विश्वास दिलाया।
\p
\s5
\v 22 यूसुफ अपने पिता के परिवार के साथ मिस्र में 110 वर्ष की आयु तक रहा।
\v 23 वह एप्रैम के पुत्रों और पोतों को देखने तक जीवित रहा। मनश्शे के पुत्र माकीर जो यूसुफ का पोता था उस की संतान यूसुफ के मरने से पहले पैदा हो गई थी और उन्हें यूसुफ के वंशजों के रूप में जाना गया।
\s5
\v 24 एक दिन यूसुफ ने अपने बड़े भाइयों से कहा, "मैं तो मरने वाला हूँ परन्तु परमेश्वर निश्चय ही तुम्हारी सहायता करेगें। एक दिन वे तुम्हारे वंशजों को अवश्य यहाँ से निकाल कर कनान ले जाएगें। जिसकी प्रतिज्ञा उन्होंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की थी कि वे उन्हें वह देश देगें।"
\v 25 तब यूसुफ ने कहा, "जब परमेश्वर तुझे इसमें सक्षम बनाएँ तब तुम मेरा शरीर यहाँ से कनान ले जाना।" उसने अपने बड़े भाइयों को ऐसा करने की ईमानदारी से शपथ दिलाई।
\p
\v 26 यूसुफ मिस्र में मरा, तब वह एक सौ दस वर्ष का था। उसके शव को सुगंध द्रव्यों से लपेट कर मिस्र में एक सन्दूक में रखा गया।

2039
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\toc1 निर्गमन
\toc2 निर्गमन
\toc3 exo
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\s5
\c 1
\p
\v 1 ये याकूब के पुत्र थे (ये सब याकूब, उनके पिता और अपने परिवारों के साथ मिस्र देश गए थे)। याकूब के पुत्रों के नाम ये हैं:
\v 2 रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा,
\v 3 इस्साकर, जबूलून, बिन्यामीन,
\v 4 दान, नप्ताली, गाद, आशेर।
\v 5 कुल मिलाकर, सत्तर लोग याकूब के साथ गए थे। उसका बेटा यूसुफ पहले से ही मिस्र में था।
\p
\s5
\v 6 कुछ समय बाद, यूसुफ, उसके भाई और उस पीढ़ी के सभी लोग मर गए।
\v 7 लेकिन याकूब के वंशजों की बहुत सन्तान उत्पन्न हुईं। उनके वंशजों की संख्या बढ़ती ही गई। और परिणाम यह हुआ कि मिस्र देश इन लोगों से भर गया।
\s5
\v 8 कई सालों बाद मिस्र में एक नया राजा राज करने लगा। वह मिस्र के लोगों के लिए यूसुफ के द्वारा किए गए अच्छे कामों के बारे में नहीं जानता था।
\v 9 उसने अपने लोगों से कहा, "इस्राएल के लोगों को देखो, इनकी संख्या अत्यधिक है। ये लोग इतने अधिक और शक्तिशाली हो गए हैं कि वे हमारे लिए संकट का कारण हो सकते है!
\v 10 हमें उनको वश में रखने की एक योजना बनानी होगी! यदि हम ऐसा नहीं कर पाए तो वे हमसे अधिक हो जाएँगे। फिर, यदि शत्रु हम पर आक्रमण करें तो इस्राएली हमारे शत्रुओं के साथ हो जाएँगे और हमारे विरूद्ध युद्ध करेंगे, और वे लोग हमारे देश से निकल जाएँगे।"
\p
\s5
\v 11 तब राजा और उसके मंत्रियों ने इस्राएलियों पर स्वामी नियुक्त किए कि उनसे कठोर परिश्रम करवा कर उन्हें कष्ट दें। उन्होंने इस्राएलियों को राजा के लिए सामान एकत्र करने के किए दो शहरों का निर्माण करवाया। उन शहरों को पितोम और रामसेस नाम दिया गया।
\v 12 परन्तु जितना अधिक उन्होंने इस्राएली लोगों से बुरा व्यवहार किया, उतना ही इस्राएली लोग बढ़ते गए और वे इतने अधिक हो गए कि वे संपूर्ण देश में भर गए। इसलिए मिस्र के लोग इस्राएलियों से डरने लगे।
\s5
\v 13 उन्होंने इस्राएलियों से बहुत कठोर परिश्रम करवाया।
\v 14 दासत्व के जीवन से इस्राएली बहुत दु:खी थे। उन्हें गारे और ईंटों के साथ कई इमारतों का निर्माण करना पड़ा। उन्हें खेतों में भी काम करना पड़ा। उनके मिस्र के स्वामियों ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया।
\p
\s5
\v 15 वहाँ शिप्रा और पूआ नाम की दो दाइयाँ थी। मिस्र के राजा ने उन दोनों दाइयों से कहा,
\v 16 “जब तुम इब्री स्त्रियों को उनके बच्चों को जन्म देने में सहायता करो तो, यदि बच्चा लड़का है, तो तुमको उसे मारना है। अगर बच्चा एक लड़की है तो तुम उसे जीवित रहने दे सकती हो।”
\v 17 परन्तु दाइयों को डर था कि अगर वे राजा की आज्ञा मानती है तो परमेश्वर उन्हें दण्ड देंगे। इसलिए उन्होंने राजा की आज्ञा का पालन नहीं किया। उन्होंने लडकों को भी जीवित रहने दिया।
\s5
\v 18 उनका यह व्यवहार देख कर राजा ने उन्हें बुला कर पूछा, “क्या कारण है कि तुम इब्री लडकों को जीवित रहने देती हो?”
\v 19 उन धाइयों में से एक ने राजा को उत्तर दिया, “इब्री स्त्रियों और मिस्री स्त्रियों में बहुत अन्तर है। उनमें शारीरिक फुर्ती है। इससे पहले कि हम उनके पास पहुँचे वे बच्चे को जन्म दे चुकी होती है।”
\p
\s5
\v 20 इसलिए परमेश्वर ने धाइयों पर कृपा-दृष्टी रखी।
\v 21 धाइयों को परमेश्वर का भय था इसलिए परमेश्वर ने उनको उनकी-अपनी संतान दी।
\p
\v 22 तब राजा ने मिस्र के सब लोगों को आज्ञा दी, “तुम जन्म लेनेवाले प्रत्येक इब्री पुत्र को नील नदी में फेंक दो! हालांकि, सभी बेटियों को जीवित रहने दे सकते हो।”
\s5
\c 2
\p
\v 1 उनमें याकूब के पुत्र, लेवी के परिवार का एक व्यक्ति वहाँ था। उसने लेवी के परिवार की ही एक स्त्री से विवाह किया।
\v 2 वह स्त्री गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जब उसने देखा कि वह एक स्वस्थ बच्चा है तो उसने उसे तीन महीने तक छिपाकर रखा क्योंकि वह राजा के आदेश के अनुसार करने को तैयार नहीं थी।
\s5
\v 3 जब उसे छिपाना असंभव हो गया तो वह लंबे सरकंडों से बनी एक टोकरी लाई। उसने टोकरी पर तारकोल लगाया ताकि वह जल में तैर सके। तब उसने बच्चे को टोकरी में रखा और टोकरी को जल में छोड़ दिया। बच्चे को नील नदी के किनारे ऊँचे-ऊँचे सरकंडों के बीच रखा गया था।
\v 4 उसकी बड़ी बहन निकट ही छिप कर खड़ी थी कि देखे बच्चे के साथ क्या होगा।
\p
\s5
\v 5 उसी समय राजा की पुत्री नदी में स्नान करने के लिए आई। उसकी दासियाँ नदी के किनारे टहलने गई। राजा की पुत्री ने टोकरी को नदी में ऊंचे सरकंडों में देखा। उसने अपनी एक दासी को उसे लाने के लिए भेजा।
\v 6 जब दासी टोकरी लेकर आई और राजा की पुत्री ने उसे खोला तब रोते हुए एक बच्चे को देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुई। वह उसके लिए उदास हुई और कहा, “निश्चय ही यह इब्री बच्चा है।”
\p
\s5
\v 7 तब बच्चे की बड़ी बहन राजा की पुत्री के पास आई और कहा, “क्या तू चाहती है कि मैं इस बच्चे के लिए एक इब्री स्त्री की खोज करूँ कि वह तेरे लिए इस बच्चे को दूध पिला कर इसकी देख-रेख करे?”
\v 8 राजा की पुत्री ने उससे कहा, “हाँ, जा और ढूंढ़।” तो लड़की चली गई और बच्चे की माँ को लेकर आई।
\s5
\v 9 राजा की पुत्री ने माँ से कहा, “इस बच्चे को ले जा और मेरे लिए इसे पाल। इस बच्चे को अपना दूध पिला मैं तुझे वेतन दूँगी।” तो बच्चे की मां ने उसे ले लिया और उसका पालन पोषन किया।
\v 10 कई सालों बाद, जब वह बालक बड़ा हुआ तब वह उसे राजा की पुत्री के पास ले गई। राजा की पुत्री ने उसे गोद लेकर अपना पुत्र बना लिया और उसका नाम मूसा रखा जिसका अर्थ है “पानी से बाहर निकाला हुआ” क्योंकि उसने कहा, “मैंने इसे जल में से निकाला है।”
\p
\s5
\v 11 मूसा बड़ा होने के बाद एक दिन अपने लोगों, अर्थात इब्री लोगों को देखने के लिए महल से बाहर गया। उसने देखा कि उन्हें कितना परिश्रम करना पड़ रहा है। उसने देखा कि एक मिस्री व्यक्ति एक इब्री व्यक्ति को मार रहा है।
\v 12 उसने चारों ओर देखा कि कोई देख रहा है या नहीं। किसी को देखता नहीं पाकर मूसा ने मिस्री को मार डाला और उसे रेत में गाड़ दिया।
\p
\s5
\v 13 अगले दिन मूसा फिर उसी स्थान में गया। वहाँ उसने दो इब्रियों को आपस में मारपीट करते देखा। मूसा ने उस व्यक्ति से जिसकी गलती थी, कहा, “तू अपने इब्री साथी को क्यों मार रहा है?”
\v 14 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “तुझे हमारे बीच शासक और न्यायाधीश किसने बनाया? क्या तू मुझे भी उस मिस्री के समान मार डालना चाहता है जिसकी तूने कल हत्या की थी?” यह सुन कर मूसा डर गया क्योंकि उसने सोचा, “यदि इसे यह बात पता है तो और लोगों को भी इसके बारे में पता चल गया होगा।”
\p
\s5
\v 15-16 जब राजा ने सुना कि मूसा ने एक मिस्री व्यक्ति को मार डाला है तो उसने अपने सैनिकों को मूसा को मारने का आदेश दिया। लेकिन मूसा मिस्र छोड़कर भाग गया। वह पूर्व दिशा में मिद्यान देश चला गया और वहाँ रहने लगा। वहाँ के याजक का नाम यित्रो था। उसकी सात पुत्रियाँ थी। एक दिन मूसा वहाँ एक कुएँ के पास बैठा था। वहाँ उस याजक की सातों पुत्रियाँ आई कि कुएँ से जल निकाल कर अपने पिता की भेड़-बकरियों को पिलाने के लिए नांद में भरें।
\v 17 परन्तु वहाँ कुछ चरवाहे आए और उन लडकियों को भगाने लगे। मूसा ने लड़कियों की सहायता की और उनकी भेड़ों के लिए जल निकाला।
\s5
\v 18 जब लड़कियाँ अपने पिता यित्रो के पास लौट कर आई, जिसको रूएल भी कहा जाता था, तो उसने उनसे पूछा, “आज तुम भेड़ बकरियों को जल पिला कर इतनी जल्दी कैसे लौट आई हो?”
\v 19 उन्होंने उत्तर दिया, “मिस्र से आए एक व्यक्ति ने चरवाहों को दूर करके जल निकालने में हमारी सहायता की और भेड़-बकरियों को जल पिलाया।”
\p
\v 20 उसने अपनी पुत्रियों से कहा, “वह कहाँ है? तुमने उसे वहाँ क्यों छोड़ा? उसे घर आमंत्रित करती कि वह कुछ भोजन करे!”
\s5
\v 21 पुत्रियों ने ऐसा ही किया और मूसा ने उनके साथ भोजन किया। मूसा ने वहाँ रहने का निर्णय लिया। बाद में, यित्रों ने अपनी पुत्री सिप्पोरा का विवाह मूसा के साथ कर दिया।
\v 22 बाद में उसने एक पुत्र को जन्म दिया, और मूसा ने अपने उस पुत्र का नाम गेर्शोन रखा, जिसका अर्थ है, “परदेशी”, क्योंकि मूसा ने कहा, “मैं एक विदेशी इस देश में निवास कर रहा हूँ।”
\p
\s5
\v 23 कुछ वर्षों बाद मिस्र का वह राजा मर गया। परन्तु मिस्र में इस्राएली दास होने के कारण परिश्रम के बोझ से दब कर रो रहे थे। उन्होंने किसी को सहायता के लिए पुकारा, और परमेश्वर ने उन्हें सुना।
\v 24 जब परमेश्वर ने उन्हें रोते हुए देखा तो उन्होंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की गई अपनी प्रतिज्ञा को याद किया।
\v 25 इस्राएली लोगों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार को देखकर परमेश्वर ने उनकी सहायता करने का विचार किया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 एक दिन मूसा मिद्यानी याजक, अपने ससुर यित्रों की भेड़ बकरियों को जंगल में चरा रहा था। उन्हें चराते-चराते वह होरेब पर्वत पर गया।
\v 2 उस पर्वत पर परमेश्वर ने स्वर्गदूत के रूप में एक जलती हुई झाड़ी में मूसा को दर्शन दिया। जब मूसा ने उस झाड़ी को देखा कि वह झाड़ी आग से जल तो रही थी परन्तु भस्म नहीं हो रही थी।
\v 3 मूसा ने सोचा, “मैं निकट जाकर इस विचित्र दृश्य को देखूंगा हूँ। यह झाड़ी आग में जलकर भस्म क्यों नहीं हो रही है?”
\p
\s5
\v 4 यहोवा ने मूसा को झाड़ी के निकट आते देखा, तो उन्होंने मूसा से कहा, “मूसा, मूसा!” मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं यहाँ हूँ।”
\v 5 परमेश्वर ने कहा, “झाड़ी के निकट मत आ! क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ, जिस भूमि पर तू खड़ा है, वह मेरी है। इसलिए मेरे सम्मान में अपने जूते उतार दे।”
\v 6 परमेश्वर ने कहा, “मैं परमेश्वर हूँ, मैं तेरे पूर्वज अब्राहम, इसहाक और याकूब का पूजनीय परमेश्वर हूँ।” मूसा डर गया था कि अगर वह परमेश्वर को देखेगा तो परमेश्वर उसे मार डालेंगे इसलिए वह पीछे मुड़ गया।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने कहा, “मैंने देखा है कि मिस्र में मिस्रियों ने मेरे लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया है। मैंने सुना है कि दासों के सरदार उनके साथ क्या कर रहे है। मुझे ज्ञात है कि मेरे लोग कैसे पीड़ित हो रहे है।
\v 8 इसलिए मैं उनको मिस्रियों से मुक्ति दिलाने के लिए स्वर्ग से उतर आया हूँ। मैं उन्हें एक उत्तम और विशाल देश में ले जाऊँगा। एक ऐसी भूमि में जहाँ वे अपने लिए फसलों का उत्पादन कर सकते हैं और अधिक पशुओं को पाल सकते हैं। यह वही स्थान है जहाँ कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी रह रहे है।
\s5
\v 9 यह सच है कि मैंने अपने इस्राएली लोगों को रोते हुए सुना है। मैंने देखा है कि मिस्र के लोग उनके साथ कैसा बुरा व्यवहार करते है।
\v 10 इसलिए मैं तुझे मिस्र के राजा के पास भेज रहा हूँ। तू मेरे इस्राएली लोगों को मिस्र से निकाल कर ले जाने में उनकी अगुवाई करेगा।”
\p
\s5
\v 11 परन्तु मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं अपने लोगों को मिस्र से बाहर लाने के लिए राजा के पास जाने के योग्य नहीं हूँ।”
\v 12 परमेश्वर ने कहा, “मैं अपने लोगों को मिस्र से निकालने में तेरे साथ रहूंगा। जब तू उन्हें मिस्र से निकाल कर लाएगा तब तुम लोग इसी पर्वत पर, ठीक इसी स्थान पर, मेरी आराधना करना। इससे प्रकट होगा कि मैंने ही तुझे उनके पास भेजा था।"
\p
\s5
\v 13 मूसा ने परमेश्वर से कहा, “यदि मैं इस्राएलियों के पास जाकर कहूँ, ‘तुम्हारे पूर्वजों के पूजनीय परमेश्वर ने मुझे भेजा है, तो वे मुझसे पूछेंगे, ‘उनका नाम क्या है? तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगा?"
\v 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं जो हूँ वह हूँ। इस्राएलियों से कहना कि “मैं हूँ” ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।"
\p
\v 15 परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “आवश्यक है कि तू इस्राएलियों से कहे, ‘तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर, जिनकी आराधना अब्राहम, इसहाक और याकूब ने की, उन्ही ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। मेरा सदाकालिन नाम यहोवा है। और तुम्हारी सब पीढ़ियाँ मुझे इसी नाम से जानेंगी।'
\s5
\v 16 मिस्र जा और बुजुर्गों को एकत्र कर। उनसे कह, ‘यहोवा, जिस परमेश्वर की अब्राहम, इसहाक और याकूब ने आराधना की थी, उस परमेश्वर ने मुझे दर्शन देकर कहा है, 'तुम पर हो रहे मिस्रियों के अत्याचार को मैंने देखा है।
\v 17 मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुम्हें मिस्र के इस अत्याचार से मुक्ति दिलाऊँगा और तुम्हें कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों के देश में ले जाऊँगा। वह एक अति उत्तम स्थान है जहाँ तुम लोग अच्छी फसल उगा पाओगे और पशु पालन भी कर पाओगे।'
\v 18 इस्राएली बुजुर्ग वहीं करेंगे जो तू उनसे कहेगा। तब तू और बुजुर्ग मिस्र के राजा के पास जाओगे और तुम उससे कहोगे, ‘इब्री लोगों का परमेश्वर यहोवा है। हमारे परमेश्वर हम लोगों के पास आए थे। उन्होंने हम लोगों से तीन दिन तक मरूभूमि में यात्रा करने के लिए कहा है कि हम यहोवा, हमारे परमेश्वर के लिए बलियाँ चढ़ा सकें।'
\s5
\v 19 लेकिन मैं जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम्हें तब ही जाने देगा जब वह देखेगा कि उसके पास कोई अन्य मार्ग नहीं है।
\v 20 इसलिए मैं अपनी शक्ति का उपयोग करके वहाँ कई चमत्कार करूँगा। फिर वह तुम लोगों को जाने देगा।
\v 21 और जब ऐसा होगा तब मैं अपने लोगों को मिस्रियों में सम्मान के योग्य बनाऊँगा कि जब वे वहाँ से निकलें तब वे उन्हें यात्रा के लिए आवश्यक सामान दें।
\v 22 उस समय, प्रत्येक इब्री स्त्री अपने पड़ोस में रहने वाली मिस्री स्त्रीयों के सामने अपनी मांग रखेगी। मिस्र के लोग तुमको अपने चाँदी और सोने के गहने और कपड़े देंगे। तुम इन वस्तुओं को अपने बच्चों को पहनाना। इस प्रकार तुम मिस्र के लोगों से सब कुछ ले लोगे। “
\s5
\c 4
\p
\v 1 मूसा ने परमेश्वर से कहा, “यदि मैं इस्राएल के लोगों से कहूँ कि आपने मुझे भेजा है और वे मुझ पर विश्वास नहीं करें और मेरी बात नहीं सुनें, तो मैं क्या करूँगा? यदि वे कहें, ‘यहोवा तुझे दर्शन नहीं दिख, तो मुझे क्या करना होगा?'
\v 2 यहोवा ने उससे कहा, “तेरे हाथ में क्या है?” मूसा ने उत्तर दिया, “एक लाठी।”
\v 3 यहोवा ने कहा, “इसे भूमि पर फेंक दे!” मूसा ने लाठी को भूमि पर फेंक दिया और वह साँप बन गई। मूसा उससे डरकर भागा।
\s5
\v 4 परन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “साँप को उसकी पूंछ पकड़ कर उठा।” मूसा ने सांप की पूंछ पकड़ कर उठाया और साँप फिर से उसके हाथ में लाठी बन गया।
\p
\v 5 यहोवा ने कहा, “इस्राएलियों के सामने यही करना कि वे विश्वास कर सकें कि मैं, यहोवा, वही परमेश्वर हूँ जिसकी आराधना अब्राहम, इसहाक और याकूब करते थे, उसी ने तुझे वास्तव में दर्शन दिया है।”
\p
\s5
\v 6 यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ अपने वस्त्र में डाल।” मूसा ने अपना हाथ अपने वस्त्र में डाला। जब वह अपना हाथ बाहर लाया तो उसके हाथ को एक ऐसी बीमारी लगी जिसने उसकी हाथ की त्वचा को बर्फ के समान सफ़ेद कर दिया।
\v 7 तब यहोवा ने कहा, “अपना हाथ फिर से अपने वस्त्र में डाल।” मूसा ने अपना हाथ फिर से अपने वस्त्र में डाला। इस बार जब हाथ बाहर निकला तो वह रोग से ठीक हो गया। यह हाथ उसके दूसरे हाथ की समान दिया रहा था।
\s5
\v 8 यहोवा ने कहा, “तू इस्राएली लोगों के सामने यह भी कर सकता है। यदि वे पहले चमत्कार को देखने के बाद तुझ पर विश्वास नहीं करें तो वे तेरा दूसरा चमत्कार देखते ही तेरा विश्वास करेंगे।
\v 9 परन्तु यदि वे इन दोनों चमत्कारों को देख कर भी तुझ पर विश्वास न करें और तेरी बात न मानें तो नील नदी से कुछ जल को लेकर भूमि पर डाल देना तो वह जल भूमि पर गिरते ही रक्त बन जाएगा।"
\p
\s5
\v 10 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “हे परमेश्वर, मैं लोगों से बात करने में कभी अच्छा नहीं रहा हूँ। मैं आपसे अभी भी अटक-अटक कर बोल रहा हूँ। मैं धीरे-धीरे बोलता हूँ और मैं नहीं जानता कि क्या कहूं।”
\v 11 तब यहोवा ने उससे कहा, “किसने मनुष्य का मुंह बनाया? वे कौन है जो मनुष्य को बोलने, सुनने या देखने योग्य बनाता है? क्या वह मैं यहोवा नहीं हूँ?
\v 12 तो अब जा और मैं तुझे बोलने में सहायता करूँगा। मैं तुझे बताऊँगा कि क्या कहना है। “
\v 13 परन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “हे परमेश्वर, मेरा आपसे निवेदन है कि मेरे स्थान में किसी और को भेज दें!”
\p
\s5
\v 14 इस पर यहोवा मूसा से क्रोधित हुआ और कहा, “तेरे भाई लेवी हारून के बारे में क्या विचार है? उसकी बोली तो स्पष्ट है। वह इसी ओर आ रहा है और तुझसे भेंट करके अति प्रसन्न होगा।
\v 15 तू उससे इसकी चर्चा कर। मैं तुम दोनों को बताऊँगा कि क्या करना है।
\v 16 वह तेरी ओर से इस्राएलियों से बात करेगा। वह तेरा मुँह होगा, और वह तुझे मेरे समान मानेगा।
\v 17 अपने साथ यह लाठी जो तेरे हाथ में है अवश्य रखे रहना क्योंकि इसके द्वारा तू चमत्कार दिखाएगा।"
\p
\s5
\v 18 मूसा अपने ससुर यित्रो के पास गया और उससे कहा, “मुझे मिस्र में अपने लोगों के पास वापस जाने दे कि मैं जान सकू कि वे जीवित है या नहीं।” यित्रो ने मूसा से कहा, “जा, परमेश्वर तुझे शान्ति दें।”
\p
\v 19 यहोवा ने मिद्यान में मूसा से कहा, “मिस्र वापस जा क्योंकि जो लोग तेरी खोज में थे वे अब मर चुके है।"
\v 20 तब मूसा ने अपनी पत्नी और पुत्रों को ले लिया और उन्हें एक गधे पर बिठाकर मिस्र वापस चला गया। उसने परमेश्वर के कहे अनुसार अपनी लाठी को अपने हाथ में रख लिया।
\p
\s5
\v 21 यहोवा ने मूसा से कहा, “जब तू मिस्र पहुँच जाए तब उन सब आश्चर्यकर्मों को राजा के सामने दिखाना जिनकी शक्ति मैंने तुझे दी है। परन्तु मैं उसका हृदय कठोर कर दूँगा और वह इस्राएलियों को मिस्र से जाने नहीं देगा।
\v 22 तब उससे कहना, ‘यहोवा कहते हैं, इस्राएल मेरे पहले पुत्र के समान है।
\v 23 मैं तुझ से कहता हूँ, “मेरे पुत्र को मेरी आराधना के लिए जाने दे। परन्तु तूने मेरे पुत्र को जाने नहीं दिया इसलिए मैं तेरे पहले पुत्र को मारूंगा! ‘”
\p
\s5
\v 24 एक रात जब मूसा अपने परिवार के साथ मिस्र के मार्ग पर था तब यहोवा ने मूसा को दर्शन देकर उसे मारना चाहा।
\v 25 तब मूसा की पत्नी, सिप्पोरा ने एक चाकू लिया और अपने पहले पुत्र की खाल काट दी। उसने मूसा के पैरों में उस खलड़ी को छुआ कर कहा, “तू खून बहाने वाला पति है।”
\v 26 यहोवा ने मूसा को मारा नहीं। सिप्पोरा ने कहा, “खतना के कारण तू मेरा खून बहाने वाला पति है”।
\p
\s5
\v 27 इस बीच, यहोवा ने हारून से कहा, “मूसा से भेंट करने जंगल की ओर जा।” हारून गया और परमेश्वर के पर्वत पर मूसा से भेंट की और उसको चूमा।
\v 28 मूसा ने हारून को सब कुछ बताया और उन सब चमत्कारों के बारे में भी बताया जिन्हें करने के लिए उन्होंने उसे निर्देश दिए थे।
\p
\s5
\v 29 तब हारून और मूसा ने इस्राएलियों के सब बुजुर्गों को एकत्र किया।
\v 30 हारून ने उन्हें सब कुछ बताया जो यहोवा ने मूसा से कहा था। मूसा ने उन सब चमत्कारों को किया और लोगों ने देखा।
\v 31 इस्राएलियों ने हारून और मूसा पर विश्वास किया। जब उन्होंने सुना कि यहोवा ने देखा है कि इस्राएली लोगों के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है और वह उनकी सहायता करेंगे। उन्होंने झुककर परमेश्वर की आराधना की।
\s5
\c 5
\p
\v 1 तब मूसा और हारून राजा के पास गए। उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर यहोवा, जिनकी हम इस्राएल के लोग आराधना करते है, तुझ से कहते हैं: ‘मेरे लोगों को मरुभूमि में जाने दे कि वे मेरे सम्मान में वहाँ पर्व मनाएँ!'"
\v 2 परन्तु राजा ने कहा, “यहोवा मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं रखता है। मुझे उसकी बातें मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं इस यहोवा को नहीं जानता हूँ! मैं इस्राएलियों को नहीं जाने दूँगा, यहाँ से चले जाओ!"
\s5
\v 3 मूसा और हारून ने उत्तर दिया, “हे परमेश्वर यहोवा, जिनकी हम इब्री लोग आराधना करते है, उन्होंने हम लोगों को दर्शन दिया है और हमें बताया है कि तुझसे क्या कहना है। इसलिए हम लोग तुझ से प्रार्थना करते है कि तू हम लोगों को तीन दिन तक मरुभूमि में यात्रा करने दे। वहाँ हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाएँगे। यदि हम लोग ऐसा नहीं करेंगे तो वह बीमारियों से या हमारे शत्रुओं के आक्रमण से हमारे मरने का कारण उत्पन्न कर देंगे।"
\v 4 परन्तु मिस्र के राजा ने उन से कहा, “मूसा और हारून, तुम इस्राएली लोगों को काम करने से क्यों रोक रहे हो? उन दासों से कहो कि वे अपने काम पर लौट जाएँ!"
\v 5 राजा ने यह भी कहा, “सुनो! तुम लोग जो इस देश में रहते हो, संख्या में मिस्रियों से अधिक हो। तुम उन्हें काम करने से क्यों रोक रहे हो?”
\p
\s5
\v 6 उसी दिन राजा ने दासों के मिस्री सरदारों और उनके प्रबन्धकों को आज्ञा दी,
\v 7 “इन इब्रियों को ईंटें बनाने के लिए अब भूसा मत देना। वे खेतों में जाकर भूसा एकत्र करेंगे।
\v 8 परन्तु, वे उतनी ही ईंटें बनाएँगे जितनी वे पहले बनाते थे। ईंटों की संख्या कम न हो। वे काम करना नहीं चाहते है इसलिए अपने देवता की आराधना के बहाने जंगल में जाना चाहते है और मुझसे अनुमति मांग रहे है।
\v 9 पुरुषों से और अधिक काम करवाओ ताकि उनके पास उनके अगुओं का झूठ सुनने का समय न हो!"
\p
\s5
\v 10 तब दासों के सरदार और इस्राएली सहायक वहाँ गए जहाँ इस्राएली लोग थे और उनसे कहा, “राजा की आज्ञा है कि तुम्हें भूसा न दिया जाए।
\v 11 तो अब तुम्हें स्वयं ही भूसा खोजकर लाना होगा परन्तु ईंटें बनाने में संख्या की कमी न आए।"
\s5
\v 12 तब इस्राएली लोग मिस्र भर में भूसे को खोजने के लिए गए।
\v 13 दासों के सरदारों ने उन पर बल डालकर कहा, "हर दिन का अपना सौंपा हुआ काम पूरा करो। तुम्हे उतनी ही ईंटें बनानी है जितनी तुम पहले बनाया करते थे!”
\v 14 जब उनका उत्पाद घटा तो फ़िरौन के मिस्री श्रम अधिकारियों ने इस्राएली सहायकों को छड़ी से मारा और उनसे पूछा, “तुम्हारे अधीन रखे गए दासों ने आज पहले के जितनी ईंटें क्यों नहीं बनाई?”
\p
\s5
\v 15 तब इस्राएली सहायक राजा के पास गए और पुकारकर कहा, “महामहिम, तू हमारे साथ ऐसा कठोर व्यवहार क्यों कर रहा है?
\v 16 अब हम लोगों को भूसा नहीं दिया जाता किन्तु हम लोगों को आदेश दिया गया कि उतनी ही ईंटें बनाएँ जितनी पहले बनती थीं। और वे हमें मारते हैं। यह तेरे अपने दासों के सरदारों के कारण है कि हम पहले के समान ईंटें नहीं बना पा रहे है!"
\v 17 परन्तु राजा ने कहा, “तुम आलसी हो और काम नहीं करना चाहते! यही कारण है कि तुम कहते रहते हो, ‘हमें जंगल जाकर यहोवा की आराधना करने की अनुमति दे।’
\v 18 अत: काम पर वापस जाओ! तुम्हें भूसा नहीं दिया जाएगा और ईंटों की संख्या कम नहीं होनी चाहिए!"
\p
\s5
\v 19 इस्राएली सहायकों को पता था कि उनका बुरा समय था क्योंकि उन्हें बताया गया था, “हम तुम्हारे लिए प्रतिदिन की ईंटों की संख्या कम करने वाले नहीं है।”
\v 20 तब वे राजा के महल से निकल गए और उनकी भेंट हारून और मूसा से हुई। हारून और मूसा उनकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे।
\v 21 उन्होंने हारून और मूसा से कहा, “यहोवा तुम्हारे कर्म का परिणाम देखें। परमेश्वर तुम्हें दण्ड दें क्योंकि तुम्हारे कारण राजा और उसके अधिकारी हमसे घृणा करने लगे है। तुमने हमें मार डालने का कारण उन्हें सुझा दिया है!”
\p
\s5
\v 22 मूसा ने उनके पास से निकलकर यहोवा से प्रार्थना की, “हे यहोवा, आपने अपनी प्रजा पर ये सब बुराइयाँ क्यों आने दी हैं? और आपने मुझे यहाँ क्यों भेजा है?
\v 23 मैं राजा के पास गया और उससे वही कहा जो आपने मुझसे कहा था तब से उसने आपके लोगों के साथ और अधिक बुरा व्यवहार करना आरंभ कर दिया है। आपने उनकी सहायता करने के लिए अभी तक कुछ भी नहीं किया है।"
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तुम देखोगे कि मैं राजा और उसके लोगों के साथ क्या करूँगा। मैं उसे विवश कर दूँगा कि वह मेरे लोगों को जाने दे। सच तो यह है कि मैं अपनी शक्ति से उसे विवश कर दूँगा कि वह तुम्हें इस देश से भगाए।"
\p
\s5
\v 2 परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “मैं यहोवा हूँ।
\v 3 मैं वह हूँ जिसने अब्राहम, इसहाक और याकूब को दर्शन देकर कहा था कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ परन्तु उन्हें यह नहीं बताया था कि मेरा नाम यहोवा है।
\v 4 मैंने उनके साथ वाचा भी बांधी और उन्हें कनान देश देने की प्रतिज्ञा की थी। यह वही भूमि थी जिसमें वे परदेशियों के रूप में रह रहे थे।
\v 5 इसके अतिरिक्त मिस्री उन्हें दास बनाकर जो कठोर परिश्रम करवा रहे हैं उसके कारण कष्ट भोगते हुए उनकी पुकार को मैंने सुना है मैंने अपनी उस वाचा को याद किया है जो मैंने बाँधी थी।
\s5
\v 6 तो इस्राएलियों से कह कि मैंने कहा है, “मैं यहोवा हूँ। मैं तुम्हें उस कठोर परिश्रम से मुक्ति दिलाऊँगा जो मिस्री तुमसे करवाते है। मैं तुम्हें दासत्व से मुक्त कराऊँगा। मैं अपनी महा-सामर्थ से उन्हें कठोर दण्ड देकर, तुम्हे बचाऊँगा।
\v 7 मैं तुम्हें अपने लोग बनाऊँगा और तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा, जिसकी तुम आराधना करते हो। तुम सच में जानोगे कि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ, जिसने तुम्हें मिस्रियों के दासत्व के बोझ से मुक्त किया है।
\s5
\v 8 मैं तुम्हें उस देश में लाऊँगा जिसे मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की। जिस में तुम सदा के लिए रहोगे। मैं, यहोवा, तुमसे यह प्रतिज्ञा कर रहा हूँँ।'"
\p
\v 9 मूसा ने जाकर इस्राएलियों को यहोवा का यह वचन सुनाया परन्तु उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया। वे अपने दासत्व के कठोर परिश्रम के कारण बहुत दु:खी थे।
\p
\s5
\v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 11 “जा और मिस्र के राजा से फिर कह कि उसे इस्राएलियों को इस देश से जाने की अनुमति देनी ही होगी।"
\v 12 परन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया मेरी बात सुनो। यहाँ तक कि इस्राएल के लोगों ने भी मेरी बात ध्यान नहीं दिया है। मैं बोलने में बहुत बुरा हूँ तो राजा मेरी बातें क्यों सुनेगा?"
\v 13 परन्तु यहोवा ने हारून और मूसा से कहा, “इस्राएलियों से और मिस्र के राजा से कहो कि मैंने तुम दोनों को बुलाया है कि मिस्र से बाहर निकालने में इस्राएलियों की अगुवाई करो।"
\p
\s5
\v 14 मूसा और हारून के पूर्वजों की सूची यह है।
\p याकूब के सबसे बड़े पुत्र रूबेन के पुत्र थे: हनोक, पल्लू, हेस्रोन, और कर्मी वे उन कुलों के पूर्वज थे जिनके नाम यही हैं।
\p
\v 15 शिमोन के ये पुत्र थेः यमूएल, यामीन, ओहद, याकिन और सोहर और एक कनानी स्त्री का पुत्र शाऊल। इन्हीं से शिमोन के कुल निकले थे। इन्हीं नामों से उनके कुल निकले थे।
\p
\s5
\v 16 लेवी के ये पुत्र अपने जन्म के क्रम में थेः गेर्शेन, कहात, और मरारी। लेवी की कुल आयु 137 वर्ष की थी।
\p
\v 17 गेर्शोन के ये पुत्र थेः लिबनी और शिमी। इन्हीं से उसके कुल निकले थे जिनके नाम इन्हीं पर चले।
\p
\v 18 कहात के पुत्र थेः अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल। कहात की कुल आयु 133 वर्ष की थी।
\p
\v 19 मरारी के ये पुत्र थेः महली और मूशी। इन्हीं से लेवियों के कुल निकले थे। और उनकी वंशावलियाँ भी इन्हीं के जन्म के क्रम से चलीं।
\p
\s5
\v 20 अम्राम ने अपने पिता की बहन से विवाह किया जिसका नाम योकेबेद था। वह हारून और मूसा की माता हुई। अम्राम 137 साल जीवित रहा।
\p
\v 21 यिसहार के ये पुत्र थेः कोरह, नेपेश और जिक्री।
\p
\v 22 उज्जीएल के ये पुत्र थेः मीशाएल, एलसापन और सित्री।
\p
\s5
\v 23 हारून ने एलीशेबा से विवाह किया। वह अम्मीनादाब की पुत्री और नहशोन की बहन थी। उसके पुत्र ये थेः नादाब, अबीहू, एलाजार और ईतामार।
\p
\v 24 कोरह के ये पुत्र थेः अस्सीर, एल्काना और अबीआसाप। इन्हीं से कोरहियों के कुल निकले और ये कोरह-वंशियों के पूर्वज थे।
\p
\v 25 हारून के पुत्र एलाजार ने पूतीएल की पुत्री से विवाह किया और उससे उसके पुत्र पीनहास का जन्म हुआ। लेवियों के घरानों के मूल पुरुष ये ही थे। इन्हीं से उनके कुल निकले थे।
\s5
\v 26 हारून और मूसा वही थे जिनसे यहोवा ने कहा था, “इस्राएलियों के सब गोत्रों को मिस्र से बाहर निकालकर ले जा।”
\v 27 वे ही थे जिन्होने इस्राएली लोगों को मिस्र से बाहर लाने के लिए मिस्र के राजा से बातें की थीं।
\s5
\v 28 जिस दिन यहोवा ने मूसा से मिस्र में बातें कीं,
\v 29 उस दिन उसने मूसा से कहा, "मैं यहोवा हूँ। तू जाकर राजा से वह सब कह जिसकी आज्ञा मैं देता हूँ।"
\v 30 परन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया मेरी बात सुनो। मैं बोलने में अच्छा नहीं हूँ। तो इसलिए राजा मेरी बात का मान नहीं रखेगा?"
\s5
\c 7
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरी बात सुन! मैं राजा के लिए तुझे ईश्वर बना दूँगा और क्योंकि हारून तेरी ओर से बातें करेगा इसलिए वह भविष्यद्वक्ता की तरह होगा।
\v 2 इसलिए तू मेरी हर एक बात अपने बड़े भाई हारून को बताएगा और वह राजा से सब कुछ ज्यों का त्यों कहेगा। उसे राजा से कहना होगा कि वह इस्राएलियों को मिस्र देश से जाने दे।
\s5
\v 3 परन्तु मैं राजा को हठीला बना दूँगा। इसका परिणाम होगा कि, मिस्र में कई प्रकार के चमत्कार किए जाएँगे,
\v 4 राजा तुम्हारी बात नहीं मानेगा। तब मैं मिस्रियों को कठोर दण्ड दूँगा और मैं इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले जाऊँगा।
\v 5 तब, जब मैं मिस्र-वासियों पर मेरी महा-शक्ति का प्रदर्शन करूँगा और इस्राएलियों को उनके बीच से निकालकर ले जाऊँगा तब वे जानेंगे कि मैं सर्व-शक्तिमान परमेश्वर हूँ।"
\p
\s5
\v 6 हारून और मूसा ने सबकुछ किया जो यहोवा ने उन्हें करने के लिए कहा था।
\v 7 उस समय, मूसा 80 वर्ष और हारून 83 वर्ष का था।
\p
\s5
\v 8 यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
\v 9 "यदि राजा तुम से कहता है, 'चमत्कार द्वारा सिद्ध करो कि तुम्हें परमेश्वर ने भेजा है’, तब हारून से कहना, ‘राजा के सामने तेरी लाठी फेंक कि वह साँप बन जाए।'"
\v 10 तब हारून और मूसा राजा के पास गए और वही किया जो यहोवा ने उनसे करने को कहा था। हारून ने राजा के कर्मचारियों और उसके अधिकारियों के सामने अपनी लाठी को फेंक दिया, और वह साँप बन गयी।
\s5
\v 11 तब राजा ने अपने जादूगरों को बुलाया। उन्होंने भी अपने जादू से वैसा ही कर दिखाया।
\v 12 उन्होंने भी अपनी-अपनी लाठी फेंक दी और वे साँप बन गई परन्तु हारून की लाठी जो साँप बन गयी थी उनके सब साँपों को खा गयी।
\v 13 परन्तु राजा हठीला ही बना रहा जैसा यहोवा ने कहा था। उसने हारून और मूसा की बात नहीं मानीं।
\p
\s5
\v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा ने हठ कर के मेरे लोगों को मिस्र से निकलने नहीं दिया।
\v 15 तो कल सुबह जब वह नील नदी में स्नान करने जाएगा तब उसके पास जाना और तट पर उसकी प्रतीक्षा करना। जब वह पानी से निकलकर बाहर आए तब उसे वही लाठी दिखाना जो साँप बन गई थी।
\s5
\v 16 तब उससे कहना, “जिस परमेश्वर यहोवा की हम इब्री लोग आराधना करते है, उन्होंने मुझे भेजा है कि तुझ से निवेदन करूं कि उनकी आराधना करने के लिए हमें मरुभूमि में जाने दे। हमने तुझसे यही कहा था परन्तु तू ने हमारी बात नहीं सुनी।
\v 17 इसलिए अब यहोवा यह कहते हैं: “अब तू जानेगा कि मैं यहोवा हूँ जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। मेरे हाथ में जो यह लाठी है उसे मैं नील नदी के जल पर मारूंगा। जब मैं ऐसा करूँगा तब जल खून बन जाएगा।
\v 18 तब नील नदी की मछलियाँ मर जाएगी और नदी के जल में से दुर्गंध आएगी। मिस्रवासी नदी का जल नहीं पी पाएँगे ।"
\p
\s5
\v 19 यहोवा ने मूसा से कहा, “जब तू राजा से बातें कर रहा हो तब हारून से कहना, ‘अपनी लाठी को मिस्र के सब जल स्रोतों, नदियों, नहरों, झीलों और जलाशयों की ओर उठाए ताकि वे सब खून बन जाएँ।' जब हारून ऐसा करेगा, तो पूरे मिस्र में, लकड़ी के बर्तनों और पत्थर के पात्रों में भी खून होगा।"
\p
\s5
\v 20 हारून और मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। जब राजा और उसके कर्मचारी देख रहे थे हारून ने अपनी लाठी नील नदी के जल पर मारी। नदी का जल उसी समय खून में बदल गया।
\v 21 और सब मछलियाँ मर गई और जल में दुर्गंध आने लगी गया। इस कारण मिस्रवासी नदी के जल को पी नहीं सकते थे। मिस्र में जहाँ भी जल था, वह खून के समान लाल हो गया।
\v 22 परन्तु मिस्र के जादूगरों ने भी अपने जादू से वैसा ही कर दिखाया। इसलिए राजा ने हठ करके हारून और मूसा की बात नहीं मानी। यहोवा ने तो उनसे यह कह ही दिया था।
\s5
\v 23 राजा मुंह फेरकर अपने महल में चला गया। और इसके बारे में और कुछ नहीं सोचा।
\v 24 सभी मिस्रवासी नील नदी के समीप भूमि का जल पीते थे क्योंकि वे नदी का जल पीने योग्य नहीं था।
\p
\v 25 यहोवा द्वारा नील नदी के पानी को खून में बदले जाने के बाद एक सप्ताह हो गया था।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा के पास वापस जा और उससे कह, ‘यहोवा कहते हैं कि तू मेरे लोगों को जाने दे जिससे कि वे मरुभूमि में मेरी आराधना करें।
\v 2 यदि तू उन्हें जाने नहीं देगा तो मैं तुझे दण्ड देने के लिए तेरे देश को मेंढ़कों से भर दूँगा।
\v 3 न केवल नील नदी मेंढकों से भरी होगी, बल्कि मेंढक नदी से निकल कर तुम्हारे सब के घर में भी जाएँगे। वे तुम्हारे सोने के कमरों और तुम्हारे बिस्तर में होंगे। मेढ़क तुम्हारे अधिकारियों के और सब लोगों के घरों में होंगे। वे तुम्हारी रसोई में भी पहुँच जाएँगे।
\v 4 मेंढक तेरे और तेरे अधिकारियों और तेरे सभी लोगों पर कूदेंगे'"
\p
\s5
\v 5 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “हारून से यह कह: ‘अपनी लाठी को अपने हाथ में पकड़ और इस प्रकार उठा जैसे कि सब नदी, नहरों और तालाबों के ऊपर हो और मिस्र देश को ढकने के लिए मेंढकों को जल से बाहर ला । ‘”
\v 6 मूसा ने उस से कहा, तब उसने अपनी लाठी मिस्र के सब जल स्रोतों के ऊपर उठाई और मेंढक जल से निकल कर संपूर्ण मिस्र में भर गए।
\v 7 परन्तु मिस्र के जादूगरों ने भी ऐसा ही कर दिखाया और वे भी मिस्र देश में और अधिक मेंढ़क ले आए।
\s5
\v 8 तब राजा ने मूसा को बुलाकर कहा, “अपने परमेश्वर से कहो कि वे इन मेंढकों को मुझ से और मेरे लोगों से दूर करें तब मैं तेरे लोगों को यहोवा की आराधना के लिए जाने दूँगा।”
\v 9 मूसा ने राजा से कहा, “तेरे लिए, तेरे कर्मियों के लिए और प्रजा के लिए प्रार्थना करके मुझे प्रसन्नता ही होगी। मैं परमेश्वर से विनती करूँगा कि वह तेरे देश से सब मेंढकों को हटा दे। वे केवल नील नदी में पाए जाएँ। मुझे समय बता दे कि कब ऐसा करूँ।"
\s5
\v 10 राजा ने उत्तर दिया, “कल।” मूसा ने उससे कहा, “मैं तेरे कहने के अनुसार ही करूँगा तब तू जानेगा कि जिस परमेश्वर यहोवा की हम आराधना करते है, वही सच्चा परमेश्वर है अन्य कोई ईश्वर नहीं है।
\v 11 मेंढक तेरे पास से और तेरे लोगों और तेरी प्रजा के पास से हटकर नील नदी तक सीमित हो जायेंगे। एक भी मेंढक बाहर नहीं होगा।"
\p
\v 12 तब मूसा और हारून ने राजा को छोड़ दिया। मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की, कि वह उन सब मेंढकों को राजा के देश से दूर कर दें।
\s5
\v 13 यहोवा ने वही किया जो मूसा ने उन्हें करने के लिए कहा था। इस प्रकार उनके घरों में, आँगनों में, और खेतों में सब मेंढक मर गए।
\v 14 लोगों ने जब मरे हुए मेंढकों को निकाला तो ढेर लग गए और संपूर्ण देश दुर्गंध से भर गया।
\v 15 लेकिन जब राजा ने देखा कि राहत मिल गई तब उसने फिर हठ किया और मूसा की बात नहीं मानी। यहोवा ने तो मूसा से इस विषय में पहले ही कह दिया था।
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून से कह कि अपनी लाठी भूमि पर मारे। जब वह ऐसा करेगा तब धूल के कण कुटकियाँ बन कर मिस्र देश पर छा जाएँगे।”
\v 17 मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। और हारून ने भूमि पर लाठी मारी और धूल के कण कुटकियाँ बन कर मिस्र देश पर छा गए। कुटकियाँ सब पशुओं और मनुष्यों पर जाकर बैठ गई।
\s5
\v 18 राजा के जादूगरों ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया परन्तु वे सफल न हुए। किन्तु कुटकियाँ सब मनुष्यों और पशुओं पर बैठी रहीं।
\v 19 राजा के जादूगरों ने कहा, “यह तो परमेश्वर का ही काम है। यह उसी की शक्ति से है!” परन्तु राजा ने अपना मन कठोर करके हारून और मूसा की बात नहीं मानीं जैसा यहोवा ने कहा था।
\p
\s5
\v 20 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “कल प्रातः काल नील नदी पर जाकर राजा की प्रतीक्षा करना। जब वह स्नान करने वहाँ आए तब उससे कहना, ‘यहोवा तेरे लिए कहता है, मेरे लोगों को मरुभूमि में मेरी आराधना के लिए जाने दे।
\v 21 मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि यदि तू उन्हें नहीं जाने देगा तो मैं तुझ पर, तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा पर डांस भेजूँगा। जो सब मिस्रियों के घरों में भर जायेंगे। तुम्हारे खड़े रहने का स्थान भी उनसे नहीं बचेगा।
\s5
\v 22 परन्तु जब ऐसा होता है, तो मैं गोशेन के क्षेत्र के साथ अलग व्यवहार करूँगा, क्योंकि मेरे लोग वहाँ रहते है। वहाँ एक भी डांस न होगा। इस तरह, तू जान लेगा कि मैं, यहोवा, ही तेरे देश पर यह विपत्ति डालता हूँ।
\v 23 मैं तुझे दिखाऊँगा कि मैं अपने लोगों के प्रति कैसे कार्य करता हूँ और तेरे लोगों के प्रति कैसे कार्य करता हूँ। यह चमत्कार कल होने वाला है!"'"
\p
\v 24 अगले दिन सुबह मूसा ने राजा को यह सन्देश दिया परन्तु राजा ने नहीं सुना। इसका परिणाम यह हुआ कि यहोवा ने वही किया जो उसने कहा था। यहोवा ने राजा के महल और उसके कर्मचारियों के घरों में डांस भेज दिए। मिस्र का संपूर्ण देश डांसों से नष्ट हो गया।
\s5
\v 25 तब राजा ने हारून और मूसा को बुला कर कहा, "तुम इस्राएली अपने परमेश्वर की आराधना करने जाओ परन्तु मिस्र से बाहर नहीं जाना।"
\v 26 मूसा ने राजा से कहा, “हमारे लिए ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि जिन पशुओं की हम बलि चढ़ायेंगे वे मिस्रियों के लिए आपत्ति जनक है और वे हमें पत्थर फेंककर मार देंगे।
\v 27 हमें तीन दिन चल कर मरुभूमि में जाना होगा। वहाँ हम हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए बलि चढ़ायेंगे। जैसी आज्ञा उसने हमें दी है।"
\s5
\v 28 तब राजा ने कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें अपने परमेश्वर के लिए बलि चढ़ाने को जंगल में जाने दूँगा परन्तु तुम बहुत दूर नहीं जाओगे। मेरे लिए भी विनती करना।"
\v 29 मूसा ने राजा से कहा, “मैं यहाँ से जाने के बाद यहोवा से विनती करूँगा कि कल वह डांसों के झुंड तेरे और तेरे कर्मचारियों और तेरी प्रजा से दूर कर दें। लेकिन तू कपट करके हमें बलि चढ़ाने से मत रोकना।"
\p
\s5
\v 30 तब मूसा राजा के पास से चला गया और यहोवा से प्रार्थना की।
\v 31 यहोवा ने मूसा की विनती स्वीकार करके डांसों को राजा और उसके कर्मचारियों और मिस्रियों से दूर कर दिया। एक भी डांस बचा न रहा।
\v 32 परन्तु राजा ने फिर हठ किया और उसने इस्राएलियों को जाने की अनुमति नहीं दी।
\s5
\c 9
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा के पास जाकर उससे कह, 'यहोवा, जिसकी हम इब्री आराधना करते है, वे कहते है: "मेरे लोगों को मेरी आराधना के लिए जाने दे।
\v 2 यदि तू अब भी उन्हें जाने नहीं देगा,
\v 3 तो मैं तेरे पशुओं को- तेरे घोड़े, गधे, ऊंट, गाय-बैल, भेड़-बकरियों सब को रोग से मार डालूँगा। ये तुझे मेरी चेतावनी है।
\v 4 परन्तु मैं, यहोवा, इस्राएलियों को हानि नहीं पहुँचाऊँगा। उनका एक भी पशु नहीं मरेगा और तू स्वयं देखेगा।"
\s5
\v 5 फ़िरौन से कहना कि कल संपूर्ण देश में ऐसा ही होगा।"'"
\p
\v 6 अगले दिन यहोवा ने वही किया जो उसने कहा था। एक भयानक रोग मिस्र के सब पशुओं पर आया और मिस्रियों के पशु रोग से मर गए परन्तु इस्राएलियों का एक भी पशु नहीं मरा।
\v 7 राजा ने अपने सेवकों को देखने के लिए भेजा और उन्होंने देख कर अचंभा किया कि इस्राएलियों का एक भी पशु नहीं मरा था। परन्तु राजा ने अपना मन कठोर करके इस्राएलियों को जाने नहीं दिया।
\p
\s5
\v 8 तब यहोवा ने हारून और मूसा से कहा, “भट्ठी में से एक मुट्ठी राख ले लो और मूसा उन्हें राजा के सामने हवा में उड़ा दे।
\v 9 राख पूरी तरह से मिस्र के देश में धूल की तरह फैल जाएगी। यह राख सब मिस्रियों पर और उनके पशुओं पर फोड़े बन कर प्रकट होगी।"
\v 10 इसलिए उन्होंने राख से मुट्ठियाँ भरीं और राजा के सामने जाकर मूसा ने वह राख हवा में उड़ा दी। राख पूरी तरह से फैल गई। वह राख हवा के साथ मिस्रियों और उनके पशुओं पर जाकर गिरी जिससे उनके शरीरों पर फोड़े निकल आए। सब फोड़े खुले घाव बन गए।
\s5
\v 11 यहाँ तक कि उनके जादूगरों के शरीरों पर भी फोड़े घाव बन गए जिसके कारण वे मूसा का सामना नहीं कर पाए। जादू करने वाले पुरुष पर भी साधारण जनता के समान घाव हो गए थे।
\v 12 परन्तु यहोवा ने राजा को हठीला बनाए रखा। उसने मूसा और हारून की बात को नहीं माना। यहोवा ने तो उन्हें पहले ही कह दिया था कि वह ऐसा ही करेगा।
\p
\s5
\v 13 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “कल सुबह जाकर राजा से कहना, ‘जिस परमेश्वर यहोवा की हम आराधना करते है, वह कहते है, मेरे लोगों को जाने दे कि वे मरुभूमि में मेरी आराधना करें।
\v 14 यदि तू उन्हें नहीं जाने देता है तो मैं इस बार विपत्तियों के साथ दण्ड भी दूँगा। मैं तेरे राजकर्मियों और प्रजा को ही नहीं तुझे भी विपत्तियों में डालूँगा जिससे तू जानेगा कि संपूर्ण पृथ्वी पर मेरे अतिरिक्त कोई परमेश्वर नहीं है।
\s5
\v 15 इस समय तक मैं तुझे और तेरे लोगो को भयानक बीमारियों से मारने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग कर सकता था।
\v 16 लेकिन मैंने तुझे जीवित रहने दिया है कि मैं अपनी शक्ति दिखा सकूँ जिससे संपूर्ण पृथ्वी के मनुष्य जान सकें कि मैं कैसा महान हूँ।
\v 17 तू अब भी अहंकार के कारण मेरे लोगों को जाने नहीं देता है।
\s5
\v 18 तो इस बात को सुन, कल इसी समय मैं मिस्र में बड़े-बड़े ओले बरसाऊँगा। जब से मिस्र एक राष्ट्र बना उस समय से अब तक ऐसे बड़े-बड़े ओले मिस्र में कभी नहीं बरसे होंगे।
\v 19 इसलिए तू अपनी प्रजा को संदेश भेज कि वे अपने पशुओं और जो कुछ भी उनका हो उसका आश्रय में ही रखें। ओले हर व्यक्ति पर और खेतों में हर पशु पर गिरेंगे जो आश्रय के नीचे नहीं लाया जाएगा और वे सब मर जाएँगे।" इसलिए मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया।
\p
\s5
\v 20 राजा के कुछ कर्मचारी यहोवा की चेतावनी सुन कर बहुत डर गए इसलिए उन्होंने अपने सब पशुओं और दासों को छत के नीचे ले आये।
\v 21 परन्तु कुछ लोगों ने यहोवा की बात को नहीं सुना और उन्होंने अपने पशुओं और दासों को खेतों में ही रहने दिया।
\s5
\v 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि संपूर्ण मिस्र के लोगों, पशुओं और खेतों पर ओले गिरें। “
\v 23 तब मूसा ने आकाश की ओर अपनी लाठी उठाई और यहोवा ने संपूर्ण मिस्र पर बड़े-बड़े ओले बरसाए। ओलों के साथ बिजली चमकी और गर्जन हुई।
\v 24 ओलों के साथ बिजली गरज कर पृथ्वी पर गिरी। जब से मिस्र एक राष्ट्र बना तब से ऐसे ओले कभी नहीं गिरे थे।
\s5
\v 25 ओलो ने पूरे मिस्र के खेतों में रुके हर व्यक्ति और हर पशु को मार डाला। ओलों के कारण खेतों के वृक्ष नष्ट हो गए और पत्ते झड़ गए।
\v 26 परन्तु गोशेन में जहाँ इस्राएली रहते थे, वहाँ ओले नहीं बरसे।
\p
\s5
\v 27 तब राजा ने हारून और मूसा को बुलाने के लिए किसी को भेजा। उसने उनसे कहा, “इस बार मैं मानता हूँ कि मैंने पाप किया है। यहोवा ने जो किया है वह सही है और मैंने और मेरे लोगों ने जो किया है वह गलत है।
\v 28 यहोवा से प्रार्थना कर! हम इस गर्जन और बर्फ को और अधिक सहन नहीं कर सकते हैं! मैं तुम लोगों को जाने दूँगा। तुम्हें अब मिस्र में रहने की आवश्यकता नहीं है।"
\p
\s5
\v 29 मूसा ने उत्तर दिया, “इस नगर से निकलते ही मैं अपने हाथ उठा कर यहोवा से विनती करूँगा और गर्जन रूक जाएगी और ओलो का अन्त होगा। यह इसलिए होगा कि तू जान ले कि तेरे देवता नहीं, यहोवा पृथ्वी पर सब कुछ नियंत्रित करते हैं।
\v 30 किन्तु मैं जानता हूँ कि तू और तेरे अधिकारी अब भी यहोवा से नहीं डरते हैं।"
\p
\s5
\v 31 जब ओले गिरे तो सन में फूल आ चुके थे। क्योंकि जौ पहले ही पक चुकी थी इसलिए फसलें नष्ट हो गई।
\v 32 लेकिन गेहूं नष्ट नहीं हुए क्योंकि वे बड़े नहीं हुए थे।
\p
\v 33 इसलिए मूसा राजा के सामने से निकल कर नगर से बाहर गया और हाथ उठा कर यहोवा से प्रार्थना की। तब गर्जन और ओलो का तूफान बंद हो गया। मिस्र पर वर्षा होनी भी बन्द हो गई।
\s5
\v 34 परन्तु जब राजा ने देखा कि वर्षा, ओलो का तूफान और गर्जन बंद हो गया है तब राजा ने फिर से पाप किया। राजा और उसके अधिकारी हठीले हो गए।
\v 35 यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था। राजा ने इस्राएलियों को जाने की अनुमति नहीं दी।
\s5
\c 10
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा के पास फिर जा। मैंने उसे और उसके कर्मचारियों को हठीला बना दिया है। मैंने यह इसलिए किया है कि उनके मध्य चमत्कार करने का उचित कारण मेरे पास हो।
\v 2 मैंने ऐसा इसलिए भी किया है कि तुम अपने बच्चों और अपने नाती-पोतों को यह बता सको कि मैंने इन सब चमत्कारों के द्वारा मिस्र के लोगों से कैसे मूर्खतापूर्ण कार्य करवाया। तब तुम सब जानोगे कि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ।"
\p
\s5
\v 3 अत: हारून और मूसा ने राजा के पास जाकर कहा, “परमेश्वर यहोवा जिसकी हम इब्रानी आराधना करते है, वह कहते हैं, ‘तू कब तक मेरे सामने ढीठ बन कर मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेगा? मेरे लोगो को जाने दे कि वे मरुभूमि में मेरी आराधना करें।
\v 4 यदि तू उन्हें जाने नहीं देगा तो मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि कल तेरे देश में टिड्डियाँ भेजूँगा।
\s5
\v 5 टिड्डियाँ पूरी भूमि को ऐसे ढ़ाँक लेंगी कि तुम भूमि नहीं देख सकोगे। जो कुछ भी ओले भरी आँधी से बच गया है उसे टिड्डियाँ खा जाएँगी। टिड्डियाँ पेड़ों की सारी पत्तियाँ खा लेंगी।
\v 6 वे तेरे और तेरे कर्मचारियों और सब नागरिकों के घरों में भर जाएँगी। न तूने, न तेरे पूर्वजों ने इस देश में आने से लेकर अब तक कभी इतनी टिड्डियाँ नहीं देखी होंगी।'" तब मूसा और हारून राजा के पास से चले गए।
\p
\s5
\v 7 राजा के कर्मचारियों ने राजा से कहा, “यह पुरूष कब तक हम पर विपत्तियाँ लाता रहेगा? इस्राएलियों को अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करने के लिए जाने दे। क्या तू नहीं समझ पा रहा है कि इसने मिस्र का विनाश कर दिया है?"
\v 8 तब वे हारून और मूसा को राजा के पास ले आए। राजा ने उनसे कहा, “ठीक है, तुम लोग जाकर अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना कर सकते हो। किन्तु मुझे बताओ कि कौन—कौन जा रहा है?"
\s5
\v 9 मूसा ने उससे कहा, “हम सभों को ही जाना होगा, छोटे हो या वृद्ध सब को। हमें अपने पुत्र-पुत्रियों को और अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को भी ले जाना होगा क्योंकि वहाँ हम यहोवा के लिए पर्व मनायेंगे।"
\p
\v 10 तब राजा ने उससे कहा, “मैं कभी नहीं चाहता कि तुम्हारा यहोवा तुम्हारी सहायता करे। मैं तुम्हारी संतानों और पत्नियों को जाने नहीं दूँगा। ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लौट कर नहीं आने की योजना बना रहे हो।
\v 11 नहीं, मैं तुम सभी को नहीं जाने दूँगा। यदि तुम चाहते हो तो केवल पुरूष जाकर आराधना कर सकते हो।" तब राजा ने मूसा और हारून को अपने महल से निकाल दिया।
\p
\s5
\v 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ उस देश पर उठा जैसे कि टिड्डियों को आमंत्रित कर रहा है कि वे आ कर ओलों से बचे हुए हर एक पौधे और वृक्ष को खा जाएँ।"
\p
\v 13 मूसा ने अपनी लाठी ऐसे उठाई कि जैसे वह उसे उस संपूर्ण देश पर उठा रहा हो। तब यहोवा ने उस दिन और रात पूर्व से तेज हवा बहाई और सुबह होते-होते वहाँ टिड्डियाँ आ गईं।
\s5
\v 14 टिड्डियाँ पूरे मिस्र में भर गई। टिड्डियों की ऐसी बड़ी संख्या मिस्र में कभी देखी नहीं गई थी। और न ही देखी जाएगी।
\v 15 वे धरती पर ऐसे छा गई कि पूरे देश में अँधेरा छा गया। वे ओलो से बचे हुए वृक्षों और सब पौधों को खा गईं। मिस्र में कहीं भी हरियाली नहीं बची।
\p
\s5
\v 16 राजा ने जल्दी ही हारून और मूसा को बुलाया और कहा, “मैंने तुम्हारे परमेश्वर यहोवा और तुम्हारे विरुद्ध पाप किया है।
\v 17 इसलिए केवल इस बार मेरा पाप क्षमा करो और अपने परमेश्वर यहोवा से विनती करो कि वह हमें इस सर्वनाश से बचाए अन्यथा हम नष्ट हो जायेंगे।"
\p
\v 18 तब मूसा और हारून राजा के सामने से निकल आए और मूसा ने यहोवा से विनती की।
\s5
\v 19 तब यहोवा ने हवा का रूख बदल दिया। यहोवा ने पश्चिम से तेज़ हवा चलाई और उन्होंने टिड्डियों को दूर लाल सागर में उड़ा दिया। एक भी टिड्डी मिस्र में नहीं बची।
\p
\v 20 परन्तु यहोवा ने राजा को हठीला बना दिया और उसने इस्राएलियों को जाने नहीं दिया।
\p
\s5
\v 21 यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर उठा कि संपूर्ण मिस्र पर अंधकार छा जाए। अंधकार इतना गहरा हो कि लोगों को टटोल-टटोल के चलना पड़े।"
\v 22 तब मूसा ने आकाश की ओर हाथ उठाया और संपूर्ण मिस्र पर गहरा अंधकार छा गया। मिस्र में तीन दिन और तीन रात तक अधंकार रहा।
\v 23 कोई भी किसी को नहीं देख सकता था और तीन दिन तक कोई अपनी जगह से नहीं उठ सका। किन्तु उन सब स्थानों में जहाँ इस्राएल के लोग रहते थे, प्रकाश था।
\p
\s5
\v 24 राजा ने मूसा को बुलाकर कहा, “ठीक है, तुम जाकर यहोवा की आराधना कर सकते हो। तुम्हारी पत्नियाँ और तुम्हारे बच्चे तुम्हारे साथ जा सकते है। परन्तु अपने भेड़, बकरियों और मवेशियों को यहीं रहने दो।"
\v 25 परन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “नहीं, हमें अपनी भेड़-बकरियाँ भी ले जानी होंगी कि हम अपने परमेश्वर के लिए उनकी होम-बलि चढ़ाएँ।
\v 26 हमारे पशु हमारे साथ जाएँगे। हम एक भी पशु को छोड़ कर नहीं जाएँगे। यहोवा की आराधना के लिए उनकी भी आवश्यकता होगी। जब तक हम वहाँ नहीं पहुँचें तब तक हमें समझ में नहीं आएगा कि यहोवा की आराधना में कौन सा पशु चढ़ाएँ।"
\p
\s5
\v 27 परन्तु परमेश्वर ने राजा का मन हठीला कर दिया और राजा ने इस्राएलियों को जाने नहीं दिया।
\v 28 राजा ने मूसा और हारून से कहा, “यहां से निकल जाओ! याद रखना कि तुम मुझे फिर से देखने के लिए कभी नहीं आओगे! जिस दिन तुम मुझे फिर से दिखोगे, मैं तुम्हें मार दूँगा!”
\v 29 मूसा ने उत्तर दिया, “तू सही कहता है, अब तू मेरा मुंह कभी नहीं देखेगा!”
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं मिस्र के राजा और उसके सब लोगों पर एक और विपत्ति लाऊँगा। इसके बाद वह तुम लोगों को मिस्र से भेज देगा। वास्तव में, वह तुम्हें मिस्र से भगा देगा।
\v 2 तो अब जाकर सब इस्राएलियों से कह कि वे अपने मिस्री पड़ोसियों अर्थात स्त्री-पुरूष सब से कहें कि वे उन्हें अपने सोने-चाँदी के गहने दें।"
\v 3 यहोवा ने मिस्रियों में इस्राएलियों के प्रति बहुत सम्मान उत्पन्न कर दिया था। सच तो यह है कि राजा के कर्मचारी और उसकी प्रजा मूसा को एक महापुरूष मानती थी।
\p
\s5
\v 4 तब मूसा राजा के पास गया और कहा, "यहोवा यह कहते हैं: 'आज आधी रात के समय, मैं मिस्र से होकर निकलूँगा,
\v 5 और मैं सभी पहले पुत्रों के मरने का कारण बनूंगा। मैं राजा के पहले पुत्र से लेकर दासी जो अनाज पीसती है उसके पहले पुत्र सहित सबके पहले पुत्र को मार डालूँगा। मैं तुम्हारे पशुओं के पहले नरों को भी मार दूँगा।
\s5
\v 6 ऐसा होने पर संपूर्ण प्रजा चिल्ला-चिल्ला कर विलाप करेगी। ऐसा विलाप जैसा न तो उन्होंने पहले कभी किया और न ही फिर कभी करेंगे।
\v 7 परन्तु इस्राएल में ऐसी शान्ति होगी कि कुत्ता भी नहीं भौंकेगा। तब तुम निश्चय जान लोगे कि मैं यहोवा इस्राएलियों के साथ पक्षपात करता हूँ।'
\v 8 तब तेरे सब अधिकारी आएँगे और मेरे सामने झुककर आग्रह करेंगे, ‘तुम अपने सारे इस्राएली को लेकर मिस्र से निकल जाओ! उसके बाद, हम मिस्र से निकल जाएँगे!" यह कह कर मूसा क्रोध में राजा के सामने से चला गया।
\p
\s5
\v 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “राजा तेरी बात नहीं मानेगा इसलिए मैं मिस्र देश में और भी चमत्कार करूँगा।"
\p
\v 10 हारून और मूसा ने राजा के सामने ये सब चमत्कार किए परन्तु यहोवा ने राजा को हठीला बना दिया था। राजा ने इस्राएली लोगों को अपनी भूमि छोड़ने नहीं दी।
\s5
\c 12
\p
\v 1 यहोवा ने मिस्र में हारून और मूसा से कहा,
\v 2 “अब से तुम इस्राएलियों के लिए यह वर्ष का पहला महीना होगा।
\s5
\v 3 सब इस्राएलियों से कह कि प्रत्येक परिवार में जो पुरूष मुखिया है वह अपने परिवार के लिए एक भेड़ का बच्चा या बकरी का बच्चा ले।
\v 4 यदि परिवार में उस मेम्ने को पका कर खाने के लिए लोगों की कमी है तो वह परिवार अपने पड़ोस के किसी परिवार के साथ उसे बाँट कर खाए। प्रत्येक परिवार में सदस्यों की संख्या के अनुसार निश्चित करो कि तुम कितना खा सकते हो।
\s5
\v 5 जो मेम्ना या बकरी का बच्चा तुम चुनोगे वह एक वर्ष का हो और नर पशु हो और उनमे कोई दोष नहीं होना चाहिए।
\v 6 महीने के चौदहवें दिन तक तुम्हे इन पशुओंं की विशेष देखभाल करनी होगी। चौंदहवें दिन तुम सब अपना-अपना मेम्ना या बकरी के बच्चे को संध्या के समय मारना।
\v 7 और उसका खून अपने द्वार की चौंखटों पर दोनों ओर और ऊपर की ओर लगाना, जिस घर में वे उसका माँस खायेंगे।
\v 8 तुम उसका माँस तुरन्त भून कर उसी रात खाना। उन्हें कड़वे साग-पात और अखमीरी रोटी के साथ खाना है।
\s5
\v 9 तुम न तो उस का कच्चा माँस खाना और न ही उसे उबाल कर खाना। उसके सिर या पैरों को काटना नहीं और न ही उसके भीतर के अंग अलग करके भूनना है।
\v 10 तुम्हें उस शाम को सारा माँस अवश्य खा लेना होगा। दूसरे दिन सुबह खाने के लिए उसका माँस नहीं बचाना। यदि थोड़ा माँस सबेरे तक बच जाये तो उसे आग में अवश्य ही जला देना चाहिए।
\v 11 जब तुम इसे खाओगे तब तुम्हें यात्रा के लिए तैयार रहना है। तुम्हारे पैरों में जूते हों और हाथों में लाठियाँ हों। भोजन करने में शीघ्रता करना। यह मेरे, यहोवा के सम्मान में फसह का पर्व होगा।
\s5
\v 12 उस रात मैं संपूर्ण मिस्र देश से निकलूँगा और मनुष्य और पशु सब के पहले नर को मार दूँगा। इस प्रकार मैं मिस्र के सब देवताओं को दण्ड दूँगा। मैं यहोवा तुम से यह कहता हूँ।
\v 13 तुम्हारे द्वारों पर लगा हुआ खून इस बात को दर्शाएगा कि उस घर में मेरे इस्राएली रहते है। खून देख कर मैं उस घर के लोगों को हानि नहीं पहुँचाऊँगा और आगे बढ़ जाऊँगा।
\p
\v 14 तुम्हें प्रतिवर्ष यह पर्व मनाना होगा और याद रखना होगा कि मुझ यहोवा ने तुम्हारे लिए क्या किया है। तुम्हारी आने वाली हर एक पीढ़ी में यह पर्व मनाया जाए। यह सदा का पर्व हो।
\s5
\v 15 तुम सात दिन तक अखमीरी रोटी खाना। सप्ताह के पहले दिन तुम अपने-अपने घर में खमीर पूर्णतः हटा देना। उन सातों दिनों में एक बार भी यदि किसी ने खमीरी रोटी खाई तो उसे अपने बीच से निकाल देना।
\v 16 उस सप्ताह के पहले दिन तुम पवित्र सभा करोगे और सातवें दिन भी ऐसा ही करोगे। उन दो दिन कोई भी किसी भी प्रकार का काम नहीं करे। एकमात्र काम तुम जो करोगे वह भोजन पकाने का होगा।
\p
\s5
\v 17 प्रतिवर्ष तुम अखमीरी रोटी का पर्व मनाओगे जिससे तुम्हें याद रहे कि मैं तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया था। इसलिए हर एक पीढ़ी में प्रतिवर्ष इस दिन पर्व मनाना। यह सदा के लिए करते रहना।
\v 18 वर्ष के पहले महीने के चौंदहवें दिन तुम वही रोटी खाओगे। जिसमें खमीर न हो। और उस महीने के इक्कीसवें दिन तक तुम वही सब खाओगे जिसमें खमीर नहीं है। ऐसा इक्कीसवें दिन तक प्रतिदिन करना।
\s5
\v 19 उन सातों दिन तुम्हारे घर में कहीं भी खमीर न हो। यदि कोई इस्राएली या विदेशी इन दिनों खमीरी रोटी खाए तो वह इस्राएल का भाग न हो।
\v 20 अपने घरों में, उन सातों दिन तुम किसी प्रकार का खमीर मिला भोजन नहीं करना।"
\p
\s5
\v 21 तब मूसा ने सब इस्राएली बुजुर्गों (नेताओं) को एकत्र किया और उनसे कहा, “प्रत्येक परिवार एक मेम्ना चुन कर उसे मारे कि तुम इस पर्व को मनाने के लिए खा सको, इस पर्व को ‘फसह’ कहा जाएगा।
\v 22 उस मेम्ने का खून एक कटोरे में लेकर उसमें जूफा का गुच्छा डुबो कर अपने घरों के द्वारों की चौंखटों पर लगा देना। सुबह होने तक कोई भी घर से बाहर न निकले।
\s5
\v 23 जब रात में यहोवा मिस्रियों के पहले नरों को मारने निकलेंगे तब वह तुम्हारे द्वारों की चौंखटों पर खून देख कर आगे बढ़ जाएंगे और उनके मारने वाले दूत तुम्हारे पहले नरों को नहीं मारेंगे।
\s5
\v 24 तुम और तुम्हारे वंशजों को सदा के लिए इस पर्व को मनाना है।
\v 25 जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो यहोवा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हें देंगे तब भी तुम प्रतिवर्ष इस पर्व को मनाना।
\s5
\v 26 जब तुम्हारी संतान तुमसे पूछे, “इस पर्व का अर्थ क्या है?”
\v 27 तब तुम उन्हें अवश्य बताना, “यह पर्व इस बात की याद में है कि जब यहोवा का स्वर्गदूत मिस्र में से निकला था तब तुम्हारे पूर्वजों ने मेम्ना बलि किया था और उसका खून अपने द्वारों की चौखटों पर लगाया था कि वह स्वर्गदूत उनके पहले नरों को न मारे। उसने सब मिस्रियों के पहले नरों को मार दिया था। परन्तु हमारे पूर्वजों के पहले नर को छोड़ दिया।" जब मूसा यह सब कह चुका तब सब ने अपने सिर झुकाकर यहोवा की आराधना की।
\v 28 तब इस्राएली लोगों ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने हारून और मूसा से करने के लिया कहा था।
\p
\s5
\v 29 आधी रात में यहोवा ने मिस्र के सब पहले पुत्रों को मार डाला। राजा का पहले पुत्र, कारागार में पड़े हुए बन्दी का पहले पुत्र, और हर एक मिस्री के पहले नर को मार दिया। उन्होंने उनके पशुओं के पहले नरों को भी मार दिया।
\v 30 उस रात राजा, उसके सब अधिकारी, और सब मिस्री लोग जागे तो उन्हें पता चला कि क्या हुआ है। सब लोग जोर-जोर से रोने चिल्लाने लगे क्योंकि हर घर में किसी न किसी के पुत्र की मृत्यु हुई थी।
\p
\s5
\v 31 उस रात राजा ने हारून और मूसा को बुलाया और कहा, “उठो, तुम और अन्य सब इस्राएली लोग मेरा देश छोड़ कर जाओ और यहोवा की आराधना करो, जैसा तुमने अनुरोध किया था!
\v 32 भेड़ों, बकरियों और मवेशियों के झुंड को अपने साथ ले जाओ, और यहाँ से निकल जाओ। मुझे आशीर्वाद देने के लिए यहोवा से विनती करो!"
\p
\v 33 मिस्रियों ने इस्राएली लोगों को उनके देश से जल्दी से निकल जाने के लिये कहा। उन्होंने कहा, “यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो हम सब मर जाएँगे!"
\s5
\v 34 इस्राएली लोग जाने के लिए तैयार तो थे ही। उन्होंने गुँदे आटे की परातों को अपने कपड़ों में लपेटा और अपने कंधों पर रख कर वहा से निकले।
\v 35 इस्राएलियों ने मूसा के कहने के अनुसार अपने पड़ोसियों से सोने-चाँदी के गहने और वस्त्र मांग लिए। यहोवा ने मिस्रियों को इस्राएलियों पर ऐसा कृपालु कर दिया था कि उन्होंने जो कुछ मांगा, मिस्रियों ने दे दिया।
\v 36 यहोवा ने मिस्र के लोगों की दृष्टी में इस्राएली लोगों के लिए सम्मान का कारण उत्पन्न कर दिया था। इस्राएली लोगों ने उनसे जो कुछ भी माँगा उन्हें दिया। इस प्रकार, इस्राएली लोग मिस्र के लोगों की संपत्ति ले गए।
\p
\s5
\v 37 इस्राएली रामसेस से निकल के सुपकोत की ओर चले। स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त 600,000 पुरूषों ने वहाँ से प्रस्थान किया।
\v 38 उनके साथ कुछ ऐसे लोग भी थे जो इस्राएली नहीं थे। उनके साथ अनेक भेड़ें, बकरियाँ और अन्य पशु थे।
\v 39 मार्ग में उन्होंने उसी गूंधे हुए आटे से रोटियां पकाई जिसे वे अपने साथ लेकर आए थे जब उन्हें मिस्र से निकल जाने की आज्ञा दी गई थी। उस आटे में खमीर नहीं था क्योंकि मिस्र से निकल जाने की आज्ञा ऐसी तात्कालिक थी कि उनके पास मार्ग के लिए भोजन तैयार करने का समय नहीं था और न ही आटे में खमीर मिलाकर रखने का समय उनके पास था।
\p
\v 40 इस्राएल के लोग मिस्र में 430 वर्ष तक रहे।
\s5
\v 41 जिस दिन 430 वर्ष समाप्त हुए, उसी दिन, यहोवा के लोगों के सब गोत्रों ने मिस्र छोड़ा।
\v 42 वह एक ऐसी रात थी कि इस्राएलियों को जागते रहना पड़ा क्योंकि यहोवा उन्हें मिस्र से निकाल कर ले जाने वाले थे। इसलिए वह रात यहोवा के लिए समर्पित हो गई थी। उस रात को प्रतिवर्ष, प्रत्येक पीढ़ी में याद किया जाना था क्योंकि यहोवा ने उनके पूर्वजों को सुरक्षित रखा था।
\p
\s5
\v 43 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “फसह के संस्कार की विधि यह हैः कोई विदेशी फसह पर्व में से नहीं खाएगा।
\v 44 परन्तु तुम्हारे द्वारा मोल लिए गए दास खतने के बाद इसे खा सकते है।
\s5
\v 45 परन्तु यदि कोई व्यक्ति केवल तुम लोगों के देश में रहता है या किसी व्यक्ति को तुम्हारे लिए मजदूरी पर रखा गया है तो उस व्यक्ति को उस में से नहीं खाना है।
\v 46 प्रत्येक परिवार को घर के अन्दर ही भोजन करना चाहिए। कोई भी भोजन घर के बाहर नहीं ले जाना चाहिए। मेम्ने की किसी हड्डी को न तोड़ें।
\s5
\v 47 सारे इस्राएली लोग इस पर्व को अवश्य मनाएँ।
\v 48 यदि कोई ऐसा व्यक्ति तुम लोगों के साथ रहता है जो इस्राएल की जाति का सदस्य नहीं है परन्तु वह फसह पर्व में सम्मिलित होना चाहता है तो उसका खतना अवश्य होना चाहिए। तब वह इस्राएल के नागरिक के समान होगा, और वह भोजन में भाग ले सकेगा। किन्तु यदि उस व्यक्ति का खतना नहीं हुआ हो तो वह इस फसह पर्व के भोजन को नहीं खा सकता।
\s5
\v 49 ये नियम उन लोगों पर लागू होते हैं जो जन्म से इस्राएली है और जो तुम्हारे बीच में रहने वाले विदेशी हैं।"
\p
\v 50 सब इस्राएलियों ने मूसा और हारून की बात मान ली और यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया।
\v 51 उसी दिन, यहोवा मिस्र से इस्राएल के सब गोत्रों को बाहर ले गये।
\s5
\c 13
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “पहले सब पुरुषों को समर्पित करो कि वह मेरे लिए हों। इस्राएलियों और उनके पशुओं के सब पहले नर मेरे होंगे।”
\p
\s5
\v 3 मूसा ने लोगों से कहा, “इस दिन को मत भूलना! यह वह दिन है जब तुम्हें मिस्र देश से निकाला गया था। इस दिन तुम उनके दासत्व से मुक्त किए गए थे। यहोवा ने तुम्हें अपनी महा-शक्ति से उस देश से निकाला था। जब भी तुम इस दिन का पर्व मनाते हो तब यह सुनिश्चित करना कि तुम्हारी रोटी खमीर से रहित हो।
\v 4 आज के दिन तुम लोग मिस्र से प्रस्थान कर रहे हो जो आबीब के महीने का पहला दिन है।
\v 5 आगे चलकर, जब परमेश्वर तुम्हें उस देश में ले आएँगे जहाँ इस समय कनानी, हित्ती, एमोरी, हिब्बी और यबूसी जातियाँ वास करती है, जिसे तुम्हें देने की प्रतिज्ञा परमेश्वर कर चुके हैं। यह वह देश है जो पशु-पालन और खेती के लिए अति उत्तम स्थान है। तुम्हें प्रतिवर्ष इसी महीने में यह पर्व मनाना अनिवार्य है।
\s5
\v 6 सात दिनों तक जिस रोटी को तुम खाते हो, उसमें कोई खमीर नहीं होना चाहिए। सातवें दिन यहोवा का सम्मान करने के लिए एक पर्व होना चाहिए।
\v 7 उसमें सात दिन तक तुम जो रोटी खाओगे वह पूरी तरह खमीर रहित हो। सातवें दिन यहोवा के सम्मान में यह पर्व मनाया जाए।
\s5
\v 8 जिस दिन तुम्हारा यह पर्व आरंभ हो, तुम उस दिन अपनी सन्तान से कहोगे, ‘हम यह पर्व इसलिए मना रहे है कि याद करें कि यहोवा ने हमारे पूर्वजों के लिए मिस्र से प्रस्थान के समय क्या किया था।’
\v 9 यह अनुष्ठान तुम्हें याद कराने के लिए होगा कि यहोवा ने किस प्रकार अपनी महा-शक्ति से तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से छुड़वाया था। यह अनुष्ठान ऐसा होगा जैसा तुम किसी वस्तु को अपने माथे पर या बाजू पर बान्धते हो। यह तुम्हें याद कराएगा कि अन्य मनुष्यों के सामने यहोवा के निर्देशों का वर्णन करो।
\v 10 इसलिए तुम्हें प्रतिवर्ष यहोवा द्वारा निश्चित समय पर यह पर्व मनाना है।
\p
\s5
\v 11 यहोवा तुम्हें उस देश में ले जाएँगे जहाँ कनानियों के वंशज रहते है क्योंकि उन्होंने तुमसे और तुम्हारे पूर्वजों से यह प्रतिज्ञा की है। जब वे तुम्हें वह भूमि दे दें,
\v 12 तुम्हें यहोवा को अपने सभी पशुओंं के पहले नर देने होंगे। ये सब यहोवा के होंगे।
\v 13 तुम अपने गदहों के नर पहले रख सकते हो परन्तु तुम उसके स्थान में एक मेम्ना मारना जो उसके मूल्य के लिए होगा। यदि तुम गधे के उस बच्चे को मेम्ना देकर लेना नहीं चाहते तो उसकी गर्दन तोड़ कर उसको मार देना। तुम्हारे लिए अनिवार्य है कि तुम अपने हर एक पहले पुत्र का मूल्य चुका कर लो।
\s5
\v 14 भविष्य में जब तुम्हारी सन्तान पूछें, ‘इसका अर्थ क्या है? तब तुम उनसे कहना, “यहोवा हमारे पूर्वजों को अपनी महा-शक्ति से छुड़ा कर मिस्र से निकाल लाया था और उन्हें दासत्व से मुक्त कराया था।"
\v 15 मिस्र का राजा उन्हें मुक्त करना नहीं चाहता था इसलिए यहोवा ने मिस्र के हर एक पहले बच्चे को मार दिया था- प्रत्येक पुत्र और पशु का बच्चा। यही कारण है कि हम अपने पशुओं का पहला बच्चा यहोवा को अर्पित कर देते हैं और अपने पहले पुत्र को उससे मोल लेते है।'
\v 16 इससे तुम्हें याद रहेगा कि यहोवा ने किस प्रकार अपनी महा-शक्ति से हमारे पूर्वजों को मिस्र देश से मुक्ति दिलाई थी। यह वैसा ही एक स्मारक है जैसा तुम किसी बात को याद रखने के लिए अपने माथे या बाजू पर कुछ बान्ध लेते हो।"
\p
\s5
\v 17 जब मिस्र के राजा ने इस्राएलियों को अपने देश से निकल जाने दिया तब यहोवा उन्हें छोटे रास्ते से अर्थात पलिश्तियों के देश से लेकर नहीं चला। परमेश्वर ने कहा, “यदि मेरी प्रजा पलिश्तियों से युद्ध करने के विचार से उस देश पर अधिकार करने से पीछे हट गई तो वे फिर से मिस्र वापस जाने का निर्णय लेंगे।"
\v 18 इसकी अपेक्षा, परमेश्वर उन्हें मरुभूमि का चक्कर कटा कर लाल सागर की ओर ले चला। मिस्र से निकलते समय इस्राएलियों ने हथियार भी ले लिए थे कि विरोधियों से लड़ने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
\p
\s5
\v 19 मूसा ने यूसुफ की अस्थियाँ भी उनसे उठवा ली थीं क्योंकि यूसुफ ने अपने जीवित रहते समय ही उनसे यह प्रतिज्ञा करवाई थी। यूसुफ ने उनसे कहा था, “परमेश्वर तुम्हारे वंशजों को मिस्र से छुड़वाएंगे और जब यहोवा ऐसा करें तब तुम मेरी अस्थियाँ अपने साथ लेकर यहाँ से जाना।”
\p
\v 20 इस्राएली लोग सुक्कोत से निकल के एताम पहुँचे जो मरुभूमि की छोर पर था और वहाँ डेरा डाला।
\v 21 जब वे दिन के समय यात्रा करते थे तब यहोवा की उपस्थिति बादल के खम्भे के रूप में उनके साथ होती थी कि उनके आगे-आगे मार्गदर्शन करते हुए चले। रात के समय यहोवा की उपस्थिति आग के खम्भे के रूप में उनका मार्गदर्शन करती थी। इस प्रकार यहोवा दिन में और रात में उनकी यात्रा को सुलभ बनाते थे।
\v 22 ऊँचे खम्भे के रूप में बादल ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह सदैव उनके आगे-आगे चलता था, दिन में बादल का एक ऊँचा खम्भा और रात में आग के खम्भे के रूप में।
\s5
\c 14
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएली लोगों से कह कि वे पीछे मुड़कर पीहाहीरोत में अपने तम्बू लगाएँ। यह नगर मिगदोल और समुन्द्र के बीच में है। वहीँ समुद्र के समीप अपने तम्बू लगाओ।
\v 3 जब राजा को यह जानकारी मिलेगी कि तुमने ऐसा किया है, तब वह सोचेगा, ‘इस्राएली जंगल में भटक गए और रेगिस्तान के कारण उनके मार्ग में रुकावट आ गयी है। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि अब क्या करें।'
\s5
\v 4 परन्तु मैं राजा को फिर से हठीला बना दूँगा और वह अपनी सेना के साथ तुम्हारे पीछे आएगा। तब मेरे लोग राजा और उसकी सेना पर मेरी विजय के कारण मेरा गुणगान करेंगे और मिस्री लोग जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।" इसलिए मूसा ने इस्राएलियों को परमेश्वर का यह निर्देश सुनाया और उन्होंने वही किया जो मूसा ने कहा था।
\p
\v 5 जब राजा को यह समाचार मिला कि इस्राएली रातों-रात वहाँ से निकल गए तब उसने और उसके कर्मचारियों ने अपना विचार बदलकर कहा, “हमने यह क्या कर दिया? इस्राएली तो हमारे दासत्व से निकल गए!”!”
\s5
\v 6 राजा ने अपना रथ और अपनी सेना तैयार की।
\v 7 राजा ने छः सौ सर्वश्रेष्ठ रथों का चयन किया और प्रत्येक पर एक सारथी, एक सैनिक और एक सेनानायक थे, और वे चले गए।
\v 8 यहोवा ने मिस्र के राजा को हठीला बना दिया इसलिए उसने और उसकी सेना ने इस्राएलियों का पीछा किया। इस्राएली निश्चिन्त होकर बढ़ते चले जा रहे थे।
\v 9 राजा अपने घुड़सवारों, रथों और घोड़ों के साथ इस्राएलियों के पीछे गया और बाल-सपोन के सामने पीहाहीरोत के समीप समुद्री तट पर इस्राएलियों के डेरे के निकट पहुँच गया।
\p
\s5
\v 10 राजा की सेना को निकट आते देख इस्राएली लोग आश्चर्यचकित हुए। इस्राएली लोग बुरी तरह से डर गए और उन्होंने सहायता के लिए यहोवा को पुकारा।
\v 11 तब उन्होंने मूसा से कहा, “क्या मिस्र में स्थान नहीं था कि हम दफ़न किए जाएँ? तू हमारी कब्रें खुदवाने के लिए हमें मरुभूमि में क्यों ले आया है? अब देख मिस्र से हमें निकालकर तूने हमारे लिए कैसा अनर्थ उत्पन्न कर दिया है।
\v 12 जब हम मिस्र में थे तब हमने तुझे बताया था कि, 'हमें अकेला छोड़ दे और हमें मिस्र के लोगों के लिए काम करने दे।’ मरुभूमि में यहाँ मरने से बेहतर होता कि हम मिस्र के लोगों के दास बनकर रहते!"
\p
\s5
\v 13 मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत! दृढ़ रहो और देखो कि आज तुम लोगों को यहोवा कैसे बचाते हैं। आज के बाद तुम लोग इन मिस्रियों को कभी नहीं देखोगे।
\v 14 यहोवा तुम्हारे लिए लड़ेंगे! तुम लोगों को शान्त रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करना है।"
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस स्थिति में तुम्हें मुझको पुकारना नहीं पड़ेगा; इस्राएल के लोगों को आगे चलने का आदेश दो।
\v 16 अपने हाथ की लाठी को लाल सागर के ऊपर उठाओ और लाल सागर फट जाएगा। तब लोग सूखी भूमि से समुद्र को पार कर सकेंगे।
\v 17 मैं मिस्रियों को हठीला बना दूँगा और वे इस्राएलियों का पीछा करेंगे। तब मैं राजा, उसकी सेना, उसके रथों और उसके घुड़सवारों के साथ जो करूँगा उसके कारण इस्राएली मेरा गुणगान करेंगे।
\v 18 जब मैं राजा, उसके रथों और उसके घुड़सवारों पर विजयी हो जाऊँगा तब मिस्री जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ, ऐसा परमेश्वर जो कुछ भी कर सकता है।"
\p
\s5
\v 19 तब परमेश्वर का दूत, जो इस्राएलियों के आगे-आगे चलता था, उनके पीछे आ गया। बादल का खम्भा लोगों के आगे से हट गया और उनके पीछे आ गया।
\v 20 वह मिस्र की सेना और इस्राएलियों के बीच खड़ा हुआ। उस बादल के कारण मिस्रियों पर अन्धकार छा गया परन्तु इस्राएलियों को प्रकाश मिलता रहा। इसलिए न तो इस्राएली और न ही मिस्री एक-दूसरे के निकट आ पाए।
\p
\s5
\v 21 उसी शाम को मूसा ने अपना हाथ उठाया जैसे कि वह समुद्र पर हाथ फैला रहा हो। तब यहोवा ने पूर्व से एक तेज आँधी भेजी। पूरी रात आँधी समुद्र पर बहती रही और समुद्र के जल को विभाजित करके भूमि को सुखा दिया।
\v 22 तब इस्राएली लोग समुद्र के बीच में सूखी भूमि पर गए। समुद्र का जल बायीं ओर और दाहिनी ओर दीवार के जैसा थम गया।
\s5
\v 23 मिस्र की सेना उनका पीछा करते हुए अपने घोड़ों, रथों और सारथियों समेत समुद्र के बीच जा पहुँची।
\v 24 सुबह होने से कुछ समय पहले, यहोवा ने आग के बादल से नीचे देखा और मिस्री सेना को भयभीत कर दिया।
\v 25 उन्होंने उनके रथों के पहिये समुद्री भूमि में फंसा दिए कि वे न आगे बढ़ सके न पीछे हट सके। इस पर मिस्री एक-दूसरे से कहने लगे, “यहोवा इस्राएलियों की ओर से हमारे विरुद्ध लड़ रहे है। आओ! हम यहाँ से भाग निकलें!”
\p
\s5
\v 26 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अपनी बाहों को ऐसे बढ़ा जैसे कि तू इसे समुद्र में फैला रहा है। तब समुद्र का जल मिस्रियों के रथों और उनके घुड़सवारों पर आ जाएगा।”
\v 27 मूसा ने समुद्र पर अपना हाथ उठाया और सूर्योदय के समय जल का स्तर समतल होकर सामान्य स्थिति में आ गया। मिस्रियों ने बचकर निकलने का प्रयास किया परन्तु यहोवा ने मिस्रियों को समुद्र से नहीं निकलने दिया।
\v 28 समुद्र का जल अपने उचित तल तक लौटा और इस्राएलियों का पीछा करने वाली मिस्री सेना को उसके रथों और घुड़सवारों के साथ जल में डूबा दिया। हर एक मिस्री मारा गया।
\s5
\v 29 किन्तु इस्राएल के लोगों ने सूखी भूमि पर चलकर समुद्र पार किया। उनकी दाहिने और बायें ओर जल दीवार की तरह खड़ा था।
\p
\v 30 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को मिस्री सेना के हाथ से बचाया। इस्राएल के लोगों ने मिस्रियों के शवों को देखा। उनके शव लाल सागर के किनारों पर जल में थे।
\v 31 इस्राएलियों ने देखा कि यहोवा ने अपनी महा-शक्ति से मिस्रियों के साथ क्या किया और उनमें यहोवा का भय समा गया। उन्होंने यहोवा और मूसा पर भरोसा रखा।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब मूसा और सब इस्राएली लोगों ने यहोवा के लिए एक गीत गाया। उन्होंने यह गीत गाया,
\q1 “मैं यहोवा का भजन गाऊँगा क्योंकि उन्होंने महान विजय प्राप्त की हैं;
\q2 उन्होंने घोड़ों और उनके सवारों को समुद्र में फेंक दिया हैं!
\q1
\s5
\v 2 यहोवा ही हैं जो मुझे बल देते है, मैं उन्हीं का भजन गाऊँगा।
\q2 वह वही हैं जिन्होंने मुझे बचाया है।
\q1 वह मेरे परमेश्वर है और मैं उनकी स्तुति करूँगा।
\q2 वह मेरे पिता के परमेश्वर है, मैं उनकी आराधना करूँगा,
\q2 और मैं उनकी महानता का वर्णन दूसरों से करूँगा।
\q1
\v 3 यहोवा एक योद्धा हैं;
\q2 यहोवा उनका नाम है।
\q1
\s5
\v 4 उन्होंने राजा के रथों और उसकी सेना को समुद्र में फेंक दिया है;
\q राजा के सर्वोत्तम अधिकारी सब लाल सागर में डूब गए।
\q1
\v 5 जल ने उन्हें बाढ़ के समान ढ़ाँक दिया;
\q2 वे पत्थर के समान समुद्र तल में डूब गए।
\q1
\s5
\v 6 हे यहोवा, आपकी शक्ति अपार है;
\q2 उस शक्ति के साथ, हे यहोवा, आपने दुश्मनों को टुकड़े-टुकड़े कर डाला है।
\q1
\v 7 हम आपका बहुत सम्मान करते हैं क्योंकि आपने हमारे दुश्मनों को पराजित किया है।
\q1 क्योंकि आप उनसे क्रोधित थे, आपने उन्हें ऐसे नष्ट कर दिया है
\q2 जैसे आग पुआल को जला कर नष्ट कर देती है।
\q1
\v 8 आप समुद्र पर उड़े,
\q2 और जल एकत्र हो गया;
\q1 पानी दो दीवारों के समान खड़ा था।
\q1 समुद्र के गहनतम भाग में पानी ऐसे एकत्र हो गया,
\q2 जैसे कि जम गया हो।
\q1
\s5
\v 9 हमारे दुश्मनों ने कहा, ‘हम उनका पीछा करके
\q2 उन्हें पकड़ लेंगे।
\q1 हम अपनी तलवारें खींचकर
\q2 उन पर वार करेंगे।
\q1 हम उन्हें हराकर,
\q2 हम लूट में प्राप्त की गई सभी वस्तुओं को विभाजित कर के आपस में बाँट लेंगे।'
\q1
\v 10 परन्तु आपने उन पर अपना श्वास फूंक कर उडा दिया,
\q2 और फिर समुद्र ने उन्हें डूबा दिया।
\q1 वे बड़ी-बड़ी लहरों में सीसे के समान डूब गए।
\q1
\v 11 हे यहोवा, उनके देवताओं के बीच में आपके समान कोई परमेश्वर नहीं है।
\q2 आप महिमामय, हैं आपके द्वारा बनाये सब से बिल्कुल अलग है।
\q1 आपके जैसा कोई नहीं है!
\q2 आपके द्वारा किए गए सब चमत्कारों के कारण सब आपसे डरते हैं और आपकी स्तुति करते हैं!
\q1
\s5
\v 12 जब आपने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया,
\q2 तब पृथ्वी ने हमारे दुश्मनों को निगल लिया!
\q1
\v 13 आपने कभी भी हमसे प्रेम करना नहीं छोड़ा है, हमें जिन्हें आपने बचाया है;
\q2 अपनी शक्ति के साथ आप हमें उस देश में ले जा रहे है जहाँ आप स्वयं रहते हैं।
\q1
\s5
\v 14 अन्य जातियों के लोग सुनेंगे कि आपने क्या किया है,
\q2 तो वे कांपने लगेंगे।
\q1 पलिश्त के लोग भयभीत होंगे।
\q1
\v 15 एदोम के प्रधान निराश होंगे।
\q2 मोआब के प्रधान इतना डर जाएँगे कि वे थरथराएँगे। कनान में रहने वाले सभी लोग बेहोश हो जाएँगे।
\q1
\s5
\v 16 वे आपकी महान शक्ति के कारण भयभीत होंगे।
\q2 लेकिन वे पत्थरों के समान चुप हो जाएँगे
\q2 जब तक हम, आपके लोग, उनके पास से चल कर निकल न जाएँ-
\q2 जिन्हें आपने मिस्र में दास होने से निकाला है।
\q2
\s5
\v 17 आप हमें प्रतिज्ञा के देश कनान में ले जाएँगे।
\q1 आप हमें अपने पर्वत पर वास करने योग्य बनाएँगे,
\q2 हे प्रभु, उस स्थान पर जिसे आप, यहोवा ने, उस पवित्र स्थान में, जिसका आप स्वयं निर्माण करेंगे अपना देश होने के लिए चुन लिया है।
\q1
\v 18 हे यहोवा, आप सदा के लिए शासन करेंगे!"
\p
\s5
\v 19 जब राजा के घोड़ों रथों और घुड़सवारों ने समुद्र में से होकर आगे बढ़ना चाहा तब यहोवा ने समुद्र के पानी को ज्यों का त्यों कर दिया और वे पानी में डूब गए। परन्तु इस्राएली समुद्र पार करके सूखी भूमि पर आ चुके थे।
\v 20 तब मरियम ने जो हारून की बड़ी बहन और भविष्यद्वक्तिन थी, अपना डफ लिया और अन्य स्त्रियों के साथ जिनके हाथों में भी डफ थे नाचती हुई निकली।
\v 21 मरियम ने इस गीत को गाया:
\q1 “यहोवा के लिए गाओ
\q2 क्योंकि उन्होंने अपने दुश्मनों पर भव्य विजय प्राप्त की है।
\q1 उन्होंने घोड़ों और उनके सवारों को समुद्र में फेंक दिया है।"
\p
\s5
\v 22 तब मूसा इस्राएलियों को लाल सागर के तट से लेकर आगे बढ़ा और वे शूर नामक मरुभूमि में आए। उस जंगल में यात्रा करते समय तीन दिन तक उन्हें कोई जल स्रोत नहीं मिला।
\v 23 वे चलते-चलते मारा नामक एक स्थान में पहुँचे। वहाँ जल स्रोत तो था परन्तु वह पानी खारा होने के कारण पीने योग्य न था। इस कारण उन्होंने उस स्थान का नाम मारा रखा। इस इब्रानी शब्द का अर्थ है, “कड़वा।”
\s5
\v 24 लोगों ने मूसा से शिकायत की, “हमारे पास पीने के लिए जल नहीं है।”
\v 25 मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की। तब यहोवा ने उसे एक पेड़ दिखाया। तो मूसा ने शाखाओं में से एक शाखा ली और उसे पानी में फेंक दिया। पानी पीने के योग्य हो गया। इस स्थान पर यहोवा ने उनके पालन करने के लिए नियम दिया। वहाँ यहोवा ने उनकी परीक्षा भी ली कि देखे वे उसकी आज्ञा मानेंगे या नहीं।
\v 26 उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। यदि तुम मेरा कहना मानोगे और जो मेरी दृष्टि में उचित है वही करोगे और मैं जो भी आज्ञा दूं उसका पालन करोगे तो मैं उन सब विपत्तियों से तुम्हारी रक्षा करूँगा जो मैंने मिस्र पर डाली थी। कभी मत भूलना कि मैं यहोवा हूँ जो तुम्हें स्वस्थ करता हूँ।”
\p
\s5
\v 27 इस प्रकार वे मारा से चलकर एलीम नामक स्थान पहुँचे। वहाँ पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे। उन्होंने वहाँ अपनी छावनी डाली।
\s5
\c 16
\p
\v 1 तब उन्होंने ने एलीम से यात्रा की और सीनै की मरुभूमि में पहुँचे। यह स्थान एलीम और सीनै के बीच था। यह मिस्र से निकलने के बाद दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन की घटना है।
\v 2 मरुभूमि में, इस्राएली लोगों ने हारून और मूसा से शिकायत करनी शुरु की।
\v 3 उन्होंने उनसे कहा, “हमारे लिए अच्छा होता कि यहोवा हमें मिस्र में मार डालता। मिस्र में हम लोगों के पास खाने के लिए माँस और रोटी थी। किन्तु अब तू हमें मरुभूमि में ले आया है कि हम सब यहाँ भूख से मर जाएँ।"
\p
\s5
\v 4 यहोवा ने मूसा से कहा, “अब सुन मैं क्या करने जा रहा हूँ। मैं आकाश से कुछ बरसाऊँगा जो तुम्हारे लिए रोटी होगी। जब मैं उसे बरसाऊँगा तब उन्हें प्रतिदिन सुबह-सुबह बाहर निकल कर उसे एकत्र करना होगा परन्तु केवल इतनी ही मात्रा में जो एक दिन के लिए आवश्यक है। इससे मैं उनको परखूंगा कि वे मेरी आज्ञाओं पर चलेंगे या नहीं।
\v 5 जब मैं उनके लिए ऐसा प्रबन्ध कर दूँगा तब वे सप्ताह के छठवें दिन प्रतिदिन की तुलना में दो गुणा एकत्र करेंगे कि सातवें दिन उन्हें उसे एकत्र करने का काम न करना पड़े। वे छठवें दिन एकत्र किया गया भोजन अगले दिन खाने के लिए रख लें।"
\p
\s5
\v 6 तब हारून और मूसा ने सब इस्राएली लोगों से कहा, “आज की इस शाम को तुम्हें यह समझ लेना है कि तुम्हे मिस्र देश से निकालना हमारा नहीं यहोवा का काम था।
\v 7 कल सुबह तुम देखोगे कि यहोवा कितने महान है। उन्होंने तुम्हारी शिकायत सुनी है। तुम लोग हम लोगों से शिकायत पर शिकायत कर रहे हो, तुम्हारी शिकायत वास्तव में यहोवा से है क्योंकि हम तो केवल उसके दास हैं।"
\v 8 मूसा ने यह भी कहा, “यहोवा हर शाम के समय तुम्हें माँस देंगे और हर सुबह रोटी देंगे क्योंकि उन्होंने तुम्हारी शिकायत सुनी है। तुमने हमारे विरुद्ध नहीं यहोवा ही के विरुद्ध शिकायत की है। हम तो केवल उसके दास हैं।"
\p
\s5
\v 9 तब मूसा ने हारून से कहा, “सब इस्राएलियों से कह कि वे आकर मेरी उपस्थिति में खड़े हों क्योंकि मैंने उनकी शिकायत सुनी है जो वास्तव में मेरे ही विरुद्ध है।"
\p
\v 10 इसलिए हारून ने परमेश्वर का सन्देश सुना दिया। जब हारून इस्राएलियों से बातें कर ही रहा था तब बादलों में यहोवा की महिमा को प्रकट होते देखकर सब आश्चर्यचकित हुए।
\v 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 12 “मैंने इस्राएलियों की शिकायत सुनी है। इसलिए उनसे कह, 'आज शाम के समय तुम्हें माँस खाने को मिलेगा और कल सुबह तुम रोटियाँ खाओगे। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ।'"
\p
\s5
\v 13 उस शाम के समय इतनी बटेरें उतरीं कि छावनी का मैदान ढंक गया। अगली सुबह छावनी के चारों ओर पानी की छोटी बूंदों के समान कुछ था।
\v 14 जब पानी सूख गया, भूमि पर छोटे सफेद गुच्छे की तरह दिखने वाली पतली परतें थीं। वे भूमि पर बर्फ की परतों के समान रही थी।
\v 15 इस्राएलियों ने उसे पहले कभी नहीं देखा था और वे नहीं जानते थे कि वह क्या है, उन्होंने एक-दूसरे से पूछा, “यह क्या है?” मूसा ने उनसे कहा, “यह तुम्हारी रोटी के लिए यहोवा ने दिया है।
\s5
\v 16 यहोवा की आज्ञा है कि तुम उतना ही इसे उठाना जितना दिन भर के लिए आवश्यक हो। प्रति व्यक्ति दो टोकरी (1820 ग्राम) एकत्र करना।”
\p
\v 17 इस्राएलियों ने उसके आदेश के अनुसार ही किया, किसी ने अधिक और किसी ने कम एकत्र किया।
\v 18 परन्तु जब उन्होंने उसे नापा जो एकत्र किया था तब अधिक एकत्र करने वालों के पास आवश्यकता से अधिक नहीं था और कम एकत्र करने वालों के पास आवश्यकता से कम नहीं था। हर एक के पास पर्याप्त मात्रा में था।
\p
\s5
\v 19 मूसा ने उन से कहा, “कल सुबह के लिए कुछ नहीं बचाना।”
\v 20 परन्तु उनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने मूसा की बात पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने अगले दिन के लिए भी कुछ बचा लिया और उसमें कीड़े पड़ गए जिससे वह दुर्गन्ध देने लगा। उनके इस काम के कारण मूसा उन लोगों पर क्रोधित हुआ।
\p
\v 21 हर सुबह वे आवश्यकता के अनुसार ही एकत्र करते थे। और जो भूमि पर रह जाता था वह सूर्योदय के समय गल जाता था।
\p
\s5
\v 22 छठवें दिन प्रत्येक व्यक्ति उस वस्तु को (360 ग्राम) एकत्र करता था जो प्रतिदिन इकट्ठी की गई मात्रा का दो गुणा होता था। यह देख समुदाय के मुखियों ने मूसा को इसकी जानकारी दी।
\v 23 मूसा ने उन से कहा, “यहोवा ने यही कहा है: कल तुम्हारे लिए विश्राम करने का दिन होगा। यह दिन यहोवा के लिए होगा। तो आज तुम कल के लिए भी खाना पकाकर रख लो। आज जो कुछ बचेगा उसे कल के भोजन के लिए रख लेना।"
\p
\s5
\v 24 इसलिए उन्होंने वैसा ही किया जैसा निर्देश मूसा ने उन्हें दिया था, उन्होंने अगले दिन के लिए भी उसे बचाकर रख लिया। वह न तो बासी हुआ और न ही उसमें कीड़े पड़े।
\v 25 उस दिन, मूसा ने कहा, “आज तुमने जो बचाया है वह खाओ क्योंकि आज यहोवा का विश्राम करने का दिन है। आज तुम्हें उस भोजन में से कुछ भी नहीं मिलेगा।
\s5
\v 26 हर हफ्ते, तुम इसे छः दिन तक एकत्र करना। लेकिन सातवें दिन, जो तुम्हारे लिए विश्राम का दिन होगा, तुमको कुछ नहीं मिलेगा।"
\v 27 परन्तु उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो सातवें दिन बाहर निकले कि उस भोजन वस्तु को एकत्र करें लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था।
\s5
\v 28 तब यहोवा ने लोगों से यह कहने को मूसा से कहा: “यहोवा क्रोधित हैं क्योंकि तुम लोग लम्बे समय से यहोवा की आज्ञाओं को टाल रहे हो।
\v 29 सुनो! यहोवा ने तुम्हें विश्राम का एक दिन दिया है। इसीलिए वह तुम्हें सप्ताह के छठवें दिन इतना भोजन देते हैं कि वह दो दिन के लिए पर्याप्त हो। तुम में हर एक व्यक्ति को अपनी ही छावनी में रहना है और सातवें दिन कोई भी किसी प्रकार का काम नहीं करेगा।"
\v 30 इसलिए लोगों ने सातवें दिन पूरा विश्राम किया।
\p
\s5
\v 31 इस्राएली लोगों ने उस भोजन को ‘मन्ना’ कहा, जो इब्रानी शब्द के समान लगता है जिसका अर्थ है ‘यह क्या है? यह धनिये के बीज के समान सफ़ेद दिखता था और स्वाद में वह शहद से बने पापड़ जैसा था।
\v 32 मूसा ने कहा, “यहोवा ने आदेश दिया कि, ‘तुम इस भोजन की दो टोकरियां (1820 ग्राम) मात्रा को संजो कर अपने आने वाले वंशजो के लिए रखना। तब वे उस भोजन को देख सकेंगे जिसे मैंने तुम लोगों को मरुभूमि में तब दिया था जब मैंने तुम लोगों को मिस्र से निकाला था।’”
\s5
\v 33 और मूसा ने हारून से कहा, “एक पात्र में दो लीटर मन्ना भर ले और उसे ऐसे स्थान में रख कि यहोवा की दृष्टि उस पर हो। उसे सब आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐसे ही रखा रहना है।”
\v 34 यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी थी, उसी के अनुसार हारून ने मन्ना से भरा वह पात्र उस सन्दूक के सामने रख दिया जिसमें दस आज्ञाओं की पत्थर की पट्टियाँ रखी थीं।
\v 35 इस्राएलियों ने चालीस वर्षों तक प्रतिदिन मन्ना खाया, जब तक कि वे कनान की सीमा पर नहीं पहुँचे।
\v 36 दो लीटर एपा का दसवां भाग है।
\s5
\c 17
\p
\v 1 यहोवा की आज्ञा के अनुसार इस्राएली लोगों ने सीन नामक मरुभूमि से चले और एक स्थान से दूसरे स्थान यात्रा करते हुए रपीदीम नामक एक स्थान में पहुँचे। वहाँ उन्होंने अपनी छावनी डाली परन्तु वहाँ पीने के लिए पानी नहीं था।
\v 2 इसलिए वे मूसा के विरुद्ध हो गए और कहा, “हमारे पीने के लिए कहीं से भी पानी ला।” मूसा ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे विरुद्ध क्यों बोल रहे हो? तुम यहोवा की परीक्षा क्यों लेना चाहते हो कि उनमें तुम्हारी आवश्यकताओ को पूरा करने की शक्ति है या नहीं?”
\v 3 परन्तु प्यास के कारण वे व्याकुल थे। इसलिए वे मूसा से कहते रहे, “तू हमें मिस्र से क्यों निकाल लाया? क्या तू हमें इसलिए ले आया है कि हम और हमारी सन्तान और हमारे पशु प्यास से मर जाएँ?”
\s5
\v 4 मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की, “मैं इन लोगों को कैसे संभालूं? वे तो मुझे पत्थरवाह करके मार डालने पर है।”
\v 5 यहोवा ने मूसा से कहा, “इन लोगों को लेकर आगे-आगे चल। अपने साथ इस्राएल के कुछ प्रधानों को ले और अपने हाथ में तेरी वही लाठी पकड़ जिससे तूने नील नदी पर चोट की थी।
\v 6 और सुन! मैं तेरे सामने सीनै पर्वत की एक बड़ी चट्टान पर खड़ा दिखाई दूँगा। उस चट्टान पर अपनी लाठी मारना। जैसे ही तू उस चट्टान को मारेगा वैसे ही उस चट्टान से पानी निकलने लगेगा।” मूसा ने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार ही किया और इस्राएल के बुजुर्गों के सामने उस चट्टान से पानी निकाला।
\v 7 मूसा ने उस स्थान के दो नाम रखें: “मस्सा” जिसका अर्थ है, “परीक्षा” और “मरीबा” जिसका अर्थ है, “वाद-विवाद।” मूसा ने उस स्थान का नाम “मस्सा” इसलिए रखा कि इस्राएली यहोवा की परीक्षा लेते हुए कह रहे थे, “क्या यहोवा वास्तव में हमारे बीच हैं और वह हमारी सहायता कर पाएँगे या नहीं?” और उस स्थान का नाम मूसा ने “मरीबा” इसलिए रखा कि वे मूसा से वाद-विवाद कर रहे थे।
\s5
\v 8 जब इस्राएली रपीदीम में ही थे तब अमालेकियों ने आकर उनसे युद्ध किया।
\v 9 इसलिए मूसा ने यहोशू से कहा, “कुछ पुरुषों को चुन ले कि वे कल अमालेकियों से युद्ध करें और मैं कल अपने हाथ में वह लाठी लेकर जिसे यहोवा ने मुझे साथ रखने के लिए कहा है, पर्वत की चोटी पर खड़ा रहूंगा।”
\v 10 यहोशू ने मूसा की आज्ञा का पालन करते हुए कुछ पुरुषों को चुन लिया और अमालेकियों से युद्ध करने गया। जब युद्ध होने लगा तब मूसा, हारून और हूर पर्वत की चोटी पर चढ़ गए कि युद्ध क्षेत्र को देख सकें।
\s5
\v 11 मूसा ने अपने हाथ उठाए हुए थे जिसके कारण इस्राएली विजयी हो रहे थे परन्तु जब वह अपने हाथ नीचे करता था तब अमालेकी विजयी होने लगते थे।
\v 12 हारून ने देखा कि मूसा हाथ उठाए-उठाए बहुत थक गया है इसलिए उसने और हूर ने एक बड़ा पत्थर लुड़काकर मूसा के निकट किया कि वह उस पर बैठ जाए और जब मूसा उस पर बैठ गया तब इन दोनों ने मूसा का एक-एक हाथ थाम कर उसे उठाए रखा और इस प्रकार शाम तक वे मूसा के हाथ उठाए रहे।
\v 13 इस प्रकार, यहोशू और उसके सैनिकों ने अमालेकियों को युद्ध में हरा दिया।
\s5
\v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस युद्ध के बारे में लिखकर हारून को पढ़कर सुना और यह भी लिख ले कि मैं अमालेकियों का सर्वनाश कर दूँगा।”
\v 15 तब मूसा ने वहाँ पत्थरों की एक वेदी बनाकर उसका नाम रखा, “यहोवा मेरा ध्वज है।”
\v 16 और मूसा ने कहा, “यहोवा के सिंहासन के सामने यह प्रतिज्ञा की गई है कि यहोवा अमालेकियों से सदा युद्ध करते रहेंगे!”
\s5
\c 18
\p
\v 1 मूसा का ससुर यित्रो मिद्यान में याजक था। उसने सुना कि यहोवा ने इस्राएलियों के पक्ष में कैसे-कैसे शक्तिशाली काम किए हैं। उसने यह भी सुना कि यहोवा कैसे इस्राएलियों को मिस्र से निकाल कर बाहर लाए।
\v 2 मूसा जब मिस्र लौट रहा था तब उसने अपनी पत्नी सिप्पोरा और अपने पुत्रों को घर भेज दिया था। अब यित्रो मूसा के पास आया।
\v 3 वह मूसा की पत्नी सिप्पोरा और उसके पुत्रों को भी साथ लाया। मूसा ने अपने एक पुत्र का नाम गेर्शोन रखा था क्योंकि उसे जन्म पर उसने कहा था, “मैं विदेशी होकर अन्य देश में रहता हूँ।”
\v 4 उसके दूसरे पुत्र का नाम उसने एलिएज़ेर रखा था, इसका इब्रानी में अर्थ है "परमेश्वर मेरी सहायता करते हैं। एलिएज़ेर के जन्म पर मूसा ने कहा था, “मेरा पिता जिस परमेश्वर की आराधना करता है उन्होंने मेरी सहायता की और मिस्र के राजा के हाथों मरने से बचाया।”
\s5
\v 5 जिस समय मूसा इस्राएलियों के साथ परमेश्वर के पवित्र पर्वत सीनै के निकट मरुभूमि में डेरा डाले था तब यित्रो उसके पास पहुँचा। मूसा की पत्नी और उसके दो पुत्र यित्रो के साथ थे।
\v 6 यित्रों ने मूसा को पहले ही सन्देश भेज दिया था, “मैं तेरा ससुर यित्रो हूँ और मैं तेरी पत्नी और तेरे दोनों पुत्रों को तुम्हारे पास ला रहा हूँ।”
\s5
\v 7 इसलिए मूसा अपने ससुर से मिलने गया। मूसा उसके सामने झुका और उसके गालो को चूमा। दोनों ने एक-दूसरे के बारे में पूछा और छावनी में मूसा के तम्बू में आए।
\v 8 मूसा ने यित्रो को हर एक बात बताई कि यहोवा ने इस्राएल के लोगों के लिए मिस्र के राजा और उसकी प्रजा के साथ क्या-क्या किया। मूसा ने उसे मार्ग की समस्याओं और यहोवा द्वारा इस्राएली लोगों को बचाए जाने के बारे में भी बताया।
\s5
\v 9 इस्राएलियों के लिए यहोवा के किये गए कार्यों के बारे में सुनकर यित्रों बहुत प्रसन्न हुआ।
\v 10 उसने कहा, “यहोवा की स्तुति करो। उन्होंने तुम्हें मिस्र की सेना की शक्ति से बचाया। उन्होंने तुम्हे मिस्र के राजा (जिसका नाम फिरोन था) से मुक्ति दिलाई और मिस्रियों के बन्धन से स्वतंत्र कराया।
\v 11 अब मैं जान गया हूँ कि यहोवा सब देवताओं से महान हैं क्योंकि उन्होंने तुम्हें अहंकारी मिस्रियों के अत्याचार से मुक्ति दिलाई है।
\s5
\v 12 तब यित्रों ने वेदी पर होम-बलि चढ़ाई और साथ अन्य बलियाँ भी चढ़ाई। हारून और इस्राएल के बुजुर्ग भी परमेश्वर के सम्मान में यित्रों के साथ भोजन करने को उपस्थित हुए।
\s5
\v 13 अगले दिन मूसा इस्राएलियों की समस्याओं को सुनने के लिए बैठा और लोग सुबह से शाम तक उसे घेरे रहे।
\v 14 यित्रो ने मूसा को न्याय करते देखकर उससे कहा, “तू इन लोगों के लिए यह सब क्या कर रहा है? तू अकेला ही बैठता है और लोग तुझे सुबह से शाम तक घेरे रहते है कि तू उनका न्याय करे।”
\s5
\v 15 मूसा ने कहा, “लोग मेरे पास आते हैं और अपनी समस्याओं के बारे में मुझ से परमेश्वर का निर्णय पूछते हैं।
\v 16 यदि उन लोगों का कोई विवाद होता है तो वे मेरे पास आते है कि मैं न्याय करूँ। मैं परमेश्वर के नियमों और निर्देशों को भी उन्हें सुनाता हूँ।
\s5
\v 17 यित्रो ने उससे कहा, “जिस प्रकार तू यह कर रहा है वह लोगों के लिए ठीक नहीं है।
\v 18 इस प्रकार तो तू और ये लोग जो न्याय के लिए तेरे पास आते है थक जाएँगे। तू अकेला यह काम नहीं कर सकता।
\v 19 अब मेरी बातों को ध्यान से सुन और मैं बताऊँगा कि तुझे क्या करना चाहिए। अगर तू मेरे सुझाव के अनुसार काम करेगा तो परमेश्वर तेरा सदा साथ देंगे। तुझे परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित होकर लोगों के विवादों को परमेश्वर के सामने लाता रह।
\v 20 और तुझे परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देनी चाहिए। तू उन्हें जीवन-आचरण और जीने की ठीक राह बताना।
\s5
\v 21 परन्तु इसके साथ ही तुझे अपनी सहायता के लिए कुछ लोगों को चुनना होगा। ये ऐसे व्यक्ति हों जिनमें परमेश्वर का भय हो और वे रिश्वत न लेते हों। इन चुने हुए व्यक्तियों को तू दस के समूहों, पचास के समूहों, सौ के समूहों और हज़ार के समूहों पर प्रधान नियुक्त कर दे।
\v 22 ये चुने हुए प्रधान, लोगों के झगड़ों को सुलझाएँ। यदि कोई बहुत ही गंभीर मामला हो जिसका निर्णय लेने में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़े तो वे प्रधान निर्णय के लिए तेरे पास आ सकते हैं। इस प्रकार उनकी सहायता से तेरा काम आसान हो जाएगा।
\v 23 यदि यह परमेश्वर की इच्छा हो और तू ऐसा करे तो तू अपने काम का बोझ झेल पाएगा। इसके साथ ही लोग अपनी समस्याओं के हल हो जाने से शान्तिपूर्वक घर लौट सकेंगे।”
\s5
\v 24 मूसा ने अपने ससुर के सुझाव को स्वीकार किया और वैसा ही किया।
\v 25 मूसा ने इस्राएलियों में से योग्य पुरुषों को चुनकर हज़ार-हज़ार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस के समूहों पर प्रधान नियुक्त कर दिया।
\v 26 मूसा ने उन्हें लोगों के झगड़ों का न्याय करने के लिए नियुक्त कर दिया। वे कठिन विषयों को ही मूसा के पास लाते थे। साधारण विषयों का निर्णय वे स्वयं ही लिया करते थे।
\v 27 कुछ समय के बाद मूसा ने अपने ससुर को विदा किया और यित्रो घर लौट गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 मिस्र से निकलने के तीसरे महीने के बाद इस्राएल के लोग सीनै की मरुभूमि में पहुँचे।
\v 2 रपीदीम को छोड़ कर वे सीनै मरुभूमि में आए और पर्वत के समीप डेरा डाला।
\s5
\v 3 मूसा परमेश्वर से बातें करने के लिए पर्वत पर चढ़ गया। यहोवा ने उसे पर्वत की चोटी पर से पुकारकर कहा, “मैं चाहता हूँ कि तू याकूब के वंशजों, इस्राएलियों से यह कह,
\v 4 ‘तुमने देखा है कि मैंने मिस्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया है। तुमने यह भी देखा है कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है। मैं तो तुम्हें मानो उकाब के पंखों पर बैठाकर अपने पास ले आया हूँ।
\v 5 इसलिए, अब मैं कहता हूँ, यदि तुम लोग मेरा आदेश का पालन करोगे तो तुम मेरे लोग होगे। तुम लोग मेरी विशेष सम्पति होगे क्योंकि संपूर्ण पृथ्वी मेरी है।
\v 6 तुम लोगों पर मेरा राज्य होगा। तुम एक ऐसा राज्य होगे जिसमें हर एक व्यक्ति याजकों के समान मेरी आराधना करेगा। तुम मेरे लिए एक राष्ट्र होगे।’ यह बातें तुझे इस्राएलियों से कहनी है।”
\s5
\v 7 इसलिए मूसा पर्वत से नीचे आया और इस्राएलियों के बुज़ुर्गों को एकत्र किया। मूसा ने उन बुज़ुर्गों से वह बातें कहीं जिन्हें कहने का आदेश यहोवा ने उसे दिया था।
\v 8 उसकी बात सुनकर सभी लोग बोले, “हम लोग यहोवा की कही हर बात मानेंगे।” तब मूसा परमेश्वर के पास पर्वत पर लौट आया। मूसा ने कहा कि लोग आपके आदेश का पालन करेंगे।
\v 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “ध्यान से सुन, मैं घने बादल में तुम्हारे पास आऊँगा। जब तुझसे बातें करूँगा तब सब लोग सुनेंगे और वे स्वीकार करेंगे कि तू उनका अगुवा है।” तब मूसा ने परमेश्वर को वे सब बातें बताई जो लोगों ने कही थी।
\s5
\v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इन लोगों के पास जा और उनसे कह कि वे मेरे आने के लिए तैयारी करें। वे आज और कल अपने को शुद्ध करें और अपने वस्त्रों को धोएँ।
\v 11 उन्हें ऐसा करके तीसरे दिन की तैयारी करना है। उस दिन सीनै पर्वत पर मेरा आना होगा और सब लोग मुझे देख पाएँगे।
\s5
\v 12 तू पर्वत के चरण पर एक बाढ़ा बाँधना और उन्हें सतर्क करके कहना, ‘सावधान रहना कि तुम न तो पर्वत पर चढ़ना और न ही उसके निकट आना। यदि कोई पर्वत के चरण को भी छूएगा तो मर जाएगा।’
\v 13 यदि कोई मनुष्य या पशु उनका स्पर्श करे तो उस पर पत्थरवाह किया जाए या तीरों से बेधा जाएगा। परन्तु जब तुम तुरही बजने की ऊँची आवाज सुनो तब लोग पर्वत की चरण में एकत्र हो सकते है।
\s5
\v 14 मूसा ने पर्वत से उतरकर लोगों से कह दिया कि वे अपने को शुद्ध करके परमेश्वर के आगमन की तैयारी करें। उन्होंने वही किया जो मूसा ने उनसे करने को कहा था। उन्होंने अपने वस्त्र भी धोए।
\v 15 तब मूसा ने लोगों से कहा, “तीसरे दिन तुम सब तैयार रहना और उस समय तक कोई भी पुरुष स्त्री से सम्पर्क न करे।"
\s5
\v 16 तीसरे दिन पर्वत पर बिजली की चमक और बादल की गरज हुई। एक घना बादल पर्वत पर उतरा और तुरही का ऊँचा स्वर सुनाई दिया। डेरे के सभी लोग डर गए।
\v 17 तब मूसा इस्राएलियों को लेकर परमेश्वर से भेंट करने निकला। वे सब पर्वत के चरण में खड़े हो गए।
\v 18 तब यहोवा उस पर्वत पर उतरे और पूरा पर्वत धुएँ से भर गया। आग उसके चारों ओर प्रकट हुई। धूआँ इस प्रकार उठ रहा था जैसे कि किसी भट्ठी की चिमनी में से धूएँ का बादल निकल रहा हो और पूरा पर्वत भी काँपने लगा।
\s5
\v 19 तुरही की ध्वनि अधिक से अधिक बढ़ती चली गई। मूसा ने परमेश्वर से बात की और बादल की गरज में परमेश्वर ने उसे उत्तर दिया।
\v 20 यहोवा पर्वत की चोटी पर उतर आया। तब यहोवा ने मूसा को अपने पास पर्वत की चोटी पर आने को कहा। इसलिए मूसा पर्वत पर चढ़ा।
\v 21 यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतरकर लोगों को चेतावनी दे कि वे बाढ़ा पार करके मुझे देखने का प्रयास न करें। यदि उन्होंने ऐसा किया तो बहुतों की मृत्यु हो जाएगी।
\v 22 याजकों से भी कह दे कि वे पवित्र होकर मेरे निकट आएँ। यदि वे ऐसा नहीं करते तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”
\s5
\v 23 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “इस्राएली तो पर्वत पर नहीं चढ़ेंगे क्योंकि आपने स्वयं ही आज्ञा दी थी कि, 'पर्वत को अलग करने के लिए उसके चारों ओर बाढ़ा बना दे।'"
\v 24 यहोवा ने मूसा से कहा, “पर्वत से उतरकर हारून को अपने साथ ऊपर ले आ। किन्तु याजकों और लोगों को बाढ़ा पार करके मत आने दे। यदि वे बाढ़ा पार करेंगे तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा।”
\v 25 इसलिए मूसा ने पर्वत से उतरकर इस्राएली लोगों को परमेश्वर के आदेश सुनाए।
\s5
\c 20
\p
\v 1 तब परमेश्वर ने इस्राएली लोगों से ये बातें कहीं,
\v 2 मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ, जिनकी आराधना तुम करते हो। मैं ही तुम्हें मिस्र देश से बाहर लाया और मैंने ही तुम्हें उनके दासत्व से मुक्ति दिलाई है।
\v 3 तुम्हें केवल मेरी आराधना करना है, अन्य किसी देवता की नहीं।
\s5
\v 4 तुम किसी भी प्रकार की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा नहीं करोगे, चाहे वह आकाश या पृथ्वी या जल में किसी का रूप हो।
\v 5 तुम किसी भी मूर्ति के सामने न झुकना और न ही उसकी आराधना करना क्योंकि मैं यहोवा हूँ और मैं इसे सहन नहीं करता हूँ। जो पाप करते हैं और मुझसे घृणा करते हैं उन्हें मैं दण्ड दूँगा और उन्हें ही नहीं, उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी को भी दण्ड दूँगा।
\v 6 परन्तु, मुझसे प्रेम करने वालों और मेरी आज्ञा का पालन करने वालों की हज़ारो पीढ़ियों तक मैं उनसे प्रेम करता रहूंगा।
\s5
\v 7 मेरा नाम व्यर्थ में मत लेना क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जिसकी तुम्हें आराधना करना है। यदि कोई व्यक्ति मेरे नाम का उपयोग गलत ढंग से करता है तो उसे मैं निश्चय ही दण्ड दूँगा।
\s5
\v 8 सप्ताह का सातवाँ दिन मेरा है इसलिए सातवें दिन को मेरे लिए समर्पित रखना।
\v 9 सप्ताह में तुम छः दिन अपना कार्य कर सकते हो।
\v 10 परन्तु सातवाँ दिन विश्राम दिवस है। सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को समर्पित है- तुम्हे परमेश्वर यहोवा की आराधना करनी है। तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ, तुम्हारे दास-दासियाँ कोई भी उस दिन काम नहीं करें। तुम अपने पशुओं से भी काम नहीं लोगे और तुम्हारे बीच वास करने वाले विदेशी को भी काम नहीं करने दोगे।
\v 11 मैं, यहोवा ने छः दिन में आकाश, पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है, सबको बनाया और सातवें दिन विश्राम किया। यही कारण है कि मैंने विश्राम दिवस को आशीष देकर पवित्र दिन ठहराया है।
\s5
\v 12 अपने पिता और अपनी माता का आदर कर। यह इसलिए कर कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा जिस देश को तुम्हें दे रहा है, उसमें तुम लम्बा जीवन जी सको।
\v 13 किसी की हत्या न करना।
\v 14 किसी के साथ व्यभिचार नहीं करना।
\s5
\v 15 चोरी नहीं करना।
\v 16 किसी पर भी अपराध का झूठा आरोप नहीं लगाना।
\v 17 किसी के घर, पत्नी, दास-दासी, जानवर, गधे या किसी भी वस्तु का लालच नहीं करना।
\p
\s5
\v 18 गर्जन सुनकर और बिजली की चमक देखकर और तुरही की ऊँची आवाज सुनकर और पर्वत पर धूएँ को देखकर इस्राएली बहुत डर गए और कांपने लगे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे।
\v 19 और तब लोगों ने मूसा से कहा, “यदि तू हम से कुछ कहेगा तो हम सुनेंगे। परन्तु परमेश्वर को हम लोगों से बात न करने दे। यदि ऐसा होगा तो हम लोग मर जाएँगे।”
\v 20 मूसा ने उनसे कहा, “मत डरो! परमेश्वर तो तुम्हारे व्यवहार को परखने आये हैं, वे चाहते हैं कि तुम उनका सम्मान करो और पाप न करो।
\v 21 इस्राएली लोग तो दूर ही खड़े देख रहे थे परन्तु मूसा उस काले बादल के निकट गया जिसमें परमेश्वर उपस्थित थे।
\s5
\v 22 यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएली लोगों से कह, ‘यहोवा ने स्वर्ग से मेरे साथ बातें की हैं और तुमने सुना है।
\v 23 मैं तुमसे कह चुका हूँ कि तुम सोने या चाँदी की कोई भी मूर्ति बनाकर, मेरे स्थान में उसकी आराधना नहीं करोगे।
\s5
\v 24 मेरे लिए मिट्टी की एक वेदी बनाना और उस पर मेरे लिए होम-बलि और मेलबलि चढ़ाना और अपने भेड़-बकरियों और बैलों को भी चढ़ाना। मैं जहाँ-जहाँ स्थान चुन लूं कि तुम मेरा सम्मान करो वहाँ-वहाँ मेरी आराधना करना। तुम ऐसा करोगे तो मैं आकर तुम्हें आशीष दूँगा।
\v 25 यदि तुम मेरे लिए पत्थरों की वेदी बनाओ तो पत्थरों को तराशना नहीं क्योंकि पत्थरों को औजारों से तराशने पर मैं वेदी को स्वीकार नहीं करूँगा।
\v 26 वेदी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ नहीं लगाना क्योंकि ऊपर चढ़ते समय तुम्हारे शरीर की नग्नता दिखाई दे सकती है।’”
\s5
\c 21
\p
\v 1 “इस्राएली लोगों के लिए यहाँ कुछ अन्य निर्देश दिए गए हैं।
\s5
\v 2 जब तुम किसी इब्रानी दास को मोल लेते हो तो वह केवल छ: वर्षों तक तुम्हारी सेवा करे। सातवें वर्ष तुम्हें उसे मुक्त करना होगा और वह तुम्हें मुक्ति के लिए धन नहीं देगा।
\v 3 यदि वह तुम्हारा दास होने से पूर्व अविवाहित था और तुम्हारे पास आने के बाद दास रहते समय किसी स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसके साथ उसकी पत्नी मुक्त न की जाए। परन्तु यदि वह दासत्व से पूर्व विवाहित था तो उसे और उसकी पत्नी दोनों को मुक्त किया जाए।
\v 4 यदि किसी दास के स्वामी ने उसका विवाह कराया और उसके दास रहने के समय उसकी पत्नी पुत्रों और पुत्रियों को जन्म देती है तो मुक्ति के समय वह अकेला ही जाए। उसकी पत्नी और सन्तान उसके स्वामी के दास-दासियाँ बने रहें।
\s5
\v 5 जब उस दास के मुक्त किए जाने का समय आए और वह दास कहे, “मैं अपने स्वामी, अपनी पत्नी और सन्तान से प्रेम करता हूँ- इसलिए मैं जाना नहीं चाहता”,
\v 6 तो उसका स्वामी उसे यहोवा की आराधना के स्थान में ले जाकर दरवाज़े या चौखट के पास खड़ा करे और सूआ लेकर उसका कान छेद दे और उसके कान में कुछ बाँध दे जिससे प्रकट हो कि वह आजीवन उसका दास रहेगा।
\p
\s5
\v 7 यदि कोई अपनी पुत्री को दासी होने के लिए बेच दे तो वह दास के समान छः वर्ष समाप्त होने पर मुक्त नहीं की जाए।
\v 8 अगर वह व्यक्ति जिसने उसे मोल लिया था वह उसे अपनी रखैल बनाना चाहे और बाद में वह उससे प्रसन्न नहीं हो तो उसे उसके पिता को वापस बेचे। वह किसी विदेशी को नहीं बेची जाए क्योंकि ऐसा करने पर वह उस लड़की के पिता के साथ बांधे गए अनुबंध को तोड़ेगा।
\s5
\v 9 यदि उस स्त्री को मोल लेने वाला उसे अपनी पुत्र की पत्नी बनाता है तो वह उसके साथ पुत्री का सा व्यवहार करे।
\v 10 यदि कोई एक और दासी को अपनी रखैल बनाता है तो वह अपनी पहली रखैल को उतना ही भोजन वस्त्र दे जितना वह उसे देता रहा है और पहले के समान उसके साथ सोया करे।
\v 11 यदि वह उसे यह तीन सुविधाएँ नहीं देता है तो वह उसे मुक्त कर दे। वह अपने स्वामी को मुक्ति का धन नहीं देगी।
\p
\s5
\v 12 यदि कोई किसी पर इस प्रकार प्रहार करे कि वह मर जाए तो उसे भी मार दिया जाए।
\v 13 परन्तु यदि उसके मन में हत्या करने की इच्छा नहीं थी तो वह उस स्थान में जाकर शरण ले सकता है जिसे मैं तुम्हारे लिए चुनूंगा और वह वहाँ सुरक्षित रहेगा।
\v 14 यदि कोई किसी से क्रोधित होकर उसकी हत्या करने के उद्देश्य से वार करे तो उसकी भी हत्या की जाए चाहे वह परमेश्वर की वेदी की ही शरण क्यों न ले।
\p
\s5
\v 15 कोई व्यक्ति जो अपने माता—पिता को चोट पहुँचाये वह अवश्य ही मार दिया जाये।
\p
\v 16 यदि कोई व्यक्ति किसी को दास के रूप में बेचने या अपना दास बनाने के लिए अपहरण करे तो उसे अवश्य मार दिया जाए।
\p
\v 17 कोई व्यक्ति, जो अपने माता—पिता को श्राप दे तो उसे अवश्य मार दिया जाए।
\p
\s5
\v 18 मान लीजिए कि दो लोग लड़ते है, और एक दूसरे को पत्थर या मुक्के से मारते है। मान लीजिए कि जिस व्यक्ति पर वार किया जाता है वह मरता नहीं है लेकिन घायल हो जाता है और उसे कुछ समय के लिए बिस्तर पर रहना पड़ता है,
\v 19 लेकिन बाद में वह एक लाठी के सहारे चलने लगे। तब उस पर वार करने वाला दण्ड के योग्य नहीं ठहरना चाहिए परन्तु उसे घायल व्यक्ति को मजदूरी और उपचार के लिए धनराशि का भुगतान करना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 20 यदि कोई स्वामी अपने दास या दासी को लाठी से मारे और वह मर जाए तो उसके स्वामी को दण्ड दिया जाए।
\v 21 परन्तु यदि वह दास या दासी एक-दो दिन जीवित रहकर मरे तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए। अब उसे उस दास या दासी की सेवा नहीं मिलेगी, यही उसका दण्ड है।
\p
\s5
\v 22 यदि दो व्यक्तियों की लड़ाई में किसी गर्भधारी स्त्री को गर्भपात हो जाए। परन्तु उस स्त्री को और किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँची तो जिसने उसे चोट पहुँचाई है उसे जुर्माना देना होगा। न्यायी के निर्णय के बाद उसके पति के कहे अनुसार दण्ड का भुगतान करना होगा।
\v 23 परन्तु यदि उस स्त्री को किसी प्रकार की हानि हो तो उसे हानि पहुँचाने वाले को भी वैसा ही कष्ट दिया जाए जैसा उस स्त्री को हुआ। यदि वह मर जाए तो वह व्यक्ति भी मार डाला जाए।
\v 24 यदि उसकी आंख फूट जाए या उसका दांत टूट जाए या उसका हाथ या पैर में चोट आ जाए,
\v 25 या यदि उसे जला दिया गया है या चोट लगी है, तो उसे चोट पहुँचाने वाले के साथ भी वैसा ही किया जाए।
\s5
\v 26 यदि किसी दास या दासी का स्वामी उस पर इस प्रकार प्रहार करे कि उसकी आँख फूट जाए तो उसकी आँख के बदले वह मुक्त किया जाए।
\v 27 यदि कोई स्वामी अपने दास-दासी का दांत तोड़ दे तो वह उसके दांत के बदले उसे मुक्त कर दे।
\p
\s5
\v 28 यदि कोई बैल किसी स्त्री या पुरुष को सींग मारकर उसकी हत्या कर दे तो वह बैल पत्थरवाह किया जाए और उसका माँस नहीं खाया जाए। उस बैल के स्वामी का इसमें कोई दोष नहीं है।
\v 29 यदि किसी का बैल लोगों पर आक्रमण कर चुका है और चेतावनी के उपरान्त भी उसके स्वामी ने उसे बाध कर नहीं रखा और वह बैल किसी स्त्री या पुरुष की हत्या कर देता है तो वह बैल और उसका स्वामी पत्थरवाह किया जाए।
\v 30 परन्तु यदि बैल का स्वामी अपने जीवन को बचाने के लिए जुर्माना चुका सकता है तो उसे न्यायाधीशों के कहे अनुसार पूरी राशि का भुगतान करना होगा।
\s5
\v 31 यदि किसी का बैल किसी के पुत्र या पुत्री को सींग मारे तो उस बैल के स्वामी के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाए जैसे नियम बनाए गए हैं।
\v 32 यदि किसी का बैल किसी दास या दासी को सींग मारे तो उस बैल का स्वामी उस दास या दासी के स्वामी को तीस टुकड़े चाँदी दे और उस बैल को पत्थरवाह करके मार दिया जाए।
\p
\s5
\v 33 मान लीजिये किसी ने गड़हा खोदकर उसे ढाँक कर नहीं रखा और उसमें किसी का बैल या गधा गिरकर मर जाता है, ।
\v 34 तो जिसने वह गड़हा खोदा है वह उस पशु का मूल्य चुकाए और उस मरे हुए पशु को ले ले और उसके साथ जो करना चाहे करे।
\s5
\v 35 यदि किसी का बैल दूसरे के बैल से लड़कर उसकी हत्या कर दे तो दोनों बैलों के स्वामी उस मारने वाले बैल को बेचकर उसके मूल्य को आधा-आधा बाँट लें। वे मरने वाले पशु का माँस भी आपस में बाँट लें।
\v 36 परन्तु यदि लोगों को पता है कि उस बैल ने पहले भी अन्य पशुओं पर हमला किया था और उसके स्वामी ने उसे बाँध कर नहीं रखा तो उस बैल का स्वामी मरे बैल के स्वामी को एक बैल दे और मरे हुए बैल को लेकर उसके साथ जैसा चाहे वैसा करे।”
\s5
\c 22
\p
\v 1 “यदि कोई किसी का बैल या भेड़ चुरा ले और उसे बेच दे या उस-को मार डाले तो उसे उस बैल के बदले में, जो उसने चुराया था, पाँच बैलों और चोरी की हुई भेड़ के बदले में चार भेड़ों का भुगतान करना होगा।
\p
\v 2 यदि चोर किसी के घर में चोरी करता हुआ पकड़ा जाता है और उसे पकड़ने वाले के हाथों वह चोर मारा गया तो हत्यारा दोषी न ठहराया जाए।
\v 3 परन्तु यदि दिन के समय ऐसा होता है, तो जिसने चोर को मारा है वह हत्यारा हत्या का दोषी ठहरे।
\p चोर चोरी का भुगतान करेगा। अगर उसके पास भुगतान करने के लिए कोई पशु नहीं है, तो उसे किसी और के दास बनने के लिए बेचा जाना चाहिए, और इस प्रकार प्राप्त पैसों से चोरी के सामान का भुगतान किया जाए।
\v 4 यदि चोर चोरी करते पकड़ा गया और उसके पास अपना बैल, गधा या भेड़ है और वह जीवित है तो चोर चुराया हुआ पशु लौटाए और उस पशु के साथ एक और वैसा ही पशु भी दे।
\p
\s5
\v 5 यदि किसी ने अपने पशुओं को अपने खेत में या अपनी दाख की बारी में चरने के लिए छोड़ दिया है और वह पशु चरते-चरते दूसरे के खेत में चला जाए और वहाँ पौधे खा ले तो उस पशु का स्वामी उस खेत के स्वामी को अपने खेत या दाख की बारी की सबसे अच्छी उपज में से भुगतान करे।
\p
\s5
\v 6 यदि किसी ने अपने खेत में आग जलाई और आग फैल कर पड़ोसी के खेत में उग रहे अन्न की काटी गई फसल को जला देती है तो जिस खेत के स्वामी ने आग जलाई थी वह पड़ोसी की हानि का भुगतान करे।
\p
\s5
\v 7 यदि कोई किसी को पैसा या कोई मूल्यवान वस्तु देता है कि वह कुछ समय के लिए उसे सुरक्षित रखे परन्तु चोर आकर उसे चुरा लेता है तो पकड़े जाने पर चोर दो गुणा भर दे।
\v 8 किन्तु यदि चोर का पता न चले तो परमेश्वर निर्णय करेंगे कि पड़ोसी अपराधी है या नहीं। घर का स्वामी परमेश्वर के सामने जाए और परमेश्वर ही निर्णय करेंगे कि उसने चुराया है या नहीं।
\p
\v 9 यदि किसी खोए हुए बैल या गधे या भेड़ या वस्त्र या अन्य किसी भी वस्तु के बारे में दो लोगों में विवाद हो रहा है कि वह किसकी है तो वे दोनों न्यायियों के सामने उपस्थित हों। न्यायियों के निर्णय के अनुसार झूठ बोलने वाला दूसरे पक्ष को जो उस पशु या वस्तु का वास्तविक स्वामी है, दो गुणा बैल या गधे या भेड़ें या वस्त्र दे।
\p
\s5
\v 10 मान लीजिए कि यदि किसी ने किसी के पास अपना गधा या बैल या भेड़ या अन्य कोई पशु कुछ समय देखरेख के लिए रखा और पशु मर जाता है या घायल हो जाता है या ऐसे समय में चोरी हुआ जब कोई नहीं देख रहा था।
\v 11 तब उस पशु की देखरेख करने वाला परमेश्वर को उपस्थित मानकर शपथ खाए कि उसने उस पशु को नहीं चुराया और उस पशु के स्वामी को स्वीकार करना होगा कि वह सच कह रहा है। उस व्यक्ति को पशु के स्वामी को कुछ भी नहीं देना होगा।
\v 12 परन्तु यदि उस व्यक्ति की देखरेख में वह पशु चुरा लिया जाता है तो वह व्यक्ति उस पशु के स्वामी की हानि का भुगतान करे क्योंकि उसने उसके पशु की सुरक्षा का वचन दिया था।
\v 13 यदि वह कहता है कि पशु जंगली पशुओंं द्वारा मारा गया था, तो उसे उस पशु के अवशेषों को लाना होगा जो मार डाला गया था और उसे पशु के मालिक को दिखाना होगा। अगर वह ऐसा करता है, तो उसे पशु के लिए कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 14 अब यदि वह कहता है कि उसका पशु- वन पशुओं द्वारा मार डाला गया है तो वह उसके अवशेष लाकर उस पशु के स्वामी को दिखाए। ऐसा करने पर वह भुगतान करने से मुक्त हो जाएगा।
\v 15 परन्तु यदि ऐसा होता है कि उस पशु का स्वामी वहाँ है तो उस पशु को भाड़ेे पर लेने वाला भुगतान से मुक्त है। यदि पशु को भाड़ेे पर लिया है तो उस पशु के स्वामी के लिए उसके पशु के चोट लगने या मर जाने का भुगतान भाड़े के पैसों से हो चुका है।"
\p
\s5
\v 16 “यदि कोई पुरुष किसी अविवाहित कुँवारी युवती, जिसकी मंगनी नहीं हुई हो, साथ सोने के लिए उसे विवश करे तो वह उससे निश्चय ही विवाह करे। और वह उस युवती के पिता को युवती का पूरा मूल्य दे।
\v 17 यदि पिता अपनी पुत्री को उसे विवाह के लिए देने से मना करता है तो भी उस व्यक्ति को युवती के पिता को युवती का पूरा मूल्य देना पड़ेगा।
\p
\s5
\v 18 जादू टोना करने वाली स्त्री को मार डाला जाए।
\p
\v 19 जो कोई पशु के साथ यौन सम्बन्ध बनाए तो वह मार डाला जाए।
\p
\s5
\v 20 तुम्हें केवल यहोवा के लिए बलि चढ़ाना है। अन्य देवी-देवताओं के लिए बलि चढ़ाने वाला मार डाला जाए।
\p
\v 21 तुमको तुम्हारे बीच रहने आये किसी विदेशी व्यक्ति से दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। मत भूलना कि तुम भी पहले मिस्र में विदेशी थे।
\p
\s5
\v 22 विधवाओं और अनाथों के साथ बुरा व्यवहार मत करो।
\v 23 यदि तुम उनके साथ बुरा व्यवहार करो और वे मुझसे सहायता मांगे तो मैं निश्चय ही उनकी सहायता करूँगा।
\v 24 और मैं तुम से क्रोधित हो जाऊँगा और मैं तुम्हारे युद्ध में मरने का कारण बना दूँगा। इस प्रकार तुम्हारी पत्नियाँ भी विधवा हो जाएँगी और तुम्हारी सन्तान अनाथ हो जाएगी।
\p
\s5
\v 25 यदि तुम गरीबों में से किसी भी व्यक्ति को पैसा उधार देते हो, तो उससे साहूकार के समान ब्याज मत लेना।
\v 26 यदि वह तुमको उधार लिए हुए धन के भुगतान के लिए अपना वस्त्र गिरवी रखवाता है तो तुम सूरज डूबने के पहले उसका वह वस्त्र अवश्य लौटा देना।
\v 27 क्योंकि रात में ओढ़ने के लिए उसे उसकी आवश्यकता होगी। रात में ओढ़ने के लिए गरीबों के पास केवल वही एक वस्त्र होता है। यदि तुम उसका ओढ़ना लौटाने में दया न दिखाओ और वह मुझसे सहायता मांगे तो निश्चय ही उसकी सहायता करूँगा क्योंकि मैं कृपालू हूँ।
\p
\s5
\v 28 परमेश्वर का अपमान मत करो और न ही अपने लोगों के शासक की हानि के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करो।
\p
\s5
\v 29 अपनी फसल के सर्वोत्तम अन्न को मुझसे बचा कर नहीं रखना न ही जैतून या दाख की उपज। तुम अपने पहले पुत्रों को मुझे दो।
\p
\v 30 इसी तरह, पशुओं और भेड़ों के पहले बच्चे मेरे हैं। पशुओं के बच्चों को सात दिन तक मां के पास रहने देना। आठवें दिन उन्हें मुझे दे देना।
\p
\v 31 तुम मेरे लिए समर्पित किए गए लोग हो। वन पशुओं द्वारा मारे गए पशुओं का माँस मेरे लिए घृणित है इसलिए ऐसा माँस मत खाना। उसे ऐसे स्थान में फेंक देना जहाँ जंगली कुत्ते उसे खाएँ।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 “अन्य लोगों के बारे में झूठी बात मत कहना और झूठ कहकर किसी अपराधी की सहायता मत करना।
\p
\v 2 बुराई करने की योजना बना रहे समूह की सहभागिता मत करना और न्यायी के निर्णय को बिगाड़ने के लिए झूठों का साथ मत देना।
\v 3 न्यायालय में किसी गरीब का इसलिए पक्ष मत लो कि वह गरीब है और उसके लिए दया की भावना रखते हो।
\p
\s5
\v 4 तुम किसी के बैल या गधे को भटकता हुआ देखो तो उसे उसके स्वामी के पास पहुँचा दो, चाहे वह व्यक्ति तुम्हारा शत्रु ही क्यों न हो।
\v 5 यदि तुम किसी के गधे को देखो कि वह बोझ के कारण गिर गया है तो उस गधे को खड़ा करने में उसके स्वामी की सहायता अवश्य करना, चाहे वह तुमसे घृणा ही क्यों न करता हो। उसकी सहायता करे बिना मत जाना।
\p
\s5
\v 6 तुम्हें, लोगों को गरीबों के साथ अन्यायी नहीं होने देना चाहिए। उनके साथ भी अन्य लोगों के समान ही न्याय करना।
\p
\v 7 किसी पर झूठा दोष नहीं लगाना। निर्दोष और धार्मिक मनुष्यों के मृत्युदण्ड का कारण मत बनो क्योंकि मैं ऐसे दुष्ट व्यक्तियों को उनके दुष्ट काम का अवश्य दण्ड दूँगा।
\p
\v 8 रिश्वत का पैसा स्वीकार नहीं करना क्योंकि रिश्वत लेने वाले निष्पक्षता का व्यवहार नहीं कर पाते हैं। रिश्वत लेने वाले भले लोगों के साथ न्याय का व्यवहार नहीं करेंगे।
\p
\v 9 अपने बीच रहने वाले विदेशी लोगों से दुर्व्यवहार मत करना। तुम तो विदेशी की भावनाओं का अनुभव प्राप्त कर चुके हो क्योंकि जब तुम मिस्र देश में विदेशी थे तब उन्होंने तुम्हारे साथ उचित व्यवहार नहीं किया था।
\p
\s5
\v 10 छः वर्षों तक तो तुम अपने खेतों में फसल उगाना और फसल काटना।
\v 11 परन्तु सातवें वर्ष तुम कुछ मत उगाना। यदि बिना कुछ बोए तुम्हारी भूमि कुछ उपजाए तो वह गरीबों को लेने देना। यदि फिर भी उपज बचे तो वन पशुओं को खाने देना। अपनी दाख की बारी और जैतून के साथ भी ऐसा ही करना।
\p
\s5
\v 12 सप्ताह में छः दिन तुम परिश्रम करना परन्तु सातवें दिन तुम कोई काम नहीं करना, केवल विश्राम करना। सातवें दिन तुम्हारे पशु, तुम्हारे दास और तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी भी विश्राम करके फिर से परिश्रम करने योग्य हो जाएँ।
\p
\v 13 सुनिश्चित कर लो कि तुम मेरी हर एक आज्ञा को मानो और वैसा ही करो। देवी-देवताओं की पूजा नहीं करना। उनका नाम भी मत लेना।
\p
\s5
\v 14 तुम प्रतिवर्ष मेरे सम्मान में तीन पर्वों के लिए यात्रा करना।
\v 15 पहला पर्व है खमीर रहित रोटी का पर्व जिसे तुम आबीब के महीने में मनाओगे। यह वही महीना है जिसमें तुमने मिस्र से निकले थे। उसे मेरी आज्ञा के अनुसार ही मनाना। सात दिन तक खमीर रहित रोटी खाना। जब तुम मेरी आराधना के लिए आओ तब भेंट अवश्य लाना। खाली हाथ कभी नहीं आना।
\s5
\v 16 दूसरा पर्व फसल का पर्व है। इस पर्व में तुम अपनी उगाई हुई फसल का पहला अंश लेकर मुझे भेंट चढ़ाना। तीसरा पर्व है, अन्तिम फसल का पर्व। यह वह समय है जब तुम अपने अन्न की, अंगूरों की और फलों की अन्तिम फसल एकत्र करोगे।
\v 17 इस प्रकार प्रति वर्ष तीन बार सब पुरुष यहोवा परमेश्वर (मेरे) के सामने उपस्थित होंगे।
\p
\s5
\v 18 जब तुम किसी पशु की बलि चढ़ाओ और मुझे भेंट करो तब खमीरी रोटी नहीं चढ़ाना। बलि चढ़ाते समय पशुओं की चर्बी उसी समय पूरी तरह से जला देना जिससे कि अगले दिन सुबह तक चर्बी बची न रहे।
\p
\v 19 जब-जब तुम अपनी फसल काटो तब-तब सबसे पहले उसका सबसे अच्छा अंश लेकर आराधना स्थल में जाना और मुझ परमेश्वर यहोवा को चढ़ा देना। किसी पशु के बच्चे को मार के उसकी माँ के दूध में मत पकाना।
\p
\s5
\v 20 “तुम्हारी यात्रा में रक्षा करने के लिए, तुम्हें मेरे तैयार किए हुए स्थान तक पहुँचाने के लिए मैं अपना एक स्वर्गदूत तुम्हारे आगे-आगे भेज रहा हूँ।
\v 21 उसकी बातें ध्यान से सुनना और उनका पालन करना। उसका विद्रोह मत करना क्योंकि उसके पास मेरा अधिकार है और यदि तुम उसके विरुद्ध विद्रोह करते हो तो उसे तुम्हें दण्ड देने का अधिकार है।
\v 22 यदि तुम उसकी बात पर ध्यान दो और मेरी सब आज्ञाओं को मानो तो मैं तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करूँगा।
\s5
\v 23 मेरा स्वर्गदूत तुम्हारे आगे-आगे चलकर तुम्हें एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, कनानियों, हिब्बियों और यबूसियों के देश में पहुँचाएगा और मैं तुम्हे उनसे पूरी तरह से छुटकारा दिलाऊँगा।
\v 24 तुम उनके देवी-देवताओं के सामने मत झुकना और उनकी आराधना मत करना। उनके विचार में उनके देवी-देवता जो चाहते है वह तुम मत करना। उनके देवी-देवताओं को नष्ट कर देना और उनके पवित्र पत्थरों को चकनाचूर कर देना।
\p
\v 25 तुम केवल मेरी, अपने परमेश्वर यहोवा ही की आराधना करना। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हे भोजन-पानी से आशीष दूँगा और रोगों से तुम्हारी रक्षा करूँगा।
\s5
\v 26 तुम्हारे देश में किसी भी स्त्री का गर्भपात नहीं होगा, न ही कोई स्त्री बांझ रहेगी। मैं तुम लोगों को भरपूर लम्बा जीवन प्रदान करूँगा।
\p
\v 27 मैं तुम्हारे विरोधियों में अपना भय डाल दूँगा। तुम्हारे समीप आने वाले हर एक मनुष्य को मैं मार डालूँगा। मैं उन्हें विवश कर दूँगा कि वे तुम्हें पीठ दिखाकर भागें।
\v 28 मैं तुम्हारे शत्रुओं को भयभीत कर दूँगा। मैं तुम्हारे देश में से हिब्बियों, कनानियों और हित्तियों को निकाल दूँगा।
\v 29 मैं उन सभों को पहले ही वर्ष में नहीं निकालूंगा। अगर मैंने ऐसा किया, तो तुम्हारी भूमि निर्जन हो जाएगी और वहाँ वन-पशु आ जाएँगे और तुम्हें हानि पहुँचाएँगे।
\s5
\v 30 मैं उन लोगों के समूहों को धीरे-धीरे हटा दूँगा। कुछ समय में, तुम्हारी संख्या बढ़ती जाएगी और तुम संपूर्ण देश में फैल जाओगे।
\v 31 मैं तुम्हारी सीमाओं को दक्षिण पूर्व में लाल सागर से लेकर उत्तर पश्चिम में भूमध्य सागर तक और दक्षिण पश्चिम में सीनै की मरुभूमि से उत्तर पूर्व में फरात नदी तक फैला दूँगा। मैं तुम्हें सामर्थी बना दूँगा कि तुम वहाँ के मूल निवासियों को निकाल पाओ और उस देश पर अधिक से अधिक अधिकार करते जाओ।
\v 32 तुम्हें न तो उन लोगों के साथ और न ही उनके देवी-देवताओं के साथ किसी भी प्रकार का समझौता करना है।
\v 33 वहाँ के मूल निवासियों को अपने बीच मत रहने देना नहीं तो वे तुम्हें मेरे विरुद्ध पाप करने की प्रेरणा देंगे। यदि तुम उनके देवी-देवताओं की पूजा करोगे तो तुम इस पाप से नहीं निकल पाओगे। तुम उस प्रकार फँस जाओगे जैसे कोई फंदे में फंसता है।”
\s5
\c 24
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे निकट पर्वत की चोटी पर आ और साथ में हारून और उसके पुत्र नादाब और अबीहू भी हों। इस्राएलियों के सत्तर बुजुर्गों को भी साथ लेकर आ। पर्वत की चोटी से कुछ दूर ही रहकर मेरी आराधना करना।
\v 2 तब मूसा अकेले यहोवा के निकट आएगा। अन्य लोग यहोवा के निकट न आएँ, और शेष व्यक्ति पर्वत तक भी न आएँ।"
\p
\s5
\v 3 इस प्रकार मूसा ने यहोवा के सब नियम और आदेश लोगों को सुनाए। तब सब लोगों ने कहा, “यहोवा ने जो आदेश दिए हैं, उन सब का हम पालन करेंगे।”
\v 4 इसलिए मूसा ने यहोवा के सब आदेशों को लिखा। अगली सुबह मूसा ने एक पत्थर की वेदी बनाई। उसने इस्राएली गोत्रों की संख्या के अनुसार बारह पत्थरों को भी स्थापित किया।
\s5
\v 5 तब मूसा ने इस्राएल के युवकों को बलि चढ़ाने के लिए बुलाया। इन व्यक्तियों ने यहोवा के लिए होम-बलि और मेलबलि के रूप में मवेशियों की बलि चढ़ाई।
\v 6 मूसा ने इन पशुओंं के खून को एकत्र किया। मूसा ने आधा खून कटोरे में रखा और उसने दूसरा आधा खून वेदी पर छिड़का।
\s5
\v 7 तब मूसा ने पत्र पर लिखे यहोवा की वाचा की सब आज्ञाओं को इस्राएलियों को पढ़कर सुनाया। मूसा ने वाचा की सब आज्ञाओं को इसलिए पढ़ा कि सब लोग उसे सुन सकें और लोगों ने कहा, “हम यहोवा के हर एक आदेश का पालन करेंगे। हम पूरी तरह से उनका अनुसरण करने का वचन देते है।”
\p
\v 8 तब मूसा ने कटोरे का खून लिया और लोगों पर छिड़क दिया। उसने कहा, “यह वह खून है जो आज्ञाएँ देते समय तुम्हारे द्वारा बांधी गई वाचा की पुष्टि करता है।”
\p
\s5
\v 9 तब मूसा हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएलियों के सत्तर बुजुर्गों के साथ पर्वत के ऊपर चढ़ा।
\v 10 और उन्होंने परमेश्वर को देखा जिनकी आराधना इस्राएल के लोग करते हैं। उनके पाँवों के निचे नील मणि के जैसा आधार था जो बादल रहित आकाश के समान स्वच्छ था।
\v 11 इस्राएल के सब बुजुर्गों ने परमेश्वर को देखा, किन्तु परमेश्वर ने उन्हें नष्ट नहीं किया। उन्होंने परमेश्वर का दर्शन करके खाना-पीना किया।
\p
\s5
\v 12 यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे पास पर्वत पर आओ। मैंने अपने उपदेशों और आदेशों को दो पत्थर की पट्टियाें पर लिखा है। ये उपदेश लोगों के लिए है। मैं इन पत्थर की पट्टियाें को तुम्हें दूँगा।”
\v 13 तब मूसा और उसका सहायक यहोशू उस पर्वत तक गए जहाँ परमेश्वर थे।
\s5
\v 14 अब मूसा ने उन बुजुर्गों से कहा, “जब तक हम वापस न आएँ तब तक अन्य लोगों के साथ रहो! मत भूलना कि मेरी अनुपस्थिति में, हारून और हूर तुम लोगों के अधिकारी होंगे। यदि किसी को कोई समस्या हो तो वह उनके पास जाए।”
\v 15 तब मूसा पर्वत पर चढ़गया और बादल ने पर्वत को ढक लिया।
\s5
\v 16 यहोवा की महिमा उस पर्वत पर उतर आई और छः दिन तक उपस्थित रही। सातवें दिन यहोवा ने बादल में से मूसा को पुकारा।
\v 17 जब इस्राएली लोगों ने पर्वत की चोटी पर देखा तब वहाँ यहोवा की महिमा जलती हुई बड़ी आग के समान दिखाई दी।
\v 18 मूसा ने उस बादल में प्रवेश किया और वहाँ चालीस दिन और रात तक था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\p
\v 2 “इस्राएल के लोगों से मेरे लिए भेंट लाने को कह। उन लोगों से सारी भेंट ग्रहण कर जो वे मुझे स्वेच्छा से देना चाहते हैं।
\s5
\v 3 मेरे लिए भेंट की वस्तुओं में जो हो वह हैः सोना, चाँदी, पीतल,
\v 4 नीला, बैंजनी, और लाल ऊन, सुन्दर रेशमी कपड़ा, कपड़ा बनाने के लिए बकरियों के बाल।
\v 5 लाल रंग से रंगा भेड़ का चमड़ा, सुइसों की खालें, बबूल की लकड़ी,
\v 6 दीपकों को जलाने के लिए जैतून का तेल, याजकों के अभिषेक करने के लिए जैतून के तेल में डालने के लिए सुगन्ध द्रव्य और सुगन्धित धूप तैयार करने के लिए सुगन्धित द्रव्य।
\v 7 सुलैमानी रत्न और अन्य मूल्यवान रत्न भी जो याजकों के पहनने की एपोद और छाती की थैली पर जड़े जाएँ।
\s5
\v 8 लोगों से कह कि वे मेरे लिए एक बड़ा पवित्र तम्बू बनाएँ। तब मैं उनके साथ रह सकूँगा।
\v 9 वे उस तम्बू को बनाएँ और उसमें काम में आने वाली सब वस्तुएँ उस नक्शे के अनुसार तैयार करें जो मैं तुझे दिखाऊँगा।
\p
\s5
\v 10 लोगों को बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाने के लिए कह। यह सन्दूक एक मीटर लंबा, मीटर का तीन-चौथाई चौड़ा और मीटर का तीन-चौथाई ऊँचा हो।
\v 11 उस सन्दूक को अन्दर और बाहर शुद्ध सोने से मढ़ा जाए और सन्दूक के चारों ओर सोने की बाढ़ बनवाना।
\s5
\v 12 और सोने के चार छल्ले बनवाकर सन्दूक के पायों पर लगाना, सन्दूक की दोनों ओर दो-दो छल्ले लगाना।
\v 13 उन्हें बबूल की लकड़ी के दो बल्लियाँ बनाकर सोने से मढ़ने के लिए कहना।
\v 14 इन बल्लियों को सन्दूक के उन छल्लों में डाल देना कि वह सन्दूक इन बल्लियों द्वारा उठाया जा सके।
\s5
\v 15 वे बल्लियाँ छल्लों में से निकाली न जाएँ, वे सदैव उन छल्लों में लगी रहें।
\v 16 उस सन्दूक में पत्थर की उन दो पट्टियों को रखना जिन पर आज्ञाएँ मैंने लिखकर दी हैं।
\p
\v 17 उस सन्दूक के लिए शुद्ध सोने का ढक्कन बनाना। यह ढक्कन इस्राएलियों के पापों को ढांकने का स्थान होगा। यह ढक्कन भी एक मीटर लंबा तीन-चौथाई मीटर चौड़ा होना चाहिए।
\v 18 इस ढक्कन के सिरों के लिए सोने को पिघलाकर पंख वाले दो प्राणियों को बनवाना।
\s5
\v 19 ये प्राणी ढक्कन के दोनों सिरों पर एक-एक हों और उनका सोना सन्दूक के ढक्कन के सोने से जुड़ा होना चाहिए।
\v 20 इन प्राणियों को इस प्रकार स्थापित करना कि उनके पंख एक दूसरे का स्पर्श करते हुए ढक्कन पर फैले हो और एक-दूसरे के सामने सन्दूक के ढक्कन के केन्द्र को देखते हुए हों।
\v 21 मैं तुझे आज्ञाओं की जो पट्टियाँ दूँगा उन्हें उस सन्दूक में रखना और ढक्कन को सन्दूक पर रख देना।
\s5
\v 22 मैं वहाँ तुझसे बातें करने का समय निश्चित करूँगा। पंखों वाले उन दोनों प्राणियों के बीच, सन्दूक के ढक्कन पर से मैं तुझे इस्राएलियों के लिए नियम दिया करूँगा।
\p
\s5
\v 23 उन्हें बबूल की लकड़ी की एक मेज भी बनाने के लिए कह। यह एक मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी, और तीन-चौथाई मीटर ऊँची होना चाहिए।
\v 24 वह मेज पूरी तरह सोने से मढ़ी हुई हो और उस पर चारों ओर सोने की झालर लगाना।
\s5
\v 25 उस मेज़ के चारों ओर 80 सेन्टी मीटर चौड़ा घेरा बनवाकर उसे भी सोने से मढ़ना।
\v 26 मेज के चारों कोनों पर सोने का एक-एक छल्ला लगाना जो प्रत्येक पाए के पास लगा हो।
\v 27 ये छल्ले पायों के पास घेरे से जुड़े हुए हों जिससे कि वह मेज बल्लियाँ के द्वारा उठाई जा सके।
\s5
\v 28 बबूल की लकड़ी की दो बल्लियोँ बनाकर सोने से मढ़वाना जिन्हें मेज के उन छल्लों में डाल देना कि उसे उठाया जाए।
\v 29 परात, चम्मच, मर्तबान और कटोरे भी बनवाना जो शुद्ध सोने के हों क्योंकि कटोरों द्वारा याजक मुझे अर्घ चढ़ाएँगे। सभी शुद्ध सोने से बने होने चाहिए।
\v 30 उस मेज पर मेरे दर्शन के लिए प्रतिदिन रोटीयाँ रखी जाएँ। ये भेंट की रोटीयाँ होंगी।
\p
\s5
\v 31 शुद्ध सोने का एक दीवट बनवाना। उसके आधार और डंडियों को सोना पीटकर बनवाना। उस दीवट की शाखाएँ, तेल डालने के लिए फूलों की कलियाँ और फूलों की पंखुडियाँ जिनसे दीवट की शाखाओं को सजाया जाए, आधार और डंडियाँ आदि और सभी कुछ एक ही टुकड़े से बना होना चाहिए।
\v 32 उस दीवट की छः शाखाएँ हों, तीन एक ओर और तीन दूसरी ओर।
\s5
\v 33 प्रत्येक शाखा पर बादाम के फूलों जैसी तीन सजावट होना चाहिए। इन सजावटों में फूलों की कलियां और फूल की पंखुड़ियां भी होनी चाहिए।
\v 34 दीवट की डंडियों पर बादाम के चार फूल जैसी सजावट हो प्रत्येक में कली और पंखुड़ियाँ हों।
\s5
\v 35 दोनों ओर प्रत्येक शाखा के नीचे फूल की कली होनी चाहिए।
\v 36 ये सब कलियाँ, शाखाएँ और डंडियाँ सोने के एक ही पिण्ड को हथोडे से पीट कर बनाई जाएँ।
\s5
\v 37 उसमें सात छोटे-छोटे कटोरे भी हों जिनमें तेल डाला जाएगा। एक कटोरा डंडी के ऊपर हो और छः कटोरे छः शाखाओं पर एक-एक हों। ये कटोरे इस प्रकार बनाए जाएँ कि जब दीप जलें तो उनका प्रकाश दीवट के सामने गिरे।
\v 38 दीपक की जली हुई बतियों को काटने के लिए चिमटियाँ और राख रखने के पात्र सब शुद्ध सोने से बनाए जाएँ।
\v 39 दीवट, चिमटियाँ और तश्तरियाँ बनाने के लिए तैंतीस किलोग्राम शुद्ध सोने का उपयोग करने के लिए कह।
\v 40 सुनिश्चित करना कि ये सब मेरे निर्देशनों के अनुसार ही हों जो मैं आज तुझे इस पर्वत पर दे रहा हूँ।"
\s5
\c 26
\p
\v 1 “लोगों को पवित्र तम्बू में उत्तम मलमल के दस पर्दे बनाने के लिए कहना। कुशल हस्तकारों द्वारा नीले, बैंगनी और लाल धागे से इन पट्टियों पर उन पंख-वाले प्राणियों की कढ़ाई करवाना जो सन्दूक के ऊपर बनाए गए हैं।
\v 2 प्रत्येक पट्टी 12.5 मीटर लंबी और 1.8 मीटर चौड़ी होनी चाहिए।
\v 3 पाँच पट्टियों को जोड़कर एक पर्दा बनाना और पाँच पट्टियों को जोड़कर दूसरा।
\s5
\v 4 प्रत्येक जोड़े के अंत में नीले धागे के फंदे हों जो बांधने के लिए पर्दों के बाहरी सिरे पर लगे हों।
\v 5 पहले जोड़े के सिरे पर पचास फंदे हों और दूसरे जोड़े के सिरे पर भी पचास फंदे हों। वे इस प्रकार हों कि आमने सामने हों।
\v 6 दोनों जोड़ों को बान्धने के लिए सोने के पचास आँकड़े हों कि बन्ध जाने के बाद पवित्र तम्बू के भीतर से वे एक ही दिखाई दें।
\p
\s5
\v 7 पवित्र तम्बू की छत बकरी के बाल से बने ग्यारह पर्दों की हो।
\v 8 प्रत्येक पर्दा 13.5 मीटर लंबा और 1.8 मीटर चौड़ा हो।
\v 9 इन पाँच पर्दों को सिल कर जोड़ देना और शेष छः पर्दों को अलग सिल कर जोड़ना। छठवें पर्दे को तम्बू के सामने की ओर मोड़ कर दोहरा करना।
\s5
\v 10 और नीले कपड़े के सौ फंदे बनाना। इनमें से पचास फंदे एक जोड़े के बाहरी सिरे पर लगाना और पचास फंदे दूसरे जोड़े के बाहरी सिरे पर लगाना।
\v 11 पीतल के पचास आँकड़े बनवाना कि उन फंदों में डालकर पर्दों के दोनों जोड़ों को जोड़ा जाए जिससे कि पवित्र तम्बू की छत ऐसी हो जाए कि वह पूरी एक ही है।
\s5
\v 12 यह छत पवित्र तम्बू के सनी के कपड़े अधिक लम्बी होगी जिसे तम्बू के पीछे लटकने देना।
\v 13 छत के आवरण का आधा-आधा मीटर अतिरिक्त भाग जो मलमल के कपड़े के परे होगा वह पवित्र तम्बू के दाँये-बाँये सुरक्षा के लिए लटकता रहे।
\v 14 अब उस पवित्र तम्बू की दो और छत बनवाना। एक मेढ़े की खाल को लाल करके बनाई जाए और सबसे ऊपर की छत उत्तम चमड़े की बनवाना।
\s5
\v 15 फिर बबूल की लकड़ी के अड़तालीस चौखटे बनवाना जिन पर पवित्र तम्बू के पर्दे लटकाए जाएँ।
\v 16 प्रत्येक चौखटे की लम्बाई 4.5 मीटर और चौड़ाई 0.75 मीटर हो।
\v 17 चौखटे सब एक जैसे होना चाहिएं। हर एक चौखटे के नीचे जोड़ने के लिए दो-दो खूंटियाँ होनी चाहिए।
\v 18 तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस चौखटे बनाओ।
\s5
\v 19 चौखटे के ठीक नीचे चाँदी के दो आधार हर एक तख़्ते के लिए होने चाहिए। इस प्रकार बीस चौखटों के लिए चाँदी के चालीस आधार बनाने होंगे।
\v 20 इसी प्रकार पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के लिए बीस चौखटे और बनाओ।
\v 21 इन चौखटों के लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाओ, एक चौखटे के लिए दो आधार।
\s5
\v 22 पवित्र तम्बू का पिछला भाग जो पश्चिम दिशा में हो उसके लिए छः चौखटे हों।
\v 23 दो अतिरिक्त चौखटे भी बनवाना जो पवित्र तम्बू के पिछले दो कोनों को अधिक दृढ़ता प्रदान करने के लिए हों।
\v 24 कोने के दोनों चौखटे ऊपर से और नीचे से अलग हों एक साथ जोड़ देने चाहिए। कोन के इन दोनों चौखटों के ऊपर में एक-एक सोने के छल्ले हों जिनमें आड़ा डंडा डाला जाए।
\v 25 इस प्रकार पवित्र तम्बू के पिछले भाग के लिए आठ चौखट होंगे और प्रत्येक चौखटे के दो आधार होंगे।
\s5
\v 26 बबूल की लकड़ी के पन्द्रह आड़े डंडे बनवाना जिनमें से पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के लिए पाँच डण्डियाँ होंगी।
\v 27 पाँच दक्षिणी भाग के लिए और पाँच पवित्र तम्बू के पीछे के भाग के लिए जो पश्चिम की ओर है।
\v 28 उत्तर दक्षिण और पश्चिम के पक्षों के डंडे चौखटों के मध्य में हों और जो दो लम्बे डंडे हैं वे पवित्र तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हों और पश्चिम का आड़ा डंडा पवित्र तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हो।
\s5
\v 29 इन चौखटों को सोने से मढ़वा कर चौखटों के डंडों को फँसाने के लिए सोने के कड़े लगवाना। डंडों को भी सोने से मढ़वाना।
\v 30 पवित्र तम्बू को ठीक वैसा ही बनवाना जैसा मैंने तुझे पर्वत पर समझाया था।
\s5
\v 31 उत्तम मलमल का एक और पर्दा बनवाना और एक उत्तम हस्तकार उस पर नीले, बैंजनी और लाल धागे से उन पंख वाले प्राणियों का चित्र कढ़ाई करके बनाए जो सन्दूक के ऊपर है।
\v 32 इस पर्दे को बबूल की लकड़ी की चार बल्लियों पर जो सोने से मढ़े हुए हों, लटकाना। प्रत्येक बल्ली चाँदी के आधार पर खड़ी की जाए।
\v 33 पर्दे का ऊपरी सिरा पवित्र तम्बू की छत में लगे खूँटियों के द्वारा लटकाया जाए। इस पर्दे के पीछे का भाग परम-पवित्र स्थान कहलाएगा जिसमें मेरी आज्ञाओं की पत्थर की पट्टियों के सन्दूक को रखना। यह पर्दा परम-पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करेगा।
\s5
\v 34 परम पवित्र स्थान में उस सन्दूक के ऊपर ढक्कन को रखना।
\v 35 परम पवित्र स्थान के बाहर के भाग में उत्तरी दिशा में भेंट की रोटियों की मेज रखना और दीवट को दक्षिणी ओर रखना।
\s5
\v 36 पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के लिए उत्तम मलमल का एक पर्दा बनवाना जो नीले, बैंजनी और लाल धागे द्वारा कढ़ाई करके बनवाया गया हो।
\v 37 इस पर्दे को जकड़ कर रखने के लिए बबूल की लकड़ी की पाँच बल्लियाँ बनवाना। ये बल्लियाँ भी सोने से मढ़ी जाएँ जिन पर सोने के आँकड़ें लगे हों। इनमें से प्रत्येक बल्लीे का आधार पीतल का हो।
\s5
\c 27
\p
\v 1 " लोगो से कहना कि बबूल की लकड़ी की एक वेदी भी बनाये जिसका आकार चौकोर हो जिसकी प्रत्येक भुजा 2.1 मीटर की हो और ऊँचाई 1.3 मीटर की हो।
\v 2 उसके प्रत्येक कोने पर सींग के रूप में उभार हों। ये सींग बबूल ही की लकड़ी से बनाए गए हों जिससे वेदी बनाई गई है। इस वेदी को पीतल से मढ़वाना।
\s5
\v 3 पशु-बलि की राख के लिए तसले बनवाना और राख उठाने के लिए फावड़ियां भी बनवाना। माँस पकाने के लिए चिलमचियाँ और माँस पलटने के लिए काटे बनवाना। ये सब सामान पीतल से बनाया जाए।
\v 4 जलती हुई लकड़ी और कोयले के लिए एक पीतल की जाली भी बनवाना। जाली के चारों कोनों पर पीतल के छल्ले लगवाना।
\s5
\v 5 पीतल की जाली वेदी के चारों ओर के घेरे के नीचे वेदी के भीतर आधी ऊँचाई तक हो।
\v 6 वेदी को उठाने के लिए बबूल की लकड़ी की बल्लियाँ पीतल से मढ़े हुए बनाए जाएँ।
\s5
\v 7 वेदी के दोनों ओर लगे कड़ो में इन बल्लियों को डालना कि वेदी इनके द्वारा उठाई जाए।
\v 8 वेदी भीतर से खोखली होगी और यह बबूल की लकड़ी के तख्तों से बनाई जाए। यह सब मेरे निर्देशनों के अनुसार ही बनवाना जैसा मैंने तुझे पर्वत पर दिखाया था।
\s5
\v 9 पवित्र तम्बू के बाहर आँगन होना चाहिए। इस आँगन के लिए उत्तम मलमल के पर्दे बनवाना। दक्षिणी ओर का पर्दा 45 मीटर लंबा हो।
\v 10 इस पर्दे को सम्भालने के लिए बीस पीतल के खम्भे बनाना जिनमें से प्रत्येक का एक पीतल का आधार हो। पर्दे को खम्भों पर रोकने के लिए चाँदी के आँकड़े और और धातु सरिए हों जो चाँदी से मढ़े हुए हों के ।
\s5
\v 11 आँगन के उत्तरी भाग के लिए भी उसी प्रकार का एक पर्दा हो जैसा दक्षिण की ओर था।
\v 12 परन्तु आँगन की पश्चिमी दिशा का पर्दा 22 मीटर लम्बा हों। इस पर्दे के लिए दस खम्भे हों जिनके आधार भी हों।
\v 13 पूर्वी दिशा में जहाँ प्रवेश द्वार होगा, वहाँ आँगन की चौढ़ाई 22 मीटर की हो।
\s5
\v 14-15 आँगन के प्रवेश द्वार के लिए दोनों ओर सात-सात मीटर के चौड़े पर्दे बनवाना जिसके तीन-तीन खम्भे हों और तीन-तीन आधार हों।
\v 16 ये पर्दे नीले, बैंजनी और लाल रंग के धागों की कढ़ाई किए हुए उत्तम मलमल के हों। ये पर्दे चार खम्भों पर डले हों और खम्भों के आधार हों।
\s5
\v 17 आँगन के चारों ओर के सब खम्भों को जोड़ने के लिए चाँदी की पट्टियाँ हों इनके आँकड़े चाँदी के और आधार पीतल के हों।
\v 18 पूर्वी प्रवेश द्वार से पश्चिम तक संपूर्ण आँगन 46 मीटर लंबा और 23 मीटर चौड़ा हो और उसके घेरे के पर्दे 2.3 मीटर ऊँचे हों। सब पर्दे उत्तम मलमल के हों और आधार सब पीतल के हों।
\v 19 वे सब वस्तुएँ जो सोने की बनी न हों वे पवित्र तम्बू और आँगन में काम आने वाली हों और पवित्र तम्बू और पर्दों के सब खूँटे पीतल के बने हों।
\s5
\v 20 इस्राएलियों को आज्ञा दे कि दीपक को जलाने के लिए वे सर्वोत्तम शुद्ध जैतून का तेल ले आएँ क्योंकि दीपक को सदा जलते रहना है।
\v 21 परम पवित्र स्थान में जहाँ यहोवा का पवित्र सन्दूक रखा होगा, उसके पर्दे के बाहर दीपक शाम से सुबह तक जलते रहने का उत्तरदायित्व हारून और उसके पुत्रों का होगा। इस्राएली समाज इस नियम का पालन पीढ़ियों तक करता रहे।”
\s5
\c 28
\p
\v 1 “अपने बड़े भाई हारून और उसके पुत्र, नादाब, अबीहू, एलीआजार और ईतामार को इस्राएल के लोगों में से समर्पित कर कि वे मेरे पास याजक के रूप में मेरी सेवा करें।
\v 2 इस्राएलियों से कह कि वे हारून के लिए विशेष वस्त्र तैयार करें, ऐसे वस्त्र जो आदर, गौरव और पवित्र सेवा करने वाले के लिए उचित हों।
\v 3 मैंने जिन कारीगरों को बुद्धि दी है उनसे कह कि वे हारून के लिए वस्त्र तैयार करें कि जब वह मेरी सेवा के लिए समर्पित किया जाता है तब उन्हें पहन ले।
\s5
\v 4 जो वस्त्र उन्हें तैयार करने है वे ये हैं, हारून के सीने पर धारण करने के लिए सीना-बन्द , एपोद, बागा, कढ़ाई किया हुआ अंगरखा, पगड़ी और कमर-बन्द । ये वस्त्र तेरा भाई हारून और उसके पुत्र मेरे सम्मुख याजकीय सेवा करते समय धारण करेंगे।
\v 5 कुशल कारीगर उत्तम मलमल पर नीले, बैंजनी और लाल धागों की कढ़ाई करके उनके वस्त्र तैयार करें।
\s5
\v 6 कुशल कारीगर उत्तम मलमल से पवित्र एपोद तैयार करें और उस पर नीले, बैंजनी, और लाल धागों और सोने के तार से कढ़ाई करें।
\v 7 उसके आगे पीछे के भाग से जोड़ने के लिए कन्धों पर दो फीते लगे हों।
\v 8 पवित्र एपोद के कपड़े से ही सावधानी-पूर्वक बुना हुआ पटुका एपोद पर सिला जाएँ।
\v 9 एक कुशल कारीगर दो सुलैमानी मणियों पर याकूब के बारहों पुत्रों के नाम खोदकर लिखें जो उनकी आयु के क्रम में हों।
\s5
\v 10 एक मणि पर वह छः नाम लिखें और दूसरे मणि पर छः नाम। नामों को वह आयु क्रम के अनुसार लिखें।
\v 11 उन दोनों मणियों पर नाम लिखवाकर उन मणियों को एपोद के कन्धों पर सोने से जड़वा देना।
\v 12 सोने में जड़े हुए इन दोनों मणियों को पवित्र एपोद के कन्धे के फंदों पर सिलवाना कि वे इस्राएल के बारहों गोत्रों का प्रतिनिधित्व करें। इस प्रकार हारून इस्राएली गोत्रों के नाम अपने कन्धों पर धारण किए रहेगा कि मैं, यहोवा अपने लोगों को सदा याद रखूं।
\s5
\v 13 इन मणियों को सोने में जड़ना।
\v 14 इन जड़े हुए मणियों में एक-एक सोने रस्सी जैसी की गूँथी हुई जंजीर हो।
\s5
\v 15 हारून के लिए किसी कुशल कारीगर द्वारा पवित्र सीना-बन्द भी बनवाना कि हारून उसे अपने सीने पर धारण करे। वह इसके द्वारा इस्राएल के लिए मेरी इच्छा ज्ञात करेगा। यह भी उन्हीं धागों और कपड़े का बना हो जिससे पवित्र एपोद बनाया गया है, अर्थात सोने के तार से नीले, बैंजनी और लाल धागे और उत्तम मलमल से।
\v 16 वह चौरस हो और कपड़ा दोहरा किया जाए जिससे कि वह 23 सेंटीमीटर लंबा और 23 सेंटीमीटर चौड़ा हो।
\s5
\v 17 इस सीना-बन्द पर एक कुशल कारीगर मूल्यवान मणियों की चार पंक्तियाँ जड़े। पहली पंक्ति में माणिक्य, पदमराग और लालड़ी हों।
\v 18 दूसरी पंक्ति में मरकत, नीलमणि और हीरा;
\v 19 तीसरी पंक्ति में लशम, सूर्यकांत और नीलम
\v 20 और चौथी पंक्ति में फीरौज़ा, सुलैमानी मणि और यशब हों। इन सबको सोने के खानों में जड़ना है।
\s5
\v 21 इनमें से प्रत्येक मणि पर याकूब के एक पुत्र का नाम खोदकर लिखा जाए। ये नाम इस्राएल के गोत्रों को प्रकट करेंगे।
\v 22 रस्सी जैसी दो गूंथी हुई जंजीरें जो शुद्ध सोने की हों वे पवित्र सीना-बन्द को पवित्र एपोद को साथ बान्धने के लिए है।
\v 23 पवित्र एपोद के ऊपरी कोनों पर सोने के छोटे छल्ले लगाए जाएँ।
\v 24 और इन छल्लों में सोने की जंजीरें बनाकर डाली जाएँ।
\s5
\v 25 उन जंजीरों के दूसरे सिरे मणियों के खानों में से एक-एक से जोड़े जाएँ। इस प्रकार पवित्र एपोद सीना-बन्द के कंधे के पट्टों से बन्धा रहेगा।
\v 26 सोने के दो छल्ले और बनवाना और पवित्र एपोद के निचले कोनों से उन्हें जोड़ना- पवित्र सीना-बन्द के पास भीतरी सिरों पर।
\s5
\v 27 और सोने के दो छल्ले बनवाकर कन्धे के पट्टे के सामने निचले भाग में लगवाना जो एपोद के पट्टे के ठीक ऊपर है लगवाना जहाँ कन्धे के बन्धन जुड़े हैं।
\v 28 एक कुशल कारीगर एपोद के छल्लों को पवित्र सीना-बन्द के साथ नीले फीते से बान्धे जिससे कि पवित्र सीना-बन्द कमर-बन्द के ऊपर रहे और पवित्र सीना-बन्द से ढीला होकर अलग न हो जाए।
\s5
\v 29 इस प्रकार हारून इस्राएल के बारह गोत्रों के नाम अपने सीने पर पवित्र एपोद में धारण किए रहेगा कि पवित्र-स्थान में प्रवेश करके निर्णय ले।
\v 30 उस पवित्र एपोद में ऊरीम और तुम्मीम को रखना जिनके द्वारा मैं उसके प्रश्नों के ऊपर प्रकट करूँगा। इस प्रकार वे उसके सीने पर ही रहेंगे जब वह मुझसे बातें करने के लिए पवित्र स्थान में प्रवेश करेगा। उनके माध्यम से वह इस्राएल के लिए मेरी इच्छा जान सकेगा।
\s5
\v 31 कारीगर याजक के पवित्र एपोद के नीचे पहनने के लिए बैंजनी वस्त्र का बागा बुनकर बनाए।
\v 32 उसमें खुला स्थान होना चाहिए जहाँ से याजक उसमें सिर डाल पाए। उसके सिरे बुने हुए हों कि उसे फटने से बचाया जाए।
\s5
\v 33 बागे के निचले सिरे पर एक फल बनवाना जो अनार जैसा दिखे, इसे नीले, बैंजनी, नीले और लाल धागों से कढ़ाई करके बनाना।
\v 34 इनके बीच-बीच में एक-एक सोने की घंटियाँ लगाना।
\v 35 जब हारून पवित्र तम्बू में पवित्र-स्थान में सेवा के लिए प्रवेश करेगा और वहाँ से निकलेगा तब उसके चलने से ये घंटियाँ बजेंगी। इस प्रकार हारून अवज्ञा के कारण मरेगा नहीं।
\s5
\v 36 शुद्ध सोने की एक पट्टी बनवाकर उस पर लिखवाना, “यहोवा को समर्पित।”
\v 37 इस पट्टी को पगड़ी के सामने नीले फीते से बाँधना।
\v 38 याजक उस पगड़ी को सदैव धारण किए रहे। इस्राएली यहोवा की आज्ञा के अनुसार पवित्र भेंटे यहोवा को अर्पित करने से चूक जाएँ तो हारून उनके दोष को अपने ऊपर लेगा। हारून के ऐसा करने पर यहोवा उनकी भेंटें स्वीकार करेगा।
\s5
\v 39 उत्तम मलमल का एक अंगरखा भी बनवाना जो बुना हुआ हो। उत्तम मलमल की पगड़ी और कमर-बन्द भी बनाया जाए जिस पर कढ़ाई हो।
\s5
\v 40 हारून के पुत्रों के लिए भी पूरी बांह के सुन्दर अंगरखे, कमर-बन्द , पटके और टोपियाँ बनवाना ये उन्हें गौरव और आदर देंगे। ।
\v 41 ये वस्त्र अपने बड़े भाई हारून और उसके पुत्रों को धारण करवाना और जैतून के तेल से उनका अभिषेक करके मेरी सेवा के लिए याजक बनने के लिए समर्पित कर देना।
\s5
\v 42 उनके लिए मलमल के जाँघिये भी बनवाना। जाँघिये कमर से जाँघ के निचले हिस्से तक हों कि उनकी नग्नता ढँकी रहे।
\v 43 हारून और उसके पुत्र पवित्र तम्बू में प्रवेश करते समय या पवित्र स्थान में बलि चढ़ाते समय वेदी के निकट आएँ तब जाँघिये पहने। यदि उन्होंने इस विधि का पालन नहीं किया तो मैं उन्हें मार डालूँगा। हारून और उसके बाद उसके वंश के लोगों को सदा इसी विधि पर चलना है।
\s5
\c 29
\p
\v 1 मेरे सम्मुख याजकीय सेवा करने के लिए हारून और उसके पुत्रों का अभिषेक इस प्रकार करनाः एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेढ़े लेना।
\v 2 अखमीरी मैदे से तीन प्रकार की रोटियां बनाना। कुछ रोटियों में जैतून का तेल कहीं न हो, कुछ रोटियों के आटे में जैतून का तेल मिला हो, कुछ पापड़ पका कर उन पर जैतून का तेल लगाना।
\s5
\v 3 इन रोटियों को एक टोकरी में रखकर बैल और दो मेढ़े चढ़ाते समय मेरे पास ले आना।
\v 4 हारून और उसके पुत्रों को पवित्र तम्बू के द्वार पर लाकर जल से स्नान कराना।
\s5
\v 5 तब हारून को याजक के विशेष वस्त्र धारण करवाना- लंबी बाँह का अंगरखा, पवित्र सीना-बन्द के नीचे पहनने के लिए बागा, पवित्र सीना-बन्द , पवित्र एपोद और काढ़ा हुआ पट्टा।
\v 6 उसके सिर पर पगड़ी पहनाना और पगड़ी पर वह सोने का पट्टा बान्धना जिस पर लिखा हो, “यहोवा को समर्पित।”
\v 7 तब तेल लेकर अभिषेक करते हुए उसके सिर पर उण्डेलना।
\s5
\v 8 तब उसके पुत्रों को लंबी बांह का अंगरखा पहनाना।
\v 9 उनके कमर पर पट्टे डालना और उनके सिर पर टोपियाँ पहनाना, उन्हें इसी विधि से याजक होने के लिए समर्पित करना। हारून और उसके वंशजों के पुत्र सदैव मेरे लिए याजकीय सेवा करते रहें।
\s5
\v 10 तब पवित्र तम्बू के द्वार पर बछड़ा लेकर आना और हारून और उसके पुत्रों से कहना कि वे अब बछड़े के सिर पर हाथ रखें।
\v 11 और उसी स्थिति में पवित्र तम्बू के द्वार पर बछड़े का गला काटना और उसका रक्त एक पात्र में ले लेना।
\s5
\v 12 अपनी उंगली से कुछ रक्त लेकर वेदी पर बने सींगों पर लगाना। शेष रक्त को वेदी के नीचे डाल देना।
\v 13 बछड़े के अन्दर की सारी चर्बी, कलेजी की झिल्ली, चर्बी समेत दोनों गुर्दे लेकर ‘मेरे लिए वेदी पर होम-बलि करके जलाना।’
\v 14 परन्तु बछड़े का माँस, खाल और अंतड़ियाँ छावनी के बाहर आग में जला देना। यह तुम्हारे पाप के लिए बलि होगी।
\s5
\v 15 तब मेढ़ों में से एक को चुनकर हारून और उसके पुत्रों से कहना कि उसके सिर पर हाथ रखें।
\v 16 मेढ़े को गला काट कर मारना। उसका कुछ रक्त लेकर वेदी के चारों सिरों पर छिड़कना।
\v 17 तब उस मेढ़े के टुकड़े करके उसकी अंतड़ियों और पैरों को धोकर उसके टुकड़ों और सिर के ऊपर रखना।
\v 18 तब सब कुछ वेदी पर पूरी तरह से जलाना। यह मुझ यहोवा के लिए होम-बलि होगी और इसकी सुगन्ध मुझे प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 19 अब दूसरे मेढ़े को लेकर हारून और उसके पुत्रों से कहना कि उसके सिर पर हाथ रखें।
\v 20 मेढ़े को गला काटकर मारना, उसका रक्त एक पात्र में लेना। उसमें से कुछ रक्त हारून और उसके पुत्रों के दाहिने कान के सिरे पर और उनके दाहिने हाथों के अंगूठों पर और दाहिने पैरों के अंगूठों पर लगाना। शेष रक्त वेदी के चारों ओर डाल देना।
\s5
\v 21 वेदी पर से कुछ रक्त लेकर अभिषेक के तेल में मिला के हारून और उसके पुत्रों के वस्त्रों पर छिड़क देना। ऐसा करके तू उन्हें और उनके वस्त्रों को मेेरे लिए समर्पित कर देगा।
\s5
\v 22 तब मेढ़े की चर्बी उसकी पूँछ के चारों ओर की चर्बी और अन्दर की चर्बी, कलेजे की झिल्ली और चर्बी समेत दोनों गुर्दे और दाहिनी जाँघ को काटकर अलग कर लेना। यह मेढ़ा हारून और उसके पुत्रों को मेरी याजकीय सेवा के लिए समर्पित करेगा।
\v 23 अब टोकरी में से तीनों प्रकार की अखमीरी रोटियों में से एक-एक रोटी लेकर- एक बिना तेल की, एक तेल युक्त और एक पापड़,
\s5
\v 24 सबको हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखना और उनसे कहना कि उन्हें मेरे लिए समर्पित करने के लिए उठाएँ।
\v 25 फिर उनके हाथों से लेकर उन्हें वेदी पर रखी अन्य भेंटों के साथ जला देना। वह मेरे लिए हवन होगा और इसकी सुगन्ध मुझे प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 26 अब दूसरे मेढ़े का सीना लेकर विशेष भेंट के रूप में मुझ यहोवा के सामने ऊँचा उठाना। लेकिन पशु-बलि का यह भाग तेरे लिए होगा।
\v 27 मेढ़े का वह सीना जिसे तूने मेरे सामने विशेष भेंट के रूप में ऊँचा उठाया था उसे अलग कर देना और मेढ़े के पुट्ठे भी जिन्हें मुझे अर्पित किया गया था अलग कर लेना। हारून और उसके पुत्रों को मेरे लिए याजक होने के लिए समर्पित करने के लिए बलि के मेढ़े के ये दोनों भाग को मेरे लिए अर्पित कर देना।
\v 28 भविष्य में जब-जब इस्राएली मेलबलि चढ़ायेंगे तो ये सीना और पुट्ठे हारून और उसके वंशजों के पुत्रों के होंगे।
\s5
\v 29 हारून के मरने के बाद उसके विशेष वस्त्र उसके पुत्रों के होंगे कि वे याजकीय सेवा के लिए समर्पित किए जाने पर धारण करें।
\v 30 हारून का जो पुत्र उसके बाद अगला महायाजक होगा, वह सात दिन तक उन वस्त्रों को पहनेगा, जब वह मिलापवाले तम्बू के पवित्र स्थान में सेवा करने आएगा।
\s5
\v 31 अब जो मेढ़ा हारून और उसके पुत्रों को समर्पित करने के लिए बलि किया गया था, उसका माँस आँगन में पकाया जाए।
\v 32 तब हारून और उसके पुत्र उस टोकरी में रखी हुई रोटियों के साथ पवित्र तम्बू के द्वार पर खाएँ।
\v 33 उन्हें तुम्हारे पापों को ढाँपने के लिए वे उस बलि का माँस खाएँगे, जिस बलि के द्वारा वे इस सेवा के लिए समर्पित किए गए थे। केवल उन्हें ही इस माँस को खाने की अनुमति है। जो याजक नहीं है उन्हें इस माँस को खाने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह केवल याजकों के लिए अलग किया गया है।
\v 34 यदि उस रात वह माँस और रोटी खाकर समाप्त नहीं की गई तो अगले दिन उसे खाने की अनुमति नहीं है। उसे पूरी तरह से जला दिया जाए क्योंकि वह पवित्र है।
\s5
\v 35 तुम्हें हारून और उसके पुत्रों को मेरी सेवा में समर्पित करते समय सात दिन तक इस संस्कार को करना है जिसकी आज्ञा मैंने तुम्हे दी है।
\v 36 उन सात दिनों में प्रतिदिन तुम एक बछड़ा मुझे चढ़ाओगे कि मैं तुम्हारे पाप क्षमा करूँ। तुम मेरी दृष्टि में वेदी को शुद्ध करने के लिए भी भेंट चढ़ाओगे। जैतून के तेल से वेदी का अभिषेक करके उसे शुद्ध करना।
\v 37 सात दिन तक प्रतिदिन ऐसा ही करना तब वेदी परम-पवित्र होगी और उसका स्पर्श करने वाली वस्तु भी पवित्र हो जाएगी।
\s5
\v 38 तुम मेम्नों की बलि भी चढ़ाना और वेदी पर उन्हें होमबलि करना। उन सातों दिनों में प्रतिदिन दो मेम्ने बलि करना।
\v 39 एक मेम्ना सुबह और एक संध्या के समय बलि करना।
\s5
\v 40 पहले मेम्ने के साथ 1.82 किलो ग्राम मैदा जो एक लीटर जैतून के उत्तम तेल में गूंधा हुआ हो और एक लीटर मदिरा भी चढ़ाना।
\s5
\v 41 संध्या समय जब दूसरा मेम्ना चढ़ाया जाए तब भी उतना ही मैदा, जैतून का तेल और दाखमधु चढ़ाना जैसा सुबह मेम्ना चढ़ाते समय किया था। यह मुझ यहोवा के लिए भेंट होगी और इसकी सुगन्ध मुझे प्रसन्न करेगी।
\v 42 तुम और तुम्हारे वंशज मुझ यहोवा के लिए पीढ़ियों तक ऐसा ही करेंगे। यह सब तुम पवित्र तम्बू के द्वार पर चढ़ाओगे। वहीं मैं तुम्हारे साथ भेंट करके बातें करूँगा।
\s5
\v 43 वहीं मैं इस्राएलियों से भेंट करूँगा और मेरी उपस्थिति का तेज उस स्थान को पवित्र बनाएगा।
\v 44 मैं पवित्र तम्बू और वेदी को समर्पित करूँगा। मैं हारून और उसके पुत्रों को भी मेरी सेवा के लिए याजक के रूप में समर्पित करूँगा।
\s5
\v 45 मैं इस्राएलियों के बीच निवास करके उनका परमेश्वर होऊँगा।
\v 46 वे जान लेंगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ जो उन्हें मिस्र देश से इसलिए निकाल लाये हैं कि मैं उनके बीच वास करूँ। मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूँ जिसकी वे आराधना करते है।”
\s5
\c 30
\p
\v 1 “अपने कुशल कारीगरों से बबूल की लकड़ी की एक वेदी बनवा जिस पर धूप जलाई जाए।
\v 2 यह आधा मीटर चौकोर हो और उसकी ऊँचाई लगभग 1 मीटर हो। उसके चारों कोनों पर सींग लगे होने चाहिए। सींग भी उसी लकड़ी के हों जिससे वेदी बनाई जाए।
\s5
\v 3 उस वेदी के ऊपरी सिरे और उसकी सभी भुजाओं को शुद्ध सोने से मढ़वाना। वेदी के ऊपर सिरों पर सोने की पट्टी लगवाना।
\v 4 उस वेदी को उठाने के लिए सोने के दो छल्ले लगाना जो पट्टी के नीचे वेदी पर दोनों ओर लगाए जाएँ।
\s5
\v 5 बबूल की लकड़ी के दो बल्लियाँ भी बनाकर सोने से मढ़वाना।
\v 6 धूप जलाने की यह वेदी उस पर्दे के सामने रखी जाए जो सन्दूक और ढक्कन के सामने है। यही वह स्थान है जहाँ मैं तुझसे बातें करूँगा।
\s5
\v 7 इस वेदी पर हारून सुखदायक सुगन्ध की धूप जलाया करे। प्रतिदिन सुबह जब वह दीपकों की देखभाल करने आए तब वह धूप जलाए।
\v 8 संध्या के समय जब वह दीपकों की देखभाल करने आए तब भी वह इस वेदी पर धूप जलाया करे। भविष्य में आने वाली सारी पीढ़ियों तक सदा धूप जलती रहे।
\v 9 याजक इस वेदी पर ऐसी धूप कभी न जलाए जिसकी आज्ञा मैंने नहीं दी है, न ही उस पर होम-बलि चढ़ाई जाए, न ही आटे की भेंट और न ही अर्घ चढ़ाया जाए।
\s5
\v 10 प्रतिवर्ष हारून एक बार इस वेदी को शुद्ध करने के लिए अनुष्ठान करे। लोगों के पापों के लिए जो बलि चढ़ाई जाए उसके रक्त को वह वेदी के चारों सींगों पर लगाए। हारून और उसके वंशज पीढ़ियों तक यह अनुष्ठान पूरा करें। यह वेदी मुझ यहोवा को समर्पित की जाए।”
\s5
\v 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 12 “जब तेरे अगुवे इस्राएलियों की जनगणना करें तब प्रत्येक पुरुष जिसकी गणना की गई है मुझे अपनी जीवन रक्षा का मूल्य चुकाए। यह इसलिए होगा कि जनगणना के समय तक उन पर कोई भी भयानक घटना नहीं घटी है।
\v 13 प्रत्येक पुरुष जिसकी गणना की जाए वह छः ग्राम चाँदी मुझे चढ़ाए। चाँदी का भार नापने के लिए वे पवित्र तम्बू के अधिकृत मापदण्ड के अनुसार नापें। यह चाँदी यहोवा के लिए भेंट होगी।
\v 14 तीस वर्ष के लगभग के सभी पुरुष जनगणना के समय मुझे यह चाँदी चढ़ाएँ।
\s5
\v 15 जब वे अपनी जीवन का मूल्य देंगे तो धनी लोग इस से अधिक नहीं देंगे और गरीब लोग इस से कम नहीं देंगे।
\v 16 तुम्हारे अगुवे, प्रजा से यह भेंट स्वीकार करके पवित्र तम्बू की सेवा करने वालों तक पहुँचा दें। तुम इस्राएली सुनिश्चित करना कि अगुवे यह चाँदी एकत्र करें और याद रखो कि तुम्हें यह देना है कि तुम जीवित रहो।”
\s5
\v 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 18 “अपने कुशल कारीगरों से पीतल की एक हौदी बनवा जिसको रखने के लिए उसमें आधार हो। उसे पवित्र तम्बू और वेदी के बीच रखकर पानी से भर देना।
\s5
\v 19 हारून और उसके पुत्र इस पानी से अपने हाथ-पैर धोएँ,
\v 20 तब वे पवित्र तम्बू में प्रवेश करें और वेदी पर भेंट चढ़ाने के लिए हाथ-पैर धोकर जाएँ। ऐसा करके वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे और मारे नहीं जाएँगे।
\v 21 वे मृत्यु से बचने के लिए अपने हाथ पैर धोकर जाएँ। वे और उनके वंशजों के पुत्र पीढ़ियों तक इस विधि का पालन करें।”
\s5
\v 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 23 लोगों से कहकर अति उत्तम सुगन्ध द्रव्य एकत्र करवा- छः किलो तरल गन्धरस, तीन किलो सुगन्धित दाल चीनी, तीन किलो सुगन्धित अगर और
\v 24 छः किलो अमलतास। इन वस्तुओं को नापने के लिए स्वीकृत बाटों का उपयोग करो।।
\v 25 एक कुशल अत्तार को नियुक्त करके निर्देश देना कि चार लीटर जैतून के तेल में इन सब वस्तुओं का मिश्रण तैयार करे। यह तेल पवित्र अभिषेक के लिए काम में लिया जाए।
\s5
\v 26 इस तेल से पवित्र तंबू, पवित्र सन्दूक,
\v 27 मेज और उससे सम्बन्धित उपयोग की सब वस्तुएँ, दीपदान और उससे सम्बन्धित उपयोग की सब वस्तुएँ, धूप जलाने की वेदी।
\v 28 बलि की वेदी और उससे सम्बन्धित सब वस्तुओं और हौदी और उसका आधार आदि सबका इसी तेल से अभिषेक किया जाए।
\s5
\v 29 अभिषेक द्वारा उन्हें मेरे लिए समर्पित करना जिससे कि वे केवल मेरे लिए अलग हो जाएँ। यदि कोई व्यक्ति या वस्तु जिसको स्पर्श करने की आज्ञा नहीं है, वह वेदी का स्पर्श करे तो उस मनुष्य या वस्तु का स्पर्श करने की अनुमति किसी को नहीं होगी।
\v 30 हारून और उसके पुत्रों का अभिषेक करना कि वे याजक होकर मेरी सेवा में समर्पित किए जाएँ।
\v 31 इस्राएलियों को निर्देश दे, ‘यह तेल मेरा विशेष तेल है जो पीढ़ियों तक काम में लिया जाएगा।
\s5
\v 32 इसे साधारण मनुष्यों के शरीर पर मत लगाना और न ही इन सब वस्तुओं को किसी और तेल में मिलाकर तैयार करना, यह तेल मेरे लिए आरक्षित है और तू इसे ज्यों का त्यों स्वीकार करे।
\v 33 जो ऐसा तेल किसी और उद्देश्य के लिए तैयार करे या इस तेल को याजकों के सामान किसी और पर लगाए तो वह व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में समाज से अवश्य अलग कर दिया जाए।’”
\s5
\v 34 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “किसी कुशल अत्तार की सहायता से सुगन्धित मसालों बोल (पौधे विशेष का रस), नखी (सीपी विशेष), कुन्दरू (एक पौधे विशेष का रस), और शुद्ध लोबान (पौधे का रस) आदि का मिश्रण बनवाकर
\v 35 उसमें शुद्धता के लिए कुछ नमक डालकर मेरे लिए अलग रखवा देना।
\v 36 इसका एक अंश कूट कर बारीक चूर्ण बनाना और उसे लेकर पवित्र तम्बू में पवित्र सन्दूक के सामने छिड़कना। इस धूप को मेरे लिए अलग मानना।
\s5
\v 37 इन द्रव्यों का मिश्रण तैयार करके कोई और अपने लिए धूप तैयार नहीं करे। यह धूप मुझ यहोवा के लिए समर्पित ठहरे।
\v 38 जो भी इस प्रकार की धूप इत्र के लिए काम में लेगा उसे मैं अपने लोगों से अवश्य अलग कर दूँगा।”
\s5
\c 31
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 मैंने यहूदा के गोत्र से हूर का पोता और ऊरी के पुत्र बसलेल को चुना है।
\s5
\v 3 उसमें मैंने अपना आत्मा डाला है और उसे हस्तकला की विशेष योग्यता प्रदान की है और उसे निपुर्णता से काम करने के योग्य बनाया है।
\v 4 वह सोने, चाँदी और पीतल के काम में निपुर्णता से तरह-तरह की बनावट तैयार कर सकता है।
\v 5 वह मणियों को तराश कर सोने में जड़ सकता है। वह लकड़ी पर नक्काशी कर सकता है और अन्य सब प्रकार की कारीगरी में निपुर्ण है।
\s5
\v 6 मैंने दान के गोत्र से अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके साथ काम करने के लिए नियुक्त किया है। मैंने अन्य पुरुषों को भी विशेष योग्यता प्रदान की है कि वे उन सब वस्तुओं को तैयार करें जिनकी आज्ञा मैंने तुझे दी है।
\v 7 ये सब वस्तुएँ हैं: पवित्र तम्बू का निर्माण, पवित्र सन्दूक और उसका ढक्कन, पवित्र तम्बू की और सब वस्तुएँ।
\v 8 मेज़ और उसके साथ काम में आने वाली सब वस्तुएँ, सोने का दीपदान और उसके उपयोग की सब वस्तुएँ, धूप जलाने की वेदी,
\v 9 बलि चढ़ाने की वेदी और उसके साथ उपयोग की सब वस्तुएँ और धोने के लिए पानी की हौदी और उसका आधार।
\s5
\v 10 इन सब वस्तुओं के साथ हारून और उसके पुत्रों के याजकीय सेवा के वस्त्र;
\v 11 अभिषेक का तेल और पवित्र स्थान के लिए सुखदायक सुगन्ध की धूप।
\s5
\v 12 कारीगर इन सब वस्तुओं को ठीक वैसा ही बनाएँ जैसा मैंने तुझे निर्देश दिया है।”
\v 13 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 14 इस्राएलियों से कह, ‘सब्त के दिन के बारे में मेरी आज्ञाओं को मानना और तुम इस दिन को मेरे लिए विशेष मानना। यदि कोई व्यक्ति सब्त के दिन को अन्य दिनों की तरह मानता है तो वह व्यक्ति अवश्य मार दिया जाना चाहिए और उसे अपने लोगों से अवश्य अलग कर दिया जाना चाहिए।
\v 15 तुम सप्ताह में छः दिन काम करना परन्तु सप्ताह का सातवाँ दिन पवित्र विश्राम का दिन हो जो मुझ यहोवा को समर्पित हो। जो मनुष्य सब्त के दिन में काम करे वह मार डाला जाए।
\s5
\v 16 तुम सब इस्राएलियों को सब्त के दिन का मान अवश्य रखना है और तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों को भी। मैं तुम्हारे लिए इसे अनिवार्य बनाता हूँ।
\v 17 सब्त का दिन तुम इस्राएलियों को और मुझे अपनी वाचा का स्मरण करा पाएगा क्योंकि मुझ यहोवा ने छः दिनों में आकाश और पृथ्वी को रचा और सातवें दिन रचने का कार्य समाप्त करके विश्राम किया था।
\s5
\v 18 जब यहोवा ने मूसा से सीनै पर्वत पर बात करना समाप्त किया। तब परमेश्वर ने उसे आदेश लिखे हुए दो पत्थर की पट्टियाँ दी जिस पर परमेश्वर ने अपनी उँगलियों से अपने नियमों को लिखा था।
\s5
\c 32
\p
\v 1 मूसा को उस पर्वत पर बहुत लम्बा समय लग गया। जब इस्राएलियों ने देखा कि मूसा पर्वत से नीचे नहीं उतरा, तब उन्होंने हारून के पास जाकर कहा, “हमारे लिए देवताओं को बना जो हमें इस यात्रा में आगे ले चले। हम नहीं जानते कि मूसा के साथ क्या हुआ है जो हमें मिस्र से निकाल के लाया था।”
\v 2 हारून ने उनसे कहा, “ठीक है। तुम एक काम करो। अपनी पत्नियों और संतानों से कहो कि वे अपनी सोने की बालियाँ निकाल कर मुझे दें।”
\s5
\v 3 इसलिए उन्होंने अपनी स्त्रियों की सोने की बालियाँ उतरवाकर हारून को दे दी।
\v 4 हारून ने सब सोना लेकर आग में पिघलाया और एक मूर्ति बनाकर उन्हें दी जो बछड़े जैसी दिखती थी। इस्राएलियों ने उस मूर्ति को देख कर कहा, “इस्राएल के लोगों, यह हमारा देवता है जो हमें मिस्र से बाहर लाया है।”
\s5
\v 5 हारून ने जब इस्राएलियों की प्रतिक्रिया देखी तब उसने बछड़े के आगे एक वेदी बना कर घोषणा की, “कल हम यहोवा के सम्मान में पर्व मनायेंगे।”
\v 6 इसलिए अगले दिन इस्राएली शीघ्र उठे और उस बछड़े की वेदी पर बलि चढ़ाने के लिए पशु ले आए कि होम-बलि चढ़ाएं। वे मेलबलि भी ले आए। उन्होंने भोजन खाया और मदिरापान किया और फिर उठकर अनुचित व्यवहार करने लगे।
\s5
\v 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “पर्वत से नीचे जा क्योंकि जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल कर ले आया है, वे भ्रष्ट हो गए हैं।
\v 8 वे मेरे बताए मार्ग से भटक गए है और मेरे आदेशों का पालन नहीं किया है। उन्होंने सोना पिघला कर एक मूर्ति को बनाया है और उसके सामने बलियाँ चढ़ा कर उसकी पूजा की है। वे कहते हैं, ‘यह इस्राएलियों का परमेश्वर है और यह ही है जो हमें मिस्र से निकाल कर बाहर लाया है।’
\s5
\v 9 मैं जानता हूँ कि वे हठीले हैं।
\v 10 मेरा क्रोध उन पर भड़क उठा है और मैं उन्हें नष्ट करने वाला हूँ इसलिए मुझे मत रोकना। मैं तुझे और तेरे वंशजों ही को एक महान जाति बनाऊँगा।”
\v 11 परन्तु मूसा ने अपने परमेश्वर, यहोवा से विनती की। उसने कहा, “हे यहोवा, अपनी प्रजा पर क्रोध न करें। ये वही लोग हैं जिन्हें आपने अपने महा-शक्ति से मिस्र से बचाया है।
\s5
\v 12 ऐसा मत करो कि मिस्रवासी कहें कि, ‘उनका परमेश्वर उन्हें हमारे देश से निकाल कर तो ले गए परन्तु इसलिए कि उन्हें पर्वतों में नष्ट करके उनसे पूरी तरह से हाथ धो ले! अपनी प्रजा के साथ ऐसा भयानक व्यवहार न करें जैसा आप करना चाहते हैं। ऐसा क्रोध मत करो और अपना विचार बदल दो।
\v 13 अपने दासों अब्राहम, इसहाक और याकूब को तो याद करो। आपने उनसे प्रतिज्ञा करके कहा था, ‘मैं तेरे वंशजों को आकाश के तारों के समान अनगिनत कर दूँगा।’ आपने यह भी तो कहा था, ‘मैं तेरे वंशजों को वह देश दूँगा जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की है। वह देश सदा के लिए उनका होगा।’”
\v 14 इसलिए यहोवा ने उनका भयानक अंत करने का विचार त्याग दिया। अर्थात वह नहीं किया जो उन्होंने करने के लिया कहा था।
\s5
\v 15 तब मूसा यहोवा के पास से निकल कर पर्वत के नीचे उतरा। उसके हाथ में परमेश्वर द्वारा लिखी गई आज्ञाओं की दो पत्थर की पट्टियाँ थी। परमेश्वर ने उन पट्टियों के दोनों ओर लिखा था।
\v 16 परमेश्वर ने स्वयं पत्थर की उन पट्टियों को खोदकर उन पर आज्ञाएँ लिखीं थी।
\s5
\v 17 यहोशू ने इस्राएलियों का शोर सुना। जब मूसा छावनी के निकट पहुँचा तब हारून ने मूसा से कहा, “छावनी में जो कोलाहल हो रहा है वह युद्ध के समान है।”
\v 18 मूसा ने हारून से कहा, “नहीं, यह युद्ध में विजय का शोर नहीं है। न ही यह युद्ध में पराजय का शोर है। मुझे तो यह गाने का सा सुनाई देता है।”
\s5
\v 19 छावनी के समीप पहुँच कर मूसा ने बछड़े की मूर्ति और लोगों का नाचना देखा तो वह बहुत क्रोधित हो गया और उसने पत्थर की वे पट्टियाँ पर्वत के नीचे फेंक दी जिससे वे टूट गई।
\v 20 तब मूसा ने सोने के उस बछड़े की मूर्ति को आग में पिघला दिया और ठंडा होने पर उसे पीस डाला और उसके चूर्ण को पानी में घोल कर इस्राएलियों को पिलाया।
\s5
\v 21 तब मूसा ने हारून से पूछा, “इन लोगों ने तेरे साथ क्या ऐसा किया था कि तू ने इनसे यह पाप करवाया।”
\v 22 हारून ने मूसा से कहा, “कृपा करके मुझ पर क्रोध न कर, मेरे प्रभु। तू जानता है कि ये लोग सदा गलत काम करने को तैयार रहते हैं।
\v 23 उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिए एक मूर्ति बना जो यात्रा में हमें आगे ले चले। जो मूसा हमें मिस्र देश से निकाल लाया है उसका क्या हुआ हम नहीं जानते।’
\v 24 इसलिए मैंने उनसे कहा, “तुम सब अपने कानों से सोने की बालियाँ उतार लाओ। उन्होंने अपनी सोने की बालियाँ लाकर मुझे दे दी। और मैंने उन्हें आग में डाल दिया तो बछड़े की यह मूर्ति निकल कर आई।”
\s5
\v 25 मूसा ने देखा कि हारून इस्राएलियों पर नियंत्रण नहीं रख पाया और कुछ ऐसा किया जिससे उनके शत्रु सोचेंगे कि वे मूर्ख थे।
\v 26 इसलिए वह छावनी के प्रवेश स्थान में खड़ा हो गया और पुकार कर कहा, “जो यहोवा का भक्त है, वह मेरे पास आ जाए।” यह सुन कर लैवी गोत्र के सब लोग उनके पास आ गए।
\v 27 मूसा ने उनसे कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है कि तुम अपनी-अपनी तलवार कमर से बाँध कर छावनी के इस द्वार से उस द्वार तक जाओ। हर एक सामने वाले को मार डालो। चाहे वह तुम्हारे भाई या मित्र या पड़ोसी ही क्यों न हों।”
\s5
\v 28 लेवियों ने मूसा की आज्ञा मानकर उस दिन तीन हजार लोगों को मार डाला।
\v 29 तब मूसा ने लेवियों से कहा, “आज तुम अपने पुत्रों और अपने भाइयों को मार कर यहोवा के विशेष सेवक बन गए हो। इसलिए यहोवा ने तुम्हें आशीष दी है।”
\s5
\v 30 अगले दिन मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “तुमने महापाप किया है। मैं यहोवा से बातें करने के लिए फिर से पर्वत पर चढूँगा। संभव है कि मैं तुम्हारे इस पाप की क्षमा के लिए उन्हें मना पाऊँ।”
\v 31 इसलिए मूसा ने पर्वत पर चढ़ कर यहोवा से कहा, “मैं बड़े दु:ख से स्वीकार करता हूँ कि इन लोगों ने बछड़े की मूर्ति बना कर उसकी पूजा की जो महापाप है।
\v 32 मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप उनका यह पाप क्षमा कर दें। यदि आप उन्हें क्षमा नहीं करते हैं तो मेरा नाम अपनी उस पुस्तक में से मिटा दें जिसमें आपने अपने लोगों के नाम लिखे हुए है।”
\s5
\v 33 यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं अपनी पुस्तक से उन्हीं लोगों के नाम मिटाऊँगा जिन्होंने पाप किया है।
\v 34 अब जाकर इस्राएलियों को उस स्थान में ले जा जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा है। याद रख कि मेरा स्वर्गदूत तेरी अगुआई करेगा परन्तु जिस समय मैं निर्णय ले लूँगा उस समय उन्हें उनके पाप का दण्ड दूँगा।”
\v 35 तब यहोवा ने उन्हें रोग ग्रस्त किया क्योंकि उन्होंने हारून से बछड़े की मूर्ति बनवाई थी।
\s5
\c 33
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस स्थान से निकल और उन लोगों के पास जा जिन्हें तू मिस्र से निकाल कर लाया है। उस देश को जा जिसकी प्रतिज्ञा मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की थी कि मैं उनके वंशजों को दूँगा।
\v 2 मैं अपना स्वर्गदूत तेरे आगे-आगे भेजूँगा। और उस देश से कनानियों, एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों को निकाल दूँगा।
\v 3 तुम उस देश में प्रवेश करोगे जो पशु-पालन और खेती के लिए एक अति उत्तम स्थान है। परन्तु मैं स्वयं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा। यदि मैं जाऊँगा तो इन हठीले लोगों को मार्ग में ही नष्ट कर दूँगा।
\s5
\v 4 यहोवा की यह बात सुन कर इस्राएली दु:खी हुए और उन्होंने अपने आभूषण उतार दिए।
\v 5 यहोवा मूसा से कह चुके थे, “इस्राएलियों से कह, ‘तुम हठीले लोग हो। यदि मैं एक पल भी तुम्हारे साथ चला तो तुम्हें मार डालूँगा। अपने अच्छे वस्त्रों को उतार दो कि पाप के कारण तुम्हारा दुःख दिखाई दे। तब मैं विचार करूँगा कि तुम्हे कैसे दण्ड देना है।’”
\v 6 सीनै पर्वत से निकलने के बाद इस्राएलियों ने अच्छे वस्त्र नहीं पहने।
\p
\s5
\v 7 इस्राएली जब भी यात्रा में अपनी छावनी डालते थे तब मूसा पवित्र तम्बू को छावनी से कुछ दूरी पर लगाता था। मूसा ने उस पवित्र तम्बू को “मिलापवाला तम्बू” कहा। जब कोई अपने बारे में यहोवा की इच्छा जानना चाहता था तब वह छावनी से निकल कर मिलापवाले तम्बू में जाता था।
\v 8 जब मूसा मिलापवाले तम्बू में जाता था तब सब इस्राएली अपने-अपने तम्बू के द्वार पर खड़े रहते थे और उसे तब तक देखते रहते थे जब तक कि वह मिलापवाले तम्बू में प्रवेश नहीं कर लेता था।
\v 9 और जब मूसा मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करता था तब बादल का खम्भा उतर कर तम्बू के द्वार पर खड़ा हो जाता था और यहोवा मूसा से बातें करते थे।
\s5
\v 10 जब इस्राएली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बादल के खम्भे को देखते तब वे सब अपने-अपने तम्बू के द्वार पर यहोवा को दण्डवत् करते।
\v 11 यहोवा मूसा से आमने-सामने बातें करते थे जैसे दो मित्र आपस में बातें करते हैं। उसके बाद मूसा छावनी में लौट आता था परन्तु उसका युवा सहायक नून का पुत्र यहोशू मिलापवाले तम्बू में ही रह जाता था।
\s5
\v 12 मूसा ने यहोवा से कहा, “यह सच है कि आपने मुझसे कहा, ‘इस्राएलियों को लेकर उस देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा परन्तु आपने मुझे यह नहीं बताया कि मेरे साथ किसको भेजोगे। और आपने यह कहा है कि आप मुझे अच्छी तरह से जानते है और मुझ से प्रसन्न है।
\v 13 यदि आप मुझसे प्रसन्न है तो मैं आपसे विनती करता हूँ कि मुझे अपनी योजना बताएँ जिससे कि मैं और गहराई से आपको जान सकूँ और प्रसन्न कर पाऊँ। कृपया याद रखें कि इस्राएली वे लोग है जिन्हें आपने अपने लोगों के रूप में चुना है।
\s5
\v 14 यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं तेरे साथ-साथ चलूँगा और तुझे विश्राम दूँगा।”
\v 15 मूसा ने यहोवा से कहा, “यदि आप मेरे साथ-साथ नहीं चलेंगे तो हमें इस स्थान से न जाने दें।
\v 16 आप मुझसे और अपनी प्रजा इस्राएल से प्रसन्न हैं तो इसका एकमात्र प्रमाण है कि आप हमारे साथ-साथ चलें। अगर आप हमारे साथ-साथ चलेंगे तो इससे प्रकट होगा कि हम पृथ्वी की सब जातियों से भिन्न हैं।”
\s5
\v 17 यहोवा ने मूसा से कहा, “तूने मुझसे जो मांगा है वह मैं तेरे लिए करूँगा क्योंकि मैं तुझे भलिभाँति जानता हूँ और तुझसे प्रसन्न हूँ।”
\v 18 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया मुझे अपनी पूरी शक्ति में दर्शन दें।”
\s5
\v 19 यहोवा ने उससे कहा, “मैं तुझ पर प्रकट करूँगा कि मैं कैसा महान और प्रतापी हूँ। और तुझे स्पष्ट बताऊँगा कि मेरा नाम यहोवा है। मैं अपने सब चुने हुए लोगों के प्रति अनुग्रहकारी और करूणामय हूँ।
\v 20 परन्तु मैं तुझे अपना मुख नहीं देखने दूँगा क्योंकि जो मेरा मुख देखे वह मर जाएगा।
\s5
\v 21 देख, मेरे निकट यहाँ एक स्थान है, तू उस बड़ी चट्टान पर खड़ा हो जा।
\v 22 जब मैं अपने पूरी शक्ति से तेरे पास से निकलूँगा तब मैं तुझे उस चट्टान की दरार में रखूँगा और गुजरते समय मैं तुझे अपने हाथ से ढाँकूँगा।
\v 23 और जब मैं अपना हाथ हटाऊँगा तब तू मेरा मुख नहीं देख पाएगा परन्तु मेरी पीठ देखेगा।
\s5
\c 34
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू पत्थरों में से दो पट्टियाँ काट ले जो उन पट्टियों के समान हों जिन्हें तूने तोड़ दिया है। मैं उन पर वहीं आज्ञाएँ फिर से लिखूँगा।
\v 2 कल सुबह तैयार होकर इस सीनै पर्वत पर चढ़ कर आना कि मैं तुझसे बातें करूँ।
\s5
\v 3 अपने साथ किसी और को मत आने देना। मैं नहीं चाहता कि अन्य कोई भी पर्वत पर चढ़े। पर्वत की तलहटी में किसी गाय-बैल या भेड़-बकरी को चरने मत देना।”
\v 4 इसलिए मूसा ने पत्थरों में से दो पट्टियाँ काटी और अगले दिन सुबह तैयार होकर उन पट्टियों को उठाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार सीनै पर्वत पर चढ़ गया।
\s5
\v 5 तब यहोवा बादल के खम्भे में आकर वहाँ मूसा के पास खड़ा हो गया और अपना नाम ‘यहोवा’ मूसा के सामने घोषित किया।
\v 6 यहोवा उसके आगे से गुज़रा और कहा, “मैं परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं मनुष्यों पर सदैव करूणा और दया दर्शाता हूँ। मैं शीघ्र क्रोध नहीं करता हूँ। मैं मनुष्यों से सच्चा प्रेम करता हूँ और उनसे प्रतिज्ञा करके पूरी करता हूँ ।
\v 7 मैं हजारों पीढ़ियों तक मनुष्यों से प्रेम करता हूँ। मैं उनको सब प्रकार के पापों से क्षमा करता हूँ परन्तु दोषी को सजा भी देता हूँ। मैं उन्हें ही नहीं उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी को भी दण्ड देता हूँ।”
\s5
\v 8 तब मूसा ने भूमि पर गिर कर यहोवा को दण्डवत् किया।
\v 9 उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मैं आपसे विनती करता हूँ कि हमारे साथ चलें और हमें हमारे सब पापों की क्षमा प्रदान करें और हमें सदा के लिए अपनी प्रजा स्वीकार करें।”
\s5
\v 10 यहोवा ने मूसा को उत्तर दिया, “मैं तेरे लोगों से अर्थात इन इस्राएलियों से वाचा बाँधूंगा। उनकी आंखों के सामने मैं ऐसे महान आश्चर्य के काम करूँगा जैसे इस पृथ्वी पर न तो कभी हुए है और न ही किसी जाति ने कभी देखे हैं। तुम में से हर एक जन उन सामर्थी कामों को देखेगा जो मैं करूँगा। मैं तुम्हारे बीच ऐसे काम करूँगा जो मेरे नाम का भय उत्पन्न करेंगे।
\v 11 आज मैं तुम्हें जो आज्ञाएँ देता हूँ उन्हें मानना। मैं एमोरियों, कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों को निकालने पर हूँ।
\s5
\v 12 परन्तु तुम सावधान रहो कि जिस देश में तुम प्रवेश करने पर हो वहाँ के निवासियों से किसी भी प्रकार का समझौता मत करना क्योंकि ऐसा करके तुम भी उनके जैसी बुराई में पड़ जाओगे जो फन्दे में फँसने जैसा होगा।
\v 13 तुम उनकी वेदियों को नष्ट कर देना और उनकी मूर्तियों को तोड़ देना और उन खम्भों को गिरा देना जो अशेरा की पूजा के हैं।
\v 14 तुम केवल मेरी ही आराधना करोगे अन्य किसी भी देवी-देवता की पूजा नहीं करोगे क्योंकि मैं यहोवा अपना सम्मान चाहता हूँ। मैं किसी और देवी-देवता की पूजा करने की अनुमति तुम्हें नहीं देता हूँ। उस देश में किसी भी जाति के साथ शान्ति की वाचा मत बाँधना।
\s5
\v 15 जब वे अपने देवी-देवताओं की पूजा करें और उन्हें बलि चढ़ाएँ तब तुम्हें आमंत्रित करें तो उनका निमंत्रण स्वीकार मत करना क्योंकि उनके साथ तुम उसके देवी-देवताओं को चढ़ाया हुआ भोजन खाओगे और मेरे साथ सच्चे नहीं रहोगे। तुम ऐसे हो जाओगे जैसे व्यभिचार करने वाली स्त्रियाँ जो अपने पति के साथ सच्ची नहीं रहती हैं।
\v 16 यदि तुम अपने पुत्रों के लिए उनकी पुत्रियाँ लाओगे तो वे मूर्ति पूजा करेंगी और तुम्हारे पुत्रों से भी मूर्ति पूजा करवायेंगी।
\v 17 आराधना के लिए धातु पिघला कर मूर्तियाँ मत बनाना।
\s5
\v 18 प्रतिवर्ष अाबीब के महीने में खमीर-रहित रोटी का पर्व मनाना क्योंकि यह मेरी आज्ञा है। पर्व के उन सात दिनों में तुम मेरी आज्ञा के अनुसार खमीरी रोटी मत खाना क्योंकि उस महीने में तुम मिस्र से बाहर आए थे।
\s5
\v 19 तुम्हारे पहले पुत्र और तुम्हारे पशुओं के पहले नर बच्चे सब मेरे हैं।
\v 20 तुम्हारे गधों के पहले बच्चे भी मेरे हैं। परन्तु उनके स्थान में मुझे एक मेम्ना बलि चढ़ा कर तुम उस गधे को बचा सकते हो। यदि तुम ऐसा न करो तो उनकी गर्दन तोड़ कर उनको मार देना। तुम अपने पहले पुत्रों के लिए भी बलि चढ़ा कर उनको छुड़ाना। तुम जब-जब मेरी आराधना के लिए आओ तब-तब भेंट लेकर आना।
\s5
\v 21 सप्ताह में छः दिन तुम काम करोगे परन्तु सातवें दिन तुम विश्राम करोगे, चाहे तुम खेत जोतो या फसल काटो, सातवाँ दिन विश्राम का ही होगा।
\v 22 प्रति वर्ष कटनी के समय पहली कटनी का पर्व मनाना और जब तुम्हारी अन्न की कटनी पूरी हो या फलों की फसल का अंतिम भाग इकट्ठा हो जाए तब समापन का पर्व मनाना।
\s5
\v 23 वर्ष में तीन बार सब पुरूष मेरी आराधना के लिए एकत्र होना क्योंकि मैं इस्राएलियों का परमेश्वर यहोवा हूँ।
\v 24 मैं उस देश में निवास करने वाली जातियों को निकाल दूँगा और तुम्हारी सीमाओं को बढ़ाऊँगा। जब तुम वर्ष में तीन बार अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना के लिए एकत्र होकर पर्व मनाओगे तब कोई तुम्हारे देश को जीतने का प्रयास नहीं करेगा।
\s5
\v 25 जब तुम मेरे लिए पशु-बलि चढ़ाओ तब खमीरी रोटी कभी मत चढ़ाना। फसह के पर्व में जब तुम मेम्ने की बलि चढ़ाओ तब अगले दिन सुबह तक उसका माँस मत रखना।
\v 26 मेरे पवित्र तम्बू में तुम्हारी फसल की कटनी का प्रथम अंश चढ़ाना अनिवार्य है। जब तुम किसी पशु के बच्चे को मारो तब उसकी माता के दूध में उसे मत पकाना।”
\s5
\v 27 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “मैंने जो आज्ञाएँ तुझे दी हैं, उन्हें लिख ले। इन आज्ञाओं के माध्यम से मैंने तेरे साथ और इस्राएलियों के साथ वाचा बाँधी है।”
\v 28 मूसा उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात यहोवा के साथ रहा। उस समय उसने न तो कुछ खाया और न ही कुछ पीया। उसने यहोवा की वाचा की दस आज्ञाओं को पत्थर की पट्टियों पर लिखा।
\s5
\v 29 जब मूसा हाथ में दस आज्ञाओं की वे दो पट्टियाँ लिए हुए पर्वत पर से उतरा तब उसे अपने चेहरे की चमक का ज्ञान नहीं था।
\v 30 जब हारून और इस्राएलियों ने मूसा को देखा तब वे उसके चेहरे की चमक को देख कर आश्चर्यचकित हो गए और उसके निकट आने से डर गए।
\v 31 परन्तु मूसा ने हारून और इस्राएली प्रधानों को बुलाया और उनसे बातें की।
\s5
\v 32 उसके बाद सब इस्राएली मूसा के सामने एकत्र हुए और मूसा ने उन्हें सीनै पर्वत पर दिए गए यहोवा के आदेश सुनाए।
\v 33 जब मूसा ने इस्राएलियों से बात करना समाप्त किया तब उसने अपने चेहरे पर पर्दा डाल लिया।
\s5
\v 34 परन्तु जब मूसा मिलाप वाले तम्बू में यहोवा से बातें करने जाता था तब वह अपने चेहरे पर से पर्दा हटा लिया करता था। और बाहर आकर वह इस्राएलियों को परमेश्वर के आदेश सुना दिया करता था।
\v 35 इस्राएली देखते थे कि मूसा का मुख अब भी चमकता था इसलिए वह फिर से अपने चेहरे पर पर्दा डाल लेता था। और जब तक वह यहोवा से बातें करने मिलापवाले तम्बू में प्रवेश न करता, अपने चेहरे पर पर्दा डाले रहता था।
\s5
\c 35
\p
\v 1 मूसा ने इस्राएलियों को इकट्ठा करके उनसे कहा, “यहोवा ने तुम्हारे लिए जो आज्ञाएँ दी है, वे हैं:
\v 2 सप्ताह के छः दिन तुम सब काम करोगे परन्तु सातवें दिन तुम विश्राम करोगे। वह दिन परमेश्वर को समर्पित एक पवित्र दिन होगा। उस दिन काम करने वाला अवश्य मार डाला जाए।
\v 3 विश्राम दिवसों पर अपने घरों में आग भी नहीं जलाना।”
\s5
\v 4 मूसा ने इस्राएलियों से यह भी कहा, “यहोवा की आज्ञा यह भी है।
\v 5 तुम सब यहोवा को अपनी इच्छा से भेंट चढ़ाओगे। भेंट में सोना, चाँदी, पीतल,
\v 6 उत्तम मलमल, नीला, बैंजनी और लाल बुना हुआ कपड़ा, बकरी के बाल का वस्त्र,
\v 7 भेड़ की लाल रंगी खाल, सुइसों का चमड़ा, बबूल की लकड़ी
\v 8 दीपकों के लिए तेल, अभिषेक के तेल के लिए सुगन्धित द्रव्य और मनमोहक सुगन्ध के लिए भी सुगन्धित द्रव्य,
\v 9 याजक के एपोद और सीना-बन्द के लिए सुलैमानी मणि और अन्य मणि।
\s5
\v 10 तुम्हारे बीच जितने भी कुशल कारीगर हैं वे यहोवा की आज्ञा की वस्तुओं को तैयार करने के लिए सामने आ जाएँ,
\v 11 अर्थात तम्बू और उसके पर्दे, उसके बन्ध, उसके चौखटे, उसकी बल्लियाँ, उसके खम्भे और आधारः
\v 12 पवित्र सन्दूक और उसे उठाने के लिए बल्लियाँ और उसका ढक्कन, पवित्र स्थान को परमपवित्र स्थान से विभाजित करने वाला पर्दा।
\s5
\v 13 कारीगरों ने मेज़ और उसको उठाने के लिए बल्लियाँ और मेज से सम्बन्धित सब वस्तुएँ, परमेश्वर के लिए भेंट की रोटीयाँ आदि सब तैयार कीं;
\v 14 दीपदान, उसकी देखरेख का सामान और तेल;
\v 15 धूप जलाने की वेदी और उसे उठाने के लिए बल्लियाँ; अभिषेक का तेल और मनमोहक सुगन्ध की धूप; पवित्र तम्बू में प्रवेश द्वार का पर्दा;
\v 16 होम-बलि की वेदी और उसकी पीतल की जाली, वेदी को उठाने के बल्लियाँ और उससे सम्बन्धित सब उपकरण; हौदी और उसका आधार आदि सब तैयार करें।
\s5
\v 17 कारीगर आँगन के पर्दे उनके खम्भे और खम्भों के आधार; आँगन के प्रवेश द्वार के पर्दे;
\v 18 पवित्र तम्बू के लिए खूंटे और रस्सियाँ;
\v 19 और हारून और उसके पुत्रों के लिए पवित्र स्थान में सेवा के लिए गौरवशाली वस्त्र भी तैयार करें।”
\s5
\v 20 तब सब इस्राएली अपने-अपने तम्बू में लौट गए।
\v 21 जिस-जिस के मन में यहोवा को भेंट देने की इच्छा उत्पन्न हुई उस-उस ने पवित्र तंबू, अनुष्ठानों में उपयोगी साधनों और याजकों के पवित्र वस्तुओं के निर्माण में आवश्यक वस्तुएँ भेंट की।
\v 22 सब स्त्री-पुरुषों ने अपनी इच्छा से सोने के आभूषण, बालियाँ, हार और सोने के अन्य सामान लाकर यहोवा को समर्पित कर दिए।
\s5
\v 23 जिन लोगों के पास बुने हुए नीले, बैंजनी और लाल कपड़े थे या उत्तम मलमल के कपड़े या बकरी के बालों के कपड़े या लाल रंग से रंगी भेड़ की खाल या सुइसों की खाल थी लेकर आए।
\v 24 जिनके पास चाँदी और पीतल था वे भी यहोवा को अर्पित करने के लिए वह सब ले आए। जिनके पास बबूल की लकड़ियाँ थी कि यहोवा की आराधना में काम आए, वे लकड़ियाँ भी ले आए।
\s5
\v 25 जो स्त्रियाँ कपड़ा बुनने में कुशल थी वे हाथ से तैयार मलमल का बारीक धागा, और नीला, बैंजनी और लाल ऊन ले आईं।
\v 26 जिन स्त्रियों में इच्छा थी उन्होंने बकरी के बालों से धागा काता।
\s5
\v 27 प्रधान हारून के याजकीय वस्त्र के लिए सुलैमानी पत्थर और मणि ले आए कि उसके एपोद और सीना-बन्द में जड़े जाएँ।
\v 28 वे मनमोहक सुगन्ध की धूप तैयार करने के लिए सुगन्धित द्रव्य भी लेकर आए। वे दीपकों के लिए और अभिषेक तेल तैयार करने के लिए और धूप में डालने के लिए जैतून का तेल भी लाए।
\v 29 इस्राएल के जितने भी स्त्री-पुरुषों के मन में उत्साह था, इन सब वस्तुओं को ले आए जिनकी आज्ञा परमेश्वर यहोवा ने मूसा को दी थी उसका कार्य पूरा हो।
\s5
\v 30 मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “ध्यान से सुनो। परमेश्वर ने हूर के पोते, ऊरी के पुत्र बसलेल को यहूदा के गोत्र में से चुन लिया है।
\v 31 यहोवा ने उसमें अपना आत्मा दिया है और उसे एक कुशल कारीगर की योग्यता और ज्ञान से परिपूर्ण किया है।
\v 32 वह सोने, चाँदी और पीतल की अति उत्तम कारीगरी कर सकता है।
\v 33 वह मणियों को तराशकर छोटे से छोटे जड़ने के काम में निपुण है। वह लकड़ी पर भी नक्काशी करने में कुशल है और सब प्रकार की कारीगरी में वह निपुण है।
\s5
\v 34 परमेश्वर ने उसे और दानवंशी अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को अपनी कला अन्यों को सिखाने की भी योग्यता प्रदान की है।
\v 35 यहोवा ने उन्हें शिल्पकारी के प्रत्येक काम में निपुणता प्रदान की है। जैसे कलाकृत्तियाँ बनाना, बारीक श्वेत मलमल बुनना, नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई करना और सनी का वस्त्र तैयार करना। वे नाना प्रकार की हस्तकला तैयार कर सकते है।
\s5
\c 36
\p
\v 1 बसलेल और ओहोलीआब उन सब पुरुषों को साथ लेकर जिन्हें यहोवा ने हस्तकौशल में निपुणता प्रदान की है, पवित्र तम्बू के निर्माण कार्य को पूरा करेंगे। इन लोगों ने यहोवा के द्वारा दिए गए सब निर्देशों का पालन किया।
\s5
\v 2 तब मूसा ने बसलेल, ओहोलीआब और अन्य सब निपुण हस्तकारों को, जिन्हें यहोवा ने प्रवीणता प्रदान की थी और जिनमें ऐसी इच्छा थी, बुलवाया।
\v 3 और उन्हें पवित्र तम्बू बनाने के लिए यहोवा ने अर्पित सब वस्तुएँ दे दी। लोग तो फिर भी प्रतिदिन सुबह बहुत अधिक भेंटे लेकर आ रहे थे।
\v 4 अन्त में पवित्र तम्बू का निर्माण करने वाले कारीगर जिन्हें यहोवा द्वारा कार्य सौंपे गए थे वे मूसा के पास आए।
\s5
\v 5 उन्होंने मूसा से कहा, “यहोवा की आज्ञा के अनुसार हमें जो कार्य सौंपा गया है उसमें सामान आवश्यकता से अधिक आ गया है।”
\v 6 तब मूसा ने पूरी छावनी में घोषणा करवा दी, “पवित्र तम्बू निर्माण के लिए अब और भेंट लाने की आवश्यकता नहीं है।” यह सुनकर इस्राएलियों ने भेंट लाना बन्द कर दिया।
\v 7 अब तक इस्राएलियों ने जितना सामान दिया था वह निर्माण के लिए आवश्यकता से अधिक था।
\s5
\v 8 कारीगरों में जो सबसे अधिक कुशल कारीगर थे, उन्होंने पवित्र तम्बू बनाया। उन्होंने उत्तम मलमल की सात पट्टियों पर सावधानीपूर्वक नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई करके पंखोंवाले प्राणियों के चित्र बनाए। यह सब बसलेल द्वारा बनाया गया था।
\v 9 मलमल की प्रत्येक पट्टी 12.8 मीटर लंबी और 1.8 मीटर चौड़ी थी।
\v 10 बसलेल और उसके लोगों ने इन पाँच पट्टियों को जोड़कर एक पर्दा बनाया और अन्य पाँच पट्टियों को जोड़कर दूसरा पर्दा बनाया।
\s5
\v 11 प्रत्येक पर्दे के लिए बसलेल और उसके लोगों ने नीले कपड़े के फीते बनाकर प्रत्येक पर्दे के बाहरी सिरे पर लगाए।
\v 12 उन्होंने एक पर्दे पर पचास फीते और दूसरे पर्दे के बाहरी सिरे पर पचास फीते लगाए।
\v 13 इन दोनों पर्दों को जोड़ने के लिए उन्होंने सोने के बन्धन लगाए। इस प्रकार पवित्र तम्बू भीतर से ऐसा दिखाई देता था कि वह एक ही है।
\s5
\v 14 बसलेल और उसके लोगों ने बकरी के बाल से बनाए गए ग्यारह कपड़ों से एक आवरण तैयार किया।
\v 15 प्रत्येक भाग 18.3 मीटर लंबा और 1.8 मीटर चौड़ा था।
\v 16 ऐसे पाँच भागों को जोड़कर एक आवरण तैयार किया गया और छः भागों द्वारा दूसरा आवरण तैयार किया गया।
\v 17 उन्होंने नीले कपड़े से एक सौ फीते बना कर एक आवरण के बाहरी सिरे पर पचास फीते सिले और दूसरे आवरण के बाहरी सिरे पर पचास फीते सिले।
\s5
\v 18 बसलेल और उसके लोगों ने पीतल के पचास अाँकड़े बना कर दोनों आवरणों को जोड़ दिया। इस प्रकार एक समूचा आवरण तैयार हो गया।
\v 19 पवित्र तम्बू के लिए दो आवरण और तैयार किए गए। एक लाल रंगे हुए खालों से और उसके ऊपर का दूसरा आवरण बकरी की खालों के चमड़े से बनाया गया।
\s5
\v 20 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी के 48 चौखटे भी बनाए और पवित्र तम्बू के आवरण के लिए उन्हें खड़ा किया।
\v 21 प्रत्येक चौखटा 4.6 मीटर लम्बा और 0.7 मीटर चौड़ा था। उन्होंने
\v 22 प्रत्येक चौखट के नीचे दो उभार जो नीचे आधार से जोड़े जाने थे।
\v 23 उन कुशल कारीगरों ने पवित्र तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस चौखट बनाए।
\s5
\v 24 बसलेल और उसके लोगों ने चाँदी के चालीस आधार बनाए कि उन चौखटों को रोकें- प्रत्येक चौखटे के लिए दो आधार। हर एक चौखटे के उभार इन आधारों में बैठाए जाते थे।
\v 25 इसी प्रकार उन्होंने पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के लिए भी बीस चौखट तैयार किए।
\v 26 और उनके लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाए- प्रत्येक के दो आधार।
\s5
\v 27 पवित्र तम्बू के पिछले भाग- पश्चिम की ओर, बसलेल और उसके लोगों ने छः चौखट तैयार किए।
\v 28 उन्होंने दो और चौखट बनाए जो पवित्र तम्बू के पिछले भाग के कोनों को दृढ़ता प्रदान करने के लिए थे।
\s5
\v 29 कोने में लगने वाले ये दोनों ढांचे नीचे तो एक दूसरे से अलग थे परन्तु ऊपर आपस में जुड़े थे। दोनों कोनों के चौखटों में से प्रत्येक के ऊपर बसलेल और उसके लोगों ने आड़ी डंडियाँ लगाने के लिए सोने के छल्ले लगाए थे।
\v 30 इस प्रकार, पवित्र तम्बू पिछले भाग के लिए आठ चौखट थी जिनमें से प्रत्येक के दो आधार थे अर्थात कुल सोलह आधार हुए तैयार की। उनमें से पाँच पवित्र तम्बू के उत्तरी भाग के चौखटों के लिए थीं,
\s5
\v 31 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से पन्द्रह आड़ी डंडियाँ बनाईं जिनमें से पांच दक्षिणी ओर के लिए और पवित्र तम्बू के पिछले भाग की चौखटों के लिए पांच थीं।
\v 32 पाँच दक्षिणी ओर के लिए और पवित्र तम्बू के पिछले भाग की चौखटों के लिए पाँच थीं।
\v 33 कारीगरों ने पवित्र तम्बू के उत्तरी दक्षिणी और पश्चिमी भाग के लिए आड़ी डंडियाँ बनाकर उन्हें चौखटों के बीच जोड़ा। दो लम्बी आड़ी डंडियाँ पवित्र तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगी थीं और पश्चिमी ओर की आड़ी डंडियाँ तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगी थीं।
\v 34 कारीगरों ने चौखटों को सोने से मढ़ दिया और खम्भों पर सोने के छल्ले लगा दिए और उन छल्लों में आड़ी डंडियाँ डाल दीं उन डंडियों को भी सोने से मढ़ दिया।
\s5
\v 35 बसलेल और उसके लोगों ने बारीक श्वेत मलमल का एक पर्दा भी बुना और उस पर नीले, बैंजनी और लाल ऊन से पंखों वाले प्राणियों की छवि की कढ़ाई की।
\v 36 उन्होंने बबूल की लकड़ी की उन चार बल्लियों पर जो सोने से मढ़े हुई थीं, पर्दे को लटकाया और प्रत्येक डंडे को चाँदी के आधार पर टिकाया।
\s5
\v 37 बसलेल और उसके लोगों ने पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के लिए भी एक पर्दा बनाया। उन्होंने उसे मलमल का बनाया और एक कुशल बुनकर ने उस पर नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई की।
\v 38 इस पर्दे को रोकने के लिए उन्होंने बबूल की लकड़ी के पाँच खंभे खड़े किए और उन पर सोने के आँकड़े जड़े। इन खंभों और उनकी छड़ियों को भी सोने से मढ़ा गया और उनके आधार पीतल से बनाए गए।
\s5
\c 37
\p
\v 1 तब बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से पवित्र सन्दूक बनाया जिसकी लम्बाई 1.1 मीटर और चौड़ाई 0.75 मीटर और ऊँचाई 0.75 मीटर थी।
\v 2 उस सन्दूक को उन्होंने भीतर और बाहर सोने से मढ़ दिया और उसके ऊपरी सिरे पर सोने की झालर लगाई।
\v 3 उस सन्दूक के पायों पर सोने के चार छल्ले लगाए- दो छल्ले सन्दूक की एक ओर और दो छल्ले दूसरी ओर।
\s5
\v 4 उन्होंने बबूल की लकड़ी के दो बल्लियाँ बनाकर उन पर सोना मढ़ा।
\v 5 और पवित्र सन्दूक की दोनों ओर लगाए गए छल्लों में उन्हें डाल दिया जिससे कि लेवी सन्दूक को उन बल्लियों के आधार पर उठाया करें।
\v 6 उस पवित्र सन्दूक के लिए उन्होंने एक ढक्कन भी बनाया। वह भी 1.0 मीटर लम्बा और 0.75 मीटर चौड़ा था।
\s5
\v 7 बसलेल और उसके लोगों ने सोना पीट कर दो पंख वाले प्राणी तैयार किए कि पवित्र सन्दूक के ढक्कन के दोनों सिरों पर एक-एक प्राणी रखा जाए।
\v 8 उन्होंने सन्दूक के एक सिर पर एक प्राणी और दूसरे सिरे पर दूसरा प्राणी इस प्रकार रख कर जोड़ा कि वे ढक्कन से जुड़े दिखते थे।
\v 9 उन्होंने उन पंख वाले प्राणियों को इस प्रकार जड़ा कि उनके पंख एक दूसरे का स्पर्श करते हुए ढक्कन पर छाए हुए थे और दोनों प्राणियों का मुख एक दूसरे को आमने-सामने ढक्कन के केन्द्र को देखते हुए थे।
\s5
\v 10 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से एक मेज भी बनाई जिसकी लम्बाई 1.0 मीटर और चौड़ाई 0.5 मीटर और ऊँचाई 0.75 मीटर की थी।
\v 11 उन्होंने उस मेज पर शुद्ध सोना चढ़ाया और उस पर सोने का झालर लगाया।
\v 12 उसके चारों ओर आठ सेंटीमीटर चौड़ा एक घेरा बना कर उस पर भी सोने का झालर लगाया।
\v 13 उस मेज के चारों कोनों पर पायों में उन्होंने सोने के छल्ले लगाए।
\s5
\v 14 बसलेल के लोगों ने उन छल्लों को मेज़ पर घेरे के निकट लगाया।
\v 15 उन्होंने बबूल की लकड़ी की दो बल्लियाँ भी बनाई और उन पर सोना चढ़ा दिया और उन बल्लियों को छल्लों में डाल दिया कि मेज उठाने का काम दें।
\v 16 मेज के उपयोगी उपकरण भी शुद्ध सोने से बनाए गए- थालियाँँ, गिलास, घड़े और कटोरे जिनसे याजक यहोवा के लिए मदिरा का अर्घ चढ़ायेंगे।
\s5
\v 17 बसलेल और उसके लोगों ने शुद्ध सोने का दीपदान भी बनाया। उसका आधार और बल्लियाँ सोने के पिंड को पीट कर बनाए गए थे। तेल के लिए कटोरे और फूलों की कलियों और दीपदान की भुजाओं को सजाने के लिए पंखुड़ियाँ, आधार और डंडी सब एक ही सोने के पिंड को पीट कर बनाए गए थे।
\v 18 दीपदान की छः भुजाएँ थी। डंडी की एक ओर तीन और दूसरी ओर तीन।
\v 19 प्रत्येक भुजा पर बादाम के फूलों के समान रचनाएँ थी। उन पर भी फूलों की कलियाँ और पंखुड़ियाँ बनाई गई थी।
\s5
\v 20 दीपदान की बल्लियों पर सोने की चार कटोरियाँ थी। वे भी बादाम के फूलों जैसी दिखाई देती थी। प्रत्येक में फूलों की कलियाँ और पंखुड़ियाँ थी।
\v 21 दोनों ओर, प्रत्येक भुजा के नीचे निकली हुई एक फूल की कली थी।
\v 22 ये सब फूल की कलियाँ, भुजाएँ और डालियाँ एक ही सोने के पिंड को पीट कर बनाई गई थी।
\s5
\v 23 बसलेल और उसके लोगों ने तेल डालने के लिए सात कटोरियाँ भी बनाई। जली हुई बत्तियाँ निकालने के लिए सोने की चिमटियाँ और जली हुई बत्तियाँ डालने के लिए तश्तरियाँ भी सोने की बनाई गई।
\v 24 दीपदान और उससे संबंधित उपकरणों को बनाने में 33 किलो शुद्ध सोना काम में लिया गया था।
\s5
\v 25 बसलेल और उसके लोगों ने बबूल की लकड़ी से धूप जलाने की वेदी बनाई जो चौकोर थी जिसकी भुजाएँ 0.5 मीटर की और ऊँचाई 1.0 मीटर की थी जिसके प्रत्येक कोने पर सींग की आकृति के उभार थे। ये सींग वेदी की लकड़ी से ही तराशे गए थे।
\v 26 उन्होंने वेदी का ऊपरी भाग को, चारों ओर को और सींगों को सोने से मढ़ा। वेदी के ऊपरी सिरे पर चारों ओर सोने की झालर लगाई गई।
\s5
\v 27 वेदी को उठाने के लिए बसलेल और उसके साथियों ने दो सोने के छल्ले बनाकर झालर के नीचे, एक ओर एक छल्ला और दूसरी ओर दूसरा छल्ला लगाया। वेदी को उठाने के लिए इन सोने के छल्लों में बल्लियाँ डाली गईं।
\v 28 ये बल्लियाँ बबूल की लकड़ी से बनाई गईं और उन पर सोना चढ़ाया गया।
\v 29 उन्होंने अभिषेक के लिए पवित्र तेल और सुखदायक सुगंध की शुद्ध धूप भी तैयार की। एक कुशल अत्तार ने धूप तैयार की।
\s5
\c 38
\p
\v 1 बसलेल और उसके लोगों ने होम-बलि करने की वेदी बबूल की लकड़ी से बनाई। वह चौकोर थी, 2.33 मीटर की प्रत्येक भुजा। उसकी ऊँचाई 0.4 मीटर की थी।
\v 2 उसके प्रत्येक कोने पर एक सींग तराशा गया जो उसकी लकड़ी में से ही बनाया गया था जिससे वेदी बनाई गई थी। उस वेदी को पीतल से मढ़ा गया था।
\v 3 उन्होंने पशु-बलि की राख उठाने के लिए तसले भी बनाए और राख साफ करने के लिए बेलचे बनाए। माँस को पकाने के पात्र और पलटने के लिए काटे भी बनाए और कोयले के लिए बाल्टियाँ बनाई। यह सब वस्तुएँ पीतल से बनाई गई थी।
\s5
\v 4 जलती हुई लकड़ी और कोयले के लिए जाली भी बनाई गई। जिसे वेदी के चारों ओर के घेरे के नीचे लगाया गया जो वेदी के भीतर आधी ऊँचाई पर लगाई गई थी।
\v 5 वेदी को उठाने के लिए बल्लियाँ डालने के छल्ले भी लगाए जो वेदी के प्रत्येक कोने पर लगे।
\s5
\v 6 बल्लियाँ बबूल की लकड़ी की थी जिन पर पीतल चढ़ाया गया था।
\v 7 इन बल्लियों को वेदी के दोनों ओर के छल्लों में डाला गया कि वेदी उठाई जा सके। वेदी एक खुले सन्दूक के समान थी और बबूल के तख्तों से बनी थी।
\s5
\v 8 बसलेल के लोगों ने स्नान की हौदी और उसके आधार को पीतल से बनाया। यह पीतल पवित्र तम्बू के द्वार पर सेवारत स्त्रियों के दर्पणों का था।
\s5
\v 9 पवित्र तम्बू के चारों ओर बसलेल और उसके लोगों ने उत्तम श्वेत मलमल का आँगन भी बनाया। दक्षिणी ओर का पर्दा 45.75 मीटर लंबा था।
\v 10 पर्दे को रोकने के लिए पीतल के बीस खंभे बनाए गए जिनके आधार भी पीतल के थे, प्रत्येक खंभे का एक आधार था। पर्दों को खंभों पर बान्धने के लिए चाँदी के आँकड़े और धातु की बल्लियाँ चाँदी चढ़ाए हुए थे।
\s5
\v 11 उत्तरी ओर के लिए भी वैसे ही पर्दे, खंभे, आधार और आँकड़े बनाए गए।
\v 12 आँगन के पश्चिमी ओर 23.0 मीटर लम्बा पर्दा बनाकर लगाया गया और उसे रोकने के लिए दस खंभे और खंभों के दस आधार भी बनाए गए। उनके लिए भी चाँदी के आँकड़े और चाँदी से मढ़ी धातु की छड़ें थीं।
\s5
\v 13 पूर्वी ओर जहाँ प्रवेश द्वार था, आँगन 23.0 मीटर चौड़ा था।
\v 14 प्रवेश द्वार की एक ओर बसलेल और उसके लोगों ने लगभग सात मीटर चौथा पर्दा बनवाया जो तीन खंभों और तीन आधारों पर डला हुआ था।
\v 15 प्रवेश द्वार के बाहर भी उन्होंने सात मीटर चौड़ा पर्दा तीन खंभों पर डाला। ये खंभे तीन आधारों पर टिके हुए थे।
\v 16 आँगन के सब पर्दे उत्तम मलमल से बुने गए थे।
\s5
\v 17 आँगन के सब खंभे पीतल के बने थे और चाँदी से मढ़े हुए थे। इन खंभों को धातु की छड़ों से जोड़ा गया था जिन पर चाँदी चढ़ाई गई थी। उन्होंने चाँदी के आँकड़े भी घुंडियाँ बनाए।
\v 18 आँगन के प्रवेश द्वार के लिए उन्होंने उत्तम श्वेत मलमल के पर्दे बुने और उन पर कुशल बुनकर ने नीले बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई की। यह पर्दा लगभग 9.0 मीटर लंबा और 2.33 मीटर ऊँचा था जैसे आँगन के अन्य पर्दे थे।
\v 19 सब पर्दे उत्तम मलमल के थे और प्रत्येक खंभा एक पीतल के आधार पर टिका हुआ था। आँगन के सब खंभे धातु की छड़ से जुड़े हुए थे जिन पर चाँदी चढ़ाई गई थी। आँकड़े भी चाँदी के बने हुए थे और खंभों का ऊपरी सिरा चाँदी से मढ़ा हुआ था।
\v 20 पवित्र तम्बू के और आँगन के पर्दे सब के खूंटे पीतल के बने थे।
\s5
\v 21 पवित्र तम्बू के निर्माण में जो धातु लगी उसका लेखा इस प्रकार है। मूसा ने कुछ लेवियों को यह काम सौंपा कि जितनी भी धातु पवित्र तम्बू के निर्माण में लगी है उसका लेखा लिख लें। याजक हारून का पुत्र, ईतामार इन पुरुषों का काम देखता था।
\v 22 ऊरी के पुत्र, हूर के पोते ने वह सब वस्तुएँ बनाकर तैयार कर दी जिनकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी कि वह बनवाए।
\v 23 बसलेल का सहायक दान गोत्र के अहीसामाक का पुत्र ओहोलीआब था। ओहोलीआब एक कुशल नक्काशी करने वाला था जिसने सब कलाकृत्तियाँ तैयार की और नीले, बैंजनी और लाल ऊन से मलमल की कढ़ाई का सारा काम किया।
\s5
\v 24 पवित्र तम्बू के निर्माण में जितना सोना लगा था वह कुल 965 किलोग्राम था। सोने का भार नापने के लिए उन्होंने स्वीकृत माप काम में लिया था।
\v 25 प्रधानों ने जब गणना करके इस्राएलियों से चाँदी की भेंट स्वीकार की तब कुल चाँदी 3,320 किलोग्राम थी जिसे स्वीकृत माप से तौला गया था।
\v 26 जितने पुरुष कम से कम बीस वर्ष के थे उनकी गणना की गई थी और उनमें से हर एक ने आवश्यक मात्रा में भेंट दी थी। इन पुरुषों की कुल संख्या 603,550 थी।
\s5
\v 27 उन्होंने पवित्र तम्बू के पर्दों के खंभों के जो सौ आधार थे उनमें से प्रत्येक 33 किलोग्राम चाँदी का था और कुल चांदी 3,330 किलोग्राम काम में ली गई थी।
\v 28 बसलेल और उसके लोगों ने आधारों के अतिरिक्त बाइस किलोग्राम चाँदी से खंभों के अँकुड़े और छड़ें और खंभों के ऊपरी सिरों को संवारने का काम किया।
\v 29 लोगों ने जो पीतल दिया वह कुल 2,300 किलोग्राम था।
\s5
\v 30 उस पीतल से बसलेल और उसके लोगों ने पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के खंभों के आधार बनाए। उन्होंने होम-बलि की वेदी उसकी जाली और उपयोग में आने वाले सब उपकरण भी पीतल के बनाए थे।
\v 31 आँगन के पर्दों के खंभों के आधार और आँगन के प्रवेश द्वार के आधार और पवित्र तम्बू के खूंटे और आँगन के पर्दों के खूंटे, सब पीतल के बने थे।
\s5
\c 39
\p
\v 1 बसलेल, ओहोलीआब और अन्य कुशल कारीगरों ने पवित्र स्थान में सेवा करने के लिए हारून के विशेष वस्त्र भी तैयार किए। उन्होंने मूसा को दी गई यहोवा की आज्ञा के अनुसार नीले, बैंजनी और लाल ऊन के कपड़े से उन वस्त्रों को तैयार किया।
\s5
\v 2 पवित्र एपोद उत्तम श्वेत मलमल और नीले, बैंजनी और लाल ऊनी कपड़े से बनाया गया।
\v 3 उन्होंने सोने के तार की पतली चद्दर बनाकर उसके खींचे और मलमल, नीले, बैंजनी और लाल कपड़े में उनसे कढ़ाई की।
\s5
\v 4 पवित्र एपोद के कन्धे के दो-दो फीते थे जिनसे उसके आगे और पीछे के भाग बांधे जाते थे।
\v 5 पवित्र एपोद के कपड़े से सावधानीपूर्वक बुना गया एक पटुका एपोद में सिला गया। यह भी मूसा को दी गई परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार था।
\s5
\v 6 बसलेल और उसके लोगों ने दो सुलैमानी पत्थर तराशे और सोने की खानों में जड़ दिए। उन सुलैमानी पत्थरों पर एक कुशल मणि तराश के इस्राएल के बारह गोत्रों के नाम लिखे।
\v 7 उन्होंने उन मूल्यवान सुलैमानी पत्थरों को पवित्र एपोद के कन्धों के फीतों पर लगाया कि इस्राएल के बारह गोत्रों का प्रतिनिधित्व करें। यह भी मूसा को दी गई परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार था।
\s5
\v 8 उन्होंने सीना-बन्द भी उसी कपड़े का बनाया जिससे एपोद बनाया गया था और कढ़ाई भी उसी प्रकार की बनाई गई थी।
\v 9 उसका आकार चौकोर था और दोहरा बनाया गया था जिससे कि वह दोनों ओर 23 सेंटीमीटर था।
\s5
\v 10 उन्होंने पवित्र सीना-बन्द पर मणियों की चार पंक्तियाँ लगाई।
\v 11 पहली पंक्ति में मणिक्य, पद्मराग और लालड़ी लगाए गए।
\v 12 दूसरी पंक्ति में मरकत नीलमणि और हीरा। तीसरी पंक्ति में लशम, सूर्यकान्त और नीलम और चौथी पंक्ति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब लगाए गए।
\v 13 प्रत्येक मणि के चारों ओर सोने के खाने बनाए गए।
\s5
\v 14 इन बारह मणियों में से प्रत्येक पर याकूब के एक पुत्र का नाम लिखा गया जो इस्राएल के एक गोत्र का नाम दर्शाता था।
\v 15 तब उन्होंने शुद्ध सोने की जंजीरों को रस्सियों के समान गूँथकर, उनसे सीना-बन्द को एपोद से जोड़ा।
\v 16 तब उन्होंने सोने के दो छल्ले बनाए और उन्हें सीना-बन्द के दोनों सिरों पर लगाया।
\s5
\v 17 फिर उन सोने की जंजीरों के सिरों को अलग-अलग उन दोनों छल्लों में जोड़ा,
\v 18 और दूसरे सिरों को मणियों वाले एक-एक खाने में जड़ दिया और इस प्रकार पवित्र सीना-बन्द को पवित्र एपोद के कन्धों के फीतों से जोड़ दिया।
\s5
\v 19 उन्होंने सोने के दो और छल्ले बनाए और उन्हें पवित्र सीना-बन्द के निचले कोनों में भीतर की ओर लगा दिया जो पवित्र एपोद से लगा हुआ था।
\v 20 उन्होंने सोने के दो और छल्ले बनाए और कन्धे के फीतों के सामने की निचली ओर लगाया- जहाँ कन्धे के फीते पवित्र एपोद से जुड़े हुए थे- जो सावधानीपूर्वक बुने हुए कमर-बन्द के ठीक ऊपर थे।
\s5
\v 21 उन्होंने पवित्र सीना-बन्द के छल्लों को पवित्र एपोद के छल्लों से नीली रस्सी द्वारा आपस में बान्धा जिससे कि पवित्र सीना-बन्द कमर-बन्द से ऊपर रहे और पवित्र एपोद से अलग न हो। उन्होंने यह सब ठीक वैसे ही किया जैसे निर्देश यहोवा ने मूसा को दिए थे।
\s5
\v 22 उन्होंने याजक के लिए बागा भी बनाया जिसे पवित्र एपोद के नीचे धारण करना था, वह केवल नीले कपड़े का बनाया गया।
\v 23 उसमें याजक के सिर को डालने के लिए खुला स्थान छोड़ा गया जिसके सिरों को घेरा डालकर सिला गया कि फटे नहीं।
\v 24 बागे के नीचे के सिरों पर अनार के फलों जैसी सजावट की गई, उन्हें नीले, बैंजनी और लाल ऊन से बुना गया था।
\s5
\v 25 इन अनारों के बीच शुद्ध सोने की घन्टियाँ लगाई गई।
\v 26 याजकीय सेवा के समय हारून को यह बागा पहनना था। उन्होंने यह सब कुछ ठीक वैसे ही बनाया जैसे निर्देश यहोवा ने मूसा को दिए थे।
\s5
\v 27 उन्होंने हारून और उसके पुत्रों के लिए लंबी बांह के मलमल के अंगरखे भी बनाए।
\v 28 उत्तम मलमल की एक पगड़ी भी हारून के लिए बनाई गई जिसे वह सिर पर धारण करे। उन्होंने हारून के पुत्रों के लिए मलमल की टोपियाँ और जाँघिये भी बनाए।
\v 29 हारून के लिए उन्होंने उत्तम मलमल पर नीले, बैंजनी और लाल ऊन से कढ़ाई करके कमर-बन्द भी बनाया। यह सब मूसा को यहोवा द्वारा दिए गए आदेशों के अनुसार बनाया गया था।
\s5
\v 30 उन्होंने शुद्ध सोने की एक पट्टी बनाई जिस पर एक कुशल कारीगर ने लिखा, “यहोवा को समर्पित।”
\v 31 यह पट्टी पगड़ी के सामने नीले फीते से बाँधी गई जैसा यहोवा ने मूसा को निर्देश दिया था।
\s5
\v 32 अन्त में उन्होंने पवित्र तम्बू का सब काम संपन्न किया और मूसा के पास ले आए। उन्होंने सब कुछ ठीक वैसा ही बनाया जैसे यहोवा ने निर्देश दिए थे।
\v 33 वे मूसा के पास पवित्र तम्बू और उसमें काम आने वाली सब वस्तुएँ ले आए- आँकड़े, चौखटे, आड़ी डंडियाँ, खंभे और उनके आधार;
\v 34 पवित्र तम्बू के आवरण जो लाल रंगी हुई भेड़ की खाल के थे; पर्दे;
\v 35 पवित्र सन्दूक जिसमें परमेश्वर की आज्ञाओं की पट्टियाँ रखी थी और सन्दूक का ढक्कन।
\s5
\v 36 कारीगरों ने पवित्र तम्बू के सामान भी बनाकर पूरे किएः मेज़ और उसके उपयोगी सब उपकरण और परमेश्वर की भेंट की रोटियाँ।
\v 37 शुद्ध सोने का दीपदान और उसके दीपक और उसके काम में आने वाली सब वस्तुएँ और दीपकों के लिए तेल।
\v 38 धूप जलाने के लिए सोने की वेदी, अभिषेक का तेल और सुगंधित धूप और पवित्र तम्बू के द्वार के पर्दे।
\v 39 होम-बलि की पीतल की वेदी, उसकी पीतल की जाली, उसे उठाने के बल्लियाँ और उसके उपयोग से संबंधित अन्य सब वस्तुएँ और हौदी और उसका आधार।
\s5
\v 40 वे आँगन के पर्दे, खंभे और उनके आधार, आँगन के द्वार के पर्दे, उसकी रस्सियाँ, खूंटे और पवित्र तम्बू में काम आने वाली सब वस्तुयें,
\v 41 हारून के वैभवशाली पवित्र वस्त्र, उसके पुत्रों के वस्त्र जिन्हें वह पवित्र स्थान में सेवा करते समय धारण करें और उसके पुत्रों के वस्त्र जिनको वह याजकीय सेवा के समय धारण करें।
\s5
\v 42 इस्राएलियों ने यह सब काम ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को निर्देश दिए थे।
\v 43 मूसा ने उसके द्वारा बनाई गई वस्तुओं का निरीक्षण किया। वास्तव में उन्होंने ठीक वैसा ही किया था जैसे यहोवा ने आदेश दिए थे। तब मूसा ने सब कारीगरों को आशीर्वाद दिया।
\s5
\c 40
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 अगले वर्ष पहले महीने के पहले दिन इस पवित्र तम्बू को खड़ा करने का आदेश इस्राएलियों को दे।
\s5
\v 3 इसके भीतर पवित्र सन्दूक रखना जिसमें दस आज्ञाओं की पट्टियाँ है और उसके सामने पर्दा लगा देना।
\v 4 पवित्र तम्बू में मेज रख कर उस पर वे सब वस्तुएँ रखना जो उसके लिए बनाई गई हैं। तब दीपदान लाकर उसमें दीपक लगाना।
\s5
\v 5 पवित्र तम्बू के सामने धूप जलाने की सोने की वेदी रखना और पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर पर्दे लगाना।
\v 6 पवित्र तम्बू के सामने होम-बलि की वेदी रखना।
\v 7 पानी की हौदी को पवित्र तम्बू और वेदी के बीच रखना और उसे पानी से भर देना।
\s5
\v 8 आँगन के चारों ओर पर्दे लगाना और आँगन के प्रवेश द्वार पर भी पर्दे लगाना।
\v 9 तब अभिषेक का तेल लेकर पवित्र तम्बू और उसके भीतर सब वस्तुओं का अभिषेक करके उन सब को मेरे लिए समर्पित करना। तब वे सब विशेष रूप से केवल मेरे लिए रहेंगी।
\v 10 कुछ तेल उस वेदी पर भी डालना जिस पर याजक मुझे चढ़ाई गई बलियों को जलाएगा। उस वेदी पर काम में आने वाले सब उपकरणों पर भी तेल डालना कि वे मेरे लिए समर्पित की जाएँ। तब वे केवल मेरे लिए अलग होकर समर्पित रहेगी।
\v 11 कुछ तेल हौदी और उसके आधार पर डालना कि वे मेरे लिए समर्पित रहे।
\s5
\v 12 तब हारून और उसके पुत्रों को पवित्र तम्बू के द्वार पर लाना और पानी से उनको स्नान करवाना।
\v 13 तब हारून को याजकीय वस्त्र पहना कर उस पर तेल डालकर उसे मेरे लिए समर्पित करना। उसके साथ ऐसा करना कि वह मेरे सामने आने वाला याजक होकर मेरी सेवा करे।
\s5
\v 14 हारून के पुत्रों को भी उनके विशेष वस्त्र पहनाना;
\v 15 उनके ऊपर भी उनके पिता के समान तेल डालना। ऐसा करना क्योंकि वे भी याजक होकर मेरी आराधना करेंगे। उन पर तेल डाल कर तू उन्हें और उनकी आने वाली पीढ़ियों को याजक ठहराएगा।
\v 16 मूसा और उसके साथ काम करने वालों ने यह सब कार्य ठीक वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था।
\s5
\v 17 अगले वर्ष के पहले महीने के पहले दिन, एक वर्ष बाद जब इस्राएली मिस्र से निकले थे, उन्होंने पवित्र तम्बू खड़ा किया।
\v 18 उन्होंने वही किया जो मूसा ने उनसे कहा था। उन्होंने पवित्र तम्बू को उसके आधार पर खड़ा किया, उन्होंने चौखटे खड़ी कि और उनमें आड़ी डंडियाँ लगाई और पर्दों के खंभे खड़े किए।
\v 19 तब उन्होंने पवित्र तम्बू पर आवरण डाला, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा को आदेश दिए थे।
\v 20 तब मूसा ने दस आज्ञाओं वाले पत्थर की पट्टियों को पवित्र सन्दूक में रखा और उसके छल्लों में बल्लियाँ डाल कर उस पर ढक्कन रखवाया।
\s5
\v 21 तब मूसा उस पवित्र सन्दूक को पवित्र तम्बू के पवित्र स्थान में ले गया और पर्दा डलवा दिया कि बाहर खड़े हुए लोग पवित्र सन्दूक को न देख पाएँ। उन्होंने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने आदेश दिया था।
\v 22 उसने कारीगरों से वह मेज़ पवित्र तम्बू के भीतर उत्तरी दिशा में पर्दे के बाहर रखवाई।
\v 23 मेज पर उन्होंने भेंट की रोटीयाँ यहोवा के सम्मुख रखवाईं, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने उनको आदेश दिया था।
\s5
\v 24 मूसा के कारीगरों ने पवित्र तम्बू के अन्दर दक्षिण दिशा में दीपदान खड़ा किया जो मेज के दूसरी ओर था।
\v 25 तब उन्होंने दीपदान में दीपक लगाए कि यहोवा की उपस्थिति में हो जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था।
\s5
\v 26 मूसा के कारीगरों ने धूप जलाने की सोने की वेदी को पवित्र तम्बू के भीतर परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करने वाले पर्दे के सामने रखा।
\v 27 उस वेदी पर उन्होंने मनमोहक सुगंध की धूप जलाई, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\s5
\v 28 मूसा के कारीगरों ने पवित्र तम्बू के द्वार पर पर्दे लगाए।
\v 29 पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर होम-बलि की वेदी रखी गई। जहाँ याजक होमबलि चढ़ाएगा। और उस पर उन्होंने भेंट चढ़ाया हुआ माँस और आटा जलाया, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा से कहा था।
\v 30 तब उन्होंने पीतल की हौदी को पवित्र तम्बू और वेदी के बीच रखा और पानी से भर दिया।
\s5
\v 31-32 मूसा, हारून और हारून के पुत्र पवित्र तम्बू में या वेदी के निकट जाते थे तब वे अपने हाथ और पैर धोते थे, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने मूसा के माध्यम से निर्देश दिए थे।
\v 33 मूसा के कारीगरों ने आँगन के पर्दे टांगे और आँगन के प्रवेश द्वार पर भी पर्दे टांगे। इस प्रकार मूसा ने संपूर्ण कार्य संपन्न करवाया।
\s5
\v 34 तब बादल के खंभे ने पवित्र तम्बू को ढाँक दिया और यहोवा की शक्ति और तेज़ पवित्र तम्बू में भर गया।
\v 35 अब क्योंकि तेज़ बहुत तीव्र था इसलिए मूसा पवित्र तम्बू में प्रवेश नहीं कर पाया।
\s5
\v 36 उस दिन से जब भी इस्राएलियों को चलना होता था, तब वे पवित्र तम्बू से बादल के निकल कर आगे बढ़ने पर ही चलते थे।
\v 37 यदि बादल रुका रहता तो वे भी रुके रहते थे।
\v 38 वे जब भी यात्रा करते थे, यहोवा की उपस्थिति का बादल दिन के समय पवित्र तम्बू पर छाया रहता था और रात में तेज़ आग उस पर ठहरी रहती थी। जब तक वे प्रतिज्ञा के देश की ओर यात्रा करते रहे तब तक इस्राएली उसे किसी भी समय देख सकते थे।

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\id LEV Unlocked Dynamic Bible
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\h लैव्यव्यवस्था
\toc1 लैव्यव्यवस्था
\toc2 लैव्यव्यवस्था
\toc3 lev
\mt1 लैव्यव्यवस्था
\s5
\c 1
\p
\v 1 मूसा जब पवित्र-तम्बू के द्वार पर खड़ा था तब यहोवा ने उसे भीतर से पुकारा और उससे कहा,
\v 2 इस्राएलियों से कह, जब तुम यहोवा के लिए भेंट लाओ तो बलि-पशु गाय, बैल या भेड़, बकरियों में से हो।
\s5
\v 3 यदि तुम्हारी होम-बलि बैल की हो तो उनमें किसी प्रकार का दोष न हो और वे वेदी पर पूर्ण रूप से जलाई जाए। उसे पवित्र-तम्बू के द्वार पर ले जाना कि वे यहोवा के लिए ग्रहण करने योग्य हो।
\v 4 उस बैल के सिर पर हाथ रखना। इस प्रकार यहोवा उसकी मृत्यु को तुम्हारी मृत्यु के समान ग्रहण करेंगे कि तुम्हारे पापों को क्षमा किया जाए।
\s5
\v 5 तब उस बछड़े की बलि यहोवा के सामने देना। तब हारून के पुत्र जो याजक हैं उसका लहू लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर बनी वेदी पर चारों ओर छिड़कें।
\v 6 बलि-पशु की खाल उतारी जाए और उस पशु के टुकड़े किए जाएँ। उस बछड़े के भीतरी अंगों और टांगों को धोना।
\s5
\v 7 तब हारून के पुत्र वेदी पर लकड़ियाँ रख कर आग जलाएँ।
\v 8 तब वे उस पशु के टुकड़ों को सिर और चर्बी को जलती हुई लकड़ियों पर रखें।
\v 9 तब याजकों में से एक उसे वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। उसकी सुगंध यहोवा को प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 10 यदि तुम भेड़ या बकरी की बलि चढ़ाओ तो वह नर पशु हो जिसमें किसी प्रकार का दोष न हो।
\v 11 उसे यहोवा के सामने - वेदी की उत्तर दिशा में मारना। उसका लहू एक कटोरे में ले लेना। हारून के पुत्र उस लहू को वेदी के चारों ओर छिड़कें।
\s5
\v 12 उस पशु के टुकड़े करना और उसके भीतरी अंगों तथा टांगों को धोना। तब याजक उन टुकड़ों को, सिर को और चर्बी को जलती हुई लकड़ियों पर रखे।
\v 13 तब एक याजक उन सब को वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। उसके जलने की सुगंध यहोवा को प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 14 यदि तुम यहोवा को पक्षी चढ़ाओ तो पंडुकों या कबूतरों का चढ़ावा चढ़ाना।
\v 15 याजक उसे वेदी पर ले जाकर उसकी गर्दन मरोड़ कर सिर को धड़ से अलग कर दे और उसका सिर वेदी पर जलाए तथा उसका लहू वेदी पर चारों ओर गिराए।
\s5
\v 16 याजक उसकी अंतड़ियाँ और मल थैली आदि निकाल कर वेदी की पूर्व दिशा में जहाँ राख डालते हैं, वहां फेंक दे।
\v 17 तब वह उस पक्षी के पंख पकड़ कर बीच से उसे फाड़े परन्तु पूरा नहीं और वेदी की आग पर जलाए। उसकी सुगंध से यहोवा प्रसन्न होंगे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 यदि तुम यहोवा को आटे की भेंट चढ़ाओ तो मैदा चढ़ाया जाए। उसके ऊपर जैतून का तेल और थोड़ी धूप रखी जाए।
\v 2 उसे याजक को दो और याजक उसका मुट्ठी भर अंश लेकर वेदी पर जलाए। यह यहोवा के सामने हमारी प्रार्थनाओं के पहुँचने का प्रतीक है। उसके उपकारों के लिए धन्यवाद का प्रतीक।
\v 3 उसका शेष भाग जो जलाया नहीं गया हारून और उसके पुत्रों का होगा। यह यहोवा को चढ़ाई गई भेंटों में से याजकों के लिए अलग किया गया अंश है।
\s5
\v 4 यदि तुम यहोवा को तन्दूर में पकाई गई अन्न-बलि चढ़ाते हो तो वह मैदे की हो। अखमीरी रोटी में जैतून का तेल डाल कर रोटियाँ बनाई जाएँ या पापड़ जैसी रोटियाँ बनाकर उन पर तेल लगा कर लाएँ। वह भी अखमीरी आटे से बनी हों।
\v 5 यदि अन्न-बलि तवे पर पकाई गई हो तो वह भी अखमीरी आटे की हो और उसे जैतून के तेल में गूंधा गया हो।
\s5
\v 6 उसे चूर-चूर कर के उस पर जैतून का तेल डालना। यह तुम्हारी अन्न बलि होगी।
\v 7 यदि उसे कढ़ाही में पकाया गया हो तो वह जैतून के तेल में गूंधा गया मैदा हो।
\s5
\v 8 यहोवा के लिए लाई गई अन्न बलि याजक को दी जाए और वह उसे वेदी पर चढ़ाए।
\v 9 वह उसका एक अंश प्रतीक स्वरूप लेकर वेदी पर जलाए। उसकी सुगंध से यहोवा प्रसन्न होंगे।
\v 10 उस भेंट का शेष भाग जो जलाया नहीं गया हारून और उसके पुत्रों का होगा। यह यहोवा के लिए अलग किया गया अंश ठहरेगा।
\s5
\v 11 अन्न के आटे की बलि जो यहोवा के लिए चढ़ाओ वह सब खमीर रहित हो। याजक जिन बलियों को वेदी पर चढ़ाए उसमें न तो खमीर हो और न ही शहद हो।
\v 12 तुम यहोवा के लिए अपनी फसल का आरंभिक भाग भेंट करोगे परन्तु वह यहोवा के लिए सुखदायक सुगंध के लिए जलाया नहीं जाए।
\v 13 अपनी सब अन्न-बलियों पर नमक अवश्य डालना। नमक तुम्हारे साथ बाँधी गई यहोवा की वाचा का प्रतीक है। इसलिए अन्न-बलियों पर नमक डालना कभी मत भूलना।
\s5
\v 14 यदि अपनी फसल के आरंभिक भाग से भेंट चढ़ाओ तो गेहूँ की बालों को आग में सेंक कर दाने साफ कर लेना।
\v 15 उस पर जैतून का तेल और धूप रखना। यह तुम्हारी अन्न-बलि होगी।
\v 16 याजक उसका एक अंश लेगा जो संपूर्ण भेंट का प्रतीक होगा कि वह यहोवा के लिए है। याजक उस अंश को वेदी पर जलाएगा। यह यहोवा के लिए हवन होगा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब तुम यहोवा के लिए मेल की बलि चढ़ाओ तब अपने पशुओं में से एक बैल या गाय ले आना परन्तु वह निर्दोष हो।
\v 2 उस पशु को पवित्र-तम्बू के द्वार पर लाना और उसके सिर पर अपने हाथ रखना। तब उसकी बलि दे कर के उसका लहू एक पात्र में लेकर हारून का कोई पुत्र, याजकों में से एक, उस लहू को वेदी के चारों ओर छिड़क दे।
\s5
\v 3 उस भेंट में से एक भाग याजक को दिया जाए कि वह उसे आग में जला दे। यह भाग होगा पशु के भीतर की सब चर्बी और भीतरी अंगों पर लगी चर्बी।
\v 4 गुर्दे और ऊपर चढ़ी हुई चर्बी तथा कलेजी की चर्बी।
\v 5 याजक इन सब को पशु के अन्य अंगों के साथ वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। यह यहोवा के लिए सुखदायक हवन होगा।
\s5
\v 6 यदि यहोवा के साथ मेल की बलि भेड़ या बकरी हो तो वह भी निर्दोष हो।
\v 7 यदि तुम मेम्ना बलि करो तो उसे पवित्र-तम्बू के द्वार पर यहोवा को चढ़ाओ और उस मेम्ने के सिर पर हाथों को रख कर उसकी बलि देना। उसका लहू एक पात्र में लो।
\v 8 तब याजक उस लहू को लेकर वेदी पर चारों ओर छिड़के।
\s5
\v 9 उस बलि के इन अंगों को यहोवा के लिए बलि करनाः उसकी चर्बी, उसकी पूंछ को रीढ़ की हड्डी के पास से काट लेना और उसके शरीर के भीतर की सब चर्बी-
\v 10 नीचे के भाग में चर्बी वाले गुर्दे और कलेजी की झिल्ली।
\v 11 याजक इन सब को यहोवा के लिए वेदी पर चढ़ाए। यह सब तुम्हारे भोज्य पदार्थों में से हों।
\s5
\v 12 यदि तुम बकरा बलि करो तो उसे यहोवा के पास लाओ।
\v 13 उसके सिर पर अपने हाथ रखो और पवित्र-तम्बू के सामने बलि देना। हारून का एक पुत्र उसका लहू लेकर वेदी के चारों ओर छिड़के।
\v 14 उस बलि-पशु के इन अंगों को यहोवा के लिए होम करने के लिए अलग कर लेनाः पशु के भीतर की सारी चर्बी और अंगों पर चढ़ी हुई चर्बी।
\s5
\v 15 कमर से चर्बी चढ़े हुए गुर्दे और कलेजी की चर्बी।
\v 16 याजक इन सब को यहोवा के लिए वेदी पर जलाए। यह सब भोजन सामग्री का भाग हो जो यहोवा के लिए अच्छी सुगंध ठहरे। बलि-पशु की सारी चर्बी यहोवा की है।
\v 17 यह आज्ञा तुम्हारे और तुम्हारी संतानों के लिए सदा पालन करने के लिए है। तुम न तो चर्बी खाओगे और न ही लहू।
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 इस्राएलियों से कहा, "यदि कोई अनजाने में पाप करे अर्थात यहोवा की किसी आज्ञा का उल्लंघन उससे हो जाए तो वह यह करे।
\v 3 यदि प्रधान याजक पाप करता है जिसके कारण संपूर्ण समुदाय दोषी हो जाए तो वह एक निर्दोष बछड़ा पाप बलि करके यहोवा को चढ़ाए। यह यहोवा की आज्ञा के अनुसार पाप बलि है।
\s5
\v 4 वह उस बछड़े को पवित्र-तम्बू के द्वार पर लाए और उसके सिर पर अपने हाथ रख कर यहोवा के सामने उसकी बलि दे। उसका लहू एक पात्र में लिया जाए।
\v 5 याजक वह लहू लेकर पवित्र-तम्बू में जाए।
\s5
\v 6 और उस लहू में अपनी एक अंगुली डुबाकर यहोवा की उपस्थिति में पवित्र स्थान और परम पवित्र स्थान को विभाजित करने वाले परदे के सामने सात बार छिड़के।
\v 7 फिर कुछ लहू धूप की वेदी के सींगों पर जो पवित्र स्थान में है, लगाए। यह यहोवा की उपस्थिति में है। शेष लहू को वह पवित्र-तम्बू के द्वार पर जहाँ बलि जलाई जाती है, वहाँ नीचे डाल दे।
\s5
\v 8 उस बलि-पशु के इन सब अंगों को प्रधान याजक वेदी पर जलाने के लिए अलग कर ले। पशु के भीतर की सब चर्बी-
\v 9 उसकी कमर की और गुर्दों की चर्बी और कलेजी की चर्बी।
\v 10 प्रधान याजक यह सब वेदी पर पूर्ण रूप से जला दे। यह सब वैसा ही हो जैसा यहोवा के साथ मेल बलि के लिए चर्बी अलग करने में था।
\s5
\v 11 बलि-पशु की खाल, सिर और टांगें, उसके भीतरी अंग और अंतड़ियाँ,
\v 12 लेकर वह शिविर के बाहर यहोवा द्वारा ग्रहण किए गए स्थान में जहाँ राख डाली जाती है, वहाँ राख के ढेर पर उन्हें जला दे।
\s5
\v 13-14 यदि इस्राएलियों से अनजाने में पाप हो जाए अर्थात यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन हो जाए और उन्हें उसका बोध हो जाए तो अपने पाप के लिए वे सब मिल कर पवित्र-तम्बू के सामने एक बछड़ा बलि करें और उसका लहू एक पात्र में लें।
\v 15 समुदाय के सब प्रधान उस बछड़े के सिर पर अपने हाथ रखें और यहोवा के सामने उसकी बलि दें तथा लहू एक पात्र में एकत्र कर लें।
\s5
\v 16 तब प्रधान याजक उस लहू को लेकर पवित्र-तम्बू में जाए।
\v 17 और उस परदे के सामने जो परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करता है, यहोवा की उपस्थिति में वह अपनी एक उंगली से उस लहू को सात बार छिड़के।
\s5
\v 18 इसके बाद पवित्र-तम्बू की वेदी के सींगों पर जो यहोवा के सामने है, उस लहू को लगाए। शेष लहू को याजक पवित्र-तम्बू के द्वार पर की वेदी, जहाँ होम किया जाता है, उसके आधार पर डाल दे।
\v 19 बलि-पशु की सारी चर्बी निकाल कर याजक वेदी पर जलाए।
\s5
\v 20 याजक इस बलि के बछड़े के साथ सब कुछ वैसा ही करे जैसा उसने अपने पाप की बलि के बछड़े से क्षमादान के लिए किया था।
\v 21 इसके बाद याजक बलि-पशु के बचे हुए अंगों को वैसे ही छावनी के बाहर जला दे जैसे उसने अपनी पाप-बलि के साथ किया था। यह संपूर्ण समुदाय के पाप की बलि होगी और उनके पाप क्षमा किए जाएँगे।
\s5
\v 22 यदि किसी प्रधान से अनजाने में पाप हो जाए अर्थात उससे यहोवा की आज्ञाओं का उल्लंघन हो गया हो तो वह दोषी ठहरेगा।
\v 23 जब उसे यह बोध हो कि उससे पाप हो गया है तो वह एक निर्दोष बकरा ले कर आए।
\s5
\v 24 वह यहोवा की उपस्थिति में उसके सिर पर अपने हाथ रखे और होम-बलि के पशुओं की बलि देने के स्थान में उसकी बलि दे। यह उसके पाप की बलि होगी।
\v 25 याजक उस बलि-पशु का लहू एक पात्र में ले और उसमें उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाए और शेष लहू वेदी के आधार पर डाल दे।
\s5
\v 26 इसके बाद वह बलि-पशु की सारी चर्बी यहोवा के साथ मेल-बलि के जैसे चर्बी को वेदी पर जला दे। इस प्रकार वह प्रधान दोष मुक्त हो जाएगा और उसके पाप क्षमा किए जाएँगे।
\s5
\v 27 याजक की अपेक्षा यदि किसी इस्राएली से अनजाने में पाप हो जाए अर्थात उसके परमेश्वर यहोवा की किसी आज्ञा का वह अनजाने में उल्लंघन करे तो भी वह दोषी होगा।
\v 28 जब उसे अपने पाप का बोध हो तो वह एक निर्दोष बकरी लाए।
\s5
\v 29 वह बकरी के सिर पर अपने हाथ रखे और उसे उस स्थान में बलि दे जहाँ होम-बलि के पशु बलि किए जाते हैं। उसका लहू एक पात्र में एकत्र किया जाए।
\v 30 याजक उस लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाए। शेष लहू वह वेदी के आधार पर डाल दे।
\s5
\v 31 इसके बाद याजक उसकी सारी चर्बी वैसे ही वेदी पर जला दे जैसे मेल-बलि के पशु के चर्बी जलाई गई थी। उसकी सुगंध यहोवा को प्रसन्न करेगी। याजक के इस काम से उसका दोष दूर होगा और उसे पाप क्षमा प्राप्त होगी।
\s5
\v 32 यदि वह मेम्ने की बलि चढ़ाए तो वह भेड़ का निर्दोष बच्चा लेकर आए
\v 33 और उसके सिर पर अपने हाथ रख कर होम-बलि के पशुओं के बलि के स्थान पर उसकी बलि दे और एक पात्र में उसका लहू एकत्र करे।
\s5
\v 34 याजक उस लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाए और शेष लहू को वेदी के आधार पर डाल दे।
\v 35 इसके बाद वह मेल बलि के पशु के जैसे उसकी सारी चर्बी लेकर वेदी पर जलाए। चर्बी को वह उन सब वस्तुओं के ऊपर जलाए जो यहोवा के लिए जलाई जा रही हैं। इस प्रकार याजक उसके पापों की क्षमा के लिए यहोवा से विनती करेगा और उसे क्षमा प्राप्त होगी।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यदि न्यायी किसी से पूछे कि उसने क्या देखा या क्या सुना और वह सत्य का वर्णन न करे तो उसे सत्य का इन्कार करने के लिए दंड भोगना होगा।
\v 2 यदि कोई अनजाने में यहोवा द्वारा अशुद्ध ठहराई हुई वस्तु का स्पर्श करे जैसे मरा हुआ वन पशु या अपने ही पालतू पशु की मृतक देह या रेंगने वाले जन्तु की मृतक देह, तो उसे उसका दंड भोगना होगा।
\s5
\v 3 यदि कोई मनुष्य को अशुद्ध करने वाली किसी भी वस्तु को अनजाने में स्पर्श कर ले और उसे उसका बोध हो जाए तो वह उसका दंड भोगे।
\v 4 यदि कोई भली या बुरी बात की शपथ खाए और उसे पूरा न कर पाए तो उसे उसका दंड भोगना होगा।
\s5
\v 5 यदि तुम में से कोई ऐसे किसी भी पाप का दोषी हो तो वह अपने पाप को स्वीकार करे।
\v 6 और उसका दंड होगा कि वह अपने पाप के लिए यहोवा के सामने एक भेड़ या बकरी लाए। याजक उसे बलि चढ़ाएगा तब वह दोषमुक्त हो जाएगा।
\s5
\v 7 यदि कोई गरीब हो कि भेड़ न ला पाए तो वह यहोवा के सामने दो पंडुक या कबूतर लाए। उनमें से एक पाप बलि और एक होम-बलि हो कि वेदी पर पूर्ण रूप से जलाई जाए।
\v 8 वह उनको याजक के पास ले आए। याजक पहले एक पाप बलि करे। वह उसका गला घोंट कर उसे मारे परन्तु उसका सिर धड़ से अलग न करे।
\v 9 उसका कुछ लहू याजक वेदी पर चारों ओर छिड़के और शेष लहू याजक वेदी के आधार पर डाल दे। यह उसकी पाप बलि होगी।
\s5
\v 10 तब याजक मेरी आज्ञा के अनुसार करे और दूसरे पक्षी को पूर्ण रूप से वेदी पर जलाए। तब वह अपने पाप का दोषी नहीं होगा। यहोवा उसे क्षमा कर देगा।
\s5
\v 11 तथापि, यदि कोई इतना गरीब हो कि पंडुक और कबूतर भी न ला पाए तो वह दो किलोग्राम मैदा ले आए परन्तु उस पर न तो जैतून का तेल डाले, न ही धूप रखे क्योंकि वह पाप-बलि है।
\s5
\v 12 उसे वह याजक को दे। याजक उसमें से मुट्ठी भर लेकर जो संपूर्ण का प्रतीक है, अन्य सब भेंटों के साथ वेदी पर जलाए।
\v 13 ऐसा करके याजक उसे अपने पापों के दोष से मुक्ति दिलाएगा और परमेश्वर उसे क्षमा करेगा। उस भेंट का शेष भाग जो जलाया नहीं गया, वह याजक का होगा जैसे अन्न-बलि का शेष भाग उसका हुआ था।
\s5
\v 14 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा कि इस्राएलियों से कह,
\v 15 "यदि कोई अनजाने में ऐसा पाप करे कि यहोवा की ओर से अनिवार्य वस्तु चढ़ाने में चूक जाए तो एक निर्दोष मेढ़ा लाकर पवित्र-तम्बू के स्वीकृत नाप के अनुसार उसका मूल्य चाँदी में ज्ञात करे। यह उसे दोष मुक्त करने की भेंट होगी।
\v 16 इसके साथ यहोवा के लिए अलग की गई वस्तु की क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाए और उसके अतिरिक्त उसके मूल्य का पाँचवा भाग भी दिया जाए। यह याजक को दिया जाए। वह मेढ़े को पाप-बलि करेगा और उसे दोषमुक्त करेगा और मैं उसे क्षमा करूँगा।
\s5
\v 17 यदि कोई आज्ञाओं में वर्जित काम करके पाप करे चाहे वह अनजाने में हुआ हो फिर भी वह दोषी है। इसका दंड उसे भरना होगा।
\v 18 जब उसे अपने अनाचार का बोध हो तब वह निर्दोष होने के लिए याजक के पास एक मेढ़ा लाए। वह मेढ़ा निर्दोष हो। याजक मुझे वह मेढ़ा बलि चढ़ाएगा। इस प्रकार वह दोष मुक्त होगा और मैं उसे क्षमा करूँगा।
\v 19 यह मेरे विरूद्ध पाप के दोष से मुक्त होने की बलि है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “यदि तुम किसी को धोखा देकर मेरे विरूद्ध पाप करो उदाहरणार्थ, किसी से उधार ली हुई वस्तु न लौटाओ या किसी की वस्तु चुरा लो,
\v 3 या किसी की खोई हुई वस्तु तुम पाओ और शपथ खाओ कि तुम्हारे पास वह वस्तु नहीं है तो तुम दोषी ठहरो।
\v 4 तुम्हें चुराई हुई वस्तु उसके स्वामी को लौटानी होगी या उधार ली हुई वस्तु जो तुमने रख ली उसे लौटाना होगा या किसी की खोई हुई वस्तु जो तुमने पाई है या जिसके बारे में तुमने झूठ बोला है
\s5
\v 5 तुम्हें वह वस्तु उसके स्वामी को लौटाना मात्र ही नहीं, उसके मूल्य का पाँचवा भाग भी उसे अतिरिक्त देना होगा।
\v 6 तुम्हें याजक के पास एक मेढ़ा मेरे लिए बलि करने को लाना होगा कि तुम उसके दोषी न बने रहो। वह मेढ़ा निर्दोष हो और स्वीकृत रूप से निर्धारित मूल्य का हो।
\v 7 तब याजक उसे तुम्हारे लिए दोष बलि करके चढ़ाएगा और मैं तुम्हारे उस कुकर्म के लिए क्षमा प्रदान करूँगा।”
\s5
\v 8 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 9 “हारून और उसके पुत्रों से कह, ‘वेदी पर होम-बलि चढ़ाने की विधि यह हैः होम-बलि पूरी रात वेदी पर पड़ी रहे और वेदी की आग सदा जलती रहे।
\s5
\v 10 अगले दिन सुबह याजक अपने मलमल के भीतरी वस्त्र पहने और पोशाक धारण करे। तब आग में से बलि की राख निकाले और वेदी के एक ओर रख दे।
\v 11 इसके बाद वह वस्त्र बदल कर उस राख को छावनी के बाहर उस स्थान में ले जाए जिसे मैं ने स्वीकृति दी है।
\s5
\v 12 वेदी की आग सदैव जलती रहे। याजक उस आग को बुझने न दे। प्रतिदिन याजक उस पर और अधिक लकड़ियाँ डाल दे। तब उस आग पर होम-बलि रखे और यहोवा के लिए मेल-बलि की चर्बी चढ़ाए।
\v 13 वेदी की आग कभी न बुझने पाए। याजक उसे बुझने न दे।
\s5
\v 14 अब अन्न-बलि के विषय निर्देशन ये हैं- मैदा चढ़ाने की विधि। हारून के पुत्र उसे वेदी के सामने यहोवा के लिए लाएँ।
\v 15 याजक मुट्ठी भर कर मैदा ले जिसमें जैतून का तेल और धूप मिली हो और उसे वेदी पर जलाए। इस मुट्ठी भर मैदे का अर्थ है कि वह संपूर्ण अन्न-बलि मेरी ही है और उसके जलने से उत्पन्न सुगंध से मैं प्रसन्न हो जाऊँगा।
\s5
\v 16 हारून और उसके पुत्र उस अन्न-बलि का शेष भाग खा सकते हैं। परन्तु वे उस स्थान में ही खाएँ जो यहोवा के लिए अलग किया गया है, अर्थात् पवित्र-तम्बू के आँगन में।
\v 17 उसमें खमीर न हो। पाप-बलि और दोष-बलि के समान यह बलि मेरे लिए अलग से परम पवित्र ठहरे।
\v 18 हारून के वंशजों के पुत्रों को उसे खाने की अनुमति है क्योंकि मुझे चढ़ाई गई भेंटों में जो वेदी पर जलाई जाती है वह उनका सदा का भाग है। उनका स्पर्श करने वाला परमेश्वर के सम्मान के निमित्त अलग हो जाएगा।
\s5
\v 19 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 20 “हारून और उसके पुत्रों से कह कि जिस दिन उनमें से किसी एक का अभिषेक किया जाए उस दिन वह मेरे सम्मुख यह भेंट ले आएँ: वह व्यक्ति दो किलो मैदा भेंट चढ़ाए। सुबह वह उसका आधा भाग और संध्या समय आधा भाग ले आए।
\s5
\v 21 उसे वह जैतून के तेल में गूंध कर तवे पर पकाए और उसे वेदी पर जलाने के लिए चूर-चूर कर दे। उसके जलने की सुगंध से मैं प्रसन्न हो जाऊँगा।
\v 22 यह मेरी आज्ञा है कि हारून के मरने के बाद जो प्रधान याजक बनेगा वह इसे तैयार करेगा और मुझे बलि चढ़ाने के लिए उसे वेदी पर पूर्ण रूप से जलाएगा कि मेरे लिए बलि ठहरे।
\v 23 याजक हर एक अन्न-बलि चढ़ाए, वह पूर्ण रूप से जलाई जाए। उसे कोई नहीं खाए।”
\s5
\v 24 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा कि वह
\v 25 हारून और उसके पुत्रों से कहे, “लोगों के पापों की बलि की विधि यह है, याजक बलि-पशु को उस स्थान बलि दे जहाँ बलि जलाई जाती है। वह यहोवा के सामने बलि दी जाती है और बलि यहोवा के लिए चढ़ाई जाती है।
\v 26 जो याजक पाप-बलि चढ़ाता है वह यहोवा के लिए चढ़ाई गई बलि को खा सकता है। वह उसे आँगन में उसी स्थान में खाएगा जो बलि का माँस खाने के लिए अलग किया गया है।
\s5
\v 27 यदि कोई अन्य व्यक्ति उस माँस का स्पर्श करे तो वह अपने वस्त्र पवित्र स्थान में धोए।
\v 28 यदि वह माँस मिट्टी के बर्तन में पकाया जाए तो वह बर्तन बाद में तोड़ दिया जाए। यदि वह माँस पीतल के बर्तन में पकाया जाए तो उस बर्तन को बाद में माँज कर धोया जाए और फिर पानी से धोया जाए।
\s5
\v 29 याजक के परिवार में से पुरुष उस माँस को खा सकते हैं। वह माँस पवित्र है।
\v 30 परन्तु यदि उन बलियों का लहू उनके पापों की क्षमा के लिए पवित्र-तम्बू में लाया जाए तो उस बलि-पशु का माँस खाया न जाए। याजक उसका माँस पूर्ण रूप से भस्म कर दे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 यहोवा को जो देना है उससे चूक जाने पर दोष-बलि चढ़ाने की विधि यह है। वे परमपवित्र वस्तुएँ हैं।
\v 2 दोष-बलि के लिए जो पशु लाया जाए उसे याजक उस स्थान पर बलि दे जहाँ होम-बलि के पशु बलि किए जाते हैं। याजक उस बलि-पशु का लहू वेदी के चारों ओर छिड़के।
\v 3 उस बलि-पशु की सारी चर्बी- उसकी चर्बी वाली पूंछ रीढ़ की हड्डी के निकट से काट कर, भीतरी अंगों की सब चर्बी जो उन पर चढ़ी रहती है, वेदी पर जलाई जाए।
\v 4 गुर्दे और उन पर की चर्बी, कलेजी की चर्बी, याजक इन चर्बी वाले अंगों को अलग करे।
\s5
\v 5 याजक इन सब को मुझ यहोवा के निमित्त जलाए कि वह इस्राएलियों के अनिवार्य अनुष्ठानों की चूक के लिए मुझसे क्षमा प्राप्त के लिए हो।
\v 6 याजक के परिवार के सब पुरुषों को इस पशु बलि के माँस को खाने की अनुमति है परन्तु वह मेरे निमित्त अलग किए गए स्थान में ही खाया जाए। वह मेरे लिए अति पवित्र है।
\s5
\v 7 मेरे सम्मुख दोबारा ग्रहण योग्य होने के लिए जो बलि (पापबलि) चढ़ाई जाए उसकी और मुझे अनिवार्य भेंट चढ़ाने में चूकने पर जो बलि चढ़ाई जाए (दोष-बलि) की विधि, दोनों एक ही हैं और जो याजक इन बलियों को चढ़ाए वही उनका माँस ले ले।
\v 8 जो याजक होम-बलि के पशु की बलि दे तो होम-बलि के पशु की खाल उसी याजक की होगी।
\s5
\v 9 अन्न-बलि चाहे तन्दूर में पकाई गई हो या तवे पर या कढ़ाई में, वह बलि चढ़ाने वाले याजक की होगी।
\v 10 मैदे की अन्न-बलि चाहे जैतून के तेल में हो या तेल रहित, हारून के वंशजों की ही होगी।
\s5
\v 11 यहोवा के साथ मेल की बलि की विधि यही है।
\v 12 यदि कोई यहोवा के लिए धन्यवाद की बलि चढ़ाने के लिए जो पशु की बलि दी जाए उसके साथ मैदे को जैतून के तेल में गूंध कर रोटी पकाई जाए और मैदे के पापड़ तेल से सने हों परन्तु वे भी खमीर रहित हों।
\s5
\v 13 यहोवा के लिए धन्यवाद की बलि के साथ खमीरी रोटियाँ भी लाई जाएँ।
\v 14 यहोवा के लिए इस प्रकार की एक-एक रोटी चढ़ाई जाए और ये रोटियाँ उसी याजक की हों जो यहोवा के साथ मेल की बलि के पशु का लहू वेदी पर छिड़कता है।
\s5
\v 15 मेल बलि का माँस उसी दिन खाया जाए जिस दिन वह पशु बलि किया जाता है। उस का थोड़ा सा अंश भी अगले दिन तक के लिए न छोड़ा जाए।
\v 16 तथापि, यदि बलि यहोवा के लिए मानी गई मन्नत की हो जो स्वेच्छा वाली है तो उसका माँस उसी दिन खाया जाए और शेष माँस अगले दिन खाया जा सकता है।
\s5
\v 17 परन्तु यदि दूसरे दिन भी माँस बचता है तो उसे पूर्ण रूप से जला दिया जाए। वह तीसरे दिन के लिए नहीं रखा जाए।
\v 18 यदि मेल-बलि का माँस बचा कर तीसरे दिन खाया गया तो वह बलि निरर्थक ठहरेगी क्योंकि यहोवा उसे ग्रहण नहीं करेंगे। और जो उसे तीसरे दिन खाएगा उसे यहोवा के लिए दंड भरना होगा।
\s5
\v 19 यदि माँस यहोवा की दृष्टि में अशुद्ध वस्तु के स्पर्श में आ जाए तो वह कदापि खाया न जाए। उसे पूर्ण रूप से भस्म कर दिया जाए। जहाँ तक परमेश्वर की दृष्टि में ग्रहण करने योग्य बलि का माँस है, वह अनुष्ठान के करनेवाले के द्वारा खाया जा सकता है।
\v 20 परन्तु मेल-बलि का माँस अन्य कोई, जिसने वह अनुष्ठान नहीं किया, खाए वह परमेश्वर की प्रजा का सदस्य न रहने दिया जाए क्योंकि वह माँस यहोवा के लिए था।
\s5
\v 21 यदि कोई परमेश्वर की दृष्टि में अशुद्ध एवं घृणित वस्तु का स्पर्श करे चाहे वह मानवीय हो या पाशविक, और यहोवा के साथ मेल की बलि का माँस खा ले तो उसे परमेश्वर की प्रजा की सहभागिता से अलग कर दिया जाए।
\s5
\v 22 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 23 “इस्राएलियों से कह, ‘गाय-बैल, भेड़-बकरी की चर्बी कभी नहीं खाना।
\v 24 यदि कोई पशु मर जाए या वन पशु द्वारा मार डाला जाए तो उसकी चर्बी अन्य किसी भी काम में ली जा सकती है परन्तु खाने के लिए नहीं।
\s5
\v 25 यदि कोई यहोवा के लिए चढ़ाई गई बलि की चर्बी खाए तो वह यहोवा की प्रजा से अलग कर दिया जाए।
\v 26 वे जहाँ भी रहें, न तो किसी पशु का और न ही किसी पक्षी का लहू खाने के माँस में न रहने दें।
\v 27 यदि कोई लहू खाए तो वह समाज से निकाल दिया जाए।'”
\s5
\v 28 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 29 “इस्राएलियों से कह, ‘यहोवा के साथ मेल करने के लिए जब मेल-बलि चढ़ाई जाए तब उसका एक अंश यहोवा के लिए होम-बलि किया जाए।
\v 30 वह स्वयं उसे ले आए कि वह आग में भस्म किया जाए। पशु के सीने के साथ चर्बी यहोवा के सामने उठाई जाए कि वह यहोवा के लिए भेंट हो।
\s5
\v 31 याजक चर्बी को तो आग में जला दे परन्तु सीने का माँस हारून और उसके वंशजों का हो।
\v 32 यहोवा के लिए मेल-बलि में से बलिपशु का दाहिना पुट्ठा याजक का हो।
\s5
\v 33 हारून का पुत्र जो बलि का लहू और चर्बी चढ़ाए उसी के लिए बलि-पशु का दाहिना पुट्ठा हो।
\v 34 इस्राएली यहोवा के लिए जो मेल बलि चढ़ाते हैं उसके लिए यहोवा ने कह दिया है कि वह हारून और उसके वंशजों को दी जाए- सीना जिसे हिलाया जाए और दाहिना पुट्ठा जिसे उठाने की भेंट की जाए।
\s5
\v 35 जिस दिन मूसा तू हारून और उसके पुत्रों को यहोवा के निमित्त याजकीय सेवा के लिए अभिषेक करके अलग कर देगा उस दिन से यहोवा के सामने लाई गई होम-बलियों का यह अंश उनके लिए सदाकालीन होगा।
\v 36 यहोवा की आज्ञा है कि उनका अभिषेक होते ही इस्राएली यह भाग उन्हें सदैव दिया करें वरन् उनके वंशजों को भी दिया जाए।'”
\s5
\v 37 इस प्रकार होम-बलियों के लिए ये निर्देश हैं- होम-बलि, अन्न-बलि, पापबलि, दोष-बलि, मेल-बलि और याजकों के अभिषेक की बलि आदि सब के।
\v 38 यहोवा ने मूसा को ये सब निर्देश सीनै पर्वत पर दिए थे कि जंगल में रहते समय वे यहोवा के लिए क्या-क्या चढ़ाएँ और कैसे-कैसे चढ़ाएँ।
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “तू हारून और उसके पुत्रों को, उनके याजकीय वस्त्रों को, अभिषेक के तेल को, परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए जाने की बलि के बछड़े को और दो मेढ़े तथा अखमीरी रोटी की टोकरी आदि सब लेकर आ।
\v 3 सब इस्राएलियों को भी पवित्र-तम्बू के द्वार पर एकत्र कर।”
\s5
\v 4 मूसा ने वही किया जो यहोवा ने कहा था और सब इस्राएली वहाँ एकत्र हो गए।
\v 5 तब मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “यहोवा ने हमें जो आज्ञा दी है, वह यह है।”
\s5
\v 6 तब उसने हारून और उसके पुत्रों को आगे लाकर स्नान करवाया।
\v 7 और हारून को याजक के वस्त्र पहनाकर उस पर कमरबंध बांधा तथा बागा पहनाया। इसके बाद एपोद पहनाकर काढ़े हुए पट्टे से एपोद को कस दिया और
\s5
\v 8 सीनाबन्द धारण करवा कर उसमें वह दोनों पत्थर, ऊरीम और तुम्मीम भी रख दें जिनसे वह परमेश्वर की इच्छा जान पाएगा।
\v 9 उसने हारून के सिर पर पगड़ी भी रखी और पगड़ी पर सोने की वह चिट भी लगा दी जिस पर लिखा था कि वह यहोवा को समर्पित है। यह सब यहोवा की आज्ञा के अनुसार था।
\s5
\v 10 तब मूसा ने अभिषेक का तेल लेकर पवित्र-तम्बू और उसकी हर एक वस्तु का यहोवा के निमित्त अभिषेक किया।
\v 11 उसने वेदी पर सात बार तेल छिड़का। वेदी के साथ उसकी सब उपयोगी वस्तुओं का तथा पानी की हौदी और उसके आधार का भी यहोवा के लिए अभिषेक किया।
\s5
\v 12 मूसा ने हारून के सिर पर तेल उंडेल कर उसका अभिषेक किया कि यहोवा के लिए समर्पित हो जाए।
\v 13 इसके बाद वह हारून के पुत्रों को सामने लाया और उन्हें अंगरखे पहनाए और कटिबंध बांधे तथा टोपियाँ पहनाईं। सब कुछ वैसे ही किया जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी।
\s5
\v 14 तब मूसा परमेश्वर के सामने ग्रहण करने योग्य पाप-बलि के बछड़े को लाया और हारून तथा उसके पुत्रों ने उसके सिर पर अपने हाथ रखे।
\v 15 मूसा ने उस बछड़े की बलि देकर उसका लहू एक पात्र में लिया और अपनी उंगली से उस लहू को वेदी के चारों सींगों पर लगाया कि वेदी शुद्ध हो जाए। उसने शेष लहू वेदी के आधार पर उंडेल दिया। इस प्रकार मूसा ने वेदी को पाप की होम-बलि के योग्य बनाया।
\s5
\v 16 तब मूसा ने उस बछड़े के भीतर की सब चर्बी, कलेजी और गुर्दों को भी लेकर वेदी पर जला दी।
\v 17 इसके बाद मूसा ने उस बछड़े को खाल और अंतड़ियों समेत छावनी के बाहर ले जाकर जला दिया, जैसी आज्ञा यहोवा ने दी थी।
\s5
\v 18 इसके बाद मूसा होम-बलि के लिए एक मेढ़ा लाया जिसके सिर पर हारून और उसके पुत्रों ने हाथ रखे।
\v 19 मूसा ने उस मेढ़े की बलि दे कर उसका लहू वेदी पर चारों ओर छिड़क दिया।
\s5
\v 20 इसके बाद मूसा ने उस मेढ़े के टुकड़े किए और उन्हें भीतरी अंगों के साथ धोया। उसकी टांगें भी धोईं और सिर और चर्बी तथा उन टुकड़ों को भी वेदी पर जलाया।
\v 21 जब वह जला तब उसका धूआं यहोवा के लिए सुखदायक सुगंध हुआ। यह बलि यहोवा की आज्ञा के अनुसार जलाई गई थी।
\s5
\v 22 फिर मूसा याजकों को समर्पित करने का मेढ़ा लाया और हारून और उसके पुत्रों ने उसके सिर पर हाथ रखे।
\v 23 उसे बलि दे कर मूसा ने उसका लहू पात्र में लेकर हारून के दाहिने कान पर, दाहिने हाथ और दाहिने पाँव के अंगूठों पर लगाया।
\v 24 ऐसा ही मूसा ने हारून के पुत्रों के दाहिने कानों, दाहिने हाथों के अंगूठों और दाहिने पाँवों अंगूठों पर लगाया कि उनका सुनना, उनका करना और उनका आना-जाना यहोवा के मार्गदर्शन के निमित्त समर्पित हो।
\s5
\v 25 मेढ़े की सारी चर्बी, उसकी चर्बीयुक्त पूंछ, भीतरी अंगों की चर्बी- कलेजी और गुर्दों की चर्बी और मेढ़े का पुट्ठा
\v 26 और अखमीरी रोटियों की जो टोकरी जो यहोवा के सम्मुख रखी गई थी, उसमें से तेलरहित एक रोटी, तथा तेल में गूंधे हुए आटे की एक रोटी और एक पापड़ लेकर
\v 27 हारून और उसके पुत्रों के हाथों में चर्बी के साथ रख दीं और उन्होंने उसे यहोवा के सामने हिलाया कि वह यहोवा के लिए भेंट ठहरें।
\s5
\v 28 तब मूसा ने उसे उनके हाथों से लेकर वेदी पर जला दिया। यह हारून और उसके पुत्रों को याजक नियुक्त करने की भेंट थी। जब वह जली तब उसकी सुगंध से यहोवा प्रसन्न हुए।
\v 29 इस दूसरे मेढ़े का सीना लेकर मूसा ने यहोवा के सामने उठाया कि उसे भेंट चढ़ाए। याजक के समर्पण के मेढ़े का यह सीना मूसा का हुआ। यह मूसा को दी गई यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया गया।
\s5
\v 30 तदोपरान्त मूसा ने अभिषेक का तेल और वेदी पर से लहू लेकर हारून और उसके वस्त्रों तथा उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर छिड़के। इस प्रकार मूसा ने हारून को और उसके पुत्रों को भी याजक होने के लिए अलग किया। और उनके वस्त्रों को भी अलग किया।
\s5
\v 31 तब मूसा ने हारून और उसके पुत्रों से कहा, “इस दूसरे मेढ़े के माँस को पवित्र-तम्बू के द्वार पर पका कर टोकरी में रखी रोटियों के साथ वहीं खाना।
\v 32 यदि रोटी और माँस बच जाए तो उसे भस्म कर देना।
\v 33 तुम्हारे याजक होने के लिए अलग होने का समय सात दिन का होगा इसलिए पवित्र-तम्बू के द्वार से सात दिन तक बाहर नहीं निकलना।
\s5
\v 34 आज हमने जो किया है वह यहोवा की आज्ञा है कि तुम्हारे पाप क्षमा किए जाएँ।
\v 35 तुम्हें पवित्र-तम्बू के द्वार पर सात दिन, सात रात रहना है और वही करना जो यहोवा अनिवार्य कहता है कि अवज्ञा के कारण तुम मर न जाओ। मैं तुमसे यह कहता हूँ क्योंकि यहोवा ने मुझे यह आज्ञा दी है।
\v 36 इसलिए हारून और उसके पुत्रों ने वही किया जो यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा था।
\s5
\c 9
\p
\v 1 आठवें दिन मूसा ने इस्राएल के प्रधानों को एकत्र किया।
\v 2 उसने हारून से कहा, “एक बछड़ा लेकर अपने पापों के लिए बलि चढ़ा और एक मेढ़ा वेदी पर होम-बलि कर। दोनों बलिपशु निर्दोष हों। यहोवा के लिए यह बलि चढ़ा।
\s5
\v 3 तब इस्राएलियों से कह, ‘एक बकरा अपने पापों के लिए बलि करो। एक निर्दोष बछड़ा और एक निर्दोष मेम्ना लेकर वेदी पर होम करो।
\v 4 एक बैल और मेढ़ा यहोवा के लिए मेल बलि कर और उसके साथ जैतून के तेल में गूंधा हुआ मैदा चढ़ाओ। ऐसा करो क्योंकि यहोवा आज तुम्हें दर्शन देंगे।
\v 5 मूसा से निर्देश पाकर इस्राएली इन सब वस्तुओं के साथ पवित्र-तम्बू के सामने आँगन में एकत्र हो गए।
\s5
\v 6 तब मूसा ने उनसे कहा, “यहोवा ने तुम्हें यह आज्ञा इसलिए दी है कि उसकी महिमा का तेज तुम पर प्रकट हो।”
\v 7 फिर मूसा ने हारून से कहा, “अपने पापों की क्षमा के लिए वेदी के निकट जाकर पाप बलि के पशु को चढ़ा। वेदी पर पूर्ण होम-बलि का पशु भी ले आ। इन बलियों के द्वारा यहोवा तेरे और इस्राएल के पाप क्षमा कर देगा। यहोवा की आज्ञा के अनुसार ऐसा ही कर।
\s5
\v 8 इसलिए हारून ने वेदी के निकट आकर अपने पापों के लिए बछड़ा बलि दिया।
\v 9 हारून के पुत्र उसका लहू एक पात्र में लेकर उसके पास आए। हारून ने लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी के चारों सींगों पर लगाया और शेष लहू को वेदी के आधार पर उण्डेल दिया।
\s5
\v 10 और यहोवा की आज्ञा के अनुसार सारी चर्बी को, कलेजी और गुर्दों को ढाँकनेवाली चर्बी को भी वेदी पर जला दिया।
\v 11 इसके बाद हारून ने बलि-पशु को छावनी के बाहर ले जाकर उसकी खाल समेत जला दिया।
\s5
\v 12 फिर हारून ने होम-बलि के पशु को बलि किया और उसके पुत्रों ने उसका लहू एक पात्र में लेकर उसे दिया जिसे उसने वेदी पर चारों ओर छिड़क दिया।
\v 13 तब उसके पुत्रों ने बलि-पशु के टुकड़े और सिर उसे दिए और उसने उन्हें वेदी पर पूर्ण रूप से जला दिया।
\v 14 उसने बलि-पशु के भीतरी अंगों को और टांगों को धोकर, अन्य टुकड़ों के साथ वेदी पर जला दिया।
\s5
\v 15 तब हारून ने इस्राएलियों द्वारा लाए गए बलि-पशुओं में से एक बकरा लेकर उनके पापों के निमित्त बलि दिया। ठीक वैसे ही जैसे उसने अपने पाप-बलि के बकरे के लिए रीति निभाई थी।
\v 16 फिर उसने होम-बलि के पशु की भी बलि दे कर यहोवा द्वारा निर्देशित विधि के अनुसार चढ़ाई।
\v 17 उसने मैदे से तैयार की गई अन्न-बलि को भी लिया और उसमें से मुट्ठी भर वेदी पर जला दिया। जैसे उसने प्रातःकालीन बलि के पशु के साथ किया था।
\s5
\v 18 इसके बाद उसने यहोवा के साथ मेल के लिए प्रजा द्वारा लाए गए बैल और मेढ़े को बलि किया। उसके पुत्रों ने लहू का कटोरा उसके हाथों में दिया और उसने वेदी के चारों ओर लहू छिड़का।
\v 19 और बैल और मेढ़े की चर्बी और मेढ़े की चर्बी वाली पूंछ को रीढ़ की हड्डी के पास से काट कर, गुर्दों और कलेजी की चर्बी के साथ लेकर,
\s5
\v 20 बलि-पशुओं के सीनों पर रख कर जलाने के लिए वेदी के निकट ले गया।
\v 21 तब मूसा की आज्ञा के अनुसार उसने उन पशुओं का सीना और दाहिना पुट्ठा ऊपर उठाया कि वे दोनों पशु यहोवा के हैं।
\s5
\v 22 फिर हारून ने हाथों को उठा कर यहोवा से प्रजा के लिए आशीर्वाद माँगा।
\v 23 तब हारून और मूसा पवित्र-तम्बू में चले गए। जब वे कुछ समय बाद बाहर आए तब उन्होंने यहोवा के नाम में अपनी प्रजा को आशीर्वाद दिया ही था कि यहोवा की महिमा का तेज संपूर्ण प्रजा पर प्रकट हुआ।
\v 24 और यहोवा की उपस्थिति से आग निकली तथा चर्बी तथा होम-बलि के तत्व उससे भस्म हो गए। यह दृश्य देख प्रजा ने आनंद से भरकर जय का नारा लगाया और भूमि पर गिर कर यहोवा को दण्डवत् किया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 हारून के पुत्र, नादाब और अबीहू ने धूप जलाने के लिए अपना-अपना धूपदान लेकर उसमें कोयले भरे और उस पर धूप डाली परन्तु कोयले उस आग के थे जो यहोवा को ग्रहण योग्य नहीं थी।
\v 2 इसका परिणाम यह हुआ कि, यहोवा की उपस्थिति से आग निकली और उन दोनों को जला दिया। दोनों वहीं के वहीं यहोवा के सामने मर गए।
\s5
\v 3 तब मूसा ने हारून से कहा, “यहोवा के कहने का अर्थ यही था जब उसने कहा, ‘जो याजक मेरे निकट आएँ उन पर मैं प्रकट कर दूँगा कि वे मुझे निश्चय ही पवित्र समझें; संपूर्ण प्रजा की दृष्टि में वे मेरा महिमा प्रकट करें।” यह सुन कर हारून के पास शब्द नहीं थे कि कुछ कह पाए।
\v 4 तब मूसा ने हारून के चाचा उज्जीएल के पुत्रों मीशाएल और एलसाफान को बुलवाकर कहा, “अपने भतीजों के शवों को पवित्र-तम्बू के सामने से उठा कर छावनी के बाहर कर दो।”
\s5
\v 5 इसलिए उन्होंने उनके शवों को जो याजकीय वस्त्रों में ही थे, छावनी के बाहर ले जाकर जला दिया।
\v 6 इस घटना के बाद मूसा ने हारून और उसके अन्य दो पुत्रों एलीआजार और ईतामार से कहा, “तुम्हें नादाब और अबीहू की मृत्यु का दुख है परन्तु तुम्हारा व्यवहार सामान्य ही रहे। अपने सिरों के बालों को मत बिखराओ और न ही अपने वस्त्र फाड़ो। यदि तुम ऐसा करोगे तो यहोवा का क्रोध तुम पर और संपूर्ण प्रजा पर भड़क उठेगा। यहोवा की आग से नष्ट होने वालों के लिए तुम्हारे संबन्धी और इस्राएली विलाप करें।
\v 7 तुम पवित्र-तम्बू के द्वार से निकल कर विलाप करने वालों में सहभागी मत होना अन्यथा तुम भी मर जाओगे। मत भूलो कि यहोवा ने तुम्हें यहाँ सेवा करने के लिए अलग कर लिया है इसलिए वह कदापि नहीं चाहता कि तुम शव के स्पर्श से अशुद्ध हो जाओ।” इसलिए उन्होंने मूसा की आज्ञा का पालन किया। उन्होंने अपने भाइयों की मृत्यु पर समाज के साथ विलाप नहीं किया।
\s5
\v 8 तब यहोवा ने हारून से कहा,
\v 9 “तू और तेरे ये दोनों पुत्र जो जीवित हैं पवित्र-तम्बू में प्रवेश करें तो न तो मदिरा पीना और न ही किसी भी प्रकार का मद्य सेवन करना, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ। इस आज्ञा का तुम और तुम्हारे वंशज सदैव पालन करें।
\v 10 यह तुम्हें इसलिए करना है कि पवित्र और अपवित्र में अन्तर समझ पाओ और यह भी जान लो कि मुझे क्या ग्रहणयोग्य है और क्या ग्रहणयोग्य नहीं है।
\v 11 तुम्हें इस्राएलियों को उन सब नियमों की शिक्षा भी देना है जिन्हें मैंने मूसा के माध्यम से तुम तक पहुँचाए हैं।”
\s5
\v 12 तब यहोवा ने हारून और उसके जीवित दोनों पुत्रों, एलीआजार और ईतामार से कहा, “मैदे की जो अन्न-बलि, एक अंश यहोवा के लिए होम करने के बाद शेष रहती है, उसे वेदी के निकट ही खाना। उसे कहीं और ले जाकर नहीं खाना क्योंकि वह अति पवित्र होती है।
\v 13 उसे पवित्र स्थान में ही खाना। तेरे लिए और तेरे पुत्रों के लिए यह यहोवा को चढ़ाई गई होम-बलियों का भाग है। यहोवा ने मुझे आज्ञा दी है कि तुझे समझा दूँ।
\s5
\v 14 परन्तु तू और तेरे पुत्र-पुत्रियाँ यहोवा के सामने उठाई हुई छाती और पुट्ठे का माँस खा सकते हो। उसे तुम पवित्र स्थान में कहीं खाना। यह भाग तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को इस्राएलियों की मेल बलियों से अधिकार के साथ प्राप्त है।
\v 15 यहोवा के सामने उठाया जाने वाला पुट्ठा और छाती का माँस उस चर्बी के साथ ही लाया जाए जिसे जलाया जाना है कि यहोवा की उपस्थिति में उठाया जाकर भेंट किया जाए। यह तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए सदा का भाग हो।”
\s5
\v 16 जब मूसा ने इस्राएलियों के पाप-बलि के बकरे की जाँच पड़ताल की तो उसे ज्ञात हुआ कि याजकों ने उसे पूरा जला दिया था। इसलिए उसने एलीआजार और ईतामार से क्रोधित होकर कहा,
\v 17 “तुमने पाप-बलि का माँस पवित्र-तम्बू के निकट क्यों नहीं खाया? वह यहोवा के निमित्त अति पवित्र था। उसने वह तुम्हें दिया था कि इस्राएलियों के पापों को वह क्षमा करे।
\v 18 क्योंकि उस का लहू पवित्र-तम्बू में पवित्र स्थान में नहीं ले जाया गया था, तुम्हें मेरी आज्ञा के अनुसार उस बकरे का माँस पवित्र-तम्बू के बाहर खाना आवश्यक था।”
\s5
\v 19 हारून ने मूसा से कहा, “आज इस्राएली अपने पापों की क्षमा के लिए बलि और यहोवा के लिए जलाने के लिए होम-बलि लाए थे कि वह प्रसन्न हो। अब मेरे स्वर्गीय पुत्रों के साथ जो भयानक घटना घटी, उस पर तो ध्यान दे! यदि मैं इनकी पाप-बलि से कुछ खा लेता तो क्या यहोवा प्रसन्न होता?”
\v 20 यह सुन कर मूसा को संतोष हुआ और फिर उसने कुछ नहीं कहा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कहो कि मैं यह कहता हूँ, ‘पृथ्वी के सब जीव-जन्तुओं में से जिनका माँस खाने की तुम्हें अनुमति है वे हैं,
\s5
\v 3 जिन पशुओं के खुर चिरे हुए हैं और वे जुगाली करते हैं, उन पशुओं का माँस तुम खा सकते हो।
\v 4 अब कुछ पशु जुगाली तो करते हैं परन्तु उनके खुर चिरे हुए नहीं हैं और कुछ पशुओं के खुर चिरे हुए तो हैं परन्तु वे जुगाली नहीं करते। ऐसे पशुओं का माँस तुम नहीं खाना।
\s5
\v 5 उदाहरणार्थ ऊँट जुगाली तो करता है परन्तु उसके खुर चिरे हुए नहीं हैं, इसलिए उसका माँस नहीं खाना। शापान जुगाली तो करता है परन्तु उसका खुर चिरा हुआ नहीं है, इसलिए उसका माँस नहीं खाना।
\v 6 खरगोश जुगाली करता है परन्तु उसका खुर चिरा हुआ नहीं है इसलिए उसका माँस भी नहीं खाना।
\v 7 दूसरी ओर शूकर का खुर चिरा हुआ है इसलिए उसका माँस भी नहीं खाना।
\v 8 ये सब जन्तु तुम्हारे लिए खाने योग्य नहीं है। तुम न तो उनका माँस खाना और न ही उनको छूना।
\s5
\v 9 जलचरों में अर्थात समुद्री नदियों और जलाशयों में जितने भी जन्तुओं के पंख और शल्क हों वे सब खाने के योग्य हैं।
\v 10 परन्तु जिन जलचरों के पंख और शल्क न हों उनसे घृणा करना, इनमें छोटे-छोटे जल जन्तु भी हैं।
\s5
\v 11 तुम उनसे घृणा करना और उनका माँस नहीं खाना। उनकी मरी हुई देहों से भी घृणा करना।
\v 12 पानी में रहने वाले जिन जन्तुओं के पंख और शल्क न हों उन सबसे तुम घृणा करना।
\s5
\v 13 कुछ पक्षी भी ऐसे हैं जिनका माँस तुम नहीं खाओगे। वरन् उनसे घृणा करोगे: उकाब, गिद्ध,
\v 14 चील, बाज की सब प्रजातियाँ,
\v 15 कौए की सब प्रजातियाँ
\v 16 शुतुर्मुर्ग, तखमास, जलकुक्कुट, शिकरे की सब प्रजातियाँ
\s5
\v 17 बड़ा उल्लू, छोटा उल्लू, समुद्री चील,
\v 18 श्वेत उल्लू, मत्स्यकुररी,
\v 19 लकलक, बगुले की सब प्रजातियाँ, हुदहुद और चमगादड़
\s5
\v 20 उड़ने वाले कीट जो भूमि पर भी चलते हैं, उन्हें मत खाना वरन् घृणित मानना।
\v 21 परन्तु तुम पंखों वाले कीट जिनकी टांगों में जोड़ हो और भूमि पर कूद कर चलते हैं
\v 22 जैसे टिड्डी की प्रजातियाँ, फनगे, झिंगुर, टिड्डे।
\v 23 परन्तु इनकी अपेक्षा अन्य पँखधारी चार टांगों के कीट मत खाना वरन् उनसे घृणा करना।
\s5
\v 24 कुछ जन्तुओं के मर जाने पर उनका स्पर्श तुम्हें मेरे सामने अग्रहणीय बनाता है। ऐसा मनुष्य शाम तक अशुद्ध ठहरेगा इसलिए वह किसी का स्पर्श न करे।
\v 25 यदि कोई इनको मरा हुआ उठा ले तो उसे अपने वस्त्र धोने होंगे और वह संध्या तक किसी को न छुए क्योंकि वह अशुद्ध हो गया है।
\s5
\v 26 जिन पशुओं के मर जाने पर स्पर्श निषेध हैं वे हैं, चिरेखुर के पशु परन्तु खुर पूरे न फटे हों, ऐसे पशु या जुगाली न करने वाले पशु। ऐसे पशुओं का स्पर्श करने पर मनुष्य अशुद्ध हो जाता है।
\v 27 जितने पशु भूमि पर चलते हैं उनमें नाखूनदार पंजे वाले पशुओं की मृतक देह का स्पर्श हो जाने पर वह व्यक्ति किसी के संपर्क में न आए। वह संध्याकाल तक अशुद्ध रहेगा।
\v 28 यदि किसी को ऐसे पशुओं की मरी देह उठाना पड़े तो उसे अपने वस्त्र धोना आवश्यक है और वह संध्याकाल तक अन्य किसी मनुष्य का स्पर्श न करे क्योंकि मरे हुए पशु की देह के स्पर्श के कारण वह मेरे सम्मुख ग्रहणयोग्य नहीं है।
\s5
\v 29 धरती के पशुओं में जिनके स्पर्श से मनुष्य अशुद्ध होता है वे हैं: नेवला, चूहे, गोह,
\v 30 छिपकली, मगर, अन्य छिपकलियाँ, टिकटिक, सांडा और गिरगिट।
\s5
\v 31 रेंगने वाले जन्तु मुझे अस्वीकार्य हैं। उनकी मरी हुई देह का स्पर्श करने पर तुम संध्याकाल तक अशुद्ध रहोगे और संध्याकाल तक किसी का स्पर्श नहीं करोगे।
\v 32 यदि इनमें से किसी भी जन्तु की मरी हुई देह किसी भी वस्तु पर गिरे तो वह चाहे उपयोगी वस्तु हो, अशुद्ध हो जाएगी। वह लकड़ी, वस्त्र, पशु की खाल या सन की ही क्यों न बनी हो। उसे पानी में डाल कर संध्याकाल तक प्रयोग में नहीं लेना है।
\v 33 यदि किसी मिट्टी के बर्तन में ऐसा जन्तु गिर जाए तो उसमें रखी वस्तु अशुद्ध हो जाती है। उस पात्र को तोड़ दिया जाए।
\s5
\v 34 यदि अनजाने में उस पात्र का पानी भोजन में डल गया तो वह भोजन खाया न जाए। उस पात्र का पानी भी नहीं पीना।
\v 35 जिस किसी वस्तु पर ऐसा मरा हुआ जन्तु गिरे, वह अशुद्ध हो जाती है। यदि ऐसा जन्तु तन्दूर या खाना पकाने के पात्र में गिरे तो वे तोड़ दिए जाएँ। वह हर एक वस्तु जिस पर ऐसा जन्तु गिरे वह तोड़ दी जाए। वह मेरे लिए अस्वीकार्य है। उसका दोबारा उपयोग न किया जाए।
\s5
\v 36 यदि ऐसा मरा हुआ जन्तु सोते में या संग्रहित जल में गिरे तो पानी तो पीया जा सकता है परन्तु उसका स्पर्श करने वाला मेरे सामने अस्वीकार्य है।
\v 37 यदि ऐसा मरा हुआ जन्तु बोने वाले बीजों पर गिरे तो बीज बोने के लिए स्वीकार्य हैं।
\v 38 परन्तु यदि बीजों पर पानी डाला गया इसके बाद वह मरा हुआ जन्तु उन बीजों पर गिरा तो बीज फेंक दिए जाएँ। उन्हें अस्वीकार्य मानना।
\s5
\v 39 जिस पशु का माँस खाने के लिए मना नहीं, यदि वह पशु मर जाए तो उसे स्पर्श करने वाला संध्याकाल तक किसी का स्पर्श न करे।
\v 40 यदि ऐसे मरा हुआ पशु का कोई माँस खा ले तो उसे अपने वस्त्र धोने होंगे और वह संध्याकाल तक किसी का स्पर्श न करे।
\s5
\v 41-42 पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तु, पेट के बल चलने वाले भी घृणित हैं। उनका माँस खाना मना है।
\s5
\v 43 ऐसे किसी भी जन्तु का माँस खाकर अशुद्ध नहीं होना। इस विषय में अत्यधिक सावधान रहो।
\v 44 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ। इसलिए मेरे सम्मान के निमित्त पवित्र रहो वरन् अलग हो जाओ। ऐसी वस्तुएँ खाने से बचो जिनके कारण तुम मेरे सामने ग्रहणयोग्य न ठहरो। भूमि पर रेंगने वाले जन्तुओं का माँस खा कर मेरे सामने अस्वीकार्य न हो।
\v 45 मैं यहोवा हूँ जिसने तुम्हें मिस्र के दासत्व से छुड़ाया है कि तुम मेरी ही उपासना करो। इस कारण तुम पवित्र बने रहो क्योंकि मैं पवित्र हूँ।
\s5
\v 46 सब पशुओं, पक्षियों, रेंगने वाले जन्तुओं तथा जलचरों के विषय में ये निर्देश हैं।
\v 47 तुम्हें गांठ बांध लेना है कि मुझे क्या स्वीकार्य है और क्या अस्वीकार्य है- तुम क्या खा सकते हो और क्या नहीं खा सकते।”
\s5
\c 12
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘कोई स्त्री यदि पुत्र को जन्म दे तो वह सात दिन तक अलग रहे जिस प्रकार कि वह मासिक दिनों के समय रहती है।
\v 3 पुत्र का जन्म के आठवें दिन उसका खतना किया जाए।
\s5
\v 4 इसके बाद वह स्त्री सन्तानोत्पत्ति के रक्त के बहने से शुद्ध होने के लिए तैंतीस दिन तक प्रतीक्षा करे। वह किसी भी पवित्र वस्तु को जो मेरी है, स्पर्श न करे और न ही समय पूरा होने तक पवित्र-तम्बू के क्षेत्र में प्रवेश करे।
\v 5 यदि कोई स्त्री पुत्री को जन्म दे तो दो सप्ताह अलग रहे जिस प्रकार वह अपने मासिक दिनों में रहती है। इसके बाद वह शोधन के लिए छियासठ दिन प्रतीक्षा करे- सन्तानोत्पत्ति के बाद।
\s5
\v 6 जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हो जाएँ तब वह पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास एक वर्ष का एक मेम्ना लाए। याजक उसे वेदी पर पूर्ण रूप से भस्म कर दे। वह बलि के लिए याजक के पास एक पंडुकी या कबूतर का बच्चा लाए कि यहोवा उसे ग्रहण करे।
\s5
\v 7 इस प्रकार, वह सन्तानोत्पत्ति के रक्त के बहने की अशुद्धता से शुद्ध होगी। पुत्र या पुत्री को जन्म देने वाली स्त्री के लिए यह विधि है।
\v 8 यदि सन्तान को जन्म देनेवाली स्त्री मेम्ना लाने में अयोग्य है तो वह दो पंडुकियाँ या कबूतर के दो बच्चे लाए। एक वेदी पर जलाया जाएगा और दूसरा उसे परमेश्वर की दृष्टि में ग्रहणयोग्य बनाएगा। ऐसा करके याजक उसे पाप से मुक्ति दिलाकर अलग होने से उबारेगा।’”
\s5
\c 13
\p
\v 1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
\v 2 “किसी की त्वचा पर सूजन या चमकीला दाग हो जो संक्रमण का प्रतीत हो तो उसे हारून के पास लाया जाए या उसके पुत्रों में से एक के पास। क्योंकि वे भी याजक हैं।
\s5
\v 3 याजक उस व्यक्ति की त्वचा के उस स्थान का निरीक्षण करे। यदि त्वचा पर वहाँ के बाल सफेद हो गए हैं और घाव त्वचा में गहरा प्रतीत हो तो वह त्वचा का संक्रामक रोग है जो दूसरों को भी लग सकता है। यदि याजक को इस बात का निश्चय हो जाए तो वह घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\v 4 यदि उसकी त्वचा का वह दाग सफेद है परन्तु गहरा घाव प्रतीत नहीं होता तो याजक उसे सात दिन तक अलग रखे।
\s5
\v 5 सात दिनों के बाद याजक उसका दोबारा निरीक्षण करे। यदि याजक देखे कि सूजन में परिवर्तन नहीं है और वह फैली भी नहीं तो याजक और सात दिन उसे अलग रखे।
\v 6 सात दिन बाद याजक दूसरी बार उसका निरीक्षण करे। यदि सूजन समाप्त हो गई है और फैली नहीं तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति सामाजिक संपर्क के योग्य है। उसकी त्वचा पर मात्र एक दाग़ था। वह संक्रामक नहीं है। वह अपने वस्त्र धो ले और याजक उसे समाज में रहने योग्य ठहराए।
\s5
\v 7 परन्तु याजक के निरीक्षण के बाद यदि सूजन बढ़ जाती है तो वह व्यक्ति फिर से याजक के पास जाए।
\v 8 याजक उसका दुबारा निरीक्षण करके देखे। यदि सूजन फैल गई है तो वह त्वचा का लगनेवाला रोग है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति सामाजिक संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 9 यदि किसी को संक्रामक त्वचा रोग है तो वह याजक के पास लाया जाए।
\v 10 याजक उसका निरीक्षण करे। यदि त्वचा में सफेद सूजन है और उस स्थान पर बाल भी सफेद हो गए हैं तथा पीड़ादायक हैं,
\v 11 तो वह एक स्थायी रोग है। याजक घोषणा कर दे कि वह सामाजिक संपर्क के योग्य नहीं है। आवश्यक नहीं कि वह और सात दिन अलग रखा जाए क्योंकि याजक को निश्चय हो गया है कि वह सामाजिक संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 12 यदि किसी के संपूर्ण शरीर में रोग फैल गया है और याजक देखता है कि सिर से पाँव तक उसकी त्वचा संक्रमण की हो गई है,
\v 13 और श्वेत हो गई है तो वह रोग समाप्त हो गया है। याजक घोषणा कर दे कि उसे समाज से अलग रहने की आवश्यकता नहीं है।
\v 14 परन्तु यदि उसकी त्वचा पर घाव हैं तो उसका वह रोग संक्रामक है और वह मनुष्यों के संपर्क में आने के योग्य नहीं है।
\s5
\v 15 ऐसी स्थिति में याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति को संक्रामक त्वचा रोग है। और वह मनुष्यों के संपर्क में आने के योग्य नहीं है।
\v 16 परन्तु यदि उसकी त्वचा के नीचे का माँस श्वेत हो गया है तो वह दोबारा याजक के पास जाए।
\v 17 याजक उसका फिर से निरीक्षण करे और देखे कि उसके दाग़ सफेद हो गए हैं तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति अब मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 18 यदि किसी की त्वचा पर फोड़ा होकर अच्छा हो गया है
\v 19 परन्तु उस स्थान पर सफेद सूजन है या दाग़ में लाली है, तो वह याजक के पास फिर से जाए।
\v 20 याजक परीक्षण करके देखे कि वह त्वचा के भीतर है और उस स्थान के बाल सफेद हो गए हैं तो वह एक संक्रामक रोग हो गया है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 21 परन्तु यदि याजक देखे कि उस स्थान पर बाल सफेद नहीं हैं और व्याधि मात्र सतही है और लाली भी घट गई है तो याजक उसे सात दिन अलग रखे।
\v 22 यदि वह फैल रहा है तो रोग संक्रामक है। याजक घोषणा कर दे कि वह मनुष्य किसी के भी संपर्क के योग्य नहीं है।
\v 23 परन्तु यदि वह दाग़ फैला नहीं और बदला नहीं तो वह फोड़े का दाग मात्र है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 24 यदि किसी की त्वचा में जला हुआ दाग हो और उस पर श्वेत या लाली लिए हुए आभा दिखाई देती है और उस स्थान में पीड़ा उठती है,
\v 25 तो याजक उसका निरीक्षण करके देखे। यदि उस स्थान के बाल सफेद हो गए और वह गहरा प्रतीत होता है तो उस जले हुए स्थान में संक्रामक रोग हो गया है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 26 परन्तु यदि याजक देखे कि उस स्थान के बाल सफेद नहीं हैं और घाव सतही है और उसकी लालिमा मन्द पड़ गई है तो याजक उस व्यक्ति को सात दिन तक अलग रखे।
\v 27 सात दिन के बाद याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि घाव फैल रहा है तो वह संक्रामक रोग है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\v 28 परन्तु यदि घाव फैला नहीं और उसकी लालिमा बढ़ने की अपेक्षा घट गई है तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 29 यदि किसी स्त्री या पुरुष के सिर में या दाढ़ी में व्याधि है,
\v 30 तो याजक उसका निरीक्षण करे। यदि घाव गहरा है और उस स्थान में बाल उड़ गए हैं और उसका रंग पीलापन लिए हुए है तो वह संक्रामक रोग है जिसमें खुजली भी होती है। ऐसी स्थिति में याजक उसे मनुष्यों के संपर्क के अयोग्य घोषित कर दे।
\s5
\v 31 परन्तु यदि याजक निरीक्षण करके देखे कि उसका घाव सतही है और वहां के बाल काले नहीं हैं तो याजक उसे सात दिन तक अलग रखे।
\s5
\v 32 सातवें दिन याजक उसका निरीक्षण करे। यदि दाग़ फैले नहीं हैं और उस स्थान पर बाल पीले नहीं हुए और दाग़ केवल सतही हैं
\v 33 तो वह व्यक्ति व्याधि के स्थान के आसपास के बाल मुंडवाए परन्तु व्याधि के बाल नहीं और याजक उसे दूसरे सात दिन तक अलग रखे।
\s5
\v 34 सातवें दिन याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि वह दाग़ फैलता नहीं और सतही है तो याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है। वह अपने वस्त्र धोकर समाज में प्रवेश करे।
\s5
\v 35 यदि दाग़ बाद में फैल जाएँ,
\v 36 तो याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि खुजली बढ़ गई है तो याजक को आवश्यकता नहीं कि वहाँ के बालों पर ध्यान दे। वह संक्रामक रोग ही है।
\v 37 परन्तु यदि याजक देखे कि वह दाग़ फैला नहीं और वहाँ के बाल काले उग रहे हैं तो स्पष्ट है कि खुजली ठीक हो गई है। याजक घोषणा कर दे कि वह व्यक्ति मनुष्यों के संपर्क के योग्य है।
\s5
\v 38 यदि किसी स्त्री या पुरुष की त्वचा पर सफेद दाग़ है
\v 39 याजक निरीक्षण करके देखता है कि दाग कम उजले हैं तो वे सामान्य दाग़ हैं। याजक उसे मनुष्यों के संपर्क के योग्य घोषित कर दे।
\s5
\v 40 यदि किसी पुरुष का सिर गंजा हो जाए तो उसे अलग रखने की आवश्यकता नहीं है।
\v 41 ऐसा ही उसके सिर के बाल उड़ने पर है जब उसके सिर गंजा हो गया।
\s5
\v 42 यदि उसके गंजे सिर पर और माथे पर लालिमा लिए दाग़ हो तो उसका रोग संक्रामक है।
\v 43 याजक उसका निरीक्षण करे। यदि उसके सिर का दाग त्वचा के दाग के समान संक्रामक लाली लिए हुए है
\v 44 तो याजक घोषणा कर दे कि उसे संक्रामक रोग है और वह मनुष्यों के संपर्क के योग्य नहीं है।
\s5
\v 45 जिस व्यक्ति को संक्रामक चर्म रोग है वह फटे वस्त्र धारण करे और बालों को नहीं संवारे। मनुष्यों के सामने आने पर वह अपने चेहरे का निचला भाग ढांक पुकारे, ‘मेरे निकट मत आओ! मुझे संक्रामक चर्म रोग है!
\v 46 जब तक वह संक्रामक रोग से ग्रस्त है उसे किसी के भी संपर्क में आने की अनुमति नहीं है। उसे शिविर के बाहर अकेला ही रहना है।”
\s5
\v 47-48 कभी-कभी वस्त्रों पर भी भुकड़ी लग जाती है। वस्त्र ऊन का हो, कपास का हो या चमड़े का हो या चमड़े की बनी अन्य कोई वस्तु हो।
\v 49 यदि दूषित स्थान हरा या लाल सा हो तो वह फैलने वाली भुकड़ी है और उसे याजक को दिखाना आवश्यक है।
\s5
\v 50 याजक उसका निरीक्षण करके उसे सात दिन के लिए अलग रखे।
\v 51 सातवें दिन वह उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी फैल गई है तो स्पष्ट है कि वह खा जाने वाली भुकड़ी है। वह वस्त्र या वस्तु काम में न ली जाए।
\v 52 वह कैसा भी वस्त्र हो या कैसी भी वस्तु हो, उसे पूर्ण रूप से जला दिया जाए।
\s5
\v 53 परन्तु याजक के निरीक्षण से ज्ञात हो कि भुकड़ी फैली नहीं है।
\v 54 तो वह उस वस्त्र या वस्तु के स्वामी से कहे कि उसे धोकर और सात दिन के लिए अलग रखा जाए।
\v 55 सात दिन के बाद याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी फैली नहीं और उसके रंग में परिवर्तन नहीं आया है तो उसे उपयोग में नहीं लिया जाए। यदि भुकड़ी चाहे वस्तु के भीतर हो या बाहर, उसे जला दिया जाए।
\s5
\v 56 उस वस्तु या वस्त्र को धोने के बाद याजक देखे कि भुकड़ी का रंग उड़ गया है तो वह उस भाग को फाड़ कर अलग कर दे जिस पर भुकड़ी थी।
\v 57 यदि उस वस्त्र या वस्तु पर भुकड़ी फिर आ जाती है तो स्पष्ट है कि वह फैल रही है, इसलिए उस वस्तु को जला दिया जाए।
\v 58 परन्तु यदि धोने के बाद भुकड़ी मिट जाए तो वह वस्त्र या वस्तु फिर से धोई जाए। और उसे काम में लिया जा सकता है।
\s5
\v 59 ऊन, कपास और चमड़े की वस्तुओं के विषय ये निर्देश हैं कि उनका स्वामी निश्चित कर पाए कि उसे काम में लेना है या नहीं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “संक्रामक चर्म रोग से मुक्ति पाने वाले के विषय जो निर्देश हैं वे इस प्रकार हैं।
\s5
\v 3 ऐसे व्यक्ति के विषय याजक को सूचित किया जाए। याजक शिविर के बाहर जाकर उसका निरीक्षण करके देखे कि उस का चर्म रोग वास्तव में अच्छा हो गया है।
\v 4 याजक किसी के हाथ से यहोवा को स्वीकार्य दो जीवित पक्षी, और देवदार की लकड़ी, लाल धागा, और जूफा मंगवाए।
\v 5 तब याजक आज्ञा दे कि सोते से भरे जल अर्थात ताज़े पानी के मिट्टी के पात्र पर एक पक्षी बलि किया जाए।
\s5
\v 6 इसके बाद याजक दूसरे पक्षी को, देवदार की लकड़ी को, लाल धागे को और जूफा को उस रक्त रंजित जल में डुबाए।
\v 7 इसके बाद वह लहू मिश्रित जल उस स्वस्थ रोगी पर सात बार छिड़के और घोषणा करे कि वह व्यक्ति अब समाज में उठने-बैठने योग्य हो गया है। याजक दूसरे पक्षी को उड़ा दे।
\s5
\v 8 तब वह स्वस्थ व्यक्ति अपने वस्त्र धोए और सिर मुंडाकर स्नान करे। इस प्रकार वह व्यक्ति शिविर में प्रवेश करने पाए परन्तु फिर भी अपने डेरे से सात दिन तक बाहर रहे।
\v 9 सातवें दिन वह फिर सिर, दाढ़ी, भौंहें और संपूर्ण शरीर मुंडवाए और अपने वस्त्र धोकर स्नान करे। तब उसे मनुष्यों से संपर्क की अनुमति दी जाए।
\s5
\v 10 अगले दिन अर्थात आठवें दिन वह निर्दोष दो नर मेम्ने और एक वर्ष की भेड़ी तथा जैतून के तेल में गूंधा 6.5 किलो मैदा भेंट स्वरूप लाए, साथ में एक तिहाई लीटर जैतून का तेल भी लाए।
\v 11 जिस याजक ने उस व्यक्ति को रोग मुक्त घोषित किया था, वह याजक उस व्यक्ति को और उसके चढ़ावों को लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर आए।
\s5
\v 12 याजक एक नर मेम्ने को जैतून के तेल के साथ ऊपर उठाए कि प्रकट हो कि वह यहोवा के सामने दोष बलि है क्योंकि वह व्यक्ति यहोवा की अनिवार्यताओं के अनुसार चढ़ावे नहीं ला पाया था।
\v 13 तब याजक उस नर मेम्ने को उस विशेष स्थान में मारे जहाँ बलि-पशु घात किए जाते हैं। पाप बलि के सदृश्य यहोवा दोष बलि को भी पवित्र मानता है इसलिए इनका माँस भी याजक का है।
\s5
\v 14 याजक उस बलि-पशु का कुछ लहू लेकर उस व्यक्ति के दाहिने कान पर, उसके दाहिने हाथ और पांव के अंगूठों पर लगाए।
\v 15 तब याजक जैतून का कुछ तेल अपने बायें हाथ की हथेली पर ले।
\v 16 उस तेल में याजक अपने दाहिने हाथ की पहली अँगुली डुबा कर यहोवा के सामने सात बार तेल छिड़के
\s5
\v 17 इसके बाद अपनी हथेली के तेल में से कुछ तेल उस व्यक्ति के दाहिने कान, दाहिने हाथ एवं दाहिने पाँव के अंगूठों पर लगाए- ठीक उन्हीं अंगों पर जहाँ उसने बलि-पशु का लहू लगाया था।
\v 18 अपनी हथेली के शेष तेल को याजक उस व्यक्ति के सिर पर लगा दे। इससे प्रकट होगा कि यहोवा ने उस व्यक्ति के पाप क्षमा कर दिए हैं।
\s5
\v 19 तब याजक उस व्यक्ति द्वारा लाई गई एक वर्ष की भेड़ की बलि दे। यह उस व्यक्ति द्वारा पाप-बलि है कि यहोवा उसे क्षमा करे। इसके बाद याजक दूसरे नर मेम्ने की बलि दे कर उसे वेदी पर भस्म कर दे।
\v 20 याजक वेदी पर अन्न-बलि के साथ पाप-बलि पूर्ण रूप से जला दे। इस प्रकार वह व्यक्ति शिविर में स्वीकार किया जायेगा और मनुष्यों में उठने-बैठने योग्य हो जाएगा।
\s5
\v 21 परन्तु यदि वह व्यक्ति जो रोग मुक्त हुआ है बलि के लिए इतनी सामग्री नहीं जुटा सकता तो वह यहोवा के निमित्त एक नर मेम्ना याजक के पास उठाने की भेंट स्वरूप लाए। यह यहोवा के अनिवार्य चढ़ावों से चूकने की क्षमा के लिए है। वह लगभग दो किलो ग्राम मैदा एक तिहाई लीटर जैतून के तेल में गूंध कर भी लाए। यह अन्न बलि है। वह एक तिहाई लीटर जैतून का तेल भी लाए।
\v 22 वह पंडुकियाँ या दो कबूतर भी लाए। एक यहोवा के निमित्त पाप-बलि के लिए और दूसरा वेदी पर होम-बलि के लिए।
\v 23 उसी दिन अर्थात आठवें दिन वह यह सब सामग्री लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास आए कि यहोवा के सामने चढ़ाए।
\s5
\v 24 तब याजक दोष बलि का मेम्ना और तेल यहोवा के सामने ऊपर उठाए और यहोवा को अर्पित करे।
\v 25 और मेम्ने का बलि दे कर के उस का लहू एक पात्र में ले और उस व्यक्ति के दाहिने कान, दाहिने हाथ तथा दाहिने पाँव के अंगूठों पर लगाए।
\s5
\v 26 फिर कुछ जैतून का तेल अपने दाएँ हाथ की हथेली पर लेकर,
\v 27 यहोवा के सामने दाहिने हाथ की पहली अँगुली से सात बार छिड़के।
\s5
\v 28 हथेली के तेल ही में से याजक उस व्यक्ति के दाहिने कान, दाहिने हाथ के अंगूठे और दाहिने पाँव के अंगूठे पर वहीं लगाए जहाँ उसने मेम्ने का लहू लगाया था।
\v 29 अपनी हथेली का शेष तेल याजक रोग मुक्ति पाने वाले के सिर पर लगा दे। इससे प्रकट होगा कि यहोवा ने उस व्यक्ति के पाप क्षमा कर दिए हैं।
\s5
\v 30 इसके बाद याजक उस व्यक्ति द्वारा लाए गए कबूतरों या पंडुकियों को चढ़ाए।
\v 31 जो पक्षी वह ला सका है उनमें से एक पाप-बलि के लिए और दूसरा होम-बलि के लिए चढ़ाए तथा इसके साथ ही वह अन्न बलि भी चढ़ाए। इस प्रकार याजक उस व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित करे।
\v 32 ये निर्देश मुक्ति पाए हुए चर्मरोगी के लिए और आर्थिक रूप से अयोग्य चर्म रोगी के लिए है कि वह समाज में फिर से उठने-बैठने योग्य हो जाए।
\s5
\v 33 यहोवा ने हारून और मूसा से यह भी कहा,
\v 34 “मैं तुम्हें कनान देश देने जा रहा हूँ कि तुम्हारा अपना देश हो। उस देश में ऐसा समय भी आएगा जब मैं किसी न किसी के घर में भुकड़ी होने का कारण उत्पन्न करूँ।
\v 35 ऐसी स्थिति में उस घर का मुखिया याजक के पास जाकर उसे सूचित करे कि उस के घर में भुकड़ी जैसा कुछ है।
\s5
\v 36 याजक उसे आज्ञा दे, ‘घर का सारा सामान बाहर निकाल दे कि मैं आ कर घर का निरीक्षण करूँ। यदि तू ऐसा न करे तो मैं पूरे घर को दूषित घोषित कर दूँगा।’
\v 37 जब उस घर का सारा सामान बाहर निकाल दिया जाए तब याजक उस घर में प्रवेश करके उसका निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी हरी या लाल आभा लिए हुए है जो दीवारों की सतहों से अधिक गहरी है
\v 38 तो याजक बाहर निकल कर उस घर पर ताला डाल कर उसे सात दिन तक बन्द रहने दे।
\s5
\v 39 सातवें दिन याजक उस घर को खोल कर उस का फिर से निरीक्षण करे। यदि दीवारों पर भुकड़ी फैल गई है,
\v 40 तो याजक भुकड़ी लगी दीवारों के पत्थरों को खुदवाकर नगर के बाहर कूड़े में फिंकवा दे।
\s5
\v 41 तब उस घर का मुखिया शेष दीवारों की परत उतार दे और मलबा शहर के बाहर फिकवा दे।
\v 42 तब खोदे गए पत्थरों के स्थान पर नए पत्थर लगाए जाएँ और उनकी चुनाई एवं प्लस्तर नए गारे से की जाए।
\s5
\v 43 इसके बाद भी यदि भुकड़ी फिर से आ जाए,
\v 44 तो याजक उसका फिर से निरीक्षण करे। यदि भुकड़ी फैल गई है तो स्पष्ट है कि वह विनाशकारी है। इसलिए उस घर में किसी का भी रहना वर्जित किया जाए।
\s5
\v 45 वह घर पूरा का पूरा ढा दिया जाए और उस घर के पत्थर, गारा और लकड़ी आदि सब उठवाकर शहर के बाहर फिंकवा दिए जायें।
\v 46 जिस समय वह घर याजक द्वारा बन्द रखा जाए, उस समय यदि कोई उस घर में प्रवेश करे तो वह व्यक्ति सूर्यास्त तक किसी के संपर्क में न आए।
\v 47 इस समय यदि कोई उस घर में सोए या भोजन करे तो उसे अपने वस्त्र धोना अनिवार्य है।
\s5
\v 48 उस घर का पलस्तर हो जाने के बाद याजक उसका फिर से निरीक्षण करके देखे कि भुकड़ी दुबारा प्रकट नहीं है तो वह उसे निवास के योग्य घोषित कर दे क्योंकि वह घर भुकड़ी मुक्त हो गया है।
\s5
\v 49 परन्तु पुनर्वास से पूर्व याजक दो पक्षी, देवदार की लकड़ी, लाल धागा और जूफा ले आए।
\v 50 वह एक पक्षी को सोते के पानी से भरे मिट्टी के पात्र के ऊपर बलि दे।
\v 51 फिर याजक देवदार की लकड़ी, लाल धागा, जूफा और दूसरा पक्षी उस रक्त रंजित जल में डुबाए और वह लहू मिश्रित जल घर में सात बार छिड़के।
\s5
\v 52 इस प्रकार याजक उस घर को फिर से रहने के योग्य बनाए।
\v 53 तब याजक उस दूसरे पक्षी को उड़ा दे। इस अनुष्ठान के द्वारा वह उस घर को लोगों के निवास के लिए स्वीकार्य बनाएगा।
\s5
\v 54 ये निर्देश संक्रामक रोग के लिए हैं, खुजली के दाने,
\v 55 वस्त्रों और घरों में भुकड़ी,
\v 56 सूजन, चिकत्ते पर सफेद दाग आदि।
\v 57 इन निर्देशनों से ज्ञात होगा कि मनुष्य उन वस्तुओं का स्पर्श करे या न करे।”
\s5
\c 15
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा और हारून से यह भी कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘यदि किसी पुरुष को प्रमेह हो तो वह किसी के स्पर्श योग्य नहीं है।
\v 3 चाहे उसका प्रमेह बहे या बहना बन्द हो जाए वह अशुद्ध ही रहेगा।
\s5
\v 4 वह व्यक्ति जिस बिस्तर में सोता है या जिस वस्तु पर वह बैठता है, सब अशुद्ध हैं।
\v 5 उस मनुष्य का बिस्तर छूने वाला स्नान करे और अपने वस्त्र धोए और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 6 यदि कोई उस वस्तु पर बैठ जाए जिस पर वह बैठा था तो वह अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्या काल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 7 उस व्यक्ति का स्पर्श हो जाने से मनुष्य अपने वस्त्र धोए और स्नान करके संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 8 यदि प्रमेह रोगी किसी पर थूक दे तो वह किसी को अपना स्पर्श न करने दे और अपने वस्त्र धोकर संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 9 प्रमेह रोगी की घुड़सवारी या गधा सवारी की वस्तुओं का भी स्पर्श नहीं किया जाए।
\s5
\v 10 यदि कोई उसके द्वारा उपयोग में ली गई काठी या आसन का स्पर्श करे तो वह व्यक्ति संध्याकाल तक किसी के स्पर्श योग्य न ठहरे। उन वस्तुओं को उठाने वाला अपने वस्त्र धोकर स्नान करे तथा संध्याकाल तक किसी के स्पर्श योग्य न ठहरे।
\v 11 यदि प्रमेह रोगी किसी का स्पर्श करना चाहता है तो वह पहले अपने हाथ धोए। यदि वह ऐसा किए बिना किसी का स्पर्श करे तो वह व्यक्ति अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 12 यदि वह मिट्टी के पात्र का स्पर्श करे तो वह पात्र तोड़ दिया जाए। यदि वह किसी लकड़ी की वस्तु का स्पर्श करे तो वह वस्तु पानी में धोई जाए।
\s5
\v 13 प्रमेह रोग से मुक्ति पाने पर रोगी सात दिन प्रतीक्षा करने के पश्चात अपने वस्त्र धोए और सोते या झरने के पानी से स्नान करे। तब वह समाज में उठने बैठने योग्य होगा।
\v 14 आठवें दिन वह दो पंडुकियाँ या कबूतर लेकर यहोवा के पवित्र-तम्बू के द्वार पर उपस्थित हो और उन पक्षियों को याजक के हाथों में दे।
\v 15 याजक उन्हें बलि चढ़ाएगा। एक पक्षी उसकी पाप बलि होगा और दूसरा पक्षी याजक वेदी पर होम-बलि करेगा। तब वह व्यक्ति शुद्ध हो जाएगा और यहोवा को स्वीकार्य होगा।
\s5
\v 16 यदि किसी पुरुष का वीर्य स्खलित हो जाता है तो वह पूर्ण रूप से स्नान करे और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 17 जिस वस्त्र या चमड़े पर वीर्य गिरा वह धोया जाए। उसे संध्याकाल तक कोई स्पर्श न करे।
\v 18 स्त्री के साथ संभोग करने पर स्त्री और पुरुष दोनों स्नान करके संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 19 मासिक दिनों में सात दिन तक स्त्री का स्पर्श कोई न करे। यदि कोई उसका स्पर्श करे तो वह व्यक्ति संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 20 मासिक दिनों में स्त्री जहाँ लेटे या बैठे, उसका स्पर्श कोई नहीं करे।
\s5
\v 21 उसके बिस्तर का स्पर्श करने वाला अपने वस्त्र धोकर स्नान करे तथा संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\v 22-23 जो उसके बिस्तर, आसन या उसकी किसी भी वस्तु का स्पर्श करे वह अपने वस्त्र धोए और संध्याकाल तक किसी के स्पर्श में न आए।
\s5
\v 24 स्त्री की ऐसी स्थिति में पुरुष यदि उसके साथ सोए और उस स्त्री के मासिक दिनों का लहू उस पुरुष के लग जाये तो वह सात दिन तक किसी के स्पर्श में न आए और उसका बिस्तर भी कोई न छुए।
\s5
\v 25 यदि किसी स्त्री का रक्तस्राव कई दिन तक रहे अर्थात उसके मासिक दिनों के सामान्य रक्तस्राव के बाद या उसके मासिक दिनों के समाप्त होने के कई दिनों बाद भी।
\v 26 ऐसी स्थिति में उसका बिस्तर और आसन उसके सामान्य होने तक कोई न छुए जैसे उसके मासिक दिनों के समय उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
\v 27 उन वस्तुओं का स्पर्श करनेवाला अन्य किसी वस्तु को न छुए। वह व्यक्ति अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्याकाल तक अशुद्ध रहे।
\s5
\v 28 जब वह स्त्री स्वस्थ हो जाए तब वह सात दिन तक किसी का स्पर्श न करे।
\v 29 आठवें दिन वह स्त्री दो पंडुकी या कबूतरी के बच्चे लेकर पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास उपस्थित हो।
\v 30 उनमें से एक याजक उस स्त्री के पापों की क्षमा के लिए बलि करे और दूसरे को वेदी पर पूर्ण रूप से भस्म कर दे। तब वह स्त्री शुद्ध होगी और यहोवा की दृष्टि में ग्रहण-योग्य ठहरेगी।
\s5
\v 31 तुम्हारे लिए यह सब करना इसलिए आवश्यक है कि जब कोई अशुद्ध हो तो मेरे निवास के पवित्र-तम्बू को वह अशुद्ध न करे क्योंकि यदि वे उसे अशुद्ध करें तो मर जाएँगे।
\s5
\v 32 ये निर्देश प्रमेह रोगी के लिए हैं या उस पुरुष के लिए जो वीर्य स्खलित होने के कारण अशुद्ध हो गया है,
\v 33 तथा मासिक दिनों में स्त्री के लिए और मासिक दिनों के समय स्त्री के साथ सोने वाले पुरुष के लिए हैं।’”
\s5
\c 16
\p
\v 1 यहोवा की आज्ञा के विपरीत धूप जलाने के कारण हारून के दो पुत्रों की मृत्यु हो जाने के बाद यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “अपने भाई हारून से कह कि वह परदे के पीछे परम पवित्र स्थान में, जहाँ मैं पवित्र सन्दूक और उसके ढक्कन के ऊपर बादल के रूप में उपस्थित रहता हूँ, उचित समय के अतिरिक्त कभी न जाए, अन्यथा वह मर जाएगा।
\s5
\v 3 जब हारून पवित्र-तम्बू में परम पवित्र स्थान में प्रवेश करे तब वह पहले एक बैल की बलि दे कर के अपने लिए पाप-बलि चढ़ाए और एक मेढ़ा होम-बलि करे।
\v 4 इसके बाद हारून स्नान करके मलमल का जांघिया और अंगरखा पहने। वह कमरबंध बांधे और सिर पर पगड़ी धारण करे। ये उसके पवित्र वस्त्र हैं।
\v 5 तब इस्राएली दो बकरे उसके पास लाकर अपने पापों के लिए उन्हें बलि करें और एक मेढ़ा वेदी पर पूर्ण रूप से भस्म करें।
\s5
\v 6 हारून वह बैल मेरे लिए बलि करे कि मैं उसके और उसके परिवार के लिए पापों को क्षमा करूँ।
\v 7 इसके बाद वह उन दोनों बकरों को पवित्र-तम्बू के द्वार पर ले आए।
\s5
\v 8 और उन पर चिट्ठियाँ डाल कर ज्ञात करे कि कौन सा बकरा बलि किया जाए और कौन सा छोड़ दिया जाए।
\v 9 अब जो बकरा बलि के लिए निकला उसे हारून प्रजा के पापों के लिए बलि करे।
\v 10 हारून दूसरे बकरे को भी मेरे सामने लाए परन्तु उसकी बलि न दे। वह जीवित छोड़ दिया जाए। हारून उसे जंगल में छुड़वाएगा तो मैं प्रजा के पाप क्षमा कर दूँगा।
\s5
\v 11 सबसे पहले हारून एक बैल को मेरे लिए बलि चढ़ाए। वह उसे उसके और उसके परिवार के पापों के लिए बलि दे और उसका लहू एक पात्र में ले।
\s5
\v 12 फिर वह पीतल की वेदी से कुछ कोयले लेकर धूपदान में रखे और कुटी हुई सुगंधित धूप से मुट्ठियाँ भरे और पवित्र-तम्बू में परदे के पीछे परम पवित्र स्थान में प्रवेश करे।
\v 13 यहोवा की उपस्थिति में वह कोयलों पर धूप डाले जिससे धूआं उठ कर पवित्र-तम्बू के ढक्कन पर जाएगा। वह मेरी आज्ञा के अनुसार करे तो वह यहोवा के सामने भेंट चढ़ाते समय नहीं मरेगा।
\s5
\v 14 फिर हारून लहू के पात्र में उंगली डुबा कर पवित्र सन्दूक के ढक्कन पर लहू छिड़के और पवित्र सन्दूक पर भी छिड़के।
\s5
\v 15 इसके बाद वह पवित्र-तम्बू से निकल कर प्रजा के पापों के लिए बकरा बलि करे और उसका लहू लेकर परदे के पीछे परम पवित्र स्थान में आए और कुछ लहू पवित्र सन्दूक के ढक्कन पर छिड़के तब पवित्र सन्दूक पर भी लहू छिड़के जैसा उसने बैल के लहू से किया था।
\v 16 ऐसा करके वह परम पवित्र स्थान को शुद्ध करेगा। वह पवित्र-तम्बू पर और अधिक लहू छिड़के क्योंकि मैं इस्राएलियों की छावनी के मध्य तम्बू में उपस्थित रहता हूँ। इस्राएली अपने पापों के कारण मेरी दृष्टि में अस्वीकार्य हो गए हैं।
\s5
\v 17 जब हारून पवित्र-तम्बू के परम पवित्र स्थान में प्रवेश करे कि उसका शोधन करे तब पवित्र-तम्बू में प्रवेश की अनुमति अन्य किसी को नहीं है। जब हारून अपने और अपने परिवार के और संपूर्ण प्रजा के पापों की क्षमा के लिए मेरे सम्मुख विधिपूर्ति कर ले तब ही किसी याजक को पवित्र-तम्बू में प्रवेश करने की अनुमति होगी।
\v 18 इसके बाद हारून तम्बू से बाहर आकर मेरी वेदी का शोधन करे जिसके लिए वह बैल का तथा बकरे का लहू लेकर बारी-बारी वेदी के चारों सींगों पर लगाए।
\v 19 इसके बाद हारून लहू में अपनी उंगली डुबा कर वेदी पर सात बार छिड़के। ऐसा करके वह मुझे अस्वीकार्य इस्राएलियों के व्यवहार से वेदी को अलग करेगा और वेदी मेरे लिए पवित्र की जाएगी।
\s5
\v 20 तम्बू के परम पवित्र स्थान, संपूर्ण पवित्र-तम्बू और वेदी का शोधन करने के पश्चात् हारून उस बकरे को ले जिसे छोड़ा जाना है।
\v 21 वह उसके सिर पर अपने दोनों हाथों को रखे और इस्राएलियों के सब पापों का स्वीकार करे। इस प्रकार वह उनके पापों का संपूर्ण दोष उस बकरे के सिर पर मढ़ देगा। तब वह एक चुने हुए व्यक्ति को वह बकरा सौंपे कि वह जंगल में छोड़ आए।
\v 22 वह बकरा मेरे लिए इस्राएलियों के सब पापों को उठा कर दूर जंगल में जाने वाला ठहरेगा।
\s5
\v 23 जब हारून परम पवित्र स्थान से निकल कर पवित्र-तम्बू के अन्य भाग में आए तब वह अपने मलमल के वस्त्र उतार कर वहीं रख दे।
\v 24 वह एक पवित्र स्थान में स्नान करके अपने साधारण वस्त्र धारण करे और बाहर जाकर अपने पापों के लिए और प्रजा के पापों के लिए होम-बलि के पशुओं की बलि दे तो यहोवा उनके पाप क्षमा करेंगे।
\s5
\v 25 वह वेदी पर उन दोनों पशुओं की सारी चर्बी जलाए।
\v 26 अब वह व्यक्ति जो बकरे को जंगल में छोड़ने गया था अपना काम पूरा करके लौटे तो अपने वस्त्र धोकर स्नान करे तब ही शिविर में प्रवेश करे।
\s5
\v 27 प्रायश्चित के लिए बलि किए गए बैल और बकरे को शिविर के बाहर ले जाकर जला दिया जाए- उसकी खाल, भीतरी अंग और गोबर आदि सब जला दिए जाएँ।
\v 28 जो मनुष्य उन्हें भस्म करने का काम करे वह शिविर में लौटने से पूर्व अपने वस्त्र धोकर स्नान करे।
\s5
\v 29 सातवें महीने के दसवें दिन को मैंने नियुक्त किया है कि सब इस्राएली उपवास रख कर हर प्रकार के काम से अवकाश लें। तुम्हें यह विधि सदा माननी है- सब इस्राएली और उनके मध्य वास करने वाले सब परदेशी इसका पालन करें।
\v 30 उस दिन मुझसे सब के पापों की क्षमा पाने के लिए हारून विधियों की पूर्ति करेगा तब मैं तुम्हें सब पापों के दोष से मुक्त कर दूँगा।
\v 31 वह दिन सब्त के दिन के समान काम से अवकाश एवं विश्राम का दिन होगा। उस संपूर्ण दिन तुम सब उपवास करोगे। यह तुम सब के लिए एक अटल आज्ञा है।
\s5
\v 32 याजक जिसका जैतून के तेल से अभिषेक करके यहोवा की सेवा के लिए सब से अलग किया गया है वह बलियाँ चढ़ाएगा और यहोवा की महिमा के निमित्त अलग किए गए मलमल के वस्त्र धारण करके बलियाँ चढ़ाएगा।
\v 33 इस प्रकार वह परम पवित्र स्थान, संपूर्ण पवित्र-तम्बू, वेदी, याजकों और सब इस्राएलियों को शुद्ध करेगा जैसा हारून ने किया है।
\s5
\v 34 यह तुम सब के लिए एक दम अटल आज्ञा है कि प्रतिवर्ष इसका पालन करो जिससे कि मैं तुम इस्राएलियों के पापों को क्षमा करूँ।
\d मूसा ने यहोवा द्वारा दी गई सब आज्ञाओं का पालन किया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 हारून उसके पुत्रों और सब इस्राएलियों से कह कि मैं उन्हें यह आज्ञाएँ देता हूँ:
\v 3 जब तुम बछड़ा, मेम्ना या बकरी की बलि चढ़ाओ तब तुम उसे याजक के पास पवित्र-तम्बू के द्वार पर लाओगे कि वह उसे मेरे लिए बलि चढ़ाए।
\v 4 यदि तुम उसे अन्य किसी स्थान में बलि दो-छावनी में या बाहर कहीं, तो तुम उसका लहू एक अस्वीकार्य स्थान में बहाने के दोषी होगे और यहोवा की प्रजा से बहिष्कृत किए जाओगे।
\s5
\v 5 यहोवा यह आज्ञा इसलिए देता है कि तुम खुले मैदान में बलि न चढ़ाओ; तुम विधि के अनुसार उन्हें बलियाँ चढ़ाओ। तुम उन्हें पवित्र-तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाओगे कि मेलबलि चढ़ाई जाए।
\v 6 बलि-पशु का बलि करके याजक पवित्र-तम्बू के द्वार पर स्थित वेदी पर उसका कुछ लहू छिड़के और यहोवा को प्रसन्न करने वाली सुगंध के लिए उसकी संपूर्ण चर्बी को जलाए।
\s5
\v 7 तुम बकरे की मूरतों के सामने अब से आगे बलि नहीं चढ़ाओगे। यह तुम्हारे लिए सदाकालीन आज्ञा है।
\s5
\v 8 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “हारून और उसके पुत्रों से कह कि इस्राएलियों को निर्देश दें, ‘यदि कोई इस्राएली या उनके मध्य वास करने वाला होम-बलि के लिए याजक के पास पशु लाए या अन्य कोई बलि लाए।
\v 9 और उसे वह पवित्र-तम्बू के प्रवेश द्वार पर प्रस्तुत न करे कि मेरे लिए बलि हो तो वह मेरी प्रजा से बहिष्कृत किया जाए।
\s5
\v 10 इस्राएली हो या परदेशी किसी भी पशु का माँस उसके लहू के साथ खाए तो वह समाज से निकाल दिया जाए।
\v 11 क्योंकि लहू ही जीवन है और मैंने आज्ञा दी है कि लहू वेदी पर चढ़ाया जाए जिससे कि मैं तुम्हारे पापों को क्षमा करूँ।
\s5
\v 12 यही कारण है कि मैं आज्ञा देता हूँ कि न तो इस्राएली और न ही उनके मध्य वास करने वाला कोई भी परदेशी लहू सहित माँस खाए।
\v 13 कोई इस्राएली या उनके मध्य वास करने वाला कोई परदेशी किसी ऐसे पशु या पक्षी का शिकार करे जिसे खाने की अनुमति मैं ने दी है तो उसका लहू भूमि में बहाकर उसे मिट्टी से ढाँक दे।
\s5
\v 14 यह इसलिए कि प्राणी का प्राण लहू में होता है। यही कारण है कि मैं तुम इस्राएलियों को आज्ञा देता हूँ कि यदि कोई किसी पशु का माँस लहू सहित खाए तो वह समाज से निकाल दिया जाए।
\s5
\v 15 यदि कोई इस्राएली या उनके मध्य वास करने वाला परदेशी किसी मरे हुए पशु या वनपशु द्वारा मारे गए पशु का माँस खाए तो वह अपने वस्त्र धोकर स्नान करे और संध्याकाल तक मनुष्यों के स्पर्श से अलग रहे।
\v 16 इस आज्ञा का उल्लंघन करने वाले को मैं निश्चय ही दंड दूँगा।’”
\s5
\c 18
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि मैं यहोवा यह कहता हूँ, ‘मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ।
\v 3 जिन मिस्रियों के मध्य तुम वास कर रहे थे उनका जीवन तुमने देखा है। तुम्हें उनका सा जीवन नहीं रखना है। तुम्हें उन कनानियों का जीवन भी नहीं अपनाना है जिनके देश में मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ। तुम्हें उनके कार्यों से पूर्ण रूप से अलग रहना है।
\s5
\v 4 तुम्हें मेरी सब विधियों और सब आज्ञाओं का पालन करना है क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
\v 5 यदि तुम मेरी सब आज्ञाओं और आदेशों का पालन करोगे तो बहुत दिन जीओगे, यह मुझ यहोवा की प्रतिज्ञा है। मेरी आज्ञाएँ यह भी हैं:
\s5
\v 6 अपने किसी भी निकट परिजन के साथ नहीं सोना। मैं यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\v 7 अपनी माता के साथ सो कर अपने पिता का निरादर मत करना। अपनी माता की मर्यादा को भंग मत करना।
\v 8 न ही अपने पिता की अन्य पत्नियों में से किसी के साथ सोना क्योंकि वह तेरे पिता का अपमान है।
\s5
\v 9 अपनी सगी या सौतेली बहन के साथ मत सोना चाहे वह तेरे परिवार में पोषित की गई हो या बाहर।
\v 10 अपनी नातिन या पोती के साथ भी मत सोना क्योंकि यह तेरा अपना अपमान है।
\v 11 अपनी सौतेली बहन के साथ मत सोना जिसका पिता तेरा पिता भी है क्योंकि वह तेरी बहन ही है।
\s5
\v 12 अपने पिता की बहन के साथ मत सोना क्योंकि वह तेरे पिता के लहू की संबंधिनी है।
\v 13 अपनी माता की बहन के साथ मत सोना क्योंकि वह तेरी माता के लहू की संबंधिनी है।
\v 14 अपने चाचा-ताऊ की पत्नी के साथ भी मत सोना क्योंकि वह चाची-ताई है।
\s5
\v 15 अपनी बहू के साथ भी मत सोना क्योंकि वह तेरे पुत्र की पत्नी है।
\v 16 अपने भाई की पत्नी के साथ मत सोना क्योंकि इससे तेरे भाई का अपमान होता है।
\s5
\v 17 जिस स्त्री के साथ तू पहले कभी सोया है उसकी न तो पुत्री के साथ सोना न ही नातिन-पोती के साथ क्योंकि वे उसके लहू संबंधी हैं। यह दुष्कर्म है।
\v 18 यदि तेरी पत्नी जीवित हो तो न तो उसकी बहन से विवाह करना न ही उसके साथ सोना।
\s5
\v 19 किसी भी स्त्री के साथ उसके मासिक दिनों के समय मत सोना।
\v 20 किसी अन्य पुरुष की स्त्री के साथ सोकर भ्रष्ट मत होना।
\s5
\v 21 अपने शिशुओं को मोलेक के सामने होम-बलि नहीं करना क्योंकि यह तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का अपमान है।
\s5
\v 22 कोई पुरुष किसी पुरुष के साथ नहीं सोए। यह घृणित काम है।
\v 23 कोई स्त्री या पुरुष किसी पशु के साथ न सोएँ क्योंकि यह भ्रष्ट आचरण है।
\s5
\v 24 अपने को ऐसे किसी भी कर्म द्वारा भ्रष्ट नहीं करना क्योंकि ऐसे ही काम करके अन्यजातियाँ मेरी दृष्टि में अयोग्य ठहरी हैं। उन जातियों को मैं उस देश से निकाल दूँगा जिसमें तुम प्रवेश करने जा रहे हो।
\v 25 उन्होंने तो उस भूमि को भी अशुद्ध कर दिया है, इसलिए मैंने उन्हें दंड दिया है और उस देश ने मानों उन्हें उल्टी करके त्याग दिया है।
\s5
\v 26 तुम्हें तो मेरी आज्ञाओं और आदेशों का पालन करना है- तुम इस्राएलियों को और तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों को भी।
\v 27 तुम से पहले इस देश के निवासियों ने यह सब घृणित कार्य किए और उस भूमि को गन्दा किया है।
\v 28 तुम भी उस देश को अशुद्ध करोगे तो मैं तुम्हें भी उनके समान जो तुमसे पहले वहाँ थे, उस देश से बाहर कर दूँगा।
\s5
\v 29 तुम ऐसे घृणित कर्म करने वालों को मेरे लोगों के संपर्क में मत आने देना।
\v 30 मेरी सब आज्ञाओं का पालन करना। और तुमसे पहले वहाँ निवास करने वालों के किसी भी गलत काम का अनुकरण करके स्वयं को अशुद्ध नहीं करना। मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर ही तुम्हें यह आज्ञा देता हूँ।'”
\s5
\c 19
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 इस्राएलियों से कह, ‘तुम्हें पवित्र रहना है क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र है क्योंकि वह चाहता है कि तुम भी उसके जैसे पवित्र हो जाओ।
\v 3 तुम अपने पिता और माता का सम्मान करना। तुम सब्त के दिन को भी मानना। तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ही तुम्हें यह आज्ञा देता है।
\v 4 निकम्मी मूर्तियों की पूजा नहीं करना, न ही अपने लिए धातु को गढ़ कर मूर्तियाँ बनाना। तुम केवल अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना। तुम्हारा परमेश्वर यहोवा यह आज्ञा देता है।
\s5
\v 5 यहोवा यह भी कहता है कि जब तुम उसके साथ मेल करने के लिए बलि चढ़ाओ तो उसे विधि के अनुसार चढ़ाना कि यहोवा उसे स्वीकार करे।
\v 6 उसका माँस उसी दिन खाना, यदि बचे तो अगले दिन खाने की अनुमति तुम्हें है।
\v 7 परन्तु यदि उस का बचा हुआ भाग तुम तीसरे दिन खाओगे तो वह यहोवा की दृष्टि में घृणित है। इस कारण यहोवा कहते हैं कि वह उस बलि को स्वीकार नहीं करेंगे।
\v 8 यदि वह माँस तीसरे दिन खाया जाए तो यहोवा की पवित्रता का अपमान होने के कारण वह दंड का कारण होगा। ऐसा व्यक्ति समाज से निकाल दिया जाए।
\s5
\v 9 जब तुम फसल काटो तो खेत की छोर का और कोनों का अन्न नहीं काटना और जो भूमि पर गिर गया उसे नहीं उठाना।
\v 10 अंगूर की फसल उतारते समय बारी में दूसरी बार नहीं जाना। और भूमि पर गिरे हुए अंगूर भी नहीं उठाना। उन्हें दरिद्रों और तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों के लिए रहने देना। मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 11 चोरी मत करना। झूठ नहीं बोलना। एक-दूसरे को धोखा मत देना।
\v 12 किसी झूठी बात को जानते हुए सिद्ध करके मुझे दंड देने के लिए विवश नहीं करना। झूठे का साथ देकर तुम मेरी अवज्ञा करोगे क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 13 किसी के साथ छल मत करना या किसी की वस्तु मत चुराना। अपने कर्मियों को जो मजदूरी देना निश्चित किया है, वह उसे पूरी की पूरी उसी दिन दे देना, अगले दिन पर नहीं टालना।
\v 14 बहरे को मत कोसो। और अन्धे के मार्ग में ठोकर खाने का कारण मत बनो। मैं यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 15 निष्पक्ष न्याय मत करो। दरिद्र हो या धनवान किसी के साथ पक्षपात मत करो।
\v 16 किसी के बारे में झूठी अफवाह मत उड़ाओ। यदि तुम्हारी गवाही से निर्दोष फांसी से बच सकता है तो न्यायालय में चुप मत रहना। मैं यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 17 किसी से घृणा मत करो परन्तु जिसके लिए आवश्यक हो उसे निश्चय झिड़को जिससे कि तुम निर्दोष ठहरो।
\v 18 बदला मत लो या अधिक समय तक क्रोधित मत रहो। इसकी अपेक्षा मनुष्यों से अपने बराबर प्रेम रखो। मैं तुम्हारा यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 19 मेरी आज्ञाओं का पालन करो। पशुओं में दो जातियों से बच्चे पैदा मत करवाना। एक खेत में दो प्रकार के बीज मत उगाना। दो प्रकार के धागों से बने वस्त्र मत पहनना।
\s5
\v 20 यदि किसी के दासी का विवाह होने वाला है और वह खरीदी नहीं गई परन्तु दासी ही है, उसके साथ कोई सोए तो दोनों को दंड दिया जाए परन्तु क्योंकि वह दासी है इसलिए वह और उसके साथ सोने वाला मृत्यु दंड न पाएँ।
\v 21 परन्तु वह पुरुष पवित्र-तम्बू के द्वार पर एक मेढ़ा बलि करे कि वह अपने पाप के दोष से मुक्त हो।
\v 22 याजक उस मेढ़े को मेरे लिए बलि करे और मैं उस पुरुष का पाप क्षमा कर दूँगा।
\s5
\v 23 जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे देने की मैंने तुमसे प्रतिज्ञा की है तब तीन वर्ष तक तुम अपने लगाए हुए वृक्षों के फल नहीं खाना।
\v 24 चौथे वर्ष उन वृक्षों के सब फल तुम मुझे चढ़ा देना। उसे पवित्र मान कर स्तुति की भेंट चढ़ाना।
\v 25 पाँचवें वर्ष में तुम उनके फल खा सकते हो। यदि तुम ऐसा करो तो तुम्हारे वृक्ष बहुत फल लाएँगे। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 26 ऐसा माँस नहीं खाना जिसमें लहू है। भविष्य जानने के लिए आत्माओं की सहायता नहीं लेना और न ही जादू-टोने करना।
\v 27 अन्य जातियों के समान अपने सिर के बाल नहीं मुंडाना।
\v 28 मरे हुओं के लिए विलाप करते समय अपने शरीर को मत काटना और न ही चिन्ह गुदवाना। तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की यह आज्ञा है।
\s5
\v 29 अपनी पुत्रियों को वेश्यावृत्ति में विवश करके उनका अपमान नहीं करना। अन्यथा तुम्हारा देश वेश्याओं का निवास हो जाएगा और मनुष्यों के कुकर्मों का अड्डा बन जाएगा।
\v 30 मेरे सब्त के दिनों को मानना। और मेरे पवित्र-तम्बू का सम्मान करना क्योंकि मैं यहोवा हूँ।
\s5
\v 31 मरे हुओं की आत्माओं से परामर्श खोजने वालों के संपर्क में मत आना। ऐसा करने वाले मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं हैं। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
\s5
\v 32 वृद्धों के सम्मान में खड़े हो जाना। तुम्हें मेरा आदर करना है क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर, “मैं हूँ।”
\s5
\v 33 तुम्हारे देश में वास करने वाले परदेशियों पर अत्याचार नहीं करना।
\v 34 उनके साथ एक साथी नागरिक का सा व्यवहार करना। उनसे अपने बराबर प्रेम रखना। सदा स्मरण रखो कि तुम भी कभी मिस्र देश में परदेशी थे और मिस्री तुम पर अत्याचार करते थे। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 35 वस्तुओं को नापने के लिए, गिनने के लिए और उनका भार ज्ञात करने के लिए,
\v 36 तुम्हारी लंबाई-चौड़ाई का नाप, तराजू, बाट और नापने के सब साधन स्वीकृत मानक के हों। मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल कर लाया है।
\v 37 मेरी सब आज्ञाओं और विधियों का गंभीरता से पालन करना। मैं यहोवा तुम्हें ये आज्ञाएँ देता हूँ।’”
\s5
\c 20
\p
\v 1 और यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘इस्राएली हो या उनके मध्य वास करने वाला परदेशी, यदि वह अपने शिशु को मोलेक देवता के सम्मुख भेंट चढ़ाए तो वह मार डाला जाए। उसका पत्थरवाह किया जाए।
\s5
\v 3 ऐसे व्यक्ति को मैं त्याग दूँगा कि वह मेरी प्रजा का भाग न हो।
\v 4 यदि उसके नगरवासी मोलेक को चढ़ाई गई उसकी शिशु बलि को अनदेखा करके उसे पत्थरवाह नहीं करते,
\v 5 तो मैं स्वयं उसे और उसके कुल को दंड दूँगा। मेरी आज्ञा है कि उसको समाज से निकाल दिया जाए। इसी प्रकार, वे सब जो मुझसे भक्ति का त्याग कर मोलेक की पूजा करते हैं, मुझ से दंड पाएँगे।
\s5
\v 6 मरे हुओं की आत्माओं से परामर्श खोजने वालों से संपर्क करने वालों या आत्माओं को साध कर भविष्य बताने वालों से संपर्क करने वालों को मैं त्यागता हूँ। उन्हें समाज से निकाल दिया जाए।
\v 7 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। इसलिए मेरे सम्मान के निमित्त पवित्र रहो कि मेरी निज प्रजा ठहरो।
\s5
\v 8 मेरी प्रत्येक आज्ञा का पालन करने में सतर्क रहना। मैं यहोवा हूँ जिसने तुम्हें अन्य जातियों से अलग किया है कि तुम मेरा सम्मान करो।
\v 9 यदि कोई अपने पिता या अपनी माता को कोसता है तो वह मार डाला जाए। वह स्वयं अपनी हत्या का दोषी होगा।
\s5
\v 10 यदि कोई किसी की पत्नी के साथ व्यभिचार करे तो वे स्त्री और पुरुष दोनों मार डाले जाएँ।
\v 11 यदि कोई पुरुष अपने पिता की पत्नियों में से किसी एक के साथ सोता है तो वह अपने पिता का अपमान करता है। वे स्त्री और पुरुष दोनों मार डाले जायें। अपनी हत्या के वे ही दोषी होंगे।
\v 12 यदि कोई पुरुष अपनी बहू के साथ सोता है तो वे दोनों मार डाले जाएँ। उन्होंने भलाई को बुराई में बदला है। दोनों मृत्युदण्ड के योग्य हैं।
\s5
\v 13 यदि दो पुरुष साथ सोते हैं तो उनके इस घृणित काम के लिए वे दोनों मार डाले जायें। अपनी हत्या के वे स्वयं दोषी होंगे।
\v 14 यदि कोई पुरुष किसी स्त्री और उसकी माता दोनों से विवाह करता है तो वह कुकर्म है। तीनों को जला कर मार दिया जाए जिससे कि तुम्हारे मध्य कोई ऐसा कुकर्म न करे।
\s5
\v 15 यदि कोई पुरुष पशु के साथ शारीरिक संबन्ध बनाए तो वह पुरुष एवं पशु दोनों मार डाले जाएँ।
\v 16 इसी प्रकार किसी पशु के साथ शारीरिक संबन्ध बनाने वाली स्त्री और वह पशु दोनों को मार डाला जाए। उनकी हत्या उन्हीं के सिर पर हो।
\s5
\v 17 यदि कोई पुरुष अपने पिता या माता की पुत्री के साथ सोता है तो वह अपमानजनक बात है। वे मेरे समाज से निकाल दिए जाएँ। बहन के साथ सोने के कारण वह पुरुष दोषी है।
\v 18 किसी स्त्री के साथ उसके मासिक दिनों के समय सोने पर उन दोनों स्त्री-पुरुष, ने उनका लहू दिखाया है। वे दोनों मेरे समाज से निकाल दिए जाएँ।
\s5
\v 19 अपने पिता या अपनी माता की बहन के साथ कोई न सोए क्योंकि यह एक निकट संबन्धी का अपमान है। वह पुरुष और वह स्त्री दोनों दंड के योग्य हैं।
\v 20 अपनी चाची-ताई के साथ सोने वाले पुरुष और उस स्त्री दोनों को मैं सन्तान रहित मार कर दंड दूँगा।
\v 21 भाई के जीवन काल में उसकी पत्नी से विवाह करके पुरुष घृणित काम करता है। वे दोनों बिना सन्तान मरेंगे।
\s5
\v 22 मेरी सब आज्ञाओं और विधियों का गंभीरता से पालन करना जिससे कि तुम उस देश से निकाले न जाओ जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ।
\v 23 जिस देश में तुम प्रवेश करोगे उस देश के निवासियों के कार्यों की नकल नहीं करना क्योंकि उनके ऐसे ही घृणित कामों के कारण मैं उनको निकाल दूँगा।
\s5
\v 24 मैंने तुमसे कहा है कि तुम उनके देश पर अधिकार करोगे। मैं तुम्हें वह उपजाऊ देश दूँगा। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जिसने तुम्हें सब जातियों से अलग कर लिया है।
\v 25 तुम्हें मेरे द्वारा स्वीकार्य तथा अस्वीकार्य पशु-पक्षियों में अन्तर करना सीखना है। इसलिए किसी भी अशुद्ध पशु-पक्षी या रेंगने वाले जीव-जन्तु को खाकर अशुद्ध मत होना।
\s5
\v 26 तुम्हारा जीवन आचरण ऐसा रखो कि मेरे सम्मान के निमित्त एक अलग जाति ठहरो क्योंकि मैं यहोवा स्वयं अलग हूँ। और सब कुछ अपने नाम के लिए ही करता हूँ। मैंने तुम्हें सब जातियों में से चुन कर अलग किया है क्योंकि तुम मेरे हो।
\s5
\v 27 तुममें जो भी मरे हुओं की आत्माओं या अन्य किसी आत्मा से संपर्क साधे उसे पथरवाह करके मार डालो। उनकी हत्या उन्हीं के सिर पर हो।’”
\s5
\c 21
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “हारून के पुत्रों से, जो याजक हैं, यह कह,
\v 2 तुम याजकों को शव का स्पर्श करके मेरी सेवा में अयोग्य नहीं होना है। तुम केवल अपने निकट संबन्धियों के शवों का स्पर्श कर सकते हो जैसे माता-पिता, भाई, पुत्र-पुत्री।
\v 3 यदि तुम्हारी बहन अविवाहित है तो उसके शव का तुम स्पर्श कर सकते हो क्योंकि वह तुम्हारे घर में रहती है। और उसके लिए उसका पति नहीं है।
\s5
\v 4 परन्तु अन्य किसी भी परिजन के शव का स्पर्श करके मेरी सेवा में अयोग्य होना तुम्हारे लिए वर्जित है।
\v 5 तुम याजकों को सिर नहीं मुंडाना है और न ही दाढ़ी के बालों को कतरें, न ही किसी संबन्धी की मृत्यु पर शरीर को काट कर विलाप करें।
\v 6 तुम्हारा आचरण ठीक वैसा ही हो जैसा मैं तुम्हारा परमेश्वर अपने याजकों के लिए उचित समझता हूँ। तुम्हें मेरा अपमान नहीं होने देना है। तुम ही तो हो जो मेरे लिए होम-बलि चढ़ाओगे। यह बलि तुम्हारे खाने की वस्तुओं की होगी। इसलिए तुम्हें मेरे नाम के योग्य आचरण रखना है।
\s5
\v 7 याजक होने के नाते तुम न तो वैश्याओं से और न ही विधवाओं से विवाह करोगे क्योंकि याजक मेरे लिए अलग किए जा चुके हैं।
\v 8 तुम्हें स्मरण रखना है कि मैंने तुम्हें अपनी उपासना के निमित्त अलग कर लिया है। यह ऐसा है जैसे कि तुम अपने परमेश्वर अर्थात मेरे लिए भोजन परोस रहे हो। अपने को मेरी सम्पदा समझो क्योंकि मुझ यहोवा ने तुम्हें याजक नियुक्त किया है। और मेरा पाप से कोई संबंध नहीं- मैं पवित्र हूँ।
\v 9 यदि किसी याजक की पुत्री वैश्या हो तो उसे जला कर मार दिया जाए क्योंकि वह अपने पिता का अपमान करवाती है।
\s5
\v 10 प्रधान याजक अपने संबन्धियों में से चुन कर सेवा में नियुक्त किया गया है और उसके सिर पर जैतून के तेल से अभिषेक किया गया है। वह उन वस्त्रों को धारण करता है जो यहोवा के सम्मान में तैयार करके अलग किए गए हैं। उनके सिर के बाल सदैव कंघी किए हुए हों। वह किसी के लिए विलाप करते समय अपने वस्त्र न फाड़ें।
\v 11 जिस स्थान में शव रखा हो उस स्थान में वह प्रवेश न करे। ऐसा करके वह सेवा के अयोग्य न हो। चाहे शव उसकी माता का हो या उसके पिता का।
\v 12 वह पवित्र-तम्बू से निकल कर विलाप करने वालों के साथ न हो क्योंकि ऐसा करके वह सेवा में अयोग्य हो जाएगा और पवित्र-तम्बू को भी अशुद्ध कर देगा। वह पवित्र-तम्बू से कभी भी बाहर न निकले क्योंकि जैतून के तेल के अभिषेक के द्वारा वह अपने परमेश्वर की सेवा के लिए पवित्र-तम्बू में रखा गया है। मैं यहोवा ही हूँ जो तुम्हें यह आज्ञा देता है।
\s5
\v 13 याजक जिस स्त्री से विवाह करें उसका कुंवारी होना आवश्यक है।
\v 14-15 याजक विधवाओं, वैश्याओं या तलाक दी हुई स्त्रियों से विवाह न करें क्योंकि ऐसी स्त्रियों से उत्पन्न तुम्हारे पुत्र तुम्हारी प्रजा के याजक नहीं हो सकते। इसलिए अपने समुदाय की कुंवारियों से ही विवाह करना। मुझ यहोवा ने मेरे सम्मान और मेरे उपासकों के लिए याजकों को अलग किया है।’”
\s5
\v 16 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 17 हारून से कह, ‘तेरे वंशजों में से जिसके भी शरीर में किसी प्रकार की विकलांगता हो वह बलि चढ़ाने के लिए वेदी के निकट न आए क्योंकि बलि मेरे भोजन के समान है।
\s5
\v 18 अंधा, लंगड़ा, कुरूप या विकृत चेहरे वाला कोई भी
\v 19 टुंडा, लंगड़ा
\v 20 कुबड़ा, बौना, खराब आँखों वाला, चर्मरोगी, क्षतिग्रस्त गुप्तांग वाला आदि कोई भी मेरे निकट सेवा के योग्य न रहे।
\v 21 प्रथम प्रधान याजक, हारून का कोई भी वंशज, जिसमें शारीरिक दोष हो, अपने परमेश्वर यहोवा अर्थात मेरे लिए होम-बलि चढ़ाने न आए।
\s5
\v 22 परन्तु याजक मुझे चढ़ाए गए भोजन खा सकते हैं।
\v 23 पवित्र-तम्बू के परदे के निकट या वेदी के निकट आना उनके लिए मना है क्योंकि उनके ऐसा करने से मेरा पवित्र-तम्बू अशुद्ध हो जाएगा। मैं यहोवा हूँ जिसने इन स्थानों को अपने सम्मान के लिए अलग कर लिया है।’”
\v 24 इसलिए मूसा ने हारून और उसके पुत्रों वरन् सब इस्राएलियों को यहोवा की यह आज्ञा सुना दी।
\s5
\c 22
\p
\v 1 और फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “हारून और उसके पुत्रों को समझा दे कि वे इस्राएलियों द्वारा मुझे चढ़ाए गए समर्पित भोजन को कब स्पर्श न करें और न खाएँ। वे न तो मेरा और न ही मेरे नाम का अपमान करें। मैं यहोवा हूँ।
\v 3 उनसे कह दे कि भविष्य में कभी भी वे या उनके वंशज किसी भी कारणवश याजकीय सेवा में अयोग्य हो जाएँ तो वे इस्राएलियों द्वारा मेरे लिए लाई गई समर्पित बलियों के निकट न जाएँ। जो कोई मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन करे वह समाज से निकाल दिया जाए। मैं यहोवा हूँ।
\s5
\v 4 हारून के वंशजों में जिसे चर्मरोग हो या गुप्तांगों में किसी प्रकार का रिसाव हो तो वह स्वस्थ होने तक कोई भी भेंट की पवित्र वस्तु न खाए। यदि वह शव के संबंध में आई हुई किसी वस्तु का स्पर्श करे या जिस का वीर्य स्खलित हुआ उसका स्पर्श करे, तो वह याजकीय सेवा के योग्य नहीं रहेगा।
\v 5 या भूमि पर रेंगने वाले किसी जन्तु के स्पर्श में आया हो या किसी ऐसे व्यक्ति के स्पर्श में आया हो कि सेवा के योग्य न रहे।
\v 6 किसी अशुद्ध के स्पर्श में आने के कारण याजक संध्याकाल तक अशुद्ध रहेगा। वह जब तक पानी से स्नान न करे, किसी भी पवित्र वस्तु को न खाए।
\s5
\v 7 सूर्यास्त के बाद वह पवित्र भेंटों में से खा सकता है क्योंकि वे वस्तुयें उसके भोजन की हैं।
\v 8 यदि कोई पशु प्राकृतिक रूप से मरे या वनपशु द्वारा मारा जाए उसे वह कदापि न खाए। यदि वह ऐसा करे तो वह मेरी सेवा के योग्य नहीं है। मैं यहोवा ये आज्ञाएँ देता हूँ।
\v 9 याजक मेरी आज्ञाओं का पालन करें। उनका तिरस्कार करें तो वे दोषी होकर मर जाएँगे। मैं यहोवा हूँ जिसने उन्हें अपने सम्मान के निमित्त अलग किया है।
\s5
\v 10 जो याजकों के परिवार का सदस्य नहीं है उसे पवित्र भेंटों में से खाने की अनुमति नहीं है। याजक का अतिथि या वैतनिक सेवक पवित्र वस्तुओं को खाने न पाए।
\v 11 यदि याजक ने किसी दास को मोल ले लिया है या दास उसके कुटुम्ब में जन्मा है तो वह उन्हें खा सकता है।
\s5
\v 12 यदि याजक की पुत्री का विवाह किसी ऐसे पुरुष से हुआ है जो याजक नहीं है तो उसे भी पवित्र वस्तुओं को खाने की अनुमति नहीं है- अर्थात् यहोवा को चढ़ाई गई भेंट या बलि।
\v 13 यदि याजक की स्त्री बिना सन्तान विधवा हो गई या उसे तलाक दे दिया गया है और वह अपने पिता के घर में अविवाहित स्थिति जैसी रहती है तो वह उस भोजन को खा सकती है जो उसका पिता खाता है। अन्य कोई भी उन वस्तुओं को खाने का अधिकार नहीं रखता है।
\s5
\v 14 यदि कोई भूल से पवित्र वस्तु खा ले तो वह याजक को उसका मूल्य चुकाए और उसके अतिरिक्त पाँचवा भाग और दे।
\v 15 जब इस्राएलियों द्वारा लाई गई पवित्र भेंटें याजक को सौंपते हैं कि वह उन्हें मेरे लिए चढ़ाए तब वे उन्हें मेरे लिए विशेष न समझने की भूल न करें।
\v 16 इस्राएली याजक के अतिरिक्त अन्य किसी को भी उन भेंटों में से न खाने दें। यदि वे ऐसा न करें तो वे दोषी होंगे। मैं यहोवा हूँ जिसने इस्राएलियों को अन्य जातियों से अलग किया है और अपने सम्मान के लिए उन्हें पवित्र किया है।”
\s5
\v 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 18 “हारून और उसके पुत्रों से वरन् सब इस्राएलियों से कह दे कि यह मेरी आज्ञा है, ‘यदि तुम में से कोई भी या परदेशी जो तुम्हारे मध्य वास करता है, मेरे लिए होम-बलि लाता है, चाहे वह मन्नत मानने की हो या स्वेच्छा बलि हो,
\v 19 तो वह तुम्हारे गाय, बैलों, भेड़ों, बकरियों में से निर्दोष पशु ही हों कि मैं उन्हें ग्रहण करूँ।
\s5
\v 20 ऐसे पशु कभी मत लाना जिनमें दोष हों क्योंकि उन्हें मैं कभी ग्रहण नहीं करूँगा।
\v 21 इसी प्रकार जब कोई अपने गाय-बैलों, भेड़-बकरियों में से मेल-बलि के लिए पशु लाता है कि मन्नत पूरी करे या स्वेच्छा बलि चढ़ाए तो उन्हें मेरे लिए ग्रहणयोग्य होने के लिए निर्दोष होना है।
\s5
\v 22 अंधा, घायल, लंगड़ा या जिसमें रसौली हो या खुजली हो उसे बलि मत करना।
\v 23 स्वेच्छा बलि के लिए तुम घायल या अविकसित बछड़ा या भेड़ चढ़ा तो सकते हो परन्तु तुम्हारी मन्नत कभी नहीं मानी जायेगी।
\s5
\v 24 तुम खस्सी पशु अर्थात् अंडकोश क्षतिग्रस्त पशु बलि नहीं करना, चाहे तुम देश में कहीं भी वास करते हो।
\v 25 परदेशियों से ऐसे पशु मोल भी नहीं लेना। मेरे भोजन के लिए ऐसे पशु मत चढ़ाना क्योंकि मैं विकृत या दोषपूर्ण पशु को ग्रहण नहीं करूँगा।’”
\s5
\v 26 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 27 “बछड़ा या मेम्ना या बकरी का बच्चा जन्म के सात दिन बाद तक माँ के पास रहे इसके बाद वह मेरे लिए होम-बलि के लिए लाया जा सकता है।
\s5
\v 28 गाय या भेड़ को उसके नवजात बच्चे के साथ एक ही दिन बलि मत चढ़ाना।
\v 29 मेरे उपकार के आभार में जब तुम धन्यवाद की बलि चढ़ाओ तो उसमें तुम्हारी विधि मेरी आज्ञा के अनुसार हो।
\v 30 उसका माँस उसी दिन खा लेना। उसे अगले दिन सुबह के लिए भी मत रखना। मैं यहोवा ही यह आज्ञा देता हूँ।
\s5
\v 31 मेरी सब आज्ञाओं का पालन करना। मैं यहोवा ही इन आज्ञाओं को देने वाला हूँ।
\v 32 मेरी अवज्ञां करके मेरा अपमान नहीं करना। तुम इस्राएलियों को स्वीकार करना है कि मैं यहोवा पवित्र हूँ और मैं ही तुम्हें पवित्र करता हूँ।
\v 33 मैं ही तुम्हें मिस्र देश से निकाल कर लाया हूँ कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँ।
\s5
\c 23
\p
\v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों को यहोवा के उत्सवों के बारे में भी समझा दे- तुम सब को प्रतिवर्ष निश्चित समय उत्सव के लिए पवित्र सभाओं में मेरी उपासना के लिए एकत्र होना है।
\s5
\v 3 तुम सप्ताह में छः दिन काम करना परन्तु सातवें दिन तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे। उस दिन तुम केवल विश्राम करोगे। वह एक दिन पवित्र है जिसमें तुम मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे। तुम जहाँ भी रहो, उस दिन तुम्हें विश्राम करना है।
\s5
\v 4 मैं तुम्हारे लिए जो उत्सव दिवस निश्चित करता हूँ वे ये हैं, जब तुम्हें मेरी उपासना के लिए एकत्र होना है।
\v 5 पहला उत्सव फसह का है। यह उत्सव वसन्त ऋतु में निश्चित दिवस के संध्या समय आरंभ होकर अगले दिन समाप्त होगा।
\v 6 अगले दिन अखमीरी रोटी का उत्सव आरंभ होगा जो सात दिन तक रहेगा। इन सातों दिन तुम खमीर रहित रोटी खाओगे।
\s5
\v 7 इस उत्सव के पहले दिन तुम सब अपने दैनिक कार्यों से अवकाश लेकर मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे।
\v 8 इन सातों दिनों में तुम प्रतिदिन अनेक पशुओं को होम-बलि करोगे। सातवें दिन तुम सब फिर से सब कामों को छोड़कर मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे।”
\s5
\v 9 यहोवा ने मूसा को अन्य उत्सवों के बारे में भी कहा कि वह इस्राएलियों को निर्देश दे। यहोवा ने कहा,
\v 10 “जब तुम उस देश में पहुँच जाओ जो मैं तुम्हें देता हूँ और जब तुम वहाँ अपनी पहली फसल लगाओ तब कटनी के पहले अन्न का एक भाग याजक के पास ले आना।
\v 11 याजक उसे आने वाले सब्त के अगले दिन ऊपर उठा कर मुझे समर्पित करेगा कि मैं उसे ग्रहण करूँ।
\s5
\v 12 उसी दिन तुम मेरे लिए एक वर्ष का नर मेम्ना बलि करोगे जो निर्दोष हो। उसे तुम वेदी पर पूरा जला दोगे।
\v 13 इसके साथ तुम अन्न-बलि भी होम करोगे जिसमें 4.5 किलो मैदा, जैतून में गूंधा हुआ आटा। जब इनके जलने की सुगंध मुझ तक पहुँचेगी तब मैं प्रसन्न हो जाऊँगा। इसके साथ एक लीटर दाखमधु का अर्घ करना।
\v 14 उस दिन जब तक तुम मुझे, अपने परमेश्वर को यह सब भेंट न चढ़ा चुको तब तक न तो रोटी खाना और न ही सिंका हुआ या बिना सिंका अन्न खाना। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ भी रहें, मेरी इन आज्ञाओं का पालन करें।
\s5
\v 15 याजक जब गेहूँ के उस पूले को चढ़ा दे तब सात सप्ताह और एक दिन गिनना।
\v 16 तब उस सातवें सब्त के अगले दिन प्रत्येक परिवार मेरे लिए नई फसल के अन्न से भेंट लेकर आए।
\s5
\v 17 अपने-अपने घर से याजक के पास दो रोटियाँ लेकर भी आना। वह उसे ऊपर उठा कर मेरे लिए भेंट अर्पित करेगा। ये रोटियाँ 4.5 किलोग्राम आटे से बनाई जाएँ जिनमें खमीर डला हो। वे रोटियाँ तुम्हारे प्रतिवर्ष के नए आटे की होंगी।
\v 18 इन रोटियों के साथ तुम मेरे लिए एक वर्षीय सात निर्दोष मेम्ने, एक बछड़ा और दो मेढ़े चढ़ाओगे। वे सब वेदी पर पूरे जलाए जाएँ। यह सब भेंटों, अन्न-बलि तथा दाखमधु का अर्घ जलने पर मेरे लिए अच्छे सुगंध होंगे।
\s5
\v 19 तब एक बकरा तुम्हारे पापों के लिए बलि किया जाए और दो एक वर्ष के दो नर मेम्ने मेरे लिए प्रतिज्ञा की मेल-बलि किए जाएँ।
\v 20 याजक उन्हें ऊँचा उठा कर मेरे निमित्त समर्पित करे। तुम्हारी फसल की पहली कटनी के आटे की रोटियाँ भी चढ़ाना। ये भेंटें मेरे लिए विशिष्ट हैं और याजक की होंगी।
\v 21 उस दिन तुम अपने सब कामों को छोड़कर मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ भी वास करें मेरी इन सब आज्ञाओं का पालन करें।
\s5
\v 22 जब तुम अपनी फसल काटो तब खेत के छोर की फसल नहीं काटना और फसल काटने वालों से जो बालें भूमि पर गिरें उन्हें मत उठाना। उन्हें दरिद्रों एवं तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों के लिए रहने दो। स्मरण रखो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें ये आज्ञाएँ दे रहा हूँ।”
\s5
\v 23 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 24 “इस्राएलियों से कह, ‘प्रतिवर्ष सातवें महीने के पहले दिन तुम सब त्यौहार मनाना और उस दिन तुम पूर्ण विश्राम करोगे। उस दिन तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे। जब याजक तुरहियाँ फूँके तब तुम सब मेरी उपासना के लिए पवित्र सभा में उपस्थित होना।
\v 25 उस दिन कोई भी दैनिक कार्य नहीं करे। इसकी अपेक्षा तुम मेरे लिए होम-बलि चढ़ाना।”
\s5
\v 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 27 “तुम्हें पाप क्षमा का दिन भी मनाना है, उस दिन तुम मुझ से अपने पापों की क्षमा माँगोगे। यह दिन याजकों द्वारा तुरहियाँ फूँकने के दिन के बाद नौवां दिन होगा। उस दिन तुम कुछ नहीं खाओगे। तुम सब मेरी उपासना के लिए एकत्र होगे और मेरे लिए होम-बलि चढ़ाओगे।
\s5
\v 28 उस दिन तुम कोई काम नहीं करोगे क्योंकि वह प्रायश्चित दिवस होगा जब याजक तुम्हारे पापों के प्रायश्चित के लिए मुझे बलि चढ़ाएँगे।
\v 29 उस दिन यदि कोई उपवास न रखे तो वह समाज से निकाल दिया जाए।
\s5
\v 30 उस दिन जो मनुष्य काम करेगा उससे मैं छुटकारा पा लूँगा।
\v 31 तुम किसी भी प्रकार का काम नहीं करोगे। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ कहीं भी हों मेरी इन आज्ञाओं का पालन करोगे।
\v 32 वह दिन सब के लिए पूर्ण विश्राम का दिन होगा। उस दिन तुम उपवास रख कर अपने पापों के लिए दुख प्रकट करोगे। उपवास और विश्राम का वह दिन तुम्हारे प्रायश्चित के दिन से एक दिन पूर्व संध्याकाल से आरंभ होगा। और अगले दिन संध्याकाल समाप्त होगा।”
\s5
\v 33 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 34 “इस्राएलियों से कह, कि उन्हें प्रतिवर्ष झोपड़ियों का त्यौहार मनाना अनिवार्य है। यह त्यौहार प्रायश्चित दिवस के पाँच दिन बाद आरंभ होगा और सात दिन तक रहेगा।
\s5
\v 35 उस त्यौहार के पहले दिन सब इस्राएली हर एक काम छोड़कर मेरी उपासना के लिए एकत्र होंगे।
\v 36 इस त्यौहार के सात दिनों में से प्रत्येक दिन वे मेरे लिए पशुओं की होम-बलि चढ़ाएँगे। आठवें दिन वे पवित्र सभा में उपस्थिति होंगे और मेरी उपासना करेंगे और मेरे लिए एक और पशु होम-बलि करेंगे। यह सभा भी पवित्र होगी और वे उस दिन किसी प्रकार का काम नहीं करेंगे।
\s5
\v 37 सारांश में ये सब मेरे द्वारा नियुक्त त्यौहार हैं। इन त्यौहारों में सब एकत्र होकर मेरे लिए विभिन्न बलियाँ चढ़ा कर उत्सव मनाएँ। ये बलियाँ होंगीः होम-बलि, अन्न-बलि, मेल-बलि और अर्घ चढ़ाना। हर एक बलि मेरे द्वारा निर्धारित किए गए दिन पर लाई जाए।
\v 38 इन त्यौहारों का मनाया जाना सब्त दिनों के अतिरिक्त हो। ये सब बलियाँ स्वेच्छाबलियों के अतिरिक्त होंगी और मन्नतों की बलियों से भी अलग होंगी।
\s5
\v 39 अब झोपड़ियों के त्यौहार के विषय है कि यह त्यौहार कटनी समाप्त होने के बाद मनाया जाए। इस त्यौहार के पहले दिन और अंतिम दिन तुम पूर्ण रूप से विश्राम करोगे।
\s5
\v 40 परन्तु पहले दिन तुम्हें अनुमति है कि अपने वृक्षों के सब से अच्छे फल तोड़ो। तुम खजूर के वृक्षों की डालियाँ, अन्य वृक्षों की पत्तों वाली डालियाँ और सोतों के निकट उगने वाले वृक्षों की टहनियाँ जिनसे टोकरियाँ बनाई जाती हैं आदि सब लेकर एक सप्ताह तक रहने के लिए झोपड़ियाँ बनाना और सातों दिन मेरी उपस्थिति में आनंद मनाना।
\v 41 तुम प्रति वर्ष सात दिन तक यह त्यौहार मनाओगे। तुम और तुम्हारे वंशज जहाँ भी रहें, मेरी इन आज्ञाओं का पालन करें। इस त्यौहार को तुम सातवें महीने में मनाना।
\s5
\v 42 इस त्यौहार के सातों दिन तुम सब जो इस्राएली हों झोपड़ियों में रहोगे।
\v 43 यह त्यौहार तुम्हारे वंशजों को स्मरण कराएगा कि उनके वंशज अनेक वर्ष झोपड़ियों में रहे जब मैं उन्हें मिस्र से मुक्ति दिलाकर लाया था। तुम कभी मत भूलना कि मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर ही तुम्हें यह आज्ञा देता हूँ।”
\v 44 इसलिए मूसा ने इस्राएलियों को उन सब त्यौहारों से संबंधित निर्देश दे दिए जिन्हें यहोवा चाहता था कि वे प्रतिवर्ष मनाएँ।
\s5
\c 24
\p
\v 1 और फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 इस्राएलियों को आज्ञा दे कि पवित्र-तम्बू में दीपों को लगातार जलाए रखने के लिए वे जैतून के अति शुद्ध तेल की भरपूरी से न चूकें।
\s5
\v 3 परम पवित्र स्थान के परदे के बाहर मेरी उपस्थिति में दीपों को पूरी रात जलते रखने के लिए हारून उनकी देखरेख करे। इस आज्ञा का पालन सदैव किया जाए।
\v 4 मेरी उपस्थिति में जलने वाले दीपों की देखरेख करना याजक का एक सदा का उत्तरदायित्व है।
\s5
\v 5 यह भी कि प्रति सप्ताह 4.5 किलोग्राम मैदा प्रति रोटी के अनुसार बारह रोटियाँ पकाई जाएँ।
\v 6 ये रोटियाँ छः का चट्ठा लगा कर सोने की मेज़ पर मेरे सम्मुख रखी जाएँ।
\s5
\v 7 उस सोने की मेज़ पर प्रत्येक चट्ठे पर शुद्ध धूप जलाना जो रोटियों के स्थान पर मेरे लिए भेंट होगी।
\v 8 प्रति सब्त दिवस याजक मेज़ पर ताजी रोटियाँ रखे कि मैंने इस्राएलियों के साथ जो वाचा बाँधी है उसके कभी न समाप्त होने का प्रतीक हो।
\v 9 जब ये रोटियाँ मेज़ पर से हटाई जाएँ तो वे हारून और उसके पुत्रों की होंगी और वे उन रोटियों को इस उद्देश्य निमित्त निश्चित स्थान पर ही खाएँ क्योंकि वे मेरी होम-बलि का ही एक भाग है।
\s5
\v 10-11 उस दिन ऐसा हुआ कि शेलोमइथ नामक एक स्त्री जो दानवंशी इब्री की पुत्री थी, उसका पुत्र एक मिस्री से उत्पन्न हुआ था। यह युवक एक इस्राएली युवक के साथ छावनी में लड़ने लगा। लड़ते-लड़ते इस युवक ने यहोवा को धिक्कारा।
\v 12 इस्राएलियों ने उसे पकड़ कर बन्द कर दिया कि उसके बारे में यहोवा से आदेश पाएँ।
\s5
\v 13 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 14 “मुझे धिक्कारने वाले इस युवक को बांध कर छावनी के बाहर ले जाओ और जितनों ने उसके बुरे शब्द सुने हैं वे उसके सिर पर हाथ रखें कि उसका दोषी होना प्रकट हो और उसे पत्थरवाह करके मार दिया जाए।
\s5
\v 15 इस्राएलियों से कह, ‘यदि कोई मुझे धिक्कारे तो परिणाम वही भोगे।
\v 16 इसलिए मुझे धिक्कारने वाले को मृत्यु दंड दिया जाए। वह चाहे इस्राएली हो या परदेशी, उसे पत्थरवाह किया जाए।
\s5
\v 17 यह भी कि यदि कोई किसी की हत्या करे तो उसे मार डाला जाए।
\v 18 यदि कोई किसी के पशु को मार डाले तो वह उसके स्थान में उस मरे हुए पशु के स्वामी को दूसरा जीवित पशु दे।
\s5
\v 19 यदि कोई किसी को घायल करे तो जो मनुष्य घायल किया गया वह घायल करने वाले को वैसे ही घायल कर दे।
\v 20 यदि कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य की हड्डी तोड़ दे तो वह भी उस मनुष्य की हड्डी तोड़ दे। यदि कोई मनुष्य किसी की आँख फोड़ दे तो वह उसकी भी आँख फोड़ दे। यदि कोई मनुष्य किसी का दांत तोड़ दे तो वह भी उसका दांत तोड़ दे। जैसे को तैसा ही प्रतिफल दिया जाए।
\v 21 पशु की हत्या के बदले जीवित पशु दिया जाए। परन्तु मनुष्य के हत्यारे को मृत्यु दंड दिया जाए।
\s5
\v 22 इस्राएली हो या इस्राएलियों के मध्य वास करने वाले परदेशी सब के लिए एक ही नियम है। मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर यह आज्ञा देता हूँ।
\v 23 तब मूसा ने इस्राएलियों को निर्देश दे दिया कि यहोवा को धिक्कारने वाले के साथ क्या किया जाए। इसलिए वे उस युवक को शिविर के बाहर ले गए और पत्थरवाह कर दिया। उन्होंने वही किया जो यहोवा ने मूसा के माध्यम से उन्हें आदेश दिया था।
\s5
\c 25
\p
\v 1 सीनै पर्वत के ऊपर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि यहोवा उन्हें ये आज्ञाएँ देता हैः जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो यहोवा तुम्हें देने जा रहा है, तब तुम प्रत्येक सातवें वर्ष भूमि को विश्राम दोगे अर्थात उस वर्ष तुम फसल नहीं उगाओगे।
\s5
\v 3 छः वर्ष तुम अपने खेतों में फसल उगाओगे, अपनी दाख उतारोगे, फसल काटोगे।
\v 4 परन्तु सातवें वर्ष अपनी भूमि को विश्राम देकर यहोवा का मान रखोगे। उस वर्ष तुम न तो खेती करोगे और न ही दाख उतारोगे।
\s5
\v 5 सातवें वर्ष तुम्हारे खेतों में जो अन्न उगे उसे काटने के लिए मजदूर नहीं लगाना और न ही दाख के फल तोड़ना। भूमि को संपूर्ण वर्ष विश्राम देना।
\v 6 उस वर्ष जो कुछ भी अपने आप उगे वह तुम खा सकते हो। तुम, तुम्हारे दास-दासी, तुम्हारे वैतनिक कर्मी और तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशी उसे खा सकते हैं।
\v 7 तुम्हारे पशु और जंगली जानवर उस वर्ष उस को खा सकते हैं।
\s5
\v 8-9 उनन्चास वर्ष की समाप्ति पर तुम जयन्ति का उत्सव मनाओगे। अगले वर्ष के सातवें महीने के दसवें दिन संपूर्ण देश में तुरहियाँ फूंककर प्रायश्चित दिवस की घोषणा की जाए।
\s5
\v 10 उस दिन को यहोवा के सम्मान के निमित्त अलग करना। और सर्वत्र, सब लोगों में घोषणा करना कि इस वर्ष भूमि उसके स्वामियों को लौटाए जाने का समय है। यहोवा की प्रजा के जो दास हैं वे भी इस समय स्वतंत्र किए जाएँ।
\s5
\v 11 यह पचासवाँ वर्ष जो जयन्ति वर्ष होगा, उसमें तुम आनंद मनाओगे और यहोवा की आज्ञाओं का पालन करोगे। उस वर्ष न तो खेती की जाए और न ही बागवानी की जाए। न ही फसल और दाख जो अपने आप उगे, उसे एकत्र किया जाए।
\v 12 वह आनंद मनाने का वर्ष होगा- जयन्ति वर्ष। वह विशिष्ट समय माना जाए और जो कुछ अपने आप उगे वही खाना।
\s5
\v 13 जयन्ति वर्ष अर्थात महोत्सव के वर्ष में संपदा उसके अधिकृत स्वामी को लौटा दी जाए।
\v 14 यदि किसी ने किसी इस्राएली को भूमि बेची है या भूमि खरीदी है तो उसका निष्पक्ष लेनदेन किया जाए।
\s5
\v 15 यदि तुम भूमि खरीदते हो उसका मूल्य अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्षों पर निर्भर करेगा। यदि कोई तुम्हें अपनी भूमि बेचता है तो उसका मूल्य आगामी जयन्ति वर्ष तक जितने भी वर्ष शेष हैं उसके अनुसार निश्चित किया जाएगा। क्योंकि उस वर्ष भूमि उसके स्वामी को लौटा दी जाएगी।
\v 16 यदि जयन्ति वर्ष बहुत दूर है तो भूमि का मूल्य अधिक होगा परन्तु यदि जयन्ति वर्ष निकट है तो उसका मूल्य गिर जाएगा। कहने का अर्थ है कि भूमि का मूल्य जयन्ति वर्ष तक प्रतिवर्ष उगने वाली फसल के अनुसार निश्चित किया जाएगा।
\v 17 एक-दूसरे के साथ छल मत करो। इसकी अपेक्षा यहोवा का सम्मान करो। हमारी आराधना का यहोवा ही हमें यह आज्ञाएँ देते हैं।
\s5
\v 18 मेरी सब आज्ञाओं का पालन करने में मत चूकना। ऐसा करके तुम अपने देश में सुरक्षित रहोगे।
\v 19 उस देश में तुम्हारी खेती फूलेगी-फलेगी। और तुम्हारे पास भोजन वस्तुओं की बहुतायत होगी।
\s5
\v 20 अब तुम पूछोगे, ‘यदि हम सातवें वर्ष खेती न करें तो क्या खाएँगे?
\v 21 यहोवा कहते हैं कि वह छठवें वर्ष इतनी उपज देंगे कि वह तीन वर्ष के लिए पर्याप्त होगी।
\v 22 तुम आठवें वर्ष में बीज डालोगे और फसल आने की प्रतीक्षा करोगे और नौवें वर्ष लवनी करोगे फिर भी छठवें वर्ष की उपज इतनी अधिक होगी कि तुम्हारे खाने के लिए कमी न हो।
\s5
\v 23 तुम किसी को भी अपनी भूमि स्थाई रूप से नहीं बेचोगे। क्योंकि वह तुम्हारी नहीं है। वह वास्तव में मेरी है। तुम उसके कुछ समय के स्वामी होकर मेरे लिए खेती कर रहे हो।
\v 24 संपूर्ण देश में यह बात स्मरण रखी जाए कि यदि कोई किसी को अपनी भूमि बेचता है तो उसे किसी भी समय उसे फिर से खरीद लेने का अधिकार है।
\v 25 इसलिए यदि कोई इस्राएली अपनी गरीबी के कारण अपनी भूमि का एक भाग बेच दे तो उसका निकट संबंधी आकर उसके स्थान पर उसका मूल्य चुकाकर उसे फिर से प्राप्त कर ले।
\s5
\v 26 परन्तु यदि उसके पास ऐसा कोई संबंधी नहीं है तो जब वह आर्थिक रूप से संपन्न हो जाए कि उसके पास उस भूमि को फिर से लेने के लिए पैसों का प्रबंध है तो वह उसे खरीद सकता है।
\v 27 तो वह गिने कि अगले जयन्ति वर्ष तक कितने वर्ष हैं तो वह उतने वर्षों की खेती की आय के अनुसार उस खरीददार को पैसा देकर अपनी भूमि फिर से प्राप्त कर ले।
\v 28 परन्तु यदि उस भूमि के स्वामी के पास इतना पैसा नहीं है कि अपनी भूमि को फिर से खरीद सके तो वह भूमि खरीददार के अधीन जयन्ति वर्ष तक रहेगी। उस वर्ष वह भूमि फिर से उसके अपने स्वामी की हो जाएगी और वह उस पर खेती कर सकेगा।
\s5
\v 29 अब यदि कोई मनुष्य अपने शहरी मकान को जो नगर की चारदीवारी से घिरा है, बेच देता है तो वह अगले वर्ष खरीददार से उसे फिर खरीद सकता है।
\v 30 यदि वह उस वर्ष अपना मकान फिर से प्राप्त करने में अयोग्य है तो वह मकान खरीददार और उसके वंशजों की सदा की संपदा हो जाएगी। उसे जयन्ति वर्ष में उस मकान को उसके स्वामी को लौटाने की आवश्यकता नहीं है।
\s5
\v 31 परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों के मकान जो नगर की चारदीवारी में नहीं हैं वे खेतों के तुल्य ही समझे जाएँ। इसलिए ऐसे मकान बेचे जाएँ तो वह किसी भी समय उनके मालिकों द्वारा फिर से मोल लिए जा सकते हैं। यदि जयन्ति वर्ष तक ऐसा कोई मकान उसके स्वामी द्वारा फिर मोल नहीं लिया गया तो जयन्ति वर्ष में वह उसका हो जाएगा।
\v 32 लेवी के वंशजों की बात अलग है। यदि वे अपने शहरी मकान बेच देते हैं तो उन्हें अधिकार है कि वे कभी भी उन्हें फिर से मोल देकर ले लें।
\s5
\v 33 यदि वे अपने मकानों को जयन्ति वर्ष तक फिर से खरीद पाने में सक्षम नहीं तो जयन्ति वर्ष में वे स्वतः ही उनके हो जाएँगे क्योंकि उनके मकान शहरों में उन स्थानों में हैं जो इस्राएलियों ने उन्हें दिए हैं, उनके अपने नगरों में।
\v 34 परन्तु उनके नगरों के निकट जो चारागाहें हैं वे बेची न जायें। वे उनके स्वामियों की सदा की संपदा है।
\s5
\v 35 यदि तुम्हारा कोई इस्राएली भाई गरीब है और वह अपनी आवश्यकता की वस्तुयें नहीं खरीद सकता तो तुम उसकी वैसे ही सहायता करोगे जैसे तुम्हारे मध्य वास करने वाले किसी अस्थायी परदेशी की करते हो।
\v 36 यदि तुम उसे पैसा उधार देते हो तो ब्याज नहीं लेना। अपने कर्मों द्वारा तुम्हें प्रकट करना है कि तुम यहोवा का आदर करते हो। तुम्हें उसकी सहायता करना है कि वह तुम्हारे मध्य वास कर पाए।
\v 37 यदि तुमने उसे पैसा उधार दिया तो ब्याज नहीं लेना और यदि भोजन वस्तुएँ बेचते हो तो उतना ही पैसा लेना जितना तुमने उनकी खरीददारी में लगाया है। उससे लाभ कमाने का प्रयास नहीं करना।
\v 38 मत भूलो कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ही है जो तुम्हें ये आज्ञाएँ देता है। वही तो तुम्हें मिस्र देश से निकाल कर लाया है और यह देश तुम्हें दिया है।
\s5
\v 39 यदि तुम्हारा इस्राएली भाई गरीबी के कारण अपने को तुम्हारे हाथों में बेच देता है तो उसके साथ दास का सा व्यवहार नहीं करना।
\v 40 उसके साथ मजदूरों का सा ही व्यवहार करना या तुम्हारे देश में अस्थायी निवासी का सा व्यवहार करना। वह तुम्हारे पास केवल जयन्ति वर्ष तक ही काम करेगा।
\v 41 उस वर्ष तुम उसे स्वतंत्र कर दोगे। और वह अपने परिवार में, अपने पूर्वजों की भूमि में लौट जाएगा।
\s5
\v 42 हम सब इस्राएली एक प्रकार से यहोवा के दास हैं जिन्हें उसने मिस्र के दासत्व से मुक्ति दिलाई है। इस कारण तुम एक-दूसरे को खरीद कर दास नहीं बनाना।
\v 43 खरीदे हुए इस्राएली के साथ निर्दयता का व्यवहार नहीं करना। इसकी अपेक्षा अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करो।
\v 44 यदि तुम दास रखना चाहते हो तो अपने आसपास की जातियों में से खरीद सकते हो।
\s5
\v 45 तुम्हारे मध्य वास करने वाले परदेशियों में से भी तुम दास खरीद सकते हो। तुम्हारे देश में जन्मे परदेशियों के कुलों में से भी तुम दास बना सकते हो।
\v 46 वे आजीवन तुम्हारे दास रहें और तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी संतान उनके स्वामी हो। परन्तु अपने इस्राएली भाइयों के साथ पाशविक व्यवहार नहीं करना।
\s5
\v 47 यदि तुम्हारे मध्य वास करने वाला कोई परदेशी धनवान हो जाता है और एक गरीब इस्राएली स्वयं को दास होने के लिए उसके हाथ या उसके कुल में बेच देता है,
\v 48 तो कोई उसका मोल लौटा कर उसे छुड़ा ले या उसका संबन्धी भी उसका मोल देकर उसे छुड़ा सकता है।
\s5
\v 49 उसका चाचा या ताऊ या चाचा-ताऊ का पुत्र या उसके कुल से अन्य कोई संबन्धी उसको मोल देकर छुड़ा ले।
\v 50 यदि वह स्वयं अपनी मुक्ति का मोल देना चाहे तो वह अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्षों की गणना करे और उतने वर्षों के वेतन को जोड़ कर अपने स्वामी को उतना धन देकर मुक्ति पाए।
\s5
\v 51 यदि जयन्ति वर्ष तक बहुत लम्बा समय है तो वह अपनी मुक्ति के लिए अधिक मूल्य चुकाए।
\v 52 यदि जयन्ति वर्ष तक कुछ ही वर्ष हैं तो उसका मुक्ति धन उसी लेखे के अनुसार कम होगा।
\s5
\v 53 जिस समय वह अपने खरीददार की सेवा कर रहा है उस संपूर्ण समय उसको खरीदने वाला उसके साथ मजदूर का सा व्यवहार करे। तुम सब को यह देखना है कि उसका स्वामी उसके साथ निर्दयता का व्यवहार न करे।
\v 54 यदि तुम्हारा इस्राएली भाई जिसने अपने को किसी धनवान के पास दास होने के लिए बेच दिया है, अपनी स्वतंत्रता को किसी भी प्रकार मोल नहीं ले सकता तो वह और उसकी संतान जयन्ति वर्ष में मुक्त कर दिए जाएँ।
\v 55 यह एक प्रकार से ऐसा है कि तुम इस्राएली मेरे दास हो जिन्हें मैं, तुम्हारा परमेश्वर यहोवा, मिस्र के दासत्व से छुड़ा कर ले आया हूँ।
\s5
\c 26
\p
\v 1 सीनै पर्वत पर यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, “तुम मूर्तियाँ नहीं बनाना या गढ़ी हुई मूरतों या पत्थरों को पवित्र मान कर परमेश्वर के समान उनकी उपासना नहीं करना। अपनी भूमि में तराशे हुए पत्थर को रख कर दण्डवत् नहीं करना। तुम्हें केवल मेरी, अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना है।
\v 2 सब्त के दिनों का सम्मान करना और मेरे पवित्र-तम्बू का मान रखना क्योंकि मैं, यहोवा वहाँ वास करता हूँ।
\s5
\v 3 यदि तुम सच्चे मन से मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे
\v 4 तो मैं उचित समय तुम्हारे लिए वर्षा कराऊँगा जिससे तुम्हारी खेती फले और तुम्हारे वृक्षों में बहुत फल लगें।
\s5
\v 5 तुम अपनी फसलों को काटोगे और दांवनी करोगे जब तक कि दाख की उपज तैयार न हो और दाख की उपज तब तक रहेगी जब तक अगले वर्ष के लिए तैयारी न करो। तुम्हारे पास भोजन की भरपूरी होगी। और तुम इस देश में सुरक्षित रहोगे।
\v 6 यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे तो तुम्हारे देश में और तुम्हारे सोते समय शान्ति का वातावरण बना रहेगा। तुम्हें किसी बात का भय नहीं होगा। मैं तुम्हारे देश से भयानक पशुओं को निकाल दूँगा। और तुम्हारे देश में युद्ध भी नहीं होगा।
\s5
\v 7 तुम अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें तलवार से मार गिराओगे।
\v 8 एक सौ शत्रुओं को तुम पाँच ही खदेड़ दोगे। और यदि तुम्हारे शत्रु हजारों की संख्या में हों तो तुम सौ ही उन्हें खदेड़ने और घात करने के लिए पर्याप्त होगे।
\s5
\v 9 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे तो मैं तुम्हें आशीष दूँगा और तुम्हारी सन्तान को बढ़ाऊँगा और अपनी वाचा की पूर्ति करूँगा।
\v 10 तुम पिछले वर्ष की फसल खाते रहोगे और जब नई फसल आ जाएगी तो उसे रखने के लिए पुरानी फसल हटा कर स्थान बनाने की आवश्यकता पड़ेगी।
\s5
\v 11 मैं अपने पवित्र-तम्बू में तुम्हारे मध्य वास करूँगा। और तुम्हें कभी नहीं त्यागूँगा।
\v 12 मैं तुम्हारे मध्य वास करूँगा और सदा तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा और तुम सदा मेरे लोग होगे।
\v 13 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया कि उनके दास न बने रहो। वहाँ तुम्हारी दशा पशुओं की सी थी जो मिस्रियों के लिए खेत जोत रहे थे परन्तु मैंने तुम्हारी गर्दनों पर से उनके जूए तोड़ दिए। मैंने तुम्हें सिर उठा कर जीने योग्य किया।
\s5
\v 14 परन्तु यदि तुम मुझ पर ध्यान न दो और मेरी आज्ञाओं को मानने से इन्कार करो,
\v 15 मेरे आदेशों और आज्ञाओं को तुच्छ समझो और मेरी आज्ञापालन न करो, और तुम्हारे साथ बाँधी गई मेरी वाचा का त्याग करो,
\s5
\v 16 तो मैं तुम्हारे साथ जो व्यवहार करूँगा, वह यह हैः मैं तुम पर विपत्तियाँ डालूँगा जिनसे तुम नष्ट हो जाओगे। तुम्हें भयंकर रोग लगेंगे। तुम्हारे लिए खेती करना व्यर्थ होगा क्योंकि शत्रु तुम्हारी फसलों को लूट लेंगे।
\v 17 मैं तुम्हें त्याग दूँगा और परिणामस्वरूप शत्रु तुम पर विजयी होंगे। वे तुम पर राज करेंगे और तुम भयभीत होकर भागोगे। जबकि वे तुम्हारा पीछा नहीं करेंगे।
\s5
\v 18 इन सब विपत्तियों के उपरान्त भी यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करने से इन्कार करो तो मैं तुम्हारे पापों का दंड देता रहूँगा।
\v 19 मैं तुम्हें इतना अधिक दंड दूँगा कि तुम्हारा हठ और घमंड चूर-चूर हो जाएगा।
\v 20 मैं तुम्हारे देश में वर्षा नहीं होने दूँगा। आकाश लोहा और भूमि पीतल के जैसे कठोर हो जाएँगे।
\s5
\v 21 बीज डालने के लिए तुम्हारा कठोर परिश्रम व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि कठोर भूमि पर खेती नहीं होगी और वृक्षों में फल नहीं लगेंगे।
\v 22 यदि तुम फिर भी मेरे विरूद्ध होकर मेरी आज्ञाओं को नहीं मानोगे तो मैं तुम पर विपत्तियाँ आने दूँगा। जिनका कारण तुम्हारे पाप होंगे। मैं वन पशुओं द्वारा तुम्हे नष्ट कराऊँगा। वे तुम्हारे बच्चों को मार डालेंगे और तुम्हारे पशुओं को खा जाएँगे। परिणामस्वरूप बहुत कम लोग जीवित बचेंगे कि तुम्हारी सड़कों पर चलते-फिरते दिखाई दें।
\s5
\v 23 जब तुम मेरे दंड का अनुभव करके भी मेरी ओर ध्यान नहीं दोगे और मेरे विरूद्ध व्यवहार करोगे
\v 24 तो मैं स्वयं ही तुम्हारा विरोध करके दंड पर दंड देता रहूँगा।
\s5
\v 25 मैंने तुम्हारे साथ वाचा बाँधी और तुमने उसकी आज्ञाओं को नहीं माना तो मैं तुम्हें दंड देने के लिए शत्रुओं की सेनाएँ भेजूँगा और यदि तुम शहरपनाह के पीछे छिप जाओगे तो भयंकर रोग भेजूँगा। मैं तुम्हें उन सेनाओं का बन्दी बनवा दूँगा।
\v 26 तुम्हारी भोजन सामग्री कम करवा दूँगा। तुम्हारे पास रोटियाँ पकाने का आटा कम पड़ जाएगा और परिणामस्वरूप दस स्त्रियाँ एक ही तन्दूर में रोटियाँ पका लेंगी। रोटियाँ पकाने के बाद जब बंटवारा होगा तब रोटियाँ कम पड़ेंगी। और वे सब भूखे ही रह जाएँगे।
\s5
\v 27 इन सब बातों के उपरान्त भी यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं करोगे और मेरा विरोध करते रहोगे
\v 28 तो मैं क्रोध में आकर तुम्हारा विरोधी हो जाऊँगा और तुम्हारे पापों का दंड देता चला जाऊँगा।
\s5
\v 29 तुम्हें ऐसा भूखा मारूँगा कि तुम अपने पुत्र-पुत्रियों को मार कर उनका माँस खा जाओगे।
\v 30 मैं सुनिश्चित करूँगा कि परदेशी उन पहाड़ों को नष्ट करें जहाँ तुमने मूर्तिपूजा की है। मैं उन वेदियों को नष्ट कर दूँगा जहाँ तुमने देवी-देवताओं के लिए धूप जलाई है। और तुम्हारे शवों का ढेर उन्हीं निर्जीव देवी-देवताओं पर लगवा दूँगा, और तुमसे घृणा करूँगा।
\s5
\v 31 मैं तुम्हारे नगरों को मलबे का ढेर बना दूँगा। और तुम्हारी मूर्तियों के घर ढा दूँगा। तुम वेदी पर होम-बलि चढ़ाओगे परन्तु मैं प्रसन्न नहीं होऊँगा।
\v 32 मैं तुम्हारे देश को पूर्ण रूप से नष्ट कर दूँगा और तुम्हें जीतने वाले तुम्हारे शत्रु भी यह देख चकित हो जाएँगे।
\v 33 मैं तुम्हारे शत्रुओं को इस योग्य कर दूँगा कि वे तुम्हें तलवार से नाश करें और तुम्हें जाति-जाति में तितर-बितर कर दें। मैं सुनिश्चित करूँगा कि वे तुम्हारे देश को नष्ट करें और तुम्हारे नगरों को नष्ट करें।
\s5
\v 34 जब ऐसा होगा तब जितने समय तुम अपने शत्रुओं के देश में रहोगे उतने समय तक मैं तुम्हारे देश की भूमि को विश्राम दूँगा जो उन्हें प्रति सातवें वर्ष मिलना था।
\v 35 वह पूरा समय जब तुम्हारा देश निर्जन पड़ा रहेगा, भूमि विश्राम पाएगी। वह स्थिति तुम्हारे निवास से भिन्न होगी क्योंकि तुमने उसे विश्राम नहीं दिया था।
\v 36 तुम जो अपने शत्रुओं के देश में बसाए जाओगे तब ऐसे भयभीत रहोगे कि हवा के बहने की आवाज से ही डर कर भागोगे।
\s5
\v 37 तुम ऐसे भागोगे कि जैसे कोई तलवार लेकर तुम्हारा पीछा कर रहा है। और तुम गिर पड़ोगे चाहे कोई तुम्हारा पीछा भी नहीं कर रहा हो। भागते समय तुम आपस में ही टकरा कर गिरोगे। तुम खड़े रह कर अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे।
\v 38 तुममें से अनेक जन शत्रुओं के देश में ही मर जाएँगे।
\v 39 और जो जीवित रहेंगे वे भी अपने और अपने पूर्वजों के पाप के कारण धीरे-धीरे मर कर सड़ेंगे।
\s5
\v 40-41 परन्तु तुम्हारे वंशजों को अपने और अपने पूर्वजों के पापों को स्वीकार करना पड़ेगा। उनके पूर्वजों ने मेरे साथ विश्वासघात किया और मुझसे बैर किया। इस कारण मैंने उन्हें उनके शत्रुओं के देश में पहुँचा दिया। परन्तु जब तुम्हारे वंशज मेरे सामने दीन होकर हठ का त्याग करेंगे और अपने पापों का दंड स्वीकार करेंगे,
\v 42 तब मैं तुम्हारे पितरों, अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ बांधी हुई वाचा और कनान देश के बारे में उनसे की गई अपनी प्रतिज्ञाओं पर ध्यान करूँगा।
\s5
\v 43 परन्तु इससे पूर्व मेरी प्रजा अपने देश से विस्थापित की जाएगी और परिणाम स्वरूप वह देश निर्जन पड़ा रहेगा और मैं अपनी प्रजा को मेरी अवज्ञां और आदेश विरोध का दंड देता रहूँगा, तब देश विश्राम करेगा।
\s5
\v 44 परन्तु मैं तब भी उन्हें नहीं त्यागूँगा, न ही उनसे घृणा करूँगा और न ही उनका सर्वनाश करूँगा। उनके साथ बंधी हुई अपनी वाचा को मैं कभी रद्द नहीं करूँगा। मैं यहोवा ही हूँ जिस परमेश्वर की उन्हें उपासना करना चाहिए।
\v 45 तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से निकाल कर मैंने उनके साथ जो वाचा बांधी थी, और जिसके बारे में सब जातियों ने सुना था, उसे स्मरण रखूँगा। मैं ने इसलिए ऐसा किया था कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर बना रहूँ।”
\s5
\v 46 ये सब यहोवा और इस्राएलियों के मध्य सीनै पर्वत पर दी गई आज्ञाएँ, आदेश तथा नियम हैं जो मूसा द्वारा उन तक पहुँचाए गए।
\s5
\c 27
\p
\v 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 इस्राएलियों को मेरे ये आदेश सुना दे। यदि कोई यहोवा के लिए किसी को अलग करे कि वह यहोवा ही का हो, तो यहोवा उसे मुक्त करने के लिए तब तैयार होगा जब वह उत्तरदायी मनुष्य याजक को निर्धारित धनराशि दे। याजक उस मूल्य को यहोवा के तम्बू के मानक के अनुसार चाँदी में गिने।
\s5
\v 3 यहोवा ने ऐसे विनिमय के लिए जो धनराशि निश्चित की थी वह इस प्रकार हैः बीस वर्ष की आयु और साठ वर्ष की आयु के मध्य जो पुरुष है वह चाँदी के पचास टुकड़े दे,
\v 4 बीस वर्ष और साठ वर्ष के मध्य की स्त्री के लिए चाँदी के तीस टुकड़े
\s5
\v 5 पाँच वर्ष और बीस वर्ष के मध्य के युवकों के लिए चाँदी के बीस टुकड़े। पाँच और बीस वर्ष के मध्य की कन्याओं के लिए चाँदी के दस टुकड़े।
\v 6 एक महीने की आयु और पाँच वर्ष की आयु के मध्य के बालकों के लिए चाँदी के पाँच टुकड़े। एक महीने की आयु और पाँच वर्ष की आयु के मध्य की बालिकाओं के लिए चाँदी के दस टुकड़े।
\s5
\v 7 साठ वर्ष की आयु से अधिक के पुरुषों के लिए चाँदी के पन्द्रह टुकड़े।
\v 8 यदि ऐसी प्रतिज्ञा करने वाला यहोवा के लिए अलग किए गए मनुष्य को छुड़ाने के लिए मोल देने में सक्षम नहीं तो वह उस व्यक्ति को याजक के पास ले जाए तो याजक उसकी क्षमता के अनुसार मूल्य निर्धारण करे।
\s5
\v 9 यदि किसी ने यहोवा के ग्रहणयोग्य पशुओं में से एक पशु यहोवा को देने की प्रतिज्ञा की है तो वह पशु यहोवा के लिए अलग होकर उसी का हो जाता है।
\v 10 जिसने उस पशु को देने की प्रतिज्ञा की है वह उसी पशु को दे, उसकी अपेक्षा दूसरा पशु न दे- न तो उससे घटिया, न उससे अच्छा। यदि वह ऐसा करता है तो दोनों पशु यहोवा के होंगे।
\s5
\v 11 यदि वह पशु जिसे वह यहोवा को देना चाहता है, भेंट के योग्य नहीं हैं तो वह उसे याजक के पास ले जाए।
\v 12 याजक उसका मूल्य आंकेगा जो उस पशु की गुणवत्ता के आधार पर होगा। याजक ने जो मूल्य निर्धारित कर दिया है वही उस पशु का मूल्य होगा।
\v 13 यदि उस समर्पित पशु का स्वामी आगे चलकर उसे छुड़ाना चाहता है तो वह याजक को उसका मूल्य और मूल्य का दसवां भाग देगा।
\s5
\v 14 इसी प्रकार, यदि किसी ने अपना घर यहोवा को समर्पित कर दिया है और यहोवा के सम्मान के निमित्त उसे अलग कर दिया तो यहोवा उस घर की दशा के अनुसार उसका मूल्य निर्धारित करेंगे। याजक ने जो कह दिया वह उस घर का मूल्य होगा।
\v 15 अब यदि वह मनुष्य उस घर को जो उसने यहोवा को समर्पित कर दिया था, छुड़ाना चाहता है तो वह उसका निर्धारित मूल्य दे और मूल्य का पाँचवा भाग और दे, तब वह घर फिर से उसका हो जाएगा।
\s5
\v 16 यदि कोई अपनी पारिवारिक सम्पदा यहोवा के सम्मान में समर्पित करता है तो उसका मूल्य उस संपूर्ण भूमि में बीज डालने के आधार पर निर्धारित किया जाएगा और प्रत्येक 220 किलो बीज की कीमत चाँदी के दस टुकड़े गिनी जाएगी।
\s5
\v 17 यदि वह भूमि जयन्ति वर्ष में यहोवा को समर्पित की गई है तो उसका मूल्य पूरा होगा।
\v 18 परन्तु यदि वह भूमि जयन्ति वर्ष के बाद समर्पित की जाती है तो याजक अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्ष गिनेगा और यदि वर्षों की संख्या अधिक नहीं है तो उसका मूल्य निर्धारित मूल्य से बहुत कम होगा।
\s5
\v 19 यदि उस भूमि को यहोवा को समर्पित करने वाला उसे फिर से प्राप्त करना चाहे तो वह याजक द्वारा निर्धारित मूल्य तथा उसके मूल्य का पाँचवा भाग अधिक देकर उसे फिर से प्राप्त कर ले और वह उसकी हो जाएगी।
\v 20 परन्तु यदि वह उसे फिर से मोल नहीं लेता या वह किसी और को बेच दी गई तो वह फिर कभी उसे प्राप्त नहीं कर पाएगा।
\v 21 जयन्ति वर्ष के महोत्सव में वह यहोवा के लिए पवित्र भेंट ठहरा कर अलग कर दी जाएगी और याजक को दे दी जाएगी।
\s5
\v 22 यदि कोई यहोवा के सम्मान में अपनी पैतृक भूमि के अतिरिक्त खरीदी हुई भूमि समर्पित करता है
\v 23 तो याजक अगले जयन्ति वर्ष तक के वर्षों को गिनेगा और उस भूमि का मूल्य निर्धारित करेगा और वह व्यक्ति याजक को उतना मूल्य देगा। तब वह भूमि उसकी हो जाएगी। और उसका पैसा यहोवा के लिए पवित्र भेंट ठहरेगा।
\s5
\v 24 परन्तु जयन्ति वर्ष में वह भूमि फिर से उसी व्यक्ति की हो जाएगी जिससे वह खरीदी गई थी। जिसकी वह पैतृक सम्पदा थी।
\v 25 जितनी भी चाँदी गिनी गई वह पवित्र-तम्बू के स्वीकृत माप के अनुसार गिनी जाएगी।
\s5
\v 26 गाय या भेड़ का पहला बच्चा समर्पित नहीं किया जाए क्योंकि वह तो पहले ही से यहोवा के हैं।
\v 27 यदि ऐसा पशु समर्पित किया जाए जो यहोवा को ग्रहणयोग्य नहीं तो वह उसके स्वामी द्वारा निर्धारित मूल्य तथा मूल्य का पाँचवा भाग देकर फिर से प्राप्त किया जा सकता है। यदि वह उसे फिर से खरीद नहीं सकता तो वह उसके निर्धारित मूल्य पर बेच दिया जाए।
\s5
\v 28 तथापि, दास या पशु या पैतृक भूमि यहोवा को समर्पित करने के बाद न तो बेची जा सकती है और न ही फिर खरीदी जा सकती है। क्योंकि वह यहोवा के लिए पवित्र हो जाती है।
\v 29 यहोवा की दृष्टि में जो दुष्टता का काम है उसे करने वाला छोड़ा न जाए। उसे मार डाला जाए।
\s5
\v 30 किसी के खेत और बारी की उपज का दसवां भाग- अन्न और फल, पवित्र हैं, वे यहोवा के हैं।
\v 31 यदि कोई उस दसवें अंश को दुबारा प्राप्त करना चाहता है तो वह याजक को उसका मूल्य तथा मूल्य का पाँचवा भाग दे।
\s5
\v 32 घरेलू पशुओं में से दसवां पशु भी यहोवा का है। जब चरवाहे अपनी लाठी के नीचे पशुओं को गिनें तब प्रत्येक दसवें पशु पर चिन्ह लगा दें कि वह यहोवा का है।
\v 33 ऐसा करने में वह उत्तम पशुओं को बचा कर घटिया पशु अलग न करे या उत्तम पशुओं के स्थान में घटिया पशुओं को नहीं रखें। यदि वह ऐसा करता है तो दोनों पशु यहोवा के होंगे जिन्हें वह फिर से खरीद नहीं पाएगा।”
\s5
\v 34 सीनै पर्वत पर यहोवा ने मूसा को ये आज्ञाएँ दीं कि इस्राएलियों को सुना दे।

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\h गिनती
\toc1 गिनती
\toc2 गिनती
\toc3 num
\mt1 गिनती
\s5
\c 1
\p
\v 1 इस्राएली लोगों के मिस्र छोड़ने के बाद वर्ष के दूसरे महीने में, यहोवा ने मूसा से बात की, जब वह सीनै के जंगल में पवित्र तम्बू में था। यहोवा ने उससे कहा,
\v 2 “इस्राएल के प्रत्येक परिवार के इस्राएली पुरुषों को उनके नाम के अनुसार गिनो।
\v 3 तुम्हें और हारून को उन लोगों की गिनती करनी है, जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के हो, जो सेना में सैनिकों के रूप में सेवा कर सकते हैं। उनके कुलों और परिवारों के नाम के साथ उन पुरुषों की संख्या लिखो।
\s5
\v 4 मैंने तुम्हारी सहायता करने के लिए प्रत्येक गोत्र में से एक-एक व्यक्ति को चुना है। प्रत्येक व्यक्ति अपने कुल का प्रधान होना चाहिए।
\q
\v 5-6 उनके नाम हैं:
\q1 रूबेन के गोत्र में से शदेऊर का पुत्र एलीसूर;
\q शिमोन के गोत्र में से सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल;
\p
\s5
\v 7-9 यहूदा के गोत्र में से अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन;
\q1 इस्साकार के गोत्र में से, सूआर का पुत्र नतनेल;
\q1 जबूलून के गोत्र में से हेलोन का पुत्र एलीआब;
\p
\s5
\v 10-11 यूसुफ के पुत्र एप्रैम के गोत्र में से अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा;
\q1 यूसुफ के पुत्र मनश्शे के गोत्र में से पदासूर का पुत्र गम्लीएल;
\q1 बिन्यामीन के गोत्र में से गिदोनी का पुत्र अबीदान;
\p
\s5
\v 12-15 दान के गोत्र में से अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर;
\q आशेर के गोत्र में से ओक्रान का पुत्र पगीएल;
\q गाद के गोत्र में से दूएल का पुत्र एल्यासाप;
\q नप्ताली के गोत्र में से एनान का पुत्र अहीरा। “
\p
\s5
\v 16 ये वे पुरुष थे जिन्हें यहोवा ने लोगों में से चुना था। वे अपने-अपने गोत्र के प्रधान थे। वे इस्राएली लोगों के कुलों के मुख्य पुरुष थे।
\p
\s5
\v 17 हारून और मूसा ने इन सभी प्रधानों को बुलाया,
\v 18 और उन्होंने उसी दिन सभी लोगों को इकट्ठा किया। उन्होंने उन सभी पुरुषों के नाम सूचीबद्ध किए जो कम से कम 20 वर्ष के थे, और उनके नामों के साथ उन्होंने उनके कुलों और उनके परिवार के समूहों के नाम लिखे
\v 19 जैसे मूसा ने आज्ञा दी थी। उन्होंने इन नामों को लिखा, जब इस्राएली सीनै के जंगल में थे।
\p
\s5
\v 20-21 रूबेन ( याकूब का सबसे बड़ा पुत्र ) के गोत्र से 46,500 पुरुष थे, जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 22-23 शिमोन के गोत्र में से 59,300 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 24-25 गाद के गोत्र से 45,650 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 26-27 यहूदा के गोत्र में से 74,600 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 28-29 इस्साकार के गोत्र में से 54,400 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 30-31 जबूलून के गोत्र में से 57,400 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 32-33 एप्रैम के गोत्र में 40,500 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 34-35 मनश्शे के गोत्र में से 32,200 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 36-37 बिन्यामीन के गोत्र में से 35,400 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 38-39 दान के गोत्र में से 62,700 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 40-41 आशेर के गोत्र में 41,500 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 42-43 नप्ताली के गोत्र से 53,400 पुरुष थे जो कम से कम बीस वर्ष की आयु के थे और युद्ध में लड़ने के लिए सक्षम थे। वे उनके नाम, उनके कुलों और उनके परिवार समूहों द्वारा सूचीबद्ध थे।
\p
\s5
\v 44-45 यह प्रत्येक गोत्र के पुरुषों की संख्या थी, जो हारून और मूसा और इस्राएल के गोत्रों के बारह प्रधानों ने उनके कुलों के नामों के साथ सूचीबद्ध किया था।
\v 46 कुल 603,550 पुरुष थे।
\p
\s5
\v 47 लेकिन इस संख्या में लेवी के गोत्र के पुरुषों के नाम शामिल नहीं थे,
\v 48 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा था,
\v 49 “जब तुम इस्राएल के गोत्रों के पुरुषों की गिनती करते हो, तो लेवी गोत्र के पुरुषों की गणना मत करना।
\s5
\v 50 पवित्र तम्बू और संदूक जिसमें वे पटियाएँ हैं जिन पर दस आज्ञाएं लिखी गई हैं, देखभाल करने के लिए लेवी के पुरुष वंशजों को नियुक्त कर। उन्हें तम्बू के अंदर की अन्य चीजों की भी देखभाल करनी है। जब तुम यात्रा करते हो, तो यही लोग पवित्र तम्बू और उसके अंदर की सभी चीजों को उठाएं, और इसकी देखभाल करें और इसके चारों ओर अपने तम्बू स्थापित करें।
\s5
\v 51 जब भी, तुम सभी के लिए, दूसरे स्थान पर जाने का समय होता है, लेवी के वंशज ही पवित्र तम्बू को गिरा दें। और जब यात्रा समाप्त करने का समय हो, तो उन्हें ही इसे फिर से स्थापित करना होगा। इस काम को करने के लिए पवित्र तम्बू के पास जाने वाले किसी अन्य व्यक्ति को मार डाला जाना चाहिए।
\v 52 प्रत्येक इस्राएली गोत्र के लोग अपने तम्बू को अपने क्षेत्र में स्थापित करें, और वे एक झंडा स्थापित करें जो उनके गोत्र का प्रतीक हो।
\s5
\v 53 परन्तु लेवी के पुरुष वंशजों को पवित्र तम्बू के चारों ओर अपने तम्बू स्थापित करना चाहिए ताकि अन्य इस्राएली लोगों को पवित्र तम्बू के निकट आने के कारण यहोवा के दण्ड से बचा सकें। लेवी के वंशजों को पवित्र तम्बू को संरक्षित करने के लिए उसके चारों ओर खड़े रहना चाहिए। “
\p
\v 54 तब इस्राएलियों ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब यहोवा ने हारून और मूसा से यह कहा,
\v 2 “जब इस्राएली अपने तम्बू स्थापित करते हैं, तो उन्हें पवित्र तम्बू के चारों ओर के इलाकों में स्थापित करना है, लेकिन उसके समीप नहीं। प्रत्येक गोत्र के लोगों को अपने तम्बू को एक अलग क्षेत्र में स्थापित करना है। प्रत्येक गोत्र को अवश्य ही उस क्षेत्र में एक झंडा लगाना है, जो उनके गोत्र की पहचान कराता हो।
\s5
\v 3-4 यहूदा के गोत्र के लोगों को अपने तम्बू को पवित्र तम्बू के पूर्व की ओर, अपने गोत्र के झंडे के निकट स्थापित करना है। अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन यहूदा के गोत्र के 74,600 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 5-6 इस्साकार के गोत्र के लोग यहूदा के बगल में अपने तम्बू बनाएंगे। सूआर का पुत्र नतनेल इस्साकार के गोत्र के 54,400 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 7-8 जबूलून के गोत्र के लोग इस्साकार के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। हेलोन का पुत्र एलीआब, जबूलून के गोत्र के 57,400 पुरुषों पर प्रधान होगा।
\p
\s5
\v 9 इस प्रकार पवित्र तम्बू के पूर्व की ओर 1,86,400 सैनिक होंगे। जब भी इस्राएली एक नए स्थान के लिए प्रस्थान करते हैं, तो इन तीन गोत्रों को दूसरों के आगे जाना चाहिए।
\li
\s5
\v 10-11 रूबेन के गोत्र को अपने तम्बू पवित्र तम्बू के दक्षिण की ओर अपने गोत्र के झंडे के निकट स्थापित करना है। शदेऊर के पुत्र एलीसूर रूबेन के गोत्र के 46,500 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 12-13 शिमोन के गोत्र के लोग रूबेन के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल शिमोन के गोत्र के 59,300 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 14-15 गाद के गोत्र के लोग शिमोन के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। रूएल का पुत्र एल्यासाप गाद के गोत्र के 45,650 पुरुषों का प्रधान होगा।
\p
\s5
\v 16 इस प्रकार पवित्र तम्बू के दक्षिण की ओर 1,51,450 सैनिक होंगे। जब इस्राएली यात्रा करते हैं तो यह तीन गोत्र पहले समूह का पीछा करेंगे।
\p
\s5
\v 17 उस समूह के पीछे लेवी के वंशज चलेंगे, जो पवित्र तम्बू ले जाएंगे। इस्राएली उसी क्रम में कूच करेंगे जैसे वे हमेशा अपने तम्बू स्थापित करते हैं। प्रत्येक गोत्र अपना झंडा उठाएगा।
\li
\s5
\v 18-19 एप्रैम के गोत्र को अपने तम्बू पवित्र तम्बू के पश्चिम की ओर अपने झंडे के निकट स्थापित करना है। अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा एप्रैम के गोत्र के 40,500 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 20-21 मनश्शे के गोत्र के लोग एप्रैम के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। पदासूर का पुत्र गम्लीएल मनश्शे के गोत्र के 32,200 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 22-23 बिन्यामीन के गोत्र के लोग मनश्शे के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। गिदोनी का पुत्र अबीदान, बिन्यामीन के गोत्र के 35,400 पुरुषों का प्रधान होगा।
\p
\s5
\v 24 इस प्रकार पवित्र तम्बू के पश्चिमी ओर 1,08,100 सैनिक होंगे। यह तीन गोत्रों को लेवी के वंशजों के पीछे दूसरे समूह का पीछा करेंगे।
\li
\s5
\v 25-26 दान के गोत्र को अपने तम्बू, पवित्र तम्बू के उत्तर की ओर अपने झंडे के निकट स्थापित करना है। अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर दान के गोत्र के 62,700 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 27-28 आशेर के गोत्र के लोग दान के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। ओक्रान के पुत्र पगीएल, आशेर के गोत्र के 41,500 पुरुषों का प्रधान होगा।
\li
\s5
\v 29-30 नप्ताली के गोत्र के लोग आशेर के बगल में अपने तम्बू लगाएंगे। एनान के पुत्र अहीरा, नप्ताली के गोत्र के 53,400 पुरुषों का प्रधान होगा।
\p
\s5
\v 31 इस प्रकार पवित्र तम्बू के उत्तर की ओर 1,57,600 सैनिक होंगे। यह तीन गोत्र आखिरी रहेंगे। जब इस्राएली यात्रा करते हैं तो उन्हें अपना झंडे उठाना होगा।
\p
\s5
\v 32 इस प्रकार 6,03,550 इस्राएली पुरुष थे, जो लड़ने के लिए सक्षम थे, जो अपने परिवार के पूर्वजों के अनुसार सूचीबद्ध किए गए थे।
\v 33 परन्तु जैसा यहोवा ने आज्ञा दी थी, लेवी के वंशजों के नाम शामिल नहीं किए गए थे।
\p
\s5
\v 34 इस्राएलियों ने वह सब कुछ किया जो यहोवा ने मूसा से कहा था। उन्होंने अपने तम्बू अपने गोत्र के झंडे के निकट स्थापित किए, और जब वे एक नए स्थान पर गए, तो वे अपने कुलों और परिवार समूहों के साथ ही चले।
\s5
\c 3
\p
\v 1 ये कुछ बातें हैं जो हारून और मूसा के साथ हुईं जब यहोवा ने सीनै पर्वत पर मूसा से बातें की।
\p
\v 2 हारून के चार बेटे थे। सबसे बड़ा नादाब, फिर अबीहू, फिर एलीआजार और छोटा ईतामार था।
\s5
\v 3 ये हारून के पुत्रों के नाम हैं जो अभिषिक्त याजक थे और याजक के रूप में अलग किए गए थे और जिन्हें उसने याजक के रूप में सेवा करने के लिए नियुक्त किया था।
\v 4 परन्तु जब यहोवा देख रहा था, तब नादाब और अबीहू की मृत्यु सीनै के जंगल में हुई क्योंकि उन्होंने धूप को जलाकर यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन किया। उनके पुत्र नहीं थे, इसलिए एलीआजार और ईतामार हारून के शेष पुत्र थे, जो अपने पिता हारून के साथ याजक बनने के लिए बच गए थे।
\p
\s5
\v 5 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 6 “लेवी के गोत्र के लोगों को लाओ और उन्हें हारून के पास प्रस्तुत करो, ताकि वे उसकी सहायता कर सकें।
\s5
\v 7 वे हारून और अन्य सभी इस्राएली लोगों की सेवा करेंगे, जब वे पवित्र तम्बू के अंदर और उसके बाहर अपना काम करेंगे।
\v 8 उन्हें पवित्र तम्बू के अंदर की सारी चीजों की देखभाल करके सभी इस्राएली लोगों की सेवा करनी चाहिए।
\s5
\v 9 उन्हें हारून और उसके दोनों बेटों की सहायता करने के लिए नियुक्त करो। मैंने उन्हें सभी इस्राएली लोगों में से ऐसा करने के लिए चुना है।
\v 10 हारून और उसके दोनों बेटों को याजक के काम करने के लिए नियुक्त करो। लेकिन अन्य कोई भी, जो इस काम को करने के लिए पवित्र तम्बू के निकट आता है उसे मार डाला जाए।
\p
\s5
\v 11 यहोवा ने मूसा को यह भी बताया,
\v 12 “ध्यान दें कि सभी इस्राएली लोगों में से मैंने लेवी के गोत्र के लोगों को इस्राएलियों के सभी पहिलौठे पुत्रों का स्थान लेने के लिए चुना है। लेवी के पुरुष वंशज मेरे हैं,
\v 13 क्योंकि वास्तव में सभी पहिलौठे पुरुष मेरे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिस दिन मैंने मिस्र के लोगों के सभी पहिलौठे पुत्रों को मार डाला था, उसी दिन मैंने इस्राएलियों के सभी पहिलौठे पुत्रों को बचाया और उन्हें अपने लिए अलग कर दिया। मैंने तुम्हारे घरेलू नर पशुओं के पहिलौठों को भी अलग कर दिया। वे यहोवा के हैं।”
\p
\s5
\v 14 यहोवा ने सीनै के जंगल में फिर से मूसा से बातें की। उसने कहा,
\v 15 “लेवी के गोत्र के पुरुष सदस्यों की गणना करो। उनके नाम और उनके कुलों और परिवार समूहों के नाम लिखो। उन सभी पुरुषों की गणना करो जो कम से कम एक महीने के हैं।”
\v 16 इसलिए मूसा ने उन्हें गिना, जैसा यहोवा ने आज्ञा दी थी।
\p
\s5
\v 17 लेवी के तीन पुत्र थे, जिनके नाम गेर्शोन, कहात और मरारी थे।
\p
\v 18 गेर्शोन के दो बेटे, लिब्नी और शिमी थे। उन कुलों के नाम जो उनके वंशज थे, इन दो बेटों के नाम पर दिए गए थे।
\p
\v 19 कहात के चार बेटे, अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल थे। उन कुलों के नाम जो उनके वंशज थे, इन चार बेटों के नाम पर दिए गए थे।
\p
\v 20 मरारी के दो बेटे, महली और मूशी थे। उन कुलों के नाम जो उनके वंशज थे, इन दो बेटों के नाम पर दिए गए थे।
\q यही कुल थे जो लेवी से निकले थे।
\p
\s5
\v 21 गेर्शोन से जो दो कुल निकले, वे उसके पुत्र लिब्नी और शिमी से निकले थे।
\v 22 उन दो कुलों में 7,500 पुरुष थे जो कम से कम एक महीने के थे।
\v 23 उन्हें पवित्र तम्बू के पश्चिमी किनारे पर अपने तम्बू स्थापित करने के लिए कहा गया था।
\s5
\v 24 उन दो कुलों का प्रधान लाएल का पुत्र एल्यासाप था।
\v 25 उनका काम पवित्र तम्बू की देखभाल करना था, जिसमें इसके पर्दे और उसका आवरण और प्रवेश द्वार के पर्दे,
\v 26 वे पर्दे जो तम्बू के चारों ओर और वेदी के चारों ओर के आंगन के चारों ओर दीवारों का निर्माण करते थे, वे पर्दे जो आंगन के प्रवेश द्वार पर थे, और तम्बू को खड़ा करने के लिए जो रस्सियां थीं शामिल थे। उन्होंने पवित्र तम्बू के बाहर की चीजों की देखभाल करने के सभी काम भी किए।
\p
\s5
\v 27 कहात से जो कुल निकले वे उसके पुत्र अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल से निकले थे।
\v 28 उन चार कुलों में 8,600 पुरुष थे जो कम से कम एक महीने के थे। कुलों के पुरुषों का काम पवित्र तम्बू के अंदर की चीजों की देखभाल करना था।
\v 29 उन्होंने पवित्र तम्बू के दक्षिण की ओर अपने तम्बू लगाए।
\s5
\v 30 उन चार कुलों का प्रधान उज्जीएल के पुत्र एलीसापान था।
\v 31 उन कुलों के पुरुषों का काम पवित्र सन्दूक की देखभाल करना था, मेज जिस पर याजक पवित्र रोटी रखते हैं, दीवट, वेदियां, सभी वस्तुएं जो याजक पवित्र तम्बू में इस्तेमाल करते थे, और तम्बू के अंदर के पर्दे। उनका काम तम्बू के अंदर की चीजों की भी देखभाल करना था।
\p
\v 32 हारून का पुत्र एलीआजार लेवी के सभी पुरुष वंशजों का प्रधान था। वह पवित्र तम्बू में किए जाने वाले सभी कामों की देखरेख करता था।
\p
\s5
\v 33 मरारी से जो कुल निकले वे उसके पुत्र महली और मूशी से निकले थे।
\v 34 उन दो कुलों में 6,200 पुरुष थे जो कम से कम एक महीने के थे।
\v 35 उन्हें पवित्र तम्बू के उत्तर की ओर अपने तम्बू स्थापित करने के लिए कहा गया था। उन दो कुलों का प्रधान अबीहैल का पुत्र सूरीएल था।
\s5
\v 36 उन दो कुलों के पुरुषों का काम तम्बू को खड़ा करने वाले तख्ते, बेंड़े, खम्भे आदि की देखभाल करना था। उन्होंने उन सभी कार्यों को भी किया जो इन वस्तुओं से जुड़े थे।
\v 37 उनका काम उन खम्भों की जो आंगन में पर्दों से दीवारों का निर्माण करते थे, और उन सभी अड्डों, तम्बू के खूँटों और रस्सियों जिन से पर्दे बांधे जाते थे उनकी भी देखभाल करना था।
\p
\s5
\v 38 हारून और मूसा और हारून के पुत्रों को पूर्वी ओर पवित्र तम्बू के सामने के इलाके में अपने तम्बू लगाने के लिए कहा गया था। उनका काम इस्राएली लोगों के लाभ के लिए, पवित्र तम्बू के अन्दर-बाहर और आसपास किए जाने वाले कामों की निगरानी करना था। केवल याजकों को ऐसा करने की अनुमति थी। यहोवा ने घोषित किया कि यदि अन्य कोई भी याजक के काम करने के लिए तम्बू के पास जाता है, उसे मार डाला जाए।
\p
\v 39 जब हारून और मूसा ने उन सभी पुरुषों को गिना, जो कम से कम एक महीने की आयु के थे, जो लेवी कुलों से निकले थे, तो वे कुल बाईस हजार थे।
\p
\s5
\v 40 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “अब इस्राएल के सभी अन्य जवानों को गिनो जो कम से कम एक महीने की आयु के हैं, और उनके नाम लिखो।
\v 41 इसके अलावा, मेरे लिए लेवी के वंशजों को दूसरे इस्राएली लोगों के पहिलौठे पुरुषों के विकल्प बनने के लिए अलग करो। और मेरे लिए लेवी के वंशजों के पशुओं को अन्य इस्राएली लोगों के पहिलौठे पशुधन के विकल्प के लिए चुन लो। “
\p
\s5
\v 42 इस प्रकार मूसा ने ऐसा ही किया। उसने सभी इस्राएली लोगों के पहिलौठे पुरुषों की गिनती की, जैसा कि यहोवा ने आज्ञा दी थी।
\v 43 उनमें से जो कम से कम एक महीने की आयु के थे वे कुल 22,273 थे।
\p
\s5
\v 44 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 45 “लेवी के वंशजों को इस्राएली लोगों के पहिलौठे पुरुषों के लिए विकल्प बनने के लिए अलग करो। लेवी के वंशज यहोवा के हैं।
\s5
\v 46 लेवी के वंशजों की तुलना में अन्य इस्राएली लोगों के 273 पहिलौठे पुरुष अधिक थे।
\v 47-48 इन 273 पुरुषों के लिए भुगतान करने के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए चाँदी के पांच टुकड़े इकट्ठा करो। इन चाँदी के टुकड़ों में से प्रत्येक का वजन पवित्र तम्बू में रखे चाँदी के टुकड़ों के समान ही वजन होना चाहिए। इस चाँदी को हारून और उसके पुत्रों को दो। “
\p
\v 49 तब मूसा ने ऐसा ही किया। उन्होंने उन 273 पुरुषों से चाँदी एकत्र की।
\v 50 कुल चाँदी के 1,365 टुकड़े थे। प्रत्येक चाँदी के टुकड़े का वजन पवित्र तम्बू में रखे चाँदी के टुकड़े के समान था।
\v 51 मूसा ने इन चाँदी के टुकड़ों को हारून और उसके पुत्रों को दिया, जैसा कि यहोवा ने आज्ञा दी थी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “उन लोगों के नाम लिखो जो कहात से निकलने वाले कुलों से संबंधित हैं।
\v 3 उन पुरुषों के नाम लिखो जो 30 से 50 वर्ष के बीच के हैं। ये ऐसे पुरुष होंगे जो पवित्र तम्बू में काम करेंगे।
\p
\v 4 कहात के इन वंशजों का काम उन पवित्र वस्तुओं की देखभाल करना होगा जिनका उपयोग तब किया जाता है, जब लोग पवित्र तम्बू में आराधना करते हैं।
\s5
\v 5 जब आप इस्राएली दूसरे स्थान पर जाते हैं, तो हारून और उसके पुत्रों को उस तम्बू में प्रवेश करके पर्दे को उतारना है जो पवित्र स्थान को अति पवित्र स्थान से अलग करता है। उन्हें उस पर्दे से पवित्र सन्दूक को ढांकना है।
\v 6 फिर उन्हें चमड़े की खाल से बने आवरण से उसे ढांकना है। उसके ऊपर वे एक नीला कपड़ा फैलाएं। फिर वे सन्दूक के छल्ले में से खम्भे डाल कर उसे उठाएं।
\p
\s5
\v 7 तब उन्हें उस मेज पर एक नीला कपड़ा डालना चाहिए जिस पर याजक रोटी को परमेश्वर के सामने प्रदर्शित करने के लिए रखते हैं। कपड़े के ऊपर उन्हें धूप के कटोरों, करछों, अन्य बर्तनों, दाखरस के लिए मर्तबान, जो बलिदान के रूप में चढ़ाया जाएगा, और पवित्र रोटी रखनी चाहिए।
\v 8 इन सब के ऊपर उन्हें एक लाल रंग का कपड़ा फैलाना चाहिए। अंत में, इनके ऊपर उन्हें चमड़े की खाल से बने आवरण डालना होगा। तब वे मेजों के कोनों के छल्ले में से खम्भे डाल कर उसे उठाएं।
\p
\s5
\v 9 फिर एक और नीले कपड़े से उन्हें दीवट, दीपकों, गुलतराशों और गुलदानों, और दीपक को जलाने के लिए जैतून के तेल के विशेष मर्तबानों को ढांकना चाहिए।
\v 10 उन्हें दीवट और अन्य सभी वस्तुओं को चमड़े की खाल से बने आवरण से ढांकना होगा। उन्हें इन सभी चीजों को ले जाने के लिए एक ढाँचे पर रखना होगा।
\p
\v 11 तब उन्हें सोने की वेदी पर जो धूप जलाने के लिए प्रयोग किया जाता है, एक और नीला कपड़ा फैलाना है। इसके ऊपर उन्हें चमड़े की खाल से बने एक आवरण को फैलाना है। तब उन्हें उस वेदी के छल्ले में से खम्भे को डालकर उठाना चाहिए।
\p
\s5
\v 12 उन्हें पवित्र तम्बू के अंदर की सभी अन्य वस्तुओं को लेना चाहिए और उन्हें नीले रंग के कपड़े में लपेटना चाहिए, फिर उसे चमड़े की खाल से बने आवरण से ढकें और इसे ले जाने के लिए ढाँचे पर रख दें।
\p
\v 13 तब उन्हें वेदी से जिस पर उन्होंने बलि चढ़ाया है राख को हटा देना चाहिए। तब फिर उन्हें वेदी को बैंगनी कपड़े से ढांकना चाहिए।
\v 14 तब उन्हें कपड़े के ऊपर सभी सामानों को जो वेदी पर इस्तेमाल किए जाते हैं फैलाना चाहिए-गर्म कोयले रखने वाले बर्तन, मांस उठाने वाले कांटे, फावड़े, कटोरे जिसमें लोगों के ऊपर छिड़कने के लिए लहू रखा जाता है, और सभी अन्य बर्तन। तब उन्हें उन सभी चीज़ों पर चमड़े की खाल से बने आवरण को फैलाना चाहिए। तब उन्हें वेदी के किनारों पर लगे छल्ले में से खम्भे डालकर उठाना चाहिए।
\p
\s5
\v 15 जब हारून और उसके पुत्र इन सभी पवित्र चीज़ों को ढकना पूरा कर लें, तो इस्राएली लोग एक नए स्थान पर जाने के लिए तैयार होंगे। कहात के वंशज आकर सभी पवित्र वस्तुओं को अगले स्थान पर ले जाए जहाँ इस्राएली अपने तम्बू स्थापित करेंगे। लेकिन कहात के वंशजों को इनमें से किसी भी पवित्र वस्तु को छूना नहीं चाहिए, क्योंकि अगर वे उन्हें छूते हैं तो वे तुरंत मर जाएंगे। वे ही इन चीजों को ले जाएंगे, लेकिन वे उन्हें न छूएँ।
\p
\v 16 हारून का पुत्र एलीआजार दीपक के लिए जैतून का तेल, सुगंधित धूप, आटा जो हर दिन वेदी पर जलाया जाएगा, और जैतून का तेल जो याजकों को अभिषेक करने के लिए है, उन सभी चीजों की देख-रेख करने का काम करेगा। एलीआजार ही है जो पवित्र तम्बू में किए जाने वाले काम और उसके सभी वस्तुओं की देख-रेख करने वाले लोगों की निगरानी करेगा।"
\p
\s5
\v 17 तब यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 18-20 “जब कहात के वंशज पवित्र वस्तुओं को दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए पवित्र तम्बू में जाते हैं, तो हारून और उसके पुत्र हमेशा उनके साथ जाएँ और उनमें से प्रत्येक को दिखाएं कि क्या काम करना है और क्या चीजें लेना है। परन्तु कहात के वंशजों को किसी भी समय पवित्र तम्बू में प्रवेश नहीं करना है और उसमें की चीजों को नहीं देखना है। यदि वे ऐसा करते हैं, तो मैं कहात के सभी वंशजों को नष्ट कर दूँगा।"
\p
\s5
\v 21 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 22 “गेर्शोन से निकलने वाले कुलों से संबंधित सभी पुरुषों के नाम लिखो।
\v 23 उन लोगों के नाम लिखो जो तीस से पचास वर्ष की आयु के बीच के हैं। वे पुरुष जो पवित्र तम्बू में भी काम करेंगे।
\p
\s5
\v 24 यह वह काम है जो उन्हें करना है और जब आप किसी नए स्थान पर जाते हैं तो उन्हें यह चीजें उठानी होंगी:
\v 25 उन्हें पवित्र तम्बू के पर्दे उठाना चाहिए। उन्हें पवित्र तम्बू और उन सभी चीजों को जो उसे ढाकती है ले जाना चाहिए, जिनमें चमड़े की खाल से बने बाहरी आवरण और पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार के पर्दे शामिल हैं।
\v 26 उन्हें उस पर्दे को भी ले जाना चाहिए जो पवित्र तम्बू और वेदी के चारों ओर के आंगन के चारों ओर दीवार बनाती है, आंगन के प्रवेश द्वार के पर्दे, और पर्दे को बांधने वाली रस्सियों को लेना चाहिए। उन्हें इन चीजों को बांधना और उठाना भी चाहिए।
\s5
\v 27 हारून और उसके पुत्र गेर्शोन के सभी वंशजों के काम की देखरेख करेंगे। उस काम में उन चीजों को ले जाना और अन्य काम भी शामिल है जो उन्हें ले जाने के लिए जरूरी है। उन्हें गेर्शोन के वंशजों में से प्रत्येक को बताना होगा कि उन्हें क्या सामान लेना चाहिए।
\v 28 यह कार्य आपको उन पुरुषों को देना चाहिए जो गेर्शोन से निकलने वाले कुलों से संबंधित हैं। हारून का पुत्र ईतामार वह है जो उनके काम की निगरानी करेगा।
\p
\s5
\v 29 मरारी से निकलने वाले कुलों से संबंधित पुरुषों को भी गिनो।
\v 30 उन लोगों के नाम लिखो जो तीस से पचास वर्ष की आयु के बीच के हैं। वे पुरुष पवित्र तम्बू में भी काम करेंगे।
\s5
\v 31 उनका काम उन तख्तों को ले जाना होगा जो पवित्र तम्बू, बेंड़े, खम्भे जिस पर पर्दे लगते है और आधारों को खड़ा करते हैं।
\v 32 उन्हें पर्दे के लिए खम्भों को भी ले जाना होगा जो आंगन की दीवारें बनाती हैं और खम्भों के लिए आधार, तम्बू के खूँटे, और रस्सियाँ जिनसे पर्दों को बांधते हैं। प्रत्येक आदमी को बताएं कि उसे क्या उठा कर ले जाना है।
\s5
\v 33 वे काम हैं जो मरारी के वंशजों को पवित्र तम्बू में करना हैं। हारून का पुत्र ईतामार उनकी निगरानी करेगा। “
\p
\s5
\v 34 तब हारून और मूसा और इस्राएलियों के प्रधानों ने कहात के वंशजों को गिना, और उनके कुलों और परिवार के समूहों के नाम भी लिखे।
\v 35 उन्होंने उन सभी पुरुषों की गिनती की जो तीस से पचास वर्ष की आयु के बीच के थे, जो पवित्र तम्बू में काम करने में सक्षम थे।
\v 36 वे कुल 2,750 पुरुष थे।
\s5
\v 37 वे कहात के वंशज थे जो पवित्र तम्बू में काम करने में सक्षम थे। हारून और मूसा ने उन्हें गिना जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\p
\s5
\v 38 उन्होंने गेर्शोन के वंशजों को भी गिना, उनके कुलों और परिवार के समूहों के नाम भी लिखे।
\v 39 उन्होंने उन सभी पुरुषों की गिनती की जो तीस से पचास वर्ष की आयु के बीच के थे, जो पवित्र तम्बू में काम करने में सक्षम थे।
\v 40 वे कुल 2,630 पुरुष थे।
\s5
\v 41 वे गेर्शोन के वंशज थे जो पवित्र तम्बू में काम करने में सक्षम थे। हारून और मूसा ने उन्हें गिना जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी।
\p
\s5
\v 42 उन्होंने मरारी के वंशजों को भी गिना, उनके कुलों और परिवार के समूहों के नाम भी लिखे।
\v 43 उन्होंने उन सभी पुरुषों की गिनती की जो तीस से पचास वर्ष की आयु के बीच के थे, जो पवित्र तम्बू में काम करने में सक्षम थे।
\v 44 वे कुल 3,200 पुरुष थे।
\s5
\v 45 वे मरारी के वंशज थे जो काम करने में सक्षम थे। हारून और मूसा ने उन्हें गिना था जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\p
\s5
\v 46 इस प्रकार हारून और मूसा और इस्राएली प्रधानों ने लेवी के सभी वंशजों को गिना, उनके कुलों और परिवार समूहों के नाम भी लिखे।
\v 47 उन्होंने उन सभी पुरुषों की गिनती की जो तीस से पचास वर्ष की आयु के बीच के थे। वे लोग थे जो पवित्र तम्बू में काम करने में सक्षम थे और जो तम्बू और उसके साथ जुड़े सब कुछ को उठाते थे।
\v 48 वे कुल 8,580 पुरुष थे।
\s5
\v 49 उन्होंने लेवी के सभी वंशजों की गिनती पूरी की, जैसे कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। और उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को बताया कि उसे क्या काम करना था और जब वे एक नए स्थान पर जाएँ तो उन्हें क्या उठाना होगा।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएली लोगों को यह बता: ‘तुम्हें अपने शिविर से जहाँ तुम्हारे तम्बू हैं, किसी भी पुरुष या स्त्री को जिसे कुष्ठ रोग है और जिसके शरीर से कुछ तरल पदार्थ निकलता हो, और कोई भी जो शव को छूने के कारण परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य हो गया उसे दूर भेजना होगा।
\v 3 उन्हें इसलिए दूर भेज दो ताकि वे शिविर क्षेत्र में जहाँ मैं तुम्हारे बीच रहता हूँ, लोगों को छूकर उन्हें मेरे लिए अस्वीकार्य बनने का कारण न बने। ‘”
\v 4 तब इस्राएली लोगों ने आज्ञा को माना जो यहोवा ने मूसा को दी थी।
\p
\s5
\v 5 यहोवा ने मूसा को यह भी बताया,
\v 6 “इस्राएली लोगों को यह बताओ: ‘अगर कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध अपराध करता है, तो मैं यह मानता हूँ कि उस व्यक्ति ने मेरे साथ गलत किया है।
\v 7 उस व्यक्ति को स्वीकार करना चाहिए कि वह दोषी है, और उसे उस व्यक्ति को भुगतान करना होगा जिस के साथ गलत किया गया था, जो दूसरों के अनुसार उपयुक्त भुगतान माना जाता है, और उसे अतिरिक्त 20 प्रतिशत अधिक का भुगतान करना होगा।
\s5
\v 8 यदि जिस व्यक्ति के विरुद्ध गलत किया गया था, उसकी मृत्यु हो गई हो और उसका कोई रिश्तेदार नहीं हो जिस को धन का भुगतान किया जा सके, तो वो पैसा मेरा है, और उसे याजक को भुगतान किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जिसने गलत किया है उसे याजक को नर भेड़ देना चाहिए ताकि उस व्यक्ति के पाप की क्षमा के लिए उसे बलिदान किया जा सके।
\v 9 सभी पवित्र भेंट जो इस्राएली याजक के पास लाकर मुझे चढ़ाते हैं, वे याजक की होंगी।
\v 10 याजक उन उपहारों को रख सकता है। ‘”
\p
\s5
\v 11 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा:
\v 12 “इस्राएलियों को यह बता: ‘मान लो कि एक व्यक्ति सोचता है कि उसकी पत्नी हमेशा उसके साथ विश्वासपूर्वक नहीं रही है।
\s5
\v 13 मान लो कि वह सोचता है कि वह किसी और आदमी के साथ सोई है, लेकिन वह नहीं जानता कि यह सच है या नहीं, क्योंकि उसने उसे ऐसा करते नहीं देखा। वह इस कार्य में पकड़ी नहीं गई थी और यह बात कि उसने अपने पति के साथ अपनी शपथ को तोड़ा है साबित नहीं किया जा सके क्योंकि किसी ने उसे ऐसा करते नहीं देखा।
\v 14 लेकिन यदि उस स्त्री का पति ईर्ष्यावान है, और यदि उसे संदेह है कि उसने व्यभिचार किया है, और वह जानना चाहेगा कि यह सच है या नहीं, तो इसके लिए एक जांच है कि वह अशुद्ध है या नहीं।
\s5
\v 15 यह जांचने के लिए कि उसने व्यभिचार किया है, उसे अपनी पत्नी को याजक के पास ले जाना चाहिए। उसे दो लीटर जौ के आटे को भेंट के रूप में ले जाना चाहिए। याजक को जैतून का तेल या धूप उस पर नहीं डालना चाहिए, क्योंकि यह एक भेंट मनुष्य इसलिए लाया है क्योंकि वह ईर्ष्यावान है। यह भेंट यह पता लगाने के लिए है कि वह दोषी है या नहीं।
\p
\s5
\v 16 याजक को स्त्री को मेरी उपस्थिति में वेदी के सामने खड़े होने के लिए कहना चाहिए।
\v 17 उसे मिट्टी के मर्तबान में कुछ पवित्र पानी डालना चाहिए, और फिर उसे पवित्र तम्बू के भूमि से पानी में कुछ मिट्टी डालनी चाहिए।
\s5
\v 18 उसे स्त्री के बालों को खोलना चाहिए। तब उसे उस स्त्री के हाथों में आटा डालना चाहिए जो उसके ईर्ष्यावान पति ने यह निर्धारित करने के लिए भेंट किया है कि उसने व्यभिचार किया है या नहीं। याजक को उस कटोरे को पकड़ना चाहिए जिसमें वो कड़वा पानी है जो स्त्री को श्रापित होने का कारण बनती है, अगर वह दोषी ठहरती है।
\v 19 याजक उसे गंभीरता से घोषित करने के लिए कहेगा कि वह सच्चाई ही बताए। उसे उससे कहना चाहिए, “क्या कोई और आदमी तेरे साथ सोया है? क्या तू विश्वासयोग्यता से केवल अपने पति के साथ सोई है या नहीं? अगर तू किसी और आदमी के साथ नहीं सोई है, तो पानी पीने से तेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा।
\s5
\v 20 परन्तु यदि तू किसी और मनुष्य के साथ सोई है, तो यहोवा तुझे श्राप देंगे।
\v 21-22 तेरा गर्भ सूख जाएगा और तेरा पेट फूल जाएगा। तू कभी भी बच्चों को जन्म नहीं दे पाएगी, और जिसके परिणामस्वरूप, हर कोई तुझे श्राप देगा और तुझको धिक्कारेगा। यदि तूने व्यभिचार किया है, तो जब तू यह पानी पीती है, तो यही तेरे साथ होगा। तब स्त्री को उत्तर देना चाहिए, “यदि मैं दोषी हूँ, तो ऐसा होने पर मैं विरोध नहीं करूंगी।”
\p
\s5
\v 23 तब याजक इन श्रापों को एक छोटी सी पत्री पर स्याही से लिखे और फिर स्याही को कड़वे पानी में धोए।
\s5
\v 24-25 याजक उससे जौ के आटे की भेंट लेना चाहिए जो वह पकड़े हुए है; याजक को उसे उठाकर समर्पित करना होगा। तब उसे वेदी पर रखना होगा
\v 26 और बलिदान के रूप में उसका एक हिस्सा जलाएं। तब स्त्री को कड़वा पानी पीना चाहिए।
\s5
\v 27 यदि स्त्री ने अपने पति के साथ विश्वासपूर्वक सोने के बजाय व्यभिचार किया है, तो पानी उसे बहुत पीड़ा देगा। उसका गर्भ सूख जाएगा और उसका पेट फूल जाएगा, और वह बच्चों को जन्म देने में असमर्थ रहेगी। और फिर उसके रिश्तेदार उसे श्राप देंगे।
\v 28 लेकिन यदि वह निर्दोष है, तो उसके शरीर को नुकसान नहीं पहुंचेगा, और वह अभी भी बच्चों को जन्म दे पाएगी।
\p
\s5
\v 29 वह अनुष्ठान है जो किया जाना चाहिए जब विवाहित स्त्री ने व्यभिचार करने से पाप किया हो,
\v 30 या जब कोई आदमी ईर्ष्यावान होता है और संदेह करता है कि उसकी पत्नी दूसरे आदमी के साथ सोई है। याजक को उस स्त्री को मेरी उपस्थिति में वेदी पर खड़े होने और इन निर्देशों का पालन करने के लिए कहना चाहिए।
\s5
\v 31 अगर स्त्री ने पति के संदेह के अनुसार नहीं किया है, तो भी उसे अपनी पत्नी को याजक के पास गलत करने पर लेकर आने के लिए दंडित नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर उसकी पत्नी दोषी है, तो वह परिणामस्वरूप पीड़ित होगी। ‘”
\s5
\c 6
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा:
\v 2 “इस्राएलियों को यह बताओ: यदि तुम में से कोई भी विशेष रूप से स्वयं को मेरे लिए समर्पित करने का एक गंभीर वादा करना चाहता है, तो तुम्हारे द्वारा दिए गए इन निर्देशों का पालन करने के बाद, उसे नाज़ीर कहा जाएगा, जिसका अर्थ है ‘एक समर्पित व्यक्ति।’
\v 3 तुम्हें कोई शराब या अन्य दाखमधु नहीं पीना चाहिए। तुम्हें अंगूर का रस नहीं पीना चाहिए या अंगूर या किशमिश नहीं खाना चाहिए।
\v 4 जब तुम नाज़ीर होते हो, तब तुम्हें अंगूर से बनी हुई कोई भी चीज नहीं खानी चाहिए, अंगूर का छिलका या बीज भी नहीं।
\p
\s5
\v 5 यहाँ तक कि जब तुम नाज़ीर हो, तब तुम्हारे बाल भी मेरे लिए समर्पित होंगे, इसलिए तुम्हें कभी भी किसी को अपने बालों को काटने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। जब तक तुम्हारे लिए स्वयं को समर्पित करने के तुम्हारे गंभीर वादे का समय समाप्त नहीं हो जाता है, तब तक तुम्हें अपने बालों को लंबे बढ़ने देना चाहिए।
\s5
\v 6 और जब तुम नाज़ीर हो, तब तुम्हें किसी शव के पास नहीं जाना चाहिए।
\v 7 भले ही जो व्यक्ति मर गया हो, वह तुम्हारा पिता या तुम्हारी माता या भाई या बहन हो, उसके शव के निकट जाकर स्वयं को मेरे लिए अस्वीकार्य होने नहीं देना चाहिए। तुम्हारे लम्बे बाल दिखाते हैं कि तुम विशेष रूप से मेरे हो, इसलिए तुमको वह करना चाहिए जिसकी गंभीर शपथ खाई है और अपने बालों को काटना नहीं है।
\v 8 तुम्हे ऐसा उस समय तक करना होगा जब तक कि तुम इस विशेष रूप से मेरे लिए समर्पित रहते हो।
\p
\s5
\v 9 यदि कोई संपर्क में रहते हुए अकस्मात ही मर जाता है, तो तुम्हारे बाल जो मुझे समर्पित किए गए हैं वे पवित्र नहीं हैं। इसलिए तुमको सात दिनों तक प्रतीक्षा करके अपना सिर मुण्डवाना होगा। फिर मेरे द्वारा स्वीकार्य होने के लिए एक विशेष अनुष्ठान करना होगा।
\s5
\v 10 अगले दिन तुम्हें पवित्र तम्बू के द्वार पर याजक के पास दो पंडुक या दो कबूतर लाने होंगे।
\v 11 याजक उन पक्षियों को मारे और उनकी बलि चढ़ाएं। उनमें से एक तुम्हारे पाप के दोष को दूर करने के लिए भेंट होगी, और दूसरी मुझे प्रसन्न करने के लिए पूरी तरह जलाने वाली भेंट होगी। याजक उन्हें वेदी पर पूरी तरह जला देगा तब, मैं तुम्हे शव के निकट आने के लिए क्षमा कर दूँगा, और जब तुम्हारे बाल फिर से बढ़ जाएँ तब वे मेरे लिए फिर से समर्पित किए जाएँ।
\s5
\v 12 पिछली बार मेरे लिए अलग किए गए समय को नहीं माना जाएगा, क्योंकि नाज़ीर होने के समय के शव के निकट आ जाने से तुम मेरे लिए अस्वीकार्य हो गए थे। इसलिए पिछली बार जितने समय के लिए समर्पण की गंभीर शपथ खाई उसकी दूसरी बार फिर से शपथ खाना होगी। अपने अपराध को दूर करने के लिए एक वर्ष के भेड़ के बच्चे को भी बलि भी चढ़ाना होगा।
\p
\s5
\v 13 जब समर्पण की शपथ का समय पूरा हो जाए तब पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर जाना
\v 14 और तीन ऐसे पशु को मेरे लिए बलिदान चढ़ाना जिनमें कोई दोष न हो। एक मेढ़ा एक वर्षीय हो जिसे पूरी तरह से जला दिया एक वर्षीय मादा भेड़ पाप के दोष को दूर करने के लिए बलि की जाए, और मेरे साथ फिर से मेल करने के लिए एक जवान मेढ़े की बलि चढ़ाई जाए।
\p
\v 15 इन पशुओं के साथ चढ़ाने के लिए दाखरस भी लाना होगा मैदे और जैतून के तेल से बनी रोटियों को टोकरी में रखकर लाना होगा परन्तु रोटियाँ ख़मीर किए हुए आटे से बनी न हों रोटियाँ भी बनाकर उन पर जैतून का तेल लगाकर याजक को देना।
\p
\s5
\v 16 याजक उस जवान मेमने और जवान मेढ़े के बच्चे को वेदी पर रखेगा और उन्हें पूरी तरह से उन्हें जला देगा, ताकि मैं प्रसन्न हो जाऊँ और तुम्हे क्षमा कर दूँ।
\v 17 तब वह मेरे साथ तुम्हारा फिर से मेल कराने के लिए उस पूर्ण विकसित मेढ़े को मारे और बलि करे और वह वेदी पर कुछ रोटी और आटा और दाखरस भी जलाएगा।
\p
\s5
\v 18 उसके बाद, तुम पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर अपने बालों को मुण्डवा देना और उन बालों को उस आग में डाल देना जो पशु की बलि के नीचे है जिसे वेदी पर चढ़ाया गया है मेरे साथ पुनः मेल हो सके।
\p
\s5
\v 19 मेढ़े के कंधे का मांस उबाला जाए और जब वह पक जाए तब याजक एक रोटी और जैतून का तेल लगाई हुई एक रुमाली रोटी के साथ उस मांस को नाज़ीर के हाथों में रखे।
\v 20 तब याजक उन्हें उससे वापस लेकर और उन्हें मेरे लिए समर्पित करने को ऊँचा उठाएगा। वे अब याजक के हैं, और वह उस मेढ़े के कंधे से और पसलियों से और जांघों में से मांस खा सकता है, क्योंकि वह मांस बलि में से उसका भाग है। उसके बाद, अब तुम नाज़ीर नहीं रहे, और तुम फिर से दाखरस पी सकते हो।
\p
\s5
\v 21 ये उन भेंटों के विषय में नियम हैं जिनकी शपथ नाज़ीर ने खाई थी कि जब मेरे लिए समर्पित होने का उसका समय समाप्त हो जाए तब वह उन्हें मेरे लिए चढ़ाएगा। इन भेंटों को लेना तो उसके लिए अनिवार्य है परन्तु यदि वह चाहते हैं, तो वे इनके अलावा और भेंट ला सकते हैं। और उन्हें वह सब कुछ करना होगा जिसकी उसने मेरे निमित्त समर्पण के समय शपथ खाई थी। “
\p
\s5
\v 22 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 23 “हारून और उसके पुत्रों से कह कि जब वे इस्राएलियों को आशीर्वाद देने के लिए मुझ से विनती करते हैं, तब उन्हें यह कहना होगा,
\q1
\v 24 ‘यहोवा तुम्हे आशीर्वाद देते है
\q2 और तुम्हारी रक्षा करे।
\q1
\s5
\v 25 ऐसा हो कि वह तुमसे प्रसन्न हो
\q2 और तुम पर दया करें।
\q1
\v 26 ऐसा हो कि वह तुम्हारे प्रति भले हो
\q2 और तुम्हारे लिए सब बातें भली होने दें। ‘”
\p
\v 27 फिर यहोवा ने कहा, “यदि हारून और उसके पुत्र मुझे इस्राएलियों को आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं, तो मैं उन्हें सचमुच आशीर्वाद दूंगा।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब मूसा ने पवित्र तम्बू की स्थापना पूरी कर ली, तो उसने उस पर तेल डाला, और उसे यहोवा के प्रतिष्ठा के लिए अलग कर दिया। उसने पवित्र तम्बू के भीतर की सब वस्तुओं को और बलि चढ़ाने की वेदी और वेदी पर काम में आनेवाली सभी वस्तुओं को भी समर्पित किया।
\v 2 तब इस्राएल के बारह गोत्रों के प्रधानों ने, जिन्होंने युद्ध के योग्य पुरुषों की गिनती करने में हारून और मूसा की सहायता की थी,
\v 3 पवित्र तम्बू में यहोवा के लिए भेंट लेकर आए। वे छः मजबूत बैल गाड़ियाँ और बारह बैल लेकर आए, प्रत्येक प्रधान की ओर से एक बैल और दो प्रधानों की ओर से एक बैल गाड़ी लाए।
\p
\s5
\v 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 5 “इन भेंटों को स्वीकार करले जिससे कि, लेवी के वंशज पवित्र तम्बू की पवित्र वस्तुओं को ले जाने के लिए उनका उपयोग कर सकें।”
\p
\s5
\v 6 तब मूसा ने गाड़ियां और बैल लेकर उन्हें लेवी के वंशजों को दे दिया।
\v 7 उसने गेर्शोन के वंशजों को उनके काम के लिए दो गाड़ियां और चार बैल दिए,
\v 8 और उसने मरारी के वंशजों को उनके काम के लिए चार गाड़ियां और आठ बैल दिए। हारून का बेटा ईतामार उनके सभी कामों पर अधिकारी था।
\s5
\v 9 परन्तु उसने कहात के वंशजों को कोई गाड़ी या बैल नहीं दिया, क्योंकि उन्हें पवित्र वस्तुओं की देखभाल करनी थी और उन्हें अपने कंधों पर ले जाना था, न कि गाड़ियों में।
\p
\s5
\v 10 जिस दिन वेदी समर्पित की गई थी, बारह प्रधानों ने समर्पित करने के लिए अन्य भेंटों को लाकर उन्हें वेदी के सामने रखा।
\v 11 यहोवा ने मूसा से कहा, “अगले बारह दिनों में प्रत्येक प्रधान को वेदी के समर्पण के लिए एक-एक दिन अपना भेंट लेकर आना होगा।”
\s5
\v 12-13 पहले दिन, यहूदा के गोत्र से अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था , दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल से सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन्होंने उन दोनों का वज़न मानक पैमाने का उपयोग करके वजन किया गया था,
\v 14 और 113 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 15-17 वह एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ के बच्चे को भी भेंट के लिए लाया, कि उनको वेदी पर पूरी तरह जला दिया जा सके,
\li और लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पाँच मेम्ने, भी यहोवा के साथ लोगों का मेल करने के लिए बलि हेतु ले या।
\s5
\v 18-19 दूसरे दिन, इस्साकार का प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी का एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों को वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 20-23 नतनेल वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ का भेंट भी लाया, लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पाँच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल बहाल करने के लिए बलि ले आया।
\s5
\v 24-26 तीसरे दिन, हेलोन का पुत्र एलीआब, जो जबूलून के गोत्र का प्रधान है, अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी का एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 27-29 एलीआब वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ का भेंट भी लाया, लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पाँच मेम्ने, भी यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 30-32 चौथे दिन, रूबेन के गोत्र का प्रधान शदेऊर के पुत्र एलीसूर अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 33-35 एलीसूर वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li एक बकरी जिसको लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु लाया गया,
\li और दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल को बहाल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 36-38 पाँचवें दिन, शिमोन के गोत्र का प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 39-41 शलूमीएल वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ का भेंट भी लाया,
\li एक बकरी जिसको लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु लाए,
\li और दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे, और एक वर्ष के पाँच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 42-44 छठवें दिन, गाद के गोत्र का प्रधान दूएल का पुत्र एल्यासाप अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 45-47 एल्यासाप वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li एक बकरी जिसको लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु लाया,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 48-50 सातवें दिन, अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा, जो एप्रैम के गोत्र का प्रधान है अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 51-53 एलीशामा वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु लाया,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेमने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 54-56 आठवें दिन, मनश्शे के गोत्र के प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 57-59 गम्लीएल वेदी पर जलाने हेतु एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li लोगों के पापों के अपराध को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेमने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 60-62 नौवें दिन, बिन्यामीन के गोत्र के प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 63-65 अबीदान वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li एक बकरी जिसको लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु लाया,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ।
\s5
\v 66-68 दसवें दिन, दान के गोत्र के प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर अपनीं भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन डेढ़ किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 69-71 अहीएजेर वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li एक बकरी जिसको लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी,
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 72-74 ग्यारहवें दिन, आशेर के गोत्र के प्रधान ओक्रान का पुत्र पगीएल अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन ढाई किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 75-77 पगीएल वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी।
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेम्ने, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि हेतु ले आया।
\s5
\v 78-80 बारहवें दिन, नप्ताली के गोत्र के प्रधान एनान का पुत्र अहीरा अपनी भेंट लाया:
\li चाँदी की एक परात जिसका वजन ढाई किलोग्राम था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वजन आठ सौ ग्राम था, दोनों अन्नबलि के लिए जैतून के तेल में सने हुए मैदे से भरे हुए थे। उन दोनों का वजन मानक पैमाने से किया गया था,
\li और 110 ग्राम वजन वाला एक छोटा सा सोने का बर्तन जो धूप से भरा हुआ था।
\li
\s5
\v 81-83 अहीरा वेदी पर जलाने के लिए एक जवान बैल, एक मेढ़ा, और एक वर्षीय नर भेड़ की भेंट भी लाया,
\li लोगों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि हेतु एक बकरी भी
\li और दो बैल, पांच मेढ़े, पांच बकरे, और एक वर्ष के पांच मेमने, यहोवा के साथ लोगों पुनः मेल करने के लिए बलिदान हेतु ले आया।
\p
\s5
\v 84-86 जब वेदी यहोवा के लिए समर्पित की गई, तो वे बारह प्रधान इन भेंटों को लेकर आए:
\li बारह चाँदी की परात और बारह चाँदी के कटोरे, जिसका कुल वजन अट्ठाइस किलोग्राम का था, उनमें से प्रत्येक पवित्र तम्बू में रखे तराजू पर तौला गया था,
\li और धूप से भरे बारह सोने के कटोरे, जिसका कुल वजन सवा किलोग्राम था, प्रत्येक उसी तराजू पर तौला गया था।
\li
\s5
\v 87-88 बारह प्रधानों ने बारह बैल, बारह मेढ़े, और बारह एक वर्षीय नर भेड़ के बच्चे की भेंट भी लाए, जिसे वेदी पर अन्नबलि के साथ पूरी तरह से जलाना था,
\li बारह बकरियों को लोगों के पापों का दोष को दूर करने के लिए बलि किया जाना था,
\li और चौबीस बैल, साठ भेड़ें, साठ बकरे, और साठ मेम्ने, जो एक वर्ष के थे, यहोवा के साथ लोगों का पुनः मेल करने के लिए बलि करने के लिए दिया।
\p
\s5
\v 89 मूसा ने, जब भी यहोवा के साथ बात करने के लिए पवित्र तम्बू में प्रवेश किया, तो उसने पवित्र सन्दूक के ढक्कन के ऊपर के पंखों वाले प्राणियों की दो प्रतिमाओं के बीच से यहोवा की आवाज़ सुनी।
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “हारून से कह कि वह दीवट पर सात दीपकों को इस प्रकार रखे कि वे दीवट के सामने की ओर चमकें।”
\p
\s5
\v 3 तब मूसा ने उसे वह सब सुना जो यहोवा ने कहा था, और उसने ऐसा किया।
\v 4 दीवट को नीचे आधार से लेकर शीर्ष की सजावट तक, जो फूलों के समान थी, सोने के एक बड़े टुकड़े को हथौड़े से पीटकर बनाया गया था। दीवट को ठीक वैसा ही बनाया गया था जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था कि वह बनाया जाए।
\p
\s5
\v 5 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 6 “तू लेवी के वंशजों को अन्य इस्राएली लोगों में से अलग कर कि मेरे लिए स्वीकार्य हों।
\s5
\v 7 उन पर पानी छिड़ककर ऐसा करना; यह उनके पापों के दोष से मुक्त होने का प्रतीक होगा। तब उन्हें अपने शरीर के सब बालों का मुण्डन करना चाहिए और अपने कपड़े धोना आवश्यक है।
\v 8 तब उन्हें एक बैल और जैतून के तेल में सना हुआ कुछ आटा लाना होगा जिन्हें बलिदान के रूप में जला दिया जाएगा। उन्हें एक और बैल भी लाना होगा जिसे उनके पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि किया जाएगा।
\s5
\v 9 तब लेवी के वंशजों के चारों ओर इकट्ठा होने के लिए, तू सब इस्राएलियों को पवित्र तम्बू के सामने एकत्र होने के लिए बुलाना।
\v 10 तब इस्राएली लोगों को लेवी के वंशजों पर अपने हाथ रखें।
\v 11 तब हारून उन्हें इस्राएली लोगों से प्राप्त सामान उन्हें मेरे लिए लाए जैसे कि उसने उन्हें मेरे सामने ऊपर उठाया कि वे पवित्र तम्बू में मेरे लिए काम कर सकें।
\p
\s5
\v 12 उसके बाद, लेवी के वंश अपने हाथ दो बैलों के सिर पर रखें। तब बैलों को मार डाला जाएगा और वेदी पर जला दिया। एक अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि किया जाए, और दूसरा मुझे प्रसन्न करने के लिए पूरी तरह जला दिया जाएगा।
\v 13 लेवी के वंशजों को हारून और उसके पुत्रों के सामने वेदी के सामने खड़ा होना है, और तब तू उन्हें मेरे लिए समर्पित करना, जैसे कि तुमने उन्हें मेरे लिए ऊपर उठाया हो।
\s5
\v 14 यह अनुष्ठान दिखाएगा कि लेवी के वंशज अन्य इस्राएली लोगों से अलग हैं और वे मेरे हैं।
\p
\v 15 लेवी के वंशज जब मेरे लिए स्वीकार्य किए जा चुकें और मेरे लिए एक विशेष भेंट के रूप में प्रस्तुत करने के बाद, जैसे कि वे मेरे लिए ऊपर उठाए गए हों, वे पवित्र तम्बू में काम करना शुरू कर सकते हैं।
\s5
\v 16 वे मेरे होंगे। वे मेरे लिए सभी इस्राएली लोगों के पहिलौठे पुरुषों के बदले में काम करेंगे, क्योंकि वे भी मेरे हैं।
\v 17 इस्राएल में सभी पहिलौठे मनुष्य और पशु, दोनों मेरे हैं। जब मैंने मिस्रियों के सभी पहिलौठों पुत्रों को मारा था, तब मैंने उन्हें अपने लिए अलग कर लिया था। परन्तु मैंने इस्राएलियों के सभी पहिलौठे, पुरुषों और पशुओं, दोनों को बचाया, क्योंकि वे मेरे हैं।
\s5
\v 18 परन्तु अब मैंने लेवी के वंशजों को अन्य इस्राएली लोगों के पहिलौठे पुत्रों की जगह लेने के लिए चुना है।
\v 19 मैंने लेवी के वंशजों को पवित्र तम्बू में हारून और उसके पुत्रों की सहायता करने के लिए नियुक्त किया है, जब हारून और उसके पुत्र इस्राएलियों के पापों के दोष को दूर करने के लिए बलि चढ़ाते हैं, और इस्राएलियों को तम्बू के निकट आने से रोकते हैं, ताकि महामारी उनके रोगी होकर मरने का कारण न बन जाए। “
\p
\s5
\v 20 हारून और मूसा और अन्य इस्राएलियों ने लेवी के वंशजों को यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ करने में सहायता की।
\v 21 लेवी के वंशजों ने स्वयं पर पानी छिड़का ताकि वे यह दर्शा सकें कि उन्हें उनके पापों के अपराध से मुक्त कर दिया गया है, और उन्होंने अपने कपड़े धोए। तब हारून ने उन्हें वेदी के पास यहोवा के सामने उपस्थित किया, जैसे कि उसने उन्हें उसके लिए ऊपर उठाया हो, और उसने उनके पापों के दोष को दूर करने और उन्हें यहोवा के निमित्त स्वीकार्य होने के लिए बलि चढ़ाई।
\s5
\v 22 उसके बाद, लेवी के वंशजों ने हारून और उसके पुत्रों की सहायता के लिए, पवित्र तम्बू में काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने वैसा ही किया जैसी यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\p
\s5
\v 23 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा:
\v 24 “लेवी के वंशज जो पच्चीस वर्ष और पचास वर्ष की आयु के बीच हैं, वे पवित्र तम्बू में काम करेंगे।
\s5
\v 25 परन्तु पचास वर्ष की उम्र के बाद, उन्हें सेवा से मुक्त होना चाहिए।
\v 26 वे पवित्र तम्बू में अपने साथी लेवियों के काम में हाथ बँटा सकते हैं जो पवित्र तम्बू में उनका काम होगा परन्तु उन्हें स्वयं काम नहीं करना है। उनकी सेवा के विषय तू उन्हें यह समझा देना।"
\s5
\c 9
\p
\v 1 इस्राएलियों के मिस्र से निकल आने के एक वर्ष बाद, दूसरे वर्ष के पहले महीने में, जब वे सीनै के मरुस्थल में थे, तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि उन्हें फिर से फसह का त्यौहार मनाना चाहिए।
\v 3 उन्हें यह इस महीने के चौदहवें दिन शाम को फसह मनाना होगा, और उन्हें उन सब निर्देशों का पालन करना होगा जो मैं तुझे पहले दे चूका हूँ। “
\p
\s5
\v 4 अत: मूसा ने लोगों को यहोवा के फसह मनाने के विषय में जो आज्ञा थी, सुना दी।
\v 5 लोगों ने उस महीने के चौदहवें दिन की शाम को सीनै के मरुस्थल में फसह मनाया, जैसी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी।
\p
\s5
\v 6 परन्तु कुछ इस्राएली लोगों ने एक शव को छुआ था, और जिसके कारण वे फसह मनाने के लिए अयोग्य हो गए थे। अत: उन्होंने हारून और मूसा से पूछा,
\v 7 “यह सच है कि हमने एक शव को छुआ है। लेकिन हमें फसह के पर्व मनाने और हर किसी के समान यहोवा के लिए बलि चढ़ाने से क्यों रोकते हो?”
\p
\v 8 मूसा ने उत्तर दिया, “यहाँ रुको, मैं पवित्र तम्बू में जाकर इसके विषय में यहोवा से पूछता हूँ कि वह क्या कहते है।”
\p
\s5
\v 9 तब मूसा तम्बू में गया और यहोवा से पूछा कि वह उन लोगों से क्या कहे, और यहोवा ने यह कहा:
\v 10 “ इस्राएलियों से कह ‘यदि तुम में से या तुम्हारे वंशजों में से कोई शव को छूता हैं जिसके कारण वह मेरे लिए अस्वीकार्य हो जाता है, या यदि फसह मनाने के लिए तुम घर से दूर एक लम्बी यात्रा पर, तब भी तुम्हे फसह मनाने की अनुमति मिलेगी।
\s5
\v 11 परन्तु ठीक एक महीने के बाद, उस महीने के चौदहवें दिन की शाम को तुम्हे फसह मनाना होगा। फसह के त्यौहार के भेड़ के मांस को खमीर के बिना पकाई गई रोटी और कड़वी साग-पात के साथ खाया जाए।
\v 12 अगली सुबह तक उसमें से कुछ न छोड़ना। और भेड़ के बच्चे की किसी भी हड्डी को न तोड़ना। फसह मनाने के विषय में सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है।
\s5
\v 13 परन्तु यदि तुमने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे फसह का त्यौहार मनाने के लिए अयोग्य ठहरे, और घर से दूर लम्बी यात्रा पर भी नहीं हो फिर भी उचित समय पर मेरे लिए बलि नहीं चढ़ाते, तो तुम अब मेरे लोगों में नहीं गिने जाओगे। तुम्हे दण्ड दिया जाएगा।
\p
\v 14 आपके बीच रहने वाले विदेशी लोगों को भी फसह का त्यौहार मनाना चाहिए और इसके विषय में मेरे सभी आदेशों का पालन करना चाहिए। ‘”
\p
\s5
\v 15-16 जिस दिन पवित्र तम्बू स्थापित किया गया था, उस दिन एक बादल ने उसे ढाँप लिया था। लेकिन सूर्यास्त से लेकर अगले दिन सूरज उगने तक वह बादल एक विशाल आग के जैसा दिखता था। और जब तक इस्राएली मरुस्थल में थे, तब तक ऐसा प्रतिदिन होता था।
\v 17 जब बादल उठ जाता था और एक नए स्थान को जाने लगता, तो इस्राएली उसके पीछे चलने लगते। जब बादल रुक जाता, तब इस्राएली भी वहाँ रुक जाते और अपने तम्बू खड़े करते।
\s5
\v 18 जब यहोवा इस्राएलियों से चलने को कहते तब हो वे चलते थे और जब यहोवा उनसे रुकने को कहते तब वे रुक जाते थे जो बादल के चलने या रुकने पर निर्भर था। जब बादल, पवित्र तम्बू के ऊपर रहता, तब इस्राएली उस स्थान पर रहते ।
\v 19 कभी-कभी बादल लंबे समय तक पवित्र तम्बू पर रहता था, जब ऐसा होता था, तब इस्राएली नहीं चलते थे।
\s5
\v 20 कभी-कभी बादल केवल कई दिनों तक पवित्र तम्बू पर छाया रहता था। ऐसे में, इस्राएली यहोवा के आदेश के अनुसार अपने तम्बू खड़े कर देते, और जब यहोवा ने एक नए स्थान पर जाने का आदेश देते तब वे नए स्थान की ओर चल पड़ते।
\v 21 कभी बादल एक ही स्थान में एक ही दिन ठहरता था। जब ऐसा होता था, जब बादल अगली सुबह आसमान में उठ जाता था, तो लोग आगे बढ़ते थे। जब भी बादल चलता था, दिन के समय या रात के समय तब लोग भी चलते थे।
\s5
\v 22 यदि बादल दो दिन तक, या एक महीने तक, या एक वर्ष तक पवित्र तम्बू पर रुका रहता तो उस पूरे समय लोग वहीँ रहते थे। लेकिन जब बादल आकाश में उठ जाता था, तो वे आगे बढ़ने लगते थे।
\v 23 जब यहोवा ने उन्हें ठहरने और उनके तम्बू खड़े करने का आदेश दिया, तो उन्होंने ऐसा ही किया। जब उसने उन्हें चलने लिए कहा, तो वे चल पड़े। यहोवा ने मूसा को उनके लिए जो निर्देश दिए थे, उन्होंने वैसा किया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 2 “किसी को आज्ञा दे कि वह चाँदी के दो टुकड़ों को हथोड़े से पीट-पीटकर दो तुरहियाँ बनाए । तुरही फूंककर लोगों को एक स्थान में आने के लिए बुलाना और उन्हें अपने शिविर को एक नए स्थान पर ले जाने के लिए भी उससे संकेत देना।
\s5
\v 3 यदि दोनों तुरही फूंकी जाएं, तो इसका अर्थ है कि हर एक जन पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर आ जाए।
\v 4 यदि केवल एक तुरही फूंकी जाए, तो इसका अर्थ है कि केवल गोत्रों के बारह प्रधानों को इकट्ठा होना है।
\v 5 यदि तुरही ऊँचे शब्द में फूंकी जाए है, तो पवित्र तम्बू के पूर्व में रहने वाले गोत्रों को चलना आरंभ करना होगा।
\s5
\v 6 जब दूसरी बार तुरही ऊँचे शब्द में फूंकी जाती है, तो दक्षिण में रहने वाले गोत्रों को आगे बढ़ना होगा। तुरही का ऊँचे शब्द यह संकेत देती है कि उन्हें आगे बढ़ना आरंभ करना है।
\v 7 जब केवल लोगों को इकट्ठा करना हो, तो तुरही फूंको, लेकिन ऊँचे शब्द में नहीं फूँकना।
\p
\v 8 याजक जो हारून से वंशज हैं वे तुरही फूँकेंगे। यह एक विधि है जो कभी नहीं बदली जाएगी।
\s5
\v 9 जब तुम शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने के लिए निकलो तो यदि वे तुम पर आक्रमण करते हैं, तो याजकों से कहना की ऊँचे शब्द में ज़ोर से तुरही फूंकें। मैं, यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर सुनूंगा, और मैं तुम्हे तुम्हारे शत्रुओं से बचाऊंगा।
\s5
\v 10 जब लोग आनन्दित हों और प्रति वर्ष त्योहारों के समय और प्रत्येक महीने नए चाँद का पर्व मनाते समय भी याजकों को तुरही फूँकने के लिए कहना। उनसे कहना कि जब लोग जलानेवाली भेंट लाए, और जब वे मेरे साथ मेल करने की भेंट लाए, उस समय भी वे तुरही फूंकें ऐसे करने पर तुम मेरे विषय में सोचोगे। तुमको ऐसा इसलिए करना चाहिए, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। “
\p
\s5
\v 11 इस्राएलियों के मिस्र छोड़ने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन, बादल पवित्र तम्बू के ऊपर से उठ गया।
\v 12 तब इस्राएली सीनै के मरुस्थल से चले, और जब तक पारान के मरुस्थल में बादल नहीं रुका तब तक वे उत्तर दिशा में बढ़ते रहे।
\v 13 यह पहली बार था कि वे यहोवा द्वारा मूसा को दिए गए निर्देशों पर, प्रस्थान किए।
\p
\s5
\v 14 जो दल अपने झंडे को लेकर पहले चला वह यहूदा का गोत्र था। अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन उनका प्रधान था।
\v 15 इस्साकार के गोत्र के दल उनके पीछे चले। सूआर का पुत्र नतनेल उनका प्रधान था।
\v 16 जबूलून के गोत्र का दल उनके पीछे चला। हेलोन का पुत्र एलीआब, उनका प्रधान था।
\s5
\v 17 तब उन्होंने पवित्र तम्बू को उतार दिया, और गेर्शोन और मरारी के वंशज उसे लेकर, उन दलों के पीछे चले।
\p
\v 18 अगला दल रूबेन के गोत्र का था, जो अपना ध्वज लेकर आगे चले। शदेऊर का पुत्र एलीसूर उनका प्रधान था।
\v 19 उसके बाद शिमोन के गोत्र का दल अगला था। सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल उनका प्रधान था।
\v 20 उसके पीछे गाद के गोत्र का दल था। दूएल का पुत्र एल्यासाप उनका प्रधान था।
\s5
\v 21 फिर कहात के वंशजों का दल अगला था। वे पवित्र तम्बू की पवित्र वस्तुओं को उठाकर चले। उनके पहुंचने से पहले पवित्र तम्बू नए स्थान पर स्थापित किया गया।
\p
\v 22 अपना ध्वज लेकर एप्रैम के गोत्र का दल अगला था। अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा उनका प्रधान था।
\v 23 मनश्शे के गोत्र का दल उनके पीछे चला। पदासूर का पुत्र गम्लीएल उनका प्रधान था।
\v 24 उनके पीछे बिन्यामीन के गोत्र का दल था। गिदोनी का पुत्र अबीदान, उनका प्रधान था।
\p
\s5
\v 25 जो लोग अन्त में चलने वाले थे निम्न प्रकार से हैं अर्थात्, दान के गोत्र का दल था, जो अपना ध्वज लेकर चला। अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर उनका प्रधान था।
\v 26 आशेर के गोत्र का दल उनके पीछे चला। ओक्रान का पुत्र पगीएल, उनका प्रधान था।
\v 27 नप्ताली के गोत्र का दल अन्तिम था। एनान का पुत्र अहीरा उनका प्रधान था।
\v 28 इस्राएल के गोत्रों के दल इसी क्रम में यात्रा करते थे।
\p
\s5
\v 29 एक दिन मूसा ने मिद्यानियों के समुदाय के रूएल के पुत्र होबाब से जो उसका दामाद था कहा, “हम उस स्थान की ओर जा रहे हैं जिसे यहोवा ने हमें देने की प्रतिज्ञा की है। हमारे साथ आ और हम तेरी अच्छी सेवा करेंगे, क्योंकि यहोवा ने हम इस्राएलियों को भली वस्तुएँ देने की प्रतिज्ञा ली है।"
\p
\v 30 परन्तु होबाब ने उत्तर दिया, “नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा। मैं अपने देश और अपने परिवार में लौटना चाहता हूँ।”
\p
\s5
\v 31 परन्तु मूसा ने कहा, “कृपया हमें मत छोड़। तू उन स्थानों को जानता है जहाँ हम इस मरुस्थल में अपने तम्बू खड़े कर सकते हैं, और तू हमारा मार्गदर्शन भी कर सकता है।
\v 32 हमारे साथ आ। हम उन सभी अच्छी चीजों को जो यहोवा हमें देते हैं, तेरे साथ बाँट लेंगे।"
\p
\s5
\v 33 इसलिए होबाब उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गया। इस्राएलियों ने सीनै पर्वत छोड़ा, जिसे उन्होंने यहोवा का पर्वत कहा, और वे तीन दिन तक चले। उन तीन दिनों के लिए, पवित्र सन्दूक को उठाकर चलने वाले लोग, दूसरे लोगों के आगे चले, और वे अपने तम्बू खड़े करने के लिए जगह की तलाश करते रहे।
\v 34 यहोवा द्वारा भेजा गया बादल प्रति दिन उनके ऊपर रहता था।
\p
\s5
\v 35 हर सुबह जब पवित्र सन्दूक को लेकर चलने वाले पुरुष चलने लगते तब मूसा ने कहता था,
\q1 “हे यहोवा, उठो!
\q2 अपने शत्रुओं को तितर-बितर करो!
\q2 उन लोगों को जो आपसे घृणा करते हैं उन्हें अपने से दूर भागा दो!"
\p
\v 36 और हर बार जब पुरुष पवित्र सन्दूक को रखने के लिए रुकते थे, तब मूसा कहता था,
\q1 “हे यहोवा, हम असंख्य इस्राएलियों के निकट ही रहना!”
\s5
\c 11
\p
\v 1 एक दिन लोगों ने अपनी परेशानियों के विषय में यहोवा से शिकायत की। जब यहोवा ने सुना कि वे क्या कह रहे थे, तो वे क्रोधित हो गये। इसलिए उन्होंने एक आग भेजी जो लोगों के बीच उनकी छावनी को किनारे से जला रही थी।
\v 2 तब लोगों ने मूसा को रोते हुए पुकारा, और उसने यहोवा से प्रार्थना की। तब आग जलनी बंद हो गई।
\v 3 इसलिए उन्होंने उस स्थान को तबेरा कहा, जिसका अर्थ है ‘जल रहा है, क्योंकि यहोवा की ओर से भेजी गई आग उनके बीच में जल गई थी।
\p
\s5
\v 4 तब इस्राएलियों के साथ यात्रा करने वाले अन्य लोगों में कुछ परेशानी उत्पन्न करने वाले लोग अच्छे भोजन की लालसा करने लगे। और जब उन्होंने शिकायत की तो इस्राएलियों ने भी शिकायत करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि खाने के लिए हमारे पास कुछ मांस हो!
\v 5 हमें वह मछली याद है जो हमने मिस्र में खाई थी, मछली जो बिना किसी दाम के दी गई थी। और हमारे पास खाने के लिए खीरे, खरबूजे, गन्दने, प्याज और लहसुन थे।
\v 6 लेकिन अब हमारी खाने की इच्छा समाप्त हो गई है, क्योंकि हमारे पास खाने के लिए केवल मन्ना है! "
\p
\s5
\v 7 मन्ना छोटे-छोटे सफेद बीजों जैसा दिखता है।
\v 8 हर सुबह लोग बाहर निकलते थे और भूमि पर से उसे इकट्ठा करते थे। तब वे इसे पीसकर या पत्थरों से कूटकर आटा बनाते थे। फिर वे पानी मिलाकर इसे एक बर्तन में उबालते थे, या वे इस से फुलके बनाते थे। फुलकों का स्वाद जैतून के तेल से पकाई हुए रोटी के जैसा था।
\s5
\v 9 हर रात आकाश से ओस के समान मन्ना भूमि पर गिरता था जहाँ उनके तम्बू थे।
\p
\v 10 मूसा ने सभी इस्राएलियों की शिकायत को सुना जो वे अपने तम्बूओं के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर कर रहे थे। यहोवा बहुत क्रोधित हो गये, और मूसा भी बहुत परेशान था।
\s5
\v 11 वह पवित्र तम्बू में गया और यहोवा से पूछा, “आपने अपने दास, पर यह परेशानी क्यों डाली है? मुझ पर दया करो! मैंने क्या गलत किया है, जिसके कारण आपने मुझे इन लोगों को संभालने के लिए नियुक्त किया है?
\v 12 मैं उनका पिता नहीं हूँ। आपने मुझे उनको संभालने के लिए क्यों कहा है जैसे एक स्त्री अपने बच्चे को लिए फिरती है और उसे दूध पिलाती है? मैं उन्हें उस देश में कैसे ले जा सकता हूँ जिसे आपने हमारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की है?
\s5
\v 13 इन सब लोगों को खिलाने के लिए मुझे मांस कहां से मिलेगा? वे मुझसे शिकायत करते रहते हैं, ‘हमें खाने के लिए मांस दे!
\v 14 मैं इन लोगों का बोझ अकेले नहीं उठा सकता हूँ! वे मेरे लिए भारी बोझ के समान हैं, और मैं अब यह भारी बोझ नहीं उठा सकता।
\v 15 यदि आप मेरे प्रति इस तरह कार्य करना चाहते हैं, तो मुझे अभी मार दो। यदि आप वास्तव में मेरे विषय में चिंतित हैं, तो मेरे प्रति दयालु रहें और उनकी देखभाल करने की मेरे कष्ट को समाप्त करने के लिए मुझे मार डाल!"
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “सत्तर लोगों को बुलाओ जिन्हें तू जानता है कि इस्राएलियों के प्रधान हैं। और उन्हें पवित्र तम्बू के सामने खड़े होने के लिए कह।
\v 17 मैं नीचे आकर वहाँ तेरे साथ बात करूँगा। और मेरी आत्मा की शक्ति जो तुम में है, उसमें से कुछ शक्ति लेकर उनमें डालूँगा। वे इन लोगों के विवाद के विषयों को निपटाने में तेरी सहायता करेंगे इस प्रकार तुझे अकेले काम करने की आवश्यक्ता नहीं होगी।
\p
\s5
\v 18 इस के अतिरिक्त, लोगों से कह, ‘स्वयं को मेरे लिए स्वीकार करने योग्य बनाओ, और कल तुम्हारे पास खाने के लिए मांस होगा। तुम शिकायत कर रहे थे, और कह रहे थे, कि हम खाने के लिए मांस चाहते हैं। मिस्र में हमारे पास बेहतर भोजन था!” यहोवा ने तुम्हारी सुनी अब यहोवा तुम्हें कुछ मांस देंगे, और तुम इसे खाओगे।
\v 19 तुम एक या दो दिनों, या केवल पांच या दस या बीस दिनों के लिए ही नहीं मांस खाओगे।
\v 20 तुम एक महीने तक प्रति दिन मांस खाओगे, और फिर तुम इससे घृणा करने लगोगे, और इससे तुम्हें उल्टी होगी। ऐसा इसलिए होगा कि तुमने यहोवा का तिरस्कार किया है, जो तुम्हारे मध्य में है और तुम ने उसकी उपस्थिति में रोना-पीटना मचाया और कहा, “अगर हम मिस्र नहीं छोड़ते तो हमारे पास खाने के लिए उत्तम भोजन होता।”
\p
\s5
\v 21 परन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “यहाँ मेरे साथ छः सौ हजार पुरुष और स्त्रियां हैं, आप कैसे कह सकते हो ‘मैं उन्हें प्रति दिन एक महीने तक मांस दूंगा!
\v 22 हम सभी भेड़ों और मवेशियों को मार डालें, तौभी उन सब के लिए मांस उपलब्ध कराने में कभी होगी! यहाँ तक कि हम समुद्र की मछलियों को पककर उन्हें दे, तौभी वह पर्याप्त नहीं होंगी! “
\v 23 परन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “क्या तुझे मेरी शक्ति पर सन्देह है? अब तू देखोगा कि जो कहता हूँ वह कर सकता हूँ या नहीं।”
\p
\s5
\v 24 तब मूसा पवित्र तम्बू से निकल गया और लोगों को बताया जो यहोवा ने कहा था। फिर उसने सत्तर प्रधानों को इकट्ठा किया और उन्हें पवित्र तम्बू के चारों ओर खड़े होने के लिए कहा।
\p
\v 25 तब यहोवा उस बादल में होकर नीचे उतर आये जो तम्बू के ऊपर थे और मूसा से बात की। उन्होंने मूसा को दी गई आत्मा की शक्ति को लिया और इसे सत्तर प्रधानों को भी दिया। उनके अन्दर आत्मा की इस शक्ति के कारण, उन्होंने भविष्यद्वाणी की, परन्तु एक ही बार।
\p
\s5
\v 26 जब मूसा द्वारा नियुक्त किए गए प्रधान वहाँ एकत्र हुए तब दो प्रधान, एलदाद और मेदाद वहां नहीं थे। वे अपने तम्बू को छोड़कर, पवित्र तम्बू के सामने नहीं गए। परन्तु यहोवा के आत्मा उन पर अभी आए, और उन्होंने भविष्यद्वाणी करना शुरू कर दिया।
\v 27 तब एक जवान व्यक्ति भागा और मूसा से कहा, “एलदाद और मेदाद छावनी में जहाँ सभी तम्बू हैं भविष्यद्वाणी कर रहे हैं!”
\p
\s5
\v 28 यहोशू, जो मूसा की सहायता करता था, जब वह जवान व्यक्ति था, कहा, “महोदय, उन्हें ऐसा करने से रुकने के लिए कहो!”
\p
\v 29 परन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “क्या तुम चिंतित हो कि वे मेरी प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाएँगे ? मैं चाहता हूँ कि यहोवा के सभी लोग भविष्यद्वाणी करे। मेरी इच्छा है कि यहोवा उन सब को अपनी आत्मा की शक्ति दे!”
\v 30 तब मूसा और सब प्रधान अपने अपने तम्बू को वापस चले गए।
\p
\s5
\v 31 तब यहोवा ने समुद्र से एक तेज हवा भेजी। हवा से छावनी के चारों ओर के क्षेत्र में बटेर उड़ कर आई, और भूमि पर गिरने लगी। और भूमि पर एक मीटर का ऊंचा ढेर लग गया!
\v 32 तब लोग बाहर निकले और पूरा दिन और पूरी रात, वरन् अगले दिन तक बटेर उठाई। ऐसा लगता है जैसे प्रत्येक व्यक्ति ने दो घन मीटर इकट्ठा तक बटेरे लीं ! उन्होंने छावनी के चारों ओर भूमि पर बटेरें फैला दीं कि, ताकि वे बटेरें सूख जाएँ।
\s5
\v 33 फिर उन्होंने उन्हें पकाया और उन्हें खाना शुरू कर दिया। लेकिन जब वे मांस खा ही रहे थे, तब यहोवा ने उन पर अपना क्रोध प्रकट किया। उन्होंने उन पर एक गंभीर मरी भेजी, और कई लोग मारे गए।
\v 34 जो लोग मारे गए और जिन्हें दफनाया गया, वे वही लोग थे जिन्होंने कहा था कि वे मांस खाना चाहते थे जैसे मिस्र में उन्हें खाने को मिलता था। इसलिए उन्होंने उस जगह को किब्रोतहत्तावा कहा, जिसका अर्थ है ‘उन लोगों की कब्रें जो लालसा करते थे।’
\p
\v 35 वहां से इस्राएली पूर्व की ओर हसेरोत पहुंचने तक चलते रहे और वहां वे रुक गए और लंबे समय तक रहे।
\s5
\c 12
\p
\v 1-2 मूसा की बड़ी बहन मिर्याम और उसका बड़ा भाई हारून मूसा से ईर्ष्या रखते थे और कहा, “क्या केवल मूसा ही है जिसे यहोवा हमें सुनाने के लिए संदेश देते हैं? क्या यहोवा हम दोनों के द्वारा भी संदेश नहीं दे सकते?” उन्होंने मूसा की भी आलोचना की क्योंकि उसने एक ऐसी स्त्री से विवाह किया था जो कूशी लोगों के वंश की थी। और यहोवा ने मूसा के विषय में मिर्याम और हारून की शिकायत सुनी।
\p
\v 3 सच यह था कि मूसा एक बहुत विनम्र व्यक्ति था। वह पृथ्वी पर सबसे अधिक विनम्र था।
\p
\s5
\v 4 तब यहोवा ने तुरन्त ही मूसा और हारून और मिर्याम से बात की। उन्होंने कहा, “तुम तीनों को जाकर पवित्र तम्बू के सामने खड़ा होना चाहिए।” उन्होंने ऐसा किया।
\v 5 तब यहोवा एक बादल में जो एक विशाल सफेद खंभे जैसा था, तम्बू के द्वार पर उतर गये। उन्होंने हारून और मिर्याम को आगे बढ़ने के लिए कहा, तो उन्होंने वैसा किया।
\s5
\v 6 तब यहोवा ने उनसे कहा,
\q1 “मेरी बात सुनो!
\q1 जब एक भविष्यद्वक्ता तुम्हारे बीच होता है,
\q1 तब मैं उसे दर्शन में स्वयं को प्रकट करता हूँ,
\q1 और मैं स्वप्न में उससे बात करता हूँ।
\q1
\v 7 परन्तु मैं अपने दास मूसा से इस तरह से बात नहीं करता हूँ।
\q2 मुझे विश्वास है कि वह मेरे लोगों का अच्छी अगुवाई करेगा।
\q1
\v 8 इसलिए मैं उससे आमने-सामने बात करता हूँ।
\q2 मैं दृष्टांतों द्वारा नहीं लेकिन आमने-सामने से उससे बात करता हूँ।
\q2 उसने यह भी देखा है कि मैं कैसा दिखता हूँ।
\q2 अत: तुम्हें मेरे दास मूसा की आलोचना करने से डरना चाहिए! “
\p
\s5
\v 9 यहोवा मिर्याम और हारून से बहुत क्रोधित था, और वह चला गया।
\p
\v 10 जब बादल पवित्र तम्बू से उठ गया, तो हारून ने मिर्याम को देखा, और उसने देखा कि उसकी त्वचा हिम के समान श्वेत थी, क्योंकि अब उसे कुष्ठ रोग था।
\s5
\v 11 हारून ने मूसा से कहा, “हे स्वामी, कृपया हमें हमारी मुर्खता के पाप का दण्ड न दे और दंडित न करें जिसे हमने मूर्खता से किया है।
\v 12 मिर्याम को एक ऐसे बच्चे के समान रहने न दें जो मरा हुआ जन्मा है, जिसका मांस पहले से ही आधा सड़ गया है! “
\p
\s5
\v 13 तब मूसा ने यहोवा से पुकारकर कहा, “हे परमेश्वर, मैं आपसे विनती करता हूँ कि उसे चंगा कर दो!”
\p
\v 14 परन्तु यहोवा ने उत्तर दिया, “यदि उसके पिता ने कुछ गलत करने के लिए उसके चेहरे पर थूककर उसे दण्ड दिया होता, तो वह सात दिनों तक लज्जा में रहती। उसने जो किया है उसके कारण उसे लज्जित होना चाहिए। उसे सात दिन के लिए छावनी के बाहर भेज दे तब उसका कुष्ठ रोग समाप्त हो जाएगा और वह छावनी में वापस आ सकती है। “
\v 15 इसलिए उन्होंने उसे सात दिनों तक छावनी के बाहर रखा। जब तक वह वापस नहीं आई तब तक लोग दूसरे स्थान पर नहीं गए।
\p
\s5
\v 16 परन्तु उसके लौटने के बाद, उन्होंने हसेरोत छोड़ दिया और पारान मरुस्थल के उत्तर की ओर चले गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\c 13
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “कुछ लोगों को कनान में छान-बीन करने के लिए भेज। यही वह भूमि है जिसे मैं तुम इस्राएलियों को दूंगा। उन लोगों को भेज जो अपने गोत्र में प्रधान हैं।”
\p
\s5
\v 3 तब मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया। उसने बारह इस्राएली पुरुषों को भेजा जो अपने-अपने गोत्र के प्रधान थे। उसने उन्हें पारान मरुस्थल में डाली गई अपनी छावनी से भेजा।
\v 4 ये उन पुरुषों और उनके गोत्रों के नाम हैं:
\q रूबेन के गोत्र से जक्कूर का पुत्र शम्मू;
\p
\s5
\v 5 शिमोन के गोत्र से होरी का पुत्र शापात;
\p
\v 6 यहूदा के गोत्र से यपुन्ने का पुत्र कालेब;
\p
\v 7 इस्साकार के गोत्र से यूसुफ का पुत्र यिगाल;
\p
\v 8 एप्रैम के गोत्र से नून का पुत्र होशे;
\p
\s5
\v 9 बिन्यामीन के गोत्र से रापू का पुत्र पलती;
\p
\v 10 जबूलून के गोत्र से सोदी का पुत्र गद्दीएल;
\p
\v 11 यूसुफ के वंशज मनश्शे के गोत्र से सूसी का पुत्र गद्दी;
\p
\v 12 दान के गोत्र से गमल्ली के पुत्र अम्मीएल;
\p
\s5
\v 13 आशेर के गोत्र से मीकाएल का पुत्र सतूर;
\p
\v 14 नप्ताली के गोत्र से वोप्सी का पुत्र नहूबी;
\p
\v 15 और गाद के गोत्र से माकी के पुत्र गूएल।
\m
\v 16 ये उन लोगों के नाम हैं जिन्हें मूसा ने कनान की छान-बीन करने के लिए भेजा था। उनके जाने से पहले, मूसा ने होशे को एक नया नाम दिया, यहोशू, जिसका अर्थ है ‘यहोवा ही बचाने वाला है।’
\p
\s5
\v 17 मूसा ने उन्हें कनान की छान-बीन करने के लिए भेजने से पहले उनसे कहा, “दक्षिणी यहूदिया के मरुस्थल से होकर जाओ, और फिर उत्तर में पहाड़ी देश की ओर जाओ।
\v 18 देखो कि भूमि कैसी है। देखो कि वहां रहने वाले लोग मजबूत हैं या कमजोर हैं। देखो कि वे बहुत से लोग हैं या केवल कुछ लोग हैं।
\v 19 पता लगाओ कि वे किस तरह की भूमि में रहते हैं। क्या वह अच्छा है या बुरा है? उन शहरों के विषय में जानो जहाँ वे रहते हैं। क्या उनके पास दीवारें हैं या नहीं?
\v 20 मिट्टी के विषय में पता लगाओ। क्या यह उपजाऊ है या नहीं? पता लगाओ कि वहां पेड़ हैं या नहीं। यदि वहाँ पर पेड़ हैं तो उस भूमि में उगने वाले कुछ फल वापस लाने की कोशिश करना।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि यह अंगूर की कटनी के समय की शुरुआत थी।
\p
\s5
\v 21 तो वे लोग कनान को गए। वे पूरे देश में गए, दक्षिण में सीन के मरुस्थल से होते हुए, उत्तर में लेबो हमात के पास के रहोब शहर के सभी मार्गों से गए।
\v 22 दक्षिणी यहूदिया के मरुस्थल में, वे हेब्रोन में गए, जहाँ अहीमन, शेशै, और तल्मै नामक, विशाल लोग रहते थे, जो अनाक के वंशज थे। हेब्रोन एक ऐसा शहर था जो मिस्र के सोअन शहर के निर्माण से सात साल पहले बनाया गया था।
\s5
\v 23 एक घाटी में, उन्होंने अंगूर के एक गुच्छे को काटा। क्योंकि यह बहुत बड़ा था इसलिए उन्हें उसे एक लाठी पर ले जाने के लिए दो पुरुषों की आवश्यकता थी। उन्होंने कुछ अनार और कुछ अंजीर भी अपनी छावनी में ले जाने के लिए उठाए।
\v 24 उन्होंने उस स्थान को एशकोल कहा जिसका अर्थ ‘गुच्छा’ है क्योंकि उन्होंने वहां अंगूर के उस विशाल गुच्छे को काट दिया था।
\s5
\v 25 चालीस दिनों तक भूमि की छान-बीन करने के बाद, वे अपनी छावनी में लौट आए।
\p
\v 26 वे पारान के मरुस्थल में हारून और मूसा और बाकी इस्राएली लोगों के पास आए। उन्होंने जो कुछ देखा वह सबको बताया। उन्होंने उन्हें वह फल भी दिए जो वे साथ लाए थे।
\s5
\v 27 परन्तु उन्होंने मूसा को यह बताया: “हम उस देश में पहुंचे जहाँ आपने हमें छान-बीन करने के लिए भेजा था। यह वास्तव में एक सुंदर देश है। यह एक बहुत ही उपजाऊ भूमि है। वहाँ के यह कुछ फल हैं।
\v 28 लेकिन वहां रहने वाले लोग बहुत ताकतवर हैं। उनके शहर बड़े हैं और दीवारों से घिरे हुए हैं। हमने वहां अनाक के कुछ विशाल वंशज भी देखे।
\v 29 अमालेक के वंशज देश के दक्षिणी भाग में रहते हैं, और हित्ती, यबूस और एमोर के वंशज उत्तर में पहाड़ी देश में रहते हैं। कनान के वंशज भूमध्य सागर के तट पर और यरदन नदी के किनारे रहते हैं।"
\p
\s5
\v 30 कालेब ने उन लोगों से जो मूसा के पास खड़े थे चुप रहने के लिए कहा। फिर उसने कहा, “हमें वहां जाना चाहिए और उस देश पर अधिकार कर लेना चाहिए, क्योंकि हम निश्चित रूप से इसे जीतने में सक्षम हैं!”
\p
\v 31 परन्तु जो लोग उसके साथ गए थे, उन्होंने कहा, “नहीं, हम उन लोगों पर आक्रमण करके उन्हें हरा नहीं सकते। वे हमारी तुलना में बहुत अधिक शक्तिशाली हैं!”
\s5
\v 32 इस प्रकार उन लोगों ने इस्राएलियों को उस देश के विषय में जिसकी उन्होंने छान-बीन की थी, बुरा समाचार सुनाया। उन्होंने कहा, “जिस देश की हमने छान-बीन की है वह उन लोगों को नष्ट कर देते हैं जो उन पर आक्रमण करने का प्रयास करते हैं। और वहां रहने वाले लोग बहुत लंबे हैं।
\v 33 हमने वहां विशालकाय लोगों को भी देखा। वे अनाक के वंशज हैं (जो नेफिलिम से आए हैं।) जब हमने इन विशालकाय लोगों को देखा तो हमें ऐसा लगा कि हम तो उनके सामने टिड्डियों जैसे हैं और उन्होंने सोचा कि हम भी टिड्डियों जैसे हैं।"
\s5
\c 14
\p
\v 1 उस रात, सब इस्राएलियों ने ऊँची आवाज़ में विलाप किया।
\v 2 अगले दिन उन ने हारून और मूसा के विरुद्ध शिकायत की। सभी पुरुषों ने कहा, “हम मिस्र में ही मर गए होते तो अच्छा था या इस मरुस्थल में मर जातें!
\v 3 यहोवा हमें इस देश में क्यों ला रहा है, जहाँ हम तलवारों से मारे जाएंगे? और वे हमारी पत्नियों और बच्चों को अपने गुलाम बनाने के लिए ले जाएंगे। कनान जाने के बजाय, मिस्र को लौटना ही उचित होगा! “
\s5
\v 4 तब उनमें से कुछ ने एक दूसरे से कहा, “हमें एक प्रधान चुनना चाहिए जो हमें मिस्र वापस ले जाएगा!”
\p
\v 5 तब हारून और मूसा इकट्ठे हुए सभी इस्राएली लोगों के सामने प्रार्थना करने के लिए झुक गए।
\s5
\v 6 भूमि की छान-बीन करनेवालों में से दो पुरुष- यहोशू और कालेब ने अपने कपड़े फाड़े क्योंकि वे बहुत निराश थे।
\v 7 उन्होंने इस्राएलियों से कहा, “जिस देश की हमने छान-बीन की, वह बहुत अच्छा है।
\v 8 यदि यहोवा हमसे प्रसन्न होता है, तो वह हमें उस उपजाऊ भूमि में ले जाएगा, और उसे हमें दे देगा।
\s5
\v 9 इसलिए यहोवा के विरूद्ध विद्रोह मत करो! और उस देश के लोगों से मत डरो! हम उन्हें निगल जाएँगे! उनके पास कोई भी नहीं है जो उनकी रक्षा करेगा, परन्तु यहोवा हमारे साथ हैं और हमारी सहायता करेंगे। इसलिए उनसे मत डरो! “
\p
\v 10 तब सभी इस्राएली कालेब और यहोशू को पत्थरों से मारने के बातें करने लगे। परन्तु अचानक पवित्र तम्बू पर यहोवा की महिमा दिखाई दी।
\s5
\v 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “यह लोग कब तक मेरा तिरस्कार करेंगे? मैंने उनके बीच कितने अद्भुत काम किए उसके उपरान्त भी, वे मेरे कामों पर विश्वास नहीं करते हैं, मैं इनसे थक चुका हूँ।
\v 12 इसलिए मैं उनके बीच एक मरी भेजूंगा और उनसे छुटकारा पाऊंगा। परन्तु तुम्हारे वंशजों को मैं एक महान देश बनाऊंगा। वे एक ऐसा देश होगा जो अन्य जातियों की तुलना में बहुत अधिक महान और शक्तिशाली होगा।"
\p
\s5
\v 13 परन्तु मूसा ने यहोवा से कहा, “कृपया ऐसा मत करो, क्योंकि मिस्र के लोग इसके विषय में सुनेंगे! आपने इन इस्राएली लोगों को अपनी महान शक्ति से मिस्र से निकल लाये,
\v 14 और मिस्र के लोग इस देश में रहने वाले कनान के वंशजों को यह बताएंगे। हे यहोवा, उन्होंने आपके विषय में पहले ही सुना है। वे जानते हैं कि आप इन लोगों के साथ रहते हैं और उन्होंने आपको आमने-सामने देखा है। उन्होंने सुना है कि आपका बादल एक विशाल खंभे के समान है जो उनके ऊपर रहता है, और उस बादल से आप उन्हें दिन में ले चलते हैं, वह और बादल रात में आग होकर उन्हें प्रकाश देता है।
\s5
\v 15 यदि आप इन लोगों को एक ही बार में मार देते हैं, तो जिन लोगों ने आपकी शक्ति के विषय में सुना है, वे कहेंगे,
\v 16 ‘यहोवा उन्हें उस देश में लाने में समर्थ नहीं है जिसे देने की उसने इनसे प्रतिज्ञा की थी, इसलिए उसने उन्हें जंगल में मारा डाला।’
\p
\s5
\v 17 इसलिए यहोवा, अब आप दिखाओ कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। आपने कहा था,
\v 18 ‘मैं शीघ्र क्रोध नहीं करता हूँ। और, मैं लोगों से बहुत प्रेम करता हूँ, और मैं लोगों को पाप करने और मेरे नियमों को तोड़ने पर क्षमा भी कर देता हूँ। परन्तु मैं उन लोगों को सदा दण्ड दूंगा जो गलत काम करने के दोषी हैं। जब माता-पिता पाप करते हैं, तो मैं उन्हें दण्ड दूंगा, यही नहीं मैं उनके बच्चों और उनके पोतों और परपोतों को भी दण्ड दूंगा।
\v 19 अब क्योंकि आप अपनी महा प्रतिज्ञा के निमित्त अपने लोगों से प्रेम करते हैं , इसलिए इन्हें इनके पापों के लिए क्षमा करें, जिस प्रकार आपने उनके मिस्र छोड़ने के बाद से आज तक क्षमा किया है।
\p
\s5
\v 20 तब यहोवा ने उत्तर दिया, “तू विनती करता है तो, मैंने उन्हें क्षमा कर दिया है।
\v 21 परन्तु मुझे यहोवा के जीवन की शपत; संपूर्ण विश्व में लोग मेरी महिमा देख सकते हैं; मैं गंभीरता से यह घोषणा करता हूँ कि
\v 22 इन सभी लोगों ने मेरी महिमा और मिस्र में और मरुस्थल में मेरे किए गए सभी अद्भुत कामों को देखा है, लेकिन उन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी, और कई बार उन्होंने मुझे परख कर देखना चाहा कि वे बुराई करके कब तक मेरे दण्ड से बचे रहेंगे हैं।
\s5
\v 23 इसलिए, उनमें से कोई भी उस देश को नहीं देख पाएगा जिसे उन्हें देने के लिए मैंने उनके पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी। जिससे लोग मेरा तिरस्कार करनेवाले थे उनमें से एक भी जन उस देश को देखने नहीं पाएगा।
\v 24 लेकिन कालेब, जो मेरी अच्छी सेवा करता है, दूसरों से अलग है। वह मेरी आज्ञा का पालन करने में चूकता नहीं है। इसलिए मैं उसे उस देश में लाऊंगा जिसे उसने देख लिया है, और उसके वंशज उस देश के मागों के वारिस होंगे।
\v 25 इसलिए कि, कनान की घाटियों में रहने वाले अमालेक और कनान के वंशज बहुत ताकतवर हैं, जब तुम कल यहाँ से जाते हो, तब कनान की ओर यात्रा करने की अपेक्षा मरुस्थल से होकर सड़क के किनारे सरकंडे के सागर की ओर वापस जाना।"
\p
\s5
\v 26 तब यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 27 “इस जाति के दुष्ट लोग कब तक मेरे विषय में शिकायत करते रहेंगे? जो कुछ भी उन्होंने मेरे विरुद्ध बोला है, मैंने सब सुना है।
\s5
\v 28 तो अब उनसे कह ‘यहोवा के जीवन की शपत वैसा ही करूंगा जैसा तूने कहा था कि होगा।
\v 29 इस मरुस्थल में मैं तुम्हारे लिए मरने का कारण उत्पन्न करूँगा! क्योंकि तुमने मेरे विरूद्ध शिकायत की इसलिए, तुम में से कोई भी जो मूसा द्वारा गिनती करने के समय बीस वर्ष से अधिक गिने गए थे,
\v 30 उस देश में प्रवेश नहीं करेगा जिसे मैंने तुम्हें देने की प्रतिज्ञा की थी। केवल कालेब और यहोशू उस देश में प्रवेश करेंगे।
\s5
\v 31 तुमने कहा था कि तुम्हारे बच्चों को दास बनने के लिए ले लिए जाएँगे परन्तु मैं उन्हें उस देश में ले जाऊंगा, और वे उस देश में रहने का आनंद लेंगे जिसका तुमने तिरस्कार कर दिया है।
\v 32 परन्तु तुम लोग यहाँ इस मरुस्थल में मर जाओगे।
\v 33 तुम्हारे बच्चे चालीस वर्ष तक चरवाहों के समान इस मरुस्थल में भटकते रहेंगे। क्योंकि तुम जो बड़े हो मेरे वफादार नहीं रहे इसलिए इस मरुस्थल में, तुम्हारे मरने तक तुम्हारे बच्चे पीड़ित होते रहेंगे।
\s5
\v 34 चालीस वर्ष तक तुम अपने पापों के लिए पीड़ित होगे। कनान देश की छान-बीन करने वाले बारह लोगों के चालीस दिनों के प्रत्येक दिन के बदले एक वर्ष होगा। और मैं तुम्हारे लिए एक शत्रु के समान रहूँगा।
\v 35 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा कह रहा हूँ! मैं इस समूह में हर एक के साथ ऐसा ही करूँगा जिसने मुझ से विद्रोह किया है। वे सब इस जंगल में मर जाएंगे! ‘”
\p
\s5
\v 36-37 तब यहोवा ने उन दस लोगों पर वार किया जिन्होंने लोगों को निराश किया, और वे मर गए। ये वे पुरुष थे जिन्होंने कनान की छान-बीन की थी और फिर लोगों से कहा कि वे उस देश पर अधिकार नहीं कर पाएंगे। यह उन पुरुषों के कारण था जिन्होंने मूसा के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी।
\v 38 बारह पुरुषों में से जिन्होंने कनान की छान-बीन की थी, केवल यहोशू और कालेब जीवित रहे।
\p
\s5
\v 39 जब मूसा ने इस्राएलियों को सुनाया कि यहोवा ने क्या कहा था, तो उनमें से कई बहुत दुखी हुए।
\v 40 इसलिए लोग अगली सुबह उठ गए और कनान के पहाड़ी देश की ओर जाने लगे। उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि हमने पाप किया है, लेकिन अब हम उस देश में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं जिसे यहोवा ने हमें देने की प्रतिज्ञा की है।”
\p
\s5
\v 41 परन्तु मूसा ने कहा, “यहोवा ने तुम्हें मरुस्थल में लौटने का आदेश दिया है, तो अब तुम उसकी आज्ञा क्यों नहीं मान रहे हो? तुम सफल नहीं होगे।
\v 42 अब उस देश में प्रवेश करने का प्रयास मत करो! यदि तुम प्रयास करते हो, तो तुम्हारे शत्रु तुम्हें पराजित कर देंगे, क्योंकि यहोवा तुम्हारे साथ नहीं होंगे।
\v 43 जब तुम अमालेक और कनान के वंशजों से युद्ध शुरू करते हो, तो वे तुम्हें मार डालेंगे! यहोवा तुम्हें त्याग देंगे, क्योंकि तुमने उन्हें त्याग दिया है।"
\p
\s5
\v 44 परन्तु यद्यपि मूसा ने छावनी नहीं छोडी, और पवित्र सन्दूक जिसमें दस आज्ञाएं रखीं थीं, छावनी से नहीं ले जाई गईं, लोग कनान के पहाड़ी देश की ओर जाने लगे।
\v 45 तब उन पहाड़ियों में रहने वाले अमालेक और कनान के वंशजों ने नीचे आकर उन पर आक्रमण किया; उन्होंने दक्षिण में होर्मा तक उनका पीछा किया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘जब तुम उस देश में पहुंचो जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ,
\v 3 तुम्हें मेरे लिए विशेष बलि चढ़ानी होगी; जब याजक उन्हें वेदी पर जला देगा। तब वह मुझे प्रसन्न करेगी उनमें से कुछ भेंट पूरी तरह से वेदी पर जलाने के लिए होगी। उनमें से कुछ इस बात का संकेत होगी कि तुमने गंभीर वचन दिया है। उनमें से कुछ भेंट ऐसी होंगी जिन्हें तुमने स्वयं मेरे लिए चढाने का निर्णय लिया है। उनमें से कुछ प्रति वर्ष मनाए जाने वाले त्योहारों में से किसी एक के लिए भेंट हो सकती हैं। ये भेंटें तुम्हारे मवेशियों के झुंडों से या भेड़ों और बकरियों के झुंडों से होंगी।
\s5
\v 4 जब तुम इन भेंटों को देते हो, तो तुम्हें मेरे लिए लगभग दो किलो अच्छे आटे की भेंट भी लानी होगी जो लगभग एक किलो जैतून का तेल में मिली हुई हो।
\v 5 जब तुम जलानेवाली बलि के लिए एक जवान मेढ़ा या बकरी चढ़ाते हो, या जब तुम हर जवान भेड़ की बलि चढ़ाते हो, तो तुम्हें एक लीटर दाखमधु भी अर्घ बलि के लिए तैयार करना होगा।
\p
\s5
\v 6 जब तुम बलि चढ़ाने के लिए एक मेढे को भेंट करते हो, तो तुम्हें लगभग एक-चौथाई लीटर जैतून का तेल मिलाकर तीन किलो मैदे को भी भेंट करना होगा।
\v 7 और वेदी पर पाँच लीटर दाखमधु भी डालना। जब उन्हें जला दिया जाएगा, तब उसकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\p
\s5
\v 8 कभी-कभी तुम वेदी पर जलाए जाने के लिए एक जवान बैल चढ़ाओगे। कभी-कभी तुम यह दिखाने के लिए बलि चढ़ाओगे कि तुम मुझे गंभीर वचन देते हो। कभी-कभी तुम मेरे साथ मेल करने के लिए बलि चढ़ाओगे।
\v 9 जब तुम इन बलियों को चढ़ाते हो, तो तुम्हें लगभग दो किलो जैतून का तेल मिलाकर लगभग आधा किलो मैदा भी भेंट करना होगा
\v 10 और भेंट होने के लिए वेदी पर दो लगभग दो लीटर दाखमधु डालना। जब उन विशेष भेंटों को जलाया जाएगा, तब उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\s5
\v 11 हर बार जब कोई बैल या मेढ़ा या नर भेड़ के बच्चे को बलि चढ़ाता हो, तो उसे ऐसा ही करना होगा।
\v 12 तुम्हें प्रत्येक पशु के लिए, जिसे तुम मुझे भेंट करने के लिए लाते हो, इन निर्देशों का पालन करना होगा।
\p
\v 13 तुम सब लोगों को जो अपने पूरे जीवन में इस्राएली रहे हो, जब इन बलियों को चढ़ाओ जो वेदी पर जलाए जाने पर मुझे प्रसन्न करेंगी तो इन नियमों का पालन करना आवश्यक है।
\s5
\v 14 यदि कोई विदेशी तुमसे मिलने या तुम्हारे बीच रहने के लिए आएँ, और यदि वे बलि चढ़ाना चाहते हों जो वेदी पर जलाए जाने पर मुझे प्रसन्न करे, तो उन्हें भी इन निर्देशों का पालन करना होगा।
\v 15 जो लोग हमेशा इस्राएली रहे हैं और जो विदेशी हैं मैं दोनों को बराबर मानता हूँ, और इसलिए सब को इन निर्देशों का पालन करना होगा। तुम्हारे वंशजों को भी मेरे इन निर्देशों का पालन करते रहना होगा।
\v 16 तुम इस्राएलियों और तुम्हारे बीच रहनेवाले विदेशी सब को इन ही निर्देशों का पालन करना होगा।"
\p
\s5
\v 17 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 18 “इन निर्देशों को इस्राएलियों को ये सब निर्देश सुना ‘जब तुम उस देश में पहुंच जाओ, जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ,
\v 19 और तुम वहां तैयार हो रही फसलों को खाओ, तब तुम्हें उनमें से कुछ को एक पवित्र भेंट के रूप में अलग करना होगा, और उन्हें मेरे सामने लाना होगा।
\s5
\v 20 प्रत्येक वर्ष तुम्हरे द्वारा काटी गई फसल के पहला अनाज को अलग कर देना। पहले आटे से जिसे तुम पीसोगे, एक रोटी बनाकर मेरे लिए पवित्र भेंट के रूप ले आना।
\v 21 हर साल, तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को मेरे लिए फसल के अनाज के पहले भाग के मैदे से पकाई रोटी मेरे लिए भेंट करना होगी।
\p
\s5
\v 22 ऐसे समय हो सकते है जब तुम इस्राएली उन निर्देशों का पालन नहीं कर पाओगे जो मैंने मूसा को तुम्हारे पालन करने हेतु दिए हैं, तो वह इसलिए नहीं कि तुम उनका उल्लंघन करना चाहते हो।
\v 23 ऐसे समय हो सकते है जब तुम्हारे कुछ वंशज तुम्हारे लिए मूसा को दिए गए सब निर्देशों का पालन नहीं कर पाएँगे।
\v 24 यदि तुम या तुम्हारे वंशज इन निर्देशों का पालन करने में भूल करके पाप करते हैं और उन इस्राएलियों को यह अनुभव नहीं हुआ कि वे ऐसा कर रहे हैं, तो सभी लोगों के लिए एक जवान बैल को याजक के पास भेंट के लिए लाया जाए। जब वह वेदी पर जला दिया जाएगा तो मैं प्रसन्न हो जाऊँगा। उन्हें अपने पाप के दोष को दूर करने के लिए अन्नबलि और दाखमधु की भेंट और एक बकरी को भी चढ़ानी होगी।
\s5
\v 25 इन बलियों को चढ़ाने के द्वारा, याजक तुम सब इस्राएलियों के लिए प्रायश्चित करेगा। वेदी पर जलाए जाने के लिए मेरे पास भेंट लाने से, तुम्हें क्षमा कर दिया जाएगा, क्योंकि तुमने जो पाप किया वह अनजाने में किया था।
\v 26 तुम इस्राएलियों और तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी, सब को क्षमा किया जाएगा।
\p
\s5
\v 27 यदि कोई व्यक्ति अनजाने में पाप करता है, तो उस व्यक्ति को उस पाप के दोष को दूर करने के लिए एक मादा बकरी की बलि चढ़ानी होगी।
\v 28 याजक उस व्यक्ति के पाप के दोष को दूर करने के लिए बलि चढ़ाएगा, और उस व्यक्ति को क्षमा किया जाएगा।
\v 29 तुम इस्राएलियों को और तुम्हारे बीच रहने वाले सभी विदेशियों को भी इन निर्देशों का पालन करना होगा।
\p
\s5
\v 30 परन्तु इस्राएली और तुम्हारे बीच रहनेवाले विदेशी दोनों जानबूझकर मेरे आदेशों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्होंने ऐसा करके मेरे विरुद्ध पाप किया है। इसलिए उन्हें तुम्हारी छावनी से निकाल दिया जाएगा।
\v 31 उन्होंने मेरे आदेशों को तुच्छ जाना है और जानबूझकर उनकी अवज्ञा की है, इसलिए उनके पाप का दण्ड मिलना चाहिए; उन्हें फिर कभी तुम्हारे बीच में रहने न दिया जाए।”
\p
\s5
\v 32 एक दिन, जब इस्राएली मरुस्थल में थे, तब उनमें से कुछ ने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो सब्त के दिन आग के लिए लकड़ी इकट्ठा कर रहा था।
\v 33 जिन्होंने उसे देखा, वह उसे हारून और मूसा और अन्य इस्राएलियों के पास लाये।
\v 34 उन्होंने सुरक्षित निगरानी में रखा, क्योंकि उन्हें नहीं जानते थे कि उसे कैसा दण्ड दें।
\s5
\v 35 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “उस मनुष्य को मार डाला जाना चाहिए। तुम सब छावनी के बाहर पत्थरों से मार कर उसकी हत्या कर दो।”
\v 36 तब वे उस व्यक्ति को छावनी से पकड़कर के बाहर ले गये और उस पर पत्थर फेंककर उसे मार डाला, जैसी कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।
\p
\s5
\v 37 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 38 “इस्राएलियों से कह ‘तुम और तुम्हारे सभी वंशजों को झालर बनाने के लिए धागे को बुनना है, और फिर उन्हें अपने कपड़ों के निचले किनारों पर नीले रंग के धागों से जोड़ना है।
\v 39 जब तुम उस झालर को देखोगे, तो तुम्हें मेरे द्वारा दिए गए निर्देश याद आएंगे, और तुम उनका पालन करोगे। इस तरह, तुम मेरे साथ विश्वासघात नहीं करोगे। तुम एक विश्वासघाती वेश्या के समान नहीं होगे जो उन लज्जा के कामों को करती है जिन्हें वह देखती है और ललचाती।
\s5
\v 40 उन झालरों को देखकर तुम्हें मेरे सब निर्देशों का पालन करने और मेरे पवित्र लोगों को स्मरण करने में सहायता मिलेगी।
\v 41 मत भूलो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं वही हूँ जो तुम्हें मिस्र से बाहर निकल लाया ताकि तुम मेरा भाग बनो। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।”
\s5
\c 16
\p
\v 1 एक दिन लेवी के पुत्र कहात के वंशज, यिसहार का पुत्र कोरह ने, दातान और अबीराम जो एलीआब के पुत्र थे और ओन जो पेलेत का पुत्र था, उनके साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। ये तीन जन रूबेन के गोत्र से थे।
\v 2 उन चार लोगों ने 250 अन्य लोगों को जो इस्राएली लोगों के बीच प्रधान थे, मूसा से विद्रोह करने के लिए अपने साथ शामिल होने के लिए उकसाया ।
\v 3 वे हारून और मूसा की आलोचना करने के लिए एक साथ आए। उन्होंने उनसे कहा, “तुम दोनों जितना आवश्यक है उस से अधिक अधिकार का उपयोग कर रहे हो! यहोवा ने हम इस्राएलियों को अलग कर लिया है, और वह हम सब के साथ हैं। तो तुम ऐसा व्यवहार क्यों करते हो जैसे कि तुम हम सब से, जो यहोवा के हैं अधिक महत्वपूर्ण हो?"
\p
\s5
\v 4 जब मूसा ने सुना कि वे क्या कह रहे थे, तो वह भूमि पर मुँह के बल गिरा।
\v 5 तब उसने कोरह और उसके साथियों से कहा, “कल सुबह यहोवा हमें दिखाएंगे कि उन्होंने किसको अपना याजक बनने के लिए चुना है, और कौन पवित्र है और किसे उसके पास आने की अनुमति है। यहोवा केवल उन लोगों को अपनी उपस्थिति में आने की अनुमति देंगे जिन्हें यहोवा चुनते हैं।
\s5
\v 6 इसलिए कोरह, कल तुम और तुम्हारे साथियों को धूप जलाने के लिए अपने धूपदान तैयार करना होगा।
\v 7 तब तुम्हें उसमें आग लगाना है और यहोवा की उपस्थिति में धूप जलाना है। तब हम देखेंगे कि हम में से किसको यहोवा ने अपने पवित्र सेवक बनने के लिए चुना है। तुम लोग जो लेवी के वंशज हो, तुम्हें जितना आवश्यक है उससे अधिक अधिकार का उपयोग करने की कोशिश कर रहे हो!"
\p
\s5
\v 8 तब मूसा ने कोरह से फिर से बात की। उसने कहा, “तुम लोग जो लेवी के वंशज हो, मेरी बात सुनो!
\v 9 तुम जानते हो कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने इस्राएल की मण्डली में से लेवियों को चुना है ताकि तुम उनके पवित्र तम्बू में उनके लिए काम करों और लोगों की सेवा करों। क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम्हारे लिए यह एक छोटी बात है?
\v 10 कोरह, तुम्हें और तुम्हारे साथी लेवी के वंशजों को यहोवा अपने पास लायें हैं। अब क्या तुम याजक बनने की भी मांग कर रहे हो?
\v 11 वास्तव में तुम और तुम्हारे वंशज यहोवा से विद्रोह कर रहे हैं। सही में हारून वह नहीं है जिसके विषय में तुम शिकायत कर रहे हो। “
\p
\s5
\v 12 तब मूसा ने दातान और अबीराम को बुलाया, लेकिन उन्होंने आने से इन्कार कर दिया। उन्होंने एक संदेश भेजा, “हम तुम्हारे पास नहीं आएंगे!
\v 13 तुम हमें मिस्र से बाहर लाए, जो कि एक बहुत ही उपजाऊ भूमि थी, ताकि हम यहाँ इस मरुस्थल में मर जाएँ। वह बुरी बात है। लेकिन अब तुम हम पर मालिक बनने की भी कोशिश कर रहे हो, और यह और भी बुरा है।
\v 14 तुमने हमें रहने के लिए एक नई भूमि नहीं दी है, एक ऐसी भूमि जिसमें अच्छे खेतों की और दाख की बारियां हैं। तुम केवल इन लोगों को अंधा करने का प्रयास कर रहे हो। इसलिए हम तुम्हारे पास नहीं आएंगे। “
\p
\s5
\v 15 तब मूसा बहुत क्रोधित हो गया। उसने यहोवा से कहा, “उन्होंने जो अन्नबलि चढ़ाई है, उसे स्वीकार न करना। मैंने उनसे कुछ भी नहीं लिया है, यहाँ तक कि एक गधा भी नहीं, और मैंने कभी उनके लिए कुछ भी गलत नहीं किया है, इसलिए उनके पास शिकायत करने का कोई कारण नहीं है।"
\p
\v 16 तब मूसा ने कोरह से कहा, “तुम और तुम्हारे सब साथी कल यहाँ आकर यहोवा के सामने खड़े होंगे। हारून भी यहाँ आएगा।
\v 17 तुम और तुम्हारे 250 साथियों में से प्रत्येक को धूप जलाने के लिए एक-एक धूपदान लेना है और उसमें धूप डालना है, कि वह यहोवा को चढ़ाई जाए। हारून भी ऐसा ही करेगा। “
\p
\s5
\v 18 इसलिए उन लोगों में से प्रत्येक ने धूप जलाने के लिए एक धूपदान लिया। उन्होंने उसमें धूप डाली और धूप जलाने के लिए गर्म कोयले डाले, और फिर वे सब पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर हारून और मूसा के साथ खड़े हो गए।
\v 19 तब कोरह ने उन सब लोगों को बुलाया जिन्होंने उसे समर्थन दिया था और जो मूसा के विरुद्ध थे, और वे तम्बू के प्रवेश द्वार पर इकट्ठे हुए। तब यहोवा की महिमा उन सभी को दिखाई दी।
\s5
\v 20 यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 21 “इन सब लोगों से दूर हो जाओ, जिससे कि मैं तुरंत उनका अंत कर सकूँ!”
\p
\v 22 परन्तु हारून और मूसा धरती पर मुँह के बल गिर गए। उन्होंने यहोवा से विनती की, “हे परमेश्वर, आप ही हैं जिन्होंने इन सभी लोगों को जीवन दिया। इन मनुष्यों में से केवल एक ने पाप किया है। तो, क्या आपका सब लोगों पर क्रोधित होना सही है?”
\p
\s5
\v 23 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 24 “ठीक है, परन्तु अन्य सब लोगों को कोरह, दातान और अबीराम के तम्बुओं से दूर जाने के लिए कह दे।”
\p
\s5
\v 25 तब मूसा खड़ा हुआ और दातान और अबीराम के तम्बुओं के पास गया। इस्राएली प्रधान उसके पीछे गए।
\v 26 उसने लोगों से कहा, “इन दुष्टों के तम्बुओं से दूर हो जाओ, और उनसे संबंधित कुछ भी न छूओ! अगर तुम कुछ छूते हो, तो तुम उनके पापों के कारण मर जाओगे!”
\v 27 तब सब लोग कोरह, दातान और अबीराम के तम्बुओं से दूर चले गए। दातान और अबीराम अपनी पत्नियों और बच्चों और शिशुओं के साथ अपने तम्बुओं से बाहर आए, और अपने अपने तम्बू के प्रवेश द्वार पर खड़े हो गए।
\p
\s5
\v 28 तब मूसा ने कहा, “मैंने इन सब कामों को करने का फैसला स्वयं नहीं किया था। यहोवा ने मुझे चुना और मुझे इन कामों के लिए भेजा। और अब वह यह तुम्हारे सामने इसे सिद्ध करेंगे।
\v 29 यदि ये लोग साधारण रूप से मर जाते हैं, तो यह स्पष्ट होगा कि यहोवा ने मुझे नहीं चुना है।
\v 30 परन्तु यदि यहोवा ऐसा कुछ करते हैं जो पहले कभी नहीं हुआ है, यदि वह उनके पैरों के नीचे की भूमि को खोले और इन मनुष्यों और वह उनके परिवारों और उनकी सारी सम्पत्ति को निगल ले, और यदि वे गड्ढे में गिर जाएँ और उन्हें जीवित ही दफनाया जाए, तो तुम जान लोगे कि इन मनुष्यों ने यहोवा का अपमान किया है।"
\p
\s5
\v 31 जैसे ही मूसा ने यह कहा, भूमि उन लोगों के नीचे खुल गई।
\v 32 उसने उन सब मनुष्यों को और उनके परिवारों की और उन सब को जो कोरह के साथ खड़े थे और उनकी सारी सम्पत्ति को निगल लिया।
\s5
\v 33 जब वे जीवित थे, तब ही भूमि खुल गई, और उनकी सारी सम्पत्ति भी गड्ढे में गिर गई। वे गायब हो गए, और भूमि फिर से बंद हो गई।
\v 34 जब वे गिर गए, तो वे चिल्लाने लगे, और आस-पास खड़े सभी लोग भी चिल्लाए। लोग डर गए और वे भागते हुए चिल्लाए, “हम नहीं चाहते कि भूमि हमें भी निगल जाए!”
\p
\v 35 और फिर यहोवा की ओर से आग आकाश से नीचे आई और 250 लोगों को जला दिया जो धूप जला रहे थे!
\p
\s5
\v 36 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 37 “हारून के पुत्र एलीआजार से कहो कि धूपदान जिसमें धूप थी, उन्हें आग से दूर करे और जलते हुए कोयलों को तितर-बितर करे। उन लोगों ने जो धूपदान लिए थे, वे पवित्र हैं क्योंकि उन्होंने उसमें मेरे लिए धूप जलाया है।
\v 38 वे लोग अब अपने पाप के कारण मर गए हैं। इसलिए अब एलीआजार को उनके धूपदान लेकर धातु को हथौडे से पीटकर बहुत पतला करे। उस धातु से वह वेदी के लिए एक आवरण बनाए। वे धूपदान मेरे लिए धूप जलाने के लिए काम में लिए गए हैं, इसलिए वे पवित्र हैं। उन धूपदानों के साथ जो हुआ वह अब इस्राएल के लोगों को चेतावनी देगा।"
\p
\s5
\v 39-40 इसलिए, एलीआजार याजक ने अग्नि में मरने वाले पुरुषों द्वारा उपयोग किये गए धूप जलाने वाले 250 धूपदानों को एकत्र किए। और वेदी को ढाँकने के लिए उसने धूपदानों को बहुत पतला कर दिया, जैसी यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। उसने इस्राएलियों को चेतावनी दी कि केवल उन लोगों को जो हारून के वंशज थे, यहोवा के लिए धूप जलाने की अनुमति है। अगर किसी और ने ऐसा किया, तो कोरह और उसके साथियों के साथ जैसा हुआ, वैसा ही उनके साथ भी होगा।
\p
\s5
\v 41 परन्तु अगली सुबह, सभी इस्राएली लोगों ने हारून और मूसा के विरुद्ध शिकायत करना आरंभ कर दिया, “तुमने बहुत से लोगों को मार डाला है जो यहोवा के थे!”
\p
\v 42 जब सभी लोग हारून और मूसा ने जो किया था, उसके विरोध में इकट्ठे हुए, तो उन्होंने पवित्र तम्बू को देखा और देखा कि पवित्र बादल ने उसे ढाँक लिया है, और यहोवा की महिमा प्रकट हुई।
\v 43 हारून और मूसा जाकर पवित्र तम्बू के सामने खड़े हो गए।
\s5
\v 44 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 45 “इन लोगों से दूर हो जाओ, ताकि मैं तुम दोनों को घायल किए बिना तुरंत इनका अंत कर दूँ!” लेकिन हारून और मूसा भूमि पर मुँह के बल गिरे और प्रार्थना की।
\p
\v 46 मूसा ने हारून से कहा, “जल्दी से एक और धूपदान ले और उसमें वेदी से कुछ जलते हुए कोयले डाल। धूपदान में धूप डाल, और लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिए उसे लोगों के बीच में ले जा। यहोवा उनसे बहुत क्रोधित है, और मुझे पता है कि उनके बीच एक गंभीर मरी शुरू हो गई है। “
\s5
\v 47 तब हारून ने वही किया जो मूसा ने कहा था। वह लोगों के बीच में जलती हुई धूप ले गया। मरी पहले से ही लोगों पर फैलना शुरू हो गई थी, लेकिन हारून ने लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित करने के लिए धूप जला दी।
\v 48 वह उन लोगों के बीच खड़ा हो गया जो मर चुके थे और जो अब भी जीवित थे, और तब मरी थम गई।
\s5
\v 49 परन्तु मरी से 14,700 लोग मर चुके थे ये लोग कोरह के साथ मरने वाले लोगों से अलग थे ।
\v 50 मरी समाप्त हो जाने के बाद, हारून और मूसा पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर लौट आए।
\s5
\c 17
\p
\v 1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि वे तेरे पास बारह छड़ियाँ ले लाएँ जिनके सहारे वे चलते हैं। बारह गोत्रों के प्रधानों में से प्रत्येक को एक छड़ी लानी है। प्रत्येक छड़ी पर तू उसके प्रधान का नाम खोदकर लिखना।
\s5
\v 3 प्रत्येक गोत्र के प्रधान की एक छड़ी होगी, इसलिए तू लेवी के गोत्र की छड़ी पर हारून का नाम लिखना है।
\v 4 उन छड़ियों को पवित्र तम्बू के भीतर पवित्र सन्दूक के सामने, जिसमें दस आज्ञाएं लिखी हुई पटियाँ रखी हैं, रखना। यही वह स्थान है जहाँ मैं हमेशा तुझसे बात करता हूँ।
\v 5 जिस व्यक्ति को मैंने याजक होने के लिए चुना है उसकी छड़ी पर कलियाँ उगेंगी। जब लोग उसे देखेंगे, तो वे तुम्हारे विषय में लगातार शिकायत करना बंद कर देंगे क्योंकि उन्हें समझ में आ जाएंगा कि जिसे मैंने चुना है वह यही है। "
\p
\s5
\v 6 तब मूसा ने उन लोगों को यहोवा के निर्देश सुना दिए। तब हारून समेत बारह इस्राएली प्रधानों में से प्रत्येक ने अपनी अपनी छड़ी लाकर मूसा को दी।
\v 7 मूसा ने पवित्र तम्बू के भीतर पवित्र सन्दूक के सामने वे छड़ियां रख दीं।
\p
\s5
\v 8 अगली सुबह, जब वह तम्बू में गया, तो उसने देखा कि लेवी के गोत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले हारून की छड़ी में कलियाँ उग आई है। उसमें पत्तियां और फूल और पके हुए बादाम भी लगे हैं!
\v 9 मूसा ने वे सब छड़ियां पवित्र तम्बू के बाहर लाकर सब लोगों को दिखाई और बारह प्रधानों में से प्रत्येक ने अपनी-अपनी छड़ी वापस ले ली।
\p
\s5
\v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून की छड़ी को पवित्र सन्दूक के सामने रख दे, और उसे सदैव से वहां रहने दे। यह उन लोगों के लिए चेतावनी होगी जो मुझ से विद्रोह करना चाहते हैं। इस प्रकार मेरे विरुद्ध शिकायत करने के कारण और कोई नहीं मरेगा ।”
\v 11 यहोवा ने जैसी आज्ञा दी थी मूसा ने वैसा ही किया।
\p
\s5
\v 12 तब इस्राएली लोगों ने मूसा से कहा, “हम मरने जा रहे हैं! हम सभी निश्चय मरने जा रहे हैं!
\v 13 जो कोई यहोवा के पवित्र तम्बू के निकट आता है, वह मर जाता है। क्या हम में से बचे हुए भी मर जाएँगे?"
\s5
\c 18
\p
\v 1 यहोवा ने हारून से कहा, “तुम और तुम्हारे पुत्र और तुम्हारे पिता के परिवार के अन्य सदस्य वे हैं जिन्हें दण्ड मिलेगा यदि पवित्र तम्बू के भीतर की वस्तुओं के साथ कुछ भी बुरा हुआ तो तू और तेरे पुत्र और तेरे पिता के परिवार के सदस्य दण्ड पाएँगे और यदि किसी याजक ने कोई भी बुरा काम किया तो तू और तेरे पुत्रों को दण्ड दिया जाएगा।
\v 2 जो लोग तेरे गोत्र अर्थात् लेवी के गोत्र के हैं, उन्हें कह कि वे पवित्र तम्बू में तेरी और तेरे पुत्रों की सेवा में सहायता करें।
\s5
\v 3 परन्तु जब वे काम करते हैं, तो उन्हें तम्बू के भीतर पवित्र वस्तुओं के या वेदी के पास नहीं जाना है। यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे मर जाएंगे, और तुम भी मर जाओगे!
\v 4 वे पवित्र तम्बू की देखभाल करने और सभी काम करने में तुम्हारी सहायता कर सकते हैं, लेकिन जहाँ तुम काम कर रहे हो, वहां किसी और को आने की अनुमति नहीं है।
\p
\v 5 केवल तुम पवित्र तम्बू में और वेदी पर पवित्र काम करोगे। यदि तुम इन निर्देशों का पालन करते हो, तो मैं फिर कभी इस्राएलियों से क्रोधित नहीं होऊँगा।
\s5
\v 6 मैंने स्वयं अन्य इस्राएली लोगों में से लेवी के वंशजों को चुना है कि वे तुम्हारे विशेष सहायक होंगे। वे एक प्रकार का उपहार हैं जो मैंने तुम्हें पवित्र तम्बू में काम करने के लिए दिया है।
\v 7 परन्तु तू और तेरे पुत्र ही याजक हैं, जिन्हें वेदी परम पवित्र स्थान के भीतर जो भी होना है उसके विषय मैंने जो निर्देश दिए हैं, उन्हें पूरा करना। मैं तुम्हें सेवा करने का यह काम दे रहा हूँ। अत: तो कोई और यह याजकीय काम करने का प्रयास करे तो वह मार डाला जाए।"
\p
\s5
\v 8 यहोवा ने हारून से यह भी कहा, “मैंने स्वयं तुझे उन सभी पवित्र भेंटों का ख्याल रखने के लिए नियुक्त किया है जो इस्राएली लोग मेरे लिए लाते हैं। मैंने इन सभी पवित्र भेंटों को तुझे और तेरे पुत्रों को दिया है। तुम और तुम्हारे वंशज इन भेंटों का हमेशा एक भाग प्राप्त करोगे।
\v 9 भेंट के वे भाग जो वेदी पर पूरी तरह से जलाए नहीं गए हैं, वे तुम्हारे हैं। पवित्र भेंटों के उन भागों को, जिनमें आटे की भेंट, पापों का प्रायश्चित करने और पापों के दोष को दूर के लिए चढ़ाई गई भेंट हैं, अलग की जाएँ, और तुझे और तेरे पुत्रों को दी जाएँ।
\s5
\v 10 तुम्हें इन्हें अति पवित्र भेंट के रूप में खाना है। तुम्हारे कुल में हर पुरुष इसे खा सकता है। लेकिन तुम्हें उन भेंटों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि वे तुम्हारे लिए पवित्र है।
\p
\v 11 याजक वेदी के सामने खड़े होकर पवित्र भेंट को ऊँचा उठाते। वे सब भेंटें जो इस्राएली मेरे पास लाते हैं, वे तेरे और तेरे पुत्रों और पुत्रियों की हैं। वे सदैव तुम्हारा भाग होंगे। तुम्हारे परिवार के सभी सदस्य जिन्होंने अनुष्ठान करके अपने आपको मेरे के लिए स्वीकार्य किया है, उन सब को इन भेंटों को खाने की अनुमति है।
\p
\s5
\v 12 मैं तुम्हें वह पहला भोजन भी दे रहा हूँ जो लोग हर साल फसल काटकर मेरे लिए लाते हैं और सबसे अच्छा जैतून का तेल और नया दाखरस और अनाज।
\v 13 पहली फसल जिसे काटकर लोग मेरे पास लाते हैं, वह तुम्हारी है। तुम्हारे परिवार में से जिन्होंने अनुष्ठान किया है कि मैं उन्हें स्वीकार करूं उन्हें उसमें से खाने की अनुमति है।
\p
\s5
\v 14 इस्राएल में जो कुछ भी मेरे लिए समर्पित है, वह तुम्हारा होगा।
\v 15 मनुष्यों और घरेलू जानवरों दोनों के पहिलौठे, जो मेरे लिए लाए जाते हैं, तुम्हारे होंगे। परन्तु लोगों को अपने पहिलौठे पुत्रों और पहिलौठे पशुओं को जो बलि के लिए नहीं है वापस खरीदना होगा।
\v 16 वे उन्हें एक महीने के होने पर वापस खरीदें। प्रत्येक पुत्र के लिए उन्हें जो कीमत चुकानी पड़ेगी वह चाँदी के पाँच टुकड़े हैं। उन्हें पवित्र तम्बू में रखे तराजू पर चाँदी का वजन तोलना होगा।
\p
\s5
\v 17 लेकिन उन्हें पशुओं या भेड़ों या बकरियों पहिलौठे को वापस खरीदने की अनुमति नहीं है। वे पवित्र हैं और मेरे लिए अलग किए गए हैं। उन्हें मार डालो और वेदी पर उनका लहू छिड़को। फिर उन पशुओं की चरबी को वेदी पर पूरी तरह से जलाओ। उनके जलने की सुगंध से में बहुत प्रसन्न हो जाऊँगा।
\v 18 जिस प्रकार उन पशुओं की छातियाँ और दाहिने जाँघें जो मेरे साथ मेल करने के लिए चढ़ाई जाती हैं जब याजक उन्हें वेदी के सामने ऊँचा उठाता है, तुम्हारा है वैसे ही ये भेंट भी तुम्हारी होगी ।
\s5
\v 19 जो कुछ इस्राएली पवित्र भेंट के रूप में मेरे पास लाते हैं, मैं वह सब तुम्हें दे रहा हूँ। वे तुम्हारे और तुम्हारे पुत्रों और पुत्रियों के खाने के लिए है। वे हमेशा तुम्हारा भाग होंगे। यह एक समझौता मैं तुम्हारे साथ कर रहा हूँ, एक सदा का समझौता। मैं तुम्हारे वंशजों के साथ भी कर रहा हूँ।"
\p
\v 20 यहोवा ने हारून से यह भी कहा, “तुम याजकों को अन्य इस्राएलियों के समान कोई भूमि या संपत्ति नहीं प्राप्त होगी। तुम्हारा भाग मैं हूँ।
\p
\s5
\v 21 जब इस्राएली मेरे लिए अपनी फसलों और नवजात पशुओं का दसवां अंश लाएंगे, तो मैं तुम्हें अर्थात् लेवी के वंशजों को वह दे दूँगा। पवित्र तम्बू में जो काम तुम करते हो उसके लिए वह तुम्हारी मजदूरी होगी।
\v 22 अन्य इस्राएलियों को उस तम्बू के पास नहीं जाना है। यदि वे उसके पास जाते हैं, तो उनका ऐसा करना मेरे समक्ष पाप है, और वे इस पाप के लिए मर जाएंगे।
\s5
\v 23 केवल लेवी के वंशजों को पवित्र तम्बू में काम करने की अनुमति है, और यदि उसमें कुछ भी बुरा होता है तो उन्हें दण्ड दिया जाएगा। यह एक नियम है जो कभी नहीं बदला जाएगा। लेवी के वंशजों को अन्य इस्राएलियों के बीच कोई भूमि प्राप्त नहीं होगी।
\v 24 इस्राएली अपनी फसलों और पशुओं में से दसवां अंश मेरे लिए चढ़ाएंगे, और यही मैं लेवी के वंशजों को देता हूँ कि वे अपनी आवश्यक्ताओं को पूरा करें। यही कारण है मैंने कहा कि मैं लेवी के वंशजों को कोई भी भूमि नहीं दूंगा।
\p
\s5
\v 25 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 26 “लेवी के वंशजों से यह कह ‘जब तुम इस्राएली लोगों से फसलों और पशुओं का दसवां हिस्सा प्राप्त करते हो, तो तुम्हें उसमें से दसवां अंश पवित्र भेंट करके मेरे लिए चढ़ाना होगा,
\v 27 जैसे अन्य इस्राएली लोग अनाज और दाखमधु का दसवां हिस्सा चढ़ाते हैं।
\s5
\v 28 तुम्हें इस्राएली लोगों से जो कुछ मिलता है, उसका दसवां अंश मेरे लिए लाना होगा। तुम्हारी ओर से यह मेरे निमित्त पवित्र भेंट होगी। तुम्हें इसे हारून को देना होगा।
\v 29 जो तुम्हें दिया गया है उनमें से सबसे उत्तम भाग का चयन करके मेरे लिए लाओ।'
\p
\s5
\v 30 इसके अतिरिक्त, लेवी के वंशजों से कह ‘जब तुम अपनी भेंट के रूप में अनाज और दाखमधु के उन सबसे उत्तम अंशों को मेरे लिए लाते हो, तो मैं यह मानूंगा कि वे भेंटें तुम्हारे अनाज और दाखमधु से आई है।
\v 31 तुम लेवी के वंशजों और तुम्हारे परिवारों को शेष भोजन खाने की अनुमति है, और तुम जहाँ चाहो वहाँ उसे खा सकते हो, क्योंकि यह पवित्र तम्बू में तुम्हारे द्वारा किए गए काम के लिए तुम्हारी मजदूरी है।
\v 32 जो कुछ भी तुम प्राप्त करते हो, उसका सबसे उत्तम भाग यदि तुम याजकों को देते हो, तो तुम लोगों के द्वारा लाई गई अंश भेंटों में से दसवें अंश को स्वीकार करने के लिए दण्ड नहीं पाओगे परन्तु तुम्हें उन भेंटों को पवित्र मानना है। यदि तुम उन चीजों को इन निर्देशों के विपरीत जो मैंने तुम्हें दिए हैं, उन वस्तुओं को खाकर पाप करते हो, तो तुम्हें मार डाला जाएगा।”
\s5
\c 19
\p
\v 1 यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 2 “अब मैं तुम्हें एक और नियम दे रहा हूँ। इस्राएली लोगों को एक लाल-भूरे रंग की गाय लाने के लिए कहो जिसमें कोई दोष न हो। यह एक ऐसा पशु होना है जिसका उपयोग कभी भी खेती के लिए नहीं किया गया हो।
\s5
\v 3 उसे एलीआजार याजक को दो। वह उसे छावनी के बाहर ले जाए है और कोई इसे मार डाले।
\v 4 एलीआजार अपनी एक अंगुली उसके खून में डुबाकर पवित्र तम्बू के पास भूमि पर सात बार छिड़के।
\v 5 एलीआजार के देखते हुए उस, गाय को पूरी तरह जला दिया जाए उसकी खाल, उसका मांस, उसका बाकी का खून, और यहाँ तक कि उसके गोबर को भी।
\v 6 तब एलीआजार देवदार की एक छड़ी, जूफा नामक पौधे का एक डंठल और लाल रंग का धागा लेकर उन्हें उस आग में फेंक दे जिसमें गाय जल रही है।
\p
\s5
\v 7 तब याजक अपने कपड़े धोए और स्नान करे। ऐसा करने के बाद, वह छावनी में लौट सकता है। लेकिन वह उस शाम तक कोई पवित्र काम करने के लिए योग्य न होगा।
\v 8 वह व्यक्ति जो गाय को ला है, उसे भी अपने कपड़े धोने हैं और स्नान करना है, और वह भी उस शाम तक मेरे लिए अस्वीकार्य होगा।
\p
\s5
\v 9 तब कोई जो मेरे लिए अस्वीकार्य नहीं हुआ है, उस गाय की राख इकट्ठा करे और उसे छावनी के बाहर एक पवित्र स्थान में रखे। पापों के दोष को दूर करने के अनुष्ठान के लिए इस राख को पानी के साथ मिलाकर इस्राएल के लोगों के लिए वहां रखा जाना चाहिए।
\v 10 वह व्यक्ति जो गाय की राख को इकट्ठा करता है, उसे भी अपने कपड़े धोने हैं, और वह भी उस शाम तक और कोई पवित्र काम करने के योग्य नहीं होगा। यह एक नियम है जो कभी नहीं बदल जाएगा। तुम इस्राएली लोगों और तुम्हारे बीच रहने वाले पर विदेशी इस नियम का पालन करने से चुकें।
\p
\s5
\v 11 जो लोग शव को छूते हैं वे सात दिनों तक मेरे लिए अस्वीकार्य होंगे।
\v 12 शव को छूने के बाद तीसरे दिन और सातवें दिन, मेरे निमित्त फिर से स्वीकार्य होने के लिए, उन्हें अपने पाप के दोष को दूर करने हटाने के लिए उस पानी में से कुछ अपने ऊपर छिड़कना होगा। अगर वे इन निश्चित दिनों में ऐसा नहीं करते हैं, तो वे मेरे लिए अस्वीकार्य रहेंगे।
\v 13 जो लोग शव को छूते हैं, और मेरे निमित्त स्वीकार्य होने के लिए अनुष्ठान को उचित विधि से नहीं करते हैं, वे यहोवा के पवित्र तम्बू को अशुद्ध करते हैं। उन्हें इस्राएली अपने बीच न रहने दें। पाप के दोष को दूर करने के लिए उन पर वह पानी छिड़का नहीं गया था, इसलिए वे मेरे लिए अस्वीकार्य ही हैं।
\p
\s5
\v 14 एक और कार्य है जिसे करना आवश्यक है, जब कोई तम्बू के भीतर मरता है तो वे सब लोग जो उसकी मृत्यु के समय उस तम्बू के भीतर थे या जो उस समय तम्बू में प्रवेश करेगा, वे सब सात दिनों तक मेरे लिए अस्वीकार्य होंगे।
\v 15 जो पात्र तम्बू के भीतर हैं और बन्द करके नहीं रखे गए हैं उन्हें काम में लेने की अनुमति नहीं है।
\v 16 यदि कोई व्यक्ति जो मैदान में ऐसे शव को छूता है, जिसकी हत्या कर दी गई थी, या अपने आप मरने वाले व्यक्ति के शव को छूता है, या अगर कोई व्यक्ति की हड्डी को छूता है या कब्र को छूता है, तो वह व्यक्ति सात दिन तक मेरे लिए अस्वीकार्य होगा।
\p
\s5
\v 17 इसी स्थिति में फिर से मेरे स्वीकार्य होने के लिए, जलाई गई उस गाय की कुछ राख को लेकर एक पात्र में रखा जाए। फिर राख पर थोड़ा ताजा पानी डाला जाए।
\v 18 तब कोई ऐसा व्यक्ति जो मेरे लिए अस्वीकार्य है जूफा नामक पौधे का डंठल लेकर उस पानी में डुबाए और तम्बू पर और उस मरने वाले के स्थान में तम्बू की वस्तुओं पर और उस समय तम्बू में उपस्थित लोगों पर उस को पानी छिड़के। और वह पानी हर एक व्यक्ति पर छिड़कना होगा जिसने इंसान की हड्डी को छुआ है या जिसने हत्या किए गए व्यक्ति के शव को छुआ है, या जिसने अपने आप मरने वाले व्यक्ति के शव को छुआ है, या जिसने कब्र को छुआ है।
\v 19 तीसरे दिन और उसके बाद सातवें दिन, जो व्यक्ति मेरे लिए स्वीकार्य है, उसे उसमें से कुछ पानी उन लोगों पर छिड़कना होगा जो मेरे लिए अस्वीकार्य हो गए हैं। जो लोग इस अनुष्ठान को मेरे निमित्त स्वीकार्य होने के लिए कर रहे हैं, उन्हें अपने कपड़े धोने होंगे और स्नान करना होगा। अगर वे ऐसा करते हैं, तो उस शाम को वे मेरे लिए फिर से स्वीकार्य हो जाएंगे।
\p
\s5
\v 20 यदि वे ऐसा करके फिर से मेरे लिए स्वीकार्य नहीं होते तो, इस्राएली लोग उन्हें अपने बीच रहने न दें क्योंकि उन्होंने मेरे पवित्र तम्बू को अशुद्ध कर दिया है। उन्होंने अपने ऊपर इस पानी को नहीं छिड़का जो उनके पापों के दोष को दूर कर देता है, इसलिए वे मेरे लिए अस्वीकार्य हैं।
\v 21 यह इस्राएलियों के लिए एक नियम है जो कभी नहीं बदला जाएगा। वे लोग जो उस पानी को अपने ऊपर छिड़कते हैं उन्हें भी अपने कपड़े धोने चाहिए। और जो भी उस पानी को छूता है जो पापों के दोष को दूर करता है, वह शाम तक परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य रहेगा।
\p
\v 22 यदि किसी अस्वीकार्य व्यक्ति ने किसी वस्तु और किसी व्यक्ति को छुआ है, तो वह वस्तु या व्यक्ति उस शाम तक मेरे लिए अस्वीकार्य रहेगा। “
\s5
\c 20
\p
\v 1 अगले वर्ष के पहले महीने में, इस्राएली लोग सीन के मरुस्थल में पहुंचे और कादेश के पास छावनी डाली। वहां, मूसा की बहन मिर्याम की मृत्यु हो गई और वह वहां दफनाई गई।
\p
\s5
\v 2 लोगों को वहां पीने के लिए पानी नहीं मिला, इसलिए वे हारून और मूसा के पास आए।
\v 3 उन्होंने शिकायत की और कहा, “हम चाहते हैं कि हम भी हमारे साथी इस्राएलियों के समान जिनकी मृत्यु हो गई, यहोवा के पवित्र तम्बू के सामने मर जाएँ!
\s5
\v 4 क्या तू हमें जो यहोवा के लोग हैं इस मरुस्थल में इसलिए ले आया है कि हम हमारे पशुओं के साथ मर जाएँ?
\v 5 तुम हमें मिस्र से इस बुरी जगह पर क्यों लाए? यहाँ कोई अनाज, कोई अंजीर, कोई अंगूर और कोई अनार नहीं है। और हमारे लिए पीने के लिए पानी भी नहीं है!"
\p
\s5
\v 6 मूसा और हारून लोगों से दूर होकर पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर गए और भूमि पर मुँह के बल गिर गए। तब यहोवा उन्हें अपनी उज्ज्वल महिमा के साथ दिखाई दिया।
\s5
\v 7 यहोवा ने अपनी महिमा में प्रकट होकर उसने कहा,
\v 8 “तू हारून को और हारून की छड़ी ले आ और सब लोगों को इकट्ठा कर। लोग देख रहे हों, तब उस बड़ी चट्टान को आदेश दो कि वह पानी दे। लोगों के लिए पानी उसमें से बह निकलेगा जो उन सब के लिए और उनके सब पशुओं के लिए पर्याप्त पीने का पानी होगा।"
\p
\v 9 अत: मूसा ने वही किया जिसकी आज्ञा यहोवा ने दी थी। उसने पवित्र तम्बू में से हारून की छड़ी को उसके स्थान से उठा लिया।
\s5
\v 10 तब मूसा और हारून ने सब लोगों को उस चट्टान के पास इकट्ठा होने के लिए कहा । वहाँ मूसा उन पर चिल्लाया, “तुम सब विद्रोही लोग, सुनो! क्या हमें तुम्हारे लिए इस चट्टान से पानी लाना जरूरी है?”
\v 11 तब मूसा ने अपना हाथ उठाया और चट्टान से बात करने की अपेक्षा छड़ी से दो बार चट्टान को मारा। और पानी बह निकला। सब लोगों ने और उनके पशुओं ने जितना चाहते थे उतना पानी पी लिया।
\p
\s5
\v 12 परन्तु यहोवा ने हारून और मूसा से कहा, “तुमने मुझ पर भरोसा नहीं किया ना ही इस्राएल के लोगों के सामने मेरा सम्मान किया, इसलिए तुम उन्हें उस देश में नहीं ले जाओगे जो मैंने उन्हें दिया है!”
\p
\v 13 बाद में उस जगह को मरीबा कहा गया, जिसका अर्थ है ‘विवाद करना’, क्योंकि वहां इस्राएली लोगों ने यहोवा के विरूद्ध विवाद किया था, और वहां उसने उन्हें पानी देकर अपने सम्मान और पवित्रता को दिखाया था।
\p
\s5
\v 14 जब इस्राएली कादेश में थे, तब मूसा ने एदोम के राजा के पास, सन्देश लेकर दूत भेजे, “तुम्हारे भाई-बन्धु, इस्राएली, तुम्हें यह संदेश भेज रहे हैं। तुम हम पर आई परेशानियों को जानते हो।
\v 15 तुम जानते हो कि हमारे पूर्वज मिस्र को गए थे। तुम जानते हो कि वे कई वर्ष तक वहां रहे। उन्हें कष्ट भोगना पड़ा क्योंकि मिस्र के शासकों ने उन्हें अपना दास बनाकर बहुत परिश्रम करवाया।
\v 16 परन्तु जब उन्होंने यहोवा को पुकारा, तो यहोवा ने सुना और एक स्वर्गदूत भेजा जो उन्हें मिस्र से बाहर निकाल लाया। अब हमने तुम्हारे देश की सीमा के पास के एक शहर कादेश में अपने तम्बू खड़े किए हैं।
\s5
\v 17 कृपया हमें अपने देश से यात्रा करने की अनुमति दें। हम सावधान रहेंगे कि तुम्हारे' खेतों और दाख की बारियों में से होकर नहीं चलें। हम तुम्हारे कुओं से पानी भी नहीं पीएंगे। हम यात्रा करेंगे तो हम राजमार्ग पर जो मुख्य सड़क दक्षिण से उत्तर में जाती है, उसी पर, चलेंगे और हम उस सड़क को तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक हम उत्तर में तुम्हारे देश की सीमा पार नहीं कर लेते।"
\p
\s5
\v 18 परन्तु एदोम के राजा ने इन्कार कर दिया। उसने उत्तर दिया, “मेरे देश से बाहर रहो! अगर तुम इसमें प्रवेश करने का प्रयास करते हो, तो मैं अपनी सेना भेज कर तुम पर आक्रमण कर दूँगा!”
\p
\v 19 इस्राएली दूतों ने उत्तर दिया, “यदि हम तुम्हारे देश से यात्रा करते हैं, तो हम मुख्य सड़क पर रहेंगे। अगर हम और हमारे पशु में से कोई भी पानी पीता है, तो हम इसके लिए पैसा देंगे। हम केवल तुम्हारे देश से होकर यात्रा करना चाहते हैं। हम कुछ और नहीं चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 20 परन्तु राजा ने उत्तर दिया, “नहीं! हमारे देश से बाहर रहो! हम तुम्हें हमारी भूमि से होकर यात्रा करने की अनुमति नहीं देंगे!” तब उसने इस्राएलियों को अपने देश में प्रवेश करने से रोकने के लिए अपनी सेना के बलवन्त सैनिकों को भेजा।
\p
\v 21 क्योंकि एदोम के राजा ने इस्राएलियों को अपने देश में से होकर यात्रा करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया, इसलिए इस्राएली मुड़ गए और दुसरे मार्ग से यात्रा की।
\p
\s5
\v 22 इस्राएली लोगों ने कादेश छोड़ा। वे होर पर्वत पर गए,
\v 23 जो एदोम की सीमा पर है। जब वे वहां थे, तब यहोवा ने हारून और मूसा से कहा,
\v 24 “हारून के मरने का समय आ गया है। वह उस देश में प्रवेश नहीं करेगा जो मैं तुम इस्राएलियों को दे रहा हूँ, क्योंकि तुम दोनों ने मेरी अवज्ञा की थी, जब मैंने आज्ञा दी थी कि मरीबा में तुम्हें चट्टान से बात करके पानी लेना ।
\s5
\v 25 अब हे मूसा, हारून और उसके पुत्र एलीआजार को होर पर्वत पर ले जा।
\v 26 वहां तुम्हें हारून के उन कपड़ों को उतारना जिन्हें वह याजक का काम करते समय पहनता है, और उन्हें उसके पुत्र एलीआजार पर डालना है। हारून वहां मर जाएगा। "
\p
\s5
\v 27 तब मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया। वे तीनों इस्राएलियों के देखते- देखते होर पर्वत पर चढ़ गए।
\v 28 पर्वत के चोटी पर, मूसा ने हारून के याजकीय वस्त्रों को उतार लिया और उन्हें एलीआजार पर डाला। तब हारून पर्वत की चोटी पर मर गया, और एलीआजार और मूसा लौट आए।
\v 29 जब इस्राएली लोगों को पता चला कि हारून की मृत्यु हो गई है, तो उन्होंने तीस दिन तक उसके लिए शोक किया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 अराद शहर का राजा दक्षिणी यहूदिया के मरुस्थल में रहता था जहाँ कनानी रहते थे। उसने समाचार सुना कि इस्राएली अतारीम गांव के मार्ग से आ रहे हैं। तो उसकी सेना ने इस्राएलियों पर आक्रमण किया और उनमें से कुछ लोगों को पकड़ लिया।
\v 2 तब इस्राएलियों ने यह मन्नत मानी, “हे यहोवा, यदि आप इन लोगों को हराने में हमारी सहायता करेंगे, तो हम उनके सभी नगरों को पूरी तरह नष्ट कर देंगे।”
\v 3 यहोवा ने उनकी विनती को सुना और उन्हें कनानियों की सेना को पराजित करने योग्य कर दिया। इस्राएली सैनिकों ने सभी लोगों को मार डाला और उनके नगरों को नष्ट कर दिया। उस समय से, उस जगह को होर्मा कहा जाता है जिसका अर्थ है “विनाश।”
\p
\s5
\v 4 तब इस्राएलियों ने होर पर्वत को छोड़ दिया और एदोम देश के बाहर की ओर से जाने के लिए, सरकंडे के सागर की ओर के मार्ग पर यात्रा की। लेकिन लोग रास्ते में अधीर हो गए,
\v 5 और उन्होंने परमेश्वर के और मूसा के विरुद्ध बुड़बुड़ाना आरंभ कर दिया। उन्होंने कहा, “तुम हमें इस मरुस्थल में मरने के लिए मिस्र से क्यों निकाल लाए? यहाँ खाने के लिए कुछ भी नहीं है, और पीने के लिए कुछ भी नहीं है। और हम इस निकम्मे मन्ना से घृणा करते हैं!”
\p
\s5
\v 6 तब यहोवा ने उनके बीच जहरीले सांप भेजे। बहुत से लोगों को सांपों ने काटा और वे मर गए।
\v 7 तब लोग मूसा के पास आए और कहा, “अब हम जानते हैं कि हमने यहोवा के विरुद्ध और तेरे विरूद्ध पाप किया है। यहोवा से प्रार्थना कर, कि वह सांपों को हटा दे!” इसलिए मूसा ने लोगों के लिए प्रार्थना की।
\p
\s5
\v 8 तब यहोवा ने उससे कहा, “इस जहरीले सांप की एक प्रतिमा बना, और उसे खम्भे के ऊपर लटका दे। यदि सांपों के द्वारा काटे गए लोग उस प्रतिमा को देखेंगे तो बच हो जाएंगे।”
\v 9 तब मूसा ने पीतल का एक सांप बनाया और उसे खम्भे के ऊपर लटका दिया। फिर, जब सांप लोगों को काटते थे और वे उस पीतल के सांप को देखते थे, तो वे बच जाते थे!
\p
\s5
\v 10 तब इस्राएली यात्रा करके ओबोत गए और वहां पर छावनी डाली।
\v 11 फिर उन्होंने ओबोत छोड़ा और मोआब की पूर्वी सीमा पर मरुस्थल में इए अबारीम के पास गए।
\s5
\v 12 वहां से उन्होंने उस घाटी की ओर यात्रा की जहाँ जेरेद नदी है, और वहां छावनी डाली।
\v 13 फिर वे अर्नोन नदी के उत्तर की ओर गए। वह क्षेत्र मरुस्थल में उस भूमि के बगल में है जहाँ अमोरी लोग रहते हैं। अर्नोन नदी मोआबियों और एमोरियों के बीच की सीमा है।
\s5
\v 14 यही कारण है कि यह यहोवा के युद्धों की पुस्तक में लिखा गया है,
\q1 “सूपा में वाहेब, और वहां की घाटी,
\q2 और अर्नोन नदी
\q1
\v 15 और वहाँ की घाटी
\q2 जो मोआब की सीमा पर आर गांव तक फैला है। “
\m
\s5
\v 16 वहां से इस्राएलियों ने बेर की ओर यात्रा की। वहां एक कुआं था जहाँ यहोवा ने पहले मूसा से कहा था, “लोगों को इकट्ठा करो, और मैं उन्हें पानी दूँगा।”
\s5
\v 17 वहां इस्राएलियों ने यह गीत गाया:
\q1 “हे कुएँ, हमें पानी दे!
\q1 इस कुएँ के विषय में गाओ!
\q1
\v 18 इस कुएँ के विषय में गाओ
\q2 जो हमारे प्रधानों ने खोदा;
\q2 उन्होंने अपने शाही राजदंड और उनकी लाठियों से इसे खोदा।"
\m तब इस्राएली उस मरुस्थल को छोड़कर मत्ताना गए।
\s5
\v 19 इस्राएली नहलीएल और बामोत गाँव से भी निकल गए।
\v 20 तब वे मोआब की घाटी में गए, जहाँ पिसगा पर्वत जंगल से ऊपर उठता है।
\p
\s5
\v 21 तब इस्राएलियों ने एमोरी लोगों के राजा सीहोन के पास दूत भेजे। उन्होंने उसे यह सन्देश दिया था,
\v 22 “हमें अपने देश से यात्रा करने की अनुमति दीजिए। हम राजमार्ग पर ही रहेंगे, वह मुख्य मार्ग जो दक्षिण से उत्तर तक जाता है, जब तक कि हम तुम्हारी भूमि से यात्रा नहीं कर लेते। हम किसी भी खेत या दाख की बारी से होकर नहीं चलेंगे नही तुम्हारे कुओं से पानी पीएंगे।"
\p
\v 23 लेकिन राजा सीहोन ने इन्कार कर दिया। उसने उन्हें अपने देश में से होकर जाने की अनुमति नहीं दी। इसकी अपेक्षा उसने अपनी पूरी सेना को मरुस्थल में इस्राएलियों पर हमला करने के लिए भेजा। उन्होंने यहस गाँव में इस्राएलियों पर हमला किया।
\s5
\v 24 परन्तु इस्राएलियों ने उन्हें पूरी तरह से पराजित कर दिया और दक्षिण में अर्नोन नदी से उत्तर में यब्बोक नदी तक उनकी भूमि पर कब्जा कर लिया। वे उस देश की सीमा पर रुक गए जहाँ अम्मोनी लोगों रहते थे, क्योंकि अम्मोन की सेना सीमा की रक्षा कर रही थी।
\v 25 इसलिए इस्राएलियों ने उन सभी शहरों और नगरों पर कब्जा कर लिया जहाँ अमोरी रहते थे, और कुछ इस्राएली वहाँ रहने लगे। उन्होंने हेशबोन और आसपास के गांवों पर कब्जा कर लिया।
\v 26 हेशबोन उस देश की राजधानी थी। यह वह शहर था जहाँ से राजा सीहोन शासन करता था। उसकी सेना ने पहले मोआब के राजा की सेना को पराजित कर दिया था, और उसके बाद उसके लोग मोआब के सारे देश में, दक्षिण में अर्नोन नदी तक रहने लगे थे।
\p
\s5
\v 27 इसी कारण से, कवियों में से एक ने बहुत पहले लिखा था,
\q1 “हेशबोन में आओ, वह शहर जहाँ सीहोन राजा शासन करता था।
\q2 हम चाहते हैं कि वह शहर फिर से बसे।
\q1
\v 28 हेशबोन से आग निकली।
\q2 उसने मोआब में आर के शहर को जला दिया।
\q1 उसने अर्नोन नदी के किनारे की पहाड़ियों पर सबकुछ नष्ट कर दिया।
\q1
\s5
\v 29 हे मोआब के लोगों, तुम्हारे साथ भयानक बातें हुई हैं!
\q2 तुम लोग जो अपने देवता कमोश की पूजा करते हो, नष्ट हो गए हो!
\q1 जो लोग कमोश की पूजा करते हैं वे भाग गए हैं और अब शरणार्थी बन गए हैं,
\q2 और जो महिलाएं उसकी पूजा करती थीं, उन्हें एमोरी लोगों के राजा सीहोन की सेना ने बन्दी बना लिया।
\q1
\v 30 परन्तु हमने एमोर के उन वंशजों को पराजित किया है,
\q2 उत्तर में हेशबोन से लेकर दक्षिण में दीबोन शहर तक सभी स्थानों में।
\q1 हमने उन्हें नोपह और मेदबा के नगरों तक पूरी तरह से मिटा दिया है। “
\p
\s5
\v 31 तब इस्राएली लोग उस देश में रहने लगे जहाँ एमोरी रहते थे।
\p
\v 32 जब मूसा ने याजेर शहर के पास के क्षेत्र की छान-बीन करने के लिए कुछ लोगों को भेजा, तब इस्राएली लोग उस क्षेत्र के सभी नगरों में रहने लगे और वहां रहने वाले एमोरी लोगों को निकाल कर बाहर कर दिया।
\s5
\v 33 तब वे उत्तर की ओर बाशान के क्षेत्र की ओर गए, परन्तु बाशान के राजा ओग और उसकी सारी सेना ने उन पर एद्रेई शहर में आक्रमण किया।
\p
\v 34 यहोवा ने मूसा से कहा, “ओग से मत डरो, क्योंकि मैं तेरे लोगों को उसे और उसकी सेना को हराने और उनकी सारी भूमि पर अधिकार करने में सक्षम करूँगा। तुम उसके साथ वैसा ही करोगे जैसा तुमने हेशबोन में रह कर शासन करनेवाले एमोरियों के राजा सीहोन के साथ किया था।"
\p
\v 35 और ऐसा ही हुआ। इस्राएलियों ने ओग की सेना को हरा दिया, और राजा ओग और उसके पुत्रों और उसके सभी लोगों को मार डाला। एक भी व्यक्ति बच नहीं पाया! और फिर इस्राएली उनके देश में रहने लगे।
\s5
\c 22
\p
\v 1 तब इस्राएली मोआब के मैदान में पश्चिम की ओर गए जो यरीहो से नदी के पार, यरदन नदी की घाटी में था।
\p
\s5
\v 2 परन्तु मोआब पर शासन करने वाले सिप्पोर के पुत्र बालाक को पता चला कि इस्राएलियों ने एमोरी लोगों के साथ क्या किया था।
\v 3 जब उसने देखा कि इस्राएली बहुत हैं, तो वह और उसके लोग बहुत डर गए।
\p
\v 4 तब मोआब का राजा मिद्यानी लोगों के प्रधानों के पास गया और उनसे कहा, “इस्राएलियों का यह बड़ा समूह उनके चारों ओर सब कुछ मिटा देगा, जैसे एक बैल घास को खा जाता है!”
\p बालाक मोआब का राजा था।
\s5
\v 5 उसने बिलाम नामक एक भविष्यद्वक्ता के पास दूत भेजे, जो परात नदी के पास पतोर में अपने नगर में रह रहा था। उसने उससे अनुरोध करने के लिए सन्देश भेजा कि बिलाम उनकी सहायता करने आए, “मिस्र से लोगों का एक बड़ा समूह यहाँ पहुंचा है। ऐसा लगता है कि वे पूरी भूमि को ढाँक रहे हैं! और वे हमारे निकट रहने लगे हैं।
\v 6 क्योंकि वे बहुत शक्तिशाली हैं, हम उनसे डरते हैं। इसलिए कृपया आओ और उन्हें मेरे लिए श्राप दो। तब मेरी सेना उन्हें हराने में सक्षम हो सकती है और उन्हें उस भूमि से निकाल सकती है जहाँ वे अब रह रहे हैं। मुझे पता है कि जिन लोगों को आप आशीर्वाद देते हैं, उनका भला होता है, और जिन लोगों को आप श्राप देते हैं, उन पर आपदाएं आती हैं। “
\p
\s5
\v 7 बालाक के दूतों ने, जो मोआब और मिद्यानी लोगों के प्रधान थे, बिलाम को देने के लिए अपने साथ पैसा लिया जिससे कि वह आए और इस्राएलियों को श्राप दे। वे बिलाम के पास गए और बालाक ने जो कहा था उसे सुनाया ।
\p
\v 8 बिलाम ने कहा, “आज रात यहाँ रहो। यहोवा तुम्हारे लिए मुझे जो सन्देश देंगे मैं तुम्हे कल सुबह सुना दूँगा।”
\p अतः मोआब के प्रधान उस रात वहां रहे।
\s5
\v 9 रात में, परमेश्वर बिलाम के सामने प्रकट हुआ और उससे पूछा, “ये लोग कौन हैं जो तेरे साथ रह रहे हैं?”
\p
\v 10 बिलाम ने उत्तर दिया, “मोआब के राजा बालाक ने मुझे यहाँ इन मनुष्यों को भेजा, कि मुझे यह सन्देश सुनाएँ
\v 11 ‘मिस्र से लोगों का एक बड़ा समूह आया है, और वे इस क्षेत्र में फैले हुए हैं। कृपया उन्हें श्राप देने के लिए तुरन्त आ। तब मैं उन्हें पराजित करने और उन्हें इस क्षेत्र से निकाल बाहर करने में सक्षम हो सकता हूँ।”
\p
\s5
\v 12 परमेश्वर ने बिलाम से कहा, “उनके साथ मत जाना! मैंने उन लोगों को आशीर्वाद दिया है, इसलिए तू उन्हें श्राप नहीं देगा!”
\p
\v 13 अगली सुबह, बिलाम ने उठकर बालाक के लोगों से कहा, “घर लौट जाओ, परन्तु अकेले ही जाओ, क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साथ जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।”
\p
\v 14 तब मोआब के लोग राजा बालाक के पास लौट आए और बताया, “बिलाम ने हमारे साथ आने से इंकार कर दिया।”
\p
\s5
\v 15 लेकिन बालाक ने बिलाम के पास प्रधानों के एक और समूह को भेजा। यह समूह बड़ा था और वे पहले समूह के पुरुषों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण थे।
\v 16 वे बिलाम के पास गए और उसे कहा, “राजा बालाक कहता है, ‘कृपया यहाँ आने में किसी भी प्रकार की बाधा को न आने दे।
\v 17 यदि तू आएगा हैं तो मैं तुझे बहुत पैसा दूंगा, और जो तू कहेगा, मैं करूँगा । बस आ और इन इस्राएलियों को मेरे लिए श्राप दे! ‘”
\p
\s5
\v 18 परन्तु बिलाम ने उनको उत्तर दिया, “यदि बालाक मुझे चाँदी और सोने से भरा महल भी दे, तो भी मैं अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए कुछ भी नहीं करूंगा।
\v 19 परन्तु एक और रात यहाँ रहो, जैसे कि दूसरे दूतों ने किया, और मैं बताऊंगा कि यहोवा मुझसे क्या कहते हैं। “
\p
\v 20 उस रात परमेश्वर ने फिर से बिलाम को दर्शन दिया और उससे कहा, “ये लोग अनुरोध करने आए हैं कि तू उनके साथ जाए, इसलिए तू उनके साथ जा, परन्तु केवल वही करना जो मैं तुझे कहता हूँ!”
\p
\s5
\v 21 तब अगली सुबह, बिलाम ने अपने गधे पर गद्दी लगाई और वह अपने दो कर्मचारियों के साथ मोआब के लोगों के साथ चला गया।
\v 22 परमेश्वर ने बिलाम को जाने की अनुमति तो दे दी थी, परन्तु वह क्रोधित था। इसलिए उसने अपने एक स्वर्गदूत को बिलाम के पास भेजा। स्वर्गदूत बिलाम का रास्ता रोकने के लिए सड़क के बीच खड़ा था। बिलाम और उसके दो सेवक अपने अपने गधे पर सवारी कर रहे थे,
\v 23 बिलाम के गधे ने स्वर्गदूत को देखा। स्वर्गदूत सड़क पर खड़ा था और अपने हाथ में तलवार पकड़े हुए था, लेकिन बिलाम ने उसे नहीं देखा।
\p बिलाम का गधा सड़क को छोड़ एक मैदान में चला गया। अत: बिलाम ने गधे को मार कर मार्ग में ले आया।
\s5
\v 24 तब स्वर्गदूत एक ऐसे स्थान पर खड़ा था जो दो अंगूर के बागों के बीच में था मार्ग के दोनों किनारों पर दीवारें होने के कारण सड़क बहुत संकरी थी।
\v 25 जब गधे ने वहां खड़े स्वर्गदूत को देखा, तो वह स्वर्गदूत से दूर होने के प्रयास में दीवार के बहुत निकट चलने लगा। जिसके कारण बिलाम का पाँव दीवार से दब गया। इसलिए बिलाम ने गधे को फिर मारा।
\p
\s5
\v 26 तब स्वर्गदूत सड़क में थोड़ा आगे चला गया और एक ऐसी जगह पर खड़ा था जो बहुत संकरी थी, जिसके कारण गधा बिल्कुल पीछे नहीं जा सका।
\v 27 इस बार, जब गधे ने स्वर्गदूत को देखा, तो वह भूमि पर बैठ गया जबकि बिलाम उसके ऊपर बैठा था। बिलाम बहुत क्रोधित हो गया, और उसने गधे को फिर अपनी लाठी से मारा।
\s5
\v 28 तब यहोवा ने गधे को बोलने में सक्षम किया! उसने बिलाम से कहा, “मैंने आपके साथ क्या बुराई की है जिसके कारण आपने तीन बार मुझे मारा?”
\p
\v 29 बिलाम चिल्लाया, “मैंने तुझे इसलिए मारा कि तू ने मुझे मूर्ख बना दिया है! अगर मेरे पास तलवार होती, तो मैं तुझे मार डालता!”
\p
\v 30 गधे ने उत्तर दिया, “मैं आपका गधा हूँ, जिस पर आपने हमेशा सवारी की है! क्या मैंने इससे पहले कभी ऐसा कुछ किया है?”
\p बिलाम ने कहा, “नहीं।”
\p
\s5
\v 31 तब यहोवा ने सड़क पर खड़े स्वर्गदूत को देखने के लिए बिलाम की आँखें दीं उसके हाथ में तलवार थी। बिलाम ने देखा कि वह एक स्वर्गदूत है और उसने भूमि पर मुँह के बल गिरकर स्वर्गदूत को दण्डवत् किया।
\p
\v 32 स्वर्गदूत ने उससे पूछा, “तू ने अपने गधे को तीन बार क्यों मारा? मैं तेरा रास्ता रोकने के लिए आया हूँ क्योंकि जो योजना तू बना रहा है, वह गलत है।
\v 33 तीन बार तेरे गधे ने मुझे देखा और मुझसे दूर हो गया। यदि उसने ऐसा नहीं किया होता, तो मैं निश्चय ही पहली बार में तुझे मार डालता, लेकिन मैं गधे को जीवित रहने देना चाहता हूँ।"
\p
\s5
\v 34 तब बिलाम ने स्वर्गदूत से कहा, “मैंने पाप किया है, लेकिन मुझे नहीं पता था कि तुम मेरा रास्ता रोक रहे थे। इसलिए यदि तुम नहीं चाहते कि मैं आगे जाऊँ, तो मैं घर लौट जाता हूँ।”
\p
\v 35 परन्तु स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “मैं तुझे इन मनुष्यों के साथ जाने की अनुमति देता हूँ परन्तु तुझे वही कहना होगा जो मैं कहता हूँ!”
\p इसलिए बिलाम उन प्रधानों के साथ चला गया जिन्हें बालाक ने भेजा था।
\p
\s5
\v 36 जब राजा बालाक ने सुना कि बिलाम आ रहा था, तो वह मोआब के एक नगर में उससे मिलने गया, जो अर्नोन नदी के किनारे स्थित है, और उसके देश की सीमा के पास है।
\v 37 जब वह वहाँ पहुंचा जहाँ बिलाम था, तो उसने उससे कहा, “मैंने तुझे संदेश भेजा था कि तुरन्त आ! तू क्यों नहीं आया तू ने क्या यह सोचा था कि मैं तुझे बहुत पैसा नहीं दे सकता?”
\p
\s5
\v 38 बिलाम ने उत्तर दिया, “मैं अभी यहाँ आया तो हूँ, लेकिन जो मैं चाहता हूँ वह कह नहीं सकता। मैं केवल उन शब्दों को ही कहूंगा जो परमेश्वर मुझे कहने के लिए देगा।”
\p
\v 39 तब बिलाम बालाक के साथ किर्यथूसोत को गया।
\v 40 वहां बालाक ने कुछ मवेशियों और भेड़ों को बलि हेतु मार डाला, और मांस के कुछ हिस्सों को बिलाम और उसके साथ रहने वाले प्रधानों को दिया।
\s5
\v 41 वे वहां सो गए, और अगली सुबह बालाक ने बिलाम को बामोथ बाल नामक गांव में पहाड़ पर चढ़ाया। वहां से उन्होंने नीचे कुछ इस्राएली लोगों को देख सकते थे।
\s5
\c 23
\p
\v 1 बिलाम ने राजा बालाक से कहा, “मेरे लिए यहाँ सात वेदियां बना दे। फिर बलि के लिए सात जवान बैल और सात मेढ़े मार।”
\v 2 बालाक ने वैसा ही किया। और फिर उसने और बिलाम ने प्रत्येक वेदी पर बलि हेतु एक जवान बैल और एक मेढ़ा जला दिया।
\p
\v 3 तब बिलाम ने बालाक से कहा, “तुम यहाँ अपनी होमबलि के समीप यहाँ खड़े हो जाओ, और मैं जाऊंगा और यहोवा से पूछूंगा कि वह क्या कहता हैं। तब मैं आपको बताऊंगा कि वह मुझसे क्या कहता है।”
\p तब बिलाम स्वयं पहाड़ी के चोटी पर चढ़ गया।
\s5
\v 4 पहाड़ी की चोटी पर परमेश्वर उनके सामने प्रकट हुआ। बिलाम ने उससे कहा, “हमने सात वेदियां बनाई हैं, और मैंने एक जवान बैल और एक मेढ़े को हर वेदी पर बलि किया है।”
\p
\v 5 तब यहोवा ने को राजा बालाक के लिए बिलाम को संदेश दिया, और कहा, “लौटकर जा और उसे मेरा सन्देश सुना।”
\p
\v 6 बिलाम जब बालाक के पास लौट आया, तब बालाक जलाई गई बलि की वेदी के निकट मोआब के प्रधानों के साथ खड़ा था।
\s5
\v 7 बिलाम ने उसे यह सन्देश सुनाया,
\q1 “बालाक ने मुझे अराम से यहाँ बुलाया;
\q2 मोआब का राजा मुझे अराम के पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों से यहाँ लाया।
\q1 उसने कहा, ‘आ और मेरे लिए याकूब के वंशजों को श्राप दो!
\q2 आ और कह कि इन इस्राएलियों के साथ बुरा होगा!
\q1
\v 8 परन्तु मैं उन लोगों को कैसे श्राप दे सकता हूँ जिन्हें परमेश्वर ने श्राप नहीं दिया है?
\q2 मैं उन लोगों के विरुद्ध कैसे लड़ सकता हूँ जिनके खिलाफ यहोवा नहीं लड़ते हैं?
\q1
\s5
\v 9 मैंने उन्हें चट्टानों के ऊपर से देखा है,
\q2 मैंने उन्हें पहाड़ियों पर से देखा है।
\q1 मैं देखता हूँ कि वे अकेले रहने वाले लोगों का समूह है।
\q2 उन्होंने स्वयं को अन्यजातियों से अलग कर दिया है।
\q1
\s5
\v 10 याकूब के वंशजों को कौन गिन सकता है, जो धूल के कणों के समान अनगिनत है!
\q2 इस्राएली लोगों की संख्या के चौथाई को भी कौन गिन सकता है?
\q1 मेरी इच्छा है कि मैं धर्मी लोगों के समान मर जाऊं।
\q2 मुझे आशा है कि मैं उनके समान शान्ति से मरूंगा।"
\p
\s5
\v 11 तब बालाक ने कहा, “तू ने मेरे साथ यह क्या किया है? मैं तुझे अपने शत्रुओं को श्राप देने के लिए यहाँ लाया, परन्तु तू ने उन्हें आशीर्वाद दिया है!”
\p
\v 12 परन्तु बिलाम ने उत्तर दिया, “मैं केवल वही कह सकता हूँ जो यहोवा मुझसे कहलवाते हैं। मैं और कुछ नहीं कह सकता।”
\p
\s5
\v 13 तब राजा बालाक ने बिलाम से कहा, “मेरे साथ दूसरे स्थान पर आ। वहां तू इस्राएलियों का केवल एक भाग ही देखेगा, और उन लोगों को मेरे लिए श्राप देने में सक्षम होगा।”
\v 14 तब बालाक बिलाम को पिसगा पर्वत की चोटी पर एक मैदान में ले गया। वहाँ, फिर उसने सात वेदियाँ बनाई और प्रत्येक वेदी पर एक जवान बैल और एक मेढ़ा बलि किया।
\p
\v 15 तब बिलाम ने राजा से कहा, “यहाँ अपनी होमबलियों के निकट खड़े रहो, और मैं यहोवा से बात करने जाता हूँ।”
\p
\s5
\v 16 तब बिलाम गया, और यहोवा ने बिलाम को फिर से दर्शन दिया और उसे एक और संदेश दिया। फिर उसने कहा, “बालाक के पास लौट जा और उसे यह संदेश सुना।”
\p
\v 17 तब बिलाम जलाई गई वेदी के पास लौट आया जहाँ राजा और मोआब के प्रधान खड़े थे। बालाक ने उससे पूछा, “यहोवा ने क्या कहा?”
\p
\v 18 तब बिलाम ने उसे यह संदेश सुनाया,
\q1 “बालाक, ध्यान से सुनो,
\q2 हे सिप्पोर के पुत्र, सुनो कि मुझे क्या कहना है!
\q1
\s5
\v 19 परमेश्वर मनुष्य नहीं हैं।
\q2 मनुष्य झूठ बोलते हैं, परन्तु परमेश्वर कभी झूठ नहीं बोलते हैं।
\q1 वह मनुष्य के समान अपना मन कभी नहीं बदलते हैं।
\q2 जो भी उन्होंने कहा है, वह किया हैं।
\q2 उन्होंने जो प्रतिज्ञा की है, उन्होंने उसे पूरा किया है।
\q1
\v 20 उन्होंने मुझे आज्ञा दी कि मैं इस्राएलियों को आशीर्वाद देने के लिए उससे विनती करूं,
\q2 उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया है, और मैं इसे बदल नहीं सकता।
\q1
\s5
\v 21 उनके परमेश्वर यहोवा उनके साथ हैं;
\q2 वे लोग नारा लगाते हैं कि वह उनके सच्चे राजा हैं।
\q1 इसलिए याकूब के वंशजों को हानि नहीं पहुचाएंगे,
\q2 वे परमेश्वर के बिना विपत्ति का सामना नहीं करेंगे?
\q1
\v 22 परमेश्वर ने उन्हें मिस्र के दासत्व से बाहर निकाला
\q2 और जंगली बैल की सी शक्ति से वह उन्हें मरुस्थल के बीच में से लेकर चला है।
\q1
\s5
\v 23 याकूब के वंशजों को श्राप दिया जाए तौभी उनकी हानि नहीं होगी,
\q2 उन पर तंत्र-मन्त्र की शक्ति भी प्रभाव नहीं डालेगी।
\q1 इसलिए अब लोग याकूब के वंशजों के विषय में कहेंगे,
\q2 ‘परमेश्वर ने इस्राएलियों के लिए अद्भुत काम किया है!
\q1
\s5
\v 24 वे एक हमलावार शेरनी की सी शक्ति रखते हैं।
\q2 वे शेरों के समान दृढ़ खड़े हैं।
\q1 शेर तब तक आराम नहीं करते जब तक कि वे शिकार को मारकर खा नहीं लेते
\q2 और पशुओं का खून भी पीते हैं, जिन्हें उन्होंने मार डाला है।"
\p
\s5
\v 25 तब बालाक ने बिलाम से कहा, “यदि तू उन्हें श्राप नहीं देता है, तो मैं कभी नहीं चाहूँगा कि तू उन्हें आशीर्वाद दें!”
\p
\v 26 परन्तु बिलाम ने उत्तर दिया, “मैंने तुमसे से कहा था कि मुझे केवल वही करना होगा जो यहोवा मुझे करने के लिए कहते हैं!”
\p
\v 27 तब राजा बालाक ने बिलाम से कहा, “मेरे साथ आ मैं तुझे एक और स्थान पर ले जाऊंगा। शायद यह परमेश्वर को स्वीकार्य हो कि तू उन्हें उस स्थान से श्राप दे।”
\s5
\v 28 तब बालाक बिलाम को पोर पर्वत की चोटी पर ले गया जहाँ से वे नीचे मरुस्थल में इस्राएलियों को देख सकते थे।
\p
\v 29 बिलाम ने फिर बालाक से कहा, “मेरे लिए सात वेदियां फिर से बना और बलिदान के लिए सात जवान बैल और सात मेढ़े मार।”
\v 30 बालाक ने वह किया जो बिलाम ने उसे करने के लिए कहा था। उसने प्रत्येक वेदी पर एक जवान बैल और एक मेढ़ा जला दिया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 बिलाम को अब यह समझ में आ गया था कि यहोवा इस्राएलियों को श्राप नहीं आशीर्वाद देना चाहते थे। इसलिए उसने यहोवा की इच्छा जानने के लिए एक ओझा के समान जादू का उपयोग नहीं किया, जिसका उसे अभ्यास था। इसकी अपेक्षा, वह मरुस्थल की ओर चला गया।
\s5
\v 2 उसने देखा कि इस्राएली लोग वहां डेरा डाले हुए हैं, प्रत्येक गोत्र एक समूह में इकट्ठा है। तब परमेश्वर के आत्मा उसके ऊपर आया
\v 3 और उसने बालाक को जो भविष्यद्वाणी का संदेश सुनाया वह है:
\q1 “मैं, बोर का पुत्र बिलाम, भविष्यद्वाणी कर रहा हूँ।
\q2 मेरी भविष्यद्वाणी एक ऐसे व्यक्ति के समान है जो देखता है कि भविष्य में क्या होगा और स्पष्ट रूप से बोलता है।
\q1
\s5
\v 4 मैं यह संदेश परमेश्वर से सुनता हूँ।
\q2 मैं उनका दर्शन देखता हूँ जो सर्वशक्तिमान हैं।
\q2 उनके सामने मुंह के बल गिर कर दण्डवत् करते समय मेरी आँखे खुली हैं।
\q1
\v 5 हे याकूब के वंशजों, तुम्हारे तम्बू बहुत सुंदर हैं!
\q2 जहाँ तुम रहते हैं वह स्थान सुंदर है!
\q1
\s5
\v 6 तुम्हारे तम्बू मेरे सामने फैले हुए हैं जैसे घाटियों में खजूर के पेड़,
\q2 जैसे एक नदी के किनारे का बगीचा।
\q1 वे दृढ़ अगर के पेड़ों के समान हैं जिन्हें यहोवा ने लगाया है,
\q2 जैसे नदियों के साथ बढ़ने वाले दृढ़ देवदार के पेड़।
\q1
\s5
\v 7 तुम्हारी पानी की बाल्टी हमेशा भरी रहेगी।
\q2 तुम्हारे द्वारा लगाए जाने वाले बीज के लिए हमेशा पर्याप्त पानी होगा कि वे बढ़ सकें।
\q1 इस्राएलियों का राजा अगाग राजा से अधिक महान होगा।
\q2 उसका प्रशस्ति राज्य सम्मान पाएगा।
\q1
\s5
\v 8 परमेश्वर उन्हें मिस्र से बाहर निकाल लाए,
\q2 वह एक जंगली बैल की सी अपनी महान शक्ति से उनकी अगुवाई करते हैं।
\q1 परमेश्वर उन सब जातियों को नष्ट करते हैं जो उनका विरोध करती हैं।
\q2 वह उन सब लोगों की हड्डियों को तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं,
\q2 और उन्हें अपने तीरों से मारते हैं।
\q1
\s5
\v 9 इस्राएली शेरों के समान हैं जो घात लगाए तैयार बैठे हैं, कि अपने शिकार पर झपटें,
\q1 शेरनियों के समान जो विश्राम कर रही हैं।
\q2 कोई भी उन्हें जगाने का साहस नहीं करेगा!
\p परमेश्वर उन सब को आशीर्वाद देंगे जो इस्राएलियों को आशीर्वाद देते हैं,
\q1 और वह तुमको श्राप देने वाले हर एक जन को श्राप देंगे।"
\p
\s5
\v 10 तब राजा बालाक बिलाम से बहुत क्रोधित हुआ। उसने अपने हाथों के संकेत से दिखाया कि वह बहुत क्रोधित है, और उसने चिल्लाकर कहा, “मैंने तुझे अपने शत्रुओं को श्राप देने के लिए बुलाया! इसकी अपेक्षा तू ने उन्हें तीन बार आशीर्वाद दिया है!
\v 11 इसलिए अब, यहाँ से निकल जा! वापस घर जा! मैंने कहा कि यदि तू उन्हें श्राप देगा तो मैं तुझे बहुत पैसा दूंगा, लेकिन यहोवा ने तुझे यह सब पाने से रोका है! “
\p
\s5
\v 12 बिलाम ने बालाक से कहा, “क्या तुम्हे याद नहीं है कि मैंने उन दूतों को क्या कहा था जिन्हें तूने मेरे पास भेजा था? मैंने कहा था,
\v 13 ‘बालाक मुझे चाँदी और सोने से भरा महल भी दे, तौभी मैं यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगा। जो वह स्वीकार नहीं करते हैं उसे मैं नहीं कर सकता चाहे वह भला हो या बुरा। और मैंने तुमसे कहा था कि मैं केवल वही कह सकता हूँ जो यहोवा मुझ पर प्रकट करेंगे।
\v 14 इसलिए हाँ, मैं अपने लोगों में लौट जाऊंगा, परन्तु पहले, मुझे अनुमति दे कि मोआबी लोगों का भविष्य बताऊँ कि उनके साथ क्या होगा।"
\p
\s5
\v 15 तब बिलाम ने बालाक से कहा:
\q1 “मैं, बोर का पुत्र बिलाम, फिर से भविष्यद्वाणी कर रहा हूँ।
\q2 यह भविष्यद्वाणी फिर एक ऐसे व्यक्ति की है जो देखता है कि भविष्य में क्या होगा और स्पष्ट बोलता है।
\q1
\v 16 मैं परमेश्वर का एक संदेश सुनता हूँ;
\q2 मैं उन बातों को जानता हूँ जिनको परमेश्वर ने, जो स्वर्ग में रहते हैं, मुझ पर प्रकट की हैं।
\q1 मैं सर्वशक्तिमान से दर्शन पाता हूँ।
\q2 जब मैं उनके सामने मुंह के बल गिर कर दण्डवत् करता हूँ तब मेरी आँखें खुली रहती हैं।
\q1
\s5
\v 17 जो बातें मैं दर्शन में देखता हूँ वह अभी नहीं होने वाली हैं।
\q2 मैं उन बातों को देखता हूँ जिनको परमेश्वर भविष्य में करेंगे।
\q1 वह मनुष्य जो याकूब का वंशज है, एक तारे के समान दिखाई देगा;
\q2 एक राजा जो राजदंड धारण करता है वह इस्राएली लोगों में से ही होगा।
\q1 वह मोआब के लोगों के सिर को कुचल देगा;
\q2 वह शेत के वंशजों को मिटा देगा।
\q1
\s5
\v 18 इस्राएली एदोम पर कब्जा करेंगे,
\q2 और वे अपने शत्रुओं को हरा देंगे जो सेईर पर्वत के पास रहते हैं।
\q2 इस्राएली लोग विजयी होंगे।
\q1
\v 19 एक शासक आएगा जो याकूब का वंशज है।
\q2 वह उन लोगों को नष्ट करेगा जो उस शहर में रहते हैं जहाँ बिलाम पहली बार बालाक से मिला था।
\p
\s5
\v 20 तब बिलाम ने अमालेकी लोगों के रहने के स्थान को देखा और उसने यह भविष्यद्वाणी की,
\q1 “अमालेकी लोगों का समूह सबसे बड़ी जाति थी,
\q2 लेकिन वे मिटा दिए जाएंगे। “
\p
\s5
\v 21 फिर उसने उस क्षेत्र को देखा जहाँ केनी लोग रहते थे, और उसने यह भविष्यद्वाणी की,
\q1 “तुम सोचते हो कि जिस स्थान में तुम रहते हो वह सुरक्षित है
\q2 चट्टानों में बने घोंसले के समान,
\q1
\v 22 लेकिन तुम मिटा दिए जाओगे
\q2 जब अश्शूर की सेना तुम्हे पराजित कर देगी।"
\p
\s5
\v 23 बिलाम ने अपनी भविष्यद्वाणियों को यह कहते हुए समाप्त कर दिया,
\q1 “जब परमेश्वर इन सब कामों को करते हैं तो कौन जीवित रह सकता है?
\q1
\v 24 कुप्रुस द्वीप से जहाज आएंगे,
\q2 और उन जहाजों के पुरुष अश्शूर और एबेर की सेनाओं को पराजित करेंगे।
\q2 लेकिन परमेश्वर उन पुरुषों को भी नष्ट करेंगे।"
\p
\v 25 तब बिलाम और बालाक अपने-अपने घर लौट गए।
\s5
\c 25
\p
\v 1 जबकि इस्राएली बबूल का उपवन नामक एक जगह पर शिविर में रहते थे, तब कुछ लोग उस क्षेत्र में रहने वाले मोआबी लोगों की कुछ स्त्रीयों के साथ सोकर परमेश्वर के साथ विश्वासघाती हुए।
\v 2 तब उन स्त्रीयों ने अपने देवताओं को बलि चढ़ाए जाने के समय उन पुरुषों को आमंत्रित किया। इन इस्राएली पुरुषों ने स्वीकार किय कि वे स्त्रीयों के साथ उत्सव में गए और मोआबी लोगों के देवताओं की आराधना की।
\v 3 इस प्रकार इस्राएली लोग बाल देवता की पूजा करने में स्त्रीयों के साथ जुड़ गए, बाल जो मोआबी लोगों के विचार से पोर पहाड़ी पर रहता था। इससे यहोवा अपने लोगों से बहुत क्रोधित हो गये, और उन्होंने कई इस्राएली लोगों पर एक गंभीर मरी भेजी।
\p
\s5
\v 4 यहोवा ने मूसा से यह कहा: “उन लोगों के सभी प्रधानों को पकड़ो जो ऐसा कर रहे हैं और मेरे देखते देखते उन्हें मार डाल। दिन के समय ऐसा कर। ऐसा करने के बाद, मैं इस्राएली लोगों से क्रोधित नहीं रहूंगा। “
\p
\v 5 इसलिए मूसा ने अन्य इस्राएली प्रधानों से कहा, “तुम में से प्रत्येक को अपने उन लोगों को मार डालना होगा जो बाल की पूजा करने में दूसरों के साथ जुड़ गए हैं।”
\p
\s5
\v 6 लेकिन बाद में, जब बहुत से लोग पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर रो रहे थे, तब इस्राएली पुरुषों में से एक मिद्यानी लोगों के समूह से एक स्त्री को अपने तम्बू में ले आया और उसके साथ सो रहा था। मूसा और सभी लोगों ने इसके विषय में सुना।
\v 7 जब हारून के पोते पीनहास ने यह सुना, तो उसने भाला उठा लिया।
\s5
\v 8 तब वह उस मनुष्य के तम्बू में पहुंचा। उसने भाले को पूरी तरह से व्यक्ति के शरीर से पार करके स्त्री के पेट में बेध दिया और दोनों को मार डाला। उसने ऐसा किया, तो मरी जो इस्राएलियों में फैल रही थी, थम गई।
\v 9 लेकिन उस मरी से चौबीस हजार लोग पहले ही मर चुके थे।
\p
\s5
\v 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 11 “इस पापी व्यवहार को रोकने के लिए मेरे जैसी अधीरता रखने के कारण, पीनहास ने इस्राएली लोगों पर मेरे क्रोध को शान्त कर दिया है। मैं सभी इस्राएली लोगों से छुटकारा पाने के लिए तैयार था क्योंकि मैं बहुत क्रोधित था, लेकिन पीनहास ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया।
\s5
\v 12 अब उसे बताओ कि मैं उसके साथ एक विशेष समझौता कर रहा हूँ।
\v 13 इस समझौते में, मैं उसे और उसके वंशजों को याजक होने का अधिकार देने की प्रतिज्ञा कर रहा हूँ। मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूँ कि उसने दिखा दिया है कि इस पापी व्यवहार को रोककर वह मेरा अर्थात् परमेश्वर का सम्मान करने के लिए अत्याधिक अधीर था। उसने इस्राएल के पापी व्यवहार के विरुद्ध मेरी पवित्र धार्मिकता को संतुष्ट किया है कि मैं उनके पाप के लिए उन्हें क्षमा करूं।"
\p
\s5
\v 14 मोआबी लोगों की स्त्री के साथ मार डाले गए इस्राएली व्यक्ति का नाम जिम्री था, जो सालू का पुत्र था जो शिमोन के गोत्र से एक परिवार का प्रधान था।
\v 15 स्त्री का नाम कोजबी था। वह सूर की बेटी थी, जो मिद्यानी लोगों के कुलों में से एक का प्रधान था।
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 17 “अपने लोगों को ले और मिद्यानी लोगों पर आक्रमण कर और उन्हें मार डाल।
\v 18 वे तेरे शत्रु बन गए हैं, क्योंकि उन्होंने इस्राएलियों को धोखा दिया है और बहुतों को बाल की पूजा करने के लिए प्रेरित किया है, और तुम्हारा एक पुरुष मिद्यानियों के एक प्रधान की पुत्री कोजबी के साथ सोया था। पोर पहाड़ में पाप करने वाले लोगों के कारण जो मरी आई थी उस समय वह मारी गई थी।"
\s5
\c 26
\p
\v 1 महामारी के समाप्त होने के बाद, यहोवा ने एलीआजार और मूसा से कहा,
\v 2 “एक बार और सब इस्राएलियों की गिनती कर। उन सब बीस वर्ष की आयु के पुरुष जो युद्ध करने योग्य हैं उन के नाम उनके परिवारों के अनुसार लिख।”
\s5
\v 3 जब इस्राएली यरदन के किनारे यरीहो के पास मोआब के मैदानों पर थे, तब एलीआजार और मूसा ने इस्राएलियों के प्रधानों से यह कहा,
\v 4 “उन सब इस्राएली पुरुषों के नाम लिखो जो कम से कम 20 वर्ष की आयु के हैं, यहोवा ने हमें यह आज्ञा दी है।”
\p अत: उन्होंने ऐसा ही किया; याकूब के वंशज जो मिस्र से बाहर निकल आए थे और अभी जीवित थे यह उनकी सूची है।
\s5
\v 5-7 याकूब के पहिलौठें रूबेन के वंशज:
\li हनोक, जिससे हनोकियों का कुल निकला,
\li पल्लू, जिससे पल्लूइयों का कुल निकला,
\li हेस्रोन, जिससे हेस्रोनियों का कुल निकला,
\li कर्मी, जिससे कर्मियों का कुल निकला। इस्राएली प्रधानों ने रूबेन के गोत्र से 43,730 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 8 पल्लू का पुत्र एलीआब था
\v 9 और उसके पोते नमूएल, दातान, और अबीराम थे। दातान और अबीराम वे प्रधान थे जो कोरह के साथ हारून और मूसा के विरूद्ध षड्यंत्र रचने में सहभागी हुए थे और यहोवा से विद्रोह किया।
\p
\s5
\v 10 लेकिन धरती खुल गई और उन्हें और कोरह को निगल लिया। यहोवा ने एक आग भी भेजी जिसने, उन तीन पुरुषों का समर्थन करने वाले 250 लोगों को जला दिया। यह सभी इस्राएली लोगों को चेतावनी थी कि उन्हें उन प्रधानों का सम्मान और आज्ञा पालन करना चाहिए जिन्हें यहोवा ने नियुक्त किया था।
\v 11 परन्तु कोरह के वंशज उस दिन मर नहीं गए थे।
\s5
\v 12-14 ये शिमोन के वंशज हैं:
\li नमूएल, जिससे नमूएलियों का कुल निकला,
\li यामीन, जिससे यामीनियों का कुल निकला,
\li याकीन, जिससे याकीनियों का कुल निकला,
\li जेरह, जिससे जेरहियों का कुल निकला,
\li शाऊल, जिससे शाऊलियों का कुल निकला। इस्राएली प्रधानों ने शिमोन के गोत्र से 22,200 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 15-18 ये गाद के वंशज हैं:
\li सपोन, जिससे सपोनियों का कुल निकला,
\li हाग्गी, जिससे हाग्गियों का कुल निकला,
\li शूनी, जिससे शूनियों का कुल निकला,
\li ओजनी, जिससे ओजनियों का कुल निकला,
\li एरी, जिससे एरियों का कुल निकला,
\li अरोद, जिससे अरोदियों का कुल निकला,
\li अरेली, जिससे अरेलियों का कुल निकला। इस्राएली प्रधानों ने गाद के गोत्र से 40,500 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 19-22 यहूदा के पुत्र, एर और ओनान, कनान में उनके बच्चे होने से पहले मर गए। ये यहूदा के वंशज हैं:
\li शेला, जिससे शेलियों का कुल निकला,
\li पेरेस, जिससे पेरेसियों का कुल निकला,
\li जेरह, जिससे जेरहियों का कुल निकला। पेरेस, हेस्रोन और हामूल का पिता था।
\li हेस्रोन, जिससे हेस्रोनियों का कुल निकला,
\li हामूल, जिससे हामूलियों का कुल निकला। इस्राएली प्रधानों ने यहूदा के गोत्र से 76,500 पुरुषों की गणना की।
\s5
\v 23-25 ये इस्साकार के वंशज हैं:
\li तोला, जिससे तोलियों का कुल निकला,
\li पुव्वा, जिससे पुव्वियों का कुल निकला,
\li याशूब, जिससे याशूबियों का कुल निकला,
\li शिम्रोन, जिससे शिम्रोनियों का कुल निकला, इस्राएली प्रधानों ने इस्साकार के गोत्र से 64,300 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 26-27 ये जबूलून के वंशज हैं:
\li सेरेद, जिससे सेरेदियों का कुल निकला,
\li एलोन, जिनसे एलोनियों का कुल निकला,
\li यहलेल, जिससे यहलेलियों का कुल निकला, इस्राएली प्रधानों ने जबूलून के गोत्र से 60,500 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 28-29 यूसुफ के पुत्र मनश्शे और एप्रैम हैं। ये मनश्शे के वंशज हैं:
\li माकीर, जिससे माकीरियों का कुल निकला। माकिर गिलाद का पिता था।
\li गिलाद से गिलादियों का कुल निकला।
\s5
\v 30-32 ये गिलाद के वंशज हैं:
\li ईएजेर, जिससे ईएजेरियों का कुल निकला,
\li हेलेक, जिससे हेलेकियों का कुल निकला,
\li अस्रीएल, जिससे अस्रीएलियों का कुल निकला,
\li शेकेम, जिससे शेकेमियों का कुल निकला,
\li शमीदा, जिससे शमीदियों का कुल निकला,
\li हेपेर, जिससे हेपेरियों का कुल निकला।
\s5
\v 33-34 हेपेर के पुत्र सलोफाद के पास कोई पुत्र नहीं था, परन्तु उसकी पांच पुत्रियाँ थी-महला, नोवा, होग्ला, मिल्का और तिर्सा। इस्राएली प्रधानों ने मनश्शे जो यूसुफ का पुत्र था, उसके गोत्र से 52,700 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 35-37 ये एप्रैम के वंशज हैं:
\li शूतेलह, जिससे शूतेलहियों का कुल निकला,
\li बेकेर, जिससे बेकेरियों का कुल निकला,
\li तहन, जिससे तहनियों का कुल निकला, ये शूतेलह के वंशज हैं:
\li एरान, जिससे एरानियों का कुल निकला, इस्राएली प्रधानों ने एप्रैम जो यूसुफ का दूसरा पुत्र था, उसके गोत्र से 32,500 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 38-41 ये बिन्यामीन के वंशज हैं:
\li बेला, जिससे बेलियों का कुल निकला,
\li अश्बेल, जिससे अश्बेललियों का कुल निकला,
\li अहीराम, जिससे अहीरामियों का कुल निकला,
\li शपूपाम, जिससे शपूपामियों का कुल निकला,
\li हूपाम, जिससे हूपामियों का कुल निकला, बेला अर्द और नामान का पिता था।
\li अर्द से अर्दियों का कुल निकला,
\li नामान से नामानियों का कुल निकला। इस्राएली प्रधानों ने बिन्यामीन के गोत्र से 45,600 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 42-43 ये दान के वंशज हैं:
\li शूहाम, जिससे शूहामियों का कुल निकला, इस्राएली प्रधानों ने दान के गोत्र से 64,400 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 44-47 ये आशेर के वंशज हैं:
\li यिम्ना, जिससे यिम्नियों का कुल निकला,
\li यिश्वी, जिससे यिश्वीयों का कुल निकला,
\li बरीआ, जिससे बैरियों का कुल निकला, बरीआ के दो बेटे थे- हेबेर और मल्कीएल।
\li हेबेर, जिससे हेबेरियों का कुल निकला,
\li मल्कीएल, जिससे मल्कीएलियों का कुल निकला।
\li आशेर की एक बेटी साराह भी थी। इस्राएली प्रधानों ने आशेर के गोत्र से 53,400 पुरुषों की गिनती की।
\s5
\v 48-50 ये नप्ताली के वंशज हैं:
\li यहसेल, जिससे यहसेलियों का कुल निकला,
\li गूनी, जिससे गूनियों का कुल निकला,
\li येसेर, जिससे येसेरियों का कुल निकला,
\li शिल्लेम, जिससे शिल्लेमियों का कुल निकला, इस्राएली प्रधानों ने नप्ताली के गोत्र से 45,400 पुरुषों की गिनती की।
\m
\s5
\v 51 इस्राएली पुरुष जिन्हें प्रधानों ने गिना वे कुल 6,01,730 थे।
\p
\s5
\v 52 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 53 “गोत्रों के बीच में कनान देश को बाँट दे। अपनी सूची लिखे गए प्रत्येक गोत्र में लोगों की संख्या के अनुसार भूमि बाँट दे।
\s5
\v 54-56 चिट्ठी डालकर यह निर्धारित कर कि कौन से समूह को कौन सा क्षेत्र प्राप्त होगा, परन्तु जिनकी संख्या अधिक है उनको सबसे बड़ा क्षेत्र प्रदान करना। “
\p
\s5
\v 57 प्रधानों ने लेवी के वंशजों के पुरुषों को भी गिना। वे गेर्शोन, कहात और मरारी से निकले कुलों में थे।
\v 58 इन लोगों में लिब्नी, हेब्रोनी, महली, मूशी और कोरह के कुल भी थे। वे सभी लेवी के वंशज थे। कहात अम्राम का पूर्वज था,
\v 59 जिसकी पत्नी योकेबेद थी। वह भी लेवी की वंशज थी, लेकिन उसका जन्म मिस्र में हुआ था। उसके और अम्राम के दो पुत्र थे, हारून और मूसा, और उनकी बड़ी बहन मिर्याम थी।
\s5
\v 60 हारून के पुत्र नादाब, अबीहू, एलीआजार और ईतामार थे।
\v 61 परन्तु नादाब और अबीहू की मृत्यु हो गई जब उन्होंने यहोवा की दी हुई विधि का उल्लंघन करके यहोवा को भेंट चढ़ाने के लिए धूप जलाई।
\p
\v 62 प्रधानों ने लेवी के वंशजों से तेईस हजार लोगों की गिनती की जो कम से कम एक महीने की आयु के थे। लेकिन इन लोगों को जब शेष इस्राएलियों की गिनती के समय नहीं गिना गया था, क्योंकि उन्हें उस समय कोई भूमि नहीं दी गई थी।
\p
\s5
\v 63 इन लोगों को गिनने के लिए एलीआजार और मूसा ने कहा। जब इस्राएलियों की गिनती की गई थी तब वे यरदन नदी के पूर्व की ओर यरीहो के पास मोआब के मैदानी क्षेत्रों में थे।
\v 64 जिन लोगों को उन्होंने गिना था, उनमें से कोई भी हारून और मूसा द्वारा बनाई गई उस सूची में नहीं थे जो सीनै में तैयार की गई थी।
\s5
\v 65 उन्हें यहोवा का वचन स्मरण कराया गया, यहोवा ने कहा था “वे सब इस मरुस्थल में मर जाएंगे,” और यही हुआ। दो लोग जो जीवित थे, वे यपुन्ने का पुत्र कालेब और नून का पुत्र यहोशू थे।
\s5
\c 27
\p
\v 1 एक दिन सलोफाद की पाँचों पुत्रियाँ मूसा के पास आईं। वे महला, नोवा, होग्ला, मिल्का और तिर्सा थीं।
\s5
\v 2 वे पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार पर आईं और एलीआजार, मूसा, प्रधानों और अन्य इस्राएलियों के सामने खड़ी हो गईं।
\v 3 उन्होंने कहा, “हमारा पिता उस समय मर गया जब हम मरुस्थल में थे, और उनके पास कोई पुत्र नहीं था। परन्तु वह उन लोगों में से नहीं था जिन्होंने कोरह का समर्थन किया, जिन्होंने यहोवा से विद्रोह किया था और वह अपने ही पाप के कारण मर गया। उसके पास कोई पुत्र नहीं था।
\s5
\v 4 हमारे पिता के पुत्र न होने के कारण उनका वंश क्यो लोप हो जाए? इसलिए हमें भी भूमि दो, जैसे हमारे पिता के भाई-बन्धुओं को मिली है!"
\p
\v 5 तब मूसा ने यहोवा से पूछा कि उनके विषय में क्या करना है।
\s5
\v 6 और यहोवा ने उत्तर दिया,
\v 7 “सलोफाद की पुत्रियाँ जो मांग कर रही हैं, वह सही है। उन्हें कुछ भूमि मिलनी चाहिए, जैसे कि उनके पिता के भाई-बन्धुओं को मिली हैं। उनमें से प्रत्येक को उनके भाइयों के स्थान पर भूमि दे।
\p
\v 8 इस्राएलियों से यह भी कह: ‘यदि कोई मनुष्य जिसके पुत्र नहीं हैं और वह मर जाता है, तो वह सब जो उसके पुत्रों को उत्तराधिकार मिलता, उसकी पुत्रियों को दो।
\s5
\v 9 यदि उस व्यक्ति के पुत्र या पुत्रियां नहीं हैं, तो उसके भाइयों में उसके पुत्र-पुत्री के स्थान में उत्तराधिकार बाँट दो।
\v 10 यदि उस व्यक्ति के भाई नहीं हैं तो उसके पिता के भाइयों में उसकी सम्पदा बाँट दो जो उसके पुत्र, पुत्रियों या भाइयों को मिलती ।
\v 11 यदि उस व्यक्ति के पिता का कोई भाई नहीं है, तो उसके निकटतम सम्बन्धियों में उसकी वह सम्पदा बाँट दो। ‘यह इस्राएलियों के लिए एक नियम होगा, क्योंकि मैं मूसा, तुझे यह आज्ञा देता हूँ कि लोगों को यह नियम सुना दे। “
\p
\s5
\v 12 एक दिन, यहोवा ने मूसा से कहा, “यरदन नदी के पूर्व में अबारीम पहाड़ों की चोटी पर चढ़ जा। और उस देश को देखो जो मैं इस्राएलियों को दे रहा हूँ।
\v 13 उसे देखने के बाद, तेरे बड़े भाई हारून के समान तू भी मर जाएगा।
\v 14 इस देश में जाने से पूर्व तू मर जाएगा क्योंकि सीन के मरुस्थल में जब इस्राएली मुझ से विद्रोह कर रहे थे तब मैं ने तुमसे कहा था कि मरीबा की चट्टान से बात करो और वह पानी देगी परन्तु तुम ने मेरी आज्ञा नहीं मानी और चट्टान पर लाठी मारी थी इससे तुमने लोगों में मेरी शक्ति नहीं दिखाई थी।"
\p
\s5
\v 15 तब मूसा ने यहोवा से यह कहा,
\v 16 “हे यहोवा, आप ही परमेश्वर हैं जो सब लोगों की आत्माओं को निर्देशित करते हैं । इसलिए कृपया इस्राएलियों के लिए एक नया प्रधान नियुक्त करें।
\v 17 किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करें जो युद्ध लड़ने में तुम्हारे लोगों का नेतृत्व करे, जिससे की वे बिना चरवाहे के समान भटक न जाएँ।"
\p
\s5
\v 18 यहोवा ने उत्तर दिया, “नून के पुत्र यहोशू को ले, जिसमें मेरी आत्मा है। उसे नियुक्त करने के लिए उसके ऊपर अपना हाथ रखो।
\v 19 उसे एलीआजार याजक के सामने खड़ा कर, सब लोगों के देखते देखते उसे इस्राएलियों का नया प्रधान बनने की आज्ञा दो।
\s5
\v 20 उसे अपने अधिकार में से कुछ अधिकार दे जिससे कि इस्राएलियों को समझ में आ जाए कि उन्हें उसकी आज्ञा का पालन करना होगा"।
\v 21 जब तुम लोगों को मेरे मार्गदर्शन की आवश्यक्ता होगी, तो यहोशू एलीआजार के सामने खड़ा होगा। फिर चिठ्ठी डालकर एलीआजार पता लगाएँगा कि उन्हें क्या करना चाहिए। यहोशू के आदेश पर सब इस्राएलियों युद्ध के लिए तैयार होंगे।"
\p
\s5
\v 22 अत: मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया। उसने यहोशू को एलीआजार और सब इस्राएलियों लोगों के सामने खड़ा किया।
\v 23 मूसा ने उस पर अपना हाथ रखा और उसे नियुक्त कर दिया कि यहोवा ने मूसा को उसके लिए जो काम बताया था उसे करे।
\s5
\c 28
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से यह कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह, ‘मेरे लिए वेदी पर जलाने वाली भेंटें ले आओ। जब वे जलाई जाएँगी, तो उनकी सुगंध से में बहुत प्रसन्न हो जाऊँगा। और उन्हें समझा दे कि उन्हें उचित समय पर भेंटें लाना होगा।
\s5
\v 3 उनसे कह दे कि उन्हें प्रति दिन एक वर्ष के दो मेम्ने मेरे लिए लाना हैं । उन मेम्नों में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन्हें वेदी पर पूरी तरह जला दिया जाना चाहिए।
\v 4 एक मेम्ना सुबह और एक मेम्ना शाम को लाना होगा।
\v 5 उन्हें एक लीटर जैतून के तेल में सना हुआ दो किलो मैदा भी भेंट के लिए लाना चाहिए।
\s5
\v 6 यह उनकी दैनिक भेंटें होंगी। जब तुम लोग सीनै पर्वत पर थे, तब उन्होंने उन भेंटों को लाना आरंभ कर दिया था। जब उन भेंटों को वेदी पर जला दिया जाता है, तो उसकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करती है।
\v 7 जब वे मेम्ने को जलाते हैं, तो उन्हें पवित्र स्थान की पवित्र वेदी उस पर एक लीटर दाखरस भी डालना होगा।
\v 8 शाम को, जब वे दूसरे मेम्ने को चढ़ाते हैं, तो उन्हें सुबह के समान मैदा और दाखरस भी चढ़ाना चाहिए। जब वे जलाए जाते हैं, तो उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करती है।
\p
\s5
\v 9 प्रत्येक सब्त के दिन, तुमको दो मेम्ने लाने हैं जिनमें कोई दोष नहीं हो। इसके अतिरिक्त जैतून के तेल में सना हुआ साढ़े चार लीटर मैदा अन्नबलि के लिए और साढ़े चार लीटर दाखरस भी भेंट के लिए लेकर आना है।
\v 10 ये भेंटें हैं प्रत्येक सब्त को वेदी पर जलाई जाना चाहिए। ये उन दो मेम्नों और दाखरस से अलग हैं जिन्हें हर दिन लाना है।
\p
\s5
\v 11 प्रत्येक महीने के पहले दिन तुम्हे मेरे लिए दो जवान बैल, एक नर भेड़ और एक वर्ष के सात मेम्ने भेंट करने होंगे। इन सब को दोष रहित होना चाहिए। इन सब को वेदी पर जला दिया जाना चाहिए।
\v 12 प्रत्येक बैल के साथ जैतून के तेल में सने हुए छः लीटर मैदा की भेंट लेकर आओ। प्रत्येक नर भेड़ के साथ जैतून के तेल में सना हुआ 3.640 किलो मैदा चढ़ाए।
\v 13 और प्रत्येक मेम्ने के साथ जैतून के तेल में सना हुए 1.820 किलो मैदा भी भेंट लाना। जब इन को वेदी पर जलाया जाता है, तो उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करती है।
\s5
\v 14 प्रत्येक बैल के साथ दो लीटर दाखरस भी लाना। प्रत्येक नर भेड़ के साथ, सवा लीटर। प्रत्येक मेम्ने के साथ एक लीटर दाखरस लाना। इन भेंटों को हर महीने के पहले दिन लाना होगा और वेदी पर जलाना होगा।
\v 15 इन जलानेवाली भेंटों के अतिरिक्त पापों के दोष को दूर करने के लिए मेरे पास एक बकरी भी लाना होगी।
\p
\s5
\v 16 मुझे सम्मानित करने के लिए फसह का त्यौहार हर वर्ष पहले महीने के चौदहवें दिन मनाया जाना चाहिए।
\v 17 अखमीरी रोटी का त्यौहार अगले दिन शुरू होगा। अगले सात दिनों के लिए, जो रोटी तुम खाओगे उसे खमीर के बिना बनाया जाना चाहिए।
\v 18 उस त्यौहार के पहले दिन, तुम्हे मेरी आराधना करने के लिए एक साथ इकट्ठा होना है, और तुम्हे कोई काम नहीं करना है जिसे, तुम सामान्य रूप से करते हो।
\s5
\v 19 उस दिन, तुम्हे वेदी पर जलाने के लिए दो जवान बैल, एक नर भेड़ और एक वर्ष के सात मेम्ने भेंट करने होंगे। वे सब दोष रहित हों।
\v 20 इन बैलों में से प्रत्येक के साथ जैतून के तेल में सना हुआ साढ़े पाँच किलो मैदा अन्नबलि के लिए लाना। नर भेड़ के साथ, जैतून के तेल में सना हुआ 3.640 किलो मैदा अन्नबलि के लिए लाना।
\v 21 सात मेम्नों के साथ, जैतून के तेल में सना हुआ 1.820 किलो मैदा अन्नबलि के लिए लाओ।
\v 22 अपने पाप के प्रायश्चित्त की बलि के लिए एक बकरी भी लाना।
\s5
\v 23 इन भेंटों के साथ सुबह की भेंटें प्रतिदिन के अनुसार लाई जाएँ।
\v 24 सात दिन तक वेदी पर जलाए गए अनाज की सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी। पशु और दाखरस जिनको आप वेदी पर जलाते हैं, अनाज उनसे अलग हो।
\v 25 उस त्यौहार के सातवें दिन, तुम सब फिर से आराधना करने के लिए इकट्ठा होना तुम्हे कोई दैनिक काम नहीं करना है।
\p
\s5
\v 26 फसल के त्यौहार के दिन, जब तुम मेरे लिए पहला अनाज लाओ, तो तुम्हे मेरी आराधना करने के लिए इकट्ठे होना चाहिए। उस दिन कोई दैनिक काम नहीं करना।
\v 27 मेरे लिए दो जवान बैल, एक नर भेड़ और एक वर्ष के सात मेम्ने लाना। जब वे पूरी तरह से वेदी पर जलाए जाते हैं, तो उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करती है।
\v 28 जैतून के तेल में सना हुआ मैदा अन्नबलि के लिए लाना। प्रत्येक बैल के साथ 5.127 किलो और प्रत्येक नर भेड़ के साथ 3.375 किलो लाना।
\s5
\v 29 प्रत्येक मेम्ने के साथ 1.820 किलो मैदा लाना।
\v 30 अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए एक बकरे की भी बलि करना।
\v 31 दाखरस और ये सब भेंटें प्रतिदिन जलानेवाली पशुओं और मैदे की भेंटों के अतिरिक्त हैं, स्मरण रखो कि जिन पशुओं की तुम बलि चढ़ाते हो उनमें कोई दोष नहीं होना चाहिए।”
\s5
\c 29
\p
\v 1 “हर वर्ष, अपने सातवें महीने के पहले दिन में मेरी आराधना करने के लिए इकट्ठे होना, और उस दिन कोई दैनिक काम नहीं करना। उस दिन याजकों को अपनी तुरहियाँ फूँकनी होंगी।
\p
\s5
\v 2 उस दिन जब भेंटों को वेदी पर जलाया जा रहा होगा, तो उसकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी। जो पशु तुम्हे लाना हैं, वे एक जवान बैल, एक नर भेड़ और एक वर्ष के सात मेम्ने हैं। उनमें कोई दोष नहीं होना चाहिए।
\s5
\v 3 इन पशुओं के साथ जैतून के तेल में सना हुआ मैदा अन्नबलि के लिए लाओ। बैल के साथ, 682 ग्राम मैदा लाना। नर भेड़ के साथ, 3.376 किलो मैदा लाना,
\v 4 और सात मेम्नों में से प्रत्येक के साथ 1किलो 820 ग्राम मैदा लाना।
\v 5 अपने पापों के प्रायश्चित के लिए एक नर बकरा भी चढ़ाओ।
\s5
\v 6 ये सभी पशु उन पशुओं के अतिरिक्त होंगे जिन्हें प्रतिदिन सुबह और प्रत्येक महीने के पहले दिन वेदी पर जलाया जाता है। मैदा और दाखरस की भेंट ठीक उसी तरह चढ़ाई जानी चाहिए जैसी मैंने राजाज्ञा दी है। जब ये भेंटें जलाई जाती हैं, तो उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करती है।
\p
\s5
\v 7 “प्रति वर्ष, सातवें महीने के दसवें दिन, तुम्हे मेरी आराधना करने के लिए इकट्ठे होना है। उस दिन भोजन न खाना या कोई काम न करना।
\v 8 जब तुम उस दिन वेदी पर भेंट चढ़ाओगे, तो उसकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी तुम्हारे भेंट के पशुओं में होंगे, एक जवान बैल, एक नर भेड़ और एक वर्ष के सात मेम्ने। उनमें कोई दोष नहीं होना चाहिए।
\s5
\v 9 बैल के साथ, जैतून के तेल में सना हुआ 5 किलो 127 ग्राम मैदा अन्नबलि के लिए लाना। नर भेड़ के साथ, 3 किलो 375 ग्राम मैदा लाना।
\v 10 मेम्ने में से प्रत्येक के साथ, 1किलो 820 ग्राम मैदा लाना।
\v 11 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरा और पापों के प्रायश्चित के लिए पशुओं और मैदे और दाखरस की दैनिक भेंट जलाना । वे भेंट उन पशुओं और मैदा और दाखरस के अतिरिक्त होंगी जो प्रतिदिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\p
\s5
\v 12 सातवें महीने के पंद्रहवें दिन, तुम सब को मेरी आराधना करने के लिए इकट्ठा होना है। तुमको उस दिन कोई साधारण काम नहीं करना है। तुम सात दिनों के लिए उत्सव मनाओगे।
\v 13 जब वेदी पर भेंट को चढ़ाया जाता है, तो उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करती है। तुम्हे तेरह जवान बैल, दो नर भेड़ें, और एक वर्ष के चौदह मेम्ने लाना हैं। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए।
\s5
\v 14 तेरह बैलों में से प्रत्येक के साथ, जैतून के तेल में सना हुआ 5 किलो 1 27 ग्राम मैदा भेंट के लिए लाना। नर भेड़ में से प्रत्येक के साथ, 3 किलो 375 ग्राम मैदा लाना।
\v 15 चौदह मेम्नों में से प्रत्येक के साथ, 1किलो 820 ग्राम आटा लाना।
\v 16 अपने पापों के अपराध को दूर करने के लिए एक बकरे को बलि चढ़ाना यह भेंट वेदी पर प्रतिदिन जलाए जाने वाले पशुओं और मैदे और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होगी।
\p
\s5
\v 17 त्यौहार के दूसरे दिन, तुम बारह जवान बैल, दो मेढ़े और एक वर्ष के चौदह मेम्नों को वेदी पर लाना होगा। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए।
\v 18 पशुओं के साथ मैदा और दाखरस की भेंट भी आवश्यक है।
\v 19 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरा भी बलि करना। ये पशु, उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रतिदिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\p
\s5
\v 20 त्यौहार के तीसरे दिन, तुम्हे वेदी पर ग्यारह जवान बैल, दो मेढ़े और एक वर्ष के चौदह मेम्नों को लाना है। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन सभी को वेदी पर जलाया जाना है, और उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\v 21 पशुओं के साथ मैदा और दाखरस की भेंट भी आवश्यक है।
\v 22 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरे की भी बलि चढ़ाना । ये पशु उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रतिदिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\p
\s5
\v 23 त्यौहार के चौथे दिन, तुम वेदी पर दस जवान बैल, दो मेढ़े और एक वर्ष के चौदह मेम्नों को लाना। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन सब को वेदी पर जलाया जाना चाहिए, और उनकी सुगंध मुझे प्रसन्न करेगी।
\v 24 इन पशुओं के साथ भी मैदा और दाखरस की भेंट आवश्यक है।
\v 25 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरे की भी बलि चढ़ाना। ये पशु उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रतिदिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\p
\s5
\v 26 त्यौहार के पांचवें दिन, तुम वेदी पर नौ जवान बैल, दो मेढ़े और एक वर्ष के चौदह मेम्नों को लाना। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन सब को वेदी पर जलाया जाना है, उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\v 27 पशुओं के साथ मैदा और दाखरस की भेंट भी आवश्यक है।
\v 28 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरे को भी बलि चढ़ाना। ये पशु उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रति दिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\p
\s5
\v 29 त्यौहार के छठे दिन, तुम वेदी पर आठ जवान बैल, दो मेढ़े और एक वर्ष के चौदह मेम्नों को लाना। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन सब को वेदी पर जलाया जाना है, उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\v 30 पशुओं के साथ मैदा और दाखरस की भेंट भी आवश्यक है।
\v 31 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरे को भी बलि चढ़ाना। ये पशु उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रति दिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\s5
\v 32 त्यौहार के सातवें दिन, तुम वेदी पर सात जवान बैल, दो मेढ़े और एक वर्ष के चौदह मेम्नों को लाना। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन सब को वेदी पर जलाया जाना है, उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\v 33 पशुओं के साथ मैदा और दाखरस की भेंट भी आवश्यक है।
\v 34 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरे को भी बलि चढ़ाना। ये पशु उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रति दिन वेदी पर पूरी तरह जलाए जाते हैं।
\s5
\v 35 उस त्यौहार के आरंभ के आठ दिन बाद, तुमको फिर से आराधना के लिए इकट्ठा होना हैं; उस दिन कोई दैनिक काम नहीं करना।
\v 36 उस दिन, तुमको वेदी पर एक बैल, एक जवान मेढ़ा और एक वर्ष के सात मेम्नों को लाना है। इन पशुओं में कोई दोष नहीं होना चाहिए। उन सब को वेदी पर जलाया जाना चाहिए उनकी सुगंध मुझे बहुत प्रसन्न करेगी।
\p
\s5
\v 37 बैल और नर भेड़ और प्रत्येक मेम्ने के साथ मैदा और दाखरस की भेंट भी आवश्यक है।
\v 38 अपने पापों के दोष को दूर करने के लिए एक बकरे की भी बलि चढ़ाना। ये पशु उन पशुओं और मैदा और दाखरस की भेंट के अतिरिक्त होंगे जो प्रतिदिन वेदी पर जलाए जाते हैं।
\p
\s5
\v 39 अपने त्योहारों में, तुम्हे मेरे लिए ये भेंटें लानी होंगी: जो वेदी पर जलाई जाएंगी, अन्नबलि, दाखमधु और मेरे साथ मेल करने के लिए चढ़ाई जाने वाली भेंट। ये भेंट जो आप मुझे चढ़ाते हैं, वे उनके अतिरिक्त हैं जो तुम मुझे अपनी मन्नत पूरी होने पर चढ़ाते हो, या अन्य विशेष भेंट जो तुम मुझे देना चाहते हो।"
\p
\v 40 तब मूसा ने इस्राएलियों को वह सब बातें बता दी जिनकी आज्ञा यहोवा ने उसे दी थी।
\s5
\c 30
\p
\v 1 मूसा ने इस्राएली गोत्रों के प्रधानों से बात की और उन्हें ये सब आज्ञाएँ सुना दीं जो यहोवा ने उसे दी थीं।
\p
\v 2 “यदि कोई मनुष्य सच्चे मन से यहोवा के सामने मन्नत मानता है कि वह कुछ करेगा, तो उसने जो भी प्रतिज्ञा की है उसे वह पूरा करे।
\p
\s5
\v 3 अगर एक जवान स्त्री जो अभी भी अपने माता-पिता के साथ रहती है, सच्चे मन से यहोवा से कोई प्रतिज्ञा करती है,
\v 4 और यदि उसका पिता उसकी प्रतिज्ञा के विषय में सुनकर कुछ नहीं कहता है, तो उसने जो प्रतिज्ञा की है उसे वह पूरा करे।
\s5
\v 5 और यदि उसका पिता उसकी प्रतिज्ञाओं के विषय में सुनकर उससे कुछ नहीं कहता है, तो उसे अपनी प्रतिज्ञाओं को अवश्य पूरा करना होगा।
\p
\s5
\v 6 यदि उसका पिता उसी दिन, जिस दिन उसने प्रतिज्ञाओं और मन्नतों में स्वयं को बाँध लिया है सुनकर मना कर देता है तो यहोवा उसे क्षमा कर देगा क्योंकि उसके पिता ने उसे मना कर दिया था।
\v 7 यदि वह शपथ के समय विवाह करती है, या बिना सोचे विचारे शब्दों से स्वयं को बाँध लेती है तो उसकी प्रतिज्ञा स्थिर रहेगी।
\s5
\v 8 परन्तु यदि उसका पति उस दिन उसे रोकता है जिस दिन वह उसके विषय में सुनता है, और उसे मना कर देता है तो उसकी प्रतिज्ञा और शपथ के बन्धक शब्द रद्ध हो गए। यहोवा उसे क्षमा कर देगा।
\p
\s5
\v 9 यदि एक विधवा या एक स्त्री जो विवाह विच्छेदित तलाकशुदा है, वह प्रतिज्ञा करती है, तो उसे प्रतिज्ञा पूरी करना चाहिए।
\p
\v 10 अगर विवाहित स्त्री कुछ करने की प्रतिज्ञा करती है,
\v 11 और यदि उसका पति इसके विषय में सुनता है लेकिन वह कुछ नहीं करता है, तो जो भी प्रतिज्ञा की है उसे वह पूरी करे।
\s5
\v 12 परन्तु यदि वह इसके विषय में सुनता है और उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है, तो उसे वह करने की प्रतिज्ञा पूरी करने की आवश्यक्ता नहीं हैं। यहोवा उसे ऐसा न करने के लिए क्षमा करेगा।
\s5
\v 13 एक स्त्री का पति उसकी प्रतिज्ञा को पूरी करने की माँग कर सकता है या उसे मना कर सकता है।
\v 14 यदि उसका पति इसके विषय में सुनता है और वह कई दिनों तक विरोध नहीं करता है, तो उसने जो भी प्रतिज्ञा की है उसे वह पूरा करे।
\s5
\v 15 परन्तु यदि उसका पति उसकी प्रतिज्ञा के बाद लम्बे समय तक चुप रहता है और फिर उसे मना करता है तो यहोवा उस स्त्री को नहीं उसके पति को दण्ड देगा। “
\p
\v 16 यहोवा ने मूसा को पतियों और पत्नियों और माता पिता के साथ रहनेवाली युवा स्त्रियों के लिए ये नियम दिए।
\s5
\c 31
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों कि उन्हें मिद्यानियों अपना से बदला लें उसके बाद तू मर जाएगा।”
\p
\s5
\v 3 तब मूसा ने लोगों से कहा, “युद्ध के लिए कुछ लोगों को तैयार करो। जो मिद्यानियों ने हमारे साथ किया था उसका बदला लेने के लिए यहोवा हमें शक्ति देगा।
\v 4 प्रत्येक गोत्र से युद्ध के लिए हजार-हजार पुरुषों का चयन करो। “
\v 5 अत: प्रत्येक गोत्र से एक हजार इस प्रकार बारह हजार पुरुष युद्ध में जाने के लिए तैयार हो गए।
\s5
\v 6 जब मूसा ने उन्हें युद्ध में भेजा, तो एलीआजर याजक का पुत्र पीनहास उनके साथ गया। उसने पवित्र तम्बू से कुछ चीजें और तुरही लीं, जो युद्ध आरंभ करने के लिए फूँकी जाएंगी।
\p
\v 7 इस्राएलियों ने मिद्यानियों के सैनिकों से युद्ध किया, जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था और उन्होंने मिद्यानियों के हर एक व्यक्ति को मार डाला।
\v 8 जिन लोगों को उन्होंने मार डाला उनमें से मिद्यानियों के पाँच राजा थे- एवी, रेकेम, सूर, हूर और रेबा। उन्होंने बोर के पुत्र बिलाम को भी तलवार से मार डाला।
\s5
\v 9 उन्होंने मिद्यानियों की सब स्त्रीयों और बच्चों को पकड़ लिया और उनके मवेशियों, भेड़ और बकरियों के झुंड और सारी सम्पत्ति समेत बन्दी बना लिया।
\v 10 तब उन्होंने उन नगरों और गाँवों के सभी घरों को जला दिया जहाँ मिद्यानी रहते थे।
\s5
\v 11 परन्तु वे उन सभी स्त्रीयों और बच्चों और जानवरों और सम्पत्तियों को अपने साथ ले आऐ।
\v 12 वे ये सब एलीआजर और मूसा और अन्य इस्राएलियों लोगों के पास ले आए जो यरदन नदी के तट पर यरीहो के पास मोआब के मैदानों पर अपने डेरे में थे।
\s5
\v 13 एलीआजार और लोगों के सब प्रधान और मूसा उन्हें बधाई देने के लिए डेरे के बाहर गए।
\p
\v 14 परन्तु मूसा उनमें से कुछ लोगों से नाराज था जो युद्ध से लौट आए थे। वह सेना के अधिकारियों से नाराज था, जो हजार पुरुषों और सौ पुरुषों के अधिकारी थे।
\v 15 उसने उनसे पूछा, “तुमने स्त्रीयों को जीवित क्यों रखा?
\s5
\v 16 इन स्त्रीयों ने बिलाम के सुझाव के अनुसार किया था और हमारे लोगों से यहोवा के स्थान में बाल की आराधना करने को प्रेरित किया था जिसके कारण यहोवा ने पोर में रहते हुए अपने लोगों पर मरी भेजी थी।
\v 17 इसलिए, अब तुम्हें मिद्यानियों के सभी लड़कों को मारना होगा, और उन सब स्त्रीयों को जो कुवारी नहीं उन्हें भी मार डालना होगा।
\s5
\v 18 केवल उन लड़कियों को जीवित रख छोड़ना जो कुंवारी हैं। तुम उन्हें अपनी पत्नी या दासी बनाने के लिए रख सकते हो।
\p
\v 19 तुम सभी ने जिसने किसी को मारा है या युद्ध में मारे गए किसी व्यक्ति के शव को छुआ है, तो उन्हें शिविर के बाहर सात दिन तक रहना होगा। तीसरे दिन और सातवें दिन, तुम्हें अनुष्ठान करना होगा ताकि तुम फिर से परमेश्वर के लिए स्वीकार्य हो जाओ।
\v 20 तुम्हें अपने कपड़े और युद्ध में लेकर गए कोई भी वस्तु जो चमड़े या बकरी के बाल या लकड़ी से बनी है, धोना है ।"
\p
\s5
\v 21 तब एलीआजार ने उन सैनिकों को जो युद्ध से लौट आए थे, कहा “यहोवा ने मूसा को यह निर्देश दिया है।
\v 22 तुम जो भी सोने या चाँदी या कांस्य या लोहे या टिन या सीसा से बनी वस्तुओं को तुम युद्ध से लाए हो, उसे आग में डालना होगा।
\v 23 जो कुछ भी आग में नहीं जलेगा, उसे रखो, और फिर वे तुम्हारे उपयोग हेतु स्वीकार्य होगी। परन्तु उन वस्तुओं पर भी वह पानी छिड़कना जो वस्तुओं और मनुष्यों को परमेश्वर के लिए स्वीकार्य बनाती है। जो वस्तुएँ आग में डालने से जल जाएं, उन पर भी पानी छिड़क देना।
\v 24 सातवें दिन, अपने कपड़े धोना, और फिर तुम परमेश्वर के लिए स्वीकार्य हो जाओगे। ऐसा करने के बाद, तुम शिविर में वापस आ सकते हो।"
\p
\s5
\v 25 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा,
\v 26 “युद्ध में पकड़े गए सब सामान, स्त्रीयों और जानवरों की एक सूची बनाओ।
\v 27 फिर एलीआजार और परिवारों के प्रधानों से कहो कि वे उन सब वस्तुओं को उन लोगों के बीच जो युद्ध में गए थे और बाकी इस्राएलियों के बीच बाँट दें।
\s5
\v 28 जो लोग युद्ध में लड़ने गए थे उनमें से पाँच सौ पर एक पुरुष और प्रत्येक पाँच सौ मवेशी, गधे और भेड़ों में से एक-एक, मेरे लिए कर स्वरूप ले लो।
\v 29 इन सब को मेरा भाग होने के लिए भेंट स्वरूप एलीआजार को दे।
\s5
\v 30 और सब वस्तुओं में से प्रत्येक पचास में से एक वस्तु लें। इसमें लोग, मवेशी, गधे, भेड़, बकरियां, और अन्य पशु हैं। उन सब को लेवी के वंशजों को दें जो मेरे पवित्र तम्बू की सेवा करते हैं। “
\v 31 तब एलीआजर और मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया।
\p
\s5
\v 32-35 675,000 भेड़ें, सत्तर हजार मवेशी, इकसठ हजार गधे, और बतीस हजार कुंवारियां थीं जिन्हें उन्होंने मिद्यानियों से पकड़ा था।
\p
\s5
\v 36 जो लोग युद्ध में गए थे, उन्होंने 337,000 भेड़े पकड़ी थी
\v 37 और उन्होंने उनमें से 675 यहोवा को दिया।
\v 38 उन्होंने छत्तीस हजार मवेशियों को लिया और उनमें से 72 को यहोवा को दीं।
\s5
\v 39 उन्होंने 30,500 गधे ले लिए, जिनमें से 61 यहोवा को दिए ।
\v 40 उन्होंने सोलह हजार कुंवारियां लीं, और उनमें से 32 को यहोवा को दी।
\p
\v 41 मूसा ने यहोवा आज्ञा के अनुसार उन सब पशुओं को जो यहोवा को दिए गए थे, एलीआजार को दे दिया।
\p
\s5
\v 42-46 मूसा ने उन वस्तुओं को अलग किया जो अन्य लोगों ने युद्ध में जाने वालों को अपने भाग में सेवी थीं। लोगों को 337,500 भेड़, छत्तीस हजार मवेशी, 30,500 गधे, और सोलह हजार कुंवारियां मिलीं।
\s5
\v 47 लोगों को जो मिला उसमें से मूसा ने प्रत्येक पचास वस्तुओं में से एक लिया और उन्हें यहोवा को दिया। इसमें पशु और मनुष्य दोनों थे। यहोवा ने यही आज्ञा दी थी। मूसा ने उन्हें लेवी के वंशजों को दिया जो पवित्र तम्बू की सेवा करते थे।
\p
\s5
\v 48 तब सेना के अधिकारी, जो हजार पुरुषों के ऊपर और सौ पुरुषों के ऊपर अधिकारी थे, वे मूसा के पास आए।
\v 49 उन्होंने कहा, “हम, जो तुम्हारे दास हैं, हमने अपने अधीन सैनिकों की गिनती की और हमने पाया कि उनमें से एक भी कम नहीं है।
\s5
\v 50 इसलिए यहोवा का धन्यवाद करने के लिए, हम युद्ध में प्राप्त सोने के गहनों की भेंट लाए हैं: सोने के कड़े और कंगन और अंगूठियां, बालियां और हार। हमें आशा है कि यह हमारे पापों के लिए प्रायश्चित होगा।"
\p
\v 51 इसलिए एलीआजार और मूसा ने उनके द्वारा लाया गया सोना स्वीकार कर लिया।
\s5
\v 52 उनकी भेंट का वजन लगभग एक सौ इक्यानबे किलोग्राम था।
\v 53 प्रत्येक सैनिक ने इन वस्तुओं को अपने लिए लिया था।
\v 54 एलीआजार और मूसा ने सोने की वे वस्तुएँ सेना के अधिकारियों से स्वीकार करके पवित्र तम्बू में रख दीं ताकि इस्राएलियों को स्मरण कराएँ कि यहोवा ने मिद्यानियों को पराजित करने में उनकी कैसे सहायता की थी।
\s5
\c 32
\p
\v 1 रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों के पास बहुत पशु थे। उन्होंने देखा कि याजेर शहर के पास की भूमि और यरदन नदी के पूर्व में गिलाद के क्षेत्र में पशुओं की चराई के लिए अच्छी घास है।
\v 2 इसलिए उनके प्रधान एलीआजार और लोगों के प्रधानों और मूसा के पास आए। उन्होंने कहा,
\v 3 “हमारे पास पशु बहुत हैं।
\s5
\v 4 यहोवा ने हम इस्राएलियों को ऐसी कुछ भूमि पर अधिकार करने में सक्षम बनाया है जो पशुओं को चराने के लिए बहुत अच्छी है- भूमि जो अतारोत, दीबोन, याजेर, निम्रा, हेशबोन, एलाले, सबाम, नबो, और बोन के नगरों के पास हैं।
\v 5 यदि यह तुम लोग प्रसन्न हो, तो हम चाहते हैं कि यरदन नदी के दूसरी ओर की भूमि की अपेक्षा यह भूमि हमारी हो।"
\p
\s5
\v 6 मूसा ने गाद और रूबेन के गोत्रों के प्रधानों से कहा, “यह सही नहीं है कि तुम यहाँ रहो और तुम्हारे साथी इस्राएलियों को युद्ध के लिए जाना पड़े!
\v 7 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम अन्य इस्राएलियों को निराश कर दोगे, और वे यरदन नदी को पार करके उस देश में नहीं जाएंगे जो यहोवा उन्हें दे रहा है।
\s5
\v 8 हमारे पूर्वजों ने भी ऐसा ही किया था। मैंने उन्हें कादेशबर्ने से यह देखने के लिए भेजा कि कनान देश कैसा था।
\v 9 वे एशकोल घाटी तक चले गए, परन्तु जब उन्होंने देश में विशालकाय लोगों को देखा, तो वे लौटे और यह बोलकर इस्राएलियों को निराश किया कि, ‘हमें उस देश में प्रवेश करने का प्रयास नहीं करना चाहिए जिसे यहोवा ने हमें देने की प्रतिज्ञा की है।’
\s5
\v 10 तब यहोवा उनसे बहुत क्रोधित हो गया था और उसने शपथ खाकर घोषणा की,
\v 11-12 ‘मिस्र से निकले सभी लोगों में से बीस साल से अधिक आयु के लोग जो उस देश में जाएँगे जिसे मैंने अब्राहम, इसहाक, और याकूब को देने का वादा किया था, वे केवल यपुन्ने का पुत्र कालेब और नून का पुत्र यहोशू हैं, क्योंकि उन्होंने मुझ पर पूरी तरह से भरोसा किया। मिस्र से निकले अन्य लोगों में से कोई भी उस भूमि को देख भी नहीं पाएगा, क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से मेरी शक्ति में विश्वास नहीं किया है।'
\s5
\v 13 इसलिए यहोवा इस्राएलियों से क्रोधित था, और परिणाम यह हुआ कि उसने हमें इस मरुस्थल में चालीस वर्षों तक भटकाया। अन्त में वे सब जिन्होंने यहोवा पर भरोसा नहीं करके पाप किया था, वे एक-एक करके मर गए।
\v 14 और तुम अपने पूर्वजों के समान कार्य कर रहे हो! तुम पापी इस्राएली लोग हमारे पूर्वजों की तुलना में यहोवा को ज्यादा क्रोधित करने जा रहे हो!
\v 15 यदि तुम उस पर भरोसा नहीं करोगे, तो वह तुम्हें और तुम्हारे सभी साथी इस्राएलियों को रेगिस्तान में लंबे समय तक रहने का कारण बनेगा, और वह तुम सभी को नष्ट कर देगा! “
\p
\s5
\v 16 तब रूबेन और गाद के गोत्रों के प्रधानों ने मूसा से कहा, “हम अपने पशुओं के लिए भेड़शाला बनाएँगे और यहाँ हमारे परिवारों के लिए शहरों का निर्माण करेंगे।
\v 17 तब हमारे परिवार मजबूत शहरों में रहेंगे दीवारों से घिरे दृढ़ और वे इस देश में रहने वाले लोगों से सुरक्षित रहेंगे। फिर हम लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो जाएंगे। हम अन्य इस्राएलियों को नदी के दूसरी ओर भूमि पाने में इस्राएलियों का साथ देंगे।
\s5
\v 18 जब तक हर एक इस्राएली को भूमि नहीं मिल जाती तब तक हम अपने घर लौटकर नहीं आएंगे।
\v 19 हम यरदन नदी के पश्चिमी किनारे पर भूमि नहीं लेंगे, क्योंकि हमारी भूमि यहाँ पूर्व की ओर होगी।"
\p
\s5
\v 20 इसलिए मूसा ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुम्हें क्या करना होगा। तुम्हें यहोवा के लिए युद्ध करने के लिए तैयार होना है।
\v 21 तुम्हें अपने हथियारों को लेकर यरदन नदी को पार करना होगा।
\v 22 यहोवा वहां रहने वाले लोगों से उस देश को जीतने में हमारी सहायता करे उसके बाद तुम्हें अपने घर लौटने की अनुमति दी जाएगी। तुमने यहोवा और इस्राएलियों से जो प्रतिज्ञा की है, उसे पूरी करो तो तुम इस देश को जो यहोवा द्वारा दिया गया मानकर रख सकते हो।
\p
\s5
\v 23 परन्तु यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम यहोवा के विरूद्ध पाप करोगे, और वह तुम्हें पाप का दण्ड देगा।
\v 24 अब तुम अपने पशुओं के लिए पशु शाला और अपने परिवारों के लिए शहरों का निर्माण कर सकते हो, लेकिन ऐसा करने के बाद, तुमने जो प्रतिज्ञा ली है उसे पूरी करना।"
\p
\v 25 गाद और रूबेन के गोत्रों के प्रधानों ने उत्तर दिया, “तुम जो चाहते हो हम वही करेंगे, क्योंकि तुम हमारे प्रधान हो।
\s5
\v 26 हमारी पत्नियां और बच्चे और हमारे मवेशी और भेड़ और बकरियां गिलाद क्षेत्र के शहरों में रहेंगी,
\v 27 लेकिन हम युद्ध में जाने के लिए तैयार होंगे। हम अपने हथियारों को ले लेंगे और यरदन नदी पार करेंगे और यहोवा के लिए युद्ध करेंगे, जैसा तुमने, कहा है।"
\p
\s5
\v 28 तब मूसा ने उनके विषय में एलीआजार, यहोशू और इस्राएलियों के गोत्रों के प्रधानों को निर्देश दिए।
\v 29 मूसा ने उन से कहा, “यदि गाद और रूबेन के गोत्रों के लोग युद्ध के लिए तैयार होकर तुम्हारे साथ यरदन नदी पार करते हैं, कि यहोवा की इच्छाओं को पूरा करें और उस देश को लेने में तुम्हारी सहायता करें, तो उन्हें गिलाद क्षेत्र उनका हिस्सा होने के लिए दें।
\v 30 परन्तु यदि वे अपने हथियारों को नहीं लेते हैं और युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो वे इस भूमि को प्राप्त नहीं करेंगे। उन्हें कनान ही में भूमि स्वीकार करनी होगी। “
\p
\s5
\v 31 गाद और रूबेन के गोत्रों के प्रधानों ने उत्तर दिया, “जो कुछ तुमने कहा है और जो यहोवा ने कहा है, हम करेंगे।
\v 32 हम नदी पार करके कनान देश में जाएंगे, और जो कुछ भी यहोवा चाहते हैं हम वही करेंगे और युद्ध के लिए तैयार रहेंगे। लेकिन हमारी भूमि यहाँ यरदन नदी के पूर्व में होगी।"
\p
\s5
\v 33 इसलिए मूसा उस देश को गाद और रूबेन के गोत्रों और यूसुफ के पुत्र मनश्शे के गोत्र के आधे भाग को देने के लिए तैयार हो गया। उस भूमि पर पहले एमोरियों का राजा सीहोन शासन करता था, और वहां राजा ओग बाशान क्षेत्र के शहरों और आसपास के भूमि पर शासन करता था।
\p
\s5
\v 34 गाद के गोत्र के लोग दीबोन, अतारोत, अरोएर,
\v 35 अत्रौत, शोपान, याजेर, योगबहा,
\v 36 बेतनिम्रा, और बेत-हारन नामक शहरों का पुननिर्माण किया। इन शहरों के चारों ओर मजबूत दीवारें थीं। और उन्होंने अपनी भेड़ों के लिए भेड़शालाएँ भी बनाई।
\p
\s5
\v 37 रूबेन के गोत्र के लोगों ने हेशबोन, एलाले, और किर्यातैम,
\v 38 नबो और बालमोन, और सिबमा शहरों का पुन: निर्माण किया। जब उन्होंने नबो और बालमोन का पुन: निर्माण किया, तो उन्होंने उन शहरों को नए नाम दिए।
\p
\v 39 मनश्शे के पुत्र माकिर के वंशज गिलाद के क्षेत्र में गए और उन्हें एमोरियों से ले लिया।
\s5
\v 40 इसलिए मूसा ने गिलाद को माकीर के परिवार को दिया, और वे वहां रहने लगे।
\v 41 याईर ने, जो मनश्शे का वंशज था, जाकर उस क्षेत्र के छोटे नगरों पर अधिकार कर लिया, और उसने उनका नाम "ह्व्वो त्याईर" रखा।
\v 42 नोबह नामक एक व्यक्ति ने जाकर कनात और पास के नगरों पर अधिकार कर लिया, और फिर उसने अपने नाम से उस क्षेत्र का नया नाम रखा।
\s5
\c 33
\p
\v 1 यह उन स्थानों की सूची है जहाँ इस्राएली लोगों ने मिस्र छोड़ने के बाद यात्रा की जब हारून और मूसा ने उनका नेतृत्व किया।
\v 2 यहोवा ने मूसा को उन स्थानों के नाम लिखने का आदेश दिया जहाँ वे गए थे।
\s5
\v 3 वर्ष के पहले महीने के पंद्रहवें दिन, फसह मनाने के एक दिन बाद, उन्होंने मिस्र में रामसेस शहर छोड़ दिया और साहसपूर्वक आगे बढ़े जबकि मिस्र की सेना उनके पीछे थी।
\v 4 जब वे जा रहे थे तब मिस्र के लोग अपने पहिलौठे पुत्रों के शवों को दफन कर रहे थे। उन्हें मारकर, यहोवा ने दिखा दिया था कि मिस्र के लोग जिन देवताओं की पूजा करते थे वे झूठे थे।
\s5
\v 5 रामसेस छोड़ने के बाद, वे पहले सुक्कोत गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 6 फिर उन्होंने सुक्कोत छोड़ा और मरुस्थल के छोर पर एताम को गए, और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 7 फिर उन्होंने एताम छोड़ा और पीहहीरोत को मुड़ गए, जो बाल-सपोन के पूर्व में है, और मिग्दोल के पास अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 8 फिर उन्होंने पीहहीरोत छोड़ा और सरकंडे के सागर के बीच से चले गए और तीन दिनों तक एताम मरुस्थल की ओर चले, और मारा में अपने तम्बू खड़े किए।
\v 9 फिर उन्होंने मारा को छोड़ दिया और एलीम को गए। वहां जल के बारह सोते और सत्तर खजूर के वृक्ष थे। उन्होंने वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 10 फिर उन्होंने एलीम को छोड़ दिया और सरकंडे के सागर के पास के क्षेत्र में गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 11 फिर उन्होंने सरकंडे के सागर को छोड़ दिया और सीन के मरुस्थल के पास गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 12 फिर उन्होंने सीन के जंगल को छोड़ दिया और दोपका गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 13 फिर उन्होंने दोपका छोड़ा और आलूश के पास गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 14 फिर उन्होंने आलूश को छोड़कर रपीदीम में अपने तम्बू खड़े किए हाँ उनके पास पीने के लिए पानी नहीं था।
\s5
\v 15 फिर उन्होंने रपीदीम छोड़ा और सीनै के मरुस्थल में गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 16 फिर उन्होंने सीनै के जंगल को छोड़ दिया और किब्रोतहत्तावा के पास गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 17 फिर उन्होंने किब्रोतहत्तावा छोड़ा और हसेरोत के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 18 फिर उन्होंने हसेरोत छोड़ा और रित्मा के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 19 फिर उन्होंने रित्मा को छोड़ दिया और रिम्मोनपेरेस गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 20 फिर उन्होंने रिम्मोनपेरेस छोड़ा और लिब्ना के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 21 फिर उन्होंने लिब्ना छोड़ा और रिस्सा के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 22 फिर उन्होंने रिस्सा को छोड़ दिया और कहेलाता में अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 23 फिर उन्होंने कहेलाता छोड़ा; वे शेपेर पर्वत गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 24 फिर उन्होंने शेपेर पर्वत छोड़ा और हरादा के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 25 फिर उन्होंने हरादा को छोड़कर मखेलोत गए और वहां उनके तम्बू खड़े किए।
\v 26 तब उन्होंने मखेलोत छोड़ा और तहत गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 27 फिर उन्होंने तहत छोड़ा और तेरह के पास गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 28 फिर उन्होंने तेरह छोड़ा और मित्का के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 29 फिर उन्होंने मित्का को छोड़ दिया और हशमोना के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 30 फिर उन्होंने हशमोना छोड़ा और मोसेरोत गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 31 फिर उन्होंने मोसेरोत छोड़ा और बेने याकान के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 32 फिर उन्होंने बेने याकान को छोड़ दिया और होर्हग्गिदगाद गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 33 फिर उन्होंने होर्हग्गिदगाद छोड़ दिया और योतबाता गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 34 फिर उन्होंने योतबाता छोड़ा और अब्रोना के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 35 फिर उन्होंने अब्रोना छोड़ा और एस्योनगेबेर के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 36 फिर उन्होंने एस्योनगेबेर को छोड़ दिया और सीन के मरुस्थल में गए और वहां कादेश में अपने तम्बू खड़े किए।
\v 37 फिर उन्होंने कादेश छोड़ा और एदोम की सीमा पर होर पर्वत पर गए, और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 38 हारून याजक यहोवा की आज्ञा का पालन करके पहाड़ पर चढ़ गया। और इस्राएलियों के मिस्र छोड़ने के 40 साल बाद, पांचवें महीने के पहले दिन वहां हारून की मृत्यु हो गई।
\v 39 हारून की मृत्यु होने पर उसकी आयु 123 वर्ष थी।
\s5
\v 40 तब अराद के राजा ने सुना कि इस्राएली आ रहे हैं। अराद कनान देश में दक्षिणी मरुस्थल में था, जहाँ कनानी रहते थे।
\s5
\v 41 इस्राएली होर पर्वत से निकलकर सलमोना को गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 42 फिर उन्होंने सलमोना को छोड़ दिया और पूनोन गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 43 फिर उन्होंने पूनोन छोड़ा और ओबोत के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 44 फिर उन्होंने ओबोत छोड़ा और मोआब के क्षेत्र की सीमा पर इए अबारीम के पास गए, और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 45 फिर उन्होंने इए अबारीम छोड़ा और दीबोन गाद के निकट गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 46 फिर उन्होंने दीबोन गाद को छोड़ दिया और अल्मोनदिबलातैम में अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 47 फिर उन्होंने अल्मोनदिबलातैम को छोड़ दिया और नबो के पास अबारीम पहाड़ों पर गए और वहां अपने तम्बू खड़े किए।
\v 48 फिर उन्होंने अबारीम पहाड़ों को छोड़ दिया और यरदन नदी के पार यरीहो के पास मोआब के मैदानों में गए।
\v 49 उन्होंने मोआब के मैदानी क्षेत्र में अपने तम्बू खड़े किए। उनके तम्बू बेत्यशीमोत से आबेलशित्तीम तक कई किलोमीटर तक फैले हुए थे।
\p
\s5
\v 50 जब हम यरदन नदी के पार यरीहो के पास मोआब के मैदानों पर थे, तब यहोवा ने मूसा से बातें की। उसने कहा,
\v 51 “इस्राएलियों से कह दे ‘जब तुम यरदन नदी को पार करके कनान के क्षेत्र में प्रवेश करते हो,
\v 52 तो तुम्हें उन सब लोगों को बाहर निकलना होगा जो वहां रहते हैं। उनकी सब तराई हुई पत्थरों की मूर्तियों को और धातु की सब ढली हुई मूर्तियों को नष्ट कर देना। उन जगहों को ढा देना जहाँ वे अपनी मूर्तियों की पूजा करते हैं।
\s5
\v 53 उनकी भूमि उनसे ले लो और वहां रहना शुरू करो, क्योंकि मैंने उनकी भूमि तुम्हें अधिकार करने के लिए दी है।
\p
\v 54 यह निर्णय लेने के लिए कि कौन सा समूह कौन सी भूमि को प्राप्त करेगा, तुम्हें चिट्ठी डालकर भूमि को विभाजित करना है। उन समूहों को बड़े क्षेत्र दें जिनके पास अधिक लोग हैं, और छोटे क्षेत्रों को उन समूहों को दें जिनके पास कम लोग हैं। प्रत्येक गोत्र को अपनी भूमि मिल जाएगी।
\s5
\v 55 यदि तुम वहां रहने वाले लोगों को बाहर नहीं निकालते हो, तो वे तुम्हारे लिए परेशानी का कारण बनेंगे। वे तुम्हारी आंखों में तेज काँटों के समान होंगे, और तुम्हारे पंजरों में कील के समान होंगे। और जिस देश में तुम रहोगे वे तुम्हें परेशान करेंगे।
\v 56 और फिर मैं तुम्हें दण्ड दूंगा, जैसे मैंने उन्हें दण्ड देने की योजना बनाई थी।”
\s5
\c 34
\p
\v 1 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएली लोगों से कह, ‘तुम शीघ्र ही कनान देश में प्रवेश करोगे, और वह तुम्हारा हो जाएगा। भूमि की सीमाएं ऐसी होंगी जैसी नीचे व्यक्त की गई हैं।
\v 3 दक्षिण में तुम्हें एदोम के क्षेत्र की सीमा के निकट, सीन के मरुस्थल का हिस्सा प्राप्त होगा। पूर्व की ओर तुम्हारी सीमा मृत सागर के दक्षिणी छोर से शुरू होगी।
\p
\s5
\v 4 यह अक्रब्बीम के दक्षिण तक होगी, और पश्चिम की ओर सीन के मरुस्थल और कादेशबर्ने तक जाएगी। वहां से यह हसरद्दार तक और वहां से अस्मोन तक जाएगी।
\v 5 अस्मोन से पश्चिम में इसकी सीमा मिस्र की सूखी नदी के तट तक होगी और फिर भूमध्य सागर तक पहुँचेगी।
\p
\s5
\v 6 पश्चिम की सीमा भूमध्य सागर होगी।
\p
\s5
\v 7 उत्तर की सीमा भूमध्य सागर से शुरू होगी और पश्चिम में होर पर्वत तक पहुंच जाएगी।
\v 8 वहां से यह लेबो हमात और फिर सदाद तक पहुँचेगी।
\v 9 वहां से सीमा जिप्रोन तक जाएगी, और यह हसरेनान में समाप्त हो जाएगी।
\p
\s5
\v 10 पूर्व की सीमा हसरेनान में शुरू होगी और दक्षिण में शपाम तक जाएगी।
\v 11 वहां से पूर्व की ओर ऐन से रिबला तक और फिर पहाड़ी प्रदेशों से होती गलील की झील तक जाएगी।
\v 12 फिर सीमा यरदन नदी से दक्षिण की ओर बढ़ेगी और मृत सागर में खत्म हो जाएगी।
\p वे तुम्हारे देश के चारों ओर की सीमाएं होंगी।”
\p
\s5
\v 13 तब मूसा ने इस्राएलियों को यह सब समझा दिया। तब उसने उन से कहा, “यही वह देश है जिस पर तुम अधिकार करोगे। तुम्हें यह तय करने के लिए चिट्ठी डालनी होगी कि साढ़े नौ गोत्रों को कौन कौन सा क्षेत्र मिलेगा, क्योंकि यहोवा ने आज्ञा दी है कि देश को उनके बीच विभाजित किया जाना चाहिए।
\v 14 रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र को पहले से ही वह भूमि मिल गई है, जिसमें वे रहेंगे।
\v 15 यरीहो से यरदन नदी के पूर्व की ओर उन्हें भूमि मिली है। “
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\q1
\v 17 “ जो लोग भूमि को विभाजित करेंगे।वे हैं: सबसे पहले, एलीआजार और यहोशू,
\v 18 परन्तु बारह गोत्रों में से प्रत्येक के प्रधान उन्हें भूमि को विभाजित करने में सहायता करेंगे।
\li
\s5
\v 19 यहूदा के गोत्र से, यपुन्ने के पुत्र कालेब को नियुक्त करो।
\p
\v 20 शिमोन के गोत्र से अम्मीहूद के पुत्र शमूएल को नियुक्त करो।
\p
\s5
\v 21 बिन्यामीन के गोत्र से किसलोन के पुत्र एलीदाद को नियुक्त करो।
\p
\v 22 दान के गोत्र से योग्ली के पुत्र बुक्की को नियुक्त करो।
\p
\v 23 मनश्शे के गोत्र से एपोद के पुत्र हन्नीएल को नियुक्त करो।
\p
\s5
\v 24 एप्रैम के गोत्र से शिप्तान के पुत्र कमूएल को नियुक्त करो।
\p
\v 25 जबूलून के गोत्र में पर्नाक के पुत्र एलीसापान को नियुक्त करो।
\p
\v 26 इस्साकार के गोत्र से अज्जान के पुत्र पलतीएल को नियुक्त करो।
\p
\s5
\v 27 आशेर के गोत्र से शलोमी के पुत्र अहीहूद को नियुक्त करो।
\p
\v 28 नप्ताली के गोत्र से अम्मीहूद के पुत्र पदहेल को नियुक्त करो। “
\p
\v 29 यहोवा ने आज्ञा दी कि ये लोग कनान के क्षेत्र को इस्राएलियों में बांटेंगे।
\s5
\c 35
\p
\v 1 जब इस्राएली यरदन नदी के निकट यरीहो के दूसरी ओर मोआब के मैदान में थे तब यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 2 “इस्राएलियों से कह कि जो भूमि उनको दी जाएगी उसमें से, उन्हें लेवी के वंशजों को कुछ शहर देने है, जिनमें वे रह सकें। उन्हें इन शहरों के चारों ओर कुछ भूमि भी देना होगी।
\s5
\v 3 ये नगर लेवी के वंशजों के रहने के लिए होंगे, और उन शहरों के चारों ओर भेड़ों और बकरियों और अन्य पशुओं के लिए भूमि भी होना है।
\p
\v 4 जिस भूमि को तुम उन्हें उनके पशुओं के लिए देते हो, वह शहरों की दीवारों से 457 मीटर तक फैली होना चाहिए।
\s5
\v 5 प्रत्येक शहर की दीवारों से प्रत्येक दिशा में 920 मीटर नापना। शहरों के दीवारों के बाहर की वह अतिरिक्त भूमि उनके पशुओं के लिए होगी।
\p
\s5
\v 6 लेवी के वंशजों को दिए गए छ: शहर, ऐसे शहर होंगे जहाँ लोग सुरक्षा के लिए भाग कर पहुंच सकते हैं। अगर कोई गलती से किसी को मारता है, तो वह व्यक्ति जिसने उस व्यक्ति को मार डाला है, वह उन शहरों में से एक में सुरक्षित होने के लिए भाग कर जा सकता है।
\v 7 तुम्हें लेवी के वंशजों को अन्य बयालीस शहर और उनके पशुओं के लिए उन शहरों के आस-पास की भूमि भी देनी होगी।
\s5
\v 8 इस्राएली गोत्र जिनके पास सबसे अधिक लोग हैं, उन्हें उन गोत्रों की तुलना में जिनके पास कम लोग हैं, अधिक शहर देना होंगे। प्रत्येक गोत्र अपने कुछ शहर लेवी के वंशजों को देना चाहिए, लेकिन जिन गोत्रों के पास अधिक भूमि है, उन्हें अधिक शहर होंगे, और जिन गोत्रों के पास कम शहर हैं, वे कम देंगे।"
\p
\s5
\v 9 यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 10 “इस्राएलियों से कह ‘जब तुम यरदन नदी पार करके कनान के क्षेत्र में प्रवेश करते हो,
\v 11 तब तुम्हें कुछ शहरों को चुनना होगा जिनमें लोग सुरक्षित होने के लिए भाग सकते हैं। अगर कोई किसी व्यक्ति को मारता है, तो मारनेवाला व्यक्ति उन शहरों में से एक शहर में जा सकता है और वह वहाँ सुरक्षित हो सकता है।
\s5
\v 12 मारे गए व्यक्ति के भाई-बन्धुओं में से कोई सोच सकता है कि उसे हत्यारे की हत्या करके अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहिए। लेकिन उस शहर में, हत्यारा सुरक्षित रहेगा क्योंकि यदि बदला लेनेवाला उसकी हत्या का प्रयास करेगा तो उस शहर के लोग बदला लेनेवाले को मार देंगे। जिस व्यक्ति ने गलती से किसी को मार डाला उसके लिए अदालत में मुकदमा चलाया जाए।
\v 13 तुम्हें छः शहरों को अलग करना होगा, जिनमें वह व्यक्ति जिसने गलती से किसी व्यक्ति को मार डाला है, वह भाग कर सुरक्षित हो सकता है।
\s5
\v 14 कनान के क्षेत्र में, यरदन नदी के पूर्व की ओर तीन शहर और पश्चिम की ओर तीन शहर होने चाहिए।
\v 15 वे छः शहर ऐसे शहर होंगे जहाँ इस्राएली अपराधी भाग कर जा सकते हैं और सुरक्षित रह सकते हैं, और हाँ तुम्हारे बीच रहने वाले परदेशी और अन्य लोग भी भाग कर जा सकते हैं और सुरक्षित रह सकते हैं। उन लोगों में से कोई भी जो गलती से किसी को मारता है, इन शहरों में से किसी एक में जा सकता है और वहां सुरक्षित रह सकता है।
\p
\s5
\v 16-18 परन्तु तुम्हें यह समझ लेना चाहिये कि कोई भी जो लोहे के हथियार या लकड़ी के टुकड़े से किसी व्यक्ति को मारता है, वह एक हत्यारा है, और जिसने दूसरे व्यक्ति को मार डाला है उसे मार डाला जाना चाहिए।
\s5
\v 19 जिस व्यक्ति की हत्या की गई थी उसका रिश्तेदार उस हत्यारे को मार सकता है।
\v 20 अगर कोई चट्टान पर से किसी अन्य व्यक्ति को ढकेल देता है या किसी अन्य व्यक्ति पर कुछ फेंकता है
\v 21 या उस व्यक्ति को हाथ से मारता है और उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, यदि उसने ऐसा इसलिए किया वह उस व्यक्ति से घृणा करता है, तो समझ लेना है कि वह हत्यारा है, और उसे मार डाला जाना चाहिए। जिस व्यक्ति को मार डाला गया था उसका कोई भाई-बन्धु उसके मिलते ही उसे मार डाले।
\p
\s5
\v 22 लेकिन अगर कोई गलती से किसी को ढकेल दे, या किसी पर गलती से कुछ फेंक कर मारे लेकिन इसलिए नहीं कि वह उस व्यक्ति से घृणा करता है।
\v 23 या वह पत्थर गिराए और किसी को चोट लगे जिसे उसने नहीं देख अर्थात् जिसने किसी को चोट पहुंचाने की योजना नहीं बनाई और मारे गए व्यक्ति से घृणा नहीं की तो उस व्यक्ति के लिए एक कानून है।
\s5
\v 24 वह कानून यह है कि उस शहर के लोगों को यह निर्णय लेना होगा कि मृत व्यक्ति के भाई-बन्धु को बदला लेने का अधिकार है या जिसके हाथों वह व्यक्ति मरा उससे वास्तव में गलती हुई है।
\v 25 यदि वे निर्णय लेते हैं कि हत्यारे ने दूसरे व्यक्ति को मारने की योजना बनाई है, तो उन्हें उसे अपने शहर में रहने की अनुमति नहीं देना है। परन्तु यदि वे निर्णय लेते हैं कि उसकी मृत्यु गलती से हुई है, तो उन्हें मृत व्यक्ति के भाई-बन्धु से हत्यारे को बचाना होगा। उन्हें हत्यारे को उन शहरों में से एक में भेजना होगा जहाँ वह सुरक्षित रहेगा, और उसे तब तक वहां रहने की अनुमति दें जब तक महायाजक मर न जाए। उसके बाद, हत्यारा अपने घर वापस जा सकता है, क्योंकि मृत व्यक्ति के भाई-बन्धु को अब बदला लेने का अधिकार नहीं है।
\p
\s5
\v 26 परन्तु जब तक महायाजक जीवित है, तब तक उस व्यक्ति को सुरक्षित शहर को नहीं छोड़ना चाहिए।
\v 27 यदि वह शहर के बाहर जाता है, और यदि मृत व्यक्ति का भाई-बन्धु उसे देख लेता हैं, तो उसे उस व्यक्ति की हत्या करने की अनुमति है, और उस भाई-बन्धु को हत्या का दोषी नहीं माना जाए।
\v 28 जब तक महायाजक मर न जाए हत्यारे को उसी शहर में रहना होगा जहाँ वह सुरक्षित रहेगा । उसके बाद वह बदला लेने से सुरक्षित रहेगा, क्योंकि महायाजक की मृत्यु को उस हत्या का प्रायश्चित माना जाएगा। उसके बाद, हत्यारा अपने घर लौट सकता है।
\p
\s5
\v 29 तुम जहाँ भी रहो, तुम्हें इन कानूनी कार्यवाहियों का सदैव पालन करना होगा।
\p
\v 30 अगर किसी पर किसी व्यक्ति की हत्या का आरोप है, तो आरोपी व्यक्ति को केवल तभी मार डाला जा सकता है अगर वहां ऐसे लोग हैं जिन्होंने उसे हत्या करते देखा है परन्तु गवाह एक से अधिक हों। यदि गवाह एक ही है तो उसे मार डालने की अनुमति नहीं है।
\p
\s5
\v 31 यदि कोई हत्यारा है जिसे वास्तव में मार डाला जाना चाहिए, तो छुड़ौती स्वीकार करके उसका जीवन न छोड़ना। निश्चय ही मार डाला जाए।
\p
\v 32 यदि कोई ऐसे शहर में चला जाए जहाँ वह सुरक्षित रहेगा, तो उसे महायाजक की मृत्यु से पहले पैसे देकर अपने घर लौटने की अनुमति नहीं देना।
\p
\s5
\v 33 तुम्हें उन लोगों को मार डालना होगा जो वास्तव में दूसरों की हत्या करते हैं। यदि तुमने ऐसा नहीं किया है, तो तुम लोगों को अपने देश में मेरे लिए अस्वीकार्य होने का कारण बनते हो। कोई भी जो जानबूझकर एक निर्दोष व्यक्ति को मारता है वह अवश्य मार डाला जाए।
\v 34 मैं यहोवा हूँ, और मैं तुम इस्राएलियों के बीच में रहता हूँ, अत: हत्यारों को दण्ड दिए बिना छोड़ कर तुम देश को भ्रष्ट मत करो। "
\s5
\c 36
\p
\v 1 मनश्शे गोत्र के गिलाद के कुल के परिवार के प्रधान मूसा और इस्राएलियों के अन्य परिवारों के प्रधानों के पास गए।
\v 2 उन्होंने मूसा से कहा, “यहोवा ने तुम्हें, हमारे प्रधान, को आज्ञा दी है कि इस्राएल के गोत्रों के लिए चिट्ठी डालकर भूमि का विभाजन करे कि कौन से समूह को कौन सी भूमि मिलेगी। यहोवा ने तुमको हमारे साथी इस्राएली सलोफाद के भाग की भूमि उसकी पुत्रियों को देने का भी आदेश दिया था।
\s5
\v 3 लेकिन यदि उसकी बेटियां अन्य इस्राएली गोत्रों के पुरुषों से विवाह करती हैं, तो वह भूमि तब हमारे गोत्र की नहीं होगी। वह अन्य गोत्रों की हो जाएगी और वह भूमि हमारी नहीं होगी।
\v 4 जब जुबली के पर्व का वर्ष आता है, जब किसी व्यक्ति के द्वारा खरीदी गई सारी भूमि उसके मूल मालिकों के पास वापस आती है, तो सलोफाद की भूमि उन लोगों के गोत्रों की होगी जिनसे उनकी पुत्रियाँ विवाह करती हैं। तो हमारी, जो भूमि हमें हमारे पूर्वजों से मिली है, वह हमसे ले ली जाएगी, और हम इसे फिर प्राप्त नहीं कर पाएंगे। “
\p
\s5
\v 5 यहोवा ने मूसा से कहा कि उन्हें क्या उत्तर दे, अत: मूसा ने उन से कहा, “मनश्शे के गोत्र के ये लोग सही कहते हैं।
\v 6 यहोवा सलोफाद की पुत्रियों से यह कहता है, ‘तुम में से जो भी किसी से विवाह करना चाहती है कर सकती है, तुम्हे विवाह केवल अपने ही गोत्र में करना होगा।’
\s5
\v 7 इस प्रकार इस्राएलियों की भूमि एक गोत्र से दूसरे गोत्र में नहीं जाएगी। प्रत्येक इस्राएली अपनी भूमि को अपने पूर्वजों के गोत्र में ही रखेगा।
\s5
\v 8 कोई स्त्री जो अपने पिता की भूमि को उत्तराधिकार में पाती है, वह विवाह कर सकती है, परन्तु उसे अपने ही गोत्र के किसी पुरुष से विवाह करना होगा। इस प्रकार इस्राएली भूमि को अपने पूर्वजों के गोत्र में ही रखेंगे।
\v 9 भूमि को एक गोत्र से दूसरे गोत्र में जाने नहीं देना है। प्रत्येक इस्राएली गोत्र अपने पूर्वजों से प्राप्त भूमि को अपने ही पास रखे। ”
\p
\s5
\v 10 सलोफाद की पुत्रियों ने मूसा को दी गई यहोवा आज्ञा को माना।
\v 11 पाँच पुत्रियाँ - महला, तिर्सा, होग्ला, मिल्का और नोवा ने अपने पिता के भाई-बन्धुओं में से चचेरे भाइयों से विवाह किया।
\v 12 जिन पुरुषों से उन्होंने विवाह किया वे मनश्शे के गोत्र के थे, इसलिए उनकी भूमि उनके पिता के परिवार और गोत्र में ही रही।
\p
\s5
\v 13 यही आज्ञाएं और नियम यहोवा ने मूसा को इस्राएलियों को सुनाने के लिए दिए थे, जब वे यरीहो के सामने यरदन नदी के पास मोआब के मैदान में थे।

1969
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\id DEU Unlocked Dynamic Bible
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\h व्यवस्थाविवरण
\toc1 व्यवस्थाविवरण
\toc2 व्यवस्थाविवरण
\toc3 deu
\mt1 व्यवस्थाविवरण
\s5
\c 1
\p
\v 1 इस पुस्तक में वे सभी बातें लिखी हैं जो मूसा ने सभी इस्राएलियों से कहा था, जब उन्होंने यरदन की पूर्व दिशा में अपने तंबू स्थापित किए थे- यरदन के साथ रेगिस्तानी मैदान में सुफ नाम के स्थान में, जो यरदन नदी की एक ओर पारन और नदी की दूसरी ओर तोपेल, लाबान, हसेरोत और दीजाहाब नगरों के बीच में था।
\v 2 सीनै पर्वत से कादेशबर्ने तक एदोम नामक पहाड़ी देश के रास्ते से, लोग प्रायः केवल ग्यारह दिन की यात्रा करते हैं।
\p
\s5
\v 3 इस्राएलियों के मिस्र छोड़ने के चालीस साल बाद, मूसा ने इस्राएलियों को जो कुछ भी यहोवा ने आज्ञा दी थी, उसे बताया।
\v 4 यह घटना, एमोर लोगों के समूह के राजा सीहोन, जो हेशबोन शहर में रहते थे, और बाशान के क्षेत्र के राजा ओग जो अशतरोथ और एद्रेई के नगरों में रहते थे, उन्हें पराजित करने के बाद हुई।
\p
\s5
\v 5 मूसा ने ये बातें उन्हें तब बतायीं, जब लोग मोआब में थे, जो यरदन नदी की पूर्व की ओर था। उसने उन्हें परमेश्वर के निर्देशों को समझाया। उसने उनसे यहोवा की आज्ञाओं को बताया और यह बातें कहीं:
\p
\v 6 “जब हम सीनै पर्वत पर थे, तब हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमसे कहा, ‘तुम इस पहाड़ के नीचे बहुत लंबे समय तक रह चुके हो।
\s5
\v 7 अब यात्रा जारी रखो। पहाड़ी देश में जाओ और आसपास के इलाकों में जहाँ एमोरी रहते हैं- यरदन के किनारे मैदान में, पहाड़ी देश में, पश्चिमी तलहटी तक, दक्षिणी यहूदिया के जंगल तक, भूमध्यसागरीय समुद्र के तट पर, कनान की समस्त भूमि तक, लबानोन पहाड़ों और पूर्वोत्तर के महान फरात नदी तक जाओ।
\v 8 मैं तुम्हें वह भूमि दूँगा। मैं अर्थात यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों अब्राहम और इसहाक और याकूब से वादा किया था कि मैं उन्हें और उनके वंशजों को वह दूँगा। तो अब जाओ और उस पर नियन्त्रण करो।'"
\p
\s5
\v 9 मूसा ने लोगों से यह भी कहा, “जब हम सीनै पर्वत पर थे, तब मैंने तुम्हारे पूर्वजों से कहा, ‘तुम सभी पर शासन करना मेरे लिए बहुत बड़ा काम है। मैं इसे अकेले नहीं कर सकता।
\v 10 हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम इस्राएलियों को आकाश के तारों के समान बहुसंख्या बना दिया है।
\v 11 और मुझे आशा है कि यहोवा, जिस परमेश्वर की हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी, वे हमें अब से हजारों गुना अधिक बढाएगा और वे हमें आशीर्वाद देंगे जैसा उन्होंने करने का वादा किया था।
\s5
\v 12 लेकिन मैं निश्चित रूप से तुम्हारी सभी शिकायतों और विवादों से अकेला निपट नहीं सकता हूं।
\v 13 अपने गोत्रों में से कुछ लोगों को चुनो जो बुद्धिमान हैं और जिनके पास अच्छी समझ है और जो आदरणीय है। तब मैं उन्हें तुम्हारे अगुवों के रूप में नियुक्त करूंगा।'
\p
\v 14 तुम्हारे पूर्वजों ने उत्तर दिया, ‘तुमने जो सुझाव दिया है वह हमारे लिए अच्छा है।’
\p
\s5
\v 15 इसलिए मैंने बुद्धिमान और आदरणीय पुरुषों को लिया जिन्हें तुम्हारे पूर्वजों ने तुम्हारे गोत्रों में से चुना था, और मैंने उन्हें तुम्हारे अगुवों के रूप में नियुक्त किया। मैंने कुछ लोगों को एक हज़ार से अधिक लोगों पर शासन करने के लिए नियुक्त किया, कुछ लोगों को सौ से अधिक लोगों का अधिकार दिया, कुछ को पचास से अधिक लोगों का अधिकार दिया, और कुछ को दस लोगों का अधिकार दिया। मैंने तुम्हारे सभी गोत्रों से अन्य अधिकारियों को भी नियुक्त किया।
\v 16 मैंने तुम्हारे अगुवों को निर्देश दिया, ‘अपने लोगों के बीच होने वाले विवादों को सुनो। हर विवाद का न्याय करो जो तुम्हारे करीबी रिश्तेदारों के बीच है और जो झगड़े तुम्हारे लोगों और तुम्हारे बीच रहने वाले अन्य देशों के लोगों के बीच है।
\s5
\v 17 तुम्हें पक्षपात नहीं करना चाहिए। तुम्हें गरीब लोगों और महत्वपूर्ण लोगों के साथ एक समान व्यवहार करना है। तुम्हें लोगों की बातों की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तुम मामलों का निर्णय करोगे जैसा परमेश्वर तुमसे चाहते हैं। यदि कोई विवाद बहुत कठिन है और तुम इसका निर्णय करने में असमर्थ हो, तो इसे मेरे पास लाओ, मैं निर्णय करूँगा।
\v 18 उस समय मैंने तुम्हें कई अन्य बातें भी बताई।"
\p
\s5
\v 19 “फिर, जैसा कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें आज्ञा दी थी, हमने सीनै पर्वत छोड़ा और उस विशाल रेगिस्तान से यात्रा की जो बहुत ही खतरनाक है, और पहाड़ी देश की सड़क पर है जहाँ एमोर लोग रहते थे। हम कादेशबर्ने पहुंचे।
\s5
\v 20 मैंने तुम्हारे पूर्वजों से कहा, ‘अब हम पहाड़ी देश में आए हैं जहाँ एमोर लोगों के समूह रहते हैं। यह उस क्षेत्र का भाग है जो हमारे परमेश्वर यहोवा, जिसकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी, हमें दे रहे हैं।
\v 21 ध्यान दो कि हमारे परमेश्वर यहोवा यह देश हमें दे रहे हैं। तो उनकी आज्ञा के अनुसार जाओ और उस पर अपना नियंत्रण कर लो। भयभीत न हो ।'
\p
\s5
\v 22 परन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरे पास आकर कहा, ‘हमारे वहाँ जाने से पहले, हमें भूमि की छानबीन करने के लिए वहाँ कुछ लोगों को भेजना चाहिए ताकि वे वापस आकर हमें बता सकें कि वहाँ जाने के लिए सबसे अच्छा रास्ता कौन सा होगा और वहाँ के नगर कैसे हैं।'
\p
\v 23 मैंने सोचा कि ऐसा करना अच्छा होगा, इसलिए मैंने बारह पुरुष, प्रत्येक गोत्र से एक को चुना।
\v 24 वे पहाड़ी देश में एशकोल घाटी तक चले गए, और उन्होंने उस क्षेत्र की छानबीन की।
\s5
\v 25 उन्होंने कुछ फल लिए जो वहाँ मिले और हमारे पास लाए। उन्होंने बताया कि जो देश हमारे परमेश्वर यहोवा हमें दे रहे हैं वह बहुत अच्छा है।"
\p
\s5
\v 26 “परन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने उस देश में जाने और उसे जीतने से मना कर दिया। उन्होंने हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरुद्ध विद्रोह किया, और वे उस देश में नहीं गए।
\v 27 तुम्हारे पूर्वज अपने तंबू में रुके रहे और शिकायत की। उन्होंने कहा, ‘यहोवा हमसे घृणा करते हैं। इसलिए वे हमें मिस्र से यहां लाए ताकि एमोर लोग हमें नष्ट कर सकें।
\v 28 हम वहाँ जाना नहीं चाहते हैं। जिन पुरुषों को हमने वहाँ भेजा था, उन्होंने हमें बहुत निराश किया। उन्होंने हमें बताया है कि वहाँ के लोग हमसे अधिक शक्तिशाली और लम्बे हैं, और उनके नगरों के चारों ओर बहुत ऊँची दीवार हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने वहाँ विशालकाय लोगों को देखा था जो अनाक के वंशज हैं।'
\p
\s5
\v 29 तब मैंने तुम्हारे पूर्वजों से कहा, ‘उन लोगों से भय न खाओ!
\v 30 हमारे परमेश्वर यहोवा हमारे आगे आगे चलेगा, और वे तुम्हारे लिए लड़ेंगे, जैसा कि तुमने उन्हें मिस्र में
\v 31 और रेगिस्तान में तुम्हारे लिए करते देखा था। तुमने देखा कि कैसे वे तुम्हे सुरक्षित ले आए, जैसे एक व्यक्ति अपने बेटे को ले आता है।'
\p
\s5
\v 32-33 मैंने उन्हें याद दिलाया कि वे कैसे रेगिस्तान में यात्रा करते समय हमेशा तुम्हारे आगे चले। उन्होंने रात में आग के खंभे और दिन में बादल के खंभे से उन्हें निर्देशित किया। उन्होंने उन्हें अपने तंबू स्थापित करने के लिए जगहें दिखाईं। लेकिन मैंने जो कहा, उसके बावजूद, तुम्हारे पूर्वजों ने हमारे परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नहीं किया।
\p
\s5
\v 34 यहोवा ने वह सुना जो उन्होंने कहा, और वे क्रोधित हो गये। उन्होंने गंभीरता से घोषित किया,
\v 35-36 ‘यपुन्ने का पुत्र कालेब, देश में प्रवेश करेगा। उसने पूरी तरह से मेरी आज्ञा का पालन किया है। इसलिए मैं उसे और उसके वंशजों को उस भूमि में से कुछ दूँगा जिसकी उसने छानबीन की थी। वह उन सभी लोगों में से एकमात्र है जो उस देश में प्रवेश करेगा। इन दुष्ट लोगों में से कोई भी कभी भी उस अच्छी भूमि को नहीं देख सकेगा, जिसे मैंने ईमानदारी से तुम्हारे पूर्वजों को देने का वादा किया था।'
\p
\s5
\v 37 परन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने जो किया, उसके कारण यहोवा मुझ से भी अप्रसन्न थे। उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम भी उस देश में प्रवेश नहीं करोगे।
\v 38 नून का पुत्र यहोशू, जो तुम्हारा सहायक है, उसमें प्रवेश करेगा। उसे प्रोत्साहित करो, क्योंकि वह ही है जो तुम इस्राएली लोगों को उस देश पर कब्जा करने में सक्षम बनाएगा।'
\p
\s5
\v 39 तब यहोवा ने हम सभी से कहा, ‘तुमने कहा था कि तुम्हारे बच्चे तुम्हारे शत्रुओं द्वारा अधीन कर लिए जाएंगे। क्योंकि वे बहुत छोटे हैं, वे अभी तक नहीं जानते कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। लेकिन उन्हें ही मैं वह भूमि दूँगा, और वे उसमें प्रवेश करेंगे और उसे अपने अधीन करेंगे।
\v 40 परन्तु तुम वापस मुड़ो और लाल समुद्र की तरफ रेगिस्तान में जाओ।'
\p
\s5
\v 41 तब तुम्हारे पूर्वजों ने उत्तर दिया था, ‘हमने पाप किया है; हमने यहोवा की अवज्ञा की है। इसलिए हम जाकर उस देश में रहने वाले लोगों पर हमला करेंगे, जैसा कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें करने का आदेश दिया है। ‘और प्रत्येक पुरुष ने अपने हथियार ले लिए, और उन्होंने सोचा कि पहाड़ी देश पर आक्रमण करना आसान होगा।
\p
\v 42 परन्तु यहोवा ने मुझ से कहा, ‘उन से कहो, “वहां मत जाओ और उन लोगों पर हमला मत करो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा, और यदि तुम जाओगे, तो तुम्हारे दुश्मन तुम्हे निश्चित रूप से पराजित करेंगे।”
\p
\s5
\v 43 इसलिए मैंने तुम्हारे पूर्वजों से कहा, लेकिन वे मेरी बातें सुनना नहीं चाहते थे। उन्होंने पुनः, यहोवा ने उन्हें जो करने का आदेश दिया था उसका विद्रोह किया। उनके सैनिक गर्व से उस पहाड़ी देश में चले गए।
\v 44 तब उस क्षेत्र में रहने वाले एमोर समूह के लोग अपने नगरों से बाहर आए और उन सैनिकों पर हमला किया। उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों के सैनिकों का वैसे ही पीछा किया जैसे कि मधुमक्खियों का झुंड एक व्यक्ति का पीछा करते है, और उन्होंने हमारे लोगों को एदोम से दक्षिण तक पीछा किया और उन्हें होर्मा शहर में पराजित कर दिया।
\s5
\v 45 इसलिए तुम्हारे पूर्वज कादेशबर्ने वापस चले गए और यहोवा से उनकी सहायता करने के लिए विनती करके रोए, लेकिन परमेश्वर ने उनकी बातें नहीं सुनी। उन्होंने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया।
\v 46 इसलिए हम लंबे समय तक कादेशबर्ने में रहे।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 “तब हम वापस लौट गए और रेगिस्तान के पार लाल समुद्र की ओर चले गए जैसे यहोवा ने हमें करने के लिए कहा था, और हम कई वर्षों तक एदोम में घूमते रहे।
\p
\v 2 तब यहोवा ने मुझ से कहा,
\v 3 ‘तुम इस पहाड़ी देश के चारों ओर लंबे समय से घूम रहे हो। अब उत्तर की ओर मुड़ो और यात्रा करो।
\s5
\v 4 और लोगों को बताओ कि वे एसाव के वंशजों की भूमि के पास यात्रा करने जा रहे हैं, वे भी इसहाक के वंशज हैं। वे एदोम के पहाड़ी देश में रहते हैं। वे तुमसे डरेंगे,
\v 5 लेकिन उनके विरुद्ध लड़ना शुरू मत करो, क्योंकि मैं तुम्हें उनकी भूमि का एक छोटा सा भाग भी ना दूँगा। मैंने उस भूमि को एसाव के वंशजों को दिया है।
\s5
\v 6 जब तुम उनकी भूमि से होकर यात्रा करते हो, तो उनसे भोजन और पानी खरीदना।'
\p
\v 7 यह मत भूलना कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें हमारे हर काम में आशीर्वाद दिया है। वह जानते हैं कि इस विशाल रेगिस्तान में घूमने के समय हमारे साथ क्या हुआ है। लेकिन वह उन चालीस वर्षों में तुम्हारे साथ रहे, और परिणामस्वरूप तुम्हारे पास वह सब था, जिनकी तुम्हें आवश्यकता थी।
\p
\s5
\v 8 इसलिए हमने यात्रा जारी रखी। हम पहाड़ी देश से होकर नहीं गए जहाँ एसाव के वंशज रहते हैं। हम यरदन घाटी के मैदान के पास से जाने वाले मार्ग से निकल गए, और एस्योनगेबेर और एलत से निकले, और हमने मोआब के रेगिस्तान के रास्ते से यात्रा की।
\p
\s5
\v 9 यहोवा ने मुझ से कहा, ‘मोआब के लोगों को परेशान मत करना, और उनके विरूद्ध लड़ना शुरू न करना, क्योंकि मैं तुम्हें उनकी भूमि में से कुछ भी नहीं दे रहा हूँ। यह मत भूलना कि वे अब्राहम के भतीजे लूत के वंशज हैं, और मैंने उन्हें आर नगर दिया है।"
\p
\s5
\v 10 एमी नामक विशालकाय लोगों का एक बड़ा समूह पहले वहाँ रहता था। वे अनाक के वंशज थे जो विशालकाय लोगों के समान लंबे थे।
\v 11 उन्हें और अनाक के वंशजों को रेफा अर्थात विशालकाय भी कहते है, परन्तु मोआब के लोग उन्हें एमी कहते हैं।
\s5
\v 12 होरी लोगों के समूह भी पहले एदोम क्षेत्र में रहते थे, परन्तु एसाव के वंशजों ने उनको निकाल दिया। उन्होंने उन्हें मार डाला और उनकी भूमि में बस गए, जैसे इस्राएली लोगों ने बाद में अपने दुश्मनों को उस देश से निकाल दिया जो यहोवा ने उन्हें दिया था।
\p
\s5
\v 13 मूसा ने इस्राएलियों से यह भी कहा, “हमने जेरेद नदी को पार किया, जैसा यहोवा ने हमें करने के लिए कहा था।
\v 14 पहली बार कादेशबर्ने छोड़ने के समय से जेरेद नदी पार करने तक अड़तीस वर्ष बीत गए थे। उन वर्षों के दौरान, उस पीढ़ी के लड़ने वाले सभी इस्राएली मर गए, जैसा यहोवा ने कहा था कि होगा।
\v 15 वे इसलिए मर गए क्योंकि यहोवा ने उन सभी का विरोध किया जब तक कि उन्होंने उन सभी से छुटकारा नहीं मिला।
\p
\s5
\v 16 युद्ध में लड़ने की उम्र के सभी लोगों के मरने के बाद,
\v 17 यहोवा ने मुझ से कहा,
\v 18 ‘आज तुम सभी को मोआब के क्षेत्र से उनके नगर आर से होकर यात्रा करनी है।
\v 19 जब तुम उस देश की सीमा के पास आते हो जहाँ अम्मोनी लोग रहते हैं, उन्हें परेशान न करना या उनके विरुद्ध लड़ना शुरू न करना। वे भी लूत के वंशज हैं, इसलिए मैं तुम्हें वह भूमि नहीं दूँगा जो मैंने उन्हें दी है।'"
\p
\s5
\v 20 (उस क्षेत्र को रेफा या विशालकाय लोगों की भूमि भी कहा जाता है, जो पहले वहाँ रहते थे। अम्मोनी लोग उन्हें जमजुम्मी समूह कहते हैं।
\v 21 वे एक बड़े और शक्तिशाली समूह थे, जो अनाक के वंशज के समान लंबे थे। परन्तु यहोवा ने उन्हें नष्ट कर दिया, और अम्मोनियों के समूह ने उन्हें बाहर निकाल दिया और उनकी भूमि ले ली और वहाँ रहने लगे।
\v 22 यहोवा ने एदोम के पहाड़ी देश में रहने वाले एसाव के वंशजों के लिए भी ऐसा ही काम किया। उन्होंने होरी लोगों के समूह से छुटकारा पा लिया, जिसके परिणामस्वरूप एदोम लोगों के समूह ने उनकी भूमि ले ली और वहाँ रहने लगे। वे अभी भी वहाँ रहते हैं।
\s5
\v 23 क्रेते द्वीप से आए लोगों ने अव्वी लोगों के समूह से छुटकारा पाया जो पहले भूमध्य सागर के निकट की भूमि में दक्षिण में गाजा तक रहते थे। उन्होंने उनकी भूमि उनसे ली और वहाँ रहने लगे।)
\p
\s5
\v 24 “जब हम मोआब के क्षेत्र से निकल गए, तो यहोवा ने हमसे कहा, ‘अब अर्नोन नदी को पार करो। मैं एमोर लोगों के समूह के राजा सीहोन की सेना को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करूंगा, जो हेशबोन शहर में रहता है। इसलिए उनकी सेना पर हमला करो और उनकी भूमि उनसे लेना शुरू करो।
\v 25 आज मैं हर स्थान, हर किसी को तुमसे डरने का कारण बना दूँगा। जो तुम्हारे विषय में सुनेगा वह काँपेगा और डर जाएगा।'
\p
\s5
\v 26 तब मैंने रेगिस्तान में जहाँ हम थे वहाँ से हेशबोन के राजा सीहोन के पास दूत भेजे। मैंने उनसे राजा को यह शांतिपूर्ण संदेश देने के लिए कहा:
\v 27 ‘कृपया हमें तुम्हारी भूमि से यात्रा करने दो। हम वादा करते हैं कि हम मार्ग पर रहेंगे; हम दाएं या बाएं नहीं मुड़ेंगे।
\s5
\v 28 हम उस भोजन और पानी के लिए भुगतान करेंगे जिसे तुम हमें खरीदने की अनुमति दोगे। हम केवल तुम्हारे देश में से होकर जाना चाहते हैं
\v 29 जब हम यरदन नदी को पार करके उस देश में पहुंचे जो हमारे परमेश्वर यहोवा हमें दे रहे हैं। तब लिए ऐसा करें जो एदोम क्षेत्र में रहने वाले एसाव के वंशज और मोआब लोगों के समूह ने हमारे लिए किया था जब उन्होंने हमें अपने क्षेत्र से होकर जाने की अनुमति दी थी।'
\s5
\v 30 लेकिन राजा सीहोन ने हमें अपने देश से जाने की अनुमति नहीं दी। ऐसा इसलिए था क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने उसे हठीला बना दिया था। परिणाम यह था कि यहोवा ने हमें उनकी सेना को हराने और उनकी भूमि लेने में सक्षम बनाया, जिस पर हम अभी भी रहते हैं।
\p
\v 31 यहोवा ने मुझ से कहा, सुनो! मैं तुम्हे सीहोन की सेना को हराने और लोगों से भूमि लेने के लिए अनुमति देने वाला हूँ। अतः इस पर कब्जा करना शुरू करो!'
\p
\s5
\v 32 तब सीहोन अपने शहर से बाहर, यहज शहर में हमारे विरुद्ध लड़ने के लिए अपनी सारी सेना के साथ आया।
\v 33 परन्तु परमेश्वर ने हमें उनको पराजित करने में सक्षम बनाया, और हमने सीहोन, उसके पुत्रों और उसके सभी सैनिकों को मार डाला।
\s5
\v 34 हमने उनके शहरों पर कब्जा कर लिया और उन सभी को नष्ट कर दिया। हमने सभी पुरुषों और स्त्रियों और बच्चों को मार डाला; हमने उनमें से किसी को जीवित रहने की अनुमति नहीं दी।
\v 35 हमने उन मूल्यवान वस्तुओं को ले लिया जो उन शहरों में थे और उनके पशुओं को भी ले लिया।
\s5
\v 36 हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें उत्तर में गिलाद के क्षेत्र से लेकर अर्नोन नदी की घाटी के किनारे पर दक्षिण में अरोएर तक उनके सभी नगरों पर कब्ज़ा करने में सक्षम बनाया। उनके कुछ शहरों के चारों ओर दीवारें थीं, लेकिन हम तब भी उन पर कब्ज़ा करने में सक्षम थे।
\v 37 परन्तु हम उस क्षेत्र के पास नहीं गए जहाँ आमोनी लोग रहते थे, या यब्बोक नदी के किनारे, या पहाड़ी देश के नगरों, या किसी अन्य स्थान पर जहाँ हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें जाने के लिए मना किया था।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 “तब हम उत्तर की ओर मुड़े और बाशान के क्षेत्र की ओर चले गए। ओग, उस क्षेत्र का राजा, और उसके सभी सैनिक दक्षिण में आए कि वे हमारे विरुद्ध एद्रेई शहर में लड़ सकें।
\v 2 यहोवा ने मुझ से कहा, ‘उससे डरो मत, क्योंकि मैं तुम्हारी सेना को उसे और उनकी सारी सेना को हराने और उनकी सारी भूमि को अपने अधीन करने में सक्षम करूंगा। उन लोगों के साथ वही करो जो तुमने एमोर लोगों के समूह के राजा सीहोन के साथ किया था, जो हेशबोन पर शासन करता था।'
\p
\s5
\v 3 इसलिए यहोवा ने हमें राजा ओग और उनकी सारी सेना को पराजित करने में सक्षम बनाया। हमने उन सभी को मार डाला; हमने उनमें से किसी को जीवित रहने की अनुमति नहीं दी।
\v 4 राजा ओग के बाशान साम्राज्य के अर्गोब क्षेत्र में साठ नगर थे। लेकिन हमने उन सभी पर कब्ज़ा कर लिया।
\s5
\v 5 उन सभी शहरों के चारों ओर ऊँची दीवारें थीं जिनमें फाटक और बेंड़े थे। हमने कई गांवों पर कब्जा कर लिया जिनके चारों ओर दीवारें नहीं थी।
\v 6 हमने सबकुछ पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जैसा हमने उस क्षेत्र में किया था जिस पर राजा सीहोन शासन करता था। हमने सभी पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को मार डाला।
\v 7 लेकिन उन शहरों से हमने अपने लिए सभी पशुधन और अन्य मूल्यवान वस्तुएं ले लीं।
\p
\s5
\v 8 इसलिए उस समय हमने एमोर के उन दो राजाओं से यरदन नदी के पूर्व की सारी भूमि ले ली, दक्षिण में अर्नोन नदी के किनारे से उत्तर में हर्मोन पर्वत तक। “
\v 9 (उस पर्वत को सीदोन शहर के लोगों द्वारा सिर्योन कहा जाता है और एमोर लोगों के समूह द्वारा सनीर कहा जाता है।)
\v 10 “हमने समथर देश के सभी नगरों और गिलाद के सारे क्षेत्र और पूर्व में बाशान के एद्रेई और सल्का के नगरों में कब्जा कर लिया, जो ओग के साम्राज्य के थे।”
\s5
\v 11 (ओग अंतिम राजा था जो रेफा या विशालकाय लोगों का वंशज था। उसका बिस्तर लोहे से बना था। यह चार मीटर लंबा और दो मीटर चौड़ा था। यह अम्मोन के क्षेत्र में रब्बा शहर में था।)
\p
\s5
\v 12 “उस समय जिस देश पर हमने कब्जा कर लिया था, अर्थात् अर्नोन नदी के पास अरोएर शहर के उत्तर की भूमि और गिलाद के कुछ पहाड़ी देश और आसपास के कुछ नगरों को मैंने रूबेन और गाद के गोत्रों में बांट दिया।
\v 13 गिलाद का दूसरा भाग और बाशान, अर्गोब का क्षेत्र जिस पर राजा ओग शासन करता था, मैंने मनश्शे के आधे गोत्र को दे दिया। “(बाशान के पूरे क्षेत्र को रेफा विशालकाय लोगों की भूमि कहा जाता है ।)
\s5
\v 14 “मनश्शे के गोत्र के एक व्यक्ति याईर ने उत्तर में गशूर और माकाथ क्षेत्रों की सीमा तक सारे बाशान पर विजय प्राप्त की। उसने उन गांवों को अपना नाम दिया, और उन्हें अभी भी याईर के गांव कहा जाता है ।
\p
\s5
\v 15 गिलाद क्षेत्र का उत्तरी भाग मैंने माकीर को दे दिया, जो मनश्शे के गोत्र का वंशज हैं।
\v 16 मैंने रूबेन और गाद के गोत्रों को गोलाद के दक्षिणी भाग दिये, जो दक्षिण में आर्नोन नदी तक फैले थे। नदी के मध्य को दक्षिणी सीमा माना गया। उत्तरी सीमा यब्बोक नदी है, जो अम्मोन के क्षेत्र की सीमा का भाग है।
\s5
\v 17 भूमि की सीमा मैदान से यरदन की घाटी की पूर्व दिशा तक फैली हुई है, उत्तर में किन्नेरेत (जिसे गलील सागर के नाम से जाना जाता है) से लेकर, दक्षिण में अराबा सागर (जिसे मृत सागर के नाम से जाना जाता है), और पूर्व में पिसगा पर्वत की ढलान तक।
\p
\s5
\v 18 उस समय, मैंने तुम तीन गोत्रों को बताया, ‘यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें यरदन नदी के पूर्व में यह भूमि दे रहे हैं, ताकि तुम उस पर कब्जा करो। तो अब, तुम्हारे सैनिकों को अपने हथियारों को लेकर अन्य इस्राएली गोत्रों के पुरुषों के आगे यरदन नदी के पार जाना चाहिए ताकि वे उस भूमि पर विजय प्राप्त कर सकें जो परमेश्वर उन्हें दे रहे हैं।
\s5
\v 19 परन्तु तुम्हारी पत्नियों और बच्चों और तुम्हारे बहुत सारे मवेशियों को उन नगरों में रहना चाहिए जिन्हें मैंने तुम्हें दिया है।
\v 20 तुम्हारे पुरुषों को अपने साथी इस्राएलियों की सहायता करनी चाहिए जब तक कि यहोवा उन्हें उस पुरे देश पर कब्जा करके उसमें शांतिपूर्वक रहने में सक्षम नहीं करते, जो हमारे परमेश्वर यहोवा यरदन नदी के पश्चिमी किनारे पर उन्हें दे रहे हैं, जैसा कि उन्होंने यहां नदी के पूर्वी ओर तुम्हारे लिए किया था। उसके बाद, तुम सभी इस भूमि पर लौट सकते हो जिसे मैंने तुम्हें आवंटित किया है।'
\p
\s5
\v 21 और मैंने यहोशू से कहा, ‘तुमने वह सब कुछ देखा है जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने उन दो राजाओं, सीहोन और ओग के साथ किया था। वे उन लोगों के साथ भी वैसा ही करेंगे जो अब उस देश में रहते हैं, जहाँ तुम प्रवेश करने जा रहे हो।
\v 22 उन लोगों से मत डरो, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ही तुम्हारे लिए लड़ेंंगे।"
\p
\s5
\v 23 “उस समय, मैंने ईमानदारी से यह कहकर प्रार्थना की,
\v 24 ‘हे हमारे प्रभु यहोवा, आपने मुझे यह दिखाना शुरू ही किया है कि आप बहुत महान हैं और मुझे वे सब शक्तिशाली कार्य दिखाए जो आप कर सकते हैं। स्वर्ग में या पृथ्वी पर निश्चित रूप से कोई परमेश्वर नहीं है जो आपके द्वारा किए गए शक्तिशाली काम कर सकता है।
\v 25 इसलिए कृपया मुझे यरदन नदी पार करने और पूर्व की अच्छी भूमि, सुंदर पहाड़ी देश और लबानोन के पहाड़ों को देखने की अनुमति दें।‘
\p
\s5
\v 26 परन्तु यहोवा तुम्हारे पूर्वजों के काम के कारण मुझ से अप्रसन्न थे, इसलिए उन्होंने मुझ पर ध्यान नहीं दिया। इसकी अपेक्षा, उन्होंने कहा, ‘यह जो तुमने कहा है! उस विषय में मुझसे फिर बातें मत करना!
\v 27 तुम पिसगा पर्वत के शीर्ष पर चढ़ जाओगे और पश्चिम और पूर्व और उत्तर और दक्षिण की ओर देखोगे। तुम्हें बड़ी सावधानी से देखना है, क्योंकि तुम भूमि को देखने के लिए यरदन नदी पार नहीं करोगे।
\s5
\v 28 परन्तु यहोशू को बताओ कि उसे क्या करना चाहिए; उसे मजबूत बनने के लिए प्रोत्साहित करो, क्योंकि वही है जो नदी के पार लोगों का नेतृत्व करेगा ताकि वे उस भूमि पर कब्जा कर सकें जो तुम पर्वत के शीर्ष से देखोगे।'
\p
\v 29 इसलिए हम यरदन नदी की घाटी में बेतपोर शहर के समीप रहे।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 “अब, हे इस्राएलियों, जो विधि और नियम मैं तुम्हें सिखाऊंगा, उन सभी का पालन करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम जीवित रहोगे और तुम उस देश में प्रवेश करोगे और उस पर कब्जा कर लोगे जिसे यहोवा, जिस परमेश्वर की तुम्हारे पूर्वजों ने आराधना की थी, वे तुम्हें देंगे।
\v 2 जो आज्ञा मैं तुम्हें देता हूँ उनमें कुछ भी न जोड़ो, और जो कुछ मैं तुम्हें बताता हूँ उसमें से कुछ भी न घटाओ। हमारे परमेश्वर यहोवा के सभी आदेशों का पालन करो जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ।
\p
\s5
\v 3 तुमने देखा है कि बालपोर में यहोवा ने क्या किया था। उन्होंने उन सभी लोगों को नष्ट कर दिया जिन्होंने बाल देवता की पूजा की थी,
\v 4 परन्तु तुम सभी जिन्होंने विश्वासयोग्यता से हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना की, वे आज भी जीवित हैं।
\p
\s5
\v 5 ध्यान दें कि मैंने तुम्हें सभी नियम और विधियाँ सिखाई हैं, जैसा कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने मुझे करने के लिए कहा था। वे चाहते हैं कि जब तुम उस देश में रहो इन सभी नियमों का पालन करो, जिसमें तुम अभी प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो।
\v 6 उन्हें ईमानदारी से मानो क्योंकि, यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम अन्य राष्ट्रों के लोगों को दिखाओगे कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। जब वे इन सभी नियमों के विषय में सुनेंगे, तो वे कहेंगे, ‘इस महान राष्ट्र के लोग निश्चित रूप से बहुत बुद्धिमान हैं!
\s5
\v 7 चाहे अन्य राष्ट्र बड़े हैं, तब भी उनमें से किसी के पास ऐसा ईश्वर नहीं है जो उनके निकट रहे जैसा हमारे परमेश्वर यहोवा हमारे निकट हैं!
\v 8 और कोई अन्य राष्ट्र नहीं है, भले ही यह एक बड़ा राष्ट्र है, जिनके पास ऐसे नियम हैं जो इन नियमों के समान हैं, जो आज मैं तुम्हें बताता हूँ।
\p
\s5
\v 9 लेकिन बहुत सावधान रहो! कभी न भूलो कि तुमने परमेश्वर को क्या करते देखा है। जब तक तुम जीवित रहते हो तब तक उन बातों को याद रखो। उन्हें अपने बच्चों और अपने पोते-पोतियों को बताओ।
\v 10 उनको उस दिन के विषय में बताओ, जब तुम्हारे पूर्वज सीनै पर्वत पर हमारे परमेश्वर यहोवा की उपस्थिति में खड़े हुए थे, जब परमेश्वर ने मुझसे कहा, ‘लोगों को एकत्र करो, ताकि मैं जो कहता हूँ, वे उसे सुन सकें। मैं चाहता हूँ कि वे मेरा सम्मान करना और मेरा आदर करना सीखें, जब तक वे जीवित रहें, और मैं चाहता हूँ कि वे अपने बच्चों को भी ऐसा करना सिखाएं।'
\s5
\v 11 अपने बच्चों को बताओ कि तुम्हारे पूर्वज पहाड़ की तलहटी के पास आए थे, जबकि पहाड़ आकाश तक पहुँचने वाली आग से जल रहा था, और पहाड़ घने बादलों और काले धुएं से ढँका हुआ था।
\v 12 तब यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से आग के बीच में से बातें की। तुम्हारे पूर्वजों ने उन्हें बातें करते सुना, लेकिन उन लोगों ने उन्हें नहीं देखा। उन्होंने केवल उनकी आवाज़ सुनी।
\s5
\v 13 और उन्होंने उनसे अपनी प्रतिज्ञा की घोषणा की, जो वे चाहते हैं कि तुम भी मानो। उन्होंने उन्हें दस आज्ञाएं दीं। उन्होंने उन्हें दो पत्थर की पटियाओं पर लिखा था।
\v 14 यहोवा ने मुझे आदेश दिया कि मैं तुम्हें सभी नियमों और विधियों सिखाऊँ ताकि तुम उस देश में उनका पालन करो जिसमें तुम प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो।
\p
\s5
\v 15 जिस दिन यहोवा ने सीनै पर्वत पर तुम्हारे पूर्वजों से बातें की थी, उन लोगों ने उन्हें नहीं देखा। इसलिए सावधान रहो
\v 16 अपने लिए कोई खुदी हुई मूर्ति बनाकर पाप मत करो! किसी भी व्यक्ति की समानता में कोई भी चीज़ न बनाओ, चाहे पुरुष या स्त्री,
\v 17 या किसी भी जानवर या किसी पक्षी के समान दिखता हो
\v 18 या गहरे महासागर के किसी रेंगनेवाले जन्तु या किसी मछली की समानता में भी नहीं।
\s5
\v 19 सावधान रहो कि तुम आकाश की ओर देखकर सूर्य या चंद्रमा या तारों की पूजा करने के लिए प्रेरित न हो जाओ। हमारे परमेश्वर यहोवा ने उन्हें हर जगह सभी लोगों की सहायता करने के लिए दिया है, लेकिन तुम्हें उनकी पूजा नहीं करनी चाहिए।
\v 20 यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला है, जहाँ वे पीड़ित थे मानों जलते हुए भट्ठे में थे, कि वे परमेश्वर के निज लोग हों, जो आज तुम हो।
\p
\s5
\v 21 परन्तु तुम्हारे पूर्वजों के कामों के कारण यहोवा मुझ से अप्रसन्न थे। और उन्होंने वादा किया कि मैं उस देश में कभी प्रवेश नहीं करूंगा जो वे तुम्हें दे रहे हैं।
\v 22 उन्होंने शपथ ली कि मैं इस देश में मर जाऊंगा और कभी यरदन नदी पार नहीं करूँगा। लेकिन तुम इसे पार करोगे, और तुम उस भूमि पर कब्जा करोगे।
\s5
\v 23 यह सुनिश्चित करो कि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा के साथ की गयी प्रतिज्ञा को न भूलो, और किसी भी चीज़ की समानता में खुदी हुई मूर्ति न बनाओ।
\v 24 तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा चाहते हैं कि केवल उन्ही की आराधना करे। वे मूर्तियों की पूजा करने वाले हर व्यक्ति को नष्ट कर देंगे।
\p
\s5
\v 25 जब तुम कनान देश में लंबे समय तक रहोगे और तुम्हारे बच्चे और पोते-पोतियाँ होंगे, तो किसी भी प्रकार की खुदी हुई मूर्ति बनाकर पाप न करना, क्योंकि यहोवा कहते हैं कि यह करना बुरा है, और यदि तुम ऐसा करोगे, तो तुम उन्हें क्रोधित करोगे और दंडित होने का कारण बनोगे।
\v 26 आज मैं स्वर्ग में रहने वाले और पृथ्वी पर रहने वाले हर किसी से अनुरोध कर रहा हूँ कि वह देखे कि तुम क्या कर रहे हो। यदि तुम मेरी बातों का उल्लंघन करते हो, तो तुम सब जल्द ही इस देश में मर जाओगे जिस पर कब्जा करने के लिए तुम यरदन नदी के उस पार आये हो। तुम वहाँ बहुत लंबे समय तक नहीं जीओगे; यहोवा तुम सभी से छुटकारा पाएंगे।
\s5
\v 27 और तुम में से बाकी लोगों को, यहोवा किसी अन्य राष्ट्रों के लोगों के बीच जाकर रहने के लिए विवश करेंगे। तुम में से केवल कुछ ही जीवित रहेंगे।
\v 28 जब तुम उन राष्ट्रों में होगे, तो तुम लकड़ी और पत्थर से बने देवताओं की पूजा करोगे, जिन्हें मनुष्यों ने बनाया है, ऐसे देवता जो देख नहीं सकते हैं या कुछ भी सुन नहीं सकते हैं या कुछ भी खा नहीं सकते हैं या कुछ भी सूँघ नहीं सकते हैं।
\s5
\v 29 परन्तु जब तुम वहाँ हो, तो तुम अपने परमेश्वर यहोवा को जानने का प्रयास करोगे, और यदि तुम उन्हें जानने के लिए अपने पूरे दिल से प्रयास करोगे, तो वे तुमको उत्तर देंगे।
\s5
\v 30 भविष्य में, जब वहाँ तुम से दुर्व्यवहार किया जा रहा होगा और ये सभी बुरी चीजें तुम्हारे साथ होगी, तब तुम फिर से केवल यहोवा की आराधना करोगे और उनकी आज्ञा मानोगे।
\v 31 यहोवा ऐसे परमेश्वर हैं जो दया के कार्य करते हैं। यदि तुम उनकी आज्ञा का पालन करना जारी रखते हो, तो वे तुमको नही त्यागेंगे और न ही तुमको नष्ट करेंगे और वह प्रतिज्ञा नहीं भूलेंगे जो उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों के साथ गंभीरता से किया था।"
\p
\s5
\v 32 “अब अतीत के विषय में सोचो, तुम्हारे जन्म से पहले के विषय में सोचो, उस समय के विषय में सोचो जब परमेश्वर ने मनुष्य को उत्‍पन्‍न करके पृथ्वी पर रखा था। तुम स्वर्ग और पृथ्वी पर हर स्थान खोज सकते हो। क्या कभी ऐसा कुछ हुआ है जो उतना महान है जितना यहोवा ने हम इस्राएलियों के लिए किया था?
\v 33 क्या कोई समूह कभी जीवित रहा है जब परमेश्वर की आवाज़ आग के बीच से उनसे बातें करते सुन गयी जैसा हमने किया था?
\s5
\v 34 निश्चित रूप से परमेश्वर ने कभी भी एक राष्ट्र से दूसरे देश में लोगों के इतने बड़े समूह को ले जाने का प्रयास नहीं की, जैसा उन्होंने मिस्र से बाहर लाकर हमारे लिए किया था। हमने देखा कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने अपनी महान शक्ति का उपयोग करके आश्चर्यकर्म किए ताकि हमें दिखाए कि वे कौन हैं, और पीड़ाएं भेजीं, और कई अन्य काम किए जिससे लोग भयभीत हुए, और जब मिस्र की सेना ने हमला करने का प्रयास किया, तब उन्होंने हमें कैसे बचाया।
\p
\s5
\v 35 यहोवा ने इन सब चीजों को तुम्हारे सामने दिखाया, ताकि तुम जान सको कि केवल वे ही परमेश्वर हैं, और कोई अन्य ईश्वर नहीं है।
\v 36 उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को स्वर्ग से वाणी सुनने की अनुमति दी ताकि वे उन्हें अनुशासित कर सकें। उन्होंने उन्हें सीनै पर्वत पर अपनी बड़ी आग देखने की अनुमति दी, और उन्होंने आग के बीच से उनसे बातें की।
\s5
\v 37 क्योंकि वे हमारे पूर्वजों से प्रेम करते थे, उन्होंने तुम इस्राएलियों को चुना जो उनके वंशज हो, और अपनी महान शक्ति से उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला।
\v 38 जब इस्राएली यात्रा करते थे, तब परमेश्वर ने उन राष्ट्रों के लोगों को निष्कासित कर दिया जो इस्राएलियों के मुकाबले अधिक शक्तिशाली थे, ताकि वे उनकी भूमि पर कब्जा कर सकें और उसे अपना बना सकें, जो अब हो रहा है।
\p
\s5
\v 39 इसलिए आज तुमको इस तथ्य के विषय में सोचना चाहिए कि यहोवा परमेश्वर हैं, वे स्वर्ग और पृथ्वी दोनों पर शासन करते हैं, और कोई अन्य ईश्वर नहीं है।
\v 40 उन सभी नियमों और विधियों का पालन करो जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, ताकि तुम्हें और तुम्हारे वंशजों के लिए सब अच्छा हो जाए, और तुम उस देश में लंबे समय तक जीवित रहो, जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं, यह हमेशा के लिए तुम्हारा भाग है।"
\p
\s5
\v 41 तब मूसा ने यरदन नदी के पूर्व की ओर तीन शहरों को चुना।
\v 42 यदि किसी ने गलती से किसी अन्य व्यक्ति को मार डाला, जो पहले उसका दुश्मन नहीं था, तो वह उन शहरों में से एक में भाग सकता था। वह उन शहरों में से एक में सुरक्षित रहेगा क्योंकि वहाँ लोग उनकी रक्षा करेंगे।
\v 43 रूबेन के गोत्र के लिए, मूसा ने जंगल में बेसेर शहर का चयन किया; गाद के गोत्र के लिए, उसने गिलाद के क्षेत्र में रामोत शहर का चयन किया। मनश्शे के गोत्र के लिए, मूसा ने बाशान के क्षेत्र में गोलन शहर का चयन किया।
\p
\s5
\v 44 मूसा ने इस्राएलियों को परमेश्वर के नियम दिए।
\v 45 उसमें वे सभी गंभीर आदेश, निर्देश और नियम सम्मिलित थे जिन्हें मूसा ने मिस्र से बाहर आने के बाद इस्राएल के लोगों को बताया था,
\v 46 जब वे यरदन नदी के पूर्व की ओर घाटी में थे। वे बेतपोर शहर के दूसरी ओर थे, उस देश में जिस पर पहले सीहोन शासन करता था, जो एमोर लोगों के समूह का राजा था, जो हेशबोन में रहता था। जब वे मिस्र से निकले तो मूसा और अन्य इस्राएली लोगों ने उनकी सेना को पराजित किया था।
\s5
\v 47 उन्होंने सीहोन की भूमि पर और जिस देश में बाशान के राजा ओग ने शासन किया था, उन पर कब्जा कर लिया। वे दो राजा थे जिन्होंने यरदन नदी के पूर्व क्षेत्र में एमोर लोगों के समूह पर शासन किया था।
\v 48 उनकी भूमि अर्नोन नदी के साथ दक्षिण में अरोएर शहर से लेकर उत्तर में सिर्योन पर्वत तक फैली हुई थी, जिसे अधिकतर लोग हर्मोन पर्वत कहते हैं।
\v 49 इसमें यरदन नदी की घाटी के पूर्वी मैदान के सभी क्षेत्र भी शामिल थे, जो अराबा के सागर (जो मृत सागर के रूप में जाना जाता है) और पूर्व में पिसगा पर्वत की ढलानों तक फैले हुए थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 मूसा ने इस्राएल के सभी लोगों को बुलाया और उनसे कहा,
\p “हे इस्राएली लोगों, उन सभी नियमों और विधियों को सुनो जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। उन्हें सीखो और उनका पालन करना सुनिश्चित करो।
\v 2 जब हम सीनै पर्वत पर थे, तब हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे साथ एक प्रतिज्ञा की थी।
\v 3 लेकिन यह प्रतिज्ञा केवल हमारे पूर्वजों के लिए नहीं थी। उन्होंने इसे हमारे लिए भी बनाया, जो अब जीवित हैं।
\s5
\v 4 यहोवा ने उस पहाड़ पर आग के बीच से हमसे आमने-सामने बातें की।
\v 5 उस दिन, मैं तुम्हारे पूर्वजों और यहोवा के बीच खड़ा था कि उन्हें यहोवा की बातें बता सकूं, क्योंकि वे आग से डरते थे, और वे पहाड़ पर चढ़ना नहीं चाहते थे। यहोवा ने यह कहा:
\v 6 ‘मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, जिसकी तुम आराधना करते हो। मैं वह हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से बाहर निकाल लाया। मैं वही हूँ जिसने तुम्हें दासत्व से मुक्त किया।
\s5
\v 7 तुमको केवल मेरी आराधना करनी चाहिए; तुमको किसी अन्य ईश्वर की आराधना नहीं करनी चाहिए।
\v 8 तुम्हें किसी भी जीवित प्राणी की समानता में कोई खुदी हुई मूर्ति नहीं बनानी चाहिए जो आसमान या पृथ्वी पर या पृथ्वी के जल में है।
\s5
\v 9 किसी मूर्ति को दण्डवत् न करो और उनकी आराधना न करो, क्योंकि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ, और मैं तुम्हें ऐसा करते सहन नहीं करूंगा। जो कोई ऐसा करेगा मैं उनको, उनके बच्चों को, पोते-पोतियों को, और परपोते-पोतियों को दंडित करूंगा।
\v 10 परन्तु मैं लगातार हजारों पीढ़ियों तक उनसे प्रेम करूंगा जो मुझसे प्रेम करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
\s5
\v 11 मेरा नाम लापरवाही से या गलत उद्देश्यों के लिए मत लो, क्योंकि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ, जिसकी तुम्हें आराधना करनी चाहिए, और मैं निश्चित रूप से उन लोगों को दण्ड दूँगा जो ऐसा करते हैं।
\s5
\v 12 यह मत भूलना कि हर सप्ताह के सातवें दिन को तुम्हें विशेष रूप से मेरा सम्मान करना है, जैसा कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें आज्ञा देता हूँ।
\v 13 काम करने के लिए हर सप्ताह में पुरे छह दिन हैं,
\v 14 परन्तु सातवां दिन विश्राम दिन है, जो मुझ यहोवा परमेश्वर के लिए समर्पित है। उस दिन तुमको कोई काम नहीं करना चाहिए। तुम्हें और तुम्हारे बेटे और बेटियां और तुम्हारे दास और दासियों को कोई काम नहीं करना चाहिए। तुमको अपने पशुओं को भी कोई काम करने के लिए विवश नहीं करना चाहिए, और विदेशियों को भी काम करने के लिए नहीं कहना चाहिए, जो तुम्हारे देश में रहते हैं। तुमको अपने दासों को उस दिन विश्राम करने की अनुमति देनी चाहिए जैसा तुम विश्राम करते हो।
\s5
\v 15 यह मत भूलना कि तुम मिस्र में दास थे, और मैं, तुम्हारा परमेश्वर यहोवा, तुम्हें अपनी महान शक्ति से वहाँ से बाहर निकाल लाया। यही कारण है कि मैं आदेश दे रहा हूँ कि तुम सभी को सप्ताह के सातवें दिन विश्राम करना चाहिए।
\s5
\v 16 अपने पिता और अपनी माता का सम्मान करो, जैसे मैं, तुम्हारा परमेश्वर यहोवा, तुम्हें आज्ञा देता हूँ, ताकि तुम एक समूह के समान लंबे समय तक उस देश में जीवित रह सको, जिसे मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें दूँगा, और ताकि तुम्हारे साथ सब अच्छा हो।
\s5
\v 17 किसी की हत्या न करो।
\v 18 व्यभिचार न करो।
\v 19 कुछ चोरी न करो।
\v 20 जब तुम अदालत में गवाही दे रहे हो तो किसी के विषय में झूठ मत बोलो।
\s5
\v 21 किसी और की पत्नी, घर, खेत, दास या दासी, पशुधन, गधे, या किसी भी वस्तु का लालच न करो।'
\p
\s5
\v 22 ये वे आज्ञाएं हैं जिन्हें यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों को दीं थीं। जब वे पहाड़ की तलहटी पर एकत्र हुए, तब उन्होंने आग के बीच से बहुत ऊँची आवाज़ में बातें की, पहाड़ के चारों ओर काले बादल थे। उन्होंने केवल उन दस आज्ञाओं को बोला, और कुछ नहीं। फिर उन्होंने उन्हें दो पत्थर की पटियाओं पर लिखा और उन्हें मुझे दिया।
\p
\s5
\v 23 तुम्हारे पूर्वजों ने यहोवा की आवाज सुनी, जब उन्होंने अंधकार में उनसे बातें की, जब पहाड़ पर एक बड़ी आग जल रही थी, तब उनके अगुवे और बुजुर्ग मेरे पास आए,
\v 24 और उनमें से एक ने कहा, ‘हमारी सुनो! जब हमारे परमेश्वर यहोवा ने आग में से हमसे बातें करके हमें यह दिखाया कि वे बहुत महान और महिमामय हैं। आज हमने अनुभव किया है कि हम मनुष्य परमेश्वर से बातें करके भी जीवित रह सकते है।
\s5
\v 25 लेकिन हमें डर है कि हम मर जाएंगे। हमें डर है कि यदि हम यहोवा की आवाज़ सुनते रहे, तो यह बड़ी आग हम सब को जला देगी।
\v 26 धरती पर हम एकमात्र ऐसे लोग हैं जिनसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आग में से बातें की लेकिन हम अब भी जीवित हैं!
\v 27 इसलिए मूसा, तुम पहाड़ पर चढ़ जाओ और जो कुछ भी हमारे परमेश्वर यहोवा कहते हैं, उनकी सुनो। फिर वापस आकर हमें जो कुछ परमेश्वर ने कहा है वह बताओ, और जो कुछ परमेश्वर ने कहा है, हम उसे सुनेंगे और उसका पालन करेंगे।'
\p
\s5
\v 28 यहोवा ने तुम्हारे अगुवों को यह कहते हुए सुना, इसलिए जब मैं पहाड़ पर चढ़ गया, तो यहोवा ने मुझ से कहा, ‘मैंने सुना है कि तुम्हारे अगुवों ने क्या कहा है, और उन्होंने जो कहा है वह सही है।
\v 29 मैं निश्चित रूप से चाहता हूँ कि वे हमेशा इस तरह सोचें और मेरा बहुत सम्मान करें और मेरी सभी आज्ञाओं का पालन करें, ताकि सब बातें उनके लिए और उनके वंशजों के लिए हमेशा अच्छी हो सकें।
\p
\v 30 तो नीचे जाओ और उन्हें उनके तम्बुओं में लौटने के लिए कहो।
\s5
\v 31 परन्तु तुम फिर यहां आकर मेरे पास खड़े होना, और मैं तुम्हें सभी नियमों और विधियों को दूँगा जो मैं चाहता हूँ कि वे पालन करें। फिर तुम उन्हें लोगों को सिखा सकते हो, ताकि वे उस देश में इनका पालन करें जो मैं उन्हें दे रहा हूँ।‘
\p
\s5
\v 32 इसलिए मैं लोगों के पास वापस गया और उनसे कहा, ‘सुनिश्चित करो कि जो कुछ भी हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें करने का आदेश दिया है, वह सब करो। अपने किसी भी नियम का उल्लंघन न करना।
\v 33 अपने जीवन को यहोवा के आदेशों के अनुसार व्यवस्थित करो, ताकि तुम लंबे समय तक जीवित रह सको, ताकि जब तुम उस देश में रहो जिस पर तुम कब्जा कर रहे हो, तो सब बातें तुम्हारे लिए अच्छी हों।'
\s5
\c 6
\p
\v 1 “ये आज्ञाएं और नियम और विधियाँ हमारे परमेश्वर यहोवा ने मुझे तुम सबको सिखाने का आदेश दिया है। वे चाहते हैं कि तुम उस देश में जिसमें तुम प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो, उनका पालन करें।
\v 2 वे चाहते हैं कि तुम उनका सम्मान करो, और वे चाहते हैं कि तुम और तुम्हारे वंशज हमेशा इन सभी नियमों और विधियों का पालन करो जो मैं तुमको दे रहा हूँ, ताकि तुम लंबे समय तक जीवित रह सको।
\s5
\v 3 इसलिए, हे इस्राएली लोगों ध्यान से इन्हें सुनो और इनका पालन करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारे साथ अच्छा होगा, और जब तुम उस उपजाऊ भूमि में रहोगे तब तुम असंख्य राष्ट्र बन जाओगे। यहोवा ने जिनकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी, यही वादा किया था।
\p
\s5
\v 4 हे इस्राएली लोगों, सुनो! केवल यहोवा ही हमारे परमेश्वर हैं।
\v 5 तुमको अपने पुरे प्राण से और अपनी सभी भावनाओं से और हर रीति से उन से प्रेम करना चाहिए।
\s5
\v 6 इन आदेशों को कभी न भूलें जिन्हें मैं आज तुमको दे रहा हूं।
\v 7 उन्हें बार-बार अपने बच्चों को सिखाओ। उनके विषय में हर समय बातें करो। जब तुम अपने घरों में होते हो और जब तुम बाहर चलते हो, जब तुम लेटते हो और जब तुम जागते हो तब उनके विषय में बातें करो।
\s5
\v 8 उन्हें छोटी चर्मपत्रियों पर लिखो और उन्हें अपनी बाहों पर बांध लो, और उन्हें अपने मांग टिके पर लिखो जिन्हें तुम अपने माथे पर रखते हो ताकि तुम उन्हें याद रख सको।
\v 9 उन्हें अपने घरों के दरवाजे और अपने शहर के द्वार पर लिखो।
\p
\s5
\v 10 हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे पूर्वज अब्राहम और इसहाक और याकूब से ईमानदारी से वादा किया था कि वे तुमको वह भूमि देंगे जिसमें पहले से ही बड़े और समृद्ध शहर हैं जिन्हें तुमने नहीं बनाया था।
\v 11 उन्होंने कहा कि उन शहरों के घर पहले से ही बहुत अच्छी वस्तुओं से भरे होंगे जिन्हें किसी और ने वहाँ रखा था; तुमने उन्हें वहाँ नहीं रखा। वहाँ कुएं होंगे जो किसी और ने खोदें होंगे। वहाँ दाख के बागन और जैतून के पेड़ होंगे जो किसी और ने लगाए होंगे। अतः जब यहोवा तुम्हें उस देश में लाएँगे, तब तुम्हारे पास वह सब कुछ होगा जिसे तुम खाना चाहते हो,
\v 12 तो यह सुनिश्चित करना कि तुम यहोवा को न भूल जाओ, जिन्होंने तुम्हें मिस्र में दास होने से बचाया और यह सब कुछ तुम्हें दिया।
\p
\s5
\v 13 तुम्हें हमारे परमेश्वर यहोवा का सम्मान करना चाहिए, और तुमको केवल उनकी आराधना करनी चाहिए। जब तुम सच्चाई बताने के लिए या कुछ करने के लिए गंभीर शपथ लेते हो, तो उसे यहोवा के नाम पर लो।
\v 14 तुमको किसी अन्य देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए जिनकी पूजा इस देश के लोग करते हैं।
\v 15 हमारे परमेश्वर यहोवा, जो तुम्हारे बीच रहते हैं, उन लोगों को स्वीकार नहीं करेंगे जो किसी अन्य देवता की पूजा करते हैं। यदि तुम किसी अन्य देवता की पूजा करते हो, तो यहोवा तुमसे बहुत क्रोधित होंगे, और वे तुमको पूरी तरह से नष्ट कर देंगे।
\s5
\v 16 यह जानने के लिए पाप न करो कि यहोवा तुमको दंडित करेंगे या नहीं, जैसा कि तुम्हारे पूर्वजों ने मस्सा में किया था।
\v 17 सुनिश्चित करो कि तुम हमेशा सभी नियमों, कठिन निर्देशों और विधियों का पालन करते हो जो उन्होंने तुम्हें दिए हैं।
\s5
\v 18 जो कुछ यहोवा कहते हैं कि सही और अच्छा है, उसे करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारे साथ सब कुछ अच्छा होगा। तुम उस अच्छी भूमि में प्रवेश करने और उस पर कब्जा करने में सक्षम होंगे जिसे यहोवा ने हमारे पूर्वजों को देने का वादा किया था।
\v 19 जैसा उन्होंने करने का वादा किया था, वे वैसा उस देश से दुश्मनों को निकालकर करेंगे।
\p
\s5
\v 20 भविष्य में, तुम्हारे बच्चे तुमसे पूछेंगे, ‘हमारे परमेश्वर यहोवा ने इन सभी नियमों और विधियों का पालन करने की आज्ञा हमें क्यों दी?
\v 21 तब तुम उन्हें बताओगे, ‘हमारे पूर्वज मिस्र में राजा के दास थे, परन्तु यहोवा उन्हें अपनी महान शक्ति के द्वारा मिस्र से बाहर निकाल लाए।
\v 22 उन्होंने परमेश्वर को मिस्र के राजा, प्रजा और अधिकारियों पर कई प्रकार के चमत्कार और भयानक कार्य करते देखा।
\v 23 उन्होंने मिस्र से हमारे पूर्वजों को बचाया और उन्हें यह देश देने के लिए यहां लाए, जिसकी उन्होंने हमारे पूर्वजों से ईमानदारी से वादा किया था।
\s5
\v 24 और उन्होंने हमें इन सभी नियमों का पालन करने और उनका सम्मान करने का आदेश दिया, ताकि हमारे साथ अच्छा हो, और ताकि वे हमारे देश की रक्षा करें और हमें समृद्ध होने में सक्षम बनाएँ, जैसा कि वे अब कर रहे हैं।
\v 25 यहोवा हमारे परमेश्वर हमें स्वीकार करेंगे यदि हम सावधानी से वह सब कुछ मानें जो उन्होंने हमें करने का आदेश दिया है।'"
\s5
\c 7
\p
\v 1 “हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें उस देश में ले जाएंगे जहाँ तुम जल्द ही प्रवेश करोगे और उस पर कब्जा करोगे। जब तुम आगे बढ़ोगे, वे उन सात लोगों के समूह को जो तुमसे अधिक शक्तिशाली और गिनती में अधिक हैं, उस देश से बाहर निकालेंगे। ये हित्ती, गिर्गाशी, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी नामक लोगों के समूह हैं।
\s5
\v 2 जब हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें उन्हें पराजित करने में सक्षम बनाते हैं, तब तुमको उन सभी को मारना है। तुमको उनके साथ कोई समझौता नहीं करना है, और तुमको उनके प्रति दया नहीं दिखानी है।
\v 3 तुमको उनमें से किसी से विवाह नहीं करना है। तुमको अपनी बेटियों को उनके बेटों से शादी करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, या अपने बेटों को उनकी बेटियों से शादी करने की भी अनुमति नहीं देनी चाहिए।
\s5
\v 4 यदि तुमने ऐसा किया तो वे लोग तुम्हारे बच्चों को यहोवा की आराधना नहीं करने और अन्य देवताओं की पूजा करने को प्रेरित करेंगे। यदि ऐसा होता है, तो यहोवा तुम से बहुत क्रोधित होंगे और वे तुमको बहुत जल्दी नष्ट कर देंगे।
\v 5 तुमको उन लोगों के साथ यह करना चाहिए: उनकी वेदियों को ढा दो, उनके देवताओं को समर्पित पत्थरों के खम्भों को तोड़ डालो, उनके खंभों को काट डालो जिसका वे देवी अशेरा की पूजा करने के लिए उपयोग करते है, और उनकी खुदी हुई मूर्तियों को जला दो।
\s5
\v 6 तुमको ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि तुम उन लोगों का समूह हो जो केवल हमारे परमेश्वर यहोवा के हो। उन्होंने तुमको अपने लिए विशेष लोगों के रूप में संसार के सभी लोगों के समूहों में से चुना है।
\p
\s5
\v 7 यहोवा ने तुम्हें इसलिए नहीं चुना क्योंकि तुम किसी अन्य लोगों के समूह से संख्या में अधिक थे; तुम पृथ्वी पर सबसे छोटे लोगों के समूहों में से एक हो।
\v 8 इसकी अपेक्षा, ऐसा इसलिए है क्योंकि यहोवा ने तुम सबसे प्रेम किया और क्योंकि वे तुम्हारे पूर्वजों के साथ गंभीरता से की हुई अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करना चाहते थे। यही कारण है कि उन्होंने तुम्हें मिस्र के दासत्व और मिस्र के राजा फ़िरौन से, अपनी महान शक्ति से बचाया।
\s5
\v 9 इसलिए मत भूलना कि यहोवा हमारे परमेश्वर हैं। वे उनके प्रति वफादार हैं; जो उनसे प्रेम करते हैं और जो उनके आदेशों का पालन करते हैं, उन लोगों की एक हजार पीढ़ियों के लिए भी वे अपनी प्रतिज्ञा को बनाए रखते हैं।
\v 10 परन्तु जो उन से घृणा करते हैं, उनसे वे बदला लेते हैं; वे उन्हें दंडित करेंगे और उन्हें जल्दी नष्ट कर देंगे।
\m
\v 11 इसलिए तुमको उन सभी आज्ञाओं और नियमों और विधियों का पालन करना सुनिश्चित करना चाहिए जो मैं आज तुमको दे रहा हूँ।
\s5
\v 12 यदि तुम इन नियमों पर ध्यान देते हो और हमेशा इनका पालन करते हो, तो हमारे परमेश्वर यहोवा वह करेंगे जो करने की उन्होंने शपथ खाई थी, और वे तुमसे ईमानदारी से प्रेम करेंगे, जैसा उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों से करने का ईमानदारी से वादा किया था।
\v 13 वे तुमसे प्रेम करेंगे और तुमको आशीर्वाद देंगे। वे तुमको कई सन्तान देंगे। वे तुम्हारे खेतों को आशीर्वाद देंगे, परिणामस्वरूप तुम्हारे पास बहुत सारा अनाज होगा, दाखमधु बनाने के लिए अंगूर होंगे और बहुत सारा जैतून का तेल होगा। तुम्हारे पास कई मवेशी और भेड़ें होंगी। वे यह सब तुम्हारे लिए उस देश में करेंगे जो उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की थी।
\s5
\v 14 वे तुमको किसी भी अन्य समूहों से अधिक आशीर्वाद देंगे। तुम सभी बच्चे जनने में सक्षम होगे। तुम्हारे सभी पशुओं के भी बहुत बच्चे होंगे।
\v 15 और यहोवा तुम्हें सभी बीमारियों से बचाएंगे। वे तुमको भयानक बीमारियों से भी पीड़ित नहीं करेंगे जैसा हमारे पूर्वजों ने मिस्र में देखा था, लेकिन वे तुम्हारे सभी दुश्मनों को उन बीमारियों से पीड़ित करेंगे।
\s5
\v 16 तुम्हें उन सभी लोगों के समूह को नष्ट करना होगा जिनको हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें जीतने में सक्षम बनाएंगे। उनमें से किसी के प्रति दया का कार्य न करो। उनके देवताओं की पूजा मत करो, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो यह जाल में गिरने जैसा होगा जिससे तुम कभी भी भागने में सक्षम नहीं होगे।
\p
\s5
\v 17 स्वयं ही यह मत सोचो, ‘ये लोग हमारे मुकाबले कहीं अधिक हैं। हम उन्हें कभी बाहर निकालने में सक्षम नहीं होंगे।'
\v 18 उनसे मत डरो। इसकी अपेक्षा, मिस्र के राजा और उन सभी लोगों के साथ हमारे परमेश्वर यहोवा ने जो किया था, उसके विषय में सोचो।
\v 19 उन भयानक विपत्तियों को न भूलो जो उन्होंने मिस्र के लोगों पर भेजी थी जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने देखा और तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाने के लिए परमेश्वर के किए गए विभिन्न प्रकार के चमत्कारों को मत भूलो। यहोवा हमारे परमेश्वर उन लोगों के समूह के साथ भी ऐसा ही करेंगे जिनसे तुम अब डरते हो।
\s5
\v 20 इसके अतिरिक्त, वह उन्हें भयभीत कर देंगे, और शेष जीवित लोगों से और तुमसे छिपने के लिए जो भाग जाएंगे, उन्हें भी नष्ट कर देंगे।
\v 21 उन लोगों से मत डरो, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ रहेंगे। वे महान परमेश्वर है; उन्ही से लोग डरते हैं।
\v 22 वे धीरे-धीरे उन लोगों के समूहों को बाहर निकाल देंगे। तुमको उन सभी को एक ही समय में निकालने का प्रयास नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यदि तुमने ऐसा किया है, तो जंगली जानवरों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी, और तुम उनसे छुटकारा पाने में सक्षम नहीं होंगे।
\s5
\v 23 इसकी अपेक्षा, यहोवा एक-एक करके तुम्हारे दुश्मनों को हराने में सक्षम करेंगे। वे सब घबराएँगे जब तक कि वे नाश नही हो जाते।
\v 24 वे तुमको उनके राजाओं को पराजित करने में सक्षम करेंगे। उन्हें मारने के बाद, उनके नाम भुला दिए जाएंगे। कोई भी समूह तुमको रोकने में सक्षम नहीं होगा; तुम उन सभी को नष्ट कर दोगे।
\s5
\v 25 तुम्हें उनके देवताओं की खुदी हुई मूर्तियों को जला देना हैं। उन मूर्तियों की चांदी या सोने की सजावट को लेने की इच्छा मत करना, क्योंकि यदि तुम उन्हें लेते हो, तो वे तुम्हारे लिए एक जाल के समान होंगे। यहोवा उन मूर्तियों के हर हिस्से से घृणा करते हैं।
\v 26 तुमको उन घृणित मूर्तियों को अपने घरों में नहीं लाना है, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो परमेश्वर तुमको श्राप देंगे जैसे कि वे उन लोगों को श्राप देते हैं। तुमको उन मूर्तियों से घृणा और उसकी निंदा करनी है, क्योंकि उन सब को यहोवा ने श्राप दिया है और वे उन्हें नष्ट करने का वादा करते हैं।"
\s5
\c 8
\p
\v 1 “तुमको उन सभी आज्ञाओं का ईमानदारी से पालन करना चाहिए जो मैं तुम्हें आज दे रहा हूँ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम लंबे समय तक जीवित रहोगे, तुम असंख्य हो जाओगे, और तुम्हारे लोग उस देश पर कब्जा करेंगे जिसे यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों को देने का ईमानदारी से प्रतिज्ञा की थी।
\v 2 और यह मत भूलना कि हमारे परमेश्वर ने पिछले चालीस वर्षों में मरुस्थल के माध्यम से यात्रा के दौरान कैसे हमारा नेतृत्व किया था।उन्होंने तुमको कई समस्याओं में डाला, क्योंकि वे तुमको यह अनुभव कराना चाहते थे कि तुमको स्वयं पर नहीं सिर्फ उन्ही पर भरोसा करने की आवश्यकता है। और उन्होंने तुम्हें परखा क्योंकि वे यह जानना चाहते थे कि तुम क्या करना चाहते हो, क्या तुम उनके आदेशों का पालन करोगे या नहीं।
\s5
\v 3 इसलिए उन्होंने तुमको कठिनाइयों का सामना करवाया। उन्होंने तुमको भूखे रहने की अनुमति दी। फिर उन्होंने तुम्हें मन्ना दिया, स्वर्ग का भोजन जो तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने पहले कभी नहीं खाया था। उन्होंने तुमको यह सिखाने के लिए किया कि लोगों को अपने शरीर के लिए भोजन की आवश्यकता है, लेकिन उन्हें अपनी आत्माओं के लिए भी भोजन की आवश्यकता है, जो यहोवा की हर बातें पर ध्यान देने से मिलता है।
\s5
\v 4 उन चालीस वर्षों के दौरान, हमारे कपड़े पुराने नहीं हुए, और न ही हमारे पैर रेगिस्तान में घूमने से सूजे ।
\v 5 यह मत भूलना कि हमारे परमेश्वर यहोवा हमें सुधारते हैं और हमें दंडित करते हैं, जैसे माता-पिता अपने बच्चों को सुधारते हैं।
\p
\v 6 इसलिए हमारे परमेश्वर यहोवा के आदेशों का पालन करो, और अपने जीवन का संचालन उनकी इच्छा के अनुसार करो और उनका सम्मान करो।
\s5
\v 7 वे तुमको एक अच्छी भूमि में ले जाने वाले हैं, जिसमें पहाड़ी से बहती धाराएं हैं और घाटियों में से झरने निकलते हैं।
\v 8 इस भूमि पर गेहूं और जौ उगते हैं, इस भूमि पर अंजीर के पेड़ और अनार होते हैं, और जैतून के पेड़ और शहद हैं।
\s5
\v 9 यह ऐसी भूमि है जहाँ तुम्हारे लिए बहुत सारा भोजन होगा, जहाँ तुमको कोई भी घटी नहीं होगी, एक ऐसी भूमि जिसकी चट्टानों में कच्चा लोहा है और पहाड़ियों से कच्चा तांबा खोद सकते हो।
\v 10 हर दिन तुम तब तक खाओगे, जब तक तुम्हारा पेट भर नहीं जाएगा और तुम हमारे परमेश्वर यहोवा का इस उपजाऊ भूमि के लिए धन्यवाद करोगे जो उन्होंने तुम्हें दी है।
\p
\s5
\v 11 परन्तु जब ऐसा होता है, तो सुनिश्चित करो कि आज मैं तुमको परमेश्वर के जो आदेश और नियम और विधियाँ दे रहा हूँ उनका उल्लंघन करके अपने परमेश्वर यहोवा को न भूलना।
\v 12 तुम्हारा पेट हर दिन भरा होगा, और तुम अच्छे घर बनाओगे और उनमें रहोगे। लेकिन तुम यहोवा के आदेशों को भूल सकते हो।
\s5
\v 13 निश्चय ही, जब तुम्हारे मवेशियों और भेड़ों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि होगी, और जब तुमने बड़ी मात्रा में चांदी और सोने को एकत्र किया होगा, और तुम्हारी सभी अन्य संपत्तियों की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि होगी,
\v 14 तब यह सुनिश्चित करना कि तुम गर्व न करो और हमारे परमेश्वर यहोवा को भूल न जाओ, जिन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र में दास होने से बचाया और उन्हें वहाँ से निकाल लाए।
\s5
\v 15 यह मत भूलना कि जब उन्होंने उस विशाल और भयानक रेगिस्तान से यात्रा की, जहाँ जहरीले सांप और बिच्छू थे, तब उन्होंने उन लोगों का नेतृत्व किया था। और यह न भूलना कि जहाँ भूमि बहुत सूखी थी और पानी नहीं था, वहाँ उन्होंने मजबूत चट्टान से पानी निकाल दिया था।
\v 16 यह मत भूलना कि उस रेगिस्तान में उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को मन्ना खाने के लिए दिया, ऐसा भोजन जो उन्होंने कभी नहीं खाया था। उन्होंने उन्हें वह इसलिए दिया, क्योंकि वे उन्हें यह अनुभव कराना चाहते थे कि उन लोगों को स्वयं पर नहीं उन पर भरोसा करने की आवश्यकता है। वे उन्हें जांचना भी चाहते थे कि वे क्या कर सकते हैं, कि जब वे कठिनाइयां समाप्त हो जाए, तो उनके लिए सब अच्छा करें।
\v 17 तुम अपने आप में कभी यह न सोचना, ‘मैंने इन सभी चीजों को अपनी शक्ति और क्षमता से प्राप्त किया है।’
\s5
\v 18 मत भूलना कि ये हमारे परमेश्वर यहोवा हैं जिन्होंने तुम्हें धनवान बनने में सक्षम बनाया है। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे ईमानदारी से उसे पूरा करते हैं जो करने का उन्होंने हमारे पूर्वजों से ईमानदारी से वादा किया था।
\p
\v 19 मैं तुमको गंभीरता से चेतावनी देता हूँ कि यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा को भूल कर और अन्य देवताओं के पास जाते हो और उन्हें दण्डवत करना शुरू करते हो और उनकी पूजा करते हो, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुमको नष्ट कर देंगे।
\v 20 यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं करते हो, तो वे निश्चित रूप से तुमको नष्ट कर देंगे जैसे वे लोगों के उन समूहों को नष्ट कर देते हैं जिनसे तुम लड़ते हो।
\s5
\c 9
\p
\v 1 हे इस्राएल के लोगों, मेरी बातें सुनो! तुम जल्द ही यरदन नदी पार करोगे। जिस भूमि में तुम प्रवेश करोगे, वहाँ ऐसे बड़े शहर हैं जिनके चारों ओर बहुत ऊँची दीवारें हैं जिन्हें देखकर लगता है कि वे आकाश तक पहुँचती हैं। उस देश में ऐसे लोगों के समूह हैं जो तुमसे संख्या में अधिक हैं और तुमसे अधिक शक्तिशाली भी हैं।
\v 2 वे लोग बहुत लंबे और मजबूत हैं। उनमें से कुछ विशालकाय हैं जो अनाक के वंशज हैं। तुम उनके विषय में जानते हो, और तुमने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि कोई भी अनाक के वंशजों को पराजित नहीं कर सकता।
\s5
\v 3 मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे आगे आगे जाएंगे। वह एक ज्वलन्त आग के समान होंगे। जब तुम आगे बढ़ोगे, तो वे उन्हें पराजित करेंगे और नष्ट कर देंगे। परिणामस्वरूप , तुम शीघ्र ही उनमें से कुछ को बाहर निकालने और दूसरों को मारने में सक्षम होंगे, जैसा यहोवा ने वादा किया था कि तुम करोगे।
\p
\s5
\v 4 हमारे परमेश्वर यहोवा के उन्हें तुम्हारे लिए निष्कासित करने के बाद, तुम अपने आप से यह मत कहना, ‘क्योंकि हम धर्मी हैं इसलिए यहोवा ने हमें इस देश को पकड़ने में सक्षम बनाया है।’ सच्चाई यह है, क्योंकि उस देश के लोग दुष्ट हैं इसलिए यहोवा उन्हें बाहर निकाल देंगे, जब तुम आगे बढ़ोगे।
\s5
\v 5 मैं फिर से कहता हूँ कि तुम उस भूमि में प्रवेश करके उस पर कब्जा इसलिए नहीं करोगे क्योंकि तुम अपने भीतर से धर्मी हो या तुम धर्म के काम करते हो। क्योंकि वे लोग बहुत दुष्ट हैं इसलिए हमारे परमेश्वर यहोवा उन्हें बाहर निकाल देंगे, जब तुम आगे बढ़ोगे, और क्योंकि वे अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने की इच्छा रखते हैं जो उन्होंने तुम्हारे पूर्वज अब्राहम, इसहाक और याकूब से गंभीरता से किया था।
\s5
\v 6 मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको यह अच्छी भूमि इसलिए नहीं दे रहे हैं क्योंकि तुम धर्मी हो। मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि तुम धर्मी नहीं हो; तुम बहुत हठीले लोग हो।"
\p
\s5
\v 7 “कभी न भूलो कि तुम्हारे पूर्वजों ने रेगिस्तान में क्या किया था, हमारे परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया था। जिस दिन से हम ने मिस्र छोड़ा, उस दिन से जब तक हम यहां पहुंचे, तब तक तुमने उनके विरुद्ध लगातार विद्रोह किया।
\v 8 यहां तक कि सीनै पर्वत पर भी तुम्हारे पूर्वजों ने यहोवा को क्रोधित किया। क्योंकि वे बहुत क्रोधित थे, वे उन सभी से छुटकारा पाने के लिए तैयार थे।
\s5
\v 9 जब मैं पहाड़ पर उन पत्थर की पट्टियों को जिस पर उन्होंने दस आज्ञाएं लिखी थीं लेने के लिए चढ़ गया, मैं वहाँ चालीस दिन और रात रुका, और उस समय मैंने कुछ भी नहीं खाया और ना पीया।
\v 10 यहोवा ने मुझे पत्थर की दो पट्टियाँ दीं जिन पर उन्होंने अपनी उंगलियों से आज्ञाएं लिखी थीं। वे वही शब्द थे जिसमे यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से उस पर्वत पर आग में से बातें की थी, जब वे पहाड़ के तल पर एकत्र हुए थे।
\p
\s5
\v 11 उन चालीस दिन और रात के अंत में, यहोवा ने मुझे पत्थर की दो पट्टियाँ दीं जिन पर उन्होंने उन आज्ञाओं को लिखा था।
\v 12 परन्तु परमेश्वर ने मुझ से कहा, ‘पहाड़ पर से तुरंत नीचे जाओ, क्योंकि जिन लोगों की तुम अगुवाई कर रहे हो, जिन लोगों को तुम मिस्र से निकाल लाए थे, उन्होंने एक भयंकर पाप किया है! उन्होंने बहुत जल्दी वही किया है जो मैंने उन्हें ना करने का आदेश दिया है। उन्होंने आराधना करने के लिए अपने लिए एक बछड़े की मूर्ति ढालकर बना ली है।'
\p
\s5
\v 13 तब यहोवा ने मुझ से कहा, ‘मैं इन लोगों को देख रहा हूँ, और मैं देखता हूँ कि वे बहुत हठीले हैं।
\v 14 इसलिए मुझे रोकने का प्रयास मत करो। मैं उन सभी को नष्ट करने जा रहा हूँ, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी उनके नाम याद नहीं रखेगा। तब मैं तुमको ऐसे देश का पूर्वज बनाऊँगा जो उनसे असंख्य और अधिक शक्तिशाली होगा।'
\p
\s5
\v 15 तब मैं मुड़ा और अपने हाथों में पत्थर की दो पट्टियाँ लेकर जिन पर दस आज्ञाएं लिखी गईं, पहाड़ से नीचे चला गया। आग पूरे पहाड़ पर जल रही थी।
\v 16 मैंने देखा, और मैं यह देखकर चौंक गया कि तुम्हारे पूर्वजों ने यहोवा के विरुद्ध एक बड़ा पाप किया है। उन्होंने बहुत जल्द ही ऐसा काम करना शुरू कर दिया जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने उन्हें न करने का आदेश दिया था। उन्होंने हारून से विनती की थी कि आराधना करने के लिए एक बछड़े की मूर्ति ढालकर बनाएं।
\s5
\v 17 तब जब वे देख रहे थे, तो मैंने उन पत्थर की उन दो पट्टियों को उठा लिया और उन्हें भूमि पर फेंक दिया, और वे टुकड़ों में टूट गईं।
\p
\v 18 तब मैंने यहोवा की उपस्थिति में भूमि पर मुँह के बल गिर पड़ा जैसा मैंने पहले भी किया था, और मैंने चालीस दिन और रात तक कुछ नहीं खाया और ना पीया। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया था और उन्हें बहुत क्रोधित किया था।
\s5
\v 19 मुझे डर था कि यहोवा उन से बहुत क्रोधित थे, इसलिए वे उन सभी से छुटकारा पाएंगे। लेकिन फिर मैंने प्रार्थना की कि वे ऐसा नहीं करें, और फिर उन्होंने मेरी बातें सुनी और मेरी प्रार्थना का उत्तर दिया।
\v 20 यहोवा उस सुनहरे बछड़े को बनाने के कारण हारून से बहुत क्रोधित थे और उसे मारने के लिए तैयार थे। लेकिन उस समय मैंने हारून के लिए भी प्रार्थना की, और यहोवा ने मेरी प्रार्थना का उत्तर दिया।
\s5
\v 21 तुम्हारे पूर्वजों ने हारून से बछड़े की मूर्ति ढालकर बनाने का अनुरोध किया था। तो मैंने उस मूर्ति को लिया और मैंने उसे आग में पिघला दिया और उसे पीसकर बहुत छोटे टुकड़े बना दिये। तब मैंने पहाड़ के नीचे बहने वाली धारा में उन छोटे टुकड़ों को फेंक दिया।
\p
\s5
\v 22 तुम्हारे पूर्वजों ने यहोवा को उन जगहों पर बहुत क्रोधित किया, जिन्हें उन्होंने तबेरा, मस्सा और किब्रोतहत्तावा नाम दिया था।
\p
\v 23 और जब हम कादेशबर्ने में थे, तब यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से कहा, ‘जाओ और उस देश पर कब्ज़ा करो जिसे मैं तुम्हें देने वाला हूँ! लेकिन उन लोगों ने उनके विरुद्ध विद्रोह किया। उन्होंने उन पर भरोसा नहीं किया, और यहोवा ने जो कुछ करने के लिए कहा उन्होंने उसका पालन नहीं किया।
\v 24 तुम्हारे पूर्वजों ने मिस्र में, जिस दिन से मैं उन्हें जानता था, उसी दिन से यहोवा के विरूद्ध विद्रोह किया, और तुम अपने पूर्वजों के समान ही हो।
\p
\s5
\v 25 इसलिए, जैसा मैंने कहा, मैं यहोवा की उपस्थिति में चालीस दिन और रात तक भूमि पर पड़ा रहा, क्योंकि यहोवा ने कहा था कि वे तुम्हारे पूर्वजों को नष्ट कर देंगे।
\v 26 और मैंने यहोवा से प्रार्थना की, हे प्रभु यहोवा, ये लोग आपके हैं; उन्हें नष्ट मत करें। ये वही लोग हैं जिन्हें आपने बचाया और मिस्र से अपनी महान शक्ति से बाहर निकाला है।
\s5
\v 27 जो कुछ आपने अब्राहम, इसहाक और याकूब से वादा किया था, उसे मत भूलें। ये लोग कितने हठीला और दुष्ट हैं और उन्होंने जो पाप किया है, इस बातें को अनदेखा करें।
\v 28 यदि आप ऐसा नहीं करेंगे, और यदि आप उन्हें नष्ट कर देते हैं, तो मिस्र के लोग इसके विषय में सुनेंगे और कहेंगे कि आप उन्हें उस देश में ले जाने में सक्षम नहीं थे जिसे आपने उन्हें देने की प्रतिज्ञा की थी। वे कहेंगे कि आप उन्हें केवल मारने के लिए रेगिस्तान में ले गए क्योंकि आपने उनसे घृणा की थी।
\v 29 यह मत भूलना कि वे आपके लोग हैं। आपने उन्हें अपने लिए चुना है। आप उन्हें अपनी महान शक्ति से मिस्र से बाहर लाए।'"
\s5
\c 10
\p
\v 1 “तब यहोवा ने मुझ से कहा, ‘पहले पत्थरों के समान दो पत्थर की पट्टियाँ काट लो। और उन्हें रखने के लिए लकड़ी का एक सन्दूक बनाओ। फिर उन पट्टियों को इस पर्वत पर मेरे पास ऊपर ले आओ।
\v 2 मैं उन पट्टियों पर वही शब्द लिखूंगा जो मैंने पहली पट्टियों पर लिखे थे, जिन्हें तुमने तोड़ दिया। फिर तुम उन्हें सन्दूक में रख सकते हो।'
\p
\s5
\v 3 इसलिए मैंने सन्दूक बनाया। मैंने इसे बनाने के लिए बबूल के पेड़ की लकड़ी का उपयोग किया। तब मैंने पत्थर की दो पट्टियों को पहले के समान काट लिया, और मैं पट्टियों को लेकर पहाड़ पर चढ़ गया।
\v 4 वहाँ यहोवा ने पट्टियों पर उन्हीं दस आज्ञाओं को लिखा जो उन्होंने पहले पट्टियों पर लिखी थीं। वे वही आज्ञायें थी, जो यहोवा ने पर्वत पर आग के बीच से तुम्हारे पूर्वजों को बतायी थी, जब वे पहाड़ के तल पर इकट्ठे हुए थे। तब यहोवा ने मुझे पटियां दीं।
\s5
\v 5 पट्टियों को लेकर, मैं मुड़ गया और पहाड़ से नीचे चला गया। फिर, जैसा उन्होंने आदेश दिया था, मैंने उन्हें उस सन्दूक में रखा जिसे मैंने बनाया था। और वे अभी भी वहाँ हैं।"
\p
\s5
\v 6 (फिर, याकन के लोगों के कुएं से, इस्राएली लोग मोसेरा गए थे। वहाँ हारून की मृत्यु हो गई और उसे वहाँ दफनाया गया, और उसके पुत्र एलीआजर ने उसका स्थान लिया और महायाजक बन गया।
\v 7 वहाँ से, इस्राएलियों ने गुदगोदा की ओर यात्रा की, और वहाँ से योतबाता तक गए, जहाँ कई धाराएं थीं।
\s5
\v 8 उस समय, यहोवा ने लेवी के गोत्र को उस सन्दूक को ले जाने के लिए, जिस में दस आज्ञाएं लिखी हुई पट्टियाँ थीं, और पवित्र तम्बू में यहोवा की उपस्थिति में खड़े होकर बलिदान चढ़ाने और यहोवा से लोगों को आशीर्वाद देने के लिये प्रार्थना करने के लिए चुना। वे अभी भी ऐसा ही कर रहे हैं।
\v 9 यही कारण है कि लेवी के गोत्र को अन्य गोत्रों के समान कोई भूमि नहीं मिली। उन्हें जो मिला वह यहोवा के याजक होने का सम्मान था, जो यहोवा ने कहा था कि उन्हें करना चाहिए।)
\p
\s5
\v 10 मूसा ने बातें करना जारी रखा: “मैं चालीस दिन और रात पहाड़ पर रहा, जैसा मैंने पहली बार किया था। मैंने यहोवा से प्रार्थना की, और उन्होंने मेरी प्रार्थनाओं का फिर से उत्तर दिया और कहा कि वह तुम्हारे पूर्वजों को नष्ट नहीं करेंगे।
\v 11 तब यहोवा ने मुझ से कहा, ‘लोगों के आगे चलकर, अपनी यात्रा जारी रखो, उस देश पर कब्जा करने के लिए जिसने मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने का ईमानदारी से वादा किया था।’"
\p
\s5
\v 12 “अब, हे इस्राएली लोगों, मैं तुमको बताऊंगा कि हमारे परमेश्वर यहोवा क्या कहते हैं कि तुम्हें करना चाहिए। वे चाहते हैं कि तुम उनकी महिमा करो, उनकी इच्छा के अनुसार अपने जीवन का संचालन करो, उनसे प्रेम करो, और अपनी पूरी इच्छा और अपनी सभी भावनाओं के साथ उनकी सेवा करो,
\v 13 और उनकी सभी आज्ञाओं का पालन करो जो आज मैं तुमको दे रहा हूँ, ताकि वे तुम्हारी सहायता करें।
\p
\s5
\v 14 यह मत भूलना कि हमारे परमेश्वर यहोवा आकाश और सबकुछ जो उसमें है, उनके मालिक हैं। वे धरती और उस पर जो कुछ उसमें है उनके भी मालिक हैं।
\v 15 यद्यपि वे उन सभी चीजों के मालिक हैं, फिर भी यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से प्रेम किया; धरती पर के सभी लोगों के समूह में से उन्होंने हमें और हमारे वंशजों को चुना, और हम अभी भी उनके लोग हैं।
\s5
\v 16 इसलिए तुमको अपने भीतरी मनुष्यत्व को बदलना चाहिए और हठीला होना बंद करना चाहिए।
\v 17 यहोवा हमारे परमेश्वर सभी देवताओं से बड़े हैं, और वे सभी शासकों से बड़े हैं। वे दूसरों की तुलना में बहुत शक्तिशाली हैं, और वे रिश्वत स्वीकार नहीं करते हैं।
\s5
\v 18 वे सुनिश्चित करते हैं कि अनाथ और विधवाओं के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाए। वे उन विदेशी लोगों से भी प्रेम करते हैं जो हम इस्राएलियों के बीच रहते हैं, और वे उन्हें भोजन और कपड़े देते हैं।
\v 19 इसलिए तुमको उन विदेशियों से भी प्रेम करना चाहिए, क्योंकि जब तुम मिस्र में रहते थे तब तुम भी विदेशी थे।
\s5
\v 20 सुनिश्चित करो कि तुम अपने परमेश्वर यहोवा का आदर करो और केवल उनकी आराधना करो। उनके प्रति वफादार रहो, और कहो कि यदि तुम अपने वादो को पूरा नहीँ करते हो, तो वे तुमको दंडित करें।
\v 21 वे ही हैं जिनकी तुमको प्रशंसा करनी चाहिए। वे हमारे परमेश्वर है, और हमने उन महान और भयानक कार्यों को देखा है जो उन्होंने हमारे लिए किए हैं।
\s5
\v 22 जब हमारे पूर्वज, याकूब और उसका परिवार मिस्र गए, तो वे केवल सत्तर ही थे। परन्तु अब हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें आकाश के तारों के समान असंख्य बना दिया है। “
\s5
\c 11
\p
\v 1 “जो कुछ तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे लिए किया है, उसके कारण तुमको उनसे प्रेम रखना है और उनके सभी नियमों और विधियों और आज्ञाओं का पालन करना है।
\s5
\v 2 उन्होंने तुम्हारे बच्चों को नहीं, तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दंडित किया,क्योंकि तुमने उनकी अवज्ञा की थी, तुमको सिखाने और प्रशिक्षित करने के लिए उन्होंने तुम्हें कई कठिनाइयों में डाला। इसलिए आज से लेकर, उनकी सजा, उनकी महान शक्ति और उनकी बड़ी ताकत के विषय में सोचना जारी रखें, जिससे उन्होंने तुमसे वह करवाया जो वे तुमसे करवाना चाहते थे।
\v 3 मिस्र में उनके द्वारा किए गए कई अलग-अलग चमत्कारों को याद रखो, चमत्कार जो यह दिखाते हैं कि वे कितने शक्तिशाली और महान हैं। मिस्र के राजा और उसने जिस देश पर शासन किया, उसके साथ यहोवा ने जो किया, उसके विषय में सोचो।
\s5
\v 4 तुम्हारे बच्चों ने मिस्र की सेना, या उनके घोड़ों और उनके रथों को यहोवा की शक्ति से नष्ट होते नहीं देखा। तुम्हारे बच्चों ने यह नहीं देखा कि कैसे यहोवा ने लाल समुद्र में बाढ़ ला कर मिस्र की सेना को डुबो दिया जब वे उनके पूर्वजों के पीछे आ रहे थे। तुम्हारे बच्चे यह नहीं समझ पाए कि यहोवा आज भी मिस्र की सेना को कमजोर बना रहे हैं।
\v 5 तुम्हारे बच्चों को यह नहीं पता कि यहोवा इस स्थान पर आने से पहले रेगिस्तान में उनके पूर्वजों की कैसे देखभाल करते थे।
\s5
\v 6 याद करो कि रूबेन के गोत्र से एलियाब के दो पुत्र दातान और अबीराम के साथ परमेश्वर ने क्या किया। तुम्हारे सभी पूर्वज देख रहे थे, पृथ्वी खुल गई, और वे अपने परिवारों और अपने तंबू, नौकरों और पशुओं के साथ गड्ढ़े में गायब हो गए।
\v 7 तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने इन सभी चमत्कारों को देखा है जो यहोवा ने किये थे।
\p
\s5
\v 8 इसलिए, उन सभी आज्ञाओं का पालन करो जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, ताकि तुम दृढ़ हो सको और नदी पार करने में सक्षम हो सको और उस भूमि पर कब्जा कर सको जिसमें तुम प्रवेश करने वाले हो,
\v 9 और इस देश में तुम लंबे समय तक जीवित रहो, एक ऐसी उपजाऊ भूमि जिसे यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से ईमानदारी से वादा किया था कि वह उन्हें और उनके वंशजों को देंगे।
\s5
\v 10 जिस देश में तुम प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो, वह मिस्र देश के समान नहीं है, जहाँ तुम्हारे पूर्वज रहते थे। मिस्र में, बीज लगाए जाने के बाद, बढ़ने वाले पौधों को पानी देने के लिए कड़ा परिश्रम करना आवश्यक था।
\v 11 लेकिन जिस भूमि में तुम प्रवेश करने वाले हैं वह एक ऐसी भूमि है जहाँ कई पहाड़ियाँ और घाटियाँ हैं, जहाँ बहुत बारिश होती है।
\v 12 यहोवा उस देश की चिंता करते हैं। वह प्रत्येक वर्ष की शुरुआत से प्रत्येक वर्ष के अंत तक, हर दिन उसका ख्याल रखते हैं।
\p
\s5
\v 13 आज मैं तुम्हें अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करने और अपने पूरे भीतरी मनुष्यत्व से उनकी सेवा करने का आदेश दे रहा हूँ। यदि तुम यह करते हो,
\v 14 तो प्रत्येक वर्ष वे सही समय पर तुम्हारी भूमि पर बारिश भेजेंगे। परिणामस्वरूप , तुम्हारे पास अनाज, और दाखमधु बनाने के लिए अंगूर और तेल बनाने के लिए जैतून होंगे।
\v 15 वे तुम्हारे पशुओं के खाने के लिए घास उगाएँगे। तुम्हारे पास उतना भोजन होगा जितना तुम चाहते हो।
\p
\s5
\v 16 परन्तु मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ, हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना करना बंद न करना; और अन्य देवताओं की पूजा करना शुरू मत करना,
\v 17 क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो यहोवा तुम से बहुत क्रोधित हो जाएंगे। वे बारिश को रोक देंगे। परिणामस्वरूप , फसलें नहीं बढ़ेगी, और तुम जल्द ही उस अच्छी भूमि में भूख से मर जाओगे जो यहोवा तुम्हें देने वाले हैं।
\s5
\v 18 इसलिए, यहोवा ने जो आज्ञा दी है, उसके विषय में सोचते रहो। इन शब्दों को छोटी पत्रियों पर लिखो और उन्हें अपनी बाहों में बांधो, और उन्हें उन पट्टियों पर लिखो जिन्हें तुम अपने माथे पर बांधते हो ताकि तुम्हें वह याद रखने में सहायक हों।
\v 19 यह सब बार-बार अपने बच्चों को सिखाओ। उनके विषय में हर समय बातें करो: जब तुम अपने घरों में हों और जब तुम बाहर चल रहे हों; जब तुम लेटे हुए हों और जब तुम काम कर रहे हों, तो उनके विषय में बातें करो।
\s5
\v 20 उन्हें अपने शहरों के फाटकों और अपने शहरों के द्वारों पर लिखो।
\v 21 ऐसा करो कि तुम और तुम्हारे बच्चे उस देश में लंबे समय तक जीवित रहें जिसे यहोवा ने हमारे पूर्वजों को देने का वादा किया था। धरती से ऊपर जब तक आकाश होगा तब तक वह भूमि तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों की होगी।
\p
\s5
\v 22 ईमानदारी से जो कुछ मैं करने के लिए तुमको आज्ञा देता हूँ, उसका पालन करना जारी रखो- हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उनकी इच्छा के अनुसार अपने जीवन का संचालन करो, और उनके प्रति वफादार रहो।
\v 23 यदि तुम ऐसा करते हो, तो यहोवा उस देश के सभी समूहों को बाहर निकाल देंगे, जब तुम आगे बढ़ते हो, ऐसे लोगों का समूह जो तुमसे अधिक शक्तिशाली और गिनती में अधिक हैं।
\s5
\v 24 उस देश की जिस भूमि पर तुम चलोगे वह तुम्हारा होगा। तुम्हारा क्षेत्र दक्षिण में रेगिस्तान से लेकर उत्तर में लेबनान पहाड़ों तक और पूर्व में फरात नदी से लेकर पश्चिम में भूमध्य सागर तक फैला होगा।
\v 25 यहोवा हमारे परमेश्वर उस देश के सभी लोगों को तुमसे बहुत डराएंगे, जिसका उन्होंने वादा किया था, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी समूह तुमको रोकने में सक्षम नहीं होगा।
\p
\s5
\v 26 ध्यान से सुनो: आज मैं तुमको बता रहा हूँ कि यहोवा तुम्हें आशीर्वाद देंगे या वे तुम्हें अभिशाप देंगे।
\v 27 यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा के आदेशों का पालन करते हो, जो मैं आज तुमको दे रहा हूँ तो वे तुम्हें आशीर्वाद देंगे।
\v 28 परन्तु यदि तुम उनका पालन नहीं करते हो, और यदि तुम उनकी आराधना करना बंद कर देते हो और अन्य देवताओं की पूजा करना शुरू करते हो, जिनके प्रति तुम पहले कभी विश्वसनीय नहीं थे, तो वे तुम्हें अभिशाप देंगे।
\s5
\v 29 और जब यहोवा तुम्हें उस देश में लाएंगे जिसमें तुम प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो, तो तुम में से कुछ लोगों को गिरिज्जीम पर्वत के शीर्ष पर खड़ा होना है और यह घोषणा करनी चाहिए कि क्या करने से यहोवा तुमको आशीर्वाद देंगे, और दूसरों को एबाल पर्वत के शीर्ष पर खड़ा होना चाहिए और घोषणा करनी चाहिए कि क्या करने से यहोवा तुमको अभिशाप देंगे।"
\v 30 (ये दो पर्वत यरदन नदी के पश्चिम में हैं, जो यरदन के तट के मैदान के पश्चिम में हैं, जहाँ कनानी लोग रहते हैं। वे गिलगाल के पास पवित्र पेड़ों के निकट रहते हैं।)
\s5
\v 31 “तुम जल्द ही उस देश पर कब्जा करने के लिए यरदन नदी को पार करोगे जिसे यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें दे रहे हैं। जब तुम उस देश में प्रवेश करते हो और वहाँ रहना शुरू करते हो,
\v 32 तब उन सभी नियमों और विधियों का पालन करना सुनिश्चित करो जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूं।"
\s5
\c 12
\p
\v 1 “अब मैं तुमको नियम और आज्ञा देता हूँ जिनका तुमको उस देश में ईमानदारी से पालन करना चाहिए जो यहोवा, जिस परमेश्वर की हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी, वह तुमको कब्जा करने के लिए दे रहे हैं। तुमको हर समय जब तक तुम जीवित हो, इन नियमों का पालन करना चाहिए।
\v 2 जब तुम उन लोगों के समूह को निकाल दोगे, जिनकी भूमि तुम लेने जा रहे हो, तो तुमको उन सभी स्थानों को नष्ट कर देना है जैसे कि उन स्थानों को जो पहाड़ों और पहाड़ियों के शीर्ष पर और बड़े पेड़ के पास में, जहाँ उन्होंने अपने देवताओं की पूजा की।
\s5
\v 3 तुमको उनकी वेदियों को ढा देना है और उनके खंभे तोड़ डालने हैं। उनकी देवी अशेरा की मूर्तियों को जला डालो और उनके देवताओं की खुदी हुई मूर्तियों को काट डालो, ताकि कोई भी उन स्थानों पर कभी उनकी पूजा न करे।
\p
\v 4 कनान के लोग जैसे अपने देवताओं की पूजा करते है, उसी प्रकार यहोवा की आराधना न करना।
\s5
\v 5 इसकी अपेक्षा, तुमको उस स्थान पर जाना होगा जिसे यहोवा चुनेंगे। यह उस क्षेत्र में होगा जहाँ तुम्हारे गोत्रों में से एक रहेगा। वही तुमको यहोवा की उपस्थिति में रहकर उनकी आराधना करनी चाहिए।
\v 6 उसी स्थान पर तुमको अपने बलिदान लाने चाहिए जिन्हें याजक पूरी तरह से वेदी पर जलाएंगे, और तुम्हारे अन्य बलिदानों को जो तुम स्वयं मेरे लिए लाओगे, तुम्हारे दशमांश, अन्य भेंट जो तुम मुझे देने का वादा करते हो, तुम्हारे मवेशी और भेड़ों के ज्येष्ठ जानवर, या किसी अन्य प्रकार की भेंट।
\s5
\v 7 वहां, हमारे परमेश्वर यहोवा की उपस्थिति में, तुम और तुम्हारे परिवार अच्छी चीजें खाएंगे जिनका उत्पादन करने के लिए तुमने परिश्रम किया है, और तुम प्रसन्न होगे, क्योंकि यहोवा ने तुमको बहुत आशीर्वाद दिया है।
\p
\s5
\v 8 जब तुम उस देश में हो, तो तुमको कुछ काम नहीं करने चाहिए जो हम कर रहे हैं। अब तक, तुम सभी यहोवा की आराधना अपनी इच्छा के अनुसार कर रहे हो,
\v 9 क्योंकि तुम अभी तक उस देश में नहीं पहुंचे हो जिसमें वह तुमको स्थायी रूप से रहने की अनुमति देंगे, जहाँ तुम शांतिपूर्वक रह सकोगे।
\s5
\v 10 परन्तु जब तुम यरदन नदी पार करते हो, तब तुम उस देश में रहना शुरू करोगे जिसे यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें दे रहे हैं। वे तुमको तुम्हारे आस-पास के सभी दुश्मनों से बचाएंगे, और तुम शान्ति से रहोगे।
\p
\v 11 यहोवा एक स्थान का चयन करेंगे जहाँ वे चाहते हैं कि तुम उनकी आराधना करो। यही वह स्थान है जहाँ तुम्हें सभी भेंटों को लाना होगा जिन्हें लाने के लिए मैं तुम्हें कहता हूं: याजक बलिदानों को पूरी तरह से वेदी पर जलाएंगे, तुम्हारे अन्य बलिदान, अन्य भेंट जिन्हें तुम स्वयं प्रस्तुत करने का निर्णय लेते हो, तुम्हारे दशमांश और सभी विशेष भेंट जो तुम परमेश्वर को देने की प्रतिज्ञा करोगे।
\s5
\v 12 यहोवा के सामने, अपने बच्चों, अपने दास-दासियों, और लेवी के वंशज के साथ जो तुम्हारे नगरों में रहते हैं, वहाँ आनंद मनाना। यह मत भूलना कि तुम्हारी तरह लेवी के वंशजों की अपनी भूमि नहीं होगी।
\s5
\v 13 सुनिश्चित करो कि तुम पूरी तरह जलाए जाने वाले जानवरों को बलिदान के रूप में कहीं भी बलि नहीं करोगे।
\v 14 तुमको ये बलिदान केवल उन जगहों पर चढ़ाने चाहिए जो यहोवा तुम्हारे लिए चुनते हैं, जो जगह तुम्हारे गोत्रों में से एक का होगा। यही वह जगह है जहाँ वे चाहते हैं कि तुम बलि चढ़ाओ जिसे याजक पूरी तरह से वेदी पर जलाएं, और अन्य कार्य जो उनकी आराधना करने के लिए तुम्हें करने हैं, जिसकी मैं तुमको आज्ञा देता हूँ।
\p
\s5
\v 15 हालांकि, परमेश्वर तुमको जहाँ तुम रहते हो, वहाँ तुम्हारे पशुओं को मारकर उनका मांस खाने की अनुमति देंगे। जितनी बार तुम चाहो, तुम जानवरों के मांस को खा सकते हो जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें देकर आशीर्वाद देंगे। जो उस समय शुद्ध या अशुद्ध हैं, वे सभी मांस खा सकते हैं, जैसे तुम हिरण या चिकारे का मांस खाते हो।
\v 16 लेकिन तुमको किसी भी जानवर का खून नहीं खाना चाहिए; मांस के पकाए जाने से पहले खून को भूमि पर बहा देना चाहिए।
\s5
\v 17 जिन स्थानों पर तुम रहते हो, वहाँ तुम्हें उन चीज़ों को नहीं खाना चाहिए जिन्हें तुम यहोवा को चढ़ा रहे हो: तुमको अपने अनाज या दाखमधु, या जैतून का तेल, या अपने पशुओं और भेड़ों के ज्येष्ठ पुत्रों का दसवां भाग या जो भेंट तुम स्वयं यहोवा के लिए प्रस्तुत करने का निर्णय लेते हो, या किसी अन्य भेंट को नहीं खाना चाहिए।
\s5
\v 18 इसकी अपेक्षा, तुम और तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे दास-दासियाँ और लेवी के वंशज जो तुम्हारे नगरों में रहते हैं, उन्हें उन चीज़ों को यहोवा के उस स्थान पर खाना चाहिए, जिसे वह चुनते हैं। और तुमने जो कुछ भी किया, उसके विषय में तुमको आनन्दित होना चाहिए।
\v 19 सुनिश्चित करो कि तुम अपनी भूमि में रहते समय लेवी के सभी वंशजों का ख्याल रखोगे।
\p
\s5
\v 20 हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको पहले से अधिक भूमि देंगे, और जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है, और जब तुम कहते हो, ‘मैं कुछ मांस खाना चाहता हूँ, तो तुमको जब चाहो तब मांस खाने की अनुमति है।
\s5
\v 21 यदि वह स्थान जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा ने अपनी आराधना के लिए चुना है, जहाँ तुम रहते हो, वहाँ से दूर है तो तुम्हें अपने कुछ मवेशियों या भेड़ों को मारने की अनुमति है, जिन्हें तुमने यहोवा को दिया है, और तुम इसे उस शहर में खा सकते हो, जहाँ तुम रहते हो, जैसा कि मैंने तुमको करने के लिए कहा है।
\v 22 जो उस समय शुद्ध या अशुद्ध हैं, वे मांस खा सकते हैं, जैसे तुम हिरण या चिकारे का मांस खाते हो।
\s5
\v 23 लेकिन सुनिश्चित करना कि तुम किसी भी जानवर का खून न खाओ, क्योंकि खून ही जीवित प्राणियों के जीवन को बनाए रखता है। तुमको मांस के साथ प्राण नहीं खाना चाहिए।
\v 24 खून मत खाओ; इसकी अपेक्षा, इसे भूमि पर बहा डालो।
\v 25 यदि तुम इस आज्ञा का पालन करते हो और जो कुछ भी यहोवा कहते हैं कि वह करना तुम्हारे लिए सही है, तो यह तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए अच्छा होगा।
\p
\s5
\v 26 परन्तु जो भेंट यहोवा ने तुम्हें उनके लिए अलग रखने के लिए कहा है, और जो अन्य भेंट तुम स्वयं देने का निर्णय करते हो, तुमको उस स्थान पर ले जाना चाहिए जिसे वे चुनेगें।
\v 27 वहाँ याजक उन भेंटों को यहोवा की वेदी पर जला देगा। वह जानवरों को मार डालेगा, खून को बहा देगा, और उसे वेदी के किनारों पर फेंक देगा। तुम उस मांस में से कुछ खा सकते हो।
\s5
\v 28 उन सभी चीजों का विश्वासपूर्वक पालन करना जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है। यदि तुम ऐसा करते हो, तो यह तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए हमेशा अच्छा होगा, क्योंकि तुम वही करोगे जो हमारे परमेश्वर यहोवा कहते हैं कि वह करना तुम्हारे लिए सही होगा और जो बातें उन्हें प्रसन्न करती हैं।
\p
\s5
\v 29 जब तुम आगे बढ़कर उस देश में प्रवेश करोगे और उस पर कब्जा करोगे, तो हमारे परमेश्वर यहोवा वहाँ रहने वाले लोगों के समूहों को नष्ट कर देंगे।
\v 30 यहोवा के ऐसा करने के बाद, सुनिश्चित करना कि तुम उन देवताओं की पूजा न करो जिनकी वहाँ के लोग पूजा करते हैं, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो यह एक जाल के समान होगा जो तुमको फंसा लेगा। उन देवताओं के विषय में किसी से मत पूछना, ‘मुझे बताओ कि उन्होंने अपने देवताओं की पूजा कैसे की, ताकि मैं उसी तरह यहोवा की उपासना कर सकूं।’
\s5
\v 31 जैसे उन्होंने अपने देवताओं की पूजा की है, वैसे हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना करने का प्रयास न करना, क्योंकि जब वे उनकी पूजा करते हैं, तो वैसे घृणित काम करते हैं, जिन से यहोवा घृणा करते हैं। सबसे बुरा जो वे करते हैं वह यह है कि वे अपने बच्चों की बलि देते हैं और उन्हें उनकी वेदियों पर जलाते हैं।
\p
\v 32 सुनिश्चित करना कि जो कुछ मैंने तुमको करने का आदेश दिया है, वह सब करो। इन आदेशों में कुछ भी न जोड़ना, और उनसे कुछ भी न घटाना।
\s5
\c 13
\p
\v 1 संभवतः तुम में से ऐसे लोग होंगे जो कहेंगे कि वे भविष्यद्वक्ता हैं। वे कह सकते हैं कि वे स्वप्नों के अर्थ की व्याख्या करने या विभिन्न प्रकार के चमत्कार करने में सक्षम हैं।
\v 2 वे ये बातें इसलिए कहेंगे कि तुम्हें उन देवताओं की पूजा करने के लिए प्रेरित करें जिन्हें तुमने पहले कभी नहीं जाना था। लेकिन यदि उनकी भविष्यवाणी सच हो भी जाए,
\v 3 तब जो वे कहते हैं उस पर ध्यान न देना। हमारे परमेश्वर यहोवा यह जानने के लिए तुम्हारी परीक्षा कर रहे होंगे कि क्या तुम उन्हें अपने पूरे भीतरी मनुष्यत्व से प्रेम करते हो या नहीं।
\s5
\v 4 तुम्हें अपने जीवन का संचालन यहोवा की इच्छा के अनुसार करना चाहिए, और तुमको उनका सम्मान करना चाहिए, जो कुछ भी यहोवा तुमको करने के लिए कहते हैं उसे करना चाहिए, और उन पर भरोसा रखना चाहिए।
\p
\v 5 परन्तु तुम्हें ऐसे व्यक्ति को मार डालना चाहिए जो झूठ बोलता है कि वह एक भविष्यद्वक्ता है, या कोई जो झूठ बोलता है कि वह स्वप्नों की व्याख्या कर सकता है, या जो तुमको हमारे परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध विद्रोह करने के लिए कहता है, जिन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र में दास होने से बचाया था। इस तरह के लोग केवल तुमको यहोवा के आदेशों के अनुसार जीवन जीने से रोकना चाहते हैं। अपने बीच की इस बुराई से छुटकारा पाने के लिए उन्हें मार डालो।
\s5
\v 6 इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा भाई या तुम्हारी बेटी या तुम्हारी पत्नी या कोई करीबी दोस्त चुपके से तुमको फुसलाने लगे और कहे, ‘हम अन्य देवताओं की पूजा करें, ऐसे देवता जिन्हें न तो तुम और न ही तुम्हारे पूर्वजों ने कभी जाना हैं।’
\v 7 उनमें से कुछ तुमको उन देवताओं की पूजा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं जिनकी तुम्हारे आस-पास रहने वाले लोग या तुमसे दूर रहने वाले लोग पूजा करते हैं।
\s5
\v 8 वे जो भी सुझाव देते हैं वह मत करो। उन्हें सुनो भी मत। उनके प्रति दया के कार्य न करो, और उन्होंने जो किया है, उसे गुप्त न रखो।
\v 9 उन्हें मार डालो! तुम उन्हें मारने के लिए पत्थर फेंकने वाले पहले व्यक्ति होंगे; फिर शेष लोगों को भी उन्हें पत्थरों से मारना चाहिए।
\s5
\v 10 ऐसे लोगों को पत्थरों से मार डालो, क्योंकि उन्होंने तुम्हें हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना करने से रोकने का प्रयास की हैं, जिन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र में दास होने से बचाया था।
\v 11 जब उन्हें मार डाला जाता है, तो सभी इस्राएली लोग सुनेंगे कि क्या हुआ, और वे डर जाएंगे, और उनमें से कोई भी ऐसी बुरी बातें फिर से नहीं करेगा।
\p
\s5
\v 12 जब तुम उस देश के उन नगरों में से एक में रह रहे हो, जो यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें दे रहे हैं, तो तुम सुन सकते हो
\v 13 कि तुम्हारे बीच के कुछ बेकार लोग अपने नगर के लोगों को यह कहकर धोखा दे रहे हैं, ‘चलो चलें और अन्य देवताओं की पूजा करें।’
\v 14 इसके विषय में पूरी तरह से जांच करो। मान लो कि तुम्हें पता चलता है कि यह सच है कि ऐसी अपमानजनक बातें हुई है।
\s5
\v 15 तब उस नगर के सभी लोगों को मार डालो। और उनके सभी पशुओं को भी मार डालो। उस नगर को पूरी तरह से नष्ट करो।
\v 16 उनकी सभी संपत्तियों को एकत्र करो जो वहाँ रहने वाले लोगों की थी और नगर के चौक में ढेर लगाओ। तब उस नगर और जो कुछ उसमें है, उसे जलाओ, जैसे कि यह यहोवा को चढ़ाया गया बलिदान है जो वेदी पर पूरी तरह जला दिया गया था। हमेशा के लिए वहाँ खंडहर रहना चाहिए; उस नगर का कभी पुनर्निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।
\s5
\v 17 तुम्हें अपने लिए ऐसी कोई भी वस्तु नहीं लेनी चाहिए जिसे यहोवा ने कहा है, कि वह नष्ट की जानी चाहिए, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, जैसा मैं कहता हूँ, तो यहोवा तुम से क्रोधित होना बंद करेंगे, और वे तुम्हारे प्रति दया के कार्य करेंगे। वे तुमको कई संतान देंगे, जैसा उन्होंने हमारे पूर्वजों से वादा किया था कि वे करेंगे।
\v 18 यहोवा हमारे परमेश्वर वे सभी काम करेंगे यदि तुम जो कुछ भी उन्होंने तुम्हें करने के लिए कहा था, उसे करोगे और यदि तुम उन सभी आज्ञाओं का पालन करोगे जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ और वही करो जो कुछ यहोवा कहते हैं वह करना तुम्हारे लिए सही है।
\s5
\c 14
\p
\v 1 हम वही लोग हैं जो हमारे परमेश्वर यहोवा के हैं। जब लोग मर जाते हैं, तो अपना दुःख दिखाने के लिए अपने शरीर को मत चीरो या अपने सिर के बाल न मुँडाओ, जैसे अन्य लोग करते हैं।
\v 2 हम केवल यहोवा के हैं। यहोवा ने हमें विशेष लोगों के रूप में धरती पर के सभी अन्य लोगों के समूहों में से चुना है।
\p
\s5
\v 3 यहोवा जिन चीजों से घृणा करते हैं, उन्हें न खाएं।
\v 4 जिन जानवरों के मांस को तुम्हें खाने की अनुमति है वे मवेशी, भेड़, बकरियां,
\v 5 सभी प्रकार के हिरण, चिकारा, जंगली बकरियां, और पहाड़ी भेड़।
\s5
\v 6 ये वह जानवर हैं जिनके खुर चीरे हुए हैं और वे पागुर करते हैं।
\v 7 परन्तु ऐसे अन्य जानवर भी हैं जो पागुर करते हैं, पर जिन्हें तुम्हें नहीं खाना चाहिए। ऊंट, खरगोश, और चट्टानी शापान । वे पागुर करते हैं, लेकिन उनके खुर चीरे हुए नहीं होते। इसलिए वे खाने के लिए स्वीकार्य नहीं हैं।
\s5
\v 8 सूअर को न खाना। वे खाने के लिए अस्वीकार्य हैं; उनके खुर चीरे हुए हैं, लेकिन वे पागुर नहीं करते हैं। ऐसे जानवरों के मांस मत खाओ; उनके मृत शरीर को भी मत छूना।
\s5
\v 9 तुमको किसी भी मछली को खाने की अनुमति है, जिनके छिलके और पंख हैं।
\v 10 परन्तु जो पानी में रहते हैं जिनके छिलके और पंख नहीं होते हैं, उनको नहीं खाना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारे लिए अस्वीकार्य है।
\p
\s5
\v 11 तुम्हें किसी भी पक्षी का मांस खाने की अनुमति है जो यहोवा को स्वीकार्य है।
\v 12 लेकिन उकाब, गिद्ध, कुरर,
\v 13 गरूड़, और सभी प्रकार के चील को तुम नहीं खा सकते हो।
\s5
\v 14 तुमको सभी प्रकार के कौवे और जंगली काग को खाने की अनुमति नहीं है,
\v 15 शुतुरमुर्ग, और रात का तहमास, जलकुक्कट, किसी प्रकार के बाज,
\v 16 छोटे उल्लू, बड़े उल्लू, सफेद उल्लू,
\v 17 धनेश, गिद्ध जो मृत जानवरों को खाते हैं, और हाड़गील।
\s5
\v 18 प्रत्येक सारस, किसी भी प्रकार का बगुला, हुदहुद और चमगादड़ को खाने की अनुमति नहीं है।
\p
\v 19 सभी कीड़े जिनके पंख है और रेंगनेवाले है, वे यहोवा के लिए अस्वीकार्य हैं; उन्हें मत खाओ।
\v 20 लेकिन पंख वाले अन्य कीड़े खाने के लिए स्वीकार्य हैं।
\p
\s5
\v 21 स्वाभाविक रूप से जो जानवर मर गया हो, उसे न खाना। तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशियों को उन चीजों को खाने की अनुमति दे सकते हो, या तुम उन्हें अन्य विदेशियों को बेच सकते हो। परन्तु तुम हमारे परमेश्वर यहोवा के हो; जो उनके हैं, उन्हें ऐसे जानवरों का मांस खाने की अनुमति नहीं है जिनके खून को बहाया नहीं गया है।
\p तुमको एक जवान भेड़ या बकरी को उनकी मां के दूध में नहीं पकाना चाहिए। “
\p
\s5
\v 22 “प्रत्येक वर्ष तुमको अपने खेतों में होने वाली सभी फसलों का दसवां भाग अलग करना होगा।
\v 23 उन्हें उस स्थान पर ले जाओ जिसे यहोवा हमारे परमेश्वर अपनी आराधना के लिए चुनेंगे। वहाँ तुमको अपने अनाज, अपना दाखमधु, अपने जैतून का तेल, और अपने पशुओं और भेड़ों के पह्लौठे नर जानवरों का मांस खाना चाहिए। ऐसा करना ताकि तुम हमेशा यहोवा का सम्मान करना सीख सको, जिसने तुमको इन चीजों को देकर आशीर्वाद दिया है।
\s5
\v 24 यदि वह स्थान जिसे यहोवा ने अपनी आराधना के लिए चुना है, वह तुम्हारे घर से बहुत दूर है, जिसके परिणामस्वरूप तुम वहाँ अपनी फसलों का दसवां भाग नहीं ले जा सकते हो जिसके साथ यहोवा ने तुम्हें आशीर्वाद दिया है, तो ऐसा करना:
\v 25 अपनी फसलों के दसवें हिस्से को बेच दो, धन को कपड़े में सावधानी से लपेटो, और इसे यहोवा के चुने हुए आराधना के स्थान पर ले जाओ।
\s5
\v 26 वहां, उस पैसे के साथ, तुम जो कुछ भी चाहते हो वह खरीद सकते हो- गाय-बैल का मांस या भेड़ का बच्चा या दाखमधु या मदिरा। और वहां, यहोवा की उपस्थिति में, तुम और तुम्हारे परिवारों को उन वस्तुओं को खाना और पीना चाहिए और आनंद मनाना चाहिए।
\v 27 परन्तु अपने नगरों में रहने वाले लेवी के वंशजों की सहायता करने की उपेक्षा न करें, क्योंकि वे किसी भी भूमि के मालिक नहीं होंगे।
\p
\s5
\v 28 हर तीन वर्षों के अंत में, उस वर्ष की उपज की सभी फसलों का दसवां भाग लाओ और इसे अपने नगरों में संग्रहित करो।
\v 29 वह भोजन लेवी के वंशजों के लिए होगा, क्योंकि उनके पास अपनी भूमि नहीं होगी, और वह भोजन तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी लोगों के लिए, और अनाथों और विधवाओं के लिए होगा जो तुम्हारे नगरों में रहते हैं। उन्हें खाने के लिए, जहाँ खाना संग्रहीत किया जाता है, वहाँ से जितना चाहिए लेने की अनुमति है। ऐसा ही करो कि हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको जो कुछ भी तुम करते हो, उसमें आशीर्वाद दें।
\s5
\c 15
\p
\v 1 प्रत्येक सात वर्षों के अंत में, तुमको सभी ऋण रद्द करना होगा।
\v 2 इसे ऐसा करें: तुम में से प्रत्येक व्यक्ति जिसने एक साथी इस्राएली को पैसा उधार दिया है, उसे उस ऋण को रद्द करना होगा। तुमको जोर नहीं देना चाहिए कि वह इसे वापस भुगतान करे। तुमको ऐसा करना चाहिए क्योंकि यहोवा ने घोषणा की है कि हर सात साल में ऋण रद्द कर दिया जाना चाहिए।
\v 3 उस वर्ष के दौरान तुम उन विदेशी लोगों से जो तुम्हारे बीच रहते हैं, ऋण का भुगतान करने की मांग कर सकते हो, लेकिन तुमको किसी भी साथी इस्राएली से इसकी मांग नहीं करनी चाहिए।
\s5
\v 4-5 यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें उस देश में आशीर्वाद देंगे जो वे तुमको दे रहे हैं। यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा मानते हो और जो आज्ञा मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, उसका पालन करते हो, तो तुम्हारे बीच कोई भी गरीब नहीं होगा।
\v 6 यहोवा हमारे परमेश्वर तुमको आशीर्वाद देंगे जैसा उन्होंने करने का वादा किया है, और तुम अन्य लोगों के समूहों के लिए धन उधार देने में सक्षम होगे, लेकिन तुमको उनमें से किसी से उधार लेने की आवश्यकता नहीं होगी। तुम कई समूहों की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करोगे, लेकिन वे तुम्हारी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित नहीं करेंगे।
\p
\s5
\v 7 उन नगरों में जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं, यदि कोई इस्राएली गरीब है, तो स्वार्थी न होना और उनकी सहायता करने से मना न करना।
\v 8 इसकी अपेक्षा, उदार होकर उन्हें वह धन उधार दो जो उन्हें चाहिए।
\s5
\v 9 सुनिश्चित करो कि तुम अपने आप से यह न कहो, ‘जिस वर्ष में ऋण रद्द कर दिया जाएगा वह निकट है, इसलिए मैं अब किसी को भी कोई धन उधार नहीं देना चाहता, क्योंकि उस वर्ष के आने पर उसे वापस भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।' ऐसा सोचना बुरा होगा। यदि तुम एक ज़रूरतमंद इस्राएली के साथ असभ्य तरीके से कार्य करते हो, और उसे कुछ भी नहीं देते हो, तो वह तुम्हारे विरुद्ध यहोवा के समक्ष रोएगा, और यहोवा कहेंगे कि तुमने उस व्यक्ति की सहायता न करके पाप किया है।
\v 10 गरीब लोगों को स्वतंत्र रूप से दें और उदारता से दें। यदि तुम ऐसा करते हो, तो यहोवा तुमको तुम्हारे हर काम में आशीर्वाद देंगे।
\s5
\v 11 हमेशा तुम्हारे देश में कुछ गरीब लोग होंगे, इसलिए मैं तुमको अपने साथी इस्राएलियों को उदारता से देने का आदेश देता हूँ।
\p
\s5
\v 12 यदि तुम्हारे कोई भी साथी इस्राएली पुरुष या स्त्री स्वयं को दास होने के लिए तुम में से एक के पास बेचता है, तो उन्हें छह साल तक तुम्हारे लिए काम करने के बाद सातवें वर्ष में तुमको मुक्त करना होगा।
\v 13 जब तुम उन्हें मुक्त करते हो, तो उन्हें खाली हाथ जाने की अनुमति न दो।
\v 14 इसकी अपेक्षा, उन चीजों में से उन्हें उदारता से दो जिनसे यहोवा ने तुम्हें आशीर्वाद दिया है अर्थात् भेड़, अनाज और दाखमधु।
\s5
\v 15 यह मत भूलना कि तुम्हारे पूर्वज एक समय मिस्र में दास थे और हमारे परमेश्वर यहोवा ने उन्हें मुक्त किया था। यही कारण है कि अब मैं तुमको ऐसा करने का आदेश दे रहा हूं।
\p
\v 16 लेकिन तुम्हारे दासों में से एक कह सकता है, ‘मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहता।’ शायद वह तुम से और तुम्हारे परिवार से प्रेम करता है क्योंकि तुमने उसके साथ व्यवहार किया है।
\v 17 यदि वह ऐसा कहता है, तो उसे अपने घर के दरवाजे पर ले जाओ, और जब वह द्वार के सामने खड़ा हो, तो उसके कानों में से एक को किवाड़ पर लगाकर छेदना। यह इस बात का संकेत होगा कि वह अपने बाकी के जीवन के लिए तुम्हारा दास होगा। दासी के साथ भी ऐसा ही करो जो तुमको छोड़ना नहीं चाहती है।
\p
\s5
\v 18 जब तुमको अपने दासों को मुक्त करने की आवश्यकता होती है, तब शिकायत न करो। ध्यान रखो कि उन्होंने छह साल तक तुम्हारी सेवा की है, और तुमने उन्हें केवल आधा वेतन दिया जो तुम किराए के कर्मचारियों को देते हो। यदि तुम उन्हें मुक्त करते हो, तो हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे हर काम में आशीर्वाद देंगे।
\p
\s5
\v 19 हमारे परमेश्वर यहोवा के सम्मान के लिए अपने पशुओं और भेड़ों के पह्लौठे बच्चों को अलग करो। उन्हें अपने लिए कोई काम करने के लिए बाध्य न करो, और न पह्लौठे भेड़ों के ऊन कतरना।
\v 20 तुम्हें और तुम्हारे परिवार को उन्हें मार कर उस स्थान पर जिसे यहोवा ने अपनी आराधना के लिए चुना है, यहोवा की उपस्थिति में उनका मांस खाना चाहिए।
\v 21 परन्तु यदि उन जानवरों में कोई दोष है, यदि वे लंगड़े या अंधे हैं, या यदि उनमें कोई अन्य गंभीर दोष है, तो तुमको उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलिदान नहीं करना चाहिए।
\s5
\v 22 तुम अपने नगरों में उन जानवरों को मारकर उनके मांस को खा सकते हो। जिन लोगों ने ऐसे काम किये हैं जो उन्हें परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य बनाता हैं और जिन्होंने ऐसे काम नहीं किये हैं उन दोनों को यह मांस खाने की अनुमति है, जैसे कि किसी चिकारे या हिरण का मांस खाने की अनुमति है।
\v 23 लेकिन तुमको बिलकुल भी खून नहीं खाना चाहिए; जब तुम उन जानवरों को मार देते हो तो उनके सारे खून को भूमि पर बहा देना होगा।
\s5
\c 16
\p
\v 1 प्रत्येक वर्ष वसंत ऋतु में अबीब के महीने में फसह का पर्व मनाकर हमारे परमेश्वर यहोवा का सम्मान करें। उस महीने की एक रात यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बचा लिया था।
\v 2 उस पर्व को मनाने के लिए, उस स्थान पर जाएं जिसे यहोवा अपनी आराधना करने के लिए चुनते हैं, और वहाँ अपने पशुओं या भेड़ों में से एक जवान पशु को फसह के बलिदान के लिए चढ़ाएँ।
\s5
\v 3 जब तुम फसह का भोजन खाते हो, तो उस रोटी में खमीर नहीं होना चाहिए। तुमको सात दिनों तक इस तरह की रोटी खानी चाहिए, जिसे पीड़ा की रोटी कहा जाएगा। यह तुम सब को अपने जीवनकाल में यह याद रखने में सहायता करेगा कि तुम्हारे पूर्वजों ने मिस्र छोड़ा था, जहाँ वे पीड़ित थे क्योंकि वे वहाँ दास थे, वे वहाँ से बहुत जल्दी निकले थे। उनके पास आटे में खमीर डालने का समय नहीं था और न आटे के फूलने की प्रतीक्षा करने का समय था।
\v 4 उस त्यौहार में, जो सात दिनों तक चलेगा, तुम्हारी भूमि के किसी भी घर में कोई खमीर नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, फसह के त्यौहार के पहले दिन की शाम को जिस जानवर को तुम बलि करते हो उसका मांस उसी रात खाया जाना चाहिए; इसे अगले दिन तक बचा कर न रखना।
\p
\s5
\v 5-6 हमारे परमेश्वर यहोवा का सम्मान करने के लिए, तुमको केवल उस स्थान पर फसह के बलिदान अर्पण करना चाहिए जिसे वे अपनी आराधना करने के लिए चुनते हैं; जो देश यहोवा तुम्हें दे रहे हैं, उसके किसी अन्य नगर में उस बलिदान को अर्पण न करो। सूर्यास्त के समय उस बलिदान को अर्पण करो, उसी समय जब तुम्हारे पूर्वजों ने मिस्र छोड़ना आरंभ किया था।
\s5
\v 7 मांस को उबालें और आराधना के स्थान पर उसे खायें, जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा चुनते हैं। अगली सुबह, तुम अपने तंबू में वापस जा सकते हो।
\v 8 प्रत्येक छः दिनों तक, जिस रोटी को तुम खाते हो, उसमें कोई खमीर नहीं होना चाहिए। सातवें दिन, तुम सभी को हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना करने के लिए एकत्र होना चाहिए। यह विश्राम का दिन होगा, तुमको उस दिन कोई काम नहीं करना चाहिए।
\p
\s5
\v 9 प्रत्येक वर्ष, जिस दिन से तुम अपने अनाज की कटाई शुरू करते हो, उस दिन से सात सप्ताह गिनो।
\v 10 फिर, हमारे परमेश्वर यहोवा का सम्मान करने के लिए, पिन्तेकुस्त का त्यौहार मनाओ। इस त्यौहार को मनाने के लिए परमेश्वर के लिए अनाज की भेंट लेकर आओ। यहोवा ने उस वर्ष के दौरान तुम्हारे खेतों में अनाज बढ़ाकर तुम्हें आशीर्वाद दिया है। यदि तुम्हारे पास बड़ी फसल थी, तो बड़ी भेंट लाओ। यदि तुम्हारे पास छोटी फसल थी, तो छोटी भेंट लाओ।
\s5
\v 11 प्रत्येक विवाहित जोड़े को यहोवा की उपस्थिति में आनंद मनाना चाहिए। उनके बच्चों को, उनके दासों को, लेवी के वंशज को जो उस नगर में रहते हैं, और विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को जो तुम्हारे बीच में रहते हैं, सभी को आनंद मनाना चाहिए। उन भेंटों को आराधना के स्थान पर लाओ जिसे यहोवा चुनेंगे।
\p
\v 12 जब तुम इन आदेशों का पालन करके इन त्योहारों को मनाते हो, तो याद रखना कि तुम्हारे पूर्वज मिस्र में दास थे।
\p
\s5
\v 13 प्रत्येक वर्ष, अपने सारे अनाज को इक्कठा करने के बाद और अपने सभी अंगूरों से रस निकालने के बाद, तुमको सात दिनों तक झोपड़ियों का त्यौहार मनाना चाहिए।
\v 14 प्रत्येक विवाहित जोड़े को अपने बच्चों, कर्मचारियों, लेवी के वंशज जो उस नगर में रहते हैं, और विदेशी, अनाथ और विधवा जो तुम्हारे बीच में रहते हैं, सभी के साथ यहोवा की उपस्थिति में आनंद मनाना चाहिए।
\s5
\v 15 इस त्यौहार को उस स्थान पर जिसे यहोवा अपनी आराधना के लिए चुनते हैं, सात दिनों तक मनाकर अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करो। तुम सभी को आनंद मनाना चाहिए, क्योंकि यहोवा ने तुम्हारी फसल को और तुम्हारे द्वारा किए गए सभी अन्य कामों पर आशीर्वाद दिया है।
\p
\s5
\v 16 इसलिए, हर साल तुम सभी इस्राएली पुरुषों को तीन त्योहारों को मनाने के लिए, अपने परमेश्वर यहोवा के द्वारा चुने हुए स्थान पर उनकी उपासना करने के लिए एकत्र होना चाहिए: अख़मीरी रोटी का त्यौहार, पिन्तेकुस्त का त्यौहार, और झोपड़ियों का त्यौहार। बिना किसी भेंट के किसी व्यक्ति को यहोवा के सामने नहीं आना चाहिए। तुम में से प्रत्येक को इन त्यौहारों के लिए यहोवा के लिए भेंट लानी चाहिए।
\v 17 भेंट उन आशीषों के अनुपात में होनी चाहिए जिन्हें यहोवा ने तुम्हें उस वर्ष दी थी।
\p
\s5
\v 18 उस देश के सभी नगरों में, जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं, अपने गोत्रों में न्यायाधीशों और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करो। उन्हें लोगों का न्याय धार्मिकता से करना चाहिए।
\v 19 उन्हें अन्याय का पक्ष नहीं लेना चाहिए। उन्हें एक व्यक्ति की तुलना में दूसरे व्यक्ति का पक्ष नहीं लेना चाहिए। न्यायाधीशों को रिश्वत स्वीकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि कोई न्यायाधीश रिश्वत स्वीकार करता है, भले ही वह बुद्धिमान और ईमानदार हो, फिर भी उसके लिए उचित रूप से न्याय करना बहुत कठिन होगा; वह वही करेगा जो वह व्यक्ति चाहता है जिसने रिश्वत दी है, और निर्दोष लोगों को दंडित करने की घोषणा करेगा।
\v 20 तुम्हें पूरी तरह से उचित और न्यायसंगत होना चाहिए, ताकि तुम उस देश पर कब्जा करने के लिए पर्याप्त समय तक जीवित रह सको जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं।
\p
\s5
\v 21 जब तुम हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना करने के लिए एक वेदी बनाते हो, तो उसको किसी लकड़ी के खम्भे के आसपास में न बनाना जो देवी अशेरा का प्रतिनिधित्व करता है।
\v 22 और किसी मूर्ति की पूजा करने के लिए किसी पत्थर के खंभे को स्थापित न करना, क्योंकि यहोवा उनसे घृणा करते हैं।
\s5
\c 17
\p
\v 1 हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए उस मवेशी या भेड़ या बकरी की बलि न करो, जिसमें दोष हो, क्योंकि यहोवा उस प्रकार की भेंट से घृणा करते हैं।
\p
\s5
\v 2 जब तुम उस देश के किसी नगर में रह रहे हो जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं, मान लो कि कुछ पुरुष या स्त्री यहोवा ने जो तुम्हारे साथ प्रतिज्ञा की है उसका उल्लंघन करके पाप करते हैं।
\v 3 मान लो कि उस व्यक्ति ने झुककर अन्य देवताओं या सूर्य, या चंद्रमा, या तारों की पूजा की है।
\v 4 यदि कोई तुमको बताता है कि कोई व्यक्ति ऐसा कर रहा है, तो तुमको यह जानने के लिए पूरी तरह से जांच करनी चाहिए कि क्या यह घृणित काम इस्राएल में हुआ है।
\s5
\v 5 यदि ऐसा हुआ है, तो तुमको उस स्त्री या पुरुष को नगर के बाहर ले जाना चाहिए। तब तुम्हें उस व्यक्ति को पत्थर मारकर मार डालना चाहिए।
\v 6 लेकिन तुमको ऐसे लोगों को निष्पादित करने की अनुमति केवल तभी है यदि कम से कम दो गवाहों ने गवाही दी हो कि उन्होंने उन्हें ऐसा काम करते देखा है। यदि केवल एक गवाह है तो उन्हें निष्पादित नहीं किया जाना चाहिए।
\v 7 गवाहों को दोषी व्यक्ति पर पहले पत्थर मारना चाहिए। तब अन्य लोगों को पत्थर मारना चाहिए, जब तक कि व्यक्ति मर जाए। ऐसा करके, तुम अपने बीच के इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे।
\p
\s5
\v 8 कभी-कभी न्यायाधीश के लिए यह तय करना बहुत कठिन हो सकता है कि वास्तव में क्या हुआ। वह यह तय करने का प्रयास कर रहा होगा कि, जब किसी ने किसी अन्य व्यक्ति को घायल किया या मार डाला, तो उस व्यक्ति ने इसे गलती से किया या जानबूझ कर किया। या वह यह तय करने का प्रयास कर रहा होगा कि कोई व्यक्ति अदालत में किसी अन्य व्यक्ति को अन्याय से ले जा रहा है या नहीं। यदि किसी भी नगर में यह जानना बहुत कठिन है कि वास्तव में क्या हुआ, और यदि न्यायाधीश यह निर्णय नहीं कर सकता है, तो तुमको उस स्थान पर जाना चाहिए जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा ने अपनी आराधना के लिए चुना है।
\v 9 वहाँ तुम्हें लेवी के वंशजों को जो याजक है, और उस न्यायी के समक्ष जो उस समय सेवा कर रहा है, यह मामला प्रस्तुत करना चाहिए, और उन्हें यह तय करना चाहिए कि क्या किया जाना है।
\s5
\v 10 उनके निर्णय लेने के बाद, तुमको वह करना चाहिए जो वे तुमको करने के लिए कहते हैं।
\v 11 उनके निर्णय को स्वीकार करो, और जो वे तुम्हें करने को कहते हैं वह करो। किसी भी तरह से उनके निर्णय में कुछ बदलने का प्रयास न करो।
\s5
\v 12 तुमको ऐसे व्यक्ति को मार डालना होगा जो यहोवा की उपस्थिति में खड़े होकर निर्णय लेने वाले न्यायाधीश या याजक की गर्व से अवज्ञा करता है। ऐसा करके, तुम अपने बीच के इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे।
\v 13 तब उस व्यक्ति को मार डालने के बाद, सभी लोग इसके विषय में सुनेंगे, और डरेंगे, और कोई भी फिर इस तरह के कार्य नहीं करेगा।
\p
\s5
\v 14 मुझे पता है कि जो देश हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें दे रहे हैं, उस पर कब्जा करने के बाद, और तुम वहाँ रहते हुए कहोगे, ‘हम पर राज करने के लिए एक राजा होना चाहिए, जैसे हमारे चारों ओर अन्य राष्ट्रों के राजा हैं।'
\v 15 यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें राजा नियुक्त करने की अनुमति देंगे, लेकिन यह सुनिश्चित करना कि तुम उसे नियुक्त करो जिसे यहोवा ने चुना है। वह पुरुष इस्राएली होना चाहिए; तुमको किसी विदेशी को अपना राजा नियुक्ति नहीं करनी है।
\s5
\v 16 राजा बनने के बाद, उसे बड़ी संख्या में घोड़ों को हासिल नहीं करना है। उसे घोड़ों को खरीदने के लिए लोगों को मिस्र नहीं भेजना चाहिए, क्योंकि यहोवा ने तुम से कहा था, ‘किसी भी चीज़ के लिए मिस्र वापस न जाना!
\v 17 उसके पास बहुत सी पत्नियां नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यदि उसने ऐसा किया, तो वे उसे यहोवा की उपासना करने से दूर कर देंगी। उसे बहुत सारी चांदी और सोना एकत्र नहीं करना चाहिए।
\p
\s5
\v 18 जब वह तुम्हारा राजा बन जाएगा, तो उसे इन नियमों की प्रतिलिपि बनाने के लिए किसी को नियुक्त करना होगा। उसे इन नियमों को लेवी वंशी याजकों द्वारा रखी गयी पत्रियों से प्रतिलिपि करनी होगी।
\v 19 उसे इस नयी पत्री को अपने पास रखनी चाहिए और जीवन के हर दिन इसे पढ़ना चाहिए, कि वह यहोवा का अधिक सम्मान करना सीखे और इस व्यवस्था में लिखे गए सभी नियमों और विधियों का ईमानदारी से पालन करे।
\s5
\v 20 यदि वह ऐसा करता है, तो वह यह नहीं सोचे कि वह अपने साथी इस्राएलियों से अधिक महत्वपूर्ण है, और वह पूरी तरह से यहोवा के आदेशों का पालन करेगा। परिणामस्वरूप , वह और उसके वंशज कई वर्षों तक इस्राएल में राजाओं के रूप में शासन करेंगे।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 “याजक, जो लेवी के गोत्र में से हैं, उन्हें इस्राएल में कोई भूमि नहीं मिलेगी। इसकी अपेक्षा, उन्हें कुछ खाना मिलेगा जो लोग वेदी पर जलाए जाने के लिए यहोवा को चढ़ाएंगे और कुछ अन्य बलिदान जो यहोवा को चढ़ाए जाएंगे।
\v 2 उन्हें अन्य गोत्रों के समान कोई भी भूमि नहीं दी जाएगी। उन्हें जो कुछ मिलेगा वह यहोवा के याजक होने का सम्मान है, जो परमेश्वर ने कहा था कि उनको मिलेगा।
\p
\s5
\v 3 जब लोग बलि चढ़ाने के लिए बैल या भेड़ लाते हैं, तो उन्हें याजकों को उन जानवरों के कंधे, गाल और पेट का भाग देना होगा।
\v 4 तुमको उन्हें फसल की कटनी के अनाज का पहला भाग भी देना चाहिए, और तुम्हारे द्वारा बनाए गए दाखमधु का पहला भाग, और तुम्हारे द्वारा बनाए गए जैतून के तेल का पहला भाग, और ऊन का पहला भाग जो तुम अपने भेड़ों से कतरते हो।
\v 5 तुम्हें ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे सभी गोत्रों से लेवी के गोत्र को चुना है, ताकि उस गोत्र के लोग हमेशा उनकी सेवा करने वाले याजक होंगे।
\p
\s5
\v 6 यदि लेवी के गोत्र में से कोई भी व्यक्ति जो इस्राएल के नगरों में से एक में रह रहा है, वहाँ से यहोवा के द्वारा चुने हुए आराधना के स्थान पर आना चाहता है, कि वहाँ रहना शुरू करे,
\v 7 उसे वहाँ याजक के रूप में यहोवा की सेवा करने की अनुमति है, लेवी के गोत्र के अन्य लोगों के समान जो वहाँ पर सेवा कर रहे हैं।
\v 8 उसे उसी मात्रा में भोजन देना चाहिए जो अन्य याजक प्राप्त करते हैं। उसे वह पैसे रखने की अनुमति है जो उसके रिश्तेदारों को अपनी कुछ संपत्ति बेचने से प्राप्त हुए हैं।
\p
\s5
\v 9 जब तुम उस देश में प्रवेश करते हो जिसे यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें दे रहे हैं, तो तुमको उन घृणित कार्यों का अनुकरण नहीं करना चाहिए जो वहाँ रहनेवाले लोग अब करते हैं।
\v 10 तुमको अपने किसी भी बच्चे को अपनी वेदियों पर जलाकर बलिदान नहीं करना चाहिए। भविष्य में क्या होगा, यह जानने के लिए अलौकिक शक्ति का उपयोग करने का प्रयास न करें। भविष्य में क्या होगा, यह जानने के लिए जादू का उपयोग करने का प्रयास न करें। भविष्य में क्या होगा, यह जानने के लिए चिन्हों की व्याख्या न करें। तांत्रिक विद्या का अभ्यास न करें। लोगों पर तंत्र-मंत्र न करें।
\v 11 मृत लोगों की आत्माओं से बातें करने का प्रयास न करें। जादू न करें।
\s5
\v 12 यहोवा उन लोगों से घृणा करते हैं जो उन घृणित कार्यों में से कोई एक भी करते हैं। और जैसे तुम उस भूमि से होकर आगे बढ़ते हो, तो वह उन लोगों के समूह को बाहर निकालेंगे क्योंकि वे ऐसे घृणित काम करते हैं।
\v 13 परन्तु तुम्हें हमेशा यहोवा के प्रति वफादार रहना चाहिए और ऐसे घृणित कामों को करने से बचना चाहिए।
\p
\v 14 जिन समूहों को तुम उस भूमि से निष्कासित करने वाले हो, जिन पर तुम कब्जा करोगे, वे भावी कहनेवालों से परामर्श करने वाले लोग है। परन्तु हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको ऐसा करने की अनुमति नहीं देते हैं।
\s5
\v 15 किसी दिन परमेश्वर तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यद्वक्ता भेज देंगे। वह तुमको बताएगा कि भविष्य में क्या होगा, और तुमको उसका पालन करना चाहिए।
\v 16 जिस दिन तुम्हारे पूर्वजों को सीनै पर्वत के तल पर एकत्र किया गया था, उन्होंने मुझसे विनती की, ‘हम नहीं चाहते कि यहोवा हमसे पुनः बातें करे, और हम इस विशाल अग्नि को नहीं देखना चाहते हैं जो पहाड़ पर जल रही है! तुम्हारे पूर्वजों ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि वे डरते थे कि यदि यहोवा फिर से उनसे बातें करेंगे तो वे लोग मर जाएंगे।
\p
\s5
\v 17 तब यहोवा ने मुझ से कहा, ‘उन्होंने जो कहा है वह सच है।
\v 18 इसलिए मैं उनके बीच में से तुम्हारे जैसा एक भविष्यद्वक्ता भेजूंगा। मैं उसे बताऊँगा कि उसे क्या कहना है, और फिर वह लोगों को उन सभी बातों को बताएगा जो मैं उसे कहने के लिए कहता हूँ।
\v 19 वह मेरे लिए बातें करेगा। और मैं उन सभी को भी दण्ड दूँगा जो उनकी बातें नहीं मानेगे।
\s5
\v 20 लेकिन यदि कोई व्यक्ति कहता है कि वह एक भविष्यद्वक्ता है और वह संदेश बोलने की हिम्मत करता है जिसके विषय में वह झूठ बोलता है कि वह मेरी ओर से आया है, लेकिन मैंने उसे बोलने के लिए नहीं कहा था, या कोई भी जो संदेश बोलता है जो यह कहता है कि अन्य देवताओं ने उसे प्रकट किया है, उस व्यक्ति को ऐसा करने के कारण मार डालना चाहिए।'
\p
\v 21 परन्तु हो सकता है तुम स्वयं से कहोगे, ‘हम कैसे जान सकते हैं कि जो हमें संदेश बताता है वह यहोवा की ओर से आया है या नहीं?
\s5
\v 22 उत्तर यह है कि भविष्य में क्या होगा, इसके विषय में जब कोई संदेश बोलता है, जिसके विषय में वह कहता है कि यहोवा द्वारा प्रकट किया गया है, और यदि उसने जो संदेश दिया है वह पूरा नहीं होता है, तो तुम जान लोगे कि यह संदेश यहोवा की ओर से नहीं आया था। उस व्यक्ति ने गलत दावा किया है कि उसे यहोवा ने वह संदेश बताया था। तब तुमको जो वह कहता है उससे डरने की आवश्यकता नहीं है।
\s5
\c 19
\p
\v 1 यहोवा हमारे परमेश्वर, उस देश को जो वे तुमको दे रहे हैं, वहाँ के लोगों को नष्ट करने के बाद, और जब तुम उन लोगों को उनके नगरों से बाहर निकाल कर उनके घरों में रहना शुरू करते हो,
\v 2-3 तुम्हें उस भूमि को तीन हिस्सों में विभाजित करना चाहिए, जो वे तुमको दे रहे हैं। प्रत्येक भाग में से एक शहर का चयन करो। तुमको अच्छी सड़कों का निर्माण करना होगा ताकि लोग आसानी से उन शहरों में जा सकें। कोई भी जो किसी अन्य व्यक्ति की हत्या करता है वह सुरक्षित रहने के लिए उन शहरों में से एक में भागकर बच सकता है।
\p
\s5
\v 4 यह नियम किसी ऐसे व्यक्ति के लिए है जिसने किसी अन्य व्यक्ति की हत्या की हो। यदि कोई गलती से किसी अन्य व्यक्ति की हत्या करता है जो उसका दुश्मन नहीं था, तो वह उन शहरों में से किसी एक में भागकर बच सकता है और सुरक्षित हो सकता है।
\v 5 उदाहरण के लिए, यदि दो व्यक्ति लकड़ी काटने के लिए जंगल जाते हैं, यदि कुल्हाड़ी बेंत से निकल कर दूसरे व्यक्ति को लगती है, जब उनमें से एक व्यक्ति पेड़ को काट रहा हो, और दूसरा व्यक्ति मर जाता है, तो वह व्यक्ति जो कुल्हाड़ी का उपयोग कर रहा था, उसे उन शहरों में से किसी एक में जाकर सुरक्षित रहने की अनुमति होगी, क्योंकि उस शहर के लोग उनकी रक्षा करेंगे।
\s5
\v 6 क्योंकि उसने गलती से किसी की हत्या की है, और क्योंकि वह व्यक्ति उसका दुश्मन नहीं था, इसलिए वह उन शहरों में से किसी एक में भागने का प्रयास कर सकता था। यदि केवल एक शहर होगा, तो यह शहर लंबी दूरी पर हो सकता है। फिर यदि मारे गए व्यक्ति के रिश्तेदार बदला लेने के लिए बहुत गुस्से में हों, तो वे उस शहर तक पहुँचने से पहले दूसरे व्यक्ति को पकड़ने में सक्षम हो सकते हैं।
\v 7 इसलिए, मैं तुमको यह आदेश देता हूँ कि तुम इस उद्देश्य के लिए तीन शहरों का चयन करो।
\p
\s5
\v 8-9 यदि तुम जो कुछ आज मैं तुम्हें करने की आज्ञा देता हूँ, वह सब करते हो और यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रेम करते हो, और यदि तुम अपने जीवन का संचालन उनकी इच्छा के अनुसार करते हो, तो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको जब तुमने पहली बार इस पर कब्जा किया उससे और अधिक भूमि देंगे, जैसा उन्होंने करने का वादा किया था। वे तुमको वह सारी भूमि देंगे जो उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों से वादा किया था कि वे तुमको देंगे। जब वे तुमको वह भूमि देते हैं, तो तुमको तीन और शहरों का चयन करना होगा जिनमें लोग बचने के लिए भाग सकते हैं।
\v 10 ऐसा इसलिए करना ताकि जो निर्दोष हैं, वे मर न जाएं, और जो देश यहोवा तुम्हें दे रहे हैं, उसमें एक निर्दोष की मृत्यु के कारण तुम दोषी न ठहराए जाओ।
\p
\s5
\v 11 लेकिन मान लो कि कोई अपने दुश्मन से घृणा करता है और छिपकर उस व्यक्ति के सड़क पर आने की प्रतीक्षा करता है। जब वह व्यक्ति आता है, तो अचानक उस पर हमला करके उसे मार देता है। यदि हमलावर उन शहरों में से किसी एक में संरक्षित रहने के लिए जाता है,
\v 12 तो उस शहर के बुजुर्गों को जहाँ वह मृत व्यक्ति रहता था, हमलावर की रक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्हें किसी व्यक्ति को उस शहर में भेजना चाहिए जहाँ से वह हमलावर बच निकला था, कि उसे बदला लेने के लिए वापस लाएं, और उस व्यक्ति को मार डालें।
\v 13 तुमको उन लोगों पर दया नहीं करनी चाहिए जो अन्य लोगों की हत्या करते हैं! इसकी अपेक्षा, तुमको उन्हें मार डालना चाहिए, ताकि इस्राएल देश के लोगों को निर्दोष लोगों की हत्या के लिए दंडित नहीं किया जाएगा, और तुम्हारा भला हों।
\p
\s5
\v 14 जब तुम उस देश में रह रहे हो जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें दे रहे हैं, तो अपने पड़ोसियों की संपत्ति की सीमाओं के निशानों को न बदलना, जो बहुत पहले से वहाँ थे।
\p
\s5
\v 15 यदि किसी पर अपराध करने का आरोप है, तो एक व्यक्ति का यह कहना कि, ‘मैंने उसे देखा है’ उस व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कम से कम दो लोग हों, जो कहें कि, ‘हमने उसे देखा है।’ यदि केवल एक गवाह है, तो न्यायाधीश को विश्वास नहीं करना चाहिए कि वह जो कहता है वह सत्य है।
\p
\v 16 या मान लो कि किसी ने किसी अन्य व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाकर उसके साथ गलत करने का प्रयास की है।
\s5
\v 17 तब उन दोनों को उस स्थान पर जाना चाहिए जहाँ लोग आराधना करते हैं, उस समय सेवा करने वाले याजकों और न्यायाधीशों से बातें करनी चाहिए।
\v 18 न्यायाधीशों को मामले की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए। यदि न्यायाधीश निर्धारित करते हैं कि उनमें से एक ने दूसरे पर झूठा आरोप लगाया है,
\v 19 उस व्यक्ति को उसी तरह दंडित किया जाना चाहिए जिस तरह उस दूसरे को दंडित किया जाता यदि न्यायाधीशों ने उसे उस मामले में दोषी पाया होता। ऐसे लोगों को दंडित करके, तुम इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे।
\s5
\v 20 और जब उस व्यक्ति को दंडित किया जाता है, तो सब लोग सुनेंगे कि क्या हुआ है, और वे डरेंगे, और कोई भी इस तरह का कार्य करने की हिम्मत नहीं करेगा।
\v 21 तुमको उन लोगों पर दया नहीं करना चाहिए जिन्हें इस तरह दंडित किया जाता है। नियम यह होना चाहिए कि जिस व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति की हत्या की है उसे मार डालना चाहिए; किसी व्यक्ति की आंखों में से एक को निकाल लेना चाहिए यदि उसने किसी और की आंख निकाली है, किसी व्यक्ति ने किसी दुसरे व्यक्ति का दांत तोड़ा हो तो उस व्यक्ति का दांत भी तोड़ा जाना चाहिए; किसी व्यक्ति का एक हाथ काटा जाना चाहिए जिसने किसी अन्य व्यक्ति का हाथ काटा हो; किसी व्यक्ति का एक पैर काटा जाना चाहिए जिसने किसी अन्य व्यक्ति का पैर काटा हो।
\s5
\c 20
\p
\v 1 जब तुम्हारे सैनिक तुम्हारे शत्रुओं से लड़ने के लिए जाते हैं, और तुम देखते हो कि तुम्हारे शत्रुओं के पास कई घोड़े और रथ हैं और उनकी सेना तुम्हारी सेना से बहुत बड़ी है, तो उनसे मत डरो, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा, जिन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को सुरक्षित रूप से मिस्र से बाहर निकाला था, तुम्हारे साथ रहेंगे।
\s5
\v 2 जब तुम युद्ध शुरू करने के लिए तैयार हो, तो महायाजक को सेना के सामने खड़ा होना चाहिए।
\v 3 उसे उन से कहना चाहिए, ‘हे इस्राएली पुरुषों, मेरी बातें सुनो! आज तुम अपने दुश्मनों के विरुद्ध लड़ने जा रहे हो। न घबराना और न डरना,
\v 4 क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ जाएंगे। वे तुम्हारे लिए तुम्हारे दुश्मनों से लड़ेंगे, और वे तुमको उन्हें पराजित करने में सक्षम बनाएँगे।'
\p
\s5
\v 5 तब सेना के अधिकारियों को सैनिकों से कहना चाहिए, ‘यदि तुम में से किसी ने अभी-अभी नया घर बनाया है और उसे परमेश्वर को समर्पित नहीं किया है, तो उसे घर जाना चाहिए और घर को समर्पित करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है, और यदि वह युद्ध में मर जाता है, तो कोई और घर को समर्पित करेगा और उसमें रहेगा।
\s5
\v 6 यदि तुम में से किसी ने अंगूर का बाग लगाया है और अभी तक कोई अंगूर नहीं तोडा है, तो उसे घर जाना चाहिए। यदि वह यहां रहता है और युद्ध में मर जाता है, तो कोई और व्यक्ति अंगूर तोड़ेगा और उनसे बने दाखमधु का आनंद उठाएगा।
\v 7 यदि तुम में से किसी ने किसी स्त्री से शादी करने के लिए मंगनी की है, लेकिन उसने अभी तक शादी नहीं की है, तो उसे घर जाना चाहिए। यदि वह यहां रहता है और युद्ध में मर जाता है, तो कोई और उस स्त्री से शादी करेगा।
\p
\s5
\v 8 तब अधिकारियों को यह भी कहना चाहिए, ‘यदि तुम में से कोई भी घबराता है या डरपोक है, तो उसे घर जाना चाहिए, ताकि वह अपने साथी सैनिकों का भी साहस न तोड़ सके।’
\v 9 जब अधिकारियों ने सैनिकों से बातें करना समाप्त कर दिया, तो उन्हें उनके ऊपर सेनापतियों को नियुक्त करना होगा।
\p
\s5
\v 10 जब तुम किसी ऐसे शहर जाते हो जिस पर हमला करने के लिए बहुत दूर जाना है, तो पहले वहाँ के लोगों को बताएं कि यदि वे आत्मसमर्पण करते हैं, तो तुम उन पर हमला नहीं करोगे।
\v 11 यदि वे शहर के द्वार खोलते हैं और आत्मसमर्पण करते हैं, तो वे सभी तुम्हारे दास बन जाएंगे।
\s5
\v 12 लेकिन यदि वे शांतिपूर्वक आत्मसमर्पण करने से मना करते हैं और इसके बजाय लड़ने का निर्णय लेते हैं, तो तुम्हारे सैनिकों को शहर को चारों ओर से घेरना चाहिए और दीवारों को तोड़ना चाहिए।
\v 13 तब, जब हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें उस शहर को कब्जा करने में सक्षम बनाते हैं, तो तुमको शहर के सभी लोगों को मार डालना होगा।
\s5
\v 14 लेकिन तुमको अपने लिए उस शहर की स्त्रियों, बच्चों, पशुओं और अन्य सभी वस्तुओं को ले जाने की अनुमति है। तुमको उन सभी चीजों का आनंद लेने की अनुमति दी जाएगी, जो तुम्हारे दुश्मनों का है, जो चीजें हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुमको दी हैं।
\v 15 तुमको उन सभी शहरों में ऐसा करना चाहिए जो उस भूमि से बहुत दूर हैं जहाँ तुम बस जाओगे।
\p
\s5
\v 16 परन्तु जो शहर उस देश में है, जो यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें हमेशा के लिए दे रहे हैं, उन शहरों में, तुम्हें सभी लोगों और सभी जानवरों को मार डालना होगा।
\v 17 तुमको उनसे पूरी तरह से छुटकारा पाना होगा। हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसियों से छुटकारा पाओ; यही हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें करने का आदेश दिया था।
\v 18 यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो वे तुमको हमारे परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध पाप करना सिखाएंगे और तुम वे घृणित काम करोगे जो वे करते हैं जब वे अपने देवताओं की पूजा करते हैं।
\p
\s5
\v 19 जब तुम किसी शहर को कब्ज़ा करने के प्रयास में लंबे समय तक घेरते हो, तो शहर के बाहर के फलों के पेड़ों को न काटना। तुमको उन पेड़ों से फल खाने की अनुमति है, लेकिन पेड़ों को नष्ट न करना, क्योंकि वे निश्चित रूप से तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं।
\v 20 तुमको अन्य पेड़ों को काटने और सीढ़ियां और मीनार बनाने के लिए उनकी लकड़ी का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है, जिससे तुम दीवारों पर चढ़कर शहर पर कब्ज़ा कर सको।"
\s5
\c 21
\p
\v 1 “मान लीजिए कि उस देश में जिसे यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें दे रहे हैं, किसी व्यक्ति की खेत में हत्या कर दी गई है, और तुम नहीं जानते कि उस व्यक्ति को किस ने मारा है।
\v 2 यदि ऐसा होता है, तो तुम्हारे बुजुर्गों और न्यायाधीशों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ उस व्यक्ति का शव मिला था और वहाँ से आस-पास के प्रत्येक शहरों की दूरी को मापना।
\s5
\v 3 तब निकटतम शहर के बुजुर्गों को एक युवा गाय का चयन करना चाहिए जिसका उपयोग किसी काम को करने के लिए नहीं किया गया हो।
\v 4 उन्हें इसे धारा के पास की एक स्थान पर ले जाना चाहिए जहाँ की भूमि न कभी जोती और न बोई गई हो। वहाँ उन्हें उसकी गर्दन तोड़नी चाहिए।
\s5
\v 5 याजकों को भी वहाँ जाना चाहिए, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने उन्हें लेवी के गोत्र को अपनी सेवा करने के लिए चुना है और लोगों को आशीर्वाद देने के लिए वे परमेश्वर के प्रतिनिधि है। और उन्होंने उन्हें उन विवादों को सुलझाने के लिए भी चुना है जिनमें कोई घायल हो गया हो।
\s5
\v 6 निकटतम शहर के बुजुर्गों को वहाँ घाटी में जाकर उस युवा गाय के ऊपर अपने हाथ धोने चाहिए जिसकी गर्दन तोड़ी गई थी,
\v 7 और उन्हें कहना होगा, ‘हमने इस व्यक्ति की हत्या नहीं की, और हमने नहीं देखा कि यह किसने किया।
\s5
\v 8 हे यहोवा, अपने इस्राएली लोगों को क्षमा करें, जिन्हें आप मिस्र से बचाकर लाए थे। हमें दोषी न मानें। इसकी अपेक्षा, हमें क्षमा करें।
\v 9 ऐसा करके, तुम वह करोगे जो यहोवा सही मानते हैं, और तुमको उस व्यक्ति की हत्या के लिए दोषी नहीं माना जाएगा।
\p
\s5
\v 10 जब तुम जो सैनिक हो अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए जाओ, तो हमारे परमेश्वर यहोवा उन्हें पराजित करने में तुम्हें सक्षम बनाते हैं, और वे तुम्हारे कैदी बन जाते हैं,
\v 11 तुम में से एक उनमें से किसी सुंदर स्त्री को देख कर उसे पसंद करता है, और वह उससे शादी करना चाहता है।
\v 12 उसे उस स्त्री को अपने घर ले आना चाहिए, और वहाँ उस स्त्री को यह दर्शाने के लिए कि वह अब अपने लोगों के समूह का भाग नही है, लेकिन अब वह एक इस्राएली बन रही है, उसे उसके सिर के बालों को मुँड़ाना चाहिए और नाखूनों को काटना चाहिए।
\s5
\v 13 उसके उन कपडो को उतारना चाहिए जिसमें वह पकड़ी गई थी, और उसे इस्राएली कपड़े पहनने चाहिए। उसे उस पुरुष के घर में रहना चाहिए और अपने माता-पिता को छोड़ने के कारण एक महीने तक शोक करना चाहिए। उसके बाद, उस पुरुष को उससे शादी करने की अनुमति होगी।
\v 14 बाद में, यदि वह अब उससे प्रसन्न नहीं है, तो उसे पुरुष को छोड़ने की अनुमति दी जाएगी। लेकिन वह लज्जित की गई और उसे साथ सोने के लिए विवश किया गया था, इसलिए अब व्यक्ति को उस स्त्री के साथ गुलाम के समान व्यवहार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उसे किसी और को बेचने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
\p
\s5
\v 15 मान लो कि एक पुरुष की दो पत्नियां हैं, लेकिन वह उनमें से एक को पसंद करता है और दूसरी को नापसंद करता है। और मान लो कि वे दोनों पत्नियाँ बेटों को जन्म देती हैं, और जेठा पुत्र उस स्त्री का बच्चा है जिसे वह पसंद नहीं करता है।
\v 16 जिस दिन वह पुरुष यह निर्णय लेता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसके बाद प्रत्येक बेटों को कौन सी संपत्ति मिलेगी, उसे उस पत्नी के बेटे को जिसे वह पसंद करता है, संपति का अधिक भाग देकर उसका पक्ष नहीं लेना चाहिए, जो वास्तव में ज्येष्ठ पुत्र को मिलना था।
\v 17 उसे अपने ज्येष्ठ बेटे को दो तिहाई भाग देना चाहिए, उस पत्नी के बेटे को जिसे वह पसंद नहीं करता है। वह बेटा उसका पहलौठा है, और उसे सबसे अधिक भाग दिया जाना चाहिए।
\p
\s5
\v 18 मान लो कि एक लड़का बहुत हठीला है और हमेशा अपने माता-पिता के विरूद्ध विद्रोह कर रहा है, और जो कुछ भी वे कहते हैं उस पर ध्यान नहीं देता है। और मान लो कि वे उसे दंडित करते हैं लेकिन तब भी वह उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता है।
\v 19 यदि ऐसा होता है, तो उसके माता-पिता को उसे उस शहर के द्वार पर ले जाना चाहिए जहाँ वे रहते हैं और उसे शहर के बुजुर्गों के सामने खड़ा करना चाहिए।
\s5
\v 20 तब माता-पिता को उस शहर के बुजुर्गों से कहना चाहिए, ‘हमारा पुत्र बहुत हठीला है और हमेशा हमारे विरुद्ध विद्रोह करता है। हम जो कुछ भी उसे बताते हैं वह उस पर ध्यान नहीं देता है। वह बहुत खाता है, और नशे में पड़ा रहता है।
\v 21 तब उस नगर के सभी बुजुर्गों को उसके ऊपर पत्थर मारकर उसे मार डालना चाहिए। ऐसा करके, तुम अपने बीच से इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे। और इस्राएल में हर कोई जो हुआ उसके विषय में सुनेंगे और वे वह सब ऐसा करने से डरेंगे।
\p
\s5
\v 22 यदि किसी को अपराध करने के लिए मार डाला जाता है जिसके लिए वह मरने के योग्य होता है, और तुम एक लकड़ी के खंभे पर उनके शव लटकाते हो,
\v 23 तुमको उनके शव को पूरी रात वहाँ रहने नहीं देना चाहिए। जिस दिन वह मर गया हो, उस दिन तुमको उसे दफनाना चाहिए, क्योंकि यदि तुम एक लकड़ी के खंभे पर लाश रखते हो, तो परमेश्वर देश को श्राप देंगे। तुम्हें शव को उसी दिन दफन करना होगा, ताकि तुम उस देश को अशुद्ध न करो जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 यदि तुम एक इस्राएली के बैल या भेड़ को भटकता हुआ देखो, तो ऐसा न करो जैसे तुमने उसे नहीं देखा। उसे वापस उसके मालिक के पास ले जाओ।
\v 2 लेकिन यदि मालिक तुम्हारे पास नहीं रहता, या यदि तुम नहीं जानते कि वह कौन है, तो जानवर को अपने घर ले जाओ। वह तब तक तुम्हारे पास रहे जब तक उसका मालिक नहीं आ जाता। इसके बाद तुमको वह जानवर मालिक को देना होगा।
\s5
\v 3 तुमको ऐसा ही काम करना चाहिए यदि तुम किसी गधे को, या कपड़े के एक टुकड़े, या कुछ और जो खो गया हो, देखते हो। तब जो तुम कर सकते हो उसे करने से मना न करो। इस मामले के विषय में कुछ भी न जानने का नाटक न करो।
\p
\v 4 और यदि तुम किसी साथी इस्राएली के गधे या गाय को देखते हो जो सड़क पर गिर गया है, तो ऐसा न करो जैसे कि तुमने उसे नहीं देखा। जानवर को उठाने में मालिक की सहायता करो ताकि वह अपने पैरों पर फिर से खड़ा हो सके।
\p
\s5
\v 5 स्त्रियों को पुरुषों के कपड़े नहीं पहनने चाहिए, और पुरुषों को स्त्रियों के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। यहोवा हमारे परमेश्वर उन लोगों से घृणा करते हैं जो इस तरह के काम करते हैं।
\p
\s5
\v 6 यदि तुमको एक पेड़ या भूमि पर पक्षी का घोंसला मिलता है, और माता पक्षी अपने अण्डों पर या अपने बच्चों के साथ घोंसले में बैठी है, तो माता पक्षी को न मारें।
\v 7 तुमको पक्षी के बच्चों को लेने की अनुमति है, लेकिन तुमको माता पक्षी को उड जाने देना चाहिए। ऐसा करने से तुम्हारा भला होगा और तुम लंबे समय तक जीवित रहोगे।
\p
\s5
\v 8 यदि तुम नया घर बनाते हो, तो तुमको छत के चारों ओर एक धेरा बनाना होगा। कि यदि कोई व्यक्ति छत से गिरता है और मर जाता है, तो तुम उनकी मृत्यु के दोषी नहीं होगे।
\p
\s5
\v 9 उस क्षेत्र में कोई भी फसल न लगाएं जहाँ तुम्हारी अंगूर की बारी हैं। यदि तुम ऐसा करते हो, तो यहोवा के शरणस्थान से याजक खेत की फसल और अंगूर की फसल दोनों को जब्त करेंगे।
\p
\v 10 अपने खेतों को जोतने के लिए एक बैल और एक गधे को एक साथ न बांधो।
\p
\v 11 उन वस्त्रों को न पहनो जो ऊन और सनी को एक साथ बुनकर बनाते हैं।
\p
\s5
\v 12 धागे को एक साथ मोड़कर झालर बनाओ और अपने ओढ़ने के चारों ओर की कोर पर उन्हें सिलो।
\p
\s5
\v 13 मान लो कि एक पुरुष एक जवान स्त्री से शादी करता है और उसके साथ सोता है और बाद में निर्णय करता है कि वह उसे अब पसंद नहीं करता है,
\v 14 और मान लो कि वह उसके विषय में झूठी बातें कहता है, और दावा करता है कि जब उसने उससे शादी की थी तो वह कुंवारी नहीं थी।
\s5
\v 15 यदि ऐसा होता है, तो जवान स्त्री के माता-पिता को उस चादर को लेजाकर जो बिस्तर पर थी जब उस पुरुष और उनकी बेटी का विवाह हुआ था, जिस पर अभी भी खून है, और इसे शहर के बुजुर्गों को शहर के द्वार पर दिखाना है।
\s5
\v 16 तब जवान स्त्री के पिता को बुजुर्गों से कहना चाहिए, ‘मैंने अपनी बेटी को इस व्यक्ति को उनकी पत्नी होने के लिए दिया। लेकिन अब वह कहता है कि वह अब उसे पसंद नहीं करता है।
\v 17 और उसने झूठ बोला है कि जब उसने उससे शादी की थी तब वह कुंवारी नहीं थी। लेकिन देखो! यह साबित करता है कि मेरी बेटी एक कुंवारी थी! चादर पर लगे खून को देखो, जिस पर वे विवाह की रात को सोए थे! और वह बुजुर्गों को चादर दिखाएगा।
\s5
\v 18 तब उस नगर के बुजुर्गों को उस पुरुष को ले जाना चाहिए और उसे चाबुक लगाने चाहिए।
\v 19 उन्हें उस पुरुष से चांदी के एक सौ टुकड़े का जुर्माना भरने को कहना चाहिए और जवान स्त्री के पिता को वह पैसे दे, क्योंकि उस पुरुष ने इस्राएल की एक जवान स्त्री को कलंकित किया है। इसके अतिरिक्त, उस स्त्री को उसके साथ रहना जारी रखना चाहिए; क्योंकि वह उनकी पत्नी है। उसे अपने बाकी के जीवन के दौरान उस स्त्री को तलाक देने की अनुमति नहीं है।
\p
\s5
\v 20 परन्तु यदि पुरुष ने जो कहा वह सच है, और यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि जब वह उससे शादी कर रही थी तो वह कुंवारी थी,
\v 21 तो उन्हें उस जवान स्त्री को अपने पिता के घर के दरवाजे पर ले जाना चाहिए। तब उस शहर के लोगों को उस पर पत्थर मार कर उसे मार डालना चाहिए। उन्हें ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि उस स्त्री ने इस्राएल में ऐसा काम किया है जो बहुत ही अपमानजनक है, किसी पुरुष के साथ सोकर जब वह अपने पिता के घर में रह रही थी। उसे इस तरह से मार कर, तुम इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे।
\p
\s5
\v 22 यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी के साथ सोते समय पकड़ा जाता है, तो दोनों को मार देना चाहिए। ऐसा करके, तुम इस्राएल से इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे।
\p
\s5
\v 23 मान लो कि किसी शहर में एक पुरुष एक जवान स्त्री को देखता है जिसे किसी अन्य व्यक्ति से शादी करने का वादा किया गया है, और वह उसके साथ सोते समय पकड़ा जाता है।
\v 24 तुमको उन दोनों को उस शहर के द्वार पर ले जाना चाहिए, जहाँ शहर के अगुवे महत्वपूर्ण मामलों का निर्णय करते हैं। वहाँ तुमको उन दोनों को पत्थर मारकर मार डालना चाहिए। तुमको युवा स्त्री को मार डालना चाहिए क्योंकि वह उस शहर में रहने के बावजूद सहायता के लिए नहीं चिल्लाई। और व्यक्ति को मार डालना चाहिए क्योंकि वह किसी ऐसी स्त्री के साथ सो गया था जिसने पहले ही शादी करने का वादा किया था। ऐसा करके, तुम अपने बीच के इस दुष्ट कार्य से छुटकारा पाओगे।
\p
\s5
\v 25 लेकिन मान लो कि एक खुले ग्रामीण इलाकों में एक व्यक्ति एक जवान स्त्री से मिलता है जिसकी शादी करने के लिए मंगनी हो गई है, और वह उसे साथ सोने के लिए विवश करता है। यदि ऐसा होता है, तो केवल उस व्यक्ति को मार डालना चाहिए।
\v 26 तुमको जवान स्त्री को दंडित नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके लिए उसे मार देना चाहिए। यह मामला ऐसा है जब एक व्यक्ति ग्रामीण इलाके में किसी अन्य व्यक्ति पर हमला करता है और उसे मारता है,
\v 27 क्योंकि जिस व्यक्ति ने उसे उसके साथ सोने के लिए विवश किया, उसने उसे तब देखा जब वह खुले ग्रामीण इलाके में थी, और भले ही उसने सहायता के लिए बुलाया, वहाँ कोई भी नहीं था जो उसे बचा सके।
\p
\s5
\v 28 यदि कोई व्यक्ति एक जवान स्त्री को सके साथ सोने के लिए विवश करता है, जिसकी शादी करने के लिए मंगनी नहीं हुई है, और ऐसा करते समय यदि कोई उसे देखता है,
\v 29 तो उस पुरुष को जवान स्त्री के पिता को चांदी के पचास टुकड़े का भुगतान करना होगा, और उसे उस स्त्री से शादी करनी होगी, क्योंकि उसने उसके साथ सोने के लिए उस स्त्री को विवश करके उसे लज्जित किया। उसे अपने शेष जीवन के दौरान उस स्त्री को तलाक देने की अनुमति नहीं है।
\p
\s5
\v 30 एक व्यक्ति को अपने पिता की पत्नियों के साथ सोने से अपने पिता से संबंधित कोई चीज नहीं लेनी चाहिए।
\s5
\c 23
\p
\v 1 कोई भी व्यक्ति जिसके प्रजनन अंग नष्ट हो गए हैं, उसे यहोवा के लोगों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
\p
\v 2 दसवीं पीढ़ी तक कोई नाजायज़ व्यक्ति या नाजायज़ व्यक्ति के वंशज, को यहोवा के लोगों में नहीं गिना जाएगा।
\p
\s5
\v 3 अम्मोन या मोआब के लोगों के समूह में से कोई भी दसवीं पीढ़ी तक यहोवा के लोगों में शामिल नहीं किया जाएगा।
\v 4 इसका एक कारण यह है कि जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र से कनान की ओर यात्रा कर रहे थे, तब उनके अगुवों ने तुम्हारे पूर्वजों को भोजन और पानी देने से मना कर दिया था। एक और कारण यह है कि उन्होंने मेसोपोटामिया में पतोर शहर से बोर के पुत्र बिलाम को इस्राएलियों को श्राप देने के लिए पैसे दिए थे।
\s5
\v 5 परन्तु हमारे परमेश्वर यहोवा ने बिलाम पर ध्यान नहीं दिया; इसकी अपेक्षा, उसने बिलाम को तुम्हारे पूर्वजों को आशीर्वाद देने का कारण बनाया, क्योंकि यहोवा ने उससे प्रेम किया था।
\v 6 जब तक इस्राएल एक राष्ट्र है, तब तक तुमको उन दो लोगों के समूहों के लिए कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे वे समृद्ध हो सकें।
\p
\s5
\v 7 परन्तु एदोम लोगों के समूह से किसी को भी तुच्छ मत मानो, क्योंकि वे तुम्हारे पूर्वज इसहाक के वंशज हैं, जैसे तुम हो। और मिस्र के लोगों को तुच्छ मत मानो, क्योंकि जब तुम्हारे पूर्वज पहली बार मिस्र में रहते थे तो उन्होंने उन से अच्छा व्यवहार किया था।
\v 8 एदोम और मिस्र के लोगों के वंशज जो अब तुम्हारे बीच रहते हैं, उन्हें यहोवा के लोगों में शामिल किया जा सकता है।
\p
\s5
\v 9 जब तुम्हारे सैनिक युद्ध के समय छावनी में रह रहे हैं, तो उन्हें उन कार्यों से बचना चाहिए जो उन्हें परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य बनाते हैं।
\v 10 यदि कोई सैनिक परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य हो जाता है क्योंकि रात के समय वीर्य उसके शरीर से निकलता है, तो अगली सुबह उसे छावनी के बाहर जाना चाहिए और उस दिन वहाँ रहना चाहिए।
\v 11 परन्तु उस दिन की शाम को, उसे स्नान करना चाहिए, और सूर्यास्त में उसे छावनी में वापस आने की अनुमति दी जाएगी।
\p
\s5
\v 12 तुम्हारे सैनिकों के लिए छावनी के बाहर एक शौचालय होना चाहिए जहाँ आवश्यकता हो तो वे जा सकते है।
\v 13 जब तुम अपने दुश्मनों के विरुद्ध लड़ने के लिए जाते हो, तो अपने हथियारों के साथ एक छड़ी ले जाओ, ताकि जब तुमको शौच करने की आवश्यकता हो, तो तुम छड़ी से गड्ढा खोद सकते हो, और फिर गड्ढे को ढंक सकते हो।
\v 14 तुम्हें छावनी को हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए ग्रहण योग्य रखना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारी छावनी में तुम्हारे साथ है और तुमको अपने दुश्मनों को हराने में सक्षम बनाते हैं। कुछ भी अपमानजनक कार्य मत करो जो तुम्हें यहोवा के अपने लोग होने से रोके।
\p
\s5
\v 15 यदि स्वामी से बचकर भागने वाले दास तुम्हारे पास आते हैं और तुमसे अपनी रक्षा करने का अनुरोध करते हैं, तो उन्हें अपने स्वामी के पास वापस न भेजो।
\v 16 उन्हें तुम्हारे बीच रहने की अनुमति दो, जो शहर वे चुनते हैं, उस में और उन के साथ दुर्व्यवहार न करो।
\p
\s5
\v 17 किसी भी इस्राएली पुरुष या स्त्री को मंदिर में वेश्या बनने की अनुमति न दें।
\v 18 इसके अलावा, किसी भी ऐसे व्यक्ति को, जिसने वेश्या होने से पैसे कमाए, उस धन को हमारे परमेश्वर यहोवा के भवन में लाने की अनुमति न दो, भले ही उन्होंने गंभीरता से उस पैसे को देने का वादा किया हो। यहोवा वेश्यावृत्ति से घृणा करते हैं।
\p
\s5
\v 19 जब तुम एक साथी इस्राएली को पैसे या भोजन या कुछ और उधार देते हो, तो उन से ब्याज मत लो।
\v 20 जब तुम अपनी भूमि में रहने वाले विदेशी लोगों को धन उधार देते हो उन से ब्याज ले सकते हो, लेकिन जब तुम इस्राएलियों को पैसे उधार देते हो तो तुमको ब्याज लेने की अनुमति नहीं है। ऐसा इसलिए करो ताकि हमारे परमेश्वर उस देश में जिसमें तुम अब प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो, वहाँ जो कुछ तुम करो उस में यहोवा तुमको आशीर्वाद दें।
\p
\s5
\v 21 जब तुम गंभीरता से अपने परमेश्वर यहोवा को कुछ देने या उनके लिए कुछ करने का वादा करते हो, तो ऐसा करने में देर न करो। यहोवा तुम से उम्मीद करते हैं कि तुमने जो वचन दिया है वह तुम करोगे, और यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम पाप करते हो।
\v 22 लेकिन यदि तुम गंभीरता से कुछ करने का वचन नहीं देते हो, तो वह पाप नहीं है।
\v 23 लेकिन यदि तुम स्वेच्छा से कुछ करने का वादा करते हो, तो तुमको यह करना होगा।
\p
\s5
\v 24 जब तुम किसी और की दाख की बारी में घूमते हो, तो तुम्हें जितना चाहे उतने अंगूर लेने और खाने की अनुमति है, लेकिन किसी टोकरी में रखकर नहीं ले जाने चाहिए।
\v 25 जब तुम किसी के अनाज के मैदान में से चलते हो, तो तुमको कुछ अनाज तोड़ने और खाने की अनुमति दी जाती है, लेकिन तुम्हें अनाज को हँसुए से काटकर अपने साथ नहीं ले जाना चाहिए।
\s5
\c 24
\p
\v 1 मान लो कि एक पुरुष एक स्त्री से शादी करता है और बाद में वह निर्णय लेता है कि वह उसे नहीं चाहता क्योंकि कुछ अपमानजनक बातें है, और वह उसे अपने घर से दूर भेजता है। और मान लो कि वह एक पत्र लिखता है जिसमें वह कहता है कि वह उसे त्याग रहा है, और वह उसे त्यागपत्र दे कर उसे अपने घर से भेजता है
\v 2 मान लो कि वह चली जाती है। तब उसे किसी अन्य पुरुष से शादी करने की अनुमति है।
\s5
\v 3 मान लो कि उस पुरुष ने भी बाद में यह निर्णय किया कि वह उसे पसंद नहीं करता है, और वह एक त्यागपत्र लिखता है जिसमें वह कहता है कि वह उसे त्याग रहा है, और वह उसे अपने घर से दूर भेजता है। या मान लो कि दूसरा पति मर जाता है।
\v 4 यदि इनमें से कोई भी बातें होती है, तो उसके पहले पति को फिर से उससे शादी नहीं करनी चाहिए। उसे यह समझना चाहिए कि वह यहोवा के लिए अस्वीकार्य हो गई है। यदि वह उससे शादी कर लेता है तो यहोवा इसे घृणित बातें मानेंगे। उस देश में जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें दे रहे हैं, उसमें तुमको ऐसा करके पाप नहीं करना चाहिए।
\p
\s5
\v 5 जब कोई व्यक्ति शादी कर लेता है, तो उसे सेना में एक सैनिक बनने की या सरकार के लिए कोई अन्य काम करने की आवश्यकता नहीं है। विवाहित होने के एक साल तक उसे इस तरह के काम से छूट दी जानी चाहिए। उसे घर पर रहना चाहिए और उस साल अपनी पत्नी को खुश करना चाहिए।
\p
\s5
\v 6 कोई भी जो किसी और को धन उधार देता है उसे उस व्यक्ति से प्रत्याभूति के लिए कुछ देने की मांग करने की अनुमति है कि वह उस धन का भुगतान करेगा जो उसने उधार लिया है, लेकिन उसे उस व्यक्ति से उसकी चक्की का पत्थर नहीं लेना चाहिए क्योंकि चक्की का पत्थर लेना उस व्यक्ति से उसके जीवन लेने जैसा है, चक्की का पत्थर उसके परिवार को जीवित रखने के लिए रोटी पकाने के लिए आटा पीसने के लिए आवश्यक है।
\p
\s5
\v 7 यदि कोई व्यक्ति एक साथी इस्राएली को अपना दास बनाने या उसे किसी और का गुलाम बनाने के लिए बेचने के उद्देश्य से उसका अपहरण कर लेता है, तो तुमको उस व्यक्ति को जिसने ऐसा किया था, मार डालना चाहिए। ऐसा करने से तुम अपने बीच से इस बुराई से छुटकारा पाओगे।
\p
\s5
\v 8 यदि तुम कुष्ठ रोग से पीड़ित हो, लेवी के गोत्र के याजक जो कुछ भी करने के लिए तुमसे कहें, वह सब कुछ करना सुनिश्चित करो। उन निर्देशों का ध्यानपूर्वक पालन करो जिन्हें मैंने उन्हें दिया है।
\v 9 यह मत भूलना कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने मिर्याम के साथ क्या किया, जब वह कुष्ठरोगी बन गई, जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र से बाहर आ रहे थे।
\p
\s5
\v 10 जब तुम किसी को कुछ उधार देते हो, तो उसके घर में घूसकर उसका वस्त्र प्रत्याभूति के समान न लेना कि वह जो उसने उधार लिया है उसे वापस कर देगा।
\v 11 उसके घर के बाहर खड़े रहना, और जिस पुरुष को तुम कुछ उधार दे रहे हो वह तुमको अपना वस्त्र बाहर लाकर देगा।
\s5
\v 12 लेकिन यदि वह गरीब है, तो उसका वस्त्र रात में अपने पास न रखना।
\v 13 जब सूर्यास्त होता है, तब उसे वापस ले जाओ, ताकि वह सोते समय उसे पहन सके। यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुमको आशीर्वाद देने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करेगा, और हमारे परमेश्वर यहोवा तुमसे प्रसन्न होंगे।
\p
\s5
\v 14 किसी भी नौकर के साथ दुर्व्यवहार न करो जिसे तुमने नौकरी दी है, जो गरीब और जरूरतमंद हैं, चाहे वह तुम्हारे शहर में रहने वाले इस्राएली हों या विदेशी हों।
\v 15 हर दिन, सूर्यास्त से पहले, तुमको उन्हें वह पैसा देना होगा जो उनका वेतन है। वे गरीब हैं और उन्हें अपना वेतन प्राप्त करने की आवश्यकता है। यदि तुम उन्हें तुरंत भुगतान नहीं करते हो, तो वे तुम्हारे विरुद्ध यहोवा के सामने रोएंगे, और परमेश्वर तुमको इस तरह पाप करने के लिए दंडित करेंगे।
\p
\s5
\v 16 माता-पिता को उनके बच्चों द्वारा किए गए अपराधों के लिए नहीं मार डाला जाना चाहिए, और बच्चों को उनके माता-पिता द्वारा किए गए अपराधों के लिए नहीं मार डाला जाना चाहिए। लोगों को केवल उन अपराधों के लिए मार डाला जाना चाहिए जिन्हें उन्होंने स्वयं किया है।
\p
\s5
\v 17 तुमको उन विदेशी लोगों के लिए और अनाथों के लिए जो तुम्हारे बीच रहते हैं, वे सभी काम करने चाहिए जो व्यवस्था बताती है कि उन्हें करने हैं। और यदि तुम विधवा को कुछ उधार देते हो, तो उससे प्रत्याभूति के लिए उसका वस्त्र न लेना कि वह उसे वापस कर देगी।
\v 18 यह मत भूलना कि जब तुम मिस्र में दास थे, तब तुम बड़ी परेशानियों में थे, और हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें वहाँ से बचा लिया था। यही कारण है कि मैं तुमको आदेश दे रहा हूँ कि अन्य लोगों की सहायता करना जो परेशानी में हैं।
\p
\s5
\v 19 जब तुम अपनी फसल की कटनी करते हो, यदि तुम भूल गए हो कि तुमने मैदान में एक पूला छोड़ दिया है, तो उसे लेने के लिए वापस मत जाओ। उसे विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के लिए छोड़ दो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो यहोवा तुमको जो कुछ भी तुम करते हो, उसमें आशीर्वाद देंगे।
\v 20 और जब तुमने अपने सभी जैतून के पेड़ों से एक बार फलों की कटाई की है, तब शेष जैतून लेने के लिए वापस मत जाओ।
\s5
\v 21 इसी प्रकार, जब तुम अपने दाख की बारी से अंगूर उठाते हो, तो अधिक पाने का प्रयास करने के लिए दूसरी बार वहाँ मत जाओ। उन्हें तुम्हारे बीच के विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के लिए छोड़ दो।
\v 22 यह मत भूलना कि जब तुम मिस्र में दास थे, तब यहोवा ने तुम पर दया की थी। यही कारण है कि मैं तुमको उन लोगों के प्रति दयालु होने का आदेश दे रहा हूँ जो जरूरतमंद हैं।"
\s5
\c 25
\p
\v 1 “यदि दो इस्राएलियों के बीच विवाद हो और वे अदालत जाते हैं, तो न्यायाधीश यह तय करेगा कि एक निर्दोष है और दूसरा दोषी है।
\v 2 यदि न्यायाधीश कहता है कि दोषी व्यक्ति को दंडित किया जाना चाहिए, तो वह उसे भूमि पर मुंह के बल लिटाकर और उसे चाबुक मारने का आदेश देगा। वह चाबुक से कितनी बार मारा जाता है यह उसके अपराध पर निर्भर करेगा।
\s5
\v 3 उसे चालीस बार तक मारने की अनुमति है, लेकिन उससे अधिक नहीं। यदि वह चालीस बार से अधिक बार मारा जाता है, तो वह सार्वजनिक रूप से अपमानित हो जाएगा।
\p
\s5
\v 4 जब तुम्हारा बैल अनाज को भूसे से अलग करने के लिए चल रहा हो, तो उसे अनाज खाने से न रोको।
\p
\s5
\v 5 यदि दो भाई एक ही संपत्ति पर रहते हैं, और उनमें से एक जिसके पास कोई बेटा नहीं है मर जाता है, तो उस मनुष्य की विधवा को किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं करनी चाहिए जो उसके परिवार का सदस्य न हो। मृत व्यक्ति के भाई को उससे शादी करनी चाहिए और उसके साथ सोना चाहिए। ऐसा करना उसका कर्तव्य है।
\v 6 यदि वह बाद में किसी पुत्र को जन्म देती है, तो उस पुत्र को उस व्यक्ति का पुत्र माना जाता है, जिसकी मृत्यु हो गई, ताकि मृत व्यक्ति का नाम इस्राएल से गायब न हो जाए।
\p
\s5
\v 7 लेकिन यदि मृत व्यक्ति का भाई उस स्त्री से शादी करना नहीं चाहता हो, तो उस स्त्री को शहर के द्वार पर खड़ा होना चाहिए। उसे शहर के अगुवों से कहना चाहिए, ‘मेरे पति के भाई ने मुझसे शादी करने से मना कर दिया ताकि मैं एक बेटे को जन्म दे सकूं जो मृत व्यक्ति के नाम को इस्राएल में गायब होने से रोक सके।’
\v 8 तब बुजुर्गों को उस व्यक्ति को बुलाकर उससे बातें करनी चाहिए। शायद वह अब भी उस विधवा से शादी करने से मना कर देगा।
\s5
\v 9 ऐसी हालत में, उसे उस व्यक्ति के पास जाना चाहिए जब बुजुर्ग लोग देख रहे होंगे, और उनकी जूती में से एक को यह मानने के लिए ले जाना चाहिए कि उसे उस स्त्री की कोई संपत्ति नहीं मिलेगी और उसके चेहरे पर थूककर उससे कहना चाहिए, ‘उस व्यक्ति के साथ यही होता है जो अपने मृत भाई के बेटा होने के लिए, जो आवश्यक है वह करने से मना करता है, ताकि हमारे परिवार का नाम गायब न हो।'
\v 10 ऐसा होने के बाद, उस पुरुष के परिवार को इस नाम से जाना जाएगा- उस पुरुष का परिवार जिसकी जूती उतारी गई थी।
\p
\s5
\v 11 जब दो व्यक्ति एक दूसरे के साथ लड़ रहे हों, और एक व्यक्ति की पत्नी अपने पति की सहायता करने के लिए दूसरे व्यक्ति के निजी हिस्सों को पकड़ती है,
\v 12 उसके प्रति दया मत दिखाओ; उसका हाथ काट दो।
\p
\s5
\v 13-14 जब तुम चीजें खरीदते या बेचते हो, तो दो प्रकार के बटखरे रखने से लोगों को धोखा देने का प्रयास न करो, एक का उपयोग तब करते हो जब तुम कुछ खरीदते हो और दूसरे का उपयोग तब करते हो जब तुम कुछ बेचते हो, या दो प्रकार की मापने वाली टोकरी, एक का उपयोग तब करते हो जब तुम कुछ खरीदते हो और दूसरे का उपयोग तब करते हो जब तुम कुछ बेचते हो।
\s5
\v 15 हमेशा सही बटखरे और सही मापने वाली टोकरी का उपयोग करो, ताकि हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको उस देश में लंबे समय तक जीवित रहने की अनुमति दें जो वे तुमको दे रहे हैं।
\v 16 यहोवा उन सभी से घृणा करते हैं जो बेईमानी से काम करते हैं, और वे उन्हें दंडित करेंगे।
\p
\s5
\v 17 याद रखो कि अमालेक लोगों के समूह ने तुम्हारे पूर्वजों के साथ क्या किया था, जब वे मिस्र से बाहर आ रहे थे।
\v 18 उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों पर हमला किया क्योंकि वे यात्रा कर रहे थे, जब वे कमजोर और थके हुए थे। वे लोग परमेश्वर से बिलकुल नहीं डरते थे, इसलिए उन्होंने पीछे से तुम्हारे पूर्वजों पर हमला किया और उन सभी को मार डाला जो दूसरों के समान तेज़ चलने में असमर्थ थे।
\v 19 इसलिए, जब हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें वह भूमि दें जिसे उन्होंने तुमको देने का वादा किया था, और जब उन्होंने तुमको अपने आस-पास के सभी दुश्मनों से लड़ने में विश्राम दिया, तो सभी अमालेक लोगों के समूह को मार डालना, जिस से कोई भी अब उन्हें याद नहीं रखेंगे। ऐसा करना मत भूलना!
\s5
\c 26
\p
\v 1 उस देश पर कब्जा करने के बाद जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहे हैं, और जब तुम वहाँ बस गए हो,
\v 2 तुम में से प्रत्येक को अपने फसल की पहली उपज को एक टोकरी में रखना चाहिए, और उसे उस स्थान पर ले जाना चाहिए जिसे यहोवा ने आराधना करने के लिए तुम्हारे लिए चुना होगा।
\s5
\v 3 उस महायाजक के पास जाओ जो उस समय सेवा कर रहा है और उससे कहो, ‘आज तुमको मेरी फसल का यह पहला भाग देकर, मैं अपने परमेश्वर यहोवा के समक्ष यह घोषणा कर रहा हूँ कि मैंने इसे उस देश से प्राप्त किया है जिसे हमें देने का उन्होंने हमारे पूर्वजों के साथ गंभीरता से प्रतिज्ञा की थी।'
\v 4 तब याजक को तुम्हारे हाथ से भोजन की टोकरी लेकर उस वेदी पर रखनी चाहिए जहाँ हमारे परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ायी जाती है।
\s5
\v 5 तब यहोवा की उपस्थिति में तुमको यह कहना चाहिए: ‘मेरा पूर्वज याकूब शक्तिशाली राष्ट्र आराम का एक व्यक्ति था। वह अपने परिवार को मिस्र ले गया। जब वे वहाँ गए तो वे छोटा सा समूह था, लेकिन वे वहाँ रहे और उनके वंशज बहुत बड़े और शक्तिशाली राष्ट्र बन गए थे।
\s5
\v 6 मिस्र के लोगों ने उनके प्रति बहुत कठोर व्यवहार किया, और उन्होंने उन्हें अपने दास बनने और बहुत परिश्रम करने के लिए विवश किया।
\v 7 तब हमारे पूर्वजों ने हमारे परमेश्वर यहोवा की दुहाई दी, और आपने उन्हें सुना। आपने देखा कि वे पीड़ित थे, और उन्हें बहुत परिश्रम करने के लिए विवश किया जा रहा था, उनका दमन किया जा रहा था।
\s5
\v 8 तब अपनी महान शक्ति से और कई प्रकार के चमत्कार करके, और अन्य भयानक कार्य करके, आप उन्हें मिस्र से बाहर लाए।
\v 9 आप हमें इस देश में लाए और हमें यह दिया, एक ऐसी भूमि जो बहुत उपजाऊ है।
\s5
\v 10 तो अब, हे यहोवा, मुझे जो भूमि मिली है, मैं उस की फसल का पहला भाग लाया हूँ। तब तुम्हें टोकरी को यहोवा की उपस्थिति में नीचे रखना होगा और वहाँ यहोवा की आराधना करनी होगी।
\v 11 और तुम्हें हमारे परमेश्वर यहोवा का उन सभी अच्छी चीजों के लिए धन्यवाद करना चाहिए जो उन्होंने तुम्हें और तुम्हारे परिवार को दी है। और तुम्हें लेवी के वंशजों और उन विदेशियों को आमंत्रित करना चाहिए जो तुम्हारे बीच रह रहे हैं कि वे भी तुम्हारे साथ आनंद मनाएं और भोजन कर सकें।
\p
\s5
\v 12 हर तीसरे वर्ष, तुमको अपनी फसलों का दसवां भाग लेवी के वंशजों और अनाथों और विधवाओं के लिए लेना चाहिए, जो तुम्हारे बीच रहते हैं, ताकि प्रत्येक नगर में उनके पास खाने के लिए पर्याप्त हो।
\v 13 तब तुमको यहोवा से यह कहना है, कि मैं अपने घर से, इस वर्ष की मेरी फसल का दसवां भाग आपके पास लेकर आया हूँ, जो मैंने आपके लिए अलग किया है। मैं इसे लेवी के वंशजों, विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को दे रहा हूँ, जैसा कि आपने हमें करने का आदेश दिया था। मैंने दसवें हिस्से के विषय में आपके किसी भी आदेश का उल्लंघन नहीं किया है, और मैं इसके विषय में आपके किसी भी आदेश को नहीं भूला हूँ।
\s5
\v 14 मैं घोषणा करता हूँ कि मैंने दसवें हिस्से में से कुछ भी नहीं खाया है, जब मैं किसी मृत व्यक्ति के लिए शोक कर रहा था। मैं इसे अपने घर से बाहर नहीं ले गया, जबकि मैं ऐसी अवस्था में था, जिसमें मैं आपके लिए अस्वीकार्य था; मैंने मृत लोगों की आत्माओं के लिए उसका कोई भाग भेंट नहीं किया है। हे यहोवा, मैंने आपकी आज्ञा मानी है और दसवें हिस्से के विषय में आपने जो कुछ भी कहा, वह सब किया है।
\v 15 अतः कृपया स्वर्ग में अपने पवित्र स्थान से नीचे देखें, और अपने इस्राएली लोगों को आशीर्वाद दें। और इस उपजाऊ भूमि को भी आशीर्वाद दें जो आपने हमें दी है, जैसा आपने हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी कि आप करेंगे।'
\p
\s5
\v 16 आज यहोवा हमारे परमेश्वर तुमको इन सभी नियमों और विधियों का पालन करने का आदेश दे रहे हैं। तो अपने पूरे मन से, ईमानदारी से उनका पालन करो।
\v 17 आज तुमने घोषित किया है कि वे तुम्हारे परमेश्वर हैं, और तुम अपने जीवन का संचालन उनकी इच्छा के अनुसार करोगे, और तुम उनके सभी आदेशों और नियमों और विधियों का पालन करोगे, और जो कुछ भी वे तुम्हें करने को कहते हैं वह करोगे।
\s5
\v 18 और आज यहोवा ने घोषणा की है कि तुम उसके लोग हो, जैसा उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि तुम होगे, और वे तुमको अपने सभी आज्ञाओं का पालन करने का आदेश देते हैं।
\v 19 यदि तुम ऐसा करते हो, तो वे तुमको किसी भी अन्य राष्ट्र से अधिक महान बनाएंगे, और वे तुमको उनकी प्रशंसा करने और उनका सम्मान करने में सक्षम बनाएंगे। तुम यहोवा के लिए विशेष लोग हो, उनके लिए अलग किए गए और पवित्र, जैसा कि उन्होंने वादा किया था।"
\s5
\c 27
\p
\v 1 मूसा ने अन्य इस्राएली अगुओं के साथ लोगों से यह कहा: “आज जो आज्ञाएं मैं तुम्हें दे रहा हूँ, उनका पालन करो।
\v 2 जल्द ही तुम यरदन नदी पार करोगे और उस देश में प्रवेश करोगे जो यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें देने का वादा किया था। वहां, कुछ बड़े पत्थरों को स्थापित करो और उन पर चूना पोतो।
\v 3 उन सभी नियमों और शिक्षाओं को उन पत्थरों पर लिखो, जब तुम उस उपजाऊ भूमि में प्रवेश करते हो, यहोवा, जिनकी हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी, तुमको देने का वादा किया था।
\s5
\v 4 जब तुम यरदन नदी को पार कर लो, तो एबल पर्वत पर कुछ बड़े पत्थरों को स्थापित करो, जैसा कि मैंने तुमको बताया था, और उन को चूने से पोत भी दिया था।
\v 5 यहोवा को बलि चढ़ाने के लिए वहाँ एक पत्थर की वेदी का निर्माण करो, परन्तु लोहे के औजारों से उन पत्थरों पर कोई काम न करो।
\s5
\v 6 जो वेदी तुम हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए बलि चढ़ाने के लिए बनाते हो, उसे अनगढ़े पत्थरों से बनाया जाना चाहिए।
\v 7 और वहाँ यहोवा के साथ संगति बहाल करने के लिए तुमको बलिदान चढ़ाना चाहिए, और उन्हीं भेंटों से अपना भाग लेकर खाना चाहिए और यहोवा की उपस्थिति में आनन्दित होना चाहिए।
\v 8 जब तुम इन कानूनों को उन पत्थरों पर लिखते हो, तो उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए। “
\p
\s5
\v 9 तब मूसा ने याजकों के साथ सभी इस्राएलियों से कहा, “तुम इस्राएली लोग चुप रहो, और यह सुनो जो मैं कह रहा हूँ। आज तुम लोग हमारे परमेश्वर यहोवा के हो।
\v 10 इसलिए तुमको वह करना चाहिए जो वे तुमको बताते हैं, और आज के इन सभी नियमों और विनियमों का पालन करो जो मैं तुमको दे रहा हूँ। “
\p
\s5
\v 11 उसी दिन मूसा ने इस्राएलियों से कहा,
\v 12 “यरदन नदी पार करने के बाद, शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, यूसुफ और बिन्यामीन के गोत्रों को गरिज़िम पर्वत पर खड़े रहना चाहिए और यहोवा से लोगों को आशीर्वाद देने का अनुरोध करना चाहिए।
\s5
\v 13 रूबेन, गाद, आशेर, जबुलून, दान और नप्ताली के गोत्रों को एबल पर्वत पर खड़े रहना चाहिए और उन बातों को सुनना चाहिए जिनमें यहोवा लोगों को श्राप देते हैं।
\p
\v 14 लेवी के वंशजों को इन शब्दों को जोर से कहना चाहिए:
\q1
\s5
\v 15 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो लकड़ी या पत्थर से एक आकृति बनाते हैं या धातु से एक आकृति बनाते हैं, और गुप्त रूप से इन्हें स्थापित करते हैं और पूजा करते हैं ।
\q2 यहोवा मानते हैं कि वे काम घृणास्पद हैं।
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\s5
\v 16 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो अपने पिता या मां का अपमान करता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\v 17 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो संपत्ति की सीमाओं से किसी और के चिन्हों को हटा देते हैं।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\s5
\v 18 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो अंधे व्यक्ति को गलत दिशा में जाने के लिए प्रेरित करता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\v 19 ‘यहोवा उन सभी को श्राप देंगे जो विदेशियों या अनाथों या उन विधवाओं को उन चीजों से वंचित रखेंगे जो कानून के द्वारा राज्य उनके लिए करता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\s5
\v 20 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो अपने पिता के लिए कोई सम्मान नहीं दिखाता है
\q2 अपने पिता की पत्नियों में से किसी के साथ सोकर।
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\v 21 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो किसी जानवर के साथ सोता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\s5
\v 22 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो अपनी बहन के साथ या अपनी रिश्ते की आधी बहन के साथ सोता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\v 23 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो अपनी सास के साथ सोता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\s5
\v 24 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो गुप्त रूप से किसी और की हत्या करता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\v 25 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे , क्योंकि किसी और ने उसे रिश्वत दी है, जो निर्दोष है, और उनकी हत्या करता है।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’
\q1
\s5
\v 26 ‘यहोवा उनको भी श्राप देंगे जो इन नियमों का उल्लंघन करते हुए यह घोषणा करने से मना कर देता है कि वे कानून अच्छे हैं।’
\q2 और सभी लोगों को उत्तर देना चाहिए, ‘आमीन।’ “
\s5
\c 28
\p
\v 1 “यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करते हो और ईमानदारी से सब कुछ मानते हो जो आज मैं तुम्हें करने की आज्ञा देता हूँ, तो वह तुमको पृथ्वी पर किसी अन्य देश से महान बनाएंगे।
\v 2 यदि तुम यहोवा की आज्ञा मानोगे, तो ये सभी आशीर्वाद तुम्हारे पास आएंगे।
\s5
\v 3 तुम शहरों में जो कुछ करते हो उस पर वे आशीर्वाद देंगे और तुम खेतों में जो काम करते हो वे हर उस चीज को आशीर्वाद देंगे ।
\v 4 वे तुमको बहुत से बच्चे देकर और तुमको भरपूर फसल देकर और बहुत सारे मवेशी और भेड़ देकर आशीर्वाद देंगे।
\s5
\v 5 वे रोटी बनाने के लिए तुमको बहुत अनाज देकर आशीर्वाद देंगे ।
\v 6 वे तुमको हर जगह आशीर्वाद देंगे -जब तुम अपने घरों से बाहर जाते हो और जब तुम अपने घरों में वापस आते हो।
\s5
\v 7 यहोवा तुमको तुम्हारे शत्रुओं की सेनाओं को हराने में सक्षम करेंगे; वे तुम पर एक दिशा से हमला करेंगे, लेकिन वे सात दिशाओं में भाग जाएंगे।
\v 8 यहोवा तुम्हारे खत्तों को अनाज से भरकर आशीर्वाद देंगे, और वे तुम्हारे सभी कामों पर आशीर्वाद देंगे; वे तुम्हें उस देश में आशीर्वाद देंगे जो वे तुमको दे रहे हैं।
\p
\s5
\v 9 यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा के सभी आदेशों का पालन करो और यदि तुम उनकी आज्ञाओं का पालन करके अपना जीवन जीते हो, तो वे तुमको अपना निज भाग और पवित्र प्रजा बनाएंगे, जैसा उन्होंने वादा किया था।
\p
\v 10 तब पृथ्वी के सभी लोगों के समूह यह अनुभव करेंगे कि तुम यहोवा के हो, और वे तुम से डरेंगे।
\p
\s5
\v 11 और यहोवा तुम्हें बहुत समृद्ध करेंगे। उस देश में जिसे देने का परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से ईमानदारी से वादा किया था, वे तुमको कई बच्चे, कई मवेशी और बड़ी मात्रा में फसल देंगे।
\p
\v 12 जिस समय बारिश की आवश्यकता होती है, यहोवा उसे उस स्थान से भेजेंगे जहाँ उन्होंने उसे आकाश में रखा है, और वे तुम्हारे सारे कामों पर आशीर्वाद देंगे, जिसके परिणामस्वरूप तुम कई अन्य राष्ट्रों को धन उधार देने में सक्षम होगे, लेकिन तुमको उनसे पैसे उधार लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
\p
\s5
\v 13 यदि तुम परमेश्वर के उन सभी आदेशों का ईमानदारी से पालन करो, जो आज मैं तुम्हें दे रहा हूँ, तो यहोवा तुम्हारे देश को अन्य राष्ट्रों से उत्तम बनाएंगे, न कि उनसे कम; तुम हमेशा समृद्ध होगे और तुम्हें कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होगी।
\p
\v 14 यहोवा यह सब तुम्हारे साथ करेंगे यदि तुम उन आज्ञाओं को जो आज मैं दे रहा हूँ, उनका पालन करना बंद न करो, और यदि तुम कभी भी अन्य देवताओं की पूजा न करो।
\p
\s5
\v 15 परन्तु यदि जो हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें करने के लिए कह रहे हैं, तुम वह नहीं करते हो, और यदि तुम आज उनके सभी नियमों और विधियों का ईमानदारी से पालन नहीं करते हो, तो वे तुम पर ये श्राप लाएंगे और वे अपना पूरा बल तुम्हारे विरुद्ध लगाएँगे।
\s5
\v 16 जब तुम शहर में हो तब वे तुमको श्राप देंगे और जब तुम खेत में काम कर रहे हो तो वे तुमको श्राप देंगे।
\v 17 वे रोटी बनाने के लिए अधिक अनाज नहीं देकर तुमको श्राप देंगे।
\s5
\v 18 वे तुम्हें केवल कुछ बच्चे देकर, खराब फसल देकर, और कम मवेशी और भेड़ देकर श्राप देंगे।
\v 19 वे तुमको हर जगह श्राप देंगे - जब तुम अपने घरों से बाहर जाते हो और जब तुम अपने घरों में वापस आते हो।
\p
\s5
\v 20 यदि तुम बुरे काम करते हो और यहोवा का तिरस्कार करते हो, वे तुमको भ्रमित होने का श्राप देंगे, और जो कुछ तुम करते हो उसमें तुम्हें निराश होना पड़ेगा, जब तक तुम्हारे दुश्मन जल्दी और पूरी तरह से तुमको नष्ट नहीं करते हैं।
\v 21 यहोवा तुम पर भयानक बीमारियां भेजेंगे, जब तक तुम में से कोई भी उस देश में जीवित नहीं रहेगा, जिसमें तुम प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो।
\s5
\v 22 यहोवा तुम्हें बीमारियों से पीड़ा देंगे जो सूजन के साथ बुखार से तुम्हारे शरीर को कमजोर करेगा। वहाँ अधिक गर्मी होगी, और बारिश नहीं होगी। गर्म हवाएं चलेंगी, और वह तुम्हारे फसलों को सड़ा देंगे। जब तक तुम सब मर न जाओगे तब तक ये सभी चीजें तुम्हारे साथ होती रहेंगी।
\s5
\v 23 आकाश से बारिश नहीं होगी, परिणामस्वरूप भूमि लोहे के समान कठोर हो जाएगी।
\v 24 बारिश भेजने की अपेक्षा, यहोवा तुम्हारे देश में तेज हवाएं भेजेंगे और धूल उडाएँगे जब तक तुम्हारी भूमि नाश न हो जाए।
\s5
\v 25 यहोवा तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें पराजित करने में सक्षम बनाएँगे; तुम्हारे सैनिक उन पर एक दिशा से हमला करेंगे, लेकिन सात दिशाओं में भाग जाएंगे, और जब अन्य राष्ट्रों के लोग देखेंगे कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है, तो वे कहेंगे कि यह भयानक है।
\v 26 तुम मरोगे, और पक्षी और जंगली जानवर आएंगे और तुम्हारी लाश खाएंगे, और उन्हें भगाने के लिए कोई भी नहीं होगा।
\s5
\v 27 यहोवा तुम्हारी त्वचा पर फोड़े उगाएंगे, जैसे उन्होंने मिस्र के लोगों पर कई साल पहले किया था। फोड़ों और खुले घावों के कारण तुम्हारी त्वचा में खुजली होगी, लेकिन उन बीमारियों को ठीक करने की कोई दवा नहीं होगी।
\v 28 यहोवा तुम में से कुछ को पागल करेंगे; वे तुम में से कुछ को अंधा बनाएंगे, और वे तुम्हारे कुछ लोगों के दिमाग को भ्रमित कर देंगे।
\v 29 क्योंकि तुम यह देखने में सक्षम नहीं होगे कि तुम कहाँ जा रहे हैं, इसलिए दोपहर में तुम अपने हाथों से टटोलते फिरोगे, जैसे लोग अंधेरे में करते हैं। जो कुछ भी तुम करते हो उसमें तुम समृद्ध नहीं होगे। तुम लगातार पीड़ित होगे और लूटे जाओगे, और तुम्हारी सहायता करने के लिए कोई भी नहीं होगा।
\s5
\v 30 तुम में से कुछ पुरुष एक जवान स्त्री से शादी करना चाहेंगे, लेकिन कोई और जबरन उसके साथ सोएगा। तुम घरों का निर्माण करोगे, लेकिन तुम उनमें कभी नहीं रहोगे। तुम अंगूर लगाओगे, लेकिन तुम उन अंगूरों को नहीं खा सकोगे; कोई और उन्हें खाएगा।
\v 31 तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे मवेशियों को मार देंगे, और तुमको खाने के लिए कुछ भी मांस नहीं मिलेगा। तुम्हारी आँखों के सामने वे तुम्हारे गधे को खींच कर ले जाएँगे, और वे वापस नहीं देंगे। वे तुम्हारी भेड़ें ले लेंगे; और उन्हें बचाने में तुम्हरी सहायता करने के लिए कोई भी नहीं होगा।
\s5
\v 32 तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे बेटों और बेटियों को विदेशी अपने दास दासी बनने के लिए ले जाएँगे। हर दिन तुम अपने बच्चों के वापस लौटने की राह देखोगे, लेकिन तुम व्यर्थ में प्रतीक्षा करोगे।
\s5
\v 33 एक विदेशी राष्ट्र के लोग उन सभी फसलों को ले लेंगे जिनका उत्पादन करने के लिए तुमने बहुत परिश्रम किया था, और वे लगातार तुम्हारे साथ कठोर और क्रूर तरीके से व्यवहार करेंगे।
\v 34 परिणाम यह होगा कि तुम जो भयानक चीजें देखते हो, वे तुमको पागल बना देंगी।
\v 35 यहोवा तुम्हारे पैरों को दर्दनाक फोड़े से ढकेंगे जो ठीक नहीं हो सकता है, और तुम्हारे पैरों के तल से लेकर सिर के शीर्ष तक फोड़े होंगे।
\s5
\v 36 यहोवा तुम्हारे राजा और बाकी सभी लोगों को दूसरे देश में ले जाएंगे, जहाँ तुम और तुम्हारे पूर्वज कभी नहीं रहें है, और वहाँ तुम लकड़ी या पत्थर से बने देवताओं की पूजा करोगे और उनकी सेवा करोगे।
\v 37 जब आस-पास के देशों के लोग देखेंगे कि तुम्हारे साथ क्या हुआ है, तो वे चौंक जाएंगे; जहाँ कहीं यहोवा तुम्हें पहुँचाएंगे वहाँ वे तुम्हें ताना मारेंगे और हर जगह तुम्हारा मजाक उड़ाएंगे।
\s5
\v 38 तुम अपने खेतों में बहुत सारे बीज लगाओगे, लेकिन तुम केवल एक छोटी फसल काटोगे, क्योंकि टिड्डियां फसल खा जाएंगी।
\v 39 तुम अंगूर लगाओगे और उनका ख्याल रखोगे, लेकिन तुम्हें दाखमधू बनाने के लिए कोई अंगूर नहीं मिलेगा, क्योंकि कीड़े दाखलताओं को खा जाएंगे।
\s5
\v 40 जैतून के पेड़ तुम्हारी भूमि में हर जगह उगेंगे, लेकिन तुमको अपनी त्वचा पर लगाने के लिए जैतून का तेल नहीं मिलेगा क्योंकि जैतून पकने से पहले भूमि पर गिर जाएंगे।
\v 41 तुम्हारे पुत्र और पुत्रियां होंगे, परन्तु वे तुम्हारे साथ नहीं रहेंगे, क्योंकि वे उन्हें पकड़कर ले जाए जाएंगे।
\s5
\v 42 टिड्डियों के झुंड तुम्हारी फसलें और सभी पेड़ों की पत्तियों को खाएंगे।
\v 43 जो तुम्हारी भूमि में रहते हैं वे अधिक शक्तिशाली बनते जाएंगे, और तुम कम शक्तिशाली होते जाओगे।
\v 44 उनके पास तुमको उधार देने के लिए धन होगा, लेकिन तुम्हारे पास उनको उधार देने के लिए कोई पैसे नहीं होंगे। वे तुम से श्रेष्ठ होंगे, और तुम उन से हीन होंगे।
\p
\s5
\v 45 यदि तुम ऐसा नहीं करते हो जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुमको करने के लिए कहा था, और उनके द्वारा दिए गए सभी नियमों और विधियों का पालन नहीं करते हो, तो ये सभी आपदाएं तुम्हारे साथ होंगी और जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते, तब तक तुम्हारे साथ रहेंगी।
\p
\v 46 ये आपदाएं तुमको और तुम्हारे वंशजों को हमेशा यह चेतावनी देंगी कि उन लोगों के साथ क्या होता है जो यहोवा की आज्ञा को नहीं मानते हैं।
\p
\s5
\v 47 क्योंकि यहोवा ने तुमको अनेक रीति से भरपूर आशीर्वाद दिया है, इसलिए तुमको बहुत खुशी से उनकी सेवा करनी चाहिए, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया।
\p
\v 48 इसलिए, तुम उन शत्रुओं के लिए काम करोगे जिन्हें यहोवा तुम पर हमला करने के लिए भेजेंगे। तुम भूखे और प्यासे होगे; तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े नहीं होंगे; और आवश्यकता की चीजों की कमी होगी। और यहोवा तुम्हारे दास बनने और कठोर परिश्रम करने का कारण बनेंगे, जब तक कि वे तुम्हें नष्ट न कर दें।
\p
\s5
\v 49 यहोवा तुम्हारे विरुद्ध दूर देश से सेना लाएँगे, जिसके सैनिक ऐसी भाषा बोलते हैं जिसे तुम समझते नहीं हो। वे शीघ्र ही उकाब के समान तुम पर झपट्टा मारेंगे।
\v 50 वे देखने में भयानक होंगे। वे किसी के प्रति दया से काम नहीं करेंगे, यहां तक कि छोटे बच्चों और बूढ़े लोगों से भी नहीं।
\v 51 वे तुम्हारे पशुओं को मार डालेंगे और खाएंगे, और वे तुम्हारी फसल खाएंगे, और तुम भूखे रहोगे। वे तुम्हारे लिए कोई अनाज या दाखमधु या जैतून का तेल या मवेशी या भेड़ नहीं छोड़ेंगे; और तुम सभी भूख से मर जाओगे।
\s5
\v 52 इस देश के नगरों को, जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें देने वाले हैं, उन्हें तुम्हारे शत्रु घेर लेंगे, और वे तुम्हारे नगरों के चारों ओर की ऊँची और मजबूत दीवारों को तोड़ देंगे, जिन दीवारों पर तुम अपनी रक्षा के लिए भरोसा करते हो।
\p
\v 53 जब तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे नगरों को घेर लेंगे, तो तुम बहुत भूखे होंगे, जिसके परिणामस्वरूप तुम यहोवा के द्वारा दिए अपने बेटों और बेटियों का मांस खाओगे।
\s5
\v 54-55 जब तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे नगरों को घेर लेंगे, तो तुम में से सबसे नम्र और संवेदनशील व्यक्ति भी भोजन को बड़ी उग्रता से चाहेगा, जिसके परिणाम यह होगा की वे अपने बच्चों को मार देंगे और उनका मांस खाएंगे, क्योंकि उनके पास खाने के लिए और कुछ नहीं होगा। वे इसे अपने भाई या पत्नी जिन्हें वे बहुत प्रेम करते हैं या उनके किसी भी अन्य बच्चे के साथ जो अभी भी जीवित हैं, उनके साथ भी साझा नहीं करेंगे।
\s5
\v 56-57 यहां तक कि तुम में से सबसे अधिक सभ्य और दयालु स्त्रियाँ, जो बहुत समृद्ध हैं जिसके कारण उन्हें कभी भी कहीं जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी, वे भी यही काम करेंगी। जब तुम्हारे दुश्मनों ने तुम्हारे नगरों को घेर लिया होगा, तो वे स्त्रियाँ बहुत भूखी होंगी, जिसके परिणामस्वरूप वे बच्चे को जन्म देने के बाद, चुपके से बच्चे को मार डालेंगी और उसका मांस खाएंगी और गर्भनाल भी खाएंगी। और वे इसे अपने पति जिनसे वे बहुत प्रेम करती हैं या अपने किसी अन्य बच्चे के साथ इसे साझा नहीं करेंगी।
\p
\s5
\v 58 यदि तुम उन सभी कानूनों का ईमानदारी से पालन नहीं करते हो जिन्हें मैं लिख रहा हूँ, और यदि तुम में हमारे गौरवशाली परमेश्वर के लिए अत्यधिक सम्मान नहीं है,
\v 59 तो वह तुम पर और तुम्हारे वंशजों पर अत्यधिक दुःख और पीड़ा भेजकर दंडित करेंगे जो कई सालों तक रहेंगे।
\s5
\v 60 वह तुम पर वैसी पीड़ा लाएंगे जिन्हें उन्होंने मिस्र के लोगों पर भेजा था, और तुम कभी भी चंगे नहीं होगे।
\v 61 वह तुम पर अन्य व्याघियाँ और बीमारियों को भी भेजेंगे जिन के विषय में मैंने इन नियमों में बातें नहीं की है, जब तक तुम सभी मर न जाओ।
\v 62 तुम आकाश के तारों के समान असंख्य हो गए हो, परन्तु यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा न मानोगे, तो तुम में से केवल कुछ ही जीवित रहेंगे।
\s5
\v 63 यहोवा तुम्हारा भला करने और तुमको असंख्य बनाने में बहुत प्रसन्न थे, लेकिन अब वे तुमको नाश करने और तुम से छुटकारा पाने में भी प्रसन्न होंगे। जो इन विपत्तियों से नहीं मरते हैं वे इस भूमि से जिस पर तुम शीघ्र ही अधिकार करने के लिए प्रवेश करने जा रहे हो, हटाए जाएंगे ।
\p
\v 64 यहोवा तुम्हें धरती पर कई लोगों के समूह में तितर-बितर करेंगे, और उन जगहों पर तुम लकड़ी या पत्थर से बने अन्य देवताओं की पूजा करोगे, जिन देवताओं को तुम और तुम्हारे पूर्वज कभी नहीं जानते थे।
\s5
\v 65 उन क्षेत्रों में तुमको कोई शान्ति नहीं मिलेगी। तुम निराश होगे और हतोत्साहित होगे।
\v 66 तुम हमेशा डरोगे कि तुम्हारे दुश्मन तुमको मार देंगे। तुम्हें पूरे दिन और पूरी रात बहुत भय होगा।
\s5
\v 67 क्योंकि तुम बहुत डरोगे और तुम भयानक चीजों को देखकर बहुत परेशान होगे, तुम हर सुबह कहोगे ‘काश शाम हो जाए! और हर शाम तुम कहोगे ‘काश सुबह ही हो जाए!
\v 68 यहोवा तुम में से कुछ को जहाजों में वापस मिस्र में भेज देंगे, भले ही उन्होंने वादा किया था कि तुमको वहाँ पुनः जाने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। मिस्र में तुम भोजन के लिए अपने दुश्मनों के दास बनने के लिए स्वयं को बेचने का प्रयास करोगे, लेकिन कोई भी तुमको नहीं खरीदेगा।"
\s5
\c 29
\p
\v 1 ये यहोवा के प्रतिज्ञात्मक आदेश हैं जिन्हें इस्राएलियों को मानना था। जब वे यरदन नदी के पूर्व की ओर मोआब के क्षेत्र में थे, तब मूसा ने उन्हें इन नियमों को मानने का आदेश दिया। ये नियम सीनै पर्वत पर यहोवा की उनके साथ की गयी प्रतिज्ञा का भाग बन गए।
\p
\s5
\v 2 मूसा ने सभी इस्राएली लोगों को बुलाया और उनसे कहा, “तुमने स्वयं देखा कि यहोवा ने मिस्र के राजा और उसके अधिकारियों और उसके पूरे देश के साथ क्या किया।
\v 3 तुमने उन सभी विपत्तियों को देखा जो यहोवा ने उन पर भेजी थी, और उनके सभी चमत्कारों को देखा।
\v 4 परन्तु आज तक, यहोवा ने जो कुछ तुमने देखा और सुना है, उसका अर्थ समझने में तुम्हें सक्षम नहीं किया है।
\s5
\v 5 चालीस वर्षों तक यहोवा ने तुम्हारा नेतृत्व किया जब तुम रेगिस्तान से होकर यात्रा करते थे। उस समय, तुम्हारे कपड़े और तुम्हारे जूते पुराने नहीं हुए।
\v 6 तुम्हारे पास खाने के लिए रोटी या पीने के लिए दाखमधु या अन्य मदिरा नहीं थी, परन्तु यहोवा ने तुम्हारा ख्याल रखा, ताकि तुम जान सको कि वे तुम्हारे परमेश्वर हैं।
\p
\s5
\v 7 और जब हम इस स्थान पर आए, तो सीहोन राजा, जो हेशबोन में शासन करता था, और ओग राजा जो बाशान पर शासन करता था, अपनी सेनाओं के साथ हम पर हमला करने के लिए बाहर आए, लेकिन हमने उन्हें पराजित किया।
\v 8 हमने उनकी भूमि ली और इसे रूबेन और गाद के गोत्रों और मनश्शे के गोत्रों में आधे हिस्से में बांटा।
\p
\v 9 इसलिये इस पुरी प्रतिज्ञा को विश्वासयोग्यता से पालन करो, ताकि तुम जो कुछ भी करते हो उसमें समृद्ध हों।
\s5
\v 10 आज हम सभी मैं, तुम्हारे सभी गोत्रों का अगुवा, तुम्हारे बुजुर्ग, तुम्हारे अधिकारी, तुम सभी इस्राएली पुरुष,
\v 11 तुम्हारी पत्नियां, तुम्हारे बच्चे, और विदेशी जो हमारे बीच रहते हैं और हमारे लिए लकड़ी काटते हैं और हमारे लिए पानी लाते हैं, हम सभी हमारे परमेश्वर यहोवा की उपस्थिति में खड़े हैं।
\s5
\v 12 आज तुम सब यहाँ यहोवा के साथ इस प्रतिज्ञा को स्वीकार करने के लिए सहमत होने और स्वयं को इस प्रतिज्ञा के साथ बांधने आए हो।
\v 13 वे यह सुनिश्चित करने के लिए तुम्हारे साथ यह समझौता कर रहे हैं कि तुम उनके लोग हो, और वे तुम्हारे परमेश्वर हैं। यही उन्होंने तुम्हारे लिए करने का वादा किया था, और जो उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों अब्राहम, इसहाक और याकूब से करने का वादा किया था, वे ऐसा ही करेंगे।
\s5
\v 14 यह प्रतिज्ञा न केवल तुम्हारे साथ है।
\v 15 परमेश्वर इस समझौते को जो हमारे साथ कर रहे हैं वह आज यहां जो है और हमारे वंशजों के साथ भी कर रहे हैं जो अभी तक पैदा नहीं हुए हैं।
\p
\v 16 तुम्हें वे बातें याद हैं जो हमारे पूर्वजों को मिस्र में भुगतना पड़ा था, और मिस्र से निकलने के बाद वे अन्य राष्ट्रों के देश से कैसे यात्रा करते थे।
\s5
\v 17 उन देशों में उन्होंने लकड़ी और पत्थर से बने और चांदी और सोने से सजायी उन घृणित मूर्तियों को देखा।
\v 18 इसलिए सुनिश्चित करो कि आज यहां जो पुरुष या स्त्री या परिवार या गोत्र, उन लोगों के देवताओं की पूजा करने के लिए हमारे परमेश्वर यहोवा से दूर न हो जाएँ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम स्वयं पर आपदा लाओगे।
\p
\v 19 यह सुनिश्चित करो कि आज जो कोई भी इस प्रतिज्ञा के शब्दों को सुनता है, वह स्वयं से न कहे, ‘मेरे साथ सबकुछ अच्छा होगा, भले ही मैं हठ करके जो कुछ मैं करना चाहता हूँ, वही करूं।’ यदि तुम ऐसा करते हो, तो परिणाम यह होगा कि यहोवा अंततः तुम सभी को, अच्छे और बुरे सभी लोगों को नष्ट कर देंगे।
\s5
\v 20 यहोवा ऐसे किसी को भी क्षमा नहीं करेंगे जो उस प्रकार हठीला है। इसकी अपेक्षा, वे उस व्यक्ति से बहुत क्रोधित होंगे, और जिन श्रापों के विषय में मैंने बताया है, वह उस व्यक्ति पर पड़ेंगे, जब तक कि यहोवा उस व्यक्ति और उसके परिवार को हमेशा के लिए नष्ट नहीं कर देते।
\v 21 इस्राएल के सभी गोत्रों में से, यहोवा उस व्यक्ति को चुनेंगे कि उनके द्वारा प्रतिज्ञा में सूचीबद्ध सभी आपदाओं को भुगते- वे सभी बुरी बातें, जो किसी भी व्यक्ति के साथ होती हैं जिन्हें यहोवा ने इस पुस्तक में लिखे नियमों का उल्लंघन करने के लिए श्राप दिया है।
\p
\s5
\v 22 भविष्य में, तुम्हारे वंशज और अन्य देशों के लोग इन आपदाओं और बीमारियों के विषय जानेंगे जिन्हें यहोवा ने तुम पर डाला था।
\v 23 वे देखेंगे कि तुम्हारी सारी भूमि गन्धक और नमक जलाने से नष्ट हो गई। कुछ भी नहीं उगेगा। यहां तक कि जंगली घास भी नहीं। तुम्हारी भूमि सदोम और गमोरा के नगरों और अदमा और सबोयीम के नगरों के समान होगी, जिन्हें यहोवा ने उन लोगों पर बहुत क्रोधित होने कर कारण नष्ट कर दिया था।
\v 24 अन्य राष्ट्रों के लोग पूछेंगे, ‘यहोवा ने इस देश के साथ ऐसा क्यों किया? वह यहां रहने वाले लोगों पर इतने क्रोधित क्यों थे?'
\p
\s5
\v 25 तब अन्य लोग उत्तर देंगे, ‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने यहोवा के साथ की गयी प्रतिज्ञा का पालन करने से मना कर दिया, जिन परमेश्वर की तुम्हारे पूर्वजों ने आराधना की थी, जब वे उन्हें मिस्र से बाहर लाये थे।
\v 26 इसकी अपेक्षा, उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा की, जिसकी उन्होंने पहले कभी पूजा नहीं की थी, उन देवताओं की पूजा करने के लिए यहोवा ने उन्हें नहीं कहा था।
\s5
\v 27 इसलिए यहोवा इस देश के लोगों से बहुत क्रोधित हो गये, और उन्होंने उन सभी विपत्तियों को उन पर डाला जिनके विषय में उनके अगुवों ने उन्हें चेतावनी दी थी।
\v 28 यहोवा उन से बहुत क्रोधित हो गये और उन्हें अपनी भूमि से बाहर निकाल दिया, और उन्हें दुसरे देश में फेंक दिया, और वे अभी भी वहाँ हैं।
\p
\s5
\v 29 ये कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें हमारे परमेश्वर यहोवा ने गुप्त रखा है, परन्तु उन्होंने अपने नियम को हमारे सामने प्रकट किया, और वे उम्मीद करते हैं कि हम और हमारे वंशज हमेशा इसका पालन करें।
\s5
\c 30
\p
\v 1 मैंने अब तुम्हें बताया है कि यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हें किस-किस रीति से आशीर्वाद देंगे यदि तुम उनकी आज्ञा मानते हो और किस-किस रीति वे तुम्हें श्राप देंगे यदि तुम उनकी अवज्ञा करते हो। लेकिन यदि तुम उनके नियमों का पालन न करने का चुनाव करते हो, तो किसी दिन तुम उन देशों में रहो जहाँ उन्होंने तुम्हें तितर-बितर किया है, तब तुम याद करोगे कि मैंने तुमको क्या बताया था।
\v 2 यदि तुम और तुम्हारे बच्चे हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना करना शुरू करते हैं और उन सभी नियमों का ईमानदारी से पालन करते हो जिन्हें मैंने आज तुमको करने का आदेश दिया है,
\v 3 तब वे पुनः तुम्हारे प्रति दया के कार्य करेंगे। वे तुमको उन राष्ट्रों से वापस लाएंगे जहाँ उन्होंने तुमको तितर-बितर किया था, और वे तुमको फिर से समृद्ध बनाएंगे।
\s5
\v 4 भले ही तुम धरती के सबसे दूरस्थ स्थानों पर बिखरे हुए हो, फिर भी हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें वहाँ से एकत्र करेंगे और तुमको अपनी भूमि पर वापस लाएंगे।
\v 5 वे तुम्हें उस देश को फिर से प्राप्त करने में सक्षम करेंगे जहाँ तुम्हारे पूर्वज रहते थे और वे तुमको अभी से अधिक समृद्ध करेंगे और संख्या में बढाएंगे।
\s5
\v 6 यहोवा हमारे परमेश्वर तुम्हारे भीतर के प्राण को बदल देंगे, परिणामस्वरुप तुम उन्हें अपनी सारी इच्छा से और अपनी सभी भावनाओं के साथ प्रेम करोगे। और फिर तुम उस देश में हमेशा रहोगे।
\v 7 हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे दुश्मनों और उन लोगों पर जो तुमको दंडित करते हैं उन सभी विपत्तियों को जिन्हें मैंने तुम्हें बताया है भेजेंगे।
\v 8 जैसा तुमने पहले किया था, तुम वही करोगे जो यहोवा चाहते हैं कि तुम करो, और तुम उन सभी आदेशों का पालन करोगे जो मैंने तुमको आज दिये हैं।
\s5
\v 9 हमारे परमेश्वर यहोवा तुमको तुम्हारे हर काम में बहुत समृद्ध बनाएँगे। तुम्हारे पास कई बच्चे और कई मवेशी होंगे, और तुम बहुत मात्रा में फसलों का उत्पादन करोगे। वे तुमको फिर से समृद्ध होने में सक्षम करके प्रसन्न होंगे, जैसा वे तुम्हारे पूर्वजों को समृद्ध होने में सक्षम करके प्रसन्न थे।
\v 10 परन्तु वे यह काम केवल तब ही करेंगे जब तुमको जो करने के लिए कहा गया है वैसा करोगे, और केवल तब ही जब तुम इस पुस्तक में मेरे लिखे सभी नियमों और विधियों का पालन करोगे, और केवल तब ही जब तुम अपनी सारी इच्छा से और अपनी सभी भावनाओं के साथ यहोवा की ओर फिरोगे।
\p
\s5
\v 11 जो आदेश मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, उन्हें मानना तुम्हारे लिए बहुत कठिन नहीं हैं, और उन्हें जानना भी कठिन नहीं है।
\v 12 वे स्वर्ग में छिपे नहीं हैं। तुमको यह कहने की आवश्यकता नहीं है, ‘हमारे लिए उन्हें नीचे लाने के लिए स्वर्ग तक कौन जा सकता है ताकि हम उनसे सीख सकें?
\s5
\v 13 और वे समुद्र की दूसरी ओर नहीं हैं। तुमको यह कहने की आवश्यकता नहीं है, ‘हमारे लिए उन्हें वापस लाने के लिए कौन समुद्र पार करेगा और ताकि हम उन्हें सीख सकें?
\v 14 नहीं, उनके आदेश यहां तुम्हारे साथ हैं। तुम उन्हें जानते हो, और तुम उन्हें बार-बार दोहरा सकते हो। कि तुम आसानी से उनका पालन कर सकते हो।
\p
\s5
\v 15 तो सुनो! आज मैं तुमको बुरा करने और अच्छा करने के बीच, तथा जो तुमको लंबे समय तक जीने में सक्षम बनाता है और जो तुम्हारी जवानी में ही मृत्यु का कारण बनाता है, उनके बीच चुनने की अनुमति देता हूं।
\v 16 मैं फिर से कहता हूँ, यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा के नियमों का पालन करते हो, जो मैं तुमको आज दे रहा हूँ, और यदि तुम उससे प्रेम करते हो और अपने जीवन का संचालन उनकी इच्छा के अनुसार करते हो, और यदि तुम उनके सभी नियमों और विधियों का पालन करते हो, तो तुम समृद्ध होगे और असंख्य हो जाओगे, और हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हें उस देश में आशीर्वाद देंगे जिसमें तुम प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो।
\p
\s5
\v 17 परन्तु यदि तुम यहोवा की उपासना करना बंद कर देते हो, और यदि तुम उनकी आज्ञाओं का पालन करने से मना करते हो, और यदि तुम अन्य देवताओं की पूजा करने के लिए स्वयं को दूसरों को फुसलाने की अनुमति देते हो,
\v 18 तो मैं आज तुमको चेतावनी दे रहा हूँ कि तुम जल्द ही मर जाओगे। तुम्हारे लोग उस देश में बहुत लंबे समय तक नहीं रहेंगे जिसमें तुम यरदन नदी को पार करके प्रवेश करने और कब्जा करने वाले हो।
\p
\s5
\v 19 मैं स्वर्ग में और पृथ्वी के सभी से यह साक्षी देने का अनुरोध कर रहा हूँ कि आज मैं तुमको यह चुनने की अनुमति दे रहा हूँ कि तुम लंबे समय तक जीना चाहते हो या जल्द ही मरना चाहते हो, क्या तुम चाहते हो कि यहोवा तुमको आशीर्वाद दें या तुमको श्राप दें। तब जीवित रहने का चयन करो।
\v 20 हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रेम करने और उनकी आज्ञा मानने का निर्णय करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम और तुम्हारे वंशज देश में लंबे समय तक जीते रहेंगे जिसे यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों अब्राहम, इसहाक और याकूब को देने का ईमानदारी से वादा किया था।"
\s5
\c 31
\p
\v 1 जब मूसा ने इस्राएलियों को यह कहा,
\v 2 “मैं एक सौ बीस वर्ष का हूँ। अब मैं हर जगह जाने में सक्षम नहीं हूँ, जहाँ तुम्हें जाने की आवश्यकता है, इसलिए मैं अब तुम्हारा अगुवा नहीं बन सकता। इसके अतिरिक्त, यहोवा ने मुझे बताया है कि मैं यरदन नदी को पार नहीं करूँगा।
\v 3 परन्तु हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे आगे आगे जाएंगे। वे तुमको वहाँ रहने वाले राष्ट्रों को नष्ट करने में सक्षम बनाएंगे, ताकि तुम उनकी भूमि पर कब्जा कर सको। यहोशू तुम्हारा अगुवा होगा, यहोवा ने यह मुझे पहले ही बताया है।
\s5
\v 4 यहोवा उन जातियों के साथ वैसा ही करेंगे जैसा उन्होंने अमोर लोगों के समूह के दो राजा सीहोन और ओग के साथ किया था, जब उन्होंने उसकी सेनाओं और उनके लोगों के समूह को नष्ट कर दिया था।
\v 5 यहोवा तुमको उन लोगों के समूह को जीतने में सक्षम बनाएंगे, लेकिन तुमको उन सभी लोगों को मारना होगा, जैसा मैंने तुमको करने का आदेश दिया है।
\v 6 बहादुर और दृढ़ बनो। उन लोगों से मत डरो। यह मत भूलना कि हमारे परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ जाएंगे। वे हमेशा तुम्हारी सहायता करेंगे और तुमको कभी नहीं त्यागेंगे।"
\p
\s5
\v 7 तब मूसा ने यहोशू को उसके पास बुलाया और कहा, “बहादुर और दृढ़ बनो। तुम ही इन लोगों को उस देश में ले जाओगे जिसे यहोवा ने हमारे पूर्वजों को देने का वादा किया था, और तुम उन्हें उस पर कब्जा करने में सक्षम बनाओगे।
\v 8 यहोवा ही तुम्हारे आगे आगे जाएंगे। वे तुम्हारे साथ रहेंगे। वे हमेशा तुम्हारी सहायता करेंगे। वे तुमको कभी नहीं छोड़ेंगे। इसलिए मत डरो और निराश न हो।"
\p
\s5
\v 9 मूसा ने इन सभी नियमों को लिखा और पवित्र सन्दूक को उठाने वाले याजकों को वे चर्मपत्रियों सौंप दीं। उसने सभी इस्राएली बुजुर्गों को भी वे चर्मपत्रियों दीं।
\v 10 मूसा ने उनसे कहा, “प्रत्येक सात सालों के अंत में, जब सभी ऋण रद्द किए जाते हैं, तब झोपड़ियों के त्यौहार के दौरान लोगों के सामने इसे पढ़ो।
\v 11 सभी इस्राएली लोगों के सामने इसे पढ़ो जब वे उस स्थान पर एकत्र होते हैं जिसे यहोवा अपनी आराधना के लिए चुनते हैं।
\s5
\v 12 प्रत्येक को एकत्र करो-पुरुष, स्त्री, बच्चे, यहां तक कि उन विदेशियों को भी जो तुम्हारे नगरों में रह रहे हैं-ताकि वे इन नियमों को सुन सकें और हमारे परमेश्वर यहोवा का आदर करना सीख सकें और विश्वासयोग्यता से इन नियमों में लिखी सभी बातों को मानें।
\v 13 यदि वे ऐसा करते हैं, तो तुम्हारे वंशज, जिन्होंने कभी इन नियमों को नहीं जाना, वे उन्हें सुनेंगे और वे भी हमारे परमेश्वर यहोवा का आदर करना सीखेंगे, जितने दिन वे उस देश में रहेंगे जिसे तुम यरदन नदी को पार करके कब्जा करनेवाले हो।"
\p
\s5
\v 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “ध्यान से सुनो। तुम जल्द ही मर जाओगे। यहोशू को बुलाओ, और तुम उसके साथ पवित्र तम्बू में जाओ, ताकि मैं उसे नया अगुवा बना सकूं।” इसलिए यहोशू और मूसा पवित्र तम्बू में गए।
\p
\v 15 वहाँ यहोवा बादल के खम्भे के माध्यम से उनके सामने प्रकट हुए, और वह बादल तम्बू के द्वार पर था।
\s5
\v 16 यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम जल्द ही मर जाओगे। तब ये लोग मेरे साथ विश्वासघात करेंगे। वे उनके साथ की गयी मेरी प्रतिज्ञा का पालन करना बंद कर देंगे। वे उन विदेशी देवताओं की पूजा करना शुरू कर देंगे जिनकी पूजा उस देश के लोग करते हैं जिसमें वे प्रवेश करेंगे।
\s5
\v 17 जब ऐसा होगा, तब मैं उनसे बहुत क्रोधित हो जाऊंगा। मैं उन्हें त्याग दूँगा और उनकी सहायता करने से मना कर दूँगा। उनके साथ कई बुरी बातें होंगी, और वे नष्ट हो जाएंगे। तब वे आपस में कहेंगे, ‘ये चीजें हमारे साथ इसलिए हो रही हैं क्योंकि हमारे परमेश्वर अब हमारे साथ नहीं है।’
\v 18 और उन सभी बुरी बातों के कारण जो उन्होंने किया होगा, और विशेष रूप से जब वे अन्य देवताओं की पूजा करना शुरू कर देंगे, मैं उनकी सहायता करने से मना कर दूँगा।
\p
\s5
\v 19 इसलिए मूसा मैं तुम्हें, एक गीत देने जा रहा हूँ। इसे एक चर्मपत्री पर लिखो और इसे इस्राएली लोगों को सिखाओ और उन्हें याद करा दो। यह उस गवाह के समान होगा जो उन पर आरोप लगाता है।
\v 20 मैं उन्हें एक बहुत ही उपजाऊ भूमि पर ले जाने वाला हूँ, एक ऐसी भूमि जिसे मैंने उनके पूर्वजों को देने का ईमानदारी से वादा किया था। वहाँ उनके पास खाने के लिए बहुत कुछ होगा, जिसके परिणामस्वरूप उनके पेट हमेशा भरे रहेंगे और वे मोटे हो जाएंगे। लेकिन फिर वे अन्य देवताओं के पास चले जाएंगे और उनकी पूजा करना शुरू कर देंगे, और वे मुझे तुच्छ मानेंगे और उनके साथ की गयी मेरी प्रतिज्ञा को तोड़ देंगे।
\s5
\v 21 और उनके पास कई भयानक आपदाएं आएँगी। उसके बाद, उनके वंशज इस गीत को याद करेंगे, और यह गवाह के समान होगा जो कहता है, ‘अब तुम जानते हो कि यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों को क्यों दंडित किया।’ मैं जल्द ही उन्हें उस देश में ले जाऊंगा जिसे मैंने उन्हें देने का गंभीरता से वादा किया था; लेकिन अब भी, ऐसा करने से पहले, मुझे पता है कि वे क्या सोच रहे हैं कि वे क्या करेंगे जब वे वहाँ रहेंगे।"
\s5
\v 22 उस दिन जब यहोवा ने मूसा को वह गीत दिया, मूसा ने इसे इस्राएलियों को भी सिखाया।
\p
\v 23 तब यहोवा ने यहोशू को अगुवे के रूप में नियुक्त किया और उससे कहा, “बहादुर और दृढ़ बनो, क्योंकि तुम इन इस्राएली लोगों को उस देश में ले जाओगे जिसे मैंने उन्हें देने का ईमानदारी से वादा किया था और मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।”
\p
\s5
\v 24 मूसा ने पूरी व्यवस्था को चर्मपत्रियों पर लिख लिया।
\v 25 तब उसने लेवी के वंशजों को बताया, जो पवित्र सन्दूक को उठाते थे जिसमें दस आज्ञाएं थीं,
\v 26 “इन चर्मपत्रियों को ले लो, जिस पर ये नियम लिखे गए हैं, और इसे पवित्र संदूक के पास में रखो, जिसमें हमारे परमेश्वर यहोवा द्वारा तुम्हारे साथ की गयी प्रतिज्ञा को रखा गया है ताकि यह इस बातें की साक्षी दे सके कि यहोवा लोगों के साथ क्या करेंगे यदि वे उनकी अवज्ञा करते हैं।
\s5
\v 27 मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि ये लोग बहुत हठीला हैं। जितने दिन मैं उनके साथ रहा हूँ, उन्होंने यहोवा के विरूद्ध कई बार विद्रोह किया है, और मेरे मरने के बाद वे और भी अधिक विद्रोह करेंगे!
\v 28 इसलिए गोत्रों के अगुवों और उनके अधिकारियों को एकत्र करो, ताकि मैं उन्हें इस गीत के वचन सिखा सकूं, और मैं उन सभी से गवाही देने का अनुरोध कर सकूं जो स्वर्ग और पृथ्वी पर हैं।
\v 29 मैं यह इसलिए कहता हूँ, क्योंकि मुझे पता है कि मेरे मरने के बाद, लोग बहुत दुष्ट हो जाएंगे। वे उन सभी बातों को करना बंद कर देंगे जिन्हें मैंने उन्हें करने का आदेश दिया है। और भविष्य में, उनके सभी बुरे कामों के कारण वे यहोवा को क्रोधित करेंगे। फिर वे उन्हें विपतियों का अनुभव कराएंगे।"
\p
\s5
\v 30 जब सभी इस्राएली सुन रहे थे, तब मूसा ने उन्हें यह पूरा गीत गाकर सुनाया:
\s5
\c 32
\p
\v 1 “हे आकाश के सभी लोगों, तुम सब सुनो,
\q और तुम सभी जो पृथ्वी पर हो, मेरी बातों को सुनो।
\v 2 मैं चाहता हूँ कि मेरा गीत तुम्हारी सहायता कर सके जैसे बारिश तुम्हारी सहायता करती है,
\q या सुबह में भूमि पर ओस के समान,
\q या छोटे पौधों पर एक धीमी बारिश के समान,
\q घास पर बारिश की बौछार के समान।
\s5
\v 3 मैं यहोवा की स्तुति करूंगा।
\q और तुम सभी लोगों को भी प्रशंसा करनी चाहिए कि हमारे परमेश्वर कितने महान है।
\v 4 वे एक चट्टान के समान है जिस पर हम संरक्षित हैं;
\q जो कुछ वे करते हैं वह बिल्कुल सही और पूरी तरह से न्यायसंगत है।
\q वे हमेशा वही करते हैं जो करने के लिए कहते हैं ;
\q वे कभी भी गलत नहीं करते हैं।
\s5
\v 5 परन्तु तुम इस्राएली लोग उनके प्रति बहुत विश्वासघाती रहे हो;
\q तुम्हारे पापों के कारण, अब तुम उनकी संतान होने के योग्य नहीं रहे।
\q तुम बहुत दुष्ट और धोखेबाज हो।
\q1
\v 6 हे मूर्ख और निर्बुधि लोगों,
\q किस तरीके से यहोवा ने तुम्हारे लिए जो कुछ किया है, उसका भुगतान करोगे?
\q वे तुम्हारे पिता हैं; उन्होंने तुम्हें बनाया;
\q उन्होंने तुम्हें एक राष्ट्र बना दिया।
\s5
\v 7 पूर्व काल के विषय में सोचो;
\q विचार करो कि तुम्हारे पूर्वजों के साथ क्या हुआ था।
\q अपने माता-पिता से पूछो, और वे तुमको सूचित करेंगे;
\q बुजुर्ग लोगों से पूछो, और वे तुमको बताएंगे।
\v 8 परमेश्वर ने, जो किसी अन्य देवता से बड़े हैं, बहुत पहले लोगों को समूहों में बांटा,
\q उन्होंने जातियों को अपनी भूमि सौंपी।
\q उन्होंने निर्धारित किया कि प्रत्येक समूह को कहाँ रहना चाहिए
\q और उन्होंने प्रत्येक समूह के लिए उनके ही अगुवे दिए।
\s5
\v 9 परन्तु यहोवा ने निर्णय किया कि हम उनके लोग होंगे;
\q उन्होंने हम याकूब के वंशियों को चुना कि हम उनके भाग हों।
\v 10 उन्होंने हमारे पूर्वजों को देखा जब वे मरुस्थल में थे,
\q उस भूमि पर भटक रहे थे जो सुनसान थी।
\q उन्होंने उनकी सुरक्षा की और उनका ख्याल रखा,
\q जैसे प्रत्येक व्यक्ति अपनी आंखों की अच्छी देखभाल करता है।
\s5
\v 11 यहोवा ने अपने लोगों की रक्षा की जैसे उकाब अपने बच्चों को उड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है
\q और उनके ऊपर मण्डराता है,
\q अपने पंख फैलाकर उन्हें उठा लेता है जब वे गिरने लगते हैं।
\v 12 केवल यहोवा ही ने उनका नेतृत्व किया;
\q किसी अन्य विदेशी देवता ने उनकी सहायता नहीं की।
\s5
\v 13 उस देश में प्रवेश करने के बाद जो यहोवा ने उन्हें देने का वादा किया था,
\q यहोवा ने उन्हें पहाड़ी देश पर शासन करने में सक्षम बनाया;
\q उन्होंने खेतों में उगाई हूई फसलों को खाया।
\q उन्हें चट्टानों में शहद मिला,
\q और उनके जैतून के पेड़ पथरीली मैदान में भी बढ़े।
\s5
\v 14 गायों ने उन्हें बहुत सारा दही दिया; बकरियों ने उन्हें बहुत दूध दिया,
\q उनके भेड़ और मवेशी हृष्ट-पुष्ट थे,
\q उनके पास गेहूं की बहुत अच्छी फसल थी,
\q और उन्होंने अपने अंगूरों से स्वादिष्ट दाखमधु बनाया।
\s5
\v 15 इस्राएली लोग धनवान और समृद्ध हो गए,
\q फिर उन्होंने परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह किया;
\q उन्होंने उन्हें त्याग दिया, जिन्होंने उन्हें बनाया था,
\q जो शक्तिशाली रूप से उन्हें बचाते हैं।
\v 16 यहोवा ने उन्हें त्याग दिया क्योंकि उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा करनी शुरू कर दी।
\q घृणित मूर्तियों की पूजा करने के कारण,
\q वह क्रोधित हो गये।
\s5
\v 17 उन्होंने उन देवताओं को बलि चढ़ायी जो वास्तव में दुष्ट-आत्मा थे,
\q ऐसे देवता जिन्हें उनके पूर्वज कभी नहीं जानते थे;
\q उन्होंने उन देवताओं को बलि चढ़ाया जिन्हें उन्होंने हाल ही में पाया था,
\q ऐसे देवता जिनका तुम्हारे पूर्वजों ने कभी सम्मान नहीं किया था।
\v 18 वे सच्चे परमेश्वर को भूल गए, जो उनकी रक्षा करते हैं,
\q जिन्होंने उन्हें बनाया और उन्हें जीवन दिया।
\s5
\v 19 जब यहोवा ने देखा कि उन्होंने उन्हें त्याग दिया है, तो वे क्रोधित हो गये,
\q इसलिए उन्होंने इस्राएली लोगों का तिरस्कार कर दिया जो उसके बेटों और बेटियों के समान थे।
\v 20 उन्होंने कहा, ‘वे बहुत दुष्ट और बहुत अविश्वासी हैं,
\q इसलिए मैं अब उनकी सहायता नहीं करूंगा,
\q और फिर मैं देखता हूँ कि उनके साथ क्या होता है।
\s5
\v 21 क्योंकि वे अब मूर्तियों की पूजा करते हैं, जो वास्तव में देवता नहीं हैं,
\q उन्होंने मुझे ईर्ष्यालु पति के समान बनने के लिए प्रेरित किया है क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वे केवल मेरी ही आराधना करें।
\q तो अब, उन्हें क्रोधित करने के लिए,
\q मैं बेकार और मूर्ख लोगों के देश की सेना को उन पर हमला करने के लिए भेजूंगा।
\s5
\v 22 मैं बहुत क्रोधित हो जाऊंगा, और मैं उन्हें नष्ट कर दूँगा
\q एक आग के समान जो सभी जगहों को जला देती है, यहां तक कि मृतक लोक को भी;
\q वह आग पृथ्वी और पृथ्वी पर जो कुछ भी उगता है उसे नष्ट कर देगी,
\q और यह पहाड़ों के नीचे की सभी चीजों को जला देगी।
\s5
\v 23 मैं उन पर विपत्तियों का ढेर डालूंगा;
\q वे ऐसा अनुभव करेंगे जैसे कि मैं उन पर अपने सभी तीर चला रहा हूँ।
\v 24 वे भूखे होने और तेज बुखार होने के कारण
\q और अन्य भयानक बीमारियों के कारण मर जाएंगे;
\q मैं उन पर हमला करने के लिए जंगली जानवरों को भेजूंगा,
\q और उन्हें काटने के लिए जहरीले सांप भेजूंगा।
\s5
\v 25 उनके घरों के बाहर, उनके दुश्मन उन्हें तलवार से मार देंगे,
\q और उनके घरों में, उनके दुश्मन उनके डर का कारण बनेंगे।
\q उनके दुश्मन युवकों और युवतियों को मार देंगे,
\q और वे शिशुओं और भूरे बाल वाले बूढ़े लोगों को मार देंगे।
\v 26 मैं केवल उन्हें दूर देशों में तितर-बितर करना चाहता था
\q कि कोई भी उन्हें कभी याद न करे।
\s5
\v 27 लेकिन यदि मैंने ऐसा किया, तो उनके दुश्मन गलत तरीके से घमंड करेंगे
\q कि उन्होंने ही मेरे लोगों से छुटकारा पा लिया था;
\q वे कहेंगे, “हम ही ने उन्हें हराया है;
\q यहोवा ने यह सब नहीं किया है।"
\s5
\v 28 तुम इस्राएली ऐसे लोगों के राष्ट्र हो जिनके पास कुछ ज्ञान नहीं है।
\q तुम में से कोई भी बुद्धिमान नहीं है।
\v 29 यदि तुम बुद्धिमान होते, तो तुम समझ जाते कि तुमको दंडित क्यों किया जाएगा;
\q तुमको पता चलता कि तुम्हारे साथ क्या होने जा रहा था।
\s5
\v 30 तुमको पता चलता कि क्यों तुम्हारे हजारों सैनिक केवल एक दुश्मन सैनिक से पराजित होंगे,
\q और क्यों तुम्हारे दो दुश्मन दस हजार इस्राएली सैनिकों का पीछा करकर उन्हें भगा देंगे।
\q तुमको एहसास होगा कि यह तभी होगा जब परमेश्वर ने, जिन्होंने हमेशा तुमको बचाया था, तुमको तुम्हारे दुश्मनों के हाथों में डाल दिया है,
\q तुमको एहसास होगा कि यहोवा ने तुम्हें त्याग दिया है।
\v 31 तुम्हारे शत्रु जानते हैं कि उनके देवता यहोवा, हमारे परमेश्वर के समान शक्तिशाली नहीं हैं,
\q उनके देवताओं ने हम इस्राएलियों को पराजित नहीं किया है।
\s5
\v 32 तुम्हारे शत्रु सदोम और गमोरा के नगरों के खंडहर के पास लगाई गई दाखलता के समान हैं;
\q उन दाखलताओं के अंगूर कड़वे और जहरीले होते हैं।
\s5
\v 33 उन अंगूरों से बना दाखमधु सांप के जहर के समान है।
\v 34 यहोवा कहते हैं, ‘मैं जानता हूँ कि मैंने इस्राएलियों और उनके दुश्मनों के साथ क्या करने की योजना बनाई है,
\q और मैंने उन योजनाओं को सुरक्षित रखा है जैसे कोई अपनी मूल्यवान संपत्ति को सुरक्षित रखता है।
\s5
\v 35 जो उन्होंने मेरे लोगों के साथ किया है, उसके लिए उन दुश्मनों मैं बदला लूँगा,
\q उन्हें दंडित करने के सही समय पर मैं ही बदला लूँगा;
\q वे जल्द ही आपदाओं का अनुभव करेंगे,
\q और मैं उन्हें जल्दी दण्ड दूँगा।'
\s5
\v 36 जब वे देखेंगे कि तुम असहाय हो,
\q और तुम्हारे यहां दास या स्वतंत्र दोनों में बहुत कम लोग ही जीवित बचे हैं,
\q तब यहोवा कहेंगे कि तुम जो उनके लोग हो वास्तव में निर्दोष हो,
\q और वे उनके प्रति दया के कार्य करेंगे जो उनकी सेवा करेंगे।
\s5
\v 37 तब यहोवा तुमसे पूछेंगे , ‘वे देवता कहाँ हैं
\q2 जिनके विषय में तुम ने सोचा था कि वे तुम्हारी रक्षा करेंगे?
\v 38 तुम ने उन देवताओं को अपने बलिदान के जानवरों के सर्वोत्तम हिस्से दिए थे,
\q और तुम ने उनके पीने के लिए दाखमधु डाला।
\q ताकि वे उठें और तुम्हारी सहायता करें;
\q उन्हें ही तुम्हारी रक्षा करनी चाहिए!
\s5
\v 39 परन्तु अब तुम जान लोगे कि मैं, केवल मैं ही परमेश्वर हूँ;
\q कोई अन्य देवता नहीं है जो असली परमेश्वर है।
\q मैं वह हूँ जो लोगों को मार सकता है और जो लोगों को जीवन भी दे सकता है;
\q मैं लोगों को घायल कर सकता हूँ, और मैं लोगों को चंगा कर सकता हूँ,
\q और कोई ऐसा नहीं है जो मुझे उन चीजों को करने से रोक सकता है।
\v 40 मैं स्वर्ग की ओर अपना हाथ उठाकर गंभीरता से घोषणा करता हूँ
\q कि जैसे यह निश्चित है कि मैं हमेशा जीवित हूँ, वैसे ही यह निश्चित है कि मैं कार्य करूंगा।
\s5
\v 41 जब मैं अपनी तलवार को तेज करता हूँ
\q और लोगों को दंडित करने के लिए तैयार होता हूँ,
\q मैं अपने दुश्मनों से बदला ले लूंगा,
\q और मैं उन लोगों से बदला लूंगा जो मुझसे घृणा करते हैं।
\s5
\v 42 मैं अपने सभी शत्रुओं को तलवार से मार डालूंगा;
\q ऐसा होगा जैसे मेरे तीर उनके खून से सने हुए हैं।
\q मैं उन सभी को मार दूँगा जिन्हें मैं पकड़ता हूँ
\q और उनके सिर काट डालूंगा।'
\s5
\v 43 हे सभी जातियों के लोगों, तुम्हें यहोवा के लोगों की प्रशंसा करनी चाहिए,
\q क्योंकि यहोवा उन लोगों से बदला लेते हैं जो उनकी सेवा करने वाले लोगों को मार देते हैं,
\q और वह अपने लोगों की भूमि को शुद्ध करते हैं
\q जो उनके पापों के कारण अशुद्ध हो गई है।"
\p
\s5
\v 44 यहोशू और मूसा ने यह गीत गाया, जबकि इस्राएली लोग सुन रहे थे।
\v 45 तब उन्होंने उनके लिए इस गीत को गाना समाप्त किया।
\s5
\v 46 मूसा ने कहा, “इन सभी आज्ञाओं को कभी न भूलें जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। इन नियमों को अपने बच्चों को सिखाओ, ताकि वे उन का ईमानदारी से पालन करें।
\v 47 ये निर्देश बहुत महत्वपूर्ण हैं। यदि तुम उनका पालन करते हो, तो तुम उस देश में लंबे समय तक जीवित रहोगे जिसे तुम यरदन नदी को पार करके कब्जा करने वाले हो।"
\p
\s5
\v 48 उसी दिन, यहोवा ने मूसा से कहा,
\v 49 “यरीहो के पार मोआब के क्षेत्र में अबारीम पर्वत पर जाओ। नबो पहाड़ी पर चढ़ो और कनान को देखने के लिए पश्चिम की ओर देखो, जो देश मैं इस्राएलियों को देने जा रहा हूँ।
\s5
\v 50 तुम उस पहाड़ पर मर जाओगे, जैसे तुम्हारा बड़ा भाई हारून होर पर्वत पर मर गया था।
\v 51 तुम इसलिए मरोगे क्योंकि तुम दोनों ने इस्राएलियों की उपस्थिति में मेरी आज्ञा को नही माना, जब तुम सब सीन के जंगल में कादेश के पास मरीबा के झरनों के पास थे। इस्राएली लोगों की उपस्थिति में तुमने मेरा आदर और सम्मान नहीं किया जिसके मैं योग्य हूँ क्योंकि मैं परमेश्वर हूं।
\v 52 जब तुम उस पहाड़ पर होगे जहाँ मैंने तुम्हें जाने के लिए कहा था, तब तुम उस देश को अपने सामने दूर से देखोगे जिसे मैं इस्राएली लोगों को देने जा रहा हूँ, लेकिन तुम उसमें प्रवेश नहीं करोगे।"
\s5
\c 33
\p
\v 1 परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता मूसा की मृत्यु से पहले, उसने परमेश्वर से इस्राएली लोगों को आशीर्वाद देने के लिए कहा।
\v 2 उसने यह कहा:
\q “यहोवा आए और सीनै पर्वत पर हमसे बातें की;
\q वे ऐसे आए जैसे एदोम के क्षेत्र में सूर्य उगता है
\q और जैसे उनकी रोशनी हमारे ऊपर चमकी, जब हम सीनै पर्वत छोड़ने के बाद पारान पर्वत के पास रेगिस्तान में थे।
\q वह दस हजार स्वर्गदूतों के साथ आए,
\q और उनकी दाहिनी ओर ज्वलंत आग थी।
\s5
\v 3 यहोवा सचमुच अपने लोगों से प्रेम करते हैं
\q और उन सभी की रक्षा करते हैं जो उनके हैं।
\q इसलिए वे उनके सामने दण्डवत करते है,
\q और वे उनके निर्देशों को सुनते हैं।
\v 4 मैंने उन्हें मानने के लिए नियम दिए,
\q नियम जो हमेशा के लिए याकूब के वंशजों के लिए हैं।
\s5
\v 5 जब सभी गोत्र और उनके अगुवे एक साथ एकत्र हुए थे
\q तब यहोवा अपने इस्राएली लोगों के राजा बन गये।
\p
\v 6 मैं रूबेन के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q मैं चाहता हूँ कि उनका गोत्र कभी खत्म न हो,
\q लेकिन वे कभी भी गिनती में अधिक नहीं बनेंगे।
\p
\s5
\v 7 मैं यहूदा के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q हे यहोवा, जब वे सहायता के लिए पुकारते हैं तब उनकी सुनें;
\q और अन्य गोत्रों से अलग होने के बाद, उन्हें फिर से अन्य गोत्रों के साथ एकजुट करें।
\q उनके लिए लड़ें,
\q और उन्हें उनके दुश्मनों के विरुद्ध लड़ने में सहायता करें।
\p
\s5
\v 8 मैं लेवी के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q हे यहोवा, उन लोगों को जो आपको समर्पित हैं, उन्हें वे पवित्र पत्थर दें जिनका वे आपकी इच्छा जानने के लिए उपयोग करेंगे;
\q आपने रेगिस्तान में उस सोते के पास जिसे उन्होंने मस्सा और मरीबा नाम दिया, उनका परीक्षण किया
\q यह जानने के लिए कि क्या वे आपके प्रति वफादार रहेंगे या नहीं।
\s5
\v 9 लेवी के गोत्र ने जो आपने करने को कहा, वह किया है
\q और इस्राएल के लोगों के साथ की गयी आपकी प्रतिज्ञा का पालन किया;
\q भाई-बहनों और माता-पिता और बच्चों की तुलना में
\q वे नियम उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण थे।
\s5
\v 10 लेवी के गोत्र के लोग इस्राएलियों को आपके नियमों और विधियों को सिखाएंगे,
\q और वही लोग धूप जलाएंगे और वेदी पर बलिदानों को पूरी तरह जलाएंगे, जिन्हें लोग लाते है।
\s5
\v 11 यहोवा, उनके काम को आशीर्वाद दें
\q और वे जो भी करते हैं उसे स्वीकार करें।
\q अपने सभी दुश्मनों का नाश करें;
\q उनके दुश्मनों को फिर से उनके विरुद्ध लड़ने में सक्षम होने की अनुमति न दें।
\p
\s5
\v 12 मैं बिन्यामीन के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q इस गोत्र से यहोवा प्रेम करते हैं;
\q वे उन्हें सुरक्षित रखते हैं।
\q वे लगातार उनकी रक्षा करते हैं,
\q और वे उनकी पहाड़ियों के बीच रहते हैं।
\p
\s5
\v 13 मैं यूसुफ के गोत्रों के विषय में यह कहता हूं:
\q मैं चाहता हूँ कि यहोवा आकाश से बारिश और भूमि के नीचे से गहरा जल देकर
\q उनकी भूमि को आशीर्वाद दें।
\s5
\v 14 मैं चाहता हूँ कि यहोवा सूर्य से पके हुए अच्छे फल देकर
\q और सही महीनों में अच्छी फसल देकर उनकी भूमि को आशीर्वाद दें।
\v 15 मैं चाहता हूँ कि यहोवा उन्हें वे बहुत अच्छे फल दें जो उनके प्राचीन पहाड़ों के वृक्षों पर उगेंगे।
\s5
\v 16 मैं चाहता हूँ कि यहोवा उनकी भूमि को आशीर्वाद दें और वे भूमि को बहुत अच्छी फसलों से भर दे।
\q मैं चाहता हूँ कि यहोवा उन सभी तरीकों से यूसुफ के गोत्रों को आशीर्वाद दें,
\q क्योंकि वह मिस्र में अपने बड़े भाइयों पर शासक था।
\s5
\v 17 यूसुफ के वंशज बैल के समान मजबूत होंगे;
\q अपने हथियारों से वे अपने दुश्मनों को घायल कर देंगे जैसे जंगली बैल अन्य जानवरों को अपने सींगों से घायल करता है।
\q वे सभी अन्य समूहों को,
\q पृथ्वी के सबसे दूरस्थ स्थानों पर ढकेलेंगे।
\q यूसुफ के दो पुत्रों के वंशज,
\q एप्रैम के गोत्र के दस हजार और मनश्शे के गोत्र के हजारों यही करेंगे।
\p
\s5
\v 18 मैं जुबुलून और इस्साकार के गोत्रों के विषय में यह कहता हूं:
\q मेरी इच्छा है कि जबूलून के लोग समुद्र यात्रा में समृद्ध हों,
\q और इस्साकार के लोग घर पर रहते हैं और अपने मवेशियों और फसलों का ख्याल रखते हैं, समृद्ध हों।
\v 19 वे अन्य इस्राएली गोत्रों के लोगों को पहाड़ पर आमंत्रित करेंगे जहाँ वे यहोवा की आराधना करेंगे,
\q और वे उसे सही बलिदान चढ़ाएगे।
\q वे समुद्र से किए गए व्यापार से
\q और समुद्र तट की रेत के उपयोग से चीजें बनाकर समृद्ध हो जाएंगे।
\p
\s5
\v 20 मैं गाद के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q यहोवा की स्तुति करो, जिन्होंने उनके क्षेत्र को बड़ा बनाया है।
\q उनके गोत्र के लोग अपने दुश्मनों पर शेर के समान हमला करेंगे,
\q जो किसी जानवरों के हाथ या खोपड़ी को फाड़ने की प्रतीक्षा कर रहा है।
\s5
\v 21 उन्होंने अपने लिए भूमि का सबसे अच्छा भाग चुना;
\q भूमि का बड़ा हिस्सा, ऐसा भाग जो एक अगुवे को दिया जाना चाहिए, उन्हें बांट कर दिया गया था।
\q जब इस्राएल के गोत्रों के अगुवे एक साथ एकत्र हुए,
\q तब उन्होंने निर्णय किया कि गाद के गोत्र को भूमि का एक बड़ा भाग मिलना चाहिए।
\q गाद के गोत्र ने यहोवा के आदेशों और उन बातों का पालन किया जिन्हें यहोवा ने तय किया कि उन्हें करना चाहिए।
\p
\s5
\v 22 मैं दान के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q दान के गोत्र के लोग जवान शेर के समान हैं;
\q वे अपने दुश्मनों पर हमला करने के लिए बाशान के क्षेत्र में अपनी गुफाओं से बाहर निकलते हैं।
\p
\s5
\v 23 मैं नप्ताली के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q नप्ताली के गोत्र के लोगों को यहोवा ने आशीर्वाद दिया है, जो उनके प्रति बहुत दयालु हैं;
\q उनकी भूमि गलील झील से दूर दक्षिण तक फैली हुई है।
\p
\s5
\v 24 मैं आशेर के गोत्र के विषय में यह कहता हूं:
\q यहोवा आशेर के वंशजों को अन्य गोत्रों से अधिक आशीर्वाद देंगे।
\q यहोवा अन्य गोत्रों से अधिक उनका पक्ष लेगे।
\q मेरी इच्छा है कि उनकी भूमि जैतून के पेड़ों से भर जाए जिनसे जैतून का तेल बनाने के लिए बहुत जैतून का उत्पादन होगा।
\v 25 उनके नगर ऊँची दीवारों से और द्वारों से संरक्षित किए जाएंगे जो कांस्य और लौह के बने हैं;
\q मैं चाहता हूँ जब तक वे जीवित रहते हैं तब तक कोई उनको हानि न पहुंचाए।
\s5
\v 26 हे इस्राएल के लोग, तुम्हारे परमेश्वर के समान कोई ईश्वर नहीं है,
\q जो तुम्हारी सहायता करने के लिए आकाश में शानदार रूप से सवारी करते हैं।
\s5
\v 27 परमेश्वर, जो सर्वदा रहते हैं, वही तुमको शरण देते हैं;
\q ऐसा लगता है कि वे तुम्हें सहारा देने के लिए अपनी सनातन भुजाएँ तुम्हारे नीचे रखते हैं।
\q जब तुम आगे बड़ते हो तब वह तुम्हारे दुश्मनों को बाहर निकाल देगे;
\q उन्होंने तुमको उन सभी को नष्ट करने के लिए कहा है।
\s5
\v 28 तब तुम इस्राएली लोग सुरक्षित रहोगे;
\q याकूब के वंशज दूसरों के द्वारा परेशान नहीं किए जाएंगे;
\q उस देश में जहाँ तुम रहोगे, वहाँ बहुत सारा अनाज और दाखमधु होगा,
\q और आकाश से बहुत बारिश होगी।
\s5
\v 29 हे इस्राएल के लोग, तुम कितने भाग्यशाली हो।
\q निश्चित रूप से तुम्हारी जाति के समान कोई जाति नहीं है,
\q जिन्हें यहोवा ने मिस्र में दास होने से बचाया है।
\q वह तुम्हारी रक्षा के लिए ढाल के समान होगा
\q और तुम्हें अपने दुश्मनों को हराने में सक्षम बनाने के लिए, वे तलवार के समान होंगे।
\q तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे पास आकर उनके प्रति दया से कार्य करने के लिए तुमसे भीख मांगेंगे,
\q लेकिन तुम उनकी पीठ को रौंदोगे।"
\s5
\c 34
\p
\v 1 तब मूसा मोआब के मैदान से नबो पर्वत पर चढ़ गया, जो पिसगा पर्वत का सबसे ऊंचा शिखर था, जो यरीहो के सामने यरदन नदी के पार है। वहाँ यहोवा ने उसे वह सारी भूमि दिखाई जिस पर इस्राएली कब्जा करेंगे। उन्होंने उसे उत्तर में दान के शहर तक का गिलाद का सारा क्षेत्र दिखाया;
\v 2 सारी भूमि जिस पर नप्ताली का गोत्र कब्जा करेगा; सारी भूमि जिस पर एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों ने कब्जा कर लिया था; वह सारी भूमि जिस पर यहूदा का गोत्र कब्जा कर लेगा जो पश्चिम में भूमध्य सागर तक;
\v 3 यहूदा के दक्षिण भाग का रेगिस्तानी क्षेत्र; और यरदन की घाटी जो उत्तर में यरीहो से दक्षिण में सोअर शहर तक फैली हुई है।
\s5
\v 4 तब यहोवा ने उस से कहा, “अब तुमने इस देश को देखा है जिसके विषय में मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से ईमानदारी से वादा किया था, कि ‘मैं इसे तुम्हारे वंशजों को दूँगा।’ मैंने तुमको इसे दूर से देखने की अनुमति दी है, लेकिन तुम वहाँ नहीं जाओगे।"
\p
\v 5 इसलिए मूसा, जिसने हमेशा ईमानदारी से यहोवा की सेवा की थी, वहाँ मोआब देश में मर गया, जैसा यहोवा ने कहा था।
\v 6 यहोवा ने मोआब देश की घाटी में, बेतपोर शहर के सामने मूसा के शरीर को दफनाया, परन्तु आज तक कोई नहीं जानता कि उसे कहाँ दफनाया गया है।
\s5
\v 7 मूसा की जब मृत्यु हुई उसकी आयु 120 वर्ष थी, लेकिन वह अभी भी बहुत मजबूत था, और वह अब भी बहुत अच्छी तरह से देख सकता था।
\v 8 इस्राएलियों ने मोआब के मैदानों में तीस दिनों तक उसके लिए शोक किया।
\p
\s5
\v 9 परमेश्वर ने यहोशू को बहुत बुद्धिमान बना दिया, क्योंकि मूसा ने यहोशू पर अपना हाथ रखकर उसे उनका नया अगुवा होने के लिए नियुक्त किया था। इस्राएली लोगों ने यहोशू की आज्ञा का पालन किया, और उन्होंने उन सभी आज्ञाओं का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा को इस्राएलियों को बताने के लिए दिए थे।
\p
\s5
\v 10 मूसा के जीवन काल के समय तक, इस्राएल में उसके जैसा कोई भविष्यद्वक्ता नहीं था, क्योंकि यहोवा ने उसके साथ आमने-सामने बातें की थी।
\v 11 किसी अन्य भविष्यद्वक्ता ने वैसे सभी प्रकार के शक्तिशाली चमत्कार नहीं किए जिन्हें यहोवा ने मिस्र के राजा फ़िरौन के विरुद्ध, उसके सभी कर्मचारियों के विरुद्ध और मिस्र के लोगों के विरुद्ध मूसा द्वारा किये थे।
\v 12 कोई अन्य भविष्यद्वक्ता मूसा के किए गए सभी महान और भयानक कर्मों को करने में सक्षम नहीं हुआ, जो उसने सभी इस्राएलियों की आँखों के सामने किए थे।

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\id JOS Unlocked Dynamic Bible
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\h यहोशू
\toc1 यहोशू की किताब
\toc2 यहोशू
\toc3 jos
\mt1 यहोशू
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहोवा के दास मूसा, के मरने के बाद, यहोवा ने नून के पुत्र यहोशू से, जो मूसा का सेवक अगुवा था यह कहा:
\v 2 "तू जानता है कि मेरा दास मूसा अब मर चुका है। इसलिए अब तू इन सब लोगों के साथ यरदन नदी पार करने के लिए तैयार हो जा। उस देश में प्रवेश करो जिसे मैं शीघ्र ही इस्राएलियों को दूँगा।
\v 3 तुम इस देश में जहाँ भी पाँव रखोगे, वह स्थान मैं तुमको दे दूँगा, जैसा मैंने मूसा से प्रतिज्ञा की थी।
\s5
\v 4 वह देश दक्षिण की मरुभूमि से लेकर उत्तर-पश्चिम में लबानोन के पहाड़ों तक, परात नदी तक और पश्चिम में भूमध्य सागर तक फैला होगा। इसमें हित्तियों का पूरा देश भी है।
\v 5 जब तक तू जीवित रहता है तब तक कोई जाति तुझे पराजित नहीं कर पाएगी। मैं तेरी सहायता करूँगा जिस प्रकार मैंने मूसा की सहायता की थी। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं न तो तुझे त्यागूँगा और न ही कभी छोड़ूँगा।
\p
\s5
\v 6 दृढ़ हो जा और बहादुर बन, क्योंकि तुझे इन लोगों की अगुआई करनी है कि वे इस देश पर अधिकार कर पाएँ, जिसे मैंने उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की थी।
\v 7 बस दृढ़ हो जा और बहुत बहादुर बन। मेरे दास मूसा द्वारा तुझे सिखाए गए सभी नियमों का पालन करने का निश्चय कर ले; उनमें से हर एक नियम का पालन करना। यदि तू ऐसा करता है, तो जहाँ कहीं भी तू जाएगा वहाँ सफल होगा।
\s5
\v 8 मूसा ने तुमको जो नियम सिखाए हैं उनकी पुस्तक पर आपस में चर्चा करना। दिन रात उन नियमों के बारे में सोचते रहना। उन नियमों का पालन करना और उसमें दी गई शिक्षा के अनुसार चलना। वे तुम्हें जीवन जीना सिखाते हैं कि तुम धन प्राप्त कर सको और सफल हो सको।
\v 9 यह मत भूलना कि मैंने तुझे दृढ़ होने और बहादुर होने का आदेश दिया है। मत डर और निराश न हो। मैं, यहोवा तेरा परमेश्वर हूँ, तू जहाँ कहीं भी जाएगा, मैं तेरे साथ रहूँगा।"
\p
\s5
\v 10 तब यहोशू ने इस्राएल के लोगों के अगुओं को आज्ञा दी,
\v 11 "पूरे शिविर में जाओ और लोगों को ये आदेश सुनाओ: 'जो भोजन तुम अपने साथ ले जाओगे, उसे तैयार करलो। तीन दिन में तुम अपने सामने यरदन नदी को पार करोगे, और जाकर उस देश पर कब्जा करोगे जिसे यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें देने वाले हैं।'"
\p
\s5
\v 12 तब यहोशू ने रूबेन और गाद के वंशजों के परिवारों से और मनश्शे के आधे गोत्र से जो यरदन नदी के पूर्व की ओर बसने वाले थे, कहा:
\v 13 "उन आदेशों को स्मरण रखना जो यहोवा के दास मूसा ने तुम्हें दिये थे। मूसा ने कहा था, तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुमको सदा के लिए बस जाने हेतु स्थान देने की प्रतिज्ञा की है- यही वह देश होगा जहाँ तुम निवास करोगे।
\s5
\v 14 यरदन नदी के पूर्व की ओर इस देश में तुम्हारी पत्नियाँ, छोटे बच्चे और मवेशी रह सकते हैं, परन्तु तुम्हारे सब सैनिकों को और तुम्हारे साथी गोत्र के पुरुषों को उनके अन्य साथी इस्राएलियों के आगे उनकी मदद करने के लिये, नदी पार करनी होगी।
\v 15 तुमको युद्ध में उनकी सहायता करनी होगी जब तक कि यहोवा तुम्हारे साथी इस्राएलियों को उस देश में जिस पर वे अधिकार करेंगे स्थायी रूप से बसने के लिए सक्षम नहीं कर दे, यही वह देश है जिसे तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें दे रहा है। इसके बाद ही तुम इस भूमि पर लौट आओगे जहाँ तुम बस जाओगे, और रहने लगोगे- मेरे कहने का अर्थ है, कि जिस भूमि को यहोवा के दास मूसा ने तुम्हें यहाँ यरदन नदी के पूर्व में दिया था।"
\p
\s5
\v 16 लोगों ने यहोशू को उत्तर दिया, "जो भी आदेश तू ने हमें दिए हैं, हम उसका पालन करेंगे, और जहाँ भी तू हमें जाने के लिए कहेगा, हम जाएँगे।
\v 17 जैसे हम मूसा की आज्ञा मानते थे, हम तेरी भी आज्ञा मानेंगे। हम प्रार्थना करते हैं कि यहोवा तेरे साथ भी वैसे ही रहे जैसे वह मूसा के साथ था।
\v 18 जो कोई भी विद्रोह करके और तेरे आदेशों का पालन करने से इन्कार करे उसे हम मार डालेंगे। यहोशू, बस दृढ़ हो और बहादुर बन!"
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब यहोशू ने शित्तीम में उनके शिविर से दो पुरुष चुने। उसने उनसे कहा, "जाकर उस देश के बारे में पूरी खोजबीन करो, विशेष करके यरीहो के बारे में।" उन्होंने शिविर छोड़ दिया, और वे यरीहो में एक वेश्या के घर गए, जिसका नाम राहाब था। वे वहाँ रहे।
\v 2 किसी ने यरीहो के राजा से कहा, "देखो! आज रात कुछ इस्राएली पुरुष हमारे देश के बारे में खोजबीन करने के लिए आए हैं!"
\v 3 अतः राजा ने राहाब के पास एक दूत के हाथ सन्देश भेजा, "जो पुरुष तेरे पास आए हैं और तेरे घर में ठहरे हैं उनको बाहर लेकर आ, क्योंकि वे हमारे देश के बारे में खोजबीन करने के लिए यहाँ आए हैं!"
\s5
\v 4 उस स्त्री ने उन पुरुषों को अपने घर में छिपा दिया था। इसलिए उसने राजा के लोगों से कहा, "हाँ, यह सच है कि वे लोग मेरे पास आए थे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वे कहाँ से आए थे।
\v 5 जब अंधेरा हो जाने पर वे चले गए, उस समय के लगभग जब पहरेदार शहर के फाटक को बन्द करते हैं। मुझे नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे थे। यदि तुम फुर्ती करो, तो उनको पकड़ सकते हो। "
\s5
\v 6 परन्तु सच तो यह है कि उस स्त्री ने उन दोनों को अपने घर की सपाट छत पर सूखने वाले सन के पूलों के नीचे छिपा दिया था।
\v 7 राजा के लोग उन्हें ढूँढ़ने के लिए शहर से बाहर निकले और उस मार्ग पर गए जो यरदन नदी के पुल की ओर जाता है। जैसे ही राजा के लोग बाहर गए पहरेदारों ने शहर के फाटक बन्द कर दिए।
\p
\s5
\v 8 उस रात उन इस्राएली पुरुषों के सोने से पहले, राहाब छत पर गई
\v 9 और उनसे कहा, "हम जानते हैं कि यहोवा ने तुमको यह देश दे दिया है। हमारे सभी लोग तुम से डरते हैं- हम तुम से इतना अधिक डरते हैं कि हम तुम्हारा बिलकुल भी विरोध नहीं करेंगे।
\s5
\v 10 हमने सुना है कि मिस्र छोड़ने के बाद यहोवा ने तुम्हें पार कराने के लिए लाल समुद्र के पानी को कैसे सुखा दिया था। हमने यह भी सुना है कि तुमने एमोरियों के राजाओं सीहोन और ओग के साथ क्या किया था, जो यरदन नदी के दूसरी ओर रहते थे, और तुमने उनके राज्यों में हर एक स्त्री-पुरुष को और हर एक वस्तु को नष्ट कर दिया था।
\v 11 जब हमने उन कामों के बारे में सुना, तो हम बहुत डर गए थे। अब हम में तुमसे युद्ध करने का साहस नहीं है, क्योंकि यहोवा परमेश्वर है, और वह स्वर्ग में और यहाँ नीचे पृथ्वी पर सम्पूर्ण शासन करते हैं।
\s5
\v 12 इसलिए अब मैं चाहती हूँ कि तुम यहोवा के सामने गम्भीरता से प्रतिज्ञा करो, कि तुम जो कहते हो उसे नहीं करोगे तो वह तुम्हें दण्ड दे। मुझे वचन दो कि तुम मुझ पर और मेरे परिवार पर दया करोगे। मुझे आश्वासन दो कि तुम अपना वचन निभाओगे।
\v 13 और तुम मेरे पिता और मेरी माता, मेरे भाइयों और बहनों, और उनके सभी परिवारों को छोड़ दोगे, और जब इस्राएली इस शहर को नष्ट करेंगे तब तुम मेरे परिवार को बचाओगे।"
\s5
\v 14 उन दो पुरुषों ने उत्तर दिया, "अगर हम वैसा नहीं करते हैं जैसा कि हम कहते हैं तो हम जान दे देंगे! अगर तू किसी को भी हमारी योजना नहीं बताएगी तो, जब यहोवा हमें यह देश देगा तब हम तेरे परिवार के साथ दया का व्यवहार करेंगे।"
\s5
\v 15 राहाब के घर की बाहरी दीवार शहर की दीवार का हिस्सा थी। उसने दीवार की खिड़की में एक रस्सी बाँध दी, इसलिए वे पुरुष खिड़की से बाहर होकर दीवार से नीचे उतर गए थे।
\v 16 तब उसने उनसे कहा, "नगर छोड़ने के बाद, पहाड़ियों पर चढ़ जाना जिससे कि जो लोग तुम्हें खोज रहे हैं वे तुमको नहीं ढूँढ़ पाएँ। पहाड़ों की गुफाओं में तीन दिनों तक छिपे रहना जब तक कि वे पुरुष वापस न आ जाएँ जो तुम्हारी खोज कर रहे हैं। तब अपने शिविर में लौट जाना हैं।"
\v 17 उन दो पुरुषों ने उसे एक लाल रस्सी दी और उससे कहा, "अब तुझे जो करना है, वह यह है, यदि तू ऐसा नहीं करेगी, तो हमें आवश्यकता नहीं कि हम अपनी गम्भीर प्रतिज्ञा को पूरा करें।
\s5
\v 18 तुझे इस लाल रस्सी को उस खिड़की से बाँधना है जिससे हमें नीचे उतारेगी, और अपने पिता और अपनी माता और अपने भाइयों, और तेरे पिता के घर के सभी सदस्यों को एक साथ यहाँ इकट्ठा करके रखना।
\v 19 यदि तेरे परिवार का कोई भी सदस्य इस घर के बाहर मार्ग में जाता है, तो वह अपने जीवन को खतरे में डाल देगा, और यदि वह मार दिया जाता है तो हम उसके उतरदायी नहीं होंगे। परन्तु तेरे घर में उपस्थित कोई भी घायल हो गया है, तो हम दोषी ठहरेंगे।
\s5
\v 20 इसके अतिरिक्त यदि तू किसी को बताती है कि हम क्या करने की योजना बना रहे हैं, तो हमें तेरे परिवार की रक्षा की अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की आवश्यकता नहीं होगी।"
\v 21 राहाब ने कहा, "तुम जो कहते हो वह करने के लिए मैं तैयार हूँ।" उसने उन्हें वचन दिया, और वे उसके पास से चले गए। और उसने लाल रस्सी को खिड़की से बाहर लटका कर बाँध दिया।
\s5
\v 22 शहर छोड़कर वे पुरुष ऊपर पहाड़ियों में चले गए। वे वहाँ तीन दिन तक रहे, जब राजा के दूत उन्हें खोज रहे थे। उन्होंने पूरे मार्ग की खोज की, परन्तु उन्हें वे दो पुरुष नहीं मिले।
\s5
\v 23 तब वे दो पुरुष उनके शिविर की ओर वापस लौट आए। वे नदी के पास गए, उसे पार किया और लौट आए ताकि वे यहोशू को सूचना दे सकें। उनके साथ जो कुछ भी हुआ था उन्होंने उसे बताया।
\v 24 उन्होंने यहोशू से कहा, "यहोवा ने सचमुच यह देश हमें दे दिया है। वहाँ के लोग हमारा विरोध कर पाने में सक्षम नहीं होंगे क्योंकि वे हमसे बहुत डरते हैं।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 यहोशू और अन्य सभी इस्राएली अगली सुबह जल्दी उठ गए। उन्होंने शित्तीम से उनके शिविर को छोड़ दिया और यरदन नदी के तट पर गए। वहाँ उन्होंने नदी पर पार होने से पहले शिविर लगाए।
\s5
\v 2 तीन दिन बाद, अधिकारी शिविर के बीच में गए।
\v 3 उन्होंने लोगों को निर्देश दिया, "जैसे ही तुम लेवी के वंशजों- याजकों को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाए हुए देखो तो समझ लेना कि इस स्थान को छोड़ने और पवित्र सन्दूक के पीछे चलने का समय आ गया है।
\v 4 उससे नौ सौ मीटर दूर रहना। उसके निकट नहीं जाना। तुमको नहीं पता कि किस रास्ते जाना चाहिए, क्योंकि तुम पहले इस मार्ग पर नहीं गए हो।"
\p
\s5
\v 5 तब यहोशू ने लोगों से कहा, "यहोवा को स्वीकार्य होने के लिये और उसे सम्मान देने के लिए आवश्यक अनुष्ठानों का पालन करो, क्योंकि कल वह तुम्हारे लिए ऐसे कामों को करने जा रहा है जो तुम्हें आश्चर्यचकित कर देंगे।"
\p
\v 6 तब यहोशू ने याजकों से कहा, "सन्दूक को उठाओ और लोगों के आगे आगे चलो।" इसलिए उन्होंने पवित्र संदूक को उठा लिया और लोगों के आगे आगे चले।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "यह वह दिन है जब मैं इस्राएलियों को दिखाना आरंभ करूँगा कि तुम एक महान अगुवे हो। तब वे तेरा सम्मान करेंगे और जान लेंगे कि जैसे मैं मूसा के साथ था, वैसे ही मैं तेरे साथ भी हूँ।
\v 8 पवित्र सन्दूक उठानेवाले याजकों से कह, 'जब तुम यरदन नदी के किनारे पर आते हो, तब यरदन में खड़े रहना।'"
\s5
\v 9 तब यहोशू ने इस्राएलियों से कहा, "यहाँ आओ और सुनो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने क्या कहा है।
\v 10 अब तुम जान लोगे कि परमेश्वर, जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है तुम्हारे बीच में है। तुम अपनी आँखों से देखोगे कि वह कैसे कनानियों, हित्तियों, हिव्वीयों, परिज्जियों, गिरगाशियों, एमोरियों और यबूसियों के देश पर अधिकार करेगा।
\v 11 देखो! पवित्र सन्दूक जो उस परमेश्वर का है, जो पूरी धरती पर शासन करता है, वह तुम्हारे आगे आगे यरदन नदी में ले जाया जा रहा है।
\s5
\v 12 इसलिए बारह पुरुषों, इस्राएल के हर एक गोत्रों में से एक का चयन करो।
\v 13 जब सन्दूक को उठानेवाले याजक, यरदन नदी के पानी में अपने पाँव रखेंगे, तो पानी का बहना रुक जाएगा। ऊपर से बह कर आने वाला पानी रुक जाएगा और एक ढेर में ठहरा रहेगा। यह नदी के नीचे की ओर नहीं बहेगा।"
\p
\s5
\v 14 तब जब इस्राएलियों ने नदी को पार किया, तो याजक जो पवित्र सन्दूक को उठाए हुए थे, उनके आगे आगे चले।
\v 15 और जैसे ही याजक यरदन नदी के किनारे पहुँचे और पानी में उतरे (अब यह वसंत ऋतु का समय था, जब नदी उनके तटों के ऊपर बहती है)
\v 16 वैसे ही पानी का बहना रुक गया और बहुत दूर तक ऊपर की ओर उसका ढेर हो गया। पानी सारतान के पास आदम नामक शहर से अराबा के सागर (जिसे मृत सागर कहा जाता है) तक रुका रहा, इसलिए इस्राएली यरीहो के पास नदी पार कर पाए।
\s5
\v 17 जो याजक यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाए हुए थे, वे यरदन नदी के बीच में सूखी भूमि पर खड़े थे; जब तक कि सब इस्राएली लोगों ने सूखे तल पर नदी पार नहीं कर ली तब तक वे वहाँ खड़े रहे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 इस्राएलियों ने यरदन नदी पार कर लिया तब, यहोवा ने यहोशू से कहा,
\v 2 "बारह पुरुष चुनो, हर एक गोत्र में से एक, और उनको यरदन के सूखे तल से जहाँ याजक खड़े है; बारह बड़े बड़े पत्थर उठाने की आज्ञा दे।
\v 3 उन पत्थरों को उस जगह पर रख जहाँ तुम आज रात रहोगे।"
\p
\s5
\v 4 तब यहोशू ने बारह पुरुष चुने, हर एक गोत्र में से एक। यहोशू ने उन्हें एक साथ बुलाया
\v 5 और उनसे कहा, "यरदन नदी के तल के बीच में जाओ और उस स्थान पर जहाँ तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का पवित्र सन्दूक लिए याजक खड़े हैं एक-एक बड़ा पत्थर कंधे पर उठा कर ले आओ, हर एक गोत्र के लिए एक, इस्राएलियों के बारह गोत्रों के लिए बारह पत्थर।
\s5
\v 6 ये पत्थर तुम लोगों के लिए स्मारक होंगे। भविष्य में, तुम्हारे बच्चे पूछेंगे, 'इन पत्थरों का क्या अर्थ है?'
\v 7 उनसे कहना कि यहोवा ने हमें जो पवित्र सन्दूक दिया था उसे उठाकर याजक यरदन में उतरे तो नदी के पानी का बहना रुक गया था। ज्यों ही सन्दूक नदी में लाया गया त्यों ही पानी का बहाव रुक गया कि हम नदी के सूखे तल में से होकर पार हो गए थे। इन पत्थरों को हम ने यहाँ रख दिया था कि यह स्थान हमें सदा स्मरण कराता रहे कि परमेश्वर ने इस्राएलियों के लिए क्या किया था।"
\p
\s5
\v 8 तब इस्राएलियों ने वह सब किया जिसकी आज्ञा यहोशू ने उन्हें दी थी। वे गए और यरदन नदी के तल के बीच से बारह बड़े-बड़े पत्थर उठा लिए, हर एक इस्राएली गोत्र के लिए एक पत्थर, जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा था, और वे उन पत्थरों को वहाँ ले गए जहाँ वे रह रहे थे, और उन्होंने पत्थरों को वहाँ रख दिया।
\v 9 तब यहोशू ने बारह अन्य पत्थरों को लिया और उन्हें यरदन नदी के बीच में खड़ा कर दिया, जहाँ याजक यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाकर खड़े थे और वह स्मारक आज इस दिन भी वहाँ है।
\p
\s5
\v 10 सन्दूक को उठाकर याजक यहोशू को दी गई परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार यरदन नदी के बीच में खड़े रहे जब तक कि लोगों ने नदी पार नहीं कर ली। यह ठीक वैसा ही था जैसा मूसा ने यहोशू को करने का आदेश दिया था। लोगों ने नदी को शीघ्र ही पार किया।
\v 11 जैसे ही सब लोगों ने नदी को पार किया और यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठानेवाले याजक भी पार चले गए। वहाँ उपस्थित सब लोग देख रहे थे।
\s5
\v 12 रूबेन और गाद के गोत्र के सैनिक और मनश्शे के गोत्र के आधे सैनिक पार होकर शेष इस्राएलियों से आगे निकल गए। जैसा कि मूसा ने उन्हें आदेश दिया था, वे एक सेना के रूप में आगे बढ़ गए।
\v 13 लगभग 40 हजार लोग यहोवा के सामने चल रहे थे। ये लोग हथियार लिए हुए थे और युद्ध के लिए तैयार थे, और वे यरीहो के मैदानी क्षेत्र की ओर जा रहे थे जहाँ वे युद्ध करेंगे।
\v 14 उस दिन, इस्राएलियों ने देखा कि यहोवा ने यहोशू को एक महान अगुवा बना दिया था। और उन्होंने यहोशू के जीवन भर उसका सम्मान किया - ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने मूसा का सम्मान किया था।
\s5
\v 15 यहोवा ने यहोशू से कहा,
\v 16 "अब पवित्र सन्दूक को उठानेवाले याजकों को आदेश दे कि वे सूखी यरदन नदी के तल से बाहर निकल आएँ।"
\s5
\v 17 तब यहोशू ने पुजारियों को नदी से बाहर आने का आदेश दिया।
\v 18 तब यहोवा द्वारा मूसा को दी गई दस आज्ञाओं के पवित्र सन्दूक को उठानेवाले याजक नदी के तल से बाहर निकल आए। और जैसे ही वे नदी के तल से बाहर निकले, यरदन नदी का पानी बहने लगा, और नदी फिर से भर गई, जैसी वह चार दिन पहले थी।
\p
\s5
\v 19 उस वर्ष के पहले महीने के दसवें दिन उन लोगों ने यरदन नदी को पार किया था और उन्होंने गिलगाल नामक एक स्थान पर छावनी डाली (जो यरीहो शहर के पूर्व में है)।
\v 20 यहोशू ने उन बड़े पत्थरों को गिलगाल में रखा।
\v 21 उसने इस्राएल के लोगों से कहा, "भविष्य में, तुम्हारे वंशज पूछेंगे, 'ये पत्थर यहाँ क्यों हैं?'
\s5
\v 22 उन्हें बताना कि, 'यह वह स्थान है जहाँ इस्राएलियों ने यरदन नदी को उसके सूखे तल पर पार किया था।'
\v 23 तुम्हारे परमेश्वर, यहोवा ने, नदी को सुखा दिया कि तुम सब उसके पार हो जाओ। जिस परमेश्वर यहोवा की तुम उपासना करते हो, उसने यरदन नदी के साथ भी ठीक वैसा ही किया जैसा उसने लाल समुद्र के साथ किया था, कि हम सब के पार हो जाने तक उसने उसे सुखा रखा ठीक वैसा ही जैसा उसने यहाँ किया है।
\v 24 यहोवा ने ऐसा इसलिए किया कि पृथ्वी के सब लोग जान सकें कि वह महा शक्तिशाली है, और तुम उसे उसके योग्य सम्मान दो।"
\s5
\c 5
\p
\v 1 यरदन नदी के पश्चिम में एमोरियों के सब राजाओं ने और भूमध्य सागर के तट के निकट रहने वाले सब राजाओं ने सुना कि यहोवा ने कैसे यरदन नदी के पानी को सुखा दिया था जब तक कि सब इस्राएली पार नहीं हो गए थे। वे इतना डरे हुए थे कि इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए साहस नहीं रहा क्योंकि उन्होंने उनके बारे में सब कुछ सुना था।
\p
\s5
\v 2 उस समय यहोवा ने यहोशू से कहा, "अब चकमक के पत्थरों से चाकू बनाओ और उन सभी इस्राएली पुरुषों का खतना करो जिनका खतना नहीं किया गया है।"
\v 3 तब यहोशू ने तेज पत्थरों के चाकू बनाए और उस जगह पर इस्राएली पुरुषों का खतना किया, जिसे अब गिबाथ हारलोथ कहा जाता है।
\s5
\v 4 ऐसा इसलिए किया गया कि जो पुरुष मिस्र से निकले थे, वे सैनिक बनने की आयु के थे, उन सभी का खतना हुआ था, लेकिन मिस्र छोड़ने के बाद वे सब मरुभूमि में मर गए थे।
\v 5 मिस्र में उनका खतना हुआ था, परन्तु जिन पुरुषों का जन्म मिस्र छोड़ने के बाद मरुभूमि में विचरण करते समय हुआ था, उनका खतना नहीं हुआ था।
\s5
\v 6 इस्राएली चालीस वर्ष तक मरुभूमि में ही भटकते रहे थे, उन्हीं वर्षों में वे सब पुरुष, जो सैनिक होने के लिए उचित आयु के थे, सब मर गए थे। उन्होंने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी थी, इसलिए यहोवा ने कहा कि वे उस देश को नहीं देख पाएँगे जिसकी प्रतिज्ञा उसने उनसे की थी- वह एक ऐसा देश है जो बहुत उपजाऊ था ऐसा उपजाऊ था कि उसके लिए कहा गया था कि उसमें दूध और मधु ऐसे बहता है, जैसे नदियों में पानी।
\v 7 ये पुरुष उन लोगों की संतान थे जो मर गए थे, यहोवा ने उनके स्थान पर उत्पन्न किया था। उसने उनका खतना किया क्योंकि जब वे मरुभूमि में भटक रहे थे तब उनका खतना नहीं हुआ था।
\s5
\v 8 सभी इस्राएली पुरुषों का खतना किए जाने के बाद, ये इस्राएली पुरुष शिविर में ही रहे और जब तक वे स्वस्थ नहीं हो गए तब तक उन्होंने विश्राम किया।
\v 9 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "आज मैंने तुम पर से मिस्र के अपमान को दूर कर दिया है।" इसलिए, उस जगह का नाम आज तक भी गिलगाल है।
\p
\s5
\v 10 उस महीने के चौदहवें दिन की शाम, जब इस्राएली यरीहो शहर के पास मैदान में गिलगाल में छावनी डाले हुए थे; वहाँ उन्होंने फसह का पर्व मनाया।
\v 11 फसह के अगले दिन उन्होंने बिना खमीर के आटे की रोटी खाई, और उन्होंने अनाज भूना।
\s5
\v 12 अगले दिन से परमेश्वर ने उन्हें खाने के लिए मन्ना भेजना बन्द कर दिया। उस वर्ष के आरम्भ में उन्होंने कनान देश में उगने वाले भोजन को खाया।
\p
\s5
\v 13 जब यहोशू यरीहो के पास खड़ा था, उसने ऊपर दृष्टि की और अपने सामने एक पुरुष को देखा। उस पुरुष ने अपनी तलवार खींची हुई थी। यहोशू उसके पास गया और उससे पूछा, "क्या तू हमारी ओर है, या हमारे शत्रुओं की ओर है?"
\s5
\v 14 उस पुरुष ने उत्तर दिया, "किसी की ओर नहीं। मैं यहोवा की सेना का सरदार हूँ, और अब मैं आ गया हूँ।" तब यहोशू मुँह के बल भूमि पर गिर गया कि उसका सम्मान करे। यहोशू ने उससे कहा, "हे स्वामी, तुम मुझे क्या करने का आदेश देते हो? मैं तुम्हारा सेवक हूँ।"
\v 15 यहोवा की सेना के सरदार ने उत्तर दिया, "अपनी जूतियों को अपने पैरों से उतार दे, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्र है।" अतः यहोशू ने अपनी जूतियाँ उतार दीं।
\s5
\c 6
\p
\v 1 अब यरीहो शहर के हर फाटक को दृढ़ता से बन्द कर दिया गया था, क्योंकि लोग इस्राएल की सेना से डरते थे। कोई भी शहर में प्रवेश नहीं कर सकता था या शहर से बाहर नहीं जा सकता था।
\v 2 यहोवा ने यहोशू से कहा, "देख, मैं क्या करता हूँ! मैं यरीहो तुझे दे रहा हूँ। यह तेरा होगा- इसके राजा और इसके सभी बहादुर सैनिकों के साथ।
\s5
\v 3 तुम शहर के चारों ओर चक्कर लगाओगे, एक बार। तेरे सब बहादुर सैनिक छः दिन तक प्रति दिन इसके चारों ओर एक बार चक्कर लगाएँ।
\v 4 सात याजकों को आज्ञा दे कि उनके साथ चक्कर लगाएँ। जब वे यहोवा के पवित्र सन्दूक के आगे आगे चलेंगे तब उनके हाथ में तुरहियाँ हों। सातवें दिन, सेना को सात बार शहर के चारों ओर चक्कर लगाने हैं, और याजकों को चक्कर लगाते समय बहुत ऊँचे शब्द में नरसिंगे फूँकने है।
\s5
\v 5 शहर के चारों ओर सात बार चक्कर लगाने के बाद, याजकों को मेढ़े के सींग के नरसिंगे को बहुत लम्बा फूँकना है। यह सुनते ही इस्राएलियों को बहुत ज़ोर से चिल्लाना है, और शहर की दीवार गिर जाएगी। तब हर एक सैनिक को सीधा शहर में घुस जाए।"
\p
\s5
\v 6 अतः यहोशू ने याजकों को बुला कर उनसे कहा, "चार याजकों को यहोवा के पवित्र सन्दूक उठा कर चलने के लिए कहो, और याजकों से कहो कि वे मेढ़े के सींग से बने सात नरसिंगे भी लें। उन्हें यहोवा के पवित्र सन्दूक के आगे आगे चलना होगा।"
\v 7 उसने लोगों से कहा, "जाओ और शहर के चारों ओर चक्कर लगाओ और हथियार लिए हुए पुरुषों को यहोवा के पवित्र सन्दूक के आगे चलने दो।"
\p
\s5
\v 8 यहोशू की सेना ने उसके आदेश अनुसार ही किया, सात याजक अपने अपने नरसिंगे लिए हुए, चक्कर लगाने लगे जैसे यहोवा ने कहा था। उन्होंने शहर के चक्कर लगाए और याजकों ने अपने नरसिंगे को बहुत ऊँचे शब्द से फूँका। यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठानेवाले, वे उनके पीछे पीछे चले।
\v 9 हथियार लिए हुए सैनिक नरसिंगे फूँकने वाले याजकों के आगे आगे गए। शेष सैनिक सन्दूक के पीछे पीछे चलते थे, जब वे चक्कर लगा रहे थे, तब याजक अपने नरसिंगों को लगातार फूँक रहे थे।
\s5
\v 10 परन्तु अन्य लोग चुप थे, क्योंकि यहोशू ने उन्हें यह कह कर आज्ञा दी थी, "युद्ध की ललकार मत करना। उस दिन तक न तो जयजयकार करना न ही एक शब्द भी मुँह से निकालना जब तक कि मैं तुम को जयजयकार करने के लिए नहीं कहता। उस दिन, तुमको जयजयकार करना है!"
\v 11 अतः यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठाने वाले पुरुषों ने और अन्य सभी लोगों ने वही किया, जिसकी आज्ञा यहोशू ने उनको दी थी। उन्होंने प्रति दिन शहर के चारों ओर एक बार चक्कर लगाया। तब वे सभी शिविर में लौट आए और रात में वहाँ रहे।
\p
\s5
\v 12 अगले दिन सुबह, यहोशू और याजक शीघ्र उठे और यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठा लिया।
\v 13 वे सात याजक जो मेढ़ों के सींगों से बने नरसिंगे लिए हुए थे, पवित्र सन्दूक उठाए हुए याजकों के आगे आगे गए। जब वे चले, उन्होंने उनके ऊँचे शब्द से नरसिंगे फूँके। सैनिक उनके आगे आगे चले और सेना के पीछे के पहरेदार यहोवा के पवित्र सन्दूक के पीछे पीछे चले। याजक अपने नरसिंगों को लगातार फूँकते जा रहे थे।
\v 14 अतः उस दूसरे दिन, एक बार फिर से उन्होंने शहर के चारों ओर एक बार चक्कर लगाया और फिर शिविर में लौट आए। उन्होंने ऐसा छः दिन तक किया।
\p
\s5
\v 15 सातवें दिन, वे भोर को ही उठ गए उन्होंने शहर के चारों ओर वैसे ही चक्कर लगाया जैसे उन्होंने पहले किया था, लेकिन इस बार उन्होंने शहर के चारों ओर सात बार चक्कर लगाया।
\v 16 जब वे सातवीं बार चक्कर लगा रहे थे, और याजक अपने नरसिंगों पर लम्बा शब्द फूँकने को थे, तब यहोशू ने लोगों को आज्ञा दी, "जयजयकार करो! क्योंकि यहोवा तुमको यह शहर दे रहा है!
\s5
\v 17 यहोवा ने घोषणा की है कि यह शहर और जो कुछ इसमें है सब नष्ट करना होगा जिससे स्पष्ट हो कि यह उसका है। केवल राहाब वेश्या ही जीवित रहेगी - और उसके साथ जो लोग उसके घर में होंगे, क्योंकि उसने उन जासूसों को छिपाया था जिन्हें हमने भेजा था।
\v 18 और क्योंकि यहोवा की आज्ञा है कि सबकुछ नष्ट किया जाना चाहिए, तुम्हें इस शहर की किसी भी वस्तु को नहीं लेना है यदि तुम वहाँ से कुछ भी लेते हो, तो तुम यहोवा को विवश करोगे कि वह इस्राएल के शिविर को नष्ट करे और उस पर परेशानी डाले।
\v 19 परन्तु सभी चाँदी और सोना, और लोहे और काँसे से बनी वस्तुएँ जो तुमको मिलती हैं, उन्हें यहोवा के लिए अलग करना होगा। तुमको उन वस्तुओं को उनके भण्डार में रखना होगा।"
\p
\s5
\v 20 इसलिए उन्होंने यहोशू की आज्ञा के अनुसार ही किया। जब याजकों ने अपने नरसिंगों पर एक स्वर खींचा, तब लोगों ने जोर से जयजयकार किया, और शहर की दीवार गिर गई! तब लोग जहाँ भी थे वहीं से वे सीधे शहर में चले गए थे, और उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया।
\v 21 उन्होंने शहर में सभी जीवित प्राणियों को मार डाला पुरुष और स्त्री, जवान और बूढ़े, यहाँ तक कि मवेशी और भेड़ों और गधों को भी।
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने उन दो पुरुषों से जो उस देश का भेद लेने गए थे, कहा, "उस वेश्या के घर जाओ और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसे और उसके पूरे परिवार को बाहर ले आओ।"
\s5
\v 23 अतः जिन दो युवकों ने उस देश की छान-बीन की, वे राहाब और उसके पिता, माता, भाइयों और सभी सम्बन्धियों को बाहर लाए। वे उन्हें इस्राएल के शिविर के बाहर एक स्थान पर लाए।
\v 24 तब उन्होंने शहर को और जो कुछ उसमें था सब को जला दिया। उन्होंने चाँदी, सोना, और काँसे और लोहे के सभी पात्रों को बचा लिया, जिन्हें उन्होंने यहोवा के भवन के भण्डार में रखा जाना था।
\s5
\v 25 परन्तु यहोशू ने राहाब वेश्या को, और उसके पिता के घराने को, उसके साथ सब को जीवित रहने दिया। आज के दिन तक उसके वंशज इस्राएल में रहते हैं क्योंकि उसने उन भेदियों को छिपाया था जिनको यहोशू ने यरीहो की छान-बीन करने के लिए भेजा था। उन्होंने उनके जीवन की सुरक्षा की प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 26 उस समय, यहोशू ने बहुत ही गम्भीर घोषणा की थी: "यहोवा इस यरीहो शहर को फिर से बनानेवाले को शाप दे। जब वह व्यक्ति इसकी नींव रखता है, तो उसका सबसे बड़ा पुत्र मर जाए। और जब वह शहर की दीवार का निर्माण कर लेता है और इसके फाटकों को लगा देता है, तब उसका सबसे छोटा पुत्र मर जाए।"
\p
\v 27 यहोवा यहोशू के साथ था, और देश में हर कोई जानता था कि यहोशू कौन है।
\s5
\c 7
\p
\v 1 यहोवा ने यह आज्ञा दी थी कि यरीहो में जो कुछ उन्होंने अधिकार में कर लिया था, उसे नष्ट कर दिया जाए जिससे स्पष्ट हो कि वह यहोवा का है। परन्तु यहूदा के गोत्र में आकान नाम का एक व्यक्ति था। वह कर्म्मी का पुत्र, और जब्दी का पोता, और जेरा का परपोता था। उसने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना और उन वस्तुओं में से कुछ वस्तुएँ स्वयं के लिए रख लीं। इसलिए यहोवा इस्राएलियों से बहुत क्रोधित हो गए।
\p
\s5
\v 2 अब यहोशू ने अपने कुछ पुरुषों को यरीहो से ऐ शहर में जाने के लिए कहा, जो बेतेल के पूर्व और बेतावेन के पास था। उसने उनसे कहा, "ऐ को जाओ और उस क्षेत्र की जासूसी करो।" अतः उन पुरुषों ने जाकर शहर की जासूसी की।
\p
\v 3 जब वे यहोशू के पास लौट आए तो उन्होंने कहा, "ऐ में केवल कुछ ही लोग हैं। इसलिए उन पर आक्रमण करने के लिए केवल दो या तीन हजार को ही भेज। हमारे सभी सैनिकों को भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
\s5
\v 4 इसलिए लगभग तीन हजार इस्राएली पुरुष ऐ पर आक्रमण करने गए। परन्तु वे उन्हें पराजित नहीं कर पाए। इसकी अपेक्षा, उन्हें अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा।
\v 5 शत्रु ने लगभग छत्तीस इस्राएली लोगों को मार डाला और शहर के फाटक से पहाड़ी के नीचे तक बचे हुओं का पीछा किया, वरन उस स्थान तक जहाँ उन लोगों ने एक पहाड़ी से पत्थर काटे थे। जब इस्राएल के लोगों ने यह देखा, तो वे बहुत डर गए और उनका साहस जाता रहा।
\p
\s5
\v 6 यहोशू ने अपना दुःख प्रकट करने के लिए अपने कपड़े फाड़ लिए। उसने और इस्राएल के अगुवों ने दुःख एवं क्रोध के कारण स्वयं को धरती पर मुँह के बल गिराया। वे यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने अंधेरा होने तक पड़े रहे।
\v 7 तब यहोशू ने प्रार्थना की और कहा, "हे यहोवा परमेश्वर, आप हम इस्राएलियों को यरदन नदी के पार सुरक्षित ले आए हैं; तो अब आप एमोरियों को हमें नाश करने की अनुमति क्यों दे रहे हैं? हमें यरदन नदी की दूसरी ओर ही रुक जाने का निर्णय लेना था।
\s5
\v 8 हे परमेश्वर, मेरे पास आपसे कहने के लिए और शब्द नहीं हैं। इस्राएल पराजय में भाग खड़ा हुआ है। अपने शत्रुओं को पीठ दिखाकर हम लज्जित हैं क्योंकि हम अपने शत्रुओं के सामने से भाग खड़े हुए हैं। मैं नहीं जानता कि क्या कहूँ।
\v 9 कनानी और इस क्षेत्र में रहनेवाले अन्य सभी लोग, इसके बारे में सुनेंगे। तब वे हमें चारों ओर से घेर लेंगे और हम सब को मार डालेंगे! तब आप अपने सम्मान की रक्षा के लिए क्या करेंगे?"
\p
\s5
\v 10 परन्तु यहोवा ने यहोशू से कहा, "खड़ा हो जा! अपने चेहरे को गन्दगी में डाल कर लेटा मत रह!
\v 11 इस्राएल ने पाप किया है। तुम लोगों ने मेरी आज्ञाओं को नहीं माना है। उन्होंने झूठ बोला है, उन्होंने चोरी की है, और चोरी के सामान को उसे रख लिया है और उसे छिपाने के लिए अपनी सम्पत्ति के साथ रखा है।
\v 12 यही कारण है कि इस्राएली अपने शत्रुओं को हराने में असमर्थ रहे हैं। यही कारण है कि वे भाग खड़े हुए हैं, और अब तुम स्वयं ही नष्ट हो जाओगे। यदि तुम मेरी आज्ञा के अनुसार यरीहो से ली गई सब वस्तुओं को नष्ट नहीं कर देते हैं, तो मैं अब से तुम्हारी सहायता नहीं करूँगा!
\p
\s5
\v 13 अब जा और लोगों से कह कि कल उन्हें स्वयं को अलग करना होगा और यहोवा का सम्मान करने के लिए तैयार रहना होगा। यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर यों कहता है, "तुमने उन वस्तुओं को अपने लिए रख लिया है जिन्हें मैंने नष्ट करने की आज्ञा दी थी। वे वस्तुएँ मुझे दी जानी चाहिए थी। जब तक तुम यरीहो से ली गई वस्तुओं से छुटकारा नहीं पाते हो जिन्हें तुमने अपनी सम्पत्ति के साथ छिपाया हुआ है, तब तक तुम अपने शत्रुओं को कभी पराजित नहीं कर पाओगे।"
\p
\s5
\v 14 कल सुबह तुम मेरे सामने गोत्र गोत्र करके उपस्थित होगे। तब मैं जिस गोत्र का नाम चिट्ठी डालने के द्वारा चुना जाएगा वह मेरे सामने अपने परिवारों के साथ एक एक करके आएगा और जिस परिवार को मैं चिट्ठी के द्वारा चुनता हूँ वह उनके घराने के हर एक सदस्य के साथ निकट आ जाएगा। जिस घराने को मैं चिट्ठी के द्वारा चुनता हूँ, उनमें से हर एक सदस्य, मेरे सामने आएगा।
\v 15 तब जिसने वे वस्तुएँ ले ली हैं जो मुझे दी जानी चाहिए थीं वह आग में नष्ट हो जाएगा। वह और उसके पास जो कुछ भी है वह जला दिया जाएगा, क्योंकि उसने यहोवा की ओर से हमारे साथ की गई प्रतिज्ञा और समझौते की अवज्ञा की है, और उसने इस्राएल के लोगों के बीच एक अपमानजनक पाप किया है।"
\p
\s5
\v 16 अगली सुबह भोर के समय, यहोशू ने सब इस्राएलियों को, गोत्र गोत्र करके आराधना के स्थान के पास आने के लिए कहा। जब उन्होंने ऐसा किया, तब यहोवा ने संकेत दिया कि यहूदा के गोत्र का एक व्यक्ति चुना गया है।
\v 17 तब यहूदा के कुलों ने स्वयं को उपस्थित किया, और यहोवा ने जेरह के वंश को चुना। तब जेरह के वंश के परिवारों ने स्वयं को उपस्थित किया, और यहोवा ने संकेत दिया कि वह व्यक्ति जब्दी के परिवार से है।
\v 18 तब यहोशू ने उस परिवार के पुरुषों को आज्ञा दी कि वे एक एक करके उपस्थित हों जिससे कि दोषी व्यक्ति का चयन किया जा सके। तब यहोवा ने संकेत दिया कि आकान ही वह दोषी व्यक्ति था और उसे यहूदा के लोगों से बाहर ले जाया गया। आकान कर्म्मी का पुत्र था; कर्म्मी जब्दी का पुत्र था; और जब्दी जेरह का पुत्र था।
\p
\s5
\v 19 तब यहोशू ने आकान से कहा, "हे पुत्र, इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के प्रति अपना अपराध मान ले। मुझे बता कि तू ने क्या किया है, और मुझसे छिपाने का प्रयास मत कर।"
\p
\v 20 आकान ने उत्तर दिया, "यह सच है। मैंने इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। मैंने जो किया वह यह है:
\v 21 यरीहो में मिली वस्तुओं के बीच में मैंने बेबीलोन का एक सुन्दर अंगरखा देखा था। वहीँ पर मैंने दो किलोग्राम चाँदी और कुछ सोना भी देखा जो छः सौ ग्राम वजन का था। मैं उन वस्तुओं का लालच करने लगा, इसलिए मैंने उन्हें ले लिया। मैंने उन्हें अपने तम्बू के नीचे भूमि में गाड़ा है। तू उन्हें वहीं पाएगा। चाँदी को उन सब के नीचे गाड़ दिया है।"
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने उन वस्तुओं को खोजने के लिए कुछ पुरुषों को भेजा। वे आकान के तम्बू में भाग कर गए और वहाँ छिपी हुई सब वस्तुएँ निकाल लीं।
\v 23 उन पुरुषों ने वह सब सामान तम्बू से बाहर निकाला और उन्हें यहोशू और इस्राएलियों के पास लेकर आए। तब उन्होंने यहोवा के लिए भेंट के जैसे उन्हें बाहर रखा।
\p
\s5
\v 24 तब यहोशू और सब लोग आकान को नीचे घाटी में ले गए। वे चाँदी, अंगरखा, सोना, आकान की पत्नी और पुत्रों और पुत्रियों, और उसके पशुओं और गधे, और भेड़, और उसके तम्बू और उसके पास जो कुछ भी था, वह सब ले गए।
\s5
\v 25 यहोशू ने कहा, "मुझे नहीं पता कि तू ने हमारे लिए इतनी परेशानी क्यों उत्पन्न की, परन्तु अब यहोवा तुम पर परेशानी डालेंगे।" तब सभी लोगों ने आकान पर पत्थर फेंके कि वह मर जाए, और उन्होंने उन सब को आग से जला दिया, और उन्होंने उन सब पर पत्थर फेंके।
\p
\v 26 उन्होंने उनकी लाशों की राख पर चट्टानों का ढेर लगा दिया, वे चट्टानें आज भी वहाँ हैं। यही कारण है कि उस घाटी को आज तक परेशानी की घाटी कहा जाता है।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "डर मत या निराश न हो। अपने साथ अपने सब सैनिकों को लेकर फिर से वहाँ जा। ऐ पर चढ़ाई कर। देख! मैं तुम्हें ऐ के राजा पर विजय दिला रहा हूँ, और तुम उसके लोगों, और उसके शहर, और उसके देश पर अधिकार करोगे।
\v 2 तेरी सेना ऐ और उनके राजा और वहाँ के लोगों के साथ वैसा ही करेगी जैसा तुमने यरीहो के लोगों और उनके राजा के साथ किया था। लेकिन इस बार मैं तुम्हें उनकी सारी संपत्ति लेने और उन्हें अपने लिए रखने की अनुमति दूँगा। परन्तु पहले, अपने कुछ सैनिकों को शहर के पीछे छिपने और हमला करने के लिए तैयार रहने के लिए कह।"
\p
\s5
\v 3 अतः यहोशू अपनी सारी सेना को ऐ की ओर ले गया। उसने तीस हजार पुरुषों को चुना उसके सबसे शक्तिशाली पुरुष, ऐसे पुरुष जो युद्ध में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे और उसने उनको रात के समय बाहर भेज दिया।
\v 4 उसने उनसे कहा, "ध्यान से सुनो! तुम में से कुछ को शहर पर अकस्मात आक्रमण करने के लिए तैयार रहना है जो शहर के पीछे की ओर से किया जाएगा। शहर से दूर मत जाना। तुम सब आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाओ।
\s5
\v 5 मैं और मेरे साथ रहने वाले पुरुष सुबह शहर की ओर बढ़ेंगे। शहर में रहने वाले लोग हमसे लड़ने के लिए बाहर आएँगे, जैसा कि उन्होंने पहले किया था। तब हम पीछे की ओर मुड़ेंगे और उनके सामने से भागने लगेंगे।
\v 6 वे सोचेंगे कि हम उनसे डर कर भाग रहे हैं जैसे हमने पहले किया था। इसलिए वे हमारा पीछा करते हुए शहर से दूर निकल आएँगे।
\v 7 तब तुम में से जो छिपे हुए होंगे, उन्हें बाहर आना होगा और भाग कर शहर में घुस जाना है और उस पर अधिकार कर लेना है। यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, यह शहर तुमको दे देगा।
\s5
\v 8 शहर पर अधिकार कर लेने के बाद, उसे जला देना। यहोवा ने हमें जो आदेश दिया है वह करो। यही वे आदेश है जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ।"
\p
\v 9 तब यहोशू ने उनमें से कुछ को ऐ नगर के पश्चिम में, ऐ और बेतेल के बीच छिप कर रहने और प्रतीक्षा करने के लिए भेजा। लेकिन यहोशू उस रात सैनिकों के मुख्य बल के बीच सो गया।
\p
\s5
\v 10 अगली सुबह भोर के समय, यहोशू ने अपने सैनिकों को एकत्र किया। उसने सैनिकों का और अन्य इस्राएली अगुवों का नेतृत्व किया; वे सब ऐ के लोगों पर आक्रमण करने गए।
\v 11 उन सब ने शहर के ठीक उत्तर में, ऐ के निकट अपने तम्बू खड़े किए, कि शहर के सब लोग उन्हें देख सकें। उनके और ऐ शहर के बीच एक घाटी थी।
\v 12 यहोशू ने लगभग पाँच हजार लोगों को ले लिया और उन्हें शहर के ठीक पश्चिम में ऐ और बेतेल के बीच जाने और छिप कर रहने के लिए कहा ताकि वे अकस्मात आक्रमण कर सकें।
\s5
\v 13 अतः उन पुरुषों ने ऐसा ही किया। सैनिकों का मुख्य दल शहर के उत्तर में था, और अन्य शहर के पश्चिम में छिपे हुए थे। उस रात यहोशू नीचे घाटी में चला गया।
\p
\v 14 जब ऐ के राजा ने इस्राएली सेना को देखा, तो वह और उसके सैनिक अगली सुबह भोर के समय उठ गए और शीघ्र ही शहर से बाहर उनसे लड़ने के लिए निकल आए। वे शहर के पूर्व में एक स्थान पर गए वहाँ से वे यरदन नदी के मैदान को देख सकते थे, परन्तु उन्हें नहीं पता था कि कुछ इस्राएली सैनिक शहर पर पीछे से आक्रमण करने के लिए तैयार होकर छिपे हुए थे।
\s5
\v 15 यहोशू और उसके साथ इस्राएली सैनिकों ने उन्हें खदेड़ने के लिए ऐ की सेना को अवसर दिया। और इस्राएल की सेना जंगल की ओर भागी।
\v 16 ऐ के पुरुषों को यहोशू और उसके लोगों का पीछा करने का आदेश दिया गया था। इसलिए उन्होंने शहर छोड़ दिया और यहोशू और उनकी सेना का पीछा किया।
\v 17 ऐ के और बेतेल के सब पुरुषों ने इस्राएलियों की सेना का पीछा किया। उन्होंने रक्षा के लिए ऐ में एक भी पुरुष को नहीं छोड़ा। उन्होंने शहर के फाटकों को खुला छोड़ दिया था।
\p
\s5
\v 18 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "अपना भाला उठा और ऐ की ओर संकेत कर, क्योंकि मैं तेरे सैनिकों को उस पर अधिकार करने के लिए योग्य कर दूँगा!" तो यहोशू ने अपने भाले से ऐ की ओर संकेत किया।
\v 19 जब छिपे हुए इस्राएली पुरुषों ने यह देखा तो वे अतिशीघ्र अपने छिपने के स्थान से निकले और भाग कर शहर में घुस गए। उन्होंने इस पर अधिकार कर लिया और इसमें आग लगा दी।
\p
\s5
\v 20 जब ऐ के पुरुषों ने मुड़ कर पीछे देखा, तो उन्हें अपने शहर से धुआँ उठता हुआ दिखाई दिया। परन्तु वे बच नहीं पाए, क्योंकि इस्राएली सैनिकों ने भागना बन्द कर दिया और अब वे उनके पीछे आने वाली सेना का सामना करने लगे।
\v 21 यहोशू और उसके पुरूषों ने देखा कि जो लोग छिपे हुए थे, उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया है और उसे जला रहे हैं, उन्होंने वहाँ से धुआँ उठता हुआ देखा। तो वे लौटे और ऐ के लोगों की हत्या करना शुरू कर दिया।
\s5
\v 22 इस बीच, जिन सैनिकों ने शहर पर अधिकार कर लिया था, वे बाहर आए और उन पर पीछे से आक्रमण किया। इसलिए ऐ के पुरुष इस्राएली सैनिकों के दो दलों से घिर गए थे। ऐ का कोई भी पुरुष बच नहीं पाया। इस्राएली तब तक लड़े जब तक कि उन्होंने उन सब को मार नहीं डाला।
\v 23 उन्होंने ऐ के राजा को बंदी बना लिया और उसे यहोशू के पास ले आए।
\p
\s5
\v 24 जब वे लड़ रहे थे, तब इस्राएली सेना ने ऐ के पुरुषों का खेतों में और जंगल में ऐ के पुरुषों का पीछा किया, और उन सब को मार डाला। तब वे ऐ के भीतर गए और जो कुछ अब भी जीवित था, मार डाला।
\v 25 उन्होंने बारह हजार पुरुषों और महिलाओं को मार डाला।
\v 26 यहोशू ऐ की ओर उसके भाले से तब तक संकेत करता रहा जब तक कि ऐ में रहने वाले सब लोग मार नहीं डाले गए।
\s5
\v 27 इस्राएली सैनिकों ने स्वयं के लिए जानवरों और अन्य वस्तुओं को ले लिया जो ऐ के लोगों की थीं, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने यहोशू से कहा था।
\p
\v 28 यहोशू और उसके सैनिकों ने ऐ को जला दिया और उसे सदा के लिए खंडहरों का ढेर बना दिया। यह आज भी एक त्यागा हुआ स्थान है।
\s5
\v 29 यहोशू ने ऐ के राजा को एक पेड़ पर फाँसी दी और शाम तक उसकी लाश को वहीं लटका रहने दिया। सूरज के ढलने के समय यहोशू ने अपने लोगों से राजा के शरीर को पेड़ से नीचे उतारने और उसे शहर के फाटक के पास फेंक देने की आज्ञा दी। ऐसा करने के बाद, उन्होंने उसके शरीर के ऊपर चट्टानों का एक बड़ा ढेर लगा दिया। चट्टानों का वह ढेर आज भी वहाँ है।
\p
\s5
\v 30 तब यहोशू ने अपने लोगों को आज्ञा दी कि एबाल पर्वत पर इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के लिए एक वेदी बनाएँ।
\v 31 उन्होंने उसे ठीक वैसा ही बनाया जैसा परमेश्वर के सेवक मूसा ने उन नियमों में लिखा था जिन्हें परमेश्वर ने उसे दिए थे। उन्होंने इसे उन पत्थरों से बनाया जो काटे नहीं गए थे, ऐसे पत्थर जिन पर उन्होंने लोहे के औज़ार का उपयोग नहीं किया था। तब इस्राएली लोगों ने यहोवा के लिए बलि चढ़ाई जिसे वेदी पर जला दिया गया था। उन्होंने उसके साथ मेल करने की प्रतिज्ञा करके भी बलि चढ़ाई।
\v 32 इस्राएलियों की आँखों के सामने, यहोशू ने पत्थरों पर मूसा को दिए गए परमेश्वर के नियमों की एक नकल तैयार की।
\s5
\v 33 इस्राएल के अगुवे, अधिकारी, न्यायी और अन्य इस्राएली वहीं पास में खड़े हुए थे। बहुत से ऐसे लोग जो इस्राएली नहीं थे, वे भी वहाँ थे। आधे लोग एक ओर एबाल पर्वत के नीचे की घाटी में खड़े थे, और अन्य आधे लोग दूसरी ओर गिरिज्जीम पर्वत के नीचे की घाटी में खड़े थे। पवित्र सन्दूक दो समूहों के बीच घाटी में था। और उन्होंने इस्राएल के लोगों को आशीर्वाद दिया जैसा यहोवा के दास मूसा ने उन्हें आरम्भ ही में करने के लिए कहा था।
\p
\s5
\v 34 तब यहोशू ने उन सब के सामने जो मूसा द्वारा लिखी गई बातें थीं पढ़ीं; इसमें वह सब था जो यहोवा ने उन्हें सिखाया था और उनके आज्ञा मानने पर आशीषों तथा आज्ञा न मानने पर श्रापों की प्रतिज्ञा की गई थी।
\v 35 यहोशू ने मूसा द्वारा दिए गए सब आदेशों को ध्यान से पढ़ा; उसने इस्राएल की सभा के सामने हर एक शब्द को पढ़ा। महिलाएँ और छोटे बच्चे भी वहाँ थे, और इस्राएलियों के मध्य रहने वाले परदेशी भी वहाँ थे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 यरदन नदी के पश्चिमी तट के क्षेत्रों पर राज करनेवाले अनेक राजा थे। वे हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों के राजा थे। वे पहाड़ी क्षेत्र में, पश्चिम की ओर निचली पहाड़ियों में और भूमध्य सागर के निकट के मैदानों में रहते थे। ऐ के साथ जो हुआ उसके बारे में उन्होंने सुना।
\v 2 इसलिए उन सब ने यहोशू और इस्राएली सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए एक अगुवे के अधीन अपनी सेनाएँ एकत्र कीं।
\p
\s5
\v 3 जब गिबोन शहर में रहने वाले लोगों ने सुना कि यहोशू की सेना ने यरीहो और ऐ के लोगों को पराजित किया है,
\v 4 तो उन्होंने इस्राएलियों को धोखा देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने कुछ लोगों को भेजा जिन्होंने उनके राजदूत होने का नाटक किया। इन पुरुषों ने कुछ पुराने बोरे और कुछ पुराने चमड़े के शराब के थैले लिए जिन्हें फट जाने के बाद जोड़ा गया था, और उन्हें गधों की पीठ पर लाद दिया।
\v 5 उन्होंने पुरानी जूतियों को पहन लिया जिन पर जोड़ लगा हुआ था और फटे पुराने वस्त्र पहने। और अपने साथ सूखी और फफूंदी लगी रोटी ले ली।
\s5
\v 6 वे गिलगाल गए जहाँ यहोशू और इस्राएलियों के तम्बू थे। उन्होंने उनसे कहा, "हम बहुत दूर के देश से यात्रा करके आए हैं। कृपया हमारे साथ शान्ति का समझौता करो।"
\p
\v 7 इस्राएली अगुवों ने गिलाद के उन लोगों से कहा (वे हिब्बी थे), "ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लोग निकट के ही रहनेवाले हो। हम तुम्हारे साथ समझौता कैसे कर सकते हैं?"
\p
\v 8 उन्होंने बल देकर यहोशू को उत्तर दिया, "हम आपके सेवक हैं!"
\p परन्तु यहोशू ने उत्तर दिया, "तुम कौन हो? तुम वास्तव में कहाँ से आते हो?"
\p
\s5
\v 9 गिबोन के लोगों ने उत्तर दिया, "हम आपके सेवक बनना चाहते हैं। हम आपके परमेश्वर यहोवा की प्रसिद्धि के कारण दूर देश से यहाँ आए हैं। हमने मिस्र में उसके द्वारा किए गए सब महान कामों के बारे में सुना है।
\v 10 और हमने सुना है कि उसने एमोरियों के उन दो राजाओं के साथ क्या किया जो यरदन नदी के पूर्व की ओर हैं सीहोन, जो राजा हेशबोन में शासन करता था, और ओग, बाशान का राजा जो अश्तारोत में रहता था।
\s5
\v 11 इसलिए हमारे अगुवों और हमारे लोगों ने हमसे कहा, 'कुछ खाना लो और इस्राएलियों से बात करने के लिए जाओ। उन्हें बताओ, "हम आपके सेवक बनना चाहते हैं। तो हमारे साथ शान्ति का समझौता करो।"
\v 12 "हमारी रोटी को देखो। जब हमने यहाँ तुम्हारे पास आने के लिए अपने घरों को छोड़ा था तब ये रोटियाँ ताज़ी और गर्म थीं। परन्तु अब यह सूखी और फफूंदी लगी हुई हैं।
\v 13 हमारे चमड़े के शराब के थैलों को देखो, हमारे निकलने से पहले हमने उन्हें शराब से भर दिया था तब वे नए थे, लेकिन अब वे फटे हुए और पुराने हैं। यहाँ आने के लिए लम्बी यात्रा करने के कारण हमारे कपड़े और हमारी जूतियाँ फट गई हैं।"
\p
\s5
\v 14 इस्राएली अगुवों ने उनके कुछ पुराने भोजन को स्वीकार कर लिया और शान्ति समझौता करने के लिए उनके साथ भोजन खाया। उन्होंने यहोवा से पूछने के बारे में नहीं सोचा कि उन्हें क्या करना चाहिए।
\v 15 इस प्रकार, यहोशू उनके साथ शान्ति हेतु तैयार हो गया। इस्राएलियों ने गिबोन के लोगों के साथ समझौता किया, जिसमें वे इन परदेशियों को न मारने के लिए सहमत हो गए थे। सब इस्राएली अगुवों ने इसके निमित्त गम्भीर शपथ खाई।
\p
\s5
\v 16 परन्तु, तीन दिन बाद इस्राएलियों ने जान लिया कि वे पुरुष गिबोन से आए थे और वे वास्तव में निकट ही रहते थे।
\v 17 इसलिए वे वहाँ गए जहाँ गिबोन के लोग रहते थे। केवल तीन दिन की यात्रा करने के बाद, वे उनके शहरों में आए: गिबोन, कपीरा, बेरोत और किर्यत्यारीम।
\s5
\v 18 परन्तु इस्राएलियों ने उन शहरों पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि उन्होंने उनके साथ शान्ति की गम्भीर शपथ खाई थी, और यहोवा ने उनकी इस प्रतिज्ञा को सुना था।
\p इस समझौते के कारण सब इस्राएली अपने अगुवों के प्रति क्रोधित थे।
\v 19 परन्तु अगुवों ने उत्तर दिया, "हमने उनके साथ शान्ति से रहने की शपथ खाई है और इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा ने हमारी इस शपथ को सुना है। इसलिए अब हम उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचा सकते।
\s5
\v 20 यदि हम उन्हें मार डालते हैं, तो परमेश्वर हमसे बहुत क्रोधित होगा और हमें दण्ड देगा क्योंकि हमने उनके साथ खाई अपनी शपथ को पूरा नहीं किया है, यह हमें गम्भीर शपथ से बाँधता है। परन्तु हम ऐसा कर सकते हैं:
\v 21 हम उन्हें जीने देंगे, परन्तु वे हमारे दास बने रहेंगे; वे लकड़ी काटेंगे और सब लोगों के लिए पानी भर कर लाएँगे।" अगुवों ने जैसी योजना बनाई थी वैसा ही हुआ।
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने गिबोन से लोगों को बुलाया और उनसे पूछा, "तुमने हमसे झूठ क्यों बोला? तुम्हारे घर हमारे निकट हैं; तुम हमारे निकट रहते हो, परन्तु हमें बताया कि तुम बहुत दूर देश से आए थे!
\v 23 अब तुम एक श्राप के अधीन रहोगे। तुम सदा के लिए हमारे दास होगे और हमारे परमेश्वर के घर के लिए लकड़ी काट कर लाओगे तथा पानी भरोगे।"
\p
\s5
\v 24 गिबोन के लोगों ने उत्तर दिया, "हमने आपसे झूठ बोला क्योंकि हम डर गए थे कि आप हमें मार डालेंगे। हमने सुना है कि यहोवा, जो तुम्हारा परमेश्वर है, उसने अपने दास मूसा को कह दिया था कि वह आपके लोगों को कनान में रहनेवाले हम सब को मारने में सक्षम करेंगे, और वह तुम्हें हमारा देश दे देंगे।
\v 25 तो अब आपको यह निर्णय लेना होगा कि तुम हमारे साथ क्या करोगे। जो कुछ भी तुम्हें अच्छा और सही लगता है वह तुम हमारे साथ करो।"
\p
\s5
\v 26 अतः यहोशू ने गिबोन के लोगों की जान बचाई; उसने इस्राएल की सेना को अनुमति नहीं दी कि उनकी हानि करें।
\v 27 उसने उन्हें इस्राएलियों के दास होने के लिए विवश किया। वे लकड़ी काटते थे और इस्राएल के लिए पानी भरते थे। साथ ही वे यहोवा की पवित्र वेदी के लिए आवश्यक लकड़ी और पानी भी लाते थे। और गिबोन के लोग आज भी, इस समय तक, ऐसा कर रहे हैं।
\s5
\c 10
\p
\v 1 यरूशलेम शहर के राजा अदोनीसेदेक ने सुना कि यहोशू की सेना ने ऐ पर अधिकार कर लिया है और शहर में सब कुछ नष्ट कर दिया है। उसने सुना कि उन्होंने ऐ के लोगों और उनके राजा के लोगों के साथ वैसा ही किया था जैसा उन्होंने यरीहो के लोगों और उनके राजा के साथ किया था। उसने यह भी सुना कि गिबोन शहर के लोगों ने इस्राएली लोगों के साथ शान्ति स्थापित कर ली है और वे अब इस्राएली लोगों के बीच रह रहे थे।
\v 2 यरूशलेम के लोग बहुत डर गए क्योंकि गिबोन अन्य शहरों के समान एक महत्वपूर्ण शहर था, जिनके राजा थे। गिबोन ऐ से भी बड़ा था, और उसके सभी सैनिक बहुत अनुभवी थे।
\s5
\v 3 तब राजा अदोनीसेदेक ने हेब्रोन के राजा होशाम को, यर्मुत के राजा पिराम, लाकीश के राजा यापी और एग्लोन के राजा दबीर को संदेश भेजे।
\v 4 संदेश में उसने कहा, "कृपया चले आओ और गिबोन पर आक्रमण करने में मेरी सहायता करो, क्योंकि गिबोन के लोगों ने यहोशू और इस्राएलियों के साथ शान्ति स्थापित कर ली है।"
\p
\s5
\v 5 अतः वे पाँच राजा जो उन समूहों पर शासन करते थे जो अमोर के वंशज थे यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मुत, लाकीश और दबीर के राजा अपने सैनिकों के साथ गिबोन आए और उससे युद्ध करने के लिए शहर को घेर लिया।
\p
\s5
\v 6 गिबोन के लोगों ने यहोशू को एक संदेश भेजा। उस समय वह गिलगाल में शिविर डाले हुए था। उन्होंने कहा, "हम आपके दास हैं। इसलिए हमें मत छोड़ो। हमारे पास शीघ्र चले आओ और हमें बचाओ! हमारी सहायता करो, क्योंकि एमोरियों के राजा और उनकी सेनाओं ने हम पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेनाओं को संगठित किया है!"
\p
\v 7 अतः यहोशू और उसकी सारी सेना, सैनिक और सबसे अच्छे योद्धा, गिलगाल से चल दिए।
\s5
\v 8 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "उन सेनाओं से मत डर! मैं उन्हें पराजित करने में तेरी सेना की सहायता करूँगा। उनका एक भी सैनिक तेरा विरोध नहीं करेगा।"
\p
\s5
\v 9 यहोशू की सेना पूरी रात चली और सुबह भोर के समय वहाँ पहुँच गई।
\v 10 जब उन्होंने इस्राएलियों की सेना को देखा तब यहोवा ने उन्हें घबरा दिया। यहोशू ने सेना का नेतृत्व किया और उसने उन्हें मार डाला गिबोन में उनके शत्रु बड़ी संख्या में मारे गए, और उनमें से बचे हुए जब बेथोरोन के मार्ग पर जा रहे थे। तब उसने उनका पीछा किया और अजेका और मक्केदा शहरों को जानेवाले मार्गों पर उन्हें मारा।
\s5
\v 11 जब वे इस्राएली सेना के सामने से भाग रहे थे तब यहोवा ने आकाश से उन पर बड़े बड़े पत्थर बरसाए। इस्राएल की सेना की तलवारों से मरने वालों की तुलना में ओलों के गिरने से मरनेवालों की संख्या कहीं अधिक थी।
\p
\s5
\v 12 जिस दिन यहोवा ने एमोरियों को पराजित करने में इस्राएलियों को सक्षम बनाया, उस दिन इस्राएलियों की आँखों के सामने यहोशू ने यहोवा से कहा था,
\q "हे सूर्य, गिबोन पर ठहर जा,
\q और हे चंद्रमा, तू अय्यालोन की घाटी पर ठहरा रह।"
\p
\s5
\v 13 और सूर्य ठहरा रहा और चंद्रमा हिला नहीं, जब तक कि इस्राएली सेना ने उनके शत्रुओं को मार नहीं डाला। क्या यह याशार की पुस्तक में नहीं लिखा गया था?
\q "सूर्य रुक गया; उस समय वह आकाश के बीच में था,
\q और लगभग एक पूरे दिन के लिए नहीं डूबा था।"
\p
\v 14 उस दिन, यहोवा ने एक महान चमत्कार किया। पहले कभी ऐसा दिन नहीं था, और तब से ऐसा कोई दिन कभी नहीं रहा है, जब यहोवा ने एक मनुष्य के कहने पर ऐसा काम किया था। उस दिन, यहोवा वास्तव में इस्राएल की ओर से युद्ध करने गए थे।
\p
\s5
\v 15 यहोशू और उसके साथ समस्त इस्राएल गिलगाल में अपने शिविर में लौट आए।
\p
\v 16 अब पाँच राजा भाग गए और मक्केदा में एक गुफा में छिप गए।
\v 17 तब किसी ने यहोशू से कहा, "हमने उन पाँच राजाओं को मक्केदा में एक गुफा में छिपे हुए देखा है!"
\s5
\v 18 जब यहोशू ने यह सुना, तो उसने कहा, "गुफा के प्रवेश द्वार पर कुछ बहुत बड़े पत्थरों को लुड़का दो, और उन पर पहरा देने के लिए वहाँ कुछ सैनिकों को छोड़ दो।
\v 19 लेकिन वहाँ मत रुको! अपने शत्रुओं का पीछा करो! उन पर पीछे से आक्रमण करो! उन्हें उनके शहरों से भागने मत दो, क्योंकि यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, उन पर विजय पाने में तुम्हारी सहायता करेंगे।"
\p
\s5
\v 20 तब यहोशू की सेना ने वही किया जो उसने उनसे कहा था। उन्होंने शत्रु के लगभग सब सैनिकों को मार डाला, परन्तु उनमें से कुछ बच कर अपने अपने शहर पहुँच गए थे।
\v 21 तब यहोशू की सेना यहोशू के पास लौट आई, जो अभी भी मक्केदा में अपने शिविर में था। तब देश में किसी ने भी इस्राएलियों की आलोचना करने का साहस नहीं किया।
\p
\s5
\v 22 तब यहोशू ने कहा, "गुफा का प्रवेश द्वार खोलो और उन पाँच राजाओं को बाहर मेरे पास ले आओ!"
\v 23 अतः सैनिक उन पाँच राजाओं को गुफा से बाहर लेकर आए यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मुत, लाकीश और एग्लोन के राजा।
\s5
\v 24 जब वे उन राजाओं को यहोशू के पास लाए और उन्हें जमीन पर लेटने के लिए विवश किया, तब उसने सब इस्राएली सैनिकों को बुलाया और सेना के सरदारों से कहा, "यहाँ आओ और अपने पाँव इन राजाओं की गर्दनों पर रखो!" अतः सरदारों ने ऐसा किया।
\v 25 तब यहोशू ने उनसे कहा, "अपने किसी भी शत्रु से मत डरो! कभी निराश न हो! दृढ़ रहो और साहसी बनो। यहोवा तुम्हारे सब शत्रुओं के साथ ऐसा ही करेंगे जिनसे तुम युद्ध करोगे!"
\s5
\v 26 तब यहोशू ने पाँच राजाओं में से हर एक को अपनी तलवार से मार डाला और उनके शरीरों को पाँच पेड़ों से लटका दिया। उसने उनके शरीरों को सूरज ढलने तक पेड़ों पर लटका रहने दिया।
\v 27 सूर्य ढलने के समय, यहोशू ने उनके शवों को पेड़ों पर से नीचे उतरवाया और आज्ञा दी कि उन्हें उसी गुफा में फेंक दिया जाए जहाँ वे छिपे हुए थे। अतः सैनिकों ने ऐसा ही किया, और तब उन्होंने गुफा के प्रवेश द्वार पर उन बड़ी चट्टानों को फिर से रख दिया। और उन राजाओं की हड्डियाँ उस गुफा में आज तक हैं।
\p
\s5
\v 28 इसी प्रकार यहोशू की सेना ने मक्केदा पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। उन्होंने शहर में राजा को और हर एक को मार डाला। यहाँ तक कि उन्होंने किसी भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ा। उन्होंने मक्केदा के राजा के साथ वैसा ही किया जैसा उन्होंने यरीहो के राजा के साथ किया था।
\p
\s5
\v 29 तब यहोशू और सब इस्राएली दक्षिण-पश्चिम में मक्केदा से लिब्ना को गए और उस पर आक्रमण किया।
\v 30 यहोवा ने इस्राएलियों को उस शहर और उसके राजा को विजय दिलाई। यहोशू ने उस शहर में हर एक जीव को मार डाला; उसने एक व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा। यहोशू ने लिब्ना के राजा को मार डाला जैसे उसने यरीहो के राजा को मार डाला था।
\p
\s5
\v 31 तब यहोशू और उसकी सेना दक्षिण में लिब्ना से लाकीश तक गई। उन्होंने शहर को घेर लिया और इसके विरुद्ध युद्ध करना आरम्भ किया।
\v 32 युद्ध के दूसरे दिन, यहोवा ने इस्राएलियों को वह नगर दे दिया, और उन्होंने उसे जीत लिया। उन्होंने सभी लोगों सहित इसमें रहने वाले हर प्राणी को मार डाला। उसने लाकीश में वही काम किया जो उसने लिब्ना में किया था।
\s5
\v 33 गेजेर का राजा होराम और उसकी सेना लाकीश के सैनिकों की सहायता करने आए, लेकिन यहोशू की सेना ने होराम और उसकी सेना को पराजित कर दिया, और उनमें से एक को भी जीवित रहने नहीं दिया।
\p
\s5
\v 34 तब यहोशू और उसकी सेना पश्चिम में लाकीश से एग्लोन शहर गई। उन्होंने उसे घेर लिया और उस पर आक्रमण किया।
\v 35 उसी दिन, उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया और उसमें रहने वाले सब लोगों को मार डाला, जैसा कि उन्होंने लाकीश में किया था।
\p
\s5
\v 36 तब यहोशू और उसकी सेना एग्लोन से ऊपर पहाड़ियों में हेब्रोन शहर तक चली गई। उन्होंने इसके विरुद्ध युद्ध किया।
\v 37 और उस पर अधिकार कर लिया। उन्होंने राजा और हर जीवित प्राणी को मार डाला, जैसा कि उन्होंने एग्लोन में किया था। उन्होंने एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ा।
\p
\s5
\v 38 तब यहोशू और उसकी सेना मुड़ गई और दबीर शहर चली गई और इसके विरुद्ध युद्ध किया।
\v 39 उन्होंने उस शहर और उसके राजा पर अधिकार कर लिया, और पास के गाँवों पर भी अधिकार कर लिया। तब उन्होंने उसमें हर एक जीवित प्राणी को मार डाला; उन्होंने एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं रहने दिया। उन्होंने इन लोगों के साथ ऐसा किया जैसा उन्होंने हेब्रोन और लिब्ना में किया था।
\p
\s5
\v 40 इस प्रकार, यहोशू और उसकी सेना ने कनान के पूरे दक्षिणी भाग पर विजय प्राप्त की। उन्होंने उन राजाओं को पराजित कर दिया जिन्होंने पहाड़ी देश, दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि, निचले देशों में और तलहटी में शासन किया था। उन्होंने उन स्थानों में हर एक जीवित प्राणी को मार डाला, जैसी आज्ञा यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर ने उन्हें दी थी।
\v 41 यहोशू के सैनिकों ने कादेशबर्ने से गाजा तक के सब शहरों में लोगों को मार डाला, जिसमें गोशेन से गिबोन तक का सारा प्रदेश था।
\s5
\v 42 यहोशू की सेना ने एक ही बार में उन सब राजाओं पर विजय प्राप्त की और उनके क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया, क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा उनके लिए युद्ध कर रहे थे।
\p
\v 43 तब यहोशू और उसकी सेना गिलगाल में उनके शिविर में लौट आई।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब हासोर के राजा याबीन ने इन सब बातों के बारे में सुना जो हुई थीं, तो उसने मदोन के राजा योबाब को, शिम्रोन के राजा को और अक्षाप के राजा को संदेश भेजे, और उनसे अनुरोध किया कि वे अपनी अपनी सेना को भेजें और आकर इस्राएलियों से युद्ध करने में उसकी सहायता करें।
\v 2 उसने उत्तरी पहाड़ियों के राजाओं को और यरदन के मैदानी क्षेत्रों के राजाओं को, तथा गलील सागर के दक्षिण में, निचले देशों में भी संदेश भेजे थे। उसने पश्चिम में ऊँचे देश दोर के राजा को,
\v 3 पूर्व और पश्चिम दोनों में कनानियों, एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों और पहाड़ी देश में रहने वाले यबूसियों और मिस्पा के क्षेत्र में हर्मोन पर्वत से हिव्वियों के राजाओं को भी संदेश भेजे।
\s5
\v 4 इसलिए उन सब राजाओं की सेनाएँ एकत्र हुईं। उनके पुरुष समुद्र के किनारे की रेत के किनकों जितने थे। वे बड़ी संख्या में घोड़ों और रथों के साथ आए थे।
\v 5 वे सब राजा एक निश्चित समय पर आए और इस्राएल से युद्ध करने के लिए मेरोम के ताल पर एक शिविर में अपनी सेनाएँ रखीं।
\p
\s5
\v 6 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, "उन से मत डर, क्योंकि कल इसी समय मैं उन्हें तुझे दे दूँगा। तुम उन्हें पराजित करोगे और उन सब को मार डालोगे। तब तुम्हें उनके सब घोड़ों को अपंग करना होगा और उनके सारे रथों को जला देना होगा।"
\p
\v 7 तब यहोशू और उसकी सेना मेरोम के ताल पर आई और बिना किसी चेतावनी के अपने शत्रुओं पर आक्रमण कर दिया।
\s5
\v 8 यहोवा ने इस्राएलियों के हाथों उन्हें पराजित किया और उन्होंने सीदोन शहर, मिस्रपोतमैत और पूर्व में मिस्पा तक उनका पीछा किया। जब तक उन्होंने उन सब को मार नहीं डाला तब तक उन पर आक्रमण करते रहे।
\v 9 तब यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया: उसने उनके शत्रुओं के घोड़ों को अपंग कर दिया और उसने उनके रथों को जला दिया।
\p
\s5
\v 10 तब यहोशू और उसकी सेना लौटकर हासोर शहर चली गई, और उस पर अधिकार कर लिया, और उनके राजा को मार डाला। हासोर उन सब साम्राज्यों का सबसे महत्वपूर्ण शहर था जो इस्राएल से युद्ध कर रहे थे।
\v 11 उन्होंने हासोर में रहने वाले हर एक प्राणी को मार डाला, और शहर को जला कर राख कर दिया।
\p
\s5
\v 12 यहोशू की सेना ने उन सब शहरों पर अधिकार कर लिया और उनके राजाओं को मार डाला। उन्होंने यह ठीक वैसे ही किया जैसा यहोवा के सेवक मूसा ने, उन्हें आदेश दिया था।
\v 13 यहोशू के लोगों ने हासोर को जला दिया, परन्तु उन्होंने उन अन्य शहरों को नहीं जलाया जो टीलों पर बने थे और दीवार से घिरे थे।
\s5
\v 14 इस्राएलियों ने अपने लिए उन पशुओं को ले लिया जो उनको खेतों में मिले थे और हर एक वस्तु जो मूल्यवान थी, ले लिया परन्तु उन्होंने शहरों में मिले हर मनुष्य और हर जीवित प्राणी को मार डाला।
\v 15 यहोवा ने मूसा को काम करने के जो निर्देश दिए थे, वही निर्देश मूसा ने यहोशू को दिए। और यहोशू ने वह सब कुछ किया जो यहोवा ने मूसा को करने का आदेश दिया था।
\p
\s5
\v 16 यहोशू की सेना ने उन सब जातियों को पराजित कर दिया था जो उस देश में रह रही थीं। उन्होंने पहाड़ी देश और दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि, गोशेन के सब क्षेत्र, पश्चिमी तलहटी, और यरदन के मैदान पर अधिकार कर लिया। उन्होंने इस्राएल के सब पहाड़ों और पहाड़ों के पास के सब निचले क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
\v 17 उन्होंने एदोम के दक्षिण में हलाक पर्वत से उत्तर में लबानोन के क्षेत्र के पास की घाटी में हेर्मोन पर्वत के पास बालगाद तक सारे देश पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उन क्षेत्रों के सब राजाओं को पकड़ कर मार डाला।
\s5
\v 18 यहोशू के लोगों ने लम्बे समय तक उन सब राजाओं के विरूद्ध युद्ध किया था।
\v 19 केवल एक ही शहर था जिसने इस्राएलियों के साथ शान्ति समझौता किया था; वे गिबोन में रहने वाले हिव्वियों के लोग थे। इस्राएलियों ने युद्ध में सब अन्य शहरों पर अधिकार कर लिया था।
\v 20 यहोवा ने सब अन्य जातियों को हठीला कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने इस्राएली सेना से युद्ध किया, और परमेश्वर ने उन सब को नष्ट करने के लिए इस्राएली सेना का उपयोग किया। परमेश्वर ने इस्राएली सेना को उनके शत्रुओं को पूरी तरह से नष्ट करने से नहीं रोका। यहोवा ने मूसा को ऐसा ही करने का आदेश दिया था।
\p
\s5
\v 21 यहोशू की सेना ने हेब्रोन, दबीर और अनाब के पास की पहाड़ियों में रहने वाले अनाकी दानवों से भी युद्ध किया। उन्होंने यहूदा और इस्राएल के पहाड़ी देश में रहने वाले लोगों से भी युद्ध किया, और उन्होंने उन सब लोगों को मार डाला और उनके शहरों को भी नष्ट कर दिया।
\v 22 जिसके परिणामस्वरूप, इस्राएल में अनाक के कोई भी वंशज जीवित नहीं बचे थे। केवल गाजा, गत और अश्दोद में ही कुछ जीवित बचे थे।
\s5
\v 23 यहोशू की सेना ने पूरे देश पर अधिकार कर लिया, ठीक वैसे ही जैसे यहोवा ने बहुत पहले मूसा को कहा था। यहोवा ने इस्राएलियों को वह देश दे दिया, क्योंकि उन्होंने वह देश उन्हें देने की प्रतिज्ञा की थी। तब यहोशू ने उस देश को इस्राएली गोत्रों के बीच बाँट दिया। और उसके बाद, देश में शान्ति हो गई।
\s5
\c 12
\p
\v 1 इस्राएलियों ने यरदन नदी के पूर्व में अर्नोन नदी के किनारे से उत्तर में पर्वत हर्मोन तक यरदन नदी के पूर्व के देश पर अधिकार किया, जिसमें यरदन के मैदान के पूर्वी भाग में सम्पूर्ण देश भी था।
\m
\v 2 सीहोन एमोरियों का राजा था। वह हेशबोन में रहता था और अर्नोन नदी के किनारे पर अरोएर के क्षेत्र पर, उत्तर में यब्बोक नदी तक शासन करता था। उसका देश नदी के किनारे के मध्य से आरम्भ होता था, जो उसके देश और अम्मोनियों की देश के बीच की सीमा थी। सीहोन ने गिलाद के आधे हिस्से पर भी शासन किया।
\s5
\v 3 सीहोन ने यरदन के पूर्वी मैदान के देश पर गलील सागर के दक्षिण से लेकर मृत सागर तक शासन किया था। उसने मृत सागर के पूर्व में बेत्यशीमोत के दक्षिण से पिसगा पर्वत तक भी शासन किया था।
\m
\v 4 अन्य राजा जिसे इस्राएली सेना ने पराजित किया वह बाशान के क्षेत्र के राजा ओग था। वह राफा के दानवों के वंशजों में से अंतिम था। वह अश्तारोत और ऐद्रई के नगरों में रहता था।
\v 5 उसने उत्तर में पर्वत हेर्मोन और सलीकाह से, और पूर्व में सारे बाशान पर और पश्चिम में गेशूरियों और माकाथी लोगों की सीमाओं पर शासन किया। ओग ने गिलाद के आधे से अधिक राज्यों पर शासन किया, जहाँ तक हेशबोन के राजा सीहोन द्वारा शासित देश की सीमा थी।
\p
\s5
\v 6 मूसा, यहोवा के सेवक, और सारी इस्राएली सेना ने उन राजाओं की सेनाओं को पराजित कर दिया था। तब मूसा ने उस देश को रूबेन और गाद के गोत्र और मनश्शे के आधे गोत्र को दे दिया।
\p
\s5
\v 7 यहोशू और इस्राएली सेना ने उन राजाओं को भी पराजित किया जिन्होंने यरदन नदी के पश्चिमी किनारे के देश पर शासन किया था। वह देश लबानोन के पास घाटी में बालगाद से हलाक पर्वत के बीच था, जो एदोम तक जाता है। यहोशू ने इस्राएल के गोत्रों को उनका भाग होने के लिए वह भूमि दी,
\v 8 साथ ही पहाड़ी देश, निचले भाग, यरदन के मैदान, पहाड़ियाँ, मरुभूमि में, और दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि में, हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों के देश।
\s5
\v 9 जिन राजाओं पर इस्राएलियों ने विजय प्राप्त की थी वे निम्नलिखित शहरों में से थे: यरीहो, ऐ (जो बेतेल के पास था)
\v 10 यरूशलेम, हेब्रोन,
\v 11 यर्मुत, लाकीश,
\v 12 एग्लोन, गेजेर,
\s5
\v 13 दबीर, गेदेर,
\v 14 हेर्मा, अराद,
\v 15 लिब्ना, अदुल्लाम,
\v 16 मक्केदा, बेतेल,
\s5
\v 17 तप्पूह, हेपेर,
\v 18 अपेक, लश्शारोन,
\v 19 मदोन, हासोर,
\v 20 शिम्रोन्मरोन, अक्षाप,
\s5
\v 21 तानाक, मगिद्दो,
\v 22 केदेश, कर्मेल क्षेत्र में योकनाम,
\v 23 नापोत दोर क्षेत्र में दोर, गिलगाल के क्षेत्र में गोयीम,
\v 24 और तिर्सा।
\m वहाँ कुल इकतीस राजा थे जिन्हें इस्राएली सेना ने पराजित किया था।
\s5
\c 13
\p
\v 1 जब यहोशू बहुत बूढ़ा हो गया था, तब यहोवा ने उससे कहा, "यहोशू, अब तू बूढ़ा हो गया है, परन्तु तेरी सेना को अब भी बहुत भूमि पर अधिकार करना है।
\s5
\v 2 यहाँ उन देशों की एक सूची है जो रह गए हैं: पलिश्तियों का क्षेत्र और सारे गशूरी,
\v 3 (मिस्र के पूर्व में स्थित शीहोर से, और उत्तर में एक्रोन तक; पलिश्ती, गाजा, अश्दोद, अश्कलोन, गत और अक्रोन के नगरों के पाँच शासक अव्वियों का क्षेत्र)।
\s5
\v 4 दक्षिण में, तुझे अब भी उन क्षेत्रों पर अधिकार करना है जहाँ कनानी जाति के लोग रहते हैं; और अराह जो सीदोनियों का है, अपेक के पास, एमोरियों की सीमा तक;
\v 5 गबालियों का देश, पूरब की ओर सारा लबानोन, हर्मोन पर्वत के नीचे बालगाद से लेबोहमात तक।
\p
\s5
\v 6 अब भी लबानोन के पहाड़ी देश से मिस्रपोतमैम तक रहने वाले सभी लोगों पर तुझे अधिकार करना है, जिसमें सीदोन शहर के सब लोग हैं। मैं उन्हें तेरी सेना के पहुँचने से पहले बाहर निकाल दूँगा। जब तू इस्राएलियों में उस देश को बाँटेगा तब उन्हें यह भी देना सुनिश्चित करना क्योंकि मैंने तुझे ऐसा करने का आदेश दिया था।
\v 7 उस सारे देश को नौ गोत्रों और मनश्शे के आधे गोत्र में उत्तराधिकार के रूप में विभाजित करना।"
\m
\s5
\v 8 मनश्शे के आधे गोत्र के साथ, रूबेनियों और गादियों ने यरदन नदी के पूर्व की ओर अपना अपना भाग प्राप्त कर लिया, जो मूसा ने उन्हें दे दिया था।
\v 9 वह देश अरोएर से फैला हुआ है, जो अर्नोन (किनारे के बीच में स्थित शहर समेत) के किनारे पर है, मेदेबा के पठार तक, जो दीबोन शहर तक फैला हुआ है।
\s5
\v 10 इन देशों में एमोरियों के राजा सीहोन के नगर भी थे, जो हेशबोन में रहकर राज्य करता था, और वे अम्मोनियों की सीमा तक फैले थे;
\v 11 गिलाद, और गशूरियों और माकाथी लोगों का क्षेत्र, हेर्मोन पर्वत समेत, और बाशान का सम्पूर्ण क्षेत्र सलीका शहर में फैला हुआ है;
\v 12 बाशान के क्षेत्र में ओग के सब राज्य, जिसने अश्तारोत और एद्रेई के नगरों में राज्य किया था (रेफैम के बचे हुए लोगों को छोड़ दिया गया था); इन लोगों पर मूसा ने तलवार से आक्रमण किया था और दूर कर दिया था।
\s5
\v 13 परन्तु इस्राएलियों ने गशूर और माकाथी लोगों को कनान से नहीं निकाला था। ये लोग आज भी इस्राएलियों के साथ रहते हैं।
\p
\s5
\v 14 लेवियों को देश का कोई भाग नहीं मिला; वे एकमात्र गोत्र थे जिन्हें कोई भूमि नहीं मिली थी। मूसा ने उन्हें कोई भाग नहीं दिया। इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने उनसे कहा कि उसको दिए गए चढ़ावे उनके भाग होंगे।
\p
\s5
\v 15 मूसा ने रूबेन के गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी।
\v 16 इसलिए उनका क्षेत्र अरोने नदी की घाटी के किनारे पर अरोएर से और घाटी के बीच में जो शहर है, और जिसमें मेदेबा के पास पठार का क्षेत्र भी है।
\s5
\v 17 इसमें हेशबोन और उसके सारे शहर भी हैं जो पठार में हैं, जिनमें दीबोन, बामोतबाल और बेतबाल्मोन हैं;
\v 18 और यहास, कदेमोत, और मेपात,
\v 19 और किर्यातैम, सिबमा, और येरेथश्शहर जो घाटी में एक पहाड़ी पर खड़ा है।
\s5
\v 20 इस क्षेत्र में बेतपोर, पिसगा पर्वत की ढलानें, बेत्यशीमोत,
\v 21 पठार पर स्थित सभी नगर, और एमोरियों के राजा सीहोन का सम्पूर्ण राज्य; उसने हेशबोन में रहकर राज्य किया था; उन्हें मूसा ने मिद्यान के अगुवों के साथ पराजित किया था, और वहाँ राज्य करनेवाले सीहोन के प्रधान एवी, रेकेम, सूर, हूर और रेबा भी थे।
\s5
\v 22 इस्राएल के लोगों ने तलवार से बोर के पुत्र बिलाम को मार डाला, जो शकुन विचारता था। इस्राएलियों ने उसी समय तलवार से कई अन्य लोगों को भी मार डाला।
\v 23 रूबेन के गोत्र के लोगों की सीमा यरदन नदी है। यह रूबेन के लोगों को दिया गया, उत्तराधिकार था और उनके सब कुलों में बाँटा गया था। वे वहाँ उनके शहरों और गाँवों में रहते थे।
\p
\s5
\v 24 मूसा ने गाद के गोत्र को भी, गाद के लोगों के लिए वह देश दिया, और उनके हर एक परिवार को रहने के लिए आवश्यकता के अनुसार उस भूमि का भाग दिया।
\v 25 वे याजेर के समीप गिलाद के सब शहरों में, और अम्मोनियों के आधे देश में अरोएर तक, जो रब्बा के पूर्व में एक शहर है, रहने लगे।
\v 26 उनका क्षेत्र हेशबोन से रामतमिस्पे और बतोनीम तक, महनैम और दबीर तक फैला था।
\s5
\v 27 उनका देश घाटी में भी था: बेतहारम, बेतनिम्रा, सुक्कोत और सापोन, हेशबोन के राजा सीहोन का देश भी जिसकी सीमा यरदन नदी पर थी और गलील सागर के निचले सिरे तक फैली हुई थी, जो पूर्व में यरदन नदी के पार था।
\v 28 यह गाद के लोगों का उत्तराधिकार है जो उन्हें उनके कुलों की आवश्यकता के अनुसार दिया गया था, और उन शहरों और गाँवों के साथ था जहाँ वे रहते थे।
\p
\s5
\v 29 मूसा ने मनश्शे के आधे गोत्र को रहने के लिए उस क्षेत्र का एक भाग उत्तराधिकार में दिया। यह मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों को उनके कुलों की आवश्यकता के अनुसार दिया गया था।
\v 30 उनका क्षेत्र महनैम से आगे था, जिसमें बाशान का सम्पूर्ण क्षेत्र, बाशान के राजा ओग का सम्पूर्ण राज्य और बाशान में जोएर के सब नगर थे। इस क्षेत्र में साठ शहर हैं।
\v 31 उनके देश में गिलाद के आधे हिस्से के साथ-साथ अश्तारोत और एद्रेई के नगर भी थे (कभी-कभी उनको बाशान में ओग के राजसी शहरों के रूप में जाना जाता था)। ये मनश्शे के पुत्र माकीर के लोगों को दिए गए थे, और इसमें माकीर के आधे वंशज थे। उनकी आवश्यकता के अनुसार उनके कुलों को दिया गया था।
\p
\s5
\v 32 ये वे देश थे जिन्हें यरीहो के पूर्व में यरदन पार मूसा ने मोआब के मैदानों में रहते समय मूसा ने इस्राएलियों में बाँट दिया था।
\v 33 परन्तु लेवी के गोत्र को मूसा ने उत्तराधिकार में भूमि नहीं दी थी। यहोवा, जो इस्राएल का परमेश्वर है, उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वह उनका उत्तराधिकार होगा।
\s5
\c 14
\p
\v 1 याजकों के अगुवे एलीआजार, यहोशू, और बारह गोत्रों के अगुवों ने निर्णय लिया कि कनान में हर एक इस्राएली गोत्र को कौन सी भूमि दी जाए।
\s5
\v 2 साढ़े नौ गोत्रों में से हर एक के लिए चिट्ठियाँ डाल कर ऐसा किया गया था। यह ठीक वैसा ही था जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था, जिससे कि वह देश हर एक गोत्र और उसके कुलों को दिया जा सके।
\v 3-4 अब मूसा ने यरदन नदी पर पार होने से पहले ढाई गोत्रों के स्थायी अधिकार के रूप में भूमि दे दी थी। परन्तु लेवियों को उसने कोई उत्तराधिकार नहीं दिया था; उनके याजकीय कर्तव्यों के कारण उनके साथ अलग व्यवहार किया गया था। लेवियों को उस देश का कोई भाग नहीं दिया गया था। परन्तु उनके पशुओं के लिए चरागाह समेत रहने के लिए शहर दिए गए थे जिससे कि उनके परिवारों का पालन हो सके और यूसुफ के वंशजों को मनश्शे और एप्रैम दो गोत्रों में बाँटा गया था।
\v 5 इस्राएल के लोगों ने वही किया जिसकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी: उन्होंने देश के विभिन्न भागों को स्थायी सम्पत्ति के रूप में बाँट दिया।
\p
\s5
\v 6 यहूदा के गोत्र के कुछ लोग यहोशू के पास गए, जिस समय यहोशू और सब इस्राएली गिलगाल में थे उस समय यहूदा के गोत्र के कुछ लोग जिनमें यपुन्ने का पुत्र कालेब भी था यहोशू के पास गए। उसने यहोशू से कहा, "मुझे विश्वास है कि जब हम कादेशबर्ने में थे, तब यहोवा ने तेरे और मेरे बारे में भविष्यद्वक्ता मूसा से जो कहा था, वह तुझे स्मरण है।
\v 7 उस समय मैं चालीस वर्ष का था। मूसा ने कादेशबर्ने से इस देश का भेद लेने के लिए मुझे और तुझे और कुछ अन्य लोगों को भेजा। जब हम लौट आए थे, तब मैंने जो देखा था उसके बारे में मूसा को एक सच्चा समाचार सुनाया था।
\s5
\v 8 हमारे साथ गए अन्य पुरुषों ने जो समाचार सुनाया था, उसे सुनकर लोग डर गए थे। परन्तु मैं यहोवा के पीछे ही चला और उसने हमें जो आदेश दिया, उसका पालन किया।
\v 9 मूसा ने मुझसे प्रतिज्ञा की थी, 'जिस देश पर तू चला है वह तेरा स्थायी अधिकार होगा, यह एक अटल प्रतिज्ञा है। वह तेरे और तेरे वंशजों के लिए सदा का होगा। मैं तुझे यह दे रहा हूँ क्योंकि तू ने जो कुछ किया है, उसमें तू ने, मेरे परमेश्वर, यहोवा, की आज्ञा मानी है।
\p
\s5
\v 10 अब यहोवा ने मेरे लिए अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार ही किया है। मूसा ने जब यह कहा था उस समय हम मरुभूमि में ही थे और इस बात को आज पैंतालीस साल हो गए हैं और यहोवा ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मुझे इस पूरे समय जीवित और अच्छा रखा है। मुझे देख! मैं पचासी वर्ष का हूँ।
\v 11 आज मैं उतना ही बलवन्त हूँ जितना कि उस दिन था जब मूसा ने मुझे इस देश का भेद लेने के लिए भेजा था। मुझ में अब भी वैसी ही शक्ति है जैसी तब थी जब मैं जवान था। मैं युद्ध कर सकता हूँ या मैं बहुत दूर की यात्रा कर सकता हूँ और घर लौट आने की शक्ति भी मुझ में है।
\s5
\v 12 इसलिए कृपया मुझे वह पहाड़ी देश दे जिसे बहुत पहले, उस दिन यहोवा ने मुझे देने की प्रतिज्ञा की थी। उस समय, तू ने मुझे कहते सुना था कि वहाँ अनाकवंशी रहते हैं। तू ने मुझे यह भी कहते सुना था कि उनके शहर बड़े हैं और उनके चारों ओर उनकी रक्षा करने के लिए दीवारें हैं। परन्तु अब, सम्भवतः यहोवा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार हमारी सेना के साथ उन्हें खदेड़ने में मेरी सहायता करेगा।"
\p
\s5
\v 13 तब यहोशू ने परमेश्वर से विनती की कि वह कालेब को आशीर्वाद दे, और उसने कालेब को हेब्रोन शहर दे दिया।
\v 14 इस प्रकार, हेब्रोन कनजी यपुन्ने के पुत्र कालेब का निज भाग और घर बन गया। आज तक उसके वंशज वहाँ रहते हैं क्योंकि कालेब ने वह सब कुछ किया जो इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा ने उसे करने को कहा था।
\v 15 अब से पहले हेब्रोन का नाम किर्यतर्बा था (अर्बा अनाकवंशियों के बीच सबसे बड़ा मनुष्य था)। और देश में शान्ति थी; उन्होंने अब कोई युद्ध नहीं किया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 यहूदा के गोत्र को सौंपा गया देश उनके कुलों के बीच बाँटा गया था। उनका क्षेत्र दक्षिण में एदोम की सीमा पर सीन की मरुभूमि तक फैला हुआ था।
\v 2 यहूदा के गोत्र को दिए गए देश की दक्षिणी सीमा नमक सागर (जिसे मृत सागर भी कहा जाता है), के अन्त से दक्षिण की ओर जाने वाली खाड़ी से आरम्भ हुई थी।
\s5
\v 3 तब वह दक्षिण की ओर और अक्रब्बीम की पहाड़ी पर चली गई और सीन के साथ होती हुई एक बार फिर कादेशबर्ने के दक्षिण में, हेस्रोन के पास, अद्दार तक चली गई, और फिर कर्काआ की ओर मुड़ गई।
\v 4 वहाँ से वह अस्मोन होती हुई आगे बढ़ी, और वहाँ से मिस्र के ताल के साथ होती हुई पश्चिम में भूमध्य सागर की ओर मुड़ गई। यह तेरी दक्षिण सीमा होगी।
\s5
\v 5 यहूदा के गोत्र के देश की पूर्वी सीमा मृत सागर थी। वह उत्तर में यरदन नदी के अंत तक फैली हुई थी, जहाँ यह मृत सागर में गिरती है।
\v 6 उत्तरी सीमा उस बिंदु से आरम्भ होकर उत्तर में बेथोग्ला तक पहुँची। वहाँ से वह बेतराबा के उत्तर से बोहन के पत्थर (एक पत्थर जिसे रूबेन के पुत्र बोहन द्वारा स्थापित किया गया था) तक चली गई।
\s5
\v 7 उस बिंदु से सीमा पश्चिम की ओर मुड़ गई और आकोर की घाटी से दबीर तक चली गई। वहाँ से वह फिर से गिलगाल जाने के लिए उत्तर में मुड़ गई। गिलगाल उस मार्ग के उत्तर में है जो नदी की घाटी के दक्षिण की ओर अदुम्मीम की पहाड़ी पर जाता है। गिलगाल से सीमा पश्चिम में एनशेमेश में सोतों तक थी, और वहाँ से एनरोगेल तक।
\v 8 उस बिंदु से सीमा यबूसी शहर (यानी, यरूशलेम) के दक्षिणी ढलान के साथ है। वह सीमा रपाईम की घाटी के उत्तरी छोर पर हिन्नोम घाटी के पश्चिमी ओर वाली पहाड़ी के शीर्ष पर जाती है।
\s5
\v 9 वहाँ से सीमा उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियों के शीर्ष तक चली गई, जो नेफतोह के सोते तक और वहाँ से एप्रोन पर्वत के पास के नगरों तक पहुँची। वहाँ से सीमा पश्चिम की ओर बाला की ओर बढ़ी (जिसे अब किर्यत्यारीम नाम दिया गया है)।
\v 10 तब वह सीमा पश्चिम की ओर बाला के पार सेईर पर्वत की ओर बढ़ती गई। तब यह दक्षिण-पश्चिम में पर्वत यरीम के उत्तर की ओर चली गई (जिसे कसालोन भी कहा जाता है), और नीचे बेतशेमेश के पास गई। वहाँ से यह तिम्ना के पास से होती हुई निकली।
\s5
\v 11 तब वह सीमा उत्तर पश्चिम में एक्रोन के उत्तर में पहाड़ी पर चली गई। वहाँ से वह पश्चिम में बाला पर्वत से होती हुई शिक्करोन को गई और यब्नेल तक पहुँची और फिर उत्तर-पश्चिम में भूमध्य सागर तक चली गई।
\v 12 यहूदा के गोत्र को दिए गए क्षेत्र की पश्चिमी सीमा भूमध्य सागर थी। यहूदा के सब कुल उन सीमाओं के भीतर रहते थे।
\p
\s5
\v 13 यहोवा ने यहोशू को आज्ञा दी कि यहूदा के गोत्र के क्षेत्र का कुछ भाग कालेब को दे। इसलिए उसने किर्यतर्बा शहर कालेब को दिया, जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है। (अर्बा अनाक का पिता था।)
\v 14 कालेब ने अनाक लोगों के समूह के तीन कुलों को हेब्रोन छोड़ने के लिए विवश कर दिया। वे शेशै, अहीमन और तल्मै के कुल थे।
\v 15 तब कालेब वहाँ निकला और दबीर में रहने वाले लोगों के विरुद्ध युद्ध करने गया (जिसे पहले किर्यत्सेपेर नाम दिया गया था)।
\s5
\v 16 कालेब ने कहा, "यदि कोई किर्यत्सेपेर में लोगों पर आक्रमण करता है और उनके शहर पर अधिकार कर लेता है, तो मैं अपनी पुत्री अकसा को विवाह में उसे दे दूँगा।"
\v 17 कालेब के भाई केनाज के पुत्र ओत्नीएल ने उस शहर पर अधिकार कर लिया। अतः कालेब ने अपनी पुत्री अकसा को विवाह में उसे दे दिया।
\p
\s5
\v 18 जब कालेब की पुत्री ने ओत्नीएल से विवाह किया, तब उसने कहा कि वह अपने पिता से एक खेत देने के लिए कहे। तब अकसा अपने पिता कालेब से बात करने गई। जैसे ही वह उसके गधे से उतरी, कालेब ने उससे पूछा, "क्या तू कुछ चाहती है?"
\p
\s5
\v 19 अकसा ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं चाहती हूँ कि आप मेरे लिए कुछ करो। तू ने मुझे दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि दी है, परन्तु वहाँ पानी नहीं है। इसलिए कृपया मुझे कुछ ऐसी भूमि दो जिसमें सोते हों।" अतः कालेब ने उसे हेब्रोन के पास ऊपरी और निचले सोते दिए।
\p
\s5
\v 20 यहाँ देश के उन नगरों की एक सूची दी गई है जिन्हें परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र को देने की प्रतिज्ञा की थी। हर एक कुल को कुछ भूमि दी गई थी।
\m
\s5
\v 21 यहूदा के गोत्र को दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि में एदोम के क्षेत्र की सीमा के पास शहर दिए गए थे: कबसेल, एदेर, यागूर,
\v 22 कीना, दीमोना, अदादा,
\v 23 केदेश, हासोर, यित्नान,
\v 24 जीप, तेलेम, और बालोत।
\s5
\v 25 इसके साथ हासोर्हदत्ता, करिय्योथेस्रोन (जिसे हासोर भी कहा जाता है)
\v 26 अमाम, शमा, मोलादा,
\v 27 हसर्गद्दा, हेशमोन, बेत्पेलेत,
\v 28 हसर्शूआल, बेर्शेबा और बिज्योत्या।
\s5
\v 29 बाला, इय्यीम, एसेम,
\v 30 एलतोलद, कसील, होर्मा,
\v 31 सिकलग, मदमन्ना, सनसन्ना,
\v 32 लबाओत, शिल्हीम, ऐन और रिम्मोन। इन गाँवों के साथ उन्तीस शहर भी थे।
\m
\s5
\v 33 यहूदा के गोत्र को ये शहर पश्चिमी तलहटी के उत्तरी भाग में दिए गए थे: एशताओल, सोरा, अश्ना,
\v 34 जानोह, एनगन्नीम, तप्पूह, एनाम,
\v 35 यर्मूत, अदुल्लाम, सोको, अजेका,
\v 36 शारैम, अदीतैम, और गदेरा (जिसे गदेरोतैम भी कहा जाता है)। आसपास के गाँवों के साथ ये चौदह शहर थे।
\s5
\v 37 यहूदा के गोत्र को ये शहर पश्चिमी तलहटी के दक्षिणी भाग में दिए गए थे: सनान, हदाशा, मिगदलगाद,
\v 38 दिलान, मिस्पा, योक्तेल,
\v 39 लाकीश, बोस्कत और एग्लोन।
\s5
\v 40 इसके अतिरिक्त कब्बोन, लहमास, कितलीश,
\v 41 गदेरोत, बेतदागोन, नामा, और मक्केदा। आसपास के गाँवों के साथ ये सोलह शहर थे।
\s5
\v 42 यहूदा के गोत्र को ये शहर पश्चिमी तलहटी के मध्य भाग में दिए गए थे: लिब्ना, ऐतेर, आशान,
\v 43 यिप्ताह, अश्ना, नसीब,
\v 44 कीला, अकजीब, और मारेशा। आसपास के गाँवों के साथ ये नौ शहर थे।
\s5
\v 45 आसपास के नगरों और उनके गाँवों के साथ एक्रोन शहर भी था।
\v 46 एक्रोन से भूमध्य सागर तक, यहूदा के क्षेत्र में उनके गाँवों सहित अश्दोद शहर के पास का सारा क्षेत्र भी था।
\p
\v 47 अश्दोद और उसके आसपास के नगर और गाँव; गाजा और उसके आसपास के नगर और गाँव नीचे मिस्र के ताल और भूमध्य सागर के तट तक जितने नगर और गाँव हैं। यह सीमा तटीय रेखा के साथ-साथ थी।
\s5
\v 48 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के दक्षिण-पश्चिम भाग में भी नगर दिए गए थे: शामीर, यत्तीर, सोको,
\v 49 दन्ना, किर्यत्सन्ना (जिसे दबीर भी कहा जाता है)
\v 50 अनाब, एशतमो, आनीम,
\v 51 गोशेन, होलोन, और गीलो। आसपास के गाँवों के साथ ये ग्यारह शहर थे।
\s5
\v 52 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के दक्षिण मध्य भाग में भी नगर दिए गए थे: अराब, दूमा, एशान,
\v 53 यानीम, बेत्तप्पूह, अपेका,
\v 54 हुमता, किर्यतर्बा (अब हेब्रोन कहा जाता है), और सीओर। उनके आसपास के गाँवों के साथ ये नौ शहर थे।
\s5
\v 55 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के दक्षिणी भाग में भी नगर दिए गए थे: माओन, कर्मेल, जीप, यूता,
\v 56 यिज़्रेल, योकदाम, जोनाह,
\v 57 कैन, गिबा, और तिम्ना। आसपास के गाँवों के साथ ये दस शहर थे।
\s5
\v 58 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के मध्य भाग में भी नगर दिए गए थे: हलहूल, बेतसूर, गदोर,
\v 59 मरात, बेतनोत और एलतकोन। आसपास के गाँवों के साथ ये छः शहर थे।
\s5
\v 60 यहूदा के गोत्र को पहाड़ी देश के उत्तरी भाग, रब्बा और किर्यतबाल (जिसे किर्यत्बारीम भी कहा जाता है) में दो नगर दिए गए थे।
\v 61 यहूदा के गोत्र को मृत सागर के पास मरुभूमि में भी नगर दिए गए थे: बेतराबा, मिद्दीन, सकाका,
\v 62 निबशान, लोनवाला शहर, और एनगदी। आसपास के गाँवों के साथ ये छः शहर थे।
\p
\s5
\v 63 यहूदा के गोत्र की सेना यबूसी लोगों को बाहर निकालने में सफल नहीं हुई थी इसलिए वे यरूशलेम में ही रहे। वे आज भी यहूदा के गोत्र के मध्य में रह रहे हैं।
\s5
\c 16
\p
\v 1 एप्रैम और मनश्शे के दो गोत्रों को जो क्षेत्र दिया गया था ये दो गोत्र यूसुफ के वंशज थे वह यरीहो के पूर्व में यरदन नदी से आरम्भ हुआ था।
\v 2 यह यरीहो से बेतेल तक और फिर लूज तक पश्चिम में फैला हुआ था, और अतारोत के पास तक गया था, जहाँ एरेकी रहते हैं।
\s5
\v 3 वहाँ से पश्चिम में उस देश की सीमा तक फैला था जहाँ यपलेती लोग रहते थे, और फिर पश्चिम में निचले बेथोरोन के पास के क्षेत्र तक गया। वहाँ से यह पश्चिम में गेजेर तक और वहाँ से भूमध्य सागर तक रहा।
\v 4 यह वह क्षेत्र था जो यूसुफ, मनश्शे और एप्रैम के लोगों को उनके स्थायी अधिकार के रूप में प्राप्त हुआ था।
\s5
\v 5 एप्रैम के गोत्र के कुलों को दिए गए क्षेत्र की सीमा पूर्व में अत्रोतदार से आरम्भ हुई थी। यह ऊपरी बेथोरोन तक गई थी
\v 6 और भूमध्य सागर तक गई। उत्तर में मिकमतात से यह पूर्व की ओर तानतशीलो की ओर मुड़ गई, और पूर्व की ओर यानोह तक चली गई।
\v 7 यानोह से नीचे अतारोत तक गई और फिर नारा तक। वहाँ से यह यरीहो शहर पहुँची, और यरदन नदी पर समाप्त हुई।
\s5
\v 8 उत्तरी सीमा तप्पूह से पश्चिम में काना के नाले तक फैली हुई थी, और भूमध्य सागर में समाप्त हुई। यह वह क्षेत्र था जिसे एप्रैम के गोत्र के सब कुलों को दिया गया था।
\v 9 कुछ शहर और उनके आश्रित गाँव जिन्हें एप्रैम के लोगों के लिए अलग किया गया था, वे वास्तव में मनश्शे के लोगों को दिए गए क्षेत्र में थे।
\m
\s5
\v 10 एप्रैम के गोत्र के लोग कनानियों को गेजेर से निकाल नहीं पाए थे। कनानी अब भी वहाँ रहते हैं। परन्तु एप्रैम के लोगों ने उन्हें अपना दास बना लिया था।
\s5
\c 17
\p
\v 1 यह मनश्शे के गोत्र को दिए गए क्षेत्र की एक सूची है। मनश्शे का सबसे बड़ा पुत्र माकीर था, और उसका पोता गिलाद था। माकीर के सम्मान में, जो एक महान सैनिक था, उनके वंशजों को गिलाद और बाशान के क्षेत्रों में भूमि दी गई थी।
\v 2 मनश्शे के गोत्र में अन्य कुलों को भी भूमि दी गई थी: अबीएजेर, हेलेक, अस्रीएल, शेकेम, हेपेर और शमीदा के कुलों को। ये मनश्शे के वंशजों के नाम थे (वह स्वयं यूसुफ का पुत्र था)। हर एक कुल के लिए भूमि दी गई थी।
\p
\s5
\v 3 अब हेपेर का पुत्र सलोफाद, गिलाद का वंशज, जो माकीर का पुत्र था और मनश्शे का पोता था, उसके पुत्र नहीं थे। उसके पास केवल पुत्रियाँ थीं, और उनके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिल्का और तिर्सा थे।
\v 4 ये स्त्रियाँ एलीआजार (सभी पुजारियों के अगुवे), और यहोशू और अन्य इस्राएली अगुवों के पास गईं। उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि आप हमें कुछ भूमि दें, क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा था कि जैसे तुमने हमारे गोत्र में पुरुषों को भूमि दी है वैसे ही हमें भी दी जाए।" इसलिए एलीआजार ने यहोवा के आदेश के अनुसार ही किया: उसने उन्हें भी भूमि दी, जैसा उसने उनके चाचाओं के लिए किया था।
\s5
\v 5 तब मनश्शे के गोत्र के पास अंततः यरदन नदी के पश्चिम में देश के दस भाग और गिलाद में यरदन नदी के पूर्व की ओर दो भाग थे।
\v 6 और मनश्शे के गोत्र में इन स्त्रियों को भी पुरुषों के समान नदी के पश्चिमी तट पर भूमि दी गई थी। गिलाद के अन्य भाग मनश्शे के लोगों को दिए गए थे।
\s5
\v 7 मनश्शे के गोत्र को जो क्षेत्र दिया गया था वह शकेम के पास या जहाँ आशेर का गोत्र रहता था और मिकमतात के मध्य का था। इसकी सीमा दक्षिण में तप्पूह के सोते तक फैली हुई थी।
\v 8 तप्पूह शहर के पास का देश मनश्शे के गोत्र का था। परन्तु तप्पूह सीमा पर एप्रैम के गोत्र के पास था और वास्तव में एप्रैमी लोगों का था।
\s5
\v 9 इसकी सीमा दक्षिण में काना नदी के तट तक थी, और उस धारा के दक्षिण के सभी नगर मनश्शे के थे। मनश्शे की सीमा काना के ताल के उत्तर की ओर थी; और भूमध्य सागर तक गई थी।
\v 10 दक्षिण की ओर का क्षेत्र एप्रैम का था और उत्तरी क्षेत्र मनश्शे के गोत्र का था; भूमध्य सागर मनश्शे की सीमा थी। आशेर का गोत्र सीमा के उत्तर की ओर था, जबकि इस्साकार का गोत्र पूर्व में था।
\s5
\v 11 परन्तु इस्साकार और आशेर के गोत्रों को दी गई भूमि की सीमा के भीतर कुछ शहर थे, जो आसपास के गाँवों के साथ, वास्तव में मनश्शे के गोत्र के लोगों को दिए गए थे। ये शहर बेतशान, यिबलाम, दोर, एंदोर, तानाक और मगिद्दो थे (और सूची में तीसरा शहर नेपेत है)।
\m
\v 12 मनश्शे के गोत्र के लोग उन शहरों में रहने वाले लोगों को वहाँ से निकालने में सफल नहीं हुए थे, इसलिए कनानी लोग उनके देश में रहते थे।
\s5
\v 13 जब इस्राएली शक्तिशाली हो गए तब उन्होंने उन कनानियों को दास बना लिया था परन्तु वे उनकी भूमि को उनसे ले लेने में सफल नहीं हो पाए थे।
\p
\s5
\v 14 यूसुफ के वंशज (यानी, एप्रैम और मनश्शे के गोत्र) ने यहोशू से कहा, "आपने हमें केवल देश का एक ही क्षेत्र सौंपा है, परन्तु हमारे गोत्रों में लोगों की संख्या बहुत हैं। यहोवा ने हमें बहुत आशीषें दी हैं, तुमने हमें रहने के लिए भूमि का केवल एक छोटा सा भाग ही क्यों दिया?"
\p
\v 15 यहोशू ने उनसे कहा, "तुम्हारे लोग संख्या में अधिक हैं, तो जाओ और परिज्जियों और रपाइयों के देश में पेड़ों को काटकर अपनी फसलों के लिए और रहने के लिए स्थान तैयार करो। तुम्हें ऐसा ही करना होगा, क्योंकि पहाड़ी देश तुम्हारे रहने के लिए बहुत कम है।"
\p
\s5
\v 16 एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के लोगों ने उत्तर दिया, "पहाड़ी देश हमारे लिए पर्याप्त नहीं है, परन्तु हम वहाँ रहनेवाले कनानी लोगों के कारण मैदान में फैल नहीं सकते हैं। बेतशान और आसपास के गाँवों में रहने वाले कनानी लोगों के पास लोहे के पहियों वाले रथ हैं।"
\p
\v 17 यहोशू ने यूसुफ के घराने को, अर्थात् एप्रैम और मनश्शे को; उत्तर दिया, "तुम्हारे लोग वास्तव में संख्या में बहुत अधिक हैं और बहुत शक्तिशाली भी हैं इसलिए मैं तुम्हें देश का एक और भाग दूँगा:
\v 18 वह पहाड़ी देश भी तुम्हारा होगा। तुम्हें वहाँ पेड़ों को काटकर अपने रहने के लिए स्थान तैयार करना होगा। तुम कनानियों को निकाल पाओगे चाहे उनके पास लोहे के पहियों वाले रथ हों और वे शक्तिशाली ही क्यों न हों।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 इस्राएलियों की सारी सभा शीलो में एकत्र हुई और उन्होंने वहाँ एक तम्बू स्थापित किया जहाँ उन्होंने यहोवा की उपासना की, देश में अब और युद्ध नहीं हुए।
\v 2 तथापि, इस्राएल के सात गोत्रों को अभी तक कोई भूमि नहीं दी गई थी।
\s5
\v 3 यहोशू ने इस्राएल के लोगों से कहा, "तुम इतने लम्बे समय तक क्यों रुके हुए हो? तुम उस देश पर अधिकार करने में कितनी देरी करोगे जिसे देने की प्रतिज्ञा तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने की है।
\p
\v 4 अपने सातों गोत्रों में से प्रत्येक के तीन पुरुष चुनो। मैं उनको देश के उन भागों का भेद लेने के लिए उन्हें भेजूँगा जिन पर तुमने अब तक अधिकार नहीं किया है। जब वे ऐसा कर लें तब वे उसका लिख कर वर्णन करें कि वह देश कैसा है। वे एक नक्शा बनाकर वहाँ के नगरों और महत्वपूर्ण स्थानों की स्थिति दिखाएँगे और सपष्ट करेंगे कि वहाँ कौन सी जनजाति रहती है।
\s5
\v 5 वे शेष देश को सात भागों में विभाजित करेंगे। यहूदा का गोत्र दक्षिण में अपना स्थान रखेगा, और एप्रैम और मनश्शे के गोत्र उत्तर में अपना अपना स्थान रखेंगे।
\v 6 परन्तु वर्णन करते समय सातों गोत्रों के पुरुषों को उस देश के उन सात भागों का शेष देश के सात वर्णन करना होगा जिन्हें वे प्राप्त करना चाहते हैं, और उस लिखित वर्णन को मेरे पास लाना। यहोवा की आँखों के सामने मैं चिट्ठियाँ डाल कर निश्चित करूँगा कि किस गोत्र को कौन सा भाग दिया जाना चाहिए।
\s5
\v 7 परन्तु लेवी के गोत्र को कोई भाग नहीं दिया जाएगा, क्योंकि उनका प्रतिफल यहोवा के याजक होना है। गाद, रूबेन और मनश्शे के आधे गोत्र को पहले ही यरदन नदी के पूर्व का क्षेत्र दे दिया गया था। जैसा परमेश्वर के दास मूसा ने निर्णय लिया था, इसलिए उन्हें और भूमि नहीं मिलेगी।"
\p
\s5
\v 8 जब चुने गए लोग निकलने के लिए तैयार हो गए, तो यहोशू ने उनसे कहा, "जाओ और देश का भेद लो। फिर जो कुछ तुमने देखा है उसका वर्णन लिख कर ले आओ। तब मैं यहोवा की आँखों के सामने शीलो में चिट्ठियाँ डालकर निश्चित करूँगा कि कौन सा क्षेत्र किस गोत्र को दिया जाए।"
\v 9 अतः वे लोग चले गए और उस क्षेत्र में घूमे फिरे। तब उन्होंने उस देश के विभाजित सात भागों में से हर एक का वर्णन एक पुस्तक में किया। उन्होंने उस देश को उनके शहरों के साथ विभाजित किया था। तब वे शीलों में यहोशू के पास लौट आए।
\s5
\v 10 उनके लिखित वर्णन को पढ़ने के बाद, यहोशू ने यहोवा की उपस्थिति में चिट्ठियाँ डालीं कि सात इस्राएली गोत्रों में से प्रत्येक को कौन सी भूमि दी जाए।
\m
\s5
\v 11 पहला गोत्र जिसे उस देश की भूमि दी गई वह बिन्यामीन का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को कुछ भूमि दी गई थी। वह यहूदा के गोत्र और एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों को दी गई भूमि के बीच में थी।
\v 12 इसकी उत्तरी सीमा यरदन नदी से आरम्भ होकर पहाड़ी देश में यरीहो के उत्तरी किनारे के साथ पश्चिम तक गई थी। वहाँ वह सीमा पश्चिम में बेतावेन के पास मरुभूमि तक गई थी।
\s5
\v 13 वहाँ से यह दक्षिण से लूज तक (जिसे अब बेतेल कहा जाता है)। और नीचे अत्रोतदार तक गई है, जो निचले बेथोरोन के दक्षिण में पहाड़ी पर है।
\v 14 बेथोरोन के दक्षिण की पहाड़ी पर, सीमा मुड़ गई और दक्षिण में किर्यतबाल (जिसे किर्यत्यारीम भी कहा जाता है) तक गई थी। उस नगर में यहूदा के गोत्र के लोग रहते थे। वह उनकी पश्चिमी सीमा थी।
\s5
\v 15 उनके देश की दक्षिण सीमा किर्यत्यारीम के पास आरम्भ होकर पश्चिम में नेप्तोह के सोतों तक गई।
\v 16 वहाँ से यह रपाईम की घाटी के उत्तर की ओर बेन हिन्नोम की घाटी के पास पहाड़ी के तल तक गई। सीमा को शहर के दक्षिण में हिन्नोम घाटी के साथ यबूसियों के नगर एनरोगेल तक ले जाया गया।
\s5
\v 17 वहाँ से उनकी सीमा पश्चिम में एनशेमेश तक गई और अदुम्मीम की पहाड़ी के पास गलीलोत तक गई। और रूबेन के पुत्र बोहन के महान पत्थर तक हुई।
\v 18 वहाँ से सीमा बेतराबा के उत्तरी छोर तक और नीचे यरदन के मैदान तक गई थी।
\s5
\v 19 वहाँ से वह पूर्व में बेथोग्ला के उत्तरी छोर तक गई और मृत सागर के उत्तरी छोर पर समाप्त हुई, जहाँ यरदन नदी मृत सागर में गिरती है। वह उनकी दक्षिणी सीमा थी।
\v 20 यरदन नदी बिन्यामीन के गोत्र को दिए गए देश की पूर्वी सीमा थी। यह उन्हें दिए गए क्षेत्र की सीमाएँ थीं, हर एक सीमा का वर्णन स्पष्ट है।
\m
\s5
\v 21 बिन्यामीन के गोत्र को सौंपे गए देश थेः यरीहो, बेथोग्ला, एमेक्कसीस,
\v 22 बेतराबा, समारैम, बेतेल,
\v 23 अव्वीम, पारा, ओप्रा,
\v 24 कपरम्मोनी, ओप्नी, और गेबा। वहाँ कुल चौदह शहर थे, उनके गाँवों की गिनती नहीं की गई है।
\s5
\v 25 बिन्यामीन के गोत्र के पास ये शहर भी थेः गिबोन, रामा, बेरोत,
\v 26 मिस्पा, कपीरा, मोसा,
\v 27 रेकेम, यिर्पेल, तरला,
\v 28 सेला, एलेप, यबूस (वह शहर जहाँ यबूसी रहते थे, जिसे अब यरूशलेम कहा जाता है), गिबा और किर्यत। वहाँ कुल चौदह शहर थे, उनके गाँवों की गिनती नहीं की गई है। वह सारा क्षेत्र बिन्यामीन के गोत्र के कुलों को दिया गया था।
\s5
\c 19
\p
\v 1 दूसरा गोत्र जिसे भूमि दी गई थी वह शिमोन का गोत्र था। उस गोत्र के प्रत्येक कुल को भूमि दी गई थी जो यहूदा के क्षेत्र के मध्य में थी।
\s5
\v 2 शिमोन के क्षेत्र में निम्नलिखित शहर थे: बेर्शेबा, शेबा, मोलादा,
\v 3 हसर्शुआल, बाला, एसेम,
\v 4 एलतोलद, बतूल और होर्मा।
\s5
\v 5 शिमोन के क्षेत्र में सिकलग, बेत्मर्काबोत नगर भी शामिल थे। हसर्शूसा,
\v 6 बेतलबाओत, और शारूहेन। आसपास के गाँवों के साथ वे तेरह शहर थे।
\v 7 शिमोन को सौंपे गए क्षेत्र में चार नगर थे, ऐन, रिम्मोन, ऐतेर और आशान और उनके आसपास के गाँव।
\s5
\v 8 उन्हें एक ऐसे क्षेत्र में भी गाँव भी दिए गए थे जो दक्षिण में बालत्बेर (जिसे दक्षिणी मरुभूमि में रामा भी कहा जाता है) तक फैले हुए थे। यह शिमोन के गोत्र के कुलों को दिया गया क्षेत्र था।
\m
\v 9 यहूदा के गोत्र को आवश्यकता से अधिक भूमि दी गई थी, इसलिए उनका कुछ भाग शिमोन के गोत्र को दिया गया।
\m
\s5
\v 10 तीसरा गोत्र जिसे भूमि दी गई थी, वह जबूलून का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी। उनकी दक्षिणी सीमा सारीद से आरम्भ हुई।
\v 11 और पश्चिम में मरला और दब्बेशेत तक गई, और योकनाम शहर के सामने नदी के किनारे तक गई।
\s5
\v 12 सारीद से यह सीमा पूर्व की ओर मुड़ गई और किसलोत्ताबोर के पास के क्षेत्र में और फिर दाबरत तक और यापी तक चली गई।
\v 13 वहाँ से पूर्व में गथेपेर और इत्कासीन और उत्तर में रिम्मोन तक पहुँची। वहाँ से यह सीमा नेआ की ओर मुड़ गई।
\s5
\v 14 नेआ से यह सीमा दक्षिण में हन्नातोन तक और वहाँ से यिप्तहेल की घाटी तक पहुँची।
\v 15 जबूलून के क्षेत्र में कत्तात, नहलाल, शिम्रोन, यिदला और बैतलहम के नगर थे। आसपास के गाँवों के साथ वे कुल बारह शहर थे।
\m
\v 16 यह वह क्षेत्र था जो जबूलून के गोत्र के कुलों को दिया गया था, जिसमें शहर और उनके आसपास के गाँव भी थे।
\m
\s5
\v 17 चौथा गोत्र जिसे भूमि दी गई, वह इस्साकार का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी।
\v 18 उनके क्षेत्र में यिज्रेल, कसुल्लोत, शूनेम,
\v 19 हपारैम, शीओन, और अनाहरत शहर थे।
\s5
\v 20 इस्साकार के देश में रब्बीत, किश्योत, एबेस,
\v 21 रेमेत, एनगन्नीम, एनहद्दा, और बेत्पस्सेस शहर भी थे।
\v 22 इस्साकार के गोत्र को सौंपे गए क्षेत्र की सीमा ताबोर, शहसूमा और बेतशेमेश के नगरों के निकट थी, और पूर्व में यरदन नदी में समाप्त हो गई थी। आसपास के गाँवों के साथ कुल सोलह शहर थे।
\m
\s5
\v 23 वे नगर और आसपास के गाँव इस्साकार के गोत्र के कुलों को दिए गए थे।
\m
\s5
\v 24 पाँचवाँ गोत्र जिसे भूमि दी गई थी वह आशेर का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी।
\v 25 उनके देश में हेल्कत, हली, बेतेन, अक्षाप,
\v 26 अलाम्मेल्लेक, अमाद और मिशाल शहर थे। उनकी पश्चिमी सीमा कर्मेल पर्वत और शाहोर्लिब्नात से आरम्भ हुई।
\s5
\v 27 वहाँ से वह दक्षिण-पूर्व में बेतदागोन शहर तक और जबूलून के गोत्र को दी गई भूमि तक थी, और आगे यिप्तहेल की घाटी तक गई। वहाँ से सीमा पूर्व में और फिर उत्तर में बेतेमेक और नीएल और काबुल तक गई।
\v 28 तब पश्चिम में अब्दोन, रहोब, हम्मोन और काना के शहरों तक गई, और सीदोन तक आगे बढ़ी, जो एक बहुत बड़ा शहर था।
\s5
\v 29 सीदोन से सीमा दक्षिण में रामा की ओर बढ़ी और बहुत बड़े शहर सूर की ओर गई जिसके चारों ओर मजबूत दीवारें थीं, वहाँ से सीमा पश्चिम से होसा तक गई और अकजीब के क्षेत्र में भूमध्य सागर में समाप्त हो गई,
\v 30 उम्मा, अपेक, और रहोब तक गई। आसपास के गाँवों के साथ वे कुल बाईस शहर थे।
\m
\s5
\v 31 उनके नगर और गाँव उस क्षेत्र में थे जो आशेर के गोत्र के कुलों को दिया गया था।
\m
\s5
\v 32 छठा गोत्र जिसे भूमि दी गई वह था जो देश सौंपा गया था नप्ताली का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई।
\v 33 नप्ताली के देश की सीमा पश्चिम में हेलेप शहर के पास, सानन्नीम में विशाल बांज वृक्ष से आरम्भ हुई। और पूर्व में अदामीनेकेब और यब्नेल तक होती हुई यरदन नदी पर समाप्त हो गई।
\v 34 इसकी पश्चिमी सीमा अजनोत्ताबोर से होती हुई हुक्कोक तक गई और दक्षिण में जबूलून के गोत्र की सीमा तक, पश्चिम में आशेर के गोत्र की सीमा तक और पूर्व में यरदन नदी तक गई ।
\s5
\v 35 उनके क्षेत्र में दृढ़ दीवारों वाले कई शहर थे। ये शहर थेः सिद्दीम, सेर, हम्मत, रक्कत, किन्नेरेत,
\v 36 अदामा, रामा, हासोर,
\v 37 केदेश, एद्रेई, और एन्हासेर।
\s5
\v 38 नप्ताली के शहरों ने दृढ़ दीवारों वाले यिरोन, मिगदलेल, होरेम, बेतनात और बेतशेमेश भी थे। आसपास के गाँवों के साथ वे कुल उन्नीस शहर थे।
\m
\v 39 ये नगर और उनके आसपास के गाँव उस क्षेत्र में थे जो नप्ताली के गोत्र के कुलों को दिया गया था।
\m
\s5
\v 40 सातवाँ गोत्र जिसे भूमि दी गई थी वह दान का गोत्र था। उस गोत्र के हर एक कुल को भूमि दी गई थी।
\v 41 उनके देश में ये शहर थेः सोरा, एशताओल, ईरशमेश,
\v 42 शालब्बीन, अय्यालोन और यितला।
\s5
\v 43 दान के देश में यह शहर भी थेः एलोन, तिम्ना, एक्रोन,
\v 44 एलतके, गिब्बतोन, बालात,
\v 45 यहूद, बनेबराक, गत्रिम्मोन,
\v 46 मेयर्कोन, रक्कोन, और यापो के पास का क्षेत्र।
\p
\s5
\v 47 परन्तु दान गोत्र के लोग उस देश पर अधिकार नहीं कर पाए जो उन्हें दिया गया था। तो वे पूर्वोत्तर में गए और लेशेम शहर में रहने वाले लोगों से युद्ध किया। उन्होंने उन सब लोगों को मार डाला। तब वे लेशेम में बस गए, और शहर के नाम को बदल कर दान कर दिया; दान उनके मूल पिता का नाम था।
\m
\v 48 ये सब नगर और उनके आसपास के गाँव उस क्षेत्र में थे जो दान के गोत्र में कुलों को दिया गया था।
\p
\s5
\v 49 इस्राएलियों के अगुवों द्वारा जनजातियों के बीच देश को विभाजित करने के बाद, कुछ क्षेत्र यहोशू को भी दिया गया।
\v 50 उन्होंने उसे तिम्नत्सेरह शहर दिया। यहोवा ने कहा था कि वह जो भी शहर चाहता था वह ले सकता था, और वही शहर था जिसे उसने चुना था। यह उस पहाड़ी क्षेत्र में था जिसे एप्रैम के गोत्र को दिया गया था। यहोशू ने उस शहर का फिर से निर्माण किया और वहाँ रहने लगा।
\p
\s5
\v 51 यह वे क्षेत्र थे जो इस्राएल के विभिन्न गोत्रों को दिए गए थे। एलीआजार (सभी पुजारियों के अगुवे), यहोशू और हर एक गोत्र के अगुवों ने देश को विभाजित कर दिया; उस समय वे शीलो में थे, और चिट्ठियाँ डाल कर निर्णय लिया गया कि कौन सा क्षेत्र किस गोत्र को प्राप्त होगा। यहोवा पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार से उनको देख रहे थे। इस प्रकार उन्होंने देश को विभाजित करना समाप्त कर लिया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 तब यहोवा ने यहोशू से कहा,
\v 2 "इस्राएली लोगों से कह कि उन्हें कुछ शहरों का चयन करना होगा, जैसा मैं ने मूसा से कहा था कि लोग वहाँ सुरक्षित होने के लिए भाग कर जा सकते हैं।
\v 3 यदि कोई व्यक्ति हत्या का विचार न रखते हुए, किसी को गलती से मार डालता है, तो वह इन शहरों में से किसी एक में भाग कर जा सकता है कि सुरक्षित रहे।
\p
\s5
\v 4 जब वह व्यक्ति उन शहरों में से किसी एक के फाटक पर आता है, तो उसे वहाँ के अगुवों को बताना होगा कि क्या हुआ है। अगर वे उसका विश्वास करें, तो उसे शहर में प्रवेश करने की अनुमति दें और उनके बीच रहने के लिए उसे स्थान दें।
\s5
\v 5 यदि मृतक व्यक्ति के सम्बन्धी उस शहर में बदला लेने के विचार से आते हैं, तो उस शहर के अगुवे उन्हें हत्यारे को ले जाने की अनुमति नहीं दें, क्योंकि जो हुआ वह एक आकस्मिक घटना थी। वह उस व्यक्ति से बैर नहीं रखता था; उसने जानबूझकर उसकी हत्या नहीं की थी।
\v 6 जिस व्यक्ति ने किसी की हत्या की है उसे उस शहर में तब तक रहना है जब तक कि शहर के न्यायाधीश उस पर मुकदमा न चलाएँ। अगर न्यायाधीश निर्णय लेते हैं कि वह व्यक्ति जो उनके शहर में भाग कर आया है, उसने जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को नहीं मारा है, तो वे उसे उस शहर में रहने की अनुमति दें, और जब तक कि उस समय सेवा कर रहे प्रधान याजक की मृत्यु न हो जाए तब तक उसे वहाँ रहना होगा। तब वह व्यक्ति सुरक्षित रूप से अपने घर लौट सकता है।"
\p
\s5
\v 7 इसलिए इस्राएलियों ने कुछ शहरों को चुना जहाँ लोग सुरक्षित रहने के लिए भाग कर जा सकते थे: गलील के क्षेत्र में केदेश को, पहाड़ी क्षेत्र को जहाँ नप्ताली का गोत्र रहता था; पहाड़ी क्षेत्र में शकेम को, जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था; और किर्य्यातर्बा के (जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है), पहाड़ी क्षेत्र को जहाँ यहूदा का गोत्र रहता था;
\v 8 मरुभूमि में, यरीहो के पास यरदन नदी के पूर्व में बेसेर को, जहाँ रूबेन का गोत्र रहता था; गाद के गोत्र के क्षेत्र में गिलाद के रामोत को और मनश्शे के गोत्र के क्षेत्र में बाशान के गोलान को चुना।
\s5
\v 9 उनके मध्य रहनेवाला कोई भी इस्राएली या कोई भी परदेशी जिसने किसी को गलती से मार डाला, उसे उन शहरों में से एक में भाग जाने की अनुमति थी। वहाँ वह मृतक के सम्बन्धियों से सुरक्षित होगा जो उससे बदला लेने के लिए उसे मार डालना चाहते हैं। वह उस शहर में तब तक रह सकता था जब तक कि उस पर मुकदमा करके सिद्ध न कर लिया जाए कि उसके हाथों हत्या सोच समझ कर नहीं की गई थी।
\s5
\c 21
\p
\v 1 लेवियों के कुलों के अगुवे याजक एलीआजार, नून के पुत्र यहोशू और इस्राएली लोगों के कुलों के प्रधानों से बात करने के लिए शीलो आए।
\v 2 उन्होंने उनसे कहा, "यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी कि हमें ऐसे शहर दिए जहाँ हम रह सकें और जहाँ हमें अपने पशुओं के लिए चरागाह मिलें।"
\s5
\v 3 अतः इस्राएली अगुवों ने यहोवा के इस आदेश का पालन किया। उन्होंने लेवी के गोत्र को अपने अपने क्षेत्र से बाहर शहर और चरागाह दिए।
\p
\s5
\v 4 इस्राएली अगुवों ने सबसे पहले कहात के वंशजों को शहर देने के लिए चिट्ठियाँ डालीं। यह कुल हारून का वंशज था। उन्होंने उसे तेरह शहर यहूदा, शिमोन और बिन्यामीन के गोत्र से दिए।
\v 5 कहात से निकले अन्य कुलों के लिए, इस्राएली अगुवों ने उन क्षेत्रों में से दस शहरों को दिया जो एप्रैम और दान के गोत्रों के पास थे, और साथ ही मनश्शे के गोत्र का भाग जो यरदन नदी के पश्चिम की ओर था, दिया।
\p
\s5
\v 6 गेर्शोन के कुलों के लोगों को, इस्राएली अगुवों ने इस्साकार, आशेर और नप्ताली के क्षेत्रों में से बाशान के क्षेत्र में से जहाँ मनश्शे का आधा गोत्र रहता था, तेरह शहर दिए गए।
\p
\v 7 मरारी से निकले कुलों के लोगों के लिए, इस्राएली अगुवों ने रूबेन, गाद और जबूलून के गोत्रों के क्षेत्रों में से बारह शहर दिए।
\p
\s5
\v 8 इस तरह, इस्राएली अगुवों ने लेवी के गोत्र को नगर और चरागाह दिए। यह मूसा को दी गई यहोवा की आज्ञा थी।
\m
\v 9 इस्राएली अगुओं द्वारा यहूदा और शिमोन के गोत्रों के क्षेत्र से लेवी के गोत्र को दिए गए नगरों तथा चारागाहों के नाम इस प्रकार हैंः
\v 10 सबसे पहले, हारून के वंशजों में से लेवी वंश के कहात के कुलों को इस्राएली अगुओं द्वारा चिट्ठियाँ डालीं। ये लोग याजकीय सेवा में थे।
\s5
\v 11 इस्राएल के अगुवों ने उन्हें यहूदा के पहाड़ी देश (अर्बा अनाक का पिता था) में किर्यतर्बा (जिसे अब हेब्रोन कहा जाता है) और आस पास के चारागाह दिए।
\v 12 इस्राएली अगुवों ने पहले ही किर्यतर्बा के आसपास की खेती की जमीन और गाँवों को यपून्ने के पुत्र कालेब को सौंप दिया था।
\s5
\v 13 अतः इस्राएली अगुवों ने याजक हारून के वंशजों को हेब्रोन दे दिया। हेब्रोन उन शहरों में से एक था जहाँ लोग गलती से किसी व्यक्ति को मार डालने के बाद भाग कर जा सकते थे। हारून के वंशजों को उन्होंने ये नगर भी दिएः लिब्ना,
\v 14 यत्तीर, एशतमो,
\v 15 होलोन, दबीर,
\v 16 ऐन, युत्ता, और बेतशेमेश चरागाहों के साथ ये नौ शहर थे। ये शहर उन क्षेत्रों में स्थित थे जो यहूदा और शिमोन के गोत्रों के थे।
\s5
\v 17 इस्राएलियों के अगुवों ने हारून के वंशजों को बिन्यामीन के क्षेत्र में से भी कुछ नगर दिए: गिबोन, गेबा,
\v 18 अनातोत, और अल्मोन और उनकी चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\m
\v 19 आसपास की चरागाहों के साथ ये तेरह नगर थे, जो इस्राएली अगुवों ने, हारून के वंशज याजकों को दिए थे।
\m
\s5
\v 20 कहात से निकले अन्य कुलों को एप्रैम के गोत्र के क्षेत्र से चार नगर प्राप्त हुए।
\v 21 वे शहर थे, शकेम (जो उन शहरों में से एक था जहाँ लोग किसी को अनजाने में मार डाले जाने पर भाग कर जा सकते थे), गेजेर,
\v 22 कीबसैम, और बेथोरोन चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 23 कहात से निकले इन विशेष कुलों को दान के गोत्र के क्षेत्र में से आसपास की चरागाहों के साथ चार शहर प्राप्त हुए। ये शहर थेः एलतके, गिब्बतोन,
\v 24 अय्यालोन, और गत्रिम्मोन चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 25 कहात से निकले इन कुलों को मनश्शे के गोत्र को दिए गए क्षेत्र में से दो नगर भी मिले। तानाक और गत्रिम्मोन दो शहर - चरागाहों के साथ थे।
\m
\v 26 ये सब आसपास की चरागाहों के साथ दस नगर थे, जो कहात के इन विशेष कुलों से मिले थे।
\m
\s5
\v 27 इस्राएली अगुवों ने गेर्शोन से निकलने वाले कुलों को शहरों और आसपास की चरागाहों के साथ देने के लिए चिट्ठियाँ डालीं। ये कुल भी लेवी के वंशज थे। इसलिए इन कुलों को मनश्शे के आधे गोत्र से जो यरदन नदी के पूर्वी भाग में बस गया था दो शहर मिले वे शहर थे बाशान के क्षेत्र में गोलान, जो उन शहरों में से एक था जहाँ लोग सुरक्षा के लिए भाग कर जा सकते थे, और बेशतरा
\s5
\v 28 इन कुलों को इस्साकार के क्षेत्र से भी कुछ नगर मिले। वे शहर थेः किश्योन, दाबरत,
\v 29 यर्मूत, और एनगन्नीम चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\v 30 इन कुलों को आशेर के क्षेत्र से भी कुछ नगर प्राप्त हुए। ये शहर थेः मिशाल, अब्दोन,
\v 31 हेल्कात, और रहोब चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 32 इन कुलों को नप्ताली के क्षेत्र से कुछ नगर प्राप्त हुए। ये शहर थेः गलील के क्षेत्र में केदेश (उन शहरों में से एक जहाँ लोग अनजाने में किसी को मार डालने पर सुरक्षा के लिए भाग कर जा सकते थे), हम्मोतदोर और कर्तान चरागाहों के साथ ये तीन शहर थे।
\m
\v 33 अतः गेर्शोनियों को आसपास की चरागाहों के साथ तेरह शहर प्राप्त हुए।
\m
\s5
\v 34 इस्राएली अगुवों ने बाकी लेवियों को भी शहर दिए, अर्थात्, वे लोग जो मरारी के वंशजों से निकले कुलों से संबंधित थे। इन कुलों को जबूलून के क्षेत्र में से कुछ शहर मिले। ये शहर थेः योक्नाम, कर्ता,
\v 35 दिम्ना, और नहलाल चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\s5
\v 36 मरारी से निकले कुलों को रूबेन के क्षेत्र में से भी शहर प्राप्त हुए। ये शहर थेः बेसेर, यहसा,
\v 37 केदेमोत, और मेपाथ चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\v 38 मरारी से निकले कुलों को गाद के क्षेत्र में से भी शहर मिले। ये शहर थेः रामोत, जो गिलाद के उन शहरों में से एक था जहाँ लोग अनजाने में किसी को मार डालने पर सुरक्षा के लिए भाग कर जा सकते थे, और महनैम।
\s5
\v 39 वहाँ हेशबोन और याजेर के शहर भी थे चरागाहों के साथ ये चार शहर थे।
\m
\v 40 मरारी से निकले वंशजों के सब कुलों को बारह शहर प्राप्त हुए क्योंकि इस्राएली अगुवों ने उनके लिए चिट्ठियाँ डाली थीं।
\p
\s5
\v 41 अतः लेवियों को सब इस्राएली गोत्रों के क्षेत्रों में से अड़तालीस शहर प्राप्त हुए। साथ ही उन शहरों के आस पास की चरागाहें भी मिली थीं।
\v 42 इन शहरों में से हर एक के आसपास चरागाह थी।
\p
\s5
\v 43 इस प्रकार यहोवा ने इस्राएली लोगों को वह सारा देश दे दिया जिसे उसने उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की थी। इस्राएलियों ने इन क्षेत्रों पर अधिकार किया और उनमें बस गए।
\v 44 जैसे उसने उनके पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी, यहोवा ने उनके चारों ओर के शत्रुओं से उन्हें शान्ति दिलाई। उनके किसी भी शत्रु ने उन्हें पराजित नहीं किया। यहोवा ने इस्राएलियों के सब शत्रुओं को पराजित करने में उनकी सहायता की थी।
\v 45 यहोवा ने इस्राएलियों से की गई अपनी प्रत्येक प्रतिज्ञा को पूरा किया। उसकी प्रत्येक प्रतिज्ञा सच्ची सिद्ध हुई।
\s5
\c 22
\p
\v 1 यहोशू ने तब रूबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे गोत्र के अगुवों को बुलाया।
\v 2 उसने उनसे कहा, "तुम ने यहोवा के दास मूसा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। तुमने वह भी किया है, जो मैंने आदेश दिया था।
\v 3 तुमने अन्य गोत्रों के साथ शत्रुओं को हराने में सहायता की है। तुमने परमेश्वर यहोवा की सिखाई हुई बातों और आज्ञाओं का पालन किया है।
\s5
\v 4 उसने तुम्हारे साथी इस्राएलियों को शान्ति देने की प्रतिज्ञा की थी, और उसे पूरा भी किया है। इसलिए अब तुम यरदन नदी के पूर्व में, जो स्थान मूसा ने तुम्हें दिया था, वहाँ अपने घर लौट सकते हो।
\v 5 मूसा ने यह आज्ञा भी दी थी कि तुम अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो और उसकी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीओ। उसने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करने और उस पर भरोसा रखने और अन्य सब से दूर रहने के लिए भी कहा था। अपने विचारों और कार्यों द्वारा उसकी सेवा करो और उसकी उपासना करो।"
\p
\v 6 तब यहोशू ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें विदा किया, वे अपने तम्बू में लौट आए।
\s5
\v 7 मूसा ने यरदन नदी के पूर्व में बाशान का क्षेत्र मनश्शे के आधे गोत्र को दिया था, और यहोशू ने यरदन नदी के पश्चिम में उस गोत्र के दूसरे आधे भाग को भूमि दी। जब यहोशू ने उन्हें उनके तम्बू में भेज दिया, तब उसने परमेश्वर से विनती की कि उनको आशीर्वाद दे।
\v 8 उसने उनसे कहा, "बहुत धन, कई जानवरों, और चाँदी, सोने, काँसे, और लोहे, और कई सुन्दर कपड़ों के साथ अपने तम्बुओं में लौट जाओ। परन्तु अपने शत्रुओं से मिली लूट को अपने भाइयों और बहनों के साथ अवश्य बाँटना।"
\p
\s5
\v 9 तब रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों ने कनान क्षेत्र के शीलो में अन्य इस्राएलियों से विदा ली और घर, गिलाद लौट आए यहोवा के आदेश से मूसा ने उन्हें यह स्थान दिया था।
\p
\s5
\v 10 वे कनान देश में यरदन नदी के पश्चिमी तट पर पहुँचे। वहाँ रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों ने एक वेदी बनाई एक बहुत बड़ी और प्रभावशाली वेदी।
\v 11 इस्राएल के अन्य लोगों ने इस वेदी के बारे में सुना; वे रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों की इस रचना पर चिन्तित हुए। यह वेदी कनान देश के प्रवेश स्थान पर गलीलोत शहर में, यरदन के पास, इस्राएल देश के एक भाग में बनाई गई थी।
\s5
\v 12 इस्राएलियों ने इस बारे में सुना, और लोगों की सारी सभा शीलो में एकत्र हुई। इस वेदी के कारण उन्होंने जाकर उनसे युद्ध करने का निर्णय लिया।
\p
\s5
\v 13 परन्तु पहले, इस्राएलियों ने एलीआजार के पुत्र और सब याजकों के अगुवे पीनहास को रूबेन, गाद और मनश्शे के लोगों से बात करने के लिए भेजा।
\v 14 उन्होंने यरदन नदी के पश्चिम में इस्राएल के दस गोत्रों में से एक एक अगुवे को भी उसके साथ भेजा। हर एक अगुवा उनके स्वयं के कुल में एक महत्वपूर्ण मनुष्य था।
\p
\s5
\v 15 वे अगुवे गिलाद के क्षेत्र में रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों से बात करने आए। उन्होंने कहा,
\v 16 "सब इस्राएली पूछ रहे हैं, 'तुमने यह क्या किया है? तुमने अपने परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ा है। इस स्थान पर अपनी वेदी बनाकर तुम यहोवा के विरोधी हो गए हो। तुमने यहोवा से विद्रोह किया है।
\s5
\v 17 क्या तुम भूल गए कि पोर में जब हम यहोवा को छोड़ अन्य देवताओं की पूजा करने लगे थे तब यहोवा ने हमें कैसा दण्ड दिया था? यहोवा ने इस्राएल के लोगों में एक घातक महामारी भेजी थी, जिससे बहुत से लोग मर गए थे।
\v 18 इस वेदी को बनाने में तुम्हारा विचार यहोवा की उपासना बंद करना है। यदि यह सच है, तो तुमने ऐसा करके उससे विद्रोह किया है; इसके कारण वह इस्राएल के सब लोगों से क्रोधित होगा।'
\p
\s5
\v 19 "यदि तुम सोचते हो कि यहोवा तुम्हारे देश को उसकी उपासना के लिए उचित नहीं मानता है, तो हमारे देश में लौट आओ जहाँ यहोवा का पवित्र तम्बू है। हम अपने देश को तुम्हारे साथ बाँट सकते हैं। लेकिन हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए एक और वेदी बनाकर यहोवा के विरुद्ध या हमारे विरुद्ध विद्रोह न करो।
\v 20 तुम्हें निश्चय ही स्मरण होगा कि जब जेरह के पुत्र आकान ने यरीहो में सब कुछ नष्ट करने के यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया था तब क्या हुआ था? उस व्यक्ति ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी थी और उसके कारण अन्य इस्राएली लोगों को दण्ड दिया गया था।"
\p
\s5
\v 21 रूबेन, गाद के गोत्रों और मनश्शे के आधे गोत्र के अगुवों ने उत्तर दिया,
\v 22 "सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जानता है कि हमने ऐसा क्यों किया, और हम चाहते हैं कि तुम भी जान लो। यदि हम यहोवा की सेवा करने की अपनी प्रतिज्ञा में विश्वासयोग्य नहीं हैं, तो हम पर कोई दया न करे, और हमारा जीवन ले लें।
\v 23 यदि हमने यह वेदी इसलिए बनाई है, कि हम यहोवा की आज्ञाओं का पालन करना बंद कर दें, या यदि हमने इस वेदी को बलिदान चढ़ाने, अन्नबलि चढ़ाने या उसके साथ मित्रता की वाचा के बलिदान चढ़ाने के लिए बनाया है, तो कानून के उल्लंघन में, यहोवा हमें दण्ड दे, यहाँ तक कि हमारे जीवन ले ले।
\p
\s5
\v 24 नहीं, हमने यह वेदी इसलिए बनाई कि हमें डर था कि भविष्य में एक दिन आपके बच्चे हमारे बच्चों से बात कर सकते हैं और पूछ सकते हैं, 'इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा के साथ आपका क्या लेना देना है?'
\s5
\v 25 हमें डर है कि वे हमारे बच्चों से कहेंगे, "यहोवा ने यरदन नदी को हमारे और रूबेन के और गाद के लोगों के बीच सीमा निर्धारित की है। तुम्हारा यहोवा के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। और तुम्हारे बच्चे हमारे बच्चों को यहोवा की उपासना करने से रोकने का प्रयास कर सकते हैं।
\p
\s5
\v 26 इसलिए हमने कहा, 'आओ अब हम एक वेदी बनाएँ, परन्तु बलि चढ़ाने के लिए और भेंट चढ़ाने के लिए नहीं।
\v 27 हम तो चाहते हैं कि यह वेदी आपके और हमारे लिए, और हमारे बाद हमारे वंशजों के लिए एक स्मारक हो, कि हम वास्तव में यहोवा की उपासना करें। हम वास्तव में जलाने वाली बलियों और हमारे चढ़ावों, और परमेश्वर के साथ मेल की वाचा के हमारे चढ़ावों के द्वारा उसकी उपासना करते हैं। हमने इस वेदी को इसलिए बनाया कि तुम्हारे वंशज भविष्य में हमारे वंशजों से कभी न कहें, "यहोवा ने तुमको इस देश का कोई भाग नहीं दिया है, तुम यहाँ के नहीं हो।"
\p
\s5
\v 28 भविष्य में, यदि तुम्हारे वंशज ऐसा कहें तो, हमारे वंशज कह सकते हैं, 'हमारे पूर्वजों ने जो वेदी बनाई है उसे देखो! यह शीलो में यहोवा की वेदी जैसा है, परन्तु हम उस पर बलि नहीं जलाते हैं। यह एक स्मारक है जिसका अर्थ है कि हम और तुम एक साथ यहोवा की उपासना करते हैं।
\v 29 हम यहोवा से विद्रोह कदापि नहीं करना चाहते हैं या उसकी इच्छा को पूरा करना बंद नहीं करना चाहते हैं। इस वेदी को कभी भी बलि चढ़ाने, अन्न के चढ़ावे जलाने या अन्य कोई बलि देने के विचार से कभी नहीं बनाया गया है। हम जानते हैं कि हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए केवल एक ही सच्ची वेदी है और वह पवित्र तम्बू के सामने है।"
\p
\s5
\v 30 जब याजक पीनहास और इस्राएलियों के दस अगुवों ने सुना, कि रूबेन, गाद और मनश्शे के लोगों ने क्या कहा, तो वे प्रसन्न हुए।
\v 31 तब पीनहास ने उनसे कहा, "अब हम जानते हैं कि यहोवा सब इस्राएलियों के साथ है, और उस वेदी को बनाकर तुम उससे विद्रोह नहीं कर रहे थे। तुमने जो किया है वह यहोवा के नियमों को नहीं तोड़ता है, हमें निश्चय है कि वह हमें दण्ड नहीं देगा।
\p
\s5
\v 32 तब पीनहास और इस्राएली अगुवों ने रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों से विदा ली, और गिलाद से कनान लौट आए। वहाँ उन्होंने अन्य इस्राएलियों को बताया कि क्या हुआ था।
\v 33 वे प्रसन्न हुए, और उन्होंने परमेश्वर का धन्यवाद किया। उन्होंने रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों से युद्ध करके उनको नष्ट कर देने के बारे में और चर्चा नहीं की।
\p
\s5
\v 34 रूबेन और गाद के गोत्रों के लोगों ने अपनी नई वेदी को "स्मारक" नाम दिया, और उन्होंने कहा, "यह हम सब के लिए एक स्मारक है कि यहोवा ही परमेश्वर है।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 बहुत समय तक, यहोवा ने इस्राएलियों को शत्रुओं के भय से मुक्त शान्ति में रहने का समय दिया। अब यहोशू बहुत बूढ़ा हो गया था।
\p
\v 2 यहोशू ने इस्राएल के सब बुजुर्गों और अगुवों को, उनके न्यायाधीशों और अधिकारियों के साथ बुलाया कि उसकी बात सुनें। जब वे पहुँचे, तब उसने उनसे बात करना आरम्भ किया: "अब मैं बहुत बूढ़ा हूँ।
\v 3 हम सब ने देखा है कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने इस देश की सब जातियों के साथ क्या किया है। हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे लिए युद्ध किया।
\s5
\v 4 मैंने तुम्हें बची हुई जातियों को भी दे दिया है जो यहाँ रहती हैं। उनके देश भी इस्राएल के गोत्रों के लिए स्थायी अधिकार होंगे, जैसे उन जातियों के देश जिनको हमारे लोगों ने मेरी अगुआई में नष्ट कर दिया था। उन सभी अन्य जातियों को जिन्हें मेरी अगुआई में इस्राएलियों ने यरदन से लेकर भूमध्य सागर तक नष्ट कर दिया था।
\v 5 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उन लोगों को उनके देश से बाहर निकलने के लिए विवश कर देगा। वह उनसे उनके देश को छीन लेगा, कि तुम उन देशों में बस जाओ। उसने तुम्हारे लिए यही प्रतिज्ञा की है।
\p
\s5
\v 6 सावधानीपूर्वक ध्यान दो कि तुम मूसा द्वारा लिखे नियमों की पुस्तक में सब बातों का पालन करो। उन नियमों को नहीं तोड़ना या उनमें से किसी को भी नहीं बदलना।
\v 7 यदि तुम मूसा के नियमों का पालन करोगे, तो तुम हमारे लोगों को उन लोगों के साथ मिलने नहीं दोगे। उनके देवताओं के नामों की भी चर्चा नहीं करना, और प्रतिज्ञा करते समय या शपथ खाते समय उनके देवताओं के नामों का उपयोग नहीं करना। उन देवताओं की पूजा नहीं करना। उनके आगे भी नहीं झुकना।
\v 8 यहोवा से प्रेम करो और उस पर भरोसा रखो, जैसा तुम करते भी हो। उसकी उपासना करना बंद मत करना।
\p
\s5
\v 9 जब तुम आगे बढ़ रहे थे तब यहोवा ने कई महान और शक्तिशाली जातियों को तुम्हारे मार्ग से हटने के लिए विवश कर दिया था। तुम्हें रोकने में कोई भी सक्षम नहीं था।
\v 10 तुम्हारा एक अकेला सैनिक, शत्रु की सेना के साथ युद्ध में एक हजार लोगों को भागने योग्य हो जाएगा, क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे लिए युद्ध करता है। उसकी यह प्रतिज्ञा है।
\v 11 इसलिए अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करने के लिए जो कुछ तुम कर सकते हो करो।
\p
\s5
\v 12 परन्तु यदि तुम यहोवा की इच्छाओं को पूरा नहीं करते और युद्धों में हम से बचे अन्यजाति लोगों से मेल करते, उनसे विवाह करते और उनके मित्र बन जाते हो, और यदि वे तुम्हारे मित्र बन जाते हैं,
\v 13 तब निश्चय जान लो कि हमारा परमेश्वर यहोवा उनको देश से बाहर करने में तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे। वे तुम्हारे लिए जाल जैसे हो जाएँगे और तुम फंस जाओगे। वे तुम्हारी पीठ पर चाबुकों के समान और आँखों में काँटों के समान होंगे। तुम लोगों का समूह निर्बल हो जाएगा और ऐसा ही रहेगा जब तक कि तुम इस अच्छे देश में जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें दिया, मर न जाओ।
\p
\s5
\v 14 मनुष्य के अन्त समय के समान मेरा भी अन्त समय आ गया है। तुम मन की गहराई से जानते हो, कि हर एक बात जिसकी यहोवा ने प्रतिज्ञा की थी, उसने उसे पूरा किया है।
\v 15 उसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हें सब अच्छी वस्तुएँ दी हैं। वैसे ही, यदि तुम बुरा करोगे तो वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हें वह सब देगा जो अच्छा नहीं है। ऐसी स्थिति में वह तुम्हारे जीवन और उस देश को तुमसे छीन लेंगे।
\s5
\v 16 यदि तुम यहोवा और तुम्हारे बीच बंधी वाचा का पालन नहीं करते, और यदि आप उसे छोड़कर अन्य देवताओं की पूजा करते और उनके आगे झुकते, तो यहोवा तुमसे क्रोधित हो जाएँगे, जैसे एक चिंगारी से आग भड़क उठती है। वह शीघ्र ही तुम्हारे जीवन का अन्त कर देंगे, और इस अच्छे देश को जिसे आज उसने तुम्हें दिया है ले लेंगे।"
\s5
\c 24
\p
\v 1 यहोशू इस्राएल के बुजुर्गों, अगुवों, न्यायाधीशों और अधिकारियों को एक साथ लाया, और उन्होंने स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत किया।
\v 2 यहोशू ने उन सब से कहा, "यहोवा, वह परमेश्वर है जिसकी हम इस्राएली उपासना करते हैं, यह कहता है: 'बहुत पहले, आपके पूर्वज, अब्राहम और उसका पिता तेरह और उसका छोटा भाई नाहोर, परात नदी के उस पार रहते थे, जहाँ वे अन्य देवताओं की पूजा करते थे।
\s5
\v 3 परन्तु मैंने तुम्हारे पूर्वज अब्राहम को चुन लिया, और मैं उसे कनान देश में ले गया। मैंने उसे उसके पुत्र इसहाक के द्वारा उसे अनेक वंशज दिए।
\v 4 मैंने इसहाक को उसके अपने दो पुत्र, याकूब और एसाव दिए। मैंने एसाव को एदोम का पहाड़ी देश उसका होने के लिए दे दिया, परन्तु याकूब को मिस्र भेजा। वह अपनी सन्तानों के साथ मिस्र गया, जहाँ वे कई सालों तक रहे।
\p
\s5
\v 5 मैंने मूसा और उसके भाई हारून को मिस्र भेजा, और मैंने मिस्र के लोगों पर अनेक भयानक विपत्तियाँ डालीं। उसके बाद, मैं तुम्हारे लोगों को मिस्र से बाहर निकाल लाया।
\v 6 जब मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया, तो वे समुद्र के पास आए। मिस्र की सेना ने रथों और घोड़ों से लाल समुद्र के पास तक उनका पीछा किया।"
\s5
\v 7 यहोशू आगे कहता गया: "जब तुमने यहोवा से सहायता की विनती की तब उसने इस्राएल और मिस्र की सेना के बीच अंधेरा उत्पन्न कर दिया, और उसने मिस्र की सेना को समुद्र के पानी से ढाँप दिया अर्थात तुम्हारे शत्रु डूब गए थे। यहोवा यही कहता है: 'तुमने देखा कि मैंने मिस्र में क्या किया था। तुम कई वर्ष मरुभूमि में रहे थे।
\p
\s5
\v 8 तब मैं तुम्हें एमोरियों के देश में लाया। वे यरदन नदी के पूर्व में रहते थे (आज हमारे यहाँ से यरदन नदी की दूसरी ओर)। उन्होंने तुमसे युद्ध किया, परन्तु मैंने उन्हें तुम्हारे हाथों पराजित और नष्ट किया; तुमने उनकी भूमि पर अधिकार कर लिया। उन्हें वास्तव में नष्ट करनेवाला मैं ही था, और मैंने तुम्हारे लिए जो किया उसे तुमने स्वयं देखा है।
\s5
\v 9 तब मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक ने अपनी सेना तैयार की और इस्राएल पर आक्रमण किया। उसने बोर के पुत्र बिलाम को लाने के लिए भेजा, और उसने तुम लोगों पर यहोवा से अभिशाप का निवेदन किया।
\v 10 लेकिन मैंने बिलाम की नहीं सुनी, इसकी अपेक्षा, मैंने उससे तुम्हें आशीर्वाद दिलवाया, और मैंने तुम्हें उसके अभिशाप से बचाया।
\p
\s5
\v 11 तब तुम सब यरदन नदी पार कर गए और यरीहो में आए। एमोरी, परिज्जी, कनानी, हित्ती, गिरगाशी, हिब्बी और यबूसी लोगों की सेनाओं के समान यरीहो के अगुवों ने तुमसे युद्ध किया। मैंने तुम सब को अधिक शक्तिशाली बना दिया, और तुमने उन सब को पराजित कर दिया।
\v 12 वह मैं ही हूँ जिसने उन्हें घबरा दिया। वे ऐसा व्यवहार करने लगे कि जैसे बर्रों द्वारा उनका पीछा किया जा रहा था। और जब तुम आगे बढ़े तब मैं ने एमोरियों के दो राजाओं को बाहर निकाल दिया, और उन्हें दूर धकेल दिया। लेकिन यह तुम्हारी तलवारों या धनुषों और तीरों के कारण नहीं था, मैं, यहोवा, तुम्हारी ओर से युद्ध कर रहा था।
\s5
\v 13 मैंने तुम्हें एक ऐसा देश दिया जिसे तुमने न तो साफ किया और न ही उसमें हल चलाया था, और मैंने तुम्हें ऐसे शहर दिए जिन्हें तुमने नहीं बनाया था। अब तुम उन शहरों में रहते हो, और उनकी दाखलताओं से अंगूर खाते हो जिन्हें तुमने नहीं लगाया था, और जिन पेड़ों को तुमने नहीं लगाया, उनसे जैतून खाते हो।'
\p
\s5
\v 14 यहोशू अपनी बात कहता गया: "अब डरो और यहोवा के भय में रहो। उसकी सच्ची उपासना करो, और जब उससे प्रतिज्ञा करो तो विश्वासयोग्य ठहरो। उन मूर्तियों को फेंक दो जिनकी तुम्हारे पूर्वजों ने परात नदी के उस पार रहते समय वरन मिस्र में रहते समय पूजा की थी। एकमात्र परमेश्वर की उपासना करो।
\v 15 यदि तुम यहोवा की उपासना नहीं करना चाहते हो, तो आज निर्णय लो कि कौन से देवताओं की पूजा करोगे। तुम्हें निर्णय लेना होगा कि तुम अपने पूर्वजों के देवताओं की पूजा करोगे, जिन देवताओं की वे उस समय पूजा करते थे जब वे परात नदी के पार रहते थे, या तुम इस देश के एमोरियों के देवताओं की पूजा करोगे जहाँ, आज तुम रहते हो। परन्तु मैं और मेरा परिवार हम यहोवा ही की उपासना करेंगे।"
\p
\s5
\v 16 इस्राएली लोगों ने उत्तर दिया, "हम हमेशा यहोवा की उपासना करेंगे! हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम कभी भी किसी अन्य देवताओं की पूजा नहीं करेंगे या उनके सामने नहीं झुकेंगे!
\v 17 यहोवा ही तो थे जिन्होंने हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला था। उन्होंने हमें उस देश से बचाया, जहाँ वे दास थे। हमने उन्हें अद्भुत काम करते देखा है, और जब हम यात्रा कर रहे थे तब यहोवा ने हमें सुरक्षित रखा। जहाँ भी हम गए, उन्होंने हमें संभाला; उन्होंने हमें कई राजाओं की सेनाओं से सुरक्षित रखा। हम एक महान राष्ट्र बन गए, और हमने इस देश में प्रवेश किया है।
\v 18 यहोवा ने हमारे सामने से सब जातियों को बाहर निकाला। उन्होंने इस देश के एमोरियों को पराजित किया। इसलिए हम यहोवा की ही उपासना करेंगे और उनके सामने ही झुकेंगे, क्योंकि वह हमारे परमेश्वर हैं।"
\p
\s5
\v 19 परन्तु यहोशू ने लोगों से कहा, "आप यहोवा की सेवा नहीं कर सकते! वह एक पवित्र परमेश्वर हैं, और वह तुम्हें अन्य देवताओं की पूजा करने की अनुमति नहीं देंगे। उनके नियमों को तोड़ने के लिए, या पाप करने पर वह तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे,
\v 20 यदि तुम यहोवा को त्याग दोगे और अन्य देवताओं की पूजा करोगे तब वह तुम्हें क्षमा नहीं करेंगे। यदि तुम उन्हें भूल जाते हो, तो वह भी पलट जाएँगे और तुम्हारी हानि करेंगे, नुकसान करेंगे जैसी उन्होंने तुम्हारे शत्रुओं की हानि की थी, और वह तुमको आग के समान जला देंगे! तुम्हारे साथ इतने अच्छे रहने के बाद यदि तुम उनकी ओर अपनी पीठ कर लोगे और उन्हें छोड़ दोगे तो वह तुम्हारे साथ ऐसा ही करेंगे।"
\s5
\v 21 परन्तु लोगों ने यहोशू को उत्तर दिया, "नहीं, हम यहोवा की ही उपासना करेंगे।"
\p
\v 22 तब यहोशू ने कहा, "तुमने जो कहा है, उसके तुम ही गवाह हो। तुमने यहोवा को चुना है और तुम एकमात्र उनकी ही उपासना करने की प्रतिज्ञा कर रहे हो।" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, हम इसकी प्रतिज्ञा करते हैं।"
\v 23 तब यहोशू ने कहा, "तुम्हें अपनी सब मूर्तियों को फेंक देना होगा, और पूरी शक्ति के साथ, यहोवा की ओर मुड़ना होगा और अपना परमेश्वर मानकर उनकी उपासना करनी होगी, अन्य किसी की नहीं।"
\s5
\v 24 लोगों ने उत्तर दिया, "हम यहोवा, हमारे परमेश्वर की ही उपासना करेंगे, और हम केवल उसका ही आज्ञापालन करेंगे।"
\p
\v 25 उसी दिन, यहोशू ने लोगों के साथ एक वाचा बाँधी। शकेम में, उसने उन सब नियमों और आज्ञाओं को लिखा जिनका पालन करने के लिए यहोवा ने उन्हें आदेश दिया था।
\v 26 उसने उन सभी शब्दों को लिखा जो परमेश्वर के नियम की पुस्तक में थे। उसने एक बड़ा पत्थर लिया और उसे एक बड़े बांज वृक्ष के नीचे वहाँ शकेम में स्थापित कर दिया। वह वृक्ष यहोवा के उपासना स्थल के निकट था।
\s5
\v 27 यहोशू ने सब लोगों से कहा, "देखो, यह पत्थर हमारे विरुद्ध गवाही देगा। यही वह स्थान है जहाँ हमने प्रतिज्ञा की है कि हम यहोवा की ही सेवा करेंगे। यह पत्थर यहोवा से की गई हमारी प्रतिज्ञा को स्मरण कराएगा, और यह भी स्मरण कराएगा कि यदि हम परमेश्वर से की गई प्रतिज्ञा को पूरा नहीं करते तो हमारे साथ क्या होगा।"
\v 28 तब यहोशू ने लोगों को विदा किया, और वे अपने अपने स्थानों पर चले गए।
\p
\s5
\v 29 इन बातों के बाद, यहोवा के दास नून के पुत्र यहोशू की मृत्यु हो गई। जब वह मरा तब वह 110 साल का था।
\v 30 उन्होंने उसके शरीर को तिम्नत्सेरह में उसकी भूमि में दफनाया। यह गाश पर्वत के उत्तर में एप्रैम के उत्तरी पहाड़ी देश में है।
\s5
\v 31 जब तक यहोशू के साथ सेवा करने वाले बुजुर्ग जीवित थे, तब तक इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना की; इस्राएल के लिए किए गए यहोवा के सब कामों को उन्होंने देखा था।
\s5
\v 32 यूसुफ की हड्डियों को, जो इस्राएल के लोग मिस्र से बाहर लाए थे, शकेम में उस भूमि के टुकड़े में दफनाया गया था, जो कि बहुत पहले याकूब ने चाँदी के एक सौ टुकड़ों की कीमत में खरीदा था। उसने शकेम के पिता हमोर से इसे खरीदा था। यूसुफ के वंशजों के लिए भूमि का वह टुकड़ा स्थायी अधिकार बन गया।
\v 33 हारून का पुत्र एलीआजार भी मर गया। उन्होंने एप्रैम के पहाड़ी देश में उसके पुत्र पीनहास के नगर गिबा में उसके शरीर को दफनाया।

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\h न्यायियों
\toc1 न्यायियों
\toc2 न्यायियों
\toc3 jdg
\mt1 न्यायियों
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहोशू की मृत्यु के बाद, इस्राएलियों ने यहोवा से पूछा, "हमारे गोत्रों में से किसे कनानियों पर पहले आक्रमण करना चाहिए?"
\p
\v 2 यहोवा ने उत्तर दिया, "यहूदा के गोत्र के लोगों को पहले आक्रमण करना चाहिए। कनानियों को पराजित करने में मैं यहूदा के गोत्र को सामर्थ दूँगा।"
\p
\v 3 यहूदा के लोग अपने साथी इस्राएली, शिमोन के गोत्र के लोगों के पास गए और उनसे कहा, "आओ और कनानियों से युद्ध में हमारी सहायता करो कि हम उनसे वह देश ले सकें जिसे यहोवा ने हमें दिया है। यदि तुम हमारी सहायता करोगे तो हम भी तुम्हारे साथ चलकर उस देश के लोगों को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करेंगे जिसे यहोवा ने तुम्हे देने की प्रतिज्ञा की है।" इसलिए शिमोन के गोत्र के लोग यहूदा के गोत्र के लोगों के साथ गए।
\p
\s5
\v 4 जब उन दो गोत्रों के लोगों ने आक्रमण किया, तब यहोवा ने उन्हें बेजेक शहर में रहने वाले कनानियों और परिज्जियों के दस हजार लोगों के हाथों पराजित करवाया।
\v 5 युद्ध में उन्हें शहर का अगुवा, अदोनीबेजेक मिला।
\p
\s5
\v 6 अदोनीबेजेक ने भागने की कोशिश की, इस्राएलियों ने उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया। फिर उन्होंने उसके हाथों के अंगूठों को और उसके पैरों के अंगूठों को काट दिया।
\p
\v 7 अदोनीबेजेक ने कहा, "मेरी सेना ने सत्तर राजाओं को पकड़ा था। हमने उनके हाथों के अंगूठों को और उसके पैरों के अंगूठों को काट दिया था, उसके बाद, हमने उन राजाओं को हमारी मेज से गिरने वाली चूरचार खाने के लिए विवश कर दिया था। मैंने जैसा किया था वैसा ही बदला परमेश्वर ने मुझे दिया है।" तब यहूदा के लोग अदोनीबेजेक को यरूशलेम ले गए और वह वहाँ मर गया।
\p
\s5
\v 8 यहूदा की सेना ने यरूशलेम के लोगों से युद्ध किया और उस नगर पर अधिकार लिया। से उन्होंने वहाँ रहने वाले लोगों को तलवार से मार डाला और उस शहर के घरों को जला दिया।
\p
\v 9 बाद में, यहूदा के लोग पहाड़ी देश में, दक्षिणी यहूदिया की मरुस्थल में और पश्चिम की तलहटी में रहने वाले कनानियों से युद्ध करने के लिए नीचे गए।
\v 10 यहूदा (हेब्रोन शहर जिसे किर्यतर्बा नाम दिया गया था) के कनानियों से युद्ध करने के लिए भी गए (जिसे किर्यतर्बा नाम दिया गया था)। उन्होंने शेशै, अहीमन और तल्मै राजाओं की सेनाओं को पराजित किया।
\p
\s5
\v 11 तब उन्होंने उस क्षेत्र को छोड़ दिया और दबीर शहर में रहने वाले लोगों से युद्ध किया (इस शहर को पहले किर्यत्सेपेर नाम दिया गया था।)
\v 12 उस शहर पर हमला करने से पहले, कालेब ने उनसे कहा, "जो व्यक्ति किर्यत्सेपेर पर हमला करके उस पर अधिकार कर लेगा, उसका विवाह मैं अपनी पुत्री से कर दूँगा।"
\v 13 ओत्नीएल ने, जो कालेब के छोटे भाई केनाज का पुत्र था, उस शहर पर अधिकार कर लिया। इसलिए कालेब ने अपनी पुत्री अकसा को उसकी पत्नी होने के लिए दे दिया।
\p
\s5
\v 14 अकसा से विवाह के बाद, ओत्नीएल ने कहा कि वह उसके पिता कालेब से अनुरोध करे कि वह उसे एक खेत दे दे। तब वह अपने गधे पर सवार होकर अपने पिता कालेब के घर गई। जब वह गधे से उतरी तब कालेब ने उससे पूछा, "तुझे क्या चाहिए?"
\p
\v 15 उसने उत्तर दिया, "मैं चाहती हूँ कि आप मुझ पर एक कृपा करें, आपने मुझे दक्षिणी यहूदिया की मरुस्थल का देश दिया है, पर वह बहुत सूखा है, तो कृपया मुझे ऐसी भूमि भी दीजिए जिसमें पानी के सोते हों।" इसलिए कालेब ने उसे ऊँची जगह पर कुछ भूमि दी जिसमें एक सोता था और निचली जगह पर भी कुछ भूमि दी जिसमें पानी का सोता था।
\p
\s5
\v 16 केनी लोग जो मूसा के ससुर के वंशज थे उन्होंने यरीहो को छोड़ दिया, जिसे "खजूर के पेड़ों का शहर" कहा जाता था। वे यहूदा के कुछ लोगों के साथ रहने के लिए उनके साथ अराद शहर के पास दक्षिणी यहूदिया की मरुस्थल में चले गए।
\p
\v 17 यहूदा और शिमोन के गोत्रों के साथी इस्राएलियों ने सपत शहर में रहनेवाले कनानी लोगों को पराजित किया। उन्होंने शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और उसे एक नया नाम दिया, होर्मा, जिसका अर्थ है "पूर्ण विनाश।"
\s5
\v 18 यहूदा के लोगों ने गाजा, अश्कलोन और एक्रोन शहरों को और उन शहरों के निकट के सारे देश पर भी अधिकार कर लिया।
\v 19 यहोवा ने यहूदा के लोगों की सहायता की कि वे पहाड़ी देश पर अधिकार करें, लेकिन वे मैदान में रहनेवाले लोगों को निकालने में सफल नहीं हुए, क्योंकि उनके शत्रुओं पास बेहतर हथियार थे और उनके पास लोहे के रथ भी थे।
\p
\s5
\v 20 हेब्रोन का शहर कालेब को दिया गया था क्योंकि मूसा ने उससे प्रतिज्ञा की थी कि उसे वह शहर मिलेगा। कालेब ने अनाक से निकले तीन कुलों को उस क्षेत्र से निकल जाने के लिए विवश कर दिया।
\v 21 परन्तु बिन्यामीन के गोत्र के लोग यबूसी लोगों को यरूशलेम छोड़ने के लिए विवश नहीं कर पाए। इसलिए, उसी समय से यबूसी लोग यरूशलेम में बिन्यामीन के गोत्र के साथ रहते हैं।
\p
\s5
\v 22 एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के लोग बेतेल शहर के लोगों से युद्ध करने के लिए गए, और यहोवा ने उनकी सहायता की।
\v 23 उन्होंने कुछ जासूसों को बेतेल के बारे में भेद लेने के लिए भेजा, जिसे पहले लूज कहा जाता था।
\v 24 जासूसों ने एक मनुष्य को देखा जो शहर से बाहर आ रहा था। उन्होंने उससे कहा, "यदि तू हमें शहर में जाने का रास्ता दिखाएगा, तो हम तुझ पर दया करेंगे और तुझे मार नहीं डालेंगे।"
\s5
\v 25 इसलिए उस मनुष्य ने उन्हें शहर में प्रवेश करने का रास्ता दिखाया। एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के लोग शहर में प्रवेश कर गए और अपनी तलवारों से सब लोगों को मार डाला, परन्तु उस मनुष्य को और उसके परिवार को नहीं मार डाला क्योंकि उसने उन्हें शहर में प्रवेश करने का मार्ग दिखाया था।
\v 26 वह मनुष्य उस क्षेत्र में गया जहाँ हेत के वंशज रहते थे, और उसने एक नगर बनाया। उसने उस शहर को लूज नाम दिया, और उस शहर का नाम आज भी वही है।
\p
\s5
\v 27 कुछ कनानी लोग बेतशान, तानाक, दोर, इबलेम और मगिद्दो नगरों और आसपास के गाँवों में रहते थे। मनश्शे के गोत्र के लोग उन्हें उन नगरों को छोड़ने के लिए विवश कर पाए, क्योंकि कनानियों को वहाँ रहने का दृढ़ संकल्प था।
\v 28 बाद में, इस्राएली शक्तिशाली हो गए, और उन्होंने कनानियों को दास होकर काम करने के लिए विवश कर दिया, परन्तु सब कनानियों को देश छोड़ने के लिए विवश नहीं किया।
\p
\s5
\v 29 एप्रैम के गोत्र के लोगों ने कनानियों को गेजेर शहर छोड़ने के लिए विवश नहीं किया था इसलिए कनानी लोग एप्रैम के गोत्र के साथ ही रहते रहे।
\p
\s5
\v 30 जबूलून के गोत्र के लोग कित्रोन और नहलोल के शहरों में रहने वाले कनानियों को निकलने के लिए विवश नहीं कर पाए थे। वे वहीं रह गए थे और जबूलून के गोत्र के साथ रहते थे, परन्तु जबूलून के लोगों ने उन्हें दास बनाकर काम करने के लिए विवश किया।
\s5
\v 31 आशेर के गोत्र के लोगों ने अक्को, सीदोन, अहलाब, अकजीब, हेलवा, अपीक और रहोब शहरों में रहने वाले कनानियों को निकलने के लिए विवश नहीं किया था।
\v 32 इसलिए आशेर का गोत्र वहाँ बचे हुए कनानी लोगों के साथ रहा (जो अभी भी वहाँ थे)।
\s5
\v 33 नप्ताली के गोत्र के लोगों ने बेतशेमेश और बेतनात के शहरों में रहने वाले लोगों को निकलने के लिए विवश नहीं किया, इसलिए वे उन शहरों में कनानी लोगों के साथ ही रहते रहे थे, परन्तु कनानियों को नप्ताली गोत्र के लोगों ने दास बनाकर काम करने के लिए विवश किया।
\s5
\v 34 एमोरियों ने दान के गोत्र को पहाड़ियों में ही रहने के लिए विवश किया। उन्होंने उन्हें नीचे मैदान में आकर रहने की अनुमति नहीं दी।
\v 35 एमोरियों ने हेरेस पर्वत और अय्यालोन और शालबीम के शहरों में रहने का दृढ़ संकल्प किया था। परन्तु जब इस्राएली शक्तिशाली हो गए, तब उन्होंने एमोरियों को दास बनाकर काम करने के लिए विवश कर दिया।
\v 36 जहाँ एमोरी लोग रहते थे वह देश बिच्छू मार्ग से पश्चिम की तरफ पहाड़ी देश में, सेला के पार तक फैला हुआ था।
\s5
\c 2
\p
\v 1 यहोवा का दूत गिलगाल से एक स्थान पर गया जिसे इस्राएल के लोग शीघ्र ही बोकीम कहेंगे। उसने इस्राएली लोगों से कहा, "मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से यहाँ लाया था। मैं उन्हें इस देश में ले आया था जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने की गंभीर प्रतिज्ञा की थी। मैंने उनसे कहा था, 'मैं तुम्हारे साथ, बाँधी गई वाचा को कभी नहीं तोड़ूँगा।
\v 2 परन्तु तुम्हे इस देश में रहने वाले लोगों के साथ शान्ति बनाए रखने के लिए कभी सहमत नहीं होना है। तुम उन वेदियों को तोड़ डालना जहाँ वे मूर्तियों के लिए बलि चढ़ाते हैं।' परन्तु तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया है।
\s5
\v 3 इसलिए अब, मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तुम आगे बढ़ोगे तब, मैं तुम्हारे शत्रुओं को बाहर नहीं निकालूँगा। वे तुम्हारी पसलियों में काँटे के समान होंगे। और वे तुम्हे अपनी मूर्तियों की पूजा करने के लिए तुम्हे सहमत करके फँसाने का प्रयास करेंगे।"
\p
\v 4 उसके ऐसा कहने के बाद सब इस्राएलियों ने, ऊँची आवाज में विलाप किया।
\v 5 उन्होंने उस जगह का नाम बोकीम रखा, जिसका अर्थ है "रोना।" वहाँ उन्होंने यहोवा के लिए बलि चढ़ाई।
\p
\s5
\v 6 यहोशू से विदा लेने के बाद इस्राएलियों का प्रत्येक समूह उस क्षेत्र पर अधिकार करने के लिए चला गया जो स्थायी रूप से दिया गया था।
\v 7 यहोशू और यहोवा द्वारा किए गए महान कामों को देखनेवाले बुजुर्ग जब तक जीवित थे, इस्राएलियों ने यहोवा की आज्ञाओं को माना।
\p
\v 8 तब यहोवा के दास यहोशू की मृत्यु हो जब गई। वह 110 साल का होकर मर गया।
\s5
\v 9 उन्होंने उनके शरीर को उस देश में दफनाया जिसे उसने मूसा से गाश पर्वत के उत्तर में तिम्नथेरेस में प्राप्त किया था, उस क्षेत्र में एप्रैम के वंशज रहते थे।
\p
\v 10 यहोशू के समय के सब लोगों के मरने के बाद, अन्य लोग जो अब बड़े हो गए थे, वे यहोवा को नहीं जानते थे और उन्होंने इस्राएल के लिए किए गए यहोवा के महान कामों को नहीं देखा था।
\s5
\v 11-13 उन्होंने वही काम किए जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बहुत बुरे हैं। उन्होंने बाल देवता और प्रजनन देवी, अश्तारोत की मूर्तियों की पूजा की। उन्होंने अपने पड़ोस के लोगों के उन विभिन्न देवताओं की पूजा की। उन्होंने अपने पुर्वजों के परमेश्वर यहोवा की आराधना करना बंद कर दिया, वही परमेश्वर जो उनके पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाए थे। इन कामों से ने यहोवा को बहुत क्रोधित हो गए।
\s5
\v 14 क्रोध के कारण यहोवा ने अन्य समूहों के लोगों को उन पर आक्रमण करने और उनकी फसलों को और जानवरों को चुरा लेने का मार्ग खोल दिया। अब उनमें शत्रुओं का विरोध करने की शक्ति नहीं थीं, यहोवा ने उनके चारों ओर के शत्रुओं को उन्हें पराजित करने दिया।
\v 15 इस्राएली जब भी शत्रुओं से युद्ध करने के लिए गए, यहोवा ने सदैव उनके विरुद्ध काम किया और उन्हें शत्रुओं के हाथों पराजित करवाया उन्होंने कहा था कि वह ऐसा ही करेंगे। इसलिए इस्राएली बहुत परेशान थे।
\p
\s5
\v 16 तब यहोवा ने उनके लिए अगुवों को खड़ा किया। इन अगुवों ने इस्राएलियों को उन लोगों से बचाया जो उन पर आक्रमण करते थे।
\v 17 परन्तु इस्राएली अब भी अपने अगुवों का आज्ञा पालन नहीं किया। उन्होंने वेश्याओं के समान मूर्ति पूजा के लिए यहोवा के साथ विश्वासघात किया। वे उनके पूर्वजों के समान नहीं थे। उनके पूर्वजों ने यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया था परन्तु इन नए लोगों ने अपने पूर्वजों का सा व्यवहार करना बंद कर दिया था।
\s5
\v 18 जब भी यहोवा ने उनके लिए कोई अगुवा खड़ा किया तब उन्हें उनके पास लाया, तो यहोवा ने उस अगुवे की सहायता की और इस्राएलियों को शत्रुओं से बचाने के योग्य उसे किया। परमेश्वर यहोवा ने तब तक ऐसा किया जब तक कि अगुवा जीवित था। जब वे अत्याचार और कष्टों के कारण दुःख से चिल्लाए तब यहोवा ने उन पर दया की।
\v 19 परन्तु उस अगुवे की मृत्यु के बाद, लोग सदैव ही पूर्वजों से अधिक बुरा व्यवहार करना आरंभ कर देते थे। उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा करते और उनके सामने झुकते थे और उन सब कामों को करते थे जो उनकी समझ में देवता चाहते थे।
\p
\s5
\v 20 इसलिए यहोवा इस्राएलियों से बहुत क्रोधित थे। उसने कहा, "इन लोगों ने उनके पूर्वजों के साथ बाँधी गई मेरी वाचा को तोड़ दिया है। उन्होंने वह नहीं किया है जो मैंने उन्हें करने के लिए कहा था।
\v 21 इसलिए अब मैं उन अन्यजाति लोगों को बाहर नहीं करूँगा जिनको मृत्यु के समय यहोशू इस देश में छोड़ गया था।
\v 22 मैं इस्राएलियों को परखने के लिए उनका उपयोग करूँगा कि यह देख सकूँ कि ये वही लोग करेंगे जो मैं चाहता हूँ जैसा उनके पूर्वजों ने किया था।"
\v 23 यहोवा ने इस्राएलियों के आने के बाद लम्बे समय तक उस देश में अन्यजातियों को रहने दिया। उन्होंने यहोशू और उसके लोगों द्वारा उन्हें पराजित करके बाहर नहीं किया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 उस समय कनान में कई अन्यजाति समूह थे। यहोवा ने उन्हें इस्राएलियों को परखने के लिए वहाँ छोड़ दिया था क्योंकि कनान में रहने वाले बहुत से इस्राएली पिछले युद्धों में से किसी एक में भी नहीं गए थे।
\v 2 इसलिए यहोवा ने इस्राएलियों की नई पीढ़ी को युद्ध करना सिखाने के लिए ऐसा किया।
\v 3 यह उन लोगों के समूह की एक सूची है जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों को परखने के लिए वहाँ छोड़ दिया था: पलिश्ती और उनके पाँच अगुवे, सीदोन शहर के पास के क्षेत्र में रहने वाले लोग, कनान के वंशज, और हिब्बी जो बालहेर्मोन और लेबोहमात पर्वत ("हमात का मार्ग") के बीच लबानोन के पहाड़ों में रह रहे थे।
\s5
\v 4 यहोवा ने इस्राएलियों को परखने करने के लिए इन लोगों अन्यजाति के समूह को वहाँ छोड़ दिया, कि देखे क्या वे मूसा को दिए गए उनके आदेशों का पालन करेंगे।
\v 5 इस्राएल के लोग कनानियों, हिव्वियों, एमोरियों, परिज्जियों और यबूसी लोगों के बीच रहते थे।
\v 6 परन्तु इस्राएलियों ने उन लोगों की पुत्रियों को अपनी पत्नियाँ बनाने के लिए ले लिया, और विवाह में उन लोगों को अपनी पुत्रियाँ दीं। इस प्रकार, उन्होंने उन लोगों के देवताओं की पूजा की।
\p
\s5
\v 7 इस्राएलियों ने उन कामों को किया जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बहुत बुरे थे। वे यहोवा, अपने परमेश्वर के बारे में भूल गए, और उन्होंने उन मूर्तियों की पूजा करना शुरू किया जो बाल देवता और देवी अशेरा की थीं।
\v 8 इस कारण यहोवा इस्राएल से बहुत क्रोधित थे, और उन्होंने उन्हें राजा कूशत्रिशातैम की शक्ति के अधीन रहने के लिए दे दिया वह मेसोपोटामिया में अरम्नहरैम का राजा था। इस्राएल के लोगों ने आठ वर्षों तक कूशत्रिशातैम की सेवा की।
\s5
\v 9 परन्तु जब उन्होंने सहायता के लिए यहोवा से विनती की तब उन्हें बचाने के लिए उन्होंने एक अगुवा खड़ा किया। वह ओत्नीएल (कालेब के छोटे भाई, केनाज का पुत्र) था।
\v 10 यहोवा के आत्मा ने उसे शक्ति और अंतर्दृष्टि दी, और वह उनका अगुवा बन गया। ओत्नीएल एक सेना का नेतृत्व किया और कूशत्रिशातैम की सेना से युद्ध किया और उन्हें पराजित किया।
\v 11 उसके बाद, ओत्नीएल की मृत्यु तक चालीस वर्ष देश में शान्ति थी।
\p
\s5
\v 12 उसके बाद, इस्राएलियों ने फिर वही काम किए जिनके लिए, यहोवा ने उन्हें मना किया था। यहोवा ने मोआब के राजा एग्लोन की सेना को, इतना शक्तिशाली कर दिया कि वह इस्राएलियों को पराजित कर सके।
\v 13 एग्लोन ने अम्मोनियों और अमालेकियों के अगुवों को इस्राएल पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के साथ होने के लिए तैयार कर लिया। उन्होंने यरीहो पर कब्जा कर लिया, जिसे "खजूर के पेड़ों का शहर" कहा जाता था।
\v 14 राजा एग्लोन ने अठारह वर्षों तक इस्राएलियों पर शासन किया।
\p
\s5
\v 15 तब इस्राएलियों ने सहायता करने के लिए यहोवा से फिर विनती की। इसलिए उन्हें बचाने के लिए उन्होंने एक और अगुवे को खड़ा किया। वह बिन्यामीन के वंशजों गेरा का पुत्र एहूद था, जो वह बाएँ हाथ का उपयोग करता था। इस्राएलियों ने उसे राजा एग्लोन के पास वह धन देने के लिए भेजा जिसके कारण वह उन पर आक्रमण नहीं करता था।
\s5
\v 16 एहूद ने अपने साथ एक छोटी दोनों तरफ धार वाली तलवार रख ली थी, जो आधा मीटर लम्बी थी। उसने तलवार को अपनी दाहिनी जाँघ पर बाँध कर अपने कपड़ों के नीचे छिपा लिया था।
\v 17 उसने राजा एग्लोन को पैसा दिया, जो बहुत मोटा आदमी था।
\v 18 तब एहूद ने उन लोगों के साथ घर लौटने के लिए चला जो पैसा लेकर आए थे।
\s5
\v 19 जब वे गिलगाल के पास पत्थर की खदानों तक पहुँचे, तो उसने साथ के लोगों से आगे जाने के लिए कहा, परन्तु वह स्वयं मुड़ कर वापस मोआब के राजा के पास गया। जब वह महल में पहुँचा, तो उसने राजा से कहा, "हे महामहिम, मेरे पास आपके लिए एक गुप्त संदेश है।" इसलिए राजा ने अपने सब कर्मचारियों को चुप रहने की आज्ञा दी और उन्हें कमरे से बाहर भेज दिया।
\p
\v 20 फिर, जब एग्लोन अपने महल के ऊपरी कमरे की हवादार अटारी में अकेला बैठा था, एहूद उसके निकट आया और कहा, "मेरे पास आपके लिए परमेश्वर की ओर से एक संदेश है।" राजा तुरन्त अपनी कुर्सी से उठ गया।
\s5
\v 21 जैसे ही राजा उठा, एहूद ने अपने बाएँ हाथ को बढ़ाया और अपनी दाहिनी जाँघ से तलवार को खींच लिया, और उसे राजा के पेट में घोंप दिया।
\v 22 उसने तलवार इतनी भीतर कर दी कि उसका हत्था भी राजा के पेट में चला गया, और तलवार का फल राजा की पीठ से बाहर निकल गया। एहूद ने तलवार को बाहर नहीं खींचा। राजा की चर्बी में हत्थे के साथ धँसे हुए उसने उसे वहीं छोड़ दिया।
\v 23 तब एहूद ने कमरे से निकल कर चला गया। वह ओसारे से होकर बाहर चला गया। उसने कमरे के द्वार को बंद कर दिए और उन पर ताले लगा दिए।
\p
\s5
\v 24 उसके जाने के बाद, जब राजा के कर्मचारी आए, तो उन्होंने देखा कि कमरे के द्वारों पर ताले लगाए गए थे। उन्होंने कहा, "अवश्य ही राजा भीतरी कमरे में शौच करता होगा।"
\v 25 इसलिए उन्होंने प्रतीक्षा की परन्तु जब राजा ने कमरे के द्वारों को नहीं खोला, तो थोड़ी देर के बाद वे चिंतित हो गए। वे एक चाबी लेकर आए और दरवाजों के ताले को खोल दिया। और उन्होंने देखा कि उनका राजा फर्श पर मरा हुआ पड़ा था।
\p
\s5
\v 26 इस बीच, एहूद बच निकला। वह पत्थर की खदानों से होकर गुजर गया और पहाड़ी देश में सेराह में पहुँचा, जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे।
\v 27 वहाँ उसने घोषणा करने के लिए तुरही फूँकी कि मोआबियों से युद्ध करने के लिए सब लोगों को उसके साथ होना होगा। इसलिए इस्राएली पहाड़ियों से उसके साथ गए। वे यरदन नदी की ओर गए, एहूद ने उनका नेतृत्व किया।
\p
\s5
\v 28 उसने लोगों से कहा, "यहोवा हमें हमारे शत्रुओं, मोआब के लोगों को पराजित करने के लिए कहता है। इसलिए मेरे पीछे आओ!" अतः वे उसके पीछे नदी की ओर गए, और उन्होंने उनके कुछ लोगों को उस स्थान पर रखा जहाँ से लोग नदी पार जाते थे कि वे बचकर नदी पार करनेवाले मोआबियों को मारें।
\v 29 उस समय, इस्राएलियों ने मोआब से लगभग दस हजार लोगों को मार डाला। वे सभी बलवन्त और योग्य पुरुष थे, उनमें से एक भी बच नहीं पाया था।
\v 30 उस दिन, इस्राएलियों ने मोआब के लोगों पर विजय प्राप्त की। इसके बाद अस्सी वर्षों तक उनके देश में शान्ति थी।
\p
\s5
\v 31 एहूद की मृत्यु के बाद, शमगर उनका अगुवा बन गया। उसने इस्राएलियों को पलिश्तियों से बचाया। एक युद्ध में उसने छः सौ पलिश्तियों को एक बैल के पैने से मार डाला था।
\s5
\c 4
\p
\v 1 एहूद की मृत्यु के बाद, इस्राएलियों ने यहोवा की बातों का पालन नहीं किया और उन्होंने बुरे काम किए, और यहोवा ने देखा कि वे क्या कर रहे थे।
\v 2 इसलिए उसने कनान के क्षेत्र के राजाओं में से एक याबीन, जो हासोर शहर पर शासन करनेवाले याबीन की सेना को इस्राएलियों पर विजय दिलाई। उनकी सेना का सरदार सीसरा था, जो हरोशेत में रहता था (जहाँ से बहुत से ऐसे लोग रहते थे जो इस्राएल नहीं थे)।
\v 3 सीसरा की सेना में लोहे से बने नौ सौ रथ थे। बीस वर्षों तक उसने क्रूरता से इस्राएलियों पर अत्याचार किया। तब उन्होंने यहोवा से सहायता की विनती की।
\p
\s5
\v 4 अब दबोरा, एक स्त्री जो यहोवा का वचन सुनाया करती थी (जो लप्पीदोत की पत्नी थी), उस समय इस्राएल में एक प्रमुख न्यायी थी।
\v 5 वह पहाड़ी देश में रामा और बेतेल के बीच एक जगह पर जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे, अपने खजूर के पेड़ के नीचे बैठा करती थी (उसे "दबोरा का खजूर" कहते थे) और लोग उसके पास उनके कानूनी विवादों का समाधान पूछने आते थे। वह सही और निष्पक्ष निर्णय लेती थी।
\s5
\v 6 एक दिन उसने अबीनोअम के पुत्र बाराक के पास किसी को भेजकर बुलवाया। वह केदेश का रहने वाला था (उस क्षेत्र में जहाँ नप्ताली के वंशज रहते थे)। उसने उससे कहा, "यहोवा, जिस परमेश्वर की हम आराधना करते हैं, वह तुझे आज्ञा दे रहा है: 'दस हजार पुरुष, कुछ नप्ताली में से और कुछ जुबुलून में से अपने साथ ले जा, और अपने सब लोगों को ताबोर पर्वत पर एकत्र कर।
\v 7 यहोवा मुझे याबीन की सेना के सरदार सीसरा को उनके रथों और उसकी सेना के साथ कुछ मील दूर कीशोन नदी तक आने के लिए मनाने में सक्षम करेगा। वहाँ में तेरे पुरुषों को उन्हें पराजित करने में सक्षम करूँगी।'"
\p
\s5
\v 8 बाराक ने उत्तर दिया, "मैं केवल तभी जाऊँगा जब तू मेरे साथ चलेगी । अगर तू मेरे साथ नहीं जाएगी, तो मैं भी नहीं जाऊँगा।"
\p
\v 9 उसने उत्तर दिया, "मैं निश्चय ही तेरे साथ चलती, परन्तु क्योंकि तूने ऐसा करने का निर्णय लिया है, इसलिए यहोवा सीसरा को पराजित करने में एक स्त्री को सक्षम करेंगे, और परिणाम यह होगा कि कोई भी तुझे सम्मान नहीं देगा।" इसलिए दबोरा बाराक के साथ केदेश को गई।
\s5
\v 10 वहाँ उसने जबूलून और नप्ताली से लोगों को बुलाया। दस हजार लोग उसके पास आए, और फिर वे दबोरा के साथ ताबोर पर्वत पर गए।
\p
\s5
\v 11 उस समय हेबेर (केनी) अपनी पत्नी याएल के साथ केनियों से दूर चला गया, और केदेश के पास, सानन्नीम में बड़े बांज के पेड़ के पास अपना तम्बू खड़ा किया। (हेबर मूसा के ससुर होबाब के वंशज थे।)
\p
\s5
\v 12 किसी ने सीसरा से कहा कि अबीनोअम का पुत्र बाराक एक सेना के साथ ताबोर पर्वत पर चढ़ गया था।
\v 13 सीसरा ने उनके नौ सौ रथों के साथ अपनी सेना एकत्र की, और वे हरोशेत (जहाँ गैर-इस्राएली रहते थे) से कीशोन नदी की ओर चले गए।
\p
\s5
\v 14 तब दबोरा ने बाराक से कहा, "बढ़ जा! आज वह दिन है जब यहोवा सीसरा की सेना को पराजित करने में तेरी सेना को योग्य करते है। यहोवा तेरे आगे जा रहा है!" तब बाराक ने अपने लोगों का नेतृत्व किया और वे ताबोर पर्वत से उतरे थे।
\s5
\v 15 जैसे ही वे आगे बढ़े, यहोवा ने सीसरा और उसके रथों और उनकी सेना के लिए आगे बढ़ने में बड़ी कठिनाई उत्पन्न कर दी। अतः सीसरा अपने रथ से नीचे कूद कर भाग गया।
\v 16 परन्तु बाराक और उसके लोगों ने अन्य रथों और शत्रु सैनिकों का हरोशेत तक (जहाँ गैर-इस्राएली रहते थे) पीछा किया। उन्होंने सीसरा की सेना में सब लोगों को मार डाला। एक भी पुरुष बच नहीं पाया।
\p
\s5
\v 17 परन्तु सीसरा याएल के तम्बू में भाग गया। उसने ऐसा इसलिए किया कि सीसरा का स्वामी हासोर शहर का याबीन, उसके पति हेबेर का एक अच्छा मित्र था।
\p
\v 18 याएल सीसरा का अभिवादन करने के लिए बाहर गई। उसने उससे कहा, "महोदय, मेरे तम्बू में आओ! डरो मत!" इसलिए वह तम्बू में गया और नीचे लेट गया, और उसने उसे एक कंबल से ढाँप दिया।
\p
\s5
\v 19 उसने उससे कहा, "मैं प्यासा हूँ, क्या तू मुझे थोड़ा पानी दे सकती है?" इसलिए उसने दूध के चमड़े के थैले को खोला, और उसे एक प्याला दूध दिया। तब उसने उसे एक कंबल से फिर से ढाँप दिया।
\p
\v 20 उसने उससे कहा, "तम्बू के प्रवेश द्वार में खड़ी हो जा। यदि कोई आता है और पूछता है, 'क्या कोई और है?', तो कहना 'नहीं' है।"
\p
\s5
\v 21 सीसरा बहुत थक गया था, इसलिए वह शीघ्र ही सो गया था। जब वह सो रहा था, याएल एक हथौड़ा और एक तम्बू की खूँटी पकड़े हुए चुपचाप उसके पास दबे पाँव गई। उसने उसकी खोपड़ी के माध्यम से खूँटी को ठोक दिया, और उसके सिर में खूँटी को इस तरह से ठोका कि वह पार होकर जमीन में धँस गई, और वह मर गया।
\p
\v 22 जब बाराक सीसरा की तलाश में याएल के तम्बू में आया, तो वह उसका अभिवादन करने के लिए बाहर गई। उसने कहा, "भीतर आ, और मैं तुझ वह पुरुष दिखाऊँगी जिसे तू खोज रहा है!" अतः वह उसके तम्बू में चला गया, और उसने देखा कि सीसरा वहाँ मरा हुआ पड़ा है, तम्बू की खूँटी अभी भी उसके सिर में ठुकी पड़ी है।
\p
\s5
\v 23 उस दिन परमेश्वर ने इस्राएलियों के हाथों कनानियों के राजाओं में से एक याबीन की सेना को पराजित करवाया।
\v 24 इस्राएली अधिकाधिक शक्तिशाली हो गए, और उन्होंने याबीन और उसकी सेना को नष्ट कर दिया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 उस दिन, दबोरा और बाराक (अबीनोअम के पुत्र) ने यह गीत गाया:
\q1
\v 2 "जब इस्राएली लोगों के अगुवे वास्तव में उनका नेतृत्व करते हैं, और लोग अपनी इच्छा से उनके पीछे चलते हैं, तो वह यहोवा की स्तुति करने का समय होता है!
\q1
\s5
\v 3 हे राजाओं, सुनो! हे अगुवों, ध्यान दो!
\q2 मैं यहोवा के लिए एक गीत गाऊँगा। इस गीत के द्वारा मैं इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति करूँगा।
\q1
\v 4 हे यहोवा, जब आप सेईर से आए, तब आप उस देश से होकर निकले, जिसे एदोम भी कहा जाता था,
\q2 धरती हिल गई,
\q2 और आसमान से वर्षा होने लगी।
\q1
\s5
\v 5 जब आप आए तो पहाड़ हिल गए थे,
\q2 जैसे सीनै पर्वत हिल गया था जब आप वहाँ प्रगट हुए थे,
\q2 क्योंकि आप यहोवा हैं,
\q2 इस्राएल के परमेश्वर हो।
\m
\v 6 जब शमगर हमारा अगुवा था और याएल के दिनों में,
\q2 हम मुख्य मार्गों पर चलने से डरते थे;
\q2 इसके बजाय, यात्रियों के कारवाँ घुमावदार, कम यात्रा वाली मार्ग पर चलते थे,
\q1 लूटमार से बचने के लिए।
\q2
\s5
\v 7 इस्राएल में कुछ ही योद्धा युद्ध के लिए तैयार थे
\q2 जब तक कि मैं, दबोरा, उनकी अगुवा नहीं बन गई।
\q2 मैं इस्राएली लोगों के लिए एक माँ बन गई।
\v 8 जब इस्राएली लोगों ने यहोवा को त्याग दिया और नए देवताओं को चुना,
\q2 शत्रुओं ने शहरों के फाटकों पर आक्रमण किया,
\q1 और फिर उन्होंने चालीस हजार इस्राएली सैनिकों से ढाल और भाले छीन लिए।
\q2 किसी के भी पास कोई धातु का हथियार नहीं छोड़ा गया था।
\q1
\s5
\v 9 मैं उन अगुवों और सैनिकों के लिए आभारी हूँ जो अपनी इच्छा से युद्ध के लिए आगे आए।
\q2 हे यहोवा, उनके लिए मैं आपकी स्तुति करता हूँ!
\q1
\v 10 तुम अमीर लोग जो गधों पर सवारी करते हैं,
\q2 अच्छी गद्देदार काठी पर बैठते हैं,
\q2 और आप लोग जो सड़क पर चलते हैं,
\q1 इस सब के बारे में सोचो!
\q1
\s5
\v 11 उन गायकों की आवाजें सुनों जो जानवरों के पानी पीने वाले स्थान पर इकट्ठा होते हैं।
\q2 वे सुनाते हैं कि यहोवा ने कैसे धार्मिकता से काम किया
\q2 जब उन्होंने इस्राएली योद्धाओं को उनके शत्रुओं पर विजय प्रदान की।
\q1 यहोवा के लोग शहर के फाटकों से प्रवेश कर गए।
\q1
\s5
\v 12 लोग मेरे घर आए और चिल्लाने लगे,
\q2 'दबोरा, उठो! उठो और गीत गाना शुरू करो!'
\q1 वे यह भी चिल्लाए,
\q2 'बाराक (अबीनोअम के पुत्र), उठो, और हमारे शत्रुओं को पकड़ो!'
\q1
\v 13 बाद में, कुछ इस्राएली लोग जो युद्ध से बच गए थे
\q1 ऊँचे स्थानों से नीचे आए जहाँ उनके अगुवे थे।
\q2 ये वे पुरुष थे जो यहोवा के थे, मेरे पास नीचे आए थे
\q1 इन योद्धाओं के साथ अपने शत्रुओं से युद्ध करने के लिए।
\q1
\s5
\v 14 कुछ एप्रैम के वंशजों के गोत्र से आए थे।
\q2 वे उस देश से आए थे जो एक समय अमालेकियों के वंशजों का था।
\q1 बिन्यामीन के वंशजों से निकले गोत्र के लोग उनके पीछे पीछे गए थे।
\q2 माकीर के वंशजों से निकले समूह के सैनिक भी नीचे आए,
\q1 और जबूलून के वंशजों के गोत्र से अधिकारी नीचे आकर, यह दिखाने के लिए कर्मचारियों को ले गए कि वे महत्वपूर्ण थे।
\q2
\s5
\v 15 इस्साकार के वंशजों के गोत्र से अगुवे बाराक और मेरे साथ हो गए।
\q2 वे बाराक के पीछे पीछे, दौड़ते हुए घाटी में गए।
\q1 लेकिन रूबेन के वंशजों के गोत्र से लोग यह तय नहीं कर सके कि उन्हें क्या करना चाहिए।
\q1
\s5
\v 16 तुम लोग अपनी भट्ठियों के पास क्यों ठहर गए थे,
\q2 अपने भेड़ों के झुंड को भेड़शालाओं में आने को बुलाने वाले चरवाहें का सीटी बजाना सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे?
\q2 रूबेन के वंशजों के गोत्र के पुरुष निर्णय नहीं ले सके
\q2 कि उनको हमारे शत्रुओं से युद्ध करने के लिए हम से जुड़ना चाहिए या नहीं।
\q1
\s5
\v 17 इसी प्रकार से, यरदन नदी के पूर्व में गिलाद क्षेत्र में रहने वाले लोग घर पर ही रहे।
\q1 और दान के वंशजों के गोत्र के पुरुष,
\q2 वे घर में क्यों रुके रहे?
\q1 आशेर के वंशजों के गोत्र के लोग समुद्र के किनारे बैठे थे।
\q1 वे अपनी खोहों में ही रह गए थे।
\q1
\v 18 परन्तु जबूलून के वंशजों के गोत्र के पुरुषों ने युद्ध के मैदान पर अपने जीवन को खतरे में डाल दिया था,
\q2 और नप्ताली के वंशजों के गोत्र के पुरुष भी ऐसा करने के लिए तैयार थे।
\q1
\s5
\v 19 तानाक में मगिद्दो की घाटी के सोतों के पास कनान के राजा हम से लड़े।
\q1 लेकिन चूँकि उन्होंने हमें पराजित नहीं किया,
\q2 वे युद्ध से कोई भी चाँदी या अन्य खजाने को नहीं ले गए।
\q1
\v 20 ऐसा लगता था कि आकाश में सितारे हमारे लिए लड़े थे
\q2 और जैसे कि वे सितारे सीसरा के विरुद्ध उनके में मार्गों में लड़े थे।
\q1
\s5
\v 21 कीशोन नदी ने उनको दूर बहा दिया-
\q2 वह नदी जो कई युगों से वहाँ मौजूद है।
\q2 मैं खुद को बहादुर होने के लिए कहूँगा और आगे बढ़ता रखूँगा।
\q1
\v 22 सीसरा की सेना के घोड़ों की टापों ने भूमि को पीस दिया।
\q2 वे शक्तिशाली घोड़े यहाँ वहाँ कूदते रहे।
\q1
\s5
\v 23 यहोवा की ओर से भेजे गए स्वर्गदूत ने कहा,
\q2 'मैं मेरोज शहर के लोगों को शाप देता हूँ
\q1 क्योंकि वे यहोवा की सहायता करने के लिए नहीं आए थे
\q2 कनान के शक्तिशाली योद्धाओं को पराजित करने के लिए।'
\q1
\s5
\v 24 परन्तु परमेश्वर याएल से बहुत प्रसन्न हैं,
\q2 (केनी हेबेर की पत्नी)।
\q2 वह तम्बू में रहने वाली सभी अन्य महिलाओं की तुलना में उससे बहुत प्रसन्न हैं।
\q1
\v 25 सीसरा ने थोड़ा पानी माँगा,
\q2 और याएल ने उसे थोड़ा दूध दिया।
\q1 वह उसके लिए एक कटोरे में थोड़ा दही लाई जो राजाओं के लिए उपयुक्त था।
\q1
\s5
\v 26 फिर, जब वह सो गया, तो उसने अपना बायाँ हाथ एक तम्बू की खूँटी के लिए बढ़ाया,
\q2 और उसने अपना दाहिना हाथ एक हथौड़े के लिए बढ़ाया।
\q1 इसके साथ उसने जोर से सीसरा को मारा और उसके सिर को कुचल दिया।
\q2 उसने तम्बू की खूँटी को उसके सिर के आर-पार ठोक दिया।
\q1
\v 27 वह उसके पैरों पर झुक गया
\q2 और वह गिर गया और वह वहाँ पड़ा रहा और हिल नहीं पाया।
\q1 वह नीचे उसके पैरों पर पस्त हो गया,
\q2 और वहाँ वह लंगड़ा कर गिर गया। वो मर चुका था।
\q1
\s5
\v 28 सीसरा की माँ ने अपनी खिड़की से बाहर देखा।
\q2 वह उसके लौटने की प्रतीक्षा में थी।
\q1 उसने कहा, 'वह अपने रथ में घर आने के लिए इतना लंबा समय क्यों ले रहा है?
\q2 मैं उसके रथ के पहियों की आवाज क्यों नहीं सुनती? '
\q1
\s5
\v 29 उसकी बुद्धिमान राजकुमारियों ने उसे उत्तर दिया,
\q2 और उसने उन शब्दों को दोहराकर स्वयं को सांत्वना दी:
\q1
\v 30 'शायद वे युद्ध के बाद अधिकार में लिए गए लोगों और सामानों को विभाजित कर रहे हैं।
\q2 हर एक सैनिक को एक या दो महिलाएँ मिलेंगी जो उनके लिए बच्चों को पैदा करेंगी।
\q2 सीसरा को कुछ सुंदर वस्त्र मिलेंगे,
\q2 और मेरे लिए कुछ सुंदर कढ़ाई किए हुए वस्त्र।'
\q1
\s5
\v 31 लेकिन जो हुआ वह यह नहीं था! हे यहोवा, मुझे आशा है कि आपके सभी शत्रु वैसे ही मर जाएँगे जैसे सीसरा मरा!
\q2 और मैं चाहती हूँ कि जो लोग तुमसे प्रेम करते हैं, हे यहोवा, वे सूर्य के जैसे दृढ़ हों है!"
\p फिर से देश में चालीस वर्षों तक शान्ति थी।
\s5
\c 6
\p
\v 1 इस्राएलियों ने फिर वही किया जिसे यहोवा ने बहुत बुरा कहा था। इसलिए उसने मिद्यान के लोगों को उन्हें जीत लेने और उन पर सात साल तक शासन करने की अनुमति दी।
\v 2 मिद्यान के लोगों ने इस्राएलियों के साथ ऐसी क्रूरता का व्यवहार किया कि इस्राएली पहाड़ों पर भाग गए। वहाँ उन्होंने रहने के लिए गुफाओं में और सुरक्षित रहने स्थानों को बनाया।
\s5
\v 3 उस समय जब इस्राएलियों ने खेतों में अपनी फसल लगाई, मिद्यान और अमालेक के लोग और पूर्व के लोगों ने इस्राएलियों पर आक्रमण किया।
\v 4 उन्होंने उस क्षेत्र में तम्बू खड़े किए, और फिर दक्षिण में गाजा तक फसलों को नष्ट कर दिया। उन्होंने इस्राएलियों के खाने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा और भेड़ों, मवेशियों और गधों को लेकर चले गए।
\s5
\v 5 वे अपने तंबुओं और अपने पशुओं के साथ टिड्डियों के झुंड के समान इस्राएल में आए। उनमें से बहुत से लोग अपने ऊँटों पर सवारी करते हुए आए थे उन्हें कोई गिन भी नहीं सकता था। वे रुक गए ताकि वे भूमि को नष्ट कर सकें।
\v 6 मिद्यान के लोगों ने इस्राएलियों के स्वामित्व की लगभग हर वस्तु ले ली। अन्त में इस्राएलियों ने यहोवा से सहायता की विनती की।
\p
\s5
\v 7 मिद्यान के लोगों ने उनके साथ जो किया था उसके कारण जब इस्राएली लोगों ने सहायता के लिए यहोवा से विनती की,
\v 8 यहोवा ने उनके पास एक भविष्यद्वक्ता को भेजा, जिसने कहा, "इस्राएल के परमेश्वर यहोवा कहते हैं, 'मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल कर लाया, एक ऐसे स्थान से बाहर निकाल लाया जहाँ तुम सब दास थे।
\s5
\v 9 परन्तु मैंने उन्हें मिस्र के अगुवों और उन सब लोगों से बचाया जिन्होंने तुम पर अत्याचार किए थे। मैंने उनके शत्रुओं को इस देश से निकाल दिया, और इसे तुमको दे दिया।
\v 10 मैंने तुम से और तुम्हारे पूर्वजों से कहा, "मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ। अब तुम एमोरियों के देश में हो, परन्तु तुम इस देश में उनके देवताओं की पूजा नहीं करोगे ।" लेकिन तुमने मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया।'"
\p
\s5
\v 11 एक दिन यहोवा का स्वर्गदूत प्रकट हुआ और ओप्रा शहर में एक बड़े बांज के पेड़ के नीचे बैठ गया। (वह पेड़ योआश का था, जो अबीएजेर के वंश से था।) योआश का पुत्र गिदोन गड्ढे में गेहूँ झाड़ रहा था जहाँ वे शराब बनाने के लिए अंगूर रौंदते थे। वह मिद्यान के लोगों से छिपाने के लिए वहाँ अनाज को झाड़ रहा था।
\v 12 यहोवा गिदोन के पास गया और उससे कहा, " हे पराक्रमी योद्धा, यहोवा तेरी सहायता कर रहा है!"
\p
\s5
\v 13 गिदोन ने उत्तर दिया, "महोदय, यदि यहोवा हमारी सहायता कर रहा है, तो यह सब बुरे काम हमारे साथ क्यों हुए? हमने उन सभी चमत्कारों के बारे में सुना जो यहोवा ने हमारे पूर्वजों के लिए किए थे। हमने सुना है कि उसने कैसे उन्हें मिस्र में दास होने से बचाया। परन्तु अब यहोवा ने हमें त्याग दिया है, और अब मिद्यान के लोग हम पर राज करते हैं।"
\p
\s5
\v 14 तब यहोवा ने उसकी ओर मुड़कर कहा, "तेरे पास इस्राएलियों को मिद्यानियों से बचाने की शक्ति है। मैं तुझे इस काम के लिए भेज रहा हूँ!"
\p
\v 15 गिदोन ने उत्तर दिया, "परन्तु हे प्रभु, मैं इस्राएलियों को कैसे बचा सकता हूँ? मेरा कुल मनश्शे के वंशजों से पैदा हुए पूरे गोत्र में सबसे कम महत्वपूर्ण है, और मैं अपने पूरे परिवार में सबसे कम महत्वपूर्ण व्यक्ति हूँ!"
\p
\s5
\v 16 यहोवा ने उससे कहा, "मैं तेरी सहायता करूँगा। इसलिए तू मिद्यानी सेना को आसानी से पराजित करेगा, जैसे कि तू केवल एक मनुष्य से लड़ रहा है!"
\p
\v 17 गिदोन ने उत्तर दिया, "यदि आप सचमुच मुझसे प्रसन्न हैं, तो ऐसा कुछ करो जो सिद्ध करे कि आप जो मुझसे बात कर रहे हैं, वह सचमुच यहोवा ही हैं।
\v 18 परन्तु जब तक मैं जाकर आपके लिए कुछ भेंट न ले आऊँ तब तक चले मत जाना।"
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं तेरे वापस आने तक यहाँ ठहरा रहूँगा।"
\p
\s5
\v 19 गिदोन जल्दी से अपने घर चला गया। उसने एक जवान बकरी को मारा और इसे पकाया। फिर उसने लगभग बीस लीटर आटा लिया और खमीर के बिना कुछ रोटियाँ पकाई। तब उसने पके हुए माँस को एक टोकरी में रखा, और माँस के शोरबे को एक बर्तन में डाल लिया, और उसे पेड़ के नीचे बैठे यहोवा के पास ले गया।
\p
\v 20 तब परमेश्वर के स्वर्गदूत ने उससे कहा, "इस चट्टान पर माँस और रोटी रखो। फिर उसके ऊपर शोरबा डाल।" अतः गिदोन ने ऐसा किया।
\s5
\v 21 तब यहोवा ने हाथ की लाठी को बढ़ाकर माँस और रोटी को छुआ। चट्टान से एक आग निकली और उसने माँस और रोटी को जिसे गिदोन लाया था, जला दिया! और फिर यहोवा का स्वर्गदूत गायब हो गया।
\s5
\v 22 जब गिदोन को एहसास हुआ कि यह यहोवा का स्वर्गदूत है, वह पुकार उठा, "हे प्रभु यहोवा, मैंने यहोवा के स्वर्गदूत का चेहरा देखा है!"
\p
\v 23 परन्तु यहोवा ने उसे पुकार कर कहा, "डर मत! तू मरेगा नहीं!"
\p
\v 24 तब गिदोन ने वहाँ यहोवा की आराधना करने के लिए एक वेदी बनाई। उसने इसे 'यहोवा शान्ति है' नाम दिया। वह वेदी आज भी अबीएजेरियों के ओप्रा शहर में है।
\p
\s5
\v 25 उस रात यहोवा ने गिदोन से कहा, "उस बैल को जो तेरे पिता का है और एक अन्य बैल, जो सात वर्ष का है, ले और उस वेदी को तोड़ दे जिसे तेरे पिता ने बाल देवता की पूजा करने के लिए बनाया था। साथ ही उन लाठों को भी काट डाल जो इसके साथ हैं और देवी अशेरा की पूजा करने के लिए हैं।
\v 26 तब इस पहाड़ी पर, मेरे अर्थात तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की आराधना के लिए एक पत्थर की वेदी बना। अशेरा की जिन लाठों को तू ने काट डाला है उनकी लकड़ी ले, और मेरे लिए जलाने वाली भेंट के लिए इन बैलों के माँस को जलाने के लिए आग जलाओ।"
\p
\s5
\v 27 इसलिए गिदोन और उसके दस कर्मचारियों ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया। परन्तु उन्होंने रात में ऐसा किया था, क्योंकि वे डर रहे थे कि उसके परिवार के सदस्यों और शहर के अन्य लोगों जब पता चलेगा कि उसने ऐसा किया है तब वे उनके साथ क्या करेंगे।
\p
\s5
\v 28 अगली सुबह, जैसे ही लोग जागे, उन्होंने देखा कि बाल की वेदी खंडहर हो गई है, और अशेरा की लाठें वहाँ नहीं हैं। उन्होंने देखा कि वहाँ एक नई वेदी थी, और उस पर जो कुछ बचा हुआ था वह बैल का भाग था जिसे बलि चढ़ाया गया था।
\p
\v 29 लोगों ने एक-दूसरे से पूछा, "यह किसने किया?" उनके जाँच करने के बाद, किसी ने उनसे कहा कि यह योआश का पुत्र गिदोन था जिसने ऐसा किया था।
\p
\s5
\v 30 नगर के लोगों ने योआश से कहा, "अपने बेटे को यहाँ ला! उसे मार डाला जाना चाहिए, क्योंकि उसने हमारे बाल देवता की वेदी को नष्ट कर दिया है और अशेरा की लाठों को काट दिया हैं जिनकी हम पूजा करते है।"
\p
\s5
\v 31 पर योआश ने उन लोगों से कहा जो उसके विरूद्ध आए थे, "क्या तुम बाल की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हो? क्या तुम उसके पक्ष में विवाह करना चाहते हो? कोई भी जो बाल की रक्षा करने का प्रयास करता है उसे कल सुबह तक मार डाला जाना चाहिए! अगर बाल वास्तव में देवता है, तो उसे स्वयं की रक्षा करने में समर्थ होना चाहिए, कि उसकी वेदी को कोई कैसे तोड़ डाला।"
\v 32 उस समय से, लोगों ने गिदोन को यरूब्बाल कहा, जिसका अर्थ है "बाल को स्वयं की रक्षा करना चाहिए" क्योंकि उसने बाल की वेदी को तोड़ दिया था।
\p
\s5
\v 33 इसके तुरंत बाद, मिद्यान और अमालेक के लोगों की सेना और पूर्व के लोग एक साथ एकत्र हुए। उन्होंने इस्राएलियों पर आक्रमण करने के लिए यरदन नदी को पार किया। उन्होंने यिज्रेल की घाटी में अपने तम्बू खड़े किए।
\s5
\v 34 तब यहोवा की आत्मा ने गिदोन पर नियंत्रण किया। उसने युद्ध के लिए तैयार होने हेतु पुरुषों को बुलाने के लिए एक मेढ़े के सींग को फूँका। अतः अबीएजेर के वंश के लोग उसके पास आए।
\v 35 उसने मनश्शे, आशेर, जबूलून और नप्ताली के सब गोत्रों में से सैनिकों को आने के निवेदन हेतु दूत भेजे, और वे सब आए।
\p
\s5
\v 36 तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, "यदि आप सच में अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएलियों को बचाने के लिए मुझे समर्थ करने जा रहे हैं,
\v 37 तो इसकी पुष्टि करें: आज रात मैं अपने अनाज झाड़ने के स्थान में एक सूखा ऊन डाल दूँगा। कल सुबह, यदि ऊन ओस से गीला हो परन्तु भूमि सूखी रहे, तो मैं जान जाऊँगा कि वह मैं हूँ जिसे आप इस्राएलियों को बचाने में समर्थ करेंगे जैसा कि आपने प्रतिज्ञा किया है।"
\s5
\v 38 और यही हुआ। जब गिदोन अगली सुबह जागा, तो उसने ऊन को उठा लिया, और उससे पानी निचोड़कर एक कटोरे भर लिया!
\p
\s5
\v 39 तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, "मुझसे कुपित न हों, परन्तु मैं आपसे एक और काम करने के लिए कहूँगा। आज रात मैं ऊन को फिर से बाहर रखूँगा। इस बार, ऊन सूखी रहे, परन्तु भूमि ओस के कारण गीली हो जाए। "
\v 40 तो उस रात, परमेश्वर ने वही किया जो गिदोन ने उनसे कहा था। अगली सुबह ऊन सूखी थी, लेकिन भूमि ओस से ढंकी हुई थी।
\s5
\c 7
\p
\v 1 अगली सुबह, यरूब्बाल (उसका नाम गिदोन भी है) और उसके लोग जल्दी उठकर हरोद सोते तक चले गए। उसके उत्तर में मोरे की पहाड़ी के पास घाटी में मिद्यान की सेना ने छावनी डाली हुई थी।
\s5
\v 2 यहोवा ने गिदोन से कहा, "तेरे पास बहुत सैनिक हैं। यदि मैं तुम सब को मिद्यान की सेना से युद्ध करने दूँ और तेरी सेना उन्हें पराजित कर दे, तो वे मेरे सामने घमंड करेंगे कि उन्होंने बिना मेरी सहायता के शत्रुओं को अपने आप पराजित कर दिया।
\v 3 इसलिए लोगों से कह, 'जो डरता है या भीरु है, वह हमें छोड़कर गिलाद पर्वत से जा सकता है।' " इसलिए गिदोन के उनसे ऐसा कहा तो उनमें से बाईस हजार घर लौट गए। वहाँ केवल दस हजार पुरुष ही बचे थे।
\p
\s5
\v 4 परन्तु यहोवा ने गिदोन से कहा, "अभी भी बहुत सारे लोग हैं! उन्हें सोते के पास ले जा, और वहाँ मैं उनमें से चुनूँगा, कि कौन तेरे साथ जाएँगे और कौन से नहीं जाएँगे।"
\p
\s5
\v 5 गिदोन लोगों को सोते के पास ले गया, तो यहोवा ने उससे कहा, " वे पानी पीते हैं, तो उन लोगों को एक समूह में अलग कर ले जो कुत्तों के समान अपनी जीभ से पानी को चपड़ चपड़ करके पीते हैं। और जो घुटने टेक कर पानी में मुँह डाल कर पीते हैं उनको अलग समूह में रख।"
\v 6 इसलिए जब उन्होंने पानी पिया, तो केवल तीन सौ पुरुषों ने अपनी जीभ से चपड़ चपड़ करके पानी पिया। बाकी सभी घुटने टेक कर पानी में अपने मुँह डालकर पीते थे।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, "यह तीन सौ पुरुष जो पानी को चपड़ चपड़ करके पीते हैं, तेरी सेना में होंगे! मैं मिद्यानी सेना को पराजित करने में उनकी सहायता करूँगा। अन्य सब को घर जाने दे!"
\v 8 इसलिए गिदोन के तीन सौ पुरुषों ने अन्य सब पुरुषों से भोजन और भेड़ के सींगों को एकत्र किया (जो तुरही के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे), और उसने उन्हें घर भेज दिया।
\p मिद्यानी लोग गिदोन के स्थान से नीचे घाटी में डेरा डाले हुए थे।
\s5
\v 9 उस रात को यहोवा ने गिदोन से कहा, "उठो और उनके शिविर में जाओ, और तू कुछ ऐसा सुनेगा जिस से विश्वास हो जाएगा कि मैं तेरे पुरुषों को उन्हें पराजित करने में समर्थ करूँगा।
\v 10 परन्तु यदि तू अकेला जाने से डरता है, तो अपने दास फूरा को अपने साथ ले जा।
\v 11 नीचे जा और मिद्यानी सैनिकों की बातें सुन कि वे क्या कहते हैं। तब तू बहुत प्रोत्साहित हो जाएगा, और उनके शिविर पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाएगा।" इसलिए गिदोन ने अपने साथ फूरा को लिया, और वे नीचे शत्रु के शिविर के किनारे पर गए।
\s5
\v 12 मिद्यान और अमालेक के लोगों की सेनाओं ने पूर्व में अपने तम्बू खड़े किए थे और वे टिड्डियों के झुंड की समान दिखते थे। ऐसा लगता था कि उनके ऊँट समुद्र के किनारे की रेत के किनकों के समान गिनने के लिए बहुत अधिक थे।
\p
\s5
\v 13 गिदोन पेट के बल खिसक कर समीप गया और एक पुरुष का स्वप्न सुना वह अपने मित्र को अपना स्वप्न सुना रहा था। उसने कहा, "मैंने अभी एक स्वप्न देखा है, मैंने देखा कि जौ की एक गोल रोटी हमारे मिद्यानी शिविर में लुड़कते लुड़कते आई। उसने एक तम्बू पर इतनी ज़ोर से टक्कर मारी कि वह तम्बू उलट गया और गिर पड़ा!"
\p
\v 14 उसके दोस्त ने कहा, "तेरे स्वप्न का केवल एक ही अर्थ हो सकता है। इसका अर्थ है कि परमेश्वर इस्राएल के पुरुष गिदोन को हम मिद्यानी लोगों के साथ यहाँ उपस्थित सेनाओं को पराजित करने में समर्थ करेगा।"
\p
\s5
\v 15 जब गिदोन ने उस आदमी को अपने सपने के बारे में बताते और उस सपने के अर्थ को सुना, तो उसने परमेश्वर का धन्यवाद किया। तब वह और फूरा इस्राएल के शिविर में लौट आए, और उसने पुरुषों से ऊँचे स्वर में कहा, "उठो! क्योंकि परमेश्वर तुमको मिद्यान के पुरुषों को पराजित करने में समर्थ करते है!"
\v 16 उसने अपने पुरुषों को तीन समूहों में विभाजित किया। उसने हर एक आदमी को एक मेढ़े का सींग (तुरही के रूप में) और एक खाली मिट्टी का घड़ा दिया। और ले चलने के लिए एक एक मशाल भी दी।
\p
\s5
\v 17 तब उसने उनसे कहा, "मुझे देखते रहना। जब हम शत्रु को शिविर के निकट पहुँचते हैं, तब शिविर के चारों ओर फैल जाना। फिर जो मैं करता हूँ बिलकुल वही करना।
\v 18 जैसे ही मेरे लोग उनके मेढ़े सींग को फूँकते हैं, वैसे ही तुम जो शिविर को घेरे हुए दो अन्य समूहों के पुरुष हो अपने अपने सींगों को फूँकना और चिल्लाना, 'हम यह यहोवा के लिए और गिदोन के लिए कर रहे हैं!'"
\p
\s5
\v 19 आधी रात से पहले के समय, "घड़ी के बीचोंबीच", जब पहरेदारों का नया दल पिछले पहरेदारों के स्थानों को लेता है, तो गिदोन और उनके साथ सौ पुरुष मिद्यानी शिविर के किनारे पहुँचे। उसने और उसके पुरूषों ने अपने अपने सींगों को फूँक दिया, और उन घड़ों को तोड़ दिया जिनको वे साथ में लिए हुए थे।
\s5
\v 20 तब तीनों ही समूहों के पुरुषों ने अपने अपने सींगों को फूँका और अपने घड़ों को तोड़ दिया। उन्होंने मशालों को अपने बाएँ हाथों से ऊँचा रखा, और सींगों को अपने दाहिने हाथों से पकड़े रखा और उन्हें फूँकते रहे और चिल्लाते रहे, "हमारे पास यहोवा के लिए और गिदोन के लिए लड़ने की तलवार है!"
\v 21 गिदोन का हर एक पुरुष शत्रु के शिविर के चारों ओर अपनी स्थिति में खड़ा था। उन्होंने देखा, कि सब मिद्यानी पुरुषों ने इधर उधर भागना और एक आतंक में चिल्लाना शुरू कर दिया है।
\p
\s5
\v 22 जबकि तीन सौ इस्राएली पुरुष अपने अपने सींग फूँकते रहे यहोवा ने मिद्यानी लोगों को अपनी तलवारों से एक-दूसरे से ही युद्ध करना आरंभ करवा दिया। उनमें से कुछ ने एक-दूसरे को मार डाला। बाकी भाग गए। कुछ दक्षिण की ओर बेतशित्ता में भाग गए। कुछ तब्बात के पास, आबेल-महोला की सीमा तक, सरेरा शहर में भाग गए।
\v 23 इस्राएलियों ने नप्ताली, आशेर और मनश्शे के गोत्रों से अधिक मनुष्यों को एक साथ इकट्ठा किया और वे मिद्यानी सेना के पीछे गए।
\s5
\v 24 गिदोन ने पूरे पहाड़ी देश में दूत भेजे, जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे और कहा, "नीचे जाकर मिद्यान की सेना पर हमला करो। शत्रु सैनिकों को इसे पार करने से रोकने के लिए नीचे यरदन नदी के उन स्थानों पर जाओ, जहाँ से वे लोग पार जा सकते हैं! दूर दक्षिण में बेतबारा तक अपने लोगों को तैनात कर दो।"
\p अतः एप्रैम के लोगों ने वही किया जो गिदोन ने उनसे कहा था।
\v 25 उन्होंने मिद्यानी सेना के दो सेनापतियों ओरेब और जेब को भी पकड़ लिया। उन्होंने ओरेब को बड़ी चट्टान पर मार डाला जिसे अब ओरेब की चट्टान कहा जाता है, और उन्होंने जेब को उस स्थान पर मार डाला जहाँ वे अंगूर को रौंदते थे जिसे अब जेब का दाखरस का कुंड कहा जाता है। बाद में, इस्राएलियों ने ओरेब और जेब के सिरों को काट दिया और उन्हें गिदोन के पास लाए, जो यरदन नदी के दूसरी ओर था।
\s5
\c 8
\p
\v 1 तब एप्रैम के गोत्र के सैनिकों ने गिदोन से कहा, "तू ने हमारे जैसे ऐसा क्यों किया है? जब तू मिद्यानी सेना से युद्ध के लिए गया था तब हमें सहायता करने के लिए क्यों नहीं बुलाया?" उन्होंने गिदोन के साथ बहुत विवाद किया।
\p
\s5
\v 2 परन्तु गिदोन ने उत्तर दिया, "तुमने जो किया है उसकी तुलना में मैंने बहुत कम किया है! एप्रैम के देश में जिन अंगूरों को लेने की तुम चिन्ता नहीं करते हो, वे अबीएजेर के वंशजों की पूरी फसल की तुलना में कहीं अधिक उत्तम होते हैं!
\v 3 परमेश्वर ने मिद्यान के सेनापतियों ओरेब और जेब को पराजित करने में तुम्हारी सहायता की है। यह मेरे कामों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है!" गिदोन के उनसे यह तो वे उससे अप्रसन्न नहीं रहे कि उसने ऐसा किया है।
\p
\s5
\v 4 तब गिदोन और उसके तीन सौ लोग पूर्व में गए। वे यरदन नदी पर आए और इसे पार किया। वे बहुत थके हुए थे परन्तु, फिर भी वे अपने शत्रुओं का पीछा करते रहे।
\v 5 जब वे सुक्कोत नगर पहुँचे, तो गिदोन ने नगर के अगुवों से कहा, "कृपया मेरे लोगों को रोटी दो कि वे इसे खा सकें! वे बहुत थके हुए हैं। हम मिद्यान के राजाओं जेबह और सलमुन्ना का पीछा कर रहे हैं।"
\p
\s5
\v 6 परन्तु सुक्कोत के अगुवों ने उत्तर दिया, "तुम जेबह और सलमुन्ना को पकड़ने और अपनी शक्ति से उन्हें कैदी बनाने के लिए तैयार हो तो तुम। अपने लिए भोजन पाने के लिए पर्याप्त शक्ति रखते हो। अत: तेरी सेना को रोटी देने की हमें क्या आवश्यक्ता हैं?"
\p
\v 7 गिदोन ने उत्तर दिया, "क्योंकि तुमने ऐसा कहा है, यहोवा जेबह और सलमुन्ना को पकड़ने में और उन्हें तुम से ले लेने में हमारी सहायता करेगा। हम लौटकर तुम्हारे पास आएँगे और मरुस्थल में उगने वाले काँटों और धारदार कंटियों से चाबुक बनाएँगे और उनसे तुम्हारे माँस को उधेड़ेंगे।"
\p
\s5
\v 8 गिदोन और उसके तीन सौ पुरुष पनूएल गए और उसी तरह वहाँ भोजन की माँग की। लेकिन उन लोगों ने भी उसे बिलकुल वही उत्तर दिया।
\v 9 तब उसने पनूएल के लोगों से कहा, "उन राजाओं को पराजित करने और शान्ति बनाने के बाद, मैं आकर इस गुम्मट को ढा दूँगा।"
\p
\s5
\v 10 उस समय तक, जेबह और सलमुन्ना पंद्रह हजार सैनिकों के साथ कर्कोर शहर चले गए थे। यह सभी वे थे जो पूर्व से आए लोगों की सेना में से बच गए थे, और उनके 1,20,000 पुरुष पहले से ही मारे गए।
\s5
\v 11 गिदोन और उसके लोग सड़क से होते हुए पूर्व में गए जिस पर कारवाँ यात्रा करते थे। वे नोबह और योग्बहा के गाँवों से होकर निकले और शत्रु के शिविर में अचानक से पहुँच गए।
\v 12 जेबह और सलमुन्ना भाग गए, लेकिन गिदोन के पुरुषों ने उनका पीछा किया। उसने मिद्यान के दो राजाओं जेबह और सलमुन्ना को पकड़ लिया, और उनकी पूरी सेना में घबराहट उत्पन्न कर दी।
\p
\s5
\v 13 उसके बाद, गिदोन और उसके लोगों ने जेबह और सलमुन्ना को अपने साथ ले लिया और हेरेस के पार से गुजरते हुए, वापस आना आरंभ किया।
\v 14 वहाँ वह सुक्कोत से एक युवक से मिला, और उससे राय माँगी। उसने उससे शहर के सब अगुवों के सभी नामों की पहचान करवाने के लिए कहा। उस युवक ने उसे सतहत्तर पुरुषों के नाम बताए।
\s5
\v 15 तब गिदोन और उसके लोग सुक्कोत लौटे और उन अगुवों से कहा, "जेबह और सलमुन्ना यहाँ हैं। जब हम पहले यहाँ थे, तो तुमने मेरा ठठ्ठा किया और कहा था, 'तूने अभी तक जेबह और सलमुन्ना को पकड़ा नहीं है! उन्हें पकड़ लेने के बाद, हम तेरे थके हुए पुरुषों को भोजन देंगे।'"
\v 16 तब गिदोन के लोगों ने नगर के अगुवों को पकड़ लिया और उन्हें मरुस्थल के बिच्छु पेड़ों से बने चाबुकों से कोड़े लगा लगा कर मार डाला, यह सिखाने के लिए कि वे ऐसे कामों को करने के लिए दण्ड के योग्य हैं।
\v 17 तब वे पनूएल गए और गुम्मट को तोड़ दिया, और नगर के सब लोगों को मार डाला।
\p
\s5
\v 18 तब गिदोन ने जेबह और सलमुन्ना से कहा, "तुमने जिन लोगों को ताबोर पर्वत के पास मारा था, वे किसके समान दिखते थे?"
\p उन्होंने उत्तर दिया, "वे आपके जैसे थे; वे सब ऐसे दिखते थे जैसे कि वे राजा के पुत्र थे।"
\p
\v 19 गिदोन ने उत्तर दिया, "वे मेरे भाई थे! यहोवा के जीवन की निश्चितता से मैं कहता हूँ कि यदि तुमने, उन्हें मारा नहीं होता तो मैं तुम्हे नहीं मारता।"
\s5
\v 20 फिर वह अपने सबसे बड़े बेटे, यतेरे के पास गया। उसने उससे कहा, "उन्हें मार डालो!" लेकिन यतेरे केवल एक लड़का था, और वह डर गया था, इसलिए उसने उन्हें मारने के लिए अपनी तलवार नहीं खींची।
\p
\v 21 तब जेबह और सलमुन्ना ने गिदोन से कहा, "एक जवान लड़के से ऐसा काम करने के लिए मत कहो जो पुरुष को करना चाहिए!" अतः गिदोन ने उन दोनों को मार डाला। फिर उसने उनके ऊँटों की गर्दनों से सुनहरे चंद्रमा के आकार के गहने ले लिए।
\p
\s5
\v 22 तब इस्राएली पुरुषों का एक समूह गिदोन के पास आया और उससे कहा, "तू हमारा शासक हो जा! हम चाहते हैं कि तू और तेरा पुत्र और तेरे पोते हमारे शासक हों, क्योंकि तू ने हमें मिद्यानी सेना से बचाया है।"
\p
\v 23 परन्तु गिदोन ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं तुम पर शासन नहीं करूँगा, और मेरा पुत्र भी तुम पर शासन नहीं करेगा। यहोवा तुम पर शासन करेगा।"
\s5
\v 24 फिर उसने कहा, "मैं केवल एक ही बात का अनुरोध करता हूँ। कि तुम में से हर एक जन मुझे युद्ध के बाद लिए गए सामानों में से एक एक कान की बाली दो।" अब इश्माएल से निकले सभी लोग कान की बाली पहनते थे।
\p
\v 25 उन्होंने उत्तर दिया, "हम आपको कान की बाली देने में प्रसन्न होंगे!" इसलिए उन्होंने भूमि पर एक कपड़ा फैलाया, और हर एक व्यक्ति ने उस पर उन सोने की बालियों को डाल दिया जिन्हें उन्होंने युद्ध में मारे गए लोगों से लिया था।
\s5
\v 26 सभी बालियों का वजन बीस किलोग्राम था। उन्होंने गिदोन को जो दिया इसमें अन्य वस्तुएँ नहीं थीं अर्थात अन्य गहने या लटकन या उनके राजा के पहने हुए कपड़े या उनके ऊँटों की गर्दन पर जो सोने की जंजीरें थीं।
\s5
\v 27 गिदोन ने लोगों के लिए एक पवित्र वस्त्र बनाया उन्होंने एकमात्र परमेश्वर की आराधना करने की बजाय पूजा की। गिदोन और उसके सारे परिवार ने उसकी पूजा करके पाप किया।
\p
\v 28 इस प्रकार इस्राएलियों ने मिद्यानी लोगों को हरा दिया। मिद्यानी लोग फिर कभी इस्राएल पर आक्रमण करने में पर्याप्त समर्थ नहीं हुए। इसलिए गिदोन जीवित रहते हुए, देश में चालीस वर्षों तक शान्ति थी।
\p
\s5
\v 29 गिदोन अपने घर लौट गया और वहीं रहने लगा।
\v 30 उसकी कई पत्नियाँ थीं, और उन्होंने उसके लिए सत्तर पुत्रों को जन्म दिया।
\v 31 शकेम शहर में उसकी एक रखैल भी थी, जिसने उसके लिए एक पुत्र पैदा किया जिसे उसने अबीमेलेक नाम दिया था।
\s5
\v 32 योआश का पुत्र गिदोन, बहुत बूढ़ा हो कर मर गया। उन्होंने उसके शरीर को अबीएजेरियों के देश ओप्रा में दफनाया, जहाँ उसके पिता योआश को दफनाया गया था।
\p
\v 33 परन्तु जैसे ही गिदोन की मृत्यु हुई, इस्राएलियों ने परमेश्वर को छोड़ दिया और बाल देवता की मूर्तियों की पूजा करने लगे, जैसे व्यभिचारिणी स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़ देती हैं और दूसरे पुरुषों के पास चली जाती हैं। वे बालबरीत को देवता मान कर उसकी पूजा करते थे।
\s5
\v 34 वे यहोवा को भूल गए, जिसने उन्हें चारों ओर से शत्रुओं से बचाया था।
\v 35 यद्यपि गिदोन ने इस्राएलियों के लिए बहुत अच्छे काम किए थे, फिर भी उन्होंने गिदोन के परिवार के प्रति दया के काम नहीं किए।
\s5
\c 9
\p
\v 1 गिदोन का पुत्र अबीमेलेक शकेम शहर में अपनी माँ के भाइयों से बात करने गया। गिदोन को यरूब्बाल भी कहा जाता था। उसने उनसे और अपनी माँ के सब संबन्धियों से कहा,
\v 2 "शकेम के सभी अगुवों से पूछो: 'क्या तुमको ऐसा लगता है कि गिदोन के सब सत्तर पुत्र तुम पर शासन करें तो अच्छा होगा? या क्या तुम पर शासन करने के लिए केवल एक ही व्यक्ति अबीमेलेक का होना उचित होगा?' और यह मत भूलना कि मैं तुम्हारे परिवार का अंश हूँ!"
\p
\s5
\v 3 इसलिए अबीमेलेक की माँ के भाइयों ने शकेम के सब अगुवों को अबीमेलेक की बातें सुनाई। उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "हमें अबीमेलेक को हम पर शासन करने देना चाहिए, क्योंकि वह हमारा ही भाई है।"
\v 4 तब शकेम के अगुवों ने अपने देवता बालबरीत के मंदिर से एक किलोग्राम चाँदी को लिया और अबीमेलेक को दे दिया। उस चाँदी से उसने कुछ परेशानियाँ पैदा करने वालों को उसकी सहायता करने के लिए भुगतान किया, और जहाँ भी वह गया, वे अबीमेलेक के साथ गए।
\s5
\v 5 अबीमेलेक अपने पिता के नगर ओप्रा को गया, और अपने सत्तर भाइयों, अर्थात उसके पिता गिदोन के पुत्रों की हत्या कर दी। उसने उन पुरुषों को एक विशाल चट्टान पर मार डाला। लेकिन गिदोन का सबसे छोटा बेटा योताम, अबीमेलेक और उसके पुरूषों से छिपा रहा, और वह बच निकला।
\v 6 तब शकेम और बेतमिल्लो के नगरों के अगुवे शकेम के बड़े पवित्र पेड़ के नीचे इकट्ठा हुए। वहाँ उन्होंने अबीमेलेक को अपना अगुवा नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 7 जब योताम ने इसके बारे में सुना, तो वह गरिज्जीम पर्वत पर चढ़ गया। वह पहाड़ के शिखर पर खड़ा हो गया और नीचे के लोगों को चिल्ला कर कहा, "हे शकेम के अगुवों, मेरी बात सुनो, कि परमेश्वर भी तुम्हारी सुन सके!
\v 8 एक दिन पेड़ों ने उन सभी पर शासन करने के लिए एक राजा नियुक्त करने का फैसला किया। इसलिए उन्होंने जैतून के पेड़ से कहा, 'तू हमारा राजा हो जा!'
\p
\s5
\v 9 लेकिन जैतून के पेड़ ने कहा, 'नहीं! मैं तुम्हारा राजा नहीं बनूँगा! पुरुष और देवता मेरे फल से तेल का आनंद लेते हैं। मैं अन्य पेड़ों पर शासन करने के लिए जैतून का उत्पादन बंद नहीं करूँगा जिससे उस तेल को बनाया जाता हैं!'
\p
\v 10 तब पेड़ों ने अंजीर के पेड़ से कहा, 'तू हमारा राजा हो जा!'
\p
\v 11 लेकिन अंजीर के पेड़ ने उत्तर दिया, 'नहीं! मैं अपने अच्छे मीठे फल का उत्पादन करना बंद नहीं करना चाहता, इसलिए अन्य पेड़ों पर शासन करना नहीं चाहता!'
\p
\s5
\v 12 तब पेड़ों ने अंगूर से कहा, 'आ और हमारे राजा बनो!'
\p
\v 13 लेकिन अंगूर ने उत्तर दिया, 'नहीं! मैं तुम्हारा राजा नहीं बनूँगा! मेरे अंगूरों से बनाई गई नई शराब लोगों और देवताओं को बहुत प्रसन्न कर देती है। मैं अंगूरों का उत्पादन करना बंद नहीं करना चाहता हूँ कि जाकर अन्य पेड़ों पर शासन करूँ!'
\p
\v 14 तब सब पेड़ों ने कंटीली झाड़ियों से कहा, 'आ और हमारा राजा बन!'
\p
\s5
\v 15 कंटीली झाड़ियों ने पेड़ों से कहा, 'यदि तुम सच में मुझे अपना राजा बनना चाहते हैं, तो मेरी छोटी शाखाओं की छाया में आओ। लेकिन यदि तुम ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो मुझे आशा है कि मुझसे आग निकलेगी और लबानोन देश के सब देवदार के पेड़ों को जला देगी!"
\p
\v 16 यह दृष्टांत कहने के बाद योताम ने उनसे कहा, "इसलिए अब मैं तुमसे पूछता हूँ, क्या तुम ईमानदार और गंभीर थे जब तुमने अबीमेलेक को अपना राजा बनने के लिए नियुक्त किया था? क्या तुमने गिदोन को (जिसे यरूब्बाल भी कहा जाता है) तुम्हारे लिए भलाई करने के लिए सम्मानित करने हेतु योग्य प्रतिफल दिया हैं? नहीं!
\s5
\v 17 यह मत भूलना कि मेरे पिता ने तुम्हारे लिए युद्ध किया था, और मिद्यानियों की शक्ति से मुक्त कराने के लिए यदि आवश्यक होता तो वह मरने को भी तैयार था।
\v 18 परन्तु अब तुमने मेरे पिता के परिवार से विद्रोह किया है, और उसके सत्तर पुत्रों को एक विशाल चट्टान पर मार डाला है। और अबीमेलेक को राजा होने के लिए नियुक्त किया है जो मेरे पिता की रखैल का पुत्र है, न कि उसकी पत्नी का पुत्र शकेम के लोगों पर शासन करेगा। तुमने ऐसा केवल इसलिए किया है कि वह तुम्हारे संबन्धियों में से एक है!
\s5
\v 19 इसलिए, यदि आज तुम वास्तव में गिदोन और उसके परिवार के प्रति ईमानदारी से और गंभीरता से विचार करते हो, तो मुझे आशा है कि वह तुम्हे प्रसन्न करेगा और तुम उसे प्रसन्न करोगे।
\v 20 परन्तु यदि तुमने जो किया वह उचित नहीं है, तो मैं चाहता हूँ कि अबीमेलेक शकेम और बेतमिल्लो को नष्ट कर दे!" मेरी इच्छा है कि शकेम और बेतमिल्लो के अगुवे भी अबीमेलेक को नष्ट कर दें!"
\p
\v 21 योताम यह कहने के बाद, वहाँ, से बचकर निकल गया और बेर शहर चला गया। वह वहीं रहा क्योंकि उसे डर था कि उसका भाई, अबीमेलेक उसे मारने का प्रयास करेगा।
\p
\s5
\v 22 तीन साल तक अबीमेलेक इस्राएल के लोगों का अगुवा था।
\v 23 तब परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के अगुवों के बीच परेशानी उत्पन्न करने के लिए एक दुष्ट आत्मा भेजी, जिसके कारण शकेम के अगुवों ने अबीमेलेक से विद्रोह किया।
\v 24 शकेम के अगुवों ने गिदोन के सत्तर पुत्रों की हत्या करने में अबीमेलेक की सहायता की थी, जो उसके भाई थे। इसलिए उन्होंने जो किया था उसके लिए अब परमेश्वर ने उन सब को दण्ड देने के लिए दुष्ट आत्मा भेजी।
\s5
\v 25 शकेम के अगुवों ने पहाड़ियों पर घातकों को बैठाया। उन लोगों ने हर एक आने जाने वाले को लूट लिया। किसी ने अबीमेलेक को इसके बारे में बताया, इसलिए वह उनके निकट नहीं गया। 4184
\p
\s5
\v 26 एबेद का पुत्र, गाल नाम का एक मनुष्य था जो शकेम में अपने भाइयों के साथ चला गया था। शकेम के अगुवों ने उस पर भरोसा किया।
\v 27 वे अंगूर लेने के लिए अपनी दाख की बारियों में गए। उन्होंने रस बनाने के लिए अंगूरों को रौंदा, और फिर उन्होंने शराब बनाई। तब अपने देवता के भवन में उन्होंने भोज किया, और बहुत भोजन खाया और बहुत शराब पी। तब उन्होंने अबीमेलेक को शाप दिया।
\s5
\v 28 एबेद के पुत्र गाल ने कहा, "हम अबीमेलेक को हम पर शासन करने की अनुमित क्यों दें? क्या वह यरूब्बाल का पुत्र नहीं है? और क्या जबूल उसका अधिकारी नहीं है? तुम्हे तो शकेम के पिता हमोर के लोगों की सेवा करनी चाहिए! हम अबीमेलेक की सेवा क्यों करें?
\v 29 यदि तुम मुझे अपना अगुवा नियुक्त करो, तो मैं अबीमेलेक से छुटकारा दिलाऊँगा। मैं उससे कहूँगा, 'अपनी सेना तैयार कर! आ और हमसे युद्ध कर!'"
\p
\s5
\v 30 गाल ने जो कहा था किसी ने गाल की बातें जबूल को बता दीं जिसे सुनकर वह बहुत क्रोधित हो गया।
\v 31 उसने अबीमेलेक के पास दूत भेजे। उन्होंने उससे कहा, "गाल और उसके भाई यहाँ शकेम में आए हैं, और वे लोगों को उकसा रहे हैं कि वे तुझ से विद्रोह करें।
\s5
\v 32 तू और तेरे लोग रात के समय उठ कर शहर के बाहर खेतों में छिप जाएँ।
\v 33 जैसे ही सुबह सूर्य उगता है, उठो और शहर पर आक्रमण। जब गाल और उसके पुरुष तुझ से युद्ध करने के लिए बाहर आते हैं, तब तू जो, उनके साथ कर सकता हैं।"
\p
\s5
\v 34 तब अबीमेलेक और उसके साथी रात के समय उठ गए। वे चार समूहों में विभाजित हो गए और शेकेम के निकट खेतों में जाकर छिप गए।
\v 35 अगली सुबह, गाल बाहर गया और शहर के प्रवेश द्वार पर खड़ा हो गया। जब वह वहाँ खड़ा था, अबीमेलेक और उसके सैनिक अपने छिपने वाले स्थानों से बाहर आए और शहर की ओर चलना शुरू कर दिया।
\p
\s5
\v 36 जब गाल ने सैनिकों को देखा, तो उसने जबूल से कहा, "देखो, पहाड़ से लोग नीचे आ रहे हैं!"
\p लेकिन जबूल ने कहा, "आप केवल पहाड़ियों पर पेड़ों की छाया देख रहे हैं। वे लोग नहीं हैं; वे केवल लोगों की तरह दिखते हैं।"
\v 37 परन्तु गाल ने फिर से देखा, और कहा, "देखो! देश के बींचोंबीच में लोग नीचे आ रहे हैं! उनमें से एक समूह बांज वृक्ष के रास्ते से नीचे आ रहा है जहाँ लोग मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करने का दावा करते हैं!"
\p
\s5
\v 38 जबूल ने गाल से कहा, "अब क्या तेरा डींग मारना अच्छा है? तू ने कहा था, 'अबीमेलेक कौन है कि हमें उसकी सेवा करनी चाहिए?' क्या ये वे पुरुष नहीं हैं जिनसे तू घृणा करता हैं? अब बाहर जा और उनसे युद्ध कर।
\p
\v 39 तब गाल अबीमेलेक की सेना से युद्ध करने के लिए शकेम के लोगों को शहर के बाहर ले गया।
\v 40 अबीमेलेक और उसके पुरूषों ने उनका पीछा किया, और इसके पहले कि वे शहर के फाटक में सुरक्षित लौटते उन्होंने गाल के कई लोगों को मार डाला।
\s5
\v 41 अबीमेलेक तब शकेम से लगभग पाँच मील दूर अरूमा में रहा, और जबूल के पुरुषों ने गाल और उसके भाइयों को शकेम छोड़ने के लिए विवश कर दिया।
\p
\v 42 अगले दिन, शकेम के लोग शहर छोड़ने और खेतों में काम करने के लिए तैयार हो गए। किसी ने अबीमेलेक को इस की सूचना दी,
\v 43 उसने अपने पुरुषों को तीन समूहों में विभाजित किया, और उन्हें खेतों में छिप जाने के लिए कहा। इसलिए उन्होंने ऐसा किया। और जब उन्होंने शहर से बाहर आने वाले लोगों को देखा, तो वे कूद पड़े और उन पर आक्रमण कर दिया।
\s5
\v 44 अबीमेलेक और उसके साथी शहर के फाटक की ओर भागे। अन्य दो समूह खेतों में लोगों के पीछे भागे और उन पर आक्रमण किया।
\v 45 अबीमेलेक और उसके पुरूषों ने पूरा दिन युद्ध किया। उन्होंने शहर पर अधिकार कर लिया और सब लोगों को मार डाला। उन्होंने सब इमारतों को तोड़ दिया, और खंडहरों पर नमक डाल दिया कि वहाँ कुछ उगे।
\p
\s5
\v 46 जब शकेम के बाहर गुम्मट में रहने वाले अगुवों ने सुना कि क्या हुआ है, तो वे भाग गए और किले में छिप गए, वह उनके देवता एलबरीत का मंदिर भी था।
\v 47 परन्तु किसी ने अबीमेलेक से कहा कि सभी अगुवे वहाँ इकट्ठा हुए हैं।
\s5
\v 48 अतः वह और उसके साथ रहने वाले सब लोग शकेम के निकट सल्मोन पर्वत पर चढ़ गए। अबीमेलेक ने कुल्हाड़ी से पेड़ों की कुछ शाखाओं को काट दिया, और उन्हें अपने कंधों पर रखा। तब उसने सब साथियों से कहा, शीघ्रता से वही करो जो मैं करता हूँ।"
\v 49 इसलिए उसके सब लोग शाखाओं को काटकर अबीमेलेक के पीछे पहाड़ से नीचे ले गए। वे किले में गए और उसकी दीवारों पर शाखाओं को ढेर कर दिया। तब उन्होंने आग लगा दी, और आग ने किले को जला दिया और जितने भी लोग भीतर थे सब को मार डाला। वे सब लोग जो किले के अंदर थे लगभग हजारों पुरुष और महिलाएँ सब मर गए।
\p
\s5
\v 50 तब अबीमेलेक और उसके लोग तेबेस शहर गए। उन्होंने इसे घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिया।
\v 51 लेकिन शहर के भीतर एक दृढ़ गुम्मट था। इसलिए शहर के सब पुरुष, महिलाएँ और अगुवे गुम्मट में भाग गए। और भीतर से द्वार बंद कर दिया। फिर वे गुम्मट की छत पर चढ़ गए।
\s5
\v 52 अबीमेलेक और उसके लोग गुम्मट के समीप आए और वह आग लगा कर दरवाजे को जला देने के लिए अबीमेलेक द्वार के निकट आया।
\v 53 परन्तु जब अबीमेलेक द्वार के निकट आया, तब एक स्त्री ने छत पर से पीसने वाले पत्थर के ऊपरी भाग को उस पर गिरा दिया, जिसने उसकी खोपड़ी की हड्डी को तोड़ दिया।
\p
\v 54 अबीमेलेक ने जल्दी से उस युवक को बुलाया जो अबीमेलेक के हथियारों को उठाया करता था, और कहा, "अपनी तलवार खींच और मुझे मार दें! मैं नहीं चाहता कि लोग कहें कि 'एक स्त्री ने अबीमेलेक को मार डाला।'" अतः जवान ने अपनी तलवार अबीमेलेक के शरीर घोप दी, और अबीमेलेक की मृत्यु हो गई।
\s5
\v 55 जब इस्राएली सैनिकों ने देखा कि अबीमेलेक मर चुका है, तो वे सब अपने अपने घर लौट आए।
\p
\v 56 इस तरह परमेश्वर ने अबीमेलेक को उसके सब बुरे कामों का दण्ड दिया उसने अपने सत्तर भाइयों की हत्या करके अपने पिता के साथ बुराई की थी।
\v 57 परमेश्वर ने शकेम के लोगों को भी उनके बुरे कामों के लिए दण्ड दिया। इन सब घटनाओं ने यरूब्बाल के पुत्र योताम का अभिशाप सच कर दिया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 अबीमेलेक के बाद पूआ का पुत्र और दोदो का पोता तोला राजा हुआ । वह इस्राएलियों को उनके शत्रुओं से बचाने के लिए अगुवा बन गया। वह इस्साकार के गोत्र से था, परन्तु एप्रैम के गोत्र के पहाड़ी देश के शामीर शहर में रहा करता था।
\v 2 उसने न्यायाधीश के रूप में इस्राएल पर पच्चीस वर्ष तक शासन किया। तब वह मर गया और उसे शामीर में दफनाया गया था।
\p
\s5
\v 3 तोला की मृत्यु के बाद, याईर (गिलादी) ने बीस वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में इस्राएल पर शासन किया।
\v 4 उसके तीस पुत्र थे, और उनमें से हर एक के पास सवारी करने के लिए अपना अपना गधा था। उनके पास गिलाद के तीस शहर थे जिनका नाम आज तक भी हब्बोत्याईर (या याईर के शहर) हैं।
\v 5 तब याईर की मृत्यु हो गई और उसे कमोन शहर में दफनाया गया।
\p
\s5
\v 6 इस्राएलियों ने और भी बुराइयाँ की जिनको यहोवा ने देखा। उन्होंने बाल की मूर्तियों की और प्रजनन देवी अश्तारोत की मूर्तियों की पूजा की। उन्होंने अरामी, सीदोनी, मोआबी, अम्मोनी लोगों के समूह के देवताओं की और पलिश्तियों के देवताओं की भी पूजा की। वे यहोवा को भूल गए और उसकी आराधना करना बंद कर दिया।
\v 7 तब यहोवा उन पर क्रोधित हुआ, और उसने पलिश्तियों और अम्मोनियों को इस्राएल को पराजित करने के लिए उबारा।
\s5
\v 8 उस वर्ष उन्होंने इस्राएलियों को कुचल दिया और उन पर अत्याचार किया, और अट्ठारह वर्ष तक उन्होंने इस्राएल के उन सब लोगों पर अत्याचार किया जो यरदन नदी के पूर्व में रहते थे। वह एमोरियों का देश था, जो गिलाद में है।
\v 9 तब अम्मोनियों ने यरदन नदी को यहूदा, बिन्यामीन और एप्रैम के गोत्रों के लोगों से युद्ध करने के लिए यरदन नदी को पार किया। उन्होंने इस्राएलियों के जीवन को डर और आतंक से भर दिया।
\s5
\v 10 अतः इस्राएलियों ने यहोवा को यह कह कर पुकारा, "हमने आपके विरुद्ध पाप किया है। हमने आपको त्याग दिया है, और हमने बाल की मूर्तियों की पूजा की है।"
\p
\v 11 यहोवा ने उनसे कहा, "मैंने तुमको मिस्रियों, एमोरियों, अम्मोनियों, पलिश्तियों के लोगों के समूह से,
\v 12 और साथ ही सीदोनियों, अमालेकियों और मोआनियों से भी छुड़ाया है। मैंने ऐसा इसलिए किया था कि उन्होंने तुमको चोट पहुँचाई थी और कैद कर लिया था। तुमने मुझे पुकारा, और मैं तुम्हे मुक्त करवा लाया।
\s5
\v 13 परन्तु अब तुमने मुझे छोड़ दिया है, और स्वयं अन्य देवताओं की पूजा कर रहे हो। इसलिए, मैं तुमको बार-बार नहीं बचाऊँगा।
\v 14 तुमने उन देवताओं को चुन लिया है कि उनकी पूजा करते हो। तो उनसे ही सहायता माँगों वे ही तुम्हे परेशानियों से निकालें।"
\p
\s5
\v 15 परन्तु इस्राएलियों ने यहोवा से कहा, "हमने पाप किया है। आप जैसा चाहें हमें दण्ड दें। परन्तु कृपया आज हमें बचा लें।"
\v 16 तब इस्राएलियों ने उन विदेशी देवताओं की मूर्तियों को फेंक दिया जिनसे वे स्नेह करते थे, और उन्होंने यहोवा की आराधना की। उसने देखा कि वे बहुत पीड़ित थे, और वह इस्राएल के दुःखों पर वह अपने धीरज की सीमा तक पहुँच गया।
\p
\s5
\v 17 अम्मोनी लोग इस्राएलियों के विरूद्ध लड़ने के लिए इकट्ठा हुआ, और उन्होंने गिलाद में अपने तम्बू खड़े किए। इस्राएली सैनिक भी एकत्र हुए और मिस्पा में अपने तम्बू खड़े किए।
\v 18 गिलाद के लोगों के अगुवों ने एक दूसरे से कहा, "अम्मोनियों की सेना से युद्ध करने के लिए हमारी अगुवाई कौन करेगा? जो हमारा नेतृत्व करेगा वह गिलाद में रहनेवाले सब लोगों का अगुवा बन जाएगा।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 गिलाद के क्षेत्र में यिप्तह नाम का एक व्यक्ति था। उसने स्वयं को एक महान योद्धा सिद्ध किया हुआ था। लेकिन उसकी माँ एक वेश्या थी। उसका पिता गिलाद था।
\v 2 गिलाद की पत्नी ने कई पुत्रों को जन्म दिया। जब वे बड़े हुए तब उन्होंने यिप्तह को घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया, और कहा, "तुम एक अन्य स्त्री के पुत्र हो, न कि हमारी माँ के। इसलिए हमारे पिता की मृत्यु के बाद तुमको उसकी कोई संपत्ति नहीं मिलेगी।"
\v 3 तब यिप्तह अपने भाइयों के पास से भाग गया, और वह तोब देश में रहने लगा। जब वह वहाँ था, तो कुछ दुष्ट लोग एक साथ यिप्तह से मिले, और वे एक-दूसरे के साथ आने जाने लगे।
\p
\s5
\v 4 कुछ समय बाद, अम्मोनियों के सैनिकों ने इस्राएल के सैनिकों पर आक्रमण किया।
\v 5 और गिलाद के अगुवे यिप्तह को ढूँढ़ने के लिए बाहर निकले कि उसे तोब से लौटा लाएँ।
\v 6 उन्होंने उससे कहा, "हमारे साथ आ और हमारी सेना का नेतृत्व कर, और अम्मोन की सेना से लड़ने में हमारी सहायता कर!"
\p
\s5
\v 7 परन्तु यिप्तह ने उत्तर दिया, "तुमने तो मुझसे घृणा की! तुमने मुझे मेरे पिता का घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया था! अब तुम मेरे पास क्यों आए हो, परेशानी में घिर जाने के बाद मुझसे सहायता माँगते हो?"
\p
\v 8 गिलाद के बुजुर्गों ने यिप्तह से कहा, "यही कारण है कि हम अब तेरे के पास आए हैं। आ और हमारे साथ युद्ध में अम्मोनियों के विरूद्ध हमारे सैनिकों का नेतृत्व कर, और तू गिलाद में रहने वालों का अगुवा होगा।"
\p
\s5
\v 9 यिप्तह ने उत्तर दिया, "यदि मैं तुम्हारे साथ गिलाद लौटकर अम्मोन की सेना से युद्ध करूँगा, और यदि यहोवा हमें उनको पराजित करने में हमारी सहायता करता है, तो मैं तुम्हारा अगुवा बनूँगा।"
\p
\v 10 उन्होंने उत्तर दिया, "जो कुछ हम तुमसे कह रहे हैं, यहोवा उसका साक्षी है। इसलिए यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम शपथ खाकर कहते है कि वह हमे दण्ड दें।"
\v 11 अतः यिप्तह उनके साथ गिलाद को वापस गया, और लोगों ने उसे उनका अगुवा और उनकी सेना का सरदार बनने के लिए नियुक्त किया। यिप्तह ने मिस्पा में उनके समझौते की शर्तों को यहोवा के सामने दोहराया।
\p
\s5
\v 12 यिप्तह ने अम्मोनियों के राजा के पास दूत भेजे। उन्होंने राजा से पूछा, "हमने तुझे क्रोधित करने के लिए क्या किया है, कि तेरी सेना हमारे देश के लोगों से युद्ध करने के लिए आ रही है?"
\p
\v 13 राजा ने उत्तर दिया, "जब तुम मिस्र से यहाँ आए थे, तब तुमने हमारा देश ले लिया था। तुमने यरदन नदी के पूर्व में, दक्षिण की आर्नोन नदी से उत्तर में यब्बोक नदी तक सारा क्षेत्र ले लिया था। इसलिए अब बिना युद्ध के इसे हमें लौटा दो।"
\p
\s5
\v 14 तब यिप्तह ने फिर से दूतों को राजा के पास भेजा।
\v 15 उन्होंने उससे कहा, "यिप्तह कहता है: 'इस्राएलियों ने, मोआबियों और अम्मोनियों का देश नहीं लिया है।
\v 16 जब इस्राएली लोग मिस्र से निकल आए, तो वे मरुस्थल के मध्य से लाल समुद्र तक गए, और फिर उसके पार चले गए और एदोम के क्षेत्र की सीमा पर कादेश नगर के लिए यात्रा की।
\s5
\v 17 उन्होंने एदोमियों के राजा के पास दूतों को यह कहने के लिए भेजा, "कृपया हमें अपने देश से होकर निकल जाने दे।" परन्तु एदोमियों के राजा ने इन्कार कर दिया। बाद में उन्होंने मोआबियों के राजा को भी बिलकुल यही संदेश भेजा, लेकिन उन्होंने, उन्हें अपने देश से होकर निकल जाने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया। इसलिए इस्राएली लंबे समय तक कादेश में ठहरे रहे।
\v 18 तब इस्राएली मरुभूमि में गए और एदोम और मोआब की सीमाओं के बाहर से होकर चले गए। वे मोआब के पूर्व में और फिर अर्नोन नदी के उत्तर से होकर चले गए, वह मोआब की उत्तरी सीमा है। वे मोआब के क्षेत्र में नहीं गए, क्योंकि अर्नोन मोआब की सीमा थी।
\p
\s5
\v 19 तब इस्राएल के अगुवों ने एमोरियों के राजा सीहोन को, जो हेशबोन में शासन करता था, संदेश भेजा। उन्होंने उससे कहा, "कृपया हम इस्राएली लोगों को अपने देश से होकर पार जाने की अनुमति दे दो ताकि हम उस देश में जा सकें जो हमारा है।"
\v 20 परन्तु सीहोन ने इस्राएलियों पर विश्वास नहीं किया कि वे शान्ति से उसके देश से होकर पार निकल जाएँगे। इसलिए उसने अपने सैनिकों को एकत्र किया और उन्होंने यहस गाँव में अपने तम्बू खड़े किए, और वहाँ इस्राएल से युद्ध किया।
\s5
\v 21 परन्तु इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने इस्राएलियों की सहायता की और उन्होंने सीहोन और उसकी सेना को पराजित कर दिया। तब उन्होंने उस सारे देश पर अधिकार कर लिया, जहाँ एमोरी रहते थे।
\v 22 इस्राएलियों ने एमोरियों के देश को दक्षिण की आर्नोन नदी से उत्तर में यब्बोक नदी तक और पूर्व में मरुस्थल से पश्चिम में यरदन नदी तक ले लिया।
\p
\s5
\v 23 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने, इस्राएलियों के आगे बढ़ने पर एमोरियों को, उन के स्थानों को छोड़ने के लिए विवश किया था। इसलिए अब क्या तू सोचता है कि अब तू उनके देश पर अधिकार कर सकता हैं?
\v 24 तुझे उस भूमि पर अधिकार है जो कमोश तुझे देता है और हम उस देश में रहेंगे जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें दिया है।
\v 25 क्या तू मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से अधिक शक्तिशाली है? उसने कभी इस्राएल से युद्ध करने का साहस नहीं किया था।
\s5
\v 26 तीन सौ वर्षो से इस्राएली लोग हेशबोन और अरोएर, और उनके आसपास के नगरों और अर्नोन नदी के पास के सभी नगरों में रहते थे। उन वर्षों में तुम अम्मोनियों ने उन शहरों को वापस क्यों नहीं ले लिया था?
\v 27 हमने तुम्हारे विरुद्ध गलत नहीं किया है, परन्तु तू मुझ पर और मेरी सेना पर आक्रमण करके गलत कर रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि यहोवा, जो न्यायाधीश है, निर्णय लेगा कि इस्राएली सही हैं या अम्मोनी सही हैं।"
\m
\v 28 परन्तु अम्मोन के राजा ने यिप्तह से इस संदेश में छिपी चेतावनी को अनदेखा कर दिया।
\p
\s5
\v 29 तब यहोवा के आत्मा ने यिप्तह को नियंत्रण में लिया। यिप्तह गिलाद के और उस मनश्शे के गोत्र क्षेत्र के मध्य से होकर गया ताकि अपनी सेना के लिए पुरुषों को भर्ती करे। आखिर में उसने अम्मोनियों से युद्ध करने के लिए गिलाद के मिस्पा शहर में उनको एकत्र किया।
\v 30 वहाँ यिप्तह ने यहोवा से एक गंभीर प्रतिज्ञा की, "यदि आप अम्मोनियों को पराजित करने के लिए मेरी सेना की सहायता करेंगे,
\v 31 तो युद्ध से लौट आने पर जो भी मेरे घर से मुझे बधाई देने के लिए बाहर आएगा मैं उसे आपके लिए बलि कर दूँगा। वह आप का हो जाएगा।"
\p
\s5
\v 32 तब यिप्तह और उसके लोग अम्मोनियों पर आक्रमण करने के लिए मिस्पा से गए, और यहोवा ने उसकी सेना के हाथों उन्हें पराजित किया।
\v 33 यिप्तह और उसके पुरूषों ने उन्हें अरोएर शहर से मिन्नीत शहर के चारों ओर के क्षेत्र में मार डाला। उन्होंने आबेलकरामीम शहर तक बीस नगरों को नष्ट कर दिया। अतः इस्राएलियों ने अम्मोनियों को पूर्णतः पराजित कर दिया।
\p
\s5
\v 34 जब यिप्तह मिस्पा में अपने घर लौट आया, तो उसकी पुत्री उससे मिलने के लिए सबसे पहले घर से बाहर आई। वह प्रसन्न होकर डफ बजा रही थी और नाच रही थी। वह उसकी एकमात्र संतान थी और उसके कोई अन्य पुत्र या पुत्रियाँ नहीं थे।
\v 35 जब यिप्तह ने अपनी बेटी को देखा, तो उसने अपना दुःख प्रकट करने के लिए अपने कपड़े फाड़े वह जो करने जा रहा था उसके लिए वह बहुत दुःखी था। उसने उससे कहा, "मेरी पुत्री तुझे देखकर मैं भयंकर दुःख से कुचल दिया गया हूँ क्योंकि मैंने परमेश्वर से शपथ खाई थी कि मेरे घर से बाहर आने वाले पहले व्यक्ति को में यहोवा के लिए बलि कर दूँगा मुझे अपनी शपथ को पूरा करना ही होगा।"
\p
\s5
\v 36 उसकी बेटी ने कहा, "हे मेरे पिता, तूने यहोवा से गंभीर शपथ खाई है। इसलिए तू मेरे साथ अपनी शपथ के अनुसार ही कर, क्योंकि तूने कहा था कि यदि यहोवा हमारे शत्रु, अम्मोनियों को पराजित करने में तेरी सहायता करेगा तो तू ऐसा करेगा।"
\v 37 तब उसने यह भी कहा, "लेकिन मुझे एक काम करने की अनुमति दे। सबसे पहले, मुझे पहाड़ियों में जाने और इधर उधर दो महीने तक घूमने दे। क्योंकि मैं कभी विवाह नहीं करूँगी और बच्चे को जन्म नहीं दूँगी, तो मुझे और मेरी सहेलियों को जाकर एक साथ रोने की अनुमति दे।"
\p
\s5
\v 38 यिप्तह ने उत्तर दिया, "ठीक है, तू जा सकती है।" इसलिए वह दो महीने के लिए चली गई। वह और उसकी सहेलियां पहाड़ियों में रहे और वे उसके लिए रोईं क्योंकि वह कभी विवाह नहीं कर कर पाएगी।
\v 39 दो महीने बाद, वह अपने पिता यिप्तह के पास लौट आई, और उसने उसके साथ वही किया जिसकी गंभीर शपथ खाई थी। इसलिए उसकी पुत्री का विवाह कभी नहीं हुआ।
\p उस वजह से, अब इस्राएलियों में एक रिवाज है।
\v 40 हर साल जवान इस्राएली स्त्रियाँ यिप्तह की पुत्री के साथ जो हुआ, उसके याद रखने और रोने के लिए चार दिनों तक पहाड़ियों में जाती हैं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 एप्रैम के गोत्र के लोगों ने अपने सैनिकों को एकत्र, किया और यरदन नदी पार करके सापोन नगर में यिप्तह से बात करने के लिए गए। उन्होंने उससे कहा, "तू ने हमें अम्मोनियों से युद्ध करने में अपनी सेना की सहायता हेतु क्यों नहीं कहा। इसलिए जब तू घर में होगा, हम तुझे तेरे घर के साथ जला देंगे।"
\p
\v 2 यिप्तह ने उत्तर दिया, "अम्मोनियों ने हम पर अत्याचार किया। और मैंने तुमसे निवेदन किया कि आकर हमें उनसे बचाओं तो तुमने मना कर दिया। जब मैंने तुमसे पुकार की, तो तुम हमारे बचाव के लिए नहीं आए।
\s5
\v 3 जब मैंने देखा कि तुम हमारी सहायता करने के लिए नहीं आओगे, तो मैंने हमारे लोगों को अम्मोनियों के मध्य होकर अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए अपने जीवन का जोखिम उठाया। यहोवा ने उनको पराजित करने में हमारी सहायता की। अत: तुम आज मुझसे लड़ने के लिए क्यों आए हो? "
\p
\v 4 तब यिप्तह ने एप्रैम के सैनिकों से युद्ध करने के लिए गिलाद के सैनिकों को एकत्र किया। उन्होंने उन पर आक्रमण कर दिया क्योंकि एप्रैम के गोत्र के लोगों ने कहा था, "तुम गिलाद के लोग यहाँ एप्रैम और मनश्शे के देश में शरणार्थी हो।
\s5
\v 5 गिलादियों ने यरदन नदी के निचले स्थानों पर अधिकार कर लिया, जहाँ से लोग नदी पार करके एप्रैम के क्षेत्र में जा सकते थे। यदि एप्रैम के गोत्र में से कोई भागने के प्रयास में नदी पार करने के लिए आता, तो वह कहता था, "मुझे नदी पार करने की अनुमति दीजिए।" तब गिलाद के लोग उससे पूछते "क्या तू एप्रैम के गोत्र से हैं?" यदि वह कहता "नहीं,"
\v 6 वे उससे कहते, "शिब्बोलेत" शब्द का उच्चारण कर।" एप्रैम के लोग उस शब्द का सही उच्चारण नहीं कर पाते थे। तो यदि एप्रैम के गोत्र के व्यक्ति ने कहा, "सिब्बोलेत," तो वे जान जाते कि वह झूठ बोल रहा था और वह वास्तव में एप्रैम के गोत्र से था, और वे उसे वहाँ नदी पर मार डालते।
\p उस समय गिलाद के लोगों ने एप्रैम के गोत्र के बयालीस हजार लोगों की हत्या कर दी थी।
\m
\s5
\v 7 गिलाद के यिप्तह ने छः साल तक इस्राएल पर न्यायाधीश और अगुवे के रूप में सेवा की। तब वह मर गया और उसे गिलाद के नगरों में से एक में दफनाया गया था।
\p
\s5
\v 8 यिप्तह की मृत्यु के बाद, बेतलेहेम से इबसान नाम का एक व्यक्ति इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश बन गया।
\v 9 उसके तीस पुत्र थे और उसने तीस पुत्रियों को विवाह में दे दिया। वह अपने कुल के बाहर के परिवारों से तीस बहुओं को लाया। वह सात साल तक इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश रहा।
\s5
\v 10 मरने के बाद उसे बेतलेहेम में दफनाया गया।
\p
\v 11 इबसान की मृत्यु के बाद, जबूलून के गोत्र से एलोन नाम का एक पुरुष इस्राएल का अगुवा बना। वह दस साल तक उनका अगुवा रहा।
\v 12 तब वह मर गया और उसे अय्यालोन शहर के उस क्षेत्र में दफनाया गया था जहाँ जबूलून का गोत्र रहता था।
\p
\s5
\v 13 एलोन की मृत्यु के बाद, पिरातोन शहर से हिल्लेल के पुत्र अब्दोन नाम का एक व्यक्ति इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश हुआ।
\v 14 उसके चालीस पुत्र और तीस पोते थे। उनके पास सत्तर गधे थे। अब्दोन आठ साल तक इस्राएल पर अगुवा और न्यायाधीश रहा।
\v 15 मृत्यु के बाद अब्दोन को अमालेकी लोगों के पहाड़ी देश में, अर्थात् एप्रैम देश के पिरातोन में दफनाया गया था।
\s5
\c 13
\p
\v 1 इस्राएली लोगों ने फिर से बुरा किया, और यहोवा ने उसे देखा। इसलिए यहोवा ने उन्हें पराजित करने में पलिश्तियों की सहायता की। उन्होंने चालीस वर्ष इस्राएलियों पर शासन किया।
\p
\v 2 दान के परिवार में मानोह नाम का एक मनुष्य था जो सोरा नगर में रहता था। उनकी पत्नी गर्भवती होने में असमर्थ थी, इसलिए उसने संतान को जन्म नहीं दिया था।
\s5
\v 3 एक दिन, यहोवा का स्वर्गदूत मानोह की पत्नी को दिखाई दिया और उससे कहा, "भले ही तू अब तक संतान को जन्म देने में समर्थ नहीं थीं, तू शीघ्र ही गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी।
\v 4 अब लेकर जब तक वह जन्म नहीं लेता तू शराब या अन्य कोई नशीला पेय नहीं पीएगी, और तुझे ऐसा कोई भोजन नहीं खाना है जिसकी व्यवस्था हमें अनुमति नहीं देता है।
\v 5 तू गर्भवती होगी। तेरे पुत्र के जन्म के बाद, उसके बालों को कभी नहीं काटा जाए। वह जन्म के पहले से मरने के दिन तक परमेश्वर को समर्पित होगा। वह उस काम को करेगा जिससे वह इस्राएलियों को पलिश्तियों की शक्ति से बचाएगा।"
\p
\s5
\v 6 वह स्त्री भाग कर गई और अपने पति से कहा, "एक पुरुष जिसे परमेश्वर ने भेजा मेरे पास आया था। मैं उससे बहुत डर गई थी, क्योंकि वह परमेश्वर की ओर से एक स्वर्गदूत के जैसा था। मैंने नहीं पूछा कि वह कहाँ से आया था, और उसने भी मुझे अपना नाम नहीं बताया।
\v 7 परन्तु उसने मुझसे कहा, 'तू गर्भवती है, और एक पुत्र को जन्म गी। उस समय तक, तुझे शराब या अन्य कोई नशीला पेय नहीं पीना है, और तुझे ऐसा कोई भोजन नहीं खाना है जिसे परमेश्वर की व्यवस्था मना करती है। तेरा पुत्र नाजीर होगा; पैदा होने के पहले से लेकर मरने तक परमेश्वर को समर्पित रहेगा।'"
\p
\s5
\v 8 तब मानोह ने यह कह कर यहोवा से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं आपसे विनती करता हूँ, उस पुरुष को जिसे आपने हमारे पास भेजा था फिर से भेज दीजिए कि वह हमें सिखाए कि हमें अपने होनेवाले पुत्र को कैसे पालना है।"
\p
\v 9 परमेश्वर ने मानोह की विनती को सुना, और उनका स्वर्गदूत फिर से उस स्त्री के पास आया। इस बार वह बाहर मैदान में थी। लेकिन फिर से उसका पति मानोह उसके साथ नहीं था।
\s5
\v 10 इसलिए वह भाग कर गई और अपने पति से कहा, "वह पुरुष जो कुछ दिन पहले मेरे सामने आया था, फिर से आ गया है!"
\p
\v 11 मानोह अपनी पत्नी के साथ भाग कर गया और उससे पूछा, "क्या तू ही वह पुरुष हैं जिसने मेरी पत्नी से कुछ दिन पहले बात की थी?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं ही हूँ।"
\p
\s5
\v 12 मानोह ने उससे पूछा, "जब तेरी प्रतिज्ञा पूरी हो जाएगी और मेरी पत्नी एक पुत्र को जन्म दे देगी, तो उस बच्चे के लिए कौन से नियम होंगे, और जब वह बड़ा हो जाएगा तब वह क्या करेगा?"
\p
\v 13 यहोवा के स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "तेरी पत्नी को मैंने जो निर्देश दिए हैं, उसे उन सब का पालन करना होगा।
\v 14 बच्चे के जन्म से पहले, उसे अंगूर नहीं खाने हैं, दाखमधु या अन्य कोई नशीला पेय नहीं पीना है, और ऐसा कोई भोजन नहीं खाना है जिसके लिए व्यवस्था हमें मना करती है।"
\p
\s5
\v 15 मानोह ने कहा, "कृपया तब तक यहाँ ठहरे रहें जब तक हम आपके लिए एक जवान बकरी को मारें और उसे पका सकें।"
\p
\v 16 यहोवा के स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ ठहरा रहूँगा, परन्तु मैं कुछ भी नहीं खाऊँगा। आप एक पशु को मार सकते हैं और यहोवा को होमबलि करके चढ़ा सकते हैं।" मानोह को अब तक समझ में नहीं आया था कि वह यहोवा का स्वर्गदूत है।
\p
\s5
\v 17 तब मानोह ने उससे पूछा, "आपका नाम क्या है? आपकी प्रतिज्ञा पूरी होने पर हम आपको सम्मान देना चाहते हैं।"
\p
\v 18 यहोवा के स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "आप मुझसे मेरा नाम क्यों पूछते हो? यह बहुत ही अनोखा है।"
\s5
\v 19 तब मानोह ने एक जवान बकरी को मार डाला और यहोवा लिए बलि के रूप में अनाज की भेंट के साथ एक चट्टान पर जला दिया। फिर उसने मानोह और उसकी पत्नी के देखते हुए एक अद्भुत काम किया।
\v 20 जब आग की लौ वेदी से आकाश की ओर उठी तब यहोवा का स्वर्गदूत वेदी की लौ में होकर ऊपर चला गया। मानोह और उसकी पत्नी ने यह देखा और भूमि पर मुँह के बल गिर गए।
\s5
\v 21 यद्यपि यहोवा का दूत फिर कभी मानोह और उसकी पत्नी को दिखाई नहीं दिया, फिर भी मानोह को समझ में आ गया कि यह पुरुष वास्तव में कौन था।
\p
\v 22 इसलिए मानोह ने कहा, "अब हमारा मरना निश्चित है, क्योंकि हमने परमेश्वर को देखा है!"
\p
\s5
\v 23 परन्तु उसकी पत्नी ने कहा, "नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। अगर यहोवा हमें मारने का विचार करता, तो वह होमबलि और अनाज की भेंट को स्वीकार नहीं करता। और वह हमें नहीं दिखाई देता और हमारे साथ होनेवाली आश्चर्यजनक बातें नहीं बताता जो हमारे साथ होंगी, और वह इस चमत्कार को नहीं करता।"
\p
\s5
\v 24 जब उनके पुत्र का जन्म हुआ, तो उन्होंने उसे शिमशोन नाम दिया। जब वह बड़ा हुआ तब यहोवा ने उसे आशीर्वाद दिया।
\v 25 जब वह महनदान में था, जो सोरा और एशताओल के नगरों के बीच है, तब यहोवा के आत्मा ने उसे अपने नियन्त्रण में रखना आरंभ कर दिया था।
\s5
\c 14
\p
\v 1 शिमशोन तिम्ना नगर में गया, और वहाँ उसने एक जवान पलिश्ती स्त्री को देखा।
\v 2 जब वह घर लौट आया, तो उसने अपनी माँ और पिता से कहा, "मैंने तिम्ना में पलिश्तियों की पुत्रियों में से एक को देखा है, और मैं चाहता हूँ तुम उसे मेरे लिए ले आओ ताकि मैं उससे विवाह करूं ।"
\p
\s5
\v 3 उनकी माँ और पिता ने बहुत कड़ाई से विरोध किया। उन्होंने कहा, "क्या हमारे गोत्र में या अन्य इस्राएली गोत्रों में से कोई औरत नहीं है, जिससे कि तू विवाह करे? तू पलिश्तियों में से पत्नी लेना क्यों चाहता है, जिनका खतना नहीं होता और जो यहोवा की आराधना नहीं करते हैं?"
\p शिमशोन ने अपने पिता से कहा, "उसे मेरे लिए ले आओ! उसी को मैं चाहता हूँ!"
\v 4 उसके माता और पिता नहीं समझ पाए थे कि यह यहोवा की ओर से है। वह शिमशोन के लिए पलिश्तियों के साथ युद्ध करने का एक उपाय कर रहा था, क्योंकि उस समय वे इस्राएल पर शासन कर रहे थे।
\s5
\v 5 तब शिमशोन अपनी माता और पिता के साथ तिम्ना को गया। एक जवान शेर ने उस पर हमला किया और नगर के समीप दाख के बागों के पास उस पर दहाड़ने लगा।
\v 6 यहोवा के आत्मा शिमशोन पर आया, और उसने शेर को अपने हाथों से फाड़ कर दो भाग कर दिया। उसने इतनी आसानी से ऐसा किया कि जैसे वह एक बकरी का बच्चा हो। परन्तु उसने अपने माता-पिता को इसके बारे में नहीं बताया।
\s5
\v 7 जब वे तिम्ना में पहुँचे, तो शिमशोन ने उस जवान स्त्री से बात की, और वह उसे बहुत पसंद आई और उसके पिता ने विवाह करवाने का प्रबन्ध किया।
\p
\v 8 बाद में, जब शिमशोन विवाह के लिए तिम्ना लौट आया, तो शेर की लाश को देखने के लिए वह रास्ते से मुड़ गया। उसने पाया कि मधुमक्खियों के एक झुंड ने शव में छत्ता बना लिया था और उसमें कुछ शहद भी था।
\v 9 इसलिए उसने खोद कर अपने हाथों में शहद निकाल लिया और उसमें से चलते-चलते खाता गया। उसने उसमें से कुछ अपने माता-पिता को भी दिया, परन्तु उसने उन्हें नहीं बताया कि उसने शेर की लाश में से शहद लिया था।
\p
\s5
\v 10 जब उसका पिता विवाह के लिए अंतिम व्यवस्था कर रहा था, शिमशोन ने उस क्षेत्र के जवान पुरुषों को दावत दी। उनके क्षेत्र में जब वे विवाह करने वाले होते थे तो पुरुषों के द्वारा की जाने वाली यह एक परंपरा थी।
\v 11 जैसे ही उसके संबन्धियों ने उसे देखा, वे अपने तीस मित्रों को उसके साथ होने के लिए ले आए।
\p
\s5
\v 12 शिमशोन ने उनसे कहा, "मुझे तुमसे एक पहेली पूछने की अनुमति दो। यदि तुम उत्सव के इन सात दिनों में मेरी पहेली का सही अर्थ मुझे बताते हो तो मैं हर एक को एक सनी का कुरता और एक अतिरिक्त पोशाक की जोड़ी दूँगा।
\v 13 लेकिन यदि तुम मुझे सही अर्थ नहीं बता पाते हो, तो तुम में से हर जन को मुझे एक सनी का कुरता और एक अतिरिक्त पोशाक की जोड़ी देगा।" उन्होंने उत्तर दिया, "ठीक है। हमें अपनी पहेली बता।"
\p
\s5
\v 14 अतः उसने कहा,
\q1 "खाने वाले से मुझे खाने के लिए कुछ मिला;
\q2 शक्तिशाली में से मुझे कुछ मीठा मिला।"
\m लेकिन तीन दिनों तक वे उस पहेली का अर्थ उसे नहीं बता पाए।
\p
\s5
\v 15 चौथे दिन, उन्होंने शिमशोन की पत्नी से कहा, " चाल चल कर अपने पति को पहेली का अर्थ बताने के लिए फुसला। अगर तू ऐसा नहीं करेगी, तो हम तेरे पिता के घर को तेरे और तेरे परिवार के साथ जला देंगे! क्या तुमने हमें यहाँ इसलिए आमंत्रित किया है कि अपने पति के लिए बहुत सारे कपड़े खरीदवा कर हमें गरीब बना दे?"
\p
\s5
\v 16 इसलिए शिमशोन की पत्नी रोते हुए उसके पास आई। उसने उससे कहा, "तुम सचमुच मुझसे प्यार नहीं करते हो। तुम मुझसे घृणा करते हो! आपने हमारे मित्रों से एक पहेली पूछी है, लेकिन तुमने मुझे उसका उत्तर नहीं बताया है!"
\p उसने उत्तर दिया, "मैंने अपने स्वयं के माता-पिता को इसका अर्थ नहीं बताया है, तो मुझे तुम्हे क्यों बताना चाहिए?"
\v 17 बाकी के पूरे उत्सव के समय वह जब भी वह उसके साथ होती वह रोती ही रहती। अन्त में, सातवें दिन, क्योंकि उसने उसे तंग करना जारी रखा था, तो उसने उसे पहेली का अर्थ बता दिया क्योंकि वह परेशान करती रहती थी और उसने उन जवान पुरुषों को उसका अर्थ बता दिया।
\p
\s5
\v 18 अतः सातवें दिन सूरज के डूबने से पहले, जवान लोग शिमशोन के पास आए और उससे कहा,
\q1 "शहद से मीठा कुछ भी नहीं है;
\q2 शेर के समान कुछ भी शक्तिशाली नहीं है।"
\p शिमशोन ने उत्तर दिया, "लोग अपने खेतों की जुताई करने के लिए खुद के पशुओं का उपयोग करते हैं। मेरी दुल्हन एक जवान बछिया की तरह है जिसका आपने उपयोग किया है, परन्तु वह तुम्हारी नहीं है!
\q1 यदि तुम उसे विवश नहीं करते तो तुम्हे मेरी पहेली का अर्थ,
\q2 मालूम नहीं हुआ होता!"
\p
\s5
\v 19 तब यहोवा के आत्मा शक्तिशाली रूप से शिमशोन पर आया। वह अश्कलोन शहर के तट पर गया और तीस लोगों की हत्या कर दी। उसने उनके कपड़े ले लिए और तिम्ना वापस चला गया; तब उसने उन्हें दावत में आए पुरुषों को दे दिया। लेकिन जो कुछ घटित हुआ था वह उसके बारे में बहुत नाराज था, इसलिए वह अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए घर लौट गया।
\v 20 इसलिए उसकी पत्नी के पिता ने उसे उस पुरुष को दे दिया जो विवाह के समय शिमशोन का विशेष मित्र था।
\s5
\c 15
\p
\v 1 उस समय जब वे गेहूँ की कटाई कर रहे थे, तब शिमशोन अपनी पत्नी के लिए उपहार स्वरूप एक जवान बकरी ले कर तिम्ना गया। वह अपनी पत्नी के साथ सोना चाहता था, परन्तु उसके पिता ने उसे उसके कमरे में जाने नहीं दिया।
\p
\v 2 उसने शिमशोन से कहा, "मैंने वास्तव में सोचा था कि तुम उससे घृणा करने लगे हो। इसलिए मैंने उसे उस पुरुष को दे दिया जो विवाह के समय तुम्हारा सबसे अच्छा मित्र था, और उसने उससे विवाह किया है। लेकिन देखो, उसकी छोटी बहन उससे ज्यादा सुंदर है। उसके स्थान में इसे ले लो।"
\p
\s5
\v 3 शिमशोन ने उत्तर दिया, "नहीं! अब मुझे तुम पलिश्तियों से बदला लेने का अधिकार है!"
\v 4 फिर वह बाहर खेतों में गया और तीन सौ लोमड़ियाँ पकड़ीं। उन्होंने उनकी पूँछों को एक साथ, दो दो करके बाँध दिया। और उनकी पूँछों में मशालें बाँध दीं।
\s5
\v 5 तब उसने मशालों को जला दिया और लोमड़ियों को पलिश्तियों के खेतों में भागने दिया। मशालों की आग ने भूमि के सारे अनाज को जला दिया, जिसमें कटाई किया हुआ अनाज और बंडलों में बँधा हुआ अनाज भी था। आग ने उनकी दाखलताओं को और उनके जैतून के पेड़ों को भी जला दिया।
\p
\v 6 पलिश्तियों ने पूछा, "यह किसने किया?" किसी ने उन्हें बताया, "शिमशोन ने ऐसा किया। उसने तिम्ना की एक औरत से विवाह किया, लेकिन फिर उसके ससुर ने उसे उस पुरुष को दे दिया जो विवाह के समय शिमशोन का सबसे अच्छा मित्र था, और उसने उससे विवाह कर लिया।" इसलिए पलिश्ती तिम्ना गए और उस स्त्री को और उसके पिता को पकड़ लिया, और उन्हें जला कर मार डाला।
\p
\s5
\v 7 शिमशोन को इसके बारे में पता चला और उनसे कहा, "क्योंकि तुमने यह किया है, इसलिए मैं तुम से बदला लूँगा, और फिर मैं खुश होऊँगा!"
\v 8 इसलिए उसने पलिश्तियों पर प्रचंड आक्रमण किया और उनमें से बहुतों को मार डाला। फिर वह एताम नामक जगह पर बड़ी चट्टान की एक गुफा में छिपने को चला गया।
\p
\s5
\v 9 पलिश्तियों को यह नहीं पता था कि वह कहाँ था, इसलिए वे यहूदा के वंशजों के पास गए, और युद्ध करने के लिए लही नगर में व्यवस्थित हुए।
\v 10 वहाँ के पुरुषों ने पलिश्तियों से पूछा, "आप हम पर आक्रमण करना क्यों चाहते हो?" पलिश्तियों ने उत्तर दिया, "हम शिमशोन को पकड़ने आए हैं। उसने हमारे साथ जो किया है उसका बदला लेने हम आए हैं।"
\p
\s5
\v 11 वहाँ किसी को पता था कि शिमशोन कहाँ छिपा हुआ है। अत: यहूदा के तीन हजार पुरूष शिमशोन को लाने के लिए नीचे चट्टान की गुफा में गए जहाँ वह छिपा हुआ था। उन्होंने शिमशोन से कहा, "क्या तुझे मालूम नहीं है कि पलिश्ती लोग हमारे ऊपर शासन कर रहे हैं? क्या तुझे मालूम नहीं है कि वे हमारे साथ क्या करेंगे?"
\p शिमशोन ने उत्तर दिया, "केवल एक काम जो मैंने किया वह यह था कि मैंने उनसे उसका बदला लिया।"
\p
\s5
\v 12 परन्तु यहूदा के लोगों ने उससे कहा, "हम तुझे बाँधकर पलिश्तियों के हाथों में देने के लिए आए हैं।"
\p शिमशोन ने कहा, "ठीक है, परन्तु प्रतिज्ञा करो कि तुम मुझे नहीं मारोगे!"
\p
\v 13 उन्होंने उत्तर दिया, "हम केवल तुझे बाँधेंगे और आपको पलिश्तियों के पास ले जाएँगे। हम तुझे नहीं मारेंगे।" इसलिए उन्होंने उसे दो नई रस्सियों से बाँध दिया और उसे गुफा से निकाल कर ले गए।
\s5
\v 14 जब वे लही पहुँचे, तो पलिश्ती युद्ध की ललकार करते हुए उसकी ओर आए। परन्तु यहोवा के आत्मा शक्तिशाली रूप से शिमशोन पर आया। उसने रस्सियों को अपनी बाँहों से इतनी आसानी से तोड़ दिया जैसे कि वे जले हुए सनी के डंठल थे, और वे उसकी कलाई से नीचे गिर गए।
\s5
\v 15 फिर उसने भूमि पर पड़ी हुए गधे के जबड़े की हड्डी को देखा। नई थी, इसलिए कठोर थी। उसने इसे उठाया और उससे एक हजार पलिश्ती पुरुषों को मार डाला।
\v 16 तब शिमशोन ने गाया:
\q1 "एक गधे के जबड़े की हड्डी से
\q2 मैंने उन्हें मरे हुए गधों के ढेर की तरह बना दिया है।
\q1 एक गधे के जबड़े की हड्डी से
\q2 मैंने एक हजार लोगों को मारा है।"
\m
\s5
\v 17 जब वह ऐसा कर चुका, उसने जबड़े की हड्डी को फेंक दिया, बाद में उस स्थान को रामतलही (या जबड़े की हड्डी की पहाड़ी) कहा जाता था।
\p
\v 18 तब शिमशोन बहुत प्यासा था, इसलिए उसने यहोवा को पुकार कर कहा, "आपने मुझे बड़ी जीत प्राप्त करने की शक्ति दी है। इसलिए क्या अब प्यास के कारण मुझे मर जाना चाहिए, जिससे कि मूर्तिपूजक, खतनारहित पलिश्ती मुझे पकड़ लेंगे?"
\s5
\v 19 अत: परमेश्वर ने लही की भूमि में एक गड़हे में से पानी निकाल दिया। शिमशोन ने उससे पी लिया और शीघ्र ही फिर से शक्ति प्राप्त की। उन्होंने उस स्थान को एनहक्कोरे (या "उसका सोता जिसे पुकारा गया था") नाम दिया। वह सोता, आज भी लही में मिल सकता है।
\p
\v 20 शिमशोन इस्राएल के ऊपर बीस साल तक अगुवा और न्यायाधीश था, परन्तु उस समय पूरे देश पर पलिश्तियों का राज था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 शिमशोन गाजा शहर को गया था। उसने वहाँ एक वेश्या देखी, और उसने उसके साथ रात बिताई।
\v 2 गाजा के लोगों को बताया गया था, "शिमशोन यहाँ आया है।" उन्होंने उस स्थान को घेर लिया जहाँ शिमशोन था, और वे पूरी रात छिपे हुए इंतजार कर रहे थे। वे शहर के फाटक के पास थे, इसलिए वे निश्चित थे कि वह भाग नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, "चलो, उजाला होने तक प्रतीक्षा करें, और फिर हम उसे मार देंगे।"
\p
\s5
\v 3 लेकिन शिमशोन पूरी रात वहाँ नहीं रुका था। आधी रात को, वह उठ गया। वह शहर के फाटक पर गया, उसने उसके दो पल्लों को पकड़ी, और उनके साथ जुड़े हुए बेंड़ों समेत उनको जमीन में से उखाड़ लिया। उसने इसे अपने कंधों पर रख लिया और हेब्रोन शहर के सामने, इसे कई मील की दूरी तक ऊपर पहाड़ पर ले गया।
\p
\s5
\v 4 बाद में शिमशोन दलीला नाम की एक महिला के प्यार में पड़ गया। वह सोरेक की घाटी में (पलिश्ती क्षेत्र में) रहती थी।
\v 5 पलिश्ती अगुवे उसके पास गए और कहा, "शिमशोन को फुसला कर पता लगा कि उसकी शक्ति कहाँ से आती है। और पता लगा कि हम उसे कैसे वश में कर सकते हैं और कैसे उसे बाँध सकते हैं। यदि तू ऐसा करती है, तो हम में से हर एक तुझे चाँदी के 1,100 टुकड़े देगा। "
\p
\s5
\v 6 अतः दलीला शिमशोन के पास गई और कहा, "कृपया मुझे बताओ कि आपको इतनी शक्ति देनेवाली क्या बात है, और मुझे बता कि कोई तुझे कैसे वश में कर सकता है और बाँध सकता है।"
\p
\v 7 शिमशोन ने कहा, "अगर कोई मुझे धनुष की सात नई तातों से बाँधता है, जो अभी तक सूखी नहीं हैं, तो मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p
\s5
\v 8 अतः दलीला के पलिश्ती अगुवों को यह बता दिया तो, वे धनुष की सात नई तातों को लेकर दलीला के पास आए।
\v 9 तब उसने अपने घर के कमरों में से एक में अगुवों को छिपा दिया। उसने शिमशोन को धनुष की तातों से बाँध दिया और फिर चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!" लेकिन शिमशोन ने धनुष की तातों को इतनी आसानी से तोड़ दिया जैसे कि मानो वे ऐसे तार थे जिनको आग में झुलसाया गया था। इसलिए पलिश्तियों को पता नहीं चल पाया कि किस कारण शिमशोन इतना शक्तिशाली था।
\p
\s5
\v 10 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, "तू ने मुझे धोखा दिया है और मुझसे झूठ बोला है! अब मुझे सच बता कि तुझे कैसे सुरक्षित बाँधा जा सकता है।"
\p
\v 11 शिमशोन ने उत्तर दिया, "अगर कोई मुझे नई रस्सियों से बाँधता है, जो कभी भी इस्तेमाल नहीं की गई हों, तो मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p
\v 12 इसलिए फिर से, उसने पलिश्ती अगुवों को बता दिया, और फिर वे आए और कमरे में छिप गए जैसा उन्होंने पहले किया था। और फिर से उसने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!" लेकिन शिमशोन ने रस्सियों को अपनी बाहों से इतनी आसानी से तोड़ दिया जैसे कि मानो वे धागे थे।
\p
\s5
\v 13 तब दलीला ने कहा, "तू ने फिर से मुझे धोखा दिया है और मुझसे झूठ बोला है! कृपया मुझे बता कि कोई तुझे कैसे बाँध सकता है!" शिमशोन ने उत्तर दिया, "यदि आप मेरे बालों के सात लटों को उस धागे में बुन देती हो जिससे तुम करघे पर बुनाई करती हो, और तब आप उस धागे को एक खूँटी से बाँध देती हो जो धागे को तंग बनाता है, तो मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p इसलिए फिर से, दलीला ने उसके बालों की सात लटों को पकड़ा, और उन्हें करघे के धागे में बुन दिया,
\v 14 और उसने उन्हें एक आलपिन लगा कर सुरक्षित किया। तब उसने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!" शिमशोन जाग गया और उसके बालों को खींच लिया, उसके साथ करघे की आलपिन और करघे के कपड़े को साथ में निकाल लिया।
\p
\s5
\v 15 तब दलीला ने उससे कहा, "तू कैसे कह सकता है कि मुझसे प्यार करता है जब कि तू मुझे अपने बारे में सच्चाई नहीं बताता है? तूने मुझे तीन बार धोखा दिया है, और अभी तक नहीं बताया है कि वास्तव में तेरी शक्ति का भेद क्या है!"
\v 16 दिन प्रतिदिन वह कोई न कोई चाल चलकर उसे फुसलाती थी कि उसकी शक्ति के भेद को जान पाए। उसने सोचा कि वह उसके लगातार परेशान करने से मर जाएगा।
\p
\s5
\v 17 अन्त में शिमशोन ने उसे सच बता दिया। उसने कहा, "जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, तब से मुझे परमेश्वर के लिए अलग कर दिया गया है। और इसके कारण, मेरे बाल कभी नहीं काटे गए हैं। अगर मेरे बाल मूंड दिए गए, तो मेरी शक्ति समाप्त हो जाएगी, और मैं अन्य पुरुषों के समान निर्बल हो जाऊँगा।"
\p
\s5
\v 18 दलीला ने महसूस किया कि इस बार उसने उसे सच बताया था। इसलिए उसने पलिश्ती अगुवों को एक साथ बुलाकर कहा, "एक और बार वापस आओ, क्योंकि शिमशोन ने अन्त में मुझे अपनी शक्ति का रहस्य बता दिया है।" इसलिए पलिश्ती अगुवे वापस लौटे और उन्होंने दलीला को वह पैसा दिया जिसकी उन्होंने उससे प्रतिज्ञा की थी।
\v 19 फिर से उसने शिमशोन के सिर को अपनी गोद में रख कर सोने के लिए उसे शांत किया। तब उसने पलिश्ती पुरुषों में से एक को बुलाया कि वह आकर शिमशोन के बालों को काट दे। जैसे ही उसने ऐसा किया, शिमशोन निर्बल हो गया; उसके पास ताकत नहीं रही।
\p
\s5
\v 20 तब उसने उसे बाँधने के बाद, उसने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन! पलिश्ती तुझे पकड़ने आए हैं!"
\p वह जाग गया और सोचा, "जैसा मैंने पहले किया था मैं वैसा ही करूँगा। मैं इन रस्सियों को खुद से झटक कर गिरा दूँगा और मुक्त हो जाऊँगा!" लेकिन उसे बोध नहीं हुआ कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया था।
\p
\v 21 इसलिए पलिश्ती पुरुषों ने उसे पकड़ लिया और उसकी आँखें निकाल दीं। तब वे उसे गाजा ले गए। वहाँ उन्होंने उसे जेल में डाल दिया और उसे काँसे की जंजीरों से बाँध दिया। उन्होंने उसे हर दिन अनाज पीसने के लिए एक बड़ा चक्की का पत्थर घुमाने वाला बना दिया।
\v 22 लेकिन काट दिए जाने के बाद उसके बाल फिर से बढ़ने लगे।
\p
\s5
\v 23 कई महीने बाद पलिश्ती अगुवों ने एक बड़ा पर्व मनाया। पर्व के समय उन्होंने उनके देवता दागोन के लिए बलि चढ़ाई। उन्होंने यह कह कर उसकी प्रशंसा की, "हमारे देवता ने हमें हमारे सबसे बड़े शत्रु शिमशोन को हराने में हमें समर्थ किया है!"
\p
\v 24 जब दूसरे लोगों ने शिमशोन को देखा, तो उन्होंने यह कह कर कि उनके देवता की प्रशंसा की,
\q1 "हमारे देवता ने हमारे सबसे बड़े शत्रु को हमारे हाथों में कर दिया है।
\q2 हमारे देवता ने उस पुरुष को पकड़ने में हमारी सहायता की जिसने हमारे देश को बहुत हानि पहुँचाई थी!"
\p
\s5
\v 25 उस समय तक लोग आधे नशे में थे। उन्होंने चिल्ला कर कहा, "शिमशोन को जेल से बाहर लाओ! उसे यहाँ लाओ कि वह हमारा मनोरंजन करे!"
\p इसलिए वे शिमशोन को जेल से बाहर लाए और उसे मंदिर के बींचोंबीच में खड़ा कर दिया। उन्होंने उसे उन दो खंभों के बीच में खड़ा कर दिया जिन पर छत टिकी थी।
\v 26 शिमशोन ने उस दास से कहा, जो उसका हाथ थाम कर उसका नेतृत्व कर रहा था, "मेरे हाथों को उन दो खंभों पर रख दो। मैं उन पर टिक कर आराम करना चाहता हूँ।"
\s5
\v 27 उस समय मंदिर पुरुषों और महिलाओं से भरा था। सब पलिश्ती अगुवे भी वहाँ थे। और छत पर लगभग तीन हजार लोग थे, जो शिमशोन को देख रहे थे और उसका ठट्ठा कर रहे थे।
\s5
\v 28 शिमशोन ने यहोवा से प्रार्थना की और उसने कहा, "हे प्रभु यहोवा, फिर से मेरे बारे में सोचो! कृपया मुझे केवल एक बार इस समय अधिक शक्ति दो, ताकि मैं पलिश्तियों से मेरी आँखें बाहर निकालने का बदला ले सकूँ!"
\v 29 तब शिमशोन ने दो बीच के खंभों पर टेक लगाया जिन पर इमारत टिकी हुई थी। उसने उन पर बल लगा दिया, उसके दाहिने हाथ से एक खंभे पर, और उसके बाएँ हाथ से दूसरे खंभे पर।
\s5
\v 30 फिर उसने परमेश्वर को पुकारा, "मुझे पलिश्तियों के साथ मरने दो!" उसने अपनी सारी ताकत के साथ धक्का दिया। खंभे ढह गए, और मंदिर पलिश्ती अगुवों और अन्य सभी पलिश्ती लोगों पर गिर गया, और वे सब मर गए। अतः शिमशोन ने मरते समय जितने लोगों को मार डाला था उनकी संख्या उन लोगों से कहीं अधिक थी जिन्हें उसने जीवित रहकर मारा था।
\p
\v 31 बाद में उसके भाई और उसके संबधी उसके शरीर को लेने के लिए सोरा से गाजा गए। वे उसे घर ले आए और उसे सोरा और एशताओल के बीच उस जगह पर दफनाया, जहाँ शिमशोन के पिता मानोह को दफनाया गया था। शिमशोन ने बीस वर्ष तक इस्राएल का नेतृत्व किया था।
\s5
\c 17
\p
\v 1 मीका नाम का एक आदमी था जो पहाड़ी देश में रहता था जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था।
\v 2 एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, "मैंने सुना है कि आपने अपने घर से चाँदी के ग्यारह सौ टुकड़े चुराने वाले को श्राप दिया है मैंने ही वह चाँदी ली है, और मेरे पास वह अब भी है।" उसकी माँ ने उत्तर दिया, "हे मेरे पुत्र, मैं प्रार्थना करती हूँ कि यहोवा तुझे आशीर्वाद दे।"
\p
\s5
\v 3 मीका ने सारी चाँदी वापस अपनी माँ को दे दी। तब उसने कहा, "मैं यह चाँदी यहोवा को दूँगी। मैं इस चाँदी से एक नक्काशीदार आकृति और एक ढली हुई कलाकृति बनाने के लिए किसी को दूँगी।"
\p
\v 4 अपनी माँ को चाँदी देने के बाद, उसने दो सौ टुकड़े लिए और उन्हें धातु के कारीगर को दे दिया। उस चाँदी से उस मनुष्य ने एक नक्काशीदार आकृति और एक ढली हुई धातु की कलाकृति बना दी, और उन्हें मीका को दे दिया। मीका ने उन्हें अपने घर में रख दिया।
\p
\s5
\v 5 मीका के घर में एक कमरा था जिसमें वह अपनी मूर्तियों की पूजा किया करता था। उसने पुजारियों द्वारा पहना जाने वाला एक एपोद, और कुछ घरेलू देवताओं की मूर्तियों को बनाया था और मीका ने अपने पुत्रों में से एक को उसकी सभी मूर्तियों के लिए पुजारी होने का काम दिया था।
\v 6 उस समय, इस्राएल के पास कोई राजा नहीं था, और हर एक जन वही करता था जो उनकी नजर में सही था।
\p
\s5
\v 7 वहाँ एक युवक था जो यहूदा के गोत्र के क्षेत्र में बेतलेहेम में रह रहा था। वह पुजारी के रूप में काम करना चाहता था क्योंकि वह लेवी के गोत्र का था।
\v 8 इसलिए उसने रहने और काम करने के लिए स्थान खोजने के लिए बेतलेहेम छोड़ दिया। वह पहाड़ी देश में मीका के घर आया जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था।
\p
\v 9 मीका ने उससे पूछा, "तू कहाँ से है?"
\p उसने उत्तर दिया, "मैं बेतलेहेम से आया हूँ। मैं लेवी के गोत्र से हूँ, और मैं रहने के लिए स्थान और पुजारी के काम की खोज में हूँ।"
\s5
\v 10 मीका ने उससे कहा, "मेरे साथ रह, और मुझे परामर्श दिया कर और मेरा पुजारी बन जा। हर साल मैं तुझे चाँदी के दस टुकड़े और नए कपड़े दूँगा। मैं तेरे लिए भोजन भी दिया करूँगा।"
\v 11 अतः वह जवान पुरुष मीका के साथ रहने के लिए तैयार हो गया। वह मीका के पुत्रों में से एक के समान हो गया।
\s5
\v 12 मीका ने उसे पुजारी होने के लिए नियुक्त किया, और वह मीका के घर में रहने लगा।
\v 13 तब मीका ने कहा, "अब मैं जानता हूँ कि यहोवा मेरे लिए भले कामों को करेगा, क्योंकि मेरा पुजारी होने के लिए मेरे पास लेवी के गोत्र से एक पुरुष है।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 उस समय इस्राएलियों के पास कोई राजा नहीं था।
\p दान का गोत्र, अपने लिए बसने को एक अच्छी जगह की तलाश में था। अन्य इस्राएली गोत्र उन्हें दिए गए क्षेत्रों पर अधिकार करने में समर्थ हुए परन्तु दान का गोत्र ऐसा करने में समर्थ नहीं हुआ था।
\v 2 इसलिए उन्होंने अपने कुलों से पाँच सैनिक चुने, जो लोग सोरा और एशताओल के नगरों में रहते थे, कि देश से निकल कर जाएँ और उसकी खोजबीन करें और ऐसी भूमि खोजने का प्रयास करें जहाँ उनका गोत्र रह सके।
\p वे पहाड़ी देश में मीका के घर आए जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था, और वे उस रात वहाँ रहे।
\s5
\v 3 जब वे उसके घर में थे, जब उन्होंने उस जवान पुरुष को बातें करते सुना जो मीका का पुजारी हो गया था, तो उन्होंने उसे उसकी बोली से पहचाना। अतः वे उसके पास गए और उससे पूछा, "तुझे यहाँ कौन लाया? तू यहाँ क्या कर रहा है? तू यहाँ क्यों आया है?"
\p
\v 4 उसने उन्हें वह सब बताया जो मीका ने उसके लिए किया था। और उसने कहा, "मीका ने मुझे काम पर रखा है, और मैं उसका पुजारी हूँ।"
\p
\s5
\v 5 इसलिए उन्होंने उससे कहा, "कृपया परमेश्वर से पूछो कि क्या, हम, इस यात्रा पर जो करने का प्रयास कर रहे हैं, उसमें सफल होंगे।"
\p
\v 6 जवान पुरुष ने उत्तर दिया, "इस ज्ञान से जाओ कि इस यात्रा पर यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।"
\p
\s5
\v 7 तब वे पाँच पुरुष चले गए। जब वे लैश शहर आए, तो उन्होंने देखा कि वहाँ के लोग सुरक्षित रहते थे, जैसे सीदोन शहर में लोग रहते हैं। वहाँ के लोगों ने सोचा कि वे सुरक्षित थे, क्योंकि उनके लिए परेशानी उत्पन्न करने के लिए कोई भी आसपास नहीं था, वे सीदोन से बहुत दूर थे, और बाहरी व्यक्ति से उनका संपर्क बहुत ही कम था।
\p
\v 8 जब वे पाँच पुरुष सोरा और एशताओल लौट आए, तो उनके संबन्धियों ने उनसे पूछा, "तुमने क्या खोजबीन की?"
\p
\s5
\v 9 उन्होंने उत्तर दिया, "हमें कुछ भूमि मिली है, और वह बहुत अच्छी है। हमें जाकर वहाँ रहने वाले लोगों पर आक्रमण करना चाहिए। तुम यहाँ क्यों रह रहे हो और कुछ भी नहीं कर रहे हो? अब और प्रतीक्षा मत करो! हमें तुरंत जाना चाहिए और उस देश पर अधिकार कर लेना चाहिए!
\v 10 तुम वहाँ जाओगे, तो देखोगे कि वह बहुत लम्बा चौड़ा देश है, और इसमें वह सबकुछ है जो हमें चाहिए। वहाँ के लोग किसी के भी आक्रमण के बारे में सोच नहीं सकते हैं परमेश्वर निश्चित रूप से वह देश हमें दे रहा है।"
\p
\s5
\v 11 अतः दान के गोत्र के छः सौ पुरुष अपने हथियारों को लेकर सोरा और एशताओल से निकल गए।
\v 12 अपने रास्ते में उन्होंने किर्यत्यारीम शहर के पास वाले क्षेत्र में अपने तम्बू खड़े किए वहाँ यहूदा का गोत्र रहता था। यही कारण है कि किर्यत्यारीम के पश्चिम वाले क्षेत्र को महनेदान (या "दान का शिविर") नाम दिया गया था, और उसका नाम आज भी वही है।
\s5
\v 13 वहाँ से, वे पहाड़ी देश गए जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता था। और वे मीका के घर पहुँचे।
\p
\v 14 लैश के निकट के देश की खोज करने वाले उन पाँच लोगों ने अपने साथी इस्राएलियों से कहा, "क्या तुम जानते हैं कि इन घरों में से एक में एक पवित्र एपोद, बहुत से घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ, एक नक्काशीदार आकृति और एक धातु की ढली हुई कलाकृति है? हम सोचते हैं कि तुम जानते हो तुम्हे क्या करना है।"
\s5
\v 15 इसलिए वे उस घर में गए जहाँ लेवी के गोत्र का पुरुष रहता था, अर्थात वे मीका के घर गए, और उन्होंने लेवी के गोत्र के उस जवान पुरुष को जो मीका का पुजारी था नमस्कार किया।
\v 16 दान के गोत्र के छः सौ पुरुष अपने हथियारों को लिए हुए घर के द्वार के बाहर खड़े हो गए।
\s5
\v 17 जिन पाँच लोगों ने देश की खोज की थी, वे मीका के घर के भीतर गए, और नक्काशीदार आकृति, पवित्र एपोद, घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ, और धातु की ढली हुई कलाकृति ले गए। जब उन्होंने ऐसा किया, तब छः सौ पुरुष पुजारी के साथ बात करते हुए द्वार के बाहर खड़े रहे।
\p
\v 18 जब पुजारी ने उन्हें नक्काशीदार आकृति, पवित्र एपोद, घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ, और धातु की ढली हुई कलाकृति बाहर लाते हुए देखा, तो उसने उनसे कहा, "तुम यह क्या कर रहे हो?"
\p
\s5
\v 19 उन्होंने उत्तर दिया, "चुप रह! कुछ भी मत कह! तू हमारे साथ आ और हमारे लिए पिता का स्थान ले और हमारा याजक भी बन जा। क्या तेरे लिए यहाँ रहकर एक ही परिवार के लोगों का होना अच्छा है या एक कुल वरन् संपूर्ण इस्राएल का याजक होना अच्छा है? "
\v 20 उस पुजारी को उनका सुझाव अच्छा लगा। इसलिए उसने पवित्र एपोद और घरेलू देवताओं और नक्काशीदार आकृति को ले लिया, और वह उन लोगों के साथ जाने के लिए तैयार हो गया।
\s5
\v 21 उन पुरुषों ने अपनी-अपनी पत्नियों और छोटे बच्चों, को तथा उनके पशुओं, और सब कुछ जो उनका था यात्रा में अपने आगे आगे चलाया।
\p
\v 22 अभी वे मीका के घर से कुछ दूरी ही पहुँचे थे कि मीका ने देखा जो हो रहा कि उन्होंने क्या किया है। मीका ने तुरन्त अपने पड़ोसियों को पुकारा और वे सब दौड़ते हुए दान गोत्र के लोगों के पास पहुँच गए।
\v 23 वे उन पर चिल्ला पड़े। दान के गोत्र के लोगों ने मुड़ कर मीका से कहा, "तेरी समस्या क्या है? तूने हमें इन मनुष्यों को लेकर हमारा पीछा क्यों किया है?"
\p
\s5
\v 24 मीका ने ऊँची आवाज़ में कहा, "तुमने मेरे लिए बनाई गई चाँदी की मूर्तियाँ ले लीं है! तुमने मेरे पुजारी को भी ले लिया है! मेरे पास अब कुछ भी नहीं बचा है! और तुम मुझसे पूछते हो, 'तेरी समस्या क्या है?'"
\p
\v 25 दान के गोत्र के लोगों ने उत्तर दिया, "उचित तो यही होगा कि तू इस विषय में कुछ न कहे। हमारे कुछ पुरुष क्रोध हो गए तो वे तुझ पर आक्रमण कर देंगे और तुझे और तेरे परिवार को मार डालेंगे!"
\v 26 तब दान के गोत्र के लोग आगे चलने लगे। मीका ने देखा कि उनका समूह बहुत बड़ा है उन से युद्ध करना उसके लिए व्यर्थ होगा। इसलिए लौट कर घर आ गया।
\p
\s5
\v 27 दान के गोत्र के लोग मीका के लिए बनाए गए सामान को उठाकर और उसके पुजारी को लेकर लैश की ओर चलते चले गए उन्होंने लैश में शान्ति से रहने वालों पर आक्रमण किया और उन्हें तलवारों से मार डाला उन्होंने शहर में सब कुछ जला दिया।
\v 28 वहाँ पुरुषों का ऐसा कोई दल भी नहीं था कि लैश में रहनेवालों को बचाले। दूसरी ओर लैश सीदोन से बहुत दूर था, इसलिए लैश के सीदोनी भी लैश के लोगों की सहायता नहीं कर पाए। लैश के लोगों का कोई मित्र समुदाय भी नहीं था। लैश बेत्रहोब नगर के पास एक घाटी में था।
\p दान के गोत्र के लोगों ने उस शहर का फिर से निर्माण किया और वहाँ रहने लगे।
\v 29 उन्होंने शहर को एक नया नाम दिया, उन्होंने इसे दान कहा, उनके पूर्वज "दान" के सम्मान में उन्होंने उस शहर का नाम दान रखा। दान इस्राएल के पुत्रों में से एक था। यह नगर पहले लैश कहलाता था।
\s5
\v 30 दान के गोत्र के लोगों ने शहर में मीका के घर से उठाई गई नक्काशीदार आकृति को स्थापित किया। गेर्शोन के पुत्र, और मूसा के पोते, योनातान को याजक नियुक्त किया। उनके वंशज इस्राएल की बन्धुआई तक वहाँ के याजक रहे थे।
\v 31 दान के गोत्र के लोगों के द्वारा स्थापित वह मीका के लिए बनाई गई नक्काशीदार आकृति तब तक वहाँ रही जब तक कि परमेश्वर का घर शिलोह में था।
\s5
\c 19
\p
\v 1 उस समय इस्राएली लोगों के पास कोई राजा नहीं था।
\p लेवी के गोत्र में से एक पुरुष था जो एप्रैमियों के पहाड़ी प्रदेश में एकान्त स्थान में रहता था। उसने पहले ही से साथ रहने के लिए एक दासी को रख लिया था। वह बेतलेहेम के उस क्षेत्र में से थी, जहाँ यहूदा का गोत्र रहता है।
\v 2 उसने अन्य पुरुषों के साथ भी सोना आरंभ कर दिया। तब वह उसे छोड़कर अपने पिता के पास बेतलेहेम लौट गई। वह चार महीनों तक वहाँ रही।
\s5
\v 3 तब उसका पति अपने एक दास के साथ दो गधे लेकर बेतलेहेम को गया कि उससे लौट आने का आग्रह करे। जब वह उसके पिता के घर पहुँचा, तो उसका पिता उसे देखकर प्रसन्न हुआ और उसे भीतर आने को कहा।
\v 4 उसकी पत्नी के पिता ने उसे ठहरने के लिए कहा। वह वहाँ तीन दिन तक रहा और उसने वहाँ खाया और पिया और सोया।
\p
\s5
\v 5 चौथे दिन, वे सब सुबह शीघ्र उठ गए। लेवी के गोत्र का पुरुष चलने की तैयारी कर रहा था, परन्तु उस स्त्री के पिता ने उससे कहा, "जाने से पहले कुछ खा लो।"
\v 6 इसलिए वे दोनों पुरुष एक साथ खाने और पीने के लिए बैठ गए। तब उस स्त्री के पिता ने उससे कहा, "कृपया एक रात और रुककर । आराम करो और आनन्द मनाओ।"
\s5
\v 7 लेवी के गोत्र का पुरुष तो चलना चाहता था, परन्तु उस स्त्री के पिता ने उससे एक रात और रुकने का अनुरोध किया। अतः वह उस रात भी रुक गया।
\v 8 पाँचवें दिन, पुरुष जल्दी उठ गया और चलने के लिए तैयार हो गया। लेकिन उस स्त्री के पिता ने उससे फिर कहा, "तब दोपहर तक निकल जाना।" अतः दोनों पुरुषों ने एक साथ खाया।
\p
\s5
\v 9 दोपहर में, जब लेवी के गोत्र का वह पुरुष और उसकी पत्नी और उसका दास चलने के लिए उठे, तो उस स्त्री के पिता ने कहा, "शीघ्र ही अंधेरा हो जाएगा। दिन लगभग समाप्त हो गया है। आज रात यहाँ रहो और आनन्द मनाओ। कल सुबह आप शीघ्र उठ जाना और अपने घर के लिए निकल जाना।"
\s5
\v 10 परन्तु लेवी के गोत्र का वह पुरुष एक और रात नहीं ठहरना चाहता था। उसने अपने दोनों गधों पर काठी कसी, और अपनी पत्नी और अपने दास के साथ यबूस शहर की ओर चल पड़ा, यबूस को अब यरूशलेम नाम दिया गया है।
\p
\v 11 जब दोपहर बाद वे यबूस के निकट आए। दास ने अपने स्वामी से कहा, "हमें इस शहर में रुक जाना चाहिए जहाँ यबूसी लोगों का समूह रहता है, हमें आज रात यहीं ठहरना चाहिए।"
\p
\s5
\v 12 परन्तु उसके स्वामी ने कहा, "नहीं, हमारे लिए यहाँ ठहरना अच्छा नहीं होगा यहाँ विदेशी लोग रहते हैं। यहाँ कोई इस्राएली लोग नहीं हैं। हम आगे गिबा शहर को जाएँगे।"
\v 13 उसने अपने दास से कहा, "चलो हम चलें। गिबा यहाँ से बहुत दूर नहीं है। हम वहाँ पहुँच सकते हैं, या हम थोड़ा और आगे रामा को जा सकते हैं। हम आज रात उन दो शहरों में से एक में ठहर सकते हैं।"
\s5
\v 14 इसलिए वे चलते रहे। जब वे गिबा के समीप आए, जहाँ बिन्यामीन के गोत्र के लोग रहते थे, तो सूर्य ढल रहा था।
\v 15 वे उस रात वहाँ ठहरने के लिए रुक गए। वे उस शहर के सार्वजनिक चौक में गए और बैठ गए। आने-जाने वालों में से किसी ने भी उन्हें उस रात ठहरने के लिए अपने घर आमंत्रित नहीं किया।
\p
\s5
\v 16 परन्तु एक बूढ़ा पुरुष वहाँ आया। वह खेतों में काम करता था। वह एप्रैम के गोत्र के पहाड़ी देश से था, परन्तु उस समय वह गिबा में रह रहा था।
\v 17 उसने समझ लिया कि लेवी के गोत्र का यह पुरुष केवल यात्रा कर रहा है और उसके पास उस शहर में ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए उसने उस पुरुष से पूछा, "तुम कहाँ से आए हो? और कहाँ जा रहे हो?"
\p
\s5
\v 18 उसने उत्तर दिया, "हम एप्रैम गोत्र के बेतलेहेम के पहाड़ी प्रदेश में अपने घर जा रहे हैं। मैं बेतलेहेम गया था, परन्तु अब हम शीलो जा रहे हैं जहाँ यहोवा का घर है। यहाँ किसी ने भी हमें आज रात ठहरने के लिए अपने घर में आमंत्रित नहीं किया है।
\v 19 हमारे पास हमारे गधों के लिए भूसा और आहार है, और मेरे लिए और इस स्त्री और मेरे दास के लिए रोटी और मदिरा है। हमें और किसी वस्तु की आवश्यक्ता नहीं है।"
\p
\s5
\v 20 उस बूढ़े पुरुष ने कहा, "तुम्हारा भला हो। मैं तुम्हारी हर एक आवश्यक्ता को पूरा कर सकता हूँ यहाँ चौक में रात मत बिताओ।"
\v 21 वह बूढ़ा आदमी उन्हें अपने घर ले गया। उसने गधे को आहार दिया। उसने उस पुरुष और स्त्री और दास को पैरों को धोने के लिए पानी दिया। और उस बूढ़े आदमी ने उन्हें खाने और पीने के लिए कुछ दिया।
\p
\s5
\v 22 जब वे एक साथ अच्छा समय बिता रहे थे, तब उस शहर के कुछ दुष्ट लोगों ने घर को घेर लिया और दरवाजे को पीटना आरंभ कर दिया था। उन्होंने उस बूढ़े व्यक्ति से चिल्ला कर कहा, "हमारे पास बाहर उस पुरुष को ला जो तेरे घर आया है। हम उसके साथ संभोग करना चाहते हैं।"
\p
\v 23 बूढ़ा व्यक्ति बाहर गया और उनसे कहा, "हे मेरे भाइयों, मैं ऐसा नहीं करूँगा। यह एक बहुत बुरा काम होगा। यह पुरुष मेरे घर में एक अतिथि है। तुम्हे ऐसा भयानक काम नहीं करनी चाहिए!
\s5
\v 24 देखो, मेरी कुँवारी बेटी और उसकी रखैल यहाँ हैं। मैं उन्हें तुम्हारे पास ले आता हूँ। तुम जैसा चाहो उनके साथ कर सकते हो, लेकिन इस पुरुष के साथ ऐसा भयानक काम मत करो!"
\p
\v 25 परन्तु उन पुरुषों ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए उस पुरुष ने उसकी रखैल को लिया और उसे घर के बाहर, उनके पास भेज दिया। उन्होंने उसे उनके साथ बलपूर्वक संभोग किया और पूरी रात उसके साथ गलत काम किया। फिर भोर होते ही उसे जाने दिया।
\v 26 वह उस बूढ़े आदमी के घर लौट आई, और द्वार पर गिर गई और जब तक कि प्रकाश नहीं हुआ वह वहाँ पड़ी रही।
\p
\s5
\v 27 अगली सुबह, उसका स्वामी उठ गया और अपनी यात्रा जारी रखने के लिए घर के बाहर चला गया। उसने देखा कि उसकी रखैल घर के द्वार पर वहाँ पड़ी हुई है, उसके हाथ अभी भी दरवाजे को छू रहे हैं।
\v 28 उसने उससे कहा, "उठो! चलो हम चलें!" लेकिन उसने उत्तर नहीं दिया। उसने उसके शरीर को गधे पर रखा, और वह और उसका दास घर के लिए चल दिए।
\p
\s5
\v 29 जब वह घर पहुँचे, तो उसने एक चाकू लिया और उसने रखैल के शरीर को बारह टुकड़ों में काट दिया। फिर उसने इस्राएल के हर एक गोत्र में एक टुकड़ा भेजा, और साथ में एक संदेश दिया कि उनके साथ कैसी घटना घटी थी।
\v 30 जिस किसी ने भी शरीर के एक टुकड़े को देखा और संदेश को पड़ा उसने कहा, "पहले कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है। जब से हमारे पूर्वज मिस्र से निकल आए हैं, उस समय से हमने ऐसे भयानक काम के बारे में नहीं सुना है। हमें इसके बारे में सावधानी से विचार करने की आवश्यक्ता है। किसी को तो निर्णय लेना होगा कि क्या किया जाए।"
\s5
\c 20
\p
\v 1 इस्राएल के सभी सैनिक उत्तर में दान शहर से दक्षिण में बेर्शेबा और गिलाद के क्षेत्र से यरदन नदी के पूर्व तक सब एक हो गए, सब एकजुट हो गए, सब ने इस घटना के बारे में सुना था। इसलिए वे मिस्पा में यहोवा के सम्मुख एकत्र हुए।
\v 2 इस्राएल के ग्यारह गोत्रों के अगुवे वहाँ एकत्र होकर लोगों के सामने खड़े हुए थे। वहाँ 4,00,000 पुरुष, पैदल सैनिक थे जो योद्धा थे।
\s5
\v 3 बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने सुना कि सब इस्राएली मिस्पा गए है, परन्तु बिन्यामीन गोत्र का कोई भी व्यक्ति उस सभा में नहीं गया।
\p इस्राएल के लोगों ने उस दुःखद घटना के बारे में पूछा।
\v 4 अतः उस लेवी ने जो बलात्कार में मारी गई उस स्त्री का पति था, उत्तर दिया, "मेरी रखैल और मैं उस रात वहाँ ठहरने के विचार से गिबा को आए।
\s5
\v 5 उस शाम, गिबा के लोग मुझ पर हमला करने के लिए आए। उन्होंने उस घर को घेर लिया जहाँ मैं ठहरा हुआ था और मेरे साथ संभोग करना चाहते थे और फिर मुझे मार डालना चाहते थे। उन्होंने मेरी रखैल से रात भर बलात्कार किया और वह मर गई।
\v 6 मैं उसके शरीर को घर ले गया और इसे टुकड़ों में काट दिया। तब मैंने इस्राएल के हर एक गोत्र में एक टुकड़ा भेजा, क्योंकि मैं चाहता था कि तुम सब को इस्राएल में किए गए इस दुष्ट और अपमानजनक काम के बारे में जानना चाहिए।
\v 7 इसलिए अब, तुम सब इस्राएली कुछ सोचों और मुझे बताओ कि तुम्हारे विचार में क्या किया जाना चाहिए!"
\p
\s5
\v 8 सब लोग खड़े हो गए और एक आवाज़ में कहा, "हम में से कोई भी घर नहीं जाएगा! हम में से एक जन भी अपने घर नहीं लौटेगा!
\v 9 हमें गिबा के लोगों के साथ करना है वह है कि सबसे पहले, हम निर्णय लेने के लिए चिट्ठियाँ डालेंगे कि किस समूह को उन पर आक्रमण करना चाहिए।
\s5
\v 10 हम अपनी संख्या का दसवाँ हिस्सा चुनेंगे, ताकि इस्राएल में किए गए भयानक काम के लिए गिबा को दण्ड दिया जाए।"
\v 11 सब इस्राएली सहमत हुए कि गिबा के लोगों को दण्ड दिया जाना चाहिए।
\p
\s5
\v 12 तब इस्राएली पुरुषों ने बिन्यामीन गोत्र के पास दूतों को भेजा। उन्होंने कहा, "क्या तुम्हे मालूम है कि तुम्हारे कुछ लोगों ने बहुत बुरा काम किया है?
\v 13 उन दुष्ट मनुष्यों को हमारे पास लाओ, ताकि हम उन्हें मौत की सजा दें। ऐसा कर, हम इस बुरे काम से छुटकारा पाएँगे जो इस्राएल में हुआ है।"
\p लेकिन बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने उनके साथी इस्राएलियों की बात पर ध्यान नहीं दिया।
\v 14 बिन्यामीन के गोत्र के लोग उनके शहरों को छोड़कर अन्य इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए गिबा में एकत्र हुए।
\s5
\v 15 एक ही दिन में बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने छब्बीस हजार योद्धाओं की भर्ती की। उन्होंने गिबा से भी सात सौ पुरुष चुने।
\v 16 उन सैनिकों में से सात सौ पुरुष ऐसे थे जो बाएँ हाथ का उपयोग करने वाले थे, और उनमें से हर एक जन गोफन चलाने में कुशल था और बाल जैसे छोटे से छोटे लक्ष्य को भेद सकता था।
\p
\s5
\v 17 इस्राएल के सैनिकों में, बिन्यामीन के सैनिकों को छोड़ पुरुषों की संख्या 4,00,000 थी। इन सब को तलवार चलाने की शिक्षा प्राप्त थी वे सब युद्ध के अनुभवी थे।
\p
\v 18 ये अन्य इस्राएली बेतेल गए और परमेश्वर से मार्गदर्शन खोजा कि, "बिन्यामीन के गोत्र के पुरुषों पर हमला करने वाला पहला गोत्र कौन सा होना चाहिए?"
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "यहूदा के गोत्र के लोगों को पहले जाना है।"
\p
\s5
\v 19 अगली सुबह, इस्राएली लोग चले गए और गिबा के पास अपने तम्बू खड़े किए।
\v 20 तब वे बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से लड़ने के लिए गए, और गिबा की ओर मुँह करके युद्ध की स्थिति में खड़े हो गए।
\v 21 बिन्यामीन के गोत्र के लोग गिबा से बाहर निकले और उनसे युद्ध किया, और उस दिन उन्होंने इस्राएल के बीस हजार सैनिकों को मार डाला।
\s5
\v 22 परन्तु इस्राएल के सैनिकों ने साहस धरा और अगले दिन भी उसी युद्ध व्यूह में युद्ध के लिए तैयार हो गए।
\v 23 तब वे एक साथ आए और सहायता के लिए यहोवा से आग्रह किया; उन्होंने शाम तक प्रार्थना की। उन्होंने यहोवा से इस बारे में मार्गदर्शन खोजी कि उन्हें क्या करना चाहिए: "क्या हमें अपने भाइयों, बिन्यामीन के लोगों से आज भी युद्ध करना चाहिए? यहोवा ने उत्तर दिया, "उन पर आक्रमण करो!"
\s5
\v 24 अगले दिन वे फिर युद्ध के लिए उसी युद्ध व्यूह में जैसा उन्होंने कल किया था।
\v 25 बिन्यामीन के गोत्र के लोग गिबा से बाहर निकले और इस्राएलियों पर आक्रमण किया, और उनके अट्ठारह हजार पुरुषों को मार डाला।
\p
\s5
\v 26 दोपहर में, इस्राएल के सब लोग जो मारे नहीं गए थे, फिर से बेतेल गए। वहाँ वे बैठकर यहोवा के आगे रोए, और उन्होंने शाम तक उपवास रखा। वे कुछ भेंटें लेकर आए जिनको उन्होंने वेदी पर पूरी तरह से जला दिया, और यहोवा के लिए मेल की बलि भी लेकर आए।
\s5
\v 27 इस्राएल के लोगों ने यहोवा से पूछा, क्योंकि उन दिनों में परमेश्वर के वाचा का सन्दूक वहाँ था,
\v 28 और एलीआजर का पुत्र पीनहास, जो हारून का पोता था; उन दिनों में सन्दूक के सामने सेवा कर रहा था "क्या हमें अपने भाई बिन्यामीन के लोगों से एक बार फिर युद्ध करने के लिए जाना चाहिए हैं, या विचार त्याग दें?" यहोवा ने कहा, "आक्रमण करो! क्योंकि कल मैं उन्हें पराजित करने में तुम्हारी सहायता करूँगा।"
\s5
\v 29 इस्राएली पुरुषों ने गिबा के चारों ओर के खेतों में घातकों को बैठा दिया।
\v 30 अन्य इस्राएली पुरुष गए और युद्ध की स्थिति में खड़े हो गए जैसा कि उन्होंने पिछले दिनों में किया था।
\s5
\v 31 जब बिन्यामीन के गोत्र के लोग युद्ध करने के लिए शहर से बाहर निकले, तब इस्राएली लोग पीछे हट गए, और बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने उनका पीछा किया। बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने कई इस्राएलियों को मार डाला, जैसा कि उन्होंने पहले किया था। उन्होंने खेतों में और मार्गों में लगभग तीस इस्राएली लोगों को मार डाला, एक मार्ग बेतल को थी और दूसरा मार्ग गिबा को गया था।
\p
\s5
\v 32 बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने कहा, "हम उन्हें ऐसे पराजित कर रहे हैं जैसा हमने पहले किया था!" परन्तु इस्राएली पुरुषों ने अपनी योजना के अनुसार किया। इस्राएली पुरुषों के मुख्य समूह ने पीछे हटकर गिबा के लोगों को धोखा दिया और उन्हें शहर के बाहर के मार्गों पर इस्राएली पुरुषों का पीछा करने दिया।
\p
\v 33 इस्राएली पुरुषों के मुख्य समूह ने अपनी स्थिति को छोड़ दिया और पीछे हट गए, और फिर बालतामार नाम की जगह पर वे फिर से अपनी युद्ध की स्थिति में खड़े हो गए। तब इस्राएल के सैनिक जो गुप्त स्थानों में छिप हुए थे, वे मारेगिबा में उनके स्थानों से दौड़ कर निकल आए।
\s5
\v 34 तब अन्य दस हजार इस्राएली उन जगहों से निकले जहाँ वे छिपे हुए थे, गिबा के पश्चिम में, और शहर पर हमला किया। वे वही पुरुष थे जो इस्राएल के सभी हिस्सों से आए थे। वहाँ एक बहुत बड़ा युद्ध हुआ। बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को यह नहीं पता था कि विनाशकारी पराजय होने वाली थी।
\v 35 यहोवा ने बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को पराजित करने में इस्राएलियों समर्थ बनाया। उन्होंने उनके 25,100 योद्धा मार डाले।
\s5
\v 36 अत: बिन्यामीन के सैनिकों ने देखा कि वे पराजित हो गए। इस्राएल के लोगों ने बिन्यामीन को पीठ दिखाई थी, क्योंकि वे गिबा के बाहर छिपे हुए अपने सैनिकों पर भरोसा किए हुए थे कि वे सही समय पर गुप्त स्थानों से बाहर निकलकर युद्ध को अपने पक्ष में कर लेंगें।
\v 37 तब जो लोग छिपे हुए थे वे उठे और दौड़ कर गिबा में घुस गए, और अपनी तलवारों से नगर में रहने वालों को मार डाला।
\v 38 अब इस्राएल के सैनिकों और छिपे हुए लोगों के बीच संकेत यह होगा कि धुएँ का एक बड़ा बादल शहर से उठेगा।
\p
\s5
\v 39 उस समय तक, इस्राएली पुरुष युद्ध से पीछे हटते रहे अत: बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने सोचा, "हम पहले के समान युद्ध जीत रहे हैं!"
\s5
\v 40 लेकिन तब शहर से जलती हुई इमारतों का धूआँ उठने लगा। बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने घूम कर देखा कि पूरा शहर जल रहा था।
\v 41 तब इस्राएली पुरुषों के मुख्य समूह ने भी धूआँ देखा, और संकेत को समझ गए कि अब उन्हें मुड़कर आक्रमण करना चाहिए। बिन्यामीन के गोत्र के लोग बहुत डरे हुए थे, क्योंकि वे समझ गए थे कि उनकी पराजय विनाशकारी होगी।
\s5
\v 42 तब बिन्यामीन के गोत्र के लोगों ने इस्राएलियों से बचने के लिए मरुस्थल की ओर भागने का प्रयास किया, परन्तु वे बच नहीं पाए क्योंकि जिन इस्राएली पुरुषों ने उन दो शहरों को जला दिया था, वे उन नगरों में से निकले और उनमें से अनेकों को मार डाला।
\s5
\v 43 उन्होंने बिन्यामीन के गोत्र के कुछ लोगों को घेर लिया, और दूसरों का गिबा के पूर्वी क्षेत्र में पीछा किया।
\v 44 उन्होंने बिन्यामीन के गोत्र के अट्ठारह हजार योद्धाओं को मार डाला।
\s5
\v 45 तब बिन्यामीन के गोत्र के बचे हुए लोग समझ गए कि वे पराजित हो चुके हैं। वे रिम्मोन की चट्टान की ओर भाग गए, परन्तु इस्राएली पुरुषों ने बिन्यामीन के गोत्र के और पाँच हजार पुरुषों को मार डाला जो मार्गों पर पीछे रह गए थे। उन्होंने बाकी गिदोम तक पीछा किया, और उन्होंने और दो हजार पुरुषों को मार डाला।
\p
\v 46 कुल मिलाकर, बिन्यामीन के गोत्र के पच्चीस हजार पुरुष मार डाले गए थे, वे सभी युद्ध के अनुभवी योद्धा थे।
\s5
\v 47 परन्तु बिन्यामीन के गोत्र के छः सौ लोग मरुस्थल में रिम्मोन की चट्टान पर भाग गए। वे चार महीनों तक वहाँ रहे।
\v 48 तब इस्राएली लोग बिन्यामीन के गोत्र के प्रदेश में वापस गए, और हर शहर में लोगों को मार डाला। उन्होंने सभी जानवरों को भी मार डाला, और उन्हें वहाँ जो कुछ भी मिला वह सब नष्ट कर दिया। और उन्होंने उन सब शहरों को जला दिया जिनसे वे आए थे।
\s5
\c 21
\p
\v 1 युद्ध आरंभ होने से पहले मिस्पा में इस्राएली पुरुष इकट्ठे हुए थे, तब उन्होंने गंभीर घोषणा की थी, "हम में से कोई भी कभी भी अपनी पुत्रियों को बिन्यामीन के गोत्र के किसी पुरुष से विवाह करने की अनुमति नहीं देगा!"
\v 2 परन्तु अब इस्राएली बेतेल गए और सूर्य के अस्त हो जाने तक पूरे दिन यहोवा के आगे ज़ोर-ज़ोर से रोते रहे।
\v 3 वे यह कहते रहे, "हे यहोवा, हम इस्राएली लोगों के परमेश्वर, हमारे इस्राएली गोत्रों में से एक अब अस्तित्व में नहीं है! यह हमारे साथ क्यों हुआ?
\p
\s5
\v 4 अगली सुबह भोर में लोगों ने एक वेदी बनाई। तब उन्होंने वेदी पर बलियाँ जलाईं, और परमेश्वर के साथ मेल करने के लिए अन्य बलि भी जलाईं।
\p
\v 5 उन्होंने गंभीर घोषणा की थी कि बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से युद्ध करने में सहायता हेतु जो भी मिस्पा की सभा में उनके साथ उपस्थित नहीं होगा वह मार डाला जाएगा अत: उन्होंने आपस में पूछा, "क्या इस्राएल का ऐसा कोई गोत्र था जो यहोवा की उपस्थिति में हमारे साथ सभा करने मिस्पा नहीं आया?"
\p
\s5
\v 6 इस्राएलियों को अपने साथी इस्राएली बिन्यामीनियों के लिए खेद हुआ। उन्होंने कहा, "आज हमारे इस्राएली गोत्रों में से एक इस्राएल से काट दिया गया है।
\v 7 हम यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर सकते हैं कि बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को जो मारे नहीं गए हैं पत्नियाँ मिलें? "यहोवा ने हमें गंभीरता से यह घोषणा करते सुना है कि हम अपनी एक भी पुत्री का विवाह बिन्यामीन के गोत्र के पुरुष से नहीं करेंगे।
\s5
\v 8 तब उनमें से एक ने पूछा, "इस्राएल के गोत्रों में से किस ने यहाँ मिस्पा में कोई पुरुष नहीं भेजा?"
\v 9 उन्हें मालूम हुआ कि जब सैनिकों की गिनती हुई थी, तब कोई भी नहीं था जो याबेश गिलाद शहर से आया था।
\p
\v 10 इसलिए सब इस्राएलियों ने याबेश गिलाद में बारह हजार बहुत अच्छे सैनिकों को भेजने का निर्णय लिया कि वे वहाँ स्त्री-पुरुष, महिलाओं और बच्चों को भी मार डालने के लिए भेजने का फैसला किया।
\s5
\v 11 उन्होंने उन लोगों से कहा: "तुम्हे जो करना है वह यह है: याबेश गिलाद में तुम सबको मार डालोगे हर एक विवाहित स्त्री को भी। परन्तु अविवाहित स्त्रियों को मत मारना।"
\v 12 अतः वे सैनिक याबेश गिलाद गए और सभी पुरुषों, विवाहित महिलाओं और बच्चों को मार डाला। लेकिन उन्हें वहाँ चार सौ कुँवारी महिलाएँ मिलीं। इसलिए वे उन्हें नदी के पार गिलाद के क्षेत्र से जो बिन्यामीन के गोत्र का था, कनान के शीलो में उनके शिविर में ले आए।
\p
\s5
\v 13 तब इकट्ठे हुए सभी इस्राएलियों ने रिम्मोन की चट्टान पर छः सौ पुरुषों को एक संदेश भेजा। उन्होंने कहा कि वे उनके साथ शान्ति बनाना चाहते हैं।
\v 14 अतः वे पुरुष रिम्मोन की चट्टान से वापस आए। इस्राएलियों ने उन्हें याबेश गिलाद की जवान महिलाओं को दे दिया। लेकिन वहाँ केवल चार सौ महिलाएँ थीं, वे उन छः सौ पुरुषों के लिए पर्याप्त महिलाएँ नहीं थीं।
\p
\v 15 इस्राएलियों को अभी भी बिन्यामीन के गोत्र के लोगों के लिए खेद था, क्योंकि यहोवा ने अन्य गोत्रों को उनके खिलाफ कर दिया था।
\s5
\v 16 इस्राएली अगुवों ने कहा, "हमने बिन्यामीन के गोत्र की सभी विवाहित महिलाओं को मार डाला है। जो पुरुष अब भी जीवित हैं हम कहाँ से उनकी पत्नियाँ होने के लिए महिलाओं को पा सकते हैं?
\v 17 इन पुरुषों के पास बच्चों को जन्म देने के लिए पत्नियाँ होनी चाहिए, ताकि बिन्यामीन का परिवार जारी रहें। यदि ऐसा नहीं होता है, तो इस्राएल के गोत्रों में से एक, के सभी लोग मर जाएँगे, और गोत्र नष्ट हो जाएगा।
\s5
\v 18 परन्तु हम अपनी बेटियों को इन पुरुषों से शादी करने की इजाजत नहीं दे सकते, क्योंकि हमने ईमानदारी से यह घोषणा की है कि यहोवा उसे शाप देगा जो कोई भी अपनी बेटियों में से एक को बिन्यामीन के गोत्र के किसी भी पुरुष की पत्नी बनने के लिए देता है।"
\v 19 तब उन्हें एक विचार आया। उन्होंने कहा, "हर साल वहाँ शीलो में यहोवा का सम्मान करने का पर्व होता है, जो बेतेल के उत्तर में है और बेतेल से शकेम तक फैली सड़क के पूर्व में है, और यह लाबोना शहर के दक्षिण में है।"
\p
\s5
\v 20 इसलिए इस्राएली अगुवों ने बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से कहा, "जब वह पर्व का समय हो, तब शीलो के पास जाओ और दाख की बारियों में छिप जाओ।
\v 21 जवान महिलाओं को नृत्य करने के लिए शहर से बाहर आने के लिए देखना जारी रखें। जब वे बाहर निकलती हैं, तो दौड़ कर दाख के बागों से बाहर निकलो। तुम में से हर एक शीलो की एक जवान महिला को जब्त कर सकता है। तब आप सभी उन महिलाओं के साथ अपने घरों में वापस आ सकते हैं।
\s5
\v 22 यदि उनके पिता या भाई हमारे पास आकर तुम्हारी शिकायत करेंगे तो हम उनसे कहेंगे, 'कृपया बिन्यामीन के गोत्र के पुरुषों के प्रति दया दिखाओं। हमने उनसे युद्ध करते समय एक भी स्त्री को जीवित नहीं छोड़ा था कि उनके लिए पत्नियाँ हों और फिर तुमने भी तो उन्हें विवाह में अपनी पुत्रियाँ उन्हें नहीं दी हैं उन्होंने तो तुम्हारी पुत्रियों को चुराया है इसलिए तुम अपनी शपथ तोड़ने के दोषी नहीं हो कि तुम अपनी पुत्रियों का विवाह उनके पुरुषों से नहीं किया है।'"
\p
\s5
\v 23 इसलिए बिन्यामीन के गोत्र के पुरुषों ने यही किया। वे पर्व के समय शीलो गए। और जब जवान स्त्रियाँ नाच रही थीं, तो हर एक व्यक्ति ने उनमें से एक को पकड़ा और उसे घर ले गया और उससे विवाह किया। तब वे अपनी पत्नियों को उस देश में वापस ले गए जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया था। उन्होंने उनके नगरों का फिर से निर्माण किया जिनको जला दिया गया था, और वे वहाँ रहने लगे।
\p
\v 24 अन्य इस्राएली अपने अपने घर चले गए अर्थात परमेश्वर द्वारा उन्हें दिए गए स्थानों में जो उनके गोत्र और कुल के अनुसार थे।
\p
\s5
\v 25 उस समय, इस्राएली लोगों के पास कोई राजा नहीं था। हर एक अपनी समझ में जो उचित समझता था, वही करता था।

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08-RUT.usfm Normal file
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\id RUT
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h रूत
\toc1 रूत
\toc2 रूत
\toc3 rut
\mt1 रूत
\s5
\c 1
\p
\v 1 उस दौरान न्यायाधीशों ने इस्राएल पर शासन किया और उस देश में अकाल पड़ा। एलीमेलेक नामक व्यक्ति जो इस्राएल छोड़कर मोआब देश में कुछ समय के लिए अपनी पत्नी नाओमी और उसके दो पुत्रों, महलोन और किल्योन के साथ गया।
\v 2 एलीमेलेक एप्रैत के वंश से था जो यहूदा प्रदेश के बैतलहम शहर में रहता था। वे मोआब से आकर वहाँ रहने लगे ।
\p
\s5
\v 3 एलीमेलेक की मृत्यु हो गई, और नाओमी के साथ उसके दो पुत्र थे।
\v 4 उन्होंने मोआबी स्त्रियों से विवाह किया। उनमें से एक का नाम ओर्पा और दूसरे का नाम रूत था। परन्तु लगभग दस वर्ष वहाँ रहने के बाद ,
\v 5 महलोन और किल्योन भी मर गए। इस प्रकार नाओमी अपने पुत्रों एवं पति के बिना अकेली रह गयी ।
\p
\s5
\v 6 नाओमी ने मोआब में सुना, कि यहोवा ने अपने लोगों की सहायता की और अब इस्राएल में बहुतायत से भोजन भी है। तब वह अपनी दोनों बहुओं के साथ बैतलहम लौटने को तैयार हुई ।
\v 7 उन्होंने उस स्थान को छोड़ दिया जहां वे रहते थे और यहूदा के देश में लौटने की राह पकड़ी।
\p
\s5
\v 8 चलते हुए , नाओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, " तुम दोनों अपने-अपने मायके वापस लौट जाओ । जैसी कृपा तुमने उनसे जो मर गए और मुझ पर की है वैसी ही यहोवा तुम दोनों पर कृपा भी करें ।
\v 9 मै आशा करती हूँ कि परमेश्वर की ओर से प्रत्येक को पति मिले जिसके घर में तुम सुरक्षित रहों । "तब उसने उनमें से प्रत्येक को चूमा, वे चिल्लाकर रोने लगीं ।
\v 10 उन दोनों ने कहा,, "नहीं, हम तुम्हारे साथ तुम्हारे रिश्तेदारों के पास वापस जाना चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 11 पर नाओमी ने कहा, "नहीं, मेरी पुत्रियों, घर लौट जाओ । मेरे साथ आने से तुम्हें कुछ लाभ न होगा ! मेरे पुत्रों के लिए संभव नहीं कि तुम्हारे पति बन सकें ।
\v 12 तुमको लौट जाना चाहिए। मुझे एक और पति प्राप्त करने के लिए बहुत देर हो चुकी है। भले ही मैंने पहले शादी की और पुत्र जनें ,
\v 13 क्या तुम उनके बड़े होने तक अविवाहित रहोगी? नहीं, मेरी पुत्रियों! इससे मुझे तुम से ज्यादा दुख होगा, क्योंकि यहोवा ने मुझपर इतना संकट भेजा । "
\p
\s5
\v 14 तब रूत और ओर्पा फिर से रोने लगीं । ओर्पा ने अपनी सास को चूमकर विदा किया, लेकिन रूत ने नाओमी को न छोड़ा ।
\v 15 नाओमी ने उससे कहा, "देखो! तुम्हारी जेठानी अपने रिश्तेदारों और अपने देवताओं के पास वापस जा रही है! उसके साथ वापस जाओ!"
\p
\s5
\v 16 परन्तु रूत ने उत्तर दिया, "नहीं! कृपया मुझे वापस जाने और तुम्हें छोड़ने के लिए मत कहो! जिधर तुम जाओगी, उधर मै भी जाऊँगी । जहाँ तुम रहोगी, उधर मै भी रहूंगी । तुम्हारे रिश्तेदार मेरे रिश्तेदार होंगे, जिस परमेश्वर की तुम आराधना करती हो मैं भी उसकी आराधना करुँगी ।
\v 17 जहाँ तुम मरोगी वहाँ मै भी मरूंगी । जहाँ तुम्हे मिट्टी दी जाएगी वहाँ मुझे भी मिट्टी दी जाएगी । अगर मैं तुम्हें कभी छोड़ दूं तो यहोवा मुझे गंभीरता से दंडित करे। हम तब तक अलग नहीं होंगे जब तक कि हम में से कोई मर न जाए। "
\v 18 जब नाओमी को अनुभव हुआ कि रूत उसके साथ जाने के लिए बहुत दृढ़ है, तो उसने उससे घर लौटने का आग्रह नहीं किया।
\p
\s5
\v 19 इसलिए जब तक वे बैतलहम नहीं आए, तब तक दोनों स्त्रियाँ चलती रहीं। जब वे वहां पहुंचे, तो शहर में हर कोई उन्हें देखकर बहुत खुश था। शहर की स्त्रियों ने कहा, "यह विश्वास करना कठिन है कि यह नाओमी है!"
\v 20 नाओमी ने उनसे कहा, "तुमको मुझे नाओमी नहीं कहना चाहिए, क्योंकि इसका मतलब है 'सुखद'। इसकी बजाय, मुझे मारा कहें, क्योंकि इसका मतलब है 'कड़वा।' सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरे जीवन को बहुत कड़वा बना दिया है।
\v 21 जब मै यहाँ से गयी तो मेरा भरपूर जीवन था। परन्तु यहोवा मुझे मेरे परिवार के बिना यहां खाली वापस ले आए हैं। मुझे नाओमी मत कहो। यहोवा ने मुझे दंडित किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कारण एक बड़ी त्रासदी हुई है । "
\p
\s5
\v 22 इस प्रकार नाओमी मोआब की स्त्री रूत के साथ घर लौट आई। और ऐसा हुआ कि जब वे बैतलहम पहुंचे तो जौ की कटनी का समय आरम्भ हो चुका था ।
\s5
\c 2
\p
\v 1 बोअज़ नाम का एक व्यक्ति जो बैतलहम में रहता था। वह नाओमी के मृत पति, एलीमेलेक का रिश्तेदार था । वह भी समृद्ध और प्रभावशाली था।
\p
\v 2 एक दिन रूत ने नाओमी से कहा, "मुझे खेतों में जाने दो कि कटाई करने वाले के द्वारा छोडी गयी अनाज की बालियाँ उठाऊँ। मैं किसी भी कटाई करने वाले के पीछे जाऊँगी जो मुझे अनुमति देगा।" नाओमी ने जवाब दिया, "जाओ मेरी पुत्री।"
\p
\s5
\v 3 तब रूत खेतों में जाकर कटाई करने वाले पुरुषों द्वारा छोड़ा गया अनाज उठाने लगी । संयोगवश ऐसा हुआ कि जिस खेत में वह काम कर रही थी वह उसके ससुर एलीमेलेक के रिश्तेदार बोअज़ का था
\p
\v 4 उसी समय, बोअज़ शहर से लौटा था। उसने कटाई करने वालों का अभिनंदन किया और कहा, "यहोवा तुम्हारे साथ रहे!" उन्होंने उत्तर दिया, "यहोवा तुमको आशीष दे!"
\p
\s5
\v 5 तब बोअज़ ने रूत को देखा, और अपने सेवकों से पूछा, "वह युवती कौन है?"
\v 6 सेवक ने उत्तर दिया, "वह मोआब की पुत्री है जो अपनी सास नाओमी के साथ वहाँ से लौट आई है।
\v 7 उसने मुझसे कहा, 'कृपया मुझे कुछ अनाज लेने दो। मैं केवल उन पुरुषों के पीछे चलूँगी जो अनाज की कटाई कर रहे हैं और जो कुछ वे छोड़ेंगे उन्हें मै इकठ्ठा करुँगी।' मैंने उसे अनुमति दे दी, और वह आज सुबह से इस खेत में काम कर रही है। उसने आश्रय में केवल थोड़ी देर ही विश्राम किया है। "
\p
\s5
\v 8 तब बोअज़ रूत के पास गया और उससे कहा, "ऐ युवती! मेरी बात सुनो। तुम्हें अनाज इकट्ठा करने के लिए किसी अन्य के खेत में जाने की ज़रूरत नहीं। मेरी दासियों के संग यही रहो।
\v 9 देखो जहाँ लोग कटाई कर रहे हैं, वहाँ मेरी दासियों के पीछे चलना। मैंने कटाई करने वालों से कहा है कि तुम्हे परेशान न करें। जब तुम्हें प्यास लगे तो उन बर्तनों से पानी पीना जिसे पुरुष भरते हैं । "
\p
\s5
\v 10 जब उसने ऐसा कहा, उसने उसके सामने घुटने टेके और, भूमि पर मुँह के बल गिरकर कहा, " तुम मेरे प्रति इतने दयालु क्यों हो? मुझे नहीं लगता था कि तुम मुझपर इतना ध्यान दोगे क्योंकि मैं परदेसी हूँ!"
\v 11 बोअज़ ने उत्तर दिया, "लोगों ने मुझे वह सब कुछ बताया जो तुमने अपने पति के मरने के बाद अपनी सास के लिए किया है। उन्होंने मुझे बताया कि तुमने अपने माता-पिता और अपनी मातृभूमि को छोड़ दिया, और यहाँ उन लोगों के बीच रहने लगी जिन्हें नहीं जानती थी ।
\v 12 मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा जो कुछ रूत ने किया है उसका फल दें । तुम्हें इस्राएल के परमेश्वर से अपने कार्यों के लिए पूर्ण प्रतिफ़ल प्राप्त हो, क्योंकि जिसकी शरण लेने तुम आई हो वह तुम्हे सुरक्षा प्रदान करेगा! "
\p
\s5
\v 13 उसने उत्तर दिया, "हे स्वामी, मुझे आशा है कि मैं आपको खुश रखूँगी। आपने मुझे अपनी दया से शान्ति दी है, भले ही मैं आपके किसी भी काम के योग्य नहीं हूँ।"
\p
\s5
\v 14 जब खाने का समय आया, बोअज़ ने उससे कहा, "यहाँ आओ और कुछ खाना खालो। इस रोटी को लो और सिरके में डुबाकर खाओ।" जब वह कटाई करने वालों के साथ बैठ गई, तब उसने उसे कुछ भुना हुआ अनाज दिया। उसने भरपेट खा लिया और कुछ बचा भी लिया।
\p
\s5
\v 15 जब वह काम पर वापस जाने के लिए खड़ी हुई, बोअज़ ने अपने सेवकों को आदेश दिया, "भले ही वह काटे गए अनाज के पूलों के पास कुछ अनाज इकट्ठा करे, उसे रोकने की कोशिश न करें।
\v 16 इसकी बजाय, सुनिश्चित करें कि अनाज के पूलों से कुछ कुछ बालें गिरें और उसे उगने के लिए भूमि पर छोड़ देना, और उसे डाँटना नहीं । "
\p
\s5
\v 17 इस प्रकार रूत ने शाम तक खेत से अनाज इकट्ठा किया। उसने जौ की बालो को भूसी से अलग करने के लिए छांटा जो उसने इकट्ठा किया था, और जौ की बड़ी टोकरी भर गयी।
\v 18 वह उसे वापस शहर ले गई और उसने अपनी सास को दिखाया कि वह कितनी इकट्ठी हुई थी। उसने अपनी सास को अनाज भी दिया जो दोपहर के भोजन से बचा था।
\p
\s5
\v 19 उसकी सास ने उससे पूछा, "आज तुमने यह सब अनाज कहाँ इकट्ठा किया? किसके खेत में तुमने काम किया? परमेश्वर उस मनुष्य के साथ भलाई करें जिसने तुम पर दया की।" तब रूत ने उसे बताया वह कहाँ काम कर रही थी। उसने कहा, "उस खेत के मालिक का नाम बोअज़ है।"
\v 20 नाओमी ने अपनी बहू से कहा, "यहोवा उन्हें आशीष दे! उन्होंने हम जीवितों के प्रति दया दिखलाते हुए अपना काम करना बन्द नहीं किया, और हमारे पतियों के प्रति जो मर गए हैं दया दिखाई है।" तब उसने कहा, "वह व्यक्ति एलीमेलेक के करीब का रिश्तेदार है, वास्तव में, वह हमारी देखभाल करने के लिए उत्तरदायी लोगों में से एक है।"
\p
\s5
\v 21 तब रूत ने कहा, "उसने मुझसे कहा, 'मेरे मजदूरों के साथ तब तक रह जब तक कि वे खेत से मेरे सारे अनाज को उठा नहीं लेते ।'"
\p
\v 22 नाओमी ने उत्तर दिया, "मेरी पुत्री, तुम्हारा, दासियों के साथ उसके खेत में जाना अच्छा होगा, क्योंकि यदि तुम किसी और के खेत में जाओगी तब कोई तुमको नुकसान पहुँचा सकता है।"
\p
\s5
\v 23 अत: रूत बोअज की दासियों के साथ काम करने लगी । जब तक मजदूरों ने जौ और गेहूँ दोनों की कटाई खत्म नहीं की तब तक वह अनाज की बालों को इकट्ठी करती रही । उस समय वह नाओमी के साथ रहती थी ।
\s5
\c 3
\p
\v 1 एक दिन, नाओमी ने रूत से कहा, "मेरी पुत्री, मुझे लगता है कि मुझे तुम्हारे लिए एक घर और एक पति का प्रवन्ध करना चाहिए जो तुम्हारी देखभाल करें।
\v 2 बोअज़ हमारा करीबी रिश्तेदार है, और वह तुमपर अपनी दासियों के साथ अनाज इकट्ठा करने की अनुमति देकर बहुत दयालु रहा है। ध्यान से सुनो। आज रात वह उस स्थान पर होगा जहाँ वे जौ को छाँटेंगे। वे अनाज को भूसी से अलग करेंगे।
\p
\s5
\v 3 स्नान कर इत्र लगा और सबसे अच्छे कपड़े पहन। फिर उस स्थान पर जा जहाँ वे अनाज को छाँटते हैं। परन्तु तुम्हारे वहाँ होने का उसे पता न चले जबतक वह भोजन समाप्त न कर ले।
\v 4 उसके खाना खाने के बाद ध्यान दो कि वह कहाँ सोता है। और उसके खाना खाने के बाद, उसके पास जाओ, उसके पैरों से कपडा हटाकर पैरों के पास लेट जाना। जब वह उठेगा, तब तुम्हें बताएगा कि क्या करना है।"
\p
\v 5 रूत ने उत्तर दिया, "मैं वह सब कुछ करुँगी जो तुमने मुझे करने के लिए कहा है।"
\p
\s5
\v 6 तब वह अनाज को छाँटनेंवाले स्थान पर गई वहाँ उसने सबकुछ किया जो उसकी सास ने उसे करने के लिए कहाँ था।
\p
\v 7 जब बोअज़ ने खाना पीना समाप्त कर लिया, तब उसे अच्छा लग रहा था। अत: वह अनाज के ढेर के बहुत दूर अन्त तक चला गया। वह वहाँ लेट कर सो गया तब रूत चुपचाप उसके पास गई। उसने उसके पैरों का कपड़ा उठाया और वहाँ लेट गई।
\p
\s5
\v 8 रात के मध्य में, वह अचानक उठ कर बैठ गया और महसूस किया कि एक स्त्री उसके पैरों पर लेटी हुई है।
\v 9 उसने उससे पूछा, "तुम कौन हो?" उसने जवाब दिया, "मैं आपकी दासी रूत हूँ। क्योंकि आप मेरे मृत पति के परिवार के प्रति देखभाल करने के उत्तरदायी लोगों में से एक हैं, इसलिए मेरे ऊपर अपनी चादर फैलाएं।"
\p
\s5
\v 10 बोअज़ ने उत्तर दिया, " मेरी प्रिये यहोवा, तुमको आशीष दे! तुमने पहले अपनी सास पर कृपा की, और किसी अन्य युवा से जो अमीर हो या किसी अन्य गरीब के साथ शादी करने की बजाय मुझपर कृपादृष्टि की।
\v 11 अब, मेरी प्रिये, मैं जो कुछ भी तुम चाहोगी वह करूँगा। डरो मत, क्योंकि इस शहर के सभी लोगों को पता है कि तुम एक भली स्त्री हो ।
\p
\s5
\v 12 लेकिन एक समस्या है। यद्यपि यह सच है कि मैं तुम्हारा करीबी रिश्तेदार हूँ, एक और व्यक्ति है जो मेरे मुकाबले एक करीबी रिश्तेदार है, जो तुम्हारी सास का करीबी है, और जो वास्तव में तुम्हारे लिए जिम्मेदार व्यक्ति है
\v 13 तुम रातभर यहीं रहो । कल सुबह मैं इस आदमी को तुम्हारे विषय बताऊँगा। अगर वह कहता है कि वह तुम्हारी जिम्मेवारी लेगा, तो ठीक है, हम उसे तुमसे शादी करने देंगे। लेकिन यदि वह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं , तो मैं यहोवा के जीवन की शपथ मैं ही निश्चित रूप से यहोवा के सम्मुख तुमसे शादी करूंगा और तुम्हारा ख्याल रखूंगा। अत: सुबह तक तुम यहां रहो । "
\p
\s5
\v 14 वह सुबह तक उसके पैरों पर लेटी रही फिर वह उठ कर इतनी सुबह चली गई कि उसे लोग पहचान न सकें, क्योंकि बोअज़ ने कहा था, " यह अच्छा होगा कि कोई न जाने कि कोई स्त्री यहाँ थी।"
\v 15 बोअज़ ने रूत से कहा, "मेरे पास अपनी चादर लाओ और इसे फैलाओ।" जब उसने ऐसा किया, तो उसने उसमें जौ को उदारता से डाला और उसे उसके सिर पर रख दिया। फिर वह शहर चली गई।
\p
\s5
\v 16 जब रूत घर पहुँची, तो उसकी सास ने उससे पूछा, "क्या तुम मेरी पुत्री हो?" तब रूत ने उसे सब कुछ बताया जो बोअज़ ने उसके लिए किया और जो उसने कहा था।
\v 17 उसने नाओमी से यह भी कहा, "देखो उसने मुझे इतना जौ दिया, और कहा, 'मैं नहीं चाहता कि तुम खाली हाथ अपनी सास के पास जाओ।'"
\v 18 तब नाओमी ने कहा, "मेरी पुत्री, बस तब तक प्रतीक्षा करो जब तक पता न चले कि क्या होता है। मुझे निश्चय है कि बोअज निश्चित रूप से आज इस मामले को निपटाएगा।"
\s5
\c 4
\p
\v 1 इस बीच, बोअज़ मिलने के स्थान पर जो शहर जाने वाले द्वार पर था जाकर बैठ गया। शीघ्र ही, जिस करीबी रिश्तेदार का वर्णन बोअज़ ने किया था वह भी पहुँच गया । बोअज़ ने उससे कहा, "मेरे भाई, यहाँ आकर बैठ जाओ।" तब वह व्यक्ति वहाँ जाकर बैठ गया।
\v 2 बोअज ने फिर शहर के दस बुजुर्गों को इकट्ठा किया और उनसे भी बैठने को कहा, वे भी बैठ गए।
\p
\s5
\v 3 तब बोअज़ ने अपने सम्बन्धी से कहा, "जैसा तुम जानते हो, नाओमी मोआब से लौट आई है। अब वह हमारे रिश्तेदार एलीमेलेक से संबंधित भूमि के टुकड़े को बेचना चाहती है।
\v 4 मैंने सोचा कि मुझे तुम्हें इसके बारे में बताना और भूमि खरीदने का सुझाव देना चाहिए, यहाँ पर बैठे ये बुजुर्ग यह सब सुन रहे हैं। यदि तुम भूमि खरीदने के इच्छुक हो, तो खरीदो । लेकिन अगर तुम इसे खरीदना नहीं चाहते हो, तो मुझे बताओ, ताकि मैं जान सकूं। मैं इसलिए यह सुझाव दे रहा हूँ क्योंकि आप को इसे खरीदने का पहला अधिकार है, और यदि आप इसे नहीं खरीदते, तो मैं तुम्हारे बाद मैं ग्राहक हूँ। "व्यक्ति ने जवाब दिया," इसे खरीदूँगा! "
\p
\s5
\v 5 तब बोअज़ ने उससे कहा, "जब तुम नाओमी से भूमि खरीदते हो, तो तुम्हें मोआब से आए हमारे सम्बन्धी की विधवा रूत से शादी करनी होगी जिससे उसके पुत्र हो जो संपत्ति का वारिस बने और अपने मृत पति का नाम आगे बढ़ा सके "
\v 6 तब करीबी रिश्तेदार ने कहा, "यदि ऐसा है, तो मैं संपत्ति खरीदना नहीं चाहता, क्योंकि तब मेरे अपने बच्चे संपत्ति के वारिस नहीं होंगे । मैं तुम्हे मेरे बदले संपत्ति खरीदने का अधिकार देता हूँ!"
\p
\s5
\v 7 उस समय, इस्राएल में यह प्रथा थी कि जब दो लोग आपस में कुछ भी छुड़ाने या अदला-बदली करने के लिए सहमत होते थे, तब एक व्यक्ति अपनी एक चप्पल दूसरे व्यक्ति को दे देता था। इस तरह वे इस्राएल में लेनदेन को सम्पूर्ण बनाते थे ।
\v 8 अत: रिश्तेदार ने बोअज़ से कहा, "तुम ही भूमि खरीदो!" और उसने अपनी एक चप्पल उतारकर बोअज़ को दे दी।
\p
\s5
\v 9 तब बोअज़ ने बुजुर्गों और अन्य सभी लोगों से कहा, "आज तुमने सब देखा है कि मैंने एलीमेलेक, महलोन और किल्योन की सारी संपत्ति नाओमी से खरीदी है।
\v 10 मैं महलोन की विधवा मोआब की स्त्री रूत को अपनी पत्नी बना रहा हूँ । ऐसा इसलिए कि वह पुत्र को जन्म दे जो संपत्ति का वारिस हो । इस तरह वह अपने रिश्तेदारों और यहाँ अपने गृहनगर में परिवार का नाम आगे बढ़ाये । आज आप सभी जो मैंने किया है उसके साक्षी हैं।"
\p
\s5
\v 11 नगर के द्वार पर बैठे सभी बुजुर्ग और अन्य लोग सहमत हुए और कहा, "हाँ, हम साक्षी हैं।" उनमें से एक ने कहा, " यहोवा इस स्त्री को जो तेरे घर आएगी, राहेल और लिआ कि तरह बनाए, जिन्होंने हमारे पूर्वजों को जन्म दिया और इस्राएल के घराने की शुरुआत की। हमें आशा है कि तुम एप्राता के वंश में सम्पन्न और बैतलहम में प्रसिद्ध हो जाओ।
\v 12 तुम्हारा परिवार यहूदा के पुत्र पेरेस, और तामार के परिवार की तरह हो जाए, उन वंशजों के कारण जो यहोवा तुम्हें और इस जवान स्त्री को देगा।"
\p
\s5
\v 13 तब बोअज़ ने रूत को अपनी पत्नी बनाया और उसके पास गया। यहोवा ने उसे गर्भवती होने में सक्षम बनाया, और उसने एक पुत्र को जन्म दिया।
\v 14 बैतलहम की स्त्रियों ने नाओमी से कहा, "यहोवा की स्तुति करो! अब उन्होंने तुम्हें एक पोता दिया है, जो तुम्हारी देखभाल करने का उत्तरदायी होगा । वह पूरे इस्राएल में प्रसिद्ध हो जाए।"
\v 15 वह तुम्हें फिर से जवानी का अनुभव कराएगा, और जब तुम बूढ़ी हो जाओगी, तब वह तुम्हारा ख्याल रखेगा क्योंकि तुम्हारी बहू ने उसे जन्म दिया है जो तुम्हें प्यार करती है। वह तेरे सात पुत्रों से भी बेहतर है।"
\p
\s5
\v 16 तब नाओमी ने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया, और उसकी दूसरी माँ बन गई।
\v 17 आस-पास रहने वाली स्त्रियों ने कहा, "ऐसा लगता है कि नाओमी के पास अब एक पुत्र है!" और उन्होंने उसे ओबेद नाम दिया। बाद में, ओबेद यिशै का पिता हुआ, जो दाऊद का दादा हुआ ।
\p
\s5
\v 18-22 पेरेस के वंशजों की सूची इस प्रकार है: पेरेस का पुत्र हेस्रोन था। हेस्रोन का पुत्र राम था। राम का पुत्र अम्मीनादाब था। अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन था। नहशोन का पुत्र सल्मोन था। सल्मोन का पुत्र बोअज़ था। बोअज़ का पुत्र ओबेद था। ओबेद का पुत्र यिशै था। यिशै का पुत्र दाऊद था।

1730
09-1SA.usfm Normal file
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h 1 शमूएल
\toc1 1 शमूएल
\toc2 1 शमूएल
\toc3 1sa
\mt1 1 शमूएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 सूफ का वंशज एल्काना नाम का एक व्यक्ति एप्रैम के गौत्र के स्थान में, पहाड़ी प्रदेश के रामा नगर में रहता था। उसका पिता यरोहाम था, उसका दादा एलीहू था, और उसका दादा तोह था।
\v 2 उसकी दो पत्नियां थीं: हन्ना और पनिन्ना। पनिन्ना के तो बच्चे थे, लेकिन हन्ना के पास कोई बच्चा नहीं था।
\p
\s5
\v 3 एल्काना प्रतिवर्ष अपने परिवार के साथ रामा से शीलो शहर तक जाता था । वह यहोवा की आराधना करने के लिए, सेनाओं के यहोवा के लिए बलि चढ़ाता था, वहाँ एली के पुत्र होप्नी और पीनहास यहोवा के सामने अपने पिता की याजकीय सेवा में सहायता करते थे।
\v 4 एल्काना जब-जब वहाँ बलि चढ़ाता था तब-तब वह माँस में से कुछ भाग पनिन्ना को और कुछ उसके पुत्रों और पुत्रियों को देता था।
\s5
\v 5 परन्तु वह हन्ना को ज्यादा माँस देता क्योंकि वह उससे बहुत प्रेम करता था, भले ही यहोवा ने उसे सन्तान को जन्म देने से रोक रखा था।
\v 6 परन्तु उसकी दूसरी पत्नी, पनिन्ना, हन्ना का ठट्ठा करती थी, जिससे उसे दुखी होकर याद आता था कि यहोवा ने उसे बच्चों को जन्म देने से रोक रखा है ।
\s5
\v 7 वर्ष प्रतिवर्ष ऐसा ही होता था। जब वे यहोवा के भवन में शीलो जाते थे, तो पनिन्ना सदैव हन्ना का ठट्ठा किया करती थी और हन्ना रोती थी और खाना नही खाती थी।
\v 8 तब एल्काना उससे कहता, "हन्ना, तू क्यों रो रही है? तू कुछ खा क्यों नहीं रही? तू बहुत दुखी है! निश्चय ही मुझ जैसा पति पाना तेरे लिए दस पुत्रों से उत्तम नहीं है!"
\p
\s5
\v 9 एक वर्ष, जब वे शीलो गये थे तब खाने और पीने के बाद, हन्ना प्रार्थना करने के लिए खड़ी हुई। एली याजक निकट ही यहोवा के पवित्र तम्बू के द्वार के पास कुर्सी पर बैठा था।
\v 10 हन्ना बड़े कष्ट में थी, और वह यहोवा से प्रार्थना करते समय दुःख से रोने लगी।
\s5
\v 11 उसने सच्चे मन से शपथ खाई, "हे सेनाओं के यहोवा, यदि आप मुझे देखें तो मेरा कष्ट दिखाई देगा, मुझ पर दया करें और मुझे एक पुत्र दें। मैं उसे जीवन भर के लिए आपकी सेवा में समर्पित कर दूँगी। आपके लिए समर्पित होने का उसका चिन्ह होगा कि उसके बाल कभी नहीं काटे जाएँगे।
\p
\s5
\v 12 एली याजक ने हन्ना के होंठों को प्रार्थना में सिर्फ हिलते हुए देखा।
\v 13 हन्ना केवल चुपचाप प्रार्थना कर रही थी; वह शब्दों की आवाज नहीं निकाल रही थी। अतः एली ने सोचा कि वह नशे में है।
\v 14 उसने उससे कहा, "तू कब तक नशे में रहेगी? अपने नशे से छुटकारा पा!"
\p
\s5
\v 15 हन्ना ने उत्तर दिया, "महोदय, मैं नशे में नहीं हूँ! मैंने दाखरस या किसी प्रकार की मदिरा नहीं पी है। मैं बहुत दुखी हूँ और मैं यहोवा के सामने अपनी भावनाएँ प्रकट कर रही हूँ।
\v 16 तू ऐसा मत सोच कि मैं एक निक्कमी स्त्री हूँ। मैं इस प्रकार प्रार्थना कर रही हूँ क्योंकि मैं बहुत लज्जित और दुखी हूँ।"
\p
\s5
\v 17 एली ने उत्तर दिया, "मैं चाहता हूँ कि तेरा भला हो, हमारे परमेश्वर जिनकी उपासना इस्राएली करते हैं, वे तेरी विनती सुन कर वैसा ही करें।"
\p
\v 18 उसने उत्तर दिया, "मैं चाहती हूँ कि तू मेरे विषय में सोच।" तब वह अपने परिवार में लौट आई और उसने कुछ खाया, वह अब दुखी नहीं थी।
\p
\s5
\v 19 अगली सुबह, एल्काना और उसके परिवार ने उठकर यहोवा की उपासना कि, और फिर वे रामा में अपने घर लौट आए। तब एल्काना हन्ना के साथ सो गया, और यहोवा ने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया।
\v 20 वह गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने उसे शमूएल नाम दिया, जिसका इब्रानी भाषा में अर्थ है "परमेश्वर ने सुना," क्योंकि उसने कहा, "मैंने एक पुत्र के लिए विनती की और यहोवा ने मेरी प्रार्थना सुनी।"
\p
\s5
\v 21 अगले वर्ष, एल्काना अपने परिवार के साथ शीलो गया, ताकि वह प्रतिवर्ष के समान बलि चढ़ाए, और परमेश्वर को एक विशेष भेंट चढ़ाए जिसकी उसने शपथ खाई है।
\v 22 परन्तु हन्ना उनके साथ नहीं गई। उसने अपने पति से कहा, "जब बच्चा दूध छोड़ देगा, तब मैं उसे शीलो ले जाऊंगी और उसे यहोवा के सामने प्रस्तुत करूंगी, और वह जीवन भर वहाँ रहेगा।"
\p
\v 23 एल्काना ने कहा, "जो तू उचित समझती हो वही कर। जब तक बालक दूध न छोड़े तब तक यहीं रह। मेरी इच्छा है कि यहोवा तुझे अपनी शपथ पूरा करने में समर्थ करें।" अतः हन्ना घर पर ही रही और जब तक बालक ने दूध नहीं छोड़ा वह उसकी देखभाल करती रही।
\p
\s5
\v 24 जब उसने बालक का दूध छुड़ाया, तब शमूएल बहुत छोटा था। वह उसे शीलो में यहोवा के भवन में ले आयी। वह अपने और अपने पुत्र के साथ एक तीन वर्षीय बैल, लगभग 20 किलो आटा, और दाखरस का पात्र भी लाई।
\v 25 हन्ना और एल्काना ने बैल को मारा और वेदी पर यहोवा के लिए चढ़ाया, और अपने पुत्र को एली के पास लाई।
\s5
\v 26 तब हन्ना ने उससे कहा, "महोदय, क्या तुझको मैं याद हूँ। मैं वह स्त्री हूँ जिसने कई वर्ष पहले तेरे पास खड़े होकर प्रार्थना की थी।
\v 27 मैंने प्रार्थना की थी कि यहोवा मुझे एक बच्चे को जन्म देने में सक्षम करें, और यह वही बच्चा है!
\v 28 तो अब मैं उसे यहोवा के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ। जब तक वह जीवित रहता है तब तक वह यहोवा का होगा। तब एल्काना और उसके परिवार ने वहाँ यहोवा की आराधना की।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब हन्ना ने प्रार्थना की,
\q1 "हे यहोवा, आपके इस काम से मैं अपने मन में बहुत आनन्दित हूँ।
\q2 मैं सामर्थी हूँ क्योंकि मैं आपकी हूँ।
\q1 मैं अपने शत्रुओं पर हँसती हूँ
\q2 क्योंकि हे यहोवा, आप ने मुझे उनके ठट्ठो से उभार लिया है।
\q1
\s5
\v 2 हे यहोवा, आपके समान पवित्र कोई नही है।
\q2 आपके समान अन्य कोई देवता नहीं है।
\q2 आपके समान कोई नहीं है, हमारे परमेश्वर, जो हमारी रक्षा कर सकता है जैसे कि आप हमें एक ऊँची चट्टान के ऊपर खड़ा करते हैं जहाँ हम खतरों से सुरक्षित रहते हैं।
\q1
\s5
\v 3 तुम लोग जो परमेश्वर का विरोध करते हो, घमंड करना बंद करो!
\q2 यहोवा ऐसे परमेश्वर हैं जो सबकुछ जानते हैं,
\q1 और वे प्रत्येक जन के कार्यों का मूल्यांकन करेंगे।
\q2 अतः इतने अभिमान से बात मत करो!
\q1
\v 4 हे यहोवा, आप शक्तिशाली सैनिकों के धनुष तोड़ते हैं,
\q2 परन्तु आप उन लोगों को शक्ति देते हैं जो ठोकर खाते हैं क्योंकि वे दुर्बल हैं।
\q1
\s5
\v 5 जिनके पास पहले खाने के लिए बहुत था, अब अन्य लोगों के लिए काम करते हैं। ताकि खाना खरीदने के लिए पैसे कमा सकें।
\q2 परन्तु जो लोग सदा भूखे रहते थे अब भूखे नहीं हैं।
\q1 जिस स्त्री के पास पहले कोई बच्चा नहीं था, अब उसने कई बच्चों को जन्म दिया है,
\q2 और जिस महिला के पास पहले कई बच्चे थे, अब बहुत अकेली है क्योंकि उन सब की मृत्यु हो गई है।
\q1
\s5
\v 6 हे यहोवा, आप कुछ लोगों के लिए मृत्यु का कारण उत्पन्न करते हैं।
\q2 और आप मरने वालों को नया जीवन देते हैं।
\q1 कुछ लोग शीघ्र ही मरे हुओं में जाने वाले से लगते हैं परन्तु आप उन्हें स्वस्थ कर देते हैं।
\q1
\v 7 हे यहोवा, आप कुछ लोगों को गरीब बनाते हैं और कुछ लोगों को अमीर बनते हैं,
\q2 आप कुछ लोगों को दीन बनाते हैं, और कुछ लोगों का सम्मान करते हैं।
\q1
\s5
\v 8 कभी-कभी आप गरीब लोगों को उठाते हैं ताकि वे अब धूल में न बैठे,
\q2 और आप आवश्यक्ता से घिरे लोगों को उठाते हैं ताकि वे अब राख के ढेर पर न बैठे;
\q1 आप उन्हें राजकुमारों के साथ बैठाते हैं;
\q2 आप उन्हें ऐसे स्थानों में बैठाते हैं जहाँ बहुत सम्मानित लोग बैठते हैं।
\q1 हे यहोवा, आप ही ने तो पृथ्वी की नींव रखी है,
\q2 और आपने पूरा संसार उस नींव पर खड़ा किया है।
\q1
\s5
\v 9 आप अपने भक्त लोगों की रक्षा करेंगे,
\q1 परन्तु आप दुष्टों के मरने का और मृतकों के अंधेरे स्थान में उतरने का कारण बनेंगे।
\q2 हम अपने शत्रुओं को अपनी ताकत से पराजित नहीं करते हैं।
\q1
\s5
\v 10 हे यहोवा, आप अपने विरोधियों को तोड़ देंगे।
\q2 आप आकाश में गर्जन से यह दिखाते हैं कि आप उनका विरोध करते हैं।
\q1 हे यहोवा, आप हर एक स्थान में लोगों का न्याय करेंगे, यहाँ तक कि जो लोग धरती पर सबसे दूर रहते हैं।
\q2 आप अपने राजा को शक्ति देंगे, और उसे अपने शत्रुओं के विरुद्ध शक्तिशाली बनाएँगे।"
\p
\s5
\v 11 तब एल्काना और उसका परिवार रामा लौट आया, परन्तु शमूएल, जो छोटा लड़का था, एली याजक के पास परमेश्वर की सेवा करने में सहायता करने के लिए रुक गया।
\p
\s5
\v 12 एली के दो पुत्र भी याजक थे, वे बहुत दुष्ट थे। वे यहोवा के प्रति विश्वासयोग्य नहीं थे।
\v 13 परंपरा यह थी कि जब लोग परमेश्वर के भवन में विशाल पात्र में बलि का माँस उबालते थे, तब याजक अपने दास को भेजता था, वह हाथ में एक बड़ा काँटा लेकर आता था।
\v 14 वह पात्र में रखे माँस में काँटा लगाता और जो भी माँस काँटे में फस जाता था उसे वह ले जाता था और उसे उस याजक को दे देता था।
\s5
\v 15 परन्तु, माँस पर से चर्बी को काटकर यहोवा के लिए बलि जलाने से पहले ही, एली के पुत्रों का दास बलि चढाने वाले व्यक्ति के पास आता था और उससे कहता था, "मुझे याजक के लिए माँस दे! वह कच्चे माँस को भूनना चाहता है, उसे उबला हुआ माँस नहीं चाहिए।"
\p
\v 16 यदि उस व्यक्ति ने दास से कहा, पहले "याजकों को बलि के लिए चर्बी निकालने दो कि उसे जलाएँ, उसके बाद तू जो चाहे वह ले जाना," तो सेवक कहता था, "नहीं, मुझे अभी दे; यदि तू नहीं देगा तो , मैं इसे बलपूर्वक ले जाऊंगा!"
\p
\v 17 यहोवा के विचार में एली के पुत्र बहुत बड़े पाप कर रहे थे, क्योंकि वे यहोवा को दी गई भेंटों का घोर अपमान कर रहे थे।
\p
\s5
\v 18 शमूएल के लिए, जो अभी भी एक छोटा बालक था, वह यहोवा के लिए काम करता रहता था, वह बड़े याजक के समान सनी से बना एक छोटा पवित्र एप्रोन पहने रहता था।
\v 19 प्रत्येक वर्ष उसकी मां अपने पति के साथ बलि चढाने शीलो आती थी तो उसके लिए एक नया छोटा वस्त्र बना कर लाती थी।
\s5
\v 20 तब एली परमेश्वर से विनती करता कि वे एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद दें, और वह एल्काना से कहता है, "मैं आशा करता हूँ कि यहोवा तेरी पत्नी को ओर सन्तान दें कि इस समर्पित बालक का स्थान ले।" तब एल्काना और उसका परिवार घर लौट जाता है।
\v 21 यहोवा वास्तव में हन्ना पर बहुत दयालु थे, इसलिए उन्होंने उसे तीन अन्य पुत्रों और दो पुत्रियों को जन्म देने योग्य बनाया। उनका पुत्र शमूएल, यहोवा के भवन में सेवा करते करते बड़ा हो गया।
\p
\s5
\v 22 अब एली बहुत बूढ़ा हो गया था। वह उन सब बुरे कामों के विषय में सुनता जो उसके पुत्र इस्राएलियों के साथ कर रहे थे। उसने सुना कि वे कभी-कभी उन महिलाओं के साथ सोते थे जो तम्बू के प्रवेश द्वार पर काम करती हैं, जहाँ परमेश्वर अपने लोगों से बात करते थे।
\v 23 एली ने अपने पुत्रों से कहा, "तुम्हारे ये काम बहुत बुरे हैं! तुम्हारे इन बुरे कामों की चर्चा बहुत लोग मुझ से करते हैं।
\v 24 मेरे पुत्रों, ऐसा मत करो! यहोवा के लोग तुम्हारे विषय में दूसरों से जो चर्चा करते हैं, वह बहुत ही बुरी है!
\s5
\v 25 यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध पाप करता है, तो परमेश्वर उनकी मध्यस्थता कर सकते हैं। यदि कोई यहोवा के विरूद्ध पाप करता है, तो उसके लिए कौन मध्यस्थता करेगा? "परन्तु एली के पुत्रों ने उनके पिता की बातों को नहीं सुना। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहोवा ने निर्णय ले लिया था कि वे किसी के हाथों मारे जाएँ।
\p
\v 26 बालक शमूएल बड़ा हुआ, और अपने काम से उसने यहोवा और लोगों को प्रसन्न किया।
\s5
\v 27 एक दिन, एक भविष्यवक्ता एली के पास आया और उससे कहा, "यहोवा ने मुझे से कहा है: 'जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र के राजा के दास थे, तो मैं हारून के सामने प्रकट हुआ।
\v 28 इस्राएलियों के सभी गोत्रों में से, मैंने उसे और उसके वंशज के पुरुषों को मेरे याजक होने के लिए चुन लिया है। मैंने उन्हें वेदी पर जाने के लिए नियुक्त किया है, और मेरी सेवा करते समय उन्हें पहनने के लिए पवित्र एपोद दिया है। और मेरा ही निर्णय है कि वे इस्राएलियों द्वारा वेदी पर जलने वाली बलि का कुछ माँस ले लें।
\s5
\v 29 अतः तू उन बलियों और भेंटों का अपमान क्यों करते हो। जिनकी आज्ञा मैंने इस्राएलियों को दी है कि मेरे लिए चढ़ाएँ? तू मुझसे अधिक अपने पुत्रों को सम्मान दे रहा है कि उन्हें बलियों में से सबसे अच्छे भाग को खाकर मोटे होने की अनुमति देता है। वे तो वास्तव में इस्राएली मुझे चढाने के लिए लाते हैं! ।'
\p
\v 30 अतः, यहोवा, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे कहते हैं: 'मैंने निश्चय ही प्रतिज्ञा की थी कि हारून और उसके वंशज सदा के लिए मेरी सेवा करेंगे। परन्तु अब मैं यह घोषणा करता हूँ: ऐसा ही नहीं होता रहेगा! मैं उन लोगों का सम्मान करूंगा जो मेरा सम्मान करते हैं, परन्तु मैं उनको तुच्छ जानता हूँ जो मुझे तुच्छ जानते हैं।
\s5
\v 31 ध्यान से सुनो! शीघ्र ही ऐसा समय आएगा जब मैं तेरे परिवार के सब बलवन्त युवाओं की मृत्यु का कारण बनूंगा। और तेरे परिवार में कोई भी पुरुष बूढ़ापे तक जीवित नहीं रहेगा।
\v 32 तू देखेगा कि मैं अन्य इस्राएलियों को आशिषें दे रहा हूँ और तू दुखी होगा और जलेगा। और मैं दोहराता हूँ कि तेरे परिवार में कोई भी पुरुष बूढ़ापे तक जीवित नहीं रहेगा।
\v 33 तेरे वंशजों में से एक है जिसे मैं बचाऊंगा; मैं उसे याजक के रूप में सेवा करने से नहीं रोकूंगा। लेकिन वह रोने से अन्धा हो जाएगा; वह हमेशा उदास और दुखी रहेगा। लेकिन तेरे अन्य सभी वंशज हिंसक रूप से मर जाएंगे।
\s5
\v 34 और तेरे दोनों पुत्र, होप्नी और पीनहास, उसी दिन मर जाएंगे। इससे सिद्ध होगा कि मैंने जो कुछ कहा है वह सच है।
\p
\v 35 मैंने अपना याजक होने के लिए एक और व्यक्ति चुना है। वह सच्चे मन से मेरी सेवा करेगा: वह मेरी प्रत्येक इच्छाओं को पूरी करेगा। मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि उसके वंशज याजक होंगे और मेरे चुने हुए राजा की सहायता करके सदा मेरी सेवा करेंगे।
\s5
\v 36 तेरे जो वंशज जीवित रहेंगे उन सब को उस याजक के पास जाना होगा और उन्हें पैसे और भोजन के लिए विनती करनी होगी, और प्रत्येक को यह कहना होगा, "कृपया मुझे अन्य याजकों की सहायता करने दो, ताकि मैं कुछ खाना खरीदने के लिए पैसे कमा सकूँ। '"
\s5
\c 3
\p
\v 1 शमूएल अभी बालक ही था पर एली की निगरानी में यहोवा की सेवा करता था। उस समय यहोवा के बहुत ही कम संदेश किसी को मिलते थे और बहुत कम लोग यहोवा से दर्शन पाते थे।
\p
\v 2 उस समय तक एली की आंखें बहुत मन्द हो गई थीं; वह लगभग अंधा था। एक रात वह अपने कमरे में सो रहा था,
\v 3 और शमूएल यहोवा के भवन में सो रहा था, जहाँ पवित्र सन्दूक रखा गया था। वहाँ एक दीपक था जो परमेश्वर की उपस्थिति को दर्शाता था, वह अब भी जल रहा था।
\v 4 उसी समय यहोवा ने कहा, "शमूएल! शमूएल!" शमूएल ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँ!"
\p
\s5
\v 5 वह उठकर एली के पास गया। उसने एली से कहा, "मैं यहाँ हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुलाया!" लेकिन एली ने उत्तर दिया, "नहीं, मैंने तुझे नहीं बुलाया। अपने बिस्तर पर वापस जा।" अतः शमूएल गया और फिर से लेट गया।
\p
\v 6 तब यहोवा ने फिर से बुलाया, "शमूएल!" तो शमूएल फिर उठकर एली के पास गया और कहा, "मैं यहाँ हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुलाया!" लेकिन एली ने कहा, "नहीं, मेरे पुत्र, मैंने तुझे नहीं बुलाया। जाकर सो जा।"
\p
\s5
\v 7 उस समय शमूएल को यह नहीं पता था कि यहोवा उससे बात करने के लिए उसे पुकार रहे हैं, क्योंकि यहोवा ने पहले कभी भी उसे दर्शन नहीं दिया था।
\p
\v 8 शमूएल फिर से लेट गया, यहोवा ने उसे तीसरी बार पुकारा। शमूएल उठकर फिर एली के पास गया और कहा, "मैं यहाँ हूँ, क्योंकि तूने मुझे बुलाया!"
\p तब एली समझ गया कि वे यहोवा थे जो बालक को बुला रहे थे।
\s5
\v 9 तब उसने शमूएल से कहा, "जा और फिर लेट जा। यदि कोई तुझे फिर से बुलाता है, तो कहना, हे यहोवा, बोलिये, क्योंकि मैं सुन रहा हूँ!" "तो शमूएल गया और फिर से लेट गया।
\s5
\v 10 यहोवा आए और खडे हुए और पहले के सामान कहा, "शमूएल! शमूएल!" तब शमूएल ने कहा, "बोलिये, क्योंकि मैं सुन रहा हूँ!"
\p
\v 11 तब यहोवा ने शमूएल से कहा, "सावधानी से सुन। मैं इस्राएल में कुछ ऐसा करने वाला हूँ जिसके विषय में सुनकर हर कोई चकित होगा।
\s5
\v 12 जब ऐसा होगा, तब मैं एली और उसके परिवार को दण्ड दूंगा। मैं उन के साथ वह सब कुछ करूँगा जो मैंने कहा है।
\v 13 उसके पुत्रों ने अपने घृणित कामों से मेरा घोर अपमान किया है, और एली ने उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका। तो मैंने उससे कहा कि मैं उसके परिवार को सदा का दण्ड दूँगा।
\v 14 मैंने एली के परिवार से गंभीर प्रतिज्ञा की थी, 'यदि तुम मेरे लिए बलि चढाते या भेंट लाते हो, तौभी अपने पापों का फल भोगने से नहीं बचोगे।' "
\p
\s5
\v 15 शमूएल सुबह तक फिर से लेट गया। फिर वह उठ गया और प्रतिदिन की सेवा स्वरुप भवन के द्वार खोले। वह एली को यहोवा के दर्शन के विषय में बताने से डरता था।
\v 16 लेकिन एली ने उसे बुलाया और कहा, "शमूएल, मेरे पुत्र!" शमूएल ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ हूँ!"
\p
\s5
\v 17 एली ने उससे पूछा, "यहोवा ने तुझसे क्या कहा था? उसे छुपाना मत! तू मुझे वह सब कुछ बताएगा जो यहोवा ने तुझसे कहा है नहीं तो, मैं कहता हूँ, परमेश्वर तुम्हें कठोर दण्ड दें।"
\p
\v 18 इसलिए शमूएल ने उसे सब कुछ बता दिया, कुछ नहीं छिपाया। तब एली ने कहा, "वे यहोवा हैं। उनकी समझ से जो अच्छा है वह करें, मैं तैयार हूँ।"
\p
\s5
\v 19 जैसे शमूएल बड़ा होता गया और यहोवा उसकी सहायता करते रहे; परमेश्वर ने शमूएल की हर एक भविष्यवाणी को सच सिद्ध किया।
\v 20 अतः इस्राएल के सब लोगों ने, जो देश के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक रहते थे, जान लिया कि शमूएल वास्तव में यहोवा का भविष्यद्वक्ता है।
\v 21 यहोवा शिलो में शमूएल के पास उपस्थित रहे और उसे संदेश देते रहे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 शमूएल ने इस्राएल के सब लोगों को परमेश्वर के सन्देश सुनाए।
\p उस समय इस्राएली सेना पलिश्ती लोगों की सेना से युद्ध करने के लिए गई। इस्राएली सेना ने एबेनेजर में अपने तंबू खड़े किए, और पलिश्ती सेना ने अपेक में अपने तंबू खड़े किए।
\v 2 पलिश्ती सेना ने इस्राएली सेना पर आक्रमण किया, और युद्ध हुआ, पलिश्तियों ने इस्राएलियों को पराजित कर दिया और चार हजार सैनिकों को मार डाला।
\s5
\v 3 जब शेष इस्राएली सैनिक अपनी छावनी में लौट आए, तो इस्राएली याजक ने कहा, "यहोवा ने आज पलिश्ती सेना को क्यों इस्राएलियों पर विजय दी है? हमें पवित्र सन्दूक को शीलो से यहाँ लाना चाहिए, जिससे कि यहोवा हमारे साथ युद्ध में जाएँ, जिससे कि हमारे शत्रु हमें फिर से पराजित न कर पाएँ! "
\p
\v 4 इसलिए सैनिकों ने कुछ लोगों को शीलो में भेजा, और वे लोग यहोवा के पवित्र सन्दूक लाए, जो सन्दूक के शीर्ष पर पंख वाली प्रतिमाओं के बीच यहोवा सिंहासन पर बैठे थे। होप्नी और पीनहास जो एली के दो बेटे थे उसके साथ गए थे।
\p
\s5
\v 5 जब इस्राएली लोगों ने देखा कि वे व्यक्ति अपनी छावनी में पवित्र सन्दूक ला रहे हैं, तो वे बहुत प्रसन्न हुए तो उन्होंने प्रबल नारा लगाया। इतनी जोर से कि भूमि तक हिलाकर रख दी!
\v 6 पलिश्तियों ने पूछा, "इस्राएली छावनी में लोग क्यों चिल्ला रहे हैं?" किसी ने उन्हें बताया कि यहोवा का पवित्र सन्दूक उनकी छावनी में लाया गया है इसलिए वे नारा लगा रहे हैं।
\s5
\v 7 तब वे बहुत डर गए। उन्होंने कहा, "उनके परमेश्वर उनकी सहायता करने के लिए उनकी छावनी में आए हैं! अब हम बड़ी परेशानी में हैं! ऐसा कुछ हमारे साथ पहले कभी नहीं हुआ है!
\v 8 कोई भी अब हमें बचा नहीं सकता है! यह वह परमेश्वर हैं जिन्होंने मिस्र से इस्राएलियों के निर्गमन और मरुभूमि की यात्रा से पहले मिस्रियों को अनेक विपत्तियों से मारा था।
\v 9 तुम पलिश्तियों, साहसी बनो! घमासान युद्ध करो! यदि तुम ऐसा नहीं करते तो वे हमें पराजित करेंगे, और तुम उनके दास बन जाओगे, जैसे वे पहले हमारे दास थे! "
\p
\s5
\v 10 तब पलिश्तियों ने पूरी शक्ति लगाकर युद्ध किया और इस्राएलियों को पराजित कर दिया। उन्होंने तीस हजार इस्राएली सैनिकों को मार डाला, और अन्य इस्राएली सैनिक छिप गए और अपने तंबू में भाग गए।
\v 11 पलिश्तियों ने पवित्र सन्दूक पर कब्जा कर लिया, और उन्होंने एली के दोनो पुत्रों, होप्नी और पीनहास को मार डाला।
\p
\s5
\v 12 उसी दिन, बिन्यामीन से निकले जनजाति का एक व्यक्ति उस स्थान से भाग गया जहाँ सेनाएँ लड़ रही थीं। उसने अपने कपड़े फाड़े और अपने सिर पर मिट्टी डाल दी कि दुःख का प्रदर्शन करे। वह दोपहर के अंत तक शीलो पहुँचा।
\v 13 मार्ग के समीप एली प्रतीक्षा कर रहा था। वह युद्ध का समाचार सुनना चाहता था, और परमेश्वर के पवित्र सन्दूक के लिए चिंतित था कि उसके साथ कुछ बुरा तो नहीं हुआ। जब वह व्यक्ति आ पहुँचा और लोगों को युद्ध का समाचार सुनाया तो, शहर में लोगों ने चिल्ला-चिल्लाकर रोना आरम्भ कर दिया।
\p
\s5
\v 14 एली ने पूछा, "वे सब शोर क्यों कर रहे हैं?" दूत एली के पास भाग कर गया और उसे समाचार सुनाया।
\p
\v 15 उस समय, एली अट्ठानवे वर्ष का था, और वह अंधा था।
\s5
\v 16 दूत ने एली से कहा, "मैं अभी वही से आया हूँ जहाँ सेनाएं युद्ध कर रही थीं। मैं वहाँ से पहले ही आ गया था।" एली ने पूछा, "क्या हुआ?"
\p
\v 17 उस दूत ने उत्तर दिया, "पलिश्तियों ने हमारी सेना को पराजित कर दिया। उन्होंने हमारे हजारों सैनिकों को मार डाला है, और बाकी सैनिक भाग गए। पलिश्तियों ने तेरे दोनों पुत्रों, होप्नी और पीनहास को मार डाला। उन्होंने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर भी अधिकार कर लिया है।"
\p
\s5
\v 18 एली बहुत बुजुर्ग था। और वह बहुत मोटा था; और जब उसने सुना कि पवित्र सन्दूक के साथ क्या हुआ, तो वह शहर के द्वार के समीप अपनी कुर्सी से पीछे गिर गया। उसकी गर्दन टूट गई और वह मर गया। उसने चालीस वर्षों तक इस्राएलियों की आगुवाई की थी।
\p
\s5
\v 19 एली के पुत्र पीनहास की पत्नी गर्भवती थी, और उसके लिए उसके बच्चे को जन्म देने का लगभग समय था। जब उसने सुना कि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर अधिकार कर लिया गया है और उसके पति और उसके ससुर मर गए, तो उसको जच्चा का दर्द अचानक शुरू हो गया और उनके लिए यह बहुत अधिक था। उसने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन वह मरने लगी।
\v 20 जब वह मर रही थी, तो जिस महिला ने उसकी सहायता की थी, उसने उसे यह कहकर प्रोत्साहित करने का प्रयास की, "तुमने बेटे को जन्म दिया है!" लेकिन उसने जो कहा उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
\p
\s5
\v 21 उसने बालक को इकाबोद नाम दिया, जिसका अर्थ है "महिमा रहित," क्योंकि उसने कहा, "ईश्वर की महिमा इस्राएल से उठ गई है।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर पलिश्तियों ने अधिकार कर लिया था और उसके पति और उसके ससुर की मृत्यु हो गई थी।
\v 22 उसने कहा, "परमेश्वर की महिमा ने इस्राएल छोड़ दिया है, क्योंकि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर पलिश्तियों ने अधिकार कर लिया है!" और फिर वह मर गई।
\s5
\c 5
\p
\v 1 पलिश्ती लोगों की सेना ने एबेनेजर शहर में परमेश्वर के पवित्र सन्दूक पर अधिकार कर लिया, और वे इसे अपने सबसे बड़े शहरों में से एक शहर अश्दोद ले गये।
\v 2 वे उसे अपने देवता दागोन के मंदिर में ले गए और उसे दागोन की एक मूर्ति के साथ रखा।
\v 3 परन्तु अगली सुबह, जब अश्दोद के लोग उसे देखने गए, तो उन्होंने देखा कि मूर्ति यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने गिर गई थी! इसलिए उन्होंने मूर्ति को फिर से अपने स्थान पर स्थापित किया।
\s5
\v 4 लेकिन अगली सुबह, उन्होंने देखा कि यह फिर से पवित्र सन्दूक के सामने गिर पड़ी थी। लेकिन इस बार, ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मूर्ति के सिर और हाथों को काट दिया हो; वे दरवाजे पर पड़े थे। केवल उसका शरीर एक टुकड़े में पड़ा था।
\v 5 यही कारण है कि उस समय से, अश्दोद में दागोन के याजक और दागोन के मंदिर में प्रवेश करने वाला दरवाजे की देहलीज़ पर पैर नहीं रखता है क्योंकि वहाँ दागोन के हाथ और सिर गिरे पड़े थे।
\p
\s5
\v 6 तब यहोवा ने अश्दोद के लोगों को फोड़ों से बहुत पीड़ा दी। शहर और आसपास के क्षेत्र में कई बीमार हुए और मर गए।
\v 7 अश्दोद के लोगों को समझ में आ गया कि ऐसा क्यों हो रहा था, और वे रोने लगे, "इस्राएलियों के परमेश्वर हमें और हमारे देवता दागोन को दंडित कर रहे हैं। इसलिए हम इस्राएलियों के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को यहाँ रखने की अनुमति नहीं देंगे!"
\s5
\v 8 उन्होंने पलिश्तियों के पाँच राजाओं को बुलाया और उनसे पूछा, "इस्राएलियों के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक के साथ हमें क्या करना चाहिए?"
\p राजाओं ने उत्तर दिया, "पवित्र सन्दूक को गत शहर में ले जाओ।" अतः वे इसे गत में ले गए।
\v 9 परन्तु जब वे गत में ले गए, तब यहोवा ने उस नगर के लोगों को शक्तिशाली तरीके से मारा, जिसके परिणामस्वरूप युवा और बूढ़े लोगों समेत कई लोगों की त्वचा पर फोड़े निकले। तब लोग बहुत डर गए।
\s5
\v 10 तब वे पवित्र सन्दूक को एक्रोन नगर में ले गये।
\p लेकिन जब लोग पवित्र सन्दूक को एक्रोन में ले गए, तो वहाँ के लोग रोये कि, "तुम इस्राएलियों के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को हमारे शहर में क्यों ला रहे हो? ऐसा करके तुम हमें और बाकी के लोगों के मरने का कारण बनोगे!"
\s5
\v 11 इसलिए एक्रोन के लोगों ने भी पलिश्ती राजाओं को बुलाया। जब वे आए, तो लोगों ने उनसे कहा, "इस्राएलियों के देवता के इस पवित्र सन्दूक को अपने ही स्थान पर ले जाओ! यदि तुम शीघ्र ही ऐसा नहीं करते हो, तो हम सब मर जाएंगे!" लोग डर गए क्योंकि वे जानते थे कि परमेश्वर उन्हें गंभीर दण्ड देना आरम्भ कर रहे हैं।
\v 12 एक्रोन में से कुछ लोग पहले ही मर चुके थे, और बाकी लोग अपनी त्वचा पर फोड़ो के कारण पीड़ित थे। तो वे सब सहायता के लिए अपने देवताओं के सामने रोये।
\s5
\c 6
\p
\v 1 पलिश्तियों ने सात महीने तक अपने क्षेत्र में परमेश्वर का पवित्र सन्दूक रखा।
\v 2 तब उन्होंने अपने याजक और उनके ज्योतिषियों को बुलाया। उन्होंने उनसे पूछा, "हमें यहोवा के पवित्र सन्दूक से क्या करना चाहिए? हमें बताओ कि हमें इसे वापस इसकी भूमि पर कैसे भेजना चाहिए।"
\p
\s5
\v 3 उन लोगों ने उत्तर दिया, "इसके साथ यहोवा को यह दिखाने के लिए एक भेंट भेजना कि तुम जानते हो कि सन्दूक को पकड़ने के लिए तुम दोषी हो, ताकि विपत्ति रुक जाए। यदि तुम ऐसा करते हो, और स्वस्थ होते हो तो यह सिद्ध हो जाएगा कि उन्हीं ने तुम पर हांथ उठाया था और तुम्हारे कष्टों का कारण स्पष्ट हो जाएगा।"
\p
\v 4 पलिश्तियों ने पूछा, "हमें किस प्रकार की की भेंट भेजनी चाहिए?"
\p उन लोगों ने उत्तर दिया, "अपनी त्वचा पर फोड़ों के समान पाँच सोने के नमूने, और पाँच सोने के चूहे बनाओ। प्रत्येक की संख्या पाँच हो क्योंकि यह तुम्हारे राजाओं की संख्या के बराबर होगा, और क्योंकि विपत्ति ने तुम लोगों को और तुम्हारे पाँच राजाओं को मारा है।
\s5
\v 5 ऐसे नमूने बनाओ जो चूहों और फोड़ो के समान दिखतें हों जो तुम्हारे देश की हानि कर रहे हैं। उन्हें इस्राएली लोगों के देवता का सम्मान करने के लिए बनाओ। यदि तुम ऐसा करते हो, तो संभव है कि, तुम्हारे देवताओं को और तुम्हारे देश को दण्ड देना रोक दें।
\v 6 फ़िरौन और मिस्र के लोगों के समान हठीले मत बनो। याद रखो कि आखिर में यहोवा ने उनके सहने से अधिक पीड़ा दी, और अंत में उन्होंने इस्राएलियों को अपनी भूमि छोड़ने की अनुमति देनी पड़ी।
\p
\s5
\v 7 तो तुमको एक नया रथ बनाना होगा। फिर दो गायों को लेना जिन्होंने हाल ही में बछड़ों को जन्म दिया हो। वे गायें ऐसी होनी चाहिए जो कभी गाड़ी में जोती न गई हों। उन गायों को नई गाड़ी खींचने के लिए लगाओ, और बछड़ों को मां से दूर ले जाओ।
\v 8 गाड़ी पर उनके परमेश्वर का पवित्र सन्दूक रखो। गाडी में फोड़ो के पाँच सोने के नमूने और पाँच सोने के चूहों को भी रखो। उन्हें पवित्र सन्दूक के साथ एक छोटे से डिब्बे में रखो। वे यह दिखाने के लिए एक भेंट होंगे कि तुम जानते हो कि पवित्र सन्दूक को पकड़ने के लिए तुमको दंडित किया जा रहा है। फिर गाड़ी खींचकर गायों को सड़क से नीचे भेज दो।
\v 9 गाडी को देखते रहो कि गायें खिंच कर कहाँ ले जा रही हैं। यदि वे इसे इस्राएल में बेथशेमेश शहर कि ओर ले जाती है, तो हम जान जाएंगे कि यह उनका देवता था जो हमारे लिए ऐसी बड़ी हानि लाया था। लेकिन यदि वे उसे वहाँ नहीं ले जाती हैं, तो हम जान लेंगे कि यह उन इस्राएली लोगों का देवता नहीं था जिन्होंने हमें दंडित किया है। हम समझ लेंगे कि यह आकस्मात हुई दुर्घटना है। "
\p
\s5
\v 10 इसलिए लोगों ने वही किया जो याजक और ज्योतिषियों ने उन्हें करने के लिए कहा था। उन्होंने एक गाड़ी बनाई, और दो गायों को लिया और उनके बछड़ों को मां से दूर किया।
\v 11 उन्होंने यहोवा के पवित्र सन्दूक और सोने के चूहों और फोड़ो को एक साथ डिब्बे में डाल दिया।
\v 12 तब गायों ने चलना शुरू कर दिया, और वे सीधे बेतशेमेश की ओर गईं। वे मार्ग पर ही चलती रहीं और रंभाती रहीं। वे न तो बाईं ओर न ही दाईं ओर गईं। पलिश्ती के क्षेत्र के पाँच राजाओं ने गायों का पीछा किया जब तक कि वे बेतशेमेश के किनारे तक नहीं पहुँची।
\p
\s5
\v 13 उस समय, बेतशेमेश के लोग शहर के बाहर घाटी में गेहूं काट रहे थे। जब गाये मार्ग पर आईं, तो उन्होंने पवित्र सन्दूक को देखा। वे उसे देख कर आनन्द से भर गये।
\s5
\v 14-15 गायों ने गाड़ी को यहोशू नाम के एक व्यक्ति के खेत में खींच लिया, और एक बड़ी चट्टान के पास रुक गईं। लेवी के गोत्र के कई लोगों ने गाड़ी से पवित्र सन्दूक और सोने के चूहों और फोड़ो वाले डिब्बे को उठा लिया, और उन्हें बडी चट्टान पर रखा। तब लोगों ने गाड़ी को तोड़ दिया और उसकी लकड़ी में आग लगा दी। उन्होंने गायों को मार दिया और उनके शरीर को आग में जला दिया ताकि वह जलाकर यहोवा के लिए चढ़ाईं जा सके। उस दिन बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के लिए कई बालियाँ चढ़ाईं जो पूरी तरह जला दी गई थी, और अन्य बालियाँ भी चढ़ाईं।
\s5
\v 16 पलिश्ती के पाँच राजाओं ने यह सब देखा, और फिर वे उसी दिन एक्रोन में लौट गये।
\p
\s5
\v 17 उन सोने के पाँच फोड़े जिन्हें उन्होंने यहोवा को यह बताने के लिए भेजा था कि वे जानते थे कि वे दण्ड पाने के योग्य थे, उन पाँच राजाओं के उपहार थे जो अश्दोद, गाजा, अशकेलोन, गत के नगरों और एक्रोन के शासक थे।
\v 18 पाँच सोने के चूहे, उन पाँच शहरों और आसपास के शहरों के लोगों से उपहार थे। बेतशेमेश की वह बड़ी चट्टान, जिस पर लेवी के गोत्र के लोगों ने पवित्र सन्दूक को स्थापित किया था, आज भी यहोशू के खेत में उपस्थित है। जब लोग उसे देखते हैं, तो उन्हें स्मरण होता है कि वहाँ क्या हुआ था।
\p
\s5
\v 19 परन्तु बेतशेमेश के कुछ लोगों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक में देखा था, और इसके कारण, यहोवा ने 50,070 लोगों को मार दिया। तब लोगों ने बहुत शोक किया क्योंकि यहोवा ने उन लोगों को दण्ड दिया था।
\v 20 उन्होंने कहा, "हमारे पवित्र परमेश्वर यहोवा के सामने कौन खड़ा हो सकता है? हम इस पवित्र सन्दूक को कहां भेज सकते हैं?"
\p
\s5
\v 21 उन्होंने किर्यत्यारिम शहर के लोगों को यह बताने के लिए दूत भेजे, कि पलिश्तियों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को हमें लौटा दिया हैं! यहाँ आओ और इसे अपने शहर में ले जाओ! "
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब किर्यत्यारिम के लोगों ने संदेश प्राप्त किया, तो वे बेतशेमेश आए और यहोवा का पवित्र सन्दूक ले गये। वे इसे अबीनादाब के घर ले गए, जो पहाड़ी पर था। उन्होंने सन्दूक की देखभाल करने के लिए अबीनादाब के पुत्र एलीआज़र को अलग कर दिया।
\p
\v 2 पवित्र सन्दूक लंबे समय तक किर्यत्यारिम में रहा। बीस वर्ष तक वह वहाँ रहा। उस समय इस्राएल के सब लोग शोक करते रहे क्योंकि ऐसा लगता था कि यहोवा ने उन्हें त्याग दिया है, और वे फिर से सहायता के लिए उनके पास जाना चाहते थे।
\p
\s5
\v 3 तब शमूएल ने सभी इस्राएली लोगों से कहा, "यदि तुम सचमुच यहोवा का सम्मान करना चाहते हो, तो तुमको देवी अश्तारोत की मूर्तियों और पलिश्ती लोगों की मूर्तियों से छुटकारा पाना होगा।"
\v 4 इसलिए इस्राएलियों ने बाल और अश्तारोत देवताओं की मूर्तियों से छुटकारा पा लिया, और उन्होंने केवल यहोवा की आराधना करना आरंभ कर दिया।
\p
\s5
\v 5 तब शमूएल ने उन से कहा, "तुम सब इस्राएलियों को मिस्पा में मेरे साथ एकत्र होना होगा। तब मैं तुम्हारे लिए यहोवा से प्रार्थना करूंगा।"
\v 6 इसलिए वे मिस्पा में एकत्र हुए, वहाँ शमूएल ने इस्राएलियों के लिए अगुवाई की सेवा कर रहा था। उन्होंने वहाँ एक बड़ा समारोह किया। उन्होंने एक कुएं से पानी खींचा, और धरती पर पानी डाला, जिसे यहोवा ने देखा। मूर्तिपूजा का खेद प्रकट करने के लिए, उन्होंने उस दिन खाना नहीं खाया, स्वीकार किया कि उन्होंने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है।
\p
\s5
\v 7 जब पलिश्ती के राजाओं ने सुना कि इस्राएलियों को मिस्पा में एकत्रित किया गया है, तो उन्होंने इस्राएलियों पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना का नेतृत्व किया। जब इस्राएलियों को पता चला कि पलिश्ती सेना उनके पास आ रही थी, तो वे बहुत डर गए।
\v 8 उन्होंने शमूएल से कहा, "हमें पलिश्ती सेना से बचाने के लिए यहोवा से प्रार्थना करो, और उनसे विनती करना मत रोको!"
\s5
\v 9 तब शमूएल ने भेड़ का एक छोटा बच्चा लिया और उसे मार डाला और उसे यहोवा के लिए वेदी पर जला दिया, उसने प्रार्थना की और विनती की कि यहोवा इस्राएलियों की सहायता करें, और यहोवा ने उनकी सहायता की।
\p
\s5
\v 10 जब शमूएल भेंट चढ़ा रहा था, तब पलिश्ती सेना इस्राएलियों पर आक्रमण करने आई थी। परन्तु यहोवा उन पर बहुत ज़ोर से गरजे। पलिश्ती सेना के लोग डरकर बहुत घबरा गए। इसलिए इस्राएली उन्हें पराजित करके वापस भेजने में सफल हो गए।
\v 11 इस्राएली मिस्पा से निकल गए और पलिश्ती सैनिकों को लगभग बेतकर शहर तक खदेड़ा। उन्होंने कई पलिश्ती सैनिकों को मार डाला जो भागने का प्रयास कर रहे थे।
\p
\s5
\v 12 ऐसा होने के बाद, शमूएल ने एक बड़ा पत्थर लिया और मिस्पा और शेन के कस्बों के बीच स्थापित किया। उसने उस पत्थर को "एबेनेजर" नाम दिया, जिसका अर्थ है "सहायता का पत्थर", क्योंकि उसने कहा था "यहोवा ने यहाँ तक हमारी सहायता की है।"
\s5
\v 13 तब पलिश्ती लोग पराजित हुए, और लंबे समय तक उन्होंने फिर से आक्रमण करने के लिए इस्राएली भूमि में प्रवेश नहीं किया। शमूएल जब तक जीवित रहा, तब तक यहोवा ने इस्राएलियों को पलिश्ती सेना के आक्रमण से शक्तिशाली रूप से बचा कर रखा।
\p
\v 14 इस्राएली सेना फिर से इस्राएल के उन कस्बों पर अधिकार करने में सफल हुई, जिस पर पलिश्ती सेना ने पहले अधिकार कर लिया था। इस्राएली उन शहरों के आस-पास के अन्य क्षेत्रों को भी फिर से अपने अधिकार में लेने में सफल हो गए थे जिन्हें पलिश्ती सेना ने इस्राएलियों से ले लिया था। और इस्राएलियों और एमोरियों के समूह बीच शान्ति हो गई।
\p
\s5
\v 15 शमूएल तब तक इस्राएलियों का अगुवा बना रहा जब तक उसकी मृत्यु न हो गई।
\v 16 हर साल वह बेतेल और गिलगाल और मिस्पा के नगरों में यात्रा करता था। उन शहरों में वह लोगों के बीच विवादों की बात सुनता था और उनका न्याय करता था।
\v 17 उन शहरों में से प्रत्येक में निर्णय सुनाने के बाद, वह रामा में अपने घर लौट आता था, और वह वहाँ लोगों के विवादों को भी सुनता, और उनको निर्णय सुनाता था। उसने यहोवा के लिए बलि चढ़ाने के लिए रामा में एक वेदी बनाई।
\s5
\c 8
\p
\v 1 जब शमूएल बूढ़ा हो गया, तब उसने इस्राएल के लोगों की अगुवाई करने के लिए अपने दोनों पुत्रों, योएल और अबिय्याह को नियुक्त किया।
\v 2 उन्होंने बेर्शेबा शहर में लोगों के विवादों का न्याय किया।
\v 3 लेकिन वे अपने पिता के समान नहीं थे। वे केवल बहुत पैसा चाहते थे। उन्होंने रिश्वत स्वीकार की, और उन्होंने लोगों के विवादों को सुनकर उनका सही निर्णय नहीं लिया।
\p
\s5
\v 4 अंत में, इस्राएली अगुवों ने शमूएल के साथ इस विषय पर चर्चा करने के लिए रामा के शहर में उससे भेंट की।
\v 5 उन्होंने उससे कहा, "सुन! तू अब बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्र तेरे जैसे नहीं हैं। हमारे ऊपर शासन करने के लिए एक राजा को नियुक्त कर दे, जैसे कि दूसरे देशों में हैं!"
\p
\s5
\v 6 शमूएल उनके इस अनुरोध से बहुत अप्रसन्न था, इसलिए उसने इसके विषय में यहोवा से प्रार्थना की।
\v 7 यहोवा ने उत्तर दिया, "उन्होंने तुझसे जो निवेदन किया है, वैसा ही करो। लेकिन ऐसा मत सोचो कि उन्होंने तुम्हें अस्वीकार किया हैं। मैं उनका राजा रहा हूँ, और जिसे वे अस्वीकार कर रहे हैं, वह वास्तव में मैं हूँ।
\s5
\v 8 जब से मैं उन्हें मिस्र से बाहर लाया, तब से उन्होंने मुझे अस्वीकृत कर दिया है, और उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा की है। और अब वे तुमको भी उसी प्रकार अस्वीकार कर रहे हैं।
\v 9 वे जो कह रहें हैं, वह उनके लिए कर दो परन्तु उन्हें चेतावनी देना कि उनका राजा उनके प्रति कैसे कार्य करेगा! "
\p
\s5
\v 10 तब शमूएल ने उन लोगों को यहोवा की बात सुना दी।
\v 11 उसने कहा, "यदि कोई राजा तुम पर शासन करता है, तो वह तुम्हारे साथ यही सब करेगा: वह तुम्हारे पुत्रों को सेना में भर्ती होने के लिए विवश करेगा। वह उनमें से कुछ को मार्ग साफ करने के लिए रथों के सामने दौडाएगा।
\v 12 उनमें से कुछ तो सैनिकों के अधिकारी होंगे, परन्तु अन्य दासों के समान उनके लिए काम करेंगे। वह उनमें से कुछ को अपने खेतों में हल चलाने के लिए विवश करेगा और बाद में अपनी फसलों को एकत्रित करवाएगा। दूसरों को वह अपने रथों के लिए और अपने हथियार और साधन बनाने के लिए विवश करेगा।
\s5
\v 13 राजा तुम्हारी पुत्रियों को तुमसे से ले लेगा और उन्हें इत्र बनाने के लिए विवश करेगा और अपने लिए खाना और रोटियाँ बनवाएगा।
\v 14 वह तुम्हारे सबसे अच्छे खेतों और दाख की बारियां और जैतून के पेड़ ले लेगा, और वो सब अपने अधिकारियों को देगा।
\v 15 वह तुम्हारी उपज का दसवां भाग लेगा और उसे अपने महल में काम करने वाले अधिकारियों और सेवकों में बांट देगा।
\s5
\v 16 वह तुम्हारे पुरूष और स्त्री सेवकों, और तुम्हारे सबसे अच्छे मवेशियों और गधों को ले लेगा, और उन्हें अपने काम में लगवाएगा।
\v 17 वह तुम्हारी भेड़ों और बकरियों का दसवां भाग लेगा। और तुम उसके दास बन जाओगे!
\v 18 जब ऐसा समय आएगा, तब तुम अपने चुने हुए राजा से चिल्ला-चिल्लाकर शिकायत करोगे, परन्तु यहोवा तुम्हारी न सुनेंगे।"
\p
\s5
\v 19 लेकिन लोगों ने शमूएल की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा, "तुम जो कह रहे हो, उसके विषय में हमें कोई चिंता नहीं है! हम बस एक राजा चाहते हैं!
\v 20 हम अन्य राष्ट्रों के समान बनना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि एक राजा हम पर शासन करे और युद्ध में हमारे सैनिकों का नेतृत्व करे।
\p
\s5
\v 21 शमूएल ने यहोवा से कहा कि लोग क्या कह रहे हैं।
\v 22 यहोवा ने उत्तर दिया, "जो कुछ वे तुमको करने के लिए कह रहे हैं वह करो। उन्हें राजा दो!" तो शमूएल सहमत हो गया, और फिर उसने उन लोगों को घर भेज दिया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 वहाँ एक समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति था, जिसका नाम किश था। वह बिन्यामीन के गौत्र का था। किश अबीएल का पुत्र और सरोर का पोता था। वह बकारत और अपीह के वंश से था।
\v 2 किश का एक पुत्र था जिसका नाम शाऊल था। वह किसी भी अन्य इस्राएली पुरुषों की तुलना में अधिक सुन्दर था, और वह किसी भी अन्य इस्राएली पुरुषों की तुलना में लंबा था।
\p
\s5
\v 3 एक दिन, किश की गधियों में से कुछ भटक गयी। तो किश ने शाऊल से कहा, "मेरे साथियों में से एक को अपने साथ ले जाओ, और जाओ और गदहियों की खोज करो!"
\v 4 शाऊल ने ऐसा ही किया। उसने एक सेवक लिया, और वे पहाड़ी देश के पार चले गए जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे, और फिर वे शालीशाह और शालीम के इलाकों में चले गए, और फिर वे बिन्यामीन के वंश से संबंधित सभी इलाकों में चले गए, लेकिन वे गदहियों को खोज नहीं सके।
\p
\s5
\v 5 अंत में, वे सूफ के क्षेत्र में आए। तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, "चलो घर वापस चलें। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो मेरे पिता गधे के विषय में चिंता करना बंद कर देंगे और हमारे विषय में चिंता करने लगेंगे।"
\p
\v 6 लेकिन दास ने कहा, "मैं कुछ और सोच रहा हूँ। परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं में से एक है जो इस शहर में रहता है। लोग उसका बहुत सम्मान करते हैं, क्योंकि वह जो भविष्यवाणी करता है वह सच होती है। चलो चलें और उनसे बात करें। संभव है कि वह हमें बताए कि हम गधे को खोजने के लिए कहां जाएँ। "
\p
\s5
\v 7 शाऊल ने दास से कहा, "यदि हम उससे बात करने के लिए जाते हैं, तो हमें उसे उपहार देना चाहिए, परन्तु हम क्या दे सकते हैं? हमारे पास हमारे बोरे में और खाना नहीं है। क्या हमारे पास कुछ और है उसे देने के लिए।"
\p
\v 8 दास ने उत्तर दिया, "इसे देखो! मेरे पास चाँदी का एक छोटा टुकड़ा है। मैं उसे यह दे सकता हूँ, और फिर वह हमें बताएगा कि गदहियों को खोजने के लिए कहां जाना है।"
\s5
\v 9-11 शाऊल ने कहा, "बहुत अच्छा, चलो उससे बात करें।" तो वे उस शहर में गए जहाँ भविष्यद्वक्ता रहता था। जब वे शहर की पहाड़ी पर जा रहे थे, तो वे कुछ युवा स्त्रियों से मिले जो कुएँ से पानी लेने के लिए शहर से बाहर आ रहीं थीं। उनमें से एक ने उन स्त्रियों से पूछा, "आज शहर में दर्शी है?" उन्होंने ऐसा इसलिए पूछा कि उन दिनों यदि इस्राएल में लोग परमेश्वर का संदेश प्राप्त करना चाहते थे, तो वे कहते थे, "चलो हम दर्शी के पास चलते हैं," और उन्हें या दर्शन देखने वालों को अब भविष्यद्वक्ता कहा जाता है।"
\s5
\v 12 स्त्रियों ने उत्तर दिया, "हाँ, वह शहर में है। वह तो तुम्हारे आगे-आगे इसी मार्ग पर चल रहा है। वह आज ही शहर में पहुँचा है क्योंकि लोग आराधना स्थल की वेदी पर बलि चढ़ाने जा रहे हैं, वहीं सब एकत्रित होंगे।
\v 13 यदि तुम शीघ्र पहुँच जाते हो, तो तुम्हें उससे बात करने का समय मिल जाएगा। जिन लोगों को उन्होंने आमंत्रित किया है वे तब तक खाना आरम्भ नहीं करेंगे जब तक वह वहाँ नहीं आता और बलि को आशीष देता है। "
\p
\s5
\v 14 तब शाऊल और दास ने शहर में प्रवेश किया। जैसे ही वे द्वारों से गुज़र रहे थे, उन्होंने शमूएल को देखा क्योंकि वह उनके पास आ रहा था; वह उस मार्ग पर था जहाँ लोग बलि चढ़ाने जा रहे थे।
\p
\s5
\v 15 पिछले दिन, यहोवा ने शमूएल से कहा था,
\v 16 "इस समय कल, मैं बिन्यामीन के गौत्र के क्षेत्र से एक व्यक्ति को भेजूंगा। उसके सिर पर जैतून का तेल डालना ताकि यह उसके लिए मेरे इस्राएली लोगों का अगुवा होने का संकेत हो। मैंने देखा है कि मेरे लोग पीड़ित हैं क्योंकि पलिश्ती लोग उनका दमन कर रहे हैं, और मैंने अपने लोगों को सुना है क्योंकि उन्होंने मुझे सहायता के लिए बुलाया है। जिस व्यक्ति का तुम अभिषेक करते हो वह मेरे लोगों को पलिश्ती लोगों की शक्ति से बचाएगा। "
\p
\s5
\v 17 जब शमूएल ने शाऊल को देखा, तो यहोवा ने उस से कहा, "यह वह मनुष्य है जिसके विषय में मैंने कल बताया था! यह वही है जो मेरे लोगों पर शासन करेगा!"
\p
\v 18 शाऊल ने शमूएल को नगर के द्वार पर देखा, परन्तु उसे नहीं पता था कि यह शमूएल था। वह उसके पास गया और उससे पूछा, "क्या आप मुझे बता सकते हैं, उस व्यक्ति का घर कहां है जो परमेश्वर के दर्शन को देखता है?"
\p
\v 19 शमूएल ने उत्तर दिया, "मैं वह व्यक्ति हूँ। अपने दास के साथ उस स्थान पर जाओ जहाँ लोग बलिदान चढ़ाते हैं। तुम दोनों आज मेरे साथ खाओगे। कल सुबह मैं तुमको बताऊंगा जो तुम जानना चाहते हो, और फिर मैं तुम्हें घर भेजूंगा।
\s5
\v 20 इसके अतिरिक्त, उन गदहियों के विषय में और चिंता न कर जो तीन दिन पहले खो गये थे। किसी ने उन्हें पा लिया है। "
\p
\v 21 शाऊल ने उत्तर दिया, "मैं बिन्यामीन के गौत्र से हूँ, जो सब गौत्रों में से सबसे छोटा है! और मेरा परिवार हमारे जनजाति में सबसे कम महत्वपूर्ण परिवार है! तो तुम इस तरह मुझसे बात क्यों कर रहे हो, इस्राएली लोग मुझसे और मेरे परिवार से क्या चाहते हैं।"
\p
\s5
\v 22 तब शमूएल, शाऊल और उसके दास को बड़े भोजन कक्ष में ले गया, और उन्हें मेज के मुख्य भाग पर बैठने के लिए कहा, यह दर्शाता है कि वह उसे आमंत्रित उन तीस जनों से अधिक सम्मान दे रहा है।
\s5
\v 23 तब शमूएल ने दास को बोला, "मेरे पास माँस के टुकड़ों को लाओ जिसे मैंने तुम्हें अलग करने के लिए कहा था।"
\p
\v 24 इसलिए दास जांग के माँस को लाया; उसने वह शाऊल के सामने रखा। शमूएल ने शाऊल से कहा, "इसे खाना शुरू करो। मैंने दास से कहा था कि इसे तेरे लिए रख दे जिससे कि इस समय तुम सब आमंत्रित जनों के साथ इसे खाओ।" अतः शाऊल और शमूएल ने एक साथ खाया।
\p
\s5
\v 25 खाने के बाद, वे शहर लौट आए। तब शमूएल शाऊल को अपने घर की छत पर ले गया, और वहाँ उससे बात की।
\p
\v 26 जैसे ही अगली सुबह सूर्य उग रहा था, शमूएल ने शाऊल से कहा, "उठो! मेरे लिए तुम्हें वापस घर भेजने का समय हो गया है।" तो शाऊल उठ गया, और बाद में शमूएल और शाऊल घर से चल दिए।
\p
\s5
\v 27 जब वे शहर के किनारे पहुंचे, तो शमूएल ने शाऊल से अपने दास को आगे भेजने के लिए कहा। दास के चले जाने के बाद, शमूएल ने शाऊल से कहा, "कुछ समय के लिए यहाँ रुको, ताकि मैं तुम्हें परमेश्वर से प्राप्त एक संदेश सुना सकूँ।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 तब शमूएल ने जैतून का तेल का एक छोटा सा पात्र लिया और शाऊल के सिर पर तेल डाला। तब उसने शाऊल के गाल को चूमा, और उससे कहा, "मैं यह इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि यहोवा ने अपने इस्राएली लोगों के लिए तुम्हें अगुवा बनने के लिए चुना है।
\v 2 जब तुम आज मुझे छोड़कर राहेल की कब्र के पास पहुँचोगे जो बिन्यामिन के गोत्र के क्षेत्र में सेलसह में है, तब तुम दो पुरुषों से मिलोगे। वे तुमसे कहेंगे, 'गदहियां मिल गई हैं, परन्तु अब तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए चिंतित हैं, और लोगों से पूछ रहे हैं कि क्या किसी ने तुम्हें देखा है? '
\p
\s5
\v 3 जब तुम ताबोर शहर में बड़े बांज वृक्ष के पास पहुँचोगे, तो तुम देखोगे कि तीन पुरुष तुम्हारे सामने आ रहे हैं। वे बेतेल में परमेश्वर की आराधना करने के लिए मार्ग में होंगे। उनमें से एक जन तीन युवा बकरियों को लेकर चल रहा होगा, दूसरा तीन रोटी लेकर, और तीसरा दाखरस का एक पात्र ले कर चल रहा होगा।
\v 4 वे तुमको नमस्कार करेंगे, और तुम्हें दो रोटी भेंट करेंगे। उन्हें स्वीकार कर लेना।
\p
\s5
\v 5 जब तुम पहाड़ी पर पहुँचोगे, गिबा शहर के पास जहाँ लोग परमेश्वर की आराधना करते हैं, वहाँ एक छावनी है जहाँ पलिश्ती सैनिक रहते हैं, वहाँ तुम भविष्यद्वक्ताओं के एक दल से मिलोगे जो पहाड़ी पर की वेदी से नीचे आ रहे होंगे। उनके सामने लोग होंगे जो संगीत के विभिन्न वाद्ययंत्र: वीणा, सितार, बांसुरी, और सारंगी बजा रहे होंगे। और वे सब ऊँची शब्दों में परमेश्वर से प्राप्त संदेश सुना रहे होंगे।
\v 6 उस समय यहोवा के आत्मा तुम पर आएँगे, और तुम भी उसी तरह चिल्लाओगे। तुम बदल जाओगे एक अलग व्यक्ति की तरह।
\s5
\v 7 उन घटनाओं के बाद, जो कुछ भी तुम्हें सही लगता है वही करना, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे साथ हैं।
\p
\v 8 तब मुझसे पहले गिलगाल शहर जाकर, सात दिनों तक मेरी प्रतीक्षा करना। तब मैं वहाँ होमबली और अन्य बलिदान चढ़ाने के लिए तुमसे मिलूंगा जिससे तुम परमेश्वर के साथ संगति में बने रहो। वहाँ पहुँचकर मैं तुमको बताऊंगा कि तुम्हें और क्या करना है। "
\p
\s5
\v 9 शाऊल वहाँ से जाने लगा, परमेश्वर ने शाऊल के अन्दर के मानव को बदल दिया। और उस दिन शमूएल की भविष्यवाणी की सब बातें पूरी हुईं।
\v 10 गिबा पहुंचकर शाऊल और उसके दास ने कुछ भविष्यद्वक्ताओं को देखा जो सीधे परमेश्वर से आए संदेश सुना रहे थे। जब भविष्यद्वक्ता शाऊल और उसके दास के निकट आ रहे थे, तब परमेश्वर के आत्मा शाऊल पर शक्तिशाली रूप से आए, और वह भी परमेश्वर के संदेश को चिल्ला-चिल्लाकर सुनाने लगा।
\s5
\v 11 जब शाऊल को जानने वाले लोगों ने उसे भविष्यद्वक्ताओं की सी वाणी बोलते सुना, तो उन्होंने एक दूसरे से कहा, "किश के इस पुत्र के साथ क्या हुआ है? क्या वह अब वास्तव में भविष्यद्वक्ताओं में से एक है?"
\p
\v 12 वहाँ रहने वाले पुरुषों में से एक ने उत्तर दिया, "इसमें कोई अन्तर नहीं दिखाई पड़ता कि इन अन्य भविष्यद्वक्ताओं के माता-पिता कौन हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि शाऊल परमेश्वर के संदेश सुना रहा है।" और यही कारण है कि, जब लोग संदेह करते तो सोचते कि शाऊल के साथ क्या हुआ है और कहते, "क्या शाऊल वास्तव में भविष्यद्वक्ताओं में से एक है?"
\v 13 जब शाऊल ने उन संदेशों को बोलना समाप्त कर दिया जिन्हें परमेश्वर ने उसे दिये थे, तो वह उस स्थान पर गया जहाँ लोग बलिदान चढ़ाते थे।
\p
\s5
\v 14 बाद में, शाऊल के चाचा ने उसे वहाँ देखा, तो उससे पूछा, "तुम कहाँ गए थे?" शाऊल ने उत्तर दिया, "हम गदहियों को ढूँढनें गए थे। जब हम उन्हें नहीं ढूँढ पाए, तो हम वहाँ शमूएल से पूछने गये कि वह हमें बताए कि गदहियाँ कहाँ गयी है?"
\p
\v 15 शाऊल के चाचा ने उत्तर दिया, "शमूएल ने तुम्हें क्या कहा?"
\p
\v 16 शाऊल ने उत्तर दिया, "उसने हमें आश्वासन दिया कि किसी को गधे मिल गए हैं।" लेकिन उसने अपने चाचा को यह नहीं बताया कि शमूएल ने उसको इस्राएल के राजा बनने के विषय में क्या कहा था।
\p
\s5
\v 17 इसके बाद में शमूएल ने इस्राएल के लोगों को यहोवा का संदेश सुनने के लिए मिस्पा में बुलाया।
\v 18 जब वे पहुंचे, तो उसने उन से कहा, "जिन यहोवा की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे खाते हैं: 'मैं तुम इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाया। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र के शासकों और अन्य अत्याचारी राजाओं की शक्ति से बचाया है।
\v 19 मैं ही हूँ जो तुम्हें परेशानियों और कठिनाइयों से निकालता हूँ परन्तु तुम ने दिखा दिया है कि तुम मेरी उपासना करना नही चाहते तुमने मुझसे एक राजा के लिए विनती की कि वह तुम पर राज करे। अतः गौत्रों के और कुलों के प्रधान मेरी उपस्थिति में एकत्रित हो जाओ। '"
\p
\s5
\v 20 जब वे प्रतिनिधि शमूएल के पास आए, तो परमेश्वर ने संकेत दिया कि उन्होंने किसी को बिन्यामीन के गौत्र से चुना है।
\v 21 तब शमूएल ने बिन्यामीन के गोत्र के प्रतिनिधियों को आगे आने के लिए कहा, और परमेश्वर ने संकेत दिया कि उस गौत्र से उसने मत्री के परिवार से किसी को चुना है, और फिर परमेश्वर ने संकेत दिया कि मत्री के परिवार से उसने किश के पुत्र शाऊल को चुना है। लेकिन जब उन्होंने शाऊल को खोजा, तो वह उन्हें नहीं मिला।
\s5
\v 22 इसलिए उन्होंने यहोवा से पूछा, "संभव है कि किसी और को चुना गया है?" यहोवा ने उत्तर दिया, "वह व्यक्ति सेना के सामान में छिपा हुआ है।"
\p
\v 23 तब वे जल्दी वहाँ गए और शाऊल को ढूंढ़ लिया, और उसे सभी लोगों के सामने लाए। वे देख सकते थे कि वह वास्तव में दूसरों की तुलना से अधिक लम्बा है।
\s5
\v 24 तब शमूएल ने वहाँ सब लोगों से कहा, "यह वह राजा है जिसे यहोवा ने तुम्हारे लिए चुना है। सचमुच, सारे इस्राएल में उसके समान कोई और नहीं है!" सभी लोग चिल्लाने लगे, "राजा चिरंजीवी रहे।"
\p
\s5
\v 25 तब शमूएल ने लोगों से कहा कि राजा उन्हें क्या करने के लिए विवश करेगा, और राजा को जो कुछ भी करना होगा वह भी बताया। उसने उन सब बातों को एक लपेटे हुए पत्र में लिखा, और फिर उसने उसे पवित्र स्थान पर रखा जहाँ यहोवा थे। तब शमूएल ने सब लोगों को घर भेज दिया।
\p
\s5
\v 26 जब शाऊल गिबा के नगर में अपने घर लौट आया, तो साहसी पुरुषों के एक दल ने हमेशा शाऊल के साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया था।
\v 27 लेकिन कुछ निक्कमे पुरुषों ने कहा, "यह व्यक्ति हमें हमारे शत्रुओं से कैसे बचा सकता है?" उन्होंने उसे तुच्छ जाना और उसके प्रति स्वामिभक्ति की भेंट देने से मना कर दिया। लेकिन शाऊल ने उन्हें झिड़कने के लिए कुछ भी नहीं कहा।
\s5
\c 11
\p
\v 1 एक महीने बाद, अम्मोन के राजा नाहाश ने अपनी सेना का नेतृत्व किया और यरदन नदी के पार गिलाद के क्षेत्र में याबेश शहर को घेर लिया। लेकिन याबेश के लोगों ने किसी को नियुक्त किया था जिसने नाहाश से कहा, "हमारे साथ एक समझौता करो, हमें मत मारो, और फिर हम तुम्हें हमारे पर शासन करने देंगे।"
\p
\v 2 नाहाश ने उत्तर दिया, "यदि तुम एक काम करते हो तो मैं ऐसा करूँगा। हमें अपने सब लोगों की दाहिनी आँख निकालने दो कि अन्य देशों के लोग तुम सब इस्राएलियों को तुच्छ समझें।"
\p
\s5
\v 3 याबेश के अगुवों ने उत्तर दिया, "अगले सात दिनों तक आक्रमण न करना। उन सात दिनों में, हम सब को तुम्हारी यह इच्छा बताने के लिए पूरे इस्राएल में दूत भेज देंगे। यदि कोई हमारी सहायता नहीं करेगा, तो हम आत्मसमर्पण करेंगे।"
\p
\s5
\v 4 तब याबेश के अगुवों ने पूरे इस्राएल में दूत भेजे। जब दूत गिबा में आए, जहाँ शाऊल रहता था, और उन्होंने लोगों को स्थिति के विषय में बताया, तो हर किसी ने रोना शुरू कर दिया।
\v 5 उस समय, शाऊल अपना खेत जोत रहा था। जब वह घर लौट आया, तो उसने पूछा, "सब लोग क्यों रो रहे हैं?" उन्होंने उसे वह सब बताया जो याबेश के दूतों ने उन्हें बताया था।
\p
\s5
\v 6 तब शाऊल पर परमेश्वर के आत्मा शक्तिशाली रूप से आए, और नाहाश की इस बात पर वह क्रोध से भर गया कि वह ऐसा करना चाहता है।
\v 7 उसने अपने दो बैलों को लिया और उन्हें मार कर टुकड़ों में काट दिया। तब उसने इस्राएल में सब लोगों को वे टुकड़े भेजे और दूतों के हाथ एक संदेश भेजा: "शाऊल कहता है कि उसने जैसे इस बैल को टुकड़ों में काट दिया, वह उन सबके बैलों के साथ भी ऐसा ही करेगा यदि वे अम्मोन की सेना से युद्ध करने के लिए उसके और शमूएल के साथ चलने से मना करेगा! " तब यहोवा ने इस्राएल के सब लोगों को डरा दिया कि शाऊल उनके साथ क्या कर सकता है यदि वे शाऊल की सहायता के लिए नहीं गये। अतः सब पुरुष एकत्रित हुए।
\v 8 जब शाऊल ने उन्हें बेजेक में गिना, तो उसने देखा कि वहाँ 300,000 इस्राएली पुरुष थे, साथ ही यहूदा के गोत्र के तीस हजार लोग भी थे।
\p
\s5
\v 9 तब शाऊल ने याबेश के लोगों के पास दूतों को यह कहने के लिए भेजा, "कल सुबह धूप तेज़ होने पर हम तुमको बचाएंगे।" दूत गए और याबेश के लोगों को वह संदेश सुनाया, समाचार सुनते ही वे बहुत प्रसन्न हुए।
\v 10 तब याबेश के लोगों ने नाहाश से कहा, "कल हम तुझे आत्मसमर्पण करेंगे, और फिर तू जो कुछ भी करना चाहता है हमारे साथ कर सकता है।"
\p
\s5
\v 11 लेकिन अगली सुबह सूर्य निकलने से पहले, शाऊल और उसकी सेना पहुंची। उसने उन्हें तीन दलों में विभाजित किया। वे अम्मोनियों के सैनिकों की छावनी में पहुंचे, और उन पर आक्रमण कर दिया। दोपहर तक उन्होंने उनमें से अधिकांश को मार डाला, और जो लोग बच गये वे बिखर गए जिन्होंने बचकर भागने का प्रयास किया, वे अकेले अकेले निकले।
\p
\s5
\v 12 तब याबेश के लोगों ने शमूएल से कहा, "वे लोग कहां हैं जो नहीं चाहते थे कि शाऊल हमारा राजा बने? उन्हें यहाँ लाओ, और हम उन्हें मार दें!"
\p
\v 13 परन्तु शाऊल ने उत्तर दिया, "नहीं, हम आज किसी को भी नहीं मारेंगे, क्योंकि आज वह दिन है जब यहोवा ने हम इस्राएलियों को बचाया है। यह खुशी का दिन है, किसी को मारने का नहीं।"
\p
\s5
\v 14 तब शमूएल ने लोगों से कहा, "हम सभी गिलगाल जाएंगे, और वहाँ हम फिर से घोषणा करेंगे कि शाऊल हमारा राजा है।"
\v 15 इसलिए वे गिलगाल गए। वहां, यह जानकर कि यहोवा देख रहे हैं, उन्होंने घोषणा की कि शाऊल उनका राजा है। तब उन्होंने बलि चढ़ाई कि वे यहोवा के साथ मिलकर रह सकें। और शाऊल और अन्य सभी इस्राएली लोग बहुत प्रसन्न थे।
\s5
\c 12
\p
\v 1 तब शमूएल ने सब इस्राएली लोगों से कहा: "मैंने सब कुछ किया है, जो भी तुमने करने को कहा, और मैंने तुम्हें एक राजा दिया है। जो तुम पर राज करे।
\v 2 मेरे अपने बेटे बड़े हो गए हैं और तुम्हारे साथ हैं, परन्तु मैंने उनमें से किसी को नहीं शाऊल को नियुक्त किया है, और वह अब तुम्हारा अगुवा है। मैं अब बूढ़ा हूँ, और मेरे बाल सफेद हैं। जब से मैं एक बालक था तब से मैं तुम्हारा अगुवा रहा हूँ।
\s5
\v 3 अब मुझे बताओ, जबकि यहोवा सुन रहा है, और जिस राजा को उसने चुना है, वह सुन रहा है, मैंने इतने वर्षों में किसका बैल या गधा चुराया है? या किसके साथ धोखा किया है? या किस पर अत्याचार किया है? मैंने किससे घूंस लेकर उसकी बुराई को अनदेखा किया है? यदि मैंने इनमें से कोई भी काम किया है, तो मुझे बताओ, और मैं उसका ऋण चुकाऊंगा। "
\p
\s5
\v 4 उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं, आपने कभी किसी को धोखा नहीं दिया है या किसी पर अत्याचार नहीं किया है या किसी से घूंस नहीं ली।"
\p
\v 5 तब शमूएल ने कहा, "आज यहोवा गवाही दे सकता है, और जिस राजा को आपने चुना है, वह गवाही दे सकता है कि मैंने किसी से घूंस नहीं ली है।" उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, यहोवा कह सकता है कि वह जानता है कि यह सच है।"
\p
\s5
\v 6 शमूएल कहता गया, "यहोवा ही वह है जिसने मूसा और हारून को हमारे पूर्वजों का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था। वही है जो उन्हें मिस्र से बाहर लाया। और वही है जो यह जानता हूँ कि जो कुछ मैं कह रहा हूँ वह सत्य है।
\v 7 यहोवा सुन रहे हैं, अतः चुपचाप यहाँ खड़े रहो और मैं तुम पर आरोप लगाता हूँ और तुमको बताता हूँ कि अगुवाई के लिए राजा की मांग करना गलत था तुम्हें यहोवा ही पर भरोसा रखना था। मैं तुम्हें उन सब महान चमत्कारों का स्मरण कराऊंगा जो यहोवा ने तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वजों के लिए किये हैं।
\p
\s5
\v 8 हमारे पूर्वज याकूब मिस्र गये, उनके वंशजों ने वर्षों बाद यहोवा से सहायता की विनती की। इसलिए यहोवा ने मूसा और हारून को उनके पास भेजा, और उन्होंने हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला, और अंत में वे इस देश में बस गए।
\p
\v 9 परन्तु हमारे पूर्वज शीघ्र ही यहोवा, उनके परमेश्वर को भूल गए। इसलिए उन्होंने हासोर सेनापति सीसरा को उन्हें पराजित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पलिश्तियों की और मोआब के राजा की सेना को हमारे पूर्वजों से युद्ध करके उन्हें पराजित करने की अनुमति दी।
\s5
\v 10 तब हमारे पूर्वजों ने अपनी सहायता करने के लिए फिर से यहोवा से विनती की। उन्होंने स्वीकार किया, 'हे यहोवा, हमने पाप किया है, और हमने आपको त्याग दिया है। हमने मूर्तियों की पूजा की है जो बाल देवता और देवी अष्टोरथ का प्रतिनिधित्व करती हैं। परन्तु आप हमें अपने शत्रुओं से बचा लेंगे, तो हम केवल आपकी आराधना करेंगे। '
\v 11 तब यहोवा ने तुम्हें बचाने के लिए गिदोन, बराक, यिप्तह और मुझ जैसे लोगों को भेजा। और परिणामस्वरूप, तुमको किसी भी शत्रु के द्वारा तुम पर आक्रमण की चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं थी।
\p
\s5
\v 12 परन्तु अब जब अम्मोन का राजा नाहाश तुम पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के साथ आया, तो तुम डर गए। तो तुम मेरे पास आए, और कहा, 'हम चाहते हैं कि एक राजा हम पर शासन करे,' जबकि यहोवा पहले से ही तुम्हारे राजा थे!
\v 13 तो अब देखो, यह राजा है जिसे तुमने चुना है। तुमने राजा के लिए कहा, और यहोवा ने अब तुम्हारे लिए एक राजा नियुक्त किया है।
\s5
\v 14 यदि तुम यहोवा का सम्मान करते हो और तुम उनकी सेवा करते हो, और यदि तुम उनकी सुनते हो और उनकी आज्ञा मानते हो, और यदि तुम और राजा जो तुम पर शासन करता है, तो यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर चाहते हैं की तुम उन्ही की इच्छा पर चलो , वे जो कहते हैं तुम सभी के लिए अच्छा है।
\v 15 परन्तु यदि तुम यहोवा की बातों को नहीं सुनते, और यदि तुम उनकी आज्ञा नहीं मानते हो, तो वे तुमको दण्ड देंगे, जैसे उन्होंने हमारे पूर्वजों को दंडित किया था।
\p
\s5
\v 16 अब चुपचाप खड़े रहो और यहोवा के महान काम को देखो।
\v 17 तुम जानते हो कि वर्ष के इस समय में, जब तुम गेहूं की कटाई करते हो तो वर्षा नहीं होती है। लेकिन आज मैं यहोवा से गर्जन और बिजली और वर्षा भेजने के लिए कहूंगा। जब वे ऐसा करते हैं, तो तुमको पता चलेगा कि यहोवा यह मानते हैं कि तुमने राजा की माँग करके बहुत बुरा काम किया है। "
\p
\v 18 तब शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने वहाँ गरजन और बिजली और वर्षा की। तो सभी लोग यहोवा और शमूएल से बहुत डर गए।
\p
\s5
\v 19 उन्होंने शमूएल से कहा, "हमारे लिए प्रार्थना करो! हमने राजा की माँग करके, इसे भी हमारे पिछले पापों में जोड़ा है! यहोवा से प्रार्थना करो ऐसा करने के कारण हम मर न जाएँ!"
\p
\v 20 शमूएल ने उत्तर दिया, "डरो मत! तुमने यह बुरा काम किया है, परन्तु उन कामों को न रोको जिन्हें यहोवा चाहता है। बल्कि, अपने भीतर से यहोवा की सेवा करो।
\v 21 यहोवा को न त्यागो और निक्कमी मूर्तियों की पूजा न करो। वे तुम्हारी सहायता नहीं कर सकतीं या तुमको तुम्हारे शत्रुओं से नहीं बचा सकतीं, क्योंकि वे वास्तव में निक्कमी हैं।
\s5
\v 22 यहोवा का निर्णय है कि हम उनके लोग हो जाएँ। इसलिए वह हम लोगों को जिनको उन्होंने चुना है, नहीं त्यागेंगे क्योंकि यदि वे ऐसा करते हैं तो वह विश्वासयोग्य होने की अपनी प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाएँगे।
\v 23 परन्तु जहाँ तक मेरी बात है, मैंने सच्चे मन से प्रतिज्ञा की है कि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करना छोड़कर यहोवा के विरुद्ध पाप नहीं करूंगा। और मैं तुमको भली और उचित बातें सिखाता रहूँगा।
\s5
\v 24 परन्तु तुम्हें यहोवा का सम्मान करना चाहिए और अपनी पूरी भीतरी शक्ति से उनकी सेवा करनी चाहिए। उन्होंने तुम्हारे लिए जो महान काम किये है उन्हें कभी न भूलना।
\v 25 यदि तुम दुष्टता के काम करते रहोगे, तो वे तुम्हें और तुम्हारे राजा को त्याग देंगे! "
\s5
\c 13
\p
\v 1 शाऊल तीस वर्ष का था जब उसने शासन करना आरम्भ किया। उन्होंने चालीस वर्षों तक शासन किया।
\p
\v 2 राजा बनने के कुछ सालों बाद, उसने पलिश्तियों से लड़ने के लिए इस्राएल की सेना से तीन हजार पुरूषों को चुना। उसने दूसरे सैनिकों को घर वापस भेज दिया। चुने गए पुरुषों में से दो हजार शाऊल के साथ मिकमाश में और बेतेल के पास पहाड़ी देश में रहे, और एक हजार बिन्यामीन के गोत्र के गिबा में शाऊल के पुत्र योनातान के साथ रहे।
\p
\s5
\v 3 योनातान और उसके साथ रहने वाले पुरुषों ने गेबा में छावनी डाले हुए पलिश्ती सैनिकों पर आक्रमण किया। अन्य पलिश्तियों ने इसके विषय में सुना। इसलिए शाऊल को लगा कि पलिश्तियों की सेना संभवतः इस्राएलियों से फिर से लड़ने आएगी। इस प्रकार शाऊल ने पूरे इस्राएल में तुरही बजाने के लिए दूत भेजे कि लोगों को एकत्रित कर के उनसे कहें, "तुम सब इब्रानियों सुनो कि अब पलिश्ती हमारे साथ युद्ध करेंगे!"
\v 4 दूतों ने बाकी सेना को शाऊल के साथ गिलगाल में एकत्रित होने के लिए कहा। और इस्राएल के सभी लोगों ने यह समाचार सुना। लोग कह रहे थे, "शाऊल की सेना ने पलिश्ती छावनी पर आक्रमण किया है, जिसके परिणामस्वरूप पलिश्तियों ने हम इस्राएलियों से बहुत घृणा की है।"
\p
\s5
\v 5 पलिश्ति वहाँ इकट्ठे हुए और इस्राएलियों से लड़ने के लिए उन्हें साधन दिए गए। पलिश्तियों के पास तीन हजार रथ और छः हजार रथ चालक थे। उनके सैनिक समुद्र के किनारे रेत के दानों के जैसे लग रहे थे। उन्होंने उठकर बेतेल के बेतावेन के पूर्व में मिकमाश में अपने तंबू खड़े किये।
\s5
\v 6 पलिश्तियों ने इस्राएलियों पर प्रबल आक्रमण किया, और इस्राएली सैनिकों ने देखा कि वे बहुत बुरी स्थिति में हैं। अतः इस्राएली सैनिक भूमि में, या चट्टानों, या गड्ढे में, या कुएं में, गुफाओं और छेदों में छिप गये।
\v 7 उनमें से कुछ ने यरदन नदी पार की और उस क्षेत्र में गये जहाँ गाद के गोत्र और गिलाद के गौत्र के लोग थे।
\p लेकिन शाऊल गिलगाल में रहा। उसके साथ रहने वाले सब सैनिक कांप रहे थे क्योंकि वे बहुत डरे हुए थे।
\s5
\v 8 शाऊल सात दिन तक प्रतीक्षा करता रहा, क्योंकि शमूएल ने इतने दिन उसे प्रतीक्षा करने के लिए कहा था, परन्तु शमूएल उस समय तक गिलगाल नहीं आया था, इसलिए शाऊल की सेना में से बहुत से लोग उसे छोड़कर भाग रहे थे।
\v 9 तब शाऊल ने सैनिकों से कहा, "मुझे एक पशु लाकर दो जिसे मैं परमेश्वर के लिए वेदी पर बलि करू और एक को परमेश्वर के लिए दान करू ताकि हम परमेश्वर के साथ मेल बनाए रखने में सफल रहे।" सैनिको ने ऐसा ही किया।
\v 10 और जैसे ही वह इन भेंटों को बलि कर चुका, शमूएल आ गया और शाऊल उसे नमस्कार करने पहुँचा।
\p
\s5
\v 11 जो भी शाऊल ने किया था, वह शमूएल ने देखा और उसने शाऊल से कहा, "तुमने ऐसा क्यों किया?" शाऊल ने उत्तर दिया, "मैंने देखा कि मेरे लोग मुझे छोड़कर भाग रहे हैं, और तुम उस समय नहीं आए जो समय तुमने दिया था। और पलिश्ती सेना मिकमाश में एकत्र हो रही थी।
\p
\v 12 इसलिए मैंने सोचा, 'पलिश्ती सेना यहाँ हम पर गिलगाल में आक्रमण करने जा रही है, और मैंने अभी तक यहोवा को आशीष देने के लिए नहीं कहा है।' इसलिए मुझे लगा कि परमेश्वर की आशीष पाने के लिए होमबलि चढ़ाना जरूरी है।"
\p
\s5
\v 13 शमूएल ने उत्तर दिया, "तुमने जो भी किया वह बहुत मूर्खतापूर्ण था! तुमने यह आज्ञा नहीं मानी कि यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने बलिदान के विषय में क्या आज्ञा दी थी। यदि तुमने उसका पालन किया होता, तो परमेश्वर ने तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को लंबे समय तक इस्राएल पर शासन करने की अनुमति दी होती।
\v 14 परन्तु अब तुमने जो किया है, उसके कारण तुम मर जाओगे, और तुम्हारे मरने के बाद, तुम्हारा कोई भी वंशज शासन नहीं करेगा। यहोवा एक ऐसे व्यक्ति की खोज कर रहे हैं जो राजा बनने के लिए हो, जो सिर्फ ऐसा व्यक्ति हो जिसे वह चाहते हैं, ताकि वे उसे अपने लोगों का अगुवा बन सके। यहोवा ऐसा करेंगे क्योंकि तुम्हें जो आज्ञा उन्होंने दी थी उसका तुमने पालन नहीं किया है। "
\p
\s5
\v 15 तब शमूएल गिलगाल छोड़कर गिबा तक गया। शाऊल अपने सैनिकों के साथ गिलगाल में रहा। उनमें से केवल छह सौ ही बच गए थे जो भागे नहीं थे।
\p
\v 16 शाऊल और उसके पुत्र योनातान और उनके साथ रहने वाले सैनिक बिन्यामीन के गोत्र के इलाके में गिबा शहर गए और वहाँ उन्होंने तंबू खड़े किए। पलिश्ती सेना ने मिकमाश में अपने तंबू खड़े किए।
\s5
\v 17 पलिश्ती सैनिकों के तीन दल शीघ्र ही उस स्थान को छोड़कर जहाँ उनकी सेना रह रही थी, वहाँ गए और इस्राएलियों के कस्बों पर छापे लगाए। एक दल शूआल के क्षेत्र में ओप्रा शहर की ओर उत्तर में चला गया।
\v 18 दूसरा दल पश्चिम में बेतोरोन शहर चला गया। तीसरा दल मरुभूमि के पास, सबोईम घाटी के ऊपर, इस्राएली सीमा की ओर गया।
\p
\s5
\v 19 उस समय, इस्राएल में कोई भी लोहार नहीं था। पलिश्तियों इस्राएलियों को ऐसे पुरुषों के लिए अनुमति नहीं देते थे जो ऐसा काम करें, क्योंकि वे डरते थे कि वे लोग भी लोहे की तलवारें और भाले का उपयोग करेंगे।
\v 20 इसलिए जब इस्राएली लोगों को अपने हल, या हसूँआ, कुल्हाड़ियों को धार लगाने की आवश्यक्ता होती थी, तो उन्हें पलिश्ती के पास उन्हें ले जाना पड़ता था जो उन पर धार लगाता था।
\v 21 उन्हें अपने हल और उनकी नोक को पैना करने के लिए लगभग आठ ग्राम चाँदी का भुगतान करना पड़ता था। उन्हें अपने कुल्हाड़ी या हसूँआ को धार लगाने के लिए या बैलों के अंकुशो के लिए लगभग चार ग्राम चाँदी का भुगतान करना पड़ता था।
\p
\s5
\v 22 इसलिए पलिश्ती सेना से युद्ध करते समय, इस्राएली लोहे की तलवारें और भाले नहीं बना सकते थे। शाऊल और योनातान, इन्ही इस्राएली पुरुषों के पास तलवार थी। अन्य किसी के पास तलवार नहीं थी। उनके पास केवल धनुष और तीर और कुछ अन्य हथियार थे।
\p
\v 23 युद्ध आरम्भ होने से पहले, कुछ पलिश्ती लोग मिकमाश के बाहर पर्वत के दर्रे पर गए। ताकि इसकी रक्षा कर सकें।
\s5
\c 14
\p
\v 1 एक दिन योनातान ने उस युवक से कहा, जो उसके हथियारों को ढोता था, "मेरे साथ आओ, हम उस स्थान पर जाएंगे जहाँ पलिश्ती सैनिकों ने अपने तंबू खड़े किये हैं।" अतः वे चल पड़े, परन्तु योनातन ने अपने पिता को यह नहीं बताया कि वे क्या करने जा रहे हैं।
\p
\s5
\v 2 उस दिन, शाऊल और उसके साथ छः सौ सैनिक एक अनार के पेड़ के चारों ओर बैठे थे, वहाँ गिबा के पास लोग अनाज झाड़ते थे।
\v 3 याजक अहीय्याह भी वहाँ था, जो पवित्र एपोद पहने हुए था। अहितूब का पुत्र अहीय्याह, जो इकाबोद का भाई था। इकाबोद और अहितूब एली के पुत्र पीनहास के पुत्र थे, जो शीलो में यहोवा के याजक थे।
\p कोई नहीं जानता था कि योनातान ने इस्राएली छावनी छोड़ी थी।
\p
\s5
\v 4 योनातान ने योजना बनाई कि वह और उसका जवान वे दरार में से होकर वहाँ जाएंगे जहाँ पलिश्ती थे। उस दरार के एक ओर की चट्टान को बोसेस नाम दिया गया था, और दूसरी चट्टान को सेने नाम दिया गया था।
\v 5 एक चट्टान ने उत्तर दिशा में मिकमाश की ओर देखती हुई थी, और दूसरी चट्टान दक्षिण में गिबा शहर की ओर देखती हुई थी।
\p
\s5
\v 6 योनातान ने उस युवक से कहा, जो उसके हथियारों को ढोता था, "मेरे साथ आओ। हम उन के पास जाएंगे जहाँ उन लोगों ने अपने तंबू खड़े किए हैं। हो सकता है यहोवा हमारी सहायता करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम केवल दो पुरुष हैं या कई लोग है; यहोवा उन्हें पराजित करने का समर्थ देंगे।"
\p
\v 7 योनातान के हथियार ढोने वाले युवक ने कहा, "जो कुछ तुम सोचते हो वह करना हमारे लिए सबसे अच्छी बात है। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।"
\p
\s5
\v 8 तब योनातान ने कहा, "बहुत अच्छा, मेरे साथ आओ। हम उस घाटी को पार करेंगे जहाँ पलिश्ती सेना है, उन्हें हमें देखने दो।
\v 9 यदि वे हमसे कहते हैं, 'तुम दोनो तब तक वहाँ रुकना, जब तक हम तुम्हारे पास नीचे नहीं आते,' हम वहाँ रहेंगे और उन तक ऊपर नहीं जाएंगे।
\v 10 परन्तु यदि वे हमसे कहें, 'यहाँ ऊपर आओ,' यह हमें दिखाएगा कि यहोवा हमें उनको पराजित करने में सफलता देंगे। तब हम ऊपर जाएँगे और उनसे युद्ध करेंगे। "
\p
\s5
\v 11 जब वे दोनों जन घाटी पार कर गए, तो पलिश्ती सैनिकों ने उन्हें आते देखा। उन्होंने कहा, "देखो! इब्रानी उन छेदों से बाहर निकल रहे हैं जिनमें वे छुपे हुए थे।"
\v 12 तब पलिश्ती सैनिक जो योनातान और उसके हथियारों को ले जाने वाले युवक के निकट थे। कहा, "यहाँ आओ, और हम तुमको युद्ध के विषय में कुछ सिखाएंगे!"
\p योनातान ने उस युवक से कहा जो उसके साथ था, "मेरे पीछे आओ और चढ़ाई करो, क्योंकि यहोवा उन्हें हराने में हमारी सहायता करने जा रहै हैं!"
\s5
\v 13 तो योनातान अपने हाथों और पैरों का उपयोग करके चढ़ गया, क्योंकि यह जगह बहुत ढलानवाली थी। वह युवक उसके पीछे पीछे चढ़ गया। जैसे ही योनातान चढ़ गया, उसने कई पलिश्ती सैनिकों को मार डाला, और जो युवक उसके साथ था, उसने भी योनातान के पीछे चलते हुए बहुत पलिश्ती सैनिक मारे।
\v 14 उस पहली लड़ाई में उन दोनों ने एक क्षेत्र में लगभग बीस पलिश्ती सैनिक मारे।
\p
\s5
\v 15 तब अन्य पलिश्ती सैनिक, जो छावनी में थे और जो लोग इस्राएली कस्बों पर आक्रमण कर रहे थे, जो निकट के मैदान में बाहर थे, घबरा गये। तब परमेश्वर ने धरती को हिलाकर रख दिया, और वे सभी भयभीत हो गए।
\p
\s5
\v 16 शाऊल के पहरूए बिन्यामीन के गोत्र के इलाके गिबा के नगर में थे। उन्होंने देखा कि पलिश्ती सेना के सैनिक सभी दिशाओं में भाग रहे थे।
\v 17 शाऊल ने सोचा कि उसके कुछ सैनिकों ने पलिश्ती सेना पर आक्रमण किया होगा। तो उसने उन सैनिकों से कहा जो उनके साथ थे, "यह देख के बताओ कि हमारे लोगों में से कौन यहाँ नहीं है।" इसलिए उन्होंने जांच की, और पता चला कि योनातान और उसके हथियार लेकर चलने वाला व्यक्ति जा चुके थे।
\p
\s5
\v 18 तब शाऊल ने याजक अहिय्याह से कहा, "यहाँ पवित्र सन्दूक लाओ।" क्योंकि इस्राएली लोग अपने साथ पवित्र सन्दूक लेकर आए थे।
\v 19 परन्तु शाऊल याजक से बात कर रहा था, उसने देखा कि पलिश्ती सैनिक अधिक घबरा रहे थे। तब शाऊल ने अहिय्याह से कहा, "इस समय पवित्र सन्दूक न लाओ।"
\p
\s5
\v 20 तब शाऊल ने अपने लोगों को एकत्र किया और वे युद्ध क्षेत्र की ओर गए। उन्होंने पाया कि पलिश्ती सैनिक इतने उलझन में थे कि वे एक दूसरे को अपनी तलवार से मार रहे थे।
\v 21 इससे पहले, कुछ इब्रानी पुरुषों ने अपनी सेना छोड़ दी थी और पलिश्ती सेना के साथ शामिल होने के लिए गए थे। लेकिन अब उन लोगों ने विद्रोह किया और शाऊल और योनातान और अन्य इस्राएली सैनिकों के साथ हो गए।
\s5
\v 22 कुछ इस्राएली सैनिक एप्रैम क्षेत्र के पहाड़ों में भाग गए और छिपे हुए थे। परन्तु जब उन्होंने सुना कि पलिश्ती सैनिक भाग रहे थे, तो वे नीचे आए और दूसरे इस्राएली सैनिकों के साथ हो गए और पलिश्ती सैनिकों का पीछा किया।
\v 23 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों को बचा लिया। इस्राएली सैनिक अपने शत्रुओं को बेथोरोन शहर से आगे तक खदेड़ते गये।
\p
\s5
\v 24 इससे पहले कि शाऊल के सैनिक युद्ध में जाते शाऊल ने गंभीर घोषणा की थी, "मैं नहीं चाहता कि तुम में से कोई भी इस शाम से पहले, जब तक कि हम अपने शत्रुओं को पराजित न कर लें कोई भी कुछ नही खाएगा। यदि तुम बहुत भूखे हो और कुछ भी खाते हो तो यहोवा तुम्हें श्राप दें।
\p
\v 25 इस्राएली सेना जंगल में गई, और उन्हें भूमि पर शहद का छत्ता दिखा, परन्तु उन्होंने शहद नहीं खाया।
\v 26 वे उसे खाने से डरते थे, क्योंकि उन्होंने गंभीरता से प्रतिज्ञा की थी कि वे कुछ भी नहीं खाएंगे।
\s5
\v 27 परन्तु योनातान ने नहीं सुना था कि उसके पिता ने लोगों को एक गंभीर वचन दिया था। योनातान ने सुबह बहुत ही जल्दी छावनी को छोड़ा था और जब उसने शहद देखा, तो उसने अपनी पैदल चलने वाली छड़ी के सिरे शहद में डाला और कुछ शहद खा लिया। शहद खाने के बाद, उसे अपने शरीर में बल का अनुभव हुआ।
\p
\v 28 परन्तु इस्राएली सैनिकों में से एक ने उसे देखा और कहा, "तुम्हारे पिता ने गंभीर घोषणा की है कि यहोवा उसे श्राप देंगे जो भी आज कुछ खाए। इसलिए अब हम भूख के कारण बहुत थके हुए और कमजोर हैं क्योंकि हमने उसका पालन किया था।"
\s5
\v 29 योनातान ने कहा, "मेरे पिता ने हम सब के लिए परेशानी पैदा कर दी! देखो थोड़ा सा शहद खाने के बाद मुझमें कैसी ताज़गी आ गई है!
\v 30 यदि वह हमें शत्रुओं का पीछा करते समय जो भोजन वस्तुएँ मिली थीं वो हमें खाने की छूट होती तो हम और भी अधिक शत्रु सैनिकों को मार पाते!"
\p
\s5
\v 31 इस्राएलियों ने उस दिन मिकमाश शहर से पश्चिम तक अय्यालोन तक पलिश्ती सैनिकों का पीछा किया और मार डाला। लेकिन वे भूखे होने के कारण ज्यादा बलहीन हो गए थे।
\v 32 उन्होंने कई भेड़ों और मवेशियों को ले लिया जिन्हें पलिश्ती सैनिकों ने छोड़ दिया था। क्योंकि वे बहुत भूखे थे, उन्होंने उन जानवरों में से कुछ को खून बहाए बिना मारा और उनका माँस खा लिया।
\s5
\v 33 सैनिकों में से एक ने शाऊल से कहा, "देखो, वे लोग खून वाला माँस खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप कर रहे हैं!" शाऊल ने उन लोगों से कहा जो उसके पास थे, "उन्होंने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी है! यहाँ पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर ले आओ!"
\p
\v 34 जब उन्होंने ऐसा किया तब उसने उनसे कहा, "जाओ और सब सैनिकों से कहो कि उनमें से प्रत्येक मेरे लिए एक बैल या भेड़ लाए, और इस पत्थर पर उन्हें मार डाले, और माँस खाने से पहले उसका खून पूरा बहा दे। खून समेत पशु का माँस खाकर वे यहोवा के विरुद्ध पाप नहीं करें। " तो उस रात सब सैनिक वहाँ पशुओं को लाये और उन्हें वहाँ मार दिया। तब शाऊल ने यहोवा की उपासना करने के लिए एक वेदी बनाई।
\s5
\v 35 यह पहली बार था कि उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई थी।
\p
\s5
\v 36 तब शाऊल ने इस्राएली सैनिकों से कहा, "आज रात हम पलिश्ती सैनिकों का पीछा करें। पूरी रात उन पर आक्रमण करते रहें। उनमें से एक को भी बचकर जाने नही देना।"
\p इस्राएली सैनिकों ने उत्तर दिया, " जो भी तुम सही समझते हो हम वही करेंगे।"
\p परन्तु याजक ने कहा, "हमें यहोवा से पूछना चाहिए कि वे क्या सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए।"
\v 37 तब शाऊल ने परमेश्वर से पूछा, "क्या हमें पलिश्ती सैनिकों का पीछा करना चाहिए? क्या आप उन्हें पराजित करने में हमें सफल करेंगे?" परन्तु परमेश्वर ने उस दिन शाऊल को उत्तर नहीं दिया।
\p
\s5
\v 38 तब शाऊल ने अपनी सेना के सभी अगुवों को बुलाया। उसने उनसे कहा, "परमेश्वर ने मुझे उत्तर नहीं दिया है। मुझे पूरा विश्वास है कि किसी ने पाप किया है। हमें पता होना चाहिए कि किसने क्या पाप किया है।
\v 39 यहोवा ने हमें पलिश्ती सेना से बचा लिया है। जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं, जिसने पाप किया है उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। चाहे पाप करने वाला मेरा पुत्र योनातान ही क्यों ना हो। "
\p उनके सैनिक जानते थे कि कौन दोषी था, लेकिन उनमें से कोई भी शाऊल से कुछ नहीं कहता था।
\s5
\v 40 तब शाऊल ने सब इस्राएली सैनिकों से कहा, "तुम एक ओर खड़े हो जाओ। मेरा पुत्र योनातान और मैं दूसरी ओर खडे रहेंगे।"
\p उनके पुरुषों ने उत्तर दिया, "जो कुछ भी तुमको अच्छा लगता है वह करो।"
\v 41 तब शाऊल ने इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की, "मुझे बताओ कि कौन दोषी है और कौन दोषी नहीं है।" तब याजक ने अपने पत्थर डाले और उन्हें संकेत मिला कि पाप का दोषी योनातान है या शाऊल है। अन्य पुरुष दोषी नही हैं।
\v 42 तब शाऊल ने याजक से कहा, "पत्थरों को फिर से डालो कि पता चले कि हम दोनों में से कौन दोषी है।" तो उसने वैसा ही किया, और पत्थरों ने संकेत दिया कि योनातान दोषी था।
\p
\s5
\v 43 तब शाऊल ने योनातान से कहा, "मुझे बताओ कि तुमने क्या किया है जो गलत था।"
\p योनातान ने उत्तर दिया, "मैंने थोड़ा सा शहद खा लिया था। यह मेरी छड़ी के अंत में केवल थोड़ी सी थी। क्या ऐसा करने के कारण मैं मारे जाने के लायक हूँ?"
\v 44 शाऊल ने उत्तर दिया, "हाँ, तुमको मार देना चाहिए! यदि तुम्हें इस बात के लिए मृत्युदंड नहीं दिया गया तो परमेश्वर मुझे मार डालेंगे!"
\p
\s5
\v 45 परन्तु इस्राएली सैनिकों ने शाऊल से कहा, "योनातन ने हमारे सभी इस्राएली लोगों के लिए बड़ी जीत जीती है। क्या उसे कुछ शहद खाने के लिए मार डालना चाहिए? कदापि नहीं! यहोवा के जीवन की निश्चितता, हम उसे किसी भी प्रकार कि चोट पहुंचाने की अनुमति नहीं देंगे, क्योंकि आज पलिश्तियों के सैनिकों को मारने में परमेश्वर ने योनातान की सहायता की है! "
\p यह कहकर कि इस्राएली सैनिकों ने योनातान को बचाया, और उसे मार डाला नहीं गया।
\v 46 तब शाऊल ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे पलिश्ती सैनिकों का पीछा करना छोड़ दें। अतः पलिश्ती सैनिक अपने घर लौट गए।
\p
\s5
\v 47 शासक बनने के बाद, शाऊल ने चारों ओर अपने शत्रुओं से युद्ध किया। उसने मोआबियों, अम्मोनियों, अदोमियों, सोबा के राजाओं और पलिश्तियों से युद्ध किया। जहाँ भी इस्राएली सेना ने युद्ध किया, उन्होंने अपने शत्रुओं को पराजित किया।
\v 48 शाऊल की सेना ने बहादुरी से युद्ध किया और अमालेक के लम्बे-लम्बे वंशजों को पराजित किया। उनकी सेना ने इस्राएलियों को लूटने वालों से बचाया।
\p
\s5
\v 49 शाऊल के पुत्र योनातान, यिशवी और मलकीश थे। उसकी दो पुत्रियाँ भी थीं, मेराब और उसकी छोटी बहन मीकल।
\v 50 शाऊल की पत्नी अहीमास की बेटी अहीनोअम थी। शाऊल की सेना के सेनापति शाऊल के चाचा नेर का पुत्र अब्नेर था।
\v 51 शाऊल के पिता कीश और अब्नेर के पिता नेर अबीएल का पुत्र था।
\p
\s5
\v 52 जब शाऊल जीवित था, तब उसकी सेना ने पलिश्ती सेना के विरुद्ध युद्ध किए। शाऊल जब भी किसी युवक को देखता कि वह बहादुर और बलवन्त है, तो उसे अपनी सेना में बलपूर्वक ले लेता।
\s5
\c 15
\p
\v 1 एक दिन शमूएल ने शाऊल से कहा, "यहोवा ने मुझे भेजा था ताकि तुम्हें इस्राएल का राजा होने के लिए नियुक्त करूँ। अतः यहोवा का यह संदेश सुनो:
\v 2 स्वर्गदूतों की सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने यह घोषणा की है: 'मैं अमालेक के वंशजों को दण्ड दूँगा क्योंकि उन्होंने इस्राएल पर आक्रमण किया था जब वे मिस्र से निकलकर आ रहे थे।
\v 3 तो अब अपनी सेना के साथ जाओ और अमालेकी लोगों पर आक्रमण करो। उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दो और उनकी सब वस्तुओं को नष्ट कर दो - पुरुष और स्त्रियाँ, उनके बच्चे और शिशु, उनके मवेशी, भेड़ और ऊंट और गधे सबको। उनमें से किसी को भी मत छोड़ना! '"
\p
\s5
\v 4 तब शाऊल ने सेना को बुलाया, और वे तलाईम शहर में एकत्रित हुए। 200,000 सैनिक थे। उनमें से दस हजार यहूदा से थे, और अन्य शेष इस्राएली गोत्रों से थे।
\v 5 तब शाऊल अपनी सेना के साथ एक ऐसे शहर में गया जहाँ कुछ अमालेकी लोग रहते थे। सेना घाटी में छिपकर अकस्मात उन पर आक्रमण करने के लिए तैयार थी।
\s5
\v 6 तब शाऊल ने वहाँ रहने वाले केनी लोगों के समूह को यह संदेश भेजा: "मिस्र छोड़ने पर तुमने हमारे इस्राएली पूर्वजों के प्रति दया दिखाई थी। परन्तु हम सब अमालेकी लोगों को मारने जा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हमारे पूर्वजो का विरोध किया था। अतः तुम अमालेकी लोगों से दूर चले जाओ। यदि तुम दूर नहीं जाते, तो तुम भी मारे जाओगे। " तो जब केनी लोगों के समूह ने सुना, तो उन्होंने तुरंत उस क्षेत्र को छोड़ दिया।
\p
\v 7 तब शाऊल की सेना ने अमालेकी लोगों को पूर्व में हवीला शहर से पश्चिम में शूर शहर तक मार डाला। शूर इस्राएल और मिस्र के बीच की सीमा पर था।
\s5
\v 8 शाऊल की सेना ने अमालेकी लोगों के राजा अगाग को तो पकड़ लिया, परन्तु अन्य सब को मार डाला।
\v 9 उन्होंने न केवल अगाग को बचाया, बल्कि उन्होंने सबसे अच्छी भेड़ और बकरियों और मवेशियों को भी ले लिया। उन्होंने वह सब कुछ जो अच्छा था ले लिया। उन्होंने केवल उन जानवरों को नष्ट कर दिया जिन्हें वे बेकार मानते थे।
\p
\s5
\v 10 तब यहोवा ने शमूएल से कहा,
\v 11 "मुझे खेद है कि मैंने शाऊल को तुम्हारा राजा होने के लिए नियुक्त किया, क्योंकि उसने मेरी उपासना करना त्याग दिया है। मैंने उसे जिस काम की आज्ञा दी थी, उसने उसका पालन नहीं किया है।" जब शमूएल ने यह सुना, तो शमूएल बहुत परेशान हो गया, और उस रात वह यहोवा के सामने रोया।
\p
\s5
\v 12 अगली सुबह, शमूएल उठकर शाऊल से बात करने गया। लेकिन किसी ने शमूएल से कहा, "शाऊल कर्मेल शहर गया, जहाँ उसने अपने सम्मान के लिए एक स्मारक स्थापित किया है। अब वह यहाँ नहीं है और गिलगाल गया है।"
\p
\v 13 जब शमूएल गिलगाल में शाऊल के पास पहुँचा, तो शाऊल ने कहा, "यहोवा तुमको आशीष दें! यहोवा ने मुझे जो आज्ञा दी थी, उसका मैं ने पालन किया है।"
\p
\s5
\v 14 परन्तु शमूएल ने उत्तर दिया, "यदि यह सच है, तो मैं यह मवेशियों का रंभाना और भेड़ों का मिमयाना क्यों सुन रहा हूँ।"
\p
\v 15 शाऊल ने उत्तर दिया, "सैनिकों ने उन्हें अमालेकी लोगों से लिया है। उन्होंने सबसे अच्छी भेड़ो और मवेशियों को बचाया ताकि वे उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के लिए बलि चढ़ा सकें। परन्तु हमने शेष सब को नष्ट कर दिया है।"
\p
\v 16 शमूएल ने शाऊल से कहा, "बात करना बंद करो! मैं तुम्हें बताता हूँ कि कल रात यहोवा ने मुझसे क्या कहा था।"
\p शाऊल ने उत्तर दिया, "मुझे बताओ उन्होंने क्या कहा।"
\s5
\v 17 शमूएल ने कहा, "पहले तो तुम सोचते थे कि तुम महत्वपूर्ण हो। परन्तु अब तुम इस्राएल के गोत्रों के अगुवे बन गए हो। यहोवा ने तुम्हें राजा बनने के लिए नियुक्त किया।
\v 18 और यहोवा ने तुम्हें उसके लिए कुछ करने के लिए भेजा। उन्होंने तुमसे कहा, 'जाओ और उन सब पापी लोगों, अमालेकी लोगों को नष्ट कर दो। उन पर आक्रमण करके उन सब को मार डालो। '
\v 19 तो तुमने यहोवा की आज्ञा का पालन क्यों नहीं किया? तुमने उन्हें नष्ट करने के बजाय अपने लिए लूट क्यों लिया? तुमने जो किया वह गलत किया है, और वह यहोवा जानते हैं! "
\p
\s5
\v 20 शाऊल ने शमूएल से कहा, "मैंने वही किया जो यहोवा ने मुझे करने के लिए भेजा था! मैंने राजा अगाग को ले आया परन्तु अन्य सब को मार डाला!
\v 21 मेरे लोग सबसे अच्छी भेड़े और मवेशी और अन्य वस्तुएँ ले आए कि यहाँ गिलगाल में अपने परमेश्वर, यहोवा के लिए बलि चढ़ाएँ। "
\p
\s5
\v 22 परन्तु शमूएल ने उत्तर दिया,
\q1 "तुम्हारे विचार में यहोवा किस बात से अधिक प्रसन्न होते हैं, वेदी पर जलाए जाने वाले पशु और अन्य बलियों से,
\q1 या मनुष्यों द्वारा उनकी आज्ञापालन से।
\q1 उनके लिए बलि चढ़ाने की अपेक्षा यहोवा का आज्ञापालन करना अधिक उत्तम है।
\q1 यहोवा की आज्ञा के अनुसार मेढ़ो की चरबी को जलाने की उपेक्षा जो कुछ वे कहते हैं, उस पर ध्यान देना ही उत्तम है।
\q1
\v 23 परमेश्वर से विद्रोह करना जादू-टोना का सा पाप है,
\q1 और हठ करना, मूर्तिपूजा का सा पाप है है।
\q2 अतः, क्योंकि तुमने यहोवा की आअज्ञ नहीं मानी है,
\q1 उन्होंने यह घोषित किया है कि अब तुम राजा नहीं रहोगे। "
\p
\s5
\v 24 तब शाऊल ने शमूएल से कहा, "हाँ, मैंने पाप किया है। मैंने तुम्हारी आज्ञा नहीं मानी, जो यहोवा की आज्ञा थी। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं डरता था कि मेरे लोग क्या कहेंगे यदि मैंने उनकी इच्छा से काम नहीं किया। इसलिए मैंने वह किया जो मेरे लोग चाहते थे।
\v 25 लेकिन अब, कृपया मुझे इस पाप के लिए क्षमा करें। और मेरे साथ वापस आओ जहाँ लोग हैं ताकि मैं यहोवा की उपासना कर सकूँ। "
\p
\s5
\v 26 परन्तु शमूएल ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं तुम्हारे साथ वापस नहीं जाऊंगा। यहोवा ने जो कुछ तुमसे कहा था, उसे तुमने अस्वीकार कर दिया है। इसलिए उन्होंने तुम्हें भी अस्वीकार कर दिया है, और यह घोषित किया है कि अब तुम इस्राएल के राजा नहीं रहोगे। तो मैं अब तुमसे ज्यादा बात नहीं करना चाहता हूँ। "
\p
\v 27 जैसे ही शमूएल जा रहा था, शाऊल ने शमूएल के वस्त्र के किनारे पकड़कर उसे रोकने का प्रयास की, लेकिन वह फट गया।
\s5
\v 28 शमूएल ने उस से कहा, "आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़ कर तुमसे ले लिया है। वे किसी और को राजा बनाने के लिए नियुक्त करेंगे, जो तुम से अधिक अच्छा व्यक्ति होगा।
\v 29 और क्योंकि इस्राएलियों के गौरवशाली परमेश्वर झूठ नहीं बोलते हैं, इसलिए वे अपना मन नहीं बदलेंगे। मनुष्य कभी-कभी अपना मन बदलते हैं, लेकिन परमेश्वर ऐसा नहीं करते हैं, क्योंकि वे मानव नहीं हैं। "
\p
\s5
\v 30 तब शाऊल ने फिर से अनुरोध किया। उसने कहा, "मुझे पता है कि मैंने पाप किया है। परन्तु कृपया मुझे इस्राएलियों के अगुवों के सामने और अन्य सभी इस्राएली लोगों के सामने मेरे साथ वापस आकर मुझे आदर दे जिससे कि मैं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की उपासना कर सकूँ। "
\v 31 अंततः शमूएल ऐसा करने के लिए तैयार हो गया, और वे सब वहाँ इकट्ठे हुए जहाँ लोग थे, और शाऊल ने वहाँ यहोवा की आराधना की।
\p
\s5
\v 32 तब शमूएल ने कहा, "राजा अगाग को मेरे पास लाओ।" तो वे अगाग को लाए। अगाग उसके सामने लाया गया था, और वह ज़ंजीर से बंधा हुआ था। उसने सोचा, "निश्चित रूप से मृत्यु का डंक दूर हुआ!"
\p
\v 33 लेकिन शमूएल ने उससे कहा,
\q1 "तुमने अपनी तलवार से कई स्त्रियों के बेटों को मार डाला है,
\q2 अब तुम्हारी मां के पास भी पुत्र नहीं होंगे। "
\m और शमूएल ने अगाग के तलवार से टुकड़े टुकड़े कर दिए, वही गिलगाल में, जहाँ इस्राएली यहोवा की उपासना करते थे।
\p
\s5
\v 34 तब शमूएल वहाँ से चला गया और रामा में अपने घर लौट आया, और शाऊल गिबा में अपने घर गया।
\v 35 शमूएल ने फिर शाऊल को कभी नहीं देखा, परन्तु शाऊल ने जो किया उसके विषय में वह बहुत दुखी था। और यहोवा भी बहुत दुखी थे कि उन्होंने शाऊल को इस्राएल का राजा बनाने के लिए नियुक्त किया था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 अंत में, यहोवा ने शमूएल से कहा, "यह मेरा निर्णय है कि मैं शाऊल को राजा बना रहने नहीं दूंगा। इसलिए शाऊल ने जो कुछ किया है उसके विषय में तुमको उदास होने की आवश्यक्ता नहीं है। एक छोटे पात्र में जैतून का तेल लो और बैतलहम जाओ कि उस तेल से किसी का अभिषेक करो, और उसे राजा बनने के लिए नियुक्त करो। मैं तुम्हें यिशै नाम के एक व्यक्ति के पास भेज रहा हूँ, क्योंकि मैंने उसके पुत्रों में से एक को इस्राएल का राजा चुना है। "
\p
\s5
\v 2 परन्तु शमूएल ने कहा, "मुझे जाने से डर है। यदि शाऊल सुन लेगा कि मैंने राजा बनने के लिए किसी और को नियुक्त किया है, तो वह मुझे मार डालेगा।" यहोवा ने उत्तर दिया, "तुम एक गाय को ले जाओ, ऐसी गाय जिसने बच्चा नहीं दिया हो और लोगों से कहना कि तुम उसे मारकर मेरे लिए बलि चढ़ाने आये हो।
\p
\v 3 बलिदान में आने के लिए यिशै को आमंत्रित करना। जब वह आता है, तो मैं तुमको सुझाऊंगा कि तुमको क्या करना है। और मैं तुमको दिखाऊंगा कि उसके कौन से बेटे को मैंने राजा बनने के लिए चुना है। तब तुमको उसे जैतून का तेल से राजा के रूप में अभिषेक करना। "
\p
\s5
\v 4 शमूएल ने वो किया जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा। वह बैतलहम गया। जब शहर के अगुवे उसके पास आए, तो वे थरथराए, क्योंकि उन्हें चिंता इस बात की थी कि शमूएल उन्हें किसी बात के लिए झिड़कने आया है। उनमें से एक ने उससे पूछा, "क्या तुम हमसे शांतिपूर्वक बात करने आए हो?"
\p
\v 5 शमूएल ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं यहोवा के लिए बलिदान देने के लिए शान्ति से आया हूँ। यहोवा के सम्मान के लिए स्वयं को अलग करो, और फिर मेरे साथ बलि चढ़ाने आओ।" तब शमूएल ने यिशै को उसके पुत्रों के साथ परमेश्वर का सम्मान करने के लिए अलग किया, और फिर उन्हें बलि के लिए आमंत्रित किया।
\p
\s5
\v 6 जब वे वहाँ पहुंचे, तो शमूएल ने यिशै के सबसे बड़े बेटे एलीआब को देखा, और सोचा, "निश्चित रूप से जिसे यहोवा ने इसी को राजा नियुक्त किया है!"
\p
\v 7 परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, "ऐसा मत सोचो कि मैंने इसे चुना है क्योंकि वह सुन्दर और बहुत लंबा है, नहीं, मैंने उसे नहीं चुना है। मैं लोगों का मूल्यांकन वैसे नहीं करता जैसे लोग करते हैं। तुम लोग रूपरंग देखकर मूल्यांकन करते हो, परन्तु मैं उनके भीतरी व्यक्तित्व को देखकर मूल्यांकन करता हूँ। "
\p
\s5
\v 8 तब यिशै ने अपने अगले बड़े पुत्र अबीनादाब से कहा कि आगे बढ़कर शमूएल के सामने चले। लेकिन जब उसने ऐसा किया, तो शमूएल ने कहा, "यहोवा ने इसे भी नहीं चुना है।"
\v 9 तब यिशै ने अपने अगले बड़े बेटे शम्मा को आगे बढ़ने के लिए कहा। वह आगे बढ़ गया, लेकिन शमूएल ने कहा, "यहोवा ने इसे भी नहीं चुना है।"
\v 10 इसी प्रकार, यिशै ने अपने चारों बेटों को शमूएल के सामने चलने के लिए कहा। लेकिन शमूएल ने यिशै से कहा, "यहोवा ने इन पुत्रों में से किसी को भी नहीं चुना है।"
\s5
\v 11 तब शमूएल ने यिशै से पूछा, "क्या तुम्हारे कोई और पुत्र भी हैं?" यिशै ने उत्तर दिया, "मेरा सबसे छोटा पुत्र यहाँ नहीं है, वह भेड़ों की देखभाल करने के लिए बाहर खेतों में है।" शमूएल ने कहा, " उसे यहाँ लाने के लिए किसी को भेजो! हम तब तक खाने के लिए नहीं बैठेंगे जब तक कि वह यहाँ न आए।"
\p
\v 12 अतः यिशै ने दाऊद को लाने के लिए किसी को भेजा। और जब दाऊद पहुंचा, तो शमूएल ने देखा कि वह सुन्दर और स्वस्थ है और उज्ज्वल आंखें हैं। तब यहोवा ने कहा, "यही है जिसे मैंने चुना है, राजा बनने के लिए उसका अभिषेक करो।"
\p
\s5
\v 13 इस प्रकार दाऊद अपने बड़े भाइयों के सामने खड़ा हुआ, शमूएल ने तेल का पात्र लिया जिसे वह साथ लाया और दाऊद के सिर पर तेल डाला और उसे परमेश्वर की सेवा करने के लिए अलग कर दिया। सब ने भोजन किया और शमूएल वहाँ से निकल गया और रामा को लौट आया। परन्तु यहोवा के आत्मा दाऊद पर शक्तिशाली रूप से आए और जीवनभर दाऊद के साथ रहे।
\p
\s5
\v 14 परमेश्वर के आत्मा ने शाऊल का साथ छोड़ दिया। यहोवा ने अपने आत्मा के स्थान पर एक दुष्ट-आत्मा का प्रवेश कराया कि वह इसे पीड़ित करती रहे।
\p
\v 15 उसके एक सेवक ने उससे कहा, "यह स्पष्ट है कि परमेश्वर द्वारा भेजी गई एक दुष्ट-आत्मा तुमको डरा रही है।
\v 16 अतः हमारा सुझाव है कि तुम हमें, अपने सेवकों को ऐसे व्यक्ति की तलाश करने की आज्ञा दो जो वीणा बजाता हो। जब भी दुष्ट-आत्मा तुमको परेशान करेगी तो वह वीणा बजाए। तो तुम शांत हो जाओगे और तुम फिर से सामान्य हो जाओगे। "
\p
\s5
\v 17 शाऊल ने उत्तर दिया, "ठीक है, मेरे लिए एक ऐसे व्यक्ति को खोजो जो अच्छी तरह से वीणा बजा सके, और उसे मेरे पास लाओ।"
\p
\v 18 उसके कर्मचारियों में से एक ने उससे कहा, "बैतलहम शहर में यिशै नाम का एक व्यक्ति के पास एक पुत्र है जो वीणा बजाता है। इसके अतिरिक्त, वह एक बहादुर व्यक्ति है, और एक योग्य सैनिक भी है। वह सुन्दर है और वह हमेशा बुद्धिमानी से बोलता है। और यहोवा हमेशा उसकी रक्षा करते हैं। "
\p
\v 19 तब शाऊल ने यिशै के पास कुछ दूत भेजे। उन्होंने यिशै से कहा, "अपने पुत्र दाऊद को जो भेड़ों की देखभाल करता है, मेरे पास भेजो।"
\s5
\v 20 तब उन्होंने जाकर यिशै से कहा, तो वह मान गया और एक जवान बकरी, दाखरस का एक पात्र, एक गधा जिस पर उसने कुछ रोटी रखी और उन्हें दाऊद को दे दिया। ताकि शाऊल के सामने उपस्थित हो सके।
\p
\v 21 तब दाऊद शाऊल के पास गया और उसके लिए काम करना आरंभ कर दिया। शाऊल ने दाऊद को बहुत पसंद किया, और जब शाऊल युद्ध में लड़ने के लिए जाता तो वह शाऊल के हथियारों को ढ़ोने वाला बन गया।
\s5
\v 22 तब शाऊल ने एक संदेशवाहक को यिशै के पास भेजा और उसे बताया, "मैं दाऊद से प्रसन्न हूँ। कृपया उसे यहाँ रहने दो ताकि वह मेरे लिए काम करे।"
\p
\v 23 यिशै सहमत हो गया, और उसके बाद, जब भी दुष्ट-आत्मा जिसे परमेश्वर ने शाऊल को पीड़ित करने के लिए नियुक्त किया था, उसे पीड़ित करती तब दाऊद वीणा बजाता और शाऊल शांत हो जाता, और दुष्ट-आत्मा उसे छोड़ देती थी।
\s5
\c 17
\p
\v 1 पलिश्तियों ने इस्राएली सेना से युद्ध करने के लिए अपनी सेना एकत्र की। वे सोको के पास एकत्र हुए जहाँ यहूदा के वंशज रहते थे। उन्होंने सोको और अजेका के बीच एपेसदम्मीन में अपने तंबू खड़े किये।
\s5
\v 2 शाऊल ने एला घाटी के पास इस्राएली सेना को एकत्र किया, और उन्होंने वहाँ अपने तंबू खड़े किए। तब वे सभी अपने स्थान में चले गए, वे पलिश्तियों से लड़ने के लिए तैयार थे।
\v 3 इसलिए पलिश्ती और इस्राएली सेनाओं ने एक-दूसरे का सामना किया। वे दो पहाड़ियों पर थे, उनके बीच घाटी थी।
\p
\s5
\v 4 तब गत शहर का गोलियात पलिश्ती छावनी से निकला। वह एक महान योद्धा था, वह तीन मीटर लंबा था।
\v 5 उसने अपने सिर की रक्षा के लिए कांस्य से बना टोप पहना था, और उसने अपने शरीर की रक्षा के लिए धातु से बने कवच को पहना था। धातु के कवच का वजन पचास किलोग्राम था।
\s5
\v 6 उसने अपने पैरों पर कांस्य पहने थे। उसके पीछे एक छोटा कांस्य भाला था।
\v 7 उसके पास एक बड़ा भाला भी था। उसके ऊपर एक रस्सी का मूठ था ताकि उसे भलि-भांति फेंक सके। उसका फल सात किलोग्राम का था। गोलियात की विशाल ढाल लेकर एक सैनिक उसके सामने चलता था।
\p
\s5
\v 8 गोलियात वहाँ खड़ा हुआ और इस्राएली सेना को ललकारा, "मैं देख सकता हूँ कि तुम युद्ध के लिए तैयार हो, लेकिन तुम मुझसे लड़ नहीं पाओगे। तुम देख सकते हो कि मैं एक पलिश्ती सैनिक हूँ जो युद्ध के लिए तैयार हूँ, लेकिन तुम बस शाऊल के दास एक व्यक्ति को चुनें जो तुम सभी के लिए युद्ध कर सकता है और उसे यहाँ मेरे पास भेजो!
\v 9 यदि वह मेरे साथ युद्ध करके मुझे मारता है, तो मेरे साथी पलिश्ती सभी तुम्हारे गुलाम होंगे। लेकिन यदि मैं उसे पराजित करता हूँ और उसे मार डालता हूँ, तो तुम सभी इस्राएली हमारे दास होंगे।
\s5
\v 10 तुम में से कोई भी इस्राएली पुरुष मुझे पराजित नहीं कर सकता! मेरे पास एक व्यक्ति भेजो जो मेरे साथ युद्ध करे! "
\v 11 जब शाऊल और सब इस्राएली सैनिकों ने यह सुना, तो वे बहुत डरे हुए थे।
\p
\s5
\v 12 अब यिशै का पुत्र दाऊद एप्राती के वंश से था। वह यहूदा के गोत्र के क्षेत्र में बैतलहम में रहता था। यिशै के आठ बेटे थे। जब शाऊल राजा था, यिशै पहले से ही बहुत बूढ़ा हो गया था।
\v 13 यिशै के तीन सबसे बड़े बेटे, एलीआब, अबीनादाब और शम्मा, शाऊल के साथ पलिश्तियों से लड़ने के लिए गए थे।
\s5
\v 14 दाऊद यिशै का सबसे छोटा बेटा था। जबकि उसके तीन सबसे बड़े भाई शाऊल के साथ थे,
\v 15 दाऊद आगे-आगे चला गया। कभी-कभी वह शाऊल की छावनी में जाता था, और कभी-कभी वह अपने पिता की भेड़ों की देखभाल करने के लिए बैतलहम में रहा करता था।
\p
\v 16 चालीस दिनों तक गोलियात पलिश्ती छावनी से निकलता और इस्राएलियों की सेना का मज़ाक उड़ाता। वह इस्राएलियों को कहता की अपने में से एक व्यक्ति को चुनों जो मुझसे युद्ध करे। वह प्रतिदिन सुबह और शाम ऐसा किया करता था।
\p
\s5
\v 17 एक दिन, यिशै ने दाऊद से कहा, "यहाँ भुना हुआ अनाज और दस रोटी है। इन्हें शीघ्र अपने बड़े भाइयों के पास ले जाओ।
\v 18 और यहाँ पनीर के दस बड़े टुकड़े हैं। उन्हें उनके अधिकारी के पास ले जाओ। और देखो की तुम्हारे बड़े भाइयों के साथ क्या चल रहा हैं। फिर यदि वे सुरक्षित हैं, तो यह दिखाने के लिए कोई निशानी लाओ कि वे ठीक हैं।
\p
\s5
\v 19 तेरे भाई शाऊल और अन्य सभी इस्राएली सैनिकों के साथ हैं, वे पलिश्तियों से युद्ध करने की तैयारी में एला घाटी के पास डेरा डाले हुए हैं। "
\v 20 तब दाऊद ने भेड़ों की देखभाल करने के लिए एक और चरवाहे की व्यवस्था की। अगली सुबह यिशै के कहने के अनुसार उसने खाना लिया और इस्राएली छावनी में गया। वह वहाँ पहुँचा तो इस्राएली सैनिक युद्ध के मैदान में जा रहे थे। चलते हुए वे युद्ध का नारा लगा रहे थे।
\v 21 पलिश्ती सेना और इस्राएली सेना पहाड़ियों के किनारों पर खड़ी, एक दूसरे का सामना कर रही थी और युद्ध के लिए तैयार थी।
\s5
\v 22 दाऊद ने उस व्यक्ति को भोजन दिया जो युद्ध के साधन की देखभाल कर रहा था। उसने उसे उस भोजन की देखभाल करने के लिए कहा जो वह लाया था, और फिर वह गया और अपने बड़े भाइयों को नमस्कार किया।
\v 23 जब वह उनके साथ बात कर रहा था, उसने देखा कि गोलियात पलिश्ती सैनिकों में से बाहर निकलकर इस्राएलियों को ललकार रहा है और उससे युद्ध करने के लिए किसी को भेजने की चुनौती दे रहा है। दाऊद ने सुना जो गोलियात कह रहा था।
\v 24 गोलियात को देखकर इस्राएली सैनिक डर गए और भागने लगे।
\s5
\v 25 वे एक-दूसरे से कह रहे थे, " देखो! वह हमारे पास आ रहा है और सुनों कि वह इस्राएलियों की कैसे निंदा कर रहा है! राजा कहता है कि वह इस व्यक्ति को मारने वाले को बड़ा इनाम देगा। वह यह भी कहता है कि वह उसकी पुत्री का विवाह उससे कर देगा, और उस व्यक्ति के परिवार को कर भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी। "
\p
\s5
\v 26 दाऊद ने उन लोगों में से कुछ से बात की जो उसके पास खड़े थे। उसने कहा, "यह पलिश्ती-यह खतनारहित व्यक्ति सर्वसामर्थी परमेश्वर की निंदा नहीं कर सकता। उस व्यक्ति को क्या दिया जाएगा जो इस पलिश्ती को मारे और हम इस्राएलियों को लज्जित करने से रोकना है?"
\p
\v 27 पुरुषों ने उसे वही बात बताई जो दूसरे पुरुषों ने कहा था, राजा गोलियात को मारने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए क्या करेगा।
\p
\s5
\v 28 परन्तु जब दाऊद के सबसे बड़े भाई एलीआब ने उसे पुरुषों से बात करते देखा, तो वह गुस्से में आ गया। उसने दाऊद से कहा, "तुम यहाँ क्यों आए हो? क्या कोई उन भेड़ों की देखभाल कर रहा है जिन्हें तुमने मरुभूमि में छोड़ा है? मुझे पता है कि तुम सिर्फ एक परेशानी लाने वाले लड़के हो! तुम सिर्फ लड़ाई देखना चाहते हो!"
\p
\v 29 दाऊद ने उत्तर दिया, "क्या मैंने कुछ गलत किया है? मैं केवल एक सवाल पूछ रहा था!"
\v 30 फिर उसने दूसरे व्यक्ति के पास जाकर वही सवाल पूछा, लेकिन उस व्यक्ति ने उसे वही उत्तर दिया। हर बार जब उसने किसी से पूछा, तो उसे वही उत्तर मिला।
\s5
\v 31 अन्त में, किसी ने राजा शाऊल से कहा कि दाऊद ने क्या कहा था, और शाऊल ने किसी को दाऊद को उसके पास लाने के लिए भेजा।
\p
\v 32 दाऊद ने राजा शाऊल से कहा, "उस पलिश्ती व्यक्ति की वजह से किसी को भी चिंता नहीं करनी चाहिए। मैं जाऊंगा और उसके साथ युद्ध करूँगा!"
\p
\v 33 शाऊल ने दाऊद से कहा, "तुम केवल एक जवान लड़के हो, और वह अपने पूरे जीवन में एक बहुत शक्तिशाली सैनिक रहा है। इसलिए तुम उसके साथ युद्ध नही कर पाओगे!"
\p
\s5
\v 34 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैं कई वर्षों से अपने पिता की भेड़ों की रखवाली कर रहा हूँ। जब भी शेर या भालू आया और भेड़ का बच्चा ले गया,
\v 35 तब मैं गया और उस पर वार किया और भेड़ के बच्चे को उसके मुंह से बचा लिया। तब मैंने उस जानवर को उसके जबड़े से पकड़ा और उसे मार डाला।
\s5
\v 36 मैंने शेर और भालू दोनों को मार डाला है। और मैं इस पलिश्ती के साथ भी ऐसा ही करूंगा, क्योंकि उसने सशक्त परमेश्वर की सेना को अपमानित किया है!
\s5
\v 37 यहोवा ने मुझे शेरों और भालू के पंजे से बचा लिया है, और वे मुझे इस पलिश्ती से भी बचाएँगे! "तब शाऊल ने दाऊद से कहा," ठीक है, जाओ और उससे युद्ध करो, और मुझे आशा है कि यहोवा तुम्हारी सहायता करेंगे! "
\p
\v 38 तब शाऊल ने अपने वस्त्रों को दाऊद को दिया जो कि वह हमेशा युद्ध में पहनता था, और उसने उसे कांस्य टोप और धातु का कवच भी दिया।
\s5
\v 39 दाऊद ने इन को पहना। तब उसने उन पर अपनी तलवार रखी और चलने का प्रयास की। लेकिन वह नहीं चल सका, क्योंकि वह उन को पहनने का आदी नहीं था। तब दाऊद ने शाऊल से कहा, "मैं इन वस्त्रों को पहनकर युद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि मैं उन्हें पहनने का आदी नहीं हूँ!" तो उसने उन्हें उतार दिया।
\p
\v 40 फिर उसने पैदल चलने वाली अपनी लाठी ली; और फिर नाले में से पाँच चिकने पत्थरों को चुना। उसने उन्हें अपने कंधे के थैले में रखा। फिर उसने अपना गोफन अपने हाथ में लिया और गोलियात की ओर चलना शुरू कर दिया।
\p
\s5
\v 41 गोलियात दाऊद की ओर चला , जो सैनिक उसकी ढाल को लेकर उसके सामने चल रहा था। जब वह दाऊद के पास पहुँचा,
\v 42 उसने दाऊद को बारीकी से देखा। उसने देखा कि दाऊद का एक सुंदर चेहरा और स्वस्थ शरीर था, परन्तु वह केवल एक जवान लड़का था। उसने दाऊद का ठट्ठा किया।
\v 43 उसने दाऊद से कहा, " तुम मेरे पास लाठी ले कर आ रहे हो क्या तुम यह सोचते हो कि मैं कोई कुत्ता हूँ?" तब उसने दाऊद हानि के लिए अपने देवताओं को पुकारा।
\s5
\v 44 उसने दाऊद से कहा, "मेरे पास आओ, मैं तुम्हें मार कर तुम्हारे मृत शरीर को पक्षियों और जंगली जानवरों को खाने के लिए दूंगा!"
\p
\v 45 दाऊद ने उत्तर दिया, "तुम मेरे पास तलवार और भाला और एक छोटे से भाले के साथ आ रहे हो। परन्तु मैं तुम्हारे पास सेनाओं के यहोवा के नाम से आ रहा हूँ। वे परमेश्वर जिनकी इस्राएली सेना आराधना करती है, जिनकी तुमने निंदा की है।
\s5
\v 46 आज यहोवा तुम्हें पराजित करने में मुझे सक्षम करेंगे। मैं तुम्हें मार डालूंगा और तुम्हारा सिर काट दूंगा। और हम इस्राएली कई पलिश्ती सैनिकों को मार डालेंगे और तुम्हारे शरीर को पक्षियों और जंगली जानवरों को खाने के लिए देंगे। और दुनिया में हर कोई इसके विषय में सुनेगा और जान लेगा कि हम इस्राएली लोग एक सशक्त परमेश्वर की आराधना करते हैं।
\v 47 और यहाँ सब लोग जान लेंगे कि यहोवा तलवार या भाले के बिना लोगों को बचा सकते हैं। यहोवा हमेशा अपनी लड़ाई जीतते हैं, और वे हमें तुम सभी पलिश्तियों को हराने में सक्षम बनाते हैं। "
\p
\s5
\v 48 जैसे ही गोलियात दाऊद पर वार करने के लिए निकट आया, दाऊद उसकी ओर भागा।
\v 49 उसने अपना हाथ उसके कंधे के थैले में डाला और एक पत्थर निकालकर अपनी गोफन में रखा और घुमाकर गोलियात को मारा। पत्थर गोलियात के सिर में लगा और खोपड़ी तोड़ दी, और वह भूमि पर गिर गया।
\p
\s5
\v 50-51 तब दाऊद भाग कर गोलियात पर खड़ा हुआ। उसने गोलियात की तलवार उसकी म्यान से खींच ली और उसे उसी से मार डाला, और फिर उसका सिर काट दिया। इस तरह दाऊद ने अपनी तलवार के बिना पलिश्ती को हरा दिया। उसने केवल एक गोफन और एक पत्थर का उपयोग किया था!
\p जब अन्य पलिश्तियों ने देखा कि उनका महान योद्धा मर चुका है, तो वे भागने लगे।
\s5
\v 52 इस्राएली पुरुष ललकार कर उनके पीछे भागे। उन्होंने गत शहर और एक्रोन के द्वार तक उनका पीछा किया। भागते-भागते उन्होंने उन्हें मार डाला और शारीम से गत और एक्रोन तक मार्ग पलिश्तियों की लाशों से भरा था।
\v 53 जब इस्राएली पलिश्तियों का पीछा करके लौट आए, तो उन्होंने पलिश्ती छावनी लूट ली।
\v 54 दाऊद बाद में गोलियात के सिर को यरूशलेम ले गया, परन्तु उसने गोलियात के हथियारों को अपने तम्बू में रखा।
\p
\s5
\v 55 जब शाऊल ने दाऊद को गोलियात की और जाते देखा, तो उसने अपनी सेना के सेनापति अब्नेर से पूछा, "अब्नेर, यह जवान किसका पुत्र है?" अब्नेर ने उत्तर दिया, "तुम्हारे जीवन की शपथ, मुझे नहीं पता।"
\p
\v 56 तब राजा ने कहा, "पता लगाओ कि वह किसका पुत्र है!"
\p
\s5
\v 57 बाद में, जैसे दाऊद गोलियात को मारकर लौट आया, अब्नेर उसे शाऊल के पास ले गया। दाऊद गोलियात का सिर ले जा रहा था।
\p
\v 58 शाऊल ने उससे पूछा, "हे जवान, तुम किसके पुत्र हो?" दाऊद ने उत्तर दिया, "महोदय, मैं तुम्हारे दास यिशै का पुत्र हूँ, जो बैतलहम में रहता है।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 शाऊल के साथ बात करने के बाद, दाऊद की भेंट शाऊल के पुत्र योनातान से हुई। योनातान को तुरंत दाऊद पसंद आया; सच तो यह है की वह उससे प्रेम करने लगा।
\v 2 उस दिन से, शाऊल ने दाऊद को उसकी सेवा करने के लिए रखा; उसने उसे घर वापस जाने नहीं दिया।
\s5
\v 3 क्योंकि योनातान दाऊद से बहुत प्रेम करता था, उसने दाऊद के साथ एक गंभीर समझौता किया। उन्होंने एक दूसरे को वचन दिया कि वे सदैव मित्र रहेंगे।
\v 4 योनातान ने अपना बाहरी वस्त्र उतार कर दाऊद को दे दिया। उसने दाऊद को अपने सैनिक की कटिबन्ध, अपनी तलवार, धनुष और तीर और अपनी कमरबन्ध भी दी।
\p
\s5
\v 5 शाऊल दाऊद को जहाँ भी भेजता, वह वहाँ जाता था। और शाऊल ने उसे जो भी करने के लिए कहा, दाऊद ने इसे बहुत सफलतापूर्वक किया। अतः, शाऊल ने दाऊद को सेना में एक सेनापति नियुक्त किया। सेना के सभी अधिकारियों और अन्य पुरुषों ने भी इसको स्वीकार किया।
\p
\s5
\v 6 परन्तु जब दाऊद ने गोलियात को मार डाला था, और सेना घर लौट रही थी, तब इस्राएली स्त्रियाँ शहरों और कस्बों से निकलीं। उन्होंने गाते, नाचते, डफ और विणा बजाते हुए शाऊल को बधाई दी।
\v 7 नाचते हुए उन्होंने यह गीत गाया:
\q1 "शाऊल ने एक हजार शत्रु सैनिकों को मार गिराया,
\q2 परन्तु दाऊद ने दस हजार को मार गिराया है। "
\p
\s5
\v 8 जब शाऊल ने उन्हें गाते हुए सुना, तो उसे यह अच्छा नहीं लगा। उसका खून खोल उठा था. उसने मन में कहा, "वे कह रही हैं कि दाऊद ने दस हजार लोगों की हत्या की, लेकिन मैंने केवल एक हजार की हत्या कर की है। यों तो वे शीघ्र ही उसे अपना राजा बनाना चाहेंगे!"
\v 9 उस समय से, शाऊल दाऊद पर विशेष ध्यान रखने लगा क्योंकि उसे संदेह हो गया था कि दाऊद राजा बनने का प्रयास करेगा।
\p
\s5
\v 10 अगले दिन, परमेश्वर द्वारा भेजी गयी दुष्ट-आत्मा ने अचानक शाऊल को वश में किया। वह अपने घर में एक पागल के सामान व्यवहार करने लगा। दाऊद उसके लिए प्रतिदिन की समान विणा बजा रहा था। शाऊल ने अपने हाथ में एक भाला पकड़ रखा था,
\v 11 उसने दाऊद पर उससे वार कर दिया, यह सोचकर कि, "मैं दाऊद को भाले के साथ दीवार में जड़ दूँगा!" उसने दो बार ऐसा किया, परन्तु दाऊद दोनों बार बच गया।
\p
\v 12 यह तो स्पष्ट हो गया कि यहोवा ने शाऊल को त्याग दिया था, परन्तु वे दाऊद की सहायता कर रहे थे, शाऊल दाऊद से डरता था।
\s5
\v 13 अतः उसने दाऊद को एक हजार सैनिकों पर सेनापति नियुक्त किया और दाऊद को स्वयं से दूर भेज दिया, वह सोचता था कि दाऊद युद्ध में मारा जाएगा। परन्तु जब दाऊद युद्ध में अपने सैनिकों का नेतृत्व करता था,
\v 14 वह सदैव सफल होता था, क्योंकि यहोवा उसकी सहायता कर रहे थे।
\s5
\v 15 जब शाऊल ने सुना कि दाऊद और उसके सैनिक बहुत सफल हो रहे हैं, तो वह दाऊद से और अधिक डर गया।
\v 16 परन्तु इस्राएल और यहूदा के सभी लोग दाऊद से प्रेम करते थे, क्योंकि वह युद्ध में सैनिकों का बहुत सफलतापूर्वक नेतृत्व करता था।
\p
\s5
\v 17 एक दिन शाऊल ने दाऊद से कहा, "यदि तुम यहोवा के लिए पलिश्तियों से युद्ध करते हो तो मैं अपनी बड़ी पुत्री मेरबा से तुम्हारा विवाह करूंगा।" उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसने सोचा था, "मैं अपने आप तो दाऊद से छुटकारा पाने प्रयास नहीं करूंगा। यह काम मैं पलिश्तियों करने देता हूँ।"
\p
\v 18 परन्तु दाऊद ने शाऊल से कहा, "मैं एक महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हूँ, और मेरा परिवार भी महत्वपूर्ण नहीं है। इसके अतिरिक्त मेरा कुल भी महत्वपूर्ण इस्राएली कुल नहीं है। इसलिए मैं तुम्हारा दामाद बनने के योग्य नहीं हूँ । "
\s5
\v 19 जब समय आया की मेरबा को दाऊद की पत्नी होने के लिए दिया जाये, तो शाऊल ने उसे महोलाई अद्रीएल नाम के एक व्यक्ति को दे दिया।
\p
\s5
\v 20 शाऊल की दूसरी बेटी मीकल, दाऊद से प्रेम करती थी। जब शाऊल को उस विषय में बताया गया तो वह प्रसन्न हुआ।
\v 21 उसने सोचा, "मैं उसे मीकल दूंगा, ताकि वह उसे फँसा सके, और पलिश्ती उसे मारने में सक्षम हों।" इसलिए उसने दाऊद से कहा, "तुम मीकल से विवाह कर सकते हो," और यह कहकर, उसने दूसरी बार संकेत दिया कि दाऊद उसका दामाद बन जाएगा।
\p
\s5
\v 22 शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, "दाऊद से निजी तौर पर बात करो, और उससे कहो, 'सुनो, राजा तुम से प्रसन्न है, और हम सब उसके सेवक तुमसे प्रेम करते हैं। इसलिए अब हम सोचते हैं कि तुमको मीकल से विवाह कर लेना चाहिए और राजा का दामाद बनना चाहिए। ''
\p
\s5
\v 23 अतः उन्होंने दाऊद से ऐसी चर्चा की। परन्तु दाऊद ने कहा, "राजा का दामाद बनना बहुत अच्छा सम्मान होगा। परन्तु मेरे विचार से मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि मैं केवल एक गरीब और महत्वहीन व्यक्ति हूँ।"
\p
\v 24 शाऊल के सेवक ने उसे बताया कि दाऊद ने क्या कहा था।
\s5
\v 25 शाऊल ने उत्तर दिया, "जाओ और दाऊद से कहो, मीकल से विवाह करने के लिए तुम्हें सौ पलिश्तियों को मारकर उनकी खलड़ियाँ काटकर लानी होंगी कि सिद्ध हो कि तुम ने उन्हें वास्तव में मारा है तब राजा तुम्हें मीकल से विवाह करने की अनुमति देगा। इस प्रकार वह अपने शत्रुओं से बदला लेगा। '' परन्तु सच तो यह है कि शाऊल चाहता था कि, ऐसे युद्ध में दाऊद पलिश्तियों के हाथों मारा जाये।
\p
\v 26 जब सेवकों ने दाऊद को राजा की बात सुनाई, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ कि वह ऐसा करके राजा का दामाद बन सकता था। राजा ने इसके लिए दाऊद को समय दे दिया था।
\s5
\v 27 परन्तु समय समाप्त होने से पहले ही दाऊद और उसके लोग आ गए, और एक सौ नहीं, परन्तु दो सौ पलिश्तीयों को मारा और उनकी खलडियाँ लेकर आए, और शाऊल के देखते हुए उन्हें गिना कि राजा की शर्त पूरी हो और वह शाऊल का दामाद बन सके। अतः शाऊल विवश हो गया कि मीकल का विवाह दाऊद से करे।
\p
\v 28 परन्तु जब शाऊल को समझ में आया कि यहोवा दाऊद की सहायता कर रहे थे, और उसकी पुत्री दाऊद से प्रेम करती थी,
\v 29 वह दाऊद से और अधिक डर गया। अतः जब तक शाऊल जीवित था, वह दाऊद का शत्रु बना रहा।
\p
\s5
\v 30 पलिश्ती सेनाएं बार-बार इस्राएलियों से युद्ध करने आईं, और जब-जब युद्ध हुआ तब-तब दाऊद और उसके सैनिक शाऊल के अन्य सेनापतियों में से से से अधिक सफल रहे थे। परिणामस्वरूप, दाऊद बहुत प्रसिद्ध हो गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 तब शाऊल ने अपने सब कर्मचारियों और उसके पुत्र योनातान से आग्रह किया कि वे दाऊद को मार डालें। परन्तु योनातान दाऊद को बहुत पसंद करता था।
\v 2 इसलिए उसने दाऊद को चेतावनी दी, "मेरे पिता शाऊल तुम्हें मारने के लिए उपाय खोज रहे हैं। इसलिए सावधान रहो। कल सुबह जाओ और मैदान में छिपने के लिए एक जगह खोजो।
\v 3 मैं अपने पिता से वहाँ जाने के लिए कहूंगा। जब हम वहाँ होंगे। मैं उनसे तुम्हारे विषय में बात करूंगा। तब मैं तुम्हें वह सब कुछ बताऊंगा जो वह मुझसे कहेंगा। "इसलिए दाऊद ने वही किया जो योनातन ने उसे करने के लिए कहा था।
\p
\s5
\v 4 अगली सुबह, योनातान ने अपने पिता के साथ बातें करते हुए, दाऊद के विषय में कई अच्छी बातें कहीं। उसने कहा, "तुमको अपने दास दाऊद को हानि पहुंचाने के लिए कभी भी कुछ नहीं करना! उसने कभी तुमको हानि पहुंचाने के लिए कुछ भी नहीं किया है! उसने जो भी किया है, वह तुम्हारी सहायता के लिए ही था।
\v 5 जब उसने पलिश्ती सेना के महान सैनिक गोलियात से युद्ध किया तब वह मारे जाने के संकट में था। उसकी हत्या के लिये दाऊद को सक्षम करके, यहोवा ने इस्राएल के सभी लोगों को बड़ी विजयी दिलाई थी। उसे देखकर तुम भी बहुत प्रसन्न हुए थे,अब तुम ही दाऊद को हानि पहुंचाने का यत्न क्यों चाहते हो? उसे मारने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है! "
\p
\s5
\v 6 शाऊल ने योनातान कि, उसकी बात सुनी। तब शाऊल ने कहा, "मैं सच्ची प्रतिज्ञा करता हूँ, यहोवा के जीवन की निश्चितता, मैं दाऊद को नहीं मारूँगा।"
\p
\v 7 इसके बाद, योनातान ने दाऊद को बुलाया और उसे बताया कि उसके और शाऊल के बीच क्या बात हुई थी। तब योनातान ने दाऊद को शाऊल के पास लाया, और दाऊद ने शाऊल की पहले जैसी ही सेवा की।
\p
\s5
\v 8 एक दिन फिर से युद्ध शुरू हुआ, और दाऊद ने पलिश्तियों के विरुद्ध अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। दाऊद की सेना ने उन पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप पलिश्ती सेना भाग खड़ी हुई।
\p
\v 9 परन्तु एक दिन शाऊल अपने घर में बैठा था, तब अचानक यहोवा से भेजी गई एक दुष्ट आत्मा शाऊल पर आई। दाऊद शाऊल के लिए वीणा बजा रहा था।
\s5
\v 10 शाऊल ने दाऊद पर भाला फेंका ताकि भाला दाऊद को बेधते हुए दीवार में धस जाए। दाऊद झुक गया, और भाले के वार से बाख गया। भाला दीवार में फंस गया और दाऊद अंधेरे में भाग गया।
\p
\v 11 तब शाऊल ने दाऊद के घर दूत भेजे। उसने उन्हें घर की चौकसी करने की आज्ञा दी और कहा कि जब वह अगले दिन सुबह घर से निकले तो उसकी हत्या कर देना। लेकिन दाऊद की पत्नी मीकल ने उसे देख लिया और उसे चेतावनी दी, "अपने जीवन को बचाने के लिए, तुम्हें आज रात ही भाग जाना चाहिए, क्योंकि यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो तुम कल मारे जाओगे!"
\s5
\v 12 इसलिए उसने दाऊद को खिड़की से बाहर उतार दिया, और वह भाग गया।
\v 13 तब मीकल ने एक मूर्ति ली जो घर में थी और उसे बिस्तर में रख दिया। उसने इसे दाऊद के कपडो से ढक दिया, और मूर्ति के सिर पर कुछ बकरी के बाल रख दिए।
\p
\s5
\v 14 जब दूत अगली सुबह घर आए, तो उसने उनसे कहा कि दाऊद बीमार है और बिस्तर से बाहर नहीं आ सकता।
\p
\v 15 जब उन्होंने शाऊल को बताया, तो उन्होंने उन्हें दाऊद के घर वापस जाने के लिए कहा। उसने उनसे कहा, "उसे बिस्तर समेत लिए लाओ, ताकि मैं उसे मार सकूँ!"
\s5
\v 16 परन्तु जब उन लोगों ने दाऊद के घर में प्रवेश किया, तो उन्होंने देखा कि बिस्तर पर केवल एक मूर्ति थी, बकरी के बाल उसके सिर पर थे।
\p
\v 17 उन्होंने आकर शाऊल को बताया, तब शाऊल ने मीकल को बुलाया और कहा, "तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? तुमने मेरे शत्रु को भागने की अनुमति क्यों दी!" मीकल ने शाऊल को उत्तर दिया, "दाऊद ने मुझे कहा कि यदि मैं उसे भागने में मदद नहीं की, तो वह मुझे मार डालेगा!"
\p
\s5
\v 18 दाऊद शाऊल से बच निकलने के बाद, शमूएल के पास गया रामा में गया वह अपने घर पर था। उसने शमूएल को सब कुछ बताया कि शाऊल ने उसे कैसे-कैसे मारने का प्रयास की थी। तब दाऊद और शमूएल नबायोत गए, और वे वहाँ रहे।
\v 19 किसी ने शाऊल से कहा कि दाऊद नबायोत में था,
\v 20 तब शाऊल ने उसे पकड़ने के लिए कुछ दूत भेजे। जब वे दूत रामा में पहुंचे, तो वे उन लोगों से मिले जो यहोवा के संदेश सुना रहे थे, और शमूएल वहाँ उनके अगुवे के रूप में था। जब शाऊल के दूत उन्हें मिले, तो परमेश्वर के आत्मा शाऊल के दूतों पर आया, और उन्होंने भी उसी तरह चिल्लाने लगे।
\s5
\v 21 जब शाऊल ने उसके विषय में सुना, तो उसने और दूत भेजे, परन्तु वे भी यहोवा का संदेश बोलने लगे।
\v 22 अंत में, शाऊल रामा गया। जब वह सेकू नाम की जगह पर जो बड़े गड्डे में है पहुंचा, तो उन्होंने वहाँ लोगों से पूछा, "शमूएल और दाऊद कहां हैं?"
\p लोगों ने उत्तर दिया, "वे रामा शहर के पास नबायोत में हैं।"
\s5
\v 23 जब शाऊल नबायोत की ओर जा रहा था, तब परमेश्वर के आत्मा उसके ऊपर आया। और वह चलते-चलते यहोवा के पाए संदेश को चिल्लाकर सुनाता जा रहा था जब तक वह नबायोत नहीं पहुँचा।
\v 24 वहाँ उसने अपने बाहरी कपड़े निकाल दिए, और शमूएल के सामने परमेश्वर के संदेश सुनाए। वह पूरे दिन और पूरी रात भूमि पर पड़ा रहा। यही कारण है कि जब लोग किसी को देखते हैं जो अकस्मात ही कुछ करने लगता है तो वे कहते हैं, "क्या शाऊल भी एक भविष्यद्वक्ता है?"
\s5
\c 20
\p
\v 1 दाऊद नबायोत से भाग गया। वह योनातान के पास गया और उससे पूछा, "मैंने तुम्हारे पिता को अप्रसन्न करने के लिए क्या किया है? मैंने क्या गलत किया है? वह मुझे मारने का प्रयास क्यों कर रहा है?"
\p
\v 2 योनातान ने उत्तर दिया, "मेरे पिता निश्चय ही तुम्हें मारने का प्रयास नहीं कर रहे हैं! वह कुछ भी करने से पहले अपनी योजना वह मुझे बताता है। वह मुझे महत्वपूर्ण और महत्वहीन दोनों ही की योजना मुझे बताता है। यदि वह तुम्हें मारने की योजना बना रहा है तो मुझसे क्यों छिपाएगा? अतः तुम जो कह रहे हो वह सच नहीं हो सकता।"
\p
\s5
\v 3 तब दाऊद ने योनातान से सच कह दिया: "तुम्हारे पिता भली-भांति जानता है कि तुम और मैं बहुत अच्छे मित्र हैं, इसलिए वह मन में सोचता है, कि 'मैं योनातान को नहीं बताऊंगा मैं क्या करने जा रहा हूँ। यदि मैं योनातान को बताता हूँ, वह परेशान होगा, और फिर वह दाऊद को बताएगा। ' लेकिन यहोवा के जीवन की निश्चितता और तुम्हारे जीवन की निश्चितता, मैं मारे जाने से केवल एक कदम दूर हूँ। "
\p
\s5
\v 4 योनातान ने दाऊद से कहा, "जो भी तुम मुझे करने के लिए कहो मैं करूँगा।"
\p
\v 5 दाऊद ने उत्तर दिया, "कल हम नए चंद्रमा के त्यौहार मनाएंगे। मैं हमेशा उस त्यौहार पर राजा के साथ खाता हूँ। लेकिन कल मैं मैदान में छिपा रहूँगा, और मैं वहाँ एक रात रहूंगा। मैं वहाँ परसों शाम तक रहूंगा।
\s5
\v 6 यदि तुम्हारे पिता पूछते हैं कि मैं त्यौहार में क्यों नहीं हूँ, तो कहना, 'दाऊद ने मुझसे अनुरोध किया कि वह बैतलहम में अपने घर जाएगा, जहाँ उसका परिवार वार्षिक बलिदान चढ़ाएगा।'
\v 7 यदि तुम्हारा पिता 'बहुत अच्छा' कहता है, तो मुझे पता है कि मैं सुरक्षित रहूंगा। परन्तु यदि वह क्रोधित हो जाता है, तो तुम समझ लेना कि वह मुझे हानि पहुंचाने के लिए दृढ़ है।
\s5
\v 8 कृपया मुझ पर दया करो। यहोवा ने हमारी गंभीर प्रतिज्ञा को सुना है जो मैंने और तुमने अच्छे मित्र बने रहने की शपथ खाई थी, परन्तु यदि मैं दण्ड के योग्य हूँ तो तुम्हारे पिता की अपेक्षा तुम मुझे मार देना। "
\p
\v 9 योनातान ने उत्तर दिया, "मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा! यदि मुझे कभी पता चला कि मेरे पिता तुम्हें हानि पहुँचाने की ठान ली है तो मैं निश्चय ही तुमको बता दूंगा।"
\p
\s5
\v 10 दाऊद ने उससे पूछा, "मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम्हारे पिता ने तुमसे कठोर बातें की हैं?"
\v 11 योनातान ने उत्तर दिया, "मेरे साथ आओ। हम मैदान में बाहर जाएँगे।" तो वे मैदान में एक साथ गए।
\p
\s5
\v 12 वहाँ योनातान ने दाऊद से कहा, "मैं इस्राएलियों के परमेश्वर, जिनकी हम आराधना करते हैं, उनके सुनते हुए मैं यह वचन देता हूँ:” परसों इसी समय, मैं यह पता लगा लूँगा कि मेरा पिता तुम्हारे विषय में क्या सोच रहे हैं। यदि वह तुम्हारे विषय में अच्छा कहते हैं तो मैं तुम्हें संदेश भेज कर बता दूंगा।
\v 13 परन्तु यदि वह तुम्हें चोट पहुंचाने की योजना बना रहा है, अतः यदि मैं तुमको पहले से सतर्क न करूं और भागने में तुम्हारी सहायता न करूं, तो यहोवा मुझे कठोर दण्ड देंगे, ताकि तुम सुरक्षा में चले जाओ। मुझे आशा है कि यहोवा तुम्हारे साथ रहेंगे और तुम्हारी सहायता करेंगे जैसे उन्होंने मेरे पिता की सहायता की है।
\s5
\v 14 परन्तु जब तक मैं जीवित हूँ, तो यहोवा के सम्मुख खाई शपथ के कारण कृपया मुझ पर दया करना; जब तुम राजा बन जाते हो तो मुझे मत मारना।
\v 15 परन्तु यदि मैं मर जाऊं, तो हमारी शपथ के कारण कृपया मेरे परिवार के प्रति दया दिखाना नहीं छोड़ना, चाहे यहोवा ने पृथ्वी पर तुम्हारे सब शत्रुओं का नाश कर दिया हो। "
\p
\v 16 तब योनातान ने दाऊद और उसके वंशजों के साथ एक गंभीर समझौता किया। और उसने कहा, "मुझे आशा है कि यहोवा तुम्हारे सब शत्रुओं का अंत कर देंगे।"
\s5
\v 17 और योनातान ने दाऊद से आग्रह किया कि वह उसका घनिष्ठ मित्र होने की अपनी शपथ को दोहराए, क्योंकि योनातान दाऊद से उतना ही प्रेम किया जितना वह स्वयं से प्रेम करता था।
\p
\v 18 तब योनातान ने कहा, "कल हम नए चंद्रमा का त्यौहार मनाएंगे। और तुम अपने स्थान पर जहाँ तुम बैठ कर खाना खाते हो नहीं दिखोगे, अतः मेरे पिता तुम्हारी उनुपस्थिती को देखेंगे।
\v 19 परसों शाम को उस स्थान पर जाना जहाँ तुम पहले छुपे थे। पत्थरों के ढेर से प्रतीक्षा करना।
\s5
\v 20 मैं बाहर आऊंगा और तीन तीर चलाऊँगा जैसे कि मैं एक लक्ष्य को भेदने का प्रयास करूंगा। तीर पत्थरों के ढेर के निकट भूमि पर मरूँगा।
\v 21 तब मैं तीर को मेरे पास वापस लाने के लिए एक दास को भेजूंगा। यदि तुम मुझे उससे यह कहते सुनो, 'वे मेरे निकट हैं,' तो यहोवा के जीवन की निश्चतता, तुम समझ लेना कि सब कुछ ठीक है, और तुमको मार डाला नहीं जाएगा।
\s5
\v 22 परन्तु यदि मैं उससे कहूं, 'तीर दूर हैं,' तो तुम समझ लेना कि तुमको तुरंत भाग जाना चाहिए, क्योंकि यहोवा चाहते हैं कि तुम भाग जाओ।
\v 23 मुझे आशा है कि यहोवा तुम पर और मुझ पर दृष्टी रखेंगे और हमें इस योग्य बनाएँगे कि हम आपस में खाई हुई शपथ कभी न भूलें। "
\p
\s5
\v 24 तब दाऊद चला गया और मैदान में जा छिपा। जब नए चंद्रमा का त्यौहार आरम्भ हुआ, तो राजा खाने के लिए बैठ गया।
\v 25 वह वहीँ बैठा जहाँ वह सामान्यतः पर दीवार के निकट बैठता था। योनातान उसके पास बैठा, और सेना के सेनापति अब्नेर शाऊल के साथ बैठा। परन्तु जहाँ दाऊद बैठता था, वहाँ कोई नहीं था।
\s5
\v 26 उस दिन, शाऊल ने दाऊद के विषय में कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि वह सोच रहा था, "कुछ ऐसा हुआ होगा जिससे दाऊद परमेश्वर की आराधना करने के लिए अस्वीकार्य हो जाए।"
\v 27 परन्तु अगले दिन, जब दाऊद उस स्थान पर नहीं बैठा था जहाँ वह सामान्यतः बैठता था, तब शाऊल ने योनातान से पूछा, "यिशै का पुत्र आज हमारे साथ क्यों नहीं खा रहा है?"
\p
\s5
\v 28 योनातान ने उत्तर दिया, "दाऊद ने मुझ से विनम्रता से अनुरोध किया कि मैं उसे बैतलहम जाने की अनुमति दूं।
\v 29 उसने कहा, 'कृपया मुझे जाने दो, क्योंकि हमारा परिवार बलि चढ़ाने जा रहा है। मेरे बड़े भाई ने जोर देकर कहा कि मैं वहाँ रहूँ। तो कृपया मुझे अपने बड़े भाइयों के साथ रहने की अनुमति दो। ' मैंने दाऊद को जाने की अनुमति दी है, और यही कारण है कि वह हमारे साथ नहीं खा रहा है। "
\p
\s5
\v 30 शाऊल क्रोधित हो गया! उसने योनातान से कहा, "मुझे पता है कि तुम यिशै के उस पुत्र के प्रति वफादार हो। परन्तु तुम अपने और अपनी लज्जा का कारण होगे।
\v 31 जब तक यिशै का पुत्र जीवित रहेगा, तब तक तुम कभी राजा नहीं बनोगे, और तुम कभी भी इस राज्य पर शासन नहीं करोगे! तो अब, दाऊद को बुलाओ, और उसे मेरे पास लाओ। उसे मार देना चाहिए! "
\p
\s5
\v 32 योनातान ने अपने पिता से पूछा, "दाऊद क्यों मार डाला जाना चाहिए? उसने क्या गलत किया है?"
\v 33 तब शाऊल ने योनातान को मारने के लिए भाला फेंका, परन्तु भाला उसे नहीं लगा। तो योनातान को विश्वास हो गया था कि उसके पिता वास्तव में दाऊद को मारना चाहते हैं।
\p
\v 34 योनातान बहुत क्रोधित था, वह कमरे से निकल गया। त्यौहार के दूसरे दिन उन्होंने कुछ भी खाने से मना कर दिया। उसके पिता ने जो किया उसके लिए घृणित था, और वह दाऊद के विषय में चिंतित था।
\p
\s5
\v 35 अगले दिन सुबह योनातान अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दाऊद को संदेश देने के लिए मैदान में गया। उसने अपने साथ एक दास को लिया।
\v 36 योनातान ने दास से कहा, "भाग कर जाओ और जो तीर मैं चलाऊंगा उन्हें ढूंढ कर लाना।" दास ने दौड़ना शुरू कर दिया, और योनातान ने दास से आगे एक तीर छोड़ा।
\v 37 दास उस स्थान पर भाग गया जहाँ तीर भूमि पर गिरा, परन्तु योनातान ने कहा, "तीर आगे है!"
\s5
\v 38 फिर वह दास पर चिल्लाया, "जल्दी जाओ, रुको मत!" दास ने तीर उठाया और उसे वापस योनातान को दिया।
\v 39 लेकिन योनातान ने जो कहा था, दास को उसका अर्थ समझ में नहीं आया; केवल योनातान और दाऊद समझते थे।
\v 40 तब योनातान ने दास को अपना धनुष और तीर दिया और कहा, "शहर वापस जाओ।"
\p
\s5
\v 41 जब दास चला गया, तब दाऊद पत्थरों के ढेर के पीछे से निकला, जहाँ वह छिपा हुआ था। वह योनातान के पास गया और तीन बार योनातान के सामने झुक गया, उसका चेहरा भूमि को छू रहा था। तब दाऊद और योनातान ने गाल पर एक-दूसरे को चूमा, और वे एक साथ रोये। परन्तु दाऊद योनातान से अधिक रोया।
\p
\v 42 योनातान ने दाऊद से कहा, "तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो। यहोवा ने हमारी शपथ को सुना है कि हम सदैव एक दूसरे के लिए क्या करेंगे।" तब दाऊद चला गया, और योनातान लौटकर शहर आ गया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 दाऊद वहाँ से भाग गया और याजक अहीमेलेक से भेंट करने के लिए नोब शहर गया। जब उसने दाऊद को देखा तो अहीमेलेक थरथराया क्योंकि वह डर गया था कि कुछ बुरा हुआ हो। उसने दाऊद से कहा, "तुम अकेले क्यों हो? तुम्हारे साथ कोई व्यक्ति क्यों नहीं आया?"
\p
\v 2 दाऊद ने अहीमेलेक से झूठ कहा, "राजा ने मुझे भेजा है। परन्तु वह नहीं चाहता कि जिस काम के लिए उसने मुझे भेजा है वह किसी को पता ना चले। मैंने अपने लोगों से कह दिया है कि उन्हें मुझसे कहाँ मिलना चाहिए।
\s5
\v 3 अब मैं जानना चाहता हूँ, कि क्या तुम्हारे पास मेरे खाने के लिए कुछ है? क्या तुम मुझे पाँच रोटी दे सकते हो, या जो भी खाना तुम दे सकते हो? "
\p
\v 4 याजक ने दाऊद से कहा, "यहाँ कोई साधारण रोटी नहीं है, परन्तु मेरे पास कुछ पवित्र रोटी है जो यहोवा के सामने रखी गई थी। यदि तुम हाल ही में स्त्रियों के साथ सोए नहीं हो तो तुम्हारे लोग इसे खा सकते हैं।"
\p
\s5
\v 5 दाऊद ने उत्तर दिया, "वे कई दिनों से स्त्रियों के पास नहीं गये हैं । युद्ध की तैयारी करते समय मैं अपने पुरुषों को स्त्रियों के साथ सोकर स्वयं को अशुद्ध करने की अनुमति नहीं देता हूँ। उन्हें साधारण यात्रा में स्वयं को परमेश्वर के स्वीकार्य योग्य रहना होता है तो आज उन्होंने निश्चित रूप से स्वयं को परमेश्वर के स्वीकार्य योग्य रखा है क्योंकि अब हम एक अति विशेष कार्य करने जा रहे हैं। "
\v 6 अब याजक के पास केवल वही रोटियाँ थी जो पवित्र तम्बू में यहोवा के सामने रखी जाती थी। अतः याजक ने दाऊद को उन रोटियों में से दे दी। उस दिन याजक ने उन रोटी को मेज से उठाया था और उनके स्थान में ताजा रोटियाँ रखी थी।
\p
\s5
\v 7 ऐसा हुआ कि उस दिन एदोमी दोएग वहाँ यहोवा के सामने अपने आपको स्वीकार्य बनाने के लिए आया था, और उसने वह देखा जो अहीमेलेक ने किया। वह शाऊल के अधिकारियों में से एक था और शाऊल के चरवाहों का मुखिया था।
\p
\s5
\v 8 दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, "क्या तुम्हारे पास भाला या तलवार है जिसका मैं उपयोग कर सकता हूँ? राजा ने हमें यह काम करने के लिए नियुक्त किया और हमें तुरंत जाने के लिए कहा, इसलिए मेरे पास हथियार लाने का समय नहीं था।"
\p
\v 9 अहीमेलेक ने उत्तर दिया, "मेरे पास केवल वही तलवार है जो पलिश्ती दानव गोलियात की थी, जिसे तुमने एला घाटी में मारा था। वह एक कपड़े में लपेटी हुई है, और पवित्र तम्बू में पवित्र एपोद के पीछे है। यदि तुम चाहते हो, तो उसे ले लो, क्योंकि मेरे पास अन्य कोई हथियार नहीं है। "
\p दाऊद ने उत्तर दिया, "सचमुच, कोई और तलवार नहीं है जो इतनी अच्छी हो! इसे मुझे दो।"
\s5
\v 10 तब अहीमेलेक ने उसे दे दिया, और दाऊद वहाँ से चला गया। वह और उसके लोग राजा आकीश के साथ रहने के लिए पलिश्तियों के क्षेत्र में गत शहर गए।
\v 11 परन्तु राजा आकीश के अधिकारियों ने दाऊद को आने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने राजा आकीश से कहा, "यह मनुष्य दाऊद अपनी भूमि के राजा के समान शक्तिशाली है। हमारे शत्रु, इस्राएली लोगों ने उन्हें नृत्य और गायन से सम्मानित किया था,
\q1 'शाऊल ने अपने हजार शत्रुओं को मार डाला है,
\q2 लेकिन दाऊद ने दस हजार को मारा है!'"
\p
\s5
\v 12 दाऊद ने सुना कि वे लोग क्या कह रहे थे, इसलिए वह डर गया कि राजा आकीश उसके साथ क्या कर सकता है।
\v 13 तो उसने पागल होने का नाटक किया। उसने शहर के द्वारों खरोंचना आरम्भ कर दिया और अपनी दाढ़ी पर लार को गिराने लगा।
\p
\s5
\v 14 तब राजा आकीश ने अपने लोगों से कहा, "इस व्यक्ति को देखो! वह पागल व्यक्ति की तरह काम कर रहा है! तुम उसे मेरे पास क्यों लाए हो?
\v 15 क्या तुम इसे इसलिए लाये हो की मेरे घर में ही पागलों की कमी है। "
\s5
\c 22
\p
\v 1 दाऊद और उसके पुरूष गत को छोड़कर अदुल्लाम शहर के पूर्व में एक पहाड़ी की गुफा में छिपने के लिए गए। वहाँ शीघ्र ही उसके बड़े भाई और उसके सभी रिश्तेदार आए और वहाँ उसके साथ रहे।
\v 2 तब दूसरे लोग वहाँ आए। कुछ ऐसे व्यक्ति थे जो परेशान थे, कुछ ऐसे लोग थे जो कर्जदार थे, और कुछ ऐसे पुरुष थे जो किसी कारण से अप्रसन्न थे। वे तब तक आते रहे जब तक वहाँ चार सौ पुरुष हो गये, और दाऊद उनका अगुवा बन गया।
\p
\s5
\v 3 बाद में वे वहाँ से चले गए और मोआब देश में मिस्पा शहर के पूर्व में गए। वहाँ दाऊद ने मोआब के राजा से पूछा, "कृपया मेरे पिता और माता को यहाँ तुम्हारे साथ रहने दें, जब तक कि मुझे पता न हो कि परमेश्वर मेरे लिए क्या करने जा रहा है।"
\v 4 राजा ने उसे अनुमति दे दी, इसलिए दाऊद के माता-पिता मोआब के राजा के साथ उस समय तक रहे, जब तक दाऊद और उसके साथ रहने वाले लोग उस क्षेत्र में छिपे रहे।
\p
\v 5 एक दिन भविष्यवक्ता गाद ने दाऊद से कहा, "यहाँ छिपना छोड़ दो और यहूदा लौट जाओ।" इसलिए दाऊद और उसके साथी यहूदा में हेरेत मरुभूमि में गए।
\p
\s5
\v 6 एक दिन, किसी ने शाऊल से कहा कि दाऊद और उसके लोग यहूदा में आए हैं। उस दिन, शाऊल गिबा के नगर के पास एक पहाड़ी पर तामार के पेड़ के नीचे बैठा था। वह अपना भाला पकडे हुए था और अपने सेना के अधिकारियों से घिरा हुआ था।
\s5
\v 7 वह उन पर चिल्लाया, "हे बिन्यामीन के गोत्र के लोग, मेरी बात सुनो! क्या तुम सोचते हो कि यिशै का पुत्र राजा बनकर तुम्हारे सारे खेत और दाख की बारियां दे देगा? क्या वह तुम सब को अपनी सेना में कप्तान और सेनापति बना देगा?
\v 8 क्या तुमने इसी कारण मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचा है, जैसा वह आज कर रहा है? तुम में से किसी ने भी मुझे नहीं बताया कि मेरे अपने पुत्र ने उसके साथ मित्रता की है! तुम में से किसी को भी मुझ पर दया नहीं आई या मुझे बताया है कि मेरे पुत्र ने यिशै के पुत्र को मेरे विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित किया है, कि वह यहाँ से निकलकर छिप जाए! "
\p
\s5
\v 9 एदोमी दोएग, शाऊल के अधिकारियों के साथ वहाँ खड़ा था। उसने शाऊल से कहा, "जब मैं नोब में था, मैंने देखा कि यिशै का पुत्र याजक अहीमेलेक से बात कर रहा था।
\v 10 अहीमेलेक ने यहोवा से पूछा कि दाऊद को क्या करना चाहिए। तब अहीमेलेक ने दाऊद को कुछ भोजन और पलिश्ती दानव गोलियात की तलवार दी। "
\p
\s5
\v 11 तब शाऊल ने अहीमेलेक और अहीमेलेक के सब सम्बन्धियों को बुलाया जो नोब में याजक थे। वे सब राजा के पास आए।
\v 12 शाऊल ने अहीमेलेक से कहा, "हे अहीतूब का पुत्र, मेरी बात सुनो!"
\p अहीमेलेक ने उत्तर दिया, "हाँ, महोदय!"
\v 13 शाऊल ने कहा, "तुम और यिशै का पुत्र मुझसे छुटकारा पाने की साजिश क्यों कर रहे हो? तुमने उसे कुछ रोटी और तलवार दी। तुमने परमेश्वर से अनुरोध किया कि दाऊद को बताएं की क्या करना है। दाऊद ने मुझ से विद्रोह किया है, और अभी वह कहीं छिपा हुआ है, मुझ पर हमला करने की प्रतीक्षा कर रहा है। "
\p
\s5
\v 14 अहीमेलेक ने उत्तर दिया, "मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो, क्योंकि दाऊद, तुम्हारा दामाद, तुम्हारा अंगरक्षकों का कप्तान, तुम्हारे प्रति बहुत निष्ठावान है। कोई भी दाऊद से अधिक निष्ठावान नहीं है! घर में उसका बहुत सम्मान किया जाता है।
\v 15 इसके अतिरिक्त, निश्चय ही यह पहली बार नहीं था जब मैंने परमेश्वर से यह कहने का अनुरोध किया कि दाऊद को क्या करना चाहिए, वह बताएं। और यह तुम्हारे लिए सही नहीं है कि तुम मुझ पर या किसी सम्बन्धी पर दोष लगाओ कि हम तुमसे छुटकारा पाना चाहते हैं क्योंकि मैं किसी के विषय में कुछ नहीं जनता जो ऐसा करना चाहता है। "
\p
\s5
\v 16 तब राजा चिल्लाया, "अहीमेलेक, तुम और तुम्हारे सभी सम्बन्धियों को इसी समय मार डाला जाएगा!"
\p
\v 17 तब उसने अपने अंगरक्षकों को आज्ञा दी, "यहोवा के इन याजकों को मार डालो, क्योंकि वे दाऊद के सहयोगी हैं, और वे दाऊद के साथ मेरे विरूद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं! वे जानते थे कि दाऊद मुझसे दूर भागने का प्रयास कर रहा है, परन्तु उन्होंने मुझे नहीं बताया! "
\p लेकिन शाऊल के अंगरक्षकों ने यहोवा के याजकों को मारने से मनाकर दिया।
\p
\s5
\v 18 तब राजा ने दोएग से कहा, "तुम उन्हें मार दो!" तो एदोमी दोएग बाहर गया और उन्हें अपनी तलवार से मारा। उस दिन उसने पचासी लोगों को मार डाला जो पवित्र एपोद पहने हुए थे क्योंकि वे सभी परमेश्वर के याजक थे।
\v 19 वह नोब, में गया उस नगर में जहाँ बहुत से लोग रहते थे, वहाँ भी कई लोगों को मार डाला। उसने पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों, मवेशियों, गधे और भेड़ों को मार डाला।
\p
\s5
\v 20 परन्तु अबीमेलेक का पुत्र एब्यातार बच निकला। वह भाग गया और दाऊद और उसके साथ रहने वाले पुरुषों में मिल गया।
\v 21 उसने दाऊद से कहा कि शाऊल ने यहोवा के याजकों को मारने के लिए दोएग को आज्ञा दी थी।
\s5
\v 22 तब दाऊद ने उससे कहा, "एदोमी दोएग उस दिन नोब में ही था जब मैं वहाँ गया था, मैं जानता था कि वह शाऊल को अवश्य बताएगा कि क्या हुआ है। तो यह मेरी गलती है कि तुम्हारे पिता और उनका सारा परिवार मारा गया है।
\v 23 तुम मेरे साथ रहो, और डरो मत। वह व्यक्ति जो तुमको मारना चाहता है, मुझे भी मारना चाहता है, लेकिन यदि तुम मेरे साथ रहो तो सुरक्षित रहोगे। "
\s5
\c 23
\p
\v 1 एक दिन किसी ने दाऊद से कहा, "तुमको यह जानना होगा कि पलिश्ती सेना किला शहर पर आक्रमण कर रही है और वे खलिहानों से अनाज चुरा रहे हैं।"
\v 2 दाऊद ने यहोवा से पूछा, "क्या मेरे पुरुष और मैं पलिश्ती लोगों से युद्ध करें?"
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, जाओ। उन पर आक्रमण करो, और किले के लोगों को बचाओ।"
\s5
\v 3 परन्तु दाऊद के पुरूषों ने उससे कहा, "हमें डर हैं कि शाऊल यहाँ यहूदा में आक्रमण करेगा। यदि हम किला में जाते हैं तो हम और अधिक डरेंगे क्योंकि वहाँ पलिश्ती सेना है!"
\p
\v 4 तब दाऊद ने फिर से यहोवा से पूछा कि क्या हमे किला में जाना चाहिए। यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, किले के पास जाओ। पलिश्तियों को पराजित करने में मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।"
\s5
\v 5 तब दाऊद और उसके लोग किला गए। उन्होंने पलिश्तियों से युद्ध किया और उनके कई मवेशियों को पकड़ लिया। दाऊद और उसके लोगों ने कई पलिश्ती पुरुषों को मार डाला और किला के लोगों को बचा लिया।
\p
\v 6 अहीमेलेक का पुत्र एब्यातार, किला में दाऊद के साथ रहने के लिए भाग गया, और वह यह निर्धारित करने के लिए एक पवित्र एपोद लेकर आया कि परमेश्वर क्या चाहते हैं कि वह करे।
\p
\s5
\v 7 शीघ्र ही शाऊल ने पता लगाया कि दाऊद किला में था। तो उसने कहा, "यह अच्छा है! परमेश्वर उसे पकड़ने में मेरी सहायता कर रहे हैं! वह उस शहर में स्वयं को फंसा रहा है, क्योंकि उसके चारों ओर ऊंची दीवारों के साथ द्वार भी हैं।"
\p
\v 8 तब शाऊल ने अपनी सेना को बुलाया, और वे दाऊद और उसके लोगों पर आक्रमण करने के लिए किला में जाने के लिए तैयार हुए।
\p
\v 9 लेकिन दाऊद को पता चला कि शाऊल उसकी सेना के साथ हमला करने की योजना बना रहा था। इसलिए उसने याजक एब्यातार से कहा, "पवित्र एपोद यहाँ लाओ।"
\s5
\v 10 जब एब्यातार उसे लाया, तब दाऊद ने प्रार्थना की, "हे यहोवा, इस्राएलियों का परमेश्वर, मैंने सुना है कि शाऊल यहाँ अपनी सेना के साथ आकर और किला को नष्ट करने की योजना बना रहा है क्योंकि मैं यहाँ हूँ।
\v 11 क्या शाऊल यहाँ किला आएगा, जैसा कि लोगों ने मुझे बताया है? क्या किला के अगुवों ने मुझे पकड़ने में शाऊल को सक्षम बनाया? हे यहोवा, हमारे इस्राएल के स्वामी, कृपया मुझे बताओ! "
\p यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, शाऊल आ जाएगा।"
\s5
\v 12 तब दाऊद ने पूछा, "यदि हम यहाँ रहे तो क्या किला के अगुवे शाऊल की सेना को मुझे और मेरे पुरुषों को पकड़ने में शाऊल की सेना को सक्षम करेंगे।"
\p पवित्र एपोद के पत्रों के द्वारा यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, वे करेंगे।"
\s5
\v 13 तब दाऊद और उसके छः सौ पुरुषों ने किला छोड़ा। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहे, जहाँ उन्होंने सोचा कि शाऊल उन्हें नहीं ढूंढ पाएगा। जब शाऊल को पता चला कि दाऊद किला से बच निकला है, तो वह वहाँ नहीं गया।
\p
\v 14 दाऊद और उसके लोग मरुभूमि में और जीप मरुभूमि की पहाड़ियों में छिपे हुए थे। शाऊल ने प्रतिदिन लोगों को दाऊद की खोज में भेजता रहा, परन्तु यहोवा ने उन्हें दाऊद को पकड़ने की अनुमति नहीं दी।
\p
\s5
\v 15 जब दाऊद और उसके लोग जीप के जंगल में होरेस नाम के एक स्थान पर थे, तब उन्होंने पाया कि शाऊल उसे मारने के लिए वहाँ आ रहा था।
\v 16 परन्तु शाऊल का पुत्र योनातान होरेश में दाऊद के पास गया और उसे परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
\s5
\v 17 योनातान ने उससे कहा, "डरो मत, क्योंकि मेरे पिता तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। कुछ दिनो में तुम इस्राएल के राजा बनोगे, और मैं इस्राएल में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनूंगा। मेरे पिता शाऊल भी यह जानते हैं।"
\v 18 तब उन दोनों ने अपनी गंभीर शपथ को दोहराया जिसे यहोवा पहले सुन चुके थे, कि वे सदैव एक दूसरे के प्रति सच्चे रहेंगे। तब योनातान घर चला गया, परन्तु दाऊद होरेस में रहा।
\p
\s5
\v 19 जीप के कुछ लोग शाऊल के पास गए जब वह गिबा में था, और उन्होंने उसे बताया, "दाऊद और उसके लोग हमारे स्थान में छिपे हुए हैं! वे हकीला की पहाड़ी पर होरेश के स्थानों पर छिप रहे हैं, जो यशीमोन के दक्षिण में है।
\v 20 तो, हे राजा तुम जब चाहो वहाँ आ सकते हो। उसे पकड़ना और उसे तुम्हारे हाथों में सोपना हमारा कर्तव्य है। "
\p
\s5
\v 21 शाऊल ने उत्तर दिया, "मुझे आशा है कि यहोवा तुमको यह बताने के लिए आशीष देंगे।
\v 22 वापस जाओ और उसके विषय में और पता लगाओ। सही सही पता लगाओ कि वह कहां रह रहा है, और पता लगाओ कि उसे वहाँ किसने देखा है। लोग मुझे बताते हैं कि वह बहुत चालाक है, इसलिए हमें भी बहुत चालाक होना होगा उसे पकड़ने के लिए।
\v 23 उन सब स्थानों का पता लगाओ जहाँ वह और उसके लोग छिपते है। फिर वापस आओ और जो कुछ पता चला है मुझे बताओ। तब मैं अपनी सेना साथ लेकर तुम्हारे साथ जाऊंगा। यदि दाऊद यहूदा के कुलों में से किसी एक में है, तो हम उसे खोज लेंगे! "
\p
\s5
\v 24 तब शाऊल के वहाँ जाने से पहले वे लोग वापस जीप गए। उस समय दाऊद और उसके लोग यिशिमोन के दक्षिण में माओन की मरुभूमि में थे।
\v 25 शाऊल और उसके सैनिक दाऊद की खोज करने गए, परन्तु दाऊद ने इसके विषय में सुना। तो वह और उसके लोग माओन की मरुभूमि में एक चट्टानी पहाड़ी पर दक्षिण की ओर चले गए। जब शाऊल ने उस विषय में सुना, तो वह और उसके पुरुषों ने दाऊद और उसके पुरूषों का माओन की मरुभूमि तक पीछा किया।
\p
\s5
\v 26 शाऊल और उसके सैनिक पहाड़ी की एक ओर चल रहे थे, और दाऊद और उसके लोग दूसरी तरफ थे। दाऊद और उसके लोग शाऊल के सैनिकों से बचने के लिए जल्दी चल रहे थे। क्योंकि शाऊल और उसके सैनिक बहुत करीब आ रहे थे।
\v 27 परन्तु फिर एक दूत शाऊल के पास आया और उससे कहा, "जल्दी चलो! पलिश्ती सेना हमारी भूमि पर लोगों पर आक्रमण कर रही है!"
\s5
\v 28 तब शाऊल ने दाऊद का पीछा करना छोड़ दिया और वह और उसके सैनिक पलिश्ती सेना से युद्ध करने गए। यही कारण है कि लोग उस स्थान को “बचने की चट्टान” कहते हैं।
\v 29 दाऊद और उसके पुरूष भी उस स्थान को छोड़कर एनगेदी में छिपने के लिए सुरक्षित स्थानों में चले गए।
\s5
\c 24
\p
\v 1 शाऊल और उसके सैनिक पलिश्ती सेना से युद्ध करने के बाद घर वापस लौटे, तब किसी ने शाऊल से कहा कि दाऊद और उसके लोग एनगदी के पास मरुभूमि में गए थे।
\v 2 जब शाऊल ने यह सुना, तो उसने इस्राएल के विभिन्न इलाकों के तीन हजार लोगों को चुना, और उन्हें जंगली बकरियों की चट्टानों पर दाऊद और उसके लोगों की खोज करने भेजा।
\p
\s5
\v 3 ऐसे स्थान पर जहाँ सड़क कुछ भेड़शालाओं के निकट थी, शाऊल सड़क छोड़कर शौंच के लिए एक गुफा में गया। उसे नहीं पता था कि दाऊद और उसके पुरुष उसी गुफा के भीतर छिपे हुए हैं!
\v 4 दाऊद के पुरुषों ने शाऊल को देखा और दाऊद से धीरे से कहा, "आज वह दिन है जिसके विषय में यहोवा ने कहा था, 'मैं तुमको तुम्हारे शत्रु को हराने में सक्षम करूंगा।' तुम जो चाहो उसके साथ कर सकते हो! " तो दाऊद गुफा के प्रवेश द्वार की ओर रेंगता हुआ गया और शाऊल के वस्त्र के एक छोटे टुकड़े को अपने चाकू से काट लिया।
\s5
\v 5 और फिर वह अपने लोगों के पास लौट आया।
\p परन्तु शाऊल के वस्त्र के टुकड़े को काटने के दाऊद ने स्वयं को दोषी माना।
\v 6 उसने अपने लोगों से कहा, "मुझे राजा के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था! मुझे आशा है कि यहोवा मुझे उस व्यक्ति पर हमला करने की अनुमति नहीं देंगे जिसे परमेश्वर ने नियुक्त किया है, क्योंकि यहोवा ही वे हैं जिन्होंने उसे राजा बनने के लिए चुना है। "
\v 7 यह कहकर, दाऊद ने अपने लोगों को रोका और शाऊल को मारने की अनुमति नहीं दी।
\p
\s5
\v 8 शाऊल ने गुफा छोडी और फिर मार्ग पर चलना आरम्भ किया, तब दाऊद गुफा से निकल आया और चिल्लाकर शाऊल को पुकारा, "राजा शाऊल!" शाऊल ने चारों ओर मुड़कर देखा, और दाऊद ने झुककर अपने चेहरे से भूमि को छूआ।
\v 9 तब उसने शाऊल से कहा, "जब लोग तुम से कहते हैं कि दाऊद तुमको हानि पहुँचाना चाहता है है तो तुम उनकी बातों पर ध्यान क्यों देते हो?"
\s5
\v 10 आज तुम अपनी आंखों से देख सकते हो कि वे जो कहते हैं वह सच नहीं है। यहोवा ने तुम्हें उस स्थान में रखा जहाँ मैं और मेरे लोग, तुम्हें इस गुफा में मार सकते थे। मुझे ऐसा करना चाहिए, परन्तु मैं ने उन्हें इसकी अनुमति नही दी। मैंने उनसे कहा, 'मैं अपने स्वामी को हानि नहीं पहुंचाऊंगा, क्योंकि वह राजा है जिसे यहोवा ने नियुक्त किया है।'
\v 11 हे महामहिम, मेरे हाथ में तुम्हारे वस्त्र के इस टुकड़े को देख! मैंने इसे तुम्हारे वस्त्र से काटा, लेकिन मैंने तुम्हें मारा नहीं। तो अब तुमको यह समझ लेना चाहिए कि मैं तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा करने की योजना नहीं बना रहा हूँ। मैंने तुम्हारे लिए कुछ भी गलत नहीं किया है, परन्तु तुम मुझे मारने के लिए खोज रहे हो।
\s5
\v 12 मैं चाहता हूँ कि यहोवा तुमको उन गलत कामों के लिए दण्ड दें जो तुमने मेरे साथ किए हैं। परन्तु मैंने तुमको कभी नुकसान पहुंचाने का प्रयास नहीं करूंगा।
\v 13 एक कहावत है जिसमें शब्दों का अर्थ है, 'बुरे लोगों द्वारा दुष्ट काम किया जाता है।' परन्तु मैं दुष्ट नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दुष्टता करूं।
\p
\s5
\v 14 तुम इस्राएल के राजा हो। तो तुम मेरे पीछे क्यों आ रहे हो? तुम किसका पीछा कर रहे हो? मैं एक मृत कुत्ते या एक पिस्सू से अधिक कुछ नहीं हूँ।
\v 15 मुझे आशा है कि यहोवा यह तय करेंगे कि इस मामले में कौन सही है, तुम या मैं? और जब वह मेरे पक्ष में निर्णय करते हैं, तो मुझे आशा है कि वह मेरी रक्षा करेंगे और मुझे अपनी शक्ति से बचाएँगे। "
\p
\s5
\v 16 जब दाऊद शाऊल से यह कह चुका, तब शाऊल ने पुकारकर उससे कहा, "हे मेरे पुत्र दाऊद, क्या मैं तुम्हारी आवाज़ सुन रहा हूँ?" फिर वह जोर से रोया।
\s5
\v 17 उसने कहा, "तुम मुझसे अच्छे व्यक्ति हो। मैंने सदैव तुम्हारे लिए बहुत बुरा करने का प्रयास किया जबकि तुमने मेरे साथ बहुत भला किया है।
\v 18 जब यहोवा ने मुझे उस गुफा में एक ऐसे स्थान में रखा जहाँ तुम मुझे आसानी से मार सकते थे। परन्तु तुमने ऐसा नहीं किया।
\s5
\v 19 शत्रु हाथ में आ जाये तो कोई उसे नहीं छोड़ता है परन्तु तुम ने ऐसा किया है। मुझे आशा है कि तुमने मुझ पर आज जो दया की है उसके लिए यहोवा तुम्हें प्रतिफल देंगे।
\v 20 मैं जानता हूँ कि एक दिन तुम निश्चित रूप से राजा बन जाओगे, और जब तुम इस्राएली लोगों पर शासन करोगे तो तुम्हारा राज्य समृद्ध होगा।
\s5
\v 21 अब जब यहोवा सुन रहा है, सच्ची शपथ लो कि तुम मेरे परिवार को नहीं मारोगे और मेरे सभी वंशजों का अंत नहीं करोगे। "
\p
\v 22 दाऊद ने शाऊल को वचन दिया कि वह शाऊल के परिवार को हानि नहीं पहुंचाएगा। तब शाऊल घर वापस चला गया, और दाऊद और उसके लोग अपने छिपने के स्थान पर लौट आए।
\s5
\c 25
\p
\v 1 इसके तुरंत बाद, शमूएल की मृत्यु हो गई, और सभी इस्राएली लोग एकत्र हुए और उसके लिए शोक किया। उन्होंने रामा में उसके घर के बाहर उसके शरीर को दफनाया।
\p तब दाऊद और उसके लोग पारान की मरुभूमि में चले गए।
\s5
\v 2 माओन शहर में एक बहुत अमीर व्यक्ति था। इस व्यक्ति ने अपनी संपत्ति और पशुधन को पास के एक शहर में रखा जिसे कर्मेल कहा जाता है। उसके पास बहुत संपत्ति और पशुधन था और उसके पास तीन हजार भेंडे और एक हजार बकरियां थीं। कर्मेल में वह अपनी भेड़ों का ऊन कतरता था।
\v 3 उसका नाम नाबाल था; वह कालेब का वंशज था। उसकी पत्नी अबीगैल एक बुद्धिमान और सुंदर स्त्री थी, लेकिन नाबाल बहुत क्रूर था और लोगों के साथ बहुत निर्दयतापूर्वक व्यवहार करता था।
\p
\s5
\v 4 एक दिन जब दाऊद और उसके लोग मरुभूमि में थे, तब किसी ने उसे बताया कि नाबाल अपनी भेड़ों का ऊन कतर रहा है।
\v 5 अतः दाऊद ने अपने दस लोगों से कहा, "कर्मेल में नाबाल के पास जाओ और उसे मेरे लिए नमस्कार करो।
\v 6 फिर मेरा यह संदेश उसे देना: 'मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का और तुम्हारी सारी सम्पदा का भला हो।
\p
\s5
\v 7 मैंने सुना है कि लोग कहते हैं, तुम अपनी भेड़ों का ऊन कतर रहे हो। इससे पहले, जब तुम्हारे चरवाहे हमारे बीच थे, हमने उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई। तुम्हारे चरवाहे हमारे बीच ऊंट पर थे, हमने उनकी किसी भेड़ को नहीं चुराया।
\v 8 तुम अपने सेवकों से पूछ सकते हो कि यह सच है या नहीं और वे तुम्हें बताएंगे कि यह सच है। हम यहाँ ऐसे समय आए हैं जब तुम आनन्द मना रहे हो, इसलिए मैं तुमसे विनती करता हूँ कि कृपया हम पर दयालु रहे और इन पुरुषों को जो भी अतिरिक्त भोजन है, मुझ दाऊद और मेरे लोगों को खाने के लिए दे। '"
\p
\s5
\v 9 दाऊद के लोग वहाँ पहुंचे जहाँ नाबाल था। और उन्होंने उसे दाऊद का संदेश सुनाया, और उसके उत्तर की प्रतीक्षा की। परन्तु नाबाल ने उनसे कठोरता से बात की।
\v 10 उसने उनसे कहा, "यह व्यक्ति कौन है, यिशै का पुत्र अपने आप को क्या समझता है? आज अनेक दास अपने स्वामियों के पास से भाग रहे हैं और ऐसा लगता है कि यह भी उनमें से एक है।
\v 11 मैं उन लोगों को रोटी और पानी देता हूँ जो मेरी भेड़ों से ऊन कतर रहे हैं, और मैं उन्हें ही उन जानवरों का माँस देता हूँ जिन्हें मैंने उनके लिए मारा है। समाज से निकले हुए लोगों को मैं उसमें से क्यों दूँ? "
\p
\s5
\v 12 तब दाऊद के लोग लौट आए और नाबाल ने जो कहा उसे सुनाया।
\v 13 जब दाऊद ने यह सुना, तो उसने अपने लोगों से कहा, "हम नाबाल को मारने जा रहे हैं, अपनी तलवारें बाँध लो!" अतः उसने अपनी तलवार भी बाँध ली, और लगभग चार सौ पुरुषों ने भी अपनी-अपनी तलवारें बाँधी और उसके साथ चले गए। उनके दो सौ पुरुष थे जो वही अपने सामान के पास रुक गये थे।
\p
\s5
\v 14 नाबाल के कर्मचारियों में से एक को पता चला कि दाऊद और उसके लोग क्या करने की योजना बना रहे थे, इसलिए वह नाबाल की पत्नी अबीगैल के पास गया और उससे कहा, "दाऊद ने हमारे स्वामी नाबाल को नमस्कार करने के लिए मरुभूमि से कुछ दूत भेजे थे, लेकिन नाबाल ने उनका अनादर किया।
\v 15 जब हम उनके पास के खेतों में होते थे, तब दाऊद के लोग हमारे लिए बहुत दयालु थे। उन्होंने हमें हानि नहीं पहुँचाई। उन्होंने हमारा कुछ नही चुराया।
\s5
\v 16 उन्होंने दिन के समय और रात के समय हमे सुरक्षित किया। जब हम अपनी भेड़ों का ख्याल रखते थे, तो वे हमारी रक्षा करने के लिए हमारे चारों ओर एक दीवार की तरह थे।
\v 17 तो अब तुमको ही इसके विषय में सोचना है और निर्णय लेना है कि तुम क्या कर सकती हो। यदि तुम कुछ नहीं करती हो, तो हमारे स्वामी और उसके परिवार के लिए भयानक परिणाम होगा। नाबाल एक अत्याधिक दुष्ट व्यक्ति है, इसलिए यदि कोई उसे बताए कि क्या करना है तो वह किसी की भी नहीं सुनता है। "
\p
\s5
\v 18 अबीगैल ने यह सुना, तो उसने अति शीघ्र दो सौ रोटियाँ एकत्र की, और दो चमड़े के मश्के भी दाखरस से भरे, पाँच भेडो का मांस, भुना हुआ अनाज, किशमिश कि सौ टिकिया, और दो सौ टिकिया सूखे अंजीर उसने उन सभी चीजों को गधे पर लादा।
\v 19 उसने अपने सेवकों से कहा, "मेरे आगे जाओ। मैं तुम्हारे पीछे आती हूँ।" लेकिन उसने अपने पति को यह नहीं बताया कि वह क्या करने जा रही है।
\p
\s5
\v 20 अबीगैल अपने गधे पर सवार होकर पहाड़ियों में उस स्थान पर उतर गई जहाँ दाऊद और उसके लोग रह रहे थे। अचानक दाऊद और उसके पुरुष उससे मिले।
\s5
\v 21 दाऊद अपने लोगों से कह रहा था, "इस मरुभूमि में उस व्यक्ति और उसकी सारी संपत्तियों की रक्षा करना हमारे लिए व्यर्थ था। हमने उसका कुछ भी नहीं चुराया, उसके प्रति किये गये हमारे अच्छे कार्यों के बदले में उसने हमारे साथ बुरा किया।
\v 22 मुझे आशा है कि परमेश्वर मुझे मार डालेंगे यदि कल सुबह तक वह या उसका एक भी व्यक्ति जीवित बचा।
\p
\s5
\v 23 जब अबीगैल ने दाऊद को देखा, तो वह जल्दी से अपने गधे से उतर गई और उसके सामने झुकी, उसका चेहरा भूमि पर छू रहा था।
\v 24 तब वह दाऊद के चरणों गिरी और कहा, "महोदय, मेरे पति ने जो किया उसके लिए मैं दण्ड के योग्य हूँ। कृपया जो कुछ मैं तुमसे कहती हूँ, उसे सुनो।
\s5
\v 25 कृपया इस निक्कमे नाबाल की बातों पर ध्यान न दो। इसके तो नाम का अर्थ ही मुर्ख है और वह वास्तव में मुर्ख है। परन्तु मैं, तुम्हारी दासी ने तुम्हारे दूतों को नही देखा था। परन्तु मैं, जो तुम्हारी दासी बनने को तैयार हूँ, मैंने उन दूतों को नहीं देखा जिन्हें तुमने उसके पास भेजा था।
\v 26 यहोवा ने किसी से बदला लेने और किसी को मारने से तुम्हें रोका है। यहोवा के जीवन की निश्चतता और तुम्हरे जीवन की निश्चतता, मुझे आशा है कि तुम्हारे शत्रु नाबाल के समान श्रापित हों।
\s5
\v 27 मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे साथ रहने वाले लोगों के लिए एक भेंट लायी हूँ।
\v 28 यदि मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत किया है। तो कृपया करके मुझे क्षमा कर दो यहोवा तुमको और तुम्हारे वंशजों को इस्राएल का राजा बनने का सौभाग्य प्रदान करके तुम्हें प्रतिफल दें, क्योंकि तुम्हारा संघर्ष यहोवा की इच्छा के अनुसार है और मैं जानती हूँ कि तुमने अपने पुरे जीवन में कभी भी गलत नहीं किया है।
\s5
\v 29 यहाँ तक कि वे जो तुम्हें मारने के प्रयास में तुम्हारा पीछा करते हैं तोभि तुम सुरक्षित रहोगे। क्योंकि परमेश्वर यहोवा तुम्हारी देखभाल करते हैं। तुमको एक सुरक्षित बंधी हुई गठरी की तरह संरक्षित किया जाएगा। परन्तु तुम्हारे शत्रु उन पत्थरों की तरह लोप हो जाएंगे जो एक गोफन से फेंक दिए जाते हैं।
\s5
\v 30 यहोवा ने तुम्हारे लिए भलाई करने की प्रतिज्ञा की है, और वे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे। और वे तुम्हें इस्राएली लोगों का शासक बनाएंगे।
\v 31 जब ऐसा होता है, तब उसके घर के किसी भी व्यक्ति को मत मारना। तब तुम यह नहीं सोचोगे कि तुमने निर्दोषों को दण्ड दिया और उनकी हत्या की है इसलिए तुम दण्ड के योग्य हो। और जब यहोवा तुमको राजा बनाएँ, तो कृपया मुझ पर दया करना मत भूलना। "
\p
\s5
\v 32 दाऊद ने अबीगैल से कहा, "मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, क्योंकि उन्होंने मुझसे बात करने के लिए तुम्हें भेजा है।
\v 33 मैं आशा करता हूँ कि आज परमेश्वर तुम्हारी सहायता करें क्योंकि तुमने बुद्धिमानी से आज मुझे लोगों को मारने और बुराई के बदले बुराई करने से बचाया है।
\s5
\v 34 जैसा कि निश्चित रूप से यहोवा परमेश्वर है जिनकी हम इस्राएलि आराधना करते हैं, वे जीवित हैं, उन्होंने मुझे तुम्हारी हानि करने से रोका है। यदि तुम मुझसे बात करने के लिए ऐसी शीघ्रता नहीं करती तो, नाबाल के पुरुष या लड़कों में से एक भी कल सुबह तक जीवित नहीं रहता। "
\p
\v 35 तब दाऊद ने उस भेंट को स्वीकार किया जो अबीगैल उसके लिए लायी थी। उसने उससे कहा, "मुझे आशा है कि तुम्हारा भला हो, जो भी तुमने कहा है वह मैंने सुना है और मैं वही करूँगा।"
\p
\s5
\v 36 जब अबीगैल नाबाल के पास लौट आयी, तो वह अपने घर में था, जिसमें राजाओं का सा एक बड़ा उत्सव मनाया जा रहा था। वह बहुत नशे में था और बहुत खुशी अनुभव कर रहा था। इसलिए अबीगैल ने उस रात दाऊद के साथ उसकी भेंट के विषय में कुछ नहीं कहा।
\s5
\v 37 अगली सुबह, जब वह नशे में नहीं था, उसने उसे सबकुछ बताया जो उसने दाऊद के साथ उसकी बात हुई थी। तुरंत, उसके मन का हियाव जाता रहा और वह आगे नहीं बढ़ सका।
\v 38 लगभग दस दिन बाद यहोवा ने उसे फिर से मारा, और वह मर गया।
\p
\s5
\v 39 दाऊद ने सुना कि नाबाल मर चुका है, तो उसने कहा, "मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ! नाबाल ने मुझे अपमानित किया, परन्तु यहोवा ने दिखाया है कि मैं सही हूँ। उन्होंने मुझे कुछ भी गलत करने से रोका है। और उन्होंने नाबाल को उसकी गलती के लिए दंडित किया है। "
\p तब दाऊद ने अबीगैल के पास दूत भेजे, उससे पूछने के लिए कि क्या वह उसकी पत्नी बन जाएगी।
\v 40 उसके कर्मचारी कर्मेल गए और अबीगैल से कहा, "दाऊद ने हमें भेजा है कि तुम्हें उनकी पत्नी बनाने के लिए ले जाएँ।"
\s5
\v 41 अबीगैल ने जमीन पर गिर कर दण्डवत किया। तब उसने दाऊद को यह बताने के लिए दूतों से कहा, "मैं तुम्हारी पत्नी बनने में प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारी दासी बनूंगी। और मैं तुम्हारे कर्मचारियों के चरणों को धोने को तैयार हूँ।"
\v 42 अबीगैल जल्दी ही दाऊद के दूतों के साथ अपने गधे पर गयी। उसके साथ पाँच स्त्री दासियाँ गयी। जब वह वहाँ पहुंची जहाँ दाऊद था। तो वह उसकी पत्नी बन गई।
\s5
\v 43 दाऊद ने पहले कर्मेल के पास यिज़्रेल की एक स्त्री अहिनोअम से विवाह किया था। तो अबीगैल और अहिनोअम दोनों अब दाऊद की पत्नियां थीं।
\v 44 राजा शाऊल की पुत्री मीकल भी दाऊद की पत्नी थी, परन्तु शाऊल ने उसे लैश के पुत्र पलती को दे दिया, जो गैलीम शहर में था।
\s5
\c 26
\p
\v 1 एक दिन जब शाऊल गिबा में था तब जीप शहर के कुछ लोग शाऊल के पास आए और उन्होंने उससे कहा, "दाऊद यशीमोन शहर के पूर्व में हाकीला पहाड़ी पर एक गुफा में छिपा हुआ है।"
\p
\v 2 तब शाऊल ने तीन हजार इस्राएली सैनिकों को चुना और दाऊद की खोज करने के लिए उनके साथ जीप की मरुभूमि में गया।
\s5
\v 3 शाऊल और उसके पुरूषों ने यशीमोन शहर के पूर्व में हाकीला पहाड़ी पर मार्ग के निकट अपने तंबू खड़े किये, परन्तु दाऊद और उसके लोग मरुभूमि में ही रहे। जब दाऊद ने सुना कि शाऊल उसकी खोज कर रहा है।
\v 4 उसने यह जानने के लिए कुछ जासूस भेजे कि क्या यह सच है कि शाऊल हाकिला में आया है।
\p
\s5
\v 5 तब उस शाम को दाऊद उस स्थान पर गया जहाँ शाऊल ने अपना तम्बू खड़ा किया था। कुछ दूरी से उसने देखा कि शाऊल और उसकी सेना के सेनापति अब्नेर सो रहे थे। शाऊल के चारो और शाऊल की सारी सेना सो रही थी।
\p
\s5
\v 6 दाऊद वहाँ गया जहाँ उसके लोग थे और हेहेथ लोगों के अहीमेलेक से और योआब के भाई अबीशै, जिनकी मां दाऊद की बड़ी बहन सरूयाह थी, बात की उनसे पूछा, "मेरे साथ कौन शाऊल के स्थान में चलेगा ?"
\p अबीशै ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हारे साथ जाऊंगा।"
\v 7 तब उस रात दाऊद और अबीशै शाऊल की छावनी में चले गए। उन्होंने देखा कि शाऊल सो रहा था। उसका भाला उसके सिर के पास भूमि में धंसा हुआ है। शाऊल छावनी के बीच में सो रहा था। अब्नेर और दूसरे सैनिक शाऊल के चारों ओर सो रहे थे।
\p
\v 8 अबीशै ने दाऊद से धीरे से कहा, "आज यहोवा ने हमें अपने शत्रु को मारने में सक्षम बनाया है! मुझे अपने भाले को मारकर शाऊल को भूमि में लगा देने की अनुमति दे। मेरे लिए केवल एक ही बार उसे मारना होगा। मुझे इसकी आवश्यकता नहीं कि उसे दूसरी बार मारूं। "
\p
\s5
\v 9 परन्तु दाऊद ने अबीशै से धीरे से कहा, "नहीं, शाऊल को मत मारो। यहोवा ने उसे राजा बनने के लिए नियुक्त किया है, इसलिए यहोवा निश्चय ही उसके हत्यारे को दण्ड देंगे।
\v 10 यहोवा के जीवन की निश्चितता, वह स्वयं शाऊल को दंडित करेंगे। शाऊल के मरने का समय होने पर संभवतः यहोवा उसे मार डालेंगे, या संभवतः शाऊल युद्ध में मारा जाएगा।
\s5
\v 11 परन्तु मुझे आशा है कि यहोवा अपने अभिषिक्त राजा को हानि पहुंचाने से मुझे रोक देंगे, जिसे उन्होंने नियुक्त किया है। हम शाऊल के भाले और पानी के पात्र को जो उसके सिर के पास है ले जाएँ। तो चलो यहाँ से निकल चले! "
\p
\v 12 दाऊद ने भाला और पानी का पात्र लिया, और वह और अबीशै वहाँ से चले गये। किसी ने उन्हें नहीं देखा या नहीं जाना कि वे क्या कर रहे थे, और कोई भी नहीं जागा, क्योंकि यहोवा ने उन्हें सुलाया था।
\p
\s5
\v 13 दाऊद और अबीशै घाटी में चले गए और शाऊल की छावनी से बहुत दूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए।
\p
\v 14 तब दाऊद ने ऊँची आवाज में अब्नेर से कहा, "अब्नेर, क्या तुम मुझे सुन सकते हो?"
\p अब्नेर ने उत्तर दिया, "तुम कौन हो, जो मुझे पुकारकर राजा को जगा रहे हो।"
\s5
\v 15 दाऊद ने उत्तर दिया, "मुझे विश्वास है कि तुम इस्राएल में सबसे महान मनुष्य हो! तो तुमने अपने स्वामी, राजा की रक्षा क्यों नहीं की? कोई तुम्हारे स्वामी, राजा को मारने के लिए तुम्हारी छावनी में आया था।
\v 16 तुमने शाऊल की रक्षा करने के काम में बहुत ढिलाई की है। तो यहोवा के जीवन की निश्चितता, तुम और तुम्हारे लोगों को मार डालना चाहिए! तुमने अपने स्वामी की रक्षा नहीं की है जिसे यहोवा ने राजा बनने के लिए नियुक्त किया है। राजा का भाला और पानी का पात्र कहां है जो उसके सिर के निकट था? "
\p
\s5
\v 17 शाऊल उठ गया और पहचान लिया वह दाऊद की आवाज़ है। उसने कहा, "मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तुम्हारी आवाज़ है?" दाऊद ने उत्तर दिया, "हाँ, तुम्हारी महिमा हो यह मेरी ही आवाज़ है।"
\p
\v 18 तब दाऊद ने कहा, "महोदय, तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है!
\s5
\v 19 महामहिम, मेरी बात सुनो! यदि यहोवा ने तुम्हें मुझसे क्रोधित किया है, तो मैं चाहता हूँ कि वे मुझसे बलिदान स्वीकार करें। लेकिन यदि वे लोग हैं जिन्होंने तुमको मुझसे क्रोधित किया है, तो मैं आशा करता हूँ कि यहोवा उन्हें शाप देंगे। उन्होंने मुझे उस देश को छोड़ने के लिए विवश किया है जिसे यहोवा ने मुझे दिया था। उन्होंने मुझसे कहा, 'कहीं और जाओ और अन्य देवताओं की आराधना करो!'
\v 20 अब मुझे अपने देश और यहोवा की उपस्थिति से दूर करने के लिए विवश मत करो। तुम, राजा, मेरी खोज में हो, परन्तु मैं एक पिस्सू या जंगली पक्षी के रूप में हूँ जिसका पहाड़ियों में शिकार किया जाता है। "
\p
\s5
\v 21 तब शाऊल ने कहा, "हे मेरे पुत्र, दाऊद, मैंने तुम्हें मारने का प्रयास करके पाप किया है। तुम वापस घर आ जाओ। आज तुमने मेरा जीवन बहुत मूल्यवान माना है और इसलिए तुमने मुझे नहीं मारा। इसलिए मैं अब तुम्हें हानि पहुँचाने का प्रयास नहीं करूँगा। मैंने बहुत बड़ी गलती की है और मूर्खता का काम किया है। "
\p
\s5
\v 22 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैं यहाँ तुम्हारा भाला छोड़ दूंगा। इसे ले जाने के लिए यहाँ अपने जवानों में से एक को भेज देना।
\v 23 यहोवा हमें उचित कार्य करने और अपने स्वामिभक्त होने का प्रतिफल देते हैं। यहाँ तक कि जब यहोवा ने मुझे ऐसे स्थान में रखा था जहाँ मैं तुम्हें सरलता से मार सकता था, मैंने ऐसा करने से मनाकर दिया, क्योंकि तुम्हें यहोवा ने राजा बनने के लिए नियुक्त किया है।
\s5
\v 24 जैसा कि मैंने तुम्हारा जीवन मूल्यवान माना और आज तुम्हारा जीवन बचाय है मुझे आशा है कि यहोवा भी मेरे जीवन को मूल्यवान मानेंगे और मेरे जीवन को छोड़ देंगे और मुझे अपनी सारी परेशानियों से बचाएंगे। "
\p
\v 25 तब शाऊल ने दाऊद से कहा, "हे मेरे पुत्र दाऊद, मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा तुमको आशीष दे। तुम महान कामों को सफलतापूर्वक कर पाए।"
\p तब दाऊद अपने लोगों के पास लौट आया, और शाऊल घर वापस चला गया।
\s5
\c 27
\p
\v 1 परन्तु दाऊद ने सोचा, "यदि मैं यहाँ रहूं तो शाऊल एक दिन मुझे पकड़ ही लेगा। इसलिए सबसे अच्छा काम जो मैं कर सकता हूँ वह यह है कि मैं पलिश्तियों के क्षेत्र में चला जाऊँ। यदि मैं ऐसा करता हूँ, तो शाऊल मुझे इस्राएल में खोजना बंद कर देगा, और मैं सुरक्षित रहूंगा। "
\p
\s5
\v 2 तब दाऊद और उसके छः सौ पुरुष इस्राएल छोड़कर माओक के पुत्र आकीश के पास गए, जो पलिश्तियों के क्षेत्र में गत शहर का राजा था।
\v 3 दाऊद और उसके लोग और उनके परिवार गत में रहने लगे, जहाँ राजा आकीश रहता था। दाऊद की दो पत्नियां उसके साथ थीं-यिज्रेल से अहिनोअम, और कर्मेल से नाबाल की विधवा अबीगैल।
\v 4 जब शाऊल ने सुना कि दाऊद भाग गया और गत में रह रहा है, तो उसने दाऊद की खोज बंद कर दी।
\p
\s5
\v 5 एक दिन दाऊद ने आकीश से कहा, "यदि तुम हमसे प्रसन्न हो, तो हमें उन छोटे गांवों में से एक जगह दे दो जहाँ हम रह सकते हैं। हमें उस शहर में रहने की आवश्यकता नहीं, जहाँ तुम राजा हो। "
\p
\v 6 आकीश को दाऊद का सुझाव पसंद आया। इस दिन आकीश ने दाऊद को सिगलक शहर दिया। परिणामस्वरूप, इस समय तक सिगलक यहूदा के राजाओं का है।
\p
\v 7 दाऊद और उसके लोग सोलह महीने तक पलिश्तियों के क्षेत्र में रहे।
\s5
\v 8 उस समय, दाऊद और उसके लोगों ने उन इलाकों में रहने वाले लोगों पर हमला किया जहाँ गशूरी, गिरज़ी और अमालेकी लोग रहते थे। वे लोग बहुत पहले से वहाँ रहते थे। वह क्षेत्र दक्षिण से शूर तक और मिस्र की सीमा तक फैला था।
\v 9 जब भी दाऊद के लोगों ने उन पर हमला किया, तो उन्होंने सभी पुरुषों और स्त्रियों को मार डाला, और उन्होंने सभी लोगों की भेड़ें, मवेशी, गधे और ऊंट और यहाँ तक कि उनके कपड़े भी ले लिए। तब वे उन चीजों को घर लाते, और दाऊद, आकीश से बात करने जाता।
\p
\s5
\v 10 हर बार आकीश दाऊद से पूछता, "आज तुम कहाँ गये थे?" कभी दाऊद कहता कि वो यहूदा के दक्षिणी भाग में गया था, और कभी वह कहता कि वे वहाँ गए थे जहाँ यरहमेली दक्षिण में रहते थे, या उन्होंने दक्षिण में रहने वाले केनी लोगों से युद्ध किया था।
\s5
\v 11 दाऊद के लोग कभी भी किसी स्त्री या पुरुष को जीवित गत में नहीं लाए। दाऊद ने सोचा, "यदि हम सब को मार नहीं देते हैं, तो उनमें से कुछ जो जीवित हैं, वे जाएँगे और आकीश को सच बताएंगे कि हमने वास्तव में क्या किया।" दाऊद ने ऐसा ही किया जब तक वह और उसके लोग पलिश्तियों के क्षेत्र में रहे।
\v 12 इसलिए आकीश ने दाऊद की बात पर विश्वास किया; उसने सोचा, "दाऊद ने जो ऐसा किया है, उसके कारण, उसके अपने ही लोग, इस्राएलियों को अब उससे बहुत घृणा करनी चाहिए। इसलिए उन्हें यहाँ रहना होगा और हमेशा के लिए मेरी सेवा करनी होगी।"
\s5
\c 28
\p
\v 1 कुछ समय बाद, पलिश्ती के लोगों ने फिर से इस्राएलियों पर हमला करने के लिए अपनी सेना एकत्र की। राजा आकीश ने दाऊद से कहा, "मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि तुम और तुम्हारे लोग इस्राएलियों पर हमला करने के लिए मेरे लोगों के साथ जाएंगे।"
\p
\v 2 दाऊद ने उत्तर दिया, "हम तुम्हारे साथ जाएंगे, और फिर तुम स्वयं देखोगे कि हम क्या कर सकते हैं!"
\p आकीश ने कहा, "बहुत अच्छा, मैं तुमको अपना स्थायी अंगरक्षक होने के लिए नियुक्त करूंगा।"
\p
\s5
\v 3 जब शमूएल जीवित था, तब शाऊल ने ऐसे काम किये थे जिनसे यहोवा प्रसन्न हुआ था। उसके अचे कामों में से एक था, शाऊल ने उन सब लोगों को इस्राएल से बाहर निकाल दिया जो भावी कहते थे या जो मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करते थे। परन्तु शमूएल की मृत्यु हो गई थी, और सब इस्राएली लोगों ने उसके लिए शोक किया था। तब उन्होंने उसे उसके नगर रामा में दफनाया था।
\p
\v 4 पलिश्तियों की सेना एकत्र हुई और इस्राएल के उत्तर में शूनेम शहर में अपने तंबू खड़े किये। शाऊल ने इस्राएली सेना को एकत्र किया और उसी घाटी के पूर्वी हिस्से में गिलबो में अपने तंबू खड़े किये।
\s5
\v 5 पलिश्तियों की सेना को देखकर शाऊल इतना डर गया कि उसका दिल घबरा गया।
\v 6 उसने यहोवा से प्रार्थना की, परन्तु यहोवा ने उसे उत्तर नहीं दिया। यहोवा ने शाऊल को सपने में यह नहीं बताया कि उसे क्या करना चाहिए, न ही याजक को अपने पवित्र थैले में चिह्नित पत्थरों के द्वारा कुछ बताया या किसी भविष्यद्वक्ता को शाऊल के विषय में संदेश देकर भेजा कि उसे क्या करना चाहिए।
\v 7 तब शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, "मेरे लिए एक ऐसी स्त्री खोजो जो मृत लोगों की आत्माओं से बात करे, ताकि मैं उससे पूंछू कि क्या होगा।" उसके सेवकों ने उत्तर दिया, "एन्दोर शहर में एक स्त्री है जो ऐसा करती है।"
\p
\s5
\v 8 तब शाऊल ने उन कपड़ों को उतारा जो दिखाते थे कि वह राजा है, और उसने अपनी पहचान छिपाने के लिए साधारण कपड़े पहन लिए। तब वह और उसके दो लोग रात के समय उस स्त्री से बात करने के लिए गए। शाऊल ने उससे कहा, "मैं चाहता हूँ कि तुम किसी मरे हुए की आत्मा से बात करो। उस व्यक्ति को बुलाना जिसका नाम मैं तुम्हें बताऊंगा।"
\p
\v 9 परन्तु उस स्त्री ने उत्तर दिया, "तुम निश्चित रूप से जानते हो कि शाऊल ने क्या किया है। उसने इस देश से उन सब लोगों को निकाल दिया जो मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करते हैं और भावी कहते हैं। मुझे लगता है कि तुम मुझे फंसाने का प्रयास कर रहे हो, ताकि मुझे मना किये हुए कार्य को करने के लिए मार डाला जाये। "
\p
\v 10 शाऊल ने गंभीरता से यहोवा से कहा कि वह जो कह रहा है उसे वह सुने, यहोवा के जीवन की निश्चितता, तुम्हें ऐसा करने का दण्ड नहीं दिया जाएगा।"
\p
\s5
\v 11 तब उस स्त्री ने कहा, "तुम किसको देखना चाहते हो?" शाऊल ने उत्तर दिया, "शमूएल को बुलाओ।"
\p
\v 12 तो उस स्त्री ने ऐसा किया। लेकिन जब उसने शमूएल को देखा, तो वह चिल्लाई। उसने कहा, "तुमने मुझे धोखा दिया है! तुम शाऊल हो! तुम मुझे ऐसा करने के लिए यहाँ से निकाल दोगे!"
\p
\s5
\v 13 शाऊल ने उससे कहा, "डरो मत। तुम क्या देखती हो?"
\p स्त्री ने कहा, "मुझे लगता है कि एक देवता भूमि में से बाहर आ रहा है।"
\v 14 शाऊल ने कहा, "वह कैसा दिखता है?"
\p स्त्री ने उत्तर दिया, "एक बूढ़ा व्यक्ति दिख रहा है।"
\p शाऊल जानता था कि यह शमूएल है। अतः वह भूमि पर गिर कर दण्डवत करने लगा।
\s5
\v 15 शमूएल ने शाऊल से कहा, "तुमने मुझे बुला कर मुझे परेशान क्यों किया?"
\p शाऊल ने कहा, "मैं बहुत चिंतित हूँ। पलिश्तियों की सेना मेरी सेना पर हमला करने जा रही है, और परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया है। वे अब मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं देते हैं। वे मुझे यह बताने के लिए सपने नहीं देते कि क्या करना है या भविष्यद्वक्ताओं को संदेश दे कर नहीं बताते कि मुझे क्या करना है। यही कारण है कि मैं तुमको देखने आया था। तो तुम मुझे बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए! "
\s5
\v 16 शमूएल ने कहा, "यहोवा ने तुम्हें त्याग दिया है और तुम्हारा शत्रु बन गया है। तो तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो कि तुमको क्या करना चाहिए?
\v 17 उन्होंने वही किया है जो उन्होंने मुझे पहले बताया था कि वे तुम्हारे साथ क्या करेंगे। उन्होंने तुम से राज्य ले लिया है, और वे उसे दाऊद को दे रहे हैं।
\s5
\v 18 तुमने यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं किया। अमालेकी लोगों से यहोवा बहुत क्रोधित थे। तुमने उनके सब जानवरों को नहीं मारा, जिसके परिणामस्वरूप तुमने उन्हें यह नहीं दिखाया कि यहोवा उनसे बहुत नाराज थे। यही कारण है कि वे आज तुमको उत्तर देने से मनाकर रहे हैं।
\v 19 यहोवा पलिश्ती सेना को तुम्हें और अन्य सब इस्राएली सैनिकों को पराजित करने में सक्षम करेंगे। और कल तुम और तुम्हारे पुत्र मेरे साथ उस स्थान में होंगे जहाँ मरे हुए लोगों की आत्माएं हैं। यहोवा पूरी इस्राएली सेना को पलिश्ती सेना के हाथों पराजित करेंगे। "शमूएल यह सब कह कर वहाँ से गायब हो गया।
\p
\s5
\v 20 शाऊल तुरंत भूमि पर गिर गया। शमूएल की बात सुनकर वह इतना डर गया था कि उसमें शक्ति ही नहीं रही। वह वैसे ही बहुत दुर्बल था क्योंकि उसने उस दिन और रात में कुछ भी नहीं खाया था।
\p
\v 21 स्त्री ने देखा कि वह बहुत चिंतित है। उसने उससे कहा, "मेरी बात सुनो! मैंने वह किया है जो तुमने मुझसे करने का अनुरोध किया था। मुझे ऐसा करने के लिए मृत्यु दण्ड दिया जा सकता था।
\s5
\v 22 तो अब मैं जो कहती हूँ उस पर ध्यान दो। मुझे तुम्हारे लिए भोजन परोसने की अनुमति दो, ताकि तुम भोजन खा सको और अपनी सेना में वापस जाने के लिए पर्याप्त शक्ति प्राप्त कर सको।"
\p
\v 23 लेकिन शाऊल ने मनाकर दिया। उसने कहा, "नहीं, मैं कुछ भी नहीं खाऊंगा।" तब शाऊल के सेवकों ने भी कुछ खाने के लिए उससे आग्रह किया, और अंत में उसने उनकी बात सुनी। वह भूमि से उठा और बिस्तर पर बैठ गया।
\p
\s5
\v 24 उस स्त्री के पास एक मोटा बछड़ा उसके घर के निकट था। उसने जल्दी से उसे मारा और पकाया। उसने कुछ आटा लिया और जैतून का तेल मिलाकर खमीर में डाले बिना पकाया।
\v 25 उसने शाऊल और उसके सेवकों के सामने भोजन रखा, और उन्होंने कुछ खा लिया। फिर उसी रात वे उठकर चले गए।
\s5
\c 29
\p
\v 1 पलिश्ती सेना अपेक की घाटी में एकत्र हुई। इस्राएलियों ने वहीं यिज्रेल शहर में अपने तंबू लगाए थे।
\v 2 पलिश्तियों के राजाओं ने अपने लोगों को दलों में बांटा; कुछ दलों में एक सौ सैनिक थे और कुछ समूहों में एक हजार सैनिक थे। राजा आकीश के साथ दाऊद और उसके लोग पीछे चल रहे थे।
\s5
\v 3 परन्तु पलिश्ती सेनापतियों ने पूछा, "ये इब्रानी यहाँ क्या कर रहे हैं, हमारे साथ युद्ध में चल रहे हैं?"
\p आकीश ने उत्तर दिया, "उनका अगुवा दाऊद है। उसने पहले इस्राएल के राजा शाऊल के लिए काम किया था, लेकिन अब वह एक वर्ष से भी अधिक समय से मेरे पास रहा है। शाऊल को छोड़ने के बाद से, मैंने नहीं देखा है कि उसमें कोई दोष है।"
\s5
\v 4 परन्तु पलिश्ती सेना के सेनापति आकीश पर क्रोधित हुए क्योंकि उसने दाऊद को साथ चलने की आज्ञा दी थी। उन्होंने उससे कहा, "दाऊद और उसके लोगों को उस शहर में वापस भेजो जिसे आपने उसे दिया था! हम नहीं चाहते कि वह हमारे साथ युद्ध में जाए। यदि वह हमारे साथ जाता है, तो हमारे बीच में हमारा शत्रु होगा! वह हमारे सैनिकों की हत्या करके शाऊल को प्रसन्न करेगा!
\p
\s5
\v 5 क्या तुम भूल गए हो कि यह वही दाऊद है जिसके विषय में इस्राएली नाचते हैं और गाते हैं,
\q1 'शाऊल ने हजार शत्रुओं को मारा,
\q2 लेकिन दाऊद ने दस हजार को मारा है?"
\p
\s5
\v 6 तब आकीश ने दाऊद को बुलाकर कहा, "यहोवा के जीवन की शपथ, तुम मेरे प्रति वफादार रहे हो। मैं तुम्हारे लिए अपनी सेना के साथ लड़ना चाहता हूँ। जिस दिन से तुम मेरे पास आए हो मुझे तुम में कोई गलती नहीं मिली है। लेकिन अन्य राजा तुम पर भरोसा नहीं करते हैं।
\v 7 तो तुम सब घर वापस जाओ, और मुझे ऐसा कुछ करने की आशा नहीं है कि पलिश्ती के अन्य राजा तुम से अप्रसन्न हों। "
\p
\s5
\v 8 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैंने क्या गलत किया है? जिस दिन से मैं पहली बार तुम्हारे पास आया था, क्या मैंने ऐसा कुछ किया है जो तुम्हें बुरा लगे? महामहिम, तुम मुझे अपने शत्रुओं से युद्ध करने की अनुमति क्यों नहीं दे रहे? "
\p
\v 9 आकीश ने उत्तर दिया, "मैं जनता हूँ कि मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ जितना मैं परमेश्वर के भेजे एक स्वर्गदूत पर भरोसा कर सकता हूँ। लेकिन मेरी सेना के सेनापति ने कहा है, 'हम दाऊद और उसके लोगों को युद्ध में हमारे साथ जाने की अनुमति नहीं देंगे। '
\s5
\v 10 अतः कल सुबह जल्दी तुम और तुम्हारे पुरुषों को जाना होगा। जैसे ही प्रकाश हो जाये तो तुम सब यहाँ से निकल जाओ। "
\p
\v 11 तब दाऊद और उसके लोग अगली सुबह उठकर उस क्षेत्र में लौट आए जहाँ पलिश्ती लोग रहते थे। परन्तु पलिश्ती सेना यिज्रेल शहर में गई।
\s5
\c 30
\p
\v 1 तीन दिन बाद, जब दाऊद और उसके लोग सिकलाग पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि अमालेक समूह के लोगों ने सिकलाग और दक्षिणी यहूदा की मरुभूमि के कुछ कस्बों पर छापा मारा था। उन्होंने सिकलाग को नष्ट कर दिया और सभी इमारतों को जला दिया।
\v 2 उन्होंने महिलाओं और बच्चों और बाकि सब को भी पकड़ लिया था, और उन्हें दूर ले गये। लेकिन उन्होंने किसी की हत्या नहीं की थी।
\p
\s5
\v 3 जब दाऊद और उसके लोग सिकलाग आए, तो उन्होंने देखा कि नगर जला दिया गया था, और उनकी पत्नियों, पुत्रों और पुत्रियों को पकड़कर ले जाया गया था।
\v 4 दाऊद और उसके लोग जोर-जोर से रोते रहे, जब तक कि उनमे रोने की और शक्ति ना बची।
\s5
\v 5 दाऊद की दो पत्नियां, अहिनोम और अबीगैल को भी ले गए थे।
\v 6 दाऊद के लोग उसके ऊपर पत्थर फेंककर उसे मारने की धमकी दे रहे थे, क्योंकि वे बहुत क्रोधित थे क्योंकि उनके पुत्रों और पुत्रियों को लूट लिया गया था। दाऊद बहुत परेशान था, परन्तु उसके परमेश्वर यहोवा ने उसे बल दिया।
\p
\s5
\v 7 तब दाऊद को नहीं पता था कि क्या करना है, इसलिए उसने याजक एब्यातार से कहा, "पवित्र एपोद लाओ।" तो एब्यातार उन्हें लाया,
\v 8 और दाऊद ने यहोवा से पूछा, "क्या मैं और मेरे लोग उन मनुष्यों का पीछा करे जिन्होंने हमारे परिवारों को लूट लिया? क्या हम उन्हें पकड़ सकेंगे?"
\p यहोवा ने पवित्र एपोद के पत्थरों के माध्यम से उत्तर दिया: "हाँ, उनका पीछा करो। तुम उन्हें पकड़ लोगे, और तुम अपने परिवारों को बचाने में सक्षम होंगे।"
\s5
\v 9 तब दाऊद और उसके साथ छः सौ पुरुष चले गए, और वे बेसर की चट्टान पर आए। उनके कुछ पुरुष अपने सामान के साथ वहाँ रहे।
\v 10 दाऊद और चार सौ पुरुष अपने परिवारों को पकड़ने वाले पुरुषों का पीछा करते रहे। अन्य दो सौ लोग घाटी पर ठहर गये, क्योंकि वे इतने थक गए थे कि वे घाटी को पार नहीं कर सके।
\p
\s5
\v 11 जैसे दाऊद और चार सौ लोग जा रहे थे, उन्होंने मिस्र के एक व्यक्ति को खेत में देखा; इसलिए वे उसे दाऊद के पास ले गए। उन्होंने उस व्यक्ति को पीने के लिए पानी दिया और खाने के लिए कुछ खाना दिया।
\v 12 उन्होंने उसे अंजीर की टिकिया और किशमिश के दो गुच्छे भी दिए। उस व्यक्ति के पास तीन दिन और रात से खाने या पीने के लिए कुछ भी नहीं था, लेकिन जब उसने खाया और पी लिया, उसमें फुर्ती आई।
\p
\s5
\v 13 दाऊद ने उससे पूछा, "तुम्हारा स्वामी कौन है? और तुम कहाँ से आते हो?"
\p उसने उत्तर दिया, "मैं मिस्र से हूँ। मैं अमालेकी लोगों के समूह में से एक व्यक्ति का दास हूँ। तीन दिन पहले मेरे स्वामी ने मुझे यहाँ छोड़ दिया, क्योंकि मैं बीमार था और मैं उनके साथ नहीं जा सका।
\v 14 हमने केरेती लोगों के दक्षिणी यहूदियन जंगल और यहूदा के कुछ अन्य कस्बों और कालेबियों के दक्षिणी यहूदिया की मरुभूमि पर छापा मारा था। हमने सिकलाग भी जला दिया। "
\p
\s5
\v 15 दाऊद ने उससे पूछा, "क्या आप हमें लुटेरों के उस दल में ले जा सकते हो?"
\p उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं ऐसा करूँगा यदि तुम परमेश्वर से यह कहते हो कि यौम मुझे नहीं मरोगे और ना ही मुझे मेरे स्वामी को वापस नहीं दोगे। यदि तुम वादा करते हो, तो मैं तुम्हें उनके पास ले जाऊंगा।"
\s5
\v 16 दाऊद ऐसा करने के लिए तैयार हो गया, इसलिए मिस्र के उस व्यक्ति ने दाऊद और उसके लोगों को वहाँ ले गया जहाँ अमालेकी लोगों का दल था । वे लोग भूमि पर गिरे पड़े थे, खा रहे थे और पी रहे थे और जश्न मना रहे थे क्योंकि उन्होंने पलिश्ती और यहूदा केक्षत्र से बहुत सी वस्तुएँ की थीं।
\v 17 दाऊद और उसके लोगों ने उस दिन सूर्यास्त से अगले दिन की शाम तक उनसे युद्ध किया। उनमें से चार सौ ऊँटों पर चढ़कर भाग गए और कुछ ऊंटों पर चले गए, लेकिन उनमें से कोई भी बच न निकला।
\s5
\v 18 दाऊद ने अपनी दो पत्नियों को बचा लिया, और उसने और उसके लोग अमालेकी लोगों ने जो कुछ भी लिया था, उस लूट को वापस ले लिया।
\v 19 कुछ भी कम न था। उन्होंने अपने सब लोगों को वापस सिकलाग ले आये युवा लोगों और बुजुर्गों, उनकी पत्नियों, उनके पुत्रों और उनकी पुत्रियों को ले लिया। उन्होंने अन्य सब चीजों को भी पुनर्प्राप्त किया कि अमालेक लोगों के समूह ने सिकलाग से लिया था।
\v 20 उन्होंने उन भेड़ों और मवेशियों को वापस लिया जिन्हें पकड़ लिया गया था, और उसके पुरूषों ने इन जानवरों को बाकी पशुओं के आगे चला; उन्होंने कहा, "ये वे जानवर हैं जिन्हें हमने युद्ध में पकड़ा, वे दाऊद के हैं!"
\p
\s5
\v 21 दाऊद और उसके लोग वापस वहाँ लौटे, जहाँ दो सौ पुरुष प्रतीक्षा कर रहे थे, वे लोग दाऊद के साथ नहीं गए क्योंकि वे बहुत थके हुए थे। वे बेसर की चट्टान पर रहे थे। जब उन्होंने दाऊद और उसके लोगों को देखा, तो वे उन्हें बधाई देने के लिए बाहर गए। और दाऊद ने भी उन्हें बधाई दी।
\p
\v 22 परन्तु जो लोग दाऊद के साथ गए थे, वे बुरे और परेशान करने वाले पुरुष थे, उन्होंने कहा, "ये दो सौ पुरुष हमारे साथ नहीं गए थे। इसलिए हमें इन वस्तुओं में से उन्हें कुछ भी नहीं देना चाहिए जिन्हें हम वापस लाए हैं। वे केवल अपनी पत्नी और बच्चों को ले और घर वापस जाना जाओ। "
\p
\s5
\v 23 दाऊद ने उत्तर दिया, "नहीं, मेरे साथी इस्राएलियों, यह उचित नहीं है। यहोवा ने हमें बचाया है और हमें हमारे नगर पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को हराने में सक्षम बनाया है।
\v 24 यदि तुम ऐसा कहते हैं तो कौन तुम पर ध्यान देगा? जो लोग हमारे सामान के साथ यहाँ रहे थे वे भी उतना ही प्राप्त करेंगे जितना युद्ध में गए लोग प्राप्त करेंगे। वे सभी एक ही बराबर प्राप्त करेंगे। "
\v 25 दाऊद ने इस्राएलियों के लिए यह कानून बनाया, और यह अभी भी इस्राएल में एक कानून है।
\p
\s5
\v 26 जब दाऊद और सब लोग सिगलक पहुँचे, तो दाऊद ने अपने मित्रों को वे वस्तुएँ दीं जो उन्होंने अमालेकियों से ली थीं। उसने उनसे कहा, "यह तुम्हारे लिए एक उपहार है। ये वे वस्तुएँ हैं जिन्हें हमने यहोवा के शत्रुओं से लिया है।
\p
\v 27 यहाँ उन नगरों और कस्बों की एक सूची दी गई है जिनके अगुवों ने दाऊद को उपहार भेजा: बेतेल, यहूदा के दक्षिणी भाग में रामोथ, जातिर,
\v 28 अरोएर, सिपामोथ, एश्तेमोआ।
\s5
\v 29 राकल, उन नगरों में जहाँ रामेल के वंशज और जिन नगरों में केनीत लोगों के समूह रहते हैं,
\v 30 होर्मा, बोर आशान, अथक,
\v 31 हेब्रोन, और अन्य सभी जगह जहाँ दाऊद और उसके लोग अक्सर चले गए थे।
\s5
\c 31
\p
\v 1 बाद में, पलिश्तियों ने फिर से इस्राएलियों से युद्ध किया। इस्राएली वहाँ से भाग गए, और गिलबो पर्वत पर कई इस्राएली मारे गए।
\v 2 पलिश्तियों ने शाऊल को उसके तीन पुत्रों के साथ पकड़ा, और उन्होंने उसके तीन पुत्र योनातन और अबीनादाब और मल्कीशूअ को मार डाला।
\v 3 शाऊल के चारों ओर बहुत भयानक युद्ध हो रहा था। जब शाऊल पलिश्ती तीरंदाज के पास पहुँच गए, तो उन्होंने अपने तीरों से उसे बुरी तरह घायल कर दिया।
\p
\s5
\v 4 शाऊल ने उस मनुष्य से कहा, जो उसके हथियारों ढोता था, "अपनी तलवार निकालो और मुझे मार डालो, जिससे की ये पलिश्ती अपनी तलवारों से मुझे मारने में सक्षम न हों और मरने के दौरान मेरा ठट्ठा न उड़ा सकें । "
\p लेकिन वह व्यक्ति जो शाऊल के हथियारों ढोता था, डर गया, और ऐसा करने से मनाकर दिया। तो शाऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिर गया। तलवार ने अपने शरीर को छेद दिया, और वह मर गया।
\v 5 जब उसके हथियार धोने वाले व्यक्ति ने देखा कि शाऊल मर चुका है, तो वह भी अपनी तलवार पर गिरा और मर गया।
\v 6 तब शाऊल, उसके तीन पुत्र, और जो व्यक्ति शाऊल के हथियारों को ढोता था, सब उसी दिन मर गए।
\p
\s5
\v 7 जब यिज्रैल की घाटी के उत्तर की ओर और यरदन नदी के पूर्व की ओर इस्राएलियों ने सुना कि इस्राएल की सेना भाग गई और शाऊल और उसके पुत्र मारे गए, तो उन्होंने अपने नगर छोड़ दिए और भाग गए। तब पलिश्ती आए और उनके नगरों पर अधिकार कर लिया।
\p
\v 8 अगले दिन, जब पलिश्ती मरे हुओं इस्राएली सैनिकों के हथियार ले जाने आए, तब उन्होंने शाऊल और उसके तीनों पुत्रों को गिलबोआ पर्वत पर पाया।
\s5
\v 9 उन्होंने शाऊल के सिर को काट दिया और उसके हथियार ले लिए। तब उन्होंने मंदिरों में समाचारों का प्रचार करने के लिए अपने पूरे देश में दूत भेजे, जहाँ उन्होंने अपनी मूर्तियों और अन्य लोगों को सुनाया, कि उनकी सेना ने इस्राएलियों को पराजित किया था।
\v 10 उन्होंने शाऊल के हथियारों को अपनी देवी अस्तोरेत के मंदिर में रखा। उन्होंने शाऊल और उसके पुत्रों के शरीर को उस दीवार पर रख दिया जो बेत शान शहर को घेरे हुए थी।
\p
\s5
\v 11 जब गिलाद के क्षेत्र के याबेश में रहने वाले लोगों ने सुना कि पलिश्तियों ने शाऊल के साथ किया क्या किया है,
\v 12 उनके सभी सबसे बड़े सैनिक बेतशान के लिए सारी रात चले। उन्होंने शाऊल और उसके पुत्रों की लाशों को शहर की दीवार से नीचे उतार लिया और उन्हें याबेश ले आये और वहाँ उनकी लाशों को जला दिया।
\v 13 उन्होंने हड्डियों को लिया और उन्हें एक बड़े झाऊ के पेड़ के नीचे दफनाया। फिर उन्होंने सात दिनों तक उपवास किया।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h 2 शमूएल
\toc1 2 शमूएल
\toc2 2 शमूएल
\toc3 2sa
\mt1 2 शमूएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 शाऊल की मृत्यु के बाद, दाऊद और उसके साथ रहने वाले लोग अमलेकियों के वंशजों को पराजित करने के बाद सिकलग शहर लौट आए। वे सिकलग में दो दिन तक रहे।
\v 2 तीसरे दिन, ऐसा हुआ एक व्यक्ति अप्रत्याशित रूप से वहाँ पहुँचा जो शाऊल की सेना में था। उसने अपने कपड़े फाड़े और अपने सिर पर धूल डाली ताकि वह दिखा सके कि वह शोक मना रहा था। वह दाऊद के पास आया और दाऊद के सामने आदर के साथ दंडवत किया ।
\p
\s5
\v 3 दाऊद ने उससे पूछा, "तू कहाँ से आया है?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, " इस्राएली सेना से।"
\p
\v 4 दाऊद ने उससे पूछा, "क्या हुआ? मुझे युद्ध के विषय बताओ!" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "हमारे सैनिक भाग गए। उनमें से कई मारे गए और शाऊल और उसके पुत्र योनातान मर गए।"
\p
\v 5 दाऊद ने जवान से कहा, "तू कैसे जानता है कि शाऊल और योनातान मर चुके हैं?"
\p
\s5
\v 6 युवक ने उत्तर दिया, "मैं गिलबो पर्वत पर था जहाँ लड़ाई हो रही थी। मैंने शाऊल को देखा, वह अपने भाले पर झुका हुआ था। दुश्मन के रथ और उनके चालक उसके बहुत निकट चले आ रहे थे।
\v 7 शाऊल ने पीछे मुड़कर मुझे देखा, और उसने मुझे पुकारा। मैंने उसे उत्तर दिया और कहा, 'तू क्या चाहता है कि मै करूँ?'
\p
\s5
\v 8 उसने उत्तर दिया, 'तू कौन है?' मैंने उत्तर दिया, 'मैं अमालेकी का वंशज हूँ।'
\p
\v 9 तब उसने मुझसे कहा, 'यहाँ आकर मुझे मार डाल। मै अत्यंत दु:खी हूँ।
\p
\v 10 इसलिए मैं उसके पास गया और उसे मार डाला, क्योंकि मैंने देखा कि वह बहुत बुरी तरह घायल है और जीवित नहीं रह सकता। मैंने उसके सिर से मुकुट तथा उसकी बांह से कंगन उतार लिया, जिन्हें मैं तेरे पास लाया हूँ, मेरे स्वामी।"
\p
\s5
\v 11 तब दाऊद ने अपने कपड़े फाड़ डाले, और जितने पुरुष उनके साथ थे उन्होंने भी अपने कपड़े फाड़ डाले ।
\v 12 उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले क्योंकि वे बहुत दु:खी थे और उन्होंने शाम तक कुछ भी खाने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें पता था कि शाऊल और उसके पुत्र योनातान की मृत्यु हो गई थी, और यहोवा के इतने सारे लोग मर गए थे, और क्योंकि इस्राएल के वंशजों पर बीते बड़े खतरे के कारण वे उदास थे और क्योंकि उनमें से कई युद्ध में मारे भी गए थे।
\p
\v 13 दाऊद ने उस जवान व्यक्ति से पूछा जिसने उन्हें युद्ध के बारे में बताया था, "तू कहाँ से है?" उसने उत्तर दिया, "मेरे पिता अमालेकियों के वंशज हैं, परन्तु हम इस्राएल में रहते हैं।"
\p
\s5
\v 14 दाऊद ने उससे पूछा, "तू डरा क्यों नहीं तूने शाऊल को मार डाला, जिसे यहोवा ने राजा बनाया है तो तुझे दंडित किया जाएगा?
\v 15-16 तूने स्वयं कहा, 'मैंने उस व्यक्ति को मार डाला जिसे यहोवा ने राजा नियुक्त किया था।' तो तूने स्वयं को दोषी बनाया; तू मरने के योग्य है! "तब दाऊद ने अपने एक सैनिक को बुलाया और उससे कहा," इसे मार दो! "सैनिक ने उसे मार डाला।
\p
\s5
\v 17 तब दाऊद ने शाऊल और योनातान के विषय इस दु:खद गीत को लिखा,
\v 18 और उसने अपने लोगों को यहूदियों को इसे सिखाने का आदेश दिया। गीत को "धनुष" कहा जाता है और यह याशार की पुस्तक में लिखा गया है:
\q1
\v 19 "इस्राएली लोगों, पहाड़ों पर तुम्हारे शूरवीर अगुवे मारे गए!
\q2 यह बहुत दु:खद है कि इन शक्तिशाली पुरुषों की मृत्यु हो गई है!
\q1
\v 20 पलिश्ती के क्षेत्र में अपने दुश्मनों से यह मत कहो।
\q1 गत शहर में रहने वाले लोगों को मत बताओ।
\q2 अश्कलोन शहर की सड़कों में इसकी घोषणा मत करो, ऐसा न हो की उनकी स्त्रियाँ उत्सव मनाएँ।
\q2 उन मूर्तिपूजक स्त्रियों को आनंदित न होने दो ।
\q1
\s5
\v 21 मैं आशा करता हूँ कि गिलबो के पहाड़ों पर कभी भी बारिश या ओस न पड़े
\q1 और न वहाँ के खेतों में कोई अनाज पैदा हो,
\q2 क्योंकि यह वह स्थान था जहाँ शक्तिशाली राजा शाऊल, की ढाल जमीन पर गिरी ।
\q1 अब शाऊल की ढाल पर जैतून का तेल रगड़ने वाला कोई नहीं है।
\q1
\v 22 योनातान के तीर उसके सेवक थे जो सदैव उसके शत्रुओं को छेदते थे और उनका खून बहाते थे।
\q2 और शाऊल की तलवार उसकी सेवक थी जिसने हमेशा अपने शत्रुओं को मारा।
\q1
\s5
\v 23 शाऊल और योनातान प्रिय थे; उन्होंने कई लोगों को प्रसन्न किया।
\q2 वे जीते और मरते हुए साथ थे।
\q1 युद्ध में वे उकाबों से अधिक तेज और शेरों से अधिक बलवान थे।
\q1
\v 24 तुम इस्राएल की स्त्रियों, शाऊल के विषय रोओ।
\q1 उसने तुम्हारे लिए सुंदर लाल रंग के कपड़े उपलब्ध कराए
\q2 और तुम्हें सोने के गहने पहनने को दिए।
\q1
\s5
\v 25 यह बहुत दुखद है कि मेरे भाई योनातान की मृत्यु हो गई है
\q2 वह एक शक्तिशाली सैनिक था, और उसके शत्रुओं ने उसे पहाड़ पर मारा।
\q1
\v 26 योनातान, मेरे प्रिय मित्र, मैं तुम्हारे लिए शोक करता हूँ।
\q2 तू मेरे लिए बहुत प्रिय था।
\q1 तूने मुझे अद्भुत तरीके से प्रेम किया।
\q2 एक स्त्री जो प्रेम अपने पति और बच्चों से करती है उससे भी बढ़कर वह प्रेम था ।
\q1
\v 27 यह बहुत दुखद है कि ये शक्तिशाली पुरुष मर गए,
\q2 और उनके हथियार अब नहीं बचे !
\s5
\c 2
\p
\v 1 कुछ समय बाद, दाऊद ने यहोवा से पूछा, "क्या मुझे यहूदा के एक नगर में जाना चाहिए?" यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, वहाँ जाओ।" तब दाऊद ने पूछा, "मुझे किस शहर में जाना चाहिए?" यहोवा ने उत्तर दिया, "हेब्रोन में।"
\p
\v 2 तब दाऊद वहाँ अपनी दोनों पत्नियों, अहीनोअम जो यिज्रेली शहर से थी , और कर्मेली शहर के नाबाल की विधवा अबीगैल को लेकर गया।
\v 3 उसने उनके परिवारों के साथ उन लोगों को भी लिया जो उसके साथ थे। वे सभी हेब्रोन और उसके आस-पास के गांवों में रहने लगे।
\s5
\v 4 तब यहूदा के लोग हेब्रोन आए, और उनमें से एक ने दाऊद के सिर पर जैतून का तेल डाला ताकि वह दिखा सके कि वे उसे यहूदा के गोत्र के राजा के रूप में नियुक्त कर रहे थे।
\p जब दाऊद को पता चला कि गिलाद के क्षेत्र में याबेश शहर के लोगों ने शाऊल के शरीर को मिट्टी दी थी,
\v 5 उसने याबेश के लोगों को यह कहने के लिए दूत भेजे, "मैं चाहता हूँ कि यहोवा तुम्हें शाऊल को मिट्टी देने के लिए आशीष दे। ऐसा करके, तुमने दिखाया है कि तुम उनके प्रति निष्ठावान थे।
\s5
\v 6 अब मैं यह भी चाहता हूँ कि यहोवा तुमसे निष्ठापूर्वक प्रेम करें और तुम्हारे प्रति निष्ठावान रहें। और जो कुछ तुम सब ने शाऊल के लिए किया है, उसके कारण मैं तुम्हारी भलाई करूँगा।
\v 7 अब, यद्यपि तुम्हारा राजा शाऊल नहीं रहा, यहूदा के लोगों की तरह दृढ़ और साहसी बनो, जिन्होंने मुझे राजा बनने के लिए नियुक्त किया है।"
\p
\s5
\v 8 हालांकि, शाऊल की सेना का सेनापति नेर का पुत्र अब्नेर शाऊल के पुत्र ईशबोशेत को लेकर यरदन नदी पार महनैम शहर गया।
\v 9 वहाँ अब्नेर ने यह घोषणा की कि ईशबोशेत अब गिलाद और यिज्रेल के क्षेत्र और आशूरियों, एप्रैम और बिन्यामीन के गोत्रों पर राजा बनकर शासन करता है। इसका मतलब था कि वह अधिकांश इस्राएल का राजा था।
\p
\s5
\v 10 ईशबोशेत चालीस वर्ष का था जब उसने इस्राएलियों पर शासन करना शुरू किया । उसने दो साल तक उन पर शासन किया। यहूदा का गोत्र दाऊद के प्रति निष्ठावान था।
\v 11 दाऊद ने हेब्रोन में रहते हुए साढ़े सात सालों तक उन पर शासन किया।
\p
\s5
\v 12 एक दिन अब्नेर और ईशबोशेत के अधिकारी महनैम से होकर यरदन नदी के पार गेबोन शहर में गए।
\v 13 योआब, जिसकी माँ सरूयाह थी, और दाऊद के कुछ अधिकारी हेब्रोन से गिबोन गए, और उनकी भेंट पानी के तालाब के पास हुई । वे सब बैठ गए, तालाब की एक तरफ एक समूह और दूसरी तरफ दूसरा समूह।
\p
\s5
\v 14 अब्नेर ने योआब से कहा, " आओ हम अपने कुछ युवाओं को एक दूसरे से लड़ने के लिए कहें!" योआब ने जवाब दिया, "बहुत अच्छा!"
\p
\v 15 तब बिन्यामीन के गोत्र के बारह लोग ईशाबोशेत के लिए, दाऊद के बारह सैनिकों के विरुद्ध लड़े।
\s5
\v 16 उनमें से प्रत्येक ने एक-दूसरे के सिर को पकड़ लिया जिसके विरुद्ध वे लड़ रहे थे, और अपनी तलवार को विरोधी की पसली में भोंक दिया। परिणामस्वरूप सभी चौबीसों मर गए। गिबोन में उस क्षेत्र को अब "तलवारों का क्षेत्र" कहा जाता है।
\p
\v 17 तब दूसरों ने भी लड़ना शुरू कर दिया। यह एक बहुत ही भयंकर लड़ाई थी। अब्नेर और इस्राएल के लोग दाऊद के सैनिकों द्वारा पराजित हुए।
\p
\s5
\v 18 उस दिन सरूयाह के तीन पुत्र वहाँ थे: योआब, अबीशै और असाहेल। असाहेल बहुत तेज दौड़ने में सक्षम था। वह जंगली चीते के समान तेजी से दौड़नेवाला व्यक्ति था।
\v 19 असाहेल ने अब्नेर का पीछा करना शुरू कर दिया। वह बिना रूके अब्नेर की तरफ दौड़ा।
\s5
\v 20 अब्नेर ने पीछे देखा, और कहा, "क्या तू, असाहेल है?" असाहेल ने जवाब दिया, "हाँ!"
\p
\v 21 अब्नेर चिल्लाया, "मेरा पीछा करना बंद कर; किसी और के पीछे जा!" परन्तु असाहेल ने अब्नेर का पीछा करना बंद नहीं किया।
\p
\s5
\v 22 तब अब्नेर पुनः चिल्लाया, "मेरा पीछा करना बंद कर! मैं तुझे क्यों मारूँ? मैं तेरे भाई योआब का सामना कैसे कर पाऊँगा और उसे तेरी मौत के विषय कैसे समझा सकूँगा?"
\p
\v 23 परन्तु असाहेल ने अब्नेर का पीछा ना करने से मना कर दिया। अब्नेर ने अचानक मुड़कर और अपने भाले के कुंडे को अंत तक असाहेल के पेट में घुसेड़ दिया। क्योंकि उसने इसे बहुत दृढ़ता से घुसेड़ा, भाला का वह अंत उसके शरीर के पार चला गया और असाहेल की पीठ पर बाहर आया, और वह भूमि पर मृत गिर पड़ा। अन्य सभी सैनिक उस स्थान पर आए जहाँ उसका शरीर पड़ा हुआ था और असाहेल के शरीर के पास घबरा कर खड़े हो गए।
\p
\s5
\v 24 परन्तु योआब और अबीशै अब्नेर का पीछा करते रहे सूर्यास्त में वे अम्मा की पहाड़ी पर आए, जो गिबोन के निकट जंगल में मार्ग के किनारे, गीह के पूर्व में है।
\v 25 बिन्यामीन के गोत्र के लोग युद्ध की एक पंक्ति में अब्नेर के चारों ओर इकट्ठे हुए और एक पहाड़ी के शीर्ष पर खड़े हो गए।
\p
\s5
\v 26 तब अब्नेर ने योआब से कहा, "क्या हम सदैव लड़ते रहेंगे? क्या तुझे एहसास नहीं है कि अगर हम लड़ते रहे तो बहुत बुरा होगा? हम सभी याकूब के वंशज हैं, इसलिए हमें एक दूसरे से लड़ना नहीं चाहिए! तू कब तक अपने लोगों को आज्ञा नहीं देगा कि वे हमारा पीछा न करें?
\p
\v 27 योआब ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से परमेश्वर हैं, अगर तूने यह नहीं कहा होता, तो मेरे सैनिक कल सुबह तक तेरे पुरुषों का पीछा करते !"
\p
\s5
\v 28 तब योआब ने लड़ाई बंद करने के लिए तुरही बजाकर संकेत दिया। तो उसके सभी पुरुषों ने इस्राएल के सैनिकों का पीछा करना बंद कर दिया।
\p
\v 29 उस रात अब्नेर और उसके सैनिक यरदन नदी के किनारे मैदान के पार चले गए। उन्होंने यरदन पार किया और अगली सुबह सब आगे बढ़े, और अंत में वे महनैम पहुँच गए।
\p
\s5
\v 30 योआब और उसके सैनिक अब्नेर का पीछा करने के बाद एक साथ इकट्ठे हुए। तब योआब ने पाया कि असाहेल के अलावा, युद्ध में उन्नीस लोग मारे गए थे।
\v 31 परन्तु दाऊद के सैनिकों ने बिन्यामीन के गोत्र में से अब्नेर के 360 लोगों को मार डाला था।
\v 32 योआब के कुछ सैनिकों ने असाहेल के शरीर को बैतलहम में उस क़ब्र में रखा जहाँ उसके पिता को रखा गया था। तब वे रात भर चलते रहे, और सुबह वे हेब्रोन में घर लौट आए।
\s5
\c 3
\p
\v 1 उसके बाद, उन लोगों के बीच बहुत समय तक युद्ध चलता रहा जो शाऊल के पुत्र को राजा बनाना चाहते थे और जो दाऊद को राजा बनाना चाहते थे। परन्तु अधिकतम लोग दाऊद को चाहते थे, जबकि न्यूनतम लोग शाऊल के पुत्र को चाहते थे।
\q
\s5
\v 2 दाऊद की पत्नियों ने हेब्रोन में छह पुत्रों को जन्म दिया। सबसे ज्येष्ठ अम्नोन था, जिसकी माँ अहीनोअम यिज्रेल शहर से थी।
\q2
\v 3 अगला पुत्र किलाब था, जिसकी माँ अबीगैल कर्मेली शहर के नाबाल की विधवा थी।
\q2 अगला पुत्र अबशालोम था, जिसकी माँ माका थी , जो कि गशूर के राजा तल्मै की पुत्री थी।
\q2
\s5
\v 4 अगला पुत्र अदोनिय्याह था, जिसकी माँ हग्गीत थी।
\q2 अगला पुत्र शपत्याह था, जिसकी माँ अबीतल थी।
\q2
\v 5 सबसे छोटा पुत्र यित्राम था, जिसकी माँ एग्ला थी, जो दाऊद की पत्नियों में से एक थी।
\q2 दाऊद के ये पुत्र हेब्रोन में पैदा हुए थे।
\p
\s5
\v 6 उन लोगों के बीच संघर्ष के दौरान जो शाऊल के पुत्र को शासक बनाना चाहते थे और जो लोग दाऊद को उनके ऊपर शासक बनाना चाहते थे, अब्नेर उन लोगों के बीच अधिक प्रभावशाली बन रहा था जो शाऊल के पुत्र को राजा बनाना चाहते थे।
\v 7 शाऊल की पत्नियों में से रिस्पा एक दासी स्त्री थी जो अय्या की पुत्री थी। एक दिन अब्नेर उसके साथ सो गया। इसलिए ईशबोशेत ने अब्नेर से कहा, "तू मेरे पिता की दासी पत्नी के साथ क्यों सोया?"
\p
\s5
\v 8 अब्नेर ईशबोशेत की बात से बहुत क्रोधित हो गया। उसने ईशबोशेत से कहा, "क्या तुझको लगता है कि मैं यहूदा का एक बेकार कुत्ता हूँ? आरंभ से मैं तेरे पिता शाऊल के प्रति उसके भाइयों और उसके मित्रों के प्रति निष्ठावान रहा हूँ। और मैंने दाऊद की सेना को तुम्हें पराजित करने से रोका। इसलिए किसी स्त्री के साथ जो मैने किया उसके विषय में मेरी आलोचना अब क्यों करता है?
\s5
\v 9-10 यहोवा ने सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा की है कि वह शाऊल और उसके वंशजों को शासन करने की अनुमति नहीं देंगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि वह दाऊद को उत्तर दिशा में दान के शहर से दक्षिण दिशा में बेर्शेबा शहर तक इस्राएल और यहूदा के सभी गोत्रों पर स्थापित करेंगे। तो मुझे आशा है कि अगर मैं ऐसा नहीं होने देता हूँ तो परमेश्वर मुझे मार डालेंगे!"
\v 11 ईशबोशेत अब्नेर से बहुत डरता था, इसलिए उसने अब्नेर के जवाब में कुछ नहीं कहा।
\p
\s5
\v 12 तब अब्नेर ने हेब्रोन में दाऊद के पास दूतों को यह कहने के लिए भेजा, "या तो तू मुझे पूरे देश का शासक बनने दे, परन्तु ईशबोशेत को नहीं। हालांकि, यदि तू मेरे साथ समझौता करता है, तो मैं इस्राएल के सभी लोगों को तुझे उनका राजा बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के द्वारा सहायता करूँगा।"
\v 13 दाऊद ने यह उत्तर भेज दिया, "ठीक है! मैं तेरे साथ एक समझौता करने को तैयार हूँ। परन्तु इससे पहले, एक काम तुझे करना है। जब तू मुझसे मिलने आए, तो तू मेरी पत्नी मीकल शाऊल की पुत्री को लेकर आना।"
\s5
\v 14 तब दाऊद ने ईशबोशेत के पास दूत भेजे, कि उस ने कहा, "मैंने एक सौ पलिश्तियों को मार डाला और मीकल को अपनी पत्नी होने के लिए उनकी खलड़ियाँ शाऊल को भुगतान के रूप में दी। तो अब उसे मुझे सौंप दे!"
\p
\v 15 तब ईशबोशेत ने कुछ लोगों को भेजकर उसके पति पलतीएल से मीकल को लेने भेजा। परन्तु जब उन्होंने उसे ले लिया, तो उसका पति रोते हुए बहुरीम शहर तक उनका पीछा करता रहा।
\v 16 तब अब्नेर ने मुड़कर कहा, "घर वापस जा!" अतः वह लौट गया।
\p
\s5
\v 17 अब्नेर इस्राएली अगुवों के पास गया और उनसे बातें की। उसने कहा, "तुम चाहते थे कि दाऊद लम्बे समय तक तुम्हारा राजा बना रहे।
\v 18 तो अब तुम्हारे पास ऐसा होने का अवसर है। ध्यान रखें कि यहोवा ने यह प्रतिज्ञा की थी , 'दाऊद की सहायता से, जो मेरी अच्छी तरह से सेवा करता है, मैं अपने लोगों को सभी अन्य शत्रुओं की शक्ति से बचाऊँगा।'
\s5
\v 19 अब्नेर ने बिन्यामीन के गोत्र के लोगों से भी बातें की। तब वह दाऊद को यह बताने के लिए जो इस्राएल के सभी लोग और बिन्यामीन के गोत्र के लोग करने के लिए सहमत हुए थे हेब्रोन गया।
\p
\v 20 जब अब्नेर हेब्रोन में दाऊद को देखने के लिए अपने बीस सैनिकों के साथ आया, तब दाऊद ने उन सभी के लिए एक भोज किया।
\s5
\v 21 बाद में, अब्नेर ने दाऊद से कहा, "हे स्वामी, अब मैं इस्राएल के सभी लोगों को तेरे राजा बनने के लिए प्रोत्साहित करूँगा, जैसी तूने अभिलाषा रखी है।" तब अब्नेर कुशल से चला गया।
\p
\s5
\v 22 इसके तुरन्त बाद, योआब और दाऊद के कुछ अन्य सैनिक अपने शत्रु के गांवों में से एक पर हमला करने के बाद हेब्रोन लौट आए, और बहुत सा लूट का माल लाए परन्तु अब्नेर हेब्रोन में नहीं था, क्योंकि दाऊद पहले से ही उसे सकुशल भेज चुका था।
\v 23 जब योआब और उसके साथ रहने वाले सैनिक आए, तो किसी ने उसे बताया कि अब्नेर वहाँ आया था और उसने राजा से बातचीत की, और राजा ने अब्नेर को सकुशल जाने दिया।
\p
\s5
\v 24 तब योआब राजा के पास गया और कहा, "तूने ऐसा क्यों किया? मेरी बात सुन! अब्नेर तेरा शत्रु है, परन्तु जब वह तेरे पास आया, तो तूने उसे जाने दिया!
\v 25 क्या तू नहीं जानता कि वह तुझे धोखा देने और जो कुछ तू कर रहा है और तेरे आने-जाने का समय जानने के लिए आया था?"
\p
\v 26 योआब ने दाऊद को छोड़कर जाने के बाद, अब्नेर से मिलने के लिए कुछ दूत भेजे। उन्होंने उसे सीरा के कुएं के निकट पाया और वे उसे वापस हेब्रोन ले आए, परन्तु दाऊद को नहीं पता था कि उन्होंने ऐसा किया है।
\s5
\v 27 जब अब्नेर हेब्रोन लौट आया, तो योआब उसे नगर के द्वार पर मिला, और उससे एकान्त में बात करने के लिए एक अलग कक्ष में ले गया। तब उसने अपने चाकू के साथ अब्नेर के पेट में मारा। इस तरह उसने अब्नेर की हत्या कर दी क्योंकि अब्नेर ने योआब के भाई असाहेल को मार डाला था।
\p
\s5
\v 28 बाद में, दाऊद ने जो कुछ हुआ था सुनने के बाद कहा, "यहोवा जानते हैं कि मैं और मेरे राज्य के लोग अब्नेर के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
\v 29 मुझे आशा है कि सदैव उसके घराने में पीड़ित, कुष्ठ या स्त्रियों के काम को बाधित या लड़ाई में घात किया जानेवाला व्यक्ति है या ऐसा व्यक्ति जिसे खाने को पर्याप्त भोजन न मिला होगा!"
\p
\v 30 इसी प्रकार योआब और उसके भाई अबीशै ने अब्नेर की हत्या कर दी, क्योंकि उसने गिबोन में हुए युद्ध में उनके भाई असाहेल को मार डाला था।
\p
\s5
\v 31 तब दाऊद ने योआब और योआब के सैनिकों से कहा, "अपने कपडे फाड़ो और टाट पहनकर स्वयं का दुःख दर्शाओ और अब्नेर के लिए शोक करो!" और अंतिम संस्कार पर, राजा दाऊद शवपेटी उठानेवाले लोगों के पीछे चला।
\v 32 उन्होंने हेब्रोन में अब्नेर के शरीर को मिट्टी दी। और कब्र पर, राजा जोर से रोया, और अन्य सभी लोग भी रोए।
\p
\s5
\v 33 दाऊद ने अब्नेर के विषय शोक करने के लिए यह दुखद गीत गाया:
\q1 "यह सही नहीं है कि अब्नेर मूढ़ होकर मरे!
\q2
\v 34 न किसी ने उसके हाथ बांधे या उसके पैरों में बेड़ियाँ बाँधी, जैसा कि वे अपराधियों के साथ करते हैं।
\q1 ना ही, दुष्ट मनुष्यों द्वारा वह मारा गया! "
\p
\s5
\v 35 तब बहुत से लोग दाऊद के पास आए और उसे सूर्यास्त से पहले कुछ खाने के लिए कहा, परन्तु दाऊद ने इन्कार कर दिया। उसने कहा, "मुझे आशा है कि अगर सूर्य डूबने से पहले कोई खाए तो परमेश्वर मुझे मार डालें!"
\v 36 जो दाऊद ने किया, सभी लोगों ने देखा और वे प्रसन्न हुए। वास्तव में, राजा ने जो कुछ किया उससे लोग प्रसन्न थे।
\p
\s5
\v 37 इस प्रकार सभी लोगों ने जाना कि राजा नहीं चाहते थे कि अब्नेर मारा जाए।
\v 38 राजा ने अपने अधिकारियों से कहा, "क्या तुम नहीं जानते हो कि आज इस्राएल में एक अगुवे और एक महान व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है?
\v 39 भले ही यहोवा ने मुझे राजा नियुक्त किया, फिर भी मैं निर्बल अनुभव करता हूँ। योआब और अबीशै सरूयाह के ये दो पुत्र बहुत हिंसक हैं। मैं उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकता। इसलिए मुझे आशा है कि यहोवा इस दुष्ट कार्य के बदले उन्हें कठोरता से दण्ड देंगे!"
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब शाऊल के पुत्र ईशबोशेत ने सुना कि अब्नेर हेब्रोन में मर गया है, तो वह और समस्त इस्राएली लोग बहुत निराश हो गए।
\v 2 ईशबोशेत के दो अधिकारी थे जो सैनिकों के समूह के अगुवे थे। वे दो भाई बाना और रेकाब थे; वे बेरोतवासी बिन्यामीन गोत्र के रिम्मोन के पुत्र थे। अब बेरोत उस क्षेत्र का भाग है जिसे बिन्यामीन गोत्र को सौंपा गया था।
\v 3 परन्तु बेरोत के मूल निवासी गित्तैम के नगर में भाग गए थे, जहाँ वे अभी भी रहते हैं।
\p
\s5
\v 4 शाऊल के पुत्र योनातान का एक पुत्र मपीबोशेत था। मपीबोशेत पाँच वर्ष का था जब शाऊल और योनातान युद्ध में मारे गए। जब लोग यिज्रेल से यह समाचार लाए, तो मपीबोशेत की दाई उसे उठा कर भाग गई, परन्तु वह इतना तेज़ दौड़ी कि उसने उसे गिरा दिया, और वह अपने पैरों से अपंग हो गया।
\p
\s5
\v 5 एक दिन, रेकाब और बाना अपने घर से ईशबोशेत के घर जाने के लिए निकले। वे वहाँ दोपहर के समय पहुँचे, जब ईशबोशेत दोपहर की झपकी ले रहा था।
\v 6 जो महिला द्वारपाल के रूप में सेवा कर रही थी वह गेहूँ को छान रही थी; परन्तु उसे नींद आ गई और वह सो गई। रेकाब और उसका भाई बाना धीरे-धीरे रेंगने में सक्षम थे।
\p
\v 7 उन्होंने ईशबोशेत के शयनकक्ष में प्रवेश किया, जहाँ वह सो रहा था। उन्होंने उसे तलवार से मार डाला और उसका सिर काट दिया। उन्होंने उसका सिर उठा लिया और यरदन के किनारे मैदान से होकर पूरी रात चले।
\s5
\v 8 वे ईशबोशेत का सिर हेब्रोन में दाऊद के पास ले गए। उन्होंने उससे कहा, "यहाँ तेरे शत्रु शाऊल के पुत्र ईशबोशेत का सिर है, जिसने तुझे मारने की कोशिश की थी। महाराज, आज यहोवा ने तुझे शाऊल और उसके वंशजों पर बदला लेने की अनुमति दी है!"
\p
\v 9 परन्तु दाऊद ने उन से कहा, "निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं-और वह वे हैं जिन्होंने मुझे सभी संकटों से बचा लिया है, मैं तुम्हे यह बताता हूँ:
\v 10 जब एक दूत सिकलाग से मेरे पास आया और मुझे बताया कि 'शाऊल मर चुका है!' (और उसने सोचा कि वह जो खबर मुझे दे रहा था वह अच्छी खबर थी), मैंने अपने सैनिकों में से एक को उसे मारने के लिए कहा। वह इनाम था जो मैंने उसे उनके समाचार के लिए दिया था!
\s5
\v 11 अतः तुम दोनों दुष्टों ने एक ऐसे व्यक्ति की हत्या कर दी है जिसने कुछ भी गलत नहीं किया - और जब वह अपने घर में अपने बिस्तर पर सो रहा था, तुमने उसे मार डाला, मैं तुम्हारे साथ उससे बुरा करूँगा। मैं उसकी हत्या का बदला तुम दोनों से अवश्य लूँगा, और तुम्हें धरती से मिटा दूँगा!"
\p
\v 12 तब दाऊद ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी, और उन्होंने दोनों मनुष्यों को मार डाला, और उनके हाथों और पैरों को काट दिया, और हेब्रोन में पूल के पास एक खम्भे पर उनके शरीर को लटका दिया। परन्तु उन्होंने ईशबोशेत का सिर लिया और हेब्रोन में अब्नेर की कब्र में सम्मान से मिट्टी दी।
\s5
\c 5
\p
\v 1 तब इस्राएल के सभी गोत्रों के अगुवे हेब्रोन में दाऊद के पास आए और उससे कहा, "सुन, हम सब के एक ही पूर्वज हैं।
\v 2 अतीत में, जब शाऊल हमारा राजा था, तो तू ही था जिसने हमारे सैनिकों की युद्ध में अगुवाई की। तू ही है जिससे यहोवा ने प्रतिज्ञा की, 'तू मेरे लोगों का अगुवा बनेगा। तू उनका राजा होगा।'"
\p
\s5
\v 3 अतः जब यहोवा सुन रहे थे, तब इस्राएल के लोगों के उन सभी अगुवों ने हेब्रोन में यह घोषणा की कि दाऊद उनका राजा होगा। और दाऊद ने उनके साथ अनुबन्ध किया। उन्होंने उसे इस्राएलियों का राजा होने के लिए जैतून के तेल से अभिषेक किया।
\v 4 दाऊद तीस वर्ष का था जब वह राजा बन गया। उसने चालीस वर्षों तक उन पर शासन किया।
\v 5 हेब्रोन में उसने यहूदा के गोत्र पर साढ़े सात सालों तक शासन किया था, और यरूशलेम में उसने यहूदा और इस्राएल के सभी लोगों पर तीस साल तक शासन किया।
\p
\s5
\v 6 एक दिन राजा दाऊद और उसके सैनिक यरूशलेम में रहने वाले यबूसी लोगों के समूह से लड़ने के लिए गए। वहाँ लोगों ने सोचा कि दाऊद की सेना शहर पर अधिकार करने में सक्षम नहीं होगी, इसलिए उन्होंने दाऊद से कहा, "तेरी सेना कभी भी हमारे शहर के भीतर नहीं जा पाएगी! यहाँ तक कि अंधे और अपंग लोग भी तुम्हे रोक सकते हैं!"
\v 7 परन्तु दाऊद की सेना ने सिय्योन पर्वत के किले पर अधिकार कर लिया; बाद में यह दाऊद शहर के रूप में जाना गया।
\s5
\v 8 उस दिन, दाऊद ने अपने सैनिकों से कहा, "जो यबूसी लोगों से छुटकारा पाना चाहते हैं उन्हें शहर में प्रवेश करने के लिए पानी की सुरंग से होकर जाना पड़ेगा। यही वह जगह है जहाँ मेरे शत्रु भी हैं, यहाँ तक कि मेरे अंधे और अपंग शत्रु भी हैं'।" यही कारण है कि लोग कहते हैं, "जो लोग 'अंधे और अपंग' हैं, उन्हें दाऊद के महल में जाने की अनुमति नहीं है।"
\p
\v 9 दाऊद और उसके सैनिकों ने शहर के चारों ओर उसकी मजबूत दीवारों के साथ अपने अधिकार में कर लिया, तब वह वहाँ रहा, और उन्होंने इसे दाऊदशहर का नाम दिया। दाऊद और उसके सैनिकों ने किले के चारों ओर शहर का निर्माण किया, जहाँ से पहाड़ी के पूर्वी हिस्से में भरपूर भूमि थी।
\v 10 दाऊद और भी शक्तिशाली होता गया क्योंकि स्वर्गदूतों की सेनाओं के यहोवा उसकी सहायता कर रहे थे।
\p
\s5
\v 11 एक दिन सोर शहर के राजा हीराम ने अपने देशों के बीच एक समझौता करने के बारे में बातें करने के लिए दाऊद को राजदूत भेजे। हीराम लकड़ी के लिए देवदार के पेड़ उपलब्ध कराने पर सहमत हुआ, और दाऊद के लिए महल बनाने के लिए बढ़ई और राजमिस्त्रियों को भेजने के लिए भी सहमत हुआ।
\v 12 क्योंकि हीराम ने ऐसा किया, दाऊद को अनुभव हुआ कि यहोवा ने उसे सचमुच इस्राएल के राजा के रूप में नियुक्त किया था। उसने यह भी अनुभव किया कि यहोवा ने इस्राएलियों से प्रेम और यहोवा की प्रजा होने के कारण, मेरी सामर्थ्य को बढ़ाया है।
\p
\s5
\v 13 जब दाऊद हेब्रोन से यरूशलेम गया , तो उसने और कई दासियों को पत्नी बनाया, और उसने अन्य महिलाओं से भी विवाह किया। उन सभी महिलाओं ने अधिक पुत्र और पुत्रियों को जन्म दिया।
\v 14 यरूशलेम में पैदा हुए उसके पुत्रों के नाम शम्मू, शोबाब, नातान, सुलैमान,
\v 15 यिभार, एलोशु, नेपेग, यापी,
\v 16 एलिशामा, एल्यादा, और एलीपेलेत।
\p
\s5
\v 17 जब पलिश्ती लोगों ने सुना कि दाऊद को इस्राएल का राजा बनाया गया है, तो उनकी सेना यरूशलेम की ओर दाऊद को पकड़ने निकली। दाऊद ने उनके आने की बात सुनी, इसलिए वह एक किले में चला गया।
\v 18 पलिश्ती की सेना यरूशलेम के दक्षिण-पश्चिम में रपाईम की घाटी पर पहुँची और उसके भीतर फैल गई।
\s5
\v 19 दाऊद ने यहोवा से पूछा, "क्या मैं और मेरे पुरुष पलिश्ती सेना पर हमला करें? क्या हम उन्हें पराजित कर पाएँगे?" यहोवा ने उत्तर दिया, "हाँ, उन पर हमला करो, क्योंकि मैं निश्चित रूप से उनकी सेना को पराजित करूँगा।"
\p
\v 20 तब दाऊद और उसकी सेना वहाँ गई जहाँ पलिश्ती सेना थी, और वहाँ उन्होंने उन्हें पराजित किया। दाऊद ने कहा, "यहोवा मेरे शत्रुओं पर जलधाराओं के समान टूट पड़ें।" अत: उस जगह को बाल परासीम कहा जाता है।
\v 21 पलिश्ती पुरुषों ने अपनी मूर्तियों को वहाँ छोड़ दिया, और दाऊद और उसके सैनिकों ने उन्हें उठा लिया।
\p
\s5
\v 22 तब पलिश्ती सेना रपाईम की घाटी में लौट आई और एक बार फिर घाटी में फैल गई।
\v 23 इसलिए फिर दाऊद ने यहोवा से पूछा कि क्या उसकी सेना पर हमला करना चाहिए। यहोवा ने उत्तर दिया, "उन पर हमला मत करो। अपने लोगों को उनके चारों ओर जाने के लिए कहो और शहतूत के पेड़ों के पास दूसरी तरफ से हमला करो।
\s5
\v 24 जब तुम शहतूत के पेड़ों के शीर्ष की ओर से सेना की आहट सुने तब उन पर हमला करना। तब तुझे पता चलेगा कि उनकी सेना को पराजित करने के लिए तेरी सेना के आगे आगे मैं जा चुका होऊँगा।"
\v 25 तब दाऊद ने जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था किया, और उसकी सेना ने पलिश्ती सेना को पराजित कर दिया और उसका गेबा शहर से पश्चिम में गेजेर शहर तक पीछा किया।
\s5
\c 6
\p
\v 1 दाऊद ने तीस हजार इस्राएली पुरुषों को चुना और उन्हें इकट्ठा किया।
\v 2 वह उन्हें यहूदा में उस स्थान पर ले गया जिसे पूर्व में बालह कहा जाता था, जिसे अब किर्याथ यारीम कहा जाता है। वे पवित्र संदूक को यरूशलेम में लाने के लिए गए, जिस संदूक पर स्वर्दूतों की सेनाओं के यहोवा का नाम था, और उसके ऊपर पंख वाले प्राणियों की आकृतियाँ बनी थी। उन प्रतिमाओं के बीच जहाँ यहोवा स्वयं उपस्थित थे, हालांकि वे अदृश्य थे।
\s5
\v 3 पवित्र संदूक एक पहाड़ी के शीर्ष पर अबीनादाब के घर में था। वे वहाँ गए, और संदूक को एक नई गाड़ी पर रख दिया। उज्जा और अह्ह्यो, अबीनादाब के दो पुत्र, गाड़ी खींच रहे बैलों का मार्गदर्शन कर रहे थे।
\v 4 उज्जा गाड़ी के साथ चल रहा था, और अह्ह्यो उसके आगे चल रहा था।
\v 5 दाऊद और सब इस्राएली पुरुष परमेश्वर की उपस्थिति में, अपनी सारी ताकत के साथ गाते हुए और लकड़ी से बने वीणा, सितार, डफ, करताल और झांझ आदि बजाकर उत्सव मना रहे थे।
\p
\s5
\v 6 परन्तु जब वे उस स्थान पर आए जहाँ नाकोन अनाज को छानता था, तो बैलों ने ठोकर खाई। तब उज्जा ने अपना हाथ बढ़ाकर पवित्र संदूक को संभाला।
\v 7 यहोवा उज्जा से बहुत गुस्सा हो गए, और उसे पवित्र संदूक के पास मार डाला, क्योंकि उसने संदूक को छुआ था।
\p
\s5
\v 8 परन्तु दाऊद क्रोधित था क्योंकि यहोवा ने उज्जा को दंडित किया, उस समय से, उस स्थान को पेरे उज्जा कहा गया।
\p
\v 9 तब दाऊद डर गया कि यहोवा उन्हें दंडित करने के लिए और क्या करेंगे, इसलिए उसने कहा, "मैं यरूशलेम में पवित्र संदूक कैसे ले जा सकता हूँ?"
\s5
\v 10 इसलिए उसने यरूशलेम में पवित्र संदूक न लाने का फैसला किया। इसके बजाय, इसे गित्ति ओबेद एदोम के घर ले गया।
\v 11 उन्होंने ओबेद एदोम के घर में पवित्र संदूक को तीन महीने तक रखा, और उस समय के अंतराल में यहोवा ने उसे और उसके परिवार को आशीष दी।
\p
\s5
\v 12 कुछ समय बाद, लोगों ने दाऊद से कहा, "यहोवा ने ओबेद एदोम और उसके परिवार को आशीष दी है क्योंकि वह पवित्र संदूक का ध्यान रखता है!" जब दाऊद ने यह सुना, तो वह और कुछ अन्य लोग ओबेद एदोम के घर गए, और आनंदपूर्वक पवित्र संदूक वहाँ से यरूशलेम ले आए।
\v 13 जब संदूक को उठानेवाले छह कदम चलकर रुक गए, तब दाऊद ने वहाँ एक बैल और मोटे बछड़े को मारकर यहोवा के सम्मुख बलि चढ़ाई।
\s5
\v 14 दाऊद अपने कमर के चारों ओर लिपटे सन का कपड़ा पहने हुए था, और यहोवा का सम्मान करने के लिए बहुत ऊर्जावान नृत्य कर रहा था।
\v 15 दाऊद और इस्राएली लोग पवित्र संदूक को यरूशलेम ले आए, जोर से चिल्लाते हुए और तुरही बजाते हुए।
\p
\s5
\v 16 जब वे पवित्र संदूक को शहर में ले जा रहे थे, तब मीकल शाऊल की बेटी ने अपने घर की खिड़की से देखा। उसने देखा राजा दाऊद यहोवा का सम्मान करने के लिए उछल-उछल कर नाच रहा है। परन्तु उसने उसे तुच्छ माना।
\p
\v 17 वे पवित्र संदूक को उस तम्बू में ले गए जो दाऊद ने इसके लिए बनाया था। तब दाऊद ने यहोवा की भेंट पूरी तरह से वेदी पर जलने, और अन्य भेंट यहोवा के साथ दोस्ती करने की प्रतिज्ञा के रूप में चढ़ाई।
\s5
\v 18 जब दाऊद ने उन बलिदानों को पूरा किया, तो उन्होंने स्वर्दूतों की सेनाओं के यहोवा से लोगों के लिए आशीष माँगी।
\v 19 उन्होंने सभी लोगों को भोजन भी वितरित किया। प्रत्येक पुरुष और महिला के लिए उसने रोटी, कुछ मांस और किशमिश की एक टिकिया बाँटी। तब वे सब अपने घर लौट आए।
\p
\s5
\v 20 जब दाऊद यहोवा से अपने परिवार की आशीष माँगने के लिए घर गया, तो उसकी पत्नी मीकल उससे मिलने आईं। उसने उससे कहा, "संभव है कि इस्राएल का राजा सोचता है कि आज उसने सम्मानित ढंग से अभिनय किया, परन्तु वास्तव में, तूने मूर्ख के समान अभिनय किया। तू अपने अधिकारियों की दासियों के सामने लगभग नग्न था!"
\p
\s5
\v 21 दाऊद ने मीकल से कहा, "मैं यहोवा का सम्मान करने के लिए ऐसा कर रहा था, जिन्होंने तेरे पिता और उसके परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा मुझे इस्राएल के लोगों का राजा बनने के लिए चुना, जो यहोवा के हैं। और यहोवा का सम्मान करने के लिए नाचता रहूँगा !
\v 22 भले ही तू सोचती है कि मैंने जो किया वह अपमानजनक था, मैं ऐसा करता रहूँगा क्योंकि मैं स्वयं की दृष्टि में मूर्ख बनने को तैयार हूँ। परन्तु जिन दासियों के बारे में तू बात कर रही थी, वे मेरा सम्मान करेंगी!"
\p
\v 23 परिणामतः शाऊल की बेटी ने कभी भी किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया।
\s5
\c 7
\p
\v 1 राजा अपने महल में रहने लगा। अब तक यहोवा ने शत्रुओं को इस्राएल पर हमला करने से विश्राम दिया था।
\v 2 एक दिन दाऊद ने नातान नबी से कहा, "यह सही नहीं है कि मैं देवदार की लकड़ी से बने खूबसूरत घर में रहूँ, परन्तु संदूक जिसमें परमेश्वर की दस आज्ञाएँ हैं, को तम्बू में रखा जाए!"
\p
\s5
\v 3 तब नातान ने राजा से कहा, "यहोवा तेरी सहायता कर रहे हैं, इसलिए पवित्र संदूक के बारे में जो भी तुझे सही लगता है कर।"
\p
\v 4 उस रात, यहोवा ने नातान से कहा:
\v 5 "जा और मेरे दास दाऊद से कह, कि यहोवा यह कहता है: तू वह नहीं है जो मेरे रहने के लिए भवन का निर्माण करेगा।
\s5
\v 6 जिस दिन से मैं इस्राएलियों को मिस्र से निकाल कर लाया, उस दिन से मैं किसी भी भवन में नहीं रहा हूँ। इसके बजाय, मैं एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने पवित्र तम्बू में घूमता रहा।
\v 7 मैं इस्राएलियों के साथ जहाँ भी गया, मैंने उन अगुवो को जिनकी मैंने उनकी अगुवाई करने के लिए अभिषिक्त किया, कभी नहीं कहा। 'तुमने मेरे लिए देवदार की लकड़ी से बना मन्दिर क्यों नहीं बनाया?'
\s5
\v 8 तो मेरे दास दाऊद से कहो कि स्वर्गदूतों की सेनाओं का यहोवा कहते हैं कि उन्होंने उसे चरागाह से और भेड़ों की देखभाल करने से निकाला, और उसे मेरी इस्राएली प्रजा का शासक बनने के लिए नियुक्त किया।
\v 9 उसे स्मरण करा कि जहाँ भी वह गया, मैं उसके साथ रहा हूँ। मैंने उसको सभी शत्रुओं से छुटकारा दिलाया जिन्होंने उस पर हमला किया। मैं तुझे बहुत प्रसिद्ध बना दूँगा, साथ ही उसको पृथ्वी पर रहनेवाले महान लोगों के समान महान बना दूँगा।
\s5
\v 10-11 पूर्व में, जब मैंने इस्राएली लोगों के लिए अगुवों को नियुक्त किया, तब कई हिंसक समूहों ने उन्हें पीड़ित किया। परन्तु ऐसा अब और नहीं होगा। मैंने एक ऐसा स्थान चुना है जहाँ मेरे लोग शान्ति से रह सकें और जहाँ कोई भी उन्हें परेशान नहीं करेगा। मैं उनके सभी शत्रुओं का हमला करना बंद करवा दूँगा। और मैं उनके सभी शत्रुओं को पराजित करूँगा। दाऊद से कहो कि मैं घोषणा करता हूँ कि मैं, यहोवा, उसके वंशजों को उसके बाद शासन करने में सक्षम बनाऊँगा।
\s5
\v 12 जब वह मर जाए और उसे मिट्टी दी जाए, तो मैं उसके पुत्रों में से एक को राजा बनाऊँगा, और मैं उसे एक बहुत शक्तिशाली राजा बनाऊँगा।
\v 13 वही है जो मेरे लिए एक मन्दिर बनाने की व्यवस्था करेगा। मैं इस्राएल पर उसका शासन सर्वदा के लिए स्थापित करूँगा।
\v 14 मैं उसके पिता के समान ठहरूँगा , और वह मेरे लिए एक पुत्र के समान होगा। जब वह कुछ गलत करता है, तो मैं उसे दण्ड दूँगा जैसे पिता अपने बेटों को दंडित करता है।
\s5
\v 15 परन्तु मैं कभी भी उस से प्रेम करना बंद नहीं करूँगा जैसा मैंने शाऊल से प्रेम करना बंद कर दिया था, जिसे मैंने दाऊद के राजा बनने से पहले राजा के पद से हटा दिया था।
\v 16 दाऊद के वंशज सदैव इस्राएल के राज्य पर शासन करेंगे। उनका शासन कभी समाप्त नहीं होगा।"
\p
\v 17 तब नातान ने दाऊद को यहोवा ने जो कुछ कहा सब बताया।
\p
\s5
\v 18 जब दाऊद ने नातान के संदेश को सुना, तो वह पवित्र तम्बू में गया और यहोवा की उपस्थिति में बैठ गया, और प्रार्थना की: "यहोवा मेरे परमेश्वर, मैं उन सभी बातों के योग्य नहीं हूँ जो आपने मेरे लिए किए हैं, और मेरा परिवार भी योग्य नहीं है।
\v 19 और अब, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, जो कुछ आपने मेरे वंशजों के भविष्य के विषय में कहा है कई पीढ़ियों तक के विषय उसके अलावा।
\v 20 हे यहोवा परमेश्वर, इससे अधिक मुझे आदर देने के लिए दाऊद आपसे क्या कह सकता है? यद्यपि आप भली भांति जानते हैं कि मैं कैसा हूँ, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण इंसान के समान आपने मेरी सुधि ली!
\s5
\v 21 आपने ये सब महान कार्य मुझे सीखाने के लिए किए, और आपने उन्हें इसलिए किया क्योंकि आप उन्हें करना चाहते थे और क्योंकि आपने उन्हें करने का फैसला किया था।
\v 22 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, आप महान हैं। आप जैसा कोई भी नहीं है। केवल आप ही परमेश्वर हो, जैसा हमने सदैव सुना है।
\v 23 और इस्राएल के समान संसार में कोई अन्य राष्ट्र नहीं है। इस्राएल धरती पर एकमात्र राष्ट्र है जिसको छुड़ाने आप स्वयं गए, क्योंकि आपने उन्हें मिस्र से छुड़ाया था। तब आपने उनको अपना निज भाग बनाया और इन सभी कार्यों के द्वारा, अब आप पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। जैसे आपके लोग इस देश से आगे बढ़े, आपने अन्य समूहों को उनके देवताओं समेत कनान से खदेड़ दिया ।
\s5
\v 24 आपने हम इस्राएलियों को सर्वदा के लिए अपने लोगों के रूप में ठहराया, और यहोवा, आप हमारे परमेश्वर बन गए!
\v 25 और अब, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे कार्य जिनकी प्रतिज्ञा आपने मेरे वंशजों के विषय की है वे सच हो जाएँ और सर्वदा सच रहें, और आप उन चीजों को करें जो आपने कहा था कि आप करेंगे।
\v 26 जब ऐसा होता है, तो आप सर्वदा के लिए प्रसिद्ध हो जाएँगे, और लोग कहेंगे, 'स्वर्गदूतों की सेनाओं के यहोवा, वह परमेश्वर हैं जो इस्राएल पर शासन करते हैं।' और आप मेरे वंशजों के शासन का कारण बनेंगे।
\s5
\v 27 यहोवा परमेश्वर, जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, आपने मुझे दर्शाया है कि आप मेरे कुछ वंशजों को राजा बनाएँगे यही कारण हैं कि मुझे आपसे इस तरह प्रार्थना करने का साहस हुआ है ।
\v 28 तो हे यहोवा, क्योंकि आप परमेश्वर हैं, हम भरोसा कर सकते हैं कि आप जो भी वादा करते हैं वह करेंगे। आपने मुझसे इन अच्छी बातों का वादा किया है।
\v 29 इसलिए अब मैं आपसे माँगता हूँ कि यदि यह आपको प्रसन्न करता है, तो आप मेरे वंशजों को आशीष दें, ताकि वे हमेशा के लिए शासन कर सकें। हे यहोवा परमेश्वर, आपने इन बातों का वादा किया है, इसलिए मुझे पता है कि यदि आप यह बातें करते हैं, तो आप मेरे वंशजों को सर्वदा आशीष देंगे।"
\s5
\c 8
\p S5
\p
\v 1 कुछ समय बाद, दाऊद की सेना ने पलिश्ती सेना पर हमला किया और उन्हें पराजित किया। उन्होंने गत के पलिश्ती शहर और उसके आस-पास के गांवों पर अधिकार कर लिया।
\p
\s5
\v 2 दाऊद की सेना ने मोआब लोगों के समूह की सेना को भी हराया। दाऊद ने उनके सैनिकों को एक दूसरे के समीप भूमि पर लेटने के लिए मजबूर कर दिया। उसके पुरुषों ने उनमें से प्रत्येक तीन में से दो को मार डाला। मोआब के अन्य लोगों को दाऊद को अपना शासक स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, और उन्हें हर साल कर देने के लिए मजबूर किया।
\p
\s5
\v 3 दाऊद की सेना ने रहोब के पुत्र हददेजर की सेना को भी पराजित किया, जो आराम में सोबा के क्षेत्र पर शासन करता था। ऐसा तब हुआ जब वह फरात नदी के ऊपरी क्षेत्र पर पुनः सत्ता स्थापित करने की कोशिश कर रहा था।
\v 4 दाऊद की सेना ने हददेजर के रथ चलानेवाले 1700 सैनिकों और बीस हज़ार पैदल सिपाहियों को बंधक बना लिया। उन्होंने सौ घोड़ों को छोड़कर सभी को अपंग कर दिया, और जिनका उपयोग रथ खींचने के लिए होगा।
\p
\s5
\v 5 जब आराम की सेना दमिश्क के नगर से राजा हददेजर की सेना की सहायता करने के लिए आई, तब दाऊद के सैनिकों ने उनमें से बाईस हजार लोगों की हत्या कर दी।
\v 6 तब दाऊद ने अपने सैनिकों के समूह की चौकी उनके क्षेत्र में बनाई, और आराम के लोगों को दाऊद को उनके शासक स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, और हर साल दाऊद की सरकार को श्रद्धांजलि के पैसे का भुगतान करने के लिए मजबूर किया। और यहोवा ने दाऊद की सेना को जहाँ भी वे गए जीतने में सक्षम बनाया।
\p
\s5
\v 7 राजा दाऊद के सैनिकों ने हददेजर के अधिकारियों की सोने की ढालें भी ले लीं, और उन्हें यरूशलेम ले आए।
\v 8 वे तेबह और बरौत से प्राप्त बहुत सा कांसा यरूशलेम ले आए, इन्ही दो नगरों पर राजा हददेजर ने पहले शासन किया था।
\p
\s5
\v 9 जब आराम में हमात शहर के राजा तोई ने सुना, कि दाऊद की सेना ने राजा हददेजर की सारी सेना को हरा दिया,
\v 10 उसने राजा दाऊद के अभिवादन के लिए अपने बेटे योराम को भेजा और उसकी सेना द्वारा हददेजर की सेना को हराने की बधाई दी, जिसके साथ तोई की सेना कई बार लड़ी थी। योराम दाऊद के लिए सोने, चाँदी और कांस्य से बने कई उपहार लाया।
\p
\s5
\v 11 राजा दाऊद ने उन सभी वस्तुओं को यहोवा को समर्पित किया। उसने चाँदी और सोना भी समर्पित किया जिन्हें उसकी सेना ने उन जीते हुए राष्ट्रों से लिया था।
\v 12 उन्होंने ये वस्तुएँ अदोम और मोआब के लोगों के समूह से, अम्मोन से, पलिश्ती से, अमालेक से निकले लोगों और उन लोगों से, जिनपर हददेजर ने पहले शासन किया था, प्राप्त किया था।
\p
\s5
\v 13 जब दाऊद आराम की सेनाओं को पराजित करने के बाद लौटा, तब वह और अधिक प्रसिद्ध हो गया क्योंकि उसकी सेना ने मृत सागर के पास नमक की घाटी में अदोम लोगों के समूह के अठारह हजार सैनिकों की हत्या कर दी थी।
\p
\v 14 दाऊद ने अदोम के पूरे इलाके में अपने सैनिकों के समूह की चौकियाँ बनाईं, और वहाँ लोगों को खुद को राजा स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। यहोवा ने दाऊद की सेना को जहाँ भी वे गए लड़ाई जीतने में सक्षम बनाया।
\p
\s5
\v 15 दाऊद ने सभी इस्राएली लोगों पर शासन किया, और उसने सदैव उनके लिए उचित और न्यायसंगत काम किया
\v 16 योआब सेना का प्रधान था। अहिलूद का पुत्र यहोशापात वह व्यक्ति था जो दाऊद की आज्ञाएँ लोगों तक पहुँचाता था।
\v 17 अहितूब का पुत्र सादोक और अब्यातार का पुत्र अहीमेलेक याजक थे। सरायाह आधिकारिक सचिव था;
\v 18 यहोयादा का पुत्र बनायाह दाऊद के अंगरक्षकों का प्रधान था, और दाऊद के पुत्र उसके सलाहकार थे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 एक दिन दाऊद ने अपने कुछ सेवकों से पूछा, "क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो शाऊल का वंशज है जिस पर मै कृपा कर सकता हूँ?" उसने यह पूछा क्योंकि वह योनातान से प्रेम करता था।
\p
\v 2 उन्होंने उसे बताया कि यरूशलेम में सीबा नाम का एक व्यक्ति था जो शाऊल के परिवार का सेवक था। इसलिए दाऊद ने सीबा को बुलाने के लिए दूत भेजे। जब वह पहुँचा, तो राजा ने उससे पूछा, "क्या तू सीबा है?" उसने जवाब दिया, "हाँ महाराज मैं ही हूँ।"
\p
\s5
\v 3 राजा ने उससे पूछा, "क्या शाऊल के परिवार में कोई है जिस पर मै कृपा कर सकता हूँ, जैसा कि मैंने यहोवा परमेश्वर से वादा किया था कि मैं करूँगा?" सीबा ने उत्तर दिया, "हाँ, योनातान का एक पुत्र है जो अभी भी जीवित है। उसके पाँव अपंग हैं।"
\p
\v 4 राजा ने उससे पूछा, "वह कहाँ है?" सीबा ने उत्तर दिया, "वह यरदन नदी के पूर्व लो देबर शहर में अम्मीएल के पुत्र माकीर के घर में रहता है।"
\p
\s5
\v 5 तब राजा दाऊद ने मपीबोशेत को यरूशलेम में लाने के लिए दूत भेजे।
\p
\v 6 जब मपीबोशेत दाऊद के पास आया, तो वह आदर सहित भूमि पर घुटने टेककर मुँह के बल गिरा। तब दाऊद ने कहा, "मपीबोशेत!" उसने जवाब दिया, "हाँ, महाराज, मैं तेरी सेवा कैसे कर सकता हूँ?"
\p
\s5
\v 7 दाऊद ने उससे कहा, "डर मत। मैं तुझ पर दयालु रहूँगा क्योंकि योनातान तेरा पिता मेरा मित्र था। मैं तुझे तेरे अपने दादा शाऊल की सारी भूमि वापस दूँगा। और मैं चाहता हूँ कि तू हमेशा मेरे घर में मेरे साथ खाए।"
\p
\v 8 मपीबोशेत दाऊद के सामने फिर झुका और कहा, "महोदय, मैं एक मृत कुत्ते के समान बेकार हूँ। मैं इस योग्य नहीं हूँ कि तू मुझ पर दया करे!"
\p
\s5
\v 9 तब राजा ने शाऊल के दास सीबा को बुलाया और कहा, "शाऊल तेरा स्वामी था, और अब मैं शाऊल और उसके परिवार का सब कुछ मपीबोशेत को दे रहा हूँ।
\v 10 तू और तेरे पंद्रह पुत्र और बीस सेवक मपीबोशेत के परिवार की भूमि पर हल चलाकर फसल उगाना और खेती करना, कि उनके खाने के लिए भोजन हो। परन्तु मपीबोशेत मेरे घर पर मेरे साथ भोजन करेगा।"
\p
\s5
\v 11 सीबा ने राजा से कहा, "हे महाराज, मैं वह सब कुछ करूँगा जो तूने मुझे करने का आदेश दिया है।" उसके बाद, मपीबोशेत सदैव राजा की मेज पर भोजन करने लगा, जैसे कि वह राजा के पुत्रों में से एक था।
\p
\v 12 मपीबोशेत का मिका नामक एक छोटा पुत्र था। सीबा का परिवार मपीबोशेत का सेवक था।
\v 13 तब मपीबोशेत, जो दोनों पैरों से अपंग था, यरूशलेम में रहने लगा, और वह सदैव राजा की मेज पर भोजन करने लगा।
\s5
\c 10
\p
\v 1 कुछ समय बाद, अम्मोन लोगों के समूह के राजा नाहाश की मृत्यु हो गई; तब उसका बेटा हानून उनका राजा बन गया।
\v 2 दाऊद ने सोचा, "नाहाश मुझ पर दयालु था, इसलिए मैं उसके बेटे के प्रति दयालु रहूँगा।" इसलिए दाऊद ने हानून को यह बताने के लिए कुछ अधिकारियों को भेजा कि दाऊद को खेद है कि हानून के पिता की मृत्यु हो गई।
\p जब दूत अम्मोन देश में पहुँचे,
\v 3 अम्मोनियों के अगुवों ने हानून से कहा, "क्या तुझको लगता है कि यह तेरे पिता का सम्मान करना है कि दाऊद ने इन लोगों को यह कहने के लिए भेजा है कि उसे खेद है कि तेरे पिता की मृत्यु हो गई? हमें लगता है कि उसने उन्हें यहाँ शहर का भेद लेने के लिए भेजा है कि उसकी सेना हम पर कैसे विजय प्राप्त कर सकती है!"
\s5
\v 4 हानून ने उनके कहने पर विश्वास किया। इसलिए उसने कुछ सैनिकों को दाऊद के अधिकारियों को पकड़ने और उनकी दाढ़ी को एक तरफ से काटकर और उनके वस्त्रों के निचले भाग को काटकर उनका अपमान करने का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनके नितंब उघड़ जाएँ, और फिर उन्होंने उन्हें भेज दिया।
\p
\v 5 पुरुषों को बहुत अपमानित किया गया था, इसलिए वे घर लौटना नहीं चाहते थे। जब दाऊद को अपने अधिकारियों के साथ जो हुआ, उसके विषय पता चला, तो उसने किसी को उन्हें यह बताने के लिए भेजा, "जब तक तुम्हारी दाढ़ी फिर से बढ़ न जाए तब तक यरीहो में रहें, और फिर घर लौट जाएँ।"
\p
\s5
\v 6 तब अम्मोनियों के अधिकारियों ने अनुभव किया कि उन्होंने दाऊद का बहुत अपमान किया था। इसलिए उन्होंने कुछ लोगों को उनकी सुरक्षा के लिए अन्य आस-पास के इलाकों से कुछ सैनिकों को किराए पर लेने के लिए भेजा। उन्होंने बेत रहोब के इलाके से बीस हजार सैनिकों को और इस्राएल के पूर्वोत्तर सोबा और तोब के क्षेत्र से बारह हजार सैनिक, और माका के क्षेत्र के राजा की सेना से एक हजार सैनिकों को वेतन पर बुलवाया।
\p
\v 7 जब दाऊद ने इसके विषय सुना, तो उसने योआब को उन सभी इस्राएली सेनाओं के साथ लड़ने के लिए भेजा।
\v 8 अम्मोनियों के सैनिक अपने शहर के द्वार से बाहर आए और युद्ध के लिए तैयार होकर एक पंक्ति में खड़े हो गए। साथ ही, जिन विदेशी सैनिकों को उनके राजा ने वेतन पर बुलवाया था, उन्होंने पास के खुले मैदानों में स्वयं को समूहबद्ध किया।
\p
\s5
\v 9 योआब ने देखा कि उसके सैन्य दल के सामने और उसके सैनिकों के पीछे शत्रु सैनिक थे। इसलिए उसने कुछ सर्वश्रेष्ठ इस्राएली सैनिकों को चुना, और उन्हें मैदानों में सैनिकों के विरुद्ध लड़ने के लिए नियुक्त किया।
\v 10 उसने अपने भाई अबीशै को अन्य सैनिकों को आदेश देने के लिए सौंपा, जो लोग अपने नगर के द्वार के सामने अम्मोनियों के सैनिकों का सामना कर रहे थे।
\s5
\v 11 तब योआब ने कहा, "यदि आराम के सैनिक पराजित करने के लिए हम पर भारी पड़ें, तो तेरे लोग मेरी सहायता करने को तत्पर रहें। परन्तु यदि अम्मोनियों के सैनिक तुझ पर भारी पड़ें, तो हम तेरे लोगों की सहायता करने को तत्पर रहेंगे।
\v 12 हमें दृढ़ रहना चाहिए और हमारे लोगों और हमारे परमेश्वर के शहरों की रक्षा करने के लिए दृढ़ता से लड़ना चाहिए। मैं प्रार्थना करूँगा कि यहोवा वही करें जो उन्हें उचित लगता है।"
\p
\s5
\v 13 तब योआब और उसकी सेना ने आराम की सेना पर हमला किया, और आरामी उनके सामने से भाग निकले।
\v 14 जब अम्मोनियों ने देखा कि आरामी भाग रहे हैं, तब वे भी अबीशै और उसके लोगों के सामने से भागने लगे; वे पीछे हटकर शहर में घुस गए। तब योआब और उसकी सेना ने उस स्थान को छोड़ दिया और यरूशलेम लौट गए।
\p
\s5
\v 15 आराम की सेना के अधिकारियों ने देखा कि इस्राएलियों ने उन्हें पराजित कर दिया है, उन्होंने अपने सभी सैन्य दलों को एक साथ इकट्ठा किया।
\v 16 उनके राजा, हददेजर ने आराम के सैनिकों को बुलाया जो फरात नदी के पूर्व की ओर रहते थे। वे हेलाम शहर में इकट्ठे हुए। उनका सेनाध्यक्ष शोबाक था।
\p
\s5
\v 17 जब दाऊद ने उस के विषय सुना, तो उसने सभी इस्राएली सैनिकों को इकट्ठा किया, और यरदन नदी पार कर हेलम पहुँचा। वहाँ अराम की सेना तैनात थी, और लड़ाई शुरू हो गयी।
\v 18 परन्तु आरामी इस्राएलियों के सैनिकों के सामने से भाग निकले। दाऊद और उसकी सेना ने उनके सात रथ सैनिकों और चालीस हजार अन्य सैनिकों की हत्या कर दी। उन्होंने उनके सेनाध्यक्ष शोबाक को भी घायल कर दिया, और वह वहाँ मर गया।
\v 19 जब हददेजर के सभी राजाओं ने यह अनुभव किया कि इस्राएल ने उन्हें पराजित किया है, तो उन्होंने इस्राएलियों के साथ शान्ति बनाई और दाऊद को उनके राजा के रूप में स्वीकार करने पर सहमति व्यक्त की। आरामी अब अम्मोनियों की सहायता करने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि वे इस्राएल से डरते थे।
\s5
\c 11
\p
\v 1 उस क्षेत्र में, राजा आमतौर पर वसंत ऋतु में अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए अपनी सेनाओं के साथ निकला करते थे। परन्तु अगले वर्ष, वसंत ऋतु में, दाऊद ने ऐसा नहीं किया। इसकी अपेक्षा, वह यरूशलेम में रहा, और उसने सेना का नेतृत्व करने के लिए अपने सेनाध्यक्ष योआब को भेजा। योआब अन्य अधिकारियों और बाकी इस्राएली सेना के साथ गया। उन्होंने यरदन नदी पार कर अम्मोन लोगों के समूह की सेना को हराया। तब उन्होंने उनकी राजधानी शहर, रब्बा को घेर लिया।
\p
\s5
\v 2 देर दोपहर, दाऊद एक छोटी सी नींद से उठने के बाद, अपने महल की सपाट छत पर टहल रहा था। उसने एक औरत को देखा जो अपने घर के आंगन में स्नान कर रही थी। महिला बहुत सुंदर थी।
\v 3 दाऊद ने यह पता लगाने के लिए एक संदेशवाहक भेजा कि वह कौन है। दूत वापस लौटे और कहा, "वह बतशेबा है। वह एलीआम की पुत्री है, और उसका पति ऊरिय्याह है जो हित्ती लोगों के समूह का है।"
\p
\s5
\v 4 तब दाऊद ने उसे पाने के लिए और दूत भेजे। वे उसे दाऊद के पास लाए, और वह उसके साथ सो गया। (उसने अपने मासिक धर्म के अवधि के बाद स्वयं को शुद्ध बनाने के लिए अनुष्ठानों को पूरा कर लिया था।) तब बतशेबा घर लौट गई।
\v 5 कुछ समय बाद, उसे ज्ञात हुआ कि वह गर्भवती है। अतः उसने यह समाचार दाऊद को बताने के लिए एक दूत भेजा।
\p
\s5
\v 6 तब दाऊद ने योआब को एक संदेश भेजा। उसने कहा, "हित्ती लोगों के समूह से, ऊरिय्याह को मेरे पास भेज।" योआब ने ऐसा किया। उसने ऊरिय्याह को दाऊद के पास भेजा।
\v 7 जब वह पहुँचा, तो दाऊद ने योआब का कुशल क्षेम पूछा, अगर अन्य सैनिको का कुशल क्षेम पूछा, और यह भी कि युद्ध कैसे आगे बढ़ रहा था।
\v 8 तब दाऊद ने, आशा करते हुए कि ऊरिय्याह घर जाएगा और अपनी पत्नी के साथ सोएगा, ऊरिय्याह से कहा, "अब घर जा और थोड़ी देर आराम कर।" ऊरिय्याह चला गया, और दाऊद ने किसी को उपहार ले जाने के लिए ऊरिय्याह के घर भेजा।
\s5
\v 9 परन्तु ऊरिय्याह घर नहीं गया। इसकी अपेक्षा, वह महल के सेवकों के साथ महल के प्रवेश द्वार पर सो गया।
\p
\v 10 जब किसी ने दाऊद से कहा कि उस रात ऊरिय्याह अपने घर नहीं गया, तो दाऊद ने उसे फिर बुलाया और कहा, "तू कल रात अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए घर क्यों नहीं गया, लम्बे समय से दूर रहने के बाद?"
\p
\v 11 ऊरिय्याह ने उत्तर दिया, "यहूदा और इस्राएल के सैनिक खुले मैदानों में डेरा डाले हुए हैं, और यहाँ तक कि हमारा सेनाध्यक्ष योआब एक तम्बू में सो रहा है, और पवित्र संदूक उनके साथ है। मैं संभवतः घर नहीं जा सकता, ना खा सकता हूँ और ना पी सकता हूँ, और ना पत्नी के साथ सो सकता हूँ। मैं सच्चाई से घोषणा करता हूँ कि मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा!"
\p
\s5
\v 12 तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, "आज यहाँ रह। मैं तुझे कल युद्ध में वापस भेज दूँगा।" तो ऊरिय्याह उस दिन और उस रात यरूशलेम में रहा।
\v 13 अगले दिन, दाऊद ने उसे भोजन के लिए आमंत्रित किया। ऊरिय्याह ने दाऊद के साथ भोजन किया, और दाऊद ने उसे बहुत शराब पिलाई ताकि वह मतवाला हो जाए, यह आशा करते हुए कि यदि वह मतवाला हो जाए, तो अपनी पत्नी के साथ सोएगा। परन्तु उस रात, ऊरिय्याह फिर घर नहीं गया इसकी अपेक्षा, वह राजा के सेवकों के साथ एक चारपाई पर सो गया।
\p
\s5
\v 14 किसी ने दाऊद को इसकी सूचना दी, अगली सुबह उसने योआब को एक पत्र लिखा, और योआब को देने के लिए वह पत्र ऊरिय्याह को दिया।
\v 15 पत्र में, उसने लिखा, "ऊरिय्याह को मोर्चे की सीमा पर रखो, जहाँ लड़ाई सबसे भयंकर है। फिर सैनिकों को उसे छोड़कर वापस आने के लिए आदेश दो कि हमारे शत्रु उसे मार डालें।"
\p
\s5
\v 16 जब योआब को पत्र मिला उस के बाद, उसकी सेना शहर के चारों ओर थी, उसने ऊरिय्याह को उस स्थान पर भेजा जहाँ वह जानता था कि उनके शत्रुओं के सबसे मजबूत और सर्वश्रेष्ठ सैनिक लड़ेंगे।
\v 17 नगर के लोग बाहर आए और योआब के सैनिकों के साथ लड़े। उन्होंने ऊरिय्याह समेत दाऊद के कुछ अधिकारियों को मार डाला।
\p
\s5
\v 18 तब योआब ने एक दूत को दाऊद को युद्ध के विषय बताने के लिए भेजा।
\v 19 उसने दूत से कहा, "दाऊद को युद्ध के विषय संदेश सुना। उसे बताने के बाद,
\v 20 यदि बहुत से अधिकारियों के मरने के कारण दाऊद गुस्से में हो, वह तुझसे पूछे, 'तुम्हारे सैनिक लड़ने के लिए शहर के इतने करीब क्यों गए? क्या तुम नहीं जानते थे कि वे शहर की दीवार के शीर्ष से तीर मारेंगे?
\s5
\v 21 क्या तुमको याद नहीं है कि गिदोन के पुत्र अबीमेलेक की हत्या कैसे हुई थी? तेबेस में रहने वाली एक महिला ने मीनार के शीर्ष से उसके ऊपर चक्की का विशाल पत्थर फेंक दिया, और वह मर गया। तो हमारी सेना शहर की दीवार के पास क्यों गई? 'अगर राजा यह पूछता है, तो उसे बताओ, 'तेरा अधिकारी ऊरिय्याह भी मारा गया।'"
\p
\s5
\v 22 तब दूत चला गया और दाऊद को सब कुछ बताया जो योआब ने उसे कहने के लिए कहा था।
\v 23 दूत ने दाऊद से कहा, "हमारे शत्रु बहुत बहादुर थे, और मैदानों में हमसे लड़ने के लिए शहर से बाहर आए। वे पहले हम पर प्रबल हो रहे थे, परन्तु फिर हमने उन्हें वापस शहर के द्वार तक खदेड़ा।
\s5
\v 24 तब उनके तीरंदाजों ने हम पर शहर की दीवार के ऊपर से तीर छोड़े। उन्होंने तेरे कुछ अधिकारियों को मार डाला। उन्होंने तेरे अधिकारी ऊरिय्याह को भी मार डाला।"
\p
\v 25 दाऊद ने दूत से कहा, "योआब के पास वापस जा और उससे कह, 'जो हुआ, उस के विषय चिंता न कर, क्योंकि कोई भी कभी नहीं जानता कि युद्ध में कौन मर जाएगा।' उसे बता कि अगली बार, उसके सैनिक शहर पर अधिक दृढ़ता से हमला करें और उसे अपने अधिकार में ले लें। इस तरह योआब को प्रोत्साहित करो।"
\p
\s5
\v 26 जब ऊरिय्याह की पत्नी बतशेबा ने सुना कि उसके पति की मृत्यु हो गई है, तो उसने उसके लिए शोक किया।
\v 27 जब उसका शोक समाप्त हो गया, तब दाऊद ने उसे महल लाने के लिए दूत भेजे। इस तरह वह दाऊद की पत्नी बन गई। उसने बाद में एक बेटे को जन्म दिया। परन्तु दाऊद ने जो किया था, उसके लिए यहोवा बहुत अप्रसन्न थे।
\s5
\c 12
\p
\v 1 यहोवा ने भविष्यवक्ता नातान को वह सब बताया जो दाऊद ने किया था, और उन्होंने नातान को यह कहानी दाऊद को बताने के लिए भेजा, "एक बार किसी शहर में दो पुरुष थे। एक व्यक्ति धनवान था और दूसरा गरीब था।
\v 2 धनवान व्यक्ति के पास बहुत सारे मवेशी और भेड़ें थे।
\v 3 परन्तु गरीब व्यक्ति के पास केवल भेड़ का एक छोटी मादा भेड़ का बच्चा था, जिसे उसने मोल लिया था। उसने भेड़ की बच्ची का पालन किया, और वह उसके बच्चों के साथ बड़ी हुई। वह भेड़ की बच्ची को अपने भोजन से कुछ देता और उसे अपने कप से पिलाता। वह भेड़ की बच्ची को अपने पास सुलाता था। भेड़ की बच्ची उसके लिए एक बेटी के समान थी।
\p
\s5
\v 4 एक दिन एक यात्री धनवान व्यक्ति से मिलने आया। धनवान व्यक्ति अपने पशुओं में से अतिथि के लिए भोजन तैयार करने के लिए किसी को मारना नहीं चाहता था। तो इसकी अपेक्षा, उसने गरीब व्यक्ति के भेड़ की बच्ची को लाने के लिए पुरुषों को भेजा; तब उसने किसी से उसे मरवा डाला और उसके अतिथि के लिए भोजन तैयार किया।"
\p
\v 5 जब दाऊद ने यह सुना, तो वह आग बबूला हो गया। उसने नातान से कहा, "मैं सच्चाई से घोषणा करता हूँ कि जिस व्यक्ति ने ऐसा किया वह मार डाला जाना चाहिए!
\v 6 उसे ऐसा करने के लिए कम से कम चार भेड़ के बच्चे उस गरीब व्यक्ति को वापस लौटाने होंगे, और गरीब व्यक्ति पर कुछ दया नहीं की।"
\p
\s5
\v 7 नातान ने दाऊद से कहा, "तू ही वह व्यक्ति है जिसके बारे में मैं बातें कर रहा हूँ! और यही है जिसे यहोवा, जिसकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, तुझसे यह कहते हैं: 'मैंने तुझे शाऊल से बचाया, और मैंने तुझे इस्राएल का राजा बना दिया।
\v 8 मैंने तुझे उसका महल दिया; मैं ने तुझे उसकी पत्नियों को तेरे पास रखने की अनुमति दी थी। मैंने तुझे इस्राएल और यहूदा पर राजा बना दिया। अगर तूने मुझे बताया होता कि मैंने जो कुछ दिया है उससे तू संतुष्ट नहीं है, तो मैंने तुझे और अधिक दिया होता!
\s5
\v 9 तो मैंने जो आज्ञा दी है, उसे तूने क्यों नकार दिया, जब मैंने कहा कि मेरे लोगों को व्यभिचार नहीं करना चाहिए? तूने जो किया वह मेरी दृष्टि में बुरा है! तूने ऊरिय्याह को अम्मोनियों के साथ युद्ध में मरवाने की व्यवस्था की और तूने उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया!
\v 10 तूने मुझे तुच्छ जाना, क्योंकि तूने ऊरिय्याह की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया। अत: तेरे कुछ वंशज हमेशा युद्ध में मारे जाएँगे।
\s5
\v 11 मैं तुझसे सच्चाई के साथ यह घोषणा करता हूँ कि मैं तेरे परिवार के ही किसी के द्वारा तुझ पर विपत्ति डालने का कारण बनाऊँगा। मैं तेरी पत्नियों को उस व्यक्ति को दूँगा, और वह दिन में उनके साथ सोएगा, जहाँ हर कोई इसे देखे, और तू यह सब जानेगा भी।
\v 12 तूने जो कुछ किया छिपकर किया परन्तु जो मै करनेवाला हूँ, इस्राएल में हर कोई इसे देख सकेगा या इसके विषय जान सकेगा।'"
\p
\v 13 दाऊद ने उत्तर दिया, "मैंने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है।" नातान ने दाऊद से कहा, "यहोवा ने तेरे पाप को अनदेखा कर दिया है। इस पाप के कारण तू न मरेगा।
\s5
\v 14 परन्तु तूने ऐसा करके यहोवा का तिरस्कार किया। इसलिए तेरा बच्चा मर जाएगा।"
\p
\v 15 नातान अपने घर गया।
\m तब ऊरिय्याह की पत्नी द्वारा उत्पन्न बच्चा यहोवा के कारण बहुत बीमार पड़ गया।
\s5
\v 16 दाऊद ने परमेश्वर से बच्चे के न मरने की प्रार्थना की। उसने उपवास किया, और वह अपने कमरे में गया और पूरी रात फर्श पर पड़ा रहा।
\v 17 अगली सुबह उसके महत्वपूर्ण सेवक उसके चारों ओर खड़े हो गए और उससे उठने का आग्रह करने लगे परन्तु वह न उठा, और न उनके साथ भोजन किया।
\p
\v 18 एक सप्ताह बाद बच्चे की मृत्यु हो गई। दाऊद के सेवक दाऊद को यह बताने से डरते थे। उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "जब बच्चा जीवित था, हमने उससे बातें की, परन्तु उसने हमें जवाब नहीं दिया। अब, अगर हम उसे बताते हैं कि बच्चा मर चुका है, तो वह स्वयं को नुकसान पहुँचाने के लिए कुछ भी कर सकता है!"
\p
\s5
\v 19 परन्तु जब दाऊद ने देखा कि उसके कर्मचारी एक-दूसरे से कुछ फुसफुसा रहे थे, तो उसने जान लिया कि बच्चा मर गया। तो उसने उनसे पूछा, "क्या बच्चा मर चुका है?" उन्होंने जवाब दिया, "हाँ, वह मर चुका है।"
\p
\v 20 तब दाऊद फर्श से उठ गया। उसने नहाकर, अपने शरीर पर तेल मला, और दूसरे कपड़े पहने। तब वह यहोवा के पवित्र तम्बू में गया और उसकी आराधना की। फिर वह घर गया। उसने अपने कर्मचारियों से कुछ भोजन लाने का अनुरोध किया। उन्होंने उसे थोड़ा भोजन दिया, और उसने खाया।
\p
\s5
\v 21 तब उसके कर्मचारियों ने उससे कहा, "हम नहीं समझ पाए कि तूने ऐसा क्यों किया जब बच्चा जीवित था, तू उसके लिए रोया और कुछ भी खाने से इन्कार कर दिया। परन्तु अब जब बच्चा मर गया तो तू नहीं रो रहा और अब तूने थोड़ा भोजन भी कर लिया!"
\p
\v 22 उसने उत्तर दिया, "जब बच्चा जीवित था, मैंने उपवास किया और रोया। मैंने सोचा, 'संभवतः यहोवा मेरे प्रति दयालु हों और बच्चे को मरने से बचाए।'
\v 23 परन्तु अब बच्चा मर चुका है। तो अब मेरे लिए उपवास करने का कोई कारण नहीं है। मैं उसे वापस अपने पास नहीं ला सकता। एक दिन मैं उसके पास जाऊँगा जहाँ वह है, परन्तु वह मेरे पास वापस नहीं आएगा।"
\p
\s5
\v 24 तब दाऊद ने अपनी पत्नी बतशेबा को सांत्वना दी। तब वह उसके साथ सोया, और वह फिर गर्भवती हो गई और दूसरे बेटे को जन्म दिया। दाऊद ने उस लड़के को सुलैमान नाम दिया। यहोवा इस छोटे लड़के से प्रेम करते थे।
\v 25 उन्होंने भविष्यवक्ता नातान से कहा कि दाऊद को कह उस लड़के को यदिद्दाह नाम दें, क्योंकि यहोवा उससे प्रेम करते थे।
\p
\s5
\v 26 इस बीच, योआब के सैनिकों ने अम्मोन लोगों के समूह की राजधानी रब्बा पर हमला किया। उन्होंने राजा के किले पर अधिकार कर लिया, जो पानी की आपूर्ति की रक्षा करता था।
\v 27 तब योआब ने दाऊद को यह कहने के लिए दूत भेजे, कि मेरी सेनाएँ रब्बा पर हमला कर रही हैं, और हमने शहर की जल आपूर्ति पर अधिकार कर लिया है।
\v 28 अब अपने सैनिकों को इकट्ठा करो और आओ शहर को घेरें और इस पर अधिकार करें। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो मेरी सेना शहर पर अधिकार कर लेगी और इसके बाद इसका नाम मेरे नाम पर रखा जाएगा: योआब शहर।"
\p
\s5
\v 29 तब दाऊद ने अपने सभी सैनिकों को इकट्ठा किया। वे रब्बा गए, हमला किया, और अधिकार कर लिया।
\v 30 तब दाऊद ने उनके राजा के सिर से मुकुट लिया और उसे अपने सिर पर रख लिया। यह बहुत भारी था; उसका वजन लगभग तैंतीस किलो था, और इसमें एक बहुत ही मूल्यवान पत्थर था। उसके सैनिकों ने शहर से कई अन्य मूल्यवान चीजें भी लीं।
\s5
\v 31 तब उन्होंने लोगों को शहर से बाहर निकाला और उन्हें आरे, लोहे के फावड़ों और कुल्हाड़ियाँ लेकर अपने लिए काम करने के लिए विवश किया। दाऊद के सैनिकों ने उन्हें ईंट बनाने के लिए भी विवश किया। दाऊद के सैनिकों ने अम्मोनियों के सभी नगरों में ऐसा किया था। तब दाऊद और उसकी सारी सेना यरूशलेम लौट आई।
\s5
\c 13
\p
\v 1 दाऊद के पुत्र अबशालोम की तामार नाम की एक खूबसूरत बहन थी। दाऊद के पुत्रों में से एक, अम्नोन, तामार पर आकर्षित हो गया था, जिसका वह सौतेला भाई था।
\v 2 वह तामार के साथ सोने के लिए व्याकुल था, उसे इतना चाहता था कि मोह के कारण बीमार पड़ गया। परन्तु अम्नोन के लिए उसे पाना असंभव लग रहा था, क्योंकि वह कुँवारी थी, उन्होंने पुरुषों से उसे दूर रखा था।
\p
\s5
\v 3 परन्तु अम्नोन के पास योनादाब नाम का एक मित्र था, जो दाऊद के भाई शिमा का पुत्र दाऊद का भतीजा था। योनादाब बहुत चालाक व्यक्ति था।
\p
\v 4 एक दिन योनादाब ने अम्नोन से कहा, "तू राजा का पुत्र है, परन्तु हर दिन मैं तुझे बहुत उदास देखता हूँ। तेरी समस्या क्या है?" अम्नोन ने उत्तर दिया, "मुझे अपने सौतेले भाई अबशालोम की बहन तामार से प्रेम हो गया है।"
\p
\s5
\v 5 योनादाब ने उससे कहा, "अपने बिस्तर पर लेट जा और बीमार होने का ढोंग कर। जब तेरा पिता तुझे देखने के लिए आए, तो उससे कहना कि मेरी सौतेली बहन तामार को खाना लेकर भेज दे। उसे अपने सामने भोजन पकाने के लिए कहना। फिर वह स्वयं तेरी सेवा कर सकती है।"
\p
\v 6 तब अम्नोन ने लेटकर बीमार होने का ढोंग किया। जब राजा उसे देखने आया, तो अम्नोन ने उससे कहा, "मैं बीमार हूँ। कृपया तामार को आने की अनुमति दे और मेरे सामने दो रोटी बनाएँ, और फिर वह उन्हें मेरे सामने परोस सके।"
\p
\s5
\v 7 तब दाऊद ने महल में तामार को एक संदेश भेजा, "अम्नोन बीमार है, वह चाहता है कि तू उसके घर जाए और उसके लिए कुछ भोजन तैयार करे।"
\v 8 तामार अम्नोन के घर गई, जहाँ वह बिस्तर पर पड़ा हुआ था। उसने थोड़ा आटा लिया और उसे गूँधा, और उसके सामने ही कुछ रोटियाँ बनाई। उन्हें पकाया।
\v 9 उसने उन्हें तवे से बाहर निकाला और उसके सामने एक थाली पर रखा, परन्तु उसने उन्हें खाने से इन्कार कर दिया। तब उसने कमरे में अपने सेवकों से कहा, "तुम सब लोग, चले जाओ!" वे सभी चले गए।
\p
\s5
\v 10 तब अम्नोन ने तामार से कहा, "मेरे बिस्तर पर भोजन ला और मेरे सामने परोस।" तामार बनाई हुई रोटियाँ लेकर उसके कमरे में गई।
\v 11 परन्तु जब वह खिलाने के लिए उसके करीब लाई, तो उसने उसे पकड़ लिया और उससे कहा, "मेरे साथ बिस्तर पर आ!"
\p
\v 12 उसने उत्तर दिया, "नहीं, मुझे इतनी अपमानजनक बातें करने के लिए विवश मत कर! हम इस्राएल में ऐसे काम कभी नहीं करते! यह शर्मनाक होगा!
\s5
\v 13 मैं ऐसा करके अपमानित होना सहन नहीं कर पाऊँगी। तुझे, इस्राएल में हर कोई इस तरह के अपमानजनक कार्य करने के कारण निन्दा करेगा। मैं तुझसे विनती करती हूँ, राजा से बात कर। मुझे यकीन है कि वे मुझे तुझसे विवाह करने की अनुमति देगा।"
\v 14 परन्तु उसने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह उससे ज्यादा बलवान था, इसलिए उसने उसे साथ सोने के लिए विवश किया।
\p
\s5
\v 15 तब अम्नोन उससे अत्यंत बैर रखने लगा। उसने उससे मोह से अधिक बैर रखा। उसने उससे कहा, "उठ और यहाँ से निकल जा!"
\p
\v 16 परन्तु उसने उससे कहा, "नहीं! तेरे लिए मुझे निकाल देना बहुत गलत होगा। यह तूने मुझसे जो भी किया उससे भी बुरा होगा!" परन्तु फिर उसने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
\p
\v 17 उसने अपने निजी सेवक को बुलाया और उससे कहा, "इस महिला को बाहर निकालो, मुझसे दूर करो, और दरवाजा बंद करो ताकि वह फिर से नहीं आ सके!"
\s5
\v 18 इसलिए सेवक ने उसे बाहर निकाल दिया और दरवाजा बंद कर दिया।
\p तामार सजे हुए लम्बे वस्त्र पहनी थी, जैसे कपड़ें को आम तौर पर उस समय राजा की अविवाहित बेटियाँ पहना करती थी।
\v 19 तामार ने पहने हुए उस लम्बे वस्त्र को फाड़ दिया, और दुःख दर्शाने के लिए अपने सिर पर राख डाली। वह शोक दर्शाती हुई अपने सिर पर हाथ रखकर और रोती हुई चली गई।
\p
\s5
\v 20 उसके भाई अबशालोम ने उसे देखा और उससे कहा, "क्या तेरे सौतेले भाई अम्नोन ने तुझे साथ सोने के लिए विवश किया है? कृपया, मेरी बहन, किसी को मत कहना, और निराश न हो।" तामार अबशालोम के घर रहने के लिए चली गई, और वह बहुत दुःखी और अकेली थी।
\p
\v 21 जब राजा दाऊद ने ये सब सुना, तो वह बहुत क्रोधित हो गया।
\v 22 अबशालोम ने अम्नोन से घृणा की, क्योंकि उसने उसकी बहन को उसके साथ सोने के लिए विवश किया था, इसलिए उसने अम्नोन से किसी विषय में कुछ बातें नहीं की।
\p
\s5
\v 23 दो साल बाद, अबशालोम ने पुरुषों को बाल्हासोर में अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिए काम पर रखा, जो एप्रैम की जनजातीय भूमि के पास है। भेड़ों का ऊन कतरने के बाद वे उत्सव मनाने वाले थे, इसलिए अबशालोम ने सभी राजा के सभी पुत्रों को आने और साथ उत्सव मनाने के लिए आमंत्रित किया।
\v 24 अबशालोम राजा के पास गया और उससे कहा, "महोदय, मेरे कर्मचारी मेरी भेड़ों का ऊन कतर रहे हैं। कृपया हमारे अधिकारियों के साथ उत्सव मनाने के लिए पधार!"
\p
\s5
\v 25 परन्तु राजा ने उत्तर दिया, "नहीं, हे मेरे पुत्र, हम सभी का जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि हम बहुत से लोग हैं; हमारे कारण तेरा बहुत खर्च होगा।" अबशालोम लगातार उससे आग्रह करता रहा, परन्तु राजा नहीं गया। इसकी अपेक्षा, उसने कहा कि उसे आशा है कि जब वे उत्सव मनाएँगे तो परमेश्वर उन्हें आशीष देंगे।
\p
\v 26 तब अबशालोम ने कहा, "यदि आप नहीं जाएँगे, तो कृपया मेरे सौतेले भाई अम्नोन को हमारे साथ जाने दें।" परन्तु राजा ने जवाब दिया, "तू उसे अपने साथ क्यों ले जाना चाहता है?"
\p
\s5
\v 27 परन्तु अबशालोम ने जोर दिया, इस प्रकार राजा ने अम्नोन और दाऊद के अन्य पुत्रों को अबशालोम के साथ जाने की अनुमति दी।
\p
\v 28 वे सब चले गए। उत्सव में, अबशालोम ने अपने सेवकों को आज्ञा दी, "ध्यान दें कि जब अम्नोन शराब के नशे में आ जाए । तब जब मैं तुम्हें संकेत करता हूँ, उसे मार दो। डरो मत। तुम ऐसा करोगे क्योंकि मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए कहा था अत: साहसी बनो और इसे ही करो!"
\v 29 तब अबशालोम के कर्मचारियों ने उसके कहने के अनुसार किया। उन्होंने अम्नोन को मार डाला। दाऊद के बाकी सभी पुत्रों ने जो हुआ था उसे देखा और अपने अपने खच्चर पर सवार होकर भाग गए।
\p
\s5
\v 30 जब वे घर जा रहे थे, तो कोई तीव्रता से गया और दाऊद से कहा, "अबशालोम ने तेरे सभी पुत्रों को मार डाला है। उनमें से कोई भी जीवित नहीं है!"
\v 31 राजा खड़ा हुआ, अपने कपड़े फाड़े क्योंकि वे बहुत दुःखी था, और फिर स्वयं भूमि पर गिर पड़ा। वहाँ उपस्थित सभी सेवकों ने भी अपने कपड़े फाड़े।
\p
\s5
\v 32 परन्तु दाऊद के भाई शिमा के पुत्र यहोनादाब ने कहा, "हे महामहिम, मै निश्चित हूँ कि उन्होंने तेरे सभी पुत्रों को नहीं मारा है। मुझे निश्चय है कि सिर्फ अम्नोन मरा है, क्योंकि अबशालोम ने ऐसा करने का दृढ़ संकल्प तब से किया है जिस दिन अम्नोन ने तामार से बलात्कार किया था।
\v 33 इसलिए, महामहिम, तू इस सूचना पर विश्वास न कर कि तेरे सभी बेटे मर चुके हैं। मुझे निश्चय है कि सिर्फ अम्नोन मरा है।"
\p
\s5
\v 34 इस बीच, अबशालोम भाग गया।
\p तभी, शहर की दीवार पर नियुक्त सैनिक ने पश्चिम की सड़क पर पहाड़ी से नीचे आती लोगों की एक बड़ी भीड़ देखी। वह भागा और राजा को जो उसने देखा था बताया।
\v 35 योनादाब ने राजा से कहा, "देख, मैंने जो कहा है वह सच है। तेरे अन्य बेटे जीवित हैं और आ गए हैं!"
\p
\v 36 और जैसे ही उसने कहा, दाऊद के पुत्र आ गए। वे सब रोने लगे, और दाऊद और उसके सभी अधिकारी भी फूट फूटकर रोने लगे।
\p
\s5
\v 37-38 परन्तु अबशालोम भाग चुका था। वह गशूर के राजा के पास रहने के लिए चला गया। उसका नाम अम्मीहुद का पुत्र तल्मै था। अबशालोम तीन साल तक वहाँ रहा।
\p परन्तु राजा दाऊद ने अपने बेटे अम्नोन के लिए लम्बे समय तक शोक किया,
\v 39 परन्तु उसके बाद भी, वह अबशालोम को देखने की बहुत इच्छा रखता था, क्योंकि वे अब अम्नोन के मरने के बारे में दुःखी नहीं था।
\s5
\c 14
\p
\v 1 योआब को अनुभव हुआ कि राजा अबशालोम को देखने की लालसा रखता है।
\v 2 तब योआब ने किसी को तकोआ शहर से एक स्त्री को लाने भेजा जो बहुत चालाक थी। जब वह पहुँची, तो योआब ने उससे कहा, "शोकित होने का ढोंग कर जैसे कोई मर चुका है। शोक वस्त्र धारण कर। अपने शरीर पर किसी प्रकार का तेल मत मल। ऐसी स्त्री होने का नाटक कर जो लम्बे समय से शोक कर रही है।
\v 3 और राजा के पास जाकर उसे बता जो मैं तुझे कहने के लिए बोलता हूँ। "तब योआब ने उसे राजा से क्या कहना है बतलाया।
\p
\s5
\v 4 तकोआ की स्त्री राजा के पास गई। उसने सम्मान दिखाने के लिए दंडवत किया और कहा, "महामहिम, मेरी सहायता कर!"
\p
\v 5 राजा ने उत्तर दिया, "तेरी समस्या क्या है?" उसने जवाब दिया, महोदय, मैं विधवा हूँ। मेरा पति कुछ समय पहले मर गया था।
\v 6 मेरे दो बेटे थे। परन्तु एक दिन उन्होंने मैदानों में एक-दूसरे के साथ झगड़ा किया। उन्हें अलग करनेवाला कोई नहीं था, और उनमें से एक ने दूसरे को मारा और उसे मार डाला।
\s5
\v 7 अब, मेरा पूरा परिवार मेरा विरोध करता है। वे जोर दे रहे हैं कि मैं उन्हें अपने बेटे को मारने दूँ जो अभी भी जीवित है, ताकि वे उसके भाई की हत्या का बदला ले सकें। परन्तु अगर वे ऐसा करते हैं, तो मेरे पास कोई भी बेटा नहीं होगा जो मेरी संपत्ति का वारिस बने। मैं पुत्रहीन हो जाऊँगी, और मेरे पति के पास हमारे परिवार के नाम को सुरक्षित रखने के लिए कोई बेटा नहीं होगा।"
\p
\s5
\v 8 तब राजा ने उस स्त्री से कहा, "घर वापस जा। मैं तेरे इस विषय का ध्यान रखूँगा।"
\p
\v 9 तकोआ की स्त्री ने राजा से कहा, "हे महामहिम, यदि कोई मेरी सहायता करने के लिए तेरी आलोचना करता है, तो मैं और मेरा परिवार दोष स्वीकार करेंगे। तू और शाही परिवार निर्दोष होंगे।"
\p
\s5
\v 10 राजा ने उससे कहा, "यदि कोई तुझे धमकाने के लिए कुछ कहता है, तो उस व्यक्ति को मेरे पास लाना, और मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि वह तुझे फिर कभी परेशान नहीं करेगा।"
\p
\v 11 तब उस स्त्री ने कहा, "हे महामहिम, कृपया प्रार्थना करें कि तेरा परमेश्वर यहोवा मेरे संबंधियों को, जो मेरे बेटे को उसके भाई को मारने का बदला लेना चाहते हैं, अनुमति नहीं देंगे।"
\p दाऊद ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से जो यहोवा जीवित हैं, तेरे पुत्र को बिलकुल भी हानि न पहुँचेगी।"
\s5
\v 12 तब उस स्त्री ने कहा, "महामहिम, कृपया मुझे तुझसे एक और बात कहने दे।" उसने जवाब दिया, "बोल!"
\p
\v 13 उस स्त्री ने कहा, "तूने परमेश्वर के लोगों के साथ बुरा व्यवहार क्यों किया? तूने अपने बेटे अबशालोम को घर लौटने की अनुमति नहीं दी। यह कहकर कि तूने अभी कहा है, तूने निश्चित रूप से यह घोषणा की है कि तूने जो किया है वह गलत है।
\v 14 हम सभी मर जाएँगे। हम पानी के समान हैं जिन्हें भूमि पर फेंकने के बाद उठाया नहीं जा सकता। परमेश्वर प्राण नहीं लेते, बल्कि परमेश्वर उन लोगों के लौटने के लिए मार्ग बनाते हैं जिन्हें निर्वासित किया गया है ताकि उनके लोगों को उनके घरों में पुनःस्थापित किया जा सके।
\p
\s5
\v 15 अब, महामहिम, मैं तेरे पास आई हूँ क्योंकि दूसरों ने मुझे धमकाया है। इसलिए मैंने स्वयं से कहा, 'मैं जाऊँगी और राजा से बात करूँगी, और संभवतः वे वही करेगा जो मैं उससे करने के लिए निवेदन करती हूँ।
\v 16 संभवतः वे मेरी बात करेगा, और मुझे उस व्यक्ति से बचाएगा जो मेरे बेटे को मारने का प्रयास कर रहा है। अगर मेरे बेटे की हत्या हो जाती है, तो उसका यही परिणाम होगा कि हम उस देश से मिट जाएँगे जो परमेश्वर ने हमें दिया था।'
\p
\v 17 और मैंने सोचा, 'राजा क्या कहेगा वे मुझे सांत्वना देगा, क्योंकि राजा परमेश्वर के दूत के समान है। वे जानता है कि क्या अच्छा है और बुरा क्या है।' मैं प्रार्थना करती हूँ कि हमारा परमेश्वर यहोवा तेरे साथ रहेंगे।"
\p
\s5
\v 18 तब राजा ने उस स्त्री से कहा, "अब मैं तुझसे एक प्रश्न करूँगा। उत्तर दो, मुझे सच बता।" स्त्री ने उत्तर दिया, "महामहिम, प्रश्न करें।"
\p
\v 19 राजा ने कहा, "क्या योआब ही था जिसने तुझे ऐसा करने के लिए कहा था?" उसने जवाब दिया, "हाँ, महामहिम, जैसा निश्चित रूप से तू जीवित हैं, मैं तुझसे सच कहने से बचने के लिए और कुछ नहीं कह सकती। हाँ, वास्तव में, यह योआब था जिसने मुझे यहाँ आने के लिए कहा, और जिसने मुझे बताया कि मुझे क्या कहना है।
\v 20 उसने इस विषय में अलग ढंग से सोचने के लिए ऐसा किया। महामहिम, तू परमेश्वर के स्वर्गदूतों के समान बुद्धिमान हैं, और ऐसा लगता है कि तू पृथ्वी पर जो कुछ भी होता है उसे जानता है इसलिए तू जानता है कि योआब ने मुझे यहाँ क्यों भेजा।"
\p
\s5
\v 21 तब राजा ने योआब को बुलाकर कहा, "सुनो! मैंने जो तू चाहता है वैसा करने का फैसला किया है। तो जा और उस युवक अबशालोम को पकड़ और उसे यरूशलेम वापस ला।"
\p
\v 22 योआब ने भूमि पर गिरकर दंडवत किया, और फिर वह राजा के सामने झुक गया, और परमेश्वर से उसे आशीष देने के लिए कहा। तब योआब ने कहा, "महामहिम, आज मुझे पता चला कि तू मुझसे प्रसन्न है, क्योंकि मैने जो अनुरोध किया है उसे करने में तू सहमत है।"
\p
\s5
\v 23 तब योआब उठकर गेशूर गया, और अबशालोम को पकड़ कर यरूशलेम वापस लाया।
\v 24 परन्तु राजा ने कहा कि वह अबशालोम को उसके पास आने की अनुमति नहीं देगा। उसने कहा, "मैं नहीं चाहता कि वह मुझे देखने आए।" अबशालोम अपने घर में रहा, और राजा से बातें करने के लिए नहीं गया।
\p
\s5
\v 25 अबशालोम बहुत सुन्दर था। उसके शरीर में सिर से पैर तक कोई दोष नहीं था। इस्राएल में कोई भी व्यक्ति नहीं था जिसकी लोगों ने अबशालोम से अधिक प्रशंसा की हो।
\v 26 उसके बाल बहुत घने थे, और वह उन्हें साल में एक बार कटवाता था जब वे उस पर भारी हो जाते थे। उस समय के माप के अनुसार, वह अपने कटे हुए बालों को तौलता था और सदैव वह ढाई किलो होता था।
\v 27 अबशालोम के तीन बेटे और तामार नाम की बेटी थी। वह बहुत ही सुंदर स्त्री थी।
\p
\s5
\v 28 अबशालोम यरूशलेम लौटने के बाद, दो साल जीवित रहा, और उस समय उसे राजा को देखने की अनुमति नहीं थी।
\v 29 तब उसने योआब के पास आने और उससे बातें करने का अनुरोध करने के लिए एक दूत भेजा, परन्तु योआब ने आने से मना कर दिया। तब अबशालोम ने उसे दूसरी बार एक दूत भेजा, परन्तु वह अभी भी नहीं आया।
\p
\s5
\v 30 तब अबशालोम ने अपने सेवकों से कहा, "तुम जानते हो कि योआब का खेत मेरे खेत से लगा हुआ है, और उसकी जौ उग रही है। जाओ और आग लगाकर जौ को जला दो।" तब अबशालोम के सेवक वहाँ गए और आग लगा दी, और जौ की सारी फसल जल गई।
\p
\v 31 योआब जानता था कि यह किसने किया था, इसलिए वह अबशालोम के घर गया और उससे कहा, "तेरे सेवकों ने मेरे खेत में जौ की फसल क्यों जलाई?"
\s5
\v 32 अबशालोम ने उत्तर दिया, "क्योंकि तू मेरे पास नहीं आया जब मैंने तुझसे पास आने का अनुरोध करते हुए दूत भेजे थे। मैं तुझसे अनुरोध करना चाहता था कि तू यह कहने के लिए राजा के पास जा, 'अबशालोम जानना चाहता है कि गशूर छोड़ने और यहाँ आने से उसका क्या भला हुआ। वह सोचता है कि उसके लिए वहाँ रहना उचित होता। वह चाहता है कि तू उसे तुझसे बातें करने दे। और अगर तुझे लगता है कि उसने कुछ गलत किया है, तो तू उसे मृत्यु का आदेश दे सकता है।'"
\v 33 तब योआब राजा के पास गया और उसे बताया जो अबशालोम ने कहा था। तब राजा ने अबशालोम को बुलाया, और वह राजा के पास आया और उसके सामने भूमि पर मुँह के बल घुटने टेक दिए। तब राजा ने अबशालोम को अपनी प्रसन्नता दिखाते हुए चूमा।
\s5
\c 15
\p S5
\p
\v 1 कुछ समय बाद, अबशालोम का एक रथ और उसे खींचने के लिए घोड़े मिले। उसने रथ में यरूशलेम के चारों ओर सवारी करते हुए सम्मानित होने के लिए, आगे आगे चलनेवाले पचास पुरुषों को नियुक्त किया।
\v 2 इसके अलावा, वह निरन्तर सुबह शीघ्र उठता और शहर के द्वार पर खड़ा हो जाता था। जब कोई व्यक्ति किसी के साथ विवाद के बाद राजा से न्याय प्राप्त करने के लिए आता अबशालोम उसे बुलाकर पूछता, "तू किस शहर का है?" व्यक्ति उसे बताता कि वह किस शहर और जनजाति का है।
\s5
\v 3 तब अबशालोम उससे कहता "सुन, मुझे निश्चय है कि तू जो कह रहा है वह सही है। परन्तु यहाँ ऐसा कोई नहीं है जिसे राजा ने तेरे जैसे लोगों को सुनने के लिए नियुक्त किया हो।"
\v 4 तब अबशालोम उससे यह भी कहता "मेरी इच्छा है कि मैं इस देश में न्यायाधीश बनूँ। अगर मैं न्यायाधीश होता, तो जिसके पास कोई विवाद होता मेरे पास आ सकता था और मै उसका न्यायपूर्वक निर्णय करता।"
\p
\s5
\v 5 और जब भी कोई अबशालोम के पास आदर करने के लिए सामने आता अबशालोम आगे बढ़कर उसे गले लगाकर चूमता।
\v 6 अबशालोम ने इस्राएल में हर किसी के साथ ऐसा किया जो निर्णय के लिए राजा के पास आया इस तरह, अबशालोम ने सभी इस्राएली लोगों को पिता दाऊद से प्रसन्न होने की तुलना में खुद से अधिक प्रसन्न होने के लिए मोह लिया।
\p
\s5
\v 7 चार साल बाद, अबशालोम राजा के पास गया और कहा, "कृपया मुझे हेब्रोन शहर में जाने की अनुमति दे ताकि मैं ऐसा कर सकूँ जो मैंने यहोवा से प्रतिज्ञा की थी।
\v 8 जब मैं अराम के गशूर में रह रहा था, तब मैंने यहोवा से प्रतिज्ञा की थी कि यदि वे मुझे यरूशलेम वापस लाएँ, तो मैं हेब्रोन में उनकी आराधना करूँगा।"
\p
\s5
\v 9 राजा ने उत्तर दिया, "मैं तुझे सुरक्षित जाने की अनुमति दूँगा।" तब अबशालोम हेब्रोन गया।
\p
\v 10 परन्तु जब वह वहाँ था, तब उसने गुप्त रूप से इस्राएल के सभी गोत्रों को दूत भेजे, ताकि वे कहें "जब तू तुरही की ध्वनि सुने, तो चीख कर कहो, अबशालोम हेब्रोन में राजा बन गया है!"
\s5
\v 11 अबशालोम अपने साथ यरूशलेम से दो सौ पुरुष ले कर हेब्रोन गया था, परन्तु उन्हें नहीं पता था कि अबशालोम क्या करने की योजना बना रहा हैं।
\v 12 जब अबशालोम हेब्रोन में बलिदान चढ़ा रहा था, तब उसने गीलो शहर से अहितोपेल को एक संदेश भेजा, और उसे आने का अनुरोध किया। अहितोपेल राजा के सलाहकारों में से एक था। अबशालोम के साथ जुड़नेवाले लोगों की संख्या और दाऊद के विरूद्ध विद्रोह करने वालों की संख्या बढ़ती गई।
\p
\s5
\v 13 जल्द ही एक दूत दाऊद के पास आया और उससे कहा, "सभी इस्राएली लोग अबशालोम के साथ मिलकर तेरे विरूद्ध विद्रोह करने जा रहे हैं!"
\p
\v 14 तब दाऊद ने अपने सभी अधिकारियों से कहा, "अगर हम अबशालोम से बचना चाहते हैं, तो हमें तुरंत निकल जाना चाहिए! उसके और उसके पुरुषों के आने से पहले हमें तुरंत निकल जाना चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो वे हमें और शहर में हर किसी को मार देंगे!"
\p
\v 15 राजा के अधिकारियों ने कहा, "बहुत अच्छा, महामहिम, तू जो भी चाहे हम करने के लिए तैयार हैं।"
\p
\s5
\v 16 तब राजा ने महल की देखभाल करने के लिए वहाँ अपनी दस दास पत्नियों को छोड़ दिया, परन्तु उसके महल के अन्य सभी लोग उसके साथ गए।
\v 17 जब वे सभी शहर छोड़ रहे थे, तो वे अंतिम घर पर रुक गए।
\v 18 राजा और उसके अधिकारी वहाँ खड़े थे, जबकि उसके अंगरक्षक उनके पास से होकर सामने गए। गत शहर से छः सौ सैनिक भी उनके पास से होकर सामने चले गए।
\p
\s5
\v 19 तब दाऊद ने गत के सैनिकों के अगुवे इत्तै से कहा, "तुम हमारे साथ क्यों जा रहे हो? वापस जाओ और अबशालोम नए राजा के साथ रहो। तुम इस्राएली नहीं हो; तुम अपने देश से दूर रह रहे हो।
\v 20 तुम यहाँ इस्राएल में कुछ ही समय के लिए रहे हो। और हम यह भी नहीं जानते कि हम कहाँ जा रहे हैं। इसलिए तुम्हे हमारे साथ भटकने के लिए विवश करना मेरे लिए उचित नहीं है। और अपने सैन्य दल को अपने साथ ले जाओ। मै आशा करता हूँ कि यहोवा निष्ठापूर्वक प्रेम करेंगे और तुम्हारे प्रति विश्वासयोग्य रहेंगे।"
\p
\s5
\v 21 परन्तु इत्तै ने उत्तर दिया, "महामहिम, निश्चित रूप से तू जीवित है, जहाँ भी तू जाता है, मैं जाऊँगा। मैं तेरे साथ रहूँगा वे मुझे मार दें या मुझे जीने दें।"
\p
\v 22 दाऊद ने इत्तै को उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, हमारे साथ चलो!" इत्तै और उसके सभी सैनिक और उनके परिवार दाऊद के साथ गए।
\p
\v 23 सड़क के किनारे सभी लोग रोते थे जब उन्होंने उन्हें चलते हुए देखा। राजा और अन्य सभी ने किद्रोन घाटी पार कर जंगल की ओर पहाड़ी पर चढ़ाई की।
\p
\s5
\v 24 एब्यातार और सादोक, याजक भी उनके साथ चल रहे थे। लेवी के वंशज जिन्होंने याजकों की सहायता की, वे भी अपने साथ पवित्र संदूक उठाए हुए गए, जिसमें दस आज्ञाएँ थीं। परन्तु उन्होंने इसे भूमि पर तब तक रखा जब तक कि अन्य सभी शहर से निकल न गए।
\p
\v 25 तब राजा ने सादोक से कहा, "तुम दोनों को पवित्र संदूक शहर में वापस ले जाना चाहिए। अगर यहोवा मुझसे प्रसन्न होते हैं, तो वे किसी दिन मुझे इसे देखने के लिए, उस जगह जहाँ इसे रखा जाता है वापस ले आएँगे।
\v 26 परन्तु यदि वे कहते हैं कि वे मुझसे प्रसन्न नहीं हैं, तो मेरे साथ जो भला करने की बात सोचते हैं मै उसके लिए तैयार हूँ।"
\p
\s5
\v 27 उसने सादोक से भी कहा, "मेरी सलाह सुन, अपने पुत्र अहीमास और एब्यातार के पुत्र योनातान को अपने साथ लेकर शांतिपूर्वक शहर लौट जा।
\v 28 मैं जंगल में उस स्थान पर प्रतीक्षा करूँगा जहाँ पर से लोग नदी पार करते हैं, जब तक कि तू मुझे संदेश न भेजे।"
\v 29 तब सादोक और एब्यातार पवित्र संदूक को यरूशलेम वापस ले गए, और वे वहीं रहे।
\p
\s5
\v 30 दाऊद और उसके साथ अन्य लोग जैतून पहाड़ पर चढ़ गए। चलते हुए दाऊद रो रहा था। वह नंगे पैर चल रहा था और उसके सिर को ढंकने के लिए कुछ ऐसा था जो दिखा रहा था कि वह दुखी था। जो लोग उसके साथ जा रहे थे उन्होंने भी अपने सिर ढांके हुए थे और चलते समय रो रहे थे।
\v 31 किसी ने दाऊद से कहा कि अहीतोपेल उन लोगों से जुड़ गया था जो दाऊद के विरूद्ध विद्रोह कर रहे थे। इसलिए दाऊद ने प्रार्थना की, "हे यहोवा, जो कुछ अहीतोपल अबशालोम को करने की सलाह देता है उसे हे यहोवा मुर्खता समझें!"
\p
\s5
\v 32 जब वे पहाड़ी के शीर्ष पर पहुँचे, जहाँ एक जगह थी जहाँ लोग पहले से ही परमेश्वर की आराधना करने के आदी थे, अचानक एरेकी लोगों के समूह के साथ हूशै, दाऊद से मिला। उसने अपने कपड़े फाड़े और अपने सिर पर धूल डाली ताकि वह दिखा सके कि वह बहुत दुखी था।
\v 33 दाऊद ने उससे कहा, "यदि तू मेरे साथ जाएगा, तो तू मेरी सहायता नहीं कर सकेगा।
\v 34 परन्तु यदि तू नगर में लौटेगा, तो तू अबशालोम से यह कहकर मेरी सहायता कर सकता है, 'महामहिम, मैं तेरे पिता की सेवा के समान विश्वासयोग्यता से तेरी सेवा करूँगा।' यदि तू ऐसा करता है और अबशालोम के पास रहता तो तू अहीतोपल द्वारा अबशालोम को दी गई सलाह का विरोध करने में सक्षम होता।
\s5
\v 35 सादोक और एब्यातार याजक पहले से ही वहाँ है। जो कुछ तू राजमहल में लोगों को कहते हुए सुनता है, उसे सादोक और एब्यातार को बता।
\v 36 ध्यान रहे कि सादोक का पुत्र अहीमास और एब्यातार का पुत्र योनातान भी वहाँ है। तुझको जो कुछ पता चले उन्हें बता सकता है, और उन्हें मुझे सूचना देने के लिए भेज सकता है।"
\p
\v 37 तब दाऊद का मित्र हूशै उसी समय लौट आया, जब अबशालोम यरूशलेम में प्रवेश कर रहा था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 जब दाऊद और अन्य पहाड़ी की चोटी से थोड़ा आगे बढ़े ही थे, तो मपीबोशेत का दास सीबा उससे मिला। उसके साथ दो गधे थे जिन पर दो सौ रोटियाँ, किशमिश के एक सौ गुच्छे, ताजे अंजीर के एक सौ गुच्छे, और शराब से भरा चमड़े का थैला लदा था।
\p
\v 2 राजा ने सीबा से कहा, " ये क्या है?" सीबा ने उत्तर दिया, "गधे तेरे परिवार की सवारी करने के लिए हैं, रोटी और फल तेरे सैनिकों के खाने के लिए हैं, और शराब उनके पीने के लिए है जब वे जंगल में थक जाएँ।"
\p
\s5
\v 3 राजा ने कहा, "तेरे पहले के स्वामी शाऊल का पोता मपीबोशेत कहाँ है?" सीबा ने उत्तर दिया, "वह यरूशलेम में रहता है, क्योंकि वह सोचता है कि अब लोग उसे उस राज्य पर शासन करने की अनुमति देंगे जिस पर उसके दादा शाऊल ने शासन किया था।"
\p
\v 4 राजा ने सीबा से कहा, "बहुत अच्छा, मपीबोशेत से संबंधित सब कुछ अब तेरा है।" सीबा ने उत्तर दिया, "हे महामहिम, मैं नम्रता से तेरी सेवा करूँगा, और मैं चाहता हूँ कि तू सदैव मुझसे प्रसन्न रहें।"
\p
\s5
\v 5 जब राजा दाऊद और उसके साथी बहरीम शहर पहुँचे, तो शिमी नाम का एक व्यक्ति उनसे मिला। शिमी, जिसका पिता गेरा था, उसी वंश का सदस्य था जिसका शाऊल का परिवार सदस्य था। शिमी दाऊद को शाप दे रहा था जैसे जैसे वह बढ़ रहा था।
\v 6 फिर उसने दाऊद और उसके अधिकारियों पर पत्थर फेंके, जबकि अधिकारियों और दाऊद को अंगरक्षकों ने घेरा हुआ था।
\s5
\v 7 शिमी ने दाऊद को शाप दिया और उससे कहा, "यहाँ से निकल जा, हे हत्यारे, हे नीच!
\v 8 शाऊल के परिवार में बहुत से लोगों की हत्या के लिए यहोवा तुम सबसे बदला ले रहे हैं। और अब वह शाऊल का राज्य तेरे पुत्र अबशालोम को दे रहे हैं। हे हत्यारे, उन लोगों का बदला लिया जा रहा है जिन्हें तूने मारा है!"
\p
\s5
\v 9 तब अबीशै ने राजा से कहा, "हे महामहिम, यह मनुष्य एक मृत कुत्ते के रूप में बेकार है! उसे तुझे शाप देने की अनुमति क्यों दी जाए? मुझे वहाँ जाने और उसके सिर को काटने की अनुमति दे!"
\p
\v 10 परन्तु राजा ने उत्तर दिया, "हे सरूयाह के दोनों पुत्रों, मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं करना चाहता। अगर वह मुझे शाप दे रहा है और यहोवा ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था, तो किसी को भी उससे पूछना नहीं चाहिए, 'तू राजा को क्यों शाप दे रहा है?"
\p
\s5
\v 11 तब दाऊद ने अबीशै और उसके सभी अधिकारियों से कहा, "तुम जानते हो कि मेरा अपना बेटा मुझे मारने का प्रयास कर रहा है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि बिन्यामीन के गोत्र का यह व्यक्ति भी मुझे मारने का प्रयास कर रहा है। बस उसे अनदेखा करो, और उसे मुझे शाप देने दो। यहोवा ने उसे ऐसा करने के लिए कहा है।
\v 12 अवश्य ही यहोवा देखेंगे कि मुझे इतनी परेशानी है, किसी दिन परमेश्वर इस व्यक्ति द्वारा दिए गए शाप के कारण बदले में मुझे आशीष देंगे।"
\s5
\v 13 तब दाऊद और उसके साथ रहने वाले लोग सड़क पर आगे बढ़ते गए, और शिमी उसके पास पहाड़ी के किनारे चलता रहा। जब वह साथ चला, उसने दाऊद को शाप दिया और उस पर पत्थर और धूल फेंकी।
\v 14 जब दाऊद और उन्होंने शाम को यात्रा करना बंद कर दिया, तो वे बहुत थके हुए थे। अत: उन्होंने विश्राम किया।
\p
\s5
\v 15 जब यह हो रहा था, तब अबशालोम और उसके साथ रहने वाले सभी इस्राएली यरूशलेम पहुँचे थे। अहीतोपेल भी वहाँ पहुँचा था।
\v 16 जब दाऊद का मित्र हूशै अबशालोम के पास आया, तो उसने अबशालोम से कहा, "मैं चाहता हूँ कि राजा लम्बे समय तक जीवित रहे! तू चिरंजीव रहे!"
\p
\s5
\v 17 अबशालोम ने हूशै से कहा, "तू लम्बे समय से अपने मित्र दाऊद के प्रति निष्ठावान रहा है। तो तू मेरे पास आने की अपेक्षा उसके साथ क्यों नहीं गया?"
\p
\v 18 हूशै ने उत्तर दिया, "मेरे लिए यही उचित है कि जिसे यहोवा और इन लोगों और इस्राएल के अन्य सभी लोगों ने अपना राजा चुना है उसकी सेवा करूँ। इसलिए मैं तेरे साथ रहूँगा।
\s5
\v 19 इसके अतिरिक्त, मुझे किसकी सेवा करनी चाहिए? मुझे अपने स्वामी के बेटे की सेवा क्यों नहीं करनी चाहिए? जैसे मैंने तेरे पिता की सेवा की है, वैसे ही, मैं तेरी सेवा करूँगा।"
\p
\s5
\v 20 तब अबशालोम ने अहीतोपेल से कहा, "तू क्या सलाह देता है कि हमें क्या करना चाहिए?"
\p
\v 21 अहीतोपेल ने उत्तर दिया, "तेरे पिता अपनी कुछ दासी पत्नियों को महल में देखभाल करने के लिए छोड़ गया है। तुझे उनके साथ सोना चाहिए। जब सम्पूर्ण इस्राएल सुनेगा कि तूने ऐसा किया है, तो उन्हें पता चलेगा कि तूने अपने पिता को दोषी ठहराया है। तब तेरे साथ रहने वाले सभी प्रोत्साहित होंगे।"
\s5
\v 22 उन्होंने महल की छत पर अबशालोम के लिए एक तम्बू बनाया। और अबशालोम तम्बू में गया और अपने पिता की दास पत्नियों के साथ सोया, एक-एक करके, और प्रत्येक उन्हें तम्बू में जाता देख सकता था।
\p
\v 23 उन दिनों, लोगों ने स्वीकार किया अहीतोपेल ने जो सलाह दी ऐसा लगा कि वह परमेश्वर के वचन बोल रहा हो। तो जैसे ही दाऊद ने सदैव स्वीकार किया जो अहीतोपेल ने कहा था, अब अबशालोम भी करता था।
\s5
\c 17
\p S5
\p
\v 1 तब अहीतोपल ने अबशालोम से कहा, "मुझे बारह हजार लोगों को चुनने दे, और मैं उन्हें आज रात दाऊद के पीछे ले जाऊँगा।
\v 2 हम हमला करेंगे जब वह थका हुआ और निराश होगा, हम उसे और अत्यंत भयभीत कर देंगे। उसके साथ का प्रत्येक जन भाग जाएगा। हमें सिर्फ राजा को मारने की आवश्यकता है।
\v 3 तब हम उसके सभी सैनिकों को तेरे पास वापस लाएँगे, और वे खुशी से आएँगे। तुझे सिर्फ एक व्यक्ति- दाऊद को मारने की आवश्यकता है, और फिर सभी परेशानी समाप्त हो जाएगी।"
\v 4 अबशालोम और उसके साथ रहने वाले सभी इस्राएली अगुवों ने सोचा कि जो अहीतोपेल ने कहा है, वह करना अच्छा होगा।
\p
\s5
\v 5 परन्तु अबशालोम ने कहा, "हूशै को भी बुलाओ, और हम सुनेंगे जो वह सलाह देता है।"
\v 6 तब जब हूशै पहुँचा तो अबशालोम ने उसे बताया जो अहीतोपेल ने सुझाव दिया था। फिर उसने हूशै से पूछा, "तुझे क्या लगता है कि हमें क्या करना चाहिए? अगर तुझे नहीं लगता कि हमें अहीतोपेल की सलाह माननी चाहिए, तो हमें बता कि तुझे क्या लगता है कि हमें करना चाहिए।"
\p
\v 7 हूशै ने उत्तर दिया, "इस बार अहीतोपेल ने जो सुझाव दिया है वह अच्छी सलाह नहीं है।
\s5
\v 8 तू जानता है कि तेरा पिता और उसके साथ रहने वाले पुरुष वीर सैनिक हैं, और अब वे बहुत नाराज हैं, जैसे कि रीछनी जिसके शावकों को उससे चुरा लिया गया हो। इसके अलावा, तेरे पिता को युद्ध को कैसे संचालित करना है पता है क्योंकि उसने कई लड़ाइयाँ लड़ी हैं। वह रात के दौरान अपने सैनिकों के साथ नहीं रुकेगा।
\v 9 अभी वह संभवतः पहले से ही किसी एक गड्ढे में, या किसी अन्य जगह में छुपा होगा। यदि उसके सैनिक तेरे सैनिकों पर हमला करना शुरू करते हैं, और यदि वे उनमें से कुछ को मार देते हैं, जो कोई सुनेगा, वह यही कहेगा, 'अबशालोम के साथ कई सैनिक मारे गए हैं!'
\v 10 तब तेरे अन्य सैनिक, भले ही वे सिंहों समान निडर हों, वे बहुत डर जाएँगे। यह मत भूलना कि इस्राएल में प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि तेरा पिता महान सैनिक है, और उसके साथ रहने वाले सैनिक भी बहुत बहादुर हैं।
\p
\s5
\v 11 तो मैं जो सुझाव देता हूँ वह यह है कि तू दूर उत्तर में दान से दूर दक्षिण में बेर्शेबा तक सभी इस्राएली सैनिकों को बुला। वे समुद्र तट की रेत के जितने होंगे। जब तक वे आते हैं तब तक रुको, और फिर तू स्वयं हमारी युद्ध में अगुवाई करना।
\v 12 हम तेरे पिता को ढूँढ़ेंगे, जहाँ भी वह हो और हम सभी तरफ से उस पर हमला करेंगे, जैसे ओस समस्त भूमि पर छा जाती है। और न तो वह और न ही उसके साथ रहने वाले सैनिकों में से कोई भी जीवित रहेगा।
\s5
\v 13 यदि वह किसी शहर में भाग जाता है, तो हमारे सभी सैनिक रस्सी लाएँगे और उस शहर को घाटी में धकेल देंगे। फलस्वरूप, पहाड़ी के शीर्ष पर एक पत्थर नहीं छोड़ा जाएगा जहाँ वह शहर था!"
\p
\v 14 अबशालोम और उसके साथ रहने वाले सभी अन्य इस्राएली पुरुषों ने कहा, "हूशै जो सुझाव देता है वह अहीतोपेल के सुझाव से बेहतर है।" ऐसा होने का कारण यह था कि यहोवा ने यह निर्धारित किया था कि अगर वे अहीतोपेल द्वारा उन्हें दी गई अच्छी सलाह स्वीकार करते, तो वे दाऊद को पराजित करने में सक्षम होते। परन्तु हूशै के सुझाव के अनुसार, यहोवा अबशालोम पर आने वाली विपत्ति के कारण होंगे।
\p
\s5
\v 15 तब हूशै ने दो पुजारियों, सादोक और एब्यातार से कहा, जो उसने और अहीतोपेल ने अबशालोम और इस्राएल के अगुवों को सुझाव दिया था।
\v 16 तब उस ने उन से कहा, "दाऊद को शीघ्रता से संदेश भेजो। उसे उस स्थान पर न रहने के लिए कहें जहाँ से लोग नदी के पार जंगल के पास जाते हैं। इसकी अपेक्षा, उसे और उसके सैनिकों को तुरंत यरदन नदी पार करना होगा ताकि वे मारे न जाएँ।"
\p
\s5
\v 17 याजकों के दो बेटे योनातान और अहीमास यरूशलेम के बाहर एन रोगेल के सोते पर प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने शहर में प्रवेश करने का साहस नहीं किया, क्योंकि अगर किसी ने उन्हें देखा, तो वह अबशालोम को इसकी सूचना देगा। जब वे एन रोगेल में थे, तो दो याजकों के पास एक दासी बार बार जाती और उन्हें बताती थी कि क्या हो रहा है, और फिर वे जाते और राजा दाऊद को सूचना देते।
\v 18 परन्तु एक जवान व्यक्ति ने उन्हें देखा, और अबशालोम को इसकी सूचना देने चला गया। उन्हें पता चल गया जो उस जवान व्यक्ति ने किया था, इसलिए वे दोनों जल्दी चले गए और बहुरीम शहर में एक व्यक्ति के घर में रहने लगे। उस व्यक्ति के आंगन में एक कुआँ था, इसलिए दोनों पुरुष छिपने के लिए कुएं में उतर गए।
\s5
\v 19 उस व्यक्ति की पत्नी ने एक कपड़ा लिया और कुएं के मुँह को ढँक दिया, और उसके बाद उसके ऊपर गेंहू को बिखरा दिया ताकि किसी को भी संदेह न हो कि वहाँ कुआँ है।
\p
\v 20 अबशालोम के कुछ सैनिकों को पता चल गया कि दोनों पुरुष कहाँ गए थे। तो वे घर गए, और उस महिला से पूछा, "अहीमास और योनातान कहाँ हैं?"
\p उसने जवाब दिया, "वे यरदन नदी पार चले गए।"
\p तो सैनिकों ने नदी पार की और उनको ढूँढ़ा। परन्तु जब वे उन्हें नहीं ढूँढ़ पाए, तो वे यरूशलेम लौट आए।
\s5
\v 21 जब वे चले गए, तो दोनों लोग कुएं से बाहर निकले और चले गए और राजा दाऊद को वह बताया जो हुआ था और अहीतोपेल ने जो सुझाव दिया था। तब उन्होंने उससे कहा, "यरदन नदी को शीघ्रता से पार कर!"
\v 22 तब दाऊद और उसके सब सैनिकों ने शीघ्रता से नदी पार करना शुरू कर दिया, और सुबह तक वे सब दूसरी तरफ पार चले गए।
\p
\s5
\v 23 जब अहीतोपेल को अनुभव हुआ कि अबशालोम को जो कुछ भी उसने सुझाया वह नहीं करने वाला था, उसने अपने गधे पर एक गद्दी लगाई और अपने शहर लौट आया। उसने अपनी संपत्ति के बारे में अपने परिवार को निर्देश दिए, और फिर उसने स्वयं को फाँसी लगा ली क्योंकि वह जानता था कि अबशालोम पराजित होगा और उसे गद्दार माना जाएगा और मार डाला जाएगा। उसके शरीर को उस कब्र में मिट्टी दी जाएगी जहाँ उसके पूर्वजों को मिट्टी दी गई थी।
\p
\s5
\v 24 दाऊद और उसके सैनिक महनैम पहुँचे। उसी समय, अबशालोम और उसके सभी सैनिको ने भी यरदन नदी पार की।
\v 25 अबशालोम ने योआब की बजाय अपने चचेरे भाई अमासा को सेनापति नियुक्त किया था। अमासा इश्माएल के जेथेर का पुत्र था। अमासा की माँ अबीगैल नाहाश की बेटी और योआब की माँ सरूयाह की बहन थी।
\v 26 अबशालोम और उसके इस्राएली सैनिकों ने गिलाद के क्षेत्र में अपने तम्बू लगाए।
\p
\s5
\v 27 जब दाऊद और उसके सैनिक महनैम पहुँचे, अम्मोनी शहर रब्बा से नाहाश का पुत्र शोबी और लोदबर शहर से अम्मीएल का पुत्र माकीर और गिलाद में रोगलीम शहर के बर्जिल्लै उसके पास आए।
\v 28 वे सोने की चटाइयाँ, कटोरे, मिट्टी के बर्तन, जौ, गेहूँ का आटा, भुना हुआ अनाज, सेम, और दालें लाए।
\v 29 वे दाऊद और उसके सैनिकों के खाने के लिए शहद, दही, भेड़ और कुछ मलाई लाए। वे जानते थे कि दाऊद और उसके सैनिक जंगल में घूमने से भूखे और थके हुए और प्यासे होंगे।
\s5
\c 18
\p
\v 1 दाऊद ने युद्ध के लिए अपने सैनिकों की व्यवस्था की। उसने उन्हें समूहों में विभाजित कर दिया, और उसने प्रत्येक सौ सैनिकों के लिए एक शतपति नियुक्त किया और प्रत्येक हजार सैनिकों के लिए एक सहस्रपति नियुक्त किया।
\v 2 उसने उन्हें तीन समूहों में भेज दिया। योआब ने एक समूह को आज्ञा दी, योआब के भाई अबीशै ने दूसरे समूह को आदेश दिया, और गत के इत्तै ने तीसरे समूह को आज्ञा दी। दाऊद ने उन से कहा, "मैं तुम्हारे साथ युद्ध में जाऊँगा।"
\p
\s5
\v 3 परन्तु उसके सैनिकों ने कहा, "नहीं, हम तुझे हमारे साथ जाने की अनुमति नहीं देंगे। अगर वे हम सभी को भागने के लिए विवश करते हैं, तो वे हमारे बारे में चिंतित नहीं होंगे। या अगर वे हम में से आधे को मार देते हैं, तो भी वे इसके बारे में चिंता नहीं करेंगे। उनके लिए, तुझे पकड़ना दस हजारों को पकड़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो उचित होगा कि तू यहाँ शहर में रह और हमें सहायता भेज।"
\p
\v 4 राजा ने उनको उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं जो तुम्हें सबसे अच्छा लगता है वही करूँगा।" वह शहर के द्वार पर खड़ा हो गया और उसके सैनिकों को समूहों में जाता देखता रहा।
\p
\s5
\v 5 जब वे जा रहे थे, तब राजा ने योआब, अबीशै और इत्तै को आज्ञा दी, "मेरे कारण, मेरे पुत्र अबशालोम को नुकसान न पहुँचाना!" और सभी सैनिकों ने इस के विषय सुना, कि दाऊद ने यह आदेश तीनों सेनापतियों को दिया।
\p
\s5
\v 6 तब सेना अबशालोम के साथ रहने वाले इस्राएली सैनिकों के विरूद्ध लड़ने के लिए निकल गई। उन्होंने जंगल में लड़ाई लड़ी जहाँ एप्रैम के गोत्र के लोग रहते थे।
\v 7 दाऊद के सैनिकों ने अबशालोम के सैनिकों को पराजित किया। उन्होंने उनके बीस हजार को मार डाला।
\v 8 युद्ध उस सम्पूर्ण क्षेत्र में लड़ा गया था, और जंगल की भयानकता के कारण मरने वाले पुरुषों की संख्या युद्ध में मारे गए पुरुषों की संख्या से अधिक थी।
\p
\s5
\v 9 युद्ध के दौरान, अबशालोम अचानक दाऊद के कुछ सैनिकों के पास आया। अबशालोम अपने खच्चर पर सवारी कर रहा था, और जब खच्चर एक बड़े बांज वृक्ष की मोटी शाखाओं के नीचे चला गया, तब अबशालोम का सिर शाखाओं में अटक गया। खच्चर चलता रहा, परन्तु अबशालोम हवा में लटकता रहा।
\p
\v 10 दाऊद के सैनिकों में से एक ने देखा कि क्या हुआ, और वह गया और उसने योआब से कहा, "मैंने अबशालोम को बांज वृक्ष में लटका देखा!"
\p
\v 11 योआब ने उस मनुष्य से कहा, "क्या? तू कहता है कि तूने उसे वहाँ लटका देखा, तो तूने उसे तुरंत क्यों नहीं मारा? अगर तूने उसे मार दिया होता, तो मैं तुझे चाँदी के दस टुकड़े और सैनिक का एक कमरबंद देता!"
\p
\s5
\v 12 उस व्यक्ति ने योआब से कहा, "यदि तू मुझे हजारों चाँदी के टुकड़े देता, तो भी मैं राजा के पुत्र को नुकसान पहुँचाने के लिए कुछ नहीं करता। हम सभी ने राजा की उस आज्ञा को जो उसने तुझे और अबीशै और इत्तै को दी थी सुना: 'मेरे कारण, मेरे बेटे अबशालोम को नुकसान न पहुँचाना!
\v 13 यदि मैंने राजा की अवज्ञा की और अबशालोम को मार डाला, तो राजा इसके विषय जान लेगा, क्योंकि राजा सब कुछ सुनता है, यहाँ तक कि तू भी मेरा पक्ष नहीं लेता!"
\p
\s5
\v 14 योआब ने कहा, "मैं तुझसे बातें करने में समय बर्बाद नहीं करूँगा!" तब उसने तीन भाले उठाए, जहाँ अबशालोम था वहाँ गया, और उन्हें अबशालोम की छाती में घोंप दिए, वह अभी भी जीवित था, और बांज वृक्ष से लटक रहा था।
\v 15 तब योआब के हथियार ढोनेवाले दस जवानों ने अबशालोम को घेर लिया और उसे मार डाला।
\p
\s5
\v 16 योआब ने तुरही बजाई कि अब उन्हें और नहीं लड़ना चाहिए, और उसके सैनिक अबशालोम के लोगों का पीछा न करके लौट आए।
\v 17 उन्होंने अबशालोम के शरीर को लिया और उसे जंगल में एक विशाल गड्ढे में फेंक दिया, और उसे पत्थरों के विशाल ढेर से ढँक दिया। तब अबशालोम के साथ रहने वाले सभी शेष इस्राएली सैनिक अपने घरों में भाग गए।
\p
\s5
\v 18 अबशालोम के पास अपने परिवार के नाम को बचाने के लिए कोई बेटा नहीं था क्योंकि उसके बेटों की मृत्यु जवानी में ही हो गई थी। इसलिए जब अबशालोम जीवित था, तब उसने यरूशलेम के पास राजाओं की घाटी में एक स्मारक बनाया था ताकि लोग उसे याद रख सकें। उसने अपना नाम स्मारक पर लिखा, और लोग आज भी इसे अबशालोम का स्मारक कहते हैं।
\p
\s5
\v 19 अबशालोम की हत्या के बाद, सादोक के पुत्र अहीमास ने योआब से कहा, "मुझे राजा को दौड़कर यह बताने की अनुमति दे कि यहोवा ने उसे उसके दुश्मनों की शक्ति से बचा लिया है!"
\p
\v 20 पर योआब ने उस से कहा, "नहीं, मैं तुझे आज राजा तक समाचार ले जाने की अनुमति नहीं दूँगा। किसी और दिन मैं तुझे कुछ संदेश ले जाने की अनुमति दूँगा, परन्तु आज नहीं। अगर तू आज समाचार ले जाता है तो यह राजा के लिए अच्छा समाचार नहीं होगा, क्योंकि उसका बेटा मर चुका है।"
\p
\s5
\v 21 तब योआब ने दाऊद के दास से कहा जो इथियोपिया से था, "तू जा और राजा को जो कुछ देखा है उसे बता।" इथियोपिया के व्यक्ति ने योआब का झुककर आदर दिया, और दौड़ना शुरू कर दिया।
\p
\v 22 तब अहीमास ने फिर योआब से कहा, "यद्यपि इथियोपिया का वह व्यक्ति दौड़ रहा है, फिर भी मुझे उसके पीछे दौड़ने की अनुमति दे।" योआब ने उत्तर दिया, "मेरे लड़के, तू ऐसा क्यों करना चाहता है? तुझे तेरे समाचार के लिए कोई इनाम नहीं मिलेगा!"
\p
\v 23 परन्तु अहीमास ने उत्तर दिया, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं जाना चाहता हूँ।" तो योआब ने कहा, "बहुत अच्छा, फिर जा।" अहीमास यरदन की घाटी के मध्य से दूसरी सड़क से भागा और इथियोपिया के व्यक्ति के आने से पहले जहाँ दाऊद था वहाँ पहुँचा।
\p
\s5
\v 24 दाऊद बाहरी द्वार और शहर के भीतरी द्वार के बीच बैठा था। पहरेदार शहर की दीवार के ऊपर चढ़ गया और द्वार के ऊपर छत पर खड़ा हो गया। उसने अकेले व्यक्ति को दौड़ता देखा।
\v 25 पहरेदार ने पुकारा और राजा को इसकी सूचना दी। राजा ने कहा, "यदि वह अकेला है, तो यह संकेत है कि वह समाचार ला रहा है।" वह व्यक्ति जो दौड़ रहा था नजदीक आने लगा।
\p
\s5
\v 26 तब पहरेदार ने एक और व्यक्ति को देखा। तो उसने द्वारपाल को पुकारा, "देखो! एक और व्यक्ति दौड़ रहा है!" और राजा ने कहा, "वह भी कोई अच्छा समाचार ला रहा है।"
\p
\v 27 पहरेदार ने कहा, "मुझे लगता है कि पहला व्यक्ति अहीमास होना चाहिए, क्योंकि वह अहीमास के समान दौड़ रहा है।" राजा ने कहा, "अहीमास अच्छा मनुष्य है, और मै निश्चित हूँ कि वह अच्छे समाचार के साथ आ रहा है।"
\p
\s5
\v 28 जब अहीमास राजा के पास पहुँचा, तो उसने पुकारा, "मुझे आशा है कि तेरे साथ भली बातें होंगी!" तब उसने राजा के सामने भूमि पर गिरकर दंडवत किया और कहा, "हे महामहिम, हमारे परमेश्वर यहोवा की स्तुति कर, जिसने तुझे उन लोगों से बचाया है जो तेरे विरूद्ध विद्रोह कर रहे थे!"
\p
\v 29 राजा ने कहा, "क्या जवान अबशालोम सुरक्षित है?" अहीमास उस सवाल का उत्तर नहीं देना चाहता था, इसलिए उसने उत्तर दिया, "जब योआब ने मुझे भेजा, तो मैंने देखा कि वहाँ बहुत उलझन थी, परन्तु मुझे नहीं पता कि यह किस विषय थी।"
\p
\v 30 तब राजा ने कहा, "एक तरफ खड़ा हो जा।" अहीमास अलग खड़ा हो गया।
\p
\s5
\v 31 अचानक इथियोपिया का व्यक्ति पहुँचा, और कहा, "हे महामहिम, मेरे पास तेरे लिए अच्छा समाचार है! यहोवा ने तेरे सैनिकों को उन सभी को हराने में सक्षम किया है जिन्होंने तेरे विरूद्ध विद्रोह किया!"
\p
\v 32 राजा ने उससे कहा, "क्या जवान अबशालोम सुरक्षित है?" इथियोपिया के व्यक्ति ने उत्तर दिया, "महोदय, मैं चाहता हूँ कि जो उसके साथ हुआ, वही तेरे सभी दुश्मनों और उन सभी के साथ हो जो तेरे विरूद्ध विद्रोह करते हैं!"
\p
\v 33 राजा को अनुभव हुआ कि उसका मतलब था कि अबशालोम मर चुका था, इसलिए वह बहुत परेशान हो गया, और वह प्रवेश द्वार के ऊपर के कमरे में गया और रोया। जब वह ऊपर जा रहा था, वह चिल्लाता रहा, "हे मेरे पुत्र अबशालोम! हे मेरे पुत्र! हे मेरे पुत्र अबशालोम, काश, मैं तेरे बदले मर गया होता!"
\s5
\c 19
\p
\v 1 किसी ने योआब से कहा कि राजा रो रहा है और शोक करता है क्योंकि अबशालोम मर चुका था।
\v 2 दाऊद के सभी सैनिकों ने सुना कि राजा शोक कर रहा था कि अबशालोम मर चुका था। इसलिए वे दुखी हो गए कि उन्होंने अबशालोम के पुरुषों को पराजित किया था।
\s5
\v 3 सैनिक चुपचाप और लज्जित शहर में लौट आए, जैसे कि वे जीतने के बजाय लड़ाई हार गए थे।
\v 4 राजा ने अपना चेहरा अपने हाथों से ढंका और जोर से रोते हुए कहा, "हे मेरे पुत्र अबशालोम! हे अबशालोम, मेरे बेटे! मेरे बेटे!"
\p
\s5
\v 5 योआब उस कमरे में प्रवेश कर गया जहाँ राजा था, और राजा से कहा, "आज तू अपने सैनिकों के लज्जित होने का कारण बना है! तूने उन लोगों को अपमानित किया है जिन्होंने तेरे जीवन और तेरे बेटों और बेटियों और तेरी सामान्य पत्नियों और तेरी दासी पत्नियों के जीवन को बचाया है!
\v 6 ऐसा लगता है कि तू उनसे प्रेम करता है जो तुझसे घृणा करते हैं और तू उनसे घृणा करता है जो तुझसे प्रेम करते हैं। प्रत्येक अब अनुभव करता है कि तेरे सेनापति और तेरे अधिकारी तेरे लिए बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं हैं। अगर अबशालोम अभी जीवित होता और हम सब आज मर चुके होते, तो तू वास्तव में प्रसन्न होता।
\s5
\v 7 तो अब जा और अपने सैनिकों को धन्यवाद दे जो उन्होंने किया है। क्योंकि मैं सत्यनिष्ठा से घोषणा करता हूँ कि यदि तू ऐसा नहीं करता तो उनमें से कोई भी कल सुबह तक तेरे साथ नहीं रहेगा। यह तेरे लिए उन सभी आपदाओं से भी बुरा होगा जिन्हें तूने बचपन से भोगा है।"
\p
\v 8 तब राजा उठकर शहर के द्वार पर बैठा। और सभी लोगों को बताया गया, "राजा द्वार पर बैठा है!" तो वे सब आए और उसके चारों ओर इकट्ठे हुए।
\p इस बीच, अबशालोम के सभी लोग घर गए थे।
\p
\s5
\v 9 तब इस्राएल के गोत्रों में सारे लोग आपस में विवाद करने लगे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "राजा ने हमें पलिश्ती के लोगों और हमारे अन्य शत्रुओं से बचाया। परन्तु अब उन्होंने अबशालोम के सामने से भाग कर इस्राएल छोड़ दिया है!
\v 10 हमने अबशालोम को हमारा राजा नियुक्त किया, परन्तु वह दाऊद के सैनिकों के विरूद्ध लड़ते हुए युद्ध में मर गया। तो कोई राजा दाऊद को वापस लाने की कोशिश क्यों नहीं करता?"
\p
\s5
\v 11 राजा दाऊद ने पता लगाया कि लोग क्या कह रहे थे। इसलिए उसने यहूदा के अगुवों से कहने के लिए दो याजकों, सादोक और एब्यातार को भेजा, "राजा कहता है कि उसने सुना है कि सभी इस्राएली लोग उसे राजा बनाना चाहते हैं। और वह कहता है, 'तुम मुझे मेरे महल में वापस लाने के लिए पीछे क्यों पड़े हो?
\v 12 तुम मेरे सम्बन्धी हो। हमारे वही पूर्वज हैं। तो मुझे वापस लाने के लिए पीछे क्यों पड़े हो?'"
\s5
\v 13 और अमासा से कहो, "तुम मेरे सम्बन्धियों में से एक हो। मुझे आशा है कि यदि मैं तुम्हें योआब के बजाय मेरी सेना का सेनापति अब नियुक्त नहीं करता हूँ, तो परमेश्वर मुझे मार डालें।"
\p
\v 14 उन्हें यह संदेश भेजकर, दाऊद ने यहूदा के सभी लोगों को आश्वस्त किया कि वे उसके प्रति निष्ठावान रहें। अतः उन्होंने राजा को एक संदेश भेजा, "हम चाहते हैं कि तू और तेरे सभी अधिकारी यहाँ वापस आएँ।"
\v 15 तब राजा और उसके अधिकारी यरूशलेम की ओर लौट आए। जब वे यरदन नदी पहुँचे, तो यहूदा के लोग राजा से मिलने के लिए गिलगाल आए और उसे नदी पार ले आए।
\p
\s5
\v 16 बिन्यामीन के गोत्र का व्यक्ति शिमी, राजा दाऊद से मिलने के लिए यहूदा के लोगों के साथ नदी तट पर शीघ्रता से नीचे आ गया।
\v 17 बिन्यामीन के गोत्र में से एक हजार लोग उसके साथ आए थे। शाऊल का दास सीबा भी यरदन नदी तट पर शीघ्रता से आ गया, और अपने साथ बीस सेवकों को लाया। वे सब राजा के पास आए।
\v 18 वे सभी राजा और उसके परिवार को नदी के पार ले जाने के लिए तैयार थे, उस स्थान पर जहाँ से वे चलकर पार कर सकते थे। वे वही करना चाहते थे जो राजा चाहता था। जैसे ही राजा नदी पार करने वाला था, शिमी उसके पास आया और राजा के सामने दंडवत किया।
\p
\s5
\v 19 उसने राजा से कहा, "हे महामहिम, कृपया मुझे माफ़ कर दे। कृपया उस दिन की भयानक बातों के विषय न सोचें जिसे मैंने यरूशलेम छोड़ते समय कहा था। अब इसके विषय मत सोचें।
\v 20 मुझे पता है कि मैंने पाप किया है। देखो, मैं आज आया हूँ, उत्तरी जनजातियों में से प्रथम में आज तुझे अभिनन्दन करने के लिए यहाँ आया हूँ, हे महामहिम।"
\p
\s5
\v 21 परन्तु सरूयाह के पुत्र अबीशै ने दाऊद से कहा, "इसने जिसे यहोवा ने राजा बनाया है, उसे शाप दिया! तो क्या उसे ऐसा करने के लिए मृत्युदंड नहीं देना चाहिए?"
\p
\v 22 परन्तु दाऊद ने कहा, "हे सरूयाह के पुत्र, मैं तेरे साथ क्या करूँ? ऐसा लगता है कि आज तू मेरा शत्रु बन गया है। मुझे पता है कि मैं अभी भी इस्राएल का राजा हूँ, इसलिए मैं कहता हूँ कि निश्चित रूप से किसी को भी आज इस्राएल में मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा।"
\v 23 तब राजा ने शिमी से कहा, "मैं सत्यनिष्ठा से वादा करता हूँ कि मैं तुझे मृत्युदंड नहीं दूँगा।"
\p
\s5
\v 24 तब शाऊल का पोता मपीबोशेत, राजा का अभिनन्दन करने नदी में उतरा। उसने जबसे राजा यरूशलेम छोड़कर गया था अपने पैरों को धोया नहीं था ना अपनी दाढ़ी को छांटा था ना अपने कपड़े धोए थे उस दिन तक जब राजा यरूशलेम लौट आया था।
\v 25 जब वह राजा का अभिनन्दन करने यरूशलेम से आया, तो राजा ने उससे कहा, "मपीबोशेत, तू मेरे साथ क्यों नहीं गया?"
\p
\s5
\v 26 उसने उत्तर दिया, "हे महामहिम, तू जानता है कि मैं अपंग हूँ। जब मैंने सुना कि तू यरूशलेम छोड़ रहा है मैंने अपने दास सीबा से कहा, 'मेरे गधे पर एक काठी रखो ताकि मैं उस पर सवारी कर के राजा के साथ जा सकूँ।' परन्तु उसने मुझे धोखा दिया और मेरे बिना चला गया।
\v 27 उसने मेरे विषय तुझसे झूठ बोला। परन्तु महामहिम, तू परमेश्वर के दूत के समान बुद्धिमान है। तो जो भी तुझे सही लगता है कर।
\v 28 मेरे दादा के परिवार के सभी आशा करते थे कि हमे मृत्युदंड मिलेगा। परन्तु तूने मुझे मृत्युदंड नहीं दिया। तूने मुझे अपनी मेज पर खाना खाने की अनुमति दी! तो मुझे निश्चित रूप से तुझसे कुछ और अनुरोध करने का अधिकार नहीं है।"
\p
\s5
\v 29 राजा ने उत्तर दिया, "तुझे निश्चित रूप से और कहने की आवयशकता नहीं है। मैंने निर्णय किया है कि तू और सीबा अपने दादा शाऊल से संबंधित भूमि को समान रूप से बाँट ले।"
\p
\v 30 मपीबोशेत ने राजा से कहा, "महामहिम, मैं संतुष्ट हूँ कि तू सुरक्षित रूप से लौट आया है। इसलिए उसे सारी भूमि लेने की अनुमति दे।"
\p
\s5
\v 31 गिलाद के क्षेत्र का व्यक्ति बर्जिल्लै, अपने शहर रोगलीम से यरदन नदी पर राजा को नदी पार सुरक्षित पहुँचाने आया।
\v 32 बरज़िल्लै अस्सी वर्ष का बहुत बूढ़ा व्यक्ति था। वह बहुत धनवान व्यक्ति था, और उसने राजा और उसके सैनिकों के लिए भोजन प्रदान किया था, जब वे महनैम में थे।
\v 33 राजा ने बर्जिल्लै से कहा, "मेरे साथ यरूशलेम आ, और मैं तेरा ध्यान रखूँगा।"
\p
\s5
\v 34 परन्तु बर्जिल्लै ने उत्तर दिया, "मेरे पास निश्चित रूप से जीने के लिए और अधिक वर्ष नहीं हैं। तो मैं तेरे साथ यरूशलेम क्यों जाऊँ?
\v 35 मैं अस्सी वर्ष का हूँ। मुझे नहीं पता कि क्या आनंददायक है और क्या आनंददायक नहीं है। मैं जो खाता हूँ और जो पीता हूँ उसका आनंद नहीं ले सकता। जब वे गाते हैं तो मैं पुरुषों और महिलाओं की आवाज नहीं सुन सकता। तो मैं तेरे लिए एक और बोझ क्यों बनूँ?
\v 36 मैं तेरे साथ यरदन नदी पार करूँगा और थोड़ा आगे जाऊँगा, और यही प्रतिफल मुझे चाहिए तेरी सहायता करने के लिए।
\s5
\v 37 फिर कृपया मुझे अपने घर लौटने की अनुमति दे, क्योंकि वहीं मैं मरना चाहता हूँ, मेरे माता-पिता की कब्र के पास। परन्तु मेरा बेटा किम्हाम यहाँ है। हे महामहिम, उसे तेरे साथ जाने और तेरी सेवा करने की अनुमति दे, और उसके लिए जो कुछ भी तुझको अच्छा लगता है कर!"
\p
\s5
\v 38 राजा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, वह मेरे साथ नदी पार करेगा, और जैसा तुझे अच्छा लगे मै उसके लिए करूँगा। और जो कुछ भी तू मुझसे चाहे वह भी मैं तेरे लिए करूँगा।"
\p
\v 39 तब राजा दाऊद और अन्य सभी ने यरदन नदी पार किया। उसने बरज़िल्लै को चूमा और परमेश्वर से उसे आशीष देने के लिए कहा। तब बरज़िल्लै अपने घर लौट आया।
\p
\s5
\v 40 नदी पार करने के बाद, किम्हाम राजा के साथ गया, और यहूदा की सारी सेना और अन्य इस्राएली गोत्रों की आधी सेना की सुरक्षा में राजा गिलगाल पहुँचा।
\p
\v 41 तब अन्य इस्राएली गोत्रों के सभी इस्राएली सैनिक राजा के पास आए और कहा, "ऐसा क्यों है कि हमारे सम्बन्धी, यहूदा के पुरूषों ने तुझको हमसे दूर कर दिया और सिर्फ वे ही तुझको और तेरे परिवार को तेरे सभी पुरुषों सहित नदी सुरक्षित पार कराना चाहते हैं? तूने हमसे ऐसा करने का अनुरोध क्यों नहीं किया?"
\p
\s5
\v 42 यहूदा के सैनिकों ने उत्तर दिया, "हमने ऐसा किया क्योंकि राजा यहूदा का है। तुम इस बारे में क्यों क्रोधित हो? राजा ने कभी हमारे भोजन के लिए भुगतान नहीं किया है, और उसने हमें कभी भी कोई उपहार नहीं दिया है।"
\p
\v 43 अन्य इस्राएली गोत्रों के लोगों ने उत्तर दिया, "इस्राएल में दस गोत्र हैं, और यहूदा में सिर्फ एक ही है। इसलिए हमारे लिए यह कहना तुम्हारे कहने से दस गुना अधिक सही है कि दाऊद हमारा राजा है, तो तुम हमें क्यों तुच्छ मान रहे हो? हम निश्चित रूप से प्रथम थे जो दाऊद को फिर से हमारे राजा बनने के लिए यरूशलेम वापस लाने के विषय बातें करते थे।"
\p परन्तु यहूदा के लोगों ने इस्राएल के अन्य गोत्रों के पुरुषों की तुलना में अधिक कठोर बातें कीं।
\s5
\c 20
\p
\v 1 शेबा नामक गिलगाल में एक व्यक्ति भी था। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो हमेशा परेशानी का कारण बनता था। वह बिक्री के पुत्र बिन्यामीन के गोत्र में से था। उसने एक तुरही फूँकी और चिल्लाया, " हमारा यिशै के पुत्र दाऊद के साथ कुछ लेना देना नहीं है! तो, इस्राएल के पुरुषों, आओ अपने अपने घर चलें!"
\p
\v 2 तब इस्राएली गोत्रों के सभी लोग दाऊद को छोड़कर शेबा के साथ चले गए, परन्तु यहूदा के लोग दाऊद के साथ रहे। वे चाहते थे कि वह उनका राजा बन जाए, और उसके साथ यरदन नदी के पास यरूशलेम तक चले गए।
\p
\s5
\v 3 जब दाऊद यरूशलेम के महल में पहुँचा, तो उसने दस दासी पत्नियों को लेकर जिन्हें महल की देखभाल करने के लिए छोड़ा था उन्हें दूसरे घर पर रखा। उसने उस घर पर एक पहरेदार रखा, और उसने उनके लिए जो जरूरी था, वह प्रदान किया, परन्तु वह फिर कभी उनके साथ न सोया। इसलिए जब तक वे मर नहीं गई, तब तक वे अपने घर में बंद रहीं। ऐसा लगता था कि वे विधवा थी।
\p
\s5
\v 4 एक दिन राजा ने अमासा से कहा, "यहूदा के सैनिकों को यहाँ तीन दिन के भीतर आने के लिए कह, और तू भी यहीं रहना।"
\v 5 तब अमासा उनको बुलाने गया, परन्तु वह दाऊद के कहे समयानुसार वापस नहीं लौटा।
\p
\s5
\v 6 तब दाऊद ने अबीशै से कहा, "अब शेबा हमें अबशालोम से अधिक हानि पहुँचाएगा। इसलिए तू मेरे सैनिकों को ले जा और उसका पीछा कर। यदि तू ऐसा नहीं करता है, तो वह और उसके सैनिक कुछ गढ़वाले शहरों पर अधिकार कर सकते हैं और हमसे बच सकते हैं।"
\v 7 तब अबीशै और योआब और राजा के अंगरक्षक और दूसरे सैनिकों ने शेबा का पीछा करने के लिए यरूशलेम को छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 8 जब वे गिबोन के क्षेत्र में विशाल चट्टान पर पहुँचे तो अमासा उनसे मिला। योआब युद्ध के लिए कवच पहने हुए था और तलवार उसकी कमरबंध पर कसी हुई थी। जब वह अमासा के करीब आया, तो उसने तलवार को जमीन पर गिरा दिया।
\p
\s5
\v 9 योआब ने अमासा से कहा, "क्या तेरे साथ सब कुशल है, मेरे मित्र?" तब योआब ने उसे चूमने के लिए अमासा की दाढ़ी को अपने दाहिने हाथ से पकड़ लिया।
\v 10 परन्तु अमासा ने यह नहीं देखा कि योआब ने अपने दूसरे हाथ में एक और कटार पकड़ रखी थी। योआब ने उसे अमासा के पेट में घोंप दिया, और उसकी आंतें भूमि पर फैल गईं। अमासा तुरंत मर गया। योआब को फिर से उसे मारने की आवश्यकता नहीं पड़ी। तब योआब और उसके भाई अबीशै शेबा का पीछा करते रहे।
\p
\s5
\v 11 योआब के सैनिकों में से एक अमासा के शरीर के साथ खड़ा था वह चिल्लाया, "जो कोई योआब को हमारा सेनापति बनाना चाहता है और जो दाऊद को हमारा राजा बनाना चाहता है, योआब के साथ जाओ!"
\v 12 अमासा का शरीर सड़क पर पड़ा था। यह रक्त से ढँका हुआ था। योआब के जिस सैनिक ने चिल्लाया था उसने देखा कि योआब के कई सैनिक इसे देखने के लिए रुक रहे हैं, इसलिए उसने अमासा के शरीर को सड़क से खींचकर मैदान में डाल दिया और शरीर पर एक कपड़ा भी फेंक दिया।
\v 13 शरीर को सड़क से हटाने के बाद, सभी सैनिक शेबा का पीछा करने के लिए योआब के साथ गए।
\p
\s5
\v 14 शेबा इस्राएल के सभी गोत्रों से निकलकर इस्राएल के उत्तरी हिस्से में बेतमाका के आबेल नामक शहर में पहुँचा। उसके पिता बिक्री के वंश के सभी सदस्य वहाँ इकट्ठे हुए और शेबा के साथ शहर गए।
\v 15 योआब के साथ रहने वाले सैनिकों ने देखा कि शेबा वहाँ गया है, इसलिए वे वहाँ गए और शहर को घेर लिया। उन्होंने शहर की दीवार के विपरीत धूल की एक ढलान बनाई। उन्होंने दीवार को गिराने के लिए ठोंकना शुरू किया।
\v 16 तब उस नगर में एक बुद्धिमान महिला दीवार के शीर्ष पर खड़ी हुई और चिल्लाने लगी, "मेरी बातें सुनो! योआब को यहाँ आने के लिए कहो, क्योंकि मैं उससे बातें करना चाहती हूँ!"
\s5
\v 17 जब उन्होंने योआब को बताया उसके बाद, वह वहाँ आया, और उस स्त्री ने कहा, "क्या तू योआब है?"
\p उसने जवाब दिया, "हाँ, मैं हूँ।" उसने उससे कहा, "मैं जो कहती हूँ उसे सुन।" उसने जवाब दिया, "मैं सुन रहा हूँ।"
\v 18 उसने कहा, "बहुत पहले लोग कहते थे, 'अपनी समस्याओं के विषय अच्छी सलाह पाने के लिए आबेल शहर जाओ।' और ऐसा लोगों ने किया भी।
\v 19 हम शान्तिपूर्ण और निष्ठावान इस्राएली हैं। यहाँ हमारे लोग महत्वपूर्ण और सम्मानित हैं। तो तू एक ऐसे शहर को नष्ट करने की कोशिश क्यों कर रहा है जो यहोवा का है?"
\p
\s5
\v 20 योआब ने उत्तर दिया, "मैं निश्चित रूप से कभी भी तेरे शहर को बर्बाद या नष्ट नहीं करना चाहता!
\v 21 हम ऐसा नहीं करना चाहते हैं। परन्तु एप्रैम गोत्र में पहाड़ी क्षेत्र का एक व्यक्ति बिक्री का पुत्र शेबा राजा दाऊद के विरूद्ध विद्रोह कर रहा है। इस व्यक्ति को हमारे हाथों में सौंप दो, और फिर हम इस शहर से दूर चले जाएँगे।"
\p उस स्त्री ने योआब से कहा, "बहुत अच्छा, हम उसके सिर को काट देंगे और दीवार से तेरी ओर फेंक देंगे।"
\p
\v 22 तब यह स्त्री नगर के बुजुर्गों के पास गई और उनसे कहा कि उसने योआब से क्या कहा था। इसलिए उन्होंने शेबा का सिर काट दिया और दीवार से योआब की ओर फेंक दिया। तब योआब ने तुरही बजाई कि युद्ध समाप्त हो गया है, और उसके सभी सैनिक शहर छोड़कर अपने घर लौट आए। योआब यरूशलेम लौट आया और राजा को वह बताया जो हुआ था।
\p
\s5
\v 23 योआब पूरी इस्राएली सेना का सेनापति था। यहोयादा का पुत्र बनायाह दाऊद के अंगरक्षकों का सेनापति था।
\v 24 अदोराम ने उन पुरुषों की देखरेख की जिन्हें राजा के लिए काम करने के लिए विवश किया गया था। अहिलुद का पुत्र यहोशापात वह व्यक्ति था जो दाऊद का निर्णय लोगों तक पहुँचाता था।
\v 25 शवा आधिकारिक सचिव था। सादोक और एब्यातार याजक थे,
\v 26 और याईर शहर से ईरा भी दाऊद के याजकों में से एक था।
\s5
\c 21
\p
\v 1 इस्राएल में तीन साल तक अकाल पड़ा जो दाऊद के शासनकाल में हुआ। दाऊद ने इसके बारे में यहोवा से प्रार्थना की। और यहोवा ने कहा, "अकाल समाप्ति के लिए, शाऊल के परिवार को दंडित किया जाना चाहिए क्योंकि शाऊल ने कई गिबोनियों को मार डाला था।"
\p
\s5
\v 2 गिबोन के लोग इस्राएली मूल निवासी नहीं थे। वे एमोर लोगों के एक छोटे से समूह थे, जिन्हें इस्राएलियों ने कनान देश पर हमला करने पर सत्यनिष्ठ से सुरक्षा देने का वादा किया था। परन्तु शाऊल ने उन सभी को मारने का प्रयास किया क्योंकि वह सिर्फ यहूदा और इस्राएल के लोगों को उस देश में बसाने के लिए बहुत उत्सुक था। इसलिए राजा ने गिबोन के अगुवों को बुलाया
\v 3 और उन से कहा, "मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? शाऊल ने जो तुम्हारे लोगों के साथ किया उसकी क्षतिपूर्ति मैं कैसे कर सकता हूँ, ताकि तुम हमें आशीर्वाद दे सको जो यहोवा के हैं और उनसे बहुत अच्छी चीजें पा सको?"
\p
\s5
\v 4 उन्होंने उत्तर दिया, "तुम हमें चाँदी या सोना देकर शाऊल और उसके परिवार के साथ झगड़े का समाधान नहीं कर सकते। हमें किसी भी इस्राएली को मारने का अधिकार नहीं है।"
\p तो दाऊद ने पूछा, "तो तुम क्या कहते हो जो मुझे तुम्हारे लिए करना चाहिए?"
\s5
\v 5 उन्होंने उत्तर दिया, "शाऊल हमसे छुटकारा पाना चाहता था। वह हम सभी को मिटा देना चाहता था, ताकि हम में से कोई भी इस्राएल में कहीं भी न रहे।
\v 6 शाऊल के वंशजों में से सात व्यक्तियों को हमे सौंप दे। हम उनको लटका देंगे हमारे शहर गिबोन में जहाँ यहोवा की आराधना की जाती है जहाँ शाऊल जिसे यहोवा ने राजा चुना था, रहता था।"
\p राजा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं उन्हें तुम्हे सौंप दूँगा।"
\s5
\v 7 राजा ने शाऊल के पोते मपीबोशेत को उन्हें नहीं सौंपा, उस वायदे के कारण जो उसने और मपीबोशेत के पिता योनातान ने एक-दूसरे से किया था।
\v 8 इसकी अपेक्षा, उसने रिस्पा और शाऊल के दो पुत्र अर्मोनी और मपीबोशेत नामक - रिस्पा आइया की पुत्री थी और शाऊल की दासी पत्नी थी; दाऊद शाऊल की बेटी मेरब के पाँच पुत्र भी थे। मेरब का पति बर्जिल्लै का पुत्र अद्रियल था, जो मेहोला शहर से था उन को पकड़ा।
\v 9 दाऊद ने इन लोगों को गिबोन के लोगों को सौंप दिया। वे उन सात लोगों को गिबोन ले गए और उन्हें एक पहाड़ी पर फांसी दी जहाँ वे यहोवा की आराधना करते थे। वे साल के उस समय मारे गए जब लोग जौ की फसलें काटना आरम्भ करते थे।
\p
\s5
\v 10 तब रिस्पा ने बकरियों के बालों से बने मोटे कपड़े को ले लिया, और चट्टान पर फैलाया जहाँ लाशें थीं। वह जौ की कटनी के आरम्भ से बारिश शुरू होने तक वहाँ रुकी रही। उसने किसी भी पक्षी को दिन के समय लाशों के पास आने नहीं दिया, और उसने रात के समय किसी जानवर को आने नहीं दिया।
\v 11 किसी ने दाऊद से कहा कि रिस्पा ने क्या किया था।
\s5
\v 12 तब वह गिलाद के इलाके में अपने कुछ कर्मचारियों के साथ याबेश गया और शाऊल और उसके पुत्र योनातान की हड्डियाँ प्राप्त की। याबेश के लोगों ने बेतशान शहर में चौक से उनकी हड्डियों को चुरा लिया था, जहाँ पलिश्ती के लोगों ने उन्हें उस दिन गलबोरा पर्वत पर लटका दिया था जब शाऊल और योनातान को मार डाला था।
\v 13 दाऊद और उसके लोगों ने शाऊल और योनातान की हड्डियों को लिया, और उन्होंने गिबोन के सात लोगों की हड्डियों को भी लिया जिन्हें फांसी दी थी।
\p
\s5
\v 14 दाऊद के कर्मचारी बिन्यामीन के गोत्र के देश में जेला शहर में शाऊल के पिता कीश की कब्र पर गए थे। वहाँ उन्होंने शाऊल और योनातान की हड्डियों को भी मिट्टी दी। इस तरह, उन्होंने वे सभी काम किए जो राजा ने उन्हें करने का आदेश दिया था। उसके बाद, क्योंकि परमेश्वर ने देखा कि शाऊल के परिवार को गिबोन के कई लोगों की शाऊल द्वारा हत्या के कारण दंडित किया गया था, उसने इस्राएलियों को उनके देश के लिए की गई प्रार्थनाओं का उत्तर दिया, और अकाल को समाप्त कर दिया।
\p
\s5
\v 15 पलिश्ती की सेना ने फिर से इस्राएल की सेना के विरुद्ध लड़ना शुरू कर दिया। और दाऊद और उसके सैनिक उनसे लड़ने के लिए गए। युद्ध के दौरान, दाऊद थक गया।
\v 16 पलिश्ती पुरुषों में से एक ने सोचा कि वह दाऊद को मार सकता है। उसका नाम यिशबी - बनोन था। वह दानवों के एक समूह का वंशज था। उसने कांस्य का एक भाला लिया जो लगभग साढ़े तीन किलोग्राम वजन का था, और उसकी नई तलवार भी थी।
\v 17 परन्तु अबीशै दाऊद की सहायता करने आया, और उसने दानव पर हमला किया और उसे मार डाला। तब दाऊद के सैनिकों ने दाऊद को यह वादा करने पर विवश किया कि वह उनके साथ फिर युद्ध नहीं करेगा। उन्होंने उससे कहा, "यदि तू मर जाता, और तेरा कोई भी वंशज राजा नहीं बनता, तो यह इस्राएल की अंतिम रोशनी को बुझाने जैसा होगा।"
\p
\s5
\v 18 उसके कुछ समय बाद, गोब के गांव के पास पलिश्ती की सेना के साथ एक युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान, हुशाई के वंश से सिब्बकै ने राफ दानव के वंशजों में से एक सप को मार डाला।
\p
\v 19 बाद में गोब में पलिश्ती की सेना के साथ एक और लड़ाई हुई। उस युद्ध के दौरान, बैतलहम से यार के पुत्र एलहनान ने गत से गोलियत के भाई को मार डाला, जिसके भाले का डंडा बहुत मोटा था, जैसे जुलाहे की डोंगी।
\p
\s5
\v 20 बाद में गत के पास एक और लड़ाई हुई। वहाँ एक विशालकाय व्यक्ति था जो युद्ध में लड़ना पसंद करता था। उसके प्रत्येक हाथ पर छह अंगुलियाँ थीं और प्रत्येक पैर पर छह अंगुलियाँ थीं। वह राफ दानव के वंशजों में से एक था।
\v 21 परन्तु जब उसने इस्राएलियों की सेना में पुरुषों का अपमान किया, तो दाऊद के बड़े भाई शिमी के पुत्र योनातान ने उसे मार डाला।
\p
\v 22 वे चार पुरुष राफ दानव के वंशजों में से थे जो गत में रहते थे, जिन्हें दाऊद और उसके सैनिकों ने मारा था।
\s5
\c 22
\p
\v 1 यहोवा ने शाऊल और उसके अन्य शत्रुओं से दाऊद को बचा लिया था, तब दाऊद ने यहोवा के लिए एक गीत गाया।
\v 2 उसने यह गीत गाया:
\q1 "हे यहोवा, आप शिखर पर एक विशाल चट्टान की तरह हो जिसमें मैं छिप सकता हूँ।
\q2 आप एक किले की तरह हैं, और आप मुझे बचाते हैं।
\q1
\s5
\v 3 हे यहोवा, आप मेरी रक्षा करो। आप ढाल की तरह हैं,
\q2 और आप शक्तिशाली हो जो मुझे बचाते हैं।
\q1 आप ऐसे स्थान की तरह हैं जहाँ मुझे शरण मिलती है।
\q2 आप मुझे उन लोगों से बचाते हैं जो मेरे प्रति हिंसक हैं।
\q1
\v 4 हे यहोवा, मैं आपसे कहता हूँ।
\q2 आप प्रशंसा के योग्य हैं,
\q2 और आप मुझे मेरे दुश्मनों से बचाते हैं।
\q1
\s5
\v 5 मैं लगभग मर गया था। ऐसा लगता था मानो मुझ से एक बड़ी लहर टकरा गई हो,
\q1 और मुझे बाढ़ की तरह लगभग नष्ट कर दिया।
\q1
\v 6 मैंने सोचा कि मैं मर जाऊँगा। ऐसा लगता था मानो मृत्यु की रस्सियाँ मेरे चारों ओर लिपट गई हों,
\q2 और ऐसा लगता था मानो मैं एक जाल में था जहाँ मैं निश्चित रूप से मर जाऊँगा।
\q1
\s5
\v 7 परन्तु जब मैं बहुत परेशान था, तब मैंने आपको यहोवा कहकर पुकारा।
\q2 मैंने आपको पुकारा, मेरे परमेश्वर।
\q1 आपने मुझे अपने मन्दिर से सुना।
\q2 जब मैंने अपनी सहायता करने के लिए बुलाया तो आपने सुना।
\q1
\s5
\v 8 तब ऐसा हुआ मानो पृथ्वी हिल गई और काँप उठी।
\q2 ऐसा लगता था मानो आकाश को थामने वाली नींव थरथराने लगी,
\q2 क्योंकि आप क्रोधित थे।
\q1
\v 9 ऐसा लगता था मानो आपके नथनों से धुआं निकल उठा
\q2 और धधकता हुआ कोयला और आग जो सब कुछ भस्म करती है आपके मुँह से निकली।
\q1
\s5
\v 10 आपने आसमान फाड़ दिया और नीचे उतर आए।
\q2 आपके पैरों के नीचे घना अंधेरा बादल था।
\q1
\v 11 आप एक करूब पर सवार होकर आकाश में उड़े।
\q2 हवा ने आपको पक्षी की तरह तेजी से यात्रा करने में सक्षम बनाया।
\q1
\v 12 अंधेरा आपके चारों ओर एक कंबल की तरह था
\q2 जल भरे मेघों का समूह आपको घेरे हुए था।
\q1
\s5
\v 13 आप के सम्मुख के तेज़ से
\q2 जलते अंगारे धधक उठे।
\q1
\v 14 तब, हे यहोवा, आपने आकाश से गर्जन की तरह बातें की।
\q2 यह आपकी आवाज़ थी, परमेश्वर, आप जो अन्य सभी देवताओं में प्रमुख हैं, जिन्हें सुना गया था।
\q1
\v 15 जब आपने बिजली की चमक भेजी,
\q2 आपने ऐसा अपने तीरों को चलाया और अपने शत्रुओं को तितर-बितर कर दिया।
\q1
\s5
\v 16 तब महासागर के तल दिखाई दिए।
\q2 जगत की नींव उखाड़ दी गई
\q1 जब आप हमारे शत्रुओं के विरुद्ध लड़ाई में जाते हुए चिल्लाए,
\q2 और उन पर क्रोधित हुए।
\q1
\s5
\v 17 हे यहोवा, आपने स्वर्ग से नीचे हाथ बढ़ाया और मुझे उठा लिया।
\q2 आपने मुझे गहरे पानी से खींच लिया।
\q1
\v 18 आपने मुझे मेरे बलवंत शत्रुओं से बचाया,
\q2 उन लोगों से जो मुझसे घृणा करते हैं।
\q1 मैं उन्हें पराजित नहीं कर सका क्योंकि वे बहुत सामर्थी थे।
\q1
\s5
\v 19 मेरी विपत्ति के समय वे मुझ पर टूट पड़े,
\q2 परन्तु परमेश्वर, आपने मुझे बचाया।
\q1
\v 20 आप मुझे ऐसे स्थान पर ले आए जहाँ मैं सुरक्षित था।
\q2 आपने मुझे बचाया क्योंकि आप मुझसे प्रसन्न थे।
\q1
\v 21 हे यहोवा, आपने मुझे पुरस्कृत किया क्योंकि मैं सही करता हूँ।
\q2 आपने मेरे लिए अच्छे कर्म किए हैं क्योंकि मैं निर्दोष था।
\q1
\s5
\v 22 हे यहोवा, मैंने आपके नियमों का पालन किया है।
\q2 मैंने आपकी आराधना करना बंद नहीं किया है, मेरे परमेश्वर।
\q1
\v 23 आपके सभी नियम मेरे मन में थे,
\q2 और मैंने आपकी सभी विधियों का पालन करना बंद नहीं किया।
\q1
\s5
\v 24 आप जानते हैं कि मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है।
\q2 मैंने स्वयं को उन कामों को करने से दूर रखा जिनके लिए आप मुझे दंडित करते।
\q1
\v 25 इसलिए आपने मुझे सही काम करने के बदले में पुरस्कृत किया है,
\q2 क्योंकि आप जानते हैं कि मैं गलत काम न करने के कारण निर्दोष हूँ।
\q1
\s5
\v 26 हे यहोवा, आप उन लोगों के प्रति विश्वासयोग्य हैं जो सदैव आप पर भरोसा करते हैं,
\q2 और आप सदैव उन लोगों के लिए अच्छा करते हैं जिनके व्यवहार सदैव अच्छे होते हैं।
\q1
\v 27 आप उन लोगों के प्रति शुद्ध कार्य करते हैं जिनके मन शुद्ध हैं,
\q2 परन्तु आप उन लोगों के विरोधी हैं जो दोषी हैं।
\q1
\s5
\v 28 आप नम्र लोगों को बचाते हैं,
\q2 परन्तु आप उन लोगों को देखते रहते हैं जो घमंड करते हैं और उन्हें अपमानित करते हैं।
\q1
\v 29 हे यहोवा, आप दीपक की तरह हैं
\q2 आप उजियाला कर देते हैं जब मै अँधेरे में होता हूँ।
\q1
\s5
\v 30 आपकी सामर्थ से मैं अपने रास्ते को अवरुद्ध करने वाले सैनिकों की एक पंक्ति को तोड़ सकता हूँ;
\q2 मैं उनके शहर के चारों ओर की दीवार लाँघ सकता हूँ।
\q1
\v 31 मेरे परमेश्वर जिनकी मैं आराधना करता हूँ, जो कुछ भी आप करते हैं वह सिद्ध है।
\q2 आप सदैव अपने वादे के अनुसार कार्य करते हैं।
\q1 आप उन सभी के लिए ढाल की तरह हैं जो बचने के लिए आपसे अनुरोध करते हैं।
\q1
\s5
\v 32 हे यहोवा, आप ही अकेले हैं जो परमेश्वर हैं।
\q2 सिर्फ आप शिखर पर विशाल चट्टान की तरह हैं जिसमे हम छिप सकते हैं।
\q1
\v 33 परमेश्वर, जिनकी मैं आराधना करता हूँ वह मेरे लिए एक दृढ़ गढ़ है।
\q2 आप ऐसे व्यक्ति का जो निर्दोष है उस मार्ग पर नेतृत्व करते हैं जिस पर उसे चलना चाहिए।
\q1
\s5
\v 34 जब मैं पहाड़ों पर चलता हूँ,
\q2 आप मुझे सुरक्षित चलने में सक्षम करते हैं
\q2 जैसे एक हिरण दौड़ता है, बिना लड़खड़ाए।
\q1
\v 35 आप मुझे युद्ध में लड़ना सिखाते हैं
\q2 ताकि मैं तीर को मजबूत धनुष से कुशलता से चला सकूँ।
\q1
\s5
\v 36 ऐसा लगता है मानो आपने मुझे ढाल दी है
\q2 जिसके द्वारा आपने मुझे छुड़ाया है,
\q2 और आपने मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया है और मेरे प्रसिद्ध बनने का कारण हैं।
\q1
\v 37 आपने मेरे शत्रुओं को मुझे पकड़ने की अनुमति नहीं दी है,
\q2 और मैं युद्ध के दौरान गिरा नहीं हूँ।
\q1
\s5
\v 38 मैंने अपने शत्रुओं का पीछा किया और उन्हें पराजित किया।
\q2 जब तक वे सभी मारे नहीं गए तब तक मैंने उनसे लड़ना बंद नहीं किया।
\q1
\v 39 मैंने उन्हें मार गिराया। मैंने उन्हें अपनी तलवार से मारा,
\q1 और वे मेरे पैरों पर गिर गए और फिर उठ न पाए।
\q1
\s5
\v 40 आपने मुझे लड़ाई लड़ने के लिए सामर्थ दी है
\q2 और जो मुझ पर आक्रमण कर रहे थे उनके विनाश का कारण बना; मैने उन्हें कुचल डाला।
\q1
\v 41 आप मेरे लिए शत्रुओं के पीठ दिखाकर भागने का कारण बने।
\q2 मैंने उन लोगों को नष्ट कर दिया जो मुझसे घृणा करते थे।
\q1
\s5
\v 42 उन्होंने किसी को उन्हें बचाने के लिए खोजा, परन्तु किसी ने बचाया नहीं ।
\q2 उन्होंने आपको सहायता के लिए पुकारा, यहोवा,, परन्तु आपने उन्हें उत्तर नहीं दिया।
\q1
\v 43 मैंने उन्हें कुचल दिया, और वे धूल के छोटे कणों की तरह बन गए।
\q2 मैंने उन्हें रौंद डाला, और वे सड़कों पर कीचड़ की तरह बन गए।
\q1
\s5
\v 44 आपने मुझे उन लोगों से बचाया जिन्होंने मेरे विरूद्ध विद्रोह करने का प्रयास किया,
\q2 और आपने मुझे कई देशों पर शासन करने के लिए नियुक्त किया है।
\q2 जिन लोगों को मैं पहले नहीं जानता था वे अब मेरे अधिकार में हैं।
\q1
\v 45 विदेशी नम्रता से मेरे सामने झुक गए।
\q2 जैसे ही उन्होंने मेरे विषय सुना, उन्होंने मेरी आज्ञा मानी।
\q1
\v 46 वे भयभीत हो गए,
\q2 और वे मेरे पास अपने छिपने के स्थानों से काँपते हुए आए।
\q1
\s5
\v 47 हे यहोवा, आप जीवित हैं! मैं आपकी स्तुति करता हूँ! आप शिखर पर विशाल चट्टान की तरह हैं जिसमें मैं सुरक्षित हूँ!
\q2 आप ही हैं जो मुझे छुड़ाते हैं।
\q2 हर किसी को आपकी प्रशंसा करनी चाहिए।
\q1
\v 48 आप मुझे शत्रुओं को जीतने में सक्षम करते हैं,
\q2 और आप अन्य देशों के लोगों को मेरे अधिकार में रहने का कारण बनते हैं।
\q1
\v 49 आप ने मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया,
\q1 और आप ने मुझे उनसे अधिक सम्मानित होने दिया।
\q2 आपने मुझे उन पुरुषों से बचाया जिन्होंने सदैव हिंसक तरीके से कार्य किया।
\q1
\s5
\v 50 इस सब के कारण, मैं कई समूहों में आपकी स्तुति करता हूँ,
\q2 और मैं आपकी स्तुति करने के लिए गाता हूँ।
\q1
\v 51 आप मेरे शत्रुओं को जीतने के लिए, जिसे आपने राजा बनने के लिए नियुक्त किया, मुझे सक्षम करते हैं।
\q2 आप मुझ दाऊद से विश्वासयोग्यता से प्रेम करते हैं, और आप मेरे वंशजों को युगानयुग प्रेम करते रहोगे।"
\s5
\c 23
\p
\v 1 यिशै का पुत्र दाऊद, वह मनुष्य था जिसे परमेश्वर ने महान बनाया।
\q1 जिस परमेश्वर की याकूब ने आराधना की उन्होंने उसे इस्राएल का राजा बना दिया।
\q1 दाऊद ने इस्राएल के लोगों के लिए सुंदर गीत लिखा।
\q1 यह आखिरी गीत है जिसे उसने लिखा था:
\q1
\v 2 "यहोवा के आत्मा मुझे बताते हैं कि क्या कहना है।
\q1 जो संदेश मैं बोलता हूँ वह उनसे आता है।
\q1
\s5
\v 3 परमेश्वर, जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, उन्होंने कहा।
\q2 जो हम इस्राएली लोगों की रक्षा करतें हैं, उन्होंने मुझसे कहा,
\q1 'राजा जो लोगों पर न्यायपूर्वक शासन करते हैं
\q1 मेरे परमेश्वर के लिए भयभीत करनेवाला सम्मान है।
\q1
\v 4 वे प्रातःकाल चमकते सूर्य के समान हैं
\q2 और बारिश समाप्त होने के बाद घास उगने का कारण बनते हैं।'
\q1
\s5
\v 5 सच में, इस तरह परमेश्वर निश्चित रूप से मेरे परिवार को आशीष देंगे
\q2 क्योंकि उन्होंने मेरे साथ एक प्रतिज्ञा की है जो सर्वदा बनी रहेगी,
\q2 एक प्रतिज्ञा जिसमें वे वादा करते हैं कि इसका कोई भी हिस्सा कभी नहीं बदला जाएगा।
\q1 इससे निश्चित रूप से मुझे समृद्ध होने का कारण मिलेगा,
\q2 और वे सर्वदा मेरी सहायता करेंगे,
\q1 और यही सब कुछ है जो मैं चाहता हूँ।
\q1
\s5
\v 6 परन्तु वे उन लोगों से छुटकारा पाएँगे जो उनका सम्मान नहीं करते, जैसे लोग कांटों को फेंक देते हैं
\q2 जो लोगों को चोट पहुँचाते हैं यदि वे उन्हें अपने हाथों से उठाने का प्रयास करते हैं।
\q1
\v 7 जो कटीली झाड़ियों से छुटकारा पाना चाहता है वह उन्हें पकड़ता नहीं है,
\q2 परन्तु वह उन्हें खोदने के लिए लोहे फावेड़ या भाले का उपयोग करता है
\q2 और फिर वह उन्हें पूरी तरह भस्म करता है।"
\p
\s5
\v 8 ये दाऊद के शूरवीरों के नाम हैं।
\p पहला हेशमन कबीले से जेसुबाल था। वह शूरवीरों का प्रधान था। एक बार वह आठ सौ शत्रुओं के विरुद्ध लड़ा और उन्हें अपने भाले से मार डाला।
\p
\s5
\v 9 महान योद्धाओं में से दूसरा दोदै का पुत्र एलीआज़र था, जो अहो के वंश से था। एक दिन वह दाऊद के साथ था जब उन्होंने युद्ध के लिए इकट्ठे हुए पलिश्ती सैनिकों की निंदा की। अन्य इस्राएली सैनिकों ने पीछे हटना शुरू किया,
\v 10 परन्तु एलीआज़र वहाँ खड़ा रहा और पलिश्ती सैनिकों से लड़ता रहा जब तक कि उसके हाथ नहीं थके, जिसके परिणामस्वरूप उसका हाथ ऐंठ गया और वह अपनी तलवार नहीं पकड़ सका। यहोवा की उस दिन बड़ी जीत हुई। और बाद में अन्य इस्राएली सैनिक वहाँ लौटे जहाँ एलीआज़र था, और उन लोगों के कवच उखाड़ने गए जिन्हें उसने मारा था।
\p
\s5
\v 11 सबसे महान योद्धाओं में से तीसरा हारार के वंश से आगे का पुत्र शम्मा था। एक बार पलिश्ती सैनिक लेही शहर में इकट्ठे हुए, जहाँ मसूर से भरा एक क्षेत्र था जिसे वे चोरी करना चाहते थे। अन्य इस्राएली सैनिक पलिश्ती सैनिकों से भाग गए,
\v 12 परन्तु शम्मा मैदान में खड़ा रहा और पलिश्ती सैनिकों को मटर चुराने नहीं दिया, और उन्हें मार डाला। यहोवा की उस दिन एक बड़ी विजय हुई।
\p
\s5
\v 13 एक समय ऐसा आया जब फसल काटने का समय लगभग हो चुका था उन तीस में से तीन पुरुष अदुल्लाम की गुफा में गए, जहाँ दाऊद रह रहा था। पलिश्ती सेना के पुरुषों के एक समूह ने यरूशलेम के पास रपाईम की घाटी में अपने तम्बू स्थापित किए थे।
\v 14 दाऊद और उसके सैनिक गुफा में थे क्योंकि वह सुरक्षित था, और पलिश्ती सैनिकों का एक और समूह बैतलहम पर अधिकार कर रहा था।
\s5
\v 15 एक दिन दाऊद को थोड़ा पानी पीने की इच्छा हुई, और उसने कहा, "मेरी इच्छा है कि कोई मुझे बैतलहम के द्वार के पास कुएं से थोड़ा पानी ला कर दे!"
\v 16 इसलिए उसके तीन महान योद्धाओं ने पलिश्ती सैनिकों की छावनी में बलपूर्वक प्रवेश किया और कुएं से थोड़ा पानी निकाला, और उसे दाऊद के पास ले आए। परन्तु वह उसने पिया नहीं। इसकी अपेक्षा, उसने इसे यहोवा को चढ़ाए जाने के लिए जमीन पर उंडेल दिया।
\v 17 उसने कहा, "हे यहोवा, यह पानी पीना मेरे लिए उचित न होगा! यह उन मनुष्यों के खून को पीना जैसा होगा जो मेरे लिए मरने को तैयार थे!" उसने इसे पीने से मना कर दिया।
\p वह उन कार्यो में से एक था जो उन तीन महान योद्धाओं ने किए थे।
\p
\s5
\v 18 योआब का छोटा भाई अबीशै दाऊद के शूरवीरों का प्रधान था। एक दिन वह तीन सौ पुरुषों के विरुद्ध लड़ा और उन्हें अपने भाले से मार डाला। फलस्वरूप, वह भी प्रसिद्ध हो गया।
\v 19 वह शूरवीरों में से सबसे प्रसिद्ध हुआ, और वह उनका प्रधान बन गया, परन्तु वह तीन महान योद्धाओं में से एक नहीं था।
\p
\s5
\v 20 कबसेल शहर से यहोयादा के पुत्र बनायाह ने भी महान काम किए। उसने मोआब लोगों के समूह के दो सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं की हत्या कर दी। इसके अलावा, वह उस दिन एक गड्ढे में चला गया जब भूमि पर बर्फ गिर रही थी, और वहाँ एक शेर मारा।
\v 21 उसने मिस्र के विशाल सैनिक को मार डाला जो भाला लिए हुए था। बनायाह के पास सिर्फ उसकी लाठी थी, परन्तु उसने इससे विशालकाय पर हमला किया। तब उसने भाले को व्यक्ति के हाथ से छीन लिया और उसे उसके भाले से मारा।
\s5
\v 22 उन कामों में से कुछ हैं जिन्हें बनायाह ने किया था। फलस्वरूप, वह प्रसिद्ध हो गया, जैसे तीन महान योद्धा थे।
\v 23 वह अन्य शूरवीरों की तुलना में अधिक सम्मानित था, परन्तु तीन शूरवीरों से प्रसिद्ध नहीं था। दाऊद ने उसे अपने अंगरक्षकों के प्रधान के रूप में नियुक्त किया।
\q2
\s5
\v 24 उन महान योद्धाओं के नाम हैं:
\li3 योआब के छोटे भाई असाहेल,
\li3 बैतलहम से दोदो का पुत्र एल्हानान,
\li3
\v 25 शम्मा और एलिका, हेरोद के वंश से,
\li3
\v 26 हेलेस, पेलेत शहर से, तकोई शहर से इक्केश का पुत्र
\li3 ईरा,
\li3
\v 27 अबीएज़ेर, अनातोत शहर से,
\li3 मबुन्ने जिसका दूसरा नाम सिब्बेबाई था, हुशा के वंश से,
\li3
\v 28 सल्मोन जिसका नाम इहई था, अहो के वंश से,
\li3 महरै, नतोपाह शहर से,
\li3
\s5
\v 29 बाना का पुत्र हेलेब, नतोपाह से एक और
\li3 रिबै का पुत्र हुत्तै, बिन्यामीन के गोत्र के देश में गिबा के नगर से,
\li3
\v 30 बनायाह, पिरातोंन शहर से,
\li3 हिड्डै , गाश की घाटियों के पास घाटियों से,
\li3
\v 31 अबी-अल्बोन, अरबा के वंश से, बहरीम शहर से
\li3 असमावेत,
\li3
\v 32 एलियाबा, शालबोन शहर से-
\li3 जाशेन के पुत्र,
\li3 अरार शहर से शम्मा का पुत्र योनातान,
\li3
\s5
\v 33 अरार से शारार का पुत्र अहीआम,
\li3
\v 34 माका शहर से अहसबै का पुत्र एलीपेलेप्त ,
\li3 गिलो शहर से अहीतोपेल का पुत्र एलीआम,
\li3
\v 35 हेस्ररो, कर्मेल शहर से,
\li3 अराबा शहर से पारै,
\li3
\v 36 नातान का पुत्र यिगाल, सोबा शहर से, गाद के गोत्र से
\li3 बानी;
\li3
\s5
\v 37 सेलेक, अम्मोन लोगों के समूह से,
\li3 नेहरै, वह व्यक्ति जो योआब के हथियारों को ढोनेवाला लेरोथ शहर से,
\li3
\v 38 ईरा और गारेब, येतेर शहर से,
\li3
\v 39 ऊरिय्याह, बतशेबा का पति, हित्ती लोगों के समूह से।
\q2 कुल मिलाकर, वहाँ सैंतीस प्रसिद्ध सैनिक थे।
\s5
\c 24
\p
\v 1 यहोवा इस्राएलियों से पुनः क्रोधित था, इसलिए उसने दाऊद को उनके लिए परेशानी उत्पन्न करने के लिए उकसाया। उसने दाऊद से कहा, "कुछ लोगों को इस्राएल और यहूदा के लोगों की गणना करने के लिए भेजे।"
\p
\v 2 तब राजा ने अपनी सेना के सेनापति योआब से कहा, "अपने अधिकारियों के साथ दान के उत्तरी छोर से बेर्शेबा के दक्षिणी छोर तक इस्राएल के सभी गोत्रों में जाकर लोगों की गणना करो ताकि मुझे पता चले कि वहाँ ऐसे कितने लोग है जो सैनिक बन सकते है।"
\p
\s5
\v 3 पर योआब ने राजा से कहा, "हे महामहिम, मै आशा करता हूँ कि लोगों की संख्या अभी जितनी है उससे यहोवा तेरा परमेश्वर सौ गुणा अधिक दे और मै आशा करता हूँ कि तू अपनी मृत्यु से पूर्व ऐसा होता देखे। परन्तु तू क्यों चाहता है कि हम ऐसा करें?"
\p
\v 4 परन्तु राजा ने योआब और उसके अधिकारियों को ऐसा करने का आदेश दिया। इसलिए वे राजा के सामने से चले गए और इस्राएल के लोगों की गिनती करने के लिए निकल पड़े।
\p
\s5
\v 5 उन्होंने यरदन नदी पार कर अरोएर के दक्षिण में घाटी के बीच में, गाद के गोत्र को दिए गए क्षेत्र में अपने तम्बू लगाए। वहाँ से वे उत्तर में याज़ेर गए।
\v 6 तब वे उत्तर में गिलाद और कादेश गए, जहाँ हित्ती समूह रहता था। तब वे इस्राएल के उत्तरी छोर दान की ओर गए और फिर पश्चिम में भूमध्य सागर के पास सीदोन गए।
\v 7 तब वे दक्षिण में टायर गए, एक शहर जिसके चारों ओर एक ऊँची दीवार खड़ी थी, और उन सभी शहरों में जहाँ हिब्बी और कनानी लोग रहते थे। तब वे बेर्शेबा में पूर्व की ओर यहूदा के दक्षिणी जंगल में गए।
\p
\s5
\v 8 नौ महीने और बीस दिनों के बाद, जब वे पूरे देश में जाकर लोगों की गिनती कर चुके, तो वे यरूशलेम लौट आए।
\p
\v 9 उन्होंने राजा को उन लोगों की संख्या की सूचना दी जिन्हें उन्होंने गिना था। इस्राएल में 800,000 पुरुष और यहूदा में 500,000 पुरुष थे जो सैनिक बन सकते थे।
\p
\s5
\v 10 परन्तु दाऊद के लोगों के द्वारा लोगों की गिनती के बाद, दाऊद पछताया कि उसने उन्हें ऐसा करने के लिए क्यों कहा। एक रात उसने यहोवा से कहा, "मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। कृपया मुझे क्षमा कर दें, क्योंकि मैंने जो किया है वह बहुत मूर्खतापूर्ण है।"
\p
\s5
\v 11 जब दाऊद अगली सुबह उठा, तब यहोवा ने भविष्यद्वक्ता गाद को एक संदेश दिया। उन्होंने उससे कहा,
\v 12 "जा और दाऊद को यह बता, 'मैं तुझे दंडित करने के लिए तीन विकल्पों में से एक चुनने की अनुमति दे रहा हूँ। जिसे तू चुने उसके अनुसार मै तुझे दण्डित करूँगा।'"
\p
\s5
\v 13 तब गाद दाऊद के पास गया और उसे बताया जो यहोवा ने कहा था। उसने दाऊद से कहा, "तू या तो यह चुन सकता है कि तेरी भूमि पर तीन वर्ष का अकाल होगा, या तेरी सेना तीन महीने शत्रुओं से भागती रहे, या तीन दिन जब तेरी भूमि पर महामारी फैली रहे। तुझे इसके बारे में सोचना चाहिए और चुनकर बता कि तू क्या चाहता है, और मुझे बता, और मैं यहोवा के पास वापस जाऊँगा और उन्हें बताऊँगा कि तेरा उत्तर क्या है।"
\p
\v 14 दाऊद ने गाद से कहा, "चुनने के लिए ये सभी बहुत ही भयानक बातें हैं! परन्तु यहोवा को मुझे दंडित करने की अनुमति है क्योंकि वे बहुत दयालु हैं। इंसानों को मुझे दंडित करने की अनुमति न दें, क्योंकि वे दयालु नहीं होंगे।"
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा ने इस्राएलियों पर महामारी भेजी। यह उस सुबह शुरू हुआ और ठहराए हुए समय तक नहीं रुका। पूरे देश में, दान से बेर्शेबा तक, सत्तर हजार इस्राएली महामारी के कारण मर गए थे।
\v 16 जब यहोवा के दूत ने महामारी के द्वारा लोगों को नाश करने के लिए यरूशलेम की ओर अपना हाथ बढ़ाया, तो यहोवा अन्य लोगों को दंडित करने के विषय दुःखी हुए। उन्होंने महामारी से नाश करनेवाले स्वर्गदूत से कहा, "तू जो कर रहा है उसे रोक! यह पर्याप्त है!" जब उन्होंने यह कहा, तो स्वर्गदूत उस भूमि पर खड़ा था जहाँ यबूसी समूह के, अरौना अनाज छाँटते थे।
\p
\s5
\v 17 जब दाऊद ने उस स्वर्गदूत को देखा जो लोगों को बीमार करती और मारता जा रहा था, तो उसने यहोवा से कहा, "सचमुच, मैं हूँ जिसने पाप किया है। मैंने बड़ा अपराध किया है, परन्तु ये लोग तो भेड़ के समान निर्दोष हैं। उन्होंने निश्चित रूप से कुछ भी गलत नहीं किया है। इसलिए आपको मुझे और मेरे परिवार को दंडित करना चाहिए, न कि इन लोगों को!"
\p
\s5
\v 18 उस दिन गाद दाऊद के पास आया और उससे कहा, "उस स्थान पर जा जहाँ अरौना अनाज छाँटता है, और वहाँ यहोवा की आराधना करने के लिए एक वेदी बना।"
\v 19 तब दाऊद ने जो गाद ने उसे करने के लिए कहा था किया, जिसकी यहोवा ने आज्ञा दी थी, और वह वहाँ गया।
\v 20 जब अरौना ने ऊपर से देखा और राजा और उसके अधिकारियों ने उसको पास आते देखा, तो उसने मुँह के बल भूमि पर गिरकर राजा को दंडवत किया।
\p
\s5
\v 21 अरौना ने कहा, "हे महामहिम, तू मेरे पास क्यों आया हैं?" दाऊद ने उत्तर दिया, "मैं इस भूमि को खरीदने के लिए आया हूँ, जहाँ तू अनाज को छाँटता है ताकि यहोवा के लिए वेदी बनवाऊँ और उस पर बलि चढ़ाऊँ, ताकि वे महामारी को रोक सकें।"
\p
\v 22 अरौना ने दाऊद से कहा, "हे महामहिम, जो तू चाहे यहोवा को चढ़ा। यहाँ, मेरे बैल को भेंट के लिए ले जा जिसे वेदी पर पूरी तरह जला दिया जाएगा। और यहाँ, उनके जुए और पट्टे जिनका मैं छाँटने के लिए उपयोग करता हूँ ले ले, और उनका उपयोग जलाने वाली लकड़ियों के समान करो।
\v 23 मैं, अरौना, यह सब तुझे, मेरे राजा को दे रहा हूँ। "तब उसने कहा," मैं चाहता हूँ कि हमारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी भेंट स्वीकार करे।"
\p
\s5
\v 24 परन्तु राजा ने अरौना से कहा, "नहीं, मैं इन चीज़ों को उपहार के रूप में नहीं लूँगा। मैं इनका दाम देकर मोल लूँगा। मैं वे बलिदान नहीं चढ़ाऊँगा जिनका मैने कुछ मोल न चुकाया हो, और उन्हें पूरी तरह जलने के लिए यहोवा की वेदी पर नहीं चढ़ाऊँगा। "इसलिए उसने भूमि और बैलों को पचास चाँदी के सिक्के देकर मोल लिया।
\p
\v 25 तब दाऊद ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई, और उसने बैल को वेदी पर पूरी तरह जलने के लिए चढ़ाया, और उसने यहोवा के साथ संगति सुधारने के लिए बलि चढ़ाई। तब, यहोवा ने दाऊद की प्रार्थनाओं का उत्तर दिया, और उसने इस्राएल में महामारी को समाप्त कर दिया।

1716
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h 1 राजाओं
\toc1 1 राजाओं
\toc2 1 राजाओं
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\mt1 1 राजाओं
\s5
\c 1
\p
\v 1 जब राजा दाऊद बहुत बूढ़ा था, उसके दास रात में उसके ऊपर कई कम्बल डालते थे, फिर भी वह गर्मी नहीं रहता था।
\v 2 इसलिए उन्होंने उससे कहा, "महामहिम, हमें एक कुँवारी युवती को ढूँढ़ने की अनुमति दे, जो तेरे संग रहे और तेरी देखभाल कर सके। वह तेरे पास लेट कर तुझे गर्म रख सकती है।"
\p
\s5
\v 3 राजा ने उन्हें अनुमति दी, इसलिए उन्होंने एक सुन्दर कुँवारी की पूरे इस्राएल में खोज की। उन्हें शूनेम शहर में अबीशग नाम की एक महिला मिली, और वे उसे राजा के पास ले लाए।
\v 4 वह वास्तव में बहुत सुन्दर थी। उसने राजा की देखभाल की, लेकिन राजा ने उसके साथ सम्बंध नहीं बनाया।
\p
\s5
\v 5-6 अबशालोम की मृत्यु के बाद, दाऊद का सबसे बड़ा पुत्र अदोनिय्याह था, जिसकी माँ हग्गीत थी। वह बहुत रूपवान व्यक्ति था। दाऊद ने कभी उसके किसी भी काम के विषय उसे दण्डित नहीं किया था। अबशालोम की मृत्यु के बाद, उसने सोचा कि वह राजा बन जाएगा तब उसने घमण्ड करना शुरू कर दिया, "अब मैं राजा बन जाऊँगा।" तब जहाँ भी वह जाए उसके लिए उसने कुछ रथ, और उन्हें चलाने के लिए पुरुष और खींचने के लिए घोड़े और पचास पुरुष अंगरक्षकों की तरह उन रथों के आगे दौड़ने के लिए रखे।
\p
\s5
\v 7 एक दिन उसने दाऊद के सेनाध्यक्ष, योआब और याजक एब्यातार से बातचीत की और उन्होंने अदोनिय्याह की सहायता करने का वादा किया।
\v 8 लेकिन अन्य महत्वपूर्ण लोगों ने उसकी सहायता करने से मना कर दिया; इनमें सादोक, जो एक याजक भी था, बनायाह जिसने दाऊद के अंगरक्षकों की देखरेख की थी, नातान भविष्यद्वक्ता, शिमी और रेई और दाऊद के सबसे सक्षम सैनिक सम्मिलित थे।
\p
\s5
\v 9 एक दिन अदोनिय्याह जोहेलेत नामक पत्थर के पास जो एनरोगेल के निकट और यरूशलेम के पास है, कुछ भेड़ों और बैल और परिपुष्ट पशुओं के बलिदान के लिए वहाँ गया। उसने अपने अधिकतर भाइयों, राजा दाऊद के अन्य पुत्रों को आमंत्रित किया। उसने यहूदा से राजा के सभी अधिकारियों को भी उत्सव के लिए आमंत्रित किया।
\v 10 परन्तु उसने नातान, बनायाह और राजा के सबसे सक्षम सैनिकों और अपने छोटे भाई सुलैमान में से किसी को आमंत्रित नहीं किया।
\p
\s5
\v 11 नातान को पता चला कि क्या हो रहा था इसलिए वह सुलैमान की माँ बतशेबा के पास गया और उससे पूछा, "क्या तुने सुना नहीं कि हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह स्वयं को राजा घोषित कर रहा है? और राजा दाऊद इसके विषय नहीं जानता!
\v 12 इसलिए यदि तू स्वयं को और अपने पुत्र सुलैमान को मरने से बचाना चाहती है, तो मुझे तुझको बताने की अनुमति दें कि तुझको क्या करना चाहिए।
\s5
\v 13 राजा दाऊद के पास तुरन्त जा। उससे कहना, 'महामहिम, तूने निष्ठापूर्वक मुझसे वादा किया था कि तेरे मरने के बाद मेरा पुत्र सुलैमान राजा बनेगा और वह तेरे सिंहासन पर बैठेगा और शासन करेगा। तो लोग क्यों कह रहे हैं कि अब अदोनिय्याह राजा है?
\v 14 बतशेबा, जब तू राजा से बातें कर ही रही होगी, मैं अन्दर आकर उसे बता दूँगा कि जो तू अदोनिय्याह के बारे में कह रही है वह सच है।"
\p
\s5
\v 15 तब बतशेबा राजा को देखने उसके शयनकक्ष में गई। वह बहुत बूढ़ा था, और अबीशग उसकी देखभाल कर रही थी।
\v 16 बतशेबा ने राजा के सामने बहुत नीचे सिर झुकाया, और राजा ने उससे पूछा, "तू क्या चाहती है?"
\p
\v 17 उसने उत्तर दिया, "हे महामहिम, तूने निष्ठापूर्वक मुझसे वादा किया था, यह जानकर कि हमारा परमेश्वर यहोवा सुन रहा है, कि मेरा पुत्र सुलैमान तेरे मरने के बाद राजा बन जाएगा और वह तेरे सिंहासन पर बैठेगा और शासन करेगा।
\s5
\v 18 परन्तु अब, अदोनिय्याह ने स्वयं को राजा बना दिया है, और तू इस बारे में कुछ भी नहीं जानता।
\v 19 उसने बहुत सारे बैलों और परिपुष्ट पशुओं और भेड़ों का बलिदान किया है, और उसने तेरे सभी अन्य पुत्रों को उत्सव में आमंत्रित किया है। उसने याजक एब्यातार और योआब सेनाध्यक्ष को भी आमंत्रित किया, लेकिन उसने तेरे पुत्र सुलैमान को आमंत्रित नहीं किया।
\s5
\v 20 महामहिम, इस्राएल के सभी लोग तुझसे यह आशा कर रहे हैं कि तू बताएगा कि वह कौन है जो राजा बनेगा जब तू हमारे बीच नहीं रहेंगे।
\v 21 यदि तू ऐसा नहीं करता है, तब तेरे मरने के बाद लोग मानेंगे कि मैं और मेरा पुत्र सुलैमान विद्रोह कर रहे हैं, और वे हमें मृत्युदंड देंगे क्योंकि हमने अदोनिय्याह को राजा बनने में सहायता नहीं की थी।"
\p
\s5
\v 22 जब वह राजा से बातें कर ही रही थी, तब नातान महल में आया।
\v 23 राजा के कर्मचारियों ने दाऊद से कहा, "नातान भविष्यद्वक्ता आया है।" तो बतशेबा चली गई, और नातान उस स्थान पर गया जहाँ राजा था और घुटने टेक कर, मुँह के बल झुका।
\p
\s5
\v 24 तब नातान ने कहा, "हे महामहिम, क्या तूने घोषणा की है कि अदोनिय्याह तेरे बाद राजा बनेगा?
\v 25 मैं यह इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज वह एनरोगेल के पास गया है और उसने बहुत सारे बैल, परिपुष्ट पशुओं और भेड़ों की बलि दी। और उसने तेरे सभी अन्य पुत्रों, योआब सेनाध्यक्ष और याजक एब्यातार को आमंत्रित किया है। वे सब उसके साथ खा पी रहे हैं और कह रहे हैं, 'हमें आशा है कि राजा अदोनिय्याह लम्बे समय तक जीवित रहेगा!'
\s5
\v 26 परन्तु उसने मुझे या सादोक याजक या बनायाह या सुलैमान को आमंत्रित नहीं किया।
\v 27 क्या तूने कहा था कि उन्हें तेरे अन्य अधिकारियों को बताए बिना ऐसा करना चाहिए कि तेरे बाद कौन राजा बनेगा जब तू राजा नहीं रहेगा? "
\p
\s5
\v 28 तब राजा दाऊद ने कहा, "बतशेबा को बोलो कि वह यहाँ दुबारा आए।" कोई उसके पास गया और उसे बताया, वह अन्दर आई और राजा के सामने खड़ी हुई।
\p
\v 29-30 तब राजा ने कहा, "यहोवा ने मुझे मेरी सारी परेशानियों से बचा लिया है। मैंने तुझसे जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, उनके समक्ष वादा किया था कि तेरा पुत्र सुलैमान राजा बनेगा, जब मैं राजा नहीं रहूँगा। आज, निश्चित रूप से जिस तरह यहोवा जीवित हैं, मैं सत्यनिष्ठा से घोषणा करता हूँ कि मैं वही करूँगा जो मैंने वादा किया था।"
\v 31 बतशेबा ने घुटने टेक कर स्वयं को भूमि की ओर झुकाकर कहा, "हे महामहिम, मुझे आशा है कि तू चिरंजीवी रहेगा!"
\p
\s5
\v 32 तब राजा दाऊद ने एक दास से कहा, "याजक सादोक, नातान भविष्यद्वक्ता, और बनायाह को बुलाओ।" दास गया और उनको बुलाया। जब वे अन्दर आए,
\v 33 उसने उन से कहा, "मेरे पुत्र सुलैमान को मेरे खच्चर पर बैठाओ। उसे मेरे अधिकारियों के साथ गीहोन के झरने के पास ले जाओ।
\v 34 वहाँ, तुम दोनों, सादोक और नातान, उसे इस्राएल पर राजा नियुक्त करने के लिए, जैतून के तेल से अभिषेक करना । तब तुम दोनों तुरही बजाओगे, और तब वहाँ सभी लोग चिल्लाएँगे , ' हम आशा करते है कि राजा सुलैमान युग युग जीयें!'
\s5
\v 35 फिर उसे यहाँ वापस लाओ, वह आएगा और मेरे सिंहासन पर बैठेगा। तब वह मेरे बदले राजा बन जाएगा। मैंने उसे इस्राएल और यहूदा के सभी लोगों का शासक नियुक्त किया है।"
\p
\v 36 बनायाह ने उत्तर दिया, "हम ऐसा ही करेंगे, हम आशा करते हैं कि यहोवा, जो हमारे और तेरा परमेश्वर हैं, ऐसा होने का कारण बनेंगे।
\v 37 राजा दाऊद, यहोवा ने तेरी सहायता की है। हमें आशा है कि वह सुलैमान की भी सहायता करेंगे और उसको तुझसे भी बड़ा राजा बनने में सक्षम बनाएँगे।"
\p
\s5
\v 38 तब सादोक, नातान, बनायाह, और पुरुषों के दो समूह जो राजा के अंगरक्षक थे, गए और सुलैमान को राजा दाऊद के खच्चर पर बैठा कर गीहोन के झरने के पास ले गए।
\v 39 सादोक ने पवित्र तम्बू से जैतून के तेल का पात्र लिया और सुलैमान का अभिषेक किया । तब उनमें से दो ने तुरही बजाई, और सभी लोग चिल्लाने लगे, "हमें आशा है कि राजा सुलैमान युग युग तक जीयें!"
\v 40 तब सब लोग उसके पीछे शहर में चले गए, हर्ष से चिल्लाते और बाँसुरी बजाते हुए। वे इतने जोर से चिल्लाये, कि भूमि हिल गई।
\p
\s5
\v 41 जब अदोनिय्याह और उसके सारे अतिथि उत्सव में भोजन कर चुके तब उन्होंने शोर सुना। जब योआब ने तुरही की आवाज़ सुनी, तो उसने पूछा, "शहर में उस तरह के शोर का क्या अर्थ है?"
\p
\v 42 जब वह अभी बातें कर ही रहा था, तब याजक एब्यातार का पुत्र योनातान पहुँचा अदोनिय्याह ने कहा, "अन्दर आ! तू ऐसे मनुष्य है जिस पर हम भरोसा कर सकते हैं, अत: अवश्य ही तू हमारे लिए कोई शुभ समाचार लाया होगा!"
\p
\s5
\v 43 योनातान ने उत्तर दिया, "नहीं, मेरे पास शुभ समाचार नहीं है! महामहिम, राजा दाऊद ने सुलैमान को राजा बनाया है!
\v 44 उसने सुलैमान के साथ जाने के लिए सादोक, नातान, बनायाह और अपने अंगरक्षकों के समूह को भेजा। उन्होंने सुलैमान को राजा दाऊद के खच्चर पर बैठा रखा है।
\v 45 वे गीहोन के झरने के पास उतरे, और वहाँ सादोक और नातान ने सुलैमान का राजा बनने के लिए अभिषेक किया। अब वे वहाँ से हर्ष से चिल्लाते हुए, शहर लौट आए हैं। यही कारण है कि तुम सबकों वह महान शोर सुनाई दे रहा है।
\s5
\v 46 इस कारण अब सुलैमान हमारा राजा है।
\v 47 इसके अलावा, महल के अधिकारी महामहिम राजा दाऊद के पास आए, उन्हें यह बताने के लिए कि उसने जो कुछ किया है, वह उससे सहमत हैं। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि परमेश्वर सुलैमान को तुझसे भी अधिक प्रसिद्ध बनाए और उसे तुझ से बेहतर राजा बनने में सक्षम बनाए।' जब उन्होंने ऐसा कहा, तब राजा ने, अपने बिस्तर पर लेटे हुए, यहोवा की आराधना के लिए अपना सिर झुकाया।
\v 48 फिर उसने कहा, 'मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, क्योंकि उन्होंने मेरे पुत्रों में से एक को आज राजा बनने दिया और मुझे यह देखने की अनुमति दी है।'"
\p
\s5
\v 49 तब अदोनिय्याह के सभी अतिथि काँप उठे, इसलिए वे सब जल्दी से उठकर चले गए और फैल गए।
\v 50 अदोनिय्याह डर रहा था कि सुलैमान क्या करेगा, इसलिए वह पवित्र तम्बू में गया और वेदी के कोनों पर रखी सामग्री को ले लिया, क्योंकि उसने सोचा कि कोई भी उसे वहा नहीं मारेगा।
\v 51 परन्तु किसी ने सुलैमान से कहा, "देख, अदोनिय्याह तुझ से डरता है, इसलिए वह पवित्र तम्बू में गया है और वेदी को पकड़ रखा है। वह कह रहा है, 'निकलने से पहले, मैं चाहता हूँ कि राजा सुलैमान सत्यनिष्ठा से वादा करे कि मुझे मार डालने का आदेश नहीं देगा।'"
\p
\s5
\v 52 सुलैमान ने उत्तर दिया, "यदि वह सिद्ध करता है कि वह मेरे प्रति निष्ठावान है, तो मैं उसे कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा। लेकिन यदि वह कुछ भी गलत करता है, तो उसे मार दिया जाएगा।"
\v 53 तब राजा सुलैमान ने कुछ लोगों को अदोनिय्याह के पास भेजा, और वे उसे वेदी से वापस लाए। वह सुलैमान के पास आया और उसके सामने झुक गया। तब सुलैमान ने उससे कहा, "घर जा।"
\s5
\c 2
\p
\v 1 जब दाऊद ने जाना कि वह मरने वाला है, तो उसने अपने पुत्र सुलैमान को यह अंतिम निर्देश दिया:
\p
\v 2 "मैं मरने वाला हूँ, जैसे धरती पर हर कोई मरता है। साहसी बन और पुरुष की तरह अपना आचरण बना।
\v 3 जो कुछ हमारे परमेश्वर यहोवा तुझे करने के लिए कहते हैं, कर। स्वयं का आचरण उनकी इच्छानुसार व्यवस्थित करना। मूसा द्वारा हमें दी गई व्यवस्था में लिखे सभी नियमों और आज्ञाओं और निर्देशों का पालन करना। ऐसा कर ताकि जो कुछ तू करता और जहाँ कहीं तू जाता है उसमें उन्नत्ति करे।
\v 4 यदि तू लगातार ऐसा करता है, तो यहोवा वही करेंगे जो उन्होंने मुझसे वादा किया था। उन्होंने कहा, था 'यदि तेरे वंशज जो मैं उन्हें करने के लिए कहता हूँ, और पुरे प्राण के साथ विश्वासयोग्यता से मेरे आदेशों का पालन करते हैं, तो वे हमेशा इस्राएलियों पर शासन करेंगे।'
\p
\s5
\v 5 मैं चाहता हूँ कि तू कुछ और कर। तू जानता है जो योआब ने मेरे साथ किया था। उसने मेरी सेना के दो प्रधानों, अब्नेर और अमासा को मार डाला। उसने उन्हें हिंसक तरीके से मार डाला। वह हत्या का दोषी है।
\v 6 क्योंकि तू बुद्धिमान है, इसलिए तुझ उसके लिए जो कुछ भी करना उत्तम लगता है, वही कर लेकिन उसे बूढ़े होने और शान्ति से मरने न देना।
\p
\s5
\v 7 परन्तु गिलाद क्षेत्र के व्यक्ति बर्जिल्लै के पुत्रों के प्रति दयालु बने रह, और सुनिश्चित कर कि उनके पास सदैव खाने के लिए पर्याप्त भोजन है। ऐसा इसलिए करो क्योंकि जब मैं तेरे बड़े भाई अबशालोम से भाग रहा था तब बर्जिल्लै ने मेरी सहायता की थी।
\p
\s5
\v 8 इसके अलावा, तू बहरीम शहर के उस क्षेत्र से गेरा के पुत्र शिमी को याद रख जहाँ बिन्यामीन के वंशज रहते हैं। तू जानता है कि उसने मेरे साथ क्या किया। जिस दिन मैंने यरूशलेम छोड़ा और महनैम शहर गया, उस दिन उसने मुझे भयानक शाप दिया। लेकिन जब वह बाद में मुझसे भेंट के लिए नीचे आया जब मैं यरदन नदी पार कर रहा था, तो मैंने सत्यनिष्ठपूर्वक वादा किया, यहोवा भी सुन रहे थे, कि मैं उसे मारने का कारण नहीं बनूँगा।
\v 9 लेकिन अब तुझको निश्चित रूप से उसे दण्डित करना होगा। तू एक बुद्धिमान व्यक्ति है, इसलिए तू जान लेगा कि तुझे उसके साथ क्या करना चाहिए। वह एक बूढ़ा व्यक्ति है, लेकिन यह सुनिश्चित करना कि उसके मरने पर उसका खून बहे । "
\p
\s5
\v 10 जब दाऊद की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम के उस भाग में मिट्टी दी गई जिसे दाऊद नगर कहा जाता था।
\v 11 दाऊद चालीस वर्षों तक इस्राएल का राजा रहा। उसने हेब्रोन में सात वर्ष और यरूशलेम में तैंतीस वर्ष तक शासन किया।
\v 12 सुलैमान अपने पिता दाऊद की जगह शासक बन गया और उसने सम्पूर्ण राज्य पर नियंत्रण कर लिया।
\p
\s5
\v 13 एक दिन अदोनिय्याह सुलैमान की माँ बतशेबा के पास आया । उसने उससे कहा, "क्या तू भली मनसा से आया है?" उसने उत्तर दिया, "हाँ।"
\p
\v 14 लेकिन फिर उसने कहा, "मेरे पास तुझ से अनुरोध करने के लिए कुछ है।" उसने कहा, "मुझे बता कि तू मुझ से क्या कहना चाहता है।"
\p
\v 15 उसने कहा, "तू जानती है कि सभी इस्राएली लोगों ने मुझसे राजा बनने की आशा की क्योंकि मैं दाऊद का सबसे बड़ा पुत्र हूँ, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि, मेरा छोटा भाई राजा बन गया, क्योंकि यहोवा यही चाहते थे।
\p
\s5
\v 16 अब मेरा एक काम है जिसके लिए मैं तुझसे अनुरोध करता हूँ। कृपया इसे करने से मना मत करना। "उसने उत्तर दिया," मुझे बता कि तू मुझसे क्या चाहता है।"
\p
\v 17 उसने कहा, "कृपया राजा सुलैमान से कह कि शूनेमिन शहर की महिला अबीशग को मेरी पत्नी बनने के लिए दे । मुझे निश्चय है कि वह मना नहीं करेगा।"
\p
\v 18 बतशेबा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं तेरे लिए राजा से बात करूँगी।"
\p
\s5
\v 19 तब बतशेबा राजा सुलैमान के पास गई । राजा अपने सिंहासन से उठा और उसे अभिवादन करने गया और उसकी ओर झुका और फिर अपने सिंहासन पर बैठ गया और किसी से उसके लिए कुर्सी मंगवाई । फिर वह राजा के दाहिने तरफ बैठ गई।
\p
\v 20 तब उसने कहा, "मेरी एक छोटी सी बात है जो मैं चाहती हूँ कि तू कर। कृपया यह मत कहना कि तू ऐसा नहीं करेगा।" राजा ने उत्तर दिया, "माँ, तू क्या चाहती है? मैं तुझे मना नहीं करूँगा।"
\p
\v 21 उसने कहा, "अबीशग को अपने बड़े भाई अदोनिय्याह की पत्नी होने के लिए दें।"
\p
\s5
\v 22 राजा ने गुस्से में उत्तर दिया, "क्या? क्या तू मुझे अबीशग को अदोनिय्याह को देने का अनुरोध कर रही है? क्या वह चाहता है कि मैं उसे राज्य पर शासन करने की भी अनुमति दूँ , क्योंकि वह मेरा बड़ा भाई है, क्या वह सोचता है कि उसे राजा होना चाहिए? क्या वह सोचता है कि एब्यातार को सादोक की बजाय याजक होना चाहिए, और योआब को बनायाह की बजाय सेना का प्रधान होना चाहिए क्योंकि जब उसने राजा बनने का प्रयास किया तो उन्होंने उसे समर्थन दिया? "
\p
\v 23 तब सुलैमान ने सत्यनिष्ठापूर्वक यहोवा को सुनने का आग्रह करते हुए वादा किया, "मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर मुझ पर प्रहार करें और मुझे मार डालें, अगर मैं इस अनुरोध के कारण अदोनिय्याह को मारने का कारण नहीं ठहरता !
\p
\s5
\v 24 यहोवा ने मुझे राजा बनने के लिए नियुक्त किया है और मुझे मेरे पिता दाऊद के रूप में शासन करने के लिए यहाँ स्थापित किया है। उन्होंने वादा किया है कि मेरे वंशज इस्राएल के राजा होंगे। निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं, अत: मैं सत्यनिष्ठापूर्वक वादा करता हूँ कि आज ही अदोनिय्याह मार डाला जाएगा! "
\v 25 तब राजा सुलैमान ने बनायाह को अदोनिय्याह को मारने का आदेश दिया, और बनायाह ने ऐसा किया।
\p
\s5
\v 26 तब सुलैमान ने याजक एब्यातार से कहा, "वहाँ अनातोत के नगर अपने देश में जा। तू मरने के योग्य है, परन्तु मैं अब तुझे मृत्युदण्ड नहीं दूँगा, क्योंकि तू ही ऐसा व्यक्ति था जिसने मेरे पिता दाऊद के लिए यहोवा के पवित्र सन्दूक को उठानेवालों की देखभाल कि थी, और तुने मेरे पिता के साथ सभी परेशानियों को सहन किया। "
\v 27 तब सुलैमान ने एब्यातार को यहोवा के याजक पद से हटा दिया। ऐसा करने से वह हुआ जो यहोवा ने कई वर्षों पहले शीलो में कहा था, कि किसी दिन वह एली के वंशजों से छुटकारा पाएगा।
\p
\s5
\v 28 योआब ने अबशालोम का समर्थन नहीं किया जब उसने राजा बनने का प्रयास किया था, लेकिन उसने अदोनिय्याह का समर्थन किया था। तो जब योआब ने सुना कि क्या हुआ, तो वह पवित्र तम्बू में भाग गया, और उसने वेदी को पकड़ लिया क्योंकि उसने सोचा था कि कोई उसे वहाँ नहीं मारेगा।
\v 29 जब किसी ने सुलैमान से कहा कि योआब पवित्र तम्बू में भाग गया है और वेदी को पकड़ रखा है, तो सुलैमान ने बनायाह से कहा, "जा और योआब को मार डाल।"
\p
\s5
\v 30 तब बनायाह पवित्र तम्बू में गया और योआब से कहा, "राजा आज्ञा देता है कि तू बाहर आ।" लेकिन योआब ने उत्तर दिया, "नहीं, मैं यहीं मर जाऊँगा।" तो बनायाह राजा के पास वापस गया और बताया कि उसने योआब से क्या कहा था, और योआब ने क्या उत्तर दिया था।
\p
\v 31 राजा ने उस से कहा, "जो कुछ उसने अनुरोध किया वैसा कर। उसे मार डाल और उसके शरीर को गाड़ दे। यदि तू ऐसा करता है, तब योआब ने जो कुछ किया था, उसके लिए मैं और मेरे वंशजों को दंडित नहीं किया जाएगा, उसने दो लोगों को मार डाला जो निर्दोष थे।
\p
\s5
\v 32 परन्तु मुझे आशा है कि यहोवा योआब को इस्राएल की सेना के प्रधान अब्नेर और यहूदा की सेना के प्रधान अमासा पर हमला करने और मारने के लिए दण्डित करेंगे, जो उसके मुकाबले बेहतर पुरुष थे। मेरे पिता दाऊद को यह भी नहीं पता था कि योआब उन दोनों को मारने की योजना बना रहा था।
\v 33 मुझे आशा है कि यहोवा योआब और उसके वंशजों को सर्वदा के लिए अब्नेर और अमासा की हत्या के लिए दण्डित करेंगे । लेकिन मुझे आशा है कि दाऊद के वंशजों के लिए चीजें सर्वदा भली हों जो शासन करते हैं जैसा उसने शासन किया ।"
\p
\s5
\v 34 तब बनायाह पवित्र तम्बू में गया और योआब को मार डाला। योआब को यहूदा के जंगल में उसकी निज भूमि में मिट्टी दी गई ।
\v 35 तब राजा ने बनायाह को योआब की जगह सेना का प्रधान नियुक्त किया, और उसने सादोक को एब्यातार की जगह याजक बनने के लिए नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 36 तब राजा ने शिमी को बुलाने के लिए एक दूत भेजा, और राजा ने उससे कहा, "यरूशलेम में अपने लिए एक घर बना। वहाँ रह और शहर छोड़कर कहीं मत जा।
\v 37 यह सुनिश्चित कर ले कि जिस दिन तू यरूशलेम छोड़कर किद्रोन नाले के पार जाएगा, तुझको मार डाला जाएगा, और यह तेरी गलती होगी। "
\p
\v 38 शिमी ने उत्तर दिया, "हे महामहिम, जो तू कहता है वह अच्छा है। तुने जो कहा है वह मैं करूँगा।" तो शिमी कई वर्षों तक यरूशलेम में रहा।
\p
\s5
\v 39 लेकिन तीन साल बाद, शिमी के दो दास भाग गए। वे गत शहर के राजा माका के पुत्र आकीश के साथ रहने लगे। जब किसी ने शिमी को बताया कि वे गत में है,
\v 40 उसने अपने गधे पर एक काठी लगाई और गधे पर बैठकर गत गया। उसने राजा आकीश के साथ रहनेवाले अपने दासों को पाया और उन्हें घर वापस ले आया।
\p
\s5
\v 41 परन्तु किसी ने राजा सुलैमान से कहा कि शिमी यरूशलेम से गत गया था और लौट आया है।
\v 42 तब राजा ने शिमी को बुलाने के लिए एक सैनिक भेजा और उससे कहा, "मैंने तुझको सत्यनिष्ठापूर्वक यहोवा के समक्ष यह वादा करने के लिए कहा था कि, तू यरूशलेम नहीं छोड़ेगा। मैंने तुझसे कहा, 'सुनिश्चित कर कि यदि तू कभी यरूशलेम छोड़ेगा, तुझको मार डाला जाएगा' और तूने मुझे उत्तर दिया, 'तुने जो कहा है वह अच्छा है; मैं वह करूँगा जो तुने कहा है।'
\p
\s5
\v 43 तो तूने ऐसा क्यों नहीं किया जो तुने परमेश्वर से सत्यनिष्ठापूर्वक वादा किया था? मैंने जो आज्ञा दी थी, उसका उल्लंघन क्यों किया? "
\p
\v 44 राजा ने शिमी से कहा, "तू स्वयं जानता है उन सभी बुरे कामों को जो तुने मेरे पिता दाऊद के लिए किए थे। इसलिए यहोवा अब तुम्हें उन बुरे कामों के लिए दण्डित करेंगे।
\p
\s5
\v 45 परन्तु यहोवा मुझे आशीर्वाद देंगे, और दाऊद के वंशजों को सर्वदा के लिए शासन करने में सक्षम बनाएँगे।"
\p
\v 46 तब राजा ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को आज्ञा दी। वह बाहर गया और उसने शिमी को मार डाला।
\p अतः सुलैमान ने राज्य को सम्पूर्ण नियंत्रण में ले लिया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 जब सुलैमान ने राजा की बेटी से शादी करने के लिए एक समझौता किया था। और सुलैमान राजा की बेटी को यरूशलेम के एक भाग में रहने के लिए ले आया जिसे दाऊद नगर कहते थे। वह तब तक वहाँ रही जब तक सुलैमान के कार्यकर्ताओं ने उसका घर, यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारों ओर की दीवार का निर्माण पूरा नहीं किया।
\v 2 उस समय तक यहोवा का भवन नहीं बनाया गया था, इसलिए इस्राएली उपासना के लिए कई अन्य स्थानों पर बलि चढ़ाते थे।
\v 3 सुलैमान यहोवा से प्रेम करता था, और उसने अपने पिता दाऊद के दिए सभी निर्देशों का पालन किया। लेकिन उसने विभिन्न स्थानों पर बलि चढ़ाई और धूप जलाई।
\p
\s5
\v 4 एक दिन राजा गिबोन शहर में बलि चढ़ाने के लिए गया, क्योंकि वह उपासना का प्रसिद्ध स्थान था। उसने वहाँ हजारों होमबलियाँ चढ़ाई।
\v 5 उस रात, यहोवा स्वप्न में उसके सामने प्रकट हुए। उन्होंने उससे पूछा, "तू मुझसे क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?"
\p
\s5
\v 6 सुलैमान ने उत्तर दिया, "आप हमेशा मेरे पिता दाऊद से बहुत प्यार करते थे, जिसने आपकी अच्छी तरह से सेवा की थी। आपने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे आपके प्रति विश्वासयोग्य रहे और आपके लिए धार्मिकता के काम भी किए और आपने दिखाया है कि आपने उसे कितनी महानता और विश्वासयोग्यता से प्यार किया, मुझ जैसे बेटे को उसे देकर, और अब मैं शासन कर रहा हूँ जैसा कि उसने अपने जीवनकाल में किया था।
\p
\s5
\v 7 अब, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, आपने मुझे मेरे पिता की तरह राजा बनने में सक्षम बनाया है। लेकिन मैं एक छोटे बच्चे की तरह बहुत नादान हूँ । मुझे नहीं पता कि मेरे लोगों पर शासन कैसे करूँ।
\v 8 मैं उन लोगों के बीच रहता हूँ जिन्हें आपने चुना है। उन लोगों का एक बहुत बड़ा समूह है। वे बहुत संख्य में हैं; कोई भी उन्हें गिन नही सकता है।
\v 9 कृपया मुझे स्पष्ट रूप से सोचने योग्य बनाएं, ताकि मैं आपके लोगों पर भली-भाँति शासन कर सकूँ। मुझे यह जानने के योग्य बनाएं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो मैं कभी भी आपके लोगों के इस विशाल समूह पर शासन नहीं कर सकूँगा।"
\p
\s5
\v 10 यहोवा बहुत प्रसन्न हुए कि सुलैमान ने उनसे यह अनुरोध किया था।
\v 11 परमेश्वर ने उससे कहा, "तुने दीर्घायु होने या बहुत धनवान होने या अपने समस्त शत्रुओं को मारने योग्य होने का अनुरोध नहीं किया है । इसकी बजाय, तुने अनुरोध किया है कि मैं तुझको बुद्धिमान बना दूँ ताकि तू इन लोगों को नियंत्रित करते समय उचित जानने के योग्य और उचित करने के योग्य हो सके।
\v 12 अत: मैं निश्चित रूप से तेरे द्वारा किए गए अनुरोध को पूरा करूँगा। मैं तुझको बहुत बुद्धिमान होने योग्य बनाऊँगा। परिणाम यह होगा कि न तुझ से पहले न तेरे बाद कभी कोई उतना बुद्धिमान होगा जितना तू होगा।
\p
\s5
\v 13 मैं तुझको वे चीजें भी दूँगा जिनके लिए तुने अनुरोध नहीं किया। जितने वर्ष तू जीवित रहेगा मैं तुझको बहुत समृद्ध और सम्मानित बनाऊँगा। तू किसी अन्य राजा की तुलना में अधिक धनवान और अधिक सम्मानित होगा।
\v 14 यदि तू अपने जीवन का संचालन वैसे करता रहे, जैसा कि मैं चाहता हूँ, और यदि तू अपने पिता दाऊद के अनुसार मेरे सभी नियमों और आज्ञाओं का पालन करता रहे, तो मैं तुझको कई वर्षों तक जीवित रहने के योग्य बनाऊँगा।"
\p
\s5
\v 15 तब सुलैमान जाग गया, और उसने अनुभव किया कि परमेश्वर ने स्वप्न में उससे बातें की थीं। तब वह यरूशलेम गया और पवित्र तम्बू के सामने खड़ा हुआ जहाँ पवित्र सन्दूक था, और वहाँ उसने कई होमबलि और मेलबलि चढ़ाए जो वेदी पर पूरी तरह जला दिए गए और मेलबलि जो यहोवा के साथ मित्रता का वादा करने के लिए थे। फिर उसने अपने सभी अधिकारियों के लिए भोज रखा।
\p
\s5
\v 16 एक दिन दो वेश्याएँ आईं और राजा सुलैमान के सामने खड़ी हो गईं।
\v 17 उनमें से एक ने कहा, "महामहिम, यह स्त्री और मैं एक ही घर में रहती हैं। मैंने एक बच्चे को जन्म दिया जब यह भी वहाँ थी।
\p
\s5
\v 18 मेरे बच्चे के जन्म के तीसरे दिन, इस स्त्री ने भी एक बच्चे को जन्म दिया। हम दोनों ही घर में थीं। वहाँ कोई और नहीं था।
\p
\v 19 लेकिन एक रात इस स्त्री के बच्चे की मृत्यु हो गई क्योंकि यह गलती से अपने बच्चे के ऊपर लेट गई और उसे दबा दिया।
\v 20 तो यह आधी रात को उठी और मेरे बच्चे को ले गई जो मेरी बगल में सो रहा था। वह उसे अपने बिस्तर पर ले गई और अपना मृत बच्चा लाकर उसे मेरे बिस्तर में लिटा दिया।
\p
\s5
\v 21 जब मैं अगली सुबह जागी और मेरे बच्चे की देखभाल करने के लिए तैयार हुई, मैंने देखा कि वह मर चुका था। लेकिन जब मैंने सुबह की रोशनी में ध्यान से देखा, मैंने देखा कि वह मेरा बच्चा नहीं था!"
\p
\v 22 लेकिन दूसरी स्त्री ने कहा, "यह सच नहीं है! जीवित बच्चा मेरा है, और जो बच्चा मर चुका है वह तेरा है!" तब पहली स्त्री ने कहा, "नहीं, मृत बच्चा तेरा है, और जो जीवित है वह मेरा है!" और वे राजा के सामने बहस करती रहीं।
\p
\s5
\v 23 तब राजा ने कहा, "तुम दोनों कह रही हो, 'जीवित बच्चा मेरा है और जो मर चुका है वह तेरा है।'"
\v 24 उसने अपने एक दास से कहा, "मुझे तलवार दे।" तो दास ने राजा को तलवार दी।
\v 25 तब राजा ने दास से कहा, "जीवित बच्चे को दो भागों में काट दे। प्रत्येक स्त्री को एक एक हिस्सा दे दो।"
\p
\s5
\v 26 परन्तु जिस स्त्री का बच्चा जीवित था, वह अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी, इसलिए उसने राजा से कहा, "नहीं, महामहिम! उसे बच्चे को मारने की अनुमति न दें! इस स्त्री को वह बच्चा जीवित दे दो!" लेकिन दूसरी स्त्री ने राजा से कहा, "नहीं, इसे दो भागों में काट दो। तब न वह उसका बच्चा रहेगा न मेरा बच्चा रहेगा।"
\p
\v 27 तब राजा ने दास से कहा, "बच्चे को मत मार। बच्चे को उस स्त्री को दे दे जिसने कहा, 'बच्चे को दो भागों में मत काटो, क्योंकि वह वास्तव में बच्चे की माँ है।"
\p
\v 28 सभी इस्राएली लोगों ने राजा के निर्णय के विषय सुना, और उसके लिए उसका बहुत अद्भुत सम्मान हुआ। उन्होंने अनुभव किया कि परमेश्वर ने वास्तव में उसे लोगों के मामलों का निष्पक्ष रूप से न्याय करने के लिए बहुत बुद्धिमान बनने में सक्षम बनाया है।
\s5
\c 4
\p
\v 1 अब जब सुलैमान समस्त इस्राएल पर राजा था,
\v 2 ये उसके सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी थे:
\q अजर्याह याजक, जिसका पिता सादोक था।
\q
\v 3 शिशा के पुत्र एलीहोरोप और अहिय्याह आधिकारिक सचिव थे।
\q अहीलूद का पुत्र यहोशापात वह था जिसने लोगों के लिए राजा के फैसले की घोषणा की थी।
\q
\v 4 बनायाह सेना का प्रधान था।
\q सादोक और एब्यातार भी याजक थे।
\p
\s5
\v 5 अजर्याह, जिसका पिता नातान था, राज्यपालों का प्रभारी था।
\q नातान के पुत्रों में से एक, जाबूद याजक और राजा का मुख्य सलाहकार था।
\q
\v 6 अहिशार ने महल में काम करने वाले दासों की देखरेख की।
\q अब्दा के पुत्र अदोनीराम ने उन पुरुषों की निगरानी की जिन्हें राजा का काम करने के लिए मजबूर किया गया था।
\p
\s5
\v 7 सुलैमान ने इस्राएल के जिलों को नियंत्रित करने के लिए बारह पुरुषों को नियुक्त किया। वे राजा और अन्य सभी लोगों के लिए जो महल में रहते थे और काम करते थे भोजन का प्रबन्ध करते थे । प्रत्येक व्यक्ति को अपने जिले से प्रत्येक वर्ष एक महीने के लिए भोजन का प्रबन्ध करना आवश्यक था।
\v 8 उनके नाम थे:
\q एप्रैम के गोत्र के पहाड़ी इलाके के लिए, बेन्हूर।
\q
\v 9 माकस, शाल्बीम, बेतशेमेश और एलोन बेतानान के नगरों के लिए ,बेन्देकेर
\q
\v 10 अरुब्बोत और सोको के नगर और हेपेर शहर के पास के क्षेत्र के लिए, बेन्हेसेद
\p
\s5
\v 11 दोर के सभी जिले के लिए, बेन-अबीनादाब, जिसने सुलैमान की बेटी तापत से विवाह किया था
\q
\v 12 अहीलूद का पुत्र बाना, जिसके अधिकार में तानाक और मगिद्दो के नगर, सारतान शहर के पास के सभी इलाके और यिज्रेल के दक्षिण में बेतशान शहर से आबेल-महोला अर्थात् योकमाम के नगर तक,
\q
\v 13 बेनगेबेर, गिलाद के क्षेत्र में रामोत शहर के लिए, याईर के गांवों के लिए, जो मनश्शे के वंशज थे, और बाशान के क्षेत्र में अर्गोब के क्षेत्र। उस क्षेत्र में साठ बड़े शहर थे, प्रत्येक शहर के चारों ओर एक दीवार और सभी द्वारों पर पीतल के जंगले थे।
\q
\v 14 इद्दो के पुत्र अहिनादाब,को यरदन नदी के पूर्व महनैम शहर के लिए;
\p
\s5
\v 15 नप्ताली क्षेत्र के लिए अहीमास, जिसने सुलैमान की बेटी बासमत से विवाह किया था,
\q
\v 16 हूशै का पुत्र बाना, आशेर और अलोत शहर के लिए,
\q
\v 17 पारुह के पुत्र यहोशापात, इस्साकार के गोत्र के क्षेत्र के लिए,
\p
\s5
\v 18 एला के पुत्र शिमी, बिन्यामीन के गोत्र के क्षेत्र के लिए,
\q
\v 19 ऊरी के पुत्र गेबेर, गिलाद के क्षेत्र के लिए, जिस देश में आमोर के समूह के राजा सीहोन ने पहले शासन किया था, और ओग, जिसने पहले बाशान के क्षेत्र पर शासन किया था।
\p इन सबके अलावा, सुलैमान ने यहूदा के गोत्र के क्षेत्र के लिए एक राज्यपाल नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 20 यहूदा और इस्राएल में लोग समुद्र के किनारे के रेतकणों की तरह बहुत थे। उनके पास खाने और पीने के लिए बहुत कुछ था, और वे आनंदित थे।
\v 21 सुलैमान का राज्य पूर्वोत्तर में फरात नदी के क्षेत्र से पश्चिम में पलिश्तियों के प्रदेश तक और दक्षिण में मिस्र की सीमा तक फैल गया। उन क्षेत्रों के लोगों ने करों का भुगतान किया और अपने जीवन के दौरान सुलैमान के नियंत्रण में थे।
\p
\v 22 जिन लोगों पर सुलैमान ने शासन किया था, उन्हें हर दिन सुलैमान के लिए उत्तम आटे से लदे तीस गधे और गेहूँ से लदे साठ गधे
\v 23 पशुशाला में पले हुए पशुओं में से दस बैल और चारागाहों में पले हुए बीस बैल, सौ भेड़, घरेलू कुक्कुट और तैयार किए हुए पक्षी, हिरण, चिकारे और मृग लाने पड़ते थे।
\p
\s5
\v 24 सुलैमान ने फरात नदी के पश्चिम में उत्तर-पूर्व में तिप्सह शहर से दक्षिण-पश्चिम में गाजा शहर तक शासन किया। उसने उस क्षेत्र के सभी राजाओं पर शासन किया। उसकी सरकार और आस-पास के देशों की सरकारों के बीच शाँति थी।
\v 25 सुलैमान के शासन के वर्षों के दौरान, यहूदा और इस्राएल के लोग सुरक्षित थे।
\p
\s5
\v 26 सुलैमान के पास घोड़ों के लिए चालीस हजार घुड़शालायें थी, जो रथों को खींचते थे और बारह हजार घुड़सवार थे।
\p
\v 27 उसके बारह जिला राज्यपालों ने उस भोजन की आपूर्ति की जो राजा सुलैमान के लिए और महल में आए सभी लोगों के लिए जरूरी था। प्रत्येक राज्यपाल ने प्रत्येक वर्ष एक महीने के लिए भोजन की आपूर्ति की। उन्होंने सुलैमान को जो कुछ भी आवश्यक था, प्रदान किया।
\v 28 वे रथों को खींचने वाले तेज घोड़ों और अन्य काम के घोड़ों के लिए जौ की भूसी और गेहूँ भी लाए। उन्होंने इस चारे को उन जगहों पर रखा जहाँ घोड़ों को रखा गया था।
\p
\s5
\v 29 परमेश्वर ने सुलैमान को बेहद बुद्धिमान और महान समझ में सक्षम बनाया। उसने बड़ी संख्या में चीजों के विषय सीखने का आनंद लिया।
\v 30 वह इस्राएल के पूर्व के क्षेत्रों के सभी बुद्धिमान पुरुषों और मिस्र के सभी बुद्धिमान पुरुषों से अधिक बुद्धिमान था।
\v 31 एज्रा से एतान, हेमान, कलकोल और दरदा और महोल के पुत्रों को बहुत बुद्धिमान माना जाता था, परन्तु सुलैमान उन सभी से अधिक बुद्धिमान था। आस-पास के देशों के लोगों ने सुलैमान के विषय सुना।
\p
\s5
\v 32 उसने एक हजार से अधिक गीत रचे।
\v 33 उसने विभिन्न प्रकार के पौधों के विषय बातें की, लबानोन के विशाल देवदार के पेड़ से लेकर दीवारों की दरारों में बढ़ने वाले छोटे पौधों तक। उसने जंगली जानवरों, पक्षियों, सरीसृपों और मछलियों के विषय भी बातें की।
\v 34 पूरी दुनिया से लोग सुलैमान द्वारा बुद्धि की बातें सुनने के लिए आते थे । कई राजाओं ने पुरुषों को सुनने के लिए भेजा जिन्होंने लौटकर उन्हें बताया कि सुलैमान ने क्या कहा था।
\s5
\c 5
\p
\v 1 हीराम, सोर शहर का राजा जो सदैव राजा दाऊद का करीबी मित्र था। जब उसने सुना कि सुलैमान को राजा नियुक्त किया गया तो उसने सुलैमान के पास दूत भेजे।
\v 2 सुलैमान ने उन सन्देशवाहकों को वापस हीराम को यह सन्देश देने भेजा:
\v 3 "तू जानता है कि मेरे पिता दाऊद ने अपने सैनिकों को आस-पास के देशों में अपने शत्रुओं के विरुद्ध कई युद्ध लड़ने में नेतृत्व किया था। अत: वे परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाने का प्रयास नहीं कर सके जिसमें हम अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना कर सकते थे जब तक कि यहोवा ने इस्राएली सेना को अपने सभी शत्रुओं को हराने के लिए सक्षम नहीं किया ।
\p
\s5
\v 4 परन्तु अब हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें आस-पास के देशों के साथ शान्ति बनाए रखने में सक्षम बनाया है। कोई ऐसा संकट नहीं है कि हम पर हमला किया जाएगा।
\v 5 यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से वादा किया था, 'तेरा पुत्र, जिसे मैं तेरे बाद राजा बनाऊंगा, वह मेरे, परमेश्वर यहोवा के लिए एक भवन बनायेगा।'
\p
\s5
\v 6 इसलिए मैं अनुरोध करता हूँ कि तू अपने कर्मचारियों को मेरे लिए देवदार के पेड़ों को काटने की आज्ञा दे। मेरे कर्मचारी उनके साथ काम करेंगे, और जो कुछ तू तय करता है, मैं तेरे कर्मचारियों को अदा करूँगा। लेकिन मेरे कर्मचारी अकेले काम नहीं कर सकते क्योंकि वे नहीं जानते कि सीदोन शहर में तेरे कर्मचारियों की तरह कैसे पेड़ काटें।"
\p
\s5
\v 7 जब हीराम ने सुलैमान से सन्देश सुना, तो वह बहुत आनंदित हुआ और कहा, "आज मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ कि उस महान राष्ट्र पर शासन करने के लिए दाऊद को एक बुद्धिमान पुत्र दिया!"
\p
\v 8 उसने वापस यह सन्देश सुलैमान के पास भेजा, " मैंने तेरे भेजे सन्देश को सुना है, और तूने जो कुछ कहा है वह करने के लिए तैयार हूँ। मैं देवदार और सनोवर की लकड़ी प्रदान करूँगा।
\p
\s5
\v 9 मेरे कर्मचारी लबानोन पहाड़ों से भूमध्य सागर तक से लकड़ी लाएँगे। तब मेरे कर्मचारी उन्हें एक साथ जोड़ कर बेड़ा बनवाकर जिस स्थान के विषय तू कहेगा वहाँ समुद्र के किनारे पानी में लकड़ी को खोल देंगे, और तेरे कर्मचारी उन्हें वहाँ से ले जाएँगे। मैं चाहता हूँ कि तू मेरे कर्मचारियों के लिए भोजन की आपूर्ति कर।"
\p
\s5
\v 10 इसलिए हीराम ने अपने कर्मचारियों के लिए सभी देवदार और सनोवर लकड़ी की आपूर्ति करने की व्यवस्था की जो सुलैमान चाहता था।
\v 11 हर साल सुलैमान ने हीराम को उसके कर्मचारियों को खिलाने के लिए 3,520 घन मीटर गेहूँ और 416,350 लीटर शुद्ध जैतून का तेल दिया।
\v 12 यहोवा ने सुलैमान को बुद्धिमान होने में सक्षम बनाया, जैसा उसने वादा किया था। सुलैमान और हीराम ने संधि की।
\p
\s5
\v 13 राजा सुलैमान ने पूरे इस्राएल से तीस हजार लोगों को बंधुआ मजदूर बनाया।
\v 14 अदोनीराम उनका मालिक था। सुलैमान ने पुरुषों को तीन समूहों में विभाजित किया। प्रत्येक महीने उनमें से दस हजार लबानोन गए और वहाँ एक महीने तक काम किया, और फिर वे दो महीने के लिए घर वापस आये।
\p
\s5
\v 15 सुलैमान ने पहाड़ी देश में पत्थरों को तोड़ने के लिए अस्सी हजार लोगों को और पत्थरों को यरूशलेम तक खींचते हुए लाने के लिए सत्तर हजार पुरूषों को बंधुआ बनाया।
\v 16 उसने उनके काम की देखरेख के लिए 3,300 पुरुषों को भी नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 17 राजा ने अपने कर्मचारियों को खदानों से पत्थरों के विशाल खण्ड और पत्थरों के किनारों को चिकना बनाने का आदेश दिया। ये विशाल पत्थर भवन की नींव के लिए थे।
\v 18 सुलैमान के मजदूरों और हीराम के मजदूरों और गेबल शहर के पुरुषों ने पत्थरों को आकार दिया और भवन बनाने के लिए लकडियाँ तैयार की।
\s5
\c 6
\p
\v 1 इस्राएली लोगों के मिस्र छोड़ने के 480 साल बाद, सुलैमान के इस्राएल पर शासन करने के चौथे वर्ष के दौरान जीव नामक दूसरे महीने में, सुलैमान के कर्मचारियों ने भवन का निर्माण शुरू किया।
\p
\v 2 भवन का अंदरूनी मुख्य भाग सत्ताईस मीटर लम्बा, नौ मीटर चौड़ा, साढ़े तेरह मीटर ऊँचा था।
\p
\s5
\v 3 सामने वाला बरामदा साढ़े चार मीटर गहरा और भवन के मुख्य भाग के समान नौ मीटर चौड़ा था।
\v 4 भवन की दीवारों में खिड़कियों की तरह खुले छेद थे। छेद अन्दर की तुलना में बाहर की ओर संकुचित थे।
\p
\s5
\v 5 दोनों पक्षों और भवन की दीवारों के पीछे, उन्होंने एक ढांचा बनाया जिसमें कमरे थे। इस ढांचे में तीन स्तर थे; प्रत्येक स्तर सवा दो मीटर ऊँचा था।
\v 6 निचले स्तर पर प्रत्येक कमरा सवा दो मीटर चौड़ा था। मध्य स्तर में प्रत्येक कमरा दो और चार-पाँच मीटर चौड़ा था। शीर्ष स्तर के कमरे तीन और एक का दसवां भाग मीटर चौड़े थे। भवन की दीवार शीर्ष स्तर पर मध्य स्तर की तुलना में पतली थी, और मध्य स्तर की दीवार नीचे की दीवार की तुलना में पतली थी। इस तरह, उनके नीचे की दीवार पर कमरे स्थिर रह सकते थे; कमरों को सहारे के लिए लकड़ी की कड़ी की जरूरत नहीं थी।
\p
\s5
\v 7 भवन की नींव के लिए विशाल पत्थरों को खदानों में बहुत चिकना बनाने के लिए काटा और आकार दिया गया था। परिणाम यह रहा कि जब मजदूर भवन बना रहे थे, वहाँ कोई शोर नहीं था, क्योंकि उन्होंने वहाँ हथौड़ों या छेनी या किसी अन्य लोहे के उपकरण का उपयोग नहीं किया था।
\p
\v 8 इस संलग्न संरचना के नीचले स्तर प्रवेश द्वार भवन के दक्षिण की तरफ था। नीचे के स्तर से बीच और शीर्ष स्तर तक सीढ़ियाँ थीं।
\p
\s5
\v 9 सुलैमान के कार्यकर्ताओं ने भवन के ढांचे का निर्माण पूरा कर लिया। उन्होंने देवदार की लकड़ियों और तख्तों से छत बना दी।
\v 10 उन्होंने मुख्य कक्षों के साथ कमरे को तीन स्तरों के साथ बनाया, प्रत्येक सवा दो मीटर ऊँचे, और देवदार की कड़ियों से भवन के साथ मिला दिया ।
\p
\s5
\v 11 तब यहोवा ने सुलैमान से यह कहा,
\v 12 "मैं तुझे इस भवन के बारे में बताना चाहता हूँ जो तू बना रहा है। यदि तू लगातार मेरे सभी नियमों और आज्ञाओं का पालन करता रहे, तो मैंने तेरे पिता दाऊद से जो वादा किया था, वह मैं पूरा करूँगा।
\v 13 मैं इस भवन में इस्राएलियों के बीच रहूँगा, और मैं उन्हें कभी नहीं छोड़ूँगा। "
\p
\s5
\v 14 सुलैमान के मजदूर भवन बनाने के लिए काम करते थे।
\v 15 अन्दर, उन्होंने फर्श से छत तक कमरे को रेखांकित किया। उन्होंने देवदार की तख्तों से फर्श बनाया।
\p
\s5
\v 16 भवन के पीछे के भाग के अन्दर उन्होंने एक आंतरिक कमरा बनाया, जिसे अति पवित्र स्थान कहा जाता है। यह नौ मीटर लम्बा था। इस कमरे की सभी दीवारों को देवदार तख्तों के साथ रेखांकित किया गया था।
\v 17 अति पवित्र स्थान के सामने एक कमरा था जो अठारह मीटर लम्बा था।
\v 18 भवन के अन्दर की दीवारों पर देवदार तख्तों को लौकी और फूलों की नक्काशी से सजाया गया था। दीवारें पूरी तरह से देवदार तख्तों से ढकी हुई थीं, जिसके परिणामस्वरूप उनके पीछे की दीवारों के पत्थर नहीं दिखते थे।
\p
\s5
\v 19 भवन के पीछे उन्होंने पवित्र सन्दूक को रखने के लिए, अति पवित्र स्थान बनाया।
\v 20 वह कमरा नौ मीटर लम्बा, नौ मीटर चौड़ा, और नौ मीटर ऊँचा था। उन्होंने दीवारों को शुद्ध सोने की बहुत पतली परत से ढँक दिया। धूप जलाने के लिए उन्होंने देवदार तख्तों की एक वेदी भी बनाई।
\p
\s5
\v 21 सुलैमान ने उन्हें शुद्धसोने की बहुत पतली परत के साथ भवन के अन्दर की अन्य दीवारों को ढँकने और पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार पर सोने की चेन को मजबूत करने के लिए कहा।
\v 22 उन्होंने भवन की सारी दीवारें और वेदी जो अति पवित्र स्थान के बाहर थीं, सोने की बहुत पतली परत से ढँकीं थीं।
\p
\s5
\v 23 जैतून के पेड़ की लकड़ी से बने पवित्र स्थान के अन्दर पंखों के साथ दो प्राणियों की बड़ी मूर्तियाँ स्थापित की गई। प्रत्येक साढ़े चार मीटर लम्बी थी।
\v 24-26 प्रत्येक एक ही माप और एक ही आकार के थे। उनमें से प्रत्येक के दो पंख थे जो फैले हुए थे। प्रत्येक पंख सवा दो मीटर लम्बे थे, जिसके परिणामस्वरूप दो पंखों के बाहरी सिरों के बीच की दूरी साढ़े चार मीटर थी। प्रत्येक करुब की ऊँचाई साढ़े चार मीटर थी।
\p
\s5
\v 27 उन्होंने इन मूर्तियों को एक दूसरे की बगल में अति पवित्र स्थान पर रखा ताकि एक के पंख कमरे के केंद्र में दूसरे के एक पंख को, और बाहरी पँख दीवारों को छुए।
\v 28 उन्होंने मूर्तियों को सोने की बहुत पतली परत से ढँक दिया।
\p
\s5
\v 29 सुलैमान ने उन्हें पँख वाले प्राणियों और खजूर के पेड़ और फूलों के प्रतिरूप की नक्काशी करके मुख्य कमरे की दीवारों और अति पवित्र स्थान को सजाने के लिए कहा।
\v 30 उन्होंने सोने की बहुत पतली परत के साथ दोनों कमरों के फर्श को भी ढँका।
\p
\s5
\v 31 उन्होंने जैतून के पेड़ की लकड़ी से फाटकों का एक समूह बनाया, और उन्हें अति पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार पर स्थित किया । चौखट और फाटक के पांच प्रायोजित वर्ग थे।
\v 32 दरवाजे प्रतिरूपित पंख वाले प्राणियों, खजूरके पेड़ों और फूलों द्वारा सजाए गए थे। इन सभी चीजों को सोने की बहुत पतली परत से ढँक दिया गया था।
\p
\s5
\v 33 उन्होंने चार प्रायोजित वर्गों के साथ जैतून के पेड़ की लकड़ी से एक आयताकार फाटक बनाया, और इसे प्रवेश कक्ष और मुख्य कमरे के बीच स्थित किया।
\v 34 उन्होंने सनोवर की लकड़ी से मुड़नेवाले दो फाटक बनाए और उन्हें चौखट पर स्थित किया।
\v 35 फाटक भी पंख वाले प्राणियों, खजूर के पेड़ों और फूलों की नक्काशी से सजाए गए थे, और उन्हें सोने की बहुत पतली परत से समान रूप से ढँका गया था।
\p
\s5
\v 36 उन्होंने भवन के सामने एक आंगन बनाया। आंगन के चारों ओर की दीवारें देवदार और पत्थर से बनी थीं। दीवारों को बनाने के लिए, देवदार की कड़ी की प्रत्येक परत के बीच उन्होंने पत्थर की दो परतें डाली।
\p
\s5
\v 37 उन्होंने सुलैमान के शासन के चौथे वर्ष में, जीव के महीने में यहोवा के भवन की नींव रखी।
\v 38 शासनकाल के ग्यारहवें वर्ष के बूल के महीने में, उन्होंने भवन और उसके सभी हिस्सों का निर्माण पूरा किया, ठीक उसी तरह जैसा सुलैमान ने उन्हें करने के लिए कहा था। इसे बनाने में सात साल लगे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 उन्होंने सुलैमान के लिए एक महल भी बनाया, लेकिन इसे बनाने में तेरह साल लगे।
\v 2 उनके द्वारा बनाई गई इमारतों में एक बड़ा अनुष्ठानित सभा-भवन भी बनाया गया था। इसे लबानोन के वन का महल कहा जाता था। यह छियालीस मीटर लम्बा, तेईस मीटर चौड़ा, और चौदह मीटर ऊँचा था। यह देवदार के खंभों की चार पंक्तियों द्वारा समर्थित था। प्रत्येक पंक्ति में देवदार के कड़े थे।
\p
\s5
\v 3 बढ़ई ने देवदार के तख्ते से छत का निर्माण किया जो कड़े से जुड़े थे। बढ़ई ने देवदार कड़े के सहारे के लिए खम्भे बनाए। कुल पैंतालीस खंभे लगाए गए छत के सहारे के लिए प्रत्येक पंक्ति में पंद्रह खम्भे बनाये गये ।
\v 4 दोनों तरफ की दीवारों पर एक दूसरे के सामने खिड़कियों के तीन समूह थे।
\v 5 सभी खिड़कियों और दरवाजे के चौखट आयताकार थे। एक तरफ की लम्बी दीवार के साथ की खिड़कियाँ दूसरी तरफ की खिड़कियों के सामने थी।
\p
\s5
\v 6 उन्होंने खंभों से एक लम्बा कमरा भी बनाया; यह तेईस मीटर लम्बा और चौदह मीटर चौड़ा था। इसके सामने एक ढँका हुआ बरामदा था जिसकी छत खंभों के सहारे टिकी हुई थी।
\p
\s5
\v 7 तब उन्होंने सिंहासन के पास सभा-भवन नामक एक इमारत बनाई। इसे न्याय का सिंहासन भी कहा जाता था। यही वह स्थान था जहाँ सुलैमान लोगों के विवादों का निर्णय करता था। पूरा फर्श देवदार की लकड़ी से ढँका हुआ था।
\p
\s5
\v 8 न्याय के सिंहासन के पीछे आंगन में उन्होंने सुलैमान के लिए एक घर बनाया जो अन्य इमारतों की तरह बना था। उन्होंने उसकी पत्नी के लिए जो मिस्र के राजा की पुत्री थी उसी तरह का घर बनाया।
\p
\s5
\v 9 इन सभी इमारतों और महल के आंगन के चारों ओर की दीवारों को, नींव से छज्जे तक पत्थरों से बनाया गया था। यह ऐसे बहुमूल्य पत्थरों का था जो मजदूरों के द्वारा खदानों में से काटकर आवश्यक आकारों के अनुसार बनाया गया था, और पत्थरों के किनारे आरे से काटकर उन्हें चिकना बनाया गया था।
\v 10 तैयार किए गए बहुमूल्य पत्थरों के विशाल खण्ड से नींव भी बनाई गई थी। उनमें से कुछ लगभग पौने चार मीटर लम्बे थे और अन्य चार और चार-पाँच मीटर लम्बे थे।
\p
\s5
\v 11 नींव के पत्थरों के शीर्ष पर अन्य बहुमूल्य पत्थर थे जिन्हें उनके आवश्यक आकारों के साथ-साथ देवदार की लकड़ी के अनुसार काटा गया था।
\v 12 महल का आंगन, भवन के सामने का भीतरी आंगन, और भवन के सामने का आंगन देवदार की कड़ियों से जिनकी प्रत्येक परत के बीच कटे पत्थरों की तीन परतें डालकर दीवारें बनाई गई थीं।
\p
\s5
\v 13-14 वहाँ एक व्यक्ति था जो सोर शहर में रहता था जिसका नाम हूराम था। वह शिल्पकार था। उनके पिता भी सोर में रहते थे और पीतल की चीजें बनाने में भी बहुत कुशल थे, लेकिन हूराम के पिता अब जीवित नहीं थे। उनकी माँ नप्ताली के गोत्र से थी। हूराम बहुत बुद्धिमान और पीतल की चीजें बनाने में बहुत कुशल था। सुलैमान ने उसे यरूशलेम आने और पीतल की चीजों को बनाने के सभी कामों की निगरानी करने के लिए आमंत्रित किया, और हूराम भी सहमत हुआ।
\p
\s5
\v 15 उसने पीतल के दो खंभे बनाए। प्रत्येक सवा आठ मीटर लम्बा और परिधि में साढ़े आठ मीटर था।
\v 16 उसने खंभे के शीर्ष पर रखे जाने के लिए चमचमाते पीतल के दो ऊपरी भागों को भी बनाया। प्रत्येक शीर्ष सवा दो मीटर ऊँचा था।
\v 17 फिर उसने प्रत्येक खंभे के शीर्ष को सजाने के लिए पुष्पांजलि जैसी श्रृंखलाओं से पीतल की जालियाँ बनाई। प्रत्येक खंभे के शीर्ष पर ऐसी सात जालियाँ थी।
\p
\s5
\v 18 हूराम ने पीतल से अनार की तरह आकृतियां भी बनाईं। उन्होंने प्रत्येक खंभे के शीर्ष पर अनार की दो पंक्तियां बनाईं ।
\v 19 प्रत्येक खंभे के शीर्ष को सोसन के फूल का आकार दिया गया था। प्रत्येक सोसन के फूल का पत्ता एक और चार-पाँचवां मीटर लम्बा था।
\p
\s5
\v 20 इन शीर्षों को कटोरे के आकार वाले अनुभाग पर रखा गया था, प्रत्येक खंभे के शीर्ष के चारों ओर अनार की दो सौ आकृतियों की दो पंक्तियां थीं।
\v 21 उसके सहायकों ने भवन के प्रवेश द्वार के सामने खंभे स्थापित किए। दक्षिण की ओर खंभे का नाम याकीन रखा गया था, और उत्तर की ओर खंभे को बोअज़ नाम दिया गया था।
\v 22 पीतल के शीर्ष जो सोसन के फूल की तरह आकार के थे, खंभे के शीर्ष पर रखे गए थे।
\p हूराम और उसके सहायकों ने पीतल के खंभे बनाने का काम पूरा कर लिया।
\p
\s5
\v 23 हूराम ने "सागर" नामक बहुत बड़ा गोल पीतल का जल कुंड भी बनाया जो धातु से बना था और मिट्टी के साँचे में ढाला गया था। यह सवा दो मीटर लम्बा, चार और तीन-पाँचवें मीटर भर में था, और परिधि में पौने चौदह मीटर था।
\v 24 "सागर" के बाहरी किनारे के चारों ओर आकृतियों की दो पंक्तियां थीं जो पीतल से बनी लौकी जैसी दिखती थीं। लेकिन पीतल से बनी लौकी अलग से नहीं ढाली गयी थी। उन्हें जल कुंड के बाकी हिस्सों के समान साँचे में ढाला गया था। जल कुंड के किनारे के चारों ओर लम्बाई के प्रत्येक मीटर में लगभग पीतल से बनी अठारह लौकी थी।
\p
\s5
\v 25 हूराम ने पीतल की बारह बैलों की मूर्तियों को भी ढाला। उसने उन्हें बाहर की तरफ रखा। उसने उनमें से तीन को उत्तर की तरफ, तीन को पश्चिम की तरफ, तीन को दक्षिण की तरफ, और तीन को पूर्व की तरफ रखा । उसके सहायकों ने "सागर" नामक बड़े पीतल के जल कुंड को रखा ताकि वह बैलों की मूर्तियों की पीठ पर स्थापित हो सके।
\v 26 जल कुंड के किनारे आठ सेंटीमीटर मोटे थे। जल कुंड का किनारा कटोरे के किनारे की तरह था। यह सोसन के फूल की पंखुड़ियों की तरह बाहर की तरफ घुमावदार था। जब जल कुंड भरा हुआ होता था, तो इसमें लगभग चौवालीस घन मीटर पानी आता था।
\p
\s5
\v 27 हूराम ने दस पीतल की गाड़ियाँ भी बनाईं। प्रत्येक एक और चार-पाँचवां मीटर लम्बी थी, एक और चार-पाँचवां मीटर चौड़ी, और सवा एक मीटर लम्बी थी।
\v 28 गाड़ियों के किनारे पटरियाँ थीं, और पटरियों के बीचों बीच जोड़ भी थे।
\v 29 उन पटरियों पर सिंह, बैल और पंख वाले प्राणियों की पीतल की आकृतियाँ थी। सिंह और बैल के नीचे और ऊपर की तरफ पीतल की पुष्पांजलि जैसी सजावट थी।
\p
\s5
\v 30 प्रत्येक गाड़ी में चार पीतल के पहिये और पीतल से बनी दो धुरियाँ थीं। प्रत्येक गाड़ी के शीर्ष कोनों में पीतल जल कुंड को पकड़ने के लिए खूँटियां थी। इन खूंटियों पर पीतल की पुष्पांजलि जैसी सजावट भी थी।
\v 31 जल कुंड के नीचे प्रत्येक गाड़ी के शीर्ष पर एक गोलाकार पट्टे जैसा ढांचा था। प्रत्येक गोलाकार ढांचे का शीर्ष गाड़ी के शीर्ष से छियालीस सेंटीमीटर ऊपर था, और इसका निचला भाग गाड़ी के शीर्ष से तेईस सेंटीमीटर था। चौकोर पटरियों के अन्दर भी नक्काशी थी।
\p
\s5
\v 32 पहिये उनहत्तर सेंटीमीटर ऊँचे थे। वे पटरियों के नीचे थे। पहियों को धुरी से जोड़ा गया था जो गाड़ी के बाकी हिस्सों के समान साँचे में ढाले गए थे।
\v 33 गाड़ियों के पहिये रथों के पहियों की तरह थे। यह सभी पीतल से ढाले गए थे।
\p
\s5
\v 34 प्रत्येक गाड़ी के शीर्ष कोनों में हत्थे लगे हुए थे । ये गाड़ी में ही ढाले गए थे।
\v 35 प्रत्येक गाड़ी के शीर्ष के चारों ओर तेईस सेंटीमीटर का पीतल का पट्टा था। प्रत्येक गाड़ी के कोनों से जुडी पट्टिका थी। पटटे और पट्टिका को गाड़ी के बाकी भागो के समान ही ढाला गया था ।
\p
\s5
\v 36 गाड़ियों के किनारों पर पटरियों और पट्टिकाओं को भी पंख वाले प्राणियों, शेरों और खजूर के पेड़ों के चित्रों से सजाया गया था, जहाँ भी उनके लिए जगह थी, और उनके चारों ओर पीतल की पुष्पांजलि थी।
\v 37 इस प्रकार हूराम ने दस गाड़ियाँ बनाईं। वे सभी एक ही ढांचे में ढाली गई, इसलिए वे सभी एक जैसी थीं। वे सभी एक ही आकार और आकृति की थीं।
\p
\s5
\v 38 हूराम ने दस पीतल के हौदे भी बनाए, दस पायों में से प्रत्येक के लिए एक हौद। प्रत्येक हौद एक और चार बटा पांच का था और जिसमे 880 लीटर पानी समाता था।
\v 39 हूराम ने भवन की दाहिनी तरफ पांच गाड़ियाँ और भवन के बाईं ओर पांच रखीं। उन्होंने "सागर" नामक बड़े कुंड को दक्षिण दिशा में पूर्व की ओर के कोने पर रखा ।
\p
\s5
\v 40 हूराम ने भी बर्तन, राख ले जाने के लिए फावड़े, और बलि चढ़ाए जाने वाले जानवरों के खून ले जाने के लिए कटोरे बनाए। उसने उन सभी कामों को पूरा किया जिन्हें राजा सुलैमान ने भवन के लिए करने का अनुरोध किया था। यह उसके द्वारा बनाई गई पीतल की वस्तुओं की एक सूची है:
\q
\v 41 दो खंभे,
\q खंभे के शीर्ष पर रखे जाने वाले दो शीर्ष,
\q खंभे के शीर्ष को सजाने के लिए चेन की दो पुष्पांजलि,
\p
\s5
\v 42 चार पंक्तियों में अनार की चार सौ आकृतियां, प्रत्येक पंक्ति में एक सौ के साथ; इनमें से दो पंक्तियां प्रत्येक खंभे के शीर्ष पर रखी गई थीं,
\q
\v 43 दस गाड़ियाँ,
\q दस हौदे,
\p
\s5
\v 44 "सागर" नामक बड़ा कुंड
\q बैल की बारह मूर्तियाँ जिनकी पीठ पर कुंड स्थित किया गया था,
\li
\v 45 बर्तन, वेदी की राख के लिए फावड़े, और कटोरे।
\p हूरम और उसके कर्मचारियों ने ये सभी चीजें राजा सुलैमान के लिए बनाए और उन्हें भवन के बाहर रखा। वे सभी पीतल से बने थे जिन्हें मजदूरों ने चमकदार बनाया था।
\p
\s5
\v 46 उन्होंने उनको मिट्टी के ढाँचे में पिघला हुआ पीतल डालकर बनाया जो हूराम ने यरदन नदी घाटी के पास सुकोथ और जेरेतन के नगरों के बीच स्थापित किया था।
\p
\v 47 सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को उन पीतल की वस्तुओं को तोलने के लिए नहीं कहा, क्योंकि वहाँ कई वस्तुएं थीं। इसलिए कोई भी कभी नहीं जान पाया कि उनका कितना वजन था।
\p
\s5
\v 48 सुलैमान के मजदूरों ने भी यहोवा के भवन के लिए सोने के सभी सामान बनाए:
\q वेदी,
\q मेज़ जहाँ उपस्थिति की रोटी परमेश्वर के सामने रखी गई थी,
\q
\v 49 दस दीवट जो अति पवित्र स्थान के सामने रखे गए थे, पांच दक्षिण की ओर और पांच उत्तर की तरफ,
\q फूलों जैसी दिखने वाली सजावट, दीपक,
\q गर्म कोयलों को पकड़ने के लिए चिमटे,
\p
\s5
\v 50 कप, सोने के दीपक की बत्ती बुझाने वाले उपकरण, छोटे दीपक के कटोरे, धूपदान, गर्म कोयले ले जाने के लिए तसले , और अति पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार के लिए और भवन के मुख्य कमरे में प्रवेश द्वार के लिए गर्तिका।
\q वे सब चीजें सोने से बनी थी।
\p
\s5
\v 51 इस प्रकार सुलैमान के कार्यकर्ताओं ने भवन के लिए सभी काम समाप्त किया। तब उन्होंने भवन के गोदामों में उन सभी चीजों को रखा जो उसके पिता दाऊद ने यहोवा को समर्पित किए थे-सभी चाँदी और सोना, और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ।
\s5
\c 8
\p
\v 1 सुलैमान ने फिर यरूशलेम के सभी बुजुर्गों, जनजातियों के सभी अगुवों और कुलों के अगुवों को बुलाया। उसने सिय्योन पर्वत से यहोवा के पवित्र सन्दूक को भवन में लाने के लिए उनके शामिल करने की व्यवस्था की, जो उस शहर में था जो दाऊद नगर कहलाता था।
\v 2 इसलिए एतानीम के महीने में सभी इस्राएली झोपड़ियों के पर्व के दौरान राजा सुलैमान के पास आए।
\p
\s5
\v 3 जब वे सब आए, तो याजकों ने पवित्र सन्दूक को उठा लिया
\v 4 और इसे भवन में ले आए। तब लेवी के वंशज जिन्होंने याजक की सहायता की, उन्होंने भवन में पवित्र तम्बू और तम्बू में रखने वाली सभी पवित्र चीज़ों को लाने में सहायता की।
\v 5 तब राजा सुलैमान और बहुत से इस्राएली लोग यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने इकट्ठे हुए और उन्होंने बड़ी मात्रा में भेड़ और बैल का बलिदान चढ़ाया। कोई भी बलिदानों को गिनने में सक्षम नहीं था क्योंकि वे अत्यधिक थे।
\p
\s5
\v 6 तब याजक पवित्र सन्दूक को भवन के अति पवित्र स्थान में लाए, और उन्होंने इसे पंखों वाले प्राणियों की मूर्तियों के पंखों के नीचे रखा।
\v 7 उन मूर्तियों के पंख पवित्र सन्दूक पर और डंडों पर फैले हुए थे जिनके द्वारा इसे लाया गया था।
\v 8 डंडे बहुत लम्बे थे, जिसके परिणामस्वरूप डंडों के सिरों को उन लोगों द्वारा देखा जा सकता था जो अति पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार पर खड़े थे, लेकिन वे भवन के बाहर खड़े लोगों द्वारा नहीं देखे जा सकते थे। वे डंडे अभी भी वहाँ हैं।
\p
\s5
\v 9 पवित्र सन्दूक में सिर्फ दो पत्थर की पटियाए थीं जिन्हें मूसा ने सिनै पर्वत पर रखा था, जहाँ यहोवा ने मिस्र छोड़ने के बाद लोगों के साथ एक अनुबन्ध किया था।
\p
\v 10 याजकों ने पवित्र सन्दूक को भवन में रखा। जब वे पवित्र स्थान से बाहर आए, तो अचानक वह बादलों से भर गया।
\v 11 यहोवा की महिमा में वह सन्दूक समा गई, परिणामस्वरूप याजक सेवा करने के लिए खड़े न रह सके।
\p
\s5
\v 12 तब सुलैमान ने यह प्रार्थना की:
\q1 "हे यहोवा, आपने सूर्य को आकाश में स्थापित किया,
\q1 लेकिन आपने घने बादलों में रहने का निर्णय किया है ।
\q1
\v 13 मैंने आपके लिए एक शानदार भवन बनाया है,
\q2 युगानयुग का आपका निवासस्थान।"
\p
\s5
\v 14 तब, जब सब लोग वहाँ खड़े थे, राजा ने उनकी ओर मुड़ कर उन्हें देखा, और उसने परमेश्वर से उन्हें आशीष देने के लिए कहा।
\v 15 उसने कहा, ", यहोवा की स्तुति करो जिस परमेश्वर की हम इस्राएली प्रजा हैं! अपनी शक्ति से उन्होंने मेरे पिता दाऊद से जो वादा किया था, वह पूरा किया है। उन्होंने जो वादा किया वह यह था:
\v 16 जब से मैं अपने लोगों को मिस्र से बाहर ले आया, मैंने कभी इस्राएल में किसी भी शहर को नहीं चुना जिसमें मेरे लिए एक भवन बनाया जाना चाहिए। लेकिन मैंने तुझे, दाऊद, को मेरे लोगों पर शासन करने के लिए चुना है। "
\p
\s5
\v 17 तब सुलैमान ने कहा, "मेरा पिता दाऊद एक भवन बनाना चाहता था ताकि हम इस्राएली लोग वहाँ हमारे परमेश्वर यहोवा की उपासना कर सकें।
\v 18 परन्तु यहोवा ने उस से कहा, तू मेरे लिए एक भवन बनाना चाहथा था, और जो तू करना चाहता था वह अच्छा था।
\v 19 हालांकि, तू वह नहीं है जिससे मैं यह बनवाना चाहता हूँ। तेरे बेटों में से एक है जो मेरे लिए एक भवन बनाएगा। '
\p
\s5
\v 20 और अब यहोवा ने ऐसा किया है जो उन्होंने करने का वादा किया था। मैं अपने पिता का उत्तराधिकारी बनने के लिए इस्राएल का राजा बन गया हूँ, और मैं अपने लोगों पर शासन कर रहा हूँ, जैसा कि यहोवा ने वादा किया था। मैंने इस भवन की व्यवस्था इस्राएलियों के लिए यहोवा की आराधना करने के लिए की है, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली प्रजा हैं।
\v 21 मैंने पवित्र सन्दूक के लिए भवन में एक स्थान भी नियुक्त किया है जिसमें अनुबन्ध लिखी पत्थर की दो पटिट्याँ हैं जो यहोवा ने हमारे पूर्वजों के साथ किया था जब वे उन्हें मिस्र से बाहर लाये थे। "
\p
\s5
\v 22 सुलैमान उस वेदी के सामने खड़ा था जो वहाँ इकट्ठे हुए इस्राएली लोगों के सामने थी, । उसने अपनी बाहों को स्वर्ग की तरफ फैलाया,
\v 23 और उसने प्रार्थना की, "हे यहोवा, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वहाँ स्वर्ग में या यहाँ नीचे पृथ्वी पर आप के समान कोई ईश्वर नहीं है। आपने सत्यनिष्ठा से वादा किया है कि आप हमें निष्ठापूर्वक प्यार करेंगे। और यही वह है जो आपने हमारे लिए किया है जो पूरे उत्साह से आपके बताए कार्य करते हैं।
\v 24 आपने वे काम किए जिन्हें आपने मेरे पिता दाऊद से करने का वादा किया था, जिन्होंने भली-भांति आपकी सेवा की थी। वास्तव में, आपने इन कामों को उसके लिए करने का वादा किया था, और आज हम देखते हैं कि आपने अपनी शक्ति से उन कामों को किया है।
\p
\s5
\v 25 इसलिए अब, हे यहोवा, जिनकी हम इस्राएली उपासना करते हैं, मैं आपसे अनुरोध कर रहा हूँ कि आप उन अन्य कामों को भी करें जिन्हें आपने मेरे पिता से वादा किया था कि आप करेंगे। आपने उससे कहा था कि सदैव उसके कुछ ऐसे वंशज होंगे जो इस्राएल में राजा होंगे, यदि वे अपने जीवन का संचालन वैसा ही करेंगे, जैसा उसने किया था।
\v 26 तो अब, इस्राएली लोगों के परमेश्वर, जो आपने मेरे पिता दाऊद के लिए करने का वादा किया था, जिन्होंने भली-भांति आपकी सेवा की थी उसे होने दो।
\p
\s5
\v 27 परन्तु परमेश्वर, क्या आप वास्तव में लोगों के बीच धरती पर रहेंगे? आपके पास स्वर्ग में रहने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है। यह भवन जिसे मैंने अपने कर्मचारियों को बनाने का आदेश दिया है, आपके रहने के लिए निश्चित रूप से बहुत छोटा है।
\v 28 परन्तु हे यहोवा, हे मेरे परमेश्वर, कृपया मेरी बातें सुनें, जब आज मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ।
\p
\s5
\v 29 मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप इस भवन की रात और दिन रक्षा करें। यह वह स्थान है जिसके विषय आपने कहा 'मैं सदैव वहाँ रहूँगा।' मैं अनुरोध करता हूँ कि जब भी मैं इस भवन की ओर मुड़ता हूँ और प्रार्थना करता हूँ तो आप मेरी बात सुनेगें।
\v 30 मैं अनुरोध करता हूँ कि जब मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ और आपके लोग आपसे प्रार्थना करते हैं, जब वे इस स्थान की ओर मुड़ते हैं, कि स्वर्ग में आपके घर में आप हमें सुनेंगे और हमारे द्वारा किए गए पापों के लिए हमें क्षमा करेंगे।
\p
\s5
\v 31 मान लीजिए कि लोग किसी अन्य व्यक्ति पर कुछ गलत करने का आरोप लगाते हैं, और वे उसे इस पवित्र भवन के बाहर आपकी वेदी पर लाते हैं। और मान लीजिए कि वह कहता है, 'मैंने ऐसा नहीं किया; अगर मैं सच नहीं कह रहा हूँ तो परमेश्वर मुझे दण्डित करें।'
\v 32 उस विषय में, स्वर्ग से सुनें और फैसला करें कि सत्य कौन कह रहा है। फिर उस व्यक्ति को दण्डित करें जो दोषी है क्योंकि वह दण्डित होने योग्य है, और घोषित करें कि दूसरा व्यक्ति निर्दोष है।
\p
\s5
\v 33 या मान लीजिए कि आपके इस्राएली लोग युद्ध में अपने शत्रुओं द्वारा पराजित हुए क्योंकि उन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया । मान लीजिए कि उन्हें दूर देश में जाने के लिए विवश किया गया। तो मान लीजिए कि वे पापी की तरह अभिनय करना बंद कर देते हैं। मान लीजिए कि वे इस भवन की ओर मुड़ते हैं और स्वीकार करते हैं कि आपने उन्हें दण्डित किया है। मान लीजिए कि वे अनुरोध करते हैं कि आप उन्हें क्षमा करेंगे।
\v 34 उन विषयों में, उन्हें स्वर्ग से सुनें, अपने इस्राएली लोगों को उनके पापों के लिए क्षमा करें, और उन्हें अपने पूर्वजों को दी गई भूमि पर वापस लाएं।
\p
\s5
\v 35 या मान लीजिए कि आप वर्षा न होने दें क्योंकि आपके लोगों ने आपके विरुद्ध पाप किया है। मान लीजिए कि वे इस स्थान की ओर मुड़ते हैं और स्वीकार करते हैं कि आपने उन्हें न्याय करते हुए दण्डित किया है। मान लीजिए कि वे पापी की तरह अभिनय करना बंद कर देते हैं और नम्रता से आपसे प्रार्थना करते हैं।
\v 36 उन विषयों में, उन्हें स्वर्ग में सुनें और अपने इस्राएली लोगों को उनके पापों के लिए क्षमा करें। उन्हें अपने जीवन का संचालन करने का सही तरीका सिखाएं, और उसके बाद इस भूमि पर वर्षा भेजें जिसे आपने अपने लोगों को स्थायी रूप से उनके लिए दिया है।
\p
\s5
\v 37 मान लीजिए कि इस भूमि के लोग अकाल का सामना कर रहे है, या मान लीजिए कि फफूंदी या टिड्डियों या टिड्डों द्वारा कोई महामारी हो। या मान लीजिए कि उनके शत्रु उन पर हमला करने के लिए उनके किसी भी शहर को घेरते हैं। मान लीजिए कि इनमें से कोई भी बुरी बातें उनके साथ होती हैं।
\v 38 और मान लीजिए कि आपके इस्राएली लोग उत्सुकता से आपसे अनुरोध करते हैं, क्योंकि वे अपनी अंतरात्मा में जानते हैं कि वे पीड़ित हैं क्योंकि उन्होंने पाप किया है। मान लीजिए कि वे इस भवन की ओर अपनी बाहों को फैलाये और प्रार्थना करें।
\p
\s5
\v 39 इन विषयों में, उन्हें स्वर्ग में अपने घर से सुनें, और उन्हें क्षमा करना, और उनकी सहायता करें। आप ही हैं जो जानते हैं कि लोग क्या सोच रहे हैं, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति की आवयश्कता के अनुसार कार्य करें,
\v 40 ताकि आपके लोग आपको उत्तम सम्मान दें उन सभी वर्षों में जब वे इस देश में रहते हैं जो आपने हमारे पूर्वजों को दिया था।
\p
\s5
\v 41-42 कुछ विदेशी लोग होंगे जो आपके इस्राएली लोगों से संबंधित नहीं होंगे जो यहाँ दूर देशों से सुनकर आएँगे कि आप बहुत महान हैं, और क्योंकि उन्होंने महान कामों के विषय सुना है जो आपने अपने लोगों के लिए किये हैं। मान लीजिए कि इस तरह के लोग यहाँ उपासना करने और प्रार्थना करने के लिए इस भवन में आते हैं।
\v 43 उस विषय में, स्वर्ग में अपने घर से उनकी प्रार्थना सुनें, और उनके लिए वही करें जो वे आपको करने का अनुरोध करते हैं। ऐसा करने से दुनिया के सभी लोगों के समूह आपके बारे में जानेंगे और आपको सम्मान देंगे, जैसा हम इस्राएली लोग करते हैं। तब वे जान जाएँगे कि यह भवन जो आपको सम्मानित करने के लिए बनाया गया है, वह आपका है और यहाँ आपकी आराधना की जानी चाहिए।
\p
\s5
\v 44 मान लीजिए कि आप अपने लोगों को शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजते हैं। और मान लीजिए कि आपके लोग आपसे प्रार्थना करते हैं, जहाँ भी वे हैं, और वे इस शहर की ओर मुड़ते हैं जिसे आपने चुना है और इस भवन के लिए जो मैंने आपके लिए बनाया है।
\v 45 उस विषय में, स्वर्ग में उनकी प्रार्थनाओं को सुनें। कि वे आप से क्या करने का निवेदन करते हैं, और उनकी सहायता करें।
\p
\s5
\v 46 यह सच है कि हर कोई पाप करता है। तो, मान लीजिए कि आपके लोग आपके विरुद्ध पाप करते हैं और आप उनसे क्रोधित हो जाते हैं। आप उनके शत्रुओं को उन्हें पराजित करने, उन्हें पकड़ने, और उन्हें दूर अपने देशों में ले जाने की अनुमति दें।
\v 47 और मान लीजिए कि, जब आपके लोग उन देशों में हैं जहाँ उन्हें जाना पड़ा, वे सच्चाई से पश्चाताप करते हैं और आपसे यह कहते हुए प्रार्थना करते हैं, 'हमने पाप किया है और बहुत ही बुरे काम किए हैं।'
\p
\s5
\v 48 मान लीजिए कि वे वास्तव में और बहुत सच्चाई से पश्चाताप करते हैं, और इस देश की ओर मुड़ते हैं जो आपने हमारे पूर्वजों को दिया था। मान लीजिए कि वे इस शहर की ओर मुड़ते हैं कि आपने जिसे वह स्थान बनने के लिए चुना है जहाँ हमें आपकी आराधना करनी चाहिए, और इस भवन की ओर जो मैंने आपके लिए बनाया है। मान लीजिए कि वे तब आपसे प्रार्थना करते हैं।
\p
\s5
\v 49 उस विषय में, स्वर्ग में अपने घर से उनकी सहायता करने के लिए उनकी बातें सुनें, और उनकी सहायता करें।
\v 50 उन सभी पापों के लिए क्षमा करें जो उन्होंने आपके विरुद्ध किए हैं और उनके शत्रुओं को उनके प्रति दया से कार्य करने का कारण बनाएं।
\p
\s5
\v 51 मत भूलें कि इस्राएली आपके लोग हैं। उन पर आपका विशेष अधिकार है। आप हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाये जहाँ वे बहुत पीड़ित थे मानों दहकती भट्टी में थे।
\v 52 मैं अनुरोध करता हूँ कि आप सदैव अपने इस्राएली लोगों और उनके राजा को सुनें, और जब भी वे आपको मदद करने के लिए पुकारें, उनकी प्रार्थनाओं पर ध्यान दें।
\v 53 आपने उन्हें दुनिया के सभी अन्य लोगों के समूहों के मध्य से चुना है, जो आपने मूसा से कहा था जब आप हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाएं थे।"
\p
\s5
\v 54 सुलैमान प्रार्थना करने के बाद और यहोवा की सहायता के लिए विनती करने के बाद, वेदी के सामने खड़ा हुआ जहाँ उसने घुटने टेके थे। उसने अपनी बाहों को उठा लिया।
\v 55 फिर उसने परमेश्वर से सभी इस्राएली लोगों को आशीष देने के लिए कहा। उसने जोर से प्रार्थना करते हुए , कहा,
\v 56 "यहोवा की स्तुति करो, जिन्होंने हम अपने लोगों को शान्ति दी है, जैसे उन्होंने वादा किया था कि वे करेंगे। उन्होंने उन सभी अच्छी बातों को पूरा किया है जिनका मूसा से वादा किया था, मूसा वह व्यक्ति जिसने उनकी भली-भांति सेवा की थी।
\p
\s5
\v 57 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे परमेश्वर हमारे साथ रहेंगे जैसे वे हमारे पूर्वजों के साथ थे, और वे हमें कभी नहीं त्यागेंगे।
\v 58 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे हमें निष्ठापूर्वक उनकी सेवा करने का, हमारे जीवन को व्यवस्थित करने का , जैसा कि वे चाहते हैं, और उनके सभी आदेशों, विधियों और नियमों का पालन करने का कारण बनेगा जो उन्होंने हमारे पूर्वजों को दिये थे।
\p
\s5
\v 59 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारे परमेश्वर यहोवा इन शब्दों को कभी नहीं भूलेंगे जो मैंने प्रार्थना की है, उनकी मदद के लिए अनुरोध किया है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे दिन और रात उनके बारे में सोचेंगे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे सदैव हमारे इस्राएली लोगों और हमारे राजा की ओर दया के काम करेगें, जो हमारी दिन-प्रतिदिन की आवयश्कता को पूरी करते हैं।
\v 60 यदि आप ऐसा करते हैं, तो दुनिया के सभी लोग यह जान लेंगे कि आप, यहोवा ही एकमात्र परमेश्वर हैं, और यह कि कोई अन्य परमेश्वर नहीं है।
\v 61 मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम, उनके लोग सदैव यहोवा के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहना, और तुम उनके सभी नियमों और आज्ञाओं का पालन करना, जैसा तुमअभी कर रहे हो।"
\p
\s5
\v 62 तब राजा और सब इस्राएली लोग जो वहाँ थे, उन्होंने यहोवा को बलिदान चढ़ाए।
\v 63 उन्होंने यहोवा के साथ पुनः संगति स्थापित करने के लिए बाईस हजार पशु और 120,000 भेड़ें की बलि चढ़ाई। तब राजा और सभी लोगों ने भवन को परमेश्वर को समर्पित किया।
\p
\s5
\v 64 उस दिन, राजा ने भवन के सामने के आंगन के मध्य भाग को भी समर्पित किया। तब उसने वहाँ वेदी पर पूरी तरह जलनेवाले बलिदान चढ़ाए, आटा और जानवरों की चरबी जो यहोवा के साथ पुनः संगति स्थापित करने के लिए बलि चढ़ाए गए थे। उन्होंने उन्हें वहाँ बलिदान चढ़ाया क्योंकि उस दिन उन सभी बलिदानों के लिए पीतल की वेदी पर्याप्त नहीं थी।
\p
\s5
\v 65 तब सुलैमान और समस्त इस्राएली लोगों ने सात दिनों तक झोपड़ियों का पर्व मनाया और अगले सात दिन, और चौदह दिनों तक मनाते रहे। वहाँ लोगों की बड़ी भीड़ थी, जिनमें से कुछ दूरवर्ती प्रान्तों और दूर दक्षिण में मिस्र की सीमा जैसे दूरवर्ती स्थानों से आए थे।
\v 66 अंतिम दिन, सुलैमान ने लोगों को उनके घर भेज दिया। उन सभी ने उनकी प्रशंसा की और आनंद से घर गये क्योंकि यहोवा ने दाऊद और उसके इस्राएली लोगों को आशीष देने के लिए सभी काम किये थे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 सुलैमान के मजदूरों ने भवन और उसके महल और बाकी सब कुछ जो सुलैमान बनाना चाहता था, का निर्माण पूरा करने के बाद,
\v 2 यहोवा स्वप्न में दूसरी बार प्रकट हुए, जैसे कि वे गिबोन शहर में उसके सामने प्रकट हुए थे।
\p
\s5
\v 3 यहोवा ने उससे कहा, "मैंने सुना है जो तुने प्रार्थना की और तुने मुझसे क्या करने की विनती की। मैंने इस घर को अपने लिए अलग कर दिया है, क्योंकि मुझे सदैव इसमें विद्यमान होना है।
\p
\s5
\v 4 और मेरे लिए, यदि तू मेरी इच्छानुसार स्वयं को संचालित करेगा जैसा तेरे पिता दाऊद ने किया था और यदि तू सच्चाई से उन सभी विधियों और नियमों का पालन करता है जो मैंने तुझको मानने का आदेश दिया है,
\v 5 मैं वही करूँगा जो मैंने तेरे पिता से करने का वादा किया था । मैंने उससे वादा किया था कि इस्राएल पर सदैव उसके वंशजों द्वारा शासन किया जायेगा।
\p
\s5
\v 6 लेकिन मान ले कि तू या तेरा वंशज मेरी आराधना करना बंद कर देते हैं; मान ले कि तुने मेरे दिए गए आदेशों और नियमों का उल्लंघन किया है; मान ले कि तुने अन्य देवताओं की पूजा करना शुरू कर दिया।
\v 7 तब मैं अपने इस्राएली लोगों को उस देश से निकाल दूंगा जो मैंने उन्हें दिया है। मैं इस भवन को त्याग दूंगा जो मुझे समर्पित किया गया है। तब हर स्थान में लोग इस्राएल को तुच्छ मानेंगे और इसका मजाक उड़ाएँगे।
\p
\s5
\v 8 इस तथ्य के अलावा कि यह भवन बहुत सुन्दर है, ऐसा समय आएगा जब हर कोई जो यहाँ से होकर जाएगा, वह आश्चर्यचकित हो जाएगा, और वे सिसकारेंगे और कहेंगे, 'यहोवा ने इस देश और इस भवन के साथ ऐसा क्यों किया है?'
\v 9 अन्य लोग उत्तर देंगे, 'ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस्राएली लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया, जिन्होंने इनके पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला था। उन्होंने अन्य देवताओं को स्वीकार करना और उनकी उपासना करना शुरू कर दिया। और यही कारण है कि यहोवा ने इन सभी आपदाओं का अनुभव करवाया है। '"
\p
\s5
\v 10 सुलैमान के मजदूरों ने भवन और महल बनाने के लिए बीस साल तक काम किया।
\v 11 सोर शहर के राजा हीराम ने अपने कर्मचारियों द्वारा सुलैमान को सभी देवदार और सनोवर की लकड़ी और सोना जिसकी आवयश्कता इस काम में थी, देने की व्यवस्था की थी। पूरा होने के बाद, राजा सुलैमान ने गलील के इलाके में बीस नगर हीराम को दिये।
\p
\s5
\v 12 परन्तु जब हीराम उन नगरों को देखने के लिए सोर से गलील गया, तो वह उनसे प्रसन्न नहीं था।
\v 13 उसने सुलैमान से कहा, "मेरे दोस्त, तुने जो नगर मुझे दिए हैं वे बेकार हैं।" इसी के कारण, हीराम ने उस क्षेत्र को बेकार कहा।
\v 14 हीराम ने उन शहरों के लिए सुलैमान को केवल 4,000 किलो सोना दिया।
\p
\s5
\v 15 यह उस काम का अभिलेख है जो राजा सुलैमान ने पुरुषों को करने के लिए विवश किया। उसने उन्हें भवन और उसके महल और शहर के पूर्व की ओर भरावक्षेत्र, और यरूशलेम के चारों ओर की दीवार बनाने और हजर, मगिद्दो और गेज़र के नगरों का पुनर्निर्माण करने के लिए विवश किया।
\v 16 गेज़र के पुनर्निर्माण की आवश्यकता का कारण यह था कि मिस्र के राजा की सेना ने गेज़र पर आक्रमण किया था और उसे अधिकार में ले लिया था। तब उन्होंने शहर के घरों को जला दिया और वहाँ रहने वाले कनानियों के समूह के सभी लोगों को मार डाला। मिस्र के राजा ने उस शहर को अपनी बेटी को उपहार में दिया था जब उसने सुलैमान से शादी की।
\p
\s5
\v 17 तब सुलैमान के मजदूरों ने भी गेज़र शहर का पुनर्निर्माण किया, और उन्होंने निचले बेथोरोन शहर का भी पुनर्निर्माण किया।
\v 18 उन्होंने यहूदा के दक्षिणी भाग में जंगल में बालथ और तामार के नगरों का भी पुनर्निर्माण किया।
\v 19 उन्होंने उन नगरों का भी निर्माण किया जहाँ उन्होंने सुलैमान के लिए आपूर्ति की, जहाँ उस के घोड़ों और रथों को रखा गया था। उन्होंने यरूशलेम और लबानोन में, और उस क्षेत्र के अन्य स्थानों पर जहाँ उसने शासन किया था, उन्होंने वह सब बनाया जो वह बनवाना चाहता था।
\p
\s5
\v 20 आमोर के बहुत से समूह थे हेथ, पेरीज़, हिव और यबूस , जो इस्राएली लोगों द्वारा उनकी भूमि पर अधिकार करते समय नहीं मारे गए थे।
\v 21 उनके वंशज अभी भी इस्राएल में रहते थे। यह वे लोग थे जिन्हें सुलैमान ने उन सभी स्थानों को बनाने के लिए गुलाम बनने पर विवश किया, और वे अभी भी दास हैं।
\p
\s5
\v 22 परन्तु सुलैमान ने किसी भी इस्राएली को दास बनने के लिए विवश नहीं किया। उनमें से कुछ सैनिक, दास, अधिकारी, सेना अधिकारी, रथ सेनाओं के प्रधान और उसके घुड़सवार थे।
\p
\s5
\v 23 550 अधिकारी थे जिन्होंने उन सभी दासों और निर्माण करने वाले गुलामों की देखरेख की थी।
\p
\s5
\v 24 सुलैमान की पत्नी, जो मिस्र के राजा की पुत्री थी, यरूशलेम के दाऊद नगर नामक स्थान से उस महल में जो सुलैमान के कर्मचारियों ने उसके लिए बनाया था, वहाँ ले आए इसके बाद सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को शहर की पूर्व दिशा में भूमि को भरने के लिए कहा ।
\p
\s5
\v 25 हर साल तीन बार सुलैमान यहोवा के भवन में भेंट लाया करता था कि याजक यहोवा के साथ सहभागिता की बलि के लिए वेदी पर भेंट को पूरी तरह जला दे। वह यहोवा की उपस्थिति में जलाने के लिए धूप भी लाया।
\p और इसी तरह उनके कर्मचारियों ने भवन का निर्माण पूरा किया ।
\p
\s5
\v 26 राजा सुलैमान के मजदूरों ने एदोम गेबर शहर में जहाजों का एक बेड़ा भी बनाया, जो एदोम शहर समूह से संबंधित भूमि में, एलाथ शहर के पास, लाल सागर के किनारे पर है।
\v 27 राजा हीराम ने कुछ विशेषज्ञ नाविकों को सुलैमान के कर्मचारियों के साथ जहाजों पर भेजा।
\v 28 वे ओफिर के क्षेत्र में गए और लगभग चौदह मापीय टन सोना सुलैमान को वापस लाकर दिया।
\s5
\c 10
\p
\v 1 शेबा के देश पर शासन करने वाली रानी ने सुना कि यहोवा ने सुलैमान को प्रसिद्ध कर दिया है , इसलिए वह उससे कठिन प्रश्न पूछने के लिए यरूशलेम गईं ।
\v 2 वह धनवान लोगों के बड़े समूह के साथ आई, और अपने साथ ऊंटों को भी लायी जो मसालों, कीमती रत्नों और बहुत सोने से लदे हुए थे। जब उसने सुलैमान से मुलाकात की, तो उसने उन सभी चीजों के विषय उससे प्रश्न पूछे जिनमें उसे रूचि थी।
\p
\s5
\v 3 सुलैमान ने उसके सभी प्रश्ननों का उत्तर दिया। उसने जो कुछ भी पूछा उसके बारे में उसने समझाया, यहाँ तक कि उन बातों को जो बहुत मुश्किल थीं।
\v 4 रानी को अनुभव हुआ कि सुलैमान बहुत बुद्धिमान है। उसने उसका महल देखा,
\v 5 उसने उस की मेज का भोजन देखा जो प्रतिदिन सजाया जाता था, उसने देखा कि उसके अधिकारी कहाँ रहते थे, उनकी वर्दी कैसी है,और उन दासों को जो भोजन और शराब पहुँचाने की सेवा करते थे, और जो बलिदान उसने भवन में अर्पित किये थे। वह बेहद आश्चर्यचकित थी।
\p
\s5
\v 6 उसने राजा से कहा, "जो कुछ मैंने अपने देश में सुना है, तेरे बारे में और यह की तू कितने बुद्धिमान हैं!
\v 7 लेकिन मुझे विश्वास नहीं था जब तक मैंने यहाँ आ कर इसे स्वयं नहीं देखा तब तक, यह सच था। लेकिन वास्तव में, उन्होंने मुझे जो बताया वह केवल आधा था जो उन्होंने मुझे तेरे बारे में बताया था। लोगों ने मुझे जो बताया तू उससे अधिक बुद्धिमान और धनवान हैं।
\p
\s5
\v 8 तेरी पत्निया कितनी भाग्यशाली हैं! और तेरे दास कितने भाग्यशाली हैं, जो तेरी सेवा करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो बुद्धिमानी की बातें सुन रहे हैं, जो तू कहता है।
\v 9 यहोवा की स्तुति, तेरा परमेश्वर, जिन्होंने दिखाया है कि तुझे इस्राएल का राजा बनाने के द्वारा, वह तुमसे प्रसन्न है। परमेश्वर सदैव इस्राएलियों से प्रेम करते हैं, और इसलिए उन्होंने तुझे राजा बनाया है, ताकि तू उन पर उचित और धार्मिकता के साथ शासन करे। "
\p
\s5
\v 10 तब रानी ने राजा के लिए जो कुछ भी लायी थी वह उसे दिया। उसने उसे 4,000 किलो सोना और मसालों और रत्नों की बड़ी मात्रा दी। राजा सुलैमान को उस समय की तुलना में इतने अधिक मसाले कभी नहीं मिले जो रानी ने उसे दिये।
\p
\s5
\v 11 राजा हीराम के जहाजों में, जिसमें वे पहले ओफिर से सोना लाये थे, वे बड़ी मात्रा में चन्दन की लकड़ी और कीमती मणि पत्थर लाये।
\v 12 राजा सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को परमेश्वर के भवन में और अपने महल में खंभे बनाने और संगीतकारों के लिए वीणा और सारंगियाँ बनाने के लिए उस लकड़ी का उपयोग करने के लिए कहा। वह उत्तम लकड़ियों की विशालतम संख्या थी जिन्हें न कभी इस्राएल में लाया गया न कभी देखा गया।
\p
\s5
\v 13 राजा सुलैमान ने शेबा की रानी को वह सब कुछ दिया जो वह चाहती थी। उस उपहार के अलावा जो उसने सदैव उन अन्य शासकों को दिया था जो उनके पास आए थे इसके अतिरिक्त अन्य उपहार भी दिये। तब वह और उसके साथ आए लोग अपने देश लौट गए।
\p
\s5
\v 14 हर साल सुलैमान के पास कुल बाईस हजार किलो सोना लाया जाता था।
\v 15 वह व्यापारियों और व्यापारियों द्वारा दिए गए कर, और अरब के राजाओं द्वारा भुगतान दिए गए वार्षिक कर और इस्राएल के जिलों के राज्यपालों द्वारा दिए गए कर के अलावा था।
\p
\s5
\v 16 राजा सुलैमान के कर्मचारियों ने इस सोने को लिया और हथौड़े से इसकी पतली परत बना दी और सोने की उन पतली परत के साथ दो सौ बड़ी ढाल मढ़ दी। उन्होंने प्रत्येक ढाल पर साढ़े छह किलो सोना लगाया।
\v 17 उनके कर्मचारियों ने तीन सौ छोटी ढालें बनाई। उन्होंने उनमें से प्रत्येक को पौने दो किलो सोने से मढ़ दिया। तब राजा ने उन ढालों को लबानोन के वन के महल में रखा।
\p
\s5
\v 18 उनके कर्मचारियों ने उसके लिए एक बड़ा सिंहासन भी बनाया। इसका आधा भाग हाथीदांत से ढँका हुआ था, और आधा भाग खरे सोने से ढँका हुआ था।
\v 19-20 सिंहासन के सामने छह पैड़ियाँ थीं। प्रत्येक पैड़ी की दोनों तरफ शेर की मूर्ति थी। इस प्रकार कुल मिलाकर शेरों की बारह मूर्तियां थीं। सिंहासन का पिछलाशीर्ष गोलाकार किया गया था। सिंहासन की प्रत्येक तरफ हत्थे लगे हुए थे और प्रत्येक हत्थे के साथ शेर की एक छोटी मूर्ति थी। ऐसा कोई सिंहासन कभी भी किसी अन्य राज्य के अस्तित्व में नहीं था।
\p
\s5
\v 21 सुलैमान के सभी प्याले सोने से बने थे, और लबानोन के वन के महल में सभी विभिन्न बर्तन सोने से बने थे। उन्होंने चाँदी से चीजें नहीं बनाईं, क्योंकि सुलैमान के शासन के दौरान चाँदी को मूल्यवान नहीं माना जाता था।
\v 22 राजा के पास जहाजों का एक बेड़ा था जो राजा हीराम के जहाजों के साथ तैरता था। हर तीन वर्षों में जहाज़ उन जगहों से सोना, चाँदी, हाथीदांत, बंदर और मयूर लेकर लौटते थे।
\p
\s5
\v 23 राजा सुलैमान किसी अन्य राजा की तुलना में अमीर और बुद्धिमान बन गया।
\v 24 संसार भर के लोग सुलैमान के पास बुद्धिमानी की बातों को सुनने के लिए आना चाहते थे, जो बातें परमेश्वर ने उसके मन में रखी थीं।
\v 25 जो लोग उसके पास आए, वे उपहार लेकर आए। वे चाँदी या सोने, या वस्त्र, या हथियारों, या मसालों, या घोड़ों, या खदानों से निर्मित चीजें लाए। लोग हर साल ऐसा करते थे।
\p
\s5
\v 26 सुलैमान ने 1,400 रथ और बारह हजार घुड़सवार प्राप्त किये । सुलैमान ने उनमें से कुछ को यरूशलेम में और कुछ को अन्य शहरों में रखा जहाँ उसने अपने रथ रखे थे।
\v 27 सुलैमान राजा के शासन के दौरान, चाँदी यरूशलेम में पत्थरों के समान आम हो गई, और यहूदा की तलहटी में देवदार के पेड़ की लकड़ी, अंजीर के पेड़ की लकड़ी की तरह भरपूर मात्रा में थी।
\p
\s5
\v 28 सुलैमान के प्रतिनिधियों ने घोड़ों को खरीदा और उनको मिस्र और कोए के इलाकों से इस्राएल लाते हुए उनकी देखभाल की, वे घोड़ों के प्रजनन के लिए प्रसिद्ध थे।
\v 29 मिस्र में उन्होंने रथ और घोड़े खरीदे। उन्होंने प्रत्येक रथ के लिए चाँदी के साढ़े छ: सौ सिक्‍के, और घोड़े का मूल्‍य चाँदी के डेढ़ सौ सिक्‍के का भुगतान किया। वे उन्हें इस्राएल लाए। तब उन्होंने उनमें से कई को हित्ती लोगों के समूह और अराम के राजाओं को बेच दिया।
\s5
\c 11
\p
\v 1 राजा सुलैमान ने कई विदेशी महिलाओं से विवाह किया। सबसे पहले उसने मिस्र के राजा की बेटी से शादी की। उन्होंने हेथ लोगों के समूह और मोआब, अम्मोन और एदोम के लोगों के समूह और सीदोन शहर की महिलाओं से विवाह किया।
\v 2 उसने उनसे विवाह किया, जबकि यहोवा ने इस्राएलियों से कहा था, "उन स्थानों के लोगों से शादी न करना, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो वे निश्चित रूप से तुमको उन देवताओं की पूजा करने के लिए फुसला लेंगी जिन्हें वे स्वयं पूजती हैं!"
\p
\s5
\v 3 सुलैमान ने सात सौ महिलाओं से शादी की जो राजाओं की बेटियां थीं। उसकी तीन सौ पत्नियां भी थीं जो उसकी दासियां थीं। और उसकी पत्नियों ने उससे परमेश्वर की आराधना बंद करवा दिया।
\v 4 जब सुलैमान बूढ़ा हो गया, तब तक उन महिलाओं ने उसेअपने देशों के देवताओं की पूजा करने के लिए फुसला लिया था। वह अपने पिता दाऊद की तरह अपने परमेश्वर यहोवा को पूरी तरह से समर्पित नहीं था।
\p
\s5
\v 5 सुलैमान ने अशेरा की पूजा की, सीदोन की देवी की पूजा की, और उसने मोलेक की पूजा की, घृणित देवता जिसकी अम्मोन लोगों के समूह ने पूजा की थी।
\v 6 इस प्रकार सुलैमान ने बहुत से ऐसे काम किये जिसे यहोवा ने बुरा कहा था। उसने अपने जीवन का संचालन वैसे नहीं किया जैसे उसके पिता दाऊद ने किया था क्योंकि; उसने अपना जीवन वैसे नही जिया जैसे यहोवा चाहते थे।
\p
\s5
\v 7 यरूशलेम के पूर्व में पहाड़ी पर उसने कैमोश की पूजा करने के लिए एक स्थान बनाया , घृणित देवता जिसकी मोआब लोगों ने पूजा की थी, और मोलेक की पूजा करने के लिए एक स्थान है, जो अम्मोन लोगों ने पूजा की थी।
\v 8 उसने उन स्थानों का भी निर्माण किया जहाँ उसकी सभी विदेशी पत्नियां धूप जला सकती थीं और अपने देश के देवताओं को बलि चढ़ाती थीं।
\p
\s5
\v 9-10 भले ही यहोवा, जिन परमेश्वर की आराधना इस्राएलियों ने की थी, वह दो बार सुलैमान के सामने प्रकट हुए, और उसे विदेशी देवताओं की पूजा नहीं करने का आदेश दिया था, सुलैमान ने यहोवा की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। यहोवा सुलैमान से क्रोधित हो गये थे।
\p
\s5
\v 11 यहोवा ने उस से कहा, "तुने मेरी प्रतिज्ञा का उल्लंघन करना चुना और मैंने जो आज्ञा दी थी, उसका उल्लंघन करना चुना है। इसलिए मैं निश्चित रूप से तुझको अपने पूरे राज्य पर शासन करने की अनुमति नहीं दूंगा। मैं तेरे अधिकारियों में से एक को शासन करने के लिए अनुमति देने जा रहा हूँ ।
\v 12 परन्तु जिस कारण से मैंने तेरे पिता दाऊद से वादा किया था, वैसे ही मैं तुझे तेरे पूरे राज्य पर शासन करने की अनुमति देता हूँ, जब तक तू जीवित है। तेरे मरने के बाद, मैं तेरे बेटे को पूरे राज्य पर शासन करने की नहीं दूंगा।
\v 13 लेकिन मैं उसे कुछ राज्यों पर शासन करने से नहीं रोकूंगा। मैं उसे एक गोत्र पर शासन करने का अधिकार दूंगा, दाऊद से मेरी उस प्रतिज्ञा के कारण, जिसने मेरी भली-भांति सेवा की और क्योंकि मै चाहता हूँ कि दाऊद के वंशज यरूशलेम में शासन करें, जहाँ मेरा भवन स्थित है। "
\p
\s5
\v 14 यहोवा ने हदाद को एदोम लोगों के समूह के राजाओं के परिवार से, सुलैमान के विरूद्ध विद्रोह करने का कारण बनाया।
\v 15-16 पहले ऐसा हुआ था , जब दाऊद की सेना ने एदोम पर विजय प्राप्त की थी, तब उसकी सेना का प्रधान सेनापति योआब वहाँ युद्ध में मारे गए इस्राएली सैनिकों को मिट्टी देने में मदद करने के लिए गया था। योआब और उसकी सेना छह महीने तक एदोम में रही, और उस समय उन्होंने उस क्षेत्र के सभी पुरुषों को मार डाला।
\v 17 उस समय हदद छोटा बच्चा था, और वह एदोम से अपने पिता के कुछ कर्मचारियों के साथ मिस्र भाग गया था।
\p
\s5
\v 18 वे मिद्यान के क्षेत्र में गए, और फिर वे पारान के रेगिस्तानी क्षेत्र में गए। कुछ अन्य पुरुष वहाँ उनसे जुड़ गए। तब वे सभी मिस्र के राजा के पास गए। राजा ने हदाद को कुछ भूमि दी और अपने कर्मचारियों को उसे नियमित रूप से कुछ भोजन देने का आदेश दिया।
\v 19 राजा को हदाद पसंद आया। परिणामस्वरूप उसने हदाद की पत्नी होने के लिए अपनी पत्नी, रानी ताहपेन्स की बहन को दे दिया।
\p
\s5
\v 20 बाद में हदाद की पत्नी ने जेनुबाथ नाम के पुत्र को जन्म दिया। तहपनेस की बहन ने महल में उसको पाला, जहाँ वह राजा के पुत्रों के साथ रहता था।
\p
\v 21 जब हदाद मिस्र में था, उसने सुना कि दाऊद की मृत्यु हो गई और दाऊद की सेना का प्रधान योआब भी मर गया था। तब उसने मिस्र के राजा से कहा, "कृपया मुझे अपने देश लौटने की अनुमति दें।"
\p
\v 22 परन्तु राजा ने उससे कहा, "तू अपने देश वापस क्यों जाना चाहता है? क्या तेरे पास किसी बात की कमी है जो तू चाहता है कि मैं तुझे दूं?" हदाद ने उत्तर दिया, "नहीं, कृपया मुझे जाने दे।" राजा ने उसे जाने की अनुमति दी, और वह अपने देश लौट आया और एदोम का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 23 परमेश्वर ने सुलैमान के विरूद्ध विद्रोह करने के लिए एलियादा के पुत्र रेज़ोन को भी कारण बनाया । रेज़ोन दमिश्क के उत्तर में सोबा के क्षेत्र के अपने स्वामी राजा हददेजर से भाग गया था।
\v 24 तब रेज़ोन बहिर्वाह के एक समूह का प्रधान बन गया। यह तब हुआ जब दाऊद की सेना ने हददेजर को हराया और उसके सभी सैनिकों को भी मार डाला। रेज़ोन और उसके लोग दमिश्क गए और वहाँ रहने लगे, और वहाँ लोगों ने उसे राजा बनने के लिए नियुक्त किया।
\v 25 जब सुलैमान जीवित था, तब रेज़ोन न केवल दमिश्क पर बल्कि सम्पूर्ण अराम पर शासन कर रहा था, वह इस्राएल का शत्रु था और हदाद जैसे इस्राएल के लिए परेशानी उत्पन्न कर रहा था।
\p
\s5
\v 26 सुलैमान के विरूद्ध विद्रोह करने वाला एक और व्यक्ति नबात का पुत्र यारोबाम उसके अधिकारियों में से एक था। वह उस क्षेत्र में ज़ेरदाह शहर से था जहाँ एप्रैम का गोत्र रहता है। उसकी माँ ज़रुआ नाम की विधवा थी।
\p
\v 27 ऐसा इस प्रकार हुआ। सुलैमान के कर्मचारी यरूशलेम के पूर्व की ओर भूमि भर रहे थे और शहर के चारों ओर दीवारों की मरम्मत कर रहे थे।
\p
\s5
\v 28 यारोबाम बहुत ही योग्य युवक था। इसलिए, जब सुलैमान ने देखा कि उसने बहुत मेहनत की है, तो उसने उसे उन सभी लोगों की देखरेख करने के लिए नियुक्त किया जिन्हें उन स्थानों में काम करने के लिए विवश किया गया था जहाँ मनश्शे और एप्रैम के गोत्र वाले रहते थे।
\p
\v 29 एक दिन जब यारोबाम यरूशलेम के बाहर सड़क के किनारे अकेले चल रहा था, तब शिलो शहर से भविष्यद्वक्ता अहिय्याह उससे मिला। अहिय्याह ने नया वस्त्र पहन रखा था,
\v 30 जिसे उसने उतारा और बारह टुकड़ों में फाड़ा।
\p
\s5
\v 31 उसने यारोबाम से कहा, "इन टुकड़ों में से दस अपने लिए ले लो, क्योंकि यहोवा, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे कहते है, 'मैं सुलैमान से राज्य लेने जा रहा हूँ, और इस्राएल के दस गोत्रों पर शासक बनने के लिए मैं तुझे समर्थ बनाने जा रहा हूँ ।
\v 32 सुलैमान के वंशज भी एक गोत्र पर शासन करेंगे, दाऊद से मेरी प्रतिज्ञा के कारण, एक व्यक्ति जिसने भली-भांति मेरी सेवा की, और यरूशलेम के कारण, जिस शहर को मैंने इस्राएल के सभी शहरों के बीच से चुना है वह शहर है जहाँ मेरे लोग मेरी आराधना करेगें
\v 33 मैं ऐसा करने जा रहा हूँ क्योंकि सुलैमान ने मुझे त्याग दिया है और अशेरा की पूजा कर रहा है, देवी जिसकी सीदोन के लोग पूजा करते हैं, केमोश, वह देवता जिसकी मोआब के लोग पूजा करते हैं, और मोलेक की अम्मोन लोग पूजा करते हैं। उसने अपना जीवन मेरी इच्छानुसार नहीं बिताया है । उसने मेरे नियमों का पालन नहीं किया है, जैसा उसके पिता दाऊद ने किया था।
\p
\s5
\v 34 परन्तु मैं पूरे राज्य से उसे वंचित नहीं करूँगा। मैं उसके जीवित रहने तक उसे यहूदा पर शासन करने में सक्षम रखूँगा। मैं ऐसा करूँगा दाऊद से की गई प्रतिज्ञा के कारण, जिसे मैंने राजा बनाने का निर्णय लिया था, और जिसने भली-भांति मेरी सेवा की, और जो सदैव मेरे आदेशों और कानूनों का पालन करता था।
\v 35 परन्तु मैं उसके साम्राज्य के अन्य दस गोत्रों को उससे ले लूंगा और उन पर शासन करने के लिए तुझे दूंगा।
\v 36 मैं सुलैमान के पुत्र को एक गोत्र पर शासन करने की अनुमति दूंगा, ताकि दाऊद के वंशज सदैव यरूशलेम में शासन करें, जिस शहर को मैंने चुना है, जहाँ मेरे लोग मेरी आराधना करते हैं।
\p
\s5
\v 37 मैं तुझे इस्राएल का राजा बनने में समर्थ बनाऊँगा, और तू जो क्षेत्र चाहता है उस पर शासन करेगा।
\v 38 यदि तू जो कुछ भी मैं करने का आदेश देता हूँ, उसका पालन करता है और अपने जीवन को मेरी इच्छानुसार व्यतीत करता है, और यदि तू वह करता है, जो मेरे नियमों और आज्ञाओं का पालन करने में सही है, तो मैं तेरी मदद करूँगा। मैं यह सुनिश्चित कर दूंगा कि तेरे मरने के बाद तेरे वंशज शासन करेंगे, जैसे मैंने दाऊद के लिए करने की प्रतिज्ञा की थी।
\v 39 सुलैमान के पापों के कारण, मैं दाऊद के वंशजों को दण्ड दूंगा, लेकिन मैं उन्हें सदा के लिए दण्डित नहीं करूँगा ।'"
\p
\s5
\v 40 सुलैमान को पता चला जो अहिय्याह ने यारोबाम से कहा, तो उसने यारोबाम को मारने का प्रयास किया । लेकिन यारोबाम बच गया और मिस्र चला गया। वह मिस्र के राजा शिशक के पास गया, और सुलैमान की मृत्यु तक उसके साथ रहा।
\p
\s5
\v 41 सुलैमान की अन्य सभी बातों का अभिलेख, और समस्त बुद्धिमानी की बातें, सुलैमान की पुस्तक में लिखी गई थीं।
\v 42 वह यरूशलेम में राजा था और चालीस वर्षों तक उसने पूरे इस्राएल पर शासन किया।
\v 43 जब सुलैमान की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम के उस भाग में मिट्टी दी गई जिसे दाऊद नगर कहा जाता था। तब उसका पुत्र रहबाम राजा बन गया।
\s5
\c 12
\p
\v 1 रहबाम को राजा बनाने के लिए उत्तरी इस्राएल के सभी लोग शकेम शहर गए। रहबाम भी वहाँ गया।
\v 2 जब यारोबाम ने, जो अभी भी मिस्र में था, इस के विषय सुना, वह मिस्र से इस्राएल लौट आया।
\p
\s5
\v 3 उत्तरी गोत्रों के अगुवों ने उसे बुलाया, और वे रहबाम से बातें करने के लिए एक साथ गए। उन्होंने उससे कहा,
\v 4 "तेरे पिता सुलैमान ने हमें बहुत मेहनत करने के लिए विवश किया, और यदि तू हमें कम काम करने की अनुमति देता है, तो हम निष्ठापूर्वक तेरी सेवा करेंगे ।"
\p
\v 5 उसने उत्तर दिया, "चले जाओ, और अब से तीन दिन बाद वापस आओ और मैं तुमको अपना उत्तर दूंगा।" तो रहबाम और वे अगुवें चले गए।
\p
\s5
\v 6 राजा रहबाम ने अपने बुजुर्गों से परामर्श किया जिन्होंने उसके पिता सुलैमान को भी सलाह दी थी जब वह जीवित था। उसने उनसे पूछा, "इन पुरुषों के उत्तर में मुझे क्या कहना चाहिए?"
\p
\v 7 उन्होंने उत्तर दिया, "यदि तू इन लोगों की अच्छी सेवा करना चाहता है, तो जब तू उन्हें उत्तर दे तो दयालुता के साथ बातें करना। यदि तू ऐसा करता है, तो वे सदैव निष्ठापूर्वक तेरी सेवा करेंगे।"
\p
\s5
\v 8 परन्तु उसने बुजुर्गों ने उसे जो करने की सलाह दी उसे अनदेखा किया। इसकी बजाय, उसने उन युवा पुरुषों से परामर्श किया जो उसके साथ बड़े हुए थे, वे ही अब उसके सलाहकार थे।
\v 9 उसने उनसे कहा, "तुम क्या कहते हो मुझे उन पुरुषों को क्या उत्तर देना चाहिए जो मुझसे मेरे पिता द्वारा अपेक्षित काम घटाने की मांग करते है ?"
\p
\s5
\v 10 उन्होंने उत्तर दिया, "तुझको उन्हें यह बताना चाहिए: 'मेरी छोटी उंगली मेरे पिता की कमर से मोटी है।
\v 11 मेरा मतलब यह है कि मेरे पिता ने तुमको कड़ी मेहनत करने की आज्ञा दी थी, लेकिन मैं उस बोझ को और भी भारी कर दूंगा। ऐसा होगा कि मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से मारा था, लेकिन मैं तुमको बिच्छुओं से डसवाऊँगा। '"
\p
\s5
\v 12 तब तीन दिन बाद, यारोबाम और सभी अगुवें फिर से रहबाम के पास आए।
\v 13 राजा ने बुजुर्गों की सलाह को अनदेखा किया और इस्राएलियों के अगुवों से कठोर बातें की।
\v 14 उसने उनसे वह कहा जो युवा पुरुषों की सलाह थी। उसने कहा, "मेरे पिता ने तुम पर भारी बोझ डाला है, लेकिन मैं तुम पर और भारी बोझ डालूंगा। यह ऐसा होगा मानो मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से मारा , लेकिन मैं तुमको बिच्छुओं से डसवाऊँगा !"
\p
\s5
\v 15 तब राजा ने इस्राएलियों के अगुवों पर कोई ध्यान नहीं दिया। अब यह सब यहोवा की इच्छानुसार हुआ , उसने भविष्यवक्ता अहिय्याह को यारोबाम के दस गोत्रों के राजा बनने के विषय बताया था।
\p
\s5
\v 16 जब इस्राएली अगुवों ने अनुभव किया कि राजा ने उस पर ध्यान नहीं दिया जो कुछ भी उन्होंने कहा, तो वे चिल्लाए,
\q1 "राजा दाऊद के इस वंशज के साथ हमारा कुछ लेना देना नहीं हैं!
\q2 हम इस पर ध्यान नहीं देंगे कि यिशै के पोते क्या कहते हैं!
\q1 तुम इस्राएल के लोग, आओ घर चलें!
\q2 दाऊद के इस वंश के लिए, यही कहा जा सकता है कि वह अपने ही गोत्र पर शासन कर सकता है! "
\p इस्राएली अगुवे अपने घर लौट आए।
\v 17 और उसके बाद, रहबाम ने एकमात्र उन इस्राएली लोगों पर शासन किया, जो यहूदा गोत्र के क्षेत्र में रहते थे।
\p
\s5
\v 18 तब राजा रहबाम अदोराम के साथ इस्राएलियों से बातें करने के लिए गया। अदोराम वह व्यक्ति था जिसने उन सभी पुरुषों की देखरेख की जिन्हें रहबाम के लिए काम करने के लिए विवश किया था। परन्तु इस्राएली लोगों ने उस पर पत्थर फेंककर उसे मार डाला। जब ऐसा हुआ, राजा रहबाम शीघ्र अपने रथ में बैठा और यरूशलेम से बच कर निकला गया।
\v 19 उस समय से, इस्राएल के उत्तरी गोत्रों के लोग राजा दाऊद के वंशजों के विरूद्ध विद्रोह कर रहे हैं।
\p
\s5
\v 20 जब इस्राएली लोगों ने सुना कि यरोबाम मिस्र से लौट आया है, तब उन्होंने उसे एक धर्म सभा में आने के लिए आमंत्रित किया, और वहाँ उन्होंने उसे इस्राएल के राजा के रूप में नियुक्त किया। केवल यहूदा गोत्र के लोग राजा दाऊद से उत्‍पन्‍न राजाओं के प्रति निष्ठावान बने रहे।
\p
\s5
\v 21 जब रहबाम यरूशलेम पहुंचा, तो उसने यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों के 180,000 सैनिकों को इकट्ठा किया। वह चाहता था कि वे इस्राएल के उत्तरी गोत्रों के विरुद्ध लड़ें और उन्हें पराजित करें ताकि वह अपने राज्य के सभी गोत्रों पर फिर से शासन कर सके।
\p
\s5
\v 22 परन्तु परमेश्वर ने शमायाह भविष्यद्वक्ता से यह कहा:
\v 23 "जाओ और यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र रहबाम और यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों के सभी लोगों और यहूदा में रहने वाले उत्तरी गोत्र के लोगों को यह बताओ:
\v 24 'यहोवा कहते हैं कि तुम्हें अपने ही घराने, इस्राएलियों के विरूद्ध लड़ने के लिए नहीं जाना चाहिए। तुम सभी को घर जाना चाहिए। जो हुआ है वह यहोवा करना चाहते थे। '"इसलिए शमायाह गया और उनसे कहा, और उन सभी ने सुना कि यहोवा ने उन्हें क्या करने का आदेश दिया था, और वे घर चले गए।
\p
\s5
\v 25 तब यारोबाम के कर्मचारियों ने पहाड़ी देश में शकेम शहर के चारों ओर दीवारें बनाईं, जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे, और कुछ समय तक उसने वहाँ शासन किया। तब वह और उसके कर्मचारी वहाँ से पनूएल शहर गए, और उन्होंने उस शहर के चारों ओर दीवारों का निर्माण किया।
\p
\v 26-27 तब यारोबाम ने स्वयं से कहा, "यदि मेरे लोग यरूशलेम जाएँगे और वहाँ भवन में यहोवा को बलि चढ़ाएँगे, तो शीघ्र ही वे यहूदा के राजा रहबाम के प्रति निष्ठावान हो जाएँगे, और वे मुझे मार डालेंगे। "
\p
\s5
\v 28 इसलिए उसने अपने सलाहकारों से परामर्श किया, और फिर उन्होंने जो सुझाव दिया वह उसने किया। उन्होंने अपने कर्मचारियों को सोने से बछड़ों की दो मूर्तियां बनाने के लिए कहा। उसने लोगों से कहा, "तुम लम्बे समय से आराधना करने के लिए यरूशलेम जा रहे हो। तुम वहाँ जाने में बहुत बड़ा प्रयास कर रहे हो। हे इस्राएल के लोगों देखो, ये मूर्तियां वे देवता हैं जो हमारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाये! तो तुम इनकी आराधना यहाँ कर सकते हो! "
\v 29 उसने अपने कर्मचारियों को मूर्तियों में से एक को दक्षिण में बेतेल शहर में और एक उत्तर में दान के शहर में रखने के लिए कहा।
\v 30 अत: जो कुछ यारोबाम ने किया वह लोगों के पाप करने का कारण बना। उनमें से कुछ ने बेतेल में बछड़े की मूर्तियों की पूजा की, और कुछ दूसरे बछड़े की पूजा करने दान गए।
\p
\s5
\v 31 मूसा ने यह घोषणा की थी कि लेवी के गोत्र के लोग ही याजक होंगे, परन्तु यारोबाम ने अपने कर्मचारियों को पहाड़ियों पर मूर्तियों की पूजा के स्थानों का निर्माण करने के लिए कहा, और फिर उन्होंने उन लोगों को नियुक्त किया जो लेवी के गोत्र से नहीं थे और वे भी मूर्तियों के लिए याजक बने।
\v 32 पंद्रहवें दिन आठवें महीने में उनका पर्व मनाया गया, जैसे कि हर साल यहूदा में अस्थायी झोपड़ियों में रहने का पर्व मनाया जाता था। उन्होंने बेतेल में बनाई गई वेदी पर, बछड़ों की सोने की मूर्तियों के सक्षम बलिदान चढ़ाया, और उन्होंने याजकों को पहाड़ियों पर रखा जहाँ मूर्तियों की पूजा की गई, जहाँ उनके कर्मचारियों ने मूर्ति पूजा के लिए घरों का निर्माण किया।
\p
\s5
\v 33 यारोबाम आठवें महीने के उस दिन में उस वेदी पर गया, जिसे उसने स्वयं चुना था। उस वेदी पर उसने धूप बलि चढाई। और उसने घोषित किया कि लोगों को हर वर्ष यही पर्व मनाना चाहिए।
\s5
\c 13
\p
\v 1 एक दिन एक भविष्यवक्ता, यहोवा की आज्ञानुसार उत्तर यहूदा से बेतेल गया। वह उस समय वहाँ पहुँचा जब यारोबाम धूप जलाने के लिए वेदी के पास खड़ा था।
\v 2 यह कहते हुए जो यहोवा ने उसे कहने के लिए कहा था, भविष्यवक्ता चिल्लाया, "यहोवा इस वेदी के बारे में यही कहते हैं, 'मैं चाहता हूँ तू जान ले कि किसी दिन राजा दाऊद के वंशज पैदा होगा। उसका नाम योशिय्याह होगा, और वह यहाँ आएगा। वह इस वेदी पर याजकों को मार डालेगा जो इस क्षेत्र में पहाड़ियों पर बलिदान के लिए धूप जला रहे हैं, और वह इस वेदी पर मृत लोगों की हड्डियों को जला देगा। "
\v 3 भविष्यवक्ता ने यह भी कहा, " इससे यह प्रमाणित होगा कि यहोवा ने यह कहा है: यह वेदी अलग हो जाएगी, और उस पर रखी राख बिखर जाएगी।"
\p
\s5
\v 4 जब राजा यारोबाम ने भविष्यद्वक्ता को यह कहते हुए सुना, कि उसने उस की ओर अपनी उंगली से संकेत किया और अपने कर्मचारियों से कहा, "उस व्यक्ति को पकड़ो!" लेकिन तुरंत राजा का हाथ सूख गया, जिसके परिणामस्वरूप वह इसे हिला नहीं सका।
\v 5 (वेदी दो भागो में अलग हो गई, और राख, भूमि पर गिर गई, जो भविष्यद्वक्ता ने कहा था कि यही यहोवा ने भविष्यवाणी की थी।)
\p
\s5
\v 6 तब राजा ने भविष्यद्वक्ता से कहा, "कृपया प्रार्थना कर कि यहोवा मेरे प्रति दयालु हों और मेरी बांह को ठीक करें!" भविष्यवक्ता ने प्रार्थना की, और यहोवा ने पूरी तरह से राजा की बांह को ठीक कर दिया।
\p
\v 7 तब राजा ने भविष्यद्वक्ता से कहा, "मेरे साथ घर आ और कुछ भोजन कर। और जो कुछ तुने किया है उसके लिए मैं तुझे उपहार भी दूंगा!"
\p
\s5
\v 8 परन्तु भविष्यद्वक्ता ने उत्तर दिया, "यहाँ तक कि यदि तू मुझे अपने स्वामित्व का आधा भाग भी देने का वादा करे तब भी मैं तुम्हारे तेरे साथ नहीं जाऊंगा, और मैं तेरे साथ कुछ भी नहीं खाऊंगा और ना पीऊंगा,
\v 9 क्योंकि यहोवा ने मुझे यहाँ कुछ भी नहीं खाने या पीने का आदेश दिया था। उसने मुझे आदेश दिया कि मैं उस सड़क से घर वापस न लौटूं जिस से मैं आया था।"
\v 10 फिर वह घर लौटने लगा, लेकिन वह उस सड़क से नहीं गया जिस से वह बेतेल आया था। वह एक अलग सड़क से चला गया।
\p
\s5
\v 11 उस समय बेतेल में रहने वाला एक बूढ़ा व्यक्ति था जो भविष्यद्वक्ता भी था। उसके पुत्र आए और उसे बताया कि उस दिन यहूदा के भविष्यद्वक्ता ने क्या किया था, और उन्होंने उसे यह भी बताया कि भविष्यद्वक्ता ने राजा से क्या कहा था।
\v 12 उनके पिता ने कहा, "वह किस सड़क से गया था?" उसके पुत्रों ने उसे वह मार्ग दिखाया जिस से यहूदा का भविष्यद्वक्ता बेतेल छोड़कर गया था।
\v 13 तब उसने अपने पुत्रों से कहा, "मेरे गधे पर एक काठी रखो।" उन्होंने ऐसा किया, और वह गधे पर चढ़ा।
\p
\s5
\v 14 वह यहूदा से भविष्यद्वक्ता को ढूंढ़ने के लिए सड़क पर गया। उसने उसे बांज के पेड़ नीचे बैठे पाया। उसने उससे कहा, "क्या तू वही भविष्यद्वक्ता है जो यहूदा से आया है?" उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं हूँ।"
\p
\v 15 बूढ़े भविष्यवक्ता ने उससे कहा, "मेरे साथ घर आ और कुछ भोजन कर।"
\p
\v 16 उसने उत्तर दिया, "नहीं, मुझे तेरे घर जाने या तुम्हारे साथ कुछ खाने या पीने की अनुमति नहीं है,
\v 17 क्योंकि यहोवा ने मुझे कहा, 'यहाँ कुछ भी न खाना या पीना, और जिस सड़क से तू आया था उस से घर वापस न जाना।' "
\p
\s5
\v 18 तब बूढ़े भविष्यद्वक्ता ने उससे कहा, "मैं भी तेरे जैसा भविष्यद्वक्ता हूँ। यहोवा ने मुझे यह बताने के लिए एक दूत भेजा कि मुझे तुझे मेरे साथ घर ले जाना चाहिए और तुझको कुछ खाना और पीना चाहिए।" लेकिन बूढ़ा व्यक्ति झूठ बोल रहा था जब उसने यह कहा था।
\v 19 परन्तु बूढ़े भविष्यद्वक्ता ने जो कहा, उसे सुनकर यहूदा का भविष्यद्वक्ता उसके साथ लौट आया और कुछ भोजन किया और उसके साथ थोड़ा पानी पिया।
\p
\s5
\v 20 जब वे मेज पर बैठे थे, तब यहोवा ने बूढ़े व्यक्ति से बातें की।
\v 21 तब उसने यहूदा के भविष्यद्वक्ता से कहा, "यहोवा यही कहते है: 'तुने उनकी आज्ञा ना मानी, और तुने वह नही किया जिसकी उन्होंने आज्ञा दी थी।
\v 22 इसके बजाय, तू यहाँ वापस आ गए और ऐसे स्थान में खाया पिया जहाँ उन्होंने ऐसा न करने की आज्ञा दी थी। इस के कारण तू मारा जाएगा और तेरे शरीर को वहाँ कब्र में मिट्टी नहीं दी जाएगी जहाँ तेरे पूर्वजों को मिट्टी दी गई थी। '"
\p
\s5
\v 23 जब उन्होंने खाना समाप्त कर लिया, तो बूढ़े व्यक्ति ने यहूदा के भविष्यद्वक्ता के लिए गधे पर एक काठी लगाई, और यहूदा का भविष्यद्वक्ता चला गया।
\v 24 जब वह जा रहा था, तो एक शेर मिला जिसने उसे मार डाला। भविष्यद्वक्ता की लाश सड़क पर पड़ी थी; (गधा उसकी बगल में खड़ा था, और शेर भी लाश की बगल में खड़ा था।)
\v 25 कुछ लोग गुजरते हुए सड़क पर लाश और गधे की बगल में खड़े शेर को देखकर आश्चर्यचकित हुए। वे बेतेल गए और उन्होंने जो देखा वह बताया।
\p
\s5
\v 26 बूढ़ा व्यक्ति जो यहूदा से भविष्यद्वक्ता को अपने घर लाया था, उसने कहा, "यही वह भविष्यद्वक्ता है यहोवा ने जो उसे करने के लिए कहा था उसने नही किया! यही कारण है कि यहोवा ने शेर को हमला करने और मारने की अनुमति दी यही है जो यहोवा ने कहा था होगा! "
\p
\v 27 तब उसने अपने पुत्रों से कहा, "मेरे गधे पर एक काठी रखो।" उन्होंने ऐसा किया।
\v 28 फिर वह गधे पर सवार होकर गया उसने भविष्यद्वक्ता की लाश को सड़क पर पाया, और उसका गधा और शेर अभी भी लाश के पास खड़े थे। शेर ने भविष्यद्वक्ता के माँस में से कुछ भी नहीं खाया था और गधे पर आक्रमण नहीं किया था।
\p
\s5
\v 29 बूढ़े व्यक्ति ने भविष्यद्वक्ता की लाश उठाई और उसे अपने गधे पर रखा और शोक करने और उसकी लाश को मिट्टी देने के लिए बेतेल वापस लाया।
\v 30 उसने कब्र में भविष्यद्वक्ता की लाश को मिट्टी दी जहाँ उसके परिवार के अन्य लोगों को मिट्टी दी गई थी। तब उसने और उसके बेटों ने उसके लिए यह कहते हुए शोक किया, "हम बहुत खेदित है, मेरे भाई!"
\p
\s5
\v 31 जब उन्होंने उसे मिट्टी दी , तो बूढ़े व्यक्ति ने अपने बेटों से कहा, "जब मैं मर जाऊं, तो मेरी लाश को उसी कब्रिस्तान में मिट्टी देना जहाँ हमने यहूदा के भविष्यद्वक्ता को मिट्टी दी थी । मेरी लाश को उसकी लाश की बगल में रखना।
\v 32 और जो कुछ उसने कहा, उसे न भूलें, यहोवा ने उसे बेतेल में वेदी के विषय कहने के लिए कहा था, और यहोवा ने उन स्थानों के विषय कहने के लिए कहा था जहाँ उन्होंने सामरिया के कस्बों के चारों ओर पहाड़ियों पर मूर्तियों की पूजा की थी। ये बातें निश्चित रूप से घटित होंगी। "
\p
\s5
\v 33 परन्तु राजा यारोबाम अभी भी उन बुरे कामों को करने में नहीं रुक रहा था। इसकी बजाय, उसने उन में से अधिक याजकों को नियुक्त किया जो लेवी गोत्र से नहीं थे। उन्होंने उन सभी को नियुक्त किया जो याजक बनने के लिए सहमत हुए, ताकि वे पहाड़ी पर बलिदान चढ़ा सकें।
\v 34 क्योंकि उसने वह पाप को किया, जिसके कारण कुछ साल बाद यारोबाम के अधिकांश वंशज लुप्त हो गए और इस्राएल के राजा नहीं बन सकें।
\s5
\c 14
\p
\v 1 उस समय, यारोबाम का पुत्र अबिय्याह बहुत बीमार हो गया।
\v 2 यारोबाम ने अपनी पत्नी से कहा, " स्वयं का भेष बदल कि कोई भी पहचान न सके कि तू मेरी पत्नी है। शीलो शहर जा, जहाँ भविष्यद्वक्ता अहिय्याह रहता है। वह वही है जिसने भविष्यवाणी की थी कि (मैं इस्राएल का राजा बन जाऊंगा)
\v 3 अपने साथ दस रोटियाँ और कुछ किशमिश, और शहद की एक कुप्पी ले, और उसे दे। उसे हमारे बेटे के बारे में बता, और वह तुझको बताएगा कि उसके साथ क्या होगा। "
\p
\s5
\v 4 तब उसकी पत्नी अहिय्याह के घर शीलो गई। अहिय्याह देख नहीं पाता था, क्योंकि बुढ़ापे के कारण उसकी आँखें धुन्धली पड़ गई थीं।
\p
\v 5 वहाँ पहुंचने से पहले, यहोवा ने अहिय्याह से कहा कि यारोबाम की पत्नी अपने बेटे के बारे में पूछने के लिए आ रही है, जो बहुत बीमार है। और यहोवा ने अहिय्याह को बताया कि उसे क्या कहना चाहिए।
\p जब वह उसके पास आई, तो उसने दूसरी औरत होने का नाटक किया।
\p
\s5
\v 6 परन्तु जब अहिय्याह ने द्वार में प्रवेश करते हुए उसके कदमों को सुना, तो उसने उससे कहा, "यारोबाम की पत्नी अन्दर आ! तू क्यों नाटक करती है कि तू कोई और है? यहोवा ने मुझे तुझको बताने के लिए बुरा समाचार दिया है।
\v 7 जा और यारोबाम को बता कि यहोवा, जिन परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे कहते हैं: 'मैंने तुझको आम लोगों में से चुना है और तुझको अपने इस्राएली लोगों का राजा बनने के योग्य बनाया है।
\v 8 मैंने इस्राएल के अधिकांश राज्य को दाऊद के वंशजों से छीनकर तुझे दे दिया। लेकिन तू दाऊद की तरह नहीं है, जिसने मेरी भली-भांति सेवा करी। उसने मेरी सभी आज्ञाओं का सच्चाई से पालन किया, केवल वही किया जिन्हें मैंने सही माना।
\p
\s5
\v 9 परन्तु तुने उन सभी लोगों की तुलना में अधिक बुरा किया है जो तुझसे पहले शासन करते थे। तुने मुझे त्याग दिया और तुने मुझे बहुत गुस्सा दिलाया अन्य देवताओं की धातु की मूर्तियां बनाकर ताकि तू और सभी उसकी पूजा कर सके।
\p
\v 10 इसलिए, मैं तेरे परिवार के साथ भयानक कार्य करने जा रहा हूँ। मैं तेरे सभी युवा और बूढ़े पुरुष वंशजों के मरने का कारण बनूंगा। मैं पूरी तरह से तेरे परिवार से छुटकारा पाऊंगा जैसे कि एक व्यक्ति खाना पकाने के लिए गोबर को पूरी तरह से जलाता है।
\p
\s5
\v 11 शहरों में मरने वाले तेरे परिवार के सदस्यों की लाश कुत्ते खाएंगे। और खुले मैदानों में मरने वाले तेरे परिवार के सदस्यों की लाशें गिद्ध खाएंगे। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने कहा है कि यह होगा।'
\p
\v 12 अत: घर वापस जा। जैसे ही तू शहर में प्रवेश करेगी, तेरा बेटा मर जाएगा।
\v 13 सभी इस्राएली उसके लिए शोक करेंगे और उसे मिट्टी देंगे। वह यारोबाम के परिवार में से एकमात्र होगा, जिसे ठीक से मिट्टी दी जाएगी, क्योंकि वह यारोबाम के परिवार में से एक है जिससे यहोवा प्रसन्न है।
\p
\s5
\v 14 इसके अलावा, यहोवा इस्राएल के ऊपर शासन करने के लिए एक राजा नियुक्त करेंगे जो यारोबाम के वंशजों से छुटकारा दिलाएगा।और यह आज से ही होने लगेगा!
\v 15 यहोवा इस्राएल के लोगों को दण्डित करेंगे। वह उन्हें हिलाएगे जैसे हवा एक धारा में उगने वाले सरकंडें को हिलाती है। वह इस्राएलियों को इस अच्छी भूमि से निकाल देंगे जो उन्होंने हमारे पूर्वजों को दी थी। वह उन्हें फरात नदी के पूर्व के देशों में तितर-बितर कर देंगे, क्योंकि उन्होंने देवी अशेरा की पूजा करने के लिए स्तंभ बनाकर यहोवा को बहुत क्रोधित कर दिया है।
\v 16 यहोवा यारोबाम के पापों के कारण इस्राएली लोगों को त्याग देंगे, जिन पापों में इस्राएली भी सम्मिलित थे।"
\p
\s5
\v 17 यारोबाम की पत्नी इस्राएल की नई राजधानी तिर्सा शहर में घर लौट आई। और जैसे ही उसने अपने घर में प्रवेश किया, उसका बेटा मर गया।
\v 18 सभी इस्राएली लोगों ने उसके लिए शोक किया और उसे मिटटी दी, यहोवा ने अपने दास भविष्यद्वक्ता अहिय्याह को बताया था, वैसा ही हो गया।
\p
\s5
\v 19 यारोबाम ने जो कुछ भी किया, युद्ध में उसकी सेना कैसे लड़ी, वह कैसे शासन करता था, यह सब इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में लिखा गया है।
\v 20 यारोबाम ने बीस साल तक शासन किया। जब वह मर गया, उसका पुत्र नादाब राजा बन गया।
\p
\s5
\v 21 सुलैमान के पुत्र रहबाम ने यहूदा पर शासन किया। जब उसने शासन करना आरम्भ किया, तो वह चालीस वर्ष का था, और उसने सत्रह वर्षों तक शासन किया। उसने यरूशलेम में शासन किया, यह वह शहर है जिसे यहोवा ने इस्राएल के सभी गोत्रों में से चुना था, जहाँ आराधना की जानी चाहिए। रहबाम की माँ का नाम नामा था। वह अम्मोन लोगों के समूह से थी।
\p
\v 22 यहूदा के लोगों ने बहुत सी बातें कीं जिन्हें यहोवा ने घृणित कहा था। उन्होंने उन्हें क्रोध दिलाया क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक पाप किए थे। उन्होंने सिर्फ यहोवा की आराधना करने की बजाय कई अन्य देवताओं की पूजा की।
\p
\s5
\v 23 उन्होंने उन देवताओं की पूजा के लिए घर बनाये। ऊंची पहाड़ियों पर और बड़े पेड़ों के नीचे उन्होंने अशेरा की पूजा के लिए खंभे और स्तम्भ स्थापित किए।
\v 24 इसके अलावा, पूजा के इन स्थानों पर पुरुषगमन करवाने वाले सेवक भी थे। इस्राएली लोगों ने वही अपमानजनक कर्म किए जो लोगों ने किये थे, जिन्हें यहोवा ने निष्कासित कर दिया था, जब इस्राएली देश में आगे बढ़ रहे थे।
\p
\s5
\v 25 जब रहबाम को लगभग शासन करते हुए पांच वर्ष हो गए, तब मिस्र का राजा शिशक यरूशलेम पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के साथ आया।
\v 26 वह भवन से और राजा के महल से सभी मूल्यवान चीजें ले गए, जिसमें सुलैमान के कर्मचारियों द्वारा बनाई गई सोने की ढाल भी थी।
\p
\s5
\v 27 राजा रहबाम के कर्मचारियों ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उन्हें राजा के महल के प्रवेश द्वार की रक्षा करने वाले अधिकारियों के हाथों में थमा दिया।
\v 28 हर बार जब राजा भवन में गया, तो वे रक्षक उन ढालों को लेकर चले, और जब उन्होंने भवन छोड़ दिया तो उन्होंने ढालों को कमरे में वापस रख दिया।
\p
\s5
\v 29 रहबाम ने जो कुछ भी किया वह यहूदा के राजाओं की पुस्तक में लिखा गया है।
\v 30 रहबाम और यारोबाम की सेनाओं के बीच निरंतर युद्ध चलता रहा।
\v 31 जब रहबाम की मृत्यु हो गई, और उसे यरूशलेम के दाऊद नगर में मिटटी दी गई, जहाँ उसके पूर्वजों को मिटटी दी गई थी। इसके बाद उसका पुत्र अबिय्याम राजा बन गया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 यारोबाम के इस्राएल के राजा होने के लगभग अठारह साल के बाद, अबिय्याम यहूदा का राजा बन गया।
\v 2 उसने यरूशलेम में तीन साल तक शासन किया। उसकी माँ का नाम माका था, जो अबशालोम की पुत्री थी।
\p
\v 3 अबिय्याम ने उसी तरह के पाप किए जो उसके पिता ने किए थे। वह अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति पूरी तरह से समर्पित नहीं था, जैसा उसका पूर्वज दाऊद था।
\p
\s5
\v 4 परन्तु, परमेश्वर यहोवा ने दाऊद से वादा किया था, और यहोवा ने अबिय्याम को एक पुत्र यरूशलेम में शासन करने और यरूशलेम को अपने शत्रुओं से बचाने के लिए दिया था।
\v 5 यहोवा ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि दाऊद ने सदैव यहोवा को प्रसन्न किया था और दाऊद ने हमेशा यहोवा की आज्ञा मानी थी। जब उसने बतशेबा के साथ अपने पाप के कारण उरीया को मार डाला तभी वह एकमात्र समय था जब उसने यहोवा की अवज्ञा की थी।
\p
\v 6 अबिय्याम के शासन के दौरान रहबाम और यारोबाम की सेनाओं के बीच युद्ध चलते रहे।
\p
\s5
\v 7 अबिय्याम ने जो कुछ किया वह यहूदा के राजाओं की पुस्तक में लिखा गया है।
\v 8 अबिय्याम की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम के दाऊद नगर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र आसा राजा बन गया।
\p
\s5
\v 9 यारोबाम के लगभग बीस वर्षों तक इस्राएल का राजा रहने के बाद, आसा ने यहूदा पर शासन करना शुरू कर दिया।
\v 10 उसने यरूशलेम में चालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी दादी अबशालोम की बेटी माका थीं।
\p
\v 11 आसा ने यहोवा को प्रसन्न किया, जैसा कि उसके पूर्वजों ने किया था।
\p
\s5
\v 12 उसने उन पुरुषगमन करने वालों से छुटकारा पा लिया जो उन जगहों पर थे जहाँ लोग मूर्तियों की पूजा करते थे, और उसने अपने पूर्वजों द्वारा बनाई सारी मूर्तियों से भी छुटकारा पा लिया।
\v 13 उसने अपनी दादी माका को भी हटा दिया ताकि उसका पूर्व राजा की माँ होने के कारण प्रशासन में अब प्रभाव न हो। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसने देवी अशेरा की घृणित लकड़ी की मूर्ति बनाई थी। आसा ने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि मूर्ति को काटें और गिराकर किद्रोन घाटी में जला दें।
\p
\s5
\v 14 वह उन सभी स्थानों को नष्ट करने में सक्षम नहीं था जहाँ लोग यहोवा की आराधना करते थे, परन्तु वह अपने समय में यहोवा को समर्पित रहा।
\v 15 उसने कर्मचारियों को अपने पिता द्वारा यहोवा को समर्पित सभी वस्तुओं को भवन में स्थापित करने के लिए कहा , और वे सभी सोने और चाँदी की चीजें जिन्हें उसने यहोवा के लिए समर्पित किया था।
\p
\s5
\v 16 आसा और इस्राएल के राजा बाशा की सेनाओं के बीच युद्ध होते रहे, जब तक वे शासन करते रहे ।
\v 17 बाशा की सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यरूशलेम के उत्तर में रामाह शहर पर अधिकार कर लिया। तब उन्होंने राजा आसा द्वारा शासित यहूदा के क्षेत्रों में लोगों के आवागमन की रोकथाम के लिए चारों ओर दीवार बनानी आरम्भ कर दी।
\p
\s5
\v 18 तब आसा ने अपने मजदूरों को भवन और महल में रखे हुए सभी चाँदी और सोने को लेने के लिए कहा और उसे अपने कुछ अधिकारियों को दिया। उसने उन्हें दमिश्क ले जाने और राजा बेन्हदद को देने के लिए कहा जो अराम पर शासन करता था। बेन्हदद तब्रिम्मोन का पुत्र था और हेज्योन का पोता था। उसने अधिकारियों से बेन्हदद को यह बतलाने के लिए कहा:
\v 19 "मैं चाहता हूँ कि मेरे और तेरे बीच शान्ति संधि हो, जैसे कि मेरे पिता और तेरे पिता के बीच में हुई थी। इसी उद्देश्य के लिए, मैं तुझे यह चाँदी और सोना दे रहा हूँ। अब कृपया उस संधि को निरस्त कर जो तुने इस्राएल के राजा बाशा के साथ की है, ताकि वह अपने सैनिकों को मुझ पर आक्रमण करने न दे क्योंकि वह तेरी सेना से डर जाएगा। "
\p
\s5
\v 20 इसलिए अधिकारी गये और बेन्हदद को सन्देश दिया, और उसने आसा के सुझावअनुसार किया। उसने अपनी सेना के प्रधान और उनके सैनिकों को इस्राएल के कुछ कस्बों पर आक्रमण करने के लिए भेजा। उन्होंने इय्योन, दान, बेत-माकाह के आबेल, गलील सागर के पास के क्षेत्र और नप्ताली के गोत्र की सारी भूमि पर अधिकार कर लिया।
\v 21 जब बाशा ने इसके बारे में सुना, तो उसने अपने सैनिकों को रामा में काम करवाना बंद कर दिया। वह और उसके सैनिक तिर्सा लौट आए और वहाँ रहे।
\v 22 तब राजा आसा ने यहूदा के कस्बों में सभी लोगों को एक सन्देश भेजा, जिसमें कहा गया था कि उन सभी को रामा जाने और बाशा के सैनिकों द्वारा शहर के चारों ओर दीवार बनाने के लिए उपयोग हो रहे पत्थर और लकड़ी को ले जाने की आवयश्कता थी। उन पत्थरों और लकड़ियों के साथ उन्होंने यरूशलेम के उत्तर में मिस्पा शहर और बिन्यामीन के गोत्र के क्षेत्र में एक नगर गेबा को दृढ़ किया।
\p
\s5
\v 23 आसा ने जो कुछ किया, सेनाओं ने जिन सेनाओं को पराजित किया, और उन नगरों के नाम जिन्हें उन्होंने दृढ़ किया, वे सभी यहूदा के राजाओं की पुस्तक में लिखे गए हैं। लेकिन जब आसा बूढ़ा हो गया, तो उसके पैरों में एक बीमारी हुई।
\v 24 वह मर गया और उसे मिट्टी दी गई जहाँ उसके पूर्वजों को यरूशलेम के दाऊद नगर नामक भाग में मिट्टी दी गई थी। तब उसका पुत्र यहोशापात राजा बन गया।
\p
\s5
\v 25 आसा दो साल तक यहूदा का राजा रहा, राजा यारोबाम के पुत्र नादाब ने इस्राएल पर शासन करना शुरू कर दिया। उसने दो साल तक शासन किया।
\v 26 उसने कई काम किए जो यहोवा की दृष्टि में घृणित थे। उसका व्यवहार उसके पिता के व्यवहार की तरह पापमय था, और उसने इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\p
\s5
\v 27 इस्साकार के गोत्र से बाशा नाम के एक व्यक्ति ने उसे हानि पहुँचाने की युक्ति की। उसने नादाब को मारा जब नादाब और उसकी सेना ने पलिश्ती क्षेत्र में गिब्बतोन शहर को घेर रखा था।
\v 28 यह तब हुआ था जब आसा राजा को यहूदा पर शासन करते तीन वर्ष हो गये थे। तब बाशा इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 29 जैसे ही वह राजा बन गया, उसने अपने सैनिकों को यारोबाम के परिवार को मारने का आदेश दिया। वही करना जो यहोवा ने शीलो से भविष्यद्वक्ता अहिय्याह को बताया था, उन्होंने यारोबाम के परिवार को मार डाला। उनमें से कोई भी नहीं बचा।
\v 30 ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यारोबाम के सभी पापों के कारण यहोवा यारोबाम से बहुत क्रोधित हो गये थे, और उन पापों के कारण जो उसने इस्राएलियों के लोगों को करने के लिए फुसलाया था।
\p
\s5
\v 31 नादाब ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में लिखा गया है।
\v 32 राजा आसा और राजा बाशा के शासनकाल के दौरान उनकी सेनाओं के बीच युद्ध चलते रहे ।
\p
\s5
\v 33 आसा के लगभग तीन वर्षों तक यहूदा का राजा रहने के बाद , अहिय्याह के पुत्र बाशा ने इस्राएल पर तिर्सा शहर में शासन करना आरम्भ कर दिया। उसने चौबीस साल तक शासन किया।
\v 34 बाशा ने बहुत से ऐसे कर्म किए जिन्हें यहोवा ने घृणित कहा था, और वह यारोबाम की तरह पापी जीवन जीता था। बाशा के पापी जीवन ने इस्राएल के लोगों के सक्षम उदाहरण प्रस्तुत किया जो उन्हें पाप करने के लिए प्रोत्साहित करता था।
\s5
\c 16
\p
\v 1 जब बाशा इस्राएल का राजा था, तब हनानी के पुत्र भविष्यवक्ता येहू ने बाशा को यह सन्देश दिया जो यहोवा से प्राप्त हुआ था:
\v 2 "जब तुने मुझे अपने इस्राएली लोगों का शासक बनने के लिए प्रेरित किया, तो तू बहुत महत्वहीन था। लेकिन तुने मुझे यारोबाम के बुरे कामों से बहुत क्रोधित कर दिया। तुने मेरे लोगों से पाप करवाकर मुझे क्रोधित किया ।
\p
\s5
\v 3 अत: अब मैं तुझसे और तेरे परिवार से छुटकारा पाऊंगा। मैं तेरे साथ ऐसा करूँगा जैसे मैंने यारोबाम और उसके परिवार के साथ किया था।
\v 4 इस शहर में तेरे परिवार के मृत शरीरों को मिट्टी नहीं दी जाएगी। उन्हें कुत्तें खाएंगे, और खेतों में मरने वालों के शरीर गिद्ध खाएंगे। "
\p
\s5
\v 5 बाशा ने इस्राएल पर शासन के दौरान जो कुछ किया और उसकी सेना ने जो महान काम किये, वह इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 6 जब बाशा की मृत्यु हो गई, तो उसे राजधानी शहर तिर्सा में मिट्टी दी गई। इसके बाद उसका पुत्र एला राजा बन गया।
\p
\s5
\v 7 यहोवा ने बाशा और उसके परिवार के बारे में यह सन्देश येहू को दिया। बाशा ने कई काम किए थे जिन्हें यहोवा ने घृणित कहा था, जिस के कारण यहोवा क्रोधित हो गये। बाशा ने उसी तरह के कर्म किये जो राजा यारोबाम और उसके परिवार ने पहले किये थे। यहोवा बाशा से भी क्रोधित थे क्योंकि उसने यरोबाम के सम्पूर्ण परिवार को मार डाला था।
\p
\s5
\v 8 आसा के लगभग छब्बीस वर्ष तक यहूदा का राजा रहने के बाद, एला इस्राएल का राजा बन गया। एला ने तिर्सा में केवल दो साल तक शासन किया।
\p
\v 9 जिम्री नाम का व्यक्ति एला की सेना के अधिकारियों में से एक था। वह एला की सेना के रथों के आधे चालकों को आदेश देनेवाला था उसने एला को मारने की योजना बनाई, जबकि एला तिर्सा में था, वह अर्सा नाम के व्यक्ति के घर पर नशे में था। अर्सा वह व्यक्ति था जिसने राजा के महल में चीजों का ध्यान रखा था।
\v 10 जिम्री अर्सा के घर गया और एला को मार डाला। फिर वह इस्राएल का राजा बन गया। यह तब हुआ जब आसा को यहूदा का राजा बने सात वर्ष हो चुके थे ।
\p
\s5
\v 11 जैसे ही जिम्री राजा बन गया, उसने बाशा के परिवार को मार डाला। उसने बाशा के परिवार और बाशा के सभी मित्रों के प्रत्येक पुरुष को मार डाला।
\v 12 इस प्रकार उसने बाशा के परिवार से छुटकारा पा लिया। यही था जो यहोवा ने भविष्यद्वक्ता येहू से कहा था।
\v 13 बाशा और उसके पुत्र एला ने पाप किया और इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया। उससे यहोवा, जिस परमेश्वर की इस्राएली लोगों ने आराधना की, थी क्रोधित हो गये, क्योंकि दोनों ने लोगों से बेकार मूर्तियों की पूजा करने का आग्रह किया था।
\p
\s5
\v 14 एला ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\s5
\v 15 यहूदा पर आसा के राज्य काल के सत्ताईसवें वर्ष में जिम्री इस्राएल का राजा बना। जिम्री ने तिर्सा में मात्र सात दिन शासन किया। इस्राएली सेना पलिश्ती लोगों के समूह के शहर गिब्बतोन को घेरे हुए थी।
\v 16 इस्राएली सेना के लोगों ने सुना कि जिम्री ने गुप्त रूप से राजा एला को मारने की योजना बनाई और उसे मार डाला था। इसलिए उस दिन सैनिकों ने प्रधान ओम्री को इस्राएल का राजा बनने के लिए चुना।
\v 17 इस्राएली सेना गिब्बतोन के पास गई। जब उन्होंने सुना कि जिम्री ने क्या किया तो वे वहाँ से चले गए और तिर्सा गए और शहर को घेर लिया।
\p
\s5
\v 18 जब जिम्री को अनुभव हुआ कि शहर पर अधिकार होनेवाला है, तो वह अपने महल में गया और उसे जला दिया। महल जल गया, और वह भी आग में जल कर मर गया।
\v 19 वह मर गया क्योंकि उसने बहुत से ऐसे कर्म करके पाप किया था, जिसे यहोवा ने घृणित कहा था। यारोबाम ने इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया था, और जिम्री ने पाप किया जैसे यारोबाम ने पाप किया था।
\p
\v 20 जिम्री के द्वारा किए गए अन्य सभी कर्म और कैसे उसने राजा एला के विरूद्ध विद्रोह किया, इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\s5
\v 21 जिम्री की मृत्यु के बाद, इस्राएली लोग आपस में विभाजित हो गए। एक समूह गीनत के पुत्र तिब्नी को अपना राजा बनाना चाहता था। दूसरा समूह ओम्री को राजा बनना चाहता था।
\v 22 जो लोग ओम्री का समर्थन करते थे वे तिब्नी का समर्थन करने वालों की तुलना में अधिक सामर्थी थे। तिब्नी की हत्या हो गयी, और ओम्री राजा बन गया।
\p
\s5
\v 23 आसा राजा बन गया जब आसा लगभग तीस साल तक यहूदा का राजा रहा। ओम्री ने बारह वर्षों तक इस्राएल पर शासन किया। पहले छः वर्षों तक उन्होंने तिर्सा में शासन किया।
\v 24 उसने शेमेर नाम के व्यक्ति से एक पहाड़ी मोल ली और उसने उसके लिए छियासठ किलो चाँदी का भुगतान किया। तब ओम्री ने अपने लोगों को उस पहाड़ी पर एक शहर बनाने का आदेश दिया, और उसने शेमेर को सम्मानित करने के लिए इस शहर का नाम सामरिया रखा, जिसका वह पहले स्वामी था।
\p
\s5
\v 25 ओम्री ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने घृणित कहा था। ओम्री उन सभी राजाओं से बुरा था जो उससे पहले इस्राएल पर राज कर चुके थे।
\v 26 पूर्व में जब यारोबाम राजा था, तब उसने इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया था, और ओम्री ने उसी प्रकार के पाप किए जो यारोबाम ने किए थे। इस्राएली लोगों ने बेकार की मूर्तियों की पूजा करके यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर को क्रोधित किया
\p
\s5
\v 27 ओम्री ने जो कुछ किया, और उसकी सेना ने जितने युद्ध जीते थे, यह सब इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में लिखे गए है।
\v 28 ओम्री की मृत्यु के बाद, उसे सामरिया में मिटटी दी गई, और उसका पुत्र अहाब राजा बन गया।
\p
\s5
\v 29 अहाब इस्राएल का राजा बन गया जब आसा ने लगभग अड़तीस सालों तक यहूदा पर शासन किया। अहाब ने सामरिया शहर में बाईस साल तक शासन किया।
\v 30 अहाब ने बहुत से ऐसे काम किये जो यहोवा की दृष्टि में घृणित थे। उसने अन्य राजाओं की तुलना में अधिक बुरे काम किये जो उसके शासन करने से पहले इस्राएल पर शासन करते थे।
\p
\s5
\v 31 उसने यारोबाम के समान पाप किए, परन्तु उसने उस से और भी अधिक बुरे काम किये जो यारोबाम ने किए थे। उसने सीदोन शहर के राजा एतबाल की पुत्री ईजेबेल नाम की औरत से विवाह किया। तब अहाब ने बाल देवता की पूजा करना शुरू कर दिया जो कनानी लोगों का देवता था।
\v 32 उसने सामरिया में एक भवन बनाया ताकि इस्राएली लोग देवता बाल की पूजा कर सकें, और उन्होंने बाल देवता को बलिदान देने के लिए वहाँ एक वेदी बनाई।
\v 33 उसने एक मूर्ति भी बनाई जो बाल की पत्नी अशेरा का प्रतिनिधित्व करती थी । उसने कई और काम किये जिससे यहोवा क्रोधित हो गये। उसने इस्राएल के पिछले राजाओं में से किसी की भी तुलना में अधिक बुरे काम किये थे।
\p
\s5
\v 34 अहाब के उन वर्षों के दौरान, बेतेल शहर के एक व्यक्ति हीएल ने यरीहो शहर का पुनर्निर्माण किया। लेकिन जब उसने शहर का पुनर्निर्माण करना शुरू किया, तो उसका सबसे बड़ा बेटा अबीराम मर गया। जब शहर का निर्माण समाप्त हो गया, हायल शहर के द्वार का निर्माण कर रहा था, उसके सबसे छोटे बेटे सगूब की मृत्यु हो गई। जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा था कि यरीहो का पुनर्निर्माण करने वाले के पुत्रों के साथ ऐसा ही होगा।
\s5
\c 17
\p
\v 1 एलिय्याह एक भविष्यद्वक्ता था जो गिलाद के क्षेत्र में तिशबी शहर में रहता था। एक दिन वह राजा अहाब के पास गया और उससे कहा, "यहोवा ही वह परमेश्वर है जिनकी मै आराधना करता हूँ और सेवा करता हूँ। जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं, अगले कुछ वर्षों में एकदम वर्षा नहीं होगी, जब तक मैं वर्षा होने का आदेश नहीं देता। "
\p
\s5
\v 2 तब यहोवा ने एलिय्याह से कहा,
\v 3 "क्योंकि तुने राजा को क्रोधित कर दिया है, इसलिए राजा से बच कर पूर्व में, करीत नामक नाले के पास जा, जहाँ से यह यरदन नदी में बहती है।
\v 4 तू नदी के किनारे का पानी पी सकेगा, और तेरे लिए जो कौवे ले कर आएँगे वह खा सकेगा, क्योंकि मैंने उन्हें तेरे लिए भोजन लाने का आदेश दिया है। "
\p
\s5
\v 5 तब एलिय्याह ने वह किया जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था। वह गया और करीत नाले के पास डेरा डाला।
\v 6 कौवे ने हर सुबह और उसने शाम को रोटी और माँस खाने के लिए दिया, और उसने नदी से पानी पीया।
\p
\v 7 लेकिन थोड़े समय बाद, नदी का पानी सूख गया, क्योंकि भूमि में कहीं भी वर्षा नहीं हो रही थी।
\p
\s5
\v 8 तब यहोवा ने एलिय्याह से कहा,
\v 9 "जा और सीदोन शहर के पास सारफत गांव में रह। वहाँ एक विधवा है जो तुझे खाने के लिए भोजन देगी। मैंने उसे इसके बारे में पहले ही बताया है कि क्या करना है।"
\v 10 तब एलिय्याह ने वह किया जो परमेश्वर ने कहा था। वह सारफत गया। जब वह गांव के द्वार पर पहुंचा, तो उसने एक विधवा को देखा जो लकड़ी इकट्ठा कर रही थी। उसने उससे कहा, "क्या तू मुझे पानी पिलाएगी ?"
\p
\s5
\v 11 जब वह उसके लिए पानी लेने जा रही थी, तब उसने उस विधवा को आवाज़ दे कर कहा, "मेरे लिए रोटी का एक टुकड़ा भी ले आ!"
\p
\v 12 परन्तु उसने उत्तर दिया, "तेरे परमेश्वर जानते हैं कि जो कुछ मैं तुझको बता रही हूँ वह सच है। मेरे घर में मेरे पास रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं है। मेरे पास कुप्पी में थोड़ा सा आटा है, और थोड़ा जैतून का तेल। मैं आग जलाने और खाना पकाने के लिए इनका उपयोग करने के लिए कुछ लकड़ियाँ इकट्ठा कर रही थी, और फिर मैं और मेरा बेटा इसे खा ने के बाद मर जाएँगे। "
\p
\v 13 परन्तु एलिय्याह ने उससे कहा, "चिंतित मत हो! घर जा और जो कुछ तुने कहा था वह कर। लेकिन सबसे पहले, मेरे लिए आटे की एक छोटी सी रोटी बना और मेरे पास ला। ऐसा करने के बाद, जो बचा है उसे ले ले और तू और तेरे बेटे के लिए खाना तैयार कर।
\p
\s5
\v 14 मुझे पता है कि तू ऐसा कर सकती क्योंकि यहोवा, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, वे कहते हैं, तेरे पात्र में भरपूर आटा और जैतून का तेल सदैव रहेगा जब तक मैं वर्षा नहीं भेजता और फसलें फिर से नहीं बढ़ती हैं।'"
\p
\v 15 इसलिए उस स्त्री ने वही किया जो एलिय्याह ने उसे करने के लिए कहा था। उसके और उसके बेटे और एलियाह के पास हर दिन का पर्याप्त भोजन था,
\v 16 क्योंकि पात्र में आटा कभी समाप्त नहीं हुआ, और तेल का पात्र कभी खाली नहीं हुआ। ठीक वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने एलिय्याह से कहा था कि होगा।
\p
\s5
\v 17 कुछ समय बाद, महिला का बेटा बीमार हो गया। उसकी दशा और भी बदतर हो गई, और अंततः वह मर गया।
\v 18 तब वह स्त्री एलिय्याह के पास गई और उससे कहा, "तू एक भविष्यद्वक्ता है, तो तुने मेरे साथ यह क्यों किया? क्या मेरे बेटे की मृत्यु के द्वारा मेरे पापों के लिए मुझे दण्डित करने के लिए आया है?"
\p
\s5
\v 19 परन्तु एलिय्याह ने उत्तर दिया, "अपने बेटे को इधर ला।" उसने अपने बेटे को उसको दे दिया, और उसने लड़के के शरीर को लिया और उसे कमरे में ले गया जहाँ वह रह रहा था। उसने लड़के के शरीर को अपने बिस्तर पर लिटा दिया।
\v 20 तब एलिय्याह ने यहोवा से कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा, इस विधवा ने मुझे अपने घर में रहने की अनुमति दी। तो आपने यह विपत्ति क्यों डाली कि उसके बेटे को मरने दिया? "
\v 21 तब एलिय्याह ने स्वयं को लड़के के शरीर के ऊपर पसार दिया और यहोवा से कहा, "हे मेरे परमेश्वर यहोवा, कृपया इस लड़के को फिर से जीवित कर दीजिए!" उसने यह तीन बार किया।
\p
\s5
\v 22 यहोवा ने एलिय्याह की प्रार्थना सुनी, और उन्होंने लड़के को फिर से जीवित कर दिया।
\v 23 एलिय्याह लड़के को नीचे ले गया और उसे उसकी माँ को दे दिया। उसने कहा, "देखो, तुम्हारा बेटा जीवित है।"
\p
\v 24 उस स्त्री ने एलिय्याह से कहा, "अब मैं निश्चित रूप से जानती हूँ कि तू एक भविष्यद्वक्ता है और जो बातें तू बोलता है वे सचमुच यहोवा से हैं।"
\s5
\c 18
\p
\v 1 लगभग तीन वर्षों तक सामरिया में वर्षा नहीं हुई । तब यहोवा ने एलिय्याह से यह कहा: "जा और राजा अहाब से मिल और उसे बता कि मैं शीघ्र ही वर्षा भेजूंगा।"
\v 2 तब एलिय्याह अहाब से बातें करने गया।
\p सामरिया में किसी के खाने के लिए लगभग कुछ भी नहीं था।
\p
\s5
\v 3 वहाँ ओबद्याह नाम का एक व्यक्ति था। वह राजा के महल का प्रभारी था। उसने यहोवा का बहुत सम्मान किया।
\v 4 एक बार जब रानी ईजेबेल ने यहोवा के सभी भविष्यवक्ताओं को मारने का प्रयास किया था, तब ओबद्याह ने उनमें से सौ भविष्यद्वक्ताओं को दो गुफाओं में छिपाया था। उसने प्रत्येक गुफा में पचास को रखा, और वह उन्हें भोजन और पानी दिया करता था।
\p
\s5
\v 5 इस समय तक, सामरिया में अकाल बहुत कष्टमय हो गया था। अहाब ने ओबद्याह को बुलाया और कहा, "हमें समस्‍त जल-स्रोतों और घाटियों को देखना चाहिए कि क्या हमें अपने घोड़ों और खच्चरों के लिए पर्याप्त घास मिलेगी, कि वे सभी मर न जाएँ।"
\v 6 इसलिए उन दोनों ने वहाँ से चलना आरम्भ किया। ओबद्याह अकेला एक दिशा में चला गया, और अहाब अकेला दूसरी दिशा में चला।
\p
\s5
\v 7 जब ओबद्याह रास्ते में चल रहा था, उसने देखा कि एलिय्याह उसके पास आ रहा है। ओबद्याह ने एलिय्याह को पहचाना और उसके सामने झुका और कहा, "मेरे स्वामी क्या तू सच में एलिय्याह है?"
\p
\v 8 एलिय्याह ने उत्तर दिया, "हाँ, अब जा और अपने स्वामी अहाब को बता कि मैं यहाँ हूँ।"
\p
\s5
\v 9 ओबद्याह ने विरोध किया। उसने कहा, "महोदय, मैंने तुझे बिल्कुल हानि नहीं पहुंचाई है। तो तू मुझे वापस अहाब के पास क्यों भेज रहा है? वह मुझे मार डालेगा।
\v 10 यहोवा तेरे परमेश्वर जानते हैं कि मैं सच कह रहा हूँ जब मैं सत्यनिष्ठापूर्वक यह घोषणा करता हूँ कि राजा अहाब ने तुझे हर राज्य में ढूंढा है। हर बार जब किसी राजा ने कहा, 'एलिय्याह यहाँ नहीं है,' तब अहाब ने माँग की कि उस देश का राजा गंभीरता से शपथ खाए कि राजा सच बोल रहा है।
\v 11 अब तू मुझसे कह रहा है, 'जा और अपने स्वामी से कह कि एलिय्याह यहाँ है।'
\p
\s5
\v 12 परन्तु जैसे ही मैं तुझे छोड़कर चला जाऊँगा, यहोवा के आत्मा तुझे यहाँ से दूर ले जाएँगे, और मैं नहीं जानता कि वह तुझे कहाँ ले जाएँगे। तो जब मैं अहाब को बताऊंगा कि तू यहाँ है और वह यहाँ आता है और वह तुझे यहाँ नहीं पाता, तो वह मुझे मार देगा! लेकिन मेरा मरना उचित नहीं क्योंकि मैंने बचपन से यहोवा का भय-पूर्वक आदर किया है।
\v 13 हे स्वामी, क्या तुने नहीं सुना जो मैंने किया था, जब ईजेबेल यहोवा के सभी भविष्यद्वक्ताओं को मारना चाहती थी? मैंने सौ भविष्यद्वक्ताओं को दो गुफाओं में छिपाया और उन्हें भोजन और पानी दिया।
\p
\s5
\v 14 अब, महोदय, तू कहता है, 'जा और अपने स्वामी को बता कि एलिय्याह यहाँ है।' लेकिन यदि मैं ऐसा करता हूँ, और वह यहाँ आता है और तुझे यहाँ नहीं पाता, तो वह मुझे मार देगा! "
\p
\v 15 परन्तु एलिय्याह ने उत्तर दिया, "हे यहोवा सेनाओं के सेनापति, जिनकी मैं सेवा करता हूँ, वे जानते है कि मैं सच कह रहा हूँ क्योंकि मैं सत्यनिष्ठापूर्वक यह घोषणा करता हूँ कि मैं आज अहाब से मिलने जाऊँगा।"
\p
\s5
\v 16 तब ओबद्याह अहाब को यह कहने गया कि एलिय्याह आया है। अहाब उससे मिलने गया।
\v 17 जब उसने एलिय्याह को देखा, तो उसने उससे कहा, "क्या तू ही वह है जो इस्राएल के लोगों के संकट का कारण है?"
\p
\s5
\v 18 एलिय्याह ने उत्तर दिया, "यह मैं नहीं हूँ जिसने इस्राएल के लोगों के लिए संकट उत्पन्न किया! तू और तेरे परिवार के लोग ही हैं जिन्होंने संकट उत्पन्न किया है! तुने यहोवा के आदेशों का पालन करने से मना कर दिया और तुने बाल देवता की मूर्तियों की पूजा की है।
\v 19 अब, सभी इस्राएली लोगों को कर्मेल पर्वत पर आने के लिए आदेश दें, और उन सभी 450 भविष्यद्वक्ताओं को लाने में सुनिश्चित रहें जो बाल देवता की पूजा करते हैं और चार सौ भविष्यद्वक्ताओं को जो देवी अशेरा की पूजा करते हैं, जिनको तेरी पत्नी ईजेबेल अपने साथ भोजन के लिए सदैव आमंत्रित करती है। "
\p
\s5
\v 20 तब अहाब ने अपने सभी भविष्यद्वक्ताओं और अन्य सभी इस्राएली लोगों को कर्मेल पर्वत के शीर्ष पर बुलाया, और एलिय्याह भी वहाँ गया।
\v 21 तब एलिय्याह उनके सामने खड़ा हुआ और कहा, "तुम कब तक दुविधा में पड़े रहोगे कि सच्चा परमेश्वर कौन है? यदि यहोवा परमेश्वर है, तो उसकी उपासना करो। यदि बाल वास्तव में ईश्वर है, तो उसकी पूजा करो!" परन्तु लोगों ने उत्तर में कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि वे डरते थे कि ईजबेल उनके साथ क्या करेगी यदि उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने यहोवा की आराधना की।
\p
\s5
\v 22 तब एलिय्याह ने उन से कहा, "मैं यहोवा का एकमात्र सच्चा भविष्यद्वक्ता हूँ, परन्तु बाल के 450 भविष्यद्वक्ता हैं।
\v 23 दो बैल लाओ। बाल के भविष्यद्वक्ता उनमें से एक को चुन सकते हैं। उन्हें इसे मार कर टुकड़ों में काटना चाहिए और टुकड़ों को उस वेदी पर जो उन्होंने बनाई थी और उस पर रखी लकड़ी के ऊपर रख। लेकिन उन्हें लकड़ी के नीचे आग नहीं लगानी है। मैं दूसरे बैल को मार कर इसे टुकड़ों में काट दूंगा और उस वेदी पर वे टुकड़े रखूंगा जिसे मैं बनाऊंगा।
\v 24 तब वे अपने देवता से प्रार्थना करें, और मैं यहोवा से प्रार्थना करूँगा। जो उस वेदी पर रखी लकड़ी में आग लगाकर उत्तर देगा वही सच्चा परमेश्वर है! "
\p सभी लोगों ने सोचा कि एलियाह का सुझाव अच्छा था।
\p
\s5
\v 25 एलिय्याह ने बाल के भविष्यवक्ताओं से कहा, "तुम पहले बाल देवता से प्रार्थना करो, क्योंकि तुम बहुत हो। बैलों में से एक को चुनो और इसे तैयार करो, और फिर अपने देवता से प्रार्थना करो। लेकिन लकड़ी के नीचे आग मत जलाओ!"
\v 26 तब उन्होंने बैलों में से एक को मार डाला और उसे काट दिया और टुकड़ों को वेदी पर रखा। उन्होंने सबेरे से दोपहर तक बाल से प्रार्थना की। वे चिल्लाये, "बाल, हमें उत्तर दे!" लेकिन किसी ने उत्तर नहीं दिया। कोई उत्तर ही नहीं था।
\p तब जो वेदी उन्होंने बनायी थी उसके चारों ओर उन्होंने अंधाधुँध नृत्य किये।
\p
\s5
\v 27 दोपहर को, एलिय्याह ने उनकी निन्दा की। उसने कहा, "यदि निश्चित रूप से बाल एक ईश्वर है, तब ऐसा लगता है कि तुमको और अधिक ऊँचे स्वर से चिल्लाना चाहिए! सम्भवतः वह कुछ सोच रहा है, या सम्भवतः वह शौचालय गया है। सम्भवतः वह यात्रा कर रहा है, या सम्भवतः वह सो रहा है और तुमको उसे उठाना चाहिए!"
\v 28 वे ऊँचे स्वर से चिल्लाये। जब उन्होंने बाल की पूजा की, तो अपनी प्रथा के अनुसार अपना शरीर तलवार और बर्छी से गोदने लगे। उनके शरीर से रक्‍त बहने लगा।
\v 29 वे दोपहर तक बाल से प्रार्थना करते रहे। लेकिन वहाँ कोई स्वर नहीं था जो उत्तर दे, कोई उत्तर नहीं, कोई ईश्वर नहीं जो ध्यान दे।
\p
\s5
\v 30 तब एलिय्याह ने लोगों से कहा, "पास आओ!" वे सब उसके चारों ओर खड़े हो गए। तब एलिय्याह ने यहोवा की वेदी की मरम्मत की जो बाल के भविष्यद्वक्ताओं द्वारा नष्ट की गई थी।
\v 31 उसने बारह बड़े पत्थरों को लिया, इस्राएली गोत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए, जिनके पूर्वज याकूब के बारह पुत्र थे।
\v 32 इन पत्थरों के साथ उसने यहोवा की वेदी का पुनर्निर्माण किया। फिर वेदी के चारों ओर उन्होंने एक छोटा सा गड्ढा किया जो लगभग इतना बड़ा था कि उसमें पंद्रह लीटर पानी समा सकता था।
\p
\s5
\v 33 उसने पत्थरों के ऊपर लकड़ी का ढेर लगाया। उसने बैल को मार डाला और टुकड़ों में काट दिया। फिर उसने लकड़ी के ऊपर टुकड़े रखे। उसने कहा, "चार बड़े घड़ों को पानी से भरो, और माँस और लकड़ी के टुकड़ों के ऊपर पानी डालो।" उन्होंने ऐसा किया।
\p
\v 34 उसने कहा, "वही काम दुबारा करो!" तो उन्होंने फिर से वही किया। फिर उसने कहा, "यह तीसरी बार करो!" तो उन्होंने इसे फिर से किया।
\p
\v 35 परिणामस्वरूप, पानी वेदी के नीचे बहने लगा और छिद्र भर गए।
\p
\s5
\v 36 शाम को बलि चढ़ाने का जब समय आया, तो एलिय्याह वेदी के पास गया और प्रार्थना की। उसने कहा, "हे यहोवा आप परमेश्वर हैं जिनकी हमारे पूर्वज अब्राहम और इसहाक और याकूब आराधना करते थे, आज यह सिद्ध करें कि आप ही परमेश्वर हैं इस्राएली लोगों को जिनकी आराधना करनी चाहिए, और सिद्ध करें कि मैं आपका दास हूँ। सिद्ध करें कि मैंने ये सब आपके कहे अनुसार किया है।
\v 37 यहोवा, मुझे उत्तर दें! मुझे उत्तर दें ताकि ये लोग जान सकें कि हे यहोवा, आप परमेश्वर हैं और यही उन्हें फिर से आप पर भरोसा करने का कारण होगा।"
\p
\s5
\v 38 तुरन्त आकाश से यहोवा की ओर से आग गिरी। आग ने माँस, लकड़ी, पत्थरों के टुकड़ों और वेदी के चारों ओर की धूल को जला दिया। उसने नाली के सम्पूर्ण पानी तक को सुखा दिया।
\p
\v 39 जब लोगों ने यह देखा, तो उन्होंने भूमि पर गिरकर दंडवत की और चिल्लाये , "यहोवा ही परमेश्वर है। यहोवा ईश्वर है।"
\p
\v 40 तब एलिय्याह ने उन्हें आज्ञा दी, "बाल देवता के सभी भविष्यद्वक्ताओं को पकड़ लो! उनमें से किसी को भी बचने मत दो!" लोगों ने बाल के सभी भविष्यवक्ताओं को पकड़ लिया, और उन्हें पहाड़ के नीचे किशन नदी में ले गये, और एलिय्याह ने उन सभी को मार डाला।
\p
\s5
\v 41 तब एलिय्याह ने अहाब से कहा, "जा और खाने और पीने का कुछ प्रबंध कर। लेकिन शीघ्र कर, क्योंकि शीघ्र ही यहाँ भीषण वर्षा होगी।"
\v 42 तब अहाब और उसके लोग बड़े भोज की तैयारी करने के लिए चले गए। परन्तु एलिय्याह कर्मेल पर्वत पर चढ़ गया और उसने प्रार्थना की।
\p
\s5
\v 43 उसने अपने दास से कहा, "जा और समुद्र की ओर देख, कि क्या कोई वर्षा का बादल है या नहीं।" उसका दास गया और देखा, और वापस आया और कहा, "मैं कुछ भी नहीं देखता।" ऐसा छ: बार हुआ।
\v 44 परन्तु जब दास सातवीं बार गया, तो वह वापस आया और कहा, "मैंने समुद्र के ऊपर बहुत छोटा बादल देखा। मैं अपनी बांहें फैला रहा हूँ, बादल मेरे हाथ के आकार का है।"
\p तब एलिय्याह उसकी ओर देखकर चिल्लाया, "जा और राजा अहाब को अपने रथ को तैयार करने और तुरंत घर जाने के लिए कह! अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो वर्षा उसे रोक देगी।"
\p
\s5
\v 45 अति शीघ्र आकाश काले बादलों से भर गया । वहां तेज हवा चलने लगी थी, और फिर वहां बहुत तेज़ वर्षा शुरू हुई। अहाब अपने रथ में गया और यिज्रेल शहर लौटने लगा।
\v 46 यहोवा ने एलिय्याह को अतिरिक्त सामर्थ दी। उसने तेजी से दौड़ने के लिए अपने वस्त्र से अपने कमरबन्द को बांधा, और अहाब के रथ से आगे यिज्रेल तक भागा।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब अहाब घर गया, तो उसने अपनी पत्नी ईजेबेल से वह सब जो एलिय्याह ने किया था। उसने उसे बताया कि एलिय्याह ने बाल देवता के सभी भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला।
\v 2 ईजेबेल ने यह सन्देश एलिय्याह को भेजा, " कल इस समय तक मैं तुझे मार डालूंगी, जैसे तुने बाल देवता के उन सभी भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला था। अगर मैं ऐसा नहीं करती, तो मुझे आशा है कि देवता मुझे मार डालेंगे।"
\p
\v 3 जब एलिय्याह ने उसका सन्देश प्राप्त किया, वह डर गया। अपने दास को अपने साथ ले कर, वह भाग गया ताकि वह मारा न जाए। वह यहूदा में दूर दक्षिण बेर्शेबा गया। उसने वहाँ अपने दास को छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 4 वह स्वयं दूर दक्षिण में रेगिस्तान पर चला गया। वह पूरे दिन चला। वह झाऊ के पेड़ के नीचे बैठ गया और प्रार्थना की कि यहोवा उसे मरने की अनुमति दे। उसने कहा, "हे यहोवा, मैं अब और सहन नहीं कर सकता। इसलिए मुझे मरने की अनुमति दीजिए, क्योंकि मेरे लिए जीना मेरे पूर्वजों के साथ रहने से बेहतर नहीं है।"
\p
\v 5 फिर वह झाऊ के पेड़ के नीचे लेट गया और सो गया। लेकिन जब वह सो रहा था, एक दूत ने उसे छुआ और उसे उठाया और उससे कहा, "उठ और कुछ खा!"
\p
\v 6 एलिय्याह ने चारों ओर देखा और कुछ रोटी देखी जो गर्म पत्थरों पर पकी हुई थी, और उसने पानी का एक पात्र भी देखा। उसने थोड़ी रोटी खाई और थोड़ा पानी पिया और फिर सोने के लिए नीचे लेट गया।
\p
\s5
\v 7 तब यहोवा ने जो दूत भेजा था, वह फिर से आया और उसे छुआ, और कहा, "उठ और कुछ और खा, क्योंकि तुझको लंबी यात्रा के लिए और अधिक बल चाहिए।"
\v 8 वह उठ गया और उसने खा लिया और पी भी लिया; क्योंकि ऐसा करने से, उसे परमेश्वर को समर्पित करके होरेब पर्वत पर चालीस दिन और रात तक यात्रा करने के लिए पर्याप्त बल मिला।
\p
\s5
\v 9 वह वहाँ एक गुफा में गया और उस रात वहाँ सो गया।
\p अगली सुबह, यहोवा ने उससे कहा, "एलिय्याह, तू यहाँ क्यों आया है?"
\v 10 एलिय्याह ने उत्तर दिया, मैंने उत्साहपूर्वक आपकी सेवा की है, "हे यहोवा सेनाओं के सेनापति, इस्राएलियों ने आपके साथ किए गए समझौते को त्याग दिया है। उन्होंने आपकी वेदियों को तोड़ दिया है, और उन्होंने आपके सभी भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला है। मैं अकेला हूँ जिसे उन्होंने नहीं मारा और अब वे मुझे भी मार डालने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए मैं उनसे दूर भाग रहा हूँ। "
\p
\s5
\v 11 यहोवा ने उस से कहा, "बाहर निकलकर मेरे सामने इस पहाड़ पर खड़ा हो जा।" तो एलिय्याह ने ऐसा किया। जब वह वहाँ खड़ा था, एक तेज तूफान पहाड़ पर आया। जिसने, पहाड़ों और चट्टानों को हिला दिया। लेकिन यहोवा हवा में नहीं थे। तब एक भूकंप आया, लेकिन यहोवा भूकंप में नहीं थे।
\p
\v 12 आग लग गई, परन्तु यहोवा आग में नहीं थे। फिर किसी की फुसफुसाती हुई कोई आवाज थी।
\p
\s5
\v 13 जब एलिय्याह ने यह सुना, तो उसने अपने चद्दर से चेहरे को चारों ओर लपेट लिया। वह गुफा से बाहर चला गया और उसके प्रवेश द्वार पर खड़ा हुआ। और उसने सुना यहोवा ने उससे कहा, "एलिय्याह, तू यहाँ क्यों आया है?"
\p
\v 14 उसने फिर से उत्तर दिया, "हे यहोवा, सेनाओं के यहोवा मै ने उत्साहपूर्वक आपकी सेवा की है, परन्तु इस्राएलियों ने आपके साथ किए गए समझौते को त्याग दिया है। उन्होंने आपकी वेदियों को तोड़ दिया है, और उन्होंने आपके सभी भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला है मैं ही अकेला हूँ जिसे वे नहीं मार सके और अब वे भी मुझे मारने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए मैं उनसे दूर भाग रहा हूँ। "
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा ने उस से कहा, "दमिश्क के पास जंगल में वापस जा। जब तू वहाँ पहुँच जायेगा तो अराम का राजा होने के लिये हजाएल नाम के एक व्यक्ति का जैतून के तेल से अभिषेक करना।
\v 16 उसके बाद निमशी के पुत्र येहू को इस्राएल के राजा होने के लिए अभिषेक करो, और आबेल-महोला शहर के शापात के पुत्र एलीशा का अभिषेक करो, जो तुम्हारे जाने के बाद मेरा भविष्यद्वक्ता बन जाए।
\p
\s5
\v 17 हजाएल की सेना कई लोगों को मार डालेगी, और जो उसकी सेना में मरने से बचेंगे वे येहू की सेना द्वारा मारे जाएँगे, और येहू की सेना द्वारा मरने से बचने वाले लोग एलीशा द्वारा मारे जाएँगे।
\v 18 लेकिन तुझको यह जानने की आवयश्कता है कि इस्राएल में अभी भी सात हजार लोग हैं जिन्होंने कभी बाल देवता की पूजा नहीं की और ना ही उसकी मूर्ति को चूमा है।"
\p
\s5
\v 19 तब एलिय्याह अराम गया और एलीशा से मिला वह बैल की एक झुण्ड के साथ खेत में हल जोत रहा था। वहाँ ग्यारह अन्य पुरुष थे जो, उसी क्षेत्र में बैलों के झुण्ड के साथ खेती कर रहे थे। एलिय्याह एलीशा के पास गया, और अपना चोगा निकालकर एलीशा पर डाल दिया एलीशा को यह दिख ने के लिए कि वह एलीशा को भविष्यवक्ता के रूप में अपना स्थान देना चाहता है। फिर वह दूर जाने लगा।
\v 20 एलीशा ने वहाँ खड़े बैल को छोड़ दिया और एलिय्याह के पीछे भागा, और उससे कहा, "मैं तेरे साथ जाऊंगा, लेकिन पहले मुझे अपने माता-पिता से विदाई लेने दो।"
\p एलिय्याह ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, घर जाओ। लेकिन यह मत भूलना कि मैंने तुम्हें अपना कपड़ा क्यों दिया है!"
\p
\s5
\v 21 एलीशा घर वापस चला गया। उसने अपने बैलों को मारकर टुकड़ों में काट दिया और माँस को भूनने देने के लिए जलाने आग के लिए हल की लकड़ी का उपयोग किया। उसने माँस को अपने शहर के अन्य लोगों को वितरित किया, और उन्होंने सब कुछ खा लिया। तब वह एलियाह के साथ गया और उसका सहायक बन गया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी की, और वह अपनी सेना, घोड़ों और रथों के साथ बत्तीस राजाओं को ले आया। वे इस्राएल की राजधानी सामरिया शहर गए, और उसे घेर लिया और आक्रमण करने के लिए तैयार हो गए।
\v 2 बेन्हदद ने नगर में राजा अहाब के पास दूत भेजे, और उन्होंने उससे कहा: "राजा बेन्हदद यही कहता हैं:
\v 3 'तुझको मुझे अपने सभी चाँदी और सोने, अपनी सुँदर पत्नियों और सबसे तंदरुस्त बच्चों को देना होगा।' "
\p
\s5
\v 4 इस्राएल के राजा ने उनसे कहा, "राजा बेन्हदद से यह कह, ' जो कुछ तुने अनुरोध किया है, मैं उससे सहमत हूँ। मैं तेरे अधीन हूँ और जो कुछ मेरा है वह तेरा है।'"
\p
\v 5 दूतों ने बेन्हदद से कहा, और उसने उन्हें एक और सन्देश के साथ वापस भेज दिया: "मैंने तुझको यह सन्देश भेजा कि तुझे मुझको अपना सारा चाँदी, सोना और अपनी पत्नियों और अपने बच्चों को देना होगा।
\v 6 लेकिन इसके अलावा, कल इसी समय, मैं अपने कुछ अधिकारियों को तेरे महल और तेरे अधिकारियों के घरों में ढूंढ़ने के लिए भेजूँगा और जो कुछ भी उन्हें मूल्यवान दिखेगा, उसे वे ले आयेंगे।"
\p
\s5
\v 7 राजा अहाब ने इस्राएल के सभी अगुवों को बुलाया, और उनसे कहा, "तू स्वयं देख सकता है कि यह व्यक्ति बहुत परेशानी का कारण बन रहा है। उसने मुझे एक सन्देश भेजा कि मुझे उसे मेरी पत्नियां और मेरे बच्चे देने होंगे, मेरी चाँदी और मेरा सोना भी, और मैं ऐसा करने के लिए तैयार हो गया।"
\p
\v 8 अगुवों और अन्य सभी लोगों ने उससे कहा, "उस पर कोई ध्यान न दें! वह जो भी माँग रहा है उसे पूरी मत कर!"
\p
\s5
\v 9 तब अहाब ने बेन्हदद के दूतों से कहा, "राजा से कहो कि मैं उन चीज़ों को देने के लिए सहमत हूँ जिनका उसने पहले अनुरोध किया था, लेकिन मैं उसके अधिकारियों को मेरे महल से और मेरे अधिकारियों के घरों से जो कुछ भी वे लेना चाहते है लेने की अनुमति नहीं देता हूँ। "दूतों ने राजा बेन्हदद को बताया, और वे बेन्हदद से एक और सन्देश ले कर लौट आए।
\p
\v 10 उस सन्देश में उसने कहा, "हम तेरे शहर को पूरी तरह से नष्ट कर देंगे, फलस्वरूप मेरे प्रत्येक सैनिक के लिए एक मुट्ठी राख पर्याप्त नहीं रहेगी! मुझे आशा है कि अगर मैं ऐसा नही करता तो परमेश्वर मुझे मार डाले! "
\p
\s5
\v 11 राजा अहाब ने दूतों से कहा, "राजा बेन्हदद को यह कहो: कोई भी लड़ने के पहले ही युद्ध नहीं जीतता है, इसलिए तुझको पहले से घमंड नहीं करना चाहिए।"
\p
\v 12 बेन्हदद ने उस सन्देश को सुना, जब वह और अन्य शासक अपने अस्थायी आश्रय में शराब पी रहे थे। उसने अपने लोगों से शहर पर आक्रमण के लिए तैयार होने को कहा। उसके पुरुषों ने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 13 उस पल में, एक भविष्यवक्ता राजा अहाब के पास आया और उससे कहा, "यहोवा यही कहते हैं: तू जो बड़ी शत्रु सेना देखता है उससे मत डर। मैं आज तेरी सेना को शत्रु की सेना को हराने में समर्थ बनाऊंगा और तू जानेगा कि मैं, यहोवा हूँ, जिन्होंने यह किया है। '"
\p
\v 14 अहाब ने पूछा, "हमारी सेना का कौन सा समूह उन्हें पराजित करेगा?" भविष्यवक्ता ने उत्तर दिया, "जिला राज्यपाल के युवा सैनिक ऐसा करेंगे," राजा ने पूछा, "आक्रमण का नेतृत्व कौन करेगा?" भविष्यवक्ता ने उत्तर दिया, "तू ही!"
\p
\v 15 तब अहाब ने उन युवा सैनिकों को इकट्ठा किया जिन्हें जिला राज्यपाल आदेश देते थे। वे 232 पुरुष थे। तब उसने सारी इस्राएली सेना को भी बुलाया। जिसमें केवल सात हजार सैनिक थे।
\p
\s5
\v 16 उन्होंने दोपहर में आक्रमण करना आरम्भ किया, जब बेन्हदद और अन्य शासक अपने अस्थायी आश्रय में नशे में थे।
\v 17 युवा सैनिक पहले आगे बढ़े। बेन्हदद द्वारा भेजे गए कुछ दूतों ने उसे सूचना दी, "सामरिया से कुछ पुरुष आ रहे हैं।"
\p
\s5
\v 18 उन्होंने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे हमारे विरुद्ध लड़ने या शान्ति का अनुरोध करने के लिए आ रहे हैं। उन्हें पकड़ो, लेकिन उन्हें मत मारो!"
\p
\v 19 युवा इस्राएली सैनिक अरामी सेना पर आक्रमण के लिए शहर से बाहर चले गए, और इस्राएलियों की सेना के अन्य सैनिकों ने उनका पीछा किया।
\p
\s5
\v 20 प्रत्येक इस्राएली सैनिक ने अरामियों के सैनिक को मार डाला। तब अरामियों की शेष सेना भाग गई, और इस्राएली सैनिकों ने उनका पीछा किया। लेकिन राजा बेन्हदद घोड़े की सवारी करने वाले कुछ अन्य पुरुषों के साथ अपने घोड़े पर चढ़ कर बच निकला।
\v 21 इस्राएल का राजा नगर से निकल गया; उसने और उसके सैनिकों ने अन्य सभी अरामी घोड़ों और रथों पर अधिकार कर लिया, और बड़ी संख्या में अरामी सैनिकों को भी मार डाला।
\p
\s5
\v 22 तब वह भविष्यद्वक्ता राजा अहाब के पास गया और उससे कहा, "वापस जा और अपने सैनिकों को तैयार कर और सावधान रह कि तुझे क्या करना है, क्योंकि अराम का राजा अगले साल वसंत ऋतु में फिर से अपनी सेना के साथ आक्रमण करेगा।"
\p
\v 23 अरामियों की सेना को पराजित करने के बाद, बेन्हदद के अधिकारियों ने उससे कहा, "परमेश्वर जिसकी आराधना इस्राएली लोग करते हैं जो पहाड़ियों में रहते हैं। सामरिया एक पहाड़ी पर बनाया गया है, और यही कारण है कि उनके सैनिक हमें पराजित करने में सक्षम हुए लेकिन अगर हम मैदानी इलाकों में उनके विरुद्ध लड़ते तो हम निश्चित रूप से उन्हें पराजित करने में सक्षम होते।
\p
\s5
\v 24 तो, तुझको यह करना चाहिए: तुझको उन बत्तीस राजाओं को हटाना होगा जो तेरे सैनिकों का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्हें सेना के प्रधानों के साथ बदल दे।
\v 25 पराजित सेना की तरह एक और सेना इकट्ठा कर। पहली सेना के समान ही कई घोड़ों और रथों वाली सेना को इकट्ठा कर। तब हम मैदानी इलाकों में इस्राएलियों से लड़ेंगे और हम निश्चित रूप से उन्हें पराजित करेंगे। "
\p बेन्हदद उनके साथ सहमत हुआ, और उन्होंने जो सुझाव दिया वह उसने किया।
\p
\s5
\v 26 अगले वर्ष वसंत में, उसने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और इस्राएलियों की सेना से लड़ने के लिए गलील सागर के पूर्व में अपेक शहर में उनके साथ चढ़ाई की।
\v 27 इस्राएली सेना भी इकट्ठी हुई थी, और उन्हें वे चीजें दी गई जो युद्ध के लिए आवश्यक थीं। फिर वे बाहर निकले और उन्होंने अरामियों की सेना का सामना कर रहे दो समूहों का गठन किया। उनकी सेना बहुत छोटी थी। वे बकरियों के दो छोटे झुण्ड जैसे दिखते थे, जबकि अरामियों की सेना बहुत बड़ी थी और पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में फैली थी।
\p
\s5
\v 28 एक भविष्यवक्ता राजा अहाब के पास आया और उससे कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'अरामियों का कहना है कि मैं एक परमेश्वर हूँ जो पहाड़ियों में रहता है, और मैं घाटियों में रहनेवाला परमेश्वर नहीं हूँ । मैं दिखाऊंगा कि वे गलत हैं, घाटी में इस विशाल सेना को पराजित करने के लिए मैं अपने लोगों को सक्षम करूँगा और वे स्वयं जान लेंगे कि मैं, यहोवा ने यह किया है। "
\p
\s5
\v 29 दो सेनाएं एक-दूसरे के सामने सात दिनों तक डेरा डाले रही। फिर, सातवें दिन, उन्होंने लड़ना आरम्भ कर दिया। इस्राएलियों की सेना ने 100,000 अरामी सैनिकों की हत्या कर दी।
\v 30 अन्य अरामी सैनिक अपेक में भाग गए। तब शहर की दीवार गिर गई और अरामियों के सताईस हजार सैनिक मारे गए।
\p बेन्हदद भी शहर में भाग गया और एक घर के पीछे के कमरे में छिप गया।
\p
\s5
\v 31 उसके अधिकारी उसके पास गए और कहा, "हमने सुना है कि इस्राएली दया से काम करते हैं। इसलिए हमें इस्राएल के राजा के पास जाने की अनुमति दे, हमारे कमर के चारों ओर बोरे लपेट हुए हैं और सिर पर रस्सियाँ बाँधी हैं यह संकेत देते हुए कि हम उनके दास बन गये हैं।अगर हम ऐसा करते हैं, तो वह तुझको जीवित रहने देगा।"
\p
\v 32 राजा ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी, इसलिए उन्होंने अपने कमर के चारों ओर मोटे बोरे लपेटे और रस्सी अपने सिर पर बाँधी, और वे इस्राएल के राजा के पास गए और उससे कहा, "बेन्हदद जो तेरा बहुत सम्मान करता है, कहता है, 'कृपया मुझे मत मार।' "अहाब ने उत्तर दिया," क्या वह अभी भी जीवित है? वह मेरे भाई की तरह है।"
\p
\s5
\v 33 बेन्हदद के अधिकारी यह पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि क्या अहाब दया से कार्य करेगा, और जब अहाब ने कहा, "भाई," वे आशावादी थे। तो उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, वह तेरे भाई की तरह है।" अहाब ने कहा, "जा और उसे मेरे पास ला।" वे गए और बेन्हदद को उसके पास लाए। जब बेन्हदद पहुंचा तो अहाब ने उसे रथ में जाने और उसके साथ बैठने के लिए कहा।
\p
\v 34 बेन्हदद ने उससे कहा, "मैं उन नगरों को वापस दूंगा जो मेरे पिता की सेना ने तेरे पिता से ली थी। और मैं तुझको अपने व्यापारियों के लिए दमिश्क में अपने व्यापारियों के लिए बाजार क्षेत्रों की स्थापना करने की अनुमति दूंगा, जैसा कि मेरे पिता ने किया था सामरिया में जो तेरी राजधानी है। " अहाब ने उत्तर दिया, "क्योंकि तू ऐसा करने के लिए सहमत है, मैं तुझको मृत्युदंड नहीं दूंगा।" इसलिए अहाब ने बेन्हदद के साथ एक समझौता किया, और उसे घर जाने की अनुमति दी।
\p
\s5
\v 35 तब यहोवा ने भविष्यद्वक्ताओं के समूह में से एक सदस्य से बातें की और उसे एक साथी भविष्यद्वक्ता को उसे मारने का अनुरोध करने के लिए कहा। लेकिन उस व्यक्ति ने ऐसा करने से मना कर दिया।
\p
\v 36 तब भविष्यवक्ता ने उससे कहा, "क्योंकि तुझ से जो कुछ मैंने करने के लिए कहा था, उसका पालन करने से मना कर दिया, अत: मेरे पास से जाते ही एक शेर तुझे मार देगा।" और जैसे ही उसने उस भविष्यद्वक्ता को छोड़ दिया, एक शेर अचानक आया और उसे मार डाला।
\p
\s5
\v 37 तब भविष्यवक्ता को एक और भविष्यद्वक्ता मिला , और उससे कहा, "मुझे मारो!" तो उस व्यक्ति ने उसे बहुत मारा और उसे घायल कर दिया।
\v 38 तब भविष्यवक्ता ने अपने चेहरे पर एक बड़ी पट्टी बाँधी ताकि कोई भी उसे पहचान न सके। वह गया और सड़क के किनारे खड़े हो कर राजा के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
\p
\s5
\v 39 जब राजा आया, तो भविष्यवक्ता ने उससे कहा, "हे महामहिम, जब मैं युद्ध में लड़ रहा था, तब मैं घायल हो गया हमारे शत्रुओं में से एक सैनिक ने मुझे बचाया, जिसे उसने पकड़ा था, और कहा, 'इस व्यक्ति की रक्षा कर! अगर वह भाग निकलता है, तो तुझको मुझे तैतीस किलो चाँदी का भुगतान करना होगा; यदि तू इसका भुगतान नहीं करता है, तो तुझ को मार डाला जाएगा।'
\v 40 परन्तु जब मैं अन्य काम करने में व्यस्त था, तो वह व्यक्ति बच निकला! "इस्राएल के राजा ने उससे कहा," यह तेरी समस्या है! तुमने स्वयं कहा है कि तुम दण्डित होने के योग्य हो।"
\p
\s5
\v 41 भविष्यवक्ता ने तुरंत पट्टी को हटा दिया, और इस्राएल के राजा ने पहचान लिया कि वह भविष्यद्वक्ताओं में से एक था।
\v 42 भविष्यवक्ता ने उससे कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'तुने उस व्यक्ति बेन्हदद को बचने की अनुमति दी है जब मैंने तुझे उसे मार देने की आज्ञा दी थी! चूंकि तुने ऐसा नहीं किया, तो तुम उसके बदले मारा जाएगा और तेरी सेना नष्ट हो जाएगी क्योंकि तुने उसकी कुछ सेना को बच निकलने दिया।'"
\v 43 राजा सामरिया में अपने घर वापस चला गया, बहुत क्रोधित और उदास होकर।
\s5
\c 21
\p
\v 1 राजा अहाब के पास यिज्रेल शहर में एक महल था। महल के पास नाबोत नाम के व्यक्ति के स्वामित्व में दाख की एक बारी थी।
\v 2 एक दिन, अहाब नाबोत के पास गया और उससे कहा, "तेरा दाख का बागीचा मेरे महल के पास है। मैं इसे मोल लेना चाहता हूँ, ताकि मैं वहाँ कुछ सब्जियां लगा सकूँ। मैं तुझे इसके बदले में एक बेहतर दाख का बागीचा दूंगा या यदि तू चाहे, तो मैं तुझको तेरे दाख के बगीचे के लिए दाम दूँगा।"
\p
\s5
\v 3 परन्तु नाबोत ने उत्तर दिया, "वह भूमि मेरे पूर्वजों से संबंधित थी, इसलिए मैं इसे रखना चाहता हूँ। मुझे आशा है कि यहोवा मुझे कभी भी यह जगह तुझे देने की अनुमति नहीं देंगे!"
\p
\v 4 नाबोत ने जो कहा था, उसके कारण अहाब बहुत चिड़चिड़ा और क्रोधित हो गया। वह घर गया और अपने बिस्तर पर लेट गया। उसने अपना चेहरा दीवार की ओर कर लिया, और उसने कुछ भी खाने से मना कर दिया।
\p
\s5
\v 5 उसकी पत्‍नी ईजेबेल आई और उससे पूछा, "तू इतना उदास क्यों है? तू कुछ खाने से मना क्यों कर रहा है?"
\p
\v 6 अहाब ने उत्तर दिया, "मैंने यिज्रेल के उस व्यक्ति नाबोत से बातें की। मैंने उससे कहा कि मैं उसकी दाख की बारी चाहता हूँ। मैंने कहा, 'मैं इसे तुझसे मोल लूंगा या मैं तुझे इसके बदले में दाख बगीचा दूंगा।' लेकिन उसने मुझे मना कर दिया।"
\p
\v 7 उसकी पत्नी ने उत्तर दिया, "तू इस्राएल का राजा है, तू जो चाहे उसे प्राप्त कर सकता है! उठ और कुछ भोजन कर और नाबोत ने जो कहा उसके बारे में चिंता न कर। मैं नाबोत के दाख बगीचे को तुझे लेकर दूंगी।"
\p
\s5
\v 8 तब ईज़ेबेल ने कुछ पत्र लिखे, और उसने उन पर अहाब के हस्ताक्षर किए। उसने उन्हें मुहरित करने के लिए अपनी आधिकारिक मुहर का इस्तेमाल किया। तब उसने उसे पुराने अगुवों और अन्य महत्वपूर्ण पुरुषों को भेजा जो नाबोत के पास रहते थे और जिन्होंने उनके साथ सार्वजनिक मामलों का निर्णय किया था।
\v 9 यही वह है जो उसने पत्रों में लिखा था: "एक दिन की घोषणा करो जब सभी लोग एक साथ इकट्ठे होंगे और उपवास करेंगे। नाबोत को उनके बीच बैठने के लिए एक महत्वपूर्ण जगह दें।
\v 10 फिर दो पुरुषों को ढूंढें जो हमेशा परेशानी का कारण बनते हैं। उन्हें उनके सामने बैठने के लिए जगह दें। इन पुरुषों को यह प्रमाणित करने के लिए कहें कि उन्होंने नाबोत की उन बातों को सुना जिसमें परमेश्वर और राजा की आलोचना की गई थी। तब नाबोत को शहर से बाहर ले जाओ और उस पर पत्थर फेंककर मार डालो। "
\p
\s5
\v 11 अगुवों ने पत्र प्राप्त किए और उन्होंने वही किया जो ईजबेल ने पत्रों में लिखा था।
\v 12 उन्होंने एक दिन घोषित किया जिस में लोग बिना भोजन के रहेंगे। और उन्होंने नाबोत को ऐसे स्थान पर बैठाया जहाँ लोगों के सामने सम्मानित लोग बैठे थे।
\v 13 दो पुरुष जो सदैव परेशानी उत्पन्न करते थे, नाबोत के विपरीत बैठे थे। जब सब लोग सुन रहे थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने नाबोत की वे बातें सुनी जो परमेश्वर और राजा की आलोचना करने वाली थी। तो लोगों ने नाबोत को पकड़ लिया। वे उसे शहर के बाहर ले गए और उस पर पत्थर फेंक कर उसे मार डाला।
\v 14 तब उन अगुवों ने ईज़ेबेल को एक सन्देश भेजा, और कहा, "हमने नाबोत को मार डाला है।"
\p
\s5
\v 15 जब ईजेबेल को पता चला कि नाबोत की हत्या हो गई तो उसने अहाब से कहा, "नाबोत मर चुका है। अब जाकर दाख के बागीचे पर अधिकार कर जिसे उसने तुझे बेचने से मना कर दिया था।"
\v 16 जब अहाब ने सुना कि नाबोत मर चुका है, तो वह उठकर दाख की बारी में गया कि वह उस पर अपने स्वामित्व का दावा कर सके।
\p
\s5
\v 17 यहोवा ने एलिय्याह भविष्यद्वक्ता से कहा,
\v 18 "सामरिया जा और इस्राएल के राजा अहाब से बातें कर। वह नाबोत नाम के एक व्यक्ति की दाख की बारी में है। वह दावा करने के लिए वहाँ गया है कि वह अब उसका स्वामी है।
\p
\s5
\v 19 अहाब से कहो कि मैं यहोवा यही कहता हूँ, 'तुने नाबोत की हत्या कर दी और उसकी भूमि ले ली। इसलिए मैं तुझको यह बता रहा हूँ। उसी स्थान पर जहाँ नाबोत की मृत्यु हुई कुत्ते आए और नाबोत के खून को चाटा, तू भी वहीं मरेगा और कुत्ते तेरे खून को चाटेंगे।'"
\p
\v 20 तब जब एलिय्याह अहाब से मिला, तब अहाब ने उससे कहा, "ओ मेरे शत्रु! तूने मुझे ढूंढ लिया!" एलिय्याह ने उत्तर दिया, "हाँ, मैंने तुझे ढूंढ लिया। तुने कभी भी वे काम करने बंद नहीं किए जिन्हें यहोवा ने गलत ठहराया है।
\p
\s5
\v 21 यहोवा यही कहते हैं, 'मैं शीघ्र ही तुझसे छुटकारा पाऊंगा। मैं तुझे मार डालूंगा, और मैं तेरे घर के हर पुरुष को मार डालूंगा, जिसमें तेरे दास और जो दास नहीं है वे भी सम्मिलित हैं।
\v 22 राजा यारोबाम के परिवार की तरह और राजा बाशा के परिवार की तरह ही तेरा परिवार मरेगा। मैं तुझसे छुटकारा पाऊंगा क्योंकि तुने मुझे बहुत गुस्सा दिलाया है, और तुने इस्राएली लोगों को पाप करने के लिए भी भड़काया है।'
\p
\s5
\v 23 यहोवा ने मुझे यह भी बताया है कि तेरी पत्नी ईजेबेल की हत्या हो जाएगी, और यिज्रेल में कुत्ते उसके शरीर को खाएँगे।
\v 24 इस शहर में मरने वाले तेरे परिवार के सदस्यों के मृत शरीर को मिट्टी नहीं दी जाएगी। वे कुत्तों द्वारा खाए जाएँगे, और खेतों में मरने वालों के शरीर गिद्धों द्वारा खाए जाएँगे।"
\p
\s5
\v 25 कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसने उतने बुरे काम या पाप किये हों जितने अहाब ने किये। उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उससे ये काम कराये।
\v 26 अहाब ने उन लोगों की तरह मूर्तियों की पूजा करने जैसे सबसे अधिक घृणित कर्म किए जैसे आमोर लोगों के समूह ने किया था। और यही कारण है कि यहोवा ने उनकी भूमि उनसे ली और इस्राएलियों को दे दी।
\p
\s5
\v 27 एलिय्याह के बात करने के बाद, अहाब ने पश्‍चात्ताप प्रकट करने के लिए अपने वस्‍त्र फाड़े। उसने अपने शरीर पर टाट लपेटा। वह उपवास करने लगा। वह टाट-पट्टी लपेट कर सोता था कि अपने दुःख को दर्शा सके।
\p
\v 28 तब यहोवा ने एलिय्याह से यह कहा,
\v 29 "मैंने देखा है कि अहाब अब उन सभी बुरे कोर्मों के लिए बहुत दुखी है जो उसने किया है। अत: उसके जीवन काल में मैं उस पर विपत्ति नहीं भेजूँगा। मैं तब तक प्रतीक्षा करूँगा जब तभी उसका पुत्र राजा नहीं बन जाता। तब मैं अहाब के परिवार पर विपत्ति भेजूँगा। "
\s5
\c 22
\p
\v 1 लगभग तीन वर्षों तक अराम और इस्राएल के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ।
\v 2 तब राजा यहोशापात, जिसने यहूदा पर शासन किया, राजा अहाब से मिलने गया, जिसने इस्राएल पर शासन किया था।
\p
\s5
\v 3 जब वे बातें कर रहे थे, तब अहाब ने अपने अधिकारियों से कहा, "क्या तुम समझते हो कि अरामियों ने अभी भी गिलाद के क्षेत्र में रामोत के अपने शहर पर अधिकार कर लिया है? और हम उस शहर को वापस लेने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं!"
\v 4 तब वह यहोशापात की ओर मुड़ गया और पूछा, "क्या तेरी सेना रामोत के लोगों से लड़ने और उस शहर को वापस लेने के लिए मेरी सेना में सम्मिलित होगी?" यहोशापात ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से! जो कुछ भी तू चाहता है, मैं वह करूँगा और तू मेरी सेनाओं को आदेश दे सकता है। तू मेरे घोड़ों को युद्ध में भी ले जा सकता है।"
\p
\s5
\v 5 फिर उसने आगे कहा, "लेकिन हमें पहले यहोवा से पूछना चाहिए, यह पता लगाने के लिए कि वह हमसे क्या चाहते हैं।"
\v 6 तब अहाब ने अपने चार सौ भविष्यद्वक्ताओं को एक साथ बुलाया, और उनसे पूछा, "क्या मेरी सेना को रामोत के लोगों से लड़ने और उस शहर को वापस लेने के लिए जाना चाहिए?"
\p उन्होंने उत्तर दिया, "हाँ, जा और उन पर आक्रमण कर क्योंकि परमेश्वर तेरी सेना को उन्हें पराजित करने में समर्थ बनाएँगे।"
\p
\s5
\v 7 पर यहोशापात ने पूछा, "क्या यहोवा का कोई अन्य भविष्यद्वक्ता नहीं है जिससे हम पूछ सकते हैं?"
\p
\v 8 इस्राएल के राजा ने उत्तर दिया, "एक और जन है जिससे हम पूछ सकते हैं। वह यिम्ला का पुत्र मीकायाह है। परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ, क्योंकि जब वह भविष्यवाणी करता है तो वह कभी नहीं कहता कि मेरे साथ कुछ भी अच्छा होगा। वह हमेशा भविष्यवाणी करता है कि मेरे साथ बुरा ही होगा। "यहोशापात ने उत्तर दिया, "राजा अहाब, तुझको यह नहीं कहना चाहिए।"
\p
\v 9 तब इस्राएल के राजा ने अपने अधिकारियों में से एक को तुरंत मीकायाह को बुलाने को कहा।
\p
\s5
\v 10 इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा दोनों अपने शाही वस्त्र पहने हुए थे और सामरिया नगर की दीवार के द्वार पर सिंहासन पर बैठे थे। बहुत से भविष्यद्वक्ता उनके लिए सन्देश कह रहे थे।
\v 11 उनमें से एक, जो केनानाह का पुत्र सिदकिय्याह था, उसने लोहे से कुछ बनाया जो बैल के सींग जैसा था। तब उसने अहाब के समक्ष यह घोषणा की, "यहोवा यही कहते हैं, 'जैसे एक बैल किसी जानवर पर आक्रमण करता है उसी प्रकार तेरी सेना सींगों से अरामियों पर आक्रमण करेगी, जब तक कि तू उन्हें पूरी तरह से नष्ट न कर दे।'"
\p
\v 12 अहाब के अन्य सभी भविष्यवक्ता सहमत हुए। उन्होंने कहा, "हाँ! यदि तू गिलाद में रामोत पर आक्रमण करने जाता है, तो तू सफल होगा, क्योंकि यहोवा तुझको उन्हें पराजित करने में समर्थ करेंगे!"
\p
\s5
\v 13 इस बीच, जिस सन्देशवाहक ने मीकायाह को बुलाया था, उससे कहा, "मेरी बातें सुनो! अन्य सभी भविष्यवक्ता भविष्यवाणी कर रहे हैं कि राजा की सेना अरामियों को पराजित करेगी। इसलिए सुनिश्चित करें कि तू उनके साथ सहमत है और कहे कि क्या लाभदायक होगा।"
\p
\v 14 परन्तु मीकायाह ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से यहोवा जीवित है, मैं अहाब को बताऊंगा कि यहोवा मुझे क्या कहने की आज्ञा देते हैं।"
\p
\v 15 जब मीकायाह अहाब के पास आया, तब अहाब ने उससे पूछा, "मीकायाह, क्या हमें रामोत के लोगों के विरुद्ध लड़ने के लिए जाना चाहिए?"
\p मीकायाह ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से तुमको जाना चाहिए! यहोवा तुम्हारी सेना को उन्हें पराजित के लिए सक्षम करेंगे !"
\p
\s5
\v 16 परन्तु राजा अहाब को महसूस हुआ कि मीकायाह ताने मार रहा था, इसलिए उसने मीकायाह से कहा, "मैंने तुझको कई बार बताया है कि जब तू वह कहता है जो यहोवा ने तुझको बताया है, तो तुझको सदा सत्य ही कहना चाहिए!"
\p
\v 17 तब मीकायाह ने उस से कहा, "सच यह है कि एक नजर में मैंने देखा कि इस्राएल के सभी सैनिक पहाड़ों पर बिखरे हुए थे। वे भेड़ों की तरह लग रहे थे जिनके पास चरवाहा नहीं था। और यहोवा ने कहा, 'उनका स्वामी मारा गया है। इन सभी को शान्ति से घर जाने के लिए कहो। '"
\p
\s5
\v 18 अहाब ने यहोशापात से कहा, "मैंने तुझसे कहा था कि वह कभी ऐसी भविष्यवाणी नहीं करता कि मेरे साथ कुछ अच्छा होगा! वह सदैव भविष्यवाणी करता है कि बुरी बातें मेरे साथ होंगी।"
\p
\v 19 परन्तु मीकायाह ने कहा, "सुनो, यहोवा ने मुझे क्या दिखाया है! एक नजर में मैंने देखा कि यहोवा अपने सिंहासन पर बैठे हैं, उनके चारों ओर स्वर्ग की सारी सेना है, उनकी दाहिने ओर और बाईं ओर है।
\v 20 और यहोवा ने कहा, 'अहाब को रामोत के लोगों के विरूद्ध लड़ने के लिए कौन कह सकता है, कि वह वहाँ मारा जाये?'
\p किसी ने एक बात सुझाई, और दूसरों ने कुछ और सुझाव दिया।
\p
\s5
\v 21 अंत में एक आत्मा यहोवा के पास आई और कहा, 'मैं उसे बहकाऊँगा!'
\p
\v 22 यहोवा ने उससे पूछा, तू यह कैसे करेगा?' आत्मा ने उत्तर दिया, 'मैं झूठ बोलने के लिए अहाब के सभी भविष्यद्वक्ताओं को प्रेरित करूँगा।' यहोवा ने कहा, तू सफल हो जाएगा; जा और कर।
\v 23 इसलिए अब मैं तुझको बताता हूँ कि यहोवा ने तेरे सभी भविष्यद्वक्ताओं से झूठ बुलवाया है। यहोवा ने निर्णय किया है कि तेरे साथ कुछ भयानक होगा।"
\p
\s5
\v 24 तब सिदकिय्याह मीकायाह के पास गया और उसने उसके चेहरे पर थप्पड़ मारा। उसने कहा, "क्या तुझको लगता है कि यहोवा की आत्मा ने तुझसे बातें करने के लिए मुझे छोड़ दिया?"
\p
\v 25 मीकायाह ने उत्तर दिया, "शीघ्र ही विपत्ति आएगी। उस समय तू भागेगा और एक छोटे कमरे में छिपेगा और तब तू समझेगा कि मैं सत्य कह रहा हूँ।"
\p
\s5
\v 26 राजा अहाब ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी, "मीकायाह को पकड़ो और उसे इस नगर के राज्यपाल आमोन और मेरे पुत्र योआश के पास ले जाओ।
\v 27 उन्हें बताओ कि मैंने आदेश दिया है कि उन्हें इस व्यक्ति को जेल में डाल देनाऔर उसे सिर्फ रोटी और पानी देना । जब तक मैं युद्ध से सुरक्षित वापस नहीं आ जाता तब तक उसे खाने के लिए और कुछ न दें। "
\p
\v 28 मीकायाह ने उत्तर दिया, "यदि तू सुरक्षित वापस आता है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह यहोवा नहीं थे जिन्होंने मुझे बताया कि तुझसे क्या कहना है।" तब उसने उन सभी लोगों से कहा जो वहाँ खड़े थे, "राजा अहाब से जो कहा है उसे मत भूलो।"
\p
\s5
\v 29 तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा ने गिलाद के रामोत के लिए अपनी सेना का नेतृत्व किया।
\v 30 राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, "मैं अलग कपड़े पहनूंगा, ताकि कोई भी पहचान न सके कि मैं राजा हूँ। परन्तु तू अपने शाही वस्त्र पहनना।" अहाब ने स्वयं का भेष बदला, और वे दोनों युद्ध में चले गए।
\p
\s5
\v 31 अराम के राजा ने अपने उन बत्तीस पुरुषों से कहा था जो रथों को चला रहे थे, "सिर्फ इस्राएल के राजा पर आक्रमण करें!"
\v 32 तब जब अरामियों के रथों को चला रहे लोगों ने यहोशापात को शाही वस्त्र पहने हुए देखा, उन्होंने उसका पीछा किया। वे चिल्लाये, "इस्राएल का राजा वहां है।" जब यहोशापात रोया,
\v 33 उन्होंने अनुभव किया कि वह इस्राएल का राजा नहीं था। तो उन्होंने उसका पीछा करना बंद कर दिया।
\p
\s5
\v 34 परन्तु अरामियों के एक सैनिक ने अहाब को एक तीर मारा, यह जाने बिना कि वह अहाब था। तीर ने अहाब को वहाँ मारा जहाँ उसका कवच और कमरबन्‍द आपस में जुड़ते हैं। अहाब ने अपने रथ के चालक से कहा, "रथ को घुमाओ और मुझे यहाँ से बाहर निकालो! मैं गंभीर रूप से घायल हो गया हूँ!"
\p
\s5
\v 35 युद्ध पूरे दिन चलता रहा। अहाब अरामी सैनिकों का सामना कर के अपने रथ में टेक लगाकर बैठा था। उसके घाव से खून रथ के तल पर बह रहा था और दोपहर के अंत में वह मर गया।
\v 36 जैसे सूर्य नीचे जा रहा था, इस्राएली सैनिकों में से कोई चिल्लाया, "युद्ध समाप्त हो गया है! सब को घर लौटना चाहिए।"
\p
\s5
\v 37 राजा अहाब की मृत्यु हो गई, और वे उसके शरीर को रथ में सामरिया लाये और वहाँ उसके शरीर को मिट्टी दी गई।
\v 38 उन्होंने सामरिया के जल-कुण्‍ड में राजा के रथ को धोया, वहाँ जहाँ पर वेश्याएँ स्नान करती थीं। और कुत्ते आए और राजा के खून को चाटा, जैसा कि यहोवा ने भविष्यवाणी की थी।
\p
\s5
\v 39 अहाब के शासन के दौरान हुई अन्य बातों का विवरण, और सजाए गए महल के बारे में जो उन्होंने उसके लिए बनाया था, और उसके लिए बनाए गए नगर, राजाओं की पुस्तक में लिखे गए थे।
\v 40 जब अहाब की मृत्यु हो गई, तब उसके शरीर को मिट्टी दी गई जहाँ उसके पूर्वजों को मिट्टी दी गई थी। तब उसका पुत्र अहज्याह राजा बन गया।
\p
\s5
\v 41 राजा अहाब की मृत्यु से पहले, ही जब उसे इस्राएल में शासन करते चार वर्ष हो गये, तब आसा के पुत्र यहोशापात ने यहूदा में शासन करना आरम्भ कर दिया।
\v 42 यहोशापात पैंतीस वर्ष का था जब उसने शासन करना आरम्भ किया, और उसने यरूशलेम में पच्चीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ अजूबा शिल्ही की बेटी थीं।
\p
\s5
\v 43 यहोशापात एक अच्छा राजा था, जैसे उसके पिता आसा था। उसने वे कर्म किए जो यहोवा को प्रसन्न करते थे। लेकिन जब वह राजा था, तब उसने पहाड़ियों पर बने सभी मूर्तिपूजक वेदियों को नहीं हटाया। इसलिए लोग उन वेदियों पर मूर्तियों पर बलिदान करने और धूप जलाते रहे।
\v 44 यहोशापात ने इस्राएल के राजा के साथ शान्ति संधि भी की।
\p
\s5
\v 45 यहोशापात के शासन करने के दौरान हुई सभी अन्य बातें, और उसने जो महान काम किया और उसकी सेनाओं को जो जीत मिली वह सब यहूदा के राजाओं की पुस्तक में लिखी गईं।
\v 46 यहोशापात ने उस देश से पुरुषगामियों को निकाला जो अभी भी उस क्षेत्र में रहते थे। ये पुरुषगामी उसके पिता आसा के समय से वहाँ रहते थे।
\p
\v 47 उस समय, एदोम में कोई राजा नहीं था। यहोशापात द्वारा नियुक्त एक शासक वहाँ पर शासन करता था।
\p
\s5
\v 48 यहोशापात ने कुछ इस्राएली पुरुषों को सोना लाने के लिये ओपीर के क्षेत्र में दक्षिण की ओर जाने के लिए जहाजों के बेड़े का निर्माण करने का आदेश दिया। लेकिन वे एस्योनगेबेर में बर्बाद हो गए, इसलिए उनके जहाज कभी नहीं पहुंचे।
\v 49 जहाजों के टूटने से पहले, अहाब के पुत्र अहज्याह ने यहोशापात से कहा, "मेरे नाविकों को अपने नाविकों के साथ जाने दे," यहोशापात ने मना कर दिया।
\p
\v 50 जब यहोशापात की मृत्यु हो गई, तब उसके शरीर को वहाँ मिट्टी दी गई जहाँ उसके पूर्वजों को यरूशलेम में मिट्टी दी गई थी, जहाँ राजा दाऊद ने शासन किया था। तब यहोशापात का पुत्र यहोराम राजा बन गया।
\p
\s5
\v 51 राजा यहोशापात की मृत्यु से पहले, वह सत्तरहवर्ष तक यहूदा में शासन करता रहा, तब अहाब के पुत्र अहज्याह ने इस्राएल में शासन करना आरम्भ कर दिया। अहज्याह ने सामरिया में दो साल तक शासन किया।
\v 52 उसने बहुत से कर्म किए जिन्हें यहोवा ने घृणित कहा था, बुराई के वैसे काम किये जो उसके पिता और माता ने किये थे और यरोबाम ने बुरे कर्म किए वह ऐसा राजा था जिसने सभी इस्राएली लोगों को मूर्तियों की पूजा करवा कर पाप किया था।
\v 53 अहज्याह बाल देवता की मूर्ति के सामने झुक गया और उसकी पूजा की। इस कारण यहोवा, परमेश्वर, जो इस्राएली लोगों के साथ-साथ सारे संसार के सच्चे परमेश्वर हैं, बहुत क्रोधित हो गए, जैसे अहज्याह के पिता ने यहोवा को गुस्सा दिलाया था।

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\mt1 2 राजाओं
\s5
\c 1
\p
\v 1 राजा अहाब की मृत्यु के बाद, मोआब देश ने इस्राएल के विरूद्ध विद्रोह किया।
\v 2 एक दिन, इस्राएल का नया राजा अहज्याह अपने ऊपर के कमरे में लकड़ी की अटारी से गिर गया और घायल हो गए। इसलिए उसने अपने दूतों को आज्ञा देकर भेजा, "जाओ और एक्रोन के देवता बालजबूब से पूछो, कि मैं इस चोट से ठीक हो जाऊँगा या नहीं।"
\p
\s5
\v 3 परन्तु यहोवा के स्वर्गदूत ने तिशबी शहर के भविष्यद्वक्ता एलिय्याह से कहा, "सामरिया का राजा कुछ दूतों को एक्रोन भेज रहा है। जा और उनसे मिल और उन से कह, 'क्या ऐसा इस कारण से है कि इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं है, इसलिए तू बाल-जबूब से पूछना चाहता है कि तू ठीक हो पाएगा, या नहीं? '
\v 4 यहोवा कहते हैं कि तुझे राजा अहज्याह को यह बताना है कि उसका घाव ठीक नहीं होगा; वह निश्चित रूप से मर जाएगा। "
\p
\s5
\v 5 तब एलिय्याह दूतों से मिलने गया और उन बातों को उन से कहा, और वे एक्रोन को जाने के बजाएं राजा के पास लौट गए। राजा ने उनसे पूछा, " तुम इतनी शीघ्र कैसे वापस आ गए?"
\p
\v 6 उन्होंने उत्तर दिया, "एक व्यक्ति हमसे मिलने आया और हमसे कहा, 'उस राजा के पास जाओ जिसने तुम्हें भेजा है और उसे बताओ कि यहोवा कहते हैं," क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं है इसलिए तू बाल-जबूब से पूछना चाहता है कि क्या तू ठीक हो पाएगा या नहीं? जाकर राजा से कहो कि उसका घाव ठीक नहीं होगा; वह निश्चित रूप से मर जाएगा। "'"
\p
\s5
\v 7 राजा ने उनसे कहा, "वह व्यक्ति जो तुमसे मिलने आया था और तुमको यह बातें कहीं, वह कैसा दिखता था?"
\p
\v 8 उन्होंने उत्तर दिया, "वह ऊँट के बालों से बना वस्त्र पहने हुए था और उसकी कमर के चारों ओर एक चौड़ा चमड़े का कमरबन्द था।" राजा ने कहा, "वह एलिय्याह है!"
\p
\s5
\v 9 तब राजा ने एलिय्याह को पकड़ने के लिए पचास सैनिकों के साथ एक अधिकारी भेजा। उन्होंने एलिय्याह को पहाड़ी की चोटी पर बैठा पाया। अधिकारी ने उसे पुकारकर कहा, "हे भविष्यद्वक्ता, राजा आदेश देता है कि तू यहाँ नीचे आ!"
\p
\v 10 परन्तु एलिय्याह ने अधिकारी को उत्तर दिया, "मैं एक भविष्यद्वक्ता हूँ, इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि आग आकाश से नीचे आए और तुझे और तेरे पचास सैनिकों को जला दे!" तुरन्त, आकाश से आग नीचे आई और अधिकारी और उसके पचास सैनिकों को जलाकर भस्म कर दिया।
\p
\s5
\v 11 जब राजा को उस विषय में पता चला, तो उसने एक और अधिकारी को पचास सैनिकों के साथ भेजा। वे वहाँ गए जहाँ एलिय्याह था, और अधिकारी ने उसे पुकारकर कहा, "भविष्यद्वक्ता, राजा आज्ञा देता है कि तू तुरन्त नीचे आ जा!"
\p
\v 12 परन्तु एलिय्याह ने उत्तर दिया, "मैं एक भविष्यद्वक्ता हूँ, इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि आग आकाश से नीचे आए और तुझे और तेरे सैनिकों को मार डाले!" तब परमेश्वर की ओर से आग आकाश से नीचे आई और उस अधिकारी और उसके सैनिकों को मार डाला।
\p
\s5
\v 13 जब राजा ने उस विषय में सुना, तो फिर से उसने पचास और सैनिकों के साथ एक और अधिकारी को भेजा। वे वहाँ गए जहाँ एलिय्याह था; अधिकारी ने एलिय्याह के सामने गिरकर दण्डवत् किया और उससे कहा, "हे भविष्यद्वक्ता, मैं तुझसे विनती करता हूँ, मेरे और मेरे पचास सैनिकों के प्रति दयालु रह, और हमें न मार!
\v 14 हम जानते हैं कि आकाश से दो बार आग ने नीचे आकर अधिकारियों और उनके साथ सैनिकों को मार डाला है। इसलिए अब, कृपया मुझ पर दया कर! "
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने एलिय्याह से कहा, "नीचे उतर कर उसके साथ जा। उससे मत डर।" इसलिए एलिय्याह उनके साथ राजा के पास गया।
\p
\v 16 जब एलिय्याह पहुँचा, तो उसने राजा से कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'तूने एक्रोन जाने के लिए दूत भेजे, कि वे उनके देवता बाल-जबूब से पूछें कि क्या तू ठीक हो पाएगा या नहीं। तू ने ऐसा काम किया है जैसे कि इस्राएल में परामर्श के लिए कोई परमेश्वर नहीं है। इसलिए तेरा घाव ठीक नहीं होगा; इसकी अपेक्षा, तू मर ही जाएगा! '"
\s5
\v 17 तब अहज्याह की मृत्यु हो गई, जैसा कि यहोवा ने एलिय्याह से कहा था। अहज्याह का छोटा भाई योराम नया राजा बना, उस समय में यहोशापात का पुत्र यहोराम लगभग दो वर्षों से यहूदा पर शासन कर रहा था। अहज्याह का भाई राजा बना क्योंकि राजा बनने के लिए अहज्याह के कोई पुत्र नहीं था।
\p
\v 18 यदि तुम अहज्याह के अन्य सभी कामों के विषय में जानना चाहते हो, तो वे इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 जब यहोवा भविष्यद्वक्ता एलिय्याह को एक बवंडर में स्वर्ग पर उठाने वाले थे, तब एलिय्याह और उसके साथी भविष्यद्वक्ता एलीशा गिलगाल से दक्षिण की ओर यात्रा कर रहे थे।
\v 2 एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यहाँ ठहरा रह, क्योंकि यहोवा ने केवल मुझे बेतेल शहर जाने के लिए कहा है।"
\p परन्तु एलीशा ने उत्तर दिया, "जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा!"
\p इसलिए वे एक साथ बेतेल को गए।
\s5
\v 3 बेतेल में भविष्यवक्ताओं का एक दल एलीशा और एलिय्याह के पास आया; उन्होंने एलीशा से पूछा, "क्या तू जानता है कि यहोवा आज तेरे स्वामी एलिय्याह को स्वर्ग पर उठाने वाले हैं?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से मैं यह जानता हूँ, परन्तु इसके विषय में बात मत करो!"
\v 4 तब एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यहाँ ठहरा रह, क्योंकि यहोवा ने केवल मुझे यरीहो जाने के लिए कहा है।"
\p परन्तु एलीशा ने फिर से उत्तर दिया, "जैसे निश्चित रूप से यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा!"
\p इसलिए वे यरीहो शहर को एक साथ गए।
\p
\s5
\v 5 जब वे यरीहो के निकट थे, तो वहाँ से आए भविष्यद्वक्ताओं का एक और दल एलीशा के पास आया और उससे कहा, "क्या तू जानता है कि यहोवा आज तेरे स्वामी एलिय्याह को तुझसे दूर ले जानेवाले हैं?"
\p उसने फिर से उत्तर दिया, "निश्चित रूप से मुझे पता है, परन्तु इसके विषय में बात मत करो!"
\p
\v 6 तब एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यहाँ ठहरा रह, क्योंकि यहोवा ने केवल मुझे यरदन नदी जाने के लिए कहा है।"
\p परन्तु फिर से एलीशा ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से जैसे यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा!"
\p इसलिए उन्होंने एक साथ चलना जारी रखा।
\s5
\v 7 यरीहो के भविष्यद्वक्ताओं के दल से पचास पुरुष भी गए, परन्तु उन्होंने दूर ही से देखा क्योंकि एलिय्याह और एलीशा यरदन नदी के किनारे रुक गए थे।
\v 8 तब एलिय्याह ने अपनी चादर को ऐंठ कर उसे पानी पर मारा। नदी के बीच से उनके लिए एक रास्ता खुल गया, और सूखे मैदान के जैसे वे उससे होकर पार चले गए।
\p
\s5
\v 9 जब वे दूसरी ओर आए, तो एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "मेरे उठाए जाने से पहले तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ ?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "मैं अन्य भविष्यद्वक्ताओं के समान तेरी शक्ति का दोगुना भाग प्राप्त करना चाहता हूँ।"
\p
\v 10 एलिय्याह ने उत्तर दिया, "तूने कुछ ऐसा माँगा है जिसे करना मेरे लिए कठिन है। परन्तु यदि तू मेरे उठाए जाने के समय मुझे देखेगा तो तू जो भी माँग रहा है उसे प्राप्त करेगा। परन्तु यदि तू मुझे नहीं देख पाया, तो तुझे यह नहीं मिलेगा। "
\p
\s5
\v 11 जब वे चल रहे थे और बात कर रहे थे, अचानक ही आग से घिरा घोड़ों का एक रथ दिखाई दिया। रथ चालक ने एलिय्याह और एलीशा के बीच से रथ को चलाया और उन्हें अलग कर दिया। तब एलिय्याह को एक बवंडर से स्वर्ग में उठा लिया गया।
\v 12 एलीशा ने इसे देखा। वह चिल्लाया, "हे मेरे पिता! हे मेरे पिता! इस्राएल के रथ और उसके चालक मेरे स्वामी को दूर ले गए हैं!" वे आकाश में गायब हो गए, और एलीशा ने फिर कभी एलिय्याह को नहीं देखा। तब एलीशा ने अपने वस्त्र को दो टुकड़ों में फाड़ दिया ताकि वह दिखा सके कि वह बहुत दु:खी था।
\s5
\v 13 एलिय्याह की चाद्दर उसे ले जाते समय गिर गई थी, इसलिए एलीशा उसे उठाकर यरदन नदी के तट पर लौट आया।
\v 14 उसने चाद्दर को ऐंठ कर पानी पर मारा, और चिल्लाया, "क्या एलिय्याह के परमेश्वर यहोवा मेरे साथ भी हैं?" तब पानी अलग हो गया, और उसके लिए एक रास्ता खुल गया, और एलीशा पार हो गया।
\p
\s5
\v 15 जब यरीहो के भविष्यवक्ताओं के दल ने जो कुछ हुआ उसे देखा था, तो उन्होंने कहा, "एलीशा में अब वो शक्ति है जो एलिय्याह के पास थी!" वे एलीशा के पास गए और उसके सामने झुककर दण्डवत् किया।
\v 16 उनमें से एक ने कहा, "महोदय, यदि तू हमें अनुमति देता है, तो हमारे सबसे शक्तिशाली पुरुष जाएँगे और नदी के दूसरी ओर तेरे स्वामी की खोज करेंगे। हो सकता है यहोवा के आत्मा ने उसे किसी पहाड़ पर या किसी घाटी में छोड़ दिया हो। "
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "नहीं, उन्हें मत भेजो।"
\p
\s5
\v 17 परन्तु वे उससे आग्रह करते रहे। अन्त में वह "न" कहने से थक गया और उसने कहा, "बहुत अच्छा, उन्हें भेज दो।" अत: पचास पुरुषों ने तीन दिनों तक खोज की, परन्तु उन्हें एलिय्याह नहीं मिला।
\v 18 वे यरीहो लौट आए, और एलीशा अभी भी वहां था। उसने उनसे कहा, "मैंने तुम्हें बताया था कि तुम्हें नहीं जाना चाहिए, क्योंकि तुम उसे नहीं ढूँढ़ पाओगे!"
\p
\s5
\v 19 तब यरीहो के अगुवे एलीशा से बात करने आए। उनमें से एक ने कहा, "हे हमारे स्वामी, हमें एक समस्या है। तू देख सकता है कि यह रहने के लिए एक बहुत अच्छा स्थान है। परन्तु पानी खराब है, और इसके परिणामस्वरूप, भूमि पर फसलें नहीं बढ़ती हैं।"
\p
\v 20 एलीशा ने उन से कहा, "थोड़े से नमक को एक नए कटोरे में रखो और कटोरा मेरे पास लाओ।" अत: वे उसे उसके पास लाए।
\p
\s5
\v 21 तब एलीशा उस सोते के पास गया जहाँ से नगर के लोगों को पानी मिलता था। उसने सोते में नमक को डाल दिया। तब उसने कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'मैंने यह पानी अच्छा बना दिया है। अब कोई भी बुरे पानी के कारण से नहीं मरेगा, और भूमि फलदायी फसलों को उगाएगी।'"
\v 22 और पानी शुद्ध हो गया, जैसा कि एलीशा ने कहा था। उस समय से यह हमेशा शुद्ध रहा।
\p
\s5
\v 23 एलीशा यरीहो को छोड़कर बेतेल को चला गया। जब वह सड़क पर चल रहा था, बेतेल के युवा लड़कों के एक समूह ने उसे देखा और उसका मजाक उड़ाया। उन्होंने चिल्लाकर कहा, "हे गंजे चला जा,
\v 24 एलीशा ने पीछे मुड़कर यहोवा के नाम से उनको डाँटा । जंगल से तुरन्त दो रीछनियाँ निकल आई और उनमें से बयालीस मारे गए।
\v 25 एलीशा ने बेतेल को छोड़ दिया और कर्मेल पर्वत पर गया, और उसके बाद वह सामरिया शहर लौट आया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 यहोशापात के लगभग अठारह वर्ष तक यहूदा पर शासन करने के बाद, अहाब का पुत्र योराम इस्राएल का राजा बन गया। उसने बारह वर्षों तक सामरिया शहर पर शासन किया।
\v 2 उसने उन कामों को किया जिनको यहोवा ने बुरा कहा था, परन्तु उसने अपने पिता और माता के जितनी बुराई नहीं की, और उसने अपने पिता द्वारा बाल की पूजा करने के लिए बनाए पत्थर के खंभों से छुटकारा पा लिया।
\v 3 परन्तु उसने उन पापों को किया जो राजा यारोबाम ने किया था और उसने इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया, और वह उन पापों को करने से नहीं रुका।
\p
\s5
\v 4 मोआब का राजा मेशा भेड़ों का पालन किया करता था। हर वर्ष उसे इस्राएल के राजा को 1,00,000 मेम्ने और 1,00,000 मेढ़ों के ऊन देना पड़ता था, क्योंकि उसका राज्य इस्राएल के राजा द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
\v 5 परन्तु राजा अहाब की मृत्यु के बाद, मेशा ने इस्राएल के राजा के विरूद्ध विद्रोह किया।
\v 6 अत: राजा योराम युद्ध करने के लिए सभी इस्राएली सैनिकों को बुलाने के लिए सामरिया से निकला।
\s5
\v 7 तब उसने यह संदेश यहूदा के राजा यहोशापात को भेजा: "मोआब के राजा ने मेरे विरूद्ध विद्रोह किया है। इसलिए क्या तेरी सेना मेरी सेना के साथ चलकर मोआब की सेना के विरुद्ध युद्ध करेगी?"
\p यहोशापात ने उत्तर दिया, "हाँ, हम तेरी सहायता करेंगे। जो कुछ भी तू हम से चाहता है उसे करने के लिए हम तैयार हैं। मेरे सैनिक और मेरे घोड़े तेरी सहायता करने के लिए तैयार हैं।"
\p
\v 8 उसने पूछा, "किस सड़क से हमें उन पर हमला करने के लिए कूच करना चाहिए?"
\p योराम ने उत्तर दिया, "हम दक्षिण में यरूशलेम जाएंगे, जहाँ तेरी सेना हमसे जुड़ जाएगी। तब हम सब मृत सागर के दक्षिण में जाएंगे और फिर उत्तर की ओर मुड़कर एदोम के जंगल से होकर चले जाएंगे।"
\p
\s5
\v 9 अत: इस्राएल का राजा और उसकी सेना यहूदा और एदोम के राजाओं और उनकी सेनाओं के साथ गई। वे सात दिनों तक चलते रहे। तब उनके सैनिकों के लिए या उनके सामान उठानेवाले जानवरों के लिए कोई पानी नहीं बचा था।
\p
\v 10 इस्राएल के राजा ने कहा, "यह एक भयानक स्थिति है! ऐसा लगता है कि यहोवा हम तीनों को मोआब की सेना के हाथों पकड़वा देंगे!"
\p
\s5
\v 11 यहोशापात ने कहा, "क्या यहाँ कोई भविष्यद्वक्ता है जो हमारे लिए यहोवा से पूछ सकता है कि हमें क्या करना चाहिए?"
\p योराम के सेना अधिकारियों में से एक ने कहा, "शापात का पुत्र एलीशा यहाँ है। वह एलिय्याह का सहायक था।"
\p
\v 12 यहोशापात ने कहा, "उससे पूछना अच्छा होगा, क्योंकि वह वही कहता है जो यहोवा उसे बताने के लिए कहते हैं।"
\p अत: वे तीनों राजा एलीशा के पास गए।
\s5
\v 13 एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, " तू मेरे पास क्यों आता है? जा और उन भविष्यद्वक्ताओं से पूछ जिनसे तेरे पिता और माता ने परामर्श लिया था!"
\p परन्तु योराम ने उत्तर दिया, "नहीं, हम चाहते हैं कि तू यहोवा से पूछे, क्योंकि ऐसा लगता है कि यहोवा हम तीन राजाओं को एक साथ इसलिए लाए हैं ताकि मोआब की सेना हमें पकड़ सके।"
\p
\v 14 एलीशा ने उत्तर दिया, "मैं स्वर्ग में रहनेवाले स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान यहोवा की सेवा करता हूँ। निश्चित रूप से जैसा कि वह जीवित हैं, यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का सम्मान नहीं करता, तो मैं तेरी सहायता करने के लिए कुछ भी करने के विषय में सोचता भी नहीं।
\s5
\v 15 मेरे पास एक संगीतकार लाओ। "
\p अत: उन्होंने ऐसा किया। जब संगीतकार ने अपनी वीणा को बजाया, तब यहोवा की शक्ति एलीशा पर आई।
\v 16 उसने कहा, "यहोवा कहते हैं कि वह इस सूखे नाले को पानी से भर देंगे।
\v 17 परिणाम यह होगा कि तेरे सैनिक और तेरा सामान उठानेवाले जानवर और तेरे पशुओं के पीने के लिए बहुत सारा पानी होगा।
\s5
\v 18 यहोवा के लिए ऐसा करना कठिन नहीं है। परन्तु वह उससे भी अधिक करेंगे। वह तुझे मोआब की सेना को हराने में भी सक्षम करेंगे।
\v 19 तू उन सभी सुन्दर शहरों को जीत लेगा, ऐसे शहर जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें हैं। तुझे उनके सभी फलों के पेड़ों को काट देना होगा, पानी को उनके झरनों में बहने से रोक देना होगा, और चट्टानों से ढक कर उनके उपजाऊ खेतों को नष्ट कर देना होगा।"
\p
\s5
\v 20 अगली सुबह, जब उन्होंने अनाज के बलिदान चढ़ाए, तो वे एदोम से बहकर आते पानी को देखकर आश्चर्यचकित हुए जो देश में भर रहा था।
\p
\s5
\v 21 जब मोआब के लोगों ने सुना कि तीन राजा अपनी सेनाओं के साथ उनसे लड़ने के लिए आए हैं, तो वे सभी लोग जो युद्ध में लड़ने में सक्षम थे, सबसे कम उम्र के पुरुषों से लेकर वृद्धों तक को बुलाया गया था, और उन्होंने उनके देश की दक्षिणी सीमा पर अपना अपना मोर्चा सम्भाला।
\v 22 परन्तु जब वे अगली सुबह जल्दी भोर को उठे, तो उन्होंने देखा कि उनकी ओर का पानी खून के समान लाल दिखाई देता है।
\v 23 उन्होंने कहा, "यह खून है! तीनों शत्रु सेनाओं ने लड़ाई की होगी और एक दूसरे को मार डाला होगा! इसलिए आओ हम चलें और जो कुछ भी उन्होंने छोड़ा है उसे ले लें!"
\p
\s5
\v 24 परन्तु जब वे उस क्षेत्र में पहुँचे जहाँ इस्राएली सैनिकों ने अपने तम्बू स्थापित किए थे, तब इस्राएलियों ने मोआबी सैनिकों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पीछे हटने के लिए विवश कर दिया। इस्राएली सैनिकों ने मोआबी सैनिकों का पीछा किया और उनमें से बहुतों को मार डाला।
\v 25 इस्राएलियों ने उनके शहरों को भी नष्ट कर दिया। जब भी उन्होंने उपजाऊ खेतों को पार किया, उन्होंने उन खेतों में चट्टानों को फेंक दिया जब तक कि खेतों को चट्टानों से ढाँप नहीं दिया गया था। उन्होंने पानी को झरनों से बहने से रोक दिया और फल वाले पेड़ों को काट दिया। अंत में, केवल राजधानी का शहर, कीरहरासत बचा रहा। गोफन से पत्थर फेंकने वाले इस्राएली सैनिकों ने शहर को घेर लिया और उस पर आक्रमण किया।
\s5
\v 26 जब मोआब के राजा को मालूम हुआ कि उसकी सेना पराजित हो रही है, तो उसने अपने साथ तलवार से युद्ध करने वाले सात सौ पुरुषों को लिया, और इस्राएली पंक्ति में बल पूर्वक घुसकर एदोम के राजा से सहायता पाने के लिए रास्ता बनाने का विचार किया। उसने सोचा कि एदोमी उसका साथ देंगे। परन्तु वह ऐसा करने में असमर्थ रहा।
\v 27 तब मोआब के राजा ने अपने सबसे बड़े पुत्र को लिया, जो अगला राजा बनेगा, और उसे मार डाला और उसे अपने देवता कामोश को बलि करके चढ़ाया, और उसे शहर की दीवार के ऊपर जला दिया। तब परमेश्वर इस्राएली सेना पर बहुत क्रोधित हुए, इसलिए सेना चली गई और अपने देश वापस लौट गई।
\s5
\c 4
\p
\v 1 एक दिन यहोवा के भविष्यवक्ताओं में से एक की विधवा एलीशा के पास आई और उसके आगे रोकर बोली, "मेरा पति, जो तेरे साथ सेवा करता था, मर चुका है। तुझे पता है कि उसने यहोवा को बहुत आदर दिया था। परन्तु अब जिससे उसने बहुत सारा पैसा उधार लिया था, वह मेरे पास आया है। मैं उसका उधार नहीं चुका सकती हूँ, इसलिए वह मेरे दोनों पुत्रों को उधार के बदले में अपने दास बनाने की धमकी दे रहा है!"
\p
\v 2 एलीशा ने उत्तर दिया, "मैं तेरी सहायता करने के लिए क्या कर सकता हूँ? मुझे बता, तेरे घर में क्या है?"
\p उसने उत्तर दिया, "हमारे पास केवल एक कुप्पी जैतून का तेल है। हमारे पास और कुछ नहीं है।"
\p
\s5
\v 3 एलीशा ने कहा, "अपने पड़ोसियों के पास जा और जितने खाली बर्तन तू उनसे माँग सकती है, ले ले ।
\v 4 तब बर्तनों को अपने घर में अपने पुत्रों के साथ ले जा। दरवाजा बंद कर। फिर अपनी कुप्पी से जैतून का तेल उन बर्तनों में डाल। जब प्रत्येक बर्तन भर जाए, तो इसे एक ओर रख दे और दूसरा बर्तन भर। ऐसा तब तक करते रहना जब तक कि सभी बर्तन भर नहीं जाते।"
\p
\s5
\v 5 इसलिए जैसा एलीशा ने उसे करने को कहा था उसने वैसा ही किया। उसके पुत्र उसके पास बर्तन लाते रहे, और वह उनको भरती रही।
\v 6 शीघ्र ही सभी बर्तन भर गए। तो उसने अपने पुत्रों में से एक से कहा, "मेरे पास एक और बर्तन ला!" परन्तु उसने उत्तर दिया, "अब कोई और बर्तन नहीं हैं!" तब जैतून के तेल का बहना बन्द हो गया।
\p
\s5
\v 7 जो कुछ हुआ था उसे जब उसने एलीशा को बताया, तो उसने उससे कहा, "अब तेल बेच दे। और जो पैसा तुझे मिलता है, उससे अपने उधार को चुका दे, और तेरे और तेरे पुत्रों के लिए खाना खरीदने के लिए भी पर्याप्त पैसा होगा। "अतः उसने वैसा ही किया।
\p
\s5
\v 8 एक दिन एलीशा शूनेम शहर गया। वहाँ एक धनवान स्त्री थी वह अपने पति के साथ वहाँ रहती थी। एक दिन उसने एलीशा को अपने घर में भोजन के लिए आमंत्रित किया। एलीशा वहाँ गया, और तब से एलीशा जब भी शूनेम में जाता था, वह भोजन करने के लिए उनके घर जाता था।
\v 9 एक दिन उस स्त्री ने अपने पति से कहा, "मुझे निश्चय है कि यह व्यक्ति जो प्रायः यहाँ आता है वह एक भविष्यद्वक्ता है जो परमेश्वर का संदेश लाता है।
\s5
\v 10 मुझे लगता है कि हमें अपनी छत पर उसके लिए एक छोटा कमरा बनाना चाहिए, और इसमें एक बिस्तर, एक मेज, एक कुर्सी और एक दीपक रखना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं, तो जब भी वह यहाँ आता है, उसके पास ठहरने के लिए एक स्थान होगा। "अतः उन्होंने ऐसा ही किया।
\p
\v 11 एक दिन एलीशा शूनेम में लौटा, और वह विश्राम करने के लिए उस कमरे में ऊपर गया।
\s5
\v 12 उसने अपने दास गेहजी से कहा, "उस स्त्री से कह कि मैं उससे बात करना चाहता हूँ।" अतः वह दास गया और उसे बताया। जब वह एलीशा के कमरे के द्वार पर आई,
\v 13 एलीशा ने गेहजी से कहा, "उसे कह कि हम दोनों उसके द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कामों के लिए आभारी हैं। फिर उससे पूछ कि हम उसके लिए क्या कर सकते हैं। उससे पूछ, 'क्या तू चाहती है कि मैं राजा के पास या सेना के सरदार के पास जाकर तेरे लिए अनुरोध करूं? '"
\p गेहजी ने उसे यह संदेश दिया। उसने उत्तर दिया, "नहीं, तेरे स्वामी को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मुझे जो कुछ चाहिए वह मेरे परिवार से प्राप्त होता है।"
\p
\s5
\v 14 बाद में, एलीशा ने गेहजी से पूछा, " तू क्या सोचता है कि हम उस स्त्री के लिए कर सकते हैं?"
\p उसने उत्तर दिया, " उसके पास कोई पुत्र नहीं है, और उसका पति एक बूढ़ा व्यक्ति है।"
\p
\v 15 एलीशा ने गेहजी से कहा, "उसे फिर से बुला। "अतः गेहजी गया और उसे बुलाया। और जब स्त्री वापस आई, तब वह द्वार पर ही खड़ी थी,
\v 16 एलीशा ने उससे कहा, "इसी समय अगले वर्ष तू अपने शिशु पुत्र को अपनी बाहों में उठाए होगी।" परन्तु उसने कहा, "हे महोदय, तू एक भविष्यद्वक्ता है जो परमेश्वर से संदेश लाता है, इसलिए कृपया मुझे ऐसी बातें कहकर धोखा न दे!"
\p
\s5
\v 17 परन्तु कुछ महीने बाद, स्त्री गर्भवती हो गई, और उसने अगले वर्ष उसी समय पर एक पुत्र को जन्म दिया, जैसी एलीशा ने भविष्यद्वाणी की थी।
\p
\v 18 जब बच्चा बड़ा हो रहा था, तो एक दिन वह अपने पिता को देखने के लिए मैदान में गया, जो अनाज की कटाई करने वाले पुरुषों के साथ काम कर रहा था।
\v 19 अचानक लड़के ने कहा, "मेरे सिर में दर्द हो रहा है! मेरा सिर दर्द से फट रहा है!"
\p उसके पिता ने सेवकों में से एक से कहा, "उसे उसकी माँ के पास घर ले जा!"
\v 20 अतः सेवक उसे घर ले गया, और उसकी माँ ने उसे अपनी गोद में रखा। परन्तु दोपहर में लड़के की मृत्यु हो गई।
\s5
\v 21 वह उसे भविष्यवक्ता के कमरे में सीढ़ियों से ऊपर ले गई और बिस्तर पर लेटा दिया। उसने उसे वहाँ छोड़ दिया और बाहर चली गई और दरवाजा बन्द कर दिया।
\p
\v 22 तब उसने अपने पति को पुकार कर कहा, "मेरे पास एक सेवक और एक गधा भेज, ताकि मैं शीघ्र ही भविष्यद्वक्ता के पास जाने के लिए उस पर सवारी कर सकूँ, और फिर वापस आऊँ!" परन्तु उसने अपने पति को यह नहीं बताया कि उनके बेटे की मृत्यु हो गई है।
\p
\s5
\v 23 उसके पति ने उससे पुकार कर कहा, " तू आज क्यों जाना चाहती है? यह वह दिन नहीं है जब हम नए चंद्रमा का त्यौहार मनाते हैं, और यह सब्त का दिन नहीं है!"
\p परन्तु उसने केवल यह उत्तर दिया, "बस वह कर जो मैं अनुरोध करती हूँ और सब ठीक हो जाएगा।"
\p
\v 24 इसलिए उसने गधे पर काठी कसी और अपने सेवक से कहा, "गधे को लेकर चल! और जब तक मैं न कहूँ तब तक इसकी गति कम नहीं करना!"
\s5
\v 25 जब वे कर्मेल पर्वत पर आए, जहाँ एलीशा था, तो एलीशा ने उसे दूर ही से देखा। उसने गेहजी से कहा, "देख, वह शूनेम की स्त्री आ रही है!
\v 26 उसके पास भाग, और उससे पूछ कि क्या उसके और उसके पति और उसके बच्चे के साथ सब ठीक है! "
\p अतः गेहजी उसके पास भागा और उससे पूछा, परन्तु उसने गेहजी से कहा, "हाँ, सब कुछ ठीक है और अधिक कुछ नहीं कहा।"
\p
\s5
\v 27 परन्तु जब वह उस स्थान पर आई, तब उसने एलीशा के सामने भूमि पर गिरकर दण्डवत् किया और उसके पैरों को पकड़ लिया। गेहजी ने उसे दूर करना चाहा, परन्तु एलीशा ने कहा, "उसे मत रोक! कोई बात उसे बहुत परेशान कर रही है, परन्तु यहोवा ने मुझे यह नहीं बताया है कि वह क्या बात है।"
\p
\s5
\v 28 तब उसने एलीशा से कहा, "हे महोदय, मैंने तुझसे अनुरोध नहीं किया था कि मुझे पुत्र को जन्म देने में सक्षम कर, परन्तु मैंने कहा था, 'मुझसे झूठ मत बोल।'"
\p
\v 29 तब एलीशा को मालूम हुआ कि उसके पुत्र के साथ कुछ हुआ होगा। इसलिए उसने गेहजी से कहा, "तुरन्त प्रस्थान करने के लिए तैयार हो जा। मेरी छड़ी ले जा और उसके घर जा। रास्ते में किसी से बात करने के लिए मत रुकना। शीघ्र ही जा जहाँ इसका पुत्र है और छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रख। यदि तू ऐसा करे तो हो सकता है यहोवा उसे फिर से जीवित कर देंगे।"
\p
\s5
\v 30 परन्तु लड़के की माँ ने कहा, "निश्चय ही जैसे यहोवा जीवित हैं और तू जीवित है, मैं घर नहीं जाऊँगी यदि तू मेरे साथ नहीं चलता। "इसलिए एलीशा उसके साथ उसके घर गया।
\p
\v 31 परन्तु गेहजी शीघ्र आगे चला गया। जब वह स्त्री के घर पहुँचा तो उसने छड़ी को बच्चे के चेहरे पर रख दिया, परन्तु बच्चा नहीं हिला या कुछ नहीं बोला।
\p अतः गेहजी उसी सड़क से एलीशा से मिलने के लिए लौट आया, और उससे कहा, "बच्चा अभी भी मरा हुआ है।"
\s5
\v 32 जब एलीशा घर पहुँचा तो उसने देखा कि लड़का उसके बिस्तर पर मरा पड़ा था।
\v 33 एलीशा अपने कमरे में गया और दरवाजा बन्द किया और यहोवा से प्रार्थना की।
\v 34 फिर वह लड़के के शरीर पर लेट गया, और लड़के के मुँह पर अपना मुँह रखा, और लड़के की आँखों पर अपनी आँखें रखीं, और लड़के के हाथों पर अपने हाथ रख दिए। तब लड़के का शरीर गर्म होना शुरू हुआ!
\s5
\v 35 एलीशा उठकर कमरे में कई बार आगे पीछे चला-फिरा। फिर उसने अपने शरीर को लड़के के शरीर पर फिर से फैलाया। लड़के ने सात बार छींका और अपनी आँखें खोली!
\p
\v 36 तब एलीशा ने गेहजी को बुलाया। उसने कहा, "लड़के की माँ को बुला।" अतः गेहजी गया और उसे बुलाया, और जब वह अन्दर आई, तो एलीशा ने कहा, "अपने पुत्र को ले।"
\v 37 उसने एलीशा के चरणों में गिरकर दण्डवत् किया। तब उसने अपने पुत्र को उठाया और उसे नीचे ले गई।
\p
\s5
\v 38 तब एलीशा गिलगाल लौट आया। परन्तु उस समय उस क्षेत्र में अकाल पड़ा था। एक दिन जब भविष्यद्वक्ताओं का दल एलीशा के सामने बैठा था, और वे सुन रहे थे कि वह क्या कह रहा है, उसने अपने सेवक से कहा, "आग पर एक बड़ा बर्तन रख और इन मनुष्यों के लिए कुछ खिचड़ी बना।"
\p
\v 39 खेतों में से कुछ सब्जियां इकट्ठा करने के लिए भविष्यद्वक्ताओं में से एक बाहर गया। परन्तु उसने केवल कुछ जंगली लौकी को इकट्ठा किया और उन्हें अपने कपड़े में रख लिया और उन्हें वापस लाया। उसने उन्हें काटकर एक बर्तन में डाल दिया, परन्तु उसे नहीं पता था कि लौकी जहरीली थीं।
\s5
\v 40 उसने भविष्यवक्ताओं को खिचड़ी परोस दी, परन्तु पुरुषों के केवल थोड़ा ही खाने के बाद, वे चिल्ला उठे, "हे हमारे स्वामी, उस बर्तन में कुछ ऐसा है जो हमें मार डालेगा!"
\p अतः वे इसे नहीं खा पाए।
\v 41 एलीशा ने कहा, "मेरे पास थोड़ा आटा लेकर आओ। "वे उसके पास थोड़ा आटा लाए, और उसने उसे बर्तन में डाल दिया और उसने कहा, "यह अब एकदम ठीक है। तुम इसे खा सकते हो।" और उन्होंने इसे खाया, और इससे उन्हें हानि नहीं हुई।
\p
\s5
\v 42 एक दिन बालशालीशा शहर का एक व्यक्ति एलीशा के पास ताजा कटा हुआ एक बोरा अनाज और जौ की बीस रोटी लाया, जो उस वर्ष की पहली कटाई के अनाज से बनाई गई थीं।
\p एलीशा ने अपने सेवक से कहा, "इसे भविष्यद्वक्ताओं के समूह को दे दो, ताकि वे इसे खा सकें।"
\v 43 परन्तु उसके सेवक ने कहा, "क्या तुझे लगता है कि हम एक सौ भविष्यद्वक्ताओं को केवल इतने से ही खिला सकते हैं? मैं इसे सबके सामने कैसे रख सकता हूँ?"
\p परन्तु एलीशा ने उत्तर दिया, "इसे भविष्यद्वक्ताओं को दे ताकि वे इसे खा सकें, क्योंकि यहोवा कहते हैं कि उन सभी के लिए बहुत कुछ होगा, और कुछ बच भी जाएगा!"
\v 44 उसके सेवक ने जब भविष्यद्वक्ताओं को वह दिया और उन्होंने जितना वे चाहते थे, खाया, और जैसा यहोवा ने कहा था, खाना बच भी गया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 नामान नाम का एक व्यक्ति अराम की सेना का सेनापति था। यहोवा ने उसे युद्ध में अनेक विजय पाने में समर्थ किया था और अराम के राजा ने उसकी प्रशंसा की और उसे सम्मानित किया। नामान एक बलवंत और बहादुर सैनिक भी था, परन्तु उसे कोढ़ था।
\p
\v 2 कुछ समय पहले, सैनिकों के दल ने इस्राएल की भूमि पर आक्रमण किया था, और उन्होंने एक जवान लड़की को पकड़ लिया और उसे अराम ले गए। वह नामान की पत्नी के लिए दासी हो गई।
\s5
\v 3 एक दिन, उस लड़की ने उससे कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा स्वामी सामरिया शहर के भविष्यद्वक्ता से भेंट करे। वह भविष्यद्वक्ता तेरे पति को उसके कोढ़ से चंगा करेगा।"
\p
\v 4 नामान की पत्नी ने अपने पति को उस इस्राएली लड़की की बात सुनाई और नामान ने राजा से अनुमति माँगी।
\s5
\v 5-6 राजा ने उससे कहा, "बहुत अच्छा, जा और भविष्यद्वक्ता से मिल। मैं तेरे लिए इस्राएल के राजा को एक पत्र लिखूँगा, यह कहकर कि मैंने तुझे भेजा है।" राजा ने पत्र में लिखा, "मैं इस पत्र को अपने सेनापति नामान के साथ भेज रहा हूँ, जो मेरी सच्ची सेवा करता है। मैं चाहता हूँ कि तू उसे उसकी बीमारी से चंगाई प्राप्त करने में सहायता करे।" इसलिए नामान, यह मानते हुए कि इस्राएल का राजा भविष्यद्वक्ता है, उसने इस्राएल के राजा को देने के लिए वह पत्र और 330 किलोग्राम चाँदी, 66 किलोग्राम सोना और कपड़ों के दस जोड़े ले लिए, और वह कई सेवकों को लेकर सामरिया गया।
\p
\s5
\v 7 जब वह सामरिया पहुँचा, तो उसने इस्राएल के राजा को वह पत्र दिया। राजा ने पत्र पढ़ा। फिर, बहुत निराश होकर, राजा ने अपने वस्त्र फाड़े और कहा, "मैं परमेश्वर नहीं हूँ! मैं लोगों को जीवित करने या मारने में समर्थ नहीं हूँ! इस पत्र को लिखने वाले व्यक्ति ने मुझे कोढ़ के इस रोगी को ठीक करने का अनुरोध क्यों किया? मेरे पास कोढ़ का उपचार करने की शक्ति नहीं है। अराम का राजा केवल हम पर आक्रमण करने का उपाय ढूँढ़ रहा है!"
\p
\s5
\v 8 एलीशा भविष्यद्वक्ता ने सुना कि क्यों इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्र फाड़े हैं, इसलिए उसने राजा को एक संदेश भेजा, " तू क्यों परेशान है? नामान को मेरे पास भेज, तब वह जान लेगा कि इस्राएल में मैं एक सच्चा भविष्यद्वक्ता हूँ।"
\v 9 तब नामान अपने घोड़ों और रथों के साथ एलीशा के घर गया और दरवाजे के बाहर प्रतीक्षा की।
\v 10 परन्तु एलीशा दरवाजे पर नहीं आया। इसकी अपेक्षा, उसने एक संदेशवाहक को नामान को संदेश देने भेजा, "जाकर यरदन नदी में सात बार डुबकी लगा। तब तेरी त्वचा अच्छी हो जाएगी, और फिर तुझमे कोढ़ नहीं रहेगा।"
\p
\s5
\v 11 नामान बहुत क्रोधित हुआ। उसने कहा, "मैंने सोचा था कि निश्चिय ही वह मेरे कोढ़ पर अपना हाथ फेरेगा, और यहोवा से प्रार्थना करेगा, और मुझे चंगा करेगा!
\v 12 निश्चित रूप से मेरे अपने देश दमिश्क में अबाना नदी और पर्पर नदी में इस्राएल से भी अच्छा पानी है! क्या मैं अपने देश की नदियों में नहीं जा सकता और चंगा और शुद्ध नहीं हो सकता? "तो वह पलट कर और बहुत घृणा करते हुए चला गया।
\p
\s5
\v 13 परन्तु उसके कर्मचारी उसके पास आए, और उनमें से एक ने कहा, "महोदय, यदि उस भविष्यद्वक्ता ने तुझे कोई कठिन कार्य करने के लिए कहा होता, तो तू निश्चिय ही करता। तो तू ऐसा सरल काम करने से क्यों मना करता है, जब वह कहता है, "पानी में सात बार डुबकी लगा और शुद्ध हो जा?"
\v 14 तब नामान यरदन नदी पर गया और सात बार पानी में डुबकी लगाई, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने निर्देश दिया था, और उसकी त्वचा एक छोटे बच्चे की मुलायम त्वचा के समान स्वस्थ हो गई।
\p
\s5
\v 15 तब नामान और जो उसके साथ थे एलीशा से बात करने के लिए वापस आए। वे उसके सामने खड़े हुए, और नामान ने कहा, "अब मैं जान गया हूँ कि संसार में और कहीं असली देवता नहीं हैं, परन्तु यहाँ इस्राएल में सच्चे परमेश्वर हैं! इसलिए अब कृपया इन उपहारों को स्वीकार कर जिन्हें मैं तेरे लिए लाया हूँ!"
\p
\v 16 परन्तु एलीशा ने उत्तर दिया, "निश्चित रूप से जैसे यहोवा जीवित हैं, जिनकी मैं सेवा करता हूँ, मैं कोई भी उपहार स्वीकार नहीं करूँगा।" नामान निरंतर उससे उपहार स्वीकार करने का आग्रह करता रहा, परन्तु एलीशा मना करता रहा।
\p
\s5
\v 17 तब नामान ने कहा, "बहुत अच्छा, परन्तु मेरी एक विनती है। इस्राएल की यह मिट्टी यहोवा की मिट्टी है, इसलिए कृपया मुझे इस स्थान से कुछ मिट्टी लेने दे और उसे बोरों में डालकर दो खच्चरों पर लादने दे। तब मैं उसे अपने साथ वापस घर ले जाकर इस मिट्टी से एक वेदी बनाऊँगा। अब से, मैं उस वेदी पर यहोवा के लिए बलि चढ़ाऊँगा। मैं किसी दूसरे देवता को बलिदान नहीं चढ़ाऊँगा।
\v 18 हालांकि, जब मेरा स्वामी, राजा, रिम्मोन देवता के मन्दिर में उसकी पूजा करने के लिए जाता है, तो मैं विनती करता हूँ कि यहोवा मुझे क्षमा करें क्योंकि मुझे भी झुकना पड़ेगा।"
\p
\v 19 एलीशा ने उत्तर दिया, "घर जा, और इसके विषय में चिन्ता न कर।" तो नामान और उसके कर्मचारी घर जाने के लिए चल पड़े।
\p
\s5
\v 20 परन्तु तब एलीशा के दास गेहजी ने स्वयं से कहा, "यह अच्छा नहीं है कि मेरे स्वामी ने इस अरामी मनुष्य को इस तरह जाने की अनुमति दी। उसे उसके उपहार स्वीकार कर लेने चाहिए थे। जैसे निश्चय ही यहोवा जीवित हैं, मैं जाकर नामान को मिलूँगा और उससे कुछ प्राप्त करूँगा।"
\p
\v 21 तब गेहजी नामान को मिलने के लिए तुरन्त गया। जब नामान ने गेहजी को अपनी ओर दौड़ते देखा, तो वह उस रथ को रोक कर जिसमें वह सवारी कर रहा था, बाहर उतरा, और यह देखने के लिए गया कि गेहजी क्या चाहता है। उसने उससे पूछा, "क्या सब ठीक है?"
\p
\v 22 गेहजी ने उत्तर दिया, "हाँ, परन्तु दो युवा भविष्यद्वक्ता, पहाड़ी देश से जहाँ एप्रैम के वंशज रहते हैं पहुँचे हैं। एलीशा ने तुझे यह बताने के लिए मुझे भेजा है कि वह तैतीस किलोग्राम चाँदी और कपड़ों के दो जोड़े उन्हें देना चाहता है।"
\p
\s5
\v 23 नामान ने उत्तर दिया, "अवश्य! तू छियासठ किलोग्राम चाँदी ले सकता है!" उसने गेहजी से इसे लेने का आग्रह किया। उसने उसे वस्त्र के दो जोड़े भी दिए। उसने चाँदी को दो थैलों में बाँध दिया और उन्हें अपने दो सेवकों को एलीशा के पास ले जाने के लिए दिया।
\v 24 परन्तु जब वे पहाड़ी पर पहुँचे जहाँ एलीशा रहता था, तब गेहजी ने नामान के सेवकों से चाँदी और वस्त्र ले लिए और सेवकों को नामान के पास वापस भेज दिया। तब उसने उन वस्तुओं को अपने घर में छिपा दिया।
\v 25 जब वह एलीशा के पास गया, तो एलीशा ने उससे पूछा, " तू कहाँ गया था, गेहजी?" गेहजी ने उत्तर दिया, "मैं कहीं नहीं गया था।"
\p
\s5
\v 26 एलीशा ने उससे पूछा, "क्या तू नहीं जनता है कि जब नामान तुझसे बात करने के लिए अपने रथ से उतरा था तब मेरी आत्मा वहाँ थी? यह निश्चित रूप से पैसा और कपड़े और जैतून के बाग और दाख की बारियाँ और भेड़ और बैल और सेवक के उपहार स्वीकार करने का समय नहीं है!
\v 27 क्योंकि तू ने जो यह किया है, इसलिए तू और तेरी सन्तान और तेरे सभी वंशज, सदा के लिए, नामान के समान कोढ़ी हो जाएँ! "तब गेहजी कमरे से निकल गया, और वह एक कोढ़ी था। उसकी त्वचा बर्फ के समान सफेद थी।
\s5
\c 6
\p
\v 1 एक दिन भविष्यद्वक्ताओं के दल ने एलीशा से कहा, "देख, यह स्थान जहाँ हम तेरे सामने मिलते हैं, बहुत छोटा है।
\v 2 हमें एक नया स्थान बनाने के लिए यरदन जाकर पेड़ कटने की अनुमति दे कि उनसे बल्लियाँ बनाएँ। "इसलिए एलीशा ने कहा," बहुत अच्छा, जाओ।"
\p
\v 3 उनमें से एक ने एलीशा से कहा, "कृपया तू भी हमारे साथ आ।" तो एलीशा ने उत्तर दिया, "बहुत अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।"
\p
\s5
\v 4 तब वे एक साथ गए। जब वे यरदन नदी पर पहुँचे तो उन्होंने कुछ पेड़ों को काटा।
\p
\v 5 परन्तु जब उनमें से एक पेड़ काट रहा था, तब उसकी कुल्हाड़ी हत्थे से अलग हुई और पानी में गिर गई। उसने एलीशा से चिल्ला कर कहा, "हे स्वामी, मैं क्या करूँ? कुल्हाड़ी मेरी नहीं है। मैंने इसे उधार लिया था!"
\p
\s5
\v 6 एलीशा ने उत्तर दिया, "वह पानी में कहाँ गिरी?" उसने उसे वह स्थान दिखाया, तो एलीशा ने एक छड़ी काटी, और उसे पानी में फेंक दिया, और कुल्हाड़ी पानी की सतह पर ऊपर आ गई।
\v 7 एलीशा ने कहा, "उसे पानी से बाहर निकाल ले।" तब व्यक्ति ने अपना हाथ बढ़ाकर कुल्हाड़ी को उठाया।
\p
\s5
\v 8 जब अराम के राजा ने इस्राएल के विरूद्ध युद्ध के लिए अपनी सेना को भेजने की तैयारी कर ली तब उसने पहले अपने अधिकारियों से परामर्श लिया और निर्देश दिया कि उन्हें अपने तम्बू कहाँ स्थापित करने चाहिए।
\p
\v 9 परन्तु एलीशा ने इस्राएल के राजा को चेतावनी का संदेश भेजा, उसे बताया कि अराम की सेना उन पर आक्रमण करने की योजना बना रही है और कहा, "सुनिश्चित कर कि तेरी सेना उस स्थान के निकट नहीं जाए, क्योंकि अराम की सेना ने वहाँ अपने तम्बू स्थापित किए हैं।"
\s5
\v 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्थान पर रहने वाले लोगों को चेतावनी देने के लिए दूत भेजे, और लोग सुरक्षित बने रहे। ऐसा कई बार हुआ।
\p
\v 11 अराम का राजा इस विषय में बहुत परेशान था, अतः उसने अपनी सेना के अधिकारियों को बुलाया और उनसे कहा, " तुम में से एक इस्राएल के राजा को हमारी योजनाएँ बता रहा है। तुम में से कौन ऐसा कर सकता है?"
\p
\s5
\v 12 उसके अधिकारियों में से एक ने उत्तर दिया, "हे महाराज, हम में से कोई नहीं है। एलीशा भविष्यद्वक्ता जानता है कि हम क्या करने की योजना बना रहे हैं, और वही इस्राएल के राजा को सब कुछ बताता है। वह यह भी जानता है कि तू अपने शयनकक्ष में क्या कहता है!"
\p
\v 13 अराम के राजा ने उत्तर दिया, "जाओ और पता लगाओ कि वह कहाँ है, और मैं उसे पकड़ने के लिए वहाँ कुछ लोगों को भेजूँगा।" किसी ने उसे बताया, "लोग कहते हैं कि वह सामरिया के उत्तर में दोतान शहर में है।"
\s5
\v 14 तब राजा ने घोड़ों और रथों समेत सैनिकों का एक बड़ा समूह दोतान को भेजा। वे रात में पहुँचे और शहर को घेरा।
\p
\v 15 अगली सुबह, एलीशा का सेवक उठा और घर के बाहर गया। उसने अराम के सैनिकों को नगर के चारों ओर अपने घोड़ों और रथों समेत देखा। तो वह घर के अन्दर आया और एलीशा को इसके विषय में बताया और कहा, "ओह, महोदय! हम क्या करने जा रहे हैं?"
\p
\v 16 एलीशा ने उत्तर दिया, "मत डर! जो हमारी सहायता करते हैं वे उनसे बहुत अधिक हैं जो उनके साथ है!"
\p
\s5
\v 17 तब उसने प्रार्थना की, "हे यहोवा, मैं विनती करता हूँ कि आप मेरे दास की आँखें खोलें ताकि यह देख सके कि वहाँ बाहर क्या है!" इसलिए यहोवा ने सेवक को देखने में समर्थ किया कि चारों ओर की पहाड़ी जहाँ नगर बनाया गया था, वहाँ बड़ी संख्या में आग के घोड़े और रथ दिखाई पड़ रहे थे!
\p
\v 18 जब अराम की सेना एलीशा पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुई, तो उसने फिर से प्रार्थना की, और कहा, "हे यहोवा, इन सभी सैनिकों को अंधा कर दें!" यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उन सैनिकों को स्पष्ट देखने में असमर्थ कर दिया।
\p
\v 19 तब एलीशा उनके पास गया और कहा, " तुम सही मार्ग पर नहीं हो। यह वह नगर नहीं है जिसे तुम खोज रहे हो। मैं तुम्हें उस व्यक्ति के पास ले जाऊँगा जिसे तुम खोज रहे हो।" परन्तु वह उन्हें इस्राएल की राजधानी सामरिया शहर में ले आया।
\p
\s5
\v 20 जैसे ही उन्होंने सामरिया में प्रवेश किया, एलीशा ने फिर से प्रार्थना की, "हे यहोवा, अब इन सैनिकों को फिर से देखने में समर्थ करें!" इसलिए यहोवा ने उन्हें स्पष्ट देखने में समर्थ किया और वे अचम्भित हुए कि वे सामरिया के भीतर थे।
\p
\v 21 जब इस्राएल के राजा ने उन्हें देखा, तो उसने एलीशा से कहा, "महोदय, क्या मैं अपने सैनिकों को उन्हें मार डालने के लिए कहूँ? क्या हम उन सभी को मार डालेंगे?"
\p
\s5
\v 22 एलीशा ने उत्तर दिया, "नहीं, तुझे उन्हें मारना नहीं चाहिए। यदि तेरी सेना युद्ध में अपने शत्रुओं को पकड़ लेती है, तो क्या तू निश्चिय ही उन्हें मार डालता है। इन मनुष्यों को खाने और पीने के लिए कुछ दे, और तब उन्हें उनके राजा के पास लौटने की अनुमति दे।"
\v 23 तब इस्राएल के राजा ने ऐसा किया। उसने अपने सेवकों से उनके लिए एक बड़ा भोज करने के लिए कहा। और जब उन्होंने बहुतायत से खा लिया और बहुत नशे में थे, तो उन्होंने उन्हें भेज दिया। वे अराम के राजा के पास लौट गए और जो हुआ था उसे बताया। तो उसके बाद कुछ समय के लिए, अराम के सैनिक इस्राएल पर आक्रमण करने से रुक गए।
\p
\s5
\v 24 परन्तु कुछ समय बाद, अराम के राजा बेनहदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी की, और वे सामरिया गए और उस नगर को लम्बे समय तक घेरे रखा।
\v 25 इस कारण, कुछ समय बाद शहर के भीतर कुछ ही भोजन बचा था, इसलिए अंत में एक गधे का सिर, जो आमतौर पर बेकार था, चाँदी के अस्सी टुकड़े में बिकता था और कबूतर की बीट का एक कटोरे चाँदी के पाँच टुकड़े में बिकता था।
\p
\v 26 एक दिन जब इस्राएल का राजा शहर की दीवार के ऊपर टहल रहा था, तब एक स्त्री ने चिल्ला कर कहा, "हे महामहिम, मेरी सहायता कर!"
\p
\s5
\v 27 उसने उत्तर दिया, "यदि यहोवा तेरी सहायता नहीं करेंगे, तो मैं भी निश्चित रूप से नहीं कर सकता। मेरे पास कोई गेहूँ या दाखमधु नहीं है!
\v 28 तेरी समस्या क्या है? "उसने उत्तर दिया," कई दिन पहले, एक स्त्री ने मुझसे कहा, 'क्योंकि हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा है, आज हम तेरे पुत्र को मार डालें ताकि हम उसका माँस खा सकें। फिर कल हम मेरे पुत्र को मारकर उसका माँस खाएँगे।'
\p
\v 29 इसलिए हमने मेरे पुत्र को मार डाला और उसके शरीर को काट दिया और उसका माँस उबालकर खा लिया। अगले दिन, मैंने उससे कहा, 'अब अपने पुत्र को मुझे दे, ताकि हम उसे भी मारकर उसका माँस पका सकें और खाएँ।' परन्तु उसने अपने पुत्र को छिपा लिया।"
\p
\s5
\v 30 जब राजा ने सुना कि स्त्री ने क्या कहा, तो उसने अपना दुःख दिखाने के लिए अपना वस्त्र फाड़ा। जो लोग दीवार के निकट खड़े थे उन्होंने देखा कि राजा अपने वस्त्र के नीचे टाट का वस्त्र पहने था क्योंकि वह बहुत परेशान था।
\v 31 राजा ने कहा, "मेरी इच्छा है कि यदि मैं आज एलीशा के सिर को काट न दूँ, तो परमेश्वर मुझे मार डालें, क्योंकि वह वही हैं जिन्होंने इस भयानक स्थिति को हम पर आने का कारण बना दिया है!"
\p
\s5
\v 32 तब राजा ने एलीशा को लाने के लिए एक अधिकारी भेजा।
\p अधिकारी के पहुँचने से पहले, एलीशा अपने घर में कुछ इस्राएली प्राचीनों के साथ बैठा था जो उसके साथ बात कर रहे थे। एलीशा ने उनसे कहा, "यह हत्यारा, इस्राएल का राजा, मुझे मारने के लिए किसी को यहाँ भेज रहा है। सुनो, जब वह आता है, तो दरवाजा बन्द रखना और उसे अन्दर आने की अनुमति न देना, क्योंकि राजा उस अधिकारी के ठीक पीछे आ जाएगा!"
\v 33 और जब वह अभी बोल ही रहा था, राजा और अधिकारी पहुँचे। राजा ने कहा, "यह यहोवा ही हैं जो हम पर यह सब परेशानियाँ आने दे रहे हैं। अब मैं उनकी सहायता के लिए प्रतीक्षा नहीं करूँगा।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 एलीशा ने राजा को उत्तर दिया, "यहोवा जो कहते हैं, उसे सुनो: 'वह कहते हैं कि कल इसी समय, सामरिया के बाज़ार में, तुम चाँदी के एक टुकड़े से सात किलो मैदा खरीदने में और चाँदी के एक टुकड़े से चौदह किलो जौ खरीदने में सक्षम होंगे।'"
\p
\v 2 राजा के साथ के अधिकारी ने एलीशा से कहा, "ऐसा नहीं हो सकता है! भले ही यहोवा स्वयं आकाश की खिड़कियां खोल दें और हमारे लिए नीचे अनाज भेज दें, यह निश्चित रूप से नहीं हो सकता!" एलीशा ने उत्तर दिया, "क्योंकि तू ऐसा कहता है, इसलिए तू इसे होते हुए तो देखेगा, परन्तु तू किसी भी भोजन को खाने में सक्षम नहीं होगा!"
\p
\s5
\v 3 उस दिन चार पुरुष, जिनको कुष्ट रोग था वे सामरिया शहर के फाटक के बाहर बैठे थे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, "हम मरने तक यहाँ प्रतीक्षा क्यों करें?
\v 4 यदि हम शहर में जाते हैं, तो हम वहाँ मर जाएँगे, क्योंकि वहाँ कोई भोजन नहीं है। यदि हम यहाँ बैठे रहते हैं, तो हम यहाँ भी मर जाएँगे। इसलिए आओ हम वहाँ चलें जहाँ अराम की सेना ने अपने तम्बू स्थापित किए हैं। यदि वे हमें मार देते हैं, तो हम मर जाएँगे। परन्तु यदि वे हमें जीवित रहने देते हैं, तो हम नहीं मरेंगे।"
\s5
\v 5 अतः जब अंधेरा हो रहा था, तो वे चारों उस शिविर में गए जहाँ अराम की सेना ने अपने तम्बू लगाए थे। परन्तु जब वे शिविर में पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भी नहीं था।
\p
\v 6 हुआ यह था कि यहोवा ने अराम की सेना को ऐसा कुछ सुनाया जो कि रथों और घोड़ों के साथ चल रही एक बड़ी सेना के समान सुनाई दिया। इसलिए सैनिकों ने एक-दूसरे से कहा, "सुनो! इस्राएल के राजा ने मिस्र के और हित्तियों के राजाओं और उनकी सेनाओं को किराए पर लिया है, और वे आक्रमण करने आए हैं!"
\s5
\v 7 इसलिए वे सभी उस शाम सूर्यास्त के समय भाग गए और वहाँ अपने तम्बू और उनके घोड़े और गधे छोड़ दिए, क्योंकि वे डर गए थे कि यदि वे वहाँ रहे तो वे मारे जाएँगे।
\p
\v 8 जब वे चार लोग जिन्हें कुष्ट रोग था उस क्षेत्र की सीमा पर आए, जहाँ अराम के सैनिकों ने अपने तम्बू लगाए थे, तो वे एक तम्बू में गए और वहाँ छोड़े गए सामान को देखा। इसलिए जो वहाँ था उन्होंने वह खाया और पिया, और उन्होंने चाँदी और सोने और कपड़े ले लिए। तब वे तम्बू के बाहर गए और उन चीजों को छिपा दिया। और उन्होंने एक और तम्बू में प्रवेश किया और वहाँ से भी वस्तुएँ ले लीं, और फिर बाहर गए और उन्हें भी छिपा दिया।
\p
\s5
\v 9 परन्तु उन्होंने एक-दूसरे से कहा, "हम सही काम नहीं कर रहे हैं। आज दूसरों को सुनाने के लिए हमारे पास अच्छा समाचार है। यदि हम इसे अभी किसी को भी नहीं बताते हैं, और यदि हम इसे सुबह बताने के लिए प्रतीक्षा करते हैं, तो लोग निश्चित रूप से हमें दण्ड देंगे। इसलिए आओ, हम इसी समय महल में जाएँ और राजा के अधिकारियों को बताएँ!"
\p
\v 10 तब वे शहर के फाटकों पर रक्षकों के पास गए और उनसे कहा, "हम आरामी सेना के तम्बुओं में गये थे, परन्तु हमने वहाँ किसी को देखा या सुना नहीं। उनके घोड़े और गधे अभी भी बंधे थे, परन्तु उनके तम्बू सभी खाली हैं! "
\v 11 रक्षकों ने इस सन्देश को पुकार कर सुनाया, और कुछ लोग जिन्होंने इसे सुना, महल में गए और वहाँ इसकी सूचना दी।
\p
\s5
\v 12 रात में राजा ने यह समाचार सुना। वह अपने बिस्तर से उठ गया और अपने अधिकारियों से कहा, "मैं तुम्हें बताता हूँ कि अराम की सेना ने क्या योजना बनाई है। वे जानते हैं कि हमारे पास भोजन नहीं है, इसलिए उन्होंने अपने तम्बू छोड़ दिए हैं और खेतों में छिपे गये हैं। वे सोचते हैं कि हम भोजन खोजने के लिए शहर छोड़ देंगे, और फिर वे हमें पकड़ लेंगे और शहर पर अधिकार कर लेंगे। "
\p
\v 13 परन्तु उसके अधिकारियों में से एक ने कहा, "हमारे बहुत से लोग पहले ही भूख से मर चुके हैं। यदि हमारे कुछ लोग जो अभी भी जीवित हैं, वे सभी यहाँ रुके रहते हैं, तो हम भी किसी रीति से मर जाएँगे। इसलिए हम अपने पाँच घोड़ों के साथ कुछ पुरुष भेज दे जो अभी भी जीवित हैं और वे जाकर देखें कि वास्तव में क्या हुआ है।"
\p
\s5
\v 14 इसलिए उन्होंने कुछ पुरुषों को चुना और उन्हें दो रथों में भेजा कि अराम की सेना के साथ जो हुआ उसका पता लगाएँ।
\v 15 वे यरदन नदी तक चले गए। सड़क के साथ-साथ उन्होंने कपड़ों और उपकरणों को देखा जिनको अराम के सैनिकों ने भागते समय फेंक दिया था। अतः लोग राजा के पास लौट आए और उन्होंने जो देखा उसकी जानकारी दी।
\s5
\v 16 तब सामरिया के बहुत से लोग शहर से बाहर निकल कर वहाँ चले गए जहाँ अराम की सेना ने अपने तम्बू लगाए थे। उन्होंने सभी तम्बुओं में प्रवेश किया और सब कुछ ले लिया। अतः वहाँ सब कुछ अब बहुतायत से हो गया! जिसके परिणामस्वरूप लोग चाँदी के एक टुकड़े में सात किलो मैदा और चाँदी के एक टुकड़े में चौदह किलो जौ खरीद सकते थे, जैसा यहोवा ने कहा था!
\p
\v 17 इस्राएल के राजा ने अपने सहायक को आदेश दिया, जिसने एलीशा से बात की थी, कि वह शहर के फाटक पर जाकर वहाँ की स्थिति को संभाले। परन्तु जब वह फाटक पर खड़ा था, तो जो लोग शहर के बाहर भाग रहे थे, वे उस पर चढ़ गए और वह मर गया, जैसा एलीशा ने कहा था, वही उसके साथ हुआ।
\s5
\v 18 एलीशा ने उसे कहा था कि अगले दिन वहाँ बहुतायत से भोजन होगा, जिसके परिणामस्वरूप चाँदी के एक टुकड़े में चौदह किलो जौ और चाँदी के एक टुकड़े में सात किलो मैदा खरीदा जाएगा।
\p
\v 19 उस अधिकारी ने उत्तर दिया था, "ऐसा हो ही नहीं सकता है! चाहे यहोवा स्वयं आकाश खोल दें और कुछ अनाज नीचे भेज दें।" और एलीशा ने उत्तर दिया था, "क्योंकि तू ने ऐसा कहा है, तू ऐसा होते हुए देखेगा, परन्तु तू उस भोजन में से कुछ भी खा नहीं पाएगा!"
\v 20 और यही उसके साथ हुआ। जो लोग शहर के फाटक से बाहर भाग रहे थे, वे उस पर चढ़ गए, और वह दबकर मर गया।
\s5
\c 8
\p
\v 1 एलीशा ने शूनेम शहर की स्त्री के बेटे को फिर से जीवित करने के बाद, उसे बताया था कि उसे अपने परिवार के साथ वहाँ से निकल कर कुछ समय के लिए कहीं और रहना चाहिए, क्योंकि यहोवा उस देश में अकाल भेजने जा रहे हैं। उसने कहा कि अकाल सात वर्ष तक रहेगा।
\v 2 इसलिए उस स्त्री ने वैसा किया जैसा एलीशा ने उसे करने के लिए कहा था। वह और उसका परिवार सात वर्ष तक पलिश्तियों के क्षेत्र में रहने के लिए चला गया।
\p
\s5
\v 3 सात वर्ष समाप्त होने के बाद, वे अपने घर लौट आए। स्त्री राजा से अनुरोध करने के लिए गई कि उसका घर और उसकी भूमि उसे वापस दे दी जाए।
\v 4 जब वह वहाँ पहुँची, तो राजा एलीशा के सेवक गेहजी से बात कर रहा था। राजा उससे कह रहा था, "एलीशा ने जो बड़े बड़े काम किए हैं, वह मुझे बता।"
\s5
\v 5 जब गेहजी राजा को बता रहा था कि एलीशा ने शूनेम की एक स्त्री के बेटे को फिर से जीवित कर दिया था, वह स्त्री अन्दर आई और राजा से अनुरोध किया कि वह उसे उसका घर और भूमि फिर से प्राप्त करने में सक्षम करे। गेहजी ने कहा, "हे महाराज, यह वही स्त्री है जिसके पुत्र को एलीशा ने फिर से जीवित कर दिया था!"
\p
\v 6 जब राजा ने उससे इसके विषय में पूछा, तो उसने उसे बताया कि गेहजी ने जो कहा था वह सच है। राजा ने अपने अधिकारियों में से एक को बुलाया और कहा, "यह सुनिश्चित कर कि इस स्त्री को इसके स्वामित्व वाली हर वस्तु फिर से मिल जाए, जिसमें पिछले सात वर्ष ों में काटी गई उन सभी फसलों के मूल्य भी हैं, जिस समय में वह अपनी भूमि से दूर थी। "अतः उस अधिकारी ने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 7 एलीशा अराम की राजधानी दमिश्क में गया, उस समय अराम का राजा बेनहदद बहुत बीमार था। जब किसी ने राजा से कहा कि एलीशा दमिश्क में है,
\v 8 तो राजा ने अपने अधिकारियों में से एक हजाएल को कहा, "जा और उस भविष्यद्वक्ता से बात कर और उसे देने के लिए अपने साथ एक उपहार ले जा और उससे कह कि वह यहोवा से पूछे कि क्या मैं अपनी बीमारी से ठीक हो जाऊँगा।"
\p
\v 9 अतः हजाएल एलीशा से बात करने गया। उसने अपने साथ चालीस ऊँट ले लिए जो दमिश्क में उत्पादित कई प्रकार के सामान से लदे हुए थे। जब हजाएल उससे मिला, तो उसने कहा, "अराम का राजा तेरे मित्र बेनहदद ने तुझसे यह पूछने के लिए मुझे भेजा है कि वह अपनी बीमारी से ठीक हो पाएगा या नहीं।"
\p
\s5
\v 10 एलीशा ने हजाएल से कहा, "जा और उससे कह, 'हाँ, तू निश्चय ही इस बीमारी से नहीं मरेगा,' परन्तु यहोवा ने मुझे दिखाया है कि वह ठीक होने से पहले अवश्य मर जाएगा।"
\v 11 तब एलीशा ने उसे घूरा और उसके चेहरे को घूरकर देखा। इससे हजाएल को कुछ विचित्र सा लगा। फिर अचानक एलीशा ने रोना शुरू कर दिया।
\p
\v 12 हजाएल ने कहा, "हे महोदय, तू क्यों रो रहा है?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "क्योंकि यहोवा ने मुझे उन भयानक बातों को प्रकट किया है जो तू इस्राएल के लोगों के साथ करेगा। तेरे सैनिक उनके शहरों को जलाएँगे जिनके चारों ओर अभी दीवारें हैं, युद्ध में उनके अच्छे जवानों को मार डालेंगे, उनके बच्चों के सिर को कुचल देंगे, और उनकी गर्भवती स्त्रियों के पेट को तलवार से फाड़ देंगे।"
\p
\s5
\v 13 हजाएल ने उत्तर दिया, "मैं कुत्ते के समान शक्तिहीन हूँ। मैं ऐसे भयानक काम कैसे कर सकता हूँ?"
\p एलीशा ने उत्तर दिया, "यहोवा ने मुझे यह भी बताया है कि तू अराम का राजा बनेगा।"
\p
\v 14 तब हजाएल चला गया और अपने स्वामी राजा के पास लौट आया, जिसने उससे पूछा, "एलीशा ने क्या कहा?"
\p उसने उत्तर दिया, "उसने मुझे बताया कि तू निश्चय ही ठीक हो जाओगे।"
\v 15 परन्तु अगले दिन, जब राजा सो रहा था, हजाएल ने एक कम्बल लिया और उसे पानी में भिगो दिया। फिर उसने राजा के चेहरे पर इसे डाल दिया ताकि वह सांस न ले सके, और वह मर गया। तब बेनहदद के स्थान में हजाएल अराम का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 16 अहाब के पुत्र राजा योराम के, लगभग पाँच वर्षों तक इस्राएल पर शासन करने के बाद, यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा का राजा बन गया।
\v 17 जब वह राजा बना, तब वह बत्तीस वर्ष का था, और उसने यरूशलेम पर आठ वर्ष तक शासन किया।
\s5
\v 18 उसकी पत्नी राजा अहाब की पुत्री थी। अहाब के परिवार के हर व्यक्ति के समान, उसने निरंतर उन बुरे कामों को किया जो इस्राएल के पिछले राजाओं ने किये थे। उसने ऐसे कई काम किए जिनको यहोवा ने बुरा कहा था।
\v 19 परन्तु यहोवा यहूदा के लोगों से इस कारण छुटकारा नहीं पाना चाहते थे, क्योंकि उन्होंने अपने सच्चे सेवक दाऊद से प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने दाऊद से प्रतिज्ञा की थी कि उसके वंशज सदा यहूदा पर शासन करेंगे।
\p
\s5
\v 20 यहोराम के शासन के समय, अदोम के राजा ने यहूदा के विरूद्ध विद्रोह किया, और उन्होंने अपना राजा नियुक्त किया।
\v 21 तब यहोराम अपनी सेना और अपने सारे रथों के साथ अदोम की सीमा के पास साईर शहर गया। वहाँ एदोम की सेना ने उन्हें घेर लिया। परन्तु रात के दौरान, यहोराम और उनके रथों के सरदार शत्रु की पांतियों से बचने और भागने में सक्षम हो गए थे। और उसके सभी सैनिक भी अपने घरों को भाग गए।
\s5
\v 22 उसके बाद, एदोम पर यहूदा का नियंत्रण नहीं रहा, और यह अब भी ऐसा ही है। उसी समय, लिब्ना शहर के लोगों ने भी यहूदा के नियंत्रण से स्वयं को मुक्त कर लिया।
\p
\v 23 यदि तुम यहोराम द्वारा किए गए अन्य कामों के विषय में पढ़ना चाहते हैं, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 24 यहोराम की मृत्यु हो गई और उसे वहाँ दफनाया गया जहाँ यहूदा के अन्य राजाओं को दफनाया गया था अर्थात् यरूशलेम के उस भाग में जिसे दाऊद का शहर कहा जाता था। तब यहोराम का पुत्र अहज्याह राजा बन गया।
\p
\s5
\v 25 अहाब के पुत्र योराम के बारह वर्षों तक इस्राएल पर शासन करने के बाद, यहोराम का पुत्र अहज्याह यहूदा का राजा बन गया।
\v 26 अहज्याह बाईस वर्ष का था जब उसने शासन करना शुरू किया। उसने यरूशलेम में केवल एक वर्ष तक शासन किया। उसकी मां का नाम अतल्याह था, जो राजा अहाब की पुत्री और इस्राएल के राजा ओमरी की पोती थी।
\v 27 राजा अहज्याह ने अपना जीवन अहाब के परिवार के सदस्यों के समान रखा। उसने ऐसे कई काम किए जिनको यहोवा ने बुरा कहा था।
\p
\s5
\v 28 अहज्याह की सेना अराम के राजा हजाएल की सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए इस्राएल के राजा योराम की सेना के साथ हो गई। उनकी सेनाओं ने गिलाद क्षेत्र के रामोत शहर में युद्ध किया और अराम के सैनिकों ने योराम को घायल कर दिया।
\v 29 राजा योराम अपने घावों से ठीक होने के लिए यिज्रेल शहर लौट आया। राजा अहज्याह वहां उससे मिलने गया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 इस बीच, भविष्यद्वक्ता एलीशा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं में से एक को बुलाया। उसने उससे कहा, "तैयार हो जा और गिलाद क्षेत्र के रामोत शहर जा। जैतून के तेल के इस बर्तन को अपने साथ ले जा।
\v 2 जब तू वहाँ पहुँचे, तो यहोशापात के पुत्र और निमशी के पोते येहू नामक व्यक्ति की खोज करना। उसको साथ लेकर उसके साथियों से दूर एक कमरे में जाना
\v 3 और उसके सिर पर यह थोड़ा तेल डाल देना। तब उससे कहना, 'यहोवा ने घोषणा की है कि वह तुझे इस्राएल का राजा बनने के लिए नियुक्त कर रहे हैं।' फिर दरवाजा खोल कर जितनी जल्दी हो सके भाग जाना।"
\p
\s5
\v 4 तब वह युवा भविष्यद्वक्ता रामोत गया।
\v 5 जब वह पहुँचा, तो उसने देखा कि सेना के सरदारों का एक सम्मेलन था। उसने येहू को देखा और कहा, "हे महोदय, मेरे पास तुम में से एक के लिए एक संदेश है।"
\p येहू ने उत्तर दिया, "हम में से किसके लिए वह संदेश है?"
\p युवा भविष्यद्वक्ता ने उत्तर दिया, "हे सरदार, यह तेरे लिए है।"
\p
\v 6 तब येहू उठकर युवा भविष्यद्वक्ता के साथ एक कमरे में गया। वहाँ उस युवा भविष्यद्वक्ता ने येहू के सिर पर कुछ जैतून का तेल डाला और उससे कहा, "यहोवा, जिनकी हम इस्राएली उपासना करते हैं, यह घोषित करते हैं: 'मैं तुझे अपने इस्राएली लोगों का राजा बनने के लिए नियुक्त कर रहा हूँ।
\s5
\v 7 तुझे अहाब के पुत्र अपने स्वामी राजा योराम को मार डालना है, क्योंकि मैं अहाब की पत्नी ईज़ेबेल को अपने कई भविष्यद्वक्ताओं और अन्य लोगों जिन्होंने मेरी सेवा की थी उनकी हत्या करने के लिए दण्ड दूँगा।
\v 8 तुझे केवल योराम को ही नहीं, अहाब के पूरे परिवार को मारना है। मैं युवाओं और बूढ़े लोगों सहित परिवार के हर पुरुष से छुटकारा पाना चाहता हूँ।
\s5
\v 9 मैं अहाब के परिवार से छुटकारा पाऊँगा, जैसे कि मैंने इस्राएल के दो अन्य राजाओं, यारोबाम और बाशा के परिवारों से छुटकारा पाया है।
\v 10 और जब ईज़ेबेल मर जाती है, तो उसका शव दफनाया नहीं जाएगा। यिज्रेल शहर में उसका शव कुत्ते खाएँगे।'"
\p युवा भविष्यद्वक्ता ने यह कहने के बाद, कमरे को छोड़ दिया और भाग गया।
\s5
\v 11 जब येहू कमरे से बाहर आया जहाँ उसके अन्य सरदार थे, तो उन्होंने उससे पूछा, "क्या सब ठीक है? वह पागल तुम्हारे पास क्यों आया?"
\p उसने उत्तर दिया, " तुम जानते हो कि उसके जैसे युवा भविष्यद्वक्ता कैसी बातें करते हैं।"
\p
\v 12 उन्होंने कहा, " तू झूठ बोल रहा है। हमें बता उसने क्या कहा!"
\p उसने उत्तर दिया, "उसने मुझे कई बातें बताईं, और फिर उसने मुझे बताया कि यहोवा ने कहा है, 'मैं तुझे इस्राएल का राजा बनने के लिए नियुक्त कर रहा हूँ।'"
\p
\v 13 तब उन्होंने येहू के लिए निकलने के लिए भवन के चरणों पर अपने कपड़े बिछा दिए, और उन्होंने तुरही बजाई और चिल्लाए, "येहू अब राजा है!"
\p
\s5
\v 14-15 राजा योराम और उसकी सेना अराम के राजा की सेना के आक्रमण से रामोत का बचाव कर रही थी। राजा योराम अराम के राजा हजाएल की सेना से युद्ध करते समय में घायल हो गया था इसलिए ठीक होने के लिए यिज्रेल शहर लौट आया था। येहू ने योराम को मारने की योजना बनाई। उसने अपने अन्य सरदारों से कहा, "यदि तुम वास्तव में मेरी सहायता करना चाहते हो, तो सुनिश्चित करो कि कोई भी इस शहर से निकलकर मेरी योजना के विषय में यिज्रेल के लोगों को चेतावनी देने के लिए जाने न पाए।"
\v 16 तब येहू और उसके अधिकारी अपने रथों से यिज्रेल चले गए, जहाँ योराम अभी भी ठीक हो रहा था और यहूदा का राजा अहज्याह योराम को देखने वहाँ गया था।
\p
\s5
\v 17 यिज्रेल में पहरेदारी में एक पहरेदार खड़ा था। उसने येहू और उसके पुरूषों को देखा। उसने कहा, "मैं बहुत सारे पुरुषों को आते हुए देख रहा हूँ!" राजा योराम ने सुना जो पहरेदार ने कहा, इसलिए उसने अपने सैनिकों से कहा, "किसी को घोड़े पर जाने के लिए भेजो और पता लगाओ कि क्या वे शान्तिपूर्वक आ रहे हैं या आक्रमण करने आ रहे हैं।"
\p
\v 18 इसलिए एक व्यक्ति घोड़े की सवारी करने वाला येहू से मिलने के लिए बाहर निकल गया और उससे कहा, "राजा जानना चाहता है कि तू शान्ति से आ रहा है या नहीं।"
\p येहू ने उत्तर दिया, "यह समय तेरे लिए शान्ति के विषय में चिंतित होने का समय नहीं है! मुड़ और मेरे पीछे आ!"
\p तो गुम्मट में पहरेदारी करने वाले ने बताया कि सन्देशवाहक उस समूह तक पहुँचा था जो निकट आ रहा था, परन्तु वह अकेले वापस नहीं लौट रहा था।
\p
\s5
\v 19 इसलिए राजा योराम ने एक और दूत भेजा जिसने येहू से वही सवाल पूछा। फिर येहू ने उत्तर दिया, "यह समय तेरे लिए शान्ति के विषय में चिंतित होने का समय नहीं है! मुड़ और मेरे पीछे आ!"
\p
\v 20 पहरेदार ने फिर से सूचना दी, "वह दूत भी उन तक पहुँचा, परन्तु वह अकेले वापस नहीं आ रहा है। और समूह का अगुवा निमशी का पुत्र येहू ही होना चाहिए, क्योंकि वह उसी के समान अपने रथ को उग्र रूप से चला रहा है!"
\p
\s5
\v 21 योराम ने अपने सैनिकों से कहा, "मेरा रथ तैयार करवाओ।" उन्होंने ऐसा किया। तब राजा योराम और राजा अहज्याह दोनों येहू की ओर चले गए, हर एक अपने रथ में था और ऐसा हुआ कि वे उस क्षेत्र में येहू से मिले जो पहले नाबोत का था!
\v 22 जब योराम ने येहू का सामना किया, तो उसने उससे कहा, "क्या तू मेरे प्रति शान्तिपूर्वक काम करने आया है?"
\p येहू ने उत्तर दिया, " तू और तेरे लोग मूर्तियों के आगे झुक रहे हैं और अपनी माता ईज़ेबेल के समान बहुत जादूगरी का अभ्यास कर रहे हैं, तो शान्ति कैसे हो सकती है?"
\p
\s5
\v 23 योराम रोया, "अहज्याह, उन्होंने हमें धोखा दिया है! वे हमें मारना चाहते हैं!" तो योराम ने अपना रथ को मोड़ा और भागने का प्रयास किया।
\p
\v 24 परन्तु येहू ने धनुष को खींचकर एक तीर को ऐसा मारा कि तीर योराम के कन्धों के बीच योराम के हृदय को छेदता हुआ शरीर से पार हो गया और वह अपने रथ में ही मर गया।
\s5
\v 25 तब येहू ने अपने सहायक बिदकर से कहा, "इसके शव को नाबोत के खेत में फेंक दे। मुझे विश्वास है कि तुझे याद होगा, जब तू और मैं राजा योराम के पिता अहाब के पीछे रथों में एक साथ सवारी कर रहे थे तब यहोवा ने अहाब के विषय में यही कहा था,
\v 26 'कल मैंने अहाब को नाबोत और उसके पुत्रों की हत्या करते हुए यही देखा था। और मैं गम्भीर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं उसे उसी स्थान में दण्ड दूँगा! 'तो योराम के शव को ले और उसे उस स्थान में फेंक दे! इससे यहोवा का कहा पूरा होगा।"
\p
\s5
\v 27 जब राजा अहज्याह ने देखा कि क्या हुआ, तो वह अपने रथ में बारी के भवन नामक (बेथ हैगान) शहर की ओर भाग गया। परन्तु येहू ने उसका पीछा किया और अपने अन्य सरदारों से कहा, "उसे भी मारो!" इसलिए जब वह यिबलाम शहर के निकट गूर के मार्ग पर रथ में जा रहा था तब उन्होंने तीर चलाकर उसे मार डाला, वह अपने रथ में तब तक चलता रहा जब तक कि वह मेगीद्दो शहर तक नहीं पहुँचा, जहाँ वह मर गया।
\v 28 उसके अधिकारी उसके शव को यरूशलेम वापस ले गया और उसे दाऊद के नगर में दफन कर दिया, जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था।
\s5
\v 29 अहज्याह यहूदा का राजा तब बन गया था जब योराम लगभग ग्यारह वर्ष इस्राएल पर शासन कर चुका था।
\p
\s5
\v 30 तब येहू यिज्रेल गया। जब अहाब की विधवा ईज़ेबेल ने सुना कि क्या हुआ है, उसने अपनी आँखों में सुर्मा लगाया, और सुन्दर बनने के लिए अपने बालों को सँवारा, और महल की खिड़की से नीचे की सड़क की ओर देखा।
\v 31 जब येहू शहर के द्वार में प्रवेश कर रहा था, उसने उसे पुकार कर कहा, " तू जिम्री के समान है! तू उसके जैसे हत्यारा है! मुझे लगता है कि तू मेरे लिए शान्तिपूर्वक काम करने के लिए नहीं आ रहा है!"
\p
\v 32 येहू ने खिड़की की ओर देख कर कहा, "मेरी ओर कौन है? कोई है?" दो या तीन महल अधिकारियों ने उसे खिड़की से नीचे देखा।
\s5
\v 33 येहू ने उनसे कहा, "उसे नीचे फेंक दो!"
\p तो उन्होंने उसे नीचे फेंक दिया और येहू ने आदेश दिया कि उसके पुरुष उसके शरीर पर अपने रथ और घोड़े चलाएँ, और इसी प्रकार वह मारी गयी। उसका कुछ खून शहर की दीवार पर और रथ खींच रहे घोड़ों पर लग गया।
\v 34 तब येहू महल में गया और खाया और पिया। तब उसने अपने कुछ लोगों से कहा, "यहोवा से श्रापित स्त्री के शव को ले जाकर दफन कर दे, क्योंकि वह राजा की बेटी है और इसलिए उसे ठीक से दफनाया जाना चाहिए।"
\s5
\v 35 परन्तु जब वे उसके शव को दफनाने के लिए गए, तो जो कुछ बचा था, वह केवल उसकी खोपड़ी और उसके हाथों और पैरों की हड्डियाँ थी। बाकी सब कुछ समाप्त हो गया था।
\v 36 जब उन्होंने येहू को यह बताया, तो उसने कहा, "यहोवा ने यही कहा होगा! उसने अपने दास एलिय्याह से कहा, 'यिज्रेल शहर में, कुत्ते ईज़ेबेल की लाश का माँस खाएँगे।
\v 37 उसकी हड्डियों को यिज्रेल में गोबर के समान बिखरा दिया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी उन्हें पहचानने में सक्षम नहीं होगा कि कहे, "ये ईज़ेबेल की हड्डियाँ हैं।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 राजा अहाब के सत्तर वंशज थे जो सामरिया में रह रहे थे। येहू ने एक पत्र लिखा और इसकी प्रतियां बनाईं और उन्हें शहर के शासकों, वृद्धों और अहाब के बच्चों को प्रशिक्षित करने वालों के पास भेज दिया।
\v 2 उसने उस पत्र में जो लिखा वह यह था: "तू ही वो है जो राजा के वंशजों की देखभाल कर रहा है। तेरे पास रथ, घोड़े और हथियार हैं, और तू उन शहरों में रहता है जिनकी दीवारें हैं। जैसे ही तू इस पत्र को प्राप्त करता है,
\v 3 तब राजा के वंशजों में से एक को चुन, जो सबसे योग्य हो, और उसे अपना राजा बनने के लिए नियुक्त कर। फिर उसे बचाने के लिए लड़ने के लिए तैयार हो जा। "
\p
\s5
\v 4 परन्तु जब उन्हें वे पत्र मिले और उन्हें पढ़ा, तो वे बहुत डर गए। उन्होंने कहा, "राजा योराम और राजा अहज्याह उसका विरोध नहीं कर सके; तो हम उसका विरोध कैसे कर सकते हैं?
\p
\v 5 तो जो महल का और शहर का अधिकारी था, येहू को एक संदेश भेजा, "हम तेरी सेवा करना चाहते हैं, और जो भी तू कहेगा, हम उसे करने के लिए तैयार हैं। हम किसी को भी अपना राजा नियुक्त नहीं करेंगे। तू जो भी सोचता है वह सबसे अच्छा है। "
\p
\s5
\v 6 तब येहू ने उन्हें एक दूसरा पत्र भेजा,: "यदि तू मेरे पक्ष में है, और यदि तू मेरी आज्ञा मानने के लिए तैयार है, तो राजा अहाब के वंशजों को मार डाल और उनके सिर काट दे और कल इस समय यिज्रेल में यहाँ मेरे पास ला।"
\p अब राजा अहाब के सत्तर वंशज सामरिया शहर के अगुवों की देखभाल में थे।
\v 7 जब उन्हें येहू का पत्र मिला तब उन्होंने उनके सिर काट दिये और एक टोकरी में रखकर येहू के पास यिज्रेल में भेज दिये।
\s5
\v 8 एक दूत येहू के पास आया और उससे कहा, "वे अहाब के वंशजों के सिर लाए हैं।" इसलिए येहू ने आज्ञा दी कि सिरों को नगर के द्वार पर दो ढेर में रख दिया जाए और अगली सुबह तक वहीं रहने दिया जाए।
\p
\v 9 अगली सुबह वह शहर के द्वार पर गया और सभी लोगों से कहा, "मैं ही हूँ जिसने राजा योराम के विरुद्ध षड्यंत्र रचा था और उसे मार डाला। तू ऐसा करने के लिए दोषी नहीं है। परन्तु यह यहोवा थे, मैं नहीं, जिन्होंने आज्ञा दी थी कि अहाब के इन सभी वंशजों को मार देना चाहिए।
\s5
\v 10 मैं चाहता हूँ कि तुम जान सको कि यहोवा ने जो कहा था वही हुआ है। जो हुआ वह उन्होंने भविष्यद्वक्ता एलिय्याह से कह दिया था।"
\v 11 तब येहू ने अहाब के सभी सम्बन्धियों को जो यिज्रेल में थे, और अहाब के सब अधिकारियों, घनिष्ट मित्रों और उसके याजकों को मार डाला। उसने उनमें से एक को भी जीवित नहीं छोड़ा।
\p
\s5
\v 12 तब येहू यिज्रेल छोड़ कर सामरिया की ओर चला गया। जब वह वहाँ जा रहा था, तब बेथ-एकेद नामक एक स्थान पर,
\v 13 वह यहूदा के राजा अहज्याह के कुछ सम्बन्धियों से मिला। उसने उनसे पूछा, " तुम कौन हो?"
\p उन्होंने उत्तर दिया, "हम राजा अहज्याह के सम्बन्धी हैं। हम यिज्रेल के पास रानी ईज़ेबेल के बच्चों और राजा योराम के परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने जा रहे हैं।"
\p
\v 14 येहू ने अपने लोगों से कहा, "उन्हें पकड़ो!" इसलिए उन्होंने उन्हें पकड लिया और उन सभी को बेथ-एकद के कुएं में मार डाला। वहां बयालीस लोग मारे गए थे। उन्होंने उनमें से किसी को जीवित नहीं छोड़ा।
\p
\s5
\v 15 तब येहू सामरिया की ओर बढ़ चला। सड़क के साथ वह रेकाब के पुत्र यहोनादाब से मिला। येहू ने उसे बधाई दी और उससे कहा, "क्या तू भी वही सोच रहा है जो मैं सोच रहा हूँ?"
\p यहोनादाब ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं वही सोच रहा हूँ।"
\p येहू ने कहा, "यदि तू वही सोच रहा है, तो मेरे साथ हाथ मिला।" तो यहोनादाब ने उसके साथ हाथ मिलाया और येहू ने उसे अपने रथ पर चढ़ने में सहायता की।
\v 16 येहू ने उससे कहा, "मेरे साथ आ, और तू देखेगा कि मैं यहोवा की आज्ञा मानने के लिए कितना उत्सुक हूँ।" तो वे एक साथ सामरिया चले गए।
\p
\v 17 जब वे सामरिया पहुंचे, तो येहू ने अहाब के सभी सम्बन्धियों को मार डाला जो अभी भी जीवित थे। उन्होंने उनमें से किसी को भी नहीं छोड़ा। यहोवा ने एलिय्याह से यही कहा था।
\p
\s5
\v 18 तब येहू ने सामरिया के सभी लोगों को बुलाया, और उन से कहा, "राजा अहाब अपने देवता बाल को थोड़ा सा समर्पित था, परन्तु मैं उसकी सेवा करूंगा।
\v 19 इसलिए अब बाल के सभी भविष्यवक्ताओं, बाल के पुजारियों और बाल की पूजा करने वाले अन्य सभी लोगों को बुलाओ। मैं बाल को बड़ी बलि चढाने जा रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि वे सभी वहां हों। जो नहीं आएगा उसे मार दिया जाएगा। " परन्तु येहू उन्हें धोखा दे रहा था, क्योंकि वह बाल की पूजा करने वालों की हत्या करने की योजना बना रहा था।
\p
\v 20 तब येहू ने आज्ञा दी, "घोषणा कर कि हम बाल को सम्मानित करने के लिए एक दिन अलग करने जा रहे हैं।" इसलिए उन्होंने उस दिन के विषय में एक घोषणा करवाई।
\s5
\v 21 येहू ने निर्णय लिया कि वे सब किस दिन एकत्र होंगे और पूरे इस्राएल में संदेश भिजवा दिया कि किस दिन इकट्ठा होना है, उस दिन, बाल की पूजा करने वाले सब लोग आए। कोई भी घर पर नहीं रहा। वे सभी बाल के विशाल मंदिर में गए और उसे एक छोर से दूसरे तक भर दिया।
\v 22 येहू ने उस याजक से कहा जो पवित्र वस्त्रों की देखभाल करता था कि वस्त्रों को बाहर निकाले और बाल की पूजा करने वाले लोगों को दे। याजक ने ऐसा ही किया।
\p
\s5
\v 23 तब येहू यहोनादाब के साथ बाल के मंदिर में गया, और उसने उन लोगों से जो बाल की पूजा करने के लिए वहां थे कहा, "सुनिश्चित करो कि केवल बाल की पूजा करने वाले लोग ही हैं। सुनिश्चित करो कि कोई भी जो यहोवा की उपासना करता है, वहाँ तो यहाँ नहीं है । "
\v 24 तब वह और यहोनादाब बाल को बलिदान और अन्य भेंट चढ़ाने के लिए तैयार हुए, जो सामरिया में वेदी पर पूरी तरह से जला दी जाएगी। परन्तु येहू ने मंदिर के बाहर अपने अस्सी पुरुष रखे थे, और उनसे कहा था, "मैं चाहता हूँ कि तुम मंदिर में रहने वाले सभी लोगों को मार डालो। कोई भी जो उन्हें बचकर जाने देता है उसे मार डाला जाएगा!"
\p
\s5
\v 25 जैसे ही येहू और योनादाब ने पशुओं को मारकर पूरी तरह से जला दिया, वे बाहर गए और रक्षकों और अधिकारियों से कहा, "अन्दर जाओ और उन्हें मार डालो! किसी को भी बचकर जाने मत देना! " तो रक्षक और अधिकारी गए और उन्हें अपनी तलवार से सबको मार डाला। तब उन्होंने मंदिर के बाहर लाशों को खींच लिया। तब वे मंदिर के भीतरी कमरे में गए,
\v 26 और उन्होंने बाल के पवित्र खंभे को वहां से निकाल कर जला दिया।
\v 27 इस प्रकार उन्होंने उस खंभे को नष्ट कर दिया जो बाल को सम्मानित करता था, और फिर उन्होंने मंदिर को जला दिया, और इसे एक शौचालय बना दिया। और वह आज तक वैसा ही है।
\p
\v 28 इसी प्रकार येहू ने इस्राएल में बाल की पूजा से छुटकारा पा लिया।
\s5
\v 29 परन्तु येहू ने यारोबाम के पापों का त्याग नहीं किया अर्थात् बेतेल और दान में यारोबाम द्वारा स्थापित सोने के बछड़े की मूर्ति की पूजा की जिसके कारण इस्राएली पाप के भागी हुए थे।
\p
\v 30 तब यहोवा ने येहू से कहा, " तू ने अहाब के वंशजों से छुटकारा पाकर मुझे प्रसन्न किया है। इसलिए मैं तुझसे प्रतिज्ञा करता हूँ कि तेरे पुत्र और पोते और पुत्र के पोते सभी इस्राएल के राजा होंगे । "
\v 31 परन्तु येहू ने इस्राएल के लोगों के परमेश्वर यहोवा के सभी नियमों का पालन नहीं किया। उसने यारोबाम के पापों को करने से नहीं रोका, उन पापों ने इस्राएली लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\p
\s5
\v 32 उस समय, यहोवा ने इस्राएल राज्य को छोटा करना आरंभ कर दिया था। अराम के राजा हजाएल की सेना ने इस्राएली क्षेत्र में से अधिकांश इस्राएली भाग पर विजय प्राप्त कर ली थी।
\v 33 उसने यरदन नदी के पूर्व के भागों को जीत लिया, जहाँ तक दक्षिण में अर्नोन नदी पर अरोएर शहर तक। इसमें गिलाद और बाशान के क्षेत्र थे, जहाँ गाद, रूबेन और मनश्शे के आधे गोत्र रहते थे।
\p
\s5
\v 34 यदि तुम येहू की अन्य सभी बातों को के विषय में अधिक पढ़ना चाहते हो, तो वे इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\p
\v 35 येहू मर गया, और सामरिया में दफनाया गया। उसका पुत्र यहोआहाज अपने पिता के स्थान पर राजा बना।
\v 36 येहू ने सामरिया में इस्राएल के राजा के रूप में होकर अठारह वर्ष तक शासन किया था।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब राजा अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा कि उसका पुत्र मारा गया है, तो उसने आज्ञा दी कि अहज्याह के परिवार के सभी सदस्य जो राजा बन सकते हैं, उन्हें मार डाला जाना चाहिए।
\v 2 जब अहज्याह के पुत्रों की हत्या की जा रही थी। तब यहोशेबा, जो राजा योराम की पुत्री और अहज्याह की सौतेली बहन थी, उसने अहज्याह के सबसे छोटे पुत्र योआश को उसकी धाई के साथ मंदिर में एक शयनकक्ष में छिपा दिया। अतः वह मारा नहीं गया था।
\v 3 वह यहोशेबा के साथ छः वर्षों तक रहा। उस समय, वह अतल्याह के शासन के समय मंदिर में छिपा हुआ था।
\p
\s5
\v 4 छः वर्ष बाद, महायाजक यहोयादा ने राजसी अंगरक्षकों और महल के रक्षकों के सरदारों को बुलाया। उसने उन्हें मंदिर में आने के लिए कहा। वहां उसने उनसे प्रतिज्ञा करवाई और शपथ खिलाई कि वह जो कहेगा वे करेंगे। तब उसने राजा अहज्याह के पुत्र योआश को उन्हें दिखाया।
\v 5 उसने उन्हें ये निर्देश दिए: "तुम्हारे तीन समूह हो। जब एक समूह सब्त के दिन अपना काम पूरा करले, तो अपने आप को तीन छोटे समूहों में विभाजित करो। एक समूह महल की रक्षा करे।
\v 6 दूसरा समूह सुर फाटक पर रुकना चाहिए। दूसरे समूह को अन्य समूहों के पीछे द्वार पर ठहरे।
\s5
\v 7 सब्त के दिन काम नहीं कर रहे दो समूह छोटे राजा योआश की रक्षा करने के लिए मंदिर की रक्षा करे।
\v 8 जहाँ भी राजा योआश जाता है, तुम हथियार लेकर उसके साथ रहना। जो भी तुम्हारे निकट आए उसे मार डालना। "
\p
\s5
\v 9 रक्षकों के सरदारों ने यहोयाद के निर्देशों के अनुसार ही किया। प्रत्येक व्यक्ति अपने अधीन रक्षकों को यहोयादा के पास ले लाए - जो अपनी सेवा कर चुके थे और जो सेवा करने जा रहे थे।
\v 10 याजक ने रक्षकों के सरदारों को मंदिर में रखे राजा दाऊद के भाले और ढाल दे दिये।
\s5
\v 11 तब उसने सभी रक्षकों को अपने अपने स्थानों पर खड़े होने का आदेश दिया, हर एक अपनी तलवार हाथ में लिए हुए, राजा के चारों ओर रहे।
\p
\v 12 तब वह योआश को बाहर लाया। उसने उसके सिर पर मुकुट रख दिया और उसे एक लपेटा हुआ पत्र दिया जिस पर नियमों को लिखा गया था राजा को जिनका पालन करने की आवश्यकता थी। तब उसने योआश के सिर पर कुछ जैतून का तेल डाला और घोषणा की कि वह अब राजा है। सब लोगों ने अपने तालियाँ बजाई और चिल्लाए, "राजा सदा जीवित रहे!"
\p
\s5
\v 13 जब अतल्याह ने रक्षकों और अन्य लोगों द्वारा किए गए शोर को सुना, तो उस मंदिर में आई जहाँ लोग इकट्ठे हुए थे।
\v 14 उसने देखा कि नया राजा वहां एक बड़े खंभे के साथ खड़ा है, मंदिर का वह स्थान जहाँ राजा प्रायः खड़े होते थे। उसने देखा कि वह मंदिर के अधिकारियों से घिरा हुआ था, और लोग आनन्द से चिल्ला रहे थे, और उनमें से कुछ तुरही बजा रहे थे। उसने अपनी परेशानी दिखने के लिए अपने कपड़े फाड़े और चिल्लाई, " तू धोखेबाज है! तूने मुझे धोखा दिया है!"
\s5
\v 15 यहोयादा ने तुरंत कहा, "उसे मार डालो, परन्तु यहोवा के मन्दिर में ऐसा मत करो! उसे रक्षकों की उन दो पंक्तियों के बीच ले जाओ। और उसे बचाने का प्रयास करने वाले को भी मार डालो!"
\v 16 उसने भागने का प्रयास किया, परन्तु रक्षकों ने उसे पकड़ लिया और उसे महल में वहाँ ले गये, जहाँ घोड़े आंगन में प्रवेश करते थे। उन्होंने उसे वहां मार डाला।
\p
\s5
\v 17 तब यहोयादा ने राजा और लोगों के बीच एक वाचा बान्धी, कि वे सदा यहोवा की आज्ञा मानें। उन्होंने एक और वाचा बांधी कि प्रजा योआश राजा के प्रति निष्ठावान रहे।
\v 18 तब इस्राएल के सब लोग बाल के मंदिर गए और उसे तोड़ दिया। उन्होंने बाल की वेदियों और मूर्तियों को तोड़ दिया। उन्होंने वेदी के सामने बाल के पुजारी मत्तान को भी मार डाला।
\p यहोयादा ने यहोवा के मन्दिर में रक्षक नियुक्त कर दिये।
\s5
\v 19 तब वह और मंदिर के अधिकारी तथा राजसी अंगरक्षकों के सरदार और राजा के अंगरक्षक राजा को मंदिर से निकाल कर महल में लाए। सभी लोग उनके पीछे चले थे। योआश ने रक्षकों के फाटक से होकर महल में प्रवेश किया और सिंहासन पर बैठ गया, जहाँ राजा हमेशा बैठते थे।
\v 20 यहूदा के सभी लोग आनन्दित हुए। और क्योंकि अतल्याह की हत्या हो गई थी, शहर शांत था।
\p
\s5
\v 21 योआश सात वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना।
\s5
\c 12
\p
\v 1 जब योआश यहूदा का राजा बन गया तब येहू लगभग सात वर्ष तक इस्राएल पर शासन कर चुका था। उसने चालीस वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी मां सिब्या, बेर्शेबा शहर से थी।
\v 2 योआश जब तक जीवित रहा, उसने यहोवा को प्रसन्न किया, क्योंकि यहोयादा याजक ने उसे निर्देश दिये थे।
\v 3 परन्तु देश के अन्य स्थान जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, वे नष्ट नहीं किये गये। उन्होंने उन स्थानों पर बलि चढ़ाई और धूप जलाई, अपेक्षा उस स्थान के जिसे यहोवा ने यरूशलेम में उनके लिए चुना था।
\p
\s5
\v 4 योआश ने याजकों से कहा, " तुम वह सब पैसा ले लो जो लोगों के लिए देना अनिवार्य है और वह पैसा भी ले लो जो वे अपनी इच्छा से देना चाहते हैं कि मंदिर के लिए सामान खरीदने हेतु पवित्र भेंट ठहरें।
\v 5 प्रत्येक याजक उसके पास आनेवाले उपासकों के पैसे ले, और उन्हें मंदिर की टूट-फुट सुधरने के लिए काम में लें। "
\p
\s5
\v 6 परन्तु योआश के शासन के तेइसवे वर्ष तक, याजकों ने मंदिर में कहीं कुछ भी टूट-फुट ठीक नहीं की थी।
\v 7 तब योआश ने यहोयादा और अन्य याजकों को बुलाया और उन से कहा, "तुम मंदिर में टूट-फुट क्यों नहीं सुधार रहे हो? लोगों से और अधिक कर मत लो। मंदिर के रख-रखाव के लिए जो पैसा लिया जा चुका है वह पैसा मजदूरों को दे दो कि वे सुधार का काम करें। "
\v 8 याजक ऐसा करने के लिए सहमत हुए, और वे इस पर भी सहमत हुए कि वे स्वयं मरम्मत कार्य नहीं करेंगे।
\p
\s5
\v 9 तब यहोयादा ने एक सन्दूक लेकर उसमें एक छेद कर दिया। उसे उसने धूप जलाने की वेदी के पास रख दिया। वह मंदिर में प्रवेश करनेवालों की दाहिनी ओर होता था। मंदिर के प्रवेशद्वार की रक्षा करने वाले याजक उपासको द्वारा लाए जाने वाले दान को उस सन्दूक में डाल देते थे।
\v 10 जब वे देखते कि उस सन्दूक में बहुत पैसा हो गया तब सचिव और महायाजक आकर पैसों को गिनते और उसे थैलों में भरकर मुहर बंद कर देते।
\s5
\v 11 तब वह पैसा मंदिर का सुधार करने वालों के सरदारों में बाँट दिया जाता और वे उस पैसे को लकड़ी का काम करनेवालों और मिस्त्रियों को दे देते परन्तु उनसे लेखा नहीं लेते क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे,
\v 12 उनमें राजमिस्त्री और पत्थर काटनेवाले भी थे।इसके अतिरिक्त कुछ पैसा लकड़ी और पत्थरों को खरीदने और सुधार कार्य के अन्य खर्चों में भी काम आता था।
\s5
\v 13 परन्तु उन्होनें चाँदी के कटोरों या दीपक की चिमटियों या तसले या तुरही या मंदिर में काम आने वाली चाँदी या सोने से बने अन्य किसी भी सामान के लिए उस पैसे को काम में नहीं लिया।
\p
\v 14 वह सब पैसा उन लोगों को दिया गया जो मंदिर को सुधरने का काम कर रहे थे।
\s5
\v 15 जो लोग काम की देखरेख करते थे वे सदा सच्चाई से काम करते थे, इसलिए राजा के सचिव और महायाजक को देखरेख करने वालों से कभी भी यह लेखा लेने की आवश्यक्ता नहीं पड़ी कि उन्होंने पैसे कहाँ कहाँ खर्च किए।
\v 16 परन्तु जो पैसा लोग अपने पापों की बलि के लिए देते थे वह सन्दूक में नहीं डाला जाता था। वह पैसा याजकों का होता था।
\p
\s5
\v 17 उस समय, अराम के राजा हजाएल ने अपनी सेना के साथ गत शहर पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। तब उसने निर्णय लिया कि वह यरूशलेम पर आक्रमण करेगा।
\v 18 तब यहूदा के राजा योआश ने पिछले राजा यहोशापात और यहोराम और अहज्याह द्वारा यहोवा को समर्पित किया गया सब पैसा तथा बढ़ता कुछ पैसा और बहुमूल्य वस्तुओं के भण्डारगृह से सब सोना लेकर राजा हजाएल को भिजवा दिया। कि उसे यरूशलेम पर आक्रमण करने से रोके। तो राजा हजाएल अपनी सेना लेकर यरूशलेम से चला गया।
\p
\s5
\v 19 यदि तुम योआश के कामों के विषय में अधिक जानना चाहते हो, तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 20-21 योआश के अधिकारियों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा और उनमें से दो ने सिल्ला जाने वाले मार्ग पर योआश को मार डाला। ये दोनों, शिमात का पुत्र योजाकार और शोमेर का पुत्र यहोजाबाद था। योआश को उस स्थान पर दफनाया गया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था, यरूशलेम में दाऊद के शहर में। तब योआश का पुत्र अमस्याह यहूदा का राजा बन गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 योआश लगभग तेईस वर्ष तक यहूदा पर शासन कर चुका तब, येहू का पुत्र यहोआहाज इस्राएल का राजा बन गया। उसने सत्रह वर्ष तक सामरिया शहर में शासन किया।
\v 2 उसने बहुत से काम किये जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बुरे हैं और उसी प्रकार के पाप किए जो यारोबाम ने किए थे, ऐसे पाप जो इस्राएलियों को भी पाप करने के लिए प्रेरित करते थे। वह उन पापों को करने से नहीं रुका।
\s5
\v 3 तब यहोवा इस्राएलियों से बहुत क्रोधित हो गये, और उन्होंने अराम के राजा हजाएल और उसके पुत्र बेन्हदद की सेना को कई बार इस्राएलियों को पराजित करने भेजा।
\p
\v 4 तब यहोआहाज ने यहोवा से रोकर प्रार्थना की, और यहोवा ने उसकी विनती सुनी, क्योंकि उन्होंने देखा कि अराम के राजा की सेना इस्राएलियों पर अंधेर कर रही थी।
\v 5 यहोवा ने इस्राएल को एक अगुवा दिया, जिसने उन्हें अराम की शक्ति से मुक्त करवाया। उसके बाद, इस्राएली पहले के समान शांतिपूर्वक रहने लगे।
\s5
\v 6 परन्तु वे वही पाप करते रहे जो यारोबाम और उसके परिवार ने किये थे, जिनके कारण इस्राएली भी पाप में गिरे थे। इसके अतिरिक्त, देवी अशेरा की मूर्ति सामरिया में बनी रही।
\p
\v 7 यहोआहाज के पास केवल पचास पुरुष थे जो घोड़ों पर युद्ध करते थे और दस रथों पर और दस हजार अन्य सैनिक थे, क्योंकि अराम की सेना ने बाकी सबको पैरों तले रौंद कर मार डाला था।
\p
\s5
\v 8 यदि तुम यहोयाहाज के सब कामों के विषय में जानना चाहते हो, तो इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में इसके विषय में पढ़ सकते हो।
\v 9 यहोआहाज की मृत्यु हो गई और उसे सामरिया में दफनाया गया। तब उसके स्थान पर उसका पुत्र योआश राजा बना।
\p
\s5
\v 10 यहोआहाज का पुत्र यहोआश जब इस्राएल का राजा बना तब राजा योआश यहूदा में सैंतीस वर्ष शासन कर चुका था। योआश ने सामरिया में सोलह वर्ष तक शासन किया।
\v 11 उसने बहुत से काम किये जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बुरे हैं। उसने मूर्तियों की पूजा करना बंद करने से मना कर दिया, यह वह पाप था जो कई वर्षों से राजा यारोबाम की प्रेरणा से इस्राएली लोगों को पाप में धकेल रहा था।
\p
\s5
\v 12 योआश राजा के समय के अन्य काम इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं। उस वृतांत में उसकी सेना की जीत और यहूदा के राजा अमस्याह की सेना के साथ युद्ध का वर्णन लिखा गया है।
\v 13 जब योआश की मृत्यु हो गई, तो उसे सामरिया में दफनाया गया जहाँ इस्राएल के अन्य राजाओं को दफनाया गया। तब उसका पुत्र यारोबाम राजा बना।
\p
\s5
\v 14 तब एलीशा बहुत बीमार हो गया। उसकी मृत्यु से ठीक पहले, राजा यहोआश एलीशा के पास गया और उसके सामने रोया। और उन्ही शब्दों को दोहराया जिन्हें एलीशा ने तब कहे थे जब एलिय्याह स्वर्ग में उठाया गया था, "हे मेरे पिता! इस्राएल के रथ और उनके चालक मेरे स्वामी को दूर ले गये हैं!"
\p
\v 15 एलीशा ने उससे कहा, "एक धनुष और कुछ तीर लेकर आ!" तो राजा ने ऐसा किया।
\v 16 तब एलीशा ने राजा को धनुष हाथ में उठाने और तीरों को चलाने के लिए तैयार होने को कहा। और फिर एलीशा ने अपने हाथों को राजा के हाथों पर रखा।
\p
\s5
\v 17 तब एलीशा ने उससे कहा, "किसी से कह कर पूर्व दिशा की खिड़की खुलवा।" तो एक सेवक ने उसे खोला। तब एलीशा ने कहा, "तीर चला!" तो राजा ने वैसा किया। तब एलीशा ने कहा, "यह तीर दर्शाता है कि तेरी सेना अराम की सेना को पराजित करेगी। तेरी सेना अपेक शहर की सेना को पराजित करेगी।"
\p
\v 18 तब एलीशा ने कहा, "दूसरे तीरों को उठा और भूमि पर मर!" तो राजा ने तीर उठाए और भूमि पर तीन बार मारा।
\v 19 एलीशा उससे क्रोधित हो गया। उसने कहा, "तुझे कम से कम पांच या छह बार भूमि पर तीर मारने थे! यदि तू ने ऐसा किया होता, तो तेरी सेना अराम की सेना को तब तक मारती जब तक वे पूरी तरह से मिट नहीं जाती! परन्तु अब, क्योंकि तू ने भूमि पर केवल तीन बार मारा, इसलिए तेरी सेना उन्हें केवल तीन बार ही पराजित कर पाएगी! "
\p
\s5
\v 20 तब एलीशा की मृत्यु हो गई और उसे दफनाया गया।
\p मोआब के दल प्रतिवर्ष वसंत ऋतु के समय इस्राएल पर आक्रमण करते थे।
\v 21 एक वर्ष, जब कुछ इस्राएली लोग एक व्यक्ति के शव को दफन कर रहे थे, तो उन्होंने उन हमलावरों के एक समूह को देखा। वे डर गए थे, इसलिए उन्होंने उस व्यक्ति के शव को उस कब्र में फेंक दिया जहाँ एलीशा को दफनाया गया था, और वे भाग गए।
\p परन्तु जैसे ही उस व्यक्ति का शव, एलीशा की हड्डियों से छुआ, मृत व्यक्ति फिर से जीवित हो गया और कूद कर बाहर आ गया!
\p
\s5
\v 22 यहोआहाज के पुरे जीवन में अराम का राजा हजाएल ने इस्राएलियों को सताने के लिए सैनिक भेजे।
\v 23 परन्तु यहोवा इस्राएलियों के प्रति बहुत दयालु थे। उन्होंने उन वाचाओं के कारण उनकी सहायता की जो उन्होंने उनके पूर्वजों अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ किए थे। वह इस्राएलियों का त्याग नहीं करेंगे, और उन्होंने अभी भी उनका त्याग नहीं किया है।
\p
\v 24 तब अराम के राजा हजाएल की मृत्यु हो गई, तो उसका पुत्र बेन्हदद राजा बन गया।
\v 25 इस्राएल के राजा यहोआश की सेना ने राजा बेन्हदद की सेना को तीन बार पराजित किया; उसने उन सब शहरों को वापस ले लिया जिन पर बेन्हदद की सेना ने तब अधिकार कर लिया था जब यहोआश का पिता यहोआहाज इस्राएल पर शासन कर रहा था।
\s5
\c 14
\p
\v 1 योआश इस्राएल पर लगभग दो वर्षों तक शासन कर चुका, तब योआश का पुत्र अमस्याह यहूदा का राजा बना।
\v 2 जब उसने शासन करना आरम्भ किया, तब वह पच्चीस वर्ष का था, और उसने यरूशलेम में पच्चीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम यहोअद्दान था। वह यरूशलेम की थी।
\v 3 अमस्याह ने बहुत से काम किये जो यहोवा को प्रसन्न करते थे, परन्तु उसने राजा दाऊद के समान यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम नहीं किये थे अपने पिता योआश के समान उसने भी अच्छे काम किये थे।
\s5
\v 4 परन्तु अपने पिता के समान, उसने यहोवा की उपासना के अन्य स्थानों को नहीं गिराया। लोग यहोवा के नियुक्त स्थान को छोड़ कर उन स्थानों में यहोवा का सम्मान करने के लिए धूप जलाते थे।
\p
\v 5 जब उसका राज्य पूर्णरूप से उसके नियंत्रण में आ गया, तब उसने अपने कर्मचारियों से अपने पिता के हत्यारे अधिकारियों को मरवा दिया।
\s5
\v 6 परन्तु उसने अपने कर्मचारियों को उन अधिकारियों की सन्तानों को मारने की आज्ञा नहीं दी। उसने मूसा को दिए गए परमेश्वर के कानूनों में जो लिखा था, उनका पालन किया, "माता-पिता के अपराध के लिए सन्तान को मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाये।"
\p
\v 7 अमस्याह के सैनिकों ने मृत सागर के दक्षिण में नमक की घाटी में दस हजार एदोमी सैनिकों की हत्या कर दी, और सेला शहर पर अधिकार कर लिया और इसे एक नया नाम दिया, योक्तेल। अभी भी इसका यही नाम है।
\p
\s5
\v 8 तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा यहोआश के पास दूत भेजे, और कहा, "आ और हम और हमारी सेनाएं युद्ध में एक-दूसरे से लड़ें।"
\p
\v 9 परन्तु इस्राएल के राजा यहोआश ने राजा अमस्याह को इस दृष्टांत के साथ उत्तर दिया: "एक बार लबानोन के पहाड़ों में एक कांटेदार झाड़ी ने देवदार के एक पेड़ को यह संदेश भेजा, 'अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से कर दे।' उसी समय लबानोन में एक जंगली पशु वहाँ से निकला और उस कांटेदार झाड़ी को रौंद दिया। "
\v 10 जो मैं कह रहा हूँ उसका अर्थ यह है कि तेरी सेना ने एदोम की सेना को पराजित कर दिया है, इसलिए तू बहुत घमंड कर रहा है। तू उसी में संतुष्ट रह और अपने सैनिकों से कह कि घर में ही रहें। यदि तू हमसे युद्ध करके परेशानी उत्पन्न करेगा तो, अपने लोगों के विनाश का कारण तू ही होगा। "
\p
\s5
\v 11 परन्तु अमस्याह ने यहोआश के संदेश पर ध्यान नहीं दिया। तब यहोआश और अमस्याह ने अपनी-अपनी सेना लेकर यहूदा के बेतशेमेश आए, और वहां उनकी सेनाएं एक-दूसरे से युद्ध करने के लिए इकट्ठी हुईं।
\v 12 इस्राएलियों की सेना ने यहूदा की सेना को पराजित कर दिया, और यहूदा के सभी सैनिक भाग कर घर वापस आ गए।
\s5
\v 13 यहोआश की सेना ने राजा अमस्याह को भी पकड़ लिया, और वे यरूशलेम गए और एप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक शहर के चारों ओर की दीवार को तोड़ दिया। वह 180 मीटर लंबा दीवार का एक भाग था।
\v 14 यहोआश के सैनिकों ने सभी सोना और चाँदी लूट लिया, जो मंदिर में था, और महल की सभी मूल्यवान वस्तुएँ सामरिया ले गए। वह कुछ कैदियों को लेकर सामरिया चला गया कि सुनिश्चित करे कि अमस्याह उन्हें और अधिक परेशानी न पहुंचाए।
\p
\s5
\v 15 यदि तुम राजा यहोआश के कामों को और अधिक जानना चाहते हो और यहूदा के राजा अमस्याह के साथ उसके और उसकी सेना के युद्ध के विषय में पढना चाहते हो तो उनका वर्णन इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं ।
\v 16 यहोआश की मृत्यु हो गई, और उसे सामरिया में दफनाया गया, जहाँ इस्राएल के अन्य राजाओं को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र यारोबाम राजा बना।
\p
\s5
\v 17 यहूदा का राजा अमस्याह इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के पंद्रह वर्ष तक जीवित रहा।
\v 18 यदि तुम अमस्याह के कामों के विषय में और अधिक जानना चाहते हो, तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\v 19 यरूशलेम के कुछ लोगों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा, इसलिए वह लकीश शहर में भाग गया। परन्तु वे वहां भी उसके पीछे गए और उसे मार डाला।
\s5
\v 20 वे उसके शव को यरूशलेम ले गये और दाऊद के शहर में उसे दफनाया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था।
\p
\v 21 तब यहूदा के सभी लोगों ने अजर्याह को राजा नियुक्त किया, जिसका पिता अमस्याह था, और वह 16 वर्ष की आयु में उनका राजा बन गया।
\v 22 अजर्याह के पिता अमस्याह की मृत्यु के बाद, अजर्याह की सेना ने एलात शहर पर अधिकार कर लिया, और वह फिर यहूदा के नियंत्रण में आया।
\p
\s5
\v 23 जब अमस्याह लगभग पंद्रह वर्ष यहूदा पर शासन कर चुका, तब यारोबाम इस्राएल का राजा बना। उसने सामरिया शहर में इकतालीस वर्ष शासन किया।
\v 24 उसने बहुत से काम किये जो यहोवा की दृष्टी में बुरे थे। उसने उन पापों का अंत नहीं किया जो नबात के पुत्र यारोबाम ने आरम्भ किये थे और इस्राएलियों को पाप करने के लिए प्रेरित किया था।
\v 25 यारोबाम के सैनिकों ने उत्तर में हमात से लेकर दक्षिण में मृत सागर तक के क्षेत्र पर विजय प्राप्त की, ये क्षेत्र पहले इस्राएल के ही थे। यहोवा जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, उन्होंने अमित्तै के पुत्र अपने दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा यही प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 26 ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहोवा ने देखा कि इस्राएलियों के शत्रु इस्राएलियों को बहुत कष्ट दे रहे थे। और वहां कोई भी नहीं था जो उनकी सहायता करे।
\v 27 परन्तु यहोवा ने कहा कि वह इस्राएल को पूरी तरह से नाश नहीं करेंगे, इसलिए उन्होंने राजा यारोबाम को बचाने के लिए समर्थ किया।
\p
\s5
\v 28 यदि तुम यारोबाम के सब कामों के विषय में और जानना चाहते हो, कि वह युद्ध में साहसपूर्वक कैसे लड़ा, और कैसे उसने इस्राएलियों को दमिश्क और हमात के शहरों को फिर से लेने में सक्षम बनाया, तो वह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखे गए हैं।
\v 29 यारोबाम की मृत्यु हो गई, और उसे इस्राएल के अन्य राजाओं के कब्रस्थान में दफनाया गया, और उसका पुत्र जकर्याह उसके स्थान पर राजा बना।
\s5
\c 15
\p
\v 1 इस्राएल के राजा यारोबाम के सताईसवें वर्ष तक शासन करने के बाद यहूदा के राजा अमस्याह के पुत्र अजर्याह ने शासन करना आरम्भ कर दिया।
\v 2 जब उसने शासन करना आरम्भ किया, तब वह सोलह वर्ष का था, और उसने बावन वर्ष तक यरूशलेम पर शासन किया। उसकी माता यकोल्याह थी। वह यरूशलेम से थी।
\v 3 उसने वह काम किये जिनसे यहोवा प्रसन्न थे, जैसा कि उसके पिता अमस्याह ने किया था।
\s5
\v 4 परन्तु उच्च स्थान जहाँ लोग मूर्तिपूजा करते थे वे नष्ट नहीं किये थे। वे मूर्तियों की पूजा में धूप जलाते रहे।
\p
\v 5 यहोवा ने अजर्याह को कुष्ठ रोगी बना दिया और वह शेष जीवन में रोगी ही रहा। उसे महल में रहने की अनुमति नहीं थी। वह अकेले घर में रहता था, और उसके बेटे योताम ने देश पर शासन किया था।
\p
\s5
\v 6 यदि तुम अजर्याह के सभी कामों के विषय में जानना चाहते हैं, तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 7 अजर्याह की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम में दाऊद के शहर में दफनाया गया, जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र योताम राजा बन गया।
\p
\s5
\v 8 यहूदा के राजा अजर्याह के लगभग अड़तीस वर्ष तक शासन करने के बाद यारोबाम का पुत्र जकर्याह इस्राएल का राजा बना। उसने सामरिया शहर में केवल छः महीने तक शासन किया।
\v 9 उसने बहुत से काम किये जो यहोवा ने कहा था, बुरे हैं, जैसे उसके पूर्वजों ने किया था। उसने उसी प्रकार के पाप किए जो पहले नबात के पुत्र यारोबाम ने किए थे, ऐसे पाप जो इस्राएली लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित करते थे।
\p
\s5
\v 10 तब याबेश के पुत्र शल्लूम ने विद्रोह करके जकर्याह की हत्या करने की योजना बनाई। उसने इबलाम शहर में उसे मार डाला, और वह राजा बन गया।
\v 11 जकर्याह ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 12 जब जकर्याह की मृत्यु के साथ राजा येहू का वंश समाप्त हो गया। राजा येहू के साथ यहोवा ने जो कहा वह पूरा हुआ, "तेरे पुत्र और पोते और परपोते इस्राएल के राजा होंगे।"
\p
\s5
\v 13 याबेश का पुत्र शल्लूम जब राजा बना तब अमस्याह के यहूदा पर लगभग उनतालीस वर्ष तक शासन कर चुका था। परन्तु शल्लूम सामरिया में केवल एक महीने तक राज कर पाया।
\v 14 तब गादी का पुत्र मनहेम, तिर्सा शहर से सामरिया गया और शल्लूम की हत्या कर दी। तब मनहेम इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 15 शल्लूम ने जो कुछ भी किया, उसके द्वारा राजा जकर्याह की हत्या आदि का वर्णन इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\v 16 उस समय मनहेम ने तिर्सा शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और तिर्सा के आसपास के क्षेत्र के सब लोगों को मार डाला। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उस शहर के लोगों ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया था। उसने अपनी तलवार से वहां रहने वाली गर्भवती स्त्रीयों के पेट भी फाड़ दिये।
\p
\s5
\v 17 जब राजा अजर्याह लगभग उनतालीसवें वर्ष तक यहूदा पर शासन कर चुका, तब गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल का राजा बना था। उसने सामरिया में दस वर्ष तक शासन किया।
\v 18 उसने बहुत से काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उसने उसी प्रकार के पाप किए जो राजा यारोबाम ने किए थे, जिन पापों ने इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया। उसने अपने पुरे जीवन भर पाप किये।
\p
\s5
\v 19 तब अश्शूरों का राजा (जिसे तिग्लत्पिलेसेर भी कहा जाता है) इस्राएल पर हमला करने के लिए अपनी सेना के साथ आया। इसलिए मनहेम ने उसे लगभग हजार किक्कार चाँदी दी ताकि अश्शूर का राजा मेनहेम को राजा बने रहने और अपने देश पर अधिक दृढ़ता से शासन करने में सहायता करे।
\v 20 मेनहेम ने इस्राएल में समृद्ध पुरुषों को वह धन प्राप्त किया। उसने उन प्रत्येक से शेकेल पचास-पचास शेकेल चाँदी का योगदान देने के लिए विवश किया। तो तिग्लत्पिलेसेर ने वह पैसा लिया और अपने देश लौट गया।
\p
\s5
\v 21 यदि तुम मनहेम के कामों के विषय में अधिक जानना चाहते हो, तो यह सब इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 22 मनहेम की मृत्यु हो गई और उसे दफनाया गया, और उसका पुत्र पकहयाह इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\s5
\v 23 जब राजा अजर्याह लगभग पचास वर्षों तक यहूदा पर शासन कर चुका था, तब मनहेम का पुत्र पकहयाह इस्राएल का राजा बन गया। उसने सामरिया में केवल दो वर्ष तक राज किया।
\v 24 उसने बहुत से ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उसने भी उसी प्रकार के पाप किए जो राजा यारोबाम ने किए थे, उन्हीं पापों ने इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\s5
\v 25 तब पकहयाह के सेनापति रमल्याह के पुत्र पेकह ने पकहयाह और उसके दो सहायकों, अर्गोब और अर्ये को मारने के लिए गिलाद के क्षेत्र से पचास पुरुषों के साथ योजना बनाई। उसने सामरिया में राजा के महल में एक सशक्त स्थान पर राजा की हत्या कर दी और तब पेकह राजा बन गया।
\p
\v 26 पकहयाह ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\s5
\v 27 जब राजा अजर्याह लगभग बावन वर्ष तक यहूदा पर शासन कर चुका था, तब रमल्याह का पुत्र पेकह इस्राएल का राजा बन गया। उसने सामरिया में बीस वर्ष तक शासन किया।
\v 28 उसने कई ऐसे काम भी किए जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उसने उसी प्रकार के पाप किए जो राजा यारोबाम ने किए थे, इस्राएल के लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\p
\s5
\v 29 जब पेकह राजा था, तब अश्शूर का राजा तिग्लत्पिलेसेर अपनी सेना के साथ आया और इय्योन, आबेल्वेत्माका, यानोह, केदेश और हासोर नामक नगरों तथा गिलाद और गलील, वरन् नप्ताली के सम्पूर्ण क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। उनकी सेना ने इस्राएली लोगों को अपना देश छोड़ने और अश्शूर में रहने के लिए विवश कर दिया।
\p
\v 30 तब एला के पुत्र होशे ने पेकह को मारने का षड्यंत्र रचा। और उसकी हत्या करके राजा बन गया। उस समय अमस्याह का पुत्र योताम यहूदा पर लगभग बीस वर्ष राज कर चुका था। तब होशे इस्राएल का राजा बन गया।
\p
\v 31 पेकह ने जो कुछ भी किया वह इस्राएल के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\p
\s5
\v 32 जब पेकह लगभग दो वर्षों तक इस्राएल पर शासन कर चुका, तब उज्जियाह का पुत्र योताम ने यहूदा पर शासन करना आरंभ कर दिया।
\v 33 जब वह शासन करने लगा, तो वह पच्चीस वर्ष का था, और उसने सोलह वर्ष तक यरूशलेम पर शासन किया। उसकी मां सादोक की पुत्री यरूशा थी।
\s5
\v 34 उसने कई काम किए जो यहोवा को प्रसन्न करते थे, जैसे उसके पिता अजर्याह ने किया था।
\v 35 परन्तु उसने उन स्थानों को नष्ट नहीं किया जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, और यहोवा का आदर करने के लिए धूप जलाते रहे। योताम के श्रमिकों ने मंदिर के ऊपरी द्वार का निर्माण किया।
\p
\v 36 यदि तुम योताम ने जो कुछ भी किया, उसके विषय में और जानना चाहते हो, तो यह यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 37 उस समय जब योताम राजा था, यहोवा ने अराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा पेकह को यहूदा पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेनाओं के साथ भेजा।
\v 38 योताम की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम में दाऊद के शहर में दफनाया गया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना।
\s5
\c 16
\p
\v 1 जब योताम का पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना तब पेकह लगभग सत्रह वर्ष तक इस्राएल पर शासन कर चुका था।
\v 2 जब वह यहूदा का राजा बना तब वह बीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम पर सोलह वर्ष शासन किया। उसने उन कामों को नहीं किया जो यहोवा परमेश्वर को प्रसन्न करते थे, जैसा उसके पूर्वज राजा दाऊद ने किया था।
\s5
\v 3 इसकी अपेक्षा, वह पापपूर्ण रहा जैसे इस्राएल के बाकि राजा रहे थे। उसने अपने बेटे को मूर्तियों को चढ़ाए जाने के लिए बलि कर दिया। उसने उन लोगों के घृणित कामों का अनुकरण किया जो लोग पहले वहां रहते थे, जिन लोगों को यहोवा ने इस्राएलियों के आगमन के समय बाहर निकाला था।
\v 4 उसने यहोवा के आदेश के अनुसार यरूशलेम कि अपेक्षा कई पहाड़ियों के ऊपर और कई बड़े पेड़ों के नीचे कई अलग-अलग स्थानों पर यहोवा का आदर करने के लिए बलि चढ़ाई और धूप जलाई।
\p
\s5
\v 5 तब अराम का राजा रसीन अपनी सेना के साथ आया, और उस समय पेकह (जो इस्राएल के राजा रमल्याह का पुत्र था) भी अपनी सेना के साथ आया, और एक साथ उनकी सेना यरूशलेम पर आक्रमण करने के लिए आई, परन्तु राजा आहाज ने शहर की रक्षा करने के लिए एक लड़ाई का नेतृत्व किया। सेनाओं ने शहर को घेर लिया, परन्तु वे उसे जीत नहीं पाए।
\v 6 उस समय अराम के राजा रसीन की सेना ने एलात शहर को अपने अधीन करके यहूदा के लोगों को वहाँ से बाहर निकाला। यही वह समय था जब अराम के कुछ लोगों ने एलात में रहना आरम्भ किया था, और वे अभी भी वहां रह रहे हैं।
\p
\s5
\v 7 राजा आहाज ने अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर को यह संदेश देने के लिए दूत भेजे: "मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं वही करूँगा जो कुछ तू मुझे करने के लिए कहेगा, जैसे कि मैं तेरा पुत्र हूँ। कृपया आ और अराम और इस्राएल की सेनाएं जो मेरे देश पर हमला कर रही हैं, उनसे हमें बचा।"
\v 8 आहाज ने महल और मंदिर में से सब चाँदी और सोना लेकर अश्शूर के राजा को देने के लिए भेज दिया।
\v 9 तब तिग्लत्पिलेसेर ने अहाज का निवेदन स्वीकार करके अपनी सेना के साथ दमिश्क को जीत लिया और दमिश्क के निवासियों को बंधी बनाकर अपनी राजधानी में रहने के लिए ले गया।
\p
\s5
\v 10 जब राजा आहाज राजा तिग्लत्पिलेसेर से मिलने के लिए दमिश्क गया, तो उसने वहां की वेदी देखी। इसलिए उसने यरूशलेम के महायाजक ऊरिय्याह को उस वेदी का एक नक्शा भेजा जो दमिश्क की वेदी का प्रतिनिधित्व करता था।
\v 11 तब ऊरिय्याह ने राजा आहाज के यरूशलेम लौटने से पूर्व उस वेदी का निर्माण कर दिया।
\v 12 जब राजा दमिश्क से लौट आया, तो उसने वेदी देखी।
\s5
\v 13 वह उस पर चढ़ गया और उस पर पशुबलि और अन्नबलि चढाई। उसने उस पर दाखमधु चढ़ाया और परमेश्वर से मेल करने के लिए उस पर लहू छिड़का।
\v 14 पुरानी पीतल की वेदी जो यहोवा को बहुत पहले समर्पित की गयी थी, नई वेदी और मंदिर के बीच थी, इसलिए आहाज ने उसे अपनी नई वेदी के उत्तर की ओर कर दिया।
\p
\s5
\v 15 तब राजा आहाज ने ऊरिय्याह को आदेश दिया: "हर सुबह इस नई वेदी पर होमबलि जलाना, और शाम को अन्नबलि और राजा की होमबलि तथा साधारण लोगों की होमबलि और मेरा अन्नबलि तथा लोगों की अन्नबलि और दाखमधु का अर्घ आदि सब चढ़ाना, इसी वेदी पर सब बलियों का लहू छिड़कना पीतल की वेदी केवल मेरे लिए परमेश्वर की इच्छा जानने के लिए होगी। "
\v 16 तब ऊरिय्याह ने राजा की आज्ञा के अनुसार किया।
\p
\s5
\v 17 राजा आहाज ने अपने कर्मचारियों से कहा कि वे मंदिर के बाहर कुर्सियों की पटरियों को हटा कर हौदियों को नीचे रख दो। उन्होंने "सागर" नामक बड़ी पीतल की हौदी को बैलों पर से उतार कर फर्श पर रख दिया।
\v 18 तब अश्शूर के राजा को प्रसन्न करने के लिए, आहाज ने उन्हें उस छत के मंदिर से हटा दिया जिसके नीचे लोग सब्त के दिन मंदिर में चलते थे, और यहूदा के राजाओं के लिए मंदिर में निजी प्रवेश द्वार बंद कर दिया।
\p
\s5
\v 19 यदि तुम अहाज के अन्य कामों के विषय में जानना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 20 आहाज की मृत्यु हो गई, और उसे उसके पूर्वजों के कब्रस्थान में यरूशलेम के दाऊद के शहर में दफनाया गया। तब उसका पुत्र हिजकिय्याह राजा बन गया।
\s5
\c 17
\p
\v 1 राजा आहाज के यहूदा पर शासन करने के बारह वर्ष बाद एला के पुत्र होशे ने इस्राएल पर शासन करना आरंभ कर दिया था। होशे ने सामरिया में नौ वर्ष तक शासन किया।
\v 2 उसने बहुत से काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था, परन्तु उसने इस्राएल के पिछले राजाओं की तुलना में इतने बुरे काम भी नहीं किये थे।
\p
\v 3 अश्शूर के राजा शल्मनेसेर की सेना ने राजा होशे की सेना पर आक्रमण किया और पराजित किया। परिणामस्वरूप, इस्राएलियों को हर वर्ष अश्शूर को कर देने के लिए विवश होना पड़ा।
\s5
\v 4 परन्तु कई वर्षों बाद, होशे ने गुप्त रूप से अश्शूर के शासकों के विरूद्ध विद्रोह करने की योजना बनाई। उसने मिस्र के राजा के पास दूत भेजकर पूछा, कि क्या उसकी सेना अश्शूर के विरुद्ध लड़ने में इस्राएलियों की सहायता कर सकती है। होशे ने अश्शुर के राजा को वार्षिक कर देना रोक दिया। अश्शूर के राजा ने उन बातों का पता लगाया, इसलिए उसने अपने अधिकारियों से कहा कि होशे को बंदीगृह में डाल दिया जाए।
\v 5 तब वह अश्शूर की सेना को इस्राएल लेकर आया, और उन्होंने पुरे देश पर आक्रमण किया। उनकी सेना ने तीन वर्ष तक सामरिया शहर को घेरे रखा।
\v 6 अंत में, राजा होशे के शासन के नौवें वर्ष में, अश्शूर की सेना ने बलपूर्वक शहर में प्रवेश किया और लोगों को बन्दी बना लिया। उन्हें अश्शूर देश में ले गये और उनमें से कुछ को हलह शहर में रहने के लिए विवश किया। तथा दूसरों को गोजान के जिले में हाबोर नदी के पास रहने के लिए विवश किया। शेष लोगों को मादियों के नगरों में बसा दिया।
\p
\s5
\v 7 यह सब इसलिए हुआ कि इस्राएली लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया था। उन्होंने उनके पूर्वजों को मिस्र के राजा की शक्ति से बचा लिया था और उन्हें मिस्र से सुरक्षित निकाल लाये थे, परन्तु बाद में उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा करना आरम्भ कर दिया।
\v 8 उन्होंने उन बातों का अनुकरण किया जो उनके चारों ओर मूर्तिपूजक लोग करते थे। ये वही लोग थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के आगमन के समय उस देश से निकाला था। इस्राएल के लोगों ने भी वही बुरे काम किये जो इस्राएल के अधिकांश राजाओं ने उन्हें दिखाए थे।
\s5
\v 9 इस्राएली लोगों ने भी गुप्त रूप से ऐसे कई काम किये जो उनके परमेश्वर यहोवा को प्रसन्न नहीं करते थे। उन्होंने दीवारों वाले शहरों और अन्य शहरों के सब पहाड़ों पर मूर्तियों की पूजा करने के लिए स्थान बनाये।
\v 10 उन्होंने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पत्थरों के स्तम्भ और देवी अशेरा के लिए प्रत्येक पहाड़ पर और बड़े वृक्ष के नीचे लाटे खड़ी की थी।
\s5
\v 11 इस्राएलियों ने वहाँ के मूल निवासियों के समान उन स्थानों में धूप जलाई जहाँ वे देवी-देवताओं की पूजा करते थे इसी कारण परमेश्वर ने उन मूल निवासियों को वहाँ से निकला था इस्राएलियों ने अनेक बुरे काम किये जिनके कारण यहोवा क्रोधित हुए थे।
\v 12 यहोवा ने उन्हें कई बार चेतावनी दी कि उन्हें मूर्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए, परन्तु उन्होंने वैसा ही किया।
\s5
\v 13 यहोवा ने भविष्यवक्ताओं और दर्शियों द्वारा इस्राएलियों और यहूदा के लोगों को चेतावनी दी थी। जो संदेश यहोवा ने उन्हें दिया, वह था, "उन सभी बुरी कामों को करना बंद करो जो तुम कर रहे हो। मेरे आदेशों और मेरे नियमों का पालन करो, जिन नियमों को मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मानने के लिए कहा था और मैंने उन भविष्यवक्ताओं द्वारा तुम्हें फिर से वे नियम सुनाए थे। "
\p
\s5
\v 14 परन्तु इस्राएली लोगों ने ध्यान नहीं दिया। वे अपने पूर्वजों के समान हठीले थे। जैसे उनके पूर्वजों ने किया, वैसा ही उन्होंने भी अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा करने से मना कर दिया।
\v 15 उन्होंने यहोवा के नियमों और प्रतिज्ञा का त्याग कर दिया जो परमेश्वर ने उनके पूर्वजों के साथ की थी। उन्होंने यहोवा की चेतावनियों को अनदेखा कर दिया। उन्होंने व्यर्थ मूर्तियों की पूजा की और परिणामस्वरूप वे स्वयं ही व्यर्थ हो गए। यद्यपि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि वे उनके आस पास रहने वाले लोगों के समान व्यवहार न करें, उन्होंने इस आज्ञा की अवज्ञा की।
\p
\s5
\v 16 इस्राएली लोगों ने यहोवा की सभी आज्ञाओं का उल्लंघन किया। उन्होंने पूजा करने के लिए दो धातु के बछड़े बनाए। उन्होंने देवी अशेरा की पूजा करने के लिए दो लाटों की स्थापना की, और उन्होंने बाल देवता, सूर्य, चंद्रमा और सितारों की पूजा की।
\v 17 उन्होंने अपने पुत्र और पुत्रियों को भी उन देवताओं को बलिदान देने के लिए जला दिया। वे भविष्यवाणी करने वालों के पास गए और उन्होंने जादू-टोना करने का अभ्यास किया। उन्होंने निरन्तर उन सभी प्रकार के बुरे कामों को करने का निर्णय लिया जिससे यहोवा क्रोधित हो गये।
\p
\v 18 अतः इस्राएलियों से क्रोधित होने के कारण यहोवा ने उन्हें उनके शत्रुओं के हाथों में कर दिया कि वे उन्हें उनके देश से बहुत दूर ले जाएँ। केवल यहूदा के गोत्र के लोग ही देश में रह गए थे।
\s5
\v 19 परन्तु यहूदा के लोगों ने भी अपने परमेश्वर यहोवा के आदेशों का पालन नहीं किया। उन्होंने इस्राएलियों के द्वारा लाए गये बुरे रीति-रिवाजों की नकल की थी।
\v 20 अतः यहोवा ने इस्राएल और यहूदा के सभी लोगों को त्याग दिया। उन्होंने उन्हें अन्य राष्ट्रों की सेनाओं द्वारा पराजित किया और उन्हें दूर करके दंडित किया। उन्होंने उन सभी से छुटकारा पा लिया।
\p
\s5
\v 21 इससे पहले, जब यहोवा ने इस्राएल के दस गोत्रों को दाऊद के वंशजों के शासन से दूर कर दिया था, तब उन लोगों ने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा होने के लिए चुना और यारोबाम ने इस्राएलियों को यहोवा की उपासना से अलग करके मूर्तियों की पूजा करने का लालच दिया। इस प्रकार उसने इस्राएलियों से महापाप करवाया।
\v 22 और इस्राएली लोगों ने यारोबाम द्वारा लाए गए दुष्टता के कामों को किया । वे उन पापों से दूर नहीं हुए,
\v 23 इसलिए अंत में यहोवा ने उनसे छुटकारा पा लिया। ठीक इसी के होने की उनके भविष्यवक्ताओं ने चेतावनी दी थी। इस्राएली लोगों को अश्शूर देश ले जाया गया, और वे अभी भी वहां हैं।
\p
\s5
\v 24 अश्शूर के राजा ने अपने सैनिकों को बाबेल, कूता, अव्वा, हमात और सपर्वैम के लोगों को लेकर सामरिया के नगरो में बसाने की आज्ञा दी कि वे उन स्थानों में बस जाएँ जहाँ जहाँ पहले इस्राएली रहते थे। उन लोगों ने सामरिया पर अधिकार कर लिया और सामरिया के शहरों में रहने लगे।
\v 25 परन्तु जो लोग दूसरे देशों से आए थे, वे आने पर यहोवा की उपासना नहीं करते थे। इसलिए यहोवा ने उनमें से कुछ को मारने के लिए शेरों को भेजा।
\v 26 तब उन लोगों ने अश्शूर के राजा को एक संदेश भेजा। उन्होंने लिखा, "हम लोग जो सामरिया के नगरों में बस गये हैं, नहीं जानते कि इस देश में इस्राएलियों ने किस परमेश्वर की उपासना की थी। इसलिए उन्होंने हमें मारने के लिए शेरों को भेजा है, क्योंकि हमने उनकी उचित आराधना नहीं की है।"
\p
\s5
\v 27 जब अश्शूर के राजा ने यह पत्र पढ़ा, तो उसने अपने अधिकारियों को आज्ञा दी, "उन याजको में से एक जिन्हें सामरिया से यहाँ लाया गया है वापस सामरिया भेज दो, उससे कहो कि जो लोग अब वहाँ रह रहे हैं उन्हें वहाँ पहले रहने वाले इस्राएलियों के परमेश्वर की आराधना की उचित शिक्षा दे। "
\v 28 तो अधिकारियों ने ऐसा किया। उन्होंने इस्राएलियों में से एक याजक को सामरिया वापस भेज दिया। वह याजक बेतेल शहर में रहने लगा, और उसने लोगों को सिखाया कि यहोवा की आराधना कैसे करें।
\p
\s5
\v 29 परन्तु वे सभी लोग अपनी मूर्तियां बनाते रहे। उन्होंने अपनी मूर्तियों को उन घरों में रखा जिन्हें सामरी लोगों ने पहाड़ियों पर चारों ओर बनाया था। लोगों के प्रत्येक समूह ने अपने देवताओं को बनाया और उनकी पूजा की, और प्रत्येक देवता का नाम भी रखा।
\v 30 बाबेल के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवता सुक्कोतबनोत का रूप दिया। कूत के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवता नेर्गल का रूप दिया। हमात के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवता अशीमा के रूप में बनाया।
\v 31 अव्वियों के लोगों ने मूर्तियों को अपने देवताओं निभज और तर्त्ताक का रूप दिया। सपर्वैमी के लोगों ने अपने बच्चों को बलि कर दिया। उन्होंने उन्हें अपने देवताओं अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक को बलि के लिए पूरी तरह से वेदियों पर जला दिया।
\s5
\v 32 परन्तु उन लोगों ने यहोवा की भी उपासना की, परन्तु उन्होंने पहाड़ों पर मूर्तियों की पूजा करने के लिए अपने लोगों में से अनेक पुजारी भी नियुक्त किये और ये पुजारी ऊचें स्थानों पर बलि चढ़ाते थे।
\p
\v 33 इसलिए उन्होंने यहोवा का आदर किया, परन्तु उन्होंने उस देश में रहने वाले लोगों के समान उनके देवताओं की भी पूजा की।
\s5
\v 34 ये लोग सामरिया में भी अपने पुराने रीति-रिवाजों को मानते रहे। वे वास्तव में यहोवा की उपासना नहीं करते थे, और वे उन सब नियमों का पालन नहीं करते जो यहोवा ने याकूब के वंशजों को दिए थे, यहोवा ने ही याकूब का नाम इस्राएल रखा था।
\v 35 यहोवा ने पहले इस्राएल के पूर्वजों के साथ वाचा बांधी थी, कि वे अन्य देवताओं की पूजा नहीं करेंगे या उन्हें सम्मानित करने के लिए सिर नहीं झुकाएंगे या उन्हें प्रसन्न करने के काम नहीं करेंगे या उन्हें बलि नहीं चढ़ाएं।
\s5
\v 36 यहोवा ने उनसे कहा था, "तुम मुझ यहोवा के लिए जो तुम्हें महाशक्ति के साथ मिस्र से निकाल लाया, सच्चे दिल से श्रद्धा रखोगे। मैं ही हूँ जिसके सामने तुम्हें सम्मान में सिर झुकाना है और मेरे ही लिए बलि चढ़ाना है।
\v 37 तुम्हें सदा उन नियमों और आज्ञाओं का पालन करना चाहिए जिन्हें मैंने मूसा को तुम्हारे लिए लिखने को कहा था। तुम्हें अन्य देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए।
\v 38 और तुम्हें अपने पूर्वजों के साथ बाँधी वाचा को नहीं भूलना है। तुम्हें अन्य देवताओं से ना तो डरना है न ही उनका सम्मान करना है।
\s5
\v 39 इसकी अपेक्षा, तुम्हारे मन में मुझ यहोवा के लिए जो तुम्हारा परमेश्वर है, सच्चे मन से सम्मान होना चाहिए यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हारे सब शत्रुओं की शक्ति से तुम्हें बचाऊंगा। "
\p
\v 40 परन्तु इस्राएलियों ने यहोवा की बातों पर ध्यान देने से मना कर दिया। इसकी अपेक्षा, वे अपने पुराने रीति-रिवाजों पर चलते रहे।
\v 41 इसलिए, उन लोगों ने यहोवा की उपासना तो की, परन्तु उन्होंने अपनी मूर्तियों की भी पूजा की। और उनके वंशज अब भी वही करते रहे।
\s5
\c 18
\p
\v 1 राजा होशे के लगभग तीन वर्षों तक इस्राएल पर शासन करने के बाद, आहाज का पुत्र हिजकिय्याह यहूदा पर शासन करने लगा।
\v 2 वह पच्चीस वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना और उसने यरूशलेम में पच्चीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम अबी था, जो जकर्याह नामक एक व्यक्ति की पुत्री थी।
\v 3 हिजकिय्याह ने उन कामों को किया जिन्हें यहोवा ने उचित ठहराया था, जैसे उसके पूर्वज राजा दाऊद ने किया था।
\s5
\v 4 उसने उन स्थानों को नष्ट कर दिया जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, और उसने देवी अशेरा की पूजा करने की लटों को तोड़ दिया। उसने मूसा द्वारा बनाई गई पीतल के साँप की प्रतिमा को भी टुकड़ों में तोड़ दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि लोगों ने उसे नहुशतान नाम दिया था, और वे उसका सम्मान करने के लिए उसके के सामने धूप जला रहे थे।
\p
\v 5 हिजकिय्याह ने यहोवा पर भरोसा किया, जिनकी आराधना इस्राएली करते थे। उससे पहले और उसके बाद यहूदा में ऐसा कोई राजा नहीं हुआ जो उसके समान यहोवा का भक्त हुआ।
\s5
\v 6 वह यहोवा का स्वामिभक्त रहा और कभी उनकी अवज्ञा नहीं की। उसने सावधानी से उन सब आज्ञाओं का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया था।
\v 7 यहोवा ने हिजकिय्याह की सदा सहायता की। वह अपने सब कामों में सफल रहा था। उसने अश्शूर के राजा के विरूद्ध विद्रोह किया और अश्शूर के राजा के आदेशों का पालन करने से मना कर दिया
\v 8 उसकी सेना ने दक्षिण में गाजा और आस-पास के गांवों के पलिश्ती सैनिकों को पराजित किया। उन्होंने पूरे क्षेत्र में, गुम्मटों वाले छोटे गांवों से लेकर दीवारों से घिरे बड़े शहरों तक सम्पूर्ण क्षेत्र को जित लिया था।
\p
\s5
\v 9 यहूदा में राजा हिजकिय्याह के राज्य के लगभग चार वर्ष बाद और इस्राएल में राजा होशे के राज्य के लगभग सात वर्ष बाद, अश्शूर के राजा शल्मनेसेर की सेना ने इस्राएल पर आक्रमण किया और सामरिया शहर को घेर लिया।
\v 10 तीसरे वर्ष में उन्होंने शहर को अपने अधीन कर लिया। यह वह समय था जब हिजकिय्याह लगभग छः वर्षों तक यहूदा पर शासन कर चुका था, और जब होशे लगभग नौ वर्षों तक इस्राएल पर शासन कर था।
\s5
\v 11 अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी कि इस्राएल के लोगों को अश्शूर ले जाया जाए। उनमें से कुछ को हलह शहर में ले जाया गया था, कुछ को गोजान के क्षेत्र में हाबोर नदी के पास एक स्थान पर ले जाया गया था, और कुछ को उन शहरों में ले जाया गया जहाँ मादी लोगों के समूह रहते थे।
\v 12 ऐसा इसलिए हुआ कि इस्राएलियों ने अपने परमेश्वर यहोवा का आज्ञा पालन नहीं किया था। उन्होंने उस वाचा का उल्लंघन किया जो यहोवा ने उनके पूर्वजों के साथ बांधी थी, और परमेश्वर के भक्त मूसा के सभी नियम जो मूसा ने उनको पालन करने के लिए दिए थे उनका पालन नहीं किया वरन उन्हें सुनना भी नहीं चाहते थे।
\p
\s5
\v 13 राजा हिजकिय्याह के राज्य के लगभग चौदहवें वर्ष में अश्शुरों के राजा सन्हेरीब की सेना ने यहूदा के उन सभी नगरों पर आक्रमण किया और यरूशलेम को छोड़ कर अन्य सब नगरों को ले लिया।
\v 14 जब सन्हेरीब जब लाकीश में था तब राजा हिजकिय्याह ने उसे संदेश भेजा, और कहा, "मैंने जो किया है वह गलत था। कृपया अपने सैनिकों को आदेश दे कि वे आक्रमण करना रोक दे। मैं तुझे वह सब दूँगा जो भी तू कहेगा। " इसलिए अश्शूर के राजा ने कहा कि हिजकिय्याह उसे 10,000 किलोग्राम (या लगभग दस मेंट्रिक टन) चाँदी और 1,000 किलोग्राम (लगभग एक मेंट्रिक टन) सोने का भुगतान कर।
\p
\v 15 तब हिजकिय्याह ने मंदिर और महल में जितनी चाँदी दी थी सब उसे दे दी।
\p
\s5
\v 16 हिजकिय्याह के लोगों ने मंदिर के द्वारों से सोना जो उसने स्वयं द्वार पर लगाया था, सब निकाल कर अश्शूर के राजा को भेज दिया।
\v 17 परन्तु अश्शूर के राजा ने अपने कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों के साथ एक बड़ी सेना भेजी कि हिजकिय्याह से आत्मसमर्पण करवाएँ ऊपर के तालाब से यरूशलेम जल पहुंचाने वाली नाली के पास के खेत में जहाँ स्त्रियाँ कपड़े धोती थीं,खड़े हो गए।
\v 18 उन्होंने संदेश भेज कर राजा हिजकिय्याह को बुलवाया, परन्तु राजा ने अपने तीनों अधिकारियों को उससे बात करने के लिए भेजा। उसने हिल्किय्याह के पुत्र एल्याकीम को जो महल की निगरानी करता था, शेबना जो मंत्री था और आसाप का पुत्र योआह को भेजा।
\p
\s5
\v 19 सन्हेरीब के महत्वपूर्ण एक अधिकारी ने हिजकिय्याह के लिए यह संदेश भेजा जिसमे कहा गया था:
\p "महान अश्शूरों का राजा कहता है, 'तू बचाव के लिए किस पर भरोसा कर रहा है?
\v 20 तू कहता है कि लड़ने के लिए तेरे पास हथियार हैं और किसी देश ने तेरी सहायता करने की प्रतिज्ञा की है, परन्तु यह केवल कहने की बात ही है। मेरे अश्शूर सैनिकों से विद्रोह करने में तेरी सहायता कौन करेगा?
\v 21 मेरी बात सुन! तू मिस्र की सेना पर भरोसा कर रहा है। परन्तु यह एक चलने वाली छड़ी के स्थान में टूटे हुए सरकंडे का उपयोग करने जैसा है जिसका कोई सहारा ले तो वह उसके हाथ को छेद देगी, ऐसा ही किसी की सहायता करने के लिए मिस्र का राजा है।
\s5
\v 22 परन्तु हो सकता है तू मुझसे कहे, "नहीं, हम हमारी सहायता के लिए अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा कर रहे हैं।" मैं कहता हूँ, "क्या वह वही नहीं हैं जिनके उपासना गृहों को तू ने पहाड़ों पर तोड़ कर अपमानित किया था, जहाँ मूर्तियों की पूजा की जाती थी और जहाँ वेदियों पर बलि चढ़ाई जाती थी, और यरूशलेम तथा अन्य स्थानों में सबको विवश किया गया था कि केवल यरूशलेम की वेदी के सामने ही आराधना की जाए "
\p
\v 23 इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि तू अश्शूर के राजा, मेरे स्वामी और मेरे बीच एक सौदा कर। मैं तुझे दो हजार घोड़े दूंगा, परन्तु मेरे विचार से तू अपने दो हजार लोगों को भी नहीं ढूंढ सकता जो उन पर सवारी करे!
\s5
\v 24 तू आशा कर रहा है कि मिस्र का राजा रथों और घोड़ों पर सवार सैनिकों को तेरी सहायता करने के लिए भेजेगा। परन्तु यह निश्चित है कि वे मेरी सेना के सबसे अधिक महत्वहीन सैनिक को भी पराजित करने योग्य नहीं है!
\v 25 इसके अतिरिक्त, क्या तू यह सोचता है कि हम यरूशलेम को यहोवा की सहायता के बिना नाश करने आए हैं? यह यहोवा ही हैं जिन्होंने हमें यहाँ आने और इस देश को नष्ट करने के लिए कहा है! "
\p
\s5
\v 26 तब एल्याकीम, शेबना और योआह ने अश्शूर के अधिकारी से कहा, "महोदय, कृपया हम से अपनी अरामी भाषा में बात कर, क्योंकि हम इसे समझते हैं। हमारी इब्रानी भाषा में हमसे बात मत कर, क्योंकि जो लोग दीवार पर खड़े हैं इसे समझ जाएंगे और डर जाएंगे । "
\p
\v 27 परन्तु अधिकारी ने उत्तर दिया, "मेरे स्वामी ने क्या मुझे केवल तुमसे बातें करने के लिए भेजा है, दीवार पर खड़े लोगों से नहीं? यदि तुम मेरे इस संदेश को अनदेखा करोगे तो नगर के लोगों को शीघ्र ही अपना मल खाना पड़ेगा और अपना मूत्र पीना पड़ेगा, जैसा तुम करोगे क्योंकि तुम्हारे पास खाने और पीने के लिए कुछ भी नहीं होगा। "
\p
\s5
\v 28 तब वह अधिकारी खड़ा हुआ और दीवार पर बैठे लोगों के लिए इब्रानी भाषा में चिल्लाया। उसने कहा, "अश्शूर के राजा महान राजा से यह संदेश सुनो। वह यह कहता है:
\v 29 'हिजकिय्याह तुम्हें धोखा न दे। वह तुम लोगों को मेरी शक्ति से बचाने योग्य नहीं है।
\v 30 उसे तुम्हें सुरक्षा के लिए यहोवा पर भरोसा रखने के लिए भ्रम में मत डालने दो कि अश्शुर सेना इस नगर को कभी नहीं ले पाएगी!
\p
\s5
\v 31 हिजकिय्याह की बातों पर ध्यान न दे! अश्शूर का राजा कहता है: 'शहर से बाहर आओ और मुझे समर्पण करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम्हारी अपनी दाखलाताओं से अंगूर का रस पीने दूँगा और तुम्हारे अपने ही पेड़ों से अंजीर खाने दूँगा और तुम्हारे अपने कुओं से पानी पीने दूँगा।
\v 32 जब तक हम आकर तुम्हें उस देश में नहीं ले जाते जो तुम्हारे देश जैसा ही है तुम ऐसा ही करते रहोगे। उस देश में भी रोटी के लिए अनाज और दाखमधु के लिए अंगूरों के बाग़ हैं। वह एक ऐसा देश है जिसमे जैतून के पेड़ और शहद बहुतायत से है, यदि तुम अश्शुर के राजा के आदेशों का पालन करो तो तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे।
\p हिजकिय्याह तुम्हें यह कह कर बहकाने ना पाए कि बचाव के लिए यहोवा पर भरोसा रखो!
\s5
\v 33 अन्य देवताओं की पूजा करने वाले राष्ट्रों को कभी उनके देवताओं ने अश्शूर के राजा की शक्ति से नहीं बचाया है!
\v 34 हमात और अर्पाद के देवता कहां हैं? सपर्वैम, हेना और इव्वा के देवता कहां हैं? क्या उनके किसी भी देवता ने सामरिया को मेरे हाथ से बचाया?
\v 35 इन देवताओं में से कोई भी अपने लोगों को अश्शूर के राजा द्वारा नष्ट होने से नहीं रोक पाया था। क्या तुम सोचते हो कि तुम्हारे परमेश्वर कुछ अधिक अच्छा कर सकते हैं?
\p
\s5
\v 36 परन्तु जो लोग सुन रहे थे वे चुप थे। किसी ने कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि राजा हिजकिय्याह ने उनसे कहा था, "जब अश्शूर का अधिकारी तुम से बात करता है, तो उसे उत्तर न दो।"
\p
\v 37 तब एलयाकीम और शेबना और योआह हिजकिय्याह के पास लौटे और अपने वस्त्र फाड़े क्योंकि वे बहुत परेशान थे, और उन्होंने उसे बताया कि अश्शूर के अधिकारी ने क्या कहा था।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब राजा हिजकिय्याह ने उनकी बात सुनी तो, उसने अपने कपड़े फाड़े और टाट का वस्त्र धारण किया क्योंकि वह बहुत परेशान था। फिर वह यहोवा से पूछने के लिए मंदिर में गया कि क्या करना है।
\v 2 तब उसने एलयाकीम और शेबना और बड़े याजकों को बुलाया, वे भी टाट के वस्त्र पहने हुए थे, उसने उन से कहा कि आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता से बात करे।
\s5
\v 3 उसने उनसे कहा कि यशायाह से ऐसा कहना: "राजा हिजकिय्याह कहता है कि यह वह दिन है जब हमें घोर निराशा होती है। अन्य जातियाँ बालक उत्पन्न करने वाली एक स्त्री के समान हमारी निंदा कर रही है और हमें अपमानित कर रहे हैं। प्रसव का समय तो हो गया परन्तु उसमें बल न रहा।
\v 4 हो सकता है कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने सब कुछ सुना है जो अश्शूर के अधिकारी ने कहा था। हो सकता है वह जानते हैं कि अश्शूर के राजा, उसके स्वामी ने उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अपमान करने के लिए भेजा और कि परमेश्वर यहोवा उसे उसकी बातों के लिए दंडित करेंगे। और हिजकिय्याह ने अनुरोध किया है कि तू हमारे कुछ लोगों के लिए प्रार्थना कर जो यरूशलेम में अभी भी जीवित हैं। "
\p
\s5
\v 5 जब हिजकिय्याह के दूत यशायाह के पास आए, तो
\v 6 यशायाह ने उन्हें अपने स्वामी के पास वापस जाने के लिए निर्देश दिया और कहा कि उसे यहोवा का वचन सुनाओ: "अश्शूर के राजा के उन दूतों ने मेरे विषय में बुरी बातें कही हैं, परन्तु जो कुछ उन्होंने कहा है, उससे तुझे परेशान नहीं होना है।
\v 7 इस बात को सुन: मैं सन्हेरीब के लिए झूठा समाचार भिजवाऊंगा जो उसे चिंतित करेगा, कि अन्य सेनाएं अन्य देश पर आक्रमण करने जा रही हैं। और वह अपने देश लौट जाएगा, और वहां मैं उसे कुछ पुरुषों द्वारा मरवा दूंगा। "
\p
\s5
\v 8 अश्शूर के अधिकारी ने पाया कि अश्शूर के राजा और उसकी सेना ने लाकीश शहर छोड़ दिया है, और वे पास के शहर लिब्ना पर आक्रमण कर रहे हैं। अतः अधिकारी उसे यरूशलेम का समाचार सुनाने वहां गया।
\p
\v 9 इसके तुरंत बाद, राजा सन्हेरीब को समाचार मिला कि इथियोपिया के राजा तिर्हाका उन पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना लेकर आ रहा है। परन्तु राजा सन्हेरीब ने इथियोपिया की सेना से युद्ध करने के लिए लिब्ना छोड़ दिया, तो उसने दूसरे संदेशवाहक के हाथ राजा हिजकिय्याह के लिए एक पत्र भेजा।
\s5
\v 10 इस पत्र में उसने हिजकिय्याह को यह लिखा: "तेरे परमेश्वर जिन पर तू भरोसा रखता है, वह यह कहे कि मेरी सेना यरूशलेम को कभी अपने अधीन नहीं कर पाएगी तो धोखा मत खाना।
\v 11 तू ने निश्चित ही सुना है कि अश्शूर के राजाओं की सेनाओं ने अन्य सब देशों के साथ क्या किया है। हमारी सेनाओं ने उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। तो क्या तू सोचता है कि तू बच जाएगा?
\s5
\v 12 उन देशो के देवता जिन्हें अश्शुरों के पूर्व के समय के राजाओं ने नष्ट किया था, उन्हें बचा पाए थे गोजान, हारान, रेसेप और की एदेनी जातियों को, जिन्हें मेरे पूर्वजों ने नष्ट किया था क्या उनके देवता उन्हें बचा पाए थे? उन नगरों का कोई भी देवता उन्हें नहीं बचा पाया था।
\v 13 हमात, अर्पाद, सपर्वैम और इव्वा के नगरों के राजाओं के साथ क्या हुआ? वे सब मर चुके हैं। "
\p
\s5
\v 14 हिजकिय्याह ने दूतों द्वारा लाया गया वह पत्र प्राप्त किया और उसने उसे पढ़ा। और वह मंदिर गया और यहोवा के सामने वह पत्र फैलाया।
\v 15 तब हिजकिय्याह ने यह प्रार्थना की: "हे यहोवा, जिस परमेश्वर के हम इस्राएली हैं, आप पवित्र सन्दूक पर पंखोंवाले प्राणियों पर विराजमान हैं, आप ही सच्चे परमेश्वर हैं। आप इस पृथ्वी के सब राज्यों पर शासन करते हैं। केवल आप ही ईश्वर हैं। आप ही हैं जिन्होंने पृथ्वी और आकाश में सबकुछ बनाया है।
\s5
\v 16 इसलिए, हे यहोवा, कृपया जो कुछ मैं कह रहा हूँ, उसे सुनें, और देखें कि क्या हो रहा है। और राजा सन्हेरीब ने जो आपका, सशक्त परमेश्वर का अपमान करने के लिए कहा है, उसे सुनें।
\p
\v 17 हे यहोवा, यह सच है कि अश्शूर के राजाओं की सेनाओं ने कई राष्ट्रों को नष्ट कर दिया है और उनकी भूमि उजाड़ दी है।
\v 18 और उन्होंने उन जातियों की मूर्तियों को आग में फेंक दिया है और उन्हें जला दिया है। परन्तु ऐसा करना कठिन नहीं था, क्योंकि वे देवता नहीं थे। वे केवल लकड़ी और पत्थर से बनी मूर्तियां थीं, मूर्तियों को मनुष्यों द्वारा आकार दिया गया था, और यही कारण है कि वे सरलता से नष्ट हो गए थे।
\s5
\v 19 इसलिए अब, हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमें अश्शूर के राजा की शक्ति से बचाओ, जिससे कि संसार के सभी साम्राज्यों के लोग यह जान लें कि आप यहोवा, केवल एकमात्र सच्चे परमेश्वर हैं। "
\p
\s5
\v 20 तब यशायाह ने यह संदेश हिजकिय्याह को यह कहने के लिए भेजा कि परमेश्वर यहोवा, जिनके इस्राएली हैं, उन्होंने उत्तर दिया है: "मैंने सुना है कि तू ने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय में मुझसे क्या प्रार्थना की है।
\v 21 मैं उस राजा से कहता हूँ:
\q यरूशलेम के लोग
\q2 तुझे तुच्छ मानते हैं और तेरा मजाक उड़ाते हैं।
\q वे अपने सिर हिलाकर तेरी निंदा करते हैं
\q2 तू किसको तुच्छ समझ रहा है और उपहास कर रहा है।
\q
\v 22 तुझे क्या लगता है कि तू किसको निराश और उपहास कर रहा है?
\q2 जिस पर तू चिल्ला रहा था उन्हें तू क्या समझता है?
\q2 तू जिसे बड़े घमण्ड से देख रहा था उन्हें तू क्या समझता है?
\q वह मैं हूँ, पवित्र परमेश्वर जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं।
\q
\s5
\v 23 दूत जिन्हें तू ने भेजा था
\q2 उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया।
\q तू ने कहा, 'मेरे कई रथों के साथ
\q2 मैं ऊँचे पहाड़ों पर गया हूँ, लबानोंन के ऊँचे पहाड़ पर
\q हमने उसके सबसे लंबे देवदार के पेड़ों को काट दिया है
\q2 और उसके सबसे अच्छे देवदार पेड़।
\q हम सबसे दूरस्थ चोटियों के लिए गए हैं
\q2 और उसके घने जंगल में भी।
\q
\v 24 हमने दूसरे देशों में कुएं खोद दिए हैं
\q2 और उनसे पानी पिया।
\q और मिस्र की धाराओं से होकर चले,
\q2 हमने उन्हें पूरा सुखा दीया!
\q
\s5
\v 25 परन्तु मैं कहता हूँ, 'क्या तू ने बहुत पहले कभी नहीं सुना है
\q2 मैंने योजना बनाई थी कि यह सब होगा?
\q मैंने बहुत पहले यह योजना बनाई थी,
\q2 और अब मैं इसे होने का कारण बना रहा हूँ।
\q मैंने योजना बनाई है कि तेरी सेना
\q2 में कई शहरों को पकड़ने की शक्ति होगी
\q3 जो ऊंची दीवारों से घिरे थे,
\q2 और उन्हें मलबे के ढेर बनाने का कारण बनाऊं।
\q
\v 26 उन शहरों में रहने वाले लोगों की कोई शक्ति नहीं है,
\q2 और नतीजतन वे निराश और निराश हो गए।
\q वे खेतों में पौधों और घास के रूप में कमजोर हैं,
\q2 घास के रूप में कमजोर है जो घरों की छतों पर बढ़ता है
\q3 और जो होने से पहले ही झुलस जाती है।
\q
\s5
\v 27 परन्तु मैं तेरे विषय में सब कुछ जानता हूँ।
\q2 मुझे पता है कि तू कब अपने घर में रहता है
\q3 और जब बाहर जाता है;
\q2 मुझे यह भी पता है कि तू मेरे विरुद्ध भड़क रहा है।
\q
\v 28 क्योंकि तू मेरे विरुद्ध क्रोधित हो गया है,
\q2 और क्योंकि मैंने तुझे यह कहते सुना है,
\q ऐसा होगा जैसे कि मैं तेरी नाक में एक नकेल डालूंगा,
\q2 और मैं तेरे मुंह में लोहा डाल दूंगा,
\q कि मैं जहाँ चाहुँ तुझे ले जाऊ।
\q2 मैं तुझे तेरे देश लौटने के लिए विवश करूंगा
\q उसी मार्ग में जिस से तू यहाँ आया था,
\q2 यरूशलेम पर विजय प्राप्त किए बिना। '
\q
\s5
\v 29 अब मैं हिजकिय्याह से यह कहता हूँ:
\q2 'मेरी बात को सत्य सिद्ध करने के लिए ऐसा ही होगा:
\q इस वर्ष और अगले वर्ष तू और तेरे लोग
\q2 केवल जंगली अनाज की फसल काटेंगे।
\q परन्तु अगले वर्ष, तेरे इस्राएली अन्न उगाने और फसल काटने योग्य होंगे
\q2 और दाख की बारियां लगाने और अंगूर खाने योग्य होंगे।
\q
\v 30 यहूदा में रहने वाले लोग जो जीवित रहेंगे समृद्ध होंगे
\q2 और कई संताने प्राप्त करेंगे;
\q वे उन पौधों के समान होंगे जिनकी जड़ें भूमि में गहरी जाती हैं
\q2 और जो बहुत फल उत्पन्न करती हैं।
\q
\v 31 यरूशलेम में बहुत से लोग होंगे
\q2 जो जीवित रहेगा,
\q क्योंकि मैं, यहोवा, सेनाओं का प्रधान,
\q2 यह योजना बना चुका हूँ।
\q
\s5
\v 32 अतः यहोवा, मैं यही कहता हूँ अश्शूर के राजा के विषय में
\q "उनकी सेना इस शहर में प्रवेश नहीं करेगी;
\q2 वे इसमें तीर भी नहीं चला पाएंगे।
\q उनके सैनिक ढाल उठाकर शहर के फाटक के बाहर नहीं चलेंगे,
\q2 और वे शहर की दीवारों के पास ऊँचे स्थान भी नही बना पाएंगे
\q3 कि शहर पर सफल आक्रमण कर पाएँ।
\q
\v 33 उनका राजा अपने देश लौट जाएगा
\q2 उसी मार्ग पर जिस पर से वह आया था।
\q2 वह इस शहर में प्रवेश नहीं करेगा।
\q ऐसा अवश्य होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!
\q
\v 34 मैं इस शहर की रक्षा करूंगा और इसे नष्ट होने से रोकूंगा।
\q2 मैं अपनी प्रतिष्ठा के लिए
\q2 और जो मैंने राजा दाऊद से प्रतिज्ञा की थी, उसके कारण ऐसा करूँगा,
\q3 उसने मेरी अच्छी सेवा की थी। '"
\p
\s5
\v 35 उस रात, यहोवा का एक दूत वहां गया जहाँ अश्शूर की सेना ने अपने तंबू लगाए थे और 185,000 सैनिकों को मार डाला। जब बाकी सैनिक अगली सुबह उठ गए, तो उन्होंने देखा कि हर जगह लाशें थीं।
\v 36 तब राजा सन्हेरीब छोड़कर अश्शूर की राजधानी नीनवे को चला गया।
\p
\v 37 एक दिन, जब वह अपने देवता निस्रोक के मंदिर में पूजा कर रहा था, उसके दो पुत्र, अद्रम्मेलेक और शरेसेर ने उसे अपनी तलवार से मार डाला। और भाग गए और निनवे के उत्तर-पश्चिम में अरारत के क्षेत्र में गए। और सन्हेरीब के पुत्रों में से एक, एसर्हद्दोन , अश्शूर का राजा बन गया।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उस समय, हिजकिय्याह बहुत बीमार हो गया। उसने सोचा कि वह मरने वाला है। यशायाह भविष्यद्वक्ता उसके पास आया और कहा, "यहोवा यही कहते हैं: 'तुझे अपने महल में लोगों को समझा देना होगा कि तेरे मरने के बाद उन्हें क्या करना होगा, क्योंकि तू इस बीमारी से ठीक नहीं होगा। तू मर जाएगा। ''
\p
\v 2 हिजकिय्याह ने अपना चेहरा दीवार की ओर किया और प्रार्थना की:
\v 3 "हे यहोवा, यह न भूलें कि मैंने सदा अपने मन से आपकी सेवा की है, और मैंने उन कामों को किया है जो आपको प्रसन्न करते हैं।" तब हिजकिय्याह जोर से रोने लगा।
\p
\s5
\v 4 यशायाह राजा के पास से जा चुका था, परन्तु महल के बीच के आंगन को पार करने से पहले, यहोवा ने उसे एक संदेश दिया।
\v 5 उसने कहा, "मेरे लोगों के शासक हिजकिय्याह के पास जा, और उससे कह, ' मैं यहोवा, जिस परमेश्वर की तेरे पूर्वज राजा दाऊद ने उपासना की थी, मैंने सुना है कि तू ने क्या प्रार्थना की है। और मैंने तेरे आँसू देखे हैं। तो, सुन, मैं तुझे स्वस्थ करने जा रहा हूँ। अब से दो दिन बाद तू मेरे मंदिर में जा सकेगा।
\s5
\v 6 मैं तुझे पंद्रह वर्ष तक ओर जीने के योग्य करता हूँ। और मैं तुझे और इस नगर को अश्शूर के राजा की शक्ति से फिर से बचाऊंगा। मैं अपनी प्रतिष्ठा के लिए और मेरे सच्चे सेवक दाऊद से की गी प्रतिज्ञा के कारण इस शहर की रक्षा करूंगा । '"
\p
\v 7 यशायाह महल में लौट आया और हिजकिय्याह को यहोवा का वचन सुनाया। तब उसने हिजकिय्याह के कर्मचारियों से कहा, "उबले हुए अंजीर से बने लेप को उसके फोड़ो पर लगा दो तो वह ठीक हो जाएगा।" सेवको ने वैसा ही किया, और राजा ठीक हो गया।
\p
\s5
\v 8 तब हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, "यह सिद्ध करने के लिए यहोवा क्या करेगा कि वह मुझे ठीक करेगा और अब से दो दिन बाद मैं मंदिर में जा सकूंगा?"
\p
\v 9 यशायाह ने उत्तर दिया, "यहोवा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए जो करेंगे। वह यह है कि तू क्या चाहता है कि सीढ़ियों पर छाया दस चरण पीछे जाए या दस कदम आगे बढ़ जाए?"
\p
\s5
\v 10 हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, "छाया का आगे बढ़ना सरल है, क्योंकि ऐसा तो होता ही है। यहोवा से कह कि छाया सीढ़ी पर दस चरण पीछे हो जाए उन सीढ़ियों को राजा आहाज के काम करनेवालों ने बनाया था।"
\p
\v 11 तब यशायाह ने सच्चे दिल से यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने छाया को दस चरण पीछे कर दिया।
\p
\s5
\v 12 उस समय, बाबेल ोन के पूर्व राजा बलदान के पुत्र राजा मर्दुक-बलदान ने एक रिपोर्ट सुनाई कि राजा हिजकिय्याह बहुत बीमार था। इसलिए उसने कुछ पत्र लिखे और उन्हें उपहार के साथ हिजकिय्याह को देने के लिए कुछ दूतों को दे दिया।
\v 13 जब दूत आए, तो हिजकिय्याह ने हर्ष के साथ उनका स्वागत किया। उसने उन्हें राजमहल और अपने भण्डार में जो भी था दिखया - चाँदी, सोना, म वर्ष े, सुगंधित जैतून का उत्तम तेल, और उसके सैनिकों के सब हथियार। उसने अपने राज्य के भण्डार कहीं और भी ऐसी कोई मूल्यवान वस्तुएँ नहीं छोड़ी जो उसने उन्हें नहीं दिखाई।
\p
\s5
\v 14 तब भविष्यवक्ता यशायाह हिजकिय्याह के पास आया और उससे पूछा, "वे लोग कहां से आए, और उन्होंने तुमसे क्या कहा?"
\p हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, "वे यहाँ से बहुत दूर देश से आए थे। वे बाबेल ोनिया से आए थे।"
\p
\v 15 यशायाह ने पूछा, "उन्होंने तेरे महल में क्या देखा?"
\p हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, "उन्होंने सब कुछ देखा। मैंने उन्हें वह सब दिखाया जो मेरे पास हैं-मेरी सभी मूल्यवान वस्तुएँ भी।"
\p
\s5
\v 16 यशायाह जानता था कि हिजकिय्याह ने बहुत मूर्खतापूर्ण काम किया है। इसलिए यशायाह ने उससे कहा, "यहोवा जो कहते हैं, उसे सुन।
\v 17 ऐसा समय आएगा जब तेरे महल में जो कुछ भी है, वह और तेरे पूर्वजों द्वारा रखी गई सभी मूल्यवान वस्तुएँ, बाबेल को ले जाया जाएगा। यहाँ कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा! यहोवा ने यही कहा है!
\v 18 इसके अतिरिक्त, तेरे कुछ वंशजों को भी वहां जाने के लिए विवश किया जाएगा, और उन्हें बाबेल के राजा के महल में दास बनने के लिए नपुंसक बना दिया जाएगा। "
\p
\s5
\v 19 तब हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, "जो यहोवा ने मुझे दिया है, वह संदेश अच्छा है।" क्योंकि उसने सोचा, "यदि ऐसा होगा तो मेरे शेष जीवन के समय इस्राएल में शान्ति और सुरक्षा बनी रहेगी।"
\p
\v 20 यदि तू हिजकिय्याह अन्य सभी कामों के विषय में और जानना चाहता है, युद्ध में उसके बहादुर कर्मों के विषय में, इस विषय में कि किस प्रकार उसने अपने लोगों को शहर में जलाशय बनाने और जलाशयों में पानी लाने के लिए सुरंग खोदने आदि के विषय में जानना हो तो वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 21 बाद में हिजकिय्याह की मृत्यु हो गई, और उसका पुत्र मनश्शे राजा बन गया।
\s5
\c 21
\p
\v 1 मनश्शे बारह वर्ष का था जब उसने शासन करना आरम्भ किया। उसने यरूशलेम में पचास वर्ष तक यहूदा पर शासन किया। उसकी माता हेप्सीबा थी।
\v 2 उसने कई ऐसे काम किए जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। उन्होंने उन घृणित कामों की नक़ल की जो वहाँ रहने वाली पूर्वकाल की जातियाँ करती थी जब इस्राएल के आगमन के समय यहोवा ने उन्हें देश से बाहर निकाला था।
\v 3 उसने अपने श्रमिकों को पहाड़ियों पर बने मूर्ति पूजा के स्थानों का पुनर्निर्माण करने का आदेश दिया। वे बहुत ऊंचे स्थान थे जिनको उसके पिता हिजकिय्याह ने नष्ट कर दिया था। उसने अपने श्रमिकों को आदेश दिया कि बाल को जीवित प्राणियों के बलि चढ़ाने के लिए वेदियों का निर्माण करें। मनश्शे ने देवी अशेरा की मूर्ति बनाई, जैसा कि इस्राएल के राजा अहाब ने पहले किया था। और मनश्शे ने सितारों की पूजा की और उनकी सेवा की।
\s5
\v 4 उसने अपने कर्मचारियों को यहोवा के मन्दिर में विदेशी देवताओं की पूजा करने के लिए वेदियों का निर्माण करने का निर्देश दिया, भले ही यहोवा ने कहा था, "यह यरूशलेम में है कि जहाँ मैं चाहता हूँ कि मेरे लोग सदा मेरी आराधना करें।"
\v 5 उसने निर्देश दिया कि सितारों की पूजा करने के लिए मंदिर के दोनों आंगनों में वेदियां बनाई जाएं।
\v 6 उसने अपने पुत्र को भी बलि करके आग में जला दिया। उसने जादू-टोना और भूत सिद्धि करने वालों द्वारा अनुष्ठान करवाया। उसने कई ऐसे काम किये जो यहोवा ने कहा था कि बुरे हैं और ऐसे काम जिन से क्रोधित होते थे।
\p
\s5
\v 7 उसने मंदिर में देवी अशेरा की मूर्ति रखी, जिस स्थान के लिए यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा था, "मेरा मंदिर यरूशलेम में होगा। यह वह शहर है जिसे मैंने इस्राएल के बारह गोत्रों कि सम्पूर्ण भूमि में, जहाँ मैं चाहता हूँ कि लोग सदा मेरी आराधना करें।
\v 8 और यदि इस्राएली लोग मेरे सब आदेशों और मेरे सच्चे दास मूसा को दिए गए सभी नियमों का पालन करते हैं, तो मैं उन्हें फिर से इस देश को छोड़ने के लिए विवश नहीं करूंगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था। "
\v 9 परन्तु लोगों ने यहोवा पर ध्यान नहीं दिया। मनश्शे ने उन्हें ऐसे पाप करने के लिए प्रेरित किया जो उन जातियों के पापों से भी अधिक बुरे थे जिन्हें यहोवा ने उस देश से बहार निकाला था जब इस्राएली लोग उसमें प्रवेश कर रहे थे।
\p
\s5
\v 10 ये कुछ बातें हैं जिन्हें यहोवा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। यहोवा ने बार बार उन्हें ये संदेश दिए थे:
\v 11 "यहूदा के राजा मनश्शे ने इन घृणित कामों को किया है, जो उन से भी बुरे हैं जिन्हें एमोरी लोगों ने इस देश में किए थे। उसने यहूदा के लोगों से मूर्ति पूजा करवा कर यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।
\v 12 इस कारण, मैं, यहोवा, जिस परमेश्वर की तुम इस्राएली लोग आराधना करते हो, तुम से कहता हूँ: मैं यरूशलेम और यहूदा पर विनाश लाने वाला हूँ। यह भयानक होगा, जिसको सुन कर मनुष्य चकित होगा।
\s5
\v 13 मैं यरूशलेम के लोगों का न्याय करूँगा और उन्हें दण्ड दूंगा क्योंकि मैंने इस्राएल के राजा आहाब के परिवार को दंडित किया था। मैं यरूशलेम के लोगों को हटा दूंगा और ऐसा कर दूँगा जैसे लोग थाली को साफ करते हैं और फिर उसे पलट कर रख देते हैं यह दिखाने के लिए कि वे अब संतुष्ट हैं।
\v 14 और मैं जीवित रहने वाले लोगों को त्याग दूंगा, और मैं उनके शत्रुओं को उन पर विजयी होने दूँगा और उनके देश से मूल्यवान सब कुछ लुट लेने की अनुमति दूंगा।
\v 15 मैं ऐसा करूँगा क्योंकि मेरे लोगों ने ऐसे काम किये हैं जो मैं कहता हूँ कि बहुत बुरे हैं, जिन कामों ने मुझे बहुत क्रोधित किया है। वे मिस्र से निकलने के समय से ही मुझे निरन्तर क्रोधित करते रहे हैं। "
\p
\s5
\v 16 मनश्शे ने अपने अधिकारियों को यरूशलेम में कई निर्दोष लोगों को मारने का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनका खून सड़कों पर बह गया। इसके अतिरिक्त उसने यहूदा के लोगों को कई ऐसे कामों को करने के लिए यह भी प्रेरित किया जिन्हें यहोवा ने कहा कि वे बुरे है।
\p
\v 17 यदि तुम मनश्शे के सारे कामों के विषय में अधिक जानना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 18 मनश्शे की मृत्यु हो गई और उसे अपने महल के बाहर बगीचे में दफनाया गया, जो उज्जा ने बनाया था। तब उसका पुत्र आमोन राजा बन गया।
\p
\s5
\v 19 आमोन बाईस वर्ष का था जब राजा बना। उसने यरूशलेम में केवल दो वर्षों तक यहूदा पर शासन किया। उनकी माता का नाम मशुल्लेमेत था। वह योत्बावासी हारूस की पुत्री थी।
\v 20 उसने अपने पिता मनश्शे के समान कई काम किए जो यहोवा ने कहा था, बुरे हैं।
\s5
\v 21 उसने अपने पिता के व्यवहार की नकल की, और उसने उसी मूर्तियों की पूजा की जिनकी उसके पिता ने पूजा की थी।
\v 22 उसने यहोवा को त्याग दिया, जिस परमेश्वर की तुम्हारे पूर्वजों ने आराधना की थी, और वैसा व्यवहार नहीं किया जैसा यहोवा चाहतें थे कि वह करे।
\v 23 फिर एक दिन उसके कुछ अधिकारियों ने उसे मारने की योजना बनाई। उन्होंने महल में उसे मार डाला।
\p
\s5
\v 24 परन्तु यहूदा के लोगों ने उन सब को मार डाला जिन्होंने राजा आमोन की हत्या कर दी थी, और उसने अपने पुत्र योशिय्याह को राजा बना दिया।
\p
\v 25 यदि तुम आमोन के कामों के विषय में पढ़ना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\v 26 आमोन को उस बगीचे की कब्र में भी दफनाया गया था जिसे उज्जा ने बनाया था। तब उसका पुत्र योशिय्याह राजा बन गया।
\s5
\c 22
\p
\v 1 योशिय्याह आठ वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बन गया। उसने यरूशलेम में इकतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता यदीदा थी और बोस्कत शहर का अदायाह उसका दादा था।
\v 2 योशिय्याह ने उन कामों को किया जो यहोवा को प्रसन्न करते थे और अपने पूर्वज राजा दाऊद के समान जीवन जिया। उसने परमेश्वर के सब नियमों का पालन किया।
\p
\s5
\v 3 योशिय्याह लगभग अठारह वर्ष तक शासन करने के बाद, उसने असल्याह के पुत्र शापान को जो मशुल्लाम का पोता था इन निर्देशों के साथ मंदिर में भेजा:
\v 4 "महायाजक हिल्किय्याह के पास जा, और उससे कह की मुझे बताए कि मंदिर के दरवाजों की रक्षा करने वाले पुरुषों ने उपासकों के कितने पैसे भेंट के रूप में लिए हैं।
\v 5 फिर उसे उन सभी लोगों को वह पैसा देने के लिए कह जो मंदिर के सुधार कार्य के काम की देखरेख कर रहे हैं।
\s5
\v 6 उन से कह लकड़ी का काम करने वालों को और राज्मिस्त्रीयों को मंदिर में काम आने वाले लकड़ी और पत्थरों को भी खरीदना होगा। "
\v 7 परन्तु जो लोग काम की देखरेख करते हैं उन्हें दिए गए पैसे का लेखा देने की उन्हें आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे लोग पूरी तरह से ईमानदार हैं।
\p
\s5
\v 8 राजा के सचिव शापान ने जाकर हिल्किय्याह को राज्य का संदेश सुना दिया, हिल्किय्याह ने शापान से कहा, "मैंने मंदिर में वह पुस्तक पाई है जिस पर परमेश्वर द्वारा मूसा को दिए गए नियम लिखे गये हैं!" हिल्किय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी और उसने उसे पढ़ना आरम्भ किया।
\v 9 तब शापान वह पुस्तक राजा के पास लेकर गया और उससे कहा, "तेरे मंदिर के रक्षकों ने मंदिर में जो पैसा था उसे लेकर उन को दे दिया है जो मंदिर के सुधार कार्य की देखरेख कर रहे हैं।"
\v 10 तब शापान ने राजा से कहा, "मैं वह पुस्तक लाया हूँ जो हिल्किय्याह ने मुझे दी है।" और शापान ने उसे राजा के लिए पढ़ना आरम्भ किया।
\p
\s5
\v 11 जब राजा ने उन नियमों को सुना जो उस पुस्तक से शापान पढ़ रहा था, तो उसने अपने कपड़े फाड़े क्योंकि वह बहुत परेशान हो गया था।
\v 12 तब उसने हिल्कीयाह को शापान के पुत्र अहीकाम से, मीकायाह के पुत्र अकबोर और राजा के विशेष सलाहकार असायाह को यह निर्देश दिए:
\v 13 "जाओ मेरे और यहूदा के सभी लोगों के लिए यहोवा से पूछो कि, इस पुस्तक में जो लिखा गया है, वह क्या है। क्योंकि यह स्पष्ट है कि यहोवा हमसे बहुत क्रोधित हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इन लिखित बातों की अवज्ञा की थी वह काम जिन्हें हमें करना चाहिए था। "
\p
\s5
\v 14 तब हिल्किय्याह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असायाह उस स्त्री से परामर्श करने गए, जिसका नाम हुल्दा था, जो भविष्यद्वक्तिनी थी जो यरूशलेम के नए भाग में रहती थी। वह तिकावा के पुत्र और उसके हर्हस के पोते शल्लूम की पत्नी थी जो मंदिर में पहने जाने वाले वस्त्रों को संभालता था। उन पांच पुरुषों ने उसे उस पुस्तक के विषय में बताया।
\p
\v 15 तब उसने उन्हें बताया कि यहोवा परमेश्वर जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, "यहोवा के पास राजा के लिए एक संदेश है जिसने तुम्हें मेरे पास भेजा है, यहोवा कहते हैं:
\v 16 'इसे ध्यान से सुनो। मैं यरूशलेम और यहाँ रहने वाले सब लोगों पर विपत्ति लाने जा रहा हूँ, जो राजा द्वारा पढ़ी गयी पुस्तक में लिखा था।
\s5
\v 17 मैं ऐसा इसलिए करूंगा क्योंकि उन्होंने मुझे त्याग दिया है, और वे अन्य देवताओं का सम्मान करने के लिए धूप जलाते हैं। उन्होंने मुझे उन सभी मूर्तियों के कारण बहुत क्रोधित किया है और मेरा क्रोध आग के समान है जो बुझाई नहीं जा सकती।
\v 18 यहूदा के राजा ने तुम्हें यह पूछने के लिए भेजा कि मैं, यहोवा, उससे क्या करवाना चाहते हैं। यही वह है जो तुम्हें उससे कहना है, "तू ने पुस्तक में लिखी बातों पर ध्यान दिया है।
\v 19 इसके अतिरिक्त, जब तू ने सुना कि मैंने इस शहर और यहाँ रहने वाले लोगों को दंड देने के लिए क्या धमकी दी है, तो तू ने पश्चाताप किया और स्वयं को नम्र किया है, मैंने तेरी प्रार्थना को सुना है। मैंने कहा कि मैं इस शहर को उजाड़ने का कारण बनूंगा। यह एक ऐसा शहर होगा जिसका नाम लोग किसी को शाप देते समय उपयोग करेंगे। परन्तु तू ने अपने वस्त्रों को फाड़ दिया और मेरी उपस्थिति में रोया, मैंने तुझे सुना है।
\s5
\v 20 इसलिए मैं तुझे शान्ति से मरने और दफन होने दूंगा। मैं इस स्थान पर एक बड़ी विपत्ति लाऊंगा, परन्तु तू इसे देखने के लिए जीवित नहीं होगा। "
\p पुरुष यह सुन कर राजा योशिय्याह के पास लौट आए और उसे वह संदेश दिया।
\s5
\c 23
\p
\v 1 तब राजा ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों के सभी बुजुर्गों को बुलाया।
\v 2 वे सबसे महत्वपूर्ण लोगों से कम से कम महत्वपूर्ण लोगों तक, याजक और भविष्यवक्ताओं, और कई अन्य लोगों के साथ मंदिर में एक साथ गए। और जब वे सुन रहे थे, तब राजा ने उन सब नियमों को पढ़ा जिन्हें मूसा ने लिखा था। उसने मंदिर में पाई गई पुस्तक से पढ़ा।
\s5
\v 3 तब राजा उस खंभे के पास खड़ा हुआ जहाँ राजा महत्वपूर्ण घोषणा करते थे, और जब यहोवा सुन रहे थे, तब उसने सच्चे मन से नियमों का पालन करने की अपनी प्रतिज्ञा को दोहराया। और सब लोगों ने भी वाचा का पालन करने की प्रतिज्ञा की।
\p
\s5
\v 4 तब राजा ने महायाजक हिल्किय्याह और उन सब याजकों को जो उसकी सहायता करते थे और उन द्वारपालों को आदेश दिया कि मंदिर में से उन सब वस्तुओं को जो लोग बाल, देवी अशेरा और सितारों की पूजा करने के लिए उपयोग कर रहे थे, उन्हें बाहर निकालें और उन्होंने उन सब वस्तुओं को शहर के बाहर किद्रोंन घाटी में जला दिया तब वे उस राख को बेतेल ले गये।
\v 5 वहाँ बहुत से मूर्तिपूजक पुजारी थे जिन्हें यहूदा के पिछले राजाओं ने यहूदा के पूरे क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर वेदियों पर धूप जलाने और पहाड़ियों पर बने ऊंचे स्थानों पर पूजा करने के लिए नियुक्त किया था। वे बाल, सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और सितारों के लिए ऊँचे स्थानों पर बलिदान चढ़ाते थे। राजा ने उन्हें उन कामों को करने से रोक दिया।
\s5
\v 6 उसने आज्ञा दी कि देवी अशेरा की मूर्ति मंदिर से निकल दी जाए। तब वे उसे यरूशलेम के बाहर, किद्रोन घाटी में ले लिया, और जला दिया। तब उन्होंने उस राख को कूटकर सामान्य लोगों की कब्रों पर बिखरा दिया।
\v 7 उसने मंदिर के कमरों में से सब कुछ निकाला जहाँ पुरुष वेश्याएं रहते थे। यही वह जगह थी जहाँ महिलाएं कपड़े बूनती थीं जिनका उपयोग देवी अशेरा की पूजा करने के लिए किया जाता था।
\p
\s5
\v 8-9 योशिय्याह उन सब पुजारियों को यरूशलेम लाया जो यहूदा के अन्य नगरों में बलिदान चढ़ा रहे थे। उसने उन पहाड़ियों पर उन सब स्थानों को अपवित्र किया जहाँ याजक उत्तर में गेबा से दक्षिण में बेर्शेबा तक मूर्तियों का सम्मान करने के लिए धूप जलाते थे। उन पुजारियों को मंदिर में बलि चढ़ाने की अनुमति नहीं थी, परन्तु उन्हें अखमीरी रोटी खाने की अनुमति थी जो मंदिर में काम करने वाले याजक खाते थे। उसने यह भी आदेश दिया कि यरूशलेम के महापौर यहोशू द्वारा बनाई गई फाटक के पास की वेदियां नष्ट की जाएं। वे वेदियां शहर के मुख्य द्वार के बाईं ओर थीं।
\p
\s5
\v 10 योशिय्याह ने बेन हिन्नोम घाटी में तोपेत नाम के स्थान को भी अशुद्ध किया ताकि कोई भी अपने पुत्र या पुत्री को वेदी पर मोलेक के लिए पूरी तरह से न जलाए।
\v 11 उसने उन घोड़ों को भी हटा दिया जिन्हें यहूदा के पिछले राजाओं ने सूर्य की पूजा करने के लिए समर्पित किया था और उसने उस पूजा में उपयोग किये जाने वाले रथों को जला दिया। उन घोड़ों और रथों को मंदिर के बाहर के आंगन में, मंदिर के प्रवेश द्वार के पास रखा गया था, और उस कमरे के पास जहाँ योशिय्याह के अधिकारियों में से एक रहता था, जिसका नाम नतन्मेलेक था।
\p
\s5
\v 12 योशिय्याह ने अपने कर्मचारियों को उन वेदियों को भी तोड़ने का आदेश दिया जो यहूदा के पिछले राजाओं ने महल की छत पर, जहाँ राजा आहाज रहता था, बनाया था। उन्होंने राजा मनश्शे द्वारा मंदिर के बाहर के दो आंगनों में बनाई गई वेदियों को भी तोड़ दिया। उसने आदेश दिया कि वे टुकड़े टुकड़े की जाएं और किद्रोन घाटी में फेंक दी जाएं।
\v 13 उसने यह भी आदेश दिया कि राजा सुलैमान ने जिन वेदियों को येरूशलेम के पूर्व में जैतून पर्वत के दक्षिण में बनाया था, जिसे विकासी पर्वत कहते थे, नष्ट कर दिया जाए। सुलैमान ने उन्हें घृणित मूर्तियों की पूजा के लिए बनाया था- सिदोनियों की अश्तोरेत, मोआब लोगों के देवता कमोश और अम्मोन लोगों के देवता मोलेक की पूजा की जाती थी।
\v 14 उन्होंने पत्थर के उन खंभो के भी टुकड़े टुकड़े कर दिए जिनकी इस्राएली लोग पूजा करते थे, और देवी अशेरा को सम्मानित करने वाली लाटों को काट दिया और उन्होंने उन स्थानों को अशुद्ध करने के लिए वहाँ मानव हड्डियों को बिखरा दिया।
\p
\s5
\v 15 इसके अतिरिक्त, उसने उनको पूजा के स्थान को तोड़ने का आदेश दिया जो बेतेल शहर के पास था, जो नबात का पुत्र राजा यारोबाम (जिसने इस्राएल को मूर्तिपूजा के लिए प्रेरित किया था) द्वारा निर्मित पूजा का एक ही स्थान था। योशिय्याह ने इस्राएल के लोगों को उस ऊँची पहाड़ी पर बनी वेदी तोड़ने की आज्ञा दी और उन्होंने अशेरा की पूजा में उपयोग किए गए लकड़ी के लाटों को भी जला दिया।
\v 16 तब योशिय्याह ने चारों ओर देखा और पहाड़ी पर कुछ कब्रों को देखा। उसने अपने लोगों को आज्ञा दी कि उन कब्रों से हड्डियों को निकाल कर वेदी पर जला दिया। ऐसा करके, उसने वेदी को अपवित्र कर दिया। इन घटनाओं की भविष्यवाणी कई वर्ष पहले की गई थी जब यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता द्वारा इस्राएल को अपना वचन दिया था।
\p
\s5
\v 17 योशिय्याह ने पूछा, "किसकी कब्र है?" बेतेल के लोगों ने उत्तर दिया, "यह भविष्यद्वक्ता की कब्र है जो यहूदा से आया था और भविष्यवाणी की थी कि तू ने जो कुछ अभी इस वेदी पर किया है, वह होगा।"
\p
\v 18 योशिय्याह ने उत्तर दिया, "उसको रहने दिया जाए। उस भविष्यवक्ता की हड्डियों को कब्र से न निकला जाए।"
\p इसलिए लोगों ने उसकी हड्डियों को, या दूसरे भविष्यवक्ता की हड्डियों को नहीं निकाला, जो सामरिया से आया था।
\p
\s5
\v 19 इस्राएल के हर नगर में योशिय्याह के आदेश में, उन्होंने पहाड़ों पर बने मूर्तियों की पूजा के घरों को गिरा दिया। जिन्हें इस्राएल के पिछले राजाओं ने बनवाया था और यहोवा को बहुत क्रोधित किया था। उसने मूर्तियों के उन सभी स्थानों के साथ वही काम किया जो उसने बेतेल में वेदियों के साथ किया था।
\v 20 उसने आदेश दिया कि उन सब पुजारियों को जिन्होंने पहाड़ियों पर बने मूर्ति पूजा के स्थानों में बलि चढ़ाई, और उन्हें उन वेदियों पर ही मार डाला जाए। फिर उन्होंने उन वेदियों में से प्रत्येक पर मानव हड्डियों को जलाकर अपवित्र कर दिया। फिर वह यरूशलेम लौट आया।
\p
\s5
\v 21 तब राजा ने सभी लोगों को अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करने के लिए फसह का पर्व मनाने का आदेश दिया, जो मूसा के नियम में लिखा गया था कि उन्हें हर वर्ष करना चाहिए।
\v 22 उन सब वर्षों में जब इस्राएल के अगुओं ने शासन किया और इस्राएल के राजाओं और यहूदा के राजाओं ने उस को नहीं मनाया था।
\v 23 परन्तु अब योशिय्याह के अठारह वर्ष के शासन में, उन्होंने यहोवा के सम्मान में यरूशलेम में फसह का पर्व मनाया।
\p
\s5
\v 24 इसके अतिरिक्त, योशिय्याह ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से उन सभी लोगों को हटा दिया जो जादूगरी का अभ्यास करते थे और जो मृत लोगों की आत्माओं से पूछते थे कि उन्हें क्या करना चाहिए। उसने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से सभी घरेलू मूर्तियों को और अन्य सभी मूर्तियों और घृणित वस्तुओं को भी हटा दिया। उसने ऐसा इसलिए किया कि हिल्कीया को जो पुस्तक मन्दिर में मिली थी उसमे लिखे गये निर्देशों का पालन करे।
\v 25 योशिय्याह अपनी सम्पूर्ण भावना और विचारों और शक्ति के साथ यहोवा के प्रति समर्पित था। यहूदा या इस्राएल में उसके जैसा राजा कभी नहीं हुआ था। उसने मूसा के सब नियमों का पालन किया। और तब से योशिय्याह के समान राजा नहीं हुआ।
\p
\s5
\v 26 परन्तु यहोवा मनश्शे के उन कामों के कारण यहूदा के लोगों से बहुत क्रोधित थे, और वह क्रोधित ही रहे।
\v 27 उन्होंने कहा, "मैं यहूदा के साथ वही करूंगा जो मैंने इस्राएल के साथ किया है। मैं यहूदा के लोगों को दूर कर दूंगा, जिसके परिणामस्वरूप वे फिर मेरी उपस्थिति में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। और मैं यरूशलेम को अस्वीकार कर दूंगा, शहर मैं अपना होने के लिए चुना है, और मैं वह स्थान जहाँ मैंने कहा था कि मेरी आराधना की जाए। "
\p
\s5
\v 28 यदि तुम योशिय्याह के सब कामों के विषय में और जानना चाहते हो, तो वे यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखे गए हैं।
\p
\v 29 जब वह यहूदा का राजा था, तब मिस्र के राजा नको अश्शूर के राजा की सहायता करने के लिए अपनी सेना को फरात नदी के उत्तर में ले गया। राजा योशिय्याह ने मगीद्दो शहर में मिस्र की सेना को रोकने का प्रयास किया, परन्तु वह युद्ध में मार दिया गया।
\v 30 उसके अधिकारियों ने उसके शव को रथ में रखा और उसे वापस यरूशलेम ले गए, जहाँ उसे उसकी कब्र में दफनाया गया।
\p तब यहूदा के लोगों ने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज पर जैतून का तेल डाला, ताकि वह नया राजा बने।
\p
\s5
\v 31 योआहाज यहूदा का राजा बनने के समय तेईस वर्ष का था, परन्तु उसने यरूशलेम में केवल तीन महीने शासन किया। उसकी माता, लिब्ना शहर के यिर्मयाह की पुत्री हमूतल थी।
\v 32 योआहाज ने बहुत ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा बुरा कहते हैं, जैसे कि उसके पूर्वजों ने किया था।
\v 33 राजा नको की सेना ने उसे पकड़ लिया और उसे जंजीरों से बांध कर उसे हमात देश के रिबला शहर में बन्दी बनाकर रख दिया कि वह यहूदा पर राज्य न कर पाए। नको ने यहूदा के लोगों को 3.3 मीट्रिक टन चाँदी और 33 किलोग्राम सोने का कर लगा दिया।
\s5
\v 34 राजा नको ने योशिय्याहके पुत्र, एलयाकीम को नया राजा नियुक्त किया, और उसने एलयाकीम के नाम को यहोयाकीम में बदल दिया। वह यहोआहाज को मिस्र ले गये, और बाद में वहाँ उसकी मृत्यु हो गई।
\p
\v 35 राजा यहोयाकीम ने यहूदा के लोगों से कर एकत्र किया। उसने अमीरों से तो अधिक परन्तु गरीब लोगों से कम कर एकत्र किया। मिस्र के राजा को भुगतान करने के लिए उनसे चाँदी और सोना इकट्ठा किया, क्योंकि उसके आदेश के अनुसार उसे यह देना था।
\p
\s5
\v 36 यहोयाकीम पच्चीस वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना, और उसने यरूशलेम से ग्यारह वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम जबीदा था जो रूमावासी पदायाह की पुत्री थी।
\v 37 उसने बहुत से ऐसे काम किये जिनके लिए यहोवा ने कहा था कि वे बुरे हैं जैसा कि उसके पूर्वजों ने किया था।
\s5
\c 24
\p
\v 1 जब यहोयाकीम यहूदा पर शासन कर रहा था, तब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यहूदियों की सेना को हरा दिया, और यहोयाकीम को राजा नबूकदनेस्सर को बहुत कर देना पड़ा। परन्तु तीन वर्ष बाद, यहोयाकीम ने विद्रोह किया।
\v 2 तब यहोवा ने उसके विरुद्ध बाबेल ोनिया, अराम, और मोआब और अम्मोनियों के लोगों को यहूदा के लोगों पर आक्रमण करने और उनको मारने के लिए भेजा, जैसा कि यहोवा ने अपने भविष्यवक्ताओं द्वारा लोगों को चेतावनी देने के लिए कहा था।
\s5
\v 3 ये बातें यहूदा के लोगों के साथ हुईं जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी। उसने राजा मनश्शे के कई पापों के कारण यहूदा के लोगों को नष्ट करने का फैसला किया।
\v 4 मनश्शे ने यरूशलेम में कई निर्दोष लोगों को भी मार डाला था, और यहोवा ने उसे क्षमा नहीं किया।
\p
\s5
\v 5 यहोयाकीम राजा के समय की घटनाएँ, और जो कुछ भी उसने किया, वह सब यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है।
\v 6 जब यहोयाकीम की मृत्यु हो गई, तो उसका पुत्र यहोयाकीन राजा बन गया।
\p
\s5
\v 7 बाबेल के राजा की सेना ने मिस्र की सेना को हराया। बाबेल के राजा ने उन सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो मिस्र के अधीन था, दक्षिण में मिस्र की सीमा पर के नाले से लेकर के उत्तर में फरात नदी तक उसके अधीन हो गया था। इसलिए मिस्र के राजा की सेना फिर से यहूदा पर हमला करने के लिए वापस नहीं आई।
\p
\s5
\v 8 यहोयाकीन अठारह वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना। उनकी मां का नाम नहुश्ता था। वह एलनातान नाम के यरूशलेमवाशी की पुत्री थी। यहोयाकीन ने यरूशलेम में केवल तीन महीने तक शासन किया।
\v 9 यहोयाकीन ने बहुत से ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था, उसके पिता के समान सब बुरे काम किये।
\p
\s5
\v 10 जब यहोयाकीन राजा था, तब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कुछ अधिकारी पूरे बाबेल की सेना के साथ यरूशलेम में आए, और उन्होंने शहर को घेर लिया।
\v 11 तब नबूकदनेस्सर स्वयं शहर आया।
\v 12 तब राजा यहोयाकीन, उसकी मां, उनके सलाहकार, महत्वपूर्ण अधिकारी, महल के अधिकारी सब ने बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण कर दिया।
\p जब नबूकदनेस्सर आठवें वर्ष तक राजा रहा, तो उसने यहोयाकीन को पकड़ लिया और उसे बाबेल में ले गया।
\s5
\v 13 जैसे यहोवा ने कहा था, नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने यहोवा के मंदिर और राजा के महल से सब मूल्यवान वस्तुओं को बाबेल ले गए। उन्होंने राजा सुलैमान ने द्वारा मंदिर में रखी गई सब सोने की वस्तुओं को काट दिया।
\v 14 वे यरूशलेम से दस हजार लोगों को बाबेल ले गये, जिसमें महत्वपूर्ण अधिकारी और सबसे अच्छे सैनिक और धातु के काम करनेवाले थे। यहूदा में केवल बहुत ही गरीब लोग रह गए थे।
\p
\s5
\v 15 नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने राजा यहोयाकीन को बन्दी बना लिया और उसे अपनी पत्नियों और अधिकारियों, उसकी मां और सभी महत्वपूर्ण लोगों के साथ बाबेल ले गया।
\v 16 वह सात हजार सैनिकों और एक हजार लोगों को जो धातु का काम करना जानते थे बाबेल ले गया। ये सब लोग युद्ध में लड़ने में सक्षम थे।
\v 17 तब बाबेल के राजा ने यहोयाकीन के चाचा मत्तन्याह को यहूदा का राजा नियुक्त किया, और उसने मत्तन्याह के नाम को सिदकिय्याह में बदल दिया।
\p
\s5
\v 18 जब सिदकिय्याह बीस वर्ष का था, तब वह राजा बन गया, और उसने यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक शासन किया। उनकी मां का नाम हमूतल था। वह लिबनाह शहर के यिर्मयाह की पुत्री थी।
\v 19 परन्तु सिदकिय्याह ने बहुत से ऐसे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था, जैसे यहोयाकीम ने किए थे।
\v 20 क्योंकि यहोवा बहुत क्रोधित थे, इसलिए उन्होंने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से लोगों को निकाल दिया और उन्हें बाबेल में भेज दिया।
\p यह तब हुआ जब सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा के विरूद्ध विद्रोह किया।
\s5
\c 25
\p
\v 1 सिदकिय्याह के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन राजा नबूकदनेस्सर अपनी पूरी सेना के साथ पहुंचा। और यरूशलेम को घेर लिया। शहर की दीवारों के साथ उन्होंने परकोटे बनाए कि वे दीवारों पर चढ़ सकें और शहर पर आक्रमण कर सकें।
\v 2 ऐसा करने में उन्हें दो वर्ष लग गए।
\v 3 सिदकिय्याह के ग्यारह वर्ष तक शासन करने के बाद, उस वर्ष के चौथे महीने के नौवें दिन तक, अकाल बहुत बुरा हो गया था। लोगों की भोजन सामग्री समाप्त हो गयी थी।
\s5
\v 4 तब बाबेल के सैनिकों ने शहर की दीवार के एक भाग को तोड़ दिया और वहाँ से शहर में प्रवेश करने में सक्षम हुए। यहूदा के सैनिकों ने भागने का प्रयास किया। परन्तु बाबेल के सैनिकों ने शहर को घेर लिया, इसलिए राजा और यहूदा के सैनिक रात तक प्रतीक्षा करते रहे। तब वे राजा की बारी के पास दो दीवारों के बीच के द्वार से भाग गए। वे खेतों में भाग गए और यरदन नदी के मैदान में जाने लगे।
\v 5 परन्तु बाबेल के सैनिकों ने उनका पीछा किया। और जब सिदकिय्याह यरीहो के मैदानी क्षेत्र में था, तब उन्होंने उसे पकड़ लिया। वह अकेला ही था क्योंकि उसके सैनिकों ने उसे छोड़ दिया था।
\s5
\v 6 बाबेल के सैनिक राजा सिदकिय्याह को बाबेल के रिबला शहर में ले गए। वहां बाबेल के राजा ने निर्णय लिया कि वे उसे दंडित करने के लिए क्या करेंगे।
\v 7 बाबेल के राजा ने सिदकिय्याह को विवश किया कि उसके पुत्रों की हत्या को अपनी आँखों से देखे क्योंकि बाबेल के सैनिकों ने सिदकिय्याह के सब पुत्रों को मार डाला था। तब उन्होंने सिदकिय्याह की आंखों को बाहर निकाला। उन्होंने पीतल की जंजीरों से उसके हाथों और पैरों को बांधा और उसे बाबेल शहर ले गए।
\p
\s5
\v 8 उस वर्ष के पांचवें महीने के सातवें दिन, नबूकदनेस्सर के उन्नीस वर्ष तक शासन करने के बाद, नबूजरदान यरूशलेम पहुंचा। वह राजा नबूकदनेस्सर के अधिकारियों में से एक था; वह राजा के अंगरक्षकों का प्रधान था।
\v 9 उसने अपने सैनिकों को यहोवा के मंदिर, राजा के महल और यरूशलेम के सभी घरों को जलाने का आदेश दिया। इसलिए उन्होंने शहर की सभी महत्वपूर्ण इमारतों को जला दिया।
\v 10 तब नबूजरदान ने बाबेल के सैनिकों की अगुवाई की क्योंकि वे यरूशलेम के आस-पास की दीवारों को तोड़ रहे थे।
\s5
\v 11 उसके बाद, वह और उसके सैनिक उन लोगों को बाबेल ले गये जो अभी भी शहर में रहते थे, अन्य लोग जो यहूदा के क्षेत्र में रहते थे, और सैनिकों को जिन्होंने पहले बाबेल सेना को आत्मसमर्पण कर दिया था।
\v 12 परन्तु नबुजरदान ने कुछ गरीब लोगों को दाख की बारियों की देखभाल करने और खेतों में फसलों को लगाने के लिए यहूदा में छोड़ दिया।
\p
\s5
\v 13 बाबेल के सैनिक मंदिर के पीतल के खंभे, कुर्सियां और पीतल का हौद जो "सागर" के नाम से जाना जाता था, तोड़ कर सारा पीतल बाबेल ले गये।
\v 14 वे बर्तन, फावड़े, दीपक, चिमटे, परात और अन्य सब पीतल की वस्तुओं को जिन्हें याजक सेवा में काम में लेते थे, आदि सब ले गये।
\v 15 सैनिकों ने बलिदान की राख उठाने का पात्र और सोने, चाँदी से बने अन्य सब भी ले लिया।
\p
\s5
\v 16 दोनों खंभे, हौद "सागर" और कुर्सियां आदि सब जिन्हें राजा सुलैमान ने बनवाया था, वे इतने भारी थे कि उनका वजन नहीं किया जा सकता था। जब सुलैमान इस्राएल का राजा था तब ये सब मंदिर के लिए बनाया गया था।
\v 17 प्रत्येक खम्भा 27 फुट का था। प्रत्येक खंभे पर साढ़े चार फुट की पीतल की कंगनी थी और प्रत्येक कंगनी पर पीतल के अनार और जाली की सजावट थी।
\p
\s5
\v 18 नबूजरदान महायाजक सारायाह और उसके सहायक सपन्याह और तीनों द्वारपालों को पकड़ कर बाबेल ले गया।
\v 19 जो लोग यरूशलेम में अभी भी थे, उन में से वह यहूदियों की सेना के एक अधिकारी, राजा के पांच सचिव और सेनापति का प्रधान जो पुरुषों को सेना में भर्ती करता था, तथा अन्य साठ महत्वपूर्ण लोगों को।
\s5
\v 20 नबूजरदान रिबला शहर में बाबेल के राजा के पास ले गया।
\v 21 वहां रिबाला शहर में, हमात प्रांत में, बाबेल के राजा ने आज्ञा दी कि उन सब को मार डाला जाए।
\p जब यहुदावासियों को बलपूर्वक बाबेल ले जाया गया तब यही हुआ था।
\p
\s5
\v 22 तब राजा नबूकदनेस्सर ने गदल्याह नाम के एक व्यक्ति को उन लोगों का राज्यपाल नियुक्त किया जिन्हें उन्होंने अभी भी यहूदा में छोड़ दिया था। गदल्याह अहीकाम का पुत्र था और शापान का पोता था।
\v 23 जब यहूदा के सेना नायकों और सैनिकों को पता चला कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को राज्यपाल नियुक्त किया है, तो वे मिस्पा शहर में उससे मिला। ये सेनानायक थे; नतन्याह का पुत्र इश्माएल ; कारेह का पुत्र योहानान; नतोपाई तन्हूमेत का पुत्र सरायाह और माकाई के पुत्र याजन्याह तथा उनके साथी।
\p
\v 24 गदल्याह ने उनसे प्रतिज्ञा की थी कि बाबेल के अधिकारी उन्हें हानि पहुंचाने की योजना नहीं बना रहे थे। उसने कहा, "तुम इस देश में निडर रह सकते हो; तुम्हें बाबेल के राजा का आज्ञा पालन करना होगा। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारा भला होगा।"
\p
\s5
\v 25 परन्तु उस वर्ष के सातवें महीने में, इश्माएल, जिसका दादा एलिशामा राजा दाऊद से निकले परिवार में था, मिस्पा के पास दस अन्य पुरुषों के साथ गया। उन्होंने गदल्याह और उसके साथ सभी पुरुषों की हत्या कर दी। यहूदा के लोग और बाबेल के पुरूष भी थे जिन्हें उन्होंने मार डाला था।
\v 26 तब यहूदा के बहुत से लोग, महत्वपूर्ण लोग और महत्वहीन लोग, और सेना के नायक बहुत डर गये कि अब बाबेल उनके साथ क्या करेगा, इसलिए वे मिस्र भाग गए।
\p
\s5
\v 27 यहूदा के राजा यहोयाकीन की बन्धुआई के तैंतीस वर्ष में, नबूकदनेस्सर का पुत्र एवील्मरोदक बाबेल का राजा बना। वह यहोयाकीन के प्रति दयालु था, और उसी वर्ष के बारहवें महीने के सत्ताइसवें दिन, उसने यहोयाकीन को बंदीगृह से मुक्त कर दिया।
\s5
\v 28 वह यहोयाकीन के प्रति सदैव दया का व्यवहार करता था और उसे उन अन्य राजाओं से अधिक सम्मान का पद दिया जिन्हें बाबेल में ले जाया गया था।
\v 29 उसने यहोयाकीन को बंदीगृह के वस्त्रों के स्थान में नए वस्त्र दिए, और उसने यहोयाकीन को अपने पूरे जीवन के लिए हर दिन राजा की मेज पर खाने की अनुमति दी।
\v 30 बाबेल के राजा ने उसे हर दिन पैसे दिए, ताकि वह उन वस्तुओं को खरीद सके जो उसे चाहिए। जब तक यहोयाकीन की मृत्यु न हो गई तब तक राजा की ओर से उसके लिए ऐसा ही प्रबन्ध रहा।

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\h 1 क्रोनिकल्स
\toc1 इतिहास की पहली पुस्तक
\toc2 पहला इतिहास
\toc3 1ch
\mt1 पहली श्रृंखला
\s5
\c 1
\s2 ये आदम के वंशज हैं
\p
\v 1 पहला पुरुष जिसे परमेश्वर ने बनाया, वह आदम था। आदम का बेटा शेत था। शेत का बेटा एनोश था। एनोश का बेटा केनान था।
\v 2 केनान का बेटा महललेल था। महललेल का बेटा येरेद था। येरेद का बेटा हनोक था।
\v 3 हनोक का पुत्र मतूशेलह था। मतूशेलह का पुत्र लेमेक था। लेमेक का बेटा नूह था।
\v 4 नूह के पुत्र शेम, हाम और येपेत थे।
\s2 ये येपेत के पुत्र हैं।
\q
\s5
\v 5 येपेत के बेटा गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक और तिरास थे।
\q2
\v 6 गोमर के बेटा अश्कनाज, दीपत और तोगर्मा थे।
\q2
\v 7 यावान के बेटा एलीशा, तर्शीश, कित्ती और रोदानी थे।
\s2 ये हाम के बेटे हैं।
\q
\s5
\v 8 हाम के बेटे कूश, मिस्र, पूत और कनान थे।
\q
\v 9 कुश के बेटे सबा, हबीला, सबाता, रामा और सब्तका थे।
\q2 रामा के बेटे शबा और ददान थे।
\q
\v 10 कुश का एक और बेटा निम्रोद था। जब वह बड़ा हुआ, वह धरती पर एक शक्तिशाली योद्धा बन गया।
\q
\s5
\v 11 मिस्र लूदी, अनामी, लहावी, नप्तही का पूर्वज था,
\v 12 पत्रूसी, कसलूही, और कप्तोरी लोग समूह। पलिश्ती के क्षेत्र के लोग कसलूही लोगों के समूह से उत्पन्न हुए थे।
\q
\s5
\v 13 कनान का पहला पुत्र सीदोन था। वह हित्तियों के समूह का पूर्वज था,
\v 14 यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी,
\v 15 हिब्बी, अर्की, सीनी,
\v 16 अर्वदी, समारी और हमाती लोग।
\s2 ये शेम के वंशज हैं
\q
\s5
\v 17 शेम के पुत्र एलाम, अश्शूर, अर्पक्षद, लूद और अराम थे।
\q अराम के पुत्र ऊस, हूल, गेतेर और मेशेक थे।
\q
\v 18 अर्पक्षद शेलह का पिता था, जो एबेर का पिता था।
\q2
\v 19 एबर के दो बेटे थे। एक को पेलेग नाम दिया गया था जिसका अर्थ है ‘विभाजित’ क्योंकि उस समय पृथ्वी पर लोगों को विभिन्न भाषा समूहों में विभाजित किया गया था। पेलेग का छोटा भाई योक्तान था।
\q2
\s5
\v 20 योक्तान अल्मोदाद, शुलेप, हसर्मावेत, येरह का पूर्वज था,
\v 21 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला,
\v 22 एबाल, अबीमाएल, शबा,
\v 23 ओपीर, हवीला, और योबाब।
\q
\s5
\v 24 ये शेम के वंशज हैं, उसके बाद अब्राहम तक क्रमवार अर्पक्षद, शेलह,
\v 25 एबर, पेलेग, रू,
\v 26 सरूग, नाहोर, तेराह,
\v 27 और अब्राम, जिसका नाम बाद में अब्राहम हुआ था।
\s2 ये अब्राहम के वंशज हैं।
\q
\s5
\v 28 अब्राहम के पुत्र इसहाक और इश्माएल थे।
\q
\v 29 अब्राहम की दासी हाजिरा का पुत्र इश्माएल था। इश्माएल के बारह बेटा थे, उनका पहला बेटा नवायोत, तब केदार, अदवेल, मिबसाम,
\v 30 मिश्मा, दुमा, मस्सा, हदद, तेमा,
\v 31 यतूर, नापीश और केदेमा।
\q
\s5
\v 32 अब्राहम की पत्नी सारा की मृत्यु के बाद, उसने कतूरा नाम की एक और पत्नी ली। उसके पुत्र ज़िम्रान, योक्षान, मदान, मिद्यान, यिशबाक और शूह थे।
\q2 योक्षान के पुत्र शबा और ददान थे।
\q2
\v 33 मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा और एलदा थे।
\s2 ये एसाव के वंशज हैं।
\q
\s5
\v 34 अब्राहम की पत्नी सारा का बेटा इसहाक था, और इसहाक के बेटे एसाव और याकूब थे, याकूब नाम बाद में इस्राएल हो गया था।
\q
\v 35 एसाव के पुत्र एलीपज, रूएल, यूश, यालाम और कोरह थे।
\q2
\v 36 एलीपज के पुत्र तेमान, ओमार, सपी, गातान, कनज, तिम्ना और अमालेक थे।
\q2
\v 37 रूएल के बेटे नहत, जेरह, शम्मा और मिज्जा थे।
\s2 ये सेईर के वंशज हैं।
\q
\s5
\v 38 एसाव का एक और वंशज सेईर था। उसके वंशज अदोम के क्षेत्र में रहते थे। सेईर के बेटे लोतान, शोबाल, सिबोन, अना, दीशोन, एसेर और दीशान थे।
\q2
\v 39 लोतान के पुत्र होरी और होमाम थे, और लोतान की बहन तिम्ना थीं।
\q2
\v 40 शोबाल के बेटे अल्यान, मानहत, एबाल, शपी और ओनाम थे।
\q2 सिबोन के बेटे अय्या और अना थे।
\q2
\s5
\v 41 अना का बेटा दीशोन था।
\q2 दीशोन के बेटे हम्रान , एशबान, यीत्रान और कशन थे।
\q2
\v 42 एसेर के बेटे बिल्हान, जावान और याकान थे।
\q2 दीशान के बेटे ऊस और अरान थे।
\s2 ये एदोम के राजा हैं।
\p
\s5
\v 43 ये उन राजाओं के नाम हैं जिन्होंने इस्राएलियों पर शासन करने से पहले एदोम के क्षेत्र पर शासन किया था:
\q बोर का बेटा बेला, अदोम में राजा था, और जिस नगर में वह रहता था उसका नाम दिन्हाबा था।
\q
\v 44 जब बेला की मृत्यु हो गई, तो बोस्राई जेरह का बेटा योबाब राजा बन गया।
\q
\v 45 जब योबाब की मृत्यु हो गई, तो हूशाम राजा बना। वह उस क्षेत्र से थे जहाँ तेमानी लोग रहते थे।
\q
\s5
\v 46 जब हूशाम की मृत्यु हो गई, तब बदद का बेटा हदद राजा बना। उसने अवीत शहर में शासन किया। हदद की सेना ने मोआब के क्षेत्र में मिद्यानी लोगों की सेना को हरा दिया।
\q
\v 47 जब हदद की मृत्यु हो गई, तब सम्ला राजा बन गया। वह मस्रेक शहर से था।
\q
\v 48 जब सम्ला की मृत्यु हो गई, तो शाऊल राजा बन गया। वह रहोबोत हनहर शहर से था।
\q
\s5
\v 49 जब शाऊल की मृत्यु हो गई, तो अकबोर का बेटा बाल्हानान राजा बन गया।
\q
\v 50 जब बाल्हानान की मृत्यु हो गई, तो हदद राजा बन गया। वह पाई शहर से था। उनकी पत्नी का नाम महेतबेल था; वह मत्रेद की बेटी और मेज़ाहाब की नातिन थी।
\s5
\v 51 तब हदद की मृत्यु हो गई।
\q एदोम लोगों के समूह के प्रमुख सरदार थे: तिम्ना, अल्या, यतेत थे,
\v 52 ओहोलीवामा, एला, पीनोन,
\v 53 कनज, तेमान, मिबसार,
\v 54 और मग्दीएल, ये एदोम के मुखिया थे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 याकूब के पुत्र रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून,
\v 2 दान, यूसुफ, बिन्यामीन, नप्ताली, गाद और आशेर।
\s2 ये यहूदा के वंशज हैं।
\q
\s5
\v 3 यहूदा के पुत्र एर, ओनान और शेला थे। उनकी मां कनान जाति के समूह से शूआ की बेटी बतशू थीं। जब यहूदा का सबसे बड़ा पुत्र एर बड़ा हुआ, तो उसने ऐसा काम किया जिसे यहोवा बहुत बुरा मानते थे, इसलिए यहोवा ने उसे मार डाला।
\v 4 यहूदा और उसकी बहू तामार के पास पेरेस और जेरह नाम के जुड़वां लड़के थे। इस प्रकार यहूदा के पांच बेटे थे।
\q
\s5
\v 5 पेरेस के पुत्र हेस्रोन और हामूल थे।
\q
\v 6 जेरह के पांच पुत्र थे: जिम्री, एतान, हेमान, कालकोल और दारा।
\q2
\v 7 जिम्री के बेटों में से एक कर्मी था। कर्मी के बेटे आकार ने इस्राएल के लोगों के लिए बहुत परेशानी उत्पन्न की थी, क्योंकि उसने उन वस्तुओं को चुरा लिया जिन्हें नष्ट किया जाना था क्योंकि वे देवताओं को समर्पित थे।
\q2
\v 8 एतान का पुत्र अजर्याह था।
\q
\s5
\v 9 हेस्रोन के पुत्र यरह्येल, राम और कलूबै थे।
\q2
\v 10 राम अम्मीनादाब का पिता था, और अम्मीनादाब नहशोन का पिता था। नहशोन यहूदा के गोत्र का प्रधान था।
\q2
\v 11 नहशोन सल्मा का पिता था, और सल्मा बोअज का पिता था।
\v 12 बोअज ओबेद का पिता था, और ओबेद यिशै का पिता था।
\q2
\s5
\v 13 यिशै का सबसे बड़ा बेटा एलीआब था। उनके अन्य पुत्र अबीनादाब, शिमा,
\v 14 नतनेल, रद्दें ,
\v 15 ओसेम। सबसे छोटा दाऊद था।
\q2
\s5
\v 16 उनकी बहनें सरूयाह और अबीगैल थीं। सरूयाह के तीन पुत्र अबीशै, योआब और असाहेल थे।
\v 17 अबीगैल का पति इश्माएल का वंशज येतेर था, और उनका बेटा अमासा था,
\s2 हेस्रोन के वंशज थे
\b
\q
\s5
\v 18 हेस्रोन के छोटे बेटे कालेब की दो पत्नियां थीं। उनमें से एक, अजूबा ने तीन पुत्रों, येशेर, शोबाब और अर्दोन को जन्म दिया। (दूसरी पत्नी का नाम यरीओत था।)
\v 19 जब अजूबा की मृत्यु हो गई, कालेब ने एप्रात से विवाह किया। उनका बेटा हूर था।
\v 20 हूर ऊरी का पिता था, और ऊरी बसलेल का पिता था।
\q
\s5
\v 21 जब हेस्रोन साठ वर्ष का था, तब उसने माकीर की एक बेटी से विवाह किया, जो गिलाद का पिता भी था। हेस्रोन और माकीर का बेटा सगूब था।
\v 22 सेगुब याईर का पिता था। याईर की सेना ने गिलाद द्वारा शासित क्षेत्र में तेईस शहरों को नियंत्रित किया।
\q
\s5
\v 23 परन्तु गशूर और अराम की सेनाओं ने उन नगरों पर अधिकार कर लिया जो याईर द्वारा नियंत्रित थे। उन्होंने कनत और आस-पास के कस्बों पर भी अधिकार कर लिया; उन्होंने कुल साठ शहरों पर अधिकार कर लिया। वहां रहने वाले लोग गिलाद के पिता माकीर के वंशज थे।
\q
\v 24 हेस्रोन की मृत्यु के कुछ ही समय बाद, कालेब अपने पिता की विधवा एप्राता के साथ सो गया। उससे कालेब के लिए एक बेटा का जन्म हुआ, जिसका नाम अशहूर था। अशहूर तेको का पिता था।
\s2 यरह्येल के वंशज
\q
\s5
\v 25 हेस्रोन का सबसे बड़ा पुत्र यरह्येल था। उसके पुत्र राम, बूना, ओरेन, ओसेम और अहिय्याह थे। यरह्येल का सबसे बड़ा बेटा राम था।
\v 26 यरह्येल की एक और पत्नी थी जिसका नाम अतारा था। उसका बेटा ओनाम था।
\q
\v 27 यरह्येल के सबसे बड़े बेटे राम के पुत्र थे, मास, यामीन और एकेर।
\q
\v 28 ओनाम के पुत्र शम्मै और यादा थे।
\q शम्मै के पुत्र नादाब और अबीशूर थे।
\q2
\s5
\v 29 अबीशूर की पत्नी अबीहैल थी। अबीशूर और अबीहैल के पुत्र अहबान और मोलीद थे।
\q2
\v 30 नादाब के पुत्र सेलेद और अप्पैम थे। सेलेद के पास कोई सन्तान नहीं थी।
\v 31 अप्पैम का पुत्र यिशी था; यिशी का बेटा शेशान था। शेशान की बेटियों में से एक का नाम अहलै था।
\v 32 शम्मै का छोटा भाई यादा था। यादा के बेटे येतेर और योनातन थे। येतेर के पास कोई सन्तान नहीं थी।
\q
\v 33 योनातन के पुत्र पेलेत और जाजा थे।
\q वे यरह्येल के वंशज यही थे।
\q
\s5
\v 34 शेशान के पास कोई बेटा नहीं था; उसके पास केवल बेटियां थीं। उसके पास मिस्र से एक दास था जिसका नाम यर्हा था।
\v 35 शेशान ने अपनी बेटी को यर्हा से विवाह करने की अनुमति दी, और उनका पुत्र अत्तै था।
\q
\s5
\v 36 अत्तै, नातान का पिता था।
\q नातान, ज़ाबाद का पिता था।
\q
\v 37 ज़ाबाद, एपलाल का पिता था।
\q एपलाल, ओबेद का पिता था।
\q
\v 38 ओबेद, येहू का पिता था।
\q येहू, अजर्याह का पिता था।
\q
\s5
\v 39 अजर्याह, हेलैस का पिता था।
\q हेलैस, एलासा का पिता था।
\q
\v 40 एलासा, सिस्मै का पिता था।
\q सिस्मै, शल्लूम का पिता था।
\q
\v 41 शल्लूम, यकम्याह का पिता था।
\q और यकम्याह, एलिशामा का पिता था।
\s2 कालेब के वंशज
\q
\s5
\v 42 यरह्येल का छोटा भाई कालेब था।
\q कालेब का सबसे बड़ा बेटा मेशा था। मेशा, जीप का पिता था। जीप, मारेशा का पिता था। मारेशा, हेब्रोन का पिता था।
\v 43 हेब्रोन के पुत्र कोरह, तप्पूह, रेकेम और शेमा थे।
\v 44 शेमा, रहम का पिता था। रहम, योर्काम का पिता था। रेकेम, शम्मै का पिता था।
\q
\s5
\v 45 शम्मै, माओन का पिता था। माओन, बेत्सूर का पिता था।
\q
\v 46 कालेब की एक दासी थी जिसे एपा नाम दिया गया था। कालेब और एपा के बेटे हारान, मोसा और गाजेज़ थे। हारन का बेटा था जिसे उसने गाजेज़ नाम दिया था।
\q
\v 47 एपा के पिता याहदै थे। याहदै छह पुत्रों के पिता थे: रेगेम, योताम, गेशान, पेलेत, एपा और शाफ।
\q
\s5
\v 48 कालेब की एक और दासी थी जिसका नाम माका था। कालेब और माका के पुत्र शेबर, तिर्हाना थे,
\v 49 शाप और शेप। शवा, मदमन्ना का पिता था। शेबा और मकबेना और गिबा का पिता शबा था। कालेब की बेटी अकसा थी।
\q
\v 50-51 ये लोग कालेब के वंशज भी थे: कालेब की एक और पत्नी थी जिसका नाम एप्राता था। उनका सबसे बड़ा बेटा हूर था। हूर के पुत्र शोबाल, सल्मा और हारेप थे। शोबाल ने किर्यत्यारीम शहर स्थापना की। सल्मा ने बैतलहम शहर की स्थापना की। हारेप ने बेतगादेर शहर की स्थापना की।
\q
\v 52 शोबाल के वंशज हारो थे, और मनुहोत लोगों के समूह का आधा भाग था।
\v 53 उनके वंशजों ने किर्यत्यारीम: यित्री, पूती, शुमाती, और मिश्राई में। सारेई और एश्ताओली के कुलों मिश्राई के वंश के वंशज थे।
\q
\v 54 सल्मा के वंशज बैतलहम के लोग थे, नतोपाई के कुल, अत्रोतबेत्योआब के कुल और मानहती के आधे लोग थे, जो सोरी थे।
\v 55 सल्मा के वंशजों में याबेस शहर के परिवार जिन्होंने महत्वपूर्ण दस्तावेजों को लिखा और प्रतिलिपि बनाई। ये तिराती के वंश थे, शिमाती के वंश और सूकाती के वंश थे। वे सब केनी लोगों के समूह से थे जो रेकाब के परिवार के पूर्वज हम्मत से निकले थे।
\s5
\c 3
\s2 राजा दाऊद के पुत्र
\p
\v 1 राजा दाऊद के छः बेटों का जन्म हेब्रोन शहर में हुआ था।
\q उसका सबसे बड़ा बेटा अम्नोन था, जिसकी माता अहीनोअम यिज्रेल शहर से थी।
\q उसका दूसरा बेटा दानिय्येल था, जिसकी माता कर्मेल शहर से अबीगैल थी।
\v 2 उसका तीसरा बेटा अबशालोम था, जिसकी माता माका थी, जो तल्मै की बेटी थी, तल्मै राजा गशूर शहर में शासन करता था।
\q उसका चौथा बेटा अदोनिय्याह था, जिसकी माता हग्गीथ थी।
\v 3 पाँचवा बेटा शपत्याह था, जिसकी माता अबीतल थी।
\q उसका सबसे छोटा बेटा यित्राम था, जिसकी माता एग्ला थी।
\q
\s5
\v 4 वे सब हेब्रोन में पैदा हुए थे, जहाँ दाऊद ने साढ़े सात वर्ष तक शासन किया था।
\p उसके बाद, दाऊद ने यरूशलेम में तैंतीस वर्ष तक शासन किया।
\v 5 दाऊद की कई सन्तान यरूशलेम में जन्मी थी।
\q अम्मीएल की बेटी बतशेबा ने अपने चार बेटों को जन्म दिया: शिमा, शोबाब, नातान और सुलैमान।
\q
\s5
\v 6 दाऊद के नौ अन्य बेटे भी हुए थे। वे यिभार, एलीशामा, एली पेलेत,
\v 7 नेगाह, नेपेग, यापी,
\v 8 एलीशामा, एल्यादा, और एली पेलेत।
\q
\v 9 उन सभी बेटों के अलावा, दाऊद की दासियों से भी उसके बेटे उत्पन्न हुए थे। दाऊद की तामार नाम की बेटी भी थी।
\s2 यहूदा के राजा
\q
\s5
\v 10 सुलैमान का बेटा राजा रहबाम था।
\q रहबाम का बेटा राजा अबिय्याह था।
\q अबिय्याह का बेटा राजा आसा था।
\q आसा का बेटा राजा यहोशापात था।
\q
\v 11 यहोशापात का बेटा राजा योराम था।
\q योराम का बेटा राजा अहज्याह था।
\q अहज्याह का बेटा राजा योआश था।
\q
\v 12 योआश का बेटा राजा अमस्याह था।
\q अमस्याह का बेटा राजा अजर्याह था।
\q अजर्याह का बेटा राजा योताम था।
\q
\s5
\v 13 योताम का बेटा राजा आहाज था।
\q आहाज का बेटा राजा हिजकिय्याह था।
\q हिजकिय्याह का बेटा राजा मनश्शे था।
\q
\v 14 मनश्शे का बेटा राजा आमोन था।
\q आमोन का बेटा राजा योशिय्याह था।
\q
\s5
\v 15 योशिय्याह का सबसे बड़ा बेटा योहानान था। उसके अन्य बेटे यहोयाकीम, सिदकिय्याह और शल्लूम थे।
\q
\v 16 यहोयाकीम का बेटा यहोयाकीन था। आखिरी राजा सिदकिय्याह था।
\s2 यहूदा वासियों को बंधुआई में ले जाने के बाद राजा दाऊद के अन्य वंशज थे
\q
\s5
\v 17 यहोयाकीन को बन्दी बनाकर, बाबेल में ले जाया गया। उसका बेटा शालतीएल था,
\v 18 मल्कीराम, पदायाह, शेनस्सर, यकम्याह, होशामा और नदब्याह।
\q
\s5
\v 19 पदायाह के बेटे जरुब्बाबेल और शिमी थे।
\q जरुब्बाबेल के बेटों में से दो मेशुल्ला और हनन्याह थे, और उनकी बहन शलोमीत थी।
\v 20 जरुब्बाबेल के पांच अन्य बेटे हशूबा, ओहेल, बेरेक्याह, हसद्याह और यूशमेसेद थे।
\q
\v 21 हनन्याह के बेटे पलत्याह और यशायाह थे। यशायाह का बेटा रपायाह था। उसके बाद, हनन्याह के अन्य वंशज अरणान, ओबद्याह और शकेन्याह थे।
\q
\s5
\v 22 तकन्याह का बेटा शमायाह था। शमायाह के पाँच बेटे हत्तूश, यिगाल, बारीह, नायहि और शपात थे।
\q
\v 23 नायहि के तीन बेटे एल्योएनै, हिजकिय्याह और अज़्रीकाम थे।
\q
\v 24 एल्योएनै के सात बेटे होदब्याह, एल्याशीब, पलयाह, अक्कूब, जोहानान, दलायाह और अनानी।
\s5
\c 4
\s2 अन्य कुल जो यहूदा से निकले
\p
\v 1 यहूदा के वंश पेरेस, हेस्रोन, कर्मी, हूर और शोबाल थे।
\q
\v 2 शोबाल का बेटा रायाह था। रायाह यहत का पिता था, और यहत अहूमै और लहद का पिता था। वे सोराई लोगों के पूर्वज थे।
\q
\s5
\v 3 नीचे जो नाम दिए गए हैं, वे तीन पुरुष हैं जिनसे एतामवासी कुलों का आरंभ हुआ था। यिज्रेल, यिश्मा यिव्दाश और उनकी एक बहन हस्सलेलपोनी थी।
\v 4 हूर एप्राता का बड़ा बेटा था; उसने बैतलहम शहर की स्थापना की। हूर के वंशज थे: पनूएल और एज़ेर। पनूएल से गदोर शहर में रहने वाले कुल निकले, और एज़ेर से हूशा शहर में रहने वाले कुल निकले।
\q
\s5
\v 5 तको हेस्रोन के बेटे अशहूर के बेटे तको की दो पत्नियां थीं जिनके नाम हेबा और नारा थे।
\q
\v 6 अशहूर और उसकी पत्नी नारा के बेटे थे अहुज्जाम, हेपेर, तेमनी और हाहशतारी थे।
\q
\v 7 अशहूर और उसकी पत्नी हेबा के बेटे सेरेत, यिसहर, और एत्ना थे,
\v 8 और कोस। कोस आनूब, सोबेबा, और अहर्हेल से निकले कुलों के पूर्वजों का पिता था। अहहैल हारम का बेटा था।
\p
\s5
\v 9 यहूदा का एक और वंशज था जिसका नाम याबेस था। वह अपने भाइयों की तुलना में अधिक सम्मानित था। उनकी माता ने उसे जन्मते समय याबेस नाम दिया जिसका अर्थ है ‘पीड़ा’ क्योंकि उसने कहा, “जब मैंने उसे जन्म दिया तो मुझे बहुत पीड़ा हो रही थी।”
\v 10 एक दिन उसने परमेश्वर से प्रार्थना की जिनकी आराधना उसके साथी इस्राएली करते थे, “कृपया मुझे बहुत आशीष दें और मेरी भूमि बढ़ा दें। मेरे साथ रहें, और किसी को भी मुझे हानि पहुंचाने न दें। यदि आप मेरे लिए ऐसा करते हैं, तो मुझे कोई कष्ट नहीं होगा।” “और परमेश्वर ने याबेस की विनती स्वीकार की।”
\q
\s5
\v 11 यहूदा का एक और वंशज शूहा था। उसके छोटे भाई कलूब, महीर का पिता था। महीर, एशतोन का पिता था।
\v 12 एशतोन से बेत रामा, पासेह और तहिन्ना उत्पन्न हुए। तहिन्ना ने नाहाश शहर बसाया, परन्तु उनके परिवार रेका नामक एक स्थान में रहते थे।
\q
\s5
\v 13-15 यहूदा का एक और वंशज यपुन्ने था। उसका बेटा कालेब था। कालेब के पुत्र इरु, एला और नाम थे। एला का बेटा कनज था। कनज के बेटे ओत्नीएल और सरायाह थे।
\q2 ओत्नीएल के बेटे हतत और मोनोतै थे। मोनोतै, ओप्रा का पिता था।
\q2 सरायाह योआब का पिता था। योआब उन लोगों का पूर्वज था जो कारीगर की घाटी में रहते थे। घाटी के यही नाम दिया गया था क्योंकि वहां रहने वाले बहुत से लोग कारीगर थे।
\q
\v 16 यहूदा का एक और वंशज यहल्लेल था। उनके बेटे जीप, जीपा, तीरया और असरेल थे।
\q
\s5
\v 17-18 यहूदा का एक और वंशज एज्रा था। एज्रा के बेटे येतेर, मेरेद, एपेर और यालोन थे। मेरेद ने बित्या से विवाह किया, जो मिस्र के राजा की बेटी थी। मेरेद और बित्या की सन्तान, मिर्य्याम, शमै और यिशबह थे। यिशबह एशतमो का पिता था। मेरेद की यहूदा भी पत्नी थी। उसने येरेद, हेबर और यकूतीएल को जन्म दिया। येरेद गदोर का पिता था; हेबेर सोको का पिता था, और यकूतीएल जनोआ का पिता था।
\q
\s5
\v 19 होदिय्याह की पत्नी नहम की बहन थी। होदिय्याह की पत्नी दो बेटों की माता थी। उनमें से एक गेर लोग समूह के पूर्वज कीला का पिता था, और दूसरा माकाई लोगों के समूह के पूर्वज एशतमो का पिता था।
\q
\v 20 यहूदा का एक अन्य वंशज शिमोन था। शिमोन के बेटे अम्नोन, रिन्ना, बेन्हानान और तोलोन थे।
\q यहूदा का एक और वंशज यिशी था। उसके वंशज जोहेत और बेनजोहेत थे।
\q
\s5
\v 21 यहूदा के बेटों में से एक शेला था। शेला के वंशज लेका के पिता एर, मरेशा के पिता लादा और उन लोगों के कुल जिन्होंने बेत-अशबे में सन के कपड़े का काम करते थे,
\v 22 योकीम, और कोर्जबा शहर के लोग, योआश और सराप, दो पुरुष जिन्होंने मोआब के क्षेत्र की स्त्रियों से विवाह किया था और याशूब लेहेम में शासन किया। उनके सभी नाम और उनके द्वारा किए गए कामों का लेखा पुस्तक में लिखा गया है।
\v 23 शेला के इन वंशजों में से कुछ ने राजा के लिए मिट्टी के बरतन बनाए। उनमें से कुछ नताईम शहर में रहते थे, और कुछ गदेरा शहर में रहते थे।
\q
\s5
\v 24 शिमोन के पुत्र नमूएल, यामीन, यारीब जेरह और शाऊल थे।
\q2
\v 25 शाऊल का बेटा शल्लूम था। शल्लूम का बेटा मिबसाम था। मिबसाम का बेटा मिश्मा था।
\q2
\v 26 मिश्मा का बेटा हम्मूएल था। हैमूल का बेटा जक्कर था। जक्कर का बेटा शिमी था।
\p
\s5
\v 27 शिमी के सोलह पुत्र और छः बेटियां थीं, लेकिन उसके किसी भी भाई के अधिक सन्तान नहीं थीं। तो शिमोन के वंशज कभी भी अपने छोटे भाई यहूदा के वंशजों के बराबर नहीं थे।
\v 28 शिमोन के वंशज इन नगरों और कस्बों में रहते थे: बेर्शबा, मोलादा, हसर्शूआल,
\s5
\v 29 बिल्हा, एसेम, तोलाद,
\v 30 बेतूएल, हार्म, सिकलग,
\v 31 बेतमर्काबोत, हसर्सूसीम, बेतबिरी और शारैम। वे तब तक उन जगहों पर रहते थे जब तक दाऊद राजा बन गया।
\s5
\v 32 वे उन कस्बों के पास गांवों में भी रहते थे: एताम, ऐन, रिम्मोन, तोकेन और आशान।
\v 33 वहां अन्य गांव थे जहाँ वे दक्षिण-पश्चिम में बालत तक में रहते थे। ये वे स्थान थे जहाँ वे रहते थे, और उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के नाम लिखे थे।
\p
\s5
\v 34-38 निम्नलिखित सूची में से पुरुष अपने कुलों के प्रधान थे: मशोबाब, यम्लेक, अमस्याह का बेटा योशा, योएल और योशिब्याह का बेटा येहू। योशिब्याह सरायाह का पोता और असीएल के पोता था। अन्य कुलों के प्रधान एल्योएनै, याकोबा, यशोहायाह, असायाह, अदीएल, जेसीमीएल, बनायाह और ज़िज़ा थे। जिज़ा शिपी का पुत्र था और यदायाह के पुत्र अलोन के पोता था, जो शमायाह के बेटे सिम्री का बेटा था।
\p उन कुलों के सदस्य असंख्य हो गए।
\s5
\v 39 वे घाटी के पूर्व की ओर गदोर शहर के पास भेड़ों के लिए चरागाह की तलाश में गए।
\v 40 उन्हें बहुत घास के साथ अच्छी चरागाह मिला। वह स्थान शांतिपूर्ण और शांत थी।
\p प्राचीनकाल में नूह के बेटे हाम के वंशज वहां रहते थे।
\v 41 परन्तु हिजकिय्याह यहूदा का राजा था, तब शिमोन के गोत्र के उन प्रधानों ने गदोर के पास आकर हाम के वंशजों के विरुद्ध युद्ध किया और उनके तम्बुओं को नष्ट कर दिया। उन्होंने मूनी के वंशजों से भी युद्ध जो वहां रह रहे थे और उन्होंने उन सब को मार डाला। तो अब वहां रहने वाले मूनी के कोई वंशज नहीं हैं। शिमोन के वंशज वहां रहने लगे, क्योंकि वहां उनकी भेड़ों के लिए अच्छी चरागाह थी।
\p
\s5
\v 42 यिशी के चार बेटे पलत्याह, नार्याह, रपायाह और उज्जीएल को शिमोन के पाँच सौ अन्य वंशजों का नेतृत्व किया और उन लोगों पर हमला किया जो एदोम के पहाड़ी देश में रहते थे।
\v 43 उन्होंने अमालेक के कुछ वंशजों को मार डाला जो अब भी जीवित थे। उस समय से शिमोन के वंशज एदोम के क्षेत्र में रहते थे।
\s5
\c 5
\s2 ये रूबेन के वंशज हैं।
\p
\v 1 रूबेन याकूब का सबसे बड़ा बेटा था। इसलिए, उसे सबसे बड़ा बेटा होने का विशेष अधिकार प्राप्त होने थे। परन्तु वह अपने पिता की दासी पत्नी के साथ सो गया, इसलिए उसके पिता ने उसके छोटे भाई यूसुफ के बेटों को ये अधिकार दिए। और इसलिए पारिवारिक अभिलेखों में, रूबेन का उल्लेख सबसे पहले नहीं किया गया है, जैसा कि सबसे बड़े बेटे का सदैव होता हैं।
\v 2 यद्यपि यहूदा अपने भाइयों में अधिक प्रभावशाली हो गया, और यहूदा के द्वारा एक शासक निकला, परन्तु यूसुफ के परिवार को पहले बेटों के अधिकार प्राप्त हुए।
\v 3 परन्तु रूबेन, याकूब का सबसे बड़ा बेटा था।
\q रूबेन के बेटे हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कर्मी थे।
\q
\s5
\v 4 रूबेन का एक और वंशज योएल था। योएल का बेटा शमायाह था। शमायाह का पुत्र गोग था। गोग का बेटा शिमी था।
\v 5 शिमी का पुत्र मीका था। मीका का पुत्र रायाह था। रायाह का बेटा बाल था।
\v 6 बाल का बेटा बेरा था। बेरा रूबेन के गोत्र का प्रधान था। लेकिन अश्शूर के राजा तिगलत्पिनेसेर उसे बन्दी बनाकर अश्शूर ले गया।
\q
\s5
\v 7 इन कुलों के नाम यहाँ उनके परिवार के लेखों के अनुसार लिखे गए हैं।
\q लिखे गए नाम थे: योएल (प्रधान), फिर जकर्याह,
\v 8 योएल के पुत्र शेमा के पुत्र आजाज के पुत्र बेला। रूबेन का कबीला बहुत बड़ा था। उनमें से कुछ अब तक उत्तर में अरोएल शहर और नबो शहर और बाल्मोन शहर में रहते थे।
\v 9 उनमें से कुछ और आगे पूर्व में रहते थे, जहाँ तक फरात नदी के दक्षिण में रेगिस्तान के किनारे थे। वे वहां गए क्योंकि उनके पास बड़ी मात्रा में मवेशी थे, जिसके परिणामस्वरूप गिलाद के क्षेत्र में उनके लिए पर्याप्त चरागाह नहीं था।
\q
\s5
\v 10 जब शाऊल इस्राएल का राजा था, तब रूबेन के गोत्र के लोगों ने हग्री के वंशजों के विरूद्ध युद्ध किया और उन्हें पराजित कर दिया। उसके बाद, वे वहाँ तम्बुओं में रहने लगे थे जिन तम्बुओं में पहले हग्री लोग रहते थे वे गिलाद के क्षेत्र के पूर्व में रहते थे।
\q
\s5
\v 11 गाद का गोत्र रूबेन के गोत्र के पास रहता था; वे बाशान के क्षेत्र में पूर्व सल्का तक रहते थे।
\v 12 योएल उनका प्रधान था, शापाम उसका सहायक था; बाशान में अन्य अगुवे यानै और शापात थे।
\q2
\v 13 गोत्र के अन्य सदस्य सात कुलों के थे, जिनके मुखिया, मीकाएल, शबा, योरै, याकान, जी और एबेर थे।
\q2
\s5
\v 14 वे अबीहैल के वंशज थे। अबीहैल, हूरी का पुत्र था, हूरी, जराह का पुत्र था, जराया, गिलाद का पुत्र था, गिलाद, मिकाएल का पुत्र था, मिकाएल, यशीशै का पुत्र था, यशीशै, यहदो का पुत्र था, और यहदो, बूज का पुत्र था।
\q2
\v 15 अही, अब्दीएल का पुत्र था। अब्दीएल, गुनी का बेटा था। अही अपने कुल का नेता था।
\q
\s5
\v 16 गाद के वंशज गिलाद और बाशान के क्षेत्र में और शारोन के मैदान पर सब चरागाहों के नगरों में रहते थे।
\v 17 वे सब नाम गाद के कुलों के अभिलेखों में लिखे गए थे, जब योताम यहूदा का राजा था और यारोबाम इस्राएल का राजा था।
\s2 यरदन नदी के पूर्व में रहने वाले कुलों की सेनाएँ हैं:
\p
\s5
\v 18 रूबेन और गाद के गोत्र में और मनश्शे के गोत्र के पूर्वी आधे भाग में 44,760 सैनिक थे। वे सब ढाल और तलवारें और धनुष और तीर रखते थे। वे सब युद्धों में अच्छी तरह से लड़ने के लिए प्रशिक्षित थे।
\v 19 उन्होंने हग्रियों के वंशजों और यतूर, नापीश और नोदाब के नगरों में लोगों पर हमला किया।
\s5
\v 20 उन तीन गोत्रों के पुरुषों ने युद्ध के समय परमेश्वर से प्रार्थना की, और उनकी सहायता करने के लिए उनसे अनुरोध किया। इसलिए उन्होंने उनकी सहायता की, क्योंकि वे उस पर भरोसा करते थे। उन्होंने उन्हें हग्री के वंशजों और उन की सहायता करने वालों को पराजित करने में उनकी सहायता की।
\v 21 उन्होंने हग्री के वंशजों के पशुओं को ले लिया: उन्होंने पचास हजार ऊंट, 250,000 भेड़ और दो हजार गधे ले लिए। उन्होंने 100,000 लोगों को भी बन्दी बना लिया।
\v 22 परन्तु हग्री के कई वंशज मारे गए क्योंकि परमेश्वर ने रूबेन, गाद और मनश्शे के गोत्रों के लोगों की सहायता की थी। उसके बाद, ये तीनों गोत्र उस क्षेत्र में रहने लगे थे जब तक कि बाबेल की सेना ने उन्हें पकड़ कर बाबेल नहीं ले गई।
\s2 ये वे हैं जो मनश्शे के गोत्र के पूर्वी आधे भाग के साथ रहते थे
\p
\s5
\v 23 मनश्शे के गोत्र के पूर्वी भाग के बहुत से लोग थे। वे यरदन नदी के पूर्व में बाशान के क्षेत्र में रहते थे, जहाँ तक उत्तर में बाल्हेर्मोन, सनीर और हेर्मोन पर्वत थे।
\p
\v 24 उनके वंश के प्रधान एपेर, यिशी, एलीएल, अज्रीएल, यिर्मयाह, होदव्याह और याहदीएल थे। वे सब शक्तिशाली, बहादुर और प्रसिद्ध सैनिक थे, और कुलों के प्रधान थे।
\s5
\v 25 परन्तु उन्होंने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया, जिनकी आराधना उनके पूर्वजों ने की थी। उन्होंने देवताओं की पूजा करना आरंभ कर दिया था जो क्षेत्र के लोग करते थे, जिन लोगों को परमेश्वर ने उन्हें नष्ट करने में समर्थ किया था।
\v 26 इसलिए जिन परमेश्वर की इस्राएलियों ने उपासना की थी, उन्होंने अश्शूरों के राजा पूल को उभारा कि इन गोत्रों को जीत ले। पूल का दूसरा नाम तिग्लत्पिलेसेर था। उनकी सेना ने रूबेन, गाद और मनश्शे के गोत्र के पूर्वी भाग के गोत्रों के लोगों को बन्दी बना लिया, और उन्हें अश्शूर के विभिन्न स्थानों पर ले गया: हलह, हाबोर, हारा और गोजान नदी के पास। वे उस समय से आज तक वहीं रहते हैं।
\s5
\c 6
\s2 ये लेवी के वंशज हैं।
\p
\v 1 लेवी के पुत्र गेर्शोन, कहात और मरारी थे।
\q
\v 2 कहात के पुत्र अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल थे।
\q
\v 3 अम्राम की सन्तान मिर्याम और उसके छोटे भाई हारून और मूसा थे।
\q हारून के पुत्र नादाब, अबीहू, एलीआज़ार और ईतामार थे।
\q2
\s5
\v 4 एलीआज़ार, पानहास का पिता था।
\q2 पानहास, अबीशू का पिता था।
\q2
\v 5 अबीशू, बुक्की का पिता था।
\q2 बुक्की, उज्जी का पिता था।
\q2
\v 6 उज्जी, जरहयाह का पिता था।
\q2 जरहयाह, मरायोत का पिता था।
\q2
\s5
\v 7 मरायोत, अमर्याह का पिता था।
\q2 अमर्याह, अहीतूब का पिता था।
\q2
\v 8 अहीतूब, सादोक का पिता था।
\q2 सादोक, अहीमास का पिता था।
\q2
\v 9 अहीमास, अजर्याह का पिता था।
\q2 अजर्याह, योहानान का पिता था।
\q2
\s5
\v 10 योहानान, अजर्याह का पिता था। अजर्याह यरूशलेम में सुलैमान के मंदिर में एक याजक था।
\q2
\v 11 अजर्याह अमर्याह का पिता था।
\q2 अमर्याह, अहितूब का पिता था।
\q2
\v 12 अहीतूब, सादोक का पिता था।
\q2 सादोक, शल्लूम का पिता था।
\q2
\s5
\v 13 शल्लूम, हिलकिय्याह का पिता था।
\q2 हिलकिय्याह, अजर्याह का पिता था।
\q2
\v 14 अजर्याह, सरायाह का पिता था।
\q2 सरायाह, यहोसादक का पिता था।
\v 15 यहोसादक को अपना घर छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा जब यहोवा ने राजा नबूकदनेस्सर की सेना को यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों पर कई लोगों को बन्दी बनाने के लिए भेजा जिन्होंने उन्हें बाबेल जाने के लिए विवश किया।
\q
\s5
\v 16 लेवी के पुत्र गेर्शोन, कहात और मरारी थे।
\q2
\v 17 गेर्शोन के पुत्र लिब्नी और शिमी थे।
\q2
\v 18 कहात के पुत्र अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल थे।
\q
\s5
\v 19 मरारी के पुत्र महली और मूशी थे।
\m यहाँ लेवी के वंशजों की एक सूची है, जो अपने गोत्र का प्रधान था।
\q
\v 20 गेर्शोन का सबसे बड़ा पुत्र लिब्नी था।
\q2 लिब्नी का पुत्र यहत था।
\q2 यहत का पुत्र जिम्मा था।
\q2
\v 21 जिम्मा का पुत्र योआह था।
\q2 योआह का पुत्र इद्दो था।
\q2 इद्दो का पुत्र जेरह था।
\q2 जेराह का पुत्र यातरै था।
\q
\s5
\v 22 कहात का दूसरा पुत्र अम्मीनादाब था।
\q2 अम्मीनादाब का पुत्र कोरह था।
\q2 कोरह का बेटा अस्सीर था।
\q2
\v 23 अस्सीर का पुत्र एल्काना था।
\q2 एल्काना का पुत्र एब्यासाप था।
\q2 एब्यासाप का बेटा अस्सीर था।
\q2
\v 24 अस्सीर का पुत्र ताहत था।
\q2 ताहत का बेटा उरीएल था।
\q2 ऊरीएल का पुत्र उज्जियाह था।
\q2 उज्जियाह का पुत्र शाऊल था।
\q
\s5
\v 25 एल्काना के पुत्र अमासै और अहीमोत थे,
\q2
\v 26 और एल्काना नाम का एक और पुत्र था।
\q2 एल्काना का पुत्र सोपै था
\q2 सोपै का पुत्र नहत था।
\q2
\v 27 नहत का पुत्र एलीआब था।
\q2 एलियाब का पुत्र यरोहाम था।
\q2 यरोहाम का पुत्र एल्काना था।
\q
\s5
\v 28 शमूएल का सबसे बड़ा पुत्र योएल था; उसका दूसरा पुत्र अबिय्याह था।
\q
\v 29 मरारी का सबसे बड़ा बेटा महली था।
\q2 महली का बेटा लिब्नी था।
\q2 लिब्नी का बेटा शिमी था।
\q2 शिमी का पुत्र उज्जा था।
\q2
\v 30 उज्जा का पुत्र शिमा था।
\q2 शिमा का पुत्र हग्गिय्याह था।
\q2 हग्गिय्याह का पुत्र असायाह था।
\s2 ये मंदिर संगीतकार हैं।
\p
\s5
\v 31 पवित्र सन्दूक के यरूशलेम में आ जाने के बाद, राजा दाऊद ने लेवी के वंशजों में से कुछ को उस स्थान में संगीत की सेवा के लिए नियुक्त कर दिया था।
\v 32 ये संगीतकार ने पहले पवित्र तम्बू में जिसे मिलाप वाला तम्बू भी कहते थे गाते थे और बजाते थे, और जब तक सुलैमान के काम करने वालों ने यरूशलेम में यहोवा के मंदिर का निर्माण नहीं किया तब तक वे ऐसा करते रहे। उनके सब कामों में, उन्होंने उन निर्देशों का पालन किया जो दाऊद ने उन्हें दिए थे।
\p
\s5
\v 33 संगीतकारों और उनके पुत्रों की एक सूची यहाँ दी गई है:
\q कहात के वंशजों से गायकों के अगुवा हेमान था।
\q2 हेमान, योएल का पुत्र था।
\q2 योएल, शमूएल का पुत्र था।
\q2
\v 34 शमूएल, एल्काना का पुत्र था।
\q2 एल्काना, यरोहाम का पुत्र था।
\q2 यरोहाम, एलीएल का पुत्र था।
\q2 एलीएल, तोह का पुत्र था।
\q2
\v 35 तोह, सूप का पुत्र था।
\q2 सूप, एल्काना का पुत्र था।
\q2 एल्काना, महत का पुत्र था।
\q2 महत, अमासै का पुत्र था।
\q2
\s5
\v 36 अमासै एक और पुरुष का पुत्र था जिसका नाम एल्काना था।
\q2 एल्काना, योएल का पुत्र था।
\q2 योएल, अजर्याह का पुत्र था।
\q2 अजर्याह, सपन्याह का पुत्र था।
\q2
\v 37 सपन्याह, तहत का पुत्र था।
\q2 तहत, अस्सीर का पुत्र था।
\q2 अस्सीर, एब्यासाप का पुत्र था।
\q2 एब्यासाप, कोरह का पुत्र था।
\q2
\v 38 कोरह, यिसहार का पुत्र था।
\q2 यिसहार, कहात का पुत्र था।
\q2 कहात, लेवी का पुत्र था।
\q2 लेवी, याकूब का पुत्र था।
\q
\s5
\v 39 हेमन का सहायक असाप था। उनका समूह हेमन के दाहिनी ओर खड़ा था।
\q2 आसाप बेरेक्याह का पुत्र था।
\q2 बेरेक्याह, शिमा का पुत्र था।
\q2
\v 40 शिमा, मीकाएल का पुत्र था।
\q2 मीकाएल, बासेयाह का पुत्र था।
\q2 बासेयाह, मल्किय्याह का पुत्र था।
\q2
\v 41 मल्किय्याह, एत्नी का पुत्र था।
\q2 एत्नी, जेरह का पुत्र था।
\q2 जेरह, अदायाह का पुत्र था।
\q2
\v 42 अदायाह, एतान का पुत्र था।
\q2 एतान, जिम्मा का पुत्र था।
\q2 जिम्मा, शिमी का पुत्र था।
\q2
\v 43 शिमी, यहत का पुत्र था।
\q2 यहत, गेर्शोन का पुत्र था,
\q2 और गेर्शोन, लेवी का पुत्र था।
\q
\s5
\v 44 मरारी के परिवार के गायकों के एक समूह ने हेमन और आसाप की सहायता करते थे। वे हेमन के बाईं ओर खड़े थे। इस समूह के अगुवा किशी का बेटे एताव था।
\q2 किशी, अब्दी का पुत्र था।
\q2 अब्दी, मल्लूक का पुत्र था।
\q2
\v 45 मल्लूक, हाशब्याह का पुत्र था।
\q2 हशब्याह, अमस्याह का पुत्र था।
\q2 अमस्याह, हिल्किय्याह का पुत्र था।
\q2
\v 46 हिल्किय्याह, अमसी का पुत्र था।
\q2 अमसी, बानी का पुत्र था।
\q2 बानी, शमेर का पुत्र था।
\q2
\v 47 शेमेर, महली का पुत्र था।
\q2 महली, मूशी का पुत्र था।
\q2 मूशी, मरारी का पुत्र था,
\q2 और मरारी, लेवी का पुत्र था।
\p
\s5
\v 48 लेवी के अन्य वंशजों को पवित्र तम्बू में जहाँ परमेश्वर की आराधना की जाती थी अन्य काम करने के लिए नियुक्त किया गया था।
\p
\s5
\v 49 हारून और उसके वंशजों ने वेदी पर रखे बलिदानों को पूरी तरह जलाने, और वे धूप को एक और वेदी पर जलाते थे। ये बलिदान इस लिए थे कि जिन इस्राएलियों ने पाप किए उनसे यहोवा अब क्रोधित नहीं है। ये लोग पवित्र तम्बू में परमपवित्र स्थान में अन्य काम भी करते थे, जो परमेश्वर के सच्चे सेवक मूसा ने उन्हें निर्देश दिए थे।
\q
\s5
\v 50 ये हारून के वंशज थे:
\q2 हारून का पुत्र एलीआज़ार था।
\q2 एलीआज़ार का बेटा पीनहास था।
\q2 पीनहास का पुत्र अबीशू था।
\q2
\v 51 अबीशू का पुत्र बुक्की था।
\q2 बुक्की का बेटा उज्जी था।
\q2 उज्जी का पुत्र जरहयाह था।
\q2
\v 52 जरहयाह का पुत्र मरायोत था।
\q2 मरायोत का पुत्र अमर्याह था।
\q2 अमर्याह का पुत्र अहीतूब था।
\q2
\v 53 अहीतूब का पुत्र सादोक था,
\q2 और सादोक का पुत्र अहीमास था।
\s2 यह लेवी के वंशजों के लिए भूमि थी:
\p
\s5
\v 54 यहाँ उन स्थानों की एक सूची है जहाँ हारून के वंशज रहते थे। जो लोग कहात के वंशज वह पहला समूह था जिसे वे रहने वाले शहर दिए गए थे।
\v 55 उन्हें यहूदा में हेब्रोन शहर और शहर के चारों ओर चरागाह दी गई थी,
\v 56 परन्तु नगर से दूर के खेत और शहर के पास के गांव को यपुन्ने के बेटे कालेब को दिए गए थे।
\s5
\v 57 हारून के वंशज जो कहात के वंशज थे, उन्हें हेब्रोन दिया गया था, उन शहरों में से एक जहाँ लोग भाग सकते थे और यदि वे गलती से किसी को मार डाले तो सुरक्षित रहें। उन्हें लिब्ना, यात्तीर एशतमो, तथा चारागाहों के साथ
\v 58 हीलेन, दबीर,
\s5
\v 59 आशान, युत्ता और बेतशेमेश नगर दिये गये थे।
\v 60 उन्हें बिन्यामीन के गोत्र से गेबा, अलेमेत और अनातात के नगर भी दिए गए थे। कुल मिलाकर, कहात से निकले इन कुलों को तेरह शहर दिए गए थे।
\p
\s5
\v 61 कहात से निकले अन्य कुलों को यरदन नदी के पश्चिम में मनश्शे के गोत्र के कुलों के दस नगर दिए गए थे।
\p
\v 62 गेर्शोन के वंशजों को इस्साकार, आशेर, नप्ताली और यरदन नदी के पूर्व की ओर बाशान के क्षेत्र में रहने वाले मनश्शे के गोत्र का हिस्सा तेरह नगर और कस्बों को आवंटित किया गया था।
\p
\s5
\v 63 मरारी के वंशजों को रूबेन, गाद और जबूलून के गोत्रों के बारह नगर और कस्बे दिए गए थे।
\p
\v 64 इस्राएल के अगुवों ने उन नगरों और आस-पास की चरागाहों को लेवी के वंशजों को दिया।
\v 65 उन्होंने यहूदा, शिमोन और बिन्यामीन के गोत्रों से ये नगर और कस्बे दिए जिनका नाम ऊपर दिया गया है।
\p
\s5
\v 66 कहात के कुछ वंशजों को एप्रैम के गोत्र से नगर दिए गए थे।
\v 67 उन्हें शकेम दिया गया था, जो उन शहरों में से एक था जहाँ लोग भाग कर शरण ले सकते थे यदि उन्होंने गलती से किसी की हत्या कर दी हो, उन्हें एप्रैम की पहाड़ियों में पास के चरागाह भी मिले। उन्हें इन नगरों और चरागाहों के साथ गेज़ेर उनके,
\v 68 योकमाम, बेथोरोन,
\v 69 अय्यालोन, और गत्रिम्मोन भी मिले।
\s5
\v 70 कहात के अन्य वंशजों को यरदन नदी के पश्चिम में रहने वाले मनश्शे के गोत्र के भाग से आनेर और बिलाम और पास के चरागाह के नगर दिए गए थे।
\p
\s5
\v 71 गेर्शोन के वंशज, जो मनश्शे के गोत्र का एक भाग थे, और यरदन नदी के पूर्व में रहते थे। उन्हें उनके चारों ओर शहर और कस्बे और चरागाह दिए गए: बाशान का गोलन और अश्तारोत दिया गया।
\q2
\v 72 इस्साकार के गोत्र से उन्हें केदेश, दाबरात,
\v 73 रामोत, और आनेम तथा उनके पास के चारागाह और गाँव दिए गए।
\q2
\s5
\v 74 आशेर के गोत्र से उन्हें माशाल, अब्दोन,
\v 75 हुकोक, और रहोब के पास के गाँव तथा चारागाह दिए गए।
\q2
\v 76 नप्ताली के गोत्र से उन्हें चरागाहों के साथ गलील के केदेश, और हम्मोन और किर्यातैमक के पास गाँव मिले।
\q
\s5
\v 77 मरारी से निकले लेवी के अन्य वंशजों को जबूलून के गोत्र में से योकनेम, कार्ता, शिम्मोन और ताबोर के पास के गाँव तथा चारागाह दिए गए।
\q2
\v 78-79 रूबेन के गोत्र से उन्हें मरुभूमि, में यहसा, कदेमोत और मेपाता बेसेर के पास के नगर और गाँव और चरागाह दिए गए। रूबेन का गोत्र यरीहो के पास यरदन नदी के पूर्व में रहता था।
\q2
\s5
\v 80 गाद के गोत्र से, उन्हें गिलाद, महनैम के क्षेत्र में रामोत के पास नगर और गाँव और चरागाहों के साथ,
\v 81 हेशोबोन, और याजेर दिए गए।
\s5
\c 7
\s2 ये इस्साकार के वंशज हैं।
\p
\v 1 इस्साकार के चार पुत्र तोला, पूआ, याशूब और शिम्रोन थे।
\q
\v 2 तोला के पुत्र उज्जी, रपायाह, यरीएल, यहमै, यिबसाम और शमूएल थे। वे उनसे निकले कुलों के प्रधान थे।
\q2 तोला के वंशजों के अभिलेख में 22,600 पुरुषों के नाम थे जो राजा दाऊद के समय सेना के योग्य थे।
\q
\v 3 उज्जी का पुत्र यिज्रह्याह था। यिज्रह्याह के पांच पुत्र थे: मीकाएल , ओबद्याह, योएल और यिशि्बय्याह थे। यिज्रह्याह और उसके पुत्र अपने-अपने कुलों के सभी प्रधान थे।
\q2
\s5
\v 4 यिज्रह्याह के वंशजों के अभिलेख में छत्तीस हजार पुरुष थे जो सेना के योग्य थे क्योंकि उनकी कई पत्नियां और बच्चे थे।
\q
\v 5 इस्साकार से निकले कुलों के अभिलेखों में सेना के योग्य सत्तासी हजार पुरुषों के नाम थे।
\s2 बिन्यामीन के वंशजों की सूची आगे दी गई है।
\q2
\s5
\v 6 ये बिन्यामीन के वंशज हैं। बिन्यामीन के तीन पुत्र बेला, बेकर और यदीएल थे।
\q
\v 7 बेला के पांच पुत्र थे एसबोन, उज्जी, उज्जीएल, यरीमोत और ईरी। अपने-अपने वे कुलों के प्रधान थे।
\q2 बेला से निकले कुलों के अभिलेखों में 22,034 पुरुष थे जो सेना के योग्य थे।
\q2
\s5
\v 8 बेकर के पुत्र जमीरा, योआश, एलीएजेर, एल्योएनै, ओम्री, यरेमोत, अबिय्याह, अनातोत और अालेमेत थे।
\q2
\v 9 बेकर से निकले कुलों के अभिलेखों में 20,200 पुरुष थे जो कुलों के प्रधान थे और सेना के योग्य।
\q
\v 10 यदीएल का पुत्र बिल्हान था। बिल्हान के पुत्र यूश, बिन्यामीन, एहूद, कनाना, जेतान, तर्शीश और अहीशहर थे।
\q
\s5
\v 11 वे उनसे निकले कुलों के प्रधान थे।
\q2 उनमें से 17,200 थे जो सेना के योग्य थे।
\q
\v 12 शुप्पीम और हूपीम भी इस कुल के सदस्य थे।
\q दान के वंशजों में से एक हूशीम था।
\s2 अगली सूची नप्ताली के वंशजों की हैं।
\q
\s5
\v 13 ये नप्ताली के वंशज हैं। नप्ताली के पुत्र अहसीएल, गूनी, येसेर और शल्लूम थे। वे याकूब की दासी पत्नी बिल्हा के वंशज थे।
\s2 अगली सूची मनश्शे के वंशजों की है।
\q
\s5
\v 14 ये मनश्शे के वंशज हैं। मनश्शे के पास दासी पत्नी थी जो अराम से थी। वह अस्रीएल और माकीर की माता थीं।
\q माकीर गिलाद का पिता था।
\q2
\v 15 माकीर की दो पत्नियां थीं। वे हुप्पीम और शुप्पीम के कुलों से थीं।
\q2 माकीर की पत्नियों में से एक का नाम माका नाम था।
\q2 माकीर का एक और पुत्र था जिसका नाम सलोफाद था। सलोफाद के पुत्र नहीं थे; उसके पास केवल बेटियां थीं।
\q2
\v 16 माकीर की पत्नी माका ने दो पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें उसने पेरेस और शेरेश नाम दिया था। शेरेश के पुत्र ऊलाम और राकाम थे।
\q2
\s5
\v 17 ऊलाम का पुत्र बदान था।
\q वे माकीर के पुत्र गिलाद और मनश्शे के पोते के वंशज थे।
\q
\v 18 माकीर की बहन हम्मोलेकेत थी, जो ईशहोद, अबीएजेर और महला की माता थी।
\q
\v 19 गिलाद का एक और पुत्र शमीदा था, जिसका पुत्र अहयान, शेकेम, लिखी और अनीआम थे।
\s2 अगली सूची में एप्रैम के वंशज हैं।
\q
\s5
\v 20 ये एप्रैम के वंशज हैं।
\q2 एप्रैम का एक पुत्र शुतेलह था।
\q2 शुतेलह का बेटा बेरेद था।
\q2 बेरेद का बेटा तहत था।
\q2 तहत का पुत्र एलादा था।
\q2 एलादा के पुत्र का नाम भी तहत था।
\q2
\v 21 तहत का पुत्र जाबाद था।
\q2 जाबाद का पुत्र शूतेलह था।
\q एप्रैम के अन्य पुत्र, एज़र और एलाद, कुछ गायों और भेड़ों को चुराने के लिए गत शहर गए थे। परन्तु उन्हें उस शहर के लोगों ने मार डाला था।
\v 22 उनका पिता एप्रैम उनके लिए कई दिनों तक रोया, और उसका परिवार उसे शान्ति देने आया।
\q
\s5
\v 23 तब वह अपनी पत्नी के साथ सोया वह गर्भवती हुई और एक बेटे को जन्म दिया। एप्रैम ने उसका नाम बरीआ रखा जिसका अर्थ है, विपत्ति जिसका अनुभव उसके परिवार ने किया था।
\v 24 एप्रैम की बेटी शेरा थी। एप्रैम के श्रमिकों ने तीन नगरों का निर्माण किया: नीचले और ऊपरी बेथोरोन और उज्जेन शेरा।
\q
\s5
\v 25 एप्रैम का एक और पुत्र रेपा था।
\q2 रेपा का बेटा रेशेप था।
\q2 रेशेप का बेटा तेलह था।
\q2 तेलह का पुत्र तहन था।
\q2
\v 26 तहन का बेटा लादान था।
\q2 लादान का बेटा अम्मीहूद था।
\q2 अम्मीहूद का बेटा एलीशामा था।
\q2
\v 27 एलीशामा का पुत्र नून था।
\q2 नून का पुत्र यहोशू था, वह व्यक्ति जिसने मूसा के मरने के बाद इस्राएलियों का नेतृत्व किया था।
\p
\s5
\v 28 यह उन शहरों और क्षेत्रों की एक सूची है जहाँ एप्रैम के वंशज रहते थे:
\q बेतेल और पास के गांव;
\q पूर्व में नारान;
\q पश्चिम की ओर गेजेर और आस-पास के गांव तथा
\q शकेम और पास के गांव। उन गांवों ने उत्तर में अज्जा और आस-पास के गांव।
\q
\v 29 उस क्षेत्र की सीमा के साथ जहाँ मनश्शे के वंशज रहते थे, ये नगर थे: बेतशान, तानाक, मगिद्दो, और दोर और आस-पास के गांव।
\m उन सभी जगहों पर रहने वाले लोग याकूब के पुत्र यूसुफ के वंशज थे।
\s2 ये आशेर के वंशज हैं।
\q
\s5
\v 30 आशेर के पुत्र यिम्ना, यिश्वा, यिश्वी और बरीआ थे। उनकी बहन सेरेह थी।
\q
\v 31 बरीआ के पुत्र हेबेर और मल्कीएल थे।
\q2 मल्कीएल बिर्जोत का पिता था
\q2
\v 32 हेबर जैफलेट, शोमर और होताम का पिता था। उनकी बहन शूआ थी।
\q
\s5
\v 33 यपलेत के पुत्र पासक, बिम्हाल और अश्वात थे।
\q
\v 34 यपलेत का छोटा भाई शेमेर था। शेमेर के पुत्र रोहगा, यहुब्बा और अराम थे।
\q
\v 35 शोमर का छोटा भाई हेलेम था। हेलेम के पुत्र सोपह,यिम्ना, शेलश और अामाल थे।
\q2
\s5
\v 36 सोपह के पुत्र सूह, हर्नेपेर, शूआल, बेरी, इम्रा,
\v 37 बेसेर, होद, शाम्मा, शिल्सा, यित्रान और बेरा थे यित्रान का दूसरा नाम येतेर था।
\q2
\v 38 येतेर के पुत्र यपुन्ने, पिस्पा और अरा थे।
\q
\s5
\v 39 आशेर का एक और वंशज उल्ला था, जिसका पुत्र अरा, आरह हन्नीएल और रिस्या थे।
\p
\v 40 वे सब आशेर के वंशज थे, और वे अपने-अपने कुलों के प्रधान थे। वे बहादुर योद्धाओं और उत्तम अगुआ भी थे। आशेर से निकले कुलों के अभिलेख में छब्बीस हजार पुरुष थे जो सेना के योग्य थे।
\s5
\c 8
\s2 ये बिन्यामीन के वंशज हैं।
\p
\v 1 बिन्यामीन के पांच पुत्र थे: बेला, अशबेल, अह्रह,
\v 2 नोहा, और रापा।
\q
\v 3 बेला के पुत्र अद्दार, गेरा, अबीहूद,
\v 4 अबीशू, नामान, अहोह,
\v 5 गेरा, शेपूपान, और हूराम थे।
\q2
\s5
\v 6 गेरा के पुत्रों में से एक एहूद था। एहूद के वंशज अपने कुलों के प्रधान थे जो गेबा शहर में रहते थे, लेकिन उन्हें बन्दी बनाकर मानहत शहर ले जाया गया था।
\v 7 एहूद के पुत्र थे नामान, अहिय्याह और गेरा थे।
\q2 मानहत जाते समय गेरा ने उनकी अगुवाई की थी। गेरा उज्जा और अहिलूद का पिता था।
\q
\s5
\v 8-11 बिन्यामीन का एक और वंशज शहरैम था। वह और उसकी पत्नी हूशीम के दो पुत्र अबीतूब और एल्पाल थे। मोआब के क्षेत्र में, शाहरैम ने हूशीम और उनकी दूसरी पत्नी बारा को तलाक दे दिया। तब उसने एक स्त्री से विवाह किया जिसका नाम होदेश था, और उनके सात बेटे थे: योआब, सिब्या, मेशा, मल्काम, यूस, सोक्या और मिर्मा। वे अपने-अपने कुलों के प्रधान थे।
\q
\s5
\v 12-13 एल्पाल के पुत्र एबेर, मिशाम, शामेद, बरीआ और शेमा थे। शेमा ने ओनो और लोद के उनके आस-पास के गांवों को बसाया था। बरीआ और शेमा अपने-अपने कुलों के प्रधान थे, वे अय्यालोन में रहते थे। उन्होंने गतवासियों को निकाल दिया था।
\q2
\s5
\v 14-16 बरीआ के पुत्र अहयो, शाशक, यरमोत, जबद्याह, अराद, एदेर, मीकाएल, यिस्पा, योहा थे।
\q
\v 17-18 एल्पाल के अन्य वंशजों भी थे: जबद्याह, मशुल्लाम, हिजकी, हेबर,
\q यिशमरै, यिजलीआ, और योबाब।
\q
\s5
\v 19-21 बिन्यामीन का एक और वंशज शिमी था। शिमी के वंशजों में याकीम, ज़िक्री, ज़ब्दी, एलीएनै, सिल्लतै, एलीएल, अदायाह, बरायाह और शिम्रात थे।
\q
\s5
\v 22-25 शाशक के पुत्र थे: यिशपान, यबर, एलीएल, अब्दोन, ज़िक्री, हानान, हनन्याह, एलाम, अन्तोतिय्याह, यिपदयाह, और पनूएल।
\q
\s5
\v 26-27 बिन्यामीन का एक और वंशज यरोहाम था, जिसके पुत्र शमशरै, शहर्याह, अतल्याह, यारेश्याह, एलिय्याह और जिक्री।
\p
\v 28 इन कुलों के अभिलेखों में यह लिखा गया है कि वे सब अपने-अपने कुलों के प्रधान थे, और वे यरूशलेम में रहते थे।
\q
\s5
\v 29 बिन्यामीन का एक और वंशज यीएल था। वह गिबोन शहर में रहता था, और वह वहां रहने वाले लोगों का प्रधान था। उसकी पत्नी का नाम माका था।
\v 30 उसका सबसे बड़ा बेटा अब्दोन था। उनके अन्य पुत्र शूर, कीश, बाल, नेर, नादाब,
\v 31 गदोर, अहयो, ज़ेकर और मिकोत।
\q
\s5
\v 32 मिकोत, शिमा का पिता था। यियेल के ये सभी पुत्र यरूशलेम में अपने रिश्तेदारों के पास भी रहते थे।
\q
\v 33 नेर, कीश का पिता था, और कीश, राजा शाऊल का पिता था।
\q शाऊल, योनातान, मलकीश, अबीनादाब और एशबाल का पिता था।
\q
\v 34 योनातन का पुत्र मरीब्बाल था।
\q मरीब्बाल, मीका का पिता था।
\q
\s5
\v 35 मीका के पुत्र थे: पीतोन, मेलेक, तारे और आहाज।
\q
\v 36 आहाज, यहोअद्दा का पिता था।
\q यहोअद्दा, अालेमेत, अजमावेत और जिम्री का पिता था।
\q जिम्री, मोसा का पिता था।
\q
\v 37 मोसा बिना का पिता था।
\q बिना का पुत्र रापा था।
\q रापा का पुत्र एलासा था।
\q एलासा का पुत्र आसेल था।
\q
\s5
\v 38 आसेल के छ: पुत्र थे: अज़्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शर्याह, ओबद्याह और हानान।
\q
\v 39 आसेल का छोटा भाई एशेक था।
\q एशेक का सबसे बड़ा बेटा ऊलाम था। उसके अन्य बेटे: यूश और एलीपेलेत थे।
\q2
\v 40 ऊलाम के पुत्र बहादुर योद्धा और अच्छे तीरंदाज थे। कुल मिलाकर उनके 150 बेटे और पोते थे।
\m ये सब बिन्यामीन के वंशज थे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 इस्राएल के सभी लोगों के नाम “इस्राएल के राजाओं के इतिहास” नामक पुस्तक में लिखे हैं।
\p यहूदा के बहुत से लोगों को बन्दी बनाकर बाबेल ले जाया गया था यह उनके पापों का परिणाम था।
\v 2 बहुत से लोग कई साल बाद पहली बार यहूदा लौट कर आए और अपनी-अपनी भूमि में रहने लगे उनमें से कुछ इस्राएली याजक थे और लेवी के अन्य वंशज भी थे, कुछ मन्दिर में सेवा करनेवाले भी थे।
\p
\v 3 यहूदा, बिन्यामीन, एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों के अन्य लोग यहूदा लौटकर आए और यरूशलेम में रह रहे थे। यहूदा के गोत्र के उन लोगों की एक सूची निम्नलिखित है।
\q
\s5
\v 4 यहूदा का गोत्र: अम्मीहुद का पुत्र ऊतै; अम्मीहूद; ओम्री का पुत्र था और ओम्री, इम्री का बेटा था और; बनी पेरेस का वंशज था; तथा पेरेस यहूदा का बेटा था।
\q
\v 5 असायाह और उसके पुत्र शीलाई के वंशज थे। असायाह अपने परिवार में सबसे बड़ा बेटा था।
\q
\v 6 जेरह के वंशजों में यूएल और उसके भाई कुल 6 9 0 थे।
\q
\s5
\v 7 बिन्यामीन के गोत्र से: मशुल्लाम का पुत्र सल्लू; होदव्याह का पुत्र मशुल्लाम; हस्सनूआ का पुत्र होदव्याह;
\q
\v 8 योराम का पुत्र यिब्रिय्याह;
\q उज्जी का पुत्र एला; मिक्री के पुत्र उज्जी;
\q शपत्याह का पुत्र मशुल्लाम; रूएल का पुत्र शपत्याह, यिन्बिय्याह
\q
\v 9 बिन्यामीन के वंशजों के अभिलेख में, यरूशलेम में रहने वाले 956 लोगों के नाम हैं। ये सब अपने-अपने कुलों प्रधान थे।
\p
\s5
\v 10 यहूदा में लौटे कुछ याजक थे:
\q यदायाह, यहोयारीब, और याकीन,
\q
\v 11 और हिल्किय्याह का पुत्र अजर्याह।
\q2 मशुल्लाम का पुत्र हिल्किय्याह; था,
\q2 सादोक का पुत्र मशुल्लाम था,
\q2 मरायोत का पुत्र सादोक;
\q2 अहीतूब का पुत्र मरायोत; था,
\q2 अहितूब, जो मंदिर की देखभाल करने वाले सब सेवकों का प्रधान था।
\q
\s5
\v 12 यरोहाम का पुत्र अदायाह;
\q2 यरोहाम; पराहूर का बेटा था,
\q2 मल्कियाह का पुत्र पशहूर;
\q अदोएल का पुत्र मासै;
\q2 यहजेरा का पुत्र अदोएल;
\q2 मशुल्लाम का पुत्र यहजेरा;
\q2 मशिल्लीत के पुत्र मशुल्लाम;
\q2 इम्मेर का बेटे मशिल्लीत।
\q
\v 13 याजक कुल मिलाकर 1760 थे जो यहूदा लौट आए। वे अपने-अपने कुलों के प्रधान थे, और वे सभी परमेश्वर के मंदिर में काम करने के लिए उत्तरदायी थे।
\q
\s5
\v 14 लेवी के वंशज मरारी जो यहूदा लौट आए वे थे: हश्शूव के पुत्र शमायाह;
\q2 अज़्रीकम का पुत्र हश्शूव;
\q2 हशव्याह का पुत्र अज़्रीकम;
\q2 हशव्याह लेवी के सबसे छोटे बेटे मरारी का वंशज था।
\q
\v 15 यहूदा लौटे लेवी के अन्य वंशज थे: मक्का के पुत्र बकबक्कर, हेरेश, गालाल और;
\q2 मीका का बेटा मत्तन्याह;
\q2 आसाप के पुत्र जिक्री;
\q
\v 16 शमायाह का पुत्र ओबद्याह भी था;
\q2 गालात का बेटा शमायाह;
\q2 यदूतून का बेटा गालात;
\q आसा का बेटा बेरेक्याह भी थे;
\q2 एल्काना का पुत्र आसा, जो नतोपाइयों के एक गांवों में रहता था।
\q
\s5
\v 17 लेवी के वंशजों से जो यहूदा लौट आए, जो मंदिर के द्वारों की रक्षा करते थे, वहां शल्लूम, अक्कूब, तल्मोन, अहीमान और उनके भाई थे। शल्लूम उनका प्रधान था।
\v 18 लेवी के गोत्र के ये द्वारपाल शहर के पूर्व की ओर राजा के फाटक पर खड़े होते थे:
\q2
\v 19 कोरे का पुत्र शल्लूम:
\q2 एब्यासाप का पुत्र; कोरे
\q2 कोरे का बेटा एब्यासाप था।
\q शल्लूम और उसके भाई बन्धु द्वारपाल थे, और वे यहोवा के मन्दिर के द्वारों की रक्षा करने के उत्तरदायी थे, जैसा कि उनके पूर्वजों ने किया था।
\q
\s5
\v 20 पहले एलीआज़ार का बेटा पीनहास द्वारपालों की निगरानी करता था, और यहोवा पीनहास के साथ था।
\q
\v 21 मेशेलेम्याह का पुत्र जकर्याह मंदिर के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल था।
\p
\s5
\v 22 कुल मिलाकर, 212 पुरुष थे जिन्हें द्वारों की रक्षा करने के लिए चुना गया था। उनके नाम उनके गांवों के कुलों के अभिलेखों में लिखे गए थे। राजा दाऊद और भविष्यवक्ता शमूएल ने उन पुरुषों को नियुक्त किया था क्योंकि वे लोग विश्वासयोग्य थे।
\v 23 उन द्वारपालों और उनके वंशजों का काम यहोवा के मन्दिर के द्वारों की रक्षा करना था। पवित्र तम्बू के स्थान पर मन्दिर बनाया गया था।
\v 24 मंदिर के चारों ओर पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में द्वारपाल थे।
\s5
\v 25 कभी-कभी उन गांवों में रहने वाले द्वारपालों के संबन्धियों के लिए भी आवश्यक था कि उनकी सहायता करने के लिए आएँ वे जब भी आते थे तो उन्हें सात दिन तक द्वारपालों की सहायता करनी होती थी।
\v 26 लेवी के चार वंशज थे जो प्रतिदिन काम करते थे, और वे द्वारपालों की निगरानी करते थे। वे परमेश्वर के मंदिर में गोदामों और अन्य कमरों की भी देखभाल करते थे।
\v 27 वे रात में मंदिर की रक्षा करने के लिए जागते थे, और सुबह द्वार खोलते थे।
\p
\s5
\v 28 कुछ द्वारपाल मंदिर में रखे गये सामानों की देखभाल करते थे। वे बलिदान के काम में आनेवाले आटे, दाखमधु, जैतून का तेल, धूप और मसालों की भी देखभाल करते थे।
\v 29 मंदिर में अन्य सामान की देखभाल करने के लिए अन्य द्वारपाल नियुक्त किए गए थे।
\s5
\v 30 लेकिन कुछ याजकों का काम था, मसालों को मिलाकर तैयार करना।
\v 31 लेवी का एक वंशज था, मतित्याह नामक शल्लूम का सबसे बड़ा बेटा था, जो कोरह के वंश का था। वह बहुत विश्वासयोग था इसलिए उन्होंने उसे रोटी पकाने का काम दिया जो वेदी पर चढ़ाई जाती थी।
\v 32 कहात से निकले वंश के कुछ द्वारपाल परमेश्वर के सामने भेंट वाली रोटियाँ तैयार करते थे, जिन्हे प्रत्येक सब्त के दिन मंदिर में रखना होता था।
\p
\s5
\v 33 लेवी के कुछ वंशज मंदिर के संगीतकार थे। उन परिवारों के प्रधान मंदिर के कमरों में रहते थे। वे मंदिर में कोई अन्य काम नहीं करते थे क्योंकि वे दिन-रात संगीत की सेवा करने के लिए उत्तरदायी थे।
\p
\v 34 ये लेवी वंश के कुलों के प्रधानों के नाम हैं। उनके नाम कुलों के अभिलेखों में लिखे गए थे। वे सब यरूशलेम में रहते थे।
\q
\s5
\v 35 बिन्यामीन के वंशजों में से एक, यीएल , गिबोन शहर में रहता था। वह शहर का प्रधान था। उनकी पत्नी का नाम माका था।
\q
\v 36 उसका सबसे बड़ा बेटा अब्दोन था।
\q उनके अन्य पुत्र खूर, कीश, बाल, नेर, नादाब,
\v 37 गदोर, अहयो, जकर्याह, और मिल्कोत थे।
\q2
\s5
\v 38 मिल्कोत शिमाम का पिता था। यीएल का परिवार यरूशलेम में अपने संबन्धियों के साथ रहता था।
\q
\v 39 नेर कीश का पिता था। कीश राजा शाऊल का पिता था। शाऊल योनातान, मल्कीश, अबीनादाब और एशबाल का पिता था।
\q
\v 40 योनातान का पुत्र मरीब्बाल था। मरीब्बाल मीका का पिता था।
\q
\s5
\v 41 मीका के पुत्र पितन, मेलेक, तहय और आहाज थे।
\q2
\v 42 आहाज यारा का पिता था। यारा अालेमेत, अजमावेत और जिम्री का पिता था।
\q2 जिम्री, मोसा का पिता था।
\v 43 मोसा, बिना का पिता था।
\q2 बिना का पुत्र रपायाह था। रपायाह का पुत्र एलासा था। एलासा का पुत्र आसेल था।
\q2
\v 44 आसेल के छ: पुत्र थे: अज़्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शार्याह, ओबद्याह और हनान।
\s5
\c 10
\p
\v 1 पलिश्ती की सेना फिर से इस्राएलियों के विरूद्ध लड़ी। इस्राएली सैनिक उनसे आगे भाग गए, और गिलबोआ पर्वत पर कई इस्राएली मारे गए।
\v 2 पलिश्ती सैनिकों ने शाऊल और उसके पुत्रों का पीछा किया, और उन्होंने शाऊल के पुत्र योनातान, अबीनादाब और मल्कीश को मार डाला।
\v 3 शाऊल के चारों ओर युद्ध बहुत भयंकर थी, और तीरंदाजों ने शाऊल पर तीर चलाए और उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया।
\p
\s5
\v 4 शाऊल ने अपने हथियार उठानेवाले से कहा, “अपनी तलवार निकाल और मुझे मार डाल, कि ये अन्यजातिय पलिश्ती मुझे और अधिक घायल न कर सकें और मेरे मरते समय मेरा ठट्ठा न कर सकें।”लेकिन शाऊल के हथियारों को उठानेवाला वह डर गया और ऐसा करने से इन्कार कर दिया। तो शाऊल ने अपनी तलवार ली और उस पर गिर गया और मर गया।
\p
\s5
\v 5 जब उसके हथियार उठानेवाले ने देखा कि शाऊल मर चुका है, तो वह भी अपनी तलवार पर गिर गया और मर गया।
\v 6 अत: शाऊल और उसके तीन पुत्रों की मृत्यु हो गई, और उसके वंश में से कोई भी राजा न बन सका।
\p
\s5
\v 7 जब घाटी में रहने वाले इस्राएलियों ने देखा कि उनकी सेना भाग गई है और शाऊल और उसके तीनों बेटे मर गए हैं, तो उन्होंने अपने नगर छोड़ दिए और भाग गए। तब पलिश्ती सैनिक आए और उन गाँवों पर कब्जा कर लिया।
\p
\v 8 अगले दिन, जब पलिश्ती मरे हुए इस्राएली के सैनिकों के हथियारों को उठाने आए, तो उन्होंने शाऊल और उसके तीनों बेटों के शवों को गिलबो पर्वत पर पाया।
\s5
\v 9 उन्होंने शाऊल के शव से कपड़े उतारे और उसका सिर काट दिया और शाऊल के कवच को ले लिया।
\v 10 तब उन्होंने अपने पूरे देश में समाचार प्रचार करने के लिए दूत भेजे, अपनी मूर्तियों और अन्य लोगों के लिए। उन्होंने शाऊल के कवच को मंदिर में रखा जहाँ उनकी मूर्तियां थीं, और उन्होंने शाऊल के सिर को अपने देवता दागोन के मंदिर में लटका दिया।
\p
\s5
\v 11 गिलाद के क्षेत्र में याबेश में रहने वाले लोगों ने सुना कि पलिश्तियों ने शाऊल के साथ क्या किया था।
\v 12 तब याबेश के योद्धा चले गए और शाऊल और उसके पुत्रों की लाशें पाई और उन्हें वापस याबेश लाया। उन्होंने याबेश में एक बाँज पेड़ के नीचे उसकी हड्डियों को दफ़नाया। तब याबेश के लोगों ने सात दिन उपवास किया।
\p
\s5
\v 13 शाऊल की मृत्यु का कारण था कि उसने यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया था। वह आत्माओं से बात करनेवाली एक स्त्री के पास भी भविष्य पूछने गया था,
\v 14 इसकी अपेक्षा कि वह यहोवा से पूछता कि उसे क्या करना चाहिए। इसलिए यहोवा ने उसकी मृत्यु का कारण उत्पन्न किया, और उसने इस्राएल का राजा होने के लिए यिशै के बेटे दाऊद को नियुक्त किया।
\s5
\c 11
\p
\v 1 तब इस्राएल के लोग हेब्रोन शहर में दाऊद के पास आए और उससे कहा, “सुन, हमारे और तेरे पूर्वज एक ही हैं।
\v 2 अतीत में, जब शाऊल हमारा राजा था, तब भी तू ही था जो युद्ध में इस्राएली सैनिकों की अगुवाई करता था। तू ही है जिसके लिए हमारे परमेश्वर यहोवा ने प्रतिज्ञा की थी, ‘तू मेरे लोगों का अगुवा होगा और उनका राजा होगा। ‘“
\p
\v 3 तब सभी इस्राएली वृद्ध हेब्रोन में दाऊद के पास आए। वहां दाऊद ने यहोवा के सुनते हुए उनके साथ एक पवित्र समझौता किया। उन्होंने उसे इस्राएलियों का राजा होने के लिए अलग करने हेतु जैतून का तेल लेकर अभिषेक किया। यहोवा ने भविष्यवक्ता शमूएल को यही बताया था।
\p
\s5
\v 4 दाऊद और सब इस्राएली सैनिक यरूशलेम गए। उस समय, यरूशलेम को यबूस कहा जाता था, और वहां रहने वाले लोग यबूस समूह के थे।
\v 5 उन्होंने दाऊद से कहा, “तुम्हारे सैनिक हमारे शहर के भीतर नहीं जा पाएंगे!”लेकिन दाऊद के सैनिकों ने शहर पर अधिकार कर लिया, भले ही उसके चारों ओर दृढ़ दीवारें थीं, और तब से उसे दाऊदपुर कहा जाता है।
\p
\v 6 हुआ यह कि दाऊद ने अपने सैनिकों से कहा, “जो यबूसियों पर आक्रमण करने के लिए हमारे सैनिकों का नेतृत्व करेगा वही हमारी सेना का सेनापति बन जाएगा।”सरुयाह के पुत्र योआब ने सैनिकों का नेतृत्व किया, इसलिए वह पूरी सेना का सेनापति बन गया।
\p
\s5
\v 7 चारों ओर अपनी दृढ़ दीवारों के उस शहर पर अधिकार करने के बाद, दाऊद वहां रहने चला गया। यही कारण है कि उन्होंने उस शहर का नाम दाऊदपुर रखा।
\v 8 दाऊद के श्रमिकों ने शहर का पुनर्निर्माण किया, और शहर के चारों ओर की दीवारों तक भूमि भरकर समतल कर दी गई। योआब के पुरुषों ने शहर के अन्य भागों की मरम्मत की।
\v 9 दाऊद अधिक से अधिक शक्तिशाली होता गया क्योंकि स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान यहोवा उसके साथ था।
\p
\s5
\v 10 यहोवा ने प्रतिज्ञा की थी दाऊद राजा बन जाएगा। और सब इस्राएली लोग आनन्दित थे कि दाऊद उनका राजा बना।
\p ऐसे कई सैनिक थे जिन्होंने दाऊद के राज्य को दृश बने रहने में सहायता की।
\v 11 यह दाऊद के सबसे उत्तम योद्धाओं की एक सूची है:
\p हक्मोनी याशोबाम। वह अधिकारियों का प्रधान था। एक बार वह तीन सौ शत्रुओं से लड़ा और उन्हें अपने भाले से मार डाला।
\p
\s5
\v 12 अगला अहो के वंश से दोदो का पुत्र एलीआज़ार था। वह दाऊद के तीन शक्तिशाली पुरुषों में से एक था।
\v 13 एक दिन जब वह पसदम्मीम में दाऊद के साथ था, तब पलिश्ती के सैनिक युद्ध के लिए वहां एकत्र हुए। वहाँ जौ का एक खेत था। पहले तो इस्राएली सैनिक पलिश्ती के सैनिकों के सामने से भाग गए,
\v 14 परन्तु तब दाऊद और एलीआज़ार खेत के बीच में रुक गए और उसकी रक्षा करने के लिए लड़े और पलिश्त के कई सैनिकों को मार डाला। यहोवा ने उन्हें उस दिन एक महान विजय पाने में समर्थ किया।
\p
\s5
\v 15 एक बार दाऊद के तीस महान योद्धाओं में से तीन योद्धा अदुल्लाम के पास की गुफा में दाऊद के पास आए वहाँ एक विशाल चट्टान थी। उसी समय, पलिश्ती सेना ने रपाईम की घाटी में छावनी डाली थी।
\v 16 दाऊद एक किले में था, और पलिश्ती सैनिक बैतलहम में चौकी डाले हुए थे,
\v 17 एक दिन दाऊद को बहुत प्यास लगी तो उसने कहा, “मेरी इच्छा है कि कोई मेरे लिए बैतलहम के द्वार के पास कुएँ से पानी लाए!”
\s5
\v 18 इसलिए वे तीन महान योद्धा ने पलिश्ती सैनिकों के शिविर से होकर गए और कुएँ से पानी खींचा, और इसे दाऊद के पास लाए। परन्तु उसने वह पानी नहीं पीया। इसकी अपेक्षा, उसने वह पानी यहोवा के लिए चढ़ाकर भूमि पर गिरा दिया।
\v 19 उसने कहा, “हे यहोवा, यह पानी मेरे पीने के लिए सही नहीं होगा! यह उन मनुष्यों के खून को पीने जैसा होगा जो मेरे लिए मरने को तैयार थे!”तो उसने उसे पीने से इन्कार कर दिया।
\p यह उन कामों में से एक था जो दाऊद के तीन महान योद्धाओं ने किया था।
\p
\s5
\v 20 योआब का छोटा भाई अबीशै महानतम योद्धाओं (जिसे “मुख्य तीन” कहा जाता है) का प्रधान था और उन्होंने दाऊद के लिए महान सम्मान प्राप्त किया था। एक बार अबीशै ने अपने भाले से तीन सौ शत्रु सैनिकों से लड़कर, उन्हें मार डाला था।
\v 21 अत: वह तीन महान योद्धाओं के साथ प्रसिद्ध हो गया। वह उनका सेनापति बन गया यद्यपि वह “मुख्य तीन” में माना गया था ।
\p
\s5
\v 22 यहोयादा का पुत्र बनायाह, कबज़ेल शहर से एक बहादुर सैनिक था उसने भी महान काम किए। उसने मोआबियों के दो सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं की हत्या कर दी। एक दिन जब वह एक गड्ढे में गिर गया और वहां शेर को मार डाला जबकि वह बर्फ गिरने की ॠतु थी ।
\v 23 उसने मिस्र से एक सैनिक को भी मार डाला जो लगभग साढ़े सात फुट लम्बा था। मिस्र के सैनिक ने एक भाला लिया हुआ था जो जुलाहों का ढेका सा था। बन्याह के पास केवल एक लाठी थी, उसने उस मिस्री से भाला छीनकर उसे मार डाला।
\s5
\v 24 बनाया के अन्य काम भी है जिससे वह तीन महान योद्धाओं के बराबर प्रसिद्ध हो गया।
\v 25 वह तीस योद्धाओं में सबसे अधिक सम्मानित था परन्तु वह मुख्य तीन का सदस्य नहीं बन पाया था दाऊद ने उसे अपने अंगरक्षकों का प्रधान नियुक्त किया।
\q
\s5
\v 26 उन महान योद्धाओं के नाम हैं:
\q2 योआब का छोटा भाई असाहेल;
\q2 बैतलहम के दोदो का पुत्र अएल्हानान;
\q2
\v 27 हरोरी, सम्मोत से;
\q2 पलोनी, हेलेस;
\q2
\v 28 तको के इक्केश का बेटा ईरा,
\q2 अनातोत एबीएजेर;
\q2
\v 29 होसा का सिब्बके;
\q2 अहोका ईलै;
\q2
\s5
\v 30 नतोपा का नहरै;
\q2 एक और नतोपाई बाना का बेटा हेलेद;
\q2
\v 31 बिन्यामीन के गोत्र से गिबा नगर के रीबै का बेटा इतै;
\q2 पीरतोन शहर से बनायाह ;
\q2
\v 32 पर्वत गाश की घाटियों में रहने वाला हूरै;
\q2 अरबबासी अबीएल;
\q2 बहूरीम से अजमावेत
\v 33 शाल्बोन का
\q2 एल्यहबा;
\q2
\s5
\v 34 गीजो के हाशेम के बेटे;
\q2 हारार के शागे का पुत्र योनातान;
\q2
\v 35 हरार के सकार का बेटा अहीआम;
\q2 ऊर का पुत्र एलीपाल;
\q2 मकेरा कुल का हेपेर
\v 36 पलोन का; अहिय्याह;
\q2 ;
\q2 कर्मेल से
\v 37 कर्मेल का हेस्रो;
\q2 एज्बै; का बेटा नारै
\q2
\s5
\v 38 नातान के छोटे भाई योएल;
\q2 हग्री के पुत्र मिभार;
\q2
\v 39 अम्मोनी लोगों का सेलेक
\q2 योआब का हथियार ढोनेवाला बरोत का नारै;
\q2
\v 40 येतेर से ईरा और गारेब;
\q2
\v 41 उरीया, बतशेबा का पति, हित्तीऊरीय्याह;
\q2 अहलै का पुत्र जाबाद;
\q2
\s5
\v 42 रूबेन के गोत्र के प्रधान शीजा का बेटा अदीना, जिनके साथ तीस सैनिक थे;
\q2
\v 43 माका के पुत्र हानान;
\q2 मेतेन का योशापात;
\q2
\v 44 अश्तारोत से उज्जिय्याह;
\q2 अरोएर के होताम के पुत्र शामा और यीएल ।
\q2
\s5
\v 45 शिम्री के पुत्र यदीएल
\q2 और उनके छोटे भाई जोहा, तीस शहर से योहा;
\q2
\v 46 महवीम से एलीएल;
\q2 एलनाम के पुत्र यरीबै और योशब्याह;
\q2
\v 47 मोआब से यित्मा, ओबेद और मसोबा का यासीएल।
\s5
\c 12
\p
\v 1 दाऊद राजा शाऊल से बचने के लिए सिकलग शहर गया। जब वह वहां था, तो कई योद्धा आए और उससे जुड़ गए, और उन्होंने युद्धों में उसकी सहायता की।
\v 2 वे धनुष और तीर रखते थे। वे तीर चलाने और गोफन चलाने में और पत्थरों से मारने में सक्षम थे। वे दाहिने और बाएँ हाथ दोनों से वार करते थे वे बिन्यामीन के गोत्र से शाऊल के संबन्धी थे।
\p
\s5
\v 3 उनका प्रधान अहीएज्रेर था। और उसके बाद योआज था जो गिबाह शहर से शमाआ का पुत्र था। ये उन योद्धाओं के नाम हैं:
\q अजमावेत के बेटे यजीएल और पेलेत;
\q बराका; और अनातोत का येहू;
\q
\v 4 गिबोन शहर से यिशमायाह, जो तीस महान योद्धाओं का प्रधान था;
\q यिर्मयाह, यहज़ीएल, योहानान और गेदेरा शहर से योजाबाद;
\q
\s5
\v 5 एलुजै, यरीमोत, बाल्याह, शर्मयाह और हारूप का शपत्याह;
\q
\v 6 एल्काना, यिशिय्याह, अज़रेल, योएजर और याशोबाम, ये सब कोरह के वंशज थे;
\q
\v 7 गेदोर शहर से यरोहाम के पुत्र योएला और जबद्याह।
\p
\s5
\v 8 यरदन नदी के पूर्व में गाद के गोत्र के कुछ लोग दाऊद के साथ हो गए जब वह मरुभूमि में गुफाओं में अपने सुरक्षित स्थान में था। वे बहादुर योद्धा थे जो युद्ध लड़ने और ढाल और भाले का उपयोग करने में सक्षम थे। वे शेरों के से भयंकर थे, और वे पहाड़ियों पर हिरण के समान तेजी से भाग सकते थे।
\q
\s5
\v 9 एज़ेर उनके प्रधान थे।
\q दूसरा आदेश में ओबद्याह था।
\q तीसरा एलीआब था।
\q
\v 10 चौथा मिश्मन्ना था।
\q पाँचवा यिर्मयाह था।
\q
\v 11 छठवाँ अत्तै था।
\q सातवाँ एलीएल था।
\q
\v 12 आठवाँ योहानान था।
\q नौवाँ एलजाबाद था।
\q
\v 13 दसवाँ एक और यिर्मयाह था।
\q ग्यारवाँ मकबनै था।
\p
\s5
\v 14 गाद के गोत्र के लोग सभी सेना अधिकारी थे। उनमें से कुछ ने एक हज़ार सैनिकों पर अधिपति थे, और उनमें से कुछ एक सौ सैनिकों पर थे।
\v 15 वे मार्च के महीने में जब यरदन नदी में बाढ़ आती थी तब नदी को पार करके पश्चिम की ओर गए थे। उन्होंने वहां से उन सब लोगों को भगा दिया जो नदी के दोनों किनारों पर घाटियों में रहते थे।
\p
\s5
\v 16 बिन्यामीन के गोत्र और यहूदा के गोत्र से कुछ अन्य लोग भी किले में दाऊद के पास आए।
\v 17 दाऊद उनसे मिलने के लिए गुफा से बाहर गया और उनसे कहा, “यदि तुम मेरी सहायता करने के लिए शान्ति से आए हो, तो मैं तुमे अपने साथ लेने के लिए उत्सुक हूँ। परन्तु यदि तुम मुझे मेरे शत्रुओं को पकड़वाने के लिए आए हो जबकि मैंने तुम्हे कोई हानि नहीं पहुँचाई है, मुझे आशा है कि जिन परमेश्वर हमारे पूर्वजों ने आराधना की है वह इसे देखें और तुम्हे दोषी ठहराएँ।
\p
\s5
\v 18 तब परमेश्वर के आत्मा अामासै में समाया, जो तीस महान योद्धाओं का प्रधान था, और उसने कहा,
\q1 “हे दाऊद, हम तेरे साथ रहना चाहते हैं;
\q2 तू यिशै का बेटा हैं, हम तेरे साथ होंगे।
\q1 हम जानते हैं कि तेरे साथ और तेरे साथियों के साथ कुशल ही होगा,
\q2 क्योंकि तेरा परमेश्वर तेरी सहायता कर रहे हैं।” इसलिए दाऊद ने उन लोगों का स्वागत किया, और उन्हें अपने सैनिकों का प्रधान नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 19 मनश्शे के गोत्र के कुछ लोग भी दाऊद से जुड़ गए जब वह पलिश्तियों के साथ शाऊल की सेना से युद्ध करने गया था। परन्तु दाऊद और उसके पुरुषों ने वास्तव में पलिश्ती सेना की सहायता नहीं की थी। पलिश्ती सेनापतियों ने दाऊद और उसके सैनिकों के विषय में बात करने के बाद, दाऊद को लौटा दिया था। उन्होंने कहा, “यदि दाऊद फिर से अपने स्वामी शाऊल के साथ हो गया तो हम सब को मार डाला जाएगा।”
\v 20 जब दाऊद सिकलग गया, तब मनश्शे के गोत्र के लोग उसके पास आए थे: अदना, योजाबाद, यदीएल, मीकाएल, योजाबाद, नाम का एक और पुरुष एलीहू और सिल्लतै था। उनमें से प्रत्येक शाऊल की सेना में एक एक हजार पुरुषों के अधिपति थे।
\s5
\v 21 वे सभी बहादुर सैनिक थे, और उन्होंने लुटेरों के दलों से लड़ने में दाऊद की सहायता की जो पूरे देश में घूमते थे, और लोगों को लूटते थे। तो वे लोग दाऊद की सेना के प्रधान बन गए।
\v 22 प्रतिदिन अधिक से अधिक लोग दाऊद के दल से जुड़ गए, और उनकी सेना बड़ी हो गई, जैसे कि परमेश्वर की सेना।
\p
\s5
\v 23 यह उन सैनिकों की संख्या हैं जो हेब्रोन शहर में दाऊद से जुड़ने के लिए तैयार थे। वे शाऊल के स्थान में इस्राएल का राजा होने में उसकी सहायता करने आए थे, जैसी यहोवा ने प्रतिज्ञा की थी।
\q
\v 24 यहूदा के 6,800 पुरुष थे, जिनके पास ढाल और भाले थे।
\q
\v 25 शिमोन के गोत्र में 7,100 पुरुष थे। वे युद्ध करने में प्रशिक्षित एवं बलवन्त योद्धा थे।
\q
\s5
\v 26 लेवी के गोत्र से 4,600 पुरुष थे।
\q2
\v 27 यहोयादा, जो हारून से निकला एक प्रधान था, लेवी के वंशजों के समूह में था, और उसके साथ 3,700 पुरुष थे।
\q2
\v 28 सादोक, एक वीर युवा सैनिक भी उस समूह में था, और उसके साथ उसके वंश के 22 अन्य प्रधान थे।
\q
\s5
\v 29 बिन्यामीन के गोत्र के तीन हजार लोग थे जो शाऊल के संबन्धी थे। उनमें से आधे से अधिक पहले शाऊल के वंशजों में से किसी एक को राजा बनना चाहते थे।
\q
\v 30 एप्रैम के गोत्र में से 20,800 पुरुष थे जो सभी बहादुर योद्धा थे और युद्ध के लिए प्रशिक्षित थे तथा अपने-अपने कुलों में प्रसिद्ध थे।
\q
\v 31 मनश्शे के आधे गोत्र से अठारह हजार लोग थे जो यरदन नदी के पश्चिम में रहते थे। वे दाऊद को राजा बनने और उसकी सहायता करने के लिए चुने गए थे।
\q
\s5
\v 32 इस्साकार के गोत्र के प्रधानों के साथ दो सौ पुरुष थे जो उनके संबन्धियों के साथ थे। वे सदैव जानते थे कि इस्राएलियों को क्या करना चाहिए, और उन्हें यह करने का सही समय पता था। उनके संबन्धी उनके साथ थे, जो अपने-अपने अधिपतियों के आदेश के आधीन थे।
\q
\v 33 जबुलून के गोत्र में पचास हजार पुरुष थे। वे सब अनुभवी योद्धा थे और जानते थे कि सब प्रकार के हथियारों का उपयोग कैसे किया जाए। वे दाऊद के प्रति पूरी तरह से वफादार थे।
\q
\s5
\v 34 नप्ताली के गोत्र में से एक हजार प्रधान थे। उनके साथ तीस हजार सैनिक थे, प्रत्येक ढाल और भाले रखते थे।
\q
\v 35 दान के गोत्र से 28,600 सैनिक थे, सब युद्ध के लिए प्रशिक्षित थे।
\q
\s5
\v 36 आशेर के गोत्र के छत्तीस हज़ार अनुभवी सैनिक थे, सब युद्ध के लिए प्रशिक्षित थे।
\q
\v 37 यरदन नदी के पूर्व में से 120,000 सैनिक भी थे जो दाऊद से जुड़ गए थे। वे रूबेन, गाद और मनश्शे के गोत्र के पूर्वी भाग के गोत्रों में से थे। उनके पास सब प्रकार के हथियार थे।
\p
\s5
\v 38 वे सब सैनिक थे जो दाऊद की सेना में स्वयं सेवक थे। वे हेब्रोन आए कि दाऊद को सब इस्राएली लोगों का राजा बना सकें।
\v 39 उन पुरुषों ने दाऊद के साथ तीन दिन बिताए, खाया और पीया, क्योंकि उनके परिवारों ने उन्हें उनके साथ ले जाने के लिए खाना दिया था।
\v 40 इसके अतिरिक्त, उनके साथी इस्राएली उस दूर के क्षेत्र से आए, जहाँ इस्साकार, जबूलून और नप्ताली के गोत्र रहते थे, गधे, और वे ऊंटों, खच्चरों और बैलों पर भोजन लेकर आए थे। उन्होंने बहुत सारे आटे, सूखे अंजीर, किशमिश, दाखमधु, जैतून का तेल, मवेशी और भेड़ लाए। और पूरे इस्राएल में, लोग बहुत आनन्दित थे।
\s5
\c 13
\p
\v 1 एक दिन दाऊद ने अपने सब सेना अधिकारियों से बात की। उनमें से कुछ एक सौ सैनिकों के प्रधान थे और कुछ एक हजार सैनिकों के प्रधान थे।
\v 2 फिर उसने अन्य इस्राएली प्रधानों को बुलाया और उन सब से कहा, “यदि तुम्हारी समझ में यह भला है और हमारा परमेश्वर यहोवा चाहता है, तो हम अपने देश के सब क्षेत्रों में इस्राएली भाइयों को संदेश भेजें जिसमें उनके नगरों और आस-पास के चरागाहों में रहने वाले लेवी के वंशज और लेवी भी हैं, कि वे आएँ और हम से जुड़ जाएँ,
\v 3 क्योंकि हम अपने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को वापस ले आना चाहते हैं। जब शाऊल राजा था तब, हमने परमेश्वर से नहीं पूछा था कि हमें क्या करना चाहिए। “
\v 4 सब लोग दाऊद से सहमत हुए, क्योंकि उन सब ने सोचा कि ऐसा करना उचित है।
\p
\s5
\v 5 तब दाऊद ने मिस्र की शीहोर नदी से उत्तर में हमात शहर में सब इस्राएली लोगों को एकत्र किया, और उनसे कहा कि वह चाहता था कि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को किर्यत्यारीम शहर से यरूशलेम में लाने में सहायता करें।
\v 6 दाऊद सब इस्राएली लोगों के साथ बाला शहर गया, जो किर्यत्यारीम कहलाता था कि परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को ले आए, लोगों का मानना था कि परमेश्वर पंखोंवाले प्राणियों की प्रतिमाओं के बीच से शासन करते हैं जो पवित्र सन्दूक के ढक्कन के ऊपर थे, और पवित्र सन्दूक यहोवा से संबंधित है।
\p
\s5
\v 7 लोगों ने पवित्र सन्दूक को एक नई बैल गाड़ी पर रखा और उसे अबीनादाब के घर से लेकर चले। उज्जा और अह्यो गाड़ी खींच रहे बैलों को हाँक रहे थे।
\v 8 दाऊद और सारे इस्राएली लोग परमेश्वर की उपस्थिति में उत्सव मना रहे थे। वे अपनी सारी शक्ति के साथ गा रहे थे, और वीणा, सारंगी, ढफ, और झांझ, बजाते और तुरही फूंकर रहे थे।
\p
\s5
\v 9 परन्तु जब दाऊद के लोग उस स्थान पर आए जहाँ कीदोन अनाज को झाड़ता था, तो बैलों ने ठोकर खाई। और उज्जा ने हाथ बढ़ाकर पवित्र सन्दूक को गाड़ी से गिरने से रोका।
\v 10 यहोवा उज्जा से बहुत क्रोधित हो गए, और देखते ही देखते उन्होंने उज्जा को मार डाला। उज्जा ने अपना हाथ पवित्र सन्दूक पर रखा था, यहोवा ने आज्ञा दी थी कि केवल लेवी के वंशज जो याजकों की सहायता करते हैं, वे ही पवित्र सन्दूक को छू सकते हैं।
\p
\v 11 दाऊद अप्रसन्न था क्योंकि यहोवा ने उज्जा को दण्ड दिया था। और अब उस स्थान को जहाँ उज्जा की मृत्यु हुई थी, “उज्जा का दण्ड” कहा जाता है।
\p
\s5
\v 12 उस दिन, दाऊद परमेश्वर से डर गया था। उसने स्वयं से पूछा, “मैं अपने शहर में परमेश्वर के पवित्र सन्दूक कैसे ला सकता हूँ?
\v 13 अत: दाऊद के साथी पवित्र सन्दूक को यरूशलेम में नहीं लाए। इसके अपेक्षा, वे उसे ओबेदेदोम के घर ले गए, जो गत शहर से था।
\v 14 पवित्र सन्दूक ओबेदेदोम के परिवार के साथ तीन महीने तक उसके घर में रहा। उस समय तक यहोवा ने ओबेदेदोम के परिवार और जो उसका था, उसे आशीष दी।
\s5
\c 14
\p
\v 1 एक दिन सोर शहर के राजा हीराम ने दाऊद के पास दूत भेजे कि उनके देशों के बीच समझौता करने के विषय में बात करें। तब हीराम ने दाऊद के लिए महल बनाने के लिए देवदार के लट्ठे, राजमिस्त्री और बढ़ई भेजे।
\v 2 जब ऐसा हुआ, तब दाऊद समझ गया कि यहोवा ने ही उसे इस्राएल का राजा बनाया है, और उन्होंने उसके राज्य को बहुत सम्मानित किया है। यहोवा ने ऐसा इसलिए किया कि वह अपने इस्राएली लोगों से प्रेम करते थे।
\p
\s5
\v 3 दाऊद ने यरूशलेम में और अधिक स्त्रियों से विवाह किया, और उन स्त्रियों ने उसके लिए बेटों और बेटियों को जन्म दिया।
\v 4 यरूशलेम में जन्म लेनेवाली उसकी सन्तान के नाम थे शम्मू, शोबाब, नातान, सुलैमान,
\v 5 यिमार, एलीशू, एलपेलेत,
\v 6 नोगह, नेपेग, यापी,
\v 7 एलीशामा, बेल्यादा, और एलीपेलेत।
\p
\s5
\v 8 जब पलिश्ती की सेना ने सुना कि दाऊद को इस्राएल का राजा होने के लिए नियुक्त किया गया है, तो वे उसे पकड़ने का प्रयास करने लगे। परन्तु दाऊद ने सुना कि वे आ रहे है, तो वह और उसके सैनिक उनका सामना करने के लिए गए।
\v 9 पलिश्ती की सेना ने यरूशलेम के दक्षिण-पश्चिम में रपाईम की घाटी में लोगों पर हमला किया और उन्हें लूट लिया था।
\s5
\v 10 दाऊद ने परमेश्वर से पूछा, “क्या मेरे पुरुष और मैं पलिश्ती सेना पर आक्रमण कर सकते हैं? यदि हम जाते हैं, तो क्या आप उन्हें पराजित करने में हमें समर्थ करेंगे?”
\p यहोवा ने उत्तर दिया, “हाँ, जाओ, और मैं तुम्हें उन्हें पराजित करने में समर्थ करूंगा।”
\p
\v 11 तब दाऊद और उसके लोग उस नगर में गए जहाँ पलिश्ती सैनिक रह रहे थे और पलिश्ती सैनिकों को पराजित कर दिया। तब दाऊद ने कहा, “परमेश्वर ने मेरे और मेरी सेना के हाथों हमारे शत्रुओं को पूरी तरह से पराजित कर दिया है।”इसलिए उसने उस स्थान का नाम “बालपरासीम” रखा, जिसका अर्थ है “परमेश्वर तोड़ देता है।”
\v 12 पलिश्ती सैनिक वहाँ से भागे वहां अपनी मूर्तियाँ छोड़ गए। इसलिए दाऊद ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उन मूर्तियों को जला दें।
\p
\s5
\v 13 परन्तु शीघ्र ही पलिश्ती सेना ने उस घाटी में लोगों पर फिर आक्रमण किया।
\v 14 तब फिर दाऊद ने फिर से परमेश्वर से पूछा कि उसे क्या करना चाहिए, और परमेश्वर ने उत्तर दिया, “पलिश्ती सेना पर आगे से आक्रमण मत करना। इसकी अपेक्षा, उनके पीछे की ओर तूत के वृक्षों के सामने से उन पर आक्रमण कर।
\s5
\v 15 जब तूत के वृक्षों की कोंपलों में से सैनिकों के चलने की सी आवाज़ सुनाई देता आक्रमण कर देना क्योंकि मैं, परमेश्वर तेरे आगे जाऊंगा कि तू पलिश्ती सेना को पराजित कर सके।”
\v 16 तब दाऊद ने वही किया जो परमेश्वर ने उसे करने का आदेश दिया, और उसने और उसकी सेना ने पलिश्ती सेना को गिबोन शहर से लेकर गेजेर शहर तक पूरी तरह पराजित किया।
\p
\v 17 तब दाऊद सब आस-पास के देशों में प्रसिद्ध हो गया, और यहोवा ने सब जातियों के शासकों से उससे डरने का कारण उत्पन्न कर दिया।
\s5
\c 15
\p
\v 1 दाऊद ने अपने कर्मचारियों को यरूशलेम में उसके लिए घर बनाने का आदेश दिया। उसने उन्हें एक तम्बू स्थापित करने का आदेश भी दिया कि उसमें पवित्र सन्दूक को रखें।
\v 2 उसने कहा, “केवल लेवी के वंशजों को परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को लाना है क्योंकि वे ही हैं जिन्हें यहोवा ने चुना है कि उसे उठाएँ और सदा के लिए उनकी सेवा करें।”
\p
\v 3 दाऊद ने इस्राएल के सब लोगों को यरूशलेम आने के लिए कहा। वह चाहता था कि यहोवा के पवित्र सन्दूक का वह उस स्थान में रखे जिसे उसने बनाया है।
\s5
\v 4 उसने सबसे पहले महायाजक हारून के वंशजों को और लेवी के वंशजों को बुलाया।
\v 5 लेवी के दूसरे बेटे कहात के 120 वंशज, उनके प्रधान ऊरीएल के साथ आए।
\q
\v 6 लेवी के तीसरे बेटे, मरारी के 220 वंशज थे, उनके प्रधान असायाह के साथ आए।
\q
\s5
\v 7 लेवी के पहले पुत्र, गेर्शोन के 130 वंशज उनके प्रधान योएल के साथ आए।
\q
\v 8 इसके अतिरिक्त, एलीसापान के वंश के 200 लोग उनके प्रधान शमायाह के साथ आए।
\q
\v 9 हेब्रोन के वंश से 80 लोग आए, जो उनके प्रधान एलीएल के साथ आए।
\q
\v 10 और उज्जीएल के वंश के 112 लोग उनके प्रधान अम्मीनादाब के साथ आए।
\p
\s5
\v 11 दाऊद ने याजक सादोक और एब्यातार और लेवी के इन वंशज ऊरीएल, असायाह, योएल, शमायाह, एलएल और अम्मीनादाब को भी बुलाया।
\v 12 दाऊद ने उन से कहा, “तुम लेवी से निकले कुलों के प्रधान हो। तुम और लेवी के अन्य वंशजों को यहोवा के इस विशेष काम करने के लिए अपने आप को शुद्ध करना होगा। तुम्हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का पवित्र सन्दूक यरूशलेम में उस स्थान पे लाना होगा जिस स्थान को मैंने तैयार किया है।
\s5
\v 13 पहली बार हमने इसे लाने का प्रयास किया था, हमने यहोवा से यह नहीं पूछा था कि हमें इसे कैसे लेना चाहिए। उसे लाने के लिए तुम लेवी के वंशज वहाँ नहीं थे इसलिए हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें दण्ड दिया। “
\p
\v 14 तब याजकों और लेवी के वंशजों ने अपने को शुद्ध करने का संस्कार किया, कि इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा के पवित्र सन्दूक को ले आने का काम उचित रीति से।
\v 15 लेवी के वंशजों ने पवित्र सन्दूक को मूसा के आदेश के अनुसार डंडों के सहारे अपने कंधों पर उठाया जैसा यहोवा ने कहा था।
\p
\s5
\v 16 दाऊद ने लेवी के वंशजों के प्रधानों से कहा कि वे अपने कुछ संबन्धियों को सारंगी, वीणा, और झांझ बजाने तथा ऊँचे शब्द में आनन्द के गीत गाने के लिए नियुक्त करें, जब वे पवित्र सन्दूक को लेकर चलें।
\p
\v 17 अत: उन्होंने हेमान और उसके संबन्धी आसाप और एतान को नियुक्त किया। योएल का पुत्र हेमान; बेरेक्याह के पुत्र आसाप। कूशायाह का पुत्र एतान, मरारी के वंशज थे।
\v 18 लेवी के वंशजों का एक और समूह भी था, नियुक्त किया: जकर्याह, याज़ीएल, शमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, बनायाह, मासेयाह, मत्तित्याह, एलीपलेह, मिकनेयाह और मंदिर के द्वारपालों ओबेदेदोम और पीएल को नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 19 हेमान, आसाप और एतान ने गाया, और पीतल की झांझ भी बजाईं।
\v 20 जकर्याह, अज़ीएल, शमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, मासेयाह और बनायाह ने सारंगी बजाई।
\v 21 मत्तित्याह, एलीपलेह, मिकनेयाह, ओबेदेदोम यीएल और अज़ज्याह ने वीणा बजाई।
\s5
\v 22 लेवी के वंशजों के प्रधान कनन्याह गानों का निर्देशक था क्योंकि वह इस काम में निपुण था।
\p
\v 23 बेरेक्याह और एल्काना पवित्र सन्दूक के रक्षक थे।
\v 24 याजक शबन्याह, योशापाटत, नतनेल, अामासै, जकर्याह, बनायाह और एलीएजेर को पवित्र सन्दूक के सामने तुरहियाँ बजाने के लिए नियुक्त किया गया था। ओबेदेदोम और अहिय्याह ने पवित्र सन्दूक की रक्षा की।
\p
\s5
\v 25 दाऊद और इस्राएली अगुवे और एक हज़ार सैनिकों के दलों के अधिकारी पवित्र सन्दूक ओबेदेदोम के घर से बड़े आनन्द के साथ लाने के लिए गए। वे बहुत खुशी से चले गए।
\v 26 परमेश्वर ने यहोवा के सन्दूक को उठाकर चलने वाले लेवी के वंशजों की सहायता की तब दाऊद और अगुवों ने परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिए सात बैल और सात मेढ़े बलि चढ़ाए।
\s5
\v 27 लेवी के सभी वंशज जो पवित्र सन्दूक उठानेवाले, सब गायक और गायकों के निर्देशक कनन्याह सफ़ेद, सन के बागे पहने थे। दाऊद ने भी सफ़ेद सन का एपोद पहने हुए था।
\v 28 अत: सब इस्राएली लोग पवित्र सन्दूक को यरूशलेम में लाने में सहभागी हो गए। उन्होंने जयजयकार किया नरसिंगे फूंके और तुरहियाँ और झांझ, सारंगियाँ और बीणा बजाते हुए चले।
\p
\s5
\v 29 जब वे पवित्र सन्दूक को यरूशलेम में ला रहे थे, तब शाऊल की बेटी मीकल ने उन्हें खिड़की से झांककर राजा दाऊद को नाचते और उत्सव मनाते, देखा तो उसने उसे तुच्छ जाना।
\s5
\c 16
\p
\v 1 उन्होंने पवित्र सन्दूक को यरूशलेम में लाकर उस पवित्र तम्बू के भीतर रखा जो दाऊद ने अपने कर्मचारियों को स्थापित करने के लिए कहा था। तब उन्होंने वेदी पर बत्तियाँ जलाई और परमेश्वर के साथ मेल की प्रतिज्ञा की बलियाँ चढ़ाई।
\v 2 जब दाऊद ने उन सभी भेंटों को प्रस्तुत करना समाप्त कर दिया, तो उसने लोगों को आशीर्वाद देने के लिए यहोवा से विनती की।
\v 3 उसने वहाँ उपस्थित प्रत्येक इस्राएली स्त्री-पुरुष को रोटी खजूर और किशमिश दीं।
\p
\s5
\v 4 तब दाऊद ने लेवी के कुछ वंशजों को पवित्र तम्बू के सामने खड़े रहने के लिए नियुक्त किया, जिसमें पवित्र सन्दूक रखा गया था कि इस्राएल के परमेश्वर की आराधना स्तुति और धन्यवाद करने मेंआराधकों की अगुआई करें।
\v 5 झांझ बजाने वाला आसाप उनका प्रधान था। जकर्याह उसका सहायक था। आसाप की सहायता करने वाले लेवी के अन्य वंशज थे: यीएल , शमीरामोत, यहीएल, मत्तित्याह, एलीआब, बनायाह, ओबेदेदोम और यीएल थे। वे सारंगी और वीणा बजाते थे।
\v 6 बनायाह और यहज़ीएल याजक थे जिन्हे पवित्र तम्बू के सामने जिसमे पवित्र सन्दूक रखा था, तुरही बजाने के लिए नियुक्त किया गया था।
\p
\s5
\v 7 उसी दिन, दाऊद ने आसाफ और उसके सहायकों को यहोवा की स्तुति करने के लिए यह भजन दिया:
\q1
\v 8 यहोवा का धन्यवाद करो और उससे प्रार्थना करो।
\q2 सब देशों के लोगों में उनके कामों का वर्णन करो।
\q1
\v 9 उनके लिए गीत गाओ, उसके लिए स्तुति के भजन गाओ।
\q2 उनके आश्चर्य के कामों की चर्चा करो।
\q1
\s5
\v 10 आनन्द मनाओ कि तुम उसके हो।
\q2 जो यहोवा को और अधिक जानना चाहते हैं वे आनन्दित हों।
\q1
\v 11 यहोवा से सहायता पाने और उसकी शक्ति पाने की विनती करो,
\q2 उनकी संगति की खोज में लगे रहो!
\q1
\s5
\v 12 उनके अद्भुत कामों को,
\q2 उनके चमत्कारों और निष्पक्ष कानून को जो उन्होंने हमें दिए मत भूलो।
\q1
\v 13 हम उनके दास याकूब के वंशज हैं;
\q2 हम इस्राएली हैं जिन्हें उन्होंने चुना है।
\q1
\v 14 यहोवा हमारे परमेश्वर है।
\q2 उनके निष्पक्ष कानून संपूर्ण पृथ्वी में के लोग जाने जाते हैं।
\q1
\s5
\v 15 वह अपनी वाचा को कभी नहीं भूलते हैं;
\q2 उनकी प्रतिज्ञा हज़ारों पीढ़ियों तक की है।
\q1
\v 16 यही वह वाचा है उन्होने उसने अब्राहम के साथ बाँधी थी,
\q2 और इसी वाचा को इसहाक को दोहराया।
\q1
\v 17 यह वाचा इस्राएलियों के लिए भी थी,
\q2 और वह उस वाचा को सदाकाल की रखना चाहते थे।
\q1
\v 18 उन्होंने कहा था, “मैं कनान देश को तुझे दूंगा,
\q2 कि तेरा और तेरे वंशजों के लिए सदा का हो। “
\q1
\s5
\v 19 जब यहोवा के लोग केवल कुछ ही संख्या में थे,
\q2 लोगों का एक छोटा सा समूह जो उस देश परदेशी होकर रहता था,
\q1
\v 20 वे एक स्थान से दूसरे स्थान,
\q2 एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहते थे।
\q1
\v 21 उन्होने किसी को भी उन पर अत्याचार करने नहीं दिया,
\q2 और उन्होंने राजाओं को यह कहकर चेतावनी दी,
\q1
\v 22 “जिन लोगों को मैंने चुना है उन्हें हानि मत पहुँचाना!
\q2 मेरे भविष्यवक्ताओं को हानि मत पहुँचाना! “
\q1
\s5
\v 23 हे संपूर्ण पृथ्वी के लोगों, यहोवा के लिए गीत गाओ।
\q2 प्रतिदिन प्रचार करो कि उन्होंने हमें बचाया है।
\q1
\v 24 सब देशों को सुनाओ कि वह महान हैं;
\q2 सब जातियों में उनके किए गए आश्चर्य के कामों का वर्णन करो।
\q1
\s5
\v 25 यहोवा महान है, और बहुत स्तुति के योग्य है।
\q2 सब देवताओं से अधिक उनका सम्मान किया जाना चाहिए,
\q1
\v 26 क्योंकि अन्य देवता जिनकी लोग पूजा करते हैं केवल मूर्तियां हैं,
\q2 लेकिन यहोवा वास्तव में महान है; उन्होंने आकाश को बनाया।
\q1
\v 27 परमेश्वर अपनी महिमा और एश्वर्य को प्रकट करते हैं, वे उनके शासन के साथ चमकते हैं।
\q2 उनके निवास में शक्ति और सौन्दर्य हैं।
\q1
\s5
\v 28 पृथ्वी की सब जातियाँ, यहोवा की स्तुति करो!
\q2 यहोवा की महिमा भय शक्ति के लिए उनकी स्तुति करो!
\q1
\v 29 यहोवा के नाम के योग्य महिमा से उनकी स्तुति करो।
\q2 उन्हें चढ़ाने के लिए भेंट लेकर उपस्थित हो जाओ!
\q2 यहोवा को दण्डवत् करो और उनकी आराधना करो क्योंकि वह पवित्र हैं, और उनकी पवित्रता अद्भुत महिमा के साथ उनसे निकलती है।
\q1
\s5
\v 30 उनकी उपस्थिति में बहुत डरें, क्योंकि वह भले और शक्तिशाली है, जो तुमसे बिल्कुल अलग हैं।
\q2 उन्होंने पृथ्वी को दृढ़ता से अपने स्थान पर रखा; और उसे कोई भी हिला नहीं सकता है।
\q1
\v 31 आकाश और पृथ्वी पर सबकुछ आनन्दित हो।
\q2 संपूर्ण जगत के लोग कहें, “यहोवा हमारे राजा हैं!”
\q1
\s5
\v 32 महासागरों और महासागरों के प्राणी जयजयकार करे;
\q2 मैदान और जो कुछ उसमें आनन्दित हो।
\q1
\v 33 जब ऐसा होता है तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे जंगल के सब पेड़ यहोवा के सामने आनन्द से गाते है।
\q2 ऐसा तब होगा जब वह पृथ्वी पर सब का न्याय करने के लिए आएंगे है।
\q1
\s5
\v 34 यहोवा का धन्यवाद, क्योंकि वह जो कुछ भी करते हैं वह अच्छा है।
\q2 वह हमसे सदा का सच्चा प्रेम करते हैं।
\q1
\v 35 उनसे कहो, “हे हमारे परमेश्वर, आप ही हैं जो हमें बचाते हैं,
\q2 हमें एक साथ एकत्र करें और हमें अन्य जातियों की सेनाओं से बचाएँ।
\q1 आपके इस काम के लिए हम आपको धन्यवाद देंगे,
\q2 और हम आपकी स्तुति करने में प्रसन्न होंगे। “
\q1
\s5
\v 36 हम इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा की स्तुति करो,
\q2 वह आरंभ से अन्त तक जीवित हैं।
\m जब लोगों ने इस भजन को गाकर समाप्त किया तब सब ने कहा “आमीन!”, और उन्होंने यहोवा की स्तुति की।
\s5
\v 37 तब दाऊद ने आसाप और उसके वंश के अन्य सदस्यों को तम्बू के सामने छोड़ दिया जिसमें यहोवा की पवित्र सन्दूक रखा गया था। उसने उनसे कहा कि उन्हें प्रतिदिन वहाँ अपना काम करना होगा।
\v 38 दाऊद ने ओबेदेदोम और लेवी के 68 अन्य वंशजों को उनके साथ काम करने के लिए छोड़ दिया। होसा और ओबेदेदोम ने पवित्र तम्बू के प्रवेश द्वार की रक्षा की।
\p
\v 39 दाऊद ने महायाजक सादोक और अन्य याजकों को इस्राएल की आराधना के लिए गिबोने के ऊँचे स्थान में स्थित जिसे यहोवा के पवित्र तम्बू के सामने सेवा करने के लिए रख दिया।
\s5
\v 40 कि वे प्रतिदिन सुबह और शाम मूसा द्वारा लिखे नियमों का पालन करते हुए वेदी पर बलियाँ चढ़ाएँ क्योंकि, यहोवा ने इस्राएली लोगों को यह नियम दिया था।
\v 41 उनके साथ हेमान और यदूथून और लेवी के अन्य वंशज थे। उन्हें चुना गया कि यहोवा की स्तुति के लिए भजन गाएँ क्योंकि वह अपने लोगों से सच्चा प्रेम करते हैं।
\s5
\v 42 हेमान और यदूतून को तुरही और झांझ बजाने के लिए नियुक्त किया गया था कि जब लेवी के अन्य वंशज पवित्र भजन गाएँ तो वे बजाएँ। पवित्र तम्बू के द्वारों की रक्षा के लिए यदूतून के पुत्रों को नियुक्त किया गया था।
\p
\v 43 तब सब लोग चले गए। वे सब अपने घर लौट आए, और दाऊद अपने घर लौट आया कि यहोवा से अपने परिवार को आशीर्वाद देने की विनती करे।
\s5
\c 17
\p
\v 1 दाऊद अपने महल में रहने लगा तब उसने भविष्यवक्ता नातान से कहा, “यह उचित नहीं कि मैं इस देवदार की लकड़ी से बने महल में रहता हूँ, परन्तु यहोवा का पवित्र सन्दूक तम्बू में रखा हुआ है!”
\p
\v 2 नातान ने दाऊद से कहा, “जो भी तू करने का विचार करता हो, वैसा कर क्योंकि परमेश्वर तेरे साथ है।”
\p
\s5
\v 3 लेकिन उस रात परमेश्वर ने नातान से बात की। उन्होंने कहा,
\v 4 “जा और मेरे दास दाऊद से कह कि मैं यहोवा, यह कह रहा हूँ: ‘तू वह नहीं जो मेरे रहने के लिए मंदिर बनाए।
\v 5 मैं जिस दिन से इस्राएलियों को मिस्र से निकलकर लाया उस दिन से आज तक भवन में नहीं रहा हूँ। मैं तो सदा ही तम्बू में रहा और जब जब इस्राएली एक स्थान से दूसरे स्थान पर गए तब तब स्थान-स्थान फिरता रहा हूँ।
\v 6 मैं इस्राएलियों के साथ जहाँ भी गया, मैं उनके साथ यात्रा करता था, सभी इस्राएली लोगों के साथ जहाँ भी अगुवे ठहराए थे उनसे कभी नहीं कहा कि मेरे लिए देवदार की लकड़ी का भवन क्यों नहीं बनवाया?”
\s5
\v 7 इसलिए, यह मेरे दास दाऊद से कहना स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, मुझ यहोवा ने तुझे भेड़ों को चरानेवाली चारागाह से उठाकर मेरी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया है।
\v 8 जहाँ भी तू गया मैं तेरे साथ रहा हूँ, और मैं ने तेरे सामने से सब शत्रुओं को निकाला है। और अब मैं तुझे बहुत प्रसिद्ध होने का कारण उत्पन्न करूँगा और पृथ्वी के महानतम पुरुषों के नामों के समान महान बना दूँगा।
\s5
\v 9-10 पूर्व में, जब मैंने अपने इस्राएली लोगों के लिए अगुओं को नियुक्त किया था, कई हिंसक जातियों ने उन पर अत्याचार किए थे। परन्तु यह ऐसा नहीं होगा। मैंने एक ऐसा स्थान चुना है जहाँ मेरे इस्राएली लोग शान्ति से रह सकें और कोई भी उन्हें परेशान नहीं करेगा। मैं उन्हें शत्रुओं के आक्रमणों से विश्राम दूंगा। और मैं उनके सब शत्रुओं को पराजित करूंगा। मैं यह घोषणा करता हूँ कि मैं, यहोवा, तेरे वंशजों को तेरे मरने के बाद शासन करने योग्य करूँगा।
\s5
\v 11 जब तेरा जीवन समाप्त होता है और तू मर जाता हैं और अपने पूर्वजों के पास चला जाएगा, तब मैं तेरे पुत्रों में से एक को राजा बनने के लिए नियुक्त करूंगा, और मैं उसके राज्य को दृढ़ता प्रदान करूंगा।
\v 12 वही है जो मेरे लिए एक मंदिर बनाने की व्यवस्था करेगा। और मैं उसके वंशजों में से एक का शासन इतना दृढ़ कर दूंगा कि यह हमेशा के लिए चलेगा।
\s5
\v 13 मैं उसके पिता के समान रहूंगा, और वह मेरे लिए एक पुत्र के समान होगा। मैंने शाऊल से प्रेम करना समाप्त कर दिया, जो तेरे राजा बनने से पहले राजा था, लेकिन मैं तेरे बेटे से प्रेम करना कभी नहीं त्यागूँगा।
\v 14 मैं उसे अपने लोगों पर शासन करने का कारण बनूँगा और उसका राज्य सदैव स्थिर रहेगा। ‘“
\p
\v 15 तब नातान ने दाऊद को यहोवा द्वारा प्रकट सब बातें सुना दीं।
\p
\s5
\v 16 तब दाऊद पवित्र तम्बू में गया और यहोवा की उपस्थिति में बैठा, और प्रार्थना की: “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं निश्चय आप के इन सब उपकारों के योग्य नहीं जो आप ने मुझ पर किए हैं मेरा परिवार भी इस योग्य नहीं हैं।
\v 17 और हे परमेश्वर, इस सबके उपरान्त आपने भविष्य में मेरे वंशजों के विषय में भी मुझे बता दिया है। हे मेरे परमेश्वर यहोवा, आपने तो मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे कि मैं पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हूँ!
\v 18 मैं दाऊद, ऐसे सम्मान के लिए आपसे और क्या कह सकता हूँ? हे यहोवा, आप तो जानते हैं कि मैं कैसा मनुष्य हूँ।
\s5
\v 19 हे यहोवा आपने यह सब किया है, हे यहोवा, क्योंकि आप यही करना चाहते हैं। आपने मेरे लिए ये सब महान काम किए हैं और आपने मुझे उन बातों को भी प्रकट किया है जिन्हें आपने मेरे लिए करने की प्रतिज्ञा की है, क्योंकि आप मुझसे प्रेम करते हैं।
\v 20 हे यहोवा, आप महान हैं। आप जैसा कोई भी नहीं है। केवल आप ही एकमात्र परमेश्वर हैं, जो हमने सदैव सुना है।
\v 21 और इस्राएल के जैसा संसार में कोई देश नहीं है। इस्राएल पृथ्वी पर एकमात्र देश है जिसके लोगों के बचाने के लिए आप उतर आए थे। आपने महान और भयानक चमत्कार किए, कि हमारे पूर्वजों को मिस्र में दास होने से बचाएँ और कनान में रहने वाली अन्य जातियों को बाहर निकाल दिया।
\s5
\v 22 आपने हम, इस्राएली लोगों को सदा के लिए अपना कर लिया है, और आप, हे यहोवा, हमारे परमेश्वर हो गए हैं!
\v 23 और अब हे यहोवा, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आपने मेरे और मेरे वंशजों के लिए जो प्रतिज्ञा की है उसे सदा के लिए पूरी होने दे और आप ने जो कहा कर दें।
\v 24 जब ऐसा हो तब आप सदा के लिए प्रसिद्ध होंगे। और लोग कहेंगे, ‘यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान ही परमेश्वर हैं जो इस्राएल पर शासन करते हैं! और आप वंश को सदा के लिए राज गद्दी पर बैठाएँगे।
\s5
\v 25 मेरे परमेश्वर आपने मुझ पर प्रकट किया है कि आप मेरे वंशजों में से कुछ को राजा बनाएँगे। अत: मैं आपसे इस तरह प्रार्थना करने का साहस कर रहा हूँ।
\v 26 हे यहोवा, आप परमेश्वर हैं! आपने मेरे लिए इन भली बातों को करने की प्रतिज्ञा की है।
\v 27 और अब हे, यहोवा आपने मेरे वंशजों को आशीष देने की प्रतिज्ञा की है, कि वे सदा के लिए शासन करते रहे। ऐसा इसलिए होगा कि आप, यहोवा, ही हैं जिन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया है, और आप उन्हें सदा आशीष देते रहेंगे। “
\s5
\c 18
\p
\v 1 कुछ समय बाद, दाऊद की सेना ने पलिश्ती सेना पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित किया। उन्होंने गत और आस-पास के गांवों पर अधिकार कर लिया।
\p
\v 2 उसकी सेना ने मोआब जाति की सेना को भी पराजित किया। लोगों को विवश किया दाऊद को अपना शासक बनाना पड़ा और प्रति वर्ष दाऊद की सरकार को पैसे का भुगतान करने के लिए विवश होना पड़ा ताकि दाऊद की सेना उनकी रक्षा करे।
\p
\s5
\v 3 दाऊद की सेना ने हमात शहर के पास अराम में सोबा के क्षेत्र के राजा हददेजर की सेना से युद्ध किया, जब हददेजर फरात नदी के पास के क्षेत्र में अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहा था।
\v 4 दाऊद की सेना ने हददेजर के एक हजार रथ, सात हजार रथ चालक, और बीस हजार सैनिकों को ले लिया। उन्होंने उनके घोड़ों के घुटनों के पीछे की नसें कटवा दीं केवल एक सौ घोड़े थे जिन्हें उन्होंने अपंग नहीं किया था।
\p
\s5
\v 5 जब अराम की सेना दमिश्क के नगर से हददेजर की सेना की सहायता करने के लिए आई, तब दाऊद के सैनिकों ने उन में से बाईस हजार लोगों की हत्या कर दी।
\v 6 तब दाऊद ने दमिश्क में अपनी सैनिक चौकियाँ स्थापित कर दी और अराम के लोगों को विवश होकर दाऊद को अपना शासक स्वीकार करना पड़ा, और प्रति वर्ष दाऊद की सरकार को भुगतान करने के लिए कर देना पड़ा। और यहोवा ने दाऊद की सेना को प्रत्येक स्थान में युद्ध जीतने में समर्थ बनाया था।
\p
\s5
\v 7 दाऊद सैनिकों ने हददेजर की सेना के अधिकारियों की सोने की ढालों को लाकर यरूशलेम में रखा।
\v 8 वे हददेजर के तिमत और कून नगरों से बहुत पीतल भी ले आए जिसे दाऊद के पुत्र सुलैमान ने बाद में “समुद्र” नामक बड़ा हौद और मंदिर के लिए खम्भे तथा वस्तुएँ बनाने में काम में लिया।
\p
\s5
\v 9 जब अराम में हमात शहर के राजा तोऊ ने सुना, कि दाऊद की सेना ने राजा हददेजर की सारी सेना को हरा दिया,
\v 10 उसने अपने पुत्र हदोराम को राजा दाऊद का अभिवादन करने और हदोराम की सेना को पराजित करने के लिए उसे बधाई देने भेजा क्योंकि उसकी सेना तोऊ से युद्ध करती रहती थी हदोराम दाऊद को सोने चाँदी और पीतल से बने कई सामान भेंट किए।
\p
\v 11 राजा दाऊद ने वह सब सामान यहोवा को समर्पित कर दिया, जैसे अपने एदोम और मोआब चाँदी और सोना था, और अम्मोनियों और पलिश्ती लोगों से और अमालेक के वंशजों से लाए गए सोने चाँदी के साथ किया था।
\p
\s5
\v 12 दाऊद के सेनापति सरूयाह के बेटे अबीशै की सेना ने नमक की घाटी में एदोम के अठारह हजार सैनिकों की हत्या कर दी।
\v 13 तब दाऊद ने एदोम में वहां अपने सैनिकों की चौकियाँ बना दीं, और एदोम के लोगों को दाऊद के आधीन होने के लिए विवश होना पड़ा।
\p
\s5
\v 14 दाऊद ने सब इस्राएली लोगों पर शासन किया, और उसने उनके लिए सदा वही किया जो कि उचित और निष्पक्ष था।
\v 15 सरूयाह का पुत्र योआब मुख्य सेनापति था। अहीलूद का पुत्र यहोशापात इतिहास लिखनेवाला था।
\v 16 अहीतूब का पुत्र सादोक और एब्यातार का पुत्र अबीमेलेक प्रधान याजक थे। शाबशा मंत्री हुआ।
\v 17 यहोयादा के पुत्र बनायाह करेतियों और पलेतियों पर जो दाऊद के अंगरक्षक थे प्रधान हुआ। और दाऊद के पुत्र उनके सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी थे।
\s5
\c 19
\p
\v 1 कुछ समय बाद, अम्मोन लोगों का राजा नाहाश भी मर गया। तब उसका बेटा हानून उनका राजा बना।
\v 2 जब दाऊद ने इसके विषय में सुना, तो उसने सोचा, “नाहाश मेरे प्रति दयालु था, इसलिए मैं उनके पुत्र के प्रति दयालु रहूंगा।”अत: दाऊद ने उसके पिता की मृत्यु का शोक प्रकट करने और उसे शान्ति देने अपने अधिकारियों को भेजा।
\p परन्तु जब दाऊद के अधिकारी अम्मोनियों के देश में हानून के पास आए,
\v 3 तब अम्मोनियों के मंत्रियों ने हानून से कहा, “आपके विचार में क्या दाऊद वास्तव में आपके पिता का सम्मान करता है कि उसने इन लोगों को आपके पिता की मृत्यु पर दुःख प्रकट करने भेजा है? हमारी समझ में तो उसने इन लोगों को हमारे देश की जानकारी लेने भेजा है कि वह कैसे अपनी सेना को हमें पराजित करने योग्य कर सकता हैं। “
\p
\s5
\v 4 हानून ने उनकी बात पर विश्वास किया इसलिए उसने अपने कुछ सैनिकों को आज्ञा दी और उन्होंने दाऊद के भेजे गए अधिकारियों को पकड़ कर उनकी दाढ़ी मुंडवायी और उनके वस्त्रों के निचले भाग को काटकर उन्हें अपमानित किया, और फिर उन्हें भेज दिया।
\p
\v 5 अधिकारियों को बहुत अपमानित किया गया था। जब दाऊद को उसके अधिकारियों के साथ हुई इस घटना, के विषय में पता चला, तो उसने कुछ लोगों को उनके पास भेज कर कहलवाया, “जब तक तुम्हारी दाढ़ी फिर से बढ़ न जाए तब तक यरीहो में ही रहो, उसके बाद घर लौट आना।”
\p
\s5
\v 6 तब अम्मोनियों के प्रधानों को यह बोध हुआ कि उन्होंने दाऊद का अपमान किया है। इसलिए हानून और उसके अधिकारियों ने अरम्नहरैम, अरम्माका और इस्राएल के उतर पूर्व के शोबा के क्षेत्रों से रथों और रथ चालकों को किराए पर लेने के लिए तीस हजार किलोग्राम चाँदी भेजी।
\v 7 उन्होंने बत्तीस हजार रथों और रथ चालकों, साथ माका के राजा और उनकी सेनाओं को किराए पर बुलाया और उन्होंने आकर मोआब के क्षेत्र में मेदबा शहर के पास अपने तम्बू लगाए। अम्मोन लोगों के सैनिक भी बाहर निकल गए और अपने राजधानी रब्बा के फाटक पर अपनी स्थिति में खड़े हो गए।
\p
\s5
\v 8 जब दाऊद ने इसके विषय में सुना, तो उसने योआब और उसकी सारी सेना को भेजा।
\v 9 अम्मोनियों के समूह के सैनिक अपने नगर से बाहर निकले और अपनी राजधानी रब्बा के फाटक पर युद्ध के लिए तैयार हो गए। इस बीच, अन्य राजा जो अपनी सेनाओं के साथ आए थे खुले मैदानों में अपनी स्थिति में खड़े थे।
\p
\s5
\v 10 योआब ने देखा कि उसके सैनिकों के सामने और उसके सैनिकों के पीछे भी शत्रु सैनिकों के दल थे। इसलिए उसने सबसे अच्छे इस्राएली सैनिकों को चुना और उन्हें अराम के सैनिकों से लड़ने के लिए पाँति में रखा।
\v 11 उसने अपने बड़े भाई अबीशै को अपने अन्य सैनिकों का नायक किया और उन्होंने उन्हें अम्मोन लोगों के समूह की सेना के सामने स्थिति लेने के लिए कहा।
\s5
\v 12 योआब ने सन से कहा, “यदि अराम के सैनिक पराजित होने के लिए बहुत अधिक शक्तिशाली हो, तो तू अपने सैनिकों के साथ हमारी सहायता करना। और यदि अम्मोन लोगों के सैनिक पराजित होने के लिए बहुत शक्तिशाली हो, तो मेरे सैनिक तेरी सहायता के लिए आएंगे और पुरुषों की सहायता करेंगे।
\v 13 हम अपने लोगों और हमारे शहरों की रक्षा के लिए पूरी शक्ति के साथ घमासान युद्ध करे क्योंकि हमारे शहर परमेश्वर यहोवा वह करेंगे जो उनकी समझ में उत्तम है। “
\p
\s5
\v 14 तब योआब और उसके सैनिक अराम की सेना से लड़ने के लिए आगे बढ़े; और अराम के सैनिकों को इस्राएल की सेना ने पीछे हरा दिया।
\v 15 और जब अम्मोनियों के समूह के सैनिकों ने देखा कि अराम के सैनिक भाग रहे है, तो वे अबीशै और उसकी सेना के सामने से भागने लगे, और पीछे हट कर शहर में प्रवेश कर गए। अत: योआब और उसकी सेना यरूशलेम लौट आई।
\p
\s5
\v 16 अराम की सेना के प्रधानों ने देखा कि वे इस्राएल की सेना से पराजित हुए हैं, तो उन्होंने फरात नदी के पूर्व की ओर अराम के दूसरे हिस्से में दूत भेजे और वहाँ से युद्ध के मैदान में सैनिकों को बुलवाया लाया, शदाक के साथ, हददेजर की सेना का सेनापति शोषक उनका नेतृत्व कर रहा था।
\p
\v 17 जब दाऊद को यह समाचार मिला तो उसने सब इस्राएली सैनिकों को एकत्र किया, और उन्होंने यरदन नदी पार कि और आगे बढ़कर। अराम की सेना पर आक्रमण करने के लिए अपनी स्थिति ली।
\s5
\v 18 परन्तु अराम की सेना इस्राएल के सैनिकों से भाग गई। परन्तु, दाऊद के सैनिकों ने उनके सात हजार रथ चालकों और चालीस हजार अन्य सैनिकों की हत्या कर दी। उन्होंने उनके सेना नायक शोषक को भी मार डाला।
\p
\v 19 जब हददेजर के शासन के अधीन रहनेवाले राजाओं को इस्राएली सेना द्वारा उनकी पराजय का समाचार मिला, तो उन्होंने दाऊद के साथ शान्ति की शपथ खाई और उसके शासन के अधीन होने को तैयार हो गए।
\p इस कारण अराम के शासक अब अम्मोन लोगों के शासकों की सहायता नहीं करना चाहते थे।
\s5
\c 20
\p
\v 1 उस क्षेत्र में, राजा प्राय: वसंत ऋतु में अपने शत्रुओं से युद्ध करने के लिए अपनी सेनाओं के साथ जाते थे। लेकिन अगले वर्ष, दाऊद ने ऐसा नहीं किया। इसके अपेक्षा, वह यरूशलेम में रहा, और उसने योआब के साथ अपनी सेना को भेजा। योआब ने अपनी सेना के साथ यरदन नदी पार करके अम्मोन लोगों के समूह को उजाड़ दिया। तब वे उनकी राजधानी रब्बा गए और उसे घेर लिया। दाऊद थोड़ी देर के लिए यरूशलेम में रहा। लेकिन बाद में उसने और सैनिकों को लिया और योआब की सहायता करने के लिए गया। उनकी सेनाओं ने रब्बा पर हमला किया और इसे नष्ट कर दिया।
\s5
\v 2 तब दाऊद ने रब्बा के राजा के सिर का मुकुट लिया और उसे अपने सिर पर रखा। यह बहुत भारी था; यह तैंतीस किलोग्राम वजन था, और उसमें बहुत मूल्यवान पत्थर जड़े थे। उन्होंने शहर से कई अन्य मूल्यवान सामान लूट लिया।
\v 3 तब वे लोगों को शहर से बाहर लाए और उनसे आरी और लौह की गैंतियों और कुल्हाड़ियों का उपयोग करवाकर अपनी सेना के लिए काम करने को विवश कर दिया। दाऊद के सैनिकों ने अम्मोन लोगों के सब शहरों में ऐसा ही किया था। तब दाऊद और उसकी सारी सेना यरूशलेम लौट आई।
\p
\s5
\v 4 बाद में, दाऊद की सेना ने गेजेर शहर में पलिश्ती सेना के साथ युद्ध किया। युद्ध में हुशा वंश से सिब्बकै ने रापा के वंशज सिपै को मार डाला। अत: पलिश्ती सेना हार गई थी।
\p
\v 5 पलिश्ती सैनिकों के साथ और युद्ध में, याईर के पुत्र एल्हानान ने गथ शहर के विशाल गोल्यत के छोटे भाई लहमी को मार डाला, जिसकी भाले की छड़ जुलाहे की डोंगी समान मोटी था।
\p
\s5
\v 6 गत के पास एक और युद्ध हुआ। वहाँ एक लम्बा चौड़ा मनुष्य था जिसके प्रत्येक हाथ पर छह अंगुलियां थीं और प्रत्येक पाँव पर छह अंगुली थीं। वह रापा दानवों का वंशज था।
\v 7 जब उसने इस्राएली सैनिकों का ठट्ठा किया, तब शिमा के पुत्र यहोनादाब ने उसे मार डाला। शिमा दाऊद का बड़ा भाई था।
\p
\v 8 वे रापा दानवों के वंशज थे जो गत में रहते थे, उन्हें दाऊद और उसके सैनिकों ने मार डाला।
\s5
\c 21
\p
\v 1 शैतान ने इस्राएली लोगों को परेशानी का कारण बनने का फैसला किया। इसलिए उसने दाऊद को उकसाया कि इस्राएलियों की गिनती करके देखे कि कितने लोग सेना में भर्ती हो सकते हैं।
\p
\v 2 तब दाऊद ने योआब और सेना के नायकों को आज्ञा दी, “इस्राएल में रहनेवाले सब लोगों को गिनें, जो सेना में भर्ती होने के योग्य हैं। दक्षिण में बर्शेबा से आरंभ करके उत्तर में दान तक जाएँ। फिर वापस आएं और मुझे रिपोर्ट करें, कि मैं जान सकूँ कि कितने पुरुष हैं। “
\p
\v 3 पर योआब ने कहा, “हे महामहिम, मुझे आशा है कि यहोवा हमारी सेना को अब से सौ गुना बड़ा कर देंगे। परन्तु हम सब तेरी सेवा करते हैं। इसलिए तुझे यह पाप नहीं करना चाहिए और इस्राएल को इसके लिए पीड़ा नहीं देनी चाहिए।”
\p
\s5
\v 4 लेकिन दाऊद ने अपना मन नहीं बदला। तो योआब और उसके सैनिक इस्राएल में और यहूदा में हर स्थान में गए, और लोगों की गिनती की। तब वे यरूशलेम लौट आए,
\v 5 और उन्होंने दाऊद से कहा कि इस्राएल में 1,100,000 पुरुष हैं जो सेना में भर्ती हो सकते हैं, और यहूदा में 470,000 लोग हैं।
\s5
\v 6 हालांकि, योआब ने लेवी और बिन्यामीन के गोत्रों से पुरुषों की गिनती नहीं की, क्योंकि राजा की आज्ञा से घृणा करता था।
\p
\v 7 लोगों की गिनती करने के लिए दाऊद के आदेश से परमेश्वर क्रोधित हो गए, इसलिए उन्होंने दाऊद से कहा कि उसने इस्राएल के लोगों को दण्ड देने का निर्णय ले लिया।
\v 8 तब दाऊद ने परमेश्वर से प्रार्थना की। उसने उनसे कहा, “मैंने जो किया वह बहुत बड़ी मूर्खता है। मैंने जो कुछ किया है वह बहुत बड़ा पाप है। इसलिए अब मैं आपसे विनती करता हूँ, कृपया मुझे माफ़ कर।”
\p
\s5
\v 9 तब यहोवा ने दाऊद के भविष्यद्वक्ता गाद से कहा,
\v 10 “जा और दाऊद को यह कह: ‘मैं तुझे दण्ड देने के लिए तीन बातों में से एक चुनने की अनुमति दे रहा हूँ। जो भी तू चुनेगा मैं वही करूँगा।’”
\p
\s5
\v 11 तब गाद, दाऊद के पास गया और उससे कहा, “यहोवा कहते हैं: ‘तू इन दंडों में से एक चुन ले:
\v 12 इस्राएल में तीन वर्ष का अकाल, या तीन महीने तेरी सेनाएं अपने शत्रुओं के सामने से भाग जाएंगी, जो तलवार से आक्रमण करेंगे, या तीन दिन मैं अपने दूत को देश में महामारी द्वारा कई लोगों को मरने के लिए भेजूंगा। ‘तो तुझे यह निर्णय लेना होगा कि मैं यहोवा को क्या उत्तर दूँ, जिसने मुझे भेजा है। “
\p
\s5
\v 13 दाऊद ने गाद से कहा, “मैं बहुत परेशान हूँ, परन्तु यहोवा को मुझे दण्ड देने दें क्योंकि वह बहुत दयालु है। मनुष्य को मुझे दण्ड देने दें, क्योंकि वे दयालु नहीं होंगे।”
\p
\v 14 तब यहोवा ने इस्राएल के लोगों पर एक पीड़ा भेजी, और उनमें से सत्तर हजार लोग मर गए।
\v 15 और परमेश्वर ने महामारी द्वारा यरूशलेम में लोगों को नष्ट करने के लिए एक स्वर्गदूत भेजा। परन्तु जब स्वर्गदूत उस भूमि पर खड़ा था जहाँ यबूसी समूह ओर्नान ने अनाज को झाड़ता, तो यहोवा ने उन सभी पीड़ाओं को देखा जो लोगों ने सहन किया था, और वह दुखी हुए। तो उन्होंने स्वर्गदूत से कहा, “तू जो कर रहा है उसे रोक! वह बहुत बुरा है!”
\p
\s5
\v 16 दाऊद ने उस स्वर्गदूत को देखा जिसे यहोवा ने भेजा था, वह आकाश और भूमि के बीच खड़ा था। स्वर्गदूत के हाथ में तलवार थी जो यरूशलेम की ओर खिंची हुई थी। तब दाऊद और नगर के बुजुर्ग, जो टाट के वस्त्र पहन हुए थे, भूमि पर गिरे और दण्डवत् किया।
\p
\v 17 दाऊद ने परमेश्वर से कहा, “मैं ही हूँ जिसने सेना में भर्ती होने के योग्य पुरुषों की गिनती करने का आदेश दिया था मैंने ही पाप किया है और वह बहुत बुरा काम किया है, ये लोग तो भेड़ के समान निर्दोष हैं। उन्होंने निश्चय ही कुछ भी गलत नहीं किया है। इसलिए मेरे परमेश्वर हे यहोवा, मुझे और मेरे परिवार को ही दण्ड दें, और इस महामारी से अपने लोगों को बीमार होकर मरने न दें। “
\p
\s5
\v 18 तब यहोवा के उस दूत ने गाद से कहा कि जाकर दाऊद से कहे कि ओर्नान के अनाज झाड़ने के स्थान में एक वेदी बनवाए जहाँ यहोवा की आराधना की जाएँ।
\v 19 अत: जब गाद ने दाऊद को परमेश्वर का संदेश सुनाया तो दाऊद ने गाद के संदेश के अनुसार किया और वह वहाँ गया।
\p
\v 20 जब ओर्नान गेहूं झाड़ रहा था, तब उसने पीछे मुड़कर और स्वर्गदूत को देखा। उसके चार पुत्र जो उसके साथ थे, उन्होंने भी स्वर्गदूत को देखा, और वे सब छिप गए।
\s5
\v 21 तब दाऊद वहाँ पहुंचा तब ओर्नान ने उसे देखकर अपने अनाज झाड़ने के स्थान को छोड़ दिया और भूमि पर मुहं के बल गिर कर दण्डवत् किया।
\p
\v 22 दाऊद ने उस से कहा, “कृपया मुझे यह अनाज झाड़ने का स्थान बेच दे कि मैं यहोवा की आराधना करने के लिए यहाँ एक वेदी बना सकूँ ताकि वह इस महामारी को रोक दें। मैं इस की पूरी कीमत चुकाऊंगा।”
\p
\s5
\v 23 ओर्नान ने उत्तर दिया, “इसे ले लो! महामहिम, और जो कुछ भी तू चाहता है वही कर। मैं दावनी करनेवाला बैल भी दूंगा कि वह वेदी पर पूरी तरह जला दिया जाए। और मैं जलाने के लिए लकड़ियाँ भी दूँगा की वेदी पर काम आएं। और अन्नबलि के लिए भी दूँगा मैं यह सब सामान तुझे दूँगा। “
\p
\v 24 परन्तु राजा ने ओर्नान से कहा, “नहीं, मैं इन सब वस्तुओं को उपहार के रूप में नहीं लूँगा। मैं तुझे इसकी पूरी कीमत दूंगा। मैं तेरा कुछ भी नहीं लूँगा कि ऐसी बलि चढ़ाऊं जो मेरे लिए बिना मोल की हो कि यहोवा के लिए जलानेवाली बलि चढ़ाऊं।”
\p
\s5
\v 25 तब दाऊद ने उस पूरे स्थान के लिए ओर्नान को साढ़े छः किलोग्राम सोने का भुगतान किया।
\v 26 दाऊद ने वहां यहोवा की उपासना करने के लिए एक वेदी बनाई, और उसने वेदी पर जलाने वाली बलि चढाई यहोवा के साथ मेल करने के लिए भी बलि चढ़ाई। दाऊद ने यहोवा से प्रार्थना की, और यहोवा ने वेदी पर बलि को जलाने के लिए स्वर्ग से आग गिराई।
\p
\v 27 तब यहोवा ने स्वर्गदूत से कहा, कि वह अपनी तलवार वापस म्यान में रखले। स्वर्गदूत ने ऐसा ही किया।
\s5
\v 28 और जब दाऊद ने देखा कि यहोवा ने ओर्नान के उस स्थान पर उसे उत्तर दिया जहाँ वह अनाज को झाड़ता था और महामारी को रोक दिया तो उसने वहां बलिदान चढ़ाए।
\v 29 यहोवा का पवित्र तम्बू, और बलि जलाने की वेदी जिन्हे मूसा ने जंगल में स्थापित करने का आदेश दिया था, वह उस समय, गिबोन शहर में एक पहाड़ी पर थी।
\v 30 परन्तु दाऊद वहां जाकर परमेश्वर से विनती नहीं करना चाहता था कि वह उसे बताएँ कि वह दाऊद से क्या करवाना चाहते हैं, क्योंकि वह डरता था कि यहोवा का भेजा गया दूत उसे अपनी तलवार से न मार डाले उसे ऐसा लगा कि यही वह स्थान है जिसे यहोवा अब बलि के लिए चाहते हैं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 तब दाऊद ने कहा, “यरूशलेम के किनारे पर, जही हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिए मंदिर का निर्माण करेंगे, और जही हम इस्राएलियों के लिए बलि जलाने की वेदी बनाएँगे।”
\p
\v 2 तब दाऊद ने आज्ञा दी कि इस्राएलियों के बीच रहनेवाले विदेशियों को एकत्र होना चाहिए। जब उन्होंने ऐसा किया, तो उन्होंने उन लोगों में से कुछ को खदानों से भारी पत्थरों को काटने और अपनी सतहों को चिकना करने के लिए नियुक्त किया, कि वे पत्थर परमेश्वर के मंदिर के निर्माण में काम आएँ।
\s5
\v 3 दाऊद ने कीलों के लिए मंदिर के द्वारों की चूलों के लिए बड़ी मात्रा में लोहा एकत्र किया। सब बर्तनों को बनाने के लिए बहुत अधिक मात्रा में पीतल एकत्र किया; और क्योंकि वह इतना अधिक था, कि कोई भी इसका वजन नहीं कर सकता था।
\v 4 उसने बड़ी संख्या में देवदार के लट्ठे खरीदने के लिए धन भी दिया। क्योंकि वे बड़ी संख्या में थे इसलिए, कोई भी उन्हें गिन नहीं पाया था। वे लट्ठे सोर और सैदा के शहरों के लोगों ने दाऊद को भेजे थे।
\p
\v 5 दाऊद ने उन सभी चीजों को एकत्र किया क्योंकि उसने सोचा था, “मेरा पुत्र सुलैमान अभी भी जवान है और वह नहीं जानता कि उसे इमारतों के निर्माण के विषय में उसे कैसा ज्ञान होना चाहिए, और यहोवा का मंदिर वैभवशाली होना है। यह एक ऐसी महिमामय इमारत होना है कि वह प्रसिद्ध हो जाएँ और संपूर्ण पृथ्वी के लोग इसे गौरवशाली माने। इसलिए अब मैं इस की तैयारी करना आरंभ करता हूँ और सुलैमान इसे पूरा करने का उत्तरदायी होगा। “इसलिए दाऊद की मृत्यु से पहले बड़ी संख्या में निर्माण सामग्री एकत्र होगी।
\p
\s5
\v 6 तब दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान को बुलाया, और उससे कहा कि उसे यहोवा के लिए एक मंदिर बनाने की व्यवस्था करनी है, जिन परमेश्वर की इस्राएली आराधना करते हैं।
\v 7 उसने उससे कहा, “मैं अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करने के लिए एक मंदिर बनाना चाहता था।
\v 8 परन्तु यहोवा ने एक भविष्यद्वक्ता के द्वारा मुझे सन्देश दिया तू ने युद्धों में कई लोगों को मारा है। मैंने उन सब लोगों के खून को देखा है जिन्हें तू ने मारा था, इसलिए तू मेरे सम्मान के लिए मंदिर बनाने की व्यवस्था करेगा।
\s5
\v 9 परन्तु तेरा बेटा जो तेरे मरने के बाद इस्राएल का राजा होगा। वह शांतिपूर्ण और गंभीर होगा न कि मनुष्य का खून बहाने वाला। और मैं उसके और उसके आस-पास के देशों में उसके शत्रुओं के बीच शान्ति उत्पन्न करूँगा। उसका नाम सुलैमान होगा, जिसका अर्थ शान्ति के शब्द का सा होगा उसके राज्य में इस्राएल के लोग शान्ति और सुरक्षा में रहेंगे।
\v 10 वही है जो मेरा सम्मान करने के लिए एक मंदिर बनवाएगा । वह मेरे लिए एक पुत्र की तरह होगा, और मैं उसके कुछ वंशजों को सदा के लिए इस्राएल पर शासन करने का कारण बनूंगा।
\p
\s5
\v 11 इसलिए अब, हे मेरे पुत्र, मुझे आशा है कि यहोवा तेरी सहायता करेंगे, और तुझे तेरे यहोवा के मन्दिर का निर्माण करने में सफल करेंगे जैसा उन्होंने कहा है कि तू यह काम करेगा।
\v 12 मैं यह भी आशा करता हूँ कि वह तुझे बुद्धि दे और तुझे क्या करना है उसकी समझ प्रदान करें और जब तू इस्राएल पर शासन करें तब उनके नियमों का पालन करने योग्य बनाएँ।
\v 13 यदि तू उन सभी नियमों और विधियों का जो यहोवा ने मूसा द्वारा इस्राएल को दिए थे, सावधानीपूर्वक पालन करे तो तू सफल होगा। दृढ़ हो और साहसी बन। किसी बात से मत डर, और निराश न हो!
\p
\s5
\v 14 मैंने यहोवा के मन्दिर के निर्माण के लिए सामग्री उपलब्ध कराने के लिए कड़ी मेहनत की है। मैंने 3,300 मेट्रिक टन सोना, 33,000 मेट्रिक टन चाँदी एकत्र की है। मैंने लोहा और पीतल एक बड़ी मात्रा में एकत्र किया है, कोई भी इसका वजन नापने में सक्षम नहीं है। मैंने मंदिर की दीवारों के लिए लकड़ी और पत्थर भी एकत्र किए हैं, लेकिन तुझे ऐसी कुछ और वस्तुएँ भी एकत्र करने की आवश्यकता हो सकती है।
\s5
\v 15 इस्राएल में ऐसे कई पुरुष हैं जिनको दीवारों,को बनाने के लिए बड़े बड़े पत्थरों को काटने की योग्यता है और सुतार, और विभिन्न प्रकार की चीजें बनाने में बहुत कुशल लोग हैं।
\v 16 ऐसे कई लोग हैं जो जानते हैं कि कैसे सोने, चाँदी, पीतल और लोहे से चीजें बनाना है। तो अब मैं तुझसे कहता हूँ, मंदिर बनाने का काम शुरू कर और मुझे आशा है कि यहोवा तेरे साथ रहेंगे। “
\p
\s5
\v 17 तब दाऊद ने आज्ञा दी कि सब इस्राएली प्रधानों को सुलैमान की सहायता करनी होगी। उसने उनसे कहा,
\v 18 “हमारे परमेश्वर यहोवा निश्चित रूप से तुम्हारे साथ हैं। उन्होंने आस-पास सब देशों के साथ तुम्हारी शान्ति स्थापित कर दी है। उन्होंने मेरी सेना को विजयी होने में समर्थ किया है, इसलिए अब यहोवा और मेरे लोग उन्हें नियंत्रित करते हैं।
\v 19 अब तुम्हें अपने पूरे मन से यहोवा का आज्ञा पालन करना होगा। हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए मंदिर बनाने की व्यवस्था करने में सहायता करें, कि आप उस पवित्र सन्दूक जिसमें दस आज्ञाएं और अन्य पवित्र वस्तुएं जो यहोवा की सब पवित्र वस्तुएँ उस मंदिर में ले आएँ जिसे तुम यहोवा को सम्मानित करने के लिए तैयार करोगे। “
\s5
\c 23
\p
\v 1 दाऊद ने जब अपने बेटे सुलैमान को राजा नियुक्त किया तब बहुत बूढा हो गया था।
\p
\v 2 दाऊद ने इस्राएल के प्रधानों और याजकों और लेवी के अन्य वंशजों को एकत्र किया।
\v 3 उसने अपने कुछ अधिकारियों को लेवी के वंशजों की गिनती करने का आदेश दिया जो कम से कम तीस वर्ष के थे, और उन्होंने पाया कि वे अड़तीस हजार थे।
\s5
\v 4 तब दाऊद ने कहा, “उन अड़तीस हजार में से मैं चाहता हूँ कि चौबीस हजार यहोवा के मन्दिर में काम की निगरानी करें, और मैं चाहता हूँ कि उनमें से छ: हजार अधिकारी और न्यायाधीश हों।
\v 5 मैं चाहता हूँ कि चार हजार द्वारों पर रक्षक बनें, और चार हजार उन संगीत वाद्यों का उपयोग करके यहोवा की स्तुति करें। “
\p
\v 6 दाऊद ने लेवी के वंशजों को तीन समूहों में विभाजित किया; प्रत्येक समूह में ऐसे पुरुष शामिल थे जो लेवी के तीनों बेटे गेर्शोन, कहात और मरारी के वंशज थे।
\s2 गेर्शोन के वंशजों की सूची है।
\m
\s5
\v 7 गेर्शोन के वंशज लादान और शिमी थे।
\q
\v 8 लादान के तीन पुत्र थे: यहीएल सबसे बड़ा था, और उसके छोटे भाई जेताम और योएल थे।
\q
\v 9 शिमी के तीन पुत्र थे: शलोमोत, हजीएल और हारान।
\q2 वे लादान के कुलों के प्रधान थे।
\q
\s5
\v 10 शिमी के पुत्र चार पुरुष थे:
\q2
\v 11 यहत, जो उसका सबसे बड़ा पुत्र था, और उसके छोटे भाई जीना, यूश और बरीआ थे।
\q2 यूश और बरीआ के पास बहुत बेटे नहीं थे, इसलिए उन्हें एक ही परिवार गिना जाता था।
\s2 कहात के वंशजों की सूची हैं।
\m
\s5
\v 12 कहात के चार पुत्र थे: अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल।
\q
\v 13 अम्राम के दो पुत्र थे: हारून और मूसा।
\q2 हारून और उसके वंशजों को यहोवा को पवित्र वस्तुओं को समर्पित करने, यहोवा को बलिदान देने, उनकी उपस्थिति में सेवा करने और लोगों को यह बताने के लिए अलग किया गया कि यहोवा उन्हें आशीर्वाद देने के लिए क्या करेगा। उन्हें सदा के लिए वैसा ही काम करना था।
\q2
\v 14 मूसा जिस ने परमेश्वर की उत्तम सेवा की, उसके बेटों को लेवी के गोत्र में गिना जाता था। उनकी सूची हैं।
\q
\s5
\v 15 मूसा के पुत्र गेर्शोन और एलीएजेर थे।
\q2
\v 16 गेर्शोन का सबसे बड़ा पुत्र शबूएल था।
\q2
\v 17 रहब्याह एलीएजेर का सबसे बड़ा पुत्र था।
\q2 एलीएजेर का कोई पुत्र नहीं था, परन्तु रहब्याह के कई बेटे थे।
\q
\v 18 यिसहार का सबसे बड़ा पुत्र शलोमीत था।
\q
\s5
\v 19 हेब्रोन के चार बेटे थे।
\q2 यरीय्याह उसका सबसे बड़ा पुत्र था, और उसके छोटे भाई अमर्याह, यहज़ीएल और यकमाम थे।
\q
\v 20 उज्जीएल के दो बेटे थे।
\q2 मीका सबसे बड़ा पुत्र था, और उसका छोटा भाई यिशिश्य्याह था।
\s2 मरारी के वंशजों की सूची हैं।
\m
\s5
\v 21 मरारी के दो बेटे थे: महली और मूशी।
\q2 महली के पुत्र एलीआजर और कीश थे।
\q2
\v 22 एलीआजर के पुत्र नहीं थे; उसके पास केवल बेटियां थीं। तो उनसे उनके चाचा कीश के पुत्रों से विवाह किया।
\q
\v 23 मूशी के तीन पुत्र महली, एदेर और येरेमोत थे।
\p
\s5
\v 24 वे लेवी के वंशज थे, जिनके नाम उनके परिवारों के अनुसार सूचीबद्ध थे। उन्हें चिट्ठियाँ डालकर विशेष सेवाओं के लिए चुना गया था। प्रत्येक व्यक्ति जो कम से कम बीस वर्ष का था, उसे सूचीबद्ध किया गया था। वे सब यहोवा के मन्दिर में सेवा करते थे।
\v 25 दाऊद ने पहले कहा था, “हे यहोवा, जिस परमेश्वर के हम इस्राएली लोग हैं, वह शान्ति प्रधान है, और वह सदा के लिए यरूशलेम में रहने आए है।
\v 26 इसलिए, लेवी के वंशजों को अब पवित्र तम्बू और काम में आने वाली वस्तुओं को उठाकर ले जाने की आवश्यकता नहीं है। “
\s5
\v 27 मरने से पहले दाऊद के अंतिम निर्देशों का पालन करते हुए, मंदिर में काम को करने के निर्देशों, के अनुसार उन्होंने केवल लेवी के उन वंशजों की गिनती की जो कम से कम बीस वर्ष के थे।
\p
\v 28 लेवी के उन वंशजों का काम था कि यहोवा के मंदिर में उनके काम में हारून के वंशजों के कामों में सहायता करें। वे मंदिर के आंगनों और कोठरियों सब पवित्र वस्तुओं को शुद्ध करने के अनुष्ठान, और मंदिर में अन्य काम करने के लिए प्रभारी थे।
\v 29 वे परमेश्वर के सामने प्रत्येक सप्ताह रखी जानेवाली भेंट की रोटियों का आटा अन्नबलि के लिए आटा और बिना खमीर की पपड़ियों के प्रभारी थे। उन्हें अवयवों को नापना, उन्हें मिलाकर, रोटी और पपड़ियाँ सेंकना भी होती थी।
\s5
\v 30 उनसे कहा गया था कि प्रतिदिन सुबह मंदिर में खड़े होकर यहोवा का धन्यवाद करें और स्तुति करें उन्हें प्रतिदिन शाम को भी वही काम करना था।
\v 31 सब्त के दिनों में और नए चंद्रमा के उत्सव और अन्य धार्मिक त्योहारों के समय जब यहोवा के लिए बतियाँ जलाई जाएँ उस समय बताया गया कि तब भी उन्हें यही सब सेवाएँ करनी होंगी प्रत्येक समय उनमें से कितने लोग वहां होना चाहिए और उन्हें क्या करना चाहिए।
\p
\s5
\v 32 इसलिए लेवी के वंशजों ने उन कामों को किया जो उन्हें उनके साथी इस्राएलियों ने सौंपा था जो हारून के वंशज थे। उन्होंने पवित्र तम्बू में और तम्बू के भीतर पवित्र स्थान में और बाद में मंदिर में काम किया।
\s5
\c 24
\p
\v 1 ये हारून के वंशजों के पहले महायाजक के भाग हैं: हारून के चार पुत्र नादाब, अबीहू, एलीआज़ार और ईतामार थे।
\p
\v 2 लेकिन नादाब और अबीहू की मृत्यु उनके पिता से पहले हो गई, और उनकी कोई सन्तान नहीं थी। इसलिए उनके छोटे भाई एलीआज़ार और ईतामार याजक बने।
\v 3 सादोक, जो एलीआज़ार के वंशज थे, और अहीमेलेक, जो ईतामार का वंशज था उसने, परिवार को दो समूहों में अलग करने में दाऊद की सहायता की।
\s5
\v 4 एलीआज़ार के वंशजों में ईतामार के वंशजों से अधिक अगुवे थे। इसलिए उन्होंने एलीआज़ार के वंशजों में से सोलह अगुवे और ईतामार के वंशजों में से आठ अगुवे नियुक्त किए।
\v 5 वे मंदिर के अधिकारी और याजक थे, जो एलीआज़ार और ईतामार दोनों के वंशजों में से थे उनका उत्तरदायित्व था कि सुनिश्चित करें कि काम बारबर-बारबर बांटा गया है। इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि समूहों का काम चिट्ठियाँ डालकर निर्धारित किया जाएँ।
\p
\s5
\v 6 लेवी के वंशज नतनेल के बेटे शमायाह ने दाऊद और उसके अधिकारियों के देखते हुए प्रत्येक समूह के अगुवों के नाम लिखे। महायाजक सादोक और उसके सहायक अहीमेलेक, और याजकों के परिवारों के अगुवे और लेवी के अन्य वंशजों के परिवार भी देख रहे थे।
\q
\s5
\v 7 यहोयारीब पहला व्यक्ति था जिसके नाम पहली चिट्ठी निकली और वह चुना गया।
\q अगला चुनाव यदायाह का हुआ।
\q
\v 8 फिर, हरीम का चुनाव किया गया था।
\q फिर, सोरीम का चुनाव किया गया था।
\q
\v 9 फिर, माल्किय्याह का चुनाव किया गया था।
\q फिर, मिय्यामीन का चुनाव किया गया था।
\q
\v 10 फिर, हक्कोस चुना गया था।
\q फिर, अबिय्याह का चुनाव किया गया था।
\q
\s5
\v 11 फिर, येशू चुना गया था।
\q फिर, शकन्याह का चुनाव किया गया था।
\q
\v 12 फिर, एल्याशीब का चुनाव किया गया था।
\q फिर, याकीम का चुनाव किया गया था।
\q
\v 13 फिर, हप्पा का चुनाव किया गया था।
\q फिर, येसेबाब का चुनाव किया गया था।
\q
\v 14 फिर, बिल्गा का चुनाव किया गया था।
\q फिर, इम्मेर का चुनाव किया गया था।
\q
\s5
\v 15 फिर, हेज़ीर का चुनाव किया गया था।
\q फिर, हेप्पीत्सेस का चुनाव किया गया था।
\q
\v 16 फिर, पतह्याह का चुनाव किया गया था।
\q फिर, जहेजकेल का चुनाव किया गया था।
\q
\v 17 फिर, याकीन का चुनाव किया गया था।
\q फिर, गामूम का चुनाव किया गया था।
\q
\v 18 फिर, दलायाह का चुनाव किया गया था।
\q फिर, माज्याह का चुनाव किया गया था।
\p
\s5
\v 19 इन लोगों को मंदिर में सेवा करने वाले समूहों के प्रधानों के रूप में चुना गया था, और ये प्रधान हारून द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते थे, जिन नियमों को यहोवा, जिनके लिए हम इस्राएली लोग हैं, उन्हें दिया था।
\m
\s5
\v 20 यह लेवी के कुछ अन्य वंशजों की एक सूची है:
\q अम्राम के पुत्रों से शूबाएल था।
\q2 शूबाएल के पुत्रों से येहदयाह था।
\q
\v 21 एलीआज़ार के पुत्र रहब्याह से उसका सबसे बड़ा पुत्र यिश्शिय्याह था।
\q
\v 22 कहात के पुत्र इसहार के वंशजों में से शलोमोत था।
\q2 शलोमोत के वंशजों में से यहत था।
\q
\s5
\v 23 कहात के पुत्र हेब्रोन के वंशजों में से उसका सबसे बड़ा पुत्र यरिय्याह और यरिय्याह के छोटे भाई अमर्याह, यहजीएल और यकमाम थे।
\q
\v 24 कहात के पुत्र उज्जीएल के वंशजों में मीका था।
\q2 मीका के वंशजों से शामीर था।
\q2
\v 25 और मीका का छोटा भाई यिशिश्य्याह था।
\q2 यिशिश्य्याह के वंशजों से जकर्याह था।
\q
\s5
\v 26 मरारी के पुत्र महली, मूशी और याजिय्याह थे।
\q2
\v 27 याजिय्याह के वंशजों में से बिनों, शोहम, जक्कू और इब्री थे।
\q2
\v 28 महली के पुत्र एलीआजर के पास कोई बेटा नहीं था।
\q
\s5
\v 29 कीश के वंशजों से उसका पुत्र यरहमेल था।
\q2
\v 30 मूशी के पुत्र महली, एदेर और यरीमोत थे।
\p वे लेवी के वंशज यही थे जो अपने अपने परिवार के प्रधानों के अनुसार सूचीबद्ध किए गए थे।
\v 31 जो काम वे करेंगे, वे उनके साथी हारून के वंशजों के समान चिट्ठियाँ डालकर निर्धारित किए जाएँगे। उन्होंने राजा दाऊद, सादोक, अहीमेलेक, और याजकों के परिवारों के प्रधानों और लेवी के अन्य वंशजों के प्रधानों के देखते हुए चिट्ठियाँ डाली थी । प्रत्येक सबसे बड़े भाई और प्रत्येक सबसे छोटे भाई के परिवारों को दिए गए उत्तरदायित्व बराबर थे।
\s5
\c 25
\p
\v 1 दाऊद और कुछ मंदिर के अधिकारियों ने आसाप, हेमान और यदूथून के कुछ वंशजों को प्रचार और वीणा, सारंगी, और झांझ बजाने का प्रभारी ठहराया इस काम के लिए चुने गए पुरुषों की सूची इस प्रकार है।
\v 2 आसाप के पुत्रों में से उन्होंने जक्कूर, योसेप, नतन्याह और अशरेला को चुना। आसाप ने उनकी निगरानी की। और राजा ने आसाफ को प्रचार करने के लिए नियुक्त किया।
\v 3 यदुथून के पुत्रों से उन्होंने छः पुरुष चुने: गदल्याह, सरी, यशायाह, शिमी, हसब्याह और मत्तित्याह। जेदूथून ने उनको निर्देश दिए और प्रचार भी किया तथा यहोवा का धन्यवाद और स्तुति करते हुए वह वीणा भी बजाता था।
\q
\s5
\v 4 हेमान के पुत्रों से उन्होंने मुक्कियाह, मत्तन्याह, उज्जीएल, शबूल, यरीमोत, हनन्याह, हनानी, एलीआत, गिद्दलती, रोम्मती-एजेर, योशबकाशा, मल्लेत, होतीर और महजीओत को चुना।
\v 5 वे सब हेमान के पुत्र थे, जो राजा दाऊद के भविष्यवक्ता थे। परमेश्वर ने हेमैन से दृढ़ होने की प्रतिज्ञा की थी, इसलिए परमेश्वर ने उसे चौदह पुत्र और तीन बेटियां दीं थी।
\p
\s5
\v 6 उन सभी मनुष्यों का निर्देशन उनके पिता करते थे, जब वे यहोवा के मन्दिर में संगीत बजाया करते थे। वे झांझ, वीणा, और सारंगी बजाते थे। और उनके पिता-आसाप, यदूथून और हेमान-राजा के निर्देशन में रहते थे।
\v 7 ये पुरुष और उनके संबन्धी मंदिर में संगीत वाद्ययंत्र बजाने के लिए प्रशिक्षित और कुशल थे। यह यहोवा के लिए उनकी सेवा थी। उनके संबन्धियों सहित, वे 288 थे।
\v 8 उनमें से सभी, जो युवा थे और जो बूढ़े थे, अपनी सेवा को चिट्ठियों द्वारा निर्धारित करते थे।
\q
\s5
\v 9 आसाप के परिवार से, चिट्ठियों द्वारा निर्धारित सबसे पहले चुने गए योसेप और उसके 12 पुत्र और संबन्धी थे।
\v 10 फिर, गदल्याह और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 11 फिर, जक्कूर और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 12 फिर, यिस्री और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव नतन्याह और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\q
\s5
\v 13 फिर, बुक्क्याह और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\v 14 फिर, यसरेला और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\v 15 फिर, यशायाह और उसके 12 पुत्रों और रिश्तेदारों का चुनाव किया गया।
\v 16 फिर, मत्तन्याह और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\q
\s5
\v 17 फिर, शिमी और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 18 फिर, अजरेल और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\v 19 फिर, हशब्याह और उसके 12 पुत्रों और रिश्तेदारों का चुनाव किया गया।
\v 20 फिर, शूबाएल और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\q
\s5
\v 21 फिर, मत्तिय्याह और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\v 22 फिर, येरेमोत और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 23 फिर, हनन्याह और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 24 फिर, जोशबकाशा और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\q
\s5
\v 25 फिर, हनानी और उनके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\v 26 फिर, मल्लोती और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 27 फिर, इलिय्याता और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\v 28 फिर, होतीर और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\q
\s5
\v 29 फिर, गिद्दलती और उनके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 30 फिर, महजीओत और उसके 12 पुत्रों और संबन्धियों का चुनाव किया गया।
\v 31 फिर, रोममतीएजेर और उसके 12 बेटों और संबन्धियों का चुनाव किया गया था।
\s5
\c 26
\p
\v 1 अब उन पुरुषों के समूह की एक सूची है जिन्होंने मंदिर के द्वारों की रक्षा की:
\q कोरह के वंशजों से, कोर के पुत्र मेशेलेम्याह था, जो आसाप के पुत्रों में से एक था।
\q2
\v 2 मेशेलेम्याह का सबसे बड़ा पुत्र जकर्याह था। उनके अन्य पुत्र यदीएल, जबद्याह, जाथनीएल थे,
\v 3 यतीएल, यहोहानान और एल्यहोएनै ।
\q
\s5
\v 4 एक और द्वारपाल आबेदेदोम था।
\q2 उसका सबसे बड़ा बेटा शमायाह था। उनके अन्य पुत्र यहोजाबाद, योआह, साकार, नतनेल थे,
\v 5 अम्मीएल, इस्साकार, और पुल्लतै। ऐसा इसलिए था क्योंकि परमेश्वर ने उसे आशीष दी थी कि उसके कई बेटे होंगे।
\q2
\v 6 आबेदेदोम के पुत्र शमायाह के भी पुत्र थे। वे अपने पिता के परिवार में प्रधान थे क्योंकि वे अनेक काम को करने की योग्यता रखते थे।
\q2
\s5
\v 7 शमायाह के पुत्र ओती, रपाएल, ओबेद और एलज़ाबाद थे। शमायाह के संबन्धी एलीहू और समक्याह भी योग्य पुरुष थे।
\q2
\v 8 आबेदेदोम के वंशज और उनके बेटे और संबन्धी के उन सब योग्य और बलवन्त कर्मी थे, कुल मिलाकर वे 62 थे।
\q
\v 9 एक और रक्षक मेशेलेम्याह था। वह और उसके बेटे और संबन्धी भी योग्य पुरुष थे। वे 18 थे।
\q
\s5
\v 10 एक और रक्षक होसा के पुत्र शिमरी, जो मरारी के वंशज था। होसा ने शिमरी को प्रधान नियुक्त किया, भले ही वह होसा का सबसे बड़ा बेटा नहीं था।
\v 11 होसा के अन्य पुत्र हिल्किय्याह, तबल्याह और जकर्याह थे। होसा के बेटे और संबन्धी कुल 13 थे।
\p
\s5
\v 12 वे मंदिर के द्वारों के रक्षक समूहों के प्रधान थे वे अपने संबन्धियों के समान मन्दिर में सेवा करते थे।
\v 13 प्रत्येक परिवार का प्रधान चिट्ठियाँ डालकर अपने रक्षक दल के लिए एक फाटक को चुनता था। उनमें से सभी, युवा पुरुष और बूढ़े पुरुष चिट्ठियाँ डालते थे ।
\v 14 शेलेम्याह के समूह को पूर्वी द्वार की रक्षा के लिए चुना गया था। शेलेम्याह के पुत्र जकर्याह के समूह, को उत्तर द्वार की रक्षा के लिए चुना गया था जकर्याह एक बुद्धिमान मंत्री था।
\q
\s5
\v 15 तब ओबेदेदोम के समूह को दक्षिण द्वार की रक्षा करने के लिए चुना गया था, और उसके बेटों को मंदिर के भंडार के प्रवेश द्वार की रक्षा करने के लिए चुना गया था।
\v 16 तब शुपीम के समूह और होसा के समूह को पश्चिम के द्वार और मंदिर की ऊपरी सड़क पर शल्लेकेत नामक फाटक की रक्षा के लिए चुना गया था।
\p रक्षक के लिए काम समान रूप से विभाजित किया जाता था।
\s5
\v 17 प्रत्येक दिन लेवी के छः वंशज पूर्व द्वार की रक्षा करते थे, चार और उत्तर द्वार की रक्षा करते थे, चार दक्षिण द्वार की रक्षा करते थे, और दो एक बार में भण्डारों के प्रवेश द्वार की रक्षा करते थे।
\v 18 पश्चिम द्वार पर दो पुरुष होते जो आंगन की रक्षा करते थे और चार आंगन के बाहर सड़क की रक्षा करते थे।
\p
\v 19 ये मन्दिर के द्वारों के रक्षकों के समूह थे जिनमे कोरह और मरारी के वंशज थे।
\p
\s5
\v 20 लेवी के अन्य वंशज जो परमेश्वर के मन्दिर में आराधकों द्वारा परमेश्वर को समर्पित धन के सन्दूकों की निगरानी करते थे।
\v 21 उन लोगों में से एक लादान था, जो गेर्शोन का वंशज था। वह अनेक परिवारिक समूहों का पूर्वज था। यहोएल उन परिवारिक समूहों में से एक का नेता था।
\v 22 जो लोग यहोवा के मन्दिर में पैसों के सन्दूकों के उत्तरदायी थे, वे थे जेताम और उसका छोटा भाई योएल, ये यहोएल के पुत्र थे।
\p
\s5
\v 23 अन्य जो उस काम को करते थे वे अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल के वंशज थे।
\q
\v 24 शबूएल, जो मूसा के पुत्र गेर्शोन का वंशज था वह पैसों के सन्दूकों का उत्तरदायी था।
\v 25 जो लोग उस काम को करते थे वे गेर्शोन के छोटे भाई एलिआजर के वंशज थे। वे लोग एलीआजर का पुत्र रहब्याह, रहब्याह का पुत्र यशायाह, यशायाह का पुत्र योराम, योराम का पुत्र जिक्री और जिक्री का पुत्र शलोमोत थे।
\s5
\v 26 शलोमोत और उसके संबन्धी उन सब मूल्यवान वस्तुओं के उत्तरदायी थे जो राजा दाऊद द्वारा परिवार के समूहों के प्रधान द्वारा, एक हज़ार सैनिकों के सेनापति और 100 सैनिकों के नायक द्वारा और दूसरे सेना नायकों द्वारा यहोवा के लिए समर्पित की गई।
\v 27 कुछ ऐसी वस्तुएँ भी थी जिन्हें सेना के अधिकारियों ने युद्धों में इस्राएल के शत्रुओं से लूटा था जिन्हें उन्होंने यहोवा के मंदिर के सुधार कार्य के लिए समर्पित किया था।
\v 28 और शलोमोत और उसके संबन्धी उन सब वस्तुओं के भी उत्तरदायी थे जिन्हे भविष्यवक्ता शमूएल ने राजा शाऊल और दाऊद के दो सेनापतियों अब्नेर और योआब द्वारा यहोवा को समर्पित किया गया था।
\q
\s5
\v 29 यिसहार के वंशजों से, कनन्याह और उसके पुत्रों को मंदिर के बाहर का काम दिया गया था। वे इस्राएल में विभिन्न स्थानों पर अधिकारी और न्यायाधीश थे।
\q
\v 30 हेब्रोन के वंशजों से, हशब्याह और उसके सत्रह सौ बलवान संबन्धी यहोवा के लिए किए गए काम और राजा के लिए यरदन नदी के पश्चिम में संपूर्ण क्षेत्र के काम के उत्तरदायी थे, वे अपने काम में निपुण थे।
\s5
\v 31 हेब्रोन के वंशजों के अभिलेखों में लिखा गया था कि यरिय्याह उनका प्रधान था। जब दाऊद लगभग चालीसवे वर्ष में शासन कर रहा था, तो उन्होंने उन अभिलेखों की खोज की, और उन्होंने हेब्रोन के वंशजों में से योग्य पुरुषों के नाम पाए जो गिलाद के क्षेत्र में याजेर शहर में थे।
\v 32 यरीयाह के 2,700 संबन्धी थे जो अपने काम को अच्छी तरह से करने में सक्षम थे, और उनके परिवार के प्रधान थे। राजा दाऊद ने उन्हें रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र के जो पश्चिमी में था उनके नियन्त्रण का उत्तरदायी सौंप दिया था कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परमेश्वर और राजा ने जो उन्हें करने के लिए कहा है वह सब लोगों ने किया हैं।
\s5
\c 27
\p
\v 1 यह उन इस्राएलियों की एक सूची है जिन्होंने सेना में राजा की सेवा की थी। कुछ परिवारों के प्रधान थे, कुछ एक सौ पुरुषों के प्रधान थे, और जो एक हजार पुरुषों के प्रधान थे, और कुछ अन्य अधिकारी थे। प्रत्येक समूह में चौबीस हजार पुरुष थे। प्रत्येक समूह प्रति वर्ष एक महीने की सेवा करता था।
\q
\v 2 जब्दीएल का पुत्र याशोबाम उस समूह का प्रधान था जो प्रति वर्ष के पहले महीने में सेवा करता था।
\v 3 वह पेरेस का वंशज था, और वह प्रति वर्ष के पहले महीने में सब सेना अधिकारियों का प्रधान था।
\q
\s5
\v 4 अहोही के वंश से दोदै उस समूह का प्रधान था जो दूसरे महीने में सेवा करेगा।
\q
\v 5 महायाजक यहोयादा का पुत्र बनायाह, तीसरे महीने में सेवा करने वाले समूह का प्रधान था।
\v 6 वह दाऊद के तीस महान सैनिकों में से एक शक्तिशाली योद्धा था, और वह उनका सेनापति था। उनका बेटा अम्मीजाबाद उनका सहायक था।
\q
\s5
\v 7 योआब का छोटा भाई असाहेल उस समूह का प्रधान था जो चौथे महीने सेवा करता था। असाहेल की हत्या के बाद असाहेल का पुत्र जबद्याह प्रधान बन गया।
\q
\v 8 पाँचवे महीने समूह का प्रधान, यिज्राह का वंशज शम्हूत था।
\q
\v 9 छठवें महीने के समूह का प्रधान तेकोआ शहर से इक्केश का पुत्र ईरा था।
\q
\s5
\v 10 सातवें महीने के समूह का प्रधान एप्रैम के गोत्र से पलोनी का वंशज हेलेस था।
\q
\v 11 आठवें महीने के समूह का प्रधान हुशा नगर से जेरह का वंशज सिबकै था।
\q
\v 12 नौवें महीने के समूह का प्रधान अनाथोत शहर से बिन्यामीन के गोत्र से अबीएजेर था।
\q
\s5
\v 13 दसवें महीने के समूह का प्रधान महरै नपोत शहर सेजेरह का वंशज महरै था।
\q
\v 14 ग्यारहवें महीने के समूह का प्रधान एप्रैम के गोत्र से पिरैतोन शहर का बनायाह था।
\q
\v 15 प्रत्येक वर्ष के अन्तिम महीने के समूह का प्रधान नतोपा हेल्दै था, जो शहर से ओतनीएल का वंशज हेल्दै था।
\p
\s5
\v 16 यह इस्राएल के बारह गोत्रों के प्रधानों की सूची है:
\q ज़िक्री का पुत्र एलीआजर, रूबेन के गोत्र का प्रधान था।
\q माका का पुत्र शपत्याह शिमोन के गोत्र का प्रधान था।
\q
\v 17 केमूएल का बेटा हशब्याह लेवी के गोत्र का प्रधान था।
\q सादोक हारून के वंश का प्रधान था।
\q
\v 18 दाऊद का बड़ा भाई एलीहू, यहूदा के गोत्र का प्रधान था।
\q मीकाएल का पुत्र ओम्नी इस्साकार के गोत्र का प्रशासक था।
\q
\s5
\v 19 ओबद्याह का पुत्र यिशमायाह, जबूलून के गोत्र का प्रधान था।
\q अज्रीएल का पुत्र यरीमोत, नप्ताली के गोत्र का प्रधान था।
\q
\v 20 अज़ज्याह का पुत्र होशे, एप्रैम के गोत्र का प्रधान था।
\q पदायाह का पुत्र योएल, मनश्शे के गोत्र के पश्चिमी भाग का प्रधान था।
\q
\v 21 जकर्याह का पुत्र इद्दो, पूर्वी के क्षेत्र गिलाद में मनश्शे के आधे गोत्र के प्रधान था।
\q अब्नेर का पुत्र यासीएल बिन्यामीन के गोत्र का प्रधान था।
\q
\v 22 यरोहाम का पुत्र अजरेल दान के गोत्र का प्रधान था।
\p
\s5
\v 23 दाऊद ने योआब को उन लोगों की गिनती नहीं करने के लिए कहा जो बीस वर्ष से कम उम्र के थे, क्योंकि यहोवा ने कई वर्षो पूर्व प्रतिज्ञा की थी कि इस्राएल के वंशज आकाश में सितारों के बराबर असंख्य होंगे।
\v 24 योआब और उसके सहायकों ने इस्राएलियों की गिनती तो की परन्तु उसे पूरा नहीं कर पाएं थे क्योंकि योआब जानता था कि यहोवा इस जन गणना के विषय में क्रोधित था। यहोवा ने इस गिनती के कारण इस्राएल के लोगों को दण्ड दिया था, और इस कारण सेना में सेवा करने में योग्य इस्राएली पुरुषों की कुल संख्या राजा दाऊद के शासन के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखी गई थी।
\q
\s5
\v 25 अदीएल का पुत्र अज्मावेथ राजा के भंडारगृह का अधिकारी था। उज्जियाह का पुत्र यहोनातान इस्राएल के अन्य नगरों और गांवों में भंडारगृहों का अधिकारी था, चौकियों का भी।
\v 26 केलूब का पुत्र एज़्री राजा के खेतो पर काम करने वालो का अधिकारी था।
\v 27 रामात शहर से शिमी राजा के दाख के बागों का अधिकारी था।
\li शापम शहर का जब्दी दाख की बारियों में उपजे अंगूर से बने दाखमधु के भंडार का अधिकारी था।
\q
\s5
\v 28 गेदेर शहर का बाल्हानान जैतून के तेल का भंडार करने का अधिकारी था।
\v 29 शारोन के मैदान चरनेवाले मवेशियों का अधिकारी शित्रै था।
\li अदलै के पुत्र शापात घाटियों में मवेशियों का अधिकारी था।
\q
\s5
\v 30 इश्माएल का वंशज, ओबील ऊंटों का अधिकारी था।
\li मेरोनोत शहर से येहयाह गधों का अधिकारी था।
\v 31 हाग्री का वंशज यजीज, भेड़ के राजा की भेड़-बकरियों का अधिकारी था।
\p ये सब अधिकारी राजा दाऊद की सम्पति के अधिकारी थे।
\q
\s5
\v 32 दाऊद के चाचा योनातन उसके लिए एक बुद्धिमान परामर्शदाता थे। हक्मोनी का पुत्र एहीएल राजा के पुत्रों को पढ़ाता था।
\v 33 अहीतोपेल राजा का राजसी परामर्शदाता था।
\v 34 प्रधान वर्ग से हुशाई राजा का विशेष मित्र था।
\q अहीतोपेल की मृत्यु के बाद बनायाह का पुत्र यहोयादा राजा का मुख्य मंत्री बन गया, और बाद में एब्यातार उसका मुख्य मंत्री बन गया।
\li योआब सेना का मुख्य सेनापति था।
\s5
\c 28
\p
\v 1 दाऊद ने इस्राएल के सभी प्रधानों को यरूशलेम में बुलवाया। उन्होंने सब गोत्रों के प्रधानों, राजाओं के लिए काम करने वाले समूहों के प्रधानों को बुलाया, एक सौ सैनिकों के नायकों, एक हजार सैनिकों से सेनापति, जो राजा की संपत्ति और उसके पशुओं के अधिकारियों, उसके बेटों के शिक्षकों, सब महल अधिकारियों, और उनके शक्तिशाली सैनिकों और सबसे बहादुर योद्धाओं को बुलवाया।
\p
\s5
\v 2 दाऊद खड़ा हुआ और कहा, “मेरे साथी इस्राएलियों, मेरी बात सुनो। मैं एक ऐसा मंदिर बनना चाहता था जहाँ हम यहोवा की वाचा के पवित्र सन्दूक को रख सकें, जहाँ पवित्र सन्दूक स्थायी रूप से रहे। और मैंने इसे बनाने की योजना बनाई है।
\v 3 परन्तु परमेश्वर ने मुझसे कहा, ‘मन्दिर बनाने वाला तू नहीं हैं, क्योंकि तू ने युद्ध किए हैं और लोगों की हत्या की है।’
\p
\s5
\v 4 परन्तु यहोवा, जिस परमेश्वर के लिए हम इस्राएल हैं, उन्होंने मुझे और मेरे वंशजों को हमेशा के लिए इस्राएल के राजा बनने के लिए चुना है। सबसे पहले उन्होंने यहूदा को अगुआ होने के लिए चुना, और यहूदा के लोगों में से उन्होंने मुझे सब इस्राएलियों पर राजा होने के लिए चुना।
\v 5 यहोवा ने मुझे कई पुत्र दिए हैं, परन्तु उन्होंने मेरे पुत्र सुलैमान को इस्राएल के राज्य पर शासन करने के लिए अगला राजा चुना है।
\s5
\v 6 उन्होंने मुझसे कहा, ‘तेरा पुत्र सुलैमान ही मेरे मंदिर और उसके चारों ओर के आंगनों का निर्माण करने की व्यवस्था करेगा, क्योंकि मैंने उसे अपने बेटे के समान चुना है और मैं उसके पिता समान होऊँगा।
\v 7 मैं उसके राज्य को सदा के लिए स्थिर करूंगा यदि वह मेरे नियमों और विधियों का पालन करता रहेगा जैसा कि तुम अभी कर रहे हो।
\p
\s5
\v 8 तो अब, जब तुम सब इस्राएली, जो यहोवा के हो, देख रहे हो, और परमेश्वर सुन रहे हैं, तो मैं तुम सब लोगों को आज्ञा देता हूँ कि वे हमारे परमेश्वर यहोवा के सभी आदेशों का ध्यानपूर्वक पालन करे। जिससे कि तुम इस अच्छी भूमि के अधिकारी बने रहो और अपने वंशजों को सदा के लिए इसका वारिस होने दो।
\p
\s5
\v 9 और हे मेरे पुत्र सुलैमान, तेरे लिए आवश्यक है कि तू परमेश्वर को वैसे ही जाने जैसे मैं उन्हे जानता हूँ, और उनकी सच्चे मन से सेवा करे। तुझे ऐसा करना चाहिए क्योंकि वह जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य क्या सोचता है और वह मनुष्यों के काम करने के कारणों को समझते हैं यदि तू उसे जानने की खोज करे हैं, तो वह तेरी प्रार्थनाओं पर ध्यान देंगे। परन्तु यदि तू उन्हे त्याग दे तो वह भी तुझे सदा के लिए त्याग देंगे।
\v 10 यहोवा ने तुझे चुना है कि उनके लिए एक मंदिर बनाने की व्यवस्था करो। तो मैंने जो कहा है उसके विषय में सोच, और दृढ़ रह और वह कर जो वह तुझसे करवाना चाहते हैं।”
\p
\s5
\v 11 तब दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान को वह नक्शा दिया, जिस पर मंदिर के मुख्य कमरे, उसके औसारे, इसके भंडार, अन्य सब ऊपरी और निचले कमरे, पवित्र स्थान और पवित्र सन्दूक और उसके ढक्कन परमपवित्र स्थान की योजना तैयार की गई थी।
\v 12 दाऊद ने परमेश्वर के भवन, आँगनों और मन्दिर के चारों ओर को कोठियों और परमेश्वर को समर्पित पैसे और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के गोदामों का नक्शा उसके लिए बनाकर दे दिया।
\s5
\v 13 उसने याजकों के और अन्य लेवी के अन्य वंशजों के सेवक समूहों को कार्यों के निर्देश दिये कि यहोवा के मन्दिर में उन्हें कैसे-कैसे सेवा करनी है और मन्दिर के सब सामान की देखरेख के निर्देश सुलैमान को दे दिए।
\v 14 उसने यह भी लिखा कि मंदिर में सब वस्तुओं को बनाने के लिए कितना सोना और कितना चाँदी काम में लिया जाना चाहिए।
\v 15 यह एक सूची थी कि दीपक दान और दीपक बनाने के लिए कितने सोने की आवश्यकता होगी, चाँदी के दीपकों और दीपदानों को बनाने के लिए कितनी चाँदी की आवश्यक्ता होगी।
\s5
\v 16 एक सूची इस की भी यहोवा के सामने भेंट की रोटियाँ रखने कि मेज बनाने के लिए कितने सोने की आवश्यकता होगी और कितनी चाँदी की आवश्यक्ता होगी अन्य मेज़ों को बनाने के लिए,
\v 17 और मांस के कांटों और कटोरों और कटोरिया के लिए कितना शुद्ध सोना, और प्रत्येक चाँदी के कटोरे के लिए कितनी चाँदी की आवश्यकता होगी।
\s5
\v 18 एक सूची इस की भी थी वेदी को धूप जलाने की वेदी के लिए शुद्ध सोने की कितनी आवश्यकता होगी। उसने सुलैमान को पंखों वाले प्राणियों की सुनहरी प्रतिमाएँ बनाने की अपनी योजनाओं को भी दिया जो यहोवा के पवित्र सन्दूक से ऊपर होंगे, और उनके लिए रथ के समान होंगे।
\p
\v 19 तब दाऊद ने कहा, “मैंने इन सब योजनाओं को यहोवा के निर्देश में तैयार किया हैं उन्होंने मुझे मंदिर के लिए अपनी योजना की एक-एक बात को समझने में सक्षम बनाया है।”
\p
\s5
\v 20 दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान से कहा, “दृढ़ और साहसी हो, और इस काम को कर। डर मत या निराश न हो, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा, जिनकी मैं आराधना करता हूँ, तेरे साथ रहेंगे। वह तेरी सहायता करने में असफल नहीं होंगे या जब तक तू उनका मंदिर बनाने के सब काम पूरे नहीं कर लेता तब तक वह तुझे नहीं छोड़ेंगे।
\v 21 याजक के समूह और लेवी के अन्य वंशज परमेश्वर के मंदिर में अपना काम आरंभ करने के लिए तैयार हैं, और हर एक व्यक्ति जिसमें विशेष कौशल है, वह सब कामों में तेरी सहायता करेंगे। और मेरे अधिकारी और अन्य लोग तेरी आज्ञा पालन करेंगे, जो भी तू उन्हें करने के लिए आदेश देगा। “
\s5
\c 29
\p
\v 1 तब राजा दाऊद ने उन सब लोगों से कहा जो वहां इकट्ठे हुए थे, “मेरे पुत्र सुलैमान, जिसे परमेश्वर ने अगला राजा चुना है, वह जवान है और उसके पास बहुत अनुभव नहीं है। मंदिर बनाने का यह काम महान है , क्योंकि यह महिमामय भवन लोगों का सम्मान नहीं करेगा, बल्कि हमारे परमेश्वर यहोवा का सम्मान करेगा।
\v 2 मेरे पास जो कुछ भी है, मैंने उसे मेरे परमेश्वर के मन्दिर के निर्माण की आवश्यक्ता के लिए दे दिया है सोने का सामान बनाने के लिए सोना चाँदी का सामान बनाने के लिए चाँदी, पीतल का सामान बनाने के लिए पीतल, लोहे का सामान बनाने के लिए लोहा, लकड़ी का सामान बनाने के लिए लकड़ी और बड़ी मात्रा में गोमेद और फ़िरोज़ा और विभिन्न रंगों के अन्य मूल्यवान पत्थर, संगमरमर और सभी प्रकार के मूल्यवान पत्थर।
\s5
\v 3 मैंने जो कुछ भी मंदिर के लिए दिया है, उसके अलावा, मैं सोने और चाँदी का अपना खजाना दे रहा हूँ, क्योंकि मैं सच्चे मन से चाहता हूँ कि मेरे परमेश्वर के लिए यह पवित्र मंदिर बनाया जाए।
\v 4 मैं लगभग 100 मीट्रिक टन ओपीर का सोने और भवनों की दीवारों पर मढ़ने के लिए 230 मीट्रिक टन शुद्ध चाँदी,
\v 5 तथा सोने और चाँदी के अन्य सामान बनाने के लिए, और कारीगरों द्वारा किए जानेवाले अन्य कामों के लिए भी । तो अब, मैं तुमसे पूछता हूँ, मंदिर के निर्माण के लिए अन्य योगदान देकर कौन दिखाना चाहता है कि उसने स्वयं को यहोवा के लिए समर्पित किया है? “
\p
\s5
\v 6 तब परिवारों के प्रधानों, इस्राएल के गोत्रों के प्रधानों, एक हजार सैनिकों के सेनापतियों और एक सौ सैनिकों के नायकों और राजा के काम के अधिकारीयों ने स्वेच्छा से दान दिए।
\v 7 मंदिर में काम के लिए उन्होंने 165 मीट्रिक टन और चौरासी किलोग्राम सोना, 330 मीट्रिक टन चाँदी, 600 मीट्रिक टन पीतल, और 3,300 मीट्रिक टन लौह दिया।
\s5
\v 8 जिनके पास मूल्यवान पत्थर थे उन्होंने गेर्शोन के वंशज यहीएल की देखरेख में मन्दिर के भंडार में दे दिया।
\v 9 लोग यह देखकर प्रसन्न थे कि उनके प्रधान उन वस्तुओं को देना चाहते थे; वे उन वस्तुओं को यहोवा को देने के लिए आनन्दित और उत्साहित थे। और राजा दाऊद अति आनन्दित था।
\p
\s5
\v 10 तब, जब सब लोग सुन रहे थे, तब दाऊद ने यहोवा की स्तुति की। उसने कहा,
\q1 “हे यहोवा हम आपकी स्तुति करते हैं,
\q2 हमारे पूर्वज याकूब ने परमेश्वर की आराधना की थी।
\q2 हम सब आपकी स्तुति करेंगे!
\q1
\v 11 आप ही एकमात्र महान और शक्तिशाली हैं;
\q2 केवल आप वास्तव में महिमा और सामर्थ्य से पूर्ण अद्भुत हैं।
\q2 और यह सच है क्योंकि स्वर्ग और पृथ्वी पर सब कुछ आपका है।
\q1 आप पृथ्वी के सब लोगों के राजा हैं;
\q2 आप सब पर शासक हैं।
\q1
\s5
\v 12 क्योंकि आप बहुत शक्तिशाली हैं,
\q2 आप किसी को भी महान होने और बलवन्त बनाने में सक्षम हैं।
\q1
\v 13 तो अब, हे हमारे परमेश्वर, हम आपको धन्यवाद देते हैं,
\q2 और बहुत महान होने के लिए हम आपकी स्तुति करते हैं।
\p
\s5
\v 14 परन्तु मैं और मेरे लोग वास्तव में आपको कुछ भी देने योग्य नहीं हैं,
\q2 क्योंकि हमारे पास जो कुछ भी है वह आपके पास से आता है;
\q2 जो कुछ आपने हमें दिया हमने आपको दिया है।
\q1
\v 15 आप जानते हैं कि हम आप के लिए विदेशियों और अजनबियों के समान हैं, जैसे हमारे पूर्वज थे।
\q2 धरती पर हमारे वर्ष एक छाया के समान हैं जो शीघ्र ही गायब हो जाती है;
\q2 हम जानते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमें मरने से बचने में सक्षम बनाता है।
\q1
\s5
\v 16 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमने इन सब वस्तुओं को आपके मंदिर के निर्माण में उपयोग करने के लिए एकत्र किया है,
\q2 परन्तु यह सब वास्तव में आपका ही है, और आपने इसे हमें दिया है।
\q1
\v 17 हे मेरे परमेश्वर, मुझे पता है कि आप हम लोगों को परखते हैं,
\q2 और आप प्रसन्न होते हैं जब आपको पता चलता है कि हम उचित काम करते हैं।
\q1 यह सब वस्तुएँ मैंने आपको दी है क्योंकि मैं चाहता हूँ।
\q2 और अब मैंने देखा है कि आपके लोगों ने आपको भी सहर्ष और उदारता से आपके लिए दिया हैं।
\q1
\s5
\v 18 हे यहोवा, जिस परमेश्वर की हमारे पूर्वज अब्राहम, इसहाक और याकूब ने आराधना की थी,
\q2 मैं चाहता हूँ कि आपके लोग सदा के लिए ऐसे कामों की इच्छा करते रहें,
\q2 और वे सब आपके स्वामिभक्त बने रहें।
\q1
\v 19 और अब, कृपया मेरे बेटे सुलैमान को विश्वासयोग्यता से सच्चे दिल से,
\q2 इस सुंदर भवन को बनाने के लिए
\q2 जिसके लिए मैंने इन सब वस्तुओं का संग्रह किया है हर एक आवश्यक काम करने में समर्थ करें। “
\p
\s5
\v 20 तब दाऊद ने उन सब लोगों से कहा जो वहां एकत्र हुए थे, “हमारे परमेश्वर यहोवा की स्तुति करो!” इसलिए उन सब ने उनके पुर्वजों के परमेश्वर की स्तुति की। उन्होंने यहोवा के सामने और राजा के सामने भूमि पर दण्डवत् किया।
\p
\v 21 अगले दिन लोगों ने यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाए। उन्होंने कई जानवरों को वेदी पर पूरी तरह जला दिया: एक हजार बैल, एक हजार मेढ़े, एक हजार नर भेड़, दाखमधु का चढ़ावा और इस्राएल के सब लोगों के खाने के लिए कई अन्य बलिदान।
\s5
\v 22 उस दिन लोग आनन्दित थे और यहोवा के सम्मान में उन्होंने खाया और पीया।
\p फिर दूसरी बार उन्होंने घोषणा की कि अब सुलैमान उनका राजा है। फिर यहोवा की आज्ञा के अनुसार, उन्होंने राजा होने के लिए जैतून के तेल से उसका अभिषेक किया, और महायाजक बनने के लिए सादोक अभिषेक किया।
\v 23 तब सुलैमान सिंहासन पर बैठा क्योंकि यहोवा चाहते थे कि वह अपने पिता दाऊद के बाद राजा बने। अगले वर्षों में सुलैमान समृद्ध हुआ और सभी इस्राएली लोगों ने उसकी आज्ञाओं का पालन किया।
\s5
\v 24 राजा दाऊद के अन्य पुत्रों और सब अधिकारियों और शक्तिशाली योद्धाओं ने सुलैमान को अपना राजा स्वीकार किया, और उन्होंने सच्ची प्रतिज्ञा की कि उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे।
\p
\v 25 यहोवा ने सुलैमान को सब इस्राएली लोगों के सम्मान का पात्र बनाया और उन्होंने उसे बहुत सम्मानित किया। इस्राएल के किसी भी राजा को उतना सम्मानित नहीं किया गया था जितना सुलैमान को।
\p
\s5
\v 26 यिशै के पुत्र दाऊद ने पूरे इस्राएल पर शासन किया था।
\v 27 उसने चालीस वर्ष तक शासन किया: हेब्रोन शहर में सात वर्ष और यरूशलेम में तीस वर्ष।
\v 28 वह बहुत समृद्ध और बहुत सम्मानित था, और वह पूरे बुढ़ापे की अवस्था में पहुँचा, तब वह मर गया, और उसका पुत्र सुलैमान इस्राएल का राजा बना।
\p
\s5
\v 29 राजा दाऊद के राज्य के आरंभ से अन्त तक के सब कामों का इतिहास, भविष्यवक्ताओं शमूएल, नातान और गाद ने कुंडली ग्रथों में लिखा था।
\v 30 उन्होंने उसके प्रभावी शासन और राज्य के युग में उसके साथ और इस्राएल के लोगों के साथ और अन्य देशों के राज्यों में जो कुछ भी हुआ सबका वर्णन किया है।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h 2 इतिहास
\toc1 2 इतिहास
\toc2 2 इतिहास
\toc3 2ch
\mt1 2 इतिहास
\s5
\c 1
\p
\v 1 राजा दाऊद का पुत्र राजा सुलैमान अपने राज्य पर पूरा नियंत्रण करने में सक्षम था क्योंकि यहोवा उसके साथ थे और यहोवा ने सुलैमान को एक बहुत महान राजा बनाया।
\s5
\v 2-5 राजा दाऊद ने अपने कार्यकाल में यरुशलेम में एक नया पवित्र तम्बू बनवाया था जिसमें उसने यहोवा के पवित्र सन्दूक को रखा, जब वह उसे किर्यत्यारीम से लाया था। परन्तु वह पवित्र तम्बू जो मूसा ने बनवाया था, दाऊद के शासनकाल में और सुलैमान के शासनकाल में भी गिबोन में था। उसी पवित्र तम्बू में हूर के पोते, ऊरी के पुत्र बसलेल के द्वारा बनायी गयी पीतल की वेदी भी गिबोन में थी।
\p सुलैमान ने अपने सहस्त्रपतियों, शतपतियों, न्यायियों और इस्राएल के सब प्रधानों को इकट्ठा किया और उन्हें गिबोन चलने का निमन्त्रण दिया। इसलिए वे सब गिबोन के उस ऊँचे स्थान पर गए जहाँ मूर्तियों की पूजा की जाती थी। उसी स्थान पर मूसा द्वारा बनाए गए तम्बू में यहोवा अपने लोगों से भेंट करते थे। वहाँ जाकर सुलैमान और उसके साथ के लोगों ने यहोवा से प्रार्थना की।
\s5
\v 6 तब सुलैमान ने पवित्र तम्बू के सामने पीतल की वेदी पर गया और उसने एक हजार होमबलि चढाए।
\v 7 उस रात यहोवा सुलैमान के स्वप्न में आए और उससे कहा, "तू जो चाहे मुझसे माँग ले।"
\s5
\v 8 सुलैमान ने परमेश्वर से कहा, “आप मेरे पिता दाऊद के प्रति अति दयालु रहे हैं और अब आपने मुझे अगले राजा के रूप में नियुक्त किया है।
\v 9 हे मेरे परमेश्वर यहोवा आपने मुझे ऐसे लोगों का राजा बनाया है जिनकी संख्या पृथ्वी की धूल के कणों के समान है। इसलिए मेरे पिता दाऊद से की गई अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करें।
\v 10 कृपया मुझे बुद्धि दें और विवेक से पूर्ण करें कि मैं समझ सकूँ कि क्या करना है जिससे मैं इस प्रजा पर उचित रीति से शासन कर सकूँ क्योंकि आपकी सहायता के बिना आपकी इस विशाल प्रजा पर कोई शासन नहीं कर सकता।”
\v 11 यहोवा ने सुलैमान से कहा, “तूने न तो धन-सम्पत्ति माँगी, न प्रतिष्ठा की लालसा की, न ही अपने शत्रुओं के विनाश की इच्छा की, न ही दीर्घायु माँगी, परन्तु बुद्धि और विवेक की याचना की है ताकि मेरी प्रजा, जिस पर मैंने तुझे राजा नियुक्त किया, उसका न्याय करने में न चूके।
\s5
\v 12 इसलिए मैं तुझे बुद्धिमान होने और यह जानने के लिए सक्षम करूंगा कि तुझे मेरे लोगों पर शासन करने के लिए क्या करना है, इसके साथ मैं तुझे अपार धन-सम्पदा और सब जातियों में सर्वोच्च सम्मान प्रदान करूँगा जो न तो तुझसे पहले किसी राजा की थी और न ही तेरे बाद किसी राजा की होगी।”
\v 13 तब राजा सुलैमान और उसके साथ के सब लोग गिबोन के पवित्र तम्बू से निकल कर यरुशलेम लौट आए। वहीं उसने इस्राएलियों पर शासन किया।
\s5
\v 14 सुलैमान ने 1,400 रथ और बारह हजार घुड़सवार इकट्ठा किये। उसने कुछ रथ और घुड़सवार तो यरुशलेम में रखे और शेष विभिन्न नगरों में रखे।
\v 15 सुलैमान के शासनकाल में सोना तो ऐसा था जैसे पत्थर और देवदार की लकड़ी ऐसी थी जैसे पहाड़ों की तलहटी के गूलर।
\v 16 सुलैमान ने मिस्र और कोये देश से घोड़े मँगाए।
\v 17 मिस्र में उसके व्यापारी प्रत्येक रथ के लिए सात किलोग्राम चाँदी और प्रत्येक घोड़े के लिए 1.7 किलोग्राम चाँदी दिया करते थे। वे हित्ती और अरामी राजाओं को भी घोड़े बेचा करते थे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 सुलैमान ने यहोवा की आराधना के लिए भवन और अपना राजभवन बनाने का विचार किया।
\v 2 उसने 70,000 पुरुषों को निर्माण सामग्री उठाने और 80,000 पुरुषों को पहाड़ों की खदान में पत्थर काटने के काम पर लगाया और उनके काम का निरीक्षण करने के लिए 3,600 पुरुषों को नियुक्त किया।
\v 3 सुलैमान ने सोर के राजा हीराम के पास सन्देश भेजा, “वर्षों पूर्व जब मेरा पिता राजा दाऊद अपना महल बनवा रहा था तब तूने देवदार की लकड़ी के लट्ठे भेजे थे। क्या तू मेरे लिए भी देवदार की लकड़ी के लट्ठे भेजेगा?
\s5
\v 4 हम अपने परमेश्वर यहोवा के लिए एक भवन बनवा रहे हैं कि वहाँ सुगन्धित द्रव्यों से तैयार धूप जलाएँ, और भेंट की रोटियाँ उसमें रखें तथा प्रतिदिन सुबह-शाम तथा विश्राम दिवसों पर, तथा नये चाँद पर तथा पर्वों के समय हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए होम-बलि करें। हम अपने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सदैव ऐसा ही करना चाहते हैं।
\v 5 हम चाहते है कि यहोवा का यह महान भवन बने क्योंकि हमारे परमेश्वर की तुलना में कोई देवता नहीं है।
\s5
\v 6 कोई भी व्यक्ति हमारे परमेश्वर के लिये भवन नहीं बना सकता क्योंकि आकाश और पृथ्वी भी उनके लिए पर्याप्त नहीं है। मैं परमेश्वर के लिये भवन बनाने के योग्य नहीं हूँ। मैं केवल परमेश्वर के सामने सुगन्धि जलाने के लिये एक स्थान बना सकता हूँ।
\v 7 इसलिए सोना-चाँदी, पीतल और लोहे का कोई कुशल कारीगर भेज दे और बैंगनी, लाल और नीले वस्त्र पर काम करने वाला और कढ़ाई जानने वाला भी भेज दे। वे मेरे पिता द्वारा नियुक्त कुशल हस्तकारों के साथ यरुशलेम और यहूदा में काम करेंगे।
\s5
\v 8 मैं जानता हूँ कि तेरे सेवक वृक्ष काटना जानते हैं। इसलिए लबानोन के पर्वतों से मेरे लिए देवदार, सनोवर और चंदन की लकड़ी के लट्ठे भेज दे।
\v 9 तेरे सेवकों के साथ मेरे सेवक भी काम करेंगे। इस प्रकार वे बहुत सी लकड़ी तैयार कर लेंगे क्योंकि यह भवन जो मैं बनाना चाहता हूँ वह विशाल और अद्भुत होगा।
\v 10 मैं तेरे सेवकों को जो लकड़ी काटेंगे 4,400 किलोग्राम आटा, 4,400 किलोग्राम जौ, 440 किलो लीटर दाखमधु तथा 440 किलो लीटर जैतून का तेल दूँगा।”
\s5
\v 11 सुलैमान के सन्देश के उत्तर में हीराम ने सुलैमान को सन्देश भेजा, “क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा से प्रेम करते हैं इसलिए उन्होंने तुझे उनका राजा बनाया है।
\v 12 इस्राएल के परमेश्वर जिन्होंने आकाश और पृथ्वी को बनाया उनका गुणगान किया जाए! उन्होंने राजा दाऊद को एक बुद्धिमान पुत्र दिया है जिसमें समझ और चतुराई भी है कि वह यहोवा का भवन और अपना राजमहल बनवाए।
\s5
\v 13 मैं अपना एक कुशल कारीगर जो समझदार और बुद्धिमान है, तेरे पास भेजता हूँ। उसका नाम हूराम-अबी है,
\v 14 और वह दानवंशी स्त्री और सोरवासी पुरुष की सन्तान है। वह सोना-चाँदी, पीतल, लोहा, लकड़ी, पत्थर का काम जानता है। वह बैंजनी, लाल और नीले वस्त्र पर काम करना जानता है और कढ़ाई करने में भी निपुण है। वह किसी भी नमूने को काढ़ सकता है। वह तेरे कुशल कारीगरों और तेरे पिता राजा दाऊद के कुशल कारीगरों के साथ काम करेगा।
\s5
\v 15 अब तू अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार आटा, जौ, जैतून का तेल और दाखमधु भेज दे।
\v 16 तेरा दिया हुआ सामान पहुँचते ही मेरे सेवक लबानोन के पर्वतों से तेरी आवश्यकता के अनुसार लकड़ी के लट्ठे काटकर समुद्र तक ले आएँगे। तब वे उन्हें बाँध कर बेड़े बना देंगे और समुद्र के मार्ग से याफा पहुँचा देंगे। वहाँ से तू लोगों से उन्हें यरुशलेम मँगवा लेना।”
\v 17 सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि सब विदेशियों की गिनती करें जैसा उसके पिता दाऊद ने किया था। वे 1, 53,600 पुरुष थे।
\v 18 सुलैमान ने उनमें से 70,000 को निर्माण सामग्री उठाने, 80,000 पहाड़ों से पत्थर काटने और 3,600 को उनका निरीक्षक नियुक्त किया कि उनसे काम करवाएँ।
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब सुलैमान के कारीगरों ने यरुशलेम में यहोवा के भवन का निर्माण आरम्भ किया। उन्होंने इसका निर्माण मोरिय्याह पर्वत पर किया, यह वही स्थान था जहाँ यहोवा ने सुलैमान के पिता दाऊद को दर्शन दिया था। यह वही स्थान था जिसे दाऊद ने यबूसी ओर्नान से मोल लिया था और दाऊद ने उसे जहाँ बनाने के लिए कहा था।
\v 2 सुलैमान के शासनकाल के चौथे वर्ष के दूसरे महीने में दूसरे दिन उन्होंने निर्माण कार्य आरम्भ किया।
\v 3 भवन की नींव 27 मीटर लम्बी और 9 मीटर चौड़ी थी।
\s5
\v 4 भवन के सामने प्रवेश द्वार के मण्डप की लम्बाई भी लगभग 9 मीटर थी जो भवन की चौड़ाई के बराबर थी और उसकी ऊँचाई भी लगभग 9 मीटर थी। सुलैमान ने भीतरी भाग को शुद्ध सोने से मढ़वाया था।
\v 5 भवन के मुख्य भाग को सुलैमान के श्रमिकों ने सनोवर की लकड़ी से बनवाया और उस पर खजूर के वृक्ष की और जंजीर के समान दिखने वाली नक्काशी की और शुद्ध सोने से मढ़ दिया।
\s5
\v 6 सुन्दरता के लिये सुलैमान ने यहोवा के भवन में मणि जड़वाए। उन्होंने जिस सोने का उपयोग किया वह पर्वेम से आया था।
\v 7 उसने छत की शहतीरों को, द्वारों की चैखटों को, दीवारों और द्वार के पल्लों को भी सोने से मढ़वाया और दीवारों पर पंख वाले प्राणियों के चित्र भी खुदवाए।
\s5
\v 8 भवन के भीतर परम-पवित्र स्थान भी बनवाया जो जो 9 मीटर लम्बा था भवन की चौड़ाई के समान और उसकी दीवारों को लगभग 21 टन सोने से मढ़वाया।
\v 9 सोने की प्रत्येक कील का भार लगभग 1.6 किलोग्राम था। उसने ऊपरी कमरों की दीवारों पर भी सोना मढ़वा दिया था।
\s5
\v 10 सुलैमान के कारीगरों ने पंख वाले प्राणियों की दो प्रतिमाएँ बनई कि परम-पवित्र स्थान में रखें और उन्हें भी सोने से मढ़ दिया।
\v 11-12 प्रत्येक प्रतिमा के दो लम्बे पंख थे। उनका एक पंख तो दीवार का स्पर्श करते हुए था और दूसरा पंख दूसरे प्राणी के पंख को छूता हुआ था। उनके पंखों की एक सिरे से दूसरे सिरे तक की लम्बाई 4.6 मीटर थी। उनके पंख एक ओर तो दीवारों को स्पर्श करते थे दूसरी ओर एक दूसरे के पंख का स्पर्श करते थे जो कमरे के केन्द्र पर आता था। प्रत्येक पंख लगभग 2.3 मीटर लम्बा था।
\s5
\v 13 एक प्रतिमा के बाहरी पंख के सिरे से दूसरी प्रतिमा के बाहरी पंख के सिरे की लम्बाई लगभग 9 मीटर की थी। उनके मुख मुख्य भाग के द्वार की ओर थे।
\v 14 सुलैमान के कारीगरों ने परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करने के लिए एक परदा बनाया। यह सूक्ष्म सनी पर नीले, बैंजनी और लाल धागों की कढ़ाई से बना था। उस परदे पर पंख वाले प्राणियों की आकृति की कढ़ाई की गई थी।
\v 15 उन्होंने दो पीतल के खंभे बनाए और उन्हें मंदिर के प्रवेश द्वार पर रखा- प्रत्येक खम्भा लगभग सोलह मीटर ऊँचा था। प्रत्येक खम्भे के ऊपर लगभग 2.3 मीटर ऊँची कँगनी लगाई गई थी।
\v 16 कारीगरों ने जंजीर के समान बनाकर उन खम्भों के ऊपर लगाईं और उन्होंने अनार के समान एक सौ नक्काशी बनाई और उन्हें जंजीर से जोड़ा।
\v 17 तब सुलैमान ने भवन के सामने खम्भे खड़े किये। एक प्रवेश द्वार के दक्षिण की ओर एक तथा दूसरा खम्भा उत्तर दिशा की ओर खड़ा कीया। जो खम्भा दक्षिण दिशा की ओर था उसका नाम याकीन और उत्तर दिशा की ओर के खम्भे का नाम बोअज रखा गया।
\s5
\c 4
\p
\v 1 सुलैमान के कारीगरों ने पीतल की एक चौकोर वेदी बनाई जिसकी लम्बाई और चौड़ाई लगभग 9 मीटर की थी और ऊँचाई लगभग 4.6 मीटर थी।
\v 2 उन्होंने एक बहुत बड़ा गोल हौज भी बनाया जिसे "सागर" कहा जाता था। जिसके घेरे की लम्बाई लगभग चौदह मीटर थी।
\v 3 उसके बाहरी घेरे के नीचे बैल की छोटी-छोटी आकृतियों की पंक्तियाँ थीं जो हौज के साथ ही ढाली गई थीं। प्रत्येक पंक्ति में बैलों की तीन सौ आकृतियाँ थीं। बैल को दो पंक्तियों में एक साथ गया था स्थापित कियाऔर उन्हें पीतल के हौज के साथ भी डाला गया था जिसे "सागर" कहा जाता था
\s5
\v 4 यह हौज बैलों की बारह प्रतिमाओं पर स्थापित किया गया था और उनके मुख बाहर की ओर थे। तीन बैल उत्तर की ओर, तीन बैल पश्चिम की ओर, तीन दक्षिण की ओर और तीन बैल पूर्व दिशा की ओर मुँह किए हुए थे।
\v 5 उस होज की चादर की मोटाई लगभग आठ सेन्टीमीटर थी। हौज का मुँह प्याले के समान था जो सोसन के खिले हुए फूल जैसा दिखता था और उसमें लगभग 66 किलोलीटर पानी समाता था।
\v 6 कारीगरों ने बलि चढ़ावे के पात्रो को धोने के लिए दस हौदियाँ भी बनाईं। दक्षिण की ओर पांच और पांच उत्तर की ओर बनाई उनमें होमबलि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन धोए जाते थे परन्तु याजक बड़े हौज में स्नान करते थे जिसे "सागर" कहते थे।
\s5
\v 7 कारीगरों ने सुलैमान के निर्देशानुसार सोने के दस दीपदान भी बनाए और उन्हें भवन के दक्षिण दिशा में पाँच और उत्तर दिशा में पाँच रख दिए।
\v 8 फिर उन्होंने दस मेज बनाकर भवन के दक्षिण दिशा में पाँच और उत्तर दिशा में पाँच रख दिए। उन्होंने सोने के दस कटोरे भी बनाए।
\s5
\v 9 उन्होंने याजकों के लिए एक आँगन और श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ा आँगन बनाया। आँगनों के लिए द्वारों को भी बनाया और उन्हें पीतल से मढ़ दिया।
\v 10 और उन्होंने वह बड़ा हौज भवन के पूर्व और उत्तर के बीच रख दिया। जिसे "सागर" कहा जाता था
\s5
\v 11 उन्होंने वेदी की राख उठाने के लिए बर्तन और अन्य छोटे कटोरे और फावड़े भी बनाए। इस प्रकार हूराम और उसके कारीगरों ने सुलैमान द्वारा सौंपा गया परमेश्वर के भवन का काम पूरा किया।
\v 12 उन्होंने जो बनाया वो यह था; दो बड़े खम्भे। खम्भों के ऊपर कटोरे के आकार के दो शीर्ष। उन दोनों खम्भों के ऊपर सजावट के लिए जंजीर के समान नक्काशी की दो प्रतियाँ।
\v 13 खम्भों के ऊपरी सिरों को सजाने के लिए चार सौ नक्काशी जो अनार जैसी दिखती थीं जो दो पंक्तियों में रखी गई थीं।
\s5
\v 14 ये नक्काशी जो अनार जैसी दिखती थीं इन को खम्भों के ऊपर रखे कटोरों और उनके आधारों को सजाने के लिए थी।
\v 15 एक बड़ा हौज जिसे "सागर" कहते हैं और उसके नीचे बारह बैलों की आकृतियाँ।
\v 16 हण्डे, बेलजे और काँटे। ये सब वस्तुएँ हूराम और उसके कारीगरों ने पीतल से बनाकर उनको चमका दिया था।
\s5
\v 17 हूराम ने पीतल को पिघलाकर ढालने के लिए यरदन के समीप सुक्कोत और सारतान के बीच चिकनी मिट्टी से साँचे बनाए थे।
\v 18 सुलैमान ने पीतल का जितना भी सामान बनवाया था, उनमें बहुत पीतल लगा था, इतना अधिक कि उसकी मात्रा ज्ञात नहीं की गई।
\s5
\v 19 सुलैमान के कारीगरों ने इन सब वस्तुओं को बनाकर भवन में रखाः सोने की वेदी और वह मेज जिस पर यहोवा के लिए भेंट की रोटियों को रखते थे।
\v 20 शुद्ध सोने के दीपदान और दीपक याजक यहोवा की आज्ञा के अनुसार इन दीपकों में तेल डालकर परम-पवित्र स्थान के सामने सदैव जलता रखे।
\v 21 शुद्ध सोने के फोलों के समान नक्काशी, दीपक और चिमटे।
\v 22 और शुद्ध सोने की कैंचियाँ, रक्त छिड़कने के लिए कटोरे, धूपदान और पात्र, यहोवा के भवन के सोने के द्वार, परमपवित्र स्थान का सोने का द्वार।
\s5
\c 5
\p
\v 1 यहोवा के भवन का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद सुलैमान ने उसके पिता राजा दाऊद द्वारा यहोवा को अर्पित की हुई सब सोने-चाँदी की और भवन में उपयोग की सब वस्तुएँ भवन के भण्डार-गृहों में रखवा दीं।
\s5
\v 2 तब राजा सुलैमान ने इस्राएल के सब प्रधानों, गोत्रों और कुलों के सब मुख्य पुरुषों को यरुशलेम में बुलवाया। वह चाहता था कि वे सब सिय्योन पर्वत पर दाऊद पुर से यहोवा का पवित्र सन्दूक इस नव-निर्मित भवन में ले आएँ।
\v 3 इसलिए इस्राएल के सब अगुवे सातवें महीने में झोपड़ियों के पर्व के समय राजा के पास इकट्ठा हो गए।
\s5
\v 4 जब सब आ गए तब लेवी के वंशजों ने पवित्र सन्दूक को उठाया।
\v 5 साथ ही पवित्र तम्बू को और उसकी सब पवित्र वस्तुओं को याजकों ने जो लेवी वंश से थे, उठाया और भवन की ओर लेकर चले।
\v 6 तब राजा सुलैमान और इस्राएली सन्दूक के आगे चले और असंख्य भेड़ और बैल बलि किए। बलि पशुओं की संख्या को गिनना संभव नहीं था क्योंकि वे बहुत अधिक थे।
\s5
\v 7 तब याजकों ने पवित्र सन्दूक को परम-पवित्र स्थान में लाए और उसे पंख वाले प्राणियों के नीचे रखा।
\v 8 उनके पंख पवित्र सन्दूक और उसके डंडे उन प्राणियों के पंखों की छांव में थे।
\s5
\v 9 पवित्र सन्दूक के डंडे इतने लम्बे थे कि परम-पवित्र स्थान के बाहर खड़े लोग उन्हें देख सकते थे परन्तु भवन के बाहर से वे दिखाई नहीं देते थे। ये डंडे अब भी वहाँ है।
\v 10 उस पवित्र सन्दूक में दस आज्ञाओं वाले पत्थर की दो पटियाओं के अतिरिक्त और कुछ न था। जिन्हें मूसा ने सीनै पर्वत पर सन्दूक में रखा था जब इस्राएली मिस्र से निकलकर आए थे। उस समय परमेश्वर ने उनसे वाचा बाँधी थी।
\s5
\v 11 तब सब याजक अपने दलों से निरपेक्ष, बाहर आए और परमेश्वर प्रदत्त विधि के अनुसार अपना शोधन करके परमेश्वर की सेवा के लिए अपने को पवित्र किया।
\v 12 आसाप, हेमान, यदूतून, उनके पुत्र तथा परिजन, सब लेवी वंश के संगीतकार वेदी के पूर्व में खड़े हुए। वे सन के वस्त्र पहने हुए झाँझ, वीणा और सारंगी बजा रहे थे। 120 याजक तुरहियाँ फूँक रहे थे।
\v 13 अन्य वाद्य यन्त्र बजा रहे थे और यहोवा की स्तुति में गायक यह गीत गा रहे थे, “यहोवा भला है और उसका सच्चा प्रेम सदा का है।” तब एकाएक ही भवन में बादल आ गया।
\v 14 यहोवा की महिमा का तेज भवन में भर गया जिसके कारण याजक अपना काम न कर पाए।
\s5
\c 6
\p
\v 1 तब सुलैमान ने प्रार्थना कीः “हे यहोवा, आपने कहा था मैं घोर अन्धकार में रहता हूँ।
\v 2 परन्तु अब मैंने आपके सदाकालीन निवास के लिए एक वैभवशाली भवन बनवाया है।
\v 3 तब सुलैमान ने इस्राएली मंडली की ओर मुख कर के उन को आशीर्वाद देते हुए कहाः
\s5
\v 4 “हम अपने परमेश्वर यहोवा की स्तुति करें। उन्होंने मेरे पिता दाऊद को दी गई अपनी प्रतिज्ञा आज पूरी की है। उन्होंने कहा थाः
\v 5 ‘जिस दिन से मैं इस्राएल को मिस्र से निकाल कर लाया हूँ, मैंने इस्राएल देश में किसी नगर को नहीं चुना कि वहाँ मेरी आराधना के लिए एक भवन बनाया जाए, न ही मैंने किसी मनुष्य को चुना कि मेरी प्रजा इस्राएल पर शासन करे।
\v 6 परन्तु अब मैंने मेरी आराधना के लिए यरूशलेम को चुना है और दाऊद तुझे मेरी प्रजा इस्राएल पर राजा नियुक्त किया है।’”
\s5
\v 7 तब सुलैमान ने कहा, मेरा पिता, राजा दाऊद हमारे परमेश्वर यहोवा के लिए भवन बनवाना चाहता था।
\v 8 परन्तु यहोवा ने उससे कहा, ‘यह अच्छा है, कि तू मेरे लिए भवन बनाना चाहता है।
\v 9 परन्तु तू नहीं, मैं चाहता हूँ कि तेरे पुत्रों में से एक मेरा भवन बनवाए।’
\s5
\v 10 आज यहोवा की प्रतिज्ञा पूरी हुई है। यहोवा की प्रतिज्ञा के अनुसार मैं अपने पिता के स्थान पर इस्राएल का राजा नियुक्त किया गया हूँ और अपने परमेश्वर यहोवा के लिए यह मंदिर बनवाने योग्य हुआ हूँ। वह परमेश्वर जिनके हम इस्राएली हैं।
\v 11 मैंने यहोवा का पवित्र सन्दूक इस भवन में रखा है जिसमें पत्थर की पटियाएँ है जो यहोवा द्वारा हमारे साथ बाँधी गई वाचा का प्रतीक है।
\s5
\v 12 तब सुलैमान इस्राएली मंडली के सामाने वेदी के सामने खड़ा हुआ और हाथ उठा कर यहोवा से प्रार्थना की।
\v 13 उसके कारीगरों ने उस के खड़े होने के लिए पीतल का एक मंच बनवाया था। उस की लम्बाई और चौड़ाई 2.3 मीटर तथा ऊँचाई 1.5 मीटर थी। यह मंच बाहरी आँगन में रखा गया था। सुलैमान उस मंच पर चढ़ गया और इस्राएली मंडली के सामने घुटने टेक कर हाथ स्वर्ग की ओर उठाए,
\s5
\v 14 फिर उसने प्रार्थना की “हे हमारे परमेश्वर यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर, स्वर्ग और पृथ्वी में आपको छोड़ कोई परमेश्वर नहीं हैं। आपने अपनी प्रतिज्ञा में शपथ खाई है कि आप हम से सच्चा प्रेम रखोगे और आपने अपनी आज्ञा का पालन करने वालों के साथ ऐसा ही किया है।
\v 15 आपने मेरे पिता दाऊद, अपने दास, से की गई प्रतिज्ञा को पूरा किया है। आपने सच में उससे जो प्रतिज्ञा की थी, आज हम उसे पूरा होते देख रहे है।
\s5
\v 16 तो अब, हे यहोवा, परमेश्वर जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, अपने दास दाऊद से की गई प्रतिज्ञा के अनुसार कृपया सुनिश्चित करें कि इस्राएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए सदा उसका एक वंशज हो। आपने प्रतिज्ञा की थी कि यदि उसके वंशज आपके निष्ठावान रहे तो ऐसा ही होगा।
\v 17 इसलिए हमारे परमेश्वर यहोवा, अपने दास दाऊद से की गई प्रतिज्ञा को पूरा करें।
\s5
\v 18 परन्तु मेरे परमेश्वर, क्या आप वास्तव में इस पृथ्वी पर हमारे बीच रहेंगे? यह भवन जो मैंने बनवाया है आपके निवास के लिए कैसे पूरा पड़ेगा जबकि आप स्वर्ग और पृथ्वी में नहीं समाते हैं।
\v 19 परन्तु हे यहोवा, हे मेरे परमेश्वर, कृपया मेरी प्रार्थना सुनो, कृपया मेरी प्रार्थना सुनो जब मैं आज के दिन अनुरोध कर रहा हूं और जो भी मैं अनुरोध कर रहा हूं वह करो।
\v 20 हमेशा इस भवन की रक्षा करना यह स्थान जिस में रहने का वचन आपने दिया है, ताकि जब भी मैं, आपका दास, प्रार्थना करूँ, आप सुन लें।
\s5
\v 21 मेरी और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना सुन लेना। चाहे हम यहाँ आ कर प्रार्थना करें या यहाँ की ओर मुख करके प्रार्थना करें। अपने स्वर्ग से हमारी प्रार्थना सुन लेना जहाँ आप रहते हैं और हमें क्षमा कर देना।
\s5
\v 22 यदि किसी पर किसी से बुराई का दोष लगा कर आपकी वेदी के सामने उसे उपस्थित किया जाए और वह याचना करे, “मैंने यह अपराध नहीं किया है। यदि मैं झूठ बोलूँ तो यहोवा मुझे दण्ड दें।”
\v 23 तो स्वर्ग से सुनकर, निर्णय देना कि कौन सच कह रहा है। तब दोषी को उस के योग्य दण्ड देना और निर्दोष को उस के योग्य प्रतिफल देना।
\s5
\v 24 और यदि आपकी प्रजा इस्राएल के लोग आपके विरूद्ध पाप करने के कारण शत्रुओं से पराजित हो और बन्दी बना कर विदेश ले जाएँ और वे अपने पापों से मन फिराकर इस भवन की ओर मुख करके और स्वीकार करते हैं कि आपने उन्हें दंडित किया है और वे क्षमा याचना करें।
\v 25 तब स्वर्ग से उन की प्रार्थना सुनकर उन्हें क्षमा कर देना और उन्हें लौटा कर इस देश में ले आना जो आपने उनके पूर्वजों को दिया है।
\s5
\v 26 क्योंकि लोगों ने आपके विरूद्ध पाप किया है इस कारण यदि आप वर्षा न होने दें, तब वे अपने पापों से मुड़ कर पाप करना बंद कर देते हैं और नम्रता से आपसे प्रार्थना करते हैं, आप जो इस स्थान में उपस्थित हैं।
\v 27 तो आप उनकी प्रार्थना सुन कर अपने लोगों के पापों को क्षमा करें और उन्हें अच्छे से जीवन जीने का उचित मार्ग सिखाएं। फिर इस देश में वर्षा भेजें, जो आपने उन्हें सदा के लिए दिया है।
\s5
\v 28 और जब इस देश के लोग अकाल, महामारी, झुलस या मकड़ी या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उन पर आक्रमण करने के लिए उन्हें घेर लें,
\v 29 तब वे सच्चे दिल से आपसे प्रार्थना करें या उनमें से एक ही मनुष्य प्रार्थना करें, वे इस भवन की ओर हाथ उठा कर प्रार्थना करें - उन के मन में दुर्बलता का बोध हो और उन के मन खेदित हों
\v 30 तो स्वर्ग से उन की प्रार्थना सुन कर उन्हें क्षमा कर दें। आप तो हर एक मनुष्य के मन के विचार जानते हैं, इसलिए हर एक के कामों के अनुसार उन्हें बदला देना।
\v 31 यह इसलिए कि वे आपका सम्मान करें और हमारे पूर्वजों को दिए गए इस देश में वे जब तक रहें आपकी इच्छा के अनुसार जीवन जीयें।
\s5
\v 32 कुछ विदेशी भी यहाँ होंगे जो इस्राएली नहीं है जो आपकी महानता और प्रताप की गाथा सुन कर यहाँ आएँ और वे इस भवन को निहार कर प्रार्थना करें,
\v 33 तो स्वर्ग से जहाँ आप रहते हैं वहाँ से प्रार्थना सुन कर उन की मनोकामना पूरी करें कि संपूर्ण पृथ्वी पर की सब जातियाँ इस्राएल के समान आपका सम्मान करे और आपकी आज्ञा मानें और निश्चय जान ले कि आप मेरे द्वारा निर्मित इस भवन में रहते हैं।
\s5
\v 34 जब आपकी प्रजा के लोग अपने शत्रुओं से युद्ध करने जाएँ, और आप से प्रार्थना करें, चाहे वे कहीं से भी इस नगर की ओर जिसे आपने चुना है और इस भवन की ओर जिसे मैंने आपके सम्मान में बनवाया है, मुख कर के प्रार्थना करें,
\v 35 तो आप कृपया स्वर्ग से उनकी प्रार्थनाओं को सुनकर उनकी याचनाओं पर कान लगाना और उनकी सहायता करना।
\s5
\v 36 यह सच है कि सब पाप करते है। इसलिए जब आपकी प्रजा आपके विरूद्ध पाप करे और आपको क्रोध दिलाए और आप उन्हें शत्रु के हाथ में कर दें कि उन्हें बन्दी बना कर अपने देश ले जाएँ, चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो
\v 37 जब ऐसा हो और वे दूर किसी देश में हों, तब वे कहें, “हमने पाप किया है, हम ने गलत काम किए हैं। हमने दुष्टता की है।”
\v 38 और वे सच्चे मन से पश्चाताप करें और इस देश की ओर मुख करके जो आपने उनके पूर्वजों को दिया था, और यह भवन जो मैंने आपके निवास के लिए बनवाया है, प्रार्थना करें,
\v 39 तो स्वर्ग में से जहाँ आप रहते हैं, उनकी प्रार्थना सुनें और उन की सहायता की विनती स्वीकार करें और अपने लोगों के पापों को क्षमा करें जिन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है।
\v 40 अब हे मेरे परमेश्वर, हम पर दृष्टि करें जब हम इस स्थान में प्रार्थना कर रहे हैं और हमारी प्रार्थना सुन लें।
\v 41 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, पवित्र सन्दूक के साथ इस स्थान में निवास करें। यह पवित्र सन्दूक आपके सामथ्र्य को दर्शाता है। हमारे परमेश्वर यहोवा, अपने याजकों को समझने की बुद्धि दें कि आपने उन्हें बचाया है। आप जो उनके साथ अच्छा करते हैं, उसके कारण वे आनन्दित रहें।
\v 42 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, आपने मुझे इस्राएल का राजा नियुक्त किया है। इसलिए मुझे त्याग न देना। याद करें कि अपनी वाचा के कारण आप अपने दास दाऊद के साथ कैसे करुणामय थे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 सुलैमान की प्रार्थना समाप्त होते ही स्वर्ग से आग गिरी और पशुबलियों तथा अन्य बलियों को भस्म कर दिया और यहोवा का तेज भवन में भर गया।
\v 2 यहोवा का तेज ऐसा प्रचण्ड था कि याजक भवन में प्रवेश नहीं कर पाए।
\v 3 उपस्थित इस्राएली मण्डली ने यहोवा की आग को गिरते देखा और भवन में यहोवा के तेज की उपस्थिति को देखा तो भूमि पर गिरकर यहोवा को दण्डवत्् किया। उन्होंने यहोवा की आराधना की और उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, “यहोवा भले हैं और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार हमसे सदा प्रेम करते रहेंगे।”
\s5
\v 4-5 तब राजा और प्रजा ने बलियाँ चढ़ाकर यहोवा के भवन का समर्पण किया। राजा सुलैमान ने 1,20,000 भेड़ें और बकरियाँ चढ़ाए।
\v 6 याजक अपने-अपने स्थान में खड़े हो गए और लेवी के अन्य वंशज भी यहोवा की स्तुति के लिए संगीत वाद्य लेकर अपने-अपने स्थान में खड़े रहे। राजा दाऊद ने यहोवा की स्तुति और धन्यवाद के लिए ये वाद्य-यन्त्र बनवाए थे। उन्होंने यह गीत गायाः “वह हमसे सदा के लिए सच्चा प्रेम करते हैं, लेवी के अन्य वंशजों के सामने याजक खड़े होकर तुरहियाँ फूँक रहे थे और इस्राएली सुन रहे थे।
\s5
\v 7 सुलैमान ने यहोवा के भवन के आँगन का मध्य भाग पवित्र किया, तब उसने यहोवा के साथ संगति बनाए रखने के लिए उस में होम-बलि और मेल-बलि चढ़ाई। याजकों ने ये होम बलि और अन्न बलि चढ़ाईं जिसके परिणामस्वरूप पीतल की वेदी इतनी अधिक बलियों के लिए छोटी पड़ गई थी।
\s5
\v 8 सुलैमान और अन्य इस्राएलियों ने सात दिन तक झोपड़ियों का पर्व मनाया। वहाँ एक विशाल समूह उपस्थित था। उपस्थित लोगों में कुछ ऐसे लोग भी थे जो उत्तर में हमात की घाटी से और दूर दक्षिण में मिस्र की सीमा से दूर आए थे।
\v 9 आठवें दिन वे यहोवा की आराधना के लिए फिर इकट्ठा हुए। उन्होंने सात दिन तक तो वेदी के समर्पण का पर्व मनाया और सात दिन तक झोपड़ियों का पर्व मनाया।
\v 10 अगले दिन सुलैमान ने मण्डली को विदा किया। उनके आनन्द की सीमा नहीं थी क्योंकि यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और प्रजा पर जो उपकार किए थे।
\s5
\v 11 इस प्रकार, सुलैमान ने यहोवा के भवन और राजभवन का निर्माण कार्य पूरा करवाया और उसने अन्य जिस किसी काम की योजना बनाई थी उसे भी पूरा किया।
\v 12 तब यहोवा ने उसे एक स्वप्न में दर्शन दिया और उससे कहा, “मैंने तेरी प्रार्थना सुनी और इस भवन को चुन लिया है कि मेरी प्रजा यहाँ मेरे लिए बलि चढ़ाए।
\s5
\v 13 जब मैं वर्षा रोक दूँ या टिड्डियाँ भेजूँ कि फसल खा जाएँ या प्रजा में महामारी भेजूँ,
\v 14 तब मेरी प्रजा अपने पापों का प्रायश्चित करके पापों का त्याग कर दे और मुझसे क्षमा माँगें तो मैं उन्हें उनके पापों की क्षमा प्रदान करके फिर से समृद्ध कर दूँगा।’
\v 15 जब वे इस स्थान में मुझसे प्रार्थना करेंगे तब मैं उनकी प्रार्थना सुन लूँगा।
\s5
\v 16 मैंने इस भवन में निवास करने का निर्णय लिया है और इसे अपने लिए पवित्र कर दिया है। मैं सदा इसकी रक्षा करता रहूँगा।
\v 17 और यदि तू अपने पिता दाऊद के जैसे मेरी आज्ञाओं को मानेगा और मेरी नियमों और विधियों का पालन करेगा,
\v 18 तो मैं सुनिश्चित करूँगा कि तेरे वंशज सदैव राजगद्दी पर बैठें। मैंने तेरे पिता दाऊद से प्रतिज्ञा की है, “तेरे वंशज सदा इस्राएल के राजा होंगे।
\s5
\v 19 परन्तु यदि तुम इस्राएली मुझसे विमुख होकर मेरे नियमों और मेरी आज्ञाओं की नहीं मानोगे और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करोगे,
\v 20 तो मैं तुम्हें इस देश से जो मैंने तुम्हें दिया है दूर कर दूँगा और यह भवन जिसे मैंने अपने लिए पवित्र किया है, त्याग दूँगा और अन्य जातियों को इसकी दशा पर हँसने का अवसर दूँगा।
\v 21 यह भवन आज ऐसा वैभवशाली है, ऐसी दशा हो जाने पर आने जाने वालों के लिए डरने का कारण हो जाएगा और वे पूछेंगे, “यहोवा ने इस देश और इस भवन की ऐसी दुर्दशा क्यों होने दी?”
\v 22 तब लोग कहेंगे, “यह इसलिए हुआ कि इन लोगों ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था जिन्होंने उन्हें मिस्र से निकाला था। उन्होंने अन्य देवी-देवताओं की पूजा की और उन्हीं को प्रसन्न किया था। यही कारण है कि यहोवा ने उनका ऐसा विनाश किया।”
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा का भवन और राज महल बनाने में बीस वर्ष का समय लगा था।
\v 2 तब सुलैमान के कारीगरों ने उन नगरों का दुबारा निर्माण किया जिन्हें राजा हीराम ने उसे लौटा दिए थे और सुलैमान ने वहाँ इस्राएलियों को बसा दिया।
\s5
\v 3 तब सुलैमान की सेना ने जाकर सोबा के हमात को भी जीत लिया।
\v 4 उसने मरूभूमि में तदमोर नगर की शहरपनाहें बनवाईं और हमात के सब भण्डार-नगरों को सुरक्षा की दृष्टि से दृढ़ किया।
\s5
\v 5 ऊपरी और निचले दोनों बेथोरोन की शहरपनाहें बनवाकर उनमें फाटकों और बेड़ों को लगवाया।
\v 6 डसने बालात नगर और भण्डारण के नगरों को और उसके रथ और सवारों तथा घोड़े रखने के नगरों का पुनःनिर्माण किया और यरुशलेम, लबानोन और अपने राज्य के अन्य स्थानों में सुलैमान ने जो चाहा सो बनवाया।
\s5
\v 7 सुलैमान ने इस्राएलियों के बीच रहने वाली अन्य जातियाँ अर्थात हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिब्बियों और यबूसियों
\v 8 के वंशजों को जिन्हें इस्राएली पूरी तरह से नष्ट नहीं कर पाए थे, बेगारी में रखा और आज तक उनकी यही दशा है।
\s5
\v 9 सुलैमान ने इस्राएल के किसी भी व्यक्ति को दास मजदूर बनने को विवश नहीं किया। इस्राएली उसके सैनिक, उसके सारथी, उसकी रथ सेना के सेनापति हुए।
\v 10 वे राजा सुलैमान के मुख्य अधिकारी भी थे। उनमें से 250 थे जो कर्मियों पर प्रधान ठहराए गए।
\s5
\v 11 सुलैमान ने अपनी पत्नी, मिस्र के राजा की पुत्री के लिए यरुशलेम के बाहर, दाऊदपुर में महल बनवाया। उसने कहा, “मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी उस स्थान में रहे जो मेरे पिता राजा दाऊद ने बनवाया था क्योंकि कुछ समय तक पवित्र सन्दूक वहाँ था। पवित्र सन्दूक जहाँ रहा, वह स्थान पवित्र है।”
\s5
\v 12 यहोवा के भवन के प्रवेश द्वार के सामने सुलैमान ने जो वेदी बनवाई थी, वहाँ उसने अनेक होम-बलि चढ़ाई।
\v 13 उसने मूसा की आज्ञा के अनुसार दैनिक बलियाँ और सब्त के दिन की बलियाँ, नये चाँद की बलियाँ तथा तीनों वार्षिकोत्सवों- अखमीरी रोटियों का पर्व, कटनी का पर्व तथा झोपड़ियों का पर्व- की बलियाँ चढ़ाईं।
\s5
\v 14 अपने पिता, दाऊद की आज्ञा के अनुसार सुलैमान ने याजकीय सेवा में याजकों और श्रद्धालुओं द्वारा यहोवा की स्तुति तथा याजकों के दैनिक कार्यों में सहयोग के लिए लेवी के वंशजों को नियुक्त किया। उसने द्वारपालों को नियुक्त किया। यह भी परमेश्वर के दास दाऊद की आज्ञा थी।
\v 15 याजकों और लेवी के अन्य वंशजों ने राजा की प्रत्येक आज्ञा का पालन किया जिसमें भण्डार-गृहों की देख-रेख की सेवा भी थी।
\s5
\v 16 उन्होंने सुलैमान की आज्ञा के अनुसार यहोवा के भवन के निर्माण कार्य को किया- जब तक कि यह पूरा नहीं हुआ। इस प्रकार यहोवा के भवन का निर्माण कार्य पूरा हुआ।
\v 17 तब सुलैमान के लोग एदोम के देश में समुद्र के किनारे स्थित एस्योन गेबेर और एलोत को गए।
\v 18 सोर के राजा हीराम ने अपने कुछ जहाज और समुद्र के अनुभवी नाविक उसके लिए वहाँ भेज दिए। वे सुलैमान के पुरुषों को ओपीर ले गए और उन्होंने वहाँ से लगभग सोलह टन सोना लाकर सुलैमान को दे दिया।
\s5
\c 9
\p
\v 1 सुलैमान की कीर्ति सुनकर शेबा की रानी कठिन प्रश्नों द्वारा उसकी परीक्षा लेने यरुशलेम आई। उसके साथ उसके बहुत सेवक थे और ऊँटों पर लदे हुए मसाले, मूल्यवान मणि थे। जब वह पहुंची, तो उसने सुलैमान के साथ तर्क-वितर्क किया।
\v 2 सुलैमान ने उसके हर एक प्रश्न का उत्तर दिया और जो कुछ उसने जानना चाहा वह उसे समझाया, यहाँ तक कि गूढ़ बातें भी।
\s5
\v 3 तब रानी ने माना सुलैमान बुद्धिमान है। उसने सुलैमान का राजमहल देखा।
\v 4 उसने उसकी मेज पर प्रतिदिन का भोजन देखा, उसके अधिकारीयों के निवास स्थान देखे, उनकी वर्दी देखी, उसके भोजन और दाखमधु परोसने वाले सेवक देखे और यहोवा के भवन में उसके द्वारा चढ़ाई जाने वाली बलियाँ देखकर वह वास्तव में आश्चर्यचकित थी।
\s5
\v 5 मैंने अपने देश में तेरे विषय में और तेरी बुद्धि के विषय में जो सुना वह सच ही है।
\v 6 परन्तु जब तक मैंने स्वयं यहाँ आकर नहीं देखा। तू बुद्धिमान और अमीर हैं, जो लोग मुझे बताते हैं उससे भी अधिक।
\s5
\v 7 तेरे सेवक जो तेरी उपस्थिति में खड़े होकर तेरी बुद्धि की बातों को सुनने वाले सौभाग्यशाली है।
\v 8 तेरे परमेश्वर यहोवा धन्य हैं जिन्होंने तुझे इस्राएल का राजा नियुक्त करके अपनी प्रसन्नता दर्शाई है। परमेश्वर ने इस्राएलियों से सदा प्रेम रखा है इसलिए उन्होंने तुझे उनका राजा बनाया है कि तू उनका न्याय निष्पक्षता और सत्य-निष्ठा में करे।
\s5
\v 9 तब उसने लगभग चार टन सोना और बड़ी मात्रा में मसाले और मणि सुलैमान को भेंट चढ़ाए। सुलैमान ने शेबा की रानी से प्राप्त मसालों से अधिक मसाले कभी नहीं प्राप्त किए थे।
\s5
\v 10-12 राजा सुलैमान ने शेबा की रानी को वह सब दिया जिसकी इच्छा उसने व्यक्त की। सुलैमान ने उसे उससे भी अधिक दिया जो उसने सुलैमान को दिया था। तब वह अपने दल के साथ अपने देश लौट गई। हीराम के पुरुषों ने सुलैमान के पुरुष के साथ जाकर ओपीर से सोना लाते थे। वे चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाते थे जिसे इस्राएल में किसी ने पहले कभी नहीं देखा था।
\s5
\v 13 सुलैमान के लिए प्रतिवर्ष लगभग तेईस टन सोना लाया जाता था। यह सौदागरों और व्यापारियों द्वारा उसे दी गई चूंगी के अतिरिक्त था।
\v 14 अरब देश के सब राजा और देश के सब अधिपति भी सुलैमान के पास सोना-चाँदी लाते थे।
\s5
\v 15 सुलैमान ने इस सोने की पतली परतें बनवाकर दो सौ बड़ी ढालों पर चढ़वा दीं। प्रत्येक ढाल पर लगभग 3.5 किलोग्राम सोना चढ़ाया गया था।
\v 16 सुलैमान ने तीन सौ छोटी ढालें भी बनवाईं और उन पर लगभग 1.7 किलोग्राम सोना चढ़वाया और इन सब ढालों को लबानोन नामक महल में रखवा दिया।
\s5
\v 17 उसने एक बड़ा सिंहासन भी बनवाया। उस का एक भाग हाथीदांत का था और एक भाग सोने का था।
\v 18 उस सिंहासन की छः सीढ़ियाँ थीं और एक सोने का पायदान था। सिंहासन की दोनों ओर टेकें थीं जिनके साथ सिंह की एक-एक प्रतिमा थी।
\s5
\v 19 सीढ़ियों के दोनों ओर एक-एक सिंह की प्रतिमा थी जो कुल बारह थे। ऐसा सिंहासन अन्य किसी देश में नहीं था।
\v 20 सुलैमान के सब कटोरे सोने के थे। लबानोन वन नामक महल के भी सब पात्र सोने के थे। चाँदी का कुछ नहीं था क्योंकि सुलैमान के शासनकाल में चाँदी को मूल्यवान नहीं समझा जाता था।
\v 21 राजा का अपना जहाजी बेड़ा था जो समुद्र में दूर तक यात्रा करने की क्षमता रखता था। वे हीराम के व्यापारी जहाजों के साथ जाते थे। प्रति तीसरे वर्ष उस का जहाजी बेड़ा सोना-चाँदी, हाथी दांत, लंगूर और मोर लेकर आता था।
\s5
\v 22 राजा सुलैमान पृथ्वी के सब राजाओं से अधिक बुद्धिमान और धनवान हो गया था।
\v 23 पृथ्वी के सब राजा सुलैमान की बुद्धि की बातें जो परमेश्वर उसके मन में उपजाते थे, सुनने आते थे।
\v 24 उसके पास आने वाले सब लोग भेंट ले कर आते थे- सोना-चाँदी, वस्त्र, हथियार, मसाले, घोड़े, खच्चर आदि। उसके व्यापारी प्रति वर्ष यह सब लाते थे।
\s5
\v 25 घोड़ों और रथों के लिए सुलैमान के चार हजार घुड़साल थे और उसके पास बारह हजार घुड़सवार थे। उन में से कुछ उसने अपने पास यरूशलेम में रखे और कुछ उन नगरों में जहाँ उस के रथ थे।
\v 26 सुलैमान उत्तर में फरात नदी से लेकर पश्चिम में पलिश्त और उत्तर में मिस्र तक के सब राजाओं पर शासन करता था।
\s5
\v 27 सुलैमान के शासनकाल में चाँदी पत्थरों के समान मूल्यहीन थी और उस ने यहूदा के पहाड़ी प्रदेश में देवदार के वृक्ष इतने कर दिए जितने कि गूलर के वृक्ष थे।
\v 28 सुलैमान के व्यापारी मिस्र से और अन्य स्थानों से घोड़े लाते थे।
\v 29 सुलैमान के सब काम भविष्यद्वक्ता नातान की पुस्तक में और शीलोवासी भविष्यद्वक्ता अहिय्याह की पुस्तक में और यारोबाम के विषय दर्शी इद्दो की पुस्तक में लिखे है।
\v 30 सुलैमान ने यरूशलेम में रह कर संपूर्ण इस्राएल पर चालीस वर्ष शासन किया।
\v 31 तब सुलैमान की मृत्यु हुई और उस को यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। उस का पुत्र रहबाम उस के स्थान में राजा बना।
\s5
\c 10
\p
\v 1 उत्तरी इस्राएल की प्रजा शकेम को गई कि रहबाम को राजा बनाए। इसलिए रहबाम भी वहाँ गया।
\v 2 नबात का पुत्र यारोबाम राजा सुलैमान से बच कर मिस्र भाग गया था। जब उस ने सुना कि इस्राएल की प्रजा रहबाम को राजा बनाना चाहती है तब वह मिस्र से इस्राएल लौट आया।
\s5
\v 3 उत्तरी इस्राएली क्षेत्र की प्रजा ने यारोबाम को साथ लिया और वे रहबाम के पास गए। उन्होंने रहबाम से कहा,
\v 4 तेरे पिता सुलैमान ने हम से अत्यधिक कठोर परिश्रम करवाया है। यदि तू हमारा परिश्रम कम कर दे और करों में कटौती कर दे तो हम तेरे आभारी हो कर निष्ठापूर्वक सेवा करेंगे।
\v 5 रहबाम ने उन से कहा, “तीन दिन बाद आना तो मैं तुम्हें इस का उत्तर दूँगा। इसलिए वे चले गए और यारोबाम भी उनके साथ चला गया।
\s5
\v 6 तब रहबाम ने अपने पिता के परामर्शदाताओं से सुझाव मांगा, “मैं इन लोगों से क्या कहूँ?”
\v 7 उन्होंने कहा, “यदि तू उन के साथ दया का व्यवहार करे और उन्हें प्रसन्न कर ने के काम करे और मधुर शब्दों का प्रयोग करे तो वे सदा के लिए तेरी सेवा करेंगे।”
\s5
\v 8 परन्तु उसे उन वृद्ध मंत्रियों का सुझाव पसन्द नहीं आया। उस ने अपने साथ बड़े हुए युवाओं से जो अब उस के मंत्री थे, पूछा,
\v 9 “मैं इन लोगों को क्या उत्तर दूँ?” वे कहते है कि मैं मेरे पिता द्वारा दिया गया उन का परिश्रम और कर कम कर दूँ। तुम्हारा क्या सुझाव है?
\s5
\v 10 उसके साथ बड़े हुए युवकों ने कहा, “तेरे पिता ने उन से परिश्रम करवाया और उन पर कर लगाया था। अब वे उसे घटा देने को कह रहे है तो तू उन से कहना, ‘मेरी छोटी उंगली मेरे पिता की कमर से भी मोटी होगी।’
\v 11 मेरे पिता ने तुम से कठोर परिश्रम करवाया और तुम पर बहुत कर लगाया। पर मैं उस बोझ को और अधिक बढ़ाऊंगा। जैसे मेरे पिता ने तुम्हें कोड़ों से मारा था परन्तु मैं तुम्हें बिच्छुओं से पीड़ा पहुँचाऊँगा।”
\s5
\v 12 तीन दिन बाद इस्राएली प्रधान यारोबाम के साथ रहबाम के पास आए, जैसा उस ने कहा था।
\v 13 राजा ने बुजुर्गों का सुझाव न मान कर इस्राएली प्रधानों से कठोर बातें कीं।
\v 14 उसने युवकों के सुझाव के अनुसार उनसे कहा, “मैं अपने पिता से भी अधिक बोझ तुम पर डालूँगा। यदि उसने तुम्हें कोड़े लगवाए तो मैं तुम्हें बिच्छुओं से कटवाऊँगा।”
\s5
\v 15 इस प्रकार राजा ने प्रजा के अगुवों का मान नहीं रखा। यह सब वास्तव में यहोवा की इच्छापूर्ति के लिए हुआ कि भविष्यद्वक्ता अहिय्याह द्वारा नबात पुत्र यारोबाम को दिया वचन पूरा हो।
\s5
\v 16 यह देखकर कि राजा ने उन का निवेदन ठुकरा दिया है उन्होंने ऊँचे शब्दों में कहा, “हमें राजा दाऊद के वंश से कोई संबंध नहीं रखना है! यिशै के परपोते के साथ हमारी कोई भागीदारी नहीं है! हे इस्राएलियों घर लौट चलो! हे दाऊद के वंशज अपने घराने ही की चिन्ता कर!” इसलिए इस्राएली अगुवे घर लौट आए।
\v 17 इसके बाद जितने इस्राएली यहूदा के नगरों और गाँवों में बसे थे उन्हीं पर रहबाम शासन करता रहा।
\v 18 तब राजा रहबाम बेगारी में काम करने वालों के निरीक्षक हदोराम के साथ इस्राएलियों से बात करने गया। इस्राएलियों ने हदोराम को पथरवाह करके मार डाला। यह देख रहबाम अपने रथ पर सवार हो कर तुरन्त यरूशलेम को भागा।
\v 19 उसी समय से उत्तरी राज्य इस्राएल की प्रजा राजा दाऊद के वंश की विरोधी हो गई।
\s5
\c 11
\p
\v 1 जब रहबाम यरूशलेम में पहुँचा, उसने यहूदा और बिन्यामीनी के गोत्रों से 180,000 योद्धा इकट्ठा किए। वह उत्तरी गोत्रों से युद्ध करके उन्हें अपने अधीन करना चाहता था कि संपूर्ण राज्य पर शासन कर सके।
\s5
\v 2 परन्तु यहोवा ने भविष्यद्वक्ता शमायाह से कहा,
\v 3 “जा और यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र, रहबाम और यहूदा और बिन्यामीन के गोत्र के लोगों को यह बता,
\v 4 यहोवा कहते हैं ‘तुम अपने भाइयों, इस्राएलवासियों से युद्ध मत करो। तुम सब अपने-अपने घर लौट जाओ। जो भी हुआ है यहोवा की इच्छा से हुआ है।’” इसलिए शमायाह ने उन्हें परमेश्वर का सन्देश सुना दिया और उन्होंने यहोवा की आज्ञा मान कर, यारोबाम और उस के सैनिकों से युद्ध नहीं किया।
\s5
\v 5 रहबाम यरूशलेम में रह रहा था। उसने यहूदा के कई शहरों और कस्बों के चारों ओर दीवारों का निर्माण किया ताकि वे दुश्मन के आक्रमण से बच सकें।
\v 6 यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों के क्षेत्र में उसने दीवारें बनवाई अर्थात बैतलहम, एताम, तकोआ
\v 7 बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम,
\v 8 गत, मारेशा, जीप,
\v 9 अदोरैम, लाकीश, अजेका,
\v 10 सोरा, अय्यालोन और हब्रोन जो यहूदा-बिन्यामीन में है।
\s5
\v 11 जो नगर पहले से सुरक्षित थे उन्हें उसने और अधिक सुरक्षित करके उन पर अधिपति ठहरा दिए और उनके लिए भोजनवस्तु, जैतून का तेल और शराब की आपूर्ति दी।
\v 12 हर एक नगर में उस ने ढालें और भाले रखवा कर उन्हें अच्छी तरह सुरक्षित कर दिया। इस प्रकार वह यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों पर शासन कर ने लगा।
\s5
\v 13 संपूर्ण इस्राएल में याजक और लेवी के अन्य वंशज रहबाम के पक्ष में थे।
\v 14 लेवी के वंशज अपनी चारागाहें और सम्पदा को त्याग कर यरूशलेम में और यहूदा के अन्य नगरों में आ कर बस गए क्योंकि यारोबाम और उस के पुत्र उन्हें यहोवा के याजक होने का काम नहीं करने देते थे।
\v 15 इसके अतिरिक्त यारोबाम ने जो अन्य याजकों को नियुक्त कर दिया नगरों के सब ऊँचे स्थानों में वेदियाँ बनवाकर कि वहाँ बलि चढ़ाएँ। उन मूर्तियों को बलि चढ़ाने के लिए जिन्हें उसने बकरियों और बछड़ों के समान बनाया था।
\s5
\v 16 और इस्राएल में जो लोग यहोवा की आराधना करना चाहते थे वे लेवी के वंशजों के साथ अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाने यरूशलेम आए।
\v 17 उन्होंने यहूदा राज्य को स्थिरता प्रदान की और तीन वर्ष तक रहबाम के शासन से प्रसन्न रहे। उस दोरान में उन्होंने अपना जीवन दाऊद के समान और सुलैमान के आरम्भिक जीवन के समान रखा।
\s5
\v 18 रहबाम ने दाऊद के पुत्र यरीमोत और उसकी पत्नी, यिशै के पोते एलीआब की पुत्री, अबीहैल की पुत्री महलत से विवाह किया।
\v 19 रहबाम और महलत के तीन पुत्र उत्पन्न हुए- यूश, शेमर्याह और जाहम।
\s5
\v 20 इसके बाद रहबाम ने अबशालोम की पुत्री माका से विवाह किया जिससे उसके चार पुत्र उत्पन्न हुए- अबिय्याह, अत्तै, जीजा, और शलोमीत।
\v 21 रहबाम ने अपनी सब पत्नियों और रखैलियों में से माका को सबसे अधिक प्रेम किया। उसकी कुल अठारह पत्नियाँ और साठ रखैलियाँ थीं। उसके अट्ठाईस पुत्र और साठ पुत्रियाँ थीं।
\s5
\v 22 रहबाम ने माका के पुत्र अबिय्याह को सब भाइयों में प्रधान बनाया कि वही राजा बने।
\v 23 उसने बड़ी समझदारी से अपने सब पुत्रों को यहूदा और बिन्यामीन के क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न शहरपनाह वाले नगरों में भेज दिया। उसने उनके लिए बहुतायात से भोजन वस्तुएँ और अनेक पत्नियाँ उपलब्ध करवा दीं।
\s5
\c 12
\p
\v 1 रहबाम ने अपने राज्य पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने के बाद उसने और प्रजा ने यहोवा की विधियों का पालन करना छोड़ दिया।
\s5
\v 2 इसका परिणाम यह हुआ कि उसके शासनकाल के पाँचवे वर्ष में यहोवा ने मिस्र के राजा शीशक को यरुशलेम के विरुद्ध भेजा।
\v 3 वह बारह सौ रथों और साठ हजार घुड़सवारों और लूबी में दो क्षेत्रों से और इथियोपिया से सैनिकों की बहुत बड़ी संख्या लेकर आया।
\v 4 उन्होंने यहूदा के अनेक शहरपनाह वाले नगर जीत लिए और यरूशलेम तक आ गए।
\s5
\v 5 तब भविष्यद्वक्ता शमायाह ने यरुशलेम में इकट्ठा भयातुर रहबाम और यहूदा के अगुओं को यहोवा का वचन सुनाया, “यहोवा कहते हैं, ‘तुमने मुझे त्याग दिया है इसलिए मैंने भी तुम्हें त्याग दिया है और शीशक के हाथ में कर दिया है।”
\v 6 तब राजा और देश के अगुवों ने दीन होकर स्वीकार किया और कहा, “यहोवा ने हमारे साथ जो किया वह न्यायी ही है।”
\s5
\v 7 उनकी दीनता को देख यहोवा ने शमायाह के द्वारा यह सन्देश भेजा, “क्योंकि वे दीन हो गए है इसलिए मैं उन्हें नाश होने के लिए नहीं छोड़ूँगा। मैं शीघ्र ही उनको बचा लूँगा। शीशक की सेना को मैं यरुशलेम के निवासियों का नाश नहीं करने दूँगा,
\v 8 वे यरुशलेम को अपने अधीन करके शीशक की सेवा के लिए विवश करेंगे। इससे यरुशलेम के निवासियों को यह बोध होगा कि अन्य देशों के राजाओं की सेवा करने से तो मेरी सेवा करना ही अच्छा है।”
\s5
\v 9 शीशक की सेना ने यरुशलेम पर आक्रमण करके यहोवा के भवन और राजमहल से सब मूल्यवान वस्तुएँ लूट लीं। उन्होंने सुलैमान द्वारा बनवाई गई सोने की ढालें भी ले लीं।
\v 10 रहबाम ने तब उन ढालों के स्थान में पीतल की ढालें बनवा कर सुरक्षाकर्मियों के प्रधान को दीं।
\s5
\v 11 इसके बाद राजा जब-जब यहोवा के भवन में जाता तब-तब द्वारपाल वे ढालें लेकर उसके साथ-साथ चलते। जब राजा लौट आता तब वे उन ढालों को सुरक्षाकर्मियों के गृह में रखवा देते।
\v 12 क्योंकि रहबाम यहोवा के सामने दीन हो गया इसलिए उसके विरुद्ध भड़का हुआ यहोवा का क्रोध शान्त हो गया और यहोवा ने उसका सर्वनाश नहीं किया बल्कि यहूदा के लिए भलाई की।
\s5
\v 13 राजा रहबाम फिर से यरूशलेम में दृढ़ हो गया और यहूदा पर शासन करता रहा। जब वह यहूदा का राजा बना था तब उसकी आयु इकतालीस वर्ष की थी और उसने यरुशलेम में सत्रह वर्ष शासन किया। यरुशलेम नगर को यहोवा ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया था कि लोग वहाँ उनकी आराधना करें।
\v 14 रहबाम की माता एक अम्मोनी स्त्री थी जिसका नाम नामा था। रहबाम ने बुरे काम किये क्योकि उसने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि यहोवा क्या चाहते हैं।
\v 15 रहबाम के शासनकाल के सब काम और उसके परिवार के सदस्यों की सूची भविष्यद्वक्ता शमायाह और दर्शी इद्दो की पुस्तकों में लिखे गये हैं। रहबाम और यारोबाम की सेनाएं लगातार एक-दूसरे से लड़ रही थीं
\v 16 जब रहबाम की मृत्यु हो गई, तो उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। तब उसका पुत्र अबिय्याह राजा बन गया।
\s5
\c 13
\p
\v 1 जिस समय यारोबाम राजा इस्राएल पर लगभग अठारह वर्ष शासन कर चुका था तब अबिय्याह यहूदा का राजा बना।
\v 2 अबिय्याह ने यरूशलेम में तीन वर्ष शासन किया। उस की माता गिबावासी ऊरीएल की पुत्री मीकायाह थी। तब अबिय्याह और यारोबाम की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ।
\v 3 अबिय्याह अपने 400,000 योद्धा लेकर गया तो यारोबाम भी 800,000 योद्धा लेकर सामना कर ने को आया।
\s5
\v 4 अबिय्याह ने एप्रैम प्रदेश में समारैम नामक पर्वत पर खड़े होकर ऊँचे शब्दों में कहा, “हे यारोबाम और सब इस्राएलियों सुनो!
\v 5 तुम जानते हो कि यहोवा, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं उन्होंने ने दाऊद के साथ प्रतिज्ञा की थी कि उस के वंशज इस्राएल पर सदा शासन करते रहेंगे।
\s5
\v 6 परन्तु यारोबाम जो राजा सुलैमान का एक अधिकारी था उसने राजा के विरूद्ध विद्रोह किया।
\v 7 तब सुलैमान का पुत्र रहबाम राजगद्दी पर बैठा तक वह अनुभवहीन था और आयु में भी कम था। तब तेरे पास कुछ निकृष्ट मनुष्य इकट्ठा हुए और उसके विरूद्ध विद्रोह किया।
\s5
\v 8 अब तू उस राज्य से युद्ध करता है जिसे यहोवा ने दाऊद के वंशजों को शासन करने के लिए स्थापित किया है। यह सच है कि तेरी सेना बड़ी है और तेरे सैनिक बछड़े की वह प्रतिमा लेकर आए है जिसे यारोबाम ने बनवाया है कि तुम्हारा देवता हो।
\v 9 परन्तु तू ने यहोवा द्वारा नियुक्त किए गए प्रथम प्रधान याजक हारून के वंशजों को याजकीय सेवा से हटा दिया है। तू ने लेवी के वंशजों को भी निकाल दिया और अन्य जातियों के समान अपनी इच्छा से याजक नियुक्त कर लिए। जो कोई एक बछड़ा और सात मेढ़े लेकर आता है और बलि चढ़ा कर उन मूर्तियों का याजक हो जाता है। जो परमेश्वर बिल्कुलनहीं है।
\s5
\v 10 हमारे तो परमेश्वर यहोवा हैं और हम ने उनका त्याग नहीं किया है। हमारे याजक जो यहोवा की सेवा करते है वे हारून के वंशज हैं और उन के सहायक लेवी के वंशज हैं।
\v 11 प्रतिदिन सुबह और संध्याकाल वह यहोवा के लिए होम-बलि करते है और सुगंधित धूप जलाते है। और प्रति सप्ताह वे यहोवा के सामने भेंट की रोटियाँ रखते है। सोने के दीपदान में दीप जलाते है। हम अपने यहोवा की इच्छा पूरी करते है, परन्तु तुमने उन्हें त्याग दिया है। तुम उनकी आराधना नहीं करते।
\s5
\v 12 यहोवा हमारे साथ हैं। वह हमारे प्रधान हैं और उनके याजक जिन्हें उन्होंने नियुक्त किया है, वे अपनी तुरही बजाएंगे कि हम तुम्हारे विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार हैं। हे इस्राएलियों अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा से युद्ध मत करो क्योंकि तुम सफल नहीं होगे।”
\s5
\v 13 जब अबिय्याह यह कह रहा था तब यारोबाम ने कुछ सैनिकों को यहूदा की सेना के पीछे भेज दिया। यारोबाम के साथ के सैनिक उन के सामने थे और घातक उन के पीछे थे।
\v 14 जब यहूदा के सैनिकों ने देखा कि उन पर आगे और पीछे दोनों ओर से आक्रमण किया जाएगा तब उन्होंने यहोवा को पुकारा और याजकों ने तुरहियाँ फूंकी।
\v 15-17 यहूदा के सैनिकों ने युद्ध का नारा लगाया तब यहोवा ने अबिय्याह और यहूदा की सेना को इस योग्य कर दिया कि उन्होंने इस्राएल के 500,000 सैनिकों को घात किया जो इस्राएल के सर्वोत्तम योद्धा थे। शेष इस्राएली सैनिक भाग खड़े हुए।
\v 18 इस प्रकार इस्राएली सेना पराजित हुई। यहूदा के सैनिकों ने युद्ध जीत लिया क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखा था।
\v 19 अबिय्याह की सेना ने इस्राएली सेना का पीछा कर के बेतेल, यशाना और एप्रोन नगरों और उन के गाँवों को जीत लिया।
\v 20 अबिय्याह जब तक जीवित रहा, यारोबाम कभी सामर्थी न हो पाया वरन् यहोवा ने उसे रोगग्रस्त करके मार डाला।
\v 21 अबिय्याह और अधिक सामर्थी होता गया और उसने चौदह विवाह किए जिनसे उस के बाईस पुत्र और सोलह पुत्रियाँ उत्पन्न हुई।
\v 22 अबिय्याह के शासनकाल के सब काम और उस के वचन भविष्यद्वक्ता इद्दो की पुस्तक में लिखे हैं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 अबिय्याह की मृत्यु हुई और उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। उस के स्थान में उस का पुत्र आसा यहूदा राजा बना। आसा के शासनकाल में दस वर्ष तक यहूदा में शान्ति रही।
\v 2 आसा ने वही किया जो उनके परमेश्वर की दृष्टि में उचित और भले काम थे।
\v 3 उसने पराए देवी-देवताओं की वेदियाँ जो पर्वतों पर मूर्तियों के सामने थीं, सब तुड़वा दीं। उसने पत्थरों की लाटों को और अशेरा नामक देवी की लाटों को तुड़वा दिया।
\v 4 आसा ने यहूदावासियों को आज्ञा दी कि वे केवल उन के पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की आराधना करें और उनकी इच्छा की खोज में लगे रहें तथा उनकी आज्ञाओं का पालन करें।
\s5
\v 5 उस ने सभी पर्वतों, शिखरों पर मूर्तिपूजा के स्थानों को तथा संपूर्ण यहूदा में मूर्तियों के लिए धूप जलाने के स्थानों को तुड़वा दिया। इस का परिणाम यह हुआ कि आसा के शासनकाल में यहूदा में शान्ति बनी रही।
\v 6 उस ने नगरों का निर्माण करवाया और उन की शहरपनाहें बनवाईं। उसके शासनकाल में शत्रुओं ने उन पर आक्रमण नहीं किया क्योंकि यहोवा ने उनके लिए शान्ति स्थापित की थी।
\s5
\v 7 आसा ने यहूदा की प्रजा से कहा, “हमें अपने नगरों को सुरक्षित करने के लिए उनकी शहरपनाहें बनानी चाहिए और उनके ऊपर निगरानी के लिए गुम्मट बनाना आवश्यक है। नगर द्वारों के बेड़ें भी लगवाना आवश्यक है। यह देश हमारा है क्योंकि हम ने अपने परमेश्वर यहोवा से सहायता मांगी है। हमने यहोवा से सहायता मांगी और उन्होंने संपूर्ण देश में शान्ति स्थापित करवा दी है।” इसलिए उन सब ने भवनों का निर्माण किया और वे अपने हर एक काम में सफल हुए।
\v 8 आसा की सेना में यहूदा के 300,000 सैनिक थे। वे सब बड़ी-बड़ी ढालों और भालों का उपयोग करना जानते थे। उस की सेना में यहूदा के सैनिकों के साथ 280,000 बिन्यामीनी योद्धा भी थे जो ढाल रखने और धनुष और तीर चलाने में निपूर्ण थे। वे सब साहसी थे।
\s5
\v 9 जेरह नामक एक कूशवासी दस लाख सैनिक और तीन सौ रथ लेकर यहूदा पर आक्रमण करने निकला और यरूशलेम के उत्तर पश्चिम में मारेशा तक आ गया।
\v 10 आसा भी अपनी सेना लेकर उससे युद्ध करने निकला और सापता घाटी में शत्रु के सामने खड़ा हुआ।
\v 11 तब आसा ने अपने परमेश्वर यहोवा को पुकारा। उसने प्रार्थना की, “हे यहोवा आपके समान कोई नहीं कि एक विशाल सेना का सामना करने के लिए शक्तिहीनों की सहायता करे। हम इस विशाल सेना का सामना करने निकले है। हे यहोवा आप हमारे परमेश्वर हैं। मनुष्य आप पर प्रबल न होने पाए।”
\s5
\v 12 यहोवा ने कूश की सेना को आसा की सेना के हाथों से पराजित किया। और वे मैदान छोड़कर भागे।
\v 13 आसा की सेना ने उत्तर पश्चिम में गरार तक उन का पीछा किया। कूश के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए और और जो बच गये वो फिर युद्ध करने में असमर्थ थे। यहोवा की सेना ने उन्हें पूरी तरह पराजित कर के लूट का बहुत सामान ले आई थी।
\v 14 यहूदा की सेना ने गरार के आसपास के सब गाँवों का नाश किया क्योंकि वहाँ के निवासी यहोवा के भय के कारण उन का विरोध न कर पाए। यहूदा की सेना उन स्थानों से बहुत सा मूल्यवान सामान ले आई थी।
\v 15 उन्होंने पशु पालने वालों की बस्तियों को भी लूटा। और भेड़-बकरियाँ तथा ऊँट बड़ी संख्या में यरूशलेम ले आए।
\s5
\c 15
\p
\v 1 तब परमेश्वर के आत्मा ओदेद के पुत्र अजर्याह में समा गया।
\v 2 अजर्याह आसा के पास गया और उससे कहा, “हे आसा और यहूदा और बिन्यामीन के लोगों सुनो! जब तक तुम यहोवा के साथ रहोगे तब तक वह तुम्हारे साथ रहेंगे और जब-जब सहायता मांगोगे तब-तब वह तुम्हारी सहायता करेंगे। परन्तु यदि तुम उन को त्याग दोगे तो वह भी तुम्हें त्याग देंगे।
\s5
\v 3 इस्राएली के पास कई वर्षों तक सच्चे परमेश्वर और याजकों तथा परमेश्वर के नियम नहीं थे।
\v 4 परन्तु संकट के समय वे यहोवा को पुकारते थे और उनके परमेश्वर यहोवा उन की सहायता करते थे।
\v 5 उस समय, जब लोग यात्रा करते थे तो लोग सुरक्षित नहीं थे, क्योंकि उन देशों में रहने वाले सभी लोग कई कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।
\s5
\v 6 जातियाँ एक-दूसरे को अपनी सेनाओं द्वारा दबा देती थीं और एक नगर की सेना दूसरे नगर को अपने अधीन कर लेती थी क्योंकि यहोवा उन पर भांति-भांति के कष्ट आने देते थे।
\v 7 परन्तु तुम साहस रखो और निराश न हो क्योंकि तुम्हें यहोवा को प्रसन्न करने का फल मिलेगा।”
\s5
\v 8 ओदेद के पुत्र अजर्याह के वचन सुनकर आसा प्रोत्साहित हुआ और उसने संपूर्ण यहूदा और बिन्यामीन में से तथा एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में जीते हुए नगरों में सब घिनौनी वस्तुएँ दूर कीं और यरूशलेम में यहोवा के भवन के प्रवेश स्थान के सामने की वेदी का, जहाँ श्रद्धालु बलि चढ़ाते थे, नवनिर्माण किया।
\v 9 तब उस ने यहूदा और बिन्यामीन तथा एप्रैम, मनश्शे और शिमोन के गोत्रों के लोगों को जो वहाँ निवास कर रहे थे, इकट्ठा किया। इस्राएल के निवासियों ने देखा कि यहोवा आसा के साथ हैं तो वे भी यहूदा में आ गए थे।
\s5
\v 10 आसा के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने सब लोग यरूशलेम में इकट्ठा हो गए।
\v 11 उस समय उन्होंने यहोवा के लिए ही सात सौ बैल और सात हजार भेड़-बकरियाँ बलि चढ़ाईं। ये सब पशु उन्होंने कूश की सेना को पराजित करने के बाद लूट लिए थे।
\s5
\v 12 उन्होंने उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की सच्चे मन से आराधना कर ने की शपथ खाई।
\v 13 उन्होंने यह भी शपथ खाई कि जो महत्वपूर्ण हो या नहीं, स्त्री हो या पुरुष, जो भी यहोवा की आराधना नहीं करेगा वह मार डाला जाएगा।
\s5
\v 14 उन्होंने नारे लगवाकर, तुरहियाँ फूंककर, नरसींगे बजाकर यहोवा के नाम की गंभीरता से शपथ खाई।
\v 15 यहूदा के देश में रहने वाले सब इस शपथ से प्रसन्न थे क्योंकि उन्होंने सच्चे मन से शपथ खाई थी और उन्होंने उत्सुकता से यहोवा से मार्गदर्शन और सहायता की विनती की। परिणामस्वरूप यहोवा ने उस संपूर्ण देश में शान्ति स्थापित कर दी।
\s5
\v 16 राजा आसा की दादी, माका ने देवी अशेरा की घृणित लाट खड़ी करवाई थी। आसा ने वह लाट तुड़वा दी और उस के टुकड़े कर के किद्रोन के नाले में जलवा दिए। उसने उसे राजमाता के पद पर से भी उतार दिया कि प्रजा पर उस का प्रभाव न पड़े।
\v 17 यद्यपि आसा ने मूर्तिपूजा के ऊँचे स्थानों को नष्ट नहीं करवाया। वे उस की संपूर्ण शासनकाल ज्यों के त्यों रहे परन्तु उस का मन पुरे जीवन यहोवा को प्रसन्न करने की खोज में लगा रहा।
\v 18 उसने अपने अधिकारीयों को आज्ञा दी कि जितना भी उसने और उसके पिता ने सोना-चाँदी और मूल्यवान वस्तुयें यहोवा को समर्पित की थीं, वह सब यहोवा के भवन में पहुँचा दिया जाए।
\v 19 आसा के पैंतीस वर्षीय शासनकाल में कोई युद्ध न हुआ।
\s5
\c 16
\p
\v 1 आसा के शासनकाल के छत्तीसवें वर्ष में इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यरूशलेम के उत्तर में रामा नगर को ले लिया और उसके चारों ओर दीवार बनवाना आरम्भ कर दिया कि प्रजा राजा आसा के यहूदा में न तो जाए और न ही वहाँ से आए।
\s5
\v 2 इसलिए आसा ने आज्ञा दी कि उस के महल और यहोवा के भवन के भंडारों से सारा सोना-चाँदी निकालकर बेन्हदद, अराम के राजा को जो दमिश्क में था, दे दिया जाए।
\v 3 इसके साथ उसने उसके लिए सन्देश भेजा जिसमें उसने कहा था, “मैं चाहता हूँ कि हम दोनों के बीच वैसी ही शान्ति की वाचा बंधी रहे जैसी तेरे पिता और मेरे पिता के बीच बंधी थी। देख मैं यह सोना-चाँदी भेज रहा हूँ। इसलिए तू इस्राएल के राजा बाशा के साथ अपनी वाचा को तोड़ दे जिससे कि वह तेरे भय से अपनी सेना मेरे पास से हटा ले।”
\s5
\v 4 बेन्हदद ने राजा आसा की बात को स्वीकार किया और अपने सेनापतियों को सेना के साथ भेजकर इस्राएल पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने इय्योन, दान, आबेल्मैम और नप्ताली के सब भंडार वाले नगरों को जीत लिया।
\v 5 जब बाशा ने इसके विषय में सुना, तो उसने रामा को दृढ करने के लिए अपने सैनिकों को आदेश दिया।।
\v 6 तब राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को इकट्ठा किया और रामा में से वह सब निर्माण सामग्री-पत्थर और लकड़ियाँ, उठवा लीं जिनसे बाशा निर्माण कार्य करवा रहा था और उनसे गेबा और मिस्पा की शहरपनाहें बनवाईं।
\s5
\v 7 उस समय भविष्यद्वक्ता हनानी राजा आसा के पास गया और उससे कहा, “तूने अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय अराम के राजा पर भरोसा रखा है। इस कारण अराम की सेना तेरे हाथ से बच गई है।
\v 8 तुझे याद होना चाहिए कि कूश की शक्तिशाली विशाल सेना को यहोवा ने तेरी सेना के सामने से भगा दिया था क्योंकि तूने यहोवा पर भरोसा रखा था।
\s5
\v 9 ऐसा इसलिए होता है कि यहोवा की दृष्टि संपूर्ण पृथ्वी पर दौड़ती है कि वह उन पर भरोसा रखने वालों की सहायता कर के उन्हें शक्ति प्रदान करें। तूने जो यह मूर्खता का काम किया है, उसके परिणामस्वरूप अब तू युद्धों में उलझा रहेगा।”
\v 10 हनानी की बातें सुनकर आसा का क्रोध भड़क उठा और उसने आज्ञा देकर हनानी को कारावास में डलवा दिया और उसी समय से आसा प्रजा पर अत्याचार भी करने लगा।
\s5
\v 11 आसा के शासनकाल के सब काम, आरम्भ से अन्त तक, “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\v 12 राजा आसा के शासनकाल के उनतालीसवें वर्ष में आसा के पैर में रोग हो गया और वह गंभीर हो गया था परन्तु उसने यहोवा से सहायता मांगने के बजाय वैद्यों का सहारा लिया।
\s5
\v 13 अन्त में आसा के शासनकाल के इकतालीसवें वर्ष में उस की मृत्यु हुई।
\v 14 उसने यरूशलेम के दाऊदपुर में अपने लिए एक कब्र तैयार करवा ली थी, इसलिए उसे वहाँ दफन कर दिया गया। उसे सुगंधित द्रव्यों और नाना प्रकार के सुगन्ध-द्रव्यों से मिले बिस्तर पर रखा गया और उसके सम्मान में प्रजा ने बहुत सुगंधित द्रव्य जलाए।
\s5
\c 17
\p
\v 1 आसा के बाद उसका पुत्र यहोशापात उसके स्थान पर यहूदा का राजा बना। उसने अपनी सेना को दृढ़ किया कि इस्राएल की सेना के आक्रमण का सामना कर पाए।
\v 2 उसने यहूदा के सब शहरपनाहों वाले नगरों में सैनिक दल नियुक्त कर दिए। उसने संपूर्ण यहूदा और उसके पिता द्वारा जीते हुए एप्रैमी नगरों में सैनिक चैकियाँ बना दीं।
\s5
\v 3 यहोवा यहोशापात के साथ थे क्योंकि उसने उन कामों को किया जो यहोवा को प्रसन्न करते थे जैसे कि उसके पूर्वज राजा दाऊद ने किए थे। उसने बाल की पूजा नहीं की।
\v 4 उसने अपने परमेश्वर यहोवा से सम्मति खोज की जिनकी आराधना उसका पिता करता था और यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया। उसने इस्राएल के राजाओं के समान बुरे काम नहीं किए।
\s5
\v 5 यहोवा ने उस का राज्य स्थिर कर दिया। यहूदा के सब निवासी उस के लिए भेंट लेकर आते थे। परिणामस्वरूप वह बहुत धनवान हो गया और उस की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई।
\v 6 वह यहोवा को प्रसन्न करने के कामों में समर्पित था। उसने यहूदा में पर्वतों पर से मूर्तिपूजा के सब स्थल ढा दिए और अशेरा की सब लाटें तुड़वा दीं।
\s5
\v 7 अपने शासनकाल के तीसरे वर्ष में बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह नामक अपने प्रतिष्ठित पुरुषों को संपूर्ण यहूदा में शिक्षा देने के लिए भेज दिया।
\v 8 उनके साथ उसने लेवी के कुछ वंशजों को भी नियुक्त कर दिया- शमायाह, नतन्याह, जबद्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिय्याह, तोबियाह और तोबदोनिय्याह, उनके साथ एलीशामा, और यहोराम दो याजक भी नियुक्त किए।
\v 9 वे अपने साथ यहोवा के नियमों की पुस्तक ले गए और संपूर्ण यहूदा के नगरों में प्रजा को शिक्षा देते रहे।
\s5
\v 10 यहूदा के पड़ोसी राज्यों में यहोवा के दण्ड का भय ऐसा समा गया कि उन्होंने यहोशापात से युद्ध करने का साहस नहीं किया।
\v 11 कुछ पलिश्ती भी यहोशापात के लिए भेंट और कररूवस्प चाँदी लेकर आते थे। कुछ अरबी भी उस के लिए 7,700 मेढ़े और 7,700 बकरे लेकर आए।
\s5
\v 12 यहोशापात अधिकाधिक सामर्थी होता गया। उसने यहूदा के विभिन्न नगरों में किले और भंडारगृह बनवाए।
\v 13 तब उसने उन भंडारगृहों में बहुत सी भोजन सामग्री रखी। यहोशापात ने यरूशलेम में अनुभवी योद्धा रखे।
\s5
\v 14 प्रत्येक गोत्र के प्रधानों और गिनती के अनुसार वे थेः यहूदा के गोत्र से सहस्रपति थेः अदनह जिसके 300,000 योद्धा थे।
\v 15 उसका सहायक सहस्रपति यहोहानान जिसके 2,80,000 सैनिक थे।
\v 16 तब जिक्री का पुत्र अमस्याह, उसने स्वैच्छा से यहोवा की सेवा में समर्पण किया था। उसके 200,000 योद्धा थे।
\v 17 बिन्यामीन के गोत्र से एल्यादा नामक योद्धा। वह ढाल रखने वाले 200,000 योद्धाओं पर सहस्रपति था।
\v 18 और उसके नीचे यहोजाबाद, जिसके साथ युद्ध के हथियार बाँधे हुए 180,000 पुरुष थे।
\v 19 ये वे सैनिक थे जिन्होंने यरूशलेम में राजा की सेवा की थी, उनके अलावा वे भी थे जिन्हें राजा ने यहूदा के अन्य शहरों में रखा था, जिनके चारों ओर दीवारें थीं।
\s5
\c 18
\p
\v 1 यहोशापात बहुत धनवान और सम्मानित किया गया। परन्तु उसने इस्राएल के राजा अहाब के परिवार से किसी एक का विवाह करवाया।
\v 2 कुछ वर्ष बाद वह सामरिया गया कि अहाब से भेंट करे। अहाब ने यहोशापात और उसके साथियों के स्वागत में बहुत भेड़ें और बैल बलि करके भोज का आयोजन किया।
\v 3 तब उसने यहोशापात से पूछा, “क्या तू अपनी सेना लेकर मेरे साथ गिलाद के रामोत पर आक्रमण करने चलेगा?” यहोशापात ने उससे कहा, “मैं और मेरी सेना तेरी सेवा में है। तू जब चाहे हम तेरे साथ युद्ध में चलने को तैयार है।”
\s5
\v 4 परन्तु उसने कहा, “हमें पहले यहोवा से पूछ लेना है कि उनकी इच्छा क्या है।”
\v 5 इसलिए इस्राएल के राजा ने अपने 400 नबियों को इकट्ठा किया और उनसे पूछा, “हम रामोत पर आक्रमण करें या न करें?” उन्होंने कहा, “हाँ, जा क्योंकि परमेश्वर तुझे विजयी करेंगे।”
\s5
\v 6 परन्तु यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा का भविष्यद्वक्ता नहीं है कि हम उससे पूछें?”
\v 7 इस्राएल के राजा ने कहा, “हाँ, है तो, यिम्ला का पुत्र मीकायाह। हम उससे पूछ सकते है कि यहोवा की इच्छा क्या है परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ क्योंकि वह मेरे लिए कभी भी अच्छा सन्देश नहीं देता है। वह मेरी बुराई वाली भविष्यद्वाणी ही करता है।” यहोशापात ने कहा, “हे राजा! ऐसा मत कह।”
\v 8 इसलिए इस्राएल के राजा ने अपने एक पुरुष को आज्ञा दी कि वह मीकायाह को तुरन्त उपस्थित करे।
\s5
\v 9 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा अपने-अपने राजसी वस्त्रों में सिंहासनों पर विराजमान थे। वे सामरिया के फाटक पर एक खुले स्थान में बैठे थे और उसके भविष्यद्वक्ता भविष्यद्वाणी कर रहे थे।
\v 10 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बना कर कहा, “यहोवा कहते हैं कि तू इन सींगों से अरामियों को सांड के समान मारते-मारते नष्ट कर देगा।”
\v 11 अहाब के अन्य सब भविष्यद्वक्ता उससे सहमत होकर कहने लगे, “हाँ गिलाद के रामोत पर आक्रमण करके तू विजयी होगा क्योंकि यहोवा तेरे साथ हैं।”
\s5
\v 12 जो पुरुष मीकायाह को लेने गया था, उसने उससे कहा, “सुन, सब भविष्यद्वक्ता राजा के लिए शुभ ही की भविष्यद्वाणी कर रहे है और तेरे लिए यही उचित होगा कि तू भी कर जो वे कर रहे हैं।”
\v 13 मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, मैं तो वही कहूँगा जो यहोवा मुझसे कहने को कहेंगे।”
\v 14 जब मीका राजा की उपस्थिति में आया तब इस्राएल के राजा ने उससे पूछा, “हम रामोत पर आक्रमण करें या न करें?” मीकायाह ने कहा, “हाँ, जाओ! यहोवा तुम्हें विजयी करेंगे!”
\s5
\v 15 राजा अहाब यहोशापात के सामने यहोवा का भय मानने का स्वाँग रच रहा था। उसने मीकायाह से कहा, “मुझे कितनी बार तुझे शपथ देक यहोवा का याद करके सत्य बताने का आग्रह करना होगा।”
\v 16 तब मीकायाह ने कहा, “सच तो यह है कि मैंने दर्शन में इस्राएली सेना को पर्वतों पर तितर-बितर देखा है। वे बिना चरवाहे की भेड़ों के समान थे। यहोवा ने कहा, ‘इनका स्वामी मारा गया है। इसलिए उनसे कह कि वे शान्तिपूर्वक घर लौट जाएँ।”
\s5
\v 17 अहाब ने यहोशापात को देखकर कहा, “मैंने कहा था न, कि मीकायाह मेरे लिए कभी अच्छी बात नहीं करता है। वह सदैव मेरी हानि की भविष्यद्वाणी करता है।”
\v 18 मीकायाह ने कहा, “सुनो कि यहोवा ने मुझे दर्शन में क्या दिखाया। मैंने दर्शन में देखा कि यहोवा अपने सिंहासन पर बैठे हैं और स्वर्ग की सेना उनकी दाहिनी और बाईं ओर खड़ी है।
\s5
\v 19 तब यहोवा ने कहा, “इस्राएल के राजा अहाब को कौन उकसाएगा कि रामोत में युद्ध करने जाए और वहाँ मारा जाए। तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा।
\s5
\v 20 तब एक आत्मा ने यहोवा के समीप आकर कहा, “मैं उसको बहकाऊँगी।’
\v 21 यहोवा ने उससे पूछा, ‘वह कैसे? उसने उत्तर दिया, ‘मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्ताओं को झूठ बोलने पर विवश कर दूँगी।’ यहोवा ने कहा, ‘जा ऐसा ही कर! तू सफल होगी।’
\s5
\v 22 इसलिए मैं कहता हूँ कि यहोवा ने तेरे भविष्यद्वक्ताओं से झूठ कहलवाया है। यहोवा निर्णय ले चुके हैं कि तेरी हानि हो।”
\s5
\v 23 तब सिदकिय्याह ने समीप जाकर मीकायाह के मुँह पर थप्पड़ मारकर कहा, “तू क्या सोचता है कि यहोवा के आत्मा मुझे छोड़कर तुझसे बात करने आए हैं?”
\v 24 तुम स्वयं देख लोगे कि यहोवा के आत्मा ने किससे बात की है, जब तुम अरामी सैनिकों से छिपने के लिए एक कोठरी से दूसरी कोठरी में भागोगे।”
\s5
\v 25 तब राजा अहाब ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी, “मीकायाह को नगर के अधिपति और मेरे पुत्र योआश के पास ले जाओ।”
\v 26 उनसे कहना, ‘मेरी आज्ञा है कि इसे कारावास में डाल दो और खाने के लिए इसे सूखी रोटी और पानी ही देना। मैं जब तक युद्ध से सुरक्षित लौट न आऊँ इसे खाने के लिए और कुछ न देना।’
\v 27 मीकायाह ने कहा, “यदि तू युद्ध से सुरक्षित लौट आए तो जान लेना कि मैंने जो कहा था, वह यहोवा का वचन नहीं था।” तब उसने वहाँ उपस्थित सब लोगों से कहा, “मैंने राजा अहाब से जो कहा है, उसे याद रखना!”
\s5
\v 28 तब इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा अपनी-अपनी सेना लेकर गिलाद के रामोत की ओर चले।
\v 29 राजा अहाब ने यहोशापात से कहा, “मैं तो साधारण सैनिक के वस्त्रों में रहूँगा कि कोई जान न पाए कि मैं राजा हूँ परन्तु तू अपने राजसी वस्त्र में ही रहना।” इसलिए इस्राएल के राजा ने भेष बदला और वे दोनों युद्ध में गए।
\v 30 अराम के राजा ने अपनी रथ सेना को आज्ञा दी, “इस्राएल के राजा पर ही वार करना, अन्य किसी पर नहीं।”
\s5
\v 31 इसलिए अरामी रथ सेना ने यहोशापात को राजसी वस्त्रों में देख सोचा, “इस्राएल का राजा यही है।”
\v 32 इसलिए वे सब उस पर टूट पड़े। परन्तु जब यहोशापात चिल्ला पड़ा तब यहोवा ने उसकी सहायता की और अरामी सैनिकों को समझ में आया कि वह इस्राएल का राजा नहीं है। परमेश्वर ने उन्हें यहोशापात का पीछा न करने के लिए प्रेरित किया।
\s5
\v 33 तब एक अरामी सैनिक ने न जानते हुए कि वह अहाब है, उस पर तीर चलाया जो अहाब की कवच के जोड़ में जा कर लगा। अहाब ने अपने सारथी से कहा, “रथ मोड़ ले और मुझे यहाँ से ले चल। क्योंकि मैं घायल हो गया हूँ।”
\v 34 उस दिन युद्ध होता रहा। अहाब अपने रथ में बैठा युद्ध देखता रहा। और सूर्यास्त होते-होते वह मर गया।
\s5
\c 19
\p
\v 1 जब यहोशापात अपने महल यरूशलेम, सुरक्षित पहुँच गया,
\v 2 तब हनानी नामक भविष्यद्वक्ता का पुत्र येहू यहोशापात के पास आया और उससे कहा, “तेरे लिए यह उचित नहीं कि एक दुष्ट मनुष्य का साथ दे और यहोवा से घृणा करने वालों से प्रेम रखे। इस कारण यहोवा तुझ से क्रोधित हैं।
\v 3 परन्तु तूने कुछ अच्छे काम किए है जैसे अशेरा की आराधना की लाटें नष्ट कीं और यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम किए हैं।
\s5
\v 4 यहोशापात यरूशलेम में रहता था, परन्तु जैसा उसने पहले एक बार किया था, वह दूर उत्तर में बर्शेबा से लेकर दूर उत्तर में एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश का भ्रमण करने निकला और प्रजा को प्रेरित किया कि वह उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की आराधना में लौट आएँ।
\v 5 उसने यहूदा के सब शहरपनाह वाले नगरों में न्यायी नियुक्त कर दिए।
\s5
\v 6 उसने उनसे कहा, “अपने निर्णय बड़ी सावधानी से लेना क्योंकि तुम मनुष्य को नहीं परमेश्वर यहोवा को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करते हो। वह तुम्हारे हर एक निर्णय को सुनते हैं।
\v 7 इसलिए यहोवा का भय मानो। मुकद्दमों का निर्णय सुनाने में अत्यधिक सावधान रहना और सदा याद रखो कि हमारे परमेश्वर यहोवा पक्षपात नहीं करते हैं और न ही घूस लेते हैं।”
\s5
\v 8 यहोशापात ने यरूशलेम में भी कुछ याजकों को, कुछ लेवी के वंशजों को और कुछ इस्राएली अगुवों को न्यायी नियुक्त कर दिया। उसने उनसे कहा कि निर्णय सुनाते समय यहोवा के नियमों का पालन करते हुए उचित विचार करें। वे सब यरूशलेम में निवास करते थे।
\v 9 उसने उनसे कहा, “तुम निष्ठा पूर्वक काम करो और यहोवा का सम्मान करो।
\s5
\v 10 तुम्हारे नगरों में रहने वाले तुम्हारे इस्राएली भाई जब तुम्हारे सामने अपने मतभेद लेकर उपस्थित हों तब उन्हें चिता देना कि झूठ बोल कर यहोवा के विरूद्ध पाप न करें। मुकद्दमा चाहे कैसा भी हो, हत्या का हो, यहोवा के नियमों से संबंधित हो, किसी आज्ञा या नियम से संबंधित हो, सुनिश्चित करो कि यहोवा के दोषी न बनो नहीं तो यहोवा का प्रकोप तुम सब पर भड़क उठेगा।
\s5
\v 11 प्रधान याजक अमर्याह यहोवा से संबंधित सब मुकद्दमे देखेगा। और यहूदा के गोत्र का प्रधान, इश्माएल का पुत्र जबद्याह उन सब मुकद्दमों को देखेगा जो मुझ से संबंधित है। और लेवी के वंशज सहयोग देंगे। साहस रखकर काम करो। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा भला करने वालों का साथ दें।”
\s5
\c 20
\p
\v 1 इसके बाद मोआबी, अम्मोनी और एदोम के समीपवर्ती भूमियों के कुछ सैनिक यहोशापात से युद्ध करने आए।
\v 2 तब कुछ लोगों ने आकर यहोशापात से कहा, “एक विशाल सेना मृत सागर के पार, एदोम देश से तुझ पर आक्रमण करने आ रही है। वह हसासोन्तामार तक जो एनगदी कहलाता है, पहुँच गए है।
\s5
\v 3 यहोशापात बहुत डर गया। इसलिए उसने यहोवा से पूछा कि उसे क्या करना चाहिए। उसने आज्ञा दी कि यहूदा के सब निवासी उपवास रखें।
\v 4 यहूदा की प्रजा एकजुट होकर यहोवा से सहायता की प्रार्थना करने लगी। वे सब यहूदा के सब नगरों से यरूशलेम आ गए कि यहोवा से सहायता की याचना करें।
\s5
\v 5 तब यहोशापात उन सब के सामने नए आँगने के सामने खड़ा हुआ,
\v 6 और उसने प्रार्थना की, “हमारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा, आप स्वर्ग से शासन करते हैं। आप पृथ्वी के सब राजाओं और जातियों पर प्रभुता करते हैं। आप ऐसे पराक्रमी हैं कि आपके विरूद्ध कोई खड़ा नहीं रह सकता है।
\v 7 हे हमारे परमेश्वर, जब आपकी प्रजा इस्राएल इस देश में प्रवेश कर रही थी तब आप ने यहाँ निवास करने वाली जातियों को निकाल दिया और आपने निश्चित रूप से इसे हमें दे दिया जो अब्राहम के वंशज हैं, ताकि देश सदा के लिए हमारा रहे।
\s5
\v 8 हमारे पूर्वजों ने यहाँ रहकर आपके लिए एक भवन बनाया कि वहाँ आपकी आराधना की जाए। उस समय उन्होंने प्रार्थना की,
\v 9 ‘शत्रुओं का आक्रमण हो या महामारी हो या अकाल हो, हम तो आपके इसी भवन में इकट्ठा होंगे क्योंकि आपने यहाँ उपस्थित रहने का वचन दिया है। हम अपने कष्टों की गाथा आपको ही सुनाएँगे और विनती करेंगे और आप हमारी विनती सुनकर हमें बचाएँगे।’
\s5
\v 10 हमारे पूर्वज जब मिस्र से निकलकर आ रहे थे तब आपने अम्मोन, मोआब और एदोम में प्रवेश नहीं करने दिया। इसलिए वे उन देशों का मार्ग छोड़कर दूसरे मार्ग पर चले लेकिन अब वे हमला करने के लिए यहां आ रहे हैं।
\v 11 हमने तो उनका भला किया परन्तु अब देखें कि वे कैसे हमें बदला दे रहे है। वे हमें इस देश से निकालना चाहते है जो आपने हमारे पूर्वजों को और उनके वंशजों को सदा के लिए दे दिया है।
\s5
\v 12 इसलिए हे हमारे परमेश्वर, उन्हें दण्ड दें। हम तो इस विशाल सेना को पराजित नहीं कर सकते जो हमारे विरुद्ध आ रही है। हम नहीं जानते कि क्या करें। अब आप ही हमारी सहायता करें।”
\v 13 यहूदा के सब पुरुष और उनकी पत्नियाँ, बच्चे और यहाँ तक कि शिशु भी वहाँ उपस्थित थे जब यहोशापात प्रार्थना कर रहा था।
\s5
\v 14 तब यहोवा के आत्मा मत्तन्याह के पुत्र यीएल, यीएल के पुत्र बनायाह, बनायाह के पुत्र जकर्याह के पुत्र यहजीएल, एक लेवी वंशज जो आसाप का वंशज का था, उसमें समाया और वह पूरी मण्डली के सामने खड़ा हो गया।
\v 15 उसने कहा, “राजा यहोशापात और सब यरुशलेम तथा यहूदा के सब नगरों के निवासियों सुनो! यहोवा तुमसे कहते हैं, इस विशाल सेना को देखकर मत डरो, न ही निरुत्साह हो क्योंकि तुम इस युद्ध में विजयी होगे। यहोवा इस युद्ध में विजय होंगे।
\s5
\v 16 कल उनका सामना करने के लिए निकल जाना। वे एनगदी के उत्तर में सीस के दर्रे की चढ़ाई पर चढ़ रहे होंगे और तुम यरुएल के मरूभूमि के समीप नाले पर उनका सामना करोगे।
\v 17 परन्तु तुम्हें युद्ध करने की आवश्यकता नहीं होगी। यरुशलेम और यहूदा के विभिन्न प्रान्तों के सैनिक केवल खड़े होकर दृश्य देखेंगे। तुम यहोवा का किया उद्धार देखोगे। उनसे मत डरो, न ही निराश हो। कल उनकी ओर बढ़ जाओ। यहोवा तुम्हारे साथ होगा।”
\s5
\v 18 यहोशापात ने मुंह के बल गिरकर दण्डवत् किया और वहाँ उपस्थित यरुशलेम और यहूदा के विभिन्न नगरों से आए हुए लोगों ने यहोवा की आराधना में घुटने टेके।
\v 19 तब कहात और कोरह के वंशजों ने जो लेवी के वंशज थे, खड़े होकर ऊँचे स्वर में इस्राएलियों के परमेश्वर की स्तुति की।
\s5
\v 20 अगले ही दिन सुबह के समय यहूदा की सेना ने तकोआ मरूभूमि के लिए निकली। जब वे निकल रहे थे तब यहोशापात ने खड़े होकर उनसे कहा, “हे यरुशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के निवासियों, सुनो! हमारे परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखो कि तुम में शक्ति का संचार हो। उसके भविष्यद्वक्ताओं के वचनों पर विश्वास करो कि सफलता तुम्हारे कदम चूमे।’
\v 21 तब प्रजा के अगुओं से सम्मति करके यहोशापात ने कुछ लोगों को नियुक्त किया कि यहोवा की महानता के गीत गाएँ और शत्रु की ओर चलने में सेना के आगे चलें। वे गा रहे थेः “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह हमें सदाकालीन सच्चा प्रेम रखते हैं।”
\s5
\v 22 जब उन्होंने यहोवा की स्तुति का गीत गाना आरम्भ किया तब यहोवा ने ऐसा किया कि शत्रु के कुछ सैनिकों ने अम्मोन, एदोम और मोआब के ही सैनिकों पर अचानक आक्रमण कर दिया और अपनी ही सेना में दूसरों को हरा दिया।
\v 23 तब अम्मोन और मोआब के सैनिकों ने एदोम की सेना पर आक्रमण करके उनका सर्वनाश कर दिया। उसके बाद में आपस में मार-काट करने लगे।
\s5
\v 24 जब यहूदा की सेना उस स्थान पर पहुँची जहाँ से वे नीचे मरूभूमि की ओर देख सकते थे, तो उन्होंने देखा कि धरती पर चारों ओर शव पड़े है। उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा।
\s5
\v 25 इसलिए यहोशापात और उसके सैनिक शत्रु की सम्पति लूटने गए तो देखा कि वहाँ बहुत अधिक सामान, वस्त्र और मूल्यवान वस्तुएँ है कि उनको उठाकर ले जाना उनके लिए संभव नहीं था। सामान इतना अधिक था कि उसे उठाने में उनके तीन दिल लग गए।
\v 26 अगले दिन, अर्थात चौथे दिन वे बराका नामक घाटी में इकट्ठा हुए और वहाँ यहोवा का गुणगान किया। यही कारण है कि वह घाटी “बराका” कहलाती है। बराका का अर्थ है, “स्तुति।”
\s5
\v 27 तब यहोशापात की अगुवाई में यरुशलेम और यहूदा के अन्य सब नगरों के सैनिक यरुशलेम लौट आए। वे अति आनन्दित थे क्योंकि यहोवा ने उनके शत्रुओं को पराजित कर दिया था।
\v 28 यरुशलेम पहुँचकर वे वीणा, बाँसुरी और तुरहियाँ बजाते हुए यहोवा के भवन में गए।
\s5
\v 29 पड़ोस के राज्यों के लोगों ने जब सुना कि यहोवा ने कैसे उनके शत्रुओं से युद्ध किया तो वे सब बहुत डर गए।
\v 30 इस प्रकार यहोशापात के राज्य में शान्ति हो गयी क्योंकि यहोवा ने उसको चारों ओर से विश्राम दिया था।
\s5
\v 31 और यहोशापात यहूदा पर शासन करता रहा। पैंतीस वर्ष की आयु में वह यहूदा का राजा बना था और यरुशलेम में रहकर उसने पच्चीस वर्ष तक यहूदा पर शासन किया। उसकी माता शिल्ही की पुत्री अजूबा थी।
\v 32 उसने अपने पिता आसा के समान यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए और उनसे टला नहीं।
\v 33 परन्तु उसने मूर्ति-पूजा के स्थल जो ग्रामीण क्षेत्रों में पर्वतों पर थे, उनको नष्ट नहीं किया था। अधिकाँश प्रजा अब भी अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा के आज्ञापालन में गंभीर नहीं थी।
\s5
\v 34 यहोशापात के राज्य के आरम्भ से अन्त तक सब काम हनानी के पुत्र येहू की पुस्तक में लिखे है। इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में भी उसके सब कामों की चर्चा की गई है।
\s5
\v 35 कुछ समय पश्चात यहोशापात ने इस्राएल के राजा, दुष्ट अहज्याह के साथ संधि कर ली।
\v 36 उन दोनों ने समझौता किया कि वे एक जहाजी बेड़ा तैयार करके अन्य देशों के साथ व्यापार करेंगे। उनके जहाज एस्योनगेबेर में बनाए गए,
\v 37 तब दोदावाह के पुत्र मारेशवासी एलीएजेर ने यहोशापात के विरुद्ध भविष्यद्वाणी की। उसने कहा, “तूने अहज्याह के साथ मेल किया है। वह एक दुष्ट मनुष्य है इसलिए यहोवा तेरे जहाजी बेड़े को नष्ट कर देंगे।” इसलिए उसके सब जहाज टूट गए और विदेशों तक नहीं पहुँच पाए।
\s5
\c 21
\p
\v 1 अन्त में यहोशापात की मृत्यु हुई और उसे यरुशलेम के दाऊदपुर में उसके पूर्वजों के कब्रिस्तान में दफन कर दिया गया। उसके बाद उसका पुत्र यहोराम उसके स्थान में यहूदा का राजा बना।
\v 2 यहोराम के छोटे भाई थेः अर्जयाह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह।
\v 3 मरने से पूर्व यहोशापात ने उन्हें सोना-चाँदी और मूल्यवान वस्तुएँ बहुतायत से दी थीं। उसने उन्हें यहूदा के शहरपनाह वाले विभिन्न नगरों पर प्रशासक नियुक्त कर दिया था परन्तु यहोराम को उसने बड़ा पुत्र होने के कारण यहूदा का भावी राजा घोषित कर दिया था।
\s5
\v 4 अपने पिता के राज्य को पूरी तरह अपने नियन्त्रण में करने के बाद उसने अपने सब भाइयों को और देश के कुछ अगुओं को मरवा दिया था।
\v 5 यहूदा की राजगद्दी पर बैठते समय यहोराम की आयु बत्तीस वर्ष की थी और उसने यरुशलेम में रहकर यहूदा पर आठ वर्ष शासन किया।
\s5
\v 6 परन्तु उसने इस्राएल के राजाओं के समान अनेक ऐसे बुरे काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे। इसका मुख्य कारण था कि उसने अहाब की पुत्री से विवाह किया था।
\v 7 तथापि, यहोवा ने दाऊद के साथ बाँधी वाचा का मान रखते हुए यहूदा के वंश का नाश नहीं किया।
\s5
\v 8 यहोराम के शासनकाल में एदोम की प्रजा ने यहूदा के राजा से विद्रोह करके अपना राजा नियुक्त कर दिया।
\v 9 इसलिए यहोराम और उसके अधिपति तथा रथ सवार एदोम को गए। वहाँ एदोम की सेना ने उन्हें घेर लिया परन्तु यहोराम की सेना उन्हें मारकर रातों-रात वहाँ से निकल गई।
\v 10 परन्तु यहूदा का राजा फिर कभी एदोम को अपने अधीन नहीं कर पाया और एदोम आज तक यहूदा के अधीन नहीं है। उसी समय यहूदा और पलिश्त के बीच स्थित लिब्ना ने भी यहूदा से विद्रोह कर दिया। इसका एकमात्र कारण था कि यहोराम ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था।
\s5
\v 11 उसने पर्वतों की चोटियों पर मूर्ति-पूजा के ऊँचे स्थान बनवाए थे। उसने यहूदा की प्रजा से मूर्ति-पूजा करवाकर उनका पथ-भ्रष्ट किया।
\s5
\v 12 एक दिन यहोराम के भविष्यद्वक्ता एलिय्याह से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें लिखा था, “तेरे पूर्वज दाऊद जिन परमेश्वर की आराधना करता था, यहोवा कहते हैं, ‘तूने अपने पिता यहोशापात और अपने दादा आसा के समान मुझे प्रसन्न करने के काम नहीं किए है।
\v 13 तूने इस्राएल के राजाओं के समान दुष्टता के काम किए है। तूने यरुशलेम और यहूदा के अन्य नगरों में प्रजा को यहोवा की आराधना से भटका दिया है और उन्हें यहोवा का निष्ठावान होने से रोक दिया है। तूने अपने भाइयों को मरवा दिया जो तुझसे अधिक योग्य थे।
\v 14 इसलिए यहोवा तेरी प्रजा, तेरे पुत्रों और तेरी स्त्रियों और सारी सम्पत्ति का विनाश कर देंगे।
\v 15 तुझे आँतड़ियों का घातक रोग होगा जिसके कारण तेरी आँतड़ियाँ दिन-प्रतिदिन गलती जाएँगी।”
\s5
\v 16 तब यहोवा ने पलिश्तियों और भूमध्य-सागर के तट पर रहने वाले कूश-वासियों के बीच बसे हुए अरबियों को यहोराम के विरुद्ध उभारा।
\v 17 उनकी सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया और यरुशलेम में राजा के महल से सब मूल्यवान वस्तुएँ तथा उसके पुत्रों और उसकी स्त्रियों को ले गए। केवल उसका सबसे छोटा पुत्र यहोआहाज बचा रह गया।
\s5
\v 18 इसके बाद यहोवा ने उसे आँतड़ियों के उपचार न हो सकने वाले रोग से पीड़ित कर दिया। कोई भी वैद्य उसका उपचार नहीं कर पाया।
\v 19 दो वर्ष पश्चात उस रोग के कारण असहनीय पीड़ा में वह मर गया। यहूदावासियों ने उसके पूर्वजों के लिए तो सुगन्ध द्रव्य जलाए थे परन्तु यहोराम के लिए कुछ नहीं किया।
\v 20 जब वह यहूदा का राजा बना तब बत्तीस वर्ष का था और यरुशलेम में रहकर उसने आठ वर्ष शासन किया और मर गया। उसकी मृत्यु का दुःख किसी को नहीं हुआ। उसका शव यरुशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया परन्तु यहूदा के राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
\s5
\c 22
\p
\v 1 यरुशलेम-वासियों ने यहोराम के छोटे पुत्र अहज्याह को उसके स्थान में राजा बनाया क्योंकि यहूदा पर आक्रमण करने वाले पलिश्तियों और अरबियों ने यहोराम के अन्य सब पुत्रों को मार डाला था।
\v 2 जिस समय अहज्याह यहूदा का राजा बना उस समय उसकी आयु बाईस वर्ष की थी। उसने यरुशलेम में एक ही वर्ष शासन किया। उसकी माता का नाम अतल्याह था जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती थी।
\v 3 वह अहाब के घराने की सी चाल चला क्योंकि उसकी माता उसे बुरे काम करने की सम्मति देती थी।
\s5
\v 4 उसने अनेक ऐसे काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे। कारण यह था कि उसके पिता के बाद अहाब का घराना ही उसका पथ-प्रदर्शक था। उनकी बुरी चाल में फंस जाने के कारण वह मर गया।
\v 5 उसके मरने से पूर्व उन्होंने उसे प्रोत्साहित किया कि वह इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के साथ अराम के राजा हजाएल की सेना से युद्ध करने गिलाद के रामोत को जाए। वहाँ यहोराम अरामियों के हाथों घायल हो गया था।
\s5
\v 6 घायल हो जाने के कारण यहोराम यिज्रेल नगर जाकर उपचार करा रहा था। तब अजर्याह राजा अहाब के पुत्र यहोराम का कुशल जानने यिज्रेल को गया।
\s5
\v 7 अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से था क्योंकि वह यहोराम के पास गया था। जब अहज्याह वहाँ पहुँचा तब वह यहोराम के साथ निमशी के पुत्र येहू से भेंट करने निकला। यहोवा ने उसे अहाब के संपूर्ण परिवार का नाश करने के लिए नियुक्त किया था।
\v 8 जब येहू और उसके साथी अहाब के परिवार का नाश कर रहे थे तब उन्होंने यहूदा के अगुवों और अहज्याह के परिजनों के पुत्रों को भी देखा जो अहज्याह की सेवा में थे और उसने उन सबको घात किया।
\s5
\v 9 तब येहू अहज्याह की खोज में लग गया और उसके सैनिकों ने उसे सामरिया नगर में छिपा हुआ पाया। वे उसे निकालकर येहू के पास लाए और येहू ने उसे मार डाला। और उसे दफन कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा, “वह दफन के योग्य है क्योंकि वह यहोवा को पूरे मन से मानने वाले यहोशापात का वंशज है।” अहज्याह के बाद यहूदा का राजा होने योग्य कोई नहीं था।
\s5
\v 10 अहज्याह की माता अतल्याह ने अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अहज्याह के परिवार में जितने भी राजगद्दी के वारिस थे सबको अतल्याह ने मरवा दिया।
\v 11 परन्तु राजा यहोराम की पुत्री, यहोयादा याजक की पत्नी- यहूदा के राजा यहोराम की बहन- यहोशावत ने अहज्याह के सबसे छोटे पुत्र योआश को अहज्याह के अन्य सब पुत्रों में से निकालकर यहोवा के भवन के एक कमरे में उसकी छाप के साथ छिपा दिया। राजा यहोराम की पुत्री और प्रधान याजक यहोयादा की पत्नी और अहज्याह की बहन होने के कारण वह उस बालक को छिपाने में सफल हुई और अतल्याह उसकी हत्या नहीं कर पाई।
\v 12 वह छः वर्ष तक यहोवा के भवन में छिपा रहा और अतल्याह यहूदा में शासन करती रही।
\s5
\c 23
\p
\v 1 सातवें वर्ष में प्रधान याजक यहोयादा ने सोचा अब कुछ करना ही चाहिए। इसलिए उसने शतपतियों अर्थात यहोराम के पुत्र अजर्याह, यहोहानान के पुत्र इश्माएल, ओबेद के पुत्र अजर्याह, अदायाह के पुत्र मासेयाह और जिक्री के पुत्र एलीशापात के साथ वाचा बाँधी।
\v 2 वे सम्पूर्ण यहूदा राज्य में गए और लेवी के वंशजों तथा इस्राएल के कुलों के प्रधानों को इकट्ठा किया। जब वे सब यरुशलेम में आ गए,
\v 3 तब उस सम्पूर्ण मण्डली ने यहोवा के भवन में जाकर युवा राजा से वाचा बाँधी। यहोयादा ने उनसे कहा, “यह यहूदा के पूर्व राजा का पुत्र है और यहोवा की प्रतिज्ञा के अनुसार राजा दाऊद के वंशज यहूदा पर सदा शासन करेंगे, इसे यहूदा का राजा होना है।
\s5
\v 4 इसलिए तुम्हें जो करना है वह यह हैः “याजकों और लेवी के वंशजों को जो विश्राम के दिन आने वाले हों उनमें से एक तिहाई को यहोवा के भवन के द्वारों की पहरेदारी करनी है।
\v 5 और एक तिहाई राजा के महल की पहरेदारी करेंगे और एक तिहाई नेव के फाटक की पहरेदारी करेंगे। अन्य सब जन यहोवा के भवन के बाहर आँगन में उपस्थित होंगे।
\s5
\v 6 केवल याजक और लेवी के वंशज जो वहाँ काम करते है भवन में प्रवेश कर पाएँगे क्योंकि वे इस काम के लिए पवित्र किए गए है। शेष सब जन यहोवा की आज्ञा का पालन करते हुए आँगन में उपस्थित रहें।
\v 7 तुम लेवी के वंशज युवा राजा के चारों ओर खड़े रहोगे और तुम में से हर एक के हाथ में हथियार हों। यदि कोई यहोवा के भवन में प्रवेश करने का प्रयास करे तो उसे मार डालना। राजा जहाँ भी जाए तुम उसके साथ-साथ जाओगे।”
\s5
\v 8 इसलिए लेवी के वंशज और यहूदा के सब पुरुषों ने वही किया जो यहोयादा ने कहा था। उस दिन जिसने अपना काम पूरा कर लिया था उसे उसने घर जाने नहीं दिया। उस सब्त के दिन जिन्होंने अपना काम पूरा कर लिया था उनके प्रधान और जो उस दिन अपना काम आरम्भ करने जा रहे थे उनके प्रधान अपने-अपने लोगों को अपने साथ ले लिया।
\v 9 तब यहोयादा ने याजकों के प्रधानों को दाऊद के भाले, बर्छियाँ और ढालें जो यहोवा के भवन में थीं, दे दीं।
\s5
\v 10 तब उसने उन सब लोगों को अपनी-अपनी तलवार लेकर राजा के चारों ओर, वेदी के पास तथा यहोवा के भवन के पास खड़ा कर दिया।
\v 11 तब यहोयादा और उसके पुत्र योआश को लेकर आए और उसके सिर पर ताज रखा और उसके हाथ में राजा द्वारा पालन किए जाने वाले नियमों की पुस्तक दे दी और उन्होंने घोषणा की कि अब वह यहूदा का राजा है। उन्होंने जैतून के तेल से उसका अभिषेक किया और नारा लगाया, “राजा युग-युग जिए!”
\s5
\v 12 तब अतल्याह ने लोगों को दौड़ते और राजा का जय-जयकार करते सुना तो वह दौड़कर यहोवा के भवन के पास आई।
\v 13 उसने देखा कि वह युवा राजा यहोवा के भवन के द्वार के समीप एक खम्भे के पास खड़ा है जहाँ राजा खड़े होते थे। सेना के सेनापति और तुरहियाँ फूँकने वाले राजा के पास खड़े है और यहूदावासी आनन्द मना रहे है और तुरहियाँ फूँक रहे है और गायक अपने वाद्य-यन्त्रों से यहोवा की स्तुति करने में प्रजा की अगुवाई कर रहे है। तब अतल्याह ने अपने वस्त्र फाड़े और चिल्लाई, “यह राजद्रोह है!”
\s5
\v 14 प्रधान याजक यहोयादा ने आज्ञा दी, “उसे मार डालो परन्तु यहोवा के भवन के समीप नहीं।” ओर उसने उनसे कहा, “अतल्याह को अपनी पंक्तियों के बीच से निकल जाने दो और जो भी उसका साथ दे उसे मार डालो।”
\v 15 वह वहाँ से भागी परन्तु उन्होंने उसे राजभवन के घोड़ा फाटक पर पकड़कर मार डाला।
\s5
\v 16 तब यहोयादा ने वाचा बाँधी कि वह और राजा और प्रजा, सब यहोवा की प्रजा होंगे।
\v 17 सब बाल के मन्दिर तक गए और उसे ढा दिया और उसकी वेदियों और मूर्तियों के टुकड़े कर दिए और उसके याजक मत्तान को वेदियों के सामने ही मार डाला।
\s5
\v 18 तब यहोयादा ने लेवी के वंशजों में से याजक नियुक्त किए कि यहोवा के भवन में सेवा करें। वे उस दल का भाग थे जिन्हें राजा दाऊद ने होम-बलि चढ़ाने के लिए मूसा द्वारा लिखे गए नियमों के सेवा के लिए नियुक्त किया था। उसने उन्हें आनन्द मनाने और गीत गाने के लिए भी कहा क्योंकि यह दाऊद का प्रबन्ध था।
\v 19 उसने द्वारपालों को भी नियुक्त किया कि जो यहोवा को ग्रहण-योग्य न हो वह भवन में प्रवेश करने न पाए।
\s5
\v 20 यहोयादा अपने साथ शतपतियों और प्रतिष्ठित लोगों तथा अगुओं और अन्य अनेक लोगों को साथ लेकर राजा को यहोवा के भवन से उतारकर ऊँचे फाटक के मार्ग से होकर राजभवन में लाए और उसे राजगद्दी पर बैठा दिया।
\v 21 तब सब यहूदावासियों ने आनन्द मनाया। और सम्पूर्ण नगर में शान्ति हो गई क्योंकि अतल्याह की हत्या हो गई थी।
\s5
\c 24
\p
\v 1 योआश सात वर्ष की आयु में यहूदा का राजा बना और यरुशलेम में रहकर उसने यहूदा पर चालीस वर्ष शासन किया। उसकी माता का नाम सिब्या था और वह बेर्शेबा की थी।
\v 2 जब तक प्रधान याजक यहोयादा जीवित रहा तब तक योआश ने यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम किए।
\v 3 यहोयादा ने योआश के लिए दो पत्न्यिाँ चुनी जिनसे उसके पुत्र पुत्रियाँ उत्पन्न हुए।
\s5
\v 4 कुछ समय बाद योआश के मन में यहोवा की भवन का सुधार करने की इच्छा जागृत हुई।
\v 5 उसने याजकों तथा लेवी के अन्य वंशजों को इकट्ठा करके कहा, “यहूदा के नगरों में जाकर उनके वार्षिक कर इकट्ठा करो और उस पैसे को यहोवा के भवन के सुधार के लिए दो। यह काम तुरन्त करो।” परन्तु लेवी के वंशजों ने यह काम तुरन्त नहीं किया।
\s5
\v 6 इसलिए राजा ने यहोयादा को बुलवाकर उससे पूछा, “क्या कारण है कि तूने लेवी के वंशजों को मूसा द्वारा स्थापित पवित्र तम्बू की देख-रेख का वार्षिक कर यहूदावासियों को वसूलने की आज्ञा नहीं दी?”
\v 7 यहोवा के भवन का सुधारकार्य करना आवश्यक है क्योंकि उस दुष्ट स्त्री अतल्याह के पुत्रों ने भवन में प्रवेश करके उसे तोड़ दिया है और पवित्र वस्तुओं को बाल की पूजा के प्रयोग में लिया है।
\s5
\v 8 इसलिए राजा की आज्ञा मानकर लेवी के वंशजों ने एक सन्दूक बनाकर भवन के एक प्रवेश द्वार पर रख दिया।
\v 9 तब राजा ने सम्पूर्ण यहूदा में पत्र भेजकर प्रजा से आग्रह किया कि वे मूसा की उस आज्ञा के अनुसार जो उसने मरूभूमि में दी थी, यहोवा के भवन के लिए कर ले आएँ।
\v 10 राजा के आदेश के अनुसार यहूदा के सब अधिपतियों तथा प्रजा के सब लोग सहर्ष अपना-अपना धन ले आए और उस दान में डाला। इस प्रकार वह दान पात्र भर गया।
\s5
\v 11 जब लेवी के वंशज उस दान पात्र को राजा के पुरुषों के पास लाते और वे देखते कि उसमें पैसा बहुत है तब राजा के मुंशी और प्रधान याजक के सहायक पुरुष उसे खाली करके दुबारा उसके स्थान पर रख देते। उनका यह एक अभ्यास हो गया और इस प्रकार बहुत पैसा आ गया।
\v 12 राजा और यहोयादा ने सुधार कार्य के निरीक्षकों को वह पैसा दे दिया। उन्होंने संगतराश और बढ़ई काम पर लगाए कि भवन का सुधार-कार्य करें। उन्होंने लोहे और पीतल के कारीगर भी काम पर लगाए कि भवन में जो पात्र और वस्तुएँ टूट गई थीं उनको सुधारा जाए।
\s5
\v 13 कारीगरों और मिस्त्रियों ने परिश्रम का काम किया और यहोवा के भवन का सुधार कार्य प्रगति पर था। उन्होंने भवन को उसका मूल रूप देकर और भी अधिक दृढ़ किया।
\v 14 जब सुधार कार्य पूरा हुआ तब उन्हें शेष धनराशि राजा और यहोयादा को सौंप दी। उस धन राशि से बलि के पात्र तथा कटोरे और अन्य सोने-चाँदी की वस्तुएँ बनाई गईं कि यहोवा के भवन में काम आएँ। जब तक योआश जीवित रहा प्रजा नियमित रूप से होम-बलि यहोवा के भवन में लाती रही।
\s5
\v 15 तब यहोयादा बहुत वृद्ध हो गया और एक सौ तीस वर्ष की आयु में उसका स्वर्गवास हो गया।
\v 16 उसे यरुशलेम में दाऊदपुर में राजाओं के कब्रिस्तान में दफन किया गया क्योंकि उसने यहोवा के लिए और यहोवा के भवन के लिए अच्छे काम किए थे।
\s5
\v 17 यहोयादा के बाद यहूदा के प्रधान योआश के सामने उपस्थित हुए और उसे दण्डवत्् करके उसे विवश किया कि वह उनकी इच्छा पूरी करे।
\v 18 इसलिए यहूदावासियों ने यहोवा के भवन में आराधना करना त्याग दिया और अशेरा की लाटों तथा मूर्तियों की पूजा की। उनके इस पाप के कारण यहोवा सब यरुशलेमवासियों और यहूदा की प्रजा से क्रोधित हो गये।
\v 19 यहोवा ने भविष्यद्वक्ताओं को भेजा कि उन्हें उनके पास लौटा लाएँ और उनके पापों को उनके सामने लाएँ परन्तु उन्होंने भविष्यद्वक्ताओं की बातों पर ध्यान नहीं दिया।
\s5
\v 20 तब प्रधान याजक यहोयादा के पुत्र जकर्याह में यहोवा के आत्मा समाया और उसने ऊँचे स्थान में खड़े होकर कहा, यहोवा कहते हैं, “तुम यहोवा की आज्ञाओं का उल्लंघन क्यों करते हो? ऐसा करके तो तुम कभी समृद्ध नहीं हो पाओगे। अब क्योंकि तुमने यहोवा की आज्ञाओं का पालन करना छोड़ दिया है इसलिए वह भी तुम्हारी सुधि लेना छोड़ देंगे।”
\v 21 इस पर प्रजा ने जकर्याह की हत्या करने का विचार किया और राजा ने उन्हें अनुमति दे दी और उन्होंने यहोवा के भवन के आँगन ही में उसे पथराव करके मार डाला।
\v 22 राजा योआश जकर्याह के पिता यहोयादा के सब उपकार भूल गया। इसलिए उसने यहोयादा के पुत्र जकर्याह की हत्या करने की आज्ञा दे दी। उसने मरते समय उससे कहा, “तुम्हारे इस काम पर दृष्टि करके यहोवा बदला लें।”
\s5
\v 23 उस वर्ष के अन्त में अराम की सेना ने यहूदा पर आक्रमण किया। उन्होंने यरुशलेम पर आक्रमण करके यहूदा के सब प्रधानों को मार दिया और उनकी सब बहुमूल्य वस्तुएँ लूटकर राजधानी दमिश्क में अपने राजा के पास पहुँचा दीं।
\v 24 यद्यपि अराम की सेना जिसने आक्रमण किया था संख्या में बहुत ही कम थी, यहूदा की विशाल सेना उनसे हार गई क्योंकि उन के पूर्वजों के परमेश्वर ने उन्हें दण्ड दिया था।
\s5
\v 25 युद्ध में योआश गंभीर रूप से घायल हो गया था। तब उस के पुरुषों ने यहोयादा के पुत्र जकर्याह की हत्या करवाने के कारण उस का विद्रोह कर के उसे बिस्तर पर ही मार दिया। उन्होंने उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन कर दिया परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
\v 26 उस की हत्या का षड्यंत्र रचने वालों में थेः अम्मोनिन शिमात का पुत्र जाबाद, मोआबी स्त्री शिम्रित का पुत्र यहोजाबाद।
\s5
\v 27 योआश के पुत्रों के काम और उसके विषय में की गई भविष्यद्वाणियाँ और यहोवा के भवन के सुधार में किए गए उस के काम “यहूदा और इस्राएल के राजाओं का वृत्तान्त” नामक पुस्तक में लिखे है। योआश के मारने के बाद उसका पुत्र अमस्याह उसके स्थान पर यहूदा का राजा बना।
\s5
\c 25
\p
\v 1 अमस्याह ने पच्चीस वर्ष की आयु में यहूदा पर शासन करना आरम्भ किया और यरूशलेम में उनतीस वर्ष शासन किया। उसकी माता यरूशलेम वासी यहोअद्दान थी।
\v 2 उसने यहोवा की दृष्टि में उचित काम तो किए परन्तु मन की सच्चाई से नहीं किए।
\s5
\v 3 जैसे ही राज्य उस के पूर्ण नियंत्रण में आया वैसे ही उस ने अपने पिता के हत्यारों को मृत्युदण्ड दे दिया।
\v 4 परन्तु उसने उस के पुत्रों को दण्ड नहीं दिया। उस ने मूसा द्वारा स्थापित नियमों का पालन किया। उन नियमों में यहोवा ने आज्ञा दी थी, “पुत्र के कारण पिता को मृत्युदण्ड न दिया जाए और पिता के कारण पुत्र को मृत्युदण्ड न दिया जाए। जिसने पाप किया हो उसी को मृत्युदण्ड दिया जाए।”
\s5
\v 5 अमस्याह ने यहूदा और बिन्यामीनियों के गोत्रों के सब लोगों को यरूशलेम में बुलवाया और उन्हें कुलों के अनुसार दलों में बाँट दिया और उन पर शतपति और सहस्रपति नियुक्त कर दिए और बीस वर्ष के ऊपर के जितने पुरुष थे उनकी संख्या तीन लाख थी। वे भाला चलाने वाले और ढाल काम में लेने वाले योद्धा थे।
\v 6 अमस्याह ने इस्राएल से भी एक लाख योद्धा भाड़े पर बुलाए और उन्हें लगभग 3.5 टन चाँदी दी।
\s5
\v 7 परन्तु एक भविष्यद्वक्ता ने आकर उससे कहा, “हे महाराज, अपनी सेना के साथ इस्राएल के सैनिकों को मत रख क्योंकि यहोवा एप्रैम के गोत्र या किसी भी इस्राएली की सहायता नहीं करेंगे।
\v 8 तेरे सैनिक युद्ध में साहस दिखाएँ फिर भी यहोवा तेरे शत्रुओं को तुझ पर विजयी करेंगे। याद रख कि जय विजय या पराजय यहोवा की ओर ही है क्योंकि वह ऐसे सामर्थी हैं।”
\s5
\v 9 अमस्याह ने उससे कहा, “मैंने इस्राएली योद्धाओं को बहुत चाँदी दे दी है। उस का क्या करूँ?” उस भविष्यद्वक्ता ने कहा, “तूने इस्राएली योद्धाओं को जो चाँदी दी है उससे कहीं अधिक वह तुझे देने की क्षमता रखते हैं।”
\v 10 इसलिए अमस्याह ने इस्राएली योद्धाओं को घर लौट जाने के आदेश दिए। उन्होंने अपने घर के लिए प्रस्थान तो किया परन्तु वे युद्ध में न ले जाए जाने के कारण यहूदावासियों से अत्यधिक क्रोधित थे।
\s5
\v 11 तब अमस्याह हिम्मत बाँधकर अपनी सेना को लेकर नमक की घाटी में पहुँचा और दस हजार सेईरियों; एदोमियों के लोगों को मार डाला।
\v 12 यहूदा की सेना ने दस हजार सैनिकों को बन्दी बनाया और उन्हें एक ऊँची चट्टान पर ले जाकर वहाँ से गिरा दिया और उनके शरीर फट कर बिखर गए।
\s5
\v 13 इधर वे इस्राएली सैनिक जिन्हें अमस्याह ने लौटा दिया था, उन्होंने सामरिया से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों के तीन हजार निवासी मार डाले तथा उन को लूट लिया।
\s5
\v 14 एदोमियों का संहार कर के उन की मूर्तियों को ले आया और उन को दण्डवत्् करने तथा उन के सामने बलि चढ़ाने लगा।
\v 15 इस कारण यहोवा क्रोधित हुए और एक भविष्यद्वक्ता को उसके पास भेजा। उस भविष्यद्वक्ता ने उससे कहा, “तू इन मूर्तियों की पूजा क्यों करता है? वे तो उस के लोगों को तुझ से बचा नहीं पाई थीं।”
\s5
\v 16 राजा ने उससे कहा, “क्या हम ने तुझे अपना परामर्शदाता नियुक्त किया है? चुप हो जा नहीं तो मैं सैनिकों को आज्ञा देकर तेरा सिर कटवा दूँगा।” उस भविष्यद्वक्ता ने उससे कहा, “तेरी मूर्तिपूजा के कारण यहोवा ने तेरा अन्त करने की ठान ली है।” और वह चुप होकर चला गया।
\s5
\v 17 कुछ समय बाद यहूदा के राजा अमस्याह ने अपने मंत्रियों के साथ विचार विमर्श करके इस्राएल के राजा योआश के पास सन्देश भेजा जिसमें उसने लिखा, “आकर मेरा सामना कर।”
\s5
\v 18 इस्राएल के राजा ने अमस्याह को अपना उत्तर लिख कर भेजा, “एक बार लबानोन के पर्वतों में उगने वाली कंटीली झाड़ी ने देवदार के वृक्ष से कहा, ‘तेरी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र से करा दे।’ परन्तु लबानोन में एक वन पशु ने वहाँ से निकलते हुए उस झाड़ी को अपने पैरों तले कुचल दिया।
\v 19 मेरे कहने का अर्थ है कि एदोमियों को पराजित करके तू घमंड से भर गया है। तू अपनी विजय पर घमंड कर परन्तु मुझ से लड़ने का साहस मत कर। ऐसा करके तू अपना ही विनाश लाएगा। तू और यहूदा दोनों ही मिट्टी चाटेंगे।”
\s5
\v 20 परन्तु अमस्याह ने यहोआश की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। यह यहोवा का प्रबंध था कि अमस्याह शत्रु के हाथ में पड़े क्योंकि उसने एदोमियों की मूर्तियों की पूजा की थी।
\v 21 इसलिए योआश अपनी सेना लेकर आया और इस्राएल तथा यहूदा की सेनाओं ने यहूदा के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामना किया।
\v 22 युद्ध का परिणाम यह हुआ कि यहूदा की सेना इस्राएली सेना से हार गई और यहूदा के सैनिक अपने-अपने घर को भागे।
\s5
\v 23 योआश के सैनिकों ने अमस्याह को बन्दी बना लिया और उसे लेकर यरूशलेम आए। इस्राएली सैनिकों ने यरूशलेम की शहरपनाह को एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक ढा दिया जिसकी लम्बाई 180 मीटर थी।
\v 24 तब उस की सेना ने ओबेदेदोम की देख-रेख में जितनी भी सोने-चाँदी के पात्र और बहुमूल्य वस्तुए थीं सब लूट लीं और जितने भी बन्दी उन्होंने बनाए थे, सब को लेकर वे सामरिया चले गए।
\s5
\v 25 इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष और जीवित रहा।
\v 26 अमस्याह ने अपने शासनकाल में जो काम किए वे सब “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\s5
\v 27 जब अमस्याह ने यहोवा की आज्ञाओं नहीं मानना आरम्भ किया तब ही से यरूशलेम में उसके विरूद्ध हत्या का षड्यंत्र रचा जाने लगा था। इसलिए वह लाकीश भाग गया था परन्तु उसके षड्यंत्रकारियों ने वहाँ भी अपने लोग भेज कर उस की हत्या करवा दी।
\v 28 उस का शव एक घोड़े पर लादकर यरूशलेम लाया गया और यरूशलेम के दाऊदपुर में उसे राजाओं के कब्रिस्तान में दफन किया गया।
\s5
\c 26
\p
\v 1 अमस्याह के बाद प्रजा ने उस के पुत्र उज्जियाह को अपना राजा नियुक्त किया। उस समय उसकी आयु सोलह वर्ष की थी।
\v 2 अपने पिता अमस्याह के मरने के बाद जब उज्जियाह राजा बना तो उसने एलोत नगर को जीत कर उस का पुनर्निर्माण किया।
\v 3 उज्जियाह बावन वर्ष तक यरूशलेम शासन करता रहा। उस की माता यकोल्याह यरूशलेम की ही थी।
\s5
\v 4 उसने अपने पिता अमस्याह के समान यहोवा की दृष्टि में उचित काम किए।
\v 5 उसने जकर्याह के दिनों में यहोवा को प्रसन्न करने वाले काम किए क्योंकि जकर्याह ने उसे परमेश्वर का भय मानना सिखाया था। उज्जियाह ने जब तक यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए तब तक यहोवा ने उसे सफलता प्रदान की।
\s5
\v 6 उज्जियाह अपनी सेना लेकर पलिश्तियों पर आक्रमण करने गया और उन्होंने गत, यब्ने और अश्दोद की शहरपनाहें ढा दीं और अश्दोद तथा पलिश्त में उन्होंने नगरों का दुबारा निर्माण किया।
\v 7 परमेश्वर ने पलिश्तियों और गूबौलवासी अरबियों और एदोम से वहाँ आए मूनियों के विरूद्ध युद्ध में उस की सहायता की।
\v 8 अम्मोनी भी उज्जियाह को वार्षिक लगान देते थे। उस की कीर्ति मिस्र की सीमा तक पहुँच गई थी क्योंकि वह अत्यधिक सामर्थी हो गया था।
\s5
\v 9 उज्जियाह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर पहरेदारी के लिए गुम्मट बनवाकर वहाँ हथियार रखवाए।
\v 10 उसने मरूभूमि में भी पहरेदारी के लिए गुम्मट बनवाए और कुँए खुदवाए कि पर्वतों की तलहटियों और मैदानों में चरने वाले राज्य के पशुओं को पानी मिले। उज्जियाह कृषि में रूचि रखता था इसलिए उसने पहाड़ों पर और मैदानों में अपने खेतों और दाख की बारियों पर किसान नियुक्त कर दिए थे।
\s5
\v 11 उज्जियाह की सेना युद्ध करने में प्रशिक्षित थी। वे युद्ध के लिए सदा तैयार रहते थे। राजा का मुंशी यीएल और मासेयाह सेना प्रधान पर पुरुषों की गिन कर उन्हें दलों में विभाजित कर दिया। राजा के एक पुरुष हनन्याह उन का सेनापति था।
\v 12 उसके सैनिकों पर सरदार नियुक्त किए गए थे। वे यहूदा के कुलों के मुख्य पुरुष थे जिनकी संख्या 2,600 थी।
\v 13 उनके अधीन जो सैनिक थे उनकी कुल संख्या तीन लाख साढ़े सात हजार थी।
\s5
\v 14 उज्जियाह ने उनके लिए ढालें, भाले, टोप, कवच, धनुष और गोफन तैयार किए।
\v 15 यरूशलेम में उसके कुशल कारीगरों ने गुम्मटों और कोने की दीवारों पर ऐसे यंत्र बनाकर रखे जिनके द्वारा तीर और बड़े-बड़े पत्थर फेंके जाते थे। उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई क्योंकि यहोवा उस के साथ था और उसने ही उसे सामर्थी बनाया।
\s5
\v 16 परन्तु जब वह ऐसा सामर्थी हो गया तब वह घमंड से भर गया और यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करके वेदी पर धूप जलाने के लिए यहोवा के भवन में प्रवेश कर गया। वेदी पर धूप जलाना केवल याजक का काम था।
\v 17 प्रधान याजक अजर्याह और उसके साथ अस्सी साहसी याजक उसके पीछे भवन में गए।
\v 18 उन्होंने उसे झिड़ककर कहा, “उज्जियाह तूने यह उचित नहीं किया क्योंकि तू यहोवा के सम्मान में धूप जलाने के लिए पवित्र नहीं किया गया है। यह काम हमारे प्रथम प्रधान याजक हारून के वंशजों का ही है। तू तुरन्त बाहर हो जा क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना है और तेरे गए इस अवज्ञा के कारण तेरी महिमा की हानि होगी।”
\s5
\v 19 उज्जियाह के हाथों में धूपदान था। वह पुजारियों से क्रोधित हो गया और तुरन्त उस के हाथ में कोढ़ हो गया।
\v 20 तब अजर्याह और सब याजक जो उस के साथ थे उन्होंने देखा कि उज्जियाह के माथे पर भी कोढ़ है। इसलिए उन्होंने तुरन्त उसे भवन से बाहर निकाला। यह जानकर कि यहोवा ने उसे कोढ़ग्रस्त किया है वह भी तुरन्त बाहर निकला क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोढ़ गंभीर रूप ले।
\s5
\v 21 राजा उज्जियाह को मरने के दिन तक कोढ़ लगा रहा। वह अलग एक घर में रहता था और यहोवा के भवन के आँगन में प्रवेश नहीं कर सकता था। उस का पुत्र योताम राजमहल की व्यवस्था करता था और प्रजा का न्याय भी करता था।
\s5
\v 22 राजा उज्जिय्याह के शासनकाल के सब काम आमोस के पुत्र यशायाह ने लिखे है।
\v 23 उसकी मृत्यु हो जाने पर उसे राजाओं के कब्रिस्तान में दफन नहीं किया गया। उसे राजाओं के खेत में दफन किया गया क्योंकि वह कोढ़ी था। उसके मरणोपरान्त उस का पुत्र योताम उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 27
\p
\v 1 योताम जब यहूदा का राजा बना तब वह पच्चीस वर्ष की आयु का था। और उसने यरूशलेम से सोलह वर्ष यहूदा पर शासन किया। उसकी माता याजक सादोक की पुत्री यरूशा थी।
\v 2 योताम ने यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए, जैसा उसके पिता उज्जियाह ने किए थे। उसने यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया और उचित काम किए। उसने अपने पिता के समान सब काम किए परन्तु यहोवा के भवन में धूप नहीं जलाया परन्तु यहूदावासी यहोवा के विरूद्ध पाप करते रहे।
\s5
\v 3 योताम ने यहोवा के भवन का ऊपरवाला फाटक बनवाया। और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत निर्माण कार्य करवाया।
\v 4 उसने यहूदा के पहाड़ों में नगर बसाए और मरूभूमि में सुरक्षा के लिए किले और गुम्मट बनवाए।
\s5
\v 5 उसने अपने शासनकाल में अम्मोनियों पर आक्रमण करके उन्हें हरा दिया। और आने वाले तीन वर्षों तक प्रतिवर्ष उसने उनसे साढ़े तीन टन् चाँदी और 2,200 किलोलीटर गेहूँ और 2,200 किलोलीटर जौ लिया।
\s5
\v 6 योताम ने सच्चे मन से अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया और परिणामस्वरूप वह अत्यधिक सामर्थी हो गया।
\v 7 योताम के शासनकाल के सब काम तथा उसके द्वारा किए गए युद्धों का वृत्तान्त “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखा है।
\s5
\v 8 यहूदा पर सोलह वर्ष शासन करने के बाद वह इकतालीस वर्ष की आयु में मर गया।
\v 9 उसे यरूशलेम में दफन किया गया और उसके स्थान में उस का पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 28
\p
\v 1 आहाज जब यहूदा का राजा बना तब वह बीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में रह कर सोलह वर्ष शासन किया। आहाज ने अपने पूर्वज दाऊद के समान यहोवा को प्रसन्न करने के काम नहीं किए। उसने यहोवा की आज्ञाओं को नहीं माना।
\v 2 वह इस्राएल के राजाओं के समान पापी हुआ। उसने बाल की मूर्तियाँ बनवाकर उन्हें धातु में ढलवाया।
\s5
\v 3 उसने हिन्नोम की घाटी में धूप जलाई और अपने पुत्रों को भी आग में बलि चढ़ा दिया जो उन जातियों का घृणित काम था जिन्हें यहोवा ने उस देश से निकाला था जब इस्राएली वहाँ प्रवेश कर रहे थे।
\v 4 उसने पर्वतों की चोटियों पर बने मंदिरों में मूर्तियों के सामने और प्रत्येक बड़े हरे वृक्ष के नीचे बलियाँ चढ़ाईं।
\s5
\v 5 यही कारण था कि यहोवा ने उस की सेना को अराम की सेना से पराजित करवा दिया। उन्होंने यहूदा के अनेक सैनिकों को बन्दी बनाया और उन्हें दमिश्क ले गए। इस्राएल की सेना ने भी उन्हें पराजित कर अनेक सैनिकों की हत्या की।
\v 6 इस्राएल के राजा रमल्याह के पुत्र पेकह की सेना ने एक ही दिन में यहूदा के 1,20,000 सैनिकों को घात किया। इसका मुख्य कारण था कि यहूदावासियों ने अपने पूर्वजों के आराध्य परमेश्वर यहोवा का त्याग कर दिया था।
\s5
\v 7 एप्रैम के एक योद्धा ने जिसका नाम जिक्री था, राजा के एक पुत्र मासेयाह और राजमहल के व्यवस्थापक अज्रीकाम और राजा के मंत्री एल्काना की हत्या कर दी।
\v 8 इस्राएली सैनिकों ने 2,00,000 यहूदावासियों को जिनमें यहूदा के सैनिकों की पत्नियाँ, पुत्र और पुत्रियाँ थे, बन्दी बना लिया। उन्होंने अनेक मूल्यवान वस्तुएँ लूटीं और सामरिया ले गए।
\s5
\v 9 परन्तु यहोवा के एक भविष्यद्वक्ता ने जिसका नाम ओदेद था, वह सामरिया में था। वह घर लौटने वाली सेना के सामने खड़ा हुआ और उनसे कहा, “तुम्हारे पूर्वज जिनकी आराधना करते हैं, परमेश्वर यहोवा यहूदावासियों से क्रोधित हैं इसलिए उन्होंने उन्हें तुम्हारे हाथों पराजित कर दिया और तुम ने उन्हें क्रोध में घात किया है।
\v 10 अब तुम यहूदा की स्त्री और पुरुषों को दास बना कर यहोवा को निश्चय दुख पहुँचाते हो।
\v 11 इसलिए मेरी बात मानकर अपने जाति भाइयों को, जिन्हें तुमने बन्दी बनाया है, यहूदा भेज दो क्योंकि तुम ने उनके साथ जो किया है, उससे यहोवा क्रोधित है।”
\s5
\v 12 तब एप्रैम के गोत्र के कुछ प्रधानः योहानान का पुत्र अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्र बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्र यहिजकिय्याह और हदलै का पुत्र आमासा लौट रही सेना का सामना कर कहने लगे,
\v 13 “तुम इन बन्दियों को यहाँ नहीं लाओगे! यदि तुमने ऐसा किया तो यहोवा तुम्हें पाप का दोषी ठहराएगा। हम वैसे पापों के दोषी है। क्या तुम चाहते हो कि हम और पाप करके अपने दोष बढ़ाएँ? परमेश्वर तो हम इस्राएलियों से पहले ही क्रोधित हैं ।”
\s5
\v 14 इसलिए सैनिकों ने अगुओं और जनता के सामने ही सब बन्दियों को छोड़ दिया और सारा लूट का सामान उन्हें दे दिया।
\v 15 अगुओं ने कुछ लोगों को बन्दियों की देख-रेख के लिए नियुक्त कर दिया। उन्होंने सैनिकों से लूट के वस्त्र लेकर जो नंगे थे, उन्हें दिए। उन्होंने बन्दियों को जूते और वस्त्र दिए और उन्हें भोजन-पानी दिया। उन्होंने उन्हें जैतून का तेल भी दिया कि अपने घावों पर लगाएँ। जो दुर्बल थे उनकी सवारी के लिए उन्होंने गधों का प्रबंध भी किया। तब वे उन्हें खजूर के नगर यरीहो ले गए। तब वे लौट कर सामरिया आ गए।
\s5
\v 16 उस समय राजा आहाज ने अश्शूरों के राजा से सहायता मांगी।
\v 17 उसने ऐसा इसलिए किया कि एदोम की सेना ने उन पर आक्रमण करके अनेक यहूदावासियों को बन्दी बना लिया था।
\v 18 उसी समय पलिश्तियों ने यहूदा की पर्वतीय तलहटी के नगरों और उत्तरी मरूभूमि में आक्रमण कर दिया और बेतशेमेश, अय्यालीन, गेदेरोत और गाँवों समेत सोको, तिम्ना और गिमजो पर अधिकार कर लिया।
\s5
\v 19 यहोवा ने यह सब इसलिए किया कि आहाज दीन बने क्योंकि उसने यहूदावासियों को पाप करने की प्रेरणा दी और यहोवा की आज्ञाओं का पालन नहीं किया था।
\v 20 अश्शूरों के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आहाज की सहायता के लिए अपनी सेना भेजी परन्तु सहायता करने के बजाय उसकी सेना ने उसके लिए कष्ट ही उत्पन्न किया।
\v 21 आहाज ने यहोवा के भवन से, राजभवन से और यहूदा के प्रधानों से मूल्यवान वस्तुएँ लेकर अश्शूरों के राजा को भेंट चढ़ाई परन्तु उसने आहाज की सहायता करने से इंकार कर दिया।
\s5
\v 22 क्लेशों से घिर जाने के बाद भी राजा आहाज ने यहोवा का और भी अधिक विश्वासघात किया।
\v 23 उसने दमिश्कवासियों के देवताओं की बलि चढ़ाई, जिन्होंने उसकी सेना को पराजित किया था। उसने सोचा, “अराम के राजा जिन देवताओं की पूजा करते है, वे उनकी सहायता करते है इसलिए मैं भी उनकी बलि चढ़ाऊँगा कि वे मेरी भी सहायता करें।” परन्तु परिणाम यह हुआ कि उनकी आराधना के कारण आहाज और संपूर्ण इस्राएल का विनाश हुआ।
\s5
\v 24 आहाज ने यहोवा के भवन के सब पात्र तुड़वा दिए और भवन के द्वार बन्द करवा कर यरूशलेम की सड़कों पर हर एक कोने में मूर्तिपूजा के लिए वेदियाँ बनवा दीं।
\v 25 यहूदा के प्रत्येक नगर में उसने पर्वतों की चोटियों पर मंदिर बनवा कर देवी-देवताओं के लिए होम-बलि कीं। इस कारण उन के पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा क्रोध का उन पर भड़क उठा।
\s5
\v 26 उसके शासनकाल के आरम्भ से अंत तक उसके सब काम “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\v 27 आहाज की मृत्यु हुई और उसे यरूशलेम में दफन किया गया परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। उसके बाद उस का पुत्र हिजकिय्याह उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 29
\p
\v 1 हिजकिय्याह जब यहूदा का राजा बना तब उसकी आयु पच्चीस वर्ष की थी। उसने यरूशलेम उनतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता जकर्याह की पुत्री अबिय्याह थी।
\v 2 हिजकिय्याह अपने पूर्वज राजा दाऊद के चरण चिन्हों पर चला और यहोवा को ही प्रसन्न करने के काम किए।
\s5
\v 3 अपने शासन के पहले वर्ष के पहले महीने। उसने यहोवा के भवन के द्वार खुलवाए और भवन में सुधार कार्य किया।
\v 4 तब उसने याजकों को लेवी के वंशजों को यहोवा के भवन के पूर्व की ओर आँगन में इकट्ठा किया।
\v 5 और उनसे कहा, “हे लेवी के वंशजों सुनो! अपने को पवित्र करो और यहोवा के भवन को यहोवा के सम्मान के लिए तैयार करो और पवित्र स्थान से सारा कूड़ा निकाल कर बाहर कर दो।
\s5
\v 6 हमारे पूर्वजों ने यहोवा की आज्ञाओं का उल्लंघन करके उसकी दृष्टि में बुरे काम किए, ऐसे काम जिनसे वह प्रसन्न नहीं होता है। उन्होंने यहोवा के इस निवास स्थान को त्याग दिया और उससे विमुख हो गए थे।
\v 7 उन्होंने यहोवा के भवन के द्वार बन्द कर दिए और उसके दीपकों को बुझा दिया। उन्होंने वेदी पर धूप नहीं जलाई और पवित्र स्थान में होम-बलि नहीं की।
\s5
\v 8 इसलिए यहोवा हम पर यरूशलेमवासियों से वरन सब यहूदा वासियों से क्रोधित है। उसने हमें विस्मय का और निन्दा का कारण बना दिया है। यह तो तुम भी भली-भांति जानते हो।
\v 9 यही कारण है कि हमारे पिता युद्ध में मारे गए और हमारे पुत्र और पुत्रियाँ और पत्नियाँ बन्दी बना कर दूसरे देशों में ले जाए गए।
\s5
\v 10 परन्तु अब मैं हमारे परमेश्वर यहोवा के साथ वाचा बाँधना चाहता हूँ कि वह हमसे क्रोधित न हो।
\v 11 तुम मेरे लिए पुत्रों के समान हो। समय मत गंवाओ। यहोवा ने तुम्हें चुना है कि उसकी उपस्थिति में खड़े होकर बलि चढ़ाओ और धूप जलाओ। इसलिए उस की इच्छा पूरी करने में शीघ्रता करो।
\s5
\v 12 तब लेवी के वंशजों ने यहोवा के भवन में सेवा करना आरम्भ कर दिया। कहातियों के वंशजों में से अमासै का पुत्र महत और अजर्याह का पुत्र योएल, और मरारी के वंशजों में से अब्दी का पुत्र कीश और यहल्लेलेल का पुत्र अजर्याह और गेर्शेम के वंशजों में से जिम्मा का पुत्र योआह और योआह का पुत्र एदेन,
\v 13 और एलिसापान के वंशजों में से शिम्री, यूएल; तथा आसाप के वंशजों में से जकर्याह और मत्तन्याह,
\v 14 और हेमान के वंशजों में से यहूएल और शिमी, और यदूतून के वंशजों में से शमायाह और उज्जीएल।
\s5
\v 15 इन सब ने अपने-अपने सगोत्र भाइयों को इकट्ठा किया और शोधन विधि पूरी करके राजा की आज्ञा के अनुसार जो उसने यहोवा से प्राप्त की थी, यहोवा के भवन का शोधन करने भीतर गए।
\v 16 उन्होंने यहोवा के भवन में से वे सब वस्तुएँ जो यहोवा के लिए घृणित थीं निकालकर भवन के आँगन में पहुँचा दीं और लेवी के वंशजों ने उन्हें किद्रोन के नाले में ले जाकर जला दिया।
\v 17 याजकों और लेवी के वंशजों ने यह शोधन कार्य पहले महीने के पहले दिन आरम्भ किया था और उसी महीने के आठवें दिन वे भवन के मण्डप तक पहुँच गए थे और एक सप्ताह बाद उन्होंने यहोवा के सम्मान में भवन का शोधन कार्य संपन्न किया।
\s5
\v 18 तब उन्होंने जाकर राजा हिजकिय्याह को लेखा देते हुए कहा, “हमने यहोवा के भवन का कोना-कोना पवित्र कर दिया है और होम-बलि करने की वेदी और वेदी पर काम में आने वाले सब पात्र और यहोवा के सम्मुख भेंट की रोटियाँ रखने की मेज और मेज का सब सामान भी पवित्र कर दिया है।
\v 19 राजा आहाज ने यहोवा से विश्वासघात करके जितना भी सामान फेंक दिया था, उन सबको हमने लाकर यहोवा की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है और यहोवा की वेदी के सामने रख दिया है कि दिखाई दें।”
\s5
\v 20 अगले दिन सुबह राजा हिजकिय्याह ने नगर के सब प्रधानों को इकट्ठा किया और वे सब यहोवा के भवन के आँगन में ले गए।
\v 21 और राजा ने याजकों को आज्ञा दी कि वे हारून के वंशज होने के कारण यहोवा के सामने वेदी पर बलि चढ़ाएँ। बलि के लिए वे सात बैल, सात मेढ़े, सात वर मेम्ने और सात बकरे लाए थे। बलि का उद्देश्य था कि यहोवा के पाप क्षमा करे और यहोवा का भवन पवित्र हो।
\s5
\v 22 इसलिए याजकों ने पहले बैलों को मार दिया और उनका रक्त वेदी पर चारों ओर छिड़का, उसके बाद उन्होंने मेढ़ों को मार के वेदी पर चारों ओर छिड़का। उसके बाद उन्होंने मेम्नों को मार के रक्त को वेदी पर चारों ओर छिड़का।
\v 23 बकरे पाप-बलि के लिए थे। इसलिए उन्हें राजा और प्रजा के सामने लाया गया और राजा तथा प्रजा के प्रधानों ने उन पर हाथ रखे।
\v 24 तब याजकों ने उन्हें मार दिया और इस्राएल के पापों के प्रायश्चित स्वरूप उनका रक्त वेदी पर चारों ओर छिड़का क्योंकि राजा ने आज्ञा दी थी कि संपूर्ण इस्राएल के लिए होम-बलि और पाप-बलि चढ़ाने की आज्ञा दी थी।
\s5
\v 25 तब राजा ने लेवी के वंशजों को आज्ञा दी कि वे अपने झाँझ, वीणाएँ और सारंगियाँ लेकर दाऊद, भविष्यद्वक्ता गाद और नातान की आज्ञा के अनुसार खड़े हों। यहोवा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं द्वारा इसकी आज्ञा दी थी।
\v 26 इसलिए लेवी के वंशज यहोवा के भवन में यथास्थान खड़े होकर दाऊद द्वारा उनके लिए तैयार किए गए वाद्य यन्त्रों को बजाने लगे और याजक तुरहियाँ फूँकने लगे।
\s5
\v 27 तब हिजकिय्याह ने याजकों से कहा कि वे होम-बलि के पशुओं का मार दिया। जब वे बलि के पशुओं को मार रहे थे तब प्रजा यहोवा का स्तुतिगान गा रही थी और लेवी के वंशज संगीत बजा रहे थे।
\v 28 उपस्थित लोगों ने यहोवा की आराधना में दण्डवत्् किया और गायक गा रहे थे तथा तुरहियाँ फूँकी जा रही थीं। वे यहोवा की स्तुति करते रहे जब तक कि होम-बलि वाले सब पशुओं को मारा नहीं गया।
\s5
\v 29 जब बलि चढ़ाना पूरा हुआ तब सबने घुटने टेककर यहोवा की आराधना की।
\v 30 तब राजा हिजकिय्याह और प्रधानों ने लेवी के वंशजों को आज्ञा दी कि वे राजा दाऊद और आसाप द्वारा रचे गए भजनों को गाकर यहोवा की स्तुति करें। उन्होंने बड़े आनन्द से वे भजन गाए और सिर झुकाकर आराधना की।
\s5
\v 31 तब राजा हिजकिय्याह ने कहा, “अब तुम लोग यहोवा के सम्मान के लिए समर्पित हो गए हो। इसलिए समीप आकर यहोवा के भवन में बलि के लिए पशु पहुँचाओ तथा धन्यवाद की बलि भी चढ़ाओ।” तब जो लोग होम-बलि चढ़ाना चाहते थे बलि पशु ले आए।
\s5
\v 32 वे जितने बलि पशु लाए उनकी कुल संख्या थी, सत्तर बैल, एक सौ मेढ़े, दो सौ नर मेम्ने। ये सब होम-बलि के लिए थे।
\v 33 यहोवा के सम्मान में जो पशु पवित्र करके बलि चढ़ाने के लिए लाए गए थे उनकी कुल संख्या थी, छः सौ बैल और तीन हजार भेड़-बकरियाँ।
\s5
\v 34 वेदी पर होम-बलि की संख्या बहुत अधिक होने के कारण याजक उनकी खाल नहीं उतार पाए इसलिए लेवी के वंशजों ने उनकी सहायता करके उस काम को पूरा किया और जब तक याजकों ने यहोवा के सम्मान के सेवा के लिए स्वयं को पवित्र नहीं किया जैसे कि लेवी के वंशजों ने यहोवा के सम्मान के लिए स्वयं को पवित्र कर लिया था।
\s5
\v 35 वेदी पर होम-बलि के अतिरिक्त याजकों ने यहोवा के साथ मेल-बलि की चर्बी भी वेदी पर जताई। दाखमधु का अर्घ भी चढ़ाया गया था। इस प्रकार यहोवा के भवन में आराधना का दुबारा आरम्भ हुआ।
\v 36 तब हिजकिय्याह और प्रजा ने पर्व मनाया क्योंकि यहोवा के भवन के सुधार-कार्य को शीघ्र पूरा करने में उनकी सहायता की थी।
\s5
\c 30
\p
\v 1-3 तब राजा हिजकिय्याह और उसके अधिकारियों ने यरुशलेम में उपस्थित प्रजा के साथ फसह मनाने का विचार किया परन्तु वे यथासमय फसह मनाने योग्य न थे क्योंकि याजकों में से अनेकों ने शोधन विधि पूरी नहीं की थी जिसके कारण वे फसह में सहभागी नहीं हो सकते थे। दूसरा कारण यह भी था कि फसह के लिए सारी प्रजा भी उपस्थित नहीं थी। इसलिए उन्होंने अगले महीने फसह मनाने का निर्णय लिया।
\s5
\v 4 राजा और प्रजा को यह निर्णय अच्छा लगा।
\v 5 इसलिए उन्होंने यहूदा और इस्राएल में दूर उत्तर में बेर्शेबा से लेकर दूर उत्तर में दान तक के सब नगरों और गाँवों में तथा एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों को भी सन्देश भेजकर लोगों को आमन्त्रित किया कि यहोवा के सम्मान में यरुशलेम आकर फसह मनाएँ। अनेक जन तो ऐसे थे जिन्होंने फसह कभी नहीं मनाया था जबकि मूसा के विधान में लिखा था कि फसह मनाना अनिवार्य है।
\s5
\v 6 राजा की आज्ञा का पालन करके दूत राजा और उसके अधिकारियों के पत्र लेकर संपूर्ण यहूदा और इस्राएल में गए। पत्रों में लिखा थाः “हे इस्राएलियों! अब्राहम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो कि वह अश्शूरों के राजा के हाथ से बचे हुए तुम लोगों की ओर फिरे।
\s5
\v 7 अपने पूर्वजों और भाइयों के समान मत बनो जिन्होंने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा का त्याग किया और परिणाम-स्वरूप यहोवा ने उन्हें विस्मय का कारण बना दिया। यह तो तुम स्वयं देख रहे हो।
\v 8 अब अपने पूर्वजों के समान हठ मत करो, यहोवा के अधीन होकर यहोवा के पवित्र स्थान में आ जाओ क्योंकि यहोवा ने इस स्थान को सदा के लिए पवित्र कर दिया है और अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करो कि उसका क्रोध शान्त हो जाए।
\v 9 यदि तुम यहोवा की आराधना करोगे तो तुम्हारे भाइयों और सन्तानों को बन्दी बनाकर ले जाने वाले उन पर दया करेंगे और वे अपने देश लौट पाएँगे क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु है। तुम उसकी ओर फिरोगे तो वह तुमसे मुँह न मोड़ेगा।”
\s5
\v 10 दूत एप्रैम और मनश्शे के प्रदेशों में और दूर उत्तर में जबूलून के गोत्र तक गए और उन्हें यह सन्देश सुनाया परन्तु अधिकाँश लोगों ने उनका ठट्ठा किया और उन पर हँसे।
\v 11 परन्तु आशेर, मनश्शे और जबूलून के कुछ लोगों ने अपने पाप स्वीकार किए और यरुशलेम को गए।
\v 12 यहूदा में भी परमेश्वर ने लोगों के मन को ऐसा किया कि वे एकजुट होकर यहोवा की आज्ञा मानने को तैयार हुए। यही तो राजा और उसके अधिकारियों ने पत्र में लिखकर भेजा था।
\s5
\v 13 इसलिए उस वर्ष के दूसरे महीने में एक विशाल जनसमूह अखमीरी रोटी का पर्व मनाने इकट्ठा हुआ।
\v 14 उन्होंने यरुशलेम में से बाल की वेदियाँ और देवी-देवताओं के लिए धूप जलाने की वेदियाँ उखाड़ कर किद्रोन नाले में फेंक दीं।
\v 15 उस महीने के चैदहवें दिन उन्होंने फसह के मेम्ने बलि किए। याजक और लेवी के वंशज जिन्होंने शोधन विधि पूरी नहीं की थी, लज्जित थे और उन्होंने यहोवा की सेवा के लिए स्वयं को पवित्र किया और यहोवा के भवन में होम-बलि ले आए।
\s5
\v 16 वे सब यहोवा के दास मूसा द्वारा निर्धारित अपने-अपने स्थान में खड़े हुए और लेवी के वंशजों ने बलि के पशुओं का रक्त कटोरे में लेकर याजकों को दिया और याजकों ने वेदी पर चारों ओर उस रक्त को छिड़का।
\v 17 जन समूह में कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपना शोधन नहीं किया था, इसलिए वे मेम्ने का मार कर यहोवा को अर्पित नहीं कर पाए। इसलिए लेवी के वंशजों को उनके लिए मेम्ने को मारना पड़ा।
\s5
\v 18 यद्यपि एप्रैम, मनश्शे और इस्साकार के गोत्रों से अनेक जन शुद्ध नहीं थे, उन्होंने फसह का भोजन खाया जो मूसा द्वारा लिखे हुए नियमों के विरुद्ध था। हिजकिय्याह ने उनके लिए प्रार्थना की, “हे यहोवा तू सदैव ही भलाई करता आया है; मैं विनती करता हूँ कि उन सबको क्षमा कर दे जो हमारे पूर्वजों का परमेश्वर है,
\v 19 जो सच्चे मन से तेरी खोज में है चाहे उन्होंने तेरे दिए गए पवित्र नियमों का पालन करके अपना शोधन नहीं किया है।”
\v 20 और यहोवा ने हिजकिय्याह की प्रार्थना सुनकर उन्हें क्षमा कर दिया और उन्हें दण्ड नहीं दिया।
\s5
\v 21 यरुशलेम में जितने भी इस्राएली उपस्थित थे, उन्होंने सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व मनाया। उन्होंने बड़े आनन्द के साथ पर्व मनाया और लेवी के वंशजों ने और याजकों ने प्रतिदिन यहोवा के लिए भजन गाए और उसकी स्तुति में संगीत बजाया।
\v 22 हिजकिय्याह ने यहोवा की सेवा के लिए और आराधकों की कुशल अगुवाई के लिए लेवी के वंशजों को धन्यवाद दिया। सातों दिन लोगों ने फसह खाया और यहोवा के साथ मेल-बलि चढ़ाई और अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की स्तुति की।
\s5
\v 23 तब जनसमूह ने सात दिन और पर्व मनाने का निर्णय लिया और सात दिन और बड़े आनन्द से पर्व मनाया।
\v 24 राजा हिजकिय्याह ने एक हजार बैल और सात हजार भेड़ें उपलब्ध करवाईं कि पर्व में भोज किया जाए राजा के अधिकारियों ने भी एक हजार बैल और दस हजार भेड़ बकरियाँ दीं। उस पर्व में बहुत से याजकों ने स्वयं को पवित्र किया कि यहोवा की सेवा करें।
\s5
\v 25 सब यहूदावासियों ने और याजकों और लेवी के वंशजों ने तथा इस्राएल से आने वाले श्रद्धालुओं ने तथा इस्राएल और यहूदा में रहने वाले विदेशियों ने भी आनन्द मनाया।
\v 26 यरुशलेम में सब लोगों ने बड़ा आनन्द मनाया क्योंकि राजा दाऊद के पुत्र राजा सुलैमान के दिनों से ऐसा यरुशलेम में नहीं हुआ था।
\v 27 याजक और लेवी के वंशजों ने खड़े होकर प्रजा को आशीर्वाद दिया और यहोवा ने अपने पवित्र स्थान, स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना सुन ली।
\s5
\c 31
\p
\v 1 पर्व समाप्त हो जाने के बाद जितने इस्राएली वहाँ उपस्थित थे, यहूदा के सब नगरों में और बिन्यामीन, मनश्शे और एप्रैम के नगरों में गए और मूर्तिपूजा के स्थलों को और अशेरा की लाटों को तोड़ दिया और ऊँचे स्थानों की वेदियों का भी ध्वस्त कर दिया और अपने-अपने निवास स्थानों को लौट गए।
\s5
\v 2 हिजकिय्याह ने याजकों को और लेवी के वंशजों को दलों में विभाजित कर दिया। कुछ दलों को उसने होम-बलि और यहोवा से मेल-बलि को चढ़ाने का उत्तरदायित्व सौंपा। कुछ दलों को यहोवा के भवन के अन्य उत्तरदायित्व सौंपे जैसे लोगों की आराधना करने में अगुआई करना; कुछ को यहोवा का धन्यवाद करने के लिए नियुक्त किया; कुछ को यहोवा के भवन के द्वारों पर यहोवा के लिए स्तुतिगान के लिए नियुक्त किया।
\v 3 राजा ने सुबह-शाम की बलियों के लिए, सब्त की बलियों के लिए, नये चाँद की बलियों के लिए तथा पर्वों की बलियों के लिए जिनका नियम यहोवा ने मूसा के विधान में व्यक्त किया था, पशु खरीदने के लिए अपने कोष में से प्रबन्ध किया।
\s5
\v 4 हिजकिय्याह ने यरुशलेमवासियों को आज्ञा दी कि वे याजकों और लेवी के वंशजों को उनके अधिकार का भाग दें जिससे कि वे यहोवा के नियमों का पालन करने में अपना पूरा समय लगाकर सेवा करें।
\v 5 राजा आज्ञा सुनते ही प्रजा ने अन्न, नया दाखमधु, जैतून का तेल, मधु और खेत की सब प्रकार की पहली उपज और दसवाँ भाग भी लाने लगे।
\s5
\v 6 यहूदा और इस्राएल के लोग भी जो यहूदा के विभिन्न नगरों में रहते थे, वे भी अपने मवेशियों भेड़ों और बकरियों तथा अन्य सब वस्तुओं का दसवाँ भाग जो पवित्र किया गया था लाने लगे और भवन में ढेर लग गया।
\v 7 उन्होंने तीसरे महीने में यह धन देना आरम्भ किया और सातवें महीने में पूरा किया।
\v 8 धन का ढेर लगा देख हिजकिय्याह और उसके अधिकारियों ने यहोवा की स्तुति की और प्रजा को आशीष देने की यहोवा से प्रार्थना की।
\s5
\v 9 हिजकिय्याह ने याजकों और लेवी के वंशजों से पूछा, “ये ढेर क्या है?”
\v 10 तब सादोक के वंशज प्रधान याजक अजर्याह ने कहा, “जब से प्रजा यहोवा के भवन में भेंट ला रही है तब से हमें भरपूर भोजन मिल रहा है और बच भी जाता है। इसका कारण है कि यहोवा ने हमारे इस्राएली भाइयों को विपुल आशिषें दी है जिसका परिणाम है कि सब याजक और लेवी के वंशज अपनी आवश्यकता के अनुसार उठा लेते है फिर भी ये वस्तुएँ बच जाती है और यह उन वस्तुओं का ही ढेर है।”
\v 11 तब हिजकिय्याह ने आज्ञा दी कि यहोवा के भवन में इन वस्तुओं को रखने के लिए भण्डार-गृह बनाए जाएँ।
\v 12 तब उन्होंने उन भण्डार-गृहों में दसवा-अंश, भेंटे और यहोवा को अर्पण की गई वस्तुएँ रखीं। भण्डार-गृहों का मुख्य अधिकारी लेवी वंशज कोनन्याह और उसका भाई शिमी था।
\v 13 इनके अधीन राजा हिजकिय्याह और यहोवा के भवन का प्रधान अजर्याह दोनों की आज्ञा से यहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमोत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह अधिकारी थे।
\s5
\v 14 लेवी वंशज यिम्ना का पुत्र कोरे जो यहोवा के भवन के पूर्वी द्वार का द्वारपाल था, वह यहोवा के लिए स्वेच्छा से लाई गई भेंटों का संरक्षक था। वह याजकों और लेवी के वंशजों को उन अर्पण की गई वस्तुओं में से बाँटा करता था।
\v 15 उसके अधीन एदेन, मिन्यामीन, येशुअ, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह याजकों के नगरों में रहते थे। वे अपने सहकर्मी याजकों को, बड़े हों या छोटे, सबको सच्चाई से देते थे।
\s5
\v 16 उनके अतिरिक्त कुलों की सूची के अनुसार तीन वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुषों को जो दैनिक सेवा के लिए यहोवा के भवन में प्रवेश करते थे कि अपने दल के उत्तरदायित्व को पूरा करें, उन्हें भी वे दिया करते थे।
\s5
\v 17 जिन याजकों के नाम उनके कुलों के अनुसार सूची में लिखे गए थे, उन्हें भी वे देते थे और लेवी के वंशज जो बीस वर्ष से अधिक थे, उन्हें भी वे देते थे।
\v 18 उनकी वंशावली के अनुसार जितनी भी सन्तान, पत्नियाँ, पुत्र तथा पुत्रियाँ सूचीबद्ध थे उन्हें भी उनका धन दिया जाता था क्योंकि उन्होंने यहोवा की सेवा में स्वयं को पवित्रता के लिए समर्पित कर दिया था।
\v 19 हिजकिय्याह ने उन याजकों तथा लेवी के वंशजों के लिए भी जो चारागाहों में थे, धन देने के लिए कुछ पुरुषों को नियुक्त किया था परन्तु उन्होंने केवल प्रथम प्रधान याजक हारून के वंशजों को ही दिया जिनके नाम कुलों के अनुसार सूची में लिखे हुए थे।
\s5
\v 20 हिजकिय्याह ने संपूर्ण यहूदा में ऐसा प्रबन्ध कर दिया था। उसने सच्चे दिल से वही किया जिसके लिए यहोवा ने उचित और भला बनाया था।
\v 21 उसने यहोवा के भवन में आराधना के लिए यहोवा के नियमों और आज्ञाओं का पालन करते हुए जो भी किया उसमें उसने यहोवा की इच्छा खोजा और मन लगाकर किया। परिणाम-स्वरूप वह सफल हुआ।
\s5
\c 32
\p
\v 1 हिजकिय्याह ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया। तब अश्शूरों के राजा सन्हेरीब ने यहूदा पर आक्रमण किया, उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि शहरपनाह वाले नगरों को घेर लें कि शहरपनाहों को तोड़कर उन नगरों को अपने अधिकार में कर लें।
\s5
\v 2 यह देखकर कि सन्हेरीब अपनी सेना के साथ यरुशलेम पर आक्रमण करना चाहता है।
\v 3 हिजकिय्याह ने अपने प्रधानों और योद्धाओं के साथ सभा की। उन्होंने सोचा, “अश्शूरों के राजा और सेना को पीने के लिए पानी क्यों मिले?” इसलिए उन्होंने शहर से बाहर जाने वाला जल प्रवाह रोक दिया।
\v 4 बहुत लोगों ने एकजुट होकर उस क्षेत्र के सोतों और नदी को पार दिया।
\s5
\v 5 तब उन्होंने कठोर परिश्रम करके शहरपनाह के टूटे हुए भागों को सुधारा और ऊँचाई पर गुम्मट बना दिए और दाऊदपुर के पूर्व में एक विशाल भिल्लो को दृढ़ किया। उन्होंने बड़ी मात्रा में हथियार और ढालें भी बनवाईं।
\s5
\v 6 हिजकिय्याह ने सेनापति नियुक्त करके उन्हें नगर के फाटक के चैक में इकट्ठा किया। उसने उन्हें साहस बँधाते हुए कहा,
\v 7 साहस के साथ दृढ़ हो जाओ। तुम न तो अश्शूरों के राजा से न ही उसकी विशाल सेना से भयभीत होना क्योंकि यहोवा हमारे साथ है और उसका सामथ्र्य उनकी शक्ति से कहीं अधिक है।
\v 8 वे मानवीय शक्ति का निर्भर करते है परन्तु हमारे पास सहायता के लिए हमारा परमेश्वर यहोवा है। वही हमारे लिए युद्ध करेगा।” इसलिए यहूदा के राजा की बात सुनकर उनका आत्म-विश्वास बढ़ गया।
\s5
\v 9 अश्शूरों का राजा सन्हेरीब अपनी सेना के साथ लाकीश का घेराव किए हुए था, तब उसने अपने पुरुषों को राजा हिजकिय्याह और उसकी प्रजा के लिए सन्देश देकर भेजाः
\v 10 “मैं अश्शूरों का महान राजा सन्हेरीब कहता हूँ, ‘तुम्हें किसका भरोसा है कि तुम्हारी रक्षा करेगा? मेरे सैनिक तुम्हारे यरुशलेम को घेरे हुए है।
\s5
\v 11 हिजकिय्याह तुमसे कहता है, ‘हमारा परमेश्वर यहोवा हमें अश्शूरों से बचाएगा तो क्या वह तुम्हें भूखा प्यासा मारना नहीं चाहता है?
\v 12 हिजकिय्याह ही ने तो तुम्हें कहा था कि ऊँचे स्थानों पर से देवी-देवताओं के पूजा-स्थलों को ध्वस्त कर दो और ग्रामीण क्षेत्रों में से वेदियों को ढा दो। तुम्हें केवल एक ही स्थान में आराधना करना है और एक ही वेदी पर धूप जलाना है।’
\s5
\v 13-14 क्या तुम नहीं जानते कि मैंने और मेरे पूर्वजों ने सब देशों के लोगों का क्या किया है? मैंने उन सबों का सर्वनाश किया और उनके देवी-देवता उन्हें बचा नहीं पाए।
\v 15 इसलिए हिजकिय्याह के भरमाने में मत आओं उसकी बातों का विश्वास मत करो क्योंकि ऐसा कोई भी देश नहीं है जिसका देवता उन्हें मेरी सेना से बचा पाया है, न ही मेरे पूर्वजों से बचाया है। इसलिए निश्चय जान लो कि तुम्हारा देवता भी तुम्हें मुझे बचा नहीं पाएगा।”
\s5
\v 16 सन्हेरीब के पुरुषों ने उनके परमेश्वर और हिजकिय्याह की बहुत निन्दा की।
\v 17 सन्हेरीब ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का अपमान करने के लिए और भी पत्र लिखे। उसने लिखा, “मैंने जितने भी देश जीते है, किसी का देवता उन्हें मुझसे बचा नहीं पाया है। इसी प्रकार हिजकिय्याह का देवता भी तुम्हें मुझसे बचा नहीं पाएगा।”
\s5
\v 18 तब उसके पुरुषों ने इब्रानी भाषा में शहरपनाह पर बैठे लोगों को डराने के लिए ऊँचे शब्दों में कहा कि हो सकता है युद्ध किए बिना ही अश्शूर उन्हें अपने अधीन कर लें।
\v 19 उन्होंने यरुशलेमवासियों के आराध्य परमेश्वर यहोवा का भी वैसे ही अपमान किया जैसे अन्य देशों के देवताओं का जो हाथों की बनाई हुई मूर्तियाँ थे, किया था।
\s5
\v 20 तब राजा हिजकिय्याह और भविष्यद्वक्ता यशायाह ने प्रार्थना की।
\v 21 उस रात यहोवा ने एक स्वर्गदूत भेजकर अश्शूरों की छावनी में सब सैनिकों को और उनके प्रधानों तथा सेनापतियों को नष्ट कर तब एक दिन वह अपने देवता के मन्दिर में गया तब उसके अपने ही पुत्रों ने उसे तलवार से मार डाला।
\s5
\v 22 इस प्रकार यहोवा ने हिजकिय्याह और यरुशलेमवासियों को सन्हेरीब के सैन्य बल से और उनके सब शत्रुओं से बचाया और उन्हें चारों ओर से शान्ति प्रदान की।
\v 23 तब अनेक जन यहोवा के लिए भेंटे लेकर और हिजकिय्याह के लिए अनमोल वस्तुएँ लेकर यरुशलेम आने लगे और वह सब जातियों की दृष्टि में महान हो गया।
\s5
\v 24 इस बीच हिजकिय्याह बहुत बीमार हो गया और उसे ऐसा लगा कि वह अब मर जाएगा। उसने यहोवा से प्रार्थना की और यहोवा ने चमत्कार करके उसे स्वस्थ कर दिया।
\v 25 हिजकिय्याह को घमण्ड हो गया और उसने यहोवा की इस दया के लिए उसे धन्यवाद नहीं कहा। इस बात पर यहोवा उससे क्रोधित हो गया और उसने हिजकिय्याह को तथा यरुशलेम और यहूदा के निवासियों को दण्ड दिया।
\v 26 परन्तु जब हिजकिय्याह ने अपने घमण्ड की क्षमा माँगी और यरुशलेमवासियों ने अपने पाप की क्षमा माँगी तो यहोवा ने हिजकिय्याह के शासनकाल में उन्हें दण्ड नहीं दिया।
\s5
\v 27 हिजकिय्याह बहुत धनवान और प्रतिष्ठित हो गया था। उसने सोना-चाँदी, मणियों, मसालों, ढालों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के लिए भण्डार-गृह बनवाए।
\v 28 उसने प्रजा द्वारा लाए गए अन्न, दाखमधु, जैतून के तेल के भण्डार के लिए भी भण्डार-गृह बनवाए। उसने पशुओं के लिए पशु-शालाएँ और भेड़-बकरियों के लिए भेड़-शालाएँ भी बनवाईं।
\v 29 उसने अपने लिए लाए गए भेड़-बकरियों तथा मवेशियों के लिए नगरों का निर्माण किया क्योंकि परमेश्वर ने बहुत सा धन प्रदान किया था।
\s5
\v 30 हिजकिय्याह ही ने गीहोन के सोते का जल प्रवाह रुकवाकर पश्चिम की ओर दाऊदपुर में पहुँचाने के लिए भूमिगत नहर बनवाई थी। उसने जो चाहा उसे करने में वह सफल हुआ।
\v 31 तब एक दिन बेबीलोन के प्रधानों के दूत उसकी चमत्कारी तरीके से स्वस्थ होने के विषय में सुनकर उससे भेंट करने आए तब यहोवा ने उसे स्वतंत्रता दी कि उसके मन का भेद जाने कि वह यहोवा को अपने स्वस्थ होने का श्रेय देता है या नहीं।
\s5
\v 32 हिजकिय्याह के शासनकाल की सब घटनाएँ और यहोवा को प्रसन्न करने के उसके काम “भविष्यद्वक्ता यशायाह के दर्शनों की पुस्तक” में लिखे है। “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक में भी उसकी जीवनी लिखी है।
\v 33 अन्त में हिजकिय्याह की मृत्यु हुई। उसे यहूदा के सम्मानित राजाओं के कब्रिस्तान में दफन किया गया। यरुशलेम और यहूदा में सर्वत्र उसकी मृत्यु पर उसका सम्मान दिया गया। उसके बाद उसका पुत्र मनश्शे उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\c 33
\p
\v 1 मनश्शे जब यहूदा का राजा बना तब वह बारह वर्ष की आयु का था और उसने पचपन वर्ष यहूदा पर शासन किया।
\v 2 उसने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। उसने वह सब घृणित काम किए जो अन्य जातियाँ करती थीं जिन्हें यहोवा ने वहाँ से निकाला था जब इस्राएली उस देश में प्रवेश कर रहे थे।
\v 3 उसने पर्वतों पर मूर्ति पूजा के स्थल बनवाए। उन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने ध्वस्त कर दिया था। उसने बाल और अशेरा की लाटें खड़ी करवाईं। वह सितारों को भी दण्डवत् करता था।
\s5
\v 4 उसने तो यहोवा के भवन में भी देवी-देवताओं के लिए वेदियाँ बनवा दीं जबकि यहोवा ने कहा था, “यरुशलेम में इसी स्थान में मनुष्य सदा के लिए मेरी आराधना करे।
\v 5 उसने यहोवा के भवन के दोनों आँगनों में सितारों की पूजा करने के लिए वेदियाँ बनवाई।
\v 6 उसने बेनहिमोन की घाटी में अपने ही पुत्रों को आग में जलाया करवाया। वह जादू-टोना भी करता था। वह भावी बताने वालों से परामर्श खोजता था। वह भूत सिद्धी भी करता था। वह भविष्य जानने के लिए मृतकों की आत्माओं को बुलाने वालों के पास जाता था। उसने यहोवा की दृष्टि में सब बुरे काम किए जिनसे यहोवा क्रोधित होता है।
\s5
\v 7 मनश्शे ने मूर्ति बनवाकर यहोवा के भवन में रखवाई। यहोवा ने इस भवन के विषय में दाऊद और सुलैमान से कहा था, “मेरा भवन यरुशलेम में होगा जिसे मैंने चुन लिया है कि मनुष्य वहाँ मेरी आराधना सदा किया करें।
\v 8 यदि वे उन सब नियमों, आदेशों और विधियों का पालन करें जो मैंने मूसा को दी थीं। मैं इस्राएलियों को तब विवश नहीं करूँगा कि वे इस देश से विस्थापित हों जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।”
\v 9 परन्तु मनश्शे ने यरुशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों में प्रजा से बुरे काम करवाए जो उन जातियों के कामों से भी अधिक बुरे थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के प्रवेश करने पर वहाँ से निकाला था।
\s5
\v 10 यहोवा ने मनश्शे और यहूदा की प्रजा से बातें कीं परन्तु उन्होंने उसकी और कान नहीं लगाया।
\v 11 इसलिए यहोवा ने अश्शूरों के सेनापतियों और उनकी सेना को यरुशलेम पर आक्रमण करने के लिए उभारा और उन्होंने मनश्शे को बन्दी बना लिया। उन्होंने नाक में नकेल डालकर उसको पीतल की जंजीरों से जकड़कर बेबीलोन ले गए।
\s5
\v 12 वहाँ कष्ट भोगने के कारण उसने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा के सामने स्वयं को दीन किया और यहोवा से सहायता माँगी।
\v 13 उसकी प्रार्थना सुनकर यहोवा को उस पर दया आई और यहोवा उसे यरुशलेम लौटा लाया और उसका राज्य उसे दुबारा दे दिया। तब मनश्शे को यह बोध हो गया कि यहोवा ही परमेश्वर है और वह कुछ भी कर सकता है।
\s5
\v 14 इसके बाद उसने यरुशलेम की शहरपनाह का पूर्वी भाग, गीहोन के सोते से उत्तर में मछली फाटक तक नए सिरे से बनवाया और उसे ऊँचा भी किया। शहरपनाह का वह भाग नगर के ओपेल पर्वत नामक क्षेत्र को घेरे हुए था। मनश्शे ने यहूदा के प्रत्येक शहरपनाह वाले नगर की रक्षा के लिए सैनिक अधिकारी नियुक्त कर दिए।
\v 15 उसने यहोवा के भवन में से अन्य जातियों के देवताओं की मूर्तियाँ और सिय्योन पर्वत पर बनवाई गई वेदियाँ तथा यरुशलेम के अन्य स्थानों में जो वेदियाँ थी सबको उठाकर नगर से बाहर फिंकवा दिया।
\s5
\v 16 तब उसने यहोवा की वेदी को सुधारा और यहोवा के साथ मेल करने के लिए और धन्यवाद देने के लिए बलियाँ चढ़ाईं। उसने यहूदा की प्रजा को आज्ञा दी कि वे केवल यहोवा की आराधना करें।
\v 17 प्रजा ऊँचे स्थानों में बलि चढ़ाती रही परन्तु केवल यहोवा के लिए।
\s5
\v 18 मनश्शे के शासनकाल के अन्य सब काम, यहोवा से की गई उसकी प्रार्थना और भविष्यद्वक्ताओं द्वारा उसे दिए गए यहोवा के सन्देश आदि सब “इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\v 19 मनश्शे की प्रार्थना और उस पर परमेश्वर की दया और उसके पाप और विश्वासघात और दीन होने से पहले उसने कहाँ-कहाँ ऊँचे स्थान बनवाए- मूर्ति पूजा स्थल, अशेरा की लाटें और खुदी हुई मूर्तियों की स्थापना करवाना आदि सबका वर्णन भविष्यद्वक्ताओं के वृत्तान्त में है।
\v 20 तब मनश्शे की मृत्यु हुई और उसे राजमहल में ही दफन किया गया। उसके बाद उसका पुत्र आमोन उसके स्थान में यहूदा का राजा बना ।
\s5
\v 21 आमोन बाईस वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा था और यरुशलेम में रहकर उसने केवल दो वर्ष यहूदा पर शासन किया।
\v 22 उसने यहोवा की दृष्टि में बुरे काम किए, जैसा उसके पिता मनश्शे ने किया था। आमोन ने मनश्शे द्वारा बनवाई गई सब मूर्तियों की पूजा की,
\v 23 परन्तु वह अपने पिता के समान दीन होकर यहोवा की शरण नहीं आया। इसलिए वह अपने पिता से भी अधिक दोषी हो गया था।
\s5
\v 24 तब आमोन के पुरुषों ने उसकी हत्या करने का षड्यन्त्र रचा और महले में ही उसकी हत्या कर दी।
\v 25 परन्तु यहूदावासियों ने उसके हत्यारों को मार डाला और उसके पुत्र योशिय्याह को राजगद्दी पर बैठाया।
\s5
\c 34
\p
\v 1 जब योशिय्याह शासन करने लगा तब उसकी आयु आठ वर्ष की थी। उसने यरुशलेम में इकत्तीस वर्ष शासन किया।
\v 2 उसने यहोवा को प्रसन्न करने के काम किए। वह अपने पूर्वज राजा दाऊद के चरण चिन्हों पर चला और यहोवा के नियमों का अटल पालन किया।
\v 3 उसे राजगद्दी पर बैठे हुए आठ वर्ष ही हुए थे अर्थात बच्चे में ही वह अपने पूर्वज दाऊद के समान परमेश्वर की खोज में लग गया। चार वर्ष बाद उसने पर्वतों पर स्थापित मूर्ति पूजा के भवनों को तुड़वाना आरम्भ कर दिया। यरुशलेम के चारों ओर तथा यहूदा में विभिन्न स्थानों में ऐसे अनेक स्थल थे। उसने अशेरा की लाटें तथा तराशी हुई मूर्तियों और धातु की मूर्तियों को भी तुड़वा दिया।
\s5
\v 4 उसके आदेश पर बाल की पूजा की वेदियाँ भी तोड़ दी गई। उन वेदियों के समीप धूप जलाने की वेदियों को भी तुड़वा दिया। अशेरा की लाटों को और लकड़ी, पत्थर तथा धातु की सब मूर्तियों को चूर-चूर करके उनके लोगों की कब्रों पर बिखरा दिया।
\v 5 उसने उन मूर्तियों के लिए बलि चढ़ाने वाले पुजारियों की हड्डियों को उन्हीं वेदियों पर जलवाया। इस प्रकार योशिय्याह ने यरुशलेम और यहूदा को यहोवा के लिए दुबारा ग्रहण-योग्य बना दिया।
\s5
\v 6 मनश्शे, एप्रैम, शिमोन और दूर उत्तर में नप्ताली के नगरों और उनके आसपास के खण्डहरों में,
\v 7 योशिय्याह ने अन्य जातीय वेदियाँ और अशेरा की लाटों को तथा मूर्तियों को चूर-चूर कर दिया और संूपर्ण इस्राएल में धूप जलाने की सब वेदियों को ध्वस्त कर दिया। तब वह यरुशलेम लौट आया।
\s5
\v 8 जब योशिय्याह अठारह वर्ष शासन कर चुका तब उसने अपने देश और यहोवा के भवन को यहोवा की आराधना के लिए ग्रहण-योग्य बनाना चाहा। इसलिए उसने असल्याह के पुत्र शापान और नगर के अधिपति मासेयाह और योआहाज के पुत्र इतिहास के लेखक योआह को अपने परमेश्वर यहोवा के भवन का सुधार-कार्य करने भेजा।
\v 9 वे प्रधान याजक हिल्किय्याह के पास गए और जो धनराशि यहोवा के भवन में अर्पित की गई थी उसे दे दी। यह धन-राशि लेवी के वंशज, द्वारपालों ने मनश्शे, एप्रैम और इस्राएल के अन्य क्षेत्रों के लोगों से तथा यरुशलेमवासियों से और यहूदा और बिन्यामीन के लोगों से- वे सब जो देश में बचे रह गए थे- भेंट स्वरूप प्राप्त की थी।
\s5
\v 10 और हिल्किय्याह ने कुछ धनराशि यहोवा के भवन के सुधार का काम करने वालों के निरीक्षकों को दे दी। निरीक्षकों ने वह धनराशि सुधार का काम करने वालों को दी।
\v 11 कुछ धनराशि बढ़इयों को और शासन मिस्त्रियों को भी दी कि वे तराशे हुए पत्थर तथा लकड़ी खरीद लें कि भवन में नई शहतीरों और कड़ियों को लगवाएँ क्योंकि यहूदा के राजाओं ने जो पहले थे, भवन की देख-रेख पर ध्यान नहीं दिया जिसके कारण वे गल गई थी।
\s5
\v 12 सुधार का काम करने वाले ईमानदारी से काम करते थे। उनके निरीक्षण लेवी के पुत्र मरारी के वंशज यहत और ओबद्याह तथा लेवी के पुत्र कहात के वंशज जकर्याह और मशुल्लाम थे। लेवी के सब वंशज जो अच्छा संगीत बजाते थे,
\v 13 अपने अन्य सब उत्तरदायित्वों के साथ-साथ इन काम करने वालों पर भी दृष्टि रखते थे। लेवी के वंशजों में से कुछ मुंशी थे, कुछ लेखाधिकारी थे और कुछ द्वारपाल थे।
\s5
\v 14 जब वे यहोवा के भवन में लाई गई धनराशि निकाल रहे थे तब प्रधान याजक हिल्किय्याह को यहोवा प्रदत्त मूसा के विधान की पुस्तक मिली।
\v 15 हिल्किय्याह ने शापान से कहा, “मुझे यहोवा के भवन में यहोवा के विधान की पुस्तक मिली है।” और उसने वह पुस्तक शापान को सौंप दी।
\v 16 शापान वह पुस्तक लेकर राजा के पास गया और उससे कहा, “तेरे पुरुष दिया गया सब काम कर रहे है।
\s5
\v 17 उन्होंने यहोवा के भवन में लाई गई धनराशि सुधार कार्य करने वालों के निरीक्षकों को दे दी है।”
\v 18 तब शापान ने राजा से कहा, “मैं यह पुस्तक भी लाया हूँ। हिल्किय्याह ने मुझे यह पुस्तक दी है।” और शापान उस पुस्तक में से पढ़कर राजा को सुनाने लगा।
\v 19 पुस्तक की बातों को सुनकर राजा विव्हल हो गया और उसने अपने वस्त्र फाड़े।
\s5
\v 20 और उसने हिल्किय्याह, शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, शापान मंत्री और अपने एक पुरुष असायाह को आज्ञा दी,
\v 21 “जाकर यहोवा से मेरे विषय में और यहूदा तथा इस्राएल में जितने भी लोग जीवित है, उन सबके विषय में पूछो कि इस पुस्तक में जो हमें मिली है, क्या लिखा है क्योंकि यह तो स्पष्ट है कि यहोवा हमारे पूर्वजों की अनिष्ठा के कारण बहुत क्रोधित है। उन्होंने इस पुस्तक में लिखे नियमों का पालन नहीं किया है।”
\s5
\v 22 इसलिए हिल्किय्याह और ये सब जन यरुशलेम के नए खण्ड में रहने वाली भविष्यद्वक्तिन हुल्दा के पास गए। उसका पति तोखत का पुत्र शल्लूम था और वह वस्त्रालय का रखवाला था।
\s5
\v 23 उन्होंने उसे राजा की आज्ञा सुनाई तो उसने उनसे कहा, हम इस्राएलियों का आराध्य परमेश्वर यहोवा कहता है,
\v 24 जाकर राजा से कहो कि यहोवा का वचन है, सावधानी से सुनो कि मैं यरुशलेम और उसके निवासियों पर विनाश ढाने वाला हूँ। मैं उन पर वे सब श्राप ले आऊँगा जिनके विषय में इस पुस्तक में है।
\v 25 इसका कारण है कि उन्होंने मेरा त्याग करके देवी-देवताओं के लिए धूप जलाई है। उनकी मूर्तियों के कारण मेरा क्रोध भड़क उठा है।
\s5
\v 26 यहूदा के राजा ने तुम्हें भेजा है कि मुझ यहोवा की इच्छा जानो। जाकर उससे कहो कि मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस पुस्तक के वचन के विषय में जो तुमने पढ़ा है, कहता हूँ,
\v 27 क्योंकि तूने इस पुस्तक की बातों पर ध्यान दिया है और इस नगर तथा इस नगर के निवासियों के भावी दुर्भाग्य की जो चेतावनी मैंने दी है, उसे सुनकर तू दीन हुआ है और अपने वस्त्र फाड़ कर रोया है तो मैंने सुन लिया है।
\v 28 इसलिए मैं तुझे शान्ति से मरने दूँगा। तू इस नगर और इस नगर के निवासियों पर मेरे दण्ड को देखने नहीं पाएगा।” इसलिए उन्होंने जाकर राजा को उस भविष्यद्वक्तिन की बातें सुना दीं।
\s5
\v 29 तब राजा ने यरुशलेम और यहूदा के सब अगुओं का आव्हान किया।
\v 30 यहूदा के सब अगुवे तथा अनेक यरुशलेमवासी, याजक और लेवी के वंशज- छोटे से बड़े तक सब- यहोवा के भवन के सामने इकट्ठा हुए। तब राजा ने भवन में पाई गई पुस्तक में से यहोवा के सब नियमों को पढ़कर सुनाया।
\s5
\v 31 और राजा यहोवा के भवन के प्रवेश द्वार के खम्भे के पास खड़ा हुआ जहाँ राजा लोग खड़े होते थे कि यह महत्वपूर्ण घोषणा करें, और यहोवा की उपस्थित में प्रतिज्ञा की कि वह उस पुस्तक में लिखी यहोवा की सब आज्ञाओं, विधियों तथा नियमों का सच्चे मन से पालन करेगा।
\v 32 तब राजा ने कहा कि यरुशलेम का प्रत्येक निवासी और बिन्यामीन का गोत्र प्रतिज्ञा करें कि वे इन सब नियमों का पालन करेंगे और प्रजा ने ऐसा ही किया और प्रतिज्ञा की कि वे उनके पूर्वजों के आराध्य परमेश्वर ने जो उनसे वाचा बाँधी थी उसका वे पालन करेंगे।
\s5
\v 33 योशिय्याह ने आज्ञा दी कि इस्राएल के संपूर्ण देश से सब घृणित मूर्तियाँ निकाल दी जाएँ और जो लोग वहाँ उपस्थित थे वे सब केवल अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करेंगे। जब तक योशिय्याह जीवित रहा तब तक प्रजा यहोवा को प्रसन्न करने के काम करती रही।
\s5
\c 35
\p
\v 1 योशिय्याह ने आज्ञा दी कि सब लोग यरुशलेम में फसह मनाएँ। इसलिए उन्होंने पहले महीने के चैदहवें दिन फसह के मेम्ने बलि किए।
\v 2 योशिय्याह ने याजकों को यहोवा के भवन की सेवा के काम सौंप दिए और भली-भांति सेवा करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।
\s5
\v 3 तब लेवी के वंशज जो प्रजा को शिक्षा देते थे और यहोवा के लिए पवित्र किए गए थे, उनसे योशिय्याह ने कहा, “यहोवा के पवित्र सन्दूक को दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान द्वारा बनवाए गए भवन में रख दो। उसे डंडों के सहारे से ही उठाना, अपने कंधों पर नहीं। अपने परमेश्वर यहोवा और उसकी प्रजा की सेवा निष्ठापूर्वक करो।
\v 4 अपने-अपने कुल के अनुसार दल बना लो और राजा दाऊद तथा उसके पुत्र सुलैमान द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करो।
\s5
\v 5 अपने-अपने कुल के अनुसार पवित्र स्थान में खड़े होकर अपने इस्राएली भाइयों द्वारा लाई गई भेंटों को अर्पित करने में उनकी सहायता करो।
\v 6 फसह के मेम्नों को मर दो और अपने को विधि के अनुसार पवित्र करो और यहोवा की सेवा करो तथा मूसा द्वारा दिए गए यहोवा के निर्देशनों का पालन करो।”
\s5
\v 7 योशिय्याह ने अपने पशुओं में से तीस हजार भेड़ों और बकरियों के बच्चे फसह के लिए दिए और तीन हजार बछड़े भी दिए।
\v 8 उसके पुरुषों ने भी स्वेच्छा से प्रजा के लिए और याजकों तथा लेवी के वंशजों के लिए बलिपशु दिए। यहोवा के भवन के अधिकारी हिल्किय्याह, जकर्याह और यहीएल ने याजकों को फसह के लिए दो हजार छः सौ मेम्ने और तीन सौ बछड़े दिए।
\v 9 कोनन्याह और उसके छोटे भाइयों, शमायाह, नतनेल तथा लेवियों के प्रधान, हशब्याह, यीएल और योजाबाद ने पाँच हजार मेम्ने और पाँच सौ बैल फसह के लिए दिए।
\s5
\v 10 इस प्रकार फसह की तैयारी पूरी हो गई और राजा की आज्ञा के अनुसार याजक और लेवी के वंशज अपने-अपने स्थानों में खड़े हुए।
\v 11 तब फसह के पशु बलि किए गए और याजक बलि करने वालों के हाथ से एक लेकर छिड़कते गए और लेवी के वंशज बलि पशुओं की खाल उतारते रहे।
\v 12 उन्होंने होम-बलि वाले पशुओं को अलग रखा कि उन्हें यहोवा को चढ़ाने के लिए विभिन्न कुलों को दें जैसा मूसा की पुस्तक में लिखा था। ऐसा ही उन्होंने मवेशियों के साथ किया।
\s5
\v 13 निर्देशों का पालन करते हुए उन्होंने फसह के मेम्नों को आग में भूँजा और पवित्र बलि का माँस बड़े-छोटे पात्रों में पकाकर तुरन्त वहाँ उपस्थित सब लोगों में बाँट दिया।
\v 14 उसके बाद उन्होंने अपने लिए और याजकों के लिए माँस पकाया क्योंकि याजक रात तक होम-बलि करने और चर्बी जलाने में व्यस्त थे। इसलिए लेवी के वंशजों ने अपने लिए और प्रथम प्रधान याजकों हारून के वंशजों, याजकों के लिए माँस पकाया।
\s5
\v 15 आसाप के वंशज राजा दाऊद, आसाप, हेमान और राजा के दर्शी यदूतून की आज्ञा के अनुसार अपने-अपने स्थान में खड़े हुए। द्वारपालों को अपने स्थानों से हटने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि उनके भाई लेवी के वंशजों ने उनके लिए भोजन तैयार कर दिया था।
\s5
\v 16 इसलिए उस दिन यहोवा की आराधना के लिए जो भी आवश्यक था किया गया। उन्होंने फसह मनाया और वेदी पर होम-बलि कीं क्योंकि यह योशिय्याह की आज्ञा थी।
\v 17 जो इस्राएली वहाँ उपस्थित थे उन्होंने उस दिन फसह मनाया और फिर सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व मनाया।
\s5
\v 18 भविष्यद्वक्ता शमूएल के बाद ऐसा फसह इस्राएल में कभी नहीं मनाया गया था और योशिय्याह के समान इस्राएल के किसी राजा ने फसह नहीं मनाया था कि सब याजक लेवी के वंशज तथा यहूदावासी और इस्राएली जो उनके बीच यरुशलेम में रहते थे, सब एक साथ उपस्थित हों।
\v 19 यह फसह योशिय्याह के शासनकाल के अठारहवें वर्ष में मनाया गया था।
\s5
\v 20 यहोवा के भवन में आराधना का दुबारा आरम्भ करने के लिए योशिय्याह ने यह सब किया। इसके बाद मिस्र का राजा नको न फरात नदी के समीप कर्कमीश नगर पर आक्रमण किया। योशिय्याह उससे युद्ध करने के लिए सेना लेकर निकला।
\v 21 तब नको ने उसे सन्देश भेजकर कहा, “तू यहूदा का राजा है और हमारे बीच युद्ध का कोई कारण नहीं है। हम बेबीलोन पर आक्रमण करने जा रहे है। परमेश्वर ने मुझसे शीघ्रता करने को कहा है। इसलिए परमेश्वर का विरोध करना छोड़ दें नहीं तो वह तुझे नष्ट कर देगा।”
\s5
\v 22 योशिय्याह ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसने भेष बदल कर मिस्र की सेना पर आक्रमण किया कि उसे कोई पहचान न पाए। उसने नको द्वारा दिए गए यहोवा के सन्देश पर ध्यान नहीं दिया और भगिद्दो के मैदान में उसका सामना किया।
\s5
\v 23 मिस्र के धनुर्धारियों ने योशिय्याह पर तीर छोड़े और उसने अपने सेवकों से कहा, मैं बहुत घायल हो गया हूँ मुझे यहाँ से बाहर ले चलो।”
\v 24 इसलिए उन्होंने उसे उसके रथ पर से उतारकर एक दूसरे रथ पर जिसे वह साथ लाया था सवार करा के यरुशलेम ले आए। वहाँ उसकी मृत्यु हुई। उसे उसके पूर्वजों के कब्रिस्तान में दफन किया गया। यरुशलेम और संपूर्ण यहूदा की प्रजा ने उसके लिए शोक किया।
\s5
\v 25 भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने योशिय्याह के लिए एक विलापगीत लिखा। इस्राएल के स्त्री-पुरुष आज भी वह गीत गाकर योशिय्याह के लिए विलाप करते है। इस्राएल में यह एक प्रथा बन गई। यह गीत विलापगीतों की पुस्तक में लिखा हुआ है।
\v 26-27 योशिय्याह के शासनकाल के अन्य सब काम, उसकी राज के आरम्भ से उसकी मृत्यु तक, उसके सब काम और यहोवा के प्रति उसकी भक्ति तथा यहोवा के नियमों के पालन की उसकी गाथा “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है।
\s5
\c 36
\p
\v 1 योशिय्याह के बाद प्रजा ने उसके पुत्र यहोआहाज को उसके पिता के स्थान में राजगद्दी पर बैठाया।
\v 2 यहोआहाज तेईस वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठा परन्तु केवल तीन महीने ही राज कर पाया।
\s5
\v 3 मिस्र के राजा ने उसे बन्दी बना लिया और यहूदा पर लगभग चार टन चाँदी और लगभग चैंतीस किलोग्राम सोना कर लगाया।
\v 4 मिस्र के राजा ने यहोआहाज के छोटे भाई एलयाकीम को उसके स्थान में यहूदा का राजा नियुक्त किया और एल्याकीम का नाम बदलकर यहोयाकीम रखा। यहोआज को नको मिस्र ले गया।
\s5
\v 5 यहोयाकीम जब राजा नियुक्त किया गया तब उसकी आयु पच्चीस वर्ष की थी और उसने ग्यारह वर्ष यरुशलेम में राज किया। उसने वही सब किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था।
\v 6 तब बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने यहूदा पर आक्रमण करके यहोयाकीम को पीतल की जंजीरों में जकड़ कर वे बेबीलोन ले गए।
\v 7 नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने यहोवा के भवन की बहुमूल्य वस्तुएँ लूट लीं और बेबीलोन में नबूकदनेस्सर के महल में रख दीं।
\s5
\v 8 यहोयाकीम के शासनकाल की सब घटनाएँ और उसके बुरे काम और लोगों ने उसमें जो बुराईयाँ देखीं आदि सब “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है। उसके बेबीलोन ले जाने के बाद उसका पुत्र यहोयाकीन यहूदा का राजा हुआ।
\s5
\v 9 जब यहोयाकीन यहूदा का राजा बना तब वह अठारह वर्ष का था और उसने यरुशलेम में केवल तीन महीने और दस दिन राज किया। उसने यहोवा की दृष्टि में सब कुरे काम किए।
\v 10 अगले वर्ष वसंत ऋतु में नबूकदनेस्सर ने सैनिक भेजकर उसे बन्दी बनवाकर बेबीलोन बुलवा लिया। उसके सैनिकों ने यहोवा के भवन से बहुमूल्य वस्तुएँ लूट लीं। नबूकदनेस्सर ने उसके चाचा सिदकिय्याह के यहूदा का राजा नियुक्त करके यरुशलेम में रखा।
\s5
\v 11 सिदकिय्याह इक्कीस वर्ष की आयु में राजा नियुक्त किया गया था और उसने यरुशलेम में ग्यारह वर्ष राज किया।
\v 12 उसने भी यहोवा की दृष्टि में सब बुरे काम किए। भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने जब उसे चेतावनी भरा यहोवा का सन्देश सुनाया तब वह दीन नहीं हुआ।
\s5
\v 13 वह इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा की ओर नहीं हुआ। तब सिदकिय्याह ने नबूकदनेस्सर से विद्रोह किया। नबूकदनेस्सर ने उसे परमेश्वर की शपथ खिलाकर निष्ठा निभाने का वचन लिया था परन्तु सिदकिय्याह हठ करता रहा।
\v 14 इसके अतिरिक्त याजकों और यहूदावासियों के प्रधान और भी अधिक दुराचारी हो गए और अन्य जातियों के घिनौने काम करने लगे और यरुशलेम में यहोवा के भवन को जिसे यहोवा ने पवित्र किया था, आराधना के लिए अयोग्य कर दिया।
\s5
\v 15 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से यहूदावासियों के अनेक सन्देश भेजे क्योंकि वह अपनी प्रजा पर दयावान था और अपने भवन को नष्ट नहीं होने देना चाहता था।
\v 16 उन्होंने यहोवा के सन्देशों को तुच्छ समझा और उसके भविष्यद्वक्ताओं की निन्दा की। परिणाम-स्वरूप यहोवा का कोप सीमा पार कर गया और यहूदा का सर्वनाश करने में उसे कोई रोक नहीं पाया।
\s5
\v 17 यहोवा ने बेबीलोन को उभारा कि वह यहूदा पर आक्रमण करे। उन्होंने युवकों को तलवार से घात किया, यहाँ तक कि यहोवा के भवन में भी सँहार किया गया। उन्होंने युवक, युवतियों और बुजुर्गों को भी नहीं छोड़ा। यहोवा ने नबूकदनेस्सर की सेना द्वारा उन सबका नाश करवाया।
\s5
\v 18 उसके सैनिक यहोवा के भवन में काम आने वाली छोटी से बड़ी वस्तुएँ और राजा के पुरुषों से सब मूल्यवान वस्तुएँ लूट लीं।
\v 19 उन्होंने यहोवा के भवन को जला दिया और यरुशलेम की शहरपनाह ढा दी। उन्होंने यरुशलेम के सब भवनों को जला दिया और उनमें का सारा बहुमूल्य सामान नष्ट कर दिया।
\s5
\v 20 नबूकदनेस्सर की सेना शेष सब लोगों को जो तलवार से मारे नहीं गए थे, बन्दी बनाकर ले गई और फारस द्वारा परास्त किए जाने तक वे राजा के और उसके पुत्रों का दास बनकर रहे।
\v 21 मूसा ने आज्ञा दी कि सातवें वर्ष वे भूमि को विश्राम दें अर्थात फसल न उगाएँ परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। बेबीलोन की सेना के द्वारा यहूदा उजड़ जाने के बाद भूमि को सत्तर वर्ष तक विश्राम मिला और यहोवा ने भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह द्वारा भी यही कहा था।
\s5
\v 22 फारस के राजा कुस्रू के पहले वर्ष में यहोवा ने उसके मन को उभारा कि यिर्मयाह द्वारा कहा गया यहोवा का वचन पूरा हो। इसलिए उसने संपूर्ण राज्य में घोषणा करवाई और पत्र भी लिखे। उसने लिखाः
\v 23 “मैं, फारस का राजा कुस्रू यह घोषणा करता हूँ कि स्वर्ग के परमेश्वर ने मुझे पृथ्वी के सब राज्यों पर राजा बनाया है। उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि मैं यहूदा देश के यरूशलेम नगर में उसके लिए एक भवन बनवाऊँ। मैं तुम्हारे बीच रहने वाले उसके लोगों को स्वतंत्र करता हूँ कि यरुशलेम जाएँ और मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा उनके साथ हो।”

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\id EZR
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h एज्रा
\toc1 एज्रा
\toc2 एज्रा
\toc3 ezr
\mt1 एज्रा
\s5
\c 1
\p
\v 1 पहले वर्ष के दौरान जब राजा कुस्रु ने फारसी साम्राज्य पर शासन किया, उसने कुछ ऐसा किया जिससे यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता द्वारा बोली गई भविष्यवाणी पूरी हो सके। यहोवा ने राजा कुस्रु को यह संदेश लिखने के लिए प्रेरित किया, और फिर राजा कुस्रु ने इस संदेश को पूरे साम्राज्य में घोषित कर दिया:
\v 2 “मैं, राजा कुस्रु, फारसी साम्राज्य पर शासन करता हूँ, और मैं यह कहता हूँ: यहोवा, परमेश्वर जो स्वर्ग में हैं, उन्होंने मुझे पृथ्वी पर सभी राज्यों के ऊपर शासक बनाया है, और उन्होंने मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए सौंपा है कि उनके लोग उनके लिए यहूदा के यरूशलेम में परमेश्वर का भवन बनाएँ।
\s5
\v 3 जो लोग परमेश्वर के हैं, वे यरूशलेम जा सकते हैं ताकि यहोवा के भवन का पुनर्निर्माण कर सकें, परमेश्वर जो यरूशलेम में रहते हैं, और इस्राएल के परमेश्वर हैं।
\v 4 अन्य लोग जो वहाँ रहते हैं, जहाँ इस्राएली लोग अभी गुलामी में हैं, और जिनके पूर्वज भी यहाँ गुलामी में थे, उन लोगों को जो यरूशलेम जाने वाले हैं; चाँदी और सोने से योगदान देना चाहिए। उन्हें यहूदियों को वो वस्तुएँ भी देनी चाहिए जिनकी आवश्यकता उन्हें उनकी यरूशलेम की यात्रा में होगी। उन्हें यरूशलेम में परमेश्वर के भवन का निर्माण करने के लिए कुछ पशुधन और धन के उपहारों को भी देना चाहिए।”
\p
\s5
\v 5 तब परमेश्वर ने कुछ याजकों, लेवियों और कुछ अगुवों को प्रेरित किया, जो यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों से थे ताकि यरूशलेम जाएँ। जिनको परमेश्वर ने प्रेरित किया कि वे यरूशलेम को लौटने और परमेश्वर के लिए भवन बनाने को तैयार हो जाएँ।
\v 6 उनके सभी पड़ोसियों ने उन्हें चाँदी और सोने की वस्तुएँ और यात्रा के लिए आपूर्ति और पशुधन देकर उनकी सहायता की। उन्होंने उन्हें अन्य मूल्यवान उपहार भी दिए और परमेश्वर का भवन बनाने के लिए वस्तुओं को खरीदने के लिए उन्हें पैसे भी दिए।
\s5
\v 7 राजा कुस्त्रु उन मूल्यवान वस्तुओं को निकाल लाया जो राजा नबूकदनेस्सर के सैनिक यरूशलेम में यहोवा के भवन से ले गए थे और उन्हें बाबेल में अपने देवताओं के मन्दिर में रख दिया था।
\v 8 राजा कुस्रु ने मिथ्रदात, फारसी साम्राज्य के खजांची को इन सब वस्तुओं को गिनने और फिर उन्हें यहूदा को लौटने वाले समूह के अगुवे शेशबस्सर को देने की आज्ञा दी।
\p
\s5
\v 9 यह उन वस्तुओं की सूची है जिन्हें राजा कुस्रु ने दान में दीं: तीस सोने के पात्र, एक हजार चाँदी के पात्र, उनतीस अन्य पात्र,
\v 10 तीस सोने के कटोरे, 410 चाँदी के कटोरे जो एक समान थे और एक हजार अन्य वस्तुएँ।
\v 11 कुल मिलाकर, शेशबस्सर को उसके साथ ले जाने के लिए 5,400 चाँदी और सोने की वस्तुएँ दी गई थी, जब वह और अन्य लोग यरूशलेम लौट आए थे।
\s5
\c 2
\p
\v 1 राजा नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने कई इस्राएली लोगों को बन्दी बनाया और उन्हें बाबेल ले गए। कई सालों बाद, कुछ इस्राएली लोग यहूदा लौट आए, कुछ यरूशलेम लौट आए और कुछ यहूदा के अन्य स्थानों में लौट गए। वे उन नगरों में गए जहाँ उनके पूर्वज रहते थे। यह लौटने वाले समूहों की एक सूची है।
\v 2 जरुब्बाबेल, येशुअ, नहेम्याह, सरायाह, रेलायाह, मौर्दकै, बिलशान, मिस्पार, बिगवै, रहूम और बानाह, जो वापस लौटने वाले उन लोगों के अगूवे थे।
\p अगली सूची यहूदा को लौटने वाले लोगों के समूहों की हैं।
\s5
\v 3 2,172 परोश के वंशज
\v 4 372 शपत्याह के वंशज
\v 5 775 आरह के वंशज,
\v 6 2,812 पहत्मोआब के वंशज, जो येशुअ और योआब के परिवारों से हैं
\s5
\v 7 1,254 एलाम के वंशज
\v 8 945 जत्तू के वंशज
\v 9 760 जक्कई के वंशज
\v 10 642 बानी के वंशज
\s5
\v 11 623 बेबै के वंशज
\v 12 1,222 अजगाद के वंशज
\v 13 666 अदोनीकाम के वंशज
\v 14 2,056 बिगवै के वंशज
\s5
\v 15 454 आदीन के वंशज
\v 16 आतेर के 98 वंशज, जो हिजकिय्याह से जन्मा था
\v 17 323 बेसै के वंशज
\v 18 112 योरा के वंशज
\s5
\v 19 223 हाशूम के वंशज
\v 20 गिब्बार के पंचानवे वंशज
\p वे लोग जिनके पूर्वज यहूदा के इन नगरों में रहते थे:
\v 21 बैतलहम से 123
\v 22 नतोपा से 56
\s5
\v 23 अनातोत से 128
\v 24 अज्मावेत से 42
\v 25 किर्यत्यारीम, कपीरा और बेरोत से 743
\v 26 रामाह और गेबा से 621
\s5
\v 27 मिकमाश से 122
\v 28 बेतेल और आई से 223
\v 29 नबो से 52
\v 30 मग्बीस से 156
\s5
\v 31 एलाम से 1,254
\v 32 हारीम से 320
\v 33 लोद, हादीद और ओनो से 725
\s5
\v 34 यरीहो से 345
\v 35 सना से 3,630
\p
\s5
\v 36 याजक जो लौटे: 973 यदायाह के वंशज (अर्थात्, जो येशुअ से हुए थे)
\v 37 1,052 इम्मेर के वंशज
\v 38 1,247 पशहूर के वंशज
\v 39 1,017 हारीम के वंशज
\p
\s5
\v 40 लेवी के गोत्र के लोग जो लौटे: येशुअ और कदमिएल के 74 वंशज, जो होदव्याह के परिवार से थे
\v 41 128 आसाप के वंशज, जो गायक थे
\v 42 139 द्वारपाल जो द्वारपाल शल्लूम, आतेर, तल्मोन, अक्कूब, हतीता और शोबै के वंशज थे
\p
\s5
\v 43 परमेश्वर के भवन के सेवक जो इन पुरुषों के वंशज थे: सीहा, हसूपा, तब्बाओत,
\v 44 केरोस, सीअहा, पादोन,
\v 45 लबाना, हगाब, अक्कूब,
\v 46 हागाब, शल्मै, हानान,
\s5
\v 47 गिद्देल, गहर, रायाह,
\v 48 रसीन, नकोदा, गज्जाम,
\v 49 उज्जा, पासेह, बेसै,
\v 50 अस्ना, मूनीम, नपीसीम,
\s5
\v 51 बकबूक, हकूपा, हर्हूर,
\v 52 बसलूत, महीदा, हर्शा,
\v 53 बर्कोस, सीसरा, तेमह,
\v 54 नसीह, और हतीपा।
\p
\s5
\v 55 राजा सुलैमान के कर्मचारियों के निम्नलिखित वंशज यरूशलेम को लौट आए: सोतै, हस्सोपेरेत और परूदा की संतान,
\v 56 याला, दर्कोन, गिद्देल,
\v 57 शपत्याह, हत्तील, पोकरेत-सबायीम और आमी।
\p
\v 58 कुल मिलाकर, 392 परमेश्वर के भवन के सेवकों और सुलैमान के सेवकों के वंशज थे।
\p
\s5
\v 59 एक और समूह था जो बेबीलोन के तेल्मेलाह, तेलहर्शा, करूब, अद्दान और इम्मेर से यहूदा को लौट आए। परन्तु वे साबित नहीं कर सके कि वे सच्चे इस्राएली थे।
\v 60 इस समूह में 652 लोग शामिल थे जो दलायाह, तोबियाह और नकोदा के वंशज थे।
\p
\s5
\v 61 याजकों के वंशजों में से इस समूह में होबायाह के गोत्र की संतान, हक्कोस के संतान और बर्जिल्लै के संतान शामिल थे। बर्जिल्लै ने एक ऐसी स्त्री से विवाह किया था जो गिलाद के क्षेत्र से बर्जिल्लै की वंशज थी, और उसने स्वयं के लिए अपने ससुर के गोत्र का नाम लिया था।
\p
\v 62 उस समूह के लोगों ने उन दस्तावेजों को खोजा जिसमें सभी कुलों के पूर्वजों के नाम थे, परन्तु इन पुरुषों के नाम नहीं मिले। इसलिए उन्हें याजकों के काम करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
\v 63 राज्यपाल ने उनसे कहा कि यह तय करने के लिए कि वे लोग सच्चे इस्राएली है या नहीं, उन्हें पवित्र चिट्ठियों को डाल कर यहोवा से परामर्श करने के लिए याजक से पूछना होगा, यदि पत्थरों ने दिखाया कि वे लोग इस्राएली है, तो उन्हें उन बलिदानों में से खाने की अनुमति दी जाएगी जो याजकों को खाने के लिए दिए जाते थे।
\p
\s5
\v 64 कुल मिलाकर 42,360 इस्राएली लोग यहूदा लौट आए थे।
\v 65 लौटने वालों में 7,337 सेवक और 200 संगीतकार भी थे, जिसमें पुरुष और महिला दोनों थे।
\s5
\v 66 इस्राएली लोग बाबेल से अपने साथ 736 घोड़ों, 245 खच्चर,
\v 67 435 ऊँट, और 6,720 गदहे लाएँ।
\p
\s5
\v 68 जब वे यरूशलेम में यहोवा के भवन में पहुँचे, तो कुछ कुलों के अगुवों ने भवन को उसी स्थान पर पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक आपूर्ति के लिए धन दिया जहाँ पुराना भवन था।
\v 69 उन सब ने जितना देने में वे सक्षम थे उतना पैसा दिया। कुल मिलाकर उन्होंने लगभग पाँच सौ किलोग्राम सोना, पाँच हज़ार माने चाँदी और याजकों के लिए एक सौ पोशाकें दिए।
\p
\s5
\v 70 तब याजकों ने, लेवी के अन्य वंशज, संगीतकार, भवन के रक्षक और कुछ अन्य लोग यरूशलेम के पास के नगरों और गाँवों में रहने लगे, बाकी लोग इस्राएल के अन्य स्थानों पर गए जहाँ उनके पूर्वज रहते थे।
\s5
\c 3
\p
\v 1 इस्राएली लोग यरूशलेम लौटने के बाद अपने नगरों में रहने लगे, वे सभी उस वर्ष के शरद ऋतु में यरूशलेम में इकट्ठे हुए।
\v 2 तब योसादाक के पुत्र येशुअ और उसके साथी याजकों और शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और उसके करीबी दोस्तों ने मिलकर इस्राएल के परमेश्वर की वेदी का पुनर्निर्माण शुरू कर दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वे उस पर होमबलि चढ़ा सके, जैसे भविष्यद्वक्ता मूसा ने व्यवस्था में लिखा था जिसे परमेश्वर ने उसे दिया था।
\s5
\v 3 भले ही वे उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों से डरते थे, फिर भी उन्होंने उसी स्थान पर वेदी का पुनर्निर्माण किया जहाँ पिछली वेदी थी, वे प्रतिदिन सुबह और शाम को बलि चढ़ाने लगे।
\v 4 इन बलिदानों को चढ़ाना शुरू करने के पंद्रह दिनों बाद, लोगों ने झोपड़ियों का पर्व मनाया, जैसे मूसा ने उन्हें उन आज्ञाओं को मानने का आदेश दिया था जिन्हें परमेश्वर ने उसे दिया था। प्रत्येक दिन याजक उस दिन के लिए आवश्यक भेंट चढ़ाते थे।
\v 5 इसके अलावा, उन्होंने नियमित रूप से होमबलि और वे भेंट चढ़ाए जो नए चाँद के पर्व और अन्य पर्वों के लिए आवश्यक थे, जिन्हें वे हर साल यहोवा का आदर करने के लिए विशेष समय पर मनाया करते थे। वे अन्य भेंट भी लाए क्योंकि वे उन्हें लाना चाहते थे, इसलिए नहीं कि उन्हें लाने की आवश्यकता थी।
\p
\s5
\v 6 परन्तु भले ही शरद ऋतु की शुरुआत में उन्होंने होमबलि चढ़ाने शुरू कर दिए थे, फिर भी उन्होंने अब तक परमेश्वर के भवन का निर्माण शुरू नहीं किया था।
\v 7 इसलिए इस्राएलियों ने राजमिस्त्री और बढ़ई को काम पर रखा, और उन्होंने सोर और सीदोन के लोगों से देवदार के पेड़ों की लकड़ियाँ खरीदी। उन्होंने उन लोगों को भोजन, दाखरस और जैतून का तेल भुगतान के रूप में दिया। वे लबानोन के पहाड़ों से भूमध्यसागर के समुंद्री तट से लकड़ियाँ लाए और फिर उन्हें समुंद्री तट के मार्ग से याफा में ले आए। राजा कुस्रू ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी। तब लकड़ियाँ याफा से यरूशलेम लाई गई।
\p
\s5
\v 8 इस्राएलियों ने यरूशलेम लौटने के बाद दूसरे वर्ष के वसंत ऋतू में परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण करना शुरू कर दिया। जरुब्बाबेल और येशू ने, उन सभी लोगों के साथ जो यरूशलेम लौट आए थे, इमारत पर काम किया। सभी लेवियों ने इस काम की देखरेख की।
\v 9 यहूदा के वंशज येशुअ, उसके पुत्रों और उसके अन्य रिश्तेदारों और कदमीएल और उसके पुत्रों ने भी काम की देख-रेख करने में सहायता की। वे लोग जो हेनादाद के वंशज थे, जो सब लेवी थे, इस काम की देखरेख में उनके साथ शामिल हो गए।
\p
\s5
\v 10 जब राजमिस्त्रियों ने परमेश्वर के भवन की नींव रखी, तो याजक अपने वस्त्र पहनकर अपने स्थान पर खड़े हो गए और तुरही बजाई। तब लेवी जो आसाप के वंशज थे उन्होंने झांझ बजाकर यहोवा की स्तुति की, जैसा कि राजा दाऊद ने कई सालों पहले आसाप और अन्य संगीतकारों को करने के लिए कहा था।
\v 11 उन्होंने यहोवा की स्तुति की और उन्हें धन्यवाद दिया, और उन्होंने उनके बारे में यह गीत गाया:
\q “वे हमारे लिए बहुत भले हैं!
\q वे इस्राएल के प्रति अपनी विश्वासयोग्यता का सम्मान करते हैं, और वह सर्वदा हमसे प्रेम करते रहेंगे।" तब सभी लोग उनकी स्तुति करते हुए जोर से चिल्लाए, क्योंकि उन लोगों ने परमेश्वर के भवन की नींव को रखने के कार्य को पूरा कर दिया था।
\s5
\v 12 पुराने याजकों, लेवियों और अगुवों के परिवारों ने याद किया कि परमेश्वर का पहला भवन कैसा था, और वे चिल्लाकर रोए जब उन्होंने इस नए भवन की नींव को रखते हुए देखा क्योंकि वे जानते थे कि परमेश्वर का नया भवन पहले भवन की तरह सुंदर नहीं होगा। परन्तु अन्य लोग खुशी से चिल्लाने लगे।
\v 13 चिल्लाने और रोने की आवाज़ एक अत्यन्त उच्च स्वर के समान थी, यहाँ तक कि उनकी आवाज़ बहुत दूर तक सुनाई दे रही थी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों के लोगों के शत्रुओं ने सुना कि वे बाबेल से लौट आए और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिए भवन का पुनर्निर्माण कर रहे हैं।
\v 2 तब वे राज्यपाल जरुब्बाबेल और अन्य यहूदी अगुवों के पास गए और उनसे कहा, “परमेश्वर का भवन बनाने में हम तुम्हारी सहायता करना चाहते हैं, क्योंकि हम उसी परमेश्वर की आराधना करते हैं जिनकी आराधना तुम करते हो। हम परमेश्वर को ही बलि चढ़ाते आए हैं जब से अश्शूर का राजा एसर्हद्दोन हमें यहाँ लेकर आया।”
\p
\s5
\v 3 परन्तु जरुब्बाबेल, येशुअ और अन्य यहूदी अगुवों ने उत्तर दिया, “हम तुम्हें हमारे परमेश्वर के लिए भवन बनाने में सहायता करने की अनुमति नहीं देंगे। हम अकेले ही इसे यहोवा के लिए बनाएँगे, जैसा कि फारस के राजा कुस्रु ने हमें करने के लिए कहा था।“
\p
\s5
\v 4 तब जो लोग इस्राएलियों के लौटने से पहले उस देश में रह रहे थे, उन्होंने यहूदियों को निरुत्साहित करने और डराने का प्रयास किया, ताकि वे परमेश्वर का भवन बनाना बंद कर दे।
\v 5 उन्होंने यहूदियों को परमेश्वर के भवन का काम करने से रोकने के लिए सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी। उन्होंने ऐसा उस समय के दौरान किया जब फारस का राजा कुस्रु था और जब राजा दारा बन गया।
\v 6 तब पहले वर्ष के दौरान राजा दारा का पुत्र क्षयर्ष राजा था, यहूदियों के शत्रुओं ने राजा को एक पत्र लिखा कि यहूदी लोग सरकार के विरूद्ध विद्रोह करने की योजना बना रहे हैं।
\p
\s5
\v 7 बाद में, जब क्षयर्स का पुत्र अर्तक्षत्र फारस का राजा बना, बिशलाम, मिथ्रदात, ताबेल और उनके सहयोगियों ने उसे एक पत्र लिखा। उन्होंने अरामी भाषा में पत्र लिखा और इसका अनुवाद फारसी की भाषा में किया गया था।
\p
\v 8 रहूम शासनाधिकारी और प्रांतीय सचिव शिमशै ने यरूशलेम में जो कुछ भी हो रहा था, उसके बारे में राजा अर्तक्षत्र को पत्र लिखा था।
\s5
\v 9 उन्होंने कहा कि यह पत्र रहूम, शिमशै और उनके सहयोगियों, न्यायाधीशों और अन्य सरकारी अधिकारियों की ओर से था, जो बाबेल के एरेक के जिले में एलाम के जिले शूशन से थे।
\v 10 उन्होंने यह भी लिखा कि उन्होंने अन्य लोगों के समूह का भी प्रतिनिधित्व किया हैं जिन्हें महान और गौरवशाली ओस्‍नप्पर की सेना ने निर्वासित किया और सामरिया और फरात नदी के पश्चिमी प्रांत के अन्य स्थानों पर बसाया था।
\p
\s5
\v 11 उन्होंने पत्र में यह लिखा: “यह पत्र राजा अर्तक्षत्र के लिए है, और फरात नदी के पश्चिमी प्रांत में रहने वाले अधिकारियों की ओर से है।
\v 12 “महामहिम, हम चाहते हैं कि तुम यह जान लो कि जो यहूदी तुम्हारे क्षेत्र से आए हैं वे यरूशलेम शहर का पुनर्निर्माण कर रहे हैं। ये लोग दुष्ट हैं जो तुम्हारे विरूद्ध विद्रोह करना चाहते हैं। वे अब शहर की दीवारों और भवनों की नींव की मरम्मत कर रहे हैं
\s5
\v 13 यह जानना तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है कि यदि वे शहर का पुनर्निर्माण करते हैं और दीवारों का निर्माण पूरा करते हैं, तो वे किसी भी कर का भुगतान करना बंद कर देंगे। इसका परिणाम यह होगा की, तुम्हारे खजाने से धन कम हो जाएगा।
\s5
\v 14 क्योंकि हम तुम्हारे प्रति इमानदार हैं और हम नहीं चाहते हैं कि तुम अपमानित हों, हम तुम्हें यह जानकारी भेज रहे हैं।
\v 15 और हम सुझाव देते हैं कि तुम अपने अधिकारियों को अपने पूर्वजों द्वारा रखे गए लेखपत्र के बीच खोज करने का आदेश दो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम पाओगे कि इस शहर के लोगों ने हमेशा सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया है। तुम को यह भी पता चलेगा कि बहुत पहले से इन लोगों ने राजाओं और प्रांतों के शासकों के लिए परेशानी पैदा की थी। उन्होंने हमेशा उन लोगों के विरुद्ध विद्रोह किया है जिन्होंने उन पर शासन किया था। यही कारण है कि इस शहर को बाबेल की सेना द्वारा नाश कर दिया गया था।
\v 16 हम चाहते हैं कि तुम यह जान लो कि यदि वे इस शहर का पुनर्निर्माण करते हैं और अपनी दीवारों का निर्माण पूरा करते हैं, तो तुम फरात नदी के इस पश्चिमी प्रांत के लोगों को अधिक दिनों तक नियंत्रण में नहीं रख सकोगे।“
\s5
\v 17 राजा ने इस पत्र को पढ़ने के बाद, यह उत्तर उन्हें भेजा: “ रेहूम शासनाधिकारी, शिमशै प्रांतीय सचिव, और सामरिया में उनके सहयोगियों और प्रांत के अन्य हिस्सों में जो फरात नदी के पश्चिम में हैं, मैं अपना नमस्कार भेजता हूँ।
\v 18 जिस पत्र को तुमने मुझे भेजा था उसका अनुवाद किया गया और पढ़ा गया।
\v 19 तब, मैंने अपने अधिकारियों को लेखपत्रों को खोजने का आदेश दिया। मुझे पता चला है कि यह सच है कि उस शहर के लोग हमेशा अपने शासकों के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, और यह कि शहर उन लोगों से भरा है जिन्होंने विद्रोह किया है और परेशानी पैदा की है।
\s5
\v 20 पुराने समय में, शक्तिशाली राजाओं ने यरूशलेम में शासन किया और उन्होंने फरात नदी के पश्चिम के पूरे प्रांत पर भी शासन किया। उन्होंने लोगों को सब प्रकार के करों का भुगतान करने के लिए मजबूर कर दिया था।
\v 21 इसलिए तुम्हें आदेश देना होगा कि लोगों को शहर का पुनर्निर्माण करना बंद कर देना चाहिए। यदि केवल मैं उन्हें आज्ञा दूँ कि वे इसका पुनर्निर्माण कर सकते हैं तो उन्हें जारी रखने की अनुमति होगी।
\v 22 इसे तुरंत करें, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वे लोग उन चीजों को नुकसान पहुँचाने के लिए कुछ भी करें जिनके बारे में, मैं चिंतित हूँ।“
\p
\s5
\v 23 संदेशवाहक ने उस पत्र को लिया और रहूम और शिमशै और उनके सहयोगियों के सामने पढ़ा। तब रहूम और अन्य लोग शीघ्र यरूशलेम गए और उन्होंने यहूदियों को शहर की दीवार का पुनर्निर्माण रोकने के लिए मजबूर कर दिया।
\v 24 परिणाम यह था कि यहूदियों ने परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण बंद कर दिया। फारस के राजा दारा के दूसरे वर्ष तक उन्होंने परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण का काम नहीं किया।
\s5
\c 5
\p
\v 1 उस समय दो भविष्यद्वक्ता यरूशलेम और यहूदा के अन्य शहरों में यहूदियों को परमेश्वर के संदेश दे रहे थे। वे भविष्यद्वक्ता हाग्गै और जकर्याह थे, जो इद्दो के वंशज थे। उन्होंने उन संदेशों को परमेश्वर की ओर से जिनकी आराधना इस्राएली करते थे; प्रस्तुत किया।
\v 2 तब जरुब्बाबेल और येशुअ ने कई अन्य लोगों को यरूशलेम में परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण करने में नेतृत्व किया। परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता हाग्गै और जकर्याह भी उनके साथ थे और उनकी सहायता की।
\p
\s5
\v 3 परन्तु तत्तनै, फरात नदी के पश्चिमी प्रांत का राज्यपाल और उसका सहायक शतर्बोजनै, उसके कुछ अधिकारियों के साथ यरूशलेम गया और लोगों से कहा, “इस भवन का पुनर्निर्माण करने की अनुमति तुम्हें किसने दी?”
\v 4 उन्होंने यहूदी लोगों से उनके नाम बताने के लिए कहा जो परमेश्वर के भवन पर काम कर रहे थे।
\v 5 तथापि, परमेश्वर यहूदी अगुवों का ध्यान रख रहे थे और यहूदी अपने शत्रुओं के कारण नहीं रुके। वे राजा दारा के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे कि या तो वह उन्हें अनुमति दे और सुरक्षा दे ताकि वे परमेश्वर के भवन का काम पूरा कर सकें या काम को पूरी तरह बंद कर दे।
\p
\s5
\v 6 तब तत्तनै, शतर्बोजनै, और उनके अधिकारियों ने राजा दारा को एक खबर भेजी।
\v 7 उन्होंने यह लिखा : “राजा दारा, हम आशा करते हैं कि तुम कुशलक्षेम से हो।
\s5
\v 8 हम चाहते हैं कि तुम यह जान लो कि हम यहूदा गए थे, जहाँ महान परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। लोग इसे विशाल पत्थरों से बना रहे हैं, और वे दीवारों में लकड़ी के बीम डाल रहे हैं। काम बहुत सावधानी से किया जा रहा है, और वे अच्छी तरह से आगे बढ़ रहे हैं।
\v 9 हमने यहूदी अगुवों से पूछा, ‘परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण करने की अनुमति तुम्हें किसने दी?
\v 10 हमने उनसे अनुरोध भी किया कि वे हमें अपने अगुवों के नाम बताएं ताकि हम तुमको बता सकें कि वे कौन हैं।
\s5
\v 11 परन्तु हमें अपने अगुवों के नाम बताने की अपेक्षा, उन्होंने जो कहा वह यह है, ‘हम उस परमेश्वर की सेवा करते हैं जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी बनाई है। कई साल पहले इस्राएल के एक महान राजा ने हमारे पूर्वजों को बताया था यहाँ परमेश्वर के भवन का निर्माण करो और अब हम इसे पुनर्निर्माण कर रहे हैं।
\s5
\v 12 परन्तु परमेश्वर, जो स्वर्ग में राज्य करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के भवन को नष्ट करने के लिए बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना को अनुमति दी, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने ऐसे कामों को किया जिससे परमेश्वर क्रोधित हुए। राजा नबूकदनेस्सर की सेना कई इस्राएली लोगों को बाबेल में ले गई।
\v 13 परन्तु, राजा कुस्रु के शासनकाल के पहले वर्ष, उन्होंने यह राजाज्ञा दी कि परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए।
\s5
\v 14 राजा कुस्रु ने हमारे अगुवों को बाबेल के मन्दिर में रखी गई सभी सोने और चाँदी की वस्तुओं को लौटा दिया जो परमेश्वर के भवन से ले ली गई थी। वे वस्तुएँ शेशबस्सर नाम के एक व्यक्ति को दी गई, जिसे राजा कुस्रु ने यहूदा पर राज्यपाल होने के लिए नियुक्त किया था।
\v 15 राजा ने उसे, वस्तुओं को यरूशलेम में वापस ले जाने का निर्देश दिया, जहाँ से उन्हें लाया गया था। उसने यह भी राजाज्ञा दी कि उन्हें उसी जगह पर परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण करना चाहिए जहाँ वह पहले था, इसलिए राजा कुस्रु ने शेशबस्सर को यहूदा पर राज्यपाल होने के लिए नियुक्त किया, उसने शेशबस्सर से परमेश्वर के नए भवन में रखने के लिए सोने और चाँदी से बनी उन वस्तुओं को भी दिया।
\s5
\v 16 तो शेशबस्सर ने ऐसा ही किया। वह यरूशलेम में आया और उन लोगों की देखरेख की जिन्होंने परमेश्वर के भवन की नींव रखी। उस समय से लेकर लोग परमेश्वर के भवन पर काम कर रहे हैं, परन्तु वह अभी तक समाप्त नहीं हुआ।’
\s5
\v 17 इसलिए, महामहिम, कृपया किसी को बाबेल में उस जगह की खोज करने का आदेश दें जहाँ महत्वपूर्ण लेखपत्रों को रखा गया है, ताकि यह पता लग सके कि क्या यह सच है कि राजा कुस्रु ने यह राजाज्ञा दी थी कि परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण यरूशलेम में किया जाना चाहिए। फिर तुम हमें बताओ कि इस मामले में हमें क्या करना चाहिए।“
\s5
\c 6
\p
\v 1 इसलिए राजा दारा ने किसी को ऐसे स्थान पर खोज करने का आदेश दिया जहाँ महत्वपूर्ण लेख-पत्र रखे जाते थे, परन्तु वह लेख-पत्र बाबेल में नहीं था।
\v 2 उन्हें मादै के अहमता नगर के किले वाले शहर में एक लेखपत्र मिला जिसमें वह जानकारी थी जो वे जानना चाहते थे।
\p यह लपेटा हुआ पत्र वही है जिस पर लिखा गया था:
\s5
\v 3 “राजा कुस्रु के साम्राज्य पर शासन के पहले वर्ष के दौरान, उसने यरूशलेम में परमेश्वर के भवन के बारे में एक राजाज्ञा दिया। उसने कहा कि उन्हें उसी स्थान पर एक परमेश्वर का नया भवन बनाना होगा जहाँ इस्राएली लोगों ने पहले बलिदान चढ़ाए थे, जहाँ परमेश्वर के पहले भवन की मूल नींव थी। परमेश्वर का भवन सताईस मीटर ऊँचा और सताईस मीटर चौड़ा होना चाहिए।
\v 4 भवन बड़े पत्थरों से बनाना चाहिए। पत्थरों की तीन परतों को डालने के बाद, लकड़ी की एक परत उनके ऊपर रखी जानी चाहिए। शाही खज़ाने से इस काम के लिए धन का भुगतान किया जाएगा।
\v 5 इसके अलावा, राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम में परमेश्वर के भवन से सोने और चाँदी की वस्तुओं को लिया था और बाबेल में ले आया था, उसे भी यरूशलेम वापस ले जाना चाहिए। उन्हें एक बार फिर परमेश्वर के भवन में रखा जाना चाहिए।”
\p
\s5
\v 6 यह पढ़ने के बाद, राजा दारा ने यरूशलेम में यहूदी लोगों के शत्रुओं के अगुवों को यह संदेश भेजा: “यह संदेश तत्तनै, फरात नदी के पश्चिमी प्रांत के राज्यपाल और उसके सहायक शतर्बोजनै और तुम्हारे सभी सहयोगियों के लिए है: उस क्षेत्र से दूर रहो।
\v 7 परमेश्वर के भवन के निर्माण के काम में हस्तक्षेप न करो। परमेश्वर का भवन उसी स्थान पर पुननिर्मित किया जाना चाहिए जहाँ पहले था, और यहूदी या उनके बुजुर्गों के प्रधानों को यह काम करने में बाधा न डालो।
\s5
\v 8 इसके अलावा, मैं तुम्हें यहूदियों के इन अगुवों की सहायता करने के लिए आदेश देता हूँ जैसे वे परमेश्वर के इस भवन का पुनर्निर्माण करते है। तुमको उन्हें मेरे खज़ाने से जो तुम्हारे मध्य है, उसमें से परमेश्वर के भवन के लिए धन देना होगा।
\v 9 यरूशलेम में यहूदी याजकों को बछड़े, मेढ़े और भेड़ के बच्चे को बलि चढ़ाने की ज़रूरत होती है क्योंकि वे स्वर्ग के परमेश्वर को होमबलि चढ़ाते हैं। तुमको उन्हें उन जानवरों को देना होगा जो उन्हें चाहिए, साथ ही, तुम्हें उन बलिदानों के लिए हर दिन गेहूँ, नमक, दाखरस और जैतून का तेल निश्चित रूप से देना होगा।
\v 10 यदि तुम ऐसा करते हो, तो वे स्वर्ग में रहने वाले परमेश्वर को बलि चढ़ाने में सक्षम होंगे और वे प्रार्थना करेंगे कि परमेश्वर मुझे और मेरे पुत्रों को आशीष दे।
\s5
\v 11 अगर कोई इस राजाज्ञा का उल्लंघन करता है, तो मेरे सैनिक उसके घर से लकड़ी की एक कड़ी को खींचेंगे। तब वे उस व्यक्ति को उठाएँगे और उस कड़ी पर उसे लटका देंगे। तब वे पूरी तरह से उस व्यक्ति के घर को नष्ट कर देंगे जब तक कि केवल मलबे का ढेर नहीं बचता।
\v 12 परमेश्वर ने यरूशलेम के उस शहर को उस स्थान के रूप में चुना है जहाँ लोग उनका आदर करेंगे। मेरी इच्छा यह है कि वे किसी भी राजा या किसी भी देश का नाश कर देंगे, जो इस राजाज्ञा को बदलने की कोशिश करता है या यरूशलेम में परमेश्वर के भवन को नष्ट करने की कोशिश करता है। मुझ, दारा ने इस राजाज्ञा को बनाया है। तुमको पूरी तरह से इसका पालन करना होगा।”
\p
\s5
\v 13 प्रांत के राज्यपाल तत्तनै, और उसके सहायक शतर्बोजनै और उसके सहयोगियों ने संदेश पढ़ा और तुरन्त ही राजा दारा के आदेश का पालन किया।
\v 14 इसलिए यहूदी अगुवों ने परमेश्वर के भवन के पुनर्निर्माण के काम को जारी रखा, वे भविष्यद्वक्ता हाग्गै और जकर्याह के संदेशों के प्रचार से अत्यधिक प्रोत्साहित हुए। इस्राएलियों ने भवन का निर्माण जारी रखा, जैसा कि परमेश्वर ने उन्हें करने का आदेश दिया था और राजा कुस्रु और राजा दारा ने राजाज्ञा दी थी।
\v 15 राजा दारा के शासनकाल के छठे वर्ष के दौरान, अदार महीने के तीसरे दिन परमेश्वर के भवन निर्माण का काम समाप्त हुआ।
\p
\s5
\v 16 तब याजक और लेवी और अन्य सभी इस्राएली लोगों ने, जो बाबेल से लौटे थे, उन्होंने परमेश्वर के भवन को बड़े आनन्द के साथ समर्पण किया।
\v 17 समारोह के दौरान परमेश्वर के भवन को इस प्रकार से समर्पित किया गया, उन्होंने एक सौ बछड़े, एक सौ मेढ़े, और चार सौ मेमने बलि चढ़ाए। उन्होंने बारह बकरों को एक भेंट के रूप में भी बलिदान किया ताकि परमेश्वर इस्राएल के बारह गोत्रों के लोगों के पापों को क्षमा कर सकें।
\v 18 तब यहूदी अगुवों ने याजक और लेवियों को उन समूहों में विभाजित किया जो भवन में सेवा करने के लिए पारी में जाते थे। उन्होनें उसी के अनुसार किया, जो मूसा ने कई वर्षों पहले व्यवस्था में लिखा था ।
\p
\s5
\v 19 पहले महीने के चौदहवें दिन, यहूदियों ने जो बाबेल से लौटे थे, फसह का पर्व मनाया।
\v 20 बलिदान की भेंट चढ़ाने के लिए अपने आप को तैयार किया, याजकों और लेवियों ने कुछ विधियों को करके अपने आपको शुद्ध किया तब उन्होंने उन सभी लोगों के लाभ के लिए, जो बाबेल से लौट कर वापस आए थे, अन्य याजकों के लिए और अपने लिए मेमनों को बलि चढ़ाया।
\s5
\v 21 जो लोग बाबेल से लौटे थे और जो अपने आस-पास के अशुद्ध लोगों से अलग हो गए थे, जिनके पास एक अलग संस्कृति, भाषा और आराधना थी, और वे अब इस्राएली लोगों के परमेश्वर यहोवा की आराधना करने और फसह का भोजन खाने के लिए योग्य थे।
\v 22 उन्होंने सात दिनों तक अखमीरी रोटी का पर्व मनाया। पूरे देश में इस्राएली लोग आनन्दित थे क्योंकि यहोवा ने अश्शूर के राजा के व्यवहार को उनके प्रति बदल दिया था और इसका परिणाम यह हुआ कि राजा ने उन्हें इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के भवन का पुनर्निर्माण करने में उनकी सहायता की।
\s5
\c 7
\p
\v 1 कई सालों बाद, जब अर्तक्षत्र फारस का राजा था, तब एज्रा बाबेल से यरूशलेम को गया। वह सरायाह का पुत्र था और अजर्याह का पोता और हिल्किय्याह का परपोता था।
\v 2 हिल्किय्याह शल्लूम का पुत्र था, जो सादोक का पुत्र था, जो अहीतूब का पुत्र था,
\v 3 जो अमर्याह का पुत्र था, जो अजर्याह का पुत्र था, जो मरायोत का पुत्र था,
\v 4 जो जेरह्याह का पुत्र था, जो उज्जी का पुत्र था, जो बुक्की का पुत्र था,
\v 5 जो अबीशू का पुत्र था, जो पिनहास का पुत्र था, जो एलीआजार का पुत्र था, जो हारून का पुत्र था, जो पहला महायाजक था।
\s5
\v 6 एज्रा एक ऐसा व्यक्ति था जो बहुत अच्छी तरह से मूसा द्वारा लिखी गई व्यवस्था को जानता था। वह व्यवस्था जो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने इस्राएलियों को दिया था। राजा ने लोगों से कहा उसे वह सब दिया जाए जो वह अनुरोध करे; इसके बाद एज्रा वहाँ से चला गया। यहोवा ने इन सब मामलों में एज्रा की बहुत सहायता की।
\v 7 कुछ याजकों, लेवी के कुछ वंशज, कुछ गायक, कुछ द्वारपाल और कुछ लोग जो भवन में काम करते थे और कुछ अन्य इस्राएली लोग एज्रा के साथ यरूशलेम को गए। वह सातवें वर्ष के दौरान था जब अर्तक्षत्र फारस का राजा था।
\p
\s5
\v 8 एज्रा और उसके साथ के समूह सातवें वर्ष के पाँचवें महीने में यरूशलेम पहुँचे, जब अर्तक्षत्र राजा था।
\v 9 उन्होंने पहले महीने के पहले दिन बाबेल छोड़ दिया था, जो यहूदी वर्ष का पहला दिन था। क्योंकि परमेश्वर ने उनके प्रति बहुत दयालुता से काम किया, इसलिए वे उस वर्ष के पाँचवें महीने के पहले दिन यरूशलेम में सुरक्षित रूप से पहुँचे।
\v 10 एज्रा के पूरे जीवन के दौरान, उसने स्वयं को यहोवा के नियमों का अध्ययन करने और उन नियमों का पालन करने के लिए समर्पित किया। कई वर्षों तक वह इस्राएलियों को उन सभी नियमों और सभी आज्ञाओं को सिखाया करता था।
\p
\s5
\v 11 एज्रा के बाबेल छोड़कर यरूशलेम जाने से पहले, राजा अर्तक्षत्र ने एक पत्र लिखा और उसे उस पत्र की प्रतिलिपि दी। राजा ने यह लिखा था:
\v 12 “यह पत्र मेरी ओर से है, अर्तक्षत्र, राजाओं में सबसे महान है। मैं यह पत्र याजक एज्रा को दे रहा हूँ, जिसने इस्राएली लोगों के लिए, स्वर्ग में रहने वाले परमेश्वर के सब नियमों और विधियों का बहुत अच्छा अध्ययन किया है।
\v 13 एज्रा, मैं आदेश देता हूँ कि जब तू यरूशलेम लौट जाए, तो मेरे साम्राज्य में से जो भी इस्राएली तुम्हारे साथ जाना चाहे उसे जाने की अनुमति है, इसमें लेवी के वंशज और याजक शामिल हैं जो परमेश्वर के भवन में काम करने के लिए जाना चाहते हैं।
\s5
\v 14 मैं, मेरे सात सलाहकारों के साथ, तुम्हें यरूशलेम भेज रहा हूँ, ताकि तुम यह जान सको कि वहाँ क्या हो रहा है और यहूदा के अन्य नगरों में क्या हो रहा है। तुम परमेश्वर के नियमों की एक पत्र की प्रतिलिपि ले जा रहे हो; सुनिश्चित करो कि वे लोग वह सब कुछ कर रहे हैं जो इसमें लिखा है।
\v 15 हम तुमको वह चाँदी और सोना लेने के लिए भी कह रहे हैं जो मैं और मेरे सलाहकार तुम्हें देना चाहते हैं, ताकि तुम इसे इस्राएल के परमेश्वर की भेंट के रूप में पेश कर सको जो यरूशलेम में रहते हैं।
\v 16 तुम्हें चाँदी और सोने को भी लेना चाहिए जो पूरे बाबेल प्रांत में लोग तुमको देंगे और याजक और अन्य इस्राएली लोगों ने खुशी से कहा कि ये धन यरूशलेम में परमेश्वर के भवन निर्माण के लिए भेंट चढ़ाने के लिए दिया जा रहा है।
\s5
\v 17 इस धन के साथ, तुम्हें बैल, मेढ़े, भेड़ के बच्चे, अनाज और दाखरस खरीदना चाहिए जिसे याजक यरूशलेम में तुम्हारे परमेश्वर के भवन के बाहर वेदी पर जलाएँगे।
\v 18 यदि कोई चाँदी या सोना जो तुम्हारे द्वारा उन सब चीजों को खरीदने के बाद बच जाता है, तो तुम और तुम्हारे साथियों को जो कुछ भी तुम चाहते हो उसे खरीदने के लिए इसका इस्तेमाल करने की अनुमति है, परन्तु केवल वही चीजें ही खरीदें जो तुम जानते हो कि परमेश्वर चाहते हैं कि तुम खरीद लो।
\s5
\v 19 हमने तुमको तुम्हारे परमेश्वर के भवन में उपयोग करने के लिए कुछ मूल्यवान वस्तुएँ दी हैं। उन्हें भी यरूशलेम ले जाओ।
\v 20 यदि तुमको परमेश्वर के भवन के लिए किसी अन्य चीज की ज़रूरत है, तो तुमको यहाँ शाही खजाने से उन चीज़ों के लिए धन ले जाने की अनुमति है।
\s5
\v 21 और मैं, राजा अर्तक्षत्र, फरात नदी के पश्चिम प्रांत के सभी खज़ाने के देखरेख करने वालों को यह आज्ञा देता हूँ: उस एज्रा याजक को जिसने स्वर्ग के परमेश्वर के नियमों का बहुत अच्छा अध्ययन किया है, वह सब कुछ जो वह अनुरोध करता है, उसे जल्दी से दिया जाए।
\v 22 उसे तीन और पौने चार टन चाँदी, गेहूँ के पाँच सौ बुशेल, दो और पाँच किलोग्राम दाखरस, उतना ही जैतून का तेल, और उन सभी को नमक दें जितना उन्हें चाहिए।
\v 23 यह सुनिश्चित कर लो कि जो कुछ भी परमेश्वर को अपने भवन के लिए चाहिए, उन्हें प्रदान करें, क्योंकि हम निश्चित रूप से नहीं चाहते कि वे मुझसे या मेरे वंशजों से क्रोधित हो जो मेरे बाद राजा बनेंगे।
\s5
\v 24 मैं यह भी आज्ञा दे रहा हूँ कि परमेश्वर के भवन में कोई भी याजक, परमेश्वर के भवन में काम करने वाले लेवी के वंशज, संगीतकार, भवन रक्षक, या परमेश्वर के भवन में काम करने वाले अन्य लोगों को किसी भी कर का भुगतान करने की जरुरत नहीं है।
\s5
\v 25 एज्रा, तेरे परमेश्वर ने तुझे बहुत अधिक बुद्धिमान बनने के योग्य बनाया है। उस ज्ञान का उपयोग करके, फरात नदी के पश्चिमी प्रांत में पुरुषों को नियुक्त कर जो लोगों से जुड़े मामलों का न्याय करेंगे और वे लोग जो सरकार से जुड़े मामलों का न्याय करेंगे। तुम्हें उन लोगों को नियुक्त करना होगा जो तुम्हारे परमेश्वर की व्यवस्था को जानते हैं। तुम सभी को उन अन्य लोगों को परमेश्वर की व्यवस्था सिखानी चाहिए जो उन्हें नहीं जानते हैं।
\v 26 हर कोई जो परमेश्वर की व्यवस्था का पालन नहीं करता है या मेरी सरकार के नियमों को गंभीरता से नहीं लेता है उसे दंडित किया जाना चाहिए। उनमें से कुछ को मार डाला जाएगा, कुछ जेल में डाल दिए जाएँगे, कुछ देश से निकाल दिए जाएँगे या उनकी सारी संपत्ति उनसे ले ली जाएगी।”
\p
\s5
\v 27 एज्रा ने कहा, “यहोवा की स्तुति करो, परमेश्वर जिनकी हमारे पूर्वज आराधना किया करते थे। उन्ही के कारण राजा ने यरूशलेम में परमेश्वर के भवन का सम्मान किया।
\v 28 क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर दया और ईमानदारी से काम किया, राजा और उसके सब सलाहकारों और उसके सब शक्तिशाली अधिकारियों ने भी मेरे प्रति दयापूर्वक काम किया है। क्योंकि परमेश्वर ने मेरी सहायता की है, मुझे प्रोत्साहित किया गया है, और मैं कुछ इस्राएली अगुवों को मेरे साथ यरूशलेम जाने के लिए राजी करने में सक्षम हूँ।“
\s5
\c 8
\p
\v 1 यह उन कुलों के अगुवों के नामों की एक सूची है जो मेरे साथ बाबेल से यरूशलेम आए थे जब अर्तक्षत्र फारस के राजा था:
\v 2 गेर्शोन, जो हारून के पोते पिनहास से उत्पन्न हुआ। दानिय्येल, जो हारून के पुत्र ईतामार से उत्पन्न हुआ। राजा दाऊद के वंश में से शकेन्याह के वंशज हत्तूश।
\v 3 जकर्याह और कुलों में 150 अन्य पुरुष परोश के कुल से निकले थे।
\s5
\v 4 जेरह्याह के पुत्र एल्यहोएनै और दो सौ अन्य पुरुष पहतमोआब कुल से निकले।
\v 5 बेन याहज़ीएल और तीन सौ अन्य लोग शकेन्याह के कुल से निकले।
\v 6 योनातन के पुत्र और ऐबेद में पचास अन्य लोग आदीन के कुल से निकले।
\v 7 अतल्याह के पुत्र यशायाह और सत्तर अन्य पुरुष एलाम के कुल से निकले।
\s5
\v 8 मिकाएल के पुत्र जबद्याह और अस्सी अन्य पुरुष शपत्याह के कुल से निकले।
\v 9 यहीएल के पुत्र ओबद्याह और कुलों में 218 अन्य लोग योआब के कुल से निकले।
\v 10 बेन योसिय्याह और एक सौ साठ पुरुष शलोमीति के कुल से निकले थे।
\v 11 बेबै का पुत्र जकर्याह और कुलों में अठाईस पुरुष दूसरे व्यक्ति से निकले, जिसका नाम बेबै था।
\s5
\v 12 हक्कातान के पुत्र योहनान और कुल में एक सौ दस अन्य लोग अजगाद के कुल के थे।
\v 13 एलीपेलेत, यीएल और समायाह, जो बाद में लौटे हुए साठ अन्य पुरुषों के साथ लौट आए, अदोनीकाम के कुल से निकले।
\v 14 उतै और जब्बूद और सत्तर अन्य पुरुष बिगवै के कुल से निकले।
\p
\s5
\v 15 एज्रा ने कहा, “मैंने बाबेल से अहवा के नहर पर सब यहूदियों को इकट्ठा किया। हमने वहाँ हमारे तम्बू लगाए और तीन दिनों तक वहाँ रहे। उस समय के दौरान मैंने नामों की सूचियाँ पढ़ीं और पाया कि याजक हमारे साथ जा रहे थे, परन्तु लेवी के अन्य वंशजों में से कोई नहीं था जो परमेश्वर के भवन में उनकी सहायता कर सके।
\v 16 तब मैंने एलिऐजर, अरियल, शमायाह, एलनातान, यारीब, एलनातान नाम के एक अन्य व्यक्ति, नातान, जकर्याह और मशुल्लाम को बुलाया, जो सब लोगों के अगुवे थे। मैंने योआरीब को भी बुलाया और फिर भी एलनातान नामक एक अन्य व्यक्ति (कुल मिलाकर तीन), जो शिक्षक थे।
\s5
\v 17 मैंने उन सभी को इद्दो भेजा, लेवी के वंशजों के अगुवे, जो कासिप्या में रह रहे थे, ताकि वे और उसके रिश्तेदार और अन्य लोग जो यरूशलेम में परमेश्वर के भवन में काम करते थे, कुछ लोगों को हमारे साथ परमेश्वर के नए भवन में काम करने के लिए भेजे।
\p
\s5
\v 18 क्योंकि परमेश्वर ने हमारे प्रति दया का काम किया, इसलिए वे हमारे पास शेरेब्याह नाम के एक व्यक्ति और उसके पुत्रों और अन्य रिश्तेदारों के अठारह लोगों को लाए। शेरेब्याह एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था; महली का वंशज, जो लेवी का पोता था।
\v 19 उन्होंने यशायाह के साथ, लेवी के पुत्र मरारी के वंशजों और उनके बीस रिश्तेदारों के साथ हशब्याह को भी भेजा।
\v 20 उन्होंने परमेश्वर के भवन में काम करने के लिए 220 अन्य पुरुषों को भी भेजा। लेवी के वंशजों की सहायता के लिए उन लोगों के पूर्वजों को राजा दाऊद ने नियुक्त किया था। मैंने उन सब पुरुषों के नाम सूचीबद्ध किए।
\p
\s5
\v 21 अहवा नहर के पास, मैंने सभी के लिए उपवास और प्रार्थना करने का समय घोषित किया। मैंने उनसे कहा कि हमें अपने परमेश्वर की उपस्थिति में स्वयं को नम्र करना चाहिए। हमने प्रार्थना की कि परमेश्वर हमारी रक्षा करें जब हम यात्रा करते हैं, और हमारे बच्चों और हमारी संपत्तियों की भी रक्षा करें।
\v 22 पहले हमने राजा से कहा था कि हमारे परमेश्वर उन सब का ख्याल रखते है जो वास्तव में उन पर भरोसा करते हैं, परन्तु वे उन लोगों से बहुत क्रोधित हो जाते हैं जो उनकी आज्ञा मानने से इन्कार करते हैं। तो मैं राजा से यह पूछ कर लज्जित हो जाता कि सड़क पर यात्रा करते समय हमारे शत्रुओं से हमें बचाने के लिए क्या घोड़ों पर सवार सैनिकों और पुरुषों को भेजे।
\v 23 इसलिए हमने उपवास किया और परमेश्वर से हमारी रक्षा करने का अनुरोध किया और हमने उनसे प्रार्थना की।
\p
\s5
\v 24 मैंने याजकों में से बारह अगुवों को चुना, शेरेब्याह और हाशब्याह और दस अन्य अगुवों को।
\v 25 मैंने उन्हें चाँदी और सोने के उपहार जिसे राजा और उसके सलाहकारों और अन्य अधिकारियों और बाबेल में रहने वालों ने हमारे परमेश्वर के भवन के लिए योगदान दिया था इस्राएली लोगों को अन्य मूल्यवान वस्तुओं और जो उन वस्तुओं के परिवहन की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया था। ।
\s5
\v 26 जैसा कि मैंने उन याजकों को इन विभिन्न वस्तुओं को दिया था, मैंने प्रत्येक वस्तु के वजन को मापा। यह लगभग 22 हजार किलो चाँदी, चाँदी से बने एक सौ पात्र जिनका वजन साढ़े तीन हजार किलो था, और साढ़े तीन किलो सोना
\v 27 बीस सोने के कटोरे जिनका वजन 81 किलो था, और दो वस्तुओं को जो पीतल से बनी थी जो सोने की बनी वस्तुओ जैसी ही मूल्यवान थी ।
\p
\s5
\v 28 मैंने उन याजकों से कहा, ‘तुम विशेष रूप से यहोवा के लिए अलग किए गए हो, जिस परमेश्वर की हमारे पूर्वजों ने आराधना की थी, और ये बहुमूल्य वस्तुए उसी तरह उनके लिए वस्तुएँ हैं। लोगों ने स्वयं इन वस्तुओं को अपनी इच्छा से यहोवा को चढ़ाने के लिए दिए थे।
\v 29 इसलिए सावधानी से उनकी रक्षा करें, और जब हम यरूशलेम में आएँ, उसको याजकों की उपस्थिति में तौलो; लेवी के वंशज, जो याजकों और अन्य इस्राएली अगुवों की सहायता करेंगे। फिर वे उन्हें परमेश्वर के नए भवन के भंडारघरों में रखेंगे।‘
\v 30 तब याजकों और लेवी के वंशज यरूशलेम में परमेश्वर के भवन में ले जाने के लिए चाँदी और सोने और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के सभी उपहार मुझसे लेंगे।
\p
\s5
\v 31 पहले महीने के बारहवें दिन, हमने अहवा नहर छोड़ दिया और यरूशलेम की यात्रा शुरू कर दी। हमारे परमेश्वर ने हमारी देखभाल की, और जब हम यात्रा करते थे, तो उन्होंने हमारे शत्रुओं और डाकूओं को हम पर हमला करने से रोका।
\v 32 जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो हमने तीन दिनों तक विश्राम किया।
\s5
\v 33 फिर चौथे दिन हम परमेश्वर के भवन में गए। वहाँ चाँदी और सोना और अन्य वस्तुओं के वजन को मापा और ऊरिय्याह के पुत्र मरेमोत को दिया गया। पिनहास का पुत्र एलियाजार और लेवी के दो वंशज, येशुअ का पुत्र योजाबाद और बिन्नूई का पुत्र नोअद्याह उसके साथ थे।
\v 34 उन्होंने सब कुछ गिना, और उनका कितना वजन है वह भी मापकर लिखा, और प्रत्येक वस्तुओं का वर्णन लिखा।
\p
\s5
\v 35 हम जो बाबेल से लौटे थे, हमने परमेश्वर के लिए वेदी पर बलियाँ चढ़ाई। हमने सब इस्राएली लोगों के लिए बारह बैल चढ़ाए। हमने 96 भेड़ और 77 मेम्‍ने भी चढ़ाए। हमने पापों की क्षमा के लिए 12 बकरियों को भी बलि चढ़ाया जो सब लोगों को स्वीकार था। ये सब पूरी तरह से वेदी पर जला दिया गया था।
\v 36 हम में से कुछ लोग जो बाबेल से लौटे, फरात नदी के पश्चिमी प्रांत में के राज्यपाल व अन्य अधिकारियों के पास वह पत्र ले गए जिसे राजा ने हमें दिया था। उस पत्र को पढ़ने के बाद उन्होंने वह सब कुछ किया जो वे हम इस्राएली लोगों और परमेश्वर के भवन के लिए करने में सक्षम थे।“
\s5
\c 9
\p
\v 1 “कुछ समय बाद, यहूदी अगुवे मेरे पास आए और कहा, ‘बहुत से इस्राएली, और यहाँ तक कि कुछ याजक और अन्य पुरुष जो परमेश्वर के भवन में काम करने वाले लेवी के वंशज हैं, इस देश में रहने वाले अन्य समूह के समान कार्य करने से स्वयं को नहीं रोका। वे कनानियो, हितीयो, परिजिज्यो, यबुसियों, अम्मोनियों और एमोरियो के समूह, और मोआबियो और मिस्र के लोगों द्वारा किए जा रहे वही घृणित काम कर रहे हैं
\v 2 विशेष रूप से, कुछ इस्राएली पुरुषों ने उन महिलाओं से विवाह किया है जो इस्राएली नहीं हैं, और उन्होंने अपने बेटों को भी वही काम करने की अनुमति दे दी है। इसलिए हम, परमेश्वर के पवित्र लोग अब दूषित हो गए हैं, और हमारे कुछ अगुवें और अधिकारी है जो इस तरह से परमेश्वर को धोखा देने वाले पहले व्यक्ति हैं।'
\p
\s5
\v 3 जब मैंने यह सुना, तो मैं अपनी सोच में बहुत अधिक खो गया, इसलिए मैंने अपने कपड़े फाड़े और अपने सिर और दाढ़ी के बाल नोंचे और तब मैं बैठ गया, तब मैं अपने लोगों के कारण लज्जित हुआ, क्योंकि इस्राएलियों को पता था कि परमेश्वर ने हमें चेतावनी दी थी कि यदि हम उन महिलाओं से विवाह करते हैं जो इस्राएली नहीं हैं, तो परमेश्वर की यह आज्ञा न मानने के कारण वे हमें दंडित करेंगे।
\v 4 इसलिए उनमें से बहुत से थरथराए जब उन्होंने सुना कि बाबेल से लौटने वाले लोगों में से कुछ ने ऐसा पाप किया था। वे आए और शाम को अन्न बलि चढ़ाने के समय तक मेरे साथ बैठे रहे।
\p
\s5
\v 5 जब बलि चढ़ाने का समय हुआ, तब भी मैं उन फटे कपड़े पहने और शोक मनाते हुए वहाँ बैठा था। मैं खड़ा हुआ था और फिर मैंने शीघ्र ही जमीन पर मुँह के बल गिर कर, अपना हाथ यहोवा परमेश्वर की ओर उठाया,
\v 6 और मैंने यह प्रार्थना की: ‘हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं आपके सामने अपना सिर उठाने में बहुत लज्जित हूँ। जिन पापों को हम इस्राएलियों ने किया है वे बहुत बड़े हैं; ऐसा लगता है कि वे हमारे सिर से ऊपर उठ गए हैं। उन पापों को करने से हमारे अपराध ऐसे लगते है कि वे स्वर्ग तक पहुँच गए हैं।
\s5
\v 7 जब हमारे पूर्वज जीवित थे उस समय से अब तक, हम बहुत दोषी हैं। यही कारण है कि हम और हमारे याजक अन्य देशों के राजाओं की सेना द्वारा पराजित हुए हैं उन्होंने हमारे कुछ लोगों को मार डाला, कुछ को पकड़ लिया, उन्होंने कुछ को लूट लिया और उन्होंने उन सब को अपमानित कर दिया, जैसे कि हम आज हुए हैं।
\s5
\v 8 परन्तु अब, हे परमेश्वर यहोवा, आपने हमारे प्रति बहुत दया का काम किया है। आपने हम में से कुछ को जीवित रहने की अनुमति दी है। आपने हमारी आत्माओं को पुनर्जीवित किया है और हमें बाबेल में दास होने से बचा कर इस पवित्र स्थान में रहने के लिए सुरक्षित लौटा लाए हो।
\v 9 हम दास थे, परन्तु आपने हमें नहीं त्यागा। इसकी अपेक्षा आपने फारस के राजाओं को हमारे प्रति बहुत दयालु बना दिया, क्योंकि आप सदा हमारे साथ अपने वाचा के प्रति विश्वासयोग्य रहे हैं, इसलिए आपने हमे जीने और अपने भवन का पुनर्निर्माण करने के लिए जो पूरी तरह नष्ट हो गया था; अनुमति दी है। आपने हमें यरूशलेम और यहूदा के अन्य शहरों में सुरक्षित रहने की अनुमति दी है।
\s5
\v 10 हमारे परमेश्वर, अब हम और क्या कह सकते हैं? आपके द्वारा किए गए सभी कार्यों के बावजूद, हमने आपके आदेशों का उल्लंघन किया है।
\v 11 वे आज्ञाएँ जिन्हें आपने अपने सेवकों, भविष्यद्वक्ताओं को हमें बताने के लिए दिए थे। उन्होंने हमें बताया कि जिस भूमि को हम अधिकार में लेने जा रहे हैं, वहाँ रहने वाले लोगों के घिनौने कामों के कारण वह भूमि दूषित हो गई थी। उन्होंने कहा कि वह भूमि एक छोर से दूसरी छोर तक अनैतिक कार्य करने वाले लोगों से भर गई थी।
\v 12 उन्होंने कहा कि हमें अपनी बेटियों को उनके बेटों से विवाह करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमें अपने बेटों को उनकी बेटियों से विवाह करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमें उन लोगों के नियमों को जानने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि हम इन निर्देशों का पालन करते हैं तो हमारा देश मजबूत होगा और हम भूमि की अच्छी फसलों का आनंद लेंगे, और वह भूमि सदा हमारे वंशजों की होगी।
\s5
\v 13 परन्तु आपने हमें दंडित किया क्योंकि हम दुष्ट कामों को करने के दोषी थे। फिर भी, आपने हमें उतना दंडित नहीं किया जितना कि हम दण्ड पाने के योग्य हैं। मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि आपने हम में से कुछ को जीवित रहने की अनुमति दी है।
\v 14 परन्तु, हम में से कुछ लोग फिर से आपके आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं, और उन महिलाओं से विवाह कर रहे हैं जो घृणित कार्य करती हैं। यदि हम ऐसा करना जारी रखते हैं, तो निश्चित रूप से आप सब को नष्ट कर देंगे, नतीजा यह होगा कि हम में से कोई भी जीवित नहीं रहेगा।
\s5
\v 15 हे यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर, आप सदा सही काम करते हैं; हम दोषी हैं। हम कुछ ही लोग हैं जो बाबेल से बच निकले हैं, भले ही हम आपकी उपस्थिति में होने के योग्य नहीं हैं फिर भी आपसे प्रार्थना कर रहे हैं”
\s5
\c 10
\p
\v 1 जब एज्रा परमेश्वर के भवन के सामने घुटने टेक कर प्रार्थना कर रहा था और रो रहा था, वह, इस्राएलियों ने जो पाप किए थे, उन्हें अंगीकार कर रहा था। बहुत से लोग, पुरुष और महिलाएँ और बच्चे, उसके चारों ओर इकट्ठा हुए और बहुत रोए।
\v 2 तब एलाम के वंशज यहीएल के पुत्र शकेन्याह ने उससे कहा: “हमने परमेश्वर की आज्ञा को नहीं माना है। हम में से कुछ लोगों ने उन महिलाओं से विवाह किया, जो इस्राएली नहीं हैं। पर हम अब भी आशा कर सकते हैं कि यहोवा हम इस्राएली लोगों के लिए दयावान रहेंगे।
\s5
\v 3 हम वही करेंगे जो आप और अन्य लोग जो परमेश्वर की आज्ञाओं का अदुभत आदर करते है; हमसे करने को कहेंगे। हम वह करेंगे जो परमेश्वर ने अपनी व्यवस्था के द्वारा बताया हैं, हम हमारे परमेश्वर के साथ एक वाचा बनायेंगे, यह कहकर कि हम अपनी पत्नियों को जो इस्राएली नहीं हैं; त्याग-पत्र देंगे और हम उन्हें उनके बच्चों के साथ भेज देंगे।
\v 4 यह बताने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है कि हमें क्या करना चाहिए। तो उठो और साहसी बनो और जो आवश्यक है वह करो। हम तुम्हारा समर्थन करेंगे।”
\p
\s5
\v 5 तब एज्रा उठ खड़ा हुआ और याजकों के अगुवे, लेवी के वंशज और अन्य सभी इस्राएली लोगों से माँग की कि वे वही करेंगे जो शेकन्याह ने उन्हें करने को कहा था। तो उन सब ने गंभीरता से ऐसा करने का वादा किया।
\v 6 तब एज्रा परमेश्वर के भवन के सामने से चला गया और उस कमरे में गया जहाँ यहोहानान रहता था। वह उस रात वहाँ रहा, परन्तु उसने कुछ भी नहीं खाया और न पिया। वह अभी भी दुखी था क्योंकि बाबेल से लौटे कुछ इस्राएली लोग विश्वासयोग्यता के साथ परमेश्वर की व्यवस्था का पालन नहीं करते थे।
\p
\s5
\v 7 तब अगुवों ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों में सभी लोगों को एक संदेश भेजा, और कहा कि जो लोग बाबेल से लौटे हैं वे तुरंत यरूशलेम आ जाएँ।
\v 8 अगुवों ने यह भी कहा कि यदि उनमें से कोई भी तीन दिनों के अन्दर नहीं पहुँचा, तो वे यह आदेश देंगे कि उन लोगों की सारी संपत्ति उनसे ले ली जाए और उन्हें इस्राएली लोगों से सम्बन्धित नहीं माना जाएगा; उन्हें परदेशियों के समान माना जाएगा।
\p
\s5
\v 9 तब तीन दिनों के अन्दर, यहूदा और बिन्यामीन गोत्र के सब लोग यरूशलेम में इकट्ठे हुए। वे परमेश्वर के भवन के सामने आंगन में बैठे थे। वे भारी वर्षा की वजह से काँप रहे थे क्योंकि वे चिंतित थे कि उन्होंने जो किया था उसके लिए उन्हें दंडित किया जाएगा।
\v 10 तब एज्रा खड़ा हुआ और उनसे कहा, “तुम में से कुछ ने परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह किया है। तुमने उन महिलाओं से विवाह किया जो इस्राएली नहीं हैं, ऐसा करके, तुमने इस्राएली लोगों को पहले से अधिक दोषी बनाया है।
\s5
\v 11 इसलिए अब तुम्हें यहोवा की आराधना करनी होगा, जिस परमेश्वर की तुम्हारे पूर्वजों ने आराधना की थी, और तुमको भी वही करना चाहिए जो वे चाहते हैं। अन्य राष्ट्रों के लोगों से और उन राष्ट्रों की महिलाओं से जिनसे तुमने विवाह किया है उनसे अलग हो जाओ। “
\p
\s5
\v 12 पूरे समूह ने उच्चे स्वर से चिल्लाकर उत्तर दिया, “हाँ, तुमने जो कहा है वह सही है। हम वही करेंगे जो तुम कहते हो।
\v 13 परन्तु हम एक बहुत बड़ा समूह हैं और भारी वर्षा हो रही है। इसके अलावा, हम में से कई हैं जिन्होंने इस महा पाप को किया है। इस काम को हम एक या दो दिन में नहीं कर सकते और हम इस भारी वर्षा में यहाँ खड़े नहीं रह सकते हैं।
\s5
\v 14 इसलिए हमारे अगुवों को अनुमति दो कि वे यह निर्णय ले सकें कि हमें क्या करना चाहिए। उन सब को जिन्होंने ऐसी महिला से विवाह किया जो इस्राएली नहीं है, उन्हें प्रत्येक शहर के बुजुर्गों और न्यायाधीशों के साथ आना होगा, जो समय तुम तय करोगे। यदि हम ऐसा करते हैं, तो जो हमने किए है उससे हमारे परमेश्वर हम से नाराज नही रहेंगे।”
\p
\v 15 असाहेल के पुत्र योनातान और तिकवा के पुत्र यहजयाह ने इस से असहमत होकर लेवी के वंशज मशुल्लाम और शब्बतै का समर्थन किया।
\p
\s5
\v 16 परन्तु बाबेल से लौटे सभी अन्य लोगों ने कहा कि वे ऐसा ही करेंगे। इसलिए एज्रा ने प्रत्येक कुलों के अगुवों को चुना, और मैंने उनका नाम लिखा। दसवें महीने के पहले दिन ये पुरुष आए और इस मामले की जांच करने के लिए बैठे।
\v 17 अगले वर्ष के पहले महीने के पहले दिन उन्होंने यह तय कर दिया था कि किन पुरुषों ने उन महिलाओं से विवाह किया था जो इस्राएली नहीं थी।
\s5
\v 18 यह उन याजकों के नामों की एक सूची है, जिन्होंने गैर-यहूदी महिलाओं से विवाह किया था और जिन कुलों से वे संबंधित थे। येशुअ के पुत्र, योसादाक के पुत्र के वंश में उसके भाई मासेयाह, एलीएजेर, यारीब और गदल्याह थे।
\v 19 उन्होंने गम्भीर रूप से अपनी पत्नियों को त्यागने का वादा किया और उन में से प्रत्येक ने अपने पापों से प्रायश्चित करने के लिए भेंट चढ़ाया।
\s5
\v 20 इम्मेर के वंश में से हनानी और जबद्याह थे।
\v 21 हारीम के वंश में से मासेयाह, एलिय्याह, शमायाह, यहीएल और उज्जियाह थे।
\v 22 पशहूर के वंश में से एल्‍योएनई, मासेयाह, इश्माएल, नतनेल, योजाबाद और एलासा थे।
\s5
\v 23 लेवी के वंशज जो गैर-यहूदी महिलाओं से विवाह कर चुके थे उनके नाम, योजाबाद, शिमी, केलायाह (जिसका दूसरा नाम कलीता था), पतहयाह, यहूदा और एलीएजेर था।
\v 24 संगीतकार एल्याशीब था। परमेश्वर के भवन रक्षकों में शल्लूम, तेलेम और ऊरी थे।
\v 25 यह उन अन्य इस्राएली लोगों के नामों की एक सूची है जिन्होंने विदेशी पत्नियों से विवाह किया था: परोश के वंश में से राम्याह, यिज्जिय्याह, मल्किय्याह, मियामीन, एलीआजार, मलकीयाह और बनायाह थे।
\s5
\v 26 एलाम के वंश में से मत्तन्याह, जकर्याह, यहीएल, अब्दी, यरेमोत और एलिय्याह थे।
\v 27 जत्तू के वंश में से एल्योएनै, एल्याशीब, मत्तन्याह, यरेमोत, जाबाद और अजीजा थे।
\v 28 बेबई के वंश में से यहोहानान, हनन्याह, जब्बै और अत्तलई थे।
\v 29 बानी के वंश में से मशुल्लाम, मल्लूक, अदायाह, याशूब और शेआल यरामोत थे।
\s5
\v 30 पहतमोआब के वंश में से अदना, कलाल, बनायाह, मासेयाह, मत्तन्याह, बसलेल, बिन्नूई और मनश्शे थे।
\v 31 हारीम के वंश में से एलीआजर, यिश्शियाह, मल्किय्याह, शमायाह, शिमोन,
\v 32 बिन्यामिन, मल्लूक और शमर्याह।
\s5
\v 33 हाशूम के वंश में से मत्तनै, मत्तत्ता, जाबाद, एलीपेलेत, यरेमै, मनश्शे और शिमी थे।
\v 34 बानी के वंश में से मादई, अम्राम, ऊएल,
\v 35 बनायाह, बेदयाह, कलूही,
\v 36 वन्याह, मेरेमोत, एल्याशीब,
\s5
\v 37 मत्तन्याह, मत्तनै और यासू।
\v 38 बिन्नूई के वंश में से शिमी थे,
\v 39 शलेम्याह, नातान, अदायाह,
\v 40 मक्नदबै, शाशै, शारै,
\s5
\v 41 अजरेल, शलेम्याह, शेमर्याह,
\v 42 शल्लूम, अमर्याह, और यूसुफ।
\v 43 नबो के वंश में से यीएल, मत्तित्याह, जाबाद, जबीना, यद्दई, योएल और बनायाह थे।
\v 44 इन पुरुषों में से प्रत्येक ने एक ऐसी महिला से विवाह किया था जो इस्राएली नहीं थी और उनमें से कुछ महिलाओं ने बच्चों को भी जन्म दिया था।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h नहेम्याह
\toc1 नहेम्याह
\toc2 नहेम्याह
\toc3 neh
\mt1 नहेम्याह
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं हक्ल्याह का पुत्र नहेम्याह हूँ। जब मैं यरूशलेम लौट आया तो मैंने जो कार्य किए वह सब इस लेख में लिख रहा हूँ। बीसवें वर्ष में राजा अर्तक्षत्र ने किसलेव के महीने में फारसी साम्राज्य पर शासन करना शुरू किया। मैं फारस की राजधानी सूसा में था।
\p
\v 2 मेरा भाई हनानी मुझे देखने आया था। वह और कुछ अन्य लोग यहूदा से थे। मैंने उनसे यहूदियों की छोटी संख्या के बारे में जो बाबेल के दासत्व से बच गए थे और यरूशलेम शहर के बारे में पूछा।
\p
\s5
\v 3 उन्होंने मुझसे कहा, "यहूदी जो दासत्व से बच गए थे, वहां यहूदा में कठिनाई और लज्जा के साथ रह रहे हैं। शहर की दीवार को कई जगहों से गिराया गया था कि सेना आसानी से शहर में प्रवेश कर सके, इतना ही नही, लेकिन शहर के फाटक आग से पूरी तरह जलकर नष्ट हो गए थे।"
\p
\s5
\v 4 जब मैंने यह सुना, तो मैं बैठ गया और रोया। कई दिनों तक मैंने शोक किया और उपवास किया, और मैंने स्वर्ग में परमेश्वर से प्रार्थना की।
\v 5 मैंने कहा, "यहोवा, आप जो स्वर्ग के परमेश्वर हैं। आप महान और भय-योग्य परमेश्वर हैं, और आप अपनी पवित्र वाचा और प्रतिज्ञा हर एक प्रेम करनेवाले के साथ और आपके नियमों और आज्ञाओं का पालन करनेवाले के साथ पूरी करते हैं।
\p
\s5
\v 6 अब कृपया मेरी और देखें और मैं क्या प्रार्थना कर रहा हूँ उसे सुनें। मैं आपके इस्राएली लोगों के लिए दिन और रात प्रार्थना करता हूँ। मैं मानता हूँ कि हमने पाप किया है। यहाँ तक कि मैंने और मेरे परिवार ने आपके विरुद्ध पाप किया है।
\v 7 हमने बहुत बुरा व्यवहार किया है। कई साल पहले, आपके दास मूसा ने हमें आपके नियम और विधियों को दिया था जिन का पालन करने के लिए आपने हमसे कहा था, परन्तु हमने उन्हें नहीं किया।
\p
\s5
\v 8 लेकिन कृपया याद रखें कि आपने अपने दास मूसा से क्या कहा था। आपने कहा था, 'यदि तुम मेरे सामने विश्वास और आज्ञाकारिता से मेरे साथ नहीं रहोगे, तो मैं तुमको अन्य जातियों के बीच तितर-बितर कर दूंगा।
\v 9 परन्तु यदि तुम मेरे पास वापस लौट आओ और मेरे आदेशों का पालन करो, तो भले ही तुम बहुत दूर के स्थानों में दासत्व में रहे हो, फिर भी मैं तुम सब को एकत्र करके इस स्थान में लौटा लाऊँगा जहाँ मैंने तुमको दिखाया है कि मैं कितना महान और महिमामय हूँ।'
\p
\s5
\v 10 हम आपके दास हैं। हम वे लोग हैं जिन्हें आपने अपने महान सामर्थ से दासत्व से निकाला है। आपने ऐसा इसलिए किया क्योंकि आप जो चाहें कर सकते हैं।
\v 11 हे यहोवा, कृपया मेरी प्रार्थना सुनिए, मैं आपका दास हूँ। कृपया उन सभी लोगों की प्रार्थना सुनें जो आपको सम्मान देकर आनन्दित होते हैं कि आप कौन हैं और आप क्या करते हैं। अब मैं प्रार्थना करता हूँ कि जब मैं राजा के पास जाऊं तो आप मुझे सफलता दें; और मेरी रक्षा करें क्योंकि मैं राजा से अनुरोध करूँगा जो मेरे जीवन को खतरे में डाल सकता है। मुझ पर दया करें।"
\p मैं राजा के सबसे अधिक विश्वासयोग्य सेवकों में से एक के रूप में सेवा कर रहा था।
\s5
\c 2
\p
\v 1 राजा अर्तक्षत्र के बीसवें वर्ष के निसान महीने में, उत्सव के समय दाखरस पिलाने की सेवा करने का समय था। मैंने दाखरस लिया और राजा को दे दिया। जब मैं राजा के सामने होता था तब मैं कभी भी उदास नहीं रहा।
\v 2 परन्तु उस दिन, राजा ने मुझे देखा और उसने मुझसे कहा, "तू इतना दु:खी क्यों है? तू बीमार तो नहीं लग रहा है। होसकता कि तेरी आत्मा परेशान है?" तब मैं बहुत डर गया था।
\p
\s5
\v 3 मैंने उत्तर दिया, "हे राजा, आप, कई वर्षों के लिए शासन करें! मैं, एक कारण से ए दु:खी हूँ, वह शहर, जहाँ मेरे पूर्वजों को दफ़नाया गया था वह मलबे में बदल गया है और शहर के आसपास के सब फाटक जल कर राख हो गए हैं।"
\p
\s5
\v 4 राजा ने उत्तर दिया, "तू मुझसे क्या चाहता है की मैं तेरे लिए करूँ?"
\p और इससे पहले कि मैं उसे उत्तर दूँ, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना की।
\v 5 तब मैंने उत्तर दिया, "यदि आप आपकी इच्छा हो, और यदि मैंने आपको प्रसन्न किया है, तो आप मुझे यरूशलेम भेज सकते हैं, जहाँ मेरे पूर्वजों को दफ़नाया गया है, ताकि मैं शहर का पुनःनिर्माण कर सकूँ।"
\p
\v 6 राजा (उसके साथ बैठी रानी ने) मुझसे पूछा, "यदि मैं तुझे जाने दूँ तो तू कब जाएगा? और कब वापस आ जाएगा?" जैसे ही मैंने उसे वहां जाने और फिर लौट आने की तिथियां दीं, उसने मुझे जाने के लिए अनुमति दे दी ।
\p
\s5
\v 7 मैं ने राजा से कहा "आपकी विश्वासयोग्य सेवा करने के बदले में, कृपया मुझे उन राज्यपालों को संबोधित करके पत्र दें जो महानद नदी के पार के क्षेत्र की निगरानी करते हैं। कृपया उन्हें आदेश दें कि मुझे यहूदा जाते हुए उनके प्रांतों में से सुरक्षित यात्रा करने के लिए अनुमति दें|
\v 8 इसके अतिरिक्त, कृपया आसाप को भी एक पत्र लिखें, जो आपके जंगल में सब लकड़ियों का प्रबंधन करता है, कि वह मंदिर के किले के फाटकों के लिए लकड़ी शहर की दीवारों के लिए, और जिस घर में मैं रहता हूँ उनको सुधारने में सहायता करे। "राजा ने वही किया जो मैंने उनसे करने का अनुरोध किया था, क्योंकि परमेश्वर इस सुधार के काम में मुझे जो चाहिए वह प्राप्त करने में मेरी सहायता कर रहे थे।
\p
\s5
\v 9 मैं ने यहूदा के लिए कूच किया। राजा ने मेरी रक्षा के लिए मेरे साथ घोड़ों पर कुछ सेना अधिकारियों और सैनिकों को भेजा। जब हम उस क्षेत्र में आए जहाँ राज्यपालों का शासन था, तो मैंने उन्हें राजा के पत्र दिए।
\p
\v 10 परन्तु जब दो सरकारी अधिकारी, हिरोनी सम्बल्लत और अम्मोनियों के सेवक तोबियाह ने सुना कि मैं आया हूँ, तो वे बहुत क्रोधित हुए थे क्योंकि कोई इस्राएल के लोगों की सहायता करने आया था।
\p
\s5
\v 11 इसलिए मैं यरूशलेम आया और वहां तीन दिन ठहरा।
\v 12 मैं शाम को शहर से बाहर गया, और मैंने मेरे साथ कुछ पुरुष ले लिए। हमारे पास केवल एक पशु था, जिस पर मैं सवारी कर रहा था। मुझे परमेश्वर ने मुझे यरूशलेम में जो कुछ करने के लिए प्रेरित किया था, उसके बारे मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा।
\p
\s5
\v 13 मैं तराई द्वार से होकर शहर की दीवार से बाहर चला गया। तब मैं शहर के चारों ओर गया और मैं सिचार नामक कुएँ से होकर। कूड़ा फाटक की ओर गया। मैंने यरूशलेम के चारों ओर की सब दीवारों की जांच की और पाया कि वे सब टूटे हुई और खुले हुई थी, और दीवार के चारों ओर लकड़ी के फाटक जले हुए रखा थे।
\v 14 तब मैं सोते के फाटक और तालाब जो राजा का तालाब कहलाता था वहां गया, लेकिन मेरा गधा तंग रास्ते से नहीं निकल सका।
\s5
\v 15 इसलिए मैं वापस लौट आया और किद्रोन घाटी के साथ साथ चला और मैंने वापस लौटने से पहले दीवार की जांच की और तराई के फाटक पर फिर से शहर में प्रवेश किया।
\v 16 शहर के अधिकारियों को पता नहीं था कि मैं कहाँ गया था, या मैंने क्या किया। मैंने यहूदी अगुवों, अधिकारियों, याजकों या अन्य लोगों को इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जो सुधार कार्य करेंगे।
\p
\s5
\v 17 मैंने कहा, "आप सब बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे शहर के साथ कैसी भयानक घटनाएं हुई हैं। शहर खंडहर पड़ा है, और यहाँ तक कि फाटक भी जला दिए गए हैं। आओ, हम यरूशलेम की दीवार का पुनःनिर्माण कार्य करें। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हम हमारे शहर से लज्जित नहीं होंगे।"
\v 18 तब मैंने उनसे कहा कि परमेश्वर ने कैसे करुणापूर्वक मेरी सहायता की जब मैंने राजा से बात की, और राजा ने मुझे जो उत्तर दिया।
\p उन्होंने कहा, "चलो उठें और निर्माण करें!" तो वे इस अच्छे काम को करने के लिए तैयार हो गए।
\p
\s5
\v 19 परन्तु सम्बल्लत, अम्मोनी कर्मचारी तोबिय्याह और अरबी गेशेम ने सुना कि हमने क्या करने की योजना बनाई है। तो उन्होंने हँसी उड़ायी और हमारा मजाक बनाया। उन्होंने कहा, "यह क्या काम है जो तुम कर रहे हो? क्या तुम राजा के विरुद्ध विद्रोह कर रहे हैं?"
\p
\v 20 परन्तु मैंने उत्तर दिया, "स्वर्ग में रहने वाला परमेश्वर हमें सफलता देगा, परन्तु तुम्हारे पास इस शहर पर कोई अधिकार नहीं है, तुम्हारे पास कोई पत्र नहीं है, तुम्हारे पास कोई कानूनी दावा नहीं है, और तुम्हारे पास यरूशलेम शहर के साथ कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है।"
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब इस्राएल के महायाजक एल्याशीब, अन्य याजकों के साथ काम करते हुए भेड़ फाटक का पुनःनिर्माण कर रहे थे। उन्होंने इसे यहोवा के सम्मान के लिए अलग कर दिया, और फाटक के पल्लों को खड़ा किया। तब उन्होंने दीवारों को हननेल मीनार तक बनाया, और उन्होंने इसे यहोवा को सम्मानित करने के लिए अलग कर दिया। उन्होंने हननेल के मीनार का पुनःनिर्माण भी किया।
\v 2 उनके आगे, यरीहो के लोग पुनःनिर्माण कर रहे थे। उनके आगे, इम्री का पुत्र जक्कूर, पुनःनिर्माण कर रहा थे।
\p
\s5
\v 3 हस्सना के पुत्रों ने मछली फाटक बनाया। उन्होंने फाटकों के ऊपर लकड़ी की कड़ियाँ लगाई, और पल्लों को भी खड़ा किया। फिर उन्होंने उसे दृढ़ता से बंद करने के लिए खटके और सलाखों को लगाया।
\v 4 उनके आगे, ऊरियाह के पुत्र मेरेमोत और हक्कोस के पोते, ने दीवारों को दृढ़ बनाने के लिए सुधारा। उसके आगे, बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम ने जो मशेजबेल का पोत था, दीवार की मरम्मत की। उनके आगे, बाना के पुत्र सादोक ने दीवार के एक भाग का सुधार किया।
\v 5 उनके आगे, तकोइयों दीवार के एक भाग का सुधार किया परन्तु तकोइयों के अगुवों ने उनके प्रधानों द्वारा दिए गए काम को करने से इन्कार कर दिया।
\p
\s5
\v 6 पासेह के पुत्र योयादा और बसोदयाह के पुत्र मशुल्लाम ने पुराने फाटक का सुधार किया। उन्होंने उसके स्थानों पर फाटक के ऊपर कड़ियाँ भी लगाई और फाटक बंद करने के लिए खटके और सलाखे भी डाल दिये।
\v 7 उनके आगे, गिबोनी मलत्याह और मेरोनोती यादोन, जो गिबोन और मिस्पा के पुरुष थे, उस भाग का सुधार किया जहाँ नदी के पार प्रांत के राज्यपाल रहते थे।
\p
\s5
\v 8 उनके आगे, हर्हयोह के पुत्र उजीएल और हनन्याह, परन्तु उन्होंने दीवार के एक भाग पर चौड़ी दीवार तक काम किया। हर्हयोह ने सोने से वस्तुएँ बनाई, और हनन्याह ने इत्र बनाये।
\v 9 उनके आगे, हूर के पुत्र रपायाह ने यरूशलेम जिले के आधे भाग पर शासन करता था, दीवार के आगे के भाग को सुधारा।
\v 10 उनके आगे, हरुम्मप के पुत्र यदायाह ने अपने घर के पास दीवार के एक भाग सुधारा। उनके आगे, हशब्नयाह के पुत्र ह्त्तूश ने दीवार को सुधारा।
\p
\s5
\v 11 हारीम के पुत्र मल्कियाह, और पहत्मोआब के पुत्र हश्शूब, दीवार के एक भाग को और भट्टों के गुम्मद को सुधारा।
\v 12 उनके आगे, हल्लोहेश के पुत्र शल्लूम, जो यरूशलेम के दूसरे भाग पर शासन करता था, दीवार के एक भाग को सुधारा। उसकी पुत्रियों ने इस काम में उसकी सहायता की।
\p
\s5
\v 13 हानून और जानोह शहर के लोगों ने तराई के फाटक को सुधारा। उन्होंने फाटकों को अपने स्थान पर रखा, और फाटक को बंद करने के लिए खटके और सलाखें भी डाल दियें। उन्होंने दीवार को 460 मीटर तक, कूड़ा फाटक तक सुधारा।
\p
\s5
\v 14 रेकाब के पुत्र मल्कियाह, जो बेथक्केरम के जिले पर शासन करता था, कूड़ा फाटक को सुधारा। उन्होंने फाटक को बंद करने के लिए खटके और सलोखें भी डाल दिये।
\p
\v 15 कोल्होजे के पुत्र शल्लूम, जो मिस्पा के जिले पर शासन करता था, उसने फव्वारा फाटक को सुधारा। उसने फाटक पर एक छत लगाई, और फाटक के पल्लों को खड़ा किया और उसने फाटक को बंद करने के लिए खटके और सलाखें भी डाल दिए। शेलह के तालाब के पास, उसने राजा के बगीचे के साथ की दीवार बनाई, जहाँ तक दाऊदपुर से उतरने वाली सीढियां थी।
\p
\s5
\v 16 उनके आगे, अजबूक का पुत्र नेहेम्याह, जो बेतसूर जिले के आधे भाग पर शासन करता था, वह दाऊद के नगर में कब्रिस्तान तक, और मनुष्यों के बनाये हुए तालाब तक, और वीरों के घर तक की दीवार को सुधारा।
\p
\v 17 उसके आगे, लेवी के कई वंशज जिन्होंने याजकों के साथ दीवार के कई मानों को सुधारने में सहायता की। बानी के पुत्र रेहूम ने एक खंड को सुधारा। कीला के आधे जिले पर शासन करने वाले हशब्याह ने अपने जिले के लोगों की ओर से अगले खंड को सुधारा।
\p
\s5
\v 18 हेनादाद के पुत्र बठवे जो कीला के जिले के अन्य आधे भाग पर शासन करता था, लेवी के अन्य वंशज के साथ अगले भाग को सुधारा।
\v 19 उनके आगे, येशू के पुत्र एजेर, जो मिस्पा के शहर पर शासन करता था, फिर अगले भाग को सुधारा जो शस्त्रों के घर सीढियों के सामने को जाता है, जहाँ दीवार के कोने पर एक पुश्ता है।
\p
\s5
\v 20 उनके आगे, जब्बै के पुत्र बारुक ने बड़ें उत्साह के साथ दीवार के एक खंड को सुधारा। उसने महायाजक एल्याशीब के घर के दरवाजे से उसके अंत तक के भाग का काम किया।
\v 21 उनके आगे, ऊरियाह के पुत्र, हक्कोस के पोता मरेमोत ने एल्याशीब के घर के दरवाजे से उसके घर के अंत तक के भाग को सुधारा।
\p
\s5
\v 22 उनके आगे, कई याजकों ने दीवार के कुछ भागों को सुधारा। यरूशलेम के पास के क्षेत्र के याजकों ने एक खण्ड को सुधारा।
\v 23 उनके आगे, बिन्यामीन और हश्शूब ने अपने घर के सामने एक खंड को सुधारा। मासेयाह के पुत्र अनन्याह को पोते, अजर्याह ने उस घर के सामने के अगले भाग की मरम्मत की।
\v 24 उनके आगे, हेनादाद के पुत्र बिन्नूई, ने अजर्याह के घर से जहाँ दीवार थोड़ी सी मुड़ी है, एक खंड को सुधारा।
\p
\s5
\v 25 उनके आगे, ऊजै के पुत्र पालाल ने एक खण्ड को सुधारा, जहाँ से दीवार मुड़ती है और जहाँ पर राजभवन से ऊँचा गुम्मट है। ऊँचा गुम्मट आंगन के पास है जहाँ पहरेदार रहते हैं। पालाल से आगे, परोश के पुत्र पदायाह ने दीवार को सुधारा।
\v 26 उसके आगे, मंदिर के कर्मचारियों ने ऊंचे गुम्मट के पूर्व की ओर जलफाटक के सामने के एक खंड को सुधारा।
\v 27 उसके आगे, तकोइयों ने एक दूसरे खंड को सुधारा जो बड़े गुम्मट के सामने ओबेल की दीवार तक था।
\p
\s5
\v 28 याजकों के एक समूह ने घोडा के उत्तर में फाटक दीवार को सुधारा। प्रत्येक ने अपने अपने घर के सामने के खंडों को सुधारा।
\v 29 उनके आगे, इम्मेर के पुत्र सादोक ने अपने घर के सामने के खंड को सुधारा। उसके आगे, शकन्याह का पुत्र समयाह, जो पूर्वी फाटक पर द्वारपाल था, उसने अगले खंड को सुधारा।
\v 30 उसके आगे, शेलेम्याह के पुत्र हनन्याह और सालाप के छठवें पुत्र हानून ने एक खंड को सुधारा। वह दूसरा खंड था जिसे उन्होंने सुधारा था। उसके बाद बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम ने दीवार के उस खंड को सुधारा जो उसके कमरों के सामने था।
\p
\s5
\v 31 उनके आगे, मल्कियाह, जिसने सोने से वस्तुएँ भी बनाईं थीं, मंदिर के कर्मचारियों और व्यापारियों के द्वारा काम में ली जानेवाली इमारत तक के एक खंड को सुधारा, जो नियुक्त फाटक और कोने पर ऊपरी कोठरी को सुधारा थी।
\v 32 अन्य लोग जो सोने का काम करते थे, व्यापारियों के साथ सुंदर वस्तुएँ बनाते थे, उन्होंने दीवार के अन्तिम खंड को भेड़फाटक तक सुधारा।
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब सम्बल्लत ने सुना कि हम शहर की दीवार का पुनःनिर्माण कर रहे थे, तथ्य यह है कि वे यरूशलेम के पुनःनिर्माण कर रहे थे, जिसको आग से जला दिया गया था और वह गुस्से में था और उसने घृणा के साथ यहूदियों से बात की।
\v 2 जबकि सामरिया से आये उनके सलाहकारों और सेना के सैनिकों के अधिकारी सुन रहे थे, उन्होंने कहा, "ये यहूदी शायद ही अपने स्वयं के पैरों पर खड़े हो सकते हैं वे क्या सोचते हैं कि वे क्या कर रहे हैं क्या वह शहर का पुनःनिर्माण करके खुद वहां पर रहेंगे? क्या वे मंदिर को पहले जैसा बना पाएंगे यहोवा को याजक सभी बलिदान दे पाएंगे? वे केवल एक दिन में इस तरह के एक महान काम खत्म कर पाएंगे? क्या वे इस जले हुए और बेकार चट्टानों को दीवार का पुनःनिर्माण के लिए उपयोगी सामग्री में बदल पायेंगे और क्या वह फिर से शहर के लिए जीवन लायेंगे?
\p
\v 3 तोबियाह सम्म्बलत के बगल में खड़ा था। उसने कहा, "यह दीवार जो बना रहे है वह इतनी कमजोर है कि यहाँ तक की यदि एक छोटी लोमड़ी उस पर चढ़ जाये, तो उनकी पत्थर की दीवार जमीन पर गिर जाएगी!"
\p
\s5
\v 4 तब मैंने प्रार्थना की। मैंने कहा, "हे हमारे परमेश्वर, हमें सुनें, क्योंकि वे हमारा अपमान कर रहे हैं! उनके अपमान के शब्द खुद उन पर पडे! अपने शत्रुओं को आने और उन्हें पकड़ने और उन्हें दूर देश जाने के लिए मजबूर कर दें!
\v 5 वे दोषी हैं। उनके अपराध को दूर न करें और उन्हें आपके सामने किए गए पाप के उत्तर दें। उनके अपमान के साथ, वे उन लोगों से बहुत गुस्सा हो गये जो दीवारों का पुनःनिर्माण कर रहे हैं!"
\p
\v 6 लेकिन कुछ समय बाद, श्रमिकों ने पूरे शहर के चारों ओर दीवार की कुल ऊंचाई के करीब दीवार बनाई। वे इसे पूरा करने में सक्षम थे क्योंकि वे सबसे अच्छा काम करना चाहते थे। जो उन्होंने किया।
\p
\s5
\v 7 लेकिन जब सम्बल्लत, तोबियाह,अरबी, अम्मोनी, और अश्दोदियो ने सुना है कि हम दीवार पर काम जारी रख रहे थे और दीवारों के अंतराल को भर रहे थे, तो वे बहुत नाराज हो गए।
\v 8 उन सभी ने यरूशलेम के लोगों के विरूद्ध इकट्टे होकर लड़ने और गड़बड़ी का कारण बनने के लिए एक योजना बनाई ।
\v 9 परन्तु हमने अपने परमेश्वर से हमारी रक्षा करने के लिए प्रार्थना की, और हमने दीवारों के चारों ओर लोगों को दिन-रात नगर की सुरक्षा के लिए रखा क्योंकि दीवार के पुनःनिर्माण के लिए उनमे से कुछ हमसे नाराज थे।
\p
\s5
\v 10 तब यहूदा के लोग कहते हैं, "उन पुरुषों को जो दीवार पर काम कर रहे हैं अपनी सारी शक्ति का इस्तेमाल किया है। वहां पर बहुत सारे भारी खुरदरे पत्थर हैं जो कि हमें दूर स्थानांतरित करने होंगे; हम इस काम को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। यह हमारे लिए बहुत अधिक है।
\p
\v 11 इसके अलावा, हमारे शत्रु कह रहे हैं, 'यहूदियों के देखने से पहले, हम उन पर टूट पड़ेंगे और उन्हें मार देंगे और दीवार पर उनका काम रोक देंगे!' "
\p
\s5
\v 12 हमारे शत्रुओं के पास रहने वाले यहूदी आए और हमें कई बार उन दुष्ट योजनाओं के बारे में चेतावनी दी जो हमारे शत्रु हमारे खिलाफ योजनाएँ बना रहे थे।
\p
\v 13 इसलिए मैंने लोगों को दीवार पर पहरेदारी के लिए प्रत्येक परिवार से रखा। उन्हें दीवार के निचले भाग में रखा गया , जहाँ पर दीवार से आसानी से पार हो सकते हैं। वे इसे अपनी तलवारों, अपने भाले, और अपने धनुष और तीरों से बचाएंगे।
\v 14 इसके बाद मैंने सब कुछ जांच लिया, मैंने अगुवों और अन्य अधिकारियों और कई अन्य लोगों को बुलाया, और मैंने उनसे कहा, "हमारे शत्रुओं से डरो मत! ध्यान रखो कि परमेश्वर महान और महिमामय है! अपने परिवार, अपने बेटों और बेटियों, अपनी पत्नियों और अपने घरों की रक्षा के लिए लड़ो! "
\p
\s5
\v 15 हमारे शत्रुओं ने सुना कि हम जान गये हैं कि वे क्या करने की योजना बना रहे थे और परमेश्वर ने हमारे काम को रोकने के लिए उनकी सभी योजनाओं को नष्ट कर दिया है। इसलिए हम सभी, दीवारों पर काम करने के लिए लौट आए, उसी स्थान पर जहाँ हम पहले काम कर रहे थे।
\p
\v 16 लेकिन उसके बाद, केवल आधे लोग दीवार पर काम कर रहे थे। दूसरे अपने भाले, ढाल, धनुष और तीर, और संरक्षण के लिए कवच पहनकर वहां पहरेदारी के लिए खड़े थे। यहूदा के अगुवे लोगों के पीछे पहरे के लिए खड़े थे।
\p
\s5
\v 17 जो लोग दीवार बना रहे थे और जिन्होंने अपनी पीठ पर भारी बोझ लिया हुआ था, उनमें से सभी ने दीवार को बनाने का काम एक हाथ से और दूसरे हाथ से हथियार को पकडे हुए थे।
\v 18 जो लोग दीवार बना रहे थे, उनकी तलवार उसकी तरफ बढ़ गई थी। अगर हमारे शत्रुओं ने हमला किया तो वह आदमी तुरही बजाएगा जो मेरी तरफ खड़ा था।
\p
\s5
\v 19 तब मैंने अधिकारियों, अन्य महत्वपूर्ण पुरुषों और अन्य लोगों से कहा, "यह एक महान काम है, और हम दीवार के साथ एक-दूसरे से अलग हैं।
\v 20 यदि आप उस जगह के चारों ओर उस आदमी को तुरही बजाते हुए सुनते हो। हमारा परमेश्वर हमारे लिए लड़ेंगे! "
\p
\s5
\v 21 इसलिए हमने काम करना जारी रखा। आधे पुरुष लगातार पूरे दिन अपने भाले पकड़े रहे, जब सूर्य सुबह में उगता था तब से लेकर जब तक रात में सितारे निकलते थे।
\v 22 उस समय, मैंने लोगों को यह भी कहा, "हर कर्मचारी और उसके सहायक को बता दो कि उन्हें रात में यरूशलेम के अंदर रहना चाहिए। ऐसा करके, वे रात में पहरा दे सकते हैं, और दिन के समय वे दीवार पर काम कर सकते हैं । "
\v 23 उस समय के दौरान, मैंने अपने कपड़े को नहीं उतारा, और मैं हमेशा अपना हथियार लिये रहा। मेरे भाइयों, मेरे दासों और मेरे पीछे रहने वाले लोगों ने भी ऐसा ही किया, यह पहरेदारों के समान था। हम सभी ने वही किया, भले ही हम सिर्फ पानी पीते थे।
\s5
\c 5
\p
\v 1 बाद में, कई पुरुष ने और उनकी पत्नियाँ अन्य यहूदियों के व्यवहार के कारण न्याय के लिए चिल्लाकर रोये।
\v 2 उनमें से कुछ ने कहा, "हमारे पास बहुत बच्चे हैं इसलिए हमें खाने और जीवित रहने के लिए बहुत अनाज की आवश्यक्ता है।"
\p
\v 3 अन्यों ने कहा, "हमें अपने खेतों और दाख की बारियां और घरों को बंधक रखना पड़ता है कि हमे इस अकाल के समय अनाज मिल सके।"
\p
\s5
\v 4 अन्यों ने कहा, "हमें अपने खेतों और दाख की बारियों का कर राजा को भुगतान करने के लिए पैसे की आवश्यक्ता हैं।
\v 5 हम यहूदी अन्य यहूदियों के समान हैं। हमारे बच्चे हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने उनके बच्चे हैं। परन्तु हमें जो भी देना है, उसके भुगतान करने के लिए हमें अपने बच्चों को दासत्व में बेचने के लिए विवश होना पड़ा है। हमने अपनी कुछ बेटियों को दासी होने के लिए पहले ही बेच दिया है। हमारे खेत और दाख की बारियां हमारे पास से ले ली गई हैं, इसलिए जो उधार हमने लिया है, उसका भुगतान करने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है।"
\p
\s5
\v 6 जब मैंने इन बातों को सुना जिनके बारे में वे बहुत चिंतित थे तब मैं बहुत क्रोधित हुआ।
\v 7 इसलिए मैंने सोचा कि मैं इसके बारे में क्या कर सकता हूँ। मैंने अगुवों और अधिकारियों से कहा, "जब वे तुमसे पैसे उधार लेते हैं तो तुम अपने रिश्तेदारों से ब्याज ले रहे हो। तुम जानते हो कि यह गलत है!" तब मैंने उन लोगों के एक बड़े समूह को बुलाया कि उन पर दोष लगाएँ।
\v 8 मैं ने उनसे कहा, "हमारे कुछ यहूदी भाइयों को अन्यजातियों के दास होने के लिए स्वयं को बेचने के लिए विवश होना पड़ा है। जितना हो सकता हैं, हम उन्हें वापस खरीद रहे हैं। परन्तु अब तुम फिर अपने भाई-बन्धुओं को भी बेच रहे हो कि वे फिर से हमे बेचे जाएँ!" जब मैंने यह उनसे कहा, वे चुप थे। उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।
\p
\s5
\v 9 तब मैं ने उनसे कहा, "तुम ऐसा भयानक काम क्यों कर रहे हो। क्या तुम्हें परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करना चाहिए और उचित काम नहीं करना चाहिए? यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम हमारे शत्रुओं को हमारे साथ अपमान का व्यवहार करने से रोक पाओगे।
\v 10 मैं ने और मेरे साथी यहूदियों ने और मेरे कर्मचारियों ने लोगों को धन और अनाज दिया है। परन्तु हम सब इनमें से हर एक कर्ज़ पर ब्याज लेना बंद कर दें।
\v 11 इसके अतिरिक्त तुम उनके खेत, दाख की बारियां, उनके जैतून के पेड़, और उनके घरों को जो तुमने उनसे लिये थे, वापस दे दो। जब उन्होंने पैसे, अनाज, दाखरस और जैतून का तेल तुमसे उधार लिया था, तुम्हे उन पर लगाया गया ब्याज भी उन्हें वापस दे देना चाहिए। तुम्हे यह आज ही करना होगा!"
\p
\s5
\v 12 अगुवों ने उत्तर दिया, "आप ने जो भी कहा हम करेंगे।" हम उन्हें वह सब वापस कर देंगे जो हमने उन्हें विवश करके लिया था और हम उनसे अब और कुछ लेने की अपेक्षा भी नहीं करेंगे।"
\p तब मैंने याजकों को बुलाया, और मैंने उन्हें शपथ खिलाई कि उन्होंने जो वचन दिया है, वैसा ही करेंगे।
\v 13 मैंने अपने वस्त्र झाड़कर उनसे कहा तुम लोगों ने अभी की गई प्रतिज्ञा के अनुसार नहीं किया तो मै आशा करता हूँ कि परमेश्वर वैसे ही तुम्हें झाड़ दे जैसे मैं अपने वस्त्र को झाड़ रहा हूँ।"
\p उन सभों ने उत्तर दिया, "आमीन, ऐसा हो!" और उन्होंने यहोवा की स्तुति की। तब उन्होंने वही किया जो उन्होंने प्रतिज्ञा की थी।
\p
\s5
\v 14 फारस के राजा अर्तक्षत्र के बीसवें वर्ष में यहूदिया के राज्यपाल होने को मैं नियुक्त हुआ था। उस समय से बतीसवें वर्ष तक, अर्थात बारह वर्षों में न तो मैंने और न ही मेरे अधिकारियों ने वह पैसे स्वीकार किये जो राज्यपाल होने के कारण हमें भोजन खरीदने के लिए लेने की अनुमति थी।
\v 15 जो लोग मुझसे पहले राज्यपाल थे, वे प्रति दिन के भोजन और दाखरस के लिए चालीस चाँदी के सिक्कों को उनसे लेते थे और लोगों पर बोझ डालते थे। यहाँ तक कि उनके कर्मचारियों ने भी लोगों को सताया। परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि मैं परमेश्वर को सम्मान देना चाहता था और परमेश्वर का भय मानना चाहता था।
\p
\s5
\v 16 मैं इस दीवार पर भी काम करता रहा, और हमने लोगों से कोई जमीन नहीं खरीदी। जो लोग मेरे लिए काम करते थे वे दीवार में काम करने के लिए सहभागी हो गए।
\v 17 इसके अतिरिक्त, हर दिन मैं अपनी मेज पर यहूदियों और अधिकारियों, एक सौ पचास लोगों को खिलाने के लिए उत्तरदायी था; और हमने उन भेंट के लिए आने वालों को भी खिलाया जो हमारे आस-पास की अन्य जातियों से आए थे।
\p
\s5
\v 18 मैंने अपने सेवकों से कहा कि वे प्रतिदिन एक बैल, छः बहुत अच्छी भेड़ें और पक्षियों के मांस का प्रबन्ध करें। और हर दस दिन में मैंने उन्हें नए दाखरस भी बड़ी मात्रा में दिया। परन्तु मुझे पता था कि बहुत सारे पैसों से करों का भुगतान करके लोग बोझ में थे, इसलिए मैंने उस धन को स्वीकार नहीं किया जिसे पाने का मैं राज्यपाल के रूप में अधिकार रखता था।
\p
\v 19 हे मेरे परमेश्वर, मेरे बारे में सोचें, और जो कुछ मैंने इन लोगों के लिए किया है, उसके लिए मुझे प्रतिफल दें।
\s5
\c 6
\p
\v 1 सम्बल्लत, तोबियाह, गेशेम, और हमारे अन्य शत्रुओं ने यह सुना कि हमने दीवार का पुनःनिर्माण पूरा कर लिया है, और अब उसमें कहीं भी छेद नहीं था, हालांकि हमने अभी तक फाटकों के पल्ले नहीं बदले थे।
\v 2 तब सम्बल्लत और गेशेम ने मुझे एक संदेश भेजा जिसमें लिखा था, "आओ और यरूशलेम के उत्तर में ओनो के मैदान में हमारे साथ बात करो।" परन्तु मेरी हानि करने का उनका विचार छिपा नहीं था।
\p
\s5
\v 3 इसलिए मैंने दूतों के हाथ उन्हें सन्देश भेजा, "मैं एक महत्वपूर्ण काम कर रहा हूँ, और मैं वहां नहीं आ सकता। तुम से आकर बात करने के कारण इस काम में देरी नहीं होनी चाहिए।
\v 4 उन्होंने मुझे एक ही संदेश चार बार भेजा, और हर बार जब मैंने उन्हें उत्तर दिया तो मैंने वही बात कही।
\p
\s5
\v 5 तब सम्बल्लत ने अपने एक सेवक को पांचवां संदेश लेकर मेरे पास भेजा। वह लिखित था, परन्तु वह मुहर बंद नहीं था और वह उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ था।
\v 6 इस संदेश में यह लिखा गया था:
\p "आस-पास की जातियों के कुछ लोगों ने एक बात सुनी है कि आप और अन्य यहूदी दीवार का पुनःनिर्माण कर रहे हैं, कि बाबेल के राजा के विरुद्ध विद्रोह कर सके, और आप इस्राएल के राजा बनने की योजना बना रहे हैं। गेशेम ने हमें बताया है कि यह सच है।
\p
\s5
\v 7 लोग यह भी कह रहे हैं कि आपने यरूशलेम में प्रचार करने के लिए कुछ भविष्यवक्ताओं को नियुक्त किया है जिससे कि आप, नहेम्याह, अब यहूदिया में राजा हैं। राजा अर्तक्षत्र निश्चित ही इस समाचार को सुनेंगे, और फिर आप बड़ी परेशानी में पड़ जाएँगे। इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि हमें इस विषय पर बात करने के लिए एक-दूसरे से भेंट करना आवश्यक है।"
\p
\s5
\v 8 जब मैंने उस संदेश को पढ़ा, तो मैंने सम्बल्लत को कहने के लिए संदेश लाने वाले दूत को वापस भेजा और कहा, "तुम जो भी कहते हो वह सच नहीं है। तुमने इसे अपनी कल्पना में बनाया है।"
\v 9 मैंने कहा, मुझे पता था कि वे हमें डराने का प्रयास कर रहे थे, उन्होंने सोचा, "वे इतने निराश हो जाएँगे कि वे दीवार का और काम नहीं कर पायेंगे, और काम कभी पूरा नहीं होगा।"इसलिए मैंने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मुझे साहस दो।"
\p
\s5
\v 10 एक दिन मैं दलायाह के पुत्र और मेहेतबेल के पोते शमायाह के घर साथ बात करने गया। मैं उसके घर में उससे बात करने गया। उसे आदेश दिया गया कि वह अपना घर न छोड़े। उसने मुझे बताया, "तुम्हें और मुझे मंदिर में प्रवेश करना होगा, और हमें मंदिर के केंद्र में एक कमरे में जाना होगा, और दरवाजे बंद करना होगा। वे तुम्हें मारने के लिए आ रहे हैं। वे आज रात को ही तुम्हें मारने के लिए आ रहे हैं।"
\p
\v 11 मैंने उत्तर दिया, "मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ! मैं अपने जीवन को बचाने के लिए मंदिर में न छिपूंगा न भागूँगा!, न ही, मैं ऐसा नहीं करूँगा!"
\p
\s5
\v 12 मैंने उसकी बात पर विचार किया और मैंने देखा कि परमेश्वर ने शमायाह को यह नहीं बताया कि मुझसे क्या कहना है। तोबियाह और सम्बल्लत ने उसे काम पर रखा था।
\v 13 उन्होंने मुझे डराने के लिए उसे नियुक्त किया था। वे चाहते थे कि मैं मंदिर में छिपकर पाप करूं और परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करूं। अगर मैंने ऐसा किया, तो वे मुझे एक बुरा नाम देंगे, और फिर वे मुझे नीचा दिखाएँगे।
\p
\v 14 इसलिए मैंने प्रार्थना की, "हे मेरे परमेश्वर, यह मत भूलना कि तोबियाह और सम्बल्लत ने क्या किया है।" यह भी मत भूलना कि नोअद्याह और अन्य भविष्यवक्तिन ने मुझे डराने का प्रयास किया है।"
\p
\s5
\v 15 हमने एलूल महीने के पच्चीसवें दिन दीवार का पुनःनिर्माण करना समाप्त किया। हमने बावन दी में सब काम पूरा कर लिया था।
\v 16 जब आस-पास की जातियों में हमारे शत्रुओं ने इसके बारे में सुना, तो वे बहुत डर गए और वे अपमानित हुए, क्योंकि उन्हें पता था कि यह परमेश्वर था जिसने इस काम में हमारी सहायता की थी।
\p
\s5
\v 17 इस समय के यहूदी अगुवों ने तोबियाह को कई संदेश भेजे, और तोबियाह उनको भी सन्देश भेज रहा था।
\v 18 यहूदियों के बहुत से लोगों ने तोबियाह के प्रति अपनी भक्ति की शपथ खाई हुई थी। वह आरह के पुत्र शकेम्याह का दामाद था, और तोबियाह का पुत्र यहोहानान ने बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम की पुत्री से विवाह किया था।
\v 19 लोग तोबियाह द्वारा किए गए सब अच्छे कामों के बारे में मेरी उपस्थिति में प्रायः बातें करते थे, और फिर जो कुछ मैं कहता वह सब उसे बताते होगे। इसलिए तोबियाह ने मुझे डराने का प्रयास करने के लिए कई पत्र भेजे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 दीवार का काम समाप्त होने के बाद हमने फाटकों को अपने स्थान पर लगाया, हमने द्वारपाल को और गीत गाने वाले पवित्र दल के सदस्यों को और लेवीयों के अन्य वंशजों को काम सौंपा जो वे करते थे।
\v 2 मैंने अपने भाई हनानी को यरूशलेम के राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया। वह एक सच्चा व्यक्ति था जिसने कई अन्य लोगों से अधिक परमेश्वर का सम्मान किया और आदर दिया। इसके अतिरिक्त, हनान्याह को यरूशलेम में किले का अधिकारी नियुक्त किया गया था।
\s5
\v 3 मैंने उनसे कहा, "जब तक सूरज गर्म न हो जाए तब तक यरूशलेम के फाटकों को न खोले। और फाटकों को तब ही बंद कर दें जब द्वारपाल चौकसी कर रहे हों और सलाखों को भी फाटकों पर रख दे।" मैंने उससे यह भी कहा कि कुछ लोगों को रक्षा के लिए नियुक्त करे जो यरूशलेम में रहते हैं, और उनमें से कुछ को शहर की चौकियों पर रक्षा करने के लिए नियुक्त करे, और कुछ अपने घरों के आस पास रक्षा करें।"
\p
\v 4 यरूशलेम शहर एक बड़े क्षेत्र में था, परन्तु उस समय शहर में बहुत लोग नहीं थे, और उन्होंने दोबारा से घर नहीं बनाये थे।
\p
\s5
\v 5 परमेश्वर ने मेरे मन में अगुवों और अधिकारियों और अन्य लोगों को बुलाने का विचार उत्पन्न किया कि उनके परिवारों के अभिलेखों की पुस्तकों में उनके परिवारों के अनुसार उनका नामाकंन करूं। मुझे उन लोगों के अभिलेख भी मिले जो पहले यरूशलेम लौटे थे। यह वह है जो मैंने उन अभिलेखों में पाया था।
\p
\s5
\v 6 यह उन लोगों की एक सूची है जो यरूशलेम और यहूदियों के अन्य स्थानों में लौट आए थे। वे बाबेल में रह रहे थे। नबूकदनेस्सर उन्हें वहां ले गया था। वे यरूशलेम और यहूदिया लौट आए। लौटने वालों में से प्रत्येक अपने शहर में गया जहाँ उसके पूर्वज बन्धुआई से पहले रहते थे।
\v 7 वे जरुब्बाबेल, येशू, नेहेम्याह, अजर्याह, राम्याह, नहमानी, मोर्दकै, बिलशान, मिस्पेरेत, बिग्वै, नहूम, और बाना के साथ वापस आए थे।
\p यहूदा को लौटने वाले लोगों में से पुरुषों की संख्या निम्नलिखित सूची में दी गई है।
\s5
\v 8 परोश के वंशजों से, 2,172,
\q
\v 9 सप्त्याह के वंशजों से, 372,
\q
\v 10 आरह के वंशजों से, 652
\q
\s5
\v 11 पह्त्मोआब के वंशजों से, येशू और योआब के वंशज, 2,818,
\q
\v 12 एलाम के वंशजों से, 1,254,
\q
\v 13 जत्तू के वंशजों से, 845,
\q
\v 14 जक्कै के वंशजों से 760
\q
\s5
\v 15 बिन्नूई के वंशजों से, 648,
\q
\v 16 बेबै के वंशजों से, 628,
\q
\v 17 अज़गाद के वंशजों से, 2,322,
\q
\v 18 अदोनीकाम के वंशजों से, 667
\q
\s5
\v 19 बिग्वै के वंशजों से, 2,067,
\q
\v 20 आदीन के वंशजों से, 655,
\q
\v 21 आतेर के वंशजों से, जिसका दूसरा नाम हिजकिय्याह है, 98,
\q
\v 22 हाशम के वंशजों से, 328
\q
\s5
\v 23 बेसै के वंशजों से, 324,
\q
\v 24 हारीप के वंशजों से, जिसका दूसरा नाम योरा है, 112,
\q
\v 25 गिबोन के वंशजों से, जिसका दूसरा नाम गिब्बर है, 95
\v 26 जिनके पूर्वजों ने इन नगरों में रहते थे वे भी लौटे:
\q बैतलहम और नेतोपा से पुरुष, 188
\q
\s5
\v 27 अनातोत के लोग भी थे, 128,
\q
\v 28 बेतजमावत के पुरुष, 42,
\q
\v 29 किर्यत्यारिम, कपीर और बेरोत से पुरुष, 743,
\q
\v 30 रामा और गेबा के पुरुष, 621
\q
\s5
\v 31 मिकपास के लोग थे, 122,
\q
\v 32 बेतेल और ऐ के पुरुष, 123,
\q
\v 33 नबो से पुरुष, 52,
\q
\v 34 एलाम से पुरुष, 1,254
\q
\s5
\v 35 हारीम से, 320 पुरुष थे,
\q
\v 36 यरीहो से पुरुष, 345,
\q
\v 37 लोद, हादीद और ओनो से पुरुष, 721,
\q
\v 38 सना के पुरुष, 3, 9 30
\p ये याजक भी लौटे:
\q
\s5
\v 39 यदायाह के वंशज, जो येशू के परिवार हैं, 973,
\q
\v 40 इम्मेर के वंशज, 1,052,
\q
\v 41 पशहूर के वंशज, 1,247,
\q
\v 42 हारीम के वंशज, 1,017
\p
\s5
\v 43 लौटने वाले लेवी के वंशज थे:
\q येशू , कदमिएल, बिननै, और होदवा के वंशज, 74,
\q
\v 44 गायक जो आसाप के वंशज थे, 148
\p
\v 45 मंदिर के द्वारपालों में शल्लूम, आतेर, तल्मोन, अक्कूब, हतीता और शोबै के वंशजों से 138,
\p
\s5
\v 46 मंदिर मजदूर जो लौटे थे वे इन पुरुषों के वंशज थे:
\q सीहा, हसुपा, तब्बाओत,
\q
\v 47 केरोस, सिआ, पादोन,
\q
\v 48 लबाना, हागावा, शल्मै,
\q
\v 49 हानान, गिद्देल, गहर,
\q
\s5
\v 50 राया, रसीन, नकोदा,
\q
\v 51 गज्जाम, उज्जा, पासेह,
\q
\v 52 बेसै, मूनीम, इफ्यूसिम जिसे नपूशस भी कहा जाता है,
\q
\s5
\v 53 बक्बूक, हकूपा, हर्हूर,
\q
\v 54 बसलीत, महीदा, हर्शा भी कहा जाता है,
\q
\v 55 बर्कोस, सीसरा, तेमेह,
\q
\v 56 नसीह, और हतीपा।
\p
\s5
\v 57 राजा सुलैमान के कर्मचारियों के वंशज जो लौटे थे:
\q सोतै, सोपेरेत, परीदा,
\q
\v 58 याला, दर्कोंन, गिद्देल,
\q
\v 59 शप्त्याह के पुत्र, हत्तील के वंशज, पोकेरेत सवायीम के वंशज, आमोन के वंशज थे।
\p
\v 60 कुल मिलाकर, 392 परमेश्वर के भवन के श्रमिक और सुलैमान के कर्मचारी के वंशज थे जो लौट आए।
\p
\s5
\v 61-62 दलायाह, तोबियाह और दकोदा के जाति से 642 लोगों का एक और समूह तेलमेलह, तेलहर्शा, करूब, अद्दोन, जो अद्दोन कहलाता है बाबेल में इम्मेर के शहरों से लौट आए। परन्तु वे सिद्ध नहीं कर सके कि वे इस्राएल के वंशज थे।
\p
\v 63 होबायाह, हक्कोस और बर्जिल्लै के वंशजों के याजक भी लौटे। बर्जिल्लै का विवाह उस महिला से हुआ था जो गिलाद जिले से बरज़िल्लै नाम के एक पुरुष के वंश से थी, और उसने अपनी पत्नी के परिवार का नाम लिया।
\p
\s5
\v 64 उन्होंने उन अभिलेखों की खोज की जिनमें लोगों के पूर्वजों के नाम थे, परन्तु उन्हें उन परिवारों के नाम नहीं मिल सके, इसलिए उन्हें याजकों के अधिकार और कर्तव्यों की अनुमति नहीं थी। वे याजक होने के योग्य नहीं थे क्योंकि वे अपने परिवार के इतिहास का पता नहीं लगा सके।
\v 65 राज्यपाल ने उनसे कहा कि उन्हें बलिदान से लिया गया याजकों के भाग का भोजन खाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, और उन्हें चिन्ह लगे हुए पत्थरों का उपयोग करनेवाले याजक के आने तक रुकना होगा कि परमेश्वर उनके पुनः याजक होने के बारे में क्या कहते हैं।
\p
\s5
\v 66 कुल मिलाकर, 42,360 लोग थे जो यहूदिया को लौट आए थे।
\v 67 वहां 7,337 उनके दास भी थे और दो सौ पेन्तालीस गायक थे, पुरुष और महिलाओं दोनों की गिनती थीं।
\s5
\v 68 इस्राएली भी 736 घोड़ों, 245 खच्चर बाबेल से ले आए,
\v 69 435 ऊंट, और 6,720 गधे भी।
\p
\s5
\v 70 कुलों के कुछ अगुवों ने परमेश्वर के भवन के पुनःनिर्माण के लिए भेंट भी दी थीं। राज्यपाल ने लगभग साढ़े आठ किलोग्राम सोने, परमेश्वर के भवन में उपयोग के लिए पचास कटोरे और याजकों के लिए पांच सौ तीस वस्त्र दिए।
\v 71 अन्य अगुवों ने खज़ाने में एक सौ सत्तर किलोग्राम सोना दिया, और कुलों के अगुवों ने कुल मिलाकर 1200 किलोग्राम चाँदी दी।
\v 72 बाकी लोगों ने एक सौ सत्तर किलोग्राम सोना, और 1100 किलोग्राम चाँदी, और याजकों के लिए सड़सठ वस्त्र दिए।
\p
\s5
\v 73 तो याजक, लेवी जो याजकों के सहायक लेवी, हैं, द्वारपाल, संगीतकारों, परमेश्वर के भवन के कार्यकर्ताओं, और कई आम लोग, जो सब इस्राएली थे, यहूदियों के नगरों और शहरों में जहाँ उनके पूर्वज रहते थे वहां रहने लगे।
\p सातवें महीने तक इस्राएल के लोग अपने अपने नगर चले गए और वे उन में रहने लगे थे।
\s5
\c 8
\p
\v 1 सब लोग उस स्थान पर एकत्र हुए जो जल फाटक के निकट था। पुरुष और महिलाएं और समझदार बच्चे एक साथ एकत्र हुए। उन्होंने एज्रा से कहा कि मूसा ने जो व्यवस्था लिखी थी, उन नियमों की पुस्तक को बाहर निकाल लाओ, जिन्हें यहोवा ने इस्राएल के लोगों को व्यवस्था के रूप में दिया था कि उन नियमों और आज्ञाओं का पालन करें।
\v 2 एज्रा, जिसने परमेश्वर के भवन में बलियों के द्वारा परमेश्वर की सेवा की, व्यवस्था को बाहर लाया और सभी लोगों, पुरुषों और महिलाओं, दोनों के सामने और हर एक समझने वाले सामने पढ़ा। उन्होंने उस वर्ष के सातवें महीने के पहले दिन ऐसा किया।
\v 3 अत: वह उसे बाहर लाया और लोगों के सामने पढ़ा। उन्होंने इसे सुबह से दो पहर तक पढ़ा। सब लोगों ने सुना, पुरुषों और स्त्रियों, और कई लोगों ने भी, जो उसने पढ़ा उसे समझने के योग्य थे। व्यवस्था की पुस्तक से एज्रा ने जो पढ़ा लोगों ने बहुत रुचि के साथ सुना।
\p
\s5
\v 4 एज्रा इस उद्देश्य के लिए लोगों के द्वारा निर्मित एक ऊँचे लकड़ी के मंच के ऊपर खड़ा था। उसके दाहिनी ओर मत्तित्याह, शेमा, अनायाह, ऊरीय्याह, हिल्किय्याह और मासेयाह खड़े थे। उसके बायीं ओर पर, पदायाह, मिशाएल, मिल्किय्याह, हाशूम, हश्बद्दाना, जकर्याह और मशुल्लाम खड़े थे।
\p
\v 5 एज्रा ने मंच पर खड़े होकर उस पुस्तक को खोला सब उसे देख सकते थे, और जैसे ही उसने पुस्तक खोली, सब लोग खड़े हो गए।
\s5
\v 6 तब एज्रा ने महान परमेश्वर यहोवा की स्तुति की और सब लोगों ने अपने हाथों को उठाकर कहा, "आमीन! आमीन!" तब वे सब लोगों ने सिर झुकाकर अपने माथे भूमि पर टेक कर यहोवा की आराधना की।
\p
\v 7 येशू, बानी, शेरेब्याह, यामीन, अक्कूब, शब्बतै, होदिय्याह, मासेयाह, कलीता, अजर्याह, योजाबाद, हानान और पलायाह, सब लेवी थे। उन्होंने मूसा के नियमों का अर्थ उन लोगों को समझाया जो वहां खड़े थे।
\v 8 उन्होंने पुस्तक से नियमों को भी पढ़ा जिन्हें परमेश्वर ने मूसा को दिया था, और उन्होंने इसे अरामी भाषा में अनुवाद किया, जिसका अर्थ समझना उन लोगों के लिए आसान हो गया था जो इसे समझ सकते थे।
\p
\s5
\v 9 तब नेहेम्याह जो अधिपति था, और एज्रा याजक और शास्त्री, और लेवी जो लोगों को सुनाया था उसका वर्णन कर रहे थे, उनको कहा, " यहोवा तुम्हारे परमेश्वर यह मानते हैं कि यह दिन अन्य दिनों से अलग है। इसलिए दुखी न हो या रोओ मत!" जब उन्होंने एज्रा के द्वारा मूसा के नियमों को सुना, तब सब लोग रो रहे थे।
\p
\v 10 तब नहेम्याह ने उनको कहा, "अब घर जाओ और कुछ अच्छे भोजन का आनंद लो और कुछ मिठा रस पियों। और उन लोगों को कुछ भेजो जिनके पास खाने या पीने के लिए कुछ भी नहीं है।" यह दिन हमारे परमेश्वर की आराधना के लिए अलग किया गया है उदासी से भरे मत रहो! यहोवा जो आनन्द देता है वह तुम्हे दृढ़ बना देगा।"
\p
\s5
\v 11 लेवियों ने लोगों को चुप कराते हुए कहा, "रोओ मत, क्योंकि यह दिन यहोवा के लिए अलग है।" दुखी मत हो!"
\p
\v 12 इसलिए लोग चले गए, और उन्होंने खाया और पीया, और उन्होंने उन लोगों को भोजन भेजा जिनके पास कुछ नहीं था। वे बहुत खुश थे, क्योंकि वे उन शब्दों के अर्थ को समझते थे जो उनके लिए पढ़े गए थे।
\p
\s5
\v 13 अगले दिन, परिवारों के अगुवे और याजक और लेवी, एज्रा के साथ अध्ययन करने के लिए एक-साथ आये ताकि वे व्यवस्था के शब्दों से पूरा ज्ञान प्राप्त कर सकें।
\v 14 उन्होंने नियम में पढ़ा कि कैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी कि इस्राएल के लोगों को आदेश दे कि वे पूरे महीने अस्थायी झोपड़ियों में रहें उसको याद रखें कि उनके पूर्वज झोपड़ियों में रहते थे, जब वे जंगल में थे।
\v 15 उन्होंने यह भी सीखा कि उन्हें यरूशलेम और सब शहरों में प्रचार करना चाहिए कि लोगों को पहाड़ों पर जाकर जैतून के पेड़ से और जंगली जैतून के पेड़ से और हिना के पेड़, ताड़ के पेड़ और छाया पेड़ से शाखाओं को काटना चाहिए। उन्हें त्यौहार के समय रहने के लिए इन शाखाओं से झोपड़ियां बनाना चाहिए, जैसा कि मूसा ने इस बारे में लिखा था।
\p
\s5
\v 16 इसलिए लोग शहर से बाहर चले गए और शाखाओं को काटकर उन्हें झोपड़ियों को बनाने के लिए काम में लिया। उन्होंने अपने घरों की छतों पर, उनके आंगन में, परमेश्वर के भवन के आंगनों में और जल फाटक के चौक में और एप्रेम के फाटक में झोपड़ियाँ बनाईं।
\v 17 बाबेल से लौटे सभी इस्राएली लोगों ने झोपड़ियाँ बनाईं और उनमें एक सप्ताह के लिए रहें। इस्राएली लोगों ने उस पर्व को यहोशू के समय से ऐसा नहीं मनाया था। और लोगों को बहुत आनन्द प्राप्त हुआ।
\p
\s5
\v 18 सप्ताह के हर दिन एज्रा ने परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक लोगों के सामने पढ़ी। फिर आठवें दिन, उन्होंने नियम का पालन किया और सब लोगों को एक साथ आने के लिए कहा, ताकि वे त्यौहार का समापन कर सकें।
\s5
\c 9
\p
\v 1 उसी महीने के चौबीसवें दिन, लोग एक-साथ एकत्र हुए। उन्होंने थोड़ी देर के लिए भोजन नहीं खाया, और उन्होंने गेहूं और अन्य अनाज रखने के लिए काम में आनेवाले बोरों से बनाए हुए कपड़े पहने और अपने सिरों पर धरती की मिट्ठी डाली।
\v 2 इस्राएल के वंशजों ने उन सब विदेशियों से अपने आप को अलग किया। वे वहां खड़े हुए और अपने पापों को और उनके पूर्वजों के किये गये बुरे कामों को स्वीकार किया।
\s5
\v 3 वे तीन घंटों तक खड़े हुए, और उन्होंने यहोवा की व्यवस्था को पढ़ा, और अगले तीन घंटे तक उन्होंने यहोवा के सामने अपने पापों के बारे में ऊँचे शब्द से बोला, और उन्होंने झुककर उनकी आराधना की।
\v 4 सीढ़ियों पर लेवी खड़े थे। वे येशू, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, एक और बानी और कनानी थे।
\p
\s5
\v 5 तब लेवियों के अगुवे ने लोगों को बुलाया। वे येशू, बानी, हश्ब्न्याह, शेरेब्याह, होदिय्याह, शबन्याह और पतह्याह थे। उन्होंने कहा, "वहाँ खड़े हो जाओ और यहोवा अपने परमेश्वर की स्तुति करो, जो सदा रहता है और सदा रहेगा! यहोवा, हम आपके गौरवशाली नाम की स्तुति करते है! आपका नाम सब अच्छी और अद्भुत वस्तुओं से अधिक महत्वपूर्ण है!
\v 6 अत: यहोवा ही है, और कोई नहीं है। आपने सब वस्तुओं के ऊपर आकाश और स्वर्ग को बनाया है, और सब स्वर्गदूतों को भी जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं। आपने धरती और उस पर का सबकुछ बनाया है, और आपने समुद्रों और उनमें का सबकुछ बनाया है। आपने सब को जीवन दिया है। स्वर्गदूतों की सेना स्वर्ग में आपकी आराधना करता है।
\s5
\v 7 हे यहोवा, आप परमेश्वर हैं। आपने अब्राम को चुना और उसे कसदियों के ऊर से बाहर निकाल कर लाए। आपने उसे अब्राहम नाम दिया।
\v 8 आपने उसके भीतर गहराई में देखा, और आपको पता था कि वह एक विश्वासयोग्य मनुष्य था। तब आपने उसके साथ लहू की वाचा बांधकर प्रतिज्ञा की, कि आप उसके वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों, गिर्गाशियों की भूमि देंगे। और हे यहोवा, आपने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया, क्योंकि आप सदा वही करते हैं जो उचित है।
\s5
\v 9 आपने देखा कि मिस्र में हमारे पूर्वज कितना दुख भोग रहे थे। आपसे सहायता के लिए रोते हुए उनकी पुकार को आपने सुना है जब वे लाल समुंद्र के तट पर थे।
\v 10 आपने कई प्रकार के चमत्कार किए जिनके कारण राजा, उसके कर्मचारियों और उसके सब लोगों को कष्ट भोगना पड़ा। परिणामस्वरूप, हे यहोवा, आपने अपने लिए एक बड़ा नाम कर लिया है, और यह आज भी महान जाना जाता है!
\s5
\v 11 आपने समुंद्र को दो भागों में विभाजित किया, और आपके लोग उसके बीच में उस सूखी भूमि पर होकर चले थे। आपने पानी के नीचे मिस्र की सेना के सैनिकों को खींच लिया, और वे एक पत्थर के समान गहरे में डूब गए!
\s5
\v 12 दिन में उनके लिए बादल के खंभे के समान उनकी अगुवाई की, और रात को आपने उन्हें आग के खंभे की रोशनी दी, कि उन्हें दिखाया जा सके कि कहाँ चलना है।
\v 13 सीनै पर्वत पर आपने स्वर्ग से नीचे आकर उनसे बातें की। आपने उन्हें कई नियम और विधियाँ दीं जो पूर्ण विश्वसनीय हैं, और आपने उन्हें आदेश और कानून दिए जो अच्छे हैं।
\s5
\v 14 आपने उन्हें अपने विश्रामदिन के बारे में सिखाया, और आपने अपने दास मूसा को आज्ञाओं, नियमों और कानूनों की एक सूची दी कि वह उन लोगों को सुनाए।
\v 15 जब वे भूखे थे, तो आपने उन्हें स्वर्ग से रोटी दी। जब वे प्यासे थे, तो आपने उन्हें चट्टान से पानी दिया। आपने उन्हें जा कर भूमि को अधिकार में लेने को कहा जिसकी प्रतिज्ञा आपने शपथ के साथ उनसे की थीं।
\s5
\v 16 परन्तु हमारे पूर्वज बहुत घमंडी और हठीले थे। उन्होंने यहाँ तक कि आपकी आज्ञाओं को सुनने से इन्कार कर दिया।
\v 17 उन्होंने आपको सुनने से इन्कार कर दिया। वे उन सब चमत्कारों के बारे में भूल गए थे जिन्हें आपने उनके लिए किए थे। क्योंकि वे हठीले हो गए, और उन्होंने आपके विरूद्ध विद्रोह किया, उन्होंने वापस मिस्र ले जाने के लिए एक अगुवा नियुक्त किया, जहाँ वे फिर से दास हो जाएँ! परन्तु आप परमेश्वर हैं जो बार-बार क्षमा कर देते हैं। आप क्रोध करने में धीमे हैं, और उनके लिए आपका प्रेम कभी समाप्त नहीं होता है और यह बहुत महान बात है। आपने उन्हें नहीं छोड़ा।
\s5
\v 18 इसलिए, आपने उन्हें मरुभूमि में नहीं छोड़ा, भले ही उन्होंने कीमती धातुओं को पिघला कर बछड़े के समान एक मूर्ति ढाली। उन्होंने लोगों को यह बछड़ा प्रस्तुत किया और कहा, 'यह तुम्हारा परमेश्वर है, जो तुम्हें मिस्र से बाहर लाया है,' उन्होंने परमेश्वर को शाप दिया और वही काम किया जो उन्हें मना किया था।
\v 19 आपने सदा दया दिखाई, और जब वे मरुभूमि में थे तब आपने उन्हें नहीं त्यागा। उज्ज्वल बादल जो एक विशाल खंभे के समान था, दिन के समय लगातार उनकी अगुवाई करता था, और आग के बादल ने उन्हें दिखाया कि रात में कहाँ चलना है।
\s5
\v 20 आपने उन्हें निर्देश देने के लिए अपना भला आत्मा भेजा। जब वे भूखे थे तब आपने उनसे मन्ना को रोक नहीं दिया था और जब वे प्यासे थे तब आपने उन्हें पानी दिया।
\v 21 चालीस वर्षों तक आपने मरुभूमि में उनकी देखभाल की। उस समय उन्हें किसी बात की कमी नहीं हुई थी। उनके कपड़े नहीं फटे, और उनके पैरों में सूजन नहीं आयी।
\s5
\v 22 आपने साम्राज्यों और लोगों की जातियों को उनके अधीन कर दिया। उन्होंने इस भूमि में सबसे दूर के स्थानों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उस भूमि पर अधिकार कर लिया जिस पर राजा सीहोन ने हेशबोन से शासन किया और जिस भूमि पर राजा ओग ने बाशान में शासन किया था।
\s5
\v 23 आपने हमारे पूर्वजों की सन्तान को आकाश में सितारों के समान असंख्य कर दिया और आप उन्हें इस देश में लाए, जिस देश में आपने हमारे पूर्वजों को प्रवेश करने और अधिकार में लेने के लिए कहा था कि वे वहां रह सकें।
\v 24 वे वहां गए और वहां रहने वाले लोगों से भूमि ले ली। आपने इस्राएलियों को कनानियों और उनके राजाओं को वश में करने में समर्थ किया कि वे उन लोगों के साथ वह कर सकें जो उन्हें करने की आवश्यक्ता थी।
\s5
\v 25 हमारे पूर्वजों की सन्तान ने उन शहरों पर अधिकार कर लिया जिनके पास सुरक्षा के लिए उनके चारों ओर दीवारें थीं। उन्होंने उपजाऊ भूमि पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उन घरों पर अधिकार कर लिया जो अच्छी वस्तुओं से भरे हुए थे और कुएँ भी थे जो पहले ही खोदे गए थे। उन्होंने दाख की बारियां, जैतून के पेड़ों और फलों के पेड़ों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने जो कुछ भी चाहते थे, खा लिया, और वे संतुष्ट हुए, और वे मोटे हो गए, और वे आनन्दित थे क्योंकि आप उनकी भलाई करते थे।
\s5
\v 26 परन्तु उन्होंने आपकी आज्ञा नहीं मानी और आपसे विद्रोह किया। उन्होंने आपके कानून से अपनी पीठ फेर ली। उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला जिन्होंने चेतावनी दी कि उन्हें आपके पास लौट आना चाहिए। उन्होंने आपको बुरा कहा और आपके विरुद्ध बहुत बुरे काम किए।
\v 27 इसलिए आपने उन्हें पराजित करने के लिए उन्हें उनके शत्रुओं को सौंप दिया। परन्तु जब उनके शत्रुओं ने उन्हें पीड़ित किया, तो उन्होंने आपको पुकारा। आपने स्वर्ग से उनकी रोने को सुना, और क्योंकि आप बहुत दयालु हैं, आपने लोगों को उनकी मदद करने के लिए भेजा, और उन अगुवों ने उन्हें शत्रुओं से बचा लिया।
\s5
\v 28 परन्तु शान्ति के कुछ समय के बाद, हमारे पूर्वजों ने फिर से उन बुरे कामों को किया जिनसे आप घृणा करते थे। तो आपने उनके शत्रुओं को उन्हें जीतने की और उन पर शासन करने की अनुमति दी। परन्तु जब भी वे सहायता के लिए आपके सामने फिर से रोए, तो आपने उन्हें स्वर्ग से सुना, और क्योंकि आप दयालु हैं इसलिए आपने उन्हें फिर से बचा लिया।
\v 29 आपने उन्हें चेतावनी दी कि उन्हें फिर से आपके नियमों का पालन करना चाहिए, परन्तु वे घमंडी और हठीले हो गए, और उन्होंने आपके नियमों का उल्लंघन किया- और उनका पालन करने से ही मनुष्य जीवित रहता है। उन्होंने जानबूझकर आपकी आज्ञाओं को अनदेखा किया कि आपने उन्हें क्या करने का आदेश दिया और वे हठीले हो गए और आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया।
\s5
\v 30 आप कई सालों से उनके साथ धैर्यवान थे। आपने उन्हें उन संदेश के द्वारा चेतावनी दी जो आपके आत्मा ने भविष्यद्वक्ताओं को दिए थे। परन्तु उन्होंने उन संदेशों को नहीं सुना। तो फिर आप ने निकट की अन्यजातियों की सेनाओं को उन्हें पराजित करने की अनुमति दी।
\v 31 लेकिन क्योंकि आप दयालु हैं, आपने उन्हें नष्ट नहीं किया है या न उन्हें त्याग दिया है। आप एक दयालु परमेश्वर हैं!
\s5
\v 32 हमारे परमेश्वर, आप महान हैं! आप शक्तिशाली हैं! आप भययोग्य हैं! आप हमसे सच्चा प्रेम करते हैं क्योंकि आपने हमारे साथ अपने वाचा में प्रतिज्ञा की है जिसे आप पूरा करते हैं! परन्तु अब हम इन सब बातों में बड़े कष्ट में हैं। हमारे कष्टों को आपके लिए महत्वहीन न होने दें! जो हमारे राजाओं, हमारे प्रधानों, और हमारे याजकों, और हमारे भविष्यद्वक्ताओं, और हमारे पूर्वजों और हमारे सब लोगों पर आज तक अश्शूर के राजाओं के दिनों से आए हैं।
\v 33 हम जानते हैं कि आपने जब-जब हमको दण्ड दिया था तब-तब। आपने हमारे साथ उचित व्यवहार किया है, परन्तु हमने दुष्टता की हैं।
\v 34 हमारे नियुक्त राजाओं और अगुवों ने और हमारे याजकों और हमारे अन्य पूर्वजों ने आपके नियमों का पालन नहीं किया। उन्होंने आपके आदेशों या चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया जो आपने उन्हें दिये थे।
\s5
\v 35 यहाँ तक कि जब उनके अपने राजा थे, और उन्होंने उन महान कामों का आनंद लिया जो इस बड़ी और उपजाऊ भूमि में आपने उनके लिए किए थे, उन्होंने आपकी सेवा नहीं की और वे बुराई करने से नहीं रुके।
\s5
\v 36 इसलिए अब हम इस देश में दास हैं जिन्हें आपने हमारे पूर्वजों को दिया था, वह भूमि जो आपने उन्हें दी थी कि वे यहाँ बढ़ने वाली सब अच्छी वस्तुओं का आनंद उठा सकें। परन्तु हम यहाँ दास बन गए!
\v 37 क्योंकि हमने पाप किया है, हम यहाँ उपजने वाली वस्तुएँ नहीं खा सकते हैं। जो राजा अब हमारे ऊपर शासन करते हैं वे यहाँ उपजने वाली वस्तुओं का आनंद ले रहे हैं। वे हम पर शासन करते हैं और हमारे पशुओं को ले लेते हैं। हमें उनकी सेवा करनी है और उन कामों को करना है जो उन्हें प्रसन्न करते हैं। हम बहुत कष्ट में हैं।
\p
\s5
\v 38 इन सब के कारण, हम, इस्राएल के लोग एक पुस्तक पर गंभीर समझौता कर रहे हैं। हम इस पर हमारे अगुवों के नाम, लेवियों के नाम और याजकों के नामों को लिखेंगे, और फिर हम इसे मुहर बन्द करेंगे।"
\s5
\c 10
\p
\v 1 यह उन लोगों की एक सूची है जिन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर किए:
\q मैं, हकल्याह का पुत्र नहेम्याह, राज्यपाल और सिदकिय्याह।
\m
\v 2 जिन याजकों ने हस्ताक्षर किए वे ये थे:
\q सरायाह, अजर्याह, यिर्मयाह,
\q
\v 3 पशहूर, अमर्याह, मल्किय्याह,
\q
\s5
\v 4 हत्तूश, शबन्याह, मल्लूक,
\q
\v 5 हारीम, मेरेयोत, ओबद्याह,
\q
\v 6 दानियेल, गिन्नतोन, बारूक,
\q
\v 7 मशुल्लाम, अबिय्याह, मिय्यामीन,
\q
\v 8 माज्याह, बिलगै और शमायाह।
\q
\s5
\v 9 लेवी के वंशज जिन्होंने हस्ताक्षर किए वे ये थे:
\q आजन्याह का पुत्र येशू, हेनादाद के कुल से बिन्न ई, कदमीएल,
\q
\v 10 शबन्याह, होदिय्याह, कलीता, पलायाह, हानान,
\q वी
\v 11 मीका, रहोब, हाशब्याह,
\q
\v 12 जक्कूर, शेरेब्याह, शबन्याह,
\q
\v 13 होदिय्याह, बानी और बनीन।
\q
\v 14 इस्राएल के अगुवों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे:
\q परोश, पह्त्मोआब, एलाम, जत्तू और बानी।
\q
\s5
\v 15 बुनी, अज़गाद, बेबै,
\q
\v 16 अदोनिय्याह, बिग्वै, आदीन,
\q
\v 17 आतेर, हिजकिय्याह, अज्जूर,
\q
\v 18 होदिय्याह, हाशूम, बेसै,
\q
\v 19 हारीफ, अनातोत, नोबै,
\q
\v 20 मग्पीआश, मशुल्लाम, हेज़ीर,
\q
\v 21 मेशेजबेल, सादोक, और यद्दू।
\q
\s5
\v 22 पलतयाह, हानान, अनायाह,
\q
\v 23 होशे, हनन्याह, हश्शूब,
\q
\v 24 हल्लोहेश, पिल्हा, शोबेक,
\q
\v 25 रहूम, हशब्ना, माशेयाह,
\q
\v 26 अहिय्याह, हानान, आनान
\q
\v 27 मल्लूक, हारीम और बाना।
\p
\s5
\v 28 बाकी लोगों ने याजकों, द्वारपाल, गायक और मंदिर के कार्यकर्ताओं सहित एक गंभीर समझौता किया। उन्होंने अन्य पड़ोसी लोगों के सभी पुरुषों को भी साथ लिया जिन्होंने अपने लोगों को छोड़ दिया था और इस्राएल में रह रहे थे। ये पुरुष, अपनी पत्नियों, उनके पुत्रों पुत्रियों के साथ जो समझदार थे कि वे क्या कर रहे थे, उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे परमेश्वर के नियमों का पालन करेंगे।
\v 29 वे सब इस स्पष्ट समझौते में अपने अगुवों के साथ हो गए। वे उन सब कानूनों पर सहमत हुए जिन्हें परमेश्वर ने मूसा को दिए थे। वे हमारे परमेश्वर यहोवा के आदेशों और उसके सब नियमों और निर्देशों का पालन करने और उसकी आज्ञा मानने के लिए सहमत हुए। उन्होंने निम्नलिखित को करने की प्रतिज्ञा की।
\s5
\v 30 "हम अपनी पुत्रियों को ऐसे लोगों से विवाह करने की अनुमति नहीं देंगे जो इस देश में रहते हैं जो यहोवा की आराधना नहीं करते हैं, और हम अपने पुत्रों को उन से विवाह करने की अनुमति नहीं देंगे।
\v 31 यदि इस देश में रहने वाले अन्य देशों के लोग सब्त के दिन या किसी अन्य पवित्र दिन बेचने के लिए अनाज या अन्य वस्तुएँ लाते हैं, तो हम उनसे कुछ भी नहीं खरीदेंगे। और हर सातवें वर्ष हम खेतों को विश्राम देंगे और हम उस वर्ष कोई भी फसल नहीं लगाएंगे, और हम अन्य यहूदियों का सब ऋण रद्द कर देंगे।
\s5
\v 32 हम सब ने स्वयं वचन दिया था कि हर साल हम उन लोगों के लिए 5 ग्राम चाँदी का भुगतान करेंगे जो परमेश्वर के भवन की सेवा करते हैं और उसका ध्यान रखते हैं।
\v 33 उस पैसे से वे इन वस्तुओं को खरीद सकते हैं: परमेश्वर के सामने रखनेवाली भेंट की रोटियाँ हर दिन वेदी पर जलाने के लिए आटा जो परमेश्वर को चढ़ाया जाता है, जो जानवर मारे गए और पूरी तरह से वेदी पर जला दिए गए, पवित्र भेंट सब्त के दिनों के लिए और नए चंद्रमाओं और अन्य त्यौहारों को मनाने के लिए भेंट जो परमेश्वर को समर्पित होती हैं, पशु जिनका इस्राइल के लोगों के पापों के लिए दण्ड भोगने के लिए बलिदान दिया जाता है, और जो कुछ भी परमेश्वर के भवन की देखभाल के काम में आवश्यक है
\s5
\v 34 प्रत्येक वर्ष याजक, लेवी के वंशज जो याजकों की सहायता करते हैं, और हममें से बाकी लोग उस वर्ष के लिए निर्धारित करेंगे, जो लेवियों के परिवारों में लकड़ी को जलाकर वेदी पर बलिदान के लिए हमारे परमेश्वर के भवन में दिया जाए, क्योंकि यह परमेश्वर की व्यवस्था में लिखा है।
\v 35 हम प्रतिज्ञा करते हैं कि प्रत्येक वर्ष प्रत्येक परिवार परमेश्वर के भवन में हमारे खेतों में उगाए जाने वाली पहली उपज और भोजन के लिए फसल, और उस वर्ष हमारे पेड़ पर लगने वाले पहले फलों को लेकर परमेश्वर के भवन में भेंट देंगे।
\v 36 हम अपने पहले पुत्रों को परमेश्वर के भवन में ले जाएंगे और हम परमेश्वर के लिए समर्पित करने के लिए पहले बछड़े और भेड़ के बच्चे और बकरियों के बच्चें भी लाएंगे। यही वह है जो परमेश्वर के नियमों में लिखा गया है जो हमें करना आवश्यक है।
\s5
\v 37 हम परमेश्वर के भवन में याजकों के लिए हर साल फसल के अनाज से बने आटे और हमारी अन्य भेंट दाखरस, जैतून का तेल और फल लाया करेंगे। हम लेवी के वंशजों को भी दसवा-अंश दिया करेंगे जो याजकों की सहायता करते हैं।
\v 38 याजक, जो हारून के वंशज हैं, लेवियों के साथ होगा और जब वे दसवा-अंश इकट्ठा करते हैं तो उनकी निगरानी करेगा। तब लेवी के वंशजों को इसका एक भाग जो लोग लाते हैं उनका दसवा-अंश हैं, मंदिर में भंडार के कमरे में रखना होगा।
\s5
\v 39 लेवी के वंशज और इस्राएल के कुछ लोगों को अनाज, दाखमधु और जैतून का तेल भंडारों में रखना चाहिए जहाँ विभिन्न बर्तन रखे जाते हैं जिनका उपयोग परमेश्वर के भवन में सेवा करनेवाले करते हैं। यही वह स्थान है जहाँ याजक जो उस समय सेवा कर रहे हैं, और द्वारपाल, और परमेश्वर के भवन में गाना गानेवाले लोग रहते हैं। हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम अपने परमेश्वर के भवन की देखभाल करने की अवहेलना नहीं करेंगे।"
\s5
\c 11
\p
\v 1 इस्राएली अगुवे और उनके परिवार यरूशलेम में बस गए। शेष लोगों ने दस लोगों में से एक परिवार का चिट्ठी डालकर किया कि वे यरूशलेम में रहें, वह शहर जो परमेश्वर के लिए अलग है। बाकी नौ अन्य शहरों में रहें।
\v 2 उन लोगों ने परमेश्वर से उन लोगों को आशीर्वाद देने के लिए कहा जिन्होंने अपनी इच्छा से यरूशलेम में रहना चाहा था।
\p
\s5
\v 3 ये उस प्रान्त के अधिकारी हैं जो यरूशलेम में रहने आए थे। परन्तु यहूदिया के शहरों में हर कोई अपने नगरों में अपनी पारिवारिक भूमि पर रहता था। इस्राएल से कुछ, याजक, लेवियों, परमेश्वर के भवन के सेवक, और सुलैमान के कर्मचारियों के वंशज यरूशलेम में रहने आए।
\v 4 परन्तु यहूदिया के कुछ लोग और बिन्यामीन के लोग ठहरे और यरूशलेम में रहते थे।
\p ये यहूदा के नातेदारों में से हैं: उज्जियाह का पुत्र अतायाह, जकर्याह का पुत्र, अमर्याह का पुत्र, शापत्याह का पुत्र, महललेल का पुत्र, पेरेस का वंशज था।
\p
\s5
\v 5 और बारुख का पुत्र मासेयाह था, जो कोलहोजे का पुत्र था, जो हजायाह का पुत्र था, जो अदायाह का पुत्र था, जो योयारीब का पुत्र था, जो जकर्याह का पुत्र था, जो यहूदा के पुत्र शेलह के वंशज से था।
\v 6 वहां 468 पुरुष थे जो पेरेस के वंशज थे जो यरूशलेम शहर में रहते थे। ये पुरुष युद्ध में बहुत बहादुर और कुशल थे।
\m
\s5
\v 7 बिन्यामीन के गोत्र के लोगों में से एक, जिसने यरूशलेम में रहने का फैसला किया, मशुल्लाम का पुत्र सल्लू था, योएद का पुत्र, कोलायाह का पुत्र, मासेयाह का पुत्र, इतिएह का पुत्र, यशायाह का पुत्र था
\v 8 सल्लू के दो नातेदारों, गब्बै और सल्लै भी यरूशलेम में बस गए।
\p कुल मिलाकर, बिन्यामीन के गोत्र से 928 लोग यरूशलेम में बस गए।
\v 9 उनका प्रधान जिक्री थे। यरूशलेम में दूसरा प्रधान अधिकारी हस्सनूआ था।
\m
\s5
\v 10 यरूशलेम में बसने वाले याजक थे: योयारीब का पुत्र यदायाह,
\p
\v 11 हिल्किय्याह का पुत्र सरायाह, मशुल्लाम का पुत्र, सादोक का पुत्र, अहीतूब का पुत्र, मरापोत का पुत्र, जो पहले सब याजकों का प्रधान था।
\v 12 कुल मिलाकर, उस कुल के 822 सदस्य परमेश्वर के भवन में काम करते थे।
\p यरूशलेम में बसने वाला एक और याजक अदायाह था, यरोहाम का पुत्र, पलल्याह का पुत्र, अम्सी का पुत्र, जकर्याह का पुत्र, और पशहूर का पुत्र मल्किय्याह का पुत्र था।
\s5
\v 13 कुल मिलाकर, उस कुल के 242 सदस्य थे जो यरूशलेम में बसने वाले कुल के प्रधान थे।
\p यरूशलेम में बसने वाला एक और याजक अमशै था जो अजरेल का पुत्र अहजै का पुत्र, मशिल्लेमोत का पुत्र इम्मेर का पुत्र था।
\v 14 उस वंश के 128 सदस्य थे जो यरूशलेम में रहने वाले बहादुर सैनिक थे। उनका प्रधान हग्गदोलीम का पुत्र जब्दीएल था।
\m
\s5
\v 15 यरूशलेम में रहनेवाले लेवी का एक और वंशज शमायाह था जो हश्शूब का पुत्र, अज्रीकाम का पुत्र, हुश्ब्याह का पुत्र, यह बुन्नी का पुत्र था।
\p
\v 16 दो अन्य शब्बत और योजाबाद थे, जो लेवियों में से प्रमुख पुरुष थे लेवियों के अगुवे जिन्होंने परमेश्वर के भवन के बाहर के काम की निगरानी की थी।
\s5
\v 17 एक और मीका का पुत्र, जब्दी का पोता आसाप का परपोता मत्तन्याह था। मत्तन्याह ने परमेश्वर के भवन में गाना गानेवालों को निर्देश दिया करता था जब वे परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिए प्रार्थना करते थे। उसका सहायक बकबुक्याह था। एक और अब्दा था, शम्मू का पुत्र, गालाल का पोता और यदूतून का परपोता था।
\v 18 कुल मिलाकर, शहर में 284 लेवी थे जो परमेश्वर के लिए अलग थे।
\m
\s5
\v 19 यरूशलेम में बसने वाले द्वारपाल अक्कूब और तल्मोन थे। कुल मिलाकर, उनमें से 172 थे और उनके भाई जो यरूशलेम में बस गए थे।
\p
\v 20 लेवी और पुजारी के वंशज समेत अन्य इस्राएली लोग यहूदिया के अन्य नगरों और शहरों में अपनी भूमि पर रहते थे।
\p
\v 21 परन्तु परमेश्वर के भवन के कर्मचारी यरूशलेम में ओपेल में रहते थे। उनके ऊपर सीहा गिश्पा प्रधान थे।
\p
\s5
\v 22 जिस व्यक्ति ने यरूशलेम में रहने वाले लेवी के वंशजों की देखरेख की थी, वह मीका के पुत्र मत्तन्याह के पुत्र हशब्याह के पुत्र बानी का पुत्र उज्जी था। उज्जी आसाप के वंश का था, यह वंश परमेश्वर के भवन में संगीत का प्रभारी था।
\v 23 फारस के राजा ने आज्ञा दी थी कि कुलों को यह तय करना चाहिए कि हर दिन परमेश्वर के भवन में संगीत में अगुवाई करने के लिए प्रत्येक कुल को क्या करना चाहिए।
\p
\v 24 मेशेजबेल का पुत्र पतह्याह, जो जेरह के वंश से था और यहूदा का वंशज था, इस्राएलियों का राजदूत फारस के राजा के पास था।
\p
\s5
\v 25 यरूशलेम में न बसने वाले कुछ लोग अपने खेतों के निकट गांवों में रहते थे। यहूदा के गोत्र में से कुछ किर्यतर्बा , दीबोन और यकब्सेल के पास के गांवों में रहते थे।
\v 26 कुछ लोग येशू में मोलादा में, बेतपलेत में रहते थे,
\v 27 हसर्शूआल में, और बेर्शेबा और उसके पास के गांवों में।
\s5
\v 28 अन्य लोग सिकलग में, मकोना में और उसके आस-पास के गांवों में रहते थे,
\v 29 एन्निम्मोन में, सोरा में, यर्मूत में,
\v 30 जानोह में, अदुल्लाम में और उन शहरों के निकट के गांवों में रहते थे। कुछ लाकीश और पास के गांवों में रहते थे, और कुछ अजेका और उसके पास के गांवों में रहते थे। उन सभी लोग यहूदा में रहते थे, दक्षिण में बेर्शेबा और उत्तर में हिन्नोम घाटी के बीच के क्षेत्र में, यरूशलेम के किनारे पर रहते थे।
\p
\v 31 बिन्यामीन के गोत्र के लोग गेबा, मिकमश, अय्या, बेतेल और उसके आस-पास के गांवों में रहते थे,
\v 32 अनन्याह में नोब में अनातोत में,
\v 33 हासोर में, रामा में, गीत्तैम में,
\v 34 हादीद में, सोबोइम में, नबल्लत में,
\v 35 लोद में, ओनो में, और शिल्पकारों की घाटी में।
\p
\v 36 यहूदा के लेवियों को बिन्यामीन के लोगों के साथ रहना पड़ा था।
\s5
\c 12
\p
\v 1 ये लेवी के वंशज और याजकों के नाम हैं जो बाबेल से ज़रुब्बाबेल और महायाजक येशू के साथ लौट आए थे।
\q सरायाह, यिर्मयाह, एज्रा,
\q
\v 2 अमर्याह, मल्लूक, हत्तूश,
\q
\v 3 शकन्याह, रहूम, मरेमोत,
\q
\s5
\v 4 इद्दो, गिन्नतोई, अबिय्याह,
\q
\v 5 मीय्यामिन, माद्याह, बिलगा,
\q
\v 6 शमायाह, योआरीब, यदायाह,
\q
\v 7 सल्लू, आमोक, हिल्किय्याह और यदायाह।
\m ये सब उस समय याजकों और उनके सहयोगियों के अगुवे थे जब येशू सब याजकों का अगुवा था।
\p
\s5
\v 8 यहाँ लेवी के वंशजों की एक सूची है जो लौट आए: येशू , बिन्नूई, कदमीएल, शेरेब्याह, यहूदा और मत्तन्याह। मत्तन्याह और उसके भाइयों ने लोगों की अगुआई की कि परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिए गाने गाएँ।
\v 9 बक्बुक्याह और उन्ने, और उनके सहयोगियों, ने एक गाना गानेवाली मंडली बनाई थी जो दूसरी गानेवाली मंडली के सामने खड़े होते थे।
\p
\s5
\v 10 येशू महायाजक योयाकीम का पिता था, जो एल्याशीब का पिता था, जो योआदा का पिता था,
\v 11 जो योनातान का पिता वह था, जो यद्दु का पिता था।
\p
\s5
\v 12 जब योयाकीम सब याजकों का अगुवा था, तो ये याजकों के परिवारों के मुख्य पुरुष थे:
\q शरायाह के परिवार का मरायाह,
\q हनान्याह, यिर्मयाह के परिवार, का
\q
\v 13 मशुललाम, एज्रा के परिवार का,
\q यहोहानान, अमर्याह का परिवार,
\q
\v 14 मल्लुकी के परिवार के योनातन,
\q योसेप, शेकन्याह के परिवार का ।
\q
\s5
\v 15 अधिकतर अगुवे अदना थे जो हारीम के परिवार के थे,
\q हेल्कै, मरायोत के परिवार का,
\q
\v 16 इद्दो के परिवार का जकर्याह,
\q मशुल्लाम, गिन्नतोन के परिवार, का
\q
\v 17 अबिय्याह के परिवार का जिक्री।
\q मिन्यामीन के परिवार का एक अगुवा भी था।
\q पिलतै, मोअद्याह के परिवार का।
\q
\v 18 शम्मू, बिलगा के परिवार का,
\q यहोनातान, शमायाह के परिवार का,
\q
\v 19 मत्तनै, योयारीब के परिवार का,
\q उज्जी, यदायाह के परिवार का,
\q
\v 20 सल्लै के परिवार का कल्लै,
\q एबेर, आमोक के परिवार का,
\q
\v 21 हशब्याह, हिल्किय्याह के परिवार का,
\q और नतनेल, यदायाह के परिवार का।
\p
\s5
\v 22 जब एल्याशीबा ने लेवियों की अगुवाई की थी, तब यह उन सब की एक सूची है: एल्याशीब , योयादा, योहानान और यद्दू सब याजकों के अगुवे थे। उन्होंने उन परिवारों के नाम लिखे जो लेवी के वंशज थे। जब दारा फारस का राजा था, तब याजक उन लोगों के नाम जो परिवारों के मुखिया थे लेखपत्र में रखने के लिए उत्तरदायी थे।
\v 23 उन्होंने उन परिवारों के अगुवों के नाम इतिहास की पुस्तक में लिखे जो लेवी के वंशज थे, जब तक एल्याशीबा का पोता योहानान सब याजकों का अगुवा थे।
\p
\s5
\v 24 ये लेवियों के अगुवे थे: हशब्याह, शेरेब्याह, कदमीएल के पुत्र येशू और उनके भाई जो उनके सामने खड़े होते थे और परमेश्वर का धन्यवाद करते थे। उन्होंने राजा दाऊद जिसने परमेश्वर की सेवा की थी, के निर्देश के अनुसार ऐसा किया था।
\v 25 मत्तन्याह, बकबूक्याह, ओबद्याह, मशुल्लाम, तल्मोन और अक्कूब द्वारपाल थे। वे परमेश्वर के भवन के द्वार के निकट में भंडार के कमरों की सुरक्षा के लिए खड़े होते थे।
\v 26 उन्होंने यह काम यशायाह के पुत्र योयाकीम और योसादाक के पोते के समय किया था जब राज्यपाल नहेम्याह और याजक एज्रा के समय किया था। एज्रा यहूदी कानूनों को भी भलिभाँति जानता था।
\p
\s5
\v 27 जब हमने यरूशलेम के चारों ओर दीवार को समर्पित किया, तब हमने लेवी के वंशजों को इस्राएल के आस-पास के स्थानों से बुलाया जहाँ वे रहते थे, ताकि वे दीवार के समर्पण का उत्सव मना सकें। वे परमेश्वर का धन्यवाद करने के लिए गाने गाएंगे और उनमें से कई ने झांझ और वीणा और अन्य तारों वाले यंत्रों को बजाने से संगीत बनाया था।
\v 28 हमने लेवी के वंशजों को बुलाया जिन्होंने लगातार एक साथ गाया। वे यरूशलेम के आस-पास के क्षेत्रों और यरूशलेम के दक्षिणपूर्व नातोपतियो के आस-पास के स्थानों से यरूशलेम आए, जहाँ वे बस गये थे ।
\s5
\v 29 वे यरूशलेम के पूर्वोत्तर, बेत गिलगाल और गेबा और अज्माबेत के आसपास के क्षेत्रों से भी आए थे। यरूशलेम के पास गायकों ने गांवों का निर्माण किया जहाँ वे रहते थे।
\p
\v 30 याजक और लेवी के वंशजों ने परमेश्वर की दृष्टि में अपने आप को शुद्ध करने के लिए अनुष्ठान किए, और उन्होंने सब लोगों के लिए और यहाँ तक कि दीवार के लिए और अंत में, नगर के द्वारों के लिए भी ऐसा ही किया।
\s5
\v 31 तब मैंने दीवार के ऊपर पर यहूदियों के अगुवों को एकत्र किया, और मैंने उन्हें दो बड़े समूहों की अगुआई करने के लिए नियुक्त किया कि वे दीवार के ऊपर शहर के चारों ओर चलने के लिए यात्रा कर सकें। जैसे ही उन्होंने शहर का सामना किया, एक समूह कूड़ा फाटक की ओर दाहिने चला गया।
\s5
\v 32 उनके अगुवे के पीछे होशायाह और यहूदा के अगुवे के आधे चले गए।
\v 33 वे जो उनके पीछे चले थे वे अजर्याह, एज्रा, मशुल्लाम थे,
\v 34 यहूदा, बिन्यामीन, शमायाह, यिर्मयाह,
\v 35 और याजकों में से कुछ पुत्रों तुरही बजाई, जिनमें थे जकर्याह, जो योनाता न का पुत्र था जो शमायाह का पुत्र था, जो मत्तन्याह का पुत्र था, जो मीकायाह का पुत्र था जो, जक्कुर का पुत्र था जो, आसाप का वंशज था।
\s5
\v 36 उनके पीछे जकर्याह के परिवार के अन्य सदस्यों, शमायाह, अज़रेल, मिललै, गिललै, माऐ, नतनेल, यहूदा और हनानी समेत चले। वे सभी उसी तरह के संगीत वाद्य यंत्र बजा रहे थे जो राजा दाऊद ने कई सालों पहले बजाते थे। एज्रा, जो यहूदी नियमों को भलिभाँति जानता था, इस समूह के सामने चला था।
\v 37 जब वे फव्वारा फाटक पहुंचे, तो वे दाऊद के नगर में दाऊद के महल के स्थान पर और फिर शहर के पूर्व की ओर, जल फाटक की दीवार पर गए।
\p
\s5
\v 38 दूसरे गायक दल जो गाना और धन्यवाद कर रहे थे, दीवार के ऊपर बाईं ओर चढ़ गया। मैंने उन लोगों के आधे लोगों के साथ गया। हमने भट्ठों गुम्मट को पार किया और चौड़ी दीवार के पास पहुँचे।
\v 39 वहां से हम एप्रैम के फाटक, यशानाह के फाटक, मछली के फाटक, हननेल का गुम्मट, सौ सैनिकों का गुम्मट, पार करके भेड़ फाटक तक चले गए। हमने परमेश्वर के भवन में फाटक के पास पद यात्रा समाप्त कर दी।
\s5
\v 40 दोनों समूह गाते हुए और धन्यवाद करते हुए परमेश्वर के भवन में पहुंचे। वे वहां अपने स्थानों पर खड़े थे। मैं और मेरे साथ रहने वाले अगुवे भी अपने-अपने स्थान पर खड़े थे।
\p
\v 41 मेरे समूह में उनके तुरही के साथ याजक एल्याकिम, मासेयाह, मिन्यामीन, मीकायाह, एल्योएनै, जकर्याह और हनन्याह शामिल थे।
\v 42 वहां अन्य नाम मासेयाह, शमायाह, एलीआजार, उज्जी, यहोहानान, मल्कियाह, एलाम और एजेर थे। गायकों ने यिज्र्हयाह के साथ गाया जो उनका अगुवा था।
\s5
\v 43 परमेश्वर के भवन के बाहर जाने के बाद, हमने कई बलियाँ चढ़ाई। हम सब लोग आनन्दित थे क्योंकि परमेश्वर ने हमें बहुत आनन्दित किया था। स्त्रियों और बच्चे भी आनन्द से भरे हुए थे। लोग यरूशलेम से आने वाली आवाज़ को दूर से सुन सकते थे।
\p
\s5
\v 44 उस दिन पुरुषों को भंडार के कमरे में रक्षा के लिए नियुक्त किया गया जहाँ उन्होंने परमेश्वर के भवन के लिए दिए गए पैसे को रखा था। वे दस्मांश और अनाज और फल के पहले भाग के भी रक्षक थे जो हर साल की कटाई का होता। वे याजकों और लेवी के वंशजों के लिए खेतों से फसल के एक हिस्से को भी भंडार के कमरे में लाए। ऐसा इसलिए किया गया कि यहूदियों के लोग यहोवा के भवन में सेवा करने वालों से बहुत प्रसन्न थे।
\v 45 याजक और लेवियों ने चीजों को शुद्ध करने की अपनी विधियों द्वारा यहोवा की सेवा की थी, और परमेश्वर के भवन के संगीतकारों और द्वारपालों ने भी अपना काम किया क्योंकि राजा दाऊद और उनके पुत्र सुलैमान ने घोषणा की थी कि उन्हें ऐसा करना चाहिए।
\s5
\v 46 दाऊद और आसाप के समय से, गायकों के निर्देशक रहे हैं, और उन्होंने परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद करने के लिए गाने गाए थे।
\v 47 जरुब्बाबेल के वर्षों में और राज्यपाल नहेम्याह के दिनों में, सब इस्राएलियों ने गायकों और परमेश्वर के भवन के द्वारपालों के लिए [प्रतिदिन के लिए आवश्यक भोजन का प्रबन्ध किया। उन्होंने लेवियों की आवश्यक्ता की वस्तुओं को अलग कर दिया, और लेवियों ने सब याजकों के पहले अगुवे हारून के वंशजों के लिए वह सब अलग कर दिया, जो उन्हें चाहिए था।
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस दिन याजकों ने परमेश्वर के नियमों को पढ़ा और लोगों, ने सुना; उन्होंने उस अध्याय को जिसमें परमेश्वर ने मूसा को नियम दिए थे कि परमेश्वर की प्रजा जिस स्थान में आराधना करती है, उस स्थान में अम्मोनियों या मोआबियों को आने की अनुमति नहीं है।
\v 2 इसका कारण यह था कि अम्मोन और मोआब के लोगों ने इस्राएलियों को कोई भोजन या पानी नहीं दिया, जबकि इस्राएली मिस्र छोड़ने के बाद उनके क्षेत्रों में से जा रहे थे। उसकी अपेक्षा, अम्मोनी और मोआबी लोगों ने बिलाम को पैसे देकर इस्राएलियों को शाप देने के लिए विवश किया था। परन्तु परमेश्वर ने इस्राएल के शाप देने के प्रयास को आर्शीवाद में बदल दिया।
\v 3 इसलिए जब लोगों ने इन नियमों को सुना, तो उन्होंने उन सब लोगों को विदा कर दिया जिनके पूर्वज अन्य देशों से आए थे।
\p
\s5
\v 4 पहले, एल्याशीब याजक को परमेश्वर के भवन में भण्डारी के रूप में नियुक्त किया गया था। वह तोबियाह का नातेदार था।
\v 5 उसने एल्याशीब को एक बड़े कमरे का उपयोग करने की अनुमति दी। वहां उन्होंने अनाज की भेंटें और धूप आदि रखे हुए थे। उन्होंने परमेश्वर के भवन में इस्तेमाल किए जानेवाले पात्र भी वहाँ रखे हुए थे। उन्होंने वहां लेवियों के लिए दी गई भेंटें भी रखी हुई थीं। उन्होंने अनाज, दाखरस और जैतून के तेल आदि का दसवा-अंश जिसका आदेश परमेश्वर ने लेवियों के लिए, संगीतकारों और द्वारपालों के लिए दिया था और अन्य याजकों के लिए लाए गए सामान भी वहाँ रखे हुए थे।
\p
\s5
\v 6 उस समय मैं यरूशलेम में नहीं था। यह बतीसवां वर्ष था जब अर्तक्षत्र बाबेल का राजा था, और मैं राजा को समाचार देने के लिए वापस गया था कि मैं क्या कर रहा था। कुछ समय के बाद, मैंने राजा से फिर अनुरोध किया कि वह मुझे यरूशलेम लौटने की अनुमति दे।
\v 7 जब मैं लौट आया, तो मुझे पता चला कि एल्याशीब ने यह एक बुरा काम किया था। उसने तोबियाह को रहने के लिए परमेश्वर के भवन के भंडारों में से एक कमरा ले लेने दिया है।
\s5
\v 8 मुझे क्रोध आ गया। मैं उस कमरे में गया और मैंने तोबियाह का सारा सामान वाहर फेंक दिया।
\v 9 तब मैंने आज्ञा दी कि वे उस कमरे को फिर से शुद्ध करने की विधि करें कि वह फिर से शुद्ध हो जाए। और मैंने यह भी आदेश दिया कि परमेश्वर के भवन में काम में आनेवाले सब पात्र और अनाज की भेंट और धूप आदि उस कमरे में वापस रखा जाना चाहिए, जहाँ वे पहले रखे जाते थे।
\p
\s5
\v 10 मुझे यह भी पता चला कि परमेश्वर के भवन के संगीतकारों और अन्य लेवियों ने यरूशलेम छोड़ दिया था और अपने खेतों में लौट आए थे, क्योंकि इस्राएल के लोग भंडार में भोजन वस्तुओं को नहीं ला रहे थे जिनकी उन्हें आवश्यक्ता थी।
\v 11 इसलिए मैंने अधिकारियों को दंड दिया और कहा, "तुमने परमेश्वर के भवन में होने वाली सेवाओं का ध्यान क्यों नहीं रखा है? इसलिए मैंने उन्हें एकत्र किया और उन्हें उनके स्थानों पर वापस नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 12 तब यहूदिया के सब लोग फिर से परमेश्वर के भवन के भंडारों में अनाज, दाखमधु और जैतून का तेल के दशमांश लेकर आए।
\v 13 मैंने इन पुरुषों को भण्डार के कमरों का उत्तरदायित्व सौंप दिया। शलेम्याह याजक, यहूदी कानूनों विशेषज्ञ, सादोक, और लेवी का वंशज पदायाह। मैंने जक्कूर के पुत्र हानान को जो मत्तन्या का पोता था उनकी सहायता करने के लिए नियुक्त किया। मुझे पता था कि मैं उन लोगों पर भरोसा कर सकता हूँ कि वे अपने साथी श्कर्मियों में भेंटों को उचित रूप से बाँटेंगे।
\p
\v 14 मेरे परमेश्वर, इन सभी अच्छे कर्मों को मत भूलिए जो मैंने आपके भवन के लिए और वहां किए गए काम के लिए किए हैं!
\p
\s5
\v 15 उस समय, मैंने यहूदिया में कुछ लोगों को देखा जो विश्राम के दिन काम कर रहे थे। कुछ दाखरस बनाने के लिए अंगूर दबा रहे थे। अन्य लोग अपने गधों पर अनाज, दाखरस के थैले, अंगूर, अंजीर, और कई अन्य वस्तुएँ लादकर यरूशलेम में ले जा रहे थे। मैंने उन्हें चेतावनी दी कि विश्राम के दिनों में यहूदिया के लोगों को कोई वस्तु न बेचें।
\s5
\v 16 मैंने सोर के कुछ लोगों को भी देखा जो यरूशलेम में रह रहे थे और यहूदिया के लोगों को बेचने के लिए मछली और अन्य सामान विश्राम के दिन यरूशलेम में ला रहे थे।
\v 17 इसलिए मैंने यहूदी अगुवों को डांटा और उनसे कहा, "यह एक बहुत बुरी बात है जो तुम कर रहे हो! तुम विश्राम के दिनों को ऐसा बना रहे हो जैसा परमेश्वर कभी नहीं चाहते हैं।
\v 18 तुम्हारे पूर्वजों ने ऐसे काम किए थे, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें दंड दिया था। उनकें पाप के कारण परमेश्वर ने इस शहर को नष्ट करने की अनुमति दी! और अब विश्राम के दिन के नियमों को तोड़कर, तुम परमेश्वर को हम पर क्रोधित होने का कारण बना रहे हैं वह हमें और अधिक दण्ड देंगे! "
\p
\s5
\v 19 जब यरूशलेम के फाटक पर अंधेरा हो गया, तो मैंने अपने कुछ लोगों को वहां रखा, ताकि वे सुनिश्चित कर सकें कि उस दिन बेचने के लिए कोई भी शहर में कोई सामान नहीं लाए।
\v 20 अगले दिन कुछ व्यापारी और बेचने वाले कुछ शुक्रवार की शाम को जब विश्राम का दिन आरंभ होता है, इस आशा से सामान लेकर आए कि विश्राम के दिन मंडी लगाएँगे और यरूशलेम के बाहर डेरा किया।
\p
\s5
\v 21 मैंने उन्हें चेतावनी दी, "शुक्रवार की रात को दीवारों के बाहर रहने के लिए यह व्यर्थ है! यदि तुम फिर ऐसा करते हैं, तो मैं स्वयं ही तुम्हे हटा दूंगा!" तो उसके बाद, वे विश्राम के दिन नहीं आए।
\v 22 मैंने लेवी के वंशजों को भी स्वयं को शुद्ध करने के लिए विधियाँ पूरी करने का आदेश दिया और शहर के फाटकों की रक्षा के लिए अपनी-अपनी चौकियों को ग्रहण करने का आदेश भी दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि विश्राम के पवित्र दिन पर व्यापारियों को प्रवेश करने की अनुमति न देकर उस दिन को पवित्र रखा जाए।
\p हे मेरे परमेश्वर, यह मत भूलिए कि मैंने आपके लिए क्या किया है! और मेरे ऐसे प्रति दयालु रहें, जैसे कि आपका प्रेम मेरे लिए दयालु है।
\p
\s5
\v 23 उस समय के दौरान, मैंने यह भी देखा कि यहूदियों में से कई लोगों ने अश्दोद, अम्मोन और मोआब की स्त्रियों से विवाह किया था।
\v 24 उनमें में से आधे बच्चे अश्दोदी लोगों की भाषा बोलते थे या कोई और भाषा बोलते हैं, और उन्हें यहूदिया की भाषा नहीं आती थीं वे केवल उन लोगों की बोलते थे भाषा जहाँ वे रहते थे।
\s5
\v 25 इसलिए मैंने उन लोगों को डांटा, और मैंने परमेश्वर को उन्हें शाप देने के लिए कहा, और मैंने उनमें से कुछ को अपनी मुक्के मारे, और उनमें से कुछ के बालों को नोचा ! तब मैंने उन्हें यह जानकर एक गंभीर वचन देने के लिए विवश किया, कि परमेश्वर सुन रहे हैं, कि वे फिर से विदेशियों से विवाह नहीं करेंगे और कभी भी अपनी सन्तान को विदेशियों से विवाह करने की अनुमति नहीं देंगे।
\v 26 मैंने उनसे कहा, "इस्राएल के राजा सुलैमान ने विदेशी स्त्रियों से विवाह करने का पाप किया था। वह अन्य जातियों के राजाओं में सब से बड़ा था। परमेश्वर ने उससे प्रेम किया और उसे सब लोगों पर इस्राएल के राजा के रूप में स्थापित किया। परन्तु उसकी विदेशी पत्नियों ने उसे पाप करने के लिए प्रेरित किया।
\v 27 क्या तुम्हे ऐसा लगता है कि हमें वह करना चाहिए, जो तुमने किया है तुम जिसने विदेशी पत्नियों से विवाह किया है, और जो हम जानते हैं कि गलत है, उसे करें और मूर्तियों की पूजा करने वाली विदेशी स्त्रियों से विवाह करके हमारे परमेश्वर के विरुद्ध एक बड़ा पाप करें?"
\p
\s5
\v 28 योयादा के पुत्रों में से एक, एल्याशीब के पुत्र ने जो सब याजकों का अगुवा था, समबल्लत की पुत्री से विवाह किया था। इसलिए मैंने योयादा के पुत्र को यरूशलेम से बाहर किया।
\p
\v 29 हे मेरे परमेश्वर, उन लोगों को याद रखें जिन्होंने याजक के पद को लज्जा का कारण है, और उन्होंने अपने कामों से याजकों और लेवियों की वाचा को तोड़ दिया है!
\p
\s5
\v 30 मैंने उनसे उन सब वस्तुओं को दूर कर दिया है जो अन्य जातियों और धर्मों से थीं, मैंने याजकों और लेवी के वंशजों के लिए नियम भी स्थापित किए हैं, कि वे जान सकें कि उनमें से प्रत्येक को क्या करना चाहिए।
\v 31 मैंने यह सुनिश्चित किया है कि निश्चित समय और दिनों में वेदी पर जलाने के लिए लकड़ी हो। मैंने लोगों द्वारा फसल के पहले भाग को भंडार के कमरे में लाने की भी व्यवस्था की।
\p हे मेरे परमेश्वर, न भूलें कि मैंने इन सब कामों को किया है, और उन्हें करने के लिए मुझे आशीर्वाद दें।

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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h एस्तेर
\toc1 एस्तेर
\toc2 एस्तेर
\toc3 est
\mt1 एस्तेर
\s5
\c 1
\p
\v 1 राजा क्षयर्ष ने एक बहुत बड़े साम्राज्य पर शासन किया जिसमें 127 प्रान्त थे। यह पूर्व में भारत से पश्चिम में इथोपिया तक फैला हुआ था।
\v 2 उसने उस साम्राज्य पर तब शासन किया, जब वह सूसा शहर के सबसे दृढ़ गढ़वाले भाग में रहता था।
\s5
\v 3 राजा बनने के तीसरे वर्ष के दौरान, उसने अपने सभी प्रशासकों और अन्य अधिकारियों को एक भोज में आमंत्रित किया। उसने भोज में आने के लिए फारसी और मादी सेनाओं को आमंत्रित किया। उन्होंने राज्यपालों और प्रान्तों के अन्य अगुवों को भी आमंत्रित किया।
\v 4 वह उत्सव 180 दिनों तक चला। उस दौरान राजा ने अतिथियों को अपनी सारी सम्पत्ति और अन्य चीजों को दिखाया जिनके कारण उसका राज्य महान बन गया।
\p
\s5
\v 5 भोज के अंत में, राजा ने लोगों को एक और उत्सव में आमंत्रित किया। उन्होंने महल में काम करने वाले सभी पुरुषों को भोज में आमंत्रित किया, जिनमें महत्वपूर्ण काम करने वाले और कम महत्वपूर्ण काम करने वाले दोनों शामिल थे। यह उत्सव सात दिनों तक चला। यह उत्सव उस आँगन में हुआ जो महल के बगीचे का भाग था।
\v 6 बगीचे के आँगन को सफेद और नीले सूती पर्दों से सजाया गया था, जिसमें सुन्दर सनी और बैंगनी रंग की डोरियाँ थीं, जो संगमरमर के खम्भों से निकली हुई चाँदी के छल्लों से लटकी हुई थीं। सोने और चाँदी की चौकियाँ थीं जिनको पच्चीकारी वाले पत्थर के फर्श पर स्थापित किया गया था जो सफेद और लाल, संगमरमर, मोती के सीपों, और रंगीन फ़र्श वाले पत्थरों से बना था।
\s5
\v 7 मेहमानों ने सोने के प्यालों से दाखमधु पीया। प्रत्येक प्याले की एक अलग बनावट थी। राजा ने उदारता से दाखमधु परोसा, उनके पास पीने के लिए बहुत था।
\v 8 वहाँ बहुत दाखमधु था, क्योंकि राजा चाहता था कि जितना मेहमान चाहें उतना पीएँ, लेकिन नियम यह था, “किसी को भी पीने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।”
\p
\s5
\v 9 रानी वशती ने स्त्रियों को, महल में दूसरे स्थान पर भोज में आमंत्रित किया।
\p
\v 10 उन भोजों के सातवें दिन, जब राजा क्षयर्ष दाखमधु पीने से आंशिक रूप से नशे में था, तो उसने महूमान, बिजता, हर्बोना, बिगता, अबगता, जेतेर और कर्कस से बातें की (यह सात दास थे जो उनकी व्यक्तिगत आवश्यकता और इच्छाओं को पूरा किया करते थे)।
\v 11 उन्होंने उनसे रानी वशती को, अपना शाही ताज पहना कर पास लाने के लिए कहा। वे चाहता था कि उसके मेहमान यह देख सकें कि वह कितनी सुन्दर है।
\s5
\v 12 लेकिन रानी वशती ने राजा के पास जाने से मना कर दिया। उसने राजा के उस आदेश का पालन करने से मना कर दिया जो आदेश दास उसके लिए राजा से लाए थे।
\p इस बात ने राजा को बहुत नाराज कर दिया।
\s5
\v 13 तब राजा ने उन मनुष्यों से बातें की जो बुद्धिमान थे, जो अपने जीवन की बातों और इन बातों के विषय बने नियमों को समझते थे।
\v 14 अब उसके करीबी लोग करशेना, शथर, अदमाता, तर्शीश, मीरेस, मर्सना और मेमुकान, फारस और मादी के सात राजकुमार थे। उन्होंने उसके राज्य में उच्चतम पदों पर कब्जा कर लिया था, और जब उन्होंने राजा से बातें की तो राजा ने उन पर ध्यान दिया।
\v 15 राजा ने उनसे कहा, “रानी वशती ने मेरी आज्ञा मानने से मना कर दिया है जब मैंने अपने दासों को उसे यहाँ बुलाने के लिए भेजा था। हमारे नियम क्या कहते हैं कि हमें ऐसा करने वाले के साथ क्या करना चाहिए?”
\p
\s5
\v 16 अन्य अधिकारियों की उपस्थिति में, मेमुकान ने राजा से कहा, “हे महाराज, रानी वशती ने तुमको अपमानित किया है, और उसने तुम्हारे वैभव का सभी प्रान्तों के सभी अधिकारियों और सभी लोगों का अपमान किया है।
\v 17 जो कुछ भी उन्होंने किया है, उसे सम्पूर्ण साम्राज्य में सभी स्त्रियाँ सुनेंगी, और वे कहेंगी, ‘राजा ने रानी वशती को अपने पास आने का आदेश दिया, और उसने मना कर दिया।’ इसलिए वे भी अपने पतियों का आज्ञापालन नहीं करेंगी, और वे उनका निरादर करेंगी।
\v 18 आज का दिन समाप्त होने से पहले, फारस और मादी के सभी अधिकारियों की पत्नियाँ सुनेंगी कि रानी ने क्या किया है, और वे आपके सारे वैभव के अधिकारियों से वही कहेंगी जो रानी ने कहा है। उनमें सभी पुरुषों के लिए अवमानना और क्रोध आ जाएगा।
\s5
\v 19 इसलिए हे महाराज, यदि तुमको भाए, तो फारस और मादी के सभी कानूनों की तरह तुमको एक कानून लिखना चाहिए, एक ऐसा कानून बने जिसको कोई भी बदल ना सके। इस कानून में यह कहना चाहिए कि रानी वशती को फिर कभी तुमको देखने की अनुमति नहीं दी जाएगी, और तुम किसी अन्य स्त्री को रानी बनने के लिए चुनें, एक ऐसी स्त्री जो रानी बनने के लिए उससे अधिक योग्य हो।
\v 20 जब तुम्हारे साम्राज्य में हर कोई यह आज्ञा सुनेगा, जो तुम देते हो, तो सभी पत्नियाँ, जो महत्वपूर्ण हैं और जो महत्वपूर्ण नहीं हैं, अपने पतियों का सम्मान करेंगी।”
\p
\s5
\v 21 ममूकान ने जो सुझाव दिया था उसे राजा और अन्य अधिकारियों ने पसन्द किया, और राजा ने इस पर कार्य शुरू कर दिया।
\v 22 फिर उसने सभी प्रान्तों में पत्र भेजे, यह बताते हुए कि सभी पुरुषों को अपनी पत्नियों और अपने बच्चों पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए। उसने प्रत्येक भाषा में पत्र लिखे और इसे प्रत्येक प्रान्त में प्रचलित विशिष्ट शब्दावली में लिखा।
\s5
\c 2
\p
\v 1 कुछ समय बाद, जब राजा क्षयर्ष का क्रोध शान्त हो गया, तो उसने वशती को याद किया। उसने जो किया था उसके कारण राजा ने जो कानून बनाया था उसने उसके बारे में भी सोचा।
\v 2 इसलिए उसके निजी दासों ने उससे कहा, “हे महाराज, तुम्हें खूबसूरत युवतियों की खोज के लिए कुछ लोगों को भेजना चाहिए।
\s5
\v 3 उनको खोजने के बाद, तुम प्रत्येक प्रान्त में कुछ अधिकारियों को उनको यहाँ सूसा लाने के लिए नियुक्त कर सकते हो जहाँ तुम अपनी पत्नियों को रखते हो। उनकी देखभाल हेगई (राजा के नपुंसक दास) के द्वारा हो, जो इन स्त्रियों की रक्षा और देखभाल करता है, वह उनके सौंदर्य प्रसाधनों की व्यवस्था कर सकता है।
\v 4 तब जो युवती तुझे सबसे ज्यादा प्रसन्न करती है वह वशती के स्थान पर रानी बन सकती है।” जो सुझाव उन्होंने दिया वह राजा को पसन्द आया, इसलिए उसने ऐसा किया।
\p
\s5
\v 5 उस समय सूसा शहर में एक यहूदी रहता था, जिसका नाम मोर्दकै था। वह यार का पुत्र था जो किश के पुत्र शिमी का पुत्र था, और वह बिन्यामीन के गोत्र का सदस्य था।
\v 6 बहुत वर्ष पहले, बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने मोर्दकै को अपने साथ रखा और उसे यरूशलेम से बाबेल में ले आया। यह उसी समय हुआ था जब वह यहूदा के राजा यहोयाकीन को कई अन्य लोगों के साथ ले आया था।
\s5
\v 7 मोर्दकै अपनी चचेरी बहन की देखभाल कर रहा था, जिसका इब्रानी नाम हदासा था। उसका चेहरा सुन्दर और शरीर सुडौल था, और उसका नाम एस्तेर था। उसके पिता और माता की मृत्यु हो जाने के बाद, मोर्दकै ने एस्तेर का ख्याल ऐसे रखा जैसे कि वह उसकी ही बेटी थी।
\s5
\v 8 राजा की इस आज्ञा के बाद कुछ खूबसूरत स्त्रियों की खोज हुई, और एस्तेर और कई अन्य युवतियों को दास सूसा में राजा के महल में ले आए, और उन्हें हेगई की निगरानी में रखा।
\v 9 हेगई एस्तेर से प्रसन्न था। उसने तुरन्त उसके लिए उसकी पसन्द के अनुसार प्रसाधन सामग्री लाने की व्यवस्था की, और उसने उसके लिए विशेष भोजन की व्यवस्था की। उसने दासियों को राजा के महल से बुलाकर उसे सौंप दिया और महल की स्त्रियों के रहने के सबसे अच्छे कमरे में उसके रहने की व्यवस्था की।
\p
\s5
\v 10 एस्तेर ने किसी को यह नहीं बताया कि वह एक यहूदी थी, या अपने रिश्तेदारों के बारे में कुछ भी नहीं बताया, क्योंकि मोर्दकै ने उसे किसी को कुछ भी बताने से मना किया था।
\v 11 हर दिन मोर्दकै उस महल के आँगन के पास चला जाता था जहाँ वे स्त्रियाँ रहती थीं। एस्तेर के साथ क्या हो रहा है यह जानने की आशा में वह आँगन में खड़ा हो जाता था।
\p
\s5
\v 12 इन स्त्रियों को राजा के पास ले जाने से पहले, बारह महीनों तक उनका सौंदर्य उपचार हुआ, और छः महीनों तक मुर्र मिले हुए जैतून के तेल से उनका उपचार हुआ।
\v 13 जब राजा के पास जाने के लिए इन स्त्रियों में से किसी एक को बुलाया जाता, तब उसे राजा के महल में जाने के दौरान घर से जो भी वह चाहती, उसे ले जाने की अनुमति थी।
\s5
\v 14 शाम के समय, वह राजा के पास जाएगी, और अगली सुबह वह स्त्रियों के दूसरे घर लौट आएगी, जहाँ वह राजा की रखैलों के प्रभारी अधिकारी शासगाज की सुरक्षा में रहेगी। वह राजा के पास पुनः नहीं लौटेगी, जब तक कि राजा यह नहीं चाहे और उसे नाम से न बुलाए।
\p
\s5
\v 15 अब जब राजा के पास जाने के लिए एस्तेर (जो अबीहैल की पुत्री थी, जो मोर्दकै का चाचा था) की बारी आई, तो उसने अपने घर से अपने साथ कुछ भी नहीं लिया, लेकिन केवल वही जो हेगई, राजा के आधिकारिक स्त्रियों के प्रभारी ने उसे सुझाव दिया था। जितनो ने एस्तेर को देखा, उसने उनकी प्रीति पाई।
\p
\v 16 एस्तेर को राजा क्षयर्ष के शासन के सातवें वर्ष के दसवें महीने में (जो तेबेथ का महीना है) शाही निवास में उसके पास ले जाया गया।
\s5
\v 17 राजा ने एस्तेर को उन सभी स्त्रियों से अधिक पसन्द किया जिन्हें वे उसके पास लाए थे। अतः उसने उसके सिर पर एक मुकुट रख दिया और घोषित किया कि वशती के स्थान पर एस्तेर रानी होगी।
\v 18 एस्तेर के रानी बनने का जश्न मनाने के लिए, राजा ने उसके सम्मान में एक बड़ा भोज दिया, उसने अपने सभी अधिकारियों और सेवकों के लिए वह भोज तैयार किया। उसने सभी प्रान्तों में करों के भुगतान में राहत दी और उदारता के साथ सभी को ऐसे महंगे उपहार दिए जो केवल एक राजा ही दे सकता है।
\p
\s5
\v 19 बाद में उन सभी युवतियों को एक साथ एकत्र किया गया। उस समय मोर्दकै राजा के द्वार पर बैठा हुआ था, जहाँ पुरनिए और अगुवे अदालत लगाते थे और राज्य में दूसरों के विवाद सुलझाया करते थे।
\v 20 परन्तु एस्तेर ने अभी तक किसी को भी अपने परिवार, या अपने लोगों, यहूदियों के बारे में नहीं बताया था। उसने वैसा ही किया जैसा मोर्दकै ने उसे करने के लिए कहा था; मोर्दकै ने जो कहा था एस्तेर ने वैसा करने के द्वारा उसका सम्मान और आदर करना जारी रखा।
\v 21 एक दिन जब मोर्दकै राजा के द्वार पर था, तो राजा के दो अधिकारी भी वहाँ थे। उनके नाम बिगथाना और तेरेश थे। वे रक्षक थे जो राजा के कमरे के बाहर खड़े होकर राजा की रक्षा करते थे। वे राजा से नाराज हो गए थे, और वे योजना बना रहे थे कि कैसे उसे बड़ा नुकसान पहुँचा सकते हैं।
\s5
\v 22 परन्तु मोर्दकै ने सुन लिया कि वे क्या योजना बना रहे थे, और उसने रानी एस्तेर को बताया। तब रानी ने राजा को बताया, और उसने राजा से उस व्यक्ति का नाम लेकर कहा कि यह जानकारी मोर्दकै से आई है।
\v 23 राजा ने इसकी जाँच की और पुष्टि की। अत: राजा ने उन दोनों व्यक्तियों को फाँसी पर लटका देने का आदेश दिया। जब ऐसा किया गया, तो एक अधिकारी ने इसके विषय में राजा की इतिहास नामक किताब में लिखा।
\s5
\c 3
\p
\v 1 इन बातों के बाद, राजा क्षयर्ष ने अन्य सभी अधिकारियों के ऊपर हम्मदाता के पुत्र हामान अगागी को पदोन्नत किया और उसने यह स्पष्ट कर दिया कि हामान उन सभी लोगों से ऊपर था जो उसके अधीन सेवा करते थे।
\v 2 अन्य सभी अधिकारी हामान को सम्मान देने के लिए उसके सामने झुक गए, और उन्होंने उसे बहुत सम्मान दिया जैसा राजा ने आज्ञा दी थी कि उन्हें करना चाहिए। परन्तु मोर्दकै ने हामान के आगे झुकने से या उसे उस तरह का सम्मान देने से मना कर दिया।
\p
\s5
\v 3 अन्य अधिकारियों ने यह देखा, और उन्होंने मोर्दकै से पूछा, “तुम राजा के आदेश का उल्लंघन क्यों करते हो?”
\v 4 उन्होंने प्रत्येक दिन उसके साथ बातें की परन्तु उसने वह नहीं किया जो उन्होंने कहा, या उन्हें जवाब भी नहीं दिया। इसलिए उन्होंने यह देखने के लिए हामान को इसकी जानकारी दी कि क्या वह मोर्दकै के व्यवहार को सहन करेगा, क्योंकि मोर्दकै ने उन्हें बताया था कि वह एक यहूदी है।
\p
\s5
\v 5 जब हामान को यह मालूम हुआ कि मोर्दकै ने उसके आगे घुटने टेकने या स्वयं को झुकाने से मना कर दिया है, तो वह बहुत क्रोधित हो गया।
\v 6 अपने घमण्ड के कारण वह केवल मोर्दकै को ही दंडित करने की इच्छा नहीं रखता था, क्योंकि राजा के कर्मचारियों ने उसे यह बताया था कि मोर्दकै यहूदी है, हामान चाहता था कि सभी यहूदी मारे जाएँ। इसलिए, यह बात क्षयर्ष के राज्य में हर जगह रहने वाले सारे यहूदियों को मार डालने का अवसर बन गया।
\p
\s5
\v 7 पहले महीने में (जिसे निसान के महीने के रूप में जाना जाता है), क्षयर्ष के शासन के बारहवें वर्ष में, उन्होंने हामान की उपस्थिति में चिट्ठियाँ डालीं वे इस योजना को कार्यन्वित करने के लिए एक महीने और एक दिन का चयन करना चाहते थे। उन्होंने हर महीने और दिन के लिए चिट्ठियाँ डालीं जब तक कि उन्होंने बारहवें महीने, अदार के महीने का फैसला नहीं हुआ।
\p
\s5
\v 8 तब हामान राजा के पास गया और उससे कहा, “हे महाराज, ऐसे लोगों का एक समूह है जो तुम्हारे साम्राज्य के कई इलाकों में रहता है, जिनके नियम हमारे नियमों से अलग हैं। यहाँ तक कि वे तुम्हारे नियमों का पालन करने से भी मना करते हैं। निश्चित रूप से तुमको उन्हें वहाँ रहने नहीं देना चाहिए, इसके बजाए उनसे छुटकारा पाना चाहिए।
\v 9 यदि तुम इस बात से खुश हो, तो आदेश दो कि उन सभी को मार डाला जाए। यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं 330 मीट्रिक टन चाँदी वजन तौल कर उन लोगों के हाथों में सौंप दूँगा जो तुम्हारे खजाने के भंडारी हैं।”
\p
\s5
\v 10 जो हामान ने कहा, राजा ने उसे पसन्द किया, और उसने जो कुछ तय किया था, उसकी पुष्टि के लिए, वह अंगूठी निकालकर दी जो उसकी आधिकारिक मुहर की छाप वाली अंगूठी थी, और उसे यहूदियों से घृणा करने वाले अगागी हामान को दे दिया।
\v 11 राजा ने हामान से कहा, “मैं तुमको और तुम्हारे लोगों को पैसे वापस दे रहा हूँ। इसके द्वारा वह करो जो तुमको अच्छा लगे।”
\p
\s5
\v 12 तब राजा के शास्त्री पहले महीने के तेरहवें दिन एक साथ बुलाए गए। उस दिन, एक आदेश लिखा गया जिसमें जो कुछ हामान ने आज्ञा दी थी वही था। वह आदेश राजा के प्रांतीय राज्यपालों को भेजा गया - उनको जो सभी प्रान्तों में थे, राज्य में रहने वाले सभी राज्यपालों को और सभी अधिकारियों को। वह आदेश हर भाषा में और उन भाषाओं की लिखावट में था कि वे उसे पढ़े और समझ सकें। यह राजा क्षयर्ष के नाम पर लिखा गया था और उसकी अंगूठी से मुहरबंद कर दिया गया था, जिसे उसने हामान को उपयोग करने के लिए दी थी।
\v 13 संदेशवाहकों ने राज्य के हर प्रान्त में आदेश को प्रसारित कर दिया। उसमें हर एक यहूदियों को मार डालने का, और यहूदी लोगों को युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, बच्चों और स्त्रियों को मार डालने का आदेश था। यह - बारहवें महीने के तेरहवें दिन (जो अदार का महीना है) पर किया जाना था। जब यहूदी मर जाएँगे, तो बाकी लोगों को उनकी सारी संपत्ति लेने की अनुमति मिल जाएगी।
\p
\s5
\v 14 राजा के आदेश के अनुसार, प्रत्येक प्रान्त में, पत्र की प्रति को कानून बना दिया गया। प्रत्येक प्रान्त में सभी लोगों को मालूम हुआ कि उन्हें उस दिन के लिए तैयार रहना है।
\v 15 राजा के आदेश के अनुसार, घोड़ों की सवारी करने वाले पुरुष राज्य के हर प्रान्त में शीघ्र ही इन पत्रों को ले गए। और उन पत्रों में से एक को सूसा में महल के भीतर रहने वाले और काम करने वाले लोगों के सामने ऊँची आवाज़ में पढ़ा गया। तब राजा और हामान एक साथ पीने के लिए बैठे, लेकिन सूसा शहर के लोग बहुत परेशान थे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 जब मोर्दकै को उन पत्रों के विषय में पता चला, तो वह इतना दुःखी हुआ कि उसने अपने कपड़े फाड़े और शोक के लिए खुरदरे टाट के कपड़े पहन लिए और वह अपनी पीड़ा दिखाने के लिए राख पर बैठ गया। फिर वह कड़वाहट और दुःख के साथ बहुत जोर से रोते हुए शहर में गया।
\v 2 वह राजा के फाटक के बाहर खड़ा था, उसे महल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि कानून में टाट के कपड़े पहने हुए किसी भी व्यक्ति को द्वार से प्रवेश करने के लिए मना कर दिया गया था।
\v 3 साम्राज्य के हर प्रान्त में, जब राजा का पत्र यहूदी लोगों के सम्मुख पढ़ा गया, तो वे रोए और उन्होंने शोक किया। उन्होंने उपवास किया, और ऊँचे स्वर से विलाप किया, वे दु:ख से भरे हुए थे। उनमें से कई टाट के कपड़े पहने हुए राख में लेट गए और कई बैठ गए।
\s5
\v 4 जब एस्तेर की दास-दासियाँ उसके पास आए और राजा के आदेश और आने वाले खतरे के बारे में उसे बताया, तो वह बहुत परेशान हुई। इसलिए उसने मोर्दकै को कुछ अच्छे कपड़े भिजवा दिए ताकि वह टाट का वस्त्र उतार दे, लेकिन उसने उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया।
\v 5 तब एस्तेर ने हताक को बुलाया जो राजा के अधिकारियों में से एक था, जिसे उसने उसकी सेवा करने और रक्षा करने के लिए नियुक्त किया गया था। उसने उसे बाहर जाकर परेशानी के बारे में पता लगाने और मोर्दकै से बातें करने के लिए कहा।
\s5
\v 6 हताक राजा के महल के फाटक के सामने शहर के चौराहे पर मोर्दकै के पास गया।
\v 7 मोर्दकै ने जो कुछ भी हुआ था उसे बताया। उसने उसे यह भी बताया कि यहूदियों को मारने के लिए हामान ने राजा के खजाने में कितनी चाँदी जमा करने का वादा किया था।
\v 8 मोर्दकै ने हताक को सूसा में जारी किए गए आदेश की एक प्रति भी दी, ताकि वह उसे एस्तेर को दिखा सके। मोर्दकै राजा से इस आदेश के बारे में कार्रवाई करने और राजा से कृपा माँगने के लिए एस्तेर को आदेश देना चाहता था। वह चाहता था कि वह राजा के पास जाए और यहूदियों की सहायता करने की कोशिश करे।
\s5
\v 9 तब हताक एस्तेर के पास गया और मोर्दकै ने जो कहा उसे बताया।
\v 10 तब एस्तेर ने हताक को मोर्दकै के पास वापस लौटने का आदेश दिया, और उसे यह बताने के लिए कहा:
\v 11 “राजा के सभी कर्मचारी और प्रान्तों के सभी लोग जानते हैं कि राजा के सामने कोई भी नहीं आ सकता है जब तक कि राजा उसे आने के लिए आमंत्रित न करे। इस कानून को तोड़ने का केवल एक ही परिणाम है: उस व्यक्ति को मार डाला जाता है। अपवाद मात्र यह होगा कि राजा अपने स्वर्ण राजदंड को अपने सामने आने वाले किसी व्यक्ति की ओर करेगा, जो यह संकेत होगा कि राजा उस व्यक्ति को जीने की अनुमति दे रहा है। राजा के साथ मेरे अपने संपर्क के विषय में बात यह है कि, तीस दिनों से मुझे राजा के पास नहीं बुलाया गया है। “
\v 12 तब हताक मोर्दकै के पास गया और एस्तेर ने जो कहा था उसे बताया।
\s5
\v 13 मोर्दकै ने हताक से एस्तेर को यह कहने के लिए कहा: “ऐसा मत सोचो कि तुम महल में रहती हो, और जब अन्य सभी यहूदियों की हत्या हो जाएगी तब तुम बच जाओगी।
\v 14 यदि तुम इस समय चुप रहीं, तो कोई और यहूदियों को किसी अन्य तरीके से बचाएगा, लेकिन तुम और तुम्हारे पिता का परिवार मर जाएगा। कौन जानता है, शायद सिर्फ इस समय के लिए ही तुम रानी बनाई गई हो।”
\s5
\v 15 तब एस्तेर ने यह संदेश मोर्दकै को भेजा,
\v 16 “जाओ और यहाँ सूसा में सभी यहूदियों को इकट्ठा करो, और उन्हें मेरे लिए उपवास करने के लिए कहो। तीन दिन तक, रात और दिन में न खाना और न पीना। मेरी युवतियाँ और मैं भी उसी तरह उपवास करेंगी। तब मैं राजा के पास जाऊँगी, भले ही मुझे पता है कि यह कानून के खिलाफ है। यदि मैं मर जाऊँ, तो मर जाऊँ।“
\v 17 मोर्दकै चला गया और उसने वह किया जो एस्तेर ने उसे करने के लिए कहा था।
\s5
\c 5
\p
\v 1 तीन दिनों के बाद, एस्तेर ने अपने शाही कपड़ों को पहन लिया। इसके पश्चात वह राजा के घर के सामने, महल के भीतरी दरबार में खड़ी हुई। उस समय, राजा अपने घर के प्रवेश द्वार के सामने अपने घर में शाही सिंहासन पर बैठा था।
\v 2 जब राजा ने दरबार में रानी एस्तेर को खड़ा देखा, तो राजा खुश हुआ और उसने उसका स्वागत किया। उसने अपने हाथ में जो सुनहरा राजदंड था उसे उसकी ओर बढ़ा दिया। इसलिए एस्तेर राजा के नज़दीक गई और राजदंड की नोक को छुआ।
\s5
\v 3 राजा ने उससे कहा, “हे रानी एस्तेर, तुम क्या चाहती हो? तुम्हारा क्या अनुरोध है? यदि तुम अनुरोध करती हो तो मैं तुमको अपना आधा राज्य दूँगा।”
\v 4 एस्तेर ने उत्तर दिया, “हे महाराज, यदि इससे तुम खुश हो, तो क्या तुम और हामान एक दावत के लिए आएँगे जिसे मैंने तुम्हारे लिए तैयार किया है?”
\s5
\v 5 राजा ने अपने सेवकों से कहा, “जाओ और हामान को जल्दी से आने और एस्तेर ने जो कहा है, उसे करने के लिए कहो!” अतः राजा और हामान उस दावत में गए जो एस्तेर ने तैयार की थी।
\v 6 जब दावत में दाखमधु बांटा जा रहा था, राजा ने एस्तेर से कहा, “तुम्हारी याचना क्या है? वह पूरी की जाएगी। तुम्हारा अनुरोध क्या है? यदि तुम राज्य का आधा भाग भी मांगो, तो मैं वो भी तुम्हें दे दूँगा।”
\s5
\v 7 एस्तेर ने उत्तर दिया, “मेरी याचना और मेरा अनुरोध यह है,
\v 8 अगर तुम मुझसे प्रसन्न हो, यदि तुम मेरे लिए ऐसा करना चाहते हो: तो क्या तुम और हामान कल एक और भोज के लिए आओगे, जो मैं तुम्हारे लिए तैयार कर रही हूँ। उस समय, मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूँगी।”
\p
\s5
\v 9 भोज से निकलकर जाते समय हामान बहुत खुश था। परन्तु उसने मोर्दकै को महल के फाटक पर बैठा देखा, और एक बार फिर, मोर्दकै हामान के सामने खड़ा नहीं हुआ या उसके सामने डर से काँपा नहीं। इसलिए हामान मोर्दकै के प्रति क्रोध से भर गया।
\v 10 हालाँकि, उसने यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं किया कि वह क्रोधित था। वह अपने घर गया और अपने दोस्तों को एकत्र किया। उसने अपनी पत्नी ज़ेरेश को भी बुलाया।
\v 11 हामान ने उन सभी को अपने एकत्र किए गए अत्यधिक धन के विषय में बताया। उसने अपने कई पुत्रों के विषय में बातें की और कैसे उसने राजा के अन्य सभी अधिकारियों और कर्मचारियों से अधिक हासिल किया इसके बारे में बातें की।
\s5
\v 12 तब हामान ने यह भी कहा, “यहाँ तक कि रानी एस्तेर ने मुझे और राजा को केवल हमारे लिए ही तैयार किए भोज में आमंत्रित किया था। वह सिर्फ हम दोनों को एक और भोज में आमंत्रित कर रही है जो वह हमें कल देगी!“
\v 13 तब हामान ने कहा, “परन्तु इन बातों का मतलब मेरे लिए कुछ भी नहीं है जब तक मैं राजा के फाटक पर यहूदी मोर्दकै को बैठे देखता हूँ!”
\s5
\v 14 तब उसकी पत्नी जेरेश ने हामान और उसके सभी दोस्तों से कहा, “तुम जल्दी से फाँसी का एक तख्ता क्यों नहीं बनाते? इसे तेईस मीटर ऊँचा बनाओ। तब सुबह राजा से इसके विषय बातें करके मोर्दकै को उस पर लटका दो। उसके बाद, तुम राजा के साथ भोज में जा सकते हो और खुश रह सकते हो।“ इस विचार ने हामान को प्रसन्न किया, और उसने फाँसी का तख्ता बनवाया।
\s5
\c 6
\p
\v 1 उस रात राजा सोने में असमर्थ था, उसने एक दास को बुलाया और स्वयं के राजा रहते हुए जो कुछ वृतांत इतिहास की पुस्तक में लिखे थे उसे लाने के लिए कहा। दास सारे वृत्तांत ले आया और उसने राजा के सामने ऊँची आवाज में उसे पढ़ा।
\v 2 दास ने बिगथाना और तेरेश के बारे में पढ़ा, जो दो अधिकारी राजा के कमरे के प्रवेश द्वार की रक्षा किया करते थे। उसने उस वर्णन को भी पढ़ा जिसमें मोर्दकै को पता चला था कि उन्होंने राजा क्षयर्ष की हत्या करने की योजना बनाई थी। उसने राजा को इसके विषय में बताया।
\v 3 राजा ने पूछा, “राजा के लिए मोर्दकै ने जो किया था उसके लिए मोर्दकै का सम्मान करने के लिए क्या किया गया था?” राजा की सेवा करने वाले सैनिकों ने उत्तर दिया, “उसके लिए कुछ भी नहीं किया गया।”
\s5
\v 4 राजा ने कहा, “क्या आँगन में कोई है?” उसी क्षण में, हामान महल के बाहरी आँगन में प्रवेश कर चुका था। वह राजा से मोर्दकै को उस फाँसी के तख्ते पर लटका देने की बात करना चाहता था जो उसने अभी बनवाया था।
\v 5 उसके कर्मचारियों ने उत्तर दिया, “हामान आँगन में है।” राजा ने कहा, “उसे अंदर लाओ।”
\v 6 जब हामान आया, तो राजा ने उससे पूछा, “मैं जिसका सम्मान करना चाहता हूँ, उसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?” अब हामान ने अपने मन में सोचा, “राजा मुझसे अधिक किसका सम्मान करना चाहेगा?”
\s5
\v 7 तब उसने राजा से कहा, “जिसका तू सम्मान करना चाहता है,
\v 8 उसके लिए तुझे अपने सेवकों से उन कपड़ों में से एक को निकालने के लिए कहना चाहिए जिन्हें तू ने पहना था, और उन घोड़ों में से एक को बाहर निकालने के लिए कहना चाहिए जिस पर तुमने सवारी की थी और वह राजकीय मुकुट जो उसके सिर पर रखा जाता है।
\v 9 उन कपड़ों और घोड़े को तुम्हारे बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकारियों को दिया जाए ताकि वे उस व्यक्ति को शाही कपड़े पहनाएँ, और उस व्यक्ति को घोड़े पर बैठा कर शहर की सड़कों पर उसे भ्रमण कराएँ। जब वह गुजरे, तो अन्य दास जोर से कहें, ‘ऐसा तब होता है जब राजा किसी का सम्मान करना चाहता है!’”
\s5
\v 10 राजा ने हामान से कहा, “जल्दी करो, जैसा तुमने कहा है, कपड़े और घोड़े ले लो, और राजा के फाटक पर बैठे यहूदी मोर्दकै के लिए यह करो! जो कुछ भी तुमने कहा है उसमें से कुछ भी मत भूलना!”
\v 11 इसलिए हामान ने कपड़े और घोड़ा लिया। उसने शाही कपड़े मोर्दकै को पहनाए, और हामान ने उसे शहर की सड़कों पर घोड़े पर बैठा कर यह कहते हुए घुमाया, “यह एक व्यक्ति के लिए तब किया जाता है जब राजा उसका सम्मान करना चाहता है!”
\s5
\v 12 तब, मोर्दकै राजा के फाटक पर लौट आया। लेकिन हामान जल्दी से अपने घर चला गया। वह शोक कर रहा था और उसने अपना चेहरा ढँक लिया था।
\v 13 हामान ने अपनी पत्नी जेरेश को और उसके सभी मित्रों को जो कुछ भी उसके साथ हुआ था, उसके विषय में बताया। तब वे व्यक्ति जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे, और उसकी पत्नी जेरेश ने उससे कहा, “यदि मोर्दकै यहूदी है, और तुम उसके सामने अपमानित हुए हो, तो तुम उसे पराजित नहीं कर पाओगे। तुम्हारा उसके द्वारा पराजित होना निश्चित है।”
\v 14 जब वे अभी भी बातें कर ही रहे थे, तब राजा के कुछ अधिकारी शीघ्र हामान को उस भोज में ले जाने के लिए आए जो एस्तेर ने तैयार किया था।
\s5
\c 7
\p
\v 1 अतः रानी एस्तेर की दूसरी दावत में राजा और हामान पहुँचे।
\v 2 दावत के दूसरे दिन, जिस समय दास दाखमधु बाँट रहे थे, तब राजा ने एस्तेर से कहा, “हे रानी एस्तेर, तुम्हारी क्या याचना है? मैं तुमको वह सब दूँगा, जो तुम माँगोगी। तुम क्या चाहती हो? मैं तुमको मेरे राज्य का आधा भाग तक दे दूँगा।“
\s5
\v 3 एस्तेर ने उत्तर दिया, “यदि तुम मुझसे प्रसन्न हो, हे मेरे राजा, और जो कुछ मैं माँगूँगी, यदि तुम वह करने के लिए तैयार हो, तो मेरे जीवन को बचाओ! और मेरे लोगों के जीवन को भी बचाओ।
\v 4 क्योंकि मैं और मेरे लोग एक आदेश द्वारा नाश किए जाने के लिए दंडित किए गए हैं। मुझे और मेरे लोगों को, मिटा देने के लिए– मार डालने के लिए, नष्ट करने के लिए सौंपा गया है। अगर हमें केवल दासत्व में बेचा गया होता, तो मैं चुप रह जाती, क्योंकि इस तरह की तुमको परेशान करने वाली बात नहीं होती। “
\v 5 तब राजा क्षयर्ष ने रानी एस्तेर से कहा, “वह मनुष्य कौन है जिसने ऐसा किया? वह व्यक्ति कहाँ है जिसका हृदय इस तरह की बुराई से भरा है?”
\s5
\v 6 एस्तेर ने उत्तर दिया, “वह व्यक्ति जो हमारा दुश्मन है वह बुरा व्यक्ति हामान ही है!” तब हामान राजा और रानी के सामने डर गया।
\v 7 राजा क्रोध से भरकर उठा। उसने अपना दाखमधु छोड़ दिया और बाहर महल के बगीचे में चला गया कि यह तय करे कि क्या किया जाए। हामान अपने जीवन को बचाने के तात्पर्य से हस्तक्षेप करने के लिए तथा रानी एस्तेर से अनुरोध करने के लिए रुक गया। वह जानता था कि राजा ने उसे मारने का फैसला किया था।
\s5
\v 8 तब राजा महल के बगीचे से लौट आया और जहाँ वे दाखमधु पी रहे थे वहीं वापस चला गया। तभी तब हामान उस कुर्सी पर गिर गया जहाँ एस्तेर थी। राजा ने कहा, “क्या मेरी उपस्थिति में वह मेरे घर में रानी पर हमला करेगा?” जैसे ही उसने यह कहा, दासों ने हामान के चेहरे पर एक कपड़ा डाल दिया।
\s5
\v 9 तब राजा की सेवा करने वाले अधिकारियों में से एक हर्बोना ने कहा, “बाहर हामान के घर के पास, एक फाँसी का तख्ता है। वह तेईस मीटर ऊँचा है। हामान ने उसे मोर्दकै के लिए बनाया था, वही मोर्दकै जिसने राजा की रक्षा करने की बात कही थी!“ राजा ने कहा, “इसको उसी पर लटका दो।”
\v 10 तब उन्होंने हामान को उसी फाँसी के तख्ते पर लटका दिया जिसे उसने मोर्दकै के लिए तैयार किया था। तब राजा का क्रोध कम हो गया।
\s5
\c 8
\p
\v 1 उस दिन के बाद में, राजा क्षयर्ष ने रानी एस्तेर को उस हामान की सारी सम्पत्ति दी, जो यहूदियों का दुश्मन था। मोर्दकै ने राजा की सेवा की क्योंकि एस्तेर ने अब राजा से कह दिया था कि वह उसका कैसा सम्बन्धी है।
\v 2 जब मोर्दकै भीतर आया, तब राजा ने उस अंगूठी को निकाल लिया जिस पर उसकी आधिकारिक मुहर थी, वह अंगूठी जिसे उसने हामान से प्राप्त किया था, उसने वह अंगूठी मोर्दकै को दे दी। एस्तेर ने मोर्दकै को हामान की सम्पत्ति का प्रभारी नियुक्त किया।
\p
\s5
\v 3 एस्तेर फिर से राजा से बातें करने आई। उसने उसके पैरों पर गिरकर दण्डवत् किया और आँसुओं के साथ उससे विनती की। उसने कहा कि राजा उस बुरी योजना को रोक दे जिसे हामान ने यहूदियों को मारने के लिए बनाई थी।
\v 4 राजा ने एस्तेर की ओर अपना सोने का राजदंड निकाल कर बढ़ाया, इसलिए एस्तेर उठकर राजा के सामने खड़ी हो गई।
\s5
\v 5 उसने कहा, “हे महाराज, यदि इससे तुझे खुशी मिलती है, और यदि तेरी कृपा दृष्टि मुझ पर हो, तो अगागी हम्मदाता के पुत्र हामान ने जो आदेश दिया था उसको रद्द करने के लिए नया कानून बनाएँ, कि तुम्हारे साम्राज्य के सभी प्रान्तों में सारे यहूदियों को न मारा जाए।
\v 6 मैं अपने लोगों पर आपदा आते देखना कैसे सह सकती हूँ? मैं अपने सभी रिश्तेदारों के विनाश को देखना सहन नहीं कर सकती? “
\s5
\v 7 राजा क्षयर्ष ने रानी एस्तेर और यहूदी मोर्दकै को उत्तर दिया, “क्योंकि हामान ने सभी यहूदियों से छुटकारा पाने की कोशिश की थी, इसलिए मैंने एस्तेर को वह सब कुछ दिया जो हामान का था, और हामान को फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
\v 8 इसलिए अब मैं तुमको एक नए आदेश और पत्र लिखने की अनुमति भी दे रहा हूँ, कि तुम अपने लोगों को बचा सको। तुम मेरा नाम उन पत्रों पर लिख सकती हो और उन्हें मुहरबंद करने के लिए मेरी अंगूठी का उपयोग कर सकती हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी ऐसा पत्र जिस पर मेरा नाम है और जो मेरी अंगूठी से मुहरबंद कर दिया गया है उसे कभी भी रद्द नहीं किया जा सकता है। “
\s5
\v 9 उसी समय राजा के शास्त्री बुलाए गए (तीसरे महीने में, जो सिवान का महीना है, महीने के तेइसवें दिन)। यहूदियों की रक्षा के लिए मोर्दकै ने उन्हें नया आदेश दिया। यह प्रांतीय राज्यपाल, राज्यों के राज्यपाल और अधिकारियों को भारत से लेकर इथोपिया तक के 127 प्रान्तों के लिए लिखा गया था। यह पत्र प्रत्येक प्रान्त को प्रत्येक भाषा में लिखा गया। यह यहूदियों के लिए उनकी लिखावट और भाषा में भी लिखा गया।
\s5
\v 10 मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के नाम पर आदेश लिखा और इसे राजा की छाप वाली अंगूठी से मुहरबंद कर दिया गया। उसने राजा के अस्तबल में पैदा हुए तेज घोड़े जो राजाओं की सेवा में प्रयुक्त होते थे। उन पर सवारी करने वाले संदेशवाहकों द्वारा दस्तावेजों को भेजा।
\v 11 राजा ने हर शहर में रहने वाले यहूदियों को एक साथ इकट्ठा होने और अपने जीवन की रक्षा के लिए एक साथ लड़ने की अनुमति दी। उसने उन्हें किसी भी प्रान्त में किसी भी सशस्त्र पुरुषों को मारने की अनुमति दी, जो किसी भी जातिसमूह से संबंधित हो, और उन पर या उनके परिवारों पर हमला कर सकते हैं, या जो उनकी संपत्ति लेने की कोशिश कर सकते हैं।
\v 12 यह बारहवें महीने के तेरहवें दिन राजा क्षयर्ष के सभी प्रान्तों में प्रभावी हुआ, यह अदार का महीना था।
\s5
\v 13 राजा ने उन्हें इस आदेश की प्रतियाँ बनाने और उन्हें सभी समूहों को दिखाने का आदेश दिया। इस आदेश के साथ, उसने यहूदियों को अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए तैयार होने की अनुमति दी।
\v 14 राजा ने उन मनुष्यों को जो इन पत्रों को सभी प्रांतों में लेकर गए आज्ञा दी कि राजा के घोड़ों पर सवार होकर शीघ्र जाएँ। इस पत्र की प्रतियाँ उन लोगों के लिए चिपकाई भी गईं और पढ़ी भी गईं जो सूसा के महल में रहते थे और काम करते थे।
\s5
\v 15 मोर्दकै नीले और सफेद रंग का वस्त्र पहने हुए था और राजा ने उसे जो एक बड़ा सोने का ताज दिया था उसे पहने हुए महल से निकला। वह सूक्ष्म बैंगनी कपड़े का वस्त्र भी पहने हुए था। जब सूसा के लोगों ने नए कानून को सुना, तो वे सभी खुशी से चिल्लाने लगे और उत्साहित हुए।
\v 16 सूसा में रहने वाले यहूदी अब डरने की बजाय खुश थे। वे भयभीत होने के बजाय खुश हुए, और अन्य लोगों ने उन्हें सम्मानित किया।
\v 17 जब नया आदेश हर शहर और प्रान्त में पहुँचा, तब यहूदियों ने उत्सव मनाया और भोज तैयार किया और वे बहुत खुश थे। और साम्राज्य में कई लोग यहूदी बन गए, क्योंकि वे यहूदियों से बहुत डर गए थे।
\s5
\c 9
\p
\v 1 यह बारहवें महीने, अर्थात अदार के महीने का तेरहवाँ दिन था, जब यहूदियों के दुश्मनों को उन्हें पूरी तरह नष्ट करने की आशा थी। इस तरह वे राजा के आदेश का पालन कर रहे होते। परन्तु यह पूरी तरह से बदल चुका था, क्योंकि यहूदियों ने अपने दुश्मनों को हरा दिया।
\v 2 राजा क्षयर्ष के सभी प्रान्तों में रहने वाले यहूदी अपने शहरों में उन लोगों पर हमला करने के लिए एकत्र हुए जो उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते थे। यहूदियों के खिलाफ कोई लड़ नहीं पाया, क्योंकि उन इलाकों में रहने वाले सभी लोग उनसे डरे हुए थे।
\s5
\v 3 राजा के सभी अधिकारियों ने हर जगह यहूदियों की सहायता की, क्योंकि वे मोर्दकै और उस शक्ति से डर गए थे जो राजा ने उसे दी थी।
\v 4 मोर्दकै अब राजा के महल में राजा का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी था, और उसका नाम समस्त प्रान्तों में फैल रहा था क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली हो गया था।
\v 5 इसलिए यहूदियों ने अपने दुश्मनों पर हमला किया और उन्हें मार डाला। उन्होंने उन सभी को हरा दिया जिन्होंने उनसे घृणा की थी, और वे पूरी तरह से विजयी हो गए।
\s5
\v 6 केवल गढ़ वाले शहर सूसा में ही, उन्होंने पाँच सौ पुरुषों को मार डाला।
\v 7 जिन लोगों को उन्होंने मार डाला उनमें हामान के दस पुत्र थे। मृतकों में थे: पर्शन्दाता, दत्पोन, अस्पाता,
\v 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता,
\v 9 पर्मशता, अरीसै, अरीदै, और वैजाता।
\v 10 और हम्मदाता के दस पोते, हामान के पुत्र जो यहूदियों के शत्रु थे। यहूदियों ने उन्हें मार डाला, लेकिन उन्होंने उनकी सम्पत्ति नहीं ली।
\s5
\v 11 उस दिन के अंत में किसी ने राजा को गढ़ वाले शहर सूसा में मारे गए लोगों की संख्या बताई।
\v 12 तब राजा ने रानी एस्तेर से कहा, “यहूदियों ने यहाँ सूसा में ही पाँच सौ लोगों को मार डाला है, जिसमें हामान के दस पुत्र भी शामिल हैं! उन्होंने मेरे शेष प्रान्तों में क्या किया होगा? अब तुम मुझसे तुम्हारे लिए और क्या करने के लिए कहती हो? तुम मुझे बताओ। तुम और क्या चाहती हो? मैं वह करूँगा।“
\s5
\v 13 एस्तेर ने उत्तर दिया, “यदि इससे तू खुश है, तो यहूदियों को यहाँ सूसा में फिर से वही करने दीजिए जो तुमने आज उन्हें करने का आदेश दिया। यह भी आदेश दिया जाए कि हामान के दस पुत्रों को फाँसी के तख्तों पर लटका दिया जाए।”
\v 14 राजा ने आदेश दिया कि यहूदियों को अगले दिन अपने अन्य दुश्मनों को मारने की अनुमति दी जाए। बाद में उसने सूसा में एक और आदेश जारी किया जिससे कि हामान के दस पुत्रों के शरीर फाँसी पर लटका दिए गए।
\s5
\v 15 सूसा में यहूदियों ने एकत्र होकर और तीन सौ लोगों को मार डाला। लेकिन फिर से, उन्होंने उनकी किसी भी सम्पत्ति को नहीं लिया।
\v 16 यह अदार महीने के चौदहवें दिन हुआ। उसके अगले दिन, सूसा में रहने वाले यहूदियों ने विश्राम किया और उत्सव मनाया। अन्य सभी प्रान्तों में, यहूदी लोग स्वयं को बचाने के लिए इकट्ठे हुए, और उन्होंने उन पचास हजार लोगों को मार डाला जो उनसे घृणा करते थे, लेकिन फिर से, उन्होंने उनकी कोई भी सम्पत्ति नहीं ली।
\s5
\v 17 अदार महीने के तेरहवें दिन और चौदहवें दिन, उन्होंने विश्राम किया और उस दिन को उन्होंने भोज करने और उत्सव मनाने का दिन बना दिया।
\v 18 परन्तु सूसा में रहने वाले यहूदी, तेरहवें और चौदहवें दिन लड़ने के लिए एकत्र हुए, पंद्रहवें दिन उन्होंने विश्राम किया और उस दिन को उन्होंने भोज करने और उत्सव मनाने का दिन बना दिया।
\v 19 यही कारण है कि गाँवों के यहूदियों और ग्रामीण कस्बों में रहने वाले यहूदियों ने अदार महीने के चौदहवें दिन को खुशी और उत्सव का दिन माना, जब वे एक-दूसरे को भोजन के उपहार भेजते हैं।
\s5
\v 20 जो कुछ भी घटित हुआ, उसे मोर्दकै ने लिख दिया था। उसके पश्चात उसने यहूदियों को पत्र भेजे जो राजा क्षयर्ष के साम्राज्य में रहते थे।
\v 21 उसने उन्हें हर वर्ष अदार के चौदहवें और पंद्रहवें दिन को मानने के लिए कहा,
\v 22 क्योंकि ये ही वे दिन थे जब यहूदियों ने अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त की थी। उस महीने में उनका दुःख खुशी में बदल गया था। मोर्दकै के पत्र ने उन्हें बताया कि उन्हें उन दिनों को उत्सव की तरह मनाना चाहिए और भोजन का उपहार एक दूसरे को और विशेष रूप से गरीब लोगों को देना चाहिए।
\s5
\v 23 इसलिए मोर्दकै ने जो कुछ लिखा उसे करने के लिए सब यहूदी सहमत हो गए। वे हर वर्ष उन्हीं दिनों में उत्सव मनाने के लिए सहमत हुए।
\v 24 वे याद रखेंगे कि कैसे अगागी हम्मदाता का पुत्र हामान सभी यहूदियों का दुश्मन बन गया था। वे याद रखेंगे कि कैसे उसने यहूदियों को मारने के लिए एक बुरी योजना बनाई थी, और उसने उन्हें कुचलने और उन्हें नष्ट करने का दिन खोजने के लिए चिट्ठियाँ डाली थीं।
\v 25 वे याद रखेंगे कि जब राजा को हामान की योजना के बारे में मालूम हुआ, तो उसने व्यवस्था की कि यहूदियों को मारने की बुरी योजना का परिणाम होगा हामान का अपना विनाश यहूदियों के स्थान पर हामान मारा जाएगा, अर्थात उसे और उसके पुत्रों को लटकाया जाएगा।
\s5
\v 26 इसलिए उन्होंने इन दिनों को पुर के नाम पर, पुरीम कहा (उन्होंने चिट्ठियाँ डाली थीं)। इसलिए इस पत्र में यही लिखा था, जो उन्होंने देखा था, कि उनके साथ क्या हुआ था।
\v 27 पूरे साम्राज्य में यहूदी हर वर्ष उन दो दिनों को इसी तरह मनाने के लिए सहमत हुए। उन्होंने कहा कि वे अपने वंशजों और किसी भी यहूदी बने व्यक्ति को बताएँगे कि उन्हें हर वर्ष यह उत्सव मनाना आवश्यक है। मोर्दकै द्वारा लिखे पत्र में जैसा करने के लिए कहा गया था उनको इसे वैसे ही मनाना है।
\v 28 उन्होंने कहा कि वे प्रत्येक पीढ़ी में, हर परिवार में, हर शहर में, और हर प्रान्त में हर वर्ष उन दो दिनों को याद रखेंगे और मनाएँगे। उन्होंने गम्भीरता से घोषणा की कि वे और उनके वंशज पुरीम नामक उन दो दिनों को याद रखने से और मनाने से कभी मना नहीं करेंगे।
\s5
\v 29 तब मोर्दकै और अबीहैल की बेटी रानी एस्तेर ने पुरीम पर्व के बारे में एक दूसरा पत्र लिखा। एस्तेर ने अपने रानी होने के अधिकार का इस्तेमाल यह पुष्टि करने के लिए किया कि पहले पत्र में मोर्दकै ने जो लिखा था, वह सच था।
\s5
\v 30 यह पत्र क्षयर्ष के राज्य के 127 प्रान्तों में - शान्ति और सत्य के शब्द - सभी यहूदियों को भेजे गए
\v 31 नियत समय पर पुरीम के इन दिनों को स्थापित करने के लिए, जैसा कि यहूदी मोर्दकै और रानी एस्तेर ने स्थापित किया था, जैसा यहूदियों ने खुद के लिए और अपने वंशजों के लिए स्थापित किया था, उनमें उपवास करना और शोक का समय भी शामिल था।
\v 32 एस्तेर के आदेश ने इन नियमों की पुष्टि की जिसमें समझाया गया था कि उन्हें पुरीम पर्व का उत्सव कैसे मनाना चाहिए। पर्व के बारे में निर्देश और इन घटनाओं का विवरण इतिहास की पुस्तक में लिखे गए थे।
\s5
\c 10
\p
\v 1 राजा क्षयर्ष ने भूमि पर रहने वाले और समुद्र के पास रहने वाले लोगों को एक ही तरह के कर का भुगतान करने के लिए कहा।
\v 2 और क्षयर्ष ने अपनी शक्ति के कारण जो बड़े बड़े काम किए, वह मादी और फारसी राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे गए। मोर्दकै द्वारा किए गए बड़े बड़े कामों के विषय और राजा ने उसे जो सम्मान दिया था उसका इतिहास भी लिखा गया है।
\s5
\v 3 राजा क्षयर्ष के पद के बाद यहूदी मोर्दकै का दूसरा स्थान था, और सभी यहूदियों ने उसे बहुत महान व्यक्ति माना। उसके यहूदी भाइयों और बहनों ने उसका सम्मान किया, क्योंकि उसने अपने लोगों के कल्याण की माँग की, और उसने उन सभी के लिए सुरक्षा देने की बातें की।

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\h सभोपदेशक
\toc1 सभोपदेशक
\toc2 सभोपदेशक
\toc3 ecc
\mt1 सभोपदेशक
\s5
\c 1
\p
\v 1 ये राजा दाऊद के वंशज के वचन और कथन हैं, जो यरूशलेम के राजा हैं। लोग मुझे 'शिक्षक' कहते हैं।
\q1
\v 2 वही शिक्षक कहता है, "कुछ भी स्थायी नहीं है।
\q2 यह सब सुबह की धुंध या हवा के समान है;
\q2 यह जाता है और आता है, लेकिन क्यों?
\q1
\v 3 धरती पर जो काम किया जाता है, उससे लोगों को क्या प्राप्त होता हैं? "
\q1
\s5
\v 4 प्रत्येक वर्ष बूढ़े लोग मर जाते हैं और बच्चे भी पैदा होते हैं,
\q2 लेकिन पृथ्वी कभी नहीं बदलती।
\q1
\v 5 हर सुबह सूर्य उदय होता है, और हर शाम अस्त भी होता है,
\q2 और फिर वह जहाँ से आरम्भ हुआ वहाँ पहुँचने के लिए शीघ्र आगे जाता है।
\q1
\v 6 हवा दक्षिण में बहती है,
\q2 और फिर यह मुड़कर उत्तर की ओर बहना आरम्भ करती है।
\q1 यह हवा चक्र में चारों ओर घूमती रहती है।
\q1
\s5
\v 7 सभी धाराएं समुद्र में मिल जाती हैं,
\q2 लेकिन समुद्र कभी भरता नहीं है।
\q1 पानी पृथ्वी के अंदर जाता है और नदियों में फिर से आता है;
\q2 तब यह धरा पुनः समुद्र में मिल जाती है।
\q1
\v 8 सब कुछ इतना असंतोषप्रद है
\q2 कि हम इसके विषय में बात भी नहीं करना चाहते।
\q1 हम निरन्तर वही चीज़ें देखते हैं,
\q2 और हम उनसे ऊब जाते हैं।
\q1 हम वही बातें सुनते हैं,
\q2 लेकिन हम कुछ और सुनना चाहते हैं।
\q1
\s5
\v 9 सब कुछ एक समान ही रहता है जैसा वह हमेशा से है।
\q2 जो बातें घटित हुई हैं वे पहले हुई हैं, और वे फिर होंगी।
\q2 जो पहले किया गया है वो पुनः किया जाएगा।
\q1 इस संसार में वास्तव में कुछ भी नया नहीं है।
\q1
\v 10 कभी-कभी लोग कहते हैं, "इसे देखो! यह कुछ नया है!"
\q2 लेकिन यह पहले भी अस्तित्व में था।
\q1 हमारे जन्म से पहले यह अस्तित्व में था।
\q1
\v 11 लोग बहुत पहले घटी घटनाओं को याद नहीं रखते हैं,
\q2 और भविष्य में, लोग उन कामों को याद नहीं रखेंगे जो हम अभी कर रहे हैं।
\p
\s5
\v 12 मैं, शिक्षक यरूशलेम में शासन करते हुए कई वर्षों तक इस्राएल का राजा रहा हूँ।
\v 13 अपने ज्ञान का उपयोग करके, मैंने पृथ्वी पर जो कुछ भी किया जा रहा था उसे समझने पर ध्यान लगाया। यह एक ऐसा काम है जो मुझे थकाता है, उन सब के समान जो इसे करने का प्रयास करते हैं।
\v 14 ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर जो कुछ भी होता है वह वास्तव में हमें कुछ भी उपयोगी करने में समर्थ नहीं बनाता है। यह हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करने के समान है।
\q1
\v 15 कई चीजें जो कुटिल हैं, उन्हें सीधा नहीं बनाया जा सकता।
\q2 हम उन चीज़ों की गणना नहीं कर सकते जिन्हें हम देख नहीं सकते।
\p
\s5
\v 16 मैंने स्वयं से कहा, "मैं उन सभी लोगों से अधिक बुद्धिमान हूँ जिन्होंने मुझसे पहले यरूशलेम में शासन किया था। मैं बुद्धिमान हूँ और उन सभी से अधिक जानता हूँ!"
\v 17 इसलिए मैंने बुद्धिमान होने के विषय में और बहुत मूर्खतापूर्ण कामों को करने के विषय में भी जानने का दृढ़ संकल्प किया। लेकिन मुझे पता चला कि उन कामों को समझने का प्रयास करना भी व्यर्थ था, जैसे हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करना।
\v 18 जो बहुत बुद्धिमान हो जाता है वह बहुत निराश भी हो जाता है। जो जितना अधिक जानता है, वह उतना दुःखी हो जाता है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब मैंने स्वयं से कहा, "ठीक है, जो कुछ भी मुझे आनंद देता है, मैं उसे करने का प्रयास करूँगा। मैं जाचूँगा कि जो कुछ मुझे आनंद देता है, उसे करना क्या वास्तव में मुझे प्रसन्न होने में समर्थ बनाता है।" लेकिन मुझे पता चला कि ऐसा करना भी व्यर्थ था।
\v 2 इसलिए मैंने स्वयं से कहा, "हर समय हंसना मूर्खतापूर्ण है, और जो मुझे आनंद देता है उसे निरन्तर करने से भी कोई स्थायी लाभ नहीं मिलता।"
\s5
\v 3 इसलिए, इसके विषय में बहुत सोचने के बाद, मैंने बहुत सारा दाखमधु पीकर स्वयं को प्रसन्न करने का निर्णय किया। जबकि मैं अभी भी बुद्धिमान होने का प्रयास कर रहा था, लेकिन मैंने बेवकूफी का काम किया। मैंने यह जानने का प्रयास किया कि लोग थोड़े समय पृथ्वी पर जीवित रहने के समय आनंदित होने के लिए क्या कर सकते हैं।
\s5
\v 4 मैंने बड़े-बड़े काम किए। मैंने अपने लिए घर बनवाए और दाख की बारियां लगवायीं।
\v 5 मैंने बगीचे और उद्दान बनवाए। तब मैंने बगीचे में कई प्रकार के फलों के पेड़ लगावाए।
\v 6 मैंने फलों के पेड़ों की सिंचाई के लिए पानी को जमा करने के लिए पानी के कुण्ड बनाए।
\s5
\v 7 मैंने पुरुष और सभी सेवकों को खरीदा। जिनके बच्चे जो बाद में मेरे सेवक बनने वाले थे, मेरे महल में पैदा हुए। यरूशलेम के पिछले किसी भी राजा की तुलना में मेरे पास अधिक पशुधन भी था।
\v 8 मैंने राजाओं और प्रांतों के शासकों के खजाने से प्राप्त चाँदी और सोना बड़ी मात्रा में जमा किया। मेरे पास ऐसे पुरुष और स्त्रियाँ थीं, जो मेरे लिए गाते थे, और मेरी कई पत्नियां और रखेलें थीं, जिन्हें प्राप्त करने में संसार भर के पुरुषों को आनंद आता।
\s5
\v 9 इसलिए मैंने यरूशलेम में मुझसे पहले शासन करने वाले किसी भी राजा की तुलना में अधिक शक्ति और धन प्राप्त किया, और मैंने अपने ज्ञान को मेरा मार्गदर्शन करते रहने की अनुमति दी।
\q1
\v 10 मुझे वह सब कुछ मिला जो मैंने देखा और जो मैं चाहता था।
\q2 मैंने वह सब किया जो मैंने सोचा था कि वह मुझे आनंदित होने में समर्थ बनाएगा।
\q1 जिन कामों का मैंने आनंद लिया वे मेरे कठिन परिश्रम के एक प्रतिफल के समान थे।
\q1
\s5
\v 11 लेकिन फिर मैंने उस सारे कठिन परिश्रम के विषय में सोचा जो मैंने उन सभी चीजों को प्राप्त करने के लिए की थी।
\q2 मैंने देखा कि मेरे किसी भी काम ने मुझे कोई स्थायी लाभ नहीं दिया।
\q1 यह सब हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करने के समान था।
\q1
\v 12 तब मैंने बुद्धिमान होने के विषय में और मूर्ख होने के विषय में भी सोचना आरंभ कर दिया।
\q2 मैंने स्वयं से कहा, "मुझे निश्चित रूप से नहीं लगता कि कोई भी मुझसे उत्तम कुछ भी करने में समर्थ होगा।"
\q1
\s5
\v 13 और मैंने सोचा, "निश्चित रूप से मूर्ख होने की अपेक्षा बुद्धिमान होना उत्तम है,
\q2 जैसे प्रकाश अंधेरे से उत्तम है,
\q1
\v 14 क्योंकि बुद्धिमान लोग दिन के उजाले में चलते हैं और देख सकते हैं कि वे कहां जा रहे हैं,
\q2 लेकिन मूर्ख लोग अंधेरे में चलते हैं और नहीं देख सकते कि वे कहां जा रहे हैं। "
\q1 मुझे यह भी अनुभव हुआ कि बुद्धिमान लोग और मूर्ख लोग अंततः मर जाते हैं।
\p
\s5
\v 15 इसलिए मैंने स्वयं से कहा,
\q1 "मैं बहुत बुद्धिमान हूँ, लेकिन मैं अपने जीवन के अंत में मूर्खों के समान ही मर जाऊंगा।
\q2 अतः मुझे बहुत बुद्धिमान होने से क्या लाभ हुआ?
\q1 मुझे समझ में नहीं आता कि लोग बुद्धिमान होने को मूल्यवान क्यों मानते हैं।
\q1
\v 16 बुद्धिमान और मूर्ख लोग सब मर जाते हैं।
\q2 और हमारे मरने के बाद, हम सब अंततः भुला दिए जाएंगे। "
\p
\s5
\v 17 इसलिए मुझे जीवित होने से घृणा हुई, क्योंकि यहाँ धरती पर हम जो भी काम करते हैं, वह मुझे आपदाग्रस्त करता है। जैसे हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करना व्यर्थ है, वैसे ही यह सब व्यर्थ लग रहा था।
\p
\v 18 मैंने धरती पर की गई अपने सारे कठिन परिश्रम से भी घृणा करना आरम्भ कर दिया, क्योंकि जब मैं मर जाऊंगा, तो जो कुछ मैंने प्राप्त किया है, वह मेरे उत्तराधिकारी का हो जाएगा।
\s5
\v 19 और कौन जानता है कि वह व्यक्ति बुद्धिमान या मूर्ख होगा? परन्तु यदि वह मूर्ख भी हो तब भी वह उन सभी चीजों को प्राप्त करेगा जिनको मैंने कठिन परिश्रम और बुद्धिमानी से प्राप्त किया था।
\v 20 मैंने मेरे द्वारा इस संसार में किये गये कठिन परिश्रम के विषय में सोचा। यह व्यर्थ लग रहा था, और मैं उदास हो गया।
\s5
\v 21 कुछ लोग जो उन्होंने सीखा है उसका उपयोग करके बुद्धिमानी से और कुशलतापूर्वक काम करते हैं। लेकिन जब वे मर जाते हैं, तो वे सब कुछ छोड़ जाते हैं, और कोई ऐसा उन चीजों को प्राप्त करता है, जिसने उसके लिए काम ही नहीं किया है। यह तथ्य भी मूर्खतापूर्ण लग रहा था जो मेरे निराश होने का कारण बना।
\v 22 इसलिए लोग जो कुछ भी करते हैं उसके लिए उनका परिश्रम करना भी व्यर्थ है।
\v 23 प्रत्येक दिन जो काम वे करते हैं, वह उनके दर्द का अनुभव करने और चिंतित होने का कारण बनता है। और रात के समय उनका मन विश्राम कर पाता हैं। इससे यह पता चलता है कि सब कुछ कितना अस्थायी है।
\p
\s5
\v 24 इसलिए मैंने निर्णय किया कि हम सबसे अच्छा काम यह कर सकते हैं कि जो हम खाते और पीते हैं, और हम जो काम करते हैं, उसका आनंद लें। मुझे मालूम हुआ कि यही वे बातें हैं जो परमेश्वर हमारे लिए चाहते हैं।
\v 25 कोई भी ऐसा नहीं है जो उन चीजों का आनंद ले सकता है यदि परमेश्वर यह चीजें उन्हें न दें।
\s5
\v 26 परमेश्वर उन लोगो को जो उन्हें प्रसन्न करते हैं बुद्धिमान होने, कई बातों को जानने और कई कामों का आनंद लेने के लिए समर्थ बनाते हैं। लेकिन यदि पापी लोग कठिन परिश्रम करते हैं और धनवान बन जाते हैं, तो परमेश्वर उनके पैसे उनसे ले सकते हैं और उसे प्रसन्न करनेवालों को दे सकते हैं। हालांकि, इसका कारण भी कुछ ऐसा है जिन्हें समझना मेरे लिए कठिन है। उनका इतना परिश्रम करना व्यर्थ लगता है; यह हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करने के समान है।
\s5
\c 3
\q1
\v 1 प्रत्येक बात के लिए एक सही समय होता है,
\q2 जो कुछ भी हम इस संसार में करते हैं उसके लिए एक समय होता है ।
\q2
\v 2 किसी भी निश्चित व्यक्ति के जन्म का एक सही समय होता है, और उसके मरने का भी एक सही समय होता है।
\q2 फसलों को लगाने का एक सही समय होता है, और फसल काटने का भी सही समय होता है।
\q2
\v 3 लोगों को घात करने का सही समय होता है, और लोगों को चंगा करने का सही समय होता है।
\q2 चीजों को तोड़ने का एक सही समय होता है, और चीजों को बनाने का एक सही समय होता है।
\q2
\s5
\v 4 रोने का भी सही समय होता है, और हंसने का भी सही समय होता है।
\q2 शोक करने का सही समय होता है, और आनन्द से नृत्य करने का भी सही समय होता है।
\q2
\v 5 मैदान से पत्थरों को फेंकने का एक सही समय होता है, और दीवारों के निर्माण के लिए पत्थरों को एकत्र करने का भी सही समय है।
\q2 लोगों को गले लगाने का एक सही समय है, और उन्हें गले लगाने से रुकने का एक सही समय है।
\q2
\s5
\v 6 चीजों की खोज करने का एक सही समय होता है, और चीजों की खोज करना बंद करने का भी सही समय होता है।
\q2 चीजों को एकत्र करने का एक सही समय होता है, और चीजों को फेंक देने का भी सही समय होता है।
\q2
\v 7 अपने कपड़ों को फाड़ने का एक सही समय होता है क्योंकि हम दु:खी हैं, और अपने कपड़ों को सिलने का भी सही समय होता है।
\q2 कुछ भी न कहने का एक सही समय होता है, और बोलने का भी सही समय होता है।
\q2
\s5
\v 8 एक सही समय होता है जब हमें उन चीज़ों से प्रेम करना चाहिए जिनसे लोग करते हैं, और एक सही समय होता है जब हमें उन चीज़ों से घृणा करनी चाहिए जिनसे लोग करते हैं।
\q2 युद्ध के लिए एक सही समय है, और शान्ति के लिए भी सही समय होता है।
\p
\v 9 उन सारे कामों से, जो लोग करते हैं उससे उन्हें क्या लाभ होता है?
\v 10 मैंने वह काम देखा है जिसे परमेश्वर ने लोगों को करने के लिए दिया है।
\p
\s5
\v 11 परमेश्वर ने एक समय निश्चित किया है जब सब कुछ होने का सही समय होता है। उन्होंने लोगों को यह भी जान लेने में समर्थ बनाया है कि ऐसी चीजें हैं जो सर्वदा स्थिर रहेंगी। लेकिन इसके उपरान्त, परमेश्वर ने जो कुछ किया है, कोई भी उसे पूरी तरह से समझ नहीं सकता है, जब तक कि वे उन्हें पूरा नहीं कर लेते हैं।
\p
\s5
\v 12 मुझे पता है कि हम लोगों के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि हम जीवित रहने के समय आनन्दित रहें और अच्छे काम करें।
\v 13 और मैं यह भी जानता हूँ कि हर किसी को जो कुछ भी वह खाते और पीते हैं, और जो काम वह करते हैं उसका आनंद लेना चाहिए। वे उपहार हैं जो परमेश्वर हमें देते हैं।
\p
\s5
\v 14 मैं यह भी जानता हूँ कि परमेश्वर जो करते हैं, वो सर्वदा बना रहता है। परमेश्वर जो कुछ करते हैं उसमें कोई भी कुछ जोड़ नहीं सकता है, और जो कुछ वे करते हैं उससे कोई भी कुछ हटा नहीं सकता है। परमेश्वर उन चीजों को इसलिए करते हैं कि लोग उनका सम्मान करें।
\q1
\v 15 जो चीजें अभी अस्तित्व में हैं वे पहले से थीं,
\q2 और भविष्य में होने वाली घटनाएँ पहले से ही हो चुकी हैं;
\q2 परमेश्वर रहस्यों को समझने की इच्छा हम में उत्पन्न करते हैं।
\p
\s5
\v 16 इसके अतिरिक्त, मैंने देखा कि इस धरती पर, यहाँ तक कि अदालतों में जहाँ हम आशा करते हैं कि न्यायाधीश लोगों के कामों के विषय में सही निर्णय लेंगे वहाँ भी उन्होंने कई दुष्ट काम किए हैं।
\p
\v 17 इसलिए मैंने स्वयं से कहा, "परमेश्वर धर्मी लोगों और दुष्ट लोगों दोनों का न्याय करेंगे। निश्चित रूप से उनके ऐसा करने का एक समय है क्योंकि उनके लिए सब कुछ करने का एक समय है।"
\p
\s5
\v 18 और मनुष्यों के विषय में, मैंने स्वयं से यह भी कहा, "परमेश्वर हमारी परीक्षा कर रहे हैं, हमें यह दिखाने के लिए कि एक तरह से मनुष्य जानवरों से भिन्न नहीं हैं।"
\p
\s5
\v 19 मनुष्य के साथ जो होता है, वो जानवरों के साथ भी होता है। जानवर मर जाते हैं, और मनुष्य भी मर जाते हैं। हम सभी को जीवित रहने के लिए सांस लेना होता है। इसी प्रकार, मनुष्यों और जानवरों में कोई अन्तर नहीं है अतः मनुष्य होने का कोई लाभ नहीं होता है। सब कुछ शीघ्र ही लुप्त हो जाता है।
\v 20 मनुष्य और जानवर सभी मर जाते हैं और दफन किए जाते हैं। हम सभी मिट्टी से बने हैं, और जब हम मर जाते हैं, तो हमारी लाशें मिट्टी बन जाती हैं।
\p
\s5
\v 21 कोई भी नहीं जानता कि मनुष्य ऊपर जाते हैं और जानवर नीचे जाते है उस स्थान पर जहाँ मृतक हैं।
\p
\v 22 इसलिए मुझे लगता है कि हम लोगों के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि हम जो करते हैं उसमें खुश रहें, क्योंकि परमेश्वर ने हमें यही निर्देश दिया है। मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि हम में से कोई भी नहीं जानता कि मरने के बाद हमारे साथ क्या होगा।
\s5
\c 4
\p
\v 1 मैंने उन सभी पीड़ाओं के विषय में, जिन्हें पृथ्वी पर लोगों के अनुभव के लिए बनाया गया है थोड़ा और सोचा।
\q1 मैंने उन लोगों के आंसुओं के विषय में सोचा जो पीड़ित थे
\q2 और जिनके पास उन्हें सांत्वना देने के लिए कोई नहीं था।
\q1 जो लोग उन्हें पीड़ा देते हैं उनके पास शक्ति हैं,
\q2 और पीड़ितों को सांत्वना देने में कोई भी समर्थ नहीं है।
\q1
\s5
\v 2 इसलिए मैंने सोचा कि जो लोग पहले से ही मर चुके हैं वे उनसे अधिक भाग्यशाली हैं
\q2 जो अभी भी जीवित हैं।
\q1
\v 3 और जो लोग अभी तक पैदा नहीं हुए हैं
\q2 वे उन दो प्रकार के लोगों की तुलना में और भी अधिक भाग्यशाली हैं,
\q1 क्योंकि जो अभी पैदा नहीं हुए, उन्होंने धरती पर होने वाले बुरे कामों को नहीं देखा हैं।
\p
\s5
\v 4 मैंने उस सारे कठिन परिश्रम के विषय में भी सोचा जो लोग करते हैं और वो बातें जिनमें वे सफलता पाने में समर्थ हैं। और मैंने इस विषय में सोचा कि कैसे कोई जो कठिन परिश्रम करता है और वह कभी-कभी अपने पड़ोसी को ईर्ष्या दिलाता है। मैंने निर्णय लिया कि यह भी कुछ ऐसा है जिसका कोई उपयोग नहीं है। यह हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करने के समान है।
\q1
\s5
\v 5 मूर्ख लोग काम करने से मना करते हैं।
\q2 वे अपने हाथों को बाँधे आलसी होकर बैठते हैं और काम नहीं करते हैं।
\q2 इस प्रकार वे स्वयं को नाश कर देते हैं।
\q1
\v 6 कुछ कहते हैं, "चुपचाप काम करके थोड़ा सा पैसा कमाकर संतुष्ट होना
\q2 उत्सुकता से काम करके बहुत सारा पैसा कमाने का प्रयास करने से उत्तम है,
\q2 यह भी हवा को नियंत्रित करने का प्रयास के समान व्यर्थ है। "
\p
\s5
\v 7 मैंने पृथ्वी पर होने वाली एक और बात के विषय में सोचा जो व्यर्थ लगती है।
\q1
\v 8 ऐसे लोग भी हैं जो अकेले रहते हैं;
\q2 उनके पास परिवार नहीं है और न ही उनके साथ रहने वाले बच्चे या कोई भाई या बहन हैं।
\q1 हर दिन वे बिना रुके कठिन परिश्रम करते हैं; वे बहुत पैसा कमाते हैं,
\q2 लेकिन वे उन चीज़ों से कभी संतुष्ट नहीं होते हैं जिन्हें वे प्राप्त करते हैं।
\q1 वे स्वयं से पूछते हैं,
\q2 "मैं इतना परिश्रम क्यों कर रहा हूँ; मैं वास्तव में किसकी सहायता कर रहा हूँ?
\q1 मैं उन कामों को क्यों नहीं करता जो करना मुझे पसंद है?
\q2 जो मैं कर रहा हूँ वह व्यर्थ लगता है। "यह बहुत बुरा है।
\q1
\s5
\v 9 किसी और का तुम्हारे साथ काम करने के लिए होना हर समय अकेले रहने से उत्तम है।
\q2 यदि तुम्हारा कोई मित्र है, तो वह तुम्हारा काम करने में तुम्हारी सहायता कर सकता है।
\q1
\v 10 यदि तुम गिर जाते हो, तो वह तुम्हें फिर से उठने में सहायता कर सकता है।
\q2 यदि तुम अकेले रहते समय गिर जाते हो, तो तुमको कष्ट होगा,
\q2 क्योंकि खड़े होने में तुम्हारी सहायता करने के लिए कोई भी नहीं है।
\q1
\v 11 इसी प्रकार, यदि दो लोग एक साथ सोते हैं,
\q2 वे एक दूसरे को गर्म रखने में सहायता कर सकते हैं।
\q लेकिन जो अकेला सोता है वह निश्चित रूप से गर्म नहीं होगा।
\q1
\s5
\v 12 कोई भी जो अकेला है, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सरलता से घात किया और पराजित किया जा सकता है,
\q2 लेकिन दो लोग एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं और उस का विरोध कर सकते हैं जो उन पर हमला करता है।
\q1 तीन लोग स्वयं को और भी सरलता से बचा सकते हैं,
\q2 जैसे तीन डोरियों से बनी रस्सी, को दो डोरियों से बनी रस्सी की तुलना में तोड़ना कठिन होता है।
\p
\s5
\v 13 एक जवान जो गरीब है लेकिन बुद्धिमान है, एक मूर्ख बूढ़े राजा से उत्तम व्यक्ति है, जिसे जब लोग अच्छी सलाह देने का प्रयास करते हैं तो वह ध्यान देने से मना कर देता है।
\v 14 एक ऐसे जवान के लिए सफल होना और किसी दिन उसका राजा बन जाना संभव है, भले ही उसके माता-पिता गरीब थे या भले ही वह अतीत में बन्दिग्रह में था।
\s5
\v 15 लेकिन फिर कोई अन्य जवान व्यक्ति राजा बन जाता है, और प्रत्येक उसका समर्थन करना आरम्भ कर देते हैं।
\v 16 लोगों की बड़ी भीड़ उसके चारों ओर एकत्र होती है। लेकिन कुछ सालों बाद, वे उससे भी थक जाएंगे। इसलिए यह सब हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करने के समान मूर्खतापूर्ण है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 जब तुम परमेश्वर के निकट उनके भवन में आते हो तो सावधान रहो। उन्हें अच्छी तरह सुनो। यह यहोवा को बलिदान चढ़ाने और उनकी आज्ञा पालन न करने से उत्तम है, जो मूर्खता है।
\q1
\s5
\v 2 बोले जानेवाले शब्दों के विषय में सोचे बिना तत्परता से मत बोलो;
\q2 और परमेश्वर से शिकायत करने के लिए अपने मन में बहुत शीघ्रता मत करो।
\q1 याद रखो कि परमेश्वर तुम से बहुत अलग हैं और वे स्वर्ग में हैं।
\q2 हालांकि, तुम बहुत सीमित हो और तुम्हें पृथ्वी पर अपने पूरे जीवन को जीना है।
\q1 इसलिए सावधानी से सोचो कि तुम परमेश्वर से क्या कहते हो, और इस विषय में सोचे बिना बात न करो कि तुम्हें उनसे कैसे बात करनी चाहिए।
\q1
\v 3 यदि तुम निरन्तर उन बातों के विषय में सोचते और चिंता करते रहते हो,
\q2 तो तुमको उनके विषय में बुरे सपने आएंगे और तुम अच्छे से विश्राम नहीं कर पाओगे।
\q1 और जितना अधिक तुम बात करोगे,
\q2 इसकी उतनी अधिक संभावना है कि तुम मूर्खतापूर्ण बातें कहोगे।
\p
\s5
\v 4 जब तुम परमेश्वर से गंभीरता से प्रतिज्ञा करते हो कि तुम कुछ करोगे, तो मूर्खतापूर्वक यह करने में देर न करो, क्योंकि परमेश्वर मूर्ख लोगों से प्रसन्न नहीं होते हैं। वैसे ही कामों को करें जो तुमने परमेश्वर से प्रतिज्ञा की है कि तुम करोगे।
\v 5 कुछ करने की प्रतिज्ञा करके फिर वैसा न करने से, कुछ भी वादा न करना उत्तम है।
\s5
\v 6 उन कामों को न करके जिन्हें तुमने करने का वादा किया है, तुम पाप न करो। और यदि तुम परमेश्वर से प्रतिज्ञा करते हो कि तुम कुछ करोगे लेकिन वैसा नहीं करते हो, तो परमेश्वर के याजक से यह न कहो कि ऐसा करने की प्रतिज्ञा करना तुम्हारे लिए एक गलती थी। यदि तुम ऐसा करते हो, तो जो कुछ सफलता तुमने प्राप्त की है उसे परमेश्वर नष्ट कर सकते हैं।
\v 7 कुछ करने की प्रतिज्ञा करना और वैसा नहीं करना एक व्यर्थ सपने के समान है। इसकी अपेक्षा, परमेश्वर से तुमने जो करने की प्रतिज्ञा की है, उसे करके उनका सम्मान करो।
\p
\s5
\v 8 यदि तुम गरीब लोगों पर अत्याचार होते हुए देखते हो तो आश्चर्यचकित न हों। वहां ऐसे लोग भी हैं, जो दूसरों को उन पर अत्याचार करने से रोकने में समर्थ हैं, लेकिन वे लोग भी किसी और अधिक ऊँचे पद वाले की शक्ति के अधीन हैं।
\v 9 हालाँकि पूरे देश में लोग अपने खेतों के मालिक हैं, फिर भी राजा उन्हें उनकी फसल की उपज का कुछ हिस्सा स्वयं को देने के लिए विवश करता है।
\q1
\s5
\v 10 प्रत्येक जितना पैसा कमा सकता है उतना पैसा पाने का प्रयास करते है
\q2 वे कभी नहीं सोचते कि उनके पास पर्याप्त है।
\q1 वे कभी भी उस पैसे से संतुष्ट नहीं होते जो उनके पास है।
\q2 इस तथ्य का भी कोई अर्थ समझ नहीं आता है।
\q1
\v 11 लोगों के पास जितना अधिक पैसा है,
\q2 उतना अधिक वे उसे खर्च करना चाहते हैं।
\q1 जिन लोगों के पास बहुत पैसा है, उन्हें उससे कोई लाभ नहीं होता,
\q2 अपेक्षा इसके कि उसे देखें और उसकी प्रशंसा करें।
\q1
\s5
\v 12 जो लोग कठिन परिश्रम करते हैं रात में शान्ति से सोते हैं,
\q2 भले ही उनके पास खाने के लिए अधिक भोजन न हो।
\q1 लेकिन धनवान लोग अच्छी तरह सो नहीं पाते हैं
\q2 क्योंकि वे अपने पैसे के विषय में चिंता करते हैं।
\p
\s5
\v 13 मैंने एक और भयानक बात देखी जो इस पृथ्वी पर होती है।
\q1 लोग अपने सारे पैसे बचाते हैं और धनवान बन जाते हैं,
\q2 लेकिन वे दु:खी हैं क्योंकि वे अपना पैसा जमा करते हैं।
\q1
\v 14 यदि ऐसा कुछ होता है जिस के कारण उनके पैसे समाप्त हो जाते है,
\q2 तब जब वे मर जाते हैं,
\q2 तो उनके बच्चों के लिए कोई पैसा नहीं होता।
\q1
\s5
\v 15 जब हम पैदा होते हैं,
\q2 तब हम अपने साथ कुछ भी नहीं लाते,
\q1 और जब हम मर जाते हैं,
\q2 तब हम उन चीजों में से, जिन्हें हमने कठिन परिश्रम से कमाया है
\q1 अपने साथ कुछ नहीं ले जाते।
\p
\v 16 यह भी समझ में नहीं आता है।
\q1 लोग पैदा होने पर संसार में कुछ भी नहीं लाते हैं,
\q2 और जब वे इस संसार को छोड़ देते हैं तो वे अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाते हैं।
\q1 उन्होंने कठिन परिश्रम तो किया है,
\q2 लेकिन उन्हें कोई स्थायी लाभ नहीं मिलता है।
\q1
\v 17 इसके अतिरिक्त, धनवान लोग हमेशा दु:खी, उदास,
\q2 और निराश होते हैं।
\p
\s5
\v 18 इसलिए, उन कुछ वर्षों में जब परमेश्वर लोगों को धरती पर जीवित रहने की अनुमति देते हैं, तब लोगों के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि वे खाएँ, पीएँ और अपने काम का आनंद लें, क्योंकि यही वे काम हैं जो वे उन्हें करने की अनुमति देते हैं।
\s5
\v 19 यदि लोग धनवान हैं और उनकी बहुत सारी संपत्तियां हैं, और उनके पास जो चीजें हैं उनका वे आनंद ले सकने में और अपने काम का आनन्द ले सकने में समर्थ हैं, तो वे चीजें भी परमेश्वर की ओर से उपहार हैं।
\v 20 वे लोग अपने जीवनकाल में जो कुछ भी हुआ है, उसके विषय में अधिक नहीं सोचते हैं, क्योंकि परमेश्वर यह सुनिश्चित करते हैं कि जिसे करने में वे आनन्दित होते हैं उस काम को वे करते रहें।
\s5
\c 6
\p
\v 1 मैंने यहाँ इस धरती पर कुछ और देखा है जो लोगों को चिंतित करता है।
\v 2 परमेश्वर कुछ लोगों को बहुत सारा पैसा और संपत्ति प्राप्त करने में और उनकी ओर से सम्मानित होने में समर्थ बनाते हैं। उनके पास वह सब कुछ है जो वे चाहते हैं। लेकिन परमेश्वर कभी-कभी उन्हें उन चीजों का आनंद लेने की अनुमति नहीं देते हैं। कोई और उन्हें प्राप्त करता है और उनका आनंद लेता है। यह मूर्खतापूर्ण और अन्यायपूर्ण लगता है।
\p
\s5
\v 3 किसी के पास सौ बच्चे हो सकते हैं और वह कई सालों तक जीवित रह सकता है। लेकिन यदि वह उन चीजों का आनंद लेने में समर्थ नहीं है जो उसने प्राप्त की हैं, और यदि वह मरने के बाद ठीक से दफनाया नहीं जाता, तो मैं कहता हूँ कि एक बच्चा जो पैदा होने पर मरा हुआ है, अधिक भाग्यशाली है।
\v 4 यह सच है, भले ही उस मरे हुए बच्चे का जन्म व्यर्थ है- भले ही उसका नाम न हो, और उसका छोटा सा जीवन भविष्य में केवल एक दु:खद याद बन कर रह जाए।
\s5
\v 5 वह बच्चा सूर्य को देखने या कुछ भी जानने के लिए जीवित नहीं रहता। फिर भी, वह धनवान लोगों की तुलना में, जो जीवित हैं अधिक विश्राम पाता है।
\v 6 भले ही लोग दो हजार साल तक जीवित रहें, यदि वे उन चीज़ों का आनंद नहीं लेते जो परमेश्वर उन्हें देते हैं, तो उनके लिए कभी भी पैदा नहीं होना उत्तम होता।
\q1 सभी लोग जो लंबे समय तक जीते हैं निश्चित रूप से सभी एक ही स्थान पर जाते हैं- कब्र में।
\q1
\s5
\v 7 लोग भोजन खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे कमाने के लिए कठिन परिश्रम करते हैं,
\q2 लेकिन अक्सर उन्हें खाने के लिए पर्याप्त नहीं मिलता है।
\q1
\v 8 अत: ऐसा लगता है कि बुद्धिमान लोगों को मूर्ख लोगों की तुलना में अधिक स्थायी लाभ नहीं मिलते
\q2 ।
\q1 और ऐसा लगता है कि गरीब लोगों को यह जानने से भी लाभ नहीं होता कि वे अपने जीवन को कैसे संचालित करें।
\q1
\s5
\v 9 उन चीज़ों का आनंद लेना है जो हमारे पास पहले से हैं
\q2 निरन्तर अधिक चीजों को चाहने से उत्तम है।
\q1 निरन्तर और अधिक चीजों को पाने की इच्छा करना,
\q2 हवा को नियंत्रित करने का प्रयास करने के समान मूर्खतापूर्ण है।
\q1
\v 10 धरती पर पाई जाने वाली सभी चीजों के नाम दिए गए हैं।
\q2 हर कोई जानता है कि लोग कैसे होते हैं,
\q1 इसलिए परमेश्वर के साथ जो हम से अधिक शाक्तिशाली हैं,
\q2 वाद-विवाद करना व्यर्थ है।
\q1
\v 11 जितना अधिक हम बात करते हैं,
\q2 उतना अधिक हम बार-बार वे बातें कहते हैं जो मूर्खतापूर्ण हैं,
\q2 इसलिए निश्चित रूप से बहुत बात करना हमें लाभ नहीं पहुंचाता है।
\p
\v 12 कोई भी मनुष्य उन सब बातों को नहीं जान सकता जो उसके जीवन में उसके लिए अच्छी हैं। लोग कुछ अर्थहीन दिनों के लिए जीवित रहते हैं। जीवन शीघ्र ही, छाया के समान व्यतीत होता है, और कोई भी नहीं जानता कि हमारे मरने के बाद क्या आ रहा है। हम केवल थोड़े समय के लिए रहते हैं, और फिर हम भाप के समान लुप्त हो जाते हैं।
\s5
\c 7
\q1
\v 1 हमारे पास उत्तम इत्र होने से यह उत्तम है कि अन्य लोग हमें सम्मानित करते हैं।
\q2 जिस दिन हम मरते हैं वह दिन हमारे जन्म के दिन से उत्तम होता है।
\q1
\v 2 ऐसे घर में जाना उत्तम है जहाँ लोग किसी मरे हुए के विषय में शोक कर रहे हों
\q2 न कि ऐसे घर में जाना जहाँ लोग आनन्द मना रहे हों,
\q1 क्योंकि सभी किसी न किसी दिन मर जाएँगे,
\q2 और लोगों को उस विषय में सोचना चाहिए जब वे मरेंगे।
\q1
\s5
\v 3 हमेशा हँसने से दु:खी होना उत्तम होता है,
\q2 क्योंकि जब हम दु:खी होते हैं, तो हम उन बातों के विषय में उत्तम सोच सकते हैं जो हमें बुद्धिमान बनाती और प्रसन्न करती हैं।
\q1
\v 4 बुद्धिमान लोग वहाँ जाते हैं जहाँ वह उन अन्य लोगों को सांत्वना दे सकें जो शोक करते हैं,
\q2 लेकिन मूर्ख लोग केवल उन लोगों की खोज करते हैं जो हँसते रहते हैं।
\q1
\s5
\v 5 एक मूर्ख व्यक्ति के गीतों को सुनने से किसी ऐसे व्यक्ति पर ध्यान देना उत्तम है जो तुम्हें डांट रहा हो।
\q2 ।
\q1
\v 6 मूर्ख लोगों को हंसते हुए देखकर हम कुछ नहीं सीखेंगे
\q2 जैसे हम एक बर्तन के नीचे जलाए गए काँटों की चरचराहट को सुनकर कुछ नहीं सीखते।
\q2 मूर्खों को सुनना मूर्खतापूर्ण है।
\q1
\s5
\v 7 जब बुद्धिमान लोग दूसरों से कहते हैं, "तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हें मुझे बहुत पैसा देना होगा,"
\q2 यह उन बुद्धिमान लोगों को मूर्ख बना देता है।
\q2 जो रिश्वत स्वीकार करते हैं वे सही काम करने में असमर्थ हो जाते हैं।
\q1
\s5
\v 8 कुछ समाप्त करना कुछ आरम्भ करने से उत्तम है,
\q2 और धीरजवान होना अहंकारी होने से उत्तम है।
\q1
\v 9 शीघ्र ही क्रोधित मत होना,
\q2 क्योंकि वे मूर्ख हैं जो बहुत क्रोधित हो जाते हैं।
\q1
\s5
\v 10 मत कहो, "चीजें पहले बहुत उत्तम थीं,"
\q2 क्योंकि केवल मूर्ख लोग ही हैं जो यह कहते हैं।
\q1
\s5
\v 11 बुद्धिमान होना मूल्यवान चीजों को विरासत में पाने के समान है।
\q2 जो बुद्धिमान है उसके लिए पृथ्वी पर बहुत से स्थायी लाभ हैं।
\q1
\v 12 हम कभी-कभी बुद्धिमान होने से सुरक्षित होते हैं,
\q2 जैसे कभी-कभी बहुत पैसा होने के कारण सुरक्षित होते हैं।
\q1 हालाँकि, बुद्धिमान होना बहुत पैसे होने से उत्तम है,
\q2 क्योंकि बुद्धिमान होना हमें ऐसी मूर्ख चीजें करने से रोकती है जो हमारे मरने का कारण बनती हैं।
\p
\s5
\v 13 सावधानी से सोचें कि परमेश्वर ने क्या किया है।
\q1 निश्चित रूप से कोई भी उन चींजों को सीधा नहीं कर सकता है
\q2 जिन्हें परमेश्वर ने टेढ़ा किया हो।
\q1
\s5
\v 14 जब चीजें आपके लिए अच्छी हो रही हैं, खुश रहो,
\q2 और जब चीजें आपके लिए अच्छी नहीं हो रही हैं,
\q1 तब याद रखें कि परमेश्वर ही है जो अच्छी चीजें होने देते हैं
\q2 और जो आपदाओं को भी लाते हैं।
\q1 तब भी परमेश्वर किसी पर यह प्रकट नहीं करते हैं कि उसके भविष्य में क्या आनेवाला है।
\p
\s5
\v 15 जितने दिन भी मैं जीवित रहा हूँ, मैंने कई चीजें देखी हैं जो मूर्खतापूर्ण लगती हैं।
\q1 मैंने धार्मिक लोगों को जवानी में ही मरते देखा है,
\q2 और मैंने देखा है कि दुष्ट लोग बहुत लंबे समय तक जीवित रहते हैं
\q2 जबकि वह दुष्टता में बने रहते हैं।
\q1
\v 16 इसलिए मत सोचो कि तुम बहुत धर्मी हो,
\q2 और ऐसा मत सोचो कि तुम बहुत बुद्धिमान हो,
\q2 क्योंकि यदि तुम ऐसा सोचते हो, तो तुम स्वयं को नष्ट कर दोगे।
\q1
\s5
\v 17 यदि तुम बुराई करते हो या मूर्खतापूर्ण कार्य करते हो,
\q2 तुम जवानी में भी मर सकते हो।
\q1
\v 18 बुद्धिमान बनने का प्रयास करते रहो और सही काम करो।
\q2 ये दोनों चीजें उस व्यक्ति में पाई जाती हैं जो हमेशा परमेश्वर का सम्मान करता है।
\q1
\s5
\v 19 यदि तुम बुद्धिमान हो, तो तुम अपने शहर के दस सबसे शक्तिशाली पुरुषों
\q2 से अधिक शक्तिशाली होंगे।
\q1
\v 20 इस संसार में कोई भी नहीं है जो हमेशा सही करता है,
\q2 और कभी पाप नहीं करता।
\q1
\s5
\v 21 उन सभी बातों पर ध्यान न दो, जो लोग कहते हैं,
\q2 क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो शायद तुम अपने सेवक को तुम्हें शाप देते हुए सुनों।
\q1
\v 22 अंततः, तुम स्वयं बहुत अच्छे से जानते हो कि तुमने अन्य लोगों को भी शाप दिया है।
\p
\s5
\v 23 मैंने स्वयं से कहा कि मैं अपने ज्ञान का उपयोग करके उन सभी चीजों का अध्ययन करूंगा जो मैंने लिखा है,
\q1 लेकिन मैं इसे करने में समर्थ नहीं था।
\q1
\v 24 ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्धि मुझ से दूर है।
\q2 कोई भी नहीं है जो वास्तव में सब कुछ समझ सकता है।
\q1
\v 25 लेकिन मैंने चीजों की जाँच करने का निर्णय लिया और
\q2 अपने ज्ञान से हर बात के कारण को समझने का प्रयास किया।
\q1 मैं यह भी समझना चाहता था कि लोग दुष्टता से काम क्यों करते हैं
\q2 और वे बहुत मूर्खतापूर्ण कार्य क्यों करते हैं।
\q1
\s5
\v 26 एक बात जो मैंने सीखी थी वह यह थी कि एक स्त्री को स्वयं को लुभाने की अनुमति देना मरने से भी बुरा है।
\q2 एक स्त्री जो पुरुषों को लुभाने का प्रयास करती है वह एक जाल के समान भयानक है।
\q1 यदि तुम उसे अपने चारों ओर उसकी बाँहें लपेटने की अनुमति देते हो, तो यह बन्धनों से बांधे जाने जैसा होगा।
\q1 इस प्रकार की स्त्रियाँ पापी पुरुषों को पकड़ लेंगी,
\q2 लेकिन जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं वे ऐसी स्त्रीयों से बच जाएंगे।
\p
\s5
\v 27 यही मैंने सीखा है। मैंने बातों के विषय में अधिक से अधिक जानने का प्रयास किया, कि सभी बातों का कारण जान सकूँ,
\v 28 और मैंने और जानने का प्रयास किया, लेकिन मुझे वह सब कुछ नहीं मिला जो मैं खोज रहा था। लेकिन एक बात जो मैंने पाई वह यह थी कि एक हजार लोगों में से मुझे एक धर्मी पुरुष मिला, लेकिन मुझे एक भी धर्मी स्त्री नहीं मिली।
\s5
\v 29 मैंने केवल यह सीखा है: जब परमेश्वर ने लोगों को बनाया, तो वे धर्मी थे, लेकिन उन्होंने अपने जीवन को उलझाने के कई मार्ग खोज लिए हैं।
\s5
\c 8
\q1
\v 1 मैं तुमको उन लोगों के विषय परिणाम के साथ बताऊँगा जो वास्तव में बुद्धिमान हैं,
\q2 और वे समझा सकते हैं कि यह सब कुछ क्यों होता है।
\q1 बुद्धिमान होना लोगों को आनन्दित होने में समर्थ बनाता है
\q2 और उन्हें मुस्कुराने में समर्थ बनाता है।
\p
\s5
\v 2 तुमने गंभीरता से परमेश्वर से प्रतिज्ञा की थी कि तुम राजा के आदेशों का पालन करोगे, इसलिए ऐसा ही करो।
\v 3 राजा से संबंधित बातों में उतावली से कुछ भी न करो। और उन लोगों के साथ न मिलो जो उसके विरूद्ध विद्रोह करना चाहते हैं, क्योंकि राजा वह करेगा जो वह करना चाहता है।
\v 4 हमें अन्य लोगों की बातों से अधिक राजा की आज्ञा मानने की आवश्यकता है, क्योंकि कोई भी राजा से नहीं कह सकता है, "तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?"
\q1
\s5
\v 5 यदि तुम राजा की आज्ञाओं का पालन करते हो,
\q2 तो वह तुमको हानि नहीं पहुंचाएगा।
\q1 इसलिए बुद्धिमान बनो, और किसी काम को करने के लिए सही समय और उन्हें करने का सही तरीका जानो।
\q1
\v 6 हालांकि लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है,
\q2 उन्हें करने का एक सही तरीका है और उन्हें करने का एक सही समय है।
\q1
\v 7 कोई नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा,
\q2 इसलिए ऐसा कोई भी नहीं है जो उसे बता सके कि क्या होने वाला है।
\q1
\s5
\v 8 हम अपनी साँसों को भी नियंत्रित नहीं कर सकते हैं,
\q2 और हम यह भी नियंत्रित नहीं कर सकते हैं कि कब हम साँस लेना बन्द करेंगे और मर जाएँगे।
\q1 सैनिकों को युद्ध के समय घर जाने की अनुमति नहीं है,
\q2 और बुराई करने वाले लोग बुराई करने के कारण बचाए नहीं जाएँगे ।
\p
\v 9 मैंने उन सभी चीजों के विषय में सोचा, और मैंने इस धरती पर होने वाली सभी अन्य चीजों के विषय में सोचा। मैंने देखा कि कभी-कभी लोग दूसरों को गंभीर हानि पहुँचाते हैं।
\s5
\v 10 मैंने यह भी देखा कि कभी-कभी बुरे लोगों के मरने के बाद, उन्हें उन शहरों के लोगों द्वारा जहाँ उन्होंने बुरे कर्म किए थे, उनके अंतिम संस्कार में सम्मानित किया जाता है। यह समझना कठिन है कि ऐसा क्यों होता है।
\p
\v 11 यदि बुरे लोगों को तुरंत दंडित नहीं किया जाता है, तो उससे अन्य लोगों में भी बुराई करने की इच्छा उत्पन्न होती है।
\s5
\v 12 परन्तु यदि पापी लोग सौ अपराध करते हैं, और यदि वे लंबे समय तक जीवित रहते हैं, तब भी मुझे पता है कि उन लोगों के लिए चीजें उत्तम होंगी जो परमेश्वर का सम्मान करते और उनका भय मानते हैं ।
\v 13 मैं यह भी जानता हूँ कि बुरे लोगों के लिए सब चीजें अच्छी नहीं होंगीं, क्योंकि वे परमेश्वर का सम्मान नहीं करते हैं। छाया लंबे समय तक नहीं रहती है। इसी प्रकार, बुरे लोग लंबे समय तक नहीं जीएंगे।
\p
\s5
\v 14 एक और बात जो कभी-कभी इस धरती पर होती है वह यह है कि धर्मी लोगों के साथ बुरा होता है, और बुरे लोगों के साथ अच्छा होता है। यह समझना कठिन है कि ऐसा क्यों होता है।
\v 15 इसलिए मैंने निर्णय किया कि मैं यह सलाह दूँगा कि लोग जीवित रहते हुए आनन्दित रहें, क्योंकि इस धरती पर जो सबसे अच्छा काम लोग कर सकते हैं वह खाना और पीना और खुश रहना है। इन चीजों का आनंद लेना लोगों को उनके काम करने में सहायता करेगा, जितने दिन परमेश्वर ने उन्हें पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए दिए हैं।
\p
\s5
\v 16 मैंने बुद्धिमान होने और उन लोगों के विषय में सोचा जो इस धरती पर बहुत परिश्रम करते हैं, वे दिन-रात काम करते हैं और उन्हें सोने का समय नहीं मिलता।
\v 17 तब मैंने उन सभी बातों के विषय में सोचा जो परमेश्वर ने किया है और मुझे मालूम हुआ कि कोई भी इस धरती पर होने वाली हर चीज़ को समझ नहीं सकता है। वास्तव में, परमेश्वर जो कुछ भी करते हैं, लोग उसे पूरी तरह से समझने में समर्थ नहीं हैं, भले ही वे ऐसा करने के लिए बहुत प्रयास करते हैं। भले ही बुद्धिमान लोग दावा करते हैं कि वे उन सभी चीजों को समझते हैं, लेकिन वे नहीं समझते हैं।
\s5
\c 9
\p
\v 1 मैंने उन सभी चीजों के विषय में सोचा, और मैंने निर्णय किया कि उसे परमेश्वर नियंत्रित करते हैं जो हर किसी के साथ होता है, उनके साथ भी जो बुद्धिमान हैं और धर्मी हैं। कोई भी नहीं जानता कि अन्य लोग उन्हें प्रेम करेंगे या वे उनसे घृणा करेंगे।
\p
\s5
\v 2 लेकिन हम जानते हैं कि भविष्य में किसी समय हम सभी मर जाएंगे।
\q1 इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम धार्मिक या दुष्टता के काम करते हैं,
\q2 चाहे हम अच्छे हो या हम बुरे हो,
\q1 चाहे हम परमेश्वर की आराधना करने के लिए स्वीकार्य हो
\q2 या हमने ऐसे काम किए हैं जिसके कारण हम अस्वीकार्य बन गए है।
\q1 इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम परमेश्वर के लिए बलिदान अर्पण करते हैं या नहीं।
\q1 इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो हमने परमेश्वर से प्रतिज्ञा की है कि हम करेंगे उसे हम करते हैं या नहीं।
\q2 हम सभी मर जाते हैं।
\q1 एक जैसी बात अच्छे लोगों और पापी लोगों के साथ होगी,
\q2 उन लोगों के लिए जो परमेश्वर के लिए गंभीरता से काम करने की प्रतिज्ञा करते हैं और जो ऐसे वादे करने से डरते हैं।
\p
\s5
\v 3 यह गलत लगता है कि एक जैसी बात इस धरती पर हर किसी के साथ होती है। हर कोई मरता है। इसके अतिरिक्त, लोगों के भीतरी मन बुराई से भरे हुए हैं। लोग जीवित रहते समय मूर्ख बातें करते हैं, और फिर वे मरे हुए लोगों में मिल जाते हैं।
\s5
\v 4 जब हम जीवित हैं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि अच्छी बातें हमारे साथ होंगी। हम कुत्तों को तुच्छ मानते हैं, लेकिन एक जीवित कुत्ता होना एक मरे हुए राजसी शेर होने से उत्तम है।
\q1
\v 5 हम जो जीवित हैं, जानते हैं कि एक दिन हम मर जाएंगे,
\q2 लेकिन मृत लोग कुछ भी नहीं जानते।
\q1 मृत लोगों को कोई और प्रतिफल नहीं मिलता,
\q2 और लोग शीघ्र ही उन्हें भूल जाते हैं।
\q1
\s5
\v 6 जब वे जीवित थे, वे लोगों से प्रेम करते थे, वे लोगों से घृणा करते थे, वे लोगों से ईर्ष्या करते थे,
\q2 लेकिन जब वे मर जाते हैं तो वे यह सब करना बंद कर देते हैं।
\q1 वे फिर कभी भी पृथ्वी पर होने वाली किसी भी चीज का भाग नहीं बनेंगे।
\p
\v 7 इसलिए मैं कहता हूँ, जब तुम अपना भोजन करते हो और दाखमधु पीते हो, तो आनन्दित रहो, क्योंकि यही है जो परमेश्वर चाहते हैं कि तुम करो।
\v 8 अच्छे कपड़े पहनो और तुम्हारे चेहरे की दिखावट अच्छी हो।
\s5
\v 9 उस समय जब परमेश्वर ने तुम्हें इस धरती पर जीवित रहने को दिया है, अपनी पत्नी के साथ रहने का आनंद लो जिसे तुम प्रेम करते हो। भले ही यह समझना कठिन हो कि कई चीजें क्यों होती हैं, तुम्हारी पत्नी के साथ तुम्हारा यह जीवन तुम्हारे द्वारा इस धरती पर किए जाने वाले कामों का प्रतिफल है।
\v 10 जो कुछ भी तुम करने में समर्थ हो, इसे अपनी सारी शक्ति से करो, क्योंकि किसी भी क्षण तुम मर जाओगे, और मृतकों की उस जगह पर जहाँ तुम जा रहे हो, वहाँ कोई भी काम नहीं करता या कुछ भी करने की योजना नहीं बनाता या कुछ भी नहीं जानता या वहाँ कोई ज्ञान भी नहीं है।
\p
\s5
\v 11 मैंने पृथ्वी पर कुछ और भी देखा है:
\q1 जो व्यक्ति सबसे तेज़ दौड़ता है वह हमेशा दौड़ जीत नहीं पाता,
\q1 सबसे ताकतवर सैनिक हमेशा लड़ाई नहीं जीतते हैं,
\q1 सबसे बुद्धिमान लोगों के पास हमेशा भोजन नहीं होता है,
\q1 सबसे चतुर लोग हमेशा धनवान नहीं होते हैं,
\q1 और जिन लोगों ने बहुत अध्ययन किया है उन्हें हमेशा दूसरों के द्वारा सम्मान नहीं मिलता।
\q1 हम हमेशा यह नियंत्रित नहीं कर सकते कि हमारे साथ क्या होगा और कहां होगा।
\p
\v 12 कोई नहीं जानता कि वह कब मर जाएगा।
\q1 मछली क्रूरता से जाल में पकड़ी जाती है,
\q2 और पक्षियों को फंदे में पकड़ा जाता है।
\q1 इसी प्रकार, लोग आपदाओं का अनुभव ऐसे समय में करते हैं
\q2 जब उन्हें उनके होने की आशा नहीं होती।
\p
\s5
\v 13 एक बार मैंने इस धरती पर कुछ ऐसा देखा जो एक बुद्धिमान व्यक्ति ने किया जिसने मुझे प्रभावित किया।
\v 14 एक छोटा सा नगर था, जहाँ केवल कुछ लोग रहते थे। एक महान राजा की सेना उस नगर में आई और उसे घेर लिया। उन्होंने चढ़ाई करने और शहर पर हमला करने के लिए दीवारों के सामने मिट्टी के ढलान बनाए।
\v 15 उस नगर में एक ऐसा व्यक्ति था जो गरीब था लेकिन बहुत बुद्धिमान था। उस व्यक्ति के सुझाव के कारण, नगर बचाया गया, लेकिन लोग शीघ्र ही उसको भूल गए।
\s5
\v 16 इसलिए मुझे ज्ञात हुआ कि हालाँकि बुद्धिमान होना ताकतवर होने से उत्तम है, लेकिन यदि तुम गरीब हो, तो तुम जो भी करते हो उसकी कोई सराहना नहीं करेगा, और जो तुमने कहा था लोग शीघ्र ही उसे भूल जाएंगे।
\q1
\s5
\v 17 एक बुद्धिमान व्यक्ति जो धीमे बोलता है- लोग उसे एक ऐसे राजा से उत्तम सुनते हैं
\q2 जो मूर्खों की भीड़ पर चिल्ला रहा है।
\q1
\v 18 बुद्धिमान होना बहुत सारे हथियारों की तुलना में अधिक उपयोगी है;
\q1 हालाँकि, अगर कोई व्यक्ति केवल एक ही मूर्खतापूर्ण काम करता है,
\q2 तब भी वह कई अच्छे कामों को नाश कर सकता है जो दूसरों ने किए हैं।
\s5
\c 10
\q1
\v 1 इत्र की एक बोतल में कुछ मृत मक्खियों के कारण सारा इत्र खराब हो जाता है।
\q2 इसी प्रकार, मूर्खतापूर्ण कार्य की एक छोटी सी मात्रा बुद्धिमानी के कार्य करने पर अधिक प्रभाव डाल सकती है।
\q1
\v 2 यदि लोग समझदारी से सोचते हैं, तो यह सही काम करने में उनकी अगुवाई करेगा;
\q2 यदि वे मूर्खता से सोचते हैं, तो यह उन्हें गलत काम करने को प्रेरित करेगा।
\q1
\v 3 जब मूर्ख लोग सड़क पर चलते हैं,
\q2 वे दिखाते हैं कि उनके पास अच्छी समझ नहीं है।
\q2 उस समय भी वे सभी को दिखाते हैं कि वे बुद्धिमान नहीं हैं।
\q1
\s5
\v 4 जब शासक तुमसे अप्रसन्न होता है तो अपना काम मत छोड़ो।
\q2 यदि तुम शांत रहते हो, तो हो सकता है वह क्रोधित होना बंद कर देगा।
\q1
\s5
\v 5 कुछ और भी है जो मैंने इस धरती पर देखा है,
\q2 कि एक शासक कभी-कभी करता है और वह गलत है:
\q1
\v 6 वे मूर्ख लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करते हैं,
\q2 जबकि वे धनवान लोगों को महत्वहीन पदों पर नियुक्त करते हैं।
\q1
\v 7 वे दासों को धनवान लोगों के समान घोड़ों पर सवारी करने की अनुमति देते हैं,
\q2 लेकिन वे अधिकारियों को दासों के समान चलने के लिए विवश करते हैं।
\q1
\s5
\v 8 यह संभव है कि जो लोग गड्ढे खोदते हैं
\q2 उन गड्ढों में से एक में स्वयं गिर जाएँ ।
\q1 यह संभव है कि कोई व्यक्ति जो दीवार को तोड़ देता है
\q2 उस दीवार में उपस्थित सांप द्वारा काटा जाएगा।
\q1
\v 9 यदि तुम एक खदान में काम करते हो,
\q2 यह संभव है कि एक पत्थर तुम पर गिर जाए और तुम को चोट पहुँचाए।
\q1 यह संभव है कि जो लोग लकड़ी काटते हैं
\q2 उस लकड़ी में से एक के द्वारा घायल हो जाएँगा।
\q1
\s5
\v 10 यदि तुम्हारी कुल्हाड़ी धारदार नहीं है,
\q2 तुम्हें पेड़ को काटने के लिए अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता होगी,
\q1 लेकिन ज्ञान का उपयोग करके, तुम सफल होगे।
\q1
\v 11 यदि सांप बीन बजाने से पहले किसी को काटता है,
\q2 तो बीन बजाने वाले व्यक्ति की उस क्षमता से जो सांपों को आकर्षित करती है उसे लाभ नहीं होगा।
\q1
\s5
\v 12 बुद्धिमान लोग समझदारी की बातें करते हैं, और इसके कारण, लोग उनका सम्मान करते हैं,
\q2 लेकिन मूर्ख लोग अपनी ही बातों के कारण नष्ट होते हैं।
\q1
\s5
\v 13 जब मूर्ख लोग बात करना आरंभ करते हैं, तो वे मूर्खता की बातें कहते हैं,
\q2 और वे ऐसी बातें कहकर समाप्त करते हैं जो दुष्टता भरी और मूर्खतापूर्ण दोनों हैं।
\q2
\v 14 वे बहुत अधिक बातें करते हैं।
\q1 हम में से कोई भी नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा,
\q2 या हमारे मरने के बाद क्या होगा।
\q1
\s5
\v 15 मूर्ख लोग जो काम करते हैं उससे बहुत थक जाते हैं,
\q2 जिसका परिणाम यह है कि वे अपने नगर का रास्ता खोजने में भी असमर्थ होते हैं।
\q1
\s5
\v 16 ऐसे देश के लोगों के साथ भयानक बातें होती हैं जिनके शासक जवान मूर्ख व्यक्ति हैं,
\q2 जिनके अगुवे निरन्तर, दिन भर, हर दिन खाते रहते हैं।
\q1
\v 17 परन्तु यदि कोई शासक कुलीन परिवार से आता है तो वह देश कितना भाग्यशाली है,
\q2 यदि उसके अगुवे केवल उचित समय पर भोज करते हैं,
\q2 और यदि वे केवल शक्तिशाली होने के लिए खाते हैं और पीते हैं, न कि मतवाले होने के लिए।
\q1
\s5
\v 18 कुछ पुरुष बहुत आलसी हैं और अपनी छत की कड़ियों को नहीं सुधारते हैं,
\q2 जिसका परिणाम यह होता है कि छत दब जाती है और ढह जाती है।
\q1 अगर वे छत नहीं सुधारते हैं, तो वर्षा होने पर
\q2 घर में पानी का रिसाव हो जाएगा।
\q1
\v 19 भोजन खाने और दाखरस पीने से हम हंसते और प्रसन्न रहते हैं ।
\q2 यदि तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे हैं तो तुम जो कुछ भी चाहते हो उसे खरीद सकते हो।
\q1
\s5
\v 20 राजा को या धनवान लोगों को शाप देने के विषय में,
\q2 बिलकुल मत सोचो, भले ही तुम अपने शयनकक्ष में अकेले हो।
\q1 ऐसा संभव है कि जो तुम कह रहे हो, वह एक छोटी सी चिड़िया सुन ले
\q2 और जो तुमने उनके विषय में कहा था, वह उन लोगों को बताए।
\s5
\c 11
\q1
\v 1 तुम्हारे पास जो पैसे हैं, उसमें से कुछ दूसरों को उदारता से दो;
\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो बाद में तुम्हें बराबर राशि मिल जाएगी।
\q1
\v 2 तुम्हारे पास जो कुछ है उसे सात या आठ अन्य लोगों के साथ साझा करो,
\q2 क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम कब किसी आपदा का सामना करोगे और तब तुम्हें उनकी सहायता की आवश्यकता होगी।
\q1
\v 3 यह सच है कि जब बादल पानी से भरे होते हैं,
\q2 वे पृथ्वी पर वर्षा करते हैं।
\q1 इसी प्रकार, जहाँ भी पेड़ भूमि पर गिरता है,
\q2 उसी जगह वह रहेगा।
\q1
\s5
\v 4 यदि किसान देखते हैं कि हवा किस दिशा में बह रही है,
\q2 वे जान लेते हैं कि उस समय बीजों का बोना बुद्धिमानी है या नहीं।
\q1 यह भी सच है कि यदि किसान बादलों की ओर दृष्टि करें और देखें कि वे पश्चिम से उड़ रहे हैं और वर्षा लाएंगे,
\q2 वे उस दिन अपनी फसलों को काटने का प्रयास नहीं करेंगे।
\q1
\v 5 हम नहीं जानते कि हवा कहां से आती है या कहां जाती है,
\q2 और हम नहीं जानते कि किसी स्त्री के गर्भ में शरीर कैसे बनता है।
\q1 इसी प्रकार, परमेश्वर ही वे है जो सबकुछ बनाते हैं,
\q2 और हम पूरी तरह से समझ नहीं सकते कि वे क्या करते हैं।
\q1
\s5
\v 6 सुबह अपने बीज बोना आरम्भ करो,
\q2 और शाम तक उन्हें बोना बंद न करो,
\q1 क्योंकि तुम नहीं जानते कि कौन से बीज उत्तम रूप से बढ़ेंगे,
\q2 जिन्हें तुम सुबह लगाते हो या जिन्हें तुम शाम में लगाते हो,
\q2 या फिर दोनों अच्छे से बढ़ेंगे।
\q1
\v 7 जीवित रहना और हर सुबह सूरज उगते देखना
\q2 बहुत ही सुखद है।
\q1
\v 8 भले ही लोग कई वर्षों तक जीवित रहें,
\q2 उन्हें उन सभी का आनंद लेना चाहिए।
\q1 लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन वे मर जाएंगे
\q2 और फिर वे कभी भी कोई प्रकाश नहीं देख पाएंगे,
\q2 और वे नहीं जानते कि मरने के बाद उनके साथ क्या होगा।
\q1
\s5
\v 9 हे जवान लोगों, प्रसन्न रहो, अभी, जब तुम जवान हो।
\q2 उन कामों को करने का आनंद लो जिन्हें तुम करना चाहते हो।
\q1 लेकिन यह मत भूलना कि परमेश्वर एक दिन उन कामों के विषय में जो तुम करते हो;
\q2 तुम्हारा न्याय करेंगे।
\q1
\v 10 इसलिए जब तुम जवान हो, तो किसी चीज़ के विषय में चिंता न करो,
\q2 और अपने शरीर में होने वाली पीड़ाओं पर ध्यान न दो,
\q1 क्योंकि हम हमेशा के लिए जवान और ताकतवर नहीं रहेंगे।
\s5
\c 12
\q1
\v 1 अभी जब तुम जवान हो, परमेश्वर के विषय में सोचते रहो, जिन्होंने तुम्हें बनाया है।
\q2 ऐसा करो, इससे पहले कि तुम बूढ़े हो जाओ और तुम कई परेशानियों का सामना करो,
\q1 उन वर्षों में जब तुम कहते हो,
\q2 "अब मैं जीवित होने का आनंद नहीं लेता हूँ।"
\q1
\v 2 जब तुम बूढ़े हो जाओगे, तो सूर्य और चंद्रमा और तारों का प्रकाश आपको मंद दिखाई देगा,
\q2 और ऐसा लगेगा कि वर्षा के बादल वर्षा के तुरंत बाद वापस आ जाते हैं।
\q1
\s5
\v 3 तब तुम्हारी बाँहें जिनका उपयोग तुम स्वयं को बचाने के लिए करते हो,
\q2 और तुम्हारे पैर जो तुम्हारे शरीर को संभालते हैं बलहीन हो जाएंगे।
\q1 तुम्हारे दांत जिनका उपयोग तुम भोजन चबाने के लिए करते हो टूट जाएंगे,
\q2 और तुम्हारी आंखें जिनका उपयोग तुम खिडकियों से बाहर देखने के लिए करते हो, वे स्पष्ट रूप से नहीं देखेंगी।
\q1
\s5
\v 4 तुम्हारे कान अब सड़कों का शोर नहीं सुनेंगे,
\q2 और अब तुम चक्की में अनाज पीसने वाले लोगों की आवाज स्पष्ट रूप से सुनने में समर्थ नहीं रहोगे।
\q1 तुम सुबह गाते हुए पक्षियों को सुनकर जाग उठोगे,
\q2 लेकिन तुम पक्षियों को गाते हुए सही से सुनने में समर्थ नहीं होगे।
\q1
\s5
\v 5 तुम ऊँचे स्थानों में रहने से डरोगे
\q2 और उन सड़कों के खतरों से डरोगे जिन पर तुम चलते हो।
\q1 तुम्हारे बाल बादाम के पेड़ों के फूलों के समान सफेद हो जाएंगे।
\q2 जब तुम चलने का प्रयास करते हो, तो तुम स्वयं को टिड्डी के समान खींचोगे,
\q2 और तब तुम स्त्री की इच्छा नहीं करोगे।
\q1 तब तुम मर जाओगे और अपने अनंत घर जाओगे,
\q2 और जो लोग तुम्हारे लिए शोक करेंगे वे सड़कों पर होंगे।
\q1
\s5
\v 6 अब परमेश्वर के विषय में बहुत सोचो, क्योंकि शीघ्र ही हमारे जीवन समाप्त हो जाएंगे,
\q2 चाँदी की जंजीर या सोने के कटोरे के समान जो सरलता से टूट जाते हैं,
\q1 या घड़े के समान जो पानी के झरने पर टूट जाते हैं,
\q2 या कुएं में टूटी हुई रस्सी के समान।
\q1
\v 7 तब हमारी लाशें सड़ जाएंगी और फिर मिट्टी बन जाएंगी,
\q2 और हमारी आत्माएं परमेश्वर के पास वापस जाएंगी, जिन्होंने हमें अपनी आत्मा दी हैं।
\q1
\s5
\v 8 इसलिए मैं, शिक्षक, फिर से कहता हूँ कि सबकुछ अस्थायी और व्यर्थ है।
\p
\v 9 मैं, शिक्षक, एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था, और मैंने लोगों को कई बातें सिखाईं। मैंने कई कथनों को संकलित किया और लिखा, और मैंने सावधानीपूर्वक उनके विषय में सोचा और उन्हें क्रमबद्ध किया।
\s5
\v 10 मैंने उन शब्दों की खोज की जो सुनने में मन भावन होंगे, और जो मैंने लिखा है वे विश्वसनीय और सत्य हैं।
\p
\v 11 मैं और अन्य बुद्धिमान लोग जो बातें कहते हैं, वे बातें निर्देश देती हैं, और वे कीलों के समान हैं जो चीजों को एक साथ रखती हैं और लंबे समय तक चलती हैं। जब लोग स्पष्ट और समझने योग्य निर्देशों का पालन करते हैं, तो वे जानते हैं कि क्या सही है, और इसलिए, वे इसे कर सकते हैं। बुद्धिमानों की बातें चरवाहे के समान हैं जो जहाँ हमें जाना है, उस ओर हमारा मार्गदर्शन करती हैं ।
\s5
\v 12 इसलिए, हे मेरे बेटे, मैंने जो लिखा है उस पर सावधानीपूर्वक ध्यान दे, और दूसरों ने जो लिखा है उसे भी पढ़ने के लिए ध्यानपूर्वक चुनाव करो। कई पुस्तक लिखने का यह काम अंतहीन है। उन सभी का अध्ययन करने का प्रयास करना भी अंतहीन कार्य होगा।
\q1
\s5
\v 13 अब जो कुछ मैंने तुमसे कहा तुमने उसे सुना है,
\q2 और उनका यही निष्कर्ष है:
\q1 परमेश्वर का भय मानो, और उनके आदेशों का पालन करो,
\q2 क्योंकि उन आदेशों में लोगों को जो करना चाहिए उन सब बातों को संक्षेप में बताया गया है।
\q1
\v 14 और यह न भूलो कि परमेश्वर, जो कुछ भी हम करते हैं उसका न्याय करेंगे,
\q2 अच्छी बातें और बुरी बातें,
\q2 यहाँ तक कि वे काम भी जो हम गुप्त रूप से करते हैं।

679
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\id SNG Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h श्रेष्ठगीत
\toc1 श्रेष्ठगीत
\toc2 श्रेष्ठगीत
\toc3 sng
\mt1 श्रेष्ठगीत
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह राजा सुलैमान का सर्वाधिक सुन्दर गीत है।
\sp स्त्री स्वयं से बातें कह रही है
\q1
\v 2 मेरी आकांक्षा है कि वह मेरे होंठों को चूमे,
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें करती है
\q2 क्योंकि मेरे लिए तेरा प्रेम दाखमधु से अधिक आनंददायक है।
\q1
\v 3 तेरी त्वचा पर इत्र की सुगन्ध अत्यधिक मनभावन है।
\q2 और तेरा सम्मान बहुत महान है और वह फैल रहा है,
\q2 जैसे तेरी त्वचा पर उण्डेले गए विशेष तेल की सुगन्ध के समान।
\q1 इसी कारण अन्य युवतियाँ तेरी ओर आकर्षित होती हैं।
\q1
\v 4 मुझे जल्दी ले जा;
\q2 मुझे अपने घर ले जा।
\sp स्त्री स्वयं से बातें कह रही है
\q1 वह मेरे लिए राजा के समान है;
\q2 वह मुझे अपने शयनकक्ष में ले आया है।
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1 मैं तेरे लिए बहुत आनन्दित हूँ;
\q2 तेरे लिए मेरा प्रेम दाखमधु से भी उत्तम है।
\q2 यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अन्य युवतियाँ तुझे चाहती हैं।
\sp स्त्री अन्य स्त्रियों से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 5 हे यरूशलेम की स्त्रियों,
\q2 मैं काली तो हूँ परन्तु सुन्दर हूँ;
\q1 मेरी काली त्वचा केदार के तम्बू के समान है,
\q2 या सुलैमान के महल के सुन्दर पर्दों के समान है।
\q1
\v 6 मुझे मत घूरो क्योंकि सूर्य ने मेरी त्वचा को काला कर दिया है।
\q1 मेरे भाई मुझसे नाराज थे,
\q1 इसलिए उन्होंने मुझे दाख के बाग में धूप में काम करने के लिए विवश किया,
\q2 इसलिए मैं अपने शरीर की अच्छी देखभाल करने में समर्थ नहीं थी।
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 7 तू, जिससे मैं प्रेम करती हूँ, आज भेड़ों के झुण्ड को कहाँ ले जाएगा?
\q2 तू उन्हें दोपहर में कहाँ विश्राम करने की अनुमति देगा?
\q1 मैं जानना चाहती हूँ क्योंकि मेरे लिए एक वेश्या के समान,
\q2 तेरे मित्रों की भेड़-बकरियों के बीच में तेरी खोज में घूमना उचित नहीं है।
\sp उसका प्रेमी उसे उत्तर दे रहा है
\q1
\s5
\v 8 तू जो सभी स्त्रियों में सबसे अधिक सुन्दर है,
\q2 यदि तू मेरी खोज करती है और नहीं जानती कि मैं अपनी भेड़ें कहाँ ले जाऊँगा,
\q1 तो भेड़ों के खुरों के चिन्हों का पीछा कर।
\q2 फिर अपनी जवान बकरियों को चरवाहों के तम्बू के पास चरने दे।
\q1
\s5
\v 9 मेरी प्रिये, तू युवा मादा घोड़ों में से एक के समान सुन्दर है,
\q2 जो मिस्र के राजा के रथों को खींचती हैं।
\q1
\v 10 तेरी बालियाँ तेरे गालों के लिए सजावट हैं,
\q2 और तेरी गर्दन से लिपटे हुए मोतियों की माला है।
\q1
\v 11 मैं तेरे लिए सोने की कुछ बालियाँ बनाऊँगा
\q2 जो चाँदी से सजाए जाएंगे।
\sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 12 जब राजा अपनी शय्या पर था,
\q2 मेरे इत्र की सुगन्ध कमरे के चारों ओर फैल गई।
\q1
\v 13 जो पुरुष मुझ से प्रेम करता है वह रात के समय मेरे स्तनों के बीच वैसे ही रहता है जैसे मेरी गर्दन से इत्र की थैली लिपटी रहती है।
\q2
\v 14 वह एनगदी में दाख के बाग के फूलों के गुच्छे के समान है।
\sp उसका प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\s5
\v 15 तू, जिससे मैं प्रेम करता हूँ, सुन्दर है;
\q2 तू बहुत सुन्दर है!
\q1 तेरी आँखें कबूतरी के समान मनोहर हैं।
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 16 तू जो मुझसे प्रेम करता है, तू बहुत मनोहर है,
\q2 तू अद्भुत है!
\q2 ग्रामीण इलाकों की यह हरी घास एक शय्या के समान होगी जहाँ हम लेट सकते हैं।
\q1
\v 17 देवदार के पेड़ों की शाखाएँ हमें छाया देंगी;
\q2 सनोवर की शाखाएँ हमारे लिए छत के समान होंगी।
\s5
\c 2
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\v 1 मैं मैदानों के महत्वहीन फूल के समान हूँ,
\q2 घाटी में बढ़ते महत्वहीन सोसन फूल के समान।
\sp वह पुरुष उससे बातें कर रहा है
\q1
\v 2 अन्य सभी युवतियों में से,
\q2 तू, जिससे मैं प्रेम करता हूँ, कांटों के बीच उगने वाले सोसन फूल के समान है!
\sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 3 अन्य सभी पुरुषों में, यही युवक है जो मुझ से प्रेम करता है; वह एक पेड़ के समान है जो जंगल में उगता है।
\q2 उसकी छाया के नीचे मैं सूर्य से सुरक्षित हूँ।
\q1 जब वह मेरे निकट है, तो यह मीठा फल खाने जैसा है।
\q1
\v 4 वह मुझे उस कमरे में ले गया जहाँ मैंने उसके प्रेम का आनंद लिया,
\q2 जहाँ उसने मुझसे प्रेम किया वैसे ही जैसे वह मुझे अपने प्रेम से ढक रहा था।
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 5 मुझे ताज़ा कर दे और मुझे अपने प्रेम से दृढ कर।
\q2 यह किशमिश और अन्य फल खाने के समान है,
\q2 क्योंकि मैं चाहती हूँ कि तू मुझसे और भी प्रेम करे।
\sp स्त्री स्वयं से बात कर रही है
\q1
\v 6 ऐसा हो कि वह अपना बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे रखे
\q2 और अपने दाहिने हाथ से मुझे अपने निकट रखे।
\sp स्त्री अन्य स्त्रियों से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 7 हे यरूशलेम की जवान स्त्रियों,
\q2 मैं चाहती हूँ कि, जब चिकारे और हिरन सुन रहे हों, तुम शपथ लो
\q1 हमें सही समय आने तक
\q2 प्रेम करने के लिए न उकसाओ न जगाओ।
\sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 8 मुझे उस पुरुष की आवाज़ सुनाई दे रही है जो मुझसे प्रेम करता है।
\q2 ऐसा लगता है कि वह पहाड़ों पर कूद रहा है
\q1 और पहाड़ियों को फान्द रहा है
\q1
\v 9 एक हिरण या एक चिकारे के समान।
\q2 अब वह हमारे घर की दीवार के बाहर खड़ा है,
\q1 खिड़की से देख रहा है,
\q2 और जाली में से ताक रहा है।
\q1
\s5
\v 10 उसने मुझसे बातें की और कहा,
\q2 "तू, जिससे मैं प्रेम करता हूँ, उठ;
\q2 मेरी सुन्दरी, मेरे साथ आ!
\q1
\v 11 देख, सर्दी समाप्त हो गई है;
\q2 वर्षा बंद हो गई है।
\q1
\s5
\v 12 पूरे देश में फूल खिल रहे हैं।
\q2 अब गाने का समय है;
\q1 हम कबूतर की आवाज़ सुनते हैं।
\q1
\v 13 अंजीर के पेड़ों पर अंजीर हैं,
\q2 और अंगूर पर फूल लगे हैं
\q1 और उनकी सुगन्ध हवा में मिलती है।
\q2 तू, जिससे मैं प्रेम करता हूँ, उठ;
\q2 मेरी सुन्दरी, मेरे साथ आ!
\q1
\s5
\v 14 तू पथरीली चट्टान में छिपने वाली कबूतरी के समान है।
\q1 मुझे अपना चेहरा दिखा,
\q2 और मुझे अपनी आवाज़ सुनने दे,
\q2 क्योंकि तेरी आवाज़ मीठी लगती है,
\q1 और तेरा चेहरा सुन्दर है। "
\sp स्त्री पुरुष से बात कर रही है
\q1
\s5
\v 15 ऐसे कई अन्य पुरुष हैं जो स्त्रियों को भ्रष्ट करते हैं, जैसे जंगली कुत्ते दाख के बाग को नष्ट करते हैं;
\q2 उन पुरुषों को मुझ पर हमला करने न दे।
\q1
\s5
\v 16 यह है वह पुरुष जिससे मैं प्रेम करती हूँ मैं उसकी हूँ, और वह मेरा है।
\q2 वह मेरे होंठों को चूम कर बहुत आनंद लेता है,
\q2 जैसे भेंडे चरागाह में चरना पसन्द करती हैं।
\sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\v 17 तू, जिससे मैं प्रेम करती हूँ, तुझे भोर से पहले ही चला जाना चाहिए, जब अंधकार समाप्त हो जाता है।
\q2 शीघ्र चला जा, एक चिकारे के समान या ऊँचे पहाड़ियों पर दौड़ते युवा हिरन के समान।
\s5
\c 3
\sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\v 1 पूरी रात जब मैं अपने बिस्तर पर लेटी थी,
\q2 मैं उस व्यक्ति को देखना चाहती थी जिससे मैं अपने पूरे मन से प्रेम करती हूँ।
\q1 मैं चाहती थी कि वह आए,
\q2 परन्तु वह नहीं आया।
\q1
\v 2 इसलिए मैंने स्वयं से कहा,
\q1 "मैं अब उठ जाऊँगी और सड़कों और चौकों से होकर शहर के चारों ओर घूमूँगी,
\q2 ,
\q2 उसे खोजने के लिए, जिससे मैं अपने पूरे मन से प्रेम करती हूँ। "
\q1 तब मैं उठ गई और उसे देखने के लिए बाहर गई,
\q2 परन्तु मैं उसे ढूंढ न सकी।
\q1
\s5
\v 3 शहर के पहरेदारों ने मुझे देखा
\q2 जब वे शहर में गश्त कर रहे थे।
\q1 मैंने उनसे पूछा,
\q2 "क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा है जिससे मैं अपने पूरे मन से प्रेम करती हूँ?"
\q1
\v 4 जैसे ही मैं उनके पास से आगे बढ़ गई,
\q2 मुझे वह मिल गया जिससे मैं अपने पूरे मन से प्रेम करती हूँ।
\q1 मैं उससे लिपट गई और उसे जाने नहीं दिया
\q2 जब तक मैं उसे अपनी माँ के घर में न ले आई,
\q2 उस कमरे में जहाँ मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया था।
\sp स्त्री अन्य स्त्रियों से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 5 हे यरूशलेम की स्त्रियों,
\q2 गंभीरता से मुझसे प्रतिज्ञा करो, जब तक चिकारे और हिरन सुन रहे हैं, कि तुम
\q1 प्रेम करते समय हमें परेशान नहीं करोगी
\q2 जब तक हम रुकने के लिए तैयार नहीं होते।
\sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 6 मैं जंगल से आते हुए क्या देख रही हूँ,
\q2 ऐसा कुछ जो धूएँ के स्तंभ के समान धूल को उठा रहा है
\q1 गन्धरस और लोबान के व्यापारियों द्वारा बाहर ले आए मसालों से बने धूएँ के समान
\q2 ?
\q1
\v 7 क्या यह सुलैमान की पालकी है जो सेवक बाहर ले जा रहे हैं और
\q2 साठ अंगरक्षकों से घिरा हुआ है
\q2 जो इस्राएल के सबसे बलवन्त सैनिकों में से चुने गए है।
\q1
\s5
\v 8 उन सब के पास तलवारें हैं
\q2 और वे सब उनका उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित है।
\q1 प्रत्येक व्यक्ति की तलवार उसकी जाँघ पर लटकी है
\q2 और उन खतरों के लिए तैयार है जो रात या दिन के समय आ सकते हैं।
\q1
\v 9 राजा सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को उसके लिए पालकी बनाने का आदेश दिया;
\q2 इसे लबानोन की लकड़ी से बनाया गया।
\q1
\s5
\v 10 उसकी छत चाँदी के खम्भों पर स्थिर है,
\q2 और पालकी के पीछे के हिस्से में सोने की कढ़ाई की गई थी।
\q1 गद्दी बैंगनी कपड़े से ढँकी हुई है
\q2 जिसे यरूशलेम की स्त्रियों ने प्रेम से बनाया था।
\q1
\v 11 हे यरूशलेम की स्त्रियों,
\q2 आओ और राजा सुलैमान को देखो
\q1 वह मुकुट पहने हुए है, जो उसकी माँ ने उसके सिर पर रखा था
\q2 जिस दिन उसका विवाह हुआ था,
\q1 उसके जीवन में वह बड़े आनन्द का दिन था।
\s5
\c 4
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\v 1 मेरी प्रिय, तू सुन्दर है,
\q2 तू बहुत सुन्दर है!
\q2 तेरे घूंघट के नीचे, तेरी आँखें कबूतरी के समान सुशील हैं।
\q1 तेरे लम्बे काले बाल इधर-उधर हिलतें हैं जैसे काली बकरियों के झुण्ड
\q2 जिन्हें गिलाद पहाड़ की ढलानों से नीचे ले जा रहा है।
\q1
\s5
\v 2 तेरे दाँत बहुत सफेद हैं,
\q2 भेड़ के समान सफेद है जिनके ऊन लोगों ने अभी काटे हैं,
\q1 भेड़ के समान सफेद हैं, जिसे लोगों ने बस अभी-अभी सोते में धोया है।
\q1 तेरे दोनों ओर के पूरे दाँत हैं;
\q2 उनमें से कोई भी टुटा नहीं है।
\q1
\s5
\v 3 तेरे होंठ लाल रंग की डोरी के समान हैं,
\q2 और तेरा मुँह,
\q1 घूंघट के नीचे सुन्दर है।
\q2 तेरे गाल अनार के दो हिस्सों के समान गोल और गुलाबी हैं।
\q1
\s5
\v 4 तेरी लम्बी गर्दन राजा दाऊद के मीनार के समान सुन्दर है
\q2 जो पत्थर की परतों का उपयोग करके बनाई गई थी।
\q1 तेरी गर्दन के चारों ओर हार मीनार की दीवारों पर लटकी एक हजार ढालों के समान हैं;
\q2 प्रत्येक ढाल एक योद्धा की है।
\q1
\v 5 तेरे स्तन दो युवा जुड़वा हिरनों के समान कोमल हैं
\q2 जो सोसन फूलों के बीच घास खा रहे हैं।
\q1
\s5
\v 6 कल सुबह तक,
\q2 जब रात की छाया लुप्त हो जाती है,
\q1 मैं तेरे स्तनों के निकट लेटा रहूँगा,
\q2 क्योंकि वे दो पहाड़ियों के समान हैं जिनसे मीठे मसालों की गंध आती है।
\q1
\v 7 मेरी प्रिय, तू सम्पूर्णत: सुन्दर है;
\q2 तेरे शरीर का आकार पूर्णतः ख़ूबसूरत है!
\q1
\s5
\v 8 मेरी प्रिय, ऐसा लगता है कि तू लबानोन में थी
\q2 बहुत दूर, जहाँ मैं तुझ तक नहीं पहुँच सकता।
\q1 मेरे पास वापस आ।
\q1 ऐसा लगता है कि तू हेर्मोन पहाड़ के शीर्ष पर थी
\q2 या पास की अन्य चोटियों पर, जहाँ मैं तेरे पास नहीं जा सकता।
\q1 पहाड़ों से आ, जहाँ सिंहों की गुफाएँ हैं
\q2 और जहाँ तेंदुए पहाड़ों पर रहते हैं।
\q1
\s5
\v 9 तू जो मेरे लिए सबसे प्रिय है, जब मैं तुझे देखता हूँ,
\q2 तू मुझे प्रेम करने के लिए विवश करती है
\q2 जब मैं तुझे देखता हूँ तब तू भी मुझे देख, जब मैं तेरे गर्दन के गहने को देखता हूँ।
\q1
\s5
\v 10 मेरी दुल्हन, मेरे लिए तेरा प्रेम आनंददायक है!
\q2 दाखमधु की तुलना में यह अधिक मनोहर है!
\q1 तेरे इत्र की सुगन्ध
\q2 किसी भी मसाले से अधिक सुखदायक है!
\q1
\v 11 जब तू मुझे चूमती है, तो वह शहद खाने से भी उत्तम लगता है।
\q2 तेरे चुम्बन शहद मिले दूध के समान मीठे हैं।
\q2 तेरे कपड़ों की सुगन्ध
\q2 लबानोन में देवदार के पेड़ों की सुगन्ध के समान है।
\q1
\s5
\v 12 तू जो मेरे लिए सबसे प्रिय है, तू एक बगीचे के समान है जिसे माली बंद रखता है
\q2 कि अन्य पुरुष उसमें प्रवेश न कर सकें;
\q1 तू एक सोते के समान है जिसे ढका गया है
\q2 कि अन्य लोग इससे पी न सकें।
\q1
\v 13 तू अनार के पेड़ के बगीचे के समान है जो स्वादिष्ट फल से भरा है
\q2 ,
\q2 और जिसमें बहुत सारे पौधे हैं, जो हिना और सुम्बुल मसाले उत्पादन करते हैं,
\q2
\v 14 केसर और मुश्क और दालचीनी
\q2 और कई अन्य प्रकार की धूप,
\q2 लोबान और अगर
\q2 और कई अन्य उत्तम मसाले।
\q1
\s5
\v 15 तेरे बगीचे में तू एक सोते के समान है,
\q2 साफ पानी के सोते के समान
\q2 जो लबानोन के पहाड़ों से बहती है।
\sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\v 16 मैं चाहती हूँ कि उत्तरी और दक्षिणी हवा आए,
\q2 और मेरे बगीचे पर बहे,
\q1 कि मसालों की सुगन्ध हवा के द्वारा फैल जाए।
\q1 इसी प्रकार, मैं चाहती हूँ कि वह जो मुझ से प्रेम करता है मेरे निकट आकर आनंदित हो जाए
\q2 जैसे कोई बगीचे में आता है और वहाँ उगने वाले फल खा कर आनंद लेता है।
\s5
\c 5
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\v 1 तू जो मेरे लिए सर्वाधिक प्रिय है,
\q2 मैं तेरे पास रहने आया हूँ।
\q1 यह ऐसा होगा जैसे मैं अपने अन्य मसालों के साथ गन्धरस एकत्र कर रहा हूँ,
\q2 मैं शहद और छत्ता खा रहा हूँ,
\q2 और अपना दाखमधु और दूध पी रहा हूँ।
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1 मित्रों, प्रेम करने का आनंद लो;
\q2 एक दूसरे के साथ भरपूर आनंद लो।
\sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 2 मैं सो गई थी, और मैंने एक सपना देखा।
\q2 सपने में मैंने अपने प्रेमी को द्वार पर दस्तक देते सुना।
\q1 उसने कहा, "तू जो मेरी बहन से अधिक मेरे लिए प्रिय है, मेरी प्रिय, मेरी प्रेमी मेरी निर्मल, मेरी कबूतरी,
\q2 मेरे लिए द्वार खोल!
\q1 रात में गिरने वाली धुंध और ओस से मेरे बाल गीले हैं, ।"
\q1
\s5
\v 3 परन्तु मैंने पहले ही अपने वस्त्र उतार दिये थे;
\q2 मैं द्वार खोलने के लिए फिर से उन्हें नहीं पहनना चाहती थी।
\q1 मैंने पहले ही अपने पैरों को धोया था;
\q2 मैं नहीं चाहती थी कि वे फिर गन्दे हो जाएं।
\q1
\v 4 जो मुझसे प्रेम करता है उसने द्वार के छेद में से अपना हाथ डाला,
\q2 और मैं अपने मन में रोमांचित थी कि वह वहाँ था।
\q1
\s5
\v 5 मैं उसके लिए द्वार खोलने के लिए उठ गई,
\q2 परन्तु पहले मैंने अपने हाथों पर बहुत सारा गन्धरस लगाया।
\q1 जो मेरी ऊँगलियों से टपक रहा था
\q2 जब मैंने चटकनी खोली।
\q1
\s5
\v 6 मैंने उस पुरुष के लिए द्वार खोला जो मुझसे प्रेम करता है,
\q2 परन्तु वह चला गया।
\q1 वह मुड़कर चला गया था!
\q2 मैं बहुत निराश हो गई।
\q1 मैंने उसकी खोज की, परन्तु मैं उसे नहीं ढूंढ सकी;
\q2 मैंने उसे बुलाया, परन्तु उसने उत्तर नहीं दिया।
\q1
\s5
\v 7 शहर के पहरेदारों ने मुझे शहर के चारों ओर घूमते हुए देखा।
\q1 उन्होंने मुझे मारा और मुझे घायल कर दिया
\q2 क्योंकि उन्होंने सोचा कि मैं एक वेश्या हूँ;
\q2 उन पुरुषों ने जो शहर की दीवारों की रक्षा कर रहे थे, मेरे वस्त्र ले लिये।
\sp स्त्री शहर की स्त्रियों से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 8 हे यरूशलेम की युवतियों,
\q2 मैं चाहती हूँ कि तुम शपथ लो
\q1 कि यदि तुम उस पुरुष को देखो जो मुझसे प्रेम करता है,
\q2 तुम उसे बताओगी कि मैं उसे इतना चाहती हूँ कि मैं स्वयं को अस्वस्थ अनुभव कर रही हूँ।
\sp स्त्री से शहर की स्त्रियाँ बातें कर रही हैं
\q1
\s5
\v 9 तू जो स्त्रियों के बीच सबसे सुन्दर है,
\q2 तू क्यों सोचती है कि जो तुमसे प्रेम करता है वह अन्य पुरुषों की तुलना में उत्तम है?
\q1 वह अन्य पुरुषों की तुलना में किस प्रकार से उत्तम है?
\q2 तू हमें शपथ खाने के लिए क्यों कहती है कि हम उसे यह बताएँ?
\sp स्त्री शहर की स्त्रियों से बात कर रही है
\q1
\s5
\v 10 ऐसा इसलिए है क्योंकि जो पुरुष मुझसे प्रेम करता है वह सुन्दर और स्वस्थ है,
\q2 अन्य पुरुषों के बीच उत्तम।
\q1
\v 11 उसका सिर सुन्दर है, शुद्ध सोने के समान;
\q2 उसके बाल लहरदार हैं
\q2 और कौवे के समान काले हैं।
\q1
\s5
\v 12 उसकी आँखें धाराओं के पास रहने वाले कबूतरों के समान सुशील हैं
\q2 ;
\q1 उसकी आँखों की सफेदी दूध के समान सफेद हैं,
\q2 जो हीरों के समान दीखते हैं।
\q1
\s5
\v 13 उसके गाल मसाले के पेड़ से भरे बगीचे के समान हैं
\q2 जो मीठे-सुगन्धित इत्र का उत्पादन करता है।
\q1 उसके होंठ सोसन फूल के समान हैं
\q2 जिनसे गन्धरस टपकता है।
\q1
\s5
\v 14 उसकी बाहें सोने की छड़ के समान हैं जिनके सिरे गोलाकार हैं,
\q2 और जो कीमती पत्थरों से सजाई गई हैं।
\q1 उसका शरीर हाथीदाँत के समान है
\q2 जो नीलमणि से सजाया गया है।
\q1
\s5
\v 15 उसके पैर संगमरमर के खम्भे के समान हैं
\q2 जो शुद्ध सोने से बने अड्डों पर बैठाये गये हैं।
\q1 वह महिमामय है, लबानोन के पहाड़ों के समान,
\q2 रमणीय देवदार पेड़ के समान।
\q1
\s5
\v 16 उसके चुम्बन बहुत मधुर हैं;
\q2 वह पूरी तरह से आकर्षक है।
\q1 हे यरूशलेम की युवतियों,
\q2 यही कारण है कि जो पुरुष मुझसे प्रेम करता है वह अन्य सभी पुरुषों की तुलना में अधिक उत्तम है।
\s5
\c 6
\sp यरूशलेम की स्त्रियाँ युवती से बातें करती हैं
\q1
\v 1 तू जो स्त्रियों में सर्वाधिक सुन्दर है,
\q2 जो तुमसे प्रेम करता है वह कहाँ गया?
\q1 यदि तू हमें बता कि वह किस दिशा में गया था,
\q2 हम उसकी खोज करने के लिए तेरे साथ जाएँगी।
\sp युवती स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 2 जो मुझसे प्रेम करता है उसे मेरे पास आना होगा, मैं, जो उसके बगीचे के समान हूँ,
\q2 उसे मेरे आकर्षण का आनंद लेने आना होगा,
\q1 मुझे गले लगाने का आनंद लेने
\q2 और सोसन के फूलों जैसे मेरे होंठ चूमने।
\q1
\v 3 मैं उस व्यक्ति की हूँ जो मुझसे प्रेम करता है, और जो मुझसे प्रेम करता है वह मेरा है।
\q2 उसे मेरे होंठ चूमने में आनन्द मिलता है,
\q2 जैसे भेंड़े चराई का आनंद लेती हैं।
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\s5
\v 4 मेरी प्रिय, तू सुन्दर है,
\q2 इस्राएल की राजधानी तिर्सा के समान और यहूदा की राजधानी यरूशलेम के समान, तू सुन्दर है;
\q2 तू मुझे थरथराने के लिए विवश करती हो, मानों मैंने एक महान सेना को आते हुए देखा हो।
\q1
\s5
\v 5 मुझे इस प्रकार से देखना बंद करो,
\q2 क्योंकि तेरी आँखें मुझे बहुत उत्तेजित करती हैं।
\q1 तेरे लम्बे काले बाल इधर-उधर हिलते हैं, जैसे काली बकरियों का झुण्ड
\q2 गिलाद पहाड़ की ढलानों से नीचे आ रहा है।
\q1
\s5
\v 6 तेरे दाँत बहुत सफेद हैं
\q2 भेड़ के झुण्ड के समान जिनके ऊन अभी काटे गए हैं
\q1 और धारा में धोने के बाद निकलकर आए हैं।
\q1 तेरे दोनों ओर के दाँत पूरे हैं;
\q2 उनमें से कोई भी टुटा नहीं है।
\q1
\v 7 तेरे घूंघट के नीचे,
\q2 तेरे गाल अनार के दो हिस्सों के समान हैं।
\sp स्त्री का प्रेमी स्वयं से बातें कर रहा है
\q1
\s5
\v 8 भले ही राजा के पास साठ रानियाँ और अस्सी रखेलें हों
\q2 और अनगिनत युवतियाँ हो,
\q1
\v 9 उनमें से कोई भी मेरी कबूतरी के समान नहीं होंगी, जो अद्वितीय है,
\q2 तू जो अपनी माँ की एकलौती बेटी है,
\q2 जिसे उसकी माँ बहुत मूल्यवान मानती है।
\q1 अन्य युवतियाँ तुझे देखती हैं, वे तुझे भाग्यशाली मानती हैं,
\q2 और रानियाँ और रखेलें यह पहचानती हैं कि तू बहुत सुन्दर है।
\sp रानी और रखैलों ने जो कहा
\q1
\s5
\v 10 यह कौन है जो भोर के समान दिखती है,
\q2 जो चंद्रमा के समान देखने में सुन्दर है,
\q2 जो एक अंतहीन रहस्य है?
\sp स्त्री का प्रेमी स्वयं से बातें कर रहा है
\q1
\s5
\v 11 घाटी में बढ़ रहे नए पौधों को देखने के लिए
\q2 मैं अखरोट के कुछ पेड़ों के पास चला गया
\q2 ।
\q1 मैं देखना चाहता था कि दाखलता में कलियाँ लगीं हैं या नहीं
\q2 और अनार के पेड़ खिल रहे थे या नहीं।
\q1
\v 12 मैं इतना प्रसन्न था
\q2 जैसे कि मैं एक राजकुमार के रथ में सवारी कर रहा हूँ।
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\s5
\v 13 तू जो एकदम निष्कलंक है,
\q2 हमारे पास वापस आ, कि मैं तुझे देख सकूँ!
\sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1 नर्तकियों की दो पंक्तियों के बीच नृत्य करते,
\q2 तू मुझे क्यों देखना चाहता है? तू जो निष्कलंक है
\s5
\c 7
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\v 1 तू, जो एक राजकुमार की बेटी है,
\q2 तेरे पैर जूतियों में सुन्दर लगते हैं।
\q1 तेरे घुमावदार कूल्हे गहने के समान हैं
\q2 जो एक कुशल शिल्पकार द्वारा बनाए गये हैं।
\q1
\s5
\v 2 तेरी नाभि एक गोल कटोरे के समान है
\q2 जिससे मुझे आशा है कि वह सदा मसाले मिले दाखमधु से भरा होगा।
\q1 तेरी कमर गेहूँ के ढेर के समान है
\q2 जिसके आस-पास सोसन फूल बढ़ते हैं।
\q1
\s5
\v 3 तेरे स्तन दो युवा जुड़वां हिरन के समान कोमल हैं।
\q1
\v 4 तेरी गर्दन हाथीदाँत से बने मीनार के समान है।
\q1 तेरी आँखें हेशबोन शहर के कुण्ड के समान हैं जो चमकती हैं,
\q2 जो बत्रब्बीम के फाटक के पास है
\q1 तेरी नाक लम्बी है, लबानोन की मीनार के समान
\q2 जो दमिश्क की ओर है।
\q1
\s5
\v 5 तेरा सिर कर्मेल पहाड़ के समान महिमामय है।
\q2 तेरे लम्बे बाल चमकीले और काले हैं;
\q2 ऐसा लगता है कि मैं, तेरा राजा, तेरी लटों के द्वारा जकड़ लिया गया हूँ।
\q1
\v 6 मेरी प्रिय, अपने पुरे आनन्द के साथ
\q2 तू बहुत सुन्दर और मनोहर है।
\q1
\s5
\v 7 तू खजूर के पेड़ के समान शानदार है,
\q2 और तेरे स्तन अंगूर के गुच्छों के समान हैं।
\q1
\v 8 मैंने स्वयं से कहा, "मैं उस खजूर के पेड़ पर चढ़ जाऊँगा
\q2 और खजूर के गुच्छों को पकड़ूँगा। "
\q1 मैं चाहता हूँ कि तेरे स्तन अंगूर के गुच्छों के समान हों जिन्हें मैं अनुभव कर सकूँ;
\q2 मैं चाहता हूँ कि तेरी सांस खुबानी की मीठी सुगन्ध के समान हो।
\q2
\s5
\v 9 मैं चाहता हूँ कि तेरा चुम्बन श्रेष्ठ दाखमधु के समान हो।
\q1 जब मैं तुझे चुम्बन देता हूँ, तू जो मुझसे प्रेम करती है,
\q2 मैं ऐसा अनुभव करना चाहता हूँ जैसे कि हमारे मुँह और दाँतों से दाखमधु बह रहा है।
\sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 10 मैं उस पुरुष की हूँ जो मुझसे प्रेम करता है,
\q2 और वह मुझे चाहता है।
\q1
\v 11 तू जो मुझसे प्रेम करता है, हम ग्रामीण इलाकों में जाते हैं,
\q2 और किसी गांव में रह जाते हैं।
\q1
\s5
\v 12 और आओ हम दाख की बारियों में शीघ्र चले जाएँ
\q2 यह देखने के लिए कि क्या दाखलता में कलियां लगी हैं
\q2 और उन पर फूल हैं जो खिले हैं या नहीं,
\q1 और देखें कि अनार के पेड़ खिल रहे हैं या नहीं,
\q2 और वहाँ मैं तुझे मुझसे प्रेम करने की अनुमति दूंगी।
\q1
\s5
\v 13 दूदाफलों के पौधों से सुगन्धित महक आ रही है,
\q2 और हम नए और पुराने,
\q1 मनोहर आनन्द से घिरे हुए हैं;
\q2 आनंद जो मैं तुझे देने के लिए बचा रही थी, उस पुरुष को जो मुझसे प्रेम करता है।
\s5
\c 8
\sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\v 1 ऐसा होता कि हर कोई जानता हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं, उसी प्रकार जैसे वे सब जानते हैं कि मेरा एक भाई है,
\q1 मेरा अपना भाई, जिसने मेरी माँ के स्तन का दूध पिया।
\q2 जब भी मैं तुझसे कहीं बाहर मिलती तब मैं तुझे चूम सकती थी,
\q और कोई भी मेरी आलोचना नहीं करता।
\q1
\s5
\v 2 यदि मैं तुझे अपनी माँ के घर ले जाती, तो किसी को भी आपत्ति नहीं होती,
\q2 जहाँ हमारी माँ, निवास करती है जिन्होंने मुझे इतनी सारी चीज़ें सिखाई हैं।
\q1 मैं तुझे अपनी माँ के घर ले जाना चाहती हूँ कि मैं वहाँ तुमसे प्रेम कर सकूँ।
\q1 यह मसाले मिले दाखमधु के समान, और अनार से निकाले हुए रस के समान आनंददायक होगा।
\sp युवती स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\v 3 हाँ! वह अपने बाएं हाथ को मेरे सिर के नीचे रखेगा,
\q2 और वह मुझे अपने दाहिने हाथ से गले लगाएगा।
\sp स्त्री अन्य स्त्रियों से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 4 मैं चाहती हूँ कि तुम मुझसे प्रतिज्ञा करो, हे यरूशलेम की स्त्रियों,
\q1 कि जब हम प्रेम कर रहे हों तो तूम हमें परेशान नहीं करोगी
\q2 जब तक हम रुकने के लिए तैयार नहीं होते। "
\sp यरूशलेम की स्त्रियाँ कह रही हैं
\q1
\s5
\v 5 वह स्त्री कौन है जो जंगल से आ रही है,
\q2 वह स्त्री जो उस पुरुष पर टेक लगाए हुए है जो उससे प्रेम करता है?
\sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1 जब तू खुबानी के पेड़ के नीचे था तो मैंने तुझे जगाया
\q2 उस स्थान पर जहाँ तेरी माँ ने तेरी कल्पना की,
\q2 उस स्थान पर जहाँ उसने तुझे जन्म दिया था।
\q1
\s5
\v 6 मुझे अपने निकट रख,
\q2 अपने दिल पर एक मुहर के समान,
\q1 या अपनी बांह में एक कंगन के समान।
\q1 एक दूसरे के लिए हमारा प्रेम मृत्यु के समान शक्तिशाली है;
\q2 यह कब्र के समान दृढ है।
\q1 ऐसा लगता है कि एक दूसरे के लिए हमारा प्रेम आग में दमकता है
\q2 और गर्म आग के समान जलता है।
\q1
\s5
\v 7 हमें एक दूसरे से प्रेम करने से कोई भी नहीं रोक सकता,
\q2 बाढ़ भी नहीं।
\q1 यदि कोई पुरुष एक स्त्री को स्वयं प्रेम करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करता है तो वह उसे अपने घर में जो कुछ है सब देने की बात करता है,
\q2 वह मना कर देगी।
\sp युवती के भाई आपस में बातें कर रहे हैं
\q1
\s5
\v 8 हमारी एक छोटी बहन है,
\q2 और उसके स्तन अभी तक बड़े नहीं हुए हैं।
\q1 उस दिन जब उसे किसी युवक से विवाह करने की प्रतिज्ञा करते हैं तब हमें उसके लिए यह करना चाहिए:
\q1
\s5
\v 9 यदि उसकी छाती एक दीवार के समान समतल है,
\q2 हम चाँदी के गहने डालकर उसे सजाएँगे जो उसके ऊपर मीनार के समान होंगे।
\q1 यदि वह एक द्वार के समान समतल है,
\q2 हम उसे देवदार की लकड़ी के टुकड़ों से सजाएँगे।
\sp युवती स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 10 मेरी छाती पहले दीवार के समान समतल थी,
\q2 परन्तु अब मेरे स्तन मीनारों के समान बड़े हैं।
\q1 इसलिए मैं अपने प्रियतम के लिए आनंददायक हूँ।
\sp युवती स्वयं से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 11 राजा सुलैमान के पास बाल्हामोन में एक दाख का बाग था,
\q1 और उन्होंने उसे खेती करने के लिए किराए पर दिया।
\q2 प्रत्येक व्यक्ति को हर वर्ष उस अंगूर की खेती के लिए एक हजार चाँदी के टुकड़ों का भुगतान करना पड़ता था।
\q1
\v 12 परन्तु मेरा शरीर मेरी दाख की बारी के समान है,
\q2 और तू, मेरे प्रेमी जिसे मैं "सुलैमान" कहती हूँ, मैं इसे तुझे दे रही हूँ।
\q1 तुझे मेरे शरीर का आनंद लेने के लिए मुझे चाँदी के हजारों टुकड़े का भुगतान करने की आवश्यक्ता नहीं है,
\q2 परन्तु मैं उन लोगों के लिए चाँदी के दो सौ टुकड़े दूंगी जो मेरी देखभाल करते हैं।
\sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है
\q1
\s5
\v 13 तू बगीचों में रह रही है,
\q2 मेरे मित्र तेरी आवाज सुन रहे हैं;
\q2 तो मुझे भी यह सुनने की अनुमति दे!
\sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है
\q1
\s5
\v 14 तू जो मुझसे प्रेम करता है, शीघ्र ही मेरे पास आ;
\q2 एक चिकारे या युवा हिरन के समान भाग कर मेरे पास आ,
\q1 क्योंकि मैं मसालों की पहाड़ियों के समान आनंददायक हूँ।

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\id LAM
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h विलापगीत
\toc1 विलापगीत
\toc2 विलापगीत
\toc3 lam
\mt1 विलापगीत
\s5
\c 1
\q1
\p
\v 1 एक समय ऐसा था जब यरूशलेम लोगों से भरा हुआ था,
\q2 परन्तु अब यह पूरी तरह से निर्जन है।
\q1 एक समय ऐसा था जब यह शक्तिशाली राष्ट्र था,
\q2 परन्तु अब यह विधवा की तरह अकेला है।
\q1 एक समय दुनिया में हर किसी ने इसे राजा की पुत्री की तरह सम्मानित किया,
\q2 परन्तु अब यह गुलाम की तरह है।
\q1
\v 2 गालों पर बहने वाले आँसुओं के साथ,
\q2 हम रात को शहर में फूट फूट कर रोते हैं।
\q1 हमने सहायता करने के लिए यहोवा पर भरोसा नहीं किया, और जिस समूह पर हमने विश्वास किया, वह हमारी सहायता करने में असफल रहा;
\q2 उन लोगों में से कोई भी अब हमें सांत्वना नहीं देता।
\q1 सभी समूहों ने जो हमारे मित्र थे, हमें धोखा दिया
\q2 वे सब अब हमारे शत्रु हैं।
\q1
\s5
\v 3 यहूदा के लोग गरीब हो गए हैं
\q2 और बहुत पीड़ित हैं।
\q1 हमारे लगभग सभी लोगों को
\q2 देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
\q1 अब हम दूसरे देश में रहते हैं
\q2 और हमारे बीच शान्ति नहीं।
\q1 जब यहूदा के लोग स्वयं को बचाने में असमर्थ थे,
\q2 ऐसा तब था जब हमारे शत्रुओं ने हमें बंदी बना लिया था।
\q1
\s5
\v 4 सिय्योन पर्वत की सड़कें खाली हैं
\q2 क्योंकि पवित्र त्योहारों का जश्न मनाने के लिए कोई भी अब यहाँ नहीं आता।
\q1 कोई भी प्राचीन या अगुवे शहर के फाटकों के पास बातचीत करने के लिए नहीं बैठते
\q2 और यरूशलेम के याजक दुःख से चिल्लाते हैं।
\q1 यरूशलेम में छोड़ी गई युवतियाँ रोती हैं
\q2 क्योंकि वे बहुत पीड़ित हैं।
\q1
\v 5 हमारे शत्रु अब हमारे शहर के स्वामी हैं,
\q2 और वे समृद्ध हैं।
\q1 हमारे द्वारा किए गए सभी पापों के कारण
\q2 यहोवा ने हम यरूशलेम के लोगों को दंडित किया।
\q1 हमारे शत्रुओं ने हमारे बच्चों को छीन लिया
\q2 और उन्हें अन्य देशों में भेज दिया।
\q1
\s5
\v 6 यरूशलेम सुंदर शहर था,
\q2 परन्तु अब यह सुंदर नहीं है।
\q1 हमारे शहर के अगुवे हिरण की तरह हैं जो भूख से मर रहे हैं
\q2 क्योंकि वे कोई भोजन वस्तु नहीं पाते।
\q1 वे बहुत कमजोर हैं
\q2 और हमारे शत्रुओं से भाग नहीं सकते।
\q1
\s5
\v 7 हम, यरूशलेम के लोग दुःखी हैं और हमारे पास रहने के लिए और घर नहीं हैं;
\q2 हम उन सभी शानदार चीजों के विषय सोचते हैं जिनसे एक बार हमारा शहर भर गया था।
\q1 परन्तु अब हमारे शत्रुओं ने शहर पर कब्जा कर लिया है,
\q2 और हमारी सहायता करने के लिए कोई नहीं है।
\q1 हमारे शत्रुओं ने हमारे शहर को नष्ट कर दिया
\q2 और वे इसे नष्ट करते समय हँस रहे थे।
\q1
\s5
\v 8 हम, यरूशलेम के लोगों ने बहुत पाप किये हैं;
\q2 हमारा शहर अशुद्ध स्त्री की तरह बन गया है।
\q1 जो लोग पहले हमारे शहर को आदर देते थे, वे अब इसे तुच्छ मानते हैं;
\q2 वे ऐसे लोगों की तरह हैं जो स्त्री को उसके कपड़े उतार कर नंगा करते हैं और फिर उसका मजाक उड़ाते हैं।
\q1 अब हम शहर में चिल्लाते हैं;
\q2 हम वस्त्र रहित स्त्री के समान हैं जो अपने हाथों से स्वयं को ढकने की कोशिश करती है।
\q1
\v 9 ऐसा लगता है जैसे हमारा शहर गंदा हो गया है क्योंकि हमने बहुत पाप किए हैं;
\q2 हमने इस विषय पर नहीं सोचा था कि परमेश्वर हमें कैसे दंडित करेंगे।
\q1 हमने कल्पना नहीं की थी कि हम कैसे पीड़ित होंगे;
\q2 हमें शान्ति देने के लिए कोई नहीं है।
\q1 हम सब परमेश्वर को पुकारते हैं, “हे यहोवा, देखें कि हम कैसे पीड़ित हैं
\q2 क्योंकि हमारे शत्रुओं ने हमें पराजित किया है!“
\q1
\s5
\v 10 हमारे शत्रुओं ने हमारे सारे खजाने को लूट लिया
\q2 हमारी सभी मनमोहक और मूल्यवान चीजों को लूट लिया।
\q1 हे यहोवा जो आपकी आराधना नहीं करते वे हमारे पवित्र आराधनालय में जा रहे हैं,
\q2 जिसके विषय आपने कहा था कि जहाँ आपके लोग ईश्वर की आराधना करते हैं वहाँ किसी विदेशी को नहीं जाना चाहिए।
\q1
\s5
\v 11 शहर के सभी लोग दर्द से कराहते हैं
\q2 जब वे भोजन की खोज करते हैं।
\q1 उन्होंने अपनी सबसे मूल्यवान चीजें ले ली हैं
\q2 भोजन प्राप्त करके अपनी ताकत को बचाने के लिए।
\q1 हे यहोवा, मुझे देखें,
\q2 कोई भी मेरे जीवन को महत्व नहीं देता।
\q1
\v 12 तुम लोग जो मेरे समीप से निकलते हो,
\q2 लगता है कि जो मेरे साथ हुआ तुम इसके विषय बिल्कुल परवाह नहीं करते।
\q1 चारों ओर देखो और जान लो कि कोई भी अन्य जन इस तरह पीड़ित नहीं जैसा मैं हूँ।
\q1 यहोवा ने मुझे पीड़ा दी है
\q2 क्योंकि उन्होंने मुझे उस दिन दंडित किया जब वे हमारे, अर्थात् अपने लोगों से क्रोधित थे।
\q1
\s5
\v 13 ऐसा लगता है कि उन्होंने स्वर्ग से आग भेजी थी
\q2 जिसने मेरी हड्डियों को जला दिया;
\q1 ऐसा लगता है कि उन्होंने मेरे पैरों को उलझाने के लिए जाल बिछाया है,
\q2 और मुझे वापस लौटा दिया।
\q1 उन्होंने मुझे छोड़ दिया
\q2 मैं सभी दिनों में, प्रत्येक दिन कमजोर और अकेला हूँ।
\q1
\v 14 उन्होंने मेरे पापों को मेरे लिए भारी वजन बना दिया है जिसे मुझे उठाना है;
\q2 लगता है जैसे उन्होंने उस वजन को मेरी गर्दन के चारों ओर बाँध दिया है।
\q1 पहले हम मजबूत थे,
\q2 परन्तु उन्होंने मुझे कमजोर बना दिया।
\q1 उन्होंने मुझे मेरे शत्रुओं को पकड़ने की अनुमति दी है,
\q2 मैं उनका विरोध करने के लिए कुछ भी करने में सक्षम नहीं था।
\q1
\s5
\v 15 यहोवा ने मेरे उन शक्तिशाली सैनिकों को देखा, जिन्होंने मुझे सुरक्षित रखा था।
\q1 उन्होंने बड़ी सेना को बुलाया
\q2 कि वे आकर मेरे मजबूत युवा सैनिकों को हराने के लिए मुझे कुचले।
\q1 यहोवा ने यहूदा के लोगों को रौंद दिया है
\q2 जैसे लोग रस बनाने के लिए एक गड्ढे में अंगूरों को रौंदते हैं।
\q1
\s5
\v 16 मैं इन सब बातों के कारण रोता हूँ।
\q2 मेरी आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं।
\q1 मुझे शान्ति देने के लिए कोई नहीं है।
\q2 जो मुझे शान्ति देते हैं वे मुझसे बहुत दूर हैं।
\q1 मेरे बच्चों को कोई उम्मीद नहीं है
\q2 क्योंकि शत्रुओं ने हम सभी को बंदी बना लिया है।
\q1
\v 17 जो लोग सिय्योन (यरूशलेम के शहर) में रहते थे
\q2 उनके पास उन्हें शान्ति देने के लिए कोई नहीं है।
\q1 यहोवा ने आदेश दिया कि आस पास के देशों के लोग
\q2 हमारे पिता याकूब के वंशजों के शत्रु बन जाएँगे (जिन्हें इस्राएली कहा जाता है)।
\q2 यरूशलेम उनके लिए घृणित हो गया
\q1
\s5
\v 18 परन्तु यहोवा ने जो मेरे साथ किया है वह उचित है,
\q2 क्योंकि जो कुछ उन्होंने मुझे करने के लिए कहा था, मैंने उसका पालन करने से इनकार कर दिया था।
\q1 तुम सब जगह के लोगों, मेरी बात सुनो!
\q2 देखो और जान लो कि मैं बहुत पीड़ित हूँ।
\q1 मेरी जवान बेटियाँ और बहादुर बेटे
\q2 दूर दूर देशों तक पहुँचाए गए हैं।
\q1
\v 19 मैंने सहायता करने के लिए, अपने उन सहयोगियों से अनुरोध किया, जिन पर हम भरोसा करते थे,
\q2 परन्तु उन सब ने मना कर दिया,
\q2 उन्होंने झूठ बोला और अपनी प्रतिज्ञाओं को बनाए नहीं रखा।
\q1 मेरे याजक और मेरे अगुवे
\q2 शहर की दीवारों के अन्दर मर गए
\q1 जब उन्होंने भोजन की खोज की।
\q1
\s5
\v 20 हे यहोवा, देखें मैं बहुत अधिक पीड़ित हूँ!
\q2 मेरे मन से मैं बहुत परेशान हूँ।
\q1 मैं अपने अस्तित्व के केंद्र में दुःखी हूँ,
\q2 क्योंकि मैंने आपके विरुद्ध विद्रोह किया है
\q2 और मेरे कारण आपको बहुत दुःख हुआ है!
\q1 हमारे शत्रु सड़कों पर लोगों को तलवार से मार देते हैं;
\q2 और यह हमारे घरों को उन जगहों की तरह बनाता हैं जहाँ मृतकों को रखा जाता है।
\q1
\s5
\v 21 मेरी चिल्लाहट सुनकर!
\q2 कोई भी मुझे सांत्वना देने के लिए नहीं आया।
\q1 हमारे सारे शत्रु जानते हैं कि मेरे साथ क्या हुआ
\q2 वे सभी यह सुनकर खुश थे
\q2 कि यहोवा ने अपने लोगों के साथ क्या किया है।
\q1 आपने जो वादा किया था कृपया उसे जल्द पूरा करें,
\q2 कि जब हमारे शत्रु पीड़ित हों जैसे हम पीड़ित हैं!
\q1
\v 22 हे यहोवा, उन दुष्ट कर्मों को प्रकट होने दो
\q2 ताकि आप सब उन्हें देख सकें!
\q1 उन्हें दंडित करें जैसे आपने मुझे दंडित किया है
\q2 मेरे सभी पापों के लिए!
\q1 मैं पीड़ित हूँ और बहुत चिल्लाता हूँ,
\q2 और मैं अपने भीतरी मनुष्यत्व में बेहोश हो जाता हूँ।
\s5
\c 2
\q1
\v 1 परमेश्वर हम से बहुत क्रोधित थे;
\q2 ऐसा लगता था कि उन्होंने अंधेरे बादल से यरूशलेम को ढक लिया था।
\q1 पहले यह एक सुंदर शहर था,
\q2 परन्तु उन्होंने इसे बर्बाद कर दिया।
\q1 उस समय उन्होंने इस्राएल को दंडित किया था,
\q2 यहाँ तक कि उन्होंने यरूशलेम में स्थित अपने आराधनालय को भी त्याग दिया था।
\q1
\v 2 यहोवा ने यहूदा के लोगों के घरों को नष्ट कर दिया;
\q2 उन्होंने दया के कार्य नहीं किए।
\q1 क्योंकि वे बहुत क्रोध में थे,
\q2 उन्होंने यहूदा के किले तोड़ दिए।
\q1 उन्होंने हमारे राज्य को पूरी तरह से असहाय बना दिया और
\q2 उन्होंने हमारे शासकों के सारे सम्मान को मिट्टी में मिला दिया।
\q1
\s5
\v 3 क्योंकि वे बहुत क्रोध में थे,
\q2 उन्होंने इस्राएल को अब पहले के समान शक्तिशाली नहीं रहने दिया।
\q1 उन्होंने हमें सहायता देने से मना कर दिया
\q2 जब हमारे शत्रुओं ने हम पर हमला किया।
\q1 उन्होंने इस्राएल को नष्ट कर दिया
\q2 जैसे एक ज्वलंत आग सब कुछ नष्ट कर देती है।
\q1
\v 4 वह अपने लोगों को मारने के लिए तैयार हो गए हैं
\q2 जैसे कि हम उनके शत्रु थे।
\q1 वे उन लोगों को मारने के लिए तैयार हैं जिन्हें हम सबसे अधिक प्यार करते हैं,
\q2 हमारे परिवारों के सदस्य।
\q1 वे हम यरूशलेम के लोगों से बहुत क्रोधित हैं;
\q2 उनका क्रोध आग के समान है।
\q1
\s5
\v 5 परमेश्वर शत्रु के समान बन गए हैं
\q2 उन इस्राएलियों के लिए; उन्होंने हमें नष्ट कर दिया
\q1 उन्होंने हमारे महलों को नष्ट कर दिया
\q2 और हमारे किलों को खंडहर बना दिया।
\q1 उन्होंने यरूशलेम में कई लोगों से छुटकारा पा लिया
\q2 और हमें मारे गए लोगों के लिए शोक करना और रोना पड़ा।
\q1
\v 6 उन्होंने हमारे शत्रुओं को उनके आराधनालय को तोड़ने दिया
\q2 इतनी आसानी से जैसे कि बगीचे में एक झोपड़ी हो।
\q1 उन्होंने अपने लोगों को
\q2 हमारे सभी पवित्र पर्व और सब्त के दिनों की याद मिटा दी।
\q1 उन्होंने हमारे राजाओं और याजकों से घृणा की है
\q2 क्योंकि वे उनसे बहुत क्रोधित थे।
\q1
\s5
\v 7 यहोवा ने उस वेदी को निरस्त कर दिया जिस पर हमने उनके लिए जानवरों की बलि चढ़ाई थी;
\q2 उन्होंने अपने आराधनालय को त्याग दिया।
\q1 उन्होंने हमारे शत्रुओं को हमारे आराधनालय और हमारे महलों की दीवारों को
\q2 चीर डालने की अनुमति दी है
\q1 वे यहोवा के आराधनालय में विजयी की तरह चिल्लाते हैं,
\q2 जैसे पहले हम पवित्र त्योहारों के समय चिल्लाया करते थे।
\q1
\s5
\v 8 यहोवा ने निर्धारित किया था
\q2 कि शत्रु हमारे शहर की दीवार को फाड़ देंगे।
\q1 ऐसा लगता था कि उन्होंने पहले दीवारों को माप लिया
\q2 और फिर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
\q1 ऐसा लगता था कि उन्होंने मीनारों और दीवारों को शोक का कारण बना दिया था
\q2 क्योंकि वे अब खंडहर थे।
\q1
\v 9 शहर के फाटक ढह गए हैं;
\q2 शत्रु ने उन द्वारों को नष्ट कर दिया है जो फाटकों को बंद कर देते हैं।
\q1 राजा और उनके अधिकारियों को अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर किया गया है,
\q2 जहाँ कोई भी मूसा को परमेश्वर द्वारा दिए गए नियमों की सीख नहीं देता।
\q1 भविष्यद्वक्ताओं को कोई दर्शन नहीं मिलता
\q2 क्योंकि यहोवा उन्हें कोई दर्शन नहीं देते।
\q1
\s5
\v 10 यरूशलेम के बूढ़े लोग जमीन पर बैठते हैं,
\q2 और वे कुछ भी नहीं बोलते।
\q1 वे इतने दुःखी हैं कि खुरदरा वस्त्र पहनते हैं
\q2 और अपने सिरों पर धूल डालते हैं।
\q1 यरूशलेम की युवतियाँ दुःख से झुकती हैं,
\q2 उनके चेहरे जमीन को छूते हैं।
\q1
\s5
\v 11 मेरी आँसुओं की वजह से आँखें बहुत थक गई हैं;
\q2 मैं अपने अन्दर से बहुत दुःखी हूँ।
\q1 क्योंकि मेरे बहुत सारे लोग मर गए
\q2 अन्दर से मैं शोक करता हूँ और मैं थक गया हूँ।
\q1 यहाँ तक कि बच्चे और शिशु भी बेहोश हो रहे हैं
\q2 सड़कों पर मर रहे हैं क्योंकि उनके पास भोजन नहीं है।
\q1
\v 12 वे अपनी माँ को पुकार कर कहते हैं,
\q2 “हमें खाने और पीने के लिए कुछ चाहिए!”
\q1 वे घायल पुरुषों की तरह
\q2 शहर की सड़कों पर गिर पड़ते हैं।
\q1 वे धीरे से
\q2 अपनी माँ की गोद में मर जाते हैं।
\q1
\s5
\v 13 यरूशलेम के लोगों,
\q2 मैं सहायता के लिए कुछ भी नहीं कह सकता।
\q1 कोई भी ऐसा पीड़ित नहीं हुआ जैसे तुम पीड़ित हो रहे हो;
\q2 मुझे नहीं पता कि मैं तुमको शान्ति देने के लिए क्या कर सकता हूँ।
\q1 तुम बिलकुल वैसे गिर गए हो
\q2 जैसे तुम समुद्र में डूब गए हो;
\q2 कोई ऐसा नहीं जो तुम्हारे शहर को उस स्थिति में ला सकता है जैसा वह पहले था।
\q1
\v 14 तुम्हारे बीच के भविष्यद्वक्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने यहोवा का दर्शन देखा
\q2 परन्तु उन्होंने जो कहा वह झूठ और व्यर्थ था।
\q1 वे तुम्हें शत्रुओं से बचाने के लिए काम नहीं करते थे;
\q2 उन्होंने तुम्हें यह नहीं बताया कि तुमने पाप किया है।
\q1 इसकी अपेक्षा, उन्होंने तुम से उन बातों की घोषणा की जिसके विषय उन्होंने कहा था कि यहोवा ने उन्हें बताया था;
\q2 उन्होंने तुमको उन पर विश्वास करने के लिए लुभाया, और तुमने वैसा किया।
\q1
\s5
\v 15 वे सब लोग जो तुम्हारे पास से निकलते हैं
\q2 वे तालियाँ बजा कर तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं;
\q2 वे तुम्हें देखकर अपने सिरों को हिलाते हैं और फुसफुसाते हैं;
\q1 वे कहते हैं, “क्या यह यरूशलेम महान शहर है?
\q2 क्या यह वही शहर है जिसके विषय लोगों ने कहा कि यह दुनिया का सबसे सुंदर शहर था,
\q2 ऐसा शहर जिसने धरती पर सभी लोगों को खुश किया?“
\q1
\v 16 अब सभी शत्रु तुम पर हँसते हैं;
\q2 वे तुमसे इतनी घृणा करते हैं कि वे तुम पर फुसफुसाते हैं और तुम पर अपने दांत पीसते हैं।
\q1 वे कहते हैं, “हमने इस्राएल को नष्ट कर दिया!
\q2 यही वह है जो हम चाहते थे,
\q2 और अब यह हुआ है!
\q1
\s5
\v 17 यहोवा ने जो योजना बनाई उन्होंने वही किया है;
\q2 बहुत पहले उन्होंने तुमको नष्ट करने की चेतावनी दी थी,
\q2 और अब उन्होंने इसे किया है।
\q1 उन्होंने तुम्हारे शहर को तुम्हारे प्रति दया दर्शाने के तरीके से काम किए बिना नष्ट कर दिया;
\q2 उन्होंने तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें पराजित करने के लिए खुश होने में सक्षम बनाया;
\q2 उन्होंने शत्रुओं को लगातार मजबूत बनने में सक्षम बनाया।
\q1
\s5
\v 18 मेरी इच्छा है कि शहर की दीवारें उन लोगों के समान बात कर सकें
\q2 जो यहोवा को पुकारते हैं!
\q1 मैं दीवारों को बताऊँगा, “यहोवा को सहायता के लिए पुकारो!
\q2 अपने आँसुओं को दिन और रात बहने दो!
\q2 उन्हें नदियों के समान बहने दो।
\q1 दुःखी होना बंद मत करो;
\q2 रोना बंद मत करो।“
\q1
\v 19 हर रात उठो और रोओ;
\q2 यहोवा को बताओ कि तुम मनुष्य होकर अन्दर से क्या महसूस करते हो।
\q1 उनसे अनुरोध करने के लिए अपनी बाँहों को उठाओ
\q2 हमारे बच्चों को मरने से बचाने के लिए दयालु तरीके से कार्य करने के लिए;
\q1 वे सड़क के कोनों पर बेहोश हो रहे हैं
\q2 क्योंकि उनके पास कोई भोजन नहीं है।
\q1
\s5
\v 20 हे यहोवा, अपने लोगों को देखें और हम पर दया करें।
\q2 क्या आपने इससे पहले कभी लोगों को इस प्रकार से पीड़ित किया है?
\q1 यह निश्चित रूप से सही नहीं कि स्त्रियाँ अपने ही बच्चों का माँस खा रही हैं,
\q2 जिन बच्चों की उन्होंने सदा देखभाल की है।
\q1 यह सही नहीं कि हमारे शत्रु हमारे याजकों और भविष्यद्वक्ताओं की
\q2 आपके ही आराधनालय में हत्या कर रहे हैं!
\q1
\s5
\v 21 सभी उम्र के लोगों की लाशें सड़कों पर बिछी पड़ी हैं;
\q2 यहाँ तक कि यहाँ जवान पुरुषों और जवान स्त्रियों की लाशें भी हैं जिनको हमारे शत्रुओं ने अपनी तलवारों से मार दिया है।
\q1 क्योंकि आप बहुत क्रोध में थे,
\q2 आपने उन्हें मरवा डाला;
\q1 उन पर बिलकुल भी दया किए बिना
\q2 आपने उनकी हत्या कर दी है।
\q1
\v 22 आपने शत्रुओं को प्रत्येक दिशा से हमला करने के लिए बुलाया,
\q2 जैसे कि आप उन्हें एक भोज में आने के लिए बुला रहे थे।
\q1 उस समय आपने दिखाया कि आप बहुत क्रोध में थे,
\q2 और कोई भी बच न पाया।
\q1 शत्रुओं ने हमारे छोटे बच्चों की हत्या कर दी,
\q2 जिनकी हम ने देखभाल और पालन पोषण किया था।
\s5
\c 3
\q1
\v 1 मैं, जो यह लिख रहा हूँ, वही मनुष्य है जिसे यहोवा ने पीड़ित किया था,
\q2 तब वे क्रोध में थे।
\q1
\v 2 ऐसा लगता था जैसे उन्होंने मुझे बिना किसी प्रकाश के
\q2 एक बहुत ही अंधेरी जगह पर चलाया।
\q1
\v 3 उन्होंने मुझे कई बार दंडित किया,
\q2 प्रत्येक दिन,कई बार।
\q1
\v 4 उन्होंने मेरी त्वचा और मेरे माँस को बूढ़ा कर दिया।
\q2 उन्होंने मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है।
\q1
\s5
\v 5 उन्होंने मुझे कई चीजों से घेर दिया
\q2 जो मुझे बहुत बुरी तरह पीड़ित करती हैं।
\q1
\v 6 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे अंधेरी जगह पर दफनाया है
\q2 उन लोगों की तरह जो काफी समय पहले ही मर गए थे।
\q1
\v 7 ऐसा लगता है कि उन्होंने मेरे चारों ओर जेल की दीवार बनाई है,
\q2 और मुझे भारी जंजीरों से बाँध दिया है, कि मैं भाग नहीं सकता।
\q1
\v 8 हालाँकि मैं उन्हें सहायता करने के लिए पुकारता हूँ और रोता हूँ,
\q2 वे मुझ पर ध्यान नहीं देते हैं।
\q1
\s5
\v 9 ऐसा लगता है कि उन्होंने पत्थर की ऊँची दीवार से मेरा रास्ता बंद कर दिया है
\q2 और मुझे बाहर निकालने की कोशिश करने के लिए हर जगह घुमाया है।
\q1
\v 10 उन्होंने मुझ पर हमला करने की प्रतीक्षा की
\q2 जिस प्रकार भालू या शेर छिप कर किसी व्यक्ति पर हमला करने की प्रतीक्षा करते हैं।
\q1
\v 11 ऐसा लगता है कि किसी भालू ने मुझे रास्ते से बाहर खींच लिया और मुझे मार डाला है,
\q2 और बिना सहायता के मुझे अकेला छोड़ दिया।
\q1
\s5
\v 12 ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने धनुष को साध कर मुझे लक्ष्य बना दिया
\q2 अपने तीरों से निशाना लगाने के लिए।
\q1
\v 13 ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपने तीरों से
\q2 मेरे शरीर को गहरे में चुभा दिया है।
\q1
\v 14 मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर हँसते हैं;
\q2 प्रत्येक दिन वे मेरा मजाक उड़ाते हुए गाने गाते हैं।
\q1
\v 15 यहोवा ने मुझे बहुत पीड़ित किया,
\q2 जैसे कोई बहुत कड़वा पानी पीने के बाद पीड़ित होता है।
\q1
\s5
\v 16 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे बजरी चबाने को दी जिसके कारण मेरे दांत टूट गए।
\q2 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे जमीन पर रौंद दिया।
\q1
\v 17 अब मेरे साथ अच्छे काम नहीं होते;
\q2 मुझे अब समृद्ध होने की याद नहीं।
\q1
\v 18 मैं स्वयं से कहना जारी रखता हूँ, “मैं और अधिक कठिनाइयों को सहन करने के लायक नहीं हूँ।
\q2 अब मैं उम्मीद नहीं करता कि यहोवा मुझे बचाएँगे।“
\q1
\s5
\v 19 जब मैं इस के विषय सोचता हूँ कि मैं कितना पीड़ित हूँ और मैं घर से कितनी दूर भटक रहा हूँ।
\q2 यह ज़हर पीने जैसा है।
\q1
\v 20 मैं इस समय को कभी नहीं भूलूँगा
\q2 क्योंकि मैं बहुत निराश महसूस करता हूँ।
\q1
\v 21 हालाँकि, मैं आश्वस्त हो कर उम्मीद करता हूँ कि यहोवा फिर से मेरे लिए अच्छे काम करे,
\q2 और मुझे पता है यह सच है।
\q1
\s5
\v 22 यहोवा कभी भी भरोसे के साथ हमें प्यार करने से नहीं चूकते हैं, और वे हम पर अपनी करुणा सदा दिखाते हैं।
\q2 वे कभी भी हमारे प्रति कृपा से काम करना बंद नहीं करते।
\q1
\v 23 हर सुबह वे फिर से हमारे लिए दया का काम करते हैं।
\q2 वे वही हैं जिन पर हम सदा भरोसा कर सकते हैं।
\q1
\v 24 इसलिए मैं ईमानदारी से खुद से कहता हूँ, “यहोवा मुझे वह देते हैं जो मुझे चाहिए!”
\q2 क्योंकि मैं इस पर विश्वास करता हूँ, मैं आत्मविश्वास के साथ मेरे लिए अच्छे काम करने के लिये उनकी प्रतीक्षा करूँगा।
\q1
\s5
\v 25 यहोवा उन सब के लिए भले हैं जो उनके ऊपर निर्भर हैं,
\q2 उन लोगों के लिए जो सहायता के लिए उनकी खोज करते हैं।
\q1
\v 26 इसलिए चुपचाप प्रतीक्षा करना हमारे लिए अच्छा है
\q2 कि यहोवा हमें बचाएँ।
\q1
\v 27 और धैर्यपूर्वक पीड़ा सहना हमारे लिए अच्छा है
\q2 जबकि हम जवान हैं।
\q1
\v 28 जो लोग सहायता प्राप्त करने के लिए उन्हें खोजते हैं उन्हें स्वयं बैठ जाना चाहिए और शिकायत नहीं करनी चाहिए,
\q2 क्योंकि वे जानते हैं कि यहोवा ही हैं जिन्होंने उन्हें पीड़ित होने का अवसर दिया है।
\q1
\v 29 उन्हें जमीन पर अपने चेहरों को सटा कर, धूल में लेट जाना चाहिए,
\q2 क्योंकि वे अब भी उम्मीद कर सकते हैं कि यहोवा उनकी सहायता करेंगे।
\q1
\s5
\v 30 अगर कोई हमें एक गाल पर थप्पड़ मारता है,
\q2 हमें उस व्यक्ति की तरफ दूसरा गाल भी कर देना चाहिए ताकि वह इस पर भी मार सके,
\q2 और जब दूसरे हमें अपमानित करते हैं तो इसे स्वीकार करें।
\q1
\v 31 परमेश्वर अपने लोगों का त्याग सदा के लिए नहीं करते हैं।
\q1
\v 32 कभी कभी वे हमें पीड़ित भी करते हैं
\q2 परन्तु वे हमारे प्रति दया के काम भी करते हैं
\q1 क्योंकि वे हमें लगातार ईमानदारी से प्रेम करते हैं।
\q1
\v 33 और जब वे लोगों को पीड़ित करते हैं
\q2 या उदास करते हैं तो वे इसका आनन्द नहीं लेते।
\q1
\s5
\v 34 यदि लोग सब कैदियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उनका दमन करते हैं,
\q1
\v 35 या यदि वे परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह करते हैं
\q2 दूसरों के लिए वह करने से मना करने के द्वारा जो सही है,
\q1
\v 36 या यदि वे न्यायाधीशों से मामलों का अन्यायपूर्ण फैसला करवाते हैं,
\q2 परमेश्वर निश्चित रूप से इन सभी चीजों को देखते हैं।
\q1
\s5
\v 37 कोई भी कुछ नहीं कर सकता
\q2 जब तक कि यहोवा पहले ही फैसला नहीं कर लेते कि यह होना चाहिए।
\q1
\v 38 स्वर्ग में परमेश्वर आज्ञा देते हैं कि आपदाएँ होनी चाहिए,
\q2 और वे अच्छे काम भी होने देते हैं।
\q1
\v 39 इसलिए यह निश्चित रूप से सही नहीं है, पृथ्वी पर केवल शिकायत करने वाले लोग हैं
\q2 जब वे उन पापों के लिए हमें दंडित करते हैं जो हमने किए हैं।
\q1
\s5
\v 40 इसकी अपेक्षा, हमें सावधानी से यह सोचना चाहिए कि हम कैसा व्यवहार करते हैं;
\q2 हमें वापस यहोवा के पास जाना चाहिए।
\q1
\v 41 हमें अपने सम्पूर्ण भीतरी मनुष्यत्व के साथ और अपनी बाँहों को
\q2 , स्वर्ग के परमेश्वर की ओर उठा कर प्रार्थना करनी चाहिए और कहना चाहिए,
\q1
\v 42 “हमने आपके विरुद्ध पाप किया है और विद्रोह किया है,
\q2 और आपने हमें क्षमा नहीं किया।
\q1
\v 43 आपने बहुत क्रोधित होकर हमारा पीछा किया
\q2 आपने हम पर दया किए बिना हमारी हत्या कर दी।
\q1
\s5
\v 44 आपने स्वयं को दूर कहीं ऐसे छिपाया, जैसे कि आप बादल में थे,
\q2 ताकि जब हम प्रार्थना करते हैं तो आप हमारी नहीं सुनें।
\q1
\v 45 आपने हमें विदेशी लोगों के बीच भेज दिया,
\q2 और वे सोचते हैं कि हम केवल कूड़ा हैं।
\q1
\v 46 हमारे सभी शत्रुओं ने हमारे अपमान की बातें कही हैं।
\q1
\v 47 हम लगातार डरते हैं कि लोग हमें जाल में फँसा देंगे,
\q2 क्योंकि हमने इतनी सारी आपदाओं का सामना किया है और हमारा अत्यधिक विनाश हुआ हैं।
\q1
\s5
\v 48 मेरी आँखों से ढेर सारे आँसू बहते हैं
\q2 क्योंकि मेरे लोग नष्ट हो गए हैं।
\q1
\v 49 मेरे आँसू लगातार बहते हैं;
\q2 और वे नहीं रुकेंगे
\q1
\v 50 जब तक कि यहोवा स्वर्ग से नीचे नहीं देखते।
\q1
\s5
\v 51 मेरे शहर की स्त्रियों के साथ क्या हुआ है
\q2 उनके कारण मैं बहुत दुःखी हूँ।
\q1
\v 52 मेरे शत्रुओं ने मेरा शिकार किया
\q2 जैसे लोग एक पक्षी का शिकार उसे मारने के लिए करते हैं
\q1 हालाँकि उनके लिए ऐसा करने का कोई कारण नहीं था।
\q1
\v 53 उन्होंने मुझे मारने के लिए गड्ढे में फेंक दिया,
\q2 और इसके ऊपर एक भारी पत्थर रख दिया।
\q1
\v 54 गड्ढे में पानी मेरे सिर के ऊपर तक बढ़ गया,
\q2 और मैंने स्वयं से कहा, ‘मैं मरने वाला हूँ!
\q1
\s5
\v 55 परन्तु गड्ढे के तल से मैंने आपको पुकारा,
\q2 ‘हे यहोवा, मेरी सहायता करें!
\q1
\v 56 मैंने आपसे अनुरोध किया,
\q2 ‘जब मैं आपको पुकारता हूँ तब मेरी आवाज सुनने से मना मत करो!
\q1
\v 57 आपने मुझे उत्तर दिया
\q2 और कहा, ‘मत डर!
\q1
\s5
\v 58 हे यहोवा, जब लोग मेरी निन्दा करना और मुझे दंड देना चाहते थे तब आपने मेरा पक्ष लिया।
\q2 आपने मुझे मरने की अनुमति नहीं दी।
\q1
\v 59 अब, हे यहोवा, आप ने उन बुरे कामों को देखा है जो शत्रुओं ने मेरे साथ किए हैं,
\q2 इसलिये मेरी परिस्थिति का न्याय करें और दिखा दें कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है।
\q1
\v 60 आप उन बुरे कामों को जानते हैं
\q2 जो वे मेरे साथ करने की योजना बना रहे हैं।
\q1
\v 61 हे यहोवा, आपने उन्हें मुझे अपमानित करते सुना है;
\q2 आपने सुना है वह सब जो वे मेरे साथ करने की योजना बना रहे हैं।
\q1
\s5
\v 62 हर दिन वे मेरे विषय कई बातें फुसफुसाते और बुड़बुड़ाते हैं,
\q2 पूरे दिन।
\q1
\v 63 उन पर दृष्टि करो! जो कुछ भी वे इस समय कर रहे हैं,
\q2 वे गीत गाकर मेरा मजाक बनाते हैं।
\q1
\s5
\v 64 यहोवा, उन्हें वह दें जिसके वे लायक हैं!
\q2 उन्हें वापस उसका भुगतान करें जो उन्होंने मेरे साथ किया है!
\q1
\v 65 जो कुछ वे करना चाहते हैं, आप उन्हें वह करने की अनुमति देते हैं,
\q2 और आप उनकी शर्मिंदगी को लेकर उन्हें दंडित करते हैं।
\q2 यही कारण है कि आपका शाप उन पर है।
\q1
\v 66 क्योंकि आप उनसे क्रोधित हैं, उनका पीछा करें और उनसे छुटकारा पाएँ,
\q2 जब तक उनमें से कोई भी पृथ्वी पर न बचे।“
\s5
\c 4
\q1
\v 1 पहले हमारे लोग शुद्ध सोने के समान थे,
\q2 परन्तु अब वे बेकार हैं।
\q1 जैसे हमारे शत्रुओं ने आराधनालय के पवित्र पत्थरों को बिखेर दिया है,
\q2 वैसे ही उन्होंने हमारे जवान पुरुषों को भी बिखेर दिया है।
\q1
\v 2 यरूशलेम के युवा सोने की अत्यधिक मात्रा के समान मूल्यवान थे,
\q2 परन्तु अब लोग उन्हें साधारण मिट्टी के बर्तन के समान व्यर्थ मानते हैं।
\q1
\s5
\v 3 मादा सियार भी अपने बच्चों को दूध पिलाती है,
\q2 परन्तु मेरे लोग अपने बच्चों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते हैं;
\q1 माएँ रेगिस्तान के शुतुरमुर्ग के समान हैं जो अपने अंडे छोड़ देती हैं।
\q1
\s5
\v 4 मेरे लोगों के शिशुओं की जीभें उनके मुँह के ऊपर अन्दर में चिपक जाती हैं
\q2 क्योंकि वे शिशु बेहद प्यासे हैं;
\q1 बच्चे कुछ भोजन के लिए अनुरोध करते हैं,
\q2 परन्तु कोई भी उन्हें कुछ नहीं देता है।
\q1
\v 5 पहले लोग अच्छा भोजन खा चुके थे
\q2 अब सड़कों में भूखे पड़े हुए हैं;
\q1 जो पहले अच्छे कपड़े पहनते थे
\q2 अब खाने के लिए कुछ भी नहीं होने के कारण कूड़े के ढेर पर लेटते हैं।
\q1
\s5
\v 6 सदोम के लोग एक आपदा में अचानक मर गए।
\q2 परन्तु परमेश्वर ने मेरे लोगों को
\q2 सदोम के लोगों की तुलना में अधिक गंभीरता से दंडित किया,
\q और कोई भी उन सब के बारे में चिंतित नहीं था जो हमने सहा।
\q1
\s5
\v 7 हमारे अगुवे शुद्ध बर्फ या सफेद दूध के समान रहते थे,
\q2 वे बहुत साफ और निर्दोष थे।
\q1 उनके शरीर स्वस्थ थे,
\q2 मूंगे जैसे गुलाबी और नीलमणि के समान शानदार।
\q1
\v 8 अब हमारे अगुवों के चेहरे कालिख से भी अधिक काले हैं,
\q2 और सड़कों पर आते जाते कोई भी उन्हें पहचानता नहीं।
\q1 उनकी त्वचा मुरझा गई है और उनकी हड्डियों पर लटक गई है,
\q2 और लकड़ी की छड़ी के समान सूख गई है।
\q1
\s5
\v 9 भूख से मरने की तुलना में
\q2 युद्ध में मरना अच्छा है।
\q1 खेतों में कटनी के लिए कोई भोजन नहीं था,
\q2 इसलिए लोग मरने तक धीरे धीरे भूखे मरते रहे।
\q1
\v 10 स्त्रियाँ जो आमतौर पर प्रेम और करुणा के साथ काम करती हैं
\q2 उन्होंने अपने खुद के बच्चों को मार डाला और पकाया
\q1 उन्होंने उन्हें खा लिया क्योंकि और कोई भोजन नहीं था,
\q2 जब आक्रमण करने वाली सेनाओं के द्वारा यरूशलेम को नष्ट किया जा रहा था।
\q1
\s5
\v 11 यहोवा ने सब को दिखा दिया कि वे अपने लोगों से कितने क्रोधित थे!
\q1 उनका क्रोध सिय्योन (यरूशलेम का एक शहर) में आग की तरह फैल गया
\q2 जिसने शहर के चट्टानी नींव तक को जला दिया।
\q1
\s5
\v 12 पृथ्वी के किसी भी राजा ने या किसी ने भी विश्वास नहीं किया
\q2 कि हमारा कोई भी शत्रु यरूशलेम के फाटकों में प्रवेश कर सकता है।
\q1
\v 13 परन्तु यही हुआ;
\q2 ऐसा हुआ क्योंकि भविष्यद्वक्ताओं ने पाप किया;
\q1 याजकों ने भी पाप किया
\q2 निर्दोष लोगों के मरने के कारण।
\q1
\s5
\v 14 याजक और भविष्यद्वक्ता सड़कों पर ऐसे भटकते हैं
\q2 जैसे कि वे अंधे थे।
\q1 कोई भी उन्हें नहीं छूएगा
\q2 क्योंकि उनके कपड़े उन निर्दोष लोगों के खून से रंगे हुए हैं।
\q1
\v 15 ये लोग याजक और भविष्यद्वक्ताओं पर यह कहते हुए चिल्लाने लगे,
\q2 “हमसे दूर रहो! हमें मत छुओ!”
\q1 इसलिए याजक और भविष्यद्वक्ता इस्राएल से भाग गए हैं,
\q2 और वे एक देश से दूसरे देश में भटकते हैं,
\q2 परन्तु प्रत्येक देश में लोग उन्हें कहते रहते हैं, “तुम यहाँ नहीं रह सकते!”
\q1
\s5
\v 16 यहोवा ने स्वयं ही उन्हें बिखेर दिया है;
\q2 वे अब उनके बारे में चिंतित नहीं हैं।
\q1 लोग अब हमारे याजकों का स्वागत नहीं करते, और वे प्राचीनों की कुछ भी परवाह नहीं करते।
\q1
\s5
\v 17 इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हम सहायता करने के लिए किसी की तलाश करते रहें,
\q2 परन्तु यह व्यर्थ था।
\q1 हम यह देखते रहे कि देखें कि क्या हमारे सहयोगियों में से कोई हमें बचाएगा,
\q2 परन्तु जिन देशों की हम प्रतीक्षा कर रहे थे उनमें से कोई भी हमारी सहायता करने का इच्छुक नहीं था।
\q1
\v 18 हमारे शत्रु हमारा पीछा कर रहे थे,
\q2 इसलिए हम अपनी सड़कों पर भी नहीं चल सके क्योंकि वे हमें कैद कर सकते थे।
\q1 हमारे शत्रु हमें पकड़ने ही वाले थे;
\q2 यह उनके लिए हमें मारने का समय था।
\q1
\s5
\v 19 जो लोग हमारे पीछे दौड़ते थे वे आसमान में उड़ने वाले ऊकाब से तेज थे।
\q1 यहाँ तक कि अगर हम पहाड़ों पर भाग जाएँ
\q2 या रेगिस्तान में छिप जाएँ,
\q2 वे हमारे आगे वहाँ गए और हम पर हमला करने की प्रतीक्षा की।
\q1
\v 20 हमारा राजा, जिसे यहोवा ने नियुक्त किया था,
\q2 वह जिन्होंने हमें जीने में सक्षम बनाया,
\q1 जिस पर हमने बचाने का भरोसा किया था
\q2 जब हमें अन्य देशों में गुलामों के रूप में रहना पड़ा-
\q1 शत्रुओं ने उसे पकड़ लिया,
\q2 जैसे तुम गड्ढे में किसी जानवर को पकड़ते हो।
\q1
\s5
\v 21 एदोम और ऊज के लोगों!
\q2 जब तुम खुश हो सको तब तुम्हें खुश रहना चाहिए,
\q1 परन्तु यहोवा तुम्हें भी दंडित करेंगे।
\q2 तुम इतने नशे में हो जाओगे कि तुम अपने कपड़ो को उतार कर फेंक दोगे।
\q1
\v 22 तुम सिय्योन के लोगों (जिनका घर यरूशलेम में है)
\q2 वह समय आएगा जब यहोवा तुमको तुम्हारे पापों के लिए दंडित करेंगे और तुम समाप्त हो जाओगे।
\q1 वे उस समय का अंत करेंगे जिसे तुमको बंधुआई में बिताना होगा।
\q2 परन्तु तुम लोग जो एदोम से हो, यहोवा तुम्हें तुम्हारे पापों के लिए दंडित करेंगे
\q2 और वह तुम्हारे द्वारा किए गए सभी बुरे कामों के विषय सब को बताएँगे।
\s5
\c 5
\q1
\v 1 हे यहोवा, इस के विषय विचार करें जो हमारे साथ हुआ।
\q2 देखो कि कैसे कोई भी अब हमारा सम्मान नहीं करता।
\q1
\v 2 विदेशियों ने हमारी संपत्ति पर कब्जा कर लिया,
\q2 और अब वे हमारे घरों में रहते हैं।
\q1
\v 3 हमारे शत्रुओं ने हमारे पिताओं को मार डाला,
\q2 और हमारी माँओं को विधवा बना दिया।
\q1
\v 4 अब वे हम से पानी पीने के लिए भुगतान करवाते हैं,
\q2 और जलाने की लकड़ी के लिए भुगतान करवाते हैं।
\q1
\s5
\v 5 शत्रु हमारे पीछे दौड़ता है और हमारे बहुत करीब है;
\q2 हम थक गए हैं, परन्तु वे हमें आराम करने की अनुमति नहीं देते।
\q1
\v 6 जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन प्राप्त करने के लिए,
\q2 हमने मिस्र और अश्शूर से सहायता करने के लिए आग्रह किया।
\q1
\v 7 हमारे पूर्वजों ने पाप किया, और अब वे मर चुके हैं,
\q2 परन्तु हम उन पापों के लिए पीड़ित हैं जो उन्होंने किए हैं।
\q1
\s5
\v 8 अब जो लोग हमारे ऊपर शासन करते हैं वे स्वयं बाबेल में रहने वाले अपने स्वामी के दास हैं।
\q2 कोई भी नहीं है जो हमें अपनी शक्ति से बचा सकता है।
\q1
\v 9 हम भोजन की तलाश में बहुत दूर जाते हैं, परन्तु जब हम ऐसा करते हैं,
\q2 तो जंगल में रहने वाले लुटेरों की वजह से मृत्यु का खतरा हैं।
\q1
\v 10 हमारी त्वचा भट्ठी के समान गर्म हो गई है,
\q2 और हमें बहुत तेज बुखार है क्योंकि हमें बेहद भूख लगी है।
\q1
\s5
\v 11 हमारे शत्रुओं ने यरूशलेम में स्त्रियों को अशुद्ध किया है,
\q2 और उन्होंने यहूदिया के सभी नगरों में जवान स्त्रियों के साथ भी ऐसा किया है।
\q1
\v 12 हमारे शत्रुओं ने हमारे अगुवो को फाँसी दी,
\q2 और उन्होंने हमारे प्राचीनों का सम्मान नहीं किया।
\q1
\s5
\v 13 वे हमारे जवान पुरुषों को चक्की के पत्थरों से अनाज पीसने के लिए मजबूर करते हैं,
\q2 और युवा लड़के घबराते हैं जब उन्हें जलावन की लकड़ी के बोझ को ले जाने के लिए मजबूर किया जाता है।
\q1
\v 14 हमारे प्राचीन अब महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए शहर के फाटकों पर नहीं बैठते;
\q2 युवा अब अपने वाद्ययंत्र नहीं बजाते।
\q1
\s5
\v 15 हम अब खुश नहीं हैं;
\q2 खुशी से नाचने की अपेक्षा, अब हम शोक करते हैं।
\q1
\v 16 फूलों का सेहरा हमारे सिर से गिर गया है।
\q2 हमारे द्वारा किए गए पापों के कारण हमारे साथ भयानक बातें हुई हैं।
\q1
\s5
\v 17 हम थके हुए और निराश हैं,
\q2 और हम अच्छी तरह से नहीं देख सकते हैं क्योंकि हमारी आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं।
\q1
\v 18 यरूशलेम में अब कोई भी नहीं रहता
\q2 और सियार इसके चारों ओर शिकार खोजते हुए घूमते हैं।
\q1
\s5
\v 19 परन्तु हे यहोवा, आप सदा के लिए शासन करते हैं!
\q2 आप एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक शासन करना जारी रखते हैं।
\q1
\v 20 तो आप हमें क्यों भूल गए?
\q2 क्या आप हमें बहुत लम्बी अवधि के लिए छोड़ देंगे?
\q1
\v 21 कृपया हमें अपने पास वापस आने में सक्षम करें,
\q2 और हमें समृद्ध होने में सक्षम बनाएँ जैसा हमने पहले किया था।
\q1
\v 22 कृपया ऐसा करें, या क्या यह सच है कि आपने हमें सदा के लिए अस्वीकार कर दिया है?
\q2 क्या यह सच है कि आप कभी भी हमारे प्रति क्रोधित नहीं रहेंगे?

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\toc1 योएल
\toc2 योएल
\toc3 jol
\mt1 योएल
\s5
\c 1
\p
\v 1 मैं पतूएल का पुत्र योएल हूँ। यह एक संदेश है जो यहोवा ने मुझे दिया था।
\q1
\v 2 हे इस्राएल के अगुवों, और इस देश में सब रहनेवालों, यह संदेश सुनो!
\q2 जिस समय से हम रहते आ रहे हैं कभी भी ऐसा कुछ नहीं हुआ है
\q2 या उस समय भी जब हमारे पूर्वज रहा करते थे।
\q1
\v 3 अपने बच्चों को इसके विषय में बताओ,
\q2 और अपने बच्चों को कहो कि वे उनके बच्चों को यह बताएँ,
\q2 और अपने नाती-पोतों को कहो कि वे उनके बच्चों को यह बताएँ।
\q1
\s5
\v 4 मैं उन टिड्डियों के बारे में बात कर रहा हूँ जिन्होंने हमारी फसलों को खा लिया है।
\q2 टिड्डियों का पहला झुण्ड आया और फसलों की कई पत्तियों को काट डाला;
\q1 फिर एक और झुण्ड आया और बाकी पत्तियों को खा लिया,
\q2 फिर एक और झुण्ड उछलते हुए आया,
\q1 और अंत में एक और झुण्ड आया
\q2 और जो कुछ भी बचा सब नष्ट कर दिया।
\q1
\s5
\v 5 हे मतवालों तुम जाग उठो!
\q2 जाग उठो और ऊँचे स्वर से विलाप करो,
\q1 क्योंकि सारे दाख नष्ट हो चुके हैं,
\q2 और इसलिए अब कोई नया दाखरस नहीं होगा!
\q1
\v 6 टिड्डियों के विशाल झुण्ड ने हमारे देश में प्रवेश किया है।
\q2 वे एक शक्तिशाली सेना के जैसे हैं
\q1 जिसमें बहुत से सैनिक हैं;
\q2 उन्हें कोई भी नहीं गिन सकता है।
\q1 टिड्डियों के दाँत हैं जो शेरों के दाँत जैसे तेज हैं!
\q1
\v 7 उन्होंने हमारी दाख लताओं को और हमारे अंजीर के पेड़ों को नष्ट कर दिया है
\q2 उनकी छाल को उतार कर उन्हें खा लिया है,
\q2 जिसके परिणामस्वरूप शाखाएँ सफेद और नंगी हो गई हैं।
\q1
\s5
\v 8 एक युवती के समान रोओ और विलाप करो
\q2 जब उस युवक की मृत्यु हो गई है जिससे उसकी सगाई हो गई थी।
\q1
\v 9 हमारे पास परमेश्वर के भवन में भेंट चढ़ाने के लिए मैदा या दाखरस नहीं बचा है,
\q2 इसलिए जो याजक यहोवा की सेवा करते हैं वे शोक कर रहे हैं।
\q1
\v 10 खेतों की फसलें नष्ट हो गई हैं;
\q2 ऐसा लगता है कि भूमि स्वयं ही मरी हुई है।
\q1 अनाज नष्ट हो गया है,
\q2 दाखरस बनाने के लिए कोई दाख नहीं रहा,
\q2 और अब जैतून का तेल नहीं रहा।
\q1
\s5
\v 11 हे किसानों, दुःखी होओ!
\q2 तुम जो दाख की लताओं की देखभाल करते हो, विलाप करो,
\q1 क्योंकि अनाज नष्ट हो गया है;
\q2 कोई भी गेहूँ या जौ नहीं बढ़ रहा है।
\q1
\v 12 दाखलताएँ और अंजीर के पेड़ सूख गए हैं,
\q2 और अनार के पेड़, ताड़ के पेड़, और खुबानी के पेड़ भी सूख गए हैं।
\q1 लोग अब खुश नहीं हैं।
\q1
\s5
\v 13 हे याजकों, अपने ऊपर खुरदरे टाट ओढ़कर विलाप करो।
\q2 तुम जो वेदी पर बलिदान चढ़ाकर परमेश्वर की सेवा करते हो,
\q1 यह दिखाने के लिए कि तुम शोकित हो, पूरी रात उन टाट के कपड़ों को पहने रहो।
\q2 क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर के भवन में भेंट चढ़ाने के लिए कोई मैदा या दाखरस नहीं है।
\q1
\v 14 लोगों को उपवास करने के लिए एक दिन अलग करो।
\q1 अगुवों और अन्य लोगों को परमेश्वर के भवन में इकट्ठा होने के लिए कहो।
\q2 और वहाँ यहोवा को पुकारने के लिए कहो ।
\q1
\s5
\v 15 हमारे साथ भयानक बातें हो रही हैं!
\q2 यह जल्द ही वह समय होगा जब यहोवा, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, हमें दंडित करेंगे,
\q2 जब वह हमें अधिक आपदाओं का सामना करवाएँगे।
\q1
\v 16 हमारी फसलें पहले से ही खराब हो चुकी हैं,
\q2 और कोई भी हमारे परमेश्वर के भवन में बिलकुल भी आनन्दित नहीं है।
\q1
\v 17 जब हम बीज लगाते हैं, तो वे नहीं बढ़ते;
\q1 वे जमीन में सूख जाते हैं,
\q2 इसलिए कटाई करने के लिए कोई फसल नहीं है।
\q1 हमारे खलिहान खाली हैं;
\q2 उनमें जमा करने के लिए कोई अनाज नहीं है।
\q1
\s5
\v 18 हमारे पशु कराहते हैं, वे कुछ घास वाली चराई की खोज में हैं,
\q2 और भेड़ मिमियाती हैं क्योंकि वे पीड़ित हैं।
\q1
\v 19 हे यहोवा, मैं आपको पुकारता हूँ,
\q2 क्योंकि हमारी चराई और हमारे जंगल गर्म धूप में सूख गए हैं।
\q1
\v 20 ऐसा लगता है कि जंगली जानवर भी आपको पुकारते हैं
\q2 क्योंकि जल के सभी सोते सूख गए हैं।
\q2 सूखापन जंगल की चराईयों को जलाने वाली आग के समान है।
\s5
\c 2
\q1
\v 1 सिय्योन पर्वत पर तुरहियाँ फूँकों,
\q2 जो यरूशलेम में परमेश्वर का पहाड़ है!
\q1 यहूदा के लोगों को बताओ कि उन्हें डरना और काँपना चाहिए,
\q2 क्योंकि यह समय जल्द ही यहोवा के लिए हमें और अधिक दंडित करने का होगा।
\q1
\v 2 वह एक बहुत ही अंधकार और उदासीपूर्ण दिन होगा;
\q2 काले बादल छाए रहेंगे और बहुत अंधेरा होगा।
\q1 टिड्डियों के एक विशाल झुंड ने पहाड़ों को काले बादल के समान ढाँप लिया है।
\q1 ऐसा कुछ पहले कभी भी नहीं हुआ है,
\q2 और ऐसा कुछ फिर कभी भी नहीं होगा।
\q1
\s5
\v 3 ऐसा लगता है जैसे वे आग की लपटों को लेकर आते हैं
\q2 जिससे कोई भी बच नहीं सकता है।
\q1 उनके सामने, देश अदन के बगीचे के समान सुन्दर था,
\q2 परन्तु उनके पीछे देश एक मरुस्थल के समान है,
\q2 और कुछ भी नहीं बचा है।
\q1
\s5
\v 4 टिड्डियाँ घोड़ों के समान दिखाई देती हैं,
\q2 और वे घोड़ों पर बैठे सैनिकों के समान दौड़ती हैं।
\q1
\v 5 पहाड़ो के शिखर पर चढ़ना,
\q2 वे गड़गड़ाते रथों के समान शोर करते हैं,
\q1 एक शक्तिशाली सेना के समान जो युद्ध की तैयारी कर रही है,
\q2 या किसी आग की गर्जन के समान जो खेत की भूसी को भस्म कर देती है।
\q1
\s5
\v 6 जब लोग उन्हें आते हुए देखते हैं,
\q2 वे डर के मारे बहुत घबरा जाते हैं।
\q1
\v 7 टिड्डियाँ सैनिकों के समान दीवारों पर चढ़ती हैं;
\q2 वे एक साथ कतार में प्रस्थान करती हैं
\q1 और कभी भी अपनी पंक्तियों से अलग नहीं होती हैं।
\q1
\s5
\v 8 एक दूसरे को धक्का दिए बिना
\q2 वे सीधे आगे बढ़ती हैं।
\q1 हालाँकि लोग उन पर भाले और बरछी फेंकते हैं,
\q2 जो उन्हें रोक नहीं पाएँगे।
\q1
\v 9 वे नगर की दीवारों पर झुंड बनाते हैं और हमारे घरों में प्रवेश करते हैं;
\q2 वे चोरों के समान हमारी खिड़कियों के माध्यम से प्रवेश करते हैं।
\q1
\s5
\v 10 ऐसा लगता है कि वे धरती को हिलाते हैं और आकाश को कँपकँपा देते हैं।
\q2 सूर्य और चंद्रमा काले हो जाते हैं,
\q1 और सितारे चमकते नहीं हैं
\q2 क्योंकि आकाश में ढेर सारी टिड्डियाँ हैं।
\q1
\v 11 यहोवा इस अनगिनत टिड्डियों की सेना का नेतृत्व करते हैं,
\q2 और वे उनकी आज्ञाओं का पालन करती हैं।
\q1 यह समय बहुत भयानक है जब वह हमारा न्याय कर रहे हैं और हमें दंडित कर रहे हैं,
\q2 परिणामस्वरुप ऐसा लगता है कि कोई भी नहीं बच सकता है।
\p
\s5
\v 12 परन्तु यहोवा कहते हैं,
\q1 “इन आपदाओं का अनुभव करने के बावजूद भी,
\q2 तुम अपने सारे आंतरिक व्यक्तित्व के साथ मेरे पास वापस आ सकते हो।
\q1 यह दिखाने के लिए कि तुम खेदित हो कि तुमने मुझे छोड़ दिया है, रोओं, शोक करो और उपवास करो।
\q1
\v 13 यह दिखाने के लिए अपने कपड़े मत फाड़ो
\q2 कि तुम खेदित हो;
\q2 अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अपना आंतरिक व्यक्तित्व दिखाओ कि तुम खेदित हो।“
\q1 यहोवा दयालु और कृपालु है;
\q2 वह तुरन्त नाराज नहीं होते हैं;
\q1 वह विश्वासयोग्यता से लोगों से प्रेम करते हैं।
\q1 वह तुरन्त नाराज नहीं होते हैं;
\q2 बल्कि वह तुम्हें अधिकाई और विश्वासयोग्यता से प्रेम करते हैं,
\q2 और वह हमें दंडित करना पसन्द नहीं करते हैं।
\q1
\s5
\v 14 कोई भी नहीं जानता कि वह तुम्हे दंडित करने का मन बदल दे
\q2 और इसकी अपेक्षा दया से बर्ताव करे।
\q1 यदि वह ऐसा करते हैं, तो वह तुमको आशीर्वाद देंगे
\q2 तुमको बहुत सारे अनाज और दाखरस देने के द्वारा
\q2 ताकि तुम उनमें से कुछ चीज़ों को बलिदान करके चढ़ाओं।
\q1
\s5
\v 15 सिय्योन पर्वत पर तुरहियाँ फूँको!
\q2 लोगों को एक साथ इकट्ठा करो!
\q1 उपवास का समय ठहराओ, यह दिखाने के लिए कि तुम अपने पापों के लिए खेदित हो।
\q1
\v 16 स्वयं को यहोवा के लिए ग्रहणयोग्य बनाने के लिए रीति विधियों को पूरा करो।
\q2 अलग अलग जाओ और एक उद्देश्य के साथ एक समूह के रूप में मिलो-
\q1 बूढ़े लोग और बच्चे, यहाँ तक कि शिशु,
\q2 और दुल्हनों और दुल्हों को उनके कमरों से बुलाओ।
\q1
\s5
\v 17 उन याजकों से कहो जो यहोवा की सेवा करते हैं कि वेदी और प्रवेश द्वार के बीच रोएँ
\q2 और यह प्रार्थना करने के लिए कहोः
\q1 “हे यहोवा, हम, जो तेरे लोग हैं हमें बचा ले;
\q2 अन्य देशों के लोगों को हमें तुच्छ समझने न दे;
\q1 उन्हें हमारा उपहास करने और यह कहने की अनुमति न दे,
\q2 ‘उनके परमेश्वर ने उन्हें क्यों छोड़ दिया है?’“
\q1
\s5
\v 18 परन्तु यहोवा ने दिखाया कि वह अपने लोगों के बारे में चिंतित थे
\q2 और यह कि वह उनके प्रति दयापूर्ण कार्य करेंगे।
\p
\v 19 जब लोगों ने प्रार्थना की,
\q1 यहोवा ने उन्हें उत्तर दिया और कहा,
\q1 “मैं तुमको बहुत सारा अनाज और दाखरस और जैतून का तेल दूँगा,
\q2 और तुम संतुष्ट हो जाओगे।
\q1 अब मैं अन्य देशों को तुम्हें अपमानित करने की अनुमति नहीं दूँगा।
\q1
\s5
\v 20 टिड्डियों की एक और सेना उत्तर से तुम पर हमला करने आएगी,
\q2 परन्तु मैं उन्हें यरूशलेम के पास से होकर
\q2 रेगिस्तान में जाने के लिए मजबूर करूँगा।
\q1 कुछ पूर्व में मृत सागर में जाएँगी,
\q2 और कुछ पश्चिम में भूमध्य सागर में जाएँगी।
\q1 वहाँ वे सभी मर जाएँगी, और उनके शरीर डूब जाएँगे।“
\q2 परमेश्वर निश्चित रूप से अद्भुत कामों को करेंगे।
\q2
\s5
\v 21 यहोवा सच में अद्भुत काम करेंगे!
\q2 इसलिए भूमि को भी खुश होना चाहिए!
\q1
\v 22 और जंगली जानवरों को डरना नहीं चाहिए,
\q2 क्योंकि घास जल्द ही फिर से हरी हो जाएगी;
\q1 अंजीर के पेड़ और अन्य पेड़ फल से भर जाएँगे,
\q2 और दाख की लताएँ दाख से ढँप जाएँगी।
\q1
\v 23 तुम यरूशलेम के लोगों,
\q2 इस बात से आनन्द करो जो यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारे लिए करेंगे।
\q1 वह सही समय पर भारी मात्रा में वर्षा भेज देंगे-
\q2 वसंत ऋतु में और शरद ऋतु में,
\q2 जैसा कि उन्होंने पहले किया था।
\q1
\s5
\v 24 जिस भूमि पर तुम अनाज को दाँवते हो, उसे अनाज से ढक दिया जाएगा,
\q2 और तुम्हारे हौद जहाँ तुम ताजे दाखरस को और जैतून के तेल को जमा करते हो वह उमड़ने लग जाएँगे।
\q1
\v 25 यहोवा ने कहा, “मैं उन सभी चीज़ों का दाम तुमको चुका दूँगा जो टिड्डियों के उन बड़े झुंडों से नष्ट हो गए थे,
\q2 उस विशाल सेना जिसे मैंने तुम पर हमला करने के लिए भेजा था।
\q1
\s5
\v 26 तुम जो मेरे लोग हो, तब तक खाओगे जब तक कि पेट भर न जाए।
\q2 तब तुम मेरी, यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर की, स्तुति करोगे,
\q2 उन अद्भुत कामों के लिए जो मैंने तुम्हारे लिए किए हैं।
\q1 और कभी भी मैं दूसरों को तुम्हें लज्जित नहीं करने दूँगा।
\q1
\v 27 जब ऐसा होता है, तो तुम जान लोगे कि मैं सदा तुम्हारे बीच हूँ,
\q2 कि मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, हूँ,
\q2 और यह कि कोई अन्य परमेश्वर नहीं है।
\q1 कभी भी मैं दूसरों को तुम्हें लज्जित नहीं करने दूँगा।"
\q1
\s5
\v 28 “कुछ समय बाद, मैं अपनी आत्मा को कई लोगों को दूँगा।
\q2 तुम्हारे बेटे और बेटियाँ उन संदेशों का प्रचार करेंगे जो सीधे मुझ से आते हैं।
\q1 तुम्हारे बूढ़े पुरुष मेरे पास से आने वाले सपने पाएँगे,
\q2 और तुम्हारे जवान पुरुष मेरे पास से आने वाले दर्शन पाएँगे।
\q1
\v 29 उस समय, मैं अपनी आत्मा दासों को भी, पुरुषों और महिलाओं दोनों को दूँगा।
\q1
\s5
\v 30 मैं पृथ्वी पर और आकाश में असाधारण कामों को करूँगा।
\q2 धरती पर, बहुत अधिक रक्त बहाव होगा,
\q2 और विशाल बादलों जैसी दिखने वाली बहुत बड़ी आग और धुआँ होगा।
\q1
\v 31 आकाश में, सूर्य अंधकारमय हो जाएगा, और चंद्रमा रक्त के समान लाल हो जाएगा।
\q2 वह बातें उस महान और भयानक दिन से पहले होंगी जब मैं, यहोवा, सभी लोगों का न्याय करने के लिए आऊँगा।
\q1
\s5
\v 32 परन्तु उस समय मैं उन सभी को बचाऊँगा जो मेरी आराधना करते हैं।
\q2 मैं वादा करता हूँ कि यरूशलेम में कुछ लोग उन आपदाओं से बच जाएँगे;
\q2 जिन्हें मैंने चुना है वे जीवित रहेंगे।“
\s5
\c 3
\p
\v 1 यहोवा यह कहते हैंः
\q1 “उस समय, मैं उन लोगों को वापस लाऊँगा जिन्हें उनके शत्रु यरूशलेम से और यहूदा के अन्य स्थानों से दूर ले गए थे।
\q1
\v 2 तब यहोशापात की घाटी में मैं अन्य सभी राष्ट्रों के लोगों को इकट्ठा करूँगा;
\q2 मैं उनका न्याय करूँगा और उन्हें दण्ड दूँगा
\q1 क्योंकि उन्होंने मेरे इस्राएली लोगों को अलग-अलग बिखरा दिया
\q2 और उन्हें अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर किया,
\q2 और क्योंकि उन्होंने मेरे देश को अपने बीच आपस में बाँटा।
\q1
\v 3 उन्होंने यह निर्धारित करने के लिए भाग्य का खेल खेला कि मेरे प्रत्येक व्यक्ति में से किसको कौन मिलेगा।
\q1 फिर उन्होंने कुछ इस्राएली लड़कों और लड़कियों को
\q2 वेश्याओं और दाखमधु पीने के पैसे पाने के लिए बेच दिया।
\p
\s5
\v 4 तुम सूर और सैदा के नगरों के लोगों, और तुम पलिश्त के लोगों- तुम मुझ से नाराज हो, परन्तु तुम्हारे पास नाराज होने का कोई कारण नहीं है। यदि तुम मुझ से बदला लेने का प्रयास कर रहे हो, तो मैं बहुत जल्द ही तुम से बदला ले लूँगा।
\v 5 तुमने मेरे भवन से चाँदी, सोना और अन्य मूल्यवान चीजें लीं और उन्हें अपने स्वयं के मन्दिरों में रख दिया।
\v 6 तुमने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों के लोगों को खींच कर बाहर निकाला, और तुम उन्हें दूर ले गए और उन्हें यूनानी व्यापारियों को बेच दिया।
\p
\s5
\v 7 परन्तु मैं अपने लोगों का उन स्थानों से वापस लौटना सम्भव बनाऊँगा जहाँ तुमने उन्हें बेच दिया था, और मैं तुम्हारे साथ भी वैसा ही करूँगा जैसा तुमने उनके साथ किया।
\v 8 तब मैं तुम्हारे कुछ पुत्रों और पुत्रियों को यहूदा के लोगों को बेच दूँगा! और वे सबिया लोगों के समूह को बेचे जाएँगे, जो बहुत दूर रहते हैं। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने, यह कहा है।“
\q1
\s5
\v 9 सब देशों के लोगों को यह घोषणा सुना दो,
\q2 “युद्ध के लिए तैयारी करो!
\q1 अपने सैनिकों को बुलाओ;
\q2 उन्हें अपने युद्ध की स्थिति में खड़े होने के लिए कहो।
\q1
\v 10 अपने हलों को लेकर उनसे तलवारें बनाओ;
\q2 अपने कटाई करने वाले चाकू लेकर उनसे भाले बनाओ।
\q1 यहाँ तक कि कमजोर लोगों को यह भी कहना चाहिए कि वे मजबूत सैनिक हैं।
\q1
\s5
\v 11 यहूदा के आसपास के देशों के सब लोगों को
\q2 जल्दी आना चाहिए और वहाँ इकट्ठा होना चाहिए।“
\q1 परन्तु यहोवा, जब ऐसा होता है, तो उन पर हमला करने के लिए अपने स्वर्गदूतों की सेना को भेज दे!
\q1
\s5
\v 12 यहोवा कहते हैं, “यहूदा के आसपास के देशों के लोग तैयार हो जाएँ और यहोशापात की घाटी में आएँ।
\q2 वहाँ मैं एक न्यायी के रूप में बैठूँगा, और मैं उन्हें दण्ड दूँगा।
\q1
\v 13 वे उन फसलों के समान हैं जो कटाई के लिए तैयार हैं;
\q2 तो एक किसान के रूप में उन पर प्रहार करो जैसे वह अनाज की कटनी करने के लिए अपने हँसुए को चलाता है।
\q1 वे अंगूरों के समान हैं जिनका ऊँचा ढेर हौद में लगाया गया है जहाँ उन्हें कुचला जाएगा;
\q2 क्योंकि वे बहुत दुष्ट हैं,
\q1 अब उन्हें गंभीर रूप से दंडित कर,
\q2 जैसे एक किसान हौद से रस के उमड़ने तक अंगूरों को रौंदता है।“
\q1
\s5
\v 14 न्याय की उस घाटी में लोगों की विशाल भीड़ का शोर होगा।
\q2 जल्द ही वह समय होगा जब यहोवा उन्हें दंडित करेंगे।
\q1
\v 15 उस समय सूर्य या चंद्रमा से कोई प्रकाश नहीं होगा,
\q2 और सितारे नहीं चमकेंगे।
\q1
\s5
\v 16 यरूशलेम में सिय्योन पर्वत से यहोवा गरजेंगे;
\q2 उसकी आवाज तूफान के समान होगी,
\q2 और उसकी आवाज से आकाश और पृथ्वी हिल जाएँगे।
\q1 परन्तु यहोवा अपने लोगों की रक्षा करेंगे;
\q2 वह एक मजबूत दीवार के समान होंगे जिसके पीछे इस्राएल के लोग सुरक्षित होंगे।
\q1
\v 17 यहोवा कहते हैं, “उस समय, तुम इस्राएली लोगों को पता चलेगा कि मैं तुम्हारा परमेश्वर, यहोवा हूँ।
\q2 मैं सिय्योन पर रहता हूँ, जिस पहाड़ी को मैंने अपने लिए अलग कर दिया है।
\q1 यरूशलेम मेरे लिए एक बहुत खास शहर होगा,
\q2 और अन्य देशों के सैनिक कभी इसे फिर से जीत नहीं पाएँगे।
\q1
\s5
\v 18 उस समय, पहाड़ियों को ढँकने वाली दाख की बारियाँ होंगी,
\q2 और उन पहाड़ों पर तुम्हारे पशु और बकरियाँ बहुत सारे दूध का उत्पादन करेंगी।
\q2 यहूदा में नदी की धाराएँ कभी नहीं सूखेंगी,
\q1 और एक धारा मेरे भवन से मृत सागर के पूर्वोत्तर दिशा की शित्तीम घाटी में बह जाएगी।
\q1
\v 19 मिस्र और एदोम की सेनाओं ने यहूदा के लोगों पर हमला किया
\q2 और कई लोगों को मार डाला जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था।
\q1 इसलिए अब उन देशों को बर्बाद कर दिया जाएगा, अब वहाँ कोई भी नहीं रह पाएगा।
\q1
\s5
\v 20 परन्तु यरूशलेम में और यहूदिया के अन्य स्थानों में लोग सदा रहते रहेंगे।
\q1
\v 21 मैं, यहोवा, यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर रहता हूँ,
\q2 और मैं मिस्र और एदोम के लोगों से बदला लूँगा जिन्होंने मेरे कई लोगों को मार डाला।“

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\id AMO Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h आमोस
\toc1 आमोस
\toc2 आमोस
\toc3 amo
\mt1 आमोस
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह वह संदेश है जिसे यहोवा ने आमोस को दिया, जो यरूशलेम के दक्षिण में तेकोआ शहर के पास एक चरवाहा था। उसे दर्शन में इस्राएल के बारे में यह संदेश उस बड़े भूकंप से दो साल पहले मिला था। जब उज्जिय्याह, यहूदा का राजा था और राजा योआश का पुत्र यारोबाम इस्राएल का राजा था।
\v 2 आमोस ने जो कहा वह यह हैः
\q1 “यहोवा बहुत जोर से गर्जन करेंगे;
\q2 जब वे यरूशलेम में सिय्योन पर्वत से बोलते हैं, तो उनकी आवाज़ तूफान की तरह लगती है।
\q1 जब ऐसा होता है, तब चारागाह जहाँ तुम चरवाहे अपनी भेड़ों की देखभाल करते हो, सूख जाएँगे,
\q2 और कर्मेल पर्वत के शिखर पर की घास सूख जाएगी
\q2 क्योंकि यहोवा बारिश न होने का आदेश देंगे।“
\s5
\v 3 यह भी वही है जो यहोवा ने मुझसे कहा थाः
\q1 “मैं अराम की राजधानी दमिश्क के लोगों को, उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दण्ड दूँगा;
\q2 उन क्रूर कामों के कारण जो उन्होंने गिलाद के लोगों के साथ किए थे,
\q1 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा।
\q1
\v 4 मैं उस महल को जलाने के लिए आग लगा दूँगा जिस महल का निर्माण करवा कर राजा हजाएल उसमें रहता है,
\q2 उस किले को भी जहाँ उसका बेटा राजा बेन्हदद भी रहता है।
\q1
\s5
\v 5 मैं दमिश्क के फाटकों को तोड़ दूँगा;
\q2 मैं आवेन की घाटी के राजा से छुटकारा पाऊँगा
\q1 और उस व्यक्ति से जो बेतएदेन में शासन करता है।
\q2 अराम के लोगों को पकड़ा जाएगा और कीर के क्षेत्र में ले जाया जाएगा।“
\s5
\v 6 यहोवा ने यह भी मुझसे कहा:
\q1 “मैं पलिश्ती के नगरों के लोगों को दंड दूँगा;
\q2 मैं गाजा के लोगों को उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दंडित करूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा,
\q1 क्योंकि उन्होंने लोगों के बड़े समूहों पर अधिकार कर लिया और उन्हें एदोम ले गए
\q2 और उन्हें वहाँ लोगों के दास बनने के लिए बेच दिया।
\q1
\v 7 मैं गाजा की दीवारों को पूरी तरह जलाने के लिए आग लगा दूँगा
\q2 और इसके किलों को भी नष्ट कर दूँगा।
\q1
\s5
\v 8 मैं अश्दोद शहर के राजा से छुटकारा पाऊँगा
\q2 और उस राजा से जो अशकेलोन शहर में शासन करता है।
\q1 मैं एक्रोन के लोगों पर भी प्रहार करूँगा,
\q2 और पलिश्त के सभी लोग जो अभी जीवित हैं, मारे जाएँगे।“
\s5
\v 9 यहोवा ने मुझसे यह भी कहा:
\q1 “मैं सूर शहर के लोगों द्वारा किए गए कई पापों के कारण वहाँ के लोगों को दंड दूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा
\q1 क्योंकि उन्होंने हमारे लोगों के बड़े समूहों पर अधिकार कर लिया और उन्हें एदोम ले गए,
\q2 दोस्ती की संधि को अनदेखा करते हुए जो उन्होंने तुम्हारे शासकों के साथ समझौता किया था।
\q1
\v 10 इसलिए मैं सूर की दीवारों को पूरी तरह जलाने के लिए आग लगा दूँगा
\q2 और इसके किलों को भी नष्ट कर दूँगा।“
\s5
\v 11 यहोवा ने मुझसे यह भी कहा:
\q1 “मैं एदोम के लोगों को उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दंड दूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा,
\q1 क्योंकि उन्होंने इस्राएल के लोगों का पीछा किया, जो एसाव के भाई याकूब के वंशज हैँ, और तलवार से उन्हें मार डाला;
\q2 उन्होंने उनके प्रति दया का कार्य नहीं किया।
\q1 वे इस्राएल के लोगों से बहुत नाराज थे,
\q2 और उन्होंने उनके साथ नाराज रहना जारी रखा।
\q1
\v 12 मैं एदोम में तेमान के जिले को जलाने के लिए आग लगा दूँगा
\q2 और एदोम के सबसे बड़े शहर बोस्रा के किलों को पूरी तरह से जला दूँगा।“
\s5
\v 13 यहोवा ने मुझसे यह भी कहा:
\q1 “मैं अम्मोनियों को उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दंडित करूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा,
\q1 क्योंकि उनके सैनिकों ने गर्भवती महिलाओं के पेट को भी फाड़ कर खोल दिया
\q2 जब उनकी सेना ने अधिक क्षेत्र प्राप्त करने के लिए गिलाद के क्षेत्र पर हमला किया।
\q1
\s5
\v 14 मैं रब्बा शहर की दीवारों को पूरी तरह जलाने के लिए आग लगा दूँगा
\q2 और उनके किलों को पूरी तरह से जलाने के लिए।
\q1 उस युद्ध के दौरान, उनके दुश्मन जोर से चिल्लाएँगे
\q2 और वह लड़ाई महान तूफान की तरह होगी।
\q1
\v 15 युद्ध के बाद, अम्मोन का राजा और उसके अधिकारी बंधुआई में जाएँगे।“
\s5
\c 2
\p
\v 1 यहोवा ने यह भी कहा:
\q1 “मैं मोआब के लोगों को उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दंड दूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा,
\q1 क्योंकि उन्होंने एदोम के राजा की हड्डियों को खोद कर बाहर निकाला और उन्हें पूरी तरह से जला दिया,
\q2 जिसके परिणाम स्वरूप राख चूने के समान सफेद हो गई।
\q1
\s5
\v 2 इसलिए मैं मोआब में केरीओथ शहर के किले को पूरी तरह से जलाने के लिए आग लगा दूँगा।
\q2 जब मैं मोआब को नष्ट कर रहा होऊँगा;
\q2 लोग सैनिकों को चिल्लाते और जोर से तुरहियाँ फूँकते सुनेंगे,
\q1
\v 3 और जब मैं उसके राजा और उसके सभी अगुओं से छुटकारा पा रहा हूँ।
\q2 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!”
\s5
\v 4 यहोवा ने यह भी कहा:
\q1 “मैं यहूदा के लोगों को उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दंडित करूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा,
\q1 क्योंकि मैंने जो कुछ भी उन्हें सिखाया है उन्होंने उसे नकार दिया है
\q2 और उन्होंने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया है।
\q1 उन्हें धोखा दिया गया है और झूठे देवताओं की पूजा करने के लिए राजी किया गया है,
\q2 उन्हीं देवताओं को जिन्हें उनके पूर्वजों ने पूजा था।
\q1
\v 5 इसलिए मैं यरूशलेम में किलों सहित यहूदा में सब कुछ जलाने के लिए आग लगा दूँगा।“
\s5
\v 6 यहोवा ने यह भी कहा:
\q1 “मैं इस्राएल के लोगों को उनके द्वारा किए गए कई पापों के कारण दंडित करूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित करने के बारे में अपना मन नहीं बदलूँगा,
\q1 क्योंकि वे धार्मिक लोगों को चाँदी का एक छोटा अंश प्राप्त करने के बदले बेच देते हैं;
\q2 वे गरीब लोगों को बेच देते हैं, जिससे वे गुलाम बन जाते हैं,
\q2 उनमें से प्रत्येक के लिए केवल इतना सा ही धन प्राप्त हो रहा है जिससे कि वे जूतियों की एक जोड़ी मात्र खरीद सकते हैं।
\q1
\s5
\v 7 ऐसा लगता है कि वे गरीब लोगों को गंदगी में ढकेल देते हैं
\q2 और असहाय के साथ सही प्रकार से व्यवहार नहीं करते हैं।
\q2 व्यक्ति और उसके पिता एक ही दासी लड़की के साथ सोकर मुझे अपमानित करते हैं।
\q1
\v 8 जब गरीब लोग पैसे उधार लेते हैं,
\q2 तो उधार देने वाले उन लोगों को मजबूर करते हैं कि वे उन्हें जमानती रूप में कपड़ों का एक टुकड़ा दें जब तक कि वह पैसे वापस न करे।
\q1 परन्तु प्रत्येक दिन के अंत में, उस वस्त्र को लौटाने की अपेक्षा, जैसा कि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी,
\q2 वे उन जगहों पर उस वस्त्र पर लेट जाते हैं जहाँ वे अपने देवताओं की पूजा करते हैं!
\q1 वे लोगों से विभिन्न कारणों से पैसों का भुगतान करवाते हैं,
\q2 और फिर वे अपने देवताओं के मन्दिरों में शराब पीते हैं।
\q1
\s5
\v 9 बहुत पहले, तुम्हारे पूर्वजों की सहायता के लिए, मैंने आमोर लोगों के समूह से छुटकारा पा लिया।
\q2 वे देवदार के पेड़ों के समान लम्बे लगते थे
\q2 और ओक पेड़ों के समान मजबूत,
\q1 परन्तु मैं ने उनसे पूरी तरह से छुटकारा पा लिया,
\q2 जितनी आसानी से कोई किसी पेड़ की शाखाओं को काटता है और फिर खोद कर सारी जड़ों को निकाल देता है।
\q1
\v 10 मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया,
\q2 और फिर मैंने चालीस वर्षों तक रेगिस्तान से गुजरते हुए उनका नेतृत्व किया।
\q2 तब मैंने उन्हें एमोरियों पर और कनान देश पर विजय प्राप्त करने में सक्षम बनाया।
\q1
\s5
\v 11 मैंने तुम में से कुछ इस्राएलियों को भविष्यद्वक्ता होने के लिए चुना है,
\q2 और मैंने दूसरों को नाज़ीर बनने के लिए चुना जो पूरी तरह से मेरे लिए समर्पित थे।
\q1 तुम इस्राएल के लोग निश्चित रूप से जानते हो कि मैंने जो कहा है वह सच है!
\q1
\v 12 परन्तु तुमने उन भविष्यद्वक्ताओं को उन संदेशों को नहीं बताने का आदेश दिया जो मैंने उन्हें दिए थे,
\q1 और तुमने नाज़ीर को शराब पीने के लिए राजी किया,
\q2 जो मैंने उन्हें कभी नहीं करने के लिए कहा था।
\q1
\s5
\v 13 तो मैं तुम्हें कुचल दूँगा
\q2 अनाज से भरी गई बोगी के पहिये के समान जो जिस किसी भी वस्तु के ऊपर से होकर गुजरती है उसे कुचल डालती है।
\q1
\v 14 भले ही तुम तेजी से दौड़ते हो,
\q2 तुम बच नहीं सकोगे;
\q1 भले ही तुम मजबूत हो, तब भी ऐसा लगेगा जैसे तुम कमज़ोर हो,
\q2 और योद्धा खुद को बचाने में असमर्थ होंगे।
\q1
\s5
\v 15 भले ही तुम तीरों से अच्छी तरह मारने में समर्थ हो,
\q2 तुमको पीछे हटने के लिए मजबूर किया जाएगा;
\q1 अगर तुम तेजी से दौड़ते हो या यदि तुम घोड़े पर सवारी करते हो,
\q2 तुम स्वयं को बचाने में सक्षम नहीं होगे।
\q1
\v 16 यहाँ तक कि योद्धा जो बहुत बहादुर हैं, वे अपने हथियारों को छोड़ देंगे
\q2 जब वे उसी दिन भागने की कोशिश करते हैं जब मैं उनसे छुटकारा पाता हूँ।
\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है।“
\s5
\c 3
\p
\v 1 “हे इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हारे सारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया;
\q2 तो सुनो कि मैं तुम्हारे बारे में क्या कह रहा हूँ।
\q1
\v 2 पृथ्वी पर सभी लोगों के समूहों में से,
\q2 मैंने केवल तुम्हें चुना और तुम्हारा ख्याल रखा।
\q1 यही कारण है कि मैं तुमको
\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए पापों के लिए दंड दूँगा।”
\q1
\s5
\v 3 दो लोग निश्चित रूप से एक साथ नहीं चल सकते
\q2 यदि वे पहले से ही सहमत न हों कि वे किस स्थान के लिए साथ चलना चाहेंगे।
\q1
\v 4 जंगल में कोई शेर उस समय तक नहीं गरजता है
\q2 जब तक उसने किसी अन्य जानवर को नहीं मारा है।
\q1 वह अपनी गुफा में नहीं गरजता है
\q2 यदि वह किसी जानवर के मांस को नहीं खा रहा है जिसे उसने पकड़ा है।
\q1
\s5
\v 5 पक्षी को कोई भी नहीं पकड़ सकता है
\q2 यदि वह इसके पकड़ने के लिए जाल नहीं बिछाता है।
\q1 जाल लचक कर बंद नहीं होता है
\q2 जब तक कोई जानवर जाल पर न उछला हो।
\q1
\v 6 इसी प्रकार, किसी शहर में सभी लोग उस समय डरते हैं
\q2 जब वे किसी को संकेत के लिए तुरही बजाते हुए सुनते हैं
\q2 कि दुश्मन हमला कर रहे हैं।
\q1 और जब कोई शहर आपदा का सामना करता है,
\q2 तब पता चलता है कि यहोवा ही वे हैं जिन्होंने यह आपदा डाली है।
\q1
\s5
\v 7 यहोवा जो कुछ भी करने की योजना बनाते हैं,
\q2 वे अपने भविष्यद्वक्ताओं को इसके विषय में बताते हैं।
\q1
\v 8 प्रत्येक जन निश्चित रूप से भयभीत होता है जब वह शेर का गर्जना सुनते हैं;
\q2 यहोवा परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं को संदेश दिए हैं,
\q1 उन्हें निश्चित रूप से उन संदेशों को घोषित करना होगा,
\q2 भले ही वे संदेश लोगों को भयभीत करते हैं।
\q1
\s5
\v 9 अश्दोद के गढ़ों की रक्षा करने वाले लोगों के लिए घोषणा करो,
\q2 और उन लोगों के लिए भी जो मिस्र देश में किलों की रक्षा करते हैं, और यह कहो,
\q1 “सामरिया की पहाड़ियों पर एक साथ आओ,
\q2 और देखो कि उस शहर में लोग कितने डरे हुए हैं,
\q2 और देखो कि लोग एक दूसरे के साथ जो कुछ कर रहे हैं, इसी के कारण वे पीड़ित हैं!“
\q1
\v 10 यहोवा कहते हैं कि वहाँ के लोग नहीं जानते कि सही कामों को कैसे करें।
\q2 उनके घर मूल्यवान चीजों से भरे हुए हैं जिनकी उन्होंने चोरी की है या दूसरों से हिंसक रूप से लूट लिया है।
\s5
\v 11 इसलिए हमारा परमेश्वर यहोवा कहते हैं कि जल्द ही उनके शत्रु आएँगे
\q2 और उनकी सुरक्षा को नष्ट करेंगे
\q2 और उन मूल्यवान चीजों को लूट ले जाएँगे।
\v 12 यहोवा ने यह घोषित किया है:
\q1 “जब कोई शेर किसी भेड़ पर हमला करता है,
\q2 कभी-कभी चरवाहा शेर के मुँह से उस भेड़ को छीनने में समर्थ होता है
\q2 यद्यपि भेड़ के केवल दो पैर या कान हैं।
\q1 इसी तरह, सामरिया से केवल कुछ लोग बच कर भाग जाएँगे,
\q2 जैसे कि कोई घर में लगी आग से केवल कुर्सी का एक अंश या एक बिस्तर बचा पाता है।“
\s5
\v 13 स्वर्गदूतों की सेना का सरदार, यहोवा, यह कहते हैं:
\q2 “याकूब के वंशजों के विषय में इस संदेश की घोषणा करो:
\q1
\v 14 जब मैं, यहोवा, इस्राएल के लोगों को
\q2 उनके द्वारा किए गए पापों के कारण, दंडित करता हूँ,
\q1 मैं बेतेल शहर की तथा
\q1
\s5
\v 15 उन घरों को जिनमें वे सर्दी के मौसम में रहते हैं ध्वस्त कर दूँगा;
\q2 और जिन घरों में वे गर्मियों के मौसम में रहते हैं, वे भी ध्वस्त कर दिए जाएँगे।
\q2 हाथीदाँत से सजाए गए सुंदर बड़े घर और सामान्य घर नष्ट हो जाएँगे।
\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!“
\s5
\c 4
\q1
\v 1 तुम शोमरोन की समृद्ध महिलाएँ जिन पर बाशान क्षेत्र की मोटी गायों की तरह चर्बी चढ़ गई है।
\q2 तुम गरीब लोगों पर अत्याचार करती हो,
\q2 और तुम जरूरतमंद लोगों को पीड़ित करती हो।
\q1 और तुम अपने पतियों से कहती हो,
\q2 “हमारे पीने के लिए और अधिक शराब लाओ!”
\q1
\v 2 परन्तु हमारे परमेश्वर यहोवा ने यह कहा है:
\q2 “क्योंकि मैं पवित्र हूँ, मैं गंभीरता से यह वादा करता हूँ:
\q1 यह समय जल्द ही आएगा जब तुम सब को दूसरे देश में ले जाया जाएगा;
\q2 तुम्हारे दुश्मन तुमको पकड़ने के लिए तेज काँटों का उपयोग करके तुमको दूर ले जाएँगे।
\q1
\s5
\v 3 तुम्हारे दुश्मन तुमको बाहर घसीटेंगे
\q2 और तुम्हें अपनी शहर की दीवारों की दरारों के मध्य से जाना होगा,
\q2 और वे तुमको हर्मोन की ओर जाने के लिए मजबूर करेंगे।
\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!
\q1
\s5
\v 4 आगे बढ़ोः बेतेल और गिलगाल में मूर्तिपूजा वाले पहाड़ी इलाकों में जाओ, जहाँ बहुत से लोग मेरी पूजा करते हैं;
\q2 जाओ और मेरे खिलाफ अधिक से अधिक विद्रोह करो!
\q1 तुम्हारे पहुँचने के बाद सुबह बलिदान चढ़ाओ,
\q2 और अगले दिन मेरे पास अपनी फसलों का दसवाँ हिस्सा लाओ।
\q1
\v 5 मुझे धन्यवाद देने के लिए रोटी की भेंट लाओ,
\q2 और अन्य भेंटें जो आवश्यक नहीं हैं,
\q1 और इन चढ़ावों के विषय जो तुम लाते हो आत्मप्रशंसा करो,
\q2 क्योंकि यही वह है जो तुम करना पसंद करते हो;
\q1 परन्तु तुम दूसरों को प्रभावित करने के लिए ऐसा करते हो, मुझे खुश करने के लिये नहीं।
\q1 यह निश्चित रूप से सच है, क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है।
\q1
\s5
\v 6 वह मैं ही हूँ जिसकी वजह से तुम्हारे किसी भी शहर और नगरों में भोजन नहीं है,
\q2 परन्तु इसके बावजूद तुमने मुझे नकार दिया।
\q1
\v 7 जब फसल की कटाई करने में तीन महीने का समय अभी बाकी था,
\q2 उस समय जब तुम्हारी फसलों को बारिश की सबसे अधिक आवश्यकता होती है,
\q2 मैंने बारिश गिरने से रोका।
\q1 कभी-कभी मैंने बारिश को कुछ नगरों पर गिरने की अनुमति दी
\q2 और इसे अन्य नगरों पर गिरने से रोका।
\q1 कुछ खेतों में बारिश गिरी,
\q2 परन्तु अन्य खेतों में यह नहीं गिरी,
\q2 परिणामस्वरूप उन खेतों की मिट्टी सूख गई जहाँ बारिश नहीं हुई थी।
\q1
\s5
\v 8 तुम्हारे लोग पानी खोजने के लिए एक शहर से दूसरे शहर में मारे मारे फिरेंगे,
\q2 परन्तु उन्हें पीने के लिए पर्याप्त पानी भी नहीं मिल सकेगा,
\q2 इसके बावजूद, तुम मेरे पास वापस नहीं आए।
\q1 यह निश्चित रूप से सच है क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!
\q1
\v 9 कई बार मैंने तुम्हारी फसलों को बीमारी और फफूँदी से मारा।
\q2 टिड्डियों ने तुम्हारे बगीचे और दाख की बारियाँ खा लीं,
\q2 तुम्हारे अंजीर के पेड़ और जैतून के पेड़ खा लिए गए, फिर भी तुम मेरे पास वापस नहीं आए
\q1 -यह यहोवा की घोषणा है।“
\q1
\s5
\v 10 मैंने तुमको विपत्तियों का अनुभव करवाया
\q2 उन विपत्तियों की तरह जिन्हें मैंने मिस्र के लोगों पर भेजा था।
\q1 मैंने तुम्हारे कई युवा पुरुषों को लड़ाई में मरवा दिया।
\q2 और तुम्हारे दुश्मनों को तुम्हारे घोड़ों को पकड़ने की अनुमति दी।
\q1 तुम्हारे कई सैनिक मारे गए थे,
\q2 और तुम्हारे शिविर उनकी लाशों की गंध से भरे हुए थे।
\q2 परन्तु इसके बावजूद, तुमने मुझे नकार दिया।
\q1 यह निश्चित रूप से सच है, क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!
\q1
\v 11 मैंने तुम में से कई से,
\q2 सदोम और गमोरा के लोगों की तरह छुटकारा पा लिया।
\q1 तुम में से जो मर नहीं गए थे वे जलती हुई छड़ी की तरह थे जिसे आग में से निकाल कर अलग कर दिया गया हो इसलिए वह पूरी तरह जल न सकेंगी।
\q2 परन्तु इसके बावजूद, तुमने मुझे नकार दिया।
\q1 यह निश्चित रूप से सच है, क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!
\q1
\s5
\v 12 इसलिए अब, हे इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हें दंडित करने जा रहा हूँ।
\q2 जब मैं तुम्हारा न्याय करता हूँ, तो मेरे, अर्थात तुम्हारे परमेश्वर के सामने खड़े होने के लिए तैयार रहो!
\q1
\v 13 मैंने पहाड़ों को,
\q2 और हवाओं को बनाया।
\q1 मैं इन्सानों पर प्रकट करता हूँ कि मैं क्या सोच रहा हूँ।
\q2 और कभी-कभी दिन की रोशनी को रात के अंधेरे की तरह कर देता हूँ।
\q1 मैं सब पर शासन करता हूँ,
\q2 और यहाँ तक कि धरती के सबसे ऊँचे पहाड़ों पर चलता हूँ!
\q2 मैं, स्वर्गदूतों की सेना का सरदार, यहोवा हूँ!“
\s5
\c 5
\p
\v 1 तुम इस्राएल के लोगों, इस अंतिम संस्कार गीत को सुनो जो मैं तुम्हारे विषय में गाऊँगाः
\q1
\v 2 “तुम एक जवान महिला के समान हो,
\q2 इसके बावजूद, तुम निश्चित रूप से मार गिराए जाओगे
\q2 और तुम फिर कभी उठ नहीं सकोगे!
\q1 तुम त्यागे हुए के समान जमीन पर पड़े रहोगे,
\q2 और खड़े होने में तुम्हारी सहायता करने के लिए कोई भी नहीं होगा।“
\s5
\v 3 यहोवा परमेश्वर इस्राएल के लोगों से यही कहता है:
\q1 “जब तुम्हारे दुश्मन तुम पर हमला करते हैं,
\q1 और जब तुम्हारे हजारों सैनिक युद्ध में जाते हैं,
\q2 तब केवल एक सौ जीवित बचेंगे।
\q1 जब एक सौ सैनिक एक शहर से लड़ने के लिए बाहर निकलते हैं,
\q2 केवल दस जीवित रहेंगे।“
\s5
\v 4 यहोवा इस्राएल के लोगों से कह रहे हैं:
\q1 “तुम इस्राएली लोग, मेरे पास वापस आओ!
\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम जीवित रहोगे।
\q1
\v 5 मेरी सहायता पाने के लिए बेतेल मत जाओ;
\q2 पूजा करने के लिए गिलगाल मत जाओ;
\q1 बेर्शेबा मत जाओ,
\q2 क्योंकि तुम्हारे दुश्मन गिलगाल के लोगों को अन्य देशों में घसीटेंगे,
\q2 और वे बेतेल को पूरी तरह नष्ट कर देंगे।“
\q1
\s5
\v 6 इसलिए यहोवा के पास आओ;
\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम जीवित रहोगे।
\q1 यदि तुम ऐसा नहीं करते हो,
\q2 यहोवा तुम यूसुफ के वंशजों पर आग की तरह नीचे उतरेंगे;
\q1 वह आग बेतेल में सब कुछ जला देगी
\q2 और कुछ भी उस नगर को बचाने में समर्थ नहीं होगा।
\q1
\v 7 तुम लोग उसे बिगाड़ देते हो जो सही है; तुम दूसरों को ऐसा सोचने के लिए विवश करते हो कि यह कुछ ऐसा है जो बहुत कड़वा है;
\q2 तुम अच्छी बातों से ऐसा व्यवहार करते हो जैसे कि वे बुरे हैं।
\q1
\s5
\v 8 परमेश्वर ने सितारों के सभी समूहों को बनाया
\q2 और उसने उन्हें उनके यथोचित स्थानों पर रखा।
\q1 प्रत्येक सुबह वह अंधेरे को भोर का प्रकाश बना देते हैं,
\q2 और प्रत्येक शाम वे दिन के उजाले को अंधेरा बना देते हैं।
\q1 वह बादल बनने के लिए महासागरों से पानी निकालते हैं,
\q2 और फिर वे बादलों से पानी को धरती पर गिरा देते हैं।
\q1 जो ऐसे काम करते हैं वही यहोवा हैं।
\q1
\v 9 वे मजबूत सैनिकों को मरवा देते हैं,
\q2 और वे शहरों के चारों ओर की ऊँची दीवारों को गिरा देते हैं।
\q1
\s5
\v 10 वे वही हैं जो तुमको दंडित करेंगे
\q1 क्योंकि तुम उन लोगों से नफरत करते हो जो अन्यायपूर्ण निर्णय लेने की कोशिश करने वाले किसी को भी चुनौती देते हैं;
\q2 तुम उन लोगों से नफरत करते हो जो तुम्हारी अदालतों में सत्य बोलते हैं।
\q1
\v 11 तुम गरीब लोगों को दबाते हो और उन्हें बड़े करों का भुगतान करने के लिए मजबूर करते हो।
\q1 इसलिए तुमने अपने लिए पत्थर के बड़े मकान बनाए हैं,
\q2 परन्तु तुम उनमें रहने में सक्षम नहीं होगे।
\q1 तुमने दाख की बारियाँ लगाई हैं,
\q2 परन्तु शराब बनाने के लिए फसल के नाम पर तुम्हारे पास कुछ अंगूर नहीं होगा।
\q1
\s5
\v 12 मैं तुम्हारे सभी पापों को जानता हूँ
\q2 और तुम्हारे द्वारा किए गए भयानक अपराधों को जानता हूँ।
\q1 तुम धार्मिक लोगों पर अत्याचार करते हो,
\q2 और तुम रिश्वत स्वीकार करते हो।
\q1 तुम न्यायाधीशों को गरीब लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने की अनुमति नहीं देते हो।
\q1
\v 13 यह ऐसा समय है जब कई लोग बुरे काम करते हैं,
\q2 जिन लोगों को अच्छी समझ है, वे कुछ भी नहीं कहते हैं।
\q1
\s5
\v 14 जीवित रहने के लिए,
\q2 गलत काम करना, बंद करना होगा और सही काम करना शुरू करना होगा।
\q1 यदि तुम ऐसा करते हो, तो स्वर्गदूतों की सेना का सरदार, यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा
\q2 जैसा कि तुम दावा करते हो कि वह हमेशा तुम्हारे साथ है।
\q1
\v 15 जो अच्छा है उसे प्यार करो, और जो बुरा है उससे नफरत करो!
\q2 तुम्हारी अदालतों में न्यायाधीशों से ऐसे निर्णय दिलवाने का प्रयास करो जो सही हैं!
\q1 यदि तुम वैसे काम करोगे, तब शायद स्वर्गदूतों की सेना का सरदार, यहोवा,
\q2 यूसुफ के वंशजों के प्रति दया के कार्य करेगा जो यहोवा अभी भी जीवित हैं।
\s5
\v 16 “क्योंकि मैं, यहोवा, तुम्हारे पापों के लिए तुमको दंड दूँगा, यही वह संदेश है जिसे मैंने गंभीरता के साथ घोषित किया है:
\q1 लोग प्रत्येक सड़क पर जोर से विलाप कर रहे होंगे,
\q2 और हर चौक में लोग हैरान हो जाएँगे।
\q1 किसानों को रोने के लिए बुलाया जाएगा,
\q2 अन्य आधिकारिक शोक करने वालों के साथ जो मृतकों के लिए विलाप करेंगे।
\q1
\v 17 लोग तुम्हारी दाख की बारियों में विलाप करेंगे,
\q2 क्योंकि मैं तुमको गंभीर रूप से दंड दूँगा।
\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यही कहा है!“
\q1
\s5
\v 18 तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी जो चाहते हैं कि यहोवा अपने दुश्मनों को दंडित करें,
\q2 क्योंकि वह अंधेरे का दिन होगा, प्रकाश का नहीं।
\q1
\v 19 उस समय, जब तुम शेर से भागने का प्रयास करते हो,
\q2 तुम एक भालू का सामना करोगे।
\q1 जब तुम अपने घर में सुरक्षित होने के लिए दौड़ते हो,
\q2 और तुम अपना हाथ दीवार पर रखते हो,
\q2 तब तुम एक साँप द्वारा डसे जाओगे।
\q1
\v 20 उस दिन, जब वे लोगों को दंडित करेंगे,
\q2 तो वह अंधेरी रात, थोड़े से भी प्रकाश के बिना निश्चित रूप से भयानक होगा।
\q1
\s5
\v 21 यहोवा कहते हैं, “मैं तुम्हारे धार्मिक उत्सवों से घृणा करता हूँ
\q2 जब तुम मेरी आराधना के लिए इकट्ठे होते हो;
\q2 मैं उन सब से घृणा करता हूँ।
\q1
\v 22 भले ही तुम वेदी पर जलाने के लिए मुझे भेंट चढ़ाओ और अनाज की भेंट चढ़ाओ,
\q2 मैं अब उन्हें स्वीकार नहीं करूँगा।
\q1 यहाँ तक कि यदि तुम मेरे साथ संगति बहाल करने के लिए भेंट लाते हो,
\q2 मैं उन पर कोई ध्यान नहीं दूँगा।
\q1
\s5
\v 23 चीखने वाले गीत गाना बंद करो!
\q2 जब तुम वीणा बजाते हो तो मैं नहीं सुनूँगा।
\q1
\v 24 इसकी अपेक्षा, न्यायसंगत और ईमानदारी से कार्य करो; तुमको यही करना चाहिए और कभी नहीं रुकना चाहिए;
\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो यह नदी के पानी के समान होगा जो बहने से कभी नहीं रुकता।
\q1
\s5
\v 25 हे इस्राएली लोगों, तुम्हारे पूर्वज चालीस वर्षों तक जंगल में भटकते रहे;
\q2 और उस समय, उन्होंने कभी मुझे कोई बलिदान या भेंट नहीं चढ़ाई!
\q1
\v 26 परन्तु तुम उन दो मूर्तियों को उठाए फिरते हो जिन्हें तुमने बनाई हैं,
\q2 सिक्किथ, वह देवता जिसे तुम राजा कहते हो,
\q2 और कैवान, उस सितारे की छवि जिसकी तुम पूजा करते हो।
\q1
\s5
\v 27 क्योंकि अब मैं तुम्हें उस देश में जाने के लिए मजबूर करूँगा जो दमिश्क से बहुत दूर है!
\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, स्वर्गदूतों की सेना के सरदार, यहोवा ने यह कहा है!“
\s5
\c 6
\q1
\v 1 यरूशलेम में रहने वाले लोगों के साथ भयानक बातें होंगी जो किसी बात के विषय में चिंतित नहीं हैं,
\q2 और सामरिया शहर की पहाड़ी पर रहने वाले अगुवों के साथ भी, तुम जो सोचते हो कि तुम सुरक्षित हो।
\q1 तुम खुद को संसार के सबसे महत्वपूर्ण लोगों में गिनते हो,
\q2 और तुम ऐसे अगुवे हो जिसके पास इस्राएली सहायता के लिए जाते हैं।
\q1
\v 2 तुम उन्हें बताओ, “बस कलने शहर जाओ और इसे देखो।
\q2 फिर महान शहर हमात देखने के लिए जाओ
\q2 और पलिश्ती में गत को देखो। वे सभी समृद्ध हैं।
\q1 अब तुम्हारा देश उन स्थानों से बेहतर है, और तेरे दोनों देश-यहूदा और सामरिया बड़े हैं। इसलिए तुम सुरक्षित हो।“
\q1
\s5
\v 3 तुम अगुवों के साथ भयानक बातें होंगी! तुम आने वाले समय के विषय में सोचने से बचने की कोशिश कर रहे हो जब तुम आपदाओं का सामना करोगे,
\q2 जब तुम्हारे दुश्मन तुम पर बलपूर्वक हमला करेंगे।
\q1
\v 4 तुम महँगे हाथीदाँत से सजाई गई मेज पर भोजन करने के लिए विदेशी रीति-रिवाजों का पालन करते हो,
\q2 मुलायम सोफे पर।
\q1 तुम भेड़ के बच्चे के कोमल मांस
\q2 और मोटे बछड़े खाते हो।
\q1
\s5
\v 5 तुम नए गीत बनाते हो जैसे कि तुम्हारे पास करने के लिए उससे बेहतर कुछ भी नहीं था,
\q2 और तुम उन्हें राजा दाऊद की तरह अपनी वीणा पर बजाते हो।
\q1
\v 6 तुम शराब के पूरे भरे हुए कटोरे से पीते हो,
\q2 और तुम अपने शरीर पर महँगा तेल लगाते हो,
\q2 परन्तु तुम हमारे इस्राएल देश के बारे में शोक नहीं करते हो, जो नष्ट होने वाला है।
\q1
\s5
\v 7 मुलायम सोफे पर तुम्हारा पर्व मनाना और जश्न मनाना शीघ्र खत्म हो जाएगा,
\q2 और दुश्मनों द्वारा बंधुआई में जाने के लिए मजबूर किए जाने वाले लोगों में से तुम पहले होगे।
\v 8 यहोवा परमेश्वर ने गंभीरता से यह घोषित किया है:
\q1 “मैं इस्राएल के लोगों से नफरत करता हूँ क्योंकि वे बहुत घमण्ड करते हैं;
\q2 मैं उनके किलों से घृणा करता हूँ।
\q1 मैं उनके दुश्मनों को उनकी राजधानी वाले शहर पर
\q2 और जो कुछ इसमें है सब पर अधिकार करने में समर्थ करूँगा।”
\s5
\v 9 जब ऐसा होगा तब, यदि एक घर में दस लोग हैं, वे सब मर जाएँगे।
\v 10 यदि कोई रिश्तेदार जो उनकी लाशों को जलाने का काम करता है, वह घर आता है और निरीक्षण करता है कि क्या वहाँ कोई व्यक्ति है जो अभी भी छिपा हुआ है, “क्या यहाँ कोई है?” और वह व्यक्ति जवाब देता है “नहीं,” जो पूछताछ करने वाला है वह कहेगा, “चुप रह! तुझे उसका नाम लेकर यहोवा का ध्यान नहीं खींचना चाहिए, या उसके पास हमें मारने का कोई कारण हो सकता है क्या!”
\q1
\s5
\v 11 ऐसे ही भयानक बातें होंगी क्योंकि यहोवा ने आज्ञा दी है कि इस्राएल के बड़े घरों को तोड़ दिया जाना चाहिए,
\q2 और छोटे घरों को छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाना चाहिए।
\q1
\s5
\v 12 घोड़े निश्चित रूप से बड़ी चट्टानों पर नहीं दौड़ते हैं,
\q2 और निश्चित रूप से लोग बैलों के साथ चट्टानों पर हल नहीं चलाते हैं।
\q1 परन्तु तुमने ऐसे काम किए हैं जिन्हें किसी को भी नहीं करना चाहिए:
\q1 जो सही है तुमने उसे बिगाड़ दिया है;
\q2 जो सही है तुमने उसे बदल दिया है और इसे उन चीजों के समान मानते हो जो कड़वी हैं।
\q1
\v 13 तुमको घमंड है क्योंकि तुमने लोदेबर शहर पर कब्जा कर लिया है,
\q2 और तुमने कहा है, “हमने करनैम को अपनी शक्ति से पकड़ा!”
\q1
\s5
\v 14 परन्तु स्वर्गदूतों की सेना के सरदार, यहोवा, घोषित करते हैं,
\q2 “मैं एक निश्चित राष्ट्र को इस्राएल के लोगों पर हमला करने दूँगा;
\q1 वे उत्तर-पश्चिम में हमात की घाटी से लेकर
\q2 अराबा की झील तक तुम्हारे ऊपर अत्याचार करेंगे।
\s5
\c 7
\p
\v 1 यहोवा हमारे परमेश्वर ने मुझे दर्शन में दिखाया कि वह हमारी फसलों को नष्ट करने के लिए टिड्डियों को भेजनेवाले हैं। यह राजा के हिस्से की घास की कटाई के ठीक बाद और बाकी की तैयार घास के काटने से पहले होने वाला था।
\v 2 दर्शन में मैंने उन टिड्डियों को देखा, और उन्होंने प्रत्येक वह चीज़ खा ली जो हरे रंग की थी। तब मैं पुकार उठा, “हे यहोवा हमारे परमेश्वर, कृपया हमें क्षमा करें! हम इस्राएली लोग बहुत असहाय हैं, हम कैसे जीवित रह सकेंगे?”
\v 3 इसलिए यहोवा ने अपना मन बदल दिया और कहा, “ऐसा नहीं होगा।”
\s5
\v 4 तब हमारे परमेश्वर यहोवा ने मुझे एक और दर्शन दियाः वह आग को उसके लोगों को दंडित करने के लिए बुला रहा था। दर्शन में मैंने देखा कि आग ने सारी भूमि के नीचे का पानी सुखा दिया था और साथ ही भूमि पर मौजूद सब कुछ जला दिया था।
\v 5 तब मैं फिर से पुकार उठा, “हे यहोवा हमारे परमेश्वर, मैं आपसे विनती करता हूँ, कृपया इसे रोक दें! हम इस्राएली लोग बहुत असहाय हैं; हम कैसे जीवित रह सकेंगे?”
\v 6 तब यहोवा ने अपना मन पुनः बदल दिया, और कहा, “वह भी नहीं होगा।”
\s5
\v 7 तब यहोवा ने मुझे एक और दर्शन दिया। मैंने उसे दीवार की बगल में खड़ा देखा। यह दीवार बहुत सीधी थी क्योंकि इसे एक साहुल रेखा का उपयोग करके बनाया गया था। यहोवा के हाथ में साहुल रेखा थी।
\v 8 यहोवा ने मुझसे पूछा, “आमोस, तू क्या देखता है?” मैंने जवाब दिया, “एक साहुल रेखा।” तब यहोवा ने कहा, “देख, मैं अपने इस्राएली लोगों के बीच साहुल रेखा का उपयोग करने जा रहा हूँ, यह दिखाने के लिए कि वे एक ऐसी दीवार के समान हैं जो सीधी नहीं है। मैं उन्हें दंडित करने के बारे में फिर से अपना मन नहीं बदलूँगा।
\q1
\s5
\v 9 मूर्तिपूजा के वे पहाड़ी स्थान नष्ट हो जाएँगे जहाँ इसहाक के वंशज मूर्तियों की पूजा करते हैं।
\q2 और इस्राएल में अन्य महत्वपूर्ण पवित्र स्थान भी नष्ट हो जाएँगे।
\q1 और मैं तुम्हारे दुश्मनों को तलवार से तुम्हारे लोगों पर हमला करने में समर्थ बनाऊँगा,
\q2 और वे राजा यारोबाम और उसके सभी वंशजों से छुटकारा पाएँगे।”
\s5
\v 10 तब बेतेल के पुजारी अमस्याह ने इस्राएल के राजा यारोबाम को एक संदेश भेजा। संदेश में उसने कहा, “आमोस इस्राएली लोगों के बीच तुम्हारे खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है। मुझे चिंता है कि इस देश के लोग यह नहीं जानते होंगे कि वह गलत है।
\v 11 यही यहोवा हैं जो वह कह रहे हैं:
\q1 यारोबाम जल्द ही किसी के द्वारा तलवार का उपयोग करके मारा जाएगा,
\q2 और इस्राएल के लोग बंधुआई में जाएँगे।”
\s5
\v 12 तब अमस्याह मेरे पास आया और बोला, “तू भविष्यद्वक्ता है, यहाँ से निकल जा! यहूदा के देश वापस जा! यदि तू पैसे कमाने की इच्छा रखता है तो वहाँ भविष्यवाणी कर!
\v 13 बेतेल में अब और भविष्यवाणी न कर, क्योंकि यह वह जगह है जहाँ राष्ट्रीय मन्दिर, राजा का मन्दिर है!“
\s5
\v 14 मैंने अमस्याह को उत्तर दिया, “मैं पहले भविष्यद्वक्ता नहीं था और मेरा पिता भविष्यद्वक्ता नहीं था; मैं एक चरवाहा था। मैंने गूलर वाले अंजीर के पेड़ का भी ख्याल रखा।
\v 15 परन्तु यहोवा ने मुझे मेरी भेड़ों की देखभाल करने से दूर कर दिया, और उसने मुझसे कहा, इस्राएल चला जा और मेरे लोगों के लिए भविष्यद्वाणी कर!
\q1
\s5
\v 16 तुमने मुझसे कहा, भविष्यद्वाणी मत कर और यह मत कह कि इस्राएल के लोगों के साथ भयानक बातें होंगी;
\q2 उन बातों को कहना बंद कर!
\v 17 इसलिए सुनो कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या कहते हैं:
\q1 तुम्हारी पत्नी इस शहर में वेश्या बन जाएगी;
\q2 तुम्हारे बेटे और बेटियाँ मर जाएँगे क्योंकि उनके दुश्मन उन्हें मार देंगे।
\q1 अन्य लोग तुम्हारी भूमि को मापेंगे
\q2 और इसे आपस में बाँट लेंगे;
\q1 और तुम स्वयं पराए देश में मर जाओगे।
\q1 और निश्चित रूप से इस्राएल के लोगों को अपना देश छोड़ना होगा और बंधुआई में जाना होगा।”
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा हमारे परमेश्वर ने मुझे दर्शन में पके हुए फल से भरी टोकरी दिखाई।
\v 2 उसने मुझसे पूछा, “आमोस, तू क्या देखता है?” मैंने जवाब दिया, “बहुत पके हुए फल की एक टोकरी।” उन्होंने कहा, “यह संकेत देता है कि यह मेरे इस्राएली लोगों का लगभग अंत है। मैं उन्हें दंडित करने के विषय में पुनः अपना मन नहीं बदलूँगा।
\v 3 जल्द ही लोग मन्दिर में गीत गाने की अपेक्षा विलाप करेंगे। हर जगह लाशें होंगी, और लोग उन्हें हटाते समय कुछ भी नहीं कह सकेंगे। ये बातें निश्चित रूप से घटित होंगी क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है!“
\q1
\s5
\v 4 ऐसा लगता है कि तुम ज़रूरतमंद लोगों को कुचल रहे थे,
\q2 और तुम गरीब लोगों को नष्ट कर देते हो।
\v 5 तुम आदत से यह कहते हो,
\q1 “हम चाहते हैं कि नये चाँद का पर्व जल्दी खत्म हो जाए,
\q2 ताकि हम अपने अनाज को बेच सकें।
\q1 हम चाहते हैं कि सब्त जल्द ही खत्म हो जाए,
\q2 ताकि हम फिर से गेहूँ को बेच सकें।
\q1 जब हम इसे बेचते हैं,
\q2 हम इसके लिए एक बड़ी कीमत प्राप्त कर सकते हैं,
\q1 और हम उन तराजुओं का उपयोग करके लोगों को धोखा दे सकते हैं जो सही वजन नहीं मापते हैं।
\q1
\v 6 हम वह गेहूँ बेचेंगे जो अच्छा नहीं है।
\q2 जो लोग जरूरतमंद और गरीब हैं और जिनके पास चीजें खरीदने के लिए पैसा नहीं है,
\q1 हम उन्हें अपने दास बना लेंगे
\q2 उन्हें चाँदी के छोटे से अंश से खरीदकर, जितने में हम जूतियों की एक जोड़ी खरीद सकते हैं!“
\s5
\v 7 यहोवा ने घोषित किया है, “मैं जीवित हूँ, मैं, जिसकी तुमको पूजा करनी चाहिए: मैं गंभीरता से यह घोषणा करता हूँ कि तुमने जो बुरे काम किए हैं, उन्हें मैं नहीं भूलूँगा।
\q1
\v 8 उन बुरे कामों के कारण, निश्चित रूप से तुम्हारा देश थरथराएगा,
\q2 और तुम सब शोक करोगे।
\q1 ऐसा इस तरह होगा, यह बार-बार बढ़ेगा और घटेगा
\q2 नील नदी की तरह जो पानी से भर जाती है और पानी किनारों से बाहर बहता है
\q2 और उसके बाद वापस नदी में ही समा जाता है।
\s5
\v 9 उस समय जब मैं अपने लोगों को दंडित करता हूँ,
\q1 मैं सूरज को दोपहर में स्थिर कर दूँगा,
\q2 और पूरी धरती दिन में अंधकारमय हो जाएगी।
\q1
\v 10 मैं तुम्हारे धार्मिक उत्सवों को तुम्हारे शोक करने का समय बना दूँगा;
\q2 गीत गाने की अपेक्षा, प्रत्येक व्यक्ति रोएगा।
\q1 मैं जो करूँगा, उसके परिणामस्वरूप तुम सब खुरदरा मोटा वस्त्र पहनोगे और अपने सिर मुंडाओगे
\q2 यह दिखाने के लिए कि तुम दुःखी हो।
\q1 मैं उस समय को ऐसा बना दूँगा जैसे लोग अपने एकमात्र पुत्र के मरने के बाद शोक करते हैं।
\q2 उस समय तुम सभी बहुत दुःखी होगे।“
\q1
\s5
\v 11 और यहोवा हमारे परमेश्वर यह कहते हैं:
\q2 “जल्द ही वैसा समय होगा जब मैं पूरे देश में सब कुछ दुर्लभ कर दूँगा।
\q1 परन्तु यह ऐसा समय नहीं होगा जब कोई भोजन न हो या पानी न हो;
\q2 इसकी अपेक्षा यह एक ऐसा समय होगा जब किसी के भी सुनने के लिए मेरे पास कोई संदेश नहीं होगा।
\q1
\v 12 लोग मृत सागर से भूमध्य सागर तक मारे मारे फिरेंगे,
\q2 और उत्तर से पूर्व तक भटकेंगे,
\q1 मुझसे एक संदेश की खोज करते हुए,
\q2 परन्तु कोई भी संदेश नहीं होगा।
\s5
\v 13 उस समय,
\q1 यहाँ तक कि खूबसूरत महिलाएँ और मजबूत युवा पुरुष बेहोश हो जाएँगे
\q2 क्योंकि वे बहुत प्यासे होंगे।
\q1
\v 14 जो सामरिया के शर्मनाक देवता के नाम का उपयोग करते हुए शपथ लेते हैं,
\q2 और जो दान के देवता के नाम का उपयोग करके कुछ करने का वादा करते हैं,
\q2 और जो बेर्शेबा के देवता के नाम का उपयोग करते हुए कसम खाते हैं-
\q1 वे सब मर जाएँगे;
\q2 वे फिर कभी उठ नहीं पाएँगे।“
\s5
\c 9
\p
\v 1 यहोवा ने मुझे एक और दर्शन दिखाया। दर्शन में, मैंने उसे वेदी की बगल में खड़ा देखा। उसने कहा,
\q1 “मन्दिर के खंभे के शीर्ष पर प्रहार कर,
\q2 जब तक कि वे ढीले न हो जाएँ और गिर न जाएँ,
\q2 ताकि नींव हिल जाए।
\q1 तब मन्दिर के टुकड़ो को अंदर मौजूद लोगों पर गिरने देना।
\q1 जो भागने की कोशिश करेगा मैं उसे तलवार से मार डालूँगा;
\q2 कोई भी नहीं बचेगा।
\q1
\v 2 यदि वे जमीन में गहरे गड्ढे खोदते हैं, यहाँ तक कि मरे हुओं के स्थान पर भी,
\q2 या यदि वे आकाश तक चढ़ने का प्रयास करते हैं
\q1 बचने के प्रयास में,
\q2 मैं पहुँच जाऊँगा और उन्हें पकड़ लूँगा।
\q1
\s5
\v 3 अगर वे बचने के लिए कर्मेल पर्वत के शिखर पर जाते हैं,
\q2 मैं उनकी खोज करूँगा और उन्हें बंधक बना लूँगा।
\q1 अगर वे समुद्र के तल में मुझसे छिपने का प्रयास करते हैं,
\q2 मैं विशाल समुद्री राक्षस को उन्हें काटने का आदेश दूँगा।
\q1
\v 4 यदि उनके दुश्मन उन्हें पकड़ लेते हैं और उन्हें अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर करते हैं,
\q2 मैं आदेश दूँगा कि वे वहाँ तलवारों से मारे जाएँ।
\q1 मैं उनसे छुटकारा पाना निश्चित करता हूँ, उनकी सहायता करना नहीं।“
\q1
\s5
\v 5 जब स्वर्गदूतों की सेना का सरदार, यहोवा,पृथ्वी को छूते हैं, तब वह पिघल जाती है,
\q2 और सारी पृथ्वी पर कई लोग मर जाते हैं, और दूसरे उनके लिए शोक करते हैं।
\q1 ऐसा लगता है कि यहोवा पृथ्वी को बार-बार उठाते और गिराते हैं
\q2 जैसे नील नदी में पानी उठता है और गिरता है।
\q1
\v 6 वे स्वर्ग में अपना सुंदर महल बनाते हैं
\q2 और आकाश को पृथ्वी पर एक गुंबद की तरह स्थिर करते हैं।
\q1 वे समुद्र को पानी से भरते हैं और उसे बादलों में डालते हैं,
\q2 और फिर बादलों को पृथ्वी पर खाली कर देते हैं।
\q2 उनका नाम यहोवा है।
\q1
\s5
\v 7 यहोवा कहते हैं, “हे इस्राएल के लोगों,
\q2 तुम अब निश्चित रूप से इथोपिया के लोगों की तुलना में मेरे लिए बिलकुल भी महत्वपूर्ण नहीं हो।
\q1 मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल कर यहाँ लाया,
\q2 परन्तु मैं पलिश्त के लोगों को भी क्रेते के द्वीप से लाया,
\q2 और मैं अराम के लोगों को कीर क्षेत्र से लाया।
\q1
\v 8 मैं, यहोवा परमेश्वर, ने देखा है कि तुम इस्राएल के राज्य में रहने वाले लोग बहुत पापी हो,
\q2 इसलिए मैं तुम्हें नष्ट कर दूँगा।
\q1 परन्तु मैं याकूब के सभी वंशजों से छुटकारा नहीं पाऊँगा।
\q2 यह अवश्य होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है।
\q1
\s5
\v 9 जब मैं यह आज्ञा देता हूँ, तो ऐसा होगा जैसे मैं विभिन्न राष्ट्रों में रहने वाले तुम इस्राएली लोगों को हिला दूँगा,
\q2 जैसे किसान अनाज से कंकड़ को अलग करने के लिए छलनी को हिलाता है
\q2 और वे अनाज के साथ जमीन पर नहीं गिरते हैं।
\q1
\v 10 मेरे लोगों में से,
\q2 तुम सब पापी लोगों को जो यह कहते हो, हम आपदाओं का सामना नहीं करेंगे; हमारे साथ कुछ बुरा नहीं होगा,
\q1 तुम्हारे दुश्मन तुमको अपनी तलवार से मार देंगे।“
\q1
\s5
\v 11 “जिस राज्य पर राजा दाऊद ने शासन किया था, वह नष्ट हो गया, एक ऐसे घर की तरह जो गिर गया और फिर खंडहर हो गया।
\q2 परन्तु किसी दिन मैं इसे फिर से एक साम्राज्य बना दूँगा।
\q1 मैं इसे फिर से समृद्ध कर दूँगा
\q2 जैसा कि पहले इसे किया था।
\q1
\v 12 जब ऐसा होता है, तो तुम्हारी सेनाएँ एदोम के क्षेत्र के शेष भाग पर कब्जा कर लेंगी,
\q2 और वे उन अन्य राष्ट्रों पर भी कब्जा कर लेंगी जो पहले मुझसे संबंधित थे।
\q1 मुझ, यहोवा ने ऐसा कहा है कि मैं यही करूँगा,
\q2 और मैं निश्चित रूप से उन बातों को होने दूँगा।
\s5
\v 13 एक ऐसा समय आएगा जब तुम्हारी फसलें बहुत अच्छी तरह बढ़ेंगी;
\q1 फसलों की कटाई के तुरन्त बाद,
\q2 किसान फिर से अधिक फसलों को लगाने के लिए जमीन की जुताई करेंगे,
\q1 और दाख की बारियाँ लगाए जाने के तुरन्त बाद,
\q2 किसान शराब बनाने के लिए अंगूर की कटाई करेंगे और उन पर चलेंगे।
\q1 और क्योंकि बहुत अधिक शराब पैदा होगी,
\q2 तो ऐसा लगेगा जैसे कि पहाड़ियों से शराब बह रही है।
\q1
\s5
\v 14 मैं तुम्हें, मेरे इस्राएली लोगों को, फिर से समृद्ध करूँगा।
\q2 तुम अपने नगरों का पुनर्निर्माण करोगे और उनमें रहोगे।
\q1 तुम दाख की बारियाँ लगाओगे और उनमें उगाए गए अंगूरों से बनी शराब पीओगे।
\q1
\v 15 मैं तुमको फिर से तुम्हारे देश में रहने में समर्थ करूँगा,
\q2 वह देश जो मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया था;
\q1 फिर कभी भी तुमको इसे छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
\q2 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है।“

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\id OBA
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h ओबद्याह
\toc1 ओबद्याह
\toc2 ओबद्याह
\toc3 oba
\mt1 ओबद्याह
\s5
\c 1
\p
\v 1 हमारे परमेश्वर यहोवा ने मुझ, ओबद्याह को, एदोमी जाति के लिए यह सन्देश दिया।
\p हमारे परमेश्वर यहोवा ने एदोमी जाति के बारे में मुझ पर यह प्रकट किया:
\q1 “मैं यहोवा ने, अन्य जातियों के लिए एक संदेशवाहक भेजा है,
\q2 यह कहते हुए कि एदोम पर हमले कि तैयारी करे।”
\p
\v 2 और यहोवा एदोम के लोगों से यह कहते है:
\q1 “मैं जल्द ही तुझे पृथ्वी पर सबसे कमजोर और सबसे घृणित जाति बना दूँगा।
\q1
\s5
\v 3 तेरी राजधानी ऊँचे पहाड़ी चट्टानों पर बसी है,
\q2 और तू बहुत घमण्ड करता है;
\q1 तू सोचता है कि तू सुरक्षित है क्योंकि कोई भी सेना तुझ पर आक्रमण नहीं कर सकती है,
\q2 परन्तु तू ने अपने आप को धोखा दिया है।
\q1
\v 4 और मैं तुझ से कहता हूँ कि यदि तुझ में पंख लगे होते और तू उकाब से अधिक ऊँचा उड़ पाता,
\q2 और यदि तू सितारों के बीच अपना घर बनाता,
\q2 तो मैं तुझे वहाँ से नीचे गिरा कर नष्ट कर दूँगा।
\q1
\s5
\v 5 जब रात के समय चोर किसी के घर में घुसते हैं, तब
\q2 वे (निश्चित रूप से) केवल उन्हीं चीजों को चुराते हैं जिन्हें वे चाहते हैं।
\q1 और अंगूर तोड़ने वाले लोग हमेशा दाखलताओं पर कुछ अंगूर छोड़ देते हैं।
\q2 लेकिन तेरा देश पूरी तरह नष्ट हो जाएगा!
\q1
\v 6 हर मूल्यवान वस्तु लूट ली जाएगी।
\q2 तेरे शत्रु तेरे द्वारा छिपाई गई मूल्यवान वस्तुओं को भी खोज निकालेंगे और उन्हें लूट ले जाएँगे।
\q1
\s5
\v 7 तेरे सभी सहयोगी तेरे विरुद्ध हो जाएँगे,
\q2 और वे तुझे अपना देश छोड़ने के लिए विवश कर देंगे।
\q1 जो लोग तुझ से मेल रखते हैं, वे तुझे धोखा देंगे और तुझे पराजित करेंगे।
\q2 जो आज तेरे साथ भोजन खाते हैं वे अब तुझे फँसाने की योजना बना रहे हैं,
\q1 और तब वे तुझसे कहेंगे, ‘तू उतना चतुर नहीं है जितना तू ने सोचा था कि तू है।’
\q1
\v 8 मैं यहोवा, कहता हूँ कि जब मैं एदोम को नष्ट करूँगा,
\q2 तब मैं उन चट्टानों में रहने वाले पुरुषों को दण्ड दूँगा जिन्होंने सोचा था कि वे बुद्धिमान थे।
\q1
\v 9 तेमान शहर के सैनिक भयभीत हो जाएँगे;
\q2 तुम सब जो एसाव के वंशज हो, मिटा दिए जाओगे।“
\q1
\s5
\v 10 “तुमने अपने भाई-बंधुओं, याकूब के वंशजों के साथ क्रूरता का व्यवहार किया था। वही याकूब जो तुम्हारे पूर्वज एसाव का जुड़वा भाई था।
\q2 तो अब तुम अपमानित हो जाओगे, और तुम हमेशा के लिए नष्ट कर दिए जाओगे।
\q1
\v 11 परदेशियों ने यरूशलेम के फाटकों में प्रवेश किया
\q2 और उन्हें जो मूल्यवान वस्तु मिली उन्हें आपस में बाँटने के लिए चिट्ठियाँ डाली;
\q1 लेकिन तू उन परदेशियों के जैसे ही बुरा था,
\q2 क्योंकि तू वहाँ खड़ा रहा और इस्राएलियों की सहायता नहीं की।
\q1
\s5
\v 12 तुझे इस्राएलियों की आपदा के समय में आनन्दित नहीं होना चाहिए था।
\q2 उनके नगरों का विनाश देख कर तुझे खुश नहीं होना चाहिए था।
\q1 जब वे लोग पीड़ित थे तब तुझे उनको ठठ्ठों में नहीं उड़ना चाहिए था।
\q1
\v 13 वे मेरे प्रजा के लोग हैं,
\q2 इसलिए जब वे उन आपदाओं से घिरे हुए थे तब तुझे उनके शहर के फाटकों में प्रवेश नहीं करना चाहिए था
\q1 और तुझ को उन पर हँसना नहीं चाहिए था।
\q2 और तुझको उनकी बहुमूल्य संपत्ति नहीं लूटनी चाहिए थी।
\q1
\v 14 तुझे चौराहें पर खड़े होकर
\q2 बचकर निकलनेवालों को पकड़ना नहीं चाहिए था।
\q1 उन्हें उनको पकड़ कर उनके शत्रुओं के हाथों में नहीं सौंपना चाहिए था
\q2 जब वे उन आपदाओं से घिरे हुए थे।”
\q1
\s5
\v 15 “शीघ्र ही वह समय आएगा जब मैं यहोवा, सभी जातियों का न्याय करूँगा और दण्ड दूँगा।
\q2 और तुम एदोम के निवासियों, तुम भी उन्हीं आपदाओं से घिर जाओगे जिन्हें दूसरों पर आ पड़ने का कारण तुम हुए थे।
\q1 वे सब बुरे काम जो तुमने दूसरों के साथ किये हैं, तुम्हारे साथ भी किए जाएँगे।
\q1
\v 16 यह ऐसा होगा कि जैसे तुने, मेरे पवित्र पहाड़ सिय्योन पर बहुत कड़वा तरल पदार्थ का प्याला पिया हो।
\q2 लेकिन मैं अन्य सभी जातियों को ऐसा ही कठोर दण्ड दूँगा,
\q1 और उनके पूरी तरह से गायब होने का कारण ठहरूंगा।
\q1
\s5
\v 17 परन्तु यरूशलेम में से कुछ लोग बच कर निकल जाएँगे,
\q2 और यरूशलेम एक बहुत ही पवित्र स्थान बन जाएगा।
\q1 तब याकूब के वंशज एक बार फिर अपनी इस निज भूमि को जो वास्तव में उन्ही की है जीत कर उस पर अधिकार कर लेंगे।
\q1
\v 18 याकूब और उसके पुत्र यूसुफ के वंशज आग की तरह होंगे,
\q2 और एदोमी लोग भूँसी की तरह उस आग में पूरी तरह से जलाए जाएँगे।
\q2 एक भी व्यक्ति जीवित नहीं रहेगा।
\q1 ऐसा अवश्य होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कह दिया है।”
\q1
\s5
\v 19 दक्षिणी यहूदिया के जंगल में रहने वाले इस्राएली ही वे लोग हैं जो एदोम को अधिकार में ले लेंगे।
\q2 और जो पश्चिमी तलहटी में रहते हैं वे फीनिके और एप्रैम और सामरिया के क्षेत्रों के अधिकारी होंगे।
\q1 और बिन्यामीन गोत्र के लोग गिलाद के क्षेत्र के अधिकारी होंगे।
\q1
\s5
\v 20 इस्राएलियों की एक बड़ी संख्या जिन्हें बन्दी बना कर ले जाया गया था, वे अपने देश लौट आएँगे,
\q2 और वे कनानियों द्वारा शासित भूमि पर अधिकार करेंगे, और उत्तर दिशा में सारपत तक की भूमि के अधिकारी होंगे।
\q1 इस्राएल के उन लोगों को जिन्हें बन्दी बनाकर यरूशलेम से पकड़ कर ले जाया गया था, और जो सपाराद में रहते थे, वे नेगेब के नगरों पर दक्षिणी यहूदिया के जंगल में अधिकार करेंगे।
\q1
\v 21 यरूशलेम की सेना एदोम पर हमला करके उसे जीत लेगी,
\q2 और यहोवा उनके राजा होंगे।

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\id JON
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h योना
\toc1 योना
\toc2 योना
\toc3 jon
\mt1 योना
\s5
\c 1
\p
\v 1 एक दिन यहोवा ने अम्मितै के पुत्र योना भविष्यद्वक्ता से कहा,
\v 2 “मैंने देखा है कि उस बड़े शहर नीनवे में रहने वाले लोग कितने दुष्ट हैं। इसलिए वहाँ जाकर उन लोगों को चेतावनी दे कि मैं उनके पापों के कारण उनके शहर को नष्ट करने की योजना बना रहा हूँ।”
\v 3 परन्तु नीनवे जाने की अपेक्षा, यहोवा से दूर जाने के लिए योना तर्शीश शहर की दिशा में चला गया। वह याफा शहर में गया। वहाँ उसने एक जहाज पर यात्रा करने के लिए पैसे का भुगतान किया जो तर्शीश शहर जा रहा था, और वह उस पर चढ़ गया।
\p
\s5
\v 4 वह जहाज के निचले तल पर चला गया, और वहाँ लेटकर सो गया। यहोवा ने बहुत तेज हवा चलाई, और वहाँ ऐसा भयंकर तूफान आया कि नाविकों ने सोचा कि जहाज टूट कर अलग हो जाएगा।
\v 5 नाविक बहुत डरे हुए थे। अतः उनमें से प्रत्येक ने उनको बचाने के लिए अपने देवताओं से प्रार्थना करना शुरू कर दिया। उन्होंने जहाज़ को हल्का करने के लिए समुद्र में जहाज के सामान को फेंक दिया कि वह आसानी से डूब न सके।
\p
\s5
\v 6 तब कप्तान नीचे गया जहाँ योना गहरी नींद में सो रहा था। उसने उसे जगाकर उससे कहा, “तू इस तरह के तूफान के समय कैसे सो सकता है? उठ और अपने देवता से प्रार्थना कर! शायद वह हम पर दया करके हमें बचाएँ, कि हम डूब न जाएँ!”
\p
\v 7 तब नाविकों ने परस्पर परामर्श किया, “हम यह मालूम करने के लिए चिट्ठियाँ डालें कि यह समस्या किसके कारण है!” उन्होंने ऐसा किया, और चिट्ठी योना के नाम पर निकली।
\p
\s5
\v 8 इसलिए उनमें से बहुतों ने उससे पूछा, “वह कौन है जिसने हमारे लिए यह सारी परेशानी पैदा की है?” “तू क्या काम करता है?” “तू कहाँ से आ रहा है?” “तू किस देश और किस जाति से सम्बन्ध रखता है?”
\v 9 योना ने उत्तर दिया, “मैं इब्री हूँ। मैं यहोवा परमेश्वर की आराधना करता हूँ, जो स्वर्ग में रहते हैं। वह वही है जिसने समुद्र और धरती की सृष्टि की है।
\v 10 मैं यहोवा से भाग रहा हूँ, वह वही हैं जिन्होंने मुझे भविष्यद्वक्ता बनने के लिए बुलाया।” यह सुन कर नाविक डर गए। उन्होंने उससे कहा,” क्या तुझे मालूम है कि तूने क्या परेशानी पैदा की है?”
\p
\s5
\v 11 तूफान भयंकर होता जा रहा था और लहरें भी ऊँची होती जा रही थीं। नाविकों में से एक ने योना से पूछा, “समुद्र को शान्त करने के लिए हमें तेरे साथ क्या करना चाहिए?”
\v 12 उसने उत्तर दिया, “मुझे उठा कर समुद्र में फेंक दो। यदि तुम ऐसा करोगे तो समुद्र शान्त हो जाएगा। मुझे मालूम है कि यह भयानक तूफान इसलिए आया क्योंकि यहोवा ने मुझे जैसा करने के लिए कहा था मैंने वैसा नहीं किया।”
\p
\v 13 परन्तु नाविक ऐसा नहीं करना चाहते थे। इसके बदले, उन्होंने जहाज को जमीन पर वापस लाने के लिए कड़ी मेहनत की। परन्तु वे ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि तूफान और भी भयंकर होता जा रहा था।
\p
\s5
\v 14 अतः उन्होंने यहोवा से प्रार्थना की, और उनमें से एक ने प्रार्थना की, “हे यहोवा, यदि हमारे कारण यह मनुष्य मर जाए तो कृपया यह ना कहें कि हम दोषी हैं, और कृपया हमें ना मारें। हे यहोवा, आप जो करना चाहते हैं वह आपने किया है।”
\v 15 तब उन्होंने योना को उठाकर समुद्र में फेंक दिया। तब समुद्र शान्त हो गया।
\v 16 जब ऐसा हुआ, तो नाविक यहोवा की शक्ति को देखकर बहुत डर गए। उन्होंने यहोवा को बलिदान चढ़ाया, और दृढ़ता से वादा किया कि वे वैसे ही काम करेंगे जो उन्हें प्रसन्न रखें।
\p
\s5
\v 17 जब वे ऐसा कर रहे थे, तब यहोवा ने एक बड़ी मछली भेजी जिसने योना को निगल लिया था। योना मछली के अंदर तीन दिन और तीन रात तक था।
\s5
\c 2
\p
\v 1 जब योना बड़ी मछली के अंदर था, तब उसने यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना की, जिसकी वह आराधना करता था।
\v 2 योना ने कहा, “हे यहोवा, जब मैं यहाँ बहुत परेशान था, मैंने आपसे प्रार्थना की, और मैंने जो प्रार्थना की आपने सुनी। जब मैं मृतकों के लोक में उतरने वाला था जहाँ मृत लोग जाते हैं, तब मैंने आपको मेरी सहायता के लिए पुकारा और आपने मेरी सुन ली।
\s5
\v 3 आपने मुझे समुद्र के नीचे, गहरे पानी में फेंक दिया। समुद्र में आपकी बनाई हुई तरंगें मेरे चारों ओर घूमती रहीं, और विशाल लहरों ने मेरा स्पर्श किया।
\v 4 तब मैंने सोचा, ‘आपने मुझे अपने सामने से हटा दिया है, और मैं कभी भी आपकी उपस्थिति में प्रवेश नहीं कर सकूँगा। उसके बावजूद आप मेरे साथ जो करते हैं, मुझे विश्वास है कि एक दिन मैं फिर से यरूशलेम में आपके पवित्र मन्दिर का दर्शन कर सकूँगा!
\s5
\v 5 पानी ने मुझे घेर लिया और मुझे लगभग डूबा दिया। समुद्री शैवाल मेरे सिर के चारों ओर लिपट गए थे।
\v 6 मैं इतनी गहराई में डूब गया जिस निचली तह से पहाड़ ऊपर आते हैं। मैंने सोचा कि नीचे की धरती के अंदर हमेशा के लिए मेरा शरीर एक कैदखाने में होगा। परन्तु आपने, हे यहोवा परमेश्वर, जिनकी मैं आराधना करता हूँ, मुझे मृतकों के स्थान पर जाने से बचाया!
\s5
\v 7 जब मैं प्रायः मर गया था, हे यहोवा, मैंने आपके विषय में सोचा। आपने अपने पवित्र मन्दिर के भी, ऊपर जहाँ आप हैं, मेरी प्रार्थना सुनी।
\v 8 जो लोग व्यर्थ की मूर्तियों की पूजा करते हैं वे आपको जो उनके प्रति ईमानदारी से कार्य कर सकते हैं, अस्वीकार कर रहे हैं।
\s5
\v 9 परन्तु मैं आपको धन्यवाद देने के लिए गाऊँगा, और मैं आपको बलिदान चढ़ाऊँगा। मैं निश्चित रूप से वह करूँगा जो मैंने गम्भीर रूप से करने का वादा किया है। हे यहोवा, आप ही हैं जो हमें बचाने में समर्थ हैं।”
\p
\v 10 तब यहोवा ने बड़ी मछली को आदेश दिया कि योना को बाहर उगल दे, और मछली ने योना को सूखी भूमि पर उगल दिया।
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब यहोवा ने फिर से योना से कहा,
\v 2 “उस बड़े शहर नीनवे को जा, और उन्हें वह संदेश बता जो मैंने तुझे पहले दिया था।”
\p
\v 3 इस बार योना ने यहोवा की आज्ञा का पालन किया, और वह नीनवे गया। वह शहर बहुत बड़ा था। एक व्यक्ति को पूरी तरह से इससे होकर गुजरने में तीन दिन चलना पड़ता था।
\s5
\v 4 जब योना पहुँचा, तो उसने दिन भर शहर में घूमना शुरू कर दिया। फिर उसने यह घोषणा करना शुरू कर दिया, “अब से चालीस दिन के पश्चात् नीनवे नष्ट हो जाएगा!”
\p
\v 5 नीनवे के लोगों ने परमेश्वर के संदेश पर विश्वास किया। उन सभी ने फैसला किया कि हर किसी को उपवास शुरू करना चाहिए। तब सभी महत्वपूर्ण और महत्वहीन लोगों सहित हर किसी ने ऐसा किया। उन्होंने अपने ऊपर खुरदरे कपड़े भी यह दिखाने के लिए डाल लिए कि उन्हें पाप करने के लिए खेद है।
\p
\s5
\v 6 नीनवे के राजा ने योना के संदेश के बारे में सुना। इसलिए उसने अपने शाही वस्त्रों को उतार दिया, और उसने भी अपने ऊपर खुरदरे कपड़े डाल लिए। उसने अपना सिंहासन छोड़ दिया और जहाँ ठण्डी राख थी वहाँ यह दिखाने के लिए बैठ गया कि उसे भी पाप करने के लिए खेद है।
\v 7 तब उसने नीनवे के लोगों में यह घोषणा करने के लिए दूत भेजे: “मैंने और मेरे सलाहकारों ने यह आदेश दिया है कि कोई कुछ भी न खाए या न पीए। यहाँ तक कि अपने पशुओं को भी खाने या पीने की अनुमति न दें।
\s5
\v 8 इसकी अपेक्षा, हर व्यक्ति को अपने ऊपर खुरदरे कपड़े डाल लेने चाहिए। अपने जानवरों पर भी खुरदरे कपड़े डाल दो। तब हर किसी को परमेश्वर से उत्साह पूर्वक प्रार्थना करनी चाहिए और हर किसी को बुराई करने से रुक जाना चाहिए, और दूसरों के प्रति हिंसक काम करना बंद कर देना चाहिए।
\v 9 अगर हर कोई ऐसा करता है, तो परमेश्वर अपना मन बदल सकते हैं और हमारे लिए दयालु हो सकते हैं, और हमसे बहुत नाराज होने से रुक सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो हम नहीं मरेंगे।”
\p
\s5
\v 10 जब उन सब ने ऐसा किया, और परमेश्वर ने जो वे कर रहे थे, उसे देखा। उन्होंने बुराई करना बंद कर दिया था। इसलिए उन्होंने उन पर दया की, और उन्हें नाश नहीं किया जैसा उन्होंने धमकी दी थी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 परन्तु योना ने महसूस किया कि यह बहुत गलत था कि परमेश्वर ने नीनवे को नष्ट नहीं किया। वह बहुत क्रोधित हो गया।
\v 2 उसने यहोवा से प्रार्थना की, “हे यहोवा, आपने जो किया वह बिलकुल वैसा ही है जैसा अपने घर से निकलने से पहले मैंने सोचा था कि आप करेंगे। यही कारण था कि इसे रोकने के लिए मैं तर्शीश भाग गया था, क्योंकि मुझे मालूम था कि आप सभी लोगों के प्रति बहुत दया और तरस से भरे तरीके से कार्य करते हैं। आप बुराई करने वालों से बहुत जल्दी नाराज नहीं होते हैं। आप लोगों से बहुत प्यार करते हैं, और आप पाप करने वालों को दंडित करने के विषय में अपना मन बदल देते हैं।
\v 3 तो अब, हे यहोवा, क्योंकि आप नीनवे को नष्ट नहीं करेंगे जैसा आपने कहा था कृपया मुझे मरने की इजाजत दे, क्योंकि अब मेरे लिए जीवित रहने से मरना बेहतर होगा।”
\p
\s5
\v 4 यहोवा ने उत्तर दिया, “क्या तुम्हारे लिए क्रोधित होना सही है केवल इसलिए कि मैंने शहर को नष्ट नहीं किया?”
\p
\v 5 योना ने उत्तर नहीं दिया। वह शहर से बाहर निकल कर पूर्व दिशा की ओर चला गया। उसने एक छोटा आश्रय बनाया ताकि वह उसके नीचे बैठ सके और सूर्य से सुरक्षित हो सके। वह आश्रय के नीचे बैठ गया और इन्तजार करने लगा कि शहर के साथ क्या होनेवाला है।
\s5
\v 6 तब यहोवा परमेश्वर ने योना के सिर को धूप से और असुविधा से बचाने के लिए तुरन्त एक दाखलता उगाई। योना अपने सिर पर दाखलता देखकर बहुत खुश था।
\v 7 परन्तु अगले दिन भोर होने से पहले, परमेश्वर ने एक कीड़ा भेजा जिसने दाखलता को चबा डाला, परिणामस्वरूप दाखलता सूख गई।
\s5
\v 8 जब सूर्य आकाश में ऊँचे पर था, तो परमेश्वर ने पूर्व से बहुत गर्म हवा भेजी, और सूर्य योना के सिर पर बहुत कठोरता से चमकने लगा, परिणामस्वरूप वह बेहोशी महसूस कर रहा था। वह मरना चाहता था, और उसने कहा, “मेरे लिए जीवित रहने से मरना भला होगा!”
\p
\v 9 परन्तु परमेश्वर ने योना से पूछा, “दाखलता के साथ जो हुआ क्या उसके कारण तेरा क्रोधित होना सही है?” योना ने उत्तर दिया, “हाँ, यह सही है! अब मैं इतना क्रोधित हूँ कि मर जाऊँ!”
\p
\s5
\v 10 परन्तु यहोवा ने उस से कहा, “तू उस दाखलता के बारे में चिंतित था जब मैंने उसे सूख जाने दिया, भले ही तूने उसका ख्याल नहीं रखा, और न ही तूने उसे विकसित किया। वह सिर्फ एक रात में बड़ा हुआ और यह अगली रात के अंत में पूरी तरह से सूख गया।
\v 11 परन्तु नीनवे में 1,20,000 से अधिक लोग हैं, वह विशाल शहर, जो गलत और सही नहीं सोच सकता है, और वहाँ कई मवेशी भी हैं। तो क्या मेरे लिए उन लोगों के बारे में चिंतित होना, और यह मान लेना कि उन्हें नष्ट न करूँ सही नहीं है?”

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\id MIC
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h मीका
\toc1 मीका
\toc2 मीका
\toc3 mic
\mt1 मीका
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहोवा ने मीका को जो यहूदा के मोरेशेत नगर का निवासी था, सामरिया और यरूशलेम के बारे में दर्शन के द्वारा जब यह संदेश दिया तब वहाँ योताम, फिर आहाज और फिर हिजकिय्याह यहूदा के राजा थे।
\q1
\s5
\v 2 पृथ्वी पर रहने वाले हर जगह के लोगों, इस पर ध्यान दो।
\q2 यहोवा हमारे परमेश्वर स्वर्ग में अपने पवित्र भवन में से तुम पर आरोप लगा रहे है।
\q1
\v 3 वह स्वर्ग से नीचे आ जाएँगे
\q2 और उन ऊँचे स्थानों पर चलेंगे जहाँ तुम मूर्तियों की पूजा करते हो।
\q1
\v 4 तब ऐसा होगा कि पहाड़ उनके चरणों के नीचे पिघल जाएँगे
\q2 जैसे मोम आग के सामने पिघल जाता है,
\q1 और जैसे पानी घाटी में उतरता है
\q2 और गायब हो जाता है।
\q1
\s5
\v 5 इस्राएल के लोग, याकूब के वंशजों ने जो भयानक पाप किए हैं उनके कारण से यह सब बातें होंगी।
\q2 परन्तु यह सामरिया शहर के लोग ही थे जिन्होंने इस्राएल के सभी लोगों को पाप करने के लिए सहमत किया था।
\q1 और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यरूशलेम के लोगों ने अपने देवताओं की पूजा करने के लिए वेदियों की स्थापना की थी
\q2 यही कारण था कि यहूदा के अन्य लोगों ने सोचा कि उन्हें भी पहाड़ियों पर मूर्तियों की पूजा करनी चाहिए।
\q1
\s5
\v 6 यहोवा यह कहते है: “मैं शोमरोन को मलबे का ढेर बना दूँगा;
\q2 यह केवल अंगूर उगाने के लिए एक बाग बन जाएगा।
\q1 मैं उनकी इमारतों के पत्थरों को घाटी में लुढ़का दूँगा।
\q2 मैं इमारतों को उनकी नींव से नष्ट कर दूँगा।
\q1
\v 7 मैं दूसरों से सामरिया में मूर्तियों को टुकड़े टुकड़े करवा दूँगा।
\q2 उनकी मूर्तियों के मंदिरों में वेश्याओं को दिए गए उपहार आग में जला दिए जाएँगे।
\q1 क्योंकि वहाँ लोगों ने वेश्याओं के साथ लेन-देन किया,
\q2 उनके शत्रु उन मूर्तियों को लूट ले जाएँगे और उन्हें अन्य देशों में वेश्याओं का लेन-देन करने के लिए बेच देंगे।
\q1
\s5
\v 8 क्योंकि सामरिया नष्ट हो जाएगा, मैं रोऊँगा और हाय हाय करूँगा।
\q2 मैं नंगे पैर और नग्न बदन चारों ओर चलूँगा।
\q1 मैं एक गीदड़ की तरह चिल्लाऊँगा
\q2 और एक उल्लू की तरह रोऊँगा।
\q1
\v 9 मैं विलाप करूँगा क्योंकि सामरिया पूरी तरह नष्ट हो जाएगा;
\q2 कोई भी उस शहर को नहीं बचा सकता है।
\q1 यहूदा के साथ भी यही बात होगी।
\q2 ऐसा लगता है जैसे शत्रु की सेना पहले से ही मुख्य-शहर यरूशलेम के द्वार तक पहुँच चुकी है,
\q2 जहाँ मेरे लोग रहते हैं।
\q1
\v 10 पलिश्त के गत शहर में हमारे शत्रुओं को यह मत कहो!
\q2 रोओ मत, वरना वहाँ लोगों को पता चल जाएगा कि क्या हो रहा है।
\q1 इसकी अपेक्षा, बेतआप्रा में जमीन पर बस लोटपोट करो।
\q1
\s5
\v 11 तुम लोग जो शापीर में रहते हो,
\q2 नग्न और शर्मिंदा करके, तुमको दूसरे देश में ले जाया जाएगा।
\q1 बेतसेल में रहने वाले तुम लोगों को शोक करना चाहिए,
\q2 क्योंकि सानान से कोई भी तुम्हारी सहायता करने के लिए बाहर नहीं आयेगा।
\q1
\v 12 मारोत के लोग
\q2 उत्सुकता से उनके साथ होने वाली अच्छी चीजों का इन्तजार कर रहे हैं।
\q1 परन्तु मैं उनके साथ भयानक बातें होने दूँगा,
\q2 और वे जल्द ही यरूशलेम के फाटकों पर होंगी।“
\q1
\s5
\v 13 तुम लाकीश शहर में रहने वाले लोगों,
\q2 अपने रथों को खींचने के लिए उनमें घोड़ों को जोत लो जिसमें तुम अपने शत्रुओं से भागने के लिए सवारी कर सकते हो।
\q1 इस्राएली लोगों ने यहोवा के विरूद्ध विद्रोह किया,
\q2 और तुमने उनका अनुकरण किया,
\q1 और इससे यरूशलेम के लोगों ने भी पाप करना शुरू कर दिया।
\q1
\v 14 तुम यहूदा के लोगों, मोरेशेत के लोगों को विदाई का उपहार भेजो,
\q2 क्योंकि उनके शत्रु जल्द ही इसे नष्ट कर देंगे।
\q1 इस्राएल के राजाओं को जल्द ही पता चल जाएगा कि अकजीब शहर के लोग उन्हें निराश करेंगे।
\q1
\s5
\v 15 तुम मारेशा के लोग,
\q2 यहोवा जल्द ही किसी को तुम्हारे शहर को जीतने के लिए भेज देगा।
\q1 इस्राएल के महान अगुवों के लिए अदुल्लाम के पास की गुफा में जाना और छिपना जरूरी होगा।
\q1
\v 16 तुम यहूदा के लोगों, अपने सिर गंजे करो और शोक में जाओ,
\q2 क्योंकि जिन बच्चों को तुम प्यार करते हो वे जल्द ही बंधुआई में या दासत्व में चले जाएँगे।
\s5
\c 2
\q1
\v 1 तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी,
\q2 तुम जो रात में दुष्ट कामों को करने की योजना बनाने के लिये जागते हो।
\q1 फिर तुम भोर में उठते हो,
\q2 और उन कामों को जितनी जल्दी तुम उन्हें करने में सक्षम हो, करते हो।
\q1
\v 2 तुम उन खेतों को पाना चाहते हो जो किसी और के हैं,
\q2 इसलिए तुमने उन पर अधिकार कर लिया;
\q2 तुमने उनके घरों को भी ले लिया।
\q1 तुम लोगों के घरों को प्राप्त करने के लिए उन्हें धोखा देते हो,
\q2 उनके परिवारों की संपत्ति को लूट लेते हो।
\p
\s5
\v 3 इसलिए, यहोवा यही कहते हैं :
\q1 “मैं तुम इस्राएल के लोगों को आपदाओं का अनुभव करवाऊँगा,
\q2 और तुम उनसे बच पाने में सक्षम नहीं होओगे।
\q1 अब तुम घमण्ड से भरकर घूमने वाले नहीं रहोगे,
\q2 क्योंकि जब ऐसा होता है, तो यह तुम्हारे लिए बहुत परेशानी का समय होगा।
\q1
\v 4 उस समय, तुम्हारे शत्रु अमीर लोगों का मजाक उड़ाएँगे;
\q2 वे तुम्हारे बारे में इस दुःखद गीत को गाकर तुम्हारा उपहास करेंगे:
\q1 ‘हम इस्राएली पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं;
\q2 यहोवा हम से हमारी भूमि ले रहे हैं,
\q1 और वे इसे उन लोगों को देंगे जो हमें पकड़ते हैं।‘”
\q1
\v 5 जब तुम लोगों के लिए यह भूमि वापस देने का समय है जो यहोवा के हैं,
\q2 समृद्ध परिवारों में से कोई भी भूमि को वापस पाने के लिए जीवित नहीं होगा।
\q1
\s5
\v 6 जो लोग मुझे ऐसा कहते हुए सुनते हैं उन्होंने मुझे उत्तर दिया,
\q2 “ऐसी बातों की भविष्यवाणी मत कर!
\q2 यह मत कह कि यहोवा हमें आपदाओं का अनुभव करवा कर अपमानित करेंगे!“
\q1
\v 7 परन्तु तुम लोग इस तरह बातें करते हो!
\q2 तुम कहते हो कि यहोवा कभी नाराज नहीं होते,
\q2 और वे वास्तव में हमें कभी भी दण्डित नहीं करते हैं।“
\q1 बेशक, मैं कहता हूँ वे निश्चित रूप से उन लोगों की सहायता करते हैं जो सही तरीके से जीते हैं।
\q1
\v 8 परन्तु यहोवा कहते हैं,
\q2 “हाल ही में मेरे लोग शत्रु की तरह मेरे प्रति काम कर रहे हैं।
\q1 अमीर लोग उन लोगों का कोट वापस करने से इन्कार कर देते हैं जिन्होंने तुमसे पैसा उधार लिया है,
\q2 वह कोट जो उन्होंने तुमको दिया था और वादा किया था कि वे अपना कर्ज चुका देंगे।
\q2 तुम बिना किसी चेतावनी के उनके कोट ले लेते हो, उनको इतना अधिक आश्चर्य में डाल देते हो जैसे युद्ध से लौटने वाले सैनिक घर पर सुरक्षा पाने की बजाय हमलों को झेल कर आश्चर्यचकित हों।
\q1
\s5
\v 9 तुमने महिलाओं को उनके अच्छे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया है,
\q2 और तुमने हमेशा उनके बच्चों से उन आशीर्वादों को चुरा लिया है जिन्हें मैं उन्हें देना चाहता था।
\q1
\v 10 तो उठो और यहाँ से चले जाओ!
\q2 यह ऐसी जगह नहीं है जहाँ तुम आराम कर सको और सुरक्षित रह सको,
\q1 क्योंकि तुमने इसे अशुद्ध कर दिया है।
\q2 मैं सुनिश्चित कर दूँगा कि यह पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा।
\q1
\v 11 तुम लोग एक ऐसा भविष्यद्वक्ता चाहते हो जो तुम्हारे साथ झूठ बोले,
\q2 ऐसा कहने वाला, ‘मैं प्रचार करूँगा कि तुमको बहुत सारा दाखरस और अन्य नशीले तरल पीना चाहिए!
\q2 वह ऐसा भविष्यद्वक्ता है जो तुमको खुश करेगा।“
\q1
\s5
\v 12 “परन्तु किसी दिन जीवित बचे इस्राएलियों को तुम सभी याकूब के वंशजों को, मैं बंधुआई से वापस ले आऊँगा।
\q1 मैं तुमको एक साथ इकट्ठा करूँगा
\q2 उसी तरह जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों को बाड़े में इकट्ठा करता है,
\q2 और तुम में से कई लोग अपने देश में होगें।
\q1
\v 13 तुम्हारा अगुवा उन्हें उन देशों को छोड़ने में सक्षम बनाएगा जहाँ वे बंधुआई में हैं;
\q2 वह उन्हें उनके शत्रुओं के शहरों के द्वारों से बाहर ले आएगा,
\q2 वापस तुम्हारे अपने देश में।
\q1 तुम्हारा राजा उनका नेतृत्व करेगा;
\q2 यह मैं हूँ, यहोवा, जो उनका राजा होगा!“
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब मैंने कहा, “तुम इस्राएली अगुवो, उसे सुनो जो मैं कहता हूँ!
\q1 तुमको निश्चित रूप से पता होना चाहिए कि कौन से काम सही है जिन्हें करना चाहिए
\q2 और कौन से काम गलत हैं,
\q1
\v 2 लेकिन जो अच्छा है तुम उससे नफरत करते हो
\q1 और जो बुरा है उससे प्यार करते हो।
\q2 तुम कसाइयों की तरह कार्य करते हो:
\q1 ऐसा लगता है कि तुम मेरे लोगों की खाल उधेड़ लेते हो
\q2 और माँस को उनकी हड्डियों से नोच लेते हो।
\q1
\v 3 ऐसा लगता है कि तुम बर्तन में पकाए जाने के लिए मांस के समान टुकड़ों में उन्हें काटते हो।
\q1
\s5
\v 4 फिर, जब तुमको परेशानी होती है, तो तुम सहायता करने के लिए यहोवा से अनुरोध करते हो,
\q2 परन्तु वह तुमको उत्तर नहीं देंगे।
\q1 उस समय, तुम्हारे द्वारा किए गए बुरे कामों के कारण;
\q2 वह अपना चेहरा तुमसे दूर कर लेंगे।”
\p
\s5
\v 5 यहोवा यही कहते हैं
\q1 तुम्हारे झूठे भविष्यद्वक्ताओं के बारे में जो लोगों को धोखा दे रहे हैं:
\q2 “अगर कोई उन्हें भोजन देता है,
\q1 तो उन भविष्यद्वक्ताओं का कहना है कि उनके लिए सब बातें अच्छी होंगी।
\q2 परन्तु वे घोषणा करते हैं कि जो उन्हें भोजन नहीं देते मैं उनको दण्ड दूँगा।
\q1
\v 6 यही कारण है कि अब ऐसी रात तुम भविष्यद्वक्ताओं पर उतरेगी;
\q2 कि तुमको कोई और दर्शन नहीं मिलेगा।
\q1 ऐसा लगता है जैसे कि सूरज तुम्हारे लिए ठहर जाएगा;
\q2 वह समय जब तुम बहुत सम्मानित माने जाते थे समाप्त हो जाएगा।
\q1
\v 7 तब तुम संतों को अपमानित किया जाएगा;
\q2 तुम अपने चेहरों को ढाँकोगे क्योंकि तुम लज्जित होगे,
\q2 क्योंकि जब तुम मुझसे पूछोगे कि क्या होगा, मुझसे कोई उत्तर नहीं मिलेगा।”
\q1
\s5
\v 8 परन्तु मैं तो परमेश्वर की शक्ति से भरा हूँ,
\q2 यहोवा की आत्मा की शक्ति से ।
\q1 मैं न्यायपूर्ण और मजबूत हूँ
\q2 और इस्राएली लोगों के लिए घोषणा करता हूँ
\q2 कि उन्होंने पाप किया है और यहोवा के विरूद्ध विद्रोह किया है।
\q1
\s5
\v 9 तुम इस्राएल के लोगों के अगुवो, यह सुनो:
\q2 तुम नफरत करते हो जब लोग न्यायपूर्ण काम करते हैं,
\q1 और जब लोग सत्य बोलते हैं,
\q2 तुम कहते हो कि यह गलत है।
\q1
\v 10 ऐसा लगता है कि तुम यरूशलेम में उस नींव पर घर बना रहे हो
\q2 जिसमें लोगों की हत्या करना और भ्रष्ट होना शामिल है।
\q1
\v 11 तुम्हारे अगुवे केवल तभी पक्ष में निर्णय लेते हैं जब उन्हें रिश्वत मिलती है।
\q2 तुम्हारे याजक केवल लोगों को तभी शिक्षा देते हैं जब वे लोग उन्हें अच्छी तरह भुगतान करते हैं।
\q2 लोगों को तुम्हारे झूठे भविष्यद्वक्ताओं को यह बताने के लिए भुगतान करने की आवश्यकता है कि भविष्य में उनके साथ क्या होगा।
\q1 वे भविष्यद्वक्ता कहते हैं, “यहोवा हमें बता रहे है कि हमें क्या कहना चाहिए,
\q2 और हम कहते हैं कि हम किसी भी आपदा का अनुभव नहीं करेंगे।”
\q1
\s5
\v 12 अगुवों, जो कुछ तुम करते हो उसके कारण,
\q2 सिय्योन पर्वत एक खेत की तरह जोता जाएगा;
\q1 यह खण्डहर का ढेर बन जाएगा।
\q2 पहाड़ी की चोटी, अभी जहाँ परमेश्वर का भवन है, पेड़ों से ढँकी होगी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 यहोवा कहते हैं कि किसी दिन उनका भवन पहाड़ के शीर्ष पर होगा,
\q1 और वह पहाड़ पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण होगा;
\q2 यह ऐसा होगा जैसे यह सभी पहाड़ियों से अधिक ऊँचा था,
\q1 और दुनिया भर के लोगों के विशाल समूह आराधना करने के लिए वहाँ आएँगे।
\p
\s5
\v 2 कई राष्ट्रों के लोग एक-दूसरे से कहेंगे,
\q1 “चलो हम पहाड़ पर जाएँ जहाँ यहोवा है,
\q2 उस भवन में जहाँ हम उस परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं जिसकी आराधना याकूब किया करता था।
\q1 वहाँ वह हमें सिखाएगा कि वह कैसे चाहता है कि हम अपने जीवन का संचालन करें,
\q2 और हम वही करेंगे जो वे चाहते हैं कि हम करें।“
\q1 सिय्योन पर्वत वह स्थान है जहाँ वह लोगों को सिखाएँगे;
\q2 और लोग दूसरों को उनका संदेश बताने के लिए यरूशलेम से बाहर जाएँगे।
\q1
\v 3 यहोवा कई अलग-अलग लोगों और समूहों के बीच जो एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे हैं, विवाद सुलझाएँगे;
\q2 और वह दूर स्थित शक्तिशाली राष्ट्रों के बीच विवाद भी सुलझाएँगे।
\q1 तब लोग अपनी तलवारों को पीट कर उनको हल जोतने का फाल बना लेंगे,
\q2 और अपने भालों को पीट कर उनको खेत की कटाई करने वाली हँसिया बना लेंगे।
\q1 राष्ट्रों की सेना अब अन्य देशों की सेनाओं के विरुद्ध लड़ाई नहीं करेगी,
\q2 और वे युद्ध में लड़ने के लिए पुरुषों को प्रशिक्षित नहीं करेंगे।
\q1
\s5
\v 4 हर कोई अपने ही अंगूर की लताओं के नीचे,
\q2 और अपने अंजीर के पेड़ों के नीचे शान्तिपूर्वक बैठेगा;
\q1 कोई भी उन्हें नहीं डराएगा।
\q2 यही निश्चित रूप से होगा क्योंकि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने यह कहा है।
\q1
\v 5 अन्य राष्ट्रों के कई लोग अपने देवताओं की पूजा करेंगे,
\q2 परन्तु हम हमारे परमेश्वर यहोवा की आराधना, हमेशा के लिए करेंगे।
\p
\s5
\v 6 यहोवा कहते हैं, “जल्द ही ऐसा समय होगा जब मैं उन लोगों को इकट्ठा करूँगा जिन्हें मैंने दण्डित किया है,
\q1 जिन्हें बंधुआई में पहुँचाया गया है,
\q2 उन सब को जिन्हें मैंने बहुत पीड़ा दी है।
\q1
\v 7 मेरे लोग जो बंधुआई के दौरान मरे नहीं, वे फिर से एक मजबूत राष्ट्र बन जाएँगे।
\q1 तब मैं, यहोवा, उनका राजा होऊँगा,
\q2 और मैं हमेशा के लिए यरूशलेम से शासन करुँगा।
\q1
\v 8 तुम्हारे लिए यरूशलेम के लोगों,
\q2 तुम मेरे सभी लोगों की निगरानी करते हो, वैसे ही जैसे एक चरवाहा मीनार से अपनी भेड़ों की निगरानी करता है,
\q1 तुम जो सिय्योन पर्वत पर रहते हो, फिर से बड़ी शक्ति प्राप्त करोगे।
\q2 तुम लोग जो यरूशलेम में रहते हो फिर से शासन करोगे जैसा तुमने पहले किया था।
\q1
\s5
\v 9 तो अब तुम क्यों चिल्ला रहे हो?
\q2 ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि तुम्हारे पास कोई राजा नहीं है?
\q1 क्या तुम्हारे सभी बुद्धिमान लोग मर गए हैं?
\q2 तुम ऐसी महिला के समान जोर से रो रहे हो जो बच्चे को जन्म दे रही है।
\q1
\v 10 ठीक है, यरूशलेम के लोगों को उस महिला के समान छटपटाना और चिल्लाना चाहिए जो बच्चे को जन्म देने की पीड़ा झेल रही है,
\q2 क्योंकि अब तुम्हें इस शहर को छोड़ना होगा।
\q1 जब तुम यात्रा कर रहे हो, तो तुम रात में खुले मैदानों में तम्बू स्थापित करोगे;
\q2 तुम बेबीलोन में रहने के लिए जाओगे।
\q1 परन्तु जब तुम वहाँ होगे,
\q2 मैं, यहोवा, तुम्हें बचाऊँगा;
\q1 मैं तुमको तुम्हारे शत्रुओं की शक्ति से मुक्त कर दूँगा।
\q1
\s5
\v 11 अब कई राष्ट्रों की सेनाएँ तुम पर हमला करने के लिए इकट्ठी हुई हैं।
\q2 वे कह रहे हैं, ‘यरूशलेम को नष्ट किया जाना चाहिए!
\q2 हम इस शहर को खण्डहर बनते देखना चाहते हैं!‘”
\q1
\v 12 भविष्यद्वक्ता कहता है, वे नहीं जानते कि यहोवा क्या सोचते हैं;
\q2 और वे नहीं समझते कि वह क्या योजना बना रहे हैं।
\q1 वे उन्हें इकट्ठा करेंगे और उन्हें दण्डित करेंगे
\q2 जैसे किसान जमीन पर अनाज बटोरते हैं।
\q1
\s5
\v 13 यहोवा कहते हैं, “इसलिए, यरूशलेम के लोगों, उठ कर उन राष्ट्रों को दण्डित करो जो तुम्हारा विरोध करते हैं।
\q2 मैं तुमको बहुत मजबूत बना दूँगा,
\q1 जैसे तुम्हारे लोहे से बने सींग थे,
\q2 जैसे तुम्हारे काँसे से बने खुर थे;
\q2 और तुम कई राष्ट्रों को कुचल दोगे।
\q1 तब तुम अपने शत्रुओं से उन मूल्यवान वस्तुओं को लूट लोगे जिन्हें उन्होंने अन्य देशों से लूटा था,
\q2 और मैं तुमसे उन वस्तुओं को अपने लिये समर्पित करवाऊँगा, जो पृथ्वी पर सब लोगों का स्वामी है।“
\s5
\c 5
\q1
\v 1 तुम यरूशलेम के लोगों, अपने सैनिकों को एक साथ इकट्ठा करो।
\q2 भले ही तुम्हारे पास तुम्हारे शहर की रक्षा करने के लिए चारों ओर दीवार हो,
\q1 शत्रु सैनिक शहर को चारों ओर से घेर रहे हैं।
\q2 शीघ्र ही वे तुम्हारे अगुवे के चेहरे पर छड़ी से वार करेंगे।
\q1
\s5
\v 2 परन्तु एप्राता के जिले में बैतलहम के लोगों,
\q2 भले ही तुम्हारा शहर यहूदा के सभी नगरों में से सबसे छोटा है,
\q2 जो इस्राएल पर शासन करेगा वह तुम्हारे ही नगर में पैदा होगा।
\q1 वह वही व्यक्ति होगा जिसका परिवार बहुत समय पहले अस्तित्व में था।
\q1
\v 3 अब हे इस्राएल के लोगों, परमेश्वर तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें जीतने की इजाजत देगा,
\q2 परन्तु यह केवल थोड़े समय के लिए होगा,
\q1 उस कम समय की तरह जिस में महिलाओं को बच्चे पैदा करते समय बहुत पीड़ा होती है।
\q2 उसके बाद, तुम्हारे साथी देशवासी जिनको बंधुआई में ले जाया गया था, वे अपने देश लौट जाएँगे।
\q1
\s5
\v 4 और जो मनुष्य यरूशलेम में शासन करेगा वह खड़ा होगा और अपने लोगों का अच्छी तरह से नेतृत्व करेगा,
\q2 क्योंकि यहोवा, उनके परमेश्वर, उसे मजबूत और बहुत सम्मानित करेंगे।
\q1 तब जिन लोगों पर वे शासन करते हैं वे यरूशलेम में सुरक्षित रहेंगे;
\q2 वे पूरी दुनिया के लोगों द्वारा बहुत सम्मानित किए जाएँगे
\q2 इसलिए कोई भी यरूशलेम पर हमला करने का साहस नहीं करेगा।
\q2
\v 5 और वे अपने लोगों के साथ सब बातों को अच्छी तरह से होने देंगे।
\q1 जब अश्शूर की सेना हमारे देश पर हमला करती है
\q2 और हमारे किले को तोड़ देती है,
\q1 हम अपनी सेना को उनके विरुद्ध युद्ध का नेतृत्व करने के लिए सात या आठ अगुवों की नियुक्ति करेंगे।
\q1
\s5
\v 6 अपनी तलवारों के साथ हमारी सेना अश्शूर की सेना को पराजित करेगी, जिसकी राजधानी निम्रोद बहुत पहले स्थापित हुई थी। हमारी सेना उनके शहरों पर शासन करेगी।
\q1 इसलिये हमारी सेना हमें अश्शूरी सेना से बचाएगी
\q2 जब वे हमारे देश पर आक्रमण करते हैं।
\q1
\v 7 जीवित बच जाने वाले याकूब के वंशज अन्य राष्ट्रों के लोगों के लिए आशीर्वाद होंगे
\q2 ठीक वैसे ही जैसे यहोवा द्वारा भेजी गई ओस और वर्षा घास के लिए अच्छी होती है।
\q1 वे उनकी सहायता के लिए मनुष्यों पर भरोसा नहीं करेंगे;
\q2 इसकी अपेक्षा, वे यहोवा पर भरोसा करेंगे।
\q1
\s5
\v 8 कई लोगों के समूह में और अपने शत्रुओं के बीच,
\q2 जीवित रह जाने वाले याकूब के वंशज जंगल के अन्य जंगली जानवरों के बीच शेर की तरह होंगे,
\q1 मजबूत युवा शेर की तरह जो झुण्ड में भेड़ पर हमला करता है,
\q2 और कोई भी उनके शत्रुओं को बचाने में सक्षम नहीं होगा।
\q1
\v 9 तुम इस्राएली अपने सभी शत्रुओं को पराजित करोगे
\q2 और उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दोगे।
\p
\s5
\v 10 यहोवा कहते हैं,
\q1 “उस समय, मैं तुम इस्राएली लोगों के घोड़ों को जिन्हें तुम्हारे सैनिक युद्ध में उपयोग करते हैं,
\q2 तुम्हारे रथों के साथ नष्ट कर दूँगा।
\q1
\v 11 मैं तुम्हारे शहर की दीवारों को ढा दूँगा
\q2 और तुम्हारे सभी गढ़ वाले शहरों को नष्ट कर दूँगा।
\q1
\s5
\v 12 मैं उन सब लोगों को जो जादू टोना करते हैं
\q2 और भाग्य बताने वालों को नाश कर दूँगा।
\q1
\v 13 मैं तुम्हारी सारी मूर्तियों और पत्थर के खम्भों को नष्ट कर दूँगा,
\q2 और तब तुम उन वस्तुओं के सामने नहीं झुकोगे और उनकी पूजा नहीं करोगे, जो वस्तुएँ तुमने स्वयं बनाई हैं ।
\q1
\v 14 मैं तुम्हारी उन लाठों को नाश करूँगा जो देवी अशेरा का प्रतिनिधित्व करती हैं,
\q2 और मैं तुम्हारी सभी मूर्तियों को भी नष्ट कर दूँगा।
\q1
\v 15 क्योंकि मैं बहुत क्रोधित हो जाऊँगा,
\q2 मैं उन सभी राष्ट्रों के लोगों को भी दण्ड दूँगा जिन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी।“
\s5
\c 6
\p
\v 1 यहोवा जो कहेंगे उस पर ध्यान दो:
\q1 मीका यहोवा से कहता है, “अदालत में खड़े हो जाओ और इस्राएलियों पर आरोप लगाओ।
\q2 पहाड़ों को सुनने के लिए अनुमति दें कि आप क्या कहेंगे।
\q1
\v 2 पहाड़ों को ध्यान से सुनना चाहिए कि यहोवा अपने लोगों के विषय में क्या कहते हैं, ताकि वे गवाह बन सकें।
\q2 दरअसल, यहोवा के पास अपने इस्राएली लोगों पर आरोप लगाने के कई विषय हैं।
\q1
\s5
\v 3 वह यह कहते हैं: “मेरे लोगों, तुम्हारे लिए परेशानी पैदा करने के लिए मैंने क्या किया है?
\q2 तुम्हें कठिनाइयों का अनुभव कराने के लिए मैंने क्या किया है?
\q1 मुझे उत्तर दो!
\q1
\v 4 मैंने तुम्हारे पूर्वजों के लिए महान काम किये;
\q2 मैं उन्हें मिस्र से बाहर लाया;
\q2 मैंने उन्हें उस देश से बचाया जहाँ वे दास थे।
\q1 मैंने मूसा को,
\q2 और उसके बड़े भाई हारून और उनकी बड़ी बहन मिर्याम को उनका नेतृत्व करने के लिए भेजा।
\q1
\v 5 मेरे लोगों, इसके विषय में सोचो जब मोआब के राजा बालाक ने, तुम्हारे पूर्वजों को शाप देने के लिए बोर के पुत्र बिलाम से अनुरोध किया,
\q2 और बिलाम ने जो उत्तर दिया इसके विषय में सोचो।
\q1 इसके विषय में सोचो कि कैसे तुम्हारे पूर्वजों ने यरदन नदी को चमत्कारिक रूप से पार किया था जब वे शित्तीम से गिलगाल तक की यात्रा कर रहे थे।
\q2 उन बातों के विषय में सोचो कि तुम जान सको कि मैं, यहोवा, वही करता हूँ जो सही है।“
\q1
\s5
\v 6 इस्राएली पूछते हैं, “हम स्वर्ग में रहने वाले यहोवा के लिए क्या लाएँ
\q2 जब हम उनके पास आते हैं और उनके सामने झुकते हैं?
\q1 क्या हमें एक वर्ष का बछड़ा लाना चाहिए
\q2 जो चढ़ावा होगा और जिसे मार कर वेदी पर पूरी तरह से जला दिया जाएगा?
\q1
\v 7 क्या यहोवा प्रसन्न होंगे यदि हम उन्हें हजारों मेढ़े
\q2 और जैतून के तेल की दस हजार धाराएँ चढ़ाएँ?
\q1 क्या हमें अपने पहिलौठे बच्चों को बलिदान देने की पेशकश करनी चाहिए
\q2 उन पापों के भुगतान के लिए जो हम ने किए हैं?“
\q1
\v 8 नहीं, क्योंकि उसने हम में से प्रत्येक को दिखाया है कि क्या करना अच्छा है;
\q2 उन्होंने हमें दिखाया है कि हम में से प्रत्येक को क्या करने की आवश्यकता है:
\q1 वह चाहते हैं कि हम जो सही है वह करें और दूसरों के प्रति दया के काम करना पसंद करें,
\q2 और वे चाहते हैं कि हम, हमारे परमेश्वर के साथ संगति करते समय नम्र रहें।
\q1
\s5
\v 9 परमेश्वर यह कहते है: “मैं यहोवा हूँ, इसलिए यदि तुम बुद्धिमान हो, तो तुमको मेरा आदर करना चाहिए।
\q2 मैं तुम यरूशलेम के लोगों को यह बताने के लिए बुला रहा हूँ:
\q1 सेनाएँ आ रही हैं जो तुम्हारे शहर को नष्ट कर देंगी,
\q2 अतः मुझ पर सावधानी के साथ ध्यान दो, मैं वही हूँ जो तुमको अपनी छड़ी से उनके द्वारा दण्डित करवा रहा है।
\q1
\v 10 तुम दुष्ट लोगों ने अपने घरों को बहुमूल्य वस्तुओं से भर लिया है
\q2 जिसे तुमने दूसरों को धोखा देकर हासिल किया है।
\q1 जब तुम वस्तुएँ खरीदते और बेचते हो तो तुम झूठे नापों का उपयोग करते हो।
\q2 यह वे काम हैं जिनसे मैं नफरत करता हूँ।
\q1
\s5
\v 11 तुमको नहीं लगता कि मुझे उन लोगों के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए जो इस प्रकार के तराजू का उपयोग करते हैं जो सही ढंग से वजन नहीं करता,
\q2 और जो ऐसे बटखरों का उपयोग करते हैं जो सटीक नहीं हैं, क्या तुमको नहीं लगता?
\q1
\v 12 गरीब लोगों से पैसा पाने के लिए तुम में जो अमीर हैं वे सदा हिंसक कार्य करते हैं।
\q2 यरूशलेम में सब लोग झूठे हैं,
\q2 और वे सदा लोगों को धोखा देते हैं।
\q1
\s5
\v 13 इसलिए, मैंने पहले से ही तुम से छुटकारा पाने का काम शुरू कर दिया है,
\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए पापों के कारण तुमको बर्बाद करना।
\q1
\v 14 शीघ्र ही तुम खाना खाओगे, परन्तु संतुष्ट होने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त नहीं होगा;
\q2 तुम्हारे पेट अभी भी महसूस करेंगे कि वे खाली हैं।
\q1 तुम पैसे बचाने का प्रयास करोगे,
\q2 परन्तु तुम कुछ भी सहेजने में सक्षम नहीं होगे,
\q1 क्योंकि मैं तुम्हारे शत्रुओं को युद्धों में तुमसे लूट लेने के लिए भेजूँगा।
\q1
\v 15 तुम फसलें लगाओगे,
\q2 परन्तु तुम कुछ भी उपज नहीं पाओगे।
\q1 तुम जैतून दबाओगे,
\q2 परन्तु अन्य लोग जैतून के तेल का उपयोग करेंगे, तुम नहीं।
\q1 तुम अंगूरों को रौंदोगे और रस से दाखरस बनाओगे,
\q2 परन्तु दूसरे दाखरस पीएँगे, तुम नहीं।
\q1
\s5
\v 16 ये बातें तुम्हारे साथ होंगी क्योंकि तुम केवल राजा ओम्री के दुष्ट नियमों का पालन करते हो,
\q2 और तुम वैसे भयानक काम करते हो जिन्हें राजा अहाब और उसके वंशजों ने आदेश दिया था।
\q1 इसलिए मैं तुम्हारे देश को नष्ट कर दूँगा,
\q2 और मैं अन्य लोगों के समूहों के समक्ष, तुम्हें, मेरे अपने लोगों को तुच्छ मानने का कारण बनाऊँगा।“
\s5
\c 7
\q1
\v 1 मैं बहुत अभागा हूँ!
\q1 मैं किसी ऐसे व्यक्ति की तरह हूँ जिसे भूख लगी है, जो खाने के लिए फल की खोज करता है
\q2 और जिसे खाने के लिए कोई अंगूर या अंजीर नहीं मिलता
\q1 क्योंकि सभी फल तोड़ लिए गए हैं।
\q1
\v 2 जो परमेश्वर का आदर करते थे, वे इस देश से गायब हो गए हैं;
\q2 उनमें से एक भी नहीं बचा।
\q1 जो लोग शेष हैं वे सभी हत्यारे हैं;
\q2 ऐसा लगता है कि हर कोई अपने साथी देशवासियों को मारने के लिए उत्साहित है।
\q1
\s5
\v 3 वे अपनी सारी शक्ति के साथ बुराई करते हैं।
\q2 सरकारी अधिकारी और न्यायाधीश सभी रिश्वत माँगते हैं।
\q1 महत्वपूर्ण लोग दूसरों को बताते हैं कि वे क्या चाहते हैं,
\q2 और वे इसे कैसे प्राप्त करें इसके बारे में एक साथ मिलकर साजिश करते हैं।
\q1
\v 4 यहाँ तक कि सबसे अच्छे लोग बाधाओं के समान बेकार हैं;
\q2 जिन लोगों को हमने सबसे ईमानदार माना है वे कंटीली झाड़ियों से भी बदतर हैं।
\q1 परन्तु यहोवा जल्द ही उनका न्याय करेंगे।
\q2 अब वह समय है जब वह लोगों को दण्डित करेंगे,
\q2 जब वे इसके कारण बहुत उलझन में होंगे।
\q1
\s5
\v 5 तो किसी पर भरोसा मत करो!
\q2 यहाँ तक कि मित्र पर भी भरोसा मत करो;
\q1 सावधान रहो कि तुम अपनी पत्नी से क्या कहते हो, जिससे तुम प्यार करते हो।
\q1
\v 6 लड़के अपने पिता को तुच्छ मानेंगे,
\q2 और लड़कियाँ अपनी माँ को अपमानित करेंगी।
\q1 महिलाएँ अपनी सास को अपमानित करेंगी।
\q2 तुम्हारे शत्रु वे लोग होंगे जो तुम्हारे अपने घर में रहते हैं।
\q1
\s5
\v 7 मेरे लिए, मैं अपनी सहायता करने के लिए यहोवा की प्रतीक्षा करता हूँ।
\q2 मैं आश्वस्त रूप से आशा करता हूँ कि परमेश्वर, मेरा उद्धारकर्ता है जो मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं।
\q1
\v 8 तुम जो हमारे शत्रु हो,
\q2 हमारे साथ जो हुआ है, इसके विषय में बड़ी चाह से दृष्टि मत डालो,
\q1 क्योंकि भले ही हमने आपदाओं का अनुभव किया है,
\q2 उन आपदाओं का अंत हो जाएगा, और हम फिर से समृद्ध होंगे।
\q1 भले ही ऐसा लगता है कि हम अंधेरे में बैठे हैं,
\q2 यहोवा परमेश्वर हमारा प्रकाश होंगे।
\q1
\s5
\v 9 जब यहोवा हमें दण्डित करेंगे, हमें धीरज रखना चाहिए
\q2 क्योंकि हमने उनके विरुद्ध पाप किया है।
\q1 परन्तु बाद में, ऐसा होगा जैसे वे अदालत में जाएँगे और हमारा बचाव करेंगे।
\q2 वे यह सुनिश्चित करेंगे कि न्यायाधीश हमारे विषय सही निर्णय ले।
\q1 यह ऐसा होगा जैसे वह हमें प्रकाश में लाएँगे,
\q2 और हम उन्हें हमको बचाते हुए देख सकेंगे।
\q1
\s5
\v 10 हमारे शत्रु भी इसे देखेंगे, और अपमानित होंगे
\q2 क्योंकि उन्होंने हमारा उपहास यह कह कर किया,
\q1 “यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारी सहायता क्यों नहीं कर रहा है?”
\q2 परन्तु हम अपनी आँखों से उन्हें पराजित होते हुए देखेंगे;
\q2 हम उन्हें रौंदे जाते हुए देखेंगे
\q2 सड़कों के कीचड़ की तरह।
\q1
\s5
\v 11 इस्राएल के लोगों, उस समय तुम्हारे नगरों का पुनःनिर्माण किया जाएगा,
\q2 और तुम्हारी सीमाएँ बड़ी हो जाएँगी।
\q1
\v 12 तुम्हारे लोग कई देशों से तुम्हारे पास वापस आ जाएँगे,
\q2 अश्शूर से, पूर्व में फरात नदी के पास से, और दक्षिण में मिस्र से, मृत सागर से भूमध्य सागर तक,
\q2 और कई पहाड़ों से।
\q1
\v 13 परन्तु पृथ्वी के अन्य देश;
\q2 उनके लोगों द्वारा किए गए बुरे कर्मों के कारण उजाड़ दिए जाएँगे।
\q1
\s5
\v 14 हे यहोवा, अपने लोगों की रक्षा करें, जैसे चरवाहा लाठी लेकर अपनी भेड़ों की सुरक्षा करता है।
\q2 उन लोगों का नेतृत्व करें जिनको आपने अपने लोग होने के लिए चुना है।
\q1 हालाँकि उनमें से कुछ जंगल में अकेले रहते हैं,
\q2 उन्हें उपजाऊ चरागाह दें
\q1 बाशान और गिलाद के क्षेत्रों में,
\q2 जिन पर उन्होंने बहुत पहले अधिकार कर लिया था।
\p
\v 15 यहोवा कहते हैं,
\q1 “हाँ, मैं तुम्हारे लिए चमत्कार करूँगा
\q2 उन चमत्कारों की तरह जिनका मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र में दास होने से बचाते समय प्रदर्शन किया था।“
\q1
\s5
\v 16 कई राष्ट्रों के लोग देखेंगे कि यहोवा तुम्हारे लिए क्या करते हैं,
\q1 और वे लज्जित होंगे
\q2 क्योंकि उनके पास कोई शक्ति नहीं है।
\q1 वे अपने हाथ अपने मुँह और कानों पर रखेंगे क्योंकि वे यहोवा के कामों से बहुत चकित होंगे।
\q2 वे कुछ भी कहने या कुछ भी सुनने में सक्षम नहीं होंगे, क्योंकि वे डर जाएँगे।
\q1
\v 17 बहुत अपमानित होने के कारण, वे साँपों की तरह जमीन पर रेंगेंगे।
\q1 वे थरथराते हुए अपने घरों से बाहर निकलेंगे
\q2 और हमारे परमेश्वर यहोवा का आदर करने के लिए खड़े हो जाएँगे।
\q1 वे उनसे बहुत डरेंगे
\q2 और उनके सामने थरथराएँगे।
\q1
\s5
\v 18 हे यहोवा, आप जैसा कोई परमेश्वर नहीं है;
\q2 आप बचाए हुए लोगों के किए गए पापों को क्षमा करते हैं,
\q2 वे जो आपके लोग हैं।
\q1 आप सदा के लिए नाराज नहीं रहते;
\q2 आप हमें यह दिखाने में बहुत खुश हैं कि आप हमें ईमानदारी से प्यार करते हैं।
\q1
\s5
\v 19 आप फिर से हमारे प्रति दया के कार्य करेंगे।
\q2 आप उस पुस्तक से छुटकारा दिलाएँगे जिस पर आपने उन पापों को लिखा है जो हमने किए हैं,
\q2 जैसे कि आप इसे अपने पैरों के नीचे कुचल देंगे।
\q2 या इसे गहरे महासागर में फेंक देंगे।
\q1
\v 20 आप दिखाएँगे कि आप उन कामों को विश्वास की क्षमता के साथ करते है जिनका आपने हम से वादा किया है और ईमानदारी से हमसे प्यार करते हैं,
\q2 ठीक वैसे ही जैसे आपने बहुत पहले हमारे पूर्वजों अब्राहम और याकूब से गम्भीरता के साथ वादा किया था कि आप करेंगे।

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\h नहूम
\toc1 नहूम
\toc2 नहूम
\toc3 nam
\mt1 नहूम
\s5
\c 1
\q1
\p
\v 1 मैं एल्कोश गाँव से नहूम हूँ। यह नीनवे शहर के विषय में एक संदेश है, एक ऐसा संदेश जो यहोवा ने दर्शन में मुझे दिया था।
\q1
\s5
\v 2 यहोवा हमारे परमेश्वर अन्य देवताओं को सहन नहीं करते हैं।
\q2 वह उन लोगों से बहुत क्रोधित हैं जो अन्य देवताओं की पूजा करते हैं,
\q2 और वह अपने शत्रुओं से क्रोधित रहते हैं।
\q1
\v 3 यहोवा जल्दी क्रोधित नहीं होते;
\q2 लेकिन वे बहुत शक्तिशाली हैं,
\q2 और वे कभी नहीं कहेंगे कि उनके शत्रु निर्दोष हैं।
\q2 जहाँ कहीं भी वे चलते हैं, वहाँ बवण्डर और तूफ़ान उठता है,
\q2 और बादल उनके पैरों से उड़ी धूल की तरह हैं।
\q1
\s5
\v 4 जब वह महासागरों और नदियों को सूखने का आदेश देते हैं, तो वे सुखा देते हैं।
\q2 वह बाशान क्षेत्र के खेतों में
\q2 और कर्मेल पर्वत की ढलानों पर घास को सुखा देते हैं,
\q2 और वह लबानोन के फूलों को मुरझा देते हैं।
\q1
\v 5 जब वह प्रकट होते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे पहाड़ हिल गए और पहाड़ियाँ पिघल गईं;
\q2 पृथ्वी थरथरा उठी, और पृथ्वी पर रहने वाले लोग डर गए।
\q1
\s5
\v 6 कोई भी ऐसा नहीं है जो उनके क्रोधित हो जाने पर उनका सामना कर सके;
\q2 कोई भी नहीं है जो उनके क्रोध के बहुत बढ़ने पर बना रह सके।
\q2 जब वह अत्यंत क्रोधित होते हैं, तब ऐसा लगता है जैसे उनका क्रोध धधकती आग के समान है,
\q2 और जैसे पहाड़ों को टुकड़े-टुकड़े हो गए हों।
\q1
\s5
\v 7 लेकिन वे अच्छे है;
\q2 जब हम परेशानियों का अनुभव करते हैं, तो वे हमारी, अपने लोगों की रक्षा करते हैं।
\q2 वह उनकी देखभाल करते हैं जो उन पर भरोसा करते हैं।
\q1
\v 8 परन्तु वह अपने शत्रुओं का नाश करेंगे;
\q2 वह उनके लिए बाढ़ की तरह होंगे जो सब कुछ नष्ट कर देती है।
\q2 वह अपने शत्रुओं को
\q2 अंधेरे स्थान में खदेड़ देंगे जहाँ मृत लोग हैं।
\q1
\s5
\v 9 इसलिए नीनवे के लोगों तुम्हारा यहोवा के विरुद्ध षड्यंत्र करना व्यर्थ है।
\q2 तुमको नष्ट करने के लिए उन्हें दो बार हमला करने की आवश्यकता नहीं होगी;
\q2 वह तुमको केवल एक ही प्रहार में नष्ट कर देंगे।
\q1
\v 10 यह ऐसा होगा जैसे उनके शत्रु काँटे में उलझ गए हैं
\q2 और वे उन लोगों की तरह लड़खड़ाएँगे जिन्होंने बहुत दाखरस पी ली है।
\q2 यह ऐसा होगा जैसे वे सूखे भूसे की तरह जल जाएँगे।
\q1
\v 11 नीनवे में एक ऐसा व्यक्ति था जिसने लोगों को यहोवा के विरुद्ध बहुत ही दुष्टता भरे काम करने की सलाह दी थी।
\s5
\v 12 परन्तु यहोवा तुम इस्राएलियों से यही कहते हैं:
\q1 “यद्यपि अश्शूर की जाति में बहुत से लोग हैं
\q2 और उनकी सेना बहुत शक्तिशाली है,
\q2 पर वे नष्ट हो जाएँगे और वे गायब हो जाएँगे।
\q1 मैं यहूदा में अपने लोगों से कहता हूँ,
\q2 मैं तुमको पहले भी दण्डित कर चुका हूँ,
\q2 परन्तु मैं तुमको फिर से दण्डित नहीं करूँगा।
\q1
\v 13 अब मैं तुम्हें अश्शूर के लोगों का गुलाम बना रहने नहीं दूँगा; यह ऐसा होगा जैसे मैं तुम्हारे हाथों और पैरों की जंजीरों को तोड़ डालूँगा।”
\m
\s5
\v 14 यहोवा ने नीनवे के लोगों के बारे में यह भी कहा है:
\q1 “तुम्हारे पास कोई वंशज नहीं होगा जो तुम्हारे परिवार का नाम आगे बढ़ाए।
\q2 और मैं तुम्हारे देवताओं की सभी मूर्तियों को नष्ट कर दूँगा
\q2 जो नक्काशी या ढालकर बनाई गई थीं।
\q1 मैं ऐसा करूँगा कि तुम मार डाले जाओगे और कब्र में पहुँचा दिए जाओगे, क्योंकि तुम तो दुष्ट हो!”
\q1
\s5
\v 15 हे यहूदा के लोगों, देखो! एक संदेशवाहक पहाड़ों के पार से आएगा,
\q2 और वह तुम्हारे लिये शुभ समाचार लाएगा।
\q1 वह घोषणा करेगा कि तुमको अब शान्ति मिलेगी।
\q2 तो अपने पर्वो को मनाओ, और उस वचन को पूरा करो जिसको तुमने निष्ठापूर्वक करने का उस समय वादा किया था
\q2 जब तुम्हारे शत्रु तुम पर हमला करने की धमकी दे रहे थे।
\q1 क्योंकि अब तुम्हारे दुष्ट शत्रु फिर से तुम्हारे देश पर आक्रमण नहीं करेंगे,
\q2 क्योंकि वे पूरी तरह नष्ट हो जाएँगे।
\s5
\c 2
\q1
\v 1 हे नीनवे के लोगों, तुम्हारे शत्रु तुम पर हमला करने आ रहे हैं। इसलिए शहर के चारों ओर की दीवारों के ऊपर अपने पहरेदारों को रखो! शहर की सड़कों की रक्षा करो। लड़ने के लिए तैयार हो जाओ, अपने सैनिकों को इकट्ठा करो।
\v 2 भले ही तुम्हारे सैनिकों ने याकूब के वंशजों को नष्ट कर दिया हो, पर यहोवा अन्य राष्ट्रों द्वारा फिर से उनका आदर करेंगे। तुम्हारे देश के आक्रमणकारियों ने इस्राएल को ऐसे बर्बाद कर दिया, जैसे शत्रु एक दाख की बारी को उखाड़ कर फेंक देता है, लेकिन इस्राएल फिर से समृद्ध होगा।
\s5
\v 3 शत्रु सैनिकों की ढालें, जो तुम पर आक्रमण करने को आ रहे हैं, लाल चमकेंगी, जैसे उन पर सूर्य चमकता है,
\q2 और वे चमकदार लाल वर्दी पहनेंगे।
\q2 जब वे युद्ध से पहले पंक्तिबद्ध खड़े होंगे तो उनके रथ के पहियों की धातु चमकेंगी,
\q2 और उनके सैनिक अपने मज़बूत भाले उठाएँगे और उन्हें लहराएँगे।
\q1
\v 4 उनके रथ नीनवे की सड़कों पर दौड़ते हैं
\q2 और चौकों पर उग्रता पूर्वक तेज़ी से इधर-उधर निकलते हैं।
\q2 वे बिजली की सी तेज़ी से आते हैं,
\q2 वे जलती हुई मशालों की तरह दिखते हैं।
\q1
\s5
\v 5 एक अधिकारी अपने कर्मचारियों को आदेश देता है,
\q2 और वे उसके पास इतनी जल्दी आते हैं कि ठोकर खाते हैं।
\q2 वे शहर की दीवार पर हमला करने को दौड़ते हैं,
\q2 और वे सैनिकों के ऊपर उनकी रक्षा के लिए एक लकड़ी की बड़ी ढाल स्थापित की है।
\q1
\s5
\v 6 शत्रु सैनिक बलपूर्वक नदियों की ओर स्थित शहर के द्वार खोलेंगे;
\q2 और महल ध्वस्त हो जाएगा।
\q1
\v 7 रानी के वस्त्र शत्रु सैनिकों द्वारा उससे छीन लिये जाएँगे,
\q2 और उसकी दासियाँ कबूतरों की तरह रोएँगी,
\q2 और अपनी छातियाँ यह दिखाने के लिए पीटेंगी, कि वे बहुत दु:खी हैं।
\s5
\v 8 लोग नीनवे से ऐसे भाग जाएँगे,
\q2 जैसे टूटे हुए बाँध से पानी, बह निकलता है।
\q2 अधिकारी चिल्लाएँगे, “रुको! रुको!”
\q2 लेकिन लोग भागते समय पीछे मुड़कर भी नहीं देखेंगे।
\q1
\v 9 आक्रमणकारी शत्रु एक-दूसरे से कहते हैं,
\q2 “चाँदी को जब्त कर लो!
\q2 सोना छीन लो!
\q1 शहर में बहुत सारी मूल्यवान वस्तुएँ हैं,
\q2 इतनी अधिक मूल्यवान वस्तुएँ जिन्हें कोई गिना नहीं सकता।”
\q1
\v 10 जल्द ही शहर की मूल्यवान सभी वस्तुएँ छीन लीं जाएँगी या नष्ट हो जाएगा। लोग थरथराएंगे, जिसके कारण वे लड़ने में सक्षम नहीं होंगे। उनके चेहरे डर से पीले हो जाएँगे।
\q1
\s5
\v 11 ऐसा होने के बाद, लोग कहेंगे,
\q2 “उस बड़े शहर नीनवे के साथ क्या हुआ?
\q2 यह जवान शेरों से भरी हुई एक माँद की तरह था,
\q2 जहाँ शेर और शेरनी रहते थे और अपने बच्चों को शिकार खिलाते थे, जहाँ उन्हें किसी भी बात का डर नहीं था।
\q1
\v 12 नीनवे के सैनिक उन शेरों की तरह थे जो अन्य जानवरों को मार डालते थे या गला घोंट देते थे और उनका माँस अपनी माँदों में ले आते थे।”
\s5
\v 13 यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, नीनवे के लोगों से कहते हैं,
\q2 “मैं तुम्हारा शत्रु हूँ;
\q2 मैं तुम्हारे रथों को आग में जला दूँगा और धूएँ में उड़ा दूँगा।
\q2 तुम्हारे जवान पुरुष तलवार से मारे जाएँगे।
\q2 मैं हर एक मूल्यवान वस्तुओं को, जिसे तुमने अन्य देशों से चुराया है, गायब कर दूँगा।
\q2 तुम्हारे दूत फिर कभी भी अन्य देशों में वह संदेश नहीं ले जा सकेंगे, जिसमें यह माँग होगी कि
\q2 उनकी सेना हमारे सामने आत्मसमर्पण कर दे।”
\s5
\c 3
\q1
\v 1 नीनवे के साथ, भयानक बातें घटित होंगी, यह एक ऐसा शेहर हैं, जो हत्या करने वाले, चोरी करने वालों और झूठ बोलने वालों से भरा पड़ा है, भयानक बातें घटित होंगी। यह शहर उन लोगों से भरा है जिनको सैनिक अन्य देशों से लेकर आए थे।
\v 2 लेकिन अब नीनवे पर हमला करने के लिए आने वाले शत्रु सैनिकों की आवाज़ सुनो; उनके चाबुकों की फटकार सुनो, और उनके रथ के पहियों की खड़खड़ाहट सुनो! उनके वेग से दौड़ने वाले घोड़ों और उनके रथों की आवाज़ सुनो क्योंकि वे साथ-साथ उछलते हैं।
\s5
\v 3 जब घुड़सवार तेज़ी से आगे बढ़ते हैं, तो उनकी तलवारों और चमकदार भालों को देखो! नीनवे के बहुत से लोग मारे जाएँगे; वहाँ लाशों के इतने ढेर होंगे, कि आक्रमणकारी उन से ठोकर खाएँगे।
\v 4 यह सब इसलिए होगा क्योंकि नीनवे एक ऐसी सुन्दर वेश्या की तरह है
\q2 जो पुरुषों को उस ओर फुसलाती है जहाँ पर वे बर्बाद हो जाएँगे;
\q2 नीनवे एक सुन्दर शहर है
\q2 जिसने अन्य देशों के लोगों को अपने यहाँ आने के लिए आकर्षित किया है।
\q2 नीनवे के लोगों ने अन्य देश के उन लोगों को जादू टोना सिखाया,
\q2 और उन्हें अपना गुलाम बनाया।
\q1
\s5
\v 5 इसलिए स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, नीनवे के लोगों से कहते हैं :
\q2 “मैं तुम्हारा शत्रु हूँ, और मैं तुम्हें अन्य देशों के लोगों के सामने
\q2 पूरी तरह अपमानित करूँगा;
\q2 जैसे व्यभिचार करने वाली महिलाओं को उनके घाघरों को ऊँचा उठाकर अपमानित किया जाता है,
\q2 जिसके परिणामस्वरूप लोग उनके नग्न शरीर देख सकें।
\q1
\v 6 मैं दूसरों से तुम्हारे ऊपर कचरा फिंकवाऊँगा;
\q2 मैं दूसरों को दिखाऊंगा कि मैं तुमको बहुत तुच्छ समझता हूँ,
\q2 और मैं सब लोगों के द्वारा सार्वजनिक रूप से तुम्हारा उपहास करवाऊँगा।
\q1
\v 7 जो लोग तुझे देखते हैं वे तेरी ओर अपनी पीठ फेर लेंगे और कहेंगे,
\q2 ‘नीनवे बर्बाद हो गया है,
\q2 लेकिन इसके लिए कोई भी शोक नहीं करेगा।’
\q2 नीनवे, कोई भी तुझे सांत्वना देना नहीं चाहेगा।”
\q1
\s5
\v 8 तेरा शहर निश्चित रूप से अमोन शहर से सुरक्षित नहीं है।
\q2 अमोन शहर नील नदी के बगल में एक महत्वपूर्ण शहर था;
\q2 नदी उसके चारों ओर एक दीवार की तरह थी।
\q1
\v 9 कूश और मिस्र के शासकों ने अमोन की सहायता की; उनकी शक्ति की कोई सीमा नहीं थी।
\q2 आस-पास के देश पूत और लूबी के शासक भी
\q2 अमोन के सहयोगी थे।
\q1
\s5
\v 10 फिर भी, अमोन पर कब्ज़ा कर लिया गया,
\q2 और उसके लोगों को निर्वासित कर दिया गया था।
\q2 उनके बच्चों को शहर की सड़कों पर टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया था।
\q2 शत्रु सैनिकों ने यह तय करने के लिए चिट्ठियाँ डालीं कि
\q2 अमोन का कौन सा अधिकारी उनमें से किसको उनका दास होने के लिए मिलेगा।
\q2 अमोन के सभी अगुवे जंजीरों से बाँध दिए गए।
\q1
\v 11 तुम नीनवे के लोग भी इसी तरह अचम्भित और मतवाले हो जाओगे,
\q2 और अपने शत्रुओं से बचने के लिए
\q2 तुम छिपने के स्थानों को ढूंढोगे।
\q1
\s5
\v 12 तुम्हारे शत्रु तुम्हारे शहर के चारों ओर की दीवारों को गिरा देंगे,
\q2 ठीक उस अंजीर के पहले फल की तरह जो पेड़ हिलाते ही सीधा तुम्हारे मुंह में गिर जाता है।
\q2 इतनी ही आसानी से तुम्हारे शहर पर कब्ज़ा कर लिया जाएगा।
\q1
\v 13 अपने सैनिकों को देखो!
\q2 वे कमजोर महिलाओं की तरह होंगे।
\q2 तुम्हारे शहर के दरवाज़े शत्रुओं के प्रवेश
\q2 करने के लिए पूरी तरह खोले जाएँगे,
\q2 और फिर उन दरवाज़ो के पल्लों को जला दिया जाएगा।
\q1
\s5
\v 14 अपने शहर के चारों ओर पानी को उस समय इस्तेमाल करने के लिये जमा करो जब तुम्हारे शत्रु शहर की घेराबंदी करें।
\q2 किलों की मरम्मत करो।
\q2 मिट्टी खोदो और नरम बनाने के लिए उसे रौंदो,
\q2 और उसे खाचों में डाल दो कि दीवारों की मरम्मत के लिए ईंटें बनें।
\q1
\v 15 फिर भी, तुम्हारे शत्रु तुम्हारे शहर को जला देंगे;
\q2 वे तुम्हें अपनी तलवार से मार डालेंगे;
\q2 वे तुम्हें ऐसे मार डालेंगे जैसे टिड्डी फसलों को नष्ट कर देती है।
\q1 आगे बढ़ो और अपनी आबादी को झिंगुरों और टिड्डियों के झुण्ड की तरह बढ़ाओ।
\s5
\v 16 तुम्हारे शहर में अब बहुत सारे व्यापारी हैं;
\q2 तारों से भी अधिक।
\q2 लेकिन जब तुम्हारा शहर नष्ट हो रहा हो,
\q2 वे व्यापारी मूल्यवान वस्तुओं को लेकर उन टिड्डियों की तरह गायब हो जाएँगे
\q2 जो पौधों से पत्तियों को चट करने के बाद फिर उड़ जाती हैं।
\q1
\v 17 तुम्हारे अगुवे भी टिड्डियों के झुण्ड की तरह हैं
\q2 जो ठंडे दिन में बाड़ पर इकट्ठा होती हैं,
\q2 और फिर सूरज आने पर उड़ जाती हैं,
\q2 और कोई भी नहीं जानता कि वे कहाँ गईं।
\q1
\s5
\v 18 हे अश्शूर के राजा, तेरे सब अधिकारी मर जाएँगे;
\q2 तेरे महत्वपूर्ण लोग लेट जाएँगे और हमेशा के लिए आराम करेंगे।
\q2 तेरे लोग पहाड़ों पर बिखर जाएँगे,
\q2 और उन्हें एक साथ इकट्ठा करने के लिए कोई नहीं होगा।
\v 19 तुम ऐसे व्यक्ति की तरह हो जिसे ऐसा घाव है जो ठीक नहीं हो सकता;
\q2 वह ऐसा घाव होगा जो उसके मरने का कारण होगा।
\q2 और वे सब लोग जो तेरे साथ क्या हुआ है, यह सुनेंगे कि खुशी के मारे अपने हाथों से तालियाँ बजाएँगे।
\q2 वे कहेंगे, “हर किसी ने यह सहा क्योंकि उसने हमारे साथ लगातार बहुत क्रूर काम किया था।”

302
35-HAB.usfm Normal file
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\id HAB
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h हबक्कूक
\toc1 हबक्कूक
\toc2 हबक्कूक
\toc3 hab
\mt1 हबक्कूक
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह हबक्कूक भविष्यद्वक्ता और यहोवा के बीच की बातचीत है।
\q1
\v 2 मैंने कहा, “हे यहोवा, आपके उत्तर देने से पहले मुझे कितनी देर तक आपको सहायता के लिए पुकारना पड़ेगा?
\q1 मैं रोता हूँ, “लोग बड़े हिंसक तरीके से काम कर रहे हैं!”
\q2 परन्तु आप मुझे नहीं बचाते हैं!
\q1
\s5
\v 3 आप मुझे लोगों को गलत काम करता हुआ क्यों दिखाते हैं, और आप कुछ नहीं करते?
\q1 मैं लोगों को चीजों का नाश करते और हिंसक कार्य करते देखता हूँ; वे हर जगह लड़ते और झगड़ा करते हैं।
\q1
\v 4 कोई मूसा के नियम का पालन नहीं करता, और कोई बहुत लम्बे समय तक सही तरीके से कार्य नहीं करता है।
\q1 दुष्ट लोग सदा अदालतों में धर्मी लोगों को पराजित करते हैं,
\q2 क्योंकि न्यायाधीश कभी उचित निर्णय नहीं लेते हैं।“
\q1
\s5
\v 5 यहोवा ने मुझे उत्तर दिया,
\q1 “यह हो रहा है, परन्तु देखो तुम्हारे आसपास के अन्य देशों में क्या हो रहा है।
\q2 यदि तुम देखो, तो तुम आश्चर्यचकित हो जाओगे, यहाँ तक कि अचम्भित होगे, क्योंकि इस समय के दौरान मैं कुछ ऐसा ही कर रहा हूँ
\q1 कि तुम कभी विश्वास नहीं कर सकते,
\q2 भले ही किसी ने तुमको इसके बारे में बताया हो, कि यह होगा।
\q1
\v 6 बहुत जल्द ही मैं बाबेल के सैनिकों को लाऊँगा, जो भयंकर और उग्र हैं।
\q1 वे पूरी धरती का भ्रमण करेंगे
\q2 और कई अन्य देशों पर विजय प्राप्त करेंगे।
\q1
\v 7 वे ऐसे लोग हैं जिनसे दूसरों को बहुत डर लगता है,
\q2 और वे वही करते हैं जो करना चाहते हैं,
\q2 क्योंकि वे मानते हैं कि वे बहुत महान हैं और अन्य हर किसी का न्याय करने का उन्हें अधिकार है।
\q1
\s5
\v 8 घोड़े जो रथों को खींचते हैं वे तेंदुए से भी तेज भागते हैं,
\q2 और शाम के समय वे भेड़िये से भी उनकी तुलना में भयंकर हैं।
\q1 वे घोड़े जिन पर सैनिक सवारी करते हैं तेजी से दौड़ते हैं;
\q2 उनकी सवारी करने वाले सैनिक दूरदराज के स्थानों से आते हैं।
\q1 वे उकाब के समान हैं जो अपने शिकार को छीनने के लिए नीचे उतरते हैं।
\q1
\v 9 जैसे वे साथ सवारी करते हैं,
\q2 वे हिंसक कार्य करने में दृढ़ हैं।
\q1 वे उत्सुकता से आगे बढ़ते हैं, इतनी तेज गति से जितनी रेगिस्तान में हवा,
\q2 और कई कैदियों को रेत के अनाज के समान इकट्ठा कर लेते हैं!
\q1
\s5
\v 10 वे राजाओं और अन्य देशों के राजकुमारों का मजाक उड़ाते हैं,
\q2 और वे उन सभी शहरों का उपहास करते हैं जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें हैं।
\q1 वे उन शहरों में घुसने के लिये उसके आसपास मिट्टी का ऊँचा ढेर बनाते हैं।
\q1
\v 11 वे हवा के समान उनके पास से निकलते हैं,
\q2 और फिर वे अन्य शहरों पर हमला करने के लिए जाते हैं।
\q1 परन्तु वे बहुत दोषी हैं,
\q2 क्योंकि वे सोचते हैं कि उनकी अपनी शक्ति उनके देवता हैं! “
\q1
\s5
\v 12 तब मैंने कहा, “हे यहोवा, क्या आप शाश्वत परमेश्वर नहीं हैं?
\q2 आप हमारे लिए पवित्र हैं, अतः हम नहीं मरेंगे।
\q1 तब आपने बाबेल के लोगों को हमारा न्याय करने और हमें मारने के लिए क्यों भेजा?
\q2 आप हमारे लिए चट्टान की तरह हैं, जिसकी आड़ में हम छिप सकते हैं,
\q2 फिर आपने हमें दण्डित करने के लिए उन्हें क्यों भेजा है?
\q1
\s5
\v 13 आप शुद्ध हैं, और आप बुराई देख कर सहन नहीं कर सकते,
\q2 अतः आप विश्वासघात करने वाले पुरुषों को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं?
\q1 आप बाबेल के उन दुष्ट पुरुषों को
\q2 दण्डित करने के लिए कुछ भी क्यों नहीं करते,
\q2 जो उन लोगों को नष्ट कर देते हैं और जो उनके मुकाबले अधिक धार्मिक हैं?
\q1
\v 14 वे हमारे साथ समुद्र की मछली की तरह व्यवहार करते हैं,
\q2 या समुद्र के अन्य प्राणियों की तरह, जिनके ऊपर कोई शासक नहीं है।
\q1
\s5
\v 15 बाबेल के सैनिकों का मानना है कि हम उनके लिए काँटे से समुद्र से बाहर निकाली जानेवाली
\q2 या उनके जाल से पकड़ी जाने वाली मछली हैं, जब वे आनंद करते और उत्सव मनाते हैं।
\q1
\v 16 जब वे हमें पकड़ लेते हैं, तब वे अपने हथियारों की पूजा करते हैं जिनके द्वारा उन्होंने हमें पकड़ लिया था
\q2 और उन्हें बलिदान चढ़ाएँगे और उनके सामने धूप जलाएँगे!
\q1 वे कहेंगे, ‘इन हथियारों ने हमें अमीर बनने और महंगे भोजन खाने में समर्थ बनाया है।’
\q1
\v 17 क्या आप उन्हें हमेशा लोगों पर विजय पाने का अवसर देंगे?
\q2 क्या आप उन्हें अन्य राष्ट्रों के किसी पर भी दया किए बिना नाश करने की अनुमति देंगे?“
\s5
\c 2
\q1
\v 1 यह कहने के बाद, मैंने खुद से कहा, “मैं चौकीदारी करनेवाले गुम्बद पर चढ़ जाऊँगा,
\q2 और अपनी निगरानी के मीनार में खड़ा हो जाऊँगा।
\q1 मैं यह जानने के लिए वहाँ इंतजार करूँगा कि यहोवा क्या कहेंगे,
\q2 वे क्या प्रतिउत्तर देंगे और मुझे किस तरह उत्तर देना चाहिए।“
\p
\s5
\v 2 तब यहोवा ने मुझे उत्तर दिया,
\q1 “तख्तियों पर स्पष्ट रूप से लिख दे जो मैं तुझको इस दर्शन में प्रकट कर रहा हूँ,
\q2 और फिर इसे एक संदेशवाहक को पढ़ने के लिए दे
\q2 ताकि वह इसे अन्य लोगों को बताने के लिए संदेश लेकर दौड़ सके।
\q1
\v 3 इस दर्शन में मैं भविष्य में होने वाली बातों के विषय में बातें करूँगा।
\q1 अभी वह समय नहीं है जब वे बातें होंगी,
\q2 परन्तु वे बातें निश्चित रूप से होंगी,
\q2 और जब वे होंगी, वे जल्दी हो जाएँगी,
\q2 और उनके होने में देरी नहीं होगी।
\q1 आप चाहते हैं कि वे बातें तुरन्त हो जाएँ, परन्तु वे नहीं हो रही हैं।
\q2 उनके होने के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करें!
\q1
\s5
\v 4 घमण्डी लोगों के बारे में सोचें!
\q2 वे निश्चित रूप से ऐसे काम नहीं कर रहे हैं जो धार्मिक हैं।
\q1 परन्तु जो धर्मी हैं वे जीवित रहेंगे
\q2 क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वे उसे ईमानदारी से करते हैं।
\q1
\v 5 यदि लोग अधिक शराब पीने के लिए जीते हैं, तो वे स्वयं को धोखा देते हैं,
\q2 और घमण्डी लोग कभी भी आराम करने में सक्षम नहीं होते।
\q1 लालची लोग अपने मुँह को उस स्थान के समान चौड़ा खोलते हैं जहाँ मृत लोग पड़े हैं,
\q1 और उनके पास कभी पर्याप्त नहीं होता,
\q2 जैसे शवों का स्थान कभी भी मृत लोगों के लिये पर्याप्त नहीं होता है।
\q1 बाबेल की सेनाएँ कई राष्ट्रों पर विजय प्राप्त करके उन पर अधिकार करती हैं,
\q2 और वहाँ के सभी लोगों को बंदी बना लेती है।
\q1
\s5
\v 6 परन्तु जल्द ही जिन लोगों को उन्होंने बंदी बना लिया है वे बाबेल के सैनिकों का उपहास करेंगे!
\q1 वे उनका मजाक उड़ा कर कहेंगे,
\q2 ‘तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी जिन्होंने अन्य देशों से चीजें चुरा ली हैं!
\q1 लोगों को देने के लिए मजबूर करके तुमको कई चीजें मिल गई हैं।
\q2 परन्तु तुम निश्चित रूप से उन चीजों को लम्बे समय तक नहीं रख पाओगे!
\q1
\v 7 जिन लोगों को तुमने अन्याय से तुम्हारा ऋणी होने के लिए मजबूर किया, वे अचानक उठ खड़े होंगे
\q2 और तुमको थरथरा देंगे,
\q2 और वे उन सब चीजों को ले जाएँगे जिन्हें तुमने उनके पास से चोरी करके ले लिया था।
\q1
\v 8 तुमने कई राष्ट्रों के लोगों से चीजें चुरा ली हैं।
\q1 तुमने कई जाति समूहों के लोगों की हत्या की,
\q2 और तुमने उनकी भूमि और उनके शहरों को नष्ट कर दिया।
\q1 तब जो लोग अभी भी जिंदा हैं वे तुम्हारी मूल्यवान वस्तुएँ चुरा लेंगे।
\q1
\s5
\v 9 बाबेल के लोगों तुम जो बड़े घरों का निर्माण करते हो
\q2 पैसे के विषय भी जो तुमने दूसरों को तुम्हें देने के लिए मजबूर करके पाया है।
\q1 तुम गर्व करते हो, और तुमको लगता है कि तुम्हारे घर सुरक्षित होंगे
\q2 क्योंकि तुमने उन्हें ऐसे स्थानों पर बनाया है जहाँ तुम आसानी से उनकी रक्षा कर सकते हो।
\q1
\v 10 परन्तु क्योंकि तुमने दूसरों को नष्ट कर दिया है,
\q2 तुम अपने परिवार के लिए
\q2 और स्वयं के लिये शर्म के पात्र हो गए हो!
\q1
\v 11 तुम्हारे घरों की दीवारों के पत्थर तुमको दोष देने के लिए रोते हैं,
\q2 और तुम्हारी छत की सारी कड़ियाँ भी वही बातें कहती हैं!
\q1
\s5
\v 12 बाबेल के लोगों, तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी, तुम शहरों के निर्माण के लिए लोगों को मार देते हो;
\q2 ऐसे शहर जिन्हें तुम अपराध करके कमाए गए पैसे का उपयोग करके बनाते हो।
\q1
\v 13 परन्तु स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने यह घोषणा की है कि प्रत्येक वस्तु जिसे लोग ऐसे काम करके बनाते हैं, वह आग से नष्ट किया जाएगा;
\q2 वे व्यर्थ ही में कठोर काम करेंगे।
\q1
\v 14 परन्तु इसके विपरीत, जैसे महासागर पानी से भरे हुए हैं,
\q2 धरती उन लोगों से भर जाएगी जो जानते हैं कि यहोवा बहुत महान है!
\q1
\s5
\v 15 बाबेल के लोगों तुम्हारे साथ भयानक बातें घटित होंगी,
\q2 तुम जो समीप के देशों के लोगों से नशा करवाते हो।
\q1 तुम उन्हें बहुत अधिक शराब पीने के लिए मजबूर करते हो
\q2 जब तक वे नशे में चूर न हों और फिर इधर उधर नंगे घूमें
\q2 क्योंकि जब तुम ऐसा देखते हो तो तुम खुश होते हो।
\q1
\v 16 परन्तु वह तुम ही हो जिसको सम्मानित करने की अपेक्षा जल्द ही अपमानित किया जाएगा।
\q2 जब तक तुम नशे में लड़खड़ाते हुए इधर उधर न घूमों, यह ऐसा होगा जैसे तुमको बहुत शराब पीने के लिये मजबूर किया गया।
\q1 तुम शराब पीओगे जो इस बात का लक्षण है कि यहोवा तुम्हें दंड देंगे,
\q2 और वह दूसरों के द्वारा तुम्हें सम्मानित करने की अपेक्षा अपमानित करवाएँगे।
\q1
\s5
\v 17 तुमने लबानोन के लोगों के साथ हिंसक काम किए,
\q2 और तुमने वहाँ जंगली जानवरों को मार डाला,
\q1 परन्तु तुमको ऐसा करने के कारण गम्भीर रूप से दण्डित किया जाएगा।
\q1 तुमने कई लोगों को मारा है
\q2 और तुमने उनकी भूमि और उनके शहरों को नष्ट कर दिया है।
\q1
\s5
\v 18 बाबेल के लोगों तुमको यह जानने की जरूरत है कि तुम्हारी मूर्तियाँ पूरी तरह से बेकार हैं,
\q2 क्योंकि उनके बनाने वाले मनुष्य ही हैं।
\q1 नक्काशी की हुई या ढाल कर बनाई गई मूर्तियाँ तुमको धोखा देती हैं।
\q2 जो मूर्तियों पर भरोसा करते हैं
\q2 वे उन चीज़ों पर भरोसा कर रहे हैं जिन्हें उन्होंने स्वयं बनाया है,
\q1 ऐसी चीजें जो बातें नहीं कर सकती हैं!
\q1
\v 19 तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी तुम जो लकड़ी से बनी हुई निर्जीव मूर्तियों से कहते हो,
\q2 ‘उठो!
\q1 पत्थर की मूर्तियाँ निश्चित रूप से तुमको नहीं बता सकती कि तुमको क्या करना चाहिए;
\q2 वे अच्छे दिखते हैं क्योंकि वे चाँदी और सोने से ढँके होते हैं,
\q2 परन्तु वे जीवित नहीं हैं।
\q1
\v 20 परन्तु यहोवा अपने पवित्र मन्दिर में है;
\q2 पृथ्वी पर हर किसी को उनकी उपस्थिति में चुप रहना चाहिए!“
\s5
\c 3
\m
\v 1 हबक्कूक भविष्यद्वक्ता की प्रार्थना।
\v 2 हे यहोवा, मैंने आपके विषय में सुना है;
\q1 आपने जो अद्भुत काम किए हैं, उनके कारण मैं भय के साथ आपको सम्मान देता हूँ।
\q2 हमारे समय भी, उन कामों में से फिर ऐसा कुछ करें जो आपने बहुत पहले किए थे!
\q1 भले ही जब आप हम से नाराज हैं,
\q2 हमारे प्रति दया के कार्य करें!
\q1
\s5
\v 3 एक दर्शन में, मैंने पवित्र परमेश्वर को, तेमान के क्षेत्र से एदोम में आते देखा;
\q2 मैंने उन्हें पारान की पहाड़ियों से सीनै के क्षेत्र में भी आते देखा।
\q1 उनकी महिमा से आकाश भर गया,
\q2 और पृथ्वी उन लोगों से भरी हुई थी जो उनकी प्रशंसा कर रहे थे।
\q1
\s5
\v 4 उनकी महिमा सूर्योदय की तरह थी;
\q2 किरणें उनके हाथों से चमकती हैं
\q2 जहाँ वे अपनी शक्ति रखते हैं।
\q1
\v 5 उन्होंने उसके सामने विपत्तियाँ भेजीं,
\q2 और अन्य विपत्तियाँ उसके पीछे आईं।
\q1
\s5
\v 6 जब वह रुक गया, तो धरती हिल गई।
\q2 जब उन्होंने राष्ट्रों को देखा,
\q1 सब लोग थरथराए।
\q2 पहाड़ियाँ और पहाड़ जो समय की शुरुआत के बाद से ही अस्तित्व में हैं, गिर गए और टूट गए।
\q2 वे अकेले हैं जो हमेशा के लिए अस्तित्व में हैं!
\q1
\s5
\v 7 दर्शन में मैंने देखा कि कुशान क्षेत्र के तम्बू में रहने वाले लोग बहुत डरे हुए थे,
\q2 और मिद्यान क्षेत्र के लोग काँप रहे थे।
\q1
\v 8 हे यहोवा, क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि आप उन नदियों और धाराओं से नाराज थे जिन्हें आपने मारा था?
\q2 क्या समुद्र आपके क्रोधित होने का कारण बना था,
\q1 परिणाम स्वरूप आपने उसकी सवारी उन घोड़ों के साथ की जो रथ खींच रहे थे
\q2 जिनको आप अपने लिए जीत पाने के लिए इस्तेमाल करते थे?
\q1
\s5
\v 9 यह ऐसा था जैसे आपने अपने तीर को तरकश में से निकाल कर निशाना लगाने के लिए तैयार किया,
\q2 और धनुष चढ़ाने के लिए तीरों को पकड़ लिया था।
\q1 आप पृथ्वी को विभाजित करते हैं,
\q2 तब सोते फूट पड़ते हैं।
\q1
\v 10 ऐसा लगता है जैसे पहाड़ों ने आपको ऐसा करते देखा,
\q2 और वे दर्द से थरथराए।
\q1 बाढ़ का पानी पहुँचा;
\q2 ऐसा लगता था कि गहरे समुद्र में गर्जन हुआ जिसके कारण इसकी लहरें ऊँची हो गईं।
\q1
\s5
\v 11 सूर्य और चंद्रमा ने आकाश में आगे बढ़ना बंद कर दिया,
\q2 जबकि आपकी बिजली एक तेज तीर की तरह चमकी,
\q2 और आपके चमकदार भाले चमक गए।
\q1
\v 12 बहुत क्रोधित होकर, आप धरती पर चले
\q2 और कई राष्ट्रों की सेनाओं को तंग कर दिया!
\q1
\s5
\v 13 परन्तु आप अपने लोगों को बचाने के लिए भी गए,
\q2 और जिसे आपने चुना है उसे सहेजने के लिए।
\q1 आपने उन दुष्ट लोगों के अगुवों को मारा
\q2 और पूरी तरह से उनकी सारी शक्ति को ले लिया।
\q1
\s5
\v 14 आपने उन सैनिकों के अगुवों को उनके भाले को नष्ट कर दिया जो हमला करने और हमें तितर-बितर करने के लिए बवण्डर की तरह आए थे,
\q2 यह सोचते हैं कि जैसे वे उनको देख कर छिप जाने वाले कमजोर लोगों को पराजित करते हैं; वे हमें भी आसानी से जीत सकेंगे।
\q1
\v 15 आप अपने शत्रुओं को नष्ट करने के लिए अपने घोड़ों के साथ समुद्र के माध्यम से चले,
\q2 और लहरों को बढ़ने का कारण मिल गया।
\q1
\s5
\v 16 जब मैंने उस दर्शन को देखा,
\q2 मेरा दिल काँप उठा
\q1 और मेरे होंठ फड़फड़ाने लगे
\q2 क्योंकि मैं डर गया।
\q1 मेरे पैर कमजोर पड़ गए
\q2 और मैं थरथराने लगा, क्योंकि मैं डर गया था।
\q1 परन्तु मैं बाबेल के लोगों के लिए चुपचाप इन्तजार करूँगा कि वे आपदाओं का अनुभव करें, जिन्होंने हमारे देश पर हमला किया!
\q1
\s5
\v 17 इसलिए,
\q1 अगर अंजीर के पेड़ पर कोई फूल नहीं है,
\q2 और दाखलता पर कोई अंगूर नहीं हैं,
\q1 और यहाँ तक कि यदि जैतून के पेड़ों पर कोई जैतून नहीं है,
\q2 और खेतों में कोई फसल नहीं है,
\q1 और यहाँ तक कि भेड़ों और बकरियों के झुण्ड खेतों में मर जाते हैं,
\q2 और गौशालाओं में कोई मवेशी नहीं है, यही वह समय है जिसमें मैं करूँगा।
\q1
\s5
\v 18 यहोवा के कारण मैं आनन्दित रहूँगा!
\q2 मैं खुश रहूँगा क्योंकि मेरे परमेश्वर वे हैं जो मुझे बचाते हैं!
\q1
\v 19 यहोवा ही वे हैं जो मुझे शक्ति देते हैं,
\q2 और वे मुझे हिरण के समान सुरक्षित रूप से चढ़ने में समर्थ बनाते हैं,
\q2 वे ऊँची पहाड़ियों पर मुझे चलाते हैं।
\q (यह संदेश संगीत निर्देशक के लिए है:
\q2 जब इस प्रार्थना को गाया जाता है, तब इसे लोगों के साथ तारवाले वाद्ययंत्रों पर बजाना भी है।)

288
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h सपन्याह
\toc1 सपन्याह
\toc2 सपन्याह
\toc3 zep
\mt1 सपन्याह
\s5
\c 1
\p
\v 1 यहोवा का संदेश कूशी के पुत्र सपन्याह के पास आया, जो गदल्याह का पोता और अमर्याह का परपोता था, जिसका पिता राजा हिजकिय्याह था। यहोवा ने यह संदेश उस समय दिया जब राजा आमोन का पुत्र योशिय्याह यहूदा का राजा था।
\q1
\v 2 यहोवा ने कहा,
\q2 “जो कुछ भी पृथ्वी पर है, मैं उस सब का अंत कर दूँगा।
\q1
\v 3 मैं लोगों का और जानवरों का अंत कर दूँगा।
\q2 मैं पक्षियों और मछलियों का अंत कर दूँगा।
\q1 मैं दुष्ट लोगों का नाश कर दूँगा;
\q2 ताकि पृथ्वी पर फिर कोई भी दुष्ट न रहेगा।”
\q1
\s5
\v 4 “यह ऐसे कुछ काम हैं जिन्हें मैं करूँगा:
\q2 मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा जो यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों में रहते हैं,
\q2 और बाल की पूजा में उपयोग की जाने वाली हर वस्तु को नष्ट कर दूँगा
\q1 और ऐसा करूँगा कि लोगों को मूर्तिपूजक पुजारियों के या उन याजकों के नाम तक याद नहीं रहेंगे,
\q2 जो मुझसे दूर हो गए हैं।
\q1
\v 5 मैं उन लोगों को नाश करूँगा जो अपने घरों की छत पर जाते हैं और सूर्य, चंद्रमा और तारों की पूजा करते हैं,
\q2 और उन लोगों को जो मेरी आराधना करने का दावा करते हैं लेकिन अपने राजा के नाम की कसम भी खाते हैं।
\q1
\v 6 अंत में, मैं उन सब लोगों का नाश कर दूँगा, जिन्होंने पहले मेरी आराधना की थी लेकिन अब नहीं करते;
\q2 वे लोग जो अब मेरी सहायता नहीं लेते हैं या मुझसे यह बताने की विनती नहीं करते कि उन्हें क्या करना चाहिए।”
\q1
\s5
\v 7 यहोवा प्रभु के सामने चुप रहो,
\q2 क्योंकि शीघ्र ही वह समय होगा जब यहोवा न्याय करेंगे और लोगों को दण्ड देंगे।
\q1 यहोवा ने यहूदा के लोगों का नाश करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया है;
\q2 वे उन जानवरों की तरह होंगे जिनको बलिदान के लिए वध करने को अलग किया गया है,
\q2 और यहोवा ने उनके शत्रुओं को चुन कर ठहराया है कि उनका नाश करें।
\q1
\v 8 यहोवा कहते है, “उस दिन जब मैं यहूदा के लोगों का नाश करूँगा,
\q2 मैं उनके अधिकारियों और राजा के पुत्रों को दण्ड दूँगा,
\q2 और उन सभी को जो अन्य देवताओं की उपासना करते हैं—
\q1
\v 9 उन लोगों समेत जो दिखाते हैं कि वे मंदिर की चौखट को न लांघकर अपने देवता दागोन का सम्मान करते हैं,
\q2 और उनको जो हिंसक काम करते और अपने देवताओं के मंदिरों में झूठ बोलते हैं।”
\q1
\s5
\v 10 यहोवा यह भी कहते हैं,
\q2 “उस दिन, यरूशलेम के मछली फाटक पर लोग रोएँगे।
\q1 शहर के दो तिहाई भाग में लोग विलाप करेंगे,
\q2 और लोग पहाड़ों पर से गिरने वाली इमारतों की ज़ोरदार आवाज़ सुनेंगे।
\q1
\v 11 यरूशलेम के बाज़ार क्षेत्र में रहने वाले तुम सभी लोगों को विलाप करना चाहिए,
\q2 क्योंकि वे सब लोग, जो पैसे कमाने के लिए सामान बेचते हैं, मार डाले जाएँगे।
\q1
\s5
\v 12 यह ऐसा होगा मानो मैं यरूशलेम के अंधेरे स्थानों में उन्हें खोजने के लिए मशाल जलाऊँगा
\q2 जो अपने व्यवहार से बहुत संतुष्ट हो गए हैं और अपने पापों से प्रसन्न हैं।
\q1 वे सोचते हैं कि मैं, यहोवा, न तो अच्छा करूँगा और न ही बुरा, जैसे कि मैं हूँ ही नहीं।
\q1
\v 13 इसलिए मैंने फैसला किया है कि सेनाएँ आएँगी और उनके घरों को नष्ट करके उनकी बहुमूल्य संपत्तियों को उठा ले जाएँगी।
\q1 लोग नए घरों का निर्माण करेंगे,
\q2 लेकिन वे उनमें नहीं रहेंगे;
\q1 वे फिर से दाख की बारियाँ लगाएँगे,
\q2 लेकिन वहाँ उगने वाले अंगूरों से बने दाखरस को वे कभी भी पी नहीं पाएँगे।“
\q1
\s5
\v 14 शीघ्र ही वह दिन आएगा जब यहोवा लोगों को दंडित करेंगे।
\q2 वह दिन शीघ्र ही यहाँ होगा।
\q1 वह एक ऐसा समय होगा जब बहादुर सैनिक भी ज़ोर-ज़ोर से रोएँगे।
\q1
\v 15 वह एक ऐसा समय होगा जब परमेश्वर दिखाएँगे कि वह बहुत क्रोधित हैं,
\q2 एक ऐसा समय जब लोग बहुत परेशानी और कठिनाई का अनुभव करेंगे।
\q1 वह एक ऐसा समय होगा जब कई चीज़ें नष्ट हो जाएँगी, और जब सब दूर चले जाएँगे।
\q2 वह एक ऐसा समय होगा जब बड़ी उदासी और घोर अंधकार होगा,
\q2 और बादल बहुत काले होंगे।
\q1
\v 16 वह एक ऐसा समय होगा जब सैनिक तुरही बजाकर युद्ध के लिए अन्य सैनिकों को बुलाएँगे।
\q2 तुम्हारे शत्रु तुम्हारे शहरों के चारों ओर की दीवारों
\q2 और उन दीवारों के कोनों की ऊँची गुम्मदों को गिरा देंगे।
\q1
\s5
\v 17 क्योंकि तुमने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है,
\q2 वह तुमको बड़ी परेशानी में डाल देंगे;
\q2 तुम अंधे लोगों के समान चारों ओर टटोलते हुए चलोगे।
\q1 तुम्हारे शरीर से खून गिरने वाली मिट्टी की तरह बह निकलेगा,
\q2 और तुम्हारी लाश भूमि पर पड़ी रहेगी और सड़ेगी।
\q1
\v 18 उस समय जब यहोवा दिखाते हैं कि वह तुम से बहुत क्रोधित हैं,
\q2 तुम अपने शत्रुओं को चाँदी या सोना देकर भी
\q2 अपने आपको बचा नहीं पाओगे।
\q1 क्योंकि यहोवा बहुत जलन रखने वाले हैं,
\q2 वह सारी पृथ्वी को भस्म करने के लिए आग भेजेंगे,
\q1 और वह पृथ्वी पर रहने वाले सभी दुष्ट लोगों का, भयानक तरीके से, पूरी तरह से नाश करेंगे।
\s5
\c 2
\q1
\v 1 तुम यहूदा के लोगों, जिन्हें शर्मिंदा होना चाहिए,
\q2 एक साथ इकट्ठे होकर परमेश्वर से विनती करो कि वे तुम पर दया करें।
\q1
\v 2 यहोवा तुम पर बहुत क्रोधित हैं,
\q2 इसलिए अब एक साथ इकट्ठे हो जाओ,
\q1 इससे पहले कि वे तुमको दंडित करें—इससे पहले कि वे तुमको दंडित करें
\q2 और तुम्हें ऐसा दूर कर दें जैसे हवा भूसे को दूर उड़ा ले जाती है।
\q1
\v 3 हे यहूदा में रहने वाले लोगों, तुम सब जो नम्र हो,
\q2 यहोवा की आराधना करो और जो आज्ञा उन्होंने दी है उनका पालन करो।
\q1 जो सही है उसे करने की
\q2 और नम्र रहने का प्रयास करो।
\q1 यदि तुम ऐसा करते हो, तो हो सकता है यहोवा उस दिन, जब वह लोगों को दंडित करेंगे,
\q2 तुम्हारी रक्षा करेंगे।
\q1
\s5
\v 4 जब यहोवा पलिश्ती को दंडित करेंगे,
\q2 तब गाज़ा और अश्कलोन के शहर अपने सभी निवासियों को खो देंगे।
\q1 अश्दोद पर हमला होगा और जब वे दोपहर में आराम कर रहे होंगे तो उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा।
\q2 एक्रोन शहर के लोगों को भी बाहर निकाल दिया जाएगा।
\q1
\v 5 तुम पलिश्ती के लोगों, जो समुद्र के पास रहते हो, तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी,
\q2 क्योंकि यहोवा ने कहा है कि वह तुम्हें भी दंडित करेंगे।
\q1 वह तुम सब का नाश करेंगे; तुम में से कोई भी जीवित नहीं बचेगा!
\q1
\s5
\v 6 समुद्र के पास पलिश्ती देश एक चरागाह, अर्थात्
\q2 चरवाहों और उनकी भेड़ों के बाड़े के लिए एक स्थान बन जाएगा।
\q1
\v 7 यहूदा के लोग जो बच जाएँगे, वे उस देश को ले लेंगे।
\q2 रात में वे अश्कलोन के उजाड़ घरों में सोएँगे।
\q1 यहोवा उनकी देखभाल करेंगे;
\q2 वह उन्हें फिर से समृद्ध होने में सक्षम बनाएँगे।
\p
\s5
\v 8 यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, अर्थात् इस्राएलियों के परमेश्वर यह कहते हैं:
\q1 “मैंने मोआब और अम्मोन के लोगों को
\q1 मेरे लोगों का अपमान करते और मेरे लोगों के देश को जीतने की योजना बनाते सुना है।
\q1
\v 9 इसलिए अब, मैं शपथ खाता हूँ कि मैं मोआब और अम्मोन को नष्ट कर दूँगा
\q2 जैसा मैंने सदोम और गमोरा को किया था।
\q1 उनका देश ऐसा स्थान होगा जहाँ बिच्छू और नमक के गड्ढे होंगे;
\q2 वह सदा के लिए नष्ट हो जाएगा, और उनमें से कोई भी वहाँ नहीं रहेगा।
\q1 मेरे लोग जो बच जाएँगे वे उनकी सारी मूल्यवान वस्तुओं को ले लेंगे
\q2 और उनके देश पर कब्जा भी कर लेंगे।“
\q1
\s5
\v 10 घमंडी होने के कारण मोआब और अम्मोन के लोगों को वह मिलेगा, जिसके वे लायक हैं,
\q2 क्योंकि उन्होंने उन लोगों का मज़ाक उड़ाया जो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान यहोवा के लोग हैं।
\q1
\v 11 यहोवा उन्हें भयभीत कर देंगे
\q2 जब वह उनके देशों के सभी देवताओं को नष्ट कर देंगे।
\q1 तब सब राष्ट्र के लोग यहोवा की आराधना,
\q2 अपने-अपने देश में करेंगे।
\q1
\s5
\v 12 यहोवा यह कहते हैं कि वे इथियोपिआ के लोगों को भी मार डालेंगे।
\q1
\v 13 यहोवा अश्शूर को, जो हमारा पूर्वोत्तर देश है, दंडित और नष्ट कर देंगे,
\q2 और इसकी राजधानी नीनवे को
\q2 नष्ट और उजाड़ बना डालेंगे, और उसे मरुभूमि के समान सुखा देंगे।
\q1
\v 14 वहाँ भेड़ों और मवेशियों के झुंड और कई प्रकार के जंगली जानवर पड़े रहेंगे।
\q2 उल्लू और कौवे नष्ट इमारतों के खंभों पर बैठेंगे,
\q1 और वे खिड़कियों से हल्ला मचाएँगे।
\q1 दरवाजों पर मलबा पड़ा होगा,
\q2 और इमारतों की छतों से मूल्यवान देवदार की कड़ी दिखाई देने लगेंगी।
\q1
\s5
\v 15 नीनवे के लोग यह सोच कर आनन्दित होते और घमंड करते थे
\q2 कि वे बहुत सुरक्षित हैं।
\q1 वे सदा कहते थे,
\q1 “हमारा शहर सबसे बड़ा शहर है;
\q2 हमारे शहर जैसा बड़ा कोई नहीं!“
\q1 लेकिन अब यह देखने में भयानक हो जाएगा,
\q2 एक ऐसी स्थान जहाँ जंगली जानवर अपनी माँद बनाते हैं।
\q1 हर एक जो वहाँ से होकर जाएँगा, उस शहर पर फुफकारेगा और उसका मज़ाक उड़ाएगा,
\q2 और यह दिखाने के लिए कि वे उस शहर से बहुत घृणा करते हैं, वे अपनी मुट्ठी हिलाएँगे।
\s5
\c 3
\q1
\v 1 यरूशलेम पर भयानक बातें घटित होंगी,
\q2 यह शहर जिसके लोगों ने यहोवा के विरूद्ध विद्रोह किया है
\q1 और जो पाप उन्होंने किया है, उसके कारण वे यहोवा को अस्वीकृत हो गए हैं।
\q2 वे दूसरों के प्रति हिंसक व्यवहार करते हैं और वे अन्य लोगों पर अत्याचार करते हैं।
\q1
\v 2 वहाँ के लोग उन भविष्यद्वक्ताओं पर ध्यान नहीं देते जिन्हें यहोवा ने उनके पास उन गलत कामों के बारे में बताने और उन्हें सही करने के लिए भेजा है, जो वे करते हैं।
\q1 यरूशलेम में रहने वाले लोग अपने परमेश्वर पर न तो भरोसा करते हैं और न ही उनकी आराधना करते हैं।
\q1
\s5
\v 3 उनके अगुवे गरजने वाले शेरों की तरह हैं;
\q2 वे उस भेड़िये की तरह हैं जो शाम के समय हमला करते हैं,
\q2 और जो भी वे मारते हैं सब खा जाते हैं,
\q2 जिसके कारण अगली सुबह खाने के लिए उन जानवरों का कुछ भी बाकी नहीं बचता।
\q1
\v 4 यरूशलेम में रहने वाले भविष्यद्वक्ता घमण्डी हैं,
\q2 और याजक संदेश देते हैं कि किसी को भरोसा नहीं करना चाहिए।
\q1 वे परमेश्वर के भवन को, उन कामों के द्वारा जो मूसा की व्यवस्था के विरुद्ध है, अपवित्र बनाते हैं।
\q1
\s5
\v 5 परन्तु यहोवा भी शहर में हैं, और वे कभी भी उन कामों को नहीं करते जो गलत है।
\q1 वे दिन-प्रतिदिन लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं;
\q2 लेकिन दुष्ट लोग कभी भी अपने अधर्म के बारे में लज्जित नहीं होते।
\p
\s5
\v 6 यहोवा यह कहते हैं:
\q1 “मैंने अनेक राष्ट्रों को नष्ट कर दिया है;
\q2 मैंने उनके मज़बूत शहर की दीवारों और गुम्मदों को नष्ट कर दिया है।
\q1 अब मैंने उन शहरों की सड़कों को पूरी तरह से वीरान कर दिया है।
\q2 वे शहर नष्ट हो गए और कोई भी अब वहाँ जीवित नहीं बचा ।
\q2 वे सब मर चुके हैं।
\q1
\v 7 इसलिए मैंने स्वयं से कहा,
\q2 ‘मैंने जो उन अन्य राष्ट्रों के साथ किया उसके कारण,
\q2 निश्चित ही यरूशलेम के लोग अब मेरा आदर करेंगे
\q2 और मैं उन्हें सुधारूँगा।
\q1 यदि वे ऐसा करते हैं, तो मैं उन्हें नष्ट नहीं करूँगा;
\q2 मैं उन्हें दंडित भी नहीं करूँगा जैसा मैंने कहा था कि मैं करूँगा।’
\q1 लेकिन यह जानने के बाद भी, कि कैसे मैंने उन अन्य राष्ट्रों को दंडित किया,
\q2 वे अब भी हर सुबह जल्दी उठने
\q2 और बुरे काम करते रहने को उत्सुक थे।”
\q1
\s5
\v 8 यहोवा यह घोषणा करते हैं:
\q2 “उस दिन की प्रतीक्षा करो जब मैं तुमको लूटने के लिए कार्रवाई करूँगा।
\q1 मैंने पृथ्वी के राज्य-राज्य के लोगों को इकट्ठा करने का फैसला किया है
\q2 और उन पर प्रकट किया है कि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ।
\q1 सारी पृथ्वी पर मैं लोगों को दंडित करूँगा और नष्ट कर दूँगा;
\q2 मैं उन्हें अपने क्रोध से ऐसे भस्म कर दूँगा मानो वह एक आग थी!
\q1
\s5
\v 9 जब यह होगा, तो मैं सभी लोगों को परिवर्तित कर दूँगा
\q2 और उन्हें केवल शुद्ध बाते बोलने में सक्षम करूँगा,
\q2 ताकि हर कोई एक जाति के रूप में मेरी आराधना कर सके।
\q1
\v 10 तब मेरे लोग जो अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर किए गए थे और जो इथियोपिआ में नील नदी के ऊपरी भाग में रहते हैं,
\q2 मेरे पास आएँगे और मेरे लिए भेंट लाएँगे।
\q1
\v 11 उस समय, तुम यरूशलेम के लोगों के साथ जो हुआ, उससे फिर कभी शर्मिंदा नहीं होंगे,
\q2 क्योंकि अब तुम मेरे खिलाफ विद्रोह नहीं करोगे।
\q1 मैं उन सब लोगों का, जो तुम्हारे बिच में है और बहुत घमण्ड करते हैं , नाश करूंगा।
\q2 अब घमंड के कारण कोई भी मेरे पवित्र पर्वत सिय्योन पर अकड़ कर नहीं चलेगा।
\q1
\s5
\v 12 जो लोग अब भी इस्राएल में जीवित हैं वे दीन और नम्र होंगे;
\q2 वे मुझ पर भरोसा करेंगे।
\q1
\v 13 वे लोग जो अब भी इस्राएल में जीवित हैं, कुछ भी गलत नहीं करेंगे;
\q2 वे झूठ नहीं बोलेंगे या न किसी को धोखा देंगे।
\q1 वे खाएँगे और सुरक्षित सोएँगे,
\q2 क्योंकि कोई भी उन्हें डराएगा नहीं।”
\q1
\s5
\v 14 तुम लोग जो यरूशलेम और इस्राएल के अन्य स्थानों में रहते हो,
\q2 ज़ोर से गाओ और चिल्लाओ!
\q1 खुश रहो, और अपने सम्पूर्ण मन से आनन्दित रहो,
\q1
\v 15 क्योंकि यहोवा तुम्हारे विरुद्ध आरोपों को दूर करेंगे,
\q2 और वे तुम्हारे शत्रुओं को तुमसे दूर कर देंगे!
\q1 स्वयं यहोवा, इस्राएलियों के राजा, तुम्हारे मध्य में रहेंगे,
\q2 और तुम फिर कभी भी नहीं डरोगे कि अन्य लोग तुम्हें नुकसान पहुँचाएं।
\q1
\v 16 उस समय, हम यरूशलेम के लोगों से अन्य लोग कहेंगे,
\q2 “हे यरूशलेम के लोगों, मत डरो, कमज़ोर या निराश न हो।”
\q1
\s5
\v 17 यहोवा जो तुम्हारे परमेश्वर हैं, तुम्हारे बीच रहेंगे।
\q2 वह शक्तिशाली हैं, और वह तुमको बचाएंगे।
\q1 वे तुम्हारे लिए बहुत आनन्दित होंगे;
\q2 क्योंकि वे तुमसे प्रेम करते हैं, और तुमको बिना व्याकुल हुए विश्राम देंगे।
\q2 वे तुम पर आनन्दित होकर ऊँचे स्वर से गाएँगे,
\q1
\v 18 ऐसे लोगों की तरह जो पर्व में आनन्द मनाते हैं। यहोवा कहते हैं, “अब मैं किसी शत्रु को तुम्हारा नाश करने की अनुमति नहीं दूँगा। अब तुम पराजित या लज्जित नहीं होओगे।
\q1
\s5
\v 19 सचमुच, मैं उन सभी को कठोर दण्ड दूँगा जिन्होंने तुम पर अत्याचार किया है।
\q2 मैं उन लोगों को बचाऊँगा जो असहाय हैं और उनको जिन्हें अन्य देशों में जाने के लिए मजबूर किया गया था, वैसे ही जैसे एक चरवाहा अपनी खोई भेड़ को बचाता है।
\q2 मैं हर उस देश में उन्हें प्रशंसा और सम्मान दूँगा, जहाँ उन्हें बंधुआ बनाकर ले जाया गया था,
\q2 उन जगहों पर जहाँ उन्हें अपमानित किया गया था।
\q1
\v 20 उस समय, मैं तुम्हें इकट्ठा करूँगा और तुम्हें वापस इस्राएल में ले आऊँगा।
\q1 पृथ्वी के सब राष्ट्रों के बीच मैं तुम्हारी बड़ी
\q2 प्रशंसा और आदर का कारण होऊँगा।
\q1 जब मैं तुम्हारे लोगों को फिर से घर ले आऊँगा, तब तुम देखोगे।”
\q2 यहोवा की यह घोषणा किया है।

85
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\id HAG
\ide UTF-8
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
\h हाग्गै
\toc1 हाग्गै
\toc2 हाग्गै
\toc3 hag
\mt1 हाग्गै
\s5
\c 1
\p
\v 1 हाग्गै को, जो एक भविष्यद्वक्ता था, यहोवा से एक संदेश मिला। दारा के फारस का राजा बनने के बाद यहोवा ने दूसरे वर्ष में उससे यह संदेश कहा था। यह उस वर्ष के छठे महीने के पहले दिन हुआ था। हाग्गै ने यह संदेश यहूदा के राज्यपाल शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक को बताया।
\p
\v 2 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने उसे बताया कि लोग कह रहे थे कि अभी उनके लिए यहोवा के मंदिर का पुनर्निर्माण करने का समय नहीं था।
\p
\s5
\v 3 तब यहोवा ने उसे यह संदेश यरूशलेम के लोगों को बताने के लिए दिया:
\v 4 “तुम्हारे लिए शानदार घरों में रहना सही नहीं है जबकि मेरा मंदिर केवल खण्डहर है!
\v 5 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह कहता है: ‘तुम जो कर रहे हो उसके बारे में सोचो।
\v 6 तुमने बहुत सारे बीज लगाए हैं, लेकिन तुमको कटनी करने के लिए कोई उपज नहीं मिल रही हैं। तुम खाना खाते हो, लेकिन तुमको कभी भी पर्याप्त नहीं मिलता। तुम दाखरस पीते हो, लेकिन तुम अभी भी प्यासे हो। तुम कपड़े पहनते हो, लेकिन तुम गर्म नहीं रहते हो। तुम पैसे कमाते हो, लेकिन वह कमाए जाने से भी जल्दी खर्च हो जाता है।’
\p
\s5
\v 7 इसलिये स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहता है: ‘तुम जो कर रहे हो उसके बारे में सोचो।
\v 8 तब पहाड़ियों में जाओ, पेड़ काट लो, लकड़ी को नीचे लाओ, और मेरे मंदिर का पुनर्निर्माण करो। जब तुम ऐसा करते हो, तो मैं प्रसन्न होऊँगा और अपनी महिमा के साथ मैं वहाँ दिखाई दूँगा।
\v 9 तुम बहुत सारी फसल की कटाई करने की उम्मीद करते हो, लेकिन कटाई करने के लिए वहाँ कुछ फसलें थीं क्योंकि मैंने उन्हें हटा दिया था। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मेरा मंदिर उजड़ा पड़ा है, जबकि तुम में से प्रत्येक अपने सुंदर घर का निर्माण करने में व्यस्त हैं।
\s5
\v 10 तुम जो कर रहे हो इसी कारण से वर्षा आकाश से नहीं गिरती है, और इसी कारण कोई फसल नहीं होती है।
\v 11 मैंने खेतों और पहाड़ों दोनों पर और अन्य सभी फसलों पर सूखा पैदा किया है - चाहे अनाज या दाखरस या तेल - सूख गए हैं। इसके कारण, तुम और तुम्हारे मवेशियों के पास पर्याप्त भोजन नहीं है, और तुमने जो कड़ी मेहनत की है वह बेकार हो जाएगी।’”
\p
\s5
\v 12 तब जरुब्बाबेल और यहोशू और परमेश्वर के सभी अन्य लोगों ने जो अभी भी जीवित थे, उन्होंने उस संदेश का पालन किया जो उनके परमेश्वर यहोवा ने कहा था, और उन्होंने उस संदेश को सुना जो हाग्गै ने उन्हें दिया था, क्योंकि वे जानते थे कि यह संदेश उनके परमेश्वर यहोवा ने उन्हें भेजा था। तब उन्होंने यहोवा का सम्मान किया, क्योंकि वह उनके साथ उपस्थित था।
\p
\v 13 तब हाग्गै ने, जो यहोवा का दूत था, यह यहोवा से मिला हुआ संदेश लोगों को दिया: “मैं, यहोवा, यह घोषणा करता हूँ कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
\s5
\v 14 इसलिए यहोवा ने जरुब्बाबेल और यहोशू और अन्य लोगों को उत्साहित किया कि वे स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, अपने परमेश्वर के मंदिर का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। तो वे एक साथ इकट्ठे हुए और उसके पुनर्निर्माण के लिए काम करना शुरू कर दिया।
\v 15 उन्होंने उसी महीने के चौबीसवें दिन उस काम को शुरू किया जिसमें यहोवा ने हाग्गै से बात की थी।
\s5
\c 2
\p
\v 1 लगभग एक महीने बाद, अगले महीने के इक्कीसवें दिन, यहोवा ने भविष्यद्वक्ता हाग्गै को एक और संदेश दिया।
\v 2 जो संदेश उसे यहूदा के राज्यपाल शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल से, यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक से और अन्य लोग जो यरूशलेम में अभी भी जीवित थे, से कहना था वह यह थाः
\s5
\v 3 “क्या तुम में से किसी को भी याद है कि हमारा पहले का मंदिर कितना गौरवशाली था? यदि तुम्हें याद है, तो यह अब तुमको कैसा दिखता है? यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं दिखता।
\v 4 परन्तु अब स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, तुम सभी को जरुब्बाबेल, यहोशू और बाकी के लोग जो इस देश में रहते हैं, कहता है, ‘निराश न होओ; इसके बजाय मजबूत हो जाओ!
\v 5 मेरी आत्मा तुम्हारे बीच बनी हुई है, जैसे मैंने मिस्र छोड़ने पर तुम्हारे पूर्वजों से वादा किया था। इसलिये मत डरो!
\p
\s5
\v 6 यही वह है जो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहता है: ‘जल्द ही मैं आकाश और पृथ्वी, महासागरों और जमीन को फिर से हिला दूँगा।
\v 7 मैं फिर से सभी जातियों के लोगों को हिला दूँगा, और परिणाम स्वरूप वे अपने खजाने को इस मंदिर में लाएँगे। मैं इस मंदिर को अपनी महिमा से भर दूँगा।
\s5
\v 8 उनके पास जो चाँदी और सोना है वह वास्तव में मेरा है, इसलिए वे उन्हें मेरे पास लाएँगे।
\v 9 तब यह मंदिर पहले के मंदिर की तुलना में अधिक गौरवशाली होगा। और मैं बातों को तुम्हारे लिए अच्छी तरह से होने दूँगा। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने यह कहा है।’”
\p
\s5
\v 10 तब उसी वर्ष के नौवें महीने के चौबीसवें दिन, यहोवा ने भविष्यद्वक्ता हाग्गै को फिर से एक और संदेश दिया:
\v 11 “यही वह है जो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहता है: ‘याजकों से यह प्रश्न पूछो कि मूसा के नियमों में बलिदान के बारे में क्या लिखा गया है:
\v 12 यदि तुम में से कोई पुजारी वेदी से कुछ माँस जो बलि चढ़ाया गया था लेता है और उसे अपने वस्त्रों में रख कर ले जाता है, तो यदि उसका वस्त्र किसी रोटी या खिचड़ी या दाखरस या जैतून का तेल या किसी अन्य भोजन छूता है, तो क्या वह भोजन भी पवित्र हो जाता है?’”
\p जब उसने पुजारियों से यह कहा, तो उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं।”
\p
\s5
\v 13 तब हाग्गै ने उनसे पूछा, “यदि कोई शव को छूकर परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य हो जाता है, और फिर वह उन खाद्य पदार्थों में से किसी को छूता है, तो क्या भोजन भी परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य हो जाएगा?”
\p पुजारियों ने उत्तर दिया, “हाँ।”
\p
\v 14 तब हाग्गै ने उत्तर दिया, “यहोवा यह कहता है: ‘यह तुम्हारे साथ और इस देश के साथ ऐसा ही है। जो कुछ भी तुम करते हो और जो सब बलिदान तुम सभी चढ़ाते हो, वह तुम्हारे द्वारा किये गए पापों के कारण अस्वीकार्य हो।
\p
\s5
\v 15 इस बारे में सोचो कि मेरे मंदिर की नींव रखने से पहले तुम्हारे साथ क्या हुआ है।
\v 16 जब तुम अनाज के बीस नपुओं की कटाई की उम्मीद की थी, तो तुमने केवल दस की कटाई की। जब कोई दाखरस के पचास बरतन भरने के लिए एक बड़े दाखरस के कुण्ड के पास जाता था, तो कुण्ड में से केवल बीस बरतन ही भर पाते थे।
\v 17 मैंने तुम्हारी सभी फसलों को नष्ट करने के लिए पाला और फफूंदी भेजी। लेकिन फिर भी तुम मेरे पास वापस नहीं आये।‘ यही वह है जो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहता है।
\p
\s5
\v 18 इस दिन से आरम्भ करके, इस वर्ष के नौवें महीने के चौबीसवें दिन, जिस दिन तुमने मेरे नए मंदिर की नींव रखी है, तुम अपनी स्थिति के बारे में सावधानी से सोचना जारी रखो।
\v 19 क्या अब तुम्हारे खत्तों में कोई अनाज का बीज बचा है? नहीं, क्योंकि तुमने कटाई की हुई छोटी उपज खा ली है। और तुम्हारे अंगूरों की लताओं और अंजीर के पेड़ों और अनार के पेड़ों और जैतून के पेड़ों पर कोई फल नहीं है।
\p लेकिन, अब से, मैं तुमको आशीर्वाद दूँगा!’”
\p
\s5
\v 20 उसी दिन, यहोवा ने हाग्गै को एक और संदेश दिया।
\v 21 उसने कहा, “यहूदा के राज्यपाल जरुब्बाबेल को बताओ कि मैं आकाश और पृथ्वी को हिला दूँगा।
\v 22 मैं कई राष्ट्रों के राजाओं की शक्ति समाप्त करूँगा। मैं उनके रथों और उनके सारथियों, उनके घोड़ों और सैनिकों को जो उनकी सवारी कर रहे हैं नष्ट कर दूँगा। सैनिक एक-दूसरे को अपने ही तलवार से मार देंगे।
\p
\s5
\v 23 जरुब्बाबेल, तू उस दिन मेरा दास बनेगा। और मैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह घोषणा करता हूँ कि जैसे राजा प्रतीकात्मक अंगूठियाँ पहनते हैं ताकि वे यह दिखा सकें कि उनके पास लोगों पर शासन करने का अधिकार है, मैं तुमको नियुक्त करूँगा और तुमको शासन करने का अधिकार दूँगा। मैं ऐसा इसलिए करूँगा क्योंकि मैंने तुमको चुना है। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने यह कहा है।”

452
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\id ZEC Unlocked Dynamic Bible
\ide UTF-8
\h जकर्याह
\toc1 जकर्याह
\toc2 जकर्याह
\toc3 zec
\mt1 जकर्याह
\s5
\c 1
\p
\v 1 जब राजा दारा को फारस का सम्राट बने दो वर्ष हो गए थे, तो उसके शासनकाल के आठवें महीने में, यहोवा ने बेरेक्याह के पुत्र और इद्दो भविष्यद्वक्ता के पोते जकर्याह भविष्यद्वक्ता को यह संदेश दिया:
\p
\v 2 “मैं तेरे पूर्वजों से बहुत क्रोधित था।
\v 3 इसलिए लोगों को यह बता: स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहते हैं: ‘मेरे पास लौट आओ, और यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।
\s5
\v 4 अपने पूर्वजों के समान मत बनो। भविष्यवक्ता, जो अब मर चुके हैं, उन्होंने निरन्तर तुम्हारे पूर्वजों के समक्ष यह घोषणा की कि उन्हें वे बुरे काम बंद कर देने चाहिए जो वे हमेशा से कर रहे थे। परन्तु जो मैंने कहा उन्होंने उस पर ध्यान देने से मना कर दिया।
\v 5 तुम्हारे पूर्वजों की मृत्यु हो गई है और अब वे उनकी कब्रों में हैं। यहाँ तक कि भविष्यवक्ता भी हमेशा के लिए जीवित नहीं रहे।
\v 6 परन्तु जिन आज्ञाओं और नियमों को मैंने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं को उन्हें बताने के निर्देश दिए थे - तुम्हारे पूर्वजों ने उनका पालन नहीं किया, इसलिए मैंने उन्हें दंडित किया। उन्होंने पश्चाताप किया और कहा कि मैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने उनके साथ वह किया जो बुरे व्यवहार के योग्य थे, जैसा कि मैंने कहा था कि मैं करूँगा।‘”
\p
\s5
\v 7 ग्यारहवें महीने के चौबीसवें दिन, यहोवा ने मुझे एक और संदेश दिया।
\p
\v 8 रात के समय मैंने दर्शन देखा। दर्शन में मैंने एक स्वर्गदूत को देखा जो लाल घोड़े पर सवार था। वह मेंहदी के कुछ पेड़ों के बीच संकरी घाटी में था। उसके पीछे अन्य घोड़ों पर स्वर्गदूत थे -लाल, भूरे-लाल, और सफेद घोड़ों पर।
\p
\v 9 मैंने उस स्वर्गदूत से पूछा जो मुझसे बातें कर रहा था, “महोदय, घोड़ों पर सवार वे स्वर्गदूत कौन हैं?”
\p उसने उत्तर दिया, “मैं तुझे दिखाऊँगा कि वे कौन हैं।”
\p
\s5
\v 10 तब उस स्वर्गदूत ने जो मेंहदी के पेड़ों के नीचे रुक गया था, समझाया। उसने कहा, “वे स्वर्गदूत हैं जिन्हें यहोवा ने पुरे संसार में भ्रमण करने के लिए भेजा है।”
\p
\v 11 तब उन स्वर्गदूतों ने यहोवा के उस स्वर्गदूत को बताया जो मेंहदी के पेड़ों के नीचे था, “हमने पुरे संसार में यात्रा की है, और हमने पाया कि सम्राट की सेना ने पुरे संसार के राष्ट्रों पर विजय प्राप्त की है, और अब वे असहाय और निष्क्रिय हैं।“
\p
\s5
\v 12 तब स्वर्गदूत ने पूछा, “हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, कब तक आप यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के प्रति दया के काम नहीं करेंगे? आप उनसे सत्तर सालों से क्रोधित हैं!”
\v 13 तब यहोवा ने उस स्वर्गदूत से दया की बातें की जिसने मुझसे बातें की थी, और ऐसी बातें कीं जिससे उन्हें सांत्वना मिली।
\p
\s5
\v 14 तब जो स्वर्गदूत मुझसे बातें कर रहा था, उसने मुझसे कहा, “यरूशलेम के लोगों में यह घोषणा करो: स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहते हैं कि वे उन लोगों के विषय में बहुत चिंतित हैं जो सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम के अन्य क्षेत्रों में रहते हैं।
\v 15 और वह उन राष्ट्रों से भी बहुत क्रोधित है जो घमंडी हैं और सुरक्षित अनुभव करते हैं। वे यहूदा से थोड़े अप्रसन्न थे, लेकिन उन्होंने उन्हें और अधिक पीड़ा दी।
\s5
\v 16 इसलिए, वे कहते हैं कि वे यरूशलेम जाएँगे और लोगों की सहायता करेंगे। इससे यही पता लगता है जैसे उन्होंने स्वयं सर्वेक्षण किया और नगर में सारी भूमि को माप लिया।
\v 17 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने यहूदा के नगरों में लोगों को यह बतलाने के लिए कहा कि वे शीघ्र ही बहुत समृद्ध होंगे। वे पुनः यरूशलेम के लोगों को प्रोत्साहित करेंगे, और वे पुनः यरूशलेम को अपने विशेष नगर के रूप में चुनेंगे।“
\p
\s5
\v 18 तब मैंने आँखें उठाई और चार जानवरों के सींगों को सामने देखा।
\v 19 मैंने उस स्वर्गदूत से पूछा जो मुझसे बातें कर रहा था, “वे सींग क्या हैं?”
\p उसने उत्तर दिया, “वे सींग उन राष्ट्रों के प्रतीक हैं जिन्होंने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों और इस्राएल के लोगों को अन्य देशों में जाने के लिए विवश किया।”
\p
\s5
\v 20 तब यहोवा ने मुझे चार लोहार दिखाए।
\v 21 मैंने पूछा, “वे लोग क्या करने के लिए आ रहे हैं?”
\p उसने उत्तर दिया, “उन राष्ट्रों ने जिनके वे सींग प्रतीक हैं, यहूदा के लोगों को तितर बितर किया इसलिए वे बहुत पीड़ित हुए । परन्तु ये लोहार उन राष्ट्रों को भयभीत करने और नष्ट करने आ रहे हैं और उनके सींगों, उनकी शक्ति को नीचे गिराने के लिए आ रहे हैं - वे राष्ट्र जिन्होंने यहूदा के देशों पर हमला किया था।“
\s5
\c 2
\p
\v 1 तब मैंने आँखें उठाईं और एक सर्वेक्षणकर्ता को मापक डोरी के साथ देखा।
\v 2 मैंने उससे पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो?”
\p उसने उत्तर दिया, “मैं यरूशलेम का सर्वेक्षण करने जा रहा हूँ, यह निर्धारित करने के लिए कि यह कितना चौड़ा और यह कितना लम्बा है।”
\p
\s5
\v 3 तब वह स्वर्गदूत जो मुझसे बातें कर रहा था, वहाँ से जाने लगा, और एक और स्वर्गदूत उसकी ओर चला आया।
\v 4 दूसरे स्वर्गदूत ने उससे कहा, “भागो और सर्वेक्षण की मापक डोरी लिये हुए उस जवान व्यक्ति से कहो: कभी यरूशलेम में बहुत से लोग और पशुधन होंगे, जो सभी नगर की दीवारों के अंदर नहीं रह सकेंगे; कुछ तो दीवारों के बाहर खुले क्षेत्रों में रहेंगे।
\v 5 यहोवा कहते हैं कि वे स्वयं नगर के चारों ओर आग की दीवार के समान स्थित रहेंगे, और वे अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच में निवास करेंगे।”
\p
\s5
\v 6 यहोवा उन लोगों के समक्ष घोषणा करते हैं जिनको बाबेल के लोग दासों के रूप में ले गए थे: “भागो! भागो! बाबेल से भागो, और उन स्थानों से भाग जाओ जहाँ मैंने तुम्हें चार प्रकार की हवाओं में बिखराया था!”
\p
\v 7 भागो! तुम जो अभी बाबेल में रहते हो, यहाँ यरूशलेम के लिए भागो!“
\s5
\v 8 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने मुझे उन राष्ट्रों के पास जाने के लिए कहने के माध्यम से सम्मानित किया जिन्होंने तुम्हारे स्वामित्व का सब कुछ ले लिया था तथा जो तुमको हानि पहुँचाते हैं, तुम उनके लिए सबसे मूल्यवान हो! जब उन्होंने ऐसा कर दिया, इसके पश्चात मुझसे यह कहा:
\v 9 “उन्हें बताओ कि मैं, यहोवा, उन पर हमला करूँगा। उनके अपने दास उनके पास से अपनी संपत्ति वापस ले लेंगे, जो उन्हें पहले स्थान पर ले गए थे।” जब ऐसा होता है, तो तुम यहूदी लोगों को पता चलेगा कि वे ही हैं, जिन्होंने मुझ, जकर्याह, को भविष्यद्वक्ता के रूप में भेजा।
\p
\s5
\v 10 यहोवा कहते हैं, “यरूशलेम के लोगो, चिल्लाओ और खुश रहो, क्योंकि मैं तुम्हारे पास आऊँगा और तुम्हारे बीच रहूँगा!”
\p
\v 11 उस समय, कई राष्ट्रों के लोग यहोवा के साथ जुड़ जाएँगे और उनके लोग बन जाएँगे। वे तुम सभी के बीच रहेंगे; और तुम जानोगे कि वे स्वर्गदूतों की सेना के शक्तिशाली सरदार, यहोवा, ही हैं जिन्होंने मुझे भविष्यद्वक्ता के रूप में भेजा है।
\s5
\v 12 यहूदा के लोग अपने ही देश के बहुत ही विशेष भाग बनेंगे, और यरूशलेम पुनः वह नगर होगा जिसे उन्होंने चुना हैं।
\v 13 हर किसी को, हर जगह, यहोवा की उपस्थिति में चुप रहना चाहिए, क्योंकि वे पुनः हमारे लिए महान काम करने के लिये वहाँ से नीचे आने वाले हैं जहाँ वे स्वर्ग में रहते हैं।
\s5
\c 3
\p
\v 1 तब यहोवा ने मुझे महायाजक यहोशू को दिखाया, जो उस दूत के सामने खड़ा था जिसे यहोवा ने भेजा था। और शैतान यहोशू के दाहिनी ओर खड़े होकर उस पर पाप करने का आरोप लगाने के लिए तैयार था।
\v 2 परन्तु यहोवा के दूत ने शैतान से कहा, “शैतान, यहोवा तुझे डाँटें! उन्होंने यरूशलेम को अपना विशेष नगर बनने के लिए चुना है, और वे तुझे डाँटें! यह व्यक्ति, यहोशू, बाबेल से वापस लाया गया है; वह निश्चित रूप से एक ज्वलनशील छड़ी के समान है जिसे किसी ने आग से निकाला हो।”
\p
\v 3 अब जब यहोशू स्वर्गदूत के सामने खड़ा था, तो वह गंदे कपड़े पहने हुए था।
\s5
\v 4 इसलिए स्वर्गदूत ने अन्य स्वर्गदूतों से जो उसके सामने खड़े थे कहा, “जो कपड़े वह पहने हुए है उन्हें उतार लो!”
\p उनके ऐसा करने के बाद, स्वर्गदूत ने यहोशू से कहा, “देखो, मैंने तुम्हारे पापमय अपराधों को दूर कर दिया है, और इसकी अपेक्षा मैं तुमको सुंदर कपड़े पहनाऊँगा।”
\p
\v 5 तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “उसके सिर पर एक साफ पगड़ी रखो!” तब उन्होंने उसके सिर पर एक साफ पगड़ी रखी और उसको नए कपड़े पहनाए, यहोवा का स्वर्गदूत वहाँ खड़ा हुआ सब देख रहा था।
\p
\s5
\v 6 तब उसी स्वर्गदूत ने यहोशू से यह कहा:
\v 7 “स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहते हैं कि यदि तुम ऐसा करते हो जो मैं चाहता हूँ कि तुम करो और मेरे निर्देशों का पालन करो, तो तुम मेरे भवन और उसके आँगन के प्रभारी होगे। और मैं तुमको इस स्वर्गदूतों के समूह का भाग बनने की अनुमति दूँगा जो हमेशा मेरे पास खड़े रहते हैं और हर समय मुझसे बातें कर सकते हैं।
\p
\s5
\v 8 यहोशू, तुम महायाजक हो, और तुम्हारे सहयोगी तुम्हारे सामने बैठे हैं। तथ्य यह भी है कि वे यहाँ हैं इसका यह अर्थ है कि मैं एक विशेष दास लाऊँगा, जिसे मैं शाखा कहूँगा।”
\v 9 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने यहोशू के सामने एक पत्थर रखा और उससे और उसके साथ के अन्य लोगों से कहा: “उस पत्थर को देखो जो मैंने यहोशू के सामने रखा है। इस पत्थर के सात कोने हैं। मैं उस पत्थर पर एक संदेश दूँगा, और एक दिन में मैं इस देश के सभी लोगों के अपराधों को मिटा दूँगा।
\p
\s5
\v 10 उस समय, तुम में से प्रत्येक अपने मित्रों को अपनी दाखलताओं के नीचे और अंजीर के पेड़ के नीचे बैठने के लिए आमंत्रित करोगे। यह स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, घोषित करते हैं।”
\s5
\c 4
\p
\v 1 तब वह स्वर्गदूत जो मेरे साथ बातें कर रहा था, लौट आया, उसने मुझे बुलाया, तब मैं गहराई से सोच रहा था, मानो मैं सो गया था।
\v 2 उसने मुझसे पूछा, “तू क्या देखता है?”
\p मैंने उत्तर दिया, “मैं सोने से बनाया गया एक दीवट देखता हूँ। शीर्ष पर जैतून के तेल के लिए एक छोटा सा कटोरा है, और कटोरे के चारों ओर सात छोटे दीपक हैं, और प्रत्येक दीपक पर सात बत्तियों की जगह हैं।
\v 3 इसके अतिरिक्त, मैं दो जैतून के पेड़ देखता हूँ, एक दीवट के दाईं ओर और एक बाईं ओर।“
\p
\s5
\v 4 मैंने उस स्वर्गदूत से पूछा जो मुझसे बातें कर रहा था, “महोदय, इन बातों का क्या अर्थ है?”
\p
\v 5 उसने उत्तर दिया, “निश्चित रूप से तू जानता है कि उनका क्या अर्थ है।”
\p मैंने उत्तर दिया, “नहीं, मुझे नहीं पता है।”
\p
\s5
\v 6 तब स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “यहोवा की ओर से यह संदेश तुम, जरुब्बाबेल, यहूदा के राज्यपाल के लिए है: ‘तू वही करेगा जो मैं चाहता हूँ कि तू करे, परन्तु यह तेरी अपनी सामर्थ या शक्ति से नहीं होगा। यह मेरी आत्मा की शक्ति से किया जाएगा, यह स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते हैं।”
\v 7 स्वर्गदूत ने मुझसे बातें करना जारी रखा: “जरुब्बाबेल, तुम्हारे पास संभालने के लिए कई कठिनाइयाँ हैं। वे ऊँचे पहाड़ों के समान हैं। परन्तु ऐसा होगा मानो वे ऊँचे पर्वतों जैसी कठिनाइयाँ सपाट भूमि बन जाए। और तू नए मन्दिर के लिए अंतिम पत्थर लाए, इसे पूरा करने के लिए सबसे ऊँचा पत्थर। जब तू इसे उचित स्थान पर स्थापित करता है, तो सभी लोग बार-बार चिल्लाएँगे, ‘यह सुंदर है! परमेश्वर इसे आशीर्वाद दें!’”
\p
\s5
\v 8 तब यहोवा ने मुझे एक और संदेश दिया।
\v 9 उन्होंने मुझसे कहा, “जरुब्बाबेल ने स्वयं मन्दिर की नींव के लिए कुछ पत्थर रखें हैं, और अंतिम पत्थरों को वह उचित स्थानों पर रखेगा।” तब मैंने उसके साथ के दूसरे लोगों से कहा, “जब ऐसा होगा तब लोग जान जाएँगे कि यह स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, हैं जिन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।
\p
\v 10 वे लोग जो हल्का मजाक कर रहे हैं कि ये किस प्रकार मन्दिर पुनः बना रहे हैं ये ही लोग तब प्रसन्न होंगे जब वे ज़रुब्बाबेल को अपने हाथ में एक साहुल की डोरी को पकड़े हुए देखेंगे।
\p सात दीपक यहोवा की आँखों का प्रतीक हैं, जो आँखे सम्पूर्ण धरती पर होने वाली हर बातें को पीछे और आगे देखती हैं।“
\v 11 तब मैंने स्वर्गदूत से पूछा, “इन जैतून के दो पेड़ों का अर्थ क्या है, जो दीवट के दोनों ओर हैं?
\s5
\v 12 और इन जैतून की दो शाखाओं का क्या अर्थ है, सोने की प्रत्येक नली के साथ जिसमें जैतून का तेल दीपकों तक बहता है?“
\p
\v 13 उसने उत्तर दिया, “निश्चित रूप से तू जानता है कि वो क्या हैं।”
\p मैंने उत्तर दिया, “नहीं, महोदय, मुझे नहीं पता है।”
\p
\s5
\v 14 इसलिए उसने कहा, “वे उन दो मनुष्यों का प्रतीक हैं जिन्हें यहोवा ने जो पूरी धरती पर शासन करते हैं, नियुक्त किया है।”
\s5
\c 5
\p
\v 1 मैंने पुनः आँखें उठाई, और मैंने एक पुस्तक देखी जो हवा से उड़ रही थी।
\p
\v 2 स्वर्गदूत ने मुझसे पूछा,“तू क्या देखता है?”
\p मैंने उत्तर दिया, “मैं एक उड़ती हुई पुस्तक देखता हूँ जो विशाल है, नौ मीटर लंबी और ढाई मीटर चौड़ी।”
\p
\s5
\v 3 तब उसने मुझसे कहा, “इस पुस्तक पर यहोवा ने वह वचन लिखे हैं जो उन्होंने यहूदा के सारे देश को शाप देने के लिए कहे हैं। पुस्तक के एक ओर यह लिखा गया है कि प्रत्येक चोर को देश से निकाल दिया जाएगा। दूसरी ओर यह लिखा गया है कि प्रत्येक जो झूठ बोलता है वह यहोवा को गवाह बनाता है,यह प्रमाणित करने के लिए कि वह सच कह रहा है, उसे भी देश से निकाल दिया जाएगा।
\v 4 स्वर्गदूतों की सेना के सरदार कहते हैं, ‘मैं इस पुस्तक को वहाँ भेजूँगा जहाँ चोर रहते हैं और उन लोगों के घरों में जो मेरे नाम का उपयोग तब करते हैं जब वे मुझे गवाह बनाते हैं कि वे सच कह रहे हैं। यह पुस्तक उनके घरों में तब तक रहेगी जब तक कि उन घरों को और उनकी सारी लकड़ियों और पत्थरों को नष्ट नहीं किया जाता।‘”
\p
\s5
\v 5 तब जो स्वर्गदूत मुझसे बातें कर रहा था वह मेरे समीप आया और कहा, “ऊपर देखो और देखो कि क्या आ रहा है!”
\p
\v 6 मैंने उससे पूछा, “यह क्या है?”
\p उसने उत्तर दिया, “यह अनाज को मापने का एक बड़ा पीपा है। परन्तु इसमें उन पापों का लेखा है जो इस देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने किया है।”
\p
\v 7 तब स्वर्गदूत ने पीपे के ढक्कन को उठाया, जो शीशे से बना था। पीपे के अंदर एक स्त्री बैठी थी!
\s5
\v 8 स्वर्गदूत ने कहा, “वह उन दुष्ट कामों का प्रतीक है जो लोग प्रायः करते हैं।” फिर उसने पीपे को धक्का दिया और पुनः बड़े भारी ढक्कन से उसे बंद कर दिया।
\p
\v 9 तब मैंने आँखें उठाई और दो स्त्रियों को सामने देखा। वे अपने पंखों को हवा में फैला कर, उड़ते हुए हमारी ओर आ रहीं थीं। उनके पंख सारस के पंख जैसे बड़े थे। उन्होंने उस पीपे को आकाश में उठा लिया।
\p
\s5
\v 10 मैंने उस स्वर्गदूत से पूछा जो मुझसे बातें कर रहा था, “वे उस पीपे को कहाँ ले जा रहीं हैं?”
\p
\v 11 उसने उत्तर दिया, “वे उसके लिए एक मन्दिर बनाने के लिए उसे बाबेल ले जा रहीं हैं। जब मन्दिर बनना पूरा हो जाए, तब वे वहाँ खम्भे की चौकी पर लोगों के पूजा करने के लिए पीपे को स्थापित कर देंगे।”
\s5
\c 6
\p
\v 1 मैंने पुनः आँखें उठाई, और मैंने चार रथों को सामने से मेरी ओर आते देखा। वे दो पहाड़ों के बीच आ रहे थे जो काँसे से बने थे।
\v 2 पहला रथ लाल घोड़े खींच रहे थे, दूसरा रथ काले घोड़े खींच रहे थे,
\v 3 तीसरा रथ सफेद घोड़े खींच रहे थे, और चौथे रथ को भूरे रंग के घोड़े खींच रहे थे।
\v 4 मैंने उस स्वर्गदूत से जो मुझसे बातें कर रहा था पूछा, “महोदय, उन रथों का क्या अर्थ है?”
\p
\s5
\v 5 स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “ये रथ और उनके घोड़े स्वर्ग से निकलने वाली चार हवाओं का प्रतीक हैं; वे पूरी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले यहोवा की उपस्थिति में खड़े होकर आए हैं। वे आकाश की चारों दिशाओं में चले जाएँगे।
\v 6 काले घोड़ों द्वारा खींचा रथ उत्तर की ओर जाएगा, जिसे सफेद घोड़ों ने खींचा है वह पश्चिम की ओर जाएगा, और जिसे धब्बेदार भूरे घोड़ों ने खींचा है वह दक्षिण की ओर जाएगा।”
\p
\s5
\v 7 जब उन शक्तिशाली घोड़ों को छोड़ दिया गया, वे पूरे संसार में जाने के लिए उत्सुक थे। जैसे ही वे जाने लगे, स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “पूरे संसार में जाओ और देखो कि क्या हो रहा है!” तो वे ऐसा करने के लिए चले गए।
\p
\v 8 तब स्वर्गदूत ने मुझे बुलाया और कहा, “देखो, उत्तर में गए रथ उस क्षेत्र के लोगों को दंडित करके यहोवा के आत्मा को शान्त करेंगे।”
\p
\s5
\v 9 तब यहोवा ने मुझे एक और संदेश दिया।
\v 10 उन्होंने कहा, “आज हेल्दाई, तोबिय्याह और यदायाह बाबेल में बंधुआ लोग कुछ चाँदी और सोना लेकर आएँगे। जैसे ही वे आएँ, सपन्याह के पुत्र योशीयाह के घर जाओ।
\v 11 उनसे उस चाँदी और सोने में से कुछ ले लो और एक मुकुट बनाओ। फिर उसे यहोशादाक के पुत्र यहोशू महायाजक के सिर पर रखो।
\s5
\v 12 उसे बताओ कि मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, कहता हूँ कि जिस व्यक्ति को शाखा कहा जाता है वह आएगा। वह उस स्थान को छोड़ देगा जहाँ वह अभी है, और वह मेरे मन्दिर का निर्माण करने वालों की देखरेख करेगा।
\v 13 वही है जो उन लोगों को जो मेरे मन्दिर का निर्माण करने वाले हैं, बताएगा कि क्या करना है। वह शाही कपड़े पहनेगा और अपने सिंहासन पर बैठ कर शासन करेगा। वह अपने सिंहासन पर बैठा एक याजक भी होगा, और इन दोनों भूमिकाओं के बीच शान्ति होगी।
\s5
\v 14 मुकुट को हेल्दाई, तोबीयाह, यदायाह और सपन्याह के पुत्र हेन को सौंप दिया गया, वे सम्मानित करने के लिए उसे यहोवा के भवन में रखने वाले थे।“
\v 15 जो दूर रह रहे हैं वे आएँगे और यहोवा के मन्दिर का निर्माण करने में सहायता करेंगे। जब ऐसा होता है, तो तुम लोग जान लोगे कि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने मुझे तुम लोगों के पास भेजा है। ऐसा होगा यदि आप सभी ईमानदारी से अपने परमेश्वर, यहोवा, की बातों का पालन करें।
\s5
\c 7
\p
\v 1 जब राजा दारा को सम्राट बने लगभग चार वर्ष हो गए तब किस्लेव के चौथे दिन (जो उनके कैलेंडर में नौवाँ महीना था), यहोवा ने मुझे एक और संदेश दिया।
\v 2 बेतेल नगर के लोगों ने दो लोगों, शरेसेर और रेगेम्मेलेक को, कुछ अन्य मनुष्यों के साथ, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा के भवन में, यह अनुरोध करने के लिए भेजा कि यहोवा उनके प्रति दयालु हों।
\v 3 उन्होंने यहोवा के भवन के याजकों से और भविष्यवक्ताओं से यह प्रश्न भी पूछा: “कई सालों से, हर साल के पाँचवें महीने और सातवें महीने में, हमने शोक किया और उपवास किया। क्या हमें ऐसा करना जारी रखना चाहिए?”
\p
\s5
\v 4 तब स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने मुझे एक संदेश दिया।
\v 5 उन्होंने मुझे याजक से और वास्तव में, पूरे देश में रहने वाले सभी से यह कहने के लिए कहा: “मुझे बताओ कि तुम किसका सम्मान कर रहे थे जब तुमने भोजन नहीं किया, तुम गंदे कपड़ों में ही यहाँ वहाँ चले गए। तुम सचमुच मुझे सम्मान नहीं दे रहे थे, क्या तुम दे रहे थे?
\v 6 और जब तुमने मेरे भवन में पर्व मनाया, तब तुमने बस अच्छा समय बिताने के लिए ऐसा किया; तुमने सचमुच मेरा सम्मान करने की इच्छा से ऐसा नहीं किया था, है ना?
\v 7 यह बिलकुल वैसा ही है जैसा मैंने पहले के भविष्यवक्ताओं को लोगों के लिए घोषणा करने की बात कही थी, जब यरूशलेम और आसपास के नगरों में रहने वाले संख्या में बहुत थे और समृद्ध थे, और तब लोग दक्षिणी यहूदिया के जंगल में और पश्चिम की तलहटी में रहते थे।”
\p
\s5
\v 8 यहोवा ने मुझे एक और संदेश दिया:
\v 9 “लोगों को बताओ कि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहते हैं: ‘मैंने तुमको तुम्हारे साथ मेरी प्रतिज्ञा का सम्मान करने के लिए और जो न्यायपूर्ण है वह करने के लिए, एक दूसरे के प्रति दया और कृपा दिखाते हुए कार्य करने के लिए कहा था।
\v 10 मैंने तुमको विधवाओं या अनाथों या विदेशियों या गरीब लोगों पर अत्याचार न करने के लिए कहा था। मैंने कहा था कि किसी और के साथ बुराई करने के विषय में सोचना भी नहीं।‘”
\p
\s5
\v 11 परन्तु जो कुछ यहोवा ने कहा था, लोगों ने उस पर ध्यान देने से मना कर दिया। उन्होंने उनके साथ सहयोग करने से मना कर दिया; जो यहोवा ने कहा उन्होंने वह सुनने से मना कर दिया।
\v 12 यहोवा ने ये संदेश अपनी आत्मा के लिए पहले की भविष्यद्वाणियों को दोहराने के लिए दिए थे। भविष्यवक्ताओं को ये संदेश लोगों को बताने के लिए दिए गए थे। लोग बहुत हठीले थे; वे मूसा के नियम या परमेश्वर की ओर से आए किसी भी संदेश को नहीं सुनते थे। अतः स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, उनसे बहुत क्रोधित हो गए।
\p
\s5
\v 13 उन दिनों, जब स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने लोगों को बुलाया, तब उन्होंने सुनने से मना कर दिया। इसलिए यहोवा ने कहा, “बिलकुल इसी प्रकार से, जब वे मुझे पुकारेंगे तब मैं भी सुनने से मना कर दूँगा।
\v 14 और मैं उन्हें कई राष्ट्रों में तितर बितर कर दूँगा, उन राष्ट्रों में जिनमें वे पहले कभी नहीं गए थे। मैं उन्हें ऐसे तितर-बितर कर दूँगा जैसे एक तूफान पत्तियों को तितर-बितर करता है। उनके चले जाने के बाद, उनका देश खाली हो जाएगा, वहाँ कोई भी रहने वाला नहीं होगा। कोई भी इसमें से होकर यात्रा नहीं करेगा और कोई भी इसके पास नहीं आएगा, क्योंकि उन्होंने इसे अपनी सबसे सुखद भूमि को जंगल में परिवर्तित कर दिया है।”
\s5
\c 8
\p
\v 1 यहोवा ने मुझे एक और संदेश दिया। उन्होंने कहा,
\v 2 “मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, यही कहता हूँ: मैं यरूशलेम के लोगों से प्रेम करता हूँ; मैं उन्हें बहुत प्रेम करता हूँ, और मैं उनके शत्रुओं से बहुत अप्रसन्न हूँ।
\p
\v 3 इसलिए मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, यही कहता हूँ: किसी दिन मैं सिय्योन पर्वत पर लौटूँगा और मैं वहाँ रहूँगा। उस समय, यरूशलेम को वफादार लोगों का नगर कहा जाएगा, और सिय्योन पर्वत को ऐसा पर्वत कहा जाएगा जो यहोवा का है।”
\p
\s5
\v 4 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं: “किसी दिन बूढ़े पुरुष और बूढ़ी स्त्रियाँ पुनः यरूशलेम की सड़कों पर बैठेंगे, प्रत्येक अधिक बूढ़े होने के कारण एक छड़ी रखते हैं।
\v 5 और नगर की सड़कें खेलने वाले लड़कों और लड़कियों से भरी होंगी।”
\p
\s5
\v 6 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं: “जब ये बातें होंगी, तो यह उन के लिए आश्चर्यजनक प्रतीत होगा जो अभी भी जीवित हैं, परन्तु यह निश्चित रूप से मेरे लिए आश्चर्यजनक नहीं होगा!”
\p
\v 7 यहोवा यह भी कहते हैं: “मैं अपने लोगों को पूर्व के देश बाबेल से और पश्चिम के देश मिस्र से वापस लेकर आऊँगा, जहाँ उन्हें जाना था।
\v 8 मैं उन्हें वापस यहूदा में लेकर लाऊँगा, और वे पुनः यरूशलेम में रहेंगे। वे पुनः मेरे लोग होकर मेरी आराधना करेंगे, और मैं उनका परमेश्वर रहूँगा। मैं उनके प्रति वफादार रहूँगा और उनके साथ न्यायसंगत रीति से कार्य करूँगा।“
\p
\s5
\v 9 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं: “जब मेरे भवन की नींव रखी गई थी, वहाँ ऐसे भविष्यवक्ता थे जो मेरा संदेश देते थे। तुम में से कुछ लोगों ने सुना है कि उन भविष्यवक्ताओं ने क्या कहा था। तो बहादुर बनो जब तुम परमेश्वर के भवन का निर्माण कर रहे हो, ताकि तुम इसे पूरा कर सको।
\v 10 इससे पहले कि तुमने परमेश्वर के भवन को पुनः बनाने का काम शुरू किया, तुम्हारे खेत फसल नहीं देते थे, उनमें काम करने वाले किसी भी व्यक्ति या जानवर को कोई लाभ नहीं मिलता था। लोग कहीं भी जाने से डरते थे क्योंकि मैंने लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध कर दिया था।
\s5
\v 11 परन्तु जो अभी भी जीवित हैं, मैं तुम लोगों के प्रति अलग व्यवहार करूँगा जो अभी भी जीवित हैं, जैसे मैंने पहले किया था। मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, यही कहता हूँ।
\p
\v 12 अब से, मैं तुमको शान्ति दूँगा। तुम्हारी दाखलताएँ अंगूरों का उत्पादन करेंगी, और तुम्हारे खेतों में अच्छी फसलें बढ़ेगी। आकाश से वर्षा होगी। मैं हमेशा इन सभी को तुम लोगों को दूँगा जो अभी भी जीवित हैं।
\s5
\v 13 तुम यहूदा और इस्राएल के लोगों, अन्य राष्ट्रों के लोग तुम्हारे विषय में विचार करते हैं जब वे बोलते हैं कि श्राप का क्या अर्थ है। लेकिन मैं तुमको बचाऊँगा, और मैं तुमको बहुत सी अच्छी वस्तुएँ दूँगा। इसलिये मत डरो; परमेश्वर का भवन बनाने के लिए कठोर परिश्रम करो।”
\p
\v 14 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं: “जब तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे बहुत अप्रसन्न कर दिया, तो मैंने इसके विषय में अपना मन नहीं बदला। इसकी अपेक्षा, मैंने वास्तव में उन्हें दंडित किया।
\v 15 लेकिन अब मैं कुछ अलग करूँगा। मैं यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के लोगों के लिए पुनः भले काम करने की योजना बना रहा हूँ। इसलिये मत डरो।
\s5
\v 16 ये वे काम हैं जो तुमको करने चाहिए: तुमको हमेशा एक-दूसरे से सत्य बोलना चाहिए। अदालतों में, तुम्हारे न्यायाधीशों को जो सही और निष्पक्ष है उसके अनुसार निर्णय लेना चाहिए।
\v 17 दूसरों के साथ बुरे काम करने की योजना न बनाओ, और दूसरों के विरुद्ध झूठे आरोपों की शपथ लेने की स्वीकृति न दो। मैं उन सभी कामों से घृणा करता हूँ।“
\p
\s5
\v 18 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने पुनः मुझसे बातें की।
\v 19 यही बातें हैं जो उन्होंने कहीं: “वह समय जब तुम यहूदा के लोग हर वर्ष के चौथे, पाँचवें, सातवें और दसवें महीने में भोजन से दूर रहते थे, वही परिवर्तित होकर ऐसा समय बन जाएगा कि तुम सुखद और आनंददायक पर्व मनाओगे। लेकिन तुमको सच बोलने की और शांतिपूर्ण ढंग में रहने की इच्छा करनी चाहिए।“
\p
\s5
\v 20 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं: “किसी दिन बहुत सी जाति और समूह के लोग और दूसरे नगरों के लोग यरूशलेम नगर में आएँगे।
\v 21 एक नगर के लोग दूसरे नगर के लोगों के पास जाएँगे और कहेंगे, ‘आओ हम यहोवा की उपासना करने और आशीर्वाद प्राप्त करने और उनसे अनुरोध करने के लिए एक साथ यरूशलेम चलें; हम तो जा रहे हैं।‘
\v 22 बहुत सी जातियों के समूह के लोग और शक्तिशाली राष्ट्रों के लोग यहोवा की उपासना करने और उनसे आशीर्वाद पाने के लिए यरूशलेम आएँगे।“
\p
\s5
\v 23 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं: “उस समय, चारों ओर यही होगा: प्रत्येक यहूदी व्यक्ति के साथ, दस विदेशी होंगे, जो एक अलग भाषा बोलते हैं, वे आएँगे और उनके वस्त्र के किनारे को पकड़ेंगे। वे उनसे कहेंगे, ‘हमने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है। इसलिए हमें तुम्हारे साथ यरूशलेम में जाकर उनकी आराधना करने की अनुमति दो।’ प्रत्येक देश और भाषा के लोग ऐसा करेंगे।“
\s5
\c 9
\p
\v 1 यह एक और संदेश है जिसे मैंने हदराक क्षेत्र और दमिश्क नगर के विषय में यहोवा से प्राप्त किया, ये वह स्थान है जहाँ उन्हें विश्राम मिलता है। सभी राष्ट्रों की आँखें इस्राएल के गोत्र के लोगों और यहोवा की ओर देख रही हैं, यह देखने के लिए कि वे क्या कहेंगे।
\v 2 यह संदेश दमिश्क के समीप हमात क्षेत्र और सूर और सैदा के नगरों के लोगों के विषय में भी है, जो बहुत बुद्धिमान हैं।
\s5
\v 3 सूर के लोगों ने अपने नगर के चारों ओर ऊँची दीवार बनाई है। उन्होंने चाँदी और सोना बड़ी भारी मात्रा में एकत्र किया जैसे अन्य लोग सड़कों को खोदकर मिट्टी का ढेर बना लेते हैं।
\v 4 परन्तु मैं, यहोवा, उनकी सब वस्तुओं को खो जाने दूँगा, उनके जहाजों समेत जिनमें उनके लोग समुद्र में लड़ते हैं। उनका नगर जल कर मैदान हो जाएगा।
\s5
\v 5 अश्कलोन नगर में रहने वाले लोग ऐसा होते हुए देखेंगे, और वे बहुत डर जाएँगे। गाजा नगर में रहने वाले लोग थरथराएँगे क्योंकि वे भयभीत हैं, और एक्रोन में रहने वाले लोग भी थरथराएँगे, क्योंकि वे अब शत्रुओं से बचने की आशा नहीं करते हैं। गाजा का राजा मर जाएगा; अश्कलोन में अब कोई नहीं रहेगा।
\v 6 यहोवा कहते हैं, “विदेशी लोग अश्दोद नगर पर कब्जा कर लेंगे। अब मैं पलिश्तियों के उन सभी नगरो में रहने वाले लोगों को घमंड करने नहीं दूँगा।
\v 7 अब मैं उन्हें माँस खाने की अनुमति नहीं दूँगा, जिसमें खून होता है, और मैं उन्हें मूर्तियों को जो खाना चढ़ाया गया हूँ उसे खाने के लिए भी मना कर दूँगा। उस समय, पलिश्ती क्षेत्र में रहने वाले लोग मेरी आराधना करेंगे; वे यहूदा में एक कुल के समान हो जाएँगे। एक्रोन नगर के लोग मेरे लोगों का अंग बन जाएँगे, जैसे यबूस के लोगों ने किया था जब इस्राएलियों ने उन्हें जीत लिया था।
\s5
\v 8 मैं अपने देश की रक्षा करूँगा, और मैं किसी शत्रु सैनिक को इसमें प्रवेश करने की अनुमति नहीं दूँगा। कोई शत्रु पुनः मेरे लोगों को हानि नहीं पहुँचाएगा, क्योंकि मैं स्वयं उनकी बड़े ध्यान से देखरेख कर रहा हूँ।
\s5
\v 9 तुम यरूशलेम के लोगों, बहुत आनन्द मनाओ और प्रसन्नता से चिल्लाओ,
\q क्योंकि तुम्हारा राजा तुम्हारे पास आ रहा है।
\q वह धर्मी है और विजयी है;
\q वह सभ्य होगा,
\q और वह एक गधे पर सवार होगा,
\q एक जवान गधे पर।
\v 10 मैं एप्रैम के क्षेत्र में रथों को नष्ट कर दूँगा जो युद्ध में उपयोग किए जाते हैं और यरूशलेम के सभी घोड़ों को भी जो युद्ध में शामिल होते हैं। मैं युद्धों में उपयोग किए जाने वाले सभी धनुषों को भी तोड़ दूँगा।
\q तुम्हारा राजा यह घोषणा करेगा कि वह राष्ट्रों के बीच की बातों को अच्छी और शांतिपूर्वक रीति से होने देगा। वह भूमध्य सागर से मृत सागर तक, और परात नदी से पृथ्वी पर सबसे दूरस्त स्थानों पर शासन करेगा।
\s5
\v 11 जब मैंने तुम सबसे प्रतिज्ञा की थी तब जो खून बहा था उसी के कारण यरूशलेम के निवासियों मैं उन लोगों को दासत्व से मुक्त करूँगा जिन्हें वे दूसरे देशों में ले गए थे, जहाँ मानो वे पानी रहित गड्ढे में कैद थे।
\v 12 तुम लोग जो उन देशों में कैदी थे, और अब भी मानते हो कि मैं तुम्हारी सहायता करूँगा, यहूदा लौटेगा, क्योंकि मैं वहाँ तुम्हारी रक्षा करूँगा। आज मैं घोषणा करता हूँ कि तुम्हारे द्वारा अनुभव की गई प्रत्येक परेशानी के लिए मैं तुमको आशीर्वाद दूँगा।
\v 13 मैं यहूदा को मेरे धनुष के समान बना लूँगा, और मैं इस्राएल को अपना तीर बना लूँगा। मैं यरूशलेम के जवान पुरुषों को यूनान के सैनिकों के विरुद्ध लड़ने के लिए सक्षम करूँगा; तुम योद्धा की तलवार के समान होगे।“
\s5
\v 14 एक दिन यहोवा अपने लोगों के ऊपर आकाश में दिखाई देंगे, और जो तीर वे मारेंगे वह बिजली गिरने के समान होंगे। यहोवा हमारे प्रभु अपनी तुरही फूँकेंगे, और वे दक्षिण में तेमान देश से आए शक्तिशाली तूफानों के साथ निकलेंगे।
\v 15 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, अपने लोगों की रक्षा करेंगे; यहूदा के सैनिक हमला करेंगे और अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे जो उन पर गोफन और पत्थरों का उपयोग करके हमला करते हैं। यहूदा के वे सैनिक पीएँगे और जश्न मनाएँगे और नशे में धुत रहने वाले लोगों के समान चिल्लाएँगे; वे शराब से ऐसे भरे रहेंगे जैसे उन जानवरों के खून से भरे कटोरे जिन जानवरों को याजक वेदी पर मार डालता है वह खून जो याजक वेदी के कोनों पर छिड़कता है।
\s5
\v 16 उस दिन, हमारे परमेश्वर यहोवा अपने लोगों को इस प्रकार बचाएँगे, जिस प्रकार एक चरवाहा अपनी भेड़ों के झुंड को खतरे से बचाता है। हमारे देश में, वे जवाहरात के समान होंगे जो एक मुकुट में चमकते हैं।
\v 17 वे प्रसन्न और सुंदर होंगे। जवान लोग अनाज खाने से शक्तिशाली हो जाएँगे, और जवान स्त्रियाँ नया दाखरस पीने से शक्तिशाली हो जाएँगी।
\s5
\c 10
\p
\v 1 यहोवा से वसंत ऋतु में वर्षा देने के लिए खो, क्योंकि वही हैं जो बादलों को बनाते हैं जिससे तूफान में वर्षा भी होती है। वे ही वर्षा को हमारे ऊपर गिरने देते हैं, और वे ही खेतों में फसलों को अच्छे से बढ़ने देते हैं।
\v 2 लोग जो सोचते हैं कि उनके घरों में पाई जाने वाली मूर्तियाँ कहती हैं वह केवल अर्थहीन हैं, और जो लोग कहते हैं कि वे सपने की व्याख्या कर सकते हैं केवल झूठ बोलते हैं। जब वे सांत्वना देने के लिए लोगों से बातें करते हैं, तो वे जो कहते हैं वह व्यर्थ है, इसलिए जो उनसे परामर्श करते हैं वे खोई हुई भेड़ के समान हैं; वे खतरे में हैं क्योंकि उनके पास कोई नहीं जो उनकी रक्षा करे जैसे बिना चरवाहे की भेड़।
\s5
\v 3 यहोवा कहते हैं, “मैं अपने लोगों के अगुवों से अप्रसन्न हूँ, और मैं उन्हें दण्ड दूँगा। मैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, मैं अपने लोगों अर्थात यहूदा के लोगों की देखभाल करूँगा जैसे चरवाहा अपने झुंड का ध्यान रखता है, और मैं उन्हें युद्ध में जाने वाले घोड़ों के समान बना दूँगा।
\s5
\v 4 यहूदा से शासक आएँगे जो बहुत महत्वपूर्ण होंगे। यहूदा से ऐसे अगुवे आएँगे जो लोगों को एक साथ बनाए रखेंगे, जैसे तम्बू का खूँटा एक तम्बू को ऊँचा रखता है। यहूदा से ऐसे अगुवे आएँगे जो सैनिकों को युद्ध में ले जाएँगे, जैसे एक राजा युद्ध के लिए अपने धनुष को धारण करता है। उनमें से प्रत्येक के अगुवे आ जाएँगे।
\v 5 वे शक्तिशाली योद्धाओं के समान होंगे जो युद्ध में अपने शत्रुओं को मिट्टी में रौंद देते हैं। मैं, यहोवा, उनके साथ रहूँगा, इसलिए वे घोड़ों पर सवारी करने वाले अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे और लज्जित करेंगे।
\s5
\v 6 मैं यहूदा के लोगों को शक्तिशाली बना दूँगा, और मैं इस्राएल के लोगों को बचाऊँगा। मैं उन्हें उन देशों से वापस लाऊँगा जहाँ उन्हें बंधुआ बनाया गया था; मैं ऐसा इसलिए करूँगा क्योंकि मैं उन पर करूणा करता हूँ। तब ऐसा होगा मानो मैंने उन्हें कभी नहीं छोड़ा था क्योंकि मैं यहोवा, उनका परमेश्वर हूँ, और जब वे सहायता के लिए प्रार्थना करते हैं तो मैं उनको उत्तर दूँगा।
\v 7 इस्राएल के लोग तब शक्तिशाली सैनिकों के समान होंगे; वे उन लोगों के समान प्रसन्न होंगे जब बहुत दाखरस पियेंगे। उनके बच्चे अपने पिताओं को बहुत प्रसन्न होते देखेंगे, और जो मैंने उनके लिये किया है उसके कारण वे भी प्रसन्न होंगे।
\s5
\v 8 मैं अपने लोगों को दूर से लौटने का संकेत दूँगा, और मैं उन्हें उनके अपने देश में एकत्र करूँगा। मैं उन्हें बचाऊँगा, और वे संख्या में जितने पहले थे उससे बहुत अधिक हो जाएँगे।
\v 9 मैंने उन्हें कई लोगों के समूहों में तितर बितर कर दिया है, लेकिन उन दूर के देशों में वे मेरे विषय में पुनः सोचेंगे। वे और उनके बच्चे जीवित रहेंगे और यहूदा लौट आएँगे।
\v 10 मैं उन्हें मिस्र और अश्शूर से वापस लाऊँगा; मैं उन्हें गिलाद और लेबनान के क्षेत्रों से वापस लाऊँगा, वहाँ उन सब के रहने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।
\s5
\v 11 मैं उनके दुःख के माध्यम से उनके सामने से जाऊँगा, जैसे कि मैं समुद्र से होकर जा रहा हूँ, परन्तु मैं उन लहरों को शांत करूँगा और उनकी पीड़ा को समाप्त करूँगा, जैसे कि मैं नील नदी को सूखा रहा था। मैं अश्शूर के घमंडी सैनिकों को पराजित करूँगा, और मैं मिस्र को अब शक्तिशाली नहीं बना रहने दूँगा।
\v 12 मैं अपने लोगों को शक्तिशाली होने में सक्षम करूँगा, वे मेरा सम्मान करेंगे और मेरी आज्ञा मानेंगे। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैंमुझ, यहोवा ने यह कहा है।“
\s5
\c 11
\p
\v 1 लबानोन के लोगों को अपने फाटकों को खोलना चाहिए और उनके देवदार के पेड़ों को जलाने के लिये आग को अनुमति देनी चाहिए!
\v 2 तुम्हारे साइप्रस के पेड़ उन लोगों के समान होने चाहिए जो विलाप कर रहे हैं, क्योंकि शत्रुओं ने देवदार के पेड़ों को काट दिया है। वे सब उत्तम पेड़ नष्ट हो गए। बाशान क्षेत्र के बांज के पेड़ भी ऐसे लोगों के समान होने चाहिए जो विलाप कर रहे हैं, क्योंकि शत्रुओं ने घने जंगलों में बांज के पेड़ों को काट दिया है।
\v 3 रोते हुए चरवाहों को सुनो क्योंकि उपजाऊ चारागाह नाश हो गए हैं। दहाड़ते शेरों को सुनो; वे दहाड़ते हैं क्योंकि यरदन नदी के पास के बीहड़ जंगल को जहाँ वे रहते हैं नाश कर दिया गया है।
\p
\s5
\v 4 मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझसे यही कहा था: “मैं चाहता हूँ कि तुम भेड़ के इस झुंड की देख-रेख करो जब तक कि झुंड समाप्त न हो जाए।
\v 5 भेड़ों का व्यापार करने वाले भेड़ों को मार डालेंगे, और कोई भी उन्हें दंडित नहीं करेगा। भेड़ बेचने वाले लोग कहेंगे, ‘मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ, क्योंकि मैं धनवान बन जाऊँगा! और जिन चरवाहों को स्वामी भाड़े पर रखते हैं वे भेड़ों के लिए खेद नहीं करते हैं।
\v 6 और इसी प्रकार, अब मुझे इस देश के लोगों के लिए खेद नहीं है। मैं उनके साथी देशवासियों और उनके राजा को उन पर अत्याचार करने की अनुमति दूँगा। वे इस देश को नाश कर देंगे, और मैं उनमें से किसी को भी नहीं बचाऊँगा। “
\p
\s5
\v 7 इसलिए मैं भेड़ों के झुंड का चरवाहा बन गया जिनको व्यापार करने वाले मारने के लिये और उनका माँस बेचने जा रहे थे। तब मैंने दो चरवाहों की लाठियों को लिया। मैंने एक लाठी का नाम ‘दया’ रखा और दूतरी लाठी का नाम ‘एकता’ रख दिया। इस प्रकार मैंने भेड़ों की चरवाही करना शुरू किया।
\v 8 परन्तु तीन चरवाहे जो भेड़ों के साथ थे, उन्होंने मुझसे घृणा की, और मैं उन स्वामियों के प्रति असंयमी हो गया जिन्होंने हम सभी को काम पर रखा था। एक महीने के अन्दर मैंने उन चरवाहों को नष्ट कर दिया था।
\p
\v 9 इसलिए मैंने व्यापार करने वालों से कहा, “मैं अब तुम्हारे लिए चरवाहा नहीं बना रहूँगा। मैं उन्हें अनुमति दूँगा जो मरने के लिए मरे जा रहे हैं। मैं उन्हें अनुमति दूँगा जो नाश होने के लिये स्वयं को खो रहे हैं। मैं उनको नहीं रोकूंगा जो एक-दूसरे को खाने से बच गए हैं।“
\p
\s5
\v 10 तब मैंने उस लाठी को लिया जिसे मैंने ‘दया’ नाम दिया था, और मैंने उसे तोड़ दिया। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि यहोवा ने मुझे उस प्रतिज्ञा को रद्द करने के लिए कहा था जिसे उन्होंने इस्राएल के सभी गोत्रों के साथ की थी।
\v 11 इसलिए उसी दिन प्रतिज्ञा समाप्त हो गई। जो व्यापार करने वाले मुझे देख रहे थे वे देखकर यह जानते थे कि मैं क्या कर रहा था, मैं उन्हें यहोवा की ओर से एक संदेश दे रहा था।
\p
\v 12 मैंने उनसे कहा, “यदि तुमको यह सही लगता है, तो मुझे मेरे काम के लिए भुगतान करें। यदि तुमको यह सही नहीं लगता है, तो मुझे भुगतान न करें।” इसलिए उन्होंने मुझे चाँदी के केवल तीस टुकड़े दिए।
\p
\s5
\v 13 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “यह तुम्हारे काम का उपहास करते हुए बहुत ही कम धन है। इसलिए इसे भण्डार में डाल दो।” इसलिए मैं चाँदी को यहोवा के भवन में ले गया, और मैंने इसे भण्डार में जमा कर दिया।
\p
\v 14 तब मैंने अपनी दूसरी लाठी को तोड़ दिया, जिसे मैंने “एकता” नाम दिया था। इससे यह संकेत मिला कि यहूदा और इस्राएल अब भाइयों के समान एक साथ नहीं रहेंगे।
\p
\s5
\v 15 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “उन वस्तुओं को वापस ले जिनका उपयोग मूर्ख चरवाहे करते हैं,
\v 16 क्योंकि मैं लोगों के लिए नया चरवाहा नियुक्त करने जा रहा हूँ, जो मेरे लोगों की देखभाल नहीं करेगा। वह एक मूर्ख चरवाहा होगा: वह मरने वाली भेड़ों को और जो खो गई हैं उन्हें अनदेखा करेगा। स्वस्थ भेड़ों को नहीं खिलाएगा; इसकी अपेक्षा, वह उन्हें अपने भोजन के लिए मार देगा और उनकी नालों को उखाड़ लेगा।
\s5
\v 17 परन्तु उस मूर्ख चरवाहे के साथ भयानक बातें होंगी जो झुंड को छोड़ देता है। उसके शत्रु तलवारों से उसकी बाजू और उसकी दाहिनी आँख पर वार करेंगे कि उसके पास उसकी बाँह में कोई सामर्थ न बचे, और उसकी दाहिनी आँख पूरी तरह से अंधी हो जाए।“
\s5
\c 12
\p
\v 1 यह इस्राएल के विषय में यहोवा की ओर से एक संदेश है - यहोवा, जिन्होंने आकाश को फैलाया, जिन्होंने धरती बनाई, और जिन्होंने मनुष्यों को जीवन दिया। वे यह कहते हैं:
\v 2 “मैं शीघ्र ही यरूशलेम को बहुत गाढे दाखरस से भरे प्याले के समान बना दूँगा, और अन्य देशों के लोग जब इसे पीएँगे, वे इधर उधर भटकेंगे। यहूदा के लोग भी इसे पीएँगे, क्योंकि जब शत्रु यरूशलेम को घेर लेते हैं वे भी पीड़ित होंगे।
\v 3 उस समय, सभी जाती के समूहों की सेना यरूशलेम पर हमला करने के लिए एकत्र होंगी, लेकिन मैं यरूशलेम को बहुत भारी चट्टान के समान बना दूँगा, और जो इसे उठाने का प्रयास करेंगे वे बुरी तरह घायल हो जाएँगे। ऐसा तब होगा जब संसार के सभी राष्ट्रों की सेनाएँ यरूशलेम पर हमला करेंगी।
\s5
\v 4 उस समय मैं उनके शत्रुओं के प्रत्येक घोड़े को विचलित कर दूँगा, और उनके सवार पागल हो जाएँगे। मैं यहूदा के लोगों की रक्षा करूँगा, परन्तु मैं उनके शत्रुओं के सभी घोड़ों को अंधा कर दूँगा।
\v 5 तब यहूदा के अगुवे अपने आप से कहेंगे, ‘यरूशलेम में रहने वाले लोग हमें प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि स्वर्गदूतों की सेना के सरदार, यहोवा, ही हैं जिनकी वे आराधना करते हैं।’
\p
\s5
\v 6 उस समय मैं यहूदा के अगुवों को आग के बर्तन के समान बना दूँगा जिसे कोई जलावन की लकड़ी के ढेर में डालता है; और पके हुए अनाज के खेत में जलती हुई मशाल के समान भी। यहूदा के अगुवे और उनके सैनिक सभी दिशाओं में आसपास के लोगों के समूहों को नष्ट कर देंगे। लेकिन यरूशलेम के लोग अपने ही नगर में सुरक्षित रहेंगे।“
\p
\s5
\v 7 यहोवा यरूशलेम के लोगों को बचाए जाने से पहले यहूदा के अन्य स्थानों में रहने वाले लोगों की रक्षा करेंगे, ताकि लोग दाऊद के वंशजों का और यरूशलेम के लोगों का यहूदा के शेष भाग में रहने वाले लोगों से अधिक सम्मान न करें।
\v 8 उस समय, यहोवा यरूशलेम में रहने वाले प्रत्येक की रक्षा करेंगे। उनमें से सबसे बलहीन सैनिक भी दाऊद के समान शक्तिशाली होगा, और दाऊद के वंशज परमेश्वर के समान होंगे; वे दूसरों का नेतृत्व यहोवा के दूत के समान करेंगे।
\v 9 “उस समय, मैं यरूशलेम पर हमला करने वाली सभी सेनाओं को नष्ट करना शुरू कर दूँगा।”
\p
\s5
\v 10 “मैं, यहोवा, दाऊद के वंशजों द्वारा दूसरों पर दया दिखने का काम करूँगा, और उन पर दया करने के लिए मुझसे अनुरोध करना होगा। वे मुझ पर ध्यान देंगे, जिसे उन्होंने छेदा था।” वे बुरी तरह से रोएँगे, जैसे लोग अपने पहिलौठे पुत्र के लिए रोते हैं, एकलौता पुत्र, जो मर चुका है।
\v 11 उस समय, यरूशलेम में बहुत से लोग बुरी तरह से रो रहे होंगे, जैसे लोग मगिद्दोन के मैदान हदद्रिम्मोन में रोते थे।
\s5
\v 12 यहूदा में प्रत्येक वंश के बहुत से लोग स्वयं ही रोएँगे। दाऊद के वंशज सारे पुरुष स्वयं ही विलाप करेंगे, और उनकी पत्नियाँ स्वयं ही विलाप करेंगी; नातान के वंशज पुरुष भी स्वयं ही विलाप करेंगे, और उनकी पत्नियाँ भी विलाप करेंगी।
\v 13 लेवी के वंशज पुरुष स्वयं ही विलाप करेंगे, और उनकी पत्नियाँ विलाप करेंगी; शिमी के वंशज पुरुष स्वयं ही विलाप करेंगे, और उनकी पत्नियाँ विलाप करेंगी।
\v 14 सारे ही कुल अलग-अलग विलाप करेंगे, उनके पुरुष स्वयं ही और उनकी पत्नियाँ विलाप करेंगी।“
\s5
\c 13
\p
\v 1 उस समय ऐसा होगा मानो वहाँ पानी का एक सोता है जो राजा दाऊद के वंशजों और यरूशलेम में रहने वाले अन्य सभी लोगों को उनके द्वारा किये गए पापों के अपराध से शुद्ध करने के लिए निरन्तर बहता रहेगा, विषेशकर मूर्तियों की पूजा करके यहोवा के लिए अस्वीकार्य होने के पाप से।
\p
\v 2 स्वर्गदूतों की सेना के सरदार, यहोवा, कहते हैं, “उस समय, मैं लोगों को अपने देश में मूर्तियों के नामों का उचारण करने से रोकूँगा, और फिर कोई भी उनकी पूजा नहीं करेगा। मैं उन लोगों को भी देश से दूर कर दूँगा जो झूठा दावा करते हैं कि वे भविष्यद्वक्ता हैं, मैं उस दुष्ट आत्मा को भी दूर कर दूँगा जो उन्हें लोगों को मेरे झूठे संदेश बताने के लिए प्रेरित करता है।
\s5
\v 3 यदि कोई झूठी भविष्यद्वाणी करता रहता है, तो उसके अपने माता-पिता, भले ही वह उनका अपना पुत्र हो, उससे कहेंगे, ‘तुमने यह बोल कर झूठ कहा है कि यहोवा ने तुमको जो संदेश दिये हैं, इसके अनुसार तुमको मरना होगा।’ तब वे उस पर प्रहार करेंगे और उसे मार देंगे।
\p
\s5
\v 4 उस समय, झूठे भविष्यद्वक्ता यह घोषणा करने के लिए लज्जित होंगे कि उन्हें कोई दर्शन मिला है। अब वे जानवरों के बालों से बने कपड़े नहीं पहनेंगे जो सामान्य रूप से भविष्यवक्ता पहनते हैं, क्योंकि वे उन्हें सोचने के लिए विवश करेंगे कि वे वास्तव में कभी भी भविष्यद्वक्ता नहीं थे।
\v 5 इसलिए उनमें से प्रत्येक कहेगा, ‘मैं वास्तव में भविष्यद्वक्ता नहीं हूँ; मैं किसान हूँ, और जब मैं लड़का था तब से मैं अपनी भूमि पर किसान ही रहा हूँ!
\v 6 परन्तु दूसरे उनके शरीर पर निशान देखेंगे और सोचेंगे कि उन्होंने मूर्तियों को प्रसन्न करने के लिए स्वयं को काटा है, जिस समय वे उनकी पूजा कर रहे थे। इसलिए वे पूछेंगे, ‘तुम्हारे शरीर पर ये निशान क्यों हैं? और वे झूठ बोलेंगे: ‘मैं अपने दोस्त के घर पर झगड़े में घायल हुआ था।’“
\p
\s5
\v 7 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहते हैं,
\q “किसी को उस पर हमला करना और मार डालना चाहिए जो मेरे चरवाहे के समान है,
\q वह व्यक्ति जो मेरा घनिष्ट मित्र है।
\q जब तुम तलवार से मेरे चरवाहे को मारोगे, तो मेरे लोग भेड़ के समान भाग जाएँगे।
\q और मैं स्वयं अपने साधारण लोगों पर हमला करूँगा, जो छोटी भेड़ के समान हैं।“
\s5
\v 8 यहोवा यह भी कहते हैं, “यहूदा में दो तिहाई लोग मर जाएँगे; यहूदा में केवल एक तिहाई लोग जीवित रहेंगे।
\v 9 जो जीवित बचेंगे, उनको अत्याधिक कठिनाइयों का सामना कराने के द्वारा मैं उन की परीक्षा लूँगा, यह पता लगाने के लिए भी कि क्या वे मेरी आराधना करना जारी रखेंगे। मैं उन्हें शुद्ध कर दूँगा जैसे कोई सोने या चाँदी को तेज आग में डालकर शुद्ध करता है। तब मेरे लोग सहायता के लिए मुझे पुकारेंगे, और मैं उनको उत्तर दूँगा। मैं उन्हें बता दूँगा कि वे मेरे लोग हैं, और वे कहेंगे कि मैं, यहोवा, ही वह परमेश्वर हूँ, जिनकी वे आराधना करते हैं और जिनकी बातों का वे पालन करते हैं।
\s5
\c 14
\p
\v 1 सुनो! शीघ्र ही वह समय आएगा जब यहोवा हर किसी का न्याय करेंगे। उस समय तुम, यरूशलेम के लोग, अपने शत्रुओं को जो वस्तुएँ तुम्हारी थीं, उनका आपस में बँटवारा करते हुए देखोगे।
\p
\v 2 जी हाँ, यहोवा कहते हैं कि वे कई राष्ट्रों की सेनाओं से यरूशलेम पर हमला कराएँगे। वे नगर पर कब्जा कर लेंगे, तुम्हारे घरों से सभी मूल्यवान वस्तुओं को ले लेंगे, और स्त्रीयों से बलात्कार करेंगे। वे आधे लोगों को अन्य देशों में ले जाएँगे, लेकिन वे अन्य लोगों को नगर में रहने की अनुमति देंगे।
\p
\s5
\v 3 परन्तु यहोवा उन जातियों पर हमला करेंगे; वे वैसे ही लड़ेंगे जैसे उन्होंने अन्य समयों पर युद्ध लडे थे।
\v 4 उस दिन, वे यरूशलेम के पूर्व में स्थित जैतून पर्वत पर खड़े होंगे। जैतून पर्वत दो भागों में विभाजित हो जाएगा, उन भागों के बीच एक बड़ी घाटी होगी। पहाड़ का आधा भाग उत्तर की ओर बढ़ जाएगा, और आधा भाग दक्षिण की ओर बढ़ जाएगा।
\s5
\v 5 तुम यरूशलेम के लोग उस घाटी से होकर भाग जाओगे जो पर्वत के दूसरी ओर अज़ेल के गाँव तक फैली है। यह वैसा ही होगा जब उज्जियाह राजा के समय में भूकंप आने पर लोग भागे थे। तब यहोवा मेरे परमेश्वर आएँगे, और उनके अपने स्वर्गदूत उनके साथ होंगे।
\p
\s5
\v 6 उस समय, सूर्य में कोई प्रकाश नहीं होगा, लेकिन यह ठंडा या बर्फीला भी नहीं होगा।
\v 7 केवल यहोवा जानते हैं कि यह कब होगा। तब कोई दिन का समय या रात का समय नहीं होगा, क्योंकि तब हर समय प्रकाश ही होगा, यहाँ तक कि शाम को भी।
\p
\v 8 उस समय, यरूशलेम से पानी बहेगा। एक धारा पूर्व की ओर मृत सागर तक बहेगी। दूसरी धारा पश्चिम की ओर भूमध्य सागर तक बहेगी। पानी हर समय बहेगा, यहाँ तक कि गर्म मौसम के समान ठंडे मौसम में भी।
\p
\s5
\v 9 उस समय के बाद, यहोवा ऐसे राजा होंगे जो पुरे संसार पर शासन करते हैं। हर कोई यह जान लेगा कि यहोवा, और केवल यहोवा, ही सच्चे परमेश्वर हैं।
\p
\v 10 उस समय, यरदन के पास के मैदान की समानता में, उत्तर में गिबा नगर से यरूशलेम के दक्षिण में रिम्मोन नगर तक यहूदा का सारा देश सपाट होगा। यरूशलेम हमेशा ऊँचे पर रहेगा, जैसा कि यह हमेशा रहा है। यह नगर बिन्यामीन फाटक और कोने के फाटक से पूर्वोत्तर का विस्तार करेगा, जो पुराना फाटक था, और हननेल के गुम्मद के लिए, और फिर राजा के दाख रौंदने के स्थान को जो दक्षिणपश्चिम तक फैल रहा था।
\v 11 बहुत से लोग वहाँ रहेंगे, और परमेश्वर कभी भी नगर को विनाश की धमकी नहीं देंगे। यह रहने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित नगर होगा।
\p
\s5
\v 12 परन्तु यहोवा यरूशलेम पर हमला करने वाले लोगों के समूहों पर एक गंभीर बीमारी लाएँगे। सीधे खड़े होने पर भी उनका माँस सड़ जाएगा। उनकी आँखें उनके गोलकों में सड़ जाएँगी और उनकी जीभ उनके मुँह में सड़ जाएँगी।
\v 13 उस समय, यहोवा उन्हें विचलित कर देंगे। वे एक-दूसरे को पकड़ लेंगे और एक-दूसरे पर हमला करेंगे।
\s5
\v 14 यहाँ तक कि जो लोग यहूदा में अन्य स्थानों पर रहते हैं वे यरूशलेम पर हमला करेंगे। वे राष्ट्रों के आसपास की सेनाओं से मूल्यवान वस्तुएँ, लूटे हुए सामान को एकत्र करेंगे - बहुत सारा सोना और चाँदी और कपड़े।
\v 15 ऐसी पीड़ा जो अन्य राष्ट्रों के लोगों को पीड़ित करेगी, उनके शिविरों में घोड़ों, खच्चरों, ऊँटों, गधों और अन्य सभी काम करने वाले जानवरों को भी पीड़ित करेगी।
\p
\s5
\v 16 अन्य राष्ट्रों के लोग जो पहले यरूशलेम के विरुद्ध लड़ने आए थे, वे सब जो अभी भी जीवित हैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, राजा, यहोवा की आराधना करने और झोंपिड़यों का पर्व मनाने के लिए हर साल यरूशलेम आएँगे।
\v 17 यदि उन जातियों में ऐसे लोग हैं जो वहाँ यहोवा की आराधना करने के लिए यरूशलेम नहीं जाते हैं, तो उनके देश पर वर्षा नहीं आएगी।
\v 18 यदि मिस्र के लोग यरूशलेम नहीं जाते, तो उन्हें वर्षा नहीं मिलेगी। यहोवा उन्हें उसी विपत्ति से पीड़ित करेंगे जिससे उन्होंने अन्य राष्ट्रों के लोगों को पीड़ित किया जो झोंपिड़यों के पर्व नहीं मनाते हैं।
\s5
\v 19 इस प्रकार यहोवा मिस्र के लोगों और किसी अन्य देश के लोगों को दंडित करेंगे जो झोंपिड़यों का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम नहीं जाते।
\p
\s5
\v 20 उस समय, “यहोवा को समर्पित” शब्द घोड़ों में बँधी घंटियों पर लिखा जाएगा। मंदिर के आँगन में खाना पकाने के बर्तन वेदी के सामने रखे कटोरे तथा अन्य सामान यहोवा के होंगे।
\v 21 यरूशलेम में और यहूदा में हर जगह के सारे बर्तन स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा को समर्पित होंगे। इसलिए जो यरूशलेम में बलिदान चढ़ाता है वह कुछ माँस ले सकता है जो बलिदान के लिए लाया गया है और इसे अपने बर्तनों में पका सकता है। और उस समय, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा के भवन के आँगन में, अब लोग सामानों को नहीं खरीदेंगे या नहीं बेचेंगे।

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\h मलाकी
\toc1 मलाकी
\toc2 मलाकी
\toc3 mal
\mt1 मलाकी
\s5
\c 1
\p
\v 1 यह एक संदेश है जिसे यहोवा ने इस्राएलियों के लिए मलाकी को दिया था।
\p
\v 2-3 यहोवा कहते हैं, “मैंने तुमसे प्रेम किया है।” परन्तु मैं, मलाकी, तुम लोगों को यह कहते हुए सुनता हूँ, “आपने हमें कैसे दिखाया है कि आप हम से प्रेम करते है?”
\p यहोवा ने उत्तर दिया,
\pi “क्या यह सच नहीं है कि एसाव और याकूब भाई थे? फिर भी याकूब और उसके वंशजों के साथ मेरी एक वाचा है, परन्तु एसाव और उसके वंशजों के साथ मेरी कोई वाचा नहीं है। मैंने एसाव के क्षेत्र को त्याग कर, एक ऐसा स्थान कर दिया जहाँ जंगली कुत्ते रहते हैं।”
\p
\s5
\v 4 एसाव के वंशज जो अब एदोम में रहते हैं, कह सकते हैं,
\pi “हाँ, परमेश्वर ने हमारे शहरों को नष्ट कर दिया है, परन्तु हम उन खण्डहरों में फिर से घरों का निर्माण करेंगे।”
\p परन्तु स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान; यहोवा उत्तर देते हैं,
\pi “वे फिर से घर बना सकते हैं, परन्तु मैं उन्हें फिर से नष्ट कर दूँगा। उनके देश को ऐसा देश कहा जाएगा जहाँ दुष्ट लोग रहते हैं, और उनके लोगों को कहा जाएगा, ‘जिन लोगों से यहोवा सदा क्रोधित रहते हैं।
\m
\v 5 जब तुम इस्राएली लोग स्वयं देखोगे कि यहोवा उनके साथ क्या करेंगे, तो तुम कहोगे, “यह स्पष्ट है कि यहोवा दूसरे देशों में भी बहुत शक्तिशाली हैं!”
\p
\s5
\v 6 परन्तु स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा लोगों से कहते हैं,
\pi “लड़के अपने पिता का आदर करते हैं, और दास अपने स्वामी का आदर करते हैं। इसलिए, यदि मैं तुम्हारे पिता और तुम्हारे स्वामी के समान हूँ, तो तुम मेरा आदर क्यों नहीं करते? तुम मेरी आज्ञाओं का पालन क्यों नहीं करते?”
\m और स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा के पास याजकों से कहने के लिए कुछ है:
\pi “तुम मेरे लिए कोई आदर नहीं दिखाते! परन्तु तुम सब याजक पूछते हो,
\pi2 ‘हमने कैसे आपके लिए कोई आदर नहीं दिखाया है?
\pi
\v 7 मैं उत्तर देता हूँ: मेरा आदर करने के बजाय, तुम मेरी वेदी पर ऐसी बलियाँ चढ़ाते हो जो मेरे लिए योग्य नहीं, यह मेरा अपमान है, ऐसी बलियाँ जिन्हें मैं कभी ग्रहण नहीं करूँगा। फिर भी तुम पूछने का साहस करते हो,
\pi2 ‘हमने ऐसी कौन सी बलि चढ़ाई जो आपके लिए योग्य नहीं है?
\pi मैं उत्तर देता हूँ: तुम सोचते हो कि मेरी वेदी का अनादर करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
\pi
\s5
\v 8 तुम ऐसे पशुओं की बलि चढ़ाते हो जो अंधे हैं। क्या यह गलत नहीं है? तुम ऐसे पशुओं को बलि चढ़ाने लाते हो जो बीमार हैं या लंगड़ें हैं। क्या तुमको सच में लगता है कि ऐसी बलियाँ मैं स्वीकार करूँगा? तुम अपने राज्यपाल को ऐसे उपहार देने का साहस नहीं करोगे! तुम जानते हो कि वह उन्हें नहीं लेगा। तुम जानते हो कि वह तुमसे अप्रसन्न होगा और तुम्हारा स्वागत नहीं करेगा!”
\m यही तो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते है!
\p
\v 9 मैं, मलाकी, देखता हूँ कि तुम लगातार दिखावा करके परमेश्वर से सहायता माँगते हो। परन्तु स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते हैं,
\pi “यदि तुम मेरे पास ऐसी बलि चढ़ाने के लिए लाते हो जो मुझे ग्रहण नहीं हैं, तो मुझे क्यों तुम्हारी सहायता करनी चाहिए?”
\p
\s5
\v 10 यहोवा यह भी कहते हैं,
\pi “मैं चाहता हूँ कि तुम में से कोई तो भवन के आँगन के द्वार बंद कर दे, कि कोई भी उन बेकार के बलियों को न चढ़ा सके। मैं तुमसे प्रसन्न नहीं हूँ, और मैं उन चढ़ावों को जो तुम मेरे पास लाते हो स्वीकार नहीं करूँगा।”
\m स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यही कहते हैं।
\v 11 वे यह भी कहते हैं,
\pi “पूर्व से पश्चिम तक कि अन्य जातियों के लोग वास्तव में मेरा आदर करेंगे। वे मुझे सम्मान देने के लिए धूप जलाएँगे, और वे उचित भेंट चढ़ाएँगे, जिन्हें मैं स्वीकार करूँगा। ऐसा इसलिए होगा सब जातियों के लोग मेरी स्तुति और मेरा आदर करेंगे।
\p
\v 12 परन्तु तुम याजकों तुम याजक लोगों के काम ऐसे हैं कि उनसे मेरे लिए कोई आदर प्रकट नहीं होता है। तुम कहते हो,
\pi2 ‘परमेश्वर को जो ग्रहण योग्य न हो ऐसी बलि चढ़ाकर वेदी का अपमान किया जाए तो कोई बात नहीं है।’
\pi
\s5
\v 13 तुम यह भी कहते हो,
\pi2 ‘हम इन सब बलियों को वेदी पर जलाते जलाते थक गए हैं।’
\pi2 तुम इसे करने पर अपनी नाक सिकोड़ते हो। तुम ऐसी भेड़ या बकरियों को लाते हो जिनको जंगली पशुओं ने हमला करके दो टुकड़ों में फाड़ दिया है। तुम ऐसे जानवर भी लाते हो जो बीमार हैं या जो नहीं चल सकते हैं। तुम वास्तव में नहीं सोच सकते कि क्या मैं तुमसे ये बलियाँ स्वीकार करूँगा, क्या तुम सोच सकते हो?”
\m स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यही कहते हैं।
\p
\v 14 यहोवा यह भी कहते हैं,
\pi “मैं उस हर एक जन को भी शाप दूँगा जो शपथ खाकर मुझे धोखा देने का प्रयास करता है कि वह अपने झुण्ड से मेरे लिए एक सर्वोत्तम पशु लाएगा, और फिर वह मेरे लिए एक ऐसा पशु लाता है जिसमें दोष हो। यदि कोई ऐसा करता है, तो मैं उसे दंड दूँगा, क्योंकि मैं एक महान राजा हूँ, अन्य जातियों के लोग मेरा आदर करते हैं, परन्तु तुम नहीं करते!”
\m स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यही कहते हैं।
\s5
\c 2
\p
\v 1 तुम याजकों, मैं तुम्हें चेतावनी देने के लिए कुछ कहूँगा।
\v 2 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते हैं:
\pi “जो मैं कह रहा हूँ उस पर ध्यान दो, और फिर मेरा आदर करने का निर्णय लो। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, मैं तुमको शाप दूँगा, और मैं उन कामों को भी शाप दूँगा जो मैंने तुम्हारी सहायता करने के लिए किए हैं। और मैंने पहले से ही उन्हें शाप दे दिया है, क्योंकि तुमने मेरा आदर नहीं किया है।
\s5
\v 3 मैं तुम्हारे वंशजों को दंड दूँगा, और यह ऐसा होगा जैसे कि मैंने तुम्हारे चेहरों पर उन जानवरों के गोबर को फेंक दिया है जिन्हें तुमने चढ़ाया है, और मैं दूसरों को आने दूँगा और तुम्हें उस गोबर समेत फेंक दूँगा।
\p
\v 4 जब ऐसा होगा, तो तुम्हे समझ आएगा कि मैंने तुम्हें यह चेतावनी दी है, कि याजकों के साथ तुम लेवी के वंशज मेरी वाचा का पालन करोगे।”
\m स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा तुम से यही कह रहे हैं।
\s5
\v 5 वह यह भी कहते हैं,
\pi “मैंने तुम्हारे पूर्वज लेवियों के साथ अपनी वाचा बाँधी क्योंकि मैं चाहता था कि याजक समृद्ध हों और शान्तिपूर्वक रहें। मैंने उन्हें इस योग्य किया भी। मैं चाहता था कि वे मेरा बहुत सम्मान करें और मुझे आदर दें, और उन्होंने ऐसा किया।
\v 6 उन्होंने लोगों को वह सिखाया जो सच था और सही था; उन्होंने झूठ नहीं कहा। उन्होंने मेरे लिए शान्ति और वफादारी से काम किया, और उन्होंने कई लोगों को पाप का त्याग करने में सहायता की।
\p
\v 7 याजक जो कहते हैं, वह लोगों को इस योग्य करे कि वे पीढ़ी से पीढ़ी तक सच्चाई सीखते रहें। उन्हें यह विश्वास करना चाहिए कि याजक उन्हें सुधार की शिक्षा देंगे, क्योंकि उन्हें मेरे स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा के सच्चे संदेशवाहक होना है।
\p
\s5
\v 8 परन्तु, तुम याजक अब इस रीति से काम नहीं करते हो। इसकी अपेक्षा, तुमने लोगों को जो सिखाया है, उसके कारण उनमें से कई ने पाप किया है। तुमने बहुत पहले लेवी के वंशजों के साथ मेरी की गई वाचा को रद्द कर दिया है।
\v 9 इस कारण मैंने सब लोगों के सामने तुम्हें तुच्छ बनाया है, और मैंने उन्हें तुम्हारे लिए लज्जा का कारण बनाया है, क्योंकि तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी है। तुम लोगों को उनके महत्व पर निर्भर करके, अलग-अलग बातों की शिक्षा देते हो।”
\p
\s5
\v 10 अब मैं, मलाकी, तुमको किसी और विषय के बारे में चेतावनी दूँगा। यह निश्चित है कि हम इस्राएली लोग एक जाति केवल इसलिए हैं कि परमेश्वर ने हम लोगों को एक जाति बनाया है। परन्तु हम एक-दूसरे से झूठ बोलते हैं और एक दूसरे को हानि पहुँचाते हैं; ऐसा करके हम उस वाचा को अपमानित करते हैं जिसे यहोवा ने हमारे पूर्वजों के साथ बाँधा था।
\p
\v 11 यहूदिया के लोग यहोवा के प्रति विश्वासघाती हैं। तुमने यरूशलेम में और इस्राएल में कई स्थानों पर घृणित काम किए हैं। तुम इस्राएली पुरुषों ने मन्दिर को जिससे यहोवा प्रेम करते हैं, अशुद्ध कर दिया है। तुमने मूर्तियों की पूजा करने वाली विदेशी स्त्रियों से विवाह करके ऐसा किया है।
\v 12 मेरी इच्छा है कि यहोवा हर उस व्यक्ति को उसके वंशजों के साथ, जिसने ऐसा किया है इस्राएल से दूर कर दे, - भले ही वह, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा के लिए भेंट चढ़ाता हो।
\p
\s5
\v 13 यह एक और काम है जो तुम करते हो: तुम आकर यहोवा के वेदी के सामने रोते हो, इसे अपने आँसूओं से ढाँकते हो। तुम विलाप करते हो क्योंकि वह अब तुम्हारे चढ़ावों पर ध्यान नहीं देते हैं।
\s5
\v 14 तुम यह कहते हुए रोते हो, “यहोवा हमारे चढ़ावों को पसंद क्यों नहीं करते हैं?” उत्तर यह है कि जब तुम जवान थे तब तुम में से प्रत्येक पुरुष ने ईमानदारी से अपनी पत्नियों के प्रति वफादार होने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे यहोवा ने सुना था। परन्तु तुम पुरुषों ने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे नहीं निभाया है; तुमने अपनी वाचा की पत्नी को त्याग दिया है, जिससे कि तुम विदेशी स्त्रियों से विवाह कर सको।
\p
\v 15 यहोवा ने तुम्हें अपनी पत्नी के साथ एक बनाया, और उसने अपनी आत्मा का कुछ अंश दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वह चाहते थे कि तुम ऐसी सन्तान उत्पन्न करो जो उनका आदर करें। इसलिए तुमको सावधान रहना चाहिए कि अन्य स्त्रियाँ तुमको आकर्षित न करें। तुम में से कोई भी उस स्त्री का विश्वासघाती न हो जिससे तुमने अपनी जवानी में विवाह किया था।
\p
\v 16 यहोवा, जिस परमेश्वर के लोग हम इस्राएली हैं, कहते हैं, “मुझे तलाक से नफरत है!” तो यदि तुम अपनी पत्नियों को तलाक देते हो, तो तुम उनके प्रति क्रूरता का काम करके उनको विवश कर रहे हो। तो सुनिश्चित करो कि तुम अपनी पत्नियों के विश्वासघाती नहीं हो। स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यही कहते हैं।
\p
\s5
\v 17 तुमने उन सब घृणित बातों को बोल कर तुम्हारे साथ यहोवा को धीरज न धरने पर विवश किया है। परन्तु तुम पूछने का साहस करते हो, “कैसे हमने उन्हें अधीर बना दिया है?”
\p उत्तर यह है कि तुमने कहा है कि यहोवा उन सब से प्रसन्न होते हैं जो बुराई करते हैं, वह वास्तव में उन्हें अच्छा मानते हैं। और तुमने सदा यह कहकर उन्हें अधीर बना दिया है, “परमेश्वर हमारे साथ न्याय का व्यवहार क्यों नहीं करते?”
\s5
\c 3
\p
\v 1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यह कहते हैं।:
\pi “देखो, मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास एक संदेशवाहक भेजूँगा, जो तुमको मेरा स्वागत करने के लिए तैयार कर देगा। मैं, परमेश्वर, जिसके विषय तुम कहते हो कि तुम उसके आगमन की इच्छा रखते हो, अकस्मात ही मेरे मन्दिर में प्रकट होऊँगा। एक संदेशवाहक आएगा, जिससे यहोवा ने उस वाचा में प्रतिज्ञा की है जिसमें तुम कहते हो कि तुम आनंद लेते हो। मैं स्वयं आ रहा हूँ।” स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यही कहते हैं।
\p
\v 2 और तुम में से कोई भी यहोवा को तुम्हारा न्याय करने से रोकने में समर्थ नहीं होगा। क्योंकि जब वह आएँगे तब वह किसी को भी निर्दोष घोषित नहीं करेंगे। वह आग के समान कार्य करेंगे जो बहुत गर्म होकर कीमती धातुओं को शुद्ध करती है। वह एक अच्छे साबुन के समान कार्य करेंगे जिसे कपड़े धोने वाला कपड़ों को साफ करने के लिए उपयोग करता है।
\v 3 यहोवा तुम्हारा न्याय करेंगे; जो एक सुनार के समान होगा जो बैठ कर अपनी चाँदी से सारी अशुद्धियों को दूर करके शुद्ध करता है। यहोवा तुमको क्षमा करेंगे और तुम सब याजकों और भवन के लेवी सेवकों को पाप करने की इच्छा से मुक्त रहनेवाले बनाएँगे। वह तुमको शुद्ध सोने या चाँदी के समान बना देंगे। तब वह तुम्हारे उन चढ़ावों को ग्रहण करेंगे जो तुम उनके पास लाओगे, क्योंकि तुम धर्मी हो जाओगे।”
\m
\s5
\v 4 जब ऐसा होगा, तब यहोवा फिर से उन भेंटों को ग्रहण करेंगे जो यरूशलेम और यहूदिया के लोग उसके पास लेकर आएँगे, जैसे वह पहले करते थे।
\p
\v 5 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते हैं:
\pi “उस समय, मैं तुम्हारा न्याय करने के लिए तुम्हारे पास आऊँगा। मैं उन सब के विरुद्ध शीघ्रता से गवाही दूँगा जो जादू-टोने वाले काम करते हैं, उन लोगों के विरुद्ध जो असहाय विधवाओं और अनाथों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं, उन लोगों के विरुद्ध जो तुम्हारे बीच में रहने वाले विदेशियों के साथ न्याय का व्यवहार नहीं करते हैं, और उनके विरुद्ध जो मेरा आदर करने से इन्कार करते हैं।”
\pi
\s5
\v 6 मैं यहोवा हूँ, और मैं कभी नहीं बदलता। यही कारण है कि मैंने अभी तक तुम से छुटकारा नहीं पाया है, यद्यपि तुम अपने पूर्वज याकूब के समान लोगों को धोखा देते हो।
\v 7 उस समय जब तुम्हारे पूर्वज जीवित थे, तुमने मेरे आदेशों को अनदेखा कर दिया और उनका पालन करने से इन्कार कर दिया। अब मेरे पास वापस आओ; यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम्हारे पास वापस आऊँगा। यही है जो मैं, यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, कहता हूँ। परन्तु तुम पूछते हो,
\pi2 ‘हम कभी आप से दूर नहीं गए हैं, तो भला हम कैसे आपके पास वापस आ सकते हैं?
\pi
\s5
\v 8 मैं उत्तर देता हूँ: निश्चय ही परमेश्वर को धोखा नहीं देना चाहिए; परन्तु तुम लोगों ने मुझे धोखा दिया है! तुम पूछते हो,
\pi2 ‘हम ने आपको किस प्रकार धोखा दिया?
\pi मैं उत्तर देता हूँ: तुमने मुझे हर साल दसवा-अंश और अन्य चढ़ावे नहीं देकर धोखा दिया है जिन्हें मैंने तुमको मुझे देने के लिए आवश्यक ठहराया है।
\v 9 जो कुछ भी तुम करते हो मैंने उसे शाप दिया है, क्योंकि इस देश में रहने वाले तुम सभी लोग मुझे धोखा दे रहे हो।
\s5
\v 10 अब अपना दसवा-अंश भवन के भण्डारों में ले आओ, जिससे कि वहाँ पर मेरी सेवा करने वाले लोगों के लिए पर्याप्त भोजन हो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं स्वर्ग की खिड़कियाँ खोल दूँगा और तुम पर आशीषें उण्डेल दूँगा। यदि तुम अपना दसवा-अंश भवन में लाते हो, तो तुम पर बहुत आशीषें बरसेंगी और इसका परिणाम होगा कि तुम्हारे पास उन सब को सम्भालने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं होगा। अतः परखकर देखो कि मैं सच कह रहा हूँ।
\v 11 तुम्हारे पास उपज के लिए प्रचुर मात्रा में फसलें होंगी, क्योंकि मैं उनकी रक्षा करूँगा कि टिड्डियाँ उन्हें हानि न पहुँचाए। पकने से पहले तुम्हारे अंगूर दाखलताओं से नहीं गिरेंगे।
\v 12 जब ऐसा होता है, तो सभी जातियों के लोग कहेंगे कि मैंने वास्तव में तुम्हारी सहायता की है, क्योंकि तुम्हारा देश मनोहर होगा। मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा यही कहता हूँ।”
\pi
\s5
\v 13 “मुझ यहोवा, के पास तुमसे कहने के लिए कुछ और भी है। तुमने मेरे बारे में भयानक बातें कही हैं।
\p परन्तु तुम पूछते हो,
\pi2 ‘हम ने आपके बारे में क्या भयानक बातें कही हैं?
\p
\v 14 मैं उत्तर देता हूँ: तुमने कहा है कि तुम्हारे लिए मेरी आराधना करना व्यर्थ है। तुम कहते हो कि तुमने मेरे आदेशों का पालन करके कुछ प्राप्त नहीं किया है। तुम कहते हो कि तुमने अपने पापों के लिए दुःख मनाने से कुछ प्राप्त नहीं किया है।
\v 15 तुमने यह भी निर्णय लिया है कि अब से, तुम कहोगे कि मैं घमण्डी लोगों की सहायता करना पसंद करता हूँ। तुम सोचते हो कि बुरे काम करने वाले लोग अमीर बनते हैं। तुम कहते हो कि वे मुझसे दंड पाने का साहस रखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा।”
\p
\s5
\v 16 लोगों ने मेरे इन संदेशों को सुनने के बाद जो मैं यहोवा से उनके लिए लाया था, यहोवा का आदर करनेवाले लोगों ने उनके विषय पर एक दूसरे के साथ चर्चा की और यहोवा ने उनकी बातचीत सुनी। जब वह देख रहा था, उन्होंने उन बातों को पुस्तक में लिखा जो उन्हें उनकी प्रतिज्ञा का स्मरण कराएगी, और उन्होंने उस पुस्तक में उन लोगों के नाम लिखे जो यहोवा का आदर करते थे।
\p
\s5
\v 17 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा उन लोगों के बारे में कहते है:
\pi “वे मेरे लोग होंगे। जिस दिन मैं तुम्हारे बीच दुष्ट लोगों को दंड दूँगा, मैं उन्हें दंड नहीं दूँगा। मैं एक पिता के समान होऊँगा जो अपने उस पुत्र को दंड नहीं देता है जो उसकी आज्ञाओं का पालन करता है।
\v 18 जब ऐसा होगा, तब तुम फिर से देखोगे कि मैं धार्मिक लोगों के साथ जो व्यवहार करता हूँ, वह दुष्ट लोगों के साथ मेरे व्यवहार से भिन्न है। तुम देखोगे कि मेरी आराधना करनेवालों के साथ मेरा व्यवहार उन लोगों के साथ मेरे व्यवहार से भिन्न है जो मेरी आराधना नहीं करते हैं।”
\s5
\c 4
\p
\v 1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यह भी कहते है: “ऐसा समय आएगा जब मैं इस्राएल के सब घमण्डी लोगों और बुरे काम करने वालों का न्याय करूँगा और उनको दंड दूँगा। जब ऐसा होगा, तो वह समय उस दिन के समान होगा जब खेतों में फसलों के बचे हुए कूड़े को जलाते हैं जो व्यर्थ है। वे लोग पूरी तरह जलाए जाएँगे - जैसे जड़ें और शाखाएँ और पेड़ पर का सब कुछ पूरी तरह से तेज आग में जल जाता है।
\v 2 परन्तु तुम जो मेरा आदर करते हो, मैं, जो सदा धार्मिकता से कार्य करता हूँ, तुम्हारे पास आऊँगा और तुम्हें चंगा कर दूँगा जैसे सुबह सूर्य उगता है। तब तुम युवा बछड़ों के जैसे प्रसन्न होगे जैसे वे अपनी गौशाला को छोड़ कर खेलने के लिए खेतों में जाते हैं।
\v 3 जिस दिन मैं दुष्टों का न्याय करूँगा तब उत्सव मनाओगे जैसे कि तुमने उन्हें रौंद दिया है।“ स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा की यही प्रतिज्ञा है।
\p
\s5
\v 4 उन नियमों का पालन करना सुनिश्चित करो जो मैंने तुम्हारे लिए मूसा को दिए थे, मूसा, जिसने मेरी अच्छी सेवा की थी। उन सब आज्ञाओं और नियमों का पालन करो जो मैंने इस्राएल के सब लोगों को पालन करने के लिए सीनै पर्वत पर दिए थे।
\p
\v 5 यह सुनोः एक दिन मैं तुम्हारे पास एलिय्याह भविष्यद्वक्ता को भेजूँगा। वह महान और भयानक दिन से पहले पहुँच जाएगा जब मैं, यहोवा, हर किसी का न्याय करूँगा और दंड के योग्य लोगों को दंड दूँगा।
\v 6 एलिय्याह जो प्रचार करेगा, उसके कारण माता-पिता और उनके सन्तान एक-दूसरे से प्रेम करने के लिए एक जुट हो जाएँगे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो मैं आऊँगा और तुम्हारे देश को नष्ट कर दूँगा।”

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# Hindi UDB
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