From 2813aa2863dfcb2a4ad3030ea5d5fbf56aec9e07 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Larry Versaw Date: Sat, 20 Apr 2019 08:21:06 -0600 Subject: [PATCH] remaining OT books and updates --- 02-EXO.usfm | 6 +- 03-LEV.usfm | 6 +- 04-NUM.usfm | 8 +- 05-DEU.usfm | 6 +- 12-2KI.usfm | 8 +- 14-2CH.usfm | 16 + 18-JOB.usfm | 3778 +++++++++++++++++++ 19-PSA.usfm | 9879 +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 22-SNG.usfm | 13 +- 23-ISA.usfm | 6330 +++++++++++++++++++++++++++++++ 24-JER.usfm | 4563 +++++++++++++++++++++++ 26-EZK.usfm | 2768 ++++++++++++++ 27-DAN.usfm | 768 ++++ 28-HOS.usfm | 1006 +++++ 30-AMO.usfm | 10 +- README.md | 7 +- manifest.yaml | 57 +- 17 files changed, 29201 insertions(+), 28 deletions(-) create mode 100644 18-JOB.usfm create mode 100644 19-PSA.usfm create mode 100644 23-ISA.usfm create mode 100644 24-JER.usfm create mode 100644 26-EZK.usfm create mode 100644 27-DAN.usfm create mode 100644 28-HOS.usfm diff --git a/02-EXO.usfm b/02-EXO.usfm index 2347039..be99c1f 100644 --- a/02-EXO.usfm +++ b/02-EXO.usfm @@ -1,8 +1,8 @@ \id EXO Unlocked Dynamic Bible \ide UTF-8 -\h निर्गमन -\toc1 निर्गमन -\toc2 निर्गमन +\h EXODUS +\toc1 The Book of Exodus +\toc2 Exodus \toc3 exo \mt1 निर्गमन diff --git a/03-LEV.usfm b/03-LEV.usfm index ccf4a14..2116af6 100644 --- a/03-LEV.usfm +++ b/03-LEV.usfm @@ -1,8 +1,8 @@ \id LEV Unlocked Dynamic Bible \ide UTF-8 -\h लैव्यव्यवस्था -\toc1 लैव्यव्यवस्था -\toc2 लैव्यव्यवस्था +\h LEVITICUS +\toc1 The Book of Leviticus +\toc2 Leviticus \toc3 lev \mt1 लैव्यव्यवस्था diff --git a/04-NUM.usfm b/04-NUM.usfm index 1098158..66be884 100644 --- a/04-NUM.usfm +++ b/04-NUM.usfm @@ -1,8 +1,8 @@ \id NUM Unlocked Dynamic Bible \ide UTF-8 -\h गिनती -\toc1 गिनती -\toc2 गिनती +\h NUMBERS +\toc1 The Book of Numbers +\toc2 Numbers \toc3 num \mt1 गिनती @@ -248,6 +248,7 @@ \v 46 लेवी के वंशजों की तुलना में अन्य इस्राएली लोगों के 273 पहिलौठे पुरुष अधिक थे। \v 47-48 इन 273 पुरुषों के लिए भुगतान करने के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए चाँदी के पांच टुकड़े इकट्ठा करो। इन चाँदी के टुकड़ों में से प्रत्येक का वजन पवित्र तम्बू में रखे चाँदी के टुकड़ों के समान ही वजन होना चाहिए। इस चाँदी को हारून और उसके पुत्रों को दो। “ \p +\s5 \v 49 तब मूसा ने ऐसा ही किया। उन्होंने उन 273 पुरुषों से चाँदी एकत्र की। \v 50 कुल चाँदी के 1,365 टुकड़े थे। प्रत्येक चाँदी के टुकड़े का वजन पवित्र तम्बू में रखे चाँदी के टुकड़े के समान था। \v 51 मूसा ने इन चाँदी के टुकड़ों को हारून और उसके पुत्रों को दिया, जैसा कि यहोवा ने आज्ञा दी थी। @@ -1712,6 +1713,7 @@ \q2 और उन जहाजों के पुरुष अश्शूर और एबेर की सेनाओं को पराजित करेंगे। \q2 लेकिन परमेश्वर उन पुरुषों को भी नष्ट करेंगे।" \p +\s5 \v 25 तब बिलाम और बालाक अपने-अपने घर लौट गए। \s5 diff --git a/05-DEU.usfm b/05-DEU.usfm index ac196a5..1b1f742 100644 --- a/05-DEU.usfm +++ b/05-DEU.usfm @@ -1,8 +1,8 @@ \id DEU Unlocked Dynamic Bible \ide UTF-8 -\h व्यवस्थाविवरण -\toc1 व्यवस्थाविवरण -\toc2 व्यवस्थाविवरण +\h DEUTERONOMY +\toc1 The Book of Deuteronomy +\toc2 Deuteronomy \toc3 deu \mt1 व्यवस्थाविवरण diff --git a/12-2KI.usfm b/12-2KI.usfm index 152f393..01c50e8 100644 --- a/12-2KI.usfm +++ b/12-2KI.usfm @@ -1,8 +1,8 @@ \id 2KI Unlocked Dynamic Bible \ide UTF-8 -\h 2 राजाओं -\toc1 2 राजाओं -\toc2 2 राजाओं +\h 2 KINGS +\toc1 The Second Book of Kings +\toc2 Second Kings \toc3 2ki \mt1 2 राजाओं @@ -782,6 +782,7 @@ \v 22 यहोआहाज के पुरे जीवन में अराम का राजा हजाएल ने इस्राएलियों को सताने के लिए सैनिक भेजे। \v 23 परन्तु यहोवा इस्राएलियों के प्रति बहुत दयालु थे। उन्होंने उन वाचाओं के कारण उनकी सहायता की जो उन्होंने उनके पूर्वजों अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ किए थे। वह इस्राएलियों का त्याग नहीं करेंगे, और उन्होंने अभी भी उनका त्याग नहीं किया है। \p +\s5 \v 24 तब अराम के राजा हजाएल की मृत्यु हो गई, तो उसका पुत्र बेन्हदद राजा बन गया। \v 25 इस्राएल के राजा यहोआश की सेना ने राजा बेन्हदद की सेना को तीन बार पराजित किया; उसने उन सब शहरों को वापस ले लिया जिन पर बेन्हदद की सेना ने तब अधिकार कर लिया था जब यहोआश का पिता यहोआहाज इस्राएल पर शासन कर रहा था। @@ -913,6 +914,7 @@ \v 35 परन्तु उसने उन स्थानों को नष्ट नहीं किया जहाँ लोग यहोवा की उपासना करते थे, और यहोवा का आदर करने के लिए धूप जलाते रहे। योताम के श्रमिकों ने मंदिर के ऊपरी द्वार का निर्माण किया। \p \v 36 यदि तुम योताम ने जो कुछ भी किया, उसके विषय में और जानना चाहते हो, तो यह यहूदा के राजाओं का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा गया है। +\s5 \v 37 उस समय जब योताम राजा था, यहोवा ने अराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा पेकह को यहूदा पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेनाओं के साथ भेजा। \v 38 योताम की मृत्यु हो गई और उसे यरूशलेम में दाऊद के शहर में दफनाया गया जहाँ उसके पूर्वजों को दफनाया गया था। तब उसका पुत्र आहाज यहूदा का राजा बना। diff --git a/14-2CH.usfm b/14-2CH.usfm index f8d5ea0..c16210d 100644 --- a/14-2CH.usfm +++ b/14-2CH.usfm @@ -29,6 +29,7 @@ \s5 \v 14 सुलैमान ने 1,400 रथ और बारह हजार घुड़सवार इकट्ठा किये। उसने कुछ रथ और घुड़सवार तो यरुशलेम में रखे और शेष विभिन्न नगरों में रखे। \v 15 सुलैमान के शासनकाल में सोना तो ऐसा था जैसे पत्थर और देवदार की लकड़ी ऐसी थी जैसे पहाड़ों की तलहटी के गूलर। +\s5 \v 16 सुलैमान ने मिस्र और कोये देश से घोड़े मँगाए। \v 17 मिस्र में उसके व्यापारी प्रत्येक रथ के लिए सात किलोग्राम चाँदी और प्रत्येक घोड़े के लिए 1.7 किलोग्राम चाँदी दिया करते थे। वे हित्ती और अरामी राजाओं को भी घोड़े बेचा करते थे। @@ -57,6 +58,7 @@ \s5 \v 15 अब तू अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार आटा, जौ, जैतून का तेल और दाखमधु भेज दे। \v 16 तेरा दिया हुआ सामान पहुँचते ही मेरे सेवक लबानोन के पर्वतों से तेरी आवश्यकता के अनुसार लकड़ी के लट्ठे काटकर समुद्र तक ले आएँगे। तब वे उन्हें बाँध कर बेड़े बना देंगे और समुद्र के मार्ग से याफा पहुँचा देंगे। वहाँ से तू लोगों से उन्हें यरुशलेम मँगवा लेना।” +\s5 \v 17 सुलैमान ने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि सब विदेशियों की गिनती करें जैसा उसके पिता दाऊद ने किया था। वे 1, 53,600 पुरुष थे। \v 18 सुलैमान ने उनमें से 70,000 को निर्माण सामग्री उठाने, 80,000 पहाड़ों से पत्थर काटने और 3,600 को उनका निरीक्षक नियुक्त किया कि उनसे काम करवाएँ। @@ -81,6 +83,7 @@ \s5 \v 13 एक प्रतिमा के बाहरी पंख के सिरे से दूसरी प्रतिमा के बाहरी पंख के सिरे की लम्बाई लगभग 9 मीटर की थी। उनके मुख मुख्य भाग के द्वार की ओर थे। \v 14 सुलैमान के कारीगरों ने परम पवित्र स्थान को पवित्र स्थान से अलग करने के लिए एक परदा बनाया। यह सूक्ष्म सनी पर नीले, बैंजनी और लाल धागों की कढ़ाई से बना था। उस परदे पर पंख वाले प्राणियों की आकृति की कढ़ाई की गई थी। +\s5 \v 15 उन्होंने दो पीतल के खंभे बनाए और उन्हें मंदिर के प्रवेश द्वार पर रखा- प्रत्येक खम्भा लगभग सोलह मीटर ऊँचा था। प्रत्येक खम्भे के ऊपर लगभग 2.3 मीटर ऊँची कँगनी लगाई गई थी। \v 16 कारीगरों ने जंजीर के समान बनाकर उन खम्भों के ऊपर लगाईं और उन्होंने अनार के समान एक सौ नक्काशी बनाई और उन्हें जंजीर से जोड़ा। \v 17 तब सुलैमान ने भवन के सामने खम्भे खड़े किये। एक प्रवेश द्वार के दक्षिण की ओर एक तथा दूसरा खम्भा उत्तर दिशा की ओर खड़ा कीया। जो खम्भा दक्षिण दिशा की ओर था उसका नाम याकीन और उत्तर दिशा की ओर के खम्भे का नाम बोअज रखा गया। @@ -116,6 +119,7 @@ \v 19 सुलैमान के कारीगरों ने इन सब वस्तुओं को बनाकर भवन में रखाः सोने की वेदी और वह मेज जिस पर यहोवा के लिए भेंट की रोटियों को रखते थे। \v 20 शुद्ध सोने के दीपदान और दीपक याजक यहोवा की आज्ञा के अनुसार इन दीपकों में तेल डालकर परम-पवित्र स्थान के सामने सदैव जलता रखे। \v 21 शुद्ध सोने के फोलों के समान नक्काशी, दीपक और चिमटे। +\s5 \v 22 और शुद्ध सोने की कैंचियाँ, रक्त छिड़कने के लिए कटोरे, धूपदान और पात्र, यहोवा के भवन के सोने के द्वार, परमपवित्र स्थान का सोने का द्वार। \s5 @@ -138,6 +142,7 @@ \s5 \v 11 तब सब याजक अपने दलों से निरपेक्ष, बाहर आए और परमेश्वर प्रदत्त विधि के अनुसार अपना शोधन करके परमेश्वर की सेवा के लिए अपने को पवित्र किया। \v 12 आसाप, हेमान, यदूतून, उनके पुत्र तथा परिजन, सब लेवी वंश के संगीतकार वेदी के पूर्व में खड़े हुए। वे सन के वस्त्र पहने हुए झाँझ, वीणा और सारंगी बजा रहे थे। 120 याजक तुरहियाँ फूँक रहे थे। +\s5 \v 13 अन्य वाद्य यन्त्र बजा रहे थे और यहोवा की स्तुति में गायक यह गीत गा रहे थे, “यहोवा भला है और उसका सच्चा प्रेम सदा का है।” तब एकाएक ही भवन में बादल आ गया। \v 14 यहोवा की महिमा का तेज भवन में भर गया जिसके कारण याजक अपना काम न कर पाए। @@ -198,6 +203,7 @@ \v 37 जब ऐसा हो और वे दूर किसी देश में हों, तब वे कहें, “हमने पाप किया है, हम ने गलत काम किए हैं। हमने दुष्टता की है।” \v 38 और वे सच्चे मन से पश्चाताप करें और इस देश की ओर मुख करके जो आपने उनके पूर्वजों को दिया था, और यह भवन जो मैंने आपके निवास के लिए बनवाया है, प्रार्थना करें, \v 39 तो स्वर्ग में से जहाँ आप रहते हैं, उनकी प्रार्थना सुनें और उन की सहायता की विनती स्वीकार करें और अपने लोगों के पापों को क्षमा करें जिन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है। +\s5 \v 40 अब हे मेरे परमेश्वर, हम पर दृष्टि करें जब हम इस स्थान में प्रार्थना कर रहे हैं और हमारी प्रार्थना सुन लें। \v 41 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, पवित्र सन्दूक के साथ इस स्थान में निवास करें। यह पवित्र सन्दूक आपके सामथ्र्य को दर्शाता है। हमारे परमेश्वर यहोवा, अपने याजकों को समझने की बुद्धि दें कि आपने उन्हें बचाया है। आप जो उनके साथ अच्छा करते हैं, उसके कारण वे आनन्दित रहें। \v 42 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, आपने मुझे इस्राएल का राजा नियुक्त किया है। इसलिए मुझे त्याग न देना। याद करें कि अपनी वाचा के कारण आप अपने दास दाऊद के साथ कैसे करुणामय थे। @@ -231,6 +237,7 @@ \s5 \v 19 परन्तु यदि तुम इस्राएली मुझसे विमुख होकर मेरे नियमों और मेरी आज्ञाओं की नहीं मानोगे और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करोगे, \v 20 तो मैं तुम्हें इस देश से जो मैंने तुम्हें दिया है दूर कर दूँगा और यह भवन जिसे मैंने अपने लिए पवित्र किया है, त्याग दूँगा और अन्य जातियों को इसकी दशा पर हँसने का अवसर दूँगा। +\s5 \v 21 यह भवन आज ऐसा वैभवशाली है, ऐसी दशा हो जाने पर आने जाने वालों के लिए डरने का कारण हो जाएगा और वे पूछेंगे, “यहोवा ने इस देश और इस भवन की ऐसी दुर्दशा क्यों होने दी?” \v 22 तब लोग कहेंगे, “यह इसलिए हुआ कि इन लोगों ने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था जिन्होंने उन्हें मिस्र से निकाला था। उन्होंने अन्य देवी-देवताओं की पूजा की और उन्हीं को प्रसन्न किया था। यही कारण है कि यहोवा ने उनका ऐसा विनाश किया।” @@ -261,6 +268,7 @@ \v 15 याजकों और लेवी के अन्य वंशजों ने राजा की प्रत्येक आज्ञा का पालन किया जिसमें भण्डार-गृहों की देख-रेख की सेवा भी थी। \s5 \v 16 उन्होंने सुलैमान की आज्ञा के अनुसार यहोवा के भवन के निर्माण कार्य को किया- जब तक कि यह पूरा नहीं हुआ। इस प्रकार यहोवा के भवन का निर्माण कार्य पूरा हुआ। +\s5 \v 17 तब सुलैमान के लोग एदोम के देश में समुद्र के किनारे स्थित एस्योन गेबेर और एलोत को गए। \v 18 सोर के राजा हीराम ने अपने कुछ जहाज और समुद्र के अनुभवी नाविक उसके लिए वहाँ भेज दिए। वे सुलैमान के पुरुषों को ओपीर ले गए और उन्होंने वहाँ से लगभग सोलह टन सोना लाकर सुलैमान को दे दिया। @@ -305,6 +313,7 @@ \s5 \v 27 सुलैमान के शासनकाल में चाँदी पत्थरों के समान मूल्यहीन थी और उस ने यहूदा के पहाड़ी प्रदेश में देवदार के वृक्ष इतने कर दिए जितने कि गूलर के वृक्ष थे। \v 28 सुलैमान के व्यापारी मिस्र से और अन्य स्थानों से घोड़े लाते थे। +\s5 \v 29 सुलैमान के सब काम भविष्यद्वक्ता नातान की पुस्तक में और शीलोवासी भविष्यद्वक्ता अहिय्याह की पुस्तक में और यारोबाम के विषय दर्शी इद्दो की पुस्तक में लिखे है। \v 30 सुलैमान ने यरूशलेम में रह कर संपूर्ण इस्राएल पर चालीस वर्ष शासन किया। \v 31 तब सुलैमान की मृत्यु हुई और उस को यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। उस का पुत्र रहबाम उस के स्थान में राजा बना। @@ -335,6 +344,7 @@ \v 15 इस प्रकार राजा ने प्रजा के अगुवों का मान नहीं रखा। यह सब वास्तव में यहोवा की इच्छापूर्ति के लिए हुआ कि भविष्यद्वक्ता अहिय्याह द्वारा नबात पुत्र यारोबाम को दिया वचन पूरा हो। \s5 \v 16 यह देखकर कि राजा ने उन का निवेदन ठुकरा दिया है उन्होंने ऊँचे शब्दों में कहा, “हमें राजा दाऊद के वंश से कोई संबंध नहीं रखना है! यिशै के परपोते के साथ हमारी कोई भागीदारी नहीं है! हे इस्राएलियों घर लौट चलो! हे दाऊद के वंशज अपने घराने ही की चिन्ता कर!” इसलिए इस्राएली अगुवे घर लौट आए। +\s5 \v 17 इसके बाद जितने इस्राएली यहूदा के नगरों और गाँवों में बसे थे उन्हीं पर रहबाम शासन करता रहा। \v 18 तब राजा रहबाम बेगारी में काम करने वालों के निरीक्षक हदोराम के साथ इस्राएलियों से बात करने गया। इस्राएलियों ने हदोराम को पथरवाह करके मार डाला। यह देख रहबाम अपने रथ पर सवार हो कर तुरन्त यरूशलेम को भागा। \v 19 उसी समय से उत्तरी राज्य इस्राएल की प्रजा राजा दाऊद के वंश की विरोधी हो गई। @@ -397,6 +407,7 @@ \s5 \v 13 राजा रहबाम फिर से यरूशलेम में दृढ़ हो गया और यहूदा पर शासन करता रहा। जब वह यहूदा का राजा बना था तब उसकी आयु इकतालीस वर्ष की थी और उसने यरुशलेम में सत्रह वर्ष शासन किया। यरुशलेम नगर को यहोवा ने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया था कि लोग वहाँ उनकी आराधना करें। \v 14 रहबाम की माता एक अम्मोनी स्त्री थी जिसका नाम नामा था। रहबाम ने बुरे काम किये क्योकि उसने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि यहोवा क्या चाहते हैं। +\s5 \v 15 रहबाम के शासनकाल के सब काम और उसके परिवार के सदस्यों की सूची भविष्यद्वक्ता शमायाह और दर्शी इद्दो की पुस्तकों में लिखे गये हैं। रहबाम और यारोबाम की सेनाएं लगातार एक-दूसरे से लड़ रही थीं \v 16 जब रहबाम की मृत्यु हो गई, तो उसे यरूशलेम के दाऊदपुर में दफन किया गया। तब उसका पुत्र अबिय्याह राजा बन गया। @@ -450,6 +461,7 @@ \s5 \v 12 यहोवा ने कूश की सेना को आसा की सेना के हाथों से पराजित किया। और वे मैदान छोड़कर भागे। \v 13 आसा की सेना ने उत्तर पश्चिम में गरार तक उन का पीछा किया। कूश के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए और और जो बच गये वो फिर युद्ध करने में असमर्थ थे। यहोवा की सेना ने उन्हें पूरी तरह पराजित कर के लूट का बहुत सामान ले आई थी। +\s5 \v 14 यहूदा की सेना ने गरार के आसपास के सब गाँवों का नाश किया क्योंकि वहाँ के निवासी यहोवा के भय के कारण उन का विरोध न कर पाए। यहूदा की सेना उन स्थानों से बहुत सा मूल्यवान सामान ले आई थी। \v 15 उन्होंने पशु पालने वालों की बस्तियों को भी लूटा। और भेड़-बकरियाँ तथा ऊँट बड़ी संख्या में यरूशलेम ले आए। @@ -480,6 +492,7 @@ \s5 \v 16 राजा आसा की दादी, माका ने देवी अशेरा की घृणित लाट खड़ी करवाई थी। आसा ने वह लाट तुड़वा दी और उस के टुकड़े कर के किद्रोन के नाले में जलवा दिए। उसने उसे राजमाता के पद पर से भी उतार दिया कि प्रजा पर उस का प्रभाव न पड़े। \v 17 यद्यपि आसा ने मूर्तिपूजा के ऊँचे स्थानों को नष्ट नहीं करवाया। वे उस की संपूर्ण शासनकाल ज्यों के त्यों रहे परन्तु उस का मन पुरे जीवन यहोवा को प्रसन्न करने की खोज में लगा रहा। +\s5 \v 18 उसने अपने अधिकारीयों को आज्ञा दी कि जितना भी उसने और उसके पिता ने सोना-चाँदी और मूल्यवान वस्तुयें यहोवा को समर्पित की थीं, वह सब यहोवा के भवन में पहुँचा दिया जाए। \v 19 आसा के पैंतीस वर्षीय शासनकाल में कोई युद्ध न हुआ। @@ -532,6 +545,7 @@ \v 14 प्रत्येक गोत्र के प्रधानों और गिनती के अनुसार वे थेः यहूदा के गोत्र से सहस्रपति थेः अदनह जिसके 300,000 योद्धा थे। \v 15 उसका सहायक सहस्रपति यहोहानान जिसके 2,80,000 सैनिक थे। \v 16 तब जिक्री का पुत्र अमस्याह, उसने स्वैच्छा से यहोवा की सेवा में समर्पण किया था। उसके 200,000 योद्धा थे। +\s5 \v 17 बिन्यामीन के गोत्र से एल्यादा नामक योद्धा। वह ढाल रखने वाले 200,000 योद्धाओं पर सहस्रपति था। \v 18 और उसके नीचे यहोजाबाद, जिसके साथ युद्ध के हथियार बाँधे हुए 180,000 पुरुष थे। \v 19 ये वे सैनिक थे जिन्होंने यरूशलेम में राजा की सेवा की थी, उनके अलावा वे भी थे जिन्हें राजा ने यहूदा के अन्य शहरों में रखा था, जिनके चारों ओर दीवारें थीं। @@ -1047,6 +1061,7 @@ \s5 \v 9 हिजकिय्याह ने याजकों और लेवी के वंशजों से पूछा, “ये ढेर क्या है?” \v 10 तब सादोक के वंशज प्रधान याजक अजर्याह ने कहा, “जब से प्रजा यहोवा के भवन में भेंट ला रही है तब से हमें भरपूर भोजन मिल रहा है और बच भी जाता है। इसका कारण है कि यहोवा ने हमारे इस्राएली भाइयों को विपुल आशिषें दी है जिसका परिणाम है कि सब याजक और लेवी के वंशज अपनी आवश्यकता के अनुसार उठा लेते है फिर भी ये वस्तुएँ बच जाती है और यह उन वस्तुओं का ही ढेर है।” +\s5 \v 11 तब हिजकिय्याह ने आज्ञा दी कि यहोवा के भवन में इन वस्तुओं को रखने के लिए भण्डार-गृह बनाए जाएँ। \v 12 तब उन्होंने उन भण्डार-गृहों में दसवा-अंश, भेंटे और यहोवा को अर्पण की गई वस्तुएँ रखीं। भण्डार-गृहों का मुख्य अधिकारी लेवी वंशज कोनन्याह और उसका भाई शिमी था। \v 13 इनके अधीन राजा हिजकिय्याह और यहोवा के भवन का प्रधान अजर्याह दोनों की आज्ञा से यहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमोत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह अधिकारी थे। @@ -1242,6 +1257,7 @@ \v 24 इसलिए उन्होंने उसे उसके रथ पर से उतारकर एक दूसरे रथ पर जिसे वह साथ लाया था सवार करा के यरुशलेम ले आए। वहाँ उसकी मृत्यु हुई। उसे उसके पूर्वजों के कब्रिस्तान में दफन किया गया। यरुशलेम और संपूर्ण यहूदा की प्रजा ने उसके लिए शोक किया। \s5 \v 25 भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने योशिय्याह के लिए एक विलापगीत लिखा। इस्राएल के स्त्री-पुरुष आज भी वह गीत गाकर योशिय्याह के लिए विलाप करते है। इस्राएल में यह एक प्रथा बन गई। यह गीत विलापगीतों की पुस्तक में लिखा हुआ है। +\s5 \v 26-27 योशिय्याह के शासनकाल के अन्य सब काम, उसकी राज के आरम्भ से उसकी मृत्यु तक, उसके सब काम और यहोवा के प्रति उसकी भक्ति तथा यहोवा के नियमों के पालन की उसकी गाथा “यहूदा और इस्राएल के राजाओं की पुस्तक” में लिखे है। \s5 diff --git a/18-JOB.usfm b/18-JOB.usfm new file mode 100644 index 0000000..258616f --- /dev/null +++ b/18-JOB.usfm @@ -0,0 +1,3778 @@ +\id JOB +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h अय्यूब +\toc1 अय्यूब +\toc2 अय्यूब +\toc3 job +\mt1 अय्यूब + + +\s5 +\c 1 +\p +\v 1 ऊज़ नाम के देश में, अय्यूब नाम का एक व्यक्ति था। उसने परमेश्वर की बातों का पालन किया और हमेशा बुराई करने से दूर रहा। +\v 2 उसके सात पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं। +\v 3 उसके पास सात हजार भेड़ें, तीन हजार ऊँट, एक हजार बैल, और पाँच सौ गधियाँ थे। उसके कई दास भी थे। वह व्यक्ति यरदन नदी के पूर्व के सम्पूर्ण क्षेत्र में सबसे अधिक धनवान था। +\p +\s5 +\v 4 अय्यूब के पुत्र प्रायः अपने घरों में भोज का आयोजन करते थे। जब भी उनमें से एक भोज का आयोजन करता, तब वह अपने सब भाइयों और बहनों को भोज में आने के लिए आमन्त्रित करता था। +\v 5 प्रत्येक उत्सव के बाद, अय्यूब उन्हें बुलाता था। वह यहोवा से प्रार्थना करता था कि उनसे कोई पाप हुआ या चूक हुई तो वह उन्हें क्षमा कर दे। वह सुबह भोर के समय ही उठकर जानवरों को मार कर, उन्हें वेदी पर उसकी प्रत्येक संतान के लिए बलि के रूप में जलाता था। क्योंकि अय्यूब ने हमेशा कहा, “संभव है कि मेरे बच्चों ने पाप किया और अपने हृदय में परमेश्वर के विषय में कुछ बुरा कहा हो।” +\p +\s5 +\v 6 एक दिन, स्वर्गदूत आए और यहोवा के सामने उपस्थित हुए, और शैतान भी आया। +\v 7 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू अभी कहाँ से आ रहा है?” +\p शैतान ने उत्तर दिया, “मैं पृथ्‍वी से आया हूँ, जहाँ मैं यह देखने के लिए इधर उधर घूम रहा था कि क्या हो रहा है।” +\p +\v 8 यहोवा ने शैतान से कहा, “क्या तू ने अय्यूब पर ध्यान दिया है, जो मेरी आराधना करता है? पृथ्‍वी पर कोई अन्य मुझे ऐसा सम्मान नहीं देता और न ही ऐसा धर्मी जीवन जीता है जैसा वह जीता है। वह सदा बुराई करने से इन्कार करता है।” +\s5 +\v 9 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, “जो कुछ आप कहते हैं वह सच है, परन्तु आपने अय्यूब के लिए जो किया है केवल उसके कारण वह आपका सम्मान करता है। +\v 10 आपने उसे, उसके परिवार को और जो कुछ भी उसके पास है उसे सदा सुरक्षित रखा है। वह जो भी कार्य करने का प्रयास करता है, आप उसे सफल बनाते हैं, और उसके पास उसके सारे देश में बहुत अधिक पशुधन है। +\v 11 परन्तु यदि जो कुछ भी उसके पास है आपने उस पर वार करके उससे छीन लिया, तो वह सबके सामने आपको श्राप देगा।” +\p +\v 12 यहोवा ने शैतान से कहा, “सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना।” तब शैतान यहोवा के सामने से चला गया।” +\p शैतान सहमत हो गया और फिर वह यह योजना बनाने के लिए यहोवा के पास से चला गया कि वह अय्यूब पर कैसे वार करे। +\p +\s5 +\v 13 उसके बाद एक दिन, अय्यूब के पुत्र और पुत्रियाँ अपने सबसे बड़े भाई के घर पर भोज कर रहे थे और दाखरस पी रहे थे। +\v 14 जब वे ऐसा कर रहे थे, तब एक सन्देशवाहक अय्यूब के घर पहुँचा और उससे कहा, “जब तेरे बैल खेतों में जुताई कर रहे थे और गधियाँ पास ही में चर रही थीं, +\v 15 शेबा के पुरुषों का एक समूह आया और हम पर आक्रमण किया। उन्होंने तेरे सब दासों को मार डाला जो खेतों में कार्य कर रहे थे और सारे बैलों और गधों को ले गए! मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।” +\p +\s5 +\v 16 वह अभी अय्यूब से बात कर ही रहा था, एक और सन्देशवाहक आ पहुँचा। उसने अय्यूब से कहा, “आकाश से बिजली गिरी और सब भेड़ों को और उन सब पुरुषों को मार डाला जो उनकी देखभाल कर रहे थे! मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।” +\p +\v 17 वह अभी अय्यूब से बात कर ही रहा था, कि तीसरा सन्देशवाहक आ पहुँचा। उसने अय्यूब से कहा, “कसदियों के क्षेत्र से लुटेरों के तीन दल आए और हम पर आक्रमण किया। उन्होंने सब ऊँटों को चुरा लिया और उन सब पुरुषों को मार डाला जो उनकी देखभाल कर रहे थे। मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।” +\p +\s5 +\v 18 वह अभी अय्यूब से बात कर ही रहा था, कि चौथा सन्देशवाहक आ पहुँचा। उसने अय्यूब से कहा: “तेरे पुत्र और पुत्रियाँ अपने सबसे बड़े भाई के घर में भोज कर रहे थे। +\v 19 अकस्मात ही एक बहुत तेज हवा रेगिस्तान से आकर घर पर लगी। वह घर तेरे पुत्रों और पुत्रियों पर गिर गया और उन सबकी मृत्यु हो गई! मैं अकेला ही बच कर आया हूँ कि तुझको इस घटना का समाचार दूँ।” +\p +\s5 +\v 20 तब अय्यूब खड़ा हुआ और अपना वस्त्र फाड़ा और अपने सिर को मुँड़वाया क्योंकि वह बहुत दुखी था। फिर वह परमेश्वर की आराधना करने के लिए भूमि पर गिर गया। +\v 21 उसने कहा, +\q1 “जब मेरा जन्म हुआ, मैं कोई कपड़े नहीं पहने हुए था। +\q1 जब मैं मर जाऊँगा, मैं अपने साथ कोई कपड़े नहीं ले जाऊँगा। +\q1 यह यहोवा ही है जिन्होंने मुझे वह सब कुछ दिया है जो मेरे पास है, +\q1 और यह यहोवा ही है जिन्होंने वह सब कुछ ले लिया है। +\q1 परन्तु हमें सदा यहोवा की स्तुति करनी चाहिए!” +\p +\v 22 इसलिए अय्यूब के साथ हुई सब बातों के उपरान्त, उसने मूर्ख व्यक्ति के समान बात नहीं की—उसने यह कहकर पाप नहीं किया कि परमेश्वर ने जो किया है वह गलत था। + +\s5 +\c 2 +\p +\v 1 फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके सामने उपस्थित हुआ। +\v 2 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू इस समय कहाँ से आता है?” शैतान ने उत्तर दिया, “मैं पृथ्‍वी से आया हूँ, जहाँ मैं यह देखने के लिए इधर उधर घूम रहा था कि क्या हो रहा है।” +\p +\s5 +\v 3 यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है, जो मेरी आराधना करता है? +\p वह निरन्तर मेरा सम्मान करता है; वह एक असाधारण व्यक्ति है, क्योंकि वह ऐसा जीवन जीता है जो पृथ्‍वी पर सबसे अधिक धर्म परायण है। वह अब भी ऐसा ही करता है जबकि तू ने मुझे बिना किसी कारण उस पर वार करने के लिए सहमत किया।” +\p +\s5 +\v 4 शैतान ने यहोवा से कहा, “वह आपकी स्तुति इसलिए करता है कि आपने उसकी सहायता की है। लोग अपने स्वयं के जीवन को बचाने के लिए वह सब छोड़ देंगे जो उनके है। +\v 5 परन्तु यदि आप उसके शरीर को हानि पहुँचाएँ हैं, तो वह निश्चय ही आपको हर किसी के सामने श्राप देगा!” +\p +\v 6 यहोवा ने शैतान से कहा, “ठीक है, तू जो भी चाहे उसके साथ कर सकता है, परन्तु उसका प्राण छोड़ देना।” +\p +\s5 +\v 7 अतः शैतान चला गया, और उसने अय्यूब को उसके पैरों के निचले भाग से ले कर उसके सिर की चोटी तक अत्याधिक पीड़ा दायक फोड़ों से ग्रस्त कर दिया। +\v 8 अय्यूब ने मिट्टी के टूटे हुए बर्तनों का एक टुकड़ा लिया और अपनी त्वचा पर के फोड़ों को उससे खुरचने लगा, और वह शोक और विलाप करने के लिए राख में बैठ गया। +\p +\s5 +\v 9 उसकी पत्नी ने उससे कहा, “क्या तू अभी भी परमेश्वर के प्रति सच्चे होने का प्रयास कर रहा? तुझे परमेश्वर को श्राप देना चाहिए, और फिर जा कर मर जाना चाहिए।” +\p +\v 10 परन्तु अय्यूब ने उत्तर दिया, “तू ऐसे लोगों के समान बात करती है जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं। हमें केवल उन अच्छी बातों को ही स्वीकार नहीं करना चाहिए जो परमेश्वर हमारे लिए करते हैं। हमें बुरी बातों को भी स्वीकार करना चाहिए।” इसलिए अय्यूब के साथ हुई इन सब घटनाओं के उपरान्त, उसने परमेश्वर के विरुद्ध कुछ भी कहकर उनको अपमानित नहीं किया। +\p +\s5 +\v 11 अय्यूब के मित्रों में तेमान नगर का एलीपज, शूआ देश से बिल्दद और नामाह देश से सोपर थे। जब उन्होंने अय्यूब के साथ हुई इन सब भयानक घटनाओं के विषय में सुना, तो वे अपने घर से एक साथ चलकर अय्यूब के पास शोक करने और उसे सांत्वना देने के लिए गए। +\s5 +\v 12 परन्तु उन्होंने जब दूर से ही अय्यूब को देखा, तो वे लगभग उसे पहचान नहीं पाए। ऊँचे शब्द में विलाप किया, उन्होंने अपने वस्त्र फाड़ डाले, और उन्होंने हवा में धूल फेंक कर उसे अपने सिरों पर डाला। उन्होंने यह दिखाने के लिए ऐसा किया कि वे उसके लिए कितने खेदित थे। +\v 13 तब वे सात दिनों तक अय्यूब के साथ भूमि पर बैठे रहे। उनमें से किसी ने भी उससे कुछ नहीं कहा, क्योंकि उन्होंने देखा कि वह बहुत भयंकर रूप से पीड़ित था, और उनके मन में ऐसा कोई विचार नहीं आया कि वे ऐसा कुछ कह सकें जो उसके दर्द को कम करेगा। + +\s5 +\c 3 +\p +\v 1 अंततः, अय्यूब ने बात की, और उसने उस दिन को श्राप दिया जिस दिन वह पैदा हुआ था। +\v 2 उसने कहा, +\q1 +\v 3 “मेरी इच्छा है कि वह दिन जब मैं पैदा हुआ, वह मिटा दिया गया होता, +\q2 वह रात जब मैं पैदा हुआ था। +\q1 +\s5 +\v 4 मेरी इच्छा है कि जिस दिन मैं पैदा हुआ वह अंधेरा हो जाए। +\q2 मेरी इच्छा है कि स्वर्ग के परमेश्वर उस दिन के विषय में भूल जाएँ, +\q2 और यह कि सूर्य उस पर नहीं चमके। +\q1 +\v 5 मेरी इच्छा है कि वह दिन घोर अन्धकार से भर जाए, +\q1 और एक छाया के समान मृत्यु उसके ऊपर आ जाए +\q2 और सम्पूर्ण प्रकाश को मिटा दे, +\q2 और तब लोगों को डरा दे। +\q1 +\s5 +\v 6 मेरी इच्छा है कि जिस रात मैं पैदा हुआ, वह तिथिपत्र पर से मिटा दी जाए, +\q2 कि यह किसी भी महीने की एक रात के रूप में कभी नहीं दिखाई देगी, +\q2 और यह कि किसी भी तिथिपत्र में जोड़ी नहीं जाए। +\q1 +\v 7 मेरी इच्छा है कि उस दिन कोई भी बच्चा कभी पैदा नहीं हो, +\q2 और यह कि कोई भी फिर से आनन्दित नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 8 जो जादूगर लोग लिव्यातान को छेड़ने में निपुर्ण हैं, में चाहता हूँ की उस दिन को धिक्कारे जब मेरा जन्म हुआ था। +\q1 +\v 9 मेरी इच्छा है कि मेरे जन्म के बाद उस दिन सुबह जो सितारे चमकते थे, वे फिर से न चमकें। +\q2 यदि केवल उन सितारों ने चमकने की कामना व्यर्थ में की थी, +\q2 और यह कि वे उस दिन नहीं चमकते। +\q1 +\v 10 वह एक बुरा दिन था क्योंकि मेरी माँ का गर्भ बन्द नहीं था; +\q2 इसकी अपेक्षा, मेरा जन्म हुआ, और अब में इन सब भयानक घटनाओं का अनुभव कर रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 11 मेरी इच्छा है कि जब मैं पैदा हुआ था तब मैं मर गया होता; +\q2 मेरी इच्छा है कि जब मैं अपनी माँ के गर्भ से बाहर आया तो मेरी मृत्यु हो जाती। +\q1 +\v 12 मेरी इच्छा है कि मेरी माँ ने कभी मेरा स्वागत नहीं किया होता। +\q2 मेरी इच्छा है कि उसने मुझे अपने स्तनों से दूध नहीं पिलाया होता। +\q1 +\s5 +\v 13 यदि मैं पैदा होते ही मर गया होता, +\q2 तो अब मैं सो रहा होता, शान्तिपूर्वक विश्राम में। +\q1 +\v 14 मैं ऐसे राजाओं के साथ विश्राम कर रहा होता जिन्होंने सुन्दर मकबरे बनाए जो अब खण्डहर हैं, +\q2 और मैं उनके उन अधिकारियों के साथ भी विश्राम कर रहा होता जो मर चुके हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं उन राजकुमारों के साथ विश्राम कर रहा होता जो धनवान थे, +\q2 जिनके महल सोने और चाँदी से भरे हुए थे। +\q1 +\v 16 मेरी इच्छा है कि मुझे उस बच्चे के समान दफनाया गया होता जिसकी मृत्यु उसकी माँ की गर्भ में हो गई थी +\q2 और वह प्रकाश को देखने के लिए कभी नहीं जिया था। +\q1 +\s5 +\v 17 मरने के बाद, दुष्ट लोग और अधिक परेशानियों का कारण नहीं बनते हैं; +\q2 जो अब बहुत थके हुए हैं वे विश्राम करेंगे। +\q1 +\v 18 जो लोग बन्दीगृह में थे वे मरने के बाद शान्ति में विश्राम करते हैं; +\q2 उन्हें श्राप देने के लिए अब उन पर दासों के स्वामी नहीं हैं। +\q1 +\v 19 धनवान लोग और गरीब लोग मरने के बाद समान होते हैं, +\q2 और जो दास थे उनको अब अपने स्वामियों की आज्ञाओं का पालन नहीं करना है। +\q1 +\s5 +\v 20 परमेश्वर उन लोगों को जीवित क्यों रहने देते हैं जो मेरे जैसी भयानक पीड़ा में हैं? +\q2 वह उन्हें जीवित क्यों रहने देते हैं, जो बहुत दुखी हैं? +\q1 +\v 21 वे मरने के लिए उत्सुक हैं, परन्तु वे मरते नहीं हैं। +\q2 वे छिपे खजाने को खोजने की इच्छा रखने की तुलना में मरने की अधिक इच्छा रखते हैं। +\q1 +\v 22 जब अंततः वे मर जाते हैं और दफन किए जाते हैं, तो वे बहुत आनन्दित होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 23 मुझे समझ में नहीं आता कि परमेश्वर उन लोगों को क्यों जीवित रखते हैं जिन्हें वह आनन्दित होने से रोकते हैं, +\q2 उस हर एक जन को जिसे वह दुखी रहने के लिए विवश करते हैं। +\q1 +\v 24 मैं बहुत रोता हूँ; जिसके परिणामस्वरूप, मैं भोजन नहीं खा पाता; +\q2 मैं नदी के बहने के समान कराहता रहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 25 जिन बातों की मैंने सदा चिन्ता की कि मेरे साथ न हों वे ही मेरे साथ हुई हैं; +\q2 जिन बातों से मैं सदा डरा हूँ वे ही मुझ पर आ गई हैं। +\q1 +\v 26 अब मेरे मन में कोई शान्ति नहीं है; +\q2 मुझे कोई शान्ति नहीं है; +\q1 मैं विश्राम नहीं कर पाता; +\q2 इसकी अपेक्षा, मैं केवल दुखों से घिरा हुआ हूँ।” + +\s5 +\c 4 +\p +\v 1 तब एलीपज ने अय्यूब को उत्तर दिया। उसने कहा, +\q1 +\v 2 “क्या तू कृपया मुझे तुस से कुछ कहने की अनुमति देगा? +\q2 मैं और अधिक चुप नहीं रह पा रहा हूँ। +\q1 +\v 3 पहले के समय में, तू ने कई लोगों को निर्देश दिए हैं, +\q2 और तू ने उन लोगों को प्रोत्साहित किया है जिनके लिए परमेश्वर पर भरोसा करना कठिन था। +\q1 +\s5 +\v 4 पहले के समय में, जब तू अन्य पीड़ित लोगों से बात करता था, तब तू ने उनकी सहायता की; +\q2 वे परमेश्वर के कारण फिर से आनन्दित हो पाए थे। +\q1 +\v 5 परन्तु अब, जब तू स्वयं कष्टों से पीड़ित है, तो तू निराश हो गया है। +\q2 विपत्तियाँ तुझ पर आ पड़ी तो तेरे होश उड़ गए। +\q1 +\v 6 तू कहता है कि तू परमेश्वर का सम्मान करता है; इसलिए तुझे उन पर भरोसा करना चाहिए, कि वह तुझे पीड़ित न होने दें। +\q2 यदि तू ने वास्तव में पाप नहीं किया है, तो तुझे विश्वास होगा कि परमेश्वर इन विपत्तियों को तुझ पर नहीं आने देंगे! +\q1 +\s5 +\v 7 या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी! कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए? +\q2 परमेश्वर निर्दोष लोगों को कभी मारते नहीं हैं! +\q1 +\v 8 मैंने यह होते देखा है: यदि किसान खराब बीज लगाते हैं, तो वे अच्छी फसल नहीं पाते हैं; +\q2 जो भी दूसरों के लिए परेशानी लाता है वह बाद में स्वयं के लिए परेशानी लाता है। +\q1 +\v 9 जब परमेश्वर आज्ञा देते हैं तब लोग मर जाते हैं, +\q2 क्योंकि वह उनसे बहुत क्रोधित होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 भले ही दुष्ट लोग युवा शेरों के समय बहुत शक्तिशाली हो जाएँ, +\q2 परमेश्वर उन्हें नष्ट कर देते हैं। +\q1 +\v 11 वे वृद्ध शेरों के समान भूख से मर जाएँगे, जब खाने के लिए कोई जानवर नहीं बचता है। +\q2 उनके बच्चे युवा शेरों के समान एक-दूसरे से अलग-अलग रहेंगे जो भोजन खोजने के लिए एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 मैंने एक सन्देश सुना है जो किसी ने आकर +\q2 और मुझे फुसफुसा कर कहा था। +\q1 +\v 13 उसने रात में मुझसे बात की जब मुझे एक बुरा सपना आया था जिसने मुझे परेशान कर दिया था। +\q1 +\s5 +\v 14 उसने मुझे डरा दिया और थरथरा दिया; +\q2 उसने मेरी सारी हड्डियों को हिला दिया। +\q1 +\v 15 एक भूत मेरे मुँह के सामने से निकला +\q2 और मेरी गर्दन के पीछे के बाल को सीधे खड़ा कर दिया। +\q1 +\s5 +\v 16 वह रुक गया, परन्तु मैं नहीं देख सका कि यह वास्तव में कैसा दिखता था। +\q2 परन्तु मुझे पता था कि मेरे सामने कोई प्राणी था, +\q1 और उसने एक शान्त आवाज में कहा, +\q1 +\v 17 ‘कोई मनुष्य परमेश्वर से अधिक धर्मी नहीं हो सकता है। +\q1 कोई भी व्यक्ति परमेश्वर से अधिक अच्छा नहीं हो सकता, परमेश्वर जिसने उसे बनाया है। +\q1 +\s5 +\v 18 परमेश्वर यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि उसके अपने स्वर्गदूत सदा धर्म के कार्य करेंगे; +\q2 वह घोषणा करते हैं कि उनमें से कुछ ने गलत किया है। +\q1 +\v 19 इसलिए वह निश्चय ही उन मनुष्यों पर भरोसा नहीं कर सकते जिन्हें उन्होंने धूल और मिट्टी से बनाया है, +\q2 मनुष्य, जिन्हें विपत्ति ऐसी सरलता से नष्ट करती है जैसे तुम एक पतंगे को कुचल सकते हो! +\q1 +\s5 +\v 20 कभी-कभी सुबह लोग अच्छे स्वास्थ्य में होते हैं, परन्तु शाम तक वे मर जाते हैं। +\q2 वे सदा के लिए चले गए हैं और कोई ध्यान भी नहीं देता है। +\q1 +\v 21 उनके परिवार और सम्पत्ति तम्बू के समान हैं जो उनके पट्टियों को खींचते समय गिर जाते हैं; +\q2 वे कारण जाने बिना ही अकस्मात मर जाते हैं।’” + +\s5 +\c 5 +\q1 +\p +\v 1 “हे अय्यूब, तुझे सहायता की पुकार से कोई नहीं रोकेगा, +\q2 परन्तु मुझे निश्चय है कि कोई भी स्वर्गदूत तेरे पास नहीं आएगा! +\q1 +\v 2 मूर्ख लोग मर जाते हैं क्योंकि वे क्रोधित है; +\q2 वे लोग जिन्हें दूसरे सरलता से धोखा दे देते हैं - ये लोग मर जाते हैं क्योंकि वे दूसरों से ईर्ष्या करते हैं। +\q1 +\v 3 मैंने मूर्ख लोगों को देखा है जो सफल होते दिखते थे, +\q2 परन्तु उन पर अकस्मात ही विपत्ति आ पड़ी क्योंकि मैंने उनके घर को श्राप दिया था। +\q1 +\s5 +\v 4 उनके पुत्र कभी सुरक्षित नहीं रहते हैं; +\q2 वे सदा अदालत में अपने विरोधियों से हार जाते हैं, +\q2 क्योंकि उनका बचाव करने के लिए कोई भी नहीं है। +\q1 +\v 5 भूखे लोग उस फसल को चुरा लेते हैं जिसे मूर्ख लोग उगाते हैं; +\q2 वे उन फसलों को भी चुराते हैं जो काँटों के बीच बढ़ती है, +\q2 और लालची लोग उन मूर्ख लोगों की सम्पत्ति ले लेते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु यह खेत की भूमि नहीं है जो बुरे कार्य उपजाती है; +\q2 परेशानियाँ पौधों के समान भूमि पर नहीं बढ़ती हैं। +\q1 +\v 7 लोग अपने जन्म के समय से स्वयं को परेशान करते हैं; +\q2 यह एक निश्चित तथ्य है कि आग से चिन्गारियाँ निकलती हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 यदि मैं तुम्हारे जैसे पीड़ित हो रहा होता, तो मैं सहायता के लिए परमेश्वर से कहता +\q2 और उन्हें बताता कि मैं किस विषय में शिकायत कर रहा हूँ। +\q1 +\v 9 वह महान कार्य करते हैं, ऐसे कार्य जिन्हें हम समझ नहीं सकते; +\q2 हम उन अद्भुत कार्यों को गिन भी नहीं सकते हैं जो वह करते हैं। +\q1 +\v 10 वह भूमि पर वर्षा भेजते हैं; +\q2 वह हमारे खेतों में वर्षा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 वह नम्र लोगों की रक्षा करते हैं, +\q2 और वह उन शोक करने वाले लोगों को ऐसे स्थान पर रखते हैं जहाँ वे सुरक्षित हैं। +\q1 +\v 12 वह कुटिल लोगों को वह कार्य करने नहीं देते हैं जिसे करने की वे योजना बनाते हैं, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप वे कुछ भी प्राप्त नहीं करते हैं। +\q1 +\v 13 जो लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं – वह उन्हें उनके स्वयं के जाल में पकड़वा देते हैं; +\q2 जिसके परिणामस्वरूप वे सफल नहीं होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 ऐसा लगता है कि मानों वे दिन में भी अन्धकार में रह रहे थे +\q2 और दिन के समय सड़क को खोजने का प्रयास ऐसे कर रहे थे जैसे लोग रात में करते हैं। +\q1 +\v 15 परन्तु परमेश्वर असहाय लोगों को उन दुष्टों से बचाते हैं जो उनके विषय में बुरी बातें कहते हैं; +\q2 वह गरीब लोगों को शक्तिशाली लोगों द्वारा हानि पहुँचाए जाने से बचाते हैं। +\q1 +\v 16 इसलिए गरीब लोग आश्वस्त होकर आशा करते हैं कि उनके साथ अच्छी बातें होंगी; +\q2 परन्तु परमेश्वर दुष्ट लोगों को बुरी बातें कहने से रोकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 परन्तु जिन्हें परमेश्वर सुधारते हैं वे भाग्यशाली हैं; +\q2 इसलिए इस बात को तुच्छ मत जानो जब परमेश्वर, जो कुछ भी कर सकते हैं, तुझे अनुशासित करते हैं। +\q1 +\v 18 वह लोगों को घायल करते हैं, परन्तु फिर वह उन घावों पर पट्टियाँ भी बाँधते हैं; +\q2 वह लोगों को पीड़ा देते हैं, परन्तु वह उन्हें ठीक भी करते हैं। +\q1 +\v 19 वह कई बार तुझे तेरी परेशानियों से बचाएँगे, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप तेरे साथ कोई बुराई नहीं होगी। +\q1 +\s5 +\v 20 जब खाने के लिए भोजन की कमी हो तब वह तुझे मरने नहीं देंगे, +\q2 और जब युद्ध होता है, तब तेरे शत्रु तेरी हत्या नहीं करेंगे। +\q1 +\v 21 जब लोग तेरे विषय में झूठ बोलते हैं, बुरी बातें कहते हैं, तब परमेश्वर तेरी रक्षा करेंगे; +\q2 तू नहीं डरेगा जब तेरे आस-पास की कई वस्तुएँ नष्ट हो जाती हैं। +\q1 +\v 22 जब ऐसा होता है और जब खाने के लिए कुछ भी नहीं है तो तू हँसने में सक्षम होगा, +\q2 और तू जंगली जानवरों से नहीं डरेगा। +\q1 +\s5 +\v 23 तू अपने खेतों में पाई जाने वाली बड़ी चट्टानों के विषय में चिन्ता नहीं करेगा जो जुताई को कठिन बना देंगी, +\q2 और तू चिन्ता नहीं करेगा कि जंगली जानवर तुझ पर आक्रमण कर सकते हैं। +\q1 +\v 24 तुझे पता चलेगा कि तेरे घर में तेरे लिए अच्छी बातें होंगी; +\q2 जब तू अपने पशुओं को देखेगा तो तू देखेगा कि वे सब वहाँ हैं। +\q1 +\v 25 तू निश्चित होगा कि तेरे पास अनेक वंशज हैं, +\q2 जो घास की पत्तियों के समान असंख्य होंगे। +\q1 +\s5 +\v 26 तू मरने से पहले बहुत बूढ़ा हो जाएगा, +\q2 जैसे अनाज की पूलियाँ तब तक बढ़ती रहती हैं जब तक कि फसल को काटने का और उनकी दाँवनी करने का समय न हो। +\q1 +\v 27 मेरे मित्रों ने और मैंने इन बातों के विषय में सावधानी से सोचा है, और हम जानते हैं कि वे सच हैं, +\q2 इसलिए मैंने जो कहा है उस पर ध्यान दे!” + +\s5 +\c 6 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने एलीपज से फिर से बात की: +\q1 +\v 2 “यदि मेरी सब परेशानियों और दुखों को पैमाने पर रख कर वजन किया जा सके, +\q1 +\v 3 तो वे समुद्र तटों पर की सारी रेत से अधिक भारी होंगे। +\q2 यही कारण है कि मैंने पैदा होने के दिन के विषय में बिना सोचें समझे बातें की हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 ऐसा लगता है जैसे मानों सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे तीरों से मारा है। +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उन तीरों की नोकों पर विष है, और वह विष मेरी आत्मा में चला गया है। +\q1 परमेश्वर ने मेरे साथ जो किया है वह मुझ पर आक्रमण करने के लिए पंक्ति में खड़े सैनिकों के समान हैं। +\q1 +\v 5 जिस प्रकार जंगली गधा शिकायत करने के लिए रेंकता नहीं जब उसके पास खाने के लिए बहुत घास होती है, +\q2 और एक बैल रम्भाना के द्वारा शिकायत करने के लिए डकारता नहीं जब उसके पास खाने के लिए भोजन होता है, +\q1 उसी प्रकार यदि तुम वास्तव में मेरी सहायता रहे हो तो मैं भी शिकायत नहीं करूँगा। +\q1 +\v 6 लोग शिकायत करते हैं जब उन्हें वह भोजन खाना पड़ता है जिसमें नमक नहीं है +\q2 या ऐसा खाना जो चिपचिपा और स्वादहीन है; +\q1 हे एलीपज, ऐसे ही तेरे शब्द हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 मैं इस प्रकार का भोजन नहीं खाना चाहता, +\q2 क्योंकि यह मुझे घिनौना लगता है, +\q1 और मुझे वह पसन्द नहीं जो तू ने मुझसे कहा है। +\q1 +\v 8 मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर मेरे लिए वह करें, जो मैंने उनसे माँगा है: +\q1 +\v 9 मेरी इच्छा है कि वह मुझे कुचल दें और मुझे मर जाने दें। +\q2 मेरी इच्छा है कि वह अपने हाथ को बढ़ाएँ और मेरा जीवन ले लें। +\q1 +\s5 +\v 10 यदि वह ऐसा करेंगे, तो मुझे शान्ति मिलेगी क्योंकि मुझे पता चलेगा कि जिस भयंकर दर्द से मैं पीड़ित हूँ, उसके उपरान्त भी, +\q2 उस एकमात्र पवित्र, परमेश्वर, ने जो आदेश दिए हैं, मैंने सदा उनका आज्ञापालन किया है। +\q1 +\v 11 परन्तु अब मेरे पास इन सब बातों को सहन करने के लिए पर्याप्त शक्ति नहीं है। +\q2 और क्योंकि मेरे पास भविष्य में आशा करने के लिए कुछ भी नहीं है, +\q2 इसलिए अब धीरज रखना मेरे लिए कठिन है। +\q1 +\s5 +\v 12 मैं चट्टानों के समान दृढ़ नहीं हूँ, +\q2 और मेरा शरीर पीतल से बना नहीं है। +\q1 +\v 13 इसलिए मैं स्वयं की सहायता कर पाने में सक्षम नहीं हूँ; +\q2 मैं इसके लिए पर्याप्त बुद्धिमान नहीं हूँ। +\q1 +\s5 +\v 14 जब एक व्यक्ति पर कई परेशानियाँ आती हैं, तब उसके मित्रों को उसके प्रति दयालु होना चाहिए, +\q2 भले ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सम्मान करना बन्द कर देता है। +\q1 +\v 15 परन्तु तुम, मेरे मित्र, विश्वास के योग्य नहीं हो। +\q2 तुम जंगल के नालों के समान हो: वे वसन्त ऋतु में अपने किनारों से बाहर फैल जाते हैं +\q1 +\v 16 जब पिघलने वाली बर्फ और हिम उन्हें उमड़ने वाला कर देती हैं, +\q1 +\v 17 परन्तु जब शुष्क मौसम आता है, तो उन नालों में पानी नहीं बहता है, +\q2 और सोते सूख जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 व्यापारियों के कारवाँ पानी की खोज के लिए अपने मार्ग से हट जाते हैं, +\q2 परन्तु उन नालों में कोई पानी नहीं होता है, +\q2 इसलिए वे व्यापारी रेगिस्तान में मर जाते हैं। +\q1 +\v 19 उन कारवाँ में से लोगों ने कुछ पानी की खोज की +\q2 क्योंकि वे निश्चित थे कि वे कुछ पाएँगे। +\q1 +\v 20 परन्तु उन्हें कुछ नहीं मिला, +\q2 इसलिए वे बहुत निराश थे। +\q1 +\s5 +\v 21 इसी प्रकार, तुम मित्रों ने मेरी कोई सहायता नहीं की है! +\q1 तुमने देखा है कि मेरे साथ भयानक बातें हुई हैं, +\q2 और तुम डरते हो कि परमेश्वर तुम्हारे साथ भी इसी प्रकार के कार्य कर सकते हैं। +\q1 +\v 22 मेरी सारी सम्पत्ति खोने के बाद, मैंने तुम में से किसी से भी पैसा नहीं माँगा। +\q2 मैंने तुम में से किसी से भी मेरी सहायता करने के लिए अपना कुछ पैसा खर्च करने के लिए अनुरोध नहीं किया। +\q1 +\v 23 मैंने तुम में से किसी से भी मेरे शत्रुओं से मुझे बचाने के लिए नहीं कहा, +\q2 और मैंने तुमसे उन लोगों से मुझे बचाने के लिए नहीं कहा जिन्होंने मुझ पर अत्याचार किया था। +\q1 +\s5 +\v 24 अब मुझे उत्तर दो, और फिर मैं चुप हो जाऊँगा; +\q2 मुझे बताओ कि मैंने क्या गलत कार्य किए हैं! +\q1 +\v 25 जब लोग सच बोलते हैं, तो सुनने वाले के लिए खरे शब्दों को सुनना पीड़ा दायक हो सकता है। +\q2 परन्तु क्या तुम्हारे सभी तर्क मेरे विषय में सिद्ध हुए हैं? +\q1 +\s5 +\v 26 मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसके पास आशा करने के लिए कुछ भी नहीं है, +\q2 परन्तु तुम मुझे सही करने का प्रयास करते हो, और तुमको लगता है कि मैं जो कहता हूँ वह हवा के समान व्यर्थ है! +\q1 +\v 27 तुम उन बातों के लिए मुझे बिलकुल भी सहानुभूति नहीं दिखाते हो जिनसे मैं पीड़ित हूँ। +\q2 तुम अपने लिए कुछ पाने हेतु कुछ भी करोगे! तुम यह देखने के लिए एक खेल भी खेलोगे कि पुरस्कार के रूप में एक अनाथ को कौन प्राप्त करता है! +\q1 +\s5 +\v 28 कृपया मुझे देखो! मैं झूठ नहीं बोलूँगा जब मैं सीधे तुमसे बात कर रहा हूँ। +\q1 +\v 29 यह कहना बन्द करो कि मैंने पाप किया है, और अन्यायपूर्वक मेरी निन्दा करना बन्द करो! +\q2 तुमको जान लेना चाहिए कि मैंने ऐसी बातें नहीं की हैं जो गलत हैं। +\q1 +\v 30 क्या तुमको लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ? +\q2 नहीं, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, क्योंकि मुझे पता है कि कहने के लिए क्या सही है, और क्या गलत है।” + +\s5 +\c 7 +\q1 +\p +\v 1 “लोगों को इस पृथ्‍वी पर वैसा कठोर परिश्रम करने की आवश्यकता है जैसा सैनिक करते हैं; +\q1 जब हम जीवित रहते हैं, तब हमें किसी भाड़े के मजदूर के समान कठोर परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। +\q1 +\v 2 हम दासों के समान हैं जो शाम की ठण्डक में रहने की इच्छा करते रहते हैं, +\q2 और हम ऐसे श्रमिकों के समान हैं जो भुगतान किए जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। +\q1 +\v 3 परमेश्वर ने मुझे कई महीनों का ऐसा समय दिया हैं जिनमें मुझे लगता है कि जीवित रहना व्यर्थ है; +\q1 उसने मुझे ऐसी कई रातें दी हैं जिनमें मुझे दुख ही दुख होता है। +\q1 +\s5 +\v 4 जब मैं रात में लेटता हूँ तो मैं कहता हूँ, ‘जब तक मैं उठता हूँ तो यह कितना समय होगा?’ +\q2 परन्तु रातें लम्बी हैं, और मैं सुबह तक अपने बिस्तर पर छटपटाता हूँ। +\q1 +\v 5 मेरा शरीर कीड़ों और फोड़ों से ढँका हुआ है; +\q2 मेरे खुले घावों से मवाद बहता है। +\q1 +\s5 +\v 6 मेरे दिन एक जुलाहे की ढरकी के समान शीघ्र ही से बीतते हैं; +\q2 जब एक दिन समाप्त होता है, तो मैं कभी आशा नहीं करता कि अगले दिन कुछ अच्छा होगा। +\q1 +\v 7 हे परमेश्वर, यह मत भूलना कि मेरा जीवन एक साँस जितना छोटा है; +\q2 मुझे लगता है कि मैं कभी भी आनन्द का अनुभव नहीं करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 8 हे परमेश्वर, आप मुझे अब देखते हो, +\q2 परन्तु एक दिन आप मुझे और नहीं देख पाएँगे। +\q2 आप मेरी खोज करेंगे, परन्तु मैं जा चुका होऊँगा क्योंकि मैं मर जाऊँगा। +\q1 +\v 9 जैसे एक बादल निकलता है और लोप हो जाता है, +\q2 लोग मर जाते हैं और उस स्थान में आते जाते हैं जहाँ मरे हुए लोग हैं, और वे लौट कर नहीं आते हैं; +\q1 +\v 10 वे लौट कर अपने घरों में कभी नहीं आते, हैं, +\q2 और जो लोग जीवित हैं वे उन्हें फिर कभी स्मरण नहीं करते है। +\q1 +\s5 +\v 11 इसलिए मैं चुप नहीं रहूँगा; +\q2 जबकि मैं पीड़ित हूँ, मैं बोलूँगा; +\q1 जो मेरे साथ हुआ है उसके विषय में मैं परमेश्वर से शिकायत करूँगा +\q2 क्योंकि मैं बहुत क्रोधित हूँ। +\q1 +\v 12 हे परमेश्वर, आप बारीकी से क्यों देखते हैं कि मैं क्या कर रहा हूँ? +\q2 क्या आपको लगता है कि मैं एक खतरनाक समुद्री राक्षस हूँ? +\q1 +\s5 +\v 13 जब मैं रात में लेटता हूँ, तो मैं स्वयं से कहता हूँ, ‘मैं सो जाऊँगा और पीड़ित होने से बच जाऊँगा; +\q2 जब मैं सो रहा हूँ तो मेरा दर्द कम हो जाएगा।’ +\q1 +\v 14 परन्तु फिर आप मुझे ऐसे सपने देते हो जो मुझे डरा देते हैं; +\q2 आप मुझे ऐसे दर्शन देते हैं जो मुझे भयभीत कर देते हैं; +\q1 +\v 15 ये बातें मुझमें ऐसी इच्छा उत्पन्न करती हैं कि कोई मेरा गला दबा कर मार दे, +\q2 अपेक्षा इसके कि मैं जीवित रहूँ जबकि मैं केवल हड्डियों का एक ढाँचा रह गया हूँ। +\q1 +\s5 +\v 16 मैं जीवित रहने से निरन्तर घृणा करता हूँ; मैं कई वर्षों तक नहीं जीना चाहता हूँ। +\q2 मुझे अकेला रहने दो, क्योंकि मैं बहुत ही कम समय के लिए जीवित रहूँगा। +\q1 +\v 17 हम मनुष्य बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं; +\q2 तो आप हम पर इतना ध्यान क्यों देते हैं? +\q1 +\v 18 आप यह देखने के लिए हर सुबह हम पर दृष्टि करते हैं कि हम क्या कर रहे हैं, +\q2 और आप यह देखने के लिए हर पल हमारी जाँच करते हैं कि जो हम कर रहे हैं वह सही है, +\q1 +\s5 +\v 19 आप मुझ पर दृष्टि करना कब बन्द करेंगे और क्या आप मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ देंगे, मेरे स्वयं के थूक को निगलने के समय तक के लिए? +\q1 +\v 20 आप मुझे निरन्तर क्यों देखते रहते हैं? +\q2 यदि मैं पाप करता हूँ, तो निश्चय ही आपको हानि नहीं पहुँचाता! +\q1 आपने मुझे निशाना साध ने के लक्ष्य के समान क्यों बनाया हुआ है? +\q2 क्या आप मुझे ऐसा भारी बोझ मानते हैं जिसे उठाने के लिए आप विवश हैं? +\q1 +\s5 +\v 21 यदि मैंने पाप भी किया, तो क्या आप मुझे क्षमा करने में सक्षम नहीं हैं +\q2 उन गलत कार्यों के लिए भी जो मैंने किए हैं? +\q1 शीघ्र ही मैं अपनी कब्र में लेटूँगा; +\q2 आप मेरी खोज करेंगे, परन्तु आप मुझे नहीं पाएँगे क्योंकि मैं मर कर जा चुका होऊँगा।” + +\s5 +\c 8 +\p +\v 1 तब शूआ क्षेत्र के रहने वाले बिल्दद ने अय्यूब से बात की। उसने कहा, +\q1 +\v 2 “हे अय्यूब, तू कब तक ऐसी बातें करता रहेगा? +\q2 तू जो कहता है वह एक बड़ी हवा के समान व्यर्थ है। +\q1 +\v 3 सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चय ही कोई भी कार्य अनुचित नहीं करते हैं। +\q2 वह सदा वही करते हैं जो सही है। +\q1 +\s5 +\v 4 तुम्हारे बच्चों ने उनके विरुद्ध पाप किया है; +\q2 यह प्रकट है क्योंकि उन्होंने उन्हें उन बुरे कार्यों के लिए दण्डित किया है। +\q1 +\v 5 परन्तु अब, यदि तू केवल आग्रहपूर्वक परमेश्वर की सहायता करने के लिए अनुरोध करे! +\q1 +\s5 +\v 6 यदि केवल तू शुद्ध और सच्चा है! +\q2 तो वह निश्चय ही तेरे लिए कुछ अच्छा करेंगे +\q2 और तेरा परिवार तुझे वापस दे कर और तुझे समृद्ध बना कर पुरस्कार देंगे। +\q1 +\v 7 भले ही तू पहले बहुत समृद्ध नहीं था, +\q2 तेरे जीवन के अंतिम चरण में तू बहुत धनवान बन जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं तुझसे निवेदन करता हूँ कि बहुत पहले हुई बातों पर विचार कर +\q2 और ध्यान दे कि हमारे पूर्वजों ने क्या खोज की थी। +\q1 +\v 9 ऐसा लगता है जैसे मानों हम कल ही पैदा हुए थे +\q2 और हम बहुत कम जानते हैं; +\q1 पृथ्‍वी पर हमारा समय शीघ्र समाप्त हो जाता है, जैसे कि यहाँ एक छाया आई और फिर चली गई है। +\q1 +\v 10 तो क्यों न अपने पूर्वजों को कुछ सिखाने की अनुमति दे? +\q2 उन्हें अपना ज्ञान तुझे सुनाने दे! +\q1 +\s5 +\v 11 निश्चय ही कछार की घास दलदल से दूर नहीं बढ़ती है; +\q2 निश्चय ही जहाँ पानी नहीं है वहाँ सरकण्डे विकसित नहीं होते हैं। +\q1 +\v 12 यदि उनके खिलते समय पानी सूख जाता है, +\q2 तो वे अन्य किसी भी पौधे की तुलना में अधिक तेजी से सूखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 जो लोग परमेश्वर के वचनों पर ध्यान नहीं देते वे उन सरकण्डों के समान हैं; +\q2 परमेश्वर से रहित लोग आत्म-विश्वास से आशा करना छोड़ देते हैं कि उनके साथ अच्छी बातें होंगी। +\q1 +\v 14 जिन बातों के होने की वे आशा आत्म-विश्वास से करते हैं वे नहीं होती हैं; +\q2 जिन बातों पर वे भरोसा करते हैं वे उनकी सहायता करने में इतनी दुर्बल होती हैं जैसे मकड़ी का जाला। +\q1 +\v 15 यदि उन्हें लगता है कि वे धनवान हैं इसलिए सुरक्षित रहेंगे, तो वे सुरक्षित नहीं रहेंगे; +\q2 जिन वस्तुओं के लिए वे सोचते हैं कि वे उन्हें सुरक्षित रखेंगी - वे वस्तुएँ गायब हो जाएँगी। +\q1 +\s5 +\v 16 परमेश्वर से रहित लोग ऐसे पौधों के समान हैं जिनको सूरज उगने से पहले पानी दिया गया है: +\q2 उनकी टहनियाँ सारे बगीचों में फैल गई हैं। +\q1 +\v 17 उन पौधों की जड़ें पत्थरों के ढेरों के चारों ओर घूम गई हैं +\q2 और चट्टानों से कस कर चिपक गई हैं। +\q1 +\v 18 परन्तु माली उन पौधों को खींच कर उखाड़ता है, +\q2 ऐसा लगता है कि मानों जहाँ वे लगाए गए थे वह स्थान कहता है, ‘वे कभी यहाँ नहीं थे!’ +\q2 दुष्ट लोगों के साथ यही होता है जो परमेश्वर के कहने पर ध्यान नहीं देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 सचमुच, यही सब वह सुख है जो दुष्ट लोगों के पास है: +\q2 अन्य लोग बस आते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं। +\q1 +\v 20 इसलिए हे अय्यूब, मैं तुझे बताता हूँ, यदि तू उनका सम्मान करता है, तो परमेश्वर तुझे अस्वीकार नहीं करेंगे, +\q2 परन्तु वह बुरे लोगों की सहायता नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 वह तुझे हँसने में +\q2 और आनन्द से चिल्लाने में सदा सक्षम बनाएँगे। +\q1 +\v 22 परन्तु जो तुझसे घृणा करते हैं वे बहुत लज्जित होंगे, +\q2 और दुष्ट लोगों के घर लोप हो जाएँगे।” + +\s5 +\c 9 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने उत्तर दिया, +\q1 +\v 2 “हाँ, हाँ, मुझे पता है। +\q2 परन्तु परमेश्वर से कोई कैसे कह सकता है, ‘मैं निर्दोष हूँ’? +\q1 +\v 3 यदि कोई इस विषय में परमेश्वर से विवाद करना चाहता है, +\q2 तो परमेश्वर उससे एक हजार प्रश्न पूछ सकते हैं +\q2 और वह व्यक्ति उनमें से किसी का उत्तर नहीं दे पाएगा! +\q1 +\s5 +\v 4 परमेश्वर बहुत बुद्धिमान और शक्तिशाली हैं; +\q2 कोई भी जिसने उनसे विवाद करने का प्रयास किया है वह कभी भी जीतने में सक्षम नहीं हुआ है। +\q1 +\v 5 वह किसी को भी पहले से बताए बिना भूकम्प में पर्वतों को भी सरका देते हैं। +\q2 जब वह क्रोधित होते हैं, तो वह पर्वतों को उल्टा कर देते हैं। +\q1 +\v 6 वह पृथ्‍वी को हिलाने वाला भूकम्प भेजते हैं; +\q2 वह उन स्तम्भों को हिला देते हैं जो पृथ्‍वी को सहारा देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 उनकी आज्ञा बिना सूर्य उदय होता ही नहीं, +\q2 और वह तारों पर मुहर लगाता है। +\q1 +\v 8 उन्होंने अकेले ही आकाश को फैलाया है (वह अकेले ही आकाश को फैलाते हैं); +\q2 वह अकेले ही अपने पैरों को लहरों पर रखते हैं और उनकी प्रचण्डता को रोक देते हैं। +\q1 +\v 9 उन्होंने सप्तर्षि, मृगशिरा, कचपचिया तारामंडलों को अपने स्थानों में और दक्षिणी आकाश में सितारों के समूहों को स्थापित किया है। +\q1 +\s5 +\v 10 वह महान कार्य करते हैं जिसे हम समझ नहीं सकते; +\q2 वह हमारी गिनने की सक्षमता से अधिक अद्भुत कार्य करते हैं। +\q1 +\v 11 जहाँ मैं हूँ वह वहाँ से निकलते हैं, परन्तु मैं उन्हें नहीं देख सकता; +\q2 वह आगे बढ़ जाते हैं, परन्तु मैं उन्हें जाते हुए नहीं देख पाता। +\q1 +\v 12 यदि वह किसी को छीन कर दूर ले जाना चाहें, तो कोई भी उन्हें रोक नहीं पाएगा; +\q2 कोई भी उनसे पूछने का साहस नहीं करता है, ‘आप ऐसा क्यों कर रहे हो?’ +\q1 +\s5 +\v 13 परमेश्वर का क्रोधित होना बहुत सरलता से नहीं रुकता है; +\q2 उन्होंने बड़े समुद्र राक्षस राहाब के सेवकों को होरिया है। +\q1 +\v 14 यदि परमेश्वर मुझे अदालत में ले गए, +\q2 तो मैं उन्हें उत्तर देने के लिए क्या कह सकता हूँ? +\q1 +\v 15 भले ही मैं निर्दोष हूँ, मैं उन्हें उत्तर देने में सक्षम नहीं होऊँगा। +\q2 जो मैं कर सकूँ वह बस यही होगा कि मैं परमेश्वर, अपने न्यायधीश से अनुरोध करूँ कि वह मुझ पर दया करें। +\q1 +\s5 +\v 16 यदि मैंने उन्हें अदालत में आने के लिए बुलाया और उन्होंने कहा कि वह आएँगे, +\q2 तो मुझे विश्वास नहीं होगा कि जो मैं कहूँगा उस पर वह ध्यान देंगे। +\q1 +\v 17 वह मुझे तोड़ डालने के लिए तूफान भेजते हैं, +\q2 और वह बिना किसी कारण के मुझे कई बार चोट पहुँचाते हैं। +\q1 +\v 18 ऐसा लगता है कि मानों वह मुझे मेरी साँस लेने नहीं देंगे +\q2 क्योंकि वह मुझे हर समय पीड़ित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 यदि मैंने उनके साथ कुश्ती लड़ने का प्रयास किया तो उन्हें हराने का कोई रास्ता नहीं होगा, +\q2 क्योंकि वह मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं। +\q1 यदि मैंने उन्हें अदालत में उपस्थित होने के लिए बुलाया, +\q2 तो कोई ऐसा नहीं है जो उन्हें वहाँ जाने के लिए विवश कर सके। +\q1 +\v 20 भले ही मैं निर्दोष था, जो कुछ भी मैंने कहा उसके लिए वह मुझे दण्ड देंगे; +\q2 भले ही मैंने कुछ भी गलत नहीं किया था, फिर भी वह सिद्ध कर देंगे कि मैं दोषी हूँ। +\q1 +\s5 +\v 21 मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, परन्तु अब यह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि मुझे चिन्ता नहीं कि मेरे साथ क्या होता है। +\q2 मैं जीवित रहने को तुच्छ जानता हूँ। +\q1 +\v 22 मेरे लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है +\q2 क्योंकि परमेश्वर हम सबसे छुटकारा पाएँगे, जो निर्दोष हैं और जो दुष्ट हैं, दोनों से। +\q1 +\v 23 जब लोग विपत्ति का सामना करते हैं और यह उन्हें अकस्मात ही मार देता है, +\q2 परमेश्वर उन पर हँसते हैं, भले ही वे निर्दोष हों। +\q1 +\v 24 जो संसार में होता है, परमेश्वर ने उसे नियंत्रित करने की अनुमति दुष्ट लोगों को दी है। +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने न्यायधीशों को अंधा बना दिया था, वे अब निष्पक्षता से न्याय करने में सक्षम नहीं हैं। +\q1 यदि यह परमेश्वर नहीं हैं जिन्होंने ऐसा किया है, +\q2 तो फिर, यह किसने किया है? +\q1 +\s5 +\v 25 मेरे दिन बहुत तेजी से बीतते हैं, जैसे बहुत तेज दौड़ने वाला किसी के निकट से निकलता है; +\q2 ऐसा लगता है जैसे मानों दिन दूर भागते हैं, और मेरे साथ कभी भी कुछ भी अच्छा नहीं होता है। +\q1 +\v 26 मेरा जीवन बहुत तेजी से चला जाता है, सरकण्डों से बनी तेजी से बहने वाली नाव के समान +\q2 या एक उकाब के समान जो एक जानवर को पकड़ने के लिए नीचे झपटता है। +\q1 +\s5 +\v 27 यदि मैं मुस्कुराता हूँ और परमेश्वर से कहता हूँ, ‘मैं भूल जाऊँगा कि मैं किस विषय में शिकायत कर रहा हूँ; +\q2 मैं उदास दिखना बन्द कर दूँगा और हँसमुख रहने का प्रयास करूँ,’ +\q1 +\v 28 तब जिससे मैं पीड़ित हूँ उसके कारण मैं डर जाता हूँ +\q2 क्योंकि मुझे पता है कि परमेश्वर यह नहीं मानते कि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 +\v 29 वह वैसे भी मुझे दोषी ठहराएँगे, +\q2 इसलिए मुझे अपने बचाव के लिए क्यों व्यर्थ में प्रयास करते रहना चाहिए? +\q1 +\s5 +\v 30 यदि मैंने स्वयं को बर्फ से धो लिया +\q2 या मेरे हाथों को खार से साफ कर दिया +\q2 मेरे अपराध से छुटकारा पाने के लिए, +\q1 +\v 31 वह अभी भी मुझे एक गन्दे गड्ढे में फेंक देंगे; +\q2 जिसके परिणामस्वरूप ऐसा होगा कि मानों मेरे कपड़े भी मुझसे घृणा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 32 परमेश्वर मनुष्य नहीं है, जैसा मैं हूँ, +\q2 इसलिए ऐसा कोई मार्ग नहीं है कि मैं अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए उन्हें उत्तर दे सकूँ +\q2 यदि हम न्यायालय में मुकद्दमा लड़ने एक साथ गए। +\q1 +\v 33 तो मध्यस्थता करने वाला कोई नहीं है, +\q2 कोई भी नहीं, जिसके पास हम दोनों पर अधिकार है। +\q1 +\s5 +\v 34 मेरी इच्छा है कि कोई परमेश्वर को मुझे पीड़ित करने से रोके, +\q2 और कि वह मुझे डराते न रहें। +\q1 +\v 35 यदि उन्होंने ऐसा किया, तो मैं उनसे डरे बिना घोषणा करूँगा कि मैं निर्दोष हूँ +\q2 क्योंकि मैं अपने भीतर में जानता हूँ कि मैंने वास्तव में ऐसा नहीं किया है जो गलत है जैसे परमेश्वर सोचते हैं कि मैंने किया है। + +\s5 +\c 10 +\q1 +\p +\v 1 मैं अब और अधिक जीने से घृणा करता हूँ। +\q1 मैं यह कहना बन्द नहीं करूँगा कि मैं शिकायत क्यों कर रहा हूँ। +\q2 इसलिए मैं बहुत दुखी हूँ, मैं बोलूँगा। +\q1 +\v 2 मैं परमेश्वर से कहूँगा, ‘सिर्फ यह न कहें कि आपको मुझे दण्ड देना है; +\q2 इसके अतिरिक्त, मुझे बताइए कि आपने मुझमें ऐसा, क्या गलत देखा है जिसे मैंने किया है। +\q1 +\v 3 मुझ पर अत्याचार करने से क्या आप, प्रसन्न होते हैं, +\q2 मुझे, जिसे आपने बनाया है, त्याग देना +\q2 और, उसी समय, उन कार्यों को करने में दुष्टों की सहायता करना जिन्हें करने की वे योजना बना रहे हैं? +\q1 +\s5 +\v 4 क्या आप समझते हैं कि हम मनुष्य कार्यों को कैसे करते हैं? +\q1 +\v 5 क्या आप हमारे समान केवल कुछ वर्षों तक जीवित रहते हैं? जिस प्रकार (जैसे) हम करते हैं? +\q1 +\v 6 तो आप मेरी गलतियों को +\q2 और मेरे पापों को खोजते रहते हो? +\q1 +\v 7 आप जानते हैं कि मैं दोषी नहीं हूँ, +\q2 और मुझे आपकी शक्ति से कोई भी नहीं बचा सकता है। +\q1 +\s5 +\v 8 अपने हाथों से आपने मुझे बनाया और मेरे शरीर को आकार दिया, +\q2 परन्तु अब आप यह निर्णय ले रहे हैं कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, और आप मुझे नष्ट कर रहे हैं। +\q1 +\v 9 मत भूलिए कि आपने मुझे मिट्टी के टुकड़े से बनाया है; +\q2 क्या आप मुझे फिर से मिट्टी बनाने जा रहे हैं? +\q1 +\s5 +\v 10 जब मेरा गर्भधारण किया गया था तो निश्चय ही आपने मुझे बनाया था, +\q2 और आपने मुझे अपनी माँ के गर्भ में एक साथ रखा। +\q1 +\v 11 आपने मेरी हड्डियों को नसों के साथ जोड़ दिया, +\q2 और फिर आपने उन्हें मेरी त्वचा के भीतर माँस से ढाँप दिया। +\q1 +\s5 +\v 12 आपने मुझे जीवित रखा है; आपने मुझसे सच्चा प्रेम किया है, +\q2 और आपने सावधानीपूर्वक मुझे सुरक्षित रखा है। +\q1 +\v 13 परन्तु आप मेरे साथ जो करने की योजना बना रहे थे आपने उसे गुप्त रखा; +\q2 मुझे निश्चय है कि आप इन बातों को मेरे साथ करने की योजना बना रहे थे। +\q1 +\v 14 आप यह देखने के लिए दृष्टि रख रहे थे कि क्या मैं पाप करूँगा, +\q2 कि यदि मैंने पाप किया, तो आप मुझे क्षमा करने से इन्कार कर दें। +\q1 +\s5 +\v 15 यदि मैं एक दुष्ट मनुष्य हूँ, तो मुझे आशा है कि मेरे साथ भयानक बातें होंगी। +\q1 परन्तु भले ही अगर मैं धर्मी हूँ, तो भी मुझे अपने सिर को झुकाना और लज्जित होना होगा +\q2 क्योंकि मैं बहुत अपमानित और दुखी हूँ। +\q1 +\v 16 और यदि मैं घमण्ड करता हूँ, तो आप ऐसे मेरा शिकार करते हैं जैसे किसी जानवर को मारने के लिए शेर शिकार करता है, +\q2 और आप मुझे चोट पहुँचाने के लिए शक्तिशाली रीति से कार्य करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 आप निरन्तर यह प्रमाणित करने के लिए अधिक गवाहों को पाते हैं कि मैंने वह किया है जो गलत है, +\q2 और आप निरन्तर मुझसे अधिक क्रोधित होते जाते हैं। +\q2 ऐसा लगता है कि मानों आप सदा मुझ पर आक्रमण करने के लिए नए सैनिक ला रहे हैं (ला रहे थे)। +\q1 +\s5 +\v 18 हे परमेश्वर, आपने मेरा जन्म क्यों होने दिया? +\q2 मेरी इच्छा है कि मैं मर गया होता जब मैं पैदा हुआ था, और यह कि किसी ने भी मुझे कभी नहीं देखा होता। +\q1 +\v 19 मुझे लगता है कि यदि मैं अपनी माँ के गर्भ से सीधे कब्र तक ले जाया गया होता +\q2 तो यह मेरे जीवित रहने की तुलना में अधिक अच्छा होता। +\q1 +\s5 +\v 20 मुझे लगता है कि मेरे जीवित रहने के लिए केवल कुछ दिन हैं; +\q2 इसलिए मुझे अकेला रहने दीजिए, जिससे कि मुझे थोड़ी शान्ति मिल सके +\q1 +\v 21 इससे पहले कि मैं उस स्थान पर जाऊँ जहाँ से मैं कभी वापस नहीं आऊँगा, +\q2 जहाँ सदा अन्धकार है और घोर अंधेरा है, +\q1 +\v 22 अन्धकार और अँधेरी छाया का एक स्थान जहाँ सब कुछ उलझन में है; +\q2 जहाँ छोटी ज्योति भी अन्धकार के समान है।’” + +\s5 +\c 11 +\p +\v 1 तब नामाह क्षेत्र के मित्र सोपर ने अय्यूब से यह कहा: +\q1 +\v 2 “जो कुछ तू ने कहा है क्या उसका उत्तर किसी को नहीं देना चाहिए? +\q2 केवल इसलिए कि तू बहुत बात करता है, हम तुझे निर्दोष घोषित करने के लिए विवश न हों। +\q1 +\v 3 हे अय्यूब, क्या तेरा बकबक करना हमें वास्तव में चुप कर दे? +\q2 तू हमारे विचारों की निन्दा करता है, तो निश्चय ही कोई ऐसा होना चाहिए जो तुझे डाँटे और तुझे लज्जित करे! +\q1 +\s5 +\v 4 तू कहता है, ‘मैं जो कहता हूँ वह सच है; +\q2 परमेश्वर जानते हैं कि मैं निर्दोष हूँ।’ +\q1 +\v 5 परन्तु मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर बात करें +\q2 और तुझे उत्तर देने के लिए कुछ कहें! +\q1 +\v 6 परमेश्वर सब कुछ के विषय में सब कुछ जानते है, +\q2 इसलिए मैं चाहता हूँ कि वह तुझ पर उन भेदों को प्रकट करें जो वह जानते हैं क्योंकि वह बुद्धिमान है। +\q1 यह अच्छा होगा यदि तू समझ पाए कि परमेश्वर तेरे दण्ड से जितने के तू योग्य हो कम दण्ड तुझे दे रहे हैं! +\q1 +\s5 +\v 7 मुझे बता, क्या तू कभी परमेश्वर के विषय में उन बातों को जानने में सक्षम होगा जो समझने में बहुत कठिन हैं? +\q2 क्या तू सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विषय में जानने के लिए सब कुछ पता कर पाएगा? +\q1 +\v 8 परमेश्वर के विषय में जानना पृथ्‍वी से स्वर्ग की दूरी से अधिक है; +\q2 इसलिए ऐसा कोई विधि नहीं है कि तू इस सबको समझ सके। +\q1 यह यहाँ से मृतकों के स्थान की दूरी से भी अधिक है; +\q2 इसलिए यह सब जानना तेरे लिए असम्भव है। +\q1 +\v 9 परमेश्वर के विषय में जानना पृथ्‍वी अधिक व्यापक है +\q2 और सागर से अधिक व्यापक है। +\q1 +\s5 +\v 10 यदि परमेश्वर तेरे पास आते हैं और तुझे बन्दीगृह में डाल देते हैं और फिर तेरा परीक्षण करते हैं, +\q2 तो कौन उन्हें रोक सकता है? +\q1 +\v 11 वह जानते हैं कि कौन से लोग निकम्मे हैं; +\q2 और जब वह लोगों को दुष्ट कार्यों को करते हुए देखते हैं, तो निश्चय ही वह उन्हें अनदेखा नहीं करते हैं। +\q1 +\v 12 निर्बुद्धि मनुष्य बुद्धिमान हो सकता है; +\q2 यद्दपि मनुष्य जंगली गधे के बच्चा के समान जन्म ले; +\q1 +\s5 +\v 13 हे अय्यूब, पश्चाताप कर और मन का दीन बन; +\q2 परमेश्वर की ओर अपने हाथों को फैला और उनसे याचना कर। +\q1 +\v 14 यदि तू ने बुरे कार्य किए हैं, तो उन्हें करना बन्द कर; +\q2 और अपने घर के किसी को भी दुष्ट कर्म करने मत दे। +\q1 +\s5 +\v 15 यदि तू ऐसा करता है, तो निश्चय ही तू अपने सिर को ऊपर उठाने योग्य होगा, क्योंकि तू लज्जित नहीं होगा; +\q2 तू बलवन्त होगा और किसी बात से नहीं डरेगा। +\q1 +\v 16 तू अपनी सारी परेशानियाँ भूल जाएगा; +\q2 वे पानी के समान होंगी जो सारा बह गया है और सूख गया है। +\q1 +\v 17 तेरी परेशानियाँ समाप्त हो जाएँगी, जैसे भोर में अन्धकार समाप्त हो जाता है; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों तेरे ऊपर सूरज प्रकाशमान होकर चमक रहा था, जैसे वह दोपहर में चमकता है। +\q1 +\s5 +\v 18 तुझे सुरक्षा का बोध होगा क्योंकि तू आश्वस्त होगा कि तेरे साथ सब अच्छा होगा; +\q2 परमेश्वर तेरी रक्षा करेंगे और हर रात तुझे सुरक्षित रूप से विश्राम देंगे। +\q1 +\v 19 तू सोने के लिए लेट जाएगा, और कोई भी तुझे नहीं डराएगा। +\q2 और बहुत से लोग आएँगे और उन पर दया करने का तुझसे अनुरोध करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 20 परन्तु दुष्ट लोग समझने में सक्षम नहीं होंगे कि उनके साथ बुरी बातें क्यों हो रही हैं; +\q2 उनके पास उनकी परेशानियों से बचने का कोई मार्ग नहीं होगा। +\q2 केवल एक ही कार्य जो वे करना चाहेंगे वह मर जाना होगा।” + +\s5 +\c 12 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने अपने तीन मित्रों से कहा, +\q1 +\v 2 “इसमें कोई सन्देह नहीं है कि तुम ऐसे लोग हो जिनकी बातें सब लोगों को सुनना चाहिए, +\q2 और जब तुम मर जाओगे, तब कोई और बुद्धिमान लोग जीवित नहीं होंगे। +\q1 +\v 3 परन्तु मेरे पास भी उतना ही अच्छा ज्ञान है जितना तुम रखते हो; +\q2 मैं तुम लोगों से कम बुद्धिमान नहीं हूँ। +\q2 निश्चय ही जो कुछ तुमने कहा है वह तो हर कोई जानता है। +\q1 +\s5 +\v 4 मेरे सब मित्र अब मुझ पर हँसते हैं। +\q2 पहले मैं स्वभावतः परमेश्वर से मेरी सहायता करने का अनुरोध करता था, और उन्होंने हमेशा मुझे उत्तर दिया। +\q1 मैं धर्मी हूँ, और मैं परमेश्वर का सम्मान करता हूँ, परन्तु अब हर कोई मुझ पर हँसता है। +\q1 +\v 5 मेरे जैसे लोगों पर हँसना तुम जैसे लोगों के लिए सरल है, जिन्हें कोई परेशानियाँ नहीं हैं; +\q2 तुम हमारे लिए जो पहले से पीड़ित हैं, और अधिक परेशानियाँ उत्पन्न करते हो। +\q1 +\v 6 इस बीच, डाकू शान्तिपूर्वक रहते हैं, +\q2 और कोई भी उन लोगों को नहीं धमकाता है जो परमेश्वर को क्रोधित करते हैं; +\q2 जिस देवता की वे उपासना करते हैं वह उनकी अपनी शक्ति है। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु जंगली जानवरों से पूछो कि वे परमेश्वर के विषय में क्या जानते हैं; +\q2 यदि वे बोल सकें तो वे तुमको सिखाएँगे। +\q1 यदि तुम पक्षियों से पूछो, +\q2 तो वे तुमको बताएँगे। +\q1 +\v 8 यदि तुम उन प्राणियों से पूछो जो भूमि पर रेंगते हैं, या समुद्र की मछलियों से पूछो, +\q2 तो वे तुमको परमेश्वर के विषय में बताएँगे। +\q1 +\s5 +\v 9 उन सबको निश्चय ही पता है कि वह यहोवा हैं जिन्होंने यह किया है। +\q1 +\v 10 वह सब जीवित प्राणियों के जीवन को निर्देशित करते हैं; +\q2 वह हमें जीवित रखने के लिए हम सब मनुष्यों को साँस देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 जब हम सुनते हैं कि तुम्हारे जैसे लोग क्या कहते हैं, +\q2 हम इस विषय में सावधानी से सोचते हैं कि वे यह निर्धारित करने के लिए क्या कहते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है, +\q2 जैसे कि हम यह जानने के लिए भोज को चखते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। +\q1 +\v 12 बूढ़ों में बुद्धि पाई जाती है; +\q2 क्योंकि उन्होंने लम्बी आयु को जीया है उनमे अधिक समझ होती है। +\q1 +\s5 +\v 13 और परमेश्वर बुद्धिमान और बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 उनके पास अच्छी समझ है और वह सब कुछ समझते हैं। +\q1 +\v 14 यदि वह किसी वस्तु को तोड़ देते हैं, तो कोई भी उसे फिर से बना नहीं सकता; +\q2 यदि वह किसी को बन्दीगृह में डाल देते हैं, तो कोई भी उस व्यक्ति के भाग जाने के लिए द्वार नहीं खोल सकता है। +\q1 +\v 15 जब वह वर्षा को गिरने से रोकते हैं, तो सब कुछ सूख जाता है। +\q2 जब वह बहुत सारी वर्षा को गिराते हैं, तो परिणाम यह होता है कि बाढ़ आती है। +\q1 +\s5 +\v 16 वही एकमात्र हैं जो वास्तव में शक्तिशाली और बुद्धिमान हैं; +\q2 वह उन लोगों पर शासन करते हैं जो दूसरों को धोखा देते हैं और जिन्हें वे धोखा देते हैं। +\q1 +\v 17 वह कभी-कभी राजा के अधिकारियों का ज्ञान खो जाने देते हैं और उसके कारण उनको दुखी होने देते हैं’ +\q2 और वह न्यायधीशों को मूर्ख बना देते हैं। +\q1 +\v 18 वह उन गहने को राजाओं से ले लेते हैं जो वे पहनते हैं +\q2 और उनकी कमर के चारों ओर लंगोटी को बाँधते हैं, जिससे वे दास बन जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 वह याजक को भी दुखी करते हैं, +\q2 और वह उन लोगों की शक्ति को छीन लेते हैं जो दूसरों पर शासन करते हैं। +\q1 +\v 20 वह कभी-कभी उन लोगों को बोलने में असमर्थ कर देते हैं जिन पर दूसरे लोग भरोसा करते हैं, +\q2 और वह वृद्ध पुरुषों की अच्छी समझ को ले लेते हैं। +\q1 +\v 21 वह लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे शासन करने वालों को तुच्छ मानें, +\q2 और जो शक्तिशाली हैं वह उनको निर्बल कर देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 वह हम पर उन बातों को प्रकट करते हैं जो गुप्त थीं, +\q2 यहाँ तक कि ऐसी बातें जो मरे हुओं के संसार में होती हैं। +\q1 +\v 23 वह कुछ राष्ट्रों को बहुत महान बना देते हैं, +\q2 और बाद में वह उन्हें नष्ट कर देते हैं; +\q1 वह कुछ देशों की सीमा को बहुत बड़ा कर देते हैं, +\q2 और बाद में वह उनको हरा कर बन्दी बना लेने के लिए दूसरों को लाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 वह कुछ शासकों को मूर्ख बना देते हैं, +\q2 और फिर वह उन्हें चारों ओर भटकने देते हैं, जैसे कि वे बाहर निकलने के रास्ते के बिना जंगल में थे। +\q1 +\v 25 ऐसा लगता है जैसे वे बिना किसी प्रकाश के अँधेरे में टटोल रहे थे; +\q2 जैसे कि वे नशे में थे, और यह नहीं जानते कि उन्हें क्या करना चाहिए।” + +\s5 +\c 13 +\q1 +\p +\v 1 “जो कुछ तुमने देखा है वह मैंने देखा है, +\q2 और जो कुछ तुमने कहा है वह सब मैंने सुना और समझा है। +\q1 +\v 2 जो तुम जानते हो, वह मुझे भी पता है; +\q2 मैं तुमसे कम नहीं जानता। +\q1 +\s5 +\v 3 परन्तु मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ बात करना चाहूँगा, न कि तुम्हारे साथ; +\q2 मैं उनके साथ विवाद करना चाहूँगा और उन्हें दिखाना चाहूँगा कि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 +\v 4 जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुम झूठ बोलते हो और लोगों को कड़वे सच नहीं जानने देते हो, +\q2 जैसे कोई व्यक्ति दीवार की खराब सतह को सफेदी से ढाँप देता है। +\q1 तुम सब वैद्यों के समान हो जो लोगों को निकम्मी दवा बेचते हैं। +\q1 +\v 5 मेरी इच्छा है कि तुम चुप रहो; +\q2 यह तुम्हारे द्वारा मुझसे कही गई बातों से भी अधिक बुद्धिमानी होगी। +\q1 +\s5 +\v 6 सुनो कि मैं अब तुमसे क्या कहूँगा; +\q2 सुनो जब मैं कह रहा हूँ कि मेरे विषय में क्या सच है। +\q1 +\v 7 तुम परमेश्वर की सहायता करने के लिए झूठ बोल रहे हो; +\q2 तुम उनकी सहायता करने के लिए जो कह रहे हो वह गलत है! +\q1 +\v 8 तुम उनके कार्यों का पक्ष ले कर वास्तव में उन पर दया करना चाहते हो? +\q2 ऐसा लगता है कि तुम अदालत में सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे कि वह निर्दोष हैं! +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु यदि वह न्यायधीश के रूप में बैठे हुए, तुम पर बारीकी से ध्यान दें, तो वह पाएँगे कि तुम उनके लिए जो कर रहे हो वह बुरा है! +\q2 तुमने अन्य लोगों को धोखा दिया है, परन्तु यह मत सोचो कि तुम उनके विषय में अदालत में झूठ बोल सकते हो और कह सकते हो कि तुम उनका बचाव कर रहे हो! +\q1 +\v 10 यदि तुम तुम्हारा पक्ष लेने के लिए परमेश्वर को मनाने के लिए चतुर बातें कहते हो, +\q2 तो निश्चय ही वह तुमको डाँटेंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 निश्चय ही वह तुम्हारे विरुद्ध अपनी शक्ति का पूरा बल ले कर आएँगे; +\q2 तुम उनसे बहुत डर जाओगे। +\q1 +\v 12 तुमने जो कहा है – जो बातें तुम सोचते हो बहुत बुद्धिमानी की हैं – वे राख के समान व्यर्थ हैं; +\q2 तुम जो सोचते हो उसका बचाव करने के लिए तुम जो कहते हो वह शीघ्र ही से टूट जाने वाली मिट्टी की तुलना में उत्तम नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 13 इसलिए चुप रहो और मुझे बोलने दो; +\q2 उसके बाद, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि मेरे साथ क्या होता है। +\q1 +\v 14 मैं अपने जीवन का जोखिम उठाने के लिए तैयार हूँ; +\q2 मैं यह जोखिम उठाने के लिए भी तैयार हूँ कि जो मैं कहता है उसके लिए परमेश्वर मुझे मृत्यु दण्ड दें। +\q1 +\v 15 यदि वह मुझे मार डालते हैं, तो मेरे पास कोई और नहीं होगा जिससे मैं आत्म-विश्वास से मेरी सहायता करने की आशा कर सकता हूँ, +\q2 परन्तु कैसे भी मैं उनकी उपस्थिति में अपने व्यवहार की रक्षा करने जा रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 16 कोई दुष्ट व्यक्ति परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े होने का साहस नहीं करेगा, +\q1 परन्तु क्योंकि मैं कहता हूँ कि मैंने ऐसे कार्य नहीं किए हैं जो गलत हैं, +\q2 यदि मैं परमेश्वर के सामने सिद्ध कर सकता तो संभव है कि वह मुझे निर्दोष घोषित करेंगे।” +\q1 +\v 17 “हे परमेश्वर, जो कुछ मैं कहता हूँ, उसे बहुत सावधानी से सुनिए; मुझ पर ध्यान दीजिए। +\q1 +\s5 +\v 18 मैं विवाद करने के लिए तैयार हूँ कि मैं निर्दोष हूँ, +\q2 और मुझे पता है कि आप भी यह घोषणा करेंगे कि मैं दोषी नहीं हूँ। +\q1 +\v 19 निश्चय ही मैं नहीं सोचता कि आप या कोई अन्य कहेगा कि जो मैं कहता हूँ वह झूठी बात है; +\q2 यदि आपने ऐसा किया, तो मैं और बात नहीं करूँगा, और मैं मर जाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 20 मैं आप से अनुरोध कर रहा हूँ; कि मेरे लिए दो कार्य करें +\q2 यदि आप उन्हें करते हैं, तो मैं आप से छिपने का प्रयास नहीं करूँगा। +\q1 +\v 21 पहली बात जो मैं अनुरोध करता हूँ वह यह है कि आप मुझे दण्ड देना बन्द कर दें, +\q2 और दूसरी बात जो मैं अनुरोध करता हूँ वह यह है कि आप मुझे डराना बन्द कर दें। +\q1 +\v 22 पहले आप बोलिए, और मैं उत्तर दूँगा; +\q2 या मुझे पहले बोलने की अनुमति दीजिए, और आप उत्तर दीजिए। +\q1 +\s5 +\v 23 मैंने क्या किया है जो गलत है? मैंने क्या पाप किए हैं? +\q2 मुझे दिखाइए कि मैंने कैसे आपकी आज्ञा नहीं मानी है। +\q1 +\v 24 आप मेरे साथ मित्रता का इन्कार क्यों करते हैं? +\q2 आप मेरे प्रति ऐसे क्यों कार्य करते हैं जैसे कि मैं आपका शत्रु था? +\q1 +\v 25 मैं एक पत्ते के समान महत्वहीन हूँ जिसे हवा उड़ा देती है। +\q2 आप मुझे डराने का प्रयास क्यों कर रहे हैं? +\q1 आप मुझे पीड़ित क्यों कर रहे हैं? +\q2 मैं तो सूखी भूसी के थोड़े से कणों के समान व्यर्थ हूँ! +\q1 +\s5 +\v 26 ऐसा लगता है कि आप मुझ पर पाप करने का आरोप लगाने के लिए बातें लिख रहे हैं, +\q2 और यह कि आप उन बुरे कार्यों को भी लिख रहे हैं जो मैंने तब किए थे जब मैं युवा था। +\q1 +\v 27 ऐसा लगता है कि मानों आपने मेरे पैरों को काठ में ठोक दिया है +\q2 और मैं जब चलता हूँ तो आप मुझे देखते रहते हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों आप यह देखने के लिए मेरे पैरों के चिन्ह का पीछा कर रहे थे कि मैं कहाँ गया हूँ। +\q1 +\v 28 इस कारण से, मेरा शरीर सड़ी हुआ लकड़ी के समान टूट कर गिर रहा है, +\q2 कीड़ा खाए कपड़े के टुकड़े के समान। + +\s5 +\c 14 +\q1 +\p +\v 1 हम मनुष्य बहुत दुर्बल हैं। हम पैदा हुए हैं, और +\q2 हम केवल थोड़े समय तक रहते हैं; हम बहुत परेशानी का अनुभव करते हैं। +\q1 +\v 2 हम शीघ्र ही लोप हो जाते हैं, फूलों के समान जो अति शीघ्र भूमि से उगते हैं और फिर सूख जाते हैं और मर जाते हैं। +\q2 हम छाया के समान हैं जो सूरज के चमकना बन्द होने पर गायब हो जाती है। +\q1 +\v 3 हे यहोवा, आप यह देखने के लिए मुझ पर दृष्टि क्यों रखते हो कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूँ जो गलत है? +\q2 क्या आप मुझे न्याय करने के लिए अदालत में ले जाना चाहते हैं? +\q1 +\s5 +\v 4 कोई भी परमेश्वर के लिए स्वीकार्य होने को उस वस्तु में से कुछ नहीं ला सकता है जो उसे स्वीकार्य नहीं है। +\q1 +\v 5 आपने निर्णय लिया है कि हमारे जीवन कितने समय तक होंगे। +\q2 आपने निर्णय लिया है कि हम कितने महीने जीवित रहेंगे, +\q2 और हम आपके द्वारा निर्णय लिए गए समय से अधिक नहीं जी सकते हैं। +\q1 +\v 6 इसलिए कृपया हमें जाँचना बन्द कीजिए, और हमें अकेले रहने दीजिए +\q2 जिससे कि हम कठोर परिश्रम के हमारे जीवन का आनन्द उठा सकें, यदि भाड़े के मजदूर के लिए ऐसा करना संभव हो। +\q1 +\s5 +\v 7 यदि हम एक पेड़ काटते हैं, +\q2 तो कभी-कभी हम आशा करते हैं कि यह फिर से अंकुरित होगा और नई शाखाएँ उगाएगा। +\q1 +\v 8 भूमि में इसकी जड़ें बहुत पुरानी हो सकती हैं, +\q2 और इसका तना सड़ सकता है, +\q1 +\v 9 परन्तु यदि कुछ पानी उस पर पड़ता है, +\q2 तो एक युवा पौधे के समान पनप सकता है और टहनियाँ निकाल सकता है। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु जब हम लोग अपनी सारी शक्ति खो देते हैं और मर जाते हैं, +\q2 हम साँस लेना बन्द करते हैं, और फिर हम सदा के लिए चले जाते हैं। +\q1 +\v 11 जैसे झील का पानी भाप बन कर उड़ जाता है, +\q2 या नदी के किनारे सूख जाते हैं, +\q1 +\v 12 लोग लेटते हैं और मर जाते हैं और फिर उठते नहीं हैं। +\q1 जब तक कि आकाश अस्तित्व में है; +\q2 जो लोग मरते हैं वे जागते नहीं हैं, +\q2 और कोई भी उन्हें जगा नहीं सकता है। +\q1 +\s5 +\v 13 हे यहोवा, मेरी इच्छा है कि आप मुझे मरे हुओं के स्थान पर सुरक्षित रखेंगे और मेरे विषय में भूल जाएँगे, कि मैं और पीड़ित न होऊँ +\q2 जब तक आप मुझसे क्रोधित रहते हैं। +\q1 मेरी इच्छा है कि आप यह निर्णय लें कि मैं वहाँ कितना समय व्यतीत करूँगा, +\q2 और फिर स्मरण रखें कि मैं वहाँ हूँ। +\q1 +\v 14 जब हम मनुष्य मर जाते हैं, तब निश्चय ही हम फिर से नहीं जीएँगे। +\q2 यदि मुझे पता हो कि हम फिर से जीएँगे, तो मैं +\q2 मेरे दुखों से मुक्ति पाने के लिए धैर्यपूर्वक आपकी प्रतीक्षा करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 15 आप मुझे बुलाएँगे, और मैं उत्तर दूँगा। +\q2 आप मुझे, आपके द्वारा बनाए गए प्राणियों में से एक को, देखने के लिए उत्सुक होंगे। +\q1 +\v 16 आप ध्यान से देखेंगे कि मैं कहाँ गया था, +\q2 और आपको यह देखने में कोई रूचि नहीं होगी कि मैंने पाप किया है या नहीं। +\q1 +\v 17 मेरे पापों का लेखा एक छोटे से थैले में बन्द कर दिया जाएगा, +\q2 और आप उन्हें ढाँप देंगे। +\q1 +\s5 +\v 18 परन्तु जैसे पहाड़ियाँ टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं और पर्वत से चट्टानें गिरती हैं, +\q1 +\v 19 और जैसे पानी पत्थरों को धीरे-धीरे काटता है, और जैसे बाढ़ मिट्टी को बहा ले जाती है, +\q2 आप अन्त में हमें नष्ट कर देते हैं; आप हमें आशा रखने नहीं देते कि हम जीवित रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 20 आप सदा हमें पराजित करते हैं, और फिर हम मर जाते हैं। +\q2 हमारे मरने के बाद आप हमारे चेहरों को बिगाड़ देते हैं, +\q2 और आप हमें दूर भेज देते हैं। +\q1 +\v 21 जब हम मर जाएँगे, हम नहीं जानते कि हमारे पुत्र बड़े हो जाएँगे और ऐसे कार्य करेंगे जो अन्य लोगों को उनका सम्मान करने को प्रेरित करेंगे। +\q2 या जब वे अपमानित हों, तो हम उसे भी नहीं जानते हैं। +\q1 +\v 22 हमें अपनी पीड़ा के अतिरिक्त कुछ और अनुभव नहीं होगा; +\q2 हम स्वयं के लिए दुखी होंगे, किसी और के लिए नहीं।” + +\s5 +\c 15 +\p +\v 1 तब एलीपज ने अय्यूब को उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “यदि तू वास्तव में बुद्धिमान होता, तो तू दावा करके हमें उत्तर नहीं देता कि तू बहुत कुछ जानता है; +\q2 तुम जो कह रहा है वह केवल बहुत गर्म हवा है। +\q1 +\v 3 तुझे ऐसी बातें नहीं कहना चाहिए जो किसी को भी लाभ नहीं पहुँचाती; +\q2 तुझे ऐसी बातें नहीं कहना चाहिए जो किसी का कुछ भी भला नहीं करती। +\q1 +\s5 +\v 4 तू दूसरों को सिखा रहा है कि वे परमेश्वर का सम्मान न करें, +\q2 और तू उन्हें सम्मानित करने से उनको रोक रहा है। +\q1 +\v 5 तू दुष्ट हैं, और यही कारण है कि जो तू करता है वही तू कहता है; +\q2 तू ऐसे बात करता है जैसे धोखा देने वाले लोग बात करते हैं। +\q1 +\v 6 जो कुछ भी तू कहता है वह दिखाता है कि परमेश्वर को तुझे दण्ड देना चाहिए; +\q2 मेरे लिए आवश्यक नहीं है कि मैं यह सिद्ध करूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 मुझे बता, तुझे ऐसा क्यों लगता है कि तू बहुत अधिक जानता है? तुझे ऐसा तो नहीं लगता कि तू ही वह पहला व्यक्ति था जो कभी पैदा हुआ, है ना? +\q2 तुझे ऐसा तो नहीं लगता कि इससे पहले परमेश्वर ने पर्वतों को बनाया तू पैदा हो गया था, है ना? +\q1 +\v 8 क्या तू सुन रहा था जब परमेश्वर ने अपनी सारी योजनाएँ बनाई थीं? +\q2 क्या तुझे ऐसा तो नहीं लगता कि तू एकमात्र व्यक्ति है जो बुद्धिमान है? +\q1 +\v 9 तू ऐसा क्या जानता है जो हम दूसरे लोगों को नहीं पता? +\q2 तू ऐसा कुछ भी नहीं समझता जो हमें स्पष्ट नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 10 मेरे मित्र भी बुद्धिमान हैं और मैं भी बुद्धिमान हूँ; +\q2 हमने वृद्ध पके बालों वाले लोगों से ज्ञान प्राप्त किया है, +\q2 ऐसे लोगों से जिनका जन्म तेरे पिता से पहले हुआ था। +\q1 +\v 11 परमेश्वर तुझे सांत्वना देना चाहते हैं +\q1 और तुझसे कोमलता से बात करना चाहते हैं; +\q2 जो तेरे लिए पर्याप्त होना चाहिए, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है, है ना? +\q1 +\s5 +\v 12 तू अपनी भावनाओं से उत्साहित क्यों होता हैं? +\q2 तेरी आँखें क्रोध से क्यों चमकती हैं? +\q1 +\v 13 तू परमेश्वर से क्रोधित है, +\q2 और इसलिए तू उनके विरुद्ध कठोर बातें कहता है। +\q1 +\v 14 तू और, कोई भी व्यक्ति पापहीन कैसे हो सकता है? +\q2 पृथ्‍वी पर कोई भी पूरी तरह से धर्मी कैसे हो सकता है? +\q1 +\s5 +\v 15 परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों पर भी भरोसा नहीं करते हैं; +\q2 वह स्वर्ग को पूरी तरह से शुद्ध नहीं मानते हैं। +\q1 +\v 16 इसलिए वह निश्चित रूप से घृणित लोगों पर भरोसा नहीं करते हैं, +\q2 जो जितनी बार पानी पीते हैं, उतनी ही बार बुरे कर्म करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 हे अय्यूब, जो मैं कहता हूँ उसे सुन। +\q2 मैं तुझको वह बताऊँगा जो मुझे पता है, +\q1 +\v 18 वे बातें जो बुद्धिमान पुरुषों ने मुझे बताईं हैं, +\q2 ऐसी सच्चाइयाँ जिसे उनके पूर्वजों ने छिपा कर नहीं रखा था। +\q1 +\s5 +\v 19 (परमेश्वर ने यह देश उन पूर्वजों को दिया जो वास्तव में बुद्धिमान थे; +\q2 किसी ने भी अन्य देश से आकर उन्हें परमेश्वर के विषय में गलत सोचने के लिए प्रेरित नहीं किया।) +\q1 +\v 20 दुष्ट लोग जीवन भर बड़े दर्द से पीड़ित होते हैं; +\q2 यह उन लोगों के साथ होता है जो दूसरों पर अत्याचार करते हैं। +\q1 +\v 21 वे निरन्तर उन आवाजों को सुनते हैं जो उन्हें डराती हैं; +\q2 जब वे समृद्ध हो रहे होते हैं, तब लुटेरे उन पर आक्रमण करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 दुष्ट लोग वास्तव में विचार नहीं करते कि वे अन्धकार से बच पाएँगे; +\q2 उन्हें विश्वास है कि कोई उन्हें तलवार से मारने की प्रतीक्षा कर रहा है। +\q1 +\v 23 वे भोजन की खोज में चारों ओर भटकते हुए कहते हैं, ‘कहाँ मुझे कुछ मिल सकता है?’ +\q2 वे जानते हैं कि वे शीघ्र ही विपत्तियों से घिर जाएँगे। +\q1 +\v 24 क्योंकि वे उनके साथ हो रही उन बातों से डरते हैं, वे चिन्ता करते हैं +\q2 कि वे उन पर ऐसे आ पड़ेंगी जैसे राजा की सेना अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा करती है और उन्हें पीड़ित करती है। +\q1 +\s5 +\v 25 ये बातें उनके साथ इसलिए होती हैं कि उन्होंने अपनी मुट्ठियों को सर्वशक्तिमान के विरुद्ध हिलाया था +\q2 और सोचा था कि वे उसे हराने के लिए पर्याप्त शक्ति रखते थे। +\q1 +\v 26 वे हठ करके परमेश्वर पर वार करने के लिए दौड़ते हैं +\q2 यह सोचते हुए कि एक कठोर ढाल उनकी रक्षा करेगी। +\q1 +\s5 +\v 27 परन्तु वे इतने मोटे हैं कि वे लड़ने में असमर्थ हैं। +\q1 +\v 28 वे उन शहरों में रहते हैं जिन्हें त्याग दिया गया है, +\q2 ऐसे शहर जिनके लिए परमेश्वर ने घोषित किया था कि वे खण्डहरों का ढेर हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 29 परन्तु वे बहुत लम्बे समय तक धनवान नहीं रहेंगे; +\q2 जो कुछ उनके पास है वह सब दूसरे ले लेंगे, +\q2 और यहाँ तक कि पृथ्‍वी से उनकी छाया भी लोप हो जाएगी। +\q1 +\v 30 वे मृत्यु के अन्धकार से नहीं बच पाएँगे; +\q2 वे ऐसे पेड़ों के समान होंगे जिनकी शाखाएँ जल गई हैं। +\q2 जब परमेश्वर आदेश देते हैं, तो वे मर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 31 यदि वे बहुत मूर्ख हैं, इसलिए वे उन वस्तुओं पर भरोसा करते हैं जो वास्तव में निकम्मी हैं, +\q2 फिर जो कुछ उनको मिलेगा वे ऐसी वस्तुएँ ही होंगी जो निकम्मी हैं। +\q1 +\v 32 कि वे अपनी जवानी में ही हैं, लोप हो जाएँगे; +\q2 वे उन शाखाओं के समान होंगे जो सूख जाएँगी और फिर कभी हरी न होंगी। +\q1 +\v 33 वे ऐसी बेलों के समान होंगे जिनके अँगूर पकने से पहले गिर जाते हैं, +\q2 वे ऐसे जैतून के पेड़ों के समान जिनके फूल किसी भी फल का उत्पादन करने से पहले गिर जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 34 दुष्ट लोगों के समूह में कोई वंशज नहीं होगा, +\q2 और उन लोगों के घरों को आग पूरी तरह से जला देगी जिन्होंने रिश्वत में पैसा लिया था। +\q1 +\v 35 वे संकट उत्पन्न करने और बुरे कार्यों को करने की योजना बनाते हैं, +\q2 और अपने हृदयों में वे हमेशा लोगों को धोखा देने की तैयारी कर रहे होते हैं।” + +\s5 +\c 16 +\p +\v 1 अय्यूब ने एलीपज और दूसरों को उत्तर दिया, +\q1 +\v 2 “मैंने ऐसा बातें पहले सुनी हैं; +\q2 तुम सब, मेरी सहायता करने की अपेक्षा, मुझे केवल और अधिक दुख का बोध करा रहे हो। +\q1 +\v 3 क्या तुम्हारे भाषण, जो केवल हवा हैं, कभी समाप्त नहीं होंगे? +\q2 एलीपज, ऐसी कौन सी बात है जिससे तू परेशान होकर मुझे इस प्रकार उत्तर देता जा रहा है? +\q1 +\s5 +\v 4 यदि तुम तीनों पीड़ित होते और मैं नहीं, +\q2 तो तुम्हारे स्थान पर, मैं उन बातों को कह सकता था जो तुम कह रहे हो। +\q1 मैं तुम्हारी निन्दा करने के लिए बड़े भाषण दे सकता हूँ, +\q2 और मैं तुम्हारा उपहास करने के लिए अपना सिर हिला सकता हूँ। +\q1 +\v 5 तब तुम देखोगे कि मेरे शब्दों ने तुमको प्रोत्साहित किया है या नहीं; +\q2 तुम देखोगे कि उनसे तुम्हारी पीड़ा कम हुई है या नहीं। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु अब, यदि मैं बात करता हूँ, तो मेरी पीड़ा कम नहीं होती है, +\q2 और यदि मैं चुप होता हूँ, तो निश्चय ही मेरी पीड़ा अभी भी दूर नहीं होती है। +\q1 +\v 7 हे परमेश्वर, आपने मेरी सारी शक्ति को अब ले लिया है; +\q2 आपने मेरे सारे परिवार को नष्ट कर दिया है। +\q1 +\v 8 आपने मुझे झुका दिया है, +\q2 और लोग सोचते हैं कि यह मेरा पापी होना दर्शाता है। +\q1 वे देखते हैं कि मैं केवल त्वचा और हड्डियाँ ही हूँ, +\q2 और वे सोचते हैं कि इससे सिद्ध होता है कि मैं दोषी हूँ। +\q1 +\s5 +\v 9 क्योंकि परमेश्वर मुझसे बहुत क्रोधित हैं और मुझसे घृणा करते हैं, +\q2 इसलिए मानों कि वह एक जंगली जानवर के समान मुझे अपने दाँतों से फाड़ देते हैं +\q2 क्योंकि वह मेरे शत्रु हैं। +\q1 +\v 10 लोग मेरा उपहास करने के लिए मुझे मुँह चिढ़ाते हैं; +\q2 उन्होंने मेरा उपहास करने के लिए मुझे चेहरे पर मारा है, +\q2 और वे मुझे धमकी देने के लिए मेरे चारों ओर भीड़ लगाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 ऐसा लगता है कि मानों परमेश्वर ने मुझे उन लोगों के हाथों में सौंप दिया है जो उसे सम्मान देने से इन्कार करते हैं +\q2 और मुझे दुष्टों के अधिकार में कर दिया है। +\q1 +\v 12 पहले, मैं शान्ति से रह रहा था, +\q2 परन्तु उसने मुझे कुचल दिया; +\q1 ऐसा लगता है कि मानों उसने मेरी गर्दन को पकड़ लिया और मुझे टुकड़े-टुकड़े कर दिया; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उसने मुझे एक निशाने के समान खड़ा किया है। +\q1 +\s5 +\v 13 ऐसा लगता है कि मैं एक निशाना था, और लोग मेरे आस-पास थे और मुझ पर तीर मार रहे थे। +\q1 परमेश्वर के तीर मेरे गुर्दों को छेदते हैं +\q2 और मेरे गुर्दों से पित्त को भूमि पर बिखेर देते हैं; +\q2 परमेश्वर मुझ पर बिलकुल दया नहीं करते हैं। +\q1 +\v 14 ऐसा लगता है कि मानों मैं एक दीवार था जिसे वह समय-समय पर तोड़ रहे हैं; +\q2 वह मुझ पर एक सैनिक के समान टूट पड़ते हैं जो अपने शत्रु पर आक्रमण कर रहा है। +\q1 +\s5 +\v 15 क्योंकि मैं शोक कर रहा हूँ, मैं टाट के वस्त्र के टुकड़े पहनता हूँ जिसे मैंने एक साथ सी लिया है, +\q2 और मैं बहुत निराशा में यहाँ धूल में बैठता हूँ। +\q1 +\v 16 मेरे बहुत अधिक रोने के कारण मेरा चेहरा लाल है, +\q2 और मेरी आँखों के चारों ओर काले घेरे हैं। +\q1 +\v 17 यह सब मेरे साथ हुआ है भले ही मैंने किसी के प्रति हिंसक व्यवहार नहीं किया है, +\q2 और भले ही मैं हमेशा परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 18 जब मैं मर जाऊँ, तो मैं चाहता हूँ कि भूमि ऐसे व्यवहार करे जैसे कि मेरी हत्या की गई थी; मैं उन लोगों के विरुद्ध दुहाई देना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे मारा, +\q2 और मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे रोके, जब मैं यह माँग कर रहा हूँ कि परमेश्वर मेरे साथ न्यायपूर्वक कार्य करें। +\q1 +\v 19 परन्तु अब भी, मुझे पता है कि स्वर्ग में कोई है जो मेरे लिए गवाही देंगे, +\q2 और वह कहेंगे कि मैंने जो किया है वह सही है। +\q1 +\s5 +\v 20 मेरे तीन मित्र मुझसे घृणा करते हैं, +\q2 परन्तु जब मैं परमेश्वर की दुहाई देता हूँ तो मेरी आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं। +\q1 +\v 21 मैं प्रार्थना करता हूँ कि जो मेरे कार्यों को जानता है वह मेरे लिए परमेश्वर से याचना करे +\q2 जैसे एक व्यक्ति अपने मित्र के लिए याचना करता है। +\q1 +\v 22 मैं ऐसा कहता हूँ क्योंकि कुछ वर्षों में मैं मर जाऊँगा; +\q2 मैं उस सड़क से होकर उस स्थान पर चला जाऊँगा जहाँ से मैं कभी वापस नहीं आऊँगा।” + +\s5 +\c 17 +\q1 +\p +\v 1 “मेरा जीने का समय लगभग समाप्त हो गया है; मेरे पास कोई शक्ति नहीं बची है; +\q2 जिन्होंने मेरी कब्र खोद ली है वे मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। +\q1 +\v 2 जो मेरे आस-पास हैं वे मेरा ठट्ठा कर रहे हैं; +\q2 मुझे सदा उन्हें मेरा ठट्ठा करते देखना है।” +\q1 +\v 3 “हे परमेश्वर, ऐसा लगता है जैसे मानों मैं बन्दीगृह में था; +\q1 कृपया उस धन का भुगतान कीजिए कि मुझे जामिन किया जाए, +\q2 क्योंकि निश्चय ही और कोई नहीं है जो मेरी सहायता करेगा। +\q1 +\s5 +\v 4 आपने मेरे मित्रों को यह समझने से रोका है कि मेरे विषय में क्या सच है, +\q2 परन्तु आप उन्हें मुझ पर प्रबल न होने दें जब वे कहते हैं कि मैंने गलत कार्य किए हैं। +\q1 +\v 5 हमारे पूर्वजों ने कहा है, ‘प्रायः ऐसा होता है कि जब कोई अपने मित्रों की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए उन्हें धोखा देता है, +\q2 तो उस व्यक्ति के बच्चों को उसके लिए दण्ड दिया जाएगा;’ +\q1 इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे विषय में झूठ बोलने वाले मेरे मित्रों के साथ यह सच हो। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु अब जब लोग मेरे विषय में बात करते हैं तो वे हमारे पूर्वजों की उन कहावतों का उपयोग करते हैं; +\q2 वे मेरा अपमान करने के लिए थूकते हैं। +\q1 +\v 7 मेरी आँखें मन्द हो गई हैं क्योंकि मैं बहुत दुखी हूँ, +\q2 और मेरी बाँहें और पैर छाया के समान पतले हैं। +\q1 +\v 8 जो लोग सचमुच धर्मी हैं जब वे देखेंगे कि मेरे साथ क्या हुआ है तो वे चौंक जाएँगे; +\q2 वे उन पर क्रोधित होंगे जो परमेश्वर का सम्मान करने से इन्कार करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 जो लोग वास्तव में धर्मी हैं वे धर्म के कार्य करते रहेंगे, +\q2 और जो लोग धार्मिकता से जीते हैं वे बलवन्त बने रहेंगे। +\q1 +\v 10 परन्तु हे मेरे सब मित्रों, +\q2 मुझे तुम में से एक भी नहीं मिला है जो बुद्धिमान है। +\q1 +\s5 +\v 11 मेरे जीने का समय लगभग समाप्त हो गया है; मैं उन कार्यों को करने में सक्षम नहीं हूँ जिन्हें करने की मैंने योजना बनाई थी। +\q2 जिन कार्यों की मुझे सबसे अधिक इच्छा है, उनके होने की कोई आशा नहीं है। +\q1 +\v 12 मेरे मित्र नहीं जानते कि रात कब है और दिन कब है; +\q2 जब रात होती है, तो वे दावा करते हैं कि यह दिन का प्रकाश है; +\q2 जब अंधेरा हो रहा होता है, तो वे दावा करते हैं कि प्रकाश हो रहा है। +\q1 +\s5 +\v 13 मुझे पता है कि मेरा घर वह स्थान होगा जहाँ मृत लोग हैं, +\q2 जहाँ मैं अन्धकार में सो जाऊँगा। +\q1 +\v 14 मैं कब्र से कह सकता हूँ, ‘जहाँ मुझे दफनाया गया है, वह स्थान मेरे लिए पिता समान होगा।’ +\q2 मैं कीड़ों से कह सकता हूँ, ‘तुम मेरे लिए एक माँ या छोटी बहन के समान हों क्योंकि मैं वहाँ सदा रहूँगा।’ +\q1 +\v 15 निश्चय ही मेरे लिए कोई आशा नहीं बची है। +\q2 कोई भी अपेक्षा नहीं करता है कि मुझे कोई सुख मिलेगी। +\q1 +\s5 +\v 16 मरे हुओं के स्थान पर उतर जाने के बाद, मैं वहाँ किसी प्रकार की भलाई की अपेक्षा नहीं कर पाऊँगा। +\q2 मैं और वे बातें जिनकी मैं आशा करता हूँ वे एक साथ मिट्टी के नीचे चली जाएँगे।” + +\s5 +\c 18 +\p +\v 1 तब बिल्दद ने फिर से उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “कृपया बात करना बन्द कर! +\q2 यदि तू बात करना बन्द करे और सुने, तो हम तुझे कुछ बता सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 तू क्यों सोचता है कि हम मवेशी के समान और अधर्मी के समान मूर्ख हैं? +\q1 +\v 4 बहुत क्रोधित होने से, तू केवल स्वयं को चोट पहुँचा रहा है। +\q2 तू क्या यह सोचता है कि तुझे सच सिद्ध करने के लिए पृथ्‍वी पर से सब कुछ टल जाए, +\q2 या तू क्या ऐसा सोचता है कि तुझे सुख देने के लिए परमेश्वर को पर्वतों की चट्टानों को अपने स्थान से हटा देना चाहिए? +\q1 +\s5 +\v 5 जो होगा वह यह है कि तेरे जैसे दुष्ट लोगों का जीवन +\q2 इतनी शीघ्रता से समाप्त हो जाता है जैसे हम एक दीपक जलाते हैं या आग की लौ बुझाते हैं। +\q1 +\v 6 जब उनके तम्बुओं में उनके ऊपर के दीपक बुझा दिए जाते हैं, +\q2 तब उन तम्बुओं में कोई प्रकाश नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 7 जब वे जीवित हैं, वे आत्म-विश्वास से चलते हैं, +\q2 परन्तु बाद में ऐसा होगा जैसे मानों वे ठोकर खा कर गिर गए हैं, +\q1 क्योंकि वे स्वयं उस शिक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं जो वे दूसरों को देते हैं। +\q1 +\v 8 यह ऐसा होगा जैसे मानों वे अपने ही जाल में फँस गए +\q2 या उस गड्ढे में गिर गए जिसे उन्होंने स्वयं खोदा था। +\q1 +\s5 +\v 9 यह ऐसा होगा जैसे मानों एक फन्दे ने उनकी एड़ी पकड़ ली और उन्हें बाँध लिया, +\q1 +\v 10 जैसे मानों भूमि पर छिपी हुई रस्सी का भाग +\q2 निकल आया और जब वे उस पर चले तो उन्हें पकड़ लिया था। +\q1 +\v 11 जहाँ कहीं भी वे जाएँ, वहाँ ऐसी घटनाएँ होंगी जो उन्हें डरा देंगी; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों वे घटनाएँ उनका पीछा कर रही थीं और उनकी एड़ी को डस रही थीं। +\q1 +\s5 +\v 12 वे भूखे हो जाएँगे, जिसके परिणामस्वरूप वे अब बलवन्त नहीं रहेंगे। +\q2 वे निरन्तर विपत्तियों का सामना करेंगे। +\q1 +\v 13 उनकी पूरी त्वचा पर बीमारियाँ फैल जाएगी; +\q2 बीमारियाँ उनके शरीरों को सड़ा देंगी। +\q1 +\s5 +\v 14 जब वे मर जाएँगे, तो वे अपने तम्बुओं से खींच कर दूर ले जाए जाएँगे +\q2 और मृतकों पर शासन करने वाले व्यक्ति के समक्ष लाए जाएँगे। +\q1 +\v 15 तब अन्य लोग उनके तम्बुओं में रहेंगे, +\q2 परन्तु बीमारी से छुटकारा पाने के लिए उन तम्बुओं पर गन्धक छिड़कने के बाद ही! +\q1 +\s5 +\v 16 क्योंकि वे मर जाएँगे और कोई वंशज नहीं छोड़ेंगे, +\q2 वे ऐसे पेड़ों के समान होंगे जिनकी जड़ें सूख गई हैं और जिनकी शाखाएँ मुर्झा गई हैं। +\q1 +\v 17 पृथ्‍वी पर कोई भी उन्हें अब स्मरण नहीं रखेगा; +\q2 किसी भी सड़क पर कोई भी उनके नामों को स्मरण नहीं रखेगा। +\q1 +\s5 +\v 18 उन्हें पृथ्‍वी छोड़नी होगी, जहाँ प्रकाश है, +\q2 और उस स्थान पर भागना होगा जहाँ अंधेरा है। +\q1 +\v 19 उनके पास कोई संतान या पोते नहीं होंगे, +\q2 कोई वंशज नहीं जहाँ वे पहले रहते थे। +\q1 +\v 20 पूर्व से ले कर पश्चिम तक जो लोग उनके विषय में सुनते हैं कि उनके साथ क्या हुआ, वे सब, +\q2 चौंक जाएँगे और भयभीत होंगे। +\q1 +\s5 +\v 21 तुम्हारे जैसे अधर्मी लोगों के साथ ऐसा ही होता है, +\q2 वे लोग जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं।” + +\s5 +\c 19 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “तुम तीनों कब तक मुझे पीड़ित करोगे +\q2 और दुष्ट कहकर मुझे हतोत्साह करोगे? +\q1 +\s5 +\v 3 तुमने मुझे कई बार अपमानित किया है; +\q2 क्या तुम मुझसे ऐसी बातें करते समय लज्जित नहीं हो? +\q1 +\v 4 भले ही यह सच हो कि मैंने गलत किया था, +\q2 मैंने तुम्हें घायल नहीं किया है! +\q1 +\s5 +\v 5 यदि तुम वास्तव में सोचते हो कि तुम मुझसे अधिक अच्छे हो, +\q2 और यदि तुम तर्क देते हो कि मुझे दोषी होना चाहिए क्योंकि मैं पीड़ित हूँ, +\q1 +\v 6 तुमको यह जान लेना चाहिए कि यह परमेश्वर हैं जिन्होंने मुझे पीड़ा दी है। +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उनके पास जाल है और यह कि उन्होंने मुझे इसमें फँसा लिया है। +\q1 +\s5 +\v 7 मैं पुकारता हूँ, ‘लोग मेरी हत्या कर रहे हैं!’, +\q2 परन्तु कोई भी मुझे उत्तर नहीं देता है। +\q1 मैं ऊँचे स्वर में चिल्लाता हूँ, परन्तु वहाँ कोई भी नहीं है, परमेश्वर भी नहीं, जो मेरे साथ निष्पक्षता का व्यवहार करे। +\q1 +\v 8 ऐसा लगता है कि परमेश्वर ने मेरी सड़क को रोकने कर दिया है, +\q2 और मैं कहीं भी नहीं जा सकता; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने मुझे अन्धकार में सड़क खोजने के लिए विवश कर दिया है। +\q1 +\v 9 उन्होंने मेरी अच्छी प्रतिष्ठा को दूर कर दिया है; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने मेरे सिर पर से मुकुट को हटा दिया है। +\q1 +\s5 +\v 10 वह चारों ओर से मुझ पर वार करते हैं, और मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा। +\q2 अब मैं उनसे अपेक्षा नहीं करता कि वह मेरे लिए कुछ भी अच्छा करे। +\q1 +\v 11 वह मुझ पर आक्रमण करते हैं क्योंकि वह मुझसे बहुत क्रोधित हैं; +\q2 वह मुझे अपने शत्रु जैसा मानते हैं। +\q1 +\v 12 ऐसा लगता है कि मानों वह मुझ पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना भेज रहे थे; +\q2 वे मेरे तम्बू को घेरते हैं +\q2 और मुझ पर आक्रमण करने के लिए तैयार होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 परमेश्वर ने मेरे भाइयों को मुझे त्याग देने के लिए, +\q2 और जो मुझे जानते हैं उन सबको मेरे साथ अपरिचित मनुष्यों का सा व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है। +\q1 +\v 14 मेरे सब सम्बन्धियों और अच्छे मित्रों ने मुझे छोड़ दिया है। +\q1 +\s5 +\v 15 जो लोग मेरे घर में अतिथि थे वे मुझे भूल गए हैं, +\q2 और मेरी दासियाँ मुझे विदेशी मानती हैं जिसे वे नहीं जानती हैं। +\q1 +\v 16 जब मैं अपने दासों को बुलाता हूँ, तो वे उत्तर नहीं देते; +\q2 जब मैं उनसे सहायता करने के लिए अनुरोध करता हूँ, तो वे नहीं आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 मेरी साँस मेरी पत्नी को दुर्गन्ध लगती है, इसलिए वह मुझसे दूर रहती है, +\q2 और मेरे भाई मुझसे घृणा करते हैं। +\q1 +\v 18 यहाँ तक कि छोटे बच्चे भी मुझे तुच्छ समझते हैं; +\q2 जब मैं उनसे बात करने के लिए खड़ा होता हूँ, तो वे मुझ पर हँसते हैं। +\q1 +\v 19 मेरे प्रिय मित्र मुझसे घृणा करते हैं, +\q2 और जिन्हें मैं बहुत प्रेम करता हूँ, वे मेरे विरुद्ध हो गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 मेरा शरीर केवल त्वचा और हड्डियाँ है; +\q2 मैं कठिन से ही जीवित हूँ। +\q1 +\v 21 हे मेरे तीनों मित्रों, मैं तुमसे विनती करता हूँ, मुझ पर दया करो +\q2 क्योंकि परमेश्वर ने मुझे बहुत कठोरता से मारा है। +\q1 +\v 22 क्यों तुम भी मुझे पीड़ित करते हो? क्या तुम अपने को परमेश्वर समझते हो? +\q2 क्यों तुम मुझ पर गलत करने का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त बातें कभी नहीं पाते हो? +\q1 +\s5 +\v 23 मेरी इच्छा है कि कोई मेरे इन शब्दों को ले-ले +\q2 और उन्हें एक पुस्तक में स्थायी रूप से लिख दे कि लोग उन्हें पढ़ सकें। +\q1 +\v 24 अन्यथा, मेरी इच्छा है कि कोई छेनी से मेरे शब्दों को एक चट्टान पर खोद दे +\q2 कि वे हमेशा के लिए बने रहें। +\q1 +\s5 +\v 25 परन्तु मुझे पता है कि जो अदालत में मेरी निन्दा करता है वह जीवित है, +\q2 और वह किसी दिन यहाँ पृथ्‍वी पर खड़ा होगा और अंतिम निर्णय लेगा कि मैं दण्ड होने के योग्य हूँ या नहीं। +\q1 +\v 26 बीमारियों ने मेरे शरीर को नष्ट कर दिया है, परन्तु +\q2 मैं अब भी, मेरे शरीर में परमेश्वर को देखूँगा। +\q1 +\v 27 मैं स्वयं उसे देखूँगा; +\q2 मैं उसे अपनी स्वयं की आँखों से देखूँगा! +\q2 मेरी भावनाएँ मुझ पर प्रबल हो जाती हैं जब मैं इसके विषय में सोचता हूँ! +\q1 +\s5 +\v 28 यदि तुम तीन पुरुष कहो, ‘इस तरह हम उसे पीड़ित करेंगे!’ +\q2 और तुम कहो, ‘इसने अपनी परेशानियाँ स्वयं उत्पन्न की हैं,’ +\q1 +\v 29 तो तुमको डरना चाहिए कि परमेश्वर तुम्हें दण्ड देंगे; +\q1 वह तुम्हारे जैसे लोगों को दण्ड देते हैं जिनसे वह क्रोधित हैं; +\q2 और जब ऐसा होगा, तब तुम जान लोगे कि कोई है जो लोगों का न्याय करता है।” + +\s5 +\c 20 +\p +\v 1 तब सोपर ने फिर से उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “तू ने जो कहा है उसके विषय में मैं बहुत परेशान हूँ, +\q2 इसलिए मैं शीघ्र ही उत्तर देना चाहता हूँ। +\q1 +\v 3 इन बातों को कहकर तू ने मेरा अपमान किया है, +\q2 परन्तु कुछ ऐसा है जिसकी मैं व्याख्या नहीं कर सकता, वह तुझे उत्तर देने में मेरी अगुवाई करता है। +\q1 +\s5 +\v 4 क्या तू नहीं जानता कि बहुत पहले, +\q2 जब से परमेश्वर ने पृथ्‍वी पर लोगों को रखा, +\q1 +\v 5 तब से तेरे जैसे दुष्ट लोग लम्बे समय तक सुख से नहीं रह पाए, +\q2 और जो लोग परमेश्वर का सम्मान करने से इन्कार करते हैं वे केवल एक पल के लिए सुख पाते हैं? +\q1 +\s5 +\v 6 हालाँकि उनका सम्मान आकाश तक पहुँचता है, +\q2 और उनकी प्रसिद्धि बादलों जितनी ऊँची हो जाती है, +\q1 +\v 7 वे अपने मल के समान सदा के लिए लोप हो जाएँगे, +\q2 और जो उन्हें जानते थे वे पूछेंगे, ‘वे कहाँ चले गए?’ +\q1 +\s5 +\v 8 वे एक स्वप्न के समान चले जाएँगे, +\q2 और वे अब अस्तित्व में नहीं होंगे। +\q1 वे रात में लोगों द्वारा देखे जाने वाले स्वप्नों के समान लोप हो जाएँगे। +\q1 +\v 9 वे लोग जो अभी उन दुष्ट लोगों को देखते हैं उन्हें फिर कभी नहीं देख पाएँगे; +\q2 यहाँ तक कि जो लोग उनके साथ रहते थे वे अब उन्हें नहीं देख पाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 10 उनकी संतान को उन मूल्यवान वस्तुओं को वापस करने के लिए विवश होना होगा जिन्हें उन्होंने गरीब लोगों से चुरा लिया था। +\q1 +\v 11 दुष्टों के शरीर एक समय युवा और बलवन्त थे, +\q2 परन्तु वे मर जाएँगे और भूमि में दफन होंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 यद्दपि दुष्टता के कार्य करना उनके मुँह में मीठे भोजन के समान था +\q2 जिसे वे चखते रहना चाहते थे, +\q1 +\v 13 और यद्दपि उन्होंने उन कार्यों को करना बन्द नहीं करना चाहा, +\q1 +\v 14 वे बुरे कार्य किसी दिन विष के समान, +\q2 या साँपों के विष के समान बन जाएँगे जिसे वे निगलते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 दुष्ट लोग स्वयं के लिए धन संग्रह करते हैं, परन्तु वे इसे सदा के लिए नहीं रख पाते हैं, +\q2 जैसे लोग उस भोजन को नहीं रख पाते हैं जिसे वे उल्टी कर देते हैं। +\q1 परमेश्वर उनकी सम्पत्ति उनसे ले लेते हैं। +\q1 +\v 16 बुरे कार्य करना साँप के विष को निगलने जैसा है; +\q2 बुराई करना दुष्टों को ऐसे मार डालेगा जैसे एक विषैले साँप का काटना लोगों को मार डालता है। +\q1 +\s5 +\v 17 परमेश्वर की भरपूर आशीषों को देखने के लिए दुष्ट जीवित नहीं रहेगा, +\q2 जो बहने वाली धारा के समान हैं। +\q1 +\v 18 उन्हें उन वस्तुओं को वापस देने के लिए विवश किया जाएगा जिन्हें उन्होंने गरीबों से चुरा ली थीं; +\q2 वे उन वस्तुओं का सुख भोगते रहने में सक्षम नहीं होंगे। +\q1 जो वे अपने व्यापार से प्राप्त करते हैं वे उसके कारण प्रसन्न नहीं रहेंगे +\q1 +\v 19 क्योंकि उन्होंने गरीब लोगों पर अत्याचार किया और उनकी सहायता करने से इन्कार कर दिया, +\q2 और धोखा दे कर उन्होंने अन्य लोगों के घरों को ले लिया। +\q1 +\s5 +\v 20 वे सदा लालची थे और कभी संतुष्ट नहीं थे। +\q2 इसलिए जब उन्होंने खाया, तो उन्होंने इतना अधिक खा लिया कि उन्होंने कुछ भी नहीं बचाया जिसका उन्होंने सुख भोगा था। +\q1 +\v 21 जब उन्होंने अपना भोजन खाना समाप्त किया, तो वहाँ कुछ भी नहीं बचा था क्योंकि उन्होंने लालच से इसे पूरा खा लिया था; +\q2 परन्तु अब उनकी समृद्धि समाप्त हो जाएगी। +\q1 +\v 22 जबकि वे अभी भी बहुत धनवान हैं, +\q2 वे आकस्मिक परेशानी का सामना करेंगे। +\q2 वे दुर्दशा के मारे होंगे और कुचल दिए जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 23 जब दुष्ट लोग अपने पेट भर रहे हैं, +\q2 परमेश्वर दिखाएँगे कि वह उनसे बहुत क्रोधित हैं, और वह उन्हें दण्ड देंगे; +\q2 वह भूमि पर गिरने वाली वर्षा के समान उन पर कष्ट डालेंगे। +\q1 +\v 24 वे उन लोगों से बचने का प्रयास करेंगे जो उन पर लोहे के हथियारों से आक्रमण करेंगे, +\q2 परन्तु पीतल की नोक वाले तीर उन्हें छेद डालेंगे। +\q1 +\v 25 वे तीर पूरी तरह से उनके शरीर से पार हो जाएँगे और उनकी पीठ से बाहर निकल जाएँगे; +\q2 तीर के चमकदार सिरों से लहू टपक रहा होगा, +\q2 और वे दुष्ट लोग भयभीत हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 26 उनकी सब बहुमूल्य सम्पत्तियाँ नष्ट हो जाएँगी; +\q2 मनुष्यों द्वारा नहीं, परमेश्वर द्वारा लगाई गई आग उन्हें जला देगी +\q2 और उन वस्तुओं को नष्ट कर देगी जो उनके तम्बुओं में छोड़ी गई हैं। +\q1 +\v 27 स्वर्ग के स्वर्गदूत उन पापों को प्रकट करेंगे जो उन दुष्ट लोगों ने किए हैं, +\q2 और पृथ्‍वी पर लोग खड़े होकर उनके विरुद्ध गवाही देंगे। +\q1 +\s5 +\v 28 जिस दिन परमेश्वर लोगों को दण्ड देंगे, +\q2 दुष्ट लोगों के घरों की सारी सम्पत्तियाँ ऐसे दूर की जाएँगी, जैसे एक बाढ़ आ गई थी। +\q1 +\v 29 तेरे जैसे दुष्ट लोगों के साथ यही होगा; +\q2 परमेश्वर ने उनके लिए यही आदेश दिया है।” + +\s5 +\c 21 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने इस तरह से उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “मैं जो कहता हूँ, उसे तुम सब सुनो; +\q2 यही एकमात्र कार्य है जो तुम कर सकते हो जो मुझे विश्राम देगा। +\q1 +\v 3 मेरे साथ धीरज रखो, और मुझे बोलने की अनुमति दो। +\q2 तब, मेरा बोलना समाप्त करने के बाद, तुम मेरा उपहास करते रहना। +\q1 +\s5 +\v 4 यह निश्चय ही मनुष्य नहीं जिनसे मैं शिकायत कर रहा हूँ, परन्तु परमेश्वर हैं! +\q2 और निश्चय ही मेरे लिए उत्सुक होना सही है! +\q1 +\v 5 मुझे देखो! क्या जो तुम देखते हो वह तुमको अचम्भित नहीं करता है +\q2 और तुम्हारे हाथों को तुम्हारे मुँह पर नहीं रखवाता और कुछ और नहीं कहलवाता? +\q1 +\v 6 मेरे साथ जो हुआ है जब मैं उसके विषय में सोचता हूँ, +\q2 तो मैं डर जाता हूँ और मेरा पूरा शरीर थरथराता है। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु मुझे यह पूछने की अनुमति दो: ‘दुष्ट लोग क्यों जीते रहते हैं, +\q2 और समृद्ध हो जाते हैं, और तब तक मरते नहीं हैं जब तक कि बहुत वृद्ध न हो जाएँ?’ +\q1 +\v 8 वे अपने बच्चों को अपने चारों ओर देखते हैं, +\q2 और वे उन्हें बड़ा होते हुए और उनके स्वयं के घरों में रहना आरम्भ करते हुए देखते हैं। +\q1 +\v 9 दुष्ट लोग बिना डर के अपने स्वयं के घरों में रहते हैं, +\q2 और परमेश्वर उन्हें दण्ड नहीं देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 उनके बैल हमेशा गायों के साथ सफलतापूर्वक सम्भोग करते हैं, +\q2 और गायें हमेशा बछड़ों को जन्म देती हैं और कभी भी उनका गर्भपात नहीं होता है। +\q1 +\v 11 दुष्ट लोग अपने छोटे बच्चों को खेलने के लिए बाहर भेजते हैं, +\q2 और बच्चे एक चारागाह में भेड़ के बच्चों के समान सहर्ष चारों ओर कूदते हैं। +\q1 +\v 12 बच्चे ढफ और वीणा की आवाज से गाते हैं, +\q2 और वे बाँसुरी की आवाज सुन कर प्रसन्न होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 दुष्ट लोग जब तक जीवित हैं वे हर समय अच्छी वस्तुएँ रखने का आनन्द लेते हैं, +\q2 और वे चुप चाप मर जाते हैं और मरे हुओं के स्थान में चले जाते हैं। +\q1 +\v 14 जिस समय वे जीवित हैं, वे परमेश्वर से कहते हैं, ‘हमें अकेला छोड़ दीजिए; +\q2 हमें इस बात पर चिन्ता नहीं है कि आप हमसे कैसे अपने जीवन जीने की इच्छा रखते हैं! +\q1 +\v 15 आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्यों सोचते हैं कि हमें आपकी सेवा करनी चाहिए? +\q2 यदि हम आप से प्रार्थना करते हैं तो हमें क्या लाभ होता है?’ +\q1 +\s5 +\v 16 दुष्ट लोग सोचते हैं कि उन्होंने जो किया है उसके कारण वे समृद्ध हो गए हैं, +\q2 परन्तु मुझे उनकी सोच से कोई प्रयोजन नहीं है। +\q1 +\v 17 ऐसा कितनी बार होता है कि दुष्ट लोग, +\q2 विपत्तियों का सामना किए बिना मर जाते हैं? +\q2 क्या परमेश्वर उन्हें कभी दण्ड देते हैं क्योंकि वह उनसे क्रोधित हैं? +\q1 +\v 18 वह उन्हें ऐसे दूर उड़ा नहीं देते जैसे हवा पुआल को दूर उड़ा देती है; +\q2 वे कभी भी बवण्डर द्वारा उठाए नहीं गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 तुम कहते हो, ‘जब लोगों ने पाप किए हैं, +\q2 तो परमेश्वर प्रतीक्षा करते हैं और उन पापों के कारण उनके बच्चों को दण्ड देते हैं;’ +\q1 मैं कहता हूँ कि परमेश्वर उन लोगों को दण्ड दें जो पाप करते हैं, न कि उनके बच्चों को, +\q2 जिससे कि पापियों को पता चले कि यह उनके अपने पापों के कारण है कि उन्हें दण्ड दिया जा रहा है। +\q1 +\v 20 मुझे आशा है कि दुष्ट लोग परमेश्वर द्वारा नष्ट किए जाने का अनुभव पाने के लिए जीवित रहेंगे, +\q2 सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन्हें दण्ड दे रहे हैं वे इसका अनुभव करें। +\q1 +\v 21 के मरने के बाद दुष्ट लोग, +\q2 अपने जीवित परिवारों के लिए बिलकुल भी चिन्तित नहीं होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 क्योंकि परमेश्वर सबका न्याय करते हैं, यहाँ तक कि उनका भी जो लोग स्वर्ग में हैं, +\q2 कौन उसे कुछ भी सिखा सकता है? +\q1 +\v 23 कुछ लोग तब मर जाते हैं जब वे बहुत स्वस्थ होते हैं, +\q2 जिस समय वे शान्ति में हैं और किसी भी वस्तु से भयभीत नहीं हैं। +\q1 +\v 24 उनके शरीर मोटे हैं; +\q2 उनकी हड्डियाँ बलवन्त हैं। +\q1 +\s5 +\v 25 अन्य लोग बहुत दुखी होने के कारण मर जाते हैं; +\q2 उन्होंने कभी उनके साथ हो रही बातों को अच्छी अनुभव नहीं किया। +\q1 +\v 26 वे मर जाते हैं और दफन किए जाते हैं, +\q2 और कीड़े उनके शरीर को ढाँप लेते हैं। +\q1 हर कोई मर जाता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि मरना हमेशा दुष्ट होने की दण्ड नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 27 सुनो, मुझे पता है कि तुम तीनों क्या सोच रहे हो, +\q2 और मैं उन बुरे कार्यों को जानता हूँ जिन्हें तुम मेरे साथ करने की योजना बनाते हो। +\q1 +\v 28 तुम कहते हो, ‘उन तम्बुओं के साथ क्या हुआ जिसमें दुष्ट लोग रह रहे थे? +\q2 दुष्ट शासकों के घर नष्ट हो गए हैं!’ +\q1 +\s5 +\v 29 क्या तुमने कभी उन लोगों से पूछा नहीं जो बहुत यात्रा करते हैं? +\q2 क्या तुम उनके द्वारा देखी गई चीजों के विषय में उनकी चर्चा पर विश्वास नहीं करते हो, +\q1 +\v 30 कि दुष्ट लोग आमतौर पर उस समय पीड़ित नहीं होते जब बड़ी विपत्तियाँ आती हैं; +\q2 कि जब परमेश्वर लोगों को दण्ड देते हैं, तब क्या कोई दुष्टों को बचाता है? वे दुष्ट लोग ही हैं जिन्हें कोई और बचाता है जब परमेश्वर लोगों को दण्ड देते हैं? +\q1 +\s5 +\v 31 ऐसा कोई भी नहीं है जो दुष्ट लोगों पर आरोप लगाता है, +\q2 और ऐसा कोई भी नहीं है जो उन्हें उन सब बुरे कार्यों के लिए प्रतिफल देता है, जो उन्होंने किए हैं। +\q1 +\v 32 जब दुष्ट लोगों के शव उनकी कब्रों में ले जाए जाते हैं, +\q2 तब लोगों को उन कब्रों की रक्षा के लिए रखा जाता है। +\q1 +\v 33 बड़ी संख्या में लोग कब्रिस्तान में जाते हैं; +\q2 कुछ जुलूस के आगे जाते हैं और कुछ पीछे आते हैं, +\q2 और दुष्ट लोग जो मर चुके हैं निश्चय ही अच्छा महसूस करते हैं जब लोग उनकी कब्रों पर मिट्टी डालते हैं। +\q1 +\s5 +\v 34 इसलिए मूर्खता की बात करके तुम कैसे मुझे सांत्वना दे सकते हो? +\q2 जो भी उत्तर तुम मुझे देते हो वह झूठ से भरा है!” + +\s5 +\c 22 +\p +\v 1 तब एलीपज ने, यह कहकर उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “कोई भी परमेश्वर के लिए उपयोगी नहीं हो सकता है! +\q2 बुद्धिमान लोग स्वयं के लिए उपयोगी हो सकते हैं, परन्तु परमेश्वर के लिए नहीं। +\q1 +\v 3 यदि तू धर्मी था, तो वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करेगा, है ना? +\q2 यदि तू ने एक सिद्ध जीवन जीया है, तो वह उसकी सहायता नहीं करेगा, है ना? +\q1 +\s5 +\v 4 क्या तू परमेश्वर का सम्मान करता है, और क्या इसी कारण से वह तुझको दण्ड देते हैं? +\q2 क्या यही कारण है कि वह तुझ पर मुकद्दमा चलाते हैं? +\q1 +\v 5 नहीं, यह निश्चय ही इस कारण होना चाहिए कि तू अत्याधिक दुष्ट है। +\q2 यह इस कारण है कि कोई भी तेरे द्वारा किए गए बुरे कार्यों की गिनती नहीं कर सकता! +\q1 +\s5 +\v 6 तू ने दूसरों को पैसा दिया होगा और तू ने उन्हें अनुचित रूप से विवश किया होगा कि वे पैसा लौटाने के लिए तेरे पास बन्धक रखें; +\q2 तू ने उनके सभी कपड़े ले लिए होंगे और उनके पास पहनने के लिए कुछ भी नहीं बचा होगा। +\q1 +\v 7 तू ने उन लोगों को पानी नहीं दिया होगा जो प्यासे थे, +\q2 और तू ने उन लोगों को भोजन देने से इन्कार कर दिया होगा जो भूखे थे। +\q1 +\v 8 क्योंकि तू बहुत शक्तिशाली था, तू ने लोगों की भूमि पर अधिकार कर लिया होगा, +\q2 और फिर तू ने उस भूमि पर रहना आरम्भ कर दिया, भले ही दूसरों ने तुझे बहुत सम्मानित किया। +\q1 +\s5 +\v 9 जब विधवाएँ तेरे पास सहायता के लिए आईं, तो तू ने उन्हें कुछ भी दिए बिना भेज दिया होगा, +\q2 और ने अनाथों पर अत्याचार किया होगा। +\q1 +\v 10 क्योंकि तू ने उन सब कार्यों को किया है, अब वहाँ फन्दे हैं जो तुझे फँसा लेंगे; +\q2 अब ऐसी बातें दिखाई देती हैं जो तुझे डराती हैं और तुझे थरथरा देती हैं। +\q1 +\v 11 ऐसा लगता है कि मानों बहुत अंधेरा हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप तू कुछ भी नहीं देख सकता था, +\q2 और ऐसा लगता है कि मानों एक बाढ़ ने तुझे डुबा दिया है। +\q1 +\s5 +\v 12 परन्तु हे अय्यूब, इस पर विचार कर: परमेश्वर सबसे ऊँचे स्वर्ग में रहते हैं। +\q2 वहाँ से वह नीचे सबसे ऊँचे सितारों पर दृष्टि करते हैं। +\q1 +\v 13 इसलिए तू क्यों कहता है, ‘जो हम कर रहे हैं उसके विषय में परमेश्वर कुछ भी नहीं जानते’? +\q2 और तू क्यों कहता है, ‘काले बादल उन्हें हमें देखने से रोकते हैं, इसलिए वह हमारा न्याय नहीं कर सकते’? +\q1 +\v 14 क्या तुझे लगता है कि जब वह आकाश को ढाँपने वाले गुम्मट पर चलता है, +\q2 जहाँ उसके चारों ओर घने बादल हैं, वह नहीं देख सकता कि हम क्या करते हैं?’ +\q1 +\s5 +\v 15 हे अय्यूब, क्या तू अपने जीवन का पुराना मार्ग ही पकड़े रहेगा? +\q2 जैसा बुरे लोगों ने कई वर्षों तक किया है? +\q1 +\v 16 जिस समय वे युवा ही थे, वे अचानक मर गए; +\q2 वे ऐसे लोप हो गए जैसे बाढ़ आने पर सब कुछ लोप हो जाता है। +\q1 +\v 17 वे परमेश्वर से कहते रहे, ‘हमें अकेला छोड़ दीजिए,’ हमें अकेले रहने की अनुमति दीजिए,’ +\q2 और उन्होंने अपमानजनक रूप से भी कहा, ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमें हानि पहुँचाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते!’ +\q1 +\s5 +\v 18 फिर भी यह परमेश्वर थे जिन्होंने उनके घरों को अच्छी वस्तुओं से भर दिया; +\q2 इसलिए मैं दुष्ट की बनाई योजना का पालन करने के लिए बिलकुल सहमत नहीं हो सकता। +\q1 +\v 19 जब धर्मी लोग देखते हैं कि परमेश्वर दुष्ट लोगों को दण्ड देते हैं, तब वे आनन्दित होते हैं, +\q2 और वे उन दुष्ट लोगों पर हँसते हैं। +\q1 +\v 20 वे कहते हैं, ‘अब हमारे शत्रुओं को नष्ट कर दिया गया है, +\q2 और उनकी सम्पत्ति में से कुछ भी बचा तो आग ने जला दिया है।’ +\q1 +\s5 +\v 21 इसलिए, हे अय्यूब, परमेश्वर से मेल-मिलाप कर और उनके साथ शान्ति बना; +\q2 यदि तू ऐसा करता है, तो तेरे साथ अच्छी बातें घटित होंगी। +\q1 +\v 22 उन्हें तुझे सिखाने की अनुमति दे, +\q2 और उनके शब्दों को अपने मन में डाल लो। +\q1 +\s5 +\v 23 यदि तू स्वयं को नम्र बनाए और परमेश्वर के पास लौट आए, तो वह तुझे पुनःस्थापित करेंगे; +\q2 यदि तू अपने घर में जो भी बुरे कार्य कर रहा था उनको करना बन्द कर दे, +\q1 +\v 24 और यदि तू अपना सोना फेंक दे, +\q2 ओपीर देश की शुष्क धारा के तटों का बढ़िया सोना, +\q1 +\v 25 तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर तेरे लिए उतने ही मूल्यवान होंगे जितना तेरा सोना और तेरी चाँदी थी। +\q1 +\s5 +\v 26 तब तू परमेश्वर के कारण आनन्दित रहेगा, +\q2 और तू विश्वास के साथ उनके निकट जाने में सक्षम होगा। +\q1 +\v 27 तू उनसे प्रार्थना करेगा, और वह वही करेंगे जो तू ने उनसे करने का अनुरोध किया है; +\q2 तू उन कार्यों को करेगा जिसकी तू ने उनसे प्रतिज्ञा की है कि तू करेगा। +\q1 +\v 28 तू जो कुछ भी करने का निर्णय लेता है तो वह सफल होगा; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों सड़क पर तेरे सामने प्रकाश चमक रहा है। +\q1 +\s5 +\v 29 परमेश्वर उन लोगों को नम्र करते हैं जो घमण्डी हैं, +\q2 परन्तु वह उन लोगों की रक्षा करते हैं जो निराश हैं। +\q1 +\v 30 परमेश्वर उन लोगों को बचाते हैं जो निर्दोष हैं; +\q2 यदि तू उचित कार्य करना आरम्भ कर दे तो तुझे बचाया जाएगा।” + +\s5 +\c 23 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने उत्तर दिया और कहा: +\q1 +\v 2 “आज मैं फिर से परमेश्वर से कड़वाहट भरी शिकायत कर रहा हूँ; +\q2 मैं कराहता रहता हूँ, परन्तु मुझे और भी भुगतना पड़ता है। +\q1 +\s5 +\v 3 मेरी इच्छा है कि मुझे पता हो कि मैं उनसे कहाँ मिल सकता हूँ +\q2 कि मैं उस स्थान पर जा सकूँ जहाँ वह रहते हैं। +\q1 +\v 4 यदि मैं ऐसा कर सकता, तो मैं उन्हें बताऊँगा कि मुझे क्यों पता है कि मैं निर्दोष हूँ; +\q2 मैं उन्हें इसके लिए कई कारण बताऊँगा। +\q1 +\v 5 तब मैं खोज करूँगा और समझ जाऊँगा कि वह मुझे क्या उत्तर देंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 क्या वह मेरे साथ वाद-विवाद करने के लिए अपनी महान शक्ति का उपयोग करेंगे? +\q2 नहीं, वह ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनेंगे। +\q1 +\v 7 मैं एक सच्चा मनुष्य हूँ, इसलिए मैं उनके साथ निष्पक्ष रूप से चर्चा करने में सक्षम होऊँगा, +\q2 और फिर वह घोषणा करेंगे कि मैं निर्दोष हूँ, और वह मुझे फिर से परेशान नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं पूर्व में गया हूँ, और वह वहाँ नहीं हैं; +\q2 मैं पश्चिम में गया हूँ, परन्तु वह मुझे वहाँ नहीं मिले हैं। +\q1 +\v 9 मैं उत्तर में गया हूँ और मैं दक्षिण में गया हूँ, +\q2 परन्तु मैंने उन्हें कहीं भी नहीं देखा है क्योंकि वह स्वयं को मुझसे छिपा लेते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 वह जानते हैं कि मैंने अपना जीवन कैसे जीया है; +\q2 जब उन्होंने मेरा परीक्षण पूरा कर लिया है, तो वह देखेंगे कि मैं सोने के समान शुद्ध हूँ, जिसकी अशुद्धियों को जला दिया गया है। +\q1 +\v 11 मैं उस मार्ग पर विश्वासपूर्वक चला हूँ जो उन्होंने मुझे दिखाया; +\q2 मैं उनका आज्ञापालन करने से दूर नहीं हुआ हूँ। +\q1 +\v 12 उन्होंने जो आदेश दिया है मैंने सदा उसका पालन किया है; +\q2 मैंने अपने मन में उन शब्दों को छिपा लिया है जो उन्होंने कहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 वह कभी नहीं बदलते हैं। ऐसा कोई भी नहीं है जो उन्हें वह करने से रोक सकता है जिसकी वे इच्छा करते हैं। +\q2 जो कुछ भी वह करना चाहते हैं, वह करते हैं। +\q1 +\v 14 वह उन कार्यों को पूरा करेंगे जिनकी उन्होंने मेरे लिए योजना बनाई है, +\q2 और मुझे निश्चय है कि उन्होंने मेरे लिए कई बातें करने के विषय में सोचा है। +\q1 +\s5 +\v 15 इसलिए जब मैं उनके सामने हूँ तो मैं डरता हूँ; +\q2 जब मैं इस विषय में सोचता हूँ कि वह क्या कर सकते हैं, तो मैं बहुत भयभीत होता हूँ। +\q1 +\v 16 सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे बहुत भयभीत कर दिया है। +\q1 +\v 17 वह ऐसा है जैसे मेरे सामने घोर अन्धकार है, +\q2 परन्तु अन्धकार नहीं, परमेश्वर ही है जो मुझे नष्ट करते हैं।” + +\s5 +\c 24 +\q1 +\p +\v 1 “सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक समय क्यों निर्धारित नहीं करते जब वह बुरे लोगों का न्याय करेंगे? +\q2 जो लोग परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं उनको कभी भी नहीं लगता कि वे उन्हें दुष्ट लोगों का न्याय होते देखें। +\q1 +\s5 +\v 2 कुछ दुष्ट लोग अन्य लोगों की भूमि के सीमा चिन्हों को हटा देते हैं; कि उनकी भूमि ले लें, +\q2 वे अन्य लोगों की भेड़ें जब्त कर लेते हैं और उन्हें अपने चारागाहों में डाल देते हैं। +\q1 +\v 3 कुछ अनाथों के गधे को छीन लेते हैं, +\q2 और वे विधवाओं के बैल को यह आश्वासन देने के लिए लेते हैं कि वे विधवाएँ वह धन वापस देंगी जो उन्होंने उन विधवाओं को ऋण में दिया था। +\q1 +\v 4 कुछ लोग गरीब लोगों को सड़क से दूर फेंक देते हैं, +\q2 और वे गरीब लोगों को विवश करते हैं कि उनसे छिपने के लिए स्थानों की खोज करें। +\q1 +\s5 +\v 5 परिणाम यह है कि गरीब लोगों को रेगिस्तानी मैदान में भोजन की खोज करनी पड़ती है +\q2 जैसे जंगली गधे करते हैं। +\q1 +\v 6 गरीब लोग दूसरों के खेतों में बचे हुए अनाज को चुनते हैं, +\q2 और दुष्ट पुरुषों की दाख की बारियों से बचे हुए अँगूर उठाते हैं। +\q1 +\v 7 रात में अपने शरीरों को ढाँपने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है, +\q2 उन्हें गर्म रखने के लिए कुछ भी नहीं। +\q1 +\s5 +\v 8 जब पर्वतों पर वर्षा होती है, तो वे बहुत गीले हो जाते हैं, +\q2 इसलिए वे वर्षा से स्वयं को बचाने के लिए चट्टानों के उभारों के नीचे सिमट जाते हैं। +\q1 +\v 9 कुछ दुष्ट लोग गरीब, अनाथ दूध पीते बच्चे को उनकी माँ से छीन लेते हैं; +\q2 वे कहते हैं, ‘जब मेरे द्वारा उधार दी गई धनराशि को तुम चुका दोगी तो मैं तुम्हारे दूध पीते बच्चे को वापस कर दूँगा।’ +\q1 +\v 10 परन्तु गरीब लोग बिना कपड़ों के चारों ओर घूमते हैं; +\q2 जिस समय वे अन्य लोगों के अनाज के गट्ठों को उन स्थानों पर ले जाने के लिए कार्य कर रहे हैं जहाँ उनके अनाज को दाँवनी किया जाता है। +\q1 +\s5 +\v 11 तब वे भूखे होते हैं, उनके लिए जैतून का तेल बनाने के लिए गरीब लोगों को भाड़े पर लेते है; +\q2 वे दाखमधु के लिए अँगूर का रस निकालने के लिए अँगूर कुचलते हैं, +\q2 परन्तु जब वे प्यासे होते हैं तो उन्हें इसमें से कुछ भी पीने को नहीं दिया जाता है। +\q1 +\v 12 शहरों में, जो लोग घायल हैं और मर रहे हैं वे सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारते हैं, +\q2 परन्तु परमेश्वर उनकी प्रार्थनाओं को अनसुना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 कुछ दुष्ट लोग प्रकाश से बचते हैं क्योंकि वे अन्धकार में बुरे कार्य करते हैं; +\q2 वे प्रकाशमान सड़कों पर नहीं चलते हैं। +\q1 +\v 14 हत्यारे रात के समय वस्तुएँ चुरा लेते हैं, +\q2 और फिर वे भोर से पहले उठ जाते हैं कि वे फिर से बाहर जा सकें और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों को मार सकें। +\q1 +\s5 +\v 15 जो लोग व्यभिचार करना चाहते हैं वे शाम के होने की प्रतीक्षा करते हैं; +\q2 वे कहते हैं, ‘मैं नहीं चाहता कि कोई मुझे देखे,’ इसलिए वे अपने चेहरों को ढाँपे रखते हैं। +\q1 +\v 16 यह रात का समय है कि लुटेरों ने वस्तुएँ चुराने के लिए घरों को तोड़ दिया, +\q2 परन्तु दिन के समय वे छिप जाते हैं क्योंकि वे प्रकाश में देख लिए जाने से बचना चाहते हैं। +\q1 +\v 17 ये सब लोग रात में अपने बुरे कार्यों को करना चाहते हैं, दिन में नहीं जब प्रकाश होता है, +\q2 क्योंकि वे रात में होने वाली उन बातों से डरते नहीं हैं जो दूसरों को डराती हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 परन्तु दुष्ट लोग अति शीघ्र लोप हो जाएँगे, +\q2 और परमेश्वर उस भूमि को श्राप देंगे जो उनके स्वामित्व में थी; +\q2 कोई भी अब उनकी दाख की बारियाँ में कार्य करने के लिए नहीं जाएगा। +\q1 +\v 19 जिस प्रकार गर्म हो जाने पर बर्फ पिघल जाती है और वर्षा नहीं होती है, +\q2 जिन्होंने पाप किए हैं वे उस स्थान में जा कर लोप हो जाएँगे जहाँ मृत लोग हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 यहाँ तक कि उनकी माताएँ भी उन्हें स्मरण नहीं रखेंगी; +\q2 दुष्ट लोग काट दिए गए पेड़ के समान नष्ट हो जाएँगे, +\q2 और उनके शवों को कीड़े खाएँगे। +\q1 +\v 21 दुष्ट लोग उन स्त्रियों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं जो उन बच्चों को जन्म देने में असमर्थ रही हैं जो उनकी देखभाल करने के लिए बड़े हो गए होते; +\q2 दुष्ट लोग कभी भी विधवाओं की सहायता नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 परन्तु परमेश्वर, अपनी शक्ति से, सामर्थी लोगों से छुटकारा पाते हैं। +\q2 वह दुष्ट लोगों को मर जाने देते हैं। +\q1 +\v 23 परमेश्वर उन्हें यह सोचने की अनुमति देते हैं कि वे सुरक्षित और भयरहित हैं, +\q2 परन्तु वह उन्हें हर समय देख रहे होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 वे थोड़े समय के लिए समृद्ध हुए, +\q2 और फिर अकस्मात ही वे चले गए हैं; +\q2 परमेश्वर उन्हें अन्य सब लोगों के समान मर जाने देंगे; +\q2 वे अनाज के डंठलों के समान होंगे जिन्हें किसानों ने काट दिया है। +\q1 +\v 25 यदि यह सच नहीं है, तो क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो दिखाएगा कि मैं झूठा हूँ +\q2 और मुझे गलत सिद्ध करेगा?” + +\s5 +\c 25 +\p +\v 1 तब बिल्दद ने भी उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं, हर किसी को उनका बहुत सम्मान करना चाहिए; +\q2 वह बिना किसी भ्रम के, स्वर्ग में सब कुछ शान्तिपूर्ण होने देते हैं। +\q1 +\v 3 क्या कोई उन स्वर्गदूतों को गिन सकता है जो स्वर्ग में उनकी सेना में हैं? +\q2 क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिस पर उनका प्रकाश चमकता नहीं है? +\q1 +\s5 +\v 4 इसलिए परमेश्वर किसी भी व्यक्ति का धर्मी होना कैसे मान सकते हैं? +\q2 वह किसी मनुष्य को कैसे स्वीकार कर सकते हैं? +\q1 +\v 5 इस पर विचार करो: परमेश्वर यह भी नहीं सोचते कि पूरा चँद्रमा चमकदार है, +\q2 और वह आकाश के सितारों को भी उनके योग्य होने के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। +\q1 +\v 6 तो मनुष्यों के विषय में क्या? +\q2 वे कीड़ों के समान महत्वहीन हैं। +\q2 परमेश्वर कीड़े से बढ़कर लोगों के लिए नहीं सोचते हैं।” + +\s5 +\c 26 +\p +\v 1 अय्यूब ने बिल्दद को उत्तर दिया: +\q1 +\v 2 “मैं बहुत दुर्बल और असहाय व्यक्ति हूँ; +\q2 तुम वास्तव में नहीं सोचते कि तुमने मेरी सहायता की है, है ना? +\q1 +\v 3 तुम निश्चय ही नहीं सोचते कि तुमने मुझे अच्छी सलाह दी है, है ना? - मैं, जो बिलकुल बुद्धिमान नहीं हूँ। +\q1 +\v 4 उन सब बड़ी बातों को कहने में किसने तुम्हारी सहायता की? +\q2 तुमको इस तरह से बोलने के लिए किसने प्रेरित किया? +\q1 +\s5 +\v 5 मृत लोगों की आत्मा भय से थरथराती है, +\q2 जो पृथ्‍वी की गहराई पानी के नीचे हैं +\q1 और हर कोई जो उनके साथ रहता है। +\q1 +\v 6 परमेश्वर उन सबके विषय में जानते हैं जो मरे हुओं के स्थान में हैं; +\q2 वहाँ नीचे कुछ भी नहीं है जो परमेश्वर को यह देखने से रोकता है कि वहाँ क्या है। +\q1 +\s5 +\v 7 परमेश्वर आकाश को +\q1 खाली स्थान पर फैलाते हैं, +\q2 और वह पृथ्‍वी को उस विशाल खाली स्थान में रखते हैं, परन्तु यह किसी भी वस्तु पर टिकी हुई नहीं है। +\q1 +\v 8 वह घने बादलों को पानी से भरते हैं +\q2 और उस पानी से बादलों को फटने से रोकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 वह बादलों से चँद्रमा को धुंधला कर देते हैं। +\q1 +\v 10 वह प्रकाश को अँधेरे से अलग करते हैं +\q2 और उस स्थान को चिन्हित करने के लिए क्षितिज को रखते हैं जहाँ रात समाप्त होती है और दिन आरम्भ होता है। +\q1 +\s5 +\v 11 जब वह क्रोधित होते हैं, तब ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने आकाश को थामने वाले खम्भों को डाँट दिया है। +\q2 वे चौंक गए हैं, और वे थरथराते हैं। +\q1 +\v 12 अपनी शक्ति से उन्होंने समुद्र को शान्त किया; +\q2 अपनी युक्ति से उन्होंने विशाल समुद्री राक्षस राहाब को नष्ट कर दिया। +\q1 +\s5 +\v 13 अपनी साँस से उन्होंने आकाश को उज्ज्वल कर दिया; +\q2 अपने हाथ से उन्होंने समुद्र के बड़े अजगर को मार डाला जब वह उनसे भाग रहा था। +\q1 +\v 14 परन्तु ये घटनाएँ उनकी शक्ति की केवल थोड़ी सी मात्रा दिखाती है; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों हम केवल उनकी शक्तिशाली आवाज की फुसफुसाहट को सुन रहे थे। +\q2 जब हम गगड़ाहट सुनते हैं, तो हम कहते हैं, ‘वास्तव में कौन समझ सकता है कि उनकी शक्ति कितनी महान है?’” + +\s5 +\c 27 +\p +\v 1 अय्यूब अपने तीनों मित्रों से बात करता रहा: +\q1 +\v 2 “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरे साथ उचित व्यवहार करने से इन्कार कर दिया है। +\q2 उन्होंने मुझे कड़वाहट का बोध करवाया है। +\q2 परन्तु जैसा कि निश्चित रूप से वह जीवित हैं, +\q1 +\v 3 मैं यह तब तक कहूँगा जब तक परमेश्वर के आत्मा मुझे साँस लेने में सक्षम बनाते हैं! +\q1 +\s5 +\v 4 मैं झूठ नहीं बोलूँगा! +\q2 मैं किसी को भी धोखा देने के लिए कुछ भी नहीं कहूँगा। +\q1 +\v 5 मैं कभी स्वीकार नहीं करूँगा कि तुम तीनों ने जो कुछ कहा है वह सच है; +\q2 जिस दिन मैं मरूँगा उस दिन मैं जोर दे कर कहूँगा कि मैंने ऐसे कार्य नहीं किए हैं जो गलत हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं कहूँगा कि मैं निर्दोष हूँ, और मैं कभी भी कुछ अलग नहीं कहूँगा; +\q2 जब तक मैं जीवित हूँ तब तक मेरा अन्त:करण मुझे कभी नहीं धिक्कारेगा। +\q1 +\v 7 मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर मेरे शत्रुओं को दण्ड दें जैसे वह सब दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे; +\q2 मैं चाहता हूँ कि वह उन लोगों को दण्ड दें जो मेरा विरोध करते हैं जैसे वह सब अधर्मी लोगों को दण्ड देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 जब परमेश्वर के लिए अधर्मी लोगों से छुटकारा पाने और उनके लिए मृत्यु लाने का समय आता है, +\q2 तब निश्चय ही कुछ भी अच्छा नहीं है जिसके होने की वे आत्म-विश्वास से आशा कर सकते हैं। +\q1 +\v 9 जब वे परेशानियों का सामना करते हैं, तब परमेश्वर उनकी सहायता के लिए उनकी पुकार को नहीं सुनेंगे, क्या वह सुनेंगे? +\q1 +\v 10 क्या वे इस विषय में आनन्दित होंगे जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर करते हैं? +\q2 क्या वे उससे निरन्तर प्रार्थना करना आरम्भ कर देंगे? +\q2 निश्चय ही नहीं! +\q1 +\s5 +\v 11 मैं तुम तीनों को परमेश्वर की शक्ति के विषय में कुछ सिखाऊँगा; +\q2 मैं तुम पर प्रकट करूँगा कि वह क्या सोच रहे है। +\q1 +\v 12 तुम तीनों ने अपने लिए उन शक्तिशाली कार्यों को देखा है जो परमेश्वर ने किए हैं; +\q2 इसलिए मुझे समझ में नहीं आता कि तुम मुझसे इतनी व्यर्थ की बातें क्यों कर रहे हो। +\q1 +\s5 +\v 13 मैं तुम्हें बताऊँगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर दुष्ट लोगों के साथ क्या करते हैं, +\q2 वह उन लोगों के साथ क्या करते हैं जो दूसरों से बुरा व्यवहार करते हैं। +\q1 +\v 14 यहाँ तक कि यदि उनके कई बच्चे हों, तो भी वे बच्चे युद्ध में मर जाएँगे, +\q2 या वे इस कारण मर जाएँगे कि उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 15 उनके मरने के बाद उनके बच्चे जो अभी भी जीवित हैं वे बीमारियों से नाश हो जाएँगे, +\q2 और जिन पत्नियों को वे पीछे छोड़ जाते हैं वे उनके लिए शोक भी नहीं करेंगी। +\q1 +\v 16 कभी-कभी दुष्ट लोग एक बड़ी मात्रा में चाँदी +\q2 और कुम्हार के मिट्टी के ढेर के समान वस्त्रों का ढेर एकत्र कर लेते हैं, +\q1 +\v 17 परन्तु वे दुष्ट लोग मर जाएँगे, और फिर धर्मी लोग उन वस्त्रों को पहनेंगे, +\q2 और निष्ठावान लोग उनकी चाँदी को प्राप्त करेंगे और इसे अपने बीच में विभाजित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 18 जो घर वे बनाते हैं वे मकड़ी के जाल के समान होते हैं; +\q2 वे झोपड़ियों के समान हैं जिसमें लोगों के खेतों की रक्षा करते समय पहरेदार रखते हैं। +\q1 +\v 19 दुष्ट लोग जब रात में लेटते हैं तो धनवान होते हैं, +\q2 परन्तु जब वे सुबह जागते हैं, तो पाते हैं कि उनका पैसा लोप हो गया है। +\q1 +\s5 +\v 20 जो लोग उन्हें डराते हैं वे एक ऐसी बाढ़ के समान उनकी ओर आते हैं जिसकी वे अपेक्षा नहीं करते हैं; +\q2 रात के समय एक बवण्डर उन्हें उड़ा ले जाता है। +\q1 +\v 21 ऐसा लगता है कि मानों पूर्व की हवा ने उन्हें उठा लिया था और उन्हें अपने घरों से दूर ले गई थी, +\q2 और वे सदा के लिए लोप हो जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 वह हवा उन पर दया किए बिना वार करती है +\q2 जिस समय वे उसकी शक्ति से बचने के प्रयास में भाग रहे हैं। +\q1 +\v 23 वह हवा किसी ऐसे व्यक्ति के समान है जो उनका उपहास करने के लिए अपने हाथों से तालियाँ बजा रहा है, +\q2 उन पर चीख-चिल्ला रहा है और उन्हें भागने के लिए विवश कर रहा है।” + +\s5 +\c 28 +\q1 +\p +\v 1 “यह सच है कि ऐसे स्थान हैं जहाँ लोग चाँदी खोजने के लिए खुदाई करते हैं, +\q2 और ऐसे स्थान हैं जहाँ लोग उस सोने को शुद्ध करते हैं जिसे उन्होंने खोदा है। +\q1 +\v 2 लोग भूमि से कच्चा लोहा खोद कर निकालते हैं, +\q2 और वे तांबा भी पिघलाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 जिस समय पुरुष खानों के भीतर कच्चे लोहे की खोज के लिए +\q2 भूमि के भीतर बहुत नीचे कार्य करते हैं तो वे दीपक का उपयोग करते हैं +\q2 जहाँ बहुत अन्धकार है। +\q1 +\v 4 वे उन स्थानों पर गड्ढे खोदते हैं जो लोगों के रहने के स्थान से बहुत दूर हैं, +\q2 जहाँ यात्री नहीं जाते हैं। +\q1 वे अन्य लोगों से बहुत दूर कार्य करते हैं, +\q2 वे रस्सी पर आगे और आगे झूलते हुए खानों के गड्ढों में आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 भोजन भूमि की सतह पर उगता है, +\q2 परन्तु भूमि के नीचे, जहाँ कोई भोजन नहीं है, चट्टानों को तोड़ने के लिए खदान कर्मी आग लगाते हैं। +\q1 +\v 6 भूमि के नीचे से खोदे गए पत्थरों में नीलमणि होते हैं, +\q2 और धूल में सोने के कण होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 कुछ पक्षियों की बहुत अच्छी आँखें होती हैं, +\q1 परन्तु यहाँ तक कि बाज को नहीं पता कि खानें कहाँ हैं, +\q2 और गिद्ध ने उन स्थानों को नहीं देखा है। +\q1 +\v 8 शेर या अन्य घमण्डी जंगली जानवर कभी उन स्थानों पर नहीं गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 खदान कर्मी बहुत कठोर चट्टान को खोदते हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने कच्चा लोहा पाने के लिए पर्वतों को उलट दिया है। +\q1 +\v 10 वे चट्टानों के बीच से सुरंगों को बनाते हैं, +\q2 और उन्हें बहुमूल्य वस्तुएँ मिलती हैं। +\q1 +\v 11 वे छोटी नदियों को बहने से रोकने के लिए पानी को बाँधते हैं, +\q2 और वे उन वस्तुओं को प्रकाश में लाते हैं जो भूमि में और नदियों में छिपी हुई हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 परन्तु ज्ञान: लोग इसे कहाँ पा सकते हैं? +\q2 हम कहाँ जा कर खोजें कि बातों को वास्तव में कैसे समझें? +\q1 +\v 13 मनुष्य नहीं जानते कि ज्ञान का वास्तव में क्या मूल्य है; +\q2 कोई भी इसे यहाँ इस पृथ्‍वी पर नहीं ढूँढ़ सकता, जहाँ वे रह रहे हैं। +\q1 +\v 14 ऐसा लगता है कि मानों पृथ्‍वी के नीचे जो पानी है और समुद्र में जो पानी है, उसने कहा, +\q2 ‘मेरे पास यह नहीं है!’ +\q1 +\s5 +\v 15 लोग ज्ञान को +\q2 चाँदी या सोने से नहीं मोल ले सकते हैं। +\q1 +\v 16 ज्ञान ओपीर देश के उत्तम सोने की तुलना में बहुत अधिक बहुमूल्य है, +\q2 बहुत मूल्यवान पत्थरों से कहीं अधिक कीमती। +\q1 +\v 17 यह सोने या सुन्दर बिल्लौर से कहीं अधिक मूल्यवान है; +\q2 ज्ञान अति उत्तम गहनों से अधिक महँगा है, और यह शुद्ध सोने से बने फूलदान से अधिक मूल्यवान है। +\q1 +\s5 +\v 18 ज्ञान मूँगे या स्फटिक बिल्लौर से कहीं अधिक मूल्यवान है; +\q2 ज्ञान की कीमत माणिकों की कीमत से कहीं अधिक है। +\q1 +\v 19 इथियोपिया के पुखराज और शुद्ध सोने की कीमतें +\q2 ज्ञान के मूल्य से कम हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 अतः ज्ञान कहाँ से आता है? +\q2 हम कहाँ जा कर खोज सकते हैं कि बातों को वास्तव में कैसे समझें? +\q1 +\v 21 कोई जीवित मनुष्य इसे देख नहीं सकता है; +\q2 और पक्षी आकाश में रहते हुए इसे नहीं देख सकते हैं। +\q1 +\v 22 ऐसा लगता है कि मानों लोग मरने के बाद जहाँ जाते हैं, उन स्थानों ने कहा है, +\q2 ‘हमने केवल इस विषय में अफवाहें सुनी हैं कि ज्ञान कहाँ से प्राप्त करें।’ +\q1 +\s5 +\v 23 परमेश्वर ही एकमात्र हैं जो जानते है कि ज्ञान कैसे पाया जाए; +\q2 वह जानते हैं कि यह कहाँ है +\q1 +\v 24 क्योंकि वह पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों में भी चीजें देख सकते हैं; +\q2 वह आकाश के नीचे की हर वस्तु को देख सकते हैं। +\q1 +\v 25 उन्होंने निर्णय किया है कि हवाओं को कितनी प्रचण्डता से बहना चाहिए, +\q2 और बादलों में कितनी वर्षा होनी चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 26 उन्होंने निर्णय किया है कि वर्षा कहाँ गिरनी चाहिए, +\q2 और भूमि पर गिरने के लिए बिजली को बादलों से कौन सा मार्ग लेना चाहिए। +\q1 +\v 27 उस समय उसने ज्ञान को देखा और निर्णय किया कि यह बहुत मूल्यवान है। +\q2 उन्होंने इसकी जाँच की और इसे अनुमति दे दी। +\q1 +\v 28 और फिर उसने मनुष्यों से कहा, ‘सुनो! यदि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो, तो तुम बुद्धिमान बनने में सक्षम होंगे; +\q2 वास्तव में सब कुछ समझने के लिए, तुमको पहले बुराई करने से दूर हो जाना चाहिए।’” + +\s5 +\c 29 +\p +\v 1 अय्यूब ने फिर से बात की और यह कहा: +\q1 +\v 2 “मेरी इच्छा है कि मैं वैसा हो सकूँ जैसा मैं पहले था +\q2 उन वर्षों के जैसा जब परमेश्वर ने मेरा ध्यान रखा था। +\q1 +\v 3 उन वर्षों में, ऐसा लगता था कि मानों परमेश्वर का दीपक मुझ पर चमका था +\q2 और अन्धकार में चलते समय मुझे प्रकाश दिया। +\q1 +\s5 +\v 4 उस समय मैं युवा और बलवन्त था, +\q2 और क्योंकि परमेश्वर मेरे मित्र थे, इसलिए जहाँ मैं रहता था वहाँ उन्होंने मेरी सुरक्षा की। +\q1 +\v 5 सर्वशक्तिमान परमेश्वर उन वर्षों में मेरे साथ थे +\q2 जब मेरे सब बच्चे मेरे आस-पास थे। +\q1 +\v 6 मेरे पशुओं ने मुझे बहुत दूध दिया, +\q2 और उस चट्टान से तेल की धाराएँ बहती थीं जहाँ मेरे सेवकों ने जैतूनों को कुचला था। +\q1 +\s5 +\v 7 जब भी मैं उस स्थान पर जाता था जहाँ शहर के फाटक पर प्राचीन एकत्र होते थे, +\q2 मैं उनके साथ बैठता था, +\q1 +\v 8 और जब युवा पुरुष ने मुझे देखते, तो वे सम्मानपूर्वक इधर उधर हो जाते थे, +\q2 और वृद्ध व्यक्ति भी सम्मान से खड़े हो जाते थे। +\q1 +\s5 +\v 9 लोगों के अगुवे भी बात करना बन्द कर देते थे, +\q1 +\v 10 और यहाँ तक कि सबसे महत्वपूर्ण पुरुष भी चुप हो जाते थे, +\q2 और मेरी बातों के लिए बात करना बन्द कर देते थे। +\q1 +\s5 +\v 11 जब उन सब ने वह सुना जो मैंने उन्हें बताया, +\q2 तो उन्होंने मेरे विषय में अच्छी बातें कही। +\q1 जब उन्होंने मुझे देखा, तो उन्होंने सदा मेरी प्रशंसा की +\q1 +\v 12 क्योंकि जो गरीब थे उनकी मैंने सहायता की थी जब वे सहायता के लिए पुकारते थे, +\q2 और क्योंकि मैंने उन अनाथों की सहायता की जिनके पास सहायता करने के लिए कोई नहीं था। +\q1 +\v 13 जो पीड़ित थे और मरने वाले थे, उन्होंने मेरी प्रशंसा की, +\q2 और मैंने विधवाओं को आनन्द से गाने वाली बना दिया, क्योंकि मैंने उनकी सहायता की थी। +\q1 +\s5 +\v 14 मैंने हमेशा न्यायपूर्वक कार्य किया; +\q2 मेरे कार्य एक वस्त्र के समान थे जो मैंने पहना था और एक पगड़ी के समान थे जो मेरे सिर के चारों ओर लपेटी गई थी। +\q1 +\v 15 ऐसा लगता था कि मानों मैं स्वयं अंधे लोगों के लिए देखा करता था +\q2 और लंगड़े लोगों के लिए चला करता था। +\q1 +\v 16 मैं गरीब लोगों के लिए पिता के समान था, +\q2 और अदालतों में मैंने उन लोगों का बचाव किया जो मेरे लिए अपरिचित थे। +\q1 +\s5 +\v 17 मैंने दुष्ट लोगों का दूसरों पर अत्याचार करना बन्द करवा दिया; यह ऐसा था जैसे कि कोई व्यक्ति जंगली जानवरों के दाँत तोड़ देता है +\q2 और उन्हें अपने शिकार को अपने दाँतों से छोड़ने के लिए विवश करता है। +\q1 +\v 18 उस समय मैंने सोचा, ‘निश्चय ही जब तक कि मैं बहुत बूढ़ा न होऊँ मैं शान्ति में रहूँगा, +\q2 और मैं अपने परिवार के साथ घर पर मर जाऊँगा। +\q1 +\v 19 मैं एक पेड़ के समान हूँ जिसकी जड़ें पानी तक पहुँचती हैं +\q2 और जिनकी शाखाएँ हर रात ओस के साथ गीली हो जाती हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 लोग सदा मेरा सम्मान करते हैं, +\q2 और मैं सदा एक नए धनुष के समान था।’ +\q1 +\v 21 जब मैं बात करता था तब लोग यह सुनने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे कि मैं क्या कहूँगा; +\q2 वे तब तक चुप रहते थे, जब तक कि मैं उन्हें यह परामर्श नहीं देता कि उन्हें क्या करना चाहिए। +\q1 +\v 22 मेरा बोलना समाप्त करने के बाद, वे और कुछ नहीं कहते थे; +\q2 ऐसा लगता था कि मानों मेरे शब्द वर्षा की बूँदों जैसे उनके कानों पर गिरते थे। +\q1 +\s5 +\v 23 उन्होंने मेरे बोलने की प्रतीक्षा ऐसे की जैसे वे वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं; +\q2 जो मैंने कहा उन्हें वह पसन्द आता था जैसे किसान शुष्क मौसम से पहले वसन्त की अंतिम वर्षा की सराहना करते हैं। +\q1 +\v 24 जब वे दुखी होते थे, तो मैं उन्हें उत्साहित करने के लिए उनकी ओर मुस्कुराया करता था; +\q2 वे मेरे हँसमुख चेहरे को देख कर उत्साहित होते थे। +\q1 +\s5 +\v 25 मैं उनका अगुवा था, और मैं निर्णय लेता था कि कौन से कार्य करना उनके लिए अच्छा होगा; +\q2 मैं उनके बीच एक ऐसे राजा के समान था जो अपने सैनिकों के बीच में है; +\q2 मैं किसी ऐसे व्यक्ति के समान था जो शोक करने वाले अन्य लोगों को सांत्वना देता है।” + +\s5 +\c 30 +\q1 +\p +\v 1 “परन्तु अब, जो पुरुष मुझसे छोटे हैं वे मेरा उपहास करते हैं— +\q2 वे पुरुष जिनके पिताओं को मैंने बहुत तुच्छ माना था— +\q2 उनके पिता, जिन्हें मैंने मेरी भेड़ों की रक्षा करने के लिए मेरे कुत्तों की सहायता करने की भी अनुमति नहीं दी थी। +\q1 +\v 2 वे ऐसे पुरुष थे जो वृद्ध और दुर्बल थे; +\q2 इन पुरुषों से कार्य ले कर मुझे क्या लाभ हो सकता है, भले ही उन्होंने सोचा कि वे बलवन्त थे? +\q1 +\v 3 वे बहुत गरीब और भूखे थे, +\q2 इस कारण से वे रात में +\q2 शुष्क और निर्जन स्थानों में जड़ों को चबाते थे। +\q1 +\s5 +\v 4 उन्होंने मरुस्थल में पौधों को उखाड़ा और उन्हें खाया; +\q2 वे झाऊ के पेड़ों की जड़ों को जला कर स्वयं को गर्म करते थे। +\q1 +\v 5 हर कोई उन पर चिल्लाया, “हे चोर, रुको!” +\q2 और उन्हें अपने क्षेत्र से बाहर कर दिया। +\q1 +\v 6 वे नदी के किनारे, +\q2 भूमि में गड्ढों में, और चट्टानों के किनारों में रहने के लिए विवश कर दिए गए थे। +\q1 +\s5 +\v 7 झाड़ियों में वे जानवरों के समान चिल्लाते थे क्योंकि वे भूखे थे, +\q2 और वे कंटीली झाड़ियों के नीचे एक साथ एकत्र होते थे। +\q1 +\v 8 वे ऐसे लोग थे जिनको सही समझ नहीं थी, +\q2 जिनके नाम कोई नहीं जानता; +\q1 उन्हें उस देश से बाहर निकाल दिया गया जहाँ वे पैदा हुए थे। +\q1 +\s5 +\v 9 अब उनके बच्चे मेरा उपहास करते के लिए गाने गाते हैं। +\q2 वे मेरे विषय में चुटकुले सुनाते हैं। +\q1 +\v 10 वे मुझसे घृणा करते हैं, और वे मुझसे दूर रहते हैं, +\q2 परन्तु जब वे मुझे देखते हैं, तो वे मेरे चेहरे पर थूकने में प्रसन्न होते हैं। +\q1 +\v 11 ऐसा लगता है जैसे मानों परमेश्वर ने मेरे धनुष की डोरी को काट दिया था और मुझे स्वयं को बचाने में असमर्थ होने का कारण बना दिया; उसने मुझे नम्र किया है, +\q2 और मेरे शत्रुओं ने जो भी वे चाहते थे मेरे साथ किया है। +\q1 +\s5 +\v 12 इन लोगों का समूह मुझ पर आक्रमण करता है और मुझे भागने के लिए विवश करता है; +\q2 वे मुझे नष्ट करने के लिए तैयार हैं। +\q1 +\v 13 वे मुझे बच कर भागने से रोकते हैं, +\q2 और उन्हें मुझ पर वार करने से रोकने के लिए कोई नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 14 ऐसा लगता है कि मानों मैं एक शहर की दीवार था और उन्होंने इसे तोड़ दिया था, +\q2 जैसे कि मानों वे मुझे तोड़ कर घुस आए थे। +\q1 +\v 15 मैं बहुत डरा हुआ हूँ; +\q2 मेरी गरिमा हवा से उड़ा दी गई है, +\q2 और मेरी समृद्धि ऐसे गायब हो गई है जैसे बादल गायब होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 अब मैं मरने वाला हूँ; +\q2 मैं हर दिन पीड़ित होता हूँ। +\q1 +\v 17 रात के समय मेरी हड्डियों में दर्द होता है, +\q2 और वह दर्द जो मुझे तड़पा देता है कभी नहीं रुकता है। +\q1 +\s5 +\v 18 ऐसा लगता है जैसे मानों परमेश्वर ने मेरे कपड़े पकड़ लिए थे +\q2 और मुझे मेरे बागे की गिरेबान द्वारा दबाया। +\q1 +\v 19 उसने मुझे कीचड़ में फेंक दिया है; +\q2 मैं धूल और राख से अधिक किसी योग्य नहीं हूँ। +\q1 +\s5 +\v 20 हे परमेश्वर, मैं आपको पुकारता हूँ, परन्तु आप मुझे उत्तर नहीं देते; +\q2 मैं खड़ा होकर प्रार्थना करता हूँ, परन्तु आप ध्यान नहीं देते हैं। +\q1 +\v 21 आप मेरे साथ बहुत क्रूरता का व्यवहार करते हैं; +\q2 अपनी सारी शक्ति के साथ आप मुझे पीड़ित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 आप हवा को मुझे उठा कर दूर उड़ा ले जाने की अनुमति देते हैं; +\q2 और आप मेरे चारों ओर एक प्रचण्ड तूफान उठाते हैं। +\q1 +\v 23 मुझे पता है कि आप मुझे मर जाने देंगे, +\q2 जैसा उन सबके साथ होता है जो जीवित हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 जब लोग विपत्तियों का सामना करते हैं, +\q2 तो वे खण्डहरों के ढेर पर बैठते हैं और सहायता के लिए पुकारते हैं; +\q2 वे निश्चय ही सहायता के लिए पुकारते हैं। +\q1 +\v 25 मैं स्वयं उन लोगों के लिए रोया जो परेशानियों का सामना कर रहे थे, +\q2 और मुझे गरीब लोगों के लिए दुख होता था। +\q1 +\v 26 हालाँकि, जब मुझे अच्छी बातें होने की अपेक्षा थी, तो बुरी बातें हुईं; +\q2 जब मैंने प्रकाश के लिए प्रतीक्षा की, तो मैंने अन्धकार का अनुभव किया। +\q1 +\s5 +\v 27 मैं हर समय बहुत परेशान हूँ; +\q2 मैं हर दिन पीड़ित होता हूँ। +\q1 +\v 28 मैं बहुत निराश हो जाता हूँ; +\q2 मैं खड़े होकर सहायता करने के लिए लोगों से अनुरोध करता हूँ। +\q1 +\v 29 मेरा विलाप करना जंगल में सियारों और शुतुर्मुर्गों के उदास होने के समान हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 मेरी त्वचा काली पड़ गई है और छिल कर गिर रही है, +\q2 और मुझे ऐसा बुखार है जो मेरे शरीर को जला रहा है। +\q1 +\v 31 पहले, मैंने अपनी वीणा पर और मेरी बाँसुरी के साथ सुखद संगीत बजाया था, +\q2 परन्तु अब मैं केवल शोक करने वालों का दुखद संगीत बजाता हूँ।” + +\s5 +\c 31 +\q1 +\p +\v 1 “मैंने स्वयं से एक गम्भीर प्रतिज्ञा की है +\q2 कि मैं एक युवा स्त्री को नहीं देखूँगा और उसके साथ सोना नहीं चाहूँगा। +\q1 +\v 2 यदि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार नहीं करता, +\q2 तो परमेश्वर जो स्वर्ग में हैं मुझे क्या देंगे? +\q2 सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चय ही मुझे कोई प्रतिफल नहीं देंगे! +\q1 +\s5 +\v 3 पहले मैंने सोचा था कि निश्चय ही यह अधर्मी लोग थे जो विपत्तियों का सामना करेंगे, +\q2 और यह कि जो गलत कार्य करते हैं वही हैं जो विपत्तियों का सामना करेंगे। +\q1 +\v 4 निश्चित रूप से जो कुछ भी मैं करता हूँ परमेश्वर उसे देखते हैं, +\q2 तो वह मुझे पीड़ित क्यों कर रहे हैं? +\q2 ऐसा लगता है कि मानों वह हर उस कदम की गिनती कर रहे हैं जो मैं लेता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं गम्भीर घोषणा करता हूँ कि मैंने कभी दुष्टतापूर्ण व्यवहार नहीं किया है +\q2 और मैंने कभी लोगों को धोखा देने का प्रयास नहीं किया है। +\q1 +\v 6 मैं केवल यह अनुरोध करता हूँ कि परमेश्वर मेरा न्याय निष्पक्षतापूर्ण करें; +\q2 यदि वह ऐसा करते हैं, तो वह जान जाएँगे कि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 यदि यह सच है कि मैं सही रास्ते पर चलने से दूर हो गया था, +\q2 या मैंने करने के लिए गलत कार्यों को देखा था और फिर उन्हें किया था, +\q2 या मेरे हाथों में इसलिए दाग थे क्योंकि मैंने पाप किया था, +\q1 +\v 8 तब मैं आशा करूँगा कि जब मैं बीज लगाऊँ, तो कोई और फसलों की कटाई करे और उन्हें खाए, +\q2 और यह कि अन्य मेरी लगाई गई फसलों को उखाड़ कर फेंक दें। +\q1 +\s5 +\v 9 यदि यह सच है कि मैं किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी से आकर्षित हुआ हूँ, +\q2 या यह कि मैंने स्वयं को छिपा कर उसके घर के द्वार के बाहर प्रतीक्षा की है, +\q1 +\v 10 तो मैं आशा करता हूँ कि कोई अन्य व्यक्ति मेरी अपनी पत्नी के साथ सोएगा +\q2 और यह कि वह उसके साथ सो जाए। +\q1 +\s5 +\v 11 मेरे लिए ऐसा करना एक भयानक पाप होगा, +\q2 और न्यायधीश निर्णय लें कि मुझे दण्ड दिया जाना चाहिए। +\q1 +\v 12 मेरा व्यभिचार मुझमें एक ऐसी आग उत्पन्न करे जैसी आग लोगों को नरक में जलाती है, +\q2 और मेरे पास जो कुछ भी है, यह उसे जला देगी। +\q1 +\s5 +\v 13 यदि यह सच है कि मैंने कभी अपने पुरुष या स्त्री दासों में से किसी की बात सुनने से इन्कार किया है +\q2 जब उन्होंने मुझसे किसी बात के विषय में शिकायत की, +\q1 +\v 14 तो मैं आशा करता हूँ कि परमेश्वर खड़े हों और घोषणा करेंगे कि वह मुझे दण्ड देंगे; +\q2 जब वह ऐसा करते हैं, तब मैं क्या कर सकता हूँ? +\q2 जो मैंने किया है यदि उसके विषय में वह मुझसे पूछते हैं, तो मैं क्या उत्तर दूँगा? +\q1 +\v 15 परमेश्वर, जिन्होंने मुझे बनाया है, निश्चय ही उन्होंने मेरे सेवकों को भी बनाया है; +\q2 निश्चय ही वही हैं जिन्होंने उन्हें और मुझे हमारी माताओं के गर्भों में रचा है, +\q2 इसलिए हम सबको एक-दूसरे के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 16-18 जब मैं युवा था तब से मैंने अनाथों का ध्यान रखा है; मेरे सारे जीवन में मैंने कभी विधवा माताओं को आशा खोने का कारण नहीं दिया है। +\q1 इसलिए यदि यह सच है कि मैंने अपना सारा भोजन स्वयं ही खा लिया और अनाथों के साथ उसमें से कुछ साझा नहीं किया, +\q2 या यह कि मैंने गरीब लोगों को वह वस्तुएँ देने से इन्कार कर दिया जो वे चाहते थे, +\q2 या यह कि मैंने विधवाओं को निराशा में रहने दिया, तो मेरे साथ जो कुछ भी आपको करना है वह आप मेरे साथ कीजिए। +\q1 +\s5 +\v 19 यदि मैंने लोगों को ठण्ड से इसलिए मरते देखा क्योंकि उनके पास कपड़े नहीं था, +\q2 या यह कि मैंने उन गरीब लोगों को देखा था जिनके पास उन्हें गर्म रखने के लिए कपड़े नहीं थे, +\q1 +\v 20 और वे मेरी भेड़ों के ऊन से बने कपड़ों से गर्म हो पाने में सक्षम नहीं थे +\q2 और उन्होंने इसके लिए मुझे धन्यवाद दिया, +\q1 +\v 21 या यदि यह सच है कि मैंने किसी अनाथ को मारने की धमकी दी थी +\q2 क्योंकि मुझे पता था कि शहर के फाटक के वृद्ध मेरा पक्ष लेंगे तो मेरे साथ जो कुछ भी आपको करना है, कीजिए। +\q1 +\s5 +\v 22 क्योंकि यदि वे बातें मेरे विषय में सच हैं, तो मैं आशा करता हूँ कि मेरे कंधे की हड्डी टूट जाए +\q2 और मेरी बाँह मेरे कंधे से उखड़ जाए। +\q1 +\v 23 मुझे सदा डर था कि यदि मैंने उन बुरे कार्यों में से किसी एक को किया तो परमेश्वर मुझे एक बड़ी विपत्ति का सामना करने देंगे, +\q2 और मैं उन शक्तिशाली कार्यों को सहन करने में सक्षम नहीं होऊँगा जो वह मुझे दण्ड देने के लिए करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 24 यदि यह सच है कि मैंने अपने सोने पर भरोसा किया, +\q1 +\v 25 या मैं इसलिए आनन्दित हुआ कि मैंने कई वस्तुएँ प्राप्त की +\q2 और बहुत समृद्ध हो गया, +\q1 +\s5 +\v 26 या जब सूर्य चमक रहा था तब मैंने उसकी ओर देखा, +\q2 या मैंने सुन्दर चँद्रमा को देखा, +\q1 +\v 27 और मैं उनकी उपासना करने के लिए +\q2 उन्हें सम्मान देने के लिए अपने हाथ पर चुम्बन करके परीक्षा में पड़ गया, +\q1 +\v 28 वे चीजें भी पाप होंगी जिनके लिए न्यायधीश कहेंगे कि मुझे दण्ड दिया जाना चाहिए +\q2 क्योंकि मैं उन चीजों को करके परमेश्वर को अस्वीकार कर रहा होता। +\q1 +\s5 +\v 29-30 यह सच नहीं है कि मैंने उन लोगों को श्राप देने के लिए परमेश्वर से अनुरोध करके पाप किया है जिन्होंने मुझसे घृणा की है +\q2 और उन्हें इसलिए मर जाने देता कि मैं उनसे क्रोधित था। +\q1 यह सच नहीं है कि जब वे नष्ट हो गए तो मैं प्रसन्न हुआ था +\q2 या जब वे विपत्तियों का सामना करते थे तो मैं आनन्दित था। नहीं! +\q1 +\s5 +\v 31-32 कोई भी सच्चाई से यह नहीं कह सकता कि मैंने अपने घर में रहने के लिए यात्रियों का स्वागत नहीं किया है, +\q2 या मैंने उनके लिए अपने द्वार नहीं खोले, और मैंने उन्हें सड़कों पर सोने के लिए विवश कर दिया! +\q2 मेरे लिए कार्य करने वाले सभी लोग निश्चय ही जानते हैं कि मैंने उस हर एक जन को भोजन दिया है जिसको उसकी आवश्यकता है! +\q1 +\s5 +\v 33 कुछ लोग अपने पापों को छिपाने का प्रयास करते हैं, +\q2 परन्तु मैंने कभी ऐसा नहीं किया है; +\q1 +\v 34 और मैं कभी चुप नहीं रहा और बाहर जाने से इसलिए इन्कार नहीं किया +\q2 कि मैं भयभीत था कि लोग मेरे विषय में क्या कहेंगे, +\q2 और यह कि वे मुझसे घृणा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 35 मेरी इच्छा है कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सुने कि मैं क्या कह रहा हूँ! +\q2 मैं गम्भीरता से यह घोषणा करता हूँ कि मैंने जो कुछ कहा है वह सच है। +\q1 मेरी इच्छा है कि जो लोग मेरा विरोध करते हैं वे उन बुरे कार्यों को एक पुस्तक में लिख दें जो वे कहते हैं कि मैंने किए हैं। +\q1 +\v 36 यदि उन्होंने ऐसा किया, तो मैं अपने कंधे पर या मेरे सिर के ऊपर उस पुस्तक को रख लूँगा, कि हर कोई उसे देख सके। +\q1 +\v 37 मैं परमेश्वर को सब कुछ बताऊँगा जो मैंने किया है, +\q2 और मैं बिना डरे उनसे ऐसे सम्पर्क करूँगा, जैसे एक शासक करेगा। +\q1 +\s5 +\v 38 यदि यह सच है कि मैंने भूमि चोरी की है, +\q2 कि उसकी रेघारियाँ किसी ऐसे व्यक्ति के समान थीं जो मुझ पर आरोप लगाने के लिए चिल्लाया था; +\q1 +\v 39 या यह कि मैंने उन फसलों को खा लिया है जो किसी और के खेतों में बढ़ी थीं +\q2 उन फसलों के लिए भुगतान किए बिना, +\q2 जिसके कारण वे किसान भूख से मर गए जिन्होंने उन फसलों को उगाया था; +\q1 +\v 40 तब मैं चाहता हूँ कि मेरे खेतों में गेहूँ की अपेक्षा काँटे बढ़ें, +\q2 और जौ के अपेक्षा जंगली घास बढ़े!” +\q1 जो अय्यूब ने अपने तीन मित्रों से कहा था यह उसका अन्त है। + +\s5 +\c 32 +\p +\v 1 तब उन तीनों पुरुषों ने अय्यूब को उत्तर देना बन्द कर दिया क्योंकि वे अय्यूब को यह विश्वास नहीं दिला सके कि उसने कुछ भी गलत किया है। +\v 2 तब बूज के वंशज राम के कुल के बारकेल का पुत्र एलीहू, अय्यूब पर बहुत क्रोधित हो गया। वह क्रोध में था क्योंकि अय्यूब ने निरन्तर दावा किया कि वह निर्दोष था, और परमेश्वर उसे दण्ड देने में गलत थे। +\s5 +\v 3 वह अय्यूब के तीन मित्रों से भी क्रोधित था क्योंकि उन्होंने घोषणा की थी कि अय्यूब ने ऐसे कई कार्य किए होंगे जो गलत थे, परन्तु वे उसे विश्वास नहीं दिला सके थे। +\v 4 अब एलीहू दूसरों से छोटा था, इसलिए उसने अय्यूब को उत्तर देने से पहले प्रतीक्षा की जब तक कि उन्होंने बोलना समाप्त नहीं किया। +\v 5 परन्तु जब एलीहू को मालूम हुआ कि उन तीन पुरुषों के पास अय्यूब से कहने के लिए और कुछ नहीं है, तो वह क्रोधित हो गया। +\p +\s5 +\v 6 उसने जो कहा वह यह है: +\q1 “मैं युवा हूँ, और तुम सब मुझसे अधिक आयु के हो। +\q2 इसलिए मैं भयभीत था, और मैं तुम्हें बताने से डरता था जो मैं सोच रहा था। +\q1 +\v 7 मैंने स्वयं से कहा, ‘जो लोग अधिक आयु के हैं उनको बोलने दो +\q2 क्योंकि बड़े लोगों को ऐसी बातें कहने में सक्षम होना चाहिए जो बुद्धिमानी की हैं।’ +\q1 +\s5 +\v 8 हालाँकि, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आत्मा लोगों के भीतर है, और वही हैं जो उन्हें बुद्धिमान बनने में सक्षम बनाते हैं। +\q1 +\v 9 जब वे वृद्ध होते हैं तो सब लोग बुद्धिमान नहीं होते; +\q2 सब वृद्ध लोग नहीं समझते कि क्या सही है। +\q1 +\v 10 यही कारण है कि मैं अब तुमसे कहता हूँ, ‘मेरी बात सुनो, +\q2 और मुझे जो कुछ पता है उसे कहने की अनुमति दो।’ +\q1 +\s5 +\v 11 मैंने तुम सबके बोलने की प्रतीक्षा की; +\q2 मैं बुद्धिमान बातों को सुनना चाहता था जो तुम कहोगे। +\q2 मैंने प्रतीक्षा की, जिस समय तुमने इस विषय में सावधानीपूर्वक सोचा कि तुमको क्या कहना चाहिए। +\q1 +\v 12 मैंने सावधानीपूर्वक ध्यान दिया, +\q2 परन्तु आश्चर्य की बात है कि तुम में से कोई भी यह सिद्ध करने में सक्षम नहीं था कि अय्यूब ने जो कहा वह गलत है। +\q1 +\s5 +\v 13 इसलिए स्वयं से मत कहो, ‘हमने खोज लिया है कि बुद्धिमानी क्या है!’ +\q2 यह परमेश्वर हैं जिन्हें अय्यूब की बातों का खण्डन करना चाहिए क्योंकि तुम तीन ऐसा करने में सक्षम नहीं हो। +\q1 +\v 14 अय्यूब तुमको उत्तर दे रहा था, मुझे नहीं, +\q2 इसलिए मैं उसको वह कहकर उत्तर नहीं दूँगा जो तुम तीनों ने कहा है। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं स्वयं से यह कहता हूँ: ये तीनों पुरुष उलझन में हैं क्योंकि उनके पास अय्यूब से कहने के लिए कुछ और नहीं है; +\q2 उनके पास उससे कहने के लिए कुछ और नहीं है। +\q1 +\v 16 परन्तु क्योंकि तुम नहीं बोलते, इसलिए निश्चय ही मैं अब और प्रतीक्षा नहीं करूँगा; +\q2 तुम केवल वहाँ खड़े हो और अब कुछ उत्तर नहीं देते हो। +\q1 +\s5 +\v 17 इसलिए अब मैं अय्यूब को उत्तर दूँगा +\q2 और उसे वह बताऊँगा जो मुझे पता है। +\q1 +\v 18 मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ है, +\q2 और मेरा आत्मा मुझे यह कहने के लिए विवश करता है। +\q1 +\v 19 मेरा मन दाखमधु की एक कुप्पी के समान है जो उफान से अधिकाधिक खींच रही है, +\q2 और यह शीघ्र ही फट जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 20 मुझे कहना चाहिए जिससे कि मैं अपने शब्दों को रोकने के प्रयास से विश्राम पा सकूँ; +\q2 मुझे तुम सबको उत्तर देने के लिए कुछ कहना होगा। +\q1 +\v 21 तुम में से किसी का भी पक्ष नहीं लेते हुए, मैं निष्पक्ष रूप से बात करूँगा, +\q2 और मैं किसी की भी चापलूसी करने का प्रयास नहीं करूँगा। +\q1 +\v 22 मैं वास्तव में नहीं जानता कि लोगों की चापलूसी कैसे करें; +\q2 यदि मैंने ऐसा किया, तो परमेश्वर शीघ्र ही मुझे नष्ट कर दें।” + +\s5 +\c 33 +\q1 +\p +\v 1 “अब, हे अय्यूब, ध्यान से सुन +\q2 जो कुछ भी मैं कहने जा रहा हूँ। +\q1 +\v 2 मैं तुझे बताने के लिए तैयार हूँ जो मैं सोचता है। +\q1 +\v 3 मेरे मन में मुझे पता है कि मैं निष्ठापूर्वक बोल रहा हूँ +\q2 और यह कि मैं सच्चाई से बोल रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 4 सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जैसे तुझे वैसे ही मुझे बनाया है, +\q2 और अपनी साँस से उन्होंने मुझे जीवित किया है। +\q1 +\v 5 इसलिए यदि तू उत्तर दे सकता है तो दे; +\q2 सावधानीपूर्वक विचार करके मुझे उत्तर देना। +\q1 +\s5 +\v 6 परमेश्वर मानते हैं कि तू और मैं दोनों एक जैसे हैं; +\q2 उन्होंने हम दोनों को मिट्टी से रचा है। +\q1 +\v 7 इसलिए तुझे मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं है; +\q2 मैं तुझे से कठोरता से बात नहीं करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 8 मैंने तुझे बोलते हुए सुना है, +\q2 और जो तू ने कहा वह यह है: +\q1 +\v 9 ‘मैं निर्दोष हूँ, और मैंने कोई पाप नहीं किया है; +\q2 मैं शुद्ध हूँ, और मैंने ऐसे कार्य नहीं किए हैं जो गलत हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु परमेश्वर मुझ पर दोष लगाने के कारण ढूँढ़ते हैं, +\q2 और वह मानते हैं कि मैं उनका शत्रु हूँ। +\q1 +\v 11 ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने मेरे पैरों को काठ में ठोक दिया है, +\q2 और जो कुछ मैं करता है वह उसे देखते हैं।’ +\q1 +\v 12 परन्तु, तू ने जो कहा वह गलत है, +\q2 और मैं तुझे बताऊँगा कि तू ने क्या कहा जो गलत है। +\q2 परमेश्वर मनुष्य से कहीं अधिक महान हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 इसलिए, तू परमेश्वर से विवाद क्यों करता है? उन्हें हमें यह बताना आवश्यक नहीं है कि जो वह करते हैं, क्यों करते हैं। +\q1 +\v 14 परमेश्वर, वास्तव में, विभिन्न रीतियों से हमसे बात करते हैं, +\q2 परन्तु वह जो कहते हैं उस पर हम कोई ध्यान नहीं देते हैं। +\q1 +\v 15 कभी-कभी वह रात में स्वप्नों और दृष्टान्तों में हमसे बात करते हैं +\q2 जब हम अपने बिस्तरों पर, गहरी नींद में होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 वह उस समय हम पर बातों को प्रकट करते हैं; +\q2 वह बातों के विषय में हमें चेतावनी दे कर हमें डरा देते हैं। +\q1 +\v 17 वह हमें उन बातों को बताते हैं कि हम बुरे कार्यों को करने से रुक जाएँ +\q2 और हमें घमण्डी होने से रोकने के लिए। +\q1 +\v 18 वह हमें नष्ट होने देना नहीं चाहते; +\q2 जबकि हम अभी युवा ही हैं वह हमें मर जाने से रोक देना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 परमेश्वर हमें बहुत दर्द से पीड़ित करके अपने बिस्तरों पर लेटने को विवश करके +\q2 और हमारी हड्डियों में बुखार दे कर भी हमें सुधारते हैं। +\q1 +\v 20 परिणाम यह होता है कि हम किसी भी भोजन की इच्छा नहीं रखते हैं, +\q2 यहाँ तक कि बहुत ही विशेष भोजन की भी नहीं। +\q1 +\s5 +\v 21 हमारे शरीर बहुत दुबले हो जाते हैं जिससे हम एक कंकाल के समान दिखते हैं, +\q2 और हमारी हड्डियाँ उभर आती हैं कि अन्य उन्हें गिन सकते हैं। +\q1 +\v 22 हम जानते हैं कि हम शीघ्र ही मर जाएँगे +\q2 और उस स्थान पर चले जाएँगे जहाँ मरे हुए लोग हैं। +\q1 +\s5 +\v 23 फिर भी कभी-कभी एक स्वर्गदूत हम में से एक के पास आ सकता है, +\q2 हजारों स्वर्गदूतों में से एक जो हमारे और परमेश्वर के बीच हस्तक्षेप करने आता है, +\q2 हमें यह बताने के लिए कि हमारे द्वारा किए जाने के लिए कौन से सही कार्य हैं। +\q1 +\v 24 वह स्वर्गदूत हमारे प्रति दयालु है और वह परमेश्वर से कहता है, +\q2 ‘कृपया उस व्यक्ति को छोड़ दीजिए, +\q1 कि वह उस स्थान पर नहीं उतरे जहाँ मरे हुए लोग हैं! +\q2 ऐसा कीजिए क्योंकि मैंने आपके लिए एक उपाय खोजा है जो उसे मरने से बचा सकता है! +\q1 +\s5 +\v 25 कृपया उसके शरीर को फिर से बलवन्त बन जाने दीजिए; +\q2 कृपया उसे वैसे ही बलवन्त होने दें जैसे वह अपनी युवावस्था में था!’ +\q1 +\v 26 यदि ऐसा होता है, तो वह व्यक्ति परमेश्वर से प्रार्थना करेगा, और परमेश्वर उसे स्वीकार करेंगे; +\q2 वह परमेश्वर की उपस्थिति में आनन्दपूर्वक प्रवेश करेगा, +\q2 और फिर वह दूसरों को बताएगा कि कैसे परमेश्वर ने उसे मरने से बचाया। +\q1 +\s5 +\v 27 वह गाएगा जब वह हर किसी से कहेगा, +\q1 ‘मैंने पाप किया, और मैंने ऐसे कार्य किए जो सही नहीं थे, +\q2 परन्तु परमेश्वर ने मुझे मेरे योग्य दण्ड नहीं दिया है। +\q1 +\v 28 उन्होंने मुझे मरने से और उस स्थान पर जाने से बचाया है जहाँ मरे हुए लोग हैं, +\q2 और मैं जीवित होने का आनन्द लेता रहूँगा।’ +\q1 +\s5 +\v 29 परमेश्वर इन सब कार्यों को हमारे लिए कई बार करते हैं; +\q1 +\v 30 वह हमें मरने से और उस स्थान पर जाने से बचा लेते हैं जहाँ मरे हुए लोग हैं, +\q2 जिससे कि हम जीवित रहने का आनन्द ले सकें। +\q1 +\s5 +\v 31 इसलिए हे अय्यूब, मेरी बात सुन; +\q2 और कुछ भी मत कह; बस मुझे बोलने की अनुमति दे। +\q1 +\v 32 मेरे बोलने के बाद, यदि तेरे पास कुछ और है जो तू मुझसे कहना चाहता है, +\q2 उसे कह देना, क्योंकि मैं यह घोषणा करने का उपाय खोजना चाहूँगा कि तू निर्दोष है। +\q1 +\v 33 परन्तु यदि तेरे पास कुछ और नहीं है जो तू कहना चाहता है, तो बस मेरी बात सुन, +\q2 और मैं तुझे सिखाऊँगा कि बुद्धिमान कैसे बना जाए।” + +\s5 +\c 34 +\p +\v 1 तब एलीहू ने यह कहा: +\q1 +\v 2 “तुम लोग जो सोचते हो कि तुम बहुत बुद्धिमान हो, मेरी बात सुनो; +\q2 जो मैं कह रहा हूँ उसे सुनो, तुम लोग जो कहते हो कि तुम बहुत अधिक जानते हो। +\q1 +\v 3 जब हम लोगों को बात करते हुए सुनते हैं, +\q2 जो वे कहते हैं हम उसके विषय में सावधानी से सोचते हैं यह जानने के लिए कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है, +\q2 जिस प्रकार हम यह जानने के लिए भोजन को चखते हैं कि खाने के लिए अच्छा क्या है। +\q1 +\s5 +\v 4 हमें यह निर्णय लेना होगा कि कौन सही बातें कह रहा है, +\q2 और हमें एक साथ अपने लिए यह पता लगाना है कि क्या अच्छा है। +\q1 +\v 5 अय्यूब ने कहा है, ‘मैं निर्दोष हूँ, +\q2 परन्तु परमेश्वर ने निष्पक्षता से मेरा न्याय करने से इन्कार कर दिया है। +\q1 +\v 6 भले ही मैंने हमेशा वही किया है जो सही है, +\q2 वह मेरे विषय में झूठ बोल रहे हैं। +\q1 भले ही मैंने वह नहीं किया है जो गलत है, +\q2 उन्होंने मुझे पीड़ित किया है, और इस कारण से मैं निश्चय ही मर जाऊँगा।’ +\q1 +\s5 +\v 7 क्या अय्यूब के समान कोई व्यक्ति है, जो दूसरों को इतनी सरलता से अपमानित करता है जैसे लोग पीने का पानी पीते हैं? +\q1 +\v 8 वह स्वभाव से ही उन लोगों के साथ मिलता है जो बुरे कार्य करते हैं +\q2 और दुष्ट लोगों के साथ समय बिताता है। +\q1 +\v 9 वह निश्चय ही इन कार्यों को करता है, क्योंकि उसने कहा है, ‘परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करना लोगों के लिए व्यर्थ है।’ +\q1 +\s5 +\v 10 इसलिए, तुम लोग जो दावा करते हो कि तुम सब कुछ समझते हो, मेरी बात सुनो! +\q1 सर्वशक्तिमान परमेश्वर कभी भी ऐसा कुछ भी करने पर विचार नहीं करेंगे जो बुरा या गलत है! +\q1 +\v 11 वह लोगों को उनके द्वारा किए गए कार्यों का फल देते हैं; +\q2 वह उन्हें उनके द्वारा अपने जीवन के संचालन के योग्य ही फल देते हैं। +\q1 +\v 12 सचमुच, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कभी भी बुराई नहीं करते हैं; +\q2 वह कभी गलत कार्य को सही नहीं कहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 किसी ने भी उन्हें पृथ्‍वी पर पाए जाने वाले सब कुछ पर शासन करने का अधिकार नहीं दिया; +\q2 कोई भी उन्हें पूरे संसार का नियंत्रण नहीं देता है। +\q2 वह अधिकार सदा उनका ही है। +\q1 +\v 14 यदि उन्होंने कभी अपने ही विषय में सोचा और हमारे विषय में नहीं सोचा, और यदि वह कभी हमें जीवित रहने से रोक दें, +\q1 +\v 15 तो हर कोई तुरन्त मर जाएगा, +\q2 और उनके शव शीघ्र ही फिर से मिट्टी बन जाएँगी। +\q1 +\s5 +\v 16 इसलिए, हे अय्यूब, यदि तू कहता है कि तू सब कुछ समझता है, +\q2 तो जो मैं कह रहा हूँ उसे सुन। +\q1 +\v 17 परमेश्वर निश्चय ही कभी उससे घृणा नहीं कर सकते जो सही है और अभी भी संसार पर शासन करते हैं। +\q2 इसलिए तू वास्तव में परमेश्वर की निन्दा नहीं कर सकता, जो धर्मी और शक्तिशाली हैं, और तू यह नहीं कह सकता कि उन्होंने जो किया है वह गलत है, क्या तू कह सकता है? +\q1 +\s5 +\v 18 वह कुछ राजाओं को बताते हैं कि वे निकम्मे हैं, +\q2 और वह कुछ अधिकारियों से कहते हैं कि वे दुष्ट हैं। +\q1 +\v 19 वह अन्य लोगों का समर्थन करने से बढ़कर शासकों का समर्थन नहीं करते हैं; +\q2 वह गरीब लोगों से बढ़कर समृद्ध लोगों का पक्ष नहीं लेते हैं +\q2 क्योंकि उन सबको उन्होंने बनाया है। +\q1 +\v 20 वे प्रायः अकस्मात मर जाते हैं; +\q2 वह मध्यरात्रि में उन पर वार करते हैं और वे मर जाते हैं; +\q2 वह किसी भी मनुष्य की सहायता के बिना ही महत्वपूर्ण लोगों से छुटकारा पा लेते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 वह सब कुछ देखते हैं जो लोग करते हैं; +\q2 जब हम चलते हैं, तो वह हर कदम को देखते हैं जिसे हम लेते हैं। +\q1 +\v 22 कोई धुंधलापन या अन्धकार नहीं है +\q2 जिसमें दुष्ट लोग परमेश्वर से छिप सकते हैं। +\q1 +\v 23 परमेश्वर को समय निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं हैं +\q2 कि कब हम उसके सामने खड़े होंगे कि वह हमारा न्याय करें। +\q2 वह पहले से ही हमारे विषय में सब कुछ जानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 वह महत्वपूर्ण लोगों के कार्यों को जाँचे बिना उन को नष्ट कर देते हैं, +\q2 और वह दूसरों को उनका स्थान लेने के लिए नियुक्त करते हैं। +\q1 +\v 25 क्योंकि वह पहले ही जानते हैं कि उन्होंने क्या किया है, +\q2 वह उन्हें रात में हटा देते हैं और उनसे छुटकारा पाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 26 वह उन दुष्ट कार्यों के कारण उन पर वार करते हैं जो उन्होंने किए हैं; +\q2 कई लोग उन्हें यह करते हुए देखते हैं। +\q1 +\v 27 वह उन पर वार करते हैं क्योंकि वे ऐसा करने से दूर हो गए थे जो वह चाहते थे कि वे करें +\q2 और उनके किसी भी आदेश पर ध्यान नहीं दिया। +\q1 +\v 28 उन्होंने गरीब लोगों से बुरा व्यवहार किया; +\q2 उन गरीब लोगों ने सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारा, +\q2 और उन्होंने उनकी सुन ली। +\q1 +\s5 +\v 29 फिर भी यदि परमेश्वर दुष्ट लोगों को दण्ड देने के लिए कुछ भी नहीं करने का निर्णय करते हैं, +\q2 तो कोई भी उनकी निन्दा नहीं कर सकता है। +\q1 परमेश्वर सब राष्ट्रों और सब लोगों को नियंत्रित करते हैं। +\q1 +\v 30 वह ऐसा इसलिए करते हैं कि जो हमारे ऊपर शासन करते हैं, वे उनका सम्मान कर सकें, +\q2 जिससे कि हमारे शासक हम पर अत्याचार न करें। +\q1 +\s5 +\v 31 हे अय्यूब, क्या तू ने या किसी और ने कभी परमेश्वर से कहा है, ‘मैंने निश्चित रूप से पाप किया है, +\q2 परन्तु अब मैं पाप नहीं करूँगा; +\q1 +\v 32 इसलिए मुझे सिखाइए कि मैंने क्या पाप किए हैं; +\q1 यदि मैंने ऐसा कुछ भी किया है जो बुरा है, +\q2 मैं अब इसे और नहीं करूँगा’? +\q1 +\v 33 हे अय्यूब, तू इस बात पर आपत्ति करता है जो परमेश्वर ने तेरे साथ किया है, +\q2 परन्तु क्या तुझे लगता है कि वह वही करेंगे जो तू उनसे करवाना चाहता है? +\q1 यह तू ही है जिसे यह चुनना है कि तुझे परमेश्वर से क्या कहना चाहिए, मैं नहीं; +\q2 मुझे बता कि तू इसके विषय में क्या सोच रहा है। +\q1 +\s5 +\v 34 जो लोग अच्छी समझ रखते हैं, वे जो बुद्धिमान हैं और जो मैं कहता हूँ उसे सुनते हैं, +\q2 वे मुझसे कहेंगे, +\q1 +\v 35 ‘अय्यूब अज्ञानता से बात कर रहा है; +\q2 जो वह कहता है वह मूर्खता है।’ +\q1 +\s5 +\v 36 अय्यूब के मित्रों तुमसे, मैं यह कहता हूँ: मुझे लगता है कि एक अदालत को पूरी तरह से अय्यूब की जाँच करनी चाहिए, +\q2 क्योंकि वह हमें, उसके मित्रों को ऐसे उत्तर देता है, जैसे दुष्ट लोग उत्तर देंगे। +\q1 +\v 37 उसने जो अन्य पाप किए हैं, उनमें और अधिक जोड़ने के लिए, वह परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह कर रहा है; +\q2 वह हमें दिखाता है कि वह परमेश्वर का सम्मान नहीं करता है; +\q2 वह यह लम्बे भाषण देता है कि परमेश्वर ने उसे अन्यायपूर्वक दण्ड दिया है।” + +\s5 +\c 35 +\p +\v 1 तब एलीहू ने यह भी कहा: +\q1 +\v 2 “हे अय्यूब, क्या तू वास्तव में सोचता है कि तू ने कुछ भी गलत नहीं किया है? +\q1 तू कहता है, ‘परमेश्वर जानते हैं कि मैं निर्दोष हूँ,’ +\q1 +\v 3 और तू यह भी कहता है, ‘पाप नहीं करने के कारण मुझे क्या भलाई मिली है? +\q2 मुझे क्या लाभ मिला है जो मुझे नहीं मिला होगा, भले ही मैंने पाप किया हो?’ +\q1 +\s5 +\v 4 ठीक है, मैं तुझे उत्तर दूँगा, +\q2 और मैं तेरे तीनों मित्रों को भी उत्तर दूँगा। +\q1 +\v 5 हे अय्यूब, ऊपर आकाश की ओर देख; +\q2 उन बादलों को देख जो तेरे बहुत ऊपर हैं +\q2 और जान ले कि परमेश्वर सबसे ऊपर हैं, तुम्हारी पहुँच से पूरी तरह से बाहर। +\q1 +\s5 +\v 6 यदि तू ने पाप किया है, तो वह परमेश्वर को हानि नहीं पहुँचा सकता है। +\q2 भले ही तू सैंकड़ों बार गलत कार्य करता है, निश्चय ही वह उसे चोट नहीं पहुँचाता है। +\q1 +\v 7 वैसे ही, यदि तू धर्मी है, तो क्या वह परमेश्वर की सहायता करता है? +\q2 नहीं, जो कुछ भी तू करता है वह उसकी सहायता नहीं कर सकता है। +\q1 +\v 8 यह अन्य लोग हैं जो उन बुरे कार्यों के कारण पीड़ित हो सकते हैं जो तुम करते हो; +\q2 वैसे ही, यदि तू उनके लिए भले कार्य करता है तो तू दूसरों की सहायता कर सकता है। +\q1 +\s5 +\v 9 लोग उन बहुत से कार्यों के कारण दुहाई देते हैं जो अन्य लोग उनको पीड़ित करने के लिए करते हैं; +\q2 वे उन कार्यों के कारण सहायता के लिए कहते हैं जो शक्तिशाली लोग उनके साथ करते हैं। +\q1 +\v 10 परन्तु कोई भी परमेश्वर को नहीं पुकारता है +\q2 और कहता है, ‘मेरे रचने वाले परमेश्वर मेरी सहायता क्यों नहीं करते? +\q2 उन्हें मुझे रात के समय, बहुत दुखी गीतों के बजाए, आनन्ददायक गीतों को गाने में सक्षम करना चाहिए। +\q1 +\v 11 उन्हें जंगली जानवरों को सिखाए जाने से बढ़कर हमें सिखाने में सक्षम होना चाहिए; +\q2 उन्हें हमें सब पक्षियों की तुलना में अधिक बुद्धिमान बनने में सक्षम करना चाहिए!’ +\q1 +\s5 +\v 12 लोग सहायता के लिए दुहाई देते हैं, +\q2 परन्तु परमेश्वर उन्हें उत्तर नहीं देते हैं +\q2 क्योंकि जो लोग दुहाई देते हैं वे घमण्डी और बुरे लोग हैं। +\q1 +\v 13 उनके लिए दुहाई देना व्यर्थ है +\q2 क्योंकि परमेश्वर, एकमात्र सर्वशक्तिमान, जो वे कहते हैं उस पर कोई ध्यान नहीं देता है। +\q1 +\v 14 इसलिए जब तुम शिकायत करते हो कि तुम परमेश्वर को नहीं देख सकते हो, +\q2 और तू उन्हें बताता है कि तू उनके द्वारा यह निर्णय के लिए प्रतीक्षा कर रहा है कि तू ने गलत किया है या नहीं, +\q2 वह तेरी सुनेंगे भी नहीं! +\q1 +\s5 +\v 15 इसके अतिरिक्त, तू कहता है कि क्योंकि जब लोग पाप करते हैं तो वह ध्यान नहीं देते हैं, +\q2 इसलिए वह क्रोधित नहीं होते हैं और उन्हें दण्ड नहीं देते हैं। +\q1 +\v 16 हे मेरे मित्रों, तुम देखते हो कि अय्यूब ने जिन बातों को कहा है वह पूरी तरह से व्यर्थ हैं, +\q2 कि जो संसार में है उसे बिना जाने वह बहुत सी बातें कहता है जिनके विषय में वह बात कर रहा है।” + +\s5 +\c 36 +\p +\v 1 एलीहू ने यह कहकर बोलना समाप्त कर दिया: +\q1 +\v 2 “हे अय्यूब, मेरे साथ थोड़ा और धीरज रख +\q2 क्योंकि मेरे पास तुझे सिखाने के लिए कुछ और भी है। +\q2 मेरे पास यह सिद्ध करने के लिए कहने को कुछ और है कि परमेश्वर कुछ गलत नहीं करते हैं। +\q1 +\v 3 मैं तुझे वह बताऊँगा जिसे मैंने कई स्रोतों से सीखा है, +\q2 यह दिखाने के लिए कि मेरे रचने वाले परमेश्वर न्यायी हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं तुझसे ऐसा कुछ भी नहीं कहूँगा जो झूठ है; +\q2 मैं, जो तेरे सामने खड़ा हूँ, ऐसा व्यक्ति हूँ जो बातों को बहुत अच्छी तरह समझता है। +\q1 +\v 5 वास्तव में, परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं, और वह किसी को भी तुच्छ नहीं मानते हैं, +\q2 और वह सब कुछ समझते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 वह दुष्ट लोगों को जीवित रहने की अनुमति नहीं देते हैं - जो तू ने दावा किया है उसके विपरीत, +\q2 और वह सदा पीड़ित लोगों के प्रति न्यायपूर्वक व्यवहार करते हैं। +\q1 +\v 7 वह सदा उन लोगों पर दृष्टि रखते हैं जो धर्मी हैं; +\q2 वह उन्हें समृद्ध बनाते हैं, जैसे कि वे राजा है, +\q2 और वह दूसरों को सदा उनका सम्मान करने के लिए प्रेरित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु, यदि अपराध करने वाले लोग पकड़े जाते हैं, +\q2 या यदि वे गलत कार्य करने के कारण बन्दीगृह में पीड़ित होते हैं, +\q1 +\v 9 तब परमेश्वर उन्हें दिखाते हैं कि उन्होंने क्या किया है; +\q2 वह उन्हें उन पापों को दिखाते हैं जो उन्होंने किए हैं, +\q2 और वह उन्हें दिखाते हैं कि वे अभिमानी हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 वह उन्हें सुनने के लिए प्रेरित करते हैं कि वह उन्हें क्या चेतावनी दे रहे हैं, +\q2 और वह उन्हें बुराई करने से दूर रहने का आदेश देते हैं। +\q1 +\v 11 यदि वे उन्हें सुनें और उनकी सेवा करें, +\q2 तो वे समृद्ध होंगे और उन सब वर्षों में आनन्दित रहेंगे जिनमें वे जीते रहते हैं। +\q1 +\v 12 परन्तु यदि वे उनकी नहीं सुनते हैं, +\q2 वे हिंसक रूप से मर जाएँगे +\q2 क्योंकि वे परमेश्वर के विषय में और वह उनसे क्या करवाना चाहते हैं इस विषय में कुछ भी नहीं समझते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 जो लोग परमेश्वर का सम्मान करने में असफल रहते हैं, उनका क्रोध बना ही रहता हैं, +\q2 और वे सहायता के लिए दुहाई नहीं देते हैं +\q2 तब भी जब परमेश्वर उन्हें दण्ड दे रहे हैं। +\q1 +\v 14 जिस समय वे युवा ही होते हैं, +\q2 वे अपने अनैतिक व्यवहार के कारण से अपमानित होकर मर जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 परमेश्वर वास्तव में पीड़ित करने के द्वारा लोगों को बचाते हैं; +\q2 उन्हें पीड़ित करके, वह उन्हें सुनने के लिए प्रेरित करते हैं कि वह उन्हें क्या कह रहे हैं। +\q1 +\v 16 हे अय्यूब, मुझे लगता है कि परमेश्वर तुझे तेरी परेशानियों से बाहर निकालना चाहते हैं +\q2 और तुझे संकट के बिना जीने की अनुमति देना चाहते हैं; +\q2 वह चाहते हैं कि तेरी मेज बहुत अच्छे भोजन से भरी हो। +\q1 +\s5 +\v 17 फिर भी अब वह तुझे ऐसे दण्डित कर रहे हैं जैसे वह दुष्टों को दण्ड देंगे; +\q2 परमेश्वर ने तेरा बहुत सही न्याय किया है। +\q1 +\v 18 अपने क्रोध को अन्य लोगों का मजाक उड़ाने का बहना न दें, +\q2 या कि घूँस की बड़ी राशी ग्रहण करने से तू नष्ट नहीं होगा जिससे कि +\q1 जिससे कि तू दूसरों के साथ पक्षपात करे। +\q1 +\s5 +\v 19 यदि ऐसा करेगा, तो निश्चय ही यह तेरी परेशानी में दुहाई देने में तेरी सहायता नहीं करेगा; +\q2 तेरी कैसी भी शक्ति इस विषय में तेरी सहायता नहीं करेगी। +\q1 +\v 20 ऐसी इच्छा मत रख कि समय रात का हो कि तू बिना किसी के जाने दूसरों के साथ बुरा व्यवहार कर सके; +\q2 रात तो वह समय होता है जब पूरी की पूरी जाति भी नष्ट हो जाति हैं! +\q1 +\v 21 बुरे कार्य करना आरम्भ न करने के विषय में सावधान रह, +\q2 क्योंकि परमेश्वर ने तुझे बुराई करने से रोकने के लिए पीड़ित किया है। +\q1 +\s5 +\v 22 वास्तव में, लोग परमेश्वर की स्तुति इसलिए करते हैं कि वह बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 जो वह सिखाते हैं वह निश्चय ही अन्य कोई शिक्षक नहीं सिखा सकता है। +\q1 +\v 23 किसी ने उन्हें नहीं बताया है कि उन्हें क्या करना चाहिए, +\q2 और किसी ने उनसे नहीं कहा है, ‘आपने जो किया है वह गलत है!’ +\q1 +\v 24 लोगों ने सदा उनकी प्रशंसा करने के लिए गीत गाए हैं, +\q2 इसलिए तुझे भी उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उनकी स्तुति करना नहीं भूलना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 25 सब लोगों ने देखा है कि उन्होंने क्या किया है, +\q2 परन्तु हम उन कार्यों को बहुत कम समझते हैं। +\q1 +\v 26 परमेश्वर कितने महान हैं! हम यह जानने में सक्षम नहीं हैं कि वह कितने महान हैं, +\q2 और हम नहीं समझते कि वह कितनी आयु के हैं। +\q1 +\s5 +\v 27 वह पृथ्‍वी से पानी खींचते हैं और बादलों में भरते हैं +\q2 और उसे वर्षा का रूप देते हैं; +\q1 +\v 28 वर्षा आकाश से नीचे उण्डेली जाती है +\q2 और प्रचुर मात्रा में बौछारें हर किसी पर गिरती हैं। +\q1 +\v 29 कोई भी समझ नहीं सकता कि आकाश में बादल कैसे चलते हैं +\q2 या आकाश में यह कैसे गरजते हैं जहाँ परमेश्वर रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 वह अपने चारों ओर बिजली को चमकने देते हैं, +\q2 परन्तु वह महासागरों को अंधियारा रहने देते हैं। +\q1 +\v 31 हर किसी के लिए प्रचुर मात्रा में वर्षा प्रदान करके, +\q2 वह उन्हें बहुतायत से भोजन देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 32 ऐसा लगता है कि मानों वह अपने हाथों में बिजली को पकड़े हुए थे, +\q2 और फिर जहाँ वह चाहते हैं वहाँ उसे गिरने का आदेश देते हैं। +\q1 +\v 33 जब हम उसकी गर्जन सुनते हैं, तो हम जानते हैं कि एक तूफान होगा, +\q2 और मवेशी भी इसे जानते हैं। + +\s5 +\c 37 +\q1 +\p +\v 1 “जब मैं इसके विषय में सोचता हूँ तो मेरा हृदय धड़कता है। +\q1 +\v 2 तुम सब, उस गर्जन को सुनते हो, +\q2 जो परमेश्वर की आवाज़ के समान है। +\q1 +\v 3 वह पूरे आकाश में गर्जन भेजते हैं, +\q2 और वह पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों पर बिजली चमकाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 बिजली चमकने के बाद, हम उसकी गर्जन सुनते हैं, +\q2 जो परमेश्वर की शक्तिशाली आवाज के समान है; +\q2 जब वह बोलते हैं, तब वह बिजली को रोक कर नहीं रखते हैं। +\q1 +\v 5 जब परमेश्वर बोलते हैं, तब यह गर्जन के समान हमें उनसे डरने और उनकी स्तुति करने के लिए प्रेरित करता है; +\q2 वह अद्भुत कार्य करते हैं जिसे हम समझ नहीं सकते हैं। +\q1 +\v 6 वह भूमि पर गिरने के लिए बर्फ को आदेश देते हैं, +\q2 और कभी-कभी वह घोर वर्षा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 जब परमेश्वर ऐसा करते हैं, तब वह लोगों को कार्य करने से रोकता है, +\q2 जिससे कि सब लोग जान सकें कि वही एकमात्र हैं जो इन कार्यों को करते हैं। +\q1 +\v 8 वर्षा होने पर, जानवर अपने छिपने के स्थानों में चले जाते हैं, +\q2 और वे वर्षा के रुकने तक वहाँ रहते हैं। +\q1 +\v 9 तूफान दक्षिण में उस स्थान, से आते हैं जहाँ वे आरम्भ होते हैं, +\q2 और ठण्डी हवाएँ उत्तर से आती हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 जब वह आदेश देते हैं तो सर्दियों में पानी जम जाता है, +\q2 और झीलें बर्फ बन जाती हैं। +\q1 +\v 11 परमेश्वर बादलों को नमी से भरते हैं, +\q2 और बादलों से बिजली हर जगह चमकती है। +\q1 +\s5 +\v 12 वह बादलों का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें आगे और पीछे करते हैं +\q2 जिससे कि वे पूरे संसार में उनकी आज्ञा के अनुसार कार्य को पूरा करें। +\q1 +\v 13 कभी-कभी परमेश्वर हमें दण्ड देने के लिए वर्षा भेजते हैं, तो कभी-कभी उनकी बनाई गई भूमि को पानी देने के लिए भेजते हैं, +\q2 और कभी-कभी इसलिए कि वह हमारे प्रति बहुत दयालु होना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 हे अय्यूब, इसे सुन; +\q2 रुक और उन अद्भुत कार्यों के विषय में सोच जो परमेश्वर करते हैं। +\q1 +\v 15 क्या तू जानता है कि कैसे परमेश्वर अपने बादलों से बिजली चमकने का आदेश देते हैं? +\q1 +\s5 +\v 16 क्या तू जानता है कि परमेश्वर कैसे निर्णय लेते हैं कि आकाश में बादलों को कहाँ रखें? +\q2 क्या तू उन सब अद्भुत कार्यों को समझ सकता है जो परमेश्वर करते हैं, +\q1 और कैसे वह सब कुछ जानते हैं और पूरी तरह से जानते हैं? +\q1 +\v 17 नहीं, तू बस वहाँ अपने गर्म कपड़ों में पसीना निकालता है +\q2 क्योंकि तेरे द्वारा पहनने वाले कपड़े भी बहुत गर्म हो जाते हैं। +\q1 तेरे कपड़े इसलिए गर्म हो जाते हैं कि गर्मी पैदा होती है +\q2 जब दक्षिण से हवा आती है। +\q1 +\s5 +\v 18 क्या तू परमेश्वर के समान आकाश को फैला सकता है और उन्हें धातु के दर्पण समान कठोर बना सकता है? +\q1 +\v 19 हे अय्यूब, तू बहुत अधिक जानता है! तो हमें बता कि हमें परमेश्वर से क्या कहना चाहिए; +\q2 हम तो इस विषय में कुछ नहीं जानते कि हमें स्वयं का बचाव कैसे करना चाहिए। +\q1 +\v 20 क्या मुझे परमेश्वर से कहने के लिए किसी से बोलना चाहिए कि मैं उनसे बात करना चाहता हूँ? +\q2 नहीं, क्योंकि यदि मैंने ऐसा किया, तो वह मुझे नष्ट कर सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 तू जानता है कि लोग सीधे सूर्य की ओर नहीं देख सकते हैं +\q2 जब हवा द्वारा बादलों को उड़ा दिए जाने के बाद वह आकाश में तीव्रता से चमकता है; +\q2 इसी प्रकार हम निश्चित रूप से परमेश्वर की चमक को नहीं देख सकते हैं। +\q1 +\v 22 परमेश्वर एक प्रकाश के साथ उत्तर से निकलते हैं जो सोने के समान चमकता है; +\q2 उनकी महिमा हमें डरा देती है। +\q1 +\s5 +\v 23 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास बहुत महान शक्ति है, +\q2 और हम नहीं जानते कि उसके निकट कैसे जाना है। +\q1 वह हमेशा धार्मिकता से कार्य करते हैं, +\q2 और वह हमारे साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं करेंगे। +\q1 +\v 24 यही कारण है कि हम उनका अत्यन्त सम्मान करते हैं; +\q2 वह उन लोगों पर ध्यान नहीं देते जो घमण्ड से, वरन् गलत रीति से सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं।” + +\s5 +\c 38 +\p +\v 1 तब यहोवा ने अय्यूब से एक शक्तिशाली तूफान के अन्दर से बात की। उन्होंने उससे कहा, +\q1 +\v 2 “जो मैं करने की योजना बनाता हूँ उसमें भ्रम लाने वाला तू कौन है? +\q2 तू अज्ञानतापूर्वक बोल रहा है! +\q1 +\v 3 मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ, +\q2 इसलिए एक पुरुष के समान व्यवहार कर और +\q2 मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हो जाओ। +\q1 +\s5 +\v 4 जब मैंने पृथ्‍वी की रचना करना आरम्भ किया तो तू कहाँ था? +\q2 यदि तू बहुत अधिक जानता है, तो मुझे बता कि तू उस समय कहाँ था। +\q1 +\v 5 यदि यह मैं नहीं था जिसने निर्णय लिया कि पृथ्‍वी कितनी बड़ी होगी, तो फिर किसने निर्णय लिया था? +\q2 क्या तू जानता है कि पृथ्‍वी के चारों ओर इसे मापने के लिए एक रेखा किसने फैलाई? +\q2 यदि तुझे लगता है कि तू बहुत अधिक जानता है, निश्चय ही तुझे यह पता होना चाहिए! +\q1 +\s5 +\v 6-7 उन खम्भों को कौन सहारा देता है जिन पर पृथ्‍वी टिकी हुई है? +\q1 जब सुबह भोर को चमकने वाले सितारे एक साथ गाते थे, +\q2 और किसी ने उस पत्थर को उस स्थान पर रखा जो पृथ्‍वी के लिए अपने स्थान पर रहने का कारण है, +\q2 और सब स्वर्गदूत आनन्द से चिल्लाने लगे जब उन्होंने ऐसा होते हुए देखा, +\q1 तो किसने आधारशिला रखी? +\q1 +\s5 +\v 8 जब समुद्र पृथ्‍वी के नीचे से उण्डेला गया था, +\q2 तो किसने पानी को भूमि पर बहने से रोका? +\q1 +\v 9 यह तू नहीं, मैं था, जिसने बादलों को समुद्र पर आने दिया था +\q2 और उन बादलों के नीचे बहुत अंधेरा कर दिया था। +\q1 +\s5 +\v 10 मैंने समुद्रों के लिए सीमाएँ निर्धारित की हैं, +\q2 और मैंने बेड़े रखे कि पानी भूमि पर न आए। +\q1 +\v 11 मैंने किनारे की ओर संकेत किया और पानी से कहा, +\q2 ‘मैं तुमको यहाँ आने तक अनुमति देता हूँ, परन्तु मैं तुमको इससे आगे आने की अनुमति नहीं देता हूँ। +\q2 तुम्हारी शक्तिशाली तरंगें यहाँ रुकनी चाहिए।’ +\q1 +\s5 +\v 12 हे अय्यूब, क्या तू ने कभी सुबह को आरम्भ होने का आदेश दिया है? +\q2 क्या तू ने कभी सूर्य को उदय होने और एक नया दिन आरम्भ करने के लिए कहा है? +\q1 +\v 13 क्या तू ने कभी भोर को सारी पृथ्‍वी पर फैलने के लिए कहा है +\q2 जिसके परिणामस्वरूप दुष्ट लोग प्रकाश से भाग जाते हैं? +\q1 +\s5 +\v 14 जब भोर के बाद प्रकाश हो जाता है, +\q2 पहाड़ियाँ और घाटियाँ ऐसी साफ हो जाती हैं, जैसे एक मुहर अपने नीचे की मिट्टी पर एक छवि छापती है, या जैसे एक कपड़े की तह। +\q1 +\v 15 जब दिन का प्रकाश हो जाता है, तो दुष्टों के पास वह अन्धकार नहीं होता है जिसे वे पसन्द करते हैं; +\q2 दिन के प्रकाश में वे अब किसी को चोट पहुँचाने में सक्षम नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 हे अय्यूब, क्या तू ने समुद्र के तल में सोतों की यात्रा की है, जिससे समुद्र में पानी आता है? +\q2 क्या तू ने महासागरों के बहुत नीचे की जाँच की है? +\q1 +\v 17 क्या किसी ने तुझे उस स्थान के फाटक दिखाए हैं जहाँ मरे हुए लोग हैं, +\q2 उस स्थान के फाटक जहाँ मरे हुओं के बीच बहुत घना अन्धकार है? +\q1 +\v 18 क्या तू जानता है कि पृथ्‍वी कितनी बड़ी है? +\q2 मुझे बता यदि तू इन सब बातों को जानते है! +\q1 +\s5 +\v 19 उस स्थान की सड़क कहाँ है जहाँ से प्रकाश आता है? +\q2 क्या तू मुझे बता सकता है कि अन्धकार कहाँ रहता है? +\q1 +\v 20 क्या तू प्रकाश और अन्धकार को उन स्थानों पर ले जा सकता है जहाँ उन्हें प्रतिदिन अपना कार्य करना है? +\q2 क्या तू जानता है कि वह सड़क कहाँ है जो उनके घरों को वापस जाती है? +\q1 +\v 21 मुझे विश्वास है कि तू इन बातों को जानता है +\q2 क्योंकि तू उस समय से पहले जन्म ले चुका था जब यह सब कुछ बनाया गया था; +\q2 तुझे बहुत आयु का होना चाहिए! +\q1 +\s5 +\v 22 क्या तू ने उस स्थान में प्रवेश किया है जहाँ मैं बर्फ को एकत्र करता हूँ +\q2 और वह स्थान जहाँ मैं ओले रखता हूँ? +\q1 +\v 23 मैं बर्फ और ओले को इसलिए एकत्र करता हूँ कि जब लोग पृथ्‍वी पर लड़ रहे हों तो मैं उनका उपयोग कर सकूँ, +\q2 उस समय में जब वे युद्ध कर रहे हों। +\q1 +\v 24 उस स्थान की सड़क कहाँ से है जहाँ से मैं बिजली को चमकने देता हूँ? +\q2 वह स्थान कहाँ है जहाँ से पूर्वी हवा सारी पृथ्‍वी पर बहना आरम्भ करती है? +\q1 +\s5 +\v 25 उन नालों को किसने बनाया है जिनसे होकर वर्षा आकाश से नीचे आती है? +\q2 वायु में गर्जन के लिए सड़कों को कौन बनाता है? +\q1 +\v 26 रेगिस्तान में कौन वर्षा गिरने देता है, +\q2 उन स्थानों पर जहाँ कोई भी नहीं रहता है? +\q1 +\v 27 कौन उस वर्षा को भेजता है जो बंजर क्षेत्रों को नमी देती है, ऐसे क्षेत्र जहाँ कुछ भी नहीं उगता है, +\q2 कि घास फिर से बढ़ने लगे? +\q1 +\s5 +\v 28 क्या वर्षा का कोई पिता है? +\q2 क्या ओस का भी कोई पिता है? +\q1 +\v 29 किसके गर्भ से सर्दी में बर्फ आती है? +\q2 आकाश से नीचे आने वाले पाले को कौन जन्म देता है? +\q1 +\v 30 सर्दी में, पानी जम जाता है और एक चट्टान के समान कठोर हो जाता है, +\q2 और झीलों की सतह जमी हुई हो जाती है। +\q1 +\s5 +\v 31 हे अय्यूब, क्या तू उन जंजीरों को बाँध सकता है जो कचपचिया सितारों के समूह को एक साथ रखती हैं? +\q2 क्या तू मृगशिरा के सितारों की रस्सियों को खोल सकता है? +\v 32 क्या तू सितारों और ग्रहों को कह सकता है कि कब उन्हें चमकना चाहिए? +\q2 क्या तू सप्तर्षि तारामंडलों में सितारों का मार्गदर्शन कर सकता है? +\q1 +\v 33 क्या तू उन नियमों को जानता है जिनका सितारों को पालन करना चाहिए? +\q2 क्या तू उन सब नियमों को यहाँ पृथ्‍वी की सब वस्तुओं पर शासन करने के लिए लागू कर सकता है? +\q1 +\s5 +\v 34 क्या तू बादलों को आज्ञा देने के लिए चिल्ला सकता है और अपने ऊपर वर्षा करवा सकता है? +\q1 +\v 35 क्या तू बिजली की चमक को प्रेरित कर सकता है कि नीचे आकर वहाँ वार करे जहाँ तू चाहता है? +\q2 क्या वे चमक तुझसे कहती हैं, ‘तू कहाँ चाहता है कि हम वार करें?’ +\q1 +\s5 +\v 36 बादलों को यह जानने में कौन सक्षम बनाता है कि उन्हें वर्षा कब भेजनी चाहिए? +\q1 +\v 37 बादलों की गिनती करने में सक्षम होने के लिए किसमें पर्याप्त कौशल है? +\q2 वर्षा गिराने के लिए आकाश में पानी की कुप्पियों को कौन झुकाता है +\q1 +\v 38 कि शुष्क भूमि कठोर हो जाए +\q2 जब सूखे ढेले गीले हो जाते हैं और एक दूसरे के साथ चिपक जाते हैं? +\q1 +\s5 +\v 39-40 जब एक शेरनी और उसके शावक उनकी मांद में दुबक कर बैठते हैं या एक झाड़ी में छिपते हैं, किसी जानवर के आने की प्रतीक्षा में जिसे वे मार सकते हैं, +\q1 क्या तू शेरनी द्वारा मार डाले जाने के लिए जानवरों को ढूँढ़ सकता है +\q2 कि वह और उसके शावक माँस खा सकें और भूखे न रहें? +\q1 +\s5 +\v 41 कौवों के लिए मृत जानवरों को कौन उपलब्ध करवाता है, +\q2 जब उसके बच्चे भोजन के लिए मुझे पुकारते हैं, +\q2 जब वे भोजन की कमी के कारण इतने कमजोर हो जाते हैं कि वे अपने घोंसलों के आस-पास लड़खड़ाते फिरते हैं? + +\s5 +\c 39 +\q1 +\p +\v 1 “हे अय्यूब, क्या तू जानता है कि वर्ष के किस समय पहाड़ी बकरियाँ बच्चों को जन्म देती हैं? +\q2 क्या तू ने जंगली हिरणियों को देखा है जब उनके बछड़े पैदा होते हैं? +\q1 +\v 2 क्या तू जानता है कि जब तक उनके बछड़े पैदा नहीं होते हैं तब तक उनकी गर्भावस्था के कितने महीने बीत जाते हैं? +\q1 +\s5 +\v 3 जब वे जन्म देती हैं, तो वे दुबक कर नीचे बैठ जाती हैं, +\q2 और फिर उनकी प्रसव पीड़ा पूरी हो जाती है। +\q1 +\v 4 युवा बछड़े खुले मैदानों में बड़े हो जाते हैं, +\q2 और फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं और उनके पास लौट कर फिर से नहीं आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 जंगली गधे को कौन अनुमति देता है कि वे शहर से दूर जहाँ चाहें वहाँ जाएँ? +\q1 +\v 6 वह मैं ही हूँ जिसने उन्हें मुक्त कर दिया है और उन्हें रेगिस्तानी मैदान में रखा है, +\q2 उन स्थानों में जहाँ घास नहीं उगती है। +\q1 +\s5 +\v 7 उन्हें शहरों का शोर पसन्द नहीं है; +\q2 रेगिस्तान में उन्हें उन लोगों की चिल्लाहट सुनने की आवश्यकता नहीं है जिन्होंने उन्हें कार्य करने के लिए विवश किया था। +\q1 +\v 8 वे भोजन खोजने के लिए पहाड़ियों पर जाते हैं; +\q2 वहाँ वे खाने के लिए घास की खोज करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 क्या एक जंगली बैल तेरे लिए कार्य करने के लिए सहमत होगा? +\q2 क्या वह तुझे रात में उसे उस स्थान पर रखने की अनुमति देगा जहाँ तू ने अपने जानवरों के लिए चारा डाला है? +\q1 +\v 10 क्या तू उसे रस्सी से बाँध सकता है +\q2 कि वह तेरे खेतों में हल से जुताई करे, तेरे खेत जो घाटी में हैं? +\q1 +\s5 +\v 11 क्योंकि वह बहुत बलवन्त है, क्या इस कारण तू उस पर कार्य करने के लिए भरोसा कर सकता है? +\q2 क्या तू उसे कोई कार्य बता कर इस विश्वास के साथ दूर जा सकता है कि वह उस कार्य को करेगा? +\q1 +\v 12 क्या तू उस पर भरोसा कर सकता है कि वह खेत से वापस आएगा +\q2 और तेरे अनाज को उस स्थान पर लाएगा जहाँ तू उसकी दाँवनी करता है? +\q1 +\s5 +\v 13 शुतुर्मुर्गों के विषय में भी सोच। वे प्रसन्नता से अपने पंख फहराते हैं, +\q2 परन्तु उन्हें अपने बच्चों से प्रेम नहीं होता है। +\q1 +\v 14 शुतुर्मुर्ग भूमि पर अपने अंडे देते हैं और फिर, +\q2 रेत में गर्म होने के लिए अंडे छोड़ कर चले जाते हैं। +\q1 +\v 15 शुतुर्मुर्ग इस सम्भावना के विषय में कभी नहीं सोचते कि कुछ जंगली जानवर अंडों पर कदम रख सकते हैं और उन्हें कुचल सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 शुतुर्मुर्ग अपने बच्चों के साथ क्रूरता का व्यवहार करते हैं; +\q2 वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि मानों वे चूजे किसी अन्य शुतुर्मुर्ग के है। +\q1 उन्हें चिन्ता नहीं कि उनके चूजे मर जाएँगे, +\q2 कि उन्होंने व्यर्थ ही अंडे दिए। +\q1 +\v 17 ऐसा इसलिए है कि मैंने शुतुर्मुर्गों को बुद्धिमान होने की अनुमति नहीं दी थी। +\q2 मैंने उन्हें बुद्धिमान होने में सक्षम नहीं किया। +\q1 +\v 18 परन्तु, जब वे उठते हैं और दौड़ना आरम्भ करते हैं, +\q2 तो वे तिरस्कार पूर्वक घोड़ों के सवारों पर हँसते हैं +\q2 क्योंकि घोड़े शुतुर्मुर्गों के समान तेजी से नहीं दौड़ सकते हैं! +\q1 +\s5 +\v 19 इसके अतिरिक्त, घोड़ों के विषय में सोच। हे अय्यूब, क्या वह तू ही है जिसने घोड़ों को शक्तिशाली बनाया? +\q2 क्या वह तू ही है जो उनकी गर्दनों पर फहराती हुई अयाल रखता है? +\q1 +\v 20 क्या वह तू ही है जिसने उन्हें टिड्डियों के समान आगे छलांग लगाने में सक्षम बनाया? +\q2 जब वे हिनहिनाते हैं, तो वे लोगों को डरा देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 वे आनन्दित होकर भूमि को पैरों से खुरचते हैं, क्योंकि वे बहुत शक्तिशाली हैं, +\q2 जब वे युद्ध में भागने के लिए तैयार होते हैं तब +\q1 +\v 22 ऐसा लगता है कि वे डरने के विचार पर हँस रहे हैं। वे किसी भी बात से नहीं डरते हैं! +\q2 वे भागते नहीं हैं जब युद्ध में सैनिक तलवारों से एक दूसरे से लड़ रहे हैं। +\q1 +\v 23 सारथी के तीर रखने वाले तरकश घोड़े की पीठ पर खड़खड़ाते हैं, +\q2 और भाले और सांग सूरज की रोशनी में चमकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 घोड़े बहुत तेज दौड़ते हैं, और वे तेजी से भूमि को ढाँप लेते हैं; +\q2 जैसे ही तुरही फूँकी जाती है, वे युद्ध में भाग जाते हैं। +\q1 +\v 25 जब वे किसी को तुरही फूँकते हुए सुनते हैं तो वे आनन्द से हिनहिनाते हैं। +\q2 वे बहुत दूर होने पर भी युद्ध की गन्ध ले सकते हैं, +\q2 और वे समझते हैं कि इसका अर्थ क्या है जब सरदार अपने आदेशों को अपने सैनिकों को चिल्ला कर सुनाता हैं। +\q1 +\s5 +\v 26 बड़े पक्षियों के विषय में सोच। क्या वह तू ही है जिसने अपने पंखों को फैलाने के लिए +\q2 और सर्दियों के लिए दक्षिण की ओर उड़ जाने को बाज को सक्षम किया है? +\q1 +\s5 +\v 27 क्या उकाब अपने घोंसले बनाने के लिए चट्टानों में ऊपर इसलिए ऊँचे उड़ते हैं +\q2 कि तू ने उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया है? +\q1 +\v 28 वे उन चट्टानों के छेदों में रहते हैं। +\q2 वे उन ऊँची नुकीली चट्टानों में सुरक्षित हैं क्योंकि कोई भी जानवर उनके पास वहाँ तक नहीं पहुँच सकता है। +\q1 +\s5 +\v 29 जब वे वहाँ से ध्यानपूर्वक देखते हैं, +\q2 वे बहुत दूर से उन जानवरों को देखते हैं जिनको वे मार सकते हैं। +\q1 +\v 30 उकाब द्वारा एक जानवर को मारने के बाद, +\q2 उकाब के बच्चे उस जानवर के लहू को पीते हैं; +\q2 जहाँ कहीं भी भूमि पर मरे हुए मनुष्य पड़े होते हैं वे वहाँ एकत्र हो जाते हैं।” + +\s5 +\c 40 +\p +\v 1 तब यहोवा ने अय्यूब से कहा, +\q1 +\v 2 “क्या तू अब भी मेरे, एकमात्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ विवाद करना चाहता है? +\q2 क्योंकि तू मेरी निन्दा करता है, इसलिए तुझे मेरे प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम होना चाहिए!” +\p +\s5 +\v 3 तब अय्यूब ने यहोवा को उत्तर दिया, +\q1 +\v 4 “अब मैं जान गया हूँ कि मैं पूरी तरह से निकम्मा हूँ। अतः मैं उन प्रश्नों का उत्तर कैसे दे सकता हूँ? +\q2 मैं अपना हाथ अपने मुँह पर रखूँगा और कुछ भी नहीं कहूँगा। +\q1 +\v 5 जितना मुझे कहना चाहिए था उससे अधिक मैं पहले ही कह चुका हूँ, +\q2 इसलिए अब मैं और कुछ नहीं कहूँगा।” +\p +\s5 +\v 6 तब यहोवा ने फिर से एक शक्तिशाली तूफान में होकर अय्यूब से बात की। उन्होंने कहा, +\q1 +\v 7 “मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ, +\q2 इसलिए एक पुरुष के समान व्यवहार कर और +\q2 मेरे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए तैयार हो जा। +\q1 +\s5 +\v 8 क्या तू मुझ पर आरोप लगाने और यह कहने जा रहा है कि मैं अनुचित हूँ? +\q2 क्या तू यह कहने जा रहा है कि मैंने जो किया है वह गलत है, कि तू कह सके कि तू ने जो किया है वह सही है? +\q1 +\v 9 क्या तेरे पास उसी मात्रा में शक्ति है जो मेरे पास है? +\q2 क्या तेरी आवाज़ तूफान के समान जोर से आवाज़ कर सकती है, जैसे मेरी कर सकती है? +\q1 +\s5 +\v 10 यदि तू ऐसा कर सकता है, तो उन कपड़ों को पहन ले +\q2 जो दिखाते हैं कि तू गौरवशाली है और बहुत सम्मानित किया गया है! +\q1 +\v 11 दिखा कि तू बहुत क्रोध में हैं; +\q2 दिखा कि तुझे उन लोगों को विनम्र करने का अधिकार है जो बहुत घमण्डी हैं! +\q1 +\s5 +\v 12 उन घमण्डी लोगों को केवल क्रोध में देख कर विनम्र कर दे! +\q2 दुष्ट लोगों को शीघ्र ही चकना चूर कर दे! +\q1 +\v 13 उन्हें भूमि में दफना दे! +\q2 उन्हें उस स्थान में भेज दे जहाँ मरे हुए लोग हैं, +\q2 जहाँ से वे बाहर निकलने में सक्षम नहीं होंगे! +\q1 +\v 14 यदि तू ऐसा करता है, तो मैं तुझे बधाई दूँगा +\q2 और कहूँगा कि वास्तव में तू अपनी शक्ति से स्वयं को बचा सकता है। +\q1 +\s5 +\v 15 दरियाई घोड़े के विषय में भी सोच। +\q2 मैंने तुझे बनाया, और मैंने उसे भी बनाया। +\q2 वे बैल के समान घास खाते हैं। +\q1 +\v 16 उनके पैर बहुत शक्तिशाली हैं, +\q2 और उनकी पेट की माँसपेशियाँ बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 उनकी पूँछ एक देवदार के पेड़ की शाखाओं के समान कठोर हैं। +\q2 उनकी जाँघों की माँसपेशियाँ एक साथ जुड़ी हुई हैं। +\q1 +\v 18 उनकी जाँघ की हड्डियाँ पीतल से बनी सलाखों के समान हैं, +\q2 और उनके पैरों की हड्डियाँ लोहे से बनी सलाखों के समान हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 दरियाई घोड़े उन जानवरों में सबसे अधिक शक्तिशाली हैं जिन्हें मैंने बनाया है, +\q2 और केवल मैं ही, जिसने उन्हें बनाया, एकमात्र हूँ जो उन्हें मार सकता है। +\q1 +\v 20 पहाड़ियों पर उनके खाने के लिए भोजन उगता है +\q2 जबकि कई अन्य जंगली जानवर पास में खेलते हैं। +\q1 +\v 21 वे कमल के पौधों के नीचे पानी में पड़े रहते हैं; +\q2 वे दलदल में लम्बे सरकण्डों में छिप जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 दरियाई घोड़े कमल के पौधों के नीचे छाया पाते हैं, +\q2 और वे धाराओं में बढ़ने वाले बेंत के पेड़ों से घिरे हुए हैं। +\q1 +\v 23 वे उफनती बाढ़ ग्रस्त नदियों से परेशान नहीं होते हैं; +\q2 जब यरदन नदी जैसी नदियाँ उनके ऊपर से बहती हैं तो वे परेशान नहीं होते हैं। +\q1 +\v 24 कोई भी उन्हें अंकुड़ों से +\q2 या जाल के दाँतों से उनकी नाक में छेद करके पकड़ नहीं सकता है! + +\s5 +\c 41 +\q1 +\p +\v 1 “मगरमच्छ के विषय में भी सोच। +\q2 क्या तू उन्हें मछली फँसाने की बंसी से पकड़ सकता है +\q2 या उनके जबड़े रस्सी से बाँध सकता है? +\q1 +\v 2 क्या तू उन्हें नियंत्रित करने के लिए उनकी नाक में रस्सी डाल सकता है +\q2 या उनके जबड़ों में अंकुड़े फँसा सकता है? +\q1 +\v 3 क्या वे उनके साथ दया के व्यवहार करने के लिए तुझसे अनुरोध करेंगे +\q2 या मीठी बातें करेंगे कि तू उन्हें हानि नहीं पहुँचाए? +\q1 +\s5 +\v 4 क्या वे तेरे लिए कार्य करने को तेरे साथ समझौता करेंगे, +\q2 जब तक वे जीवित रहते हैं तब तक तेरे दास बनने के लिए? +\q1 +\v 5 क्या तू उन्हें पालतू बना सकता है जैसे तू पक्षियों को बनाता है? +\q2 क्या तू उनकी गर्दनों के चारों ओर पट्टा डाल सकता है कि तेरी दासियाँ उनके साथ खेल सकें? +\q1 +\v 6 क्या वे लोग जो मछली बेचने में भागीदार हैं उन्हें बाजार में बेचने का प्रयास कर सकते हैं? +\q2 क्या वे एक मगरमच्छ को टुकड़ों में काट कर उसका माँस बेचेंगे? +\q1 +\s5 +\v 7 क्या तू मछली पकड़ने के भाले फेंक कर उनकी खाल के माध्यम से मगरमच्छ को छेद सकता है? +\q2 क्या तू उनके सिरों को एक बर्छी से छेद सकता है? +\q1 +\v 8 यदि तू उनमें से एक को अपने हाथों से पकड़े तो भी तुझे ऐसी मार मारेगा जिसे तू कभी नहीं भूलेगा, +\q2 और तू फिर से ऐसा करने का प्रयास कभी नहीं करेगा! +\q1 +\v 9 उनको वश में करने की आशा करना भी व्यर्थ है। +\q2 कोई भी जो उनमें से एक को वश में करने का प्रयास करता है वह डर के मारे भूमि पर गिर जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 10 कोई भी मगरमच्छ को क्रोधित करने का साहस नहीं करता है। +\q2 इसलिए, क्योंकि मैं उनके तुलना में अधिक शक्तिशाली हूँ, कौन मुझे क्रोधित करने का साहस करेगा? +\q1 +\v 11 इसके अतिरिक्त, पृथ्‍वी पर सब कुछ मेरा है। +\q2 इसलिए, कोई भी मुझे कुछ देने में सक्षम नहीं है और मुझे इसके लिए पैसे का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है! +\q1 +\v 12 मैं तुझे बताता हूँ कि मगरमच्छ के पैर कितने मजबूत हैं +\q2 और उनके अच्छी तरह से बनाए गए शरीर कितने शक्तिशाली हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 क्या कोई उनकी खालें उतार सकता है? +\q2 क्या कोई उनके दो परत वाले कवच के आरपार छेद कर सकता है? +\q1 +\v 14 क्या कोई उनके जबड़े खोल सकता है, जिसमें भयानक दाँत हैं? +\q1 +\v 15 उनके पास उनकी पीठ पर छिलकों की पंक्तियाँ हैं +\q2 जो चट्टान के समान कठोर हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 वे छिलके एक साथ बहुत निकट हैं; +\q2 यहाँ तक कि हवा भी उनके बीच नहीं जा सकती है। +\q1 +\v 17 वे छिलके एक दूसरे के साथ बहुत निकटता में जुड़े हुए हैं, +\q2 और उन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। +\q1 +\v 18 जब मगरमच्छ छींकते हैं, तो पानी की छोटी बूँदें जो उनकी छींक से निकलती हैं सूरज की रोशनी में चमकती हैं। +\q2 उनकी आँखें उगते सूरज के समान लाल हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 ऐसा लगता है जैसे मानों आग की चिंगारियाँ उनके मुँह से निकलती हैं। +\q1 +\v 20 उनके नथनों से धुआँ ऐसे बाहर निकलता है +\q2 जैसे एक बर्तन से भाप निकलती है जिसे बहुत ही गर्म आग पर रखा जाता है। +\q1 +\v 21 उनकी साँस कोयलों को दहका सकती है +\q2 और उनके मुँह से आग की लौ निकलती है। +\q1 +\s5 +\v 22 उनकी गर्दनें बहुत दृढ़ हैं; +\q2 वे जहाँ भी वे जाते हैं, लोगों को बहुत डरा देते हैं। +\q1 +\v 23 उनके माँस की तहें एक साथ बहुत निकट हैं +\q2 और बहुत कठोर हैं। +\q1 +\v 24 वे निडर हैं +\q2 क्योंकि उनके शरीर के भीतरी भाग एक चट्टान के समान कठोर हैं, +\q2 इतने कठोर जितना चक्की का निचला पाट जिस पर लोग अनाज पीसते हैं। +\q1 +\s5 +\v 25 जब वे उठते हैं, तब वे बहुत शक्तिशाली लोगों को भी भयभीत कर देते हैं। +\q2 जिसके परिणामस्वरूप, लोग पीछे गिर पड़ते हैं। +\q1 +\v 26 लोग तलवार से उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते; +\q2 या भाले, तीर, या नोकीले भाग वाले अन्य हथियारों से उन्हें घायल नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\v 27 निश्चय ही वे भूसे या सड़ी हुई लकड़ी से बने हथियारों से नहीं डरते हैं, +\q2 परन्तु वे लोहे या पीतल से बने हथियारों से भी नहीं डरते हैं! +\q1 +\s5 +\v 28 उन पर तीर मारना उन्हें दूर भागने को प्रेरित नहीं करता है। +\q2 एक गोफन से उन पर पत्थरों को फेंकना उन पर भूसे के कणों को फेंकने जैसा है। +\q1 +\v 29 वे डण्डों से बिलकुल भी नहीं डरते हैं, इससे अधिक कि वे उन पर भूसे के टुकड़े फेंकने वाले पुरुषों से डरेंगे, +\q2 और वे हँसते हैं जब वे सुनते हैं कि एक भाला उनकी ओर आ रहा है। +\q1 +\v 30 उनके पेट छिलकों से ढके हुए हैं जो बर्तन के टूटे हुए टुकड़ों के समान धारदार हैं। +\q2 जब वे स्वयं को मिट्टी के बीच से खींचते हैं, +\q2 उनके पेट एक हल के समान भूमि को फाड़ते है। +\q1 +\s5 +\v 31 वे पानी में हलचल करते हैं और इसमें झाग बनाते हैं +\q2 जब वे इसमें मंथन करते हैं। +\q1 +\v 32 जब वे पानी में तैरते हैं, तब पानी में चलने की उनकी लीक चमकती हैं। +\q2 जो लोग इसे देखते हैं वे सोचते हैं कि झाग सफेद बाल बन गया है। +\q1 +\s5 +\v 33 पृथ्‍वी पर ऐसा कोई प्राणी नहीं है जिसको मैंने मगरमच्छ के समान निडर बनाया है। +\q1 +\v 34 वे सभी प्राणियों में सबसे अधिक गौरवशाली हैं; +\q2 वे अन्य सब जंगली जानवरों पर राजाओं के समान हैं।” + +\s5 +\c 42 +\p +\v 1 तब अय्यूब ने यहोवा को उत्तर दिया। उसने कहा, +\q1 +\v 2 “मुझे पता है कि आप सब कुछ कर सकते हैं +\q2 और कोई भी आपको ऐसा करने से रोक नहीं सकता जो आप करना चाहते हैं। +\q1 +\v 3 आपने मुझसे पूछा, ‘मैं जो करने की योजना बनाता हूँ उसमें भ्रम लाने वाला तू कौन है? तुम अज्ञानता की बातें कर रहा है! +\q2 यह सच है कि मैंने उन बातों के विषय में बोला जो मुझे समझ में नहीं आई, +\q2 वे बातें जो बहुत ही आश्चर्यजनक हैं, +\q2 वे बातें जिनके विषय में मुझे कुछ नहीं पता है। +\q1 +\s5 +\v 4 आपने मुझसे कहा, ‘सुन जब मैं तुझसे बात करता हूँ। +\q2 मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ, +\q2 इसलिए स्वयं को उत्तर देने के लिए तैयार कर।’ +\q1 +\v 5 मैंने पहले आपके विषय में अफवाह ही सुनी, +\q2 परन्तु अब ऐसा लगता है कि मानों मैंने आपको अपनी आँखों से देखा है। +\q1 +\v 6 इसलिए मैंने जो कहा, उसके लिए मैं लज्जित हूँ, +\q2 और मैं यह दिखाने के लिए धूल और राख में बैठता हूँ कि मैंने जो कहा उसके लिए मैं खेदित हूँ।” +\p +\s5 +\v 7 जब यहोवा ने अय्यूब से यह सब बातें कह दीं, तब उन्होंने एलीपज से कहा, “मैं तुझे और तेरे दो मित्रों, बिल्दद और सोपर से क्रोधित हूँ, क्योंकि तुमने मेरे विषय में, मेरे दास अय्यूब के समान सच्ची बातें नहीं कही। +\v 8 इसलिए अब तुम्हें अय्यूब के पास सात युवा बैल और सात मेढ़े ले जाना चाहिए और उन्हें मार डालना चाहिए और वेदी पर उन्हें अपने लिए बलि के रूप में जला देना चाहिए। तब अय्यूब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा, और मैं वह करूँगा जो वह मुझसे करने के लिए निवेदन करता है। मैं तुमको मेरे विषय में गलत बोलने के लिए क्षमा कर दूँगा। मैं तुमको दण्ड नहीं दूँगा, जबकि तुम दण्ड के योग्य हों, क्योंकि तुमने मेरे विषय में जो कहा वह सही नहीं था।” +\p +\v 9 तब एलीपज, बिल्दद और सोपर ने वह किया जो यहोवा ने करने का आदेश दिया, और यहोवा ने वह किया जो अय्यूब ने उनसे उन तीनों के लिए करने का अनुरोध किया। +\p +\s5 +\v 10 अय्यूब के अपने तीन मित्रों के लिए प्रार्थना करने के बाद, यहोवा ने उसे ठीक किया और उसे फिर से धनवान बना दिया। यहोवा ने उसे उससे दोगुनी वस्तुएँ दीं, जितनी पहले उसके पास थीं। +\v 11 तब उसके सब भाई और बहन, और जो लोग उसे पहले जानते थे, उसके घर आए, और उन्होंने एक साथ भोजन किया। उन्होंने उन सब परेशानियों के विषय में उसे सांत्वना दी जिन्हें यहोवा ने उसके साथ होने की अनुमति दी थी। उनमें से प्रत्येक ने अय्यूब को चाँदी का एक टुकड़ा और एक सोने की अंगूठी दी। +\p +\s5 +\v 12 तब यहोवा ने उसके जीवन की दूसरी बार में अय्यूब को उससे बढ़कर आशीषें दीं, जितनी उन्होंने उसे उसके जीवन के पहली बार में आशीषें दीं थीं। अब उसने चौदह हजार भेड़ें, छः हजार ऊँट, एक हजार बैल, और एक हजार गधियाँ प्राप्त कीं। +\v 13 और उसके सात और पुत्र हुए, तथा तीन और पुत्रियाँ भी हुई थीं। +\v 14 उसने पहली पुत्री को यमीमा नाम दिया, उसने दूसरी पुत्री को कसीआ नाम दिया, और उसने तीसरी पुत्री को केरेन्हप्पूक नाम दिया। +\s5 +\v 15 ऊज़ के सारे देश में, कोई भी ऐसी युवा स्त्रियाँ नहीं थीं जो अय्यूब की पुत्रियों के समान सुन्दर थीं, और अय्यूब ने घोषणा की कि वे उसकी कुछ-कुछ सम्पत्तियों की वारिस होंगी, जैसे उनके भाई वारिस होंगे। +\p +\v 16 उसके बाद, अय्यूब 140 वर्ष तक और जीवित रहा। उसकी मृत्यु से पहले, उसने अपने परपोतों (चार पीढ़ियों तक) को देखा। +\v 17 जब वह मरा तो वह बहुत बूढ़ा हो गया था। \ No newline at end of file diff --git a/19-PSA.usfm b/19-PSA.usfm new file mode 100644 index 0000000..340c3d0 --- /dev/null +++ b/19-PSA.usfm @@ -0,0 +1,9879 @@ +\id PSA +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h भजन संहिता +\toc1 भजन संहिता +\toc2 भजन संहिता +\toc3 psa +\mt1 भजन संहिता + + +\s5 +\c 1 +\ms पहला भाग +\q1 +\p +\v 1 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो दुष्टों द्वारा दिए गए सुझावों का अनुपालन नहीं करते हैं, +\q1 जो पापी लोगों के व्यवहार अनुकरण नहीं करते हैं, +\q1 और जो उन लोगों के साथ सहभागी नहीं होते हैं जो परमेश्वर का उपहास करते हैं। +\q1 +\v 2 इसकी अपेक्षा, जिन लोगों से यहोवा प्रसन्न हैं, वे उनकी शिक्षाओं को समझने में आनन्द लेते हैं। +\q2 वे हर दिन और हर रात यहोवा की शिक्षाओं को पढ़ते हैं और उनके विषय में सोचते रहते हैं कि यहोवा क्या सिखाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 वे निरन्तर ऐसे कार्य करते रहते हैं जिनसे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं, +\q2 जैसे कि एक पानी के सोते के किनारे पर लगाए फलों के पेड़ हैं, हर वर्ष सही समय पर फल देते हैं। +\q1 ऐसे पेड़ों के समान जो कभी नहीं सूखते, +\q2 वे अपने सब कार्यों में सफल होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु दुष्ट लोग ऐसे नहीं हैं! +\q2 दुष्ट लोग भूसी के समान निकम्मे हैं +\q2 जो हवा से उड़ाई जाती है। +\q1 +\v 5 इसलिए, जब परमेश्वर सब मनुष्यों का न्याय करेंगे, तब वह दुष्टों को दण्ड देंगे। +\q2 इसके अतिरिक्त, जब यहोवा सब धर्मी लोगों को एकत्र करेंगे तब दुष्ट उनके साथ उपस्थित नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 क्योंकि यहोवा धर्मी लोगों का मार्गदर्शन करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं, +\q2 परन्तु जिस मार्ग पर दुष्ट चलते हैं, वह मार्ग उनको वहाँ ले जाता है जहाँ परमेश्वर उन्हें सदा के लिए नष्ट कर देंगे। + +\s5 +\c 2 +\q +\p +\v 1 सब राष्ट्रों के प्रधानों ने यहोवा के विरुद्ध उग्रता क्यों दिखाई है? +\q2 लोग उनके विरुद्ध विद्रोह करने की योजना क्यों बनाते हैं, चाहे वह व्यर्थ ही हो? +\q1 +\v 2 पृथ्‍वी के राष्ट्रों के राजा विद्रोह करने के लिए तैयारी कर रहे हैं; +\q2 शासकों ने यहोवा के विरुद्ध और उनके अभिषिक्त के विरुद्ध युद्ध करने का षड्यन्त्र रचा है। +\q1 +\v 3 वे चिल्लाते हैं, “हमें उनकी अधीनता से मुक्त होना चाहिए; +\q2 हमें अब उन्हें हमारे ऊपर शासन करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए!” +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु जो स्वर्ग में अपने सिंहासन पर बैठते हैं, वह उन पर हँसते हैं; +\q2 परमेश्वर उन शासकों का उपहास करते हैं। +\q1 +\v 5 तब, वह अपने क्रोध में उन्हें झिड़केंगे। +\q2 वह उन्हें भयभीत कर देते हैं जब उन्हें समझ में आता है कि वह उन्हें कठोर दण्ड देंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 यहोवा कहते हैं, “मैंने यरूशलेम में, अपने पवित्र पर्वत सिय्योन पर अपने राजा को सिंहासन में बैठाया है।” +\q1 +\v 7 उनका राजा कहता है, “मैं यहोवा के आदेश की घोषणा करूँगा। +\q1 उन्होंने मुझसे कहा, ‘तू मेरा पुत्र है; +\q2 आज मैं तेरा पिता हो गया हूँ। +\q1 +\s5 +\v 8 मुझसे अनुरोध करे कि मैं राष्ट्रों को तुझे दे दूँ +\q2 कि वे तेरी सदा की सम्पत्ति हों, +\q2 और मैं उन्हें तुझे दूँगा। +\q1 यहाँ तक कि सबसे दूर के राष्ट्र भी तेरे होंगे। +\q1 +\v 9 तू लोहे की छड़ी से उन्हें मारेगा; +\q2 जैसे कुम्हार अपने बर्तन को भूमि पर पटक कर टुकड़े-टुकड़े कर देता है, +\q2 उसी प्रकार तू उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर देगा। +\q1 +\s5 +\v 10 तो इसलिए, हे पृथ्‍वी के राजाओं और अन्य शासकों, बुद्धिमानी से कार्य करो! +\q2 यहोवा की चेतावनी को सुनो! +\q1 +\v 11 यहोवा की उपासना करो; उत्साह से उनका सम्मान करो। +\q2 उनके कार्यों पर आनन्द करो, परन्तु उनके सामने काँपते रहो! +\q1 +\s5 +\v 12 उनके पुत्र के सामने नम्रता से झुको! +\q2 यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो वह क्रोधित हो जाएँगे, +\q2 और वह अकस्मात ही तुम्हें मार देंगे। +\q1 यह मत भूलो कि वह एक पल में दिखा सकते हैं कि वह बहुत क्रोधित हैं! +\q2 परन्तु वे सब कैसे भाग्यशाली हैं जो अपनी रक्षा के लिए उनसे अनुरोध करते हैं। + +\s5 +\c 3 +\d दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन जब वह अपने पुत्र अबशालोम से भाग रहा था +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मेरे कई शत्रु हैं! +\q2 ऐसे कई लोग हैं जो मेरा विरोध करते हैं। +\q1 +\v 2 बहुत से लोग मेरे विषय में कह रहे हैं, +\q2 “परमेश्वर निश्चय ही उसकी सहायता नहीं करेंगे।” +\q2 +\s5 +\v 3 परन्तु हे यहोवा, आप उस ढाल के समान हैं जो मेरी रक्षा करती है। +\q1 आप मुझे बहुत सम्मानित करते हैं, और आप मुझे प्रोत्साहित करते हैं। +\q1 +\v 4 हे यहोवा, मैं आपको पुकारता हूँ, +\q2 और आप मुझे अपने पवित्र पर्वत सिय्योन से उत्तर देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 रात में मैं लेट गया और सो गया, और मैं सुबह उठ गया +\q2 क्योंकि हे यहोवा, आपने पूरी रात मेरा ध्यान रखा। +\q1 +\v 6 मुझे घेरने वाले शत्रु के हजारों सैनिक हो सकते हैं, +\q2 परन्तु मुझे डर नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 7 हे यहोवा, उठो! +\q2 हे मेरे परमेश्वर, आकर मुझे फिर से बचा लो! +\q1 आप मेरे शत्रुओं को उनके गालों पर थप्पड़ मार कर अपमानित करेंगे; +\q2 जब आप उन्हें मारेंगे, तब आप उनकी शक्ति को नष्ट कर देंगे, +\q2 जिसका परिणाम होगा कि वे किसी को चोट नहीं पहुँचा पाएँगे। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, आप ही वह है जो अपने लोगों को उनके शत्रुओं से बचाते हैं। +\q2 हे यहोवा, अपने लोगों को आशीष दें! + +\s5 +\c 4 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन; तार वाले वाद्य यन्त्र बजाने वाले लोगों के साथ गाने वाला एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, जब मैं आप से प्रार्थना करता हूँ तो मुझे उत्तर दें। +\q2 आप ही वह हैं जो लोगों को दिखाते हैं कि मेरा आप पर भरोसा करना सही है। +\q1 जब मैं बड़ी परेशानी में था तब आपने मुझे बचाया। +\q2 मेरे लिए दया के कार्य करें और जब मैं प्रार्थना करूँ तब मेरी सुनें। +\q1 +\s5 +\v 2 मुझे सम्मानित करने की अपेक्षा तुम लोग मुझे कब तक लज्जित करोगे? +\q2 तुम लोग मुझ पर झूठा दोष लगाने से प्रसन्न हो। +\q1 +\v 3 जो यहोवा का सम्मान करते हैं— +\q2 उन सबको यहोवा ने अपने लिए चुना है। +\q1 जब मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ तो यहोवा मेरी बात सुनते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 तुम्हें यहोवा से डरना चाहिए, परन्तु अपने डर को पाप करने की अनुमति मत देना। +\q1 जब तुम अपने बिस्तर पर लेटते हो, +\q2 चुप चाप जाँच करो कि तुम अपने मन में क्या सोच रहे हो। +\q1 +\v 5 और यहोवा को उचित बलि चढ़ाओ +\q2 और उन पर भरोसा करते रहो। +\q1 +\s5 +\v 6 कुछ लोग पूछते हैं, “क्या कोई हमारे लिए अच्छी वस्तुएँ लाएगा?” +\q2 परन्तु मैं कहता हूँ, “हे यहोवा, हमारे लिए दया के कार्य करते रहें। +\q1 +\v 7 आपने मुझे बहुत आनन्दित किया है; +\q2 मैं उन सब लोगों की तुलना में अधिक आनन्दित हूँ जिन्होंने बड़ी मात्रा में अनाज और अँगूर की कटाई की है। +\q1 +\v 8 मैं रात को शान्ति और सुरक्षा में लेट जाऊँगा और गहरी नींद में सो जाऊँगा +\q2 क्योंकि मैं जानता हूँ कि हे यहोवा, केवल आप ही हैं, जो मुझे सुरक्षित रखेंगे।” + +\s5 +\c 5 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन; इस भजन के साथ बाँसुरी बजाई जाए +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, जब मैं प्रार्थना करता हूँ तब मेरी सुनें! +\q2 जब मैं कराहता हूँ तो मेरी ओर ध्यान दें क्योंकि मुझे बहुत पीड़ा है। +\q1 +\v 2 आप मेरे राजा और मेरे परमेश्वर हैं। +\q1 जब मैं आप से सहायता के लिए अनुरोध की पुकार करता हूँ, तो सुन लें +\q2 क्योंकि आप ही हैं जिनसे मैं प्रार्थना करता हूँ। +\q1 +\v 3 जब मैं प्रतिदिन सुबह प्रार्थना करता हूँ तो आप मेरी प्रार्थना सुनते हैं, +\q2 और मैं आपके उत्तर की प्रतीक्षा करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 4 आप ऐसे परमेश्वर नहीं हैं, जो दुष्ट लोगों से प्रसन्न होते हैं; +\q2 आप बुराई करने वालों का स्वागत कभी नहीं करेंगे। +\q1 +\v 5 आप घमण्डी लोगों को आराधना करने के लिए आपके पास आने की अनुमति नहीं देते हैं। +\q2 आप उन सबसे घृणा करते हैं जो बुरे कार्य करते हैं। +\q1 +\v 6 आप झूठे लोगों का नाश करते हैं, +\q2 और आप दूसरों की हत्या करने वालों से और दूसरों को धोखा देने वालों से घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 हे यहोवा, क्योंकि आप मुझसे बहुत अधिक और सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 इसलिए मैं आपके मन्दिर में आया हूँ। +\q1 मेरे मन में आपके लिए श्रद्धा और महान सम्मान है +\q2 और मैं आपके पवित्र मन्दिर में आराधना करने के लिए सिर झुकाऊँगा। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, क्योंकि आप मेरे साथ सच्चाई से कार्य करते हैं, +\q2 मुझे दिखाएँ कि मेरे लिए क्या करना उचित है। +\q1 क्योंकि मेरे कई शत्रु हैं, +\q2 इसलिए मुझे स्पष्ट दिखाएँ कि मुझे कैसे उचित जीवन जीना है। +\q1 +\s5 +\v 9 मेरे शत्रु कभी सच्ची बात नहीं करते हैं; +\q2 अपने मन ही मन वे दूसरों को नष्ट करना चाहते हैं। +\q1 वे हिंसा और मृत्यु की धमकी देते हैं। +\q2 वे लोगों को प्रसन्न करने के लिए अच्छी-अच्छी बातें कहने के लिए अपनी जीभ का उपयोग करते हैं। +\q1 +\v 10 हे परमेश्वर, घोषणा करें कि वे दोषी हैं और उन्हें दण्ड दें। +\q2 उन्हें उन्हीं कष्टों का अनुभव कराएँ जो वे दूसरों को देने की योजना बनाते हैं। +\q1 उन्हें नष्ट करें क्योंकि उन्होंने कई पाप किए हैं, +\q2 और उन्होंने आपके विरुद्ध विद्रोह किया है। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु जो लोग आपके पास सुरक्षित होने के लिए जाते हैं, उन्हें आनन्द प्रदान करें; +\q2 वे सदा के लिए आनन्द से गाते रहें। +\q1 उन लोगों की रक्षा करें जो आप से प्रेम करते हैं; +\q2 वे आपके कार्यों के कारण वास्तव में आनन्दित हैं। +\q1 +\v 12 हे यहोवा, आप उन लोगों को सदा आशीष देते हैं जो धार्मिकता का कार्य करते हैं; +\q2 आप उनकी ऐसे रक्षा करते हैं, जैसे एक सैनिक अपनी ढाल से अपनी रक्षा करता है। + +\s5 +\c 6 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के अगुवे के लिए लिखा गया एक भजन, जिसे तार वाले वाद्य यन्त्र बजाने वाले लोगों के साथ गाना चाहिए +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, जब आप मुझसे क्रोधित हों तो मुझे दण्ड न दें; +\q2 जब आप अप्रसन्न हों, तब मेरी ताड़ना न करें। +\q1 +\v 2 हे यहोवा, मेरे लिए दया के कार्य करें और मुझे स्वस्थ करें क्योंकि मैं दुर्बल हो गया हूँ। +\q2 मेरा शरीर काँपता है क्योंकि मैं बहुत अधिक दुख उठाता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, मैं अपने मन में बहुत परेशान हूँ। +\q2 मुझे यह कब तक सहन करना पड़ेगा? +\q1 +\v 4 हे यहोवा, कृपया आकर मुझे बचाएँ। +\q2 मुझे बचाएँ क्योंकि आप सदा अपनी वाचा की प्रतिज्ञा को निभाते हैं। +\q1 +\v 5 मरने के बाद मैं आपकी स्तुति नहीं कर पाऊँगा; +\q2 मरे हुओं के स्थान में कोई भी आपकी स्तुति नहीं करता है। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं अपनी पीड़ा के कारण थक चुका हूँ। +\q2 मैं पूरी रात रोता हूँ जिससे मेरा बिस्तर और मेरा तकिया मेरे आँसुओं से भीग जाता है। +\q1 +\v 7 क्योंकि मैं बहुत रोता हूँ, मैं अच्छी तरह से नहीं देख सकता। +\q2 मेरी आँखें दुर्बल हो गई हैं क्योंकि मैं अपने शत्रुओं के डर से रोता रहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 8 तुम लोग जो बुरे कार्य करते हो, मुझसे दूर हो जाओ, +\q2 क्योंकि जब मैं रो रहा था तब यहोवा ने मुझे सुना! +\q1 +\v 9 यहोवा ने मुझे सुना जब मैंने उन्हें मेरी सहायता करने के लिए पुकारा, +\q2 और वह मेरी प्रार्थना का उत्तर देंगे। +\q1 +\v 10 जब ऐसा होगा, तब मेरे सब शत्रु लज्जित होंगे; +\q2 वे भयभीत होंगे। +\q1 वे मुझसे दूर हो जाएँगे और अकस्मात ही मुझे छोड़ देंगे +\q2 क्योंकि वे अपमानित होंगे। + +\s5 +\c 7 +\d एक भजन जो दाऊद ने कूश नाम के बिन्यामीनी के कारण यहोवा के लिए गाया था। +\q1 +\p +\v 1 हे मेरे परमेश्वर, मैं अपनी रक्षा के लिए आपके पास आया हूँ। +\q2 मुझे बचाएँ, मुझे उन सब लोगों से बचाएँ जो मुझे हानि पहुँचाने के लिए मेरे पीछे आ रहे हैं। +\q1 +\v 2 यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो वे मुझे फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर देंगे +\q2 जैसे शेर करता है जब वह जानवरों पर आक्रमण करता है जिन्हें वह मारना चाहता है; +\q2 मुझे उनसे कोई नहीं बचाएगा। +\q1 +\s5 +\v 3 हे मेरे परमेश्वर, यदि मैंने कुछ भी गलत किया है, +\q2 +\v 4 या मैंने किसी मित्र का बुरा किया है, +\q2 या किसी उचित कारण के बिना, मैंने अपने शत्रुओं को हानि पहुँचाई है। +\q1 +\s5 +\v 5 तब मेरे शत्रुओं को मेरा पीछा करने और मुझे पकड़ने दें। +\q1 उन्हें मुझे भूमि में रौंदने दें +\q2 और मुझे मिट्टी में मरा हुआ छोड़ने दें। +\q1 +\s5 +\v 6 हे यहोवा, क्योंकि आप मेरा पीछा करने वालों से बहुत क्रोधित हैं; +\q2 उठकर मुझ पर आक्रमण करने वालों पर आक्रमण कर दें! +\q1 उन लोगों के साथ वह करें जो आपने कहा है कि न्यायोचित है! +\q1 +\v 7 सब राष्ट्रों के लोग आप पर आक्रमण करने के लिए एकत्र होते हैं, +\q2 परन्तु आप अपने स्वर्ग के स्थान से उन पर शासन करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 हे यहोवा, सब राष्ट्रों के लोगों का न्याय करो! +\q2 हे यहोवा, दिखा दो कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है। +\q1 +\v 9 हे परमेश्वर, आप जानते हैं कि मनुष्य अपने मन में क्या सोच रहे हैं +\q2 और क्योंकि आप धर्मी हैं, आप सदैव वही करते हैं जो न्यायोचित है। +\q1 तो अब दुष्टों को उनके दुष्ट कर्म करने से रोकें, +\q2 और हम सबकी रक्षा करें जो धर्मी हैं! +\q1 +\s5 +\v 10 हे परमेश्वर, आप मेरी रक्षा करते हैं जैसे ढाल सैनिकों की रक्षा करती है; +\q2 आप उन सबको बचाते हैं, जो अपने मन में धर्मी हैं। +\q1 +\v 11 आप सबका उचित न्याय करते हैं, +\q2 और आप प्रतिदिन दुष्ट लोगों को दण्ड देते हैं, उन्हें जो आपकी व्यवस्था का अपमान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 जब आपके शत्रु पश्चाताप नहीं करते हैं, +\q2 तब ऐसा प्रतीत होता है कि आप अपनी तलवार को तेज करते हैं और उन्हें मारने के लिए अपने धनुष पर एक तीर चढ़ाते हैं। +\q1 +\v 13 आप जिन लोगों पर आक्रमण करते हैं उन्हें मारने के लिए अपने हथियारों को तैयार कर रहे हैं; +\q2 जो तीर आप मारते हैं, वे जलते हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 दुष्ट लोग अपने झूठ और बुरे कार्यों का षड्यन्त्र रचते हैं, +\q2 जैसे एक गर्भवती स्त्री जन्म देने की योजना बनाती है, वैसे ही वे लोग योजना बनाते हैं और अपने विचारों पर आनन्द करते हैं। +\q1 +\v 15 वे दूसरों को फँसाने के लिए गहरे गड्ढे तो खोदते हैं, +\q2 परन्तु वे स्वयं ही उनमें गिर जाएँगे। +\q1 +\v 16 वे स्वयं ही उन परेशानियों से घिर जाएँगे जिन्हें वे दूसरों के लिए उत्पन्न करना चाहते हैं; +\q2 वे अपनी हिंसा का स्वयं ही शिकार हो जाएँगे, जो वे दूसरों के साथ करना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ क्योंकि वह सदा धार्मिकता से कार्य करते हैं; +\q2 मैं यहोवा की स्तुति करने के लिए गाता हूँ, वह जो सब अन्य देवताओं से बहुत महान हैं। + +\s5 +\c 8 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन, जिसे तार वाले वाद्य यन्त्र के साथ गाना चाहिए +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा हमारे परमेश्वर, पृथ्‍वी के सब लोग जानते हैं कि आप बहुत महान हैं! +\q2 हम जब भी स्वर्ग की ओर देखते हैं, तब हम आपकी महानता देखते हैं! +\q1 +\v 2 आपने बच्चों और दूध पीते बच्चे को आपकी स्तुति करना सिखाया हैं; +\q2 वे आपके शत्रुओं को और जो आप से बदला लेने का प्रयास करते हैं, उन्हें चुप करा देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 मैं रात में आकाश को देखता हूँ +\q2 और आपके द्वारा रची गई वस्तुओं को देखता हूँ। +\q2 चँद्रमा और तारे जिन्हें आपने उनके स्थान में रखा है। +\q1 +\v 4 यह मेरे लिए आश्चर्य की बात है कि आप लोगों के विषय में सोचते हैं, +\q2 कि आप हम मनुष्यों के विषय में चिन्ता करते हैं! +\q1 +\v 5 आपने स्वर्ग में स्वर्गदूतों को केवल हमसे थोड़ा अधिक महत्वपूर्ण बनाया है; +\q2 आपने हमें राजाओं के समान बनाया है! +\q1 +\s5 +\v 6 जो कुछ भी आपने बनाया है उसका आपने हमें प्रभारी बना दिया है; +\q2 आपने हमें सब वस्तुओं पर अधिकार दिया— +\q1 +\v 7 भेड़ और मवेशी, +\q2 और यहाँ तक कि जंगली जानवरों, +\q1 +\v 8 पक्षियों, मछली, +\q2 और समुद्र में तैरने वाले हर प्राणी पर अधिकार दिया। +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा हमारे परमेश्वर, +\q2 सम्पूर्ण पृथ्‍वी के लोग जानते हैं कि आप बहुत महान हैं! + +\s5 +\c 9 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन, जो ‘मेरे पुत्र की मृत्यु’ की धुन पर गाना चाहिए +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं अपने पूरे मन से आपकी स्तुति करूँगा। +\q2 मैं दूसरों को उन सब अद्भुत कार्यों के विषय में बताऊँगा जो आपने किए हैं। +\q1 +\v 2 आप सब देवताओं से बहुत अधिक महान हैं, मैं आपके कार्यों का उत्सव मनाने के लिए गीत गाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 3 जब मेरे शत्रुओं को आपकी महान शक्ति का एहसास होता है, +\q2 तब वे लड़खड़ाते हैं, और फिर मारे जाते हैं। +\q1 +\v 4 आप लोगों का न्याय करने के लिए अपने सिंहासन पर बैठते हैं, +\q2 और आपने मेरे विषय में निष्पक्ष न्याय किया है। +\q1 +\s5 +\v 5 आपने अन्य राष्ट्रों के लोगों को दण्ड दिया, +\q2 और दुष्ट लोगों को नष्ट कर दिया है; +\q2 आपने उनके नाम सदा के लिए मिटा दिए हैं। +\q1 +\v 6 हमारे शत्रु मिट गए हैं; +\q2 आपने उनके शहरों को नष्ट कर दिया, +\q2 और लोग अब उन्हें स्मरण भी नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु यहोवा सदैव शासन करते हैं। +\q2 वह अपने सिंहासन पर बैठ कर लोगों का न्याय करते हैं। +\q1 +\v 8 वह सम्पूर्ण पृथ्‍वी पर सब लोगों का न्याय करेंगे; +\q2 जब वह हर देश के लोगों का न्याय करेंगे, तब वह पक्षपात नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 9 यहोवा पीड़ित लोगों के लिए शरणस्थान होंगे; +\q2 जब वे परेशानी में होते हैं तब वह उनके लिए आश्रय के समान होंगे। +\q1 +\v 10 जो लोग यहोवा को जानते हैं वे उन पर भरोसा करते हैं; +\q2 वह उन लोगों को कभी नहीं छोड़ते है, जो सहायता के लिए उनके पास आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा सिय्योन पर्वत पर से शासन करते हैं; +\q2 उनकी स्तुति करें और उनके लिए गीत गाएँ। +\q1 सभी राष्ट्रों के लोगों में उनके आश्चर्यजनक कार्यों का वर्णन करो जो उन्होंने किए हैं। +\q1 +\v 12 वह हत्या करने वालों को दण्ड देना नहीं भूलते हैं; +\q2 वह उन्हें अवश्य दण्ड देंगे, +\q2 और वह कष्ट में दबे रोने वाले लोगों को अनदेखा नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 13 हे यहोवा, मेरे प्रति दया के कार्य करो! +\q1 देखो कि मेरे शत्रुओं ने मुझे कैसे घायल कर दिया है। +\q2 इन घावों के कारण मुझे मरने न दें। +\q1 +\v 14 मैं जीना चाहता हूँ जिससे कि मैं यरूशलेम के फाटकों पर आपकी स्तुति कर सकूँ +\q2 और आनन्द करूँ क्योंकि आपने मुझे बचाया है। +\q1 +\s5 +\v 15 अन्य राष्ट्रों के दुष्ट लोगों ने मुझे गिराने के लिए एक गड्ढ़ा खोदा है, +\q2 परन्तु उस गड्ढे में वे ही गिर गए हैं। +\q1 उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए जाल सा फैलाया है, +\q2 परन्तु उस जाल में उन्हीं के पाँव फँस गए हैं। +\q1 +\v 16 आपने जो कार्य किए हैं, उसके कारण लोग जानते हैं कि आप न्याय करते हैं; +\q2 आप दुष्ट लोगों को उन ही बुरी चालों में फँसने देते हैं जो वे स्वयं चलते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 दुष्ट लोग मर जाएँगे और अपनी कब्रों में दफनाए जाएँगे; +\q2 उनकी आत्माएँ उन लोगों के साथ रहने के लिए चली जाएँगी जो आपके विषय में भूल गए हैं। +\q1 +\v 18 परन्तु आप उन लोगों को नहीं भूलेंगे जो आवश्यकताओं से घिरे हुए हैं; +\q2 जो आत्मविश्वास से आशा बाँधते हैं वे निराश नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 हे यहोवा, हमारे शत्रुओं को हम पर विजयी होने न दें +\q केवल इसलिए कि वे बलवन्त हैं; +\q आप देखते हैं कि लोग क्या करते हैं और आप उन सबका न्याय करते हैं। +\q1 +\v 20 हे यहोवा, उन्हें सिखाएँ कि उन्हें आप से डरना चाहिए और आपका आदर करना चाहिए। +\q2 उन्हें विवश करें कि वे जानें कि वे केवल मनुष्य हैं। + +\s5 +\c 10 +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आप हमसे स्वयं को क्यों दूर रखते हैं? +\q2 जब हमें परेशानी होती है तो आप ध्यान क्यों नहीं देते हैं? +\q1 +\v 2 घमण्डी, दुष्ट लोगों के अन्दर गरीब लोगों को पीड़ित करने के लिए एक भयानक इच्छा है। +\q2 हे परमेश्वर, उन्हें अपने स्वयं के जाल में फँसा दें, कि वे दूसरों के साथ जो करते हैं, वो उनके साथ हो! +\q1 +\v 3 दुष्ट व्यक्ति उस बुरे कार्यों के विषय में घमण्ड करता है जो वह करना चाहता है। +\q2 वह उन चीजों को पाना चाहता है जो दूसरों के पास हैं, और वह नहीं चाहते हैं कि उनके पास उसके तुलना में अधिक चीजें हों। +\q2 वह अपने सभी वस्तुओं के विषय में घमण्ड करता है, जब हे यहोवा वह आपको श्राप देता है। +\q1 +\s5 +\v 4 दुष्ट व्यक्ति बहुत घमण्डी है +\q2 वह कभी परमेश्वर की खोज नहीं करता है +\q2 और यदि उसने परमेश्वर की खोज की, तो भी वह उन्हें नहीं ढूँढ़ पाएगा। +\q2 वह इतना घमण्डी है कि परमेश्वर के विषय में भी नहीं सोचता। +\q1 +\v 5 परन्तु दुष्ट मनुष्य के जीवन को देखते हुए, +\q2 ऐसा लगता है कि वह जो भी करता है वह सफल होता है। +\q2 हे परमेश्वर, वह आपके आदेशों को भी समझ नहीं सकता, +\q2 और फिर वह अपने शत्रुओं का उपहास करता है। +\q1 +\s5 +\v 6 उसके मन में वह सोचता है, “मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं हो सकता! +\q2 जब तक मैं रहता हूँ, मुझे कभी परेशानी नहीं होगी।” +\q1 +\v 7 जब वह बोलता है तो वह सदा श्राप देता है और झूठ बोलता है, +\q2 और वह दूसरों के विरुद्ध धमकी देता है। +\q2 जब वह बात करता है, तो वह केवल अन्य लोगों को चोट पहुँचाने या नष्ट करने के विषय में बोलता है। +\q1 +\s5 +\v 8 वह गाँवों में रहने वाले लोगों पर आक्रमण करने की योजना बनाता है, जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। +\q2 वह छिपने के लिए उपयुक्त स्थानों पर प्रतीक्षा करता है +\q2 जबकि वह और लोगों पर आक्रमण करने की खोज में रहता है, +\q2 ऐसे लोग जो स्वयं का बचाव नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\v 9 वह अपने पीड़ितों के लिए एक शेर के समान घात लगाए प्रतीक्षा करता है, +\q2 और शेर की तरह, वह झाड़ियों में छिपता है। +\q2 वह शिकारी के समान है जो जाल फैलाता है +\q2 कि वह असहाय लोगों को पकड़ सके और उन्हें खींच कर दूर ले जा सके। +\q1 +\v 10 असहाय लोग दुष्ट व्यक्ति की योजनाओं और उसके सभी कार्यों के कारण +\q2 कुचल दिया जाते हैं। +\q2 वह शक्तिशाली है, और जब वह असहाय लोगों का विरोध करता है, +\q2 वह सदा जो कुछ भी चाहता है वो उनसे ले लेता है। +\q1 +\s5 +\v 11 दुष्ट व्यक्ति कहता है, “मैं जो कुछ भी करता हूँ परमेश्वर को वह स्मरण नहीं हैं। +\q2 उनकी आँखें ढकी हुई हैं, और वह कुछ भी नहीं देख सकते जो मैंने किया है।” +\q1 +\v 12 हे यहोवा, उठो! हे परमेश्वर, उसे मारो! +\q2 पीड़ित लोगों को न भूलें! +\q1 +\s5 +\v 13 हे परमेश्वर, सबसे दुष्ट व्यक्ति क्यों आपको श्राप देता हैं और क्यों आप से दूर हो जाता है? +\q2 वह क्यों सोचता है, “परमेश्वर मुझे कभी दण्डित नहीं कर सकते”? +\q1 +\v 14 हे परमेश्वर, आप उस परेशानी और संकट को देखते हैं जो दुष्ट व्यक्ति करता है। +\q2 और आप दुष्ट मनुष्य को मारेंगे और जो कुछ भी वह करता है उसके लिए उसे दण्डित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 15 हे परमेश्वर, उस व्यक्ति की शक्ति को नष्ट करें जो दुष्ट और बुरा है! +\q2 उसे उन बुरी चीजों के लिए पलटा दें जो उसने किया था, +\q2 वे चीजें जिन्हें उसने सोचा था कि परमेश्वर को उसके विषय में नहीं पता चलेगा। +\q1 +\v 16 यहोवा सदा के लिए राजा हैं! +\q2 वह विदेशी लोगों को अपनी भूमि से निकाल देंगे। +\q1 +\s5 +\v 17 हे यहोवा, जब पीड़ित लोग आपको पुकारते हैं, तब आप सुनते हैं। +\q2 जब वे प्रार्थना करते हैं तो आप उन्हें सुनते हैं और आप उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। +\q1 +\v 18 आप अनाथों और पीड़ित लोगों की रक्षा करते हैं +\q2 जब मजबूत और दुष्ट उन्हें हानि पहुँचाने के लिए कार्य करते हैं। +\q2 और इसलिए, किसी को भी चिन्ता करने या डरने की आवश्यकता नहीं है। + +\s5 +\c 11 +\d दाऊद द्वारा गाना बजाने वाले निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 मुझे भरोसा है कि यहोवा मेरी रक्षा करेंगे। +\q2 इसलिए मैं पक्षियों के समान पर्वतों पर उड़ नहीं जाता हूँ। +\q1 +\v 2 यह सच है कि दुष्ट लोग अँधेरे में छिपे हुए हैं, +\q1 कि उन्होंने अपने धनुष खींच लिए है और अपने तीरों को लक्ष्य पर साधा है +\q2 कि उन लोगों पर चलाएँ जो यहोवा का सम्मान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 जब दुष्ट लोग व्यवस्था की अवज्ञा करने के लिए पीड़ित नहीं होते हैं, +\q2 धर्मी लोग क्या कर सकते हैं? +\q1 +\v 4 परन्तु यहोवा अपने सिंहासन पर स्वर्ग में अपने पवित्र मन्दिर में बैठे हैं, +\q2 और वह सब कुछ देखते हैं जो लोग करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा यह जाँचते हैं कि धर्मी लोग क्या करते हैं और दुष्ट लोग क्या करते हैं, +\q2 और वह उन लोगों से घृणा करते हैं जो दूसरों को चोट पहुँचाना पसन्द करते हैं। +\q1 +\v 6 वह आकाश से दुष्टों पर जलते हुए कोयले और जलते हुए गन्धक भेजेंगे; +\q2 वह उन्हें दण्डित करने के लिए गर्म हवाओं को भेजेंगे। +\q1 +\v 7 यहोवा जो कुछ भी सही है, वही करते हैं, और वह उन लोगों से प्रेम करते हैं जो सही कार्य करते हैं; +\q2 ऐसे लोग उनकी उपस्थिति में आएँगे। + +\s5 +\c 12 +\d दाऊद द्वारा गाना बजाने वाले निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, हमारी सहायता करें! ऐसा लगता है कि जो लोग आपका सम्मान करते हैं वे अब और नहीं रहे हैं, +\q2 कि जो लोग आपके प्रति निष्ठावान हैं वे सभी गायब हो गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 2 हर कोई अन्य लोगों से झूठ बोलता है; +\q2 वे दूसरों को चापलूसी करके धोखा देते हैं, परन्तु वे झूठ बोलते हैं। +\q1 +\v 3 हे यहोवा, हम चाहते हैं कि आप उनकी जीभ काट दें +\q2 कि वे घमण्ड करना जारी न रख सकें। +\q1 +\v 4 वे कहते हैं, “झूठ बोल कर हम जो चाहते हैं वह प्राप्त करेंगे; +\q2 हम जो कहते हैं उसे हम नियंत्रित करते हैं, इसलिए कोई भी हमें यह नहीं बता सकता कि हमें क्या करना चाहिए।” +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु यहोवा ने उत्तर दिया, “मैंने उन हिंसक चीजों को देखा हैं जो उन्होंने असहाय लोगों के साथ किए हैं; +\q2 मैंने उन लोगों के कराहने को सुना है, +\q2 इसलिए मैं उठकर उन लोगों को बचाऊँगा जो चाहते हैं कि मैं उनकी सहायता करूँ।” +\q1 +\s5 +\v 6 हे यहोवा, आप सदा ऐसा ही करते हैं जैसा आपने करने की प्रतिज्ञा की है; +\q2 जो आपने प्रतिज्ञा की है वह चाँदी के समान बहुमूल्य और शुद्ध है +\q2 जो सभी अशुद्धता से छुटकारा पाने के लिए भट्ठी में सात बार ताया गया है। +\q1 +\v 7 हे यहोवा, हम जानते हैं कि आपका सम्मान करने वाले हम लोगों की आप रक्षा करेंगे +\q2 उन दुष्ट लोगों से +\q2 +\v 8 जो गर्व से घूमते हैं, +\q2 जबकि लोग बुरा कर्म करने के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। + +\s5 +\c 13 +\d दाऊद द्वारा गाना बजाने वाले निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आप कब तक मेरे विषय में भूले रहोगे? +\q2 क्या आप अपने आपको सदा मुझे से छिपाएँगे? +\q1 +\v 2 मुझे अपने अन्दर कितनी देर तक पीड़ा सहन करनी होगी? +\q2 क्या मुझे हर दिन दुखी होना होगा? +\q2 मेरे शत्रु कब तक मुझे पराजित करते रहेंगे? +\q1 +\s5 +\v 3 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी ओर देख कर मुझे उत्तर दें। +\q2 मेरी शक्ति पुनर्स्थापित करें, नहीं तो मैं मर जाऊँगा। +\q1 +\v 4 मेरे शत्रुओं को घमण्ड करने और यह कहने की अनुमति न दें, “हमने उसे पराजित किया है!” +\q2 उन्हें मुझे पराजित करने की अनुमति न दें, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप वे इसके विषय में आनन्दित होंगे! +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु मुझे विश्वास है कि आप निष्ठापूर्वक मुझसे प्रेम करेंगे; +\q2 जब आप मुझे बचाएँगे तब मैं आनन्दित रहूँगा। +\q1 +\v 6 हे यहोवा, आपने मेरे लिए भलाई की हैं, +\q2 इसलिए मैं आपके लिए गीत गाऊँगा। + +\s5 +\c 14 +\d दाऊद द्वारा गाना बजाने वाले निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 केवल मूर्ख लोग स्वयं से कहते हैं, “कोई परमेश्वर नहीं है!” +\q1 जो लोग इन चीजों को कहते हैं, वे केवल भ्रष्ट कर्म करते हैं; +\q2 उनमें से कोई भी नहीं है जो अच्छा करता है। +\q1 +\s5 +\v 2 स्वर्ग से यहोवा हर किसी को देखते हैं; +\q1 वह देखते हैं कि कोई भी बहुत बुद्धिमान है, +\q2 इतना बुद्धिमान की उन्हें जानने की इच्छा रखता हो। +\q1 +\v 3 हर कोई यहोवा से दूर हो जाता है। वे भ्रष्ट हैं और घृणित, गन्दे कार्य करते हैं। +\q2 कोई भी अच्छा कार्य नहीं करता है। +\q1 +\s5 +\v 4 क्या वे दुष्ट लोग कभी नहीं सीखेंगे कि परमेश्वर उन्हें दण्डित करने के लिए क्या करेंगे? +\q1 वे यहोवा के लोगों के प्रति हिंसक कार्य करते हैं और उन्हें खाने की इच्छा रखते है, जैसे लोग भोजन खाते हैं, +\q2 और वे कभी यहोवा से प्रार्थना नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु किसी दिन वे बहुत डरेंगे +\q2 क्योंकि परमेश्वर उन लोगों की सहायता करते हैं जो धार्मिकता से कार्य करते हैं और उन्हें दण्डित करेंगे जो परमेश्वर को अस्वीकार करते हैं। +\q1 +\v 6 जो लोग बुरा करते हैं वे असहाय लोगों को ऐसा करने से रोक सकते हैं जो वे करने की योजना बनाते हैं, +\q2 परन्तु यहोवा उनकी रक्षा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 सिय्योन से यहोवा आकर इस्राएलियों को बचाएँगे! +\q2 वह अपने लोगों को फिर से मुक्त कर देंगे और उन्हें अपने घर वापस लाएँगे। +\q2 उस दिन हम सभी इस्राएली लोग आनन्दित होंगे, और हम, जिन्हें याकूब के वंशज भी कहा जाता है, आनन्दित होंगे। + +\s5 +\c 15 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, किन लोगों को आपके पवित्र-तम्बू में प्रवेश करने की अनुमति हैं? +\q2 आपके पवित्र पर्वत पर रहने की अनुमति किन लोगों को हैं? +\q1 +\v 2 केवल वे जो सदा सही करते हैं और पाप नहीं करते हैं, +\q2 जो सदा सच बोलते हैं। +\q2 +\s5 +\v 3 वे दूसरों की निन्दा नहीं करते हैं। +\q1 वे दूसरों के प्रति गलत कार्य नहीं करते हैं, +\q2 और वे किसी के विषय में बुरी बातें नहीं कहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 जो लोग परमेश्वर का सम्मान करते हैं वे उनसे घृणा करते हैं जिन्हें परमेश्वर ने अस्वीकार कर दिया है, +\q2 परन्तु वे उन लोगों का सम्मान करते हैं जो यहोवा का अद्भुत सम्मान करते हैं। +\q1 वे वैसा ही करते हैं जैसा उन्होंने करने की प्रतिज्ञा की है +\q2 भले ही यह उन्हें ऐसा करने में परेशानी उठानी पड़े। +\q1 +\v 5 वे ब्याज के बिना दूसरों को पैसे उधार देते हैं, +\q2 और वे उन लोगों के विषय में झूठ बोलने के लिए रिश्वत स्वीकार नहीं करते जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। +\q1 जो लोग इन चीजों को करते हैं वे सदा सुरक्षा में रहेंगे। + +\s5 +\c 16 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मेरी रक्षा करें +\q क्योंकि मैं सुरक्षित रहने के लिए आपके पास जाता हूँ! +\q1 +\v 2 मैंने यहोवा से कहा, “आप मेरे परमेश्वर हो; +\q वे सभी अच्छी चीजें जो मेरी हैं, वे आप से आई हैं।” +\q1 +\v 3 जो लोग पवित्र होने का प्रयास करते हैं जो इस देश में रहते हैं वे अद्भुत हैं; +\q मुझे उनके साथ रहने में प्रसन्नता है। +\q1 +\s5 +\v 4 जो लोग अन्य देवताओं की उपासना करने को चुनते हैं, उनके पास कई चीजें होती हैं जो उन्हें दुखी करती हैं। +\q जब वे अपने देवताओं को बलिदान देते हैं तो मैं उनका साथ नहीं दूँगा; +\q1 मैं उनके देवताओं के नाम बोलने में भी उनका साथ नहीं दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, आप ही को मैंने चुना है, +\q और आप मुझे महान आशीष देते हैं। +\q1 आप मेरी रक्षा करते हैं और मेरे साथ जो होता है उसे नियंत्रित करते हैं। +\q1 +\v 6 यहोवा ने मुझे रहने के लिए एक अद्भुत जगह दी हैं; +\q मुझे उन सभी चीजों से प्रसन्नता है जो उन्होंने मुझे दिए हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 मैं यहोवा की स्तुति करूँगा, जो मुझे सिखाते हैं; +\q यहाँ तक कि रात में वह मेरे हृदय को बताते हैं कि मेरे लिए क्या सही है। +\q1 +\v 8 मुझे पता है कि यहोवा सदा मेरे साथ रहते हैं। +\q कुछ भी मुझे उनके पक्ष से नहीं हटा सकता है। +\q1 +\s5 +\v 9 इसलिए मैं आनन्दित हूँ; मैं उनकी स्तुति करने के लिए सम्मानित हूँ, +\q और मैं सुरक्षित रूप से आराम कर सकता हूँ +\q1 +\v 10 क्योंकि आप, हे यहोवा, मुझे उस स्थान पर रहने की अनुमति नहीं देंगे जहाँ मृत लोग हैं, +\q और आप मुझे जो आपकी वाचा के प्रति निष्ठावान रहा है, वहाँ रहने की अनुमति नहीं देंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 आप मुझे वह रास्ता दिखाएँगे जहाँ मुझे अनन्त जीवन प्राप्त होता है, +\q और जब मैं आपके साथ हूँ तो आप मुझे आनन्दित कर देंगे। +\q जब मैं आपके दाहिने हाथ पर हूँ तो मुझे सदा के लिए प्रसन्नता होगी। + +\s5 +\c 17 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मेरी बात सुनें, जब मैं आप से न्याय करने के लिए विनती करता हूँ। +\q2 मुझे सुनें जब मैं आपको मेरी सहायता करने के लिए पुकारता हूँ। +\q1 जब मैं प्रार्थना करता हूँ तब जो मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दें +\q2 क्योंकि मैं सच्चाई से बोल रहा हूँ। +\q1 +\v 2 आप ही वह हैं, जो घोषित कर सकते हैं कि मैं निर्दोष हूँ; +\q2 कृपया मेरे लिए न्याय करने के लिए सहमत हों। +\q1 +\s5 +\v 3 यदि आप रात में मेरे सोच को जाँचने के लिए मेरे पास आते हैं, +\q2 यदि आप देखते हैं कि मैं अपने हृदय में क्या सोचता हूँ, +\q1 तो आप जानेंगे कि मैंने कभी भी झूठ न बोलने का दृढ़ संकल्प किया है; आप पाएँगे कि मैं बुरी बातें नहीं सोचता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 4 मैंने उन लोगों के समान कार्य नहीं किया है जो आपको सम्मान नहीं देते; +\q2 मैंने सदा आपने जो निर्देश दिया है उसकी शक्ति में कार्य किया है; +\q1 मैंने उन लोगों के समान कार्य नहीं किया है जो आपके नियमों को नहीं जानते हैं। +\q1 +\v 5 मैंने सदा ऐसा किया है जैसा आपने मुझे करने के लिए कहा था; +\q2 मैं उन चीजों को करने में कभी असफल नहीं रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 6 हे परमेश्वर, मैं आप से प्रार्थना कर रहा हूँ क्योंकि आप मुझे उत्तर देते हैं; +\q2 कृपया जो मैं कह रहा हूँ उसे सुनें। +\q1 +\v 7 मुझे अपना प्रेम दिखाना जारी रखें जैसा आपने प्रतिज्ञा की थी कि आप करेंगे। +\q2 अपनी महान शक्ति से आप उन सभी की रक्षा करते हैं जो आप पर भरोसा करते हैं; आप उन्हें उनके शत्रुओं से सुरक्षित रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 मुझे सावधानी से सुरक्षित रखें जैसे लोग अपनी आँखों की रक्षा करते हैं; +\q2 मेरी रक्षा करें जैसे पक्षी अपने पंखों के नीचे अपने बच्चों की रक्षा करते हैं। +\q1 +\v 9 दुष्ट लोगों को मुझ पर आक्रमण करने की अनुमति न दें, +\q2 मेरे वो शत्रु जो चारों ओर से मुझे घेरे हुए हैं और मुझे मारना चाहते हैं। +\q1 +\v 10 उन्हें अपने धन और सफलता पर गर्व है, +\q2 परन्तु उन्हें किसी पर कोई दया नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 11 उन्होंने मेरा शिकार किया है और मुझे पाया है। +\q2 वे मुझे घेरते हैं, कि मुझे भूमि पर फेंकने और मुझे मारने का अवसर मिले। +\q1 +\v 12 वे शेर के समान हैं जो जानवरों को फाड़ डालने के लिए तैयार हैं; +\q2 वे युवा शेरों के समान हैं जो छिपे रहते हैं और अपने शिकार पर कूदने की प्रतीक्षा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 हे यहोवा, उठें, मेरे शत्रुओं पर आक्रमण करें, और उन्हें पराजित करें! +\q2 अपनी तलवार से मुझे उन दुष्ट लोगों से बचाएँ! +\q1 +\v 14 हे यहोवा, आपकी शक्ति से मुझे उन लोगों से बचाएँ जो केवल इस संसार की वस्तुओं में रूचि रखते हैं। +\q1 परन्तु आप उन लोगों के लिए बहुत सारे भोजन प्रदान करते हैं जिन्हें आप प्रेम करते हैं; +\q2 उनके बच्चों के पास भी कई चीजें हैं जो उनके नाती-पोते विरासत में पाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 15 हे यहोवा, क्योंकि मैं सही रीति से कार्य करता हूँ, मैं आपके साथ एक दिन रहूँगा। +\q2 जब मैं मरने के बाद जागता हूँ, तो मैं आपको आमने-सामने देखूँगा, और फिर मैं आनन्दित रहूँगा। + +\s5 +\c 18 +\d परमेश्वर के दास दाऊद के द्वारा लिखा गया एक भजन। उसने इसे शाऊल और उसके अन्य शत्रुओं से बचाए जाने के बाद गाया। +\q1 +\p +\v 1 मुझे बल देने वाले यहोवा, मैं आप से प्रेम करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 2 यहोवा एक विशाल चट्टान के समान हैं; जब मैं इसके ऊपर हूँ, तो मेरे शत्रु मेरे पास नहीं पहुँच सकते हैं। वह एक दृढ़ किले के समान हैं; मैं सुरक्षित होने के लिए उसमें भागता हूँ। +\q1 वह मुझे बचाते हैं जैसे ढाल एक सैनिक की रक्षा करती है; वही हैं जिन पर मैं भरोसा रखता हूँ, कि वह मुझे सुरक्षित रखेंगे; वह मुझे अपनी महान शक्ति से बचाएँगे! +\q1 +\v 3 मैंने यहोवा को पुकारा, वह मेरी स्तुति के योग्य हैं, और उन्होंने मुझे मेरे शत्रुओं से बचा लिया। +\q1 +\s5 +\v 4 मेरे चारों ओर संकटमय परिस्थितियाँ थीं जिनमें मैं मर सकता था; ऐसा लगता था कि वहाँ बड़ी लहरें थीं जो मुझे लगभग डुबा रही थीं और मैं मरने पर था। +\q1 +\v 5 यह ऐसा था कि मृत लोगों के पास रस्सियाँ थीं जो मेरे चारों ओर लपेटी गई थीं, या ऐसा लगता था कि एक जाल था जो मुझे पकड़ कर मार डालेगा। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु जब मैं बहुत परेशान था, तब मैंने यहोवा को पुकारा, और बहुत दूर अपने मन्दिर में उन्होंने मुझे सुना। +\q1 जब मैंने सहायता के लिए पुकारा तो उन्होंने मेरी बात सुनी। +\q1 +\s5 +\v 7 तब यहोवा क्रोधित हो गए, और धरती काँप उठी, और पर्वत अपनी नींवों तक हिल गए! +\q1 +\v 8 वह इतने क्रोधित थे कि ऐसा लगता था जैसे धुआँ उनके नाक से निकला, जैसे उनके मुँह से जलते हुए कोयले निकले! +\q1 +\s5 +\v 9 वह आकाश को खोल कर अपने पैरों के नीचे एक काले बादल के साथ नीचे उतर आए। +\q1 +\v 10 वह एक दूत के ऊपर सवार होकर तेजी से उड़े, जिनके साथ हवा भी बह रही थी। +\q1 +\s5 +\v 11 अंधेरा उनके चारों ओर एक कंबल के समान था; काले बादल, पानी से भरे हुए बादल, उन्हें ढाँके हुए थे। +\q1 +\v 12 ओले और बिजली की चमक उनके चारों ओर थी; ओले और जलते हुए कोयले आकाश से गिरे। +\q1 +\s5 +\v 13 तब यहोवा आकाश से अपने शत्रुओं पर जोर से चिल्लाए, यह गर्जन के समान लग रहा था। सर्वोच्च परमेश्वर यहोवा ने उन पर ओले बरसाए और उनके विरुद्ध बिजली चमकाई। +\q1 +\v 14 उन्होंने अपने तीर उन पर चलाए और उन्हें तितर-बितर कर दिया; उनकी बिजली की चमक ने उन्हें बहुत उलझन में डाल दिया। +\q1 +\s5 +\v 15 जब यहोवा ने अपने शत्रुओं को दण्ड दिया, तब महासागर के निचले भाग दिखाई दिए, और धरती की नींव प्रकट हुई +\q उनकी साँस के द्वारा जो उनके क्रोध से निकली थी! +\q1 +\s5 +\v 16 ऐसा लगता था कि उन्होंने स्वर्ग से हाथ बढ़ाया और मुझे पकड़ लिया और मुझे गहरे महासागर से बाहर खींच लिया। +\q1 +\v 17 उन्होंने मुझे मेरे शत्रुओं से बचाया जो मुझसे घृणा करते थे; वे बहुत शक्तिशाली थे, मैं उन्हें स्वयं पराजित नहीं कर सकता था। +\q1 +\s5 +\v 18 जब मैं परेशान था, उन्होंने मुझ पर आक्रमण किया, परन्तु यहोवा ने मुझे बचाया। +\q1 +\v 19 उन्होंने मुझे पूरी तरह से सुरक्षित कर दिया; उन्होंने मुझे बचाया क्योंकि वह मुझसे प्रसन्न थे। +\q1 +\s5 +\v 20 यहोवा ने मुझे प्रतिफल दिया क्योंकि मैं उचित कार्य करता हूँ; उन्होंने मुझे आशीष दिया क्योंकि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 +\v 21 मैंने यहोवा के नियमों का पालन किया है; मैंने उन्हें त्याग नहीं दिया है। +\q1 +\s5 +\v 22 मैंने उनके नियमों का पालन किया है; मैंने उनका पालन करना नहीं त्यागा है। +\q1 +\v 23 वह जानते हैं कि मैंने गलत कार्य नहीं किए हैं और पाप करने से स्वयं को रोक दिया है। +\q1 +\v 24 इसलिए वह मुझे प्रतिफल देते हैं क्योंकि मैं सही करता हूँ; वह जानते हैं कि मैंने पाप नहीं किए हैं। +\q1 +\s5 +\v 25 हे यहोवा, आप उन लोगों के प्रति विश्वासयोग्य हैं जो सच्चे मन से आपकी वाचा का पालन करते हैं; आप सदा उन लोगों की भलाई करते हैं जो बुराई नहीं करते हैं। +\q1 +\v 26 आप उन लोगों के प्रति दयालु हैं जो दूसरों के प्रति सच्चे हैं, परन्तु आप उन लोगों के लिए बुद्धिमानी से कार्य करते हैं जो अधर्म के कार्य करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 27 आप नम्र लोगों को बचाते हैं, परन्तु आप उन लोगों को अपमानित करते हैं जो गर्व करते हैं। +\q1 +\v 28 आप मुझे जीवित रखते हैं, और आप ऐसा करते रहेंगे। +\q1 +\v 29 आप मुझे बलवन्त होने में सक्षम बनाते हैं, कि मैं शत्रु सैनिकों की पंक्ति पर आक्रमण करके उन्हें पराजित कर सकूँ; आपकी सहायता से मैं दीवारों को पार कर सकता हूँ, जो मेरे शत्रुओं के शहरों को चारों ओर से घेरे हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 जो कुछ भी मेरे परमेश्वर यहोवा करते हैं वह सब उचित है। हम उन पर निर्भर हो सकते हैं कि वह अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे। +\q वह सब शरण लेने वालों की रक्षा करने के लिए एक ढाल के समान हैं। +\q1 +\v 31 यहोवा ही एकमात्र परमेश्वर हैं; केवल वह एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर हम सुरक्षित रह सकते हैं। +\q1 +\v 32 परमेश्वर ही मुझे बलवन्त होने में सक्षम बनाते हैं और जिस मार्ग पर मैं चलता हूँ, उस पर मुझे सुरक्षित रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 33 वह मुझे बिना ठोकर खाए तेजी से चलने में योग्य बनाते हैं, जैसे हिरन पर्वतों पर चलते हैं। +\q1 +\v 34 वह मुझे एक दृढ़ धनुष का उपयोग करना सिखाते हैं कि मैं युद्ध करने के लिए इसका उपयोग कर सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 35 हे यहोवा, आप अपनी ढाल से मेरी रक्षा करें और मुझे बचाएँ; आप बलवन्त हैं और इसलिए मुझे सुरक्षित रखते हैं। मैं दृढ़ हो गया हूँ क्योंकि आपने मेरी सहायता की है। +\q1 +\v 36 आपने मेरे लिए एक सुरक्षित मार्ग बनाया है, जिसका परिणाम है कि अब मैं फिसलता नहीं हूँ। +\q1 +\s5 +\v 37 मैंने अपने शत्रुओं का पीछा किया और उन्हें पकड़ लिया; मैं तब तक नहीं रुका जब तक कि मैंने उन सबको पराजित नहीं किया। +\q1 +\v 38 जब मैं उन्हें मारता हूँ, वे फिर से उठ नहीं सकते हैं; वे पराजित होकर भूमि पर गिरते हैं। +\q1 +\v 39 आपने मुझे बलवन्त होने में सक्षम बनाया है कि मैं युद्ध कर सकूँ और अपने शत्रुओं को पराजित कर सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 40 आपने मेरे शत्रुओं को मेरे पास पहुँचाया, कि मैं उनकी गर्दन काट दूँ। मैंने उन सबसे छुटकारा पा लिया है जो मुझसे घृणा करते हैं। +\q1 +\v 41 उन्होंने किसी को उनकी सहायता करने के लिए पुकारा, परन्तु कोई भी उन्हें बचा नहीं पाया। उन्होंने यहोवा को पुकारा, परन्तु उन्होंने उनकी सहायता नहीं की। +\q1 +\v 42 मैंने उन्हें कुचल दिया, और वे धूल के समान बन गए जो हवा में उड़ती है; मैंने उन्हें बाहर फेंक दिया जैसे लोग सड़कों पर गन्दगी फेंक देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 43 आपने मुझे मेरे शत्रुओं को पराजित करने में योग्य किया और मुझे कई राष्ट्रों का शासक बनने के लिए नियुक्त किया; जिन्हें मैं पहले नहीं जानता था वे अब मेरे राज्य में दास हैं। +\q1 +\v 44 जब विदेशी मेरे विषय में सुनते हैं, तो वे डर के मारे झुक जाते हैं और वे मेरी आज्ञा मानते हैं। +\q1 +\v 45 वे अब साहसी नहीं हैं, और वे उन गड्ढों से जहाँ वे छिप रहे थे मेरे पास थरथराते हुए आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 46 यहोवा जीवित हैं! उनकी स्तुति करें जो एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं सुरक्षित हूँ! परमेश्वर को सराहो जो मुझे बचाते हैं! +\q1 +\v 47 वह मुझे मेरे शत्रुओं से बदला लेने में सक्षम बनाते हैं; वह मुझे सब राष्ट्रों को पराजित करने देते हैं और उन पर शासन करने देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 48 यहोवा ही मुझे मेरे शत्रुओं से बचाते हैं। उन्होंने मुझे ऊँचा उठाया है कि हिंसक पुरुष मेरे पास न पहुँच सकें और मुझे हानि पहुँचा न सकें। +\q1 +\v 49 इसलिए मैं उनकी स्तुति करता हूँ, और मैं सब राष्ट्रों को उन महान कार्यों के विषय में बताता हूँ जो उन्होंने किए हैं। +\q1 +\s5 +\v 50 उन्होंने मुझे अर्थात् अपने चुने हुए राजा को शत्रुओं पर शक्तिशाली विजय के योग्य किया है; वह मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं जैसी उन्होंने अपनी वाचा में प्रतिज्ञा की है। +\q वह मुझ दाऊद से प्रेम करते हैं, जिसे उन्होंने राजा बनने के लिए चुना है, और वह मेरे वंशजों से भी सदा सच्चा प्रेम करेंगे। + +\s5 +\c 19 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q +\p +\v 1 जब लोग आकाश में परमेश्वर की रचना को देखते हैं, तो वे देख सकते हैं कि परमेश्वर बहुत महान हैं; +\q2 वे उन महान वस्तुओं को देख सकते हैं जिन्हें उन्होंने बनाया है। +\q1 +\v 2 दिन प्रतिदिन ऐसा लगता है जैसे सूर्य परमेश्वर की महिमा का प्रचार कर रहा है, +\q2 और प्रति रात ऐसा लगता है कि चँद्रमा और तारे कहते हैं कि वे जानते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें बनाया है। +\q1 +\v 3 वे वास्तव में बात नहीं करते हैं; +\q2 वे कोई शब्द नहीं बोलते हैं। +\q2 किसी को सुनाने के लिए उनके पास वाणी नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु वे परमेश्वर के विषय में जो घोषणा करते हैं वह सम्पूर्ण संसार में सुनी जाती है, +\q2 और पृथ्‍वी के सबसे दूर के स्थानों में रहने वाले लोग भी इसे जान सकते हैं। +\q1 सूर्य आकाश में वहीं हैं जहाँ परमेश्वर ने उसे रखा है; +\q1 +\v 5 यह हर सुबह एक दूल्हे के समान उगता है जो अपने विवाह के बाद अपने शयन कक्ष से बाहर आते समय प्रसन्न दिखाई देता है। +\q2 यह एक बलवन्त खिलाड़ी के समान है जो दौड़ में दौड़ना आरम्भ करने के लिए उत्सुक है। +\q1 +\v 6 सूरज आकाश में एक ओर उगता है और आकाश में दूसरी ओर अस्त होता है; +\q2 उसकी गर्मी से कुछ भी नहीं छिप सकता है। +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा ने हमें जो निर्देश दिए हैं वे उचित हैं; +\q2 वे हमें नया जीवन देते हैं। +\q2 हम यह निश्चित जान लें कि यहोवा ने हमें जो कुछ बताया है वह कभी नहीं बदलेगा, +\q2 और उन्हें सीख कर बुद्धिहीन लोग बुद्धिमान बन जाते हैं। +\q1 +\v 8 यहोवा के नियम उचित हैं; +\q2 जब हम उनका पालन करते हैं, हम आनन्दित हो जाते हैं। +\q1 यहोवा के आदेश स्पष्ट हैं, +\q2 और उन्हें पढ़ कर हम समझना आरम्भ करते हैं कि परमेश्वर हमसे कैसा व्यवहार करवाना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 लोगों के लिए यहोवा का आदर करना अच्छा है; +\q2 यह ऐसा है जिसे वह सदा के लिए करेंगे। +\q1 यहोवा ने जो भी आदेश दिए हैं वे उचित हैं, +\q2 और सदा उचित ही हैं। +\q1 +\v 10 जिन बातों का परमेश्वर ने निर्णय लिया हैं वे सोने की तुलना में अधिक मूल्यवान हैं, +\q2 उत्तम सोने से भी अधिक मूल्यवान हैं। +\q1 वे शहद से अधिक मीठे हैं +\q2 छत्ते से टपकने वाले मधु से भी अधिक मीठे हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 इसके अतिरिक्त, उन्हें पढ़ कर मैं सीखता हूँ कि क्या करना भला है और क्या करना बुरा है, +\q1 और वे उनका पालन करने वाले हम लोगों के लिए +\q2 एक महान प्रतिफल की प्रतिज्ञा करते हैं। +\q1 +\v 12 परन्तु यहाँ कोई भी नहीं है जो अपनी गलतियों को जान सके; +\q2 इसलिए हे यहोवा, मुझे इन कार्यों के लिए क्षमा करें जो मैं करता हूँ क्योंकि मैं नहीं जानता कि वे गलत हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 मुझे उन कार्यों को करने से रोकें जिन्हें मैं जानता हूँ कि गलत हैं; +\q2 मुझे उन बुरे कार्यों को न करने दें जो मैं करना चाहता हूँ। +\q1 यदि आप ऐसा करते हैं, तो मैं पाप करने का दोषी नहीं रहूँगा, +\q2 और मैं आपके विरुद्ध विद्रोह करने का महान पाप नहीं करूँगा। +\q1 +\v 14 हे यहोवा, आप एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं सुरक्षित रह सकता हूँ; आप ही मेरी रक्षा करते हैं। +\q2 मैं आशा करता हूँ कि जो बातें मैं कहता हूँ और जो मैं सोचता हूँ वह सदा आपको प्रसन्न करें। + +\s5 +\c 20 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हम चाहते हैं कि जब तुम परेशान हो और यहोवा को सहायता के लिए पुकारो तो यहोवा तुम्हारी सुनें! +\q1 हम चाहते हैं कि परमेश्वर, जिनका हमारे पूर्वज याकूब सम्मान करते थे, तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं से सुरक्षित रखें। +\q1 +\v 2 हम चाहते हैं कि वह अपने पवित्र मन्दिर से हाथ बढ़ाकर तुम्हारी सहायता करें +\q2 और सिय्योन पर्वत पर से जहाँ वह रहते हैं, वहाँ से तुम्हारी सहायता करें। +\q1 +\s5 +\v 3 हम चाहते हैं कि वह उन सब भेंटों को स्वीकार करें जिन्हें तुम वेदी पर जलाने के लिए उन्हें देते हो, +\q2 और तुम्हारी अन्य सब भेंटों को भी स्वीकार करें। +\q1 +\v 4 हम चाहते हैं कि वह तुम्हारे हृदय की इच्छा के अनुसार तुम्हें दें, +\q2 और यह कि तुम जो भी करना चाहते हैं उसे पूरा करने में समर्थ हो सको। +\q1 +\s5 +\v 5 जब तुम अपने शत्रुओं को पराजित करते हो, तब हम आनन्द से चिल्लाएँगे। +\q2 हम एक झण्डा उठाएँगे जिससे यह घोषित होगा कि परमेश्वर ही ने तुम्हारी सहायता की है। +\q1 यहोवा तुम्हारे लिए वह सब करें, जो तुम उनसे करने का अनुरोध करते हो। +\q1 +\v 6 अब मैं जानता हूँ कि यहोवा मुझे बचाते हैं, जिसे उन्होंने राजा होने के लिए चुना था। +\q1 स्वर्ग में अपने पवित्रस्थान से वह मुझे उत्तर देंगे, +\q2 और वह मुझे अपनी महान शक्ति से बचाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 7 कुछ राजा भरोसा करते हैं क्योंकि उनके पास रथ हैं, वे अपने शत्रुओं को हराने में समर्थ होंगे, +\q2 और कुछ भरोसा करते हैं कि उनके घोड़े उन्हें शत्रुओं को हराने में समर्थ बनाएँगे, +\q2 परन्तु हम अपने परमेश्वर यहोवा की शक्ति में भरोसा करेंगे। +\q1 +\v 8 कुछ ठोकर खा कर गिर जाएँगे, +\q2 परन्तु हम दृढ़ होंगे और हिलाए नहीं जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा, शत्रुओं को पराजित करने में हमारे राजा की सहायता करें! +\q2 जब हम आपको हमारी सहायता करने के लिए पुकारते हैं तब हमें उत्तर दें! + +\s5 +\c 21 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, जिस मनुष्य को आपने राजा बनाया, वह आनन्दित है क्योंकि आपने उसे शक्तिशाली बना दिया है। +\q2 वह प्रसन्न है क्योंकि आपने उसे उसके शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ बनाया है। +\q1 +\v 2 आपने उसे वह सब कुछ दिया है जिसकी वह सबसे अधिक इच्छा करता है, +\q2 और आपने उसके अनुरोध से इन्कार नहीं किया है। +\q1 +\s5 +\v 3 आपने उसके लिए बहुत से अद्भुत कार्य किए हैं। +\q2 आपने उसके सिर पर एक सोने का मुकुट रखा है। +\q1 +\v 4 उसने लम्बे समय तक जीवित रहने के लिए विनती की, +\q2 और आपने उसे लम्बे समय तक जीवित रहने योग्य किया है। +\q1 +\s5 +\v 5 राजा के रूप में उसकी शक्ति बहुत महान है क्योंकि आपने उसे उसके शत्रुओं पर विजय प्रदान की है। +\q1 +\v 6 आप उसे सदा के लिए आशीष देंगे, +\q2 और आपने उसे आपकी उपस्थिति में आनन्दित किया है। +\q1 +\s5 +\v 7 हे यहोवा, आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, +\q2 और राजा आप पर भरोसा करता है। +\q1 क्योंकि आप उससे सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 विनाशकारी बातें उसके साथ कभी नहीं होतीं। +\q1 +\v 8 आप उसे अपने सभी शत्रुओं को मारने में समर्थ करेंगे, +\q2 उन सबको, जो उससे घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 जब आप प्रकट होते हैं, तो आप उन्हें आग की भट्ठी में फेंक देंगे। +\q1 क्योंकि आप उनसे क्रोधित हैं, आप उन्हें निगल जाएँगे; +\q2 आग उन्हें जला देगी। +\q1 +\v 10 आप उनकी सन्तान को इस धरती पर से मिटा देंगे; +\q2 उनके सभी वंशज लोप हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 11 वे आपको हानि पहुँचाना चाहते थे, +\q2 परन्तु वे जो योजना बनाते हैं वह कभी सफल नहीं होंगे। +\q1 +\v 12 आप उन पर तीर मार कर +\q2 उन्हें भगा देंगे। +\q1 +\s5 +\v 13 हे यहोवा, हमें दिखाएँ कि आप अति शक्तिमान हैं! +\q2 जब आप ऐसा करते हैं, तो हम आपके लिए गाएँगे और आपकी स्तुति करेंगे क्योंकि आप बहुत शक्तिशाली हैं। + +\s5 +\c 22 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन, ‘भोर की हरिणी’ +\q1 +\p +\v 1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, आपने मुझे क्यों छोड़ दिया है? +\q2 आप मुझसे इतने दूर क्यों हैं, +\q2 और आप मेरी बात क्यों नहीं सुनते हैं? +\q1 जब मैं पीड़ित होता हूँ और कराहता हूँ तो आप मुझे क्यों नहीं सुनते हैं? +\q1 +\v 2 हे मेरे परमेश्वर, मैं प्रतिदिन आपको दिन के समय पुकारता हूँ, परन्तु आप मुझे उत्तर नहीं देते हैं। +\q2 मैं रात के समय आपको पुकारता हूँ; मैं कभी चुप नहीं रहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 परन्तु आप पवित्र हैं। +\q2 आप राजा के रूप में अपने सिंहासन पर बैठते हैं, और हम इस्राएल के लोग आपकी स्तुति करते हैं। +\q1 +\v 4 हमारे पूर्वजों ने आप पर भरोसा किया। +\q1 क्योंकि वे आप पर भरोसा करते हैं, आपने उन्हें बचाया। +\q1 +\v 5 जब उन्होंने सहायता के लिए आपको पुकारा, तो आपने उन्हें बचाया। +\q2 उन्होंने आप पर भरोसा किया, और वे निराश नहीं हुए। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु आपने मुझे नहीं बचाया है! +\q2 लोग मुझे तुच्छ समझते हैं वरन् मनुष्य भी नहीं मानते हैं; +\q2 वे सोचते हैं कि मैं एक कीड़ा हूँ! +\q1 हर कोई मुझसे घृणा करता है और मुझे तुच्छ जानता है। +\q1 +\v 7 जो मुझे देखता है वह मेरा उपहास करता है। +\q2 वे मेरा उपहास करते हैं और अपने सिर हिला कर मेरा अपमान करते हैं जैसे कि मैं एक दुष्ट व्यक्ति था। +\q1 वे कहते हैं, +\q1 +\v 8 “वह यहोवा पर भरोसा करता है, +\q2 तो यहोवा को उसे बचाना चाहिए! +\q1 वह कहता है कि यहोवा उससे बहुत प्रसन्न हैं; +\q2 यदि ऐसा है, तो यहोवा को उसे बचाना चाहिए!” +\q1 +\s5 +\v 9 आप, हे परमेश्वर, मेरी माँ के गर्भ से मेरे साथ रहे हैं, +\q2 और जब से मैं दूध-पीता बच्चा था तब से आपने मुझे आप पर भरोसा करना सिखाया है। +\q1 +\v 10 ऐसा लगता है कि जैसे ही मैं पैदा हुआ तब आपने मुझे गोद ले कर अपनाया। +\q2 जब से मेरा जन्म हुआ तब से आप मेरे परमेश्वर हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 तो अब मुझसे दूर मत रहो +\q2 क्योंकि शत्रु जो मुझे बहुत परेशान करते है, वे मेरे पास हैं, +\q2 और कोई नहीं है जो मेरी सहायता कर सकता है। +\q1 +\v 12 मेरे शत्रु जंगली बैल के झुण्ड के समान मुझे घेरते हैं। +\q2 बाशान के क्षेत्र में पहाड़ियों पर चरने वाले बैलों के जैसे भयंकर लोग, मेरे चारों ओर घूमते हैं। +\q1 +\v 13 वे ऐसे शेरों के समान हैं जो पशुओं पर आक्रमण कर रहे हैं जिन्हें वे खाना चाहते हैं; +\q2 वे मुझे मारने के लिए मेरी ओर भागते हैं; +\q1 वे शेरों के समान हैं जिनके मुँह खुले हैं कि अपने शिकार को टुकड़ों में चबा जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 14 मैं पूरी तरह से थक गया हूँ, +\q2 और मेरी सभी हड्डियाँ जोड़ों से बाहर निकल आई हैं। +\q1 अब मुझे आशा नहीं है कि परमेश्वर मुझे बचाएँगे; +\q2 मैं बहुत निराश हूँ। +\q1 +\v 15 मेरी शक्ति समाप्त हो गई है +\q2 एक मिट्टी के बर्तन के टूटे टुकड़ों के समान जो धूप में सूख गया है। +\q2 मैं इतना प्यासा हूँ कि मेरी जीभ मेरे मुँह के तालू से चिपक जाती है। +\q2 हे परमेश्वर, मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आप मेरे शरीर को मरने देंगे कि वह धूल हो जाए! +\q1 +\s5 +\v 16 मेरे शत्रु मेरे चारों ओर जंगली कुत्तों के समान हैं। +\q2 दुष्टों के एक समूह ने मुझे घेर लिया है, वे मुझ पर आक्रमण करने के लिए तैयार है। +\q2 उन्होंने मेरे हाथों और मेरे पाँवों को छेदा है। +\q1 +\v 17 मैं इतना दुर्बल और पतला हूँ कि मैं अपनी सब हड्डियों को गिन सकता हूँ। +\q2 मेरे शत्रु मुझको घूरते हैं और मेरे साथ जो हुआ है उसका वर्णन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 वे मेरे पहने हुए कपड़ों को देखते हैं +\q2 और चिट्ठियाँ डाल कर निर्णय लेते हैं कि किसको कौन सा टुकड़ा मिलेगा। +\q1 +\v 19 हे यहोवा, मेरी चिन्ता करो! +\q2 आप जो मेरी शक्ति का स्रोत हैं, +\q1 शीघ्र आएँ और मेरी सहायता करें! +\q1 +\s5 +\v 20 उन लोगों से मुझे बचाएँ जो अपनी तलवार से मुझे मारना चाहते हैं। +\q2 उन लोगों की शक्ति से मुझे बचाएँ जो जंगली कुत्तों के समान हैं। +\q1 +\v 21 मुझे मेरे शत्रुओं से छीन कर दूर कर दें, जिनके जबड़े शेरों के समान खुले हैं और मुझे चबाने के लिए तैयार हैं! +\q2 मुझे पकड़ कर उन लोगों से दूर कर दें, जो जंगली बैल के समान हैं जो अपने सींगों से दूसरे पशुओं पर आक्रमण करते हैं! +\q1 +\s5 +\v 22 यदि आप मुझे उनसे बचाएँगे, तो मैं अपने साथी इस्राएलियों को बताऊँगा कि आप कितने महान हैं। +\q2 मैं आपकी आराधना के लिए एकत्र हुए लोगों के समूह में आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 23 तुम लोग जो यहोवा का महान सम्मान करते हो, उनकी स्तुति करो! +\q2 हे याकूब वंशियों, सब यहोवा का सम्मान करो! +\q2 हे इस्राएली लोगों, उन्हें सम्मानित करो! +\q1 +\s5 +\v 24 वह पीड़ित लोगों को तुच्छ या अनदेखा नहीं करते हैं; +\q2 वह उनसे अपना चेहरा नहीं छिपाते हैं। +\q1 जब उन्होंने सहायता के लिए उन्हें पुकारा तब उन्होंने उनकी बात सुनी। +\q1 +\v 25 हे यहोवा, आपके लोगों की बड़ी सभा में, जो कुछ अपने किया है, उसके लिए मैं आपकी स्तुति करूँगा। +\q2 उन लोगों की उपस्थिति में, जो आपका बहुत सम्मान करते हैं, मैं उन बलिदानों को चढ़ाऊँगा, जिनकी मैंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 26 जिन गरीब लोगों को मैंने भोज में आमन्त्रित किया है, वे जितना चाहेंगे उतना खाएँगे। +\q2 जो लोग यहोवा की आराधना करने आएँगे, वे उनकी स्तुति करेंगे। +\q2 मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर आप सबको लम्बा और समृद्ध जीवन जीने में योग्य बनाएँ! +\q1 +\v 27 मैं प्रार्थना करता हूँ कि सब राष्ट्रों में, यहाँ तक कि दूर के स्थानों में भी लोग यहोवा के विषय में विचार करें और उनके पास आएँ, +\q2 और संसार के सब कुलों के लोग उनके सामने झुकें। +\q1 +\s5 +\v 28 क्योंकि यहोवा राजा हैं! +\q2 वह सब राष्ट्रों पर शासन करते हैं। +\q1 +\v 29 पृथ्‍वी के सब समृद्ध लोग उनके सामने उत्सव मनाएँगे और झुकेंगे। +\q2 एक दिन वे मर जाएँगे, क्योंकि वे इससे बच नहीं सकते हैं, +\q2 परन्तु वे परमेश्वर की उपस्थिति में भूमि पर दण्डवत् करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 30 भविष्य की पीढ़ियों के लोग भी यहोवा की सेवा करेंगे। +\q2 वे अपनी सन्तान को बताएँगे कि यहोवा ने क्या किया है। +\q1 +\v 31 जो लोग अब तक पैदा नहीं हुए हैं, जो भविष्य में जीएँगे, वे सीखेंगे कि यहोवा ने अपने लोगों को कैसे बचाया। +\q2 लोग उन्हें बताएँगे, “यहोवा ने यह किया है!” + +\s5 +\c 23 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आप मेरी देखभाल करते हैं जैसे चरवाहे अपनी भेड़ों की देखभाल करते हैं, +\q2 इसलिए मेरे पास सब कुछ है, जो मुझे चाहिए। +\q1 +\v 2 आप मुझे शान्ति में आराम करने में समर्थ बनाते हैं +\q1 जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों को उन स्थानों पर ले जाता है जहाँ उनके खाने के लिए बहुत हरी घास होती है, +\q2 जैसे वह उन्हें उन धाराओं के पास में लेटाता है जहाँ पानी धीरे-धीरे बहता है। +\q1 +\s5 +\v 3 आप मेरी शक्ति को नया करते हैं। +\q1 आप मुझे दिखाते हैं कि उचित जीवन कैसे जीना है, +\q2 कि मैं आपको सम्मान दे सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 4 यहाँ तक कि जब मैं बहुत संकटमय स्थानों में चलता हूँ +\q2 जहाँ मैं मर भी सकता हूँ, +\q1 मैं किसी भी वस्तु से नहीं डरूँगा +\q2 क्योंकि आप मेरे साथ हैं। +\q1 आप मेरी रक्षा करते हैं जैसे चरवाहे अपनी भेड़ों की रक्षा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 आप मेरे लिए ऐसी जगह पर, एक महान दावत तैयार करते हैं +\q2 जहाँ मेरे शत्रु मुझे देख सकते हैं। +\q1 आप मेरा एक सम्मानित अतिथि के जैसा स्वागत करते हैं। +\q2 आपने मुझे बहुत आशीष दिए हैं! +\q1 +\s5 +\v 6 मुझे विश्वास है कि आप मेरे प्रति भले रहेंगे +\q1 और मेरे प्रति दयालु कार्य करेंगे +\q2 जब तक मैं जीवित रहूँगा; +\q1 फिर हे यहोवा, मैं आपके घर में सदा के लिए निवास करूँगा। + +\s5 +\c 24 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 पृथ्‍वी और जो कुछ उसमें है यहोवा ही के हैं; +\q2 संसार के सब लोग भी उनके हैं; +\q1 +\v 2 उन्होंने पानी पर भूमि को बनाया, +\q2 नीचे के गहरे पानी के ऊपर उसको बनाया। +\q1 +\s5 +\v 3 यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर जाने की अनुमति किसको मिलेगी, +\q2 कि यहोवा के पवित्र मन्दिर में खड़े होकर उनकी आराधना करें? +\q1 +\v 4 केवल वे लोग जिनके कार्य और विचार शुद्ध हैं, +\q2 जिन्होंने मूर्तियों की पूजा नहीं की है, +\q2 और जो झूठ नहीं बोलते हैं जब उन्होंने सच बोलने की शपथ खाई है। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा उन्हें आशीष देंगे। +\q1 जब परमेश्वर उनका न्याय करते हैं, तब वह उन्हें बचाएँगे और कहेंगे कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। +\q1 +\v 6 यही वे लोग हैं जो परमेश्वर के पास आते हैं, +\q2 यही हैं वे जो परमेश्वर की आराधना करना चाहते हैं, +\q2 और याकूब के परमेश्वर की सेवा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 मन्दिर के द्वार खोलें +\q2 कि हमारे गौरवशाली राजा प्रवेश कर सकें! +\q1 +\v 8 क्या आप जानते हैं कि गौरवशाली राजा कौन है? +\q2 यह यहोवा हैं, वह जो बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 यह यहोवा हैं, जो युद्ध में अपने सब शत्रुओं को पराजित करते हैं! +\q1 +\s5 +\v 9 मन्दिर के द्वार खोलें +\q2 कि हमारे गौरवशाली राजा प्रवेश कर सकें! +\q1 +\v 10 क्या आप जानते हैं कि गौरवशाली राजा कौन है? +\q2 यह यहोवा हैं, जो स्वर्गदूतों की सेनाओं के सेनापति हैं; +\q2 वही हमारे गौरवशाली राजा हैं! + +\s5 +\c 25 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं स्वयं को आपको देता हूँ। +\q1 +\v 2 हे मेरे परमेश्वर, मैं आप पर भरोसा करता हूँ। +\q1 मेरे शत्रुओं को मुझे पराजित करने +\q2 और मुझे लज्जित करने न दें। +\q1 मेरे शत्रुओं को मुझे पराजित करने, +\q2 और आनन्द मनाने न दें। +\q1 +\v 3 आप पर भरोसा रखने वालों में से किसी को भी, लज्जित होने न दें। +\q2 उन लोगों को लज्जित कर दें, जो दूसरों से विश्वासघात करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, मुझ पर प्रकट करें मुझे अपने जीवन को कैसे जीना चाहिए, +\q2 मुझे सिखाएँ कि आपकी इच्छा के अनुसार कैसे कार्य करना है। +\q1 +\v 5 मुझे सिखाएँ कि आपकी सच्चाई का पालन करके अपना जीवन कैसे जीना है +\q2 क्योंकि आप मेरे परमेश्वर हैं, जो मुझे बचाते हैं। +\q2 पूरे दिन मैं आप पर भरोसा करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 6 हे यहोवा, यह न भूलें कि आपने कैसे मेरे प्रति दयालु कार्य किए हैं और आपकी वाचा के कारण मुझसे सच्चा प्रेम किया है; +\q2 इसी रीति से आपने बहुत समय से मेरे लिए कार्य किया है। +\q1 +\v 7 उन सब पापपूर्ण बातों के लिए और उन मार्गों के लिए जिन पर चलकर मैंने जवानी में आपके विरुद्ध विद्रोह किया; +\q2 मैं यह अनुरोध करता हूँ क्योंकि आप अपने लोगों से सच्चा प्रेम करते हैं और उनके लिए भलाई करते हैं, जैसी आपने अपनी वाचा में प्रतिज्ञा की है। +\q1 हे यहोवा, मुझे न भूलें! +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा भले और निष्पक्ष हैं, +\q2 इसलिए वह पापियों को दिखाते हैं कि उन्हें कैसा जीवन जीना है। +\q1 +\v 9 वह विनम्र लोगों को दिखाते हैं कि उनके लिए क्या उचित है +\q2 और उन्हें सिखाते हैं कि वह उनसे क्या कराना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 वह सदैव हमसे सच्चा प्रेम करते हैं और उन्होंने जो प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा करते हैं। +\q2 उन लोगों के लिए जो उनकी वाचा का पालन करते हैं और जो वह चाहते हैं उसे करते हैं। +\q1 +\v 11 हे यहोवा, मुझे मेरे सब पापों के लिए क्षमा करें, जो बहुत हैं, +\q2 कि मैं आपको सम्मान दे सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 12 उन सबको जो आपका महान सम्मान करते हैं, +\q2 आप जीवन जीने का उचित मार्ग दिखाते हैं। +\q1 +\v 13 वे सदा समृद्ध होंगे, +\q2 और उनके वंशज इस देश में निवास करते रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 यहोवा उन लोगों के मित्र हैं, जो उनका बहुत सम्मान करते हैं, +\q2 और वह उन्हें अपनी वाचा की शिक्षा देते हैं। +\q1 +\v 15 मैं सहायता के लिए यहोवा से सदा अनुरोध करता हूँ, +\q2 और वह मुझे संकट से बचाते हैं। +\q1 +\v 16 हे यहोवा, मुझ पर ध्यान दें और मेरे प्रति दयालु रहें क्योंकि मैं अकेला हूँ, +\q2 और मैं बहुत परेशान हूँ क्योंकि मैं पीड़ित हूँ। +\q1 +\s5 +\v 17 मुझे कई परेशानियाँ हैं जिनसे मैं डरता हूँ; +\q2 मुझे उनसे बचाएँ। +\q1 +\v 18 ध्यान दें कि मैं व्याकुल और परेशान हूँ, +\q2 मुझे मेरे सब पापों के लिए क्षमा करें। +\q1 +\v 19 ध्यान दें कि मेरे कई शत्रु हैं; +\q2 आप देखते हैं कि वे मुझसे बहुत घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 मेरी रक्षा करें और मुझे उनसे बचाएँ; +\q2 उन्हें मुझे पराजित करने न दें +\q2 जिसके कारण मैं लज्जित हो जाऊँगा; +\q1 मैं शरण पाने के लिए आपके पास आया हूँ। +\q1 +\v 21 मेरी रक्षा करें क्योंकि मैं भला और सच्चा हूँ +\q2 और क्योंकि मैं आप पर भरोसा करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 22 परमेश्वर, हम इस्राएली लोगों को हमारी सब परेशानियों से बचाएँ! + +\s5 +\c 26 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 यहोवा, दिखाएँ कि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 मैं सदा उचित कार्य करता हूँ; +\q2 मैंने आप पर भरोसा किया है और कभी सन्देह नहीं किया है कि आप मेरी सहायता करेंगे। +\q1 +\v 2 हे यहोवा, मैंने जो किया है उसकी जाँच करें और मेरी परीक्षा करें; +\q2 मेरे मन में जो भी मैं सोचता हूँ उसका पूरा मूल्यांकन करें। +\q1 +\v 3 मैं कभी नहीं भूलता कि आप अपनी वाचा के प्रति सच्चे हैं और मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं; +\q2 मैं आपकी विश्वासयोग्यता के अनुसार अपने जीवन को जीता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं झूठ बोलने वालों के साथ अपना समय नहीं बिताता हूँ, +\q2 और मैं ढोंगियों से दूर रहता हूँ। +\q1 +\v 5 मुझे बुरे लोगों के साथ रहना पसन्द नहीं है, +\q2 और मैं दुष्ट लोगों से बचता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 6 हे यहोवा, मैं यह दिखाने के लिए अपने हाथ धोता हूँ कि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 जब मैं आपकी वेदी के चारों ओर घूमने वाले लोगों के साथ जुड़ता हूँ, +\q1 +\v 7 तब हम आपको धन्यवाद देने के लिए गाने गाते हैं, +\q2 और हम दूसरों को उन अद्भुत बातों के विषय में बताते हैं जो आपने किए हैं। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, मैं उस घर में रहना पसन्द करता हूँ जहाँ आप रहते हैं, +\q2 उस स्थान पर जहाँ आपकी महिमा प्रकट होती है। +\q1 +\s5 +\v 9 मुझसे छुटकारा न पाएँ जैसे आप पापियों से छुटकारा पाते हैं; +\q2 मेरे मरने का कारण न बनें जैसे आप लोगों की हत्या करने वालों को मारते हैं, +\q1 +\v 10 लोग जो दुष्ट कार्य करने के लिए तैयार हैं +\q2 और वे जो सदा घूँस लेते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु मैं सदा उचित कार्य करने का प्रयास करता हूँ। +\q2 इसलिए कृपया मेरे प्रति दयालु कार्य करें और मुझे बचाएँ। +\q1 +\v 12 मैं उन स्थानों में खड़ा हूँ जहाँ मैं सुरक्षित हूँ, +\q2 और जब आपके लोग एक साथ एकत्र होते हैं, तब मैं आपकी स्तुति करता हूँ। + +\s5 +\c 27 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 यहोवा ही वह है जो मुझे जीवन देते हैं और जो मुझे बचाते हैं, +\q2 इसलिए मुझे किसी से डरने की आवश्यकता नहीं है। +\q1 यहोवा वह हैं जिनके पास मैं शरण के लिए जाता हूँ, +\q2 इसलिए मैं कभी नहीं डरूँगा। +\q1 +\s5 +\v 2 जब बुराई करने वाले लोग मुझे नष्ट करने के लिए मेरे पास आते हैं, +\q2 वे ठोकर खा कर गिर जाते हैं। +\q1 +\v 3 भले ही एक सेना मुझे चारों ओर घेर ले, +\q2 मुझे डर नहीं होगा। +\q1 भले ही वे मुझ पर आक्रमण करते हैं, +\q2 मैं परमेश्वर पर भरोसा रखूँगा। +\q1 +\s5 +\v 4 एक बात है जिसका मैंने यहोवा से अनुरोध किया है; +\q2 यही एक बात है जो मैं चाहता हूँ: +\q1 कि मैं अपने जीवन के हर दिन यहोवा के घर में आराधना कर सकूँ, +\q2 कि मैं देख सकूँ कि यहोवा कैसे अद्भुत हैं, +\q2 और मैं उनसे पूछ सकूँ कि वह मुझसे क्या कराना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 जब मुझे परेशानी होती है तब वह मेरी रक्षा करेंगे; +\q2 वह मुझे अपने पवित्र-तम्बू में सुरक्षित रखेंगे। +\q1 वह मुझे एक ऊँची चट्टान पर सुरक्षित खड़ा करेंगे। +\q1 +\v 6 तब मैं अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करूँगा। +\q1 मैं प्रसन्नता से चिल्लाऊँगा जब मैं उनके पवित्र-तम्बू में बलि चढ़ाऊँगा, +\q2 और जब मैं गाता हूँ तब मैं यहोवा की स्तुति करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 7 हे यहोवा, जब मैं आपको पुकारता हूँ, तब मेरी बात सुनें। +\q2 कृपया मेरे प्रति दयालु कार्य करें और मेरी प्रार्थना का उत्तर दें। +\q1 +\v 8 मैं अपने मन में आपकी आराधना करना चाहता हूँ, +\q2 इसलिए, हे यहोवा, मैं आप से प्रार्थना करने के लिए आपके मन्दिर में आता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 9 मैं आपका दास हूँ; +\q2 मुझसे क्रोधित न हो, या मुझसे दूर न हो। +\q2 आपने सदा मेरी सहायता की है। +\q1 आप ही हैं जिन्होंने मुझे बचाया है, +\q2 इसलिए अब मुझे न त्यागें। +\q1 +\v 10 भले ही मेरे पिता और माता मुझे छोड़ दें, +\q2 यहोवा सदा मेरा ध्यान रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 हे यहोवा, मुझे वह करना सिखाएँ जो आप मुझसे कराना चाहते हैं, +\q1 और मुझे एक सुरक्षित पथ पर ले जाएँ +\q2 क्योंकि मेरे कई शत्रु हैं। +\q1 +\v 12 मेरे शत्रुओं को जो कुछ वे चाहते वह मेरे साथ करने न दें; +\q2 वे मेरे विषय में कई झूठी बातें कहते हैं और मेरे साथ हिंसक कार्य करने की धमकी देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 यदि मैं आप पर भरोसा नहीं रखता कि आप मेरे जीवन भर मेरे प्रति भले रहेंगे, +\q2 तो मैं मर जाता। +\q1 +\v 14 इसलिए यहोवा पर भरोसा रखो! +\q2 दृढ़ और साहसी बनो, +\q2 और तुम्हारी सहायता करने के लिए आशा के साथ उनकी प्रतीक्षा करो! + +\s5 +\c 28 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपको पुकारता हूँ; +\q1 आप एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं सुरक्षित हूँ। +\q1 मुझे उत्तर देने से इन्कार न करें +\q2 क्योंकि यदि आप चुप रहेंगे, तो मैं अति शीघ्र ही उन लोगों के साथ रहूँगा जो कब्रों में हैं। +\q1 +\v 2 मेरी पुकार सुन लें, जब मैं आपको सहायता के लिए पुकारता हूँ, +\q2 जब मैं अपने हाथ उठा कर आपके पवित्र-तम्बू में आपके पवित्रस्थान की ओर देखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 मुझे दुष्ट लोगों के साथ न घसीटें, +\q2 जो कुकर्म करते हैं, +\q1 उन लोगों के साथ भी जो दूसरों के साथ शान्तिपूर्वक कार्य करने का ढोंग करते हैं +\q2 जबकि मन में, वे उनसे घृणा करते हैं। +\q1 +\v 4 उन लोगों को उनके द्वारा किए गए कार्यों के अनुसार दण्ड दें, वे इसी योग्य हैं; +\q2 उन्हें उनके बुरे कर्मों के लिए दण्ड दें। +\q1 +\v 5 हे यहोवा, वे आपके अद्भुत कार्यों और आपकी सृष्टि पर ध्यान नहीं देते हैं; +\q2 इसलिए उनसे सदा के लिए छुटकारा पाएँ और उन्हें फिर से दिखाई देने न दें! +\q1 +\s5 +\v 6 यहोवा की स्तुति करो +\q2 क्योंकि उन्होंने मुझे सुना है जब मैंने सहायता के लिए उन्हें पुकारा था! +\q1 +\v 7 यहोवा मुझे दृढ़ बनाते हैं और मुझे ढाल के समान बचाते हैं; +\q2 मैं उन पर भरोसा रखता हूँ, और वह मेरी सहायता करते हैं। +\q1 इसलिए मैं अपने मन में आनन्दित हूँ, +\q2 और मैं गीत गाते समय मन से उनकी स्तुति करता हूँ। +\q1 +\v 8 यहोवा हमें दृढ़ करते हैं और हमारी रक्षा करते हैं; +\q2 वह मुझे बचाते हैं, जिसे उन्होंने राजा बनाने के लिए नियुक्त किया है। +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा, अपने लोगों को बचाएँ; +\q2 उन लोगों को आशीष दें जो आपके हैं। +\q1 उनका ध्यान रखें जैसे चरवाहे अपनी भेड़ों का ध्यान रखते हैं; +\q2 उनका सदा ध्यान रखें। + +\s5 +\c 29 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे शक्तिमान लोगों, यहोवा की स्तुति करो! +\q2 उनकी स्तुति करो क्योंकि वह बहुत गौरवशाली और शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 2 उनके नाम की महिमा के अनुसार उनकी स्तुति करो। +\q2 झुक कर यहोवा की उपासना करो क्योंकि वह पवित्र हैं और उनकी पवित्रता अद्भुत सौन्दर्य के साथ चमकती है। +\q1 +\s5 +\v 3 महासागरों के ऊपर यहोवा की वाणी सुनी जाती हैं; +\q2 गौरवशाली परमेश्वर गरजते हैं। +\q1 वह विशाल महासागरों पर दिखाई देते हैं। +\q1 +\v 4 उनकी वाणी शक्तिशाली और महिमामय हैं। +\q1 +\v 5 यहोवा की वाणी महान देवदार के पेड़ों को तोड़ती हैं, +\q2 लबानोन में बढ़ने वाले देवदारों को। +\q1 +\s5 +\v 6 जैसे युवा बछड़ा कूदता है वैसे वह लबानोन के क्षेत्र को भूकम्प से हिलाते हैं; +\q2 वह हेर्मोन पर्वत को ऐसे हिलाते हैं, जैसे एक युवा बैल कूदता है। +\q1 +\v 7 यहोवा की वाणी बिजली को चमकने की आज्ञा देती है। +\q1 +\v 8 उनकी वाणी रेगिस्तान को हिलाती हैं; +\q2 वह कादेश के जंगल को हिलाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यहोवा की वाणी बड़े पेड़ों को हिलाती हैं, +\q2 और पत्तियों को गिरा देती हैं +\q2 जब मन्दिर में लोग चिल्लाते हैं, “परमेश्वर की स्तुति करो!” +\q1 +\v 10 यहोवा धरती को ढाँकने वाली बाढ़ पर शासन करते हैं; +\q2 वह हमारे राजा हैं जो सदा के लिए शासन करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा अपने लोगों को दृढ़ होने योग्य करते हैं, +\q2 और वह उनकी भलाई करके उन्हें आशीष देते हैं। + +\s5 +\c 30 +\d एक भजन जो दाऊद ने मन्दिर के समर्पण के लिए लिखा था +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपकी स्तुति करता हूँ क्योंकि आपने मुझे बचा लिया है। आपने मुझे मरने या मेरे शत्रुओं को मुझ पर आनन्द करने नहीं दिया है। +\q1 +\v 2 हे यहोवा, जब मैं घायल हो गया था, तब मैंने सहायता के लिए आप से प्रार्थना की, और आपने मुझे स्वस्थ किया। +\q1 +\v 3 आपने मुझे मरने से बचाया। मैं लगभग मर चुका था, परन्तु आपने मुझे स्वस्थ कर दिया है। +\q1 +\s5 +\v 4 तुम सब जो यहोवा के साथ बाँधी वाचा के प्रति सच्चे हो, उनकी स्तुति करने के लिए गाओ! स्मरण रखें परमेश्वर, जो पवित्र हैं, उन्होंने क्या-क्या किया है और उन्हें धन्यवाद दें! +\q1 +\v 5 जब वह क्रोधित हो जाते हैं, तो वह केवल बहुत ही कम समय के लिए क्रोधित होते हैं, परन्तु वह हमारे पूरे जीवनकाल में हमारे लिए भले हैं। +\q1 हम रात के समय रो सकते हैं, परन्तु अगली सुबह हम आनन्दित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं शान्त था जब मैंने स्वयं से कहा, “कोई भी मुझे पराजित नहीं करेगा!” +\q1 +\v 7 हे यहोवा, क्योंकि आप मेरे लिए भले थे, इसलिए पहले आपने मुझे सुरक्षित किया जैसे कि मैं एक ऊँचे पर्वत पर था। +\q1 परन्तु फिर मैंने सोचा कि आप मुझसे दूर हो गए थे, और मैं डर गया। +\q1 +\v 8 इसलिए मैंने आपको पुकारा, और मैंने सहायता के लिए आप से अनुरोध किया। +\q1 +\s5 +\v 9 मैंने कहा, “हे यहोवा, यदि मैं मर जाऊँ तो आपको क्या लाभ होगा? +\q1 यदि मैं उस स्थान पर जाता हूँ जहाँ मरे हुए लोग हैं तो इससे आपको क्या लाभ होगा? +\q1 जब मैं मर जाऊँगा तो मैं निश्चय ही आपकी स्तुति नहीं कर पाऊँगा, और मैं दूसरों को बताने नहीं पाऊँगा कि आप भरोसा रखने योग्य हैं! +\q1 +\v 10 हे यहोवा, मेरी बात सुनें, और मुझ पर दया करें! हे यहोवा, मेरी सहायता करो!” +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु अब आपने मुझे स्वस्थ किया है, और आपने मुझे उदास होने के बदले आनन्द से नृत्य करने दिया है। +\q1 आपने वे कपड़े हटा दिए हैं जो दिखाते हैं कि मैं बहुत दुखी था और मुझे वे कपड़े दिए जो दिखाते थे कि मैं बहुत आनन्दित था। +\q1 +\v 12 इसलिए मैं चुप नहीं रहूँगा; मैं गाऊँगा और आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 हे यहोवा, आप मेरे परमेश्वर हैं, और मैं सदा के लिए आपको धन्यवाद दूँगा। + +\s5 +\c 31 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपके पास सुरक्षित होने आया हूँ; +\q2 मुझे पराजित और अपमानित होने न दें। +\q1 क्योंकि आप सदा निष्पक्ष हैं, +\q2 इसलिए मुझे बचाएँ! +\q1 +\v 2 मेरी बात सुनें, और अभी मुझे बचाएँ! +\q1 मेरे लिए एक विशाल चट्टान के समान बनें, जिस पर मैं सुरक्षित हो सकता हूँ +\q2 और एक दृढ़ किले के समान जिसमें मैं सुरक्षित रहूँगा। +\q1 +\s5 +\v 3 हाँ, आप मेरे लिए विशाल चट्टान और किले के समान हैं; +\q2 मेरा मार्गदर्शन करें और मुझे ले कर चलें क्योंकि मैं आपकी आराधना करता हूँ। +\q1 +\v 4 आप ही मेरी रक्षा करते हैं, +\q2 इसलिए मुझे छिपे हुए जाल में फँसने से रोकें जो मेरे शत्रुओं ने मेरे लिए बिछाया है। +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, आप ही एकमात्र परमेश्वर हैं, जिन पर मैं भरोसा रख सकता हूँ, +\q1 इसलिए मैंने अपने आपको आपकी देखभाल में रखा है +\q2 क्योंकि आप मुझे बचाएँगे। +\q1 +\v 6 हे यहोवा, मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ जो व्यर्थ मूर्तियों की पूजा करते हैं, +\q2 परन्तु मैं आप पर भरोसा करता हूँ। +\q1 +\v 7 मैं बहुत आनन्दित हूँ क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 जब मैं पीड़ित होता हूँ तब आप मुझे देखते हैं, +\q2 और जब मुझे परेशानी होती है तब आप जानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 आपने मेरे शत्रुओं को मुझे पकड़ने नहीं दिया है; +\q2 इसकी अपेक्षा, आपने मुझे खतरे से बचा लिया है। +\q1 +\v 9 परन्तु अब, हे यहोवा, मुझ पर दया करें +\q2 क्योंकि मैं परेशान हूँ। +\q1 मैं इतना अधिक रोता हूँ, कि मैं साफ नहीं देख सकता हूँ, +\q2 और मैं पूरी तरह से थक चुका हूँ। +\q1 +\s5 +\v 10 मैं बहुत दुर्बल हो गया हूँ क्योंकि मैं बहुत दुखी हूँ; +\q2 मेरा जीवन छोटा हो रहा है। +\q1 मेरी सारी परेशानियों के कारण मैं दुर्बल हो गया हूँ; +\q2 यहाँ तक कि मेरी हड्डियाँ दुर्बल हो रही हैं। +\q1 +\v 11 मेरे सभी शत्रु मेरा उपहास करते हैं, +\q2 और यहाँ तक कि मेरे पड़ोसी भी मुझे तुच्छ समझते हैं। +\q1 यहाँ तक कि मेरे मित्र भी मुझसे डरते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि आप मुझे दण्ड दे रहे हैं। +\q2 जब वे मुझे सड़कों पर देखते हैं, तो वे भाग जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 लोग मुझे भूल गए हैं जैसे वे मरे हुए लोगों को भूल जाते हैं। +\q2 वे सोचते हैं कि मैं एक टूटे हुए बर्तन के समान निकम्मा हूँ। +\q1 +\v 13 मैंने लोगों को मेरी निन्दा करते हुए सुना है, +\q2 और उन्होंने मुझे डरा दिया है। +\q1 मेरे शत्रु मुझे मारने की +\q2 योजना बना रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 परन्तु यहोवा, मैं आप पर भरोसा रखता हूँ। +\q2 मैं आत्मविश्वास के साथ कहता हूँ कि आप परमेश्वर हैं जिनकी मैं आराधना करता हूँ। +\q1 +\v 15 मेरा पूरा जीवन आपके हाथों में है; +\q2 मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ, +\q2 जो मेरा पीछा करते हैं। +\q1 +\v 16 कृपया मुझ पर दया करें +\q2 और मुझे बचाएँ क्योंकि आप सदा मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 हे यहोवा, मैं आपको पुकारता हूँ, +\q2 इसलिए दूसरों को मुझे अपमानित करने न दें। +\q1 मेरी इच्छा है कि दुष्ट लोगों को अपमानित किया जाए; +\q2 मेरी इच्छा है कि वे उस स्थान पर जाएँ जहाँ लोग चुप हैं और मरे हुए हैं। +\q1 +\v 18 मेरी इच्छा है कि आप उन लोगों को बोलने में असमर्थ करें जो झूठ बोलते हैं। +\q2 उन लोगों के साथ ऐसा करें, जो गर्व करते हैं और जो दूसरों पर गर्व से आरोप लगाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 आपने उन लोगों के लिए बहुत महान और अच्छी वस्तुएँ रखीं हैं जो आपका बहुत सम्मान करते हैं। +\q2 आप उन लोगों की भलाई करते हैं जो सुरक्षित होने के लिए आपके पास जाते हैं; +\q2 हर कोई आपको ऐसा करते देखता है। +\q1 +\v 20 आप लोगों को अपनी उपस्थिति में छिपाते हैं जहाँ सुरक्षा है, +\q2 और आप उन्हें उन लोगों से बचाते हैं जो उन्हें मारने की योजना बनाते हैं। +\q1 आप उन्हें सुरक्षित स्थानों में छिपाते हैं जहाँ उनके शत्रु उनकी बुराई नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 यहोवा की स्तुति करो! +\q2 जब मेरे शत्रु उस शहर को घेरे हुए थे जिसमें मैं रहता था, +\q2 उन्होंने मुझे अद्भुत रीति से दिखाया कि वह मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 +\v 22 मैं डर गया और तुरन्त रोने लगा कि, “मैं यहोवा से अलग हो गया हूँ!” +\q2 परन्तु आपने मुझे सुना और सहायता के लिए मेरी पुकार का उत्तर दिया। +\q1 +\s5 +\v 23 तुम लोग जो यहोवा के हो, उससे प्रेम करो! +\q2 वह उन लोगों की रक्षा करते हैं जो उनके प्रति सच्चे हैं, +\q2 परन्तु वह घमण्ड करने वालों को दण्ड देते हैं; वह उन्हें गम्भीर दण्ड देते हैं क्योंकि वे उसी के योग्य हैं। +\q1 +\v 24 तुम जो आत्मविश्वास के साथ यहोवा से अपने लिए महान कार्य करने की आशा रखते हो, +\q2 दृढ़ हों और साहसी बनो! + +\s5 +\c 32 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन, जो लोगों को बुद्धिमान होने में सहायता करेगा +\q1 +\p +\v 1 जिन्हें परमेश्वर ने उनके विरुद्ध विद्रोह के लिए क्षमा किया है +\q2 और जिनके पाप परमेश्वर नहीं देखते हैं, +\q2 वे लोग ही वास्तव में भाग्यशाली हैं! +\q1 +\v 2 जिनके पापों के दोष को यहोवा ने मिटा दिया है +\q2 और वे जो अब छल नहीं करते हैं, +\q2 वे लोग ही वास्तव में भाग्यशाली हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 जब मैंने अपने पापों को स्वीकार नहीं किया, +\q2 मेरा शरीर बहुत दुर्बल और बीमार हो गया था, +\q2 और मैं पूरे दिन कराहता रहा। +\q1 +\v 4 हे यहोवा, दिन और रात आपने मुझे गम्भीर दण्ड दिया। +\q2 मेरी शक्ति पानी के समान हो गई जो गर्मी के दिनों में भाप के समान उड़ जाती है। +\q1 +\s5 +\v 5 तब मैंने अपने पापों को स्वीकार किया; +\q2 मैंने उन्हें छिपाने का प्रयास करना छोड़ दिया। +\q1 मैंने स्वयं से कहा, +\q2 “मैं यहोवा से अपने गलत कार्यों का वर्णन करूँगा जो मैंने किए हैं।” +\q1 जब मैंने उन्हें स्वीकार किया, तब आपने मुझे क्षमा कर दिया, +\q2 इसलिए अब मैं अपने पापों के लिए दोषी नहीं हूँ। +\q1 +\v 6 इसलिए जो लोग आपका सम्मान करते हैं, उन्हें आप से प्रार्थना करनी चाहिए +\q2 जब वे बड़ी परेशानी में होते हैं। +\q1 यदि वे ऐसा करते हैं, तो कठिनाइयाँ उन पर बड़ी बाढ़ के समान नहीं आएँगी। +\q1 +\s5 +\v 7 आप ऐसे स्थान के समान हैं, जहाँ मैं अपने शत्रुओं से छिप सकता हूँ; +\q2 आप मुझे परेशानियों से बचाते हैं +\q2 और मुझे मेरे शत्रुओं से बचाने के लिए, आपकी स्तुति और जयजयकार करने के लिए मुझे समर्थ करें। +\q1 +\v 8 यहोवा मुझसे कहते हैं, “मैं तुझे बताऊँगा कि तुझे कैसा जीवन जीना है। +\q2 मैं तुझे सिखाऊँगा और तेरी देख-रेख करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 9 घोड़ों और खच्चरों के समान मत बनो जो कुछ भी नहीं समझते हैं; +\q2 उन्हें लगाम की आवश्यकता है +\q2 कि वे उस दिशा में जाएँ जहाँ तू उन्हें ले जाना चाहता है।” +\q1 +\v 10 दुष्ट लोगों को कई परेशानी होगी जो उन्हें दुख देंगी, +\q2 परन्तु जो लोग यहोवा पर भरोसा रखते हैं, यहोवा उन्हें सदैव सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 इसलिए, हे सब धर्मी लोगों, जो यहोवा ने तुम्हारे लिए किया है, उसके विषय में आनन्दित रहो; +\q2 तुम लोग जिनका मन शुद्ध है, आनन्द मनाओ और हर्ष के साथ जयजयकार करो! + +\s5 +\c 33 +\q1 +\p +\v 1 हे धर्मी लोगों, तुम्हें यहोवा के लिए हर्ष के साथ जयजयकार करना चाहिए +\q2 क्योंकि वह इसके योग्य हैं। +\q1 +\v 2 यहोवा की स्तुति करो जब तुम वीणा पर गाने बजाते हो। +\q2 उनकी स्तुति करो जब तुम दस तार वाली सारंगी बजाते हो। +\q1 +\v 3 उनके लिए एक नया गीत गाओ; +\q2 उन वाद्य-यन्त्रों को अच्छी तरह से बजाओ, और जब तुम उन्हें बजाते हो तब हर्ष के साथ जयजयकार करो। +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा सदा वही करते हैं जो वह कहते हैं; +\q2 हम भरोसा कर सकते हैं कि वह जो भी करते हैं वह उचित है। +\q1 +\v 5 वह हमारे सब न्याय के और उचित कार्यों से प्रेम करते हैं, जो कि न्यायपूर्ण और सही है। +\q2 यहोवा पृथ्‍वी पर लोगों की सहायता करते हैं क्योंकि वह सदा उनसे प्रेम करते हैं। +\q1 +\v 6 यहोवा ने आज्ञा दे कर आकाश में सब कुछ बनाया। +\q2 उन्होंने आज्ञा दी, तो उससे सब तारे प्रकट हुए। +\q1 +\s5 +\v 7 उन्होंने सारे पानी को एक विशाल ढेर के समान एकत्र किया +\q2 जैसे कोई एक बर्तन में पानी भरता है। +\q1 +\v 8 पृथ्‍वी पर सबको यहोवा का सम्मान करना चाहिए; +\q2 पृथ्‍वी पर सबको उनका सम्मान करना चाहिए। +\q1 +\v 9 जब उन्होंने कहा, तो संसार बन गया। +\q2 उन्होंने आज्ञा दी तो सब कुछ अस्तित्व में आना आरम्भ हो गया। +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा अन्य जातियों को वे बातें करने से रोकते हैं जो वे करना चाहते हैं। +\q2 वह उन्हें बुरी बातों से रोकते हैं जिनकी वे योजना बनाते हैं। +\q1 +\v 11 परन्तु यहोवा जो करने का निर्णय करते हैं वह सदा काल के लिए होगा। +\q2 वह जो करने की योजना बनाते हैं वह कभी नहीं बदलेगी। +\q1 +\v 12 यहोवा हमारे देश को आशीष देते हैं, हम जो उनकी आराधना करते हैं; +\q2 हम कितने भाग्यशाली हैं, हमारा देश जो सदा के लिए यहोवा का है! +\q1 +\s5 +\v 13 यहोवा स्वर्ग से नीचे दृष्टि करते हैं और सब लोगों को देखते हैं। +\q1 +\v 14 जहाँ से वह शासन करते हैं, वहाँ से वह धरती पर रहने वाले सब लोगों को देखते हैं। +\q1 +\v 15 वह हमारे भीतरी मनुष्य को बनाते हैं, +\q2 और हम जो कुछ भी करते हैं उसे वह देखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 एक राजा अपनी महान सेना के कारण युद्ध जीतने में सक्षम नहीं है, +\q2 और एक सैनिक अपनी शक्ति के कारण अपने शत्रु को पराजित करने में सक्षम नहीं होता। +\q1 +\v 17 यह सोचना मूर्खता की बात है कि घोड़े बहुत शक्तिशाली हैं, +\q2 वे एक लड़ाई जीतने और अपने सवारों को बचाने में सफल हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 18 यह मत भूलना कि यहोवा उन लोगों को देखते हैं जो उन्हें सम्मान देते हैं, +\q2 जो आत्मविश्वास के साथ आशा करते हैं, कि वह उनसे सच्चा प्रेम करते रहेंगे। +\q1 +\v 19 वह उन्हें समय से पहले मरने से बचाते हैं; +\q2 वह अकाल होने पर उन्हें सम्भालते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 हम भरोसा रखते हैं कि यहोवा हमारी सहायता करेंगे; +\q2 वह हमें बचाते हैं जैसे एक ढाल एक सैनिक की रक्षा करती है। +\q1 +\v 21 जो कुछ उन्होंने हमारे लिए किया है, उसके कारण हम आनन्दित हैं; +\q2 हम उन पर भरोसा रखते हैं क्योंकि वह पवित्र हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 हे यहोवा, हम प्रार्थना करते हैं कि आप हमसे सदा सच्चा प्रेम करें +\q2 जब हम आत्मविश्वास के साथ आशा रखते हैं कि आप हमारे लिए महान कार्य करेंगे। + +\s5 +\c 34 +\d एक भजन जो दाऊद ने लिखा जब उसने राजा अबीमेलेक के सामने पागल होने का ढोंग किया कि राजा उसे छोड़ दे +\q1 +\p +\v 1 मैं सदा यहोवा का धन्यवाद करूँगा; +\q2 मैं निरन्तर उनकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 2 उन्होंने जो किया है उसके लिए मैं यहोवा की स्तुति करूँगा। +\q2 जो लोग पीड़ित हैं उन्हें मेरी बात सुननी चाहिए और आनन्दित होना चाहिए। +\q1 +\v 3 दूसरों को बताने के लिए मेरे साथ जुड़ें कि यहोवा महान हैं! +\q2 तुम और मैं एक साथ यह घोषणा करेंगे कि वह कितने महिमामय हैं! +\q1 +\s5 +\v 4 मैंने यहोवा से प्रार्थना की, और उन्होंने मेरी प्रार्थना का उत्तर दिया; +\q2 उन्होंने मुझे उन सबसे बचाया जिन्होंने मुझे डराया। +\q1 +\v 5 जो लोग भरोसा रखते हैं कि वह उनकी सहायता करेंगे, वे आनन्दित होंगे; +\q2 उन्हें अपमानित होकर कभी भी आँखें नीची नहीं करनी पड़ेंगी। +\q1 +\v 6 मैं दुखी था, परन्तु मैंने यहोवा को पुकारा, और उन्होंने मेरी सुन ली। +\q2 उन्होंने मुझे मेरी सब परेशानियों से बचा लिया। +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा का दूत उन लोगों की रक्षा करता है जो उनका बहुत सम्मान करते हैं, +\q2 और स्वर्गदूत उन्हें बचाते हैं। +\q1 +\v 8 स्वयं परख कर देखो, और तुम अनुभव करोगे कि यहोवा तुम्हारे लिए भले हैं! +\q2 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो उन्हें बचाने के लिए यहोवा पर भरोसा रखते हैं। +\q1 +\v 9 तुम सब जो उनके हो, तुम्हें उनका एक महान सम्मान करना चाहिए! +\q2 जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें सदा वह वस्तुएँ मिलती हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता होती है। +\q1 +\s5 +\v 10 शेर आमतौर पर बहुत शक्तिशाली होते हैं, परन्तु कभी-कभी युवा शेर भूखे होते हैं और दुर्बल हो जाते हैं। +\q2 परन्तु, जो लोग यहोवा पर भरोसा रखते हैं, उनके पास वह सब होगा जो उन्हें चाहिए। +\q1 +\v 11 तुम जो मेरे शिष्य हो, आओ और मेरी बात सुनो, +\q2 और मैं तुम्हें सिखाऊँगा कि यहोवा का सम्मान कैसे करना है। +\q1 +\s5 +\v 12 यदि तुम में से कोई भी जीवन का आनन्द लेना चाहता है +\q2 और एक अच्छा लम्बा जीवन चाहता है, +\q1 +\v 13 तो बुरा मत बोलो! +\q2 झूठ मत बोलो! +\q1 +\v 14 बुराई करने से इन्कार करो; और, जो अच्छा है वही करो! +\q2 लोगों को एक-दूसरे के साथ शान्ति से रहने योग्य बनाने के लिए सदा कड़ा परिश्रम करो! +\q1 +\s5 +\v 15 यहोवा उन लोगों को ध्यान से देखते हैं जो धार्मिक कार्य करते हैं; +\q2 जब वह सहायता के लिए उन्हें पुकारते हैं तब वह सदा उन्हें उत्तर देते हैं। +\q1 +\v 16 परन्तु यहोवा उन लोगों के विरुद्ध कार्य करते हैं जो बुराई करते हैं। +\q2 मरने के बाद, पृथ्‍वी के लोग उन्हें पूरी तरह से भूल जाएँगे। +\q1 +\v 17 जब धर्मी लोग यहोवा को पुकारते हैं, तो यहोवा उनकी सुनते हैं; +\q2 वह उन्हें उनकी सब परेशानियों से बचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 यहोवा निराश लोगों की सहायता करने के लिए सदा तैयार रहते हैं; +\q2 वह उन लोगों को बचाते हैं जिनके पास कोई भलाई की आशा नहीं है। +\q1 +\v 19 धर्मी लोगों को कई परेशानी हो सकती है, +\q2 परन्तु यहोवा उन्हें उन सब परेशानियों से बचाते हैं। +\q1 +\v 20 जब उनके शत्रु उन पर आक्रमण करते हैं; +\q2 तब यहोवा उन्हें हानि से बचाते हैं, +\q3 वे उन धर्मी लोगों की एक भी हड्डी को नहीं तोड़ पाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 21 विपत्तियाँ दुष्ट लोगों को मार डालेंगी, +\q2 और यहोवा उन लोगों को दण्ड देंगे जो धर्मी लोगों का विरोध करते हैं। +\q1 +\v 22 यहोवा उनको बचाएँगे जो उनकी सेवा करते हैं। +\q2 वह उन लोगों पर दोष नहीं लगाएँगे, जो उन पर भरोसा रखते हैं। + +\s5 +\c 35 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, उन लोगों के विरुद्ध लड़ें जो मेरे विरुद्ध लड़ते हैं! +\q2 जब वे मुझसे लड़ते हैं तब आप उनसे लड़ें! +\q1 +\v 2 मेरी रक्षा करने के लिए ढाल बन जाएँ +\q2 और मेरी सहायता करने के लिए आएँ! +\q1 +\v 3 अपने भाले को उठाएँ और उन पर फेंक दें जो मेरा पीछा करते हैं! +\q2 मुझसे प्रतिज्ञा करें कि आप मेरे शत्रुओं को पराजित करने में मुझे समर्थ करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 जो मुझे मारने का प्रयास करते हैं—दूसरों से उन्हें अपमानित और लज्जित करवाएँ। +\q1 उन लोगों को पीछे धकेल दें और भ्रमित कर दें जो मेरी बुराई करने की योजना बना रहे हैं। +\q1 +\v 5 अपने दूत को उनका पीछा करने के लिए भेजें +\q2 और हवा में उड़ाई गई भूसी के समान उनका नाम मिटा दें। +\q1 +\v 6 जब आपका दूत उनका पीछा करता है +\q2 तब जिस मार्ग पर वे दौड़ते हैं, उसे अंधेरा और फिसलने वाला बना दें! +\q1 +\s5 +\v 7 मैंने उनके साथ कुछ भी गलत नहीं किया है, +\q2 परन्तु उन्होंने मेरे गिरने के लिए एक गहरा गड्ढ़ा खोदा; +\q2 उन्होंने एक जाल छिपाया जिसमें वे मुझे पकड़ लेंगे। +\q1 +\v 8 उन्हें अकस्मात ही विपत्ति का सामना करने दें! +\q2 उन्हें अपने जाल में स्वयं फँसने दें। +\q1 उन्हें उन गड्ढों में गिरने दें जो उन्होंने मेरे लिए खोदे हैं, और उन्हें उसमें मरने दें! +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा, तब अापने मेरे लिए जो किया है, उसके कारण मैं आनन्दित होऊँगा; +\q2 मुझे प्रसन्नता होगी कि आपने मुझे बचा लिया है। +\q1 +\v 10 मैं अपने पूरे मन से कहूँगा, +\q2 “यहोवा के जैसा कोई नहीं है! +\q1 असहाय लोगों को शक्तिशाली लोगों से कोई और नहीं बचा सकता है। +\q2 और दुर्बल और आवश्यकता में पड़े लोगों को उनके लूटने वालों से कोई नहीं बचा सकता है।” +\q1 +\s5 +\v 11 जो झूठ बोलते हैं वे अदालत में खड़े होकर +\q2 उन बातों के विषय में मुझ पर आरोप लगाते हैं, जिन्हें मैं जानता भी नहीं। +\q1 +\v 12 मेरी अच्छाई के बदले में, वे मेरे साथ बुरा करते हैं, +\q2 इस कारण मुझे लगता है कि मैं अकेला हूँ। +\q1 +\s5 +\v 13 जब वे बीमार थे, तब मैंने दुख प्रकट किया था। +\q2 मैंने खाना नहीं खाया, और सिर झुका कर उनके लिए प्रार्थना की थी। +\q1 +\v 14 मैंने शोक किया और सिर झुका कर उनके लिए प्रार्थना की +\q2 जैसे कि वह मेरा मित्र या मेरी माँ था जिसके लिए मैं दुखी हूँ। +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु जब मुझ पर परेशानियाँ आईं, तो वे सब आनन्द करते थे। +\q2 वे मेरा उपहास करने के लिए अकस्मात ही एकत्र हुए। +\q1 अपरिचित लोग मुझे मारते रहे; +\q2 वे नहीं रुके। +\q1 +\v 16 लोग जो किसी का सम्मान नहीं करते, उन्होंने मेरा उपहास किया +\q2 और मुझ पर गरजते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 हे परमेश्वर, आप कब तक उन्हें ऐसा करते हुए देखते रहेंगे? +\q2 मुझे उनके आक्रमण से बचाएँ; +\q1 मुझ पर आक्रमण करने वाले लोगों के हाथों मरने से मुझे बचाएँ +\q2 जैसे शेर अन्य पशुओं पर आक्रमण करते हैं! +\q1 +\v 18 फिर, जब आपके कई लोग एकत्र होंगे, +\q2 मैं आपकी स्तुति करूँगा, +\q1 और मैं उन सबके सामने आपको धन्यवाद दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 19 मेरे शत्रुओं को जो मेरे विषय में झूठ बोलते हैं, मुझे पराजित करने +\q2 और आनन्द करने न दें! +\q1 उन लोगों को जो मुझसे बिना कारण घृणा करते हैं +\q2 उन्हें मेरे दुख पर हँसने न दें! +\q1 +\v 20 वे लोगों से शान्ति के साथ बात नहीं करते; +\q2 इसकी अपेक्षा, वे हमारे देश की हानि न करने वाले लोगों के विषय में झूठ बोलने के मार्ग खोजते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 वे मुझ पर आरोप लगाने के लिए मुझ पर चिल्लाते हैं; +\q2 वे कहते हैं, “हमने उन गलत कार्यों को देखा जो तुमने किए थे!” +\q1 +\v 22 हे यहोवा, आपने इन बातों को देखा है, इसलिए चुप न रहें! +\q2 मुझसे दूर न रहें! +\q1 +\v 23 हे मेरे परमेश्वर, उठकर अदालत में मेरा मुकद्दमा लड़ें, +\q2 और सफलतापूर्वक मुझे बचाएँ! +\q1 +\s5 +\v 24 हे यहोवा, हे मेरे परमेश्वर, क्योंकि आप धर्मी हैं, +\q1 इसलिए सिद्ध करें कि मैं निर्दोष हूँ +\q2 कि मेरे शत्रु मेरा उपहास करने में सफल न हों कि मुझे दोषी ठहराया गया है। +\q1 +\v 25 उन्हें अपने मन में कहने न दें, +\q2 “हाँ, हमने उससे छुटकारा पा लिया है जैसा हम चाहते थे!” +\q1 +\v 26 जो मेरे दुर्भाग्य पर आनन्दित होते हैं +\q2 उन्हें पूरी तरह उलझन में डालें और अपमानित करें; +\q1 जो लोग दावा करते हैं कि वे मुझसे अधिक महत्वपूर्ण हैं +\q2 उन्हें लज्जित और अपमानित करें! +\q1 +\s5 +\v 27 परन्तु जो लोग चाहते हैं कि आप मुझे निर्दोष घोषित करें +\q2 उन्हें आनन्दित होने दें और आनन्द से जयजयकार करने दें; +\q1 उन्हें सदा कहने दें कि, “यहोवा महान हैं! +\q2 वह अपनी सेवा करने वालों की भलाई का कारण होने में प्रसन्न होते हैं।” +\q1 +\v 28 तब मैं घोषणा करूँगा कि आप उचित रीति से कार्य करते हैं, +\q2 और मैं हर समय आपकी स्तुति करूँगा। + +\s5 +\c 36 +\d परमेश्वर की सच्ची सेवा करने वाले दाऊद के द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 दुष्ट लोगों के मन में निरन्तर पाप करने की इच्छा होती है। +\q1 उनका मानना है कि उन्हें परमेश्वर का सम्मान करने की आवश्यकता नहीं है। +\q1 +\v 2 क्योंकि वे अपने लिए अच्छी वस्तुओं पर विश्वास करना चाहते हैं, +\q2 वे नहीं सोचते कि परमेश्वर उनके पापों को जानते हैं और उनसे घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 जो कुछ भी वे कहते हैं वह छल और झूठ से भरा है; +\q2 वे कोई अच्छा कार्य नहीं करते हैं +\q2 और अब बुद्धिमान नहीं हैं। +\q1 +\v 4 जब वे अपने बिस्तरों पर लेटते हैं, तब वे दूसरों को हानि पहुँचाने के लिए कार्य करने की योजना बनाते हैं; +\q2 वे उन कार्यों को करने के लिए दृढ़ हैं जो अच्छे नहीं हैं, +\q2 और वे बुराई करने से कभी इन्कार नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, हमारे लिए आपका विश्वासयोग्य प्रेम स्वर्ग जितना ऊँचा है; +\q2 प्रतिज्ञा पूरी करने में आपकी विश्वासयोग्यता बादलों तक फैली हुई है। +\q1 +\v 6 आपका धर्मी व्यवहार उच्चतम् पर्वतों के समान स्थायी है; +\q2 आपका न्यायपूर्ण व्यवहार तब तक बना रहेगा जब तक गहरे महासागर बने रहेंगे। +\q1 आप लोगों का ध्यान रखते हैं और आप पशुओं का ध्यान रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 हे परमेश्वर, हमारे लिए आपका विश्वासयोग्य प्रेम बहुत मूल्यवान है। +\q1 आप हमारी रक्षा करते हैं जैसे पक्षी अपने पंखों के नीचे अपने बच्चों की रक्षा करते हैं। +\q1 +\v 8 आप अपने भण्डार से बड़ी मात्रा में भरपूर भोजन प्रदान करते हैं; +\q2 आपके महान उपकार हमारे लिए नदी के समान बहते हैं। +\q1 +\v 9 आप ही वह हैं जो सबको जीवन देते हैं; +\q2 आपकी ज्योति ने हमें आपके विषय में सच्चाई जानने में समर्थ बनाया है। +\q1 +\s5 +\v 10 उन लोगों से सच्चा प्रेम करते रहें जो आपके प्रति सच्चे हैं, +\q2 और उन लोगों की रक्षा करें जो धर्म के कार्य करते हैं। +\q1 +\v 11 गर्व करने वाले लोगों को मुझ पर आक्रमण करने न दें, +\q2 या दुष्ट लोगों को मेरा पीछा करने न दें। +\q1 +\v 12 देखो बुरे लोग भूमि पर कहाँ गिरे पड़े हैं, वे पराजित हुए; +\q2 वे नीचे फेंक दिए गए, वे फिर कभी नहीं उठेंगे। + +\s5 +\c 37 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 दुष्ट लोगों के कार्यों के कारण परेशान न हों। +\q2 उन वस्तुओं की इच्छा न करें जो गलत कार्य करने वालों के पास हैं, +\q1 +\v 2 क्योंकि वे सूरज की गर्मी से शीघ्र मुर्झाने और सूखने वाली घास के समान मिट जाएँगे। +\q2 जैसे कुछ हरे पौधे उगते हैं परन्तु गर्मी के समय मर जाते हैं, +\q2 बुरे लोग भी शीघ्र ही मर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 3 यहोवा पर भरोसा रखो और जो अच्छा है वही करो। +\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम उस भूमि में सुरक्षित रहोगे जो परमेश्वर ने तुमको दी हैं, +\q2 और वह भूमि एक ऐसा स्थान होगा जहाँ तुम अपने पूरे जीवन में परमेश्वर के प्रति सच्चे रहोगे। +\q1 +\v 4 जो कुछ यहोवा तुम्हारे लिए करते हैं, उससे प्रसन्न रहो; +\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुमको वह सब वस्तुएँ देंगे जो तुम चाहते हो। +\q1 +\s5 +\v 5 अपने सब कार्यों की योजना परमेश्वर को समर्पित कर दो; +\q2 उस पर भरोसा रखो, +\q2 और वह तुम्हारी सहायता करने के लिए जो भी आवश्यक है वह करेंगे। +\q1 +\v 6 वह सूर्य के प्रकाश के जैसे स्पष्ट रूप से दिखाएँगे कि तुम निर्दोष हो; +\q2 वह दोपहर के सूर्य के समान स्पष्ट रूप से दिखाएँगे +\q2 कि तुमने जो निर्णय लिए हैं, सब न्यायोचित हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा की उपस्थिति में चुप रहो और जो तुम उससे चाहते हो कि वह करें, उसकी धीरज पूर्वक प्रतीक्षा करें। +\q2 परेशान न हों जब दुष्टों के कार्य सफल होते हैं, +\q2 जब वे अपनी योजना के अनुसार उन दुष्ट कार्यों को करने में समर्थ होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 दुष्टों के कार्यों से क्रोधित न हों। +\q2 उन्हें स्वयं दण्ड देने की इच्छा न करो। +\q2 ऐसे लोगों से ईर्ष्या मत करो +\q2 क्योंकि यदि तुम ऐसा करने का प्रयास करते हो तो तुम स्वयं को ही हानि पहुँचाओगे। +\q1 +\v 9 एक दिन यहोवा दुष्ट लोगों से छुटकारा पाएँगे, +\q2 परन्तु जो लोग उन पर भरोसा रखते हैं वे उस देश में सुरक्षित रहेंगे जो उन्होंने उन्हें दिया है। +\q1 +\v 10 शीघ्र ही दुष्ट गायब हो जाएँगे। +\q2 तुम उन्हें ढूँढ़ोगे, परन्तु वे रहेंगे ही नहीं। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु जो विनम्र हैं वे अपनी भूमि में सुरक्षित रहेंगे। +\q2 वे शान्ति के जीवन का आनन्द लेंगे और यहोवा की दी हुई भली वस्तुओं से तृप्त होंगे। +\q1 +\v 12 दुष्ट लोग धर्मियों को हानि पहुँचाने की योजना बनाते हैं; +\q2 वे जंगली पशुओं के समान उन पर गुर्राते हैं। +\q1 +\v 13 परन्तु यहोवा उन पर हँसते हैं +\q2 क्योंकि वह जानते हैं कि एक दिन वह दुष्ट लोगों का न्याय करेंगे और उन्हें दण्ड देंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 दुष्ट लोग अपनी तलवार खींचते हैं +\q2 और वे अपने धनुष पर तीर चढ़ाते हैं, +\q1 वे गरीब लोगों को मारने के लिए, +\q2 और धर्मियों का संहार करने के लिए तैयार रहते हैं। +\q1 +\v 15 परन्तु वे अपनी ही तलवार से मारे जाएँगे, +\q2 और उनके धनुष टूट जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 16 बहुत सम्पत्ति होने से धर्मी होना अधिक अच्छा है, +\q2 परन्तु धनवान होकर दुष्ट होना बुरा है +\q1 +\v 17 क्योंकि यहोवा दुष्ट लोगों की शक्ति को पूरा तोड़ देंगे, +\q2 परन्तु वह उन लोगों को सम्भालेंगे जो धार्मिकता से रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 दिन-प्रतिदिन यहोवा उन लोगों की रक्षा करते हैं जिन्होंने कोई बुराई नहीं की हैं; +\q2 जो वस्तुएँ यहोवा उन्हें देते हैं वह सदा के लिए स्थिर रहेंगी। +\q1 +\v 19 जब विपत्तियाँ आएँगी तब वे जीवित रहेंगे; +\q2 जब अकाल पड़ेंगे, तब भी उनके पास खाने के लिए बहुत कुछ होगा। +\q1 +\s5 +\v 20 परन्तु दुष्ट लोग मर जाएँगे; +\q2 जैसे खेतों में सुन्दर जंगली फूल सूरज की गर्मी के नीचे मर जाते हैं और धुएँ के समान गायब हो जाते हैं, +\q2 यहोवा अपने शत्रुओं को अकस्मात मिटा देंगे। +\q1 +\v 21 दुष्ट लोग पैसे उधार लेते हैं, परन्तु वे इसे चुकाने में समर्थ नहीं हैं; +\q2 इसके विपरीत, धर्मी लोगों के पास दूसरों को उदारता से देने के लिए पर्याप्त धन हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 जिन्हें यहोवा ने आशीष दिया है, वे उस देश में सुरक्षित रहेंगे जो उन्होंने उन्हें दिया है, +\q2 परन्तु वह उन लोगों से छुटकारा पाएँगे जिन्हें उन्होंने श्राप दिया है। +\q1 +\v 23 यहोवा उन लोगों की रक्षा करते हैं जो उन्हें प्रसन्न करने के कार्य करते हैं, +\q2 और वे जहाँ भी जाएँ यहोवा उन्हें आत्मविश्वास से चलने में समर्थ करते हैं; +\q1 +\v 24 चाहे वे ठोकर खाएँ, तो भी वे नहीं गिरेंगे +\q2 क्योंकि यहोवा उन्हें अपने हाथ से पकड़े रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 25 मैं पहले युवा था, और अब मैं बूढ़ा हूँ, +\q2 परन्तु उन सब वर्षों में, मैंने कभी नहीं देखा है कि धर्मी लोगों को यहोवा ने त्याग दिया है, +\q2 और न ही मैंने देखा है कि उनकी सन्तान को भोजन माँगने की आवश्यकता हुई है। +\q1 +\v 26 धर्मी लोग उदार होते हैं और हर्ष से दूसरों को पैसे उधार देते हैं, +\q2 और उनकी सन्तान उनके लिए आशीष है। +\q1 +\v 27 बुराई करने से दूर हो जाओ, और जो अच्छा है वह करो। +\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम और तुम्हारे वंशज सदा के लिए तुम्हारे देश में रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 28 ऐसा इसलिए होगा कि यहोवा को न्याय के कार्य करने वाले लोग पसन्द हैं, +\q2 और वह कभी भी धर्मी लोगों को त्याग नहीं देंगे। +\q1 वह सदा के लिए उनकी रक्षा करेंगे; +\q2 परन्तु वह दुष्ट लोगों की सन्तान को भी नष्ट करेंगे। +\q1 +\v 29 धर्मी लोग उस देश के स्वामी होंगे जो यहोवा ने उन्हें देने की प्रतिज्ञा की है, +\q2 और वे सदा के लिए वहाँ रहेंगे। +\q1 +\v 30 धर्मी लोग दूसरों को बुद्धिमानी का परामर्श देते हैं, +\q2 और वे अन्य लोगों को न्याय का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 31 वे अपने मन को परमेश्वर के नियमों से भरते हैं; +\q2 वे परमेश्वर के मार्ग पर चलने से नहीं भटकते हैं। +\q1 +\v 32 जो लोग बुरे हैं, वे धर्मी लोगों पर आक्रमण करने के लिए घात लगाते हैं +\q2 कि उन्हें मार्ग में मार डाले। +\q1 +\v 33 परन्तु यहोवा धर्मी लोगों को नहीं त्यागेंगे +\q2 और न उन्हें उनके शत्रुओं के हाथों में पड़ने देंगे। +\q1 वह धर्मी लोगों को दोषी ठहराने नहीं देंगे +\q2 जब उन्हें मुकद्दमा चलाने के लिए न्यायधीश के पास ले जाया जाए। +\q1 +\s5 +\v 34 धीरज रखो और भरोसा रखो कि यहोवा तुम्हारी सहायता करेंगे, +\q2 और उनके मार्ग पर चलते रहो। +\q1 यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुम्हें वह देश दे कर सम्मानित करेंगे जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की है, +\q2 और जब वह दुष्टों से छुटकारा पाते हैं, तो तुम इसे देखोगे। +\q1 +\s5 +\v 35 मैंने देखा है कि दुष्ट लोग जो तानाशाह के समान कार्य करते हैं, वे कभी-कभी उपजाऊ मिट्टी में लगे पेड़ों के समान फूलते फलते हैं, +\q1 +\v 36 परन्तु जब मैंने बाद में देखा, तो वे वहाँ नहीं थे! +\q2 मैंने उनको खोजा, परन्तु यहोवा ने उन्हें मिटा दिया था। +\q1 +\s5 +\v 37 उन लोगों पर ध्यान दें जिन्होंने बुरे कार्य नहीं किए है, जो धर्म के कार्य करते हैं; +\q2 उनके वंशजों को अपने मन की शान्ति मिलेगी। +\q1 +\v 38 परन्तु यहोवा दुष्टों से छुटकारा पाएँगे; +\q2 वह उनके वंशजों से भी छुटकारा पाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 39 यहोवा धर्मी लोगों को बचाते हैं; +\q2 संकट के समय में वह उनकी रक्षा करते हैं। +\q1 +\v 40 यहोवा उनकी सहायता करते हैं और उन्हें बचाते हैं; +\q2 वह उन्हें दुष्ट लोगों के आक्रमण से बचाते हैं +\q2 क्योंकि वे सुरक्षित होने के लिए उनके पास जाते हैं। + +\s5 +\c 38 +\d दाऊद के द्वारा लिखा गया एक भजन, जिसमें परमेश्वर से उसे न भूलना की प्रार्थना है +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, जब आप मुझसे क्रोधित होते हैं, +\q2 तब मुझे न डाँटें और मुझे दण्ड न दें! +\q1 +\v 2 अब ऐसा लगता है कि आपने मुझ पर अपने तीर मारे हैं और मुझे घायल कर दिया है; +\q2 ऐसा लगता है कि आपने मुझे मारा है और मुझे नीचे गिराया है। +\q1 +\s5 +\v 3 क्योंकि आप मुझसे क्रोधित हो गए हो, +\q2 मुझे बहुत दर्द हो रहा है। +\q1 मेरे पाप के कारण, +\q2 मेरा पूरा शरीर रोग ग्रस्त हो गया है। +\q1 +\v 4 मेरे सारे पाप बाढ़ के समान हैं जो मेरे सिर के ऊपर से बहते हैं; +\q2 वे एक बोझ के समान हैं जो बहुत भारी है; मैं उन्हें उठा नहीं सकता। +\q1 +\s5 +\v 5 क्योंकि मैंने मूर्खता की बातें की हैं, +\q2 मेरे घाव बहुत बुरे हो गए हैं, और उनमें से दुर्गन्ध आ रही हैं। +\q1 +\v 6 कभी-कभी मैं झुकता हूँ, और कभी-कभी मैं मुँह के बल लेटता हूँ; +\q2 मैं पूरे दिन शोक करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 मेरा शरीर बुखार से जल रहा है, +\q2 और मैं बहुत बीमार हूँ। +\q1 +\v 8 मैं पूरी तरह से थक गया हूँ, और मुझमें शक्ति नहीं है। +\q2 मैं अपने अन्दर बहुत परेशान हूँ, और मैं दर्द से चिल्लाता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा, आप जानते हैं कि मैं चाहता हूँ कि आप मुझे स्वस्थ करें; +\q2 जब मैं कराहता हूँ तो आप मुझे सुनते हैं। +\q1 +\v 10 मेरा हृदय जोर से धड़कता है, और मेरी शक्ति समाप्त हो जाती है। +\q2 मैं अब देखने में भी समर्थ नहीं हूँ। +\q1 +\s5 +\v 11 मेरे मित्र और पड़ोसी मेरे घावों के कारण मुझसे दूर रहते हैं; +\q2 यहाँ तक कि मेरा अपना परिवार भी मुझसे दूर रहता है। +\q1 +\v 12 जो मुझे मारना चाहते हैं वे मुझे पकड़ने के लिए जाल फैलाते हैं; +\q2 जो मुझे हानि पहुँचाना चाहते हैं, वे उन उपायों की चर्चा करते हैं जिनके द्वारा वे मुझसे छुटकारा पा सकते हैं; +\q2 वे पूरे दिन मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 अब मैं एक बहरे आदमी के समान कार्य करता हूँ और उनकी कोई बात नहीं सुनता हूँ। +\q2 मैं ऐसे व्यक्ति के समान कार्य करता हूँ जो बात नहीं कर सकता, और मैं उन्हें उत्तर देने के लिए कुछ भी नहीं कहता। +\q1 +\v 14 मैं ऐसे व्यक्ति के समान कार्य करता हूँ जो लोगों को बात करते समय उत्तर नहीं देता है +\q2 क्योंकि वह कुछ भी सुन नहीं सकता है। +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु यहोवा, मैं आप पर भरोसा रखता हूँ। +\q2 मेरे प्रभु परमेश्वर, आप मुझे उत्तर देंगे। +\q1 +\v 16 मैंने आप से कहा, “मुझे मरने न दें कि मेरे शत्रु आनन्दित हों! +\q2 यदि परेशानियाँ मुझ पर प्रबल हो जाएँ, तो मेरे शत्रु मेरे साथ बहुत बुरा करेंगे!” +\q1 +\s5 +\v 17 मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि मैं गिरने वाला हूँ, +\q2 और मुझे निरन्तर पीड़ा होती रहती है। +\q1 +\v 18 मैं उन गलत कार्यों को स्वीकार करता हूँ जो मैंने किए हैं; +\q2 मैंने जो पाप किए हैं, उनके लिए मुझे बहुत खेद है। +\q1 +\s5 +\v 19 मेरे शत्रु स्वस्थ और बलवन्त हैं; +\q2 ऐसे कई लोग हैं जो बिना किसी कारण मुझसे घृणा करते हैं। +\q1 +\v 20 जो मेरे लिए अच्छाई के बदले बुरा करते हैं +\q2 वे मेरा विरोध करते हैं क्योंकि मैं सही कार्य करने का प्रयास करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 21 हे यहोवा, मुझे न छोड़ें! +\q2 हे मेरे परमेश्वर, मुझसे दूर न रहें! +\q1 +\v 22 हे प्रभु, आप ही मुझे बचाएँगे +\q2 शीघ्र आएँ और मेरी सहायता करें! + +\s5 +\c 39 +\d गायन मण्डली के निर्देशक यदूतून के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 मैंने स्वयं से कहा, “मैं अपने मुँह की बातों से पाप न करने के लिए सावधान रहूँगा। +\q1 जब दुष्ट लोग मेरे पास हैं और मुझे सुन सकते हैं +\q2 तब मैं आप से शिकायत करने के लिए कुछ भी नहीं कहूँगा।” +\q1 +\s5 +\v 2 इसलिए मैं पूर्णतः चुप था, और मैंने भली बातों की भी चर्चा नहीं की; +\q2 परन्तु यह व्यर्थ था क्योंकि मेरी पीड़ा और भी बढ़ गई। +\q1 +\v 3 मैं अपने भीतर बहुत चिन्तित हो गया। +\q2 जब मैंने अपनी परेशानियों के विषय में सोचा, तब मैं और अधिक चिन्तित हो गया। +\q2 फिर अन्त में मैंने यह कहा: +\q1 +\s5 +\v 4 “हे यहोवा, मुझ पर प्रकट करें कि मैं कब तक जीवित रहूँगा। +\q2 मुझे बताएँ कि मैं कब मर जाऊँगा। +\q2 मुझे बताएँ कि मैं कितने वर्ष जीवित रहूँगा! +\q1 +\v 5 ऐसा लगता है कि आपने मुझे केवल थोड़े समय तक जीने की अनुमति दी हैं; +\q2 मेरा जीवनकाल आपके लिए कुछ भी नहीं है। +\q2 हम सब मनुष्यों के जीवन का समय हवा की एक फूँक के समान छोटा है। +\q1 +\s5 +\v 6 तब हम एक छाया के समान मिट जाते हैं। +\q2 ऐसा लगता है कि हम जो कुछ भी करते हैं वह सब कुछ व्यर्थ है। +\q2 हमें कभी-कभी बहुत पैसा मिलता है, परन्तु हम यह भी नहीं जानते कि मरने के बाद इसे कौन प्राप्त करेगा। +\q1 +\v 7 इसलिए अब, हे यहोवा, मैं किसी और से कुछ भी प्राप्त करने की आशा नहीं रखता हूँ। +\q2 केवल आप ही हैं जिनसे मैं आशीष प्राप्त करने की आत्मविश्वास से अपेक्षा करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 8 मैंने जो पाप किए हैं, उनसे मुझे बचाएँ। +\q2 मूर्ख लोगों को मेरा उपहास करने न दें। +\q1 +\v 9 जब आपने मुझे दण्ड दिया तो मैंने कुछ भी नहीं कहा +\q2 क्योंकि मुझे पता था कि आप ही ने मुझे पीड़ित किया। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु अब, कृपया मुझे दण्ड देना बन्द करें! +\q2 यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आपके दण्ड की पीड़ा के कारण में मैं मरने वाला हूँ। +\q1 +\v 11 जब आप किसी को डाँटते हैं और उसके द्वारा किए गए पाप के लिए उसे दण्ड देते हैं, +\q2 आप उन वस्तुओं को नष्ट कर देते हैं जिनसे वह लगाव रखता है जैसे कि कीड़े कपड़ों को खा कर नष्ट करते हैं। +\q2 हमारा जीवन हवा की एक फूँक के समान समाप्त हो जाता है। +\q1 +\s5 +\v 12 हे यहोवा, जब मैं प्रार्थना करता हूँ तो मेरी बात सुनें; +\q2 जब मैं आपके सामने रोता हूँ तो मुझ पर ध्यान दें। +\q2 जब मैं पुकारता हूँ तब मेरी सहायता करें। +\q1 मैं अपने सब पूर्वजों के समान, +\q2 पृथ्‍वी पर केवल थोड़े समय के लिए हूँ। +\q1 +\v 13 अब मुझे अकेले रहने की अनुमति दें और अब मुझे दण्ड न दें +\q2 कि मैं मरने से पहले कुछ समय के लिए मुस्कुरा सकूँ और आनन्दित रह सकूँ।” + +\s5 +\c 40 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 मैं यहोवा की सहायता के लिए धीरज के साथ प्रतीक्षा कर रहा था, +\q2 और जब मैंने उन्हें पुकारा तो उन्होंने मेरी बात सुनी। +\q1 +\v 2 जब मुझ पर कई परेशानियाँ आईं, तो ऐसा लगता था कि मैं गहरे गड्ढे में हूँ। +\q2 परन्तु उन्होंने मुझे उस गड्ढे की मिट्टी और कीचड़ से बाहर निकाल लिया; +\q1 उन्होंने मेरे पैरों को एक ठोस चट्टान पर खड़ा किया +\q2 और मुझे सुरक्षित चलने में योग्य किया। +\q1 +\s5 +\v 3 उन्होंने मुझे गाने के लिए एक नया गीत दिया है, +\q2 एक गीत जो हमारे परमेश्वर की स्तुति का है। +\q1 बहुत से लोग यह जानेंगे कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया है, +\q2 और वे उनका सम्मान करेंगे और उन पर भरोसा रखेंगे। +\q1 +\v 4 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो भरोसा रखते हैं कि यहोवा उनकी रक्षा करेंगे, +\q2 जो मूर्तियों पर भरोसा नहीं रखते हैं +\q2 या उन झूठे देवताओं की उपासना करने वालों के साथ सहभागी नहीं होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, हे मेरे परमेश्वर, आपने कई अद्भुत कार्य किए हैं! +\q2 कोई भी उन सभी अद्भुत कार्यों की सूची नहीं बना सकता है जिनकी आपने हमारे लिए योजना बनाई है। +\q1 यदि मैंने उन सब अद्भुत कार्यों के विषय में दूसरों को बताने का प्रयास किया, +\q1 तो मैं उन्हें बता नहीं पाऊँगा +\q2 क्योंकि वे उल्लेख करने के लिए बहुत सारे हैं। +\q1 +\v 6 बलिदान और भेंटें आपको सबसे अधिक प्रसन्न करते हैं। +\q2 परन्तु आपने मुझे अपने आदेश सुनने के लिए समर्थ किया है। +\q1 हमारे पापों के लिए वेदी पर जलाए गए पशु और अन्य बलियाँ, आपको नहीं चाहिएँ। +\q1 +\s5 +\v 7 इसलिए मैंने आप से कहा, “हे यहोवा, +\q2 पुस्तक में लिखे गए नियमों का पालन करने के लिए मैं यहाँ हूँ, +\q2 वे बातें जो आप मुझसे कराना चाहते हैं।” +\q1 +\v 8 हे मेरे परमेश्वर, जो आप चाहते हैं, उसे करने का मैं आनन्द लेता हूँ; +\q2 मैं सदा अपने भीतर आपके नियमों के विषय में सोचता हूँ। +\q1 +\v 9 जब आपके सब लोग एक साथ एकत्र हुए थे, +\q2 मैंने उनसे कहा कि आप कैसे उचित रीति से कार्य करते हैं और आप हमें कैसे बचाते हैं। +\q2 हे यहोवा, आप जानते हैं कि मैंने उन्हें बताने से इन्कार नहीं किया है। +\q1 +\s5 +\v 10 मैंने अपने भीतर यह समाचार छिपा कर नहीं रखा है कि आप सदा न्याय से कार्य करते हैं; +\q2 जब आपके कई लोग आपकी आराधना करने के लिए एकत्र हुए, +\q1 तब मैंने उनसे कहा कि आप हमारे साथ विश्वासयोग्य हैं और हमें बचाते हैं। +\q2 मैंने छिपाया नहीं है कि आप हमसे सच्चा प्रेम करते हैं और हमारे साथ विश्वासयोग्य कार्य करते हैं। +\q1 +\v 11 हे यहोवा, मुझ पर दया करना बन्द न करें। +\q2 क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं और मेरे साथ विश्वासयोग्य हैं, इसलिए सदा मुझे बचाएँ। +\q1 +\s5 +\v 12 मुझे कई परेशानियाँ हैं; मैं उन्हें गिन नहीं सकता। +\q2 मैं अब उन बातों से पीड़ित हूँ जो मेरे पाप के कारण हुई हैं। +\q2 मैं अब अपने आँसुओं के कारण नहीं देख सकता। +\q1 मैंने जो पाप किए हैं, वे मेरे सिर के बालों से अधिक हैं। +\q2 मैं बहुत निराश हूँ। +\q1 +\v 13 हे यहोवा, कृपया मुझे बचाएँ! +\q2 मेरी सहायता करने के लिए शीघ्र आएँ! +\q1 +\s5 +\v 14 उन लोगों को लज्जित करें जो मेरी परेशानियों से आनन्दित हैं, और उन्हें अपमानित करें। +\q2 उन लोगों को दूर करें जो मुझसे छुटकारा पाने का प्रयास कर रहे हैं। +\q1 +\v 15 मुझे आशा है कि जो लोग मेरा उपहास करते हैं +\q2 आपके द्वारा पराजित किए जाने पर निराश हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 16 परन्तु मुझे आशा है कि जो लोग आपकी आराधना करने के लिए जाते हैं वे बहुत आनन्दित होंगे। +\q2 मुझे आशा है कि जो लोग आप से प्रेम करते हैं क्योंकि आपने उन्हें बचाया है वे बार-बार जयजयकार करके कहेंगे, +\q1 “यहोवा महान हैं!” +\q1 +\v 17 मैं गरीब हूँ और आवश्यकता में हूँ, +\q2 परन्तु मैं जानता हूँ कि परमेश्वर मुझे भूले नहीं हैं। +\q1 हे मेरे परमेश्वर, आप ही हैं जो मुझे बचाते हैं और मेरी सहायता करते हैं, +\q2 इसलिए कृपया शीघ्र आएँ और मेरी सहायता करें! + +\s5 +\c 41 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो गरीबों की सुधि लेते हैं; +\q2 जब उन्हें परेशानी होगी, तब यहोवा उन लोगों को बचाएँगे। +\q1 +\v 2 यहोवा उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें लम्बे समय तक जीने देंगे। +\q2 वह उन्हें इस्राएल की भूमि में आनन्द के योग्य बनाएँगे +\q2 और उन्हें उनके शत्रुओं से बचाएँगे। +\q1 +\v 3 जब वे बीमार होते हैं, तो यहोवा उन्हें बलवन्त करेंगे +\q2 और उन्हें स्वस्थ करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 जब मैं बीमार था, मैंने कहा, “हे यहोवा, मुझ पर दया करें और मुझे स्वस्थ करें; +\q2 मुझे पता है कि मैं बीमार हूँ क्योंकि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है।” +\q1 +\v 5 मेरे शत्रु मेरे विषय में क्रूरता की बातें कहते हैं; +\q2 वे कहते हैं, “वह शीघ्र ही मर जाएगा, और फिर सब उसके विषय में भूल जाएँगे?” +\q1 +\v 6 जब मेरे शत्रु मेरे पास आते हैं, तो वे मेरे विषय में चिन्तित होने का ढोंग करते हैं। +\q2 वे उत्सुकता से मेरे विषय में सब बुरे समाचार को सुनते हैं। +\q2 फिर वे चले जाते हैं और सबको बताते हैं कि मेरे साथ क्या हो रहा है। +\q1 +\s5 +\v 7 जो लोग मुझसे घृणा करते हैं वे मेरे विषय में दूसरों के कानों में फुसफुसाते हैं, +\q2 और वे आशा करते हैं कि मेरे साथ बहुत बुरा हों। +\q1 +\v 8 वे कहते हैं, “वह बीमार होने के कारण शीघ्र ही मर जाएगा; +\q2 वह मरने से पहले कभी अपने बिस्तर से उठ नहीं पाएगा।” +\q1 +\v 9 यहाँ तक कि मेरा एक बहुत घनिष्ठ मित्र, जिस पर मैंने बहुत भरोसा किया, +\q2 जो अधिकतर मेरे साथ खाता था, +\q2 उसने मुझे धोखा दिया है। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु यहोवा, मेरे प्रति दयालु हैं, और मुझे स्वस्थ करते हैं। +\q2 जब आप ऐसा करते हैं, तो मैं अपने शत्रुओं से पलटा लेने में समर्थ होऊँगा। +\q1 +\v 11 यदि आप मुझे ऐसा करने में समर्थ करते हैं, तो मेरे शत्रु मुझे पराजित नहीं करते हैं, +\q2 तब मैं जानूँगा कि आप मुझसे प्रसन्न हैं। +\q1 +\v 12 मैं जानूँगा कि आपने मेरी सहायता इसलिए की है कि मैंने वही किया है जो उचित है, +\q2 और मैं जानूँगा कि आप मुझे सदा अपने साथ रहने योग्य करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 13 यहोवा की स्तुति करो, उस परमेश्वर की जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं; +\q2 सदा के लिए उनकी स्तुति करो! +\q2 आमीन! मेरी इच्छा है कि ऐसा ही हो! +\ms दूसरा भाग + +\s5 +\c 42 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मुझे आपकी बहुत आवश्यकता है जैसे एक हिरन को ठण्डे सोते से पानी पीने की आवश्यकता होती है। +\q1 +\v 2 हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ। +\q2 मैं स्वयं से कहता हूँ, “मैं इस्राएल के मन्दिर कब वापस जाऊँगा +\q2 और फिर से आपकी उपस्थिति में आराधना करूँगा?” +\q1 +\s5 +\v 3 हर दिन और हर रात मैं रोता हूँ; +\q2 मेरे पास पीने के लिए केवल मेरे आँसू हैं; +\q1 और जब मैं ऐसा करता हूँ, तब मेरे शत्रु सदा मुझसे पूछते हैं, +\q2 “तेरे परमेश्वर तेरी सहायता क्यों नहीं करते हैं?” +\q1 +\v 4 मैं परमेश्वर से सच्चे हृदय से प्रार्थना करता हूँ +\q2 जब मुझे स्मरण आता है कि मैं यरूशलेम के मन्दिर में लोगों की भीड़ के साथ जाता था। +\q2 मैं उनकी अगुवाई करता था जब हम साथ चलते थे; +\q1 हम सब आनन्द से जयजयकार करते थे और परमेश्वर ने जो किया हैं उसके लिए उनका धन्यवाद करते थे; +\q2 हम आनन्द मनाने वालों का एक बड़ा समूह था। +\q1 +\s5 +\v 5 इसलिए अब मैं स्वयं से कहता हूँ, “मैं व्याकुल क्यों हूँ? +\q1 मैं आत्मविश्वास के साथ आशा करता हूँ कि परमेश्वर मुझे आशीष देंगे, +\q2 और मैं फिर उनकी स्तुति करूँगा, +\q2 मेरे परमेश्वर की जो मुझे बचाते हैं।” +\q1 +\v 6 परन्तु अब, हे यहोवा, मैं घबरा रहा था, +\q2 इसलिए मैं आपके विषय में सोचता हूँ। +\q1 आप इस्राएल में हैं जहाँ यरदन नदी हेर्मोन पर्वत और मिसगार पर्वत के नीचे से बहती है। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु यहाँ, मुझे लगता है कि जो महान दुख मुझे हो रहा है वह पानी के समान है जिसे आप भेजते हैं; +\q2 यह एक झरने के समान है जो गिरता है और मेरे ऊपर आता है। +\q1 +\v 8 मैं चाहता हूँ कि यहोवा मुझे हर दिन दिखाएँ कि वह मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 जिससे कि हर रात मैं उनके लिए गा सकूँ +\q2 और उनसे प्रार्थना करूँ, वह परमेश्वर जो मुझे जीवन देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 मैं परमेश्वर से कहता हूँ, जो एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं सुरक्षित हूँ, +\q1 “आप मुझे क्यों भूल गए? आप उन कठिनाइयों को जानते हो जो मेरे शत्रु मुझ पर लाते हैं।” +\q1 +\v 10 वे सदा मेरा उपहास करते हैं; +\q2 वे पूछते रहते हैं, “तेरे परमेश्वर तेरी सहायता क्यों नहीं करते हैं?” +\q1 जब वे मेरा अपमान करते हैं, +\q2 तो वह घावों के समान है जो मेरी हड्डियों को तोड़ देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु मैं स्वयं से कहता हूँ, +\q2 “मैं व्याकुल क्यों हूँ? +\q1 मैं विश्वास से आशा करता हूँ कि परमेश्वर मुझे आशीष देंगे, +\q2 और मैं उनकी स्तुति करूँगा, +\q2 मेरे परमेश्वर की जो मुझे बचाते हैं।” + +\s5 +\c 43 +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर, यह घोषणा करें कि मैं निर्दोष हूँ। +\q1 जब वे लोग जो आपको सम्मान नहीं देते, मेरे विरुद्ध बातें करते हैं तो मुझे बचाएँ! +\q2 उन लोगों से मुझे बचाएँ जो मुझे धोखा देते हैं और मेरे विषय में ऐसी बातें करते हैं जो सच नहीं हैं। +\q1 +\v 2 आप परमेश्वर हैं जो मेरी रक्षा करते हैं; +\q2 आपने मुझे क्यों छोड़ा है? +\q1 यह सही प्रतीत नहीं होता है कि मेरे शत्रु मेरे साथ क्रूरता के कार्य करते हैं +\q2 इस कारण मुझे सदा उदास होना पड़ता है। +\q1 +\s5 +\v 3 सच्चे शब्दों को बोलें जो जीने में मेरी सहायता करते हैं। +\q1 एक आदेश दें जो मुझे यरूशलेम में आपकी पवित्र पहाड़ी सिय्योन में, +\q1 और आपके मन्दिर में वापस ले जाएगा जहाँ आप रहते हैं। +\q1 +\v 4 जब आप ऐसा करेंगे, तब मैं आपकी वेदी पर +\q2 आपकी आराधना करने के लिए जाऊँगा, मेरे परमेश्वर, जो मुझे बहुत आनन्द देते हैं। +\q2 वहाँ मैं आपकी स्तुति करूँगा, उस परमेश्वर की जिसकी मैं आराधना करता हूँ, और मैं अपनी वीणा बजाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 तो मैं उदास और निराश क्यों हूँ? +\q1 मैं विश्वास के साथ परमेश्वर से आशा करता हूँ कि वह मुझे आशीष देंगे, +\q2 और मैं फिर उनकी स्तुति करूँगा, +\q2 मेरे परमेश्वर की जो मुझे बचाते हैं। + +\s5 +\c 44 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, हमने स्वयं ही सुना है +\q2 जो हमारे माता-पिता और दादा-दादियों ने हमें बताया था। +\q1 उन्होंने हमें उन चमत्कारों के विषय में बताया +\q2 जो आपने बहुत पहले किए थे। +\q1 +\v 2 उन्होंने हमें बताया कि आपने अधर्मियों को कैसे निकाल दिया था +\q2 और हमें उनके देश में रहने योग्य किया। +\q1 उन्होंने हमें बताया कि आपने उन अधर्मियों को दण्ड दिया +\q2 और अपने लोगों को उस देश पर अधिकार करने योग्य किया। +\q1 +\s5 +\v 3 उन्होंने अपनी तलवारों का उपयोग करके उस देश में रहने वाले लोगों पर विजय प्राप्त नहीं की, +\q2 और वे उनकी अपनी शक्ति से विजयी नहीं हुए थे; +\q1 उन्होंने उन कार्यों को केवल आपकी शक्ति से किया; +\q2 और वे निश्चित थे कि आप उनके साथ हैं, +\q2 और प्रकट कर रहे थे कि आप उनसे प्रसन्न थे। +\q1 +\v 4 आप मेरे राजा और मेरे परमेश्वर हैं; +\q2 हमें अर्थात् आपके लोगों को, हमारे शत्रुओं को पराजित करने योग्य करें। +\q1 +\s5 +\v 5 यह आपकी शक्ति से है कि हम अपने शत्रुओं को गिरा कर उन्हें रौंदते हैं। +\q1 +\v 6 मुझे भरोसा नहीं है कि मैं धनुष और तीर और मेरी तलवार का उपयोग करके +\q2 स्वयं को बचा सकता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 नहीं, यह आप ही हैं जिन्होंने हमें हमारे शत्रुओं से बचा लिया है; +\q2 यह आप ही हैं जिन्होंने हमसे घृणा करने वालों को लज्जित किया है क्योंकि वे पराजित हुए थे। +\q1 +\v 8 हम सदैव हमारे लिए परमेश्वर द्वारा किए गए कार्यों पर गर्व करते हैं, +\q2 और हम सदा उन्हें धन्यवाद देंगे। +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु अब आपने हमें त्याग दिया है और हमें अपमानित किया है; +\q2 जब हमारी सेनाएँ युद्ध करने के लिए बाहर निकलती हैं, तो आप उनके साथ नहीं जाते। +\q1 +\v 10 आपने हमारे शत्रुओं के सामने से हमारे लिए भागने का कारण उत्पन्न कर दिया है, +\q2 इसका परिणाम यह हुआ है कि उन्होंने उन सब वस्तुओं पर अधिकार कर लिया जो हमारी थीं। +\q1 +\v 11 आपने हमें उन भेड़ों के समान होने दिया है जो वध किए जाने के लिए तैयार है; +\q2 आपने हमें अन्य देशों के बीच में बिखरा दिया है। +\q +\s5 +\v 12 ऐसा लगता है कि आपने हमें अर्थात् अपने लोगों को, हमारे शत्रुओं के हाथों बहुत कम मोल में बेच दिया है, +\q2 परन्तु हमें बेचने से आपको कोई लाभ नहीं हुआ! +\q1 +\v 13 जो लोग हमारे आस-पास के राष्ट्रों में रहते हैं वे हमारा उपहास करते हैं; +\q2 वे हमारे ऊपर हँसते हैं और हमें ताना मारते हैं। +\q1 +\v 14 वे हमारे देश के नाम का उपयोग करके चुटकुले बनाते हैं, +\q2 वे सिर हिला कर संकेत देते हैं कि वे हमें तुच्छ मानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 पूरे दिन मैं अपमानित होता हूँ; +\q2 मेरा चेहरा देखने से लोगों को पता होता है कि मैं लज्जित हूँ। +\q +\v 16 मैं सुनता हूँ कि जो मेरा उपहास करते हैं और मुझे गाली देते हैं; +\q2 वे कहते हैं, मैं अपने शत्रुओं के और जो मुझे हानि पहुँचाना चाहते हैं, उनके सामने लज्जित हूँ। +\q1 +\v 17 ये सभी बातें हमारे साथ हुई हैं +\q2 भले ही हम आपको नहीं भूल गए हैं, +\q2 और हम ऐसे नहीं हैं जिन्होंने हमारे पूर्वजों के साथ बाँधी गई वाचा का उल्लंघन किया हो। +\q1 +\s5 +\v 18 हम आपके प्रति विश्वासयोग्यता से नहीं फिरे हैं, +\q2 और जो आप हमसे कराना चाहते हैं, हमने वह करना बन्द नहीं किया है। +\q1 +\v 19 परन्तु ऐसा लगता है कि आपने हमें जंगली पशुओं के बीच असहाय होने दिया है +\q2 और आपने हमें एक गहरी अँधेरी घाटी में छोड़ दिया है। +\q1 +\v 20 यदि हम अपने परमेश्वर की आराधना करना भूल जाते, +\q2 या यदि हम एक विदेशी ईश्वर की उपासना करने के लिए अपने हाथ फैलाते, +\q1 +\v 21 आप निश्चय ही यह जान लेते +\q2 क्योंकि आप यह भी जानते हैं कि हम गुप्त में क्या सोचते हैं। +\q1 +\v 22 परन्तु यह इसलिए है कि हम आपके हैं +\q2 कि हमारे शत्रु निरन्तर हमें मार रहे हैं। +\q1 वे हमारे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि हम केवल भेड़ हैं जिन्हें वे वध करने जा रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 23 इसलिए हे यहोवा, उठें! आप सो क्यों रहे हैं? +\q2 उठें! सदा के लिए हमारा तिरस्कार न करें! +\q +\v 24 आप हमें क्यों नहीं देख रहे हैं? +\q2 आप क्यों भूल रहे हैं कि हम पीड़ित हैं, कि हमारे शत्रु हम पर अत्याचार कर रहे हैं? +\q1 +\s5 +\v 25 हम पूरे भयभीत हैं; +\q2 हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं; हम मरे हुओं के समान हो गए हैं। +\q1 +\v 26 कुछ करें! आएँ और हमारी सहायता करें! +\q2 हमें बचाएँ क्योंकि आप हमसे प्रेम करते हैं जैसी आपने प्रतिज्ञा की है। + +\s5 +\c 45 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक प्रेम गीत, जो “लिली” की राग में गाया जाता है। +\q1 +\p +\v 1 मेरे मन में, मुझे किसी सुन्दर बात से लिखने की प्रेरणा मिली है, +\q2 एक गीत जिसे मैं राजा के लिए गाऊँगा। +\q2 इस गीत के शब्द मेरे द्वारा अर्थात् एक कुशल लेखक द्वारा लिखे जाएँगे। +\q1 +\v 2 हे राजा, आप इस संसार में सबसे अधिक रूपवान व्यक्ति हैं, +\q2 और आप सदा मधुर वचन बोलते हैं! +\q1 इसलिए हम जानते हैं कि परमेश्वर ने सदा आपको आशीषित किया है। +\q1 +\s5 +\v 3 आप जो एक शक्तिशाली योद्धा हो, अपनी तलवार उठा लो! +\q2 आप गौरवशाली और महिमामय हो। +\q +\v 4 एक महान राजा के समान सवारी करो कि +\q2 उस सच की और जो आप बोलते हो +\q2 उन निष्पक्ष निर्णयों की जो आप लेते हो रक्षा करो! +\q1 क्योंकि आप कई युद्धों में लड़ते हो, +\q2 आप उन कर्मों को करना सीखेंगे जिससे आपके शत्रु डरेंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 आपके तीर तेज हैं, +\q2 और वे आपके शत्रुओं के हृदय को छेदते हैं। +\q2 कई जातियों के सैनिक आपके पाँवों में गिर जाएँगे। +\q1 +\v 6 वह राज्य जो परमेश्वर आपको देंगे वह सदा के लिए रहेगा। +\q2 आप लोगों पर न्याय से राज करते हैं। +\q1 +\v 7 आप उचित कर्मों से प्रेम करते हैं, +\q2 और आप बुरे कर्मों से घृणा करते हैं। +\q1 इसलिए परमेश्वर, आपके परमेश्वर, ने आपको राजा बनने के लिए चुना है +\q2 और आपके लिए अन्य किसी भी राजा की तुलना में अधिक आनन्दित होने का कारण उत्पन्न किया है। +\q1 +\s5 +\v 8 विभिन्न मसालों से बना इत्र आपके वस्त्रों पर है। +\q2 संगीतकार तार वाले वाद्य-यन्त्रों को बजा कर +\q2 हाथी दाँत के महलों में आपका मनोरन्जन करते हैं। +\q1 +\v 9 आपकी पत्नियों में अन्य राजाओं की पुत्रियाँ हैं। +\q2 आपके दाहिने हाथ पर आपकी दुल्हन, आपकी रानी, ओपीर से आने वाले सोने के सुन्दर गहने पहने हुए खड़ी हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 अब मैं आपकी दुल्हन को कुछ कहूँगा: +\q1 “ध्यान से मेरी बात सुन! +\q2 उन लोगों को भूल जा जो आपके घर में रहते हैं, +\q2 अपने सम्बन्धियों को भूल जाओ! +\q1 +\v 11 क्योंकि तुम बहुत सुन्दर हो, +\q2 राजा तुम्हारे साथ रहने की इच्छा रखेंगे। +\q2 वह तुम्हारे स्वामी हैं, इसलिए तुम्हें उसकी आज्ञा का पालन करना होगा। +\q1 +\s5 +\v 12 सोर शहर के लोग तुम्हारे लिए भेंट ले कर आएँगे; +\q2 उनके धनवान लोग उन पर कृपा करने के लिए तुम्हें प्रसन्न करने का प्रयास करेंगे। +\q1 +\v 13 हे राजा की दुल्हन, सोने के धागे से बने सुन्दर कपड़े पहन कर, +\q2 महल में प्रवेश करो।” +\q1 +\s5 +\v 14 हे राजा, जबकि वह अनेक रंगों से भरे वस्त्र पहने हुए हैं, +\q2 तब उनकी दासियाँ उसे तुम्हारे पास ले आएँगी। +\q2 उसके पास कई अन्य युवा महिलाएँ होंगी जो उसके साथ होंगी। +\q1 +\v 15 वे बहुत प्रसन्न होंगे +\q2 जब तुम्हारे महल में प्रवेश करने में उनका नेतृत्व किया जाता हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 किसी दिन, तुम्हारे पुत्र और तुम्हारे पोते राजा बन जाएँगे, +\q2 जैसे तुम्हारे पूर्वज थे। +\q1 तुम उन्हें कई जातियों पर शासक बनने योग्य बनाओगे। +\q1 +\v 17 और मैं हर पीढ़ी में लोगों को उन महान कार्यों को स्मरण रखने में समर्थ करूँगा जो तुमने किए हैं, +\q2 और लोग सदा आपकी प्रशंसा करेंगे। + +\s5 +\c 46 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर ही हैं जो हमारी रक्षा करते हैं और हमें दृढ़ करते हैं; +\q2 जब हमें परेशानी होती है तो वह सदा हमारी सहायता करने के लिए तैयार रहते हैं। +\q1 +\v 2 तो, भले ही धरती हिल जाए, +\q2 हम नहीं डरेंगे। +\q1 यहाँ तक कि यदि पर्वत समुद्र के बीच में गिर जाएँ, +\q1 +\v 3 और यदि समुद्र में पानी गरजे और फेन उठाए, +\q2 और यदि पहाड़ियाँ बहुत हिलें, +\q2 हम नहीं डरेंगे! +\q1 +\s5 +\v 4 परमेश्वर से आने वाली आशीषें एक नदी के समान हैं जो उस शहर में हर एक जन को प्रसन्न करती है, जहाँ हम उनकी आराधना करते हैं। +\q2 यह वह शहर है जहाँ परमेश्वर का मन्दिर है, वह परमेश्वर जो किसी भी देवता से महान है। +\q1 +\v 5 परमेश्वर इस शहर में हैं, और यह कभी नष्ट नहीं होगा; +\q2 वह प्रतिदिन सुबह उस शहर के लोगों की सहायता करने के लिए आएँगे। +\q1 +\s5 +\v 6 कभी-कभी कई राष्ट्रों के लोग भयभीत होते हैं; +\q2 साम्राज्यों को उखाड़ फेंक दिया जाता है; +\q1 परमेश्वर बिजली के समान ऊँचे शब्द से गरजते हैं, +\q2 और पृथ्‍वी पिघल जाती हैं। +\q1 +\v 7 परन्तु यहोवा स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान हमारे साथ हैं; +\q2 वह परमेश्वर जिनकी याकूब ने आराधना की, वह हमारे शरणस्थान हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 आओ और उन कार्यों को देखो जो यहोवा करते हैं! +\q आओ और उन वस्तुओं को देखो जो उन्होंने पूरी पृथ्‍वी पर नष्ट की हैं। +\q +\v 9 वह पूरी पृथ्‍वी में युद्ध को रोकते हैं; +\q2 वह धनुष और तीर तोड़ते हैं; +\q2 वह भाले को नष्ट कर देते हैं; +\q2 वह ढाल जला देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 परमेश्वर कहते हैं, “चुप रहो और स्मरण रखो कि मैं परमेश्वर हूँ! +\q2 सब राष्ट्रों के लोग मुझे सम्मान देंगे। +\q2 पृथ्‍वी के सब लोग मुझे सम्मान देंगे।” +\q1 +\v 11 इसलिए कभी न भूलें कि यहोवा स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान हमारे साथ है; +\q2 वह परमेश्वर जिनकी याकूब ने आराधना की, वह हमारे शरणस्थान हैं। + +\s5 +\c 47 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे पृथ्‍वी के लोगों, तालियाँ बजाओ! +\q2 परमेश्वर की स्तुति करने के लिए आनन्द से चिल्लाओ! +\q1 +\v 2 यहोवा, जो किसी भी देवता से बहुत महान हैं, वह अद्भुत हैं; +\q2 वह एक राजा हैं जो पूरी पृथ्‍वी पर शासन करते हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 उन्होंने हमें कनान में रहने वाले लोगों के समूहों की सेनाओं को हराने में समर्थ किया। +\q +\v 4 उन्होंने हमारे लिए यह देश चुना जहाँ हम अब रहते हैं; +\q2 हम इस्राएली लोग, जिनसे वह प्रेम करते हैं, हम गर्व करते है कि हम इस देश के अधिकारी हैं। +\q1 +\v 5 परमेश्वर अपने मन्दिर में चले गए हैं। +\q2 जब वह जाते हैं, तब लोग आनन्द से जयजयकार करते और तुरही बजाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 हमारे परमेश्वर की स्तुति करने के लिए गाने गाओ। +\q2 उनकी स्तुति करने के लिए गाओ। +\q2 परमेश्वर हमारे राजा, के लिए गाओ। +\q1 +\v 7 परमेश्वर वह हैं जो संसार पर शासन करते हैं; +\q2 उनके लिए एक भजन गाओ। +\q1 +\s5 +\v 8 परमेश्वर अपने पवित्र सिंहासन पर बैठते हैं +\q2 वह सब जातियों के लोगों पर शासन करते हैं। +\q1 +\v 9 उन लोगों के शासक परमेश्वर के लोगों के सामने एकत्र हुए, लोग जो अब्राहम के वंशज हैं। +\q1 परमेश्वर के पास पृथ्‍वी पर सब राजाओं के हथियारों की तुलना में अधिक शक्ति है; +\q2 वह महान हैं, और हर स्थान में सब लोग उनका सम्मान करेंगे। + +\s5 +\c 48 +\d कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 यहोवा महान हैं, और वह अपने निवास के शहर में बहुत स्तुति के योग्य हैं, +\q2 जो उनकी पवित्र पहाड़ी सिय्योन पर बनाया गया है। +\q1 +\v 2 ऊँची पहाड़ी पर बना वह शहर सुन्दर है; +\q2 यह वह शहर है जहाँ सच्चे परमेश्वर, महान राजा, रहते हैं, +\q2 और जब लोग इसे देखते हैं तो यह पूरी पृथ्‍वी पर लोगों के लिए आनन्द का कारण हो जाता है। +\q1 +\v 3 परमेश्वर वहाँ उसके दृढ़ मीनारों में हैं, +\q2 और वह दिखाते हैं कि वह उस शहर के लोगों की रक्षा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 कई राजा अपनी सेनाओं के साथ एकत्र हुए कि वे हमारे शहर पर आक्रमण करें, +\q1 +\v 5 परन्तु जब उन्होंने इसे देखा, तो वे चकित हुए; +\q2 वे डर गए, और भाग गए। +\q1 +\v 6 क्योंकि वे बहुत डरते थे, वे थरथराते थे +\q2 एक ऐसी स्त्री के समान जो बच्चे को जन्म देने जा रही है। +\q1 +\s5 +\v 7 जैसे एक तेज हवा के कारण तर्शीश के जहाज हिलते हैं, वैसे वे भी काँपते हैं। +\q1 +\v 8 हमने सुना था कि यह शहर गौरवशाली है, +\q1 और अब हमने देखा है कि यह ऐसा ही है। +\q2 यह वही शहर है जिसमें स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान परमेश्वर यहोवा रहते हैं। +\q2 यह वही शहर है जिसे परमेश्वर सदा के लिए संरक्षित रखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 9 हे परमेश्वर, यहाँ आपके मन्दिर में, हम सोचते हैं कि आप हमसे कैसा प्रेम करते हैं, जैसी आपने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 10 सारी पृथ्‍वी पर लोग आपकी स्तुति करेंगे +\q2 क्योंकि आपका शासन शक्तिशाली है और न्याय का है। +\q1 +\s5 +\v 11 जो लोग सिय्योन पर्वत पर रहते हैं, उन्हें आनन्दित होना चाहिए! +\q1 यहूदा के सब नगरों के लोगों को आनन्दित होना चाहिए +\q2 क्योंकि आप लोगों का उचित न्याय करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 हे इस्राएलियों तुम्हें सिय्योन पर्वत के चारों ओर घूमना चाहिए +\q2 और उसके मीनारों की गिनती करनी चाहिए; +\q1 +\v 13 वहाँ उसकी दीवारों को देखो और उसके सबसे दृढ़ भागों की जाँच करो +\q2 कि तुम अपनी सन्तान को उनके विषय में बता सको। +\q1 +\s5 +\v 14 अपनी सन्तानों से कहो, “यह हमारे परमेश्वर का शहर है, हमारे परमेश्वर जो सदा के हैं; +\q2 वह हमारे पूरे जीवन हमारा मार्गदर्शन करेंगे।” + +\s5 +\c 49 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे सब जातियों के लोगों, सुनो! +\q1 हे पृथ्‍वी के सब लोगों, सुनो +\q2 +\v 2 महत्वपूर्ण लोगों और महत्वहीन लोगों, +\q2 धनवानों और गरीब लोगों, +\q1 सब लोगों, मैं जो कह रहा हूँ उसे सुनो। +\q1 +\s5 +\v 3 जो मैं सोच रहा हूँ वह समझ की बात है, +\q2 और जो मैं कहता हूँ वह तुमको बुद्धिमान बनने में समर्थ बनाता है। +\q1 +\v 4 मैं तुमको सुनाने के लिए बुद्धिमानी के वचनों के विषय में सोचता हूँ, +\q2 और जब मैं अपनी वीणा बजाता हूँ, तब मैं तुम्हें उन वचनों का अर्थ समझाता हूँ। +\q1 +\v 5 जब मैं परेशानी में होता हूँ तो मैं चिन्ता नहीं करता हूँ, +\q2 अर्थात् जब मैं अपने शत्रुओं से घिरा होता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 6 बुरे लोग सोचते हैं कि वे धनवान हैं इसलिए वे अपनी धन सम्पदा पर भरोसा रखते हैं कि उनके लिए सदैव भला होता रहेगा +\q2 और वे बहुत धनवान होने पर घमण्ड करते हैं। +\q1 +\v 7 वे धनवान हो सकते हैं, परन्तु कोई भी परमेश्वर को पैसे नहीं दे सकता है +\q2 कि वह सदा के लिए जीवित रह सके! +\q1 कोई भी परमेश्वर को पर्याप्त भुगतान नहीं कर सकता कि परमेश्वर उसे सदा जीने दें +\q1 +\v 8 क्योंकि उसका मूल्य बहुत अधिक है, +\q2 और वह पैसा दे तो वह कभी भी पूरा नहीं पड़ेगा। +\q1 +\s5 +\v 9 कोई भी परमेश्वर को सदा के जीवन के लिए पैसा नहीं दे सकता है +\q2 कि कभी न मरे और दफन किए जाए! +\q1 +\v 10 हम देखते हैं कि मूर्ख और बुद्धिहीन लोग मर जाते हैं, +\q1 परन्तु हम यह भी देखते हैं कि बुद्धिमान लोग भी मर जाते हैं; +\q2 वे सब अपनी सम्पत्ति छोड़ जाते हैं, और दूसरे लोग उसे प्राप्त करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 एक समय उनकी अपनी भूमि पर घर थे, +\q1 परन्तु अब उनकी कब्र सदा के लिए उनके घर हैं, +\q2 जहाँ वे सदा के लिए रहेंगे! +\q1 +\s5 +\v 12 भले ही लोग महान हों, परन्तु मरने से वह भी उन्हें बचा नहीं सकता है; +\q2 सब लोग जानवरों के समान ही मर जाते हैं। +\q1 +\v 13 यही उन लोगों के साथ होता है जो मूर्खता से अपने कार्यों पर भरोसा रखते हैं, +\q2 वे लोग जो अपनी सम्पत्ति पर आनन्दित होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 वे उन भेड़ों के समान मरने के लिए निश्चित किए गए हैं +\q2 जिन्हें चरवाहा वध करने के लिए ले जाता है। +\q1 सुबह धर्मी लोग उन पर शासन करेंगे, +\q1 और फिर वो धनवान लोग मर जाएँगे और उनके शरीर शीघ्र ही कब्रों में सड़ जाएँगे; +\q2 वे अपने घरों से बहुत दूर, वहाँ होंगे जहाँ मरे हुए लोग हैं। +\q1 +\v 15 परन्तु यह निश्चित है कि परमेश्वर मुझे बचाएँगे कि मैं मरे हुओं के स्थान पर पड़ा न रहूँ; +\q2 वह मुझे अपने पास ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 16 इसलिए जब कोई धनवान हो तो निराश न हों +\q2 और जब उनके घर, जहाँ वे रहते हैं, अधिक से अधिक सुख-विलास के हो जाते हैं; +\q1 +\v 17 क्योंकि जब वह मर जाएगा, तो वह अपने साथ कुछ नहीं ले जाएगा; +\q2 उसकी सम्पत्ति उसके साथ नहीं जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 18 एक धनवान व्यक्ति जब जीवित रहता है, तब वह स्वयं को धन्य कहता है, +\q2 और लोग उसकी सफलता के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं, +\q1 +\v 19 परन्तु वह मर जाएगा और अपने पूर्वजों से जुड़ जाएगा, +\q2 और दिन के उजियाले को कभी नहीं देख पाएगा। +\q1 +\v 20 कोई महान हो, तो भी वह उसे मरने से नहीं रोक सकता है; +\q2 वह जानवरों के समान ही मर जाएगा। + +\s5 +\c 50 +\d आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं; +\q1 पूर्व से पश्चिम तक, +\q2 वह सब लोगों को बुलाते हैं। +\q1 +\v 2 उनकी महिमा यरूशलेम में सिय्योन पर्वत से चमकती है, +\q2 यरूशलेम से जो एक सर्व सुन्दर शहर है। +\q +\s5 +\v 3 हमारे परमेश्वर हमारे पास आते हैं, +\q2 और वह चुप नहीं है। +\q1 उनके सामने एक बड़ी आग है, +\q2 और एक तूफान उनके चारों ओर है। +\q1 +\v 4 वह अपने लोगों का न्याय करने के लिए आते हैं। +\q1 वह स्वर्ग के स्वर्गदूतों को +\q2 और पृथ्‍वी पर लोगों को पुकारते हैं। +\q1 +\v 5 वह कहते हैं, “उन लोगों को बुलाओ जो निष्ठापूर्वक मेरी आराधना करते हैं, +\q2 जिन्होंने बलिदान चढ़ाने के द्वारा मेरे साथ एक वाचा बाँधी है।” +\q +\s5 +\v 6 स्वर्ग में स्वर्गदूत घोषणा करते हैं, +\q2 “परमेश्वर धर्मी हैं, +\q2 और वह सर्वोच्च न्यायी हैं।” +\q1 +\s5 +\v 7 परमेश्वर कहते हैं, “मेरे लोगों, सुनो! +\q2 हे इस्राएली लोगों, सुनो, +\q1 जब मैं, तुम्हारा परमेश्वर, कहता हूँ कि तुमने जो किया है वह गलत है। +\q1 +\v 8 मैं तुम्हें मेरे लिए बलिदान चढ़ाने के लिए डाँट नहीं रहा हूँ, +\q2 उन भेंटों के लिए जिन्हें तुम सदा मेरे लिए वेदी पर जलाते हो। +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु मुझे वास्तव में तुम्हारे पशुशालाओं से बैलों की आवश्यकता नहीं है +\q2 और तुम्हारे भेड़शालाओं से बकरे नहीं चाहिए जिन्हें तुम बलिदान करते हो, +\q1 +\v 10 क्योंकि जंगल के सब जानवर मेरे हैं, +\q2 और हजारों पहाड़ियों के सब पशु भी मेरे हैं। +\q1 +\v 11 मैं पर्वतों के सब पक्षियों को जानता हूँ और उनका स्वामी हूँ, +\q2 और सब जीव जो खेतों में घूमते हैं, वे मेरे हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 इसलिए यदि मैं भूखा होता, तो मैं तुम्हें मेरे लिए भोजन लाने के लिए नहीं कहता +\q2 क्योंकि संसार का सब कुछ मेरा है! +\q1 +\v 13 मैं तुम्हारे चढ़ाए जाने वाली बलि के बैलों का माँस नहीं खाता, +\q2 और मैं उन बकरियों का खून नहीं पीता जो तुम मुझे देते हो। +\q1 +\s5 +\v 14 जिस बलिदान को मैं वास्तव में चाहता हूँ वह यह है कि तुम मुझे धन्यवाद दो +\q2 और वह सब करो जो तुमने करने की प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 15 जब तुमको परेशानी होती है तो मुझसे प्रार्थना करो। +\q2 यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुमको बचाऊँगा, और फिर तुम मेरी स्तुति करोगे। +\q1 +\s5 +\v 16 परन्तु मैं दुष्ट लोगों से यह कहता हूँ: +\q1 तुम मेरे आदेशों को क्यों पढ़ते हो +\q2 या मेरे साथ बाँधी गई वाचा के विषय में क्यों बात करते हो? +\q1 +\v 17 क्योंकि तुमने मेरे अनुशासन को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है, +\q2 और मैंने तुम्हें करने के लिए जो कहा उसे अस्वीकार कर दिया है। +\q1 +\s5 +\v 18 हर बार जब तुम एक चोर को देखते हो, तो तुम उसके मित्र बन जाते हो, +\q2 और तुम व्यभिचार करने वालों के साथ बहुत समय बिताते हो। +\q1 +\v 19 तुम सदा दुष्ट कार्य करने के विषय में बातें करते हो, +\q2 और तुम सदा लोगों को धोखा देने का प्रयास करते हो। +\q1 +\v 20 तुम सदा अपने परिवार के सदस्यों पर दोष लगाते हो +\q2 और उनकी निन्दा करते हो। +\q1 +\s5 +\v 21 तुमने उन सब कार्यों को किया, और मैंने तुम्हें कुछ नहीं कहा, +\q2 तो तुमने सोचा कि मैं तुम्हारे जैसा पापी हूँ। +\q1 परन्तु अब मैं तुमको डाँटता हूँ और तुम्हारे सामने तुम पर दोष लगाता हूँ। +\q1 +\v 22 इसलिए, तुम सब जिन्होंने मुझे अनदेखा किया है, इस बात पर ध्यान दो, +\q1 क्योंकि यदि तुम ध्यान न दो, तो मैं तुम्हें फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा, +\q2 और तुमको बचाने के लिए कोई भी नहीं होगा। +\q +\s5 +\v 23 जो बलिदान सचमुच मुझे सम्मानित करते हैं, वह यह हैं कि तुम मेरे कार्यों के लिए मुझे धन्यवाद दो; +\q2 और मैं उन लोगों को बचाऊँगा जो सदा उन कार्यों को करते हैं जिन्हें मैं चाहता हूँ।” + +\s5 +\c 51 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन, जब भविष्यद्वक्ता नातान ने बतशेबा के साथ व्यभिचार करने के बाद दाऊद को डाँटा था। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मुझ पर दया करें +\q2 क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं; +\q2 क्योंकि आप बहुत दयालु हैं, +\q2 इसलिए मेरी अवज्ञा को भूल जाएँ! +\q1 +\v 2 यद्दपि मैंने अनुचित कार्य किया है, मुझे फिर से अपने लिए ग्रहणयोग्य बनाएँ; +\q2 मेरे पाप के दोष को क्षमा करें और मुझे स्वीकार करें। +\q1 +\s5 +\v 3 मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ कि मैं अवज्ञा के अपने कार्य को जानता हूँ; +\q2 मैं उन्हें नहीं भूल सकता हूँ। +\q1 +\v 4 आप, केवल आप ही हैं, जिनके विरुद्ध वास्तव में मैंने पाप किया है, +\q2 और आपने उस बुरे कार्य को देखा है, जो मैंने किया है। +\q1 जब आप कहते हैं कि मैं दोषी हूँ, तो आप सही कहते हैं, +\q2 और जब आप मेरा न्याय करते हैं, तो आप न्यायपूर्वक कहते हैं कि मैं दण्ड के योग्य हूँ। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं उस दिन से एक पापी रहा हूँ जब से मेरा जन्म हुआ था; +\q2 वास्तव में, मैं अपनी माता के गर्भ से ऐसा पापी हूँ। +\q1 +\v 6 आप जो चाहते हैं वह यह है कि मैं अपने मन से सच को चाहूँ +\q2 कि आप मुझे मेरे मन में बुद्धिमानी से कार्य करने के रीति के विषय में सिखा सकें। +\q1 +\s5 +\v 7 मेरे पापों के दोष को क्षमा करें, और उसके बाद, मैं आपके लिए पूरी तरह स्वीकार्य हो जाऊँगा; +\q2 यदि आप मुझे क्षमा कर देते हैं, तो मैं आपके साथ बिलकुल सही हो जाऊँगा। +\q1 +\v 8 मुझे दोबारा आनन्दित होने दें; +\q2 आपने मुझे बहुत अधिक उदास कर दिया है, +\q1 परन्तु अब मुझे फिर से आनन्दित होने दें। +\q1 +\v 9 मैंने जो पाप किए हैं, उन्हें सदा स्मरण न रखें; +\q2 मैंने जो बुरा कार्य किया है उसे भूल जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 10 हे परमेश्वर, मुझे उन कार्यों को करने में सहायता करें जिन्हें आप स्वीकार करते हैं। +\q2 मुझे केवल वही करने की इच्छा दें जो उचित है। +\q1 +\v 11 मुझे अपने लोगों में से एक के समान अस्वीकार न करें, +\q2 और अपने पवित्र-आत्मा को मुझसे अलग न कर। +\q1 +\s5 +\v 12 मुझे मेरे पाप के दोष से बचा कर मुझे फिर से आनन्द प्रदान करें, +\q2 और सच्चे मन से आपकी आज्ञा का पालन करने की इच्छा दे कर सदा मेरी सहायता करें। +\q1 +\v 13 यदि आप ऐसा करते हैं, तो मैं अन्य पापियों को सिखाऊँगा कि आप उनसे क्या कराना चाहते हैं; +\q2 वे पश्चाताप करेंगे और आपकी आज्ञा का पालन करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 हे परमेश्वर, आप ही मुझे बचाते हैं; +\q2 मुझे किसी ऐसे व्यक्ति को मारने के दोषी होने के लिए क्षमा करें, जो मेरा शत्रु नहीं था। +\q2 जब आप ऐसा करते हैं, तो मैं आपके अच्छे और धर्मी होने के विषय में आनन्द से गाऊँगा। +\q1 +\v 15 हे यहोवा, बोलने में मेरी सहायता करें +\q2 कि मैं आपकी स्तुति कर सकूँ। +\q1 +\v 16 लोगों द्वारा चढ़ाई गई बलियाँ ही आपको प्रसन्न नहीं करती हैं। +\q2 यदि वह आपको प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त होती, तो मैं वही करता। +\q1 परन्तु आप होम-बलि से प्रसन्न नहीं होते। +\q1 +\s5 +\v 17 जो बलिदान आप वास्तव में चाहते हैं वह है कि लोग पाप करने के लिए खेद प्रकट करें और दीन बनें। +\q2 हे परमेश्वर, आप ऐसे बलिदान का इन्कार नहीं करेंगे। +\q1 +\v 18 हे परमेश्वर, उन लोगों के प्रति भले हों जो यरूशलेम में रहते हैं; +\q2 उन्हें शहर की दीवारों का पुनर्निर्माण करने में समर्थ करें। +\q1 +\v 19 ऐसा होने पर वे आपके लिए उचित बलिदान लाएँगे: +\q2 पशुओं की बलि और जलाई जाने वाली बलि। +\q2 वे युवा बैल को आपकी वेदी पर जला देंगे, +\q2 और आप प्रसन्न होंगे। + +\s5 +\c 52 +\d एक भजन जो दाऊद ने गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा था, जब दोएग शाऊल के पास गया और कहा, “दाऊद महायाजक अहीमेलेक से बात करने गया है।” +\q1 +\p +\v 1 हे घमण्डी पुरुष, तू क्या सोचता है कि तू बलवन्त है; +\q2 तू मनुष्यों के लिए परेशानी उत्पन्न करके घमण्ड करता है, +\q1 परन्तु परमेश्वर अपनी विश्वासयोग्यता में उनकी रक्षा करते हैं। +\q1 +\v 2 तू पूरे दिन दूसरों को नाश करने की योजना बनाता है; +\q1 जो तू कहता है वह धार लगाई हुई तलवार के समान है, +\q2 और तू सदा दूसरों को धोखा देता है। +\q1 +\s5 +\v 3 तुझे भलाई से अधिक बुराई करना भाता है, +\q2 और तू सच से अधिक झूठ बोलना अच्छा समझता है। +\q1 +\s5 +\v 4 हे मनुष्य, तू लोगों को धोखा देने की बातें करता है, +\q2 तुझे ऐसी बातें करना अच्छा लगता है जो लोगों को चोट पहुँचाती हैं! +\q1 +\v 5 परन्तु परमेश्वर सदा के लिए तुझे नष्ट कर देंगे; +\q2 वह तुझे पकड़ कर तेरे घर से घसीट कर +\q2 तुझे जीवित लोगों के इस संसार से दूर ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 6 जब धर्मी लोग इसे देखेंगे, तो वे अचम्भित होंगे, +\q2 और वे तेरे साथ होने वाली इस घटना पर हँसेंगे, और कहेंगे, +\q1 +\v 7 “देखो उस मनुष्य के साथ क्या हुआ है, वह परमेश्वर से उसकी रक्षा करने के लिए नहीं कहता था; +\q2 उसने भरोसा किया कि उसकी महान सम्पत्ति उसे बचाएगी; +\q2 वह दुष्टता से अन्य लोगों को चोट पहुँचा कर अधिक शक्तिशाली बन गया था।” +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु मैं सुरक्षित हूँ क्योंकि मैं परमेश्वर के मन्दिर में आराधना करता हूँ; +\q2 मैं एक दृढ़ हरे जैतून के पेड़ के समान हूँ। +\q1 मैं परमेश्वर पर भरोसा करता हूँ, जो सच्चे मन से हमसे सदा का प्रेम करते हैं। +\q +\v 9 हे परमेश्वर, आपने जो कुछ भी किया है, उसके लिए मैं सदा आपको धन्यवाद दूँगा। +\q2 विशेष करके जब मैं आपके विश्वासयोग्य लोगों के सामने खड़ा होता हूँ, +\q2 तब मैं धीरज धर कर प्रतीक्षा करूँगा क्योंकि आप बहुत भले हैं। + +\s5 +\c 53 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन, जिसे “महलत” नामक धुन का उपयोग करके गाया जाता है। +\q1 +\p +\v 1 केवल मूर्ख लोग ही कहते हैं, “कोई परमेश्वर नहीं है!” +\q1 जो लोग ऐसा कहते हैं वे भ्रष्ट हैं; वे भयानक पाप करते हैं; +\q2 उनमें से कोई भी नहीं है जो अच्छा करता है। +\q1 +\v 2 परमेश्वर स्वर्ग से नीचे देखते हैं और मनुष्यों को देखते हैं; +\q1 वह देखते हैं कि कोई बहुत बुद्धिमान मनुष्य है या नहीं +\q2 जो परमेश्वर को जानना चाहता है। +\q1 +\v 3 परन्तु हर एक जन परमेश्वर से दूर हो गया है। वे भ्रष्ट हैं और घृणित और गन्दे कार्य करते हैं। +\q2 कोई भी भलाई नहीं करता है। +\q1 +\s5 +\v 4 क्या ये दुष्ट लोग कभी नहीं सीखेंगे कि परमेश्वर उनके साथ क्या करेंगे? +\q1 उन्होंने यहोवा के लोगों को भयानक हिंसा से चोट पहुँचाई। उनमें अपने कार्यों का अपराध-बोध नहीं है। उनके चेहरों से ऐसा प्रकट होता है कि उन्होंने रात को भोजन किया है। +\q2 और इससे भी अधिक बुरा यह है कि उन्होंने यहोवा से कभी प्रार्थना नहीं की। +\q1 +\v 5 परन्तु एक दिन वे लोग बहुत डर जाएँगे, +\q2 जबकि उनके पास डरने का कोई कारण नहीं है। +\q1 क्योंकि परमेश्वर उन लोगों को नष्ट करेंगे जो तुम पर आक्रमण करते हैं, +\q2 और वह उनकी हड्डियों को तितर-बितर करेंगे। +\q1 उन्होंने परमेश्वर का तिरस्कार कर दिया है, +\q2 इसलिए वह उन्हें पराजित करेंगे और पूरी तरह से अपमानित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 मेरी इच्छा है कि परमेश्वर आएँ और इस्राएली लोगों को बचाएँ! +\q2 हे परमेश्वर, जब आप अपने लोगों को दोबारा आशीष देंगे, +\q1 तब सब इस्राएली लोग, याकूब के सब वंशज, आनन्दित होंगे। + +\s5 +\c 54 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन, जो तार वाले बाजों के साथ गाया जाए; यह तब लिखा गया जब जीप के लोग शाऊल के पास गए और उसे बताया कि दाऊद उनके क्षेत्र में छिपा हुआ है। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, अपनी शक्ति से मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ, +\q2 और लोगों को दिखाएँ कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है! +\q1 +\v 2 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुनें; +\q2 जो मैं आप से कहता हूँ उसे सुनें +\q1 +\v 3 क्योंकि अपरिचित लोग मुझ पर आक्रमण करने का प्रयास कर रहे हैं; +\q2 घमण्डी लोग मुझे मारना चाहते हैं, +\q2 ऐसे लोग जो आपका कोई सम्मान नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु परमेश्वर ही हैं जो मेरी सहायता करते हैं’; +\q2 यहोवा ने मेरे शत्रुओं से मुझे बचाया। +\q1 +\v 5 परमेश्वर उन बुरे कार्यों को, जो वे लोग मेरे साथ करना चाहते हैं, उनके साथ करेंगे; +\q2 क्योंकि आप वही करते हैं जो आपने मुझसे करने की प्रतिज्ञा की है, उन्हें नष्ट कर दें। +\q1 +\s5 +\v 6 हे यहोवा, मैं आनन्द से आपको एक भेंट चढ़ाऊँगा क्योंकि मैं चाहता हूँ, +\q2 और मैं आपको धन्यवाद दूँगा, क्योंकि आप मेरे साथ भले हैं; +\q1 +\v 7 आपने मुझे मेरी सारी परेशानियों से बचा लिया है, +\q2 और मैंने देखा है कि आपने मेरे शत्रुओं को पराजित किया है। + +\s5 +\c 55 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया दाऊद का एक भजन, जो तार वाले बाजों के साथ गाना चाहिए +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुनें, +\q2 और जब मैं आप से विनती करता हूँ तो मुझसे दूर न हो। +\q1 +\v 2 मेरी बात सुनें और मुझे उत्तर दें +\q2 क्योंकि मैं अपनी सब परेशानियों से घिरा हुआ हूँ। +\q1 +\v 3 मेरे शत्रु मुझे डराते हैं; +\q2 दुष्ट लोग मुझे पीड़ित करते हैं। +\q2 वे मुझे बड़ी परेशानी देते हैं; +\q2 वे मुझसे क्रोधित हैं, और वे मुझसे घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं डर गया हूँ, +\q2 और मुझे बहुत डर है कि मैं मर जाऊँगा। +\q1 +\v 5 मैं बहुत भयभीत हूँ और मैं काँपता हूँ; +\q2 मैं पूरी तरह से डरा हुआ हूँ। +\q1 +\s5 +\v 6 मैंने कहा, “मेरी इच्छा है कि मेरे पास कबूतर के समान पंख होते! +\q1 यदि मेरे पंख होते, तो मैं उड़ जाता और विश्राम करने के लिए एक स्थान खोजता। +\q1 +\v 7 मैं बहुत दूर उड़ जाता +\q2 और जंगल में रहता। +\q +\s5 +\v 8 मैं शीघ्र ही एक सुरक्षित स्थान ढूँढ़ लेता +\q2 जहाँ मेरे शत्रु मुझ पर तेज हवा और वर्षा के समान आक्रमण नहीं करते।” +\q1 +\v 9 हे प्रभु, मेरे शत्रुओं में उलझन डाल दें और उनकी योजनाओं को असफल करें। +\q2 मैंने उन्हें दूसरों को उनकी हिंसा से चोट पहुँचाते हुए और पूरे शहर में उपद्रव करते हुए देखा है। +\q1 +\s5 +\v 10 प्रतिदिन और रात में वे उसकी दीवारों के ऊपर, +\q2 अपराध करते और परेशानी उत्पन्न करते हुए चारों ओर घूमते हैं। +\q +\v 11 सब स्थानों में विनाश करते हैं। +\q2 वे लोगों पर अत्याचार करते हैं और बाजारों में लोगों को धोखा देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 यदि कोई शत्रु मेरी निन्दा करता, +\q2 तो मैं उसे सहन कर सकता था। +\q1 यदि कोई मुझसे घृणा करता और मुझे तुच्छ समझता, +\q2 तो मैं उससे छिप सकता था। +\q1 +\v 13 परन्तु यह तो मेरे जैसा है, मेरा साथी है, +\q2 परन्तु यह तो मेरा मित्र था, जो मेरे साथ ऐसा कर रहा है। +\q1 +\v 14 हम पहले कई अच्छी-अच्छी बातें करते थे; +\q2 हम परमेश्वर के मन्दिर में एक साथ घूमते थे। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं चाहता हूँ कि मेरे शत्रु जीवित ही पृथ्‍वी के नीचे चले जाएँ +\q2 उस स्थान पर जहाँ मरे हुए लोग हैं। +\q2 मैं ऐसा इसलिए चाहता हूँ कि वे अपने घरों में दुष्टता के कार्य करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 परन्तु मैं यहोवा को, मेरे परमेश्वर को मेरी सहायता करने के लिए कहूँगा, +\q2 और वह मुझे बचाएँगे। +\q1 +\v 17 हर सुबह, दोपहर, और शाम मैं उनसे कहता हूँ कि मैं किस विषय में चिन्तित हूँ, और मैं कराहता हूँ, +\q2 और वह मेरी आवाज सुनते हैं। +\q1 +\v 18 जब मैं अपने शत्रुओं के साथ भयानक युद्ध कर रहा हूँ +\q1 तब वह मेरी जान बचाते हैं और मुझे सुरक्षित करते हैं। +\q2 मेरे विरुद्ध लड़ने के लिए कई शत्रु आ रहे हैं! +\q1 +\s5 +\v 19 परमेश्वर वह है जिन्होंने सदा के लिए सब पर शासन किया है, +\q2 और वह उन लोगों को उनका स्थान दिखाएँगे जिन्होंने मेरे विरुद्ध लड़ाई की थी। +\q1 वह मेरे शत्रुओं को पराजित और अपमानित करेंगे +\q2 क्योंकि वे अपने बुरे व्यवहार को नहीं बदलते हैं +\q2 और क्योंकि वह परमेश्वर का कोई सम्मान नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 मेरा साथी, जिसका मैंने पहले उल्लेख किया था, उसने अपने मित्रों को धोखा दिया +\q2 और उसने उनके साथ किए गए समझौते को तोड़ दिया। +\q1 +\v 21 उसने जो कहा वह सुनने के लिए सरल था जैसे मक्खन निगलने के लिए सरल होता है, +\q2 परन्तु वह अपने मन में लोगों से घृणा करता था; +\q1 उसके शब्द जैतून के तेल के समान सुखदायक थे, +\q2 परन्तु उनसे लोगों को तेज तलवार के समान चोट पहुँची। +\q1 +\s5 +\v 22 अपनी परेशानियों को यहोवा के हाथों में रखो, +\q2 और वह तुम्हारा ध्यान रखेंगे; +\q1 वे धर्मी लोगों को विपत्ति में नष्ट होने नहीं देंगे। +\q1 +\v 23 हे परमेश्वर, आप हत्यारों और झूठे लोगों को उनके जीवन के आधे समय से पहले मार डालेंगे; +\q2 परन्तु मैं आप पर भरोसा रखूँगा। + +\s5 +\c 56 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया दाऊद का एक भजन; जिसमें उस समय का वर्णन किया गया है, जब पलिश्तियों ने उसको गत नगर में पकड़ा था, जिसे “दूर बांज पेड़ पर बैठे पिण्डुकी” के राग का उपयोग करके गाया जाना चाहिए।” +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मेरे प्रति दया के कार्य करें क्योंकि लोग मुझ पर आक्रमण कर रहे हैं! +\q2 पूरे दिन शत्रु मेरे निकट और निकट आते जाते हैं क्योंकि वे मेरा जीवन लेना चाहते हैं। +\q1 +\v 2 पूरे दिन मेरे शत्रु मेरे जीवन को कुचलने का प्रयास करते हैं, +\q2 कई शत्रु हैं जो मुझ पर आक्रमण कर रहे हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 परन्तु जब भी मैं डरता हूँ, +\q2 मैं आप पर भरोसा रखता हूँ। +\q1 +\v 4 हे परमेश्वर, मैं आपकी स्तुति करता हूँ क्योंकि आप जो प्रतिज्ञा करते हैं उसे पूरी करते हैं; +\q2 मैं आप पर भरोसा रखता हूँ, और फिर मुझे डर नहीं लगता है। +\q2 साधारण मनुष्य निश्चित रूप से मुझे हानि नहीं पहुँचा सकते हैं! +\q1 +\s5 +\v 5 पूरे दिन मेरे शत्रु दावा करते हैं कि मैंने उन बातों को कहा जो मैंने नहीं कही; +\q2 वे सदा मुझे हानि पहुँचाने के उपाय सोचते रहते हैं। +\q1 +\v 6 मेरे लिए परेशानी पैदा करने के लिए, वे छिपते हैं +\q2 और जो कुछ मैं करता हूँ उसे देखते हैं, +\q2 मुझे मारने के अवसर की प्रतीक्षा करते रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 इसलिए, हे परमेश्वर, उन्हें उनके दुष्टता के कार्यों के लिए दण्ड दें जो वे कर रहे हैं; +\q2 उन लोगों को पराजित करके उन्हें दिखाएँ कि आप क्रोधित हैं! +\q1 +\v 8 आप मेरे अकेले इधर-उधर फिरने की गिनती करते हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि आपने मेरे सभी आँसू एक पात्र में डाल दिए हैं +\q2 कि आप देख सकें कि मैं कितना रोया हूँ। +\q2 आपने मेरे आँसू गिने हैं और अपनी पुस्तक में उसकी संख्या लिखी हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 हे मेरे परमेश्वर, जब मैं आपको पुकारता हूँ, तब मेरे शत्रु पराजित किए जाएँगे; +\q2 मुझे पता है कि ऐसा होगा क्योंकि आप मेरे लिए युद्ध कर रहे हैं। +\q1 +\v 10 मैं आपकी स्तुति करता हूँ क्योंकि आपने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है; +\q2 हे यहोवा, मैं सदा इसके लिए आपकी स्तुति करूँगा। +\q2 +\v 11 मैं आप पर भरोसा करता हूँ, और मैं नहीं डरूँगा। +\q2 मुझे पता है कि मनुष्य वास्तव में मुझे हानि नहीं पहुँचा सकते हैं! +\q1 +\s5 +\v 12 मैं आपके लिए उस भेंट को लाऊँगा जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की है; +\q1 मैं आपको धन्यवाद देने के लिए एक भेंट लाऊँगा +\q1 +\v 13 क्योंकि आपने मुझे मरने से बचा लिया है; +\q2 आपने मुझे ठोकर खाने से बचाया है। +\q2 और इसलिए मैं हर दिन परमेश्वर के साथ रहूँगा +\q उनके प्रकाश में जो मुझे जीवन देता हैं। + +\s5 +\c 57 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया दाऊद का एक भजन, जब दाऊद शाऊल से बचने के लिए एक गुफा में गया; “नष्ट मत करो” धुन का उपयोग करके गाया जाना चाहिए। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मेरे प्रति दया के कार्य करे! +\q1 मेरे प्रति दया के कार्य करें क्योंकि मैं अपनी रक्षा के लिए आपके पास आ रहा हूँ। +\q2 मुझे बचाने के लिए मैं आप से अनुरोध करता हूँ जैसे छोटे पक्षियों को उनकी माँ के पंखों के नीचे संरक्षित किया जाता है +\q2 जब तक तूफान समाप्त न हो। +\q1 +\s5 +\v 2 परमेश्वर, आप सभी अन्य देवताओं से अधिक महान हैं, +\q2 मैं आपको पुकारता हूँ, आप जो मुझे आपकी इच्छा के अनुसार बनने में समर्थ करता है। +\q1 +\v 3 आप मुझे स्वर्ग से उत्तर देंगे और मुझे बचाएँगे, +\q2 परन्तु आप उन लोगों को पराजित और अपमानित करेंगे जो मेरा दमन करते हैं! +\q2 परमेश्वर सदैव मुझसे प्रेम करते हैं क्योंकि उन्होंने मुझसे प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 4 कभी-कभी मैं अपने शत्रुओं से घिरा होता हूँ, जो मुझे मारने के लिए तैयार हैं जैसे शेर लोगों को मारने के लिए तैयार होते हैं; +\q2 वे शेरों के समान हैं जो उन पशुओं को चबाते हैं, जिनका उन्होंने शिकार किया है। +\q1 परन्तु मेरे शत्रु मनुष्य हैं, और उनके पास भाले और तीर हैं, दाँत नहीं; +\q2 वे मेरे विषय में झूठी बातें कहते हैं। +\q1 +\v 5 हे परमेश्वर, स्वर्ग में दिखाएँ कि आप बहुत महान हैं! +\q2 अपनी महिमा पृथ्‍वी के लोगों को दिखाएँ! +\q1 +\s5 +\v 6 ऐसा लगता है मेरे शत्रुओं ने मुझे पकड़ने के लिए एक जाल फैलाया है, +\q2 और मैं बहुत परेशान हो गया। +\q1 ऐसा लगता है जैसे उन्होंने रास्ते पर जहाँ मैं चलता हूँ, एक गहरा गड्ढ़ा खोदा है, +\q2 परन्तु वे स्वयं उसमें गिर गए! +\q1 +\s5 +\v 7 हे परमेश्वर, मैं आप पर बहुत विश्वास करता हूँ। +\q1 मैं आपके लिए गाऊँगा, +\q2 और जब मैं गाता हूँ तो मैं आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 8 सुबह जाग कर आपकी स्तुति करना एक सम्मान है। +\q2 सूर्य के उगने से पहले मैं उठता हूँ +\q2 और मैं वीणा या सारंगी बजा कर आपकी स्तुति करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 9 हे परमेश्वर, मैं सब लोगों के बीच आपको धन्यवाद दूँगा; +\q1 और मैं आपके लिए कई लोगों के समूहों में स्तुति के गीत गाऊँगा। +\q2 +\v 10 क्योंकि हमारे लिए आपका प्रेम पृथ्‍वी से आकाश तक की ऊँचाई जितना महान है, +\q2 और हमारे लिए आपकी विश्वासयोग्यता बादलों तक जाती है। +\q1 +\v 11 हे परमेश्वर, स्वर्ग में दिखाएँ कि आप बहुत महान हैं! +\q2 अपनी महिमा सारी पृथ्‍वी के लोगों को दिखाएँ! + +\s5 +\c 58 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन, जिसे “नष्ट न करें” धुन का उपयोग करके गाया जाता है। +\q1 +\p +\v 1 हे शासकों जब तुम बोलते हो, तो तुम कभी सच नहीं कहते हो; +\q2 तुम लोग कभी विवादों का न्याय सही से नहीं करते हैं। +\q1 +\v 2 नहीं, तुम अपने मन में केवल गलत कार्य करने के विषय में सोचते हो, +\q2 और तुम इस्राएल की इस भूमि में सब स्थानों में हिंसक अपराध करते हो। +\q1 +\s5 +\v 3 दुष्ट लोग गलत कार्य करते हैं और जन्म के समय से झूठ बोलते हैं। +\q1 +\v 4 दुष्ट लोग जो कहते हैं उससे लोगों को साँप के विष के समान हानि पहुँचती है। +\q2 वे आदेशों को सुनने से इन्कार करते हैं; ऐसा लगता है कि वे बहरे साँप हैं। +\q +\v 5 परिणामस्वरूप, जैसे एक साँप कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है जब एक सपेरा बाँसुरी बजाता है या जब कोई मन्त्र पढ़े, +\q2 वैसे ही जब लोग उन्हें डाँटते हैं तो वे ध्यान नहीं देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 हे परमेश्वर, इन शत्रुओं के लिए जो मुझ पर युवा शेरों के समान आक्रमण करना चाहते हैं, +\q2 उनके दाँतों को उनके मुँह में तोड़ दें! +\q1 +\v 7 उन्हें गायब कर दें जैसे सूखी भूमि में पानी गायब हो जाता है! +\q2 उन तीरों को रोकें जिन्हें वे चलाते हैं! +\q1 +\v 8 उन्हें कीचड़ में गायब होने वाले घोंघे के समान बना दें; +\q2 उन्हें मृत पैदा हुए बच्चे के समान बना दें! +\q1 +\s5 +\v 9 मुझे आशा है कि आप उनसे शीघ्र ही छुटकारा पाएँगे, +\q2 जितनी शीघ्र ही कि कंटीली झाड़ियाँ काटे जाने के बाद राख हो जाती हैं। +\q1 +\v 10 जो लोग उचित कार्य करते हैं, वे आनन्दित होंगे जब परमेश्वर दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे; +\q2 वे दुष्टों के खून में अपने पाँवों को धोएँगे। +\q1 +\v 11 तब लोग कहेंगे, “यह सच है कि धर्मी लोगों के लिए प्रतिफल है; +\q2 और वास्तव में परमेश्वर हैं जो धरती पर लोगों का न्याय करते हैं!” + +\s5 +\c 59 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा दाऊद का भजन, जब शाऊल दाऊद को मारना चाहता था, तो उसने दाऊद के घर पर देखरेख रखने के लिए पुरुषों को भेजा। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ! +\q2 उन लोगों से मुझे बचाएँ जो मुझ पर आक्रमण करना चाहते हैं! +\q1 +\v 2 उन लोगों से मुझे सुरक्षित रखें जो दुष्ट कार्य करना चाहते हैं, +\q2 और हत्यारों से मुझे सुरक्षित रखें! +\q1 +\s5 +\v 3 देखो! वे मुझे मारने की प्रतीक्षा कर रहे हैं! +\q2 भयानक पुरुष मुझ पर आक्रमण करने के लिए एकत्र हुए हैं। +\q1 हे यहोवा, वे ऐसा करते हैं जबकि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है! +\q1 +\v 4 ऐसा इसलिए नहीं है कि मैंने उनके विरुद्ध कोई अपराध किया है +\q2 कि वे दौड़ते हैं और मुझ पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाते हैं। कृपया मेरी स्थिति देखें और मेरी सहायता करें। +\q1 +\s5 +\v 5 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, +\q2 उठें और उन सब राष्ट्रों के लोगों को दण्ड दें जो आपको सम्मान नहीं देते हैं; +\q2 उन दुष्ट लोगों के प्रति दया के कार्य न करें जिन्होंने हमसे विश्वासघात किया है। +\q1 +\s5 +\v 6 वे हर शाम लौटते हैं, +\q2 और कुत्ते के समान वे शहर के चारों ओर गुर्राते हुए घूमते हैं। +\q +\v 7 वे ऊँचे शब्द में भयानक बातें कहते हैं; +\q2 वे ऐसी बातें कहते हैं जो तलवारों के समान नष्ट करती हैं, +\q1 क्योंकि वे कहते हैं, “कोई भी हमें नहीं सुन पाएगा!” +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु हे यहोवा, आप उन पर हँसते हैं। +\q2 आप मूर्तिपूजक राष्ट्रों के लोगों का उपहास करते हैं। +\q1 +\v 9 हे परमेश्वर, मुझे आप पर भरोसा है क्योंकि आप बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 आप मेरे शरणस्थान हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 क्योंकि आप मुझसे प्रेम करते हैं, आप मुझे बचाने आएँगे जैसा आपने प्रतिज्ञा की है; +\q2 आप मेरे शत्रुओं को पराजित करते समय मुझे देखने देंगे। +\q1 +\v 11 परन्तु उन्हें तुरन्त न मारें; +\q2 यह उचित होगा कि मेरे लोग न भूलें कि आपने उन्हें कैसे दण्ड दिया है! +\q1 इसकी अपेक्षा, हे प्रभु, आप ढाल के समान हैं जो हमारी रक्षा करते हैं, +\q2 उन्हें अपनी शक्ति से तितर-बितर करें, और फिर उन्हें पराजित करें। +\q1 +\s5 +\v 12 क्योंकि वे जो कहते हैं वह पापपूर्ण है, +\q2 उन्हें उनके घमण्ड के कारण फँसने दें। +\q1 क्योंकि वे सदा श्राप देते हैं और झूठ बोलते हैं, +\q1 +\v 13 क्योंकि आप क्रोधित हैं, उनसे छुटकारा पाएँ; +\q2 उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दें +\q2 कि लोग जान सकें कि आप हम इस्राएली लोगों पर शासन करते हैं, +\q2 और आप पूरी धरती पर भी शासन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 वे हर शाम लौटते हैं, +\q2 और कुत्ते के समान गुर्राते हैं जब वे शहर के चारों ओर घूमते हैं। +\q1 +\v 15 वे भोजन की खोज में चारों ओर घूमते हैं +\q1 और यदि उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है, तो वे कुत्तों के समान गुर्राते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 परन्तु मैं आपकी शक्ति के विषय में गाऊँगा; +\q2 प्रतिदिन सुबह मैं आपके सच्चे प्रेम के विषय में आनन्द से गाऊँगा। +\q1 मैं गाऊँगा कि जब मैं बहुत परेशान था तो आपने मुझे कैसे सुरक्षित किया। +\q1 +\v 17 हे परमेश्वर, आप ही वह हैं जो मुझे दृढ़ होने में समर्थ बनाते हैं; +\q2 आप मेरे शरणस्थान हैं; +\q2 आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, जैसी आपने अपनी वाचा में प्रतिज्ञा की है। + +\s5 +\c 60 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन, शिक्षण के लिए एक भजन, “प्रतिज्ञा की लिली” धुन का उपयोग करके गाया जाता है। दाऊद ने उत्तरी सीरिया में युद्धों के समय लिखा था, और जब योआब की सेना ने युद्ध से लौटने के बाद नमक की घाटी में एदोमी लोगों के समूह के बारह हजार लोगों की हत्या कर दी थी। +\q1 +\p +\v 1 मैंने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, आपने हम इस्राएलियों को त्याग दिया है! +\q1 क्योंकि आप हमसे क्रोधित हैं, +\q2 इसलिए आपने हमारे शत्रुओं को हमारी सेना को तोड़ने में समर्थ बनाया है। +\q1 कृपया हमें फिर से दृढ़ बनने में समर्थ करें! +\q1 +\s5 +\v 2 ऐसा लगता था कि आपने एक बड़ा भूकम्प भेजा था जिससे धरती खुल गई। +\q1 इसलिए अब, हमें फिर से दृढ़ बनाएँ, +\q2 क्योंकि ऐसा लगता है कि हमारा देश डगमगा रहा है। +\q1 +\v 3 आपने हमें अर्थात् आपके लोगों को बहुत पीड़ित किया है; +\q2 ऐसा लगता है कि आपने हमें दाखमधु पिला कर हमारी शक्ति ले ली है। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु आपने उन लोगों के लिए युद्ध का झण्डा उठाया है जो आपको सम्मान देते हैं। +\q2 वे शत्रु के तीरों का सामना करते समय आपके झण्डे को दिखाएँगे। +\q1 +\v 5 हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दें और हमें हमारे शत्रुओं को हराने के लिए अपनी शक्ति से समर्थ करें +\q2 कि हम, जिन्हें आप चाहते हैं, बचाए जाएँ।” +\q1 +\s5 +\v 6 तब परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना का उत्तर दिया और अपने मन्दिर से बात की और कहा, +\q1 “क्योंकि मैंने तुम्हारे शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है, इसलिए मैं शेकेम शहर को विभाजित करूँगा, +\q2 और मैं अपने लोगों के बीच सुक्कोत की घाटी के देश को बाँट दूँगा। +\q1 +\v 7 गिलाद का क्षेत्र मेरा है; +\q1 मनश्शे के गोत्र के लोग मेरे हैं; +\q1 एप्रैम का गोत्र मेरे टोप के समान है; +\q1 और यहूदा का गोत्र मेरे राजदण्ड के समान है जिसके साथ मैं शासन करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 8 मोआब का क्षेत्र मेरे धोने के पात्र के समान है; +\q2 मैंने अपने जूतों को एदोम के क्षेत्र पर फेंक दिया कि यह दिखाया जा सके कि वह मेरा है; +\q2 मैं जयजयकार करता हूँ क्योंकि मैंने पलिश्त के सब क्षेत्रों के लोगों को पराजित किया है। +\q1 +\v 9 क्योंकि मैं एदोम के लोगों को पराजित करना चाहता हूँ, +\q1 कौन मेरी सेना को उनकी राजधानी में ले जाएगा, जिसके चारों ओर दृढ़ दीवारें हैं?” +\q1 +\s5 +\v 10 हे परमेश्वर, ऐसा लगता है कि आपने वास्तव में हमें त्याग दिया है; +\q2 ऐसा लगता है कि जब हमारी सेनाएँ हमारे शत्रुओं से युद्ध करने के लिए बाहर निकलती हैं तो आप हमारे साथ नहीं जाते हैं। +\q1 +\v 11 जब हम अपने शत्रुओं से युद्ध करते हैं तो हमें आपकी सहायता की आवश्यकता होती है +\q2 क्योंकि मनुष्य हमारी सहायता करें तो, व्यर्थ है। +\q +\v 12 परन्तु आपकी सहायता से, हम विजयी होंगे; +\q2 आप हमारे शत्रुओं को पराजित करने में हमें समर्थ करेंगे। + +\s5 +\c 61 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन, जिसे वाद्य-यन्त्र के साथ गाया जाना चाहिए। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मेरी बात सुनें +\q2 और मेरी प्रार्थना का उत्तर दें। +\q1 +\v 2 जब मैं निराश होता हूँ और अपने घर से दूर हूँ, +\q1 मैं आपको पुकारता हूँ। +\q1 मुझे ऐसे स्थान पर ले जाएँ जो एक ऊँची चट्टान के समान होगा +\q2 जिस पर मैं सुरक्षित रहूँगा। +\q1 +\v 3 आप मेरा शरणस्थान हैं; +\q2 आप एक दृढ़ मीनार के समान हैं +\q2 जिसमें मेरे शत्रु मुझ पर आक्रमण नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 मुझे मेरे जीवन में अपने पवित्र-तम्बू के निकट रहने दें! +\q1 मुझे सुरक्षित होने दें जैसे एक छोटा सा पक्षी अपनी माँ के पंखों के नीचे सुरक्षित रहता है। +\q1 +\v 5 हे परमेश्वर, आपने मुझे सुना जब मैंने गम्भीरता से आपको भेंट देने की प्रतिज्ञा की थी; +\q2 आपने ऐसे आशीष दिए हैं जो आपका महान सम्मान करने वालों के लिए हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं इस्राएल का राजा हूँ; +\q1 कृपया मुझे कई वर्षों तक जीने और शासन करने योग्य कर दें, +\q2 और मेरे वंशजों को भी शासन करने योग्य करें। +\q1 +\v 7 हमें आपकी देखरेख में सदा के लिए शासन करने दें; +\q2 हमारी देख-रेख करें, क्योंकि आप हमसे सच्चा प्रेम करते हैं और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, हमारे लिए कार्य करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 यदि आप ऐसा करते हैं, तो मैं सदा आपकी स्तुति करने के लिए गाऊँगा +\q2 जब मैं आपको प्रतिदिन बलि चढ़ाता हूँ जिसकी मैंने आपको देने की प्रतिज्ञा की है। + +\s5 +\c 62 +\d एक भजन जो दाऊद ने गायन मण्डली के अगुवे यदूतून के लिए लिखा +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर ही एकमात्र है जो मुझे मेरे मन की शान्ति प्रदान करते हैं, +\q2 और वही हैं जो मुझे मेरे शत्रुओं से बचाते हैं। +\q1 +\v 2 केवल वही एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं सुरक्षित रह सकता हूँ; +\q2 वह एक ऊँचे किले के समान हैं जिस पर मेरे शत्रु चढ़ नहीं सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे मेरे शत्रुओं, तुम कब तक मुझ पर आक्रमण करते रहोगे? +\q2 मुझे लगता है कि मैं झुकी हुई दीवार या टूटे हुए बाड़े के समान तुम्हारे सामने दुर्बल हूँ। +\q1 +\v 4 मेरे शत्रु मुझे महत्वपूर्ण पद से हटाने की योजना बना रहे हैं कि लोग अब मेरा सम्मान न करें। +\q2 वे झूठ बोलने में प्रसन्न हैं। +\q1 वे अपनी बातों में लोगों को आशीष देते हैं, +\q2 परन्तु उनके मन में वे उन लोगों को श्राप देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 परमेश्वर ही एकमात्र है जो मुझे मेरे मन में शान्ति देते हैं; +\q2 वही है जिनसे मैं भरोसे से मेरी सहायता करने की आशा करता हूँ। +\q1 +\v 6 केवल वह एक विशाल चट्टान के समान है जिस पर मैं सुरक्षित रह सकता हूँ; +\q2 वह एक आश्रय के समान है; वहाँ मेरे शत्रु कभी मेरे पास नहीं पहुँच सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 परमेश्वर ही मुझे बचाते हैं और मुझे सम्मान देते हैं। +\q2 वह एक विशाल दृढ़ चट्टान के समान हैं, जिस पर मैं आश्रय पा सकता हूँ। +\q1 +\v 8 हे मेरे लोगों, सदा उन पर भरोसा करते रहो। +\q2 उन्हें अपनी सब परेशानी बताओ +\q2 क्योंकि हम सुरक्षा के लिए उनके पास जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 जो लोग महत्वहीन माने जाते हैं वे हवा की फूँक के समान अविश्वसनीय हैं; +\q2 और जिन लोगों को महत्वपूर्ण माना जाता है, वास्तव में कुछ भी नहीं है। +\q1 यदि आप उन्हें तराजू पर रखते हैं, तो ऐसा होगा जैसे उनका वजन हवा की एक फूँक से कम हैं। +\q1 +\v 10 दूसरों से बलपूर्वक लूटे हुए धन पर भरोसा न रखें; +\q2 दूसरों को लूट कर कुछ प्राप्त करने का प्रयास मत करो। +\q1 यदि तुम धनवान हो, तो अपने पैसे पर भरोसा न रखें। +\q1 +\s5 +\v 11 मैंने परमेश्वर को एक से अधिक बार कहते सुना है कि वही हैं जिनके पास वास्तव में शक्ति है, +\q1 +\v 12 और वही हैं जो हमसे सच्चा प्रेम करते हैं, जैसे कि उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q2 वह हमारे कार्यों के अनुसार हम में से प्रत्येक को प्रतिफल देते हैं। + +\s5 +\c 63 +\d दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन, जब वह यहूदा के जंगल में था। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, आप ही वह परमेश्वर हैं जिनकी मैं आराधना करता हूँ। +\q1 मैं आपके साथ रहने की बहुत इच्छा रखता हूँ +\q2 जैसे एक सूखे गर्म जंगल में एक व्यक्ति पानी की बहुत इच्छा करता है। +\q1 +\v 2 मैं आपके साथ आपके भवन में गया हूँ +\q1 यह देखने के लिए कि आप प्रिय और शक्तिशाली हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 आप सदा मुझसे प्रेम करते हैं, जैसा कि आपने अपनी वाचा में प्रतिज्ञा की है; यह मेरे पूरे जीवन से अधिक मूल्यवान है, +\q2 इसलिए मैं सदा आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 4 मैं हर समय आपकी स्तुति करूँगा; +\q2 प्रार्थना करते समय मैं अपने हाथ उठाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 आप मुझे परिपूर्ण रखते हैं और आप मेरी हर एक आवश्यकता को पूरा करते हैं। +\q2 आपके प्रति मेरी प्रतिक्रिया ऐसी है जैसे मैं समृद्ध और स्वादिष्ट भोजन खाता हूँ +\q2 और भोजन मुझे तृप्त करता है। +\q2 जब मैं आपके विषय में बोलता हूँ और अपने शब्दों से आपकी स्तुति करता हूँ तो मुझे बहुत आनन्द मिलता है। +\q1 +\v 6 जब मैं अपने बिस्तर पर लेटता हूँ, मैं आपके विषय में सोचता हूँ। +\q1 मैं पूरी रात आपके विषय में सोचता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 क्योंकि आपने सदा मेरी सहायता की है, +\q2 और मैं प्रसन्नता से गाता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप मेरी रक्षा करते हैं +\q2 जैसे एक पक्षी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे सुरक्षित रखता है। +\q1 +\v 8 मैं ध्यान से आपकी आज्ञा का पालन करता हूँ, +\q2 और आपका हाथ मेरी रक्षा करता है। +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु जो लोग मुझे मारने का प्रयास कर रहे हैं +\q2 वे मर जाएँगे और मरे हुओं के स्थान में उतर जाएँगे; +\q1 +\v 10 वे युद्ध में मारे जाएँगे +\q2 और उनकी लाश कुत्तों द्वारा खाई जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु मैं, इस्राएल का राजा, परमेश्वर के कार्यों के कारण आनन्दित रहूँगा; +\q2 और जो कोई परमेश्वर से उनके वचन की पुष्टि करने के लिए कहते हैं, वे उनकी स्तुति करेंगे, +\q2 परन्तु वह झूठे लोगों को कुछ भी कहने नहीं देंगे। + +\s5 +\c 64 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मेरी बात सुनें जब मैं अपनी चिन्ताओं की चर्चा आप से करता हूँ। +\q2 मैं अपने शत्रुओं से डरता हूँ; कृपया मुझे उनसे बचाएँ। +\q1 +\v 2 मुझे दुष्टों की योजनाओं से बचाएँ; +\q2 और उन लोगों के समूह से मुझे बचाएँ जो बुराई करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 वे जो विरोधी बातें कहते हैं वे तेज तलवार के समान हैं; +\q2 उनके क्रूर शब्द तीरों के समान हैं। +\q1 +\v 4 वे किसी से डरते नहीं हैं; वे लोगों के विषय में झूठ बोलते हैं और उन लोगों की निन्दा करते हैं जिन्होंने कोई गलती नहीं की है। +\q2 वे उस मनुष्य के समान हैं जो अपने छिपने के स्थान से निकल कर अचानक अपने शत्रुओं पर तीर चलाता है। +\q1 +\s5 +\v 5 वे एक दूसरे को उन बुरे कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिनकी वे योजना बना रहे हैं; +\q2 वे एक दूसरे के साथ बात करते हैं कि वे लोगों को पकड़ने के लिए कहाँ जाल फैला सकते हैं। +\q2 वे कहते हैं, “कोई भी नहीं देख पाएगा कि हम क्या कर रहे हैं +\q1 +\v 6 क्योंकि हमने उन कार्यों की बहुत अच्छी योजना बनाई है जिन्हें हम करने जा रहे हैं।” +\q2 लोग अपने मन में जो सोचते हैं और जो योजना बनाते हैं वे वास्तव में कितनी अद्भुत हैं! +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु ऐसा होगा जैसे कि परमेश्वर उन पर तीर चलाएँगे, +\q2 और वे अकस्मात ही घायल हो जाएँगे। +\q1 +\v 8 क्योंकि वे जो कहते हैं, उससे सिद्ध होता है कि वे दोषी हैं, परमेश्वर उनसे छुटकारा पाएँगे। +\q2 हर कोई जो देखता है कि उनके साथ क्या हुआ है, वे अपने सिरों को हिला कर उनकी निन्दा करेंगे। +\q1 +\v 9 तब हर कोई पाप के परिणाम के कारण पाप करने से डरेंगे; +\q2 वे दूसरों को बताएँगे कि परमेश्वर ने क्या किया है, +\q2 और वे स्वयं इसके विषय में बहुत सोचेंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा ने जो कुछ किया है, उसके कारण धर्मी लोगों को आनन्दित होना चाहिए; +\q2 उन्हें शरण पाने के लिए उनके पास जाना चाहिए; +\q1 और जो लोग उनका सम्मान करते हैं वे उनकी स्तुति करेंगे। + +\s5 +\c 65 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, यरूशलेम में आपकी स्तुति करना हमारे लिए उचित है +\q1 और जो हमने आप से प्रतिज्ञा की है उसे पूरा करना उचित है +\q2 +\v 2 क्योंकि आप हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं। +\q1 इसलिए हर जगह के लोग आपके पास आएँगे +\q2 +\v 3 हमारे पाप हमारे लिए बहुत भारी बोझ के समान हैं, +\q1 परन्तु आप हमें क्षमा कर देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 वे कितने भाग्यशाली हैं जिन्हें आपने चुना है +\q2 कि सदा आपके भवन के आँगनों में रहें। +\q1 हम आपके आशीर्वादों से संतुष्ट होंगे क्योंकि हम आपके पवित्र भवन में आपकी आराधना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 हे परमेश्वर, हम आप से प्रार्थना करते हैं, तो आप हमें उत्तर देते हैं और अद्भुत कार्य करके हमें बचाते हैं; +\q2 आप ही हमें बचाते हैं; +\q1 जो लोग पृथ्‍वी पर दूर के स्थानों और महासागरों के दूसरी ओर रहते हैं, वे आप पर भरोसा रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 आप ही ने पर्वतों को उनके स्थान पर रखा, +\q2 और यह दिखाया कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 7 आप ही समुद्र को शान्त करते हैं, जब वह गरजता है, +\q2 और लहरों को किनारे पर प्रहार करने से रोकते हैं; +\q1 और लोग बहुत परेशानी उत्पन्न करते हैं तो आप उनको भी शान्त करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 लोग जो पृथ्‍वी पर बहुत दूर के स्थानों में रहते हैं +\q2 वे आपके द्वारा किए गए चमत्कारों से चकित हैं; +\q1 आपके कार्यों के कारण, +\q2 लोग जो दूर पश्चिम में और दूर पूर्व में रहते हैं, वे आनन्द से जयजयकार करते हैं। +\q1 +\v 9 आप मिट्टी का ध्यान रखते हैं और वर्षा भेजते हैं, +\q2 और इस प्रकार कई अच्छी वस्तुओं को उगाते हैं; +\q1 आप धाराओं को पानी से भरते हैं +\q2 और अनाज को उगाते हैं। +\q1 आपने यही करना निर्धारित किया है। +\q1 +\s5 +\v 10 आप जुते हुए खेतों पर बहुत वर्षा भेजते हैं, +\q2 और आप पानी से रेघारियों को भरते हैं। +\q1 वर्षा से आप मिट्टी के कठिन ढेलों को नरम करते हैं, +\q2 और आप पौधों को विकसित करके मिट्टी को आशीषित करते हैं। +\q1 +\v 11 क्योंकि आप मिट्टी को आशीष देते हैं, इसलिए कटनी के समय बहुत अच्छी फसल होती हैं; +\q2 आप जहाँ भी जाते हैं, अच्छी फसलें बहुत प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती हैं। +\q1 +\v 12 जंगल में चारागाह सुबह की ओस से गीली होती है, +\q2 ऐसा लगता है कि पहाड़ियाँ सुखद गाने गा रही हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 चराइयाँ भेड़ और बकरियों से ढकी हुई हैं, +\q2 और घाटियाँ अनाज से भरी हुई हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि वे भी गाती हैं और आनन्द से जयजयकार करती हैं। + +\s5 +\c 66 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 पृथ्‍वी पर सबको सुनाओ +\q2 कि उन्हें आनन्द से परमेश्वर की स्तुति करने के लिए गाना चाहिए! +\q1 +\v 2 उन्हें गीत गाना चाहिए जिनसे प्रकट होता है कि परमेश्वर बहुत महान हैं, +\q2 और उन्हें सबको बताना चाहिए कि वह बहुत गौरवशाली हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 उन्हें परमेश्वर से कहना चाहिए, “जो कार्य आप करते हैं वे बहुत ही अद्भुत हैं! +\q2 आपकी शक्ति बहुत महान हैं, +\q2 जिसके कारण आपके शत्रु आपकी चापलूसी करते हैं।” +\q1 +\v 4 पृथ्‍वी पर सब परमेश्वर की आराधना करेंगे, +\q2 उनकी स्तुति करने के लिए गाएँगे, +\q2 और उन्हें सम्मानित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 आओ और परमेश्वर के कार्य के विषय में सोचो! +\q1 उन्होंने लोगों के बीच जो अद्भुत कार्य किए हैं, उनके विषय में सोचो। +\q1 +\v 6 उन्होंने समुद्र को सूखी भूमि बना दिया, +\q2 जिससे कि हमारे पूर्वज उस पर चलने में समर्थ थे। +\q1 वहाँ हमने उनके कार्यों के कारण आनन्द किया। +\q1 +\v 7 वह सदा ही अपनी शक्ति से शासन करते हैं, +\q2 और वह सब राष्ट्रों पर दृष्टि रखते हैं कि देख सकें वे क्या बुरी बातें करते हैं। +\q2 जो राष्ट्र उनके विरुद्ध विद्रोह करना चाहता हैं उन्हें घमण्ड नहीं करना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 8 हे सब राष्ट्रों के लोगों, हमारे परमेश्वर की स्तुति करो! +\q2 ऊँचे शब्द से उनकी स्तुति करो कि लोग सुनें जब तुम उनकी स्तुति करते हो। +\q1 +\v 9 उन्होंने हमें जीवित रखा है, +\q2 और उन्होंने हमें विपत्तियों में पड़ने नहीं दिया है। +\q1 +\s5 +\v 10 हे परमेश्वर, आपने हमें जाँचा है; +\q1 आपने हमारे जीवन को शुद्ध बनाने के लिए हमें बड़ी कठिनाइयों का अनुभव करवाया है +\q2 जैसे लोग बहुमूल्य धातु को गर्म आग में डाल कर जलाते हैं कि उसकी अशुद्धता निकल जाएँ। +\q1 +\v 11 ऐसा लगता है कि आपने हमें जाल में गिरने दिया है, +\q2 और आपने हमें उन कठिन बातों को सहन करने के लिए विवश किया जो हमारी पीठ पर भारी बोझ के समान थीं। +\q1 +\v 12 आपने हमारे शत्रुओं को हमें रौंदने दिया है; +\q2 हमें आग और बाढ़ के माध्यम से चलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, +\q1 परन्तु अब आपने हमें सुरक्षित किया है। +\q1 +\s5 +\v 13 मैं आपके भवन की भेंटों को लाऊँगा जो वेदी पर पूरी तरह जलाए जाएँगे; +\q2 मैं आपके लिए भेंट चढ़ाऊँगा जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 14 जब मुझे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा, तो मैंने कहा कि यदि आप मुझे बचाएँगे तो मैं आपको भेंट चढ़ाऊँगा; +\q2 और आपने मुझे बचाया, इसलिए मैंने जो भी प्रतिज्ञा की है, उसे मैं आपके पास लाऊँगा। +\q1 +\v 15 मैं वेदी पर जलाने के किए भेड़ों को लाऊँगा, +\q2 और मैं बैल और बकरियों को भी लाऊँगा; +\q2 जब वे जल रहे होंगे, और उनका धुआँ आप तक उठेगा। +\q1 +\s5 +\v 16 हे सब लोगों जो परमेश्वर के प्रति आदरणीय सम्मान करते हो, आओ और सुनो, +\q2 और मैं तुमको बताऊँगा कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया है। +\q1 +\v 17 मैंने उन्हें मेरी सहायता करने के लिए बुलाया, +\q2 और जब मैं उनसे बातें कर रहा था तब मैंने उनकी स्तुति की। +\q1 +\v 18 यदि मैंने अपने पापों को अनदेखा कर दिया होता, +\q2 तो परमेश्वर ने मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया होता। +\q1 +\s5 +\v 19 परन्तु क्योंकि मैंने अपने पापों को मान लिया, इसलिए परमेश्वर ने मेरी बात सुनी है +\q2 और मेरी प्रार्थनाओं पर ध्यान दिया है। +\q +\v 20 मैं परमेश्वर की स्तुति करता हूँ +\q2 क्योंकि उन्होंने मेरी प्रार्थनाओं को अनसुना नहीं किया है; +\q2 वह मुझसे प्रेम करते रहते हैं उन्होंने अपनी वाचा में जैसी प्रतिज्ञा की है, वैसा ही प्रेम। + +\s5 +\c 67 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए एक भजन, तार वाले बाजों के साथ गाने के लिए। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, हमारे प्रति दया के कार्य करें और हमें आशीष दें; +\q1 कृपया हमारे प्रति दया के कार्य करें। +\q2 +\v 2 ऐसा इसलिए करें कि संसार में सब जान लें कि आप उनसे क्या कराना चाहते हैं, +\q2 और सब राष्ट्रों के लोग यह जान सकें कि आप में उन्हें बचाने की शक्ति है। +\q1 +\s5 +\v 3 हे परमेश्वर, मैं चाहता हूँ कि जातियाँ आपकी स्तुति करें; +\q1 मैं चाहता हूँ कि वे सब आपकी स्तुति करें! +\q1 +\v 4 मैं चाहता हूँ कि सब राष्ट्रों के लोग आनन्दित हों और आनन्द से गाएँ +\q2 क्योंकि आप सब जातियों का निष्पक्ष न्याय करते हैं, +\q2 और आप पृथ्‍वी के सब राष्ट्रों का मार्गदर्शन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 हे परमेश्वर, मैं चाहता हूँ कि सब देशों के लोग आपकी स्तुति कर सकें; +\q1 मैं चाहता हूँ कि वे सब आपको धन्यवाद दें! +\q1 +\v 6 हमारी भूमि पर अच्छी फसल उगी हैं; +\q1 परमेश्वर, हमारे परमेश्वर ने हमें आशीष दिया है। +\q1 +\s5 +\v 7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें आशीष दिया है, +\q1 इसलिए मैं चाहता हूँ कि धरती पर हर जगह सब लोग उनका महान सम्मान कर सकें। + +\s5 +\c 68 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, उठें और अपने शत्रुओं को तितर-बितर करें, +\q1 और जो लोग आप से घृणा करते हैं उन्हें भगा दें। +\q1 +\v 2 जैसे हवा धुएँ को उड़ा देती है, +\q2 आप अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें भगा दें। +\q1 जब मोम आग के पास होता है तो मोम पिघला जाता है, +\q2 उसी प्रकार आप दुष्ट लोगों को नष्ट कर दें। +\q1 +\v 3 परन्तु धर्मी लोग आनन्दित हों; +\q2 जब वे परमेश्वर की उपस्थिति में होते हैं तो वे आनन्दित हो सकें; +\q2 वे मगन और बहुत आनन्दित हो सकें। +\q1 +\s5 +\v 4 परमेश्वर के लिए गीत गाओ; उनकी स्तुति करने के लिए भजन गाओ; +\q1 रेगिस्तानी मैदानों में सवारी करने वाले परमेश्वर के लिए एक गीत गाओ; +\q1 उनका नाम यहोवा है; जब तुम उनकी उपस्थिति में हों तो आनन्दित रहो। +\q1 +\v 5 परमेश्वर जो अपने पवित्र मन्दिर में रहते हैं, वह अनाथों के लिए एक पिता के समान हैं, +\q2 और वही विधवाओं की रक्षा करते हैं। +\q1 +\v 6 वह उन लोगों के लिए परिवार बसाते हैं जिनके साथ रहने के लिए कोई नहीं है। +\q1 वह बन्दियों को मुक्त करते हैं और उन्हें सफल होने में समर्थ बनाते हैं, +\q2 परन्तु जो लोग उनके विरुद्ध विद्रोह करेंगे उन्हें बहुत गर्म और सूखी भूमि में रहने के लिए विवश किया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 7 हे परमेश्वर, आपने अपने लोगों को मिस्र से बाहर निकाला, +\q2 और फिर आप रेगिस्तान के मार्ग से उनके साथ चलें। +\q1 +\v 8 ऐसा करने के बाद, +\q1 जब आप अपने लोगों के सामने प्रकट हुए, तो सीनै पर्वत पर धरती हिल गई, +\q2 और आकाश से वर्षा हुई, और आपके लोगों ने आपकी आराधना की। +\q1 +\s5 +\v 9 आपने जंगल में बहुत वर्षा भेजी, +\q2 और इस प्रकार आपने उस भूमि पर, जो आपने हम इस्राएलियों को दी अच्छी फसलों को उगाया। +\q1 +\v 10 आपके लोगों ने वहाँ घर बनाए; +\q2 क्योंकि आप उनके लिए अच्छे थे, आपने उन लोगों के लिए जो गरीब थे, भोजन दिया। +\q1 +\s5 +\v 11 परमेश्वर ने यह सन्देश सुनाया, +\q2 और कई लोगों ने उनके सन्देश को अन्य स्थानों में पहुँचाया। +\q1 +\v 12-13 उन्होंने घोषणा की, “कई राजा और उनकी सेना हमारी सेना के सामने से भाग रहे हैं!” +\q2 जब हमारी सेना अपने घरों में उन वस्तुओं को लाई जिन्हें उन्होंने लूट लिया था, +\q1 तब घर में रहने वाली स्त्रियों ने अपने और अपने परिवारों के बीच उन वस्तुओं को बाँट लिया। +\q2 उन्हें कबूतरों की मूर्तियाँ मिलीं जिनके पंख चाँदी से ढके थे +\q2 और जिनके पंख शुद्ध पीले सोने से ढके गए थे। परन्तु कुछ लोग भेड़ों के साथ रहे और युद्ध में लड़ने के लिए नहीं गए। तुम क्यों नहीं गए? +\q1 +\s5 +\v 14 जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने शत्रु राजाओं और उनकी सेनाओं को तितर-बितर कर दिया, +\q2 तो यह मुझे सल्मोन पर्वत की बर्फबारी की स्मरण दिलाता है! +\q1 +\v 15 बाशान पहाड़ियों में एक बहुत ऊँचा पर्वत है, +\q1 एक पर्वत जिसमें कई चोटियाँ हैं। +\q1 +\v 16 परन्तु जो लोग उस पर्वत के पास रहते हैं उन्हें उन लोगों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए जो सिय्योन पर्वत के पास रहते हैं, +\q2 जिस पर्वत पर परमेश्वर ने निवास करने का निर्णय लिया है! +\q1 यहोवा सदा के लिए वहाँ रहेंगे! +\q1 +\s5 +\v 17 हमें अपने सब शत्रुओं को पराजित करने के बाद, +\q1 ऐसा लगता था कि परमेश्वर हजारों रथों से घिरे हुए सीनै पर्वत से उतरे हैं +\q1 और यरूशलेम में पवित्र मन्दिर में आए। +\q1 +\v 18 वह पवित्र पर्वत पर चढ़ गए जहाँ उनका मन्दिर है +\q1 और वे अपने साथ कई लोगों को ले गए जो लड़ाई में पकड़े गए थे; +\q2 उन्हें उन शत्रुओं से उपहार प्राप्त हुए जिन्हें उन्होंने पराजित किया था। +\q1 उन्हें उन लोगों से भी उपहार प्राप्त हुए जिन्होंने उनके विरुद्ध विद्रोह किया था, +\q2 और यहोवा, हमारे परमेश्वर सदा के लिए वहाँ अपने पवित्र मन्दिर में रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 यहोवा की स्तुति करो, जो हर दिन हमारे भारी बोझ को उठाने में हमारी सहायता करते हैं; +\q1 वही हैं जो हमें बचाते हैं। +\q1 +\v 20 हमारे परमेश्वर ही परमेश्वर हैं जो हमें बचाते हैं; +\q2 वह यहोवा हैं, हमारे प्रभु, जो हमें युद्धों में मरने से बचाते हैं। +\q1 +\v 21 परन्तु परमेश्वर अपने शत्रुओं के सिर तोड़ देंगे, +\q2 उन लोगों की लम्बी बालों वाली खोपड़ी जो पापपूर्ण व्यवहार करते रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 यहोवा ने कहा, “मैं बाशान में मारे गए मेरे शत्रुओं की लाश वापस लाऊँगा, +\q1 और मैं उन लोगों को वापस लाऊँगा जो गहरे समुद्र में डूब कर मर गए। +\q2 +\v 23 मैं ऐसा करूँगा कि तुम अपने पाँवों को उनके खून में धो सको, +\q2 और तुम्हारे कुत्ते भी तुम्हारे शत्रुओं के रक्त को चाट सकते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 24 हे परमेश्वर, बहुत से लोग देखते हैं कि आप अपने पवित्र मन्दिर में विजयी के साथ आते हैं, +\q2 यह उत्सव मनाते हुए कि आपने अपने शत्रुओं को होरिया है। +\q2 आप राजा के समान आते हैं, और एक बड़ी भीड़ आपके साथ चलती है। +\q1 +\v 25 गायक सबसे आगे हैं, और जो लोग तारों वाले बाजे बजाते हैं वे पीछे की ओर हैं, +\q2 और युवा महिलाएँ जो अपने डफ बजा रही हैं, उनके बीच में हैं। +\q1 +\s5 +\v 26 वे सब गा रहे हैं, “हे इस्राएली लोगों, जब तुम एक साथ इकट्ठे होते हो तो परमेश्वर की स्तुति करो; +\q2 हे याकूब के वंशजों, यहोवा की स्तुति करो!” +\q1 +\v 27 सबसे पहले बिन्यामीन के गोत्र के लोग आते हैं, जो सबसे छोटा गोत्र है, +\q2 और उनके पीछे यहूदा के गोत्र के अगुवे और उनके लोग आते हैं, +\q1 और उनके पीछे जबूलून और नप्ताली के गोत्रों के अगुवे आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 28 हे इस्राएल के लोगों, परमेश्वर ने हमारे गोत्रों को बहुत दृढ़ बना दिया है। +\q2 हे परमेश्वर, अपनी शक्ति से हमारी सहायता करें जैसे आपने अतीत में हमारी सहायता की थी। +\q1 +\v 29 यरूशलेम में अपने मन्दिर में हमें दिखाएँ कि आप शक्तिशाली हैं; +\q2 वहाँ राजा आपके लिए उपहार लाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 जब आप अपने शत्रुओं को पराजित करते हैं जैसे कि मिस्र के लोग, जो कि सरकण्डों के बीच में रहने वाले जंगली पशुओं के समान हैं, तब वे जयजयकार करें। +\q1 जब आप शक्तिशाली राष्ट्रों को पराजित करते हैं, जो बैलों के झुण्ड के समान हैं, तब वे जयजयकार करें। +\q1 उन्हें लज्जित करें; उन्हें झुकाएँ कि वे आपको उपहार दें। +\q2 उन लोगों के समूह को तितर-बितर करें जो अन्य देशों पर आक्रमण करना पसन्द करते हैं। +\q1 +\v 31 तब मिस्र के अगुवे आपके लिए उपहार लाएँगे। +\q2 तब इथियोपिया के लोग आपकी स्तुति करने के लिए अपने हाथ उठाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 32 हे संसार भर के साम्राज्यों के सब नागरिकों, परमेश्वर के लिए गाओ! +\q1 यहोवा की स्तुति गाओ! +\q1 +\v 33 परमेश्वर के लिए गाओ, जो आकाश में सवारी करते हैं, +\q2 उस आकाश पर जिसे उन्होंने बहुत पहले बनाया था। +\q1 जब वह शक्तिशाली आवाज़ के साथ पुकारते हैं, तो उनकी सुनो। +\q1 +\s5 +\v 34 घोषणा करो कि परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 वह राजा है जो इस्राएल पर शासन करते हैं, +\q2 और आकाश में भी वह यह दिखाते हैं कि वह शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 35 परमेश्वर जब अपने पवित्र मन्दिर से बाहर आते हैं, तब वह बहुत अद्भुत हैं; +\q2 वही परमेश्वर हैं जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं। +\q1 वह अपने लोगों को शक्ति और बल देते हैं। +\q1 परमेश्वर की स्तुति करो! + +\s5 +\c 69 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मुझे बचाएँ +\q2 क्योंकि मैं बहुत खतरे में हूँ। +\q2 ऐसा लगता है जैसे बाढ़ का पानी मेरी गर्दन तक है, और मैं डूबने वाला हूँ। +\q1 +\v 2 मैं दलदल में डूब रहा हूँ, +\q2 और मेरे लिए खड़े होने के लिए कोई ठोस भूमि नहीं है। +\q1 मैं गहरे पानी में हूँ, +\q2 और बाढ़ का पानी मेरे चारों ओर बढ़ रहा है। +\q1 +\s5 +\v 3 मैं सहायता के लिए पुकारते-पुकारते थक गया हूँ; +\q2 मेरा गला बहुत सूख गया है। +\q1 क्योंकि मैं बहुत रोया हूँ जब मैं परमेश्वर की सहायता के लिए प्रतीक्षा कर रहा था, +\q2 इसलिए मेरी आँखें आँसुओं के कारण सूज गई हैं। +\q1 +\v 4 जो मुझसे अकारण घृणा करते हैं, +\q2 वे मेरे सिर पर बालों की संख्या से अधिक हैं! +\q1 जो लोग मुझसे छुटकारा पाना चाहते हैं वे बलवन्त हैं, +\q2 और वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। +\q1 वे माँग करते हैं कि मैं उन वस्तुओं को लौटा दूँ जिनकी मैंने चोरी नहीं की थी! +\q1 +\s5 +\v 5 हे परमेश्वर, मैंने जो पाप किए हैं, उन्हें आप देखते हैं। +\q2 आप जानते हैं कि मैंने मूर्खतापूर्वक आपके नियमों का उल्लंघन किया है। +\q1 +\v 6 हे यहोवा परमेश्वर, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, +\q2 मैंने जो गलत कार्य किया है उसके कारण +\q2 उन लोगों को निराश होने न दें जो आप पर भरोसा करते हैं। +\q1 हे परमेश्वर, जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, +\q2 मुझे उनके लिए लज्जा का कारण होने न दें। +\q1 +\s5 +\v 7 लोगों ने मुझे अपमानित किया है क्योंकि मैं आपको समर्पित हूँ। +\q2 उन्होंने मेरा बहुत अपमान किया है। +\q1 +\v 8 यहाँ तक कि मेरे बड़े भाई भी ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे मुझे नहीं जानते; +\q2 वे मुझसे एक विदेशी का सा व्यवहार करते हैं। +\q1 +\v 9 कुछ लोगों ने आपके मन्दिर को तुच्छ जाना है; +\q2 परन्तु मैंने आपके मन्दिर को पवित्र रखने का प्रयास किया है, इसलिए लोगों ने मेरे लिए परेशानी उत्पन्न की है। +\q1 ऐसा लगता है कि जो लोग आपका अपमान कर रहे हैं वे भी मेरा अपमान कर रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 जब मैंने स्वयं को नम्र किया और उपवास किया +\q2 कि आपके मन्दिर में किए गए अपमानजनक कार्यों के विषय में अपनी उदासी दिखाऊँ, +\q2 तो उससे मेरा अपमान ही हुआ है। +\q1 +\v 11 जब मैंने टाट का वस्त्र पहना, यह दिखाने के लिए कि मैं उदास हूँ, +\q2 वे मुझ पर हँसते हैं। +\q1 +\v 12 यहाँ तक कि शहर के वृद्ध भी मेरे विषय में बुरी बातें कहते हैं। +\q2 शहर के शराबी मेरे विषय में घृणित गीत गाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 परन्तु यहोवा, मैं आप से प्रार्थना करता रहूँगा। +\q1 अपने चुने हुए समय में, मुझे उत्तर दें और मुझे बचाएँ +\q2 क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, जिसकी आपने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 14 मुझे दलदल में धँस जाने न दें। +\q1 उन लोगों से मुझे बचाएँ जो मुझसे घृणा करते हैं! +\q2 मुझे गहरे पानी से बाहर निकालें! +\q1 +\v 15 बाढ़ को मुझे चारों ओर से घेरने न दें; +\q2 दलदल को मुझे निगलने न दें; +\q2 मुझे मृत्यु के गड्ढे में डूबने से बचाएँ। +\q1 +\s5 +\v 16 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना का उत्तर दें और मेरी सहायता करें +\q2 क्योंकि आप भले हैं +\q2 मैं आपके प्रेम पर निर्भर हो सकता हूँ। +\q2 आपने मुझे उतना दण्ड नहीं दिया है, जिसके मैं योग्य था। +\q1 मुझे पता है आप मेरी बात सुनेंगे! +\q1 +\v 17 अपने आपको मुझसे न छिपाएँ; +\q1 मुझे शीघ्र उत्तर दें +\q2 क्योंकि मैं बड़ी परेशानी में हूँ। +\q1 +\s5 +\v 18 मेरे पास आएँ और मुझे बचाएँ; +\q1 मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ। +\q1 +\v 19 आप जानते हैं कि मेरा अपमान हुआ है +\q2 और लोग मुझे लज्जित और अपमानित करते हैं; +\q1 आप जानते हैं कि मेरे शत्रु कौन हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 उनके अपमान ने मुझे गहरा दुख दिया है, +\q2 और मैं असहाय हूँ। +\q1 मैंने किसी ऐसे व्यक्ति की खोज की जो मुझ पर दया करे, +\q2 परन्तु कोई नहीं था। +\q1 मैं चाहता था कि कोई मुझे प्रोत्साहित करे, +\q2 परन्तु कोई नहीं था। +\q1 +\v 21 इसकी अपेक्षा, उन्होंने मुझे खाने के लिए जो भोजन दिया वह स्वाद में विष के समान लगा, +\q2 और जब मैं प्यासा था, उन्होंने मुझे पीने के लिए खट्टा दाखरस दिया। +\q1 +\s5 +\v 22 मुझे आशा है कि उनका अपना भोजन उन्हें मार डालेगा; +\q2 मुझे आशा है कि ऐसा तब होगा जब वे सोचेंगे कि वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं। +\q1 +\v 23 मुझे आशा है कि उनकी आँखें मन्द हो जाएँगी जिसके कारण वे कुछ भी देख न सकेंगे +\q2 और उनकी पीठ कमजोर से और कमजोर हो जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 24 उन्हें दिखाएँ कि आप उनके साथ बहुत क्रोधित हैं! +\q2 अपने महान क्रोध के कारण, उनका पीछा करें और उन्हें पकड़ें। +\q1 +\v 25 उनके नगरों को उजाड़ दें; +\q2 उनके तम्बू में रहने के लिए कोई भी न हो। +\q1 +\s5 +\v 26 ऐसा इसलिए करें कि वे उन लोगों को पीड़ित करते हैं जिन्हें आपने दण्ड दिया है, +\q2 वे देखते हैं कि जिन लोगों को आपने दण्ड दिया है, वे कैसे पीड़ित हैं, और वे दूसरों को इसके विषय में बताते हैं। +\q1 +\v 27 उनके सब पापों का लेखा रखें, +\q2 उन बुरे कार्यों के लिए उन्हें दण्ड देने में असफल न हों जो उन्होंने किए हैं। +\q1 +\s5 +\v 28 उन पुस्तकों से उनके नाम मिटाएँ जिनमें अनन्त जीवन पाने वालों के नाम हैं; +\q2 उन्हें धर्मी लोगों की सूची में न रखें। +\q1 +\v 29 मुझे तो दर्द है और मैं पीड़ित हूँ। +\q2 हे परमेश्वर, मेरी रक्षा करें और मुझे बचाएँ। +\q1 +\s5 +\v 30 जब परमेश्वर ऐसा करते हैं, और जब मैं परमेश्वर की स्तुति करता हूँ, तब मैं गाऊँगा, +\q2 और मैं उनको धन्यवाद दे कर उनका सम्मान करूँगा। +\q1 +\v 31 मेरा ऐसा करना, यहोवा को बैलों की बलि से अधिक प्रसन्न करेगा, +\q2 हष्ट-पुष्ट बैल की बलि चढ़ाने से अधिक। +\q1 +\s5 +\v 32 पीड़ित लोग देखेंगे कि परमेश्वर ने मुझे बचा लिया है, +\q2 और वे आनन्दित होंगे। +\q1 मैं चाहता हूँ कि जो लोग उनकी सहायता करने के लिए परमेश्वर से अनुरोध करते हैं वे प्रोत्साहित हों। +\q1 +\v 33 यहोवा उन लोगों की सुनते हैं जो आवश्यकता में हैं; +\q2 वह उन लोगों को अनदेखा नहीं करते हैं जो उनके लिए पीड़ित होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 34 मैं चाहता हूँ कि सब परमेश्वर की स्तुति करें— +\q2 स्वर्ग और पृथ्‍वी पर और समुद्र में रहने वाले सब प्राणी। +\q1 +\v 35 परमेश्वर यरूशलेम के लोगों को उनके शत्रुओं से बचाएँगे, +\q2 और वह यहूदा के नगरों का पुनर्निर्माण करेंगे। +\q1 उनके लोग वहाँ फिर से रहेंगे और फिर उस भूमि पर अधिकार करेंगे। +\q1 +\v 36 उनके लोगों के वंशज इसके वारिस होंगे, +\q2 और जो लोग उनसे प्रेम करते हैं वे वहाँ सुरक्षित रहेंगे। + +\s5 +\c 70 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया दाऊद का एक भजन, दाऊद की सहायता करने के लिए परमेश्वर से निवेदन किया गया है। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, कृपया मुझे बचाएँ! +\q2 हे यहोवा, मेरी सहायता करने के लिए शीघ्र आएँ! +\q1 +\v 2 उन लोगों को अपमानित करें जो मेरी परेशानियों से प्रसन्न होते हैं, जो मुझे मारने का प्रयास कर रहे हैं। +\q2 उनका पीछा करें; सब लोग उन्हें लज्जित करें, क्योंकि वे मुझे पीड़ित होता देखना चाहते हैं। +\q1 +\v 3 मैं आशा करता हूँ कि आप उन्हें निराश और लज्जित करेंगे +\q2 क्योंकि वे मेरी परेशानियों के विषय में प्रसन्न हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु मुझे आशा है कि जो आप से प्रार्थना करते हैं वह आपके कारण प्रसन्न होंगे। +\q2 मुझे आशा है कि हर कोई जो उन्हें बचाने के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहा है, वे कहेंगे, +\q1 “परमेश्वर महान हैं!” +\q1 +\v 5 मैं तो गरीब हूँ और आवश्यकता में घिरा हूँ; +\q2 इसलिए परमेश्वर, मेरी सहायता करने के लिए शीघ्र आएँ! +\q1 हे यहोवा, आप ही मुझे बचाते हैं और मेरी सहायता करते हैं, +\q2 इसलिए कृपया शीघ्र आएँ! + +\s5 +\c 71 +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं सुरक्षा के लिए आपके पास आया हूँ; +\q2 मुझे लज्जित होने न दें। +\q1 +\v 2 क्योंकि आप सदा वही करते हैं जो उचित हैं, इसलिए मेरी सहायता करें और मुझे बचाएँ; +\q2 मेरी बात सुनें, और मुझे बचाएँ! +\q1 +\v 3 मेरे लिए एक विशाल चट्टान के समान बनें जिसके ऊपर मैं सुरक्षित रह सकता हूँ; +\q1 मेरे लिए एक दृढ़ किले के समान हों जिसमें मैं सुरक्षित रहूँ। +\q1 आपने अपने स्वर्गदूतों को मुझे बचाने के लिए आदेश दिया है। +\q1 +\s5 +\v 4 हे परमेश्वर, मुझे दुष्ट लोगों से बचाएँ, +\q2 अन्यायपूर्ण और बुरे पुरुषों की शक्ति से बचाएँ। +\q1 +\v 5 हे यहोवा, हे मेरे प्रभु, आप ही वह हैं जिनसे मैं विश्वास के साथ आशा करता हूँ कि आप मेरी सहायता करेंगे; +\q2 जब से मैं युवा था तब से मैंने आप पर भरोसा किया है। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं अपने पूरे जीवन आप पर निर्भर रहा हूँ; +\q2 जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, उस दिन से आपने मेरा ध्यान रखा है, +\q1 इसलिए मैं सदा आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 7 जिस प्रकार आपने मुझे बचाया है वह कई लोगों के लिए एक उदाहरण रहा है +\q2 क्योंकि वे देख सकते हैं कि आप मेरे सामर्थी रक्षक हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं पूरे दिन आपकी स्तुति करता हूँ, +\q2 और मैं घोषणा करता हूँ कि आप गौरवशाली हैं। +\q1 +\v 9 अब जब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, तो मुझे अस्वीकार न करें; +\q2 अब मुझे छोड़ न दें जब मैं अब दुर्बल हूँ। +\q1 +\s5 +\v 10 मेरे शत्रु कहते हैं कि वे मुझे मारना चाहते हैं; +\q2 वे एक साथ बात करते हैं और योजना बनाते हैं कि वे ऐसा कैसे कर सकते हैं। +\q1 +\v 11 वे कहते हैं, “परमेश्वर ने उसे त्याग दिया है; +\q2 तो अब हम उसका पीछा कर सकते हैं और उसे पकड़ सकते हैं +\q2 क्योंकि कोई भी नहीं है जो उसे बचाएगा।” +\q1 +\s5 +\v 12 हे परमेश्वर, मुझसे दूर न रहें; +\q2 मेरी सहायता करने के लिए शीघ्रता करें! +\q1 +\v 13 जो मुझ पर आरोप लगाते हैं, उन्हें पराजित और नष्ट करें; +\q2 वे लोग जो मुझे हानि पहुँचाना चाहते हैं, उन्हें लज्जित करें और अपमानित करें। +\q1 +\s5 +\v 14 परन्तु, मैं आत्मविश्वास से सदा आशा करता हूँ कि आप मेरे लिए महान कार्य करेंगे, +\q2 और मैं आपकी अधिक से अधिक स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 15 मैं लोगों को बताऊँगा कि आप जो सदैव उचित कार्य करते हैं; +\q1 दिन में मैं लोगों को बताऊँगा कि आपने मुझे कैसे बचाया है, +\q2 यद्दपि आपने जो कार्य किए हैं उन्हें समझने में मैं असमर्थ हूँ, क्योंकि वे बहुत अधिक हैं। +\q1 +\v 16 हे यहोवा, हे मेरे प्रभु, मैं आपके पराक्रमी कर्मों के लिए आपकी स्तुति करूँगा; +\q2 मैं घोषणा करूँगा कि केवल आप ही सदा न्याय के कार्य करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 हे परमेश्वर, जब से मैं युवा था, आपने मुझे बहुत बातें सिखाई हैं, +\q2 और मैं अभी भी लोगों को आपके अद्भुत कर्मों के विषय में बताता हूँ। +\q1 +\v 18 अब, हे परमेश्वर, जब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और मेरे बाल सफेद हैं, +\q2 मुझे छोड़ न दें। +\q1 मेरे साथ रहें जबकि मैं अपने बच्चों और नाती-पोतों में प्रचार करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 19 हे परमेश्वर, आप कई धर्म के कार्य करते हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि वे आकाश तक फैले हुए हैं। +\q1 आपने महान कार्य किए हैं; +\q2 आपके जैसा कोई नहीं है। +\q1 +\v 20 आपने हमें अनेक परेशानियाँ और बहुत पीड़ाएँ दीं हैं, +\q1 परन्तु आप हमें फिर से दृढ़ बनाएँगे; +\q1 जब मैं लगभग मर चुका हूँ, तो आप मुझे जीवित रखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 21 आप मेरे लिए सम्मानित होने का कारण बनेंगे, +\q2 और आप मुझे फिर से प्रोत्साहित करेंगे। +\q1 +\v 22 जब मैं अपनी वीणा बजाता हूँ, तब मैं आपकी स्तुति करूँगा; +\q1 मैं परमेश्वर की स्तुति करूँगा, क्योंकि आपने सच्चाई से वही किया है, जिसे करने की आपने प्रतिज्ञा की है। +\q1 हे पवित्र परमेश्वर जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, मैं आपकी स्तुति करने के लिए भजन गाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 23 मैं गाते हुए आनन्द से चिल्लाऊँगा; +\q1 मैं अपने पूरे मन से गाऊँगा +\q2 क्योंकि आपने मुझे बचा लिया है। +\q1 +\v 24 दिन में मैं लोगों को बताऊँगा कि आप धर्म से कार्य करते हैं +\q2 क्योंकि जो लोग मुझे हानि पहुँचाना चाहते थे वे हार गए और अपमानित हो गए हैं। + +\s5 +\c 72 +\d सुलैमान द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, जिस राजा को आपने इस्राएल में नियुक्त किया है उसे न्याय करने के योग्य करें। +\q2 उसे दिखाएँ कि न्याय कैसे करना है +\q1 +\v 2 जिससे कि वह आपके लोगों का न्याय कर सके +\q2 और वह आपके पीड़ित लोगों को न्याय से नियंत्रित कर सके। +\q1 +\v 3 मैं चाहता हूँ कि पूरे देश में—पहाड़ियों और पर्वतों पर भी— +\q2 लोग शान्ति और धर्म से रहें। +\q1 +\s5 +\v 4 गरीबों की रक्षा करने के लिए अपने राजा की सहायता करें +\q2 और आवश्यकता में पड़े लोगों को बचाने में और उन लोगों को पराजित करने के लिए सहायता करें, जो उन्हें दण्ड देते हैं। +\q1 +\v 5 मैं चाहता हूँ कि आपका राजा सदा के लिए जीवित रहे, जब तक सूर्य चमकता है, +\q2 और जब तक चँद्रमा चमकता है। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं चाहता हूँ कि उसके शासन का आनन्द लोग ले सकें +\q2 जैसे वे बढ़ती फसलों पर वर्षा का आनन्द लेते हैं, +\q2 जैसे वे भूमि पर गिरने वाले बौछार का आनन्द लेते हैं। +\q1 +\v 7 मुझे आशा है कि उसके शासन में लोग धार्मिक रूप से रह सकें +\q2 और जब तक चँद्रमा चमकता है तब तक लोग शान्तिपूर्वक और समृद्ध रह सकें। +\q1 +\s5 +\v 8 मुझे आशा है कि इस्राएल का राजा लोगों पर शासन करे, +\q2 पूर्व में समुद्र से ले कर पश्चिम में दूसरे समुद्र तक के पूरे क्षेत्र में +\q2 और फरात नदी से पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों तक शासन करे। +\q1 +\v 9 मुझे आशा है कि जो लोग जंगल में रहते हैं वे उसके सामने झुकें +\q2 और उसके शत्रु हमारे राजा के अधीन होकर उसके सामने भूमि पर गिर पड़ें। +\q1 +\v 10 मुझे आशा है कि तर्शीश देश के राजा और समुद्र के द्वीपों के राजा इस्राएल के राजा को कर का भुगतान करें। +\q2 मुझे आशा है कि दक्षिण में शेबा का राजा और दक्षिण-पश्चिम में सबा का राजा उसे उपहार दें। +\q1 +\s5 +\v 11 मुझे आशा है कि संसार के अन्य सब राजा इस्राएल के राजा के सामने झुकें +\q2 और सब राष्ट्रों के लोग हमारे राजा की सेवा करें। +\q1 +\v 12 जब गरीब लोग सहायता के लिए रोते हैं तो वह उन्हें बचाता है, +\q2 और वह उन लोगों की सहायता करता है जो आवश्यकता में हैं और जिनके पास सहायता करने के लिए कोई नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 13 वह दुर्बलों और आवश्यकता में घिरे हुओं पर दया करता है; +\q2 वह लोगों के जीवन को बचाता है। +\q1 +\v 14 हमारा राजा लोगों को पीड़ित होने और उनके साथ क्रूरता से व्यवहार होने से बचाता है +\q2 क्योंकि उनके जीवन हमारे राजा के लिए बहुमूल्य हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 मुझे आशा है कि हमारा राजा लम्बे समय तक जीवित रहे! +\q2 मुझे आशा है कि उसे शेबा से सोना दिया जाए। +\q1 मैं चाहता हूँ कि लोग सदा हमारे राजा के लिए प्रार्थना करें +\q2 और दिन के हर समय उसकी प्रशंसा करें। +\q1 +\v 16 मुझे आशा है कि हर स्थान में खेत बहुत अनाज का उत्पादन करे, यहाँ तक कि उस देश में पहाड़ियों की चोटियों पर भी अनाज का उत्पादन हो, जहाँ वह शासन करता है, +\q2 उस अनाज के समान जो लबानोन की पहाड़ियों पर उगते हैं। +\q1 मुझे आशा है कि इस्राएल के शहर लोगों से भरे रहें +\q2 जैसे खेत घास से भरे हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 मैं चाहता हूँ कि राजा का नाम कभी भुलाया न जाए। +\q2 मुझे आशा है कि जब तक सूर्य चमकता है तब तक लोग उसे स्मरण रखें। +\q1 मुझे आशा है कि सब लोग इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति करें, +\q2 जैसे उन्होंने इस्राएल के राजा को आशीष दिया है। +\q1 +\s5 +\v 18 यहोवा की स्तुति करें, जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं; +\q2 केवल वही अद्भुत कार्य करते हैं। +\q1 +\v 19 उनकी सदा के लिए स्तुति करें! +\q2 मैं चाहता हूँ कि उनकी महिमा पूरे संसार को भर दें! +\q2 आमीन! ऐसा ही हो! +\q1 +\v 20 यह यिशै के पुत्र दाऊद के द्वारा लिखी गई प्रार्थनाओं का अन्त है। + +\s5 +\c 73 +\ms तीसरा भाग +\d आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर वास्तव में हम इस्राएली लोगों के लिए भले हैं, +\q2 उन लोगों के लिए, जो अपने पूरे मन से उनकी इच्छा के अनुसार सब कुछ करना चाहते हैं। +\q1 +\v 2 मैंने लगभग परमेश्वर में भरोसा करना त्याग दिया था; +\q1 मैं उनके विरुद्ध एक बड़ा पाप करने का लगभग दोषी था +\q1 +\v 3 क्योंकि मैंने उन लोगों को देखा जो गर्व से कहते थे कि उन्हें परमेश्वर की आवश्यकता नहीं थी, और मैं उनके जैसे बनना चाहता था। +\q2 मैंने देखा कि भले ही वे दुष्ट थे फिर भी वे धनवान बन गए थे। +\q1 +\s5 +\v 4 वे लोग बीमारी से पीड़ित नहीं हैं; +\q2 वे सदा बलवन्त और स्वस्थ होते हैं। +\q1 +\v 5 उन्हें अन्य लोगों के समान परेशानी नहीं है; +\q2 उन्हें समस्याएँ नहीं हैं जैसे अन्य लोगों को होती है। +\q1 +\s5 +\v 6 इसलिए वे घमण्डी हैं, एक सुन्दर हार पहनी स्त्री के समान वे घमण्डी हैं। +\q2 वे अपने हिंसक कार्यों पर गर्व करते हैं जैसे कुछ लोग अपने सुन्दर वस्त्रों पर गर्व करते हैं। +\q1 +\v 7 उनके मन में बुरे कर्म उपजते हैं, +\q2 और अपने मन में वे सदा और अधिक बुराई करने के विषय में सोचते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 वे अन्य लोगों का उपहास करते हैं, और वे उनके साथ बुराई करने के विषय में बात करते हैं; +\q1 वे घमण्ड करते हैं जबकि वे दूसरों का दमन करने की योजना बनाते हैं। +\q1 +\v 9 वे स्वर्ग के परमेश्वर के विषय में बुरी बातें कहते हैं, +\q2 और वे पृथ्‍वी पर किए गए उनके कार्यों के विषय में गर्व से बात करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 परिणाम यह है कि लोग उन पर ध्यान देते हैं +\q2 और वे जो कुछ भी कहते हैं उसे सुनते हैं। +\q1 +\v 11 दुष्ट लोग स्वयं से कहते हैं, “परमेश्वर निश्चित रूप से नहीं जानते हैं कि हमने क्या किया है; +\q2 लोग कहते हैं कि वह किसी अन्य देवता से महान हैं, परन्तु वह ढूँढ़ नहीं सकते हैं।” +\q1 +\v 12 दुष्ट लोग ऐसे ही हैं; +\q2 वे किसी भी बात के विषय में चिन्ता नहीं करते हैं, और वे सदा धनवान बन रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 इसलिए, हे परमेश्वर, मुझे लगता है कि यह व्यर्थ है कि मैंने सदा वही किया है जो आप चाहते हैं +\q2 और यह व्यर्थ है कि मैंने पाप नहीं किए। +\q1 +\v 14 प्रतिदिन मुझे समस्याएँ होती हैं, +\q2 और हर सुबह आप मुझे दण्ड देते हैं। +\q1 +\v 15 परन्तु यदि मैंने इन बातों को दूसरों के सामने ऊँचे शब्द से कहा होता, +\q2 तो मैं आपके लोगों के विरुद्ध पाप कर रहा होता। +\q1 +\s5 +\v 16 जब मैंने इन बातों के विषय में सोचने का प्रयास किया, +\q2 मेरे लिए उन्हें समझना बहुत कठिन था। +\q1 +\v 17 परन्तु जब मैं आपके मन्दिर गया, तो आपने मुझसे बात की, +\q2 और मैं समझ गया कि दुष्ट लोगों के मरने के बाद उनके साथ क्या होगा। +\q1 +\s5 +\v 18 अब मुझे पता है कि आपने निश्चित रूप से उन्हें खतरनाक स्थानों में रखा है +\q2 जहाँ वे गिरेंगे और मर जाएँगे। +\q1 +\v 19 वे तुरन्त नष्ट हो जाएँगे; +\q2 वे भयानक रीति से मर जाएँगे। +\q +\v 20 जिस प्रकार जब कोई व्यक्ति सुबह को जागता है तो उसके स्वप्न मिट जाते हैं, उसी प्रकार वे शीघ्र ही मिट जाएँगे; +\q2 हे प्रभु, जब आप उठेंगे, तो आप उन्हें मिटा देंगे। +\q1 +\s5 +\v 21 जब मैं अपने मन में दुखी था +\q1 और मेरी भावनाओं को चोट लगी थी, +\q1 +\v 22 मैं मूर्ख और अज्ञानी था, +\q2 और मैंने आपके प्रति पशु का सा व्यवहार किया। +\q1 +\s5 +\v 23 परन्तु मैं सदा आपके निकट हूँ, +\q1 और आप मेरा हाथ पकड़ते हैं। +\q1 +\v 24 आप मुझे सिखा कर मेरा मार्गदर्शन करते हैं, +\q2 और मेरे जीवन के अन्त में, आप मुझे स्वीकार करेंगे और मुझे सम्मान देंगे। +\q1 +\s5 +\v 25 आप स्वर्ग में हैं, और मैं आपका हूँ; +\q1 इस धरती पर कुछ भी नहीं है जो मैं इससे अधिक चाहता हूँ। +\q1 +\v 26 मेरा शरीर और मेरा मन बहुत दुर्बल हो सकता है, +\q2 परन्तु, हे परमेश्वर, आप मुझे बलवन्त होने में समर्थ बनाते हैं; +\q2 मैं सदा के लिए आपका हूँ। +\q1 +\s5 +\v 27 जो लोग आप से दूर रहते हैं वे नष्ट हो जाएँगे; +\q1 आप उन लोगों से छुटकारा पाएँगे जो आपको त्याग देते हैं। +\q1 +\v 28 परन्तु मेरे लिए परमेश्वर के निकट होना +\q2 और यहोवा मेरे रक्षक होना +\q2 और दूसरों को घोषित करना कि जो उन्होंने मेरे लिए किया है, वह अद्भुत है। + +\s5 +\c 74 +\d आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर, आपने हमें क्यों छोड़ दिया है? +\q2 क्या आप सदा के लिए हमें अस्वीकार करेंगे? +\q1 आप हमारे साथ क्रोधित क्यों हैं +\q2 क्योंकि हम आपकी चारागाह में भेड़ों के समान हैं और आप हमारे चरवाहे के समान हैं? +\q1 +\v 2 अपने लोगों को न भूलें जिन्हें आपने बहुत पहले चुना था, +\q2 जिन लोगों को आपने मिस्र में दास होने से मुक्त करके अपनी जाति बना लिया। +\q1 यरूशलेम को न भूलें, जो इस धरती पर आपका घर है। +\q1 +\s5 +\v 3 चलकर देखें कि सब कुछ पूरी तरह से नष्ट हो गया है; +\q2 हमारे शत्रुओं ने पवित्र मन्दिर में सब कुछ नष्ट कर दिया है। +\q1 +\v 4 आपके शत्रु इस पवित्रस्थान में जयजयकार कर रहे हैं; +\q1 उन्होंने अपने झण्डे लगाए कि यह दिखाया जा सके कि उन्होंने हमें पराजित किया है। +\q1 +\v 5 उन्होंने मन्दिर में खुदी हुई सब वस्तुओं को काट दिया जैसे लकड़हारे पेड़ों को काटते थे। +\q1 +\v 6 तब उन्होंने नक्काशीदार सब लकड़ियों को अपनी कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से तोड़ दिया। +\q1 +\s5 +\v 7 उन्होंने आपके पवित्रस्थान को जला दिया; +\q2 उन्होंने उस स्थान को जहाँ आपकी आराधना होती थी, लोगों की आराधना के लिए अयोग्य कर दिया है। +\q1 +\v 8 उन्होंने स्वयं से कहा, “हम पूरी तरह से इस्राएलियों को नष्ट कर देंगे,” +\q2 और उन्होंने उन सब स्थानों को भी जला दिया जहाँ हम आपकी आराधना करने के लिए एकत्र होते थे। +\q1 +\s5 +\v 9 हमारे सब पवित्र प्रतीक नष्ट हो गए हैं; +\q2 अब कोई भविष्यद्वक्ता नहीं हैं, +\q2 और कोई भी नहीं जानता कि यह स्थिति कितनी देर तक रहेगी। +\q1 +\v 10 हे परमेश्वर, हमारे शत्रु कितने समय तक आपका उपहास करेंगे? +\q1 क्या वे आपका अपमान करेंगे? +\q1 +\v 11 आप हमारी सहायता करने से इन्कार क्यों करते हैं? +\q2 आप अपने शत्रुओं को नष्ट करने के लिए अपने हाथों का उपयोग करने की अपेक्षा अपने कपड़ों में क्यों रखते हैं? +\q1 +\s5 +\v 12 हे परमेश्वर, हमारे मिस्र से निकलने के बाद सदा के लिए आप हमारे राजा रहे हैं, +\q1 और आपने हमें इस्राएल की भूमि में हमारे शत्रुओं को हराने के लिए समर्थ किया है। +\q1 +\v 13 अपनी शक्ति से आपने समुद्र को विभाजित कर दिया; +\q2 ऐसा लगता था कि आपने मिस्र के शासकों के सिर तोड़ दिए थे जो विशाल समुद्री अजगर के समान थे। +\q1 +\s5 +\v 14 ऐसा लगता था कि आपने मिस्र के राजा के सिर को कुचल दिया था +\q2 और उसके शरीर को रेगिस्तान के पशुओं को खाने के लिए दिया। +\q1 +\v 15 आपने सोते और धाराओं को बहने का कारण बना दिया, +\q2 और आपने उन नदियों को भी सुखा दिया जो पहले कभी भी सूखी नहीं थी। +\q1 +\s5 +\v 16 आपने दिन और रात बनाएँ, +\q2 और आपने सूर्य और चँद्रमा को उनके स्थानों में रखा है। +\q +\v 17 आपने निर्धारित किया कि महासागर कहाँ समाप्त होते हैं और भूमि का आरम्भ कहाँ से है, +\q2 और आपने ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु का निर्माण किया। +\q1 +\s5 +\v 18 हे यहोवा, यह न भूलें कि आपके शत्रु आप पर हँसते हैं +\q1 और यह मूर्ख लोग हैं जो आपको तुच्छ मानते हैं। +\q1 +\v 19 अपने असहाय लोगों को उनके क्रूर शत्रुओं के हाथों में न छोड़ें; +\q1 अपने पीड़ित लोगों को न भूलें। +\q1 +\s5 +\v 20 हमारे साथ बाँधी गई वाचा के विषय में सोचते रहें; +\q2 स्मरण रखें कि धरती पर हर अँधेरे स्थान पर हिंसक लोग हैं। +\q1 +\v 21 अपने पीड़ित लोगों को अपमानित न होने दें; +\q2 उन गरीब और आवश्यकता में घिरे लोगों की सहायता करें कि वे फिर से आपकी स्तुति कर सकें। +\q1 +\s5 +\v 22 हे परमेश्वर, उठकर अपने लोगों की रक्षा करके स्वयं का बचाव करें! +\q1 यह न भूलें कि मूर्ख लोग दिन भर आप पर हँसते हैं! +\q1 +\v 23 न भूलें कि आपके शत्रु क्रोधित होकर आप पर चिल्लाते हैं; +\q2 जब वे आपका विरोध करते हैं, तब जो उथल-पुथल वे करते हैं उसका कोई अन्त नहीं है। + +\s5 +\c 75 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए आसाप द्वारा लिखित एक भजन, ‘नष्ट न करें’ की धुन का उपयोग करके गाया जाना चाहिए +\q1 +\p +\v 1 हम आपको धन्यवाद देते हैं; +\q2 हमारे परमेश्वर, हम आपका धन्यवाद करते हैं। +\q1 आप हमारे निकट हैं, +\q2 और हम दूसरों को उन अद्भुत कार्यों का वर्णन करते हैं जो आपने हमारे लिए किए हैं। +\q1 +\v 2 आपने कहा है, “मैंने एक समय नियुक्त किया है जब मैं लोगों का न्याय करूँगा, +\q2 और मैं हर किसी का न्याय धर्म से करूँगा। +\q1 +\v 3 जब धरती हिलती है +\q2 और धरती के सब प्राणी काँपते हैं, +\q1 मैं ही उनकी नींव स्थिर रखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं उन लोगों से कहता हूँ जो घमण्ड करते हैं, ‘डींग मारना बन्द करो!’ +\q1 और मैं दुष्ट लोगों से कहता हूँ, ‘यह दिखाने के लिए गर्व से कार्य न करो कि तुम कितने महान हो!’” +\q +\v 5 घमण्डी मत बनो, +\q2 और गर्व से बात मत करो! +\q1 +\v 6 जो व्यक्ति लोगों का न्याय करते हैं वे पूर्व या पश्चिम से नहीं आते हैं, +\q1 और वह रेगिस्तान से नहीं आते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 परमेश्वर ही लोगों का न्याय करते हैं; +\q2 वह कुछ को लज्जित करते हैं और दण्ड देते हैं, और वह दूसरों को सम्मानित करते हैं। +\q1 +\v 8 ऐसा लगता है कि यहोवा ने अपने हाथ में एक कटोरा रखा था; +\q2 यह दाखरस से भरा हुआ है जिसमें मसाले मिलाए गए हैं कि उसे पीने वालों को नशा चढ़े; +\q1 और जब यहोवा इसे उण्डेलते हैं, तब वह सब दुष्ट लोगों को उसे पीने के लिए विवश करेंगे; +\q2 वे इसकी हर एक बूँद पीएँगे; हाँ, वह उन्हें पूरी तरह से दण्ड देंगे। +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु मैं कभी वर्णन करना नहीं त्यागूँगा कि जिन परमेश्वर की याकूब आराधना करता था, उन्होंने क्या-क्या कार्य किए हैं; +\q1 मैं कभी भी उनकी स्तुति के गाने को बन्द नहीं करूँगा। +\q1 +\v 10 वह यह प्रतिज्ञा करते हैं: “मैं दुष्ट लोगों की शक्ति को नष्ट कर दूँगा, +\q1 परन्तु मैं धर्मी लोगों की शक्ति में वृद्धि करूँगा।” + +\s5 +\c 76 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए आसाप द्वारा लिखा गया एक भजन, जो तार वाले बाजों के साथ गाया जाए +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर ने उन्हें जानने के लिए यहूदा में लोगों को अवसर दिया है; +\q1 इस्राएली लोग उनका सम्मान करते हैं। +\q1 +\v 2 यरूशलेम में वह रहते हैं; +\q2 वह सिय्योन पर्वत पर रहते हैं। +\q1 +\v 3 वहाँ उन्होंने जलते हुए तीरों को तोड़ दिया जो उनके शत्रुओं ने चलाए थे, +\q2 और उन्होंने उनकी ढाल और तलवारें और अन्य हथियारों को भी तोड़ दिया जो उन्होंने युद्ध में उपयोग किए थे। +\q1 +\s5 +\v 4 हे परमेश्वर, आप शक्तिशाली हैं! आप एक महान राजा हैं +\q जब आप पर्वतों से लौटते हैं जहाँ आपने अपने शत्रुओं को होरिया था। +\q1 +\v 5 उनके वीर सैनिक मारे गए, और फिर उन लोगों को मार डालने वालों ने उन सब सैनिकों की वस्तुएँ ले लीं। +\q1 उन शत्रुओं की मृत्यु हो गई; +\q2 वास्तव में, उनमें से कोई भी अब और लड़ने में समर्थ नहीं थे। +\q1 +\s5 +\v 6 जब परमेश्वर जिनकी याकूब ने आराधना की, आपने अपने शत्रुओं को दण्ड दिया, +\q2 उनके घोड़े और उनके सवार नीचे गिर कर मर गए। +\q1 +\v 7 वास्तव में, आपने सबको डरा दिया है। +\q1 जब आप क्रोधित होते हैं और आप लोगों को दण्ड देते हैं, तो कोई भी इसे सहन नहीं कर सकता है। +\q1 +\s5 +\v 8 स्वर्ग से आपने घोषणा की कि आप लोगों का न्याय करेंगे, +\q2 और फिर पृथ्‍वी पर हर कोई डर गया और कुछ नहीं कहा +\q2 +\v 9 जब आप यह घोषणा करने के लिए उठे कि आप दुष्ट लोगों को दण्ड देंगे +\q2 और उन सबको बचाएँगे जिनका उन्होंने दमन किया था। +\q1 +\s5 +\v 10 जब आप उन लोगों को दण्ड देते हैं जिनके साथ आप क्रोधित हैं, तो आपके लोग आपकी स्तुति करेंगे, +\q2 और आपके शत्रु जो जीवित होंगे, वे आपके पर्व के दिनों में आपकी आराधना करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 इसलिए महान यहोवा को वह भेंट चढ़ाओ जो तुमने उन्हें देने की प्रतिज्ञा की थी; +\q2 आस-पास के लोगों के समूहों के सब लोगों को भी उनके लिए, उपहार भेजना चाहिए। +\q1 +\v 12 वह अगुवों को नम्र करते हैं, +\q2 और राजाओं को डराते हैं। + +\s5 +\c 77 +\d यदूतून नामक गायन मण्डली के निर्देशक के लिए आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 मैं परमेश्वर को पुकारूँगा; +\q1 मैं उन्हें ऊँचे शब्द से पुकारूँगा, और वह मेरी बात सुनेंगे। +\q1 +\s5 +\v 2 जिस समय मुझे परेशानी थी, मैंने यहोवा से प्रार्थना की; +\q2 रात के समय मैंने अपने हाथों को उठा कर प्रार्थना की थी, +\q2 परन्तु मुझे किसी से भी विश्राम नहीं मिला। +\q1 +\v 3 जब मैंने परमेश्वर के विषय में सोचा, तो मैं निराश हुआ; +\q1 जब मैंने उनके विषय में ध्यान किया, तो मैं निराश हो गया। +\q1 +\s5 +\v 4 रात में उन्होंने मुझे सोने से रोका; +\q2 मैं इतना चिन्तित था कि मुझे पता नहीं था कि क्या कहना है। +\q1 +\v 5 मैंने उन दिनों के विषय में सोचा जो बीत गए थे; +\q2 मुझे स्मरण आया कि पिछले वर्षों में क्या हुआ था। +\q1 +\s5 +\v 6 मैंने सारी रात इन बातों के विषय में सोचने में बिताई; +\q2 मैंने ध्यान किया, और मैंने स्वयं से पूछा: +\q1 +\v 7 “क्या यहोवा सदा के लिए मुझे अस्वीकार कर देंगे? +\q2 क्या वह कभी मुझसे प्रसन्न नहीं होंगे? +\q1 +\s5 +\v 8 क्या उन्होंने मुझसे सच्चा प्रेम करना छोड़ दिया है? +\q1 क्या वह मेरे लिए वह नहीं करेंगे जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की है? +\q1 +\v 9 परमेश्वर ने मुझ पर दया के कार्य करने की प्रतिज्ञा की है; क्या वह इसे भूल गए हैं? +\q2 क्योंकि वह मुझसे क्रोधित हैं, इसलिए क्या उन्होंने मुझ पर दयालु न होने का निर्णय लिया है?” +\q1 +\s5 +\v 10 मैंने कहा, “मेरे अत्याधिक दुखी होने का कारण यह है कि +\q1 ऐसा लगता है कि परमेश्वर, जो कि किसी अन्य देवता से महान हैं, अब हमारे लिए अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर रहे हैं।” +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु हे यहोवा, मैं आपके महान कर्मों को स्मरण करता हूँ; +\q2 मुझे वे अद्भुत बातें स्मरण हैं जो आपने अतीत में की थीं। +\q2 +\v 12 जो कुछ आपने किया है मैं उस पर ध्यान करता हूँ, +\q2 और मैं आपके शक्तिशाली कार्यों के विषय में सोचता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 13 हे परमेश्वर, जो कुछ भी आप करते हैं वह अद्भुत है; +\q2 निश्चित रूप से कोई परमेश्वर नहीं है जो आपके जैसा महान है! +\q1 +\v 14 आप परमेश्वर हैं, जो चमत्कार करते हैं; +\q2 आपने कई लोगों के समूहों को दिखाया है कि आप शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 15 अपनी शक्ति से आपने अपने लोगों को मिस्र से बचा लिया; +\q2 आपने उन लोगों को बचाया जो याकूब और उसके पुत्र यूसुफ के वंशज थे। +\q1 +\s5 +\v 16 ऐसा लगता था जैसे पानी ने आपको देखा और बहुत डर गया, +\q2 और यहाँ तक कि पानी के गहरे भाग काँप उठे। +\q +\v 17 बादलों से वर्षा हुई; +\q2 बहुत जोर से गर्जन का शब्द हुआ, +\q2 और बिजली सब दिशाओं में चमकी। +\q +\s5 +\v 18 बवण्डर में गरजने का शब्द हुआ जो आपकी वाणी थी! +\q2 बिजली चमकी, +\q1 और पृथ्‍वी हिल गई। +\q1 +\v 19 तब आप समुद्र के माध्यम से चले +\q2 उस पथ से जिसे आपने गहरे पानी में बनाया था, +\q2 परन्तु आपके पाँवों के चिन्ह नहीं दिखाई दिए। +\q1 +\v 20 जब मूसा और हारून आपके लोगों के अगुवे थे, +\q2 आपने अपने लोगों का नेतृत्व किया जैसे एक चरवाहा भेड़ों के झुण्ड की अगुवाई करता है। + +\s5 +\c 78 +\d आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे मेरे मित्रों, जो मैं तुम्हें सिखाने जा रहा हूँ उसे सुनो; +\q2 मैं जो कहूँगा उस पर सावधानीपूर्वक ध्यान दें। +\q1 +\v 2 मैं तुम्हें कुछ बातें बताने जा रहा हूँ जो बुद्धिमान लोगों ने कही हैं। +\q2 वे उन कार्यों के विषय में बताते हैं, जो बहुत पहले हुए थे, +\q2 वे बातें जिन्हें समझना कठिन था। +\q1 +\s5 +\v 3 ये वह बातें हैं जिन्हें हमने पहले सुना और जान लिया है, +\q2 वे बातें जिन्हें हमारे माता-पिता और दादा-दादी ने हमें बताया था। +\q1 +\v 4 हम इन बातों को हमारी संतानों को बताएँगे, +\q1 परन्तु हम यहोवा की शक्ति और उसके द्वारा किए गए महान कार्यों के विषय में +\q2 अपने पोतों को भी बताएँगे। +\q1 +\s5 +\v 5 उन्होंने इस्राएलियों को व्यवस्था और आज्ञाएँ दीं, +\q1 जो याकूब के वंशज हैं, +\q1 और उन्होंने हमारे पूर्वजों को इन्हें अपनी संतानों को सिखाने के लिए कहा। +\q1 +\v 6 उन्होंने यह आज्ञा इसलिए दी कि उनकी सन्तान भी उन्हें जान सकें +\q2 कि वे उन्हें अपनी सन्तानों को सिखा सकें। +\q1 +\s5 +\v 7 इस प्रकार, वे भी परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे +\q2 और उन कार्यों को नहीं भूलेंगे जो उन्होंने किए हैं; +\q1 इसके अतिरिक्त, वे उनके आदेशों का पालन करेंगे। +\q1 +\v 8 वे अपने पूर्वजों के समान नहीं होंगे, +\q2 जो बहुत हठीले थे और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते थे; +\q1 उन्होंने दृढ़ता से परमेश्वर में भरोसा नहीं रखा, +\q2 और उन्होंने केवल उनकी आराधना नहीं की। +\q1 +\s5 +\v 9 एप्रैम के गोत्र के सैनिकों के पास धनुष और तीर थे, +\q1 परन्तु वे अपने शत्रुओं से लड़ने के दिन अपने शत्रुओं से दूर भाग गए। +\q1 +\v 10 उन्होंने वह नहीं किया जो उन्होंने परमेश्वर के साथ सहमति की थी कि वे करेंगे; +\q2 उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने से मना कर दिया। +\q1 +\v 11 वे भूल गए कि उन्होंने क्या किया था; +\q2 वे उन चमत्कारों के विषय में भी भूल गए जो उन्होंने देखे थे। +\q1 +\s5 +\v 12 जबकि हमारे पूर्वज देख रहे थे, +\q1 परमेश्वर ने मिस्र में सोअन शहर के आस-पास के क्षेत्र में चमत्कार किए। +\q1 +\v 13 फिर उन्होंने लाल सागर को विभाजित कर दिया, +\q2 जिससे पानी दीवार के समान दोनों ओर खड़ा हो गया, +\q2 परिणामस्वरूप हमारे पूर्वज उसके बीच से सूखी भूमि पर चले। +\q1 +\v 14 उन्होंने दिन के समय एक उज्ज्वल बादल से +\q1 और रात के समय एक प्रज्वलित रोशनी से उनका नेतृत्व किया। +\q1 +\s5 +\v 15 उन्होंने जंगल में चट्टानों को विभाजित करके खोल दिया +\q1 और हमारे पूर्वजों को धरती की गहराई में से भरपूर पानी दिया। +\q1 +\v 16 उन्होंने चट्टान से पानी की एक धारा निकाली; +\q2 पानी एक नदी के समान बहा। +\q1 +\s5 +\v 17 परन्तु हमारे पूर्वज परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते रहे; +\q1 जंगल में उन्होंने उनके विरुद्ध विद्रोह किया जो किसी भी देवता से बड़े हैं। +\q1 +\v 18 यह माँग करके कि परमेश्वर उन्हें वह भोजन दें जो वे चाहते थे, +\q1 उन्होंने यह पता लगाने का प्रयास किया कि क्या वह सदा उन्हें वह देंगे जो वे उनसे माँगेंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 उन्होंने यह कहते हुए परमेश्वर का अपमान किया, “क्या परमेश्वर यहाँ इस रेगिस्तान में हमें भोजन दे सकते हैं? +\q1 +\v 20 यह सच है कि उन्होंने चट्टान पर मारा, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप पानी निकल गया, +\q1 परन्तु क्या वह हमारे लिए, जो उनके लोग हैं, रोटी और माँस भी दे सकते हैं?” +\q1 +\s5 +\v 21 जब यहोवा ने यह सुना, तो वह बहुत क्रोधित हो गए, +\q2 और उन्होंने कुछ इस्राएली लोगों को जलाने के लिए अपनी आग भेजी। +\q2 +\v 22 उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन लोगों ने उन पर भरोसा नहीं रखा था, +\q2 और उन्होंने विश्वास नहीं किया कि वह उन्हें छुड़ाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 23 परन्तु परमेश्वर ने आकाश से उनसे बातें की +\q2 और उसे द्वार के समान खुलने का आदेश दिया, +\q1 +\v 24 और फिर भोजन वर्षा के समान गिरा, +\q3 वह भोजन जिसे उन्होंने “मन्ना” नाम दिया। +\q2 परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग से अन्न दिया। +\q1 +\v 25 इस प्रकार लोगों ने स्वर्गदूतों का भोजन खाया, +\q2 और परमेश्वर ने उन्हें उतना मन्ना दिया जितना वे चाहते थे। +\q1 +\s5 +\v 26 बाद में, उन्होंने हवा को पूर्व से चला दिया, +\q2 और अपनी शक्ति से उन्होंने दक्षिण से भी हवा भेजी, +\q1 +\v 27 और हवाएँ पक्षियों को लाई +\q2 जो समुद्र के किनारे रेत के कणों के समान असंख्य थे। +\q1 +\v 28 परमेश्वर ने उन पक्षियों को उनके छावनी के बीच में गिराया। +\q2 उनके तम्बू के चारों ओर पक्षी थे। +\q1 +\s5 +\v 29 तब लोगों ने पक्षियों को पकाया और माँस खा लिया; उनके पेट भर गए थे +\q2 क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें वह दिया जो वे चाहते थे। +\q1 +\v 30 परन्तु उन्होंने अभी तक वह सब कुछ नहीं खाया था जो वे चाहते थे। +\q1 +\s5 +\v 31 उस समय, परमेश्वर अब भी उनसे बहुत क्रोधित थे, +\q2 और उन्होंने उनके सबसे बलवन्त पुरुषों को मार डाला; +\q2 उन्होंने इस्राएली पुरुषों में से अच्छे युवाओं को नष्ट कर दिया। +\q1 +\v 32 इन सबके उपरान्त भी, लोग पाप करते रहे; +\q1 परमेश्वर के किए गए सब चमत्कारों के उपरान्त भी, +\q2 वे भरोसा नहीं करते थे कि वह उनकी सुधि लेंगे। +\q1 +\s5 +\v 33 इसलिए उन्होंने उन्हें सम्पूर्ण जीवन भयभीत किया; +\q2 उन्होंने उन्हें युवा अवस्था में मार दिया। +\q1 +\v 34 जब परमेश्वर ने कुछ इस्राएलियों को मार डाला, +\q1 तब अन्य लोग पश्चाताप करने लगते थे; +\q1 वे क्षमा माँगते और बचने के लिए गम्भीरता से परमेश्वर से निवेदन करते थे। +\q1 +\s5 +\v 35 वे स्मरण करते थे कि परमेश्वर एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर वे सुरक्षित होंगे, +\q1 और वह, जो अन्य देवताओं से बड़े हैं, वही उनकी रक्षा करते हैं। +\q1 +\v 36 परन्तु उन्होंने जो कुछ कहा, उसके द्वारा उन्होंने परमेश्वर को धोखा देने का प्रयास किया; +\q2 उनके शब्द भी झूठ थे। +\q1 +\v 37 वे लोग उनके प्रति निष्ठावान नहीं थे; +\q2 उन लोगों ने उस वाचा को अनदेखा किया जो उन्होंने उनके साथ बाँधी थी। +\q1 +\s5 +\v 38 परन्तु परमेश्वर ने अपने लोगों के प्रति दया के कार्य किए। +\q1 उन्होंने उनके पापों को क्षमा कर दिया +\q2 और उन्हें नष्ट नहीं किया। +\q1 कई बार वह उन पर क्रोध करने से रुके रहे +\q1 और उन्हें दण्ड देने से स्वयं को रोक दिया। +\q1 +\s5 +\v 39 उन्होंने स्मरण किया कि वे केवल मनुष्य हैं जो मर जाते हैं, +\q2 मनुष्य जो हवा के समान शीघ्र ही लोप हो जाते हैं जो बहती है और फिर चली जाती है। +\q1 +\v 40 कई बार हमारे पूर्वजों ने जंगल में परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया था +\q1 और उन्हें बहुत दुखी किया था। +\q1 +\v 41 कई बार उन्होंने यह जानने के लिए बुरे कार्य किये कि क्या वे उन कार्यों का परमेश्वर से दण्ड पाए बिना रह सकते हैं या नहीं। +\q2 उन्होंने बार-बार इस्राएल के पवित्र परमेश्वर को क्रोधित किया। +\q1 +\s5 +\v 42 वे परमेश्वर की महान शक्ति के विषय में भूल गए, +\q2 और वे उस समय को भूल गए जब परमेश्वर ने उन्हें उनके शत्रुओं से बचाया था। +\q1 +\v 43 वे उस समय को भूल गए जब उन्होंने मिस्र में सोअन शहर के पास के क्षेत्र में +\q2 कई चमत्कार किए। +\q1 +\s5 +\v 44 उन्होंने नील नदी को रक्त के समान लाल बना दिया +\q2 कि मिस्रियों के लिए पीने का पानी न हो। +\q1 +\v 45 उन्होंने मिस्र के लोगों के बीच में मक्खियों को भेजा जो उन्हें काटती थी, +\q1 और उन्होंने मेंढ़कों को भेजा जो सब कुछ खा गए। +\q1 +\v 46 उन्होंने उनकी फसलों और खेतों को +\q1 नष्ट करने के लिए टिड्डियाँ भेजीं। +\q1 +\s5 +\v 47 उन्होंने ओले गिरा कर अँगूर की बेलों को नष्ट कर दिया, +\q1 और उन्होंने और ओले गिरा कर गूलर के पेड़ों को नष्ट कर दिया। +\q1 +\v 48 उन्होंने ओलों से उनके पशुओं को मार डाला +\q1 और बिजली से उनकी भेड़ों और गायों को मार डाला। +\q1 +\v 49 क्योंकि मिस्र के लोगों से परमेश्वर बहुत क्रोधित थे, +\q1 इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत दुखी किया। +\q2 उन पर आने वाली विपत्तियाँ स्वर्गदूतों के समूह के समान थीं जो सब कुछ नष्ट कर देते थे। +\q1 +\s5 +\v 50 उन्होंने उन पर अपने क्रोध को कम नहीं किया, +\q2 और उन्होंने उनके जीवन को नहीं छोड़ा; +\q1 उन्होंने एक मरी भेजी जिसने उनमें से कई लोगों को मार डाला। +\q1 +\v 51 उस मरी में उन्होंने मिस्र के सब लोगों के ज्येष्ठ पुत्रों को मार डाला। +\q1 +\s5 +\v 52 फिर उन्होंने अपने लोगों को मिस्र से बाहर निकाला जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों की अगुवाई करता है, +\q2 और जंगल के मार्ग से चलते समय उनकी अगुवाई की। +\q1 +\v 53 उन्होंने उनकी अगुवाई सुरक्षित रूप से की और उन्हें डर नहीं था, +\q1 परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए थे। +\q1 +\s5 +\v 54 बाद में वह उन्हें कनान, अपनी पवित्र भूमि में +\q2 सिय्योन पर्वत पर लाए, +\q2 और अपनी शक्ति से उन्होंने उन्हें वहाँ रहने वाले लोगों को जीतने में समर्थ किया। +\q1 +\v 55 उन्होंने इस्राएली लोगों के आगे बढ़ते समय वहाँ की जातियों को बाहर निकाल दिया; +\q2 उन्होंने प्रत्येक गोत्र को भूमि का एक भाग दिया, +\q2 और उन्होंने वहाँ के लोगों के घरों को इस्राएलियों को दे दिया। +\q1 +\s5 +\v 56 हालाँकि, इस्राएलियों ने सर्वोच्च परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, +\q2 और उन्होंने यह देखने के लिए कई बुरे कार्य किये कि क्या वे उन कार्यों का परमेश्वर से दण्ड पाए बिना रह सकते हैं या नहीं; +\q2 उन्होंने उनके आदेशों का पालन नहीं किया। +\q1 +\v 57 इसके अतिरिक्त, जैसा उनके पूर्वजों ने किया था, उन्होंने भी परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया और वे उनके प्रति विश्वासयोग्य नहीं थे; +\q2 वे उस धनुष के समान अविश्वसनीय थे जो तीर चलाते समय टूट जाता है। +\q1 +\s5 +\v 58 क्योंकि उन्होंने पहाड़ियों की चोटी पर देवताओं की गढ़ी हुई मूर्तियों की उपासना की, +\q1 उन्होंने परमेश्वर को क्रोधित होने का कारण दिया। +\q1 +\v 59 परमेश्वर ने देखा कि वे क्या कर रहे थे और बहुत क्रोधित हो गए, +\q2 तो उन्होंने इस्राएली लोगों का तिरस्कार कर दिया। +\q1 +\s5 +\v 60 वह अब शीलो में उनके सामने प्रकट नहीं हुए +\q2 जहाँ वह पवित्र-तम्बू में उनके बीच रहते थे। +\q1 +\v 61 उन्होंने उनके शत्रुओं को पवित्र सन्दूक छीन लेने की अनुमति दी, +\q2 जो उनकी शक्ति और उनकी महिमा का प्रतीक था। +\q1 +\s5 +\v 62 क्योंकि वह अपने लोगों से क्रोधित थे, +\q2 उन्होंने उनके शत्रुओं को उन्हें मारने की अनुमति दीं। +\q1 +\v 63 युद्ध में युवा पुरुष मारे गए, +\q2 इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी युवा स्त्रियों से विवाह करने के लिए कोई नहीं था। +\q1 +\s5 +\v 64 कई याजकों को उनके शत्रुओं की तलवार से मारा गया, +\q2 और लोगों ने याजकों की विधवाओं को शोक करने नहीं दिया। +\q1 +\v 65 बाद में, ऐसा लगा जैसे परमेश्वर नींद से जाग गए; +\q1 वह एक ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति के समान थे जो क्रोधित हो गया हो क्योंकि उसने बहुत दाखरस पी ली थी। +\q1 +\v 66 उन्होंने उनके शत्रुओं को पीछे धकेल दिया +\q1 और उन्हें लम्बे समय तक बहुत लज्जित होना पड़ा +\q2 क्योंकि वे हार गए थे। +\q1 +\s5 +\v 67 परन्तु उन्होंने अपना तम्बू वहाँ नहीं बनाया जहाँ एप्रैम के गोत्र के लोग रहते थे; +\q2 उन्होंने ऐसा करने के लिए उनके क्षेत्र का चयन नहीं किया। +\q1 +\v 68 इसके विपरीत उन्होंने उस क्षेत्र को चुना जहाँ यहूदा के गोत्र रहते थे; +\q2 उन्होंने सिय्योन पर्वत को चुना, जिससे वह प्रेम करते हैं। +\q1 +\v 69 उन्होंने अपने मन्दिर को स्वर्ग में अपने घर के समान ऊँचे पर बनाने का निर्णय लिया; +\q1 उन्होंने उसे पृथ्‍वी के समान दृढ़ किया, +\q2 और विचार किया कि उनका मन्दिर सदा के लिए स्थिर रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 70 उन्होंने दाऊद को चुना, जिसने सच्चाई से उनकी सेवा की, +\q2 और उसे चारागाहों से उठाया +\q2 +\v 71 जहाँ वह अपने पिता की भेड़ों की देखभाल कर रहा था, +\q1 और उसे इस्राएलियों का अगुवा नियुक्त किया, +\q2 वे लोग जो सदा परमेश्वर के लोग होंगे। +\q1 +\v 72 दाऊद ने इस्राएली लोगों की सच्चाई से और पूरे हृदय से देखभाल की, +\q2 और उसने कुशलतापूर्वक उनकी अगुवाई की। + +\s5 +\c 79 +\d आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, अन्य लोगों के समूहों ने आपकी भूमि पर आक्रमण किया है। +\q2 उन्होंने आपके मन्दिर को अशुद्ध किया है, +\q1 और उन्होंने यरूशलेम में सब इमारतों को नष्ट कर दिया है। +\q1 +\v 2 आपके लोगों के शवों को जिन्हें उन्होंने मारा दफनाने की अपेक्षा, +\q2 उन्होंने गिद्धों को उन शवों का माँस खाने दिया, +\q2 और उन्होंने जंगली पशुओं को भी आपके लोगों के शव खाने दिया। +\q1 +\v 3 जब उन्होंने आपके लोगों को मार डाला, +\q1 तब यरूशलेम की सड़कों पर आपके लोगों का खून पानी के समान बहा, +\q2 और उनके शव को दफनाने के लिए लगभग कोई भी नहीं बचा था। +\q1 +\s5 +\v 4 हमारी भूमि के आस-पास के देशों में रहने वाले लोगों के समूह हमें अपमानित करते हैं; +\q2 वे हमारे ऊपर हँसते हैं और हमारा उपहास करते हैं। +\q1 +\v 5 हे यहोवा, यह कब तक होता रहेगा? +\q2 क्या आप हमसे सदा क्रोधित रहेंगे? +\q1 क्या आपका क्रोध आपके भीतर जलने वाली आग के समान होगा? +\q1 +\s5 +\v 6 हमसे क्रोधित होने की अपेक्षा, +\q2 उन लोगों के समूह से क्रोधित हों, जो आपको नहीं जानते हैं! +\q1 उन साम्राज्यों से क्रोधित हों जिनके लोग आप से प्रार्थना नहीं करते हैं +\q2 +\v 7 क्योंकि उन्होंने इस्राएली लोगों को मारा है +\q2 और उन्होंने आपके देश को उजाड़ दिया है। +\q1 +\s5 +\v 8 हमारे पूर्वजों के किए हुए पापों के कारण हमें दण्ड न दें! +\q1 अब हमारे प्रति दया के कार्य करें +\q2 क्योंकि हम बहुत निराश हैं। +\q1 +\v 9 हे परमेश्वर, आपने हमें कई बार बचाया है, +\q2 इसलिए अब भी हमारी सहायता करें; +\q1 हमें बचाएँ और जो पाप किए हैं उनसे हमें क्षमा करें +\q2 कि अन्य लोग आपको सम्मानित करें। +\q1 +\s5 +\v 10 यह सही नहीं है जो कि अन्य लोगों के समूह हमारे विषय में कहते हैं, +\q2 “यदि उनका परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं, तो वह उनकी सहायता क्यों नहीं करते हैं?” +\q1 हमारा रक्त बहाने और हम में से कई लोगों को मार डालने के बदले में +\q1 अन्य देशों के लोगों को आप दण्ड दें, और उसे देखने की हमें अनुमति दें। +\q1 +\v 11 आपके लोग जब बन्दीगृह में रहते हुए पुकारें, तब उनकी सुनें, +\q2 और अपनी महान शक्ति से, उन लोगों को मुक्त करें जिन्हें हमारे शत्रु कहते हैं कि वे निश्चित ही मारे जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 12 उनके द्वारा आपको कई बार अपमानित करने के बदले में, +\q1 उन्हें सात गुणा अधिक दण्ड दें! +\q1 +\v 13 ऐसा करने के बाद, हम जिनकी आप एक चरवाहे के समान सुधि लेते हैं, आपकी स्तुति करते रहेंगे; +\q2 हम पीढ़ी से पीढ़ी तक आपकी स्तुति सदा करते रहेंगे। + +\s5 +\c 80 +\d गाना बजाने वालों के निर्देशक के लिए आसाप द्वारा लिखा गया एक भजन जिसे ‘वाचा के लिली’ के धुन में गाना चाहिए +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, जैसे चरवाहा भेड़ों के झुण्ड की अगुवाई करता है, वैसे आप हमारी अगुवाई करते हैं, +\q1 आप जो आराधनालय में बहुत पवित्रस्थान में अपने सिंहासन पर पंख वाले प्राणियों पर विराजमान हैं, +\q1 आएँ और हम इस्राएली लोगों के लिए शक्तिशाली कार्य करें। +\q1 +\v 2 एप्रैम और बिन्यामीन और मनश्शे के गोत्रों के लोगों पर स्वयं को प्रकट करें! +\q2 हमें दिखाएँ कि आप शक्तिशाली हैं +\q2 और आकर हमें बचाएँ। +\q1 +\v 3 हे परमेश्वर, हमारे देश को पहले के समान फिर से दृढ़ बना दें; +\q2 कृपया हम पर दया करें कि हम अपने शत्रुओं से बच सकें। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के सेनापति, +\q2 जब हम आप से प्रार्थना करते हैं, तो आप हमसे कितने समय क्रोधित रहेंगे? +\q1 +\v 5 ऐसा लगता है कि आपने हमें खाने और पीने के लिए केवल एक ही वस्तु दी है और वह हमारे आँसुओं से भरा हुआ कटोरा है। +\q1 +\v 6 आपने हमारे आस-पास के लोगों के समूह को एक दूसरे के साथ विचार करने योग्य किया है कि यह निर्णय ले सके कि हमारी भूमि का कौन सा भाग किसको मिलेगा; +\q2 वे हम पर हँसते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 हे परमेश्वर, स्वर्गदूतों की सेनाओं के सेनापति, +\q2 हमारे देश को पहले के समान फिर से दृढ़ बना दें! +\q1 कृपया हमारे प्रति दया के कार्य करें कि हम बचाए जा सकें! +\q1 +\v 8 हमारे पूर्वज एक दाखलता के समान थे जिसे आप मिस्र से बाहर लाए थे; +\q1 आपने इस भूमि से अन्य लोगों के समूहों को बाहर निकाला, +\q2 और आपने अपने लोगों को उनकी भूमि में रखा। +\q1 +\s5 +\v 9 जैसे लोग अँगूर लगाने के लिए भूमि तैयार करते हैं, +\q1 आपने उन लोगों को बाहर कर दिया जो इस देश में रहते थे, कि हम यहाँ रह सकें। +\q1 जैसे एक अँगूर की जड़ें भूमि में गहरी हो जाती हैं और फैलती हैं, +\q2 वैसे ही आपने हमारे पूर्वजों को समृद्ध होने और इस देश के नगरों में रहने में सक्षम किया। +\q1 +\v 10 जैसे विशाल अँगूर पहाड़ियों को उनकी छाया से ढकते हैं +\q2 और क्योंकि उनकी शाखाएँ बड़े देवदार के पेड़ों से भी लम्बी हैं, +\q1 +\v 11 आपके लोगों ने पश्चिम में भूमध्य सागर से ले कर पूर्व में फरात नदी तक पूरे कनान में शासन किया। +\q1 +\s5 +\v 12 तो आपने हमें क्यों त्याग दिया है +\q2 और हमारे शत्रुओं को हमारी दीवारें तोड़ने दीं? +\q1 आप किसी ऐसे व्यक्ति के समान हैं जो अपनी दाख की बारी के चारों ओर बाड़ को तोड़ता है, +\q2 कि सब लोग जो वहाँ से यात्रा करते हैं अँगूर चुरा सकें; +\q2 +\v 13 और जंगली सूअर दाखलताओं को कुचल सकें, +\q2 और जंगली पशु भी अँगूरों को खाएँ। +\q1 +\s5 +\v 14 हे स्वर्गदूतों की सेनाओं के सेनापति, हमारी ओर फिरें! +\q2 स्वर्ग से नीचे दृष्टि करके देखें कि हमारे साथ क्या हो रहा है! +\q1 आकर हमें बचाएँ जो आपकी दाखलता के समान हैं, +\q1 +\v 15 जो युवा दाखलता के समान हैं जिसे आपने लगाया और वह बढ़ने लगी! +\q1 +\v 16 हमारे शत्रुओं ने हमारी भूमि में सब कुछ तोड़ा और जला दिया है; +\q1 उन्हें क्रोध से देखें और उनसे छुटकारा पाएँ! +\q1 +\s5 +\v 17 परन्तु हम लोगों को दृढ़ करें, जिन्हें आपने चुना है, +\q2 हम इस्राएली लोगों को, जिन्हें आपने पहले बहुत शक्तिशाली बनाया था। +\q +\v 18 जब आप ऐसा करें तो, हम कभी भी आप से दूर नहीं होंगे; +\q2 हमें पुनर्जीवित करें, तब हम आपकी स्तुति करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के सेनापति, हमारा उद्धार करें; +\q2 कृपया हमारे प्रति दया के कार्य करें और हमें हमारे शत्रुओं से बचाएँ। + +\s5 +\c 81 +\d गायन मण्डली के निर्देशक के लिए आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर की स्तुति करने के लिए गीत गाओ, जो हमें अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए शक्तिशाली बनाते हैं; +\q1 परमेश्वर के लिए आनन्द से चिल्लाओ, जिनकी हम, याकूब के वंशज आराधना करते हैं! +\q1 +\v 2 संगीत बजाना आरम्भ करो, और डफ बजाओ; +\q2 वीणा और सारंगी पर अच्छा संगीत बजाओ। +\q1 +\v 3 प्रत्येक नए चँद्रमा का उत्सव मनाने के पर्व के समय तुरही फूँको, +\q2 प्रत्येक पूर्ण चँद्रमा के दिन, और हमारे अन्य पर्वों के समय तुरही फूँको। +\q1 +\s5 +\v 4 ऐसा करो क्योंकि यह हम इस्राएली लोगों के लिए एक नियम है; +\q2 यह एक आज्ञा है जिसे परमेश्वर ने याकूब के वंशजों को दी थी। +\q2 +\v 5 उन्होंने उस समय इसे एक नियम बना दिया जब परमेश्वर ने यूसुफ के वंशजों को मिस्र देश से बाहर निकला था। +\q1 मैंने एक वाणी सुनी जिसे मैंने पहचाना नहीं, और कहा: +\q1 +\s5 +\v 6 “मिस्र के शासकों ने तुम इस्राएलियों को दासों के रूप में कार्य करने के लिए विवश किया, +\q1 मैंने उन भारी बोझों को तुम्हारी पीठ पर से उतार दिया है, +\q2 और मैंने तुमको ईंटों के भारी टोकरियों को जिन्हें तुम उठाते थे, छोड़ने में सक्षम किया है। +\q1 +\v 7 जब तुम बहुत दुखी थे, तुमने मुझे पुकारा, और मैंने तुम्हें बचा लिया; +\q2 मैंने गरजते बादल में से तुम्हें उत्तर दिया। +\q2 बाद में मैंने परीक्षा की कि क्या तुम मुझ पर भरोसा रखोगे, कि मैं रेगिस्तान में मरीबा में तुम्हें पानी दे सकता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 8 तुम मेरे लोग हो, सुनो, मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ! +\q1 मैं चाहता हूँ कि तुम इस्राएली लोग मैं तुमसे जो कहता हूँ उस पर ध्यान दो! +\q1 +\v 9 तुम्हारे बीच अन्य देवताओं की कोई मूर्ति नहीं होनी चाहिए; +\q2 तुम्हें कभी भी उनमें से किसी की पूजा करने के लिए झुकना नहीं चाहिए! +\q1 +\v 10 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ; +\q2 उन देवताओं में से कोई तुम्हें मिस्र से बाहर नहीं लाया था; +\q1 मैं वह हूँ जिसने ऐसा किया! +\q2 इसलिए मुझसे विनती करो तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ और मैं वह करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु मेरे लोग मेरी बात नहीं सुनते; +\q2 वे मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेंगे। +\q1 +\v 12 इसलिए क्योंकि वे बहुत हठीले थे, +\q2 मैंने उन्हें उनकी इच्छा के अनुसार करने की अनुमति दी। +\q1 +\s5 +\v 13 मेरी इच्छा है कि मेरे लोग मेरी बात सुनें, +\q1 कि इस्राएली लोग जैसा मैं चाहता हूँ, वैसा व्यवहार करें। +\q1 +\v 14 यदि उन्होंने ऐसा किया, तो मैं शीघ्र ही उनके शत्रुओं को पराजित करूँगा; +\q2 मैं उन लोगों को मार डालूँगा जो उनको दुख दे रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 तब जो लोग मुझसे घृणा करते हैं वे मेरे सामने दण्डवत् करेंगे, +\q2 और फिर मैं उन्हें सदा के लिए दण्ड दूँगा। +\q1 +\v 16 परन्तु मैं तुम इस्राएली लोगों को बहुत अच्छा गेहूँ दूँगा, +\q2 और मैं तुम्हारे पेट को जंगली शहद से भर दूँगा।” + +\s5 +\c 82 +\d आसाप द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर स्वर्ग में उन सब आत्माओं की बैठक में खड़े हैं, जिन्हें उन्होंने अपनी सृष्टि के ऊपर अधिकार दिया है। +\q2 वह उन्हें बताते हैं कि उन्होंने यह निर्णय लिया है: +\q1 +\v 2 “तुम लोगों को अनुचित ढंग से न्याय करना बन्द कर देना चाहिए; +\q1 तुम्हें अब ऐसे निर्णय नहीं लेने चाहिए जो दुष्ट लोगों के पक्ष में हों! +\q1 +\s5 +\v 3 तुम्हें उन लोगों की रक्षा करनी चाहिए जो गरीब और अनाथ हैं; +\q2 तुम्हें उन लोगों के लिए न्यायपूर्ण कार्य करना चाहिए जो दीन-गरीब हैं और जिनके पास उनकी सहायता करने के लिए कोई नहीं है। +\q1 +\v 4 दुष्ट लोगों की शक्ति से उन्हें बचाओ।” +\q1 +\s5 +\v 5 वे शासक कुछ भी नहीं जानते या समझते हैं! +\q2 वे बहुत भ्रष्ट हैं, +\q2 और उनके भ्रष्ट व्यवहार के कारण, +\q2 ऐसा लगता है कि पृथ्‍वी की नींव हिल रही है! +\q1 +\s5 +\v 6 मैंने पहले उनसे कहा था, “तुम सोचते हो कि तुम ईश्वर हो! +\q1 ऐसा लगता है जैसे कि तुम सब मेरे पुत्र हो, +\q1 +\v 7 परन्तु जैसे लोग मरते हैं, तुम भी मरोगे; +\q2 तुम्हारा जीवन समाप्त हो जाएगा जैसे सब शासकों के जीवन समाप्त हो जाते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 8 हे परमेश्वर, उठें और पृथ्‍वी पर सबका न्याय करें +\q2 क्योंकि सब लोगों के समूह आपके हैं! + +\s5 +\c 83 +\d एक भजन जो आसाप द्वारा लिखित एक गीत है +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, चुप न रहें! +\q1 चुप न रहें और शान्त न रहें +\q1 +\v 2 क्योंकि आपके शत्रु आपके विरुद्ध उपद्रव कर रहे हैं; +\q2 जो आप से घृणा करते हैं वे आपके विरुद्ध विद्रोह कर रहे हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 वे गुप्त रूप से हमें अर्थात् आपके लोगों को हानि पहुँचाने की योजना बना रहे हैं; +\q2 जिन लोगों की आप रक्षा करते हैं उनके विरुद्ध वे षड्यन्त्र कर रहे हैं। +\q1 +\v 4 वे कहते हैं, “आओ, हमें उनके देश को नष्ट करना होगा +\q2 कि कोई भी स्मरण न रख सके कि इस्राएल कभी अस्तित्व में था!” +\q1 +\v 5 वे इस बात पर सहमत हुए हैं कि उन्हें इस्राएल को नष्ट करने के लिए क्या करना चाहिए, +\q2 और वे आप पर आक्रमण करने के लिए सहमत हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 आपके शत्रु वे लोग हैं जो एदोम के तम्बुओं में रहते हैं— +\q2 इश्माएली, मोआबी और हग्री लोग, एक साथ मिलकर कार्य करते हैं +\v 7 गबाली, अम्मोनी, अमालेकी लोग, +\q2 और पलिश्ती, और सोर शहर के लोग। +\q2 +\s5 +\v 8 अश्शूर के लोग उनसे जुड़ गए हैं; +\q2 वे मोआब और अम्मोन लोगों के समूह के शक्तिशाली सहयोगी हैं, जो अब्राहम के भतीजे लूत के वंशज हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 हे परमेश्वर, उन लोगों के साथ वैसा ही करें जैसा आपने मिद्यानियों के साथ किया था, +\q2 जैसा कि आपने कीशोन नदी पर सीसरा और याबीन के साथ किया था। +\q1 +\v 10 आपने उन्हें एनदोर शहर में नष्ट कर दिया, +\q2 और उनकी लाश भूमि पर पड़े-पड़े सड़ गई। +\q1 +\s5 +\v 11 उन लोगों के साथ वैसा ही करें जैसा राजा ओरेब और जेब के साथ किया था; +\q2 उनके अगुओं को पराजित जैसे आपने जेबह और सलमुन्ना को किया था, +\q2 +\v 12 जिन्होंने कहा, “हम अपने लिए वह भूमि ले लेंगे जो इस्राएली कहते हैं की उनके परमेश्वर की है!” +\q1 +\s5 +\v 13 हे मेरे परमेश्वर, उन्हें बवण्डर की धूल के समान शीघ्र उड़ा दें, +\q2 जैसे भूसी हवा से उड़ जाती हैं! +\q1 +\v 14 जैसे आग जंगल को पूरा जला देती है +\q1 और जैसे पर्वतों में आग लगती है, +\q1 +\v 15 उन्हें अपने तूफान से बाहर निकाल दें +\q2 और उन्हें अपने बड़े तूफान से डराएँ! +\q1 +\s5 +\v 16 उन्हें बहुत लज्जित करें +\q2 कि वे स्वीकार करें कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 17 उन्हें सदा के लिए अपमानित होने दें क्योंकि वे पराजित किए गए है, +\q1 और उन्हें अपमान के कारण मरने दें। +\q1 +\s5 +\v 18 क्योंकि उन्हें यह जानने दें कि आप जिनका नाम यहोवा है, +\q2 पृथ्‍वी पर जो कुछ भी है उस पर सर्वोच्च शासक हैं। + +\s5 +\c 84 +\d गाना बजाने वालों के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, +\q2 आपका मन्दिर बहुत सुन्दर है! +\q1 +\v 2 मैं वहाँ रहना चाहता हूँ; +\q2 हे यहोवा, मैं इसे बहुत चाहता हूँ। +\q2 मैं अपने मन से शक्तिशाली परमेश्वर के लिए आनन्द से गाता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 यहाँ तक कि गौरैया और शूपाबेनी ने भी आपके भवन के पास घोंसले बनाए हैं; +\q2 वे वेदियों के पास अपने छोटे बच्चों को सम्भाल कर रखते हैं जहाँ लोग आपके लिए बलिदान चढ़ाते हैं, +\q2 हे स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, हे मेरे राजा और मेरे परमेश्वर। +\q1 +\v 4 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो सदा आपके मन्दिर में रहते हैं, +\q2 वे निरन्तर आपकी स्तुति करने के लिए गाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें आप दृढ़ करते हैं, +\q1 जो लोग सिय्योन पर्वत पर यात्रा करने की बहुत इच्छा रखते हैं। +\q1 +\v 6 जबकि वे आँसुओं की सूखी घाटी से यात्रा करते हैं, +\q1 आप इसे ऐसा स्थान बनाते हैं जैसे पानी के झरने होते हैं, +\q2 जहाँ शरद ऋतु में वर्षा घाटी को पानी से भरती है, जो आपकी ओर से आशीष है। +\q1 +\s5 +\v 7 परिणामस्वरूप, जो लोग वहाँ से यात्रा करते हैं वे बलवन्त हो जाते हैं +\q2 यह जान कर कि वे सिय्योन पर्वत पर आपकी उपस्थिति में दिखाई देंगे। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, स्वर्गदूतों के सेना के सेनापति, मेरी प्रार्थना सुनें; +\q1 हे परमेश्वर, जिनकी हम याकूब के वंशज आराधना करते हैं, सुनें कि जो मैं कह रहा हूँ! +\q1 +\v 9 हे परमेश्वर, कृपया हमारे राजा के प्रति दया के कार्य करें, जो हमारी रक्षा करता हैं, +\q2 जिसे आपने हम पर शासन करने के लिए चुना है। +\q1 +\v 10 मेरे लिए आपके मन्दिर में एक दिन बिताना +\q2 कहीं और हजारों दिन बिताने से उत्तम है; +\q1 भीतर जाने के लिए आपके मन्दिर के प्रवेश द्वार पर तैयार खड़ा होना, +\q2 उन तम्बुओं में रहने से उत्तम है जहाँ दुष्ट लोग रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा हमारे परमेश्वर, सूरज के समान हैं जो हमारे ऊपर चमकते हैं और ढाल के समान हैं जो हमारी रक्षा करते हैं; +\q2 वह हमारे प्रति कृपापूर्वक कार्य करते हैं और हमें सम्मान देते हैं। +\q1 यहोवा उन लोगों को कोई भली वस्तु देने से मना नहीं करते हैं जो उचित कार्य करते हैं। +\q1 +\v 12 हे यहोवा, स्वर्गदूतों के सेना के सेनापति, +\q2 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो आप पर भरोसा रखते हैं! + +\s5 +\c 85 +\d गाना बजाने वालों के निर्देशक के लिए कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आपने हमारे लोगों के प्रति जो इस देश में रहते हैं दया का कार्य किया है; +\q1 आपने हम इस्राएली लोगों को फिर से समृद्ध होने के योग्य किया है। +\q1 +\v 2 आपने हमारे पापों के लिए हमें, आपके लोगों को, क्षमा किया है; +\q2 आपने हमें हमारे सब पापों के लिए क्षमा कर दिया। +\q1 +\s5 +\v 3 आपने हमसे क्रोधित होना त्याग दिया है +\q2 और हमें गम्भीर रूप से दण्ड देने से दूर हो गए हो। +\q1 +\v 4 अब, एकमात्र परमेश्वर, जो हमें बचा सकते हैं, हमसे क्रोधित न रहें +\q1 और हमारी सहायता करें। +\q1 +\v 5 क्या आप सदा हमसे क्रोधित रहेंगे? +\q1 +\s5 +\v 6 कृपया हमें फिर से समृद्ध होने के योग्य बनाएँ +\q2 कि हम आपके लोग, जो कुछ भी आपने हमारे लिए किया हैं, उसके विषय में आनन्द करें। +\q1 +\v 7 हे यहोवा, हमें हमारी परेशानियों से बचा कर +\q2 हमें दिखाएँ कि आप हमसे सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं सुनना चाहता हूँ कि हमारे परमेश्वर यहोवा क्या कहते हैं +\q2 क्योंकि वह प्रतिज्ञा करते हैं कि हमें, उनके लोगों को शान्तिपूर्वक रहने योग्य करेंगे +\q2 यदि हम मूर्खता के कार्यों को करने के लिए वापस नहीं जाते हैं। +\q1 +\v 9 वह निश्चित रूप से उन लोगों को बचाने के लिए तैयार है जो उनका बड़ा सम्मान करते हैं, +\q2 कि उनकी महिमा हमारी भूमि में बनी रहे। +\q1 +\s5 +\v 10 जब ऐसा होता है, तब वह हमसे सच्चा प्रेम करेंगे और हमारे लिए वही करेंगे जिसकी उन्होंने प्रतिज्ञा की है; +\q1 हम धर्म के कार्य करेंगे, और वह हमें शान्ति देंगे, +\q2 जो एक चुम्बन के समान होगा जो वह हमें देते हैं। +\q1 +\v 11 धरती पर, हम परमेश्वर के प्रति निष्ठावान रहेंगे, +\q1 और स्वर्ग से, परमेश्वर हमारा न्याय करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 हाँ, यहोवा हमारे लिए अच्छे कार्य करेंगे, +\q2 और हमारी भूमि में बहुत बड़ी उपज होगी। +\q1 +\v 13 यहोवा सदा धार्मिकता से कार्य करते हैं; +\q2 वह जहाँ भी जाते हैं वहाँ वह धार्मिकता से कार्य करते हैं। + +\s5 +\c 86 +\d दाऊद द्वारा लिखी गई एक प्रार्थना +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मेरी बात सुनें और मुझे उत्तर दें +\q2 क्योंकि मैं दुर्बल और आवश्यकता में घिरा हूँ। +\q1 +\v 2 मुझे मरने से रोकें क्योंकि मैं आपके प्रति सच्चा हूँ; +\q2 हे मेरे परमेश्वर, मुझे बचाएँ क्योंकि मैं आपकी सेवा करता हूँ और मैं आप पर भरोसा रखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 हे परमेश्वर, कृपया मेरे प्रति दया के कार्य करें +\q2 क्योंकि मैं दिन भर आपको पुकारता हूँ। +\q1 +\v 4 हे प्रभु, मुझे आनन्दित करें, +\q2 क्योंकि मैं आप से प्रार्थना करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 5 हे प्रभु, आप हमारे लिए भले हैं, और आप हमें क्षमा करते हैं; +\q1 आप उन सबसे सच्चा प्रेम करते हैं जो आप से प्रार्थना करते हैं। +\q1 +\v 6 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुनें; +\q2 मुझे सुनें जब मैं आपकी सहायता के लिए रोता हूँ। +\q1 +\v 7 जब मुझे कोई दुख होता है, तो मैं आपको बुलाता हूँ +\q2 क्योंकि आप मुझे उत्तर देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 हे प्रभु, उन सब देवताओं में से, जिनकी अन्य जाति के लोग उपासना करते हैं, +\q2 आपके जैसा कोई नहीं है; +\q1 उनमें से एक ने भी आपके द्वारा किये गए महान कार्यों के समान कुछ नहीं किया है। +\q1 +\v 9 हे प्रभु, एक दिन हर जाति के लोग जिनको आपने बनाया है, आपके पास आएँगे और आपके सामने झुकेंगे, +\q2 और वे आपकी स्तुति करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 आप महान हैं, और आप अद्भुत कार्य करते हैं; +\q2 केवल आप ही परमेश्वर हैं। +\q1 +\v 11 हे यहोवा, मुझे सिखाएँ कि आप मुझसे क्या कराना चाहते हैं +\q2 कि मैं आपके कहने के अनुसार अपने जीवन का संचालन कर सकूँ, जो उचित है। +\q1 मुझे अपने सम्पूर्ण मन से आपका महान सम्मान करने योग्य बना दें। +\q1 +\v 12 हे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर, मैं अपने पूरे मन से आपका धन्यवाद करूँगा, +\q2 और मैं सदा के लिए आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 13 आपने मुझसे बहुत प्रेम किया है जैसी आपने प्रतिज्ञा की है; +\q2 आपने मुझे मरने से और उस स्थान पर जाने से रोक दिया है जहाँ मृतक लोग हैं। +\q1 +\v 14 परन्तु परमेश्वर, अभिमानी लोग मुझ पर आक्रमण करने का प्रयास कर रहे हैं; +\q2 क्रूर पुरुषों का झुण्ड मुझे मारना चाहता है; +\q2 वे ऐसे पुरुष हैं जो आपका सम्मान नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु परमेश्वर, आप सदा दया से और कृपापूर्वक कार्य करते हैं; +\q2 आप शीघ्र क्रोधित नहीं होते हैं; +\q2 आप सच्चाई से हमें बहुत प्रेम करते हैं +\q2 और हमारे लिए सदा वह करते हैं जिसकी आपने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 16 मेरी ओर देखें और मुझ पर दया करें; +\q2 मुझे, जो अपनी माँ के समान सच्चाई से आपकी सेवा करता हूँ, +\q2 मुझे बलवन्त बनाएँ और मुझे बचाएँ। +\q1 +\v 17 हे यहोवा, मुझ पर अपनी भलाई प्रकट करने के लिए कुछ करें +\q2 कि जो मुझसे घृणा करते हैं, वे देखें कि आपने मुझे प्रोत्साहित किया है और मेरी सहायता की है; +\q2 परिणामस्वरूप वे लज्जित होंगे। + +\s5 +\c 87 +\d कोरह के वंशजों में से एक के द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 शहर उनके पवित्र पर्वत पर स्थापित है। +\q1 +\v 2 यहोवा इस्राएल में किसी अन्य स्थान से अधिक, यरूशलेम नगर से प्रेम करते हैं। +\q1 +\v 3 हे यरूशलेम के लोगों, +\q2 अन्य लोग तुम्हारे शहर के विषय में अद्भुत बातें कहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 और यहोवा ने कहा, “मैं रहब और बाबेल और वहाँ के लोग जो मुझे जानते हैं, +\q2 उनके विषय में बात करूँगा। +\q2 मिस्र और बाबेल के लोगों के बीच ऐसे कुछ लोग हैं जो मुझे जानते हैं, +\q2 और वे पलिश्ती और सोर और इथियोपिया की भूमि में रहते हैं, +\q2 और वे कहेंगे, ‘हमारा घर यरूशलेम है और हमारी भूमि सिय्योन है।’” +\q1 +\s5 +\v 5 सिय्योन के विषय में, लोग कहेंगे, +\q2 “ऐसे लोग भी जिनका जन्म बहुत दूर हुआ था, +\q2 वे यरूशलेम को अपना घर कहते हैं, +\q2 और सर्वशक्तिमान परमेश्वर उस शहर को दृढ़ बनाए रखेंगे।” +\q1 +\v 6 यहोवा उन विभिन्न समूहों के लोगों के नामों की एक सूची लिखेंगे जो उनके हैं, +\q1 और वह कहेंगे कि वह उन सबको यरूशलेम के नागरिक मानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 वे सब नृत्य करेंगे और गाएँगे और कहेंगे, +\q2 “यरूशलेम हमारे सब आशीर्वादों का स्रोत हैं।” + +\s5 +\c 88 +\d जेरह के पुत्र हेमान, जो कोरह के वंशजों में से एक था, उसके द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया है, एक भजन जो दुख को व्यक्त करता है +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा परमेश्वर, मुझे बचाने वाले, मैं प्रतिदिन मेरी सहायता के लिए आपको पुकारता हूँ, +\q1 और मैं रात के समय भी आपको पुकारता हूँ। +\q1 +\v 2 मेरी प्रार्थना सुनें +\q2 जब मैं मेरी सहायता के लिए आपको पुकारता हूँ! +\q1 +\s5 +\v 3 मैंने कई क्लेशों का अनुभव किया है, +\q2 और मैं मरने वाला हूँ और मृतक लोक में जाने वाला हूँ। +\q1 +\v 4 क्योंकि मुझमें अब और शक्ति नहीं है, +\q2 अन्य लोग मानते हैं कि मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं उस शव के समान हूँ जिसे छोड़ दिया गया है; +\q2 मैं उन मृत लोगों के समान हूँ जो अपनी कब्रों में पड़े हैं, +\q2 लोग जिन्हें पूरी तरह से भूला दिया गया है +\q2 क्योंकि आप अब उनकी सुधि नहीं लेते हैं। +\q1 +\v 6 ऐसा लगता है कि आपने मुझे एक गहरे, अँधेरे गड्ढे में फेंक दिया है, +\q2 उस स्थान पर जहाँ वे लाशें फेंकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 ऐसा लगता है जैसे आप मुझसे बहुत क्रोधित हैं, +\q1 और ऐसा लगता है कि आपने मुझे कुचल दिया है, जैसे लोगों को समुद्र की लहरें लगती हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 आपने मेरे मित्रों को भी मुझसे दूर रहने के लिए प्रेरित किया है; +\q2 मैं उनके लिए घृणित हो गया हूँ। +\q1 ऐसा लगता है कि मैं बन्दीगृह में हूँ और बच नहीं सकता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 9 मेरी आँखें सही से नहीं देख सकतीं हैं क्योंकि मैं बहुत रोता हूँ। +\q2 हे यहोवा, हर दिन मैं मेरी सहायता के लिए आपको पुकारता हूँ; +\q2 जब मैं प्रार्थना करता हूँ तो मैं अपने हाथ उठाता हूँ। +\q1 +\v 10 यह तो निश्चय है कि आप मृत लोगों के लिए चमत्कार नहीं करते हैं! +\q1 उनकी आत्माएँ आपकी स्तुति करने के लिए नहीं उठती हैं! +\q1 +\s5 +\v 11 निश्चित रूप से कब्र में पड़ी शव हमें आपके सच्चे प्रेम के विषय में नहीं बताती हैं, +\q2 और उस स्थान पर जहाँ लोग अंततः नष्ट हो जाते हैं, +\q2 कोई भी आपके विषय में नहीं बताता हैं कि आप हमारे लिए विश्वासयोग्य होकर क्या-क्या करते हैं। +\q1 +\v 12 गहरे अँधेरे गड्ढे में कोई भी आपके द्वारा किए जाने वाले चमत्कारों को नहीं देखते हैं, +\q2 और उस स्थान पर जहाँ लोग पूरी तरह से भुलाए गए हैं, कोई भी नहीं जो बताए कि आप हमारे लिए कितने अच्छे हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 परन्तु हे यहोवा, मैं मेरी सहायता के लिए आपको पुकारता हूँ; +\q2 हर सुबह मैं आप से प्रार्थना करता हूँ। +\q1 +\v 14 हे यहोवा, आपने मुझे क्यों त्याग दिया है? +\q2 आप मुझसे क्यों दूर हो गए हैं? +\q1 +\s5 +\v 15 जब से मैं बच्चा था, हर समय मैं पीड़ित हूँ और मैं लगभग मर गया था; +\q1 मैं उन भयानक बातों को सहने के कारण, जो आपने मेरे साथ किए हैं निराशा में हूँ। +\q1 +\v 16 मुझे लगता है कि आपने मुझे कुचल दिया है, क्योंकि आप मुझसे क्रोधित हैं; +\q2 भयानक बातें जो आप मेरे साथ कर रहे हैं वे लगभग मुझे नष्ट कर रही हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 ऐसा लगता है कि वे मुझे बाढ़ के समान घेरे हुए हैं; +\q2 वे चारों ओर से मुझे घेर रही हैं। +\q1 +\v 18 आपने मेरे मित्रों और अन्य लोगों को जिनसे मैं प्रेम करता हूँ, मुझसे दूर होने का कारण बना दिया है, +\q2 और ऐसा लगता है कि मेरा एकमात्र मित्र अन्धकार है। + +\s5 +\c 89 +\d एज्रा के वंशज एतान द्वारा लिखित एक गीत +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं उन रीतियों के विषय में सदा के लिए गाऊँगा जिनसे आप मुझसे प्रेम करते हैं; +\q2 लोग जो अभी तक पैदा नहीं हुए हैं, वे यह सुनेंगे कि आप जो प्रतिज्ञा करते हैं वह सच्चाई से करते हैं। +\q1 +\v 2 मैं लोगों को बताऊँगा कि आप सदा हमसे प्रेम करेंगे, +\q2 और यह कि आपकी प्रतिज्ञा को पूरा करने की सच्चाई आकाश के समान स्थायी है। +\q1 +\s5 +\v 3 यहोवा ने कहा, “मैंने दाऊद के साथ जिसे मैंने अपनी सेवा करने के लिए चुना है, एक वाचा बाँधी है। +\q2 मैंने उसके साथ एक गम्भीर वाचा बाँधी है: +\q1 +\v 4 ‘मैं तेरे वंशजों को सदा राजा बनने में सक्षम करूँगा; +\q2 तुझसे निकलने वाले राजाओं की पीढ़ी कभी नाश नहीं होगी।’” +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, मैं चाहता हूँ कि स्वर्ग में रहने वाले सब प्राणी आपके द्वारा किए जाने वाले अद्भुत कार्यों के लिए आपकी प्रशंसा करें, +\q2 और यह कि आपके सब पवित्र स्वर्गदूत इस विषय में गाएँ कि आप जो वचन देते हैं वह सच्चाई से करते हैं। +\q1 +\v 6 स्वर्ग में कोई भी नहीं है जिसकी तुलना यहोवा से की जा सकती हैं। +\q2 स्वर्ग में कोई स्वर्गदूत नहीं जो आपके बराबर हो। +\q1 +\s5 +\v 7 जब आपके पवित्र स्वर्गदूत एकत्र होते हैं, +\q2 वे घोषणा करते हैं कि आपको सम्मानित किया जाना चाहिए; +\q1 वे कहते हैं कि आप अपने सिंहासन के चारों ओर के सब स्वर्गदूतों की तुलना में अधिक अद्भुत हैं! +\q1 +\v 8 हे यहोवा परमेश्वर, दूतों की सेनाओं के प्रधान, कोई भी नहीं है जो आपके जैसा शक्तिशाली है; +\q2 आपकी प्रतिज्ञा पूरी करने की सच्चाई कपड़ों के समान है जो सदा आपके चारों ओर रहता है। +\q1 +\s5 +\v 9 आप शक्तिशाली समुद्रों पर शासन करते हैं; +\q2 जब उनकी लहरें बढ़ती हैं, तो आप उन्हें शान्त करते हैं। +\q1 +\v 10 आप ही ने राहाब नामक महान समुद्री राक्षस को कुचल दिया और मार डाला। +\q2 आपने अपने शत्रुओं को अपनी महान शक्ति से पराजित किया और तितर-बितर किया। +\q1 +\s5 +\v 11 आकाश आपका हैं, और पृथ्‍वी भी आपकी हैं; +\q2 पृथ्‍वी पर जो है सब कुछ आपका है क्योंकि आपने उन सबको बनाया हैं। +\q1 +\v 12 आपने उत्तर से दक्षिण तक सब कुछ बनाया हैं। +\q2 ताबोर पर्वत और हेर्मोन पर्वत आनन्द से आपकी प्रशंसा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 आप बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 आप बहुत दृढ़ हैं। +\q1 +\v 14 आप लोगों पर उचित रूप से और न्याय से शासन करते हैं; +\q2 आप सदा हमसे सच्चा प्रेम करते हैं और आपने जो भी प्रतिज्ञा की है उसे पूरा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 हे यहोवा, कितने भाग्यशाली हैं वे जो पर्वों में आनन्द से चिल्लाते हुए आपकी आराधना करते हैं, +\q2 जो यह जान कर जीते हैं कि आप उन्हें सदा देखते रहते हैं। +\q1 +\v 16 हर दिन, पूरे दिन, वे आपके कार्यों के कारण आनन्दित होते हैं, +\q2 और उनके प्रति बहुत भले होने के लिए वे आपकी प्रशंसा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 आप हमें अपनी महिमामय शक्ति देते हैं; +\q2 क्योंकि आप हमारे पक्ष में कार्य करते हैं, इसलिए हम अपने शत्रुओं को पराजित करते हैं। +\q1 +\v 18 हे यहोवा, आपने हमें वह व्यक्ति दिया जो हमारी रक्षा करता है; +\q2 आप, पवित्र परमेश्वर जिनकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, उन्होंने हमें अपना राजा दिया। +\q1 +\s5 +\v 19 बहुत पहले आपने अपने एक दास से दर्शन में बात की, और कहा, +\q2 “मैंने एक प्रसिद्ध सैनिक को मुकुट पहनाया है; +\q1 मैंने उसे सब लोगों में से राजा बनने के लिए चुना है। +\q1 +\v 20 वह व्यक्ति दाऊद है, वह जो मेरी सच्ची सेवा करेगा, +\q2 और मैंने राजा बनाने के लिए उसका पवित्र जैतून के तेल से अभिषेक किया। +\q1 +\v 21 मेरी शक्ति सदा उसके साथ रहेगी; +\q2 मेरी शक्ति से मैं उसे दृढ़ बना दूँगा। +\q1 +\v 22 उसके शत्रु उसे पराजित करने के उपाय कभी ढूँढ़ नहीं पाएँगे, +\q2 और दुष्ट लोग उसे कभी पराजित नहीं करेंगे। +\q1 +\v 23 मैं उसके शत्रुओं को उसके सामने कुचल दूँगा +\q2 और उन्हें नष्ट करूँगा जो उससे घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 मैं सदा उसके प्रति सच्चा रहूँगा और उससे सच्चा प्रेम करूँगा +\q2 और उसे उसके शत्रुओं को हराने में सक्षम बनाऊँगा। +\q1 +\v 25 मैं उसके राज्य में भूमध्य सागर से ले कर फरात नदी तक की सारी भूमि को सम्मिलित करूँगा। +\q1 +\v 26 वह मुझसे कहेगा, ‘आप मेरे पिता हैं, +\q2 मेरे परमेश्वर, वह जो मुझे सुरक्षित करते और बचाते हैं।’ +\q1 +\s5 +\v 27 मैं उसे अपने ज्येष्ठ पुत्र के रूप में अधिकार दूँगा; +\q2 वह पृथ्‍वी पर सबसे बड़ा राजा होगा। +\q1 +\v 28 मैं उसके प्रति सदा सच्चा रहूँगा, +\q2 और उसे आशीष देने की मेरी वाचा सदा के लिए स्थिर रहेगी। +\q1 +\v 29 मैं उसके वंशजों की पीढ़ी स्थापित करूँगा जो कभी समाप्त नहीं होंगी, +\q2 उसके वंशजों के विभिन्न लोग सदा राजा होंगे। +\q1 +\s5 +\v 30 परन्तु यदि उसके वंशज मेरे नियमों का उल्लंघन करते हैं +\q2 और मेरे आदेशों के अनुकूल व्यवहार न करें जैसा कि उन्हें करना चाहिए, +\q1 +\v 31 यदि वे मेरी चितौनियों को अनदेखा करते हैं +\q2 और उचित कार्य न करें जिन्हें मैंने उन्हें करने के लिए कहा है, +\q1 +\v 32 तो मैं उन्हें गम्भीर रूप से दण्ड दूँगा +\q2 और उन्हें अनुचित कार्य करने के कारण पीड़ित होना पड़ेगा। +\q1 +\s5 +\v 33 परन्तु मैं दाऊद से सच्चा प्रेम करता रहूँगा, +\q2 और मैं सदा वह करूँगा जो करने की मैंने उससे प्रतिज्ञा की थी। +\q1 +\v 34 मैं उस वाचा को नहीं तोड़ूँगा जो मैंने उसके साथ बाँधी थी; +\q2 मैं एक शब्द को भी नहीं बदलूँगा जो मैंने उससे कहा है। +\q1 +\s5 +\v 35 एक बार मैंने दाऊद को एक गम्भीर वचन दिया है, और वह कभी नहीं बदलेगा; +\q2 क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ, मैं कभी दाऊद से झूठ नहीं बोलूँगा। +\q1 +\v 36 मैंने प्रतिज्ञा की है कि उसके द्वारा निकले राजाओं की पीढ़ी सदा के लिए रहेगी; +\q2 जब तक सूरज चमकता है तब तक वह स्थिर रहेगा। +\q1 +\v 37 वह पीढ़ी चँद्रमा के समान स्थायी होंगी +\q2 धरती पर जो सब कुछ होता है, उसे सदा देखता रहता है।” +\q1 +\s5 +\v 38 परन्तु यहोवा, अब आपने उसे त्याग दिया है! +\q2 आपने जिस राजा को नियुक्त किया हैं उससे आप बहुत क्रोधित हैं। +\q1 +\v 39 ऐसा लगता है कि आपने अपने दास दाऊद के साथ बाँधी वाचा को तोड़ दिया है; +\q2 ऐसा प्रतीत होता है जैसे आपने उसका मुकुट धूल में फेंक दिया है। +\q1 +\v 40 आपने उन दीवारों को तोड़ दिए हैं जो उसके शहर की रक्षा करती हैं +\q2 और उसके सब किलों को खण्डहर होने के लिए छोड़ दिया है। +\q1 +\s5 +\v 41 जो लोग वहाँ से आते जाते हैं, वे उसकी सम्पत्ति लूटते हैं; +\q2 उसके पड़ोसी उस पर हँसते हैं। +\q1 +\v 42 आपने उसके शत्रुओं को उसे पराजित करने में सक्षम बनाया है; +\q2 आपने उन सबको प्रसन्न किया है। +\q1 +\v 43 आपने उसकी तलवार को व्यर्थ कर दिया, +\q2 और आपने युद्ध में उसकी सहायता नहीं की है। +\q1 +\s5 +\v 44 आपने उसकी महिमा समाप्त कर दी है +\q2 और उसके सिंहासन को भूमि पर गिरा दिया है। +\q1 +\v 45 आपने उसको जवानी में ही बूढ़ा बना दिया है +\q2 और उसे बहुत लज्जित होना पड़ा। +\q1 +\s5 +\v 46 हे यहोवा, ऐसा कब तक होता रहेगा? +\q2 क्या आप अपने आपको सदा छिपाए रहेंगे? +\q1 हमारे विरुद्ध आपका क्रोध कब तक आग के समान जलेगा? +\q1 +\v 47 मत भूले कि जीवन बहुत छोटा है; +\q2 यह मत भूले कि आपने हम सबको व्यर्थ ही मरने के लिए बनाया है। +\q1 +\v 48 कोई भी सदा के लिए जीवित नहीं रह सकता कि कभी न मरे; +\q2 कोई भी स्वयं को मृतकों के स्थान से वापस नहीं ला सकता है। +\q1 +\s5 +\v 49 हे यहोवा, आपने बहुत पहले प्रतिज्ञा की थी +\q2 कि आप मुझसे सच्चा प्रेम करेंगे; +\q1 आप ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं? +\q1 आपने गम्भीरता से दाऊद को यह वचन दिया था! +\q1 +\v 50 हे यहोवा, यह न भूलें कि लोग हमारा अपमान करते हैं! +\q2 अन्य जाति के लोग मुझे श्राप देते हैं! +\q1 +\v 51 हे यहोवा, आपके शत्रु आपके चुने हुए राजा का अपमान करते हैं! +\q2 जहाँ भी वह जाता है वहाँ वे उसका अपमान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 52 मैं आशा करता हूँ कि यहोवा की स्तुति सदा की जाएगी! +\q1 आमीन! ऐसा ही हो! + +\s5 +\c 90 +\ms चौथा भाग +\d भविष्यद्वक्ता मूसा द्वारा की गई एक प्रार्थना +\q1 +\p +\v 1 प्रभु, आप हमारे लिए सदा एक घर के समान रहे हैं। +\q1 +\v 2 इससे पहले कि आपने पर्वतों को बनाया, +\q2 इससे पहले कि आपने पृथ्‍वी और जो कुछ उसमें है सबको भी बनाया, +\q1 आप सदा से परमेश्वर थे, +\q2 और आप सदा के लिए परमेश्वर रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 जब लोग मर जाते हैं, तो आप उनकी लाशों को वापस मिट्टी बना देते हैं; +\q2 आप उनकी लाशों को मिट्टी में बदल देते हैं, जिससे पहले मनुष्य को बनाया गया था। +\q1 +\v 4 जब आप समय पर विचार करते हैं, +\q2 तो एक हजार वर्ष एक दिन के समान छोटे हो जाते हैं; +\q2 आप उन्हें रात के कुछ घंटों के समान कम मानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 आप लोगों के लिए अचानक मरने का कारण उत्पन्न कर देते हैं; +\q2 वे केवल थोड़े समय के लिए जीवित रहते हैं जैसे एक स्वप्न केवल थोड़े समय तक रहता है। +\q2 वे घास के समान हैं जो बढ़ती है। +\q1 +\v 6 सुबह घास अंकुरित होकर अच्छी तरह से बढ़ती है, +\q2 परन्तु शाम को यह सूख जाती है और पूरी तरह से मुर्झा जाती है। +\q1 +\s5 +\v 7 इसी प्रकार, हमारे द्वारा किए गए पापों के कारण, आप हमारे साथ क्रोधित हो जाते हैं; +\q2 आप हमें डराते हैं और फिर आप हमें नष्ट कर देते हैं। +\q1 +\v 8 ऐसा लगता है कि आप हमारे पापों को अपने सामने रखते हैं; +\q2 आप हमारे गुप्त पापों को भी सामने रखते हैं जहाँ आप उन्हें देख सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 क्योंकि आप हमारे साथ क्रोधित हैं, आप हमारे जीवन को समाप्त कर देते हैं; +\q2 जितने वर्ष हम जीवित रहते हैं वे एक श्वास के समान शीघ्र ही बीत जाते हैं। +\q1 +\v 10 लोग केवल सत्तर वर्षों तक जीवित रहते हैं; +\q2 यदि वे बलवन्त हैं, तो उनमें से कुछ अस्सी वर्षों तक जीवित रहते हैं। +\q1 परन्तु अच्छे वर्षों के समय भी हमें बहुत कष्ट और दुख होता है; +\q2 हमारा जीवन शीघ्र समाप्त हो जाता है, और हम मर जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 किसी ने वास्तव में उन शक्तिशाली कार्यों का अनुभव नहीं किया है जो आप क्रोध में उनके साथ कर सकते हैं, +\q1 और लोग डरते नहीं हैं कि आप उन्हें दण्डित करेंगे, क्योंकि आप उनसे क्रोधित हैं। +\q1 +\v 12 इसलिए हमें यह समझने की शिक्षा दें कि हम केवल थोड़े समय के लिए जीते हैं +\q2 कि हम समझदारी से हमारे समय का उपयोग कर सकें। +\q1 +\v 13 हे यहोवा, आप कब तक क्रोधित होंगे? +\q1 हम पर दया करें जो आपकी सेवा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 हर सुबह, हम पर प्रकट करें कि आप अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार हमसे प्रेम करते हैं और यह हमारे लिए पर्याप्त है। +\q2 हमें यह दिखाएँ कि हम आनन्द से चिल्ला सकें और हमारे पूरे जीवन में आनन्दित रहें। +\q1 +\v 15 अब हमें उतने ही वर्षों तक आनन्द दें, जितने वर्षों के लिए आपने हमें पीड़ित किया और हमें कष्टों का सामना करना पड़ा था। +\q1 +\v 16 हमें उन महान कार्यों को देखने योग्य करें जो आपने किये हैं, +\q2 और हमारे वंशजों को भी आपकी महिमामय शक्ति को देखने में सक्षम करें। +\q1 +\s5 +\v 17 हे प्रभु, हमारे परमेश्वर, हमें अपना आशीष दें +\q2 और हमें सफल होने के योग्य करें; +\q2 हाँ, हम जो कुछ भी करते हैं उसमें हमें सफलता प्रदान करें! + +\s5 +\c 91 +\q1 +\p +\v 1 जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सुरक्षा में रहते हैं, +\q2 वे इस योग्य होंगे कि उनकी देखभाल में सुरक्षित रूप से विश्राम करें। +\q1 +\v 2 मैं यहोवा से कहूँगा, +\q2 “आप मेरी रक्षा करते हैं; +\q2 आप एक किले के समान हैं जिसमें मैं सुरक्षित हूँ। +\q2 आप मेरे परमेश्वर हैं, जिन पर मैं भरोसा रखता हूँ।” +\q1 +\s5 +\v 3 वह तुझे सब छिपे हुए जालों से बचाएँगे +\q2 और तुझे घातक बीमारियों से बचाएँगे। +\q1 +\v 4 वह तेरा बचाव ऐसे करेंगे जैसे एक पक्षी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे सुरक्षित रखती है। +\q2 तू उनकी देखभाल में सुरक्षित रहेगा। +\q2 उनकी प्रतिज्ञा को पूरी सच्चाई से पूरा करना तुम्हारे लिए ढाल के समान है जो तुम्हारी रक्षा करेगा। +\q1 +\s5 +\v 5 तू उन बातों से नहीं डरेगा जो रात में होती हैं जो तुझे भयभीत कर सकती हैं +\q2 या उन तीरों से जो तेरे शत्रु दिन में तुझ पर चलाते हैं। +\q1 +\v 6 तू उन विपत्तियों से नहीं डरेगा जो दुष्टात्माएँ रात में लोगों पर आक्रमण करके फैलाती हैं +\q2 या अन्य बुरी शक्तियों से जो दोपहर में लोगों को मार देती हैं। +\q1 +\v 7 भले ही एक हजार लोग तेरे निकट मर जाएँ, +\q2 भले ही दस हजार लोग तेरे चारों और मर जाएँ, +\q2 तुझे हानि नहीं पहुँचेगी। +\q1 +\s5 +\v 8 आँख उठा कर देख +\q2 कि दुष्ट लोगों को दण्ड दिया जा रहा है! +\q1 +\v 9 यहोवा मेरी रक्षा करते हैं; +\q2 सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर भरोसा रख कि वह तुझे भी सुरक्षा प्रदान करें। +\q1 +\s5 +\v 10 यदि तू ऐसा करता है, तो तेरे साथ कोई बुराई नहीं होगी; +\q2 तेरे घर के पास कोई विपत्ति नहीं आएगी +\q1 +\v 11 क्योंकि यहोवा अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देंगे +\q2 कि तू जो कुछ भी कर रहा है उसमें तेरी रक्षा करें। +\q1 +\s5 +\v 12 वे तुझे अपने हाथों से उठा लेंगे +\q2 कि तेरे पैर को बड़े पत्थर से चोट न पहुँचे। +\q1 +\v 13 तुझे तेरे शत्रुओं द्वारा हानि पहुँचाने से सुरक्षित रखा जाएगा; +\q2 ऐसा होगा जैसे कि तू ने शक्तिशाली शेरों और विषैले साँपों को कुचल कर मार दिया है! +\q1 +\s5 +\v 14 यहोवा कहते हैं, “मैं उनको बचाऊँगा जो मुझसे प्रेम करते हैं; +\q2 मैं उनकी रक्षा करूँगा क्योंकि वे स्वीकार करते हैं कि मैं यहोवा हूँ। +\q1 +\v 15 जब वे मुझे पुकारते हैं, तो मैं उनको उत्तर दूँगा। +\q2 जब वे संकट का सामना कर रहे हैं तो मैं उनकी सहायता करूँगा; +\q2 मैं उन्हें बचाऊँगा और उनका सम्मान करूँगा। +\q1 +\v 16 मैं उन्हें लम्बे समय तक जीने में सक्षम बना कर उन्हें इनाम दूँगा, +\q2 और मैं उन्हें बचाऊँगा।” + +\s5 +\c 92 +\d एक भजन जो सब्त के दिनों में गाया जाता है। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आपको धन्यवाद देना लोगों के लिए अच्छा है +\q2 और आपकी स्तुति करने के लिए गाना, जो किसी अन्य ईश्वर से अधिक महान हैं। +\q1 +\v 2 हर सुबह यह प्रचार करना अच्छा होता है कि आप हमें सच्चा प्रेम करते हैं +\q2 और हर रात गीत गाना अच्छा हैं जो यह घोषणा करते हैं कि आप सदा वही करते हैं जो आपने करने की प्रतिज्ञा की है, +\q2 +\v 3 संगीतकारों के साथ दास तार वाली वीणा बजाते हुए, +\q2 और सारंगी की ध्वनि के साथ गीत गाना अच्छा हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, आपने मुझे आनन्दित किया है; +\q2 मैं आपके कार्यों के कारण आनन्द से गाता हूँ। +\q1 +\v 5 हे यहोवा, जो कार्य आप करते हैं वह महान हैं! +\q2 परन्तु आपके विचारों को समझना कठिन है। +\q1 +\s5 +\v 6 आप जो करते हैं उन्हें मूर्ख लोग जान नहीं सकते हैं, +\q2 ऐसे कार्य जिन्हें मूर्ख लोग समझ नहीं सकते हैं। +\q1 +\v 7 वे नहीं समझते कि यद्दपि दुष्ट लोगों की संख्या घास के समान बढ़ जाए +\q2 और जो लोग बुराई करते हैं, वे समृद्ध हो जाएँ, +\q1 वे पूरी तरह नष्ट हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु हे यहोवा, आप सदा के लिए राजा रहेंगे। +\q1 +\v 9 हे यहोवा, आपके शत्रु निश्चय मर जाएँगे, +\q2 और जो लोग बुरे कार्य करते हैं वे पराजित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु आपने मुझे जंगली बैल के तरह बलवन्त बना दिया है; +\q1 आपने मुझे बहुत आनन्दित किया है। +\q1 +\v 11 मैंने देखा है कि आप मेरे शत्रुओं को पराजित करते हैं, +\q2 और मैंने उन बुरे लोगों का चिल्लाना सुना है जब उनका वध किया जा रहा था। +\q1 +\s5 +\v 12 परन्तु धर्मी लोग खजूर के पेड़ों की तरह, +\q2 लबानोन में बढ़ने वाले देवदार के पेड़ के समान समृद्ध होंगे जो अच्छी तरह से बढ़ते हैं। +\q1 +\v 13 वे उन पेड़ों के समान हैं जो लोग यरूशलेम में यहोवा के भवन में लगाते हैं, +\q2 पेड़ जो हमारे परमेश्वर के भवन के आँगन के निकट हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 धर्मी लोग वृद्ध होने पर भी, वे कार्य करते हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं। +\q2 वे शक्ति और ऊर्जा से भरे रहते हैं, रस से भरे हुए पेड़ों के समान। +\q2 +\v 15 इससे पता चलता है कि यहोवा न्यायी हैं; +\q2 वह एक विशाल चट्टान के समान है जिस पर मैं सुरक्षित हूँ, +\q2 और वह कभी भी बुराई नहीं करते हैं। + +\s5 +\c 93 +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आप राजा बन गए हैं! +\q2 आपके पास महिमा और शक्ति है जो एक राजा के द्वारा पहनने वाले वस्त्र के समान है। +\q1 आपने संसार को दृढ़ता से उसके स्थान पर रखा है, और वह कभी भी अपने स्थान से हटाया नहीं जाएगा। +\q1 +\v 2 आपने बहुत लम्बे समय पहले से राजा के रूप में शासन करना आरम्भ कर दिया; +\q2 आप सदा से हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, जब आपने संसार बनाया, तो आपने अस्तव्यस्त तत्वों को पानी से अलग किया और महासागरों का निर्माण किया, +\q2 और उन महासागरों के पानी की लहरें अभी भी गरजती हैं, +\q1 +\v 4 परन्तु आप उन महासागरों की गर्जना से अधिक महान हैं, +\q2 समुद्री लहरों की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं! +\q2 आप यहोवा हैं, जो किसी अन्य देवता से अधिक महान हैं! +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, आपके नियम कभी नहीं बदलते हैं, +\q2 और आपका भवन सदा पवित्र रहा है। +\q2 यह सदा के लिए सच होगा। + +\s5 +\c 94 +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आप अपने शत्रुओं से बदला लेने में सक्षम हैं। +\q2 इसलिए उन्हें दिखाएँ कि आप उन्हें दण्ड देने वाले हैं! +\q1 +\v 2 आप ही वह हैं जो पृथ्‍वी पर सब लोगों का न्याय करते हैं; +\q1 इसलिए उठकर उन्हें बदला दें जिसके वे योग्य हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, कब तक ये दुष्ट लोग आनन्दित रहेंगे? +\q2 यह सही नहीं है कि वे आनन्द मनाते हैं! +\q1 +\v 4 वे बुरे कार्य करते हैं, और वे उन्हें करने के विषय में घमण्ड करते हैं; +\q2 उन्हें ऐसा करने की कब तक अनुमति दी जाएगी? +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, ऐसा लगता है कि वे दुष्ट लोग हमें अर्थात् आपके लोगों को कुचल रहे थे; +\q2 वे आपके द्वारा बनाए गए देश का जो केवल आपका है, दमन करते हैं। +\q1 +\v 6 वे विधवाओं और अनाथों की +\q2 और अन्य देशों के लोगों की हत्या करते हैं, जो सोचते हैं कि हमारी भूमि रहने के लिए सुरक्षित है। +\q2 +\v 7 वे दुष्ट लोग कहते हैं, “यहोवा कुछ नहीं देखते हैं; +\q2 जिस परमेश्वर की आराधना इस्राएली करते हैं, वह उन बुरे कार्यों को नहीं देखते हैं जो हम करते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 8 हे दुष्ट लोगों, जो इस्राएल पर शासन करते हो, तुम मूढ़ और मूर्ख हो; +\q2 तुम बुद्धिमान कब होगे? +\q1 +\v 9 परमेश्वर ने हमारे कान बनाएँ हैं; +\q2 क्या तुम यह सोचते हो कि तुम जो भी कहते हो वह सुन नहीं सकते हैं? +\q1 उन्होंने हमारी आँखें बनाईं हैं; +\q2 क्या तुम्हें लगता है कि तुम जो बुरे कार्य करते हो, वह उन्हें नहीं देख सकते हैं? +\q1 +\s5 +\v 10 वह अन्य राष्ट्रों के अगुओं को सुधारते हैं; +\q2 क्या तुम्हें लगता है कि वह तुमको दण्डित नहीं करेंगे? +\q1 वही हैं जो सब कुछ जानते हैं; +\q2 तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि वह नहीं जानते हैं कि तुम क्या करते हो? +\q2 +\v 11 यहोवा सब कुछ जानते हैं कि लोग क्या सोच रहे हैं; +\q2 वह जानते हैं कि वे जो सोचते हैं वह बुरा और व्यर्थ है। +\q1 +\s5 +\v 12 हे यहोवा, कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जिसे आप अनुशासन में रखते हैं, +\q2 वे लोग जो चाहते हैं कि आप उन्हें अपनी व्यवस्था सिखाएँ। +\q1 +\v 13 जब उन लोगों को कष्ट होता है, तब आप उन कष्टों को समाप्त कर देते हैं, +\q1 और एक दिन ऐसा होगा जैसे आप दुष्ट लोगों के लिए गड्ढे खोदेंगे, +\q2 और वे उन गड्ढे में गिर जाएँगे और मर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 14 यहोवा अपने लोगों को त्याग नहीं देंगे; +\q2 वह उन लोगों को त्याग नहीं देंगे जो उनके हैं। +\q1 +\v 15 एक दिन न्यायधीश लोगों के कार्यों का निर्णय सच्चाई से करेंगे, +\q2 और सब सच्चे लोग इसके विषय में प्रसन्न होंगे। +\q1 +\v 16 परन्तु जब दुष्ट लोगों ने मुझ पर अत्याचार किया, +\q1 मुझे किसी ने नहीं बचाया! +\q2 कोई भी उन दुष्ट लोगों के विरुद्ध मेरे लिए गवाही देने के लिए खड़ा नहीं था। +\q1 +\s5 +\v 17 यदि उस समय यहोवा ने मेरी सहायता नहीं की होती, +\q2 तो मुझे मृत्यु दण्ड मिल गया होता; +\q2 मेरा जीवन उस स्थान पर चला जाता जहाँ मृत लोग कुछ भी नहीं बोलते। +\q1 +\v 18 मैंने कहा, “मैं विपत्ति में पड़ रहा हूँ,” +\q2 परन्तु, हे यहोवा, आपने मुझसे सच्चा प्रेम करके मुझे पकड़ कर उठा लिया। +\q1 +\v 19 जब भी मैं बहुत चिन्तित होता हूँ, +\q2 आप मुझे सांत्वना देते हैं और मुझे आनन्दित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 आप दुष्ट न्यायियों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते हैं, +\q2 जो लोग ऐसे कानून बनाते हैं जो लोगों को बुरे कार्य करने की अनुमति देते हैं। +\q1 +\v 21 वे धर्मी लोगों को मारने की योजना बनाते हैं, +\q1 और वे घोषणा करते हैं कि निर्दोष लोगों को मार दिया जाना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 22 परन्तु यहोवा मेरे लिए किले के समान बन गए हैं; +\q2 मेरा परमेश्वर एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं संरक्षित हूँ। +\q1 +\v 23 वह उन दुष्ट अगुओं को उनके द्वारा किए गए कार्यों के बदले दण्डित करेंगे; +\q2 वह उन पापों के कारण उनसे छुटकारा पाएँगे जो उन्होंने किए हैं; +\q2 हाँ, हमारे परमेश्वर यहोवा उन्हें मिटा देंगे। + +\s5 +\c 95 +\q1 +\p +\v 1 आओ, यहोवा के लिए गाएँ; +\q2 आनन्द से उनके लिए गाएँ, जो हमारी रक्षा करते हैं और हमें बचाते हैं! +\q1 +\v 2 हमें उनका धन्यवाद करना चाहिए जब हम उनके सामने आते हैं +\q2 और आनन्द के गीत गाने चाहिए जब हम उनकी स्तुति करते हैं। +\q1 +\v 3 क्योंकि यहोवा एक महान परमेश्वर हैं, +\q2 वह एक महान राजा हैं जो अन्य सब देवताओं पर शासन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 वह पूरी धरती पर शासन करते हैं +\q2 गहरे स्थानों से ऊँचे पर्वतों तक। +\q1 +\v 5 समुद्र उनके हैं क्योंकि उन्होंने उन्हें बनाया है। +\q2 वही हैं जिन्होंने सूखी भूमि बनाई है। +\q1 +\s5 +\v 6 हमें उनके सामने आना चाहिए और झुक कर उनकी आराधना करनी चाहिए। +\q2 हमें यहोवा के सामने घुटने टेकना चाहिए, जिन्होंने हमें बनाया है। +\q1 +\v 7 वह हमारे परमेश्वर हैं, +\q2 और हम वे लोग हैं जिन्हें वह सुरक्षित रखते हैं, +\q2 जैसे चरवाहा भेड़ों की देखभाल करता है। +\q1 मैं चाहता हूँ कि आज तुम सुन सको कि यहोवा तुमसे क्या कह रहे हैं। +\q2 +\s5 +\v 8 वह कहते हैं, “हठीले मत बनो जैसे तुम्हारे पूर्वजों ने मरीबा में किया था, +\q2 और जैसा कि उन्होंने जंगल में मस्सा में किया था। +\q1 +\v 9 वहाँ तुम्हारे पूर्वज देखना चाहते थे कि क्या वे मुझसे दण्ड पाए बिना बुरे कार्य कर सकते हैं। +\q2 उन्होंने मुझे कई चमत्कार करते हुए देखा था, तो भी उन्होंने परीक्षा की कि मैं उनके साथ धीरज रखता रहूँगा या नहीं। +\q1 +\s5 +\v 10 चालीस वर्षों तक मैं उन लोगों से क्रोधित था, +\q2 और मैंने कहा, ‘वे लोग विश्वासयोग्य नहीं हैं। +\q2 वे मेरे आदेशों का पालन करने से मना करते हैं।’ +\q1 +\v 11 इसलिए क्योंकि मैं बहुत क्रोधित था; मैंने उनके विषय में गम्भीरता से कहा, +\q2 ‘वे कनान देश में कभी प्रवेश नहीं करेंगे जहाँ मैं उन्हें विश्राम करने की अनुमति देता!’” + +\s5 +\c 96 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ! +\q1 हे पृथ्‍वी के लोगों, यहोवा के लिए गाओ! +\q1 +\v 2 यहोवा के लिए गाओ और उनकी स्तुति करो! +\q2 हर दिन दूसरों में यह प्रचार करो कि उन्होंने हमें बचा लिया है। +\q1 +\s5 +\v 3 सब लोगों के समूहों को उनकी महिमा के विषय में बताओ; +\q2 सब लोगों के समूहों को उन आश्चर्यजनक कार्यों के विषय में बताओ जो उन्होंने किए हैं। +\q1 +\v 4 यहोवा महान हैं, और वह बहुत स्तुति के योग्य हैं; +\q1 उन्हें सब देवताओं से अधिक सम्मानित किया जाना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 5 सब देवता जिनकी दूसरे लोग उपासना करते हैं, वे केवल मूर्तियाँ हैं, +\q2 परन्तु यहोवा वास्तव में महान है; उन्होंने आकाश को बनाया हैं! +\q1 +\v 6 परमेश्वर अपनी महिमा और वैभव दिखाते हैं’; वे उनके शासन करने के स्थान से चमकते हैं। +\q2 शक्ति और सौन्दर्य उनके पवित्र घर में हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 हे पृथ्‍वी के सब राष्ट्रों के लोगों, यहोवा की स्तुति करो! +\q1 उनकी महिमामय शक्ति के लिए यहोवा की स्तुति करो! +\q1 +\v 8 यहोवा की स्तुति करो जिस स्तुति के वे योग्य हैं; +\q2 भेंट ले कर उनके भवन में आओ। +\q2 +\s5 +\v 9 यहोवा के सामने झुको क्योंकि उनकी पवित्रता उनकी अद्भुत सुन्दरता में से निकलती हैं’। +\q2 पृथ्‍वी पर हर किसी को उनकी उपस्थिति में बहुत डरना चाहिए, क्योंकि वह अच्छे और शक्तिशाली हैं, और हमसे पूरी तरह अलग हैं। +\q1 +\v 10 सब लोगों के समूहों से कहो, “यहोवा राजा हैं! +\q2 उन्होंने संसार को उसके स्थान पर रखा हैं, और कोई भी इसे हटा नहीं सकता है। +\q1 वह सब लोगों के समूहों का न्याय धर्म से करेंगे।” +\q1 +\s5 +\v 11 स्वर्ग में रहने वाले सब प्राणियों को प्रसन्न होना चाहिए, और पृथ्‍वी पर सब लोगों को आनन्दित होना चाहिए। +\q2 महासागरों और उसमें रहने वाले सब प्राणियों को यहोवा की स्तुति करने के लिए गर्जना चाहिए। +\q1 +\v 12 खेतो को और जो कुछ भी उसमें उगता है, उन्हें आनन्दित होना चाहिए। +\q1 जब वे ऐसा करते हैं, तो ऐसा होगा जैसे जंगलों में सब पेड़ यहोवा के सामने +\q2 +\v 13 आनन्द से गा रहे हैं। +\q1 ऐसा तब होगा जब वह पृथ्‍वी पर सबका न्याय करने के लिए आएँगे। +\q2 वह सब लोगों का न्याय उस सच्चाई से जिसे वह जानते हैं उसके अनुसार करेंगे। + +\s5 +\c 97 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा राजा हैं! +\q2 मैं चाहता हूँ कि पृथ्‍वी पर हर कोई आनन्दित हो +\q2 और जो लोग महासागरों के द्वीपों पर रहते हैं, वे भी इसके विषय में आनन्दित हो! +\q1 +\v 2 उनके चारों ओर बहुत काले बादल हैं; +\q1 वह पूरी तरह से, न्यायसंगत, और धर्म से शासन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 वह अपने आगे आग भेजते हैं, +\q2 और वह उस आग में अपने सब शत्रुओं को जला कर भस्म कर देते हैं। +\q1 +\v 4 संसार भर में वह बिजली चमकाते हैं; +\q2 पृथ्‍वी पर लोग इसे देखते हैं, और इससे वे डरते और काँपते हैं। +\q1 +\v 5 पर्वत यहोवा के सामने मोम के समान पिघल गए, +\q2 उनके सामने वो प्रभु हैं, जो सारी धरती पर शासन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 स्वर्ग में स्वर्गदूतों ने घोषणा की कि वह धर्म से कार्य करते हैं, +\q2 और सब लोगों के समूह उनकी महिमा देखते हैं। +\q1 +\v 7 जो लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं उन्हें लज्जित होना चाहिए; +\q2 जो लोग अपने झूठे देवताओं पर गर्व करते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि उनके देवता निकम्मे हैं। +\q1 वे देवता यहोवा की उपासना करने के लिए झुकेंगे। +\q1 +\v 8 यरूशलेम के लोगों ने सुना कि परमेश्वर न्यायी हैं, और वे आनन्दित हुए; +\q2 यहूदा के अन्य शहरों के लोग भी आनन्दित हुए +\q2 क्योंकि यहोवा न्याय करते हैं और दुष्ट लोगों को दण्ड देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यहोवा सारी पृथ्‍वी पर सर्वोच्च राजा हैं; +\q2 उनके पास बहुत बड़ी शक्ति है, और अन्य किसी भी देवता में शक्ति नहीं है। +\q1 +\v 10 यहोवा उन लोगों से प्रेम करते हैं जो बुरा करने वाले लोगों से घृणा करते हैं; +\q2 वह अपने लोगों के जीवन की रक्षा करते हैं, +\q2 और जब दुष्ट लोग उन्हें हानि पहुँचाने का प्रयास करते हैं तो वह उन्हें बचाते हैं। +\q1 +\v 11 वह धर्मी लोगों को सच में जीवित रखते हैं; +\q2 वह उन लोगों को जो धर्मी हैं, उनके मनों में आनन्दित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 हे धर्मी लोगों, यहोवा ने जो किया है, उसके विषय में आनन्दित रहो, +\q2 और हमारे पवित्र परमेश्वर का धन्यवाद करो! + +\s5 +\c 98 +\d एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ +\q1 क्योंकि उन्होंने अद्भुत कार्य किए हैं! +\q1 अपनी शक्ति से उन्होंने अपने शत्रुओं को पराजित कर दिया है। +\q1 +\v 2 यहोवा ने लोगों को यह घोषित किया है कि उन्होंने अपने शत्रुओं को पराजित किया है; +\q2 उन्होंने प्रकट किया है कि उन्होंने अपने शत्रुओं को दण्डित किया है, +\q2 और संसार भर के लोगों ने देखा है कि उन्होंने इसे किया है। +\q1 +\s5 +\v 3 जो प्रतिज्ञा उन्होंने हम इस्राएली लोगों से की थी, +\q2 उन्होंने हमसे सच्चा प्रेम किया है और हमारे प्रति विश्वासयोग्य रहे हैं। +\q1 जो लोग पूरी पृथ्‍वी पर बहुत दूर-दूर के स्थानों में रहते हैं +\q2 उन लोगों ने देखा है कि हमारे परमेश्वर ने अपने शत्रुओं को पराजित कर दिया है। +\q1 +\v 4 हर स्थान के सब लोगों को आनन्द से यहोवा के लिए गीत गाना चाहिए; +\q1 जब तुम गाते और आनन्द से चिल्लाते हो तो तुम्हें उनकी प्रशंसा करनी चाहिए! +\q1 +\s5 +\v 5 जब तुम सारंगी बजाते हो तो मधुर संगीत बजा कर, +\q2 यहोवा की स्तुति करो। +\q1 +\v 6 तुम में से कुछ लोगों को तुरही और अन्य नरसिंगे फूँकने चाहिए +\q2 जबकि दूसरे लोग हमारे राजा यहोवा के लिए आनन्द से जयजयकार करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 महासागरों और उनमें रहने वाले सब प्राणियों को यहोवा की स्तुति करने के लिए गर्जना चाहिए। +\q1 पृथ्‍वी पर हर व्यक्ति को गाना चाहिए! +\q1 +\v 8 ऐसा प्रतीत होना चाहिए कि नदियाँ यहोवा की स्तुति करने के लिए ताली बजा रही हैं +\q2 और पर्वत यहोवा के सामने आनन्द से गा रहे हैं +\q1 +\v 9 क्योंकि वह पृथ्‍वी पर हर किसी का न्याय करने आएँगे! +\q2 वह पृथ्‍वी के सब लोगों के समूहों का न्यायपूर्वक और निष्पक्षता से न्याय करेंगे। + +\s5 +\c 99 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा सर्वोच्च राजा हैं, +\q1 इसलिए सब लोगों के समूहों को उनकी उपस्थिति में काँपना चाहिए! +\q1 वह पंख वाले प्राणियों के ऊपर आराधनालय में अपने सिंहासन पर विराजमान हैं, +\q2 इसलिए पृथ्‍वी को काँपना चाहिए! +\q1 +\v 2 यहोवा यरूशलेम में एक शक्तिशाली राजा हैं; +\q2 वह सब लोगों के समूहों के सर्वोच्च शासक भी हैं। +\q2 +\v 3 उन्हें उनकी स्तुति करनी चाहिए क्योंकि वह बहुत महान हैं; +\q2 वह पवित्र हैं! +\q1 +\s5 +\v 4 वह एक शक्तिशाली राजा हैं जो न्याय से प्रेम करते हैं; +\q2 उन्होंने इस्राएल में न्याय के और निष्पक्षता के कार्य किये हैं। +\q1 +\v 5 हमारे परमेश्वर यहोवा की स्तुति करो! +\q2 उनके चरणों की चौकी के सामने, उनके मन्दिर में पवित्र सन्दूक के सामने उनकी आराधना करें, +\q2 जहाँ वह लोगों पर शासन करते हैं। +\q2 वह पवित्र हैं! +\q1 +\s5 +\v 6 मूसा और हारून उनके दो याजक थे; +\q1 शमूएल भी उनसे प्रार्थना करने वालों में से एक था। +\q1 उन तीनों ने अपनी सहायता के लिए यहोवा को पुकारा, +\q2 और उन्होंने उन्हें उत्तर दिया। +\q1 +\v 7 उन्होंने बादल के विशाल खम्भे से मूसा और हारून से बातें की; +\q2 उन्होंने उन सब नियमों और आज्ञाओं का पालन किया जो उन्होंने उन्हें दिए थे। +\q1 +\s5 +\v 8 हे यहोवा, हे हमारे परमेश्वर, आपने अपने लोगों का उत्तर दिया +\q2 जब उन्होंने आपको सहायता के लिए पुकारा; +\q1 आप वह परमेश्वर हैं जिन्होंने उन्हें उनके पापों के लिए क्षमा किया, +\q1 भले ही आपने उनके गलत कार्यों के लिए उन्हें दण्डित किया। +\q1 +\v 9 हमारे परमेश्वर यहोवा की स्तुति करो, +\q2 और उनकी पवित्र पहाड़ी पर मन्दिर में उनकी आराधना करो; +\q2 ऐसा करना उचित है क्योंकि यहोवा हमारे परमेश्वर पवित्र हैं! + +\s5 +\c 100 +\d धन्यवाद का भजन +\q1 +\p +\v 1 पृथ्‍वी के सब लोगों को यहोवा के लिए आनन्द से जयजयकार करना चाहिए! +\q2 +\v 2 हमें आनन्द से यहोवा की उपासना करनी चाहिए! +\q2 हमें आनन्द से गीत गाते हुए उनके सामने आना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 3 हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि यहोवा ही परमेश्वर हैं; +\q2 उन्होंने ही हमें बनाया है, और इसलिए हम उनके हैं। +\q2 हम वे लोग हैं जिनकी वह देखभाल करते हैं; +\q2 हम उन भेड़ों के समान हैं जिनकी देखभाल उनका चरवाहा करता है। +\q1 +\s5 +\v 4 उनके भवन के द्वार में उनका धन्यवाद करते हुए प्रवेश करो; +\q2 भवन के आँगन में उनके लिए स्तुति के गीत गाते हुए प्रवेश करें! +\q1 उनको धन्यवाद दें और उनकी स्तुति करें +\q1 +\v 5 क्योंकि यहोवा सदा हमारे लिए अच्छे कार्य करते हैं। +\q2 वह हमसे सच्चा प्रेम करते हैं क्योंकि उन्होंने हमसे प्रतिज्ञा की है, +\q2 और वह विश्वासयोग्य हैं। + +\s5 +\c 101 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपके लिए गाऊँगा! +\q1 मैं आपकी विश्वासयोग्यता और हमारे प्रति खराई के विषय में गाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 2 मैं प्रतीक्षा करता हूँ कि जब मैं लोगों पर शासन करता हूँ, +\q2 मैं ऐसा व्यवहार करूँगा कि कोई भी मेरी निन्दा करने में सक्षम नहीं होगा। +\q2 हे यहोवा, आप मेरी सहायता करने के लिए कब आएँगे? +\q1 मैं ऐसे कार्य करूँगा जो उचित हैं। +\q1 +\v 3 मैं ऐसे किसी व्यक्ति को अपने पास आने नहीं दूँगा जो बुराई करता है। +\q1 मैं उन लोगों के कार्यों से घृणा करता हूँ जो आप से दूर हो जाते हैं; +\q2 मैं उन लोगों से पूरी तरह से बचा रहूँगा। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं कपटी नहीं बनूँगा, +\q2 और बुराई के साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं होगा। +\q1 +\v 5 मैं उस हर एक व्यक्ति का सत्यानाश करूँगा जो गुप्त में किसी और की निन्दा करता है, +\q1 और मैं ऐसे किसी व्यक्ति को अपने पास आने नहीं दूँगा जो घमण्डी और अभिमानी है। +\q1 +\v 6 मैं इस देश में उन लोगों को ही आने दूँगा जो परमेश्वर के प्रति सच्चे हैं, +\q1 और मैं उन्हें मेरे साथ रहने की अनुमति दूँगा। +\q2 मैं उन लोगों को मेरी सेवा करने की अनुमति दूँगा जिनके व्यवहार की निन्दा कोई नहीं कर सकता। +\q1 +\s5 +\v 7 मैं ऐसे किसी व्यक्ति को अपने महल में कार्य करने की अनुमति नहीं दूँगा जो दूसरों को धोखा दे, +\q1 और जो भी झूठ बोलता है उसे मेरे लिए कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। +\q1 +\v 8 प्रतिदिन मैं इस देश के सब दुष्ट लोगों का सत्यानाश करने का प्रयास करूँगा; +\q1 मैं उन्हें इस नगर से निकाल दूँगा, जो यहोवा का शहर है। + +\s5 +\c 102 +\d ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखी गई प्रार्थना जो पीड़ित था, जब वह निराश हो गया और यहोवा से सहायता करने के लिए विनती की। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना को सुनें; +\q1 मुझे सुनें जब मैं पुकारता हूँ! +\q1 +\v 2 मुँह न मोड़ें! +\q1 मेरी बात सुनें, +\q2 और जब मैं आपको पुकारूँ तो मुझे तुरन्त उत्तर दें! +\q1 +\s5 +\v 3 मेरा जीवन धुएँ के समान है जो लुप्त हो जाता है, समाप्त हो रहा है; +\q1 मुझे बहुत बुखार है जो मेरे शरीर को आग के समान जलाता है। +\q1 +\v 4 मुझे लगता है कि मैं कटी हुई घास के समान सूख रहा हूँ, +\q2 और मैं भोजन खाने के विषय में भी नहीं सोचता। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं ऊँचे शब्द से कराहता हूँ, +\q2 और मेरी हड्डियाँ मेरी त्वचा के नीचे दिखाई देती हैं क्योंकि मैं बहुत पतला हो गया हूँ। +\q1 +\v 6 मैं रेगिस्तान में अकेले और तुच्छ गिद्ध के समान हूँ, +\q2 मैं एक खण्डहर में अकेले बैठे उल्लू के समान हूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 मैं रात में जागता हूँ; +\q2 क्योंकि मुझे सांत्वना देने के लिए कोई नहीं है, +\q2 मैं छत पर बैठे अकेले पक्षी के समान हूँ। +\q1 +\v 8 प्रतिदिन मेरे शत्रु मेरा अपमान करते हैं; +\q2 जो मेरा उपहास उड़ाते हैं वे मेरा नाम लेते हैं +\q2 और जब वे लोगों को श्राप देते हैं तो कहते हैं, “तुम उसके जैसे हो जाओ”। +\q1 +\s5 +\v 9-10 क्योंकि आप मुझसे बहुत क्रोधित हैं, +\q1 जब मैं पीड़ित होता हूँ तो मैं राख में बैठ जाता हूँ; +\q2 वह राख उस रोटी पर गिरती है, जो मैं खाता हूँ, +\q2 और जो मैं पीता हूँ उसमें मेरे आँसू मिले होते हैं। +\q1 यह ऐसा है जैसे आपने मुझे उठाया और दूर फेंक दिया है! +\q1 +\s5 +\v 11 मेरे जीवित रहने का समय कम है +\q2 शाम की छाया के समान जो शीघ्र ही चली जाएगी। +\q2 गर्म सूरज से घास जैसे सूखती हैं, वैसे मैं भी सूख रहा हूँ। +\q1 +\v 12 परन्तु हे यहोवा, आप हमारे राजा हैं जो सदैव शासन करते हैं; +\q1 लोग जो अभी तक पैदा भी नहीं हुए हैं, वे आपको स्मरण करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 13 आप उठकर यरूशलेम के लोगों के प्रति दया के कार्य करेंगे; +\q2 अब आपके लिए ऐसा करने का समय है; +\q1 यही वह समय है कि आप उन पर दया करें। +\q1 +\v 14 भले ही शहर नष्ट हो गया है, +\q2 हम जो आपकी सेवा करते हैं, वे अभी भी उन पत्थरों से प्रेम करते हैं जो पहले शहर की दीवारों में थे; +\q1 क्योंकि अब हर जगह मलबा है, +\q2 हम, आपके लोग, जब इसे देखते हैं तो बहुत दुखी होते हैं। +\q1 +\v 15 हे यहोवा, किसी दिन अन्य राष्ट्रों के लोग आपका बहुत आदर करेंगे; +\q1 पृथ्‍वी के सब राजा देखेंगे कि आप बहुत तेजस्वी हैं। +\q1 +\v 16 आप यरूशलेम का पुनर्निर्माण करेंगे, +\q2 और आप अपनी महिमा के साथ वहाँ दिखाई देंगे। +\q1 +\s5 +\v 17 आप अपने लोगों की प्रार्थना सुनेंगे, जो बेघर हैं, +\q2 जब वे अपनी सहायता के लिए आप से अनुरोध करते हैं +\q2 तब आप उन्हें अनदेखा नहीं करेंगे। +\q1 +\v 18 हे यहोवा, मैं इन शब्दों को लिखना चाहता हूँ +\q2 कि भविष्य में लोग जान सकें कि आपने क्या-क्या किया हैं, +\q2 कि वे लोग जो अभी तक पैदा भी नहीं हुए हैं, आपकी स्तुति करें। +\q1 +\s5 +\v 19 वे जान जाएँगे कि आपने अपने स्थान स्वर्ग में से नीचे देखा है +\q1 और देखा कि पृथ्‍वी पर क्या हो रहा था। +\q1 +\v 20 वे जान जाएँगे कि आपने बन्दियों का चिल्लाना सुना हैं +\q2 और यह कि आप उन लोगों को मुक्त कर देंगे जिनसे कह दिया है, “तुमको मार डाला जाएगा।” +\q1 +\s5 +\v 21 परिणामस्वरूप, जो कुछ भी आपने किया है उसके लिए यरूशलेम के लोग आपकी स्तुति करेंगे। +\q2 +\v 22 अन्य जातियों के कई लोग और अन्य साम्राज्यों के नागरिक, आपकी आराधना करने के लिए एकत्र होंगे। +\q1 +\s5 +\v 23 परन्तु अब आपने मुझे निर्बल बना दिया हैं जबकि मैं अभी भी युवा हूँ; +\q2 मुझे लगता है कि मैं बहुत लम्बे समय तक जीवित नहीं रहूँगा। +\q1 +\v 24 मैं आप से कहता हूँ, “हे मेरे परमेश्वर, मेरे बूढ़ा हो जाने से पहले, +\q2 मुझे इस पृथ्‍वी से दूर मत ले जाओ! +\q1 परन्तु, आप सदा के लिए जीवित हैं! +\q1 +\s5 +\v 25 आपने बहुत पहले पृथ्‍वी बनाई है, +\q2 और आपने स्वर्ग को अपने हाथों से बनाया है। +\q1 +\v 26 पृथ्‍वी और आकाश चले जाएँगे, परन्तु आप बने रहेंगे। +\q2 कपड़ों के समान वे पुराने हो जाएँगे। +\q1 आप उनसे छुटकारा पाएँगे जैसे लोग पुराने कपड़े से छुटकारा पाते हैं, +\q2 और वे अस्तित्व में नहीं होंगे। +\q1 +\v 27 परन्तु आप आपके द्वारा बनाई हुई वस्तुओं के समान नहीं हैं, +\q2 क्योंकि आप सदा एक समान रहते हैं; +\q2 आप कभी नहीं मरते हैं। +\q1 +\s5 +\v 28 एक दिन हमारी सन्तान यरूशलेम में सुरक्षित रहेंगे, +\q1 और उनके वंशज आपकी उपस्थिति में रहने के कारण सुरक्षित होंगे।” + +\s5 +\c 103 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 मैं स्वयं से कहता हूँ कि मुझे यहोवा की स्तुति करनी चाहिए। +\q2 मैं उनकी स्तुति करूँगा क्योंकि वह पवित्र हैं। +\q1 +\v 2 मैं स्वयं से कहता हूँ कि मुझे यहोवा की स्तुति करनी चाहिए +\q2 और मेरे लिए किए गए उनके सब प्रकार के कार्यों को कभी न भूलूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 वह मेरे सब पापों को क्षमा करते हैं, +\q2 और वह मुझे मेरी सब बीमारियों से स्वस्थ करते हैं; +\q1 +\v 4 वह मुझे मरने से बचाते हैं, +\q2 और वह मुझसे सच्चा प्रेम करके और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मुझ पर दया करके मुझे आशीष देते हैं। +\q1 +\v 5 वह मुझे मेरे पूरे जीवन भर अच्छी वस्तुएँ देते हैं। +\q2 वह मुझे उकाब के समान युवा और शक्तिशाली अनुभव कराते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 यहोवा उन सबका उचित न्याय करते हैं जिनके साथ अन्याय किया गया है। +\q1 +\v 7 बहुत पहले उन्होंने मूसा को बताया कि उन्होंने क्या करने की योजना बनाई है; +\q2 उन्होंने हम इस्राएलियों के पूर्वजों को उन शक्तिशाली कार्यों को दिखाया जिन्हें करने में वे समर्थ थे। +\q1 +\v 8 यहोवा के कार्य दया से और अनुग्रह से पूर्ण हैं; +\q2 जब हम पाप करते हैं तो वह शीघ्र क्रोधित नहीं होते हैं; +\q1 वह सदा हमें दिखाते हैं कि वह हमसे सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 वह हमें सदैव डाँटते नहीं रहेंगे, +\q2 और वह सदा के लिए क्रोधित नहीं रहेंगे। +\q1 +\v 10 उन्होंने हमें हमारे पापों के अनुसार दण्डित नहीं किया है जिसके हम योग्य थे। +\q1 +\s5 +\v 11 आकाश पृथ्‍वी से बहुत ऊपर हैं, +\q2 और उन सबके लिए जो यहोवा का सम्मान करते हैं, उनके लिए यहोवा का सच्चा प्रेम उतना ही महान है। +\q1 +\v 12 उन्होंने हमारे पापों के दोष को मिटा दिया है +\q2 और इसे हमसे इतना दूर कर दिया है जितना पूर्व पश्चिम से दूर है। +\q1 +\v 13 जैसे माता-पिता अपनी संतानों के प्रति दया के कार्य करते हैं, +\q2 यहोवा उन लोगों पर दया करते है जो उनका आदर करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 वह जानते हैं कि हमारे शरीर कैसे बने हैं; +\q2 उन्हें स्मरण है कि उन्होंने हमें मिट्टी से बनाया है +\q2 और इसलिए हम वह करने में शीघ्र ही असफल हो जाते हैं जो उन्हें प्रसन्न करता है। +\q1 +\v 15 हम मनुष्य सदा के लिए नहीं रहते हैं; +\q2 हम घास के समान हैं जो सूखती है और नाश हो जाती है। +\q1 हम जंगली फूलों के समान हैं जो थोड़ी ही देर के लिए खिलते हैं; +\q1 +\v 16 परन्तु फिर गर्म हवा उन पर लगती है, और वे नाश हो जाते हैं; +\q2 कोई भी उन्हें फिर नहीं देखता है। +\q1 +\s5 +\v 17 परन्तु यहोवा सदा के लिए सच्चा प्रेम करते रहेंगे +\q2 उन सबसे जो उन्हें सम्मान देते हैं, जैसा कि उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q2 वह हमारी सन्तान और उनकी सन्तान के लिए न्याय के कार्य करेंगे; +\q1 +\v 18 वह उन सब लोगों को जो उनकी वाचा का पालन करते हैं उनके लिए इस प्रकार से कार्य करेंगे, कि वे आशीषित हों यदि वे उनके आदेशों के अनुसार कार्य करें, +\q2 उन सबके लिए जो उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। +\q1 +\v 19 यहोवा ने स्वर्ग में अपना स्थान लिया है जहाँ वह राजा के रूप में शासन करते हैं; +\q2 वहाँ से वह सब पर शासन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 हे स्वर्गदूतों, तुम जो यहोवा के हो, उनकी स्तुति करो! +\q2 तुम शक्तिशाली प्राणी हो जो वह करते हो जिसकी आज्ञा वह तुम्हें देते हैं; +\q2 वह जो आज्ञा देते हैं तुम उसका पालन करते हो। +\q1 +\v 21 हे स्वर्गदूतों की सेनाओं, तुम जो उनकी सेवा करते हो और जो वह चाहते हैं वही करते हो, यहोवा की स्तुति करो। +\q1 +\v 22 हे यहोवा की सारी सृष्टि, तुम सब उनकी स्तुति करो; +\q2 हर उन स्थानों में उनकी स्तुति करो जहाँ वह शासन करते हैं, हर एक स्थान में! +\q1 मैं भी यहोवा की स्तुति करूँगा! + +\s5 +\c 104 +\q1 +\p +\v 1 मैं स्वयं से कहता हूँ कि मुझे यहोवा की स्तुति करनी चाहिए। +\q1 हे यहोवा, हे परमेश्वर, आप बहुत महान हैं! +\q2 जैसे एक राजा अपने राजसी वस्त्रों को पहने रहता हैं, +\q1 वैसे आपके चारों ओर सम्मान और महिमा हैं! +\q1 +\v 2 आपने प्रकाश बनाया और आप इसके पीछे छिप गए। +\q2 आपने पूरे आकाश को फैलाया जैसे कोई तम्बू स्थापित करता है। +\q2 +\v 3 आपने बादलों पर अपना महल बनाया है। +\q1 आपने बादलों को आपकी सवारी के लिए रथों के समान बनाया है। +\q1 +\s5 +\v 4 आपने हवाओं को अपने दूतों के समान बनाया, +\q1 और अग्नि की ज्वाला को आपके दासों के समान बनाया हैं। +\q1 +\v 5 आपने पृथ्‍वी को दृढ़ता से उसकी नींव पर रखा है +\q2 कि वह कभी भी अपने स्थान से हटाई न जा सके। +\q1 +\s5 +\v 6 बाद में, आपने धरती को बाढ़ से ढाँक दिया, जैसे एक कंबल से ढाँकते हैं; +\q2 और पानी ने पर्वतों को ढाँक दिया। +\q1 +\v 7 परन्तु जब आपने पानी को डाँटा, तो महासागर पीछे हट गए’; +\q2 आपकी वाणी गर्जन के समान बात करती हैं, +\q1 और फिर पानी दूर चला गया। +\q1 +\s5 +\v 8 पर्वत पानी से ऊपर उठ गए, +\q2 और घाटियाँ उन स्तरों तक नीचे हो गईं +\q2 जिन्हें आपने उनके लिए निर्धारित किया था। +\q1 +\v 9 तब आपने महासागरों के लिए एक सीमा निर्धारित की, एक सीमा जिसे वे पार नहीं कर सकते; +\q2 उनका पानी फिर कभी भी पूरी धरती को नहीं ढाँकेगा। +\q1 +\s5 +\v 10 आप घाटियों में पानी के लिए सोते बनाते हैं; +\q2 उनका पानी पर्वतों के बीच बहता है। +\q1 +\v 11 वे धाराएँ सब पशुओं को पीने के लिए पानी देती हैं; +\q2 जंगली गधे पानी पीते हैं और अब प्यासे नहीं रहते हैं। +\q1 +\v 12 पक्षी धाराओं के पास अपने घोंसले बनाते हैं, +\q2 और वे पेड़ों की शाखाओं में गाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 आकाश से आप पर्वतों पर वर्षा भेजते हैं, +\q2 और आप पृथ्‍वी को कई अच्छी वस्तुओं से भरते हैं जिनकी आप सृष्टि करते हैं। +\q1 +\v 14 आप पशुओं के खाने के लिए घास उगाते हैं, +\q2 और आप पौधों को लोगों के लिए बढ़ाते हैं। +\q2 इस प्रकार, पशुओं और लोगों को भूमि की ऊपज से अपना खाना मिलता है। +\q1 +\v 15 हमें पीने के लिए और हमें आनन्द करने के लिए अँगूरों से दाखरस मिलता हैं; +\q2 हमारे चेहरे को चमकाने के लिए जैतून प्राप्त होता है, +\q2 और हमें शक्ति देने के लिए अनाज से हमें रोटी मिलती है। +\q1 +\s5 +\v 16 हे यहोवा, आप अपने पेड़ों को पानी देने के लिए बहुत वर्षा भेजते हैं, +\q2 लबानोन में लगाए गए देवदार के पेड़ों के लिए। +\q1 +\v 17 पक्षी उन पेड़ों में अपने घोंसले बनाते हैं, +\q2 और सारस सनोवर के पेड़ों में अपने घोंसले बनाते हैं। +\q1 +\v 18 ऊँचे पर्वतों में जंगली बकरियाँ रहती हैं, +\q2 और चट्टानों में शापान रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 हे यहोवा, आपने चँद्रमा को हमारे पर्वों के लिए समय का संकेत देने के लिए बनाया है, +\q2 और आपने सूर्य बनाया जो जानता है कि कब अस्त होना है। +\q1 +\v 20 आप अंधेरा लाते हैं, और रात हो जाती हैं +\q2 जब जंगल में सब जानवर भोजन की खोज में घूमते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 रात में युवा शेरों का गर्जन होता है क्योंकि वे अपने शिकार की खोज करते हैं, +\q2 परन्तु वे अपना भोजन पाने के लिए आप पर निर्भर रहते हैं। +\q1 +\v 22 सुबह को, वे अपनी मांदों में वापस जाते हैं और लेट जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 23 दिन के समय, लोग अपने कार्य पर जाते हैं; +\q2 वे शाम तक कार्य करते हैं। +\q1 +\v 24 हे यहोवा, आपने कई अलग-अलग वस्तुएँ बनाई हैं! +\q2 आपने बुद्धिमानी से सब कुछ बनाया। +\q2 धरती आपके द्वारा बनाए गए प्राणियों से भरी हैं। +\q1 +\s5 +\v 25 हम समुद्र को देखते हैं जो बहुत विशाल है! +\q2 वह कई प्रकार के जीवित प्राणियों से भरा है, +\q2 बड़े और छोटे प्राणी। +\q1 +\v 26 हम उन जहाजों को देखते हैं जो जल में यात्रा करते हैं! +\q2 हम विशाल समुद्री राक्षस देखते हैं जिसे आपने समुद्र में चारों ओर खेलने के लिए बनाया था। +\q1 +\s5 +\v 27 ये सब प्राणी अपना भोजन पाने के लिए जो उन्हें चाहिए, +\q2 आप पर निर्भर करते हैं। +\q1 +\v 28 जब आप उन्हें वह भोजन देते हैं जो उन्हें चाहिए, +\q2 वे उसे एकत्र करते हैं। +\q1 आप उन्हें वो देते हैं, जो आपके हाथ में हैं, +\q2 और वे इसे खाते हैं और संतुष्ट होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 29 परन्तु यदि आप उन्हें भोजन देने से मना करते हैं, +\q2 तो वे डर जाते हैं। +\q1 जब आप उन्हें साँस लेने से रोकते हैं, तो वे मर जाते हैं; +\q2 उनके शरीर नाश हो जाते हैं और फिर मिट्टी बन जाते हैं। +\q1 +\v 30 जब आप नवजात प्राणियों को साँस देते हैं, +\q2 वे जीना आरम्भ करते हैं; +\q2 आप पृथ्‍वी के सब जीवित प्राणियों को नया जीवन देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 31 यहोवा की महिमा सदा के लिए स्थिर रहे। +\q2 वह अपने द्वारा बनाई गई सब वस्तुओं के लिए आनन्द करें। +\q1 +\v 32 उनके देखने से पृथ्‍वी हिल जाती है! +\q2 केवल पर्वतों को छू कर वह उनमें से आग और धुआँ निकालते हैं! +\q1 +\s5 +\v 33 जब तक मैं जीवित हूँ तब तक मैं यहोवा के लिए गाऊँगा। +\q2 जब तक मैं मर न जाऊँ तब तक मैं अपने परमेश्वर की स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 34 इन सब सोच-विचारों से जो मैंने उनके विषय में सोचा है, यहोवा प्रसन्न हो जाएँ +\q2 क्योंकि मैं उन्हें जानने से आनन्दित हूँ। +\q1 +\s5 +\v 35 परन्तु, पापी धरती से मिट जाएँ; +\q2 कोई और दुष्ट लोग न हों! +\q1 परन्तु, मैं यहोवा की स्तुति करूँगा! +\q1 उनकी स्तुति करो! + +\s5 +\c 105 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा का धन्यवाद करो; उनकी अराधना करो और उनसे प्रार्थना करो। +\q2 पृथ्‍वी के सब लोगों को बताओ कि उन्होंने क्या किया हैं! +\q1 +\v 2 उनके लिए गाओ; जब तुम गाते हो तो उनकी स्तुति करो; +\q2 दूसरों को उनके अद्भुत चमत्कारों के विषय में बताओ। +\q1 +\v 3 यहोवा पर गर्व करो, जो एकमात्र परमेश्वर हैं। +\q2 तुम लोग जो यहोवा की उपासना करते हो, आनन्द करो! +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा से तुम्हारी सहायता करने और तुम्हें अपनी शक्ति देने के लिए कहो, +\q2 और सदा उनके साथ रहने की खोज में रहो! +\q1 +\v 5-6 तुम लोग जो परमेश्वर के दास, अब्राहम के वंशज हो, +\q2 तुम जो याकूब के वंशज हो, जिन लोगों को परमेश्वर ने चुना है, +\q2 उन्होंने जो अद्भुत कार्य किए हैं उनके विषय में सोचो; +\q2 उन्होंने चमत्कार किए और उन्होंने हमारे सब शत्रुओं को दण्डित किया। +\q1 +\s5 +\v 7 वह यहोवा हैं, हमारे परमेश्वर हैं। +\q1 वह पृथ्‍वी के लोगों पर शासन करते हैं और न्याय करते हैं। +\q1 +\v 8 वह अपनी वाचा को कभी नहीं भूलते हैं; +\q2 उन्होंने प्रतिज्ञा की है जो एक हजार पीढ़ियों तक रहेगी। +\q1 +\s5 +\v 9 ये वह वाचा है जिसे उन्होंने अब्राहम के साथ बाँधी थी, +\q2 और उन्होंने इस वाचा को इसहाक के साथ दोहराया। +\q1 +\v 10 बाद में उन्होंने याकूब के साथ इसकी पुष्टि की +\q2 जो इस्राएल के लोगों के लिए एक सदा की वाचा होगी। +\q1 +\v 11 उन्होंने जो कहा वह यह था, “मैं तुम्हें कनान का क्षेत्र दूँगा; +\q2 यह तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए सदा के लिए होगा।” +\q1 +\s5 +\v 12 उन्होंने उनसे यह तब कहा था जब उनमें से केवल कुछ ही थे, +\q2 उन लोगों का एक छोटा सा समूह था जो अजनबियों के समान उस देश में रह रहे थे। +\q1 +\v 13 वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहे, +\q2 एक राज्य से दूसरे राज्य में। +\q1 +\s5 +\v 14 परन्तु उन्होंने किसी को उन पर अत्याचार करने की अनुमति नहीं दी। +\q2 उन्होंने उन राजाओं को चेतावनी दी, +\q1 +\v 15 “जिन लोगों को मैंने चुना है उन्हें हानि न पहुँचाना! +\q2 मेरे भविष्यद्वक्ताओं को हानि न पहुँचाना।” +\q1 +\s5 +\v 16 उन्होंने कनान में अकाल भेजा, और परिणामस्वरूप लोगों के पास खाने के लिए भोजन नहीं था। +\q1 +\v 17 इसलिए उनके लोग मिस्र में गए, परन्तु परमेश्वर ने पहले ही वहाँ किसी को भेज दिया था। +\q2 उन्होंने यूसुफ को भेजा, जिसे दास होने के लिए बेचा गया था। +\q1 +\s5 +\v 18 बाद में, जब यूसुफ मिस्र के बन्दीगृह में था, +\q2 उन्होंने उसके पैरों को बेड़ियों में डाल दिया जिससे उसके पैरों को चोट पहुँचती थी, +\q1 और उन्होंने उसकी गर्दन के चारों ओर एक लोहे का पट्टा लगाया। +\q1 +\v 19 यूसुफ उस समय तक बन्दीगृह में था +\q जब तक वे घटनाएँ पूरी न हुई जिनकी उसने भविष्यद्वाणी की थी। +\q इस प्रकार यहोवा ने यूसुफ को परखा। +\q1 +\s5 +\v 20 मिस्र के राजा ने दासों को भेजा, जिन्होंने उसे मुक्त किया; +\q2 इस शासक ने यूसुफ को बन्दीगृह से निकाल दिया। +\q1 +\v 21 फिर उसने उसे राजा के घर की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया, +\q2 कि राजा की सारी सम्पत्ति की देखभाल करे। +\q1 +\v 22 यूसुफ को राजा के महत्वपूर्ण सेवकों को आदेश देने की अनुमति थी +\q2 कि वे वह कार्य करें जो यूसुफ चाहता था, +\q2 और यहाँ तक कि राजा के सलाहकारों को भी यह बताए कि उन्हें मिस्र के लोगों के लिए क्या करना चाहिए। +\q1 +\v 23 बाद में, यूसुफ के पिता याकूब मिस्र पहुँचे। +\q2 वह उस भूमि में एक विदेशी के समान रहता था जो हाम के वंशजों की थी। +\q1 +\s5 +\v 24 वर्षों बाद यहोवा ने याकूब के वंशजों को बहुत असंख्य बना दिया। +\q2 परिणामस्वरूप, उनके शत्रु मिस्र के लोग, यह मानते थे कि इस्राएली बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 25 तब यहोवा ने मिस्र के शासकों को इस्राएलियों के विरुद्ध कर दिया, +\q2 और उन्होंने उनके लोगों पर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया। +\q1 +\v 26 परन्तु फिर यहोवा ने अपने दास मूसा को +\q2 उसके बड़े भाई हारून के साथ भेजा, जिसे यहोवा ने अपना दास होने के लिए चुना था। +\q1 +\v 27 उन दोनों ने मिस्र के लोगों के बीच अद्भुत चमत्कार किए +\q2 उस देश में जहाँ हाम के वंशज रहते थे। +\q1 +\s5 +\v 28 यहोवा ने अंधेरा भेजा कि मिस्र के लोग कुछ भी न देख सकें, +\q2 परन्तु मिस्र के शासकों ने आज्ञा मानने से मना कर दिया जब मूसा और हारून ने उन्हें इस्राएलियों को मिस्र छोड़ने की अनुमति देने की आज्ञा दी। +\q1 +\v 29 यहोवा ने मिस्र में सारे पानी को रक्त बना दिया, +\q2 और उनके इस कार्य से सब मछलियाँ मर गई। +\q1 +\v 30 तब उन्होंने भूमि को मेंढ़कों से भर दिया; +\q2 राजा और उसके अधिकारियों के शयन कक्षों में भी मेंढ़क थे। +\q1 +\s5 +\v 31 तब यहोवा ने मक्खियों को आने की आज्ञा दी, और मिस्र के लोगों पर उनके झुण्ड उतरे, +\q2 और कुटकियाँ भी पूरे देश में छा गई। +\q1 +\v 32 यहोवा ने वर्षा भेजी, जो उन पर ओले बन कर गिरी, +\q2 और उन्होंने धधकती आग भेजी जिसने उनकी भूमि को जला दिया। +\q1 +\v 33 ओलों ने उनके अँगूर और अंजीर के पेड़ों को नष्ट कर दिया +\q2 और सब अन्य पेड़ बिखर गए। +\q1 +\s5 +\v 34 उन्होंने टिड्डियों को आने का आदेश दिया, और दल के दल आ गए; +\q2 इतने सारे आए कि उन्हें गिना नहीं जा सका। +\q1 +\v 35 टिड्डियों ने भूमि के हर हरे पौधे को खा लिया, +\q2 जिससे सब फसलें नष्ट हो गई। +\q1 +\v 36 फिर यहोवा ने मिस्र के लोगों के हर घर के ज्येष्ठ पुत्रों को मारा। +\q1 +\s5 +\v 37 तब वह इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाए; +\q2 वे चाँदी और सोने से बने भारी गहने उठाए हुए थे जो कि मिस्र के लोगों ने उन्हें दिए थे। +\q1 बीमार होने के कारण कोई भी पीछे नहीं छोड़ा गया था। +\q1 +\v 38 जब इस्राएली लोग चले गए, तब मिस्र के लोग आनन्दित हुए +\q2 क्योंकि वे इस्राएलियों से बहुत डर गए थे। +\q1 +\v 39 तब यहोवा ने इस्राएलियों को ढाँकने के लिए बादल फैलाया; +\q2 जो रात में उन्हें प्रकाश देने के लिए आकाश में एक बड़ी आग बन गया। +\q1 +\s5 +\v 40 बाद में इस्राएलियों ने खाने के लिए माँस माँगा, +\q2 और यहोवा ने उनके लिए बटेरें भेजीं, +\q1 और उन्होंने उन्हें खाने के लिए हर सुबह आकाश से मन्ना दिया। +\q1 +\v 41 एक दिन उन्होंने एक चट्टान को खोला, और पीने के लिए पानी निकल गया; +\q2 यह रेगिस्तान में बहने वाली एक नदी के समान था। +\q1 +\v 42 उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह अपने दास अब्राहम को दी गई पवित्र प्रतिज्ञा के विषय में सोच रहे थे। +\q1 +\s5 +\v 43 इसलिए उनके लोग आनन्दित थे क्योंकि वह उन्हें मिस्र से बाहर लाए थे; +\q2 ये लोग जिन्हें उन्होंने चुना था, वे चलते हुए आनन्द से जयजयकार कर रहे थे। +\q1 +\v 44 उन्होंने उन्हें वह देश दिया जो कनान में रहने वाले लोगों के समूह का था, +\q2 और इस्राएलियों ने उनकी सारी सम्पत्ति ले लीं। +\q1 +\v 45 यहोवा ने इन सब कार्यों को किया +\q2 कि उनके लोग उन सब कार्यों को करें जो उन्होंने करने का उन्हें आदेश दिया। +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 106 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 यहोवा की स्तुति करो क्योंकि वह जो कुछ भी करते हैं वह भला है; +\q2 वह सदा हमसे सच्चा प्रेम करते हैं जैसी उन्होंने हमसे प्रतिज्ञा की है! +\q1 +\v 2 क्योंकि यहोवा ने बहुत से महान कार्य किए हैं, +\q2 कोई भी उन सब महान कार्यों को नहीं बता सकता जो यहोवा ने किए हैं, +\q2 और कोई भी उनकी पर्याप्त स्तुति नहीं कर सकता। +\q1 +\s5 +\v 3 कितने भाग्यशाली हैं वे जो न्याय से कार्य करते हैं, +\q2 जो सदा वही करते हैं जो उचित हैं। +\q1 +\v 4 हे यहोवा, जब आप अपने लोगों की सहायता करते हैं, तब मुझ पर दया करें; +\q2 जब आप उन्हें बचाते हैं तो मेरी भी सहायता करें। +\q1 +\v 5 मुझे आपके लोगों को दोबारा समृद्ध बनते देखने दे +\q2 और आपके देश इस्राएल के सब लोगों को फिर से आनन्दित देखने दें; +\q2 मुझे उनके साथ आनन्दित होने दें! +\q2 मैं उन सब लोगों के साथ जो आपके हैं, आपकी स्तुति करना चाहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 6 हमने और हमारे पूर्वजों ने पाप किया है; +\q2 हमने जो किया है वह दुष्ट और बुरा है। +\q1 +\v 7 जब हमारे पूर्वज मिस्र में थे, +\q2 उन्होंने यहोवा के अद्भुत कार्यों पर ध्यान नहीं दिया; +\q2 वे उन समयों को भूल गए जब परमेश्वर ने दिखाया कि वह उन्हें सच्चा प्रेम करते थे। +\q1 इसकी अपेक्षा, जब वे लाल सागर में थे, +\q2 उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, जो किसी अन्य देवता से बड़े हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु उन्होंने उन्हें अपनी प्रतिष्ठा के निमित्त बचाया +\q2 कि वह दिखा सकें कि वह बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 9 उन्होंने लाल सागर को डाँटा और वह सूख गया, +\q2 और फिर जब उन्होंने हमारे पूर्वजों की अगुवाई की, +\q2 वे लाल सागर के बीच से चले गए जैसे कि वह एक सूखे रेगिस्तान में चल रहे थे। +\q1 +\s5 +\v 10 इस प्रकार उन्होंने उन्हें उनके शत्रुओं की शक्ति से बचाया। +\q1 +\v 11 तब उनके शत्रु लाल सागर के पानी में डूब गए; +\q2 उनमें से एक भी नहीं बचा। +\q1 +\v 12 जब ऐसा हुआ, तो हमारे पूर्वजों ने विश्वास किया कि यहोवा ने उन लोगों के लिए वास्तव में वह किया था जो करने की उन्होंने प्रतिज्ञा की थी, +\q2 और उन्होंने उनकी स्तुति करने के लिए गीत गाया। +\q1 +\s5 +\v 13 परन्तु वे शीघ्र ही भूल गए कि उन्होंने उनके लिए क्या-क्या कार्य किए थे; +\q2 उन्होंने यहोवा की इच्छा जानने के लिए प्रतीक्षा नहीं की कि वह उनसे क्या कराना चाहते थे। +\q1 +\v 14 उन्होंने मिस्र में जैसा भोजन खाया था उन्होंने वैसे भोजन की लालसा कीं। +\q2 उन्होंने यह जानने के लिए बुरे कार्य किए कि क्या परमेश्वर उन्हें दण्ड देंगे या नहीं। +\q1 +\v 15 इसलिए उन्होंने उन्हें जो कुछ भी उन्होंने माँगा वह उन्हें दिया, +\q2 परन्तु उन्होंने उन पर एक भयानक बीमारी भेजी। +\q1 +\s5 +\v 16 बाद में जब कुछ लोग मूसा से +\q1 और उसके बड़े भाई हारून से ईर्ष्या करने लगे, जो याजक के रूप में यहोवा की सेवा करने के लिए समर्पित था, +\q1 +\v 17 भूमि खुल गई और दातान को निगल गई +\q2 और अबीराम और उसके परिवार को भी दफन कर दिया। +\q1 +\v 18 परमेश्वर ने स्वर्ग से आग भेजी +\q2 जिसने उन सब दुष्ट लोगों को जला दिया जिन्होंने उनका समर्थन दिया। +\q1 +\s5 +\v 19 फिर इस्राएली अगुओं ने सीनै पर्वत पर एक बछड़े की सोने की मूर्ति बनाई +\q2 और उसकी उपासना की। +\q1 +\v 20 हमारे गौरवशाली परमेश्वर की आराधना करने की अपेक्षा, +\q2 उन्होंने एक बैल की मूर्ति की उपासना करना आरम्भ किया जो घास खाता है! +\q1 +\v 21 वे परमेश्वर के विषय में भूल गए, जिन्होंने मिस्र में किए गए महान चमत्कारों से उन्हें बचा लिया था। +\q1 +\s5 +\v 22 वे मिस्र में उनके लिए परमेश्वर के किए गए अद्भुत कार्यों के विषय में भूल गए +\q2 और उन अद्भुत कार्यों को भी भूल गए जो उन्होंने लाल सागर में उनके लिए किए थे। +\q1 +\v 23 इस कारण से, परमेश्वर ने कहा कि वह इस्राएलियों से छुटकारा पाएँगे; +\q2 परन्तु मूसा, जिसे परमेश्वर ने उनकी सेवा करने के लिए चुना था, परमेश्वर को ऐसा न करने के लिए मनाने को खड़ा हुआ। +\q2 परिणामस्वरूप, परमेश्वर ने उन्हें नष्ट नहीं किया। +\q1 +\s5 +\v 24 बाद में, हमारे पूर्वजों ने कनान की सुन्दर भूमि में प्रवेश करने से मना कर दिया +\q2 क्योंकि वे इस बात पर विश्वास नहीं करते थे कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कर सकते हैं और उन्हें वहाँ रहने वाले लोगों से भूमि लेने में समर्थ करेंगे। +\q1 +\v 25 वे अपने तम्बुओं में रह कर कुड़कुड़ाने लगे +\q2 और यहोवा ने उन्हें जो करने को कहा था उस पर ध्यान नहीं दिया। +\q1 +\s5 +\v 26 इसलिए उन्होंने गम्भीरता से उनसे कहा +\q2 कि वह उन्हें जंगल में मार डालेंगे, +\q2 +\v 27 कि वह उनके वंशजों को अन्य राष्ट्रों और जातियों के बीच तितर-बितर करेंगे जो उन पर विश्वास नहीं करते थे, +\q2 और वह उन्हें उन देशों में मरने देंगे। +\q1 +\s5 +\v 28 बाद में इस्राएली लोगों ने पोर पर्वत में बाल की मूर्ति की पूजा करना आरम्भ कर दिया, +\q1 और उन्होंने वह माँस खाया जो बाल और उन अन्य निर्जीव देवताओं को बलिदान दिया गया था। +\q1 +\v 29 उन्होंने जो कुछ किया था, उसके कारण यहोवा बहुत क्रोधित हो गए, +\q2 उन्होंने उन पर आक्रमण करने के लिए एक भयानक बीमारी भेजी। +\q1 +\s5 +\v 30 परन्तु पीनहास खड़ा हुआ और उन लोगों को दण्डित किया जिन्होंने बड़ा पाप किया था, +\q2 और परिणामस्वरूप मरी समाप्त हो गई। +\q1 +\v 31 पीनहास ने जो धर्म का कार्य किया था लोगों ने उसे स्मरण किया, +\q2 और भविष्य में लोग इसे स्मरण करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 32 फिर मरीबा के झरनों पर हमारे पूर्वजों ने यहोवा को फिर से क्रोधित कर दिया, +\q2 और परिणामस्वरूप मूसा को हानि हुई। +\q1 +\v 33 उन्होंने मूसा को बहुत क्रोधित कर दिया, +\q2 और उसने उन बातों को कहा जो मूर्खता की थी। +\q1 +\v 34 हमारे पूर्वजों ने अन्य लोगों के समूहों को नष्ट नहीं किया +\q2 जैसा कि यहोवा ने उन्हें करने के लिए कहा था। +\q1 +\v 35 इसकी अपेक्षा, पुरुषों ने उन लोगों के समूहों से स्त्रियों को ले लिया, +\q2 और उन्होंने उन बुरे कार्यों को करना आरम्भ कर दिया जो वे लोग करते थे। +\q1 +\v 36 हमारे पूर्वजों ने उन लोगों की मूर्तियों की उपासना की, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप वे नष्ट हो गए। +\q1 +\s5 +\v 37 कुछ इस्राएलियों ने अपने पुत्रों और पुत्रियों को पिशाचों के लिए बलिदान किया जिनका प्रतिनिधित्व वे मूर्तियाँ करती थी। +\q1 +\v 38 उन्होंने उन बच्चों को मार डाला जिन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था, +\q1 और उन्हें कनान की मूर्तियों के लिए बलिदान के रूप में पेश किया। +\q2 परिणामस्वरूप, कनान की भूमि उन हत्याओं द्वारा प्रदूषित हो गई। +\q1 +\v 39 इसलिए उनके कर्मों से उन्होंने परमेश्वर को उन्हें स्वीकार करना असम्भव बना दिया; +\q2 क्योंकि उन्होंने सच्चे मन से केवल परमेश्वर की आराधना नहीं की थी, +\q2 वे ऐसी स्त्रियों के समान हो गए जो अपने पतियों के साथ सोने की अपेक्षा अन्य पुरुषों के साथ सोती हैं। +\q1 +\s5 +\v 40 तब यहोवा अपने लोगों से बहुत क्रोधित हो गए; +\q2 वह पूरी तरह से उनसे घृणा करने लगे। +\q1 +\v 41 परिणामस्वरूप, उन्होंने उन लोगों के समूहों को, जो उन पर विश्वास नहीं करते थे, अनुमति दी कि इस्राएलियों पर विजय पाए, +\q2 इसलिए जो हमारे पूर्वजों से घृणा करते थे वे लोग उन पर शासन करने लगे। +\q1 +\s5 +\v 42 उनके शत्रुओं ने उन्हें दण्डित किया +\q2 और पूरी तरह से उन पर अधिकार किया। +\q1 +\v 43 कई बार यहोवा ने अपने लोगों को बचा लिया, +\q2 परन्तु वे उनके विरुद्ध विद्रोह करते रहे, +\q2 और अन्त में वे अपने किए गए पापों के कारण नष्ट हो गए। +\q1 +\s5 +\v 44 यद्दपि, जब उन्होंने परमेश्वर को पुकारा, तब उन्होंने सदा उनको सुना, +\q2 और जब वे कष्ट में थे तब उन्होंने उनकी बात सुनी। +\q1 +\v 45 उनके लिए, उन्होंने उस वाचा को स्मरण किया जो उन्होंने उन्हें आशीष देने के लिए उनसे बाँधी थी; +\q2 क्योंकि उन्होंने कभी उन्हें बहुत प्रेम करना बन्द नहीं किया था, +\q2 इसलिए उन्होंने उन्हें और अधिक दण्डित करने के विषय में अपना मन बदल दिया। +\q1 +\v 46 उन्होंने उन सबको दुख का अनुभव करवाया, जो इस्राएलियों को बाबेल ले गए थे। +\q1 +\s5 +\v 47 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमें बचाएँ +\q1 और हमें उन लोगों के समूह से इस्राएल वापस लाएँ +\q2 कि हम आपको धन्यवाद दे सकें +\q2 और आनन्द से आपकी स्तुति कर सकें। +\q1 +\v 48 यहोवा की स्तुति करो, जिस परमेश्वर की हम इस्राएली आराधना करते हैं, +\q1 अब और सदा के लिए उनकी स्तुति करो! +\q1 सब लोगों को सहमत होना चाहिए! +\q2 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 107 +\ms पाँचवाँ भाग +\q1 +\p +\v 1 यहोवा का धन्यवाद करो क्योंकि वह सदा हमारे लिए भले कार्य करते हैं! +\q2 हमारे लिए उनका सच्चा प्रेम सदा के लिए रहता है, जैसा कि उन्होंने हमसे प्रतिज्ञा की है! +\q1 +\v 2 जिन्हें यहोवा ने बचाया है, उन्हें दूसरों को बताना चाहिए +\q2 कि परमेश्वर ने उन्हें उनके शत्रुओं से बचा लिया है। +\q1 +\v 3 उन्होंने उन लोगों को एकत्र किया है जिन्हें कई देशों में निर्वासित किया गया था; +\q2 उन्होंने तुम्हें पूर्व और पश्चिम से, +\q2 उत्तर और दक्षिण से एक साथ एकत्र किया है। +\q1 +\s5 +\v 4 उनमें से कुछ जो उन देशों में वापस आए थे, वे रेगिस्तान में घूमते थे; +\q2 वे खो गए थे और रहने के लिए उनके पास कोई घर नहीं था। +\q1 +\v 5 वे भूखे और प्यासे थे, +\q2 और वे थक कर गिर भी गए। +\q1 +\v 6 जब वे संकट में थे, तो उन्होंने यहोवा को पुकारा, +\q2 और यहोवा ने उन्हें दुखी होने से बचाया। +\q1 +\v 7 वे उन्हें सीधे मार्ग पर ले गए जहाँ वे सुरक्षित होकर चले +\q2 कनान के शहरों में जहाँ वे रह सकते थे। +\q1 +\s5 +\v 8 उनसे सच्चा प्रेम करने के लिए उन्हें यहोवा की स्तुति करनी चाहिए +\q2 और उन अद्भुत कार्यों के लिए भी जो वह लोगों के लिए करते हैं। +\q1 +\v 9 वह प्यासों को पीने के लिए बहुत पानी देते हैं, +\q2 और वह भूखे लोगों को खाने के लिए अच्छी वस्तुएँ प्रदान करते हैं। +\q1 +\v 10 उनमें से कुछ बहुत ही अँधेरे बन्दीगृहों में थे; +\q2 वे बन्दी थे और उनके हाथों और पैरों की बेड़ियों के कारण पीड़ित थे। +\q1 +\s5 +\v 11 वे बन्दीगृह में थे क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के सन्देश के विरुद्ध विद्रोह किया था; +\q1 वे वहाँ थे क्योंकि उन्होंने उन परमेश्वर के मार्गदर्शन को तुच्छ जाना था, +\q2 जो अन्य सब देवताओं से महान हैं। +\q1 +\v 12 यही कारण है कि परमेश्वर ने उन्हें कठिनाइयों का सामना करवाया कि वे अब घमण्ड न करें; +\q2 जब उन्हें कष्ट हुआ, तब उनकी सहायता करने के लिए कोई भी नहीं था। +\q1 +\v 13 जब वे संकट में थे, तो उन्होंने यहोवा को पुकारा, +\q2 और उन्होंने उन्हें कष्टों से निकाला। +\q1 +\s5 +\v 14 उन्होंने उनकी बेड़ियों को तोड़ दिया जो उनके हाथों और पैरों पर थी +\q2 और उन्हें उन अँधेरे बन्दीगृहों से बाहर लाए। +\q1 +\v 15-16 उन्होंने बन्दीगृह के द्वार तोड़ दिए जो पीतल से बने थे; +\q2 उन्होंने लोहे से बनी बन्दीगृह की सलाखों को काट डाला। +\q1 उनसे सच्चा प्रेम करने के लिए, उन्हें यहोवा की स्तुति करनी चाहिए +\q2 और उन अद्भुत कार्यों के लिए जो वह लोगों के लिए करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 उनमें से कुछ ने मूर्खतापूर्वक परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, +\q2 इसलिए वे अपने पापों के कारण पीड़ित हुए। +\q1 +\v 18 वे कोई खाना नहीं खाना चाहते थे, +\q2 और वे लगभग मर ही गए थे। +\q1 +\v 19 जब वे संकट में थे, तो उन्होंने यहोवा को पुकारा, +\q2 और उन्होंने उन्हें संकटों से निकाला। +\q1 +\s5 +\v 20 जब उन्होंने आज्ञा दी कि वे स्वस्थ हो जाएँ, तो वे स्वस्थ हो गए; +\q2 उन्होंने उन्हें मरने से बचाया। +\q1 +\v 21 उनसे सच्चा प्रेम करने के लिए, उन्हें यहोवा की स्तुति करनी चाहिए +\q2 और उन अद्भुत कार्यों के लिए जो वह लोगों के लिए करते हैं। +\q1 +\v 22 उन्हें यह दिखाने के लिए भेंट चढ़ाना चाहिए कि वे आभारी हैं, +\q2 और यहोवा के किए गए चमत्कारों के विषय में आनन्द से गाना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 23 उनमें से कुछ लोगों ने जहाजों में यात्रा की; +\q2 वे दूर शहरों में व्यापार कर रहे थे। +\q1 +\v 24 जब वे जलयात्रा कर रहे थे, तब उन्होंने उन चमत्कारों को भी देखा जो यहोवा ने किए थे, +\q2 अद्भुत कार्य जो उन्होंने किए जब वे लोग बहुत गहरे समुद्र में थे। +\q1 +\s5 +\v 25 उन्होंने हवाओं को आदेश दिया, और वह दृढ़ हो गई +\q2 और उच्च लहरों को उकसाया। +\q1 +\v 26 जिन जहाजों में वे जलयात्रा कर रहे थे वे हवा में ऊँचे उछाले जाते थे, +\q2 और फिर वे उच्च लहरों के बीच गहराई में डुबाए गए; +\q1 तब वे यात्री संकट से डर गए थे। +\q1 +\v 27 वे मतवाले पुरुषों के समान इधर-उधर लड़खड़ाए, +\q2 और उन्हें पता नहीं था कि क्या करना है। +\q1 +\s5 +\v 28 जब वे संकट में थे, तब उन्होंने यहोवा को पुकारा, +\q2 और उन्होंने उन्हें संकट से निकाला। +\q1 +\v 29 उन्होंने तूफान को शान्त कर दिया +\q2 और उन्होंने लहरों को भी शान्त कर दिया। +\q1 +\v 30 जब वह शान्त हो गए तो वे बहुत आनन्दित थे; +\q2 और यहोवा उन्हें बन्दरगाह में सुरक्षित रूप से लाए जैसा वे चाहते थे। +\q1 +\s5 +\v 31 उनसे सच्चा प्रेम करने के लिए, उन्हें यहोवा की स्तुति करनी चाहिए +\q2 और उन अद्भुत कार्यों के लिए जो वह लोगों के लिए करते हैं। +\q1 +\v 32 जब वे इकट्ठे होते हैं, तो उन्हें इस्राएलियों के बीच यहोवा की स्तुति करनी चाहिए, +\q2 और उन्हें देश के अगुओं के सामने यहोवा की प्रशंसा करनी चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 33 कभी-कभी यहोवा नदियों को सूखा देते हैं, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप भूमि बंजर हो जाती है, +\q2 और पानी के झरने सूखी भूमि बन जाते हैं। +\q1 +\v 34 कभी-कभी वह उस भूमि को जिसमें बहुत सारी फसल उगती है, उसे बंजर भूमि बना देते हैं, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप भूमि फसलों का उत्पादन नहीं करती हैं। +\q2 वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वहाँ रहने वाले लोग बहुत दुष्ट हैं। +\q1 +\v 35 परन्तु कभी-कभी वह रेगिस्तान में पानी के ताल बनाते हैं, +\q2 और वह बहुत शुष्क भूमि में सोतों को बहाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 36 वह भूखे लोगों को उस देश में लाते हैं, कि वहाँ रहें और शहरों का निर्माण करें। +\q1 +\v 37 वे अपने खेतों में बीज बोते हैं, +\q2 और वे अँगूर के पौधे लगाते हैं जो अँगूर की बहुत फसल उत्पन्न करती हैं। +\q1 +\v 38 यहोवा लोगों को आशीष देते हैं, और स्त्रियाँ कई बच्चों को जन्म देती हैं, +\q2 और उनके पास मवेशियों के बहुत झुण्ड हो जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 39 जब लोगों की संख्या कम हो गई और उन्हें अपने शत्रुओं द्वारा अपमानित किया गया +\q2 उन्हें पीड़ित किया गया और दुखित किया गया, +\q1 +\v 40 यहोवा ने उन अगुओं के प्रति घृणा दिखाई जो उन्हें पीड़ित करते हैं, +\q2 और उन्हें जंगल में भटकने दिया, जहाँ सड़कें नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 41 परन्तु वह गरीब लोगों को दुखी होने से बचाते हैं +\q2 और उनके परिवारों को भेड़ के झुण्ड के समान संख्या में बड़ाते हैं। +\q1 +\v 42 जो लोग उचित जीवन जीते हैं, वे परमेश्वर को इन कार्यों को करते देखते हैं, और वे आनन्दित होते हैं; +\q2 दुष्ट लोग भी इन कार्यों के विषय में सुनते हैं, +\q2 परन्तु उनके पास यहोवा के विरुद्ध कुछ भी कहने के लिए कोई उत्तर नहीं है। +\q1 +\v 43 जो बुद्धिमान हैं उन्हें इन बातों के विषय में सावधानी से सोचना चाहिए; +\q2 उन्हें यहोवा के सब कार्यों पर विचार करना चाहिए जिन्हें यहोवा ने दिखाया हैं कि वह उन्हें सच्चा प्रेम करते हैं। + +\s5 +\c 108 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, मुझे आप पर बहुत भरोसा है। +\q1 मैं आपकी स्तुति करने के लिए गाऊँगा। +\q2 जागते ही आपकी स्तुति करना एक सम्मान की बात है। +\q1 +\v 2 सूरज उगने से पहले मैं उठूँगा, +\q2 और जब मैं अपनी सारंगी और वीणा को बजाऊँगा तो मैं आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 3 मैंने प्रार्थना की, “हे यहोवा, मैं सब जातियों के बीच धन्यवाद करूँगा; +\q2 मैं राष्ट्रों के बीच आपकी प्रशंसा करने के लिए गाऊँगा +\q1 +\v 4 क्योंकि हमारे लिए आपका सच्चा प्रेम स्वर्ग तक पहुँचता है, +\q2 और आप अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने में सच्चे हैं जैसे बादल पृथ्‍वी से ऊपर हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, आकाश में दिखाएँ कि आप बहुत महान हैं! +\q2 अपनी महिमा सारी पृथ्‍वी के लोगों को दिखाएँ! +\q1 +\v 6 हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दें और अपनी शक्ति के द्वारा हमें अपने शत्रुओं को हराने में सहायता करें +\q1 कि हम, जो लोग आप से प्रेम करते हैं, वे बचाए जा सकें।” +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा ने हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया और अपने भवन से बात की, “क्योंकि मैंने तुम्हारे शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है, इसलिए मैं सहर्ष से शेकेम शहर को विभाजित करूँगा, +\q2 और मैं सुक्कोत की घाटी की भूमि अपने लोगों के बीच में बाँट दूँगा। +\q1 +\v 8 गिलाद का क्षेत्र मेरा है; +\q2 मनश्शे के गोत्र के लोग मेरे हैं; +\q1 और यहूदा का गोत्र मेरे राजदण्ड के समान है। +\q +\s5 +\v 9 मोआब का क्षेत्र मेरे धोने के पात्र के समान है; +\q2 मैंने एदोम के क्षेत्र में अपना जूता फेंक दिया कि यह दिखाया जा सके कि वह मेरा है; +\q2 मैं जयजयकार करता हूँ क्योंकि मैंने पलिश्त के लोगों को पराजित किया है।” +\q1 +\v 10 क्योंकि हम एदोम के लोगों पर आक्रमण करना चाहते हैं, +\q1 कौन मेरी सेना को उनकी राजधानी में ले जाएगा जिसके चारों ओर दृढ़ दीवारें हैं? +\q +\s5 +\v 11 हे परमेश्वर, हम नहीं चाहते हैं कि आप हमें त्याग दें; +\q2 हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ चलें जब हमारी सेना हमारे शत्रुओं से लड़ने के लिए बाहर निकलती है। +\q1 +\v 12 जब हम अपने शत्रुओं के विरुद्ध लड़ते हैं तब हमें आपकी सहायता की आवश्यकता होती है +\q2 क्योंकि मनुष्य जो सहायता हमें दे सकते हैं वह व्यर्थ है। +\q1 +\v 13 परन्तु आपकी सहायता से, हम जीतेंगे; +\q2 हमारे शत्रुओं को हराने में आप हमें समर्थ बनाएँगे। + +\s5 +\c 109 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे परमेश्वर, आप ही की मैं स्तुति करता हूँ, +\q1 इसलिए कृपया मेरी प्रार्थना का उत्तर दें +\q1 +\v 2 क्योंकि दुष्ट लोग मेरी निन्दा करते हैं +\q2 और मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। +\q1 +\v 3 वे निरन्तर कह रहे हैं कि वे मुझसे घृणा करते हैं, +\q1 और वे बिना किसी कारण मुझे हानि पहुँचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं उन्हें दिखाता हूँ कि मैं उनसे प्रेम करता हूँ +\q1 और मैं उनके लिए प्रार्थना करता हूँ, +\q2 परन्तु मेरे प्रति दयालु होने की अपेक्षा, वे कहते हैं कि मैंने बुरे कार्य किए हैं। +\q1 +\v 5 उनकी भलाई करने और उनसे प्रेम करने के बदले में, +\q2 वे मेरे लिए बुरे कार्य करते हैं और मुझसे घृणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 अतः एक दुष्ट न्यायधीश की नियुक्ति करें जो मेरे शत्रु का न्याय करे, +\q1 और उनके शत्रुओं में से एक को लाएँ जो खड़ा होकर उन पर आरोप लगाए। +\q1 +\v 7 जब परीक्षण समाप्त होता है, +\q2 तब न्यायधीश के द्वारा उसे दोषी ठहराए +\q2 और दया के लिए उसकी प्रार्थना भी पाप मानी जाए। +\q1 +\s5 +\v 8 फिर वह शीघ्र ही मर जाए; +\q2 और कोई और उसका पद ले ले। +\q1 +\v 9 उसके बच्चों का अब कोई पिता न हो, +\q2 और उसकी पत्नी विधवा हो जाए। +\q1 +\v 10 उसके बच्चों को उन उजड़े हुए घरों को छोड़ना पड़े, जहाँ वे रह रहे थे +\q2 और भोजन के लिए वे घूम-घूम कर भीख माँगे। +\q1 +\s5 +\v 11 वे सब लोग जिनको उसे पैसे देने थे, वे उसकी सम्पत्ति पर अधिकार कर लें; +\q2 अपरिचित लोग वह सब कुछ लूट कर ले जाएँ जिसे प्राप्त करने के लिए उसने कार्य किया था। +\q1 +\v 12 सुनिश्चित करें कि आपकी वाचा के कारण, उसके स्मरण के लिए कोई भी भक्ति न दिखाए; +\q2 सुनिश्चित करो कि कोई भी उसके बच्चों को करुणा न दिखाए। +\q1 +\v 13 उसके सब बच्चे मर जाएँ, +\q2 कि उसका वंश चलाने के लिए कोई भी जीवित न रहे। +\q1 +\s5 +\v 14 हे यहोवा, स्मरण करके उसके पूर्वजों को उन बुरे कार्यों के लिए क्षमा न करें जो उन्होंने किए थे, +\q2 और उन पापों को भी क्षमा न करें जो उसकी माँ ने किया था। +\q1 +\v 15 निरन्तर उसके पापों के विषय में सोचें, +\q2 परन्तु हर एक जीवित जन उसे भूल जाए कि वह कौन था। +\q1 +\v 16 मैं इन बातों के लिए प्रार्थना करता हूँ क्योंकि उस व्यक्ति ने, मेरे शत्रु ने कभी भी किसी के प्रति वह कार्य नहीं किया जो आपकी वाचा कहती है; +\q2 उसने गरीब और आवश्यकता में पड़े लोगों को सताया +\q2 और असहाय लोगों को भी मार डाला। +\q1 +\s5 +\v 17 लोगों को श्राप देना उसे अच्छा लगता है। +\q2 तो उन भयानक कार्यों को जिन्हें उसने दूसरों पर होने का अनुरोध किया - उन्हें उसके साथ ही होने दें! +\q1 वह दूसरों को आशीष नहीं देना चाहता था, +\q2 अतः सुनिश्चित करें कि कोई भी उसे आशीष न दे! +\q1 +\v 18 वह प्रायः अन्य लोगों को भी श्राप देता है; +\q2 उन भयानक बातों को जो वह दूसरों के साथ होने के लिए चाहता था वो उसके साथ ही हों और पानी के समान उसके शरीर में प्रवेश करे, +\q2 जैसे जैतून का तेल किसी व्यक्ति की हड्डियों में समा जाता है जब वह अपनी त्वचा पर लगाया जाता है। +\q1 +\s5 +\v 19 उन भयानक कार्यों को कपड़ों के समान उसके साथ चिपकने का कारण बना दें +\q1 और फेंटे के समान उसके कमर के चारों ओर रहें जो वह हर दिन पहनता है। +\q1 +\v 20 हे यहोवा, मैं चाहता हूँ कि आप मेरे सारे शत्रुओं को इस प्रकार दण्डित करें, +\q2 जो मेरे विषय में बुरी बातें कहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 परन्तु हे मेरे परमेश्वर, मेरे लिए भले कार्य करें +\q2 कि मैं आपको सम्मान दे सकूँ; +\q1 मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ +\q2 क्योंकि आपने मुझसे सच्चा प्रेम किया जैसी आपने प्रतिज्ञा की थी। +\q1 +\v 22 मैं आप से ऐसा करने का अनुरोध करता हूँ क्योंकि मैं गरीब और गरीब हूँ +\q2 और मेरा मन दर्द से भरा है। +\q1 +\v 23 मुझे लगता है कि जीवित रहने का मेरा समय कम है +\q2 शाम की छाया के समान, जो शीघ्र ही लोप हो जाएगी। +\q2 हवा से टिड्डियाँ उड़ा दी जाती है, वैसे मुझे भी उड़ा दिया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 24 मेरे घुटने निर्बल हैं क्योंकि मैंने बहुत बार उपवास किया है, +\q2 और मेरा शरीर बहुत पतला हो गया है। +\q1 +\v 25 जो लोग मुझ पर दोष लगाते हैं वे मेरा उपहास उड़ाते हैं; +\q2 जब वे मुझे देखते हैं, तब वे मुझ पर अपना सिर हिला कर मेरा अपमान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 26 हे यहोवा, मेरे परमेश्वर, मेरी सहायता करें! +\q1 क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, इसलिए मुझे बचाएँ! +\q1 +\v 27 जब आप मुझे बचाते हैं, +\q2 तब मेरे शत्रुओं को यह जानने दें कि आप ही हैं जिन्होंने यह किया है! +\q1 +\s5 +\v 28 वे मुझे श्राप दे सकते हैं, परन्तु मैं विनती करता हूँ कि आप मुझे आशीष दें। +\q2 उन लोगों को जो मुझे सताते हैं, उन्हें पराजित और अपमानित होना पड़े, +\q1 परन्तु मेरे लिए आनन्दित होने का कारण उत्पन्न करें! +\q1 +\v 29 जो लोग मुझ पर आरोप लगाते हैं, वे पूरी तरह से अपमानित हों; +\q2 जैसे लोग अपने पहने हुए कपड़ों को देख सकते है, वैसे ही अन्य लोगों को यह देखने दें कि वे लोग कैसे अपमानित किए गए हैं! +\q1 +\s5 +\v 30 परन्तु मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूँगा; +\q2 मैं उनकी स्तुति करूँगा जब मैं उन लोगों की भीड़ में हूँ जो उनकी आराधना करते हैं। +\q1 +\v 31 मैं ऐसा इसलिए करूँगा क्योंकि वह मेरे जैसे गरीब लोगों की रक्षा करते हैं +\q2 और क्योंकि वह हमें उन लोगों से बचाते हैं जिन्होंने कहा है कि हमें मर जाना चाहिए। + +\s5 +\c 110 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 यहोवा ने मेरे प्रभु राजा से कहा, +\q1 “यहाँ मेरे पास सर्वोच्च सम्मान के स्थान पर बैठ +\q2 जब तक मैं तेरे शत्रुओं को पराजित करके +\q2 उन्हें तेरे पैरों की चौकी न बना दूँ।” +\q1 +\s5 +\v 2 यहोवा राजा के रूप में तेरी शक्ति का विस्तार करेंगे +\q2 यरूशलेम से अन्य भूमि तक; +\q2 तू अपने सब शत्रुओं पर शासन करेगा। +\q1 +\v 3 जिस दिन तू अपनी सेनाओं को युद्ध में ले जाएगा, +\q2 उस दिन तेरी प्रजा के कई लोग तेरी सेना में सम्मिलित होने के लिए स्वयं आगे आएँगे। +\q1 तेरी युवा शक्ति तेरे लिए वैसे ही कार्य करेगी जैसे ओस सुबह के समय पृथ्‍वी को भीगाती है।” +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा ने एक गम्भीर वचन दिया है +\q2 और वह कभी भी अपना मन नहीं बदलेंगे; +\q1 उन्होंने राजा से कहा है, “तू सदा के लिए मलिकिसिदक के समान याजक होगा।” +\q1 +\s5 +\v 5 परमेश्वर तेरी दाहिनी ओर खड़े हैं; +\q2 जब वह क्रोधित हो जाएँगे, तब वह अनेक राजाओं को पराजित करेंगे। +\q1 +\v 6 वह अनेक राष्ट्रों के लोगों का न्याय करेंगे और दण्ड देंगे; +\q2 मारे गए कई शत्रु सैनिकों के शव भूमि पर पड़े होंगे। +\q1 वह सम्पूर्ण पृथ्‍वी के राजाओं को कुचल देंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु राजा मार्ग के किनारे की धारा से जल पीएगा; +\q2 वह अपने शत्रुओं को पराजित करने के बाद ताजा हो जाएगा। + +\s5 +\c 111 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 मैं अपने सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूँगा +\q2 जब उचित कार्य करने वाले लोग एकत्र होते हैं। +\q1 +\v 2 यहोवा ने जो कार्य किए हैं वह अद्भुत हैं! +\q1 वे सब जो उन कार्यों से प्रसन्न रहते हैं +\q2 वे उनका अध्ययन करने की इच्छा रखते है। +\q1 +\v 3 क्योंकि वह महान राजा हैं और अद्भुत कार्य करते हैं, +\q2 लोग उनका बहुत सम्मान और आदर करते हैं; +\q1 वह जो धर्म कार्य करते हैं वह सदा के लिए होंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 उन्होंने अद्भुत कार्य किये हैं जिन्हें लोग सदा स्मरण रखेंगे; +\q2 यहोवा सदा दया के और अनुग्रह के कार्य करते हैं। +\q1 +\v 5 वह उन लोगों के लिए भोजन प्रदान करते हैं जो उनका बहुत सम्मान करते हैं; +\q2 वह हमारे पूर्वजों के साथ बाँधी गई वाचा को कभी नहीं भूलते हैं। +\q1 +\v 6 अपने लोगों को अन्य जातियों के देश पर अधिकार करने में समर्थ बना कर, +\q1 उन्होंने हमें, उनके लोगों को, यह दिखाया है कि वह बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 वह सब कुछ न्यायपूर्ण रीति से करते हैं, जैसा कि उन्होंने प्रतिज्ञा की है, +\q2 और जब वह हमें कुछ करने के लिए आदेश देते हैं तब हम सहायता के लिए उन पर निर्भर हो सकते हैं। +\q1 +\v 8 उनकी आज्ञाओं को सदा मानना चाहिए; +\q2 और उन्होंने सच्चे और उचित रीति से कार्य किया जब उन्होंने हमें ये आदेश दिए थे। +\q1 +\v 9 उन्होंने हमें, उनके लोगों को मिस्र में दास होने से बचाया, +\q2 और उन्होंने हमारे साथ एक वाचा बाँधी जो सदा के लिए होगी। +\q2 वह पवित्र और भययोग्य हैं! +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा का महान सम्मान करना बुद्धिमान होने का मार्ग है। +\q2 जो लोग उनके आदेशों का पालन करते हैं उन्हें पता चलेगा कि उनके लिए क्या करना उचित है। +\q2 हमें सदा उनकी स्तुति करनी चाहिए! + +\s5 +\c 112 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 वे लोग कितने भाग्यशाली हैं जो उनका महान सम्मान करते हैं, +\q2 जो आनन्द से उनके आदेशों का पालन करते हैं। +\q1 +\v 2 उनके बच्चे उनकी भूमि में समृद्ध होंगे; +\q1 परमेश्वर उनके वंशजों को आशीष देंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 उनके परिवार धनवान होंगे, +\q2 और उनके धर्म के कार्य सदा के लिए स्थिर रहेंगे। +\q1 +\v 4 उन लोगों के लिए जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं, ऐसा लगता है जैसे अँधेरे में उनके ऊपर एक प्रकाश चमक रहा था, +\q2 उन लोगों पर जो दयालु, कृपालु और धर्मी हैं। +\q1 +\v 5 जो दूसरों को उदारता से पैसा देते हैं उनके लिए सब कुछ अच्छा होता रहेगा +\q2 और उनके लिए भी जो निष्ठापूर्वक अपने व्यवसाय का संचालन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 धर्मी लोग अपनी हानियों के कारण व्याकुल नहीं होंगे; +\q2 अन्य लोग सदा उनको स्मरण रखेंगे। +\q1 +\v 7 बुरे समाचार को सुन कर वे डरते नहीं हैं; +\q2 वे विश्वास के साथ यहोवा पर भरोसा रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 उनमें विश्वास हैं और वे डरते नहीं हैं +\q2 क्योंकि वे जानते हैं कि परमेश्वर उनके शत्रुओं को पराजित करेंगे और वे देखेंगे। +\q1 +\v 9 वे गरीबों को उदारता से देते हैं; +\q2 उनके दया के कर्म सदा के लिए स्मरण रहेंगे, +\q2 और उन्हें ऊँचा उठाया जाएगा और सम्मानित किया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 10 दुष्ट लोग उन बातों को देखते हैं और क्रोधित होते हैं; +\q2 वे क्रोध में अपने दाँत पीसते हैं, +\q2 परन्तु वे गायब हो जाएँगे और मर जाएँगे। +\q2 वे जो दुष्टता करना चाहते हैं वो कभी नहीं होगी। + +\s5 +\c 113 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 तुम जो यहोवा की सेवा करते हो, उनकी स्तुति करो! +\q1 उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 2 प्रत्येक को अब और सदा के लिए यहोवा की स्तुति करनी चाहिए! +\q1 +\s5 +\v 3 जो लोग पूर्व में रहते हैं और जो लोग पश्चिम में रहते हैं, +\q2 सबको, यहोवा की स्तुति करनी चाहिए! +\q1 +\v 4 यहोवा सब जातियों पर शासन करते हैं, +\q1 और वह ऊँचे आकाश में दिखाते हैं कि उनकी महिमा बहुत महान है। +\q1 +\s5 +\v 5 कोई भी नहीं है जो यहोवा, हमारे परमेश्वर के समान हैं, +\q2 जो सर्वोच्च स्वर्ग में रहते हैं +\q2 +\v 6 और वह स्वर्ग से नीचे दृष्टि करते हैं और पृथ्‍वी के लोगों को देखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 वह गरीब लोगों को ऊपर उठाते हैं कि वे गन्दगी में न रहें; +\q1 वह गरीब लोगों को ऊपर उठाते हैं कि वे अब राख के ढेर पर न बैठें +\q1 +\v 8 और उन्हें प्रधानों के पास में बैठा कर सम्मानित करते हैं, +\q2 उन प्रधानों को जो अपने लोगों पर शासन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 वह उन स्त्रियों को जिनके कोई सन्तान नहीं है अपने घरों में ऐसे रहने योग्य करते हैं, +\q2 जैसे संतानों वाली माताएँ प्रसन्न रहती हैं। +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 114 +\q1 +\p +\v 1 जब इस्राएली लोगों ने मिस्र छोड़ दिया, +\q1 जब याकूब के वंशजों ने उन लोगों को छोड़ दिया जो विदेशी भाषा बोलते थे, +\q2 +\v 2 यहूदा की भूमि वह स्थान बन गई जहाँ लोगों ने परमेश्वर की आराधना की; +\q2 और इस्राएल वह भूमि बन गई जिस पर उन्होंने शासन किया था। +\q1 +\s5 +\v 3 जब वे लाल सागर के पास आए, +\q1 ऐसा लगता था जैसे कि पानी ने उन्हें देखा और भाग गया! +\q1 जब वे यरदन नदी में आए, +\q2 तब नदी का पानी बहना बन्द हो गया कि इस्राएली उसे पार कर सकें। +\q1 +\v 4 जब वे सीनै पर्वत पर आए और वहाँ एक बड़ा भूकम्प आया, +\q2 तब ऐसा लगता था जैसे पर्वत बकरियों के समान उछल रहे हैं +\q2 और पहाड़ियाँ भेड़ के बच्चों के समान चारों ओर कूद रही हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 यदि कोई पूछता है, “लाल सागर में क्या हुआ जिससे पानी भाग गया? +\q1 ऐसा क्या हुआ जिसके कारण यरदन नदी में पानी बहना बन्द हो गया? +\q1 +\v 6 ऐसा क्या हुआ जिससे पर्वत बकरियों के समान उछलने लगे +\q2 और पहाड़ियाँ भेड़ के बच्चों के समान चारों ओर कूदने लगी?” +\q1 +\v 7 निःसन्देह, सारी धरती परमेश्वर के सामने थरथराएगी! +\q1 हर कोई परमेश्वर की उपस्थिति में डर जाएगा, जिनकी याकूब ने आराधना की थी! +\q1 +\s5 +\v 8 वही हैं जिन्होंने इस्राएली लोगों के पीने के लिए चट्टान से पानी के ताल को बहाया, +\q2 और वही हैं जिन्होंने ठोस चट्टान से पानी का सोता बहाया! + +\s5 +\c 115 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, लोगों को केवल आपकी स्तुति करनी चाहिए; +\q2 उन्हें हमारी नहीं, आपकी स्तुति करनी चाहिए, +\q2 क्योंकि आप हमसे सच्चा प्रेम करते हैं और सदा अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करते हैं। +\q1 +\v 2 यह सही नहीं है कि अन्य लोगों के समूह हमारे विषय में कहें, कि +\q1 “वे दावा करते हैं कि उनके परमेश्वर बहुत शक्तिशाली हैं, +\q2 यदि यह सच है, तो वह उनकी सहायता क्यों नहीं करते हैं?” +\q1 +\s5 +\v 3 हमारे परमेश्वर स्वर्ग में हैं, +\q2 और वह जो कुछ भी चाहते हैं वह करते हैं! +\q1 +\v 4 परन्तु उनकी मूर्तियाँ केवल चाँदी और सोने से बने मूर्तियाँ हैं, +\q2 जिन्हें मनुष्यों ने बनाया है। +\q1 +\s5 +\v 5 उनकी मूर्तियों के मुँह तो हैं, परन्तु वे कुछ भी नहीं कह सकती हैं; +\q2 उनके पास आँखें हैं, परन्तु वे कुछ भी नहीं देख सकती हैं। +\q1 +\v 6 उनके कान हैं, परन्तु वे कुछ भी नहीं सुन सकती हैं; +\q2 उनके पास नाक हैं, परन्तु वे कुछ भी सूँघ नहीं सकती हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 उनके हाथ हैं, परन्तु वे कुछ भी अनुभव नहीं कर सकती हैं; +\q2 उनके पास पैर हैं, परन्तु वे नहीं चल सकती हैं, +\q2 और वे अपने गले से कोई आवाज नहीं निकाल सकती हैं! +\q1 +\v 8 जो लोग मूर्तियों को बनाते हैं वे भी मूर्तियों के समान शक्तिहीन होते हैं, +\q2 और जो लोग उन मूर्तियों पर भरोसा करते हैं, वे अपनी मूर्तियों के समान कुछ भी नहीं कर सकते हैं! +\q1 +\s5 +\v 9 हे मेरे साथी इस्राएली लोगों, यहोवा पर भरोसा रखो! +\q2 वही हैं जो तुम्हारी सहायता करते हैं और ढाल के समान बचाते हैं। +\q1 +\v 10 हे याजकों, हारून के वंशजों, यहोवा पर भरोसा रखो! +\q2 वही हैं जो तुम्हारी सहायता करते हैं और ढाल के समान बचाते हैं। +\q1 +\v 11 तुम सब जो यहोवा के लिए भय और सम्मान रखते हो, उन पर भरोसा रखो! +\q2 वही हैं जो तुम्हारी सहायता करते हैं और ढाल के समान बचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 यहोवा हमें भूल नहीं गए हैं; +\q2 वह हम इस्राएली लोगों को आशीष देंगे! +\q2 वह याजकों को आशीष देंगे, +\q1 +\v 13 और वह उन सबको आशीष देंगे जो उनका भय के साथ सम्मान करते हैं; +\q2 वह महत्वपूर्ण लोगों और उन लोगों को जिन्हें महत्वहीन माना जाता है, सबको आशीष देंगे! +\q1 +\v 14 मेरी इच्छा है कि यहोवा तुम्हें मेरे साथी इस्राएली लोगों, अनेक सन्तान दें +\q2 और तुम्हारे वंशजों को भी। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं चाहता हूँ कि यहोवा, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्‍वी बनाया है, तुम सबको आशीष दें! +\q1 +\v 16 सर्वोच्च स्वर्ग यहोवा के हैं, +\q2 परन्तु उन्होंने हम लोगों को पृथ्‍वी पर जो कुछ भी है वह सब दिया है। +\q1 +\s5 +\v 17 मृत लोग यहोवा की स्तुति करने योग्य नहीं हैं; +\q2 जब वे उस स्थान पर आते हैं जहाँ मृत लोग हैं, +\q2 तब वे बोलने में असमर्थ होते हैं और उनकी स्तुति नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\v 18 परन्तु हम जो जीवित हैं, वे उन्हें धन्यवाद देंगे, +\q2 अब और सदा के लिए। +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 116 +\q1 +\p +\v 1 मैं यहोवा से प्रेम करता हूँ +\q2 क्योंकि जब मैं सहायता के लिए उन्हें पुकारता हूँ तो वह मेरी सुनते हैं। +\q1 +\v 2 वह मेरी बात सुनते हैं, +\q2 इसलिए मैं अपने पूरे जीवन उनको पुकारूँगा। +\q1 +\s5 +\v 3 मेरे आस-पास की हर एक वस्तु ने मुझे सोचने पर विवश किया कि मैं मर जाऊँगा; +\q2 मुझे बहुत डर था कि मैं मर जाऊँगा और उस स्थान पर जाऊँगा जहाँ मृत लोग हैं। +\q1 मैं बहुत चिन्तित हुआ और डर गया था। +\q1 +\v 4 परन्तु फिर मैंने यहोवा को पुकारा, +\q2 “हे यहोवा, मैं आप से विनती करता हूँ कि मुझे बचाएँ!” +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा दयालु हैं और जो सही होता है वही करते हैं; +\q2 वह हमारे परमेश्वर हैं, और वह हम पर दया करते हैं। +\q1 +\v 6 वह उन लोगों की रक्षा करते हैं जो असहाय हैं; +\q2 जब मैंने सोचा कि मैं मर जाऊँगा, तब उन्होंने मुझे बचाया। +\q1 +\s5 +\v 7 मुझे स्वयं को प्रोत्साहित करना चाहिए +\q2 क्योंकि यहोवा ने मेरे लिए बहुत अच्छे कार्य किये हैं। +\q1 +\v 8 यहोवा ने मुझे मरने से बचा लिया है +\q2 और मुझे उन चिन्ताओं से निकाला है जो मेरे रोने का कारण बन सकती थी। +\q1 उन्होंने मुझे विपत्तियों से बचाया है। +\q1 +\s5 +\v 9 अतः मैं यहाँ धरती पर रहता हूँ, जहाँ लोग अभी भी जीवित हैं, +\q2 यह जानते हुए कि यहोवा मुझे निर्देशित कर रहे हैं। +\q1 +\v 10 मैं यहोवा पर विश्वास करता रहा, +\q2 तब भी जब मैंने कहा, “मैं बहुत पीड़ित हूँ।” +\q1 +\v 11 यहाँ तक कि जब मैं चिन्तित था और कहा, “मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकता,” +\q2 तब भी मैंने यहोवा पर भरोसा रखा। +\q1 +\s5 +\v 12 इसलिए अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि मैं यहोवा को क्या भेंट चढ़ाऊँगा +\q2 उन सब अच्छे कार्यों के कारण जो उन्होंने मेरे लिए किए हैं। +\q1 +\v 13 मैं उन्हें एक कटोरा दाखरस भेंट करूँगा +\q2 जो मुझे बचाने के लिए उनका धन्यवाद करने के लिए होगा। +\q1 +\v 14 जब मैं यहोवा के बहुत से लोगों के साथ होता हूँ, +\q2 तब मैं उन्हें वे भेंटें चढ़ाऊँगा जिनकी मैंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 15 यहोवा बहुत दुखी होते हैं जब उनके लोगों में से किसी की मृत्यु हो जाती है। +\q1 +\s5 +\v 16 मैं उन लोगों में से एक हूँ जो यहोवा की सेवा करते हैं; +\q2 मैं उनकी सेवा करता हूँ जैसे मेरी माता ने सेवा की थी। +\q2 उन्होंने मेरी चिन्ताओं को दूर कर दिया है। +\q1 +\v 17 इसलिए मैं उन्हें धन्यवाद देने के लिए बलिदान चढ़ाऊँगा, +\q1 और मैं उनसे प्रार्थना करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 18-19 जब मैं यहोवा के बहुत से लोगों के साथ होता हूँ +\q2 यरूशलेम में उनके मन्दिर के बाहर आँगन में, +\q2 तब मैं उन भेंटों को चढ़ाऊँगा जिनकी मैंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 117 +\q1 +\p +\v 1 हे सब जातियों के लोगों, यहोवा की स्तुति करो! +\q1 हे सब लोगों के समूहों, उनकी स्तुति करो +\q2 +\v 2 क्योंकि वह हमसे सच्चा प्रेम करते हैं जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है, +\q2 और वह हमारे लिए सदैव अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे। +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 118 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा को बताओ कि तुम उनके किए गए अच्छे कार्यों के लिए उनका बहुत धन्यवाद करते हो! +\q2 वह हमसे अर्थात् उनके लोगों को, सदा सच्चा प्रेम करते हैं। +\q1 +\v 2 हे इस्राएली लोगों तुम्हें बार-बार ऊँचे शब्दों से कहना चाहिए, +\q2 “वह हमसे अर्थात् उनके लोगों को, सदा के लिए सच्चा प्रेम करते हैं!” +\q1 +\s5 +\v 3 हे याजकों जो हारून के वंशज हैं, उन्हें बार-बार ऊँचे शब्दों से कहना चाहिए, +\q2 “वह हमसे अर्थात् उनके लोगों को, सदा के लिए सच्चा प्रेम करते हैं!” +\q1 +\v 4 तुम सब जो उनका आदर करते हो, बार-बार ऊँचे शब्दों से कहना चाहिए, +\q2 “वह हमसे अर्थात् उनके लोगों को, सदा के लिए सच्चा प्रेम करते हैं!” +\q1 +\s5 +\v 5 जब मैं चिन्तित था, मैंने यहोवा को पुकारा, +\q2 और उन्होंने मुझे उत्तर दिया और मुझे मेरी चिन्ताओं से मुक्त कर दिया। +\q1 +\v 6 यहोवा मेरी ओर हैं, +\q2 मैं किसी से भी नहीं डरूँगा। +\q2 कोई भी ऐसा कुछ नहीं कर सकता कि परमेश्वर को मुझे सदा के लिए आशीष देने से रोक दे। +\q1 +\v 7 हाँ, यहोवा मेरी ओर हैं, +\q2 इसलिए जब वह उन्हें पराजित करते हैं तो मैं अपने शत्रुओं को विजयी होकर देखूँगा। +\q1 +\s5 +\v 8 लोगों पर निर्भर होने से यहोवा पर भरोसा रखना अधिक उत्तम है। +\q1 +\v 9 हमारी रक्षा करने के लिए प्रभावशाली लोगों पर भरोसा रखने से +\q2 हमारी रक्षा करने के लिए यहोवा पर भरोसा करना अधिक उत्तम है। +\q1 +\s5 +\v 10 कई राष्ट्रों की सेनाओं ने हमें घेर लिया, +\q2 परन्तु यहोवा ने हमें अपनी शक्ति से उन्हें पराजित करने योग्य किया। +\q1 +\v 11 उन्होंने पूरी तरह से हमें घेर लिया, +\q2 परन्तु हमने उन सबको यहोवा की शक्ति से पराजित किया। +\q1 +\v 12 उन्होंने क्रोध में आकर मुझे मधुमक्खियों के समान घेर लिया; +\q2 वे एक कंटीली झाड़ी में लगी आग के समान थे, +\q2 परन्तु हमने उन्हें यहोवा की शक्ति से पराजित किया। +\q1 +\s5 +\v 13 हमारे शत्रुओं ने हम पर भयानक आक्रमण किया और लगभग हमें पराजित कर दिया, +\q2 परन्तु यहोवा ने हमारी सहायता की। +\q1 +\v 14 यहोवा ही वह हैं जो मुझे दृढ़ करते हैं, +\q1 और वही हैं जिनके विषय में मैं सदा गाता हूँ; +\q2 उन्होंने हमें हमारे शत्रुओं से बचा लिया है। +\q1 +\s5 +\v 15 उन लोगों के तम्बुओं में गाए जाने वाले आनन्द के गीतों को सुनें जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं! +\q2 वे गाते हैं, “यहोवा ने हमारे शत्रुओं को अपनी महान शक्ति से पराजित किया है; +\q1 +\v 16 उन्होंने अपने बलवन्त दाहिने हाथ को उठाया है कि वह दिखा सकें कि वह अपने शत्रुओं को पराजित करने से प्रसन्न हैं। +\q2 यहोवा ने उन्हें पूरी तरह से पराजित कर दिया है।” +\q1 +\s5 +\v 17 मैं युद्ध में नहीं मारा जाऊँगा; +\q2 मैं यहोवा के महान कार्यों का प्रचार करने के लिए जीवित रहूँगा। +\q1 +\v 18 यहोवा ने मुझे गम्भीर दण्ड दिया है, +\q2 परन्तु उन्होंने मुझे मरने की अनुमति नहीं दी हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 हे द्वारपालों, मेरे लिए मन्दिर के द्वार खोलो +\q2 कि मैं प्रवेश कर सकूँ और यहोवा का धन्यवाद कर सकूँ। +\q1 +\v 20 वे द्वार हैं जिनसे होकर हम यहोवा की आराधना करने के लिए मन्दिर में प्रवेश करते हैं; +\q2 जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं वे लोग उन द्वारों से प्रवेश करते हैं। +\q1 +\v 21 हे यहोवा, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ क्योंकि आपने मेरी प्रार्थना का उत्तर दिया +\q2 और आपने मुझे मेरे शत्रुओं से बचाया। +\q1 +\s5 +\v 22 यहोवा का चुना हुआ राजा उस पत्थर के समान हैं जिसका मिस्त्रियों ने तिरस्कार कर दिया था +\q2 जब वे भवन बना रहे थे, +\q1 परन्तु वह पत्थर नींव का पत्थर बन गया। +\q1 +\v 23 यह यहोवा ने किया था, +\q1 और यह हमारी दृष्टि में एक अद्भुत बात है। +\q1 +\s5 +\v 24 आज वह दिन है जिसमें हम स्मरण करते हैं कि यहोवा ने हमारे शत्रुओं को पराजित करने के लिए शक्तिशाली कार्य किये थे; +\q2 हम आज प्रसन्न होंगे और आनन्द मनाएँगे। +\q1 +\v 25 हे यहोवा, हम आप से विनती करते हैं, कि आप हमारे शत्रुओं से हमें बचाते रहें। +\q2 हे यहोवा, कृपया हमारे कार्यों को, जो हम करना चाहते हैं उन्हें पूरा करने में हमारी सहायता करें। +\q1 +\s5 +\v 26 हे यहोवा, उसको आशीष दें जो आपकी शक्ति के साथ आएगा। +\q2 आराधनालय से हम आप सबको आशीष देते हैं। +\q1 +\v 27 यहोवा परमेश्वर हैं, +\q2 और उन्होंने अपना प्रकाश हम पर आने दिया है। +\q1 आओ, बलिदान के पशु ले आओ और उसे वेदी के सींगों से बाँध दो। +\q1 +\v 28 हे यहोवा, आप ही परमेश्वर हैं जिनकी मैं आराधना करता हूँ, और मैं आपकी स्तुति करूँगा! +\q2 आप मेरे परमेश्वर हैं, और मैं सबको बताऊँगा कि आप महान हैं! +\q1 +\s5 +\v 29 यहोवा का धन्यवाद करो क्योंकि वह हमारे लिए अच्छे कार्य करते हैं! +\q2 वह हमसे सदा सच्चा प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। + +\s5 +\c 119 +\q1 +\p +\v 1 वे लोग कितने भाग्यशाली हैं जिनके विषय में कोई भी यह नहीं कह सकता कि उन्होंने गलत कार्य किये हैं, +\q1 जो सदा यहोवा की व्यवस्था का पालन करते हैं। +\q1 +\v 2 वे लोग कितने भाग्यशाली हैं जो उनके भारी आदेशों का पालन करते हैं, +\q1 जो लोग अपने सम्पूर्ण मन से ऐसा करने में सहायता करने के लिए उनसे अनुरोध करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 वे गलत कार्य नहीं करते हैं; +\q2 वे उस प्रकार व्यवहार करते हैं जैसा यहोवा चाहते हैं। +\q1 +\v 4 हे यहोवा, आपने हमें व्यवहार करने के आपके सिद्धान्त दिए हैं, +\q2 और आपने हमें विश्वासपूर्वक उनका पालन करने के लिए कहा। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं आपकी हर एक आज्ञा का सच्चे मन से पालन करने की बहुत इच्छा रखता हूँ। +\q1 +\v 6 यदि मैंने ऐसा किया, तो जब मैं आपकी आज्ञाओं के विषय में सोचता हूँ +\q2 तब मैं लज्जित नहीं होऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 7 जब मैं आपके सब धार्मिकता से नियमों को सीखता हूँ, +\q2 मैं शुद्ध मन से आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 8 मैं आपकी सब विधियों का पालन करूँगा; +\q2 मुझे त्याग न दें! +\q1 +\s5 +\v 9 मैं जानता हूँ कि एक युवा व्यक्ति शुद्ध कैसे रह सकता है; +\q2 यह आपकी आज्ञाओं का पालन करने से होता है। +\q1 +\v 10 मैं अपने सम्पूर्ण मन से आपकी सेवा करने का प्रयास करता हूँ; +\q2 जो आज्ञाएँ आपने दी हैं उनसे मुझे भटकने न दें। +\q1 +\s5 +\v 11 मैंने आपकी आज्ञाओं को स्मरण किया है +\q2 कि मैं आपके विरुद्ध पाप न करूँ। +\q1 +\v 12 हे यहोवा, मैं आपकी स्तुति करता हूँ; +\q2 मुझे अपनी विधियाँ सिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 13 आपने हमें जो भी आज्ञाएँ दी हैं, उनका मैंने सब लोगों में प्रचार किया है। +\q1 +\v 14 मैं आपकी चितौनियों का पालन करने में प्रसन्न हूँ; +\q1 मैं बहुत धनवान होने से अधिक उससे आनन्दित हूँ। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं आपके द्वारा दी गई सब आज्ञाओं का अध्ययन करूँगा, +\q2 और मैं आपके द्वारा दिखाए गए जीवन के मार्ग पर ध्यान दूँगा। +\q1 +\v 16 मुझे आपकी विधियों का पालन करने में प्रसन्नता होगी, +\q2 और मैं आपके वचनों को नहीं भूलूँगा। +\q1 +\s5 +\v 17 मैं जो आपकी सेवा करता हूँ, मेरा भला करें, +\q2 कि मैं अपने पूरे जीवन में आपके वचनों का पालन करता रहूँ। +\q1 +\v 18 मुझे मेरी बुद्धि से समझने में सहायता करें, +\q2 कि मैं आपकी व्यवस्था में लिखी हुई अद्भुत बातों को जान सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 19 मैं पृथ्‍वी पर केवल थोड़े समय के लिए हूँ; +\q2 मुझे समझ से दूर न होने दें। +\q1 +\v 20 मैं अपने मन की गहराई से दृढ़ता के साथ आपके नियमों को जानने की इच्छा रखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 21 आप घमण्डी लोगों को दण्डित करते हैं; +\q2 आप उन लोगों को श्राप देते हैं जो आपके आदेशों का उल्लंघन करते हैं। +\q1 +\v 22 उन्हें मुझे अपमानित करने और मेरी निन्दा करने न दें; +\q2 मैं इसका अनुरोध इसलिए करता हूँ क्योंकि मैंने आपकी चितौनियों का पालन किया है। +\q1 +\s5 +\v 23 शासक एक साथ इकट्ठे होते हैं और मुझे हानि पहुँचाने की योजना बनाते हैं, +\q2 परन्तु मैं आपकी आज्ञाओं पर ध्यान दूँगा। +\q1 +\v 24 मैं आपकी चितौनियों से प्रसन्न हूँ; +\q2 यह ऐसा है जैसे कि यह मेरी सलाहकार थीं। +\q1 +\s5 +\v 25 मुझे लगता है कि मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा; +\q2 मेरे जीवन को बचाओ जैसी आपने मुझसे प्रतिज्ञा की है कि आप करेंगे। +\q1 +\v 26 जब मैंने आपको जो कुछ मैंने किया उसके विषय में बताया, तो आपने मुझे उत्तर दिया; +\q2 मुझे अपने विधियाँ सिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 27 मुझे समझने में सहायता करें कि आप मुझसे कैसे व्यवहार करवाना चाहते हैं, +\q2 और फिर मैं आपके अद्भुत निर्देशों पर ध्यान दूँगा। +\q1 +\v 28 मैं बहुत दुखी हूँ, जिसके परिणामस्वरूप मुझमें कोई शक्ति नहीं है; +\q2 मुझे फिर से बलवन्त होने में सक्षम करें जैसी आपने मुझसे प्रतिज्ञा की थी कि आप करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 29 मुझे झूठ बोलने से रोकें, +\q2 और मुझे अपनी व्यवस्था सिखा कर मुझ पर दया करें। +\q1 +\v 30 मैंने निर्णय लिया है कि मैं सच्चे मन से आपकी आज्ञा का पालन करूँगा; +\q2 मैं आपके आदेशों का पालन करने का दृढ़ संकल्प लेता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 31 हे यहोवा, मैं सावधानी से आपकी चितौनियों को पकड़े रहने का प्रयास करता हूँ; +\q2 मुझे छोड़ न दें या मुझे अपमानित न होने दें। +\q1 +\v 32 मैं उत्सुकता से आपकी आज्ञाओं का पालन करूँगा +\q2 क्योंकि आपने मुझे उत्तम रीति से समझने में सहायता की है कि आप मुझसे क्या करवाना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 33 हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का अर्थ सिखाएँ, +\q2 और तब मैं पूरी तरह से उनका पालन करूँगा। +\q1 +\v 34 आपकी व्यवस्था को समझने में मेरी सहायता करें +\q2 कि मैं अपने सम्पूर्ण मन से उनका पालन कर सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 35 मैं आपकी आज्ञाओं से प्रसन्न हूँ, +\q2 तो मुझे उन मार्गों में ले चलें जिन्हें आपने मेरे लिए चुना है। +\q1 +\v 36 आपकी आज्ञाओं को पूरा करने की इच्छा मुझे दें +\q2 ना कि धनवान बनने की इच्छा। +\q1 +\s5 +\v 37 मुझे उन कार्यों को देखने की अनुमति न दें जो व्यर्थ हैं; +\q2 मुझे उस प्रकार जीने में सक्षम बनाएँ जैसे आप मुझसे चाहते हैं। +\q1 +\v 38 क्योंकि मैं आपकी सेवा करता हूँ, इसलिए जो कुछ आपने मेरे लिए करने की प्रतिज्ञा की है उसे करें, +\q2 आपने उन सबके लिए यह करने की प्रतिज्ञा की हैं जो आपका सम्मान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 39 जब मेरे शत्रु मेरा अपमान करते हैं, तो मैं डर जाता हूँ; +\q2 उन्हें रोकें! +\q2 परन्तु जब आप मेरे शत्रुओं को दण्ड देते हैं तब आप सही होते हैं। +\q1 +\v 40 मैं व्यवहार करने के आपके सिद्धान्तों का पालन करने की बहुत इच्छा रखता हूँ; +\q2 क्योंकि आप धर्मी हैं, मुझे जीवित रहने दें। +\q1 +\s5 +\v 41 हे यहोवा, मुझे दिखाएँ कि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 और मुझे बचाएँ जैसी आपने प्रतिज्ञा की थी कि आप करेंगे। +\q1 +\v 42 आपके ऐसा करने के बाद, मैं उन लोगों को उत्तर दे सकूँगा जो मेरा अपमान करते हैं +\q2 क्योंकि मैं आपके वचनों पर भरोसा रखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 43 मुझे आपकी सच्चाई बोलने से कभी न रोकें +\q2 क्योंकि मुझे आपके नियमों पर विश्वास है। +\q1 +\v 44 मैं सदा आपकी व्यवस्था का पालन करूँगा +\q2 सदा और सदा के लिए। +\q1 +\s5 +\v 45 मैं सदा सुरक्षित रहूँगा +\q2 क्योंकि मैंने व्यवहार करने के आपके सिद्धान्तों का पालन करने का प्रयास किया हैं। +\q1 +\v 46 मैं राजाओं को बताऊँगा कि आपकी क्या इच्छाएँ हैं, +\q2 और क्योंकि वे मुझे गलत सिद्ध करने में असमर्थ हैं, इसलिए वे मुझे लज्जित नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 47 मुझे आपकी आज्ञाओं का पालन करने में प्रसन्नता होती है, +\q2 और मैं उनसे प्रेम करता हूँ। +\q1 +\v 48 मैं आपके आदेशों का सम्मान करता हूँ, +\q2 और मैं उनसे प्रेम करता हूँ; +\q2 मैं आपकी सब चितौनियों पर ध्यान करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 49 आपने मेरे लिए, जो आपकी सेवा करता हूँ जो करने की प्रतिज्ञा की है, उसे न भूलें, +\q2 क्योंकि आपने जो कहा है, उससे मुझे आप से भलाई की आशा हैं। +\q1 +\v 50 जब मैं पीड़ित हुआ, तब आपने मुझे सांत्वना दीं; +\q2 आपने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, और मुझे जीवित रखा। +\q1 +\s5 +\v 51 घमण्डी सदा मेरा उपहास उड़ाते हैं, +\q2 परन्तु मैं आपकी व्यवस्था का पालन करने से पीछे नहीं हटा। +\q1 +\v 52 यहोवा, जब मैं आपके नियमों के विषय में सोचता हूँ जो आपने हमें बहुत पहले दिए थे, +\q2 मुझे सांत्वना मिलती है। +\q1 +\s5 +\v 53 जब मैं दुष्ट लोगों को आपकी व्यवस्था का अपमान करते देखता हूँ, +\q2 मैं बहुत क्रोधित हो जाता हूँ। +\q1 +\v 54 जबकि मैं थोड़ी देर के लिए यहाँ पृथ्‍वी पर रहता हूँ, +\q2 मैंने आपके नियमों के विषय में गीत लिखे हैं। +\q1 +\s5 +\v 55 यहोवा, रात के समय मैं आपके विषय में सोचता हूँ, +\q2 और इसलिए मैं आपकी व्यवस्था का पालन करता हूँ। +\q1 +\v 56 मैंने व्यवहार करने के आपके सिद्धान्तों का सदा पालन किया है। +\q1 +\s5 +\v 57 हे यहोवा, आपको ही मैंने चुना है, +\q2 और मैं आपके वचनों का पालन करने की प्रतिज्ञा करता हूँ। +\q1 +\v 58 मैं आप से मेरे प्रति भला होने के लिए अपने सम्पूर्ण मन से विनती करता हूँ; +\q2 कृपया मेरे साथ दया का व्यवहार करें जैसी आपने प्रतिज्ञा की थी कि आप करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 59 मैंने अपने व्यवहार के विषय में सोचा है, +\q2 और मैंने आपकी चितौनियों का पालन करने के लिए लौट आने का निर्णय लिया है। +\q1 +\v 60 मैं आपके आदेशों का पालन करने के लिए शीघ्रता करता हूँ; +\q2 मैं कभी देरी नहीं करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 61 दुष्ट लोगों ने मुझे पकड़ने का प्रयास किया है जैसे शिकारी किसी पशु को जाल से पकड़ने का प्रयास करता है, +\q2 परन्तु मैं आपकी व्यवस्था को नहीं भूलता। +\q1 +\v 62 रात के मध्य में मैं जागता हूँ, +\q2 और मैं आपकी आज्ञाओं के लिए आपकी स्तुति करता हूँ +\q2 क्योंकि वे अनुकूल हैं। +\q1 +\s5 +\v 63 मैं उन सबका मित्र हूँ जो आपका बहुत सम्मान करते हैं, +\q2 जो व्यवहार करने के आपके सिद्धान्तों का पालन करते हैं। +\q1 +\v 64 हे यहोवा, आप पूरी पृथ्‍वी के लोगों से सच्चा प्रेम करते हैं; +\q2 मुझे अपने विधियाँ सिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 65 हे यहोवा, आपने मेरे लिए भले कार्य किए हैं +\q2 जैसी आपने प्रतिज्ञा की थी कि आप करेंगे। +\q1 +\v 66 मुझे क्या करना है उसका निर्णय लेने से पहले सावधानी से सोचना सिखाएँ, +\q2 और मुझे अन्य शिक्षाएँ दें जिन्हें मुझे जानना आवश्यक है +\q2 क्योंकि मेरा मानना है कि आपकी आज्ञाओं का पालन करना हमारे लिए उचित है। +\q1 +\s5 +\v 67 आपके द्वारा मुझे पीड़ा देने से पहले, मैंने उन कार्यों को किया जो गलत थे, +\q2 परन्तु अब मैं आपके वचनों का पालन करता हूँ। +\q1 +\v 68 आप बहुत अच्छे हैं, और आप जो करते हैं वह अच्छा है; +\q2 मुझे अपनी विधियाँ सिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 69 घमण्डी लोगों ने मेरे विषय में कई झूठ बोला है, +\q2 परन्तु, मैं व्यवहार करने के आपके सिद्धान्तों का पालन करता हूँ। +\q1 +\v 70 वे लोग हठीले हैं, +\q2 परन्तु मैं आपकी व्यवस्था से प्रसन्न हूँ। +\q1 +\s5 +\v 71 यह मेरे लिए भला था कि आपने मुझे पीड़ा दी +\q2 क्योंकि इसका परिणाम यह हुआ कि मैंने आपकी विधियों को सीखा। +\q1 +\v 72 जो व्यवस्था आप हमें देते हैं वह मेरे लिए सोने की तुलना में बहुत उपयोगी है, +\q2 सोने और चाँदी के हजारों टुकड़ों से भी अधिक मूल्यवान हैं। +\q1 +\s5 +\v 73 आपने मुझे बनाया और मेरे शरीर को रचा; +\q2 बुद्धिमान होने में मेरी सहायता करें कि मैं आपकी आज्ञाओं को सीख सकूँ। +\q1 +\v 74 जो आपका सम्मान करते हैं, वे देखेंगे कि आपने मेरे लिए क्या किया है, +\q2 क्योंकि उन्हें आपके वचन की प्रतिज्ञाओं में विश्वास है। +\q1 +\s5 +\v 75 हे यहोवा, मुझे पता है कि आपके नियम उचित हैं +\q2 और आपने मुझे पीड़ा दी हैं क्योंकि आप मुझसे अनन्त प्रेम करते हैं। +\q1 +\v 76 अपने सच्चे प्रेम को प्रकट करके मुझे शक्ति प्रदान करें +\q2 जैसे कि आपने मुझसे कहा था कि आप करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 77 मेरे प्रति दया का व्यवहार करें कि मैं जीवित रह सकूँ +\q2 क्योंकि मैं आपकी व्यवस्था से प्रसन्न हूँ। +\q1 +\v 78 उन घमण्डी लोगों को लज्जित करें जो मुझ पर झूठे आरोप लगाते हैं; +\q2 परन्तु मैं आपकी आज्ञाओं पर मनन करता रहूँगा। +\q1 +\s5 +\v 79 जिनके मन में आपका भय और सम्मान है, उन्हें मेरे पास लौट आने दें +\q2 कि वे सीख सकें कि आप क्या आज्ञा देते हैं। +\q1 +\v 80 मुझे आपकी विधियों को पूरी तरह से पालन करने में सक्षम करें +\q2 जिससे की ऐसा न करने के कारण मुझे लज्जित न होना पड़े। +\q1 +\s5 +\v 81 मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि आप मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँगे; +\q2 मैं विश्वास के साथ आशा करता हूँ कि आप मुझे बताएँगे कि आप क्या करेंगे। +\q1 +\v 82 मेरी आँखें आपकी प्रतिज्ञा को पूरा करने की प्रतीक्षा करते-करते थक गई हैं, जो आपने करने के लिए, कहा था कि आप करेंगे, +\q2 और मैं पूछता हूँ, “आप मेरी सहायता कब करेंगे?” +\q1 +\s5 +\v 83 मैं एक दाखमधु रखने की थैली के समान निकम्मा हो गया हूँ, जो एक घर में लम्बे समय से धुएँ में रखने के कारण सिकुड़ गई है, +\q2 परन्तु मैं आपकी विधियों को नहीं भूला हूँ। +\q1 +\v 84 मुझे कब तक प्रतीक्षा करनी होगी? +\q2 आप कब मेरे सताने वालों को दण्ड देंगे? +\q1 +\s5 +\v 85 ऐसा लगता है कि घमण्डी लोग, जो आपके व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं, उन्होंने मेरे लिए गहरे गड्ढे खोदें हैं। +\v 86 आपकी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं; +\q2 परन्तु लोग मेरे विषय में झूठ बोल-बोल कर मुझे सता रहे हैं, इसलिए कृपया मेरी सहायता करें। +\q1 +\s5 +\v 87 उन लोगों ने तो मुझे लगभग मार डाला है, +\q2 परन्तु मैंने व्यवहार करने के आपके सिद्धान्तों का पालन करना नहीं त्यागा है। +\q1 +\v 88 क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, इसलिए मुझे जीवित रहने दें +\q2 कि मैं आपकी चितौनियों का पालन करता रहूँ। +\q1 +\s5 +\v 89 हे यहोवा, आपका वचन सदा के लिए है; +\q2 वह स्वर्ग में दृढ़ता से स्थिर है। +\q1 +\v 90 जो अभी तक जन्में नहीं हैं उनके लिए भी आप विश्वासयोग्य कार्य करते रहेंगे; +\q2 आपने पृथ्‍वी को उसके स्थान में रखा है, और वह वहाँ दृढ़ता से स्थित है। +\q1 +\s5 +\v 91 आज तक, पृथ्‍वी पर सब कुछ स्थिर है क्योंकि आपने निर्णय लिया है कि उन्हें ऐसा रहना चाहिए; +\q2 पृथ्‍वी का सब कुछ आपकी सेवा में हैं। +\q1 +\v 92 यदि मैं आपकी व्यवस्था का पालन करने में प्रसन्न नहीं होता, +\q2 तो मैं अपनी पीड़ा के कारण मर जाता। +\q1 +\s5 +\v 93 मैं व्यवहार करने के आपके नियमों को कभी नहीं भूलूँगा +\q2 क्योंकि उनका पालन करने के कारण, आपने मुझे जीवित रखा है। +\q1 +\v 94 मैं आपका हूँ; मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ +\q2 क्योंकि मैंने व्यवहार करने के आपके नियमों का पालन करने का प्रयास किया है। +\q1 +\s5 +\v 95 दुष्ट जन मुझे मारने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, +\q2 परन्तु मैं आपकी चितौनियों के विषय में सोचूँगा। +\q1 +\v 96 मैंने सीखा है कि सबकी एक सीमा है, +\q2 परन्तु आपके आदेशों की कोई सीमा नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 97 मैं आपकी व्यवस्था से बहुत प्रेम करता हूँ। +\q2 मैं दिन के समय उन पर ध्यान करता हूँ। +\q1 +\v 98 क्योंकि मैं आपके आदेशों को जानता हूँ +\q2 और क्योंकि मैं उनके विषय में हर समय सोचता हूँ, +\q2 इसलिए मैं अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान हो गया हूँ। +\q1 +\s5 +\v 99 मैं अपने शिक्षकों से अधिक समझता हूँ +\q2 क्योंकि मैं आपकी आज्ञाओं पर ध्यान देता हूँ। +\q1 +\v 100 मैं कई बुजुर्गों से आधिक समझ रखता हूँ +\q2 क्योंकि मैं व्यवहार करने के आपके नियमों का पालन करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 101 मैं सब बुरे व्यवहार से बचा रहा हूँ +\q2 कि मैं आपके वचनों का पालन कर सकूँ। +\q1 +\v 102 मैंने उनका पालन करने से मना नहीं किया है +\q2 क्योंकि आपने मुझे शिक्षा दी जब मैं उन्हें पढ़ रहा था। +\q1 +\s5 +\v 103 जब मैं आपके वचनों को पढ़ता हूँ, +\q2 वे शहद के समान हैं जिसे मैं खाता हूँ; +\q2 हाँ, वे शहद से भी अधिक मीठे हैं। +\q1 +\v 104 क्योंकि मैंने व्यवहार करने के आपके नियमों को सीखा है, +\q2 मैं कई बातों को समझने में सक्षम हूँ; +\q2 इसलिए मैं उन सब बुरी बातों से घृणा करता हूँ जो लोग करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 105 आपके वचन मेरा मार्गदर्शन करने के लिए एक दीपक है; +\q2 वह एक प्रकाश के समान है जो मुझे दिखाता है कि कहाँ चलना है। +\q1 +\v 106 मैंने गम्भीरता से प्रतिज्ञा की है, और मैं फिर से प्रतिज्ञा करता हूँ, +\q2 कि मैं सदा आपके नियमों का पालन करूँगा; +\q2 वे सब न्यायोचित हैं। +\q1 +\s5 +\v 107 हे यहोवा, मैं बहुत पीड़ित हूँ; +\q2 अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मुझे फिर से बलवन्त कर दें। +\q1 +\v 108 हे यहोवा, जब मैं प्रार्थना करता हूँ, तब मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, जो आपके लिए बलिदान के समान है; +\q2 कृपया इसे स्वीकार करें, +\q2 और मुझे अपने नियम सिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 109 मेरे शत्रु प्रायः मुझे मारने का प्रयास करते हैं, +\q2 परन्तु मैं आपकी व्यवस्था को नहीं भूलता। +\q1 +\v 110 दुष्ट लोगों ने मुझे पकड़ने का प्रयास किया है जैसे शिकारी एक जाल से छोटे पशुओं को पकड़ने का प्रयास करता है, +\q2 परन्तु मैंने व्यवहार करने के आपके नियमों का उल्लंघन नहीं किया है। +\q1 +\s5 +\v 111 मेरे पास आपकी चितौनियाँ सदा के लिए हैं; +\q2 उनके कारण, मैं अपने मन में प्रसन्न हूँ। +\q1 +\v 112 मैंने आपकी आज्ञाओं, में से हर एक का सदा पालन करने का निर्णय लिया है। +\q1 +\s5 +\v 113 मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ जो केवल यह कहते हैं कि वे आपको प्रेम करते हैं, +\q2 परन्तु मुझे आपकी व्यवस्था से प्रेम है। +\q1 +\v 114 आप ऐसे स्थान के समान हैं जहाँ मैं अपने शत्रुओं से छिप सकता हूँ, +\q2 और आप एक ढाल के समान हैं जिसके पीछे मैं उनसे सुरक्षित हूँ; +\q2 मैं आपकी प्रतिज्ञाओं पर भरोसा रखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 115 हे दुष्ट लोगों, मुझसे दूर जाओ +\q2 जिससे कि मैं अपने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन कर सकूँ! +\q1 +\v 116 मुझे अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बलवन्त होने योग्य करें, +\q2 कि मैं जीवित रह सकूँ। +\q1 मैं विश्वास के साथ आशा बाँधे हुए हूँ कि आप मेरा उद्धार करेंगे; +\q2 मुझे निराश न करें। +\q1 +\s5 +\v 117 मुझे पकड़े रखें कि मैं सुरक्षित रहूँ +\q2 और सदा आपकी आज्ञाओं पर ध्यान दें सकूँ। +\q1 +\v 118 आप उन सबको अस्वीकार करते हैं जो आपके नियमों का उल्लंघन करते हैं; +\q2 क्योंकि वे धोखाधड़ी की योजना बनाते हैं और वे अपनी प्रतिज्ञाएँ पूरी नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 119 आप पृथ्‍वी पर से सब दुष्ट लोगों को नष्ट करेंगे जैसे लोग कूड़े को दूर करते हैं; +\q2 इसलिए मुझे आपके चितौनियों से प्रेम है। +\q1 +\v 120 मैं थरथराता हूँ क्योंकि मैं आप से डरता हूँ; +\q2 मुझे डर है क्योंकि आप उन लोगों को दण्ड देते हैं जो आपके नियमों का पालन नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 121 परन्तु मैंने वही किया है, जो सही और न्यायोचित हैं; +\q2 इसलिए लोगों को मुझ पर अत्याचार करने न दें। +\q1 +\v 122 मेरे लिए भले कार्य करने के लिए उत्तरदायी रहें, +\q2 और घमण्डी लोगों को मुझे दण्ड देने न दें। +\q1 +\s5 +\v 123 आपके बचाव की प्रतीक्षा करते-करते मेरी आँखें थक गई हैं, +\q2 जैसी आपने प्रतिज्ञा की थी कि आप मुझे बचाएँगे। +\q1 +\v 124 आप यह दिखाने के लिए कुछ ऐसा करें कि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 और मुझे अपनी विधियाँ सिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 125 मैं आपकी सेवा करता हूँ; +\q1 मुझे यह समझने के योग्य बनाएँ कि आप मुझसे क्या चाहते हैं +\q2 जिससे कि मैं आपकी चितौनियों को सीख सकूँ। +\q1 +\v 126 हे यहोवा, अब समय है कि आप लोगों को दण्ड दें +\q2 क्योंकि उन्होंने आपकी व्यवस्था का उल्लंघन किया है। +\q1 +\s5 +\v 127 सचमुच, मैं सोने से अधिक आपके नियमों से प्रेम करता हूँ; +\q2 मैं उन्हें शुद्ध सोने से भी अधिक प्रेम करता हूँ। +\q1 +\v 128 इसलिए मैं व्यवहार करने के आपके नियमों के अनुसार ही अपना जीवन जीता हूँ, +\q2 और मैं उन सब बुरी बातों से घृणा करता हूँ जो कुछ भी लोग करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 129 आपकी चितौनियाँ अद्भुत हैं, +\q2 इसलिए मैं उन्हें अपने पूरे मन से मानता हूँ। +\q1 +\v 130 जब कोई आपके वचनों को समझाता है, +\q2 तब ऐसा लगता है कि वे एक प्रकाश को प्रकाशित कर रहे हैं; +\q2 वे जो कहते हैं उनसे ऐसे लोग भी बुद्धिमान बन जाते हैं, जिन्होंने आपकी व्यवस्था को कभी नहीं सीखा हैं। +\q1 +\s5 +\v 131 मैं उत्सुकता से आपके नियमों को जानना चाहता हूँ +\q2 जैसे कुत्ता खिलाए जाने के लिए अपना मुँह खोल कर हाँफता है। +\q1 +\v 132 मेरी बात सुनें और कृपया मुझ पर दया के कार्य करें +\q2 जैसा आप उन सबके साथ करते हैं जो आप से प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 133 अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरा मार्गदर्शन करें; +\q2 दुष्ट लोगों को मेरे कार्यों पर नियंत्रण करने न दें। +\q1 +\v 134 मुझे उन आत्याचारी लोगों से बचाएँ +\q2 जिससे कि मैं व्यवहार करने के आपके नियमों का पालन कर सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 135 कृपया मेरे प्रति दया दिखाएँ +\q2 और मुझे अपनी विधियाँ सिखाएँ। +\q1 +\v 136 मैं बहुत रोता हूँ +\q2 क्योंकि बहुत से लोग आपकी व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 137 हे यहोवा, आप धर्मी हैं +\q2 और आपके नियम न्यायोचित हैं। +\q1 +\v 138 जब आपने हमें अपनी व्यवस्था के नियम दिए, तब आपने जो किया वह उचित था, +\q2 और आप पर भरोसा किया जा सकता है जब आपने हमसे वो प्रतिज्ञाएँ की थीं। +\q1 +\s5 +\v 139 मैं क्रोधित हूँ +\q2 क्योंकि मेरे शत्रु आपके वचनों का अपमान करते हैं। +\q1 +\v 140 मैंने देखा है कि आपकी प्रतिज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं, +\q2 और मैं उनसे प्रेम करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 141 मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ, और लोग मुझे तुच्छ मानते हैं, +\q2 परन्तु मैं व्यवहार करने के आपके नियमों को नहीं भूलता। +\q1 +\v 142 आप धर्मी हैं और आप सदा के लिए धर्मी रहेंगे, +\q2 और आपकी व्यवस्था कभी नहीं बदली जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 143 मुझे निरन्तर चिन्ता होती है और मैं चिन्तित हूँ, +\q2 परन्तु आपके आदेश मेरी प्रसन्नता का कारण बनते हैं। +\q1 +\v 144 आपकी चितौनियाँ सदा न्यायोचित होती हैं; +\q2 उन्हें समझने में मेरी सहायता करें कि मैं जीवित रह सकूँ। +\q1 +\s5 +\v 145 हे यहोवा, मैं अपने सम्पूर्ण मन से आपको पुकारता हूँ; +\q2 मुझे उत्तर दें और मैं आपके नियमों का पालन करूँगा। +\q1 +\v 146 मैं आपको पुकारता हूँ, +\q2 “मुझे बचाएँ, और मैं आपकी आज्ञाओं का पालन करूँगा।” +\q1 +\s5 +\v 147 हर सुबह मैं भोर से पहले उठता हूँ और अपनी सहायता के लिए आपको पुकारता हूँ; +\q2 मैं विश्वास के साथ आशा करता हूँ कि आपने जो प्रतिज्ञा की है उसे आप पूरा करेंगे। +\q1 +\v 148 रात के समय मैं जागता रहता हूँ, +\q2 और मैं आपकी आज्ञाओं और आपकी प्रतिज्ञाओं पर ध्यान करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 149 हे यहोवा, क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 इसलिए जब मैं प्रार्थना करता हूँ तब मेरी बात सुनें; +\q2 मुझे सुरक्षित रखें क्योंकि मैं आपके नियमों को मानता हूँ। +\q1 +\v 150 जो दुष्ट लोग मुझ पर अत्याचार करते हैं वे मेरे निकट आ रहे हैं; +\q2 वे आपकी व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 151 परन्तु हे यहोवा, आप मेरे निकट हैं, +\q2 और मुझे पता है कि आपके नियम कभी नहीं बदले जाएँगे। +\q1 +\v 152 बहुत पहले मुझे आपकी चितौनियों के विषय में पता चला, +\q2 और मुझे पता है कि आप उन्हें सदा के लिए स्थिर रखने की इच्छा रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 153 मेरी ओर देखें, देखें कि मैं बहुत पीड़ित हूँ, और मुझे स्वस्थ कर दें +\q2 क्योंकि मैं आपकी व्यवस्था को नहीं भूलता। +\q1 +\v 154 जब लोग मुझ पर दोष लगाते हैं तब मेरा मुकद्दमा लड़ कर मुझे उनसे बचा लें; +\q2 अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मुझे जीवित रहने दें। +\q1 +\s5 +\v 155 दुष्ट लोग आपकी विधियों का पालन नहीं करते हैं, +\q2 इसलिए निश्चय ही आप उन्हें नहीं बचाएँगे। +\q1 +\v 156 हे यहोवा, आपने अनेक प्रकार से मेरी सहायता करके दया की हैं; +\q2 मुझे जीवित रहने दें जैसे आपने अभी तक किया है। +\q1 +\s5 +\v 157 बहुत से लोग मेरे शत्रु हैं; कई लोग मुझे पीड़ित करते हैं, +\q2 परन्तु मैं आपके नियमों का अपमान नहीं करता हूँ। +\q1 +\v 158 जब मैं उन लोगों को देखता हूँ जो आपके प्रति विश्वासयोग्य नहीं हैं, तो मुझे घृणा आती है +\q2 क्योंकि वे आपकी चितौनियों का पालन नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 159 हे यहोवा, देखें कि मैं व्यवहार करने के आपके नियमों से प्रेम करता हूँ; +\q2 क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, इसलिए मुझे जीवित रहने दें। +\q1 +\v 160 जो कुछ भी आपने कहा है उस पर मैं भरोसा करता हूँ; +\q2 आपके सब नियम सदा के लिए स्थिर रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 161 शासक बिना कारण के मुझे सताते हैं, +\q2 परन्तु मेरे मन में आपके वचनों के लिए अद्भुत सम्मान हैं। +\q1 +\v 162 मैं आपके वचनों के विषय में प्रसन्न हूँ, +\q2 मैं किसी ऐसे व्यक्ति के समान प्रसन्न हूँ जिसने एक बड़ा खजाना पाया है। +\q1 +\s5 +\v 163 मैं झूठ से घृणा करता हूँ +\q2 परन्तु मैं आपकी व्यवस्था से प्रेम करता हूँ। +\q1 +\v 164 मैं दिन में सात बार आपकी आज्ञाओं के लिए आपकी स्तुति करता हूँ +\q2 क्योंकि वे सब न्यायोचित हैं। +\q1 +\s5 +\v 165 उन लोगों के लिए सब अच्छा होता हैं जो आपकी व्यवस्था से प्रेम करते हैं; +\q2 आपकी व्यवस्था से उन्हें कोई दूर नहीं कर सकता। +\q1 +\v 166 हे यहोवा, मैं विश्वास के साथ आशा करता हूँ कि आप मुझे मेरे संकटों से बचाएँगे, +\q2 और मैं आपकी आज्ञाओं का पालन करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 167 मैं आपकी चितौनियों को मानता हूँ; +\q2 मैं उनसे बहुत प्रेम करता हूँ। +\q1 +\v 168 मैं व्यवहार करने के आपके नियमों का पालन करता हूँ, +\q2 और जो कुछ भी मैं करता हूँ उसे आप देखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 169 हे यहोवा, जब मेरी सहायता करने के लिए मैं आप से प्रार्थना करता हूँ; तब आप सुन लें +\q2 अपने वचनों को समझने में मेरी सहायता करें। +\q1 +\v 170 जब मैं प्रार्थना करता हूँ तब मेरी सुनें, +\q2 और मुझे बचाएँ जैसे आपने कहा था कि आप करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 171 मैं सदा आपकी स्तुति करूँगा +\q2 क्योंकि आप मुझे अपने नियम सिखाते हैं। +\q1 +\v 172 मैं आपके वचनों के विषय में गाऊँगा +\q2 क्योंकि आपके सब आज्ञाएँ न्यायोचित हैं। +\q1 +\s5 +\v 173 मैं आप से अनुरोध करता हूँ कि मेरी सहायता के लिए सदा तैयार रहें +\q2 क्योंकि मैंने व्यवहार करने के आपके नियमों का पालन करने का चुनाव किया है। +\q1 +\v 174 हे यहोवा, मैं उत्सुकता से चाहता हूँ कि आप मेरे शत्रुओं से मुझे बचाएँ; +\q2 मैं आपकी व्यवस्था से प्रसन्न हूँ। +\q1 +\s5 +\v 175 मुझे जीवित रहने दें कि मैं आपकी स्तुति करता रहूँ +\q2 जिससे कि आपके नियम मेरी सहायता कर सकें। +\q1 +\v 176 मैंने पाप किया है और आप से दूर हो गया हूँ, जैसे एक भेड़ झुण्ड से भटक गई है; +\q2 मुझे खोज लें क्योंकि मैं आपकी आज्ञाओं को नहीं भूला हूँ। + +\s5 +\c 120 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 जब मैं चिन्तित था, मैंने यहोवा को पुकारा +\q2 और उन्होंने मुझे उत्तर दिया। +\q1 +\v 2 मैंने प्रार्थना की, +\q2 “हे यहोवा, मुझे उन लोगों से बचाएँ जो मुझसे झूठ बोलते हैं और मुझे धोखा देने का प्रयास करते हैं!” +\q1 +\s5 +\v 3 तुम जो मुझसे झूठ बोलते हो, मैं तुमको बताऊँगा कि परमेश्वर तुम्हारे साथ क्या करेंगे +\q2 और वह तुम्हें दण्ड देने के लिए क्या करेंगे। +\q1 +\v 4 जब सैनिक तुम पर नोकीले तीर चलाते हैं तब वह तुम्हें दण्डित करेंगे; +\q2 तीर जो एक झाऊ के पेड़ की लकड़ी के कोयलों पर, +\q2 कठोर और नोकीले बनाए गये थे। +\q1 +\s5 +\v 5 क्रूर लोगों के बीच रहना मेरे लिए भयानक है, +\q2 उन लोगों के समान जो मेशेक या केदार के क्षेत्रों में रहते हैं। +\q1 +\v 6 मैं उन लोगों के बीच लम्बे समय से रहता हूँ जो दूसरों के साथ शान्ति से रहने से घृणा करते हैं। +\q1 +\v 7 हर बार जब मैं शान्तिपूर्वक साथ रहने के विषय में बात करता हूँ, +\q2 वे युद्ध आरम्भ करने के विषय में बात करते हैं। + +\s5 +\c 121 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 जब हम यरूशलेम की ओर यात्रा करते हैं, +\q2 मैं पहाड़ियों की ओर देखता हूँ और मैं स्वयं से पूछता हूँ, “मेरी सहायता कौन करेगा?” +\q1 +\v 2 मेरा उत्तर यह है कि यहोवा ही मेरी सहायता करते हैं; +\q2 वही हैं जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्‍वी को बनाया हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 वह हमें गिरने नहीं देंगे; +\q2 परमेश्वर, जो हमारी रक्षा करते हैं, वह नहीं सोएँगे। +\q1 +\v 4 वह जो हम इस्राएली लोगों की रक्षा करते हैं +\q2 वह न तो कभी ऊँघते है न वह कभी सोते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा हमारे ऊपर दृष्टि रखते हैं; +\q2 वह आड़ के समान है जो हमें सूर्य से बचाती है। +\q1 +\v 6 वह दिन के समय सूरज से हमें हानि नहीं होने देंगे, +\q2 और वह रात के समय चँद्रमा को हमें हानि पहुँचाने नहीं देंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा हमें किसी भी तरह से हानि होने से बचाएँगे; +\q2 वह हमें सुरक्षित रखेंगे। +\q1 +\v 8 वह हमारे घर से निकलने के समय से ले कर शाम को लौटने तक हमारी रक्षा करेंगे; +\q2 वह हमारी अब और सदा के लिए रक्षा करेंगे। + +\s5 +\c 122 +\d दाऊद द्वारा आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 मैं प्रसन्न हुआ जब लोगों ने मुझसे कहा, +\q2 “हमें यरूशलेम में यहोवा के भवन में जाना चाहिए!” +\q1 +\v 2 और अब हम यहाँ, +\q2 यरूशलेम के द्वार के भीतर खड़े है। +\q1 +\v 3 हम देख सकते हैं कि यरूशलेम एक सावधानीपूर्वक बनाया गया एक शहर था। +\q2 शहर के भीतरी भाग को +\q2 एक दूसरे के साथ उपयुक्त रीति से जोड़ कर बनाया गया था। +\q1 +\s5 +\v 4 हम इस्राएल के गोत्रों के लोग +\q2 जो यहोवा के हैं, अब वहाँ जा सकते हैं, +\q2 जैसी कि यहोवा ने आज्ञा दी थी कि हमें करना चाहिए, +\q2 कि हम उनको धन्यवाद दे सकें। +\q1 +\v 5 वहाँ सिंहासन हैं, +\q2 सिंहासन जहाँ इस्राएल के राजा बैठे थे +\q2 जब उन्होंने इस्राएल पर शासन किया। +\q2 ये राजा दाऊद के वंशजों के सिंहासन हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 प्रार्थना करो कि यरूशलेम में शान्ति हों! +\q1 “मैं प्रार्थना करता हूँ कि जो लोग यरूशलेम से प्रेम करते हैं वे जीवन में सफल हों। +\q1 +\v 7 मैं प्रार्थना करता हूँ कि शहर की दीवारों के भीतर शान्ति हों +\q2 और जो लोग महल के भीतर हैं वे सुरक्षित हों।” +\q1 +\s5 +\v 8 मेरे सम्बन्धियों और मित्रों के लिए, +\q2 “मैं प्रार्थना करता हूँ कि लोग यरूशलेम के भीतर शान्तिपूर्वक रहें।” +\q1 +\v 9 और क्योंकि मैं अपने परमेश्वर यहोवा के मन्दिर से प्रेम करता हूँ, +\q2 “इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि यरूशलेम में रहने वाले लोगों का भला हो।” + +\s5 +\c 123 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपकी ओर देखता हूँ, +\q2 स्वर्ग की ओर, जहाँ से आप शासन करते हैं। +\q1 +\v 2 जैसे दास अपने स्वामी से अपनी आवश्यकता के लिए माँगते हैं +\q1 और दासी अपनी स्वामिनी से अपनी आवश्यकता के लिए माँगती हैं, +\q2 वैसे हम हमारी आवश्यकताओं के लिए आप से माँगते हैं, हे हमारे परमेश्वर यहोवा, +\q2 जब तक आप हमारे प्रति दया के कार्य नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, हम पर दया करें +\q2 क्योंकि हमारे शत्रुओं ने हमारा बहुत अपमान किया है। +\q1 +\v 4 अभिमानी लोगों ने लम्बे समय तक उपहास किया है, +\q2 और घमण्डी लोगों ने हमारा दमन किया है और हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे कि हमारा कोई मूल्य नहीं है। + +\s5 +\c 124 +\d दाऊद द्वारा लिखा गया आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे इस्राएली लोगों, इस प्रश्न का उत्तर दो: +\q1 यदि यहोवा हमारी सहायता नहीं कर रहे होते तो हमारे साथ क्या हुआ होता? +\q1 +\v 2 जब हमारे शत्रुओं ने हम पर आक्रमण किया, +\q1 यदि यहोवा हमारे लिए नहीं लड़ रहे होते, +\q1 +\v 3 तो हम सब मारे गए होते +\q2 क्योंकि वे हमसे बहुत क्रोधित थे! +\q1 +\s5 +\v 4 वे हमें पानी से बहा ले जाने वाली बाढ़ के समान होते; +\q1 ऐसा होता जैसे कि पानी ने हमें ढाँक दिया था, +\q2 +\v 5 और हम सब बाढ़ में डूब गए होते। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु हम यहोवा की स्तुति करते हैं +\q2 क्योंकि उन्होंने हमारे शत्रुओं को हमें नष्ट करने की अनुमति नहीं दी है। +\q1 +\v 7 हम अपने शत्रुओं से ऐसे बच निकले हैं जैसे शिकारियों के जाल से पक्षी बच निकले हैं; +\q1 ऐसा लगता है कि हमारे शत्रुओं ने हमारे लिए जो जाल फैलाया था वह टूट गया +\q2 और हम इससे बच निकले हैं! +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा ही वह हैं जो हमारी सहायता करते हैं; +\q2 वही हैं जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्‍वी को बनाया है। + +\s5 +\c 125 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 जो यहोवा पर भरोसा करते हैं वे सिय्योन पर्वत के समान हैं, +\q2 जिसे हिलाया या हटाया नहीं जा सकता है। +\q1 +\v 2 जैसे यरूशलेम के चारों ओर की पहाड़ियाँ उसकी रक्षा करती हैं, +\q2 वैसे ही यहोवा हमारी, अर्थात् उनके लोगों की रक्षा करते हैं, +\q2 और वह सदा हमारी रक्षा करेंगे। +\q1 +\v 3 दुष्ट लोगों को उस देश पर शासन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जहाँ धर्मी लोग रहते हैं। +\q2 यदि उन्होंने ऐसा किया, तो धर्मी लोग भी गलत करने के विषय में सोचेंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, उन लोगों की भलाई करें जो दूसरों की भलाई करते हैं +\q2 और जो सच्चे मन से आपके आदेशों का पालन करते हैं। +\q1 +\v 5 परन्तु जब आप उन इस्राएली लोगों को दण्ड देते हैं जो अब आपकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं, +\q2 तब आप उन्हें भी अन्य बुरे कार्य करने वालों के समान ही दण्ड देंगे। +\q1 मेरी इच्छा है कि इस्राएल में लोगों का भला हो जाएँ! + +\s5 +\c 126 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 जब यहोवा ने फिर से यरूशलेम को समृद्ध किया, +\q1 यह अद्भुत था; +\q2 ऐसा प्रतीत होता था जैसे हम सपने देख रहे थे। +\q1 +\s5 +\v 2 हम अत्याधिक प्रसन्न थे, +\q1 और हम आनन्द से जयजयकार कर रहे थे। +\q1 तब जाति-जाति के लोगों ने हमारे विषय में कहा, +\q2 “यहोवा ने उनके लिए महान कार्य किए हैं!” +\q1 +\v 3 हमने कहा, “हाँ, यहोवा ने वास्तव में हमारे लिए महान कार्य किए हैं, +\q2 और हम बहुत आनन्दित हैं।” +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, हमारा फिर से उद्धार करें, जैसे वर्षा दक्षिणी यहूदिया के जंगल के नालों को भरती हैं। +\q2 हमारे देश को फिर से वैसा ही महान होने योग्य कर दें जैसा कि वह पहले था। +\q1 +\v 5 जब हमने बीज बोए तब हम रो रहे थे क्योंकि इस मिट्टी को, जिसे कई वर्षों से जोता नहीं गया था; तैयार करना कठिन कार्य था +\q1 अब हम आनन्द से जयजयकार करते हैं क्योंकि हम एक बड़ी फसल इकट्ठा कर रहे हैं। +\q1 +\v 6 जो लोग रोते हुए खेतों में बीज लाते थे, वे आनन्द से जयजयकार करेंगे +\q2 जब वे कटनी के समय अपने घरों में फसल लाते हैं। + +\s5 +\c 127 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए सुलैमान द्वारा लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 यदि लोग यहोवा की सहायता के बिना घर बना रहे हैं, +\q2 तो वे इसे व्यर्थ में बना रहे हैं। +\q1 इसी प्रकार, यदि यहोवा किसी शहर की रक्षा नहीं करते हैं, +\q2 तो रक्षकों का रात में जागना व्यर्थ है। +\q1 +\v 2 बहुत शीघ्र उठना और रात में देर से सोना भी व्यर्थ है +\q2 कि तुम भोजन मोल लेने के लिए पैसे कमाने के लिए पूरे दिन कठोर परिश्रम कर सको +\q1 क्योंकि यहोवा उन लोगों को सोते समय भोजन देते हैं, जिनसे वह प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 सन्तान एक वरदान हैं जो यहोवा से माता-पिता को मिलता हैं; +\q2 वे उनकी ओर से उपहार हैं। +\q1 +\v 4 यदि किसी पुरुष की जवानी में पुत्र हों, +\q1 तो बड़े होकर अपने परिवार की रक्षा करने में उसकी सहायता कर सकेंगे +\q2 जैसे एक सैनिक स्वयं को बचा सकता है यदि उसके हाथ में धनुष और तीर है। +\q1 +\v 5 वह व्यक्ति कितना सौभाग्यशाली है जिसके कई पुत्र हैं; +\q2 वह एक सैनिक के समान है जिसके तरकश में कई तीर हैं। +\q1 यदि किसी व्यक्ति को जिसके अनेक पुत्र हैं, उसका शत्रु उस स्थान पर ले जाता है जहाँ वे मामलों का निर्णय लेते हैं, तो उसके शत्रु उस व्यक्ति को कभी भी पराजित नहीं कर पाएँगे +\q2 क्योंकि उसके पुत्र उसकी रक्षा करने में सहायता करेंगे। + +\s5 +\c 128 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 तुम कितने भाग्यशाली हो जो उनका महान सम्मान करते हो +\q2 और उनकी इच्छा पूरी करते हो। +\q1 +\v 2 तुम अपने द्वारा लाए गए भोजन का आनन्द लेने में सक्षम होगे; +\q1 तुम भाग्यशाली और समृद्ध होगे। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम्हारी पत्नी एक दाखलता के समान होगी जो कई अँगूर उपजाती है; +\q2 वह कई बच्चों को जन्म देगी। +\q1 तुम्हारे बच्चे जो तुम्हारी मेज के चारों ओर बैठते हैं; +\q1 तुम एक जैतून के दृढ़ पेड़ के समान होगे जिसके चारों ओर कई टहनियाँ बढ़ती हैं। +\q1 +\v 4 इस प्रकार, यहोवा हर एक व्यक्ति को आशीष देंगे जो उनका बहुत सम्मान करता है। +\q1 +\v 5 मेरी इच्छा है कि सिय्योन पर्वत पर अपने भवन में से परमेश्वर तुम्हारी बहुत सहायता करें, +\q1 और तुम यरूशलेम के लोगों को अपने जीवन में प्रतिदिन समृद्ध होते देखो! +\q2 +\v 6 मेरी इच्छा है कि तुम कई वर्षों तक जीवित रहो +\q2 और तुम्हारे पास पोते-पोतियाँ हों और तुम उन्हें देख सको। +\q1 मेरी इच्छा है कि इस्राएल में लोगों का कल्याण हो जाएँ! + +\s5 +\c 129 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 मैं कहता हूँ कि जब से मैं युवा था तब से मेरे शत्रुओं ने मुझे पीड़ा दी है। +\q1 अब मैं तुमसे कहता हूँ, मेरे साथी इस्राएली, उन्हीं शब्दों को दोहराओ: +\q1 +\v 2 “हमारे शत्रुओं ने हमें पीड़ा दी है जब से हमारे देश का आरम्भ हुआ है, +\q2 परन्तु उन्होंने हमें पराजित नहीं किया है! +\q1 +\v 3 हमारे शत्रुओं ने हमें चाबुकों से मारा जिससे हमारी पीठ कट गई +\q जैसे एक किसान भूमि में गहरी रेखाएँ बनाने के लिए हल का उपयोग करके उसे जोतता है।” +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु यहोवा धर्मी हैं, +\q2 और उन्होंने हमें दुष्ट लोगों के दास होने से मुक्त कर दिया है। +\q1 +\v 5 मेरी इच्छा है कि वे सब लज्जित हों क्योंकि हम यरूशलेम के सब शत्रुओं को पराजित कर देंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 मुझे आशा है कि घरों की छत पर उगने वाली घास के समान उनका कोई मूल्य न हो, +\q2 जो सूख जाती है और बढ़ती नहीं है; +\q1 +\v 7 कोई भी उसे काट कर पूले बना कर ले जाना नहीं चाहता है। +\q1 +\v 8 आने जाने वाले लोग उन पुरुषों को कटाई करते देखते हैं, तो वे उन्हें यह कहकर नमस्कार करते हैं, +\q2 “हम चाहते हैं कि यहोवा तुम्हें आशीष दें!” +\q1 परन्तु इस्राएल के शत्रुओं के साथ ऐसा नहीं होगा। +\q1 हम, यहोवा के प्रतिनिधियों के तौर पर, तुम्हें अर्थात् हमारे साथी इस्राएलियों को आशीष देते हैं! + +\s5 +\c 130 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं बड़े संकट में हूँ, इसलिए मैं आपको पुकारता हूँ। +\q1 +\v 2 हे यहोवा, मेरी बात सुनें +\q2 जब मैं आपको मुझ पर दया करने के लिए पुकारता हूँ! +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, यदि आपने हमारे पापों का लेखा रखा होता, जो हमने किए हैं, +\q2 तो हम में से कोई भी निन्दित और दण्डित होने से बच नहीं पाता! +\q1 +\v 4 परन्तु आप हमें क्षमा करते हैं, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप हम आपका महान सम्मान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा ने कहा है कि वह मेरी सहायता करेंगे; +\q2 उन्होंने जो कहा है उस पर मुझे भरोसा है, और मैं उनके ऐसा करने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा करता हूँ। +\q1 +\v 6 जैसे चौकीदार सुबह होने की प्रतीक्षा करते हैं; +\q2 उससे अधिक मैं यहोवा से सहायता की प्रतीक्षा करता हूँ; +\q2 हाँ, मैं उनसे भी अधिक उत्सुकता से प्रतीक्षा करता हूँ! +\q1 +\s5 +\v 7 हे मेरे साथी इस्राएलियों, विश्वास के साथ आशा रखो कि यहोवा हमें आशीष देंगे। +\q2 वह हमें आशीष देंगे क्योंकि वह हम पर दया करते हैं, +\q2 और वह हमें बचाने के लिए अति इच्छुक हैं। +\q1 +\v 8 वही हैं जो हम इस्राएली लोगों को, हमारे सब पापों के दण्ड से बचाएँगे। + +\s5 +\c 131 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए दाऊद द्वारा लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं घमण्डी नहीं हूँ; +\q2 मैं जीवन में प्रभावशाली वस्तुएँ को प्राप्त करने के योग्य नहीं हूँ। +\q1 मैं उन समस्याओं के विषय में चिन्ता नहीं करता जिनका समाधान करना मेरे लिए कठिन है। +\q1 +\s5 +\v 2 इसकी अपेक्षा, मैं अपने मन में शान्त और चिन्ता मुक्त हूँ +\q2 एक छोटे बच्चे के समान जो अब माँ का दूध नहीं पीता है परन्तु अपनी माँ के साथ रहने में प्रसन्न है। +\q2 इसी प्रकार, मैं अपने मन में शान्तिपूर्ण हूँ। +\q1 +\v 3 हे मेरे साथी इस्राएलियों, विश्वास के साथ आशा रखो कि यहोवा तुम्हारे लिए भले कार्य करेंगे +\q2 अब और सदा के लिए! + +\s5 +\c 132 +\d यरूशलेम के मार्ग में जाते समय गाने के लिए एक गीत। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, राजा दाऊद को +\q2 और उन सब कठिनाइयों को न भूलें जो उसने सहन की हैं! +\q1 +\v 2 उसने आपको एक गम्भीर वचन दिया, +\q2 उन सर्वशक्तिमान परमेश्वर को जिनकी हमारे पूर्वज याकूब ने आराधना की थी। +\q1 +\s5 +\v 3 उसने कहा, “मैं घर नहीं जाऊँगा, +\q1 मैं अपने बिस्तर पर विश्राम नहीं करूँगा, +\q1 +\v 4 और मैं नहीं सोऊँगा +\q1 +\v 5 जब तक मैं यहोवा के लिए कोई स्थान, +\q2 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए एक घर नहीं बनाता, जिनकी याकूब ने आराधना की थी।” +\q1 +\s5 +\v 6 एप्राता में हमने सुना जहाँ पवित्र सन्दूक रखा था। +\q2 इसलिए हम गए और किर्यत्यारीम शहर के पास उसे पाया, और हम इसे यरूशलेम ले गए। +\q1 +\v 7 बाद में हमने कहा, “चलो यरूशलेम में यहोवा के पवित्र-तम्बू में जाएँ; +\q2 आओ हम वहाँ सिंहासन के सामने आराधना करते हैं, जहाँ वह बैठे हैं।” +\q1 +\v 8 हे यहोवा, उस स्थान पर आओ जहाँ आप सदा रहते हैं, +\q2 उस स्थान पर जहाँ आपका पवित्र सन्दूक है, +\q2 उस स्थान पर जो दिखाता है कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 मैं चाहता हूँ कि आपके याजकों का धार्मिक व्यवहार सदा प्रकट होता रहे, +\q1 और यह कि आपके लोग सदा आनन्द से जयजयकार करें। +\q1 +\v 10 आपने दाऊद को इस्राएल के राजा के रूप में सेवा करने के लिए चुना है; +\q2 उसे अस्वीकार न करें! +\q1 +\s5 +\v 11 हे यहोवा, आपने दाऊद को एक गम्भीर वचन दिया है, +\q2 एक प्रतिज्ञा जिसे आप नहीं तोड़ेंगे। +\q1 आपने कहा, “मैं तेरे वंशजों को तेरे ही समान राजा का शासन कराऊँगा। +\q2 +\v 12 यदि वे उनके साथ बाँधी गई मेरी वाचा का पालन करें +\q2 और उन सब आज्ञाओं का पालन करें जो मैं उन्हें दूँगा, +\q1 तो तुझसे निकलने वाले राजाओं का वंश कभी समाप्त नहीं होगा।” +\q1 +\s5 +\v 13 यहोवा ने यरूशलेम को चुना है; +\q1 यही वह स्थान है जहाँ से वह शासन करना चाहते हैं। +\q1 +\v 14 उन्होंने कहा, “यह वह शहर है जहाँ मैं सदा के लिए रहूँगा; +\q2 यही वह स्थान है जहाँ मैं रहना चाहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं यरूशलेम के लोगों को, वह सब कुछ दूँगा जो उन्हें चाहिए; +\q2 मैं वहाँ के गरीब लोगों को भी संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त भोजन दूँगा। +\q1 +\v 16 मैं याजकों को छुड़ाए हुए लोगों के समान व्यवहार करने के लिए प्रेरित करूँगा; +\q2 और वहाँ रहने वाले मेरे सब लोग आनन्द से जयजयकार करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 17 यरूशलेम में, मैं दाऊद के वंशजों में से एक को राजा बनाऊँगा; +\q2 वह मेरा चुना हुआ राजा भी होगा, +\q1 वहीं मैं दाऊद से निकले वंश को बनाऊँगा। +\q1 +\v 18 मैं उसके शत्रुओं को पराजित करूँगा और उन्हें बहुत लज्जित करूँगा; +\q2 परन्तु मेरा राजा जो मुकुट पहनता है वह सदा चमकता रहेगा।” + +\s5 +\c 133 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर के लोगों का एक साथ शान्ति में इकट्ठा होना +\q2 यह बहुत अच्छी और बहुत सुखद बात है। +\q1 +\s5 +\v 2 यह उस बहुमूल्य तेल के समान सुखद है +\q2 जो महायाजक हारून के सिर से दाढ़ी तक बह गया, जब मूसा ने उसका अभिषेक किया, +\q2 जो उसके वस्त्रों के छोर पर बह गया। +\q1 +\v 3 शान्ति में एक साथ इकट्ठा होना, हेर्मोन पर्वत पर गिरने वाली ओस के समान सुखद है +\q2 और सिय्योन पर्वत पर गिरने वाली ओस के समान है। +\q1 यहोवा ने उनके देश को सदा के लिए स्थिर बना कर, +\q2 यरूशलेम में अपने लोगों को आशीष देने की प्रतिज्ञा की है। + +\s5 +\c 134 +\d आराधना करने के लिए मन्दिर जाने वाले लोगों के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 तुम सब लोग जो यहोवा की सेवा करते हो, +\q2 जो रात में खड़े होकर उनके भवन में उनकी सेवा करते हो, +\q1 आओ और उनकी प्रशंसा करो! +\q1 +\v 2 उनसे प्रार्थना करने के लिए मन्दिर में अपने हाथ ऊपर उठाओ +\q2 और उनकी स्तुति करो! +\q1 +\s5 +\v 3 मैं आशा करता हूँ कि यहोवा, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्‍वी को बनाया है, +\q2 वह सिय्योन पर्वत पर स्थित अपने निवास के भवन में से तुम्हें आशीष दें! + +\s5 +\c 135 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 तुम जो यहोवा की आराधना करते हो, +\q1 उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 2 तुम जो हमारे परमेश्वर यहोवा के भवन के आँगनों में उनकी सेवा करने के लिए तैयार होकर खड़े हो, +\q2 उनकी स्तुति करो! +\q1 +\s5 +\v 3 यहोवा की स्तुति करो क्योंकि वह हमारे लिए भले कार्य करते हैं; +\q2 उनके लिए गाओ क्योंकि ऐसा करना एक मनोहर बात है। +\q1 +\v 4 उन्होंने हमें, याकूब के वंशजों को चुना है; +\q2 उन्होंने हम इस्राएलियों को अपने लिए चुना है। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं ये बातें कहता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि यहोवा महान हैं; +\q2 वह सब देवताओं से बड़े हैं। +\q1 +\v 6 यहोवा जो कुछ भी करना चाहते हैं वह करते हैं +\q2 स्वर्ग में, पृथ्‍वी पर, +\q2 और समुद्रों में, समुद्रों के नीचे तक। +\q1 +\s5 +\v 7 वही हैं जो पृथ्‍वी पर दूर-दूर के स्थानों से बादलों को उठाते हैं; +\q2 वह वर्षा के साथ बिजली चमकाते हैं, +\q2 और वह उन स्थानों से हवाओं को लाते हैं जहाँ वह उन्हें एकत्र करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 वही हैं जिन्होंने मिस्र में सब पहलौठे पुरुषों को मार डाला, +\q2 मनुष्यों और पशुओं के पहलौठों को। +\q1 +\v 9 वहाँ उन्होंने कई प्रकार के चमत्कार किए +\q2 उनके राजा और उसके सब अधिकारियों को दण्ड देंने के लिए। +\q1 +\s5 +\v 10 उन्होंने कई राष्ट्रों पर आक्रमण किया +\q2 और शक्तिशाली राजाओं को मार डाला जिन्होंने उन पर शासन किया: +\q1 +\v 11 एमोरियों के समूह के राजा सीहोन, +\q2 बाशान के राजा, ओग +\q2 और कनान देश में अन्य सब राजाओं को मार डाला। +\q1 +\s5 +\v 12 यहोवा ने हमें उनकी भूमि दीं, +\q2 कि यह हम इस्राएली लोगों की सदा के लिए हो। +\q1 +\v 13 हे यहोवा, आपका नाम सदैव स्थिर रहेगा, +\q2 और जो लोग अभी तक पैदा नहीं हुए हैं वे आपके द्वारा किए गए महान कार्यों को स्मरण रखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 यहोवा ने घोषणा की कि हम, उनके लोग निर्दोष हैं, +\q2 और वह हमारे प्रति दया के कार्य करते हैं। +\q1 +\v 15 परन्तु जिन मूर्तियों की अन्य लोग उपासना करते हैं वे केवल चाँदी और सोने से बनी मूर्तियाँ हैं, +\q2 जो वस्तुएँ मनुष्यों ने बनाई हैं। +\q1 +\v 16 उनकी मूर्तियों के मुँह होते हैं, परन्तु वे कुछ भी नहीं कह सकती हैं; +\q2 उनके पास आँखें हैं, परन्तु वे कुछ भी नहीं देख सकती हैं। +\q1 +\v 17 उनके कान हैं, परन्तु वे कुछ भी नहीं सुन सकती हैं, +\q2 और वे साँस लेने में भी सक्षम नहीं हैं। +\q1 +\v 18 जो लोग मूर्तियों को बनाते हैं वे मूर्तियों के समान शक्तिहीन होते हैं, +\q2 और जो मूर्तियों पर भरोसा करते हैं वे अपनी मूर्तियों से अधिक कुछ नहीं कर सकते हैं! +\q1 +\s5 +\v 19 मेरे साथी इस्राएलियों, यहोवा की स्तुति करो! +\q1 हे याजकों जो हारून से निकले हो, यहोवा की स्तुति करो! +\q1 +\v 20 हे लेवी के वंशजों, तुम जो याजकों की सहायता करते हो, यहोवा की स्तुति करो! +\q1 तुम सब जो यहोवा का महान सम्मान करते हो, उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 21 यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर मन्दिर में यहोवा की स्तुति करो +\q2 जहाँ वह रहते हैं! +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 136 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा का धन्यवाद करो क्योंकि वह हमारे लिए भले कार्य करते हैं; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 2 परमेश्वर का धन्यवाद हो, वह जो अन्य सब देवताओं से महान हैं; +\q2 वह सदा के लिए हमें प्रेम करेंगे जैसा उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 3 यहोवा का धन्यवाद हो, जो अन्य सब देवताओं से महान हैं; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 4 केवल वही हैं जो महान चमत्कार करते हैं; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 5 वही हैं जिन्होंने बहुत बुद्धिमान होने के कारण स्वर्ग बनाया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 6 वही हैं जिन्होंने भूमि को गहरे पानी में से ऊपर उठाया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 7 वही हैं जिन्होंने आकाश में बड़ी ज्योतियाँ बनाई; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 8 उन्होंने दिन में चमकने के लिए सूर्य बनाया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 9 उन्होंने रात के समय चमकने के लिए चँद्रमा और तारों को बनाया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 10 वही हैं जिन्होंने मिस्र में पहलौठे पुरुषों को मार डाला; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 11 उन्होंने इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकला; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 12 अपने शक्तिशाली हाथ से उन्होंने उन्हें बाहर निकाला; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 13 वही हैं जिन्होंने लाल सागर को विभाजित किया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 14 उन्होंने इस्राएलियों को सूखी भूमि पर चलने में सक्षम बनाया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 15 परन्तु उन्होंने मिस्र के राजा और उसकी सेना को डुबा दिया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 16 वही हैं जिन्होंने अपने लोगों का जंगल के माध्यम से सुरक्षित रूप से नेतृत्व किया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 17 उन्होंने शक्तिशाली राजाओं को मारा; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 18 उन्होंने उन राजाओं को मार डाला जो प्रसिद्ध थे; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 19 उन्होंने एमोर लोगों के समूह के राजा सीहोन को मार डाला; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 20 उन्होंने बाशान के क्षेत्र के राजा ओग को मार डाला; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 21 उन्होंने उनकी भूमि हमें, अर्थात् अपने लोगों को दीं; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 22 उन्होंने उस भूमि को इस्राएल के लोगों को दिया, जो उनकी सेवा करते हैं; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 23 वही हैं जो हमें नहीं भूलें जब हमारे शत्रुओं ने हमें पराजित किया था; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 24 उन्होंने हमें हमारे शत्रुओं से बचा लिया; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 25 वही हैं जो सब जीवित प्राणियों को भोजन देते हैं; +\q2 वह सदा के लिए हमसे प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 26 इसलिए परमेश्वर का धन्यवाद करो, जो स्वर्ग में रहते हैं +\q2 क्योंकि वह सदा के लिए हमें प्रेम करेंगे जैसी उन्होंने प्रतिज्ञा की है। + +\s5 +\c 137 +\q1 +\p +\v 1 जब हमें यरूशलेम से दूर बाबेल ले जाया गया था, +\q1 तब हम वहाँ नदियों के पास बैठ गए, +\q2 और जब हमने यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर मन्दिर के विषय में सोचा तो हम रो पड़े। +\q1 +\v 2 नदियों के पास के मजनू वृक्षों पर हमने अपनी वीणाओं को टाँग दिया +\q2 क्योंकि हम उन्हें नहीं बजाना चाहते थे और क्योंकि हम बहुत दुखी थे। +\q1 +\s5 +\v 3 जिन सैनिकों ने हमें पकड़ लिया था और हमें बाबेल ले गए, उन्होंने हमें उनके लिए गाने को विवश किया; +\q2 उन्होंने हमें उनका मनोरन्जन करने के लिए कहा; उन्होंने कहा, +\q2 “हमारे लिए उन गीतों में से एक गीत गाओ जो तुम पहले यरूशलेम में गाते थे!” +\q1 +\v 4 परन्तु हमने मन में सोचा, +\q2 “हम दुखी हैं क्योंकि हमें यहोवा ने दण्ड दिया है और इस विदेशी देश में लाए हैं; +\q2 हम यहाँ रहते हुए यहोवा के विषय में गाना नहीं गा सकते हैं!” +\q1 +\s5 +\v 5 यदि मैं यरूशलेम के विषय में भूल जाता हूँ, तो मैं चाहता हूँ कि मेरा दाहिना हाथ सूख जाए +\q2 कि मैं अपनी वीणा न बजा सकूँ! +\q1 +\v 6 मैं चाहता हूँ कि मैं फिर से नहीं गा पाऊँ +\q1 यदि मैं यरूशलेम के विषय में भूल जाऊँ, +\q2 यदि मैं यह नहीं मानता कि यरूशलेम मुझे किसी और वस्तु से अधिक आनन्द देता है। +\q1 +\s5 +\v 7 हे यहोवा, एदोम के लोगों को दण्ड दें +\q2 क्योंकि उन्होंने उस दिन जो किया जब बाबेल की सेना ने यरूशलेम पर अधिकार कर लिया था। +\q1 उन्होंने जो कहा था उसे न भूलें, +\q2 “सब इमारतों को तोड़ दो! उन्हें पूरी तरह से नष्ट करो! केवल नींव छोड़ दो!” +\q1 +\s5 +\v 8 हे बाबेल के लोगों, तुम निश्चय ही नष्ट हो जाओगे! +\q2 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो हमारे साथ हुए अत्याचार के लिए तुम्हें दण्ड देंगे; +\q1 +\v 9 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो तुम्हारे बच्चों को ले लेते हैं +\q2 और चट्टानों पर मार कर उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं। + +\s5 +\c 138 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं अपने पूरे मन से आपका धन्यवाद करता हूँ। +\q1 मैं आपकी स्तुति करने के लिए गाता हूँ, भले ही कई लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं। +\q1 +\v 2 जब मैं आपके पवित्र भवन की ओर देखता हूँ, तो मैं झुकता हूँ +\q2 और आपका धन्यवाद करता हूँ क्योंकि आप हमसे सच्चा प्रेम करते हैं और जो आपने प्रतिज्ञा की है उसे पूरा करते हैं। +\q2 आपने लोगों को हर एक स्थान में आपका सम्मान करने का कारण दिया है और आपने जो कुछ भी कहा है उसे सबसे अधिक महत्व दिया है। +\q1 +\s5 +\v 3 जब मैंने आपको पुकारा, तो आपने मुझे उत्तर दिया; +\q2 आपने मुझे शक्तिशाली और वीर होने में सक्षम बनाया। +\q1 +\v 4 हे यहोवा, किसी दिन इस धरती के सब राजा आपकी स्तुति करेंगे +\q2 क्योंकि आपने जो कहा उसे वे सुनेंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 वे आपके द्वारा किए गए कार्यों के विषय में गाएँगे; +\q2 वे गाएँगे और कहेंगे कि आप बहुत महान हैं। +\q1 +\v 6 हे यहोवा, आप सर्वोच्च हैं, +\q2 आप उन लोगों की देखभाल करते हैं जिन्हें महत्वहीन माना जाता है। +\q1 परन्तु, आप घमण्डी लोगों को अपनी विश्वासयोग्यता नहीं दिखाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 जब मैं संकटों के बीच में रहूँ, +\q2 तब आप मुझे बचाएँगे। +\q1 अपने हाथ से आप मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँगे जो मुझ पर क्रोधित हैं। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, आप मेरे लिए वह सब करेंगे जिसकी आपने प्रतिज्ञा की है; +\q2 आप हमसे सदा सच्चा प्रेम करते हैं। +\q2 आपने हमारे लिए अर्थात् अपने इस्राएली लोगों के लिए जो आरम्भ किया है, उसे पूरा करें! + +\s5 +\c 139 +\d दाऊद द्वारा गायन मण्डली के निर्देशक के लिए लिखा गया एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आपने मेरे मन को जाँच लिया है, +\q2 और आप मेरे विषय में सब जानते हैं। +\q1 +\v 2 आप जानते हैं कि मैं कब बैठता हूँ और कब खड़ा होता हूँ। +\q1 भले ही आप मुझसे दूर हैं, +\q2 आप जानते हैं कि मैं क्या सोच रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 मेरे सुबह जागने से ले कर रात को सोने तक, +\q2 मैं जो कुछ भी करता हूँ उसे आप जानते हैं। +\q1 +\v 4 हे यहोवा, मेरे कुछ भी कहने से पहले, +\q2 आप वह सब जानते हैं जो मैं कहने जा रहा हूँ! +\q1 +\v 5 आप मुझे चारों ओर से बचाते हैं; +\q2 आप अपनी शक्ति से मुझे बचाने के लिए अपना हाथ मुझ पर रखते हैं। +\q1 +\v 6 मैं समझ नहीं पाता हूँ कि आप मेरे विषय में सब कुछ जानते हैं। +\q2 वास्तव में, मेरे लिए यह समझना बहुत कठिन है। +\q1 +\s5 +\v 7 मैं आपके आत्मा से बचने के लिए कहाँ जा सकता हूँ? +\q1 मैं आप से दूर जाने के लिए कहाँ जा सकता हूँ? +\q1 +\v 8 यदि मैं स्वर्ग तक जाता हूँ, तो आप वहाँ हैं। +\q1 यदि मैं उस स्थान पर लेट जाता हूँ जहाँ मृत लोग हैं, तो आप वहाँ हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यदि सूर्य मुझे आकाश के पार ले जा सकता, +\q1 यदि मैं पश्चिम में उड़ जाता और समुद्र में किसी द्वीप पर रहने के लिए स्थान बनाता, +\q1 +\v 10 आप वहाँ भी अपने हाथ से मेरी अगुवाई करने के लिए होंगे, +\q2 और आप मेरी सहायता करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 मैं इच्छा करूँ कि अन्धकार मुझे छिपा ले, +\q1 या मैं इच्छा करूँ कि मेरे चारों ओर का प्रकाश अंधेरा हो जाए। +\q1 +\v 12 परन्तु यदि ऐसा हो जाए, तो भी आप मुझे देखेंगे। +\q1 आपके लिए रात दिन के समान उज्ज्वल है, +\q2 क्योंकि उजियाला और अंधियारा आपके लिए अलग नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 13 आपने मेरे शरीर के सब भागों को बनाया है; +\q2 जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था तब आपने मेरे शरीर के अंगों को एक साथ जोड़ा। +\q1 +\v 14 मैं आपकी स्तुति करता हूँ क्योंकि आपने मेरे शरीर को बहुत ही अद्भुत और विचित्र रीति से बनाया है। +\q1 जो कुछ भी आप करते हैं वह अद्भुत है! +\q2 मैं निश्चय ही इसे भली भाँति जानता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 15 जब मेरा शरीर बन रहा था, +\q1 जब इसे एक साथ जोड़ा जा रहा था, जहाँ कोई और इसे देख नहीं सकता था, +\q2 आपने इसे देखा! +\q1 +\v 16 आपने मेरा जन्म होने से पहले मुझे देखा था। +\q1 आपने अपनी पुस्तक में उन दिनों की संख्या लिखी है जिन्हें आपने मेरे इस पृथ्‍वी के जीवन के लिए रखा है। +\q2 उन दिनों में से किसी भी दिन के आरम्भ होने से पहले आपने ऐसा किया था! +\q1 +\s5 +\v 17 हे परमेश्वर, आप जो मेरे विषय में सोचते हैं वह बहुत मूल्यवान है। +\q2 आप जिन बातों के विषय में सोचते हैं वे बहुत अधिक है। +\q1 +\v 18 यदि मैं उन्हें गिन सकता, तो मैं देखता हूँ कि वे समुद्र के किनारे की रेत के कणों से अधिक हैं। +\q1 जब मैं जागता हूँ, मैं तब भी आपके साथ हूँ। +\q1 +\s5 +\v 19 हे परमेश्वर, मेरी इच्छा है कि आप दुष्ट लोगों को मार डालें! +\q2 मेरी इच्छा है कि हिंसक पुरुष मुझे छोड़ दें। +\q1 +\v 20 वे आपके विषय में बुरी बातें कहते हैं; +\q2 वे आपके नाम की निन्दा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 हे यहोवा, मैं उनसे घृणा करता हूँ जो आप से घृणा करते हैं! +\q2 मैं उन लोगों को तुच्छ जानता हूँ जो आपके विरुद्ध विद्रोह करते हैं। +\q1 +\v 22 मैं उनसे पूरी तरह से घृणा करता हूँ, +\q2 और मैं उन्हें अपना शत्रु मानता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 23 हे परमेश्वर, मेरे मन को खोजें; +\q2 पता करें कि मैं क्या सोच रहा हूँ! +\q1 +\v 24 पता करें कि मेरे भीतर कोई बुराई है या नहीं, +\q2 और मुझे उस मार्ग पर ले जाएँ जो सदा आपके साथ रहने के लिए मेरी अगुवाई करे। + +\s5 +\c 140 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मुझे दुष्टों से बचाएँ; +\q2 और हिंसक लोगों से मुझे सुरक्षित रखें। +\q1 +\v 2 वे सदा बुराई करने की योजना बनाते हैं, +\q2 और वे सदा लोगों को झगड़ा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। +\q1 +\v 3 वे जो कहते हैं, उससे वे लोगों को विषैले साँपों के समान चोट पहुँचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, दुष्ट लोगों की शक्ति से मेरी रक्षा करें। +\q2 मुझे हिंसक पुरुषों से सुरक्षित रखें जो मुझे नष्ट करने की योजना बना रहे हैं। +\q1 +\v 5 ऐसा लगता है कि घमण्डी लोगों ने मेरे लिए एक जाल बिछाया है; +\q2 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए अपना जाल फैलाया है; +\q2 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए इनको मार्ग में रखा है। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं आप से कहता हूँ, “हे यहोवा, आप मेरे परमेश्वर हैं। +\q2 जब मैं आपको मेरी सहायता करने के लिए पुकारता हूँ, तब मेरी पुकार सुन लें।” +\q1 +\v 7 हे यहोवा, हे मेरे प्रभु, आप ही वह हैं जो दृढ़ता से मेरा बचाव करते हैं; +\q2 आपने युद्ध के समय मुझे संरक्षित किया है जैसे कि आपने मेरे सिर पर टोप रखा था। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, दुष्टों को वे वस्तुएँ न दें जो वे चाहते हैं, +\q2 और उन्हें उन बुरे कार्यों को करने की अनुमति न दें जिन्हें वे करने की योजना बना रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 मेरे शत्रुओं को गर्व करने की अनुमति न दें; +\q2 बुरे कार्य जो वे कहते हैं कि वे मेरे साथ करेंगे, वो उनके साथ हो जाएँ। +\q1 +\v 10 उनके सिर पर जलते हुए कोयले गिरें! +\q2 उन्हें गहरे गड्ढे में फेंक दें जहाँ से वे बाहर न आ सकें! +\q1 +\v 11 उन लोगों को सफल होने न दें जो दूसरों की निन्दा करते हैं; +\q2 हिंसक पुरुषों के साथ हिंसक कार्य को होने दें और उन्हें नष्ट करें! +\q1 +\s5 +\v 12 हे यहोवा, मुझे पता है कि आप उन लोगों की रक्षा करेंगे जो पीड़ित हैं, +\q2 और यह कि आप केवल न्यायपूर्ण कार्य करेंगे। +\q1 +\v 13 धर्मी लोग निश्चय ही आपको धन्यवाद देंगे, +\q2 और वे आपकी उपस्थिति में रहेंगे। + +\s5 +\c 141 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपको पुकारता हूँ; +\q2 कृपया मेरी शीघ्र सहायता करें! +\q1 जब मैं आपको पुकारता हूँ तो मेरी सुनें। +\q1 +\v 2 मेरी प्रार्थना स्वीकार करें जैसे कि यह आपके लिए जलाए गए धूप के समान हो। +\q2 मुझे स्वीकार करें जब मैं अपने हाथों को प्रार्थना करने के लिए उठाता हूँ, +\q2 जैसे आप शाम को चढ़ाने वाले बलिदानों को स्वीकार करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, मुझे उन बातों को कहने की अनुमति न दें जो गलत हैं; +\q2 जैसे एक सैनिक द्वार की रखवाली करता है, वैसे मेरी भी चौकसी करें। +\q1 +\v 4 मुझे कोई भी गलत कार्य करने की इच्छा करने से रोकें +\q2 और दुष्ट पुरुषों के साथ जुड़ने से रोकें जब वे बुरा कार्य करना चाहते हैं। +\q1 मुझे उनके साथ मनपसन्द भोजन साझा करने की भी अनुमति न दें! +\q1 +\s5 +\v 5 यह सही है यदि धर्मी लोग मुझे मारें या मुझे दण्डित करें +\q2 क्योंकि वे मुझे उचित कार्य करना सिखाने के लिए दया से कार्य करने का प्रयास कर रहे हैं; +\q1 यदि वे ऐसा करते हैं, तो ऐसा होगा जैसे किसी ने जैतून के तेल से मेरे सिर का अभिषेक करके मुझे सम्मानित किया; +\q2 परन्तु मैं सदा प्रार्थना करता हूँ कि आप दुष्ट कर्मों के कारण दुष्टों को दण्डित करेंगे। +\q1 +\v 6 जब उनके शासकों को चट्टानों की चोटी से नीचे फेंक दिया जाता है, +\q2 वे जान जाएँगे कि मैं जो कह रहा हूँ वह अच्छा है। +\q1 +\v 7 वे एक दिन जान जाएँगे कि उनके शरीर मृत लोक में भूमि पर बिखरे हुए होंगे, +\q2 जैसे कि किसी के खेत में हल चलाते समय पृथ्‍वी के ढेले फूटते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु हे यहोवा परमेश्वर, मैं अनुरोध करता हूँ कि आप मेरी सहायता करते रहें। +\q2 मैं अनुरोध करता हूँ कि आप मुझे बचाएँ; +\q2 मुझे अब मरने न दें! +\q1 +\v 9 ऐसा लगता है कि लोगों ने मेरे लिए जाल बिछाए हैं; +\q2 मुझे जाल में गिरने से बचाएँ। +\q2 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे पकड़ने के लिए जाल फैलाया है; +\q2 मुझे जाल में पकड़े जाने से बचा कर रखें। +\q1 +\v 10 मेरी इच्छा है कि दुष्ट लोगों ने मुझे पकड़ने के लिए जो जाल बिछाया है, उसमें वे ही पड़ जाएँ +\q2 और मैं उनसे बच जाऊँ। + +\s5 +\c 142 +\d एक भजन जिसमें दाऊद ने प्रार्थना की थी जब वह गुफा में छिपा हुआ था। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं आपको पुकारता हूँ; +\q2 मैं मेरी सहायता करने के लिए आप से अनुरोध करता हूँ। +\q1 +\v 2 मैं आपके पास अपनी सब समस्याओं को ला रहा हूँ; +\q2 मैं आपको अपनी सारी चिन्ताएँ बता रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 जब मैं बहुत निराश होता हूँ, +\q2 आप जानते हैं कि मुझे क्या करना चाहिए। +\q1 जहाँ भी मैं चलता हूँ, ऐसा लगता है कि मेरे शत्रुओं ने मुझे पकड़ने के लिए जाल बिछाया है। +\q1 +\v 4 मैं चारों ओर देखता हूँ, +\q2 परन्तु कोई भी नहीं है जो मुझे देखता है, +\q2 कोई भी नहीं है जो मेरी रक्षा करेगा, +\q2 और कोई भी नहीं है जो इस विषय में चिन्ता करता है कि मेरे साथ क्या होता है। +\q1 +\v 5 हे यहोवा, मैं मेरी सहायता करने के लिए आपको पुकारता हूँ; +\q2 आप ही हैं जो मेरी रक्षा करते हैं; +\q1 जब तक मैं जीवित हूँ, मुझे केवल आपकी आवश्यकता है। +\q1 +\s5 +\v 6 मेरी पुकार सुनें, जब मैं आपको मेरी सहायता करने के लिए पुकारता हूँ +\q2 क्योंकि मैं बहुत पीड़ा में हूँ। +\q1 मुझे बचाएँ +\q2 क्योंकि जो मुझे पीड़ित करते हैं वे बहुत शक्तिशाली हैं; +\q2 मैं उनसे बच नहीं सकता हूँ। +\q1 +\v 7 मेरी पीड़ाओं से मुझे मुक्त करें +\q2 कि मैं आपको धन्यवाद दे सकूँ। +\q1 यदि आप ऐसा करते हैं, तो जब मैं दूसरों के साथ होता हूँ जो उचित रीति से जीते हैं, +\q2 मैं मेरे प्रति भलाई के लिए आपकी स्तुति करूँगा। + +\s5 +\c 143 +\d दाऊद द्वारा लिखित एक भजन। +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, जब मैं आप से प्रार्थना करता हूँ तो मुझे सुनें! +\q2 क्योंकि आप धर्मी हैं +\q2 और क्योंकि आपने जो प्रतिज्ञा की है, उसे विश्वासयोग्यता से पूरा करते हैं +\q2 सुनें कि मैं अपने लिए क्या करने का आप से अनुरोध कर रहा हूँ। +\q1 +\v 2 मैं वही हूँ जो आपकी आराधना करता हूँ; +\q1 मुझ पर दोष न लगाएँ +\q2 क्योंकि आप किसी को पूरी तरह से निर्दोष नहीं मानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 मेरे शत्रुओं ने मेरा पीछा किया है; +\q2 उन्होंने मुझे पूरी तरह से होरिया है। +\q1 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे बन्दीगृह के अँधेरे में डाल दिया है +\q1 जहाँ मेरे पास आशा करने के लिए कुछ भी अच्छा नहीं है। +\q1 +\v 4 इसलिए मैं अपने मन में बहुत निराश हूँ; +\q2 मैं बहुत व्याकुल हूँ। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं पिछली बातों को स्मरण करता हूँ; +\q2 मैं आपके द्वारा किए गए सब कार्यों पर ध्यान करता हूँ; +\q1 मैंने आपके द्वारा किए गए सब महान कार्यों पर विचार किया है। +\q1 +\v 6 जब मैं प्रार्थना करता हूँ, तब मैं अपने हाथ उठाता हूँ; +\q2 मैं आपके साथ होने की बहुत अधिक इच्छा करता हूँ जितना मैं एक विशाल मरुस्थल में पानी के लिए प्यासा होता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 7 हे यहोवा, मैं बहुत निराश हूँ, +\q2 तो कृपया मुझे अभी उत्तर दें! +\q1 मुझसे दूर न रहें +\q2 क्योंकि यदि आप ऐसा करते हैं, तो मैं शीघ्र ही उन लोगों में से एक हो जाऊँगा जो मृत लोक में हैं। +\q1 +\v 8 हर सुबह मुझे स्मरण दिलाएँ कि आप मुझे सच्चा प्रेम करते हैं +\q2 क्योंकि मैं आप पर भरोसा करता हूँ। +\q1 मैं आप से प्रार्थना करता हूँ; +\q2 मुझे वह दिखाएँ जो मुझे करना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा, मैं स्वयं को बचाने के लिए आपके पास आया हूँ, +\q2 इसलिए मुझे मेरे शत्रुओं से बचाएँ। +\q1 +\v 10 आप मेरे परमेश्वर हैं; +\q2 मुझे वह करना सिखाएँ जो आप मुझसे करवाना चाहते हैं। +\q1 मैं चाहता हूँ कि आपके भले आत्मा मुझे सही कार्य करने के लिए दिखाएँ। +\q1 +\s5 +\v 11 हे यहोवा, जब मैं मरने के निकट हूँ तब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरा उद्धार करें +\q2 क्योंकि आप धर्मी हैं! +\q1 +\v 12 मैं आपकी सेवा करता हूँ; +\q1 और क्योंकि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, +\q2 इसलिए मेरे शत्रुओं को मार डालें +\q2 और उन सबसे छुटकारा पाएँ जो मुझ पर अत्याचार करते हैं। + +\s5 +\c 144 +\d दाऊद द्वारा लिखित भजन +\q1 +\p +\v 1 मैं यहोवा की स्तुति करता हूँ, जो एक विशाल चट्टान के समान हैं जिस पर मैं सुरक्षित हूँ! +\q1 वह मेरे हाथों को प्रशिक्षित करते हैं कि मैं युद्ध करने में उनका उपयोग कर सकूँ; +\q2 वह मेरी उँगलियों को प्रशिक्षित करते हैं कि मैं युद्ध में तीरों को चला सकूँ। +\q1 +\v 2 वही हैं जो अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी रक्षा करते हैं; +\q2 वह एक किले के समान हैं जिसमें मैं सुरक्षित हूँ, +\q2 वह मुझे बचाते हैं जैसे ढाल सैनिकों की रक्षा करती हैं, +\q2 और वह मुझे शरण देते हैं। +\q1 वह अन्य राष्ट्रों को पराजित करते हैं और फिर उन्हें मेरी शक्ति के अधीन रखते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, हम लोग इतने महत्वहीन हैं! आप हम पर क्यों ध्यान देते हैं? +\q1 यह मेरे लिए आश्चर्यजनक है कि आप मनुष्यों पर ध्यान देते हैं। +\q1 +\v 4 हम जो समय जीते हैं वह हवा की एक फूँक के समान बहुत कम है; +\q2 हमारा जीवन का समय छाया के समान गायब हो जाता है। +\q1 +\s5 +\v 5 हे यहोवा, आकाश खोल कर नीचे आएँ! +\q2 पर्वतों को स्पर्श करें कि उनसे धुआँ निकल सके! +\q1 +\v 6 बिजली कड़काकर अपने शत्रुओं को भगाएँ! +\q2 उन पर अपने तीरों को चलाएँ और उन्हें डरा कर भगा दें। +\q1 +\s5 +\v 7 ऐसा लगता है कि मेरे शत्रु मेरे चारों ओर बाढ़ के समान हैं; +\q2 स्वर्ग से अपने हाथ नीचे बढ़ाएँ +\q1 और मुझे उनसे बचाएँ। +\q1 वे विदेशी पुरुष हैं +\q1 +\v 8 जो सदा झूठ बोलते हैं। +\q1 जब वे सच बोलने की शपथ खाते हैं, +\q2 तब भी वे झूठ बोलते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 परमेश्वर, मैं आपके लिए एक नया गीत गाऊँगा, +\q2 और जब मैं आपके लिए गाता हूँ तो मैं दस तार वाली सारंगी बजाऊँगा। +\q1 +\v 10 आप राजाओं को उनके शत्रुओं को हराने के लिए सक्षम करते हैं; +\q2 आप उन लोगों को बचाते हैं जो आपकी सेवा करते हैं, जैसे मैं करता हूँ। +\q1 +\v 11 इसलिए मैं आप से कहता हूँ कि मुझे बुरे लोगों की तलवारों द्वारा मारने से बचाएँ। +\q1 विदेशी पुरुषों की शक्ति से मुझे बचाएँ +\q2 जो सदा झूठ बोलते हैं। +\q1 जब वे सच बोलने की शपथ खाते हैं, +\q2 तो भी वे झूठ बोलते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 मेरी इच्छा है कि हमारे पुत्र पूर्ण वयस्क अवस्था को प्राप्त करें; +\q1 मेरी इच्छा है कि हमारी पुत्रियाँ सीधी और लम्बी हो जाएँ +\q2 जैसे महलों के कोनों में खड़े खम्भे होते हैं। +\q1 +\v 13 मेरी इच्छा है कि हमारे भण्डार कई अलग-अलग फसलों से भरे रहें। +\q1 मेरी इच्छा है कि हमारे खेतों में भेड़ हजारों बच्चों को जन्म दे सकें। +\q1 +\s5 +\v 14 मेरी इच्छा है कि हमारे पशु कई बछड़ों को जन्म दे सकें +\q2 और जन्म के समय गर्भपात या मृत्यु न हो। +\q1 मेरी इच्छा है कि ऐसा कोई समय न हो जब हमारे मार्गों में लोग संकट में रोए +\q2 क्योंकि विदेशी सेनाएँ आक्रमण कर रही हैं। +\q1 +\v 15 यदि ऐसी बातें किसी राष्ट्र के साथ होती हैं, +\q2 तो लोग बहुत भाग्यशाली होंगे। +\q1 कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जो यहोवा को परमेश्वर जान कर उनकी आराधना करते हैं! + +\s5 +\c 145 +\d एक भजन जो दाऊद ने परमेश्वर की स्तुति करने के लिए लिखा था। +\q1 +\p +\v 1 हे मेरे परमेश्वर और मेरे राजा, मैं यह घोषणा करूँगा कि आप बहुत महान हैं; +\q1 मैं अब और सदा के लिए आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 2 हर दिन मैं आपकी स्तुति करूँगा; +\q2 हाँ, मैं सदा के लिए आपकी स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 3 हे यहोवा, आप महान हैं, और आपकी बहुत स्तुति की जानी चाहिए; +\q2 हम पूरी तरह से समझ नहीं सकते कि आप कितने महान हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 माता-पिता अपने बच्चों को उन कार्यों को बताएँगे जो आपने किये हैं; +\q2 वे अपने बच्चों को आपके शक्तिशाली कार्यों के विषय में बताएँगे। +\q1 +\v 5 मैं इस विषय में सोचूँगा कि आप कितने महान और प्रतापी हैं, +\q1 और मैं आपके सब अद्भुत कर्मों पर ध्यान दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 6 लोग आपके शक्तिशाली और अद्भुत कर्मों के विषय में बात करेंगे, +\q2 और मैं घोषणा करूँगा कि आप बहुत महान हैं। +\q1 +\v 7 लोग स्मरण करेंगे और घोषणा करेंगे कि आप हमारे प्रति बहुत भले हैं, +\q2 और वे आनन्द से गाएँगे कि आप सदा न्याय करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 हे यहोवा, आप हमारे प्रति दया और कृपा के कार्य करते हैं; +\q2 आप शीघ्र क्रोधित नहीं होते हैं; +\q2 आप हमें सच्चा प्रेम करते हैं जैसा आपने करने की प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 9 हे यहोवा, आप सबके लिए भले हैं, +\q2 और जो कुछ भी आपने बनाया है उसके प्रति आप दया के कार्य करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 हे यहोवा, आपके द्वारा बनाए गए सब प्राणी आपका धन्यवाद करेंगे, +\q2 और आपके सब लोग आपकी स्तुति करेंगे। +\q1 +\v 11 वे दूसरों को बताएँगे कि आप हमारे राजा होकर बड़ी महिमा से शासन करते हैं +\q2 और यह कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 12 वे ऐसा करेंगे कि हर कोई आपके शक्तिशाली कार्यों के विषय में जानें +\q2 और आप हम पर महिमा से शासन करें। +\q1 +\s5 +\v 13 आप सदा के लिए राजा होंगे; +\q2 आप सब पीढ़ियों में शासन करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 हे यहोवा, आप उन सबकी सहायता करते हैं जो निराश हैं, +\q2 और आप उन सबको उठाएँगे जिन्होंने आशा खो दी है। +\q1 +\v 15 आपके द्वारा बनाए गए सब जीवों की आशा है कि आप उनको भोजन देंगे, +\q2 जब उन्हें आवश्यकता होती है, तब आप उन्हें भोजन देते हैं। +\q1 +\v 16 आप उदारता से सब जीवित प्राणियों को भोजन देते हैं, +\q2 और आप उन्हें संतुष्ट करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 यहोवा जो कुछ करते हैं, वह न्याय से करते हैं; +\q2 वह जो करते हैं वह दया से करते हैं। +\q1 +\v 18 यहोवा उन सबके पास आते हैं जो उन्हें पुकारते हैं, +\q2 उन लोगों को जो सच्चाई से उन्हें पुकारते हैं। +\q1 +\v 19 उन सब लोगों के लिए जो उनका महान सम्मान करते हैं, वे उनकी आवश्यकता के अनुसार उन्हें देते हैं। +\q2 वह उनकी सुनते हैं जब वे उन्हें पुकारते हैं और वह उन्हें बचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 यहोवा उन सबकी रक्षा करते हैं जो उनसे प्रेम करते हैं, +\q2 परन्तु वह सब दुष्ट लोगों से छुटकारा पाएँगे। +\q1 +\v 21 मैं सदा यहोवा की स्तुति करूँगा; +\q2 मेरी इच्छा है कि हर स्थान में सब लोग सदा उनकी स्तुति करें, क्योंकि वह सब कुछ भला करते हैं। + +\s5 +\c 146 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो। +\q1 मैं अपने पूरे मन से यहोवा की स्तुति करूँगा। +\q1 +\v 2 जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक मैं यहोवा की स्तुति करूँगा; +\q2 मैं अपने पूरे जीवन भर अपने परमेश्वर की स्तुति करने के लिए गाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम लोग, अपने अगुओं पर भरोसा मत करो; +\q2 मनुष्यों पर भरोसा मत करो क्योंकि वे तुम्हें बचा नहीं सकते हैं। +\q1 +\v 4 जब वे मर जाते हैं, तब उनकी देह नष्ट हो जाती है और फिर मिट्टी बन जाती है। +\q2 मरने के बाद, वे अब उन कार्यों को नहीं कर सकते जिन्हें करने की उन्होंने योजना बनाई थी। +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु कितने भाग्यशाली हैं वे लोग जिनकी परमेश्वर सहायता करते हैं, वह परमेश्वर जिनकी याकूब ने आराधना की थी। +\q2 ये वे लोग हैं जो उनकी सहायता करने के लिए यहोवा, उनके परमेश्वर से विश्वास से अपेक्षा करते हैं। +\q1 +\v 6 वही हैं जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्‍वी को बनाया, +\q2 महासागर और उन सब प्राणियों को जो उनमें हैं। +\q1 वह सदा वह करते हैं जो उन्होंने करने की प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\s5 +\v 7 वह उन लोगों के लिए न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं जिनके साथ अन्याय किया जाता है, +\q2 और वह भूखे लोगों के लिए भोजन प्रदान करते हैं। +\q1 वह बन्दीगृह में रहने वालों को मुक्त करते हैं। +\q1 +\v 8 यहोवा अंधे लोगों को फिर से देखने में सक्षम बनाते हैं। +\q1 वह उन्हें उठाते हैं, जो नीचे गिर गये है। +\q2 वह धर्मी लोगों से प्रेम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यहोवा हमारे देश में रहने वाले अन्य देशों के लोगों की सुधि रखते हैं, +\q2 और वह विधवाओं और अनाथों की सहायता करते हैं। +\q2 परन्तु वह दुष्ट लोगों को उनके कार्यों से रोक देते हैं। +\q1 +\v 10 यहोवा सदा के लिए हमारे राजा बने रहेंगे; +\q2 हे इस्राएल के लोगों, तुम्हारे परमेश्वर सदा के लिए शासन करेंगे! +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 147 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 हमारे परमेश्वर की स्तुति करना अच्छा है। +\q2 यह करना एक सुखद बात है और यह उचित कार्य है। +\q1 +\s5 +\v 2 यरूशलेम नष्ट हो गया था, परन्तु यहोवा हमें यरूशलेम को फिर से बनाने में सक्षम बनाते हैं। +\q2 वह उन लोगों को वापस ला रहे हैं जिन्हें अन्य देशों में ले जाया गया था। +\q1 +\v 3 वह उन लोगों को फिर से प्रोत्साहित करते हैं जो बहुत निराश थे; +\q2 ऐसा लगता है कि वह उनके घावों पर पट्टियाँ बाँधते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 उन्होंने निर्धारित किया है कि कितने तारे होंगे +\q2 और वह उन सबको नाम देते हैं। +\q1 +\v 5 यहोवा महान और बहुत शक्तिशाली हैं, +\q2 और कोई भी उनकी समझ को माप नहीं सकता है। +\q1 +\s5 +\v 6 यहोवा उन लोगों को उठाते हैं जिनका दमन किया गया है, +\q2 और वह दुष्टों को भूमि पर फेंकते हैं। +\q1 +\v 7 यहोवा का धन्यवाद करो जब तुम उनकी स्तुति के लिए गाते हों; +\q2 वीणा पर हमारे परमेश्वर के लिए संगीत बजाओ। +\q1 +\s5 +\v 8 वह बादलों से आकाश को ढाँकते हैं, +\q2 और फिर वह पृथ्‍वी पर वर्षा भेजते हैं +\q2 और पर्वतों पर घास उगाते हैं। +\q1 +\v 9 वह पशुओं को वह भोजन देते हैं जो उन्हें चाहिए; +\q2 वह युवा कौओं को भोजन देते हैं, जब वे रोते हैं क्योंकि वे भूखे होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 वह बलवन्त घोड़ों से प्रभावित नहीं होते हैं +\q2 न उन पुरुषों से जो तेजी से दौड़ सकते हैं। +\q1 +\v 11 इसकी अपेक्षा, वह उनसे प्रसन्न होते हैं जो उनका महान सम्मान करते हैं, +\q2 जो विश्वास से उनसे आशा रखते हैं, कि वह उनसे प्रेम करते रहेंगे क्योंकि उन्होंने ऐसा करने की प्रतिज्ञा की थी। +\q1 +\s5 +\v 12 हे यरूशलेम के लोगों, यहोवा की स्तुति करो! +\q2 अपने परमेश्वर की स्तुति करो! +\q1 +\v 13 वह इसके द्वार को दृढ़ रख कर तुम्हारे शहर की रक्षा करते हैं। +\q1 वह वहाँ रहने वाले लोगों को आशीष देते हैं। +\q1 +\v 14 वह तुम्हारे लोगों को धनवान बनाते हैं। +\q2 वह तुम्हारे खाने के लिए उत्तम गेहूँ देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 वह पृथ्‍वी पर वस्तुएँ उत्पन्न होने की आज्ञा देते हैं; +\q2 उनके शब्द शीघ्र ही उस स्थान तक पहुँच जाते हैं जहाँ वह उन्हें भेजते हैं। +\q1 +\v 16 वह एक सफेद ऊन के कंबल के समान भूमि को ढाँकने के लिए हिम भेजते हैं, +\q2 और वह भूमि पर पाला बिखेरते हैं, जैसे हवाओं से राख बिखेरी जाती है। +\q1 +\s5 +\v 17 वह कंकड़ के समान ओले भेजते हैं; +\q2 जब ऐसा होता है, तो सहन करना बहुत कठिन होता है क्योंकि हवा बहुत ठण्डी हो जाती है। +\q1 +\v 18 परन्तु वह हवा को चलने का आदेश देते हैं, और वह चलती है। +\q2 फिर ओले पिघल जाते हैं और पानी धाराओं में बहने लगता हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 वह याकूब के वंशजों के लिए अपना सन्देश भेजते हैं; +\q2 वह अपने इस्राएली लोगों को उन बातों को बताते हैं जिन्हें उन्होंने करने का निर्णय लिया है। +\q1 +\v 20 उन्होंने किसी अन्य देश के लिए ऐसा नहीं किया है; +\q2 अन्य राष्ट्र उनके नियमों को नहीं जानते हैं। +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 148 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 हे स्वर्ग में रहने वाले स्वर्गदूतों उनकी स्तुति करो; +\q2 हे आकाश के स्वर्गदूतों, उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 2 हे सब स्वर्गदूत जो उनके हैं, उनकी स्तुति करो! +\q2 तुम सब जो यहोवा की सेनाओं में हो, उनकी स्तुति करो! +\q1 +\s5 +\v 3 सूर्य और चँद्रमा, तुम्हें भी उनकी स्तुति करनी चाहिए! +\q2 हे चमकते तारों, तुम उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 4 हे सर्वोच्च स्वर्ग, उनकी स्तुति करो! +\q2 हे आकाश के ऊपर के पानी, उनकी स्तुति करो! +\q1 +\s5 +\v 5 मैं चाहता हूँ कि ये सब यहोवा की स्तुति करें +\q2 क्योंकि उनकी आज्ञा के द्वारा, उन्होंने उन्हें बनाया है। +\q1 +\v 6 उन्होंने उन्हें अपने स्थान में स्थापित किया; +\q2 उन्होंने आदेश दिया कि वे सदा के लिए स्थिर रहें। +\q2 वे उस आदेश की अवज्ञा नहीं कर सकते हैं! +\q1 +\s5 +\v 7 पृथ्‍वी पर जो कुछ है, यहोवा की स्तुति करो! +\q2 हे विशाल जीवों और समुद्र में गहरे स्थानों के सब चीजों, +\q1 +\v 8 आग और ओले, हिम और कोहरा, +\q2 और तेज हवाएँ जो उनकी आज्ञा का पालन करती हैं, +\q1 मैं तुम सबको यहोवा की स्तुति करने के लिए कहता हूँ! +\q1 +\s5 +\v 9 टीलों और पर्वतों, +\q2 फल के पेड़ और देवदार के पेड़, +\q1 +\v 10 सब जंगली पशुओं और सब घरेलू पशुओं, +\q2 सरीसृप और अन्य जन्तुओं जो भूमि पर रेंगती हैं, +\q2 और सब पक्षियों, मैं तुम सबको यहोवा की स्तुति करने के लिए कहता हूँ! +\q1 +\s5 +\v 11 हे धरती के राजाओं और सब लोग जिन पर तुम शासन करते हो, +\q2 हे राजकुमारों और अन्य सब शासकों, +\q1 +\v 12 हे युवा पुरुषों और युवा स्त्रियों, +\q2 हे वृद्ध लोगों और बच्चों, हर कोई, यहोवा की स्तुति करें! +\q1 +\s5 +\v 13 मैं चाहता हूँ कि वे सब यहोवा की स्तुति करें +\q2 क्योंकि वह हर किसी से महान हैं। +\q2 उनकी शक्ति पृथ्‍वी पर और आकाश में सब कुछ नियंत्रित करती हैं। +\q1 +\v 14 उन्होंने हमें, अर्थात् अपने लोगों को दृढ़ होने के लिए प्रेरित किया +\q2 कि हम इस्राएली लोग जो उनके लिए बहुत मूल्यवान हैं +\q2 उनकी स्तुति करें, +\q1 इसलिए यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 149 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ; जब भी उनके विश्वासयोग्य लोग इकट्ठे होते हैं +\q2 तो उनकी स्तुति करो! +\q1 +\s5 +\v 2 हे इस्राएली लोगों, तुम्हारे परमेश्वर ने, जिन्होंने तुम्हें बनाया है, उन्होंने तुम्हारे लिए जो किया है, उसके कारण आनन्द मनाओ! +\q2 हे यरूशलेम के लोगों, परमेश्वर तुम्हारे राजा ने तुम्हारे लिए जो किया है, उसके कारण आनन्द मनाओ! +\q1 +\v 3 नृत्य करके और डफ बजा कर यहोवा की स्तुति करो, +\q2 और उनकी स्तुति करने के लिए वीणा बजाओ! +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा अपने लोगों से प्रसन्न हैं; +\q2 वह विनम्र लोगों को उनके शत्रुओं को पराजित करने में उनकी सहायता करके उन्हें सम्मानित करते हैं। +\q1 +\v 5 क्योंकि उन्होंने युद्ध जीता हैं, इसलिए परमेश्वर के लोगों को आनन्द मनाना चाहिए +\q2 और रात के समय आनन्द से गाना चाहिए! +\q1 +\s5 +\v 6 उन्हें परमेश्वर की स्तुति करने के लिए ऊँचे शब्दों से जयजयकार करना चाहिए; +\q2 परन्तु उन्हें अपने हाथों में तेज तलवार भी पकड़नी चाहिए, +\q1 +\v 7 जिससे की इसका उपयोग करने के लिए तैयार हों, उन राष्ट्रों के सैनिकों को पराजित करने के लिए जो परमेश्वर की आराधना नहीं करते हैं +\q1 और उन राष्ट्रों के लोगों को दण्ड देने के लिए। +\q1 +\s5 +\v 8 वे लोहे की जंजीरों से उनके राजाओं और अन्य अगुओं को बाँधेंगे। +\q1 +\v 9 वे उन राष्ट्रों के लोगों का न्याय करेंगे और दण्ड देंगे जैसा परमेश्वर ने लिखा था कि किया जाना चाहिए। +\q2 हर कोई ऐसा करने के लिए परमेश्वर के विश्वासयोग्य लोगों का सम्मान करेंगे! +\q1 यहोवा की स्तुति करो! + +\s5 +\c 150 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 उनके भवन में परमेश्वर की स्तुति करो! +\q2 जो स्वर्ग में अपने गढ़ में हैं, उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 2 उनके द्वारा किए गए शक्तिशाली कर्मों के लिए उनकी स्तुति करो; +\q2 उनकी स्तुति करो क्योंकि वह बहुत महान हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 तुरहियाँ बजा कर उनकी स्तुति करो; +\q2 वीणा और छोटे तारों वाले बाजे बजा कर उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 4 डफ बजा कर और नृत्य करके उनकी स्तुति करो। +\q2 तारों वाले बाजे और बाँसुरी बजा कर उनकी स्तुति करो! +\q1 +\v 5 झाँझ बजा कर उनकी स्तुति करो; +\q2 झाँझ को ऊँची ध्वनि में बजा कर उनकी स्तुति करो! +\q1 +\s5 +\v 6 मैं चाहता हूँ कि सब प्राणी यहोवा की स्तुति करें! +\q1 यहोवा की स्तुति करो! \ No newline at end of file diff --git a/22-SNG.usfm b/22-SNG.usfm index 4bc7cb9..7128a91 100644 --- a/22-SNG.usfm +++ b/22-SNG.usfm @@ -1,8 +1,8 @@ \id SNG Unlocked Dynamic Bible \ide UTF-8 -\h श्रेष्ठगीत -\toc1 श्रेष्ठगीत -\toc2 श्रेष्ठगीत +\h SONG OF SONGS +\toc1 The Song of Songs +\toc2 Song of Songs \toc3 sng \mt1 श्रेष्ठगीत @@ -96,6 +96,7 @@ \c 2 \sp स्त्री अपने प्रेमी से बातें कर रही है \q1 +\p \v 1 मैं मैदानों के महत्वहीन फूल के समान हूँ, \q2 घाटी में बढ़ते महत्वहीन सोसन फूल के समान। \sp वह पुरुष उससे बातें कर रहा है @@ -184,6 +185,7 @@ \c 3 \sp स्त्री स्वयं से बातें कर रही है \q1 +\p \v 1 पूरी रात जब मैं अपने बिस्तर पर लेटी थी, \q2 मैं उस व्यक्ति को देखना चाहती थी जिससे मैं अपने पूरे मन से प्रेम करती हूँ। \q1 मैं चाहती थी कि वह आए, @@ -251,6 +253,7 @@ \c 4 \sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है \q1 +\p \v 1 मेरी प्रिय, तू सुन्दर है, \q2 तू बहुत सुन्दर है! \q2 तेरे घूंघट के नीचे, तेरी आँखें कबूतरी के समान सुशील हैं। @@ -344,6 +347,7 @@ \c 5 \sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है \q1 +\p \v 1 तू जो मेरे लिए सर्वाधिक प्रिय है, \q2 मैं तेरे पास रहने आया हूँ। \q1 यह ऐसा होगा जैसे मैं अपने अन्य मसालों के साथ गन्धरस एकत्र कर रहा हूँ, @@ -447,6 +451,7 @@ \c 6 \sp यरूशलेम की स्त्रियाँ युवती से बातें करती हैं \q1 +\p \v 1 तू जो स्त्रियों में सर्वाधिक सुन्दर है, \q2 जो तुमसे प्रेम करता है वह कहाँ गया? \q1 यदि तू हमें बता कि वह किस दिशा में गया था, @@ -525,6 +530,7 @@ \c 7 \sp स्त्री का प्रेमी उससे बातें कर रहा है \q1 +\p \v 1 तू, जो एक राजकुमार की बेटी है, \q2 तेरे पैर जूतियों में सुन्दर लगते हैं। \q1 तेरे घुमावदार कूल्हे गहने के समान हैं @@ -592,6 +598,7 @@ \c 8 \sp युवती अपने प्रेमी से बातें कर रही है \q1 +\p \v 1 ऐसा होता कि हर कोई जानता हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं, उसी प्रकार जैसे वे सब जानते हैं कि मेरा एक भाई है, \q1 मेरा अपना भाई, जिसने मेरी माँ के स्तन का दूध पिया। \q2 जब भी मैं तुझसे कहीं बाहर मिलती तब मैं तुझे चूम सकती थी, diff --git a/23-ISA.usfm b/23-ISA.usfm new file mode 100644 index 0000000..a3da3b3 --- /dev/null +++ b/23-ISA.usfm @@ -0,0 +1,6330 @@ +\id ISA +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h यशायाह +\toc1 यशायाह +\toc2 यशायाह +\toc3 isa +\mt1 यशायाह + + +\s5 +\c 1 +\p +\v 1 आमोस के पुत्र यशायाह का दर्शन, जो यहोवा ने यहूदा के राजाओं उज्जियाह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह के वर्षों में यहूदा और यरूशलेम के विषय में उसे दिखाया। +\p +\s5 +\v 2 हे आकाश, सुनो, हे पृथ्‍वी, कान लगाओ, क्योंकि यहोवा ने यही कहा है: +\q1 “जब से इन लोगों का जन्म हुआ, मैंने उनका पालन पोषण किया है, +\q2 परन्तु इन्होंने मुझसे विद्रोह किया है। +\q1 +\v 3 बैल अपने स्वामी को जानते हैं, +\q2 और गधे जानते हैं कि उन्हें कौन खिलाता है, +\q1 परन्तु इस्राएल नहीं जानता; +\q2 इस्राएल नहीं समझता है।” +\q1 +\s5 +\v 4 इस पापी राष्ट्र के साथ भयानक घटनाएँ होंगी, यह जाति अपने पापों के भार से दब गई है, +\q2 उन लोगों की ये संतानें जो बुराई करते हैं, +\q1 ये पुत्र जो अन्यायपूर्ण हैं। +\q1 उन्होंने यहोवा को, +\q2 इस्राएल के एकमात्र पवित्र को छोड़ दिया है। +\q2 वे उनसे दूर हो गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 तुम ऐसा कार्य क्यों करते हो कि यहोवा तुम्हें उनका दण्ड देंगे? +\q2 तुम उनसे विद्रोह क्यों करते रहते हो? +\q1 तुम किसी ऐसे व्यक्ति के समान हो +\q2 जिसका पूरा मन और हृदय बीमार हैं। +\q1 +\v 6 जो पैर के तलवे से सिर की चोटी तक, +\q2 कुछ भी स्वस्थ नहीं है। +\q1 जिसके ऐसे खुले घाव, मार से कटा माँस, और पीड़ा दायक फोड़े हैं +\q2 जिन्हें साफ नहीं किया गया या पट्टी नहीं बाँधी गई, +\q1 और किसी ने भी उन्हें स्वस्थ करने के लिए उन पर तेल नहीं लगाया है। +\q1 +\s5 +\v 7 शत्रुओं ने तुम्हारे देश को उजाड़ दिया है; +\q2 उन्होंने तुम्हारे नगरों को जला दिया है, और वहाँ कोई भी नहीं बचा है। +\q1 तुम्हारे देखते-देखते विदेशी लोग तुम्हारे खेतों में फसलों को लूटते हैं; +\q2 वे जो कुछ भी देखते हैं उन सबको नष्ट कर देते हैं। +\q1 +\v 8 यरूशलेम का शहर चरवाहे की झोपड़ी के समान छोटा हो गया है। +\q2 वह एक दाख की बारी में एक झोपड़ी के समान है; +\q1 यह एक खरबूजे के खेत में एक पहरेदार की झोपड़ी के समान है। +\q2 यह एक शहर है जो शत्रुओं से घिरा हुआ है जो उस पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यदि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने अपने कुछ लोगों को जीवित रहने न दिया, +\q2 तो हम सब नष्ट हो गए होते, +\q2 जैसे सदोम और अमोरा के शहर नष्ट हो गए थे। +\q1 +\s5 +\v 10 हे सदोम के शासकों, यहोवा तुमसे क्या कहना चाहते हैं, उसे सुनो! +\q2 हे अमोरा के लोगों, हमारे परमेश्वर के नियम सुनो! +\q1 +\v 11 यहोवा कहते हैं; “तुम्हारे बहुत से बलिदान मेरे लिए क्या अर्थ रखते हैं?” +\q2 “मैं अब किसी और भेड़ों की होम-बलि या बैलों की चर्बी नहीं चाहता हूँ। +\q1 बैलों का, मेम्नों का, या बकरों का लहू मुझे प्रसन्न नहीं करता है। +\q1 +\s5 +\v 12 जब तुम मेरी आराधना करने के लिए मेरे मन्दिर में आते हो, +\q2 जब तुम संस्कार पूर्ति करते हो तो किसने कहा कि मेरे आँगन को रौंदो? +\q1 +\v 13 भेंटों को मेरे पास लाना बन्द करो, क्योंकि वे मेरे लिए निकम्मी हैं; +\q2 मैं उस धूप से घृणा करता हूँ जो याजक जलाते हैं! +\q1 और हर महीने के नए चँद्रमा के और तुम्हारे सब्त के दिनों के और तुम्हारे अन्य पर्वों के उत्सवों से में घृणा करता हूँ - +\q2 जिसका कारण है तुम्हारे दुष्टता के कार्य! +\q1 +\s5 +\v 14 तुम्हारे नए चँद्रमा के उत्सव और तुम्हारे अन्य सभी पर्वों के उत्सवों से मैं घृणा करता हूँ। +\q2 वे एक भारी बोझ के समान हैं जिसे उठाते-उठाते मैं थक गया हूँ। +\q1 +\v 15 इसलिए जब तुम अपने हाथों को उठा कर मुझसे प्रार्थना करते हो, +\q2 तब मैं तुमको नहीं देखूँगा। +\q1 भले ही तुम मुझसे बार-बार प्रार्थना करो, +\q1 मैं तुम्हारी नहीं सुनूँगा, +\q2 क्योंकि ऐसा लगता है कि मानों तुम्हारे हाथ उन लोगों के लहू से सने हुए हैं जिन्हें तुमने मार डाला है। +\q2 +\s5 +\v 16 अपने मन को धो लो और साफ हो जाओ! +\q1 अपने बुरे व्यवहार से छुटकारा पाओ! +\q2 अनुचित कार्यों को करना बन्द करो! +\q1 +\v 17 भले कार्य करना सीखो और +\q2 लोगों से भी न्याय के कार्य करवाने का प्रयास करो। +\q1 लोगों को दूसरों के साथ बुरा व्यवहार करने से रोको, +\q2 और अनाथों और विधवाओं की रक्षा करो जब लोग उन्हें अदालत में ले जाते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 18 यहोवा कहते हैं, “जो तुम करते हो उसके विषय में तुमको विचार करना चाहिए। +\q2 तुम्हारे पाप चाहे गहरे लाल रंग के भी हों, +\q1 वे बर्फ के समान सफेद हो जाएँगे; +\q2 चाहे तुम्हारे पाप गहरे लाल रंग के समान हों, +\q1 वे भेड़ की ऊन के समान सफेद हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 19 यदि तुम मेरी आज्ञा मानने की इच्छा रखते हो, +\q2 तो तुम इस देश से मिलने वाला अच्छा भोजन खाओगे। +\q1 +\v 20 परन्तु यदि तुम मुझे अस्वीकार करो और मुझसे विद्रोह करते हो, +\q2 तुम्हारे शत्रु तुमको मार देंगे।” +\q1 ऐसा अवश्य होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है। +\q1 +\s5 +\v 21 एक समय था कि तुम यरूशलेम के लोगों ने सच्चे मन से केवल यहोवा की आराधना की थी, +\q2 परन्तु अब तुम वेश्याओं के समान बन गए हो जो किसी भी पति के प्रति विश्वासयोग्य नहीं हैं। +\q1 वहाँ के लोग सदा न्यायसंगत और धर्म के कार्य करते थे, +\q2 परन्तु अब तुम्हारा शहर हत्यारों से भरा है। +\q1 +\v 22 तुम्हारी चाँदी अब शुद्ध नहीं है, +\q2 और तुम्हारे दाखरस में पानी मिल गया है। +\q1 +\s5 +\v 23 तुम्हारे अगुवे विद्रोही हैं; +\q2 वे चोरों के मित्र हैं। +\q1 वे सबके सब पैसे के लालची हैं +\q2 और अदालतों में मामलों का निर्णय उनके पक्ष में करने के लिए वे दूसरों को उन्हें उपहार देने के लिए विवश करते हैं। +\q1 वे अदालत में अनाथों का बचाव नहीं करते हैं, +\q2 और वे विधवाओं की सहायता नहीं करते कि उन्हें उनके अधिकार प्राप्त हो। +\q1 +\s5 +\v 24 इस कारण इस्राएल के सर्वशक्तिमान परमेश्वर, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, कहते हैं, +\q1 “मैं उन लोगों से बदला लूँगा जो मेरे विरुद्ध हैं, +\q2 और अपने शत्रुओं से स्वयं बदला लूँगा। +\q1 +\v 25 मैं तुम पर प्रहार करने के लिए अपना हाथ उठाऊँगा, +\q2 और मैं तुमको गम्भीर दण्ड दूँगा, +\q2 जैसे कि तुम चाँदी थे और मुझे तुमको पिघलाने और अशुद्धियों से छुटकारा देने के लिए तुमको बहुत गर्म करने की आवश्यकता थी। +\q1 +\s5 +\v 26 ऐसा होने के बाद, मैं तुमको पहले के जैसे अच्छे न्यायधीश दूँगा। +\q2 तुम्हारे पास बुद्धिमान परामर्शदाता होंगे जैसे बहुत पहले तुम्हारे पास थे। +\q1 तब लोग तुम्हारे शहर को एक ऐसा शहर कहेंगे जहाँ लोग न्यायसंगत कार्य करते हैं, +\q2 एक धर्मी शहर।” +\q1 +\s5 +\v 27 क्योंकि यरूशलेम के लोग उचित कार्य करेंगे, +\q2 इसलिए यहोवा उनके शहर का उद्धार करेंगे, +\q1 और वह पश्चाताप करने वालों को +\q2 उनकी धार्मिकता के कारण बचाएँगे। +\q1 +\v 28 परन्तु वह विद्रोहियों और पापियों को कुचल देंगे, +\q2 और जो उनको त्याग देते हैं वे लोप हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 29 “तुम लज्जित होगे क्योंकि तुमने बांज वृक्षों के नीचे उन मूर्तियों की आराधना की थी जिन्हें तुम पवित्र समझते थे, +\q2 और तुमको अपमानित किया जाएगा क्योंकि तुमने बगीचों में उन मूर्तियों की आराधना की थी जिन्हें तुम बहुत पसन्द करते थे। +\q1 +\v 30 तुम एक ऐसे बांज वृक्ष के समान होगे जिसकी पत्तियाँ सूखी हुई हैं, +\q2 तुम एक ऐसे बगीचे के समान होगे जो सूख गया है क्योंकि उसे पानी नहीं मिला। +\q1 +\s5 +\v 31 तुम में से जो बहुत बलवन्त हैं वे सूखी लकड़ी के समान हो जाएँगे, +\q2 और वे जो कार्य करते हैं वह एक चिंगारी के समान होगा। +\q1 वे और जो बुरे कार्य वे करते हैं दोनों जल जाएँगे, +\q2 और कोई भी उस आग बुझाने में सक्षम नहीं होगा।” + +\s5 +\c 2 +\p +\v 1 यह एक सन्देश है जिसे यहोवा ने यहूदा और यरूशलेम के विषय में आमोस के पुत्र यशायाह को एक दर्शन में दिया था। +\q1 +\v 2 जिस पहाड़ी पर यहोवा का मन्दिर बनाया गया है +\q2 भविष्य में, वह पृथ्‍वी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होगा। +\q2 वह ऐसा होगा जैसे मानों यह सर्वोच्च पर्वत है, +\q1 जैसे कि यह अन्य सब पहाड़ियों से ऊपर उठाया गया है, +\q2 और संसार भर के लोग वहाँ आएँगे। +\p +\s5 +\v 3 अनेक जातियों के लोग एक-दूसरे से कहेंगे, +\q1 “आओ, हम ऊपर पहाड़ी पर चलें, +\q2 यहोवा के भवन में, +\q2 उन परमेश्वर की आराधना करने के लिए जाएँ जिनकी याकूब ने आराधना की थी। +\q1 वह हमें वहाँ सिखाएँगे कि वह क्या चाहते हैं कि हमें जानें, +\q2 जिससे कि हमारे व्यवहार उन्हें प्रसन्न कर सकें।” +\q1 वे हमें यरूशलेम में सिखाएँगे; +\q2 जो यहोवा हमें बताना चाहते हैं वह हम वहाँ सीखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा राष्ट्रों के बीच होने वाले मतभेदों को सुनेंगे, +\q2 और वह उनके झगड़ों को मिटाएँगे। +\q1 फिर, एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ने की अपेक्षा, वे अपनी तलवारों को हथौड़े से पीट-पीट कर हल का फल बना देंगे, +\q2 और वे अपने भालों को हथौड़े से पीट-पीट कर हँसिया बना देंगे। +\q1 तब एक जाती की सेना दूसरी के विरुद्ध युद्ध नहीं करेगी, +\q2 और वे युद्धों में लड़ने के लिए पुरुषों को प्रशिक्षण भी नहीं देंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 हे याकूब के वंशजों, तुम, +\q2 आओ, हम ऐसा व्यवहार करें जैसा हमें करना चाहिए क्योंकि यहोवा हमारे साथ हैं! +\q1 +\v 6 हे यहोवा, आपने हमें, अपने लोगों को, त्याग दिया है +\q2 हम जो याकूब के वंशज हैं, +\q1 क्योंकि हर स्थान में आपके लोग इस्राएल के पूर्व में रहने वाले लोगों के रिवाजों का पालन करते हैं। +\q2 वे यह पता लगाने के लिए अनुष्ठान भी करते हैं कि भविष्य में क्या होगा, जैसे कि पलिश्ती लोग करते हैं। +\q2 वे उन विदेशियों के साथ समझौते करते हैं जो आप, यहोवा को नहीं जानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 इस्राएल चाँदी और सोने से भरा है; +\q2 यहाँ बहुत सारे भण्डार हैं। +\q1 देश युद्ध के घोड़ों से +\q2 और युद्ध के रथों से भरा है +\q1 +\v 8 परन्तु देश मूर्तियों से भी भरा है; +\q2 लोग अपने हाथों से बनाई हुई वस्तुओं की आराधना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 इसलिए अब उन्हें दिन बनाया जाएगा; +\q2 यहोवा उन्हें अपमानित करेंगे। +\q2 हे यहोवा, आप उन्हें क्षमा न करना! +\q1 +\v 10 तुम सबको खड़ी चट्टानों की गुफाओं में रेंग कर घुस जाना चाहिए! +\q2 तुमको भूमि के गड्ढों में छिप जाना चाहिए +\q2 क्योंकि तुम यहोवा से +\q2 और उनकी महिमामय और भयानक शक्ति से डरोगे। +\q1 +\v 11 यहोवा अब तुम लोगों को घमण्डी बना नहीं रहने देंगे +\q2 और वह तुमको अभिमानी होने से रोक देगा। +\q1 उस दिन लोग केवल यहोवा की स्तुति करेंगे और उनका सम्मान करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने एक दिन चुना है +\q2 जब वह घमण्डियों का न्याय करेंगे, हर एक का जो अहंकार करते हैं, +\q2 और वह उन्हें विनम्र बनाएँगे। +\q1 +\v 13 वह उन सबसे छुटकारा पाएँगे जो सोचते हैं कि लबानोन के लम्बे देवदार के पेड़ों के समान, +\q2 और बाशान क्षेत्र के सब विशाल बांज वृक्षों के समान उनकी प्रशंसा करनी चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 14 वह उन सबसे छुटकारा पाएँगे जो सोचते हैं कि वे ऊँचे पर्वतों के समान महान हैं, +\q2 ऊँचे पर्वतों के समान महान हैं। +\q1 +\v 15 वह उन सबसे छुटकारा पाएँगे जो सोचते हैं कि वे ऊँची मीनारों +\q2 और ऊँची दृढ़ दीवारों के समान हैं जिनके भीतर वे सुरक्षित हैं। +\q1 +\v 16 वह उन सबको नष्ट कर देंगे जो धनवान हैं क्योंकि वे बड़े जहाजों के स्वामी हैं जो अन्य देशों को माल ले जाते हैं +\q2 और वे ऐसे जहाजों के स्वामी भी हैं जो सुन्दर हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 वह अब लोगों को घमण्डी नहीं बना रहने देंगे, +\q2 और वह उनके अहंकार को तोड़ देंगे। +\q2 उस दिन लोग केवल यहोवा की स्तुति करेंगे और उसका सम्मान करेंगे। +\q2 +\v 18 तब सब मूर्तियाँ नष्ट हो जाएँगी। +\q1 +\v 19 जब यहोवा पृथ्‍वी पर लोगों को डराने के लिए आते हैं, +\q2 वे खड़ी चट्टानों की गुफाओं में +\q1 और भूमि के गड्ढों में छिपने के लिए दौड़ेंगे, +\q2 क्योंकि वे यहोवा से +\q2 और उसकी महिमामय और भयानक शक्ति से डरते हैं। +\q1 +\s5 +\v 20 उस दिन, लोग अपनी सब सोने और चाँदी की मूर्तियों से छुटकारा पाएँगे +\q2 जिनको उन्होंने पूजा करने के लिए बनाया, +\q1 और वे उन्हें चमगादड़ों और चूहों के आगे फेंक देंगे। +\q1 +\v 21 तब वे गुफाओं में रेंग कर घुसेंगे +\q2 और चट्टानों के छेदों में छिपेंगे। +\q1 वे यहोवा से बचने का प्रयास करेंगे, जो उन्हें दण्ड देने के लिए आ रहे हैं; +\q2 जो वह करेंगे उससे वे डरेंगे क्योंकि वह महिमामय और भयानक हैं, +\q2 जब वह पृथ्‍वी पर लोगों को डराने के लिए आते हैं। +\q1 +\v 22 इसलिए मनुष्यों की सुरक्षा पर भरोसा मत करो, +\q2 क्योंकि वे मनुष्य की साँस के समान शक्तिहीन हैं। +\q1 मनुष्य निश्चय ही तुम्हारी सहायता नहीं कर सकते हैं! + +\s5 +\c 3 +\q1 +\p +\v 1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से उन सब वस्तुओं को दूर करने पर हैं +\q2 जिन सब पर तुम निर्भर रहते हो— +\q2 भोजन और पानी को दूर करने वाले हैं। +\q1 +\v 2 वह वीरों और सैनिकों को, +\q2 न्यायधीशों और भविष्यद्वक्ताओं को, +\q2 उन लोगों को जो भविष्य की बातें जानने के लिए अनुष्ठान करते हैं और पुरनियों को, +\q1 +\v 3 सेना के अधिकारियों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों को, +\q2 सलाहकारों, कुशल कारीगरों को, और उनको जो तन्त्र मन्त्र करते हैं ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा कहते हैं, “मैं लड़कों को अगुवे बनने के लिए नियुक्त करूँगा; +\q2 बच्चे शासन करेंगे। +\q1 +\v 5 लोग एक-दूसरे के साथ क्रूरता का व्यवहार करेंगे: +\q2 लोग अपने पड़ोसियों से लड़ेंगे। +\q1 युवा लोग वृद्ध लोगों के विरुद्ध अपमान करेंगे, +\q2 और असभ्य लोग उन लोगों पर हँसेंगे जिनका अन्य लोग सम्मान करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 उस समय, कोई अपने पिता के घर में अपने भाइयों में से एक को पकड़ लेगा और उससे कहेगा, +\q2 ‘तेरे पास अभी भी एक कुर्ता है; इसके लिए लोग तेरा सम्मान करते हैं। +\q1 इसलिए तू हमारा अगुवा बन! +\q2 तू इस शहर पर शासन कर, जो अब खण्डहरों का एक ढेर है।’ +\q1 +\v 7 परन्तु उसका भाई उत्तर देगा, +\q2 ‘नहीं, मैं तेरी सहायता नहीं कर सकता, +\q1 क्योंकि मेरे पास इस घर में कोई अतिरिक्त भोजन या कपड़े नहीं हैं। +\q2 इसलिए मुझे अपना अगुवा मत बनाओ।’” +\q1 +\s5 +\v 8 यरूशलेम में रहने वाले लोगों ने और यहूदा के अन्य नगरों में रहने वाले लोगों ने परमेश्वर की बातों को नहीं माना है, +\q2 क्योंकि वहाँ रहने वाले लोग जो कुछ भी करते हैं और कहते हैं वह यहोवा का विरोध करता है, +\q2 उनका जो शक्तिशाली और गौरवशाली हैं, +\q1 और वे उनकी बातों का पालन करने से मना करते हैं। +\q2 वे उनसे विद्रोह करते हैं। +\q1 +\v 9 वे अपने चेहरे पर भी दिखाते हैं कि वे यहोवा का विरोध करते हैं। +\q1 उन्हें अपने पापों पर घमण्ड है, +\q2 जैसे बहुत पहले सदोम के लोगों को था; +\q1 वे अपने पापों को छिपाने का प्रयास भी नहीं करते हैं; वे उनके विषय में बात करते हैं। +\q1 उनके पापों के कारण, उनके साथ निश्चय ही भयानक घटनाएँ होंगी। +\q1 +\s5 +\v 10 आवश्यक है कि तुम धर्मी लोगों को यह बताओ कि उनकी भलाई होंगी; +\q2 वे उन आशीषों का आनन्द लेंगे जिन्हें वे अपने भले कार्यों के कारण प्राप्त करेंगे। +\q1 +\v 11 परन्तु दुष्ट लोगों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी; +\q2 यहोवा उन्हें उन बुरे कार्यों का जो उन्होंने किए हैं, बदला देंगे। +\q1 +\v 12 युवा जो अगुवे बन गए हैं वे मेरे लोगों के साथ क्रूरता का व्यवहार करते हैं, +\q2 और स्त्रियाँ मेरे लोगों पर शासन करती हैं। +\q1 हे मेरे लोगों, तुम्हारे अगुवे तुमको भटका रहे हैं; +\q2 वे तुमको सब प्रकार के बुरे कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 ऐसा लगता है कि मानों यहोवा ने अदालत में अपना स्थान ग्रहण किया +\q2 और अपने लोगों का न्याय करने के लिए तैयार हैं। +\q1 +\v 14 वह यह घोषणा करने के लिए खड़े होंगे कि उनकी प्रजा के पुरनियों और शासकों को क्यों दण्डित करना चाहिए; +\q1 वह कहते हैं, “इस्राएल के लोग एक दाख की बारी के समान हैं जिसको मैंने लगाया था, +\q2 परन्तु तुम अगुवों ने इसको उजाड़ दिया है। +\q2 तुम्हारे घर उन वस्तुओं से भरे हुए हैं जिन्हें तुमने गरीबों से लूटा है। +\q1 +\v 15 तुमको मेरे लोगों पर अत्याचार करना बन्द कर देना चाहिए। +\q2 ऐसा लगता है कि तुम गरीब लोगों को भूमि पर रौंद रहे हो।” +\q1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहते हैं। +\p +\s5 +\v 16 यहोवा यह कहते हैं: +\q1 “यरूशलेम की स्त्रियाँ घमण्डी हैं; +\q2 वे अपनी ठुड्डियों को निकाले हुए चारों ओर घूमती हैं, +\q2 और अपनी आँखों से पुरुषों के साथ छेड़खानी करती हैं। +\q1 वे छोटे-छोटे कदमों से +\q2 पैरों में छनछनाते हुए घुँघरू पहने हुए ठुमक-ठुमक कर चलती हैं।” +\q1 +\v 17 इसलिए यहोवा उनके सिरों पर घावों को उत्पन्न करेंगे, +\q2 और वह यरूशलेम में रहने वाली उन सुन्दर स्त्रियों को गन्जा बना देंगे। +\p +\s5 +\v 18 जब यहोवा ऐसा करते हैं, तब वह यरूशलेम की स्त्रियों से सब सौन्दर्य प्रसाधनों को छीन लेंगे जिनका उपयोग वे करती हैं–उनकी पायल और उनके सिर के गहने, उनके चन्द्राकार हार, +\v 19 उनकी बालियाँ और कंगन और घूँघट, +\v 20 उनके दुपट्टे और पैरों की पाजेब और कमरबन्द, उनके इत्र और आकर्षण को दूर ले जाने देंगे। +\s5 +\v 21 वह दूसरों को स्त्रियों की अँगूठियों और नाक की नथों को, +\v 22 उनके अच्छे वस्त्र और टोपी और कुर्तियों और बटुए, +\v 23 उनके दर्पणों को और अच्छे सनी के कपड़ों को, उनके सिर के लिए गहनों को, और दुशालों को उतरवा देंगे। +\q1 +\s5 +\v 24 इत्र से अच्छी सुगन्ध की अपेक्षा, उनसे दुर्गन्ध आएगी; +\q2 सुन्दर कमरबन्द की अपेक्षा, उनकी कमर पर रस्सी होगी। +\q1 बालों को श्रृंगार के साथ गूँथने की अपेक्षा, वे गन्जी हो जाएँगी। +\q2 अलग-अलग प्रकार के कपड़ों की अपेक्षा, वे खुरदरे टाट का वस्त्र पहनेंगी, +\q2 सुन्दरता की अपेक्षा, उन पर दाग होंगे। +\q1 +\v 25 तुम्हारे पुरुष अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे जाएँगे, +\q2 और तुम्हारे सैनिक भी युद्ध में मर जाएँगे। +\q1 +\v 26 शहर के फाटकों पर लोग शोक करेंगे और रोएँगे। +\q2 शहर एक ऐसी स्त्री के समान होगा जो भूमि पर बैठी है क्योंकि उसके सब साथियों ने उसे छोड़ दिया है। + +\s5 +\c 4 +\q1 +\p +\v 1 जब ऐसा होता है, तब वहाँ अविवाहित पुरुष बहुत कम होंगे। +\q2 इसलिए सात अविवाहित स्त्रियाँ एक पुरुष को पकड़ लेंगी और कहेंगी, +\q1 “हम सबको तुमसे विवाह करने दो! +\q2 हम अपने भोजन और कपड़े का प्रबन्ध स्वयं करेंगी। +\q1 जो हम चाहते हैं वह यह है कि विवाह नहीं होने के कारण अब हम अपमानित न हों।” +\v 2 परन्तु एक दिन, इस्राएल बहुत सुन्दर और महान होगा। इस्राएल के लोग जो अभी भी वहाँ होंगे, उन्हें उनकी भूमि में बढ़ने वाली अद्भुत फसलों पर बहुत गर्व होगा। +\s5 +\v 3 जो लोग यरूशलेम में रहेंगे, जो शत्रु द्वारा यरूशलेम को नष्ट करते समय मर नहीं गए थे, वे परमेश्वर के होंगे - वे सब जिनके नाम वहाँ रहने वाले लोगों के बीच लिखे हुए हैं। +\v 4 ऐसा होगा जब परमेश्वर यरूशलेम की स्त्रियों के अपराध को दूर कर देंगे, और जब वह यरूशलेम के लोगों को दण्ड दे कर यरूशलेम की सड़कों पर हिंसा रोकेंगे। जब वह ऐसा करते हैं, तब वह ऐसी आग के समान होगा जो सब अशुद्ध वस्तुओं को जला देती है। +\s5 +\v 5 तब यहोवा उन दिनों के समय बादल का और रात के समय धधकती आग को भेजेंगे, कि यरूशलेम और उन सबको जो वहाँ एकत्र होते हैं, ढाँक ले; यह शहर में परमेश्वर की महिमामय उपस्थिति के एक मण्डप के समान होगा। +\v 6 यह दिन के समय लोगों को सूर्य से आश्रय देगा और जब तूफान और वर्षा होती है तब यह उनकी रक्षा करेगा। + +\s5 +\c 5 +\q1 +\p +\v 1 अब मैं मेरे प्रिय मित्र यहोवा के विषय में, +\q2 और उनकी दाख की बारी के विषय में एक गीत गाऊँगा। +\q2 वह दाख की बारी एक उपजाऊ पहाड़ी पर थी। +\q1 +\v 2 मेरे मित्र ने भूमि पर हल चलाया और पत्थरों को निकाला। +\q2 फिर उन्होंने उस भूमि में बहुत अच्छी दाखलताएँ लगाई। +\q1 दाख की बारी के बीच में, उन्होंने पहरे के लिए एक गुम्मट बनाया, +\q2 और उन्होंने दाखरस का एक कुंड भी खोदा। +\q1 फिर वह कुछ अच्छे अँगूरों की फसल पाने के लिए प्रतिवर्ष प्रतीक्षा करते रहे, +\q2 परन्तु दाखलताओं ने केवल खट्टे अँगूर उत्पन्न किए। +\q1 +\s5 +\v 3 अब मेरे मित्र यहोवा यह कहते हैं: +\q2 “तुम हे यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों के लोगों, +\q1 तुम मेरी दाख की बारी के समान हो; +\q2 इसलिए तुम ही न्याय करो कि हम में से किसने वह किया है जो सही है। +\q1 +\v 4 मैं तुम्हारे लिए और अधिक क्या कर सकता था +\q2 जो मैंने पहले से किया उससे अधिक? +\q1 मैंने तुमसे भले कार्यों की आशा की, +\q2 इसलिए यह घृणित है कि तुम केवल बुरे कार्य ही करते रहे +\q2 उस दाख की बारी के समान जो खट्टे अँगूरों का ही उत्पादन करती है! +\q1 +\s5 +\v 5 इसलिए, अब मैं तुमको बताऊँगा कि मैं यहूदा के साथ क्या करूँगा, वह स्थान जो मेरी दाख की बारी के समान है। +\q1 मैं उसके बाड़ों को तोड़ दूँगा, +\q2 और मेरी दाख की बारी एक चारागाह बन जाएगी। +\q1 मैं शहरों की दीवारों को तोड़ डालूँगा +\q2 और जंगली जानवरों को देश को रौंदने दूँगा। +\q1 +\v 6 मैं इसे बंजर भूमि बना दूँगा +\q2 जहाँ दाखलताओं को छाँटा नहीं जाता है और भूमि खोदी नहीं जाती है। +\q1 यह एक ऐसा स्थान होगा जहाँ झाड़ियाँ और ऊँटकटारे उगेंगे। +\q2 और मैं आदेश दूँगा कि उस भूमि पर वर्षा नहीं हो।” +\q1 +\s5 +\v 7 इस्राएल का राष्ट्र यहोवा की दाख की बारी के समान है जो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान हैं। +\q2 यहूदा के लोग ऐसे बगीचे के समान हैं जो उनके लिए मनभावना था। +\q1 उन्होंने उनसे ऐसे कार्य करने की अपेक्षा की जो न्यायपूर्ण हैं, +\q2 परन्तु इसकी अपेक्षा, उन्होंने देखा कि वे लोग दूसरों की हत्या कर रहे थे। +\q1 उसने अपेक्षा की कि वे धार्मिकता के कार्य करेंगे, +\q2 परन्तु इसकी अपेक्षा, उन्होंने लोगों की पुकार सुनी, जिन पर हिंसक आक्रमण किया जा रहा था। +\q1 +\s5 +\v 8 उन लोगों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी जो घरों और खेतों को अन्याय से अपने अधिकार में ले रहे हैं +\q1 तुम एक के बाद एक परिवार को घर छोड़ने पर विवश करते हो। +\q1 जब तक कि तुम अकेले ही देश में न रह जाओ। +\p +\v 9 परन्तु मैंने स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, को गम्भीरता से यह घोषणा करते सुना: +\q1 “एक दिन, वे बड़े-बड़े घर खाली हो जाएँगे, +\q2 उन सुन्दर इमारतों में कोई नहीं रहेगा। +\q1 +\v 10 दस एकड़ भूमि में जो दाखलताएँ हैं उनसे बाईस लीटर दाखरस के लिए भी अँगूर प्राप्त नहीं होंगे और दस टोकरे बीज से केवल एक टोकरी अन्न उत्पन्न होगा।” +\q1 +\s5 +\v 11 उन लोगों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी जो प्रतिदिन सुबह उठ कर दाखमधु पीना आरम्भ कर देते है, +\q1 और जो बहुत अधिक दाखमधु पीने के लिए देर रात तक जागते रहते हैं, +\q2 जब तक वे पूरी तरह से नशे में धुत नहीं हो जाते हैं। +\q1 +\v 12 वे बड़े-बड़े समारोहों का आयोजन करते हैं और बहुत सारी दाखमधु उपलब्ध कराते हैं। +\q2 उनके समारोहों में, वीणा और सारंगी और ढफ और बाँसुरी बजाने वाले लोग होते हैं, +\q1 परन्तु जो यहोवा करते हैं वे उसके विषय में कभी नहीं सोचते हैं +\q2 या जो उन्होंने बनाया है उसकी सराहना नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 इसलिए मेरे लोग दूर बन्धुआई में जाएँगे +\q2 क्योंकि वे मेरे विषय में नहीं जानते हैं। +\q1 जो लोग इस समय बहुत महत्वपूर्ण और सम्मानित हैं वे भूखे मरेंगे, +\q2 और अन्य लोग प्यास से मर जाएँगे। +\q1 +\v 14 वह ऐसा होगा कि जैसे वह स्थान जहाँ मरे हुए लोग हैं उत्सुकता से अधिक इस्राएली लोगों की खोज में हैं, +\q2 उन्हें निगलने के लिए उन्होंने अपना मुँह खोला हुआ है, +\q1 और लोगों को बड़ी संख्या में उस स्थान पर फेंक दिया जाएगा, +\q2 उनके अगुवों के साथ-साथ शोर मचाने वाली लोगों की भीड़ को भी जो यरूशलेम में जीवन का आनन्द लेती हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 यहोवा हर एक को नम्र करेंगे; +\q2 वह घमण्ड करने वाले हर एक को विनम्र करेंगे। +\q1 +\v 16 परन्तु स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, एकमात्र पवित्र, यहोवा की स्तुति होगी, क्योंकि उन्होंने न्यायपूर्वक कार्य किए हैं। +\q2 परमेश्वर दिखाएँगे कि वह धार्मिकता के कार्यों को करने के कारण पवित्र हैं। +\q1 +\v 17 तब भेड़ और मेम्ने खाने के लिए अच्छी घास पा सकेंगे; +\q2 वे घास खाने के लिए उजड़े स्थानों से होकर चलेंगे। +\q1 +\s5 +\v 18 कुछ लोग जो पाप करने के लिए कठोर परिश्रम कर रहे हैं, +\q2 वे ऐसा कठोर परिश्रम कर रहे हैं जैसे कि वे उन गलत और व्यर्थ वस्तुओं को अपने पीछे खींच रहे हैं। +\q1 उनके साथ भयानक घटनाएँ होगी! +\q1 +\v 19 वे परमेश्वर का उपहास करते हैं और उनसे कहते हैं, +\q2 “हमें दण्डित करने के लिए शीघ्र कुछ करो! +\q2 हम देखना चाहते हैं कि आप क्या करोगे। +\q1 आप, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, को वह करना चाहिए जो आप करने की योजना बना रहे हैं, +\q2 क्योंकि हम जानना चाहते हैं कि यह क्या है।” +\q1 +\s5 +\v 20 उन लोगों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी जो कहते हैं +\q2 कि बुराई अच्छी है, और यह कि अच्छाई बुरी है, +\q1 कि अन्धकार प्रकाश है और यह कि प्रकाश अन्धकार है, +\q2 कि जो कड़वा है वह मीठा है और यह कि जो मीठा है वह कड़वा है। +\q1 +\v 21 उन लोगों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं +\q2 और कि वे बहुत चालाक हैं। +\q1 +\s5 +\v 22 उन लोगों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी जो सोचते हैं कि वे वीर हैं +\q2 क्योंकि वे बहुत दाखमधु पी सकते हैं, +\q2 और जो अच्छे नशीले पेय को मिलाने में सक्षम होने के विषय में घमण्ड करते हैं। +\q1 +\v 23 यदि लोग इन भ्रष्ट न्यायधीशों को इसलिए पैसे देते हैं कि वे दुष्टों को दण्ड न दें, +\q2 तो वे उस पैसे को स्वीकार कर लेते हैं। +\q2 और वे निर्दोष को दण्ड का भागी बनाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 24 इसलिए, जैसे आग खूँटी को जला देती है +\q2 और सूखी घास मुर्झा जाती है और आग में अति शीघ्र जल जाती है, +\q1 यह ऐसा होगा जैसे कि उन लोगों की जड़ें सड़ जाएँगी +\q2 और उसके फूल हैं सूख जाएँगे। +\q1 ऐसा होगा क्योंकि उन्होंने स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा के नियमों को अस्वीकार कर दिया है; +\q2 उन्होंने इस्राएल के एकमात्र पवित्र परमेश्वर के सन्देशों को तुच्छ जाना है। +\q1 +\s5 +\v 25 यही कारण है कि यहोवा अपने लोगों से बहुत क्रोधित हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि उनका हाथ उठ गया है और वह उन्हें तोड़ डालने के लिए तैयार हैं। +\q1 जब वह ऐसा करते हैं, तब पर्वत हिल जाएँगे, +\q2 और लोगों के शव खाद के समान सड़कों में बिखरे रहेंगे। +\q1 परन्तु जब ऐसा होगा, तब भी यहोवा बहुत क्रोधित रहेंगे; +\q2 वह फिर से अपने लोगों को दण्ड देने के लिए तैयार रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 26 यहोवा दूर राष्ट्रों की सेनाओं को बुलाने के लिए संकेत भेजेंगे; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों वह उन सैनिकों के लिए सीटी बजाएँगे जो पृथ्‍वी पर बहुत दूर के स्थानों में हैं। +\q1 वे यरूशलेम की ओर बहुत वेग से आएँगे। +\q1 +\s5 +\v 27 वे थकेंगे नहीं और वे ठोकर नहीं खाएँगे। +\q2 वे विश्राम करने के लिए या सोने के लिए नहीं रुकेंगे। +\q1 उनमें से किसी का भी पटुका ढीला नहीं होगा, +\q1 और उनमें से किसी की भी जूतियाँ टूटी पट्टियों वाली नहीं होगी, +\q2 इसलिए वे युद्ध के लिए पूरी रीति से तैयार होंगे। +\q1 +\v 28 उनके तीर नोकीले होंगे, +\q2 और युद्ध में उन तीरों को चलाने के लिए उनके धनुष तैयार होंगे। +\q1 क्योंकि उनके घोड़े रथों को तेजी से खींचते हैं, उनके खुरों से चिंगारियाँ निकलेंगी, +\q2 और रथों के पहिए बवण्डर के समान घूमेंगे। +\q1 +\s5 +\v 29 वे भयंकर शेर के समान दहाड़ेंगे +\q2 जो गरजते हैं और फिर उन जानवरों पर झपटते हैं जिन्हें वे मारना चाहते हैं; +\q1 वे उन्हें उठा कर ले जाएँगे, +\q2 और कोई भी उन्हें बचाने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 +\v 30 इसी प्रकार, तुम्हारे शत्रु उन लोगों पर दहाड़ेंगे जिनको वे मारने वाले हैं, +\q2 जिस प्रकार से समुद्र गरजता है। +\q1 उस दिन, यदि कोई देश भर में देखता है, +\q2 तो वह केवल उन लोगों को देखेगा जो अँधेरे और संकट में हैं; +\q2 यह ऐसा होगा कि मानों जैसे सूरज का प्रकाश भी काले बादलों से छिपा हुआ है। + +\s5 +\c 6 +\p +\v 1 जिस वर्ष राजा उज्जियाह की मृत्यु हुई, यहोवा ने मुझे एक दर्शन दिखाया। दर्शन में, मैंने देखा कि यहोवा सबसे ऊँचे सिंहासन पर बैठे हुए हैं। वह एक बहुत लम्बा वस्त्र पहने हुए हैं जिससे मन्दिर का फर्श ढाँके हुआ हैं। +\v 2 उनके ऊपर पंख वाले कई प्राणी मण्डरा रहे हैं। उनमें से प्रत्येक में छः पंख हैं। उन्होंने अपने चेहरों को अपने दो पंखों से ढका हुआ था, उन्होंने अपने पैरों को अपने दो पंखों से ढाँके हुआ था, और अपने दो पंखों का उपयोग करके वे उड़ते थे। +\s5 +\v 3 वे एक-दूसरे को पुकार रहे थे और कह रहे थे, +\q1 “स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, पवित्र हैं; +\q2 वह पूरी तरह से पवित्र हैं! +\q1 पूरी पृथ्‍वी उनकी महिमा से भर गई है।” +\s5 +\v 4 जब उन्होंने बात की, तो उनकी आवाज ने भवन के द्वारों को हिला कर रख दिया, और परमेश्वर का भवन धुएँ से भर गया। +\p +\v 5 तब मैंने कहा, “मेरे साथ भयानक घटनाएँ होंगी, क्योंकि जो कुछ मैं कहता हूँ वह पापपूर्ण है, और मैं उन लोगों के बीच रहता हूँ जो निरन्तर पापमय बातें कहते हैं। मैं नष्ट हो जाऊँगा क्योंकि मैंने स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, को देखा है!” +\p +\s5 +\v 6 तब पंखों वाले प्राणियों में से एक ने पंखों की एक जोड़ी का उपयोग करके वेदी से एक गर्म कोयले को लिया। वह मेरे पास उड़ कर आया +\v 7 और कोयले से मेरे होंठों को छुआ। तब उसने कहा, “देखो, इस कोयले ने तुम्हारे होंठों को छुआ है। अब तुम्हारा अपराध समाप्त हो गया है, और तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं।” +\p +\s5 +\v 8 तब मैंने यहोवा को यह कहते सुना, “मैं अपने लोगों के लिए एक सन्देशवाहक होने के लिए किसको भेजूँ? कौन जा कर हमारे लिए बात करेगा?” मैंने उत्तर दिया, “मैं यहाँ हूँ। मुझे भेजिए!” +\p +\v 9 फिर उन्होंने कहा, +\q1 “तू जाएगा और इस्राएल के लोगों से कहेगा, +\q2 ‘मैं जो कहता हूँ उसे ध्यान से सुन, परन्तु तू इसे समझ नहीं पाएगा। +\q1 तुम बहुत सावधानी से देखोगे, +\q2 परन्तु तुम समझ नहीं पाओगे।’ +\q1 +\s5 +\v 10 मैं तुम इन लोगों से जो कहोगे वह उन्हें हठीला बना देगा; +\q2 वह उन्हें सुनने और देखने योग्य नहीं रहने देगा, +\q2 इसका परिणाम यह होगा कि मैं जो चाहता हूँ वे देखे, वे नहीं देख पाएँगे या मैं जो चाहता हूँ की वे सुनें, वे नहीं सुन पाएँगे। +\q1 और वे मन से समझ नहीं पाएँगे, +\q2 और वे मेरी ओर नहीं फिरेंगे, +\q2 कि मैं उन्हें बचा लूँ और दण्ड न दूँ।” +\p +\s5 +\v 11 तब मैंने कहा, “आप कब तक चाहते हैं कि मैं ऐसा करता रहूँ?” +\q1 उन्होंने उत्तर दिया, “ऐसा तब तक करते रहो जब तक कि उनके शहर उनके शत्रुओं द्वारा नष्ट नहीं हो जाते हैं, +\q2 जब तक कि उनके घरों में कोई भी नहीं रह जाता है, +\q1 ऐसा तब तक करते रहो जब तक कि उनके खेतों की सब फसलें चोरी न हो जाए +\q2 और खेत उजाड़ न दिए जाएँ। +\q1 +\v 12 ऐसा करते रहो जब तक कि यहोवा हर एक को दूर बन्धुआई में न भेज दें, +\q2 और इस्राएल देश निर्जन न हो जाए। +\q1 +\s5 +\v 13 यदि यहाँ तक कि जब दस प्रतिशत लोग बच जाते हैं और वहाँ रहते हैं, +\q2 उनके शत्रु फिर से देश पर आक्रमण करेंगे और सब कुछ जला देंगे। +\q1 परन्तु जिस प्रकार एक बांज वृक्ष को काट दिया जाता है और एक ठूँठ को छोड़ दिया था, और उससे नई कोपलें निकलती हैं, +\q2 जो लोग इस देश में बचे रहते हैं वे एक ऐसा समूह हो जाएँगे जो मेरे लिए अलग हैं।” + +\s5 +\c 7 +\p +\v 1 आहाज योताम का पुत्र और उज्जियाह का पोता था। उस समय जब आहाज यहूदा का राजा था, तब अराम का राजा रसीन और इस्राएल का राजा पेकह यरूशलेम पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेनाओं के साथ निकले। परन्तु वे इसे जीत नहीं सके। +\p +\v 2 उनके आक्रमण करने से पहले, यरूशलेम के महल में रहने वाले हर जन ने यह समाचार सुना कि अराम और इस्राएल अब मित्र राष्ट्र हैं। इसलिए राजा आहाज और जिन लोगों पर वह शासन किया करता था, वे बहुत डर गए; वे ऐसे काँप रहे थे जैसे तूफान में पेड़ काँपते हैं। +\p +\s5 +\v 3 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “अपने पुत्र शार्याशूब को ले कर राजा आहाज के साथ बात करने के लिए जाओ। वह उस नहर के छोर पर है जो ऊपरी जलाशय में पानी लाती है, उस स्थान के निकट वाली सड़क पर जहाँ स्त्रियाँ वस्त्र धोती हैं। +\v 4 आहाज से कहना कि वह चिन्ता न करे। उससे कहना कि उसे उन दो राजाओं, रसीन और पेकह से डरने की आवश्यकता नहीं है। वे यहूदा से बहुत क्रोधित हैं, परन्तु वे उसके देश को हानि पहुँचाने में ऐसे असमर्थ हैं, जैसे पूरी तरह से जलाया गया कोयला उन्हें हानि पहुँचाने में असमर्थ होता है। +\s5 +\v 5 हाँ, वे उसके विरुद्ध योजना बना रहे हैं और कह रहे हैं, +\v 6 ‘हम यहूदा पर आक्रमण करेंगे और इसे जीत लेंगे। तब हम ताबेल के पुत्र को यहूदा का राजा होने के लिए नियुक्त करेंगे।’ +\s5 +\v 7 परन्तु यहोवा, परमेश्वर यही कहते हैं: +\q1 ‘ऐसा नहीं होगा; +\q2 वे यरूशलेम को जीत नहीं पाएँगे! +\q1 +\v 8 अराम की राजधानी दमिश्क है, +\q2 परन्तु दमिश्क केवल अपने महत्वहीन राजा रसीन द्वारा शासित है। +\q1 और इस्राएल के लिए, पैंसठ वर्षों के भीतर इसे जीत लिया जाएगा और पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाएगा। +\q1 +\v 9 इस्राएल की राजधानी सामरिया है, और सामरिया केवल अपने महत्वहीन राजा पेकह द्वारा शासित है। +\q2 इसलिए तुमको उन दोनों देशों से डरने की आवश्यकता नहीं है! +\q1 परन्तु तुमको मुझ पर भरोसा करना होगा, क्योंकि यदि तुम मुझ पर दृढ़ता से भरोसा नहीं करते हो, +\q2 तो तुम हार जाओगे।’” +\p +\s5 +\v 10 बाद में, यहोवा ने मुझे राजा आहाज को बताने के लिए एक और सन्देश दिया। +\v 11 उन्होंने उससे कहने के लिए मुझसे कहा, “मुझसे, अर्थात् तुम्हारे परमेश्वर यहोवा, से ऐसा कुछ करने के लिए अनुरोध करो, जो तुमको यह सुनिश्चित करने में सक्षम करे कि मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। तुम जो अनुरोध करते हो वह उस स्थान पर हो सकता है जो आकाश जितना ऊँचा हो या उस स्थान के जितना नीचे जहाँ मरे हुए लोग हैं।” +\p +\v 12 परन्तु जब मैंने राजा से यह कहा, तो उसने मना कर दिया। उसने कहा, “नहीं, मैं यहोवा से यह सिद्ध करने के लिए कि वह हमारी सहायता करेंगे कुछ करने को नहीं कहूँगा।” +\p +\s5 +\v 13 तब मैंने उससे कहा, “तुम लोग जो राजा दाऊद के वंशज हो, सुनो! तुम मुझे धीरज रखने से थक जाने के लिए विवश कर रहे हो। क्या तुम मेरे परमेश्वर को भी तुम्हारे विषय धीरज रखने से रुक जाने के लिए विवश कर रहे हो? +\v 14 यहोवा यह सिद्ध करने के लिए स्वयं कुछ करेंगे कि वह तुम्हारी सहायता करेंगे। इसे सुनो: एक युवा स्त्री गर्भवती होगी और पुत्र को जन्म देगी। वह उसे इम्मानुएल नाम देगी, जिसका अर्थ है ‘परमेश्वर हमारे साथ है।’ +\v 15 जब वह बच्चा दही और शहद खाने की आयु तक बढ़ जाएगा, तब वह बुराई को अस्वीकार करने और अच्छाई को चुनने में सक्षम होगा। +\s5 +\v 16 और इससे पहले कि वह बच्चा ऐसा करने की आयु तक बढ़ जाए, उन दो राजाओं के देश जिनसे तुम बहुत डरते हो, निर्जन हो जाएँगे। +\v 17 परन्तु तब यहोवा तुमको और तुम्हारे परिवार और पूरे देश को भयानक विपत्तियों का अनुभव करने देंगे। वे विपत्तियाँ इस्राएल देश के यहूदा से अलग होने के बाद से हुई किसी भी विपत्ति से भी अधिक बुरी होंगी। यहोवा अश्शूर के राजा की सेना को तुम पर आक्रमण करने देंगे!” +\p +\s5 +\v 18 उस समय, ऐसा होगा कि मानों यहोवा दक्षिणी मिस्र की सेना के साथ-साथ अश्शूर की सेना को बुलाने के लिए सीटी बजाएँगे। वे आएँगे और तुम्हारे देश को मक्खियों और मधुमक्खियों के समान घेर लेंगे। +\v 19 वे सब आकर चारों ओर बस जाएँगे – खड़ी चट्टानों की संकरी घाटियों में और गुफाओं में, उस भूमि पर जहाँ कंटीली झाड़ियाँ हैं, उसके साथ-साथ उपजाऊ भूमि पर भी। +\s5 +\v 20 उस समय यहोवा अश्शूर के राजा को परात नदी के पूर्व से अपनी सेना के साथ आने के लिए किराए पर लेंगे। वे तुम्हारे देश में सब कुछ से – फसलों से और लोगों से छुटकारा पाएँगे। वे सब कुछ पूरी तरह से नष्ट कर देंगे; यह कुछ इस प्रकार से होगा जैसे कि एक नाई न केवल एक व्यक्ति के बाल बल्कि उसकी दाढ़ी और पैरों के बालों को भी मूँड़ दे। +\v 21 जब ऐसा होगा, तब एक किसान केवल एक युवा गाय और दो बकरियों को जीवित रखने में सक्षम होगा। +\v 22 परन्तु, वे पशु बहुत सारा दूध देंगे, जिसके परिणामस्वरूप किसान को खाने के लिए दही मिलेगा। और क्योंकि देश में बहुत से लोग नहीं होंगे, वहाँ रहने वाले सब लोगों के पास बहुत दूध और शहद होगा। +\s5 +\v 23 अब ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ दाख की बारियाँ हैं जिनका मूल्य चाँदी के एक हजार टुकड़े हैं, परन्तु उस समय उन क्षेत्रों में केवल झाड़ियाँ और काँटे होंगे। +\v 24 सारे देश में केवल झाड़ियाँ और काँटे होंगे, और जंगली जानवर भी, जिसके परिणामस्वरूप पुरुष अपने धनुष और तीर लेंगे और जानवरों का शिकार करने और उनको मारने के लिए वहाँ जाएँगे। +\v 25 कोई भी वहाँ नहीं जाएगा जहाँ पहाड़ियों पर पहले उपजाऊ बगीचे थे, क्योंकि झाड़ियाँ और काँटे उन पहाड़ियों को ढाँप लेंगे। वे ऐसे क्षेत्र होंगे जहाँ केवल कुछ मवेशी और भेड़ और बकरियाँ कुछ खाने के लिए खोज करती घूमती हैं। + +\s5 +\c 8 +\p +\v 1 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “एक बड़ी सूचना पट्ट बना। और उस पर स्पष्ट रूप से लिख, ‘महेर्शालाल्हाशबज’ जिसका अर्थ है ‘शीघ्रता से लूटना और चोरी करना’।” +\v 2 इसलिए मैंने ऊरिय्याह महायाजक और जेबेरेक्याह के पुत्र जकर्याह से, जो पुरुष सच्चे गवाह थे, मुझे देखने के लिए अनुरोध किया जब मैं ऐसा कर रहा था। +\p +\s5 +\v 3 तब मैं अपनी पत्नी के साथ सो गया, जो एक भविष्यद्वक्तिनी थी, और वह गर्भवती हो गई और फिर एक पुत्र को जन्म दिया। तब यहोवा ने मुझसे कहा, “उसे महेर्शालाल्हाशबज नाम दो, +\v 4 क्योंकि उसके ‘पिता’ या ‘माँ’ कहने की आयु तक बढ़ जाने से पहले, अश्शूर का राजा अपनी सेना के साथ आएगा और दमिश्क में और सामरिया में पाई जाने वाली सब मूल्यवान वस्तुएँ ले जाएगा।” +\p +\s5 +\v 5 फिर से यहोवा ने मुझसे बात की और कहा, “यहूदा के लोगों से कह: +\q1 +\v 6 मैंने तुम लोगों की अच्छी देखभाल की है, +\q2 परन्तु तुमने इसे अस्वीकार कर दिया है, यह सोच कर कि मेरी सहायता बहुत छोटी थी, +\q1 उस छोटी नहर की ओर, जिसके माध्यम से गीहोन के सोते से यरूशलेम में पानी बहता है। +\q2 इसकी अपेक्षा, तुम राजा रसीन और राजा पेकह से सहायता का अनुरोध करने में प्रसन्न हो। +\q1 +\v 7 इसलिए, मैं, प्रभु, शीघ्र ही अश्शूर के राजा की शक्तिशाली सेना को, यहूदा के लोगों पर आक्रमण करने के लिए उकसाऊँगा जो परात नदी से एक बड़ी बाढ़ के समान होगी। +\q2 उनके सैनिक तुम्हारे देश में हर स्थान में होंगे, एक नदी के समान जो अपने किनारों से ऊपर बहती है। +\q1 +\s5 +\v 8 वे सैनिक पूरे यहूदा में जाएँगे, +\q2 एक नदी के समान जिसका पानी किसी व्यक्ति की गर्दन तक ऊँचा हो जाता है। +\q1 उनकी सेना एक उकाब के समान देश में अति शीघ्र फैल जाएगी, +\q2 और वे तुम्हारे सम्पूर्ण देश को ढाँप लेंगे! +\q1 परन्तु मैं, तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारे साथ रहूँगा!” +\q1 +\s5 +\v 9 तुम, हे दूर देशों में रहने वाले सब लोगों, सुनो! +\q2 तुम यहूदा पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो सकते हो। +\q1 तुम युद्ध के लिए तैयार हो सकते हो, और ऊँचे स्वर में युद्ध की ललकार कर सकते हो, +\q2 परन्तु तुम्हारी सेना कुचल दी जाएगी! +\q1 +\v 10 यहूदा पर आक्रमण करने के लिए तुम क्या करोगे, तुम इसकी तैयारी कर सकते हो, +\q2 परन्तु तुम जो करने की योजना बना रहे हो वह व्यर्थ हो जाएगी! +\q1 तुम सफल नहीं होगे, +\q2 क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ हैं! +\p +\s5 +\v 11 यहोवा ने दृढ़ता से मुझे चेतावनी दी कि यहूदा में रहने वाले अन्य लोगों के समान कार्य न करूँ। उन्होंने मुझसे कहा, +\q1 +\v 12 “यह मत कहो कि लोग जो कुछ भी करते हैं वह सरकार के विरुद्ध षड्यन्त्र हैं, +\q2 जैसे अन्य लोग कहते हैं, +\q1 और उनसे मत डरो जिनसे अन्य लोग डरते हैं। +\q1 +\v 13 मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, ही हूँ जिसे तुमको पवित्र मानना चाहिए। +\q2 वह मैं ही हूँ जिससे तुमको डरना चाहिए, +\q2 वही हैं जिसे तुमको लेखा देना होगा। +\q1 +\s5 +\v 14 यहोवा तुम्हारी रक्षा करेंगे। +\q1 परन्तु इस्राएल और यहूदा में रहने वाले अन्य लोगों के लिए, +\q2 यहोवा एक पत्थर के समान होंगे जिससे लोग ठोकर खाएँगे, +\q2 एक चट्टान के समान जिससे वे नीचे गिर जाएँगे। +\q1 और यरूशलेम के लोगों के लिए, +\q2 वह एक जाल या एक फन्दे के समान होंगे। +\q1 +\v 15 बहुत से लोग ठोकर खाएँगे और गिर पड़ेंगे +\q2 और फिर कभी नहीं उठेंगे। +\q1 वे बड़े संकटों का अनुभव करेंगे; +\q2 वे अपने शत्रुओं द्वारा बन्धक बना लिए जाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 16 इसलिए मैं तुमसे जो मेरे शिष्य हो कहता हूँ, इस पुस्तक को मुहरबन्द करो +\q2 जिस पर मैंने उन सन्देशों को लिखा है जिन्हें परमेश्वर ने मुझे दिया है, +\q1 और उन अन्यों को उसके निर्देश दो जो मेरे साथ हैं। +\q1 +\v 17 मैं प्रतीक्षा करूँगा कि देखूँ यहोवा क्या करेंगे। +\q1 उन्होंने याकूब के वंशजों को अस्वीकार कर दिया है, +\q2 परन्तु मैं विश्वास के साथ आशा करता करूँगा कि वह मेरी सहायता करें। +\q1 +\v 18 मैं और मेरे बच्चे जिन्हें यहोवा ने मुझे दिया है, वे इस्राएल के लोगों को चेतावनी देने के संकेत हैं; +\q2 हम स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा की ओर से चेतावनियाँ हैं, +\q2 वही जो यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर अपने भवन में रहते हैं। +\p +\s5 +\v 19 कुछ लोग तुमसे उन लोगों से परामर्श लेने का आग्रह कर सकते हैं जो मरे हुए लोगों की आत्माओं से बात करते हैं या जो कहते हैं कि उन्हें उन आत्माओं से सन्देश प्राप्त होते हैं। हमें भविष्य में क्या करना चाहिए इसके विषय में वे फुसफुसाते और बुड़बुड़ाते हैं। परन्तु परमेश्वर ही हैं जिनसे हमें हमारा मार्गदर्शन करने के लिए कहना चाहिए! यह उन लोगों के लिए मूर्खता की बात है जो जीवित हैं परन्तु मरे हुए लोगों की आत्माओं से अनुरोध करते हैं कि हमें बताएँ कि क्या करना चाहिए! +\v 20 परमेश्वर के निर्देशों और शिक्षा पर ध्यान दो! यदि लोग ऐसी बातें नहीं कहते हैं जो परमेश्वर हमें सिखाते हैं, तो जो वे कहते हैं, वह निकम्मी बातें है। ऐसा लगता है कि मानों वे लोग अँधेरे में हैं। +\s5 +\v 21 वे चिन्तित और भूखे पूरे देश में भटकेंगे। और जब वे बहुत भूखे हो जाते हैं, तब वे बहुत क्रोधित हो जाएँगे। वे स्वर्ग की ओर देखेंगे और परमेश्वर को श्राप देंगे और अपने राजा को भी श्राप देंगे। +\v 22 वे देश में चारों ओर देखेंगे और केवल संकट और अन्धकार और ऐसी वस्तुएँ ही देखेंगे जो उन्हें निराश करती हैं। और फिर उन्हें बहुत गहरे अन्धकार में फेंक दिया जाएगा। + +\s5 +\c 9 +\p +\v 1 हालाँकि, यहूदा में रहने वाले जो निराश थे, वे कष्टों से घिरे नहीं रहेंगे। पहले, यहोवा ने उस देश में रहने वाले लोगों को नम्र किया जहाँ जबूलून और नप्ताली के गोत्र रहते थे। परन्तु भविष्य में वह उन लोगों का सम्मान करेंगे जो गलील के क्षेत्र में रहते हैं, यरदन नदी और भूमध्य सागर के बीच की सड़क के आस-पास, जहाँ कई विदेशी रहते हैं। +\q1 +\v 2 भविष्य में एक दिन, ऐसा होगा जैसे कि अँधेरे में चलने वाले लोगों ने एक उज्जवल प्रकाश देखा है। +\q2 हाँ, उन लोगों पर एक उज्जवल प्रकाश चमक जाएगा जो एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ उन्हें संकट घेरे हुए है। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, आप इस्राएल में रहने वाले हम लोगों के लिए आनन्द का कारण उत्पन्न करेंगे; +\q2 हम बहुत आनन्दित हो जाएँगे। +\q1 आपने जो किया है उसके विषय में हम आनन्दित होंगे +\q2 जैसे कि लोग अपनी फसलों की कटाई करते समय आनन्दित होते हैं, +\q1 या जैसे सैनिक आनन्दित होते हैं +\q2 जब वे उन वस्तुओं को अपने बीच में बाँटते हैं जिन्हें उन्होंने युद्ध में लूटा। +\q1 +\s5 +\v 4 अब आप हमें उन लोगों के दास बने नहीं रहने देंगे जिन्होंने हमें बन्दी बना लिया था; +\q2 आप हमारे कंधों पर से भारी बोझों को हटा देंगे। +\q1 यह ऐसा होगा जैसे आपने उन लोगों के हथियारों को तोड़ दिया है जिन्होंने हम पर अत्याचार किया, +\q2 जैसा आपने तब किया जब मिद्यानी लोगों की सेना को नष्ट कर दिया था। +\q1 +\v 5 वे जूते जो शत्रु के सैनिकों ने पहने हुए थे +\q2 और उनके कपड़े जिन पर लहू के दाग हैं +\q1 सब जला दिए जाएँगे; +\q2 वे एक बड़ी आग के लिए ईंधन होंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 एक और कारण जिसके लिए हम आनन्दित होंगे वह यह है कि एक विशेष बालक हमारे लिए जन्म लेंगे, +\q2 एक स्त्री एक पुत्र को जन्म देगी, +\q2 और वह हमारे शासक होंगे। +\q1 और उनका नाम होगा ‘अद्भुत परामर्शदाता’, ‘पराक्रमी परमेश्वर,’ ‘हमारे अनन्त पिता’ और ‘राजा जो हमें शान्ति प्रदान करते हैं।’ +\q1 +\v 7 उनका शासन और जो शान्ति वह लाते हैं वे कभी समाप्त नहीं होंगे। +\q2 वह निष्पक्षतापूर्ण और न्यायपूर्वक शासन करेंगे, +\q1 जैसे उनके पूर्वज राजा दाऊद ने किया था। +\q2 ऐसा इसलिए होगा क्योंकि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, बहुत इच्छा रखते हैं कि ऐसा हो। +\q1 +\s5 +\v 8 परमेश्वर ने याकूब के वंशजों को चेतावनी दी है; +\q2 उन्होंने कहा है कि वह इस्राएल को दण्ड देंगे। +\q1 +\v 9-10 और सामरिया में रहने वाले और इस्राएल के अन्य स्थानों में रहने वाले सब लोग यह जान जाएँगे, +\q2 परन्तु इस समय वे बहुत घमण्डी और अहंकारी हैं। +\q1 उन्होंने कहा, “हमारा शहर नष्ट हो गया है, +\q2 परन्तु हम खण्डहरों से टूटी हुई ईंटें निकाल देंगे +\q2 और सावधानीपूर्वक काटे हुए पत्थर उनके स्थान में चुनेंगे। +\q1 हमारे गूलर और अंजीर के पेड़ों को हमारे शत्रुओं द्वारा काट दिया गया है, +\q2 परन्तु हम उनके स्थान पर देवदार के पेड़ लगाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु यहोवा इस्राएल के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अराम के राजा रसीन के शत्रु अश्शूर की सेना को लाएँगे +\q2 और इस्राएल पर आक्रमण करने के लिए अन्य जातियों को उत्तेजित करेंगे। +\q1 +\v 12 अराम की सेना पूर्व से आएगी, +\q2 और पलिश्तियों की सेना पश्चिम से आएगी, +\q1 और वे इस्राएल को नष्ट कर देंगे +\q2 जैसे एक जंगली जानवर किसी अन्य जानवर को फाड़ डालता है और उसे खा जाता है। +\q1 परन्तु ऐसा होने के बाद, यहोवा उनसे बहुत क्रोधित रहेंगे। +\q2 वह अपने घूँसे से उन पर आक्रमण करने के लिए फिर से तैयार हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 13 परन्तु यहोवा भले ही अपने लोगों को इस प्रकार दण्ड दें, +\q2 वे तब भी उसके पास वापस नहीं आएँगे और उनकी आराधना नहीं करेंगे। +\q1 इसके उपरान्त वे उनकी सहायता करने के लिए, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा से विनती नहीं करेंगे। +\q1 +\v 14 इसलिए, एक ही दिन में यहोवा उन लोगों से छुटकारा पाएँगे जो इस्राएल के सिर के समान हैं और वे जो उसकी पूँछ के समान हैं; +\q2 वे लोग जो खजूर के पेड़ के शीर्ष के समान हैं और वे जो उसके तले के समान हैं। +\q1 +\v 15 इस्राएल के अगुवे सिर हैं, +\q2 और झूठ बोलने वाले भविष्यद्वक्ता पूँछ हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 उन लोगों के अगुवों ने उन्हें भटकाया है; +\q2 उन्होंने उन लोगों को जिन पर वे शासन कर रहे हैं भ्रमित कर दिया है। +\q1 +\v 17 यही कारण है कि, यहोवा इस्राएल के युवा पुरुषों से प्रसन्न नहीं हैं, +\q2 और वह विधवाओं और अनाथों के प्रति दया नहीं दिखाते हैं, +\q1 क्योंकि वे सब अधर्मी और दुष्ट हैं, +\q2 और वे सब मूर्खता की बातें करते हैं। +\q1 परन्तु यहोवा अभी भी उनसे क्रोधित हैं; +\q2 वह उन पर फिर से अपने घूँसे का वार करने के लिए तैयार हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 जब लोग दुष्टता के कार्य करते हैं, +\q2 तो वह झाड़ियों की आग के समान है जो तेजी से फैलती है। +\q1 यह न केवल झाड़ियों और काँटों को जलाती है; +\q1 यह जंगल में एक बड़ी आग को आरम्भ करती है +\q2 जिससे धुएँ के बादल उठेंगे। +\q1 +\v 19 ऐसा लगता है कि मानों पूरा देश जल कर काला हो गया है +\q2 क्योंकि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, इस्राएलियों से बहुत क्रोधित हैं। +\q1 वे उस धधकती आग के लिए ईंधन के समान बन जाएँगे, +\q2 और यहाँ तक कि उस आग से कोई अपने भाई को भी बचाने का प्रयास नहीं करेगा। +\q1 +\s5 +\v 20 इस्राएली लोग अपने पड़ोसियों पर आक्रमण करेंगे जो उनसे भोजन पाने के अधिकार में घरों में रहते हैं, +\q2 परन्तु वे अभी भी भूखे होंगे। +\q1 वे उन लोगों को मार कर उनके माँस को खाएँगे जो बचे हुए घरों में रहते हैं, +\q2 परन्तु उनके पेट अभी भी नहीं भरेंगे। +\q2 +\v 21 मनश्शे और एप्रैम के गोत्रों के इस्राएली एक-दूसरे पर आक्रमण करेंगे, +\q2 और फिर वे दोनों यहूदा के लोगों पर आक्रमण करेंगे। +\q1 परन्तु ऐसा होने के बाद भी, यहोवा अब भी उनके साथ बहुत क्रोधित होंगे; +\q2 फिर से वह अपने घूँसे से उन पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाएँगे। + +\s5 +\c 10 +\q1 +\p +\v 1 तुम न्यायधीशों के साथ भयानक बातें होंगी जो अनुचित हैं +\q2 और जो अनुचित कानून बनाते हैं। +\q1 +\v 2 तुम गरीब लोगों की सहायता करने से मना करते हो, +\q2 और तुम उन्हें उन वस्तुओं को प्राप्त करने की अनुमति नहीं देते जिन्हें उन्हें प्राप्त करना चाहिए। +\q1 तुम लोगों को विधवाओं से चीजों को चुरा लेने की अनुमति देते हो +\q2 और बिना पिता के बच्चों के साथ अनुचित कार्य करते हो। +\q1 +\s5 +\v 3 जब मैं दूर के देशों के लोगों को +\q2 तुम पर विपत्तियाँ डाल कर तुमको दण्डित करने के लिए भेजता हूँ, +\q1 तो तुम सहायता पाने के लिए किसके पास भागेंगे? +\q2 तुम्हारी बहुमूल्य सम्पत्तियाँ निश्चित रूप से कहीं भी सुरक्षित नहीं होंगी। +\q1 +\v 4 तुम केवल तभी ठोकर खा सकोगे जब तुम्हारे शत्रु तुमको अन्य बन्दियों के साथ ले जाएँगे, +\q2 या फिर तुम्हारी लाशें भूमि पर अन्य मार डाले गए लोगों के साथ पड़ी रहेंगी। +\q1 परन्तु ऐसा होने के बाद भी, +\q2 यहोवा अभी भी तुम्हारे साथ बहुत क्रोधित होंगे। +\q1 फिर से वह अपने घूँसे से तुम पर आक्रमण करने के लिए अभी भी तैयार होंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा कहते हैं, “अश्शूर के साथ भयानक बातें होगी। +\q2 यह सच है कि उनकी सेना एक छड़ी या लाठी के समान है जिससे मैं अन्य राष्ट्रों को दण्डित करता हूँ +\q2 क्योंकि मैं उन राष्ट्रों से बहुत क्रोधित हूँ। +\q1 +\v 6 कभी-कभी मैं अश्शूरियों को एक नास्तिक राष्ट्र पर आक्रमण करने के लिए भेजता हूँ, +\q2 उन लोगों के विरुद्ध लड़ने के लिए जिन्होंने मुझे क्रोधित किया है। +\q1 मैं उन्हें लोगों को पकड़ने और बन्धक बनाने और उनकी सम्पत्ति ले लेने के लिए, +\q2 और उनको इस तरह से कुचलने के लिए भेजता हूँ जैसे लोग सड़कों की मिट्टी पर चलते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु अश्शूर के राजा को समझ में नहीं आता; +\q2 वह नहीं जानता है कि वह मेरे हाथ में केवल एक हथियार के समान है। +\q1 वह केवल लोगों को, +\q2 कई देशों से छुटकारा पाने के लिए नष्ट करना चाहता है। +\q1 +\v 8 वह कहता है, ‘मेरी सेना के सारे सरदार शीघ्र ही इन राष्ट्रों के राजा बनेंगे जिन्हें मैं जीत लेता हूँ! +\q2 +\v 9 हमने कलनो शहर को नष्ट कर दिया जैसे हमने कर्कमीश शहर को नष्ट कर दिया था। +\q1 हमने हमात शहर को नष्ट कर दिया जैसे हमने अर्पाद शहर को नष्ट कर दिया था; +\q2 हमने सामरिया को नष्ट कर दिया जैसे हमने दमिश्क को नष्ट कर दिया था। +\q1 +\s5 +\v 10 हम उन सब साम्राज्यों को नष्ट करने में सक्षम थे जो उनके देवताओं की प्रतिमाओं से भरे हुए थे, +\q2 ऐसे साम्राज्य जिनके देवता यरूशलेम और सामरिया के देवताओं से अधिक मजबूत थे। +\q1 +\v 11 इसलिए हम यरूशलेम को पराजित करेंगे और वहाँ उपस्थित देवताओं की प्रतिमाओं को नष्ट कर देंगे, +\q2 जैसे हमने सामरिया को और वहाँ की प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया था!’ +\p +\s5 +\v 12 परन्तु मैं यहोवा हूँ, और जब यरूशलेम में लोगों को दण्डित करने के लिए मैं जो करना चाहता हूँ, उसे पूरा करने के लिए अश्शूर का उपयोग करने के बाद, मैं अश्शूर के राजा को दण्ड दूँगा क्योंकि वह बहुत घमण्डी और अभिमानी है। +\q1 +\v 13 वह कहता है, ‘अपनी महान शक्ति से मैंने इन कार्यों को किया है। +\q2 मैं उन्हें करने में सक्षम हो पाया हूँ क्योंकि मैं बहुत बुद्धिमान और बहुत चतुर हूँ। +\q1 मेरी सेना ने राष्ट्रों की सीमाओं पर बाधाओं को हटा दिया +\q2 और उनकी सब मूल्यवान चीजें दूर ले गए। +\q1 मेरी शक्तिशाली सेना ने उनके सब लोगों को अपमानित किया है। +\q1 +\s5 +\v 14 जिस तरह कोई जन जो अंडे को ले लेने के लिए चिड़िया के घोंसले में पहुँचता है, +\q2 हमने दूसरे देशों के खजाने को ले लिया है। +\q1 वे लोग पक्षियों के समान नहीं थे जो अपने अंडों को चुराए जाने के विरोध में अपने पंख फड़फड़ाते थे या जोर से चहचहाते थे; +\q2 उन लोगों ने चोरी किए जाने वाले उनके खजाने का बिलकुल विरोध नहीं किया।’ +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु मैं यहोवा हूँ, और मैं कहता हूँ कि एक कुल्हाड़ी निश्चित रूप से उस व्यक्ति से अधिक मजबूत होने के विषय में दावा नहीं कर सकती जो इसका उपयोग करता है, +\q2 और एक आरी उस व्यक्ति से बड़ी नहीं है जो इसका उपयोग करता है। +\q1 एक छड़ी इसे पकड़ने वाले व्यक्ति को नियंत्रित नहीं कर सकती है, +\q2 और एक लकड़ी का डंडा एक व्यक्ति को उठा नहीं सकता है। +\q1 इसलिए अश्शूर के राजा को यह दावा नहीं करना चाहिए कि उसने इन कार्यों को अपने ज्ञान और शक्ति से किया है। +\q1 +\v 16 मैं स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा परमेश्वर हूँ, जो अश्शूर के सर्वश्रेष्ठ सैनिकों के बीच एक महामारी भेजूँगा; +\q2 यह आग के समान होगी जो उन्हें मार डालेगी और उनकी महिमा से छुटकारा पाएगी। +\q1 +\s5 +\v 17 यहोवा एक आग के समान इस्राएल के लोगों के लिए प्रकाश के समान हैं; +\q2 वह एकमात्र पवित्र जो इस्राएल का शासन करते हैं ज्वाला के समान हैं। +\q1 अश्शूर के सैनिक काँटों और झाड़ियों के समान हैं, +\q2 और यहोवा उन्हें एक दिन में जला देंगे। +\q1 +\v 18 अश्शूर में महिमामय जंगल और उपजाऊ खेत हैं, परन्तु यहोवा उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देंगे; +\q2 वे एक ऐसे बहुत बीमार व्यक्ति के समान होंगे जो कँपकँपाता है और फिर मर जाता है। +\q1 +\v 19 उन जंगलों में बहुत कम पेड़ छोड़े जाएँगे; +\q2 यहाँ तक कि एक बच्चा भी उन्हें गिनने में सक्षम होगा।” +\q1 +\s5 +\v 20 भविष्य में इस्राएल में केवल कुछ लोग ही बचेंगे; +\q2 याकूब के बहुत से वंशज अभी भी जीवित नहीं होंगे। +\q1 परन्तु वे अब अश्शूर के राजा पर भरोसा नहीं करेंगे, +\q2 उस राष्ट्र के राजा पर जिसने उन्हें नष्ट करने का प्रयास की। +\q1 इसके बजाए, वे सच्चे मन से उस एकमात्र पवित्र परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे, जो इस्राएल पर शासन करते हैं। +\q1 +\v 21 वे इस्राएली अपने शक्तिशाली परमेश्वर के पास वापस आ जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 22 अब, इस्राएल के लोग समुद्र के किनारे की रेत के किनकों जितने असंख्य हैं, +\q2 परन्तु उनमें से केवल कुछ ही उन देशों से वापस आ पाएँगे जिनमें उन्हें बन्धुआ किया जाएगा। +\q1 यहोवा ने अधिकांश इस्राएली लोगों को नष्ट करने का निर्णय किया है, +\q2 और यही है जो उसे करना चाहिए क्योंकि वह पूरी तरह से धर्मी है। +\q1 +\v 23 हाँ, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा परमेश्वर ने पहले ही इस्राएल की सम्पूर्ण देश को नष्ट करने का निर्णय किया है। +\p +\s5 +\v 24 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “हे यरूशलेम में रहने वाले मेरे लोगों, अश्शूर की सेना से मत डरो, जब वे तुमको छड़ों और डण्डों से मारते हैं, +\q2 जैसे बहुत पहले मिस्र के पुरुषों ने तुम्हारे पूर्वजों के साथ किया था। +\q1 +\v 25 शीघ्र ही मैं अब तुमसे क्रोधित नहीं रहूँगा, +\q2 और फिर मैं अश्शूर के लोगों से क्रोधित हो जाऊँगा और उन्हें नष्ट कर दूँगा!” +\q1 +\s5 +\v 26 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, उन्हें अपने चाबुक से मारेंगे। +\q2 वह उनके साथ वैसा ही करेंगे जैसा उन्होंने मिद्यानी लोगों के समूह की सेना को हराने के समय किया था, +\q2 और जैसा उन्होंने तब किया जब उन्होंने मिस्र की सेना को लाल समुद्र में डुबा दिया था। +\q1 +\v 27 भविष्य में एक दिन, यहोवा अश्शूर की सेना को तुम, उसके अपने लोगों पर अत्याचार करना बन्द करवा देंगे; +\q2 वह तुम्हारी पीड़ा को और अश्शूर के लोगों के लिए तुम्हारे दासत्व को समाप्त कर देंगे; +\q1 तुम उनके प्रति बहुत मजबूत हो जाओगे। +\q1 +\s5 +\v 28 भविष्य में एक दिन यह स्थिति होगी: अश्शूर की सेना अय्यात के पास उत्तरी यहूदा में प्रवेश कर चुकी है; +\q2 वे मिग्रोन के माध्यम से चले गए हैं +\q2 और यरूशलेम के उत्तर में मिकमाश में अपनी आपूर्ति को इकट्ठा किया है। +\q1 +\v 29 वे एक पहाड़ी मार्ग से पार हो गए हैं +\q2 और गिबा में अपने तम्बू स्थापित किए हैं। +\q1 रामा में रहने वाले लोग थरथराएँगे क्योंकि वे डरे हुए हैं। +\q2 गिबा के सब लोग, जहाँ राजा शाऊल पैदा हुआ था, भाग गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 तुम गैलीम के लोग सहायता के लिए पुकारोगे! +\q2 वे यरूशलेम के पास लैश नगर के लोगों को चेतावनी देने के लिए चिल्लाएँगे! +\q2 अनातोत के लोग बहुत पीड़ित होंगे। +\q1 +\v 31 यरूशलेम के उत्तर में मदमेना के सब लोग भाग रहे हैं, +\q2 और यरूशलेम के निकट गेबीम के लोग छिपने का प्रयास कर रहे हैं। +\q1 +\v 32 अश्शूर के सैनिक यरूशलेम के बाहर नोब शहर में रुकेंगे। +\q2 वे अपनी मुट्ठियाँ हिलाएँगे +\q2 जब वे यरूशलेम के सिय्योन पर्वत पर रहने वाले लोगों को धमकी देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 33 परन्तु यह सुनो! स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, +\q2 अपनी महान शक्ति से अश्शूर की शक्तिशाली सेना को नष्ट कर देंगे। +\q1 ऐसा लगता है कि मानों वे एक विशाल पेड़ हैं जिसे वह काट डालेंगे। +\q1 +\v 34 वह अश्शूर के सैनिकों को नष्ट कर देंगे +\q2 जैसे लबानोन के जंगलों में लम्बे पेड़ों को काटने के लिए पुरुष बड़ी कुल्हाड़ियों का उपयोग करते हैं। + +\s5 +\c 11 +\q1 +\p +\v 1 जिस तरह अक्सर एक नई शाखा एक पेड़ के ठूँठ से बढ़ती है, +\q2 वैसे ही राजा दाऊद का एक वंशज होगा जो एक नए राजा होंगे। +\q1 +\v 2 यहोवा का आत्मा सदा उसके साथ रहेंगे। +\q2 आत्मा उसे बुद्धिमान और कई चीजों को समझने में सक्षम करेंगे; +\q2 आत्मा उसे यह तय करने में सक्षम करेंगे कि क्या करना अच्छा है और उसे महान शक्ति देंगे। +\q2 आत्मा उसे यहोवा को जानने और उसे सम्मानित करने में सक्षम करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 वह यहोवा की आज्ञा मानने में प्रसन्न होंगे। +\q1 वह केवल यह देख कर कि वह व्यक्ति कैसा दिखता है तय नहीं करेंगे कि कोई धार्मिक है या नहीं, +\q2 या दूसरों से सुन कर कि वे उस व्यक्ति के विषय में क्या कहते हैं। +\q1 +\v 4 वह अभावग्रस्त लोगों के मामलों का न्याय निष्पक्षता से करेंगे; +\q2 और वह गरीब लोगों के प्रति न्यायपूर्वक कार्य करेंगे। +\q1 वह निर्णय लेने के परिणामस्वरूप बुरे लोगों को दण्डित करेंगे; +\q2 जो बुरे कार्य उन्होंने किए हैं उसके कारण वह दुष्ट लोगों से छुटकारा पाएँगे। +\q1 +\v 5 वह सदा धार्मिक रूप से कार्य करेंगे; +\q2 जो अच्छे कार्य वह करते हैं वह उसके कमर के चारों ओर एक पटुके के समान होंगे। +\q1 वह सदा सच बोलेंगे; +\q2 जो सच्चे शब्द वह बोलते हैं वह उसके कमर के चारों ओर एक कमरबन्द के समान होंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 जब वह राजा बन जाते हैं, तब भेड़िए और मेम्ने एक साथ शान्ति से रहेंगे; +\q1 तेन्दुए, बकरियों के बच्चों की हत्या करने के बजाए, +\q2 उनके साथ लेटे रहेंगे। +\q1 इसी प्रकार, मोटे, स्वस्थ बछड़े और शेर एक साथ भोजन खाएँगे; +\q2 और एक छोटा बच्चा उनकी देखभाल करेगा। +\q1 +\v 7 गाय और भालू एक साथ चरेंगे; +\q2 भालू के शावक और बछड़े एक साथ लेटे रहेंगे। +\q1 शेर अन्य जानवरों को नहीं खाएँगे; +\q2 इसके बजाए, वे गायों के समान घास खाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 8 बच्चे उन बिलों के पास सुरक्षित रूप से खेलेंगे जहाँ कोबरा साँप रहते हैं; +\q1 छोटे बच्चे भी विषैले साँपों के घोंसलों में अपने हाथ डाल देंगे, +\q2 और साँप उन्हें हानि नहीं पहुँचाएँगे। +\q1 +\v 9 मेरी पवित्र पहाड़ी, सिय्योन पर्वत पर कोई प्राणी अन्य प्राणियों को हानि नहीं पहुँचाएगा या मार नहीं डालेगा; +\q1 और पृथ्‍वी उन लोगों से भर जाएगी जो मुझे जानते हैं, +\q2 जिस प्रकार समुद्र पानी से भरे हुए हैं। +\p +\s5 +\v 10 उस समय, राजा दाऊद के वंशज एक झण्डा पकड़ेंगे +\q2 सब लोगों के समूहों के लोगों को संकेत देने के लिए कि उन्हें उसके चारों ओर इकट्ठा होना चाहिए; +\q1 वे उसकी सलाह लेने के लिए उसके पास आएँगे, +\q2 और वह स्थान तेजस्वी होगा जहाँ वह रहते हैं। +\q +\v 11 उस समय, यहोवा अपने हाथों के बढ़ाएँगे जैसा उसने बहुत पहले किया था; +\q1 वह उन लोगों को जिन्हें इस्राएल से बन्धुआई में ले जाया गया था, +\q2 अश्शूर से, उत्तरी मिस्र से, दक्षिणी मिस्र से, +\q2 इथियोपिया से, एलाम से, बाबेल से, हमात से, और समुद्र के पास के सब दूर के देशों से घर लौटने में सक्षम करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 यहोवा सब लोगों के समूहों के बीच अपना झण्डा उठाएँगे, +\q2 और वह इस्राएल के लोगों को इकट्ठा करेंगे जो बहुत पहले निर्वासित थे। +\q1 वह पृथ्‍वी पर बहुत दूर स्थानों से इकट्ठा होंगे +\q2 यहूदा के लोग जिन्हें वह उन स्थानों पर बिखरा हुआ था। +\q1 +\v 13 तब, इस्राएल के लोग और यहूदा के लोग अब एक-दूसरे से ईर्ष्या नहीं करेंगे, +\q2 और वे अब एक-दूसरे के शत्रु नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 उनकी सेनाएँ पश्चिम में पलिश्ती लोगों पर आक्रमण करने के लिए एक साथ मिलेंगी। +\q2 और वे पूर्वी राष्ट्रों पर एक साथ आक्रमण करेंगे; +\q1 वे उन राष्ट्रों को पराजित करेंगे और उनकी सारी मूल्यवान सम्पत्तियों को ले जाएँगे। +\q1 वे एदोम और मोआब के क्षेत्रों पर अधिकार कर लेंगे, +\q2 और वे अम्मोनी लोगों के समूह के लोगों पर शासन करेंगे। +\q1 +\v 15 यहोवा मिस्र के पास समुद्र के माध्यम से एक सूखी सड़क बना देंगे। +\q1 यह ऐसा होगा जैसे मानों वह परात नदी पर अपना हाथ लहराएँगे +\q2 और उसे सात धाराओं में विभाजित करने के लिए एक प्रचण्ड हवा भेजेंगे, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप लोग उन धाराओं के पार चले जाने में सक्षम होंगे। +\q1 +\s5 +\v 16 क्योंकि वह अश्शूर में रहने वाले अपने लोगों के लिए राजमार्ग बनाएँगे, +\q2 वे अपने देश में लौट आने में सक्षम होंगे, +\q1 जिस प्रकार बहुत पहले उसने इस्राएल के लोगों के लिए रास्ता बनाया था +\q2 कि वे पानी से होकर जा सकें +\q2 जब उन्होंने मिस्र छोड़ा था। + +\s5 +\c 12 +\p +\v 1 उस समय, तुम यरूशलेम के लोग इस गीत को गाओगे: +\q1 “हे यहोवा, हम आपकी प्रशंसा करते हैं! +\q2 पहले, आप हमसे क्रोध थे, +\q1 परन्तु अब आप क्रोध में नहीं हैं +\q2 और आपने हमें सांत्वना दी है। +\q1 +\v 2 आश्चर्यजनक रूप से, आप हमें बचाने के लिए आए हैं, +\q2 इसलिए हम आप पर भरोसा करेंगे और डरेंगे नहीं। +\q1 हे यहोवा हमारे परमेश्वर, आप हमें दृढ़ होने में सक्षम बनाते हैं; +\q2 आप ही हैं जिसके विषय में हम गाते हैं; +\q2 आपने हमें हमारे शत्रुओं से बचा लिया है।” +\q1 +\s5 +\v 3 तुम, उसके लोग बहुत प्रसन्न होओगे क्योंकि उसने तुमको बचा लिया है, +\q2 जैसे तुम एक झरने से पीने के पानी का आनन्द लेते हो। +\p +\v 4 उस समय तुम कहोगे, +\q1 “हमें यहोवा को धन्यवाद देना चाहिए! हमें उनकी स्तुति करनी चाहिए! +\q2 हमें सारे जाति समूह के लोगों को बताना चाहिए जो उन्होंने किया है; +\q2 हमें उन्हें यह जानने में सक्षम करना चाहिए कि वह बहुत महान हैं! +\q1 +\s5 +\v 5 हमें यहोवा के लिए गाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने अद्भुत कार्य किए हैं। +\q2 हमें संसार में हर किसी को यह जानने में सक्षम करना चाहिए! +\q1 +\v 6 तुम हे यरूशलेम के लोगों, यहोवा की स्तुति करने के लिए प्रसन्नता से चिल्लाओ, +\q2 क्योंकि वही महान एकमात्र पवित्र है जिसकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, +\q2 और वह हमारे बीच रहते हैं!” + +\s5 +\c 13 +\p +\v 1 मैं, आमोस के पुत्र यशायाह ने, बाबेल शहर के विषय में इस सन्देश को यहोवा से पाया है: +\q1 +\v 2 एक पहाड़ी के नंगे शीर्ष पर एक झण्डे को ऊँचा उठाओ, +\q2 यह संकेत करने के लिए कि बाबेल पर आक्रमण करने के लिए एक सेना को आना चाहिए। +\q1 उनके लिए चिल्लाओ और उन्हें संकेत देने के लिए अपने हाथ को लहराओ +\q2 कि उन्हें शहर के फाटकों से निकल कर बाबेल के घमण्डी शासकों के महलों में चले जाना चाहिए! +\q1 +\v 3 यहोवा कहते हैं, “मैंने उन लोगों को आज्ञा दी है जो मेरे लिए यह कार्य करने के लिए अलग हैं— +\q2 मैंने उन योद्धाओं को बुलाया है जिन्हें मैंने बाबेल के लोगों को दण्डित करने के लिए चुना है क्योंकि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ, +\q2 और जब वे ऐसा करते हैं तो उन सैनिकों को बहुत गर्व होगा।” +\q1 +\s5 +\v 4 पर्वतों पर शोर को सुनो, +\q2 जो एक विशाल सेना के चलने का शोर है! +\q1 यह शोर कई जातिसमूहों के चिल्लाते हुए लोगों द्वारा किया जाता है। +\q2 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने इस सेना को एक साथ इकट्ठा होने के लिए बुलाया है। +\q1 +\v 5 वे उन देशों से आते हैं जो बहुत दूर हैं, +\q2 पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों से। +\q1 वे उन हथियारों के समान हैं जिन्हें यहोवा उन लोगों को दण्डित करने के लिए जिनसे वह बहुत क्रोध हैं, +\q2 और बाबेल के पूरे देश को नष्ट करने के लिए उपयोग करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 तुम बाबेल के लोग चिल्लाओगे क्योंकि तुम भयभीत हो जाओगे, +\q2 क्योंकि यह वह समय होगा जिसे यहोवा ने निर्धारित किया है, +\q2 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए तुम्हारे शहर को नष्ट करने का समय। +\q1 +\v 7 क्योंकि ऐसा होगा, इसलिए तुम्हारे सब लोग बहुत डर जाएँगे, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप वे अपनी बाँहों को उठाने में भी असमर्थ होंगे। +\q1 +\v 8 तुम सबके सब भयभीत होगे। +\q2 तुमको गम्भीर पीड़ाएँ होंगी +\q2 जिस प्रकार एक स्त्री को होती है जब वह एक बच्चे को जन्म दे रही है। +\q1 तुम असहाय रूप से एक दूसरे को देखोगे, +\q2 और यह तुम्हारे चेहरे पर दिखाई देगा कि तुम अत्यन्त भय में हो। +\q1 +\s5 +\v 9 तुम हे बाबेल के लोगों, इस बात को सुनो: जिस दिन को यहोवा ने कार्य करने के लिए चुना है, वह निकट है, +\q2 वह दिन जिसमें वह उग्रतापूर्वक और भयंकर रूप से तुमको दण्डित करेंगे क्योंकि वह तुमसे बहुत क्रोधित हैं। +\q1 वह तुम्हारे देश बाबेल को उजाड़ कर देंगे, +\q2 और वह इसमें रहने वाले सभी पापियों को नष्ट कर देंगे। +\q1 +\v 10 जब ऐसा होता है, तो कोई भी सितारा नहीं चमकेगा। +\q2 जब सूर्य उगता है, तो अन्धकार होगा, +\q1 और रात में चँद्रमा से कोई प्रकाश नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा कहते हैं, “मैं उन सब बुरे कार्यों के लिए जो वे करते हैं संसार में हर किसी को दण्ड दूँगा; +\q2 मैं दुष्ट लोगों को उनके द्वारा किए गए पापों के लिए दण्ड दूँगा। +\q1 मैं हठीले लोगों को घमण्डी होने से रोकूँगा, +\q2 और मैं क्रूर लोगों को बहुत हठीला होने से रोकूँगा। +\q1 +\v 12 और क्योंकि मैं अधिकतर लोगों को मर जाने दूँगा, +\q2 सोने की तुलना में लोगों को ढूँढ़ना कठिन होगा, +\q1 अरब के ओपीर में चोखा सोना ढूँढ़ने की तुलना में कठिन। +\q1 +\s5 +\v 13 मैं आकाश को हिला दूँगा, +\q2 और पृथ्‍वी भी इसके स्थान से हट जाएगी। +\q1 ऐसा होगा जब मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, दुष्ट लोगों को दण्डित करूँगा, +\q2 जब मैं उन्हें दिखाता हूँ कि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ। +\q1 +\v 14 बाबेल में रहने वाले सभी विदेशी लोग के समान इधर उधर ऐसे दौड़ेंगे जैसे हिरन जिसका शिकार किया जा रहा है, +\q2 जैसे भेड़ जिसका कोई चरवाहा नहीं है। +\q1 वे अपने देशों के अन्य लोगों को ढूँढ़ने की प्रयास करेंगे, +\q2 और फिर वे बाबेल से बच कर निकल जाएँगे और अपने देशों को लौट जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 15 कोई भी जिसे बाबेल में बन्धक बना लिया गया है +\q2 वह उनके शत्रुओं की तलवारों से मारा जाएगा। +\q1 +\v 16 उनके माता-पिता के देखते-देखते उनके छोटे बच्चे चट्टानों पर टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे; +\q2 उनके शत्रु उनके घरों से सब कुछ मूल्यवान चुरा लेंगे और उनकी पत्नियों को अपने साथ सोने के लिए विवश करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 17 देखो! मैं बाबेल पर आक्रमण करने के लिए मादी लोगों को उत्तेजित करने जा रहा हूँ। +\q2 मादी सेना बाबेल पर आक्रमण करेगी, भले ही उन्हें चाँदी या सोने की पेशकश की जाए, कि यदि वे इस पर आक्रमण नहीं करने का प्रतिज्ञा करते हैं। +\q1 +\v 18 अपने तीरों से, मादी सैनिक बाबेल के जवानों को मार देंगे; +\q2 यहाँ तक कि वे दूध पीते बच्चे या बच्चों के प्रति भी दया से कार्य नहीं करेंगे!” +\q1 +\s5 +\v 19 बाबेल एक बहुत ही सुन्दर शहर रहा है; +\q2 बाबेल के सभी लोगों को बाबेल, उनकी राजधानी के शहर पर बहुत गर्व है; +\q1 परन्तु परमेश्वर बाबेल को नष्ट कर देंगे, +\q2 जैसे उसने सदोम और अमोरा को नष्ट कर दिया था। +\q1 +\v 20 कोई भी फिर कभी बाबेल में नहीं रहेगा। +\q2 इसे सदा के लिए त्याग दिया जाएगा। +\q1 घुमक्कड़ वहाँ अपने तम्बू स्थापित करने से मना कर देंगे; +\q2 चरवाहे वहाँ आराम करने के लिए अपने भेड़ों के झुण्ड को नहीं लाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 21 रेगिस्तान में रहने वाले पशु वहाँ होंगे; +\q2 घरों के खण्डहरों में सियार रहेंगे। +\q1 खण्डहरों में उल्लू रहेंगे, +\q2 और शुतुर्मुर्ग और जंगली बकरियाँ चारों ओर घूमती रहेंगी। +\q1 +\v 22 नष्ट मीनारों में लकड़बग्घे बोला करेंगे, +\q2 और महलों के खण्डहरों में जो पहले बहुत सुन्दर थे, सियार अपनी मांद बना लेंगे। +\q1 वह समय जब बाबेल नष्ट हो जाएगा, बहुत निकट है; +\q2 बाबेल बहुत समय अस्तित्व में नहीं रहेगा। + +\s5 +\c 14 +\p +\v 1 परन्तु यहोवा इस्राएलियों के प्रति दया से कार्य करेंगे; वह इस्राएल के लोगों को फिर से अपने लोग होने के लिए चुन लेंगे, और वह उन्हें यहाँ वापस लौटने और अपने देश में फिर से रहने की अनुमति देंगे। तब कई अन्य देशों के लोग यहाँ आएँगे और इस्राएली लोगों के साथ मिल जाएँगे। +\v 2 अन्य राष्ट्रों के लोग उन्हें अपने देश में लौटने में सहायता करेंगे, और जो दूसरे देशों से आएँगे वे इस्राएली लोगों के लिए कार्य करेंगे। जिन लोग द्वारा इस्राएल के लोगों को बन्धक बनाया गया हैं उन्हें इस्राएली सैनिकों द्वारा बन्धक बनाया जाएगा, और इस्राएल के लोग उन लोगों पर शासन करेंगे जिन्होंने पहले उन पर अत्याचार किया था। +\p +\s5 +\v 3 किसी दिन यहोवा तुम इस्राएली लोगों को पीड़ा और परेशानी से और डरने से, और दासों के रूप में क्रूरतापूर्वक व्यवहार किए जाने से स्वतन्त्र करेंगे। +\v 4 जब ऐसा होता है, तो तुम इस तरह के गीत गा कर बाबेल के राजा का ठट्ठा करोगे: +\q1 “तुमने हमसे क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया, परन्तु यह समाप्त हो गया है! +\q2 तुमने दूसरों का अपमान किया और उन्हें पीड़ा दी, परन्तु अब तुम इसे नहीं कर सकते! +\q1 +\s5 +\v 5 तुम हे दुष्ट शासक, यहोवा ने तुम्हारी शक्ति को नष्ट कर दिया है, +\q2 और अब तुम लोगों पर अत्याचार नहीं करेंगे! +\q1 +\v 6 तुमने कई बार लोगों पर आक्रमण किया +\q2 क्योंकि तुम उनसे बहुत क्रोधित थे, +\q1 और तुमने अन्य देशों को +\q2 बिना रुके उन्हें पीड़ित करने के द्वारा अपने अधीन कर लिया। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु शीघ्र ही पृथ्‍वी पर सब कुछ व्यवस्थित और शान्तिपूर्ण होगा। +\q2 हर कोई फिर से गाएगा! +\q1 +\v 8 यह ऐसा होगा जैसे मानों जंगलों में पेड़ प्रसन्नता से इस गीत को गाएँगे, +\q2 साइप्रस के पेड़ और लबानोन में देवदार के पेड़ इसे गाएँगे: +\q1 ‘तुमको उखाड़ कर फेंक दिया गया है, +\q2 और अब कोई भी हमें काटने के लिए नहीं आता है।’ +\q1 +\v 9 मरे हुए सब लोग तुम्हारा उस जगह पर जाने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं जहाँ वे हैं। +\q1 संसार के अगुवों की आत्माएँ +\q2 तुम्हारा स्वागत करके प्रसन्न होंगी; +\q1 जो लोग मरने से पहले कई राष्ट्रों के राजा थे +\q2 तुम्हारा स्वागत करने के लिए खड़े हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 10 वे सब तुम पर एक साथ चिल्लाएँगे, +\q2 ‘अब तुम उतने ही निर्बल हो जितने हम हैं!’ +\q1 +\v 11 तुम बहुत घमण्डी और शक्तिशाली थे, +\q2 परन्तु जब तुम मर गए तो वह सब, +\q2 तुम्हारे महल में बजाई जा रही वीणा की आवाजों के साथ समाप्त हो गया। +\q1 अब तुम्हारी कब्र में कीड़े तुम्हारे नीचे एक चादर के समान होंगे, +\q2 और केंचुए तुमको एक कंबल के समान ढाँप लेंगे।’ +\q1 +\s5 +\v 12 तुम आकाश से गिरे हुए एक सितारे के समान पृथ्‍वी से गायब हो गए हो; +\q1 तुम बहुत प्रसिद्ध थे, +\q2 जैसे सुबह का सितारा हर किसी द्वारा देखा जाता है; +\q1 तुमने कई राष्ट्रों को नष्ट कर दिया, +\q2 परन्तु अब तुम नष्ट हो गए हैं। +\q1 +\v 13 तुमने गर्व से कहा, ‘मैं अपने सिंहासन पर परमेश्वर के सितारों के ऊपर स्वर्ग पर चढ़ जाऊँगा। +\q2 मैं दूर उत्तर में उस पर्वत पर शासन करूँगा जहाँ सारे देवता एक साथ इकट्ठा होते हैं। +\q1 +\v 14 मैं बादलों से ऊपर चढ़ जाऊँगा और परमेश्वर के समान बन जाऊँगा! +\q2 +\s5 +\v 15 परन्तु तुम ऐसा करने में सक्षम नहीं थे; +\q1 इसके बजाए, तुमको तुम्हारी कब्र पर ले जाया गया था, +\q2 और तुम उस स्थान पर गए जहाँ मरे हुए लोग हैं। +\q1 +\v 16 वहाँ अन्य मरे हुए लोग तुमको घूरते हैं; +\q2 वे आश्चर्य करते हैं जो तुम्हारे साथ हुआ। +\q1 वे कहते हैं, ‘क्या यह वही व्यक्ति है जिसने पृथ्‍वी को हिला दिया था +\q2 और कई साम्राज्यों के लोगों को डरा दिया था? +\q1 +\v 17 क्या यह वही व्यक्ति है जिसने संसार को रेगिस्तान बनाने का प्रयास किया था, +\q2 जिसने उसके शहरों पर विजय प्राप्त की और उन लोगों को अपने घर लौटने की अनुमति नहीं दी जिन्हें उसने बन्धक बना लिया था?’ +\q1 +\s5 +\v 18 पृथ्‍वी के सब राजाओं को उनकी मृत्यु होने पर दफनाते समय बड़ा सम्मानित किया गया था। +\q1 +\v 19 कोई तुमको एक ओर फेंक देगा, जैसे कि वे एक शाखा को फेंक देते हैं, परन्तु एक कब्र में नहीं। +\q1 मरे हुए लोग जिनको तलवार से बेधा गया है, एक वस्त्र के समान तुमको ढाँप लेते हैं, जो उनमें से एक होने के लिए नीचे जाते हैं जहाँ मरे हुए आराम करते हैं। +\q1 +\v 20 तुम्हारा मरा हुए शरीर उनके साथ दफन नहीं किया जाएगा +\q1 क्योंकि तुमने अपने देश को नष्ट कर दिया है +\q2 और तुम्हारे अपने लोगों को मरने दिया है। +\q1 तुम्हारे जैसे दुष्ट लोगों के वंशज फिर कभी भी बात नहीं करेंगे।” +\q1 +\s5 +\v 21 लोग कहेंगे, “इस व्यक्ति के बच्चों को +\q2 उन पापों के कारण जो उनके पूर्वजों ने किए थे मार डालो! +\q1 उन्हें शासक बनने की, और संसार के सब राष्ट्रों को जीतने की, +\q2 और जिन पर वे शासन करते हैं संसार को उन शहरों से भरने की अनुमति मत दो!” +\q1 +\v 22 यहोवा यही कहते हैं: +\q2 “मैं स्वयं बाबेल को जीत लिया जाने दूँगा। +\q1 मैं बाबेल और उसके लोगों और उनके वंशजों से छुटकारा पाऊँगा। +\q1 +\v 23 मैं बाबेल को ऐसा स्थान बन जाने दूँगा जहाँ उल्लू रहते हैं, +\q2 दलदल से भरी एक जगह; +\q1 मैं इसे पूरी तरह से नष्ट कर दूँगा +\q2 जैसे कि मानों मैं इसे झाड़ू से बुहार रहा था। +\q1 मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, यही कहता हूँ।” +\p +\s5 +\v 24 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने गम्भीरता से यह प्रतिज्ञा भी किया है: +\q1 “जिन बातों की योजना मैंने बनाई है वह निश्चित रूप से होंगी। +\q1 +\v 25 जब अश्शूर की सेना मेरे देश इस्राएल में है, +\q1 मैं उन्हें कुचल दूँगा। +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों मैंने उन्हें अपने पर्वतों पर रौंद दिया था। +\q1 मेरे लोग अब अश्शूर के लोगों के दास नहीं रहेंगे; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों मैंने उनके कंधों का बोझ दूर कर दिया है। +\q1 +\s5 +\v 26 पृथ्‍वी पर हर किसी के लिए एक योजना है, +\q2 सभी राष्ट्रों को दण्डित करने के लिए यहोवा की शक्ति दिखाने की योजना। +\q1 +\v 27 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने कहा है, +\q2 और कोई भी उसका मन नहीं बदल सकता है। +\q1 जब यहोवा अश्शूर को मारने के लिए अपना घूँसा उठाते हैं, +\q2 तो कोई भी उसे रोकने में सक्षम नहीं होंगे।” +\p +\s5 +\v 28 राजा आहाज की मृत्यु के वर्ष में यह सन्देश मुझे यहोवा की ओर से मिला: +\q1 +\v 29 तुम हे पलिश्त के सब लोगों, आनन्दित मत हो, कि जिस शत्रु सेना ने तुम पर आक्रमण किया है, वह पराजित हो गया है +\q2 और यह कि उनका राजा मर चुका है। +\q1 वह एक साँप के जैसे खतरनाक था, +\q2 परन्तु एक और राजा होगा, +\q1 जो कोबरा साँप से भी अधिक खतरनाक होगा; +\q2 वह तेजी से दौड़ने वाले एक विषैले साँप के समान होगा। +\q1 +\v 30 मेरे वे लोग जो बहुत गरीब हैं, अपने भेड़ों के झुण्ड की देखभाल करेंगे, +\q2 और अभावग्रस्त लोग सुरक्षित रूप से लेटे रहेंगे, +\q1 परन्तु मैं तुम पलिश्त के लोगों को जो अभी भी जीवित हैं +\q2 अकाल से मर जाने दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 31 इसलिए, तुम हे पलिश्त के लोगों, अपने शहरों के फाटकों पर विलाप करो! +\q2 तुमको अत्यन्त डरना चाहिए, +\q1 क्योंकि एक बहुत शक्तिशाली सेना तुम पर आक्रमण करने के लिए उत्तर से आएगी; +\q2 उनके रथ धुएँ के बादल के समान धूल को भड़का देंगे। +\q1 उनका प्रत्येक सैनिक लड़ने के लिए तैयार है। +\q1 +\v 32 यदि पलिश्त के दूत हम इस्राएली लोगों के पास आते हैं, +\q2 तो हमें उनसे यही कहना है: +\q1 “यहोवा ने यरूशलेम की रचना की है, पलिश्त की नहीं, +\q2 और उसके लोग जो पीड़ित हैं, यरूशलेम की दीवारों के भीतर सुरक्षित रहेंगे।” + +\s5 +\c 15 +\p +\v 1 यशायाह ने मोआबी लोगों के समूह के विषय में यहोवा से यह सन्देश प्राप्त किया: +\q1 एक रात में मोआब के दो महत्वपूर्ण शहर, आर और कीर नष्ट हो जाएँगे। +\q1 +\v 2 राजधानी के शहर, दीबोन के लोग, शोक करने के लिए अपने मन्दिर जाएँगे; +\q2 वे पहाड़ियों पर स्थित अपने ऊँचे स्थानों पर जाएँगे, और वहाँ वे रोएँगे। +\q1 वे दक्षिण के नबो और मेदेबा के साथ जो हुआ उसके कारण वे विलाप करेंगे; +\q2 यह दिखाने के लिए वे सब अपने सिर के बालों को मूँड़ देंगे, और पुरुष अपनी दाढ़ी को काट देंगे कि वे शोक मना रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 सड़कों पर लोग खुरदरे टाट का वस्त्र पहने हुए होंगे, +\q2 और सब लोग उनकी समतल छतों पर और शहर के चौकों में +\q1 उनके चेहरे से नीचे गिरते हुए आँसुओं के साथ विलाप करेंगे। +\q1 +\v 4 हेशबोन शहर और मोआब के उत्तर में एलाले नगर के लोग पुकारेंगे; +\q2 दक्षिण में जहाज नगर जितनी दूर तक लोग उन्हें विलाप करते सुनेंगे। +\q1 इसलिए मोआब के सैनिक थरथराएँगे और पुकारेंगे, +\q2 और वे बहुत डरेंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा मोआब के लोगों के लिए बहुत खेद करते हैं; +\q2 वे दूर दक्षिण में सोअर और एग्लत शलीशिया के नगरों में भाग जाएँगे। +\q2 वे लूहीत शहर की ओर बढ़ते हुए रोएँगे। +\q1 होरोनैम नगर जाने वाली सड़क पर सब लोग शोक करेंगे +\q2 क्योंकि उनका देश नष्ट हो गया है। +\q1 +\v 6 निम्रीम की घाटी में पानी सूख जाएगा। +\q2 वहाँ की घास सूख जाएगी; +\q1 सारे हरे पौधे मुर्झा जाएँगे, +\q2 और वहाँ कुछ भी हरा नहीं बचेगा। +\q1 +\v 7 लोग अपनी सम्पत्तियों को बाँध लेंगे +\q2 और उन्हें उठा कर मजनू वृक्षों के नालों के पार ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 8 सम्पूर्ण मोआब देश में लोग रोएँगे; +\q2 दूर दक्षिण में एगलैम तक और उत्तर में बेरेलीम तक लोग उन्हें विलाप करते सुनेंगे। +\q1 +\v 9 मारे गए लोगों के लहू से दीबोन के निकट के सोते लाल हो जाएँगे, +\q2 परन्तु मैं मोआब के लोगों को और भी परेशानी का अनुभव करने दूँगा: +\q1 जो मोआब से बच कर भागने का प्रयास कर रहे हैं उन लोगों पर शेर आक्रमण करेंगे +\q2 और उस देश में रहने वाले लोगों पर भी आक्रमण करेंगे। + +\s5 +\c 16 +\p +\v 1 मोआब के शासक एक-दूसरे से कहेंगे, +\q1 “हमें सेला शहर से यहूदा के शासक को उपहार के रूप में कुछ मेम्ने इस बात के लिए राजी करने को भेजने चाहिए कि वह अपनी सेना को अब हम पर आक्रमण करने की अनुमति न दे। +\q2 हमें उन्हें रेगिस्तान के माध्यम से यरूशलेम में राजा के पास भेजना चाहिए।” +\q1 +\v 2 मोआब की स्त्रियों को अर्नोन नदी के मैदानों में अकेला छोड़ दिया जाएगा; +\q2 वे उन चिड़ियों के समान होंगी जिनको उनके घोंसलों से बाहर धकेल दिया गया है। +\q1 +\s5 +\v 3 वे रोएँगी, “हमारी सहायता करो! +\q2 हमें बताओ कि हमें क्या करना चाहिए! +\q1 हमें पूरी तरह से सुरक्षित करो, +\q2 हम जो हमारे शत्रुओं से दूर भाग रही हैं, +\q1 और हमें धोखा मत दो। +\q1 +\v 4 हम में से उनको तुम्हारे साथ रहने की अनुमति दो जो मोआब से भाग रही हैं; +\q2 हमें हमारे शत्रुओं से छिपा लो जो हमें नष्ट करना चाहते हैं! +\q1 किसी दिन हम पर अत्याचार करने के लिए कोई नहीं होगा, +\q2 और हमारे शत्रु हमारे देश को नष्ट करना बन्द कर देंगे।” +\q1 +\s5 +\v 5 तब यहोवा किसी को राजा बनने के लिए नियुक्त करेंगे +\q2 जो राजा दाऊद के एक वंशज होंगे। +\q2 जब यह व्यक्ति शासन करते हैं, वह दयालु और सच्चा होंगे। +\q1 वह सदा वही करेंगे जो उचित है +\q2 और शीघ्र ही से वह करेंगे जो धार्मिक है। +\q1 +\s5 +\v 6 हम यहूदा के लोगों ने मोआब के लोगों के विषय में सुना है; +\q2 हमने सुना है कि वे बहुत घमण्डी और अभिमानी हैं; +\q1 वे असभ्य हैं, +\q2 परन्तु जो वे अपने विषय में कहते हैं वह सच नहीं है। +\q1 +\v 7 किसी दिन मोआब में रहने वाले सब लोग रोएँगे। +\q2 वे सब शोक करेंगे, +\q1 क्योंकि कीरहरासत शहर में और किशमिश की टिकिया नहीं होंगी। +\q2 परन्तु टिकिया से अधिक, वे वहाँ रहने वाले लोगों के लिए शोक करते हैं, जो सभी मारे गए थे। +\q1 +\s5 +\v 8 हेशबोन के खेतों में फसलें सूख जाएँगी, +\q2 और सिबमा की दाख की बारियाँ भी सूख जाएँगी। +\q1 अन्य राष्ट्रों की सेनाएँ मोआब को नष्ट कर देंगी, +\q2 जो कि एक सुन्दर दाखलता के समान है +\q1 जिसकी शाखाएँ उत्तर में याजेर तक, +\q2 और पूर्व रेगिस्तान तक फैली हुई हैं। +\q1 इसकी शाखाएँ पश्चिम में बहुत दूर, +\q2 मृत सागर के पश्चिमी ओर तक फैली हुई हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 इसलिए मैं याजेर के लिए +\q2 और सिबमा की दाखलताओं के लिए रोऊँगा। +\q1 मैं तुम सबके लिए आँसू बहाऊँगा। +\q1 मैं रोऊँगा क्योंकि अब लोग प्रसन्नता से नहीं चिल्लाएँगे, जैसे वे आमतौर पर करते हैं +\q2 जब वे उस फल और अन्य फसलों को इकट्ठा करते हैं जो गर्मी में उगती है। +\q1 +\v 10 अब लोग कटनी के समय में आनन्दित नहीं होंगे। +\q2 दाख की बारियों में कोई भी नहीं गाएगा; +\q1 कोई भी प्रसन्नता से नहीं चिल्लाएगा। +\q2 कोई भी दाखमधु के लिए अँगूर का रस पाने के लिए अँगूरों पर नहीं चलेगा; +\q2 वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं होगा जिसके लिए प्रसन्नता से चिल्लाया जाए। +\q1 +\s5 +\v 11 मैं मोआब के लिए अपने भीतरी मन में रोता हूँ; +\q2 मेरा कराहना वीणा पर बजाए जाने वाले एक दुखद गीत के समान है। +\q1 कीरहरासत के लिए मैं मेरे अंतर्मन में दुखी हूँ। +\q1 +\v 12 मोआब के लोग अपने ऊँचे स्थानों पर जा कर प्रार्थना करेंगे, +\q2 परन्तु इससे उनकी सहायता नहीं होगी। +\q1 वे अपने देवताओं के सम्मुख अपने मन्दिरों में रोएँगे, +\q2 परन्तु कोई भी उन्हें बचाने में सक्षम नहीं होगा। +\p +\s5 +\v 13 यहोवा ने मोआब के विषय में उन बातों को पहले ही कहा है। +\v 14 परन्तु अब वह कहते हैं कि अब से ठीक तीन वर्ष में, वह उन सब चीजों को नष्ट कर देंगे जिन पर मोआब के लोगों को गर्व है। भले ही अभी मोआब में उनके पास बड़ी संख्या में लोग हैं, केवल कुछ ही लोग जीवित रहेंगे, और वे निर्बल हो जाएँगे। + +\s5 +\c 17 +\p +\v 1 यशायाह ने इस सन्देश को अराम की राजधानी दमिश्क के विषय में यहोवा से प्राप्त किया: +\q1 “ध्यान से सुनो! दमिश्क अब एक शहर नहीं होगा; +\q2 यह केवल खण्डहरों का ढेर होगा! +\q1 +\v 2 अरोएर शहर के पास के नगरों को त्याग दिया जाएगा। +\q2 भेड़ों के झुण्ड सड़कों में घास खाएँगे और वहाँ लेटे रहेंगे, +\q2 और उन्हें भगा देने के लिए वहाँ कोई भी नहीं होगा। +\q1 +\v 3 इस्राएल के शहरों में उनके चारों ओर उनकी रक्षा करने के लिए दीवारें नहीं होंगी। +\q2 दमिश्क के राज्य की शक्ति समाप्त हो जाएगी, +\q2 और अराम में बचे हुए कुछ लोग अपमानित होंगे जैसे इस्राएल के लोगों को अपमानित किया गया था।” +\q1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 “उस समय, इस्राएल महत्वहीन हो जाएगा। +\q2 यह एक ऐसे मोटे व्यक्ति के समान होगा जो बहुत पतला हो गया है। +\q1 +\v 5 सम्पूर्ण देश ऐसे खेत के समान होगा जहाँ कटाई करने वालों ने सारा अनाज काट दिया हो; +\q2 सभी फसलों की कटाई के बाद, +\q2 रपाईम की घाटी के खेतों के समान कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 6 इस्राएली लोगों में से केवल कुछ ही बचे रहेंगे, +\q2 जैसे श्रमिकों द्वारा अन्य सब जैतूनों को हिला कर भूमि पर गिरा दिए जाने के बाद कुछ जैतून एक पेड़ के शीर्ष पर बचे रहते हैं। +\q1 शीर्ष शाखाओं में केवल दो या तीन जैतून होंगे, +\q2 या अन्य शाखाओं पर चार या पाँच जैतून।” +\q1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहते हैं। +\q1 +\v 7 तब उस समय, तुम इस्राएल के लोग परमेश्वर, तुम्हारे निर्माता, +\q2 इस्राएल के एकमात्र पवित्र पर भरोसा करोगे। +\q1 +\s5 +\v 8 अब तुम अपनी मूर्तियों से सहायता प्राप्त करना नहीं चाहोगे +\q2 या उन मूर्तियों की उपासना करना नहीं चाहोगे जिन्हें तुमने अपने हाथों से बनाया है। +\q1 तुम कभी भी उन खम्भों के सामने नहीं झुकोगे जहाँ तुमने देवी अशेरा की उपासना की थी। +\q2 तुम मूर्तियों को धूप जलाने के लिए तुम्हारे द्वारा बनाए गए ऊँचे स्थानों पर कभी भी उपासना नहीं करोगे। +\p +\v 9 इस्राएल के सबसे बड़े शहरों को उस देश के समान त्याग दिया जाएगा, जिसे हिब्बी और आमोर लोगों के समूहों ने त्याग दिया था जब इस्राएलियों ने बहुत पहले उन पर आक्रमण किया था। कोई भी मनुष्य वहाँ नहीं रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 10 ऐसा होगा क्योंकि तुमने परमेश्वर की आराधना करना बन्द कर दिया है, +\q2 जो शीर्ष पर एक विशाल चट्टान के समान है जिससे तुम सुरक्षित हो सकते हो। +\q1 तुम भूल गए हो कि एकमात्र वही हैं जो तुमको छिपा सकते हैं। +\q1 इसीलिए अब तुम बहुत अच्छी दाखलताएँ लगाते हो +\q2 और यहाँ तक कि असामान्य लोग भी जो अन्य देशों से आते हैं। +\q1 +\v 11 परन्तु यहाँ तक कि यदि तुम्हारे उनको रोपने के दिन में ही उसमें पत्ते उग आते हैं, +\q2 और यहाँ तक कि यदि उसी सुबह उसमें कलियाँ खिल आती हैं, +\q1 तो कटाई के समय, तुम्हारे लिए चुनने के लिए वहाँ कोई अँगूर नहीं होगा। +\q2 जो कुछ तुमको मिलेगा वह बहुत सन्ताप और पीड़ा है। +\q1 +\s5 +\v 12 सुनो! कई राष्ट्रों की सेनाएँ इस प्रकार गर्जन करेंगी जिस प्रकार समुद्र गर्जन करता है। +\q2 यह उठती गिरती लहरों के शोर के समान आवाज करेंगी। +\q1 +\v 13 परन्तु भले ही उनकी भयंकर गर्जन उठती गिरती लहरों की आवाज के समान होगी, +\q2 जब यहोवा उन्हें डाँटते हैं, तो वे दूर भाग जाएँगे। +\q1 वे हवा चलने पर पर्वत की भूसी के समान उड़ कर बिखर जाएँगे, +\q2 जैसे आँधी चलने पर खरपतवार बिखर जाती है। +\q1 +\v 14 और भले ही तुम इस्राएल के लोग भयभीत हो जाओगे, +\q2 सुबह होने पर तुम्हारे शत्रु सभी चले जाएँगे। +\q1 उन लोगों के साथ यही होगा जो हमारे देश पर आक्रमण करते हैं और हमारी सम्पत्ति चुराते हैं। + +\s5 +\c 18 +\q1 +\p +\v 1 तुम इथियोपिया के लोगों के साथ भयानक बातें घटित होंगी! +\q2 तुम्हारे देश में नील नदी के ऊपरी भाग में कई नावें हैं। +\q1 +\v 2 तुम्हारे शासक ऐसे राजदूतों को भेजते हैं जो सरकण्डों की नावों को नदी में बहुत शीघ्र ही चलाते हैं। +\q1 अपने दूतों को शीघ्र ही से जाने के लिए कहो! +\q1 उन लोगों के पास जाओ जो लम्बे हैं और जिनकी खाल चिकनी है। +\q2 हर जगह के लोग उन लोगों से डरते हैं, +\q1 क्योंकि वे अन्य राष्ट्रों को जीत लेते और नष्ट कर देते हैं; +\q2 वे ऐसे देश में रहने वाले लोग हैं जो नदियों को विभाजित करता है। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम दूतों को संसार के लोगों को बताना चाहिए, +\q2 हर जगह में रहने वाले सब लोगों को, +\q1 “देखो, जब पर्वत के शीर्ष पर युद्ध का झण्डा ऊँचा उठाया जाता है, +\q1 और सुनो, जब मेढ़े के सींग को +\q2 संकेत देने के लिए फूँका जाता है कि लड़ाई आरम्भ होने वाली है।” +\s5 +\v 4 सुनो, क्योंकि यहोवा ने मुझे यह बताया है: +\q2 “मैं वहाँ से चुप चाप देखूँगा, जहाँ मैं रहता हूँ। +\q1 मैं गर्मियों के दिन में उठने वाली टिमटिमाती गर्मी के समान चुप चाप देखूँगा। +\q2 मैं गर्मी के दौरान फसल को स्थिर करने वाले धुंध के बादल के समान प्रभावी ढंग से कार्य करूँगा। +\v 5 फसल से पहले, किसान कलियाँ बनाती दाखलताओं को और बढ़कर अँगूरों में बदलते फूलों को देखता है, +\q2 और वह जानता है कि नई वृद्धि को और फैली हुई शाखाओं को काट डालने का यह सही समय है जो वृक्ष को मजबूत होने से रोकते हैं। +\q1 इसी तरह से मुझे पता है कि इस देश के विरुद्ध कार्यवाही करने का समय कब सही है, और मैं इस पर आक्रमण करने के लिए एक सेना भेजूँगा। +\q1 +\s5 +\v 6 उस देश की सेना के सब सैनिक मारे जाएँगे, +\q2 और उनकी लाशें खेतों में गिद्धों के लिए उनका माँस खाने को गर्मी में पड़ी रहेंगी। +\q1 फिर जंगली जानवर पूरी सर्दी के दौरान उनकी हड्डियों को चबाएँगे।” +\p +\v 7 उस समय, उस राष्ट्र के लोग जो नदियों को विभाजित करता है, वे यरूशलेम में यहोवा के लिए उपहार ले कर आएँगे। +\q1 वे लोग लम्बे हैं और उनकी खाल चिकनी है; हर जगह के लोग उन लोगों से डरते हैं, +\q2 क्योंकि वे अन्य राष्ट्रों को जीत लेते और नष्ट करते हैं, +\q1 वे यरूशलेम में उपहार ले कर आएँगे, वह शहर जहाँ स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, रहते हैं। + +\s5 +\c 19 +\p +\v 1 यशायाह ने मिस्र के विषय में यहोवा से यह सन्देश प्राप्त किया: +\q1 इसे सुनो! मैं, यहोवा, मिस्र की ओर, +\q2 एक तेजी से चलने वाले बादल पर सवार होकर आ रहा हूँ। +\q1 जब मैं प्रकट होता हूँ तो मिस्र की मूर्तियाँ डर जाएँगी, +\q2 और मिस्र के लोग अत्यंत भयभीत होंगे। +\q1 +\v 2 मैं मिस्र के लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध लड़वा दूँगा: +\q2 पुरुष अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ेंगे, +\q2 पड़ोसी एक दूसरे के विरुद्ध लड़ेंगे, +\q2 एक शहर के लोग दूसरे शहर के लोगों के विरुद्ध लड़ेंगे, +\q2 एक प्रान्त के लोग दूसरे प्रान्त के लोगों के विरुद्ध लड़ेंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 मिस्र के लोग बहुत निराश हो जाएँगे, +\q2 और मैं उनकी योजनाओं को सफल नहीं होने दूँगा। +\q1 वे मूर्तियों से और जादूगरों से और मरे हुए लोगों की आत्माओं के साथ बात करने वालों से उन्हें यह बताने के लिए याचना करेंगे +\q2 कि उन्हें क्या करना चाहिए। +\q1 +\v 4 तब मैं किसी ऐसे व्यक्ति को उनका राजा बनने के लिए सक्षम करूँगा जो उनसे बहुत क्रूरतापूर्वक व्यवहार करेगा। +\q1 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 किसी दिन नील नदी का पानी सूख जाएगा, +\q2 और नदी के ताल बहुत शुष्क हो जाएगा। +\q1 +\v 6 नदी से निकलने वाली सब छोटी नदियाँ सूख जाएँगी। +\q1 नदी के साथ की नहर +\q2 मुर्झाई हुई और सड़ी हुई नरकट और सरकण्डों के कारण से डूब जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 7 नदी के किनारे के सब पौधे और नदी के किनारे के खेतों की सारी फसलें सूख जाएँगी; +\q2 तब उनको दूर उड़ा दिया जाएगा और वे गायब हो जाएँगे। +\q1 +\v 8 मछुआरे नदी में बंसी डालते हैं उन पर अंकुड़े लगाएँगे और जाल फेंक देंगे, +\q2 और फिर वे चिल्लाएँगे और बहुत निराश होंगे; +\q2 वे उदास होंगे क्योंकि नदी में कोई मछली नहीं होगी। +\q1 +\s5 +\v 9 जो लोग करघे से कपड़े बुनवाते हैं उन्हें पता नहीं होगा कि क्या करना है +\q2 क्योंकि उनके लिए बुनाई के लिए कोई धागा नहीं होगा। +\q1 +\v 10 वे सब निराश होंगे +\q2 और बहुत निरुत्साहित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 उत्तरी मिस्र के सोअन शहर के अधिकारी मूर्ख हैं। +\q2 उनके द्वारा राजा को दी गई सलाह बेकार थी। +\q1 क्यों वे राजा को बताना जारी रखते हैं कि वे बुद्धिमान हैं, +\q2 कि वे बुद्धिमान राजाओं के वंशज हैं जो बहुत पहले रहते थे? +\q1 +\v 12 हे राजा, अब तुम्हारे बुद्धिमान सलाहकार कहाँ हैं? +\q2 यदि तुम्हारे पास कोई बुद्धिमान सलाहकार थे, तो वे तुमको बता सकते थे कि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने मिस्र के साथ क्या करने की योजना बनाई है! +\q1 +\s5 +\v 13 हाँ, सोअन के अधिकारी मूर्ख बन गए हैं, +\q2 और उत्तरी मिस्र में मेम्फिस शहर के अगुवों ने स्वयं को धोखा दिया है। +\q1 लोगों के सब अगुवों ने अपने लोगों को गलत कार्य करने दिए हैं। +\q1 +\v 14 यहोवा ने उन्हें बहुत मूर्ख बना दिया है, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप हर एक कार्य में जो वे करते हैं, ऐसा लगता है जैसे मानों मिस्र के लोग ऐसे लड़खड़ाते हैं +\q2 जिस प्रकार एक शराबी व्यक्ति लड़खड़ाता है और अपनी स्वयं के उल्टी में फिसल जाता है। +\q1 +\v 15 मिस्र में ऐसा कोई भी नहीं है, चाहे धनवान या गरीब, महत्वपूर्ण या महत्वहीन, जो उनकी सहायता करने में सक्षम होगा। +\p +\s5 +\v 16 उस समय, मिस्र के लोग स्त्रियों के समान असहाय होंगे। वे भयभीत होकर थरथराएँगे क्योंकि वे जानते हैं कि उन पर प्रहार करने के अभिप्राय से स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने अपना घूँसा उठाया है। +\v 17 मिस्र के लोग यहूदा के लोगों से डरेंगे, और जो कोई यहूदा के विषय उनको में बताता है, वह उन्हें भयभीत कर देगा, क्योंकि इससे उन्हें स्मरण आएगा कि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा उनके साथ क्या करने की योजना बना रहे हैं। +\p +\s5 +\v 18 उस समय, मिस्र के पाँच शहरों में रहने वाले लोग गम्भीर रूप से घोषणा करेंगे कि वे यहोवा की सेवा करेंगे। वे इब्रानी भाषा बोलना सीखेंगे। उन शहरों में से एक को “सूर्य का शहर” कहा जाएगा। +\p +\s5 +\v 19 उस समय, मिस्र के बीचों बीच यहोवा की आराधना करने के लिए एक वेदी होगी, और मिस्र और इस्राएल के बीच की सीमा पर यहोवा का सम्मान करने के लिए एक खम्भा होगा। +\v 20 यह संकेत देने का एक चिन्ह होगा कि मिस्र देश में स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा की आराधना की जाती है। और जब लोग यहोवा को उनकी सहायता करने के लिए पुकारते हैं क्योंकि दूसरे उन पर अत्याचार कर रहे हैं, तो वह किसी को उनके पास भेजेंगे जो उनकी रक्षा करेगा और उन्हें बचाएगा। +\s5 +\v 21 यहोवा मिस्र के लोगों को यह जानने के लिए सक्षम करेंगे कि वह कौन हैं। उस समय वे स्वीकार करेंगे कि वह परमेश्वर हैं। वे उसकी आराधना करेंगे और उसके पास अन्न-बलि और अन्य बलिदान ले कर आएँगे। वे गम्भीरता से यहोवा के लिए कार्य करने का प्रतिज्ञा करेंगे, और जो भी प्रतिज्ञा वे करते हैं उसे वे करेंगे। +\v 22 यहोवा के मिस्र को दण्डित करने के बाद, वह उनकी परेशानियों को समाप्त कर देंगे। मिस्र के लोग यहोवा के पास जाएँगे, और जब वे सहायता के लिए उससे अनुरोध करेंगे तो वह सुनेंगे, और वह उनकी परेशानियों को समाप्त कर देंगे। +\p +\s5 +\v 23 उस समय, मिस्र और अश्शूर के बीच एक राजमार्ग होगा। जिसके परिणामस्वरूप, मिस्र के लोग अश्शूर की ओर सरलता से यात्रा करने में सक्षम होंगे, और अश्शूर के लोग मिस्र की ओर सरलता से यात्रा करने में सक्षम होंगे। और दोनों देशों के लोग यहोवा की आराधना करेंगे। +\s5 +\v 24 और इस्राएल उनका सहयोगी होगा। ये सब तीन राष्ट्र एक-दूसरे से मित्रतापूर्ण होंगे, और इस्राएल के लोग पूरे संसार के लोगों के लिए एक आशीर्वाद होंगे। +\v 25 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, उन्हें आशीर्वाद देंगे; वह कहेंगे, “तुम मिस्र के लोग अब मेरे लोग हो। तुम हे अश्शूर के लोगों, मैंने तुम्हारा देश स्थापित किया है। तुम इस्राएल के लोग वे लोग हैं जिन्हें मेरे लोग होने के लिए मैंने चुना है।” + +\s5 +\c 20 +\p +\v 1 जिस वर्ष अश्शूर के राजा सर्गोन ने अपनी सेना के मुख्य सरदार को अपने सैनिकों को ले जा कर पलिश्त के अश्दोद शहर पर अधिकार करने के लिए भेजा। उस समय, +\v 2 यहोवा ने यशायाह से कहा, “जो खुरदरे टाट का वस्त्र आपने पहना हुआ है उसे उतार दो और अपनी जूतियों को उतार दो।” इसलिए यशायाह ने ऐसा किया, और फिर वह तीन वर्षों तक नंगे शरीर और नंगे पैर इधर उधर घूमते रहे। +\p +\s5 +\v 3 तब यहोवा ने यहूदा के लोगों से यह कहा: “मेरा दास यशायाह पिछले तीन वर्षों से नंगे शरीर और नंगे पैर चारों ओर घूम रहे हैं। यह उन भयानक विपत्तियों को दिखाता है जिनका मैं मिस्र और इथियोपिया के लोगों को सामना करने दूँगा। +\v 4 जो होगा वह यह है कि अश्शूर के राजा की सेना उन देशों पर आक्रमण करेगी और बहुत से लोगों को बन्धक बना लेगी और उन्हें अपने बन्दियों के रूप में ले जाएगी। वे उन सभी को नंगे शरीर और नंगे पैर चलने के लिए विवश करेंगे, जिनमें युवा और वृद्ध दोनों सम्मिलित हैं। वे उन्हें उनके कूल्हों के चारों ओर कोई कपड़ा नहीं पहनने के लिए विवश करेंगे, जिससे मिस्र के लोगों को लज्जित होना पड़ेगा। +\s5 +\v 5 तब अन्य देशों के वे लोग बहुत हताश और भयभीत होंगे, जिन्होंने भरोसा किया था कि मिस्र और इथियोपिया की सेनाएँ उनकी सहायता करने में सक्षम होंगी। +\v 6 वे कहेंगे, ‘हमने सोचा था कि मिस्र और इथियोपिया की सेनाएँ हमारी सहायता करेंगी और हमारी रक्षा करेंगी, परन्तु वे नष्ट हो गए हैं, इसलिए ऐसा कोई रास्ता नहीं है जिससे कि हम अश्शूर के राजा की सेना द्वारा नष्ट होने से बच सकें!’” + +\s5 +\c 21 +\p +\v 1 यहोवा ने एक देश के शीघ्र ही एक रेगिस्तान बनने के लिए विषय में यह सन्देश दिया: +\q1 शीघ्र ही दक्षिणी यहूदिया के जंगल से उस देश पर आक्रमण करने के लिए एक सेना आएगी; +\q2 वे एक ऐसी सेना है जो उनके शत्रुओं को भयभीत कर देती है, +\q2 एक ऐसी सेना जो एक भयानक देश से ले कर जंगल के माध्यम से सफाया करती हुई आएगी। +\q1 +\v 2 यहोवा ने मुझे एक भयानक दर्शन दिखाया: +\q1 दर्शन में मैंने एक सेना देखी +\q2 जो लोगों को धोखा देगी और उन्हें जीतने के बाद उनकी सम्पत्ति चुराएगी। +\q1 यहोवा ने कहा, “तुम एलाम और मादी की सेनाओं, बाबेल के चारों ओर से घेर लो और आक्रमण करने के लिए तैयार हो! +\q2 मैं ऐसी चिल्लाहट और पीड़ा को पैदा करूँगा जिससे बाबेल समाप्त हो जाएगा!” +\q1 +\s5 +\v 3 इसके कारण, मेरा शरीर दर्द से भरा हुआ है; +\q2 मेरा दर्द उस दर्द के समान है जो स्त्रियाँ जन्म देते समय अनुभव करती हैं। +\q1 जब मैंने उसके विषय में सुना और देखा कि परमेश्वर क्या करने की योजना बना रहे हैं, +\q2 तो मैं चौंक गया। +\q1 +\v 4 मेरा हृदय मेरे भीतर थरथराता है, और मैं भय से काँपता हूँ। +\q2 शाम का समय मेरा दिन का पसंदीदा समय है, +\q2 परन्तु अब भय छा गया है और मुझे डर लगता है। +\q1 +\s5 +\v 5 दर्शन में मैंने देखा कि बाबेल के अगुवे एक बड़ी दावत की तैयारी कर रहे थे। +\q2 उन्होंने लोगों के बैठने के लिए गलीचा फैलाया था; +\q2 हर कोई खा रहा था और पी रहा था। +\q1 परन्तु हे बाबेल के राजकुमारों, तुमको उठना चाहिए और अपनी ढाल को तैयार करना चाहिए, +\q2 क्योंकि तुम पर आक्रमण होने वाला है! +\p +\s5 +\v 6 तब यहोवा ने मुझसे कहा, +\q1 “यरूशलेम की दीवार पर एक पहरेदार बैठाओ, +\q2 और जो भी वह देखता है उसे चिल्लाकर बताने के लिए कह। +\q1 +\v 7 उसे बाबेल से आने वाले घोड़ों की जोड़ी द्वारा खींचे जाते रथों, +\q2 और ऊँटों की और गधों की सवारी करते पुरुषों का ध्यान रखने के लिए कह। +\q1 पहरेदार को सावधानीपूर्वक देखने और सुनने के लिए कहो!” +\p +\s5 +\v 8 इसलिए मैंने ऐसा किया, और एक दिन पहरेदार चिल्लाया, +\q1 “दिन प्रतिदिन मैं इस पहरे के गुम्मट पर खड़ा था, +\q2 और मैंने दिन के दौरान और रात के दौरान पहरा देना जारी रखा है। +\q1 +\v 9 एक व्यक्ति दो घोड़ों द्वारा खींचे जाते रथ में सवारी करता आता है। +\q2 मैंने उसे पुकारा, और उसने उत्तर दिया, +\q1 ‘बाबेल नष्ट हो गया है! +\q2 बाबेल की सब मूर्तियाँ भूमि पर टुकड़े-टुकड़े हुई पड़ी हैं।’” +\q1 +\s5 +\v 10 हे यहूदा में रहने वाले मेरे लोगों, बाबेल की सेना ने तुमको बहुत पीड़ा दी है +\q2 जैसे कि मानों तुम अनाज थे जिसकी दाँवनी की गई और जिसे फटका गया था। +\q1 परन्तु अब स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, जिसकी हम इस्राएली आराधना करते हैं, ने मुझे बाबेल के विषय में जो बताया मैंने तुमको बता दिया है। +\p +\s5 +\v 11 यहोवा ने एदोम के विषय में यह सन्देश दिया: +\q1 एदोम से कोई मुझे पुकार कर यह कह रहा है, +\q2 “हे पहरेदार, रात समाप्त होने से पहले कितना समय लगेगा?” +\q1 +\v 12 पहरेदार ने उत्तर दिया, +\q2 “शीघ्र ही सुबह हो जाएगी, परन्तु उसके बाद, शीघ्र ही रात होगी। +\q1 यदि तुम अपना प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो अभी पूछो, +\q2 और फिर दोबारा वापस आओ।” +\p +\s5 +\v 13 यहोवा ने अरब के विषय में यह सन्देश दिया: +\q1 उत्तर पश्चिम अरब के ददान शहर से कारवाँ में यात्रा करने वाले बटोहियों को यह सन्देश दो, जो वहाँ दूर के क्षेत्रों में छावनी लगाते हैं। +\q1 उन्हें प्यासे लोगों के लिए पानी लाने के लिए कह। +\q2 +\v 14 और तुम लोगों को जो उत्तर पश्चिम अरब में तेमा शहर में रहते हैं, +\q2 उन शरणार्थियों के लिए भोजन लाना है जो अपने शत्रुओं से भाग रहे हैं। +\q1 +\v 15 वे अपने शत्रुओं की तलवारों से न मारे जाने +\q2 और युद्ध में तीर से निशाना न बनाए जाने के विचार से भाग रहे हैं। +\p +\s5 +\v 16 यहोवा ने मुझसे कहा, +\q1 “अब से ठीक एक वर्ष में, +\q2 अरब के केदार क्षेत्र की सारी महानता समाप्त हो जाएगी। +\q1 +\v 17 केवल उनके कुछ ऐसे सैनिक जीवित रहेंगे जो तीर चलाना अच्छी तरह से जानते हैं। +\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, यहोवा, ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 22 +\p +\v 1 यहोवा ने यरूशलेम के विषय में, उस घाटी के विषय में यह सन्देश दिया जहाँ यहोवा ने मुझे यह दर्शन दिखाया था। +\q1 हर कोई अपनी समतल छतों की ओर मूर्खतापूर्वक क्यों भाग रहा है? +\q1 +\v 2 शहर में रहने वाला हर कोई चिल्लाता हुआ सा प्रतीत होता है। +\q2 शहर में बहुत सारी लाशें हैं, +\q1 परन्तु वे अपने शत्रुओं की तलवारों से नहीं मारे गए थे। +\q2 वे युद्धों में नहीं मरे; +\q2 इसके बजाए, वे बीमारियों और भूख से मर गए। +\q1 +\s5 +\v 3 शहर के सभी अगुवे भाग गए। +\q2 परन्तु फिर वे पकड़ लिए गए क्योंकि उनके पास बचाव करने के लिए धनुष और तीर नहीं थे। +\q1 तुम्हारे सैनिकों ने भागने की प्रयास की जबकि शत्रु सेना अभी भी बहुत दूर थी, +\q2 परन्तु वे भी पकड़ लिए गए। +\q1 +\v 4 इसी कारण से मैंने कहा, “मुझे अकेले रोने की अनुमति दो; +\q2 मेरे लोगों के मार डाले जाने के विषय में मुझे सांत्वना देने की प्रयास न करो।” +\q1 +\s5 +\v 5 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने एक समय चुना है जब एक बड़ा उपद्रव होगा, सैनिक बढ़े चले जा रहे हैं, और लोग भयभीत हो रहे हैं, +\q2 घाटी में जहाँ मुझे यह दर्शन मिला। +\q1 यह एक ऐसा समय होगा जब हमारी शहर की दीवारों को चकना चूर कर दिया जाएगा +\q2 और पर्वतों में सहायता के लिए लोगों का रोना सुना जाएगा। +\q1 +\v 6 मादी की एलाम और कीर की सेनाएँ, +\q2 रथ में सवार होकर और ढाल लिए हुए आक्रमण करेंगी। +\q1 +\v 7 हमारी सुन्दर घाटियाँ हमारे शत्रुओं के रथों से भर जाएँगी, +\q2 और रथों को चलाने वाले पुरुष हमारे शहर के फाटकों के बाहर खड़े होंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 परमेश्वर उन दीवारों का गिरा देंगे जो यहूदा के शहरों की रक्षा करती हैं। +\q2 तुम यरूशलेम के लोग “वन का भवन” नामक इमारत में रखे हुए हथियारों को लेने के लिए दौड़ोगे। +\q1 +\v 9 तुम यरूशलेम की दीवारों में कई दरारों को देखोगे। +\q2 तुम शहर के निचले सोते में पानी को एकत्र करोगे। +\q1 +\s5 +\v 10 तुम यरूशलेम में घरों का निरीक्षण करोगे, +\q2 और शहर की दीवार की मरम्मत के लिए पत्थरों का उपयोग करने के लिए उनमें से कुछ को तुम गिरा दोगे। +\q1 +\v 11 शहर की दीवारों के बीच तुम पुराने सोते से पानी को एकत्र करने के लिए एक जलाशय का निर्माण करोगे। +\q1 परन्तु तुम कभी भी उस एकमात्र से सहायता का अनुरोध नहीं करोगे जिसने शहर बनाया है; +\q2 तुमने कभी यहोवा पर निर्भर नहीं किया है, जिसने बहुत पहले इस शहर की योजना बनाई थी। +\q1 +\s5 +\v 12 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने तुमको रोने और शोक करने के लिए कहा था; +\q2 उसने तुमको अपने सिरों को मुँड़ाने और खुरदरे टाट के वस्त्र पहनने के लिए कहा था +\q1 यह दिखाने के लिए कि तुमने जो पाप किए हैं, उनके लिए तुमको खेद है। +\q1 +\v 13 परन्तु ऐसा करने के बजाए, तुम आनन्दित थे और आनन्दित थे; +\q1 तुमने मवेशियों और भेड़ों को मार डाला +\q2 उनके माँस को पकाने और खाने और दाखमधु पीने के लिए। +\q1 तुमने कहा, “आओ जो कुछ भी हम चाहते हैं उसे खाएँ और पीएँ, +\q2 क्योंकि यह सम्भव है कि हम कल मर जाएँगे!” +\p +\v 14 इसलिए स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने मुझ पर यह प्रकट किया: “मैं इस तरह पाप करने के लिए अपने लोगों को कभी क्षमा नहीं करूँगा!” +\p +\s5 +\v 15 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने मुझसे यह कहा: “महल में कार्य करने वालों की देख-रेख करने वाले अधिकारी शेबना के पास जाओ, और यह सन्देश उसे दे दो: +\q1 +\v 16 ‘तुमको क्या लगता है कि तुम कौन हो? +\q2 तुमको एक सुन्दर मकबरा बनाने का अधिकार किसने दिया है जहाँ तुमको दफनाया जाएगा, +\q2 जिसकी खुदाई तुम इस घाटी के बहुत ऊपर खड़ी चट्टान में कर रहे हो?’” +\q1 +\s5 +\v 17 तुम सोचते हो कि तुम महान मनुष्य हो, परन्तु यहोवा तुमको दूर फेंकने वाले हैं। +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों उन्होंने तुमको पकड़ लिया, +\q1 +\v 18 तुमको लपेट कर एक गेन्द के समान बनाया, +\q2 और तुमको एक दूर देश में फेंक दिया। +\q1 तुम वहाँ मर जाओगे और दफन होओगे, +\q2 और तुम्हारे सुन्दर रथ वहाँ तुम्हारे शत्रुओं के हाथों में रहेंगे। +\q2 और तुम्हारे साथ जो होता है, उससे तुम्हारा गुरु, राजा, बहुत लज्जित होगा। +\q1 +\v 19 यहोवा कहते हैं, “मैं तुमको महल में कार्य करना छोड़ देने के लिए करूँगा; +\q2 तुमको विवश करके अपने महत्वपूर्ण पद से बाहर कर दिया जाएगा। +\p +\s5 +\v 20 तब मैं तुम्हारा स्थान लेने के लिए हिल्किय्याह के पुत्र एलयाकीम को बुलाऊँगा, जिसने अच्छी तरह से मेरी सेवा की है। +\v 21 मैं उसे तुम्हारे वस्त्र पहनने को दूँगा और चारों ओर लपेटने को तुम्हारा कमरबन्द दूँगा, और मैं उसे उस वह अधिकार को दूँगा जो तुम्हारे पास था। वह यरूशलेम के लोगों और यहूदा के अन्य सब नगरों के पिता के समान होगा। +\v 22 मैं उसे राजा दाऊद के निवास वाले महल में जो कुछ होता है, उस पर अधिकार दूँगा; जब वह कुछ तय करता है, तो कोई इसका विरोध नहीं कर पाएगा; जब वह कुछ करने से मना कर देता है, तो कोई भी उसे वह करने के लिए विवश नहीं कर पाएगा। +\s5 +\v 23 मैं उसके परिवार को बहुत सम्मानित कर दूँगा, क्योंकि मैं उसे महल में कार्य करने वालों की देख-रेख करने वाले के रूप में मजबूती से उसके पद पर रखूँगा, एक कील के समान जो मजबूती से दीवार में घुस गई है। +\v 24 अन्य लोग उसे अधिक उत्तरदायित्व लेने में सक्षम बनाएँगे, जिसके परिणामस्वरूप उसके परिवार के सब सदस्य, यहाँ तक कि सबसे महत्वहीन भी सम्मानित होंगे। +\p +\s5 +\v 25 स्वर्गदूत की सेना के प्रधान, यहोवा, यह भी कहते हैं, “शेबना एक खूँटी के समान है जो दीवार में मजबूती से ठोकी गई है। परन्तु ऐसा समय होगा जब मैं उसे उसके पद से हटा दूँगा; वह अपनी शक्ति खो देगा, और जो कुछ भी उसने प्रोत्साहित किया वह असफल हो जाएगा।” यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है। + +\s5 +\c 23 +\p +\v 1 हे सूर शहर में रहने वाले लोगों, मुझ यशायाह को तुम्हारे लिए यहोवा की ओर से यह सन्देश मिला: +\q1 तुम हे तर्शीश से आने वाले जहाजों के नाविकों, +\q2 रोओ, क्योंकि सूर के बन्दरगाह को और शहर के सभी घरों को नष्ट कर दिया गया है। +\q2 साइप्रस द्वीप में सूर के विषय में सुनाई गई बातें सच हैं। +\q1 +\v 2 तुम लोग जो समुद्र के किनारे रहते हो, तुम सीदोन शहर के व्यापारियों, चुप चाप शोक करो। +\q2 तुम्हारे नाविक तुमको समृद्ध बनाने के लिए समुद्र के पार वहाँ सूर में चले गए थे। +\q1 +\v 3 वे गहरे समुद्र में चले गए +\q2 मिस्र में अनाज मोल लेने के लिए, शीहोर की घाटी से अनाज मोल लेने के लिए। +\q2 यह धन नील नदी से नीचे आया, और, हे सूर, तुम वह जगह थे जहाँ सब राष्ट्रों के लोग व्यापार करते थे। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु अब तुम सीदोन में रहने वाले लोगों को लज्जित होना चाहिए, +\q2 क्योंकि तुमने सूर पर भरोसा किया, जो समुद्र में एक द्वीप पर एक मजबूत किला रहा है। +\q1 सूर एक स्त्री के समान है जो कह रही है, +\q2 “अब ऐसा लगता है कि मैंने किसी भी बच्चे को जन्म नहीं दिया है, +\q2 या किसी पुत्र या पुत्रियों को नहीं पाला है।” +\q1 +\v 5 सूर के साथ जो हुआ है जब मिस्र के लोग सुनते हैं, +\q2 तो वे बहुत दुखी होंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 तर्शीश की यात्रा करो और उन्हें बताओ कि क्या हुआ है; +\q2 तुम लोग जो तट के किनारे रहते हो, रोओ। +\q1 +\v 7 बहुत पुराने सूर शहर में पहले लोग आनन्दित थे। +\q2 सूर के व्यापारियों ने कई दूर देशों में उपनिवेशों की स्थापना की। +\q1 +\s5 +\v 8 सूर के लोगों ने अन्य स्थानों पर राजाओं को नियुक्त किया; +\q2 उनके व्यापारी धनवान थे; +\q1 वे राजाओं के समान शक्तिशाली और धनवान थे। +\q2 किसने सूर के लोगों को इस विपत्ति का सामना करने दिया? +\q1 +\v 9 यह स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा थे, जिन्होंने यह किया; +\q2 उसने सूर में रहने वाले लोगों को अब गर्व नहीं करने के लिए ऐसा किया है, +\q2 तुम लोगों को अपमानित करने के लिए जो पूरे संसार में सम्मानित हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 तुम हे तर्शीश के लोगों, तुमको व्यापार करने के बजाए अपने देश में फसल उगानी चाहिए; +\q2 अपने देश पर फैल जाओ जिस प्रकार बाढ़ आने पर नील नदी मिस्र देश में फैल जाती है, +\q2 क्योंकि अब तुम्हारे जहाजों के लिए सूर में कोई बन्दरगाह नहीं है। +\q1 +\v 11 ऐसा लगता है कि मानों यहोवा ने समुद्र पर अपना हाथ बढ़ाया था +\q2 और पृथ्‍वी के साम्राज्यों को हिला कर रख दिया। +\q1 उसने फीनीके में आदेश दिया +\q2 कि इसके सब किले नष्ट हो जाने चाहिए। +\q1 +\v 12 उसने सीदोन के लोगों से कहा, +\q2 “तुम फिर कभी आनन्दित नहीं होओगे, क्योंकि तुम कुचल दिए जाओगे; +\q1 यहाँ तक कि यदि तुम साइप्रस द्वीप से भाग जाते हैं, +\q2 तुम परेशानियों से बच नहीं पाएँगे; तुम्हारे पास शान्ति नहीं होगी।” +\q1 +\s5 +\v 13 बाबेल में क्या हुआ इसके विषय में सोचो: +\q2 जो उस देश में थे वे लोग गायब हो गए हैं। +\q1 अश्शूर की सेनाओं ने उस देश को एक ऐसा स्थान बना दिया है जहाँ रेगिस्तान से आए जंगली जानवर रहते हैं। +\q1 उन्होंने बाबेल शहर की दीवारों के शीर्ष पर गन्दगी की ढलान बनाई; +\q2 फिर उन्होंने शहर में प्रवेश किया और महलों को तोड़ दिया +\q2 और शहर को मलबे का ढेर बना दिया। +\q1 +\v 14 इसलिए तुम हे तर्शीश के जहाजों के नाविकों, विलाप करो, +\q2 क्योंकि सूर का वह बन्दरगाह नष्ट कर दिया गया है जहाँ तुम्हारे जहाज रुकते थे! +\p +\s5 +\v 15 सत्तर वर्षों के लिए लोग सूर के विषय में भूल जाएँगे, जो कि इतना लम्बा समय है जब तक राजा आमतौर पर जीवित रहते हैं। परन्तु उसके बाद इसे फिर से बनाया जाएगा। जो वहाँ घटित होगा वह ऐसा होगा जो इस गीत में एक वेश्या के साथ हुआ होगा: +\q1 +\v 16 तुम वेश्या, जिसे लोग भूल गए थे, +\q2 अपनी वीणा को अच्छी तरह से बजाओ, +\q1 और कई गीत गाओ, +\q2 कि लोग तुमको फिर से स्मरण रख सकें। +\p +\s5 +\v 17 यह सच है कि सत्तर वर्षों के बाद यहोवा सूर को पुनर्स्थापित करेंगे। उनके व्यापारी कई अन्य देशों से चीजों को मोल ले कर और बेच कर फिर से बहुत सारा पैसा कमाएँगे। +\q1 +\v 18 परन्तु उनका लाभ यहोवा को दिया जाएगा। +\q2 व्यापारी अपने पैसे को एकत्र नहीं करेंगे; +\q1 इसके बजाए, वे इसे यहोवा के लोगों को देंगे, क्योंकि वे उसकी उपस्थिति में जीएँगे, +\q2 कि वे भोजन और अच्छे कपड़े मोल ले सकें। + +\s5 +\c 24 +\q1 +\p +\v 1 किसी दिन यहोवा पृथ्‍वी को नष्ट करने जा रहे हैं। +\q2 वह इसे नष्ट कर देंगे और इसे रेगिस्तान बना देंगे, +\q2 और वह अपने लोगों को तितर-बितर करेंगे। +\q1 +\v 2 वह हर किसी को तितर-बितर करेंगे: +\q2 याजक और सामान्य लोग, +\q2 दास और उनके स्वामी, +\q2 दासियाँ और उनकी स्वामिनी, +\q2 सौदागर और विक्रेता, +\q2 उधारदाता और उधारकर्ता, +\q2 लोग जो पैसे देते हैं और लोग जिन्होंने पैसे लिए हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 पृथ्‍वी पर कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा, जिसका कुछ मूल्य है; +\q2 सब कुछ मूल्यवान नष्ट कर दिया जाएगा। +\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है। +\q1 +\v 4 पृथ्‍वी पर हर एक वस्तु सूख जाएगी और मर जाएगी; +\q2 इसके महत्वपूर्ण लोग निर्बल और महत्वहीन बन जाएँगे। +\q1 +\v 5 पृथ्‍वी यहोवा के लिए अस्वीकार्य हो गई है क्योंकि जो लोग इस पर रहते हैं, उन्होंने उसके नियमों का उल्लंघन किया है; +\q2 उन्होंने उस वाचा को अस्वीकार कर दिया है जिसके लिए उसका अभिप्राय था कि वह सदा के लिए बनी रहे। +\q1 +\s5 +\v 6 इसलिए, यहोवा पृथ्‍वी को श्राप देंगे; +\q2 जो लोग इस पर रहते हैं उन्हें उनके किए गए पापों के कारण दण्डित किया जाना चाहिए। +\q1 वे आग से नष्ट हो जाएँगे, +\q2 और केवल कुछ लोग जीवित बचे रहेंगे। +\q1 +\v 7 दाखलताएँ सूख जाएँगी, +\q2 और दाखमधु बनाने के लिए उनमें कोई अँगूर नहीं होंगे। +\q1 सब लोग जो पहले आनन्दित थे अब कराहेंगे और शोक करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 अब लोग ढफ के साथ हँसमुख गाने नहीं बजाएँगे, +\q2 अब लोग प्रसन्नता से अपनी वीणा नहीं बजाएँगे, +\q2 और अब लोग अपने उत्सवों के दौरान ऊँचा शोर नहीं करेंगे। +\q1 +\v 9 अब लोग दाखमधु पीते समय नहीं गाएँगे, +\q2 और उनके सब नशीले पेय कड़वा स्वाद देंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 नगर और शहर उजाड़ हो जाएँगे; +\q2 हर घर पर चोरों को प्रवेश करने से रोकने के लिए ताला लगाया जाएगा, क्योंकि उनमें से कोई भी नहीं रहेगा। +\q1 +\v 11 दाखमधु की इच्छा में सड़कों पर भीड़ इकट्ठी होंगी; +\q2 पृथ्‍वी पर अब कोई भी आनन्दित नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 12 शहर नष्ट हो जाएँगे, +\q2 और उनके सब फाटक टुकड़ों में चकना चूर हो जाएँगे। +\q1 +\v 13 सम्पूर्ण पृथ्‍वी पर ऐसा ही होगा: +\q2 केवल कुछ ही लोग जीवित बचे रहेंगे, +\q1 जैसा तब होता है जब कार्य करने वाले एक पेड़ से सब जैतून को गिरा देते हैं और केवल कुछ ही पेड़ पर बचते हैं, +\q2 या जब वे अँगूर की कटाई करते हैं और दाखलताओं पर केवल कुछ ही बच जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 पश्चिम में रहने वाले लोग बड़ी प्रसन्नता के साथ गाएँगे; +\q2 वे घोषणा करेंगे कि यहोवा बहुत महान है। +\q1 +\v 15 इस्राएल के पूर्व में रहने वाले लोग यहोवा की स्तुति करेंगे; +\q2 समुद्र के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग यहोवा की स्तुति करेंगे, वह परमेश्वर जिसकी इस्राएली लोग आराधना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 हम पृथ्‍वी के सबसे दूर के स्थानों में लोगों को यहोवा की स्तुति करते सुनेंगे, जो सचमुच धर्मी है। +\q1 परन्तु अब, मैं बहुत दुखी हूँ। +\q2 मेरे लिए विलाप करो, क्योंकि मैं पतला और निर्बल हो गया हूँ। +\q1 भयानक बातें हो रही हैं! +\q2 विश्वासघाती लोग अभी भी हर जगह दूसरों को धोखा देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 तुम हे सम्पूर्ण पृथ्‍वी पर रहने वाले लोगों, +\q2 तुम डर जाओगे, +\q2 और तुम गहरे गड्ढों और जालों में गिर जाओगे। +\q1 +\v 18 जो डर के कारण भागने का प्रयास करते हैं +\q2 वे गहरे गड्ढों में गिर जाएँगे, +\q1 और जो गड्ढे से बाहर निकल आते हैं +\q2 उनको जाल से पकड़ लिया जाएगा। +\q1 आकाश बीच में से खुल जाएगा और मूसलाधार वर्षा गिरेगी; +\q2 पृथ्‍वी की नींवें हिल जाएँगी। +\q1 +\s5 +\v 19 पृथ्‍वी फट कर अलग हो जाएगी और बिखर जाएगी; +\q2 यह हिंसक रूप से हिलेगी। +\q1 +\v 20 यह ऐसा होगा जैसे मानों पृथ्‍वी नशे में चूर व्यक्ति के समान लड़खड़ाएगी; +\q2 यह तूफान में एक झूले के समान हिलेगी। +\q1 यह ढह जाएगी और फिर से उठने में सक्षम नहीं होगी, +\q2 क्योंकि यहोवा के विरुद्ध विद्रोह करने वाले लोगों का अपराध बहुत बड़ा है। +\q1 +\s5 +\v 21 उस समय, यहोवा स्वर्ग में दुष्ट शक्तिशाली प्राणियों को +\q2 और पृथ्‍वी पर दुष्ट राजाओं को दण्ड देंगे। +\q1 +\v 22 वे सब एक साथ इकट्ठे किए जाएँगे और एक बन्दीगृह में फेंक दिए जाएँगे। +\q2 वे उस बन्दीगृह में बन्द हो जाएँगे, +\q1 और बाद में उन्हें दण्डित किया जाएगा। +\q1 +\v 23 उस समय चँद्रमा और सूर्य का प्रकाश कम हो जाएगा; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों वे यहोवा की उपस्थिति में लज्जित हैं, +\q1 क्योंकि वह, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, सिय्योन पर्वत पर, +\q2 अपने लोगों के सब अगुवों की उपस्थिति में प्रतापी रूप से शासन करेंगे। + +\s5 +\c 25 +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, आप मेरे परमेश्वर हो; +\q2 मैं आपका सम्मान करूँगा और आपकी प्रशंसा करूँगा। +\q1 आप अद्भुत कार्य करते हैं; +\q2 आपने बहुत पहले कहा था कि आप उन कार्यों को करेंगे, +\q2 और अब आपने उन्हें किया है जैसा आपने कहा था कि आप करेंगे। +\q1 +\v 2 कभी-कभी आपने शहरों को मलबे के ढेर बना दिया है, +\q2 उन शहरों को जिनके चारों ओर मजबूत दीवारें थीं। +\q1 आपने पराए देशों में महलों को गायब कर दिया है; +\q2 वे कभी भी फिर से नहीं बनाए जाएँगे। +\q1 +\v 3 इसलिए, शक्तिशाली राष्ट्रों में रहने वाले लोग घोषणा करेंगे कि आप बहुत महान हैं, +\q2 और उन राष्ट्रों में रहने वाले लोग जिनके अगुवे किसी पर भी दया नहीं दिखाते हैं, आपको सम्मानित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहोवा, आप एक मजबूत गुम्मट के समान हैं जहाँ असहाय लोग शरण पा सकते हैं, +\q2 एक ऐसी जगह जहाँ अभावग्रस्त लोग परेशानी के समय में जा सकते हैं। +\q1 आप ऐसे स्थान के समान हैं जहाँ लोग तूफान में शरण पा सकते हैं +\q2 और जहाँ वे गर्म धूप से बच कर, छाया में रह सकते हैं। +\q1 लोग हम पर अत्याचार करते हैं और हमें कोई दया नहीं दिखाते हैं, +\q2 वे एक दीवार पर चोट करने वाले तूफान के समान हैं, +\q2 +\v 5 और सूखी भूमि में बहुत तीव्र तपन के समान हैं। +\q1 परन्तु आप विदेशी राष्ट्रों के ऊँचे शोर में रोने वाले लोगों को चुप कर देते हैं। +\q2 जैसे सिर के ऊपर बादल के आने पर हवा ठण्डी हो जाता है, +\q2 आप निर्दयी लोगों को इस विषय में गीत गाने से रोक देते हैं कि वे कितने महान हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, पृथ्‍वी के सब लोगों के लिए यहाँ यरूशलेम में एक अद्भुत दावत तैयार करेंगे। +\q2 यह बहुत मात्रा में अच्छे माँस और अच्छी तरह से पुरानी की हुई दाखमधु वाला एक भोज होगा। +\q1 +\v 7 यहाँ के लोग उदास हैं; +\q2 वे इतने दुखी हैं कि मानों यह एक अँधेरे बादल के समान है जो उन पर लटका हुआ है, +\q2 जैसे किसी का मरने पर उन्हें अनुभव होता है। +\q1 परन्तु यहोवा उन्हें दुखी होने से रुक जाने में सक्षम करेंगे। +\q2 +\v 8 वह सदा के लिए मृत्यु से छुटकारा पाएँगे! +\q1 यहोवा हमारे परमेश्वर अब किसी के मर जाने पर लोगों को शोक नहीं करने देंगे। +\q2 और वह अन्य लोगों को उसके देश और हम उसके लोगों को अपमानित करने और उनका मजाक उड़ाने नहीं देंगे। +\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है! +\p +\s5 +\v 9 उस समय, लोग घोषणा करेंगे, +\q1 “यहोवा हमारे परमेश्वर हैं! +\q2 हम उन पर भरोसा करते हैं, और उन्होंने हमें बचा लिया है! +\q1 यहोवा ने यह किया है, जिन पर हम भरोसा करते हैं; +\q2 हमें आनन्दित होना चाहिए क्योंकि उन्होंने हमें बचा लिया है!” +\q1 +\v 10 यहोवा यरूशलेम की रक्षा करेंगे और उसे आशीर्वाद देंगे। +\q2 परन्तु वह मोआब देश में रहने वाले लोगों को कुचल देंगे; +\q2 वे घास-फूस के समान होंगे जिसे खाद में मिलाया गया है और सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा मोआब के लोगों को धक्का दे कर गिरा देंगे; +\q2 वे एक तैराक के समान होंगे जो अपने हाथों से पानी को नीचे धक्का देते हैं; वे अपने हाथों से गोबर को धक्का देंगे परन्तु इससे कभी बाहर नहीं निकलेंगे। +\q1 वह उन्हें घमण्डी होने से रोक देंगे, +\q2 और वह दिखाएँगे कि जो कुछ भी उन्होंने किया है वह बेकार है। +\q1 +\v 12 वह सेनाओं को मोआब के शहरों के चारों ओर ऊँची दीवारों को तोड़ डालने देंगे; +\q2 वे टुकड़ों में गिरेंगे और धूल में पड़े रहेंगे। + +\s5 +\c 26 +\p +\v 1 किसी दिन, यहूदा में रहने वाले लोग इस गीत को गाएँगे: +\q1 “यरूशलेम का हमारा शहर मजबूत है! +\q2 यहोवा हमारे शहर की रक्षा करते है; +\q2 वह एक दीवार के समान हैं जो इसको चारों ओर घेरे हुए हैं। +\q1 +\v 2 धर्मी लोगों के लिए शहर के फाटकों को खोलो; +\q2 उन लोगों को शहर में प्रवेश करने की अनुमति दो जो निष्ठापूर्वक यहोवा का आज्ञापालन करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 हे यहोवा, जो आप पर भरोसा करते हैं, +\q2 वे जिन्होंने आप पर कभी सन्देह नहीं करना निर्धारित किया हुआ है, +\q2 आप उन्हें उनके अंतर्मनों में पूरी तरह से शान्तिपूर्ण होने में सक्षम बनाएँगे। +\q1 +\v 4 इसलिए सदा यहोवा पर भरोसा रखो, +\q2 क्योंकि वह सदा के लिए एक विशाल चट्टान के समान हैं जिसके शीर्ष पर हम सुरक्षित रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 वह घमण्डी लोगों को नम्र करते हैं +\q2 और उन शहरों को नष्ट कर देते हैं जिनके लोग हठीले हैं। +\q1 वह उन शहरों को धूल में गिर जाने देते हैं। +\q1 +\v 6 जब ऐसा होता है, तो गरीब और पीड़ित लोग खण्डहरों के ऊपर चलेंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु धर्मी लोगों के लिए, +\q2 हे यहोवा, आप वह कार्य करते हैं जो धर्म के हैं; +\q1 ऐसा लगता है कि मानों आप उन मार्गों को सुचारू करते हैं जहाँ वे चलते हैं। +\q1 +\v 8 हे यहोवा, आपके नियमों का पालन करके +\q2 हम दिखाते हैं कि हमारी सहायता के लिए हम आप पर भरोसा करते हैं; +\q1 और जो भी हम अपने अंतर्मनों में चाहते हैं वह यह है कि आपको सम्मानित किया जाएगा। +\q1 +\v 9 सब रातों के दौरान मैं आपको उत्तम रूप से जानने की इच्छा करता हूँ, +\q2 और सुबह होने पर भी मैं आपको साथ रहना चाहता हूँ। +\q1 जब आप पृथ्‍वी पर रहने वाले लोगों का न्याय करने और दण्डित करने के लिए आते हैं +\q2 वे सही कार्य करना सीखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु दुष्टों के प्रति आपको दया से कार्य करना उन्हें अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करता है। +\q1 यहाँ तक कि उन स्थानों पर भी जहाँ लोग धर्म के कार्य करते हैं, दुष्ट लोग बुरे कार्य करते रहते हैं, +\q2 और वे यह नहीं मानते कि आप, यहोवा महान हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 हे यहोवा, ऐसा लगता है कि मानों आपका घूँसा उन्हें मारने के लिए उठाया गया था, +\q2 परन्तु वे इसे जानते नहीं हैं। +\q1 उन्हें दिखाएँ कि आप अपने लोगों की सहायता करने के लिए बहुत उत्सुक हैं। +\q2 यदि आपके शत्रुओं को यह मालूम हो जाएगा, तो वे लज्जित होंगे; +\q1 उन्हें जला डालने के लिए अपनी आग को निकालें क्योंकि वे आपके शत्रु हैं। +\q1 +\v 12 हे यहोवा, हम चाहते हैं कि आप हमारे लिए चीजों को अच्छी तरह से होने देंगे; +\q2 हमने जो कुछ किया है वह वही है जिसे करने में आपने हमें सक्षम किया है। +\q1 +\s5 +\v 13 हे यहोवा, हमारे परमेश्वर, अन्य स्वामियों ने हमारे ऊपर शासन किया है, +\q2 परन्तु आप ही अकेले हैं जिनका हम सम्मान करते हैं। +\q1 +\v 14 जिन्होंने हम पर शासन किया वे अब चले गए हैं; वे मर गए हैं; +\q2 उनकी आत्माओं ने इस पृथ्‍वी को छोड़ दिया है और वे फिर कभी नहीं जीएँगे। +\q1 आपने उन शासकों को दण्डित किया है और उनसे छुटकारा पा लिया है, +\q2 और लोग अब उन्हें स्मरण भी नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 हे यहोवा, आपने हमारे देश को महान बनने में सक्षम बनाया है; +\q2 हम अब अधिक लोग हैं, और हमारे पास अधिक भूमि है, +\q1 इसलिए हम आपको धन्यवाद देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 हे यहोवा, जब हम परेशान थे, हमने आपको हमारी सहायता करने के लिए कहा; +\q2 जब आपने हमें अनुशासित किया, तो हम कठिनाई से आप से कोई प्रार्थना कर पाए थे। +\q1 +\v 17 गर्भवती स्त्रियों के समान जो ऐंठती हैं और चिल्लाती हैं +\q2 जब वे बच्चे को जन्म दे रही होती हैं, +\q2 वैसे ही, हम भी बहुत पीड़ित थे। +\q1 +\s5 +\v 18 हम गर्भवती थे और हमें गम्भीर दर्द था, +\q2 परन्तु इससे कोई अच्छा परिणाम नहीं मिला। +\q1 हमने किसी भी जाति को नहीं बचाया है या उनके शत्रुओं को उन्हें जीतने से नहीं रोका है, +\q2 और संसार के वे लोग जो हमारे शत्रु थे, युद्ध में नहीं गिरते थे। +\q1 +\s5 +\v 19 परन्तु यहोवा के लोग जो मर चुके हैं वे फिर जीवित हो जाएँगे, +\q2 उनकी लाशें जीवित हो जाएँगी! +\q1 तुम जिन लोगों के शरीर कब्रों में लेटे पड़े हैं, उठो और प्रसन्नता से चिल्लाओ! +\q1 तुम, उसके लोग जो मर चुके हो, उसका प्रकाश तुम पर गिरने वाली ओस के समान होगा, +\q2 तुम जो अब उस स्थान पर हो जहाँ मरे हुए लोग हैं; +\q2 वह तुमको फिर से जीवित कर देंगे। +\q1 +\s5 +\v 20 परन्तु अब, हे मेरे साथी इस्राएलियों, घर जाओ +\q2 और अपने द्वार बन्द करो! +\q1 थोड़े समय के लिए छिप जाओ, +\q2 जब तक कि यहोवा का क्रोध शान्त नहीं होता है। +\q1 +\v 21 यह सुनो: यहोवा स्वर्ग से +\q2 पृथ्‍वी पर सभी लोगों को उनके किए गए पापों के लिए दण्डित करने को आएँगे। +\q1 लोग हत्या किए गए लोगों के लहू को देख पाने में सक्षम होंगे; +\q2 अन्त में हर किसी को हत्या के उन सभी अपराधों को पता चलेगा जो उन्होंने किए हैं।” + +\s5 +\c 27 +\q1 +\p +\v 1 उस समय, यहोवा लिव्यातान को दण्डित करेंगे, +\q2 तेजी से चलने वाला राक्षस, +\q1 वह कुंडली वाला साँप जो समुद्र में रहता है। +\q1 यहोवा इसे अपनी धारदार, विशाल और शक्तिशाली तलवार से मार डालेंगे। +\p +\v 2 उस समय, यहोवा कहेंगे, +\q1 “तुम इस्राएली लोगों को, जो एक फलदाई दाखलता के समान हैं, गीत गाना चाहिए! +\q2 +\v 3 मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा +\q2 जिस प्रकार एक किसान सावधानीपूर्वक अपनी फसलों को पानी देता है कि वे अच्छी तरह बढ़ सकें। +\q1 मैं दिन और रात तुम्हारी रक्षा करूँगा, कि कोई भी तुमको हानि नहीं पहुँचाए। +\q1 +\s5 +\v 4 अब मैं अपने लोगों से क्रोधित नहीं हूँ; +\q1 यदि तुम्हारा कोई भी शत्रु तुमको चोट पहुँचाने की प्रयास करता है जैसे कि झाड़ियाँ और काँटे लोगों को चोट पहुँचाते हैं, +\q2 मैं युद्ध में उन पर आक्रमण करूँगा; +\q2 मैं उनसे पूरी तरह से छुटकारा पाऊँगा, +\q1 +\v 5 जब तक कि वे मुझसे उनकी रक्षा करने का अनुरोध नहीं करते हैं; +\q2 मैं दृढ़ता से उन्हें मेरे साथ शान्ति बनाने के लिए आमन्त्रित करता हूँ!” +\q1 +\s5 +\v 6 एक ऐसा समय होगा जब याकूब के वंशज एक ऐसे पौधे के समान समृद्ध होंगे जिसकी जड़ें अच्छी हों; +\q2 वे ऐसे पेड़ों के समान होंगे जिनमें कलियाँ लगती हैं और फूल खिलते हैं और बहुत सारे फल पैदा होते हैं; +\q2 वे जो कुछ करते हैं उससे संसार के सभी लोग आशीषित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 क्या यहोवा ने हम इस्राएलियों को दण्डित किया है +\q2 जैसे उसने हमारे शत्रुओं को दण्डित किया? +\q1 क्या उसने हमें उतना ही दण्डित किया है जितना उसने उन्हें दण्डित किया? +\q1 +\v 8 नहीं, उसने ऐसा नहीं किया है, +\q2 परन्तु उसने हम इस्राएली लोगों को दण्डित किया और हमें बन्धुआई में कर दिया; +\q2 हमें हमारे देश से दूर ले जाया गया +\q2 जैसा कि मानों हम पूर्व से आए एक तूफान से चोटिल किए गए थे। +\q1 +\s5 +\v 9 यहोवा ने हमारे पापों के लिए हमें दण्डित करने +\q2 और हमारे अपराध को हटा देने के लिए ऐसा किया था। +\q1 बन्धुआई में होने के परिणामस्वरूप, इस्राएल में अन्य देवताओं की सभी वेदियों को नष्ट कर दिया जाएगा, +\q2 और हमें उन पापों के लिए क्षमा किया जाएगा जिन्हें हमने किया है। +\q1 वहाँ देवी अशेरा की उपासना करने के लिए और अधिक खम्भे या अन्य देवताओं के लिए धूप जलाने को वेदियाँ नहीं होंगी; +\q2 वे सब तोड़ दी जाएँगी और टुकड़े कर दी जाएँगी। +\q1 +\s5 +\v 10 वे शहर खाली हो जाएँगे जिनके चारों ओर मजबूत दीवारें हैं; +\q2 रेगिस्तान के समान, उनके पास उनमें रहने वाला कोई भी नहीं होगा। +\q1 घरों को त्याग दिया जाएगा, +\q2 और सड़कें खरपतवारों से भरी होंगी। +\q1 बछड़े वहाँ घास खाएँगे और वहाँ लेटे रहेंगे; +\q2 वे पेड़ों की सब पत्तियों को चबा जाएँगे। +\q1 +\v 11 इस्राएली लोग एक पेड़ की सूखी शाखाओं के समान हैं; +\q2 स्त्रियाँ उन्हें तोड़ती हैं और अपने खाना पकाने के बर्तनों के नीचे आग बनाने के लिए उनका उपयोग करती हैं। +\q1 हमारे इस्राएली लोगों को कोई समझ नहीं है; +\q2 इसलिए यहोवा, जिन्होंने उन्हें रचा है, उनके प्रति दया से कार्य नहीं करेंगे +\q2 या उनके प्रति कृपालु नहीं रहेंगे। +\p +\s5 +\v 12 हालाँकि, ऐसा समय होगा जब यहोवा फिर से उन्हें एक साथ इकट्ठा करेंगे; वह उन्हें उन लोगों से अलग करेंगे जिन्होंने उन्हें जीत लिया है, जैसे लोग गेहूँ को भूसी से अलग करते हैं। वह उन्हें पूर्वोत्तर में परात नदी के बीच के देश और मिस्र की दक्षिण-पश्चिम सीमा की नदी से ले कर एक-एक करके इस्राएल में वापस लाएँगे। +\v 13 उस समय, एक तुरही बहुत जोर से फूँकी जाएगी। और जो अश्शूर और मिस्र में बन्धुआई में गए थे और जो लगभग वहाँ मर गए थे, वे उसके पवित्र पर्वत सिय्योन, पर यहोवा की आराधना करने के लिए यरूशलेम लौट आएँगे। + +\s5 +\c 28 +\q1 +\p +\v 1 इस्राएल की राजधानी सामरिया शहर के साथ भयानक बातें होंगी! +\q2 यह एक उपजाऊ घाटी के ऊपर एक पहाड़ी पर स्थित है; +\q1 वहाँ रहने वाले लोग, जो बहुत अधिक दाखमधु पीने से नशे में धुत हो जाते हैं, बहुत गर्व करते हैं; +\q2 यह एक सुन्दर और भव्य शहर है, +\q2 परन्तु किसी दिन वह सुन्दरता एक फूल के समान गायब हो जाएगी जो मुर्झा जाता और सूख जाता है। +\q1 +\v 2 यह सुनो: यहोवा एक बड़ी सेना को इस पर आक्रमण करने को प्रेरित करेंगे। +\q2 उनके सैनिक एक भयंकर मूसलाधार वर्षा या एक बहुत तेज हवा के समान होंगे; +\q1 एक भयंकर बाढ़ के पानी के समान वे हर जगह होंगे, +\q2 और वे सामरिया की इमारतों को तोड़ कर भूमि पर गिरा देंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 सामरिया के लोग गर्व करते हैं, +\q2 परन्तु वहाँ रहने वाले पियक्कड़ जिस किसी भी वस्तु को अद्भुत मानते हैं वह उनके शत्रुओं द्वारा कुचल दिया जाएगा। +\q1 +\v 4 हाँ, उपजाऊ घाटी के ऊपर एक पहाड़ी पर स्थित सामरिया सुन्दर है, परन्तु वह सुन्दरता +\q2 एक फूल के समान गायब हो जाएगी जो मुर्झा जाता और सूख जाता है। +\q1 जब भी कोई व्यक्ति अंजीर पकने के मौसम के आरम्भ में एक अच्छा अंजीर देखता है, तो वह शीघ्र ही से उसे तोड़ कर खा जाता है; +\q2 इसी तरह, जब इस्राएल के शत्रु सामरिया में सभी सुन्दर चीजें देखते हैं, +\q2 वे शीघ्र ही से शहर को जीत लेंगे और उन सभी चीजों को ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 5 उस समय, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, हम इस्राएली लोगों के लिए फूलों के तेजस्वी मुकुट के समान होंगे +\q2 जो बन्धुए होने के बाद अभी भी जीवित हैं। +\q1 +\v 6 वह हमारे न्यायधीशों को निष्पक्ष कार्य करने का इच्छुक बना देंगे +\q2 जब वे लोगों के मामलों का निर्णय करते हैं। +\q1 जब हमारे शत्रु शहर पर आक्रमण करते हैं +\q2 तो वह शहर के फाटकों पर खड़े सैनिकों को दृढ़ता से शहर की रक्षा करने में सक्षम करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु अब, हमारे अगुवे लड़खड़ाते हैं, +\q1 और याजक और भविष्यद्वक्ता भी +\q2 बहुत सारी दाखमधु और अन्य नशीले पेय पीने के कारण घबराते हैं। +\q1 वे न्यायोचित सोचने में सक्षम नहीं हैं; +\q2 वे दर्शन देखते हैं, परन्तु वे समझ नहीं सकते कि उनका क्या अर्थ है; +\q2 वे सही रीति से चीजों का निबटारा करने में असमर्थ हैं। +\q1 +\v 8 उनकी सब मेजें उनकी उल्टी से ढकी हुई हैं; +\q2 हर जगह गन्दगी है। +\q1 +\s5 +\v 9 वह किसको सिखाएँगे कि वे ज्ञान के विषय में जान सकें? +\q2 कौन उनको सुनेगा कि वह उन्हें सबक सिखाएँ जिससे कि वे सीख सकें? +\q1 क्या वह सोचते हैं कि हम ऐसे छोटे बच्चों के समान हैं जो अब दूध नहीं पीते हैं, +\q2 और या फिर हम उन बच्चों के समान हैं जो, बहुत पहले नहीं, दूध छुड़ाए हुए थे? +\q1 +\v 10 वह निरन्तर हमें बताते हैं, ‘ऐसा करो, वैसा करो;’ +\q2 पहले वह हमें एक नियम बताते हैं, फिर दूसरा नियम बताते हैं, +\q2 वह हमें एक समय में केवल एक पंक्ति बताते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 11 इसलिए अब, यहोवा को उन्हें अश्शूरियों को सुनने के लिए विवश करने की आवश्यकता होगी +\q2 जो उनसे ऐसी भाषा में बात कर रहे हैं जिसे वे नहीं समझते हैं। +\q1 +\v 12 यहोवा ने बहुत पहले अपने लोगों से कहा, +\q2 “यह एक ऐसा स्थान है जहाँ तुम आराम कर सकते हो; +\q1 तुम रेगिस्तान के माध्यम से अपनी सारी यात्राओं से थक गए हो, +\q2 परन्तु तुम इस देश में आराम करने में सक्षम होओगे।” +\q1 परन्तु उन्होंने उसकी कही बात पर ध्यान देने से मना कर दिया। +\q1 +\s5 +\v 13 इसलिए यहोवा सामरिया के लोगों को एक समय में एक पंक्ति बताना जारी रखता है, +\q1 “ऐसा करो, वैसा करो,” +\q2 पहला एक नियम और फिर दूसरा नियम। +\q1 परन्तु परमेश्वर ने जो कुछ कहा, उसे अनदेखा करने के कारण, उन पर आक्रमण किया जाएगा और उन्हें पराजित किया जाएगा; +\q2 वे घायल हो जाएँगे और फँस जाएँगे और बन्धक बना लिए जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 14 उस वचन को सुनो जो यहोवा कहते हैं, +\q2 तुम जो यरूशलेम के लोगों पर शासन करते हो, +\q2 तुम जो मेरा ठट्ठा करते हो और मेरा मजाक बनाते हो! +\q1 +\v 15 तुम डींग मारते हो और कहते हो, +\q1 “हमने मृत्यु के साथ एक प्रतिज्ञा की है कि जब मृत्यु की शक्ति हमारे ऊपर आती है, तो यह हमें नहीं पा सकती है। +\q2 हमने अपने झूठे शब्दों को एक आश्रय में बदलने का प्रयास की जिसमें हम छिप सकते थे। +\p +\s5 +\v 16 इसलिए, हमारे परमेश्वर यहोवा यह कहते हैं: +\q1 “यह सुनो! मैं यरूशलेम में किसी ऐसे व्यक्ति को रखने जा रहा हूँ जो नींव के पत्थर के समान हैं, +\q2 वह एक ऐसे पत्थर के समान हैं जिसका परीक्षण यह निर्धारित करने के लिए किया गया है कि यह ठोस है या नहीं। +\q1 वह एक ऐसे मूल्यवान पत्थर के समान होंगे जिस पर घर बनाना सुरक्षित होगा; +\q2 और जो भी उस पर भरोसा करता है वह कभी निराश नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 17 मैं यह पता लगाने के लिए तुम यरूशलेम के लोगों की परीक्षा लूँगा कि क्या तुम न्यायपूर्ण और धार्मिकता के कार्य करोगे, +\q2 मैं तुम्हारे चरित्र को इस तरह मापूँगा, जिस प्रकार मिस्त्री यह निर्धारित करने के लिए एक साहुल की डोरी का उपयोग करता है कि दीवार सीधी और समतल है या नहीं। +\q1 और फिर ओले बरसेंगे! और तुम्हारे पास जो कुछ भी है उसे यह नष्ट कर देंगे। +\q2 तुम्हारा आश्रय नष्ट हो जाएगा क्योंकि यह झूठ की नींव पर बनाया गया है, +\q2 और तूफान का पानी तुम्हारे आश्रय को दूर बहा ले जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 18 मैं उस वाचा को अस्वीकार कर दूँगा जिसे तुमने मृत्यु के साथ बनाया था, +\q2 और मैं उस स्थान के साथ तुम्हारे द्वारा की गई वाचा को समाप्त कर दूँगा जहाँ मरे हुए लोग रहते हैं। +\q1 परन्तु जब विशाल बाढ़ आती है, तो यह तुमको डुबा देगी; +\q2 और दिन प्रतिदिन यह तुम्हारे ऊपर से बहेगी। +\q1 +\v 19 जब बाढ़ आती है, तो यह तुम्हारे ऊपर से ऐसे होकर जाएगी जैसे नदी अपने किनारों से बाहर बहती है और हर जगह बाढ़ से आती है। +\q1 जब अंततः तुम यहोवा के सन्देश को समझते हो, तो यह तुमको सांत्वना नहीं देगा, वरन् भयभीत कर देगा। +\q1 क्योंकि किसी के लेटने के लिए बिस्तर बहुत छोटा है, और किसी के ओढ़ने के लिए चादर बहुत संकरी है। +\s5 +\v 20 तुमने लोगों को यह कहते हुए सुना है, “तुम्हारा बिस्तर बहुत छोटा है, तुम इसमें सो नहीं पाओगे; +\q2 तुम्हारा कंबल बहुत संकरा हैं; वह तुमको ढाँप नहीं पाएगा!” +\q1 +\v 21 यहोवा आएँगे और तुमको पराजित हो जाने देंगे; +\q2 वह तुम्हारे साथ वैसा करेंगे जैसे उसने पराजीम पर्वत पर पलिश्ती सेना के साथ किया था, +\q2 और जैसे उसने गिबोन घाटी में एमोरियों के साथ किया था। +\q1 वह जो कुछ करेंगे वह बहुत अजीब और असामान्य होगा। +\q1 +\s5 +\v 22 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, ने मुझे बताया है कि वह सम्पूर्ण देश को नष्ट करने जा रहा है। +\q1 इसलिए अब मैं जो कहता हूँ उसका उपहास मत करो, +\q2 क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, +\q2 तो वह और भी गम्भीर रूप से तुमको दण्डित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 23 जो मैं कहता हूँ उसे सुनो; +\q2 सावधानीपूर्वक ध्यान दो। +\q1 +\v 24 जब एक किसान किसी भूमि की जुताई करता है, तो क्या वह कभी बीज नहीं बोता? +\q2 क्या वह इसकी जुताई करना ही जारी रखता है और कभी भी कुछ बोता नहीं है? +\q1 +\s5 +\v 25 नहीं, वह भूमि को बहुत समतल बनाता है, +\q2 और फिर वह बीज बोता है— +\q2 सौंफ का बीज और जीरा और गेहूँ और जौ। +\q1 वह हर प्रकार के बीज को सही रीति से बोता है। वह एक प्रकार के बीज को इस तरह के बोता है जो इसके लिए सही नहीं है। +\q1 +\v 26 वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि परमेश्वर ने उसे इसे करने का सही-सही मार्ग सिखाया है। +\q1 +\s5 +\v 27 इसके अतिरिक्त, दाँवने की गाड़ी से सौंफ के बीज की दाँवनी नहीं की जाती है, +\q2 और न ही जीरे के ऊपर गाड़ी का पहिया चलाया जाता है; +\q2 परन्तु सौंफ को एक छड़ी से, और जीरे को एक सोंटे से झाड़ा जाता है। +\q1 +\v 28 और रोटी पकाने के लिए अनाज को सरलता से पीस दिया जाता है, +\q2 इसलिए किसान लम्बे समय तक इसे पीसता ही नहीं रहता है। +\q2 वे कभी-कभी इसकी दाँवनी करने के लिए अपने घोड़ों से इसके ऊपर गाड़ी का पहिया चला देते हैं, +\q1 परन्तु ऐसा करने से अनाज पिस नहीं जाता है। +\q1 +\s5 +\v 29 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, +\q2 हमें कार्यों को करने के विषय में अद्भुत सलाह देते हैं; वह हमें असामान्य बुद्धि देते हैं। +\q1 इसलिए किसान जो करते हैं वह बहुत चतुराई है, परन्तु तुम्हारे अगुवे जो कर रहे हैं वह बहुत मूर्खता है। + +\s5 +\c 29 +\p +\v 1 यह यहोवा की ओर से एक सन्देश है: +\q1 यरूशलेम के साथ भयानक बातें होती हैं, वह शहर जहाँ राजा दाऊद रहता था। +\q2 तुम लोग हर वर्ष अपने त्यौहार मनाते रहते हो। +\q1 +\v 2 परन्तु मैं तुमको एक बड़ी विपत्ति का सामना करवाऊँगा, +\q2 और जब ऐसा होता है, +\q2 लोग रोएँगे और बहुत शोक करेंगे। +\q1 तुम्हारा शहर मेरे लिए एक वेदी के समान बन जाएगा +\q2 जहाँ लोगों को बलिदान के रूप में जला दिया जाता है। +\q1 +\s5 +\v 3 मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे शहर के चारों ओर आकर छावनी लगाने दूँगा; +\q2 वे गुम्मटों का निर्माण करके इसे घेर लेंगे +\q2 और अन्य चीजों को उस जगह पर रख कर जिससे उनको तुम पर आक्रमण करना है। +\q1 +\v 4 तब तुम ऐसे बात करोगे जैसे मानों तुमको भूमि में गहरा दफनाया गया था; +\q2 यह भूमि के नीचे से फुसफुसाते हुए किसी व्यक्ति के समान सुनाई देगा, +\q1 जैसे कोई भूत कब्र से बोल रहा है। +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु अचानक से तुम्हारे शत्रुओं को धूल के समान दूर उड़ा दिया जाएगा; +\q1 उनकी सेना +\q2 हवा से दूर उड़ा दी गई भूसी के समान गायब हो जाएगी। +\q1 यह बहुत अचानक होगा: +\q1 +\v 6 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, तुम्हारी सहायता करने आएँगे +\q1 गड़गड़ाहट और एक भूकम्प और एक बहुत ऊँचे शोर के साथ, +\q2 एक भयंकर हवा और एक बड़े तूफान और एक आग के साथ जो सब कुछ जला देगी। +\q1 +\s5 +\v 7 तब यरूशलेम पर आक्रमण करने वाले सभी राष्ट्रों की सेना शीघ्र ही से रात के एक सपने के समान गायब हो जाएगी। +\q2 जो लोग यरूशलेम पर आक्रमण करने वाले होंगे वे अचानक गायब हो जाएँगे। +\q1 +\v 8 जो लोग भोजन खाने के विषय में सपना देखते हुए सोते हैं, +\q2 परन्तु जब वे जागते हैं, वे अभी भी भूखे हैं। +\q1 प्यासे लोग कुछ पीने का सपना देखते हैं, +\q2 परन्तु जब वे जागते हैं वे अभी भी प्यासे हैं। +\q1 ऐसा ही होगा जब तुम्हारे शत्रु सिय्योन पर्वत पर आक्रमण करने आएँगे; +\q2 वे तुमको जीत लेने के विषय में सपने देखेंगे, परन्तु जब वे जागते हैं, +\q2 वे जान जाएँगे कि वे सफल नहीं हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 तुम हे यरूशलेम के लोगों, इस विषय में चकित और आश्चर्यचकित हो! +\q2 मैंने जो कहा है उस पर विश्वास न करो! +\q1 और जो कुछ यहोवा कर रहे हैं उसके विषय में अंधे बने रहो। +\q2 तुम मूर्ख हो, परन्तु ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि तुमने बहुत दाखमधु पी है। +\q2 तुम लड़खड़ाते हो, परन्तु नशीले पेय पीने से नहीं। +\q1 +\v 10 क्योंकि यहोवा ने अपने सन्देशों को भविष्यद्वक्ताओं को समझने और तुमको देने से रोका है, +\q2 ऐसा लगता है कि मानों उसने तुमको शीघ्र ही से सो जाने वाले कर दिया था। +\p +\s5 +\v 11 यहोवा ने मुझे दर्शन दिए; परन्तु तुम्हारे लिए, वे केवल एक पुस्तक पर शब्द हैं जिसे मुहरबन्द कर दिया गया है। यदि तुम इसे उन लोगों को देते हो जो इसे पढ़ सकते हैं और अनुरोध करो कि वे इसे पढ़ें, तो वे कहेंगे, “हम इसे पढ़ नहीं सकते क्योंकि पुस्तक मुहरबन्द की गई है।” +\v 12 जब तुम इसे दूसरों को देते हो जो पढ़ नहीं सकते हैं, तो वे कहेंगे, “हम इसे पढ़ नहीं सकते क्योंकि हम नहीं जानते कि कैसे पढ़ा जाए।” +\p +\s5 +\v 13 इसलिए यहोवा कहते हैं, “ये लोग मेरी आराधना करने का ढोंग करते हैं। +\q1 वे मुझे सम्मान देने का ढोंग करने के लिए अच्छी बातें कहते हैं, +\q2 परन्तु वे उस विषय में नहीं सोचते जो मैं चाहता हूँ। +\q1 जब वे मेरी आराधना करते हैं, +\q2 तो वे उन सुने हुए नियमों से सारे कार्य करते हैं जिन्हें लोगों ने बनाया है और उन्होंने स्मरण किया है। +\q1 +\v 14 इसलिए, मैं इन लोगों को आश्चर्यचकित करने के लिए फिर से कुछ करूँगा; +\q2 मैं कई चमत्कार करूँगा। +\q1 और मैं दिखाऊँगा कि जो लोग दूसरों को बताते हैं कि वे बुद्धिमान हैं वे वास्तव में बुद्धिमान नहीं हैं, +\q2 और मैं दिखाऊँगा कि जो लोग दूसरों को बताते हैं कि वे बुद्धिमान हैं वे वास्तव में बुद्धिमान नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 उन लोगों के साथ भयानक बातें होंगी जो मुझ, यहोवा, से +\q2 उन बुरे कार्यों को छिपाने का प्रयास करते हैं, जिन्हें करने की वे योजना बनाते हैं; +\q1 वे अँधेरे में उन कर्मों को करते हैं +\q2 और वे सोचते हैं, ‘यहोवा निश्चित रूप से हमें नहीं देख सकते; +\q2 वह नहीं जान सकते कि हम क्या कर रहे हैं!’ +\q1 +\s5 +\v 16 वे अत्यंत मूर्ख हैं! +\q2 वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि वे कुम्हार थे और मैं मिट्टी था! +\q1 जो कुछ बनाया गया था, उसे निश्चित रूप से उस व्यक्ति से कभी नहीं कहना चाहिए जिसने उसे बनाया है, +\q2 ‘तुमने मुझे नहीं बनाया!’ +\q1 एक मर्तबान को कभी नहीं कहना चाहिए, +\q2 ‘वह कुम्हार जिसने मुझे बनाया वह नहीं जानता था कि वह क्या कर रहा था!’” +\q1 +\s5 +\v 17 शीघ्र ही लबानोन के जंगल उपजाऊ खेत बन जाएँगे, +\q2 और उन खेतों में प्रचुर मात्रा में फसलों का विकास होगा, +\q2 और यह बहुत शीघ्र होगा। +\q1 +\v 18 उस समय, बहरे लोग सुन पाने में सक्षम होंगे; +\q2 जब कोई पुस्तक में से पढ़ते हैं तो वे सुन पाने में सक्षम होंगे; +\q1 और अंधे लोग देख पाने में सक्षम होंगे; +\q2 जब धुंध होती है या यहाँ तक कि जब अंधेरा होता है तो वे चीजों को देख पाने में सक्षम होंगे। +\q1 +\v 19 यहोवा विनम्र लोगों को फिर से बहुत प्रसन्न होने में सक्षम करेंगे। +\q2 इस्राएल के एकमात्र पवित्र परमेश्वर ने जो किया है इस बात से गरीब लोग आनन्दित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 20 वहाँ इस प्रकार के कोई लोग नहीं होंगे जो दूसरों का उपहास करते हैं +\q2 और कोई अभिमानी लोग नहीं होंगे। +\q2 और जो लोग बुराई करने की योजना बनाते हैं उन्हें मार डाला जाएगा। +\q1 +\v 21 जो निर्दोष लोगों को दण्डित करने के लिए न्यायधीशों को मनाने के लिए झूठी गवाही देते हैं उनको मिटा दिया जाएगा। +\q2 इसी तरह की बातें उन लोगों के साथ होंगी जो अदालत में झूठ बोल कर न्यायधीशों को अन्यायपूर्ण निर्णय लेने के लिए राजी करते हैं। +\p +\s5 +\v 22 यही कारण है कि यहोवा, जिसने अब्राहम को बचाया, इस्राएल के लोगों के विषय में कहते हैं, +\q1 “मेरे लोग अब लज्जित नहीं होंगे; +\q2 अब वे अपने चेहरे पर नहीं दिखाएँगे कि वे लज्जित हैं। +\q1 +\v 23 जब वे देखते हैं कि मैंने उन्हें कई बच्चे दे कर आशीर्वाद दिया है, और जो कुछ मैंने उनके लिए किया है, +\q2 वे इस्राएल के एकमात्र पवित्र परमेश्वर के पवित्र नाम का सम्मान करेंगे, +\q2 और वे मेरा, उस परमेश्वर का आदर करेंगे जिससे वे, याकूब के वंशज, सम्बन्धित हैं। +\q1 +\v 24 जब ऐसा होता है, तो जो लोग अच्छी तरह से सोचने में सक्षम नहीं हैं वे स्पष्ट रूप से सोचेंगे, +\q2 और मेरे कार्यों के विषय में शिकायत करने वाले लोग, उसे स्वीकार कर लेंगे जो मैं उनको सिखा रहा हूँ।” + +\s5 +\c 30 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “मेरे लोग जो मेरे विरुद्ध विद्रोह करते हैं, तुम्हारे साथ भयानक बातें होंगी। +\q2 तुम योजना बनाते हो, परन्तु जो भी तुम योजना बनाते हो वो वह नहीं है जो मैं चाहता हूँ। +\q1 तुमने मिस्र के शासकों के साथ गठबन्धन किया है, +\q2 परन्तु तुमने मेरी आत्मा से नहीं पूछा था कि यदि वह वही था जो तुमको ऐसा करना चाहिए। +\q2 ऐसा करके, तुमने अपने पापों की संख्या में वृद्धि की है। +\q1 +\v 2 तुम मिस्र गए थे कि उनके शासकों से सहायता के लिए कह सको, +\q2 मेरी सलाह पूछे बिना। +\q1 तुमने तुम्हारी रक्षा करने के लिए मिस्र के राजा की सेना पर भरोसा किया है; +\q1 तुमने उन पर भरोसा किया है +\q2 जैसे लोग सूर्य से स्वयं को बचाने के लिए छाया में बैठते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 परन्तु तुम्हारे मिस्र के राजा पर भरोसा करने का परिणाम यह है कि तुम निराश और अपमानित होंगे; +\q2 क्योंकि तुम उस पर भरोसा करते हो, इसलिए तुम अपमानित होओगे। +\q1 +\v 4 यहूदा के अधिकारी समझौते करने के लिए मिस्र के सोअन और हानेस शहरों में गए हैं, +\q1 +\v 5 परन्तु वे सब लोग अपमानित होंगे, जो मिस्र के राजा पर भरोसा करते हैं, +\q2 क्योंकि वह राष्ट्र तुम्हारी सहायता करने में सक्षम नहीं होगा; +\q1 तुमने उनसे सहायता करने का अनुरोध करके जो समझौता किया है वह बेकार होगा; +\q2 इसके बजाए, परिणाम यह होगा कि तुमको अपमानित और निराश किया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 6 यशायाह ने यहोवा की ओर से इस सन्देश को यहूदा के दक्षिणी भाग के रेगिस्तानी भाग में जानवरों के विषय में प्राप्त किया: +\q1 वह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ लोगों को कई परेशानी और कठिनाईयों का अनुभव होता है, +\q2 एक ऐसा क्षेत्र जहाँ नर और मादा शेर +\q2 और विभिन्न प्रकार के विषैले साँप हैं। +\q1 कारवाँ उस क्षेत्र से +\q2 मूल्यवान वस्तुओं को गधों और ऊँटों पर लादे हुए जाते हैं। +\q1 वे उन्हें मिस्र ले जा रहे हैं क्योंकि वे आशा करते हैं कि मिस्र की सेना उनकी रक्षा करेगी, +\q2 परन्तु यह व्यर्थ होगा। +\q2 +\v 7 मिस्र के राजा द्वारा किए गए वादे बेकार हैं; +\q1 इसलिए मैं मिस्र को ‘बेकार राहाब, समुद्री राक्षस जो कुछ भी नहीं करता बुलाता हूँ।’ +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा ने एक लपेटे हुए पत्र पर मुझे एक सन्देश लिखने के लिए कहा, +\q2 कि यह यहूदा के लोगों के लिए गवाही हो +\q1 जो इसे सदा के लिए सहन करेंगे। +\q1 +\v 9 यह उन्हें स्मरण दिलाएगा कि वे धोखेबाज हैं और सदा यहोवा के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, +\q2 और जो वह उनसे कहते हैं उस पर ध्यान देने से वे मना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 वे उन लोगों से कहते हैं जो यहोवा से दर्शन देखते हैं, +\q2 “दर्शनों को देखना बन्द करो!” +\q1 वे भविष्यद्वक्ताओं से कहते हैं, +\q2 “हम पर यह प्रकट मत करो कि क्या सही है! +\q1 हमें सुखद बातें बताओ; +\q2 हमें उन बातों के विषय में मत बताओ जो सच हैं! +\q1 +\v 11 जो भी तुम कर रहे हो वह करना बन्द करो; +\q2 हमें मत बताओ कि इस्राएल के एकमात्र पवित्र हमसे क्या कहते हैं।” +\p +\s5 +\v 12 इसलिए, इस्राएल के एकमात्र पवित्र ने यही कहा है: +\q1 “तुमने मेरा सन्देश को अस्वीकार कर दिया है, +\q2 और तुम उन लोगों पर भरोसा कर रहे हो जो दूसरों पर अत्याचार करते और धोखा देते हैं। +\q1 +\v 13 इसलिए, मुझे अस्वीकार करने के तुम्हारे पाप का परिणाम यह होगा कि तुम अचानक विपत्तियों का सामना करोगे; +\q2 तुम्हारे साथ ऐसा होगा जैसे कि अचानक एक दरार वाली दीवार तुम पर गिर जाएगी।” +\q1 +\s5 +\v 14 तुम ऐसे चकना चूर हो जाओगे जैसे मिट्टी का मर्तबान गिर जाने पर चकना चूर हो जाता है +\q1 और पूरी तरह से टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप एक टुकड़ा भी इतना बड़ा नहीं बचता +\q2 जिससे एक चुल्हे से राख को बाहर निकाला जाए +\q2 या एक कुएँ से थोड़ा सा पानी ले जाया जाए। +\p +\s5 +\v 15 यहोवा, हमारे परमेश्वर, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, यह भी कहते हैं: +\q1 “मैं तुमको तुम्हारे शत्रुओं से केवल तभी बचाऊँगा यदि तुम पश्चाताप करते हो और जो मैं तुम्हारे लिए करूँगा उस पर विश्वास करते हो; +\q2 तुम केवल तभी मजबूत होओगे जब तुम चिन्ता करना छोड़ देते हो और मुझ पर भरोसा करते हो। +\q1 परन्तु तुम ऐसा नहीं करना चाहते हो। +\q1 +\v 16 तुमने कहा, ‘नहीं, हम उन घोड़ों पर भाग जाएँगे जो मिस्र की सेना हमें देगी!’ +\q2 इसलिए तुम भागने की प्रयास करोगे। +\q1 तुमने कहा, ‘हम तेज घोड़ों पर सवार होकर अश्शूर की सेना से बच जाएँगे!’ +\q2 परन्तु जो लोग तुम्हारा पीछा करते हैं वे भी तेजी से सवारी करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 17 इसके परिणामस्वरूप, तुम में से एक हजार भाग जाएँगे जब उनमें से केवल एक ही तुम्हारा पीछा करेगा! +\q1 जब उनके पाँच सैनिक तुमको मारने की धमकी देते हैं, +\q2 तुम सबके सब भाग जाएँगे। +\q1 तुम में से केवल कुछ ही छोड़े जाएँगे, जैसे पर्वत के शीर्ष पर झण्डे का अकेला डंडा, +\q2 या पहाड़ी की चोटी पर एक अकेले संकेत वाले झण्डे के समान।” +\q1 +\s5 +\v 18 परन्तु यहोवा तुम्हारे प्रति दयालु कार्य करना चाहते हैं; +\q2 वह महान हैं क्योंकि वह दया से कार्य करना चाहते हैं। +\q1 मत भूलना कि वह एक ऐसे परमेश्वर हैं जो न्यायपूर्ण रीति से कार्य करते हैं; +\q2 यहोवा उन लोगों से प्रसन्न हैं जो धैर्यपूर्वक उन पर भरोसा करते हैं। +\p +\v 19 तुम हे यरूशलेम में रहने वाले लोगों, अब किसी दिन तुम नहीं रोओगे। जब तुम सहायता के लिए उसे पुकारते हो तो यहोवा तुम्हारे प्रति दयालु होंगे। जैसे ही वह तुम्हारी पुकार सुनते हैं, वह तुमको उत्तर देंगे। +\s5 +\v 20 हालाँकि अब यहोवा ने तुम पर गरीबी डाली है, वह तुम्हारे शिक्षक, स्वयं को तुमसे छिपाएँगे नहीं। वह तुमको कई चीजों को स्पष्ट रूप से सिखाएँगे। +\v 21 और तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए तुम उनको तुमसे बातें करते सुनोगे। तुम्हारे ठीक पीछे वह कहेंगे, “यह वह सड़क है जिस पर तुमको चलना चाहिए; इस सड़क पर चलो!” +\s5 +\v 22 जब ऐसा होता है, तो तुम अपनी सारी मूर्तियों को नष्ट कर दोगे जो चाँदी या सोने से ढकी हुई हैं। तुम उन्हें ऐसे दूर फेंक दोगे जैसे तुम एक गन्दे कपड़े को फेंक देते हो, और तुम उनसे कहोगे, “हमें अब तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं है!” +\p +\s5 +\v 23 यदि तुम ऐसा करते हो, तो यहोवा तुमको अपनी फसलों को लगाए जाने पर अच्छी वर्षा दे कर आशीर्वाद देंगे। तुम्हारे मवेशियों के खाने के लिए घास के साथ तुम्हारे पास अच्छी उपज और बहुत सारे बड़े खेत होंगे। +\v 24 हवा के भूसी को दूर उड़ा देने के बाद, तुम्हारी भूमि पर हल खींचने वाले बैल और गधे खाने के लिए अच्छा अनाज होगा। +\s5 +\v 25 उस समय, जब तुम्हारे शत्रुओं को हत्या कर दिया जाए और उनके गुम्मटों को गिरा दिया जाए, तो वहाँ यहूदा में हर पहाड़ी और पर्वत से बहने वाली धाराएँ होंगी। +\v 26 चँद्रमा सूर्य के समान उज्ज्वल रूप से चमकता प्रतीत होगा, और सूरज पहले से सात गुणा बढ़कर उज्ज्वल रूप से चमकता प्रतीत होगा। वह इसी प्रकार से होगा जब यहोवा अपने लोगों की पीड़ाओं को समाप्त कर देंगे; यह ऐसा होगा जैसे मानों वह उनके घावों पर पट्टियाँ लगा रहे हैं और उन्हें ठीक कर रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 27 ऐसा लगता है कि मानों हम यहोवा को दूर से आते हुए देखते हैं; +\q2 वह बहुत क्रोध में हैं, +\q1 और उसके चारों ओर धुएँ के घने बादल हैं। +\q2 वह जो कहते हैं उससे वह दिखाते हैं कि वह क्रोध में हैं; +\q2 वह जो कहते हैं वह एक विनाशकारी आग के समान हैं। +\q1 +\v 28 उसकी साँस बाढ़ के समान हैं जो उसके शत्रुओं को उनकी गर्दन तक ढक लेती हैं। +\q2 वह राष्ट्रों में से कुछ को नष्ट करने के लिए उनको अलग करेंगे; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों वह उन पर घोड़ों की लगाम को डाल देंगे कि वह उन्हें विनाश के लिए ले जा सकें। +\q1 +\s5 +\v 29 परन्तु उनके लोग प्रसन्नता से गाएँगे +\q2 जैसे एक पवित्र त्यौहार मनाते हुए वे रात के दौरान गाते हैं। +\q1 वे बहुत आनन्दित होंगे, +\q2 जैसे उनके लोगों के बड़े समूह यरूशलेम में सिय्योन पर्वत पर चढ़ते समय आनन्दित होते हैं, +\q1 बाँसुरी बजाने वाले पुरुषों के साथ +\q जब वे सब वहाँ यहोवा की आराधना करने को जाते हैं। +\q2 वह शीर्ष पर एक विशाल चट्टान के समान है जिससे हम इस्राएली लोग सुरक्षित हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 और यहोवा हमें उसे शक्तिशाली रूप से बोलते हुए सुनने में सक्षम बनाएँगे। +\q2 वह हमें दिखाएँगे कि वह बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 हम उसे उसके शत्रुओं को चकना चूर करते हुए देखेंगे। +\q2 बहुत क्रोध होने के कारण, वह एक बड़ी आँधी और गड़गड़ाहट और ओलों के साथ उन्हें दण्डित करने के लिए उतर आएँगे। +\q1 +\s5 +\v 31 अश्शूर के सैनिक भयभीत होंगे जब वे यहोवा की आवाज़ सुनते हैं +\q2 और जब वह उन्हें अपने सोंटे से मारते हैं। +\q1 +\v 32 और जिस समय यहोवा उन्हें दण्डित करने के लिए उन पर प्रहार करते हैं, +\q2 उसके लोग ढफ और वीणा बजा कर उत्सव मनाएँगे। +\q1 यह ऐसा होगा जैसे मानों यहोवा अपना शक्तिशाली हाथ उठाएँगे और युद्ध में अश्शूर सेना को पराजित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 33 यरूशलेम के बाहर तोपेत की घाटी लम्बे समय से तैयार की गई है; +\q2 यह अश्शूर के राजा के लिए तैयार है; +\q1 उसके शरीर को जलाने के लिए अंतिम संस्कार की चिता चौड़ी और ऊँची है, +\q2 और यह ऐसा होगा जैसे मानों यहोवा अपनी साँस से आग को प्रज्वलित कर देंगे, +\q2 जो जलते हुए गन्धक की धारा के समान बाहर आ जाएगी। + +\s5 +\c 31 +\q1 +\p +\v 1 उन लोगों के साथ भयानक बातें होंगी जो उनकी सहायता करने के लिए मिस्र पर भरोसा करते हैं, +\q2 वे उनके सैनिकों के घोड़ों और उनके बहुत से रथों और उनके कई रथ चालकों पर भरोसा करते हैं, +\q1 बजाए इस पर भरोसा करने के कि इस्राएल के एकमात्र पवित्र, यहोवा, उनकी सहायता करेंगे। +\q1 +\v 2 यहोवा बहुत बुद्धिमान हैं, +\q2 परन्तु वह भी लोगों को विपत्ति का अनुभव करने देते हैं! +\q1 और जब वह ऐसा करने का निर्णय करते हैं, +\q2 तो वह अपना मन नहीं बदलते हैं! +\q1 वह दुष्ट लोगों पर +\q2 और उन सभी पर जो उनकी सहायता करते हैं प्रहार करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 जिन मिस्र के सैनिकों पर तुम यहूदा के लोग भरोसा कर रहे हो, वे मनुष्य हैं, न कि परमेश्वर! +\q2 और उनके घोड़े केवल घोड़े हैं; वे शक्तिशाली आत्माएँ नहीं हैं! +\q1 इसलिए जब यहोवा अपने घूँसे को +\q2 मिस्र के उन सैनिकों पर प्रहार करने के लिए उठाते हैं जिनके लिए तुमने सोचा था कि वे तुम्हारी सहायता करेंगे, +\q2 वह तुम पर भी प्रहार करेंगे जिन्होंने सोचा था कि तुमको सहायता मिलेगी, +\q2 और तुम और वे ठोकर खाएँगे और गिर पड़ेंगे; +\q2 तुम सब एक साथ मर जाओगे। +\p +\s5 +\v 4 परन्तु यहोवा ने मुझसे यही कहा: +\q1 “जब एक शेर खड़ा होता है और भेड़ के शरीर पर गरजता है जिसको उसने मारा है, +\q2 भले ही चरवाहों का एक बड़ा समूह शेर के भगा देने के लिए आता है, +\q1 भले ही वे जोर से चिल्लाने लगें, +\q2 शेर नहीं डरेगा और चला नहीं जाएगा। +\q1 इसी तरह, मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, +\q2 सिय्योन पर्वत पर अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए नीचे आऊँगा, +\q2 और कुछ भी मुझे रोक नहीं पाएगा। +\q1 +\s5 +\v 5 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यरूशलेम की रक्षा करेंगे +\q2 जैसे एक माता पक्षी अपने घोंसले में बच्चों पर मण्डराती है। +\q1 वह शहर की रक्षा करेंगे +\q2 और इसे इसके शत्रुओं से बचाएँगे।” +\p +\v 6 हे मेरे लोगों, भले ही तुमने यहोवा के विरुद्ध विद्रोह किया हो, उसके पास लौट आओ। +\v 7 जब तुम ऐसा करते हो, तो तुम में से प्रत्येक पाप में बनाई उन चाँदी और सोने से ढकी हुई मूर्तियों को फेंक देंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 अश्शूरी सैनिक मार डाले जाएँगे, +\q2 परन्तु उन तलवारों द्वारा नहीं जिनका उपयोग पुरुष करते हैं। +\q2 वे परमेश्वर की तलवार से नष्ट हो जाएँगे; +\q1 और जो मारे नहीं गए वे घबराएँगे और भाग जाएँगे। +\q2 और उनमें से कुछ को पकड़ लिया जाएगा और दास बनने के लिए विवश किया जाएगा। +\q1 +\v 9 यहाँ तक कि उनके अत्यंत मजबूत सैनिक भयभीत होंगे; +\q2 उनके अगुवे सारी आशा त्याग देंगे और यहोवा की शक्ति से भाग जाएँगे! +\q1 सिय्योन पर्वत पर यहोवा की उपस्थिति आग के समान है, +\q2 एक भट्ठी के समान जो यरूशलेम में धधकती है। +\q2 अश्शूर की सेना के विषय में यहोवा यही कहते हैं! + +\s5 +\c 32 +\q1 +\p +\v 1 इसे सुनो! किसी दिन एक धर्मी राजा होगा, +\q2 और उसके अधिकारी उसे न्यायसंगत शासन करने में सहायता करेंगे। +\q1 +\v 2 उनमें से प्रत्येक हवा से एक आश्रय के समान +\q2 और तूफान से एक शरण के समान होगा। +\q1 वे रेगिस्तान में पानी की धाराओं के समान, +\q2 एक बहुत ही गर्म और सूखी भूमि में एक विशाल चट्टान के नीचे छाया के समान होंगे। +\q1 +\v 3 जब ऐसा होता है, तो वे अगुवे उन लोगों को परमेश्वर की सच्चाई को समझने में सक्षम करेंगे जिन्होंने इसे नहीं समझा है, +\q2 और वे उन लोगों को परमेश्वर की सच्चाई पर ध्यान देने में सक्षम करेंगे जिन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया है। +\q1 +\s5 +\v 4 यहाँ तक कि जो लोग फुर्ती में कार्य करते हैं, वे भी अच्छी समझ पाएँगे, +\q2 और जो लोग अच्छी तरह से बात नहीं कर सकते थे वे धाराप्रवाह और स्पष्ट रूप से बोलेंगे। +\q1 +\v 5 उस समय, जो लोग मूर्ख हैं अब उनकी प्रशंसा नहीं की जाएगी, +\q2 और लुच्चों का सम्मान अब नहीं किया जाएगा। +\q1 +\v 6 मूर्ख लोग ऐसी बातें कहते हैं जो मूर्खतापूर्ण हैं, +\q2 और वे बुरे कार्यों को करने की योजना बनाते हैं। +\q1 उनके व्यवहार अपमानजनक हैं, +\q2 और वे यहोवा के विषय में ऐसी बातें कहते हैं जो झूठी हैं। +\q1 वे भूखे लोगों को भोजन नहीं देते हैं, +\q2 और वे प्यासे लोगों को पानी नहीं देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 लुच्चे ऐसे कार्य करते हैं जो बुरे हैं और जो लोगों को धोखा देते हैं; +\q2 वे बुरे कार्यों को करने की योजना बनाते हैं; +\q1 अदालत में झूठ बोल कर वे गरीब लोगों को परेशानी में डाल देते हैं, +\q2 तब भी जब गरीब लोग जो अनुरोध कर रहे हैं वह उचित है। +\q1 +\v 8 परन्तु आदरणीय लोग सम्मानित कार्यों को करने की योजना बनाते हैं, +\q2 और वे उन सम्मानपूर्ण कार्य करते हैं, इसलिए वे सफल होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 तुम यरूशलेम की स्त्रियाँ जो सोचती हैं कि तुम बहुत सुरक्षित हो +\q2 और जो सोचती हैं कि सब ठीक हो रहा है, +\q1 जो मैं कहता हूँ उसे सुनो! +\q1 +\v 10 एक वर्ष समाप्त होने के बाद, तुम जो अभी किसी भी बात के विषय में चिन्तित नहीं हो थरथराओ, +\q2 क्योंकि तुम्हारी द्वारा कटाई करने के लिए कोई अँगूर नहीं होगा +\q1 और कटाई के लिए कोई अन्य फसलें नहीं होंगी। +\q1 +\s5 +\v 11 इसलिए अब तुम हे स्त्रियों, थरथराओ, जिनको किसी भी बात की चिन्ता नहीं हैं! +\q2 अपने सुन्दर कपड़ों को उतार दो और अपनी कमर के चारों ओर खुरदरा टाट का वस्त्र पहनो। +\q1 +\v 12 तुम विलाप करोगी क्योंकि तुम इस बात से दुखी हो कि तुम्हारे उपजाऊ खेतों में और तुम्हारी फलदाई दाखलताओं का क्या होगा, +\q1 +\v 13 क्योंकि तुम्हारी मिट्टी में केवल काँटे और झाड़ियाँ उगेंगी। +\q2 तुम्हारे घर जहाँ तुम प्रसन्नता के समारोह करती थीं और तुम्हारा शहर जहाँ तुम आनन्दित थीं, नष्ट हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 14 राजा का महल खाली होगा; +\q2 उस शहर में कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो अभी बहुत शोर से भरा है। +\q1 जंगली गधे चारों ओर घूमेंगे और भेड़ों के झुण्ड +\q2 खाली किलों में और पहरे के गुम्मटों में घास खाएँगे। +\q1 +\v 15 ऐसा तब तक होगा जब तक कि परमेश्वर स्वर्ग से अपने आत्मा को हमारे ऊपर नहीं डालते। +\q2 जब ऐसा होता है, तो रेगिस्तान उपजाऊ खेत बन जाएँगे, +\q2 और उन उपजाऊ खेतों में प्रचुर मात्रा में फसलें बढ़ेंगी। +\q1 +\s5 +\v 16 लोग उन रेगिस्तानी क्षेत्रों में न्यायपूर्वक कार्य करेंगे, +\q2 और लोग उन उपजाऊ खेतों में धार्मिकता से कार्य करेंगे। +\q1 +\v 17 उनके न्यायपूर्वक कामकाज का परिणाम यह होगा कि वहाँ शान्ति होगी, +\q2 वह देश सुस्थिर हो जाएगा, और लोग सदा के लिए सुरक्षित रहेंगे। +\q1 +\v 18 मेरे लोग शान्तिपूर्वक, और सुरक्षित रूप से, और धीरज के साथ अपने घरों में, +\q2 आराम के स्थानों में रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 यहाँ तक कि यदि एक गम्भीर मूसलाधार वर्षा जंगल में पेड़ों का नाश कर देती है, +\q2 और शहर की सब इमारतें उड़कर गिर जाती हैं, +\q1 +\v 20 यहोवा तुमको बहुत आशीष देंगे; +\q2 तुम धाराओं के किनारे खेतों में बीज लगाओगे +\q2 और वहाँ प्रचुर मात्रा में फसलें होंगी। +\q2 जब तुम अपने गधों और मवेशियों को चारागाह में भेजते हो तो उन्हें खाने के लिए सरलता से घास मिल जाएगी। + +\s5 +\c 33 +\q1 +\p +\v 1 तुम अश्शूर के लोगों के साथ भयानक बातें होंगी! +\q1 तुमने दूसरों को नष्ट कर दिया है, +\q2 परन्तु तुम अभी तक नष्ट नहीं किए गए हो। +\q1 तुमने दूसरों को धोखा दिया है, +\q2 परन्तु तुमको अभी तक धोखा नहीं दिया गया है। +\q1 जब तुम दूसरों को नष्ट करना बन्द कर देते हो, +\q2 अन्य तुमको नष्ट कर देंगे। +\q1 जब तुम दूसरों को धोखा देना बन्द कर देते हो, +\q2 अन्य तुमको धोखा देंगे। +\q1 +\s5 +\v 2 हे यहोवा, कृपया हमारे प्रति दयालु कार्य कीजिए, +\q2 क्योंकि हमने आपके द्वारा हमारी सहायता के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की है। +\q1 हमें हर दिन मजबूत होने में सक्षम कीजिए, +\q2 और जब हमें परेशानी होती है तो हमें बचाइए। +\q1 +\s5 +\v 3 जब वे आपकी आवाज सुनते हैं तो हमारे शत्रु भाग जाते हैं। +\q2 जब आप खड़े हो जाते हैं और दिखाते हैं कि आप शक्तिशाली हैं, तो सभी राष्ट्रों के लोग भाग जाते हैं। +\q1 +\v 4 और हमारे शत्रुओं को पराजित करने के बाद, +\q1 हम, आपके लोग, हमारे सब शत्रुओं की सम्पत्ति ऐसे ले जाएँगे, +\q2 जैसे इल्ली और टिड्डियाँ पौधों की सब पत्तियों को चट कर जाती हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा किसी भी अन्य से महान हैं, और वह स्वर्ग में रहते हैं, +\q2 और वह यरूशलेम में न्यायसंगत और धार्मिक रूप से शासन करेंगे। +\q1 +\v 6 जब ऐसा होता है, तो वह तुमको सुरक्षित रूप से जीने में सक्षम बनाएँगे; +\q2 वह पूरी तरह से तुम्हारी सम्पत्ति की रक्षा करेंगे, +\q2 वह तुमको बुद्धिमान होने में और जो कुछ तुमको जानने की आवश्यकता है उसे जानने में सक्षम करेंगे; +\q1 और यहोवा का सम्मान करना एक मूल्यवान खजाने के समान होगा जो वह तुमको देंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु अब, देखो, हमारे दूत सड़कों पर पुकार रहे हैं; +\q1 हमारे राजदूत शान्ति समझौते करने के लिए अन्य देशों में गए हैं, +\q2 परन्तु वे फूट-फूट कर रोएँगे क्योंकि वे सफल नहीं होंगे। +\q1 +\v 8 कोई भी हमारी सड़कों पर यात्रा नहीं करता है। +\q2 अश्शूर के अगुवों ने हमारे साथ अपना शान्ति समझौता तोड़ दिया है; +\q1 वे उन लोगों को तुच्छ मानते हैं जिन्होंने उन समझौतों को किया है, +\q2 और वे किसी का भी सम्मान नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यहूदा की भूमि सूखी और बंजर है। +\q2 लबानोन में देवदार के पेड़ सूख रहे हैं और सड़ रहे हैं। +\q1 तट के साथ का शारोन का मैदान अब एक रेगिस्तानी मैदान है। +\q2 बाशान और कर्मेल के क्षेत्रों में पेड़ों पर बिलकुल भी पत्तियाँ नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा कहते हैं, “अब मैं उठूँगा और दिखाऊँगा कि मैं हर किसी के द्वारा सम्मानित किए जाने के योग्य हूँ। +\q1 +\v 11 अश्शूर के लोग जो योजना बनाते हैं वह भूसी और पुआल के समान बेकार हैं। +\q2 तुम्हारी साँस एक आग बन जाएगी जो तुमको जला देगी। +\q1 +\v 12 तुम्हारे लोग राख हो जाने तक जलाए जाएँगे, +\q2 जैसे कंटीली झाड़ियों को काट दिया और जला दिया जाता है। +\q1 +\s5 +\v 13 तुम लोग जो दूर रहते हो और तुम जो लोग निकट रहते हो, +\q2 मैंने जो किया है उस पर ध्यान दो और जान लो कि मैं बहुत शक्तिशाली हूँ।” +\q1 +\v 14 यरूशलेम में रहने वाले पापी थरथराएँगे क्योंकि वे बहुत डरे हुए हैं; +\q2 अधर्मी लोग भयभीत होंगे। +\q1 वे कहते हैं, “हम में से कोई भी जीवित नहीं बच सकता क्योंकि यह आग सब कुछ जला रही है; +\q2 यह यहोवा की वेदी की आग के समान है जो सदा जलती रहेगी!” +\q1 +\s5 +\v 15 जो लोग ईमानदारी से कार्य करते हैं और सही बातें कहते हैं, +\q2 जो लोगों से धन छीन कर धनवान बनने का प्रयास नहीं करते हैं, +\q1 जो रिश्वत लेने का प्रयास नहीं करते हैं, +\q2 जो किसी को मारने की योजना बना रहे लोगों की बातों को सुनने से मना करते हैं, +\q1 जो गलत कार्य करने का आग्रह करने वाले लोगों से नहीं जुड़ते हैं, +\q1 +\v 16 यह वे लोग हैं जो सुरक्षित रूप से रहेंगे; +\q2 वे पर्वतों की गुफाओं में सुरक्षित रहने के स्थानों को पाएँगे। +\q1 उनके पास बहुत सारा भोजन +\q2 और पानी होगा। +\q1 +\s5 +\v 17 तुम यहूदा के लोग राजा को उसके सारे सुन्दर वस्त्र पहने हुए देखोगे, +\q2 और तुम देखोगे कि वह एक ऐसे देश पर शासन करता है जो दूर तक फैला हुआ है। +\q1 +\v 18 जब तुम इसे देखते हो, तो तुम पहले के समय के विषय में सोचेंगे कि जब तुम डरे हुए थे, +\q2 और तुम कहोगे, “हमें जिस कर का उनको भुगतान करने के लिए विवश किया गया था उन रुपयों की गणना करने वाले अश्शूर के अधिकारी गायब हो गए हैं! +\q2 हमारे गुम्मटों की गिनती करने वाले पुरुष समाप्त हो गए हैं! +\q1 +\v 19 एक ऐसी भाषा बोलने वाले जिसे हम समझ नहीं पाए थे, वे अभिमानी लोग अब यहाँ नहीं हैं!” +\q1 +\s5 +\v 20 उस समय, तुम सिय्योन पर्वत को देखोगे, वह जगह जहाँ हम अपने त्यौहार मनाते हैं; +\q2 तुम देखोगे कि यरूशलेम एक ऐसी जगह बन गया है जो शान्त और सुरक्षित है। +\q2 यह एक तम्बू के समान सुरक्षित होगा, +\q1 जो खिसक नहीं सकता है क्योंकि इसकी रस्सियाँ कसी हुई हैं +\q2 और इसके खूँटे दृढ़ता से भूमि में घुसे हैं। +\q1 +\v 21 यहोवा हमारे शक्तिशाली परमेश्वर होंगे; +\q1 वह एक शक्तिशाली नदी के समान होंगे जो हमारी रक्षा करेंगे +\q2 क्योंकि हमारे शत्रु इसे पार करने में सक्षम नहीं होंगे; +\q2 कोई भी इसके पार नाव चलाने में सक्षम नहीं होगा +\q2 और कोई युद्धपोत इसके पार जलयात्रा करने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 22 यहोवा हमारे न्यायधीश हैं; +\q2 वही एकमात्र हैं जो हमें कानून देते हैं, +\q1 और वही हमारे राजा हैं। +\q2 वही हमें बचाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 23 हमारे शत्रुओं की नावों की रस्सियाँ ढीली लटकी होंगी, +\q2 उनके मस्तूलों को मजबूती से नहीं बाँधा जाएगा, +\q2 और उनकी पालें फैलाई नहीं जाएँगी। +\q1 जिन खजानों को उन्होंने जब्त कर लिया है, उसे हम परमेश्वर के लोगों के बीच में बाँटा जाएगा, +\q2 और यहाँ तक कि हमारे बीच के लंगड़े लोग भी कुछ प्राप्त करेंगे। +\q1 +\v 24 और यरूशलेम के लोग अब नहीं कहेंगे, “हम बीमार हैं,” +\q2 क्योंकि यहोवा वहाँ रहने वाले लोगों द्वारा किए गए पापों को क्षमा कर देंगे। + +\s5 +\c 34 +\q1 +\p +\v 1 तुम हे सब राष्ट्रों के लोगों, निकट आओ और सुनो; +\q2 सावधानीपूर्वक ध्यान दो। +\q1 मैं चाहता हूँ कि जो कुछ मैं कहता हूँ संसार और जो कुछ उसमें है उसे सुने। +\q1 +\v 2 यहोवा सब राष्ट्रों के लोगों से क्रोधित हैं; +\q2 वह उनकी सारी सेनाओं से क्रोधित हैं। +\q1 उन्होंने निर्णय किया है कि उन लोगों को नष्ट किया जाना चाहिए, +\q2 और वह उन्हें मार डालेंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 उनकी लाशों को दफन नहीं किया जाएगा, +\q2 और जिसके परिणामस्वरूप उनके शरीर दुर्गन्ध मारेंगे, +\q2 और उनके लहू के कारण से पर्वत गिर जाएँगे। +\q1 +\v 4 आकाश इस तरह गायब हो जाएगा जैसे एक पुस्तक को लपेट कर दूर फेंक दिया गया है। +\q2 सितारे आकाश से ऐसे गिर पड़ेंगे +\q1 जैसे सूखी पत्तियाँ दाखलताओं से गिरती हैं, +\q2 या जैसे अंजीर के पेड़ों से सूखे अंजीर गिरते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 जब यहोवा आकाश की वस्तुओं को नष्ट करने का अपना कार्य पूरा कर लेंगे, +\q2 तब वह एदोम के लोगों को दण्ड देंगे, +\q2 उन लोगों का समूह जिसके विषय उसने कहा है कि उसे नष्ट किया जाना चाहिए। +\q1 +\v 6 ऐसा लगता है कि मानों यहोवा की पास ऐसी तलवार होगी जो लहू और चर्बी से ढकी हुई है— +\q2 बलिदान किए जाने के लिए मेम्नों और बकरियों का लहू +\q2 और मेढ़ों के गुर्दों की चर्बी। +\q1 ऐसा लगता है कि मानों यहोवा बोस्रा में बलि चढ़ाएँगे +\q2 और एदोम के अन्य शहरों में कई लोगों को मार डालेंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 यहाँ तक कि जंगली सांड, +\q2 साथ ही युवा बछड़े और बड़े बैल भी मारे जाएँगे। +\q1 भूमि लहू से भीग जाएगी, +\q2 और मिट्टी उन जानवरों की चर्बी से ढक जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 8 यह वह समय होगा जब यहोवा उसका बदला लेते हैं +\q2 जो उन लोगों ने यहूदा के लोगों के साथ किया था। +\q1 +\v 9 एदोम की नदियाँ जलती हुई राल से भरी होंगी, +\q2 और भूमि जलते हुए गन्धक और जलती हुई राल से ढकी होगी। +\q1 +\v 10 यहोवा एदोम को आग से दण्डित करना कभी भी समाप्त नहीं करेंगे; +\q2 धुआँ सदा उठता रहेगा। +\q1 कोई भी उस देश में कभी नहीं रहेगा, +\q2 और कोई भी इसके माध्यम से यात्रा नहीं करेगा। +\q1 +\s5 +\v 11 काले कौए और विभिन्न प्रकार के उल्लू और छोटे जानवर वहाँ रहेंगे। +\q1 यहोवा उस भूमि को सावधानी से मापेंगे; +\q2 वह इसे यह तय करने के लिए मापेंगे कि अराजकता और विनाश का कारण कहाँ है। +\q1 +\v 12 वहाँ कोई और राजकुमार नहीं होंगे; +\q2 जिन लोगों के पास अधिकार है, उनके पास शासन करने के लिए कोई साम्राज्य नहीं होगा; राजकुमार गायब हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 13 निर्जन महल और गढ़ वाली इमारतें काँटों और कंटीले पौधों से भरी होंगी। +\q1 खण्डहरों में सियारों और शुतुर्मुर्गों के लिए रहने की जगह होगी। +\q1 +\v 14 रेगिस्तान में रहने वाले पशु और लकड़बग्घे वहाँ होंगे, +\q2 और जंगली बकरियाँ एक दूसरे पर मिमियाएँगी। +\q1 रात में घूमने वाले प्राणी भी वहाँ होंगे और वहाँ आराम करेंगे। +\q1 +\v 15 उल्लू वहाँ अपने घोंसले बनाएँगे और अपने अंडों को घोंसले में रखेंगे; +\q2 और जब अंडे से बच्चे निकलते हैं, तो माता पक्षी उनको अपने पंखों से ढाँप लेंगी। +\q1 वहाँ बाज भी, +\q2 प्रत्येक अपने साथी के साथ होंगे। +\p +\s5 +\v 16 यदि तुम उसे पढ़ते हो जो उस पुस्तक में लिखा है जिसमें यहोवा की ओर से सन्देश हैं, तो तुम जान पाओगे कि वह एदोम के साथ क्या करेंगे। +\q1 वे सब जानवर और पक्षी वहाँ होंगे, +\q2 और प्रत्येक के पास एक साथी होगा, +\q1 क्योंकि यहोवा ने ऐसा ही प्रतिज्ञा की है, +\q2 और उसकी आत्मा उन सबको वहाँ इकट्ठा करेगी। +\q1 +\v 17 उसने निर्णय कर लिया है कि एदोम देश के किस हर एक भाग में रहेगा, +\q2 और वे वही स्थान हैं जहाँ हर एक पक्षी या जानवर रहेंगे। +\q1 उनके वंशजों का सदा के लिए उन क्षेत्रों पर, +\q2 सब पीढ़ियों के लिए अधिकार होगा। + +\s5 +\c 35 +\q1 +\p +\v 1 किसी दिन, यह ऐसा होगा जैसे मानों रेगिस्तान और अन्य बहुत सूखे क्षेत्र प्रसन्न हैं; +\q2 रेगिस्तान आनन्दित होगा और फूल खिल जाएँगे। +\q1 गुलाब के समान, +\q1 +\v 2 रेगिस्तान भरपूर मात्रा में फूलों का उत्पादन करेगा; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों हर एक वस्तु आनन्द मना रही है और गीत गा रही है! +\q1 रेगिस्तान लबानोन के पेड़ों के समान सुन्दर, +\q2 शारोन के मैदान और कर्मेल के क्षेत्र के समान उपजाऊ हो जाएगा। +\q1 वहाँ लोग यहोवा की महिमा देखेंगे; +\q2 वे देखेंगे कि वह महाप्रतापी है। +\q1 +\s5 +\v 3 इसलिए थके हुए और निर्बल लोगों को प्रोत्साहित करो। +\q1 +\v 4 उन लोगों से कहो जो डरते हैं, +\q1 “मजबूत बनो और मत डरो, +\q2 क्योंकि हमारे परमेश्वर अपने शत्रुओं से बदला लेने के लिए आने पर हैं; +\q1 वह उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें वापस भुगतान करेंगे, +\q2 और वह तुमको बचाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 5 जब वह ऐसा करते हैं, तो वह अंधे लोगों को देखने में सक्षम करेंगे +\q2 और बहरे लोगों को सुनने में सक्षम करेंगे। +\q1 +\v 6 लंगड़े लोग हिरन के समान छलांग लगाएँगे, +\q2 और जो लोग बोलने में असमर्थ थे वे प्रसन्नता से गाएँगे। +\q1 रेगिस्तान में सोतों से पानी बाहर निकल जाएगा, +\q2 और धाराएँ रेगिस्तान में बहती रहेंगी। +\q1 +\v 7 बहुत गर्म और सूखी भूमि पानी का एक ताल बन जाएगी, +\q2 और सोते सूखी भूमि के लिए पानी उपलब्ध कराएँगे। +\q1 घास और नरकट और सरकण्डे उन स्थानों पर बढ़ेंगे जहाँ पहले सियार रहते थे। +\q1 +\s5 +\v 8 उस देश के माध्यम से एक राजमार्ग होगा; +\q2 इसे ‘पवित्र राजमार्ग’ कहा जाएगा। +\q1 जो लोग परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं हैं वे उस सड़क पर नहीं चलेंगे; +\q2 यह केवल उन लोगों के लिए होगा जो अपने जीवन का संचालन वैसे करते हैं जैसे परमेश्वर उनसे चाहते हैं, +\q2 और उस सड़क पर कोई दुष्ट मूर्ख नहीं चलेंगे। +\q1 +\v 9 उस सड़क पर वहाँ कोई शेर +\q2 या कोई अन्य खतरनाक जानवर नहीं होंगे। +\q1 केवल वे ही उस पर चलेंगे, जिन्हें यहोवा ने स्वतन्त्र किया है। +\q2 +\s5 +\v 10 जिन्हें यहोवा ने स्वतन्त्र किया है, वे यरूशलेम को लौट जाएँगे; +\q1 वे शहर में प्रवेश करते हुए गाएँगे, +\q2 और वे सदा के लिए अत्यंत आनन्दित होंगे। +\q1 अब वे दुखी नहीं होंगे या शोक नहीं करेंगे; +\q2 वे पूरी तरह से आनन्दित और आनन्दित होंगे। + +\s5 +\c 36 +\p +\v 1 राजा हिजकिय्याह के यहूदा पर शासन करने के लगभग चौदहवें वर्ष में, अश्शूर का राजा सन्हेरीब अपनी सेना के साथ यहूदा के उन नगरों पर आक्रमण करने के लिए आया, जिनके चारों ओर दीवारें थीं। उन्होंने यरूशलेम पर विजय नहीं पाई, परन्तु उन्होंने अन्य सभी शहरों पर विजय प्राप्त की। +\v 2 तब राजा हिजकिय्याह को आत्मसमर्पण करने को मनाने के लिए अश्शूर के राजा ने लाकीश शहर से अपने कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों के साथ एक बड़ी सेना भेजी। जब वे यरूशलेम पहुँचे, तो वे उस नहर के समीप खड़े हुए जिसमें से पानी यरूशलेम के ऊपरी तालों में बहता है, खेत की सड़क के निकट जहाँ स्त्रियाँ कपड़े धोती हैं। +\v 3 वे इस्राएली अधिकारी ये थे, जो उनके साथ बात करने के लिए शहर से बाहर गए थेः महल का प्रशासक हिल्किय्याह का पुत्र एलयाकीम, राजा का सचिव शेबना और आसाप का पुत्र योआह, जो सरकारी निर्णयों को लिखा करता था। +\p +\s5 +\v 4 तब सन्हेरीब के महत्वपूर्ण अधिकारियों में से एक ने उन्हें हिजकिय्याह के लिए +\p महान राजा, अश्शूर के राजा की ओर से एक सन्देश ले जाने के लिए बताया। राजा ने यरूशलेम के लोगों से कहा, “तुम स्वयं को बचाने के लिए किस पर भरोसा कर रहे हो? +\v 5 तुम कहते हो कि तुम्हारे पास हमसे लड़ने के लिए हथियार हैं और यह कि कुछ अन्य राष्ट्रों ने तुम्हारी सहायता करने की प्रतिज्ञा की है, परन्तु यह केवल बोल है। तुमको क्या लगता है कि अश्शूर से मेरे सैनिकों के विरुद्ध विद्रोह करने में तुम्हारी सहायता कौन करेगा? +\s5 +\v 6 मेरी बात सुनो! तुम मिस्र की सेना पर भरोसा कर रहे हो। परन्तु यह ऐसा है कि जब एक व्यक्ति टूटे हुए डण्डे पर झुक कर चलने वाली छड़ी के समान चलने की प्रयास करता है। परन्तु यह उस पर झुके हुए किसी के भी हाथ को छेद देगा! ऐसा ही मिस्र का राजा सहायता के लिए उसके ऊपर निर्भर रहने वालों के लिए है। +\v 7 परन्तु हो सकता है तुम मुझसे कहोगे कि तुम अपनी सहायता करने के लिए अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा कर रहे हो। उस मामले में, मैं उत्तर दूँगा कि यहोवा ही वह है जिसे हिजकिय्याह ने उसके ऊँचे स्थानों और वेदियों को तोड़ कर अपमानित किया था और यरूशलेम में और यहूदा के अन्य स्थानों में रहने वालों को यरूशलेम में बनी वेदी के सामने उपासना करने के लिए विवश किया था।” +\p +\s5 +\v 8 अश्शूर के अधिकारी ने शहर के सामने बात करते हुए कहा: “इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि तुम मेरे स्वामी, अश्शूर के राजा के साथ सौदा करो। मैं तुमको दो हजार घोड़े दूँगा, परन्तु मुझे नहीं लगता कि तुम अपने स्वयं के दो हजार पुरुषों को पा सकते हो जो उन पर सवारी कर सकते हैं! +\s5 +\v 9 तुम मिस्र के राजा से रथों और घोड़ों की सवारी करने वाले मनुष्यों की सहायता भेजने की अपेक्षा कर रहे हो। परन्तु वे निश्चित रूप से अश्शूर की सेना में सबसे महत्वहीन अधिकारी का विरोध करने में सक्षम नहीं होंगे! +\v 10 इसके अतिरिक्त, यह मत सोचो कि हम इस देश पर यहोवा के आदेशों के बिना आक्रमण करने और नष्ट करने आए हैं! यह स्वयं यहोवा ही है जिसने हमें यहाँ आने और इस देश को नष्ट करने के लिए कहा था!” +\p +\s5 +\v 11 तब एलयाकीम, शेबना और योआह ने अश्शूर के अधिकारी से कहा, “कृपया हमसे अपनी अरामी भाषा में बात करो, क्योंकि हम इसे समझते हैं। हमारी इब्रानी भाषा में हमसे बात मत करो, क्योंकि जो लोग दीवार पर खड़े हैं वे इसे समझ जाएँगे और डर जाएँगे।” +\p +\v 12 परन्तु अधिकारी ने उत्तर दिया, “क्या तुमको लगता है कि मेरे स्वामी ने मुझे यह बातें केवल तुमसे कहने के लिए भेजा है, न कि दीवार पर खड़े लोगों से कहने के लिए? यदि तुम इस सन्देश को अस्वीकार करते हो, तो इस शहर के लोगों को शीघ्र ही अपनी स्वयं की विष्ठा खानी पड़ेगी और अपना स्वयं का मूत्र पीना पड़ेगा, जैसा कि तुम करोगे, क्योंकि तुम्हारे पास खाने-पीने के लिए और कुछ नहीं होगा।” +\p +\s5 +\v 13 तब अधिकारी खड़ा हुआ और दीवार पर बैठे लोगों के लिए इब्रानी भाषा में चिल्लाया। उसने कहा, “अश्शूर के महान राजा की ओर से यह सन्देश सुनो! +\v 14 वह कहता है, ‘हिजकिय्याह को तुमको धोखा देने की अनुमति मत दो! वह तुमको बचाने में सक्षम नहीं होगा! +\v 15 उसे यहोवा पर भरोसा रखने के लिए तुमको मनाने की अनुमति मत दो, यह कहकर कि यहोवा तुमको बचाएँगे, और अश्शूर के राजा की सेना इस नगर पर कभी अधिकार नहीं कर पाएगी! +\p +\s5 +\v 16 हिजकिय्याह क्या कहता है उस पर ध्यान मत दो! अश्शूर का राजा यही कहता है: “शहर से बाहर आओ और मेरे सामने आत्मसमर्पण करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम में से प्रत्येक के लिए तुम्हारी स्वयं की दाखलताओं से दाखमधु पीने की और तुम्हारे स्वयं के पेड़ों से अंजीर खाने, और तुम्हारे स्वयं के कुओं से पानी पीने की व्यवस्था करूँगा। +\v 17 जब तक कि हम आते हैं और तुमको उस देश में ले जाते हैं जो तुम्हारे देश के समान है तुम ऐसा करने में सक्षम रहोगे – एक ऐसा देश जहाँ रोटी बनाने के लिए अनाज है और नई दाखमधु बनाने के लिए अँगूर पैदा करने के लिए दाख की बारियाँ हैं और, जहाँ हम भरपूर मात्रा में रोटी बनाते हैं।” +\p +\s5 +\v 18 हिजकिय्याह को यह कहकर तुमको धोखा देने की अनुमति मत दो, “यहोवा हमें बचाएँगे।” जिन देवताओं की उपासना अन्य राष्ट्रों के लोग करते हैं उन्होंने कभी भी उनमें से किसी को भी अश्शूर के राजा की शक्ति से बचाया नहीं है! +\v 19 क्या हमात और अर्पाद नगरों के देवता, और सपर्वैम के देवता सामरिया को मेरी शक्ति से बचाने में असमर्थ थे? +\v 20 नहीं, किसी भी देश का कोई भी देवता जिस पर हमारी सेनाओं ने आक्रमण किया है, वह अपने लोगों को मुझसे बचाने में सक्षम नहीं है। इसलिए तुम क्यों सोचते हो कि यहोवा तुम यरूशलेम के लोगों को मेरी शक्ति से बचाएँगे?” +\p +\s5 +\v 21 परन्तु इब्रानी सैनिक जो सुन रहे थे चुप थे। किसी ने कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि राजा हिजकिय्याह ने उन्हें आज्ञा दी थी, “जब अश्शूर का अधिकारी तुमसे बात करता है, तो उसे उत्तर मत देना।” +\p +\v 22 तब एलयाकीम और शेबना और योआह अपने कपड़ों को फाड़े हुए हिजकिय्याह के पास लौटे क्योंकि वे अत्यंत परेशान थे। उन्होंने उससे वह सब कहा जो अश्शूर के अधिकारी ने कहा था। + +\s5 +\c 37 +\p +\v 1 जब राजा हिजकिय्याह ने जो कुछ बताया गया, उसे सुना, तो उसने अपने कपड़े फाड़े और खुरदरे टाट से बने कपड़े पहन लिए क्योंकि वह बहुत परेशान था। तब वह यहोवा के मन्दिर में गया और प्रार्थना की। +\v 2 तब उसने आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता से बात करने के लिए, एलयाकीम, शेबना और पुरनिए याजक को भेजा, उन्होंने भी खुरदरे टाट से बने कपड़े पहने हुए थे। +\s5 +\v 3 उन्होंने उसे बताया, “यशायाह से यह कहो: ‘राजा हिजकिय्याह कहता है कि यह एक ऐसा दिन है जब हमें अत्यंत परेशानी होती है। अन्य राष्ट्र हमारा अपमान कर रहे हैं और हमें लज्जित कर रहे हैं। हम एक ऐसी स्त्री के समान हैं जो एक बच्चे को जन्म देने वाली है, परन्तु उसके पास वह शक्ति नहीं है जिसकी उसे ऐसा करने के लिए आवश्यकता है। +\v 4 परन्तु हो सकता है हमारे परमेश्वर यहोवा ने सुना है कि अश्शूर के अधिकारी ने क्या कहा था। हो सकता है परमेश्वर जानते हैं कि अश्शूर के राजा ने अपने अधिकारियों को उसे, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अपमानित करने के लिए भेजा था। हो सकता है यहोवा अश्शूर के राजा को जो कुछ उसने कहा था, उसके लिए दण्डित करेंगे। और मैं, हिजकिय्याह, अनुरोध करता हूँ कि आप हम थोड़े से लोगों के लिए प्रार्थना करें जो यहाँ यरूशलेम में अभी भी जीवित हैं।’” +\p +\s5 +\v 5 उन पुरुषों के यशायाह को यह सन्देश देने के बाद, +\v 6 उसने उनसे राजा से कहने के लिए बताया कि यहोवा कहते हैं: “उन अश्शूर के राजा के दासों ने मेरे विषय में बुरी बातें कही हैं। परन्तु उन बातों को तुमको चिन्तित करने न दो। +\v 7 इस बात को सुनो: मैं सन्हेरीब को उसके अपने देश से कुछ सुचना सुनवाऊँगा जो उसे बहुत चिन्तित कर देगी। इसलिए वह वहाँ वापस लौट जाएगा, और मैं अन्य पुरुषों की तलवार से उसकी हत्या करवा दूँगा।” +\p +\s5 +\v 8 अश्शूर के अधिकारी को मालूम हुआ कि उसका राजा और अश्शूर की सेना ने लाकीश शहर छोड़ दिया था और अब वह निकटतम शहर लिब्ना पर आक्रमण कर रहे था। इसलिए अधिकारी ने यरूशलेम को छोड़ दिया और यरूशलेम में जो हुआ था, उसे राजा को बताने के लिए लिब्ना गया। +\p +\v 9 इसके तुरन्त बाद, राजा सन्हेरीब को एक सुचना मिली कि इथियोपिया का राजा तिर्हाका उन पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना का नेतृत्व कर रहा था। इसलिए एक पत्र के साथ उसने अन्य दूतों को हिजकिय्याह के पास भेजा। पत्र में उसने हिजकिय्याह को यह लिखा: +\p +\v 10 “अपने परमेश्वर को, जिस पर तुम भरोसा कर रहे हो, तुमको यह प्रतिज्ञा करके धोखा देने अनुमति मत दो कि वह मेरी सेना को यरूशलेम पर अधिकार करने से रोक देंगे।” +\s5 +\v 11 तुमने निश्चित रूप से सुना है कि मुझसे पहले अश्शूर के राजाओं की सेनाओं ने अन्य सब देशों के साथ क्या किया था; हमारी सेनाओं ने उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। इसलिए तुम वास्तव में यह मत सोचो कि तुम मुझसे बच जाओगे, है ना? +\v 12 क्या उन देशों के देवताओं ने उन्हें बचाया? क्या उन्होंने गोजान के क्षेत्र को, या उत्तरी अराम में हारान और रेसेप शहरों को, या तलस्सार शहर में एदेन के लोगों को बचाया था? +\v 13 हमात के राजा और अर्पाद के राजा के साथ क्या हुआ? सपर्वैम, हेना और इव्वा शहरों के राजाओं के साथ क्या हुआ? क्या उनके देवताओं ने उन्हें बचाया?” +\p +\s5 +\v 14 हिजकिय्याह ने यह पत्र प्राप्त किया जो दूतों ने उसे दिया, और उसने इसे पढ़ा। तब वह मन्दिर में गया और यहोवा के सामने पत्र को फैला दिया। +\v 15 तब हिजकिय्याह ने यह प्रार्थना की: +\v 16 “हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, जिस परमेश्वर के हम इस्राएली लोग हैं, आप पवित्र सन्दूक के ऊपर करूबों की मूर्तियों के ऊपर अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। केवल आप ही सच्चे परमेश्वर हैं। आप इस पृथ्‍वी पर सब साम्राज्यों पर शासन करते हैं। वह एकमात्र आप ही हैं जिन्होंने पृथ्‍वी पर और आकाश में हर एक वस्तु को बनाया है। +\s5 +\v 17 इसलिए, हे यहोवा, कृपया जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसे सुनिए, और जो हो रहा है उसे देखिए! और आप सर्व-शक्तिशाली परमेश्वर का अपमान करने के लिए सन्हेरीब ने जो कहा है, वह सुनिए! +\p +\v 18 हे यहोवा, यह सच है कि अश्शूर के राजाओं की सेनाओं ने कई राष्ट्रों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है और उनके देश को नष्ट कर दिया है। +\s5 +\v 19 और उन्होंने उन देशों की सारी मूर्तियों को आग में फेंक दिया और उन्हें जला दिया है। परन्तु वे वास्तव में देवता नहीं थे। वे केवल लकड़ी और पत्थर से बनी मूर्तियाँ थे, और यही कारण है कि वे नष्ट हो पाए। +\v 20 इसलिए अब, हे यहोवा हमारे परमेश्वर, हमें अश्शूर के राजा की शक्ति से बचाइए, कि संसार के सब साम्राज्यों के लोग जान पाएँ कि आप, यहोवा, ही केवल एकमात्र परमेश्वर हैं।” +\p +\s5 +\v 21 तब यशायाह ने हिजकिय्याह को यह बताने के लिए एक सन्देश भेजा कि यहोवा, जिसकी इस्राएली आराधना करते थे, ने उससे कहा है: “क्योंकि तुमने अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने जो कहा था उसके विषय में मुझसे प्रार्थना की थी, +\v 22 यही है जो मैं उससे कहता हूँ: +\q1 ‘यरूशलेम के लोग तुमको तुच्छ मानते हैं और तुम्हारा मजाक बनाते हैं। +\q2 जब तुम यहाँ से भागते हो तो तुम्हारा ठट्ठा करने को वे अपने सिरों को हिलाएँगे। +\q1 +\v 23 तुमको क्या लगता है कि तुम किसको निराश और किसका उपहास कर रहे थे? +\q2 तुमको क्या लगता है कि तुम किस पर चिल्ला रहे थे? +\q1 तुमको क्या लगता है कि तुम किसको घमण्ड से देख रहे थे? +\q2 यह मैं एकमात्र पवित्र था, जिसकी इस्राएली आराधना करते हैं! +\q1 +\s5 +\v 24 जिन दूतों को तुमने भेजा, उन्होंने मेरा मजाक बनाया। +\q1 तुमने कहा, “मेरे बहुत से रथों के साथ मैं ऊँचे पर्वतों पर, +\q2 लबानोन ऊँचे पर्वतों पर गया हूँ। +\q1 हमने इसके सबसे लम्बे देवदार के पेड़ों को +\q2 और इसके सबसे अच्छे सनोवर के पेड़ों को काट दिया है। +\q1 हम सबसे दूर के चोटियों पर +\q2 और इसके सबसे घने जंगलों में गए हैं। +\q1 +\v 25 हमने कई देशों में कुएँ खोदे हैं और उनसे पानी पिया है। +\q1 और मिस्र की धाराओं के माध्यम से जाते हुए, +\q2 हमने उन सबको सुखा दिया!” +\q1 +\s5 +\v 26 परन्तु मैंने उसे उत्तर दिया, ‘क्या तुमने कभी नहीं सुना है कि बहुत पहले मैंने उन चीजों को निर्धारित किया था; +\q1 मैंने बहुत पहले इसकी योजना बनाई थी, +\q2 और अब मैं इसे घटित होने दे रहा हूँ। +\q1 मैंने योजना बनाई थी कि तुम्हारी सेना शहरों को नष्ट कर देगी +\q2 और उन्हें मलबे के ढेर बना देगी। +\q1 +\v 27 उन शहरों में रहने वाले लोगों के पास कोई शक्ति नहीं है, +\q2 और जिसके परिणामस्वरूप वे निराश और निरुत्साहित हैं। +\q1 वे खेतों में घास और पौधों के समान निर्बल हैं, +\q2 उस घास के समान निर्बल जो घरों की छतों पर बढ़ती है +\q2 और पूर्वी गर्म हवा से झुलस जाती है। +\q1 +\s5 +\v 28 परन्तु मैं तुम्हारे विषय में सब कुछ जानता हूँ; +\q2 मुझे पता है कि कब तुम अपने घर में हो और कब तुम बाहर जाते हो; +\q2 मुझे यह भी पता है कि तुम मेरे विरुद्ध उग्र हो रहे हो। +\q1 +\v 29 इसलिए क्योंकि तुम मेरे विरुद्ध उग्र हो गए हो +\q2 और क्योंकि मैंने सुना है कि तुम बहुत घमण्ड से बोलते हो, +\q1 यह ऐसा होगा जैसे मानों मैं तुम्हारी नाक में एक अंकुड़ा +\q2 और तुम्हारे मुँह में लोहे का टुकड़ा डालूँगा कि मैं तुमको अपनी इच्छानुसार जहाँ चाहूँ ले जा सकूँ, +\q1 और मैं तुमको यरूशलेम पर विजय प्राप्त किए बिना तुम्हारे देश लौटने के लिए विवश करूँगा, +\q2 उसी सड़क से जिससे तुम यहाँ आए थे।’” +\p +\s5 +\v 30 “यह तुम हिजकिय्याह, के लिए सिद्ध करेगा कि यह मैं, यहोवा, हूँ जो इन सब बातों को होने देंगे: +\q1 इस वर्ष, तुम केवल उन्हीं फसलों को खाओगे जो स्वयं से बढ़ती हैं, +\q2 और अगले वर्ष वही बात होगी। +\q1 परन्तु तीसरे वर्ष में तुम फसल लगाओगे और उन्हें काटोगे; +\q2 तुम अपनी दाख की बारियों की देखभाल करोगे और अँगूर खाओगे। +\q1 +\s5 +\v 31 तुम लोग जो अभी भी यहूदा में हैं, +\q2 फिर से मजबूत और समृद्ध होओगे। +\q1 +\v 32 मेरे लोगों की एक छोटी संख्या जीवित बची रहेगी, +\q2 और वे यरूशलेम से फैल जाएँगे। +\p ऐसा इसलिए होगा क्योंकि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, इसे पूरा करने के लिए बहुत इच्छा रखते हैं।” +\p +\s5 +\v 33 “अश्शूर के राजा के विषय में यहोवा यही कहते हैं: +\q1 ‘उसकी सेना यरूशलेम में प्रवेश नहीं करेगी; +\q2 वे इसमें एक तीर भी नहीं चलाएँगे। +\q1 उसके सैनिक यरूशलेम तक एक ढाल भी नहीं लाएँगे, +\q2 और वे शहर की दीवारों के विरुद्ध +\q2 उन्हें शहर पर आक्रमण करने में सक्षम बनाने के लिए गन्दगी के ऊँचे ढेर का निर्माण नहीं करेंगे। +\q1 +\v 34 इसके बजाए, उनका राजा उसी सड़क से अपने देश लौट जाएगा +\q2 जिससे वह आया था। +\q1 वह इस शहर में प्रवेश नहीं करेगा! +\p ऐसा होगा क्योंकि मैं, यहोवा, ने यह कहा है! +\q1 +\s5 +\v 35 मेरी अपनी प्रतिष्ठा के कारण और मैंने राजा दाऊद जिसने अच्छी तरह से मेरी सेवा की थी, से जो प्रतिज्ञा की थी, उसके कारण, +\q2 मैं इस शहर की रक्षा करूँगा और इसे नष्ट होने से बचाऊँगा।’” +\p +\s5 +\v 36 उस रात, यहोवा का एक दूत वहाँ गया जहाँ अश्शूर की सेना ने अपने तम्बू स्थापित किए थे और उनके 1,85,000 सैनिकों को मार डाला। जब बाकी सैनिक अगली सुबह जागे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ हर जगह लाशें थीं। +\v 37 तब राजा सन्हेरीब निकल कर अश्शूर के नीनवे में घर लौट आया और वहाँ रहा। +\p +\s5 +\v 38 एक दिन, जब वह अपने देवता निस्रोक के मन्दिर में उपासना कर रहा था, उसके दो पुत्रों, अद्रम्मेलेक और शरेसेर ने उसे अपनी तलवारों से मार डाला। तब वे बच कर भाग गए और नीनवे के उत्तर-पश्चिम में अरारात क्षेत्र में चले गए। और सन्हेरीब के पुत्रों में से एक, एसर्हद्दोन, अश्शूर का राजा बन गया। + +\s5 +\c 38 +\p +\v 1 उन दिनों में, हिजकिय्याह बहुत बीमार हो गया और मरने के निकट था। इसलिए यशायाह उसे देखने गया और उसे यह सन्देश दिया: “यहोवा यही कहते हैं: ‘तुमको अपने महल में रहने वाले लोगों को बताना चाहिए कि तुम अपने मरने के बाद उनसे क्या चाहते हो कि वे करें, क्योंकि तुम इस बीमारी से ठीक नहीं होओगे। तुम मरने जा रहे हो।’” +\p +\v 2 हिजकिय्याह ने अपना चेहरा दीवार की ओर फेर कर यह प्रार्थना की: +\v 3 “हे यहोवा, यह मत भूलना कि मैंने सदा अपने सम्पूर्ण अंतर्मन से निष्ठापूर्वक आपकी सेवा की है, और मैंने उन कार्यों को किया है जो आपको प्रसन्न करते हैं!” तब हिजकिय्याह ने जोर से रोना आरम्भ कर दिया। +\p +\s5 +\v 4 तब यहोवा ने यशायाह को यह सन्देश दिया: +\v 5 “हिजकिय्याह के पास वापस जाओ और उसे बताओ कि मैं, वह परमेश्वर जिससे तुम्हारा पूर्वज राजा दाऊद सम्बन्धित था, यही कहता हूँ: ‘तुमने जो प्रार्थना की उसे मैंने सुना है, और मैंने तुमको रोते हुए देखा है। इसलिए सुनो: मैं तुमको पन्द्रह वर्ष और जीवित रहने में सक्षम करूँगा। +\v 6 और मैं अश्शूर के राजा की शक्ति से तुमको और इस शहर को बचाऊँगा। मैं इस शहर की रक्षा करूँगा। +\p +\s5 +\v 7 और यह सिद्ध करने के लिए मैं ऐसा करूँगा कि जो मैंने अभी प्रतिज्ञा की है मैं वह करूँगा। +\v 8 मैं राजा आहाज द्वारा बनाई गई सीढ़ियों पर सूरज की छाया को दस कदम पीछे कर दूँगा।’” इसलिए सीढ़ियों पर सूर्य की छाया दस कदम पीछे की ओर चली गई। +\p +\s5 +\v 9 जब राजा हिजकिय्याह लगभग फिर से ठीक हो गया था, उसने यह लिखा: +\q1 +\v 10 मैंने स्वयं से कहा, “मेरे जीवन के मध्य में मैं मृत्यु के फाटकों से होकर जाने वाला हूँ, और यहोवा मेरे बाकी के वर्षों को मुझसे ले रहे हैं। +\q1 +\v 11 मैंने कहा, “मैं फिर से यहोवा को इस संसार में नहीं देखूँगा +\q2 जहाँ लोग जीवित हैं। +\q1 मैं फिर से अपने मित्रों को नहीं देखूँगा, +\q2 या उन लोगों के साथ नहीं होऊँगा जो अब इस संसार में जीवित हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 ऐसा लगता है जैसे मेरा जीवन ऐसे ले लिया गया था +\q2 जैसे कि एक तम्बू जिसकी खूँटियों को एक चरवाहे द्वारा उखाड़ लिया गया है और दूर ले जाया गया है। +\q1 मुझे अपने जीवन को एक बुन करके समान लपेटना है, +\q2 जिस तरह एक बुन कर कपड़े के एक टुकड़े को काटता है और लपेटता है, यहोवा ने मेरा जीवन काट दिया है।” +\q2 सुबह और शाम के बीच में वह मुझे मार डालेंगे। +\q1 +\v 13 मैं पूरी रात के दौरान धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर रहा था, +\q2 परन्तु मेरा दर्द ऐसा था जैसे मानों मैं शेरों द्वारा फाड़ा जा रहा था। +\q2 सुबह और शाम के बीच में वह मुझे मार डालेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 मैं भ्रमित था; मैं एक सूपाबेनी या एक सारस के समान चहचहाया +\q2 और एक कबूतर के समान विलाप किया। +\q1 मेरी आँखें सहायता के लिए स्वर्ग की ओर देखते-देखते थक गईं। +\q2 मैं पुकार उठा, ‘हे यहोवा, मेरी सहायता कीजिए, क्योंकि मैं परेशान हूँ!’ +\q1 +\v 15 परन्तु वास्तव में कुछ भी ऐसा नहीं था जो मैं कह सकता था और उससे मुझे उत्तर देने के लिए कह सकता था, +\q2 क्योंकि यह यहोवा था जिसने इस बीमारी को भेजा था। +\q1 इसलिए अब मैं अपने शेष वर्षों के दौरान नम्रता से रहूँगा +\q2 क्योंकि मैं स्वयं में बहुत पीड़ित हूँ। +\q1 +\s5 +\v 16 हे यहोवा, जो दुख आप देते हैं वे अच्छे हैं, +\q2 क्योंकि आप जो करते हैं और आप जो कहते हैं वह मेरे लिए नया जीवन और स्वास्थ्य लाता है। +\q1 और आपने मुझे पुनर्स्थापित कर दिया है +\q2 और मुझे जीवित रहना जारी रखने की अनुमति दी! +\q1 +\v 17 सचमुच, मेरी पीड़ा मेरे लिए अच्छी थी; +\q2 आपने मुझसे प्रेम किया, +\q1 और जिसके परिणामस्वरूप आपने मुझे मरने से बचा लिया है +\q2 और मेरे सब पापों को भी क्षमा कर दिया है। +\q1 +\s5 +\v 18 मरे हुए लोग आपकी प्रशंसा नहीं कर सकते; +\q2 वे आपकी स्तुति करने के लिए गा नहीं सकते हैं। +\q1 जो लोग अपनी कब्रों में चले गए हैं +\q2 वे उनके लिए कार्यों को निष्ठापूर्वक से करने की आप से अपेक्षा नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\v 19 केवल वे लोग जो जीवित हैं, जैसे मैं हूँ, आपकी प्रशंसा कर सकते हैं। +\q1 पिता अपने बच्चों को बताते हैं कि आप कितने विश्वासयोग्य हैं, +\q2 और यदि मैं जीवित रहता हूँ, तो मैं भी यही कार्य करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 20 यहोवा मुझे पूरी तरह से स्वस्थ करेंगे, +\q2 इसलिए हम उनकी प्रशंसा में गीत गाएँगे +\q1 जबकि अन्य संगीत वाद्ययंत्र बजा कर उनकी प्रशंसा करते हैं। +\q2 हम यहोवा के मन्दिर में अपने जीवन के हर दिन ऐसा करेंगे।” +\p +\s5 +\v 21 यशायाह ने पहले हिजकिय्याह के कर्मचारियों से कहा था, “मसले हुए अंजीरों से एक मलहम तैयार करो, और उसे उसके फोड़े पर फैलाओ, और फिर वह ठीक हो जाएगा।” इसलिए उन्होंने ऐसा किया, और हिजकिय्याह ठीक हो गया। +\p +\v 22 और हिजकिय्याह ने पहले पूछा था, “यह सिद्ध करने के लिए यहोवा क्या करेंगे कि मैं ठीक हो जाऊँगा और उसके मन्दिर में जा सकूँगा?” + +\s5 +\c 39 +\p +\v 1 इसके तुरन्त बाद, बाबेल के राजा बलदान के पुत्र मरोदक बलदान ने एक सुचना सुनी कि हिजकिय्याह बहुत बीमार था, परन्तु वह ठीक हो गया था। इसलिए उसने कुछ पत्र लिखे और उन्हें उपहार के साथ हिजकिय्याह के पास ले कर जाने के लिए कुछ दूतों को दे दिया। +\v 2 जब दूत आए, तो हिजकिय्याह ने उनका प्रसन्नता से स्वागत किया। तब उसने उन्हें अपने खजाने के घरों में सब कुछ दिखाया – चाँदी, सोने, मसाले, और सुगन्धित जैतून का तेल। वह उन्हें उस स्थान को दिखाने के लिए भी ले गया जहाँ वे अपने सैनिकों के हथियार रखते थे, और उसने उन्हें अन्य मूल्यवान चीजें दिखाईं जो भण्डारगृहों में थीं। हिजकिय्याह ने उन्हें महल में या अन्य स्थानों पर जो कुछ भी था, दिखाया। +\p +\s5 +\v 3 तब यशायाह राजा हिजकिय्याह के पास गए और उससे पूछा, “वे लोग कहाँ से आए थे, और वे क्या चाहते थे?” +\p उसने उत्तर दिया, “वे दूर के बाबेल देश से आए थे।” +\p +\v 4 यशायाह ने उससे पूछा, “उन्होंने तुम्हारे महल में क्या देखा?” +\p हिजकिय्याह ने उत्तर दिया, “उन्होंने सब कुछ देखा। मैंने उन सब चीजों को उन्हें दिखाया – मेरी सब मूल्यवान चीजें जो मेरे पास हैं।” +\p +\s5 +\v 5 तब यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा, “स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, की ओर से इस सन्देश को सुनो: +\v 6 ऐसा समय होगा जब तुम्हारे महल में पाया जाने वाला सब कुछ, जो तुम्हारे पूर्वजों ने संग्रह किया था से ले कर वर्तमान समय तक, बाबेल में ले जाया जाएगा। यहोवा कहते हैं कि कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा। +\s5 +\v 7 इसके अतिरिक्त, तुम्हारे कुछ पुत्रों को बाबेल जाने के लिए विवश किया जाएगा। उन्हें नपुंसक बना दिया जाएगा कि वे बाबेल के राजा के महल में दास बन सकें।” +\p +\v 8 तब हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, “यहोवा की ओर से आया वह सन्देश जो आपने मुझे दिया है, अच्छा है।” उसने ऐसा इसलिए कहा कि क्योंकि वह सोच रहा था, “भले ही यदि ऐसा होता है, तो जब तक कि मैं जीवित हूँ, उस दौरान यहाँ शान्ति और सुरक्षा होगी।” + +\s5 +\c 40 +\q1 +\p +\v 1 हमारे परमेश्वर कहते हैं, “मेरे लोगों को प्रोत्साहित करो! +\q2 उन्हें प्रोत्साहित करो! +\q1 +\v 2 यरूशलेम के लोगों से कृपापूर्वक बात करो; +\q2 उन्हें बताओ कि उनकी पीड़ा समाप्त हो गई है +\q1 यहोवा ने उन पापों के लिए उन्हें क्षमा कर दिया है जो उन्होंने किए हैं। +\q2 उसने उन्हें उनके पापों के लिए पूरी तरह से दण्डित किया है।” +\q1 +\s5 +\v 3 कोई चिल्ला रहा है, +\q1 “रेगिस्तान के मैदान में यहोवा के तुम्हारे पास आने के लिए सीधा रास्ता बनाओ; +\q2 हमारे परमेश्वर के लिए एक चिकनी सड़क बनाओ। +\q1 +\v 4 घाटियों को भर डालो; +\q2 हर पहाड़ी और हर पर्वत को समतल करो। +\q1 ऊँची नीची भूमि को चिकना बनाओ, +\q2 और ऊबड़ खाबड़ स्थानों को चिकना बनाओ। +\q1 +\v 5 यदि तुम ऐसा करते हो, तो यह मालूम हो जाएगा कि यहोवा महिमामय हैं, +\q2 और सब लोग इसे एक ही समय पर जान जाएँगे। +\q1 यह बातें निश्चित रूप से घटित होंगी क्योंकि यह यहोवा हैं जिन्होंने यह कहा है।” +\q1 +\s5 +\v 6 किसी ने मुझसे कहा, “चिल्लाओ!” +\q2 मैंने उत्तर दिया, “मुझे क्या चिल्लाना चाहिए?” +\q1 उसने उत्तर दिया, “चिल्लाओ कि लोग घास के समान हैं; +\q2 उनकी विश्वासयोग्यता खेत के फूलों के समान शीघ्र ही से मुर्झा जाती है। +\q1 +\v 7 घास कुम्हला जाती है और फूल सूख जाते हैं +\q2 जब यहोवा रेगिस्तान से गर्म हवा को उन पर चलने देते हैं। +\q2 और सब लोग इस तरह हैं। +\q1 +\v 8 घास कुम्हला जाती है और फूल सूख जाते हैं, +\q2 परन्तु हमारे परमेश्वर का वादा सदा अटल रहेगा।” +\q1 +\s5 +\v 9 तुम सब जो सिय्योन में शुभसमाचार लाते हो, +\q2 इसे ऊँचे पर्वत से चिल्लाकर बताओ! +\q1 तुम में से हर कोई जो यरूशलेम में रहने वाले लोगों के पास शुभसमाचार लाता है, +\q2 जो सन्देश तुमको बताना है उसे ऊँची आवाज से चिल्लाकर बताओ! +\q1 इसे चिल्लाकर बताओ! डरो नहीं! +\q2 यहूदा के शहरों में रहने वाले लोगों से कहो, “तुम्हारे परमेश्वर यहाँ हैं! +\q1 +\v 10 यहोवा तुम्हारे परमेश्वर शक्ति के साथ आएँगे, +\q2 वह शक्तिशाली रीति से शासन करेंगे। +\q1 जब वह आएँगे, तो वह अपने साथ उन लोगों को लाएँगे जिनको उसने बाबेल में दास होने से स्वतन्त्र कर दिया है। +\q1 +\s5 +\v 11 वह अपने लोगों का ध्यान रखेंगे +\q2 जैसे एक चरवाहा उसकी भेड़ों का ध्यान रखता है, +\q2 और युवा मेम्नों को अपनी बाँहों में उठा लेता है। +\q1 वह उन्हें अपनी छाती के निकट उठाए रहता है +\q2 और वह कोमलता से मादा भेड़ों की अगुवाई करता है +\q2 जो उनके युवा मेम्नों को दूध पिला रही हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 यहोवा के समान कोई नहीं है! +\q2 अपने हाथ की हथेली में महासागरों के पानी को और किसने मापा है? +\q1 आकाश को और किसने मापा है? +\q2 और कौन जानता है कि पृथ्‍वी में कितनी मिट्टी है? +\q2 तराजू पर पर्वतों और पहाड़ियों का वजन और किसने किया है? +\q1 +\s5 +\v 13 और यहोवा को सलाह और कौन दे सकता है? +\q2 कौन उसे सिखा सकता है या उसे सलाह दे सकता है कि उनको क्या करना चाहिए? +\q1 +\v 14 क्या यहोवा ने कभी सलाह लेने के लिए किसी और से परामर्श किया है? +\q2 क्या उनको उन्हें यह बताने के लिए किसी की आवश्यकता है कि क्या करना सही है और कैसे न्यायपूर्वक कार्य करना है? +\q1 +\s5 +\v 15 यहोवा मानते हैं कि सारे राष्ट्र पानी से भरी बाल्टी की एक बूँद के समान महत्वहीन हैं। +\q2 वे तराजू पर धूल के समान महत्वहीन हैं। +\q1 वह द्वीपों का वजन करने में सक्षम हैं +\q2 जैसे मानों उनका वजन धूल के किनकों से अधिक नहीं था। +\q1 +\v 16 लबानोन के सब पेड़ों से जानवरों को बलि चढ़ाने को +\q2 उपयुक्त आग बनाने के लिए लकड़ी पर्याप्त नहीं होगी, +\q1 और उसके लिए बलि चढ़ाने को लबानोन में पर्याप्त जानवर नहीं हैं। +\q1 +\v 17 उनके लिए संसार के राष्ट्र पूरी तरह से महत्वहीन हैं; +\q2 वह उनको बेकार और तुच्छ से भी कम मानते हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 इसलिए तुम किसके साथ परमेश्वर की तुलना कर सकते हो? +\q2 कौन सी प्रतिमा उसके जैसे दिखती है? +\q1 +\v 19 क्या तुम उसकी तुलना एक ऐसी मूर्ति से कर सकते हो जो साँचे में बनी है, +\q2 और फिर सोने की पतली परत से ढकी हुई है +\q2 और चाँदी की जंजीरों से सजी हुई है? +\q1 +\v 20 जो कोई व्यक्ति गरीब है वह अपनी मूर्ति के लिए चाँदी या सोना नहीं मोल ले सकता है; +\q2 इसलिए वह ऐसी लकड़ी का एक टुकड़ा चुनता है जो नहीं सड़ेगा, +\q1 और वह इसे एक शिल्पकार को देता है +\q2 एक मूर्ति बनाने के लिए जो ऊपर नहीं गिरेगी! +\q1 +\s5 +\v 21 क्या तुमने यह नहीं सुना है? +\q2 क्या तुम इसे समझते नहीं हो? +\q1 परमेश्वर ने बहुत पहले जो कहा था क्या तुम यह सुनने में असमर्थ हो - +\q2 वह सन्देश जो उन्होंने पृथ्‍वी की रचना करने से पहले दिया था? +\q1 +\v 22 परमेश्वर पृथ्‍वी के ऊपर अपने सिंहासन पर विराजमान होते हैं, +\q2 और नीचे पृथ्‍वी पर लोग टिड्डी के समान छोटे लगते हैं। +\q1 वह आकाश को एक पर्दे के समान फैलाते हैं; +\q2 यह उनके रहने के लिए एक तम्बू के समान है। +\q1 +\s5 +\v 23 वह राजाओं को और अधिक शक्ति नहीं पाने देते हैं, +\q2 और वह शासकों को तुच्छ के योग्य बना देते हैं। +\q1 +\v 24 वे ऐसे शासन करना आरम्भ करते हैं, जैसे छोटे पौधे उगने लगते हैं और जड़ें बनाते हैं; +\q2 परन्तु फिर वह उनसे छुटकारा पाते हैं +\q2 जैसे मानों जब उसने उन पर हवा चलाई तो वे सूख गए, +\q1 जैसे भूसी जिसे हवा से दूर उड़ाया जाता है। +\q1 +\s5 +\v 25 एकमात्र पवित्र पूछते हैं, +\q2 “तुम किससे मेरी तुलना करोगे? +\q2 क्या कोई मेरे बराबर है?” +\q1 +\v 26 ऊपर आकाश की ओर देखो: +\q2 विचार करो कि सब सितारों को किसने बनाया है। +\q1 यहोवा ने उन्हें बनाया, और रात में वह उन्हें प्रकट होने देते हैं; +\q2 वह प्रत्येक को इनके नाम से बुलाते हैं। +\q1 क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली हैं, +\q2 जब वह उनके नाम पुकारते हैं तो सब सितारे वहाँ होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 27 तुम हे इस्राएल के लोगों, तुम क्यों शिकायत करते हो कि यहोवा उन परेशानियों को नहीं देखते जिनका तुम सामना कर रहे हो? +\q2 तुम क्यों कहते हो कि वह तुम्हारे प्रति निष्पक्ष कार्य नहीं करते हैं? +\q1 +\v 28 क्या तुमने कभी नहीं सुना है +\q2 और क्या तुमने कभी समझा नहीं है +\q1 कि यहोवा अनन्त परमेश्वर हैं? +\q2 वह वही श्रमित हैं जिन्होंने पृथ्‍वी की रचना की, यहाँ तक कि पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों को रचा। +\q1 वह कभी सोते नहीं या थकते नहीं हैं, +\q2 और कोई भी यह नहीं जान सकता कि उनकी बुद्धि कितनी अथाह हैं। +\q1 +\s5 +\v 29 वह उन लोगों को मजबूत करते हैं जो निर्बल और थके हुए महसूस करते हैं। +\q1 +\v 30 यहाँ तक कि युवा भी बेहोश होते और थके हुए हो जाते हैं, +\q2 और युवा पुरुष गिर पड़ेंगे जब वे थक जाएँगे। +\q1 +\v 31 परन्तु जो यहोवा पर भरोसा करते हैं वे फिर से मजबूत हो जाएँगे; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मानों वे उकाब के समान ऊँची उड़ान भरेंगे। +\q1 वे लम्बे समय तक दौड़ेंगे और थके हुए नहीं होंगे; +\q2 वे लम्बी दूरी तक चलेंगे और बेहोश नहीं होंगे। + +\s5 +\c 41 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “तुम लोग जो महासागर में द्वीपों पर रहते हो, +\q2 मेरे सामने चुप रहो, जब मैं तुमसे कुछ प्रश्न पूछता हूँ! +\q1 तब तुम साहसी हो सकते हो और मुझसे बात कर सकते हो। +\q2 हम एक साथ मिलेंगे और निर्णय करेंगे कि हम में से कौन सही है। +\q1 +\v 2 इस राजा को पूर्व से आने के लिए किसने उठाया है? +\q1 वही हैं जो हर कदम पर सही कार्य करते हैं। वह राष्ट्रों को उसके हाथों में कर देते हैं और वह उन्हें पराजित करता है, +\q2 और वह उनके राजाओं को अपने पैरों के नीचे कुचल देते हैं। +\q1 वह अपने शत्रुओं को काटते हैं और वे नष्ट हो जाते हैं इसलिए वे धूल के समान हैं, +\q2 और उसकी सेना उन्हें धनुष और तीर से मारती है इसलिए वे हवा उड़ने वाली भूसी के समान हों। +\q1 +\s5 +\v 3 भले ही खतरे में होने पर भी अपने शत्रुओं का पीछा करते समय +\q2 वे बहुत तेजी से जाते हैं, और कोई भी वस्तु उन्हें रोक नहीं पाती है। +\q1 +\v 4 शासकों को ऐसे शक्तिशाली कर्म करने के लिए किसने सक्षम बनाया है? +\q2 पीढ़ी दर पीढ़ी यह कार्य किसने किया है? +\q1 यह मैं, यहोवा हूँ! +\q2 मैं इस तरह के कार्यों को करने वाला पहला व्यक्ति था, और मैं उन्हें करने वाला अंतिम व्यक्ति होऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 वे लोग देखते समय डरते हैं जो महासागर में द्वीपों पर रहते हैं। +\q2 दूर के क्षेत्रों में रहने वाले लोग थरथराते हैं और एक साथ इकट्ठे होते हैं। +\q1 +\v 6 वे एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते हैं और एक-दूसरे से कहते हैं, +\q2 ‘मजबूत बनो!’ +\q1 +\v 7 लकड़ी के कारीगर सोने की चीजें बनाने वाले लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, +\q2 और धातु को बराबर करने वाले निहाई पर हथौड़ा मारने वालों को प्रोत्साहित करते हैं। +\q1 वे सब कहते हैं, ‘मूर्ति अच्छी तरह से बनाई गई है!’ +\q2 फिर वे सावधानीपूर्वक मूर्ति को कील से ठोंक देते हैं कि यह गिर न जाए!” +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा कहते हैं, “तुम इस्राएली लोग मेरे दास हो; +\q2 तुम मेरे चुने हुए याकूब के वंशज हो; +\q2 तुम अब्राहम के वंशज हो, जिसे मैंने मेरा मित्र कहा था। +\q1 +\v 9 मैंने तुमको पृथ्‍वी पर बहुत दूर स्थानों से बुलाया, +\q2 और मैंने कहा, ‘मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी सेवा करो।’ +\q1 मैंने तुमको चुना है, +\q2 और मैं तुमको अस्वीकार नहीं करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 मत डरो, +\q2 क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। +\q1 निराश न हों, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ। +\q2 मैं तुमको मजबूत होने में सक्षम करूँगा, और मैं तुम्हारी सहायता करूँगा; +\q2 मैं तुमको अपनी शक्तिशाली बाँह से पकड़े रहूँगा जिसके द्वारा मैं तुमको बचाऊँगा, और ऐसा करने मैं पूरी तरह से धर्मी होऊँगा! +\q1 +\s5 +\v 11 यह निश्चित है कि वे सब लोग अपमानित होंगे जो तुम इस्राएली लोगों से क्रोधित हैं। +\q2 तुम्हारा विरोध करने वाले लोगों को मिटा दिया जाएगा; +\q2 वे सब मर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 12 यदि तुम उन लोगों की खोज करते हो जिन्होंने तुमको जीतने का प्रयास की थी, +\q1 तो तुम उन्हें नहीं ढूँढ़ पाओगे, +\q2 क्योंकि वे सब गायब हो जाएँगे। +\q1 जिन्होंने तुम पर आक्रमण किया था +\q2 अब वे अस्तित्व में नहीं होंगे, +\q1 +\v 13 क्योंकि यह ऐसा होगा जैसे मानों मैं तुमको अपने दाहिने हाथ से पकड़ लूँगा। +\q2 मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ, +\q1 और मैं तुमसे कहता हूँ, ‘मत डरो, +\q2 क्योंकि मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।’ +\q1 +\s5 +\v 14 हालाँकि दूसरों ने तुम इस्राएली लोगों के साथ कीड़ों के समान व्यवहार किया है, +\q2 अपने शत्रुओं से मत डरो, +\q1 क्योंकि मैं तुम्हारी सहायता करूँगा!” +\q1 यही है जो यहोवा गम्भीरता से कहते हैं – वह जो तुमको बचाते हैं, +\q2 इस्राएल के एकमात्र पवित्र। +\q1 +\v 15 वह कहते हैं, “मैं तुमको बहुत धारदार और दोधारी एक नई दाँवने वाली छूरी के समान बना दूँगा। +\q1 तुम अपने शत्रुओं को चकना चूर कर दोगे +\q2 उन्हें पर्वतों की भूसी के समान चूरा बना दोगे। +\q1 +\s5 +\v 16 तुम उन्हें हवा में फेंक दोगे, +\q2 और एक तेज हवा उन्हें दूर उड़ा ले जाएगी। +\q1 जब ऐसा होता है, तो जो मैंने तुम्हारे लिए किया है उसके विषय में तुमको प्रसन्नता होगी; +\q2 तुम मुझ, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, यहोवा, की स्तुति करोगे। +\q1 +\s5 +\v 17 जब गरीब और अभावग्रस्त लोगों को पानी की आवश्यकता होती है और उनके पास पानी नहीं होता है, +\q2 और उनकी जीभें बहुत सूखी हुई हैं क्योंकि वे बहुत प्यासे हैं, +\q2 मैं, यहोवा, आऊँगा और उनकी सहायता करूँगा। +\q1 मैं, वह परमेश्वर जिसके तुम इस्राएली लोग हो, उन्हें कभी त्याग नहीं दूँगा। +\q1 +\v 18 मैं बंजर पहाड़ियों पर उनके लिए नदियों को बहने दूँगा। +\q2 मैं उन्हें घाटियों में सोते दूँगा। +\q1 मैं रेगिस्तान को पानी के तालों से भर दूँगा। +\q2 सोतों से पानी नदियों में बह जाएगा, +\q2 और सूखी भूमि पर नदियाँ बहेंगी। +\q1 +\s5 +\v 19 मैं जंगल में देवदार, बबूल और मेंहदी उगाऊँगा – +\q2 और मैं रेगिस्तानी मैदान में जैतून के पेड़ – सनोवर, तिघारे, और सीधा सनोवर सब एक साथ रोपूँगा। +\q1 +\v 20 मैं ऐसा करूँगा कि जो लोग इसे देखते हैं, वे इसके विषय में सोचेंगे, और वे जान जाएँगे और समझ जाएँगे +\q2 कि जिसने इसे किया है वह मैं, यहोवा, हूँ; +\q1 यही है जो मैं, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, ने किया है। +\q1 +\s5 +\v 21 मैं, इस्राएल का राजा, यहोवा, तुम राष्ट्रों से बात कर रहा हूँ: +\q2 आओ और मुझे बताओ कि तुम्हारी मूर्तियाँ तुम्हारे लिए क्या कर सकती हैं! उनके बचाव की विवाद में अपनी पूरी प्रयास करो। +\q1 +\v 22 उनको हमें यह बताने के लिए यहाँ लाओ कि क्या होने जा रहा है! +\q2 उनको हमें यह बताने के लिए कहो कि बहुत पहले क्या बातें घटित हुई थीं, +\q1 कि हम उन बातों के विषय में सोच सकें, +\q2 और जान लें कि जिन बातों की उन्होंने भविष्यद्वाणी की क्या वे वास्तव में हुई थीं। +\q1 या उन्हें भविष्य के विषय में हमें बताने के लिए कहो, +\q2 कि हम यह जानें कि क्या घटित होगा। +\q1 +\s5 +\v 23 हाँ, उन मूर्तियों को हमें बताना चाहिए कि भविष्य में क्या होगा। +\q2 यदि वे ऐसा करती हैं, तो हम जान लेंगे कि वे वास्तव में देवता हैं। +\q1 उन्हें कुछ करने के लिए कहो – या तो कुछ अच्छा या कुछ बुरा! +\q2 उन्हें कुछ ऐसा करने के लिए कहो जो हमें आश्चर्यचकित और भयभीत कर दे! +\q1 +\v 24 परन्तु यह असम्भव है, क्योंकि मूर्तियाँ बिलकुल बेकार हैं; +\q2 वे कुछ भी नहीं कर सकती हैं, +\q2 और मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ जो मूर्तियों की उपासना करने का निर्णय करते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 25 “परन्तु मैंने एक शासक को उकसाया है जो अपनी सेना के साथ उत्तर से आएगा। +\q2 मैंने उसे आने के लिए उसके देश से बुलाया है, जो इस्राएल के पूर्व में है, +\q1 और वह सहायता के लिए मुझे पुकारेगा। +\q2 मैं अन्य शासकों को जीतने में उसकी सेना को सक्षम करूँगा; +\q2 वे उन अगुवों को ऐसे रौंद देंगे जैसे मिट्टी के बर्तनों को बनाने वाला मिट्टी को रौंदता है। +\q1 +\v 26 बहुत पहले तुम लोगों को किसने बताया था कि ऐसा होगा? +\q2 किसने इसकी भविष्यद्वाणी की थी, जिसके परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं, “उसने जो भविष्यद्वाणी की थी, वह सही थी!” +\q1 किसी और ने नहीं कहा था कि ऐसा होगा। +\q1 +\s5 +\v 27 यरूशलेम के लोगों से कहने वाला पहला व्यक्ति मैं था: +\q2 ‘इसे सुनो! मैंने तुमको शुभसमाचार बताने के लिए एक दूत नियुक्त किया है! +\q1 +\v 28 तुम्हारी मूर्तियों में से किसी ने भी तुमको यह नहीं बताया है। +\q2 और जब मैंने उनसे प्रश्न पूछा, तो उनमें से कोई भी मुझे कोई उत्तर देने में सक्षम नहीं था। +\q1 +\v 29 इस विषय में सोचो: वे सब मूर्तियाँ बेकार, तुच्छ चीजें हैं। +\q2 वे हवा के समान अर्थहीन हैं।” + +\s5 +\c 42 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरे दास के विषय में जानों, जिसे मैं प्रोत्साहित करता हूँ। +\q2 मैंने उसे चुना है, और मैं उससे प्रसन्न हूँ। +\q1 मैंने उसे अपनी आत्मा दी है, +\q2 और वह निश्चित करेगा कि सभी लोगों के समूह न्यायपूर्वक कार्य करते हैं। +\q1 +\v 2 वह चिल्लाने के द्वारा +\q2 या बहुत ऊँची आवाज में बात करके अपनी शक्ति नहीं दिखाएगा। +\q1 +\s5 +\v 3 वह ऐसे किसी भी व्यक्ति से छुटकारा नहीं पाएगा जो एक धराशायी नरकट के समान निर्बल है, +\q2 और वह ऐसे किसी भी व्यक्ति के जीवन को समाप्त नहीं करेगा जो जलने से बुझ जाने वाले एक तेल वाले दीपक के समान असहाय है। +\q1 वह ईमानदारी से यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायधीश मामलों का निर्णय न्यायपूर्वक करें। +\q2 +\v 4 वह उस समय के दौरान नहीं थकेगा या निराश नहीं होगा जब वह पूरी पृथ्‍वी पर कार्यों को न्यायपूर्वक हो जाने दे रहा है। +\q1 यहाँ तक कि महासागरों में द्वीपों पर रहने वाले लोग भी आत्मविश्वास से उन्हें उसके कानूनों को सिखाने के लिए उसकी प्रतीक्षा करेंगे।” +\q1 +\s5 +\v 5 हमारे परमेश्वर यहोवा ने आकाश को बनाया +\q2 और इसे फैला दिया। +\q1 उन्होंने पृथ्‍वी को और सब कुछ जो उसमें पाया जाता है उसे भी बनाया। +\q2 वह पृथ्‍वी पर रहने वाले सब लोगों को साँस देते हैं और उन्हें जीवित रहने देते हैं। +\q1 और वही हैं जो अपने विशेष दास से कहते हैं, +\q1 +\v 6 “मैं, यहोवा, ने तुमको +\q2 लोगों को दिखाने के लिए चुन लिया है कि मैं सदा धार्मिक रूप से कार्य करता हूँ। +\q1 मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हारी रक्षा करूँगा, +\q2 और मैं तुमको मेरे इस्राएली लोगों के सामने +\q2 वह व्यक्ति बनने के लिए प्रस्तुत करूँगा जो उनके साथ मेरी वाचा को लागू करेगा। +\q1 तुम अन्य राष्ट्रों के लिए एक प्रकाश के समान होंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 क्योंकि तुम अंधे लोगों को देखने में सक्षम बनाओगे, +\q2 जो बन्दीगृह में हैं तुम उनको स्वतन्त्र कर दोगे +\q2 और जो अँधेरी बन्दीगृह में हैं उन लोगों को मुक्त कर दोगे। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं यहोवा हूँ; यह मेरा नाम है। +\q2 मैं किसी और को वह आदर प्राप्त करने की अनुमति नहीं दूँगा जिसके योग्य केवल मैं हूँ। +\q2 और मैं दूसरों को मूर्तियों की प्रशंसा करने की अनुमति नहीं दूँगा, क्योंकि उन्हें केवल मेरी प्रशंसा करनी चाहिए। +\q1 +\v 9 जो कुछ भी भविष्यद्वाणी मैंने की है वह घटित हुआ है, +\q2 और अब मैं उन अन्य बातों के विषय में बताऊँगा जो घटित होंगी। +\q1 मैं तुमको वे बातें बताऊँगा जो उनके घटित होने से पहले होंगी।” +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ! +\q2 संसार भर में उसकी प्रशंसा करने के लिए गाओ! +\q1 तुम सब लोग जो महासागरों से पार यात्रा करते हो, और तुम सब प्राणी जो महासागरों में रहते हो, +\q2 और तुम सब लोग जो दूर द्वीपों पर रहते हो, गाओ! +\q1 +\v 11 तुम जो लोग रेगिस्तानी नगरों में रहते हो, ऊँची आवाज से गाओ! +\q2 तुम लोग जो अरब के उत्तर में केदार क्षेत्र में रहते हो, तुम भी आनन्दित हो जाओ! +\q1 तुम एदोम के सेला शहर में रहने वाले लोगों, तुमको भी प्रसन्नता से गीत गाना चाहिए; +\q2 अपने पर्वतों की चोटियों से उसकी प्रशंसा करने के लिए चिल्लाओ! +\q1 +\s5 +\v 12 यहाँ तक कि दूर के द्वीपों पर रहने वाले लोगों को भी यहोवा का सम्मान करना चाहिए +\q2 और उसकी प्रशंसा करने के लिए गीत गाना चाहिए। +\q1 +\v 13 यह ऐसा होगा जैसे मानों यहोवा एक शक्तिशाली सैनिक के समान निकल जाएँगे; +\q2 वह दिखाएँगे कि वह बहुत क्रोध में हैं। +\q1 वह एक युद्ध की ललकार करेंगे, +\q2 और फिर वह अपने सभी शत्रुओं को पराजित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 वह कहेंगे, “मैं लम्बे समय तक चुप रहा हूँ; +\q2 मैंने स्वयं को वह करने से रोका जो मुझे करने की आवश्यकता है। +\q1 परन्तु अब, एक बच्चे को जन्म देती एक स्त्री के समान, मैं चिल्लाऊँगा और हाँफ हाँफकर साँस भरूँगा। +\q1 +\v 15 मैं पहाड़ियों और पर्वतों को बराबर कर दूँगा, +\q2 और मैं सब पौधों और पेड़ों को सूख जाने दूँगा। +\q1 मैं नदियों को छोटी धाराएँ बन जा दूँगा, और उनमें छोटे-छोटे द्वीप दिखाई देंगे, +\q2 और मैं सब तालों को सूख जाने दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 16 मेरे वे लोग अंधे लोगों के समान हैं जिन्हें बन्धुआई में ले जाया गया है, +\q2 परन्तु मैं उन्हें एक ऐसी सड़क पर ले कर जाऊँगा जिस पर वे पहले कभी नहीं चले हैं, +\q1 एक ऐसी सड़क पर जिसे उन्होंने पहले नहीं देखा है। +\q2 वे बहुत असहाय महसूस कर चुके हैं, जैसे कि मानों वे अन्धकार में चल रहे थे, +\q1 परन्तु मैं उस अन्धकार को दूर कर दूँगा +\q2 और मैं उनके सामने की सड़क को चिकना बना दूँगा। +\q1 ये वह कार्य हैं जो मैं उनके लिए करूँगा; +\q2 मैं उन्हें त्याग नहीं दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 17 परन्तु जो खुदी हुई मूर्तियों पर भरोसा करते हैं, +\q2 और प्रतिमाओं से कहते हैं, ‘तुम हमारे देवता हो,’ +\q2 उनको पूरी तरह से अपमानित किया जाएगा।” +\q1 +\s5 +\v 18 तुम इस्राएली लोग जिन्होंने परमेश्वर के प्रति बहरे लोगों के समान कार्य किया है, सुनो कि यहोवा क्या कहते हैं! +\q2 “तुम जो अंधे लोगों के समान हो, देखो! +\q1 +\v 19 कोई भी लोग मेरे लोगों के समान अंधे नहीं हैं, जिनको मेरी सेवा करनी चाहिए। +\q2 कोई भी लोग इस्राएलियों के जितने बहरे लोग नहीं हैं, जिनको मेरे दूत होना चाहिए। +\q1 कोई भी लोग उन लोगों के जितने अंधे नहीं हैं, जिन्हें मैंने एक वाचा के तहत मेरी सेवा करने के लिए चुना है। +\q1 +\s5 +\v 20 तुम देखते हो और जानते हो कि कौन से कार्य करने के लिए सही हैं, परन्तु तुम उन्हें नहीं करते हो। +\q2 जो मैं तुमसे कहता हूँ तुम उसे सुनते हो, परन्तु तुम उस पर ध्यान नहीं देते हो।” +\q1 +\v 21 क्योंकि यहोवा धर्मी हैं, +\q2 उन्होंने अपने गौरवशाली कानूनों का सम्मान किया है। +\q1 +\s5 +\v 22 परन्तु सेनाओं ने यरूशलेम को नष्ट कर दिया है और सभी मूल्यवान चीजों को पूरी तरह से लूट लिया है, +\q2 और उन्होंने यहोवा के लोगों को बन्धक बना लिया +\q2 और उन्हें दूर ले गए और उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया है। +\q1 वे सरलता से बन्धक बना लिए गए, +\q2 क्योंकि उनकी रक्षा करने के लिए कोई नहीं था; +\q1 यह कहने के लिए वहाँ कोई नहीं था कि उन्हें घर लौटने की अनुमति दी जानी चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 23 तुम में से कौन इन बातों को ध्यान से सुनेगा? +\q2 अब से कौन ध्यान देगा? +\q1 +\v 24 किसने इस्राएली लोगों की बहुमूल्य सम्पत्ति चोरी होने की अनुमति दी? +\q2 यह यहोवा थे, क्योंकि वही हैं जिनके विरुद्ध हमने पाप किया था; +\q1 हमने अपने जीवन का संचालन वैसे नहीं किया जैसे वह हमसे चाहते थे, +\q2 और हमने उसके नियमों का पालन नहीं किया। +\q1 +\s5 +\v 25 इसलिए वह हमारे साथ बहुत क्रोधित थे, +\q2 और उसने हमारे सैनिकों को लड़ाई में नष्ट हो जाने दिया। +\q1 यह ऐसा था जैसे मानों उन्होंने हमारे चारों ओर आग लगा दी थी, +\q2 परन्तु हमें समझ में नहीं आया कि वह हमें क्या बताने की प्रयास कर रहे थे। +\q1 हमारे साथ उसका क्रोध आग के समान था जो हमें जला देगी, +\q2 परन्तु हमने ध्यान नहीं दिया। + +\s5 +\c 43 +\q1 +\p +\v 1 परन्तु अब, हे इस्राएल के लोगों, यहोवा की बात सुनो, जिन्होंने तुम्हारे राष्ट्र को स्थापित किया है। +\q2 जिन्होंने तुमको एक राष्ट्र बनने दिया वह यह कहते हैं: +\q1 “मत डरो, +\q2 क्योंकि मैंने तुमको बचा लिया है। +\q1 मैंने तुमको तुम्हारे नाम से बुलाया है, कि तुम मुझसे सम्बन्धित हो जाओ। अब तुम मेरे हो। +\q1 +\s5 +\v 2 जब तुम खतरनाक स्थितियों का अनुभव करते हो, +\q1 और तुम्हारे सामने गहरी नदियों को पार करने के जैसी भयंकर कठिनाईयों हों, +\q2 मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। +\q1 जब तुमको आग के समान बहुत पीड़ा दायक परेशानियाँ होती हैं, +\q2 तुम उन्हें सहन करने में सक्षम होओगे, और वे तुमको चोट नहीं पहुँचाएँगी, +\q1 +\v 3 क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर, यहोवा हूँ, +\q2 इस्राएल का एकमात्र पवित्र, वह जो तुमको बचाता है। +\q1 मैं तुम्हारे स्थान पर मिस्र को बलि चढ़ा दूँगा; +\q2 और तुम्हारे बदले में मैं इथियोपिया और सबा को दे दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 4 मैं तुम्हारे देश की बजाए अन्य देशों को जीत लिया जाने दूँगा; +\q2 मैं तुम्हारे लिए उनका व्यापार करूँगा, +\q2 कि तुमको मार न डाला जाए, +\q1 क्योंकि तुम मेरे लिए बहुत मूल्यवान हैं +\q2 और क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। +\q1 +\v 5 मत डरो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ। +\q2 किसी दिन मैं तुम्हारे वंशजों को पूर्व से और पश्चिम से इकट्ठा करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं उत्तर और दक्षिण में राष्ट्रों के शासकों को आज्ञा दूँगा, +\q2 ‘इस्राएल के सब लोगों को, +\q2 पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों से अपने देश लौटने की अनुमति दो। +\q1 +\v 7 उन सबको लौट जाने की अनुमति दो जो मेरे हैं, +\q2 क्योंकि मैंने उन्हें एक राष्ट्र बन जाने के लिए ठहराया है कि वे मेरा सम्मान करें; +\q2 वह मैं ही हूँ जिसने ऐसा किया है।’ +\q1 +\s5 +\v 8 उन लोगों को बुलाओ जिनके पास आँखें होते हुए भी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे मानों वे अंधे थे; +\q2 उन लोगों को बुलाओ जिनके कान होते हुए भी ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे मानों वे बहरे थे। +\q1 +\v 9 सब राष्ट्रों के लोगों को एक साथ इकट्ठा करो, +\q2 सब लोगों के समूहों से एकत्रित करो, +\q1 और उनसे पूछो: ‘क्या उनकी किसी भी मूर्ति ने उन बातों की भविष्यद्वाणी की है जो अब हो रही हैं? +\q2 और क्या उनमें से कोई भविष्यद्वाणी करेगा कि भविष्य में क्या होगा? +\q1 फिर उन लोगों को लाओ जो गवाही देंगे और कहेंगे ‘मैंने उन्हें बातों की भविष्यद्वाणी करते सुना है, +\q2 और जो हुआ था वह भविष्यद्वाणी उन्होंने की थी,’ +\q2 परन्तु वे झूठ बोल रहे होंगे।” +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु यहोवा कहते हैं, “तुम इस्राएल के लोग मेरे साक्षी हो, +\q2 और तुम ही मेरी सेवा करते हो। +\q1 मैंने तुमको चुना है कि तुम मुझे जानो, मुझ पर विश्वास करो, +\q2 और समझो कि मैं ही अकेला हूँ जो वास्तव में परमेश्वर है। +\q1 कोई अन्य सच्चा परमेश्वर नहीं है। +\q2 पहले कोई अन्य सच्चा परमेश्वर नहीं था, +\q2 और कभी भी कोई और सच्चा परमेश्वर नहीं होगा। +\q1 +\v 11 मैं, केवल मैं ही, यहोवा हूँ, +\q2 और कोई अन्य नहीं है जो तुमको बचा सकता है। +\q1 +\s5 +\v 12 मैंने कहा कि मैं तुम्हारे पूर्वजों को बचाऊँगा, +\q2 और फिर मैंने उन्हें बचाया, और मैंने घोषणा की कि मैंने इसे किया है। +\q1 तुम्हारे बीच के किसी पराए देवता ने यह नहीं किया था! +\q2 और तुम गवाह हो कि केवल मैं, यहोवा ही, परमेश्वर हूँ। +\q2 +\v 13 मैं वही परमेश्वर हूँ, जो सदा से अस्तित्व में है और जो सदा तक अस्तित्व में रहेगा; +\q1 कोई भी मेरे हाथ से लोगों को छीन नहीं सकता है, +\q2 और कोई भी उसे बदल नहीं सकता है जो मैंने किया है।” +\q1 +\s5 +\v 14 वह यहोवा, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, ही हैं जो तुमको बचाते हैं, और वह यही कहते हैं: +\q2 “तुम्हारे लिए, मैं बाबेल पर आक्रमण करने के लिए एक सेना भेजूँगा। +\q2 वे शहर के लोगों को अपने शहर से भागने के लिए, और आनन्द के गीत गाने के बजाए विलाप के गीत गाने के लिए विवश करेंगे। +\q1 +\v 15 मैं तुम्हारा एकमात्र पवित्र, यहोवा हूँ, +\q2 वही जिसने इस्राएल को एक राष्ट्र बन जाने दिया, और वही जो वास्तव में तुम्हारे राजा हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 मैं वही यहोवा हूँ, जिसने पानी के माध्यम से एक मार्ग खोला, +\q2 लाल समुद्र से होकर एक सड़क बना दी थी। +\q1 +\v 17 तब मैंने मिस्र की महान सेना को +\q2 उनके सब रथों और घोड़ों के साथ आने के लिए बुलाया। +\q1 परन्तु जब उन्होंने मेरे लोगों का पीछा करने का प्रयास की, +\q1 मैंने लहरों को उनके ऊपर बह जाने दिया और वे डूब गए; +\q2 उनके जीवन ऐसे समाप्त हो गए जैसे किसी के बत्ती पर फूँक मारने से एक मोमबत्ती का प्रकाश समाप्त हो जाता है। +\q1 +\s5 +\v 18 परन्तु अतीत में, बहुत पहले क्या हुआ, केवल उसके विषय में ही मत सोचो। +\q1 +\v 19 इसके बजाए, नई बातों पर विचार करो जो मैं करने जा रहा हूँ। +\q2 मैंने इसे करना पहले ही आरम्भ कर दिया है; +\q2 क्या तुम इसे देख सकते हो? +\q1 मैं रेगिस्तान के माध्यम से एक सड़क बनाने जा रहा हूँ। +\q2 और मैं वहाँ बंजर भूमि में धाराएँ पैदा करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 20 सियार और शुतुर्मुर्ग और अन्य जंगली जीव +\q2 उन्हें रेगिस्तान में पानी देने के लिए मुझे धन्यवाद देंगे। +\q1 मैं सूखे रेगिस्तान में धाराओं को प्रकट करूँगा +\q2 कि मेरे उन लोगों के पास पानी हो, जिन्हें मैंने चुना है; +\q2 +\v 21 मैं उन लोगों के लिए ऐसा करूँगा जिन्हें मैंने बनाया है और मेरे लिए चुना है, +\q2 कि वे मेरे द्वारा उनके लिए किए गए अद्भुत कार्यों के विषय में दूसरों को बताएँगे। +\q1 +\s5 +\v 22 परन्तु अब, तुम हे याकूब के वंशजों, तुम मेरी सहायता के लिए अनुरोध करने से मना करते हो। +\q2 तुम इस्राएल के लोग मेरी आराधना करने के थक गए हो। +\q1 +\v 23 तुम मेरे पास मेरी वेदी पर जलाने की भेंटों के लिए भेड़ों या बकरियों को नहीं लाए हो; +\q2 तुमने किसी भी बलिदान से मुझे सम्मानित नहीं किया है, +\q1 यहाँ तक कि अन्न-बलि और धूप की पेशकश जो मैंने तुमको लाने के लिए कहा था, वह तुम्हारे लिए बोझ नहीं थे। +\q1 +\s5 +\v 24 तुमने मेरे लिए कोई सुगन्धित सरकण्डा नहीं मोल लिया है, +\q2 और तुमने मुझ पर किसी जानवर के बलिदान से मीठी-सुगन्धित चर्बी नहीं डाली है। +\q1 परन्तु तुम्हारे द्वारा किए गए सब पापों से तुमने मुझे बोझिल कर दिया है, +\q2 और तुम्हारे सब अधर्मों के कारण मुझे थका दिया है। +\q1 +\s5 +\v 25 मैं वही हूँ जो तुमको सब पापों के लिए क्षमा करने में सक्षम है; +\q2 वह एकमात्र मैं ही हूँ जो ऐसा कर सकता है, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप मैं फिर कभी भी उनके विषय में नहीं सोचूँगा। +\q1 +\v 26 मुझे बताओ कि मैंने ऐसा क्या किया है जिसे तुम पसन्द नहीं करते हो। +\q2 क्या तुम सोचते हो कि जब तुम अपने मामले की व्याख्या करते हो, तो तुम सिद्ध करोगे कि तुम निर्दोष हो? +\q1 +\s5 +\v 27 नहीं, जो हुआ है वह यह है कि तुम इस्राएलियों के पहले पूर्वजों ने मेरे विरुद्ध पाप किया था, +\q2 और तब से, तुम्हारे सब अगुवों ने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है। +\q1 +\v 28 यही कारण है कि मैं तुम्हारे याजकों को अपमानित होने दूँगा; +\q2 मैं दूसरों को तुम इस्राएली लोगों को नष्ट करने की +\q2 और तुमको तुच्छ बना देने की अनुमति दूँगा।” + +\s5 +\c 44 +\q1 +\p +\v 1 परन्तु अब, तुम हे इस्राएल के लोगों जिन्हें यहोवा ने उसकी सेवा करने के लिए चुना है, मेरी बात सुनो। +\q1 +\v 2 उस यहोवा ने तुम्हारे पैदा होते समय तुम पर दृष्टि रखी, जिसने तुमको बनाया, और जो तुम्हारी सहायता करते हैं, वह यह कहते हैं: +\q2 “तुम हे प्रिय इस्राएली लोगों जिन्हें मैंने चुना है, +\q2 तुम जो मेरी सेवा करते हो, +\q2 मत डरो। +\q1 +\s5 +\v 3 मैं तुम्हारी सूखी भूमि पर पानी डालूँगा +\q2 और धाराओं को बहने दूँगा। +\q1 और मैं अपनी आत्मा को तुम्हारे वंशजों पर डालूँगा +\q2 और उन्हें बहुतायत से आशीर्वाद दूँगा। +\q1 +\v 4 वे पानी के निकट की घास के समान बड़े हो जाएँगे, +\q2 जैसे नदी के किनारे मजनू पेड़ अच्छी तरह से बढ़ते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 उनमें से कुछ कहेंगे, ‘मैं यहोवा का हूँ,’ +\q2 और अन्य लोग कहेंगे, ‘हम याकूब के वंशज हैं,’ +\q1 और अन्य अपने हाथों पर लिखेंगे, ‘हम यहोवा के हैं,’ +\q2 और अन्य लोग कहेंगे, ‘हम इस्राएली हैं, और हम यहोवा के हैं।’” +\q1 +\s5 +\v 6 इस्राएल का राजा, वह जो हमें बचाते हैं, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह कहते हैं: +\q1 “मैं वही हूँ जो सब कुछ आरम्भ करता है और जो सब कुछ समाप्त करता है; +\q2 कोई अन्य परमेश्वर नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 7 यदि मेरे जैसा कोई है, +\q2 उसे यह घोषित करना चाहिए! +\q1 उसे बोलना चाहिए और अभी मुझे बताना चाहिए! +\q2 उसे यह बताना चाहिए कि बहुत पहले जब मैंने अपने इस्राएली लोगों को एक राष्ट्र बनने के लिए प्रेरित किया था तब से क्या हुआ है; +\q1 उसे यह भी समझाना चाहिए कि अतीत में घटनाएँ जिस तरह से हुईं तो क्यों हुईं, +\q2 और उसे भविष्यद्वाणी करनी चाहिए कि भविष्य में क्या होगा। +\q1 +\s5 +\v 8 हे मेरे लोगों, मत डरो। +\q2 बहुत पहले मैंने तुमको उन घटित होने वाली बातों को बताया; +\q1 तुम जानते हो कि मैंने उनकी भविष्यद्वाणी की है, और तुम यह गवाही दे सकते हो कि मैंने ऐसा किया है। +\q1 निश्चित रूप से कोई अन्य परमेश्वर नहीं है। +\q2 कोई अन्य परमेश्वर नहीं है जो तुम्हारी रक्षा करने में सक्षम है।” +\q1 +\s5 +\v 9 जो मूर्तियाँ बनाते हैं वे सब मूर्ख हैं, +\q2 और वे मूर्तियाँ बेकार हैं जिनको वे प्रतिष्ठित मानते हैं। +\q1 और जो लोग उन मूर्तियों की उपासना करते हैं – ऐसा लगता है कि मानों वे अंधे थे, +\q2 और वे उन मूर्तियों की उपासना करने के लिए लज्जित होंगे। +\q1 +\v 10 केवल मूर्ख लोग ही साँचों में मूर्तियों को बनाते हैं, +\q2 वे मूर्तियाँ जो कभी भी उनकी कोई सहायता नहीं करेंगी। +\q1 +\s5 +\v 11 जो मूर्तियाँ बनाते हैं और जो उनकी उपासना करते हैं वे लज्जित होंगे। +\q1 जो मूर्तियाँ बनाते हैं वे केवल ही मनुष्य होते हैं, +\q2 परन्तु वे दावा करते हैं कि वे देवताओं को बना रहे हैं! +\q1 उन्हें अदालत में परमेश्वर के सामने खड़ा होना चाहिए, +\q2 और जो वह कहते हैं जब वे उसे सुनते हैं, तो वे डर जाएँगे, +\q2 और वे सभी अपमानित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 धातु के कारीगर गर्म कोयलों के सामने +\q2 मूर्तियों को बनाने के लिए खड़े होते हैं। +\q1 वे उन्हें हथौड़ों से पीटते हैं और उन्हें आकार देते हैं। +\q1 क्योंकि वे बहुत परिश्रम करते हैं, वे भूखे और निर्बल हो जाते हैं; +\q2 वे बहुत प्यासे हो जाते हैं और थक जाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 फिर एक लकड़ी को गढ़ने वाले लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा लेता है और वह इसे मापता है; +\q2 फिर वह यह दिखाने के लिए चिन्ह लगाता है कि वह उसे कहाँ से काटेगा। +\q1 वह एक छेनी और अन्य औजारों का उपयोग +\q2 इसे मनुष्य के जैसे गढ़ने के लिए करता है। +\q1 वह इसे एक बहुत ही सुन्दर मूर्ति बना देता है, +\q2 और फिर वह इसे एक विशेष घर में रखता है, जहाँ वह उसके आगे झुकता है। +\q1 +\s5 +\v 14 लकड़ी के उस टुकड़े से एक मूर्ति गढ़ने से पहले, उसने एक देवदार के पेड़ को पहले ही काट दिया है, +\q2 या उसने एक सनोवर के पेड़ या बांज वृक्ष का चयन किया है +\q2 और इसे जंगल में लम्बा बढ़ जाने की अनुमति दी। +\q1 या उसने एक चीड़ का पेड़ लगाया है, +\q2 और वर्षा ने इसे पानी दिया है और इसे लम्बा हो जाने दिया है। +\q1 +\s5 +\v 15 एक मूर्ति बनाने के लिए पेड़ के भाग का उपयोग करने के बाद, +\q2 वह दूसरे भाग का उपयोग आग बनाने के लिए, +\q2 या फिर स्वयं को गर्म करने लिए या रोटी सेंकने के लिए करता है। +\q1 परन्तु वह उसी पेड़ के भाग का उपयोग एक मूर्ति बना कर स्वयं उसकी उपासना करने के लिए करता है! +\q2 वह एक मूर्ति बनाता है, और फिर उसकी उपासना करने के लिए वह उसके आगे झुकता है। +\q1 +\v 16 वह उस पेड़ की लकड़ी के अन्य भाग को जला कर माँस पकाता है और उसे खाता है और तृप्त हो जाता है, +\q2 और वह स्वयं को गर्म करने के लिए इसके अन्य भाग को जलाता है, +\q2 और वह कहता है, “मैं आग की लपटों को देखते हुए गर्म महसूस करता हूँ।” +\q1 +\s5 +\v 17 फिर वह बाकी बची लकड़ी को लेता है +\q2 और एक मूर्ति बनाता है जिसे उसका देवता होना है। +\q1 वह उसके आगे झुकता है और उसका सम्मान करता है, +\q2 और उससे प्रार्थना करता है और कहता है, +\q2 “तुम मेरे देवता हो, इसलिए मुझे बचाओ!” +\q1 +\s5 +\v 18 वे लोग बहुत मूर्ख और अज्ञानी हैं। +\q2 ऐसा लगता है कि मानों वे अंधे और देखने में असमर्थ थे, +\q2 जैसे कि मानों उनके मन बन्द थे और अच्छी तरह से सोचने में असमर्थ थे। +\q1 +\s5 +\v 19 वे इस विषय में नहीं सोचते कि वे क्या कर रहे हैं, +\q1 कि वे लकड़ी के एक ऐसे टुकड़े को ले रहे हैं +\q2 और अपने तुमको गर्म करने के लिए इसका आधा भाग जला रहे हो +\q2 और बाकी बचे हुए में से कुछ का उपयोग रोटी सेंकने और कुछ माँस भूनने के लिए कर रहे हो! +\q1 वे स्वयं से नहीं ऐसा कहते हैं, +\q1 “एक घृणित मूर्ति बनाने के लिए बाकी लकड़ी लेना मूर्खता है! +\q2 उसके आगे झुकने के लिए एक लकड़ी के टुकड़े को लेना यह समझ में नहीं आता है!” +\q1 +\s5 +\v 20 वे आग से राख भी खा सकते हैं! +\q2 वे उस वस्तु पर भरोसा करते हैं जो उन्हें बचा नहीं सकती है; +\q2 वे स्वीकार नहीं करते हैं, “मैं कुछ ऐसा मेरे हाथ में पकड़ता हूँ जो वास्तव में एक देवता नहीं है!” +\q1 +\s5 +\v 21 यहोवा कहते हैं, “तुम हे याकूब के वंशजों, +\q2 तुम हे इस्राएली लोगों जिनको मेरी सेवा करनी चाहिए, +\q1 मैंने तुमको बनाया है, +\q2 और मैं तुमको नहीं भूलूँगा। +\q1 +\v 22 मैंने तुम्हारे पापों से ऐसे छुटकारा पा लिया है +\q2 जैसे हवा एक बादल को दूर उड़ा ले जाती है। +\q1 ऐसा लगता है कि मानों तुम्हारे अपराध सुबह की धुंध थे +\q2 जिसे मैंने दूर उड़ा दिया है। +\q1 मेरे पास लौट आओ +\q2 क्योंकि मैंने तुमको बचा लिया है।” +\q1 +\s5 +\v 23 आकाश में सूर्य और चँद्रमा और सितारे गीत गाएँ, +\q2 और पृथ्‍वी के बहुत गहरे स्थान प्रसन्नता से जयजयकार करें! +\q1 सब पर्वतों और जंगलों, और तुम सब पेड़ों को, +\q ऊँचे स्वर से गाना चाहिए, +\q2 क्योंकि यहोवा ने याकूब के वंशजों को बचा लिया है, +\q2 और इस्राएल के लोग उसकी प्रशंसा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 24 यहोवा, जिसने तुमको बचाया और तुम्हारी रचना की, यह कहते हैं: +\q1 “मैं वही यहोवा हूँ, जिसने सब कुछ बनाया है। +\q1 वह अकेला मैं ही हूँ जिसने आकाश को फैलाया है। +\q1 मेरे साथ कोई भी नहीं था +\q2 जब मैंने पृथ्‍वी की रचना की थी। +\q1 +\v 25 मैं दिखाता हूँ कि नकली भविष्यद्वक्ता झूठे हैं, +\q2 और मैं दिखाता हूँ कि वे लोग मूर्ख हैं जो भविष्य की भविष्यद्वाणी करने के लिए अनुष्ठान करते हैं। +\q1 कुछ लोग जो कपटपूर्वक सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं कहते हैं कि वे बहुत कुछ जानते हैं, +\q2 परन्तु मैं दिखाता हूँ कि वे मूर्ख हैं। +\q1 +\s5 +\v 26 परन्तु मैं सदा वैसा होने देता हूँ जो भविष्यद्वाणी मेरे भविष्यद्वक्ता करते हैं +\q2 मैं उन्हें यरूशलेम के लोगों से कहने के लिए बोलता हूँ, ‘किसी दिन लोग फिर से यहाँ रहेंगे।’ +\q1 और मैं उन्हें यहूदा के अन्य नगरों में रहने वाले लोगों से कहने के लिए बोलता हूँ कि मैं, यहोवा, कहता हूँ, +\q1 ‘तुम्हारे नगरों को फिर से बनाया जाएगा; +\q2 मैं ऐसे स्थानों को फिर से बनाया जाने दूँगा जो केवल खण्डहर हैं।’ +\q1 +\v 27 जब मैं नदियों से कहता हूँ, ‘सूख जाओ!’ +\q2 वे सूख जाएँगी। +\q1 +\s5 +\v 28 जब मैं राजा कुस्रू के विषय में कहता हूँ, ‘वह मेरे लोगों की ऐसे देखभाल करेगा जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों की देखभाल करता है, +\q2 वह वो सब कुछ करेगा जो मैं चाहता हूँ कि वह करे,’ +\q2 वह यरूशलेम के विषय में कहेगा, +\q2 ‘हमें इसे फिर से बनाना होगा!’ +\q1 और वह यह भी कहेगा, ‘हमें मन्दिर को फिर से बनाना होगा!’” + +\s5 +\c 45 +\q1 +\p +\v 1 वह कुस्रू ही है जिसे यहोवा ने फारस का राजा होने के लिए नियुक्त किया है +\q2 और जिसे वह महान शक्ति देंगे; +\q1 यहोवा उसे अन्य राष्ट्रों को हराने में +\q2 और उनके राजाओं की शक्ति को दूर करने में सक्षम करेंगे। +\q1 वह शहरों के फाटकों को खोल देंगे, +\q2 और कोई भी कभी उन्हें बन्द करने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 +\s5 +\v 2 यहोवा उससे यही कहते हैं: +\q1 “हे कुस्रू, मैं तुम्हारे आगे-आगे जाऊँगा +\q2 और पर्वतों के बराबर करूँगा। +\q1 मैं पीतल के फाटकों को चकना चूर कर दूँगा +\q2 और उनकी लोहे की सलाखों को काट दूँगा। +\q1 +\v 3 मैं तुमको वे खजाने दूँगा जिनको लोगों ने अंधियारे गुप्त स्थानों में छिपाया हुआ है। +\q1 मैं ऐसा करूँगा जिससे तुम यह जान जाओगे कि मैं यहोवा हूँ, +\q2 वह परमेश्वर जिसके लोग इस्राएली हैं, +\q2 वह परमेश्वर जो तुमको तुम्हारे नाम से बुलाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 मैंने तुमको तुम्हारे नाम से पुकार कर बुलाया है, +\q2 इस्राएल के लोगों के लिए जिन्हें मैंने चुना है, जो मेरी सेवा करते हैं। +\q1 भले ही तुम मुझे नहीं जानते हो, +\q2 मैं तुमको एक पदवी दूँगा जिसका बहुत सम्मान है। +\q1 +\v 5 मैं यहोवा हूँ, और कोई अन्य ईश्वर नहीं है। +\q1 भले ही तुम मुझे नहीं जानते हो, +\q2 मैं तुमको युद्ध संचालित करने की शक्ति दूँगा +\q1 +\v 6 कि पूर्व से पश्चिम तक, संसार में हर कोई, जान जाएगा कि कोई अन्य ईश्वर नहीं है। +\q2 मैं यहोवा हूँ, और कोई अन्य ईश्वर नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 7 मैंने प्रकाश और अन्धकार को बनाया। +\q2 मैं वहाँ शान्ति होने देता हूँ और मैं वहाँ विपत्तियों को होने देता हूँ। +\q2 मैं, यहोवा, उन सब कार्यों को करता हूँ।” +\q1 +\v 8 यहोवा यह भी कहते हैं, “जैसे पृथ्‍वी की सहायता करने के लिए इस पर वर्षा गिरती है, +\q2 मैं अपने लोगों की सहायता करूँगा और उन्हें बचाऊँगा; मैं उनके साथ न्यायपूर्वक व्यवहार होने दूँगा। +\q1 वह मैं, यहोवा, ही हूँ जो उन दोनों बातों को घटित करेगा। +\q1 +\s5 +\v 9 उन लोगों के साथ भयानक बातें होंगी जो मेरे साथ विवाद करते हैं, क्योंकि वह मैं ही हूँ जिसने उन्हें बनाया है। +\q2 वे मिट्टी के बर्तनों के समान हैं जो कुम्हार के साथ विवाद कर रहे हैं जिसने उन्हें बनाया; +\q2 वे केवल हर एक अन्य बनाए गए मिट्टी के बर्तन के समान हैं, और फिर भी वे उस व्यक्ति के साथ विवाद करते हैं जिसने उन्हें बनाया और उन्हें मिट्टी से बाहर निकाल कर आकार दिया। +\q1 क्या मिट्टी का एक टुकड़ा कुम्हार को कह सकता है जिसने उसे बनाया है, +\q2 ‘तुम मुझे ऐसा क्यों बना रहे हो?’ +\q1 मिट्टी का बर्तन यह नहीं कह सकता कि ‘तुम क्या सोचते हैं कि तुम ऐसा कर रहे हो, मुझे इस तरह से बना रहे हो? “या” तुम्हारे पास कोई कौशल नहीं है और तुम्हारे मिट्टी के बर्तन कुछ भी योग्य नहीं हैं!” +\q1 +\s5 +\v 10 और यह भयानक होगा यदि कोई अजन्मा बच्चा अपने पिता से कहता है, +\q2 ‘तुम मुझे पैदा क्यों होने दे रहे हो?’ +\q1 या यदि वह अपनी माँ से कहे, +\q2 ‘तुम्हारी प्रसव पीड़ा का परिणाम बेकार होगा।’” +\q1 +\s5 +\v 11 इस्राएली लोगों के एकमात्र पवित्र, यहोवा, वही जिन्होंने इस्राएल को बनाया है, उनसे यह कहते हैं: +\q2 “मेरी संतानों, मैं तुम्हारे लिए जो करता हूँ, इसके विषय में तुम प्रश्न क्यों पूछते हो? +\q1 तुम मुझे उस कार्य के विषय में क्यों निर्देश देते हो जो मुझे करना चाहिए? +\q1 +\s5 +\v 12 वह मैं ही हूँ जिसने पृथ्‍वी बनाई है +\q2 और इस पर रहने के लिए मनुष्यों को बनाया। +\q1 मैंने अपने हाथों से आकाश को फैलाया, +\q2 और मैंने सितारों को उनके स्थानों पर रखा। +\q1 +\s5 +\v 13 और मैंने कुस्रू को उन कार्यों को करने का इच्छुक बनाया है जो न्यायोचित हैं, +\q2 और मैं उसे उन सब कार्यों को सरलता से करने में सक्षम करूँगा। कोई भी उसे रोकने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 उसके कर्मचारी मेरे शहर का फिर से बनाएँगे, +\q2 और वह मेरे लोगों को स्वतन्त्र कर देगा जिन्हें बन्धुआ किया गया है। +\q1 और वह मेरे द्वारा उसे पुरस्कृत किए बिना इसे करेगा!” +\q2 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यही कहते हैं। +\p +\s5 +\v 14 और मैं, यहोवा, तुम मेरे लोगों से यह भी कहता हूँ: +\q1 “तुम मिस्र और इथियोपिया के लोगों पर शासन करोगे, +\q2 और सबा के लम्बे लोग तुम्हारे दास बन जाएँगे। +\q1 वे जिन वस्तुओं को बेचते हैं उसे ले कर तुम्हारे पास आएँगे, +\q2 और यह सब तुम्हारा होगा। +\q1 उनकी बाँहों पर जंजीरें बँधी होंगी जब वे तुम्हारे पीछे-पीछे चलते हैं। +\q1 वे तुम्हारे आगे झुकेंगे और कहेंगे, +\q2 ‘परमेश्वर तुम्हारे साथ है +\q1 और वही एकमात्र परमेश्वर हैं; +\q2 कोई अन्य परमेश्वर नहीं है।’” +\q1 +\v 15 हे परमेश्वर, हालाँकि हम आपको नहीं देख सकते हैं, +\q2 आप ही हैं जिसके हम इस्राएली लोग हैं, वही जो हमें बचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 जो मूर्तियों को बनाते हैं वे अपमानित होंगे। +\q2 वे सब एक साथ लज्जित हो जाएँगे। +\q1 +\v 17 परन्तु आप यहोवा, हमें, आपके इस्राएली लोगों को बचाएँगे, +\q2 और हम सदा के लिए स्वतन्त्र होंगे। +\q1 फिर कभी भी, भविष्य के दौरान, हम फिर से अपमानित और लज्जित नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 18 यहोवा परमेश्वर हैं; +\q1 वही हैं जिन्होंने आकाश को बनाया +\q2 और पृथ्‍वी को बनाया और गठित किया। +\q1 वह नहीं चाहते थे कि उस पर रहने वाला कुछ भी न हो और वह सुनसान रहे; +\q2 वह चाहते थे कि इस पर लोग रहें। +\q1 वह कहते हैं, “मैं यहोवा हूँ; +\q2 कोई अन्य परमेश्वर नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 19 जो घोषणा मैंने की, उसे मैंने गुप्त रूप से नहीं कहा; +\q2 जो मैं कह रहा था मैंने उसे अंधियारी जगह में बोल कर छिपाया नहीं। +\q1 जब मैंने याकूब के वंशजों से बात की, +\q2 मैंने उन्हें नहीं बताया था +\q1 ‘मेरी खोज करना तुम्हारे लिए बेकार होगा!’ +\q2 मैं, यहोवा, केवल वही बोलता हूँ जो सही है और जो न्यायोचित है। +\q1 +\s5 +\v 20 तुम लोग भयंकर विपत्तियों का सामना करने के बाद अभी भी जीवित हो, +\q2 तुम सबको आकर एक साथ इकट्ठा होना चाहिए और इसे सुनना चाहिए: +\q1 वे लोग मूर्ख हैं जो अपनी लकड़ी की मूर्तियों को उठाए फिरते हैं +\q2 और उनसे प्रार्थना करते हैं, क्योंकि वे मूर्तियाँ उन्हें बचा नहीं सकती हैं! +\q1 +\s5 +\v 21 आपस में बात करके यह तय करो कि तुमको मूर्तियों से प्रार्थना करनी चाहिए, इसे सिद्ध करने के लिए तुम क्या कहोगे। +\q2 और जब तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुमसे पूछूँगा, +\q1 ‘अब जो हुआ है किसने बहुत पहले उसकी भविष्यद्वाणी की थी? +\q2 क्या कोई मूर्ति तुमको बताती है कि वह बातें घटेंगी? +\q1 नहीं, यह केवल मैं, यहोवा, ही था जिसने तुमको बताया था, +\q2 क्योंकि मैं एकमात्र परमेश्वर हूँ; कोई अन्य परमेश्वर नहीं है। +\q1 मैं एक ऐसा परमेश्वर हूँ जो धार्मिक रूप से कार्य करता है और लोगों को बचाता है; +\q2 कोई अन्य नहीं है जो इन कार्यों को करता है। +\q1 +\s5 +\v 22 संसार में रहने वाले हर किसी को उसे बचाने के लिए मुझसे कहना चाहिए, +\q2 क्योंकि मैं ही एकमात्र परमेश्वर हूँ जो ऐसा कर सकता है; +\q2 कोई दूसरा नहीं है। +\q1 +\v 23 मैंने अपने नाम का उपयोग करके गम्भीर रूप से घोषित किया है; +\q2 मैंने वह कहा है जो सच है, +\q2 और मैंने जो भी कहा है, मैं उसे कभी नहीं बदलूँगा: +\q1 किसी दिन, हर कोई मेरे सामने झुकेंगे, +\q2 और वे सब गम्भीर रूप से मेरे प्रति निष्ठावान होने का प्रतिज्ञा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 24 वे घोषित करेंगे, +\q2 ‘वह यहोवा ही है जो हमें धार्मिक रूप से जीने और मजबूत होने में सक्षम बनाते हैं।’” +\q1 और जो सब लोग यहोवा पर क्रोधित हुए हैं वे उसके पास आएँगे, +\q2 और वे लज्जित होंगे कि वे उससे क्रोधित थे। +\q1 +\v 25 यहोवा ही एकमात्र ऐसे हैं जो हम इस्राएली लोगों को अपने शत्रुओं को हराने के लिए आने वाले भविष्य में सक्षम करेंगे, +\q2 और फिर हम उसके विषय में घमण्ड करेंगे जो उसने हमारे लिए किया है। + +\s5 +\c 46 +\q1 +\p +\v 1 ऐसा लगता है कि मानों, बाबेल के बेल और नबो देवताओं की मूर्तियाँ, +\q2 नीचे झुक रही थीं जब उनको जानवरों पर रख कर दूर ले जाया गया है! +\q1 वे मूर्तियाँ भारी बोझ हैं और वे जानवरों को थका देंगी! +\q1 +\v 2 देवता और जानवर सब झुक गए हैं; +\q2 वे देवता न तो स्वयं को और न ही जानवरों को बोझ से बचा सकते हैं; +\q2 वे देवता स्वयं बन्धुआई में जा रहे हैं! +\q1 +\s5 +\v 3 यहोवा कहते हैं, “तुम याकूब के वंशज जो बन्धुआई में थे, +\q1 मैं बाबेल के देवताओं के समान नहीं हूँ जिसे उठा कर ले जाना पड़ता है; +\q2 इसके बजाए, ऐसा लगता है कि मानों मैंने तुमको उठाया हुआ है +\q1 जिस समय से तुम पहले एक राष्ट्र बन गए थे। +\q2 मैंने तुमको एक राष्ट्र बनने से पहले भी उठाया हुआ था। +\q1 +\v 4 मैं तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा, और मैं तुमको कई वर्षों तक उठाए रहूँगा, +\q2 जब तक कि ऐसा न हो कि मानों तुम्हारा देश पके बाल वाला एक बूढ़ा व्यक्ति है। +\q1 मैंने तुमको राष्ट्र बन जाने दिया, +\q2 और मैं तुमको बनाए रखूँगा और तुमको बचाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 निश्चित रूप से ऐसा कोई नहीं है जिसके साथ मेरी तुलना की जा सकती है। +\q2 ऐसा कोई भी नहीं है जो मेरे बराबर है। +\q1 +\v 6 इसलिए यह मूर्खता है कि कुछ लोग अपने थैलों से सोने और चाँदी डालते हैं +\q2 और तराजू पर इसका वजन करते हैं। +\q1 फिर वे सोने से चीजें बनाने वाले एक व्यक्ति को मूर्ति बनाने के लिए किराए पर लेते हैं। +\q2 उसके एक मूर्ति बनाने के बाद, वे उस मूर्ति के आगे झुकते हैं और उसकी उपासना करते हैं! +\q1 +\s5 +\v 7 वे इसे उठा कर अपने कंधों पर लादे फिरते हैं। +\q2 उन्होंने इसे एक विशेष स्थान पर रखते हैं, +\q2 और यह वहाँ रहती है। +\q1 यह हिलडुल नहीं सकती है! +\q1 और जब कोई इससे प्रार्थना करता है, तो यह उत्तर नहीं देती है। +\q2 इसलिए स्पष्ट है कि यह किसी को भी उनकी परेशानियों से बचा नहीं सकती है! +\q1 +\s5 +\v 8 तुम हे यहूदा के लोगों, इसे मत भूलना; +\q2 तुम हे पापी लोगों, इसके विषय में सोचते रहो! +\q1 +\v 9 उन कार्यों के विषय में सोचो जो मैंने बहुत पहले किए थे। +\q2 केवल मैं ही परमेश्वर हूँ; मैं परमेश्वर हूँ, और मेरे जैसा कोई नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 10 किसी बात के घटने से पहले केवल मैं ही बता सकता हूँ कि भविष्य में क्या होगा; +\q2 किसी बात के घटने से बहुत पहले मैं इसे बता देता हूँ। +\q1 मैं वह सब कुछ पूरा करूँगा जिसे मैं पूरा करने की योजना बनाता हूँ, +\q2 और मैं वह सब कुछ करूँगा जो मैं करना चाहता हूँ। +\q1 +\v 11 इसलिए पूर्व से एक तेज और शक्तिशाली उकाब के समान आने के लिए मैं कुस्रू को बुलाऊँगा; +\q2 वह एक दूर के देश से आएगा। +\q1 वह उस कार्य को पूरा करेगा जो मैं उससे करवाना चाहता हूँ। +\q2 वह वही है जो उस कार्य को करेगा जो मैंने कहा है कि मैं चाहता हूँ कि वह करे, +\q2 जो योजना मैंने बनाई है। +\q1 +\s5 +\v 12 तुम हे इस्राएल के हठीले लोगों, +\q2 जो न्यायोचित है उसे करने में तुम पूरी तरह असमर्थ हो, +\q1 +\v 13 मैं तुमको बचाऊँगा, +\q2 और ऐसा होने से पहले का समय लम्बा नहीं होगा। +\q2 मैं शीघ्र ही इसे करूँगा। +\q1 मैं यरूशलेम को बचाऊँगा +\q2 और तुम इस्राएली लोगों को दिखाऊँगा कि मैं गौरवशाली हूँ।” + +\s5 +\c 47 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा यह भी कहते हैं, “तुम हे बाबेल के लोगों, +\q2 तुमको जा कर धूल में बैठना चाहिए, +\q1 क्योंकि अन्य देशों पर शासन करने का तुम्हारा समय लगभग समाप्त हो गया है। +\q1 लोग फिर कभी भी यह नहीं कहोगे कि बाबेल +\q2 एक बहुत ही आकर्षक युवा स्त्री के समान सुन्दर है। +\q1 +\v 2 तुम दास होओगे, इसलिए भारी पत्थरों को ले कर +\q2 दास स्त्रियों के समान अनाज पीसो। +\q1 अपने सुन्दर आवरणों को उतार डालो +\q2 और अपने कपड़े को उतार डालो जब तुम वहाँ जाने के लिए धाराओं को पार करने के लिए तैयार होते हो जहाँ जाने के लिए तुमको विवश किया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम नंगे और बहुत लज्जित होओगे। +\q2 मैं तुमसे प्रतिशोध लूँगा और तुम पर करुणा नहीं करूँगा।” +\q1 +\v 4 वह जो हम यहूदा के लोगों को स्वतन्त्र करते हैं, जिसे हम ‘स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा’ कहते हैं, +\q2 वही इस्राएल के एकमात्र पवित्र हैं। +\q1 +\v 5 यहोवा कहते हैं, “तुम हे बाबेल के लोगों, +\q2 अन्धकार में चुप चाप बैठ जाओ, +\q1 क्योंकि कोई भी फिर कभी यह नहीं कहेगा कि तुम्हारा शहर एक ऐसी रानी के समान है जो कई साम्राज्यों का शासन करती है। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं उन लोगों से क्रोधित था जो मेरे हैं, +\q2 और मैंने उन्हें दण्डित किया। +\q1 मैंने तुम बाबेल के लोगों को उनको जीतने की अनुमति दी। +\q1 परन्तु जब तुमने उन्हें जीत लिया, तो तुमने उनके प्रति दया से कार्य नहीं किया। +\q2 तुमने वृद्ध लोगों पर भी अत्याचार किया। +\q1 +\v 7 तुमने कहा, ‘हम अन्य राष्ट्रों पर सदा के लिए शासन करेंगे; +\q2 ऐसा लगता है कि मानों हमारा शहर सदा के लिए संसार की रानी होगा!’ +\q1 परन्तु तुमने उन कार्यों के विषय में नहीं सोचा जो तुम कर रहे थे, +\q2 या इसके विषय में नहीं सोचा कि परिणाम क्या होगा। +\q1 +\s5 +\v 8 तुम बाबेल के लोग जो सुख का आनन्द लेते हो और जो सुख-विलास में रहते हो, +\q2 इसे सुनो: +\q1 तुमने ऐसे व्यवहार किया जैसे कि मानों तुम देवता थे, यह कहते हुए, “मैं विशेष हूँ, और मुझसे उत्तम कोई भी नहीं है,” +\q1 हमारी कोई भी स्त्री कभी विधवा नहीं होगी, +\q2 और हमारे बच्चों में से कोई भी युद्धों में कभी नहीं मारा जाएगा।’ +\q1 +\v 9 परन्तु वे दोनों बातें अचानक तुम्हारे साथ घटित होंगी: +\q2 तुम्हारी कई स्त्रियाँ विधवा हो जाएँगी +\q2 और तुम्हारे कई बच्चे मर जाएँगे, +\q1 भले ही तुम बुरी बातों को होने से रोकने के लिए बहुत अधिक टोने और कई प्रकार के तन्त्र मन्त्र के कार्य करते हो। +\q1 +\s5 +\v 10 भले ही तुम कई दुष्ट कार्य कर रहे थे तुमने सुरक्षित महसूस किया, +\q2 और तुमने कहा, ‘कोई भी नहीं देख पाएगा कि हम क्या कर रहे हैं!’ +\q1 तुमने सोचा था कि तुम बहुत बुद्धिमान और कई बातों के जानने वाले थे, +\q2 और तुमने कहा, ‘हम देवता हैं, और हमारे जैसे कोई अन्य नहीं हैं,’ +\q2 परन्तु तुमने स्वयं को धोखा दिया। +\q1 +\v 11 इसलिए तुम भयानक बातों का सामना करोगे, +\q2 और तुम तन्त्र मन्त्र के कार्य करके उन्हें रोकने में सक्षम नहीं होओगे। +\q1 तुम विपत्तियों का सामना करोगे, +\q2 और तुम उन बातों को होने से रोकने के लिए किसी भी जादूगर को भुगतान कर पाने में सक्षम नहीं होओगे। +\q1 अचानक विनाश तुझ पर आ पड़ेगा, +\q2 कुछ ऐसा जिसे तुम जान नहीं पाओगे कि होने वाला है। +\q1 +\s5 +\v 12 इसलिए अपने सब जादूगरी के मन्त्र प्रदर्शन करना जारी रखो! +\q2 कई प्रकार के जादूगरी के कार्यों को करते रहो जिनको तुम कई वर्षों से कर रहे हो! +\q1 हो सकता है उन कार्यों को करना तुमको सफल होने में सक्षम करेगा; +\q2 हो सकता है तुम अपने शत्रुओं से स्वयं से डराने में सक्षम होओगे! +\q1 +\v 13 परन्तु जो कुछ तुमने किया है, जो जादूगरों ने तुमको करने के लिए कहा है वह सब कुछ करने से यह हुआ है कि तुम थक गए हो! +\q1 जो सितारों को देखते हैं, हर नए चँद्रमा की घोषणा करते हैं, भविष्यद्वाणी करते हैं कि क्या होगा +\q2 उन लोगों को आगे आना चाहिए और तुमको उन विपत्तियों से बचाना चाहिए जिनका तुम सामना कर रहे हो। +\q1 +\s5 +\v 14 परन्तु वे ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि वे आग में जलते हुए पुआल के समान हैं; +\q2 वे आग में जलाए जाने से स्वयं को बचा नहीं सकते हैं। +\q1 वे तुम्हारी सहायता करने में असमर्थ हैं; +\q2 वे जल जाने वाले भूसे के समान बेकार हैं, परन्तु वह आग उन्हें गर्माहट का आनन्द लेने के बजाए जला देगी। +\q1 +\v 15 और जिनके साथ तुम ईमानदारी से कार्य किया करते थे और जिनके साथ जवानी के समय में तुमने यात्रा की थी और व्यापार किया था, वे तुमको निराश करेंगे, +\q1 और अब भी वे सब अपने मूर्खतापूर्ण कार्यों को करते रहते हैं; +\q2 और जब तुम सहायता के लिए पुकारते हो, तो वहाँ ऐसा कोई भी नहीं होता है जो तुम्हारी सहायता कर सकता है।” + +\s5 +\c 48 +\q1 +\p +\v 1 हे याकूब के वंशजों, +\q2 जो यहूदा के वंशज भी हैं और अब उन्हें इस्राएल के लोग कहा जाता है, +\q2 यहोवा की बात सुनो! +\q1 तुम यहोवा के नाम का उपयोग करके गम्भीर प्रतिज्ञा करते हो, +\q2 और तुम अनुरोध करते हो कि जिस परमेश्वर के तुम इस्राएली लोग हो, वह तुम्हारी सुनेंगे, +\q2 परन्तु तुम ईमानदारी से ऐसा नहीं करते हो। +\q1 +\v 2 तुम कहते हो कि तुम यरूशलेम के पवित्र शहर में रहते हो +\q2 और तुम झूठे मन से कहते हो कि तुम उस परमेश्वर पर भरोसा कर रहे हो जिसके तुम इस्राएल के लोग हो, +\q2 वही जो स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 “बहुत पहले मैंने भविष्यद्वाणी की थी कि क्या होगा। +\q2 और फिर अचानक, मैंने उन बातों को होने दिया। +\q1 +\v 4 मैं जानता था कि तुम लोग बहुत हठीले थे; +\q2 मैं जानता था कि तुम्हारे सिर लोहे या पीतल जितने कठोर थे। +\q1 +\v 5 यही कारण है कि बहुत पहले मैंने तुमको उन बातों को बता दिया था। +\q2 उनके घटित होने से बहुत पहले, मैंने घोषणा कर दी थी कि वे घटेंगी, +\q1 इस कारणवश कि जब वे घटीं तो तुम यह नहीं कह सकते थे +\q2 ‘हमारी मूर्तियों ने यह किया; +\q2 हमारी लकड़ी से बनी मूर्ति या हमारी धातु से बनी मूर्ति ने उनको होने दिया है।’ +\q1 +\s5 +\v 6 तुमने उन बातों को सुना है जिनकी मैंने भविष्यद्वाणी की थी, +\q2 और अब तुमने देखा है कि वे सब घटित हुई हैं, +\q1 इसलिए तुम इसे क्यों स्वीकार नहीं करते? +\q1 अब मैं तुमको नई बातें बताऊँगा, +\q2 ऐसी बातें जिन्हें तुमने पहले नहीं जाना है। +\q1 +\v 7 मैं उन्हें अब होने दे रहा हूँ; +\q2 वे ऐसी बातें नहीं हैं जिन्हें मैंने बहुत पहले किया था। +\q1 इसलिए तुम यह नहीं कह सकते, ‘हम पहले से ही उन बातों के विषय में जानते थे।’ +\q1 +\s5 +\v 8 मैं तुमको उन बातों के विषय में बताऊँगा जिनके विषय में तुमने पहले कभी सुना या समझा नहीं है। +\q2 बहुत पहले तुमने मुझ पर ध्यान नहीं दिया था। +\q1 मैं जानता हूँ कि तुम बहुत धोखाबाजी से व्यवहार करते हो; +\q2 तुम्हारे पहली बार एक राष्ट्र बनने के बाद से तुम मुझसे विद्रोह कर चुके हो। +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु मेरे अपने लाभ के लिए, कि मैं सम्मानित किया जाऊँ, +\q2 मैं तुमको तुरन्त दण्डित नहीं करूँगा +\q2 और मैं पूरी तरह से तुमसे छुटकारा नहीं पाऊँगा। +\q1 +\v 10 मैंने तुमको शुद्ध किया है, परन्तु उस तरह से नहीं जैसे लोग चाँदी को परिष्कृत करते हैं। +\q1 इसके बजाए, मैंने तुमको तुम्हारे अशुद्ध व्यवहार से छुटकारा पाने के लिए बहुत पीड़ित होने दिया है, +\q1 +\v 11 परन्तु मेरे अपने लाभ के लिए मैं तुमको और अधिक दण्डित करने में देरी करूँगा; +\q1 मैं अपने लाभ के लिए देरी करूँगा, +\q2 कि मेरी प्रतिष्ठा क्षतिग्रस्त न हो। +\q1 मैं किसी भी व्यक्ति या किसी मूर्ति को सम्मानित करने की अनुमति नहीं दूँगा क्योंकि मैं सम्मानित होने के योग्य हूँ।” +\q1 +\s5 +\v 12 “तुम हे याकूब के वंशजों, तुम हे इस्राएल के लोगों जिन्हें मैंने चुना है, +\q2 मेरी बात सुनो! +\q1 केवल मैं ही परमेश्वर हूँ; +\q2 मैं वही हूँ जो सब कुछ आरम्भ करता है और जो सब कुछ समाप्त होने देता है। +\q1 +\v 13 मैं वही हूँ जिसने पृथ्‍वी की नींव को रखा है। +\q2 मैंने अपने हाथ से आकाश को फैलाया है। +\q1 और जब मैं सितारों को प्रकट होने के लिए कहता हूँ, +\q2 वे सब वही करते हैं जो मैं उन्हें कहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 14 तुम सबके सब, एक साथ इकट्ठे होकर मेरी बात सुनो। +\q2 तुम्हारी मूर्तियों में से किसी ने भी तुमको यह नहीं बताया है: +\q1 मुझ, यहोवा, ने मेरी सहायता करने के लिए कुस्रू को चुना है, +\q2 और वह बाबेल के साथ वह करेगा जो मैं चाहता हूँ कि वह करे, +\q2 और उसकी सेना बाबेल की सेना को नष्ट कर देगी। +\q1 +\v 15 मैंने यह कहा है; +\q2 मैंने कुस्रू को बुलाया है। +\q1 मैंने उसे नियुक्त किया है, +\q2 और वह सब कुछ पूरा करेगा जो वह करने का प्रयास करता है। +\p +\s5 +\v 16 मेरे निकट आओ और जो मैं कहता हूँ उसे सुनो। +\q1 बहुत पहले मैंने तुमको स्पष्ट रूप से बताया था कि क्या होगा, +\q2 और जब वे बातें घटित हुईं, तो मैं उन्हें होने दे रहा था।” +\q1 और अब यहोवा परमेश्वर और उसके आत्मा ने मुझ, यशायाह भविष्यद्वक्ता को तुमको एक सन्देश देने के लिए भेजा है। +\q1 +\s5 +\v 17 तुमको बचाने वाले यहोवा, हमारे इस्राएलियों के पवित्र परमेश्वर, यही कहते हैं: +\q2 “मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ; +\q1 मैं तुमको सिखाता हूँ कि समृद्ध होने के लिए तुम्हारे लिए क्या महत्वपूर्ण है; +\q2 मैं तुमको निर्देशित करता हूँ और उन चीजों को करने के लिए तुम्हारा नेतृत्व करता हूँ जिनको तुमको करना चाहिए। +\q1 +\v 18 मैं आशा करता हूँ कि तुमने मेरे आदेशों पर ध्यान दिया होगा! +\q2 यदि तुमने ऐसा किया होता, तो बातें तुम्हारे लिए ऐसी भली रही होती +\q2 जैसे एक नदी जो धीरे-धीरे बहती है; +\q1 तुम बार-बार ऐसे सफल रहे होते, +\q2 जैसे कि लहरें जो बिना रुके चली आती हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 तुम्हारे वंशज समुद्र तट की रेत के किनकों जितने होते +\q2 जिनको कोई भी गिन नहीं सकता है। +\q1 मुझे उन्हें नष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती; +\q2 इस्राएल का देश नष्ट नहीं हुआ होता। +\q1 +\s5 +\v 20 हालाँकि, अब मैं तुमको बताता हूँ, +\q2 बाबेल को छोड़ दो! +\q1 बाबेल के लोगों के दास होने से भागो! +\q1 इस सन्देश को प्रसन्नता से प्रचारित करो; +\q2 इसे पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों पर भेजो: +\q1 ‘यहोवा ने इस्राएल के लोगों को मिस्र में दास होने से स्वतन्त्र कर दिया।’ +\q2 +\s5 +\v 21 जब वे उन्हें रेगिस्तान के माध्यम से ले गए, तो वे प्यासे नहीं थे, +\q1 क्योंकि उसने चट्टान को खोल दिया +\q2 और उनके पीने के लिए पानी बाहर निकलने दिया।’ +\q1 +\v 22 परन्तु इस तरह से दुष्टों के लिए बातें भली नहीं होंगी,” यहोवा कहते हैं। + +\s5 +\c 49 +\q1 +\p +\v 1 तुम सब लोग जो समुद्र में द्वीपों पर और अन्य दूर के क्षेत्रों में रहते हो, +\q2 जो मैं कहूँगा उस पर ध्यान दो! +\q1 यहोवा ने पैदा होने से पहले मुझे बुलाया; +\q2 जब मैं अभी अपनी माँ के गर्भ में ही था उन्होंने मुझे चुन लिया। +\q1 +\v 2 जब मैं बड़ा हुआ, तो उन्होंने मेरे सन्देशों को तेज तलवार के समान बना दिया। +\q1 उन्होंने अपने हाथ से मेरी रक्षा की है। +\q2 वह मुझे ऐसे बचाते हैं जैसे कोई तेज तीरों को तरकश में संरक्षित करता है। +\q1 +\s5 +\v 3 उन्होंने मुझसे कहा, “आप मेरे इस्राएली लोगों की सेवा करोगे, +\q2 और आप लोगों से मेरा सम्मान कराओगे।” +\q1 +\v 4 मैंने उत्तर दिया, “मेरा कार्य बेकार हो गया है; +\q2 मैंने अपनी शक्ति का उपयोग किया है, परन्तु मैंने कुछ भी सार्थक प्राप्त नहीं किया है; +\q2 जो कुछ मैंने किया है वह व्यर्थ हो गया है। +\q1 हालाँकि, यहोवा प्रसन्न होने पर मुझे सम्मानित कर सकते हैं; +\q2 मेरे परमेश्वर वही हैं जो मुझे मेरे योग्य पुरस्कार देंगे।” +\q1 +\s5 +\v 5 यहोवा ने मुझे बनाया जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था कि मैं उनकी सेवा करूँगा; +\q2 उन्होंने मुझे इस्राएल के लोगों को उसके पास वापस लाने के लिए नियुक्त किया। +\q1 यहोवा ने मुझे सम्मानित किया है, +\q2 और वही हैं जिन्होंने मुझे मजबूत होने दिया है। +\q1 +\v 6 वह मुझसे कहते हैं, +\q1 “फिर से मेरी आराधना करने के लिए याकूब के वंशजों को वापस लाने के द्वारा मेरी सेवा करना +\q2 आपके लिए पर्याप्त नहीं है; +\q1 मैं यह भी चाहता हूँ कि आप गैर-इस्राएली लोगों के लिए प्रकाश के समान बनो; +\q2 मैं चाहता हूँ कि आप मेरे सन्देश को संसार भर के लोगों के पास ले कर जाओ जो इस विषय में है कि कैसे बचा जाए।” +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा, वह जो हमें बचाते हैं, +\q2 हम इस्राएली लोगों के पवित्र परमेश्वर, +\q1 उस व्यक्ति से कहते हैं जो कई राष्ट्रों के लोगों द्वारा तुच्छ और अस्वीकार कर दिया गया था, +\q2 उससे जो शासकों का दास है, +\q1 “किसी दिन तुमको देखते ही राजा तुम्हारे सम्मान के लिए खड़े होंगे, +\q2 और राजकुमार तुम्हारे सामने झुकेंगे +\q1 क्योंकि तुम मुझ, यहोवा, की सेवा करते हो जो विश्वासयोग्यता के साथ वह करते हैं जो मैं वादा करता हूँ। +\q2 मैं पवित्र परमेश्वर हूँ जिसके तुम इस्राएली हो, वही जिन्होंने तुमको चुना है।” +\p +\s5 +\v 8 यहोवा यह भी कहते हैं: +\q1 “उस समय मैं तुम्हारी प्रार्थनाओं का उत्तर दूँगा, जब यह मुझे प्रसन्न करती हैं। +\q2 उस दिन मैं तुम्हारी सहायता करूँगा जब मैं तुमको तुम्हारे सताने वालों से बचाता हूँ। +\q1 मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा और अन्य देशों के साथ एक समझौता स्थापित करने में तुमको सक्षम करूँगा। +\q2 और जो तुम करते हो, उसके द्वारा मैं तुम्हारे इस्राएल राष्ट्र को फिर से स्थापित करूँगा +\q1 और तुमको तुम्हारे देश में फिर से रहने की अनुमति दूँगा जिसे त्याग दिया गया था। +\q1 +\s5 +\v 9 जिन्हें पकड़ कर बन्धुआई में ले जाया गया था तुम उन लोगों से कहोगे, +\q2 ‘बाबेल को छोड़ दो और अपने देश लौट जाओ!’ +\q1 और जो अँधेरी बन्दीगृहों में हैं तुम उन लोगों से कहोगे, +\q2 ‘बाहर प्रकाश में आओ!’ +\q1 जब ऐसा होता है, तो वे फिर से उन भेड़ों के समान होंगे +\q2 जो हरी चारागाहों में घास खाती हैं, +\q2 जहाँ पहाड़ियों पर पहले कोई घास नहीं थी। +\q1 +\s5 +\v 10 वे बिलकुल भी भूखे या प्यासे नहीं होंगे; +\q2 गर्म सूरज फिर से उन पर थपेड़े नहीं मारेगा। +\q1 मैं, यहोवा, उनके प्रति दया से कार्य करूँगा और उनका नेतृत्व करूँगा; +\q2 मैं उस स्थान के लिए उनका नेतृत्व करूँगा जहाँ ठण्डे पानी के सोते हैं। +\q1 +\v 11 और मैं पर्वतों को ऐसा बना दूँगा जैसे मानों वे समतल सड़कें थीं, +\q2 और मैं अपने लोगों के लिए यरूशलेम लौटने को यात्रा करने के लिए अच्छे राजमार्ग तैयार करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 12 मेरे लोग दूर स्थानों से लौट आएँगे; +\q2 कुछ उत्तर से आएँगे, कुछ पश्चिम से, +\q2 कुछ दक्षिणी मिस्र से।” +\q1 +\v 13 यहोवा ने जो करने की प्रतिज्ञा की है, उसके कारण +\q1 हर एक वस्तु को प्रसन्नता से चिल्लाना चाहिए— +\q2 आकाश और पृथ्‍वी और पर्वतों को गाना चाहिए, +\q2 क्योंकि यहोवा अपने लोगों को आराम देते हैं, +\q1 और वह पीड़ित लोगों पर दया करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 यरूशलेम के लोग कहते हैं, +\q1 “यहोवा ने हमें छोड़ दिया है; +\q2 वह हमारे विषय में भूल गए हैं।” +\q1 +\v 15 परन्तु यहोवा उत्तर देते हैं, +\q1 “यह सच नहीं है! क्या कोई स्त्री अपने दूध पीने वाले बच्चे को भूल सकती है? +\q2 क्या वह उस बच्चे के प्रति दयालु रीति से कार्य करना बन्द कर सकती है जिसे उसने जन्म दिया है? +\q1 परन्तु भले ही यदि कोई स्त्री ऐसा कर देगी, +\q2 मैं तुमको नहीं भूलूँगा! +\q1 +\s5 +\v 16 ध्यान दो कि मैंने तुम्हारे नाम मेरे हाथों की हथेलियों पर लिखे हुए हैं; +\q2 मैं तुम्हारे शहर की दीवारों को सदा देख रहा हूँ। +\q1 +\v 17 शीघ्र ही तुम्हारे बच्चे वहाँ लौट आएँगे, +\q2 और वे सब लोग चले जाएँगे जिन्होंने तुम्हारे शहर को नष्ट किया है। +\q1 +\v 18 तुम चारों ओर दृष्टि करोगे और देखोगे +\q2 तुम्हारे सब बच्चे तुम्हारे पास वापस आ रहे हैं। +\q1 निश्चित रूप से जैसा कि मैं जीवित हूँ, +\q2 वे तुम्हारे द्वारा लोगों को दिखाने के लिए तुम्हारे साथ रहेंगे +\q2 जिस प्रकार एक दुल्हन अपने विवाह के गहने दिखाती है! +\q1 +\s5 +\v 19 तुम्हारा देश नष्ट हो गया है और उजाड़ कर दिया गया है, +\q2 परन्तु किसी दिन यह लोगों से भर जाएगा, +\q2 और जो लोग तुमको जीत चुके हैं वे बहुत दूर होंगे। +\q1 +\v 20 तुम्हारे बन्धुआई में रहते समय जो बच्चे पैदा हुए थे, वे यरूशलेम लौट आएँगे और कहेंगे, +\q2 ‘यह शहर हमारे लिए बहुत छोटा है; +\q2 हमें रहने के लिए और अधिक जगह चाहिए!’ +\q1 +\s5 +\v 21 तब तुम स्वयं सोचोगे, +\q2 ‘यह आश्चर्यजनक है कि हमारे पास यह सब बच्चे हैं! +\q1 हमारे अधिकांश बच्चे मर गए थे, +\q2 और बाकी बन्धुआई में गए थे। +\q2 हम यहाँ अकेले रह गए थे; +\q1 इसलिए हम नहीं जानते कि यह सब बच्चे कहाँ से आए हैं! +\q2 किसने उन्हें पाला है?’” +\p +\s5 +\v 22 यहोवा हमारे परमेश्वर यही कहते हैं: +\q1 “देखो! ऐसा लगता है कि मानों मैं उन लोगों को संकेत करने के लिए अपना हाथ उठाऊँगा जो इस्राएली नहीं हैं। +\q2 और वे तुम्हारे छोटे-छोटे पुत्रों और पुत्रियों को अपने कंधों पर उठा लेंगे +\q2 और उन्हें वापस तुम्हारे पास लाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 23 राजा तुम्हारी सेवा करेंगे और तुम्हारे बच्चों को प्रशिक्षित करेंगे, +\q2 और उनकी रानियाँ तुम्हारे छोटे बच्चों की देखभाल करेंगी। +\q1 वे तुम्हारे सामने दण्डवत् किए रहेंगे +\q2 और तुम्हारे पैरों की धूल चाटेंगे। +\q1 जब ऐसा होता है, तो तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ; +\q2 और जो मुझ पर भरोसा करते हैं वे कभी निराश नहीं होंगे।” +\q1 +\s5 +\v 24 कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो एक सैनिक से मूल्यवान चीजें छीन सके जिन चीजों पर उसने युद्ध में अधिकार किया है; +\q2 कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो एक तानाशाह को उन लोगों को स्वतन्त्र करने के लिए विवश कर सके जिन्हें उसने बन्धक बना लिया है। +\p +\v 25 परन्तु यहोवा यह कहते हैं: +\q1 “किसी दिन, जिनको बन्धक बना लिया गया है वे स्वतन्त्र हो जाएँगे, +\q2 और तानाशाह ने जिन मूल्यवान चीजों को दूसरों से छीन लिया है वे वापस कर दी जाएँगी, +\q1 क्योंकि मैं उन लोगों के विरुद्ध लड़ूँगा जो तुम्हारे विरुद्ध लड़ते हैं, +\q2 और मैं तुम्हारे बच्चों को बचाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 26 और मैं तुम्हारे शत्रुओं को +\q2 दूसरों की हत्या के बजाए उनका स्वयं का नाश करने दूँगा। +\q1 जब ऐसा होता है, तो संसार में हर कोई यह जान लेगा कि वह मैं, यहोवा, ही हूँ जो तुमको बचाते हैं, +\q2 वही जो तुम्हारे शत्रुओं से तुमको बचाते हैं; +\q2 हर कोई यह जान लेगा कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जिसके लोग तुम याकूब के वंशज हो।” + +\s5 +\c 50 +\p +\v 1 यहोवा यह भी कहते हैं: +\q1 “तुम हे इस्राएली लोगों, ऐसा मत सोचो कि मैंने तुम्हारे माता-पिता को बाबेल में बन्धुआई में जाने के लिए विवश किया था +\q2 जैसे कुछ पुरुषों अपनी पत्नियों को +\q1 उन्हें एक दस्तावेज देने के बाद छोड़ दिया है +\q2 जिस पर वे कहते हैं कि वे उन्हें तलाक दे रहे थे! +\q1 मैंने निश्चित रूप से तुमसे ऐसे व्यक्ति के समान छुटकारा नहीं पाया जो उधार चुकाने के पैसों के लिए अपने बच्चों को बेच देता है। +\q1 नहीं, मेरा तुमको बन्धुआई में भेजने के लिए विवश करने का कारण +\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए पापों के कारण तुमको दण्डित करना था। +\q1 +\s5 +\v 2 जब मैं तुमको बचाने के लिए तुम्हारे पास आया था, +\q2 जब मैंने तुमको पुकारा तो किसी ने भी उत्तर क्यों नहीं दिया? +\q1 क्या तुमको वापस मोल लेने और घर ले जाने के लिए वहाँ कोई नहीं था? +\q2 क्या तुमको लगता है कि मेरे पास तुमको बचाने की शक्ति नहीं है? +\q1 इस विषय में सोचो: +\q2 मैं समुद्र से बात कर सकता हूँ और इसे सुखा सकता हूँ! +\q1 मैं नदियों को रेगिस्तान बना सकता हूँ +\q2 जिसके परिणामस्वरूप नदियों में मछली प्यास और सड़न से मर जाती है। +\q1 +\v 3 मैं आकाश को अन्धकारमय बन देता हूँ, +\q2 जैसे कि मानों यह काले कपड़े पहने हुए किसी मर चुके मनुष्य के लिए शोक कर रहा था।” +\q1 +\s5 +\v 4 हमारे परमेश्वर यहोवा ने मुझे उसके लिए बोलना सिखाया है, +\q2 कि मैं थके हुए लोगों को प्रोत्साहित कर सकूँ। +\q1 हर सुबह वह मुझे जागते हैं, +\q2 कि मैं सुन सकूँ कि वह मुझे क्या सिखाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 हमारे परमेश्वर यहोवा ने मुझसे बात की है, +\q2 और जो कुछ उन्होंने मुझे बताया वह मैंने अस्वीकार नहीं किया है; +\q2 मैंने इसे स्वीकार कर लिया है। +\q1 +\v 6 मैंने लोगों को मेरी पीठ पर मुझे मारने की +\q2 और मेरी दाढ़ी के बालों को खींचने की अनुमति दी क्योंकि उन्होंने मुझसे घृणा की थी। +\q1 मैं उनसे दूर नहीं चला गया +\q2 जब उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया और मुझ पर थूका। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु क्योंकि प्रभु यहोवा मेरी सहायता करते हैं, +\q2 इसलिए मुझे कभी अपमानित नहीं किया जाएगा। +\q1 इसलिए मैं कठिनाईयों का सामना करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूँ, +\q2 और मुझे पता है कि कुछ भी मुझे लज्जित नहीं होने देंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 परमेश्वर मेरे समीप हैं; वह दूसरों को दिखाएँगे कि मुझे उस पर विश्वास करने का अधिकार है, +\q2 इसलिए यदि कोई मेरे सामने खड़ा है और अदालत में मुझ पर आरोप लगाता है, +\q2 तो वह यह दिखाने में सक्षम नहीं होगा कि मैंने कुछ भी गलत किया है। +\q1 +\v 9 प्रभु यहोवा मुझे अदालत में बचाते हैं, +\q2 इसलिए कोई भी मेरी निन्दा करने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 जो लोग मुझ पर आरोप लगाते हैं वे सब +\q2 पुराने कपड़े के समान गायब हो जाएँगे जिसे पतंगों द्वारा खा लिया गया है। +\q1 +\s5 +\v 10 यदि तुम यहोवा का सम्मान करते हो +\q2 और वह करते हो जो उनके दास तुमको करने के लिए कहते हैं, +\q1 तो भले ही यदि तुम अँधेरे में चल रहे हो, और ऐसा लगता है कि कोई प्रकाश नहीं है, +\q2 तुम्हारी सहायता करने के लिए अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा करो; उस पर निर्भर रहो। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु तुम लोग जो अपनी आग जला कर, +\q2 और अपनी स्वयं की जलती मशालें ले कर मेरा विरोध करते हो: +\q1 आगे बढ़ो और अपने ज्ञान के अनुसार जीयो, +\q2 उसके अनुसार जो तुमको लगता है कि सबसे अच्छा है। +\q1 यहोवा तुमको बताते हैं कि तुम्हारे साथ क्या होगा: +\q2 वह तुमको बड़ी पीड़ा में मर जाने वाला कर देंगे! + +\s5 +\c 51 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “तुम लोग जो धार्मिक रूप से कार्य करना चाहते हैं, +\q2 जो वह करना चाहते हो कि जो मैं चाहता हूँ तुम करो, +\q1 मेरी बात सुनो! +\q2 अब्राहम के विषय में सोचो! +\q2 ऐसा लगता है कि मानों वह एक विशाल चट्टान था; +\q1 और जब तुम इस्राएल के लोग एक राष्ट्र बन गए, +\q2 यह ऐसा था जैसे मानों मैंने तुमको उस चट्टान से पत्थरों के समान काटा था। +\q1 +\s5 +\v 2 अपने पूर्वजों अब्राहम और उसकी पत्नी सारा के विषय में सोचो, जिनमें से तुम सभी वंशज आए हो। +\q2 जब मैंने पहली बार अब्राहम से बात की, +\q1 उसके पास कोई बच्चा नहीं था। +\q2 परन्तु जब मैंने उसे आशीर्वाद दिया, तो उसके पास बड़ी संख्या में वंशज थे। +\q1 +\s5 +\v 3 किसी दिन मैं, यहोवा, अब्राहम के वंशजों को फिर से प्रोत्साहित करूँगा, +\q2 और मैं उन सभी लोगों को सांत्वना दूँगा जो यरूशलेम के खण्डहरों में रहते हैं। +\q1 उस क्षेत्र में रेगिस्तान अदन के समान बन जाएँगे; +\q2 यह यहोवा के बगीचे के समान होगा। +\q1 सभी लोग आनन्दित और आनन्दित होंगे; +\q2 वे मुझे धन्यवाद देंगे और गाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 4 हे यहूदा के मेरे लोगों, ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनो, +\q2 क्योंकि मैं तुमको मेरे नियमों का प्रचार करने का आदेश देता हूँ; +\q1 वह धार्मिक कार्य जो मैं करूँगा वह सभी राष्ट्रों के लोगों के लिए एक प्रकाश के समान होंगे। +\v 5 मैं शीघ्र ही तुमको और उन्हें बचाऊँगा; +\q2 मेरी शक्ति से मैं पृथ्‍वी के लोगों पर शासन करूँगा और उन्हें आशीर्वाद दूँगा। +\q1 जो लोग पृथ्‍वी पर सबसे दूर के देशों में रहते हैं, वे मेरी सहायता करने के लिए प्रतीक्षा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 आकाश को देखो, +\q2 और पृथ्‍वी को देखो; +\q2 देखो कि अब वे किसके समान हैं, +\q1 क्योंकि किसी दिन आकाश धुएँ के समान गायब हो जाएगा, +\q2 और पहने हुए पुराने कपड़े उतारे जाने के समान पृथ्‍वी को उतार दिया जाएगा, +\q2 और पृथ्‍वी पर लोग मक्खियों के समान मर जाएँगे। +\q1 परन्तु मैं तुमको बचाऊँगा, और तुम सदा के लिए स्वतन्त्र रहोगे, +\q2 और हर कोई जान जाएगा कि मैं क्या करता हूँ और मैं सदा वही कार्य करूँगा जो सही हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 तुम लोग जो जानते हो कि कौन से कार्य करना सही है, +\q2 और जो अपने अंतर्मन में जानते हो कि मेरे नियमों में क्या लिखा गया है, +\q1 मेरी बात सुनो! +\q2 उन लोगों से मत डरो जो तुमको तंग करते हैं; +\q2 परेशान न हो जब लोग तुमको भ्रमित करते हैं, +\q1 +\v 8 क्योंकि किसी दिन वे +\q2 उन कपड़ों के समान नष्ट हो जाएँगे जिनको पतंगों ने खा लिया है, +\q1 ऊनी वस्त्रों के समान जिसे कीड़े द्वारा खाया गया है। +\q2 और हर कोई जान जाएगा कि मैं क्या करता हूँ और मैं सदा वही कार्य करूँगा जो सही हैं; +\q2 और मैं तुमको बचाऊँगा, और तुम सदा के लिए बचाए जाओगे।” +\q1 +\s5 +\v 9 हे यहोवा, उठिए और हमारे लिए कुछ करिए! +\q2 हमें दिखाइए कि आप कितने मजबूत हैं! +\q1 शक्तिशाली कार्य कीजिए +\q2 जैसे आपने बहुत पहले किए थे, +\q2 जब आपने रहब, समुद्री राक्षस को मारा, और इसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया। +\q1 +\v 10 निश्चित रूप से आप ही हैं जिसने समुद्र को सूखा दिया, +\q1 और उस गहरे पानी के माध्यम से एक रास्ता बनाया +\q2 कि आपके लोग इसे पार कर सकें! +\q1 +\s5 +\v 11 और वे जिन्हें यहोवा बाबेल में बन्धुआ होने से बचाएगा +\q2 इसी तरह गीत गाते हुए यरूशलेम में वापस आ जाएँगे। +\q2 उनके मन सदा के लिए ऐसे आनन्दित रहेंगे जैसे उनके सिरों पर एक मुकुट रखा है। +\q1 वे दुखी नहीं होंगे या शोक नहीं करेंगे; +\q2 वे पूरी तरह से आनन्दित और आनन्दित होंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 यहोवा कहते हैं, +\q2 “मैं वही हूँ जो तुमको प्रोत्साहित करता है। +\q1 इसलिए तुम मनुष्यों से डरते क्यों हैं +\q2 जो घास के समान सूख कर गायब हो जाएँगे? +\q1 +\s5 +\v 13 तुमको मुझ, यहोवा, को भूलना नहीं चाहिए जिन्होंने तुम्हारे राष्ट्र को बनाया है, +\q2 वही जिन्होंने आकाश को फैलाया +\q2 और पृथ्‍वी की नींव रखी। +\q1 तुमको उन लोगों से डरना नहीं चाहिए जो तुमसे क्रोधित हैं +\q2 और तुमको नष्ट करना चाहते हैं। +\q1 तुमको अब उनसे डरना नहीं चाहिए, +\q2 क्योंकि वे क्रोध करने वाले लोग अब गायब हो गए हैं! +\q2 +\s5 +\v 14 शीघ्र ही तुम लोग, जिन्हें तुम्हारे शत्रुओं ने बाबेल में दास बनाया है, स्वतन्त्र हो जाओगे! +\q1 तुम बन्दीगृह में नहीं रहोगे, और तुम भूख से मर नहीं जाओगे, +\q1 +\v 15 क्योंकि मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ, +\q2 वह जो समुद्र को हिलाता है और लहरों को गर्जन करने देता है; +\q2 मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा हूँ! +\q1 +\s5 +\v 16 मैंने तुमको प्रचार करने के लिए अपना सन्देश दिया है, +\q2 और मैंने अपने हाथ से तुमको सुरक्षित रखा है। +\q1 मैंने आकाश को फैलाने के लिए +\q2 और पृथ्‍वी की नींव रखने के लिए यह किया है। +\q1 और मैंने तुम इस्राएलियों से कहने के लिए यह किया है, +\q2 ‘तुम मेरे लोग हो!’” +\q1 +\s5 +\v 17 तुम हे यरूशलेम के लोगों, उठो! +\q2 तुमने यहोवा द्वारा तुमको गम्भीर रूप से दण्डित करने को अनुभव किया है। +\q1 यहोवा ने तुमको बहुत पीड़ा +\q2 और विपत्ति का अनुभव करने दिया है। +\q1 यहोवा ने तुमको यह प्याला पीने के लिए दिया, परन्तु यह यहोवा का प्याला था! +\q2 उसने तुमको उस बड़े प्याले से नीचे गिरने वाली हर बूँद कटोरे की तली से पीने के लिए विवश किया। और उस पेय ने तुमको लड़खड़ाने वाला बना दिया जैसे तुमने तेज दाखमधु पी ली थी। यह तेज दाखमधु परमेश्वर के क्रोध का प्रतिनिधित्व करती है, और तुमको इसे पूरा पीना है! +\q1 +\v 18 अब तुम्हारे पास कोई संतान नहीं है +\q1 जो तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हारा मार्गदर्शन करने में सक्षम हो। तुम स्वयं की सहायता नहीं कर सकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 19 तुमने इन विपत्तियों का सामना किया है: +\q2 तुम्हारा देश उजाड़ हो गया है; +\q1 तुम्हारे शहर नष्ट हो गए हैं; +\q2 भूख से कई लोग मर गए हैं; +\q2 तुम्हारे शत्रुओं की तलवारों से कई लोग मारे गए हैं। +\q1 अब तुम्हारे साथ रोने और तुम्हारे साथ सहानुभूति रखने वाला कोई नहीं है। +\q1 +\v 20 तुम्हारे बच्चे हर सड़क के कोने पर बेहोश होकर पड़े हुए हैं; +\q2 वे एक हिरन के समान असहाय हैं जिसे जाल में पकड़ा गया है। +\q1 उनके साथ जो हुआ है उसका कारण यह है कि यहोवा उनसे बहुत क्रोधित हो गए हैं; +\q2 उसने उन्हें गम्भीर रूप से डाँटा है। +\q1 +\s5 +\v 21 इसलिए अब, तुम लोग जो बहुत पीड़ित हैं, +\q1 तुम जो ऐसे अभिनय कर रहे थे जैसे कि तुम नशे में थे क्योंकि तुम उसके प्याले में से पी रहे थे। +\q2 परन्तु वास्तव में, ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि तुमने दाखमधु से भरे प्याले में से पिया है, परन्तु किसी और कारण से है जो यहोवा करेंगे। +\q1 +\v 22 यहोवा, तुम्हारे प्रभु और तुम्हारे परमेश्वर, +\q2 वही जो तुम्हारा बचाव करने के लिए तुम्हारे मामले में वादविवाद करते हैं, वह यह कहते हैं: +\q1 “मैंने उस प्याले को दूर कर लिया है जो तुम्हारे प्रति मेरे क्रोध से भरा है, +\q1 और मैंने तुमको अपने क्रोध का अनुभव कराया जब मैंने तुमको उस प्याले से पीने दिया। +\q1 परन्तु अब मैंने इसे तुमसे लिया है कि तुम फिर कभी इससे नहीं पीओगे। +\q1 +\s5 +\v 23 इसके बजाए, मैं उन लोगों को पीड़ित होने दूँगा जिन्होंने तुमको यातनाएँ दी हैं; +\q2 मैं उन लोगों को गम्भीर रूप से दण्डित करूँगा जिन्होंने तुमको कहा था, +\q2 ‘नीचे लेट जाओ कि हम तुम पर चल सकें; +\q1 अपने पेट के बल लेट जाओ +\q2 कि तुम्हारी पीठ सड़कों के समान हो जिस पर हम चल सकें।’” + +\s5 +\c 52 +\q1 +\p +\v 1 तुम लोग जो पवित्र शहर यरूशलेम में रहते हो, जागो! +\q2 फिर से मजबूत बनो! +\q1 दिखाओ कि तुम्हारा शहर सुन्दर और गौरवशाली है; +\q2 वे खतनारहित विदेशी, जो यहोवा का सम्मान नहीं करते हैं, फिर कभी भी तुम पर आक्रमण करने के लिए तुम्हारे शहर में प्रवेश नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 2 हे यरूशलेम के लोगों, जहाँ तुम धूल में बैठे हो, वहाँ से उठो, +\q2 और ठीक से बैठ जाओ! +\q1 तुम लोग जो बन्धुआई से लौट आए हो, +\q2 अपनी गर्दन से उन जंजीरों को दूर करो जो बाबेल के लोगों ने तुम्हारी गर्दनों के चारों ओर बाँधी हैं, +\p +\v 3 क्योंकि यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “जब तुमको बाबेल में बन्दी के रूप में भेजा गया था, +\q2 ऐसा करने के लिए किसी ने भी भुगतान नहीं किया था। +\q1 इसलिए अब तुम वापस लाए जाओगे, +\q2 और तुम्हारी मुक्ति के लिए किसी को भी कोई पैसा नहीं दिया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 4 यहोवा हमारे परमेश्वर यह भी कहते हैं: +\q1 “बहुत पहले, वहाँ रहने के लिए मेरे लोग मिस्र गए थे। +\q2 बाद में अश्शूर के सैनिकों ने उन पर अत्याचार किया। +\p +\s5 +\v 5 परन्तु अब क्या हो रहा है इसके विषय में सोचो: +\q1 इस बार बाबेल के लोगों द्वारा मेरे लोगों को फिर से दास बनने के लिए विवश किया जा रहा है। वे मेरे लोगों को पकड़ कर ले गए हैं, परन्तु उन्होंने कभी भी उन्हें बन्दी बनाने का कोई कारण नहीं घोषित किया। +\q2 और बाबेल के शासकों ने घमण्ड किया और उनका मजाक उड़ाया (जैसा कि मैं, यहोवा ने कहा था कि वे करेंगे) +\q1 और संसार के अन्य जाति समूह मेरे नाम के उल्लेख को तुच्छ मानते हैं। +\q1 +\v 6 परन्तु उसके बाद, मेरे लोग मुझसे प्रेम करेंगे और मेरा सम्मान करेंगे; +\q2 जब ऐसा होता है, तो वे जान जाएँगे कि वह मैं ही हूँ जिसने कहा था कि ऐसा होगा। वह मैं ही हूँ जो बोलते हैं, और मैं कहता हूँ, +\q2 ‘हाँ, यह यहोवा है जो तुमसे बात कर रहे हैं।’ +\q1 +\s5 +\v 7 यह एक अद्भुत बात है कि जब सन्देशवाहक पर्वतों से आते हैं और +\q2 शुभसमाचार लाते हैं, +\q1 परमेश्वर के विषय में समाचार हमें शान्ति दे रहा है और हमें बचा रहा है, +\q1 यह समाचार कि परमेश्वर जिसके हम इस्राएली लोग हैं, अब सब लोगों को राजा के रूप में अपनी शक्ति दिखा रहे हैं! +\q1 +\v 8 जो पहरेदार शहर की रक्षा कर रहे हैं वे चिल्लाएँगे और प्रसन्नता से गाएँगे, +\q2 क्योंकि उनके देखते-देखते, +\q1 वे सब यहोवा को यरूशलेम लौटता हुआ देखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 9 यरूशलेम नष्ट हो गया था, +\q2 परन्तु जो लोग वहाँ हैं अब उनको प्रसन्नता से गीत गाना आरम्भ कर देना चाहिए, +\q1 क्योंकि यहोवा अपने लोगों को प्रोत्साहित करेंगे; +\q2 वह अपने लोगों को स्वतन्त्र कर देंगे और उन्हें वापस यरूशलेम ले जाएँगे। +\q1 +\v 10 यहोवा सब राष्ट्रों को दिखाएँगे कि वह पवित्र और शक्तिशाली हैं। +\q1 पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों के लोग जान जाएँगे +\q2 कि उन्होंने अपने लोगों को बचा लिया है। +\q1 +\s5 +\v 11 इसलिए उन स्थानों को छोड़ दो जहाँ तुमको पकड़ कर ले जाया गया था, +\q2 जहाँ की हर एक वस्तु परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य है। +\q1 तुम लोग जो यहोवा के मन्दिर में उपयोग किए जाने वाले सामान को उठाए लिए जा रहे हो, +\q2 वहाँ से निकल कर यरूशलेम को लौट आओ, +\q2 और परमेश्वर की आराधना करने के लिए स्वीकार्य होने के लिए स्वयं को शुद्ध करो। +\q1 +\v 12 परन्तु तुम्हारे लिए अचानक से निकल कर जाना, +\q2 भय में भागना आवश्यक नहीं होगा, +\q1 क्योंकि यहोवा तुम्हारे आगे-आगे जाएँगे; +\q2 और वह यात्रा करते समय पीछे की ओर तुम पर आक्रमण किए जाने से भी तुम्हारी रक्षा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 13 ध्यान से सुनो! +\q2 मेरा दास बुद्धिमानी से कार्य करेगा और वह सब कुछ करेगा जो यहोवा चाहते हैं कि वह करे, +\q1 और उनको किसी भी और से अधिक सम्मानित किया जाएगा। +\q1 +\v 14 परन्तु जब बहुत से लोग देखते हैं कि उनके साथ क्या हुआ है तो वे चिन्तित होंगे। +\q2 क्योंकि उन्हें बहुत बुरी तरह पीटा गया था, उनका रूप बदल जाएगा; +\q3 लोग बहुत कठिनाई से पहचान पाएँगे कि वह एक मनुष्य है। +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु वह बहुत से राष्ट्रों के लोगों पर शुद्धता का छिड़काव करके उन्हें पवित्र करेंगे; +\q2 यहाँ तक कि राजा भी चुप हो जाएँगे जब वे उसके सामने खड़े होंगे, +\q1 क्योंकि वे किसी ऐसे को देखेंगे जिसके विषय में किसी ने भी उन्हें पहले नहीं बताया था, +\q2 और वे उन बातों को समझेंगे जिन्हें उन्होंने पहले नहीं सुना था। + +\s5 +\c 53 +\q1 +\p +\v 1 परमेश्वर के दास के विषय में हमने जो कुछ सुना है, उस पर कौन विश्वास करेगा? +\q2 यहोवा अपनी महान शक्ति से जो करते हैं उसे कौन देखेगा? +\q1 +\v 2 परमेश्वर के देखते-देखते, उनका दास एक बहुत ही छोटे पेड़ के अंकुर के समान बढ़ेगा, +\q2 एक ऐसे निर्बल युवा पौधे के समान जिसकी जड़ फूट निकली, एक डंठल जो सूखी भूमि में बढ़ रही है। +\q1 उसके विषय में कुछ भी सुन्दर या राजसी नहीं होगा, +\q2 ऐसा कुछ भी नहीं होगा जो हमें उसकी ओर देखने की इच्छा में प्रेरित करे। +\q1 +\s5 +\v 3 लोग उनको तुच्छ जानेंगे और अस्वीकार करेंगे। +\q1 वह बहुत दर्द सहन करेंगे, और वह बहुत पीड़ित होंगे। +\q2 क्योंकि उनका चेहरा बहुत बिगड़ जाएगा, लोग उन्हें देखना नहीं चाहेंगे; वह अब मनुष्यों के समान नहीं दिखाई देंगे; +\q1 लोग उसे तुच्छ जानेंगे और सोचेंगे कि वह कोई ध्यान दिए जाने के योग्य नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु हमारे जीवन के भीतर की बीमारियों के लिए उनको दण्डित किया जाएगा; +\q2 वह हमारे लिए बहुत दर्द सहन करेंगे। +\q1 परन्तु हम सोचेंगे कि उसे परमेश्वर द्वारा दण्डित, +\q2 और अपने पापों के लिए पीड़ित किया जा रहा है। +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु हमारे द्वारा किए गए बुरे कार्यों के कारण लोग उसे छेदेंगे और मार डालेंगे; +\q1 वे हमारे पापों के कारण उसे घायल करेंगे। +\q2 वे उसे मार देंगे कि हमारे साथ चीजें अच्छी हो जाएँ; +\q1 क्योंकि वे उसे कोड़े मारेंगे, इसलिए कि हम ठीक हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 6 हम सभी परमेश्वर से ऐसी भेड़ों के समान दूर चले गए हैं जो अपने चरवाहों से दूर भाग गई हैं। +\q2 जो परमेश्वर चाहते हैं हम उन कार्यों को करने के बजाए उससे दूर हो गए हैं कि हम उन कार्यों को करें जो हम चाहते हैं। +\q1 हम दण्डित होने के योग्य हैं, परन्तु यहोवा हमारे सभी पापों के लिए हमारे बजाए उसे दण्डित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाएगा और वह पीड़ित होंगे, +\q2 परन्तु वह शिकायत करने के लिए कुछ भी नहीं कहेंगे। +\q1 वे उसे ले जाएँगे जहाँ वे उसे मृत्यु दण्ड देंगे, +\q2 जैसे वे एक मेम्ने को ले वहाँ जाते हैं जहाँ उसे हत्या किया जाएगा। +\q1 और जैसे एक भेड़ अपने ऊन कतरते समय मिमियाती नहीं है, +\q2 वह अपने मारे जाने के समय पर स्वयं को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 उनके गिरफ्तार किए जाने और उन पर मुकद्दमा चलाने के बाद, +\q2 उनको ले जा कर मृत्यु दण्ड दिया जाएगा। +\q1 और उस समय कोई भी उनके विषय में और कुछ नहीं सोच पाएगा। +\q2 क्योंकि वह मर जाएँगे; +\q2 वह हमारे द्वारा किए गए गलत कार्यों के लिए हमारे विरुद्ध श्रापों द्वारा लाए गए सभी दण्ड को प्राप्त करेंगे। +\q1 +\v 9 हालाँकि उसने कभी भी कुछ गलत नहीं किया होगा या किसी को धोखा नहीं दिया होगा, +\q2 तो भी लोग उसके शव को दुष्ट लोगों को दफनाए जाने के स्थान पर, और एक धनवान व्यक्ति की कब्र में रखेंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु यह यहोवा की इच्छा होगी कि वह दु:ख उठाएँगे और पीड़ित होंगे। जब वह तुम्हारे पाप के लिए एक भेंट के रूप में मर जाते हैं, +\q2 तो वह कई सारे लोगों का लाभ करेंगे, जैसे कि वे उनके बच्चे थे; +\q2 मरने के बाद वह एक लम्बे समय तक जीवित रहेंगे और फिर से जीवित हो जाएँगे, +\q2 और जो कुछ भी यहोवा ने योजनाएँ बनाई हैं उनको वह पूरा करेंगे। +\q2 +\v 11 जब वह अपने दु:ख उठाए जाने के द्वारा पूरा किए गए कार्यों को देखेंगे, +\q1 तो वह संतुष्ट होंगे। +\q2 और उस, यहोवा के धर्मी सेवक, के साथ जो कुछ भी होगा उसके कारण, +\q1 वह कई लोगों के अपराध को समाप्त कर देंगे, +\q2 क्योंकि वह उनके पापों के लिए अपराध को सहन करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 तब यहोवा कई लोगों के साथ उस लूट को साझा करेंगे जो उन्होंने अपने शत्रुओं से जीती है। +\q2 उनके दास एक ऐसे राजा के समान होंगे जो अपने सैनिकों के बीच लूट को बाँट देते हैं, +\q1 क्योंकि उन्होंने स्वयं को मरने के खतरे में डाल दिया और वास्तव में मर गए। +\q2 हालाँकि भले ही लोगों ने उनको एक पापी ही माना था, +\q1 उन्होंने कई लोगों के अपराध को हटा दिया, +\q2 और उन्होंने उन लोगों के लिए हस्तक्षेप किया जिन्होंने गलत कार्य किए हैं। + +\s5 +\c 54 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “तुम हे यरूशलेम के लोगों, गीत गाना आरम्भ करो! +\q2 तुम जो ऐसी स्त्रियों के समान हो जिन्होंने कभी बच्चों को जन्म नहीं दिया है, ऊँची आवाज से गाओ और प्रसन्नता से चिल्लाओ, +\q1 क्योंकि तुम जो बिना बच्चों वाली ऐसी स्त्रियों के समान हो जिन्हें उनके पतियों द्वारा त्याग दिया गया है, शीघ्र ही उन स्त्रियों की तुलना में तुम्हारे अधिक बच्चे होंगे +\q2 जिनके पास कभी बच्चे नहीं थे। +\q1 +\s5 +\v 2 अपने तम्बू को बड़ा बनाओ; +\q2 उन्हें चौड़ा बनाओ, +\q2 और तम्बू की खूँटियों से उन्हें मजबूती से बाँधो। +\q1 +\v 3 तुमको अपने शहर को बहुत बड़ा बनाना होगा +\q2 क्योंकि शीघ्र ही तुम और तुम्हारे वंशज पूरे देश में फैल जाएँगे। +\q1 वे अन्य राष्ट्रों के लोगों को वहाँ से निकल जाने के लिए विवश करेंगे जहाँ वे हैं, +\q2 और तुम फिर से उन शहरों में रहेंगे जिन्हें लोग पहले छोड़ चुके थे। +\q1 +\s5 +\v 4 मत डरो; अब तुम लज्जित नहीं होओगे। +\q1 पहले तुम लज्जित हुए थे क्योंकि तुम्हारे शत्रुओं ने तुमको जीत लिया था +\q2 और तुम्हारे देश को एक विधवा के समान बना दिया गया, +\q1 परन्तु शीघ्र ही तुमको यह स्मरण भी नहीं रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा, इस्राएल का एकमात्र पवित्र, जो पूरी पृथ्‍वी पर शासन करता है, +\q1 वही जिसने तुमको बनाया है, +\q2 तुम्हारे लिए एक पति के समान होऊँगा। +\q1 +\v 6 तुम्हारा राष्ट्र एक ऐसी स्त्री के समान था जिसके पति ने उसे छोड़ दिया था, +\q2 और तुमको बहुत दुखी होना पड़ा; +\q1 तुम एक युवा स्त्री के समान थे +\q1 जिसका विवाह तब ही हो गया था जब वह बहुत छोटी थी, +\q2 और फिर उसके पति ने उसे त्याग दिया। +\q1 +\s5 +\v 7 मैंने तुम यरूशलेम के लोगों को थोड़ी देर के लिए त्याग दिया था, +\q2 परन्तु अब मैं कह रहा हूँ, ‘मैं तुमको वापस ले जाऊँगा।’ +\q1 +\v 8 मैं थोड़ी देर के लिए तुमसे बहुत क्रोधित था, +\q2 और मैं तुमसे दूर हो गया था। +\q1 परन्तु मैं तुम्हारे प्रति दया से कार्य करूँगा +\q2 और मैं ईमानदारी से सदा तुमसे प्रेम करूँगा। +\q2 मैं, यहोवा, तुम्हारा बचाने वाला, तुमसे यही कहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 9 उस समय के दौरान जब नूह रहता था, +\q2 मैंने गम्भीरता से प्रतिज्ञा की थी कि मैं कभी भी बाढ़ को पृथ्‍वी को ढकने की अनुमति नहीं दूँगा। +\q1 इसलिए अब मैं गम्भीरता से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं दोबारा तुमसे क्रोधित नहीं होऊँगा और तुमको दण्डित नहीं करूँगा। +\q1 +\v 10 भले ही पर्वत और पहाड़ियों हिल जाएँ और गिर पड़ें, +\q2 मैं ईमानदारी से तुमको प्रेम करना बन्द नहीं करूँगा, +\q1 और मैं तुम्हारे लिए चीजों को +\q2 अच्छी तरह होने देने के अपने अनुबन्ध को अस्वीकार नहीं करूँगा। +\q2 मैं, दया से कार्य करने वाला, यहोवा, यही कहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 11 तुम हे यरूशलेम के लोगों, तुम्हारे शत्रुओं ने तुम्हारे प्रति बहुत हिंसक कार्य किए; +\q2 ऐसा लगता था कि मानों तुम्हारे शहर को एक गम्भीर तूफान से पीड़ित किया गया था, +\q2 और किसी ने भी तुम्हारी सहायता नहीं की। +\q1 परन्तु अब मैं फिर से तुम्हारे शहर को फीरोजा पत्थरों से बनवाऊँगा, +\q2 और शहर की नींव को नीलमणि से बनवाऊँगा। +\q1 +\v 12 मैं शहर की दीवारों के गुम्मटों को माणिकों से बनवाऊँगा, +\q2 और शहर के सब फाटक और बाहरी दीवारें अन्य बहुत मूल्यवान पत्थरों से बनाई जाएँगी। +\q1 +\s5 +\v 13 वह मैं ही होऊँगा जो तुम्हारे बच्चों को शिक्षा दूँगा +\q2 और तुम्हारे साथ चीजों को अच्छी तरह से होने दूँगा। +\q1 +\v 14 न्यायपूर्वक कार्य करने के कारण तुम्हारी सरकार मजबूत होगी; +\q1 कोई भी तुम पर अत्याचार नहीं करेगा; +\q2 तुम डरोगे नहीं, +\q2 क्योंकि तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी नहीं आएगा जो तुमको डरा देगा। +\q1 +\s5 +\v 15 यदि कोई सेना तुम पर आक्रमण करती है, +\q2 तो ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि मैंने उन्हें ऐसा करने के लिए उकसाया है, +\q1 और तुम पर आक्रमण करने वाले किसी को भी तुम पराजित कर दोगे। +\q1 +\v 16 इस विषय में सोचो: +\q2 लोहार बहुत तेज आग बनाने के लिए कोयलों पर हवा धोंकता है +\q2 कि हथियारों का उत्पादन कर पाए जिनका युद्धों में उपयोग किया जा सकता है, +\q1 परन्तु वह मैं ही हूँ जिसने लोहार का उत्पादन किया है! +\q1 और वह भी मैं ही हूँ जिसने अन्य लोगों और शहरों को नष्ट करने वाले लोगों को बनाया है। +\q1 +\s5 +\v 17 तुम उन हथियारों का उपयोग करने वाले सैनिकों द्वारा पराजित नहीं होओगे +\q2 जो उन्होंने तुम पर आक्रमण करने के लिए बनाए हैं, +\q1 और जब अन्य तुम पर आरोप लगाने का प्रयास करते हैं, तो तुम सिद्ध करोगे कि वे गलत हैं, और तुम उन्हें दण्ड पाने के लिए अपराधी ठहरा दोगे। +\q2 यह उन लोगों के लिए इनाम है जो यहोवा की सेवा करते हैं। +\q1 मैं उनकी रक्षा करूँगा और हर किसी को दिखाऊँगा कि वे मुझ पर भरोसा करने के लिए धर्मी हैं; +\q2 मैं, यहोवा, यही प्रतिज्ञा करता हूँ।” + +\s5 +\c 55 +\q1 +\p +\v 1 “यहाँ आओ! तुम सब लोग, जो बन्धुआई में हो, +\q2 और मेरी बात सुनो! +\q1 यदि तुम प्यासे हो, +\q2 तो अब तुम्हारा मेरे निकट आने और अपना पानी लेने का समय है! +\q1 अब जिनके पास पैसा नहीं था, +\q2 तुम आ सकते हो और मुझसे दाखमधु और दूध मोल ले सकते हो, उत्तम दाखमधु और सबसे अच्छा दूध! +\q1 तुमको जो मुझसे चाहिए उसे प्राप्त कर सकते हो, +\q2 और अब तुम इसे मोल ले सकते हो! +\q1 तुम इसे मोल ले सकते हो भले ही तुम्हारे पास कोई पैसा न हो, +\q2 और भले ही तुम इसे कभी ले पाने में समर्थ नहीं हो पाओ! +\q1 +\s5 +\v 2 तुम उन वस्तुओं को मोल लेने के लिए पैसे क्यों खर्च करते हो जो वास्तव में तुम्हारी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करती हैं? +\q1 तुम उन वस्तुओं को मोल लेने के लिए पैसे कमाने के लिए कठोर परिश्रम क्यों करते हो जो वास्तव में तुमको संतुष्ट नहीं करती हैं? +\q1 जो मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दो +\q2 और उसे प्राप्त करो जो वास्तव में अच्छा है! +\q1 यदि तुम मेरे पास आते हो, तो तुम वास्तव में अपने हृदय में आनन्दित होओगे। +\q1 +\s5 +\v 3 मेरी बात सुनो और मेरे पास आओ; +\q2 मेरी ओर ध्यान दो, और यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम अपने भीतर नया जीवन पाओगे। +\q1 मैं तुम्हारे साथ एक अनुबन्ध करूँगा +\q2 राजा दाऊद के लिए मेरे प्रेम के समान तुमको ईमानदारी से प्रेम करने के लिए, जो सदा बना रहेगा। +\q1 +\v 4 उसने जो किया, उसके कारण मैंने कई जातिसमूहों को अपनी शक्ति दिखाई; +\q2 मैंने उसे कई राष्ट्रों के लोगों पर एक अगुवा और सरदार बनने दिया। +\q1 +\s5 +\v 5 और इसी तरह, तुम अन्य राष्ट्रों के लोगों को तुम्हारे निकट आने के लिए बुलाओगे, +\q1 वह राष्ट्र जिनके विषय में तुमने पहले नहीं सुना है, +\q2 और उन्होंने तुम्हारे विषय में नहीं सुना है; +\q1 और वे तुम्हारे निकट शीघ्र ही से आएँगे +\q2 क्योंकि उन्होंने सुना होगा कि मैं, यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, ने तुमको सम्मानित किया है। +\q1 +\s5 +\v 6 यहोवा को जानने की खोज में रहो, जबकि यह करना तुम्हारे लिए अभी भी सम्भव है; +\q2 जबकि वह निकट है, तो यहोवा को पुकारो! +\q1 +\v 7 दुष्ट लोगों को अपने दुष्ट व्यवहार को त्याग देना चाहिए, +\q2 और बुरे लोगों को बुरी बातें सोचने से रुक जाना चाहिए। +\q1 उन्हें यहोवा के पास जाना चाहिए, +\q2 और यदि वे ऐसा करते हैं, तो वह उनके प्रति दया से कार्य करेंगे; +\q1 उन्हें यहोवा, उनके परमेश्वर के पास जाना चाहिए, +\q2 क्योंकि वह उन्हें उन सब दुष्ट कार्यों के लिए क्षमा कर देंगे जो उन्होंने किए हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा यह घोषणा करते हैं कि वह जो सोचते हैं वह उसके समान नहीं है जो तुम सोचते हो, +\q2 और वह जो करते हैं वह तुम्हारे द्वारा किए गए कार्यों से बहुत अलग हैं। +\q1 +\v 9 जैसे कि तुम पृथ्‍वी पर रहने वाले लोग कभी आकाश तक नहीं पहुँच सकते हो, +\q2 यहोवा के विचार तुम्हारे सोचने के रीति से कहीं अधिक बड़े हैं। +\q1 उसके रीति सदा तुम्हारे कार्य से अलग होते हैं। +\q1 और इसलिए, तुम यह सुनिश्चित कर सकते हो कि तुम कभी भी यहोवा सोचने के रीतियों के विषय में पूरी तरह समझ नहीं सकते या यहोवा जो करते हैं उसके कारणों को पूरी तरह जान नहीं सकते। +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा आकाश से वर्षा और बर्फ नीचे भेजते हैं, +\q2 और वे भूमि को सींचते हैं। +\q1 जब भूमि नम हो जाती है, तो यह पौधे को अंकुरित करती और बढ़ाती है, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी किसान द्वारा बोए जाने के लिए बीज पैदा करती है और लोगों द्वारा खाए जाने के लिए रोटी बनाने को आटे के लिए अनाज का उत्पादन करती है। +\q1 +\v 11 और इसी तरह, जिन कार्यों को मैं करने का प्रतिज्ञा करता हूँ, मैं सदा उन्हें होने दूँगा; +\q2 मेरे प्रतिज्ञा सदा सच हो जाएँगे। +\q1 वे उन कार्यों को पूरा करेंगे जिनके लिए मैंने उनसे कहा था। +\q1 +\s5 +\v 12 यही कारण है कि तुम बाबेल को प्रसन्नता से छोड़ दोगे; +\q2 तुमको शान्ति मिलेगी जब यहोवा तुमको बाहर ले जाते हैं। +\q1 यह ऐसा होगा जैसे मानों पहाड़ियों और पर्वतों ने प्रसन्नता से गीत गाए, +\q2 और खेतों में पेड़ों ने अपने हाथों से ताली बजाई। +\q1 +\v 13 कंटीली झाड़ियों और बिच्छू पेड़ों के बजाए, +\q2 तुम्हारे देश में सनोवर के पेड़ और मेंहदी पेड़ उगेंगे। +\q1 जिसके परिणामस्वरूप, लोग यहोवा का और अधिक सम्मान करेंगे; +\q2 और यहोवा जो करते हैं, उसके कारण से सबको स्मरण रहेगा कि उन्होंने क्या प्रतिज्ञा की है, और वे उनका सम्मान करेंगे।” + +\s5 +\c 56 +\p +\v 1 यहोवा यहूदा के सब लोगों से कहते हैं, +\q1 “उन कार्यों को करो जो उचित और धर्म के हैं, +\q2 क्योंकि मैं शीघ्र ही तुमको बचाने के लिए आऊँगा; मैं शीघ्र ही सबको दिखा दूँगा कि तुम मुझ पर भरोसा करने का लिए धर्मी हो गए हो। +\q1 +\v 2 मैं उन लोगों को आशीर्वाद दूँगा जो सब्त के दिनों के विषय में मेरे नियमों का पालन करते हैं। +\q1 मैं उन लोगों को आशीर्वाद दूँगा जो मेरे सब्त के दिनों को पवित्र रखते हैं, +\q2 और जो उन दिनों में कोई कार्य नहीं करते हैं, +\q2 और जो किसी भी तरह की बुराई करने से बचे रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 मुझ पर विश्वास करने वाले विदेशियों को ऐसा नहीं कहना चाहिए, +\q2 ‘निश्चित रूप से यहोवा मुझे अपने लोगों से सम्बन्धित होने की अनुमति नहीं देंगे।’ +\q1 और नपुंसकों को यह नहीं कहना चाहिए, +\q2 ‘क्योंकि मैं बेढंगा हूँ और बच्चों को पैदा करने में असमर्थ हूँ, इसलिए मैं यहोवा का नहीं हो सकता; +\q2 मैं एक ऐसे पेड़ के समान हूँ जो पूरी तरह से सूख गया है।’ +\q1 +\s5 +\v 4 उन्हें यह नहीं कहना चाहिए, क्योंकि मैं, यहोवा, नपुंसकों से यह कहता हूँ +\q2 जो सब्त के विषय में मेरे नियमों का पालन करते हैं, +\q1 और जो मुझे प्रसन्न करने वाले कार्यों को करना चुनते हैं, +\q2 और जो इस्राएली लोगों के साथ की गई वाचा के सभी अन्य नियमों का पालन करते हैं: +\q1 +\v 5 मैं लोगों को मेरे मन्दिर की दीवारों के भीतर एक स्मारक रखने दूँगा; +\q2 उस स्मारक के कारण, उन्हें उससे भी अधिक सम्मानित किया जाएगा जो वे तब होते यदि उनके बच्चे होते; +\q1 उन्हें सदा के लिए सम्मानित किया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 6 मैं उन लोगों को भी आशीर्वाद दूँगा जो इस्राएली नहीं हैं +\q2 जो स्वयं को मुझसे जोड़ते हैं, +\q1 जो मेरी सेवा करते हैं और आराधना करते हैं और मुझसे प्रेम करते हैं, +\q2 जो सब्त के विषय में मेरे नियमों का पालन करते हैं, +\q1 और जो इस्राएली लोगों के साथ की गई वाचा के सभी अन्य नियमों का ईमानदारी से पालन करते हैं। +\q1 +\v 7 मैं उन्हें यरूशलेम में अपने पवित्र पर्वत पर लाऊँगा, +\q2 और उन्हें मेरे मन्दिर में बहुत प्रसन्न कर दूँगा जहाँ लोग मुझसे प्रार्थना करते हैं, +\q1 और मैं उन बलिदानों को स्वीकार करूँगा जो वे मेरी वेदी पर जलाते हैं और अन्य बलिदानों को जिनको वे चढ़ाते हैं, +\q2 क्योंकि मेरा मन्दिर एक ऐसी इमारत होगी जहाँ सब राष्ट्रों के लोग मुझसे प्रार्थना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं, प्रभु यहोवा, वही जो इस्राएल के लोगों को वापस लाऊँगा जिन्हें अन्य देशों में जाने के लिए विवश किया गया है, यह कहता हूँ: +\q मैं अन्य देशों से उन लोगों में सम्मिलित होने के लिए कई लोगों को लाऊँगा जिन्हें मैं वापस लाया हूँ।” +\q1 +\s5 +\v 9 “तुम आस-पास के राष्ट्रों, जिनके पास ऐसी सेनाएँ हैं जो जंगल में जानवरों के समान हैं; +\q2 आओ और इस्राएल पर आक्रमण करो! +\q1 +\v 10 इस्राएली अगुवों को लोगों की रक्षा के लिए देखरेख रखने वाले कुत्तों के समान होना चाहिए, +\q2 परन्तु ऐसा लगता है कि मानों वे अंधे थे। +\q1 वे कुछ भी नहीं समझते हैं। +\q2 वे सब ऐसे कुत्तों के समान हैं जो भौंक नहीं सकते हैं। +\q1 अजनबी के आने पर अच्छी देखरेख रखने वाले कुत्ते भौंकते हैं, +\q2 परन्तु इस्राएली अगुवे लोगों को चेतावनी नहीं देते हैं कि उनके शत्रु आ रहे हैं। +\q1 इसके बजाए, वे बस लेटे रहना और सोना और सपने देखना चाहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 और वे लालची कुत्तों के समान हैं; +\q2 जो कुछ भी वे चाहते हैं उन्हें कभी नहीं मिलता है। +\q1 वे लोगों का नेतृत्व करना चाहते हैं, जैसे अच्छे चरवाहे अपने झुण्ड का नेतृत्व करते हैं, +\q2 परन्तु वे अज्ञानी हैं, +\q2 और उनमें से प्रत्येक जो कुछ भी वे करना चाहते हैं वह करता है। +\q1 +\v 12 वे एक-दूसरे से कहते हैं, ‘आओ, चलो हम चलकर कुछ मदिरा और अन्य नशीले पेय पीएँ, +\q2 और हमें नशे में चूर हो जाएँ! +\q1 और कल हम और भी अधिक पीने का आनन्द लेंगे।’” + +\s5 +\c 57 +\q1 +\p +\v 1 धार्मिक लोग मर जाते हैं, +\q2 और कोई इसके विषय में चिन्तित नहीं है। +\q1 धार्मिक लोग मर जाते हैं, +\q2 और कोई भी कारण नहीं समझ पाता है। +\q1 परमेश्वर उन्हें दूर ले जाते हैं कि वे अधिक विपत्तियों को सहन न करें, +\q2 +\v 2 और अब उनके पास शान्ति है। +\q1 वे धार्मिक रूप से जीए थे, +\q2 और अब वे अपनी कब्रों में शान्तिपूर्वक आराम करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 यहोवा कहते हैं, “परन्तु तुम जो जादूगरी के कार्य करते हो, यहाँ आओ! +\q2 तुम जो मूर्तियों की उपासना करते हो, +\q2 मेरी बात सुनो! +\q1 +\v 4 क्या तुमको मालूम है कि तुम किसका उपहास कर रहे हो, +\q2 और तुम किसका अपमान कर रहे हो? +\q2 क्या तुमको मालूम है कि तुम किस पर अपनी जीभ बाहर निकाल रहे हो? +\q1 तुम मुझ, यहोवा, का अपमान कर रहे हो! +\q2 तुम अपने पूर्वजों के समान, सदा मेरे विरुद्ध विद्रोह कर रहे हो और सदा झूठ बोल रहे हो। +\q1 +\s5 +\v 5 तुम हर ऊँचे हरे पेड़ के नीचे एक साथ सोने के लिए उत्सुक हो जहाँ तुम अपने देवताओं की उपासना करते हो। +\q1 सूखी नदी के किनारे तुम अपनी मूर्तियों के लिए बलिदान के रूप में अपने बच्चों को मार देते हो, +\q2 और उन्हें चट्टानी गुफाओं में अपनी मूर्तियों के लिए बलिदान के रूप में चढ़ाते हो। +\q1 +\s5 +\v 6 तुम नदी के किनारों से बड़े चिकने पत्थर लेते हो +\q2 और उन्हें अपने देवताओं के रूप में पूजते हो। +\q1 तुम उन पर भेंट स्वरूप दाखमधु डालते हो, +\q2 और तुम भेंट स्वरूप जला देने के लिए उनके पास अनाज लाते हो। +\q1 क्या तुमको लगता है कि मैं उन सब चीजों का आनन्द लेता हूँ? +\q1 +\s5 +\v 7 तुम हर पहाड़ी और पर्वत पर मूर्तियों की वेश्याओं के साथ सोते हो, +\q2 और तुम अपने देवताओं के लिए बलि चढ़ाने को वहाँ जाते हो। +\q1 +\v 8 तुमने अपने द्वारों के पीछे और चौखटों पर चिन्ह लगा दिया है, +\q2 और तुमने मुझे छोड़ दिया है। +\q1 तुमने अपने कपड़ों को उतार दिया +\q2 और अपने बिस्तर पर चढ़ गए हो, +\q1 और अपने प्रेमियों को तुम्हारे साथ बिस्तर पर आने के लिए आमन्त्रित किया। +\q1 तुमने उन्हें तुम्हारे साथ सोने के लिए पैसा दिया है, +\q2 और तुमने उनके गुप्त अंगों को देखा है। +\q1 +\s5 +\v 9 तुमने राजाओं को सुगन्धित तेल और ढेर सारा इत्र दिया है, +\q2 और तुमने उपासना करने के लिए अन्य देवताओं की खोज करने के लिए प्रतिनिधियों को दूर के देशों में भेजा; +\q1 यहाँ तक कि तुमने नए देवताओं की खोज करने के लिए मरे हुओं के स्थान पर दूत भेजने की भी प्रयास की। +\q1 +\v 10 तुम उन सभी कार्यों को करने के कारण थक गए हो, +\q2 परन्तु तुमने कभी नहीं कहा, ‘ऐसा करना हमारे लिए बेकार है।’ +\q1 तुमको मूर्तियों की उपासना करने के लिए नई शक्ति मिली, +\q2 इसलिए तुमने ऐसा करना जारी रखा। +\q1 +\s5 +\v 11 क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि तुम उन मूर्तियों से कहीं अधिक डरते थे जितना तुम मुझसे डरते थे कि तुम जो कर रहे थे उसके विषय में तुमने झूठ बोला था, +\q2 और यहाँ तक कि तुम मेरे विषय में सोचते भी नहीं? +\q1 क्या ऐसा इसलिए था कि तुम मुझसे डरते नहीं, क्योंकि मैंने तुमको लम्बे समय तक दण्डित नहीं किया था? +\q1 +\v 12 तुमको लगता है कि तुमने जो कार्य किए हैं वे सही हैं, +\q2 परन्तु मैं तुमको सच बताऊँगा: +\q1 यह उन कार्यों में से किसी को भी करने में तुम्हारी सहायता नहीं करेगा। +\q1 +\s5 +\v 13 जब तुम अपने मूर्तियों के संग्रह के आगे सहायता के लिए रोते हो, +\q2 वे तुमको बचाएँगे नहीं। +\q1 हवा उन्हें दूर उड़ा देगी; केवल एक साँस उन सबको दूर ले जाएगी। +\q2 परन्तु जो मुझ पर भरोसा करते हैं वे इस्राएल देश में रहेंगे, +\q1 और वे मेरे पवित्र पर्वत सिय्योन पर मेरी आराधना करेंगे।” +\p +\s5 +\v 14 यहोवा कहेंगे, “मुझे प्राप्त करने के लिए स्वयं को तैयार करो, +\q2 जैसे लोग एक राजा के आने के लिए सड़क बनाते हैं और तैयार करते हैं। +\q1 उन कार्यों से छुटकारा पाओ जो तुमसे पाप करवा रहे हैं। +\q1 +\v 15 क्योंकि मैं यही कहता हूँ - मैं, यहोवा, जो किसी भी और से अधिक पवित्र और सम्मानित हूँ, और जो सदा के लिए जीवित हैं: +\q1 मैं सबसे ऊँचे स्वर्ग में रहता हूँ, जहाँ सब कुछ पवित्र है, +\q2 परन्तु मैं उन लोगों के साथ भी हूँ जो नम्र हैं और जो उन पापपूर्ण कार्यों के लिए खेदित हैं, जो उन्होंने किए हैं। +\q1 मैं उन लोगों को बहुत प्रोत्साहित करूँगा जिन्होंने पश्चाताप किया है। +\q1 +\s5 +\v 16 मैं सदा लोगों पर आरोप नहीं लगाता रहूँगा; +\q2 मैं सदा उनसे क्रोधित नहीं रहूँगा, +\q1 क्योंकि यदि मैंने ऐसा किया, तो लोग निर्बल हो जाएँगे; +\q2 वे सब लोग मर जाएँगे जिनको मैंने बनाया और जीवन दिया। +\q1 +\v 17 मैं अपने लोगों से इसलिए क्रोधित था क्योंकि उन्होंने बलपूर्वक दूसरों के सामान को ले लेने के द्वारा पाप किया। +\q2 क्योंकि मैं क्रोधित था, इसलिए मैंने उन्हें दण्डित किया और उनसे दूर हो गया, +\q2 परन्तु उन्होंने पाप करना जारी रखा। +\q1 +\s5 +\v 18 मैंने उन बुरे कार्यों को देखा है जो वे निरन्तर करते रहते हैं, +\q2 परन्तु मैं उन्हें पुनर्स्थापित कर दूँगा और उनका नेतृत्व करूँगा। +\q1 मैं उन्हें प्रोत्साहित करूँगा। +\q2 उन लोगों के लिए जो शोक कर रहे हैं, +\q2 +\v 19 मैं उन्हें मेरी प्रशंसा करने के लिए गीत गाने में सक्षम करूँगा। +\q1 मैं अपने सब लोगों को पुनर्स्थापित करूँगा, जो यरूशलेम के पास रहते हैं और जो दूर रहते हैं, +\q2 और मैं उनके लिए चीजों को अच्छी तरह से होने दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 20 दुष्ट लोगों को अपने अंतर्मनों में शान्ति नहीं है; +\q2 वे एक ऐसे समुद्र के समान हैं जिनकी लहरें सदा मिट्टी का मंथन कर रही हैं, +\q1 +\v 21 और मैं, यहोवा, कहता हूँ कि बुरे लोगों के लिए चीजें कभी भी अच्छी नहीं होगी।” + +\s5 +\c 58 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझसे कहा, +\q1 “जोर से चिल्लाओ! +\q2 ऊँचे शब्द वाली तुरही के समान जोर से चिल्लाओ! +\q1 मेरे इस्राएली लोगों को उनके पापों के विषय में चेतावनी देने के लिए चिल्लाओ! +\q1 +\v 2 वे हर दिन मेरी आराधना करते हैं; +\q2 वे मेरे मन्दिर में आते हैं क्योंकि वे कहते हैं कि वे यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि मैं उनसे क्या चाहता हूँ कि वे करें। +\q1 वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि मानों वे एक ऐसा राष्ट्र थे जो धार्मिक कार्य करता है, +\q2 कि वे कभी भी मेरे, उनके परमेश्वर के आदेशों को त्याग नहीं करेंगे। +\q1 वे मुझसे न्यायपूर्वक मामलों का निपटाने का अनुरोध करते हैं, +\q2 और वे उत्सुक हैं कि मुझे उनके पास आना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 3 वे कहते हैं, ‘हमने आपको आनन्दित करने के लिए उपवास किया है, +\q2 परन्तु आपने हमारे ऐसा करने पर ध्यान नहीं दिया। +\q1 हमने स्वयं को नम्र किया, +\q2 परन्तु आपने कोई ध्यान नहीं दिया! +\q1 मैं तुमको बताऊँगा कि मैंने ध्यान क्यों नहीं दिया। +\q2 ऐसा इसलिए है क्योंकि जब तुम उपवास करते हो, +\q1 तुम इसे स्वयं को आनन्दित करने के लिए करते हो, +\q2 और तुम अपने सभी श्रमिकों के प्रति क्रूरतापूर्वक व्यवहार करते हो। +\q1 +\s5 +\v 4 तुम उपवास करते हो, परन्तु तुम झगड़ा भी करते हो और अपने मुक्कों के साथ एक दूसरे से लड़ते भी हो। +\q2 उपवास के दौरान तुम्हारा इस तरह के कार्य करना, निश्चित रूप से ऊपर स्वर्ग में जहाँ मैं हूँ मुझे तुम्हारी प्रार्थनाओं को सुनने नहीं देगा। +\q1 +\v 5 तुम अपने सिरों को झुकाते हो +\q2 जैसे हवा के चलने पर सरकण्डों के शीर्ष झुक जाते हैं, +\q1 और तुम खुरदरे कपड़े पहनते हो और अपने सिरों को राख से ढकते हो जैसे लोग दुख मनाते समय करते हैं। +\q1 जब तुम उपवास करते हो तो तुम यही करते हो, +\q2 परन्तु क्या तुम वास्तव में सोचते हो कि यह मुझे आनन्दित करेगा? +\q1 +\s5 +\v 6 नहीं, यह वह उपवास नहीं है जो मैं चाहता हूँ। +\q1 इसके बजाए तुमको उन लोगों को स्वतन्त्र करने का विचार करना चाहिए जिन्हें बन्दीगृह में अन्यायपूर्ण रूप से रखा गया है, +\q2 और उन लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए जिन्होंने क्रूरतापूर्वक व्यवहार झेला है; +\q2 और उन लोगों को मुक्त करना चाहिए जिन पर किसी भी तरह से अत्याचार किया गया है। +\q1 +\v 7 जो भूखे हैं उन लोगों के साथ अपना खाना साझा करना चाहिए +\q2 और जिनके पास कोई घर नहीं है उन लोगों को तुम्हारे घरों में रहने की अनुमति देनी चाहिए। +\q1 जिनके पास कपड़े नहीं हैं उन लोगों को कपड़े देने चाहिए, +\q2 और अपने उन सम्बन्धियों से स्वयं को छिपाना नहीं चाहिए जिन्हें तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है। +\q1 +\s5 +\v 8 यदि तुम उन कार्यों को करते हो, +\q1 जो तुम दूसरों के लिए करते हो वह एक ऐसे प्रकाश के समान होगा जो भोर के समय चमकता है। +\q2 तुम्हारे पापों के कारण होने वाली समस्याएँ शीघ्र समाप्त हो जाएँगी। +\q1 दूसरों को तुम्हारे धार्मिक व्यवहार के विषय में पता चलेगा, +\q2 और यहोवा की महिमामय उपस्थिति पीछे से तुम्हारी रक्षा करेगी +\q2 जैसे मैंने इस्राएली लोगों की रक्षा की थी जब उन्होंने मिस्र को छोड़ दिया था। +\q1 +\s5 +\v 9 तब तुम मुझे पुकारोगे, +\q2 और मैं शीघ्र ही से उत्तर दूँगा और कहूँगा, ‘मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए यहाँ हूँ।’ +\q1 लोगों पर अत्याचार करना बन्द करो; +\q2 लोगों पर झूठा आरोप लगाना बन्द करो; +\q2 और लोगों के विषय में बुरी बातें कहना बन्द करो। +\q1 +\v 10 उन लोगों को खाना दो जो भूखे हैं, +\q2 और उन लोगों को वह चीजें दो जिनकी आवश्यक से वे पीड़ित हैं। +\q1 तुम्हारा ऐसा करना उस प्रकाश के समान होगा जो अँधेरे में चमकता है; +\q2 लोगों के साथ बुराई करने के बजाए, तुम जो लोगों के लिए अच्छे कार्य करते हो, वे धूप में छाया के समान होंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा निरन्तर तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे, +\q2 और तुमको संतुष्ट करने के लिए वह तुमको अच्छी चीजें देंगे। +\q2 वह तुमको मजबूत और स्वस्थ रहने में सक्षम बनाएँगे। +\q1 तुम एक ऐसे बगीचे के समान होओगे जिसे अच्छी तरह से पानी दिया गया है, +\q2 तुम एक ऐसे सोते के समान होओगे जो कभी सूखता नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 12 तुम्हारे लोग उन शहरों को फिर से बनाएँगे जो बहुत पहले नष्ट हो गए थे; +\q2 वे पुरानी नींव के ऊपर घरों का निर्माण करेंगे। +\q1 लोग कहेंगे कि वह तुम लोग ही हो जो शहर की दीवारों के छेदों की मरम्मत कर रहे हो, +\q2 और वे जो उन सड़कों की मरम्मत कर रहे हैं जहाँ लोग रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 सब्त के दिन यात्रा न करो, +\q2 और सब्त के दिन केवल उन कार्यों को न करो जिनको करने में तुमको प्रसन्नता होती है। +\q1 सब्त के दिनों का आनन्द लो, और उन्हें प्रसन्नता से भरा हुआ मानो। +\q2 सब्त के दिन मेरे पवित्र दिन हैं। +\q2 सब्त के दिनों में जो कुछ भी तुम करते हो उसमें मुझ, यहोवा, का सम्मान करो। +\q1 स्वयं को आनन्दित करने वाले कार्य न करो और उनके विषय में बातें न करो। +\q2 यदि तुम उन सभी कार्यों को करते हो जिनको मैंने अभी तुमको करने के लिए कहा है; तो सुनो, और मैं तुमको बताऊँगा कि मैं तुम्हारे लिए क्या करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 14 मैं तुमको आनन्दित होने में सक्षम करूँगा। +\q2 मैं तुमको बहुत सम्मान दूँगा; +\q1 यह ऐसा होगा जैसे मानों तुम मेरे साथ ऊँचे पर्वतों के ऊपर सवारी कर रहे थे! +\q2 मैं तुमको वह आशीर्वाद दूँगा जो मैंने तुम्हारे पूर्वज याकूब को दिए थे। +\q1 यह बातें निश्चित रूप से होंगी क्योंकि मैं, यहोवा, ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 59 +\q1 +\p +\v 1 इसे सुनो! तुमको बचाने के लिए यहोवा की शक्ति बहुत कम नहीं है। +\q2 वह बहरे नहीं बन गए हैं; जब भी तुम सहायता के लिए उसे पुकारते हो तो वह तब भी तुमको सुन सकते हैं। +\q1 +\v 2 परन्तु तुम्हारे द्वारा किए गए पापों से तुमने स्वयं को अपने परमेश्वर से अलग कर लिया है। +\q1 तुम्हारे पापों के कारण, वह तुमसे दूर हो गए हैं, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप वह उस पर ध्यान नहीं देते हैं जो तुम उससे अनुरोध करते हो। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम दूसरों के साथ हिंसक कार्य करते हो, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप तुम्हारे हाथ उनके लहू से रंगे हुए हैं। +\q1 तुम निरन्तर झूठ बोलते हो, +\q2 और तुम दूसरों के विषय में बुरी बातें कहते हो। +\q1 +\v 4 जब तुम किसी पर अदालत में आरोप लगाते हो, तो तुम जो कहते हो वह उचित नहीं है और यह सच नहीं है। +\q2 तुम लोगों पर झूठा आरोप लगाते हो; तुम जो झूठ बोलते हो उस पर तुम निर्भर करते हो। +\q1 तुम निरन्तर दूसरों के लिए परेशानी पैदा करने की योजना बना रहे हो, +\q2 और फिर तुम उन बुरे कार्यों को करते हो जिनकी तुमने योजना बनाई थी। +\q1 +\s5 +\v 5 लोगों को हानि पहुँचाने के लिए तुम जो करने की योजना बना रहे हो वह एक विषैले साँप द्वारा दिए गए अंडों के समान है, एक ऐसे जाल के समान जिसमें मकड़ी अपने शिकार को पकड़ती है। +\q2 उन अंडों में से कोबरा साँप निकलेगा, +\q2 और मकड़ी के जाल में कीड़े गिर जाएँगे। +\q1 +\v 6 तुमने जो बुरे कार्य किए हैं, उसे तुम छिपा नहीं सकते। +\q1 तुम निरन्तर हिंसक कार्य कर रहे हो। +\q1 +\s5 +\v 7 तुम जा कर बुरे कार्यों को करने में बहुत गतिशील हो, +\q2 और तुम निर्दोष लोगों को मारने के लिए उतावले हो। +\q1 तुम निरन्तर पाप करने के विषय में सोच रहे हो। +\q2 जहाँ कहीं भी तुम जाते हो, तुम चीजों को नष्ट करते हो और लोगों को पीड़ित करते हो। +\q1 +\v 8 तुम नहीं जानते कि कैसे शान्तिपूर्वक कार्य करना है या दूसरों के साथ निष्पक्षता से व्यवहार करना है। +\q1 तुम सदा बेईमान हो, +\q2 और जो लोग तुम्हारे व्यवहार की नकल करते हैं, उनके भीतर कभी भी कोई शान्ति नहीं होती है। +\q1 +\s5 +\v 9 इसके कारण, परमेश्वर हमें हमारे शत्रुओं से नहीं बचाते हैं, +\q2 ऐसा लगता है कि वह हमारे प्रति निष्पक्षता से कार्य नहीं कर रहे हैं। +\q1 हम परमेश्वर से हमें प्रकाश देने की अपेक्षा करते हैं, +\q2 परन्तु वह हमें केवल अंधेरा ही देते हैं। +\q1 +\v 10 हम अंधे लोगों के समान हैं जिन्हें कहीं भी जाने में सक्षम होने के लिए दीवार के सहारे को महसूस करना पड़ता है। +\q2 हम अन्धकार के समय के जैसे दोपहर में ठोकर खाते और गिर जाते हैं। +\q1 हम स्वस्थ लोगों में मरे हुए लोगों के समान हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 हम भूखे भालू के समान गरजते हैं; +\q2 हम कबूतरों के समान निरन्तर विलाप भरते हैं। +\q1 हम परमेश्वर से न्यायपूर्ण कार्य करने के लिए कहते हैं, +\q2 परन्तु कुछ भी नहीं होता है। +\q1 हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमें बचाएँ, +\q2 परन्तु ऐसा लगता है कि वह बहुत दूर हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 परन्तु यह बातें इसलिए हो रही हैं क्योंकि ऐसा लगता है कि मानों परमेश्वर की उपस्थिति में हमारे पापों का ढेर बहुत ऊँचा है, +\q2 और यह वे ही हैं जो हमारे विरुद्ध गवाही देते हैं। +\q1 हम इसे झुठला नहीं सकते; +\q2 हम जानते हैं कि हमने कई गलत कार्य किए हैं। +\q1 +\v 13 हम जानते हैं कि हमने यहोवा के विरुद्ध विद्रोह किया है; +\q2 हम उससे दूर हो गए हैं। +\q1 हम उनके विरुद्ध गवाही देने के द्वारा लोगों पर अत्याचार करते हैं; +\q2 हम उनको वह प्राप्त करने की अनुमति नहीं देते हैं जिसे प्राप्त करने का उन्हें अधिकार है। +\q1 हम उन झूठ बातों के विषय में सोचते हैं जो हम बोल सकते हैं, +\q2 और फिर हम उन्हें बोल देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 हमारी अदालतों में, न्यायधीश मामलों का निर्णय निष्पक्षता से नहीं करते हैं; +\q2 कोई भी धार्मिकतापूर्वक कार्य नहीं कर रहा है। +\q1 चौकों में जहाँ लोग एक साथ इकट्ठे होते हैं, कोई भी सच नहीं बोलता है; +\q2 ऐसा लगता है कि लोगों को सच कहने की अनुमति नहीं है। +\q1 +\v 15 कोई भी सच नहीं बोलता है, +\q2 और लोग बुराई छोड़ने वाले लोगों के सम्मान को नष्ट करने का प्रयास करते हैं। +\q1 यहोवा ने चारों ओर देखा, और उन्होंने देखा कि कोई भी धर्म के कार्यों को नहीं कर रहा था; +\q2 वह बहुत अप्रसन्न थे। +\q1 +\s5 +\v 16 वह घृणा से भर गए थे जब उन्होंने देखा कि किसी ने भी उन लोगों की सहायता करने का प्रयास नहीं की जिनके साथ क्रूरता से व्यवहार किया जा रहा था। +\q2 इसलिए उन्होंने उन्हें बचाने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया; +\q1 क्योंकि वह सदा धर्मी हैं इसलिए उन्होंने ऐसा किया। +\q1 +\s5 +\v 17 ऐसा लगता है कि मानों वह एक सैनिक थे जिसने अपना कवच और टोप पहन लिया था; +\q2 उनके द्वारा निरन्तर किए जा रहे धर्म के कार्य उनके कवच के समान हैं, और लोगों को बचाने की उनकी क्षमता उनके टोप के समान है। +\q1 उनका बहुत क्रोधित होना और बुराई करने वालों से बदला लेने के लिए उनका तैयार होना उनके वस्त्रों के समान हैं। +\q1 +\v 18 वह अपने शत्रुओं को उनके द्वारा किए गए बुरे कार्यों के लिए वापस भुगतान करेंगे। +\q2 यहाँ तक कि वह यरूशलेम से दूर रहने वाले लोगों को भी गम्भीर रूप से दण्डित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 जब ऐसा होता है, तो पूर्व से ले कर पश्चिम तक हर जगह के लोग, यहोवा का आदर करेंगे और उसका सम्मान करेंगे, +\q2 क्योंकि वह एक उफनती नदी के समान आएँगे जिसे यहोवा द्वारा भेजी गई तेज हवा से धक्का दिया था। +\q1 +\v 20 और यहोवा कहते हैं कि वह अपने लोगों को स्वतन्त्र करने के लिए यरूशलेम आएँगे; +\q2 वह यहूदा में रहने वाले उन लोगों को बचाने के लिए आएँगे जिन्होंने पापपूर्ण कार्य करना बन्द कर दिया है। +\p +\s5 +\v 21 यहोवा अपने लोगों से यही कहते हैं: “यह वह वाचा है जो मैं तुम्हारे साथ करूँगा: मेरा आत्मा तुमको नहीं छोड़ेगा, और तुम्हारे पास सदा मेरा सन्देश होगा। तुम इसे घोषित करने में सक्षम होंगे, और तुम्हारे बच्चे और नाती-पोते इसे घोषित करने में सदा सक्षम होंगे।” + +\s5 +\c 60 +\q1 +\p +\v 1 तुम हे यरूशलेम के लोगों, खड़े हो जाओ! +\q2 यहोवा ने तुम्हारे लिए महिमामय कार्य किए हैं, +\q1 और उसने तुम्हारे लिए शक्तिशाली रीति से कार्य किया है; +\q2 इसलिए दूसरों को दिखाएँ कि वह बहुत महान हैं! +\q1 +\s5 +\v 2 परन्तु आध्यात्मिक अन्धकार ने पृथ्‍वी पर अन्य सब जातिसमूहों को ढाँप लिया है, +\q2 पूर्ण अन्धकार, +\q1 परन्तु यहोवा तुमको दिखाएँगे कि वह कितने महान हैं, +\q2 और अन्य लोग इसे भी देखेंगे। +\q1 +\v 3 सब जातिसमूहों के लोग उसके द्वारा तुम्हारे लिए किए गए कार्यों को देख कर जान जाएँगे कि वह बहुत महान हैं, +\q2 और बहुत से राजा तुम्हारे साथ हुए अद्भुत कार्यों को देखने आएँगे। +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा कहते हैं, “चारों ओर देखो, और तुम उन लोगों को देखोगे जो बन्धुआई से लौट रहे होंगे! +\q1 तुम्हारे पुत्र दूर देशों से आएँगे; +\q2 अन्य तुम्हारी छोटी पुत्रियों को घर ले आएँगे। +\q1 +\v 5 जब तुम यह होते हुए देखते हो, +\q2 तुम अपने अंतर्मनों में बहुत आनन्दित होओगे, +\q1 क्योंकि लोग संसार भर से तुम्हारे लिए मूल्यवान सामान लाएँगे। +\q2 वे जहाजों में कई देशों से मूल्यवान चीजें लाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 6 लोग ऊँटों के झुण्डों पर भी तुम्हारे लिए बहुमूल्य वस्तुएँ लाएँगे: +\q2 उत्तरी अरब के मिद्यान और एपा के क्षेत्रों से ऊँट। +\q1 और दक्षिणी अरब के शेबा से वे सोने और लोबान ले कर आएँगे; +\q2 वे सब मुझ, यहोवा स्तुति करने आएँगे। +\q1 +\v 7 वे उत्तरी अरब के केदार से भेड़ों और बकरियों के झुण्ड लाएँगे और उन्हें तुमको दे देंगे। +\q2 वे मेरी वेदियों पर बलि चढ़ाने के लिए नबायोत से मेढ़े लाएँगे, +\q1 और मैं उन्हें प्रसन्नता से स्वीकार करूँगा। +\q2 उस समय मैं अपने मन्दिर को बहुत सुन्दरता से सजाया जाने दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 8 और वे कौन सी चीजें हैं +\q2 जो बादलों के समान तेजी से चल रही हैं? +\q1 वे अपने घोंसलों पर लौटने वाले कबूतरों के समान हैं। +\q1 +\v 9 परन्तु वे वास्तव में तर्शीश के जहाज हैं जो तुम्हारे लोगों को यहाँ वापस ला रहे हैं। +\q2 जब तुम्हारे लोग आते हैं, तो वे उन सब मूल्यवान सम्पत्तियों को उनके साथ लाएँगे जिन्हें उन्होंने प्राप्त किया है, +\q1 और वे मुझ, यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर, इस्राएल के एकमात्र पवित्र, का सम्मान करने के लिए ऐसा करेंगे, +\q2 क्योंकि मैं तुमको बहुत सम्मानित कर दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 पराए देशों के लोग आएँगे और तुम्हारे शहरों की दीवारों का फिर से निर्माण करेंगे, +\q2 और उनके राजा तुम्हारी सेवा करेंगे। +\q2 हालाँकि मैंने तुमको दण्डित किया क्योंकि मैं तुमसे क्रोधित था, +\q2 यह बातें अब घटित होंगी क्योंकि मैं तुम्हारे प्रति दया से कार्य करूँगा क्योंकि मैं दयालु हूँ। +\q1 +\v 11 तुम्हारे शहरों के फाटक दिन के दौरान और रात के दौरान भी खुले रहेंगे, +\q2 कि लोग तुम्हारे शहरों में कई देशों से मूल्यवान चीजें लाने में सक्षम होंगे, +\q2 उनके राजा बन्धुए होकर तुम्हारे पास पहुँचाए जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 12 और जिनके लोग तुमको शासन करने की अनुमति देने से मना करते हैं, वे साम्राज्य और राष्ट्र पूरी तरह से नष्ट हो जाएँगे। +\q1 +\v 13 लबानोन की महिमामय चीजें - +\q2 सनोवर के पेड़ और देवदार के पेड़ और सीधे सनोवर के पेड़ की लकड़ी— +\q1 मेरे मन्दिर को सुन्दर बनाने को उपयोग किए जाने के लिए तुम्हारे पास लाई जाएँगी। +\q2 जब यह किया जाता है, तो मेरा मन्दिर वास्तव में गौरवशाली होगा! +\q1 +\s5 +\v 14 जो लोग तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके वंशज आएँगे और तुम्हारे सामने घुटने टेकेंगे; +\q2 जो तुमको तुच्छ मानते हैं वे तुम्हारे पैरों में दण्डवत् करेंगे। +\q1 वे कहेंगे कि सिय्योन पर्वत पर तुम्हारा शहर +\q2 यहोवा का शहर है, +\q2 जहाँ इस्राएल के एकमात्र पवित्र रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 पहले हर किसी ने तुमसे घृणा की और तुमको अनदेखा किया था, +\q2 परन्तु अब तुम्हारा शहर सदा के लिए राजसी होगा; +\q1 और मैं तुमको सदा के लिए आनन्दित रहने दूँगा। +\q1 +\v 16 सब राष्ट्रों के लोग और उनके राजा प्रसन्नता से अपनी सम्पत्ति को तुम्हारे पास लाएँगे। +\q1 जब ऐसा होता है, तो तुम जान जाओगे कि मैं वास्तव में यहोवा हूँ, +\q2 वह जो तुमको बचाते हैं और तुम्हारे शत्रुओं से तुमको छुड़ाते हैं, +\q2 और यह कि मैं ही वह सर्वशक्तिमान हूँ जिसके लोग तुम इस्राएली हो। +\q1 +\s5 +\v 17 उन धातुओं के बजाए जो मूल्यवान नहीं हैं, जैसे पीतल और लोहा, +\q2 मैं तुम्हारे लिए चाँदी और सोना लाऊँगा। +\q1 लकड़ी और पत्थरों के बजाए, +\q2 मैं तुम्हारे पास तुम्हारी इमारतों के लिए पीतल और लोहा लाऊँगा। +\q1 तुम्हारे देश में शान्ति होगी, +\q2 और तुम्हारे शासक उचित कार्यों को करेंगे। +\q1 +\v 18 तुम्हारे देश में लोग अब हिंसापूर्वक कार्य नहीं करेंगे, +\q2 और लोग अब तुम्हारे देश को नष्ट नहीं करेंगे और तुमको इससे बाहर नहीं निकाल देंगे। +\q1 शहर में रहने वाले लोग सुरक्षित रहेंगे, +\q2 और हर कोई वहाँ मेरी प्रशंसा करेगा। +\q1 +\s5 +\v 19 और तुमको प्रकाश देने के लिए अब तुमको सूर्य और चँद्रमा की आवश्यकता नहीं होगी, +\q2 क्योंकि मैं, यहोवा, तुमको सूर्य और चँद्रमा से अधिक प्रकाश दूँगा; +\q1 मैं सदा तुम्हारे लिए एक महिमामय प्रकाश होऊँगा। +\q1 +\v 20 यह ऐसा प्रतीत होगा जैसे मानों सूर्य और चँद्रमा सदा चमकते रहेंगे, +\q2 क्योंकि मैं, यहोवा, तुम्हारे लिए एक अनन्त प्रकाश होऊँगा। +\q1 तुम्हारे साथ होने वाली बातों के कारण तुम फिर कभी दुखी नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 21 तुम्हारे लोग सब धर्मी होंगे, +\q2 और वे सदा के लिए इस देश पर अधिकार करेंगे, +\q1 क्योंकि मैंने स्वयं तुमको वहाँ इस तरह से रखा है जैसे लोग पेड़ लगाते हैं +\q2 कि तुम दूसरों को दिखा पाएँगे कि मैं बहुत महान हूँ। +\q1 +\v 22 उस समय, जो बहुत छोटे समूह हैं वे बहुत बड़े कुल बन जाएँगे, +\q2 और छोटे कुल बड़े राष्ट्र बन जाएँगे। +\q1 यह सब चीजें घटित होंगी क्योंकि, मैं, यहोवा, उन्हें सही समय पर घटित होने दूँगा।” + +\s5 +\c 61 +\q1 +\p +\v 1 हमारे प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; +\q2 उन्होंने मुझे उन लोगों के पास शुभसमाचार लाने के लिए नियुक्त किया है, जिन पर अत्याचार किए गए हैं, +\q1 उन लोगों को सांत्वना देने के लिए जो निराश हैं, +\q2 और उन सबको स्वतन्त्र करने के लिए जो कि उन गलत कार्यों से बँधे हुए हैं जिनको वे निरन्तर करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 2 उन्होंने मुझे शोक करने वालों को यह बताने के लिए भेजा है +\q2 कि अब वह समय है जब यहोवा अपने लोगों के प्रति दयालु रीति से कार्य करेंगे; +\q1 अब वह समय है जब हमारे परमेश्वर अपने शत्रुओं से बदला लेंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 उन सब यरूशलेम में रहने वाले लोगों के लिए जो शोक करते हैं, +\q1 वह उनके सिर पर पहनने के लिए सुन्दर चीजें देंगे +\q2 राख के बजाए जिसे वे अपने सिर पर यह दिखाने के लिए डालते हैं कि वे उदास थे; +\q1 दुखी होने की बजाए वह उन्हें आनन्दित करेंगे; +\q2 निराश होने की बजाए वह उन्हें आनन्दित होने में सक्षम बनाएँगे। +\q1 उन्हें ऐसे ‘लोग’ कहा जाएगा ‘जो निरन्तर धर्म के कार्य करते हैं, +\q2 ऐसे लोग जो लम्बे बांज पेड़ों के समान हैं जिन्हें यहोवा ने लगाया है’ +\q1 दूसरों को दिखाने के लिए कि वह बहुत महान हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 जो लोग बाबेल से लौट आएँगे वे उन शहरों का फिर से निर्माण करेंगे जिनको बाबेल के सैनिकों ने नष्ट कर दिया था। +\q2 भले ही उन शहरों को नष्ट कर दिया गया है और कई वर्षों के लिए त्याग दिया गया है, +\q1 उनका नवीनीकरण किया जाएगा। +\q1 +\v 5 वे पराए देशों के लोग होंगे जो तुम्हारे भेड़ और बकरियों के झुण्ड का ध्यान रखेंगे, +\q2 और तुम्हारे खेतों की जुताई करेंगे और तुम्हारी दाखलताओं की देखभाल करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु तुम ही वे लोग हो जो यहोवा की सेवा करने के लिए, +\q2 परमेश्वर के लिए कार्य करने को याजकों के समान होओगे। +\q1 तुम अन्य देशों से लाए गए मूल्यवान वस्तुओं का आनन्द लोगे, +\q2 और तुम आनन्दित होओगे कि वह चीजें तुम्हारी हो गई हैं। +\q1 +\v 7 पहले तुम लज्जित और अपमानित थे, +\q2 परन्तु अब तुमको बहुत आशीर्वाद मिलेंगे; +\q1 पहले तुम्हारे शत्रुओं ने तुमको विनम्र किया था, +\q2 परन्तु अब तुम्हारे पास बहुत सी अच्छी चीजें होंगी; +\q1 तुम आनन्दित होओगे क्योंकि तुम फिर से अपने देश में होओगे, +\q2 और तुम सदा के लिए आनन्दित होओगे। +\q1 +\s5 +\v 8 “मैं, यहोवा, उन लोगों से बहुत आनन्दित हूँ जो मामलों का निर्णय निष्पक्षता से करते हैं; +\q2 मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ जो अवैध रूप से अन्य लोगों से चीजें ले लेते हैं। +\q1 मैं निश्चित रूप से अपने लोगों को वापस भुगतान करूँगा +\q2 उन सबके बातों लिए जिसके लिए वे अतीत में पीड़ित हुए हैं। +\q1 और मैं उनके साथ एक अनन्त समझौता करूँगा। +\q1 +\v 9 उनके वंशजों को अन्य राष्ट्रों के लोगों द्वारा सम्मानित किया जाएगा; उनके बच्चों को अन्य सब राष्ट्रों द्वारा सम्मानित किया जाएगा। +\q2 जो लोग उन्हें देखते हैं उन्हें पता चलेगा कि वे एक ऐसे राष्ट्र हैं जिन्हें मैं, यहोवा ने आशीर्वाद दिया है।” +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा ने जो किया है, उसके कारण मैं बहुत प्रसन्न हूँ! +\q2 मैं अपने सम्पूर्ण अंतर्मन में आनन्दित हूँ, +\q1 क्योंकि उसने मुझे बचा लिया है और घोषित किया है कि मैं धर्मी हूँ; +\q2 वे आशीर्वाद एक वस्त्र के समान हैं जो उन्होंने मुझ पर डाला है। +\q1 मैं ऐसे आनन्दित हूँ, जैसे अपने विवाह के कपड़ों में दूल्हा, +\q2 या गहने पहने हुए एक दुल्हन। +\q1 +\v 11 जैसे बगीचे में बोए गए बीज मिट्टी से अंकुरित होकर निकलते हैं और बढ़ते हैं, +\q2 हमारे परमेश्वर यहोवा सब राष्ट्रों के लोगों को धार्मिक रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे, +\q1 जिसके परिणामस्वरूप वे ऐसा करने के लिए उसकी प्रशंसा करेंगे। + +\s5 +\c 62 +\q1 +\p +\v 1 क्योंकि मैं यरूशलेम के लोगों के विषय में बहुत चिन्तित हूँ, +\q2 मैं उनकी सहायता करने के लिए कुछ करूँगा। +\q1 मैं उनके लिए प्रार्थना करना बन्द नहीं करूँगा +\q2 जब तक कि वे अपने सताने वालों से बचाए नहीं जाते हैं, +\q1 जब तक कि यह हर सुबह की भोर के समान हर किसी के लिए स्पष्ट नहीं हो जाता है, +\q2 जब तक कि लोग इसे ऐसे स्पष्ट रूप से नहीं देख सकें जैसे वे रात में उज्ज्वल चमकती हुए मशाल देखते हैं। +\q1 +\v 2 किसी दिन बहुत से राष्ट्रों के लोगों को पता चलेगा कि यहोवा ने तुम, उसके लोगों को बचा लिया है। +\q2 उनके राजा देखेंगे कि तुम्हारा शहर बहुत महान है। +\q1 और यहोवा तुम्हारे शहर को एक नया नाम देंगे। +\q1 +\s5 +\v 3 यह ऐसा होगा जैसे मानों यहोवा ने तुमको अपने हाथों में रखा था कि हर कोई तुमको देख सके। +\q2 उसके अधिकार के तहत तुम एक राजा द्वारा पहने हुए मुकुट के समान होओगे। +\q1 +\v 4 तुम्हारा शहर कभी भी ‘निर्जन शहर’ नहीं कहलाएगा, और तुम्हारा देश कभी भी ‘उजाड़ भूमि’ नहीं कहलाएगा; +\q2 इसे ‘वह देश’ कहा जाएगा ‘जिससे यहोवा प्रसन्न होते हैं,’ +\q2 और इसे ‘यहोवा से ब्याहा हुआ’ भी कहा जाएगा। +\q1 इसे यह कहा जाएगा क्योंकि यहोवा तुमसे प्रसन्न होंगे, +\q2 और यह ऐसा होगा जैसे मानों तुम उनकी दुल्हन थे। +\q1 +\s5 +\v 5 तुम लोग यहूदा के सारे देश में ऐसे रहोगे +\q2 जिस प्रकार एक युवा व्यक्ति तरह उसकी दुल्हन के साथ रहता है। +\q1 और हमारे परमेश्वर ऐसे आनन्दित होंगे कि तुम उसके लोग हो, +\q2 जिस प्रकार एक दूल्हा आनन्दित होता है कि उसकी दुल्हन उसकी है। +\q1 +\s5 +\v 6 हे यरूशलेम के लोगों, मैंने पहरेदारों को तुम्हारी दीवारों पर बैठाया है; +\q2 वे दिन और रात आग्रहपूर्वक यहोवा से प्रार्थना करेंगे। +\q1 तुम हे पहरेदारों, तुमको प्रार्थना करना +\q2 और यहोवा को इस विषय में स्मरण दिलाना बन्द नहीं करना है कि उन्होंने क्या करने का प्रतिज्ञा किए हैं। +\q1 +\v 7 और यहोवा को बताओ कि उन्हें आराम नहीं करना है +\q2 जब तक कि वह यरूशलेम को ऐसा शहर नहीं बनाते हैं जो पूरे संसार में प्रसिद्ध और प्रशंसनीय हो। +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा ने यरूशलेम के लोगों से गम्भीरतापूर्वक प्रतिज्ञा करने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया है: +\q2 “मैं अपनी शक्ति का उपयोग करूँगा और फिर कभी भी तुम्हारे शत्रुओं को तुमको पराजित करने की अनुमति नहीं दूँगा; +\q1 अन्य देशों के सैनिक फिर कभी भी तुम्हारे अनाज को +\q2 और उस दाखमधु को जिसे बनाने के लिए तुमने कठोर परिश्रम किया था, लेने के लिए नहीं आएँगे। +\q1 +\v 9 तुम स्वयं अनाज उगाओगे, +\q2 और तुम ही वे लोग होओगे जो मुझ, यहोवा की स्तुति करोगे, जब तुम उस अनाज से बनी रोटी खाओगे। +\q1 मेरे मन्दिर के आँगनों के अन्दर, +\q2 तुम अपनी फसल के अँगूरों से बनी दाखमधु पीओगे।” +\q1 +\s5 +\v 10 शहर के फाटक के माध्यम से बाहर जाओ! +\q2 उस राजमार्ग को तैयार करो जिससे लोग दूसरे देशों से वापस लौटेंगे! +\q1 सड़क को चिकना बनाओ; +\q2 सब पत्थरों को बीन कर दूर करो; +\q1 लोगों के समूह को यरूशलेम जाने की सड़क देखने में सहायता करने के लिए संकेत वाले झण्डे स्थापित करो। +\q1 +\s5 +\v 11 यह वह सन्देश है जिसे यहोवा ने हर देश के लोगों को भेजा है। +\q2 इस्राएल के लोगों को बताओ, “तुमको छुड़ाने वाले आ रहे हैं! +\q1 देखो! वह तुम्हारे पास तुम्हारे पुरस्कार लाएँगे; +\q2 जिन्हें उन्होंने छुड़ाया है, वे उसके आगे-आगे जा रहे होंगे।” +\q1 +\v 12 वे: “यहोवा के अपने लोग, +\q2 और वे जिन्हें उन्होंने बचाया।” कहलाएँगे। +\q1 और यरूशलेम को इस प्रकार जाना जाएगा: “वह शहर जिसे यहोवा प्रेम करते हैं,” +\q2 और “वह शहर जो अब त्यागा नहीं गया है।” + +\s5 +\c 63 +\q1 +\p +\v 1 मैं पूछता हूँ, “यह कौन है जो एदोम के बोस्रा शहर से आ रहे हैं, +\q2 जिसके कपड़ों पर लहू के लाल धब्बे लगे हैं? +\q1 यह कौन है जो सुन्दर वस्त्र पहने हुए हैं?” +\q2 उन्होंने उत्तर दिया, “यह मैं, यहोवा, हूँ जो यह घोषणा कर रहा हूँ कि मैंने तुम्हारे शत्रुओं को पराजित कर दिया है, +\q1 और मैं तुमको छुड़ाने में सक्षम हूँ!” +\q1 +\v 2 मैं उनसे पूछता हूँ, “आपके कपड़ों पर वह लाल धब्बे क्या हैं? +\q2 ऐसा प्रतीत होता है कि आपने मदिरा बनाने के लिए अँगूरों को कुचला है।” +\q1 +\s5 +\v 3 उन्होंने उत्तर दिया, “मैंने अँगूर को नहीं, बल्कि मेरे शत्रुओं को कुचला है। +\q2 मैंने इसे स्वयं किया; किसी ने मेरी सहायता नहीं की। +\q1 मैंने उन्हें दण्डित किया क्योंकि मैं उनसे बहुत क्रोधित था, +\q2 और उनके लहू से मेरे कपड़ों पर दाग लग गए। +\q1 +\v 4 मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि यह मेरे लिए बदला लेने का समय था; +\q2 यह मेरे लोगों को उन लोगों से बचाने का समय था जिन्होंने उन पर अत्याचार किया था। +\q1 +\s5 +\v 5 मैंने किसी ऐसे व्यक्ति की खोज की जो मुझे अपने लोगों की सहायता करने में सक्षम करे, +\q2 परन्तु मैं आश्चर्यचकित था कि मेरी सहायता करने के लिए कोई नहीं था। +\q1 इसलिए मैंने अपने शत्रुओं को अपनी शक्ति से पराजित किया; +\q2 मैं ऐसा करने में सक्षम था क्योंकि मैं बहुत क्रोधित था। +\q1 +\v 6 क्योंकि मैं अत्याधिक क्रोधित था, इसलिए मैंने राष्ट्रों को दण्डित किया; +\q2 मैंने उन्हें नशे में धुत पुरुषों के समान लड़खड़ाने दिया, +\q1 और मैंने उनके लहू को भूमि पर बह जाने दिया।” +\q1 +\s5 +\v 7 मैं उन सभी कार्यों के विषय में बताऊँगा जो यहोवा ने अपने लोगों के लिए अपने निष्ठावान प्रेम के कारण किए हैं, +\q2 और मैं उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों के लिए उसकी प्रशंसा करूँगा। +\q1 यहोवा ने इस्राएल के लोगों के लिए भले कार्य किए हैं; +\q2 उन्होंने हमारे प्रति दया से कार्य किया है +\q2 और उन्होंने स्थिरता से और ईमानदारी से हमें प्रेम किया है। +\q1 +\v 8 यहोवा ने कहा, “यह मेरे लोग हैं; +\q2 वे मुझे धोखा नहीं देंगे;” +\q2 इसलिए उन्होंने हमें छुड़ाया। +\q1 +\s5 +\v 9 जब हमें कई परेशानियाँ थीं, +\q2 वह भी उदास थे। +\q1 उन्होंने हमें बचाने के लिए पहले अपने स्वर्गदूतों को अपनी उपस्थिति से भेजा। +\q2 क्योंकि उन्होंने हमें प्रेम किया था और वह हमारे लिए दयालु थे, +\q2 उन्होंने हमें बचाया; +\q2 ऐसा लगता था कि मानों उन्होंने हमारे पूर्वजों को उठाया हुआ था और उन्हें उन सब वर्षों में उठाए फिरा था, जिस दौरान मिस्र में उन पर अत्याचार किया गया था। +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु हमने उनके विरुद्ध विद्रोह किया, +\q2 और हमने उनके पवित्र-आत्मा को उदास कर दिया। +\q1 इसलिए वह एक ऐसे शत्रु के समान बन गए +\q2 जो हमारे विरुद्ध लड़ा। +\q1 +\s5 +\v 11 तब हमने इस विषय में सोचा कि बहुत पहले क्या हुआ था, +\q2 उस समय के दौरान जब मूसा हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल ले आए थे। +\q1 हम चिल्लाए, “वह कहाँ हैं, जो हमारे पूर्वजों को लाल समुद्र के माध्यम से लाए थे +\q2 जब मूसा ने उनका नेतृत्व किया? +\q1 वह कहाँ है जिन्होंने +\q2 हमारे पूर्वजों के बीच निवास करने के लिए अपना पवित्र-आत्मा भेजा था? +\q1 +\s5 +\v 12 वह कहाँ है जिन्होंने अपनी महिमामय शक्ति दिखाई थी +\q2 और जब मूसा ने अपनी बाँह को पानी की ओर बढ़ाया तो उसे दो भाग कर दिया था, +\q1 जिसके परिणामस्वरूप वह सदा के लिए सम्मानित किए जाएँगे? +\q1 +\v 13 वह कहाँ है जिन्होंने हमारे पूर्वजों का नेतृत्व किया, जब वे समुद्र के किनारे-किनारे चले थे? +\q2 वे एक साथ दौड़ने वाले घोड़ों के समान थे और उन्होंने कभी ठोकर नहीं खाई। +\q1 +\s5 +\v 14 वे मवेशियों के समान थे जो आराम करने के लिए घाटी में चले जाते थे, +\q2 और यहोवा के आत्मा ने उन्हें उस स्थान पर जाने में सक्षम बनाया जहाँ वे आराम कर सकते थे। +\q1 हे यहोवा, आपने अपने लोगों का नेतृत्व किया, +\q2 और आपने स्वयं की प्रशंसा किए जाने के लिए यह किया।” +\q1 +\s5 +\v 15 “हे यहोवा, स्वर्ग से नीचे देखिए; +\q2 आपके पवित्र और गौरवशाली निवासस्थान से नीचे हम पर दृष्टि कीजिए। +\q1 आप पहले हमारे विषय में बहुत चिन्तित थे, और आपने हमारी सहायता करने के लिए शक्तिशाली रीति से कार्य किया। +\q2 परन्तु ऐसा लगता है कि आप अब हमारे लिए कोई भी दयालु और उत्साह से कार्य नहीं करते हैं। +\q1 +\v 16 आप हमारे पिता हैं, भले ही +\q2 अब्राहम नहीं जानता हो कि हमारे साथ क्या हो रहा है, +\q2 और या फिर, याकूब को हमारे विषय में चिन्ता नहीं हो, +\q1 परन्तु हे यहोवा, आप हमारे पिता हैं; +\q2 आपने हमें बहुत पहले छुड़ाया था। +\q1 +\s5 +\v 17 हे यहोवा, आपने हमें अपने मार्ग से दूर भटकने क्यों दिया? +\q2 आपने हमें हमारे अंतर्मन में हठीला क्यों होने दिया, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप हम अब आपका सम्मान नहीं करते? +\q1 पहले के समान आप हमारी सहायता कीजिए, +\q2 क्योंकि हम वे लोग ही हैं जो आपके हैं और आपकी सेवा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 18 हम, आपके पवित्र लोग, केवल एक छोटे से समय के लिए आपके पवित्र मन्दिर के अधिकारी थे, +\q2 और अब हमारे शत्रुओं ने इसे नष्ट कर दिया है। +\q1 +\v 19 अब ऐसा लगता है कि मानों हम कभी आपके शासन के अधीन नहीं थे, +\q2 जैसे कि हम कभी आपके लोग नहीं थे।” + +\s5 +\c 64 +\q1 +\p +\v 1 “हे यहोवा, मैं चाहता हूँ कि आप आकाश से नीचे आ जाइए; +\q2 आप पर्वतों को डर से हिला दीजिए। +\q1 +\v 2 यह आग से मृत लकड़ी के जलने के समान, +\q2 या आग से पानी के उबलने के समान होता। +\q1 नीचे आइए, जिससे आपके शत्रु जान जाएँगे कि आप कौन हैं, +\q2 और जिससे अन्य राष्ट्रों के लोग आपकी उपस्थिति में डर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 3 आपने बहुत से भयानक कार्य किए जिनका हम आपके करने की अपेक्षा नहीं कर रहे थे; +\q2 पर्वत हिल गए थे जब आप सीनै पर्वत पर उतरे थे। +\q1 +\v 4 बहुत समय पहले से किसी ने आपके जैसे परमेश्वर के विषय में कभी देखा या सुना नहीं है; +\q2 आप उनकी सहायता करते हैं जो आप पर भरोसा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 आप उन लोगों की सहायता करते हैं जो प्रसन्नतापूर्वक धर्म के कार्य करते हैं, +\q2 जो लोग अपने जीवन का संचालन उस प्रकार करते हैं, जैसे आप उनसे चाहते हैं। +\q1 परन्तु हमने ऐसा नहीं किया; हमने पाप करना जारी रखा, +\q2 और इसलिए आप हमसे क्रोध हो गए। +\q1 हम लम्बे समय से पाप करते जा रहे हैं। +\q2 यह तभी होगा जब हम निरन्तर वैसा करते हैं जो आप चाहते हैं कि हम करें तो आप हमें बचाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 6 हम सभी ऐसे लोग बन गए हैं जो आपकी आराधना करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं; +\q2 हमने जो अच्छे कार्य किए हैं, वे केवल लहू के धब्बे वाले चिथड़ों के समान हैं। +\q1 हमारे पापों के कारण, हम सभी सूखी पत्तियों के समान हैं +\q2 और हवा से उड़ा दिए जाते हैं। +\q1 +\v 7 हमारे लोगों में से कोई भी आपकी आराधना नहीं करता है, +\q2 और कोई भी वास्तव में आपको उसकी सहायता करने के लिए मनाने का प्रयास नहीं करता है। +\q1 आप हमसे दूर हो गए हैं। +\q2 ऐसा लगता है कि मानों आपने हमें त्याग दिया है, कि हम पाप करते रहें और अधिक से अधिक दोषी हो जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु फिर भी, हे यहोवा, आप हमारे पिता हैं। +\q2 हम उस मिट्टी के समान हैं जिसे एक कुम्हार उपयोग करता है, +\q2 और आपने हमें बनाया है, जैसे कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाता है। +\q1 +\v 9 हे यहोवा, हमारे साथ क्रोधित न बने रहिए; +\q2 सदा हमारे पापों के विषय में सोचते न रहिए। +\q1 यह मत भूलिए कि हम सभी आपके लोग हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 यहूदा में आपके सारे नगर जंगल के समान बन गए हैं; +\q2 यहाँ तक कि यरूशलेम भी नष्ट हो गया है। +\q1 +\v 11 सिय्योन पर्वत पर आपका गौरवशाली मन्दिर, जहाँ हमारे पूर्वजों ने आपकी आराधना की थी, +\q2 पूरी तरह से जला दिया गया है। +\q2 और हमारी सब अन्य सुन्दर चीजें नष्ट हो गई हैं। +\q1 +\v 12 हे यहोवा, आप उन सभी चीजों को देखते हैं, परन्तु ऐसा लगता है कि आप हमारी सहायता करने के लिए कुछ भी करने से मना करते हैं। +\q2 ऐसा लगता है कि आप हमें और अधिक पीड़ित होने देंगे।” + +\s5 +\c 65 +\p +\v 1 यहोवा ने यही कहा है: +\q1 “मैं अपने लोगों को उत्तर देने के लिए तैयार था, +\q2 परन्तु किसी ने भी मुझसे उनकी सहायता करने के लिए अनुरोध नहीं किया। +\q1 मैं उन लोगों की भी सहायता करने के लिए तैयार था यहाँ तक कि उनकी भी जिन्होंने मुझे नहीं पुकारा था। +\q2 मैंने यह कहता रहा, ‘मैं यहाँ तुम्हारी सहायता करने के लिए हूँ!’ +\q1 +\v 2 ऐसा लगता है कि मानों मैंने निरन्तर अपनी बाँहों को यह दिखाने के लिए फैलाए रखा था कि मैं अपने लोगों की सहायता करने के लिए तैयार था जिन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया था, +\q2 और जिन्होंने निरन्तर उन बुरे कार्यों को किया जो वे करना चाहते थे। +\q1 +\s5 +\v 3 वे साहसपूर्वक उन कार्यों को करना जारी रखते हैं जो मुझे क्रोधित करते हैं: +\q2 वे अपने बगीचों में अपनी मूर्तियों के लिए बलि चढ़ाते हैं, +\q1 और वे ईंटों और खपरों से बनी वेदियों पर उनके लिए धूप जलाते हैं। +\q1 +\v 4 वे कब्रिस्तान में रात में जागते रहते हैं, +\q2 और मरे हुए लोगों की आत्माओं के साथ बात करते हैं। +\q1 वे सूअरों का माँस खाते हैं, +\q2 और उनके बर्तन उस माँस के शोरबे से भरे हुए हैं जो मेरे लिए अस्वीकार्य है। +\q1 +\s5 +\v 5 फिर वे दूसरों से कहते हैं, +\q2 ‘मुझसे दूर रहो; मेरे निकट मत आना, +\q1 क्योंकि मैं बहुत पवित्र हूँ, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप तुमको मुझे छूना नहीं चाहिए।’ +\q1 ऐसे लोग मेरी नाक में +\q2 निरन्तर जलती हुई आग के धुएँ के समान हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 मैंने उन सभी बुरे कार्यों का लेखा लिखा है जो उन्होंने किए हैं। +\q2 और मैं उन सभी कार्यों के विषय में चुप नहीं रहूँगा; +\q1 मैं निश्चित रूप से इन लोगों को +\q2 +\v 7 उन पापों के लिए दण्डित करूँगा जो उन्होंने और उनके पूर्वजों ने किए हैं। +\q1 उन्होंने पर्वतों के शिखर पर अपनी मूर्तियों के लिए धूप जला कर मेरा मजाक उड़ाया है। +\q2 इसलिए मैं उन्हें वह दण्ड दूँगा जिसके वे उन कार्यों को करने के कारण योग्य हैं।” +\p +\s5 +\v 8 यहोवा ने यह भी कहा है: +\q1 “जब एक बेल पर अच्छे अँगूरों का एक गुच्छा होता है, +\q1 लोग उन्हें फेंक नहीं देते हैं, +\q2 क्योंकि वे जानते हैं कि उन अँगूरों में अच्छा रस है। +\q1 इसी प्रकार, क्योंकि यहूदा में कुछ ऐसे लोग हैं जो ईमानदारी से मेरी सेवा करते हैं, +\q2 मैं उन सबसे छुटकारा नहीं पाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 9 मैं याकूब के कुछ वंशजों को छोड़ दूँगा +\q2 जो यहूदा की पहाड़ियों पर रह रहे हैं। +\q1 मैंने उन्हें चुना है, और वे उस देश के अधिकारी होंगे; +\q2 वे मेरी आराधना करेंगे, और वे वहाँ रहेंगे। +\q1 +\v 10 तब भूमध्य सागर के पास शारोन के मैदान की सारी भूमि और पूर्व में यरीहो के पास आकोर की घाटी चारागाह बन जाएगी, +\q2 जहाँ उनके मवेशी और भेड़ें आराम करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 11 परन्तु यह तुम्हारे लिए भिन्न होगा जिन्होंने मुझे छोड़ दिया है, +\q2 तुम लोग जो मेरी पवित्र पहाड़ी सिय्योन पर मेरी आराधना नहीं करते हो, +\q1 तुम जो गाद और मेनी की उपासना करते हो, वे देवता जिन्हें तुम कहते हो कि तुम्हारे लिए शुभकामनाएँ और अच्छा भाग्य लाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 12 यह मेनी नहीं, मैं हूँ, जो तय करेंगे कि तुम्हारे साथ क्या होगा; +\q2 तुम सभी तलवारों द्वारा वध किए जाओगे। +\q1 ऐसा होगा क्योंकि तुमने उत्तर नहीं दिया था +\q2 जब मैंने तुमको पुकारा था। +\q1 मैंने तुमसे बात की, +\q2 परन्तु तुमने ध्यान नहीं दिया। +\q1 इसके बजाए, तुमने ऐसे कार्य किए जिनको मैंने कहा कि वे बुरे हैं; +\q2 तुमने उन कार्यों को करना चुना जो मुझे आनन्दित नहीं करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 मैं, यहोवा परमेश्वर, उन लोगों को खाने और पीने के लिए दूँगा जो मेरी आराधना करते हैं और मेरी आज्ञा मानते हैं, +\q2 और वे आनन्दित होंगे; +\q1 परन्तु तुम सभी बुरे लोग भूखे और प्यासे होओगे, +\q2 और तुम उदास और अपमानित होओगे। +\q1 +\v 14 जो लोग मेरी आराधना करते हैं और मेरी आज्ञाएँ मानते हैं वे प्रसन्नता से गाएँगे, +\q परन्तु तुम बुरे लोग ऊँची आवाज में विलाप करोगे +\q2 क्योंकि तुम अपने अंतर्मन में पीड़ित हो रहे होओगे। +\q1 +\s5 +\v 15 जिन्हें मैंने चुना है, वे लोगों को श्राप देते समय तुम्हारे नामों का उपयोग करेंगे; +\q1 मैं, यहोवा परमेश्वर, तुमसे छुटकारा पाऊँगा। +\q2 परन्तु मैं उन लोगों को नया नाम दूँगा जो मेरी आराधना करते हैं और मेरी आज्ञा मानते हैं। +\q1 +\v 16 इस देश के लोगों को कई परेशानियाँ हुई हैं, +\q2 परन्तु मैं उन परेशानियों को और नहीं होने दूँगा। +\q1 इसलिए जो लोग मुझसे उनको आशीर्वाद देने का अनुरोध करते हैं और जो गम्भीरता से कुछ करने का प्रतिज्ञा करते हैं +\q2 उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए कि मैं परमेश्वर हूँ, जो विश्वासयोग्यता के साथ वह करता हूँ जो मैं करने का प्रतिज्ञा करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 17 इस पर ध्यान दो: किसी दिन मैं एक नया स्वर्ग और एक नई पृथ्‍वी बनाऊँगा। +\q2 वे बहुत ही अद्भुत होंगे, जिसके परिणामस्वरूप अब तुम पहले की सभी परेशानियों के विषय में नहीं सोचोगे। +\q1 +\v 18 जो मैं करूँगा उसके कारण आनन्दित रहो और सदा आनन्दित रहो: +\q2 यरूशलेम एक ऐसी जगह होगा जहाँ लोग आनन्दित होंगे; +\q2 वहाँ रहने वाले लोग सदा आनन्दित रहेंगे। +\q1 +\v 19 मैं यरूशलेम के विषय में आनन्दित हूँ, +\q2 और मैं अपने लोगों से प्रसन्न होऊँगा। +\q1 लोग अब परेशान होने के कारण रोएँगे नहीं या विलाप नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 20 बचपन के समय में ही कोई बच्चा नहीं मरेगा; +\q2 सभी लोग तब तक जीते रहेंगे जब तक कि वे बहुत वृद्ध न हों। +\q1 लोग इस बात पर विचार करेंगे कि कोई भी जो सौ वर्ष की आयु का है वह अभी भी युवा है; +\q2 वे इस बात पर विचार करेंगे कि जो भी छोटेपन में मरता है उसे श्राप दिया गया है। +\q1 +\v 21 मेरे लोग घर बनाएँगे और फिर उनमें रहेंगे। +\q2 वे दाख की बारियाँ लगाएँगे और फिर उन दाख की बारियों से अँगूर खाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 22 जो वे घर बनाते हैं, कोई भी उन घरों को उनसे छीन उनमें नहीं रहेगा। +\q2 कोई भी अपने स्वामी की दाख की बारी नहीं लेगा। +\q1 मेरे चुने हुए लोग पेड़ों के समान लम्बे समय तक जीवित रहेंगे, +\q2 और वे उन कार्यों का आनन्द लेंगे जो उन्होंने किए हैं— +\q1 वे घर जो उन्होंने बनाए हैं और वे फसलें जो उन्होंने लगाई हैं। +\q1 +\v 23 वे व्यर्थ में कड़ी परिश्रम नहीं करेंगे, +\q2 और उनके बच्चे किसी विपत्ति से मर नहीं जाएँगे। +\q1 मैं निश्चित रूप से उनके बच्चों और उनके नाती-पोते को आशीर्वाद दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 24 इससे पहले कि वे सहायता करने के लिए मुझे पुकारें, मैं उत्तर दूँगा; +\q2 मैं उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर उसी समय में दे दूँगा, जब वे मुझसे उनके लिए कुछ करने की प्रार्थना कर रहे हैं। +\q1 +\v 25 मेरे पवित्र पर्वत सिय्योन पर कहीं भी किसी को हानि नहीं पहुँचाई जाएगी या घायल नहीं किया जाएगा: +\q1 भेड़िए और मेम्ने एक साथ शान्तिपूर्वक घास खाएँगे; +\q2 बैलों के समान शेर घास खाएँगे, और वे लोगों पर आक्रमण नहीं करेंगे। +\q2 साँप किसी को भी चोट नहीं पहुँचाएँगे; वे भूमि पर पड़े रहेंगे और केवल मिट्टी खाएँगे। +\q1 यह निश्चित रूप से ऐसा ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 66 +\p +\v 1 यहोवा ने यह भी कहा: +\q1 “सम्पूर्ण आकाश मेरे सिंहासन के समान है, +\q2 और पूरी पृथ्‍वी मेरे पैरों की चौकी के समान है। +\q1 इसलिए तुम निश्चित रूप से एक ऐसा घर नहीं बना सकते हो +\q2 जो मेरे रहने और आराम करने के लिए पर्याप्त होगा! +\q1 +\s5 +\v 2 मैंने हर एक वस्तु को बनाया है; +\q2 सब चीजें अस्तित्व में हैं क्योंकि मैंने उन्हें बनाया है। +\q1 यह सच है क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है। +\q1 जिन लोगों से मैं सबसे अधिक प्रसन्न होता हूँ वे नम्र लोग हैं, +\q2 जो पीड़ित होने पर उसको धैर्यपूर्वक सहन करते हैं, +\q2 और वे जो उस समय डर जाते हैं जब वे मुझे उनको डाँटते हुए सुनते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 तुमने निरन्तर उन कार्यों को करना चुना है जिन्हें तुम करना चाहते हो: +\q1 तुम में से कुछ ने मेरे लिए बलिदान चढ़ाने के लिए बैलों को मार डाला, +\q2 परन्तु तुम अपनी मूर्तियों के लिए मनुष्य बलिदान भी लाते हो! +\q1 तुम मेरे लिए मेम्ने को बलिदान करते हो, +\q2 परन्तु अपने देवताओं को चढ़ाने के लिए तुम कुत्ते को मार देते हो। +\q1 तुम मुझे अनाज चढ़ाते हो, +\q2 परन्तु तुम अपनी मूर्तियों के लिए सूअर का लहू भी लाते हो। +\q1 तुमने मेरे लिए धूप जलाते हो, +\q2 परन्तु तुम अपनी मूर्तियों की भी प्रशंसा करते हो। +\q1 तुम उन घृणित कार्यों को करने में प्रसन्न होते हो। +\q1 +\s5 +\v 4 जब मैंने तुमको पुकारा, +\q2 तुमने उत्तर नहीं दिया। +\q1 जब मैंने बात की, तो तुमने ध्यान नहीं दिया। +\q1 तुमने कई कार्य किए हैं जिनको मैं कहता हूँ कि बुरे हैं, +\q2 और तुमने उन कार्यों को करना चुना जिनको मैंने पसन्द नहीं किया। +\q1 इसलिए अब मैं तुमको उन कार्यों का अनुभव करने के द्वारा दण्ड दूँगा जो तुमने स्वयं किए हैं, जिनसे तुम स्वयं डरते हो।” +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु तुम लोग जो थरथराते हो जब तुम सुनते हो कि यहोवा क्या कहते हैं, +\q2 वह जो अभी कहते हैं उसे सुनो: +\q1 “तुम्हारे कुछ लोग तुमसे घृणा करते हैं और तुमको दूर कर देते हैं +\q2 क्योंकि तुम मेरे हो। +\q1 वे तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं, और वे कहते हैं, +\q2 ‘यहोवा को अपनी महिमामय शक्ति दिखानी चाहिए! +\q2 हम वास्तव में तुमको आनन्दित करने के लिए उन्हें कुछ करते हुए देखना चाहते हैं।’ +\q1 परन्तु किसी दिन उन लोगों को बहुत अपमानित किया जाएगा।” +\q1 +\s5 +\v 6 उस समय, तुम शहर में शोर सुनोगे। +\q2 तुम मन्दिर में चिल्लाना सुनोगे। +\q1 यह यहोवा की उसके शत्रुओं को वापस भुगतान करने की आवाज़ होगी। +\q1 +\s5 +\v 7 किसी ने कभी नहीं सुना है कि एक स्त्री ने एक बच्चे को तभी जन्म दिया +\q2 जब वह सिर्फ प्रसव पीड़ा को आरम्भ कर रही थी। +\q1 +\v 8 निश्चित रूप से किसी ने भी ऐसी घटना होने के विषय में कभी नहीं सुना है, +\q2 और किसी ने कभी ऐसा होते नहीं देखा है। +\q1 इसी तरह, किसी ने कभी नहीं सुना है कि एक राष्ट्र एक पल में बनाया गया था, +\q2 एक दिन में नहीं। +\q1 परन्तु यरूशलेम एक ऐसी स्त्री के समान है जो बच्चों को जन्म देती है +\q2 जैसे ही उसे प्रसव पीड़ा होना आरम्भ होता है। +\q1 +\s5 +\v 9 निश्चित रूप से स्त्री दूध पीते बच्चे को उस समय नहीं जन्माती जब वे पैदा होने के लिए तैयार होते हैं और फिर उन्हें जन्म लेने की अनुमति नहीं देती हैं। +\q2 इसी तरह, यहोवा यरूशलेम के लिए वह करेंगे जो उन्होंने करने की प्रतिज्ञा की है: +\q1 वह यरूशलेम को फिर से लोगों से भर जाने देंगे। +\q2 ऐसा होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है। +\q1 +\s5 +\v 10 तुम यरूशलेम में रहने वाले लोगों, आनन्दित होओ! +\q2 और तुम सब लोग भी आनन्दित होओ जो लोग यरूशलेम से प्रेम करते हो। +\q1 यरूशलेम के साथ जो हुआ, तुम जो लोग उसके कारण दुखी थे, +\q2 अब तुमको आनन्दित होना चाहिए। +\q1 +\v 11 यरूशलेम में रहने वाले तुम लोगों के पास वह हर एक वस्तु होगी जिसकी तुमको आवश्यकता है, +\q2 जिस प्रकार एक बच्चा अपनी माँ के स्तनों से अपनी आवश्यकता के सब कुछ प्राप्त करता है। +\q1 तुम शहर में सारी प्रचुर मात्रा की और भव्य चीजों का आनन्द लोगे। +\p +\s5 +\v 12 यहोवा ने प्रतिज्ञा की है, +\q1 “मैं यरूशलेम को अन्य राष्ट्रों से आने वाली बहुमूल्य वस्तुओं से भर जाने दूँगा; +\q2 वे चीजें यरूशलेम में उण्डेली जाएँगी; यह एक बड़ी बाढ़ के समान होगा। +\q1 मैं यरूशलेम के लोगों का ध्यान रखूँगा +\q2 जैसे स्त्रियाँ अपने दूध पीने वाले बच्चों की देखभाल करती हैं। +\q1 +\v 13 मैं तुम यरूशलेम में रहने वाले लोगों को सांत्वना दूँगा जैसे माताएँ अपने बच्चों को दिलासा देती हैं।” +\q1 +\s5 +\v 14 जब तुम उन बातों को होता हुआ देखते हो, +\q2 तुम आनन्दित होओगे। +\q1 तुम्हारी पुरानी हड्डियाँ फिर से मजबूत हो जाएँगी +\q2 जिस प्रकार से वसन्त ऋतु में, जब घास बढ़ती है। +\q1 जब ऐसा होता है, तो सभी जान जाएँगे कि यहोवा के पास उन लोगों की सहायता करने की शक्ति है जो उसकी आराधना करते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं, +\q2 परन्तु यह कि वह अपने शत्रुओं से क्रोधित हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 यहोवा आग की लपटों के साथ नीचे आएँगे, +\q2 और उनके रथ एक बवण्डर के समान नीचे आ जाएँगे; +\q1 वह अत्याधिक क्रोध में होंगे, +\q2 और वह अपने शत्रुओं को आग में जला कर दण्डित करेंगे। +\q1 +\v 16 ऐसा लगता है कि मानों यहोवा के पास एक बड़ी तलवार थी, +\q2 और वह कई लोगों का न्याय करेंगे और उनको प्राणदण्ड देंगे। +\p +\s5 +\v 17 यहोवा कहते हैं, “तुम में से कुछ लोग धोने से और विशेष आहार और कपड़ों से मूर्तियों के बगीचे में प्रवेश करने के लिए स्वयं को तैयार करेंगे, और तुम उस जगह पर उन लोगों का अनुसरण करेंगे, जो सूअरों और चूहों और अन्यों के माँस खाते हैं, जिनको खाने के लिए मैंने तुमको मना किया हुआ है। मैं तुमसे प्रतिज्ञा करता हूँ, मैं उन्हें रोकूँगा और वे इसे और नहीं करेंगे!” +\p +\s5 +\v 18 मैं उन सब बुरी बातों को जानता हूँ जो वे सब सोचते हैं और करते हैं। अब मेरे लिए उन सब लोगों को इकट्ठा करने का समय है जो सब राष्ट्रों में रहते हैं और जो सब भाषाओं बोलते हैं, और उन्हें दिखाने का समय है कि मैं बहुत महान हूँ। +\p +\v 19 मैं सभी को दिखाने के लिए उनके मध्य में कुछ करूँगा कि वे कौन हैं, और जिन्हें मैंने बचा कर रखा है, वे तर्शीश, पूती, लूदी (धनुर्धारियों का घर), मेशेक, तूबल, यावान जैसे बहुत से दूर-दूर के देशों में और दूर द्वीपों में जाएँगे। मैं उन्हें उन देशों पर घोषणा करने के लिए भेजूँगा जिन्होंने कभी मेरे विषय में नहीं सुना है कि मैं बहुत महान और गौरवशाली हूँ। +\s5 +\v 20 तब वे यहाँ तुम्हारे सम्बन्धियों को वापस लाएँगे जिन्हें बन्धुआई में ले जाया गया है, जिस प्रकार से मेरे इस्राएली लोग मन्दिर में सही रीति से भेंट ले कर आया करते थे। वे यरूशलेम के लिए यात्रा करेंगे, जहाँ मेरा पवित्र पर्वत है; वे घोड़ों और रथों, पालियों में, खच्चरों और ऊँटों पर आएँगे। +\v 21 मैं गम्भीरता से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं उनमें से कुछ को याजक बनने के लिए, और दूसरों को मेरे मन्दिर में अन्य कार्य करने के लिए नियुक्त करूँगा। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है। +\p +\s5 +\v 22 मैं यह भी प्रतिज्ञा करता हूँ कि जिस प्रकार से नया स्वर्ग और नई पृथ्‍वी सदा तक बने रहेंगे, तुम्हारे पास सदा वंशज होंगे, और तुमको सदा सम्मानित किया जाएगा। +\v 23 हर सप्ताह सब्त के और हर महीने नए चँद्रमा के उत्सव को मनाने के त्यौहार के लिए, हर कोई आकर मेरी आराधना करेगा। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है। +\s5 +\v 24 तब वे यरूशलेम से निकल जाएँगे और उन लोगों की लाशों को देखेंगे जिन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया था। उन शवों में पड़े हुए कीड़े कभी नहीं मरेंगे, आग उन्हें जलाने से कभी नहीं रुकेगी, और जो लोग उनकी लाश को देखते हैं उनसे घृणा करेंगे।” \ No newline at end of file diff --git a/24-JER.usfm b/24-JER.usfm new file mode 100644 index 0000000..7b61522 --- /dev/null +++ b/24-JER.usfm @@ -0,0 +1,4563 @@ +\id JER +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h यिर्मयाह +\toc1 यिर्मयाह +\toc2 यिर्मयाह +\toc3 jer +\mt1 यिर्मयाह + + +\s5 +\c 1 +\p +\v 1 यह हिल्किय्याह के पुत्र यिर्मयाह का सन्देश है, जिसने यह लिखा था। वह बिन्यामीन के गोत्र के क्षेत्र में अनातोत शहर से एक याजक था। +\v 2 यहोवा ने उसे सन्देश देना आरम्भ कर दिया जब योशिय्याह लगभग तेरह वर्षों तक यहूदा पर शासन कर चुका था। +\v 3 जब योशिय्याह का पुत्र यहोयाकीम राजा था, और जब सिदकिय्याह लगभग ग्यारह वर्ष तक यहूदा का राजा रहा तब तक यहोवा उसे सन्देश देते रहे। उस वर्ष के पाँचवें महीने में यरूशलेम के लोगों को बाबेल की बन्धुआई में ले जाया गया था। +\s5 +\v 4 एक दिन यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया, +\q1 +\v 5 “मैं तुझे तेरी माँ के गर्भ में रचने से पहले जानता था। +\q2 मैंने तेरे जन्म से पहले ही तुझे अपने सम्मान के लिए अलग कर दिया, +\q2 और मैंने तुझे सब राष्ट्रों के लिए मेरा भविष्यद्वक्ता नियुक्त किया।” +\p +\v 6 मैंने उत्तर दिया, “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, क्या आप नहीं देखते कि मैं आपके लिए बोलने के योग्य नहीं हूँ? मैं कम उम्र का हूँ!” +\s5 +\v 7 यहोवा ने उत्तर दिया, “यह मत कह कि तू बहुत छोटा है, क्योंकि तुझे उन सबके पास जाना होगा जिनके पास मैं तुझे भेजूँगा, और तुझे उन सब बातों को बताना होगा जो मैं तुझे कहने की आज्ञा दूँगा। +\v 8 और जिन लोगों को तू वचन सुनाएगा उनसे मत डरना, क्योंकि मैं तुझे उनके द्वारा हानि पहुँचाए जाने से बचाऊँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\s5 +\v 9 तब ऐसा हुआ कि यहोवा ने मेरे मुँह को छुआ और कहा, “मेरी बात सुन! मैंने अपना सन्देश तेरे मुँह में डाल दिया है। +\v 10 आज मैं तुझे राष्ट्रों और साम्राज्यों को चेतावनी देने के लिए नियुक्त कर रहा हूँ। तू उन्हें बताएगा कि मैं उनमें से कुछ को पूरी तरह से नष्ट करूँगा और मैं दूसरों को स्थापित और उन्हें समृद्ध करूँगा।” +\s5 +\v 11 तब यहोवा ने मुझे कुछ दिखाया, और कहा, “यिर्मयाह, तू क्या देखता है?” +\p मैंने उत्तर दिया, “मैं एक बादाम के पेड़ की एक शाखा देखता हूँ।” +\p +\v 12 यहोवा ने कहा, “यह सही है। और क्योंकि ‘बादाम’ के लिए जो शब्द है वह ‘देखने’ के शब्द जैसा है, इसका अर्थ है कि मैं देख रहा हूँ कि क्या होगा, और मैं निश्चित कर दूँगा कि मैंने राष्ट्रों को नष्ट करने के विषय में तुझसे जो कहा है, वह होगा।” +\s5 +\v 13 तब यहोवा ने मुझसे फिर से बात की और कहा, “अब तू क्या देखता है?” +\p मैंने उत्तर दिया, “मुझे उबलते पानी से भरा एक बर्तन दिखाई देता है। यह उत्तर में है, और मेरी ओर झुका हुआ है।” +\p +\v 14 यहोवा ने उत्तर दिया, “हाँ! इसका अर्थ है कि उत्तर से बड़ी पीड़ा इस भूमि पर फैल जाएगी, जैसे उबलता पानी किसी बर्तन से गिर रहा है। +\q1 +\s5 +\v 15 जो मैं कहता हूँ उसे सुन: +\q2 मैं यहूदा के उत्तर के राज्यों की सेनाओं को यरूशलेम बुला रहा हूँ। +\q1 उनके राजा इस नगर के द्वार पर अपने सिंहासन स्थापित करेंगे जिससे यह संकेत मिले कि वे अब यहूदा के राजा हैं। +\q2 उनकी सेनाएँ इस शहर की दीवारों पर आक्रमण करेंगी और दीवारों को तोड़ देंगी, और वे यहूदा के अन्य सब नगरों के साथ भी ऐसा ही करेंगी। +\q1 +\v 16 मैं अपने लोगों को उनके सब अनुचित कार्यों का दण्ड दूँगा जो उन्होंने किए हैं; +\q1 उन्होंने मुझे त्याग दिया है और वे झूठे देवताओं की पूजा में भेंट चढ़ाई हैं। +\q2 वे अपने हाथों से बनाई हुई मूर्तियों की पूजा करते हैं! +\p +\s5 +\v 17 अतः उठ, अपने कपड़े पहन कर तैयार हो! तब यहूदा के लोगों के पास जा और उनको सब कुछ बता जो मैं तुझे कहने के लिए आदेश देता हूँ। उनसे डर मत, क्योंकि यदि तू उनसे डरेगा, तो मैं तुझे उनके सामने एक उदाहरण के रूप में दण्ड दूँगा! +\v 18 परन्तु सुन! मैं तुझे दृढ़ करूँगा जैसे किसी शहर की ठोस दीवारें। तू लोहे के खम्भे या पीतल की दीवार के समान दृढ़ होगा। यहाँ तक कि राजसी अधिकारी, याजक और सामान्य लोग भी तुझे पराजित नहीं कर पाएँगे। +\v 19 वे तेरा विरोध करेंगे, परन्तु वे तुझे पराजित नहीं कर पाएँगे, क्योंकि मैं तेरे साथ रहूँगा और तेरी रक्षा करूँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 2 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया +\v 2 यरूशलेम में सबको सुनाने के लिए। उन्होंने कहा कि मैं सबको यह सन्देश सुनाऊँ, +\q1 “मैं, यहोवा, तुम्हारे पक्ष में स्मरण रखता हूँ कि तुमने मेरे पीछे चलकर बहुत पहले हमारी वाचा पर भरोसा रखा। +\q2 तुमने मुझे प्रसन्न करने का प्रयास किया जैसे दुल्हन अपने पति को प्रसन्न करने का प्रयास करती है; +\q1 तुमने मुझसे प्रेम किया, +\q2 और तुमने रेगिस्तान से होकर मेरा पीछा किया। +\q1 +\v 3 उस समय तुम इस्राएली मेरे लिए अलग किए गए; +\q2 उपज के पहले भाग के समान तुम मेरे थे। +\q1 मैंने उन सबको दण्ड देने की प्रतिज्ञा की जिन्होंने तुमको, जो मेरे हो, हानि पहुँचाई, +\q2 और उन पर विपत्तियाँ डालीं। +\q2 ऐसा सदा ही होता रहेगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने कहा कि ऐसा होगा।” +\q1 +\s5 +\v 4 इस्राएल के सब लोग, याकूब के वंशजों सुनो कि, यहोवा क्या कहते हैं। यहोवा जो कहते हैं उसे सुनना तुम्हारे लिए अनिवार्य है। +\p +\v 5 वह कहते हैं, +\q2 “मैंने क्या पाप किया कि तुम्हारे पूर्वज मुझसे दूर हो गए थे? +\q1 उन्होंने निकम्मी मूर्तियों की पूजा की, +\q2 और वे स्वयं निकम्मे हो गए। +\q1 +\v 6 उन्हें कहना चाहिए था, +\q2 ‘हमें यहोवा की आवश्यकता है, उन्होंने ही हमें मिस्र से सुरक्षित निकाला था +\q1 और रेगिस्तानी मैदान में हमारी अगुवाई की थी, जहाँ बहुत सारे गड्ढे थे। +\q2 हमें यहोवा ही चाहिए जिन्होंने हमारा नेतृत्व किया +\q1 जहाँ पानी नहीं था और जहाँ बहुत खतरे थे, +\q2 ऐसी भूमि से होकर जहाँ कोई नहीं रहते यहाँ तक कि यात्रा भी नहीं करते है।’ +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु जब मैं, यहोवा, तुम्हें एक उपजाऊ भूमि में लाया, +\q2 कि तुम सब फलों और अन्य सब अच्छी वस्तुओं का आनन्द ले सको जो यहाँ उपजेंगी, +\q1 तुमने मेरी प्रतिज्ञाओं के देश को मेरे लिए अयोग्य बना दिया है +\q2 और तुम मेरे लिए घृणित हो गए हो। +\q1 +\v 8 तुम्हारे याजकों ने भी नहीं पूछा +\q2 कि मैं क्या अब भी उनके साथ था। +\q1 जो लोग यहोवा के नियम सिखाते हैं वे स्वयं मेरे प्रति सच्चे नहीं हैं! +\q2 और तुम्हारे अगुवों ने मुझसे विद्रोह किया है। +\q1 तुम्हारे भविष्यद्वक्ताओं ने उनके बाल देवता के सन्देश तुम्हें सुनाए, +\q2 और वे निकम्मी मूर्तियों की पूजा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 इसलिए मैं, यहोवा, तुम्हें अदालत में दोष दूँगा। +\q1 और भविष्य में, मैं तुम्हारी सन्तान और तुम्हारे नाती-पोतों पर मुकद्दमा चलाऊँगा! +\q1 ऐसा होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने कहा है कि ऐसा होगा। +\q1 +\v 10 यदि तुम पश्चिम में साइप्रस द्वीप जाओ, +\q2 या यदि तुम केदार भूमि के पूर्व में जाओ, +\q1 और यदि तुम उन स्थानों में लोगों से पूछो, +\q2 वे तुम्हें बताएँगे कि उनके देशों में कभी भी किसी ने ऐसे दुष्ट कार्य नहीं किए जैसे तुम लोगों ने किए हैं! +\q1 +\v 11 किसी भी जाती के किसी भी व्यक्ति ने कभी भी अपने देवताओं को नहीं त्यागा है, जिन्हें वे महान समझते थे +\q2 और उन देवताओं की पूजा करना आरम्भ किया जो वास्तव में देवता नहीं हैं, +\q1 परन्तु तुम लोगों ने मुझे, अपने गौरवशाली परमेश्वर को त्याग दिया है, +\q2 और देवताओं की पूजा कर रहे हो जो निकम्मे हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 ऐसा लगता है कि तुम्हारे कार्यों से आकाश में सब कुछ निराश है; +\q2 ऐसा लगता है जैसे वे थरथराते हैं और बहुत भयभीत होते हैं। मैं, यहोवा, देखता हूँ और तुम्हारे लिए यह घोषणा करता हूँ। +\q1 +\v 13 तुम, मेरे लोगों ने दो अनुचित कार्य किए हैं: +\q1 तुमने मुझे अस्वीकार कर दिया है, वह जो ऐसे सोते के समान है जहाँ तुम ताजा पानी प्राप्त कर सकते हो, +\q2 और तुम देवताओं की पूजा कर रहे हो जो भूमि में गड्ढे के समान हैं +\q2 जिनमें दरार हैं और जो पानी को रोकने में सक्षम नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 तुम इस्राएली लोग, निश्चय ही जन्म से दास नहीं थे; +\q2 तो तुम पर तुम्हारे शत्रुओं ने क्यों अधिकार कर लिया? +\q1 +\v 15 तुम्हारे शत्रु सिंह के समान गरजे, +\q2 और उन्होंने तुम्हारा देश नष्ट कर दिया। +\q1 और अब तुम्हारे नगरों को जला दिया गया है, +\q2 और उनमें कोई भी नहीं रहता है। +\q1 +\v 16 मिस्र के नोप और तहपन्हेस के सैनिकों ने तुम्हें पराजित किया है +\q2 और तुम्हारे सिरों को मुँड़वा दिया कि उनके दास दिखाई दो। +\q1 +\v 17 इसका कारण है कि तुमने मुझे, अपने परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया है, +\q2 मैं तो तुम्हें सुरक्षा में ही लिए चल रहा था। +\q1 +\s5 +\v 18 तो तुम मिस्र में सीहोर के शासकों के साथ गठबन्धन करने का प्रयास क्यों कर रहे हो? +\q2 तुम अश्शूर के शासकों के साथ गठबन्धन करने का प्रयास क्यों कर रहे हैं जो फरात नदी के पास रहते हैं? +\q1 +\v 19 तुम बहुत दुष्ट हो इसलिए मैं तुम्हें दण्ड दूँगा। +\q2 तुमने मुझसे मुँह मोड़ लिया है इसलिए मैं तुम्हें दोषी ठहराता हूँ। +\q1 जब मैं ऐसा करूँगा, तब तुम्हें समझ में आएगा कि मुझे, तुम्हारे यहोवा, परमेश्वर को त्यागने का परिणाम कड़वा और बुरा होगा, +\q2 और अब तुम्हारे मन में मेरा भय और सम्मान नहीं है। +\q1 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा, स्वर्ग के स्वर्गदूतों का प्रधान, ने यह कहा है। +\q1 +\s5 +\v 20 तुमने बहुत पहले से ही मेरी आज्ञाओं का पालन करना त्याग दिया है, और मेरी अगुवाई को स्वीकार नहीं किया है। +\q2 मैंने तुम्हें दास होने से बचाया परन्तु तुमने मेरी आराधना करने से मना कर दिया। +\q1 इसकी अपेक्षा, तुम हर एक पहाड़ी की चोटी पर पेड़ों के नीचे मूर्तियों की पूजा करते हो। +\q2 तुम मेरी अपेक्षा उन मूर्तियों से प्रेम करते हो और पूजा करते हो जैसे एक विश्वासघाती व्यक्ति अपनी पत्नी की अपेक्षा वेश्या से प्रेम करता है। +\q1 +\v 21 तुम तो मेरे द्वारा लगाई गई दाखलता थे जिन्हें मैं लगा सकता था, +\q2 जो एक अच्छी दाखलता की कलम थी। +\q1 अतः जब तुम निकम्मी और सड़ी हुई दाखलता हो गए हो तो यह घृणित है? +\q1 +\v 22 तुम्हारे पापों का दोष कपड़े पर बहुत बुरे दाग के समान है, +\q2 और तुम अच्छे से अच्छे साबुन का उपयोग करके भी उन दागों से छुटकारा नहीं पा सकते हो। +\q1 यह सच है क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है। +\q1 +\s5 +\v 23 तुम कहते हो कि तुमने पाप नहीं किया है। +\q1 परमेश्वर को तुम ग्रहणयोग्य होने का दावा करते हो +\q2 और कि तुमने बाल की मूर्तियों की पूजा नहीं की है। +\q1 परन्तु उन घृणित कार्यों के विषय में सोचो जो तुम यरूशलेम के बाहर हिन्नोम घाटी में बहुत उत्सुकता से करते हो। +\q2 तुम उन मादा ऊँटों के सामान हो जो नर ऊँटों के लिए उत्सुक होकर भागती फिरती हैं। +\q1 +\v 24 तुम रेगिस्तान में रहने वाली जंगली गधी के समान हो। +\q2 जो गधे की खोज में वायु को सूँघती है, +\q2 उन्हें कोई नहीं रोक सकता। +\q1 उनके चाहने वाले गधे उन्हें खोजते-खोजते थकते नहीं हैं; +\q2 क्योंकि सम्भोग के समय वे उन्हें सरलता से खोज लेते हैं। +\q1 +\v 25 पूजा करने के लिए मूर्तियों की खोज में तुम निरन्तर यहाँ से वहाँ भागते हो, जिसके परिणामस्वरूप तुम्हारे जूते फट गए हैं, +\q2 और तुम्हारे गले सूख गए हैं। +\q1 मैंने तुमसे कहा ऐसा मत करो परन्तु तुमने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता, +\q2 और तुमने कहा कि तुम उन विदेशी देवताओं से प्रेम करते हो +\q2 और तुम्हें उनकी पूजा करनी पड़ी! +\q1 +\s5 +\v 26 लुटेरा पकड़े जाने पर लज्जित होता है। +\q2 और तुम, तुम्हारे राजाओं और याजकों और भविष्यद्वक्ताओं समेत, लज्जित होते हो। +\q1 +\v 27 लकड़ी का एक टुकड़ा जिसे खोद कर मूर्ति तैयार की गई, उसे तुम अपना ‘पिता’ कहते हो +\q2 और एक पत्थर जिसे तुमने खड़ा किया उसे तुम अपनी ‘माता’ कहते हो। +\q1 तुमने मुझे त्याग दिया है +\q2 परन्तु जब तुम संकट में होते हो, +\q1 तुम मुझे पुकारते हो कि तुम्हें बचाऊँ! +\q1 +\v 28 तुमने जो देवता बनाए हैं, उनके सामने क्यों नहीं चिल्लाते? +\q2 बचाव के लिए उनसे विनती क्यों नहीं करते +\q2 जब तुम पर विपत्तियाँ आती हैं? +\q1 क्योंकि तुम्हारे पास इतने देवता हैं जितने यहूदा के नगर और कस्बे हैं! +\q1 +\s5 +\v 29 तुम शिकायत करते हो कि तुम्हें बचाना मेरे लिए यह गलत था, +\q2 परन्तु तुमने मुझसे, यहोवा से जो इस समय तुमसे बात कर रहा है, विद्रोह किया है। +\q1 +\v 30 मैंने तुम में से कुछ को दण्ड दिया, +\q2 परन्तु तुमने मेरे इस कार्य से कुछ भी नहीं सीखा। +\q1 इसकी अपेक्षा तुमने कई भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला जिन्हें मैंने तुम्हारे पास भेजा था, +\q2 जैसे क्रूर शेर अन्य पशुओं को मार डालते हैं। +\p +\v 31 हे इस्राएल के लोगों, जो कुछ मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दो। +\q1 यह तो निश्चय है कि मैंने तुम्हें रेगिस्तान में कभी नहीं छोड़ा था; +\q2 मैंने तुम्हें किसी अन्धकार के देश में कभी नहीं छोड़ा। +\q1 तो तुम, मेरे लोग क्यों कहते हो कि तुम मेरे नियंत्रण से मुक्त हो +\q2 और यह कि तुम मेरी आराधना करने के लिए वापस नहीं आओगे? +\q1 +\s5 +\v 32 एक युवती गहने पहनना कभी नहीं भूलती, +\q2 और एक दुल्हन अपनी विवाह की पोशाक पहनना कभी नहीं भूलती, +\q1 परन्तु तुम मेरे लोग, मुझे कई वर्षों से त्याग चुके हो। +\q1 +\v 33 तुम जानते हो कि अन्य देशों के देवताओं को सरलता से कैसे ढूँढें जिन्हें तुम प्रेम कर सकते हैं। +\q2 वेश्याओं को सोने के लिए पुरुषों को ढूँढ़ना उतना सरल नहीं जितना तुम्हारे लिए अन्य देवताओं को ढूँढ़ना सरल है। तुम उसे विश्वासघात करना सिखा सकते हो! +\q1 +\v 34 तुम्हारे कपड़ों पर गरीब लोगों का खून है; जिन लोगों की तुमने हत्या कर दी है; +\q2 जो लोग निर्दोष थे! तुमने उन्हें चोरी करते नहीं पकड़ा था! परन्तु तुमने उनके साथ दुष्टता का व्यवहार किया +\q1 +\s5 +\v 35 और तुम कहते हो, ‘मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है! +\q2 मुझे विश्वास है कि यहोवा मुझसे अधिक समय तक क्रोधित नहीं रहेंगे।’ +\q1 परन्तु मैं तुम्हें गम्भीर दण्ड दूँगा +\q2 जो यह दावा करने के लिए होगा कि तुमने पाप नहीं किया है। +\q1 +\v 36 पहले तुमने अश्शूरों की सेना से अपनी सहायता करने का अनुरोध किया था, +\q2 परन्तु वे तुम्हारी सहायता करने में सक्षम नहीं थे। +\q1 अब तुमने मिस्र की सेना से अपनी सहायता करने का अनुरोध किया है, +\q2 परन्तु वे तुम्हारी सहायता करने में सक्षम नहीं होंगे, या तो। +\q1 +\v 37 वे तुम्हें पकड़ लेंगे, और तुम उनके बन्दी होगे, +\q2 और अपने सिरों पर हाथों को रख कर लज्जा से ले जाए जाओगे। +\q1 ऐसा होगा क्योंकि यहोवा ने उन राष्ट्रों को त्याग दिया है जिन पर तुम भरोसा कर रहे हो, +\q2 और वे तुम्हारी सहायता करने में सक्षम नहीं होंगे।” + +\s5 +\c 3 +\q1 +\p +\v 1 “लोग जानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को त्याग दे और फिर वह किसी और पुरुष से विवाह करती है, +\q2 तो उसके पहले पति को निश्चय ही उसे फिर से अपनी पत्नी स्वीकार नहीं करना चाहिए। +\q1 वह औपचारिक रूप से अशुद्ध होगी और उसने यहोवा के नियम को तोड़ दिया है। +\q1 यह देश उस स्त्री के समान है। +\q1 परन्तु वेश्याओं की तुलना में तुम्हारे पास उन पुरुषों से अधिक देवता हैं, जिनके साथ वह सोई है! +\q2 अतः, तुम यदि मेरे पास वापस आते हो तो मैं तुम्हें क्यों स्वीकार करूँ? यह यहोवा हैं जो यह कहते हैं। +\q1 +\v 2 “बंजर पहाड़ी की चोटी को देखो। +\q2 हर एक पहाड़ी की चोटी पर तुमने स्वयं को मूर्तियों को दे दिया है +\q2 जैसे एक वेश्या अपने आपको प्रेमी के हाथों में दे देती है। +\q1 तुम एक अरबी बंजारे के समान सड़कों के किनारे पर बैठे हो, जो किसी के आने की प्रतीक्षा कर रहा है; +\q2 परन्तु तुम उन लोगों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने की प्रतीक्षा कर रहे हो जो वहाँ आएँ। +\q1 तुम्हारा यह विश्वासघात मूर्तियों की पूजा के कारण है, +\q2 और तुम्हारी वेश्यावृत्ति तुम्हारी मूर्ति पूजा के समान है। +\q1 सम्पूर्ण देश यहोवा के लिए अस्वीकार्य कर दिया गया है, +\q2 और मूर्तिपूजा तुम्हारी वेश्यावृत्ति है और तुम्हारी दुष्टता ही है जो तुमको अशुद्ध बनाती है। +\q1 +\s5 +\v 3 यही कारण है कि मैंने वर्ष के उचित समय तुम्हें वर्षा नहीं दी, जब तुम्हें उसकी आवश्यकता थी। +\q1 परन्तु तुम वेश्याओं के समान हो +\q2 जो अपने कुकर्मों के लिए लज्जित नहीं हैं। +\q1 +\v 4 अब तुम में से प्रत्येक जन मुझसे कहता है, ‘आप मेरे पिता हैं! +\q2 जब मैं युवा था आपने मुझसे प्रेम किया है! +\q1 +\v 5 अतः निश्चय ही आप मुझसे सदा क्रोधित नहीं रहेंगे! +\q1 तुमने शपथ खाई कि मेरा आज्ञापालन नहीं करोगे और तुमने ऐसा ही किया! +\q2 और तुमने बार-बार पाप किया! +\q1 परन्तु तुम पाप करना नहीं छोड़ोगे।” +\p +\s5 +\v 6 एक दिन जब योशिय्याह यहूदा का राजा था, तब यहोवा ने मुझसे कहा, “क्या तू ने देखा कि इस्राएल के लोगों ने क्या किया है? वे मुझसे दूर हो गए हैं, एक स्त्री जिसने अपने पति को त्याग दिया है और दूसरे पुरुषों के साथ सोती है वे हर एक पहाड़ी की चोटी पर और हर छायादार पेड़ के नीचे गए और वहाँ मूर्तियों की पूजा की। +\v 7 मैंने सोचा कि वे मेरे पास वापस आ जाएँगे, परन्तु वे नहीं आए। और उनके भाई, यहूदा के लोग, ये सब देख रहे थे। +\s5 +\v 8 इसलिए मैंने इस्राएल के लोगों को दूसरे देशों में भेज दिया, जैसे कोई व्यक्ति एक पत्र लिख कर अपनी पत्नी को त्याग देता है और फिर उसे भेज देता है क्योंकि उसने व्यभिचार किया है। यहूदा के लोगों ने देखा कि उनके साथ क्या किया है परन्तु वे भी ठीक वैसे ही हैं जैसे इस्राएली लोग, उन्हें भय नहीं कि मैं उनके समय क्या करूँगा वे भी मुझसे दूर हो गए और मूर्तियों की पूजा करने लगे, जैसे कि स्त्रियाँ जो अपने पतियों को छोड़ कर दूसरे पुरुषों के पास जाती हैं। +\v 9 उन्होंने चिन्ता नहीं की कि मूर्तियों की पूजा मुझे अप्रसन्न करती है, इसलिए उन्होंने लकड़ी और पत्थर की मूर्तियों की पूजा करके पूरे देश को अस्वीकार्य बना दिया है। +\v 10 यहूदा के लोगों ने मेरे पास लौटने का ढोंग किया है, वे मन के सच्चे नहीं हैं। यह सच है क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है।” +\p +\s5 +\v 11 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, इस्राएल के लोग मुझसे दूर हो गए हैं, परन्तु यहूदा के लोगों ने क्या किया है। +\v 12 तो जा और इस्राएल के लोगों को यह बता, +\q1 ‘यहोवा इस्राएलियों से यह कहते हैं जो उनसे दूर हो गए हैं: +\q1 मैं दयालु हूँ। +\q2 मैं सदा तुमसे क्रोधित नहीं रहूँगा। +\q2 इसलिए मेरे पास वापस आ जाओ। +\q1 +\s5 +\v 13 परन्तु तुमको यह स्वीकार करना होगा कि तुम दोषी हो, +\q2 और तुमने मुझसे, तुम्हारे परमेश्वर से, विद्रोह किया है, +\q1 कि तुमने हर एक स्थान में बड़े पेड़ों के नीचे मूर्तियों की पूजा की है, +\q2 और तुमने मेरा आज्ञापालन नहीं किया है। +\p तुम मुझसे दूर हो गए हो। +\q1 +\v 14 परन्तु तुम मेरे हो, +\q2 तो मेरे पास वापस आओ, मेरे बच्चों! +\q2 यदि तुम ऐसा करो, तो मैं तुमको प्रत्येक शहर में से एक और प्रत्येक गोत्र से दो को ले कर, +\q2 वापस यरूशलेम ले आऊँगा। +\q1 +\v 15 यदि तुम ऐसा करो, तो मैं तुम्हारे लिए ऐसे अगुवे नियुक्त करूँगा, जिनसे में प्रसन्न हूँ +\q2 वे तुम्हारी उचित अगुवाई करेंगे वे जानेंगे और समझेंगे कि मैं क्या चाहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 16 और जब तुम अपने देश में असंख्य हो जाओगे, +\q2 तब तुम्हें मेरे पवित्र सन्दूक जिसमें दस आज्ञाएँ हैं, उनके विषय में चर्चा करने की आवश्यकता नहीं होगी। +\q1 तुम इसके विषय में सोचोगे भी नहीं, +\q2 और तुम उसे नया बनाना नहीं चाहोगे।’ +\q1 +\s5 +\v 17 उस समय लोग कहेंगे कि मेरा सिंहासन यरूशलेम में है। +\q1 सब राष्ट्रों के लोग मेरी उपासना करने के लिए वहाँ आएँगे, +\q2 और वे अहंकार की कामना के दुष्ट कर्मों से हठ धर कर फिर कभी नहीं करेंगे। +\q1 +\v 18 उस समय तुम इस्राएल और यहूदा के लोग उत्तर के देशों में बन्धुआई से वापस आ जाएँगे। +\q2 तुम उस देश में वापस आ जाओगे जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को सदा के लिए दिया था। +\p +\s5 +\v 19 हे इस्राएलियों, मैं तुम्हें अपने बच्चों के रूप में स्वीकार करना चाहता था। +\q1 मैं तुम्हें यह रमणीय देश देना चाहता था। +\q2 यह किसी अन्य देश की भूमि से अधिक मनपसन्द भूमि है! +\q1 मैं चाहता था कि तुम मुझे अपना पिता कहकर बुलाओ, +\q2 और मैं चाहता था कि तुम मुझसे कभी दूर न जाओ। +\q1 +\v 20 परन्तु तुमने मुझे ऐसे त्याग दिया है जैसे अपने पतियों को त्याग देने वाली स्त्रियाँ।” +\q2 यहोवा ने यही कहा, और मैंने इसे इस्राएल के लोगों से कहा। +\q1 +\s5 +\v 21 तब परमेश्वर ने कहा, “लोग बंजर पहाड़ियों की चोटी पर शोर सुनेंगे। +\q2 यह शोर उन लोगों द्वारा होगा जो रो रहे हैं और परमेश्वर की दया की याचना कर रहे हैं। +\q1 वे यह स्वीकार करेंगे कि वे अपने परमेश्वर यहोवा को भूल गए हैं, +\q2 और उन्होंने परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप व्यवहार करना छोड़ दिया है। +\q1 +\v 22 हे इस्राएली लोगों, मेरे पास वापस आओ! +\q2 यदि तुम ऐसा करो, तो मैं तुमको फिर कभी मुझसे दूर नहीं होने दूँगा।” +\q1 लोग कहेंगे, “हम आपके पास लौट रहे हैं, +\q2 क्योंकि आप यहोवा, हमारे परमेश्वर हो। +\q1 +\s5 +\v 23 जब हमने पर्वतों पर मूर्तियों की पूजा की, तो हमें कोई सहायता नहीं मिली। +\q2 हमें वहाँ चीख पुकार मचाने से कोई सहायता नहीं मिली, अब हम समझ गए हैं कि हमारा परमेश्वर यहोवा ही इस्राएल की रक्षा का एकमात्र मार्ग है। +\q1 +\v 24 हमारी युवावस्था से ही निर्ल्लज बाल देवता हमारे पूर्वजों के कठोर परिश्रम से प्राप्त हमारा सब कुछ लूट रहा है। +\q2 उसने उनकी भेड़ों और बकरियों, उनके पुत्रों और उनकी पुत्रियों को भी ले लिया है। +\q1 +\v 25 अतः अब हमें बहुत लज्जित होना चाहिए, +\q2 क्योंकि हमने और हमारे पूर्वजों ने हमारे परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, +\q1 और हमने कभी उनका आज्ञापालन नहीं किया है।” + +\s5 +\c 4 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “तुम इस्राएली लोग, यदि किसी के पास वापस आते हो, तो मेरे ही पास आना। +\q2 यदि तुम उन घृणित मूर्तियों से छुटकारा पाओ, +\q2 यदि तुम मुझसे फिर दूर न जाओ, +\q1 +\v 2 और यदि तुम घोषणा करते हो, ‘जैसे निश्चय ही यहोवा जीवित हैं,’ +\q1 वह जो कहते हैं, सच और न्यायसंगत है, +\q2 और वह धार्मिकता कर जीवन की शिक्षा देते हैं, +\q1 तब पृथ्‍वी के अन्य देशों के लोग +\q1 मुझसे विनती करेंगे कि मैं उन्हें भी आशीष दूँ जैसे मैंने तुम्हें आशीष दी है, +\q1 और वे सब आकर मेरा सम्मान करेंगे।” +\p +\v 3 यहोवा यरूशलेम और यहूदा के अन्य शहरों के लोगों से यही कहते हैं, +\q1 “अपने मन को मेरे सन्देश ग्रहण करने के लिए तैयार करो +\q2 जैसे कि किसान कठोर भूमि को हल से जोतते हैं कि उसमें बीज बो सकें। +\q1 जैसे कि किसान कंटीली झाड़ियों में बीज डाल कर अच्छे बीज नष्ट नहीं करते हैं, +\q2 मैं अपने सन्देश को व्यर्थ नहीं करना चाहता हूँ कि यदि तुम उन्हें ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं हो। +\q1 +\s5 +\v 4 दिखाओ कि तुम्हारा मन-मस्तिष्क मुझे समर्पित है। +\q2 यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो मैं +\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए पापों के कारण तुमसे क्रोधित रहूँगा +\q2 जो ऐसी आग के समान होगा जिसे बुझाना असम्भव होगा। +\q1 +\v 5 यरूशलेम और यहूदिया के सब लोगों को यह घोषित करो; +\q2 लोगों को चेतावनी देने के लिए देश के हर स्थान में तुरही बजाओ। +\q1 उन्हें बताओ कि उन्हें भाग कर +\q2 उन शहरों में जाना है जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें हैं। +\q1 +\v 6 यरूशलेम के लोगों के लिए चिल्लाओ +\q1 और तुरन्त भागो। देर मत करें, +\q2 क्योंकि मैं तुम पर एक भयानक विपत्ति लाने वाला हूँ +\q2 जो उत्तर से आएगी। +\q1 +\s5 +\v 7 एक सेना जिसने कई राष्ट्रों को नष्ट कर दिया है, तुम पर आक्रमण करेगी +\q2 एक सिंह के समान जो अन्य पशुओं पर आक्रमण करने के लिए अपनी गुफा से बाहर आता है। +\q1 उस सेना के सैनिक +\q2 पहले से ही तुम्हारे देश की ओर बढ़ रहे हैं। +\q2 वे तुम्हारे शहरों को नष्ट कर देंगे और उन्हें निर्जन छोड़ देंगे। +\p +\v 8 अतः, टाट के वस्त्र पहन कर +\q1 रोओ और अपनी छातियाँ पीटो +\q2 जिससे प्रकट हो कि तुम अपने कार्यों से दुखी हो, +\q2 क्योंकि यहोवा अभी भी हमसे क्रोधित हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 यहोवा ने घोषणा की है कि जब वह तुम्हें दण्ड देंगे, तब यहूदा के राजा और उसके सब अधिकारी बहुत डरेंगे। +\q2 याजक और भविष्यद्वक्ता भयभीत होंगे।” +\p +\v 10 तब मैंने उत्तर दिया, “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, आपने उन लोगों को यह कहकर धोखा दिया है कि यरूशलेम में शान्ति होगी, परन्तु अब हमारे शत्रु हमें तलवार से मारने के लिए तैयार हैं!” +\p +\s5 +\v 11 जब ऐसा होता है, तो यहोवा यरूशलेम के लोगों से कहते हैं, +\q1 “तुम पर आक्रमण करने के लिए एक बड़ी सेना आएगी। +\q2 वे एक हल्की सी हवा के समान नहीं होंगे जो गेहूँ को भूसी से अलग करती है। +\q1 वे रेगिस्तान से उड़ने वाली बहुत गर्म हवा के समान होंगे। +\q1 +\v 12 वे एक प्रबल धमाके के समान होंगे जो मैं भेजूँगा। +\q2 अब मैं घोषणा कर रहा हूँ कि मैं तुम्हें दण्ड दूँगा।” +\q1 +\s5 +\v 13 और यरूशलेम के लोग कहेंगे, “हमारे शत्रु हम पर टूट पड़ने को हैं, उनके रथ बवण्डर के समान हैं। +\q2 उनके घोड़े उकाबों से भी अधिक तेज हैं। +\q1 यह हमारे लिए भयानक होगा! +\q1 +\v 14 तुम, यरूशलेम के लोगों अपने मन को शुद्ध करो, +\q2 कि यहोवा तुम्हें बचाएँ। +\q1 तुम कब तक बुराई करने के विषय में सोचते रहोगे? +\q1 +\v 15 दूर उत्तर में दान के नगर से एप्रैम की पहाड़ियों तक यरूशलेम के कुछ मील उत्तर में सन्देशवाहक घोषणा कर रहे हैं कि विपत्तियाँ आ रही हैं।” +\q1 +\s5 +\v 16 इसलिए मैंने यह अन्य देशों के लोगों से कहा, +\q2 और यरूशलेम में भी इसकी घोषणा की, +\q1 “यहोवा कहता है कि यरूशलेम में एक सेना बहुत दूर से आ रही है; +\q2 वे यहूदा के नगरों के विरुद्ध एक युद्ध की ललकार करेंगे। +\q1 +\v 17 वे यरूशलेम के चारों ओर तम्बू स्थापित करेंगे जैसे लोग फसल के समय मैदान के चारों ओर अस्थाई आश्रय स्थापित करते हैं। +\q2 ऐसा होगा क्योंकि यहूदा के लोगों ने मुझसे विद्रोह किया है। +\q1 +\v 18 तुम्हें बहुत गम्भीर दण्ड दिया जाएगा; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे तलवार ने तुम्हारे हृदय को छेद दिया है। +\q1 परन्तु तुम ही अपने साथ ऐसा होने का कारण बने हो +\q2 तुम्हारे बुरे कार्यों के कारण।” +\q1 +\s5 +\v 19 तब मैंने स्वयं से कहा, “मैं बहुत पीड़ा से पीड़ित हूँ; +\q2 मेरे मन का दर्द बहुत गम्भीर है। +\q2 मेरा हृदय जोर-जोर से धड़कता है! +\q1 परन्तु मैं चुप नहीं रह सकता +\q2 क्योंकि मैंने अपने शत्रुओं को तुरही बजाते हुए सुना है +\q2 यह घोषणा करने के लिए कि यहूदा के विरुद्ध युद्ध तुरन्त आरम्भ होने वाला है! +\q1 +\v 20 विपत्तियाँ एक के बाद एक आती रहेंगी +\q2 जब तक पूरा देश नष्ट नहीं हो जाता है। +\q1 हमारे तम्बू अकस्मात ही नष्ट हो जाएँगे; +\q2 तम्बू के भीतर पर्दे भी फाड़ दिए जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 21 यह युद्ध कब तक जारी रहेगा? +\q2 मैं शत्रु के युद्ध झण्डे कब तक देखता रहूँगा +\q2 और उनकी तुरही बजाए जाने की आवाज कब तक सुनता रहूँगा? +\q1 +\v 22 यहोवा कहते हैं: मेरे लोग बहुत मूर्ख हैं! +\q2 उनके साथ मेरा सम्बन्ध नहीं है। +\q1 वे मूर्ख बच्चों के समान हैं +\q2 वे कुछ भी नहीं समझते हैं। +\q1 वे बहुत चालाकी से अनुचित कार्य करते हैं, +\q2 परन्तु वे नहीं जानते कि भले कार्य कैसे करना है। +\q1 +\s5 +\v 23 परमेश्वर ने मुझे एक दर्शन दिया है जिसमें मैंने देखा +\q2 कि पृथ्‍वी बंजर और बेडोल है। +\q1 मैंने आकाश को देखा, +\q2 और वहाँ प्रकाश नहीं था। +\q1 +\v 24 मैंने पर्वतों और पहाड़ियों को देखा, +\q2 और वे हिल-हिल कर डोल रहे थे। +\q1 +\v 25 मैंने सब स्थानों में देखा कि लोग नहीं थे +\q2 और सब पक्षी भी उड़ गए थे। +\q1 +\v 26 मैंने देखा कि खेत जो पहले उपजाऊ थे, अब रेगिस्तान बन गए थे। +\q1 शहर सब उजाड़ हो गए थे; +\q2 वे सब यहोवा ने नष्ट कर दिए थे क्योंकि वह बहुत क्रोधित थे।” +\p +\s5 +\v 27 यहोवा यही कह रहे हैं, +\q1 “यहूदा का सम्पूर्ण देश नष्ट हो जाएगा, +\q2 परन्तु मैं इसका सर्वनाश नहीं करूँगा। +\q1 +\v 28 मैं अपने लोगों के साथ वही करूँगा जो मैंने कहा था कि मैं करूँगा, +\q2 और मैं अपना विचार नहीं बदलूँगा। +\q1 अतः जब ऐसा होगा, तो पृथ्‍वी शोक करेगी +\q2 और आकाश में बहुत अन्धकार छा जाएगा। +\q1 +\v 29 जब लोग शत्रु के घुड़सवारों और धनुर्धारियों की आवाज सुनेंगे, +\q2 तब वे भयभीत होकर अपने शहरों से भागेंगे। +\q1 उनमें से कुछ को झाड़ियों में छिपने का स्थान मिल जाएगा, +\q2 और अन्य अपने शत्रुओं द्वारा मारे जाने से बचने के लिए खदानों की ओर भागेंगे। +\q1 यहूदा के सब नगर खाली हो जाएँगे; +\q2 उनमें एक भी मनुष्य नहीं रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 30 अतः तुम निश्चय ही नष्ट हो जाओगे, +\q2 तब तुम क्या करोगे? +\q2 भले ही तुमने सुन्दर कपड़े और गहने पहने हों +\q2 और अपनी आँखों में काजल लगाया हो, +\q1 उनसे तुम्हें सहायता नहीं मिलेगी, +\q2 क्योंकि अन्य देशों के लोग जिनके लिए तुम सोचते हो कि वे तुमसे प्रेम करते हैं, वे वास्तव में तुम्हें तुच्छ समझते हैं, +\q2 और वे तुम्हें मारने का प्रयास करेंगे। +\q1 +\v 31 ऐसा लगता है कि मैं यरूशलेम में लोगों को जोर-जोर से रोते हुए सुन रहा हूँ, +\q2 जैसे एक स्त्री अपने पहले बच्चे को जन्म देते समय रोटी है; +\q1 वह साँस लेने के लिए हाँफती है और किसी से सहायता की भीख माँगती है +\q2 और वह चिल्लाती है, ‘मेरे साथ कुछ भयानक हो रहा है; वे मुझे मारने वाले हैं!’” + +\s5 +\c 5 +\q1 +\p +\v 1 मुझ यहोवा ने यरूशलेम के लोगों से कहा, “सड़कों पर इधर-उधर जाओ। +\q2 बाजारों में उन लोगों को ढूँढ़ो जो उचित कार्य करते हैं, +\q2 जो मेरे प्रति निष्ठावान होने का प्रयास करते हैं। +\q1 यदि तुम्हें ऐसा कोई भी व्यक्ति मिल जाए, +\q2 तो मैं यरूशलेम के लोगों को क्षमा कर दूँगा और अपने शहर को नष्ट नहीं करूँगा। +\q1 +\v 2 परन्तु जब लोग यहोवा के जीवन की आधिकारिक शपथ खाते हैं, +\q1 तब वे झूठ बोलते हैं।” +\q1 +\v 3 इसलिए मैंने प्रार्थना की, “हे यहोवा, आप निश्चय ही उन लोगों की खोज कर रहे हैं जो आपके प्रति निष्ठावान हैं। +\q2 आपने अपने लोगों को दण्ड दिया, परन्तु उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। +\q1 आपने उन्हें कुचल दिया, परन्तु उन्होंने वह नहीं किया जो आपने उन्हें करने के लिए बोला। +\q1 उनके मन बहुत कठोर हैं +\q2 उन्होंने आपके पास लौट आने से मना कर दिया है।” +\q1 +\s5 +\v 4 तब मैंने सोचा, “हम इन लोगों से धार्मिकता के कार्य करने की आशा नहीं रख सकते, क्योंकि वे गरीब हैं; +\q2 इनमें समझ नहीं है। +\q1 ये नहीं जानते कि यहोवा उनसे कैसा जीवन चाहते हैं; +\q2 ये नहीं जानते कि परमेश्वर उनसे क्या करने की अपेक्षा करते हैं। +\q1 +\v 5 अतः, मैं जाऊँगा और उनके अगुवों से बात करूँगा, +\q2 क्योंकि वे निश्चय ही जानते हैं कि परमेश्वर उनसे कैसा जीवन चाहते हैं।” +\q1 परन्तु उन्होंने भी यहोवा का आज्ञापालन करना बन्द कर दिया है, +\q2 और वे उसे उनकी अगुवाई नहीं करने देंगे। +\q1 +\v 6 इसी कारण, शेर जंगल से निकल आएँगे और उन्हें मार डालेंगे; रेगिस्तान से +\q2 भेड़िये उन पर आक्रमण करेंगे; +\q2 तेन्दुए जो उनके शहरों के बाहर छिपे हुए हैं, वे शहरों के बाहर चलने वाले व्यक्तियों को मार देंगे। +\q1 यह सब इसलिए होगा कि इन लोगों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किए हैं +\q2 और बार-बार उनसे दूर हो गए हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 यहोवा कहते हैं, “मैं इन लोगों को क्षमा नहीं कर सकता; +\q2 यहाँ तक कि उनके बच्चों ने मुझे छोड़ दिया है। +\q1 जब वे गम्भीर घोषणा करते हैं, तब वे अपने देवताओं से यह कहते हैं कि वे जो कुछ भी कहते हैं उसे वे सच सिद्ध करें। +\q1 मैंने अपने लोगों को वह सब कुछ दिया जो उन्हें चाहिए था, +\q2 परन्तु वे पहाड़ियों पर ऊँचे स्थानों पर गए, जहाँ उन्होंने अपनी मूर्तियों की पूजा की और वहाँ व्यभिचार किया। +\q1 +\v 8 जैसे अच्छी तरह से खिलाए गए घोड़े, मादा घोड़ों के साथ सम्भोग करना चाहते हैं, +\q2 प्रत्येक पुरुष अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ सोना चाहता है। +\q1 +\v 9 क्या मैं उन्हें इसका दण्ड नहीं दूँ? +\q2 मैं निश्चय ही इस देश से बदला लूँगा जिसके लोग ऐसा व्यवहार करते हैं! +\q1 +\s5 +\v 10 यहूदा और इस्राएल के लोग अँगूर के बाग के समान हैं। +\q1 उनकी दाख की बारियों में पंक्तियों के साथ चलो +\q1 और अधिकांश लोगों से छुटकारा पाओ, +\q2 परन्तु उन सबको मत मारो। +\q1 ये लोग मेरे नहीं हैं, +\q1 अतः उनका नाश कर दो, +\q2 जैसे माली दाखलता से शाखाओं को काट देता है। +\q1 +\v 11 इस्राएल और यहूदा के लोग पूरी तरह से मुझसे दूर हो गए हैं। +\q1 +\v 12 उन्होंने मेरे विषय में झूठ बोला और कहा, +\q2 ‘वह हमारी सहायता करने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते! +\q2 वह हमें दण्ड नहीं देंगे! +\q2 वह हमारे ऊपर कोई विपत्ति नहीं भेजेंगे! +\q2 हमारे यहाँ न तो युद्ध होगा, न ही अकाल पड़ेगा! +\q1 +\v 13 परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता जो कहते हैं वह हवा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं! +\q2 उनके पास परमेश्वर का सन्देश नहीं हैं! +\q2 अतः क्योंकि उन्होंने मुझ पर विश्वास नहीं किया है, इसलिए उनके साथ यह सब होगा!’” +\p +\s5 +\v 14 अतः, स्वर्ग में स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा ने मुझसे यही कहा है, +\q1 “कि मेरे लोग ऐसा कह रहे हैं, +\q2 मैं तुझे उनके लिए एक सन्देश दूँगा जो आग के समान होगा, +\q2 और ये लोग लकड़ी के समान होंगे जिसे आग पूरी तरह जला देगी! +\q1 +\v 15 हे इस्राएल के लोगों, यहोवा की घोषणा सुनों: +\q1 मैं दूर के देश से सेना लाऊँगा कि तुम पर आक्रमण करे। +\q2 वह एक बहुत ही शक्तिशाली राष्ट्र है जो लम्बे समय से अस्तित्व में है। +\q1 तुम उनकी भाषा नहीं समझते हो, +\q2 और जिसे समझने में तुम सक्षम भी नहीं होगे। +\q1 +\s5 +\v 16 उनके सब सैनिक बहुत बलवन्त हैं, +\q2 और उनके तरकश से तीर यहूदा के अनेक पुरुषों को उनकी कब्रों में भेज देंगे। +\q1 +\v 17 वे तुम्हारे खेतों की फसल से भोजन करेंगे, +\q2 जबकि तुम्हारे बच्चों को तुम्हारी रोटी खाना चाहिए। +\q1 वे तुम्हारी भेड़ों को और बकरियों को मार देंगे। +\q2 वे तुम्हारे अँगूर और अंजीर खाएँगे। +\q1 वे तुम्हारे शहरों को भी नष्ट कर देंगे जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें हैं +\q2 और लोगों को अपनी तलवार से मार डालेंगे। +\p +\s5 +\v 18 परन्तु इन सब बातों के होने पर भी मैं तुम्हारा अन्त नहीं करूँगा। +\q1 +\v 19 और जब लोग पूछते हैं, ‘यहोवा हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं?’ +\q2 तब तुम उनसे कहना, तुमने उनको त्याग दिया और अपनी भूमि में विदेशी देवताओं की पूजा की, +\q2 इसलिए अब तुम ऐसे देश में विदेशियों के दास बन जाओगे जो तुम्हारा देश नहीं हैं।’” +\q1 +\s5 +\v 20 यहोवा ने मुझे यह सन्देश इस्राएल और यहूदा के लोगों को सुनाने का आदेश दिया, +\q1 +\v 21 “सुनो, तुम लोग जो मूर्ख और निर्बुद्धि हो! +\q2 तुम्हारे पास आँखें हैं, परन्तु तुम देख नहीं सकते हो। +\q1 हाँ, तुम्हारे कान हैं, परन्तु तुम कुछ भी सुन नहीं सकते हो। +\q1 +\v 22 तुम्हारे मन में मेरा भय और सम्मान क्यों नहीं हैं? +\q2 मेरी उपस्थिति में तुम्हें थरथराना चाहिए! +\q1 मैं, यहोवा ही वह हूँ जिसने तटों की सीमा बाँधी है +\q2 कि समुद्र का पानी इसे पार न कर सकें और भूमि बाढ़ ग्रस्त न हो। +\q1 लहरें उठती हैं और गर्जना करती हैं, परन्तु वे उस सीमा को पर नहीं कर सकती हैं। +\q1 +\s5 +\v 23 परन्तु तुम लोग उन लहरों के समान नहीं हो जो मेरी आज्ञा मानती हैं। +\q2 तुम लोग बहुत हठीले और विद्रोही हो, +\q2 और निरन्तर मुझसे दूर होते रहे हो। +\q1 +\v 24 तुम यह मत कहो, +\q2 ‘आओ हम अपने परमेश्वर यहोवा का भय माने और उनका सम्मान करें, +\q2 वह आवश्यकता के समय वर्षा भेजते हैं, +\q2 और कटनी के समय अनाज को पकने देते हैं।’ +\q1 +\v 25 तुम्हारे बुरे कार्यों के कारण ही ये सब भले कार्य नहीं हुए। +\q2 यह तुम्हारे पापों के कारण है जो तुमने किए हैं कि तुम इन आशीषों से चुक गये हो। +\q1 +\s5 +\v 26 मेरे लोगों में से दुष्ट लोग हैं जो लोगों पर आक्रमण करने के लिए सड़कों पर छिपते हैं +\q2 जैसे शिकारी पक्षियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाते हैं। +\q1 +\v 27 जैसे शिकारी का पिंजरा पकड़े हुए पक्षियों से भरा रहता है, +\q2 वैसे ही उनके घर उन वस्तुओं से भरे हुए हैं जो उन्होंने लोगों से छल करके ली हैं +\q1 इसलिए अब वे बहुत समृद्ध और शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 28 वे बड़े और मोटे हैं +\q2 क्योंकि वे समृद्ध भोजन खाते हैं, और उनके बुरे कर्मों की कोई सीमा नहीं है। +\q2 अदालत में, वे न्यायधीशों के समक्ष निष्पक्ष निर्णय में साधारण लोगों की सहायता नहीं करते हैं, और वे अनाथों की रक्षा करने का प्रयास नहीं करते हैं। +\q2 वे अदालत में उन्हें सुनना भी नहीं चाहते हैं। +\q1 +\v 29 इसलिए मैं निश्चय ही ऐसे कार्यों का उन्हें दण्ड दूँगा। +\q2 मैं, यहोवा, यह घोषणा करता हूँ कि मैं निश्चय ही उनके देश से बदला लूँगा। +\q1 +\s5 +\v 30 इस देश में बहुत ही भयानक बातें हो रही हैं: +\q1 +\v 31 भविष्यद्वक्ता केवल झूठ बोलते हैं +\q1 और याजक अपने अधिकार से शासन करते हैं, +\q2 फिर भी तुम इसे पसन्द करते हो! +\q1 परन्तु जब तुम पर विपत्ति आ पड़ेगी, तब तुम क्या करोगे? + +\s5 +\c 6 +\q1 +\p +\v 1 तुम लोग जो बिन्यामीन के गोत्र से यरूशलेम में हो, +\q2 इस शहर से भागो! +\q1 यरूशलेम के दक्षिण में तकोआ शहर में तुरही फूँको! +\q1 बेथक्केरेम शहर में धुएँ का संकेत भेजो की लोगों को आने वाले खतरे की चेतावनी मिले +\q1 उत्तर से तुम्हारे विरुद्ध एक शक्तिशाली सेना आएगी, +\q2 और वह महा-विनाश का कारण बनेगी। +\q1 +\v 2 यरूशलेम एक सुन्दर स्त्री के समान है, +\q2 परन्तु शीघ्र ही इसे नष्ट कर दिया जाएगा। +\q1 +\v 3 शत्रु राजा, विदेशी जातियों के चरवाहे, अपनी सेनाओं के साथ आएँगे और शहर के चारों ओर अपने तम्बू स्थापित करेंगे, +\q2 और प्रत्येक राजा अपने सैनिकों के लिए शहर का एक भाग चुनेगा की वे उसे नष्ट करें जैसे चरवाहे अपनी भेड़ों के लिए चारागाह को विभाजित करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 राजा अपने सैनिकों से कहेंगे, +\q2 ‘युद्ध के लिए तैयार होने के लिए आवश्यक बलिदान करो। +\q2 हमें दोपहर से पहले उन पर आक्रमण करना होगा, +\q1 परन्तु हम यदि दोपहर बाद भी वहाँ पहुँचे, +\q1 +\v 5 तो हम रात को उन पर आक्रमण करेंगे +\q2 और उनके किलों को ढा देंगे।’” +\p +\s5 +\v 6 स्वर्ग में स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा कहते हैं, +\q1 “मैं उन सैनिकों को यरूशलेम के बाहर के पेड़ों को काटने का +\q2 और शहर की दीवारों तक ढलान बनाने का आदेश दूँगा! +\q1 इस शहर को दण्ड दिया जाना चाहिए +\q2 क्योंकि वहाँ हर कोई दूसरों का निरन्तर शोषण करता है। +\q1 +\v 7 इसके लोग दुष्टता के कार्य करते रहते हैं, +\q2 जैसे एक कुआँ निरन्तर पानी देता रहता है। +\q1 हिंसक और विनाशकारी कार्य करने वाले लोगों का शोर हर स्थान में सुना जाता है। +\q2 मैं निरन्तर उन लोगों को देखता हूँ जो पीड़ित और घायल हैं। +\q1 +\v 8 सुनो कि मैं, तुम यरूशलेम के लोगों को क्या चेतावनी दे रहा हूँ, +\q2 क्योंकि यदि आप नहीं सुनते, तो मैं तुम्हें अस्वीकार कर दूँगा +\q1 और तुम्हारे देश को उजड़ जाने दूँगा, +\q2 एक निर्जन स्थान बनने दूँगा।” +\p +\s5 +\v 9 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा यह कहते हैं, +\q2 “तुम्हारे शत्रु तुम्हारे देश को ऐसे उजाड़ देंगे जैसे दाख के बाग में हर एक दाखलता से सब अँगूर तोड़ लिए गए हैं। +\q1 उन लोगों को बन्धुआई में ले जाने के बाद इस्राएल में जो लोग बचे रहेंगे सैनिक उनकी सम्पत्ति लूट लेंगे +\q2 जैसे कि किसान जा कर दाखलताओं से बचे हुए अँगूर भी चुन लेता है। +\q1 +\v 10 मैं, यिर्मयाह, किससे कहूँ कि इस्राएलियों को चेतावनी दे, मेरी बात कौन सुनेगा? +\q2 यह ऐसा है जैसे कि उनके कण बन्द हैं। +\q1 जिसके कारण वे सुन नहीं सकते हैं। +\q2 वे मेरे सन्देशों का उपहास करते हैं, वे उन्हें सुनना ही नहीं चाहते हैं!” +\q1 +\s5 +\v 11 यह सुनने के बाद मैं बहुत क्रोधित हो गया, +\q2 जैसे यहोवा क्रोधित हैं, और मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। +\q1 तो यहोवा ने मुझसे कहा, +\q2 “सड़कों पर बच्चों को जो एकत्र होते हैं, उनसे कहा लोगों को बताओ। +\q1 पुरुषों और उनकी पत्नियों से कह; +\q2 वृद्ध लोगों से भी कह। +\q1 +\v 12 पुरुषों से कह कि मैं उनके घरों को उनके शत्रुओं को दे दूँगा, +\q2 और मैं उनकी सम्पत्ति और उनकी पत्नियों को भी उन्हें दे दूँगा, +\q1 जब मैं इस देश में रहने वालों को दण्ड दूँगा! +\q1 +\s5 +\v 13 हर कोई दूसरों को धोखा दे कर पैसा पाने का प्रयास कर रहा है, +\q2 महत्वहीन लोगों से ले कर सबसे महत्वपूर्ण लोगों तक। +\q1 यहाँ तक कि मेरे भविष्यद्वक्ता और याजक भी पैसों के लिए लोगों को धोखा दे रहे हैं। +\q1 +\v 14 उनका व्यवहार ऐसा है जैसे कि मेरे लोगों के पाप छोटे घावों जैसे हैं जिनका वे सरलता से उपचार कर सकते हैं। +\q वे लोगों को निरन्तर शान्ति देते रहते हैं, वे कहते हैं, मैं आशा करता हूँ कि तुम्हारा कल्याण हो रहा है। +\v 15 उन्हें अपने घृणित कार्यों के लिए लज्जित होना चाहिए, परन्तु वे लज्जित नहीं हैं। उनके चेहरों पर लज्जा नहीं है। +\q अतः, वे भी उन लोगों में होंगे जो मारे जाएँगे। जब मैं उन्हें दण्ड दूँगा तब वे नष्ट हो जाएँगे।” +\p +\s5 +\v 16 यहोवा ने इस्राएलियों से यह भी कहा, +\q1 “चौराहों पर खड़े हो जाओ और आने-जाने वालों को देखो। +\q2 उनसे पूछो कि पूर्व काल में उनके पूर्वजों का व्यवहार कैसा था। +\q1 और जब वे तुम्हें बताएँ, तो वैसा ही व्यवहार करो। +\q2 यदि तुम ऐसा करोगे, तो विश्राम पाओगे। +\q1 परन्तु तुमने कहा कि तुम ऐसा नहीं करना चाहते थे! +\q1 +\v 17 मैंने अपने भविष्यद्वक्ताओं को भेजा जो पहरेदारों के समान थे। +\q2 उन्होंने तुमसे कहा कि सावधानी से तुरहियों की आवाज सुनो कि शत्रुओं के आने कि चेतावनी है, +\q2 परन्तु तुम सुनना नहीं चाहते थे। +\q1 +\v 18 इसलिए, अन्य राष्ट्रों के लोगों इसे सुनो: +\q2 ध्यान दो कि इस्राएली लोगों के साथ क्या होने जा रहा है। +\q1 +\v 19 तुम सब सुनो! +\q2 मैं इस्राएली लोगों पर विपत्ति ले आऊँगा। +\q2 उनके साथ ऐसा ही होगा क्योंकि उन्होंने मेरी बात सुनने से मना कर दिया है। +\q2 उन्होंने मेरे नियमों का पालन करने से मना कर दिया है। +\q1 +\s5 +\v 20 तुम इस्राएली लोग, जब शेबा से आए हुए लोबान को जलाते हो +\q2 और जब तुम दूर से आया सुगन्धित अभिषेक का तेल चढ़ाते हो, +\q2 मैं तुम्हारे चढ़ावों से प्रसन्न नहीं होऊँगा। +\q1 मैं उन बलिदानों को स्वीकार नहीं करूँगा जो वेदी पर पूरी तरह जलाई जाती हैं; +\q2 मैं तुम्हारी किसी भी बलि से प्रसन्न नहीं हूँ। +\p +\v 21 इसलिए, मैं उन सड़कों पर बाधा डालूँगा जिन पर से मेरे लोग यात्रा करेंगे। +\q2 पुरुष और उनके पुत्र और लोगों के पड़ोसी और मित्र उन बाधाओं से ठोकर खा कर गिरेंगे; +\q1 सब मर जाएँगे।” +\p +\v 22 यहोवा यह भी कहते हैं, +\q1 “तुम देखोगे कि उत्तर दिशा से एक विशाल सेना तुम्हारी ओर बढ़ रही है। +\q2 दूर के एक महान देश की सेना तुम पर आक्रमण करने की तैयारी कर रही है। +\q1 +\s5 +\v 23 उनके पास धनुष और तीर और भाले हैं; +\q2 वे बहुत क्रूर हैं, और किसी पर दया नहीं करते हैं। +\q1 जब वे अपने घोड़ों पर सवारी करते हैं, +\q2 तब उनके घोड़ों की टाप समुद्र की लहरों की गर्जन के समान सुनाई देती हैं; +\q1 वे युद्ध के लिए व्यवस्थित होकर सवारी कर रहे हैं +\q2 कि तुम, यरूशलेम के लोगों पर आक्रमण करें।” +\q1 +\v 24 यरूशलेम के लोग एक-दूसरे से कहते हैं, +\q1 “हमने शत्रु के विषय में समाचार सुना है; +\q2 इसलिए हम बहुत डरे हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम दुर्बल हो गए हैं। +\q1 हम बहुत डरे हुए हैं, और चिन्तित हैं, +\q2 ऐसी स्त्री के समान जो बच्चों को जन्म देने वाली है। +\q1 +\s5 +\v 25 अतः, बाहर खेतों में मत जाओ! सड़कों पर मत जाओ, +\q1 क्योंकि शत्रु के सैनिकों के हाथों में तलवारें हैं और वे हर स्थान में हैं; +\q2 वे सब दिशाओं से आ रहे हैं, और हम बहुत डरे हुए हैं।” +\q1 +\v 26 इसलिए मैं, यिर्मयाह, तुमसे कहता हूँ, +\q “मेरे प्रिय लोगों, टाट के वस्त्र पहन कर राख में बैठो +\q कि अपने पापों के लिए दुख प्रकट करो। +\q1 विलाप करो और बहुत रोओ, +\q2 जैसे एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर माँ रोती है। +\q1 तुम्हारे शत्रु बहुत निकट हैं, +\q2 और वे सब कुछ नष्ट करने जा रहे हैं।” +\p +\s5 +\v 27 तब यहोवा ने मुझसे कहा, +\q1 “यिर्मयाह, मैंने तुझे ऐसा व्यक्ति बनाया है जो धातु को इतना गर्म करता है कि उसकी अशुद्धियाँ समाप्त हो जाएँ। +\q2 तू मेरे लोगों के व्यवहार की जाँच करेगा। +\q1 +\v 28 तू देखेगा कि वे हठीले विद्रोही हैं: +\q2 वे सदा दूसरों की निन्दा करते हैं। +\q1 उनके मन पीतल या लोहे जैसे कठोर है; +\q2 वे सब दूसरों को निरन्तर धोखा देते रहते हैं। +\q1 +\v 29 धातु का कार्य करने वाला आग को तेज करने के लिए धौंकनी को बहुत तेजी से चलाता है कि धातु की अशुद्धियाँ जल जाएँ। +\q1 परन्तु जैसे आग सब अशुद्धियों को निकाल नहीं पाती है, +\q2 वैसे ही लोगों को उनके दुष्ट कर्मों से अलग करना असम्भव है। +\q1 +\v 30 मुझ यहोवा, ने उन्हें त्याग दिया है; +\q2 मैं कहता हूँ कि वे निकम्मी चाँदी के समान हैं।” + +\s5 +\c 7 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने मुझसे कहा, +\v 2 “मेरे भवन के प्रवेश द्वार पर जा और लोगों को यह सन्देश दे: यहूदा के लोगों तुम जो यहाँ आराधना करते हो, यहोवा से इस सन्देश को सुनों। +\s5 +\v 3 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, तुमसे कहते हैं: ‘यदि तुम अपनी जीवन-शैली सुधारते हो और सही कार्य करना आरम्भ करते हो, तो मैं तुम्हें तुम्हारे देश में रहने दूँगा। +\v 4 परन्तु कुछ लोग बार-बार तुमसे कह रहे हैं, ‘यहोवा का भवन यहाँ है, इसलिए हम सुरक्षित रहेंगे; वह हमें और आराधनालय को नष्ट होने नहीं देंगे।’ परन्तु वे जो कहते हैं उस पर ध्यान न दें, क्योंकि वे तुम्हें धोखा दे रहे हैं। +\s5 +\v 5 यदि तुम अपना व्यवहार बदलो और बुराई का त्याग करो, और दूसरों के प्रति निष्पक्ष कार्य करो, +\v 6 और यदि तुम अपने देश में रहने वाले परदेशियों और अनाथों और विधवाओं पर अत्याचार करना बन्द कर दो, और यदि तुम लोगों की हत्या करना और अन्य देवताओं की पूजा करना बन्द कर देते हो तो मैं तुम पर दया करूँगा। +\v 7 यदि तुम वही करो जो मैं कहता हूँ, तो मैं तुमको इस देश में रहने दूँगा जिसकी मैंने तुम्हारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी कि यह देश उनके और उनके वंशजों के लिए सदा के लिए होगा। +\p +\s5 +\v 8 लोग बार-बार तुमसे कह रहे हैं, ‘आराधनालय यहाँ है, इसलिए हम सुरक्षित हैं,’ और तुम उनकी बातों पर विश्वास कर रहे हो कि वे जो कह रहे हैं वह सच है। परन्तु वे लोग तुम्हें धोखा दे रहे हैं; वे जो कहते हैं व्यर्थ है। +\v 9 तुम सोचते हो कि तुम चोरी कर सकते हो, लोगों की हत्या कर सकते हो, व्यभिचार कर सकते हो, अदालत में झूठ बोल सकते हो, और बाल और सब देवताओं की पूजा कर सकते हो जिन्हें तुम पहले नहीं जानते थे। +\v 10 और फिर सोचते हो कि तुम यहाँ आकर इस आराधनालय के सामने खड़े हो सकते हैं, जो मेरा भवन है, और कहो ‘हमारे साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा!’, जबकि तुम उन सब घृणित कार्यों को करते रहते हो। +\v 11 संभव है कि तुम नहीं जानते कि तुमने मेरे इस भवन को एक गुफा के समान बना दिया है जहाँ चोर छिपते हैं। परन्तु मैं, यहोवा, तुमसे कहता हूँ कि मैंने इन सब बातों को देखा है! +\p +\s5 +\v 12 बहुत पहले मैंने शीलो में अपना पवित्र-तम्बू रखा, कि लोगों के लिए मेरी आराधना करने का एक स्थान हो। इस विषय में सोचो कि मैंने इसे कैसे नष्ट कर दिया क्योंकि मेरे इस्राएली लोगों ने वहाँ कई दुष्टता के कार्य किए थे। +\v 13 इसलिए मैंने उसे नष्ट कर दिया था, इस पर विचार करो और तुम निरन्तर दुष्टता के उन्हीं कार्यों को कर रहे हो जिसके विषय में मैंने तुम्हें बार-बार चिताया परन्तु तुमने सुनने से मना कर दिया। मैंने तुमको पुकारा, परन्तु तुमने उत्तर देने से मना कर दिया। +\v 14 इसलिए, जैसे मैंने शीलो को नष्ट कर दिया, अब मैं इस आराधनालय को भी नष्ट कर दूँगा जो लोगों द्वारा मेरी आराधना करने के लिए बनाया गया था, इस आराधनालय को जिस पर तुम भरोसा करते हो, इस स्थान को मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया था। +\v 15 और मैं तुम्हें इस देश से निकाल दूँगा और तुम्हें अपने से दूर के अन्य देशों को भेजूँगा, जैसा कि मैंने तुम्हारे सम्बन्धी, इस्राएल के लोगों के साथ किया था।” +\p +\s5 +\v 16 यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, इन लोगों के लिए अब और प्रार्थना मत कर। उनकी सहायता करने के लिए मुझसे प्रार्थना मत कर या मुझसे प्रार्थना मत कर, क्योंकि मैं तेरी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दूँगा। +\v 17 क्या तू उन दुष्ट कार्यों को देखता है जो वे यरूशलेम की सड़कों पर और यहूदा के अन्य नगरों में कर रहे हैं? +\v 18 बच्चे लकड़ियाँ इकट्ठा करते हैं और उनके पिता बलिदान जलाने के लिए वेदियों पर आग जलाते हैं। स्त्रियाँ रोटियाँ पकाने के लिए आटा गुँधती हैं कि स्वर्ग की रानी कहलाने वाली अशेरा को भेंट चढ़ाएँ। और उनकी वेदियों पर वे अपनी दूसरी मूर्तियों को दाखमधु चढ़ाते हैं। ये सब बातें मुझे बहुत क्रोधित करती हैं! +\s5 +\v 19 परन्तु मैं वह नहीं जिसे वे चोट पहुँचा रहे हैं; वे वास्तव में इन कार्यों को करके स्वयं को चोट पहुँचा रहे हैं जिसके लिए उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ेगा।” +\v 20 इसलिए प्रभु यहोवा यह कहते हैं: “क्योंकि इस स्थान पर जो कुछ भी हो रहा है उससे मैं बहुत क्रोधित हूँ, मैं इन लोगों को गम्भीर दण्ड दूँगा; मेरा क्रोधित होना, वह अग्नि के समान होगा जो बुझाई नहीं जाएगी और मैं लोगों को उनके पशुओं को, उनके फल के पेड़ों को और उनकी फसलों को नष्ट कर दूँगा।” +\p +\s5 +\v 21 इसलिए, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान यह कहते हैं: “अपनी भेंटों को जिन्हें वेदी पर पूरा जलाने के लिए लाते हो और अन्य बलिदान मुझे मत दो; उन्हें स्वयं खाओ! +\v 22 जब मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाला था तब मैंने न तो वेदी पर जलाई जाने वाली बलियाँ माँगी और न ही अन्य भेंटें माँगी थी। +\v 23 मैंने उनसे कहा था, ‘मेरा आज्ञापालन करो; यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा और तुम मेरे लोग होगे। यदि तुम उन कार्यों को करते हो जिन्हें मैं चाहता हूँ, तो तुम्हारा कल्याण होगा।’ +\s5 +\v 24 परन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया। वे उन बुरे कार्यों को करते रहे जिन्हें वे करना चाहते थे, जो उनके हठीले मन की इच्छा होती थी। मेरे निकट आने की अपेक्षा, वे मुझसे दूर चले गए। +\v 25 जिस दिन से तुम्हारे पूर्वजों ने मिस्र छोड़ा था, तब से ले कर आज तक मैं अपने भविष्यद्वक्ताओं को बार-बार भेजता रहा। +\v 26 परन्तु तुम, मेरे लोगों ने मेरी बात नहीं सुनी है या मैंने जो कहा उस पर ध्यान नहीं दिया है; तुम हठीले हो, और तुमने अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक दुष्टता के कार्य किये हैं।” +\p +\s5 +\v 27 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “जब तू मेरे लोगों से यह सब कहेगा, तो वे तेरी बात नहीं सुनेंगे। जब तू उन्हें पुकारेगा, तो वे उत्तर नहीं देंगे। +\v 28 उनसे कहना, ‘तुम यहूदा के लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा नहीं मानी है; जब उन्होंने तुम्हें सुधारने का प्रयास किया तो तुमने इसे स्वीकार नहीं किया। तुम में से कोई भी सत्यवादी नहीं है; तुम कभी सच नहीं बोलते हो; तुम केवल झूठ बोलते हो।’ +\s5 +\v 29 इसलिए, उन्हें सिर मुँड़ा कर दुख प्रकट करने; उन्हें बंजर पहाड़ियों में जाने और एक विलाप का गीत गाने को कह, +\q क्योंकि मैंने इस पीढ़ी के लोगों को पूर्णतः त्याग दिया है जिन्होंने मुझे क्रोध दिलाया है।” +\v 30 यहोवा कहते हैं: “यहूदा के लोगों ने बहुत सी बातें की हैं जो मैं कहता हूँ बुराई है। उन्होंने मेरे आराधनालय में अपनी घृणित मूर्तियाँ स्थापित की हैं, जिससे वह स्थान मेरी आराधना करने के लिए अस्वीकार्य स्थान हो गया है। +\s5 +\v 31 उन्होंने यरूशलेम के बाहर हिन्नोम की घाटी में तोपेत में वेदियों का निर्माण किया है, और वे अपने पुत्रों और पुत्रियों को उन वेदियों पर जला देते हैं। मैंने उन्हें ऐसा करने का आदेश कभी नहीं दिया; यह मेरे विचारों में भी नहीं था! +\v 32 तो उन्हें सावधान रहना चाहिए! ऐसा समय आएगा जब उस स्थान को तोपेत या हिन्नोम की घाटी नहीं कहा जाएगा; इसकी अपेक्षा, इसे वध की घाटी कहा जाएगा। वहाँ बड़ी संख्या में लोग होंगे जिन्हें वहाँ दफनाया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप अधिक शवों को दफनाने का कोई स्थान नहीं होगा। +\s5 +\v 33 मेरे लोगों के शव जिन्हें दफनाया नहीं जाएगा और भूमि पर छोड़ दिया जाएगा, वे गिद्धों और जंगली पशुओं द्वारा खाए जाएँगे, और उन्हें भगाने के लिए कोई भी नहीं होगा। +\v 34 यरूशलेम की सड़कों पर अब न तो कोई गीतों को गाएगा और न ही हसेगा; यहूदा में दूल्हे और दुल्हन का आनन्द नहीं होगा, क्योंकि पूरा का पूरा देश नष्ट हो जाएगा।” + +\s5 +\c 8 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “तुम्हारे शत्रु जब तुम्हें नष्ट कर चुके होंगे, तब वे तुम्हारे राजाओं और यहूदा के अन्य अधिकारियों, और तुम्हारे याजकों और भविष्यद्वक्ताओं और वहाँ रहने वाले अन्य लोगों की कब्रों को खोदेंगे। +\v 2 वे उनकी हड्डियों को कब्रों से निकालेंगे और उन्हें सूर्य और चँद्रमा और सितारों के नीचे भूमि पर बिखरा कर अपमानित करेंगे—क्योंकि यही तो वे देवता हैं जिन्हें मेरे लोग प्रेम करते थे और पूजा करते थे। उनकी हड्डियों को एकत्र करने वाला और उन्हें फिर से दफन करने वाला कोई नहीं होगा; वे खाद के समान भूमि पर बिखरे रहेंगे। +\v 3 और इस दुष्ट राष्ट्र के लोग जो अभी भी जीवित हैं और जिन्हें मैंने दूसरे देशों की बन्धुआई में भेज दिया है, वे कहेंगे, ‘हम इन देशों में जीवित रहने की अपेक्षा मरना पसन्द करेंगे।’ यह सच होगा क्योंकि मैं, यहोवा यही कहता हूँ।” +\p +\s5 +\v 4 यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, इन लोगों से कह कि मैं यहोवा, उनसे यह कह रहा हूँ: ‘जब लोग गिर जाते हैं, तो वे फिर उठते हैं, क्या वे नहीं उठते हैं? +\q जब लोग सड़क पर चलते हैं और वे देखते हैं कि वे गलत सड़क पर चल रहे हैं, तो वे वापस जाते हैं और सही सड़क ढूँढ़ते हैं, क्या वे ऐसा नहीं करते? +\v 5 हाँ, वे ऐसा ही करते हैं, तो यहूदा के इन लोगों ने उन मूर्तियों पर भरोसा क्यों किया है जिन्होंने उन्हें धोखा दिया है? +\q वे मुझसे दूर होते जा रहे हैं और मेरी वाचा के साथ विश्वासघात कर रहे हैं, जबकि मैंने उन्हें चेतावनी दी है कि क्या होगा। +\s5 +\v 6 मैंने उनकी बातों को सावधानी से सुना है, परन्तु उन्हें जो कहना है वे नहीं कहते हैं। उनमें से किसी को भी अपने पापों का पछतावा नहीं है। +\q कोई भी नहीं कहता है, “मैंने दुष्टता की हैं।” वे पाप कर रहे हैं और जो चाहते हैं वो कर रहे हैं; +\q जैसे घोड़े बड़े उत्साह के साथ युद्ध के लिए दौड़ते हैं वैसे ही ये लोग पाप करने के लिए बड़े उत्साह से आगे बढ़ते हैं। +\v 7 यहाँ तक कि सारस भी जानता है कि मौसम कब बदलता है, +\q और पिण्डुकी, सूपाबेनी, और बगुला भी अपने प्रवासन के समय को समझते हैं! +\q परन्तु मेरे लोग नहीं जानते कि मैं, यहोवा, उनसे क्या चाहता हूँ। +\s5 +\v 8 तुम्हारे शिक्षक मूसा द्वारा लिखी गयी व्यवस्था के नियमों की गलत व्याख्या करते हैं। +\q तो, वे क्यों कहते रहते हैं, “हम बहुत बुद्धिमान हैं क्योंकि हमारे पास यहोवा के नियम हैं”? +\v 9 वे शिक्षक, जो सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं, उन्हें लज्जित और निराश किया जाएगा जब उनके शत्रु उन्हें पराए देश में ले जाएँगे +\q क्योंकि उन्होंने मेरी बातों को अस्वीकार करके पाप किया है। ऐसा करना क्या उनकी बुद्धिमानी थी? कभी नहीं! +\v 10 इसलिए, मैं उनकी पत्नियों को अन्य पुरुषों को दूँगा; मैं उनके खेतों को उन शत्रु सैनिकों को दूँगा जो उन्हें जीतते हैं। +\q सब लोग, अत्याधिक महत्वपूर्ण या महत्वहीन, वरन् भविष्यद्वक्ता या याजक, सबके सब सम्पत्ति पाने के लिए धोखा देते हैं। +\s5 +\v 11 उनका व्यवहार ऐसा है जैसे कि मेरे लोगों के पाप छोटे घावों के समान हैं जिन्हें साफ करके पट्टी बाँधने की आवश्यकता नहीं है। +\q वे लोगों से कहते हैं कि उनके साथ सब कुछ अच्छा होगा, परन्तु यह सच नहीं है; उनके साथ कुछ भी अच्छा नहीं होगा। +\v 12 जब वे घृणित कार्य करते हैं तो उन्हें लज्जित होना चाहिए, परन्तु वे यह भी नहीं जानते कि अपने चेहरों पर लज्जा का भाव कैसे दिखाएँ कि वे अपने पापों से पछताते हैं। +\q अतः, वे मारे जाएँगे। अतः उनके शव उन लोगों के शवों के बीच पड़े रहेंगे जिन्हें शत्रुओं ने मार डाला है। तो जब मैं उन्हें दण्ड दूँगा तब वे मार डाले जाएँगे। +\v 13 उनकी अँगूर और अंजीर की फसलों को मैं उनके शत्रुओं के हाथों में कर दूँगा। उनके फलों के पेड़ सूख जाएँगे। +\q मैंने उनके लिए जो आशीषें रखी हैं, उन्हें वे प्राप्त नहीं कर पाएँगे। ऐसा निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।’” +\s5 +\v 14 तब लोग कहेंगे, “हम इन छोटे नगरों में क्यों रुके रहें? हमें उन शहरों में जाना चाहिए जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें हैं, परन्तु यदि हम ऐसा करते हैं तो हम वहाँ मारे जाएँगे, +\q क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने निर्णय लिया है कि हमें नष्ट किया जाएँ; यह ऐसा है जैसे कि उन्होंने हमें पीने के लिए विष दिया है, क्योंकि हमने उनके विरुद्ध पाप किया है। +\v 15 हमने आशा की थी कि हमारा कल्याण होगा, परन्तु नहीं हुआ। +\q हम आशा करते थे कि हम फिर से ठीक हो जाएँगे और बलवन्त होंगे, परन्तु हमारे साथ वही हो रहा है जिसका हमें भय था। +\s5 +\v 16 दूर उत्तर में, इस्राएली शहर दान में, लोगों को आक्रमण करने वालों के घोड़ों का हिनहिनाना सुनाई दे रहा है। यह ऐसा है जैसे उनकी सेना के चलने से पूरी धरती हिल रही है; +\q वे हमारे देश और इसमें का सब कुछ, लोगों और शहरों को नष्ट करने के लिए आ रहे हैं।” +\v 17 यहोवा कहते हैं, “मैं उन शत्रु सैनिकों को यहूदा भेजूँगा, और वे तुम्हारे बीच विषैले साँपों के समान होंगे। +\q उन्हें आक्रमण करने से रोकने में कोई भी सक्षम नहीं होगा; वे साँपों के समान डसेंगे, और तुम्हें मार डालेंगे।” +\s5 +\v 18 यहूदा के लोगों के लिए मेरे दुख ने आनन्द का सत्यानाश कर दिया है, मेरा मन दुख से भर गया है। +\v 19 सम्पूर्ण देश के लोग पूछते हैं, “क्या यहोवा ने यरूशलेम को त्याग दिया है? +\q क्या वह, हमारे शहर के राजा, अब वहाँ नहीं है? “यहोवा ने उत्तर दिया,” यदि वे चाहते हैं कि मैं यरूशलेम में रहूँ, तो वे मूर्तियों और विदेशी देवताओं की पूजा क्यों करते हैं?” +\s5 +\v 20 लोग कहते हैं, “फसल का मौसम समाप्त हो गया है, गर्मी भी समाप्त हो गई है, परन्तु यहोवा ने अब तक हमें अपने शत्रुओं से बचाया नहीं है।” +\v 21 मैं रोता हूँ क्योंकि मेरे लोगों को कुचल दिया गया है। मैं शोक करता हूँ, और मैं पूरी तरह से निराश हूँ। +\v 22 मैं पूछता हूँ, “गिलाद में निश्चय ही औषधी है! निश्चय ही वहाँ वैद्य हैं!” +\q परन्तु मेरे लोगों की आत्मा घायल है उनका उपचार हो ही नहीं सकता है। + +\s5 +\c 9 +\p +\v 1 “अच्छा होता कि मेरा सिर पानी के सोते के समान आँसू बहाता, और मेरी आँखें आँसू के झरने के समान हो जाती, +\q क्योंकि मैं शत्रुओं द्वारा मारे गए मेरे लोगों के लिए रात और दिन रोता हूँ। +\v 2 मैं चाहता हूँ कि मैं अपने लोगों को छोड़ दूँ और उन्हें भूल जाऊँ, और जा कर रेगिस्तान में एक झोपड़ी में रहूँ, +\q क्योंकि वे यहोवा के प्रति निष्ठावान नहीं रहे हैं; वे उन लोगों की भीड़ है जो दूसरों को धोखा देते हैं। +\v 3 वे झूठ बोलने के लिए अपनी जीभ का ऐसा उपयोग करते हैं जैसे लोग धनुष से तीर चलाते हैं। +\q वे प्रभावशाली हैं, परन्तु इसलिए नहीं कि वे निष्ठावान हैं, परन्तु वे दुष्टता के कार्य करते हैं। यहोवा कहते हैं, “वे मुझे नहीं जानते।” +\s5 +\v 4 अपने पड़ोसियों और यहाँ तक कि अपने भाइयों पर भरोसा मत करो! याकूब के समान सब धोखेबाज हैं। +\q वे एक-दूसरे की निन्दा करते हैं और एक दूसरे के विषय में झूठ बोलते हैं। +\v 5 वे अपने मित्रों को धोखा देते हैं और कभी सच्चाई नहीं बताते हैं। +\q वे निरन्तर झूठ बोलते हैं और, इस कारण, वे झूठ में निपुर्ण हो गए हैं; वे अत्याचार पर अत्याचार करते हैं, जब तक कि वे पाप करते-करते थक नहीं जाते हैं। +\v 6 यिर्मयाह, तेरे चारों ओर रहने वाले धोखेबाज हैं। उनमें से कोई भी स्वीकार नहीं करेगा कि मैं परमेश्वर हूँ। +\s5 +\v 7 इसलिए मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यह कहता हूँ: +\q सावधानी से सुनो कि मैं क्या कहता हूँ: मैं अपने लोगों को परखूँगा, जैसे धातु का कार्य करने वाला धातु को धधकती आग में डाल देता है कि उसकी अशुद्धता को पूरी तरह से जला दिया जा सके। +\q मेरे लोगों द्वारा किए गए सब बुरे कार्यों के कारण, मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूँ। +\v 8 वे जो कहते हैं उससे लोगों को ऐसी चोट पहुँचती है जैसे विषैले तीरों का वार। +\q वे अपने पड़ोसियों से कहते हैं, ‘तुम्हारा भला हो परन्तु योजना बनाते हैं कि उन्हें कैसे घात किया जाए। +\v 9 उनके ऐसे कार्यों के लिए क्या मैं उन्हें दण्ड न दूँ? +\q हाँ, मुझे निश्चय ही ऐसे कार्य करने वाले देशवासियों को बदला देना चाहिए!” +\s5 +\v 10 इसलिए, मैं पर्वतों और चारागाहों में रहने वालों के लिए रोऊँगा, +\q क्योंकि वे स्थान उजाड़ हो जाएँगे, और कोई भी वहाँ नहीं रहेगा। +\q एक दूसरे को पुकारने के लिए वहाँ कोई मवेशी भी नहीं होगा, +\q और सब पक्षी और जंगली पशु अन्य स्थानों में भाग गए होंगे। +\v 11 यहोवा यह भी कहते हैं, “मैं यरूशलेम को खण्डहरों का ढेर बना दूँगा, +\q और केवल सियार ही वहाँ रहेंगे। +\q मैं यहूदा के नगरों को नष्ट कर दूँगा, वे पूरी तरह से निर्जन हो जाएँगे; +\q वहाँ कोई नहीं रहेगा।” +\v 12 मैंने कहा, “केवल वे लोग जो बहुत बुद्धिमान हैं इन बातों को समझ सकते हैं। +\q केवल वे लोग जो यहोवा द्वारा सिखाए गए हैं, इन बातों को दूसरों को समझा सकते हैं। +\q बुद्धिमान लोग ही समझा सकते हैं कि देश पूरी तरह नष्ट क्यों होगा +\q परिणाम यह होगा कि उसमें से होकर यात्रा करने से हर कोई डरेगा।” +\p +\s5 +\v 13 यहोवा ने उत्तर दिया, “ऐसी घटनाएँ होंगी क्योंकि मेरे लोगों ने मेरे द्वारा दिए गये नियमों को त्याग दिया है; उन्होंने न तो मेरा आज्ञापालन किया, न ही मेरे निर्देशों का पालन किया है। +\v 14 इसकी अपेक्षा, उन्होंने हठ करके उन कार्यों को किया है जो वे अपने मन से करना चाहते थे। उन्होंने उन मूर्तियों की पूजा की है जो बाल देवता का रूप हैं, जैसा उनके पूर्वजों ने किया था। +\s5 +\v 15 तो अब सुनो, कि मैं, इस्राएलियों का परमेश्वर, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, क्या कहता हूँ: मैं जो करूँगा वह यह है कि मैं इन लोगों को खाने के लिए कड़वी वस्तुएँ और पीने के लिए विष दूँगा: +\v 16 मैं उन्हें कई राष्ट्रों में तितर-बितर करूँगा, जिनके विषय में न तो वे और न ही उनके पूर्वजों ने कभी कुछ जाना होगा; मैं उनके शत्रुओं की तलवार से उन्हें नष्ट करवा दूँगा।” +\s5 +\v 17 यह वही है जो यहोवा स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान कहते हैं: +\q “जो हो रहा है उसके विषय में सोचो, +\q फिर उन स्त्रियों को बुलाओ जो किसी की मृत्यु हो जाने पर विलाप करती हैं। +\v 18 उनसे कहो कि शीघ्र आएँ और विलाप करना आरम्भ करें, +\q परिणामस्वरूप तुम्हारी आँखों से आँसू बहने लगे। +\s5 +\v 19 यरूशलेम के लोगों की पुकार को सुनो जो कहती है, +\q ‘हम नाश हो गए हैं! +\q हम पर भयानक विनाश आ पड़ा है! +\q अब हम बहुत लज्जित हैं, +\q क्योंकि हमारे घर हमारे शत्रुओं द्वारा नष्ट कर दिए गए हैं, और हमें अपना देश छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा है।’ +\v 20 तुम स्त्रियों, सुनों कि यहोवा क्या कहते हैं। +\q उनके शब्दों पर ध्यान दो। +\q अपनी पुत्रियों को विलाप करना सिखाओ। +\q एक दूसरे को सिखाओ कि विलाप का गीत कैसे गाते हैं। +\s5 +\v 21 क्योंकि तुम्हारे घरों में और महलों में लोग मरेंगे। +\q सड़कों में कोई भी बच्चा नहीं खेलेगा, +\q शहर के चौकों पर एकत्र होने के लिए युवक नहीं होंगे। +\v 22 खेतों में शव ऐसे बिखरे होंगे जैसे खाद; +\q उनके शव वहाँ ऐसे पड़े होंगे जैसे कटनी करने वालों द्वारा काटा गया अनाज, +\q और उन्हें दफनाने के लिए कोई भी जीवित नहीं होगा। +\s5 +\v 23 यहोवा यह कहते हैं: +\q “बुद्धिमान पुरुष अपनी बुद्धिमानी पर गर्व न करे, +\q बलवन्त पुरुष अपने बल पर गर्व न करे; +\q और धनवान अपने धन पर गर्व न करे। +\v 24 इसकी अपेक्षा, जो लोग गर्व करना चाहते हैं वे मुझे जानने का +\q और समझने का कि मैं यहोवा हूँ, गर्व करें, +\q और कि मैं दयालु हूँ और करुणामय और धर्मी हूँ, +\q कि मैं निष्ठापूर्वक लोगों से प्रेम करता हूँ, +\q और ऐसे कार्य करने वालों से मैं प्रसन्न रहता हूँ। +\p +\s5 +\v 25-26 ऐसा समय आएगा जब मैं उन सब लोगों को दण्ड दूँगा जिन्होंने खतना करके अपने शरीर को तो बदल दिया है, परन्तु अपने मन को नहीं बदला है: जैसे मिस्र, मोआब, एदोम और अम्मोन जातियों के लोग, जो यहूदा से दूर रेगिस्तानी क्षेत्र के निकट रहते हैं। मैं इस्राएल के लोगों को भी दण्ड दूँगा क्योंकि वे केवल बाहरी, शारीरिक रूप से खतना किए हुए हैं, भीतरी रूप से, अपने मन से नहीं।” + +\s5 +\c 10 +\p +\v 1 हे इस्राएल के लोगों, सुनो की यहोवा क्या कहते हैं: +\q1 +\v 2 “अन्य जातियों के समान कार्य मत करो, और आकाश में जो विचित्र चिन्हों को देखते हो, उनसे मत डरो, +\q2 चाहे वे अन्य राष्ट्रों के लोगों को भयभीत करें। +\q1 +\s5 +\v 3 अन्य राष्ट्रों के लोगों के रीति-रिवाज व्यर्थ हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने जंगल में एक पेड़ काटा। +\q2 फिर एक कुशल कारीगर इसके एक टुकड़े को काटता है और अपनी छेनी से उस टुकड़े को काट कर मूर्ति बनाता है। +\q1 +\v 4 तब लोग उस मूर्ति को चाँदी और सोने से सजाते हैं। +\q2 फिर वे कीलें ठोंक कर उसे सुरक्षित खड़ा करते हैं कि वह लुढ़क न जाए। +\q1 +\v 5 तब मूर्ति खीरे के खेत में खड़े एक पुतले के समान खड़ी रहती है। +\q2 वह बात नहीं कर सकती, +\q1 और लोगों को इसे उठा कर ले जाना होता है, +\q2 क्योंकि वह चल नहीं सकती है। +\q1 मूर्तियों से मत डरो, +\q2 क्योंकि वे किसी को हानि नहीं पहुँचा सकती हैं, +\q2 और वे किसी की सहायता करने के लिए कुछ भी अच्छा नहीं कर सकती हैं।” +\q1 +\s5 +\v 6 हे यहोवा, आपके जैसा कोई नहीं है। +\q2 आप महान हैं, और आप बहुत शक्तिशाली हैं। +\q1 +\v 7 आप सब जातियों के राजा हो! +\q2 सबको आपका सम्मान करना और भय मानना चाहिए, +\q2 क्योंकि आप इसके योग्य हैं। +\q1 पृथ्‍वी के सब बुद्धिमान लोगों में +\q2 और उन सब साम्राज्यों में जहाँ वे रहते हैं, +\q2 आपके जैसा कोई नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 8 वे लोग जो सोचते हैं कि वे बहुत बुद्धिमान हैं मूर्ख और निर्बुद्धि हैं। +\q2 वे मूर्तियों की पूजा करते हैं जो केवल लकड़ी से बने होते हैं! +\q2 वे निश्चय ही उन्हें कुछ नहीं सिखा सकती हैं। +\q1 +\v 9 लोग तर्शीश से पत्तर बनाई हुई चाँदी और ऊफाज से सोना लाते हैं, +\q2 और फिर वे मूर्तियों पर चढ़ाने के लिए कुशल कारीगरों को वह चाँदी और सोने के पत्तर देते हैं। +\q1 फिर वे कुशल कारीगरों द्वारा बनाई गई उन मूर्तियों को महँगा बैंगनी वस्त्र पहनाते हैं। +\q1 +\v 10 परन्तु यहोवा ही एकमात्र सच्चे परमेश्वर हैं; +\q2 वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, +\q2 राजा हैं, जो सदा के लिए शासन करते हैं। +\q1 जब वह क्रोधित होते हैं, तो सारी पृथ्‍वी हिल जाती है; +\q2 और देश-देश के लोगों से जब वह क्रोधित होते हैं तो वे लोग इसे सहन नहीं कर सकते हैं। +\p +\s5 +\v 11 तुम इस्राएली लोग, उन लोगों को यह कहो: “उन मूर्तियों ने आकाश और पृथ्‍वी नहीं बनाई, और वे पृथ्‍वी पर से नष्ट हो जाएँगी।” +\q1 +\v 12 परन्तु यहोवा ने सारी पृथ्‍वी को अपनी शक्ति से बनाया; +\q2 अपनी बुद्धि से उन्होंने खड़े होने के लिए ठोस भूमि बनाई है +\q2 और अपनी समझ से आकाश को फैलाया। +\q1 +\v 13 जब वह ऊँचे शब्द से बोलते हैं, आकाश में गर्जन होती है; +\q2 वह बादलों को पृथ्‍वी के हर भाग में बनने का कारण बनते हैं। +\q1 वह वर्षा के साथ बिजली चमकाते हैं, +\q2 और अपने भण्डार से हवाओं को चलाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 लोग पशुओं के समान मूर्ख हैं और परमेश्वर की इच्छाओं के विषय में कुछ भी नहीं जानते! +\q1 जो मूर्तियाँ बनाते हैं वे सदा निराश होते हैं +\q2 क्योंकि उनकी मूर्तियाँ उनके लिए कुछ भी नहीं करती हैं। +\q1 वे जो प्रतिमाएँ बनाते हैं वे वास्तविक देवता नहीं हैं; +\q2 वे निर्जीव हैं। +\q1 +\v 15 मूर्तियाँ निकम्मी हैं; वे सच्चे परमेश्वर का उपहास करने की वस्तुएँ हैं; +\q2 एक ऐसा समय आएगा जब वे सब नष्ट हो जाएँगी। +\q1 +\v 16 परन्तु जिस परमेश्वर की हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं वह उन मूर्तियों के समान नहीं हैं; +\q2 उन्होंने ही सब कुछ बनाया है; +\q1 हम, इस्राएल के गोत्र, उनके हैं; +\q2 वह स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 यहोवा यरूशलेम के लोगों से यह कहते हैं: +\q1 “तुम्हारे शत्रुओं की सेना तुम्हारे शहर को घेर रही है, +\q2 अतः अपनी सम्पत्ति इकट्ठा करो और शहर छोड़ने के लिए तैयार हो जाओ। +\q1 +\v 18 मैं शीघ्र ही तुम्हें इस देश से बाहर फेंक दूँगा +\q2 और तुमको घोर संकट का सामना करना पड़ेगा, +\q2 परिणामस्वरूप तुम फिर से मेरा स्मरण करोगे।” +\q1 +\s5 +\v 19 लोगों ने उत्तर दिया, “यह ऐसा है जैसे कि हम बुरी तरह से घायल हो गए हैं, +\q2 और हम बहुत दुखी हैं; +\q1 यह ऐसा है जैसे हमें गम्भीर रोग लग गया है, +\q2 और हमें पीड़ा सहन करनी होगी। +\q1 +\v 20 यह तो ऐसा है जैसे कि हमारा महान तम्बू नष्ट हो गया है; +\q2 इसकी रस्सियाँ काट दी गई हैं; +\q1 हमारे बच्चे हमारे पास से चले गए हैं और वापस नहीं आएँगे; +\q2 हमारे महान तम्बू के पुनर्निर्माण के लिए कोई भी नहीं छोड़ा गया है। +\q1 +\s5 +\v 21 हमारे अगुवे पशुओं के समान बन गए हैं; +\q2 वे अब मार्गदर्शन करने के लिए यहोवा से नहीं कहते हैं, +\q1 तो वे अब समृद्ध नहीं होंगे, +\q2 और जिनके ऊपर वे शासन करते हैं वे सब तितर-बितर कर दिए जाएँगे। +\q1 +\v 22 सुनो! उत्तर दिशा में हमारे शत्रु की सेनाएँ हमारी ओर बढ़ते हुए बहुत शोर कर रही हैं। +\q1 यहूदा के नगरों को नष्ट कर दिया जाएगा, +\q2 और वे सियारों के रहने का स्थान बन जाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 23 हे यहोवा, मैं जानता हूँ कि मनुष्य का भविष्य उसके वश में नहीं है; +\q2 होने वाली घटनाओं को निर्देशित करना किसी के वश में नहीं होता है। +\q1 +\v 24 अतः हमें सुधारें, परन्तु धीरे-धीरे। +\q2 क्रोध में आकर हमारा सुधार न करें, +\q2 यदि आप ऐसा करेंगे तो हम अवश्य मर जाएँगे। +\q1 +\v 25 उन सब जातियों को दण्ड दें जो स्वीकार नहीं करती कि आप ही परमेश्वर हैं; +\q2 उन सब जातियों को दण्ड दें जो आपकी आराधना नहीं करती है, +\q1 क्योंकि वे हमें, इस्राएल के लोगों को, पूरी तरह नष्ट कर रहे हैं +\q2 और वे हमारी भूमि को शीघ्र ही बंजर बना देंगे। + +\s5 +\c 11 +\p +\v 1 यह एक और सन्देश है जिसे यहोवा ने मुझे दिया था: +\v 2 “उस वाचा को सुनो जो मैंने यरूशलेम और यहूदा के अन्य शहरों के पूर्वजों के साथ बाँधी थी। उन्हें फिर से उस वाचा की बातें सुनाओ। +\s5 +\v 3 तब उनसे कहो कि मैं, यहोवा, जिनकी इस्राएल के लोग आराधना करते हैं, कहता हूँ कि मैं उन सबको श्राप दूँगा जो उस वाचा की बातों का पालन नहीं करते हैं। +\v 4 यह वही वाचा है जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों के साथ बाँधी थी जब मैं उन्हें मिस्र से बाहर लाया था। मिस्र में उनके साथ जो हुआ वह भयानक था; जैसे कि वे एक गर्म भट्ठी में रह रहे थे। जब मैं उन्हें मिस्र से बाहर लाया, तब मैंने उनसे मेरी आज्ञा मानने के लिए कहा, और सब आज्ञाओं को मानने का आदेश दिया था। मैंने उनसे यह भी कहा कि यदि उन्होंने मेरी आज्ञा मानी, तो वे मेरे लोग होंगे और मैं उनका परमेश्वर होऊँगा। +\v 5 अब इन लोगों से कह कि यदि वे मेरी आज्ञा मानते हैं, तो मैं वही करूँगा जो मैंने तुम्हारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी। मैं उन्हें इस उपजाऊ भूमि में रहने दूँगा जिसमें वे अब रहते हैं।” +\p मैंने उत्तर दिया, “हे यहोवा, मैं आप पर भरोसा करता हूँ कि आपने जो कहा है वह होगा।” +\p +\s5 +\v 6 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “यरूशलेम की सड़कों पर और यहूदा के अन्य नगरों में जा। लोगों को मेरा सन्देश सुना। उन्हें अपने पूर्वजों के साथ बाँधी गई वाचा को सुनने और उसका पालन करने के लिए कह। +\v 7 जब मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाया, तो मैंने विनम्रतापूर्वक उनसे विनती की कि वे मेरी आज्ञा मानें, और अब भी मैं उनके साथ विनती कर रहा हूँ। +\v 8 परन्तु उन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी यहाँ तक कि मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया। हर कोई हठीला बना रहा और निरन्तर उन कार्यों को करता रहा जो वे करना चाहते थे। मैंने उन्हें आदेश दिया था कि वाचा में जो लिखा था, उसे करें, परन्तु उन्होंने मना कर दिया। इसलिए मैंने उन्हें अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सब दण्ड दिए।” +\p +\s5 +\v 9 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के लोग मुझसे विद्रोह कर रहे हैं। +\v 10 उनके पूर्वजों से मैंने जो कहा था, उन्होंने वह करने से मना कर दिया, और अब ये लोग अपने पूर्वजों के पापों को करने के लिए लौट आए हैं। वे अन्य देवताओं की पूजा कर रहे हैं। इस्राएल के लोगों ने अपने पूर्वजों के साथ बाँधी गई वाचा की अवज्ञा की, और अब यहूदा के लोगों ने भी यही कार्य किए हैं। +\s5 +\v 11 इसलिए अब मैं, यहोवा, उन्हें चेतावनी दे रहा हूँ कि मैं उन पर विपत्तियाँ डालूँगा, और वे बच नहीं पाएँगे। और जब वे मेरी सहायता पाने के लिए मुझे पुकारेंगे, तब मैं ध्यान नहीं दूँगा। +\v 12 जब ऐसा होता है, तब यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के लोग बलि चढ़ाएँगे और अपने देवताओं के लिए धूप जलाएँगे और उनसे सहायता माँगेंगे, परन्तु उनके देवता उनको बचाने में सक्षम नहीं होंगे जब उन पर विपत्तियाँ आती हैं। +\v 13 यहूदा में अब इतने देवता हैं जितने यहूदा में कस्बे हैं; यरूशलेम के लोगों ने उन देवताओं के लिए धूप जलाने को इतनी वेदियाँ बना ली हैं जितनी यरूशलेम में सड़कें हैं। +\p +\s5 +\v 14 यिर्मयाह, इन लोगों के लिए प्रार्थना मत कर, और उन्हें बचाने के लिए मुझसे विनती मत कर। यदि तू मुझसे विनती करेगा, तो भी मैं ध्यान नहीं दूँगा; और वे संकट में सहायता के लिए मुझे पुकारेंगे, तो मैं उनकी प्रार्थना नहीं सुनूँगा।” +\p +\v 15 तब यहोवा ने कहा, +\q1 “यहूदा के लोग जिन्हें मैं निश्चय ही प्रेम करता हूँ, उन्हें अब मेरे आराधनालय में आने का अधिकार नहीं है, +\q2 क्योंकि वे निरन्तर कई बुरे कार्य करते हैं। +\q1 वे सोचते हैं कि निरन्तर मेरे लिए माँस का बलिदान करने से निश्चय ही विपत्तियों से उनकी रक्षा होगी, +\q2 और वे आनन्दित होंगे। +\q1 +\v 16 मैंने पहले कहा था कि वे हरे पत्तों से भरे एक जैतून के पेड़ के समान थे +\q2 जिसमें बहुत से अच्छे जैतून लगे हैं, +\q1 परन्तु अब मैं अपने शत्रुओं को उन पर आक्रमण करने के लिए भेजूँगा; +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मैं उसकी शाखाओं को तोड़ दूँगा, और उनका शहर आग से नष्ट हो जाएगा। +\s5 +\v 17 यह ऐसा होगा कि यहूदा और इस्राएल के लोग एक सुन्दर जैतून के पेड़ हैं, जिसे मैं, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा ने लगाया था, +\q2 परन्तु अब, अपने बाल देवता को धूप जलाने से, उन्होंने मुझे बहुत क्रोधित कर दिया है। +\q1 अतः अब मैंने उन्हें नष्ट करने का निर्णय लिया है।” +\p +\s5 +\v 18 यहोवा ने मुझ पर प्रकट किया कि मेरे शत्रु मुझे मारने की योजना बना रहे थे। +\v 19 इससे पहले, तो मैं वध होने वाले भेड़ के बच्चे के समान था; मुझे नहीं पता था कि वे क्या करने की योजना बना रहे हैं। मुझे नहीं पता था कि वे कह रहे हैं, “आओ हम इस पेड़ और उसके फलों को नष्ट कर दें,” इसलिए मुझे नहीं पता था कि वे मेरी हत्या करने का विचार कर रहे हैं कि कोई मुझे स्मरण न करे। +\q1 +\v 20 तब मैंने प्रार्थना की, “हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, आप लोगों का उचित न्याय करते हैं, +\q2 और आप हमारे विचारों को जाँचते हैं। +\q1 मेरी हत्या की इच्छा रखने वालों से बदला लें और मुझे देखने दें, +\q2 क्योंकि मुझे भरोसा है कि आप मेरे लिए जो करेंगे वह उचित होगा।” +\p +\s5 +\v 21 यह मेरा अपना नगर अनातोत था, जो मुझे मारना चाहता था, और उन्होंने मुझे कहा कि यदि मैंने यहोवा की भविष्यद्वाणी सुनाना बन्द नहीं किया तो वे मुझे मार डालेंगे। +\v 22 तब स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा ने मुझसे कहा, “मैं उन्हें दण्ड दूँगा। उनके युवा लोग युद्ध में मारे जाएँगे, और उनके बच्चे मर जाएँगे क्योंकि उनके पास भोजन नहीं होगा। +\v 23 मैंने एक समय निर्धारित किया है जब मैं अनातोत के लोगों पर विपत्तियाँ लाऊँगा, और जब ऐसा होगा, तब उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहेगा।” + +\s5 +\c 12 +\q1 +\p +\v 1 हे यहोवा, मैं जब भी आप से कहता हूँ कि मेरे साथ जो हो रहा है, उससे में अप्रसन्न हूँ, +\q2 आप सदा न्याय करते हैं। +\q1 अतः अब मुझे एक और बात पूछने की अनुमति दें जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ: +\q2 अधिकतर दुष्ट लोग समृद्ध क्यों होते हैं? +\q2 विश्वासघाती लोगों के साथ भलाई क्यों होती हैं? +\q1 +\v 2 आप उन्हें समृद्ध होने देते हैं +\q2 जैसे पेड़ बढ़कर बहुत फल लाते हैं। +\q1 वे आपके विषय में सदा अच्छी बातें कहते हैं, +\q2 परन्तु उनके मन में, वे वास्तव में आप से बहुत दूर हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 परन्तु यहोवा, आप मेरे मन को भलि-भाँति जानते हैं। +\q2 आप मेरे कार्यों को देखते हैं और आप मेरे विचारों को पढ़ सकते हैं। +\q1 उन्हें पकड़ कर अलग करें जैसे वध की जाने वाली भेड़ें झुण्ड से अलग की जाती है। +\q1 +\v 4 यह भूमि बहुत सूख रही है और घास भी सूख रही है। +\q1 यहाँ तक कि जंगली पशुओं और पक्षियों की भी मृत्यु हो गई है +\q2 क्योंकि जो लोग इस देश में रहते हैं वे बहुत दुष्ट हैं। +\q1 यह सब इसलिए हुआ है कि लोगों ने कहा, +\q2 “यहोवा नहीं जानता कि हम क्या कर रहें हैं!” +\p +\s5 +\v 5 तब मुझे यह दिखाने के लिए कि मुझे और भी अधिक कठिनाइयों को सहन करने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है, यहोवा ने मुझसे कहा, +\q1 “ऐसा लगता है कि तू पुरुषों के साथ दौड़ कर थक गया; +\q2 तो घोड़ों के साथ कैसे दौड़ पाएगा? +\q1 यदि तू केवल खुले मैदान पर दौड़ने की तैयारी करता है, +\q2 तो तेरा क्या होगा जब तू यरदन के जंगल में दौड़ लगाएगा? +\q1 +\v 6 तेरे भाई और तेरे परिवार के अन्य सदस्य तेरा विरोध करते हैं। +\q2 वे तेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहें हैं और तेरे विरुद्ध बुरी बातें कहते हैं, अतः यदि वे तेरे विषय में अच्छी बातें कहें। +\q1 तो उन पर भरोसा मत करना! +\q1 +\s5 +\v 7 मैंने अपने इस्राएली लोगों को त्याग दिया है, +\q2 जिन्हें मैंने अपना होने के लिए चुना था। +\q1 मैंने अपने प्रिय लोगों को शत्रु के हाथों में कर दिया है कि उन्हें जीत लें। +\q1 +\v 8 मेरे लोग मेरे लिए जंगल के शेर के समान हो गए हैं। +\q2 ऐसा लगता है जैसे वे मुझ पर सिंह के समान गरजते हैं, +\q2 तो अब मैं उनसे घृणा करता हूँ। +\q1 +\v 9 मेरे चुने हुए लोग चित्ती वाले शिकारी पक्षी के समान बन गए हैं +\q2 जो गिद्धों से घिरे हुए हैं, कि वे मारें तो उनका माँस खाएँ। +\q1 सब जंगली पशुओं से कह कि आएँ +\q2 और उनके शवों का माँस खाएँ। +\q1 +\s5 +\v 10 अन्य देशों के कई शासकों ने अपनी सेनाओं के साथ आकर मेरे लोगों को नष्ट कर दिया है +\q2 जिनको मैंने ऐसे सम्भाला जैसे किसान अपनी दाख के बाग को सम्भालता है। +\q1 उन्होंने मेरे मनोहर देश को रेगिस्तान बना दिया है, जहाँ कोई भी नहीं रहता है। +\q1 +\v 11 उन्होंने इसे पूरी तरह से खाली कर दिया है; +\q2 तो अब ऐसा हो गया है कि जैसे मैं किसी प्रिय जन की मृत्यु पर शोक कर रहा हूँ। +\q1 पूरा देश उजाड़ हो गया है, +\q2 और कोई भी इसके विषय में चिन्तित नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 12 हमारे शत्रुओं के सैनिकों ने सब बंजर पहाड़ियों पर चढ़ाई की है। +\q1 परन्तु मैं, यहोवा, तेरे देश को एक भाग से दूसरे भाग तक दण्ड देने के लिए शत्रु की सेना को कार्य में ले रहा हूँ, +\q2 और कोई भी बच नहीं पाएगा। +\q1 +\v 13 ऐसा लगता है जैसे मेरे लोगों ने गेहूँ उगाया, +\q2 परन्तु अब वे काँटों की कटाई कर रहे हैं। +\q1 वे कठोर परिश्रम के कारण बहुत थके हुए हैं, +\q2 परन्तु उन्हें उस कार्य से कुछ भी लाभ नहीं हुआ। +\q1 वे बहुत निराश होंगे क्योंकि उनकी उपज बहुत कम होगी, +\q2 और ऐसा होगा क्योंकि मैं, यहोवा, उनसे बहुत क्रोधित हूँ।” +\p +\s5 +\v 14 यहोवा ने मुझसे यह भी कहा था: “मैं अपने आस-पास के उन दुष्ट राज्यों को भी दण्ड दूँगा जो मेरे द्वारा मेरे इस्राएली लोगों को दी गई भूमि को लेने का प्रयास कर रहे हैं। मैं उन्हें उनकी ही भूमि छोड़ने के लिए विवश करूँगा। परन्तु मैं यहूदा के लोगों को अपनी भूमि से बाहर फेंक दूँगा। +\v 15 परन्तु बाद में मैं उन राष्ट्रों को दया दिखाऊँगा और मैं उन्हें फिर से उनके अपने देश में ले आऊँगा। प्रत्येक अपनी भूमि पर वापस आ जाएगा। +\s5 +\v 16 और यदि उन अन्य राष्ट्रों के लोग जिनकी सेनाओं ने इस्राएल पर आक्रमण किया है, वे मेरे लोगों के धार्मिक रीति-रिवाजों को सीखते हैं, और यदि वे सीख लेते हैं कि मैं सुन रहा हूँ जब वे कुछ करने की शपथ वैसे ही खाते हैं जैसे उन्होंने मेरे लोगों को बाल देवता की शपथ खाना सिखाया तो मैं उन्हें समृद्धि प्रदान करूँगा और वे भी मेरे लोग होंगे। +\v 17 परन्तु मैं उस जाति को देश से निकाल दूँगा जिसके लोग मेरी आज्ञा मानने से मना करते हैं, और मैं उस देश और उसके लोगों को नष्ट कर दूँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 13 +\p +\v 1 एक दिन यहोवा ने मुझसे कहा, “जा और एक सनी की कमरबन्द मोल ले। परन्तु उसे धोना मत।” +\v 2 इसलिए मैंने एक बहुत अच्छा कमरबन्द मोल लिया, जैसा यहोवा ने मुझसे कहा था, और मैंने इसे रखा। +\p +\v 3 बाद में यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। +\v 4 उन्होंने कहा, “फरात नदी पर जा और चट्टानों की दरार में उस कमरबन्द को छिपा दे।” +\v 5 इसलिए मैं नदी के पास गया और यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। +\p +\s5 +\v 6 बहुत समय बाद, यहोवा ने मुझसे कहा, “नदी पर वापस जा और उस कमरबन्द को वहाँ से निकाल जिसे मैंने तुझे छिपाने के लिए कहा था।” +\v 7 तब मैं फरात नदी के पास गया और कमरबन्द को जिसे मैंने चट्टानों की दरार में छिपाया था, खोद कर निकाल लिया। परन्तु वह नष्ट हो गया था और किसी कार्य का नहीं था। +\p +\s5 +\v 8 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 9 “तेरे कमरबन्द से जो हुआ, वह यह दिखाता है कि मैं यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के लोगों की उन वस्तुओं को नष्ट कर दूँगा जिन पर वे बहुत गर्व करते हैं। +\v 10 वे दुष्ट लोग मेरी बातों पर ध्यान देने से मना करते हैं। वे हठ करके वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं; वे अन्य देवताओं की पूजा करते हैं। इसलिए, वे पूरी तरह से निकम्मे हो जाएँगे, जैसे तेरा कमरबन्द। +\v 11 जैसे कमरबन्द किसी की कमर पर लिपटा रहता है, वैसे ही मैं चाहता था कि इस्राएल और यहूदा के लोग मुझसे लिपटे रहें। मैं चाहता था कि वे मेरे लोग हों, जो मेरी स्तुति करें और मेरा सम्मान करें। परन्तु वे मुझ पर ध्यान नहीं देंगे। +\p +\s5 +\v 12 इसलिए, उनसे यह कह: जिस परमेश्वर यहोवा की तुम इस्राएली लोग आराधना करते हो, वह कहते हैं, कि हर एक मशक दाखमधु से भरी जाए।’ और जब तू उनसे यह कहेगा, तो वे उत्तर देंगे, ‘निश्चय ही हम जानते हैं कि मशकों को दाखमधु से भरा जाना चाहिए!’ +\v 13 और फिर तुझे उनको बताना होगा, ‘नहीं, यहोवा के कहने का अर्थ यह नहीं है। उन्होंने जो कहा उसका अर्थ है कि वह इस देश को शराबियों से भर देंगे। इसमें तुम सब सम्मिलित होंगे—दाऊद के सिंहासन पर बैठने वाला राजा, याजक और भविष्यद्वक्ता और यहाँ तक कि यरूशलेम के साधारण लोग भी थे।’ +\v 14 वह कह रहे हैं, ‘मैं तुम्हारे बीच विवाद पैदा करूँगा। यहाँ तक कि माता-पिता भी अपने बच्चों के साथ झगड़ा करेंगे। मैं तुम पर दया नहीं करूँगा न ही सहानुभूति दिखाऊँगा; तुम्हें सहानुभूति दिखाने का अर्थ यह नहीं कि तुम्हारा नाश नहीं करूँगा।’” +\q1 +\s5 +\v 15 हे यहूदा के लोगों, बहुत सावधानी से सुनो। +\q2 गर्व मत करो, कि यहोवा ने तुमसे बात की है। +\q1 +\v 16 यह ऐसा है कि जैसे वह तुम पर अंधेरा लाने के लिए तैयार है +\q2 और जब तुम अंधेरा होते समय पहाड़ियों पर चलो तो वह ऐसा करेंगे कि तुम ठोकर खा कर गिर जाओगे। +\q1 अतः ऐसा होने से पहले अपने परमेश्वर यहोवा की स्तुति करो। +\q1 यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम प्रकाश की खोज करोगे, +\q2 परन्तु तुम्हें केवल अंधेरा और उदासी ही दिखाई देगी। +\q1 +\v 17 और यदि तुम अब भी उनकी बातों पर ध्यान देने से मना करते हो, +\q2 तो गर्व होने के कारण तुम्हारे साथ जो होगा वह मेरे लिए अकेले में रोने का कारण होगा। +\q1 मेरी आँखें आँसुओं से भर जाएँगी +\q2 क्योंकि तुम, यहोवा के लोग, +\q2 जिनको वह ऐसे सम्भालते हैं जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों को सम्भालता है, +\q2 अपने शत्रुओं द्वारा बन्दी बना लिए जाओगे और अन्य देशों में ले जाए जाओगे। +\q1 +\s5 +\v 18 यहूदा के लोगों, राजा और उसकी माता से कहो, +\q1 “अपने सिंहासन पर से नीचे आओ +\q2 और नम्रता से धूल में बैठो, +\q2 क्योंकि तुम्हारे शत्रु शीघ्र ही तुम्हारे सिर से गौरवशाली मुकुट छीन लेंगे।” +\q1 +\v 19 दक्षिणी यहूदा के जंगल के नगर शत्रुओं द्वारा घेर लिए जाएँगे, +\q2 उनकी पाँति पार करके वहाँ के लोगों को कोई नहीं बचा पाएगा। +\q1 यहूदा के लोग बन्दी बना लिए जाएँगे और ले जाए जाएँगे; +\q2 तुम सबको बन्धुआई में ले जाया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 20 हे यरूशलेम के अगुवों, अपनी आँखें खोलो और देखो: +\q1 शत्रु सेना उत्तर से आने के लिए तैयार हैं। +\q1 जब ऐसा होगा, तो यहूदा के लोगों के साथ क्या होगा जो भेड़ के एक सुन्दर झुण्ड के समान हैं, +\q2 उन लोगों को तुम्हारी देखभाल में रखा गया था? +\q1 +\v 21 जब यहोवा दूसरे देशों के लोगों को जिन्हें तुमने मित्र समझने की भूल की तुम पर शासन करने के लिए नियुक्त करेंगे तब तुम क्या कहोगे? +\q1 तुम्हारी पीड़ा असहनीय होगी, +\q2 उस स्त्री के समान जो बच्चे को जन्म देने वाली है। +\q1 +\s5 +\v 22 तुम स्वयं से पूछोगे, “हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?” +\q2 मैं उत्तर दूँगा कि यह तुम्हारे पापों के कारण है। +\q1 इसलिए शत्रुओं की सेनाओं के सैनिक तुम्हारी स्त्रियों के वस्त्र उतारेंगे और उनका बलात्कार करेंगे। +\q1 +\v 23 इथियोपिया का व्यक्ति निश्चय ही अपनी काली त्वचा का रंग नहीं बदल सकता है, +\q2 और तेन्दुआ निश्चय ही अपने धब्बे नहीं बदल सकता है। +\q1 इसी प्रकार, तुम भी भले कार्य करना आरम्भ नहीं कर सकते हो, +\q2 क्योंकि तुमने सदा बुराई की है। +\q1 +\v 24 यहोवा कहते हैं, “मैं तुम्हें भूसी के समान बिखरा दूँगा +\q2 जो रेगिस्तान से हवा से उड़ाई जाती है। +\q1 +\s5 +\v 25 तुम्हारे साथ निश्चय ही ऐसा होगा, +\q2 जिन बातों का मैंने निश्चय कर लिया है, वे तुम्हारे साथ अवश्य होंगी, +\q2 क्योंकि तुम मुझे भूल गए हो, +\q2 और तुम झूठे देवताओं पर भरोसा कर रहे हो। +\q1 +\v 26 यह ऐसा होगा जैसे मैंने तुम्हारे वस्त्रों को तुम्हारे चेहरों तक उठा दिया है +\q2 और तुमको बहुत लज्जित कर दूँगा क्योंकि हर कोई तुम्हारे गुप्तांगों को देख पाएगा। +\q1 +\v 27 मैंने देखा है कि तुम ऐसे पुरुषों के समान व्यवहार करते हो जो व्यभिचार करने के लिए कार्य करते हैं जो व्यभिचार करने के इच्छुक हैं; +\q2 तुम घोड़ों के समान हो जो मादा घोड़े के साथ मिलने के लिए हिनहिनाते हो। +\q1 मैंने देखा है कि तुम खेतों और पहाड़ियों पर घृणित मूर्तियों की पूजा करते हो। +\q1 हे यरूशलेम के लोगों, तुम्हारे साथ भयानक घटनाएँ होंगी क्योंकि तुम आज्ञाकारी नहीं रहे और न भलाई का जीवन जीए! +\q2 मेरे ग्रहणयोग्य होने में तुम्हें कितना समय लगेगा?” + +\s5 +\c 14 +\p +\v 1 यहूदा में लम्बे समय तक वर्षा नहीं हुई, तब यहोवा ने यिर्मयाह को यह सन्देश दिया: +\q1 +\v 2 यहूदा में लोग बहुत उदास हैं; +\q2 लोग भूमि पर बैठ कर शोक करते हैं; +\q1 यरूशलेम में सब लोग ऊँचे शब्द से रो रहे हैं। +\q1 +\v 3 धनवान लोग अपने सेवकों को पानी के लिए कुएँ पर भेजते हैं, +\q2 परन्तु सब कुएँ सूखे हैं। +\q1 दास खाली पात्रों के साथ वापस आते हैं; +\q1 वे अपने सिर को ढाँकते हैं +\q2 क्योंकि वे लज्जित और अपमानित हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 भूमि अत्याधिक शुष्क है और इसमें दरारें पड़ गई हैं +\q2 क्योंकि वर्षा नहीं हुई है। +\q1 किसान लज्जित हैं क्योंकि वे फसल नहीं उपजा सकते हैं, +\q2 इसलिए वे भी अपने सिर ढकते हैं। +\q1 +\v 5 यहाँ तक कि हिरनी अपने नवजात बच्चों को छोड़ देती है, +\q2 क्योंकि खाने के लिए खेतों में घास नहीं है। +\q1 +\v 6 जंगली गधे बंजर पहाड़ियों पर खड़े हैं, प्यासे सियार के समान +\q2 वे हाँफते हैं। +\q1 वे अंधे हो जाते हैं +\q2 क्योंकि खाने के लिए घास नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 7 लोग कहते हैं, “हे यहोवा, हम आप से दूर हो गए हैं और कई बार पाप किया है, +\q2 अब हम जानते हैं कि हमें हमारे पापों के कारण दण्ड दिया जा रहा है! +\q1 कृपया हमारी सहायता करें +\q2 कि सब लोग देख सकें कि आप बहुत महान हैं और अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं। +\q1 +\v 8 आप ही तो वह हो जिनसे हम इस्राएली लोग आत्मविश्वास के साथ अपेक्षा कर सकते हैं कि +\q2 जब हम पर विपत्ति आती है। +\q1 तो, आप हमारी सहायता क्यों नहीं करते? +\q2 आप ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि आप हमारे देश में अजनबी हैं, +\q2 जैसे आप रात भर के अतिथि हैं। +\q1 +\v 9 क्या आप भी हमारे साथ होने वाली इन भयानक घटनाओं से अचम्भित हैं? +\q2 आप ऐसा क्यों करते हैं जैसे आप किसी को बचाने में असमर्थ हैं, जबकि आप एक शक्तिशाली योद्धा हों? +\q1 हे यहोवा, आप यहाँ हमारे बीच में हो, +\q2 और लोग जानते हैं कि हम आपके हैं, +\q2 अतः हमें मत छोड़ो।” +\p +\s5 +\v 10 और यहोवा उन लोगों से यह कहते हैं: +\q1 “तुम्हें मुझसे दूर रहना अच्छा लगता है; +\q2 तुम एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति के पीछे भागते हो। +\q1 इसलिए, अब मैं तुम्हें स्वीकार नहीं करूँगा, +\q2 और मैं तुम्हें तुम्हारे पापों के लिए दण्ड दूँगा।” +\p +\v 11 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “इन लोगों के लिए अब प्रार्थना मत कर। +\v 12 जब वे उपवास रखते हैं, तो मैं कोई ध्यान नहीं दूँगा। जब वे मेरे पास पशुओं की भेंटों को और मैदे को वेदी पर पूरी तरह जलाने के लिए लाते हैं, तब मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूँगा। इसकी अपेक्षा, मैं उन्हें युद्ध, अकाल और बीमारियों से नाश कर दूँगा।” +\p +\s5 +\v 13 तब मैंने उनसे कहा, “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, उनके भविष्यद्वक्ताओं ने लोगों से यह कहा है कि वे युद्ध या अकाल का अनुभव नहीं करेंगे। वे लोगों से कहते हैं कि आप निश्चय ही हमें कई वर्षों तक अपने देश में शान्ति से रहने देंगे।” +\p +\v 14 यहोवा ने मुझे उत्तर दिया, “वे भविष्यद्वक्ता कहते हैं कि वे जो कह रहे हैं वह मेरा वचन है, परन्तु वे झूठ बोल रहे हैं। मैंने उन्हें नहीं भेजा, इसलिए वे जो कह रहे हैं वह सब झूठ है। वे कहते हैं कि उन्हें मुझसे दर्शन प्राप्त हुए हैं और वे जो कहते हैं वह मैंने उन पर प्रकट किया है, परन्तु यह सच नहीं है। वे मूर्खता की बातें कह रहे हैं जो उनके अपने विचार हैं। +\s5 +\v 15 भविष्यद्वाणी करने वाले भविष्यद्वक्ता कहते हैं कि मैंने उनसे कहा है कि इस्राएली युद्ध में या अकाल में नहीं मरेंगे, परन्तु मैंने उन्हें नहीं भेजा है वे स्वयं ही युद्ध में या अकाल में मर जाएँगे। +\v 16 और जिन लोगों के लिए इन बातों की भविष्यद्वाणी कर रहे हैं, वे और उनकी पत्नियाँ, उनके पुत्र और पुत्रियाँ भी युद्धों या अकाल से मर जाएँगी। उनके शव यरूशलेम की सड़कों पर फेंक दिए जाएँगे, और उन्हें दफनाने के लिए कोई भी नहीं होगा। मैं उन्हें दण्ड दूँगा जिसके वे योग्य हैं। +\p +\s5 +\v 17 इसलिए, यिर्मयाह, उन्हें अपने विषय में बता: +\q1 ‘दिन और रात मेरी आँखें आँसुओं से भरी रहती है। +\q2 मैं रोना बन्द नहीं कर सकता। +\q1 मैं अपने लोगों के लिए रोता हूँ, +\q2 जो मेरे लिए बहुत मूल्यवान हैं, जैसे कि वे मेरी पुत्रियाँ हो। +\q2 मैं उनके लिए रोता हूँ क्योंकि वे गम्भीर रूप से घायल हुईं हैं; +\q2 और वे इस गम्भीर घाव से स्वस्थ नहीं होंगी। +\q1 +\v 18 यदि मैं खेतों में जाता हूँ, +\q2 तो मैं उन लोगों के शवों को देखता हूँ जिन्हें हमारे शत्रुओं द्वारा वध किया गया है। +\q1 यदि मैं शहर की सड़कों पर चलता हूँ, +\q2 मैं भूख से मरने वाले लोगों के शवों को देखता हूँ। +\q1 भविष्यद्वक्ता और याजक देश की यात्रा करते हैं, लोगों में प्रचार करते हैं, +\q2 परन्तु वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।’” +\p +\s5 +\v 19 तब मैंने यह प्रार्थना की: +\q1 “हे यहोवा, क्या आपने यहूदा के लोगों को पूरी तरह से त्याग दिया है? +\q2 क्या आप वास्तव में यरूशलेम के लोगों से घृणा करते हैं? +\q1 आपने हमें ऐसा बुरा घायल क्यों किया है, +\q2 कि हम कभी भी ठीक नहीं होंगे? +\q1 हमें आशा थी कि हमें शान्ति मिलेगी, +\q2 परन्तु कोई शान्ति नहीं थी। +\q1 हमने आशा की थी कि एक ऐसा समय होगा जब हम ठीक हो जाएँगे, +\q2 परन्तु जो मिला वह भयानक घटनाएँ ही थीं। +\q1 +\v 20 हे यहोवा, हम मानते हैं कि हम दुष्ट लोग हैं, +\q2 और हमारे पूर्वजों ने भी दुष्टता के कार्य किए थे। +\q1 हमने आपके विरुद्ध पाप किया है। +\q1 +\s5 +\v 21 परन्तु हे यहोवा, हम आपको सम्मान दे सकें, +\q2 इसलिए हमें तुच्छ न समझें। +\q1 उस शहर का अपमान न करें जहाँ आपका गौरवशाली सिंहासन है। +\q1 कृपया हमें न भूलें, +\q2 और हमारे साथ अपनी वाचा को न तोड़ें। +\q1 +\v 22 अन्य राष्ट्रों से लाई गई मूर्तियाँ, निश्चय ही वर्षा नहीं ला सकती हैं, +\q2 और आकाश निश्चय ही वर्षा गिरने का कारण उत्पन्न नहीं कर सकता है। +\q1 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, आप ही एकमात्र हैं जो ऐसे कार्य कर सकते हैं। +\q2 अतः हम आत्मविश्वास के साथ आप से सहायता की आशा करते हैं।” + +\s5 +\c 15 +\p +\v 1 तब यहोवा ने मुझसे यह कहा: “यदि मूसा और शमूएल अपनी कब्रों से वापस आ सकें और मेरे सामने खड़े होकर इन इस्राएली लोगों के लिए मुझसे विनती करें, तो भी मैं इन लोगों पर दया नहीं करूँगा। मैं तुझसे कहता हूँ कि इन्हें मेरे सामने से दूर कर दे। इन्हें चले जाने के लिए कह दे! +\v 2 और यदि वे तुझसे पूछें, ‘हम कहाँ जाएँगे?’, तो उनसे कह, ‘यहोवा यही कहते हैं: +\q1 जिनके लिए मैं कहता हूँ कि उन्हें मरना होगा, वे मर जाएँगे: +\q1 जिनके लिए मैं कहता हूँ वे युद्धों में मर जाएँगे, वे युद्धों में मारे जाएँगे। +\q1 जिनके लिए मैं कहता हूँ कि भूख से मरेंगे, वे भूख से मर जाएँगे। +\q1 जिनके लिए मैं कहता हूँ कि उन्हें बन्दी बना कर और अन्य देशों में ले जाना चाहिए, उन्हें बन्दी बना कर दूसरे देशों में ले जाया जाएगा। +\p +\s5 +\v 3 मैं चार विपत्तियाँ भेजूँगा जो उनका नाश करेंगी: मैं उन्हें तलवारों से मारने के लिए शत्रु सैनिक भेजूँगा। मैं जंगली कुत्तों को भेजूँगा कि उनके शवों को घसीट कर ले जाएँ। मैं उनके शव खाने के लिए गिद्ध भेजूँगा। और मैं जंगली पशुओं को भेजूँगा कि उनके शवों के बचे अंश खाएँ। +\v 4 राजा मनश्शे ने यरूशलेम में जो दुष्टता के कार्य किए हैं उनके कारण, मैं पृथ्‍वी के सब राज्यों में लोगों को मेरे यहूदा के लोगों की दशा से भयभीत करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 5 तुम यरूशलेम के लोगों, कोई भी तुम्हारे लिए दुख नहीं करेगा। +\q2 कोई भी तुम्हारे लिए नहीं रोएगा। +\q2 कोई भी नहीं चाहेगा कि तुम्हें चोट न पहुँचे। +\q1 +\v 6 तुम लोगों ने मुझे त्याग दिया है; +\q2 तुम मुझसे दूर होते रहे। +\q1 अतः, मैं तुम्हें कुचलने के लिए अपना हाथ उठाऊँगा; +\q2 मैं तुम्हारे साथ दया का व्यवहार करते-करते थक गया हूँ। +\q1 +\v 7 तुम्हारे नगरों के द्वारों पर, मैं तुम्हें ऐसे बिखरा दूँगा जैसे किसान भूसी को गेहूँ से अलग करके उड़ाता है। +\q2 हे मेरे लोगों, तुमने अपने बुरे व्यवहार से मन फिराने से मना कर दिया है। +\q1 इसलिए मैं तुम्हारा नाश कर दूँगा, +\q2 और मैं तुम्हारे बच्चों को भी मरवा दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 8 मैं यहूदा में विधवाओं की संख्या को +\q2 समुद्र की रेत के किनकों से भी अधिक कर दूँगा +\q1 मैं तुम्हारे लिए एक शत्रु सेना लाऊँगा +\q2 जो तुम्हारे युवा पुरुषों को नष्ट कर देगी और उनकी माताओं के लिए रोने का कारण उत्पन्न करेगी। +\q1 मैं तुमको अकस्मात ही बड़ी पीड़ा दे कर डराऊँगा। +\q1 +\v 9 एक स्त्री जिसके सात बच्चे हैं, वे मूर्छित हो जाएँगे और साँस लेने के लिए हिचकियाँ लेंगे; +\q2 ऐसा होगा जैसे दिन का प्रकाश उसके लिए अंधेरा हो गया, +\q1 क्योंकि उसके अधिकांश बच्चे मर जाएँगे, +\q2 और वह लज्जित और अपमानित होगी। +\q1 और उसके बच्चे जो अभी भी जीवित हैं, उन्हें मैं तुम्हारे शत्रुओं के हाथों से मरवा दूँगा। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।’” +\p +\s5 +\v 10 मैंने अपनी माँ से कहा, “मैं बहुत दुखी हूँ; +\q1 मेरी इच्छा है कि तू ने मुझे जन्म न दिया होता; +\q2 इस देश में हर कोई मेरा विरोध करता है और मेरे साथ झगड़ा करता है। +\q1 मैंने उधार दे कर या उधार ले कर झगड़ा नहीं किया कि किसी के क्रोध का कारण बनूँ, +\q2 परन्तु फिर भी मुझे हर कोई श्राप देता है।” +\p +\v 11 परन्तु यहोवा ने मुझे उत्तर दिया, +\q1 “यिर्मयाह, मैं तेरा ध्यान रखूँगा। +\q1 और जब कभी तू बहुत अधिक संकट में होगा, +\q2 मैं तेरे लिए आकर तुझे तेरे शत्रु से भी बचाऊँगा। +\q1 +\v 12 परन्तु यहूदा के शत्रु जो लोहे या पीतल जैसे कठोर हैं, उत्तर दिशा से यहूदा पर आक्रमण करेंगे, +\q2 और उन्हें कोई रोक नहीं पाएगा। +\q1 +\s5 +\v 13 मैं तेरे लोगों की सब मूल्यवान सम्पत्तियों को तेरे शत्रुओं को दे दूँगा, +\q2 बिना किसी मोल के। +\q1 तेरे लोग मूल्यवान वस्तुओं से वंचित हो जाएँगे +\q2 जिसका कारण होगा देश भर में किये गए अनेक पाप। +\q1 +\v 14 मैं तुम्हारे शत्रुओं से कहूँगा कि उन्हें बन्दी होने के लिए विवश करो, +\q2 कि उन्हें अन्य देशों में ले जाएँ जिसका उन्हें अनुभव नहीं है, +\q2 और उन्हें अपने दास बनने के लिए विवश करो। +\q1 ऐसा होगा क्योंकि मैं तुम लोगों से बहुत क्रोधित हूँ; +\q2 मेरा क्रोध जलती हुई आग के समान है।” +\q1 +\s5 +\v 15 तब मैंने कहा, “हे यहोवा, आप जानते हैं कि मेरे साथ क्या हो रहा है। +\q2 कृपया आएँ और मेरी सहायता करें। +\q2 मेरे सताने वालों को दण्ड दें। +\q1 कृपया उनके साथ धीरज धरे रहें +\q2 और मुझे इस समय मरने न दें। +\q1 आपके कारण ही मैं पीड़ित हूँ। +\q1 +\v 16 हे मेरे परमेश्वर, यहोवा आप स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान हैं; +\q1 जब आपने मुझसे बात की, +\q2 मैं आपके सन्देश से प्रसन्न हो गया, वह मेरे लिए आनन्द का कारण हुआ +\q1 और मैंने आपकी बातों को उत्सुकतापूर्वक स्वीकार किया +\q2 क्योंकि मैं आपका हूँ। +\q1 +\s5 +\v 17 जब लोग दाखमधु पान का उत्सव मना रहे थे, +\q2 मैं कभी उनके साथ सहभागी नहीं हुआ; +\q1 मैं अकेला बैठा, क्योंकि आप ही हैं जो मेरे कार्यों को नियंत्रित करते हैं। +\q2 उनके पापों के कारण मैं उन लोगों से बहुत क्रोधित था। +\q1 +\v 18 अतः, आप मुझे निरन्तर पीड़ित क्यों होने देते हो? +\q2 ऐसा लगता है कि मेरे घावों को ठीक नहीं किया जा सकता है। +\q1 कभी-कभी आप मेरी सहायता करते हैं, कभी-कभी आप मेरी सहायता नहीं करते हैं। +\q2 ऐसा लगता है कि आप एक झील के समान निर्भय करने योग्य नहीं हैं जिसमें ऋतुओं में ही पानी होता है; +\q2 आप एक सूखे सोते के समान हैं।” +\p +\s5 +\v 19 तब यहोवा ने मुझसे यह कहा: +\q1 “यदि तू मुझ पर फिर से विश्वास करना आरम्भ कर दे तो मैं, +\q1 तेरा उद्धार करूँगा, +\q2 जिससे कि तू मेरी सेवा करता रहे। +\q1 यदि तू अच्छे सन्देश सुनाता रहे, निकम्मे नहीं, +\q2 तो तू मेरे मुँह की बातें कहने वाला बना रहेगा। +\q1 तुझे अपनी बातें सुनाने के लिए लोगों का ध्यान आकर्षित करना होगा; +\q2 ना कि उनकी बातों पर ध्यान देना होगा। +\q1 +\v 20 वे तेरे विरुद्ध लड़ेंगे, +\q2 परन्तु मैं तेरी रक्षा करूँगा, जैसे लोग पीतल की दीवार के पीछे सुरक्षित रहते हैं। +\q1 वे तुझे पराजित नहीं करेंगे, +\q2 क्योंकि मैं तेरे साथ रहूँगा, +\q2 और मैं तुझे बचाऊँगा और तेरा उद्धार करूँगा। +\q1 +\v 21 मैं सच में तुझे उन दुष्ट लोगों से सुरक्षित रखूँगा, +\q2 जब तू क्रूर लोगों द्वारा पकड़ा जाएगा तब मैं तुझे बचाऊँगा। +\q1 ऐसा होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 16 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने मुझसे कहा, +\v 2 “विवाह मत कर और इस देश में सन्तान उत्पन्न मत कर, +\v 3 क्योंकि मैं, यहोवा इस नगर में जन्में बच्चों और उनके माता और पिता के विषय में यह कहता हूँ: +\v 4 उनमें से कई भयानक बीमारियों से मर जाएँगे। और उनके लिए कोई भी शोक नहीं करेगा। उनके शवों को कोई भी दफन नहीं करेगा; शव भूमि पर खाद के समान बिखरे हुए पड़े रहेंगे। अन्य युद्धों में मारे जाएँगे या भूख से मर जाएँगे, और फिर उनके शव गिद्धों और जंगली पशुओं के लिए भोजन बन जाएँगे।” +\p +\s5 +\v 5 यहोवा ने मुझसे यह भी कहा: “शोक करने के लिए अंतिम संस्कार में मत जाना या मरने वालों के सम्बन्धियों के पास दुख मनाने मत जाना, क्योंकि मैंने ही ऐसा किया है कि उनका कल्याण न हो। मैंने उनसे सच्चा प्रेम करना और उन पर दया करना बन्द कर दिया है। +\v 6 इस देश में बहुत से लोग मर जाएँगे, जिनमें महत्वपूर्ण और जो महत्वहीन हैं। उनके लिए कोई शोक नहीं करेगा, या उनके शवों को भी दफन नहीं करेगा। कोई भी अपना शरीर नहीं काटेगा और न सिर मुँड़ाएगा कि उनके लिए दुख प्रकट करे। +\s5 +\v 7 कोई भी शोक करने वालों को शान्ति देने के लिए भोजन नहीं लाएगा, भले ही उनके पिता या उनकी माँ शोक करते हों। कोई उन्हें सांत्वना देने के लिए उन्हें दाखमधु नहीं देगा। +\p +\v 8 और उन घरों में मत जाओ जहाँ लोग त्यौहार मना रहे हैं। उनके साथ कुछ भी नहीं खाना-पीना। +\v 9 मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसा करो क्योंकि यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, मैं यही कहता हूँ: ‘जबकि तू अभी भी जीवित हैं और ऐसा होते हुए देखता है, कि मैं इस देश में गाने और हँसने का शब्द समाप्त कर दूँगा। दूल्हे और दुल्हन के आनन्द का शब्द भी नहीं होगा।’ +\p +\s5 +\v 10 जब तू लोगों को ये बातें सुनाएगा, तब वे पूछेंगे, ‘यहोवा ने ऐसी घोषणा क्यों की है कि ये भयानक घटनाएँ हमारे साथ होंगी? हमने क्या किया है जिसके लिए हम इस प्रकार के दण्ड के योग्य हैं? हमने अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध क्या पाप किया है? +\p +\v 11 तब तू उनसे कहना कि मेरा उत्तर यह है: ‘ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हारे पूर्वज मुझसे दूर हो गये थे। और उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा की और उनकी सेवा की। उन्होंने मुझे छोड़ दिया और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। +\s5 +\v 12 परन्तु जो अब जीवित हैं, उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों की तुलना में अधिक दुष्ट कार्य किए हैं! तुम में से प्रत्येक जन हठ करके वह बुरे कार्य करता है जो वह चाहता है और मुझ पर ध्यान देने से मना कर देता है। +\v 13 इसलिए, मैं तुम्हें इस देश से बाहर फेंक दूँगा, और मैं तुम्हें उस देश में भेजूँगा जिसे तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने कभी नहीं जाना है। वहाँ तुम दिन और रात अन्य देवताओं की पूजा करोगे। और मैं तुम पर दया नहीं करूँगा।’ +\p +\s5 +\v 14 परन्तु ऐसा समय आएगा जब लोग जो कुछ करने की प्रतिज्ञा करते हैं, वे अब यह नहीं कहेंगे, ‘हमें मिस्र से निकालने वाले यहोवा के जीवन की निश्चयता से मैं ऐसा ही करूँगा।’ +\v 15 इसकी अपेक्षा, वे कहेंगे, ‘उत्तर दिशा के देशों से अन्य देशों से जहाँ हमें यहोवा ने बन्धुआई में भेज दिया था फिर से अपने देश ले आने वाले यहोवा के जीवन की निश्चयता से मैं यह करूँगा, वे ऐसा कह पाएँगे क्योंकि एक दिन मैं तुम्हारे वंशजों को इस देश में वापस लाऊँगा जो मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया था। +\p +\s5 +\v 16 परन्तु इस समय मैं तुम्हारे शत्रुओं को बुला रहा हूँ जो उन्हें ऐसे पकड़ेंगे जैसे मछुआरे मछली पकड़ते हैं। मैं उन लोगों को बुला रहा हूँ जो हर पर्वत और पहाड़ी पर और हर गुफा में उनको ऐसे खोजेंगे जैसे शिकारी शिकार की खोज करते हैं। +\v 17 मैं उन्हें सावधानी से देख रहा हूँ। मैं उनके द्वारा किए गए हर पाप को देखता हूँ। वे मुझसे छिप नहीं पाएँगे। +\v 18 उन सब दुष्ट कार्यों के लिए जो उन्होंने किए हैं, मैं उन्हें अन्य लोगों से दो गुणा अधिक दण्ड दूँगा। मैं ऐसा इसलिए करूँगा क्योंकि उन्होंने घृणित देवताओं की, निर्जीव मूर्तियों की पूजा करने के कारण मेरे अपने देश को अस्वीकार्य कर दिया है, और इसलिए भी कि उन्होंने अपने देश को अन्य बुरे कार्यों से भर दिया है।” +\q1 +\s5 +\v 19 तब मैंने प्रार्थना की, “हे यहोवा, आप ही वह हैं जो मुझे बल देते हैं और मेरी रक्षा करते हैं; +\q2 आप वह हैं जिनके पास में संकटों में जाता हूँ। +\q1 एक दिन संसार के सब राष्ट्रों के लोग आपके पास आकर कहेंगे, +\q2 ‘हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए ऐसा कुछ छोड़ दिया जो झूठा था; +\q1 उन्होंने मूर्तियों की पूजा की जो निकम्मी हैं। +\q1 +\v 20 कोई भी अपने देवताओं को नहीं बना सकता; +\q2 जो देवता वे बनाते हैं वे केवल मूर्तियाँ हैं; वे सच्चे देवता नहीं हैं।’” +\q1 +\v 21 तब यहोवा ने कहा, “अब मैं यहूदा के लोगों को अपनी शक्ति दिखाऊँगा; +\q2 मैं उन्हें दिखाऊँगा कि मैं वास्तव में बहुत शक्तिशाली हूँ। +\q2 फिर, अन्त में, वे जान जाएँगे कि मैं, यहोवा ही सच्चा परमेश्वर हूँ।” + +\s5 +\c 17 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा ने कहा, “ऐसा लगता है कि यहूदा के लोगों द्वारा किए गए पापों की एक सूची लोहे की छेनी से खोदी गई है, या एक बहुत कठोर पत्थर की नोक का उपयोग करके खोदी गई है, +\q2 उनके मनों में और वेदियों पर जहाँ वे अपनी मूर्तियों की पूजा करते हैं। +\q1 +\v 2 यहाँ तक कि उनके बच्चों को भी स्मरण है जब उनके माता पिता अपने देवताओं की वेदियों और देवी अशेरा की लाठों के पास जाते थे, +\q2 और वहाँ उन्होंने सब बड़े पेड़ के नीचे +\q2 और सब ऊँची पहाड़ियों पर पूजा की। +\q1 +\s5 +\v 3 उनके बच्चों को पर्वतों के ये स्थान स्मरण हैं। इसलिए मैं तुम्हारे +\q2 पर्वतों को जहाँ तुम पूजा करते हो और उनके आस-पास के क्षेत्रों को उनके अधिकार में कर दूँगा। +\q1 साथ ही तुम्हारी सब धन-सम्पत्ति भी लूट लेने दूँगा यह उनके लिए युद्ध की लूट के समान होगी। +\q2 क्योंकि तुमने अपनी सारी भूमि में यहोवा के विरुद्ध पाप किया है, और वे तुम्हें मार डालेंगे। +\q1 +\v 4 जो अद्भुत देश मैंने तुम्हें दिया है वह अब तुम्हारा नहीं रहेगा। +\q1 मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें उस देश में ले जाने के लिए कहूँगा जिसे तुम नहीं जानते, +\q2 और तुम उनके दास बन जाओगे। +\q1 मैं ऐसा करूँगा क्योंकि मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ; +\q2 मेरा क्रोधित होना आग के समान है जो सदा के लिए जलती रहेगी।” +\p +\s5 +\v 5 यहोवा यह भी कहते हैं: +\q1 “जो लोग सहायता के लिए मनुष्यों पर भरोसा रखते हैं, +\q2 जो अपनी शक्ति पर भरोसा रखते हैं +\q2 और जो मन से मेरा त्याग करते हैं, वे श्रापित हैं। +\q1 +\v 6 वे रेगिस्तान की शुष्क झाड़ियों के समान हैं, +\q2 वे लोग किसी भी भलाई का अनुभव नहीं करेंगे। +\q1 वे लोग बंजर रेगिस्तान में रहेंगे +\q2 एक खारे क्षेत्र में, जहाँ कोई भी सुरक्षित रूप से नहीं रह सकता है। +\q1 +\s5 +\v 7 परन्तु यहोवा उनसे प्रसन्न रहते हैं जो उन पर भरोसा रखते हैं, +\q2 और जो आत्मविश्वास के साथ उनसे आशा रखते हैं कि उनकी सुधि लें। +\q1 +\v 8 वे लोग उन फलों के पेड़ों के समान हैं जो नदी के किनारे लगाए गए हैं, +\q2 ऐसे पेड़ जिनकी जड़ें पानी के निकट में गीली भूमि में जाती हैं। +\q1 वे ऐसे पेड़ हैं जिनके पत्ते गर्मी में भी हरे रहते हैं, +\q2 ऐसे पेड़ जो महीनों फल उत्पन्न करते रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 9 मनुष्य का मन अत्याधिक भ्रष्ट हैं, +\q2 और हम इसे बदल नहीं सकते हैं। +\q2 किसी के लिए इसे समझना भी पूर्णतः असम्भव है। +\q1 +\v 10 परन्तु मैं, यहोवा, हर एक के मन को जाँचता हूँ कि उसमें क्या है, +\q2 और मैं जाँचता हूँ कि वे क्या सोच रहे हैं। +\q1 मैं सब लोगों को प्रतिफल या दण्ड दूँगा, +\q2 उनके कार्यों के अनुसार।” +\q1 +\v 11 मैं उन लोगों को जानता हूँ जो अन्यायपूर्ण कार्यों को करके धनवान बन जाते हैं। +\q2 वे उन पक्षियों के समान हैं जो उन अण्डों को सेते हैं जिन्हें उन्होंने नहीं रखा। +\q1 इसलिए, वे लोग अपने अपेक्षा किये हुए जीवन के केवल आधे वर्षों तक ही जीवित रह कर लोप हो जाएँगे। +\q2 तब अन्य लोगों को समझ में आएगा कि वे लोग मूर्ख थे। +\q1 +\s5 +\v 12 हे यहोवा, आपका भवन एक महिमामय सिंहासन के समान है +\q2 वह जब से बनाया गया तब से ही ऊँचे पर्वत पर स्थित है। +\q1 +\v 13 आप ही एकमात्र हैं जिनसे आशीष पाने की हम इस्राएली लोग आत्मविश्वास के साथ आशा करते हैं, +\q2 और जो लोग आप से दूर हो जाते हैं वे अपमानित होंगे और उन्हें समझ में आएगा कि आप से अलग होना कैसा होता है, +\q2 क्योंकि उन्होंने आपको त्याग दिया है, जो एक सोते के समान हैं जहाँ लोग ताजा पानी प्राप्त करते हैं। +\q1 +\v 14 हे यहोवा, कृपया मुझे स्वस्थ करें, क्योंकि यदि आप मुझे स्वस्थ करते हैं, तो मैं सचमुच स्वस्थ हो जाऊँगा। +\q2 यदि आप मुझे बचाते हैं, तो मैं वास्तव में सुरक्षित रहूँगा, क्योंकि आप ही एकमात्र हैं जिनकी मैं स्तुति करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 15 लोग बार-बार मेरा उपहास करके कहते हैं, +\q1 “तू हमें सन्देश देता जिसके लिए कहता है कि यह यहोवा की ओर से आया है, +\q2 परन्तु तेरी भविष्यद्वाणी की बातें पूरी क्यों नहीं हुईं? +\q1 +\v 16 हे यहोवा, आपने मुझे अपने लोगों की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया है जैसे चरवाहे अपनी भेड़ों का ध्यान रखता है; मैंने उस कार्य को त्याग नहीं दिया है, +\q2 और आप जानते हैं कि मैं मेरा उपहास करने वाले इन लोगों पर विपत्ति आने के इस समय को पहले ही से नहीं चाहता था। +\q1 और आप वह सब कुछ जानते हैं जो मैंने आपके लोगों से कहा है। +\q1 +\s5 +\v 17 मुझे भयभीत मत होने दो! +\q2 विपत्ति के समय आप ही तो हैं जिनके पास मैं सुरक्षा के लिए जाऊँगा। +\q1 +\v 18 इसलिए अब जो मुझे सताते हैं उन्हें लज्जित और विस्मित करें, +\q2 परन्तु मेरे साथ ऐसा न करें कि मैं लज्जित और विस्मित हो जाऊँ। +\q1 उन्हें भयभीत होने का कारण उत्पन्न कर दें! +\q2 उनके साथ बहुत से ऐसे कार्य करें जिनसे वे पूर्णतः नष्ट हो जाएँ! +\p +\s5 +\v 19 यहोवा ने मुझसे यह कहा: “यरूशलेम में नगर के फाटकों पर जा। पहले उस फाटक पर जा जहाँ से यहूदा के राजा नगर में आते और बाहर जाते हैं, और फिर दूसरे फाटकों में से होकर एक पर जा। +\v 20 प्रत्येक फाटक पर लोगों से कह, ‘हे यहूदा के राजा और यरूशलेम में रहने वाले हर कोई और यहूदा के अन्य सब लोगों जो इन फाटकों में प्रवेश करते हो, इस सन्देश को यहोवा से सुनों! +\s5 +\v 21 वह कहते हैं, “यदि तुम जीना चाहते हो तो इस चेतावनी को ध्यान से सुनों! सब्त के दिनों में कार्य करना बन्द करो! उन दिनों में इन फाटकों से बोझ उठा कर आना जाना बन्द करो! +\v 22 अपने घरों से भी बोझ उठा कर न लाओ या सब्त के दिनों में कोई अन्य कार्य न करो! इसकी अपेक्षा, सब्त के दिन को पवित्र रखो। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को ऐसा करने का आदेश दिया, +\v 23 परन्तु उन्होंने न तो मेरी बात सुनी न ही मेरी आज्ञा मानी। जब मैंने उन्हें सुधारने के कार्य किए तो उन्होंने हठ करके मेरी बातों को अनसुना किया या उसे स्वीकार नहीं किया। +\s5 +\v 24 परन्तु मैं कहता हूँ कि यदि तुम मेरी आज्ञा मानोगे, और यदि तुम सब्त के दिनों में इन फाटकों से बोझ उठा कर नहीं लाते या सब्त के दिनों में कोई अन्य कार्य नहीं करते हो, और यदि तुम सब्त के दिनों को मेरे लिए समर्पित करते हो, +\v 25 तो यहूदा के राजा और उनके अधिकारी इन फाटकों में से आते जाते रहेंगे। वहाँ सदा राजा दाऊद के वंश का कोई होगा जो यरूशलेम में राज करेगा। राजा और उसके अधिकारी रथों और घोड़ों पर सवार इन फाटकों में से आते जाते रहेंगे, और इस शहर में सदा लोग रहेंगे। +\s5 +\v 26 और लोग वेदी पर जलाए जाने वाली बलियाँ तथा अन्य भेंटों को ले कर यरूशलेम आएँगे। वे आराधनालय में अन्न-बलि और धूप और मुझे धन्यवाद देने की भेंटें लाएँगे। लोग इन भेंटों को यहूदा के नगरों और यरूशलेम के पास के गाँवों और उस क्षेत्र से लाएँगे जहाँ बिन्यामीन का गोत्र रहता है और पश्चिमी तलहटी से और दक्षिणी यहूदिया के जंगल से आएँगे। +\v 27 परन्तु यदि तुम मेरी बातों पर ध्यान नहीं देते, और यदि तुम सब्त के दिनों को मेरे लिए समर्पित करने से मना करते हो, और यदि तुम इन फाटकों से सब्त के दिनों में शहर में बोझ उठा कर लाते रहे, तो मैं इन फाटकों को पूरी तरह जला दूँगा। आग महलों में फैल जाएगी, और कोई भी उस आग को बुझा नहीं पाएगा।” + +\s5 +\c 18 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उसने कहा, +\v 2 “उस व्यक्ति की दुकान पर जा जो मिट्टी के बर्तन बनाता है। वहाँ मैं तुझे एक सन्देश दूँगा।” +\v 3 तो मैं उस दुकान में गया, और मैंने उस व्यक्ति को देखा जो बर्तन बनाता है। वह चाक पर कार्य कर रहा था जिसे वह बर्तन बनाने के लिए उपयोग करता है। +\v 4 परन्तु जब उसने एक पात्र बनाया, तो वह उतना अच्छा नहीं था जितना कि वह आशा करता था। तो, उसने मिट्टी ली और एक और पात्र बनाया, जिसे उसने अपनी इच्छा के अनुसार आकार दिया। +\p +\s5 +\v 5 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 6 “सम्भवतः इस्राएल के लोग सोचते हैं कि मैं उन लोगों के साथ ऐसा नहीं कर सकता जैसा इस बर्तन बनाने वाले ने अपने पात्र के साथ किया है। परन्तु जो भी वे सोचते हैं वह गलत है। मैं नियंत्रित कर सकता हूँ कि उनके साथ क्या होगा जैसे कि यह व्यक्ति नियंत्रित करता है कि वह अपने हाथ की मिट्टी के साथ क्या करता है। +\v 7 ऐसा समय हो सकता है जब मैं यह कहूँ कि मैं किसी राष्ट्र या साम्राज्य का नाश कर दूँगा, जैसे कोई किसी पौधे को उसकी जड़ों के साथ उखाड़ देता है, और उसे तोड़ देता है, और इसे नष्ट कर देता है। +\v 8 परन्तु यदि इस देश के लोग बुरे कार्य करने से पश्चाताप करते हैं, तो मैं उन विपत्तियों को नहीं भेजूँगा जिन्हें मैंने भेजने की योजना बनाई थी। +\s5 +\v 9 और ऐसा समय हो सकता है जब मैं यह घोषणा करूँ कि मैं एक राष्ट्र या राज्य स्थापित करूँगा और उसे दृढ़ बना दूँगा। +\v 10 परन्तु यदि उस देश के लोग बुरे कार्य करना आरम्भ करते हैं और मेरी आज्ञा नहीं मानते हैं, तो मैं उन्हें आशीष नहीं दूँगा जैसा मैंने कहा था कि मैं करूँगा। +\p +\s5 +\v 11 इसलिए, यिर्मयाह, यरूशलेम में और यहूदा के अन्य स्थानों में सब लोगों को चेतावनी दे। उनसे कह, ‘यहोवा यह कहते हैं: मैं तुम पर एक विपत्ति भेजने की योजना बना रहा हूँ। अतः, तुम में से प्रत्येक जन को अपने बुरे व्यवहार से मन फिराना चाहिए और सही कार्य करना आरम्भ करना चाहिए, कि तुम्हारा कल्याण हो!’ +\p +\v 12 परन्तु लोग तुझसे कहेंगे, ‘हमसे यह सब बातें करना व्यर्थ है। हम हठीले ही रहेंगे और जितना चाहें उतना बुरा व्यवहार करेंगे।’” +\p +\s5 +\v 13 इसलिए यहोवा ने प्रतिक्रिया में कहा: +\q1 “उन लोगों से पूछ जो अन्य देशों में रहते हैं यदि उन्होंने कभी ऐसी बात सुनी है। +\q2 मेरे इस्राएली लोग, जो कुँवारी के समान शुद्ध हैं, उन्होंने एक भयानक कार्य किया है! +\q1 +\v 14 बर्फ निश्चय ही लबानोन के पर्वतों की चट्टानी ढलानों से पूरी तरह से लोप नहीं होता है। +\q2 उन दूर के पर्वतों से बह कर आने वाली ठण्डे पानी की धाराओं का बहना कभी बन्द नहीं होता। +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु मेरे लोग उन धाराओं के जैसे विश्वसनीय नहीं हैं: +\q2 उन्होंने मुझे छोड़ दिया है। +\q1 वे निकम्मी मूर्तियों का सम्मान करने के लिए धूप जलाते हैं। +\q1 ऐसा लगता है जैसे कि वे परिचित एवं विश्वासयोग्य मार्गों में चलते हुए भी ठोकर खा चुके हैं +\q2 इसकी अपेक्षा, वे अब कच्चे मार्गों पर चल रहे हैं। +\q1 +\v 16 इसलिए, उनका देश उजाड़ हो जाएगा, +\q2 और जो लोग इसे देखते हैं, वे अब से इस पर हँस कर इसका उपहास करेंगे। +\q1 जो लोग निकट से निकलते हैं वे डर जाएँगे; +\q2 वे यह दिखाने के लिए अपना सिर हिलाएँगे। +\q1 +\v 17 जब उनके शत्रु उन पर आक्रमण करेंगे तब मैं उन लोगों को तितर-बितर कर दूँगा +\q2 जैसे पूर्वी हवा से धूल बिखर जाती है। +\q1 और जब उन पर यह सब विपत्तियाँ आ पड़ेंगी, +\q2 तब मैं उन्हें पीठ दिखाऊँगा और उनकी सहायता करने से मना कर दूँगा।” +\p +\s5 +\v 18 तब लोगों ने कहा, “आओ, हम यिर्मयाह पर आक्रमण करने की योजना बनाएँ। हमारे पास कई याजक हैं जो हमें परमेश्वर के नियम सिखाते हैं, बुद्धिमान पुरुष जो हमें अच्छी सलाह देते हैं, और भविष्यद्वक्ता जो हमें बताते हैं कि क्या होगा। हमें यिर्मयाह की आवश्यकता नहीं है, हमें उसकी निन्दा करनी चाहिए और वह जो भी कहता है उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए।” +\p +\v 19 तब मैंने प्रार्थना की, “हे यहोवा, कृपया मेरी बात सुनें! +\q2 और मेरे शत्रु मेरे विषय में क्या कह रहे हैं सुनें। +\q1 +\v 20 मैं भले कार्य कर रहा हूँ, +\q2 इसलिए यह घृणित है कि वे बुराई करके मुझे बदला दे +\q1 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे गिराने और मारने के लिए एक गड्ढ़ा खोदा है। +\q2 यह मत भूलना कि एक बार मैं आपके सामने खड़ा था और सहायता करने के लिए आप से अनुरोध किया था, +\q2 और मैंने प्रयास किया था कि आपको उन्हें दण्ड देने से रोक दूँ, भले ही आप उनसे बहुत क्रोधित थे। +\q1 +\s5 +\v 21 तो अब, उनके बच्चों को भूख से मरने दें! +\q2 या उन्हें शत्रुओं की तलवार से मरने का कारण उत्पन्न कर दें! +\q1 उनकी पत्नियों को विधवा हो जाने दें, जिनके बच्चे मर चुके हैं! +\q2 युद्ध में उनके पतियों के मरने का कारण उत्पन्न कर दें! +\q1 +\v 22 उनके घरों में रोना चिल्लाना सुनाई दे +\q2 जब शत्रु के सैनिक अकस्मात ही उनके अपने घरों में घुस जाएँ! +\q1 इन सब बातों को उनके साथ होने दें क्योंकि वे मुझे मारना चाहते हैं। +\q1 ऐसा लगता है कि उन्होंने मुझे गिराने के लिए एक गड्ढ़ा खोदा है, +\q2 और उन्होंने मेरे मार्गों में फन्दे बिछाए हैं। +\q1 +\v 23 हे यहोवा, आप उन सब बातों को जानते हैं जिनकी वे मुझे मारने के लिए करने की योजना बना रहे हैं। +\q1 उनके अपराधों के लिए आप उन्हें क्षमा न करें +\q2 या उनके पापों के लेखे को मिटा न दें। +\q1 उन्हें नष्ट कर दें; +\q2 उन्हें दण्ड दें क्योंकि आप उनसे क्रोधित हैं!” + +\s5 +\c 19 +\p +\v 1 यह एक और सन्देश है जिसे यहोवा ने मुझे दिया: “जा और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले से एक बर्तन मोल ले। फिर इन लोगों के कुछ वृद्धों और याजकों के प्रधानों को साथ ले। +\v 2 और टूटे हुए बर्तनों के फाटक से होकर शहर से बाहर निकल, जो हिन्नोम की घाटी में टूटे मिट्टी के बर्तनों को फेंकने के स्थान के सामने है। फिर उन्हें एक सन्देश दे। +\v 3 उनसे कह, ‘यह सन्देश तुम्हारे लिए, यहूदा के राजाओं और यरूशलेम के अन्य लोगों के लिए है। सुनों कि यहोवा क्या कह रहे हैं! इस्राएल के परमेश्वर, यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, कहते हैं कि वह यरूशलेम पर एक भयानक विपत्ति लाएँगे। जो लोग इसके विषय में सुनेंगे वे डर जाएँगे। +\s5 +\v 4 ऐसा इसलिए होगा क्योंकि तुम इस्राएली लोगों ने मेरी आराधना करना बन्द कर दिया है, और इस स्थान को ऐसा बना दिया है जहाँ तुम विदेशी देवताओं की पूजा करते हो। तुम ऐसे देवताओं के लिए बलि चढ़ाते हो जिनके विषय में न तो तुमने और न ही तुम्हारे पूर्वजों ने और न ही यहूदा के राजाओं ने कभी सुना है। और तुमने इस स्थान को निर्दोष लोगों के खून से भर दिया है जिन्हें तुमने मारा है। +\v 5 तुमने अपने बाल देवता का सम्मान करने के लिए कई पहाड़ियों की चोटियों पर वेदी बनाई है, और वहाँ पर तुमने अपने बच्चों को मार डाला है और बाल को उनकी बलि चढ़ाई। मैंने तुम्हें ऐसा करने का आदेश कभी नहीं दिया, मैंने ऐसा करने के विषय में कभी बात नहीं की, और कभी भी इसे अनुमति देने पर विचार नहीं किया! +\s5 +\v 6 इसलिए, सावधान रहो, क्योंकि मैं, यहोवा, कहता हूँ कि ऐसा समय होगा जब इस कूड़े के ढेर को तोपेत या हिन्नोम की घाटी नहीं कहा जाएगा; इसे वध की घाटी कहा जाएगा। +\v 7 इस स्थान में मैं यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों में रहने वाले तुम लोगों की योजनाओं को नाश कर दूँगा। मैं तुम्हारे शत्रुओं को जो तुम्हें मारना चाहते हैं, उनकी तलवारों से कई को मारने दूँगा। तब मैं उनके शवों को गिद्धों और जंगली पशुओं का भोजन होने के लिए भूमि पर पड़े रहने दूँगा। +\v 8 मैं यरूशलेम को पूरी तरह से नष्ट कर दूँगा और इसे खण्डहरों का ढेर बना दूँगा जिसे लोग तुच्छ मानेंगे। आने जाने वाले डर जाएँगे, और जब वे देखेंगे कि शहर नष्ट हो गया है तो वे चौंक जाएँगे। +\v 9 मैं तुम्हारे शत्रुओं को जो तुम्हें मारना चाहते हैं, लम्बे समय तक तुम्हारे शहर को चारों ओर घेरने दूँगा। तब भोजन समाप्त हो जाएगा, और तुम लोग बहुत भूखे हो जाओगे, जिसके परिणामस्वरूप तुम शहर के लोग अपने बच्चों और अपने पड़ोसियों के बच्चों का माँस खाओगे।’ +\p +\s5 +\v 10 यिर्मयाह, जब तू उनसे यह कह चुके, तब तेरे साथ उपस्थित लोगों के देखते हुए उस बर्तन को जिसे तू लाया है, उसे तोड़ देना। +\v 11 तब उनसे कहना, ‘यहोवा स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यही कहते हैं, जिस प्रकार इस बर्तन को तोड़ दिया गया है और सुधारा नहीं जा सकता है, मैं यरूशलेम के इस शहर और यहूदा के अन्य स्थानों को तोड़ दूँगा। तुम कूड़े के इस ढेर में शवों को यहाँ दफन करोगे कि शव दफनाने के लिए कोई और स्थान न रहे। +\s5 +\v 12 यही है जो मैं इस शहर और यहाँ रहने वाले लोगों के साथ करूँगा। मैं तुम्हें मेरी आराधना के लिए अयोग्य कर दूँगा, और यह शहर तुम्हारे जैसा ही होगा, जैसे तोपेत है। +\v 13 यरूशलेम में घर और यहूदा के राजाओं के महल अयोग्य होंगे, जैसा यह स्थान होगा। वे सब घर जहाँ तुमने छतों पर सितारों के लिए धूप जलाया था और जहाँ तुमने अपने देवताओं के लिए भेंट के रूप में, दाखमधु डाली थी, उन सबके रहने के लिए अयोग्य हो जाएँगे जो मेरी आराधना करते हैं।’” +\p +\s5 +\v 14 तब मैं कूड़े के उस ढेर से लौट आया जहाँ यहोवा ने मुझे यह सन्देश सुनाने के लिए भेजा था, और मैं यहोवा के भवन के आँगन में खड़ा हुआ और वहाँ उपस्थित सब लोगों से यह कहा: +\v 15 “स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान यहोवा जो कहते हैं, वह यह है ‘मैं इस नगर और उसके आस-पास के गाँवों के लिए एक विपत्ति लाऊँगा जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की है, क्योंकि तुम लोगों ने हठ करके मेरी बातों पर ध्यान देने से मना कर दिया है।’” + +\s5 +\c 20 +\p +\v 1 इम्मेर का पुत्र पशहूर एक याजक था जो आराधनालय के सुरक्षाकर्मियों का प्रधान था। उसने इन चीजों को सुना जो मैंने भविष्यद्वाणी की थी। +\v 2 तो उसने मुझे बन्दी बना लिया। तब उसने सुरक्षाकर्मियों को आज्ञा दी कि वे मुझे कोड़े से मारें और यहोवा के भवन के ऊपर बिन्यामीन के फाटक के पास मेरे पैरों को काठ में ठुकवा दिया। +\s5 +\v 3 अगले दिन, जब पशहूर ने मुझे छोड़ दिया, तब मैंने उससे कहा, “पशहूर, यहोवा तुझे एक नया नाम दे रहे हैं। अब से, तेरा नाम ‘भय से घिरा हुआ’ होगा +\v 4 क्योंकि यहोवा तुझसे कहते हैं: ‘मैं तुझे और तेरे प्रिय जनों को भयभीत कर दूँगा। तू उन्हें अपने शत्रुओं की तलवार से मरते हुए देखेगा। मैं यहूदा के लोगों को बन्दी बनाने के लिए बाबेल के राजा की सेना को सक्षम करूँगा। वे सैनिक कुछ लोगों को बाबेल में ले जाएँगे, और वे दूसरों को अपनी तलवारों से मार देंगे। +\s5 +\v 5 और मैं उन सैनिकों को यरूशलेम में अन्य वस्तुओं को उठा ले जाने में सक्षम करूँगा: तुम्हारी सारी सम्पत्ति और तुम्हारे कठोर परिश्रम का उत्पादन। वे तुम्हारे राजाओं की सब मूल्यवान वस्तुएँ बाबेल ले जाएँगे। +\v 6 और जहाँ तक तेरी बात हैं, पशहूर, वे तुझे और तेरे परिवार को बाबेल ले जाएँगे। तू और तेरा परिवार और तेरे सब मित्र, जिन्होंने झूठी बोलने वाली चीजों की भविष्यद्वाणी की है वहाँ मर जाएँगे और वहाँ दफनाए जाएँगे।’” +\p +\s5 +\v 7 एक दिन मैंने यहोवा से कहा: +\q1 “हे यहोवा, जब आपने मुझे भविष्यद्वक्ता बनने के लिए चुना, तो आपने मुझे धोखा दिया कि मैं इस कार्य को करने के लिए सहमत हो जाऊँ। +\q2 आपने मुझे एक भविष्यद्वक्ता होने के लिए विवश किया। +\q1 परन्तु अब हर कोई मेरा उपहास करता है। +\q2 वे पूरे दिन मेरा उपहास करते हैं। +\q1 +\v 8 जब मैं लोगों को आपके सन्देश सुनाता हूँ, तो मैं चिल्ला कर कहता हूँ, +\q2 ‘यहोवा तुम्हें हिंसा और विनाश का अनुभव कराने जा रहे हैं!’ +\q1 इसलिए क्योंकि मैं उन्हें उन सन्देशों को बताता हूँ, +\q2 इसलिए वे मेरा अपमान करते हैं और पूरे दिन मेरा उपहास करते हैं। +\q1 +\v 9 परन्तु यदि मैं कहूँ, ‘मैं कभी यहोवा की चर्चा नहीं करूँगा या उसके विषय में कुछ नहीं कहूँगा,’ +\q2 ऐसा होगा जैसे आपका सन्देश आग के समान मेरे अन्दर जल जाएगा; +\q2 यह मेरी हड्डियों में आग के समान होगा। +\q1 कभी-कभी मैं चुप रहने का प्रयास किया करता हूँ और आपके सन्देशों का प्रचार नहीं करता हूँ, +\q2 परन्तु मैं ऐसा कर नहीं पाता। +\q1 +\s5 +\v 10 मैं कई लोगों को मेरे विषय में फुसफुसाते हुए सुनता हूँ, +\q2 वे कहते हैं कि ‘यही वह व्यक्ति है जो यह घोषणा करता है कि ऐसी घटनाएँ होंगी जो हमें हर स्थान पर डराएँगी। +\q2 हमें अधिकारियों को यह बताना होगा कि वह क्या कह रहा है! हमें उसकी निन्दा करनी चाहिए! +\q1 यहाँ तक कि मेरे सबसे अच्छे मित्र मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि मैं कोई गलत बात कहूँ। +\q1 वे कह रहे हैं, ‘संभव है कि हम उससे कोई गलत बात बुलवा पाएँ, +\q2 और यदि वह ऐसा करता है, तो हम उसे हराने में सक्षम होंगे।’ +\q1 +\v 11 परन्तु आप, हे यहोवा, एक शक्तिशाली योद्धा के समान मेरी सहायता कर रहे हैं, +\q2 ऐसा लगता है कि वह मेरे सताने वालों के लिए ठोकर का कारण बन जाएँगे, और वे मुझे पराजित नहीं कर पाएँगे। +\q1 वे पूरी तरह से अपमानित होंगे, क्योंकि वे मुझसे अनुचित लाभ उठाने में समर्थ नहीं हो पाएँगे; +\q2 और लोग कभी नहीं भूलेंगे कि वे अपमानित किए गए। +\q1 +\s5 +\v 12 हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, +\q1 आप उन सबकी जाँच करते हैं जो धर्मी हैं; +\q2 आप उन सबके मन की बातों को जानते हैं और उनके विचारों को भी जानते हैं। +\q1 मुझे हानि पहुँचाने वालों से आप बदला लें तो मुझे देखने दें, +\q2 क्योंकि मैं आपके पास सही के लिए अपना मुकद्दमा देने आया था।” +\q1 +\v 13 यहोवा के लिए गाओ! +\q2 यहोवा की स्तुति करो! +\q1 वह गरीब और आवश्यकता में पड़े लोगों को बचाते हैं, दुष्टों से +\q2 बचाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 14 परन्तु मुझे आशा है कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ वह श्रापित होगा। +\q2 मैं नहीं चाहता कि उस दिन कोई उत्सव मनाए जिस दिन मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया। +\q1 +\v 15 और उस व्यक्ति के लिए जिसने मेरे पिता को समाचार सुनाया, +\q2 और उसे यह कहकर बहुत आनन्दित किया था +\q2 “तेरी पत्नी ने तेरे लिए एक पुत्र को जन्म दिया है,” +\q1 मुझे आशा है कि वह भी श्रापित होगा। +\q1 +\s5 +\v 16 उसे उन नगरों के समान नाश होने दें जिन्हें यहोवा ने बहुत पहले नष्ट किया था, +\q2 उन पर दया नहीं की थी। +\q1 उस व्यक्ति को सुबह लोगों का विलाप सुनने दें, +\q2 और शत्रु के सैनिकों की युद्ध की ललकार दोपहर में सुनने दें। +\q1 +\v 17 मैं चाहता हूँ कि उसके साथ ऐसा ही हो क्योंकि जब मेरा जन्म हुआ था तब उसने मुझे मार नहीं डाला था। +\q2 मेरी इच्छा है कि मैं अपनी माँ के गर्भ में मर गया होता, +\q2 और यह कि मेरी माँ का शरीर मेरी कब्र के समान होता। +\q1 +\v 18 मैंने निरन्तर बहुत संकट और दुख का अनुभव किया है, +\q2 और जब मैं मरने वाला हूँ तो अब मैं अपमानित हूँ; +\q1 मेरे लिए जन्म लेना क्यों आवश्यक था? + +\s5 +\c 21 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया जब यहूदा के राजा सिदकिय्याह ने मल्किय्याह के पुत्र पशहूर और मासेयाह के पुत्र सपन्याह नाम के एक याजक को मुझसे बात करने के लिए भेजा। उन्होंने मुझसे विनती की, और कहा, +\v 2 “बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना यहूदा पर आक्रमण कर रही है। कृपया हमारे लिए यहोवा से बात कर। उनसे पूछ कि क्या वह हमारी सहायता करेंगे। संभव है कि वह हमारे लिए कोई चमत्कार करके नबूकदनेस्सर की सेना को चले जाने के लिए विवश करेंगे, जैसे उन्होंने पहले चमत्कार किए हैं।” +\p +\s5 +\v 3 मैंने उन्हें उत्तर दिया, “राजा सिदकिय्याह के पास जाओ। उसे बताओ, +\v 4 ‘परमेश्वर यहोवा जिनकी हम इस्राएली लोग आराधना करते हैं, कहते हैं: “मैं बाबेल के राजा और उसकी सेना जो यरूशलेम की दीवारों के बाहर है, आक्रमण करती है उसके सामने तुम्हारे हथियारों को व्यर्थ कर दूँगा। मैं उन्हें इस शहर के बीच में प्रवेश करने में सक्षम करूँगा। +\v 5 मैं तुम्हारी सेना के विरुद्ध अपनी महान शक्ति से युद्ध करूँगा, क्योंकि मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ। +\s5 +\v 6 मैं इस शहर के लोगों और उनके घरेलू पशुओं पर एक बहुत ही भयानक महामारी भेजूँगा, और उनमें से कई मर जाएँगे।” +\v 7 और यहोवा कहते हैं कि इस शहर में बहुत से लोग हैं जो तुझे मारना चाहते हैं। इसलिए, वह बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना को और इस नगर के अन्य लोगों को तुझे हे, सिदकिय्याह और तेरे अधिकारियों और उन सब लोगों को जो महामारी से मर नहीं पाए, उन्हें बन्धक बनाने में सक्षम करेंगे। उनकी सेना तेरे सैनिकों को मार डालेगी; वे तुझ पर दया नहीं करेंगे या सहानुभूति नहीं दिखाएँगे।’ +\p +\s5 +\v 8 और सब लोगों से यह कह: ‘यहोवा कहते हैं कि तुम्हें निर्णय लेना होगा कि तुम मरना चाहते हो या जीवित रहना चाहते हो। +\v 9 जो कोई यरूशलेम में रहता है वह मर जाएगा। वे युद्धों में मारे जाएँगे या भूख से या बीमारियों से मर जाएँगे। परन्तु जो लोग तुम्हारे शहर का घेराव करने वाली बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण करते हैं वे जीवित रहेंगे। वे मरने से बचेंगे। +\v 10 ऐसा इसलिए होगा कि मैं ने, यहोवा ने इस शहर पर विपत्तियाँ डालने का निर्णय लिया है, न कि कुछ अच्छा करने का। बाबेल के राजा की सेना इस नगर पर अधिकार कर लेगी और इसे आग से पूरी तरह नष्ट कर देगी।’” +\p +\s5 +\v 11 यहोवा ने मुझे यहूदा के राजा के परिवार से यह कहने के लिए भी कहा: “यहोवा से यह सन्देश सुन! +\v 12 राजा दाऊद के वंशजों से वह यही कहते हैं: +\q1 ‘जिन लोगों का तुम न्याय करते हो उनके लिए प्रतिदिन उचित निर्णय लो। +\q2 उन लोगों की सहायता करो जो लूट गए हैं। +\q2 उन्हें लुटेरों और दुर्व्यवहार करने वालों से बचाओ। +\q1 यदि तुम ऐसा नहीं करते, +\q2 तो मैं क्रोधित हो जाऊँगा और तुमको ऐसी आग से दण्ड दूँगा जिसे बुझाना असम्भव होगा, +\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए सब पापों के कारण। +\q1 +\s5 +\v 13 यरूशलेम के लोगों, मैं तुम्हारे विरुद्ध युद्ध करूँगा, +\q2 तुम जो घाटी के ऊपर चट्टानी पहाड़ी की चोटी पर रहते हो। +\q1 मैं उन लोगों के विरुद्ध युद्ध करूँगा जो दावा करते हैं, +\q2 “हम पर कोई भी आक्रमण नहीं कर सकता और न ही हमारी सुरक्षा को तोड़ सकता है।” +\q1 +\v 14 मैं तुम्हें तुम्हारे दुष्ट कर्मों के लिए वही दण्ड दूँगा जिसके योग्य तुम हो; +\q1 ऐसा होगा जैसे मैं तुम्हारे जंगलों में आग लगा दूँगा +\q2 जो तुम्हारे चारों ओर सब कुछ जला देगी।’” + +\s5 +\c 22 +\p +\v 1 यह एक और सन्देश है जो यहोवा ने मुझे दिया: “यहूदा के राजा के महल के पास जा और उससे यह कह: +\v 2 ‘तू यहूदा का राजा है जैसे राजा दाऊद था। तू और तेरे अधिकारियों और तेरे लोगों को सुनना चाहिए +\v 3 कि यहोवा क्या कहते हैं: “उचित और न्यायसंगत कार्य करो। जो सही है, वह करो। उन लोगों की सहायता करो जो लूट गए हैं। अत्याचार करने वालों से लोगों को बचाओ। बुरे कार्य करना छोड़ दो। उन लोगों के साथ दुर्व्यवहार न करो जो यहाँ दूसरे देशों से आए हैं, और अनाथों और विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार मत करो। यहाँ यरूशलेम में हत्या करना बन्द करो। +\s5 +\v 4 यदि तुम इन आदेशों का ध्यानपूर्वक पालन करते हो, तो यरूशलेम में राज करने के लिए राजा दाऊद के वंशज सदा रहेंगे। राजा और उसके अधिकारी और अन्य लोग रथों और घोड़ों पर शहर के फाटकों से आना जाना करते रहेंगे। +\v 5 परन्तु यदि तुम इन आदेशों पर ध्यान देने से मना करते हो, तो मैं, यहोवा, गम्भीर घोषणा करता हूँ कि यह महल मलबे का ढेर बन जाएगा।” +\p +\s5 +\v 6 और यहूदा के राजा के घराने के विषय में यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “मुझे यह महल पसन्द है, जैसे मुझे गिलाद के क्षेत्र में जंगल पसन्द है +\q2 और लबानोन में पर्वत। +\q1 परन्तु मैं इस महल को रेगिस्तान बनने का कारण उत्पन्न करूँगा, +\q2 ऐसा स्थान जहाँ कोई भी नहीं रहता है। +\q1 +\v 7 मैं ऐसे सैनिकों का चयन करूँगा जो इस महल को नष्ट कर देंगे; +\q2 प्रत्येक सैनिक इस इमारत को तोड़ने के लिए अपने स्वयं के हथियारों का उपयोग करेगा। +\q1 वे देवदार के इन बड़े सुन्दर लट्ठों को काट कर टुकड़े-टुकड़े कर देंगे +\q2 और उन्हें आग में डाल देंगे।” +\p +\s5 +\v 8 कई राष्ट्रों के लोग जब इस शहर के पास से निकलेंगे और एक दूसरे से कहेंगे, “यहोवा ने इस नगर को जो बहुत महान था क्यों नष्ट कर दिया?” +\v 9 और अन्य लोग उत्तर देंगे, “उन्होंने ऐसा किया क्योंकि उनके लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा के साथ बाँधी गई वाचा का पालन करना बन्द कर दिया था। इसकी अपेक्षा, उन्होंने अन्य देवताओं की पूजा की।” +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा यह भी कहते हैं, “राजा योशिय्याह के लिए शोक मत करो; +\q2 रोओ मत क्योंकि वह मर गया है। +\q1 इसकी अपेक्षा, राजा यहोआहाज, उसके पुत्र के लिए शोक करो, +\q2 क्योंकि वह बन्दी बना लिया जाएगा और दूसरे देश में ले जाया जाएगा, +\q1 और वह कभी भी अपने देश, यहूदा को फिर से देखने के लिए वापस नहीं आएगा।” +\s5 +\v 11 यहोआहाज अपने पिता राजा योशिय्याह के सामने राजा बन गया, परन्तु यहोआहाज को पकड़ लिया गया और बाबेल ले जाया गया। और यहोवा ने उसके विषय में यही कहा: “वह कभी यहूदा नहीं लौटेगा। +\v 12 वह उस देश में मर जाएगा जहाँ उन्होंने उसे बन्दी बना लिया है और अपना देश कभी नहीं देख पाएगा।” +\q1 +\s5 +\v 13 और यहोवा ने मुझसे कहा, “राजा यहोआहाज के भाई राजा यहोयाकीम के साथ भयानक बातें होंगी। +\q1 उसने अन्यायपूर्वक अपना महल बनाने के लिए पुरुषों को विवश किया। +\q2 ऊपरी स्तर के कमरे उन पुरुषों द्वारा बनाए गए थे जिन्हें उस कार्य को करने के लिए अन्याय से विवश किया गया था; +\q1 उसने अपने पड़ोसियों को बिना मजदूरी दिए कार्य करने के लिए विवश किया; +\q2 उसने उन्हें कुछ भी नहीं दिया। +\q1 +\v 14 उसने कहा, ‘मैं अपने मजदूरों को एक विशाल सुन्दर महल बनाने के लिए विवश करूँगा +\q2 जिसमें बहुत बड़े कमरे और कई खिड़कियाँ होंगी। +\q1 वे देवदार के सुगन्धित तख्तों से दीवारों को ढाँकेंगे +\q2 और उन्हें चमकदार लाल रंग से रंगेंगे।’” +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु निश्चय ही एक सुन्दर देवदार महल राजा को महान नहीं बनाता है! +\q1 यहोयाकीम के पिता, योशिय्याह के पास खाने और पीने के लिए बहुत सी वस्तुएँ थीं। +\q2 परन्तु योशिय्याह ने सदा वही कार्य किए जो उचित थे, +\q2 और यही कारण है कि परमेश्वर ने उसे आशीष दी थी। +\q1 +\v 16 योशिय्याह ने न्याय किया और गरीब और आवश्यकता में पड़े लोगों की सहायता की, +\q2 इसलिए उसका भला होता रहा। +\q1 यहोवा कहते हैं, “इसी प्रकार मुझे जानने वाले व्यक्ति का व्यवहार होना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 17 पर यहोयाकीम, तू लालची है और केवल छल-कपट से कार्य करके वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा रखता है। +\q2 तू निर्दोष लोगों की हत्या करता है, +\q1 तू गरीब लोगों पर दमन करता है, +\q2 और तू लोगों के साथ क्रूर और हिंसक व्यवहार करता है।” +\p +\v 18 इस कारण, योशिय्याह के पुत्र यहोयाकीम के विषय में यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “जब वह मर जाएगा, तो लोग उसके लिए शोक नहीं करेंगे। +\q2 वे एक दूसरे से नहीं कहेंगे, ‘हम बहुत दुखी है; हमें बहुत खेद है!’ +\q1 जिन लोगों पर उसने शासन किया, वे उसके लिए शोक करके नहीं कहेंगे, +\q2 ‘हमें दुख हैं कि हमारा राजा मर गया है; हमें बहुत खेद है कि उसके राजा होने के समय की अद्भुत बातें समाप्त हो गईं।’ +\q1 +\v 19 जब वह मरे, तब लोग उसके शव के साथ वैसा ही करेंगे जैसा वे एक मरे हुए गधे के साथ करते हैं; +\q2 उसके शव को खींच कर यरूशलेम के बाहर ले जाया जाएगा और फाटकों के बाहर फेंक दिया जाएगा! +\q1 +\s5 +\v 20 यहूदा के लोगों, लबानोन के पर्वतों पर जाओ और रोओ, +\q2 बाशान क्षेत्र के पर्वतों में चिल्लाओ, +\q1 शोक करते हुए मोआब के पर्वतों में पुकारो, +\q2 क्योंकि उन क्षेत्रों में तुम्हारे सब मित्रों को नष्ट कर दिया गया है। +\q1 +\v 21 जब तुम समृद्ध थे, तब मैंने तुम्हें चेतावनी दी, +\q2 परन्तु तुमने उत्तर दिया, ‘तू जो कहता है उस पर हम ध्यान नहीं देंगे।’ +\q1 तुम युवा अवस्था से ही ऐसा व्यवहार करते आ रहे हो; +\q2 तुमने मेरी आज्ञा कभी नहीं मानी है। +\q1 +\s5 +\v 22 तो, अब मैं तुम्हारे सब अगुवों को दण्ड दूँगा; +\q2 ऐसा होगा जैसे वे हवा से उड़ा दिए गए हैं। +\q1 तुम्हारे शत्रु उन्हें बन्दी बना कर दूसरे देश में ले जाएँगे। +\q1 जब ऐसा होगा, तब तुम वास्तव में लज्जित और अपमानित हो जाओगे +\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए सब बुरे कार्यों के कारण। +\q1 +\v 23 अब, तुम्हारा राजा अपने महल में देवदार के कमरे में रहने का आनन्द लेता है, +\q2 परन्तु शीघ्र ही उसे दण्ड दिया जाएगा, +\q1 और फिर वह चिल्लाएगा +\q2 एक ऐसी स्त्री के समान जो बच्चे को जन्म दे रही है।” +\p +\s5 +\v 24 यहोवा यह कहते हैं: “यहूदा के राजा यहोयाकीम के पुत्र यहोयाकीन, जैसा कि मैं जीवित हूँ, मैं तुझे दण्ड दूँगा। भले ही तू मेरी उँगली पर अंगूठी हो, जो दिखाती है कि मैं राजा हूँ, मैं तुझे खींच कर उतार दूँगा। +\v 25 तू बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर और उसकी विशाल सेना से डरता है, क्योंकि वे तुझे मारना चाहते हैं। तुझे बन्दी बनाने में मैं उन्हें सक्षम करूँगा। +\v 26 मैं तुझे और तेरी माँ को इस देश से निकाल दूँगा, और तू दूसरे देश में ले जाया जाएगा। तुम में से कोई भी वहाँ जन्मा नहीं था, परन्तु तुम दोनों वहाँ मर जाओगे। +\s5 +\v 27 तुम कभी भी इस देश में वापस नहीं आओगे जहाँ लौट आने की तुम्हारी बड़ी इच्छा होगी।” +\q1 +\v 28 किसी ने कहा, “यहोयाकीन एक टूटे हुए बर्तन के समान होगा +\q2 जो तुच्छ है और जिसे कोई भी नहीं चाहता है। +\q1 वह और उसके बच्चों को निकाल कर एक विदेशी भूमि में ले जाया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 29 मैं चाहता हूँ कि इस देश में लोग यहोवा के इस सन्देश को ध्यान से सुनें। +\q1 +\v 30 यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “यहूदा के राजाओं के विषय में अभिलेख में, लिखो कि ऐसा होगा जैसे की इस मनुष्य यहोयाकीन के बच्चे नहीं थे, +\q2 और वह अपने जीवन में सफल नहीं हुआ था, +\q1 क्योंकि उसकी कोई भी सन्तान कभी राजा नहीं बन पाएगी +\q2 कि यहूदा के लोगों पर शासन करे।” + +\s5 +\c 23 +\p +\v 1 यहोवा घोषणा करते हैं, “मेरे लोगों के अगुवों के साथ भयानक घटनाएँ होंगी—क्योंकि वे मेरी भेड़ों जैसे मेरे लोगों के चरवाहों के समान हैं—क्योंकि उन्होंने मेरे लोगों को तितर-बितर कर दिया है और उन्हें दूर भेज दिया है, और उनकी देखभाल नहीं की है। +\v 2 इसलिए, मैं यहोवा, जिसकी आराधना इस्राएली करते हैं, उन अगुवों से कहता हूँ: ‘मेरे लोगों की देखभाल करने और उन्हें उन स्थानों में ले जाने के लिए जहाँ वे सुरक्षित रहें, जैसा चरवाहे अपनी भेड़ों के साथ करते हैं, इसकी अपेक्षा तुमने उन्हें तितर-बितर कर दिया। इसलिए जो बुरे कार्य तुमने किए हैं, उसके लिए मैं तुम्हें दण्ड दूँगा। +\s5 +\v 3 परन्तु बाद में मैं उन लोगों को जो जीवित हैं, उन देशों से निकाल कर एकत्र करूँगा जहाँ मैंने उन्हें जाने के लिए विवश किया है। मैं उन्हें अपने देश में वापस लाऊँगा, जहाँ उनके कई बच्चे होंगे, और उनकी संख्या बढ़ेगी। +\v 4 तब मैं अपने लोगों के लिए अन्य अगुवों की नियुक्ति करूँगा, जो उनकी देखभाल करेंगे और मेरे लोग कभी भी किसी से भी नहीं डरेंगे, और उनमें से कोई भी खोई हुई भेड़ों के समान नहीं होगा जो उसके चरवाहे द्वारा खो गई है।’” +\p +\s5 +\v 5 यहोवा यह भी कहते हैं, +\q1 “एक दिन मैं तुम्हारे लिए एक धर्मी व्यक्ति नियुक्त करूँगा +\q2 जो राजा दाऊद के वंश का होगा। +\q1 राजा के रूप में, वह देश के सब लोगों के लिए न्यायसंगत और उचित कार्य करेगा। +\q1 +\v 6 उस समय, वह सब इस्राएली लोगों को अपने शत्रुओं से बचाएगा, +\q2 और वे सुरक्षित रहेंगे। +\q1 और उसका नाम होगा +\q2 ‘यहोवा, जो हमारे लिए उचित कार्य करते हैं।’” +\p +\s5 +\v 7 यहोवा यह भी कहते हैं कि उस समय, जो लोग निष्ठापूर्वक कुछ करने की शपथ खाते हैं, वे अब नहीं कहेंगे, “मैं निश्चय ही ऐसा करूँगा जैसे यहोवा जीवित हैं, जिन्होंने मिस्र से इस्राएलियों को बचाया।” +\v 8 इसकी अपेक्षा, वे कहेंगे, “मैं निश्चय ही ऐसा करूँगा जैसा यहोवा रहता है, जिसने हम इस्राएली लोगों को भूमि से पूर्वोत्तर तक और अन्य सब देशों से वापस ले लिया, जिस पर उसने हमें निर्वासित किया था।” और वे फिर से अपने देश में रहेंगे। +\p +\s5 +\v 9 यहोवा ने झूठे भविष्यद्वक्ताओं के लिए जो पवित्र सन्देश दिया उसके कारण मेरा मन बहुत दुखी है कि उनके साथ क्या होगा; +\q1 ऐसा लगता है कि मेरी सब हड्डियाँ थरथराती हैं। +\q2 मैं उस व्यक्ति के समान लड़खड़ाता हूँ जिसने बहुत सी दाखमधु पी रखी हो +\q1 +\v 10 देश उन लोगों से भरा है जो व्यभिचार करते हैं; +\q2 और यहोवा ने भूमि को श्राप दिया है। +\q1 यहाँ तक कि रेगिस्तान में सब चारागाह सूख गए हैं, +\q2 क्योंकि लोग बुरे कार्य करते हैं, +\q2 और झूठे भविष्यद्वक्ताओं ने उन कार्यों को करने के लिए अपने अधिकार का उपयोग किया जो उचित नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 11 यहोवा कहते हैं, “यहाँ तक कि याजक और भविष्यद्वक्ता भी अधर्मी हैं; +\q2 वे मेरे भवन में भी दुष्ट कार्य करते हैं। +\q1 +\v 12 इसलिए, ऐसा होगा कि जैसे उनके चलने के मार्ग फिसलन के हैं। +\q2 ऐसा होगा जैसे कि अँधेरे में उनका पीछा किया जा रहा है, +\q2 और वहाँ वे गिर जाएँगे, +\q1 क्योंकि मैं उन पर विपत्तियाँ डालूँगा +\q2 उस समय मैं उन्हें दण्ड दूँगा। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\q1 +\s5 +\v 13 पहले मैंने देखा कि सामरिया में भविष्यद्वक्ता कुछ ऐसा कर रहे थे जो गलत था; +\q2 वे भविष्यद्वाणी कर रहे थे, कि बाल ने उन्हें सन्देश दिए है जिनकी वे घोषणा कर रहे थे, +\q1 और वे मेरे लोगों को धोखा दे रहे थे। +\q1 +\v 14 और अब मैंने भविष्यद्वक्ताओं को यरूशलेम में भयानक कार्य करते हुए देखा है। +\q2 वे व्यभिचार करते हैं +\q2 और स्वभाव से ही झूठ बोलते हैं। +\q1 वे दुष्ट लोगों को दुष्टता के कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, +\q2 परिणामस्वरूप लोग पाप करना बन्द नहीं करते हैं। +\q1 ये भविष्यद्वक्ता दुष्ट हैं जैसे सदोम और गमोरा के लोग थे। +\p +\v 15 इसलिए, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान यहोवा, उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं के विषय में कहते हैं: +\q1 “मैं उन भविष्यद्वक्ताओं को कड़वा भोजन खाने के लिए दूँगा +\q2 और पीने के लिए विष दूँगा, +\q1 क्योंकि उनके कारण ही यह देश उन लोगों से भरा हुआ है जो दुष्ट कर्म करते हैं।” +\p +\s5 +\v 16 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान यहोवा कहते हैं: +\q1 “उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं ने जो कहा है, उस पर ध्यान मत दो, +\q2 क्योंकि वे केवल तुम्हें मूर्ख बना रहे हैं। +\q1 वे तुम्हें जिन दर्शनों की बातें सुनाते हैं वे केवल उनके मन के विचार हैं, +\q2 उन दर्शनों के विषय में नहीं जो मैंने उन्हें दिए हैं। +\q1 +\v 17 उन लोगों का स्वभाव ही हो गया है कि मुझसे घृणा करने वालों से कहें, +\q2 ‘यहोवा कहते हैं कि तुम्हें शान्ति मिलेगी।’ +\q1 और वे उन लोगों से कहते हैं जो अपनी इच्छा पूरी करने में हठ करते हैं, +\q2 ‘तुम ऐसे कार्य करते हो तो तुम्हारा कुछ भी बुरा नहीं होगा।’ +\q1 +\v 18 परन्तु उनमें से कोई भी स्वर्ग में की परिषद की बैठक में कभी नहीं रहा है +\q2 कि मेरे द्वारा दिया गया सन्देश सुने। +\q2 उनमें से किसी ने भी ध्यान नहीं दिया जो भी यहोवा ने कहा है। +\q1 +\s5 +\v 19 इसलिए, यहोवा उन्हें दण्ड देंगे; यह एक भयानक आँधी के समान होगा; +\q2 यह एक बवण्डर के समान नीचे आएगा जो उन दुष्टों के सिरों के चारों ओर घूमेगा। +\q1 +\v 20 यहोवा का क्रोध शान्त नहीं होगा +\q2 जब तक कि वह अपनी योजना को पूरी न कर लें। +\q2 भविष्य में, तुम इस बात को स्पष्ट रूप से समझोगे।” +\q1 +\s5 +\v 21 यहोवा यह भी कहते हैं, “मैंने उन भविष्यद्वक्ताओं को नियुक्त नहीं किया है, +\q2 परन्तु वे लोगों को अपने ही सन्देश सुनाते फिरते हैं। +\q1 मैंने उनसे बात नहीं की, +\q2 परन्तु वे भविष्यद्वाणी करते रहते हैं। +\q1 +\v 22 यदि वे मेरी परिषद की बैठकों में थे, +\q2 तो वे मेरे सन्देश सुनाने में सक्षम होते, +\q1 और वे लोगों को बुरे कार्य न करने के लिए प्रेरित करते।” +\q1 +\s5 +\v 23 यहोवा यह भी कहते हैं, “क्या मैं वह परमेश्वर हूँ जो केवल पास में है? +\q2 नहीं, मैं वह परमेश्वर हूँ जो बहुत दूर भी है। +\q1 +\v 24 तो, कोई भी गुप्त स्थान में छिप नहीं सकता है +\q2 कि मैं उसे नहीं देख सकता। +\q2 मैं स्वर्ग में और पृथ्‍वी पर हर स्थान में हूँ! +\q1 यही है जो मैं यहोवा, कहता हूँ! +\p +\s5 +\v 25 मैंने उन भविष्यद्वक्ताओं को झूठी भविष्यद्वाणी करते सुना है कि वे मुझसे प्राप्त सन्देश सुना रहे हैं। वे कहते हैं, ‘मेरी बात सुनो मैंने कल रात परमेश्वर की ओर से एक स्वप्न देखा! मैंने वास्तव में यह स्वप्न देखा है! +\v 26 वे ऐसा कब तक करते रहेंगे? वे झूठ बोलने वाले भविष्यद्वक्ता कब तक अपने मन से भविष्यद्वाणी करते रहेंगे? +\v 27 वे सोचते हैं कि वे एक-दूसरे को जो स्वप्न सुनाते हैं उनके कारण लोग मुझे भूल जाएँगे, जैसे कि उनके पूर्वज मुझे भूल गए जब उन्होंने बाल की पूजा करना आरम्भ की थी। +\s5 +\v 28 उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं को अपने स्वप्न लोगों को बताने दे, परन्तु जिनके पास वास्तव में वे सन्देश हैं जो मेरे पास ले आते है तो वे उन सन्देशों को निष्ठापूर्वक घोषित करें। मैं, यहोवा, कहता हूँ कि भूसे और अनाज के समान निश्चय ही मेरे सन्देश उन झूठे भविष्यद्वक्ताओं के सन्देश से बहुत अलग हैं। +\v 29 मेरे सन्देश आग के समान जलते हैं और एक हथौड़ा के समान है जो चट्टानों को टुकड़े-टुकड़े कर देता है जब यह किसी के हृदय पर प्रभाव डालते हैं। +\p +\v 30 इसलिए, मैं यहोवा, उन सब भविष्यद्वक्ताओं का विरोध करता हूँ जो एक-दूसरे से सन्देश चुराते हैं और दावा करते हैं कि वे सन्देश मुझसे आए हैं। +\s5 +\v 31 मैं उन भविष्यद्वक्ताओं का विरोध करता हूँ जो अपने सन्देश बोलते हैं परन्तु दावा करते हैं कि वे सन्देश मुझसे आए हैं। +\v 32 मैं उन भविष्यद्वक्ताओं का विरोध करता हूँ जो झूठी बात करते हैं कि मैंने उन्हें दर्शन में कुछ बताया, परन्तु वे केवल झूठ बोल रहे हैं जिनके कारण मेरे लोग पाप करने की प्रेरणा पाते हैं। मैंने उन भविष्यद्वक्ताओं को नहीं भेजा। मैंने उन्हें भविष्यद्वक्ता भी नियुक्त नहीं किया है। और उनके पास कोई सन्देश नहीं है जो मेरे लोगों को कभी लाभ पहुँचाएगा। यही वह है जो मैं, यहोवा, घोषित करता हूँ।” +\p +\s5 +\v 33 यहोवा ने मुझसे कहा, “यदि उन भविष्यद्वक्ताओं या याजकों में से कोई या अन्य लोगों में से कोई तुमसे पूछता है, ‘यहोवा ने तुझे अब क्या समस्या बताई है?’, तो तू उन्हें उत्तर देना, ‘तुम्हारे लिए उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं कहा है! इसकी अपेक्षा, यहोवा कहते हैं कि वह तुम्हें त्याग देंगे! +\v 34 और यदि कोई भविष्यद्वक्ता या याजक या कोई और झूठ कहता है, ‘मेरे पास यहोवा से प्राप्त एक भविष्यद्वाणी है,’ तो मैं उस व्यक्ति और उसके परिवार को दण्ड दूँगा। +\s5 +\v 35 तुम्हें निरन्तर एक दूसरे से पूछते रहना चाहिए, ‘जब तुमने यहोवा से बात की, तो उन्होंने क्या उत्तर दिया? वह हमसे क्या कह रहे हैं? +\v 36 परन्तु इसकी अपेक्षा तुम्हें केवल अपने विचारों की और सच्चे परमेश्वर, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा जिनकी हम आराधना करते हैं उनके सच्चे सन्देश को बिगाड़ रहे हो। +\s5 +\v 37 यही आपको प्रत्येक भविष्यद्वक्ता से पूछना चाहिए: ‘जब तुमने उनसे बात की तो यहोवा ने क्या उत्तर दिया? वह हमसे क्या कह रहे हैं? +\v 38 यदि वह उत्तर देता है, ‘मैंने जो कहा है, वह यहोवा की भविष्यद्वाणी है’ तो उससे कहना, कि मैं उसे दण्ड दूँगा, क्योंकि मैंने अपने सच्चे भविष्यद्वक्ताओं से कहा था कि अभी इन लोगों को कोई सन्देश न दें। +\v 39 इसलिए मैं, यहोवा, तुम झूठे भविष्यद्वक्ताओं से छुटकारा पाऊँगा। मैं तुम्हें अपनी उपस्थिति से निकाल दूँगा। और मैं इस नगर को नाश कर दूँगा जिसे मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया था। +\v 40 मैं सदा के लिए तुम्हें लोगों के लिए ठट्ठा करने का कारण बना दूँगा। लोग कभी नहीं भूलेंगे कि तुम अपमानित किए गए थे।” + +\s5 +\c 24 +\p +\v 1 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने यहूदा के राजा यहोयाकीम के पुत्र यहोयाकीन को और उसके अधिकारियों और उसके सब कुशल श्रमिकों को पकड़ लिया और उन्हें बाबेल ले गया। उसके बाद, यहोवा ने मुझे एक दर्शन दिया। दर्शन में मैंने अंजीर की दो टोकरियाँ देखी जो मन्दिर के सामने रखी गई थीं। +\v 2 एक टोकरी अच्छे अंजीर से भरी थी, जैसे कि पहली उपज के पके हुए। दूसरी टोकरी ऐसे अंजीर से भरी थी जो खराब थे, जिसके कारण उन्हें नहीं खाया जा सकता था। +\p +\v 3 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, तू क्या देखता है?” +\p मैंने उत्तर दिया, “मैं कुछ अंजीर देखता हूँ। कुछ बहुत अच्छे हैं, परन्तु कुछ बहुत बुरे हैं, इसलिए उन्हें कोई भी नहीं खाएगा।” +\p +\s5 +\v 4 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 5 “मैं यहोवा, जिसकी इस्राएली लोग आराधना करते हैं, यह कहता हूँ: अच्छे अंजीर यहूदा के उन लोगों का दर्शाते हैं जिन्हें मैंने बाबेल में निर्वासित किया था। मैंने उन्हें उनके स्वयं के अच्छे के लिए भेजा। +\v 6 और मैं उन्हें फिर से निर्वासित नहीं करूँगा, वरन् मैं उन्हें इस देश में वापस लाऊँगा और उन्हें फिर से घरों और शहरों का निर्माण करने दूँगा। वे पौधे के समान होंगे जो बढ़ते हैं और समृद्ध होते हैं और कभी काटे नहीं जाते हैं। +\v 7 मैं उन्हें इस योग्य करूँगा कि उनके मन में मुझ यहोवा को जानने की गहरी इच्छा उत्पन्न हो। वे मेरे लोग होंगे, और मैं उनका परमेश्वर होऊँगा, क्योंकि वे निष्ठापूर्वक मेरे पास लौट आएँगे। +\p +\s5 +\v 8 परन्तु मैं, यहोवा यह भी कहता हूँ कि खराब अंजीर उन लोगों को दर्शाते हैं जो यहूदा के राजा सिदकिय्याह और उसके अधिकारियों और अन्य सब लोग जो यरूशलेम में रहते हैं, और जो मिस्र गए हैं। मैं उन लोगों के साथ वैसा ही करूँगा जैसा लोग सड़े हुए अंजीरों के साथ करते हैं। +\v 9 मैं उन पर विपत्तियाँ डालूँगा, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्‍वी पर हर देश में लोग भयभीत होंगे, और उनसे घृणा करेंगे क्योंकि वे दुष्ट लोग हैं। जहाँ भी मैं उन्हें तितर-बितर करता हूँ, लोग उनका उपहास करेंगे, और कहेंगे कि वे अपमानित लोग हैं, और उन्हें तुच्छ समझेंगे और उन्हें श्राप देंगे। +\v 10 और मैं उन्हें युद्ध, अकाल और बीमारियों का अनुभव करने का कारण दूँगा, जब तक कि वे इस्राएल से लोप न हो जाएँ, इस भूमि से जिसे मैंने उन्हें और उनके पूर्वजों को दी थी।” + +\s5 +\c 25 +\p +\v 1 यहोयाकीम लगभग चार वर्षों तक यहूदा पर शासन कर चुका तब, यहोवा ने मुझे यहूदा के सब लोगों के लिए यह सन्देश दिया। यह वह वर्ष था जब राजा नबूकदनेस्सर ने बाबेल पर शासन करना आरम्भ किया था। +\v 2 यिर्मयाह ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों के सब लोगों को यह सन्देश सुनाया: +\s5 +\v 3 “यहोवा मुझे तेईस वर्ष से सन्देश दे रहे हैं। उन्होंने मुझे सन्देश देना आरम्भ किया था जब आमोन के पुत्र योशिय्याह ने तेरह वर्ष तक यहूदा पर शासन किया था। और मैंने उन सन्देशों को विश्वासपूर्वक तुम्हें सुनाया है, परन्तु तुमने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। +\p +\v 4 कई बार यहोवा ने उन भविष्यद्वक्ताओं को भेजा जिन्होंने उनकी सेवा की, परन्तु तुमने उनकी बात नहीं सुनी या उन्होंने जो कहा है, उस पर ध्यान नहीं दिया। +\s5 +\v 5 हर बार उनका सन्देश यह था: ‘अपने बुरे व्यवहार से, उन सब बुरे कार्यों से मन फिराओ जो तुम निरन्तर कर रहे हो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम इस देश में रह सकोगे जिसे यहोवा ने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को सदा के लिए दिया है। +\v 6 अपने हाथों से बनाई गई मूर्तियों की सेवा और पूजा करके यहोवा के क्रोध का कारण न बनों। यदि तुम उन्हें क्रोधित नहीं करते हो, तो वह तुम्हें दण्ड नहीं देंगे।’ +\p +\s5 +\v 7 और यहोवा कहते हैं, ‘परन्तु तुमने उन भविष्यद्वक्ताओं को दिए गए मेरे सन्देशों पर ध्यान नहीं दिया। तुमने मुझे पूजा की मूर्तियों से बहुत क्रोध दिलाया है जिन्हें तुमने अपने हाथों से बनाया है। इसके परिणामस्वरूप तुम्हें दण्ड देना मेरे लिए आवश्यक हो गया है। +\p +\v 8 तो अब, मैं स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा कहता हूँ कि मैंने जो कहा उस पर तुमने ध्यान नहीं दिया है, +\v 9 मैं उन सब जातियों की सेनाओं को एकत्र करूँगा जो पूर्वोत्तर से आएँगी। और उनकी अगुवाई करने के लिए बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर को नियुक्त किया है। मैंने उसे नियुक्त किया है कि वह मेरे लिए कार्य करे। मैं उन सेनाओं को इस देश पर आक्रमण करने के लिए लाऊँगा, इसमें रहने वाले सब लोग और यहाँ तक कि आस-पास की जातियाँ भी। मैं उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दूँगा, और उन स्थानों को ऐसा कर दूँगा कि लोग उनसे भयभीत हो और लोग उपहास करेंगे, वह स्थान सदा के लिए नष्ट हो जाएँगे। +\s5 +\v 10 मैं तुम्हारे देश में आनन्द के गीत और हँसना समाप्त कर दूँगा। दूल्हे और दुल्हन के आनन्द को समाप्त कर दूँगा। लोगों द्वारा चक्की पर अनाज पीसने का शब्द भी नहीं होगा। तुम्हारे घरों में दीपक नहीं जलाए जाएँगे। +\v 11 यह सारी भूमि एक रेगिस्तान बन जाएगी जहाँ कोई भी जीवित नहीं रहेगा। और इस्राएल और आस-पास के देशों के लोग बाबेल में ले जाए जाएँगे और सत्तर वर्षों तक बाबेल के राजाओं के लिए कार्य करेंगे। +\p +\s5 +\v 12 फिर, सत्तर वर्षों तक बाबेल में रहने के बाद, मैं बाबेल के राजा और उसके लोगों को उनके पापों के लिए दण्ड दूँगा। मैं बाबेल को सदा के लिए एक बंजर भूमि बना दूँगा। +\v 13 मैं उनके लिए उन सब भयानक बातों के अनुभव करने का कारण उत्पन्न करूँगा जिनके विषय में यिर्मयाह ने लिखा है—वे सब दण्ड जिनकी उसने भविष्यद्वाणी की है, उन सब राष्ट्रों के साथ होगी। +\v 14 कई राष्ट्रों के अगुवे बाबेल के लोगों को अपने दास बनाएँगे, जैसे बाबेल के लोगों ने मेरे लोगों को दास बनाया है। मेरे लोगों को कष्ट देने के कारण मैं उन्हें उनके योग्य दण्ड दूँगा।’” +\p +\s5 +\v 15 तब इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने मुझे एक दर्शन दिया। उस दर्शन में वह दाखमधु का कटोरा पकड़े हुए थे। उन्होंने कहा, “मेरे हाथ से दण्ड का प्रतीक यह दाखमधु का कटोरा ले। मैं उन जातियों के अगुवों को इस कटोरे में से थोड़ा-थोड़ा दाखमधु पिलाऊँगा, जहाँ-जहाँ मैं तुझे भेजूँगा। +\v 16 जब वे इस दाखमधु को पीएँगे तब वे लड़खड़ाएँगे और पागल लोगों के समान कार्य करेंगे।” +\p +\s5 +\v 17 इसलिए, मैंने उस दर्शन में यहोवा के हाथ से वह दाखमधु से भरा कटोरा लिया, और मैं उन सब जातियों में गया जहाँ उन्होंने मुझे भेजा और उन जातियों के अगुओं को उस दाखमधु में से थोड़ा-थोड़ा पिला दिया। +\v 18 मैं यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों में गया, और राजा और अन्य अधिकारियों ने उस कटोरे से थोड़ा-थोड़ा दाखमधु पी लिया। और उस दिन से, उन सबको अधिकार प्राप्त करने से अंततः हटा दिए गए, और वे लोगों के लिए ठट्ठे, घृणा और श्राप के पात्र बन गए। +\s5 +\v 19 उस दर्शन में मिस्र को दाखमधु पीनी पड़ी, जिसमें राजा और उसके अधिकारियों और उनके कई लोग +\v 20 और वहाँ रहने वाले विदेशी लोग भी सम्मिलित थे। दर्शन में ऊस देश और उसके नगरों और अश्कलोन के राजाओं, गाजा, एक्रोन और अश्दोद देश के लोगों को भी थोड़ा-थोड़ा दाखमधु पीना पड़ा। +\v 21 तब उस दर्शन में एदोम, मोआब और अम्मोनियों के राजाओं। +\s5 +\v 22 तब भूमध्य सागर के पार सोर और सीदोन के नगरों के राजाओं को भी थोड़ा-थोड़ा दाखमधु पीना पड़ा। +\v 23 फिर दर्शन में ददान, तेमान और बूज के नगरों के धार्मिक अगुवों, जो अरब और अन्य दूर के स्थानों में थे, उन्हें थोड़ा-थोड़ा दाखमधु पीना पड़ा। +\s5 +\v 24 उस दर्शन में अरब के अन्य स्थान और रेगिस्तान में जनजातियों के राजाओं +\v 25 और जिम्री, एलाम और मादै के लोग, +\v 26 और उत्तर में देशों के राजा जो इस्राएल के पास हैं और उन देशों के जो इस्राएल से दूर हैं, एक दूसरे के बाद - संसार के सब साम्राज्यों को पीना पड़ा और अन्त में बाबेल के राजा को भी वह दाखमधु पीना पड़ा। +\p +\s5 +\v 27 तब दर्शन में यहोवा ने मुझसे कहा, “उनको बता कि यहोवा इस्राएल के परमेश्वर, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान कहते हैं, ‘इस कटोरे से कुछ दाखमधु पीओ जो मेरे दण्ड का प्रतीक है जो मैं तुम्हें दूँगा। बहुत पी लो और नशे में हो जाओ और उल्टी करो। तुम गिर जाओगे और फिर उठ नहीं पाओगे, क्योंकि मैं तुम्हें युद्धों में मरवाऊँगा, जो मैं तुम पर भेजूँगा। +\v 28 यदि वे तेरे द्वारा दी गई इस दाखमधु को पीने से मना कर देते हैं, तो उनसे कहना कि स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते हैं कि उन्हें इसे पीना होगा। +\v 29 मैं अपने लोगों पर विपत्तियाँ लाना आरम्भ कर रहा हूँ। उन्हें दण्ड से मुक्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि मैं पृथ्‍वी पर सब राष्ट्रों के लिए युद्ध भेज रहा हूँ। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान, यहोवा ने यह कहा है।’ +\p +\s5 +\v 30 अब उन सब बातों को बता जो मैंने कहीं हैं, और यह भी उनसे कह: +\q1 ‘यहोवा स्वर्ग में अपने निवासस्थान से उन पर चिल्लाएँगे और वह शेर की गर्जन के समान सुनाई देगा! +\q2 वह अपने पवित्रस्थान से जहाँ वह रहते हैं ऐसे चिल्लाएँगे जैसे लोग दाखमधु बनाने के लिए अँगूरों को रौंदते समय चिल्लाते हैं! +\q1 वह अपने पापों के कारण अपने लोगों के विरुद्ध सिंह के समान गरजेंगे! वह पृथ्‍वी पर के प्रत्येक जन के लिए चिल्लाएँगे की वह सुने! +\q1 +\v 31 यहाँ तक कि पृथ्‍वी के चारों ओर बहुत दूर के स्थानों में भी लोग उन्हें चिल्लाते हुए सुनेंगे, +\q2 क्योंकि वह कहेंगे कि वह सब जातियों का न्याय क्यों करेंगे और उन्हें दण्ड क्यों देंगे। +\q1 वह दुष्ट लोगों को तलवार से मार देंगे। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।’ +\p +\s5 +\v 32 तब उन्हें बता कि स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा यही कहते हैं: +\q1 ‘इसे सुनो! +\q2 एक के बाद एक जातियों पर विपत्तियाँ आएँगी। +\q1 मेरा दण्ड एक बड़ी आँधी के समान उठेगा +\q2 पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों से आएगा। +\q1 +\v 33 जब ऐसा होगा, उन लोगों के शव जिन्हें मैंने वध किया है, पृथ्‍वी को पूर्व से पश्चिम तक भर देंगे। +\q2 और कोई भी उनके लिए शोक नहीं करेगा, और कोई भी उनके शवों को दफनाने के लिए एकत्र नहीं करेगा। वे खाद के समान भूमि पर बिखरे हुए होंगे। +\q1 +\s5 +\v 34 हे दुष्ट अगुवों, रोओ और विलाप करो! +\q2 तुम जो मेरे लोगों स्वयं को बहुत शक्तिशाली समझते थे, गिर कर मिट्टी में लोटो। +\q1 अब तुम्हारे मरने का समय है! +\q2 जब तुम भूमि पर गिर कर ऐसे बिखर जाओगे जैसे एक फूलदान गिर कर टूट जाता है। +\q1 +\v 35 तुम्हें छिपने के लिए कोई स्थान नहीं मिलेगा, जहाँ तुम बच कर जा सको; +\q1 +\v 36 तुम जो मेरे लोगों की देखभाल करते हो अब सहायता के लिए पुकार रहे हो और जो मेरे लोगों के अगुवे थे वे रोते और सहायता माँगते हैं। +\q2 जब मैं, यहोवा, तुम्हारे देश को नष्ट कर रहा हूँ। +\q1 +\s5 +\v 37 तुम्हारे शान्तिपूर्ण चारागाह एक बंजर भूमि बन जाएँगे +\q2 क्योंकि यहोवा इसे गम्भीर दण्ड देंगे। +\q1 +\v 38 यहोवा अपने घर को इस प्रकार छोड़ेंगे जिस प्रकार शेर पशुओं पर आक्रमण करने के लिए अपनी गुफा को छोड़ देता है, +\q2 और वह तुम्हारे देश के उजड़ने का कारण बन जाएँगे। +\q1 वह तुमसे बहुत क्रोधित हैं और वह तुम्हारे शत्रुओं को भी तुम पर क्रोधित करेंगे।’” + +\s5 +\c 26 +\p +\v 1 योशिय्याह के पुत्र यहोयाकीम के, यहूदा का राजा बन जाने के तुरन्त बाद, यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 2 “मैं यहोवा, तुझसे कह रहा हूँ: मेरे भवन के सामने आँगन में खड़ा हो जा और मेरी आराधना के लिए यहूदा के विभिन्न नगरों से आने वाले सब लोगों से यह कह। मैं जो तुझे कहता हूँ वह उन्हें बता दे; कुछ भी मत छोड़ना। +\v 3 यदि तू उन्हें वह सब कुछ बताता है, तो संभव है कि वे ध्यान दें और उनमें से प्रत्येक जन अपने दुष्ट व्यवहार से दूर हो जाए। तब मैं अपना मन बदलूँगा और उन विपत्तियों को नहीं लाऊँगा जिन्हें मैं उनके बुरे कार्यों के कारण लाने की योजना बना रहा था। +\s5 +\v 4-5 उनसे कह, ‘यहोवा कहते हैं: मैंने तुम्हारे पास उन भविष्यद्वक्ताओं को भेजा जो मेरी सेवा करते हैं, यह बताने के लिए कि तुम्हें क्या करना चाहिए। मैंने उन्हें कई बार भेजा, परन्तु उन्होंने जो कहा उस पर तुमने ध्यान नहीं दिया। यदि तुम मेरी बात पर जो मैं कहता हूँ उस पर ध्यान नहीं दोगे और जो सन्देश मैंने तुम्हें दिया है उसका पालन नहीं करोगे और यदि तुम भविष्यद्वक्ताओं के कहने पर ध्यान नहीं दोगे, +\v 6 तो मैं इस भवन को नष्ट कर दूँगा जैसे मैंने शीलो को नष्ट कर दिया, वह स्थान जहाँ पवित्र-तम्बू रखा गया था। और मैं यरूशलेम को ऐसा स्थान बना दूँगा जिसका नाम ले कर धरती के हर देश में लोग किसी को श्राप देंगे।’ ” +\p +\s5 +\v 7 यिर्मयाह ने वही किया जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था। याजकों, झूठे भविष्यद्वक्ताओं, और कई अन्य लोगों ने उनकी बात सुनी क्योंकि उसने उन्हें आराधनालय के बाहर सन्देश सुनाया था। +\v 8 परन्तु जैसे ही यिर्मयाह ने वह सब उन्हें सुना दिया जिसकी आज्ञा यहोवा ने उसे दी थी, वैसे ही उन सब ने उसे पकड़ लिया और कहा, “तुझे मार डाला जाना चाहिए! +\v 9 तू ऐसी भविष्यद्वाणी क्यों कर रहा है कि इस आराधनालय को नष्ट कर दिया जाएगा जैसे शीलो नष्ट हो गया था? तू क्यों कह रहा है कि यह शहर नष्ट किया जाएगा और कोई भी यहाँ नहीं रहेगा? सब लोगों ने यिर्मयाह को घेर रखा था क्योंकि वह आराधनालय के सामने खड़ा था। +\p +\s5 +\v 10 जब यहूदा के अधिकारियों ने यह सब सुना जो हो रहा था, तो वे महल से भाग कर आ गए और यिर्मयाह के मुकद्दमे का न्याय करने के लिए नए फाटक नामक आराधनालय के द्वार पर बैठे। +\v 11 याजकों और भविष्यद्वक्ताओं ने अधिकारियों और अन्य लोगों को बताया, “इस मनुष्य को मार डाला जाना चाहिए, क्योंकि इसने भविष्यद्वाणी की है कि यह शहर नष्ट हो जाएगा, और तुमने स्वयं उसे सुना है!” +\p +\v 12 तब यिर्मयाह ने अधिकारियों और अन्य लोगों को उत्तर दिया। उसने उनसे कहा, “यहोवा ने मुझे इन सब बातों की भविष्यद्वाणी करने के लिए भेजा है जिन्हें आपने सुना है कि इस आराधनालय और इस शहर के साथ क्या होगा। +\s5 +\v 13 परन्तु यदि तुम अपना व्यवहार बदलते हो और पाप करना बन्द कर देते हो, और हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा मानना आरम्भ करते हो, तो वह अपना मन बदल देंगे और तुम पर वह विपत्ति नहीं भेजेंगे जो उन्होंने कहा था कि वह भेज देंगे। +\v 14 जहाँ तक मेरी बात है, मैं तुम लोगों की पकड़ से निकल नहीं सकता हूँ। अतः तुम लोग जो भी चाहते हो वह मेरे साथ करो। +\v 15 परन्तु तुमको यह जानने की आवश्यकता है कि यदि तुम मुझे मार देते हो, तो तुम एक निर्दोष व्यक्ति को मार दोगे। और तुम और इस नगर में हर कोई दोषी होगा, क्योंकि सच्चाई यह है कि यह वह यहोवा हैं जिन्होंने मुझे हर शब्द बोलने के लिए भेजा जो तुमने मुझे सुने हैं।” +\p +\s5 +\v 16 तब अधिकारियों और अन्य लोगों ने याजक और झूठे भविष्यद्वक्ताओं से कहा, “यह मनुष्य मृत्यु दण्ड के योग्य नहीं है, क्योंकि इसने हमें वही सन्देश सुनाया है जो यहोवा ने उसे दिया है!” +\p +\v 17 तब कुछ बुजुर्ग खड़े हुए और वहाँ एकत्र हुए सब लोगों से बात की। +\s5 +\v 18 उन्होंने कहा, “याद रखो कि मोरेशेत के भविष्यद्वक्ता मीका ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह के समय भविष्यद्वाणी की थी। उसने यहूदा के लोगों से यह कहा था: +\q1 ‘स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा कहते हैं: +\q2 एक दिन सिय्योन पर्वत खेतों के समान जोता जाएगा; +\q2 यरूशलेम खण्डहरों का ढेर बन जाएगा। +\q1 पहाड़ी के ऊपर भवन के स्थान में पेड़ उगेंगे।’ +\v 19 परन्तु यहूदा में क्या हिजकिय्याह ने या किसी और ने ऐसा कहने के कारण मीका को मार डाला? नहीं! इसकी अपेक्षा, हिजकिय्याह ने यहोवा का आदर किया, और अनुरोध किया कि वह उस पर दया करें। इसलिए, यहोवा ने उन पर भयानक विपत्ति लाने से अपना मन बदल दिया, जिसे उन्होंने कहा था कि वह लाएँगे। और अब यदि हम यिर्मयाह को मार देते हैं, तो हम स्वयं पर भी अधिक भयानक विपत्ति लाने जा रहे हैं!” +\p +\s5 +\v 20 उस समय, किर्यत्यारीम शहर से शमायाह का पुत्र ऊरिय्याह भी यहोवा की ओर से भविष्यद्वाणी कर रहा था। वह भविष्यद्वाणी कर रहा था कि वह शहर और बाकी का देश उन्हीं विपत्तियों का अनुभव करेगा जो यिर्मयाह भविष्यद्वाणी कर रहा था। +\v 21 जब राजा यहोयाकीम और उसके सेना के अधिकारियों और अन्य अधिकारियों ने सुना कि ऊरिय्याह क्या कह रहा था, तो राजा ने ऊरिय्याह को मारने के लिए किसी को भेजा। परन्तु ऊरिय्याह ने इसके विषय में सुना, और बहुत डर गया, और वह मिस्र को बच निकला। +\s5 +\v 22 तब राजा यहोयाकीम ने अकबोर के पुत्र एलनातान को कई अन्य मनुष्यों के साथ मिस्र भेजा। +\v 23 उन्होंने ऊरिय्याह को पकड़ लिया और उसे राजा यहोयाकीम के पास यरूशलेम वापस ले गया। तब राजा ने एक सैनिक को तलवार से ऊरिय्याह को मारने का आदेश दिया। तब उन्होंने उसके शव को ऐसे स्थान पर दफनाया जहाँ गरीब लोगों को दफनाया जाता था। +\v 24 परन्तु, शापान के पुत्र अहीकाम ने मुझे बचाया, और अधिकारियों को राजी किया कि भीड़ को यिर्मयाह की हत्या करने की अनुमति न दें। + +\s5 +\c 27 +\p +\v 1 योशिय्याह के पुत्र सिदकिय्याह के यहूदा का राजा बनने के बाद, यहोवा ने मुझे एक सन्देश दिया। +\v 2 उन्होंने मुझसे जो कहा वह यह है: “एक जुआ और बन्धन बना, फिर उन्हें अपनी गर्दन के पर रख। +\v 3 तब उन्हें एदोम, मोआब, अम्मोन, सोर और सीदोन के राजाओं को भेजने के लिए सन्देश दिए और उन्हें उन देशों के राजदूतों को देने की आज्ञा दी जो राजा सिदकिय्याह से बात करने के लिए यरूशलेम आए हैं। +\v 4 उन्हें यह सन्देश उनके राजाओं को देने के लिए कह: स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान यहोवा, जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं: +\s5 +\v 5 ‘मेरी महान शक्ति से मैंने पृथ्‍वी और पृथ्‍वी पर लोगों और पशुओं को बनाया और मैं उन सबको उन लोगों को दे सकता हूँ जिन्हें मैं देना चाहता हूँ। +\v 6 और अब मैं बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर को, जो वही करता है जो मैं चाहता हूँ, सक्षम करने जा रहा हूँ, कि वह अपने देशों को नियंत्रण में रखें। मैं उसे सब कुछ, यहाँ तक कि जंगली पशुओं पर शासन करने में सक्षम बनाने जा रहा हूँ। +\v 7 सब जातियों के लोग उसके लिए कार्य करेंगे, और बाद में उसके पुत्र के लिए, और बाद में उसके पोते के लिए भी जब तक की उनका शासन करने का समय समाप्त न हो जाए। तब कई राष्ट्रों के कई महान राजाओं की सेनाएँ बाबेल को जीत लेंगी।’ +\p +\s5 +\v 8 परन्तु अब मैं तुमसे कहता हूँ कि बाबेल का राजा तुमसे जो करवाना चाहता है, वह तुम्हें करना होगा, जैसे बैल की गर्दन पर जुआ होता है तो उसे वही करना होता है जो उसका स्वामी चाहता है। जो देश ऐसा करने से मना करे उसे मैं दण्ड दूँगा। मैं उन लोगों को युद्ध और अकाल और बीमारियों का अनुभव करने का कारण उत्पन्न करूँगा, जब तक कि बाबेल की सेना उस देश पर विजय प्राप्त न कर ले। +\s5 +\v 9 इसलिए, अपने झूठे भविष्यद्वक्ताओं और भावी कहने वालों और तन्त्र मन्त्र करके भविष्य बताने वाले और मरे हुओं की आत्माओं से बात करने वालों की बातों पर ध्यान न दो। वे कहते हैं कि उनकी सेवा न करो क्योंकि बाबेल का राजा तुम्हारे देश को जीत नहीं पाएगा। +\v 10 वे लोग सब झूठे हैं। यदि तुम उनकी बातों पर विश्वास करते हो तो इसका परिणाम तुम्हारे देश से तुम्हारा बन्धुआई में जाना होगा। मैं तुम्हें तुम्हारे देश से निकलवा दूँगा और तुम बहुत दूर मर जाओगे। +\v 11 परन्तु जिस देश के लोग बाबेल के राजा का कहा मानते हैं, वे अपने ही देश में रहेंगे और अपनी फसलों को सदा के समान उगाने में सक्षम होंगे। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है।” +\p +\s5 +\v 12 जब मैंने उन राजदूतों को यह सन्देश दिया, तो मैंने यहूदा के राजा सिदकिय्याह को भी यही सन्देश दिया। मैंने उससे कहा, “यदि तू जीवित रहना चाहता है, तो बाबेल के राजा और उसके अधिकारी क्या करवाना चाहते हैं। +\v 13 तुम्हारे लिए ऐसा न करना मूर्खता होगी, क्योंकि इसका परिणाम यह होगा कि तू और तेरे लोग अपने शत्रुओं के तलवारों से या अकाल से या बीमारियों से मर जाएँगे, जो यहोवा किसी भी देश पर डालेंगे जो उन पर बाबेल के राजा के शासन से मना करेंगे। +\s5 +\v 14 उन भविष्यद्वक्ताओं पर ध्यान न दें जो तुमसे कहते हैं, ‘बाबेल के राजा का आज्ञापालन न करो क्योंकि वह तुम्हारे देश को जीत नहीं पाएगा।’ वे झूठे हैं। +\v 15 यहोवा यही कहते हैं: ‘मैंने उन भविष्यद्वक्ताओं को नियुक्त नहीं किया है। वे कह रहे हैं कि मैंने उन्हें सन्देश दिए, परन्तु वे झूठ बोल रहे हैं। इसलिए, यदि तू उन पर विश्वास करता है, तो मैं तुझे इस भूमि से निकाल दूँगा। और तू और वे सब भविष्यद्वक्ता बाबेल में मर जाएँगे!’” +\p +\s5 +\v 16 तब मैंने याजकों और अन्य लोगों से बात की, और मैंने कहा, “यहोवा यही कहते हैं: ‘अपने भविष्यद्वक्ताओं पर विश्वास न करें जो तुमसे कहते हैं कि बाबेल के सैनिकों द्वारा मेरे भवन से ली गई सब सोने की वस्तुएँ शीघ्र ही बाबेल से लौट आएँगी, क्योंकि वे जो भविष्यद्वाणी कर रहे हैं वह झूठ है। +\v 17 वे जो कहते हैं उस पर ध्यान न दो। बाबेल के राजा के निमित्त समर्पण कर दो यदि तुम ऐसा करते हैं, तो तुम जीवित रहोगे। यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो यह पूरा शहर नष्ट हो जाएगा। +\v 18 यदि वे सचमुच भविष्यद्वक्ता हैं जो मेरे सन्देश बोलते हैं, तो उनसे कहो, कि मुझसे, स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा से विनती करो, कि बाबेल के सैनिक भवन और राजमहल और यरूशलेम के अन्य महलों में से उन मूल्यवान वस्तुओं को बाबेल में ले जाने पाएँ जो अभी बची हुई हैं। +\s5 +\v 19 मैं यह कहता हूँ क्योंकि आराधनालय के सामने विशाल खम्भे और बड़ा हौद है जिसे “सागर” कहा जाता है और दस पानी के गाड़ियाँ और बलि चढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली अन्य सब वस्तुएँ अभी भी इस शहर में हैं। +\v 20 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने उन वस्तुओं को यहाँ छोड़ दिया था जब वह यहूदा के राजा यहोयाकीम के पुत्र यहोयाकीन को बाबेल में और यरूशलेम के अन्य सब अगुवों और यहूदा के अन्य स्थानों के अगुवों को बन्दी बना कर ले गया था। +\s5 +\v 21 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, उन सब मूल्यवान वस्तुओं के विषय में कहते हैं जो अभी भी आराधनालय के बाहर और यहूदा के राजा के महल में हैं: +\v 22 वे सब बाबेल को ले जाई जाएँगी। और जब तक मैं न कहूँ कि उन्हें यरूशलेम वापस लाया जाना चाहिए, तब तक वे वहाँ रहेंगे। फिर वे यहाँ वापस लाई जाएँगी। मैं यहोवा यही कहता हूँ।’” + +\s5 +\c 28 +\p +\v 1 ये बातें तब हुई जब सिदकिय्याह यहूदा का राजा होकर अपना शासन आरम्भ कर रहा था। यह उसके शासन के चौथे वर्ष के पाँचवें महीने में हुआ, कि गिबोन शहर के एक भविष्यद्वक्ता अज्जूर के पुत्र हनन्याह ने यिर्मयाह से यहोवा के भवन के आँगन में बात की, जब सब याजक और अन्य लोग सुन रहे थे। उसने कहा, +\v 2 “स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, कहते हैं: ‘मैं तुम पर बाबेल के राजा का शासन करना बन्द करवा दूँगा। +\s5 +\v 3 दो वर्ष के भीतर, मैं इस आराधनालय में उन सब वस्तुओं को वापस लाने का कारण उत्पन्न करूँगा जिन्हें नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने इस मन्दिर से लिया था और बाबेल ले गए। +\v 4 और मैं इस स्थान पर यहोयाकीन, जो यहूदा के राजा यहोयाकीम का पुत्र है और अन्य सब लोग जिन्हें बन्दी बना कर बाबेल में ले जाया गया है, लौटा लाऊँगा। बाबेल के राजा ने तुम्हें विवश करके वह करवाया जो वह चाहता है, जैसे किसी ने बैल की गर्दन पर जुआ डाल दिया है कि वह ऐसा करने के लिए विवश हो सके जो वह करवाना चाहता है। परन्तु मैं इसका अन्त कर दूँगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है।’ ” +\p +\s5 +\v 5 यिर्मयाह ने हनन्याह को उन सब याजकों और अन्य लोगों के सामने उत्तर दिया जो आराधनालय के बाहर खड़े थे। +\v 6 उसने कहा, “मैं चाहता हूँ कि यह सच हो! मैं चाहता हूँ कि तू ने जो भविष्यद्वाणी की है, वैसा ही हो जाए! मुझे आशा है कि वह इस आराधनालय की सब मूल्यवान वस्तुओं को जो बाबेल ले जाई गई है, बाबेल के पुरुषों के हाथ वापस भिजवा दे। +\v 7 परन्तु अब मैं जो कुछ कहता हूँ उसे सुन, जबकि ये सब लोग भी सुन रहे हैं। +\s5 +\v 8 कई वर्ष पहले, जो लोग तेरे और मेरे भविष्यद्वक्ता होने से पहले भविष्यद्वक्ता थे, उन्होंने अनेक राष्ट्रों और महान साम्राज्यों के विषय में सन्देश सुनाए थे। उन्होंने भविष्यद्वाणी की कि उन राष्ट्रों में युद्ध और विपत्तियाँ और महामारियाँ होंगी। +\v 9 तो अब तू या अन्य कोई भविष्यद्वक्ता भविष्यद्वाणी करता है कि हमारे लिए सब भला होगा तो तुझे यह दिखाना होगा कि तेरा सन्देश सही है। केवल यदि तेरी भविष्यद्वाणी वास्तव में पूरी होती है, तो हम जानेंगे कि तू वास्तव में यहोवा द्वारा नियुक्त किया गया था।” +\p +\s5 +\v 10 तब हनन्याह ने मेरी गर्दन से जुआ लिया और उसे तोड़ दिया। +\v 11 तब उसने उन सब लोगों से यह कहा: “यहोवा यही कहते हैं: ‘जैसे हनन्याह ने इस जूए को तोड़ा है, दो वर्ष के भीतर मैं बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर का लोगों से बलपूर्वक कार्य करवाना बन्द करवा दूँगा, जो उन सबकी गर्दनों पर भारी जूए के समान है।’ ‘जब हनन्याह यह कह चुका तब यिर्मयाह आराधनालय से चला गया। +\p +\s5 +\v 12 हनन्याह द्वारा यिर्मयाह की गर्दन पर रखे जूए के तोड़े जाने के तुरन्त बाद, यहोवा ने यह सन्देश मुझे दिया: +\v 13 “जा और हनन्याह से यह कह: ‘स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, कहते हैं कि तू ने लकड़ी के जूए को तोड़ दिया है, परन्तु वह इसे लोहे के जूए से बदल देंगे। +\v 14 मैंने इन सब राष्ट्रों के लोगों को बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के दास बनने के लिए विवश किया है। यह उनकी गर्दन पर एक लोहे के जूए के समान है। मैंने उसके नियंत्रण में सब कुछ, जंगली पशु भी रखे हैं।’ ” +\p +\s5 +\v 15 तब यिर्मयाह हनन्याह के पास गया और उससे कहा, “हनन्याह, यह सुन: यहोवा ने तुझे नियुक्त नहीं किया है, तू ने अपने लोगों से झूठ बोला है, और उन्होंने तेरे झूठ पर विश्वास किया है। +\v 16 इस कारण, यहोवा यही कहते हैं: ‘तू शीघ्र ही मर जाएगा। इस वर्ष के अन्त से पहले, तू मर जाएगा, क्योंकि तू ने लोगों को यहोवा के विरुद्ध कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया है।” +\p +\v 17 हनन्याह दो महीने बाद मर गया। + +\s5 +\c 29 +\p +\v 1-2 राजा यहोयाकीन, उसकी माता, उसके महल के अधिकारी, यहूदा और यरूशलेम के अन्य अधिकारियों के बाद, और विभिन्न प्रकार के कारीगरों को बाबेल में निर्वासित कर दिया गया, तब यिर्मयाह ने वृद्धों, याजकों, भविष्यद्वक्ताओं और अन्य सब लोगों को, जिन्हें नबूकदनेस्सर के सैनिक यरूशलेम से बाबेल ले गए थे, एक पत्र लिखा। +\v 3 उसने शापान के पुत्र एलासा और हिल्किय्याह के पुत्र गमर्याह को यह पत्र दिया, जब वे राजा सिदकिय्याह के राजदूत होकर राजा नबूकदनेस्सर के पास बाबेल जाने वाले थे। यिर्मयाह ने उस पत्र में जो लिखा था, वह यह था। +\p +\s5 +\v 4 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा जिनकी इस्राएली लोग आराधना करते हैं, उन सब लोगों से जिन्हें यरूशलेम से बन्दी बना कर बाबेल ले जाया गया है, कहते हैं: +\v 5 “वहाँ घरों का निर्माण करो, और वहाँ रहने की योजना बनाओ क्योंकि तुम वहाँ कई वर्षों तक रहोगे। बाग बगीचे लगाओ और बगीचे में उत्पन्न भोजन खाओ। +\s5 +\v 6 विवाह करके बच्चों को जन्म दो। तब जब वे बड़े हो जाते हैं, तब अपने पुत्रों के लिए पत्नियाँ चुनों, और अपनी पुत्रियों के लिए पति चुनों, कि उनके भी बच्चे हो। इस प्रकार, तुम्हारे लोगों की संख्या में वृद्धि होगी, कमी नहीं होगी। +\v 7 इसके अतिरिक्त, ऐसे कार्य करो जिनसे शहर में अन्य लोगों के लिए भलाई हो जहाँ मैंने तुमको भेजा है। प्रार्थना करो कि उस शहर के लोगों के लिए सब कुछ अच्छा होता रहे, क्योंकि यदि उनका भला होगा तो तुम्हारा भी भला होगा।” +\p +\s5 +\v 8 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, कहते हैं: “तुम्हारे बीच झूठे भविष्यद्वक्ता और भावी कहने वाले हैं। उन्हें अपने आपको धोखा देने न दो। जब वे तुम्हें अपने स्वप्न सुनाते हैं तो उन पर ध्यान न दो, +\v 9 क्योंकि वे झूठ बोल रहे हैं, वे कह रहे हैं कि मैंने उन्हें वे सन्देश दिए हैं जो वे तुम्हें बता रहे हैं। परन्तु, मैंने उन्हें नियुक्त नहीं किया है।” +\p +\s5 +\v 10 यह वही है जो यहोवा कहते हैं: “तुम और तुम्हारे बच्चे जब सत्तर वर्षों तक बाबेल में रह चुके होंगे, तब मैं तुम्हारी सहायता करूँगा और जो प्रतिज्ञा मैंने की है उसके अनुसार मैं करूँगा और मैं तुम्हें यहाँ यरूशलेम लौटने में सक्षम करूँगा। +\v 11 मैं यहोवा, जानता हूँ कि मैंने तुम्हारे लिए क्या योजना बनाई है। मैं तुम्हारी भलाई की योजना बना रहा हूँ, न कि तुम पर विपत्तियाँ लाने की। मैं तुम्हें कई वस्तुएँ देने की योजना बना रहा हूँ जिन्हें तुम भविष्य में प्राप्त करने की आशा कर सकते हो जिन्हें देखने के लिए तुम्हारे लोग जीवित रहेंगे। +\s5 +\v 12 उस समय, जब तुम मेरी आराधना करने के लिए जाओगे और प्रार्थना में मेरा नाम पुकारोगे, तब मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँगा। +\v 13 यदि तुम मुझसे आशीष पाने की इच्छा रखते हो, तो तुम देखोगे कि मैं तुम्हें उत्तर दूँगा। +\v 14 मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। मैं तुम्हें बाबेल में दास नहीं बना रहने दूँगा। मैं तुम्हें उन सब जातियों के बीच से एकत्र करूँगा जिनमें मैंने तुम्हें निर्वासित किया है और मैं तुम्हें यहाँ, तुम्हारे अपने देश में ले आऊँगा, उसी स्थान में जहाँ से तुम ले जाए गए थे।” +\p +\s5 +\v 15 तुम में से कुछ लोग कहते हैं कि यहोवा ने बाबेल में तुम्हारे लिए भविष्यद्वक्ताओं को नियुक्त किया है। +\v 16 परन्तु यहोवा यरूशलेम के राजा के विषय में और यहाँ पर रहने वाले अन्य सब लोगों के विषय में अर्थात् - तुम्हारे सम्बन्धियों के विषय जिन्हें तुम्हारे साथ बाबेल नहीं ले जाया गया है, कहते हैं। +\v 17 स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा, यह कहते हैं: “मैं उन पर युद्ध, अकाल और बीमारियाँ लाऊँगा। मैं उन्हें बुरे अंजीर के समान कर दूँगा जो सड़ गये हैं जिन्हें कोई नहीं खा सकता है। +\s5 +\v 18 मैं उन्हें युद्ध और अकाल और बीमारियों का अनुभव करने से नहीं रोकूँगा। और मैं उन्हें सम्पूर्ण पृथ्‍वी पर तितर-बितर कर दूँगा। हर देश में जहाँ मैं उन्हें ले जाने लिए विवश कर दूँगा, मैं उन्हें ऐसे लोगों के रूप में जन्म दूँगा जिन्हें लोग श्राप देते हैं और जिनसे लोग डरते हैं और जिनका लोग उपहास करते हैं। +\v 19 ऐसा इसलिए होगा कि उन्होंने मेरे सन्देशों पर ध्यान देने से मना कर दिया है, जो सन्देश मैंने उन भविष्यद्वक्ताओं को दिया जिन्हें मैंने भेजा था। और जो लोग बाबेल में निर्वासित हुए हैं, उन्होंने उन पर ध्यान नहीं दिया है, “यहोवा यही कहते हैं। +\p +\s5 +\v 20 इसलिए, तुम लोग जो यरूशलेम से बाबेल में निर्वासित हो गए हो, इस सन्देश को यहोवा से सुनो। +\v 21 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिनकी इस्राएली लोग आराधना करते हैं, वह कहते हैं, कोलायाह का पुत्र अहाब और मासेयाह का पुत्र सिदकिय्याह तुमसे झूठ कह रहें हैं कि वे मुझसे प्राप्त सन्देश सुना रहे हैं: “उन्हें बन्दी बना लिया जाएगा और राजा नबूकदनेस्सर के पास ले जाया जाएगा, तुम्हारी आँखों के सामने उन्हें मृत्यु दण्ड दिया जाएगा। +\s5 +\v 22 उनके साथ जो होगा, उसके कारण तुम सब लोग जिन्हें यहूदा से बाबेल ले जाया गया है, वे किसी को श्राप देते समय कहेंगे, ‘मैं आशा करता हूँ कि यहोवा तुम्हारे साथ वही करें जो उन्होंने सिदकिय्याह और अहाब के साथ किया था, जिन्हें बाबेल के राजा ने आग में जला कर मरवा दिया था।’ +\v 23 उन्होंने मेरे इस्राएली लोगों के साथ भयानक कार्य किए हैं। उन्होंने अपने पड़ोसियों की पत्नियों के साथ व्यभिचार किया है, और उन्होंने झूठ बोला है, और कहा है कि वे मुझसे सन्देश पाते थे। उन्होंने उन बातों को कहा है जिन्हें मैंने उन्हें बताने के लिए नहीं कहा था, और मैंने, यहोवा ने उन बातों को सुना है।” +\p +\s5 +\v 24 यहोवा ने मुझे यह सन्देश शमायाह को भेजने के लिए कहा, जो नेहेलाम का एक व्यक्ति था जो बाबेल में रह रहा था: +\v 25 “स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिनकी आराधना इस्राएल करता है, कहते हैं: “तू ने एक पत्र लिखा है जिसे लिखने के लिए किसी ने तुझसे नहीं कहा है। तू ने इसे मासेयाह के पुत्र सपन्याह को भेजा, और तू ने यरूशलेम में अन्य याजकों और अन्य सब लोगों को उसकी नकल भेज दी। वह है जो तू ने उसे लिखा: +\p +\v 26 ‘सपन्याह, यहोवा ने तुझे यहोयादा के स्थान पर याजक बनने के लिए नियुक्त किया है, कि मन्दिर में कार्य करने वाले लोगों की देख-रेख करे। कोई भी जो पागल आदमी के समान कार्य करे और जो दावा करता है कि वह एक भविष्यद्वक्ता है, तू उसकी बाहों और पैरों को और सिर को काठ में जकड़ देना। +\s5 +\v 27 तो तू ने अनातोत के व्यक्ति यिर्मयाह को रोकने के लिए कुछ भी क्यों नहीं किया, जो दिखाता है कि वह तुम्हारे बीच एक भविष्यद्वक्ता है? +\v 28 उसने हमें, जो यहाँ बाबेल में हैं, एक पत्र भेजा है जिसमें वह कहता है कि हम यहाँ लम्बे समय तक रहेंगे। उसने कहा कि इसलिए हमें घरों का निर्माण करना चाहिए और यहाँ रहने के लिए योजना बनाना चाहिए, और बगीचे लगाना चाहिए, और बगीचों में उत्पन्न भोजन खाए।” +\p +\v 29 परन्तु जब सपन्याह याजक ने तुमसे पत्र प्राप्त किया, तो वह उसे मेरे पास लाया और मुझे पढ़ कर सुनाया। +\s5 +\v 30 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 31 “इस सन्देश को बाबेल में रहने वाले यहूदा के सब लोगों को भेज: कि नेहेलाम के शमायाह के विषय में यहोवा यही कहते हैं: ‘मैंने उसे नियुक्त नहीं किया, उसने तुम्हें धोखा दिया है और तुम्हें उन झूठी भविष्यद्वाणियों पर विश्वास करवाया। +\v 32 अतः, मैं उसे और उसके परिवार को दण्ड दूँगा। उसने तुमको विद्रोह करने के लिए उकसाया है। उसके कारण, उसके सब वंशज शीघ्र ही मर जाएँगे। मैं तुम्हारे लिए जो मेरे लोग हो बहुत सी भली बाते करूँगा, परन्तु वह और उसके वंशज उन बातों को नहीं देख पाएँगे, क्योंकि वे मर जाएँगे। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है!’ ” + +\s5 +\c 30 +\p +\v 1 यहोवा ने यिर्मयाह को एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “मैं यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर तुझे वह सब कुछ लिखने के लिए कह रहा हूँ जो मैंने तुझसे कहा है। +\v 3 मैं चाहता हूँ कि तू जान ले कि एक दिन मैं अपने लोगों, इस्राएलियों और यहूदा के लोगों को बाबेल में दास होने से मुक्त कर दूँगा। मैं उन्हें इस देश में लौटा लाऊँगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था, और यह देश फिर से उनका होगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\p +\s5 +\v 4 यहोवा ने मुझे इस्राएल और यहूदा के लोगों से सम्बन्धित एक और सन्देश दिया। +\v 5 यही वह है जो उन्होंने कहा: +\q1 “मैं लोगों का चिल्लाना सुनता हूँ क्योंकि वे डरते हैं; +\q2 देश में कोई शान्ति नहीं है। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु इसके विषय में सोचो: +\q1 पुरुष निश्चय ही बच्चों को जन्म नहीं देते हैं। +\q1 इसलिए, बलवन्त लोग वहाँ क्यों खड़े हैं, +\q2 उनके चेहरों का रंग उड़ा हुआ है, +\q1 वे अपने हाथ उनके पेट से चिपकाए हुए हैं, +\q2 ऐसी स्त्रियों के समान जो बच्चों को जन्म देने वाली हैं? +\q1 +\v 7 शीघ्र ही भयानक घटनाएँ होंगी; +\q2 वह एक भयानक दिन होगा! +\q2 ऐसा समय कभी नहीं रहा है। +\q1 यह एक ऐसा समय होगा जब मेरे इस्राएली लोगों के लिए संकट का समय होगा, +\q2 परन्तु अन्त में वे अपने दुखों से बचाए जाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 8 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, यह कहते हैं: +\q1 “उस समय ऐसा होगा जैसे मैंने अपने लोगों के चारों ओर की रस्सियों को तोड़ दिया है, +\q2 और मैं उन्हें दास होने से मुक्त कर दूँगा। +\q1 अन्य देशों के लोग अब उन्हें दास नहीं बनाएँगे। +\q1 +\v 9 मेरे लोग फिर से मेरी सेवा करेंगे, यहोवा, उनके परमेश्वर की, +\q2 और वे एक राजा की सेवा करेंगे जो राजा दाऊद के वंशज हैं; +\q2 और मैं उनके लिए इस राजा को नियुक्त करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 तो, तुम इस्राएल के लोग जो मेरी सेवा करते हो, +\q2 अब निराश न हों, +\q1 क्योंकि एक दिन मैं तुम्हें दूर के स्थानों से वापस लाऊँगा; +\q2 मैं तुम्हारे वंशजों को उस देश से वापस घर लाऊँगा जहाँ उन्हें निर्वासित किया गया था। +\q1 तब तुम इस्राएली लोग फिर से शान्तिपूर्वक और सुरक्षित रहोगे, +\q2 और ऐसा कोई देश नहीं होगा जो तुम्हें भयभीत कर देगा। +\q1 +\v 11 मैं यहोवा, कहता हूँ कि मैं तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम्हें बचाऊँगा; +\q2 मैं उन राष्ट्रों को पूरी तरह नष्ट कर दूँगा जिनमें मैंने तुम्हें तितर-बितर किया है। +\q2 परन्तु मैं तुम्हें पूरी तरह से नष्ट नहीं करूँगा। +\q1 मैं तुम्हें तुम्हारे कई पापों के लिए दण्ड दूँगा, परन्तु मैं तुम्हें उतना ही दण्ड दूँगा जिसके तुम योग्य हो: +\q2 यदि मैं तुम्हें बिलकुल दण्ड नहीं दूँ तो मैं गलत करूँगा।” +\p +\s5 +\v 12 यहोवा यह भी कहते हैं: +\q1 “तुमने बहुत कष्ट उठाए हैं; +\q2 ऐसा लगता है कि तुम्हें भयानक घाव लगा है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है। +\q1 +\v 13 तुम्हारी सहायता करने के लिए कोई नहीं है, +\q2 तुम्हारे घाव पर एक पट्टी बाँधने के लिए कोई नहीं। +\q2 कोई दवा नहीं है जो तुम्हें ठीक करेगी। +\q1 +\s5 +\v 14 तुम्हारे सब सहयोगियों ने तुम्हें छोड़ दिया है +\q2 और वे अब तुम्हारी सहायता करना नहीं चाहते हैं। +\q1 यह सच है कि मैंने तुम्हें कठोर दण्ड दिया है, +\q2 जैसे तुम्हारे शत्रु तुम्हें घायल करें, +\q1 क्योंकि तुमने कई पाप किए हैं +\q2 और तुम बहुत दोषी हो। +\q1 +\v 15 क्योंकि यह सच है, तुम मुझसे दण्ड पाने का विरोध क्यों करते हैं, +\q2 जैसे कि मैंने एक घाव दिया जिसे ठीक नहीं किया जा सकता? +\q1 मेरे लिए तुम्हें दण्ड देना आवश्यक था, +\q2 क्योंकि तुमने कई पाप किए हैं +\q2 और तुम बहुत दोषी थे। +\q1 +\s5 +\v 16 परन्तु एक दिन वे लोग जो तुम्हें नाश करने का प्रयास कर रहे हैं वे नष्ट हो जाएँगे; +\q2 तुम्हारे सब शत्रुओं को अन्य राष्ट्रों में निर्वासित किया जाएगा। +\q1 वे सब जिन्होंने तुम्हारी वस्तुएँ चुरा ली हैं +\q2 उनकी बहुमूल्य सम्पत्ति चोरी हो जाएगी, +\q1 और जो लोग तुम पर आक्रमण करेंगे उन पर आक्रमण किया जाएगा। +\q1 +\v 17 हर कोई कहता है कि तुम ठुकराए हुए हो, +\q2 और यह कि तुम यरूशलेम में रहते हो, एक ऐसा शहर जिसकी चिन्ता किसी को नहीं है।” +\p परन्तु यहोवा कहते हैं, +\q1 “मैं तुम्हारे घावों को ठीक करूँगा +\q2 और तुम्हें स्वस्थ कर दूँगा।” +\p +\s5 +\v 18 यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “मैं इस्राएल के लोगों को उन देशों से लौटा लाऊँगा जहाँ उन्हें ले जाया गया था +\q2 और उन्हें अपने देश और अपने घरों में फिर से रखने में सक्षम बनाता है। +\q1 जब ऐसा होगा, तब यरूशलेम को उसके खण्डहरों पर पुनर्निर्माण किया जाएगा, +\q2 और राजा का महल न्याय के स्थान के रूप में पुनर्निर्माण किया जाएगा। +\q1 +\v 19 लोग फिर से मेरा धन्यवाद करने के लिए आनन्द से गाएँगे, +\q2 और मैं यरूशलेम में लोगों की संख्या बढ़ा दूँगा कम नहीं होने दूँगा; +\q2 मैं उन्हें सम्मानित करूँगा, तुच्छ नहीं समझने दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 20 उनके बच्चे समृद्ध होंगे जैसे वे पहले थे। +\q2 मैं उन्हें मेरी आराधना करने वाले लोगों का एक समूह बनाऊँगा, +\q2 और मैं उस हर एक देश को दण्ड दूँगा जो उनका दमन करते हैं। +\q1 +\v 21 उनके अपने लोगों में से उनका एक राजा होगा, +\q2 और मैं उसे आमन्त्रित करूँगा कि मेरे पास आकर मेरी आराधना करे, +\q1 क्योंकि कोई भी मेरे निकट आने का साहस नहीं करेगा +\q2 यदि मैं उसे आमन्त्रित नहीं करूँगा। +\q1 +\v 22 तुम इस्राएली लोग मेरे लोग होगे, +\q2 और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा।” +\q1 +\s5 +\v 23 यहोवा तुम्हारे शत्रुओं को दण्ड देंगे; +\q2 यह एक बड़ी आँधी के समान होगा; +\q2 यह दुष्ट लोगों के सिर के चारों ओर घूमते हुए एक बवण्डर के समान नीचे आएगा। +\q1 +\v 24 उनका क्रोध शान्त नहीं होगा +\q2 जब तक कि वह अपनी योजनाओं को पूरा नहीं कर लेते। +\q2 भविष्य में, तुम यह सब स्पष्ट रूप से समझ सकोगे। + +\s5 +\c 31 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं कि उस समय, वह परमेश्वर होंगे जिनकी आराधना इस्राएल के सब कुलों द्वारा की जाएगी, और वे उनके लोग होंगे। +\p +\v 2 यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “वे लोग जो जीवित रहेंगे और अपने शत्रुओं की तलवारों से नहीं मारे जाएँगे, +\q2 रेगिस्तान में भी मुझसे आशीष पाएँगे; +\q2 जहाँ वे बच गए हैं। +\p +\v 3 बहुत पहले, मुझ यहोवा, ने तुम्हारे पूर्वजों, इस्राएली लोगों से कहा था, +\q1 ‘मैंने तुमसे प्रेम किया है और मैं सदा के लिए तुमसे प्रेम करता रहूँगा। +\q2 निष्ठापूर्वक तुमसे प्रेम करके मैं तुम्हें अपने निकट लाया हूँ।’ +\q1 +\s5 +\v 4 और अब मैं तुमसे, मेरे इस्राएली लोगों से कहता हूँ जिन्हें मैं शुद्ध स्त्री के समान समझता हूँ, कि मैं तुम्हें फिर से एक देश बनाऊँगा। +\q1 तुम अपने झाँझ बजा कर आनन्द से नाचोगे। +\q1 +\v 5 तुम तब शोमरोन के पर्वतों पर अपनी दाख की बारी लगाओगे, +\q2 और तुम वहाँ उगने वाले अँगूर खाओगे। +\q1 +\v 6 ऐसा समय होगा जब पहरेदार शोमरोन की पहाड़ियों से पुकारेंगे, +\q ‘आओ, चलो यरूशलेम चलें +\q2 हमारे परमेश्वर! यहोवा की उपासना करने के लिए,’” +\p +\s5 +\v 7 और अब यहोवा यह भी कहते हैं: +\q1 “इस्राएल के लोगों के लिए मैंने जो किया है उसके विषय में आनन्द से गाओ! +\q1 अपने देश, सबसे महान राष्ट्र के विषय में चिल्लाओ! +\q2 आनन्द से चिल्लाओ, मेरी स्तुति करो और कहो, +\q2 ‘यहोवा ने अपने लोगों को बचा लिया है, +\q2 वे जो अभी भी जीवित थे!’ +\q1 +\s5 +\v 8 ऐसा करो क्योंकि मैं उन्हें पूर्वोत्तर से वापस लाऊँगा, +\q2 पृथ्‍वी पर सबसे दूर के स्थानों से। +\q1 उनमें अंधे लोग और लंगड़े लोग होंगे, +\q2 स्त्रियाँ जो गर्भवती हैं और जिन स्त्रियों को प्रसव पीड़ा होती है। +\q2 उन लोगों का एक बड़ा समूह होगा! +\q1 +\v 9 वे लौटते समय रोएँगे, +\q2 और वे मुझसे प्रार्थना करेंगे। +\q1 मैं उन्हें पानी की धाराओं के साथ-साथ ले कर चलूँगा, +\q2 समतल मार्गों में जहाँ वे ठोकर नहीं खाएँगे। +\q1 मैं ऐसा इसलिए करूँगा क्योंकि मैं इस्राएली लोगों के पिता के समान हूँ; +\q2 जैसे कि इस्राएल मेरा सबसे बड़ा पुत्र है।” +\q1 +\s5 +\v 10 संसार के राष्ट्रों के लोगों, यहोवा से यह सन्देश सुनो। +\q2 तब उन लोगों को सुनाओ जो दूर के तटों पर रहते हैं। +\q1 यहोवा ने अपने लोगों को तितर-बितर किया, परन्तु वह उन्हें फिर से एकत्र करेंगे और एक चरवाहे के समान उनका ध्यान रखेंगे +\q2 जैसे वह अपनी भेड़ों का ध्यान रखता है। +\q1 +\v 11 यहोवा अपने इस्राएली लोगों को उन लोगों में से वापस ले आएँगे +\q2 जिन्होंने उन्हें जीत लिया था क्योंकि वे उनके लोगों की तुलना में अधिक शक्तिशाली थे। +\q1 +\s5 +\v 12 यहोवा के लोग यरूशलेम लौट आएँगे +\q2 और सिय्योन पर्वत के ढलानों पर आनन्द से चिल्लाएँगे। +\q1 वे उन वस्तुओं के विषय में आनन्दित होंगे जिन्हें यहोवा ने उन्हें बहुतायत से दिया है— +\q2 अनाज और नई दाखमधु और जैतून का तेल +\q2 और युवा भेड़ और मवेशी। +\q1 वे स्वयं एक भलि-भाँति सींचे गये बगीचे के समान होंगे, +\q2 और अब उन्हें थकान नहीं होगी। +\q1 +\s5 +\v 13 युवा स्त्रियाँ आनन्द से नृत्य करेंगे, +\q2 और सब पुरुष, युवा और बूढ़े लोग उनके साथ सहभागी होंगे। +\q1 मैं उन्हें शोक की अपेक्षा आनन्दित करूँगा; +\q2 मैं उन्हें सांत्वना दूँगा और उदास होने की अपेक्षा उन्हें आनन्दित करूँगा। +\q1 +\v 14 याजकों के पास खाने और पीने के लिए बहुत सारी वस्तुएँ होंगी, +\q2 और मेरे सारे लोग अच्छी वस्तुओं से भरे रहेंगे जो मैं उन्हें देता हूँ। +\q1 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\p +\s5 +\v 15 यहोवा यह भी कहते हैं: +\q1 “इस्राएल और यहूदा के बीच की सीमा पर रामा में स्त्रियाँ रो रही थीं; +\q2 वे शोक कर रहीं हैं और बहुत जोर से रो रही हैं। +\q1 वे याकूब की पत्नी राहेल के दो पोते एप्रैम और मनश्शे के वंशज थे, वे बच्चों के विषय में रोती हैं, +\q2 और कोई भी उन्हें सांत्वना नहीं दे सकता है +\q2 क्योंकि उनके बच्चे सब मर गए हैं। +\p +\s5 +\v 16 परन्तु अब यहोवा यह कहते हैं: +\q1 ‘अब और मत रोओ, +\q2 क्योंकि मैं तुम्हें अपने बच्चों के लिए किए गए अच्छे कार्यों का फल दूँगा। +\q1 तुम्हारे बच्चे उस देश से वापस आ जाएँगे जहाँ उनके शत्रु उन्हें ले गये हैं। +\q1 +\v 17 मैं यहोवा, तुम्हें बता रहा हूँ कि यह ऐसी बातें हैं जिन्हें तुम विश्वास से भविष्य में मेरे द्वारा किए जाने की आशा कर सकते हो। +\q2 तुम्हारे बच्चे अपने देश में वापस आ जाएँगे।’ +\q1 +\s5 +\v 18 मैंने सुना है कि इस्राएल के लोग बहुत दुखी हैं और मुझसे कह रहे हैं, +\q2 ‘आपने हमें कठोर दण्ड दिया है, +\q2 जैसे बछड़े को उसके स्वामी द्वारा हल खींचने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए पीटा जाता है। +\q1 अतः हमें फिर से ले आएँ कि हम आपका पालन करें, +\q2 क्योंकि हम आपके पास वापस आने के लिए तैयार हैं, +\q1 क्योंकि आप अकेले ही हमारे परमेश्वर यहोवा हो। +\q1 +\v 19 हम आप से दूर हो गए, +\q2 परन्तु हमने पश्चाताप किया; +\q1 इसके बाद आपने हमें यह बोध करवाया कि हम दोषी थे। +\q2 हमने अपने पैरों पर अपने हाथों को मारा कि यह दिखाया जा सके कि हम अपनी जवानी के उन पापों से बहुत लज्जित हैं।’ +\q1 +\v 20 परन्तु मैं, यहोवा, यह कहता हूँ: +\q2 इस्राएली लोग निश्चय ही अभी भी मेरे प्रिय बच्चे हैं। +\q1 मेरे लिए उन्हें दण्ड देने की धमकी देना प्रायः आवश्यक है, +\q2 परन्तु मैं अभी भी उनसे प्रेम करता हूँ। +\q1 यही कारण है कि मैं उन्हें नहीं भूला हूँ, +\q2 और मैं निश्चय ही उनको दया दिखाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 21 तुम इस्राएली लोग, सड़क के चिन्ह स्थापित करो; +\q2 सड़कों पर खम्भों को रखो +\q2 जिस सड़क पर तुम चलकर यरूशलेम से गए थे, उस सड़क को चिह्नित करो। +\q1 मेरे बहुमूल्य इस्राएली लोग, +\q2 यहाँ अपने नगरों में वापस आओ। +\q1 +\v 22 तुम लोग जो उन पुत्रियों के समान हो जिन्होंने अपने माता-पिता को त्याग दिया है, +\q2 कितने समय तक तुम मुझसे दूर भटकते रहोगे? +\q1 मैं, यहोवा, पृथ्‍वी पर कुछ ऐसा करूँगा जो नया है: +\q2 इस्राएल की स्त्रियाँ अपने पतियों की रक्षा करेंगी जब वे यहाँ वापस आने की यात्रा करेंगे!” +\p +\s5 +\v 23 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिनकी आराधना इस्राएल करता है, वह कहते हैं: “जब मैं उन्हें उन देशों से वापस लाऊँगा जिनमें वे निर्वासित कर दिए गये हैं, तो यहूदा के नगरों के सब लोग फिर से कहेंगे, ‘मुझे आशा है कि यहोवा मेरे इस घर को आशीष देंगे, वह पवित्रस्थान जहाँ धर्मी लोग रहेंगे!’ +\v 24 यहूदा के लोग जो कि किसानों और चरवाहों समेत नगरों में रहते हैं, सब शान्तिपूर्वक साथ रहेंगे। +\v 25 मैं थके हुए लोगों को पानी पिला कर ताजा करूँगा और उन लोगों को जो थक कर चूर हो गये हैं फिर से शक्ति दूँगा।” +\p +\v 26 मैं, यिर्मयाह, उन सब बातों का सपना देखने के बाद जाग गया और मैंने चारों ओर देखा। मैं बहुत मीठी नींद सोया हुआ था! +\p +\s5 +\v 27 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “ऐसा समय आएगा जब मैं इस्राएलियों और यहूदा में लोगों की संख्या और पशुओं की संख्या में बहुत वृद्धि करूँगा। +\v 28 पहले, मैंने उनके शत्रुओं को उनके देश से उन्हें हटाने दिया और उनके देश को नष्ट करने और इसके लिए अनेक विपत्तियाँ लाने के लिए प्रेरित किया। परन्तु भविष्य में, मैं उन्हें घर बनाने और इस्राएल में फिर से फसल लगाने के लिए सक्षम कर दूँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं ने, यहोवा ने यह कहा है। +\s5 +\v 29 पहले लोग कहा करते थे, ‘माता-पिता ने खट्टे अँगूर खाए हैं, परन्तु बच्चों के दाँत खट्टे है।’ उनके कहने का मतलब था कि उनके पूर्वजों के पापों के लिए उन्हें दण्ड देना उचित नहीं था। परन्तु जब मैं उन्हें उनके देश में वापस लाऊँगा, तब ऐसा नहीं कहेंगे। +\v 30 परन्तु अब लोग अपने ही पापों के कारण मरेंगे जो उन्होंने स्वयं किए हैं। अब ऐसा होगा ‘जो व्यक्ति खट्टे अँगूर खाता है उसके ही दाँतों में दर्द होगा।’ +\s5 +\v 31 मैं यहोवा, यह कहता हूँ: ‘ऐसा समय होगा जब मैं इस्राएलियों और यहूदा के लोगों के साथ नई वाचा बाँधूँगा। +\v 32 यह नई वाचा उस वाचा के समान नहीं होगी जो मैंने उनके पूर्वजों के साथ बाँधी थी जब मैं उन्हें हाथ पकड़ कर मिस्र से बाहर ले आया था। उन्होंने उस वाचा की अवज्ञा की, भले ही मैं उनसे प्रेम करता था जैसे पति अपनी पत्नियों से प्रेम करते हैं।’ +\s5 +\v 33 मैं यहोवा, यह कहता हूँ: ‘यह नई वाचा है जिसे मैं एक दिन इस्राएल के लोगों के साथ बाँधूँगा: मैं अपने नियम उनके मन में रखूँगा और उसे उनके मन में लिखूँगा। मैं उनका परमेश्वर होऊँगा और वे मेरे लोग होंगे। +\v 34 और यह आवश्यक नहीं होगा कि वे अपने पड़ोसियों या अपने सम्बन्धियों को सिखाने के लिए कहें, “तुम्हें यहोवा को जानना आवश्यक है,” क्योंकि सब लोग, महत्वहीन लोग और महत्वपूर्ण लोग मुझे पहले से ही जानते होंगे। और मैं उन्हें बहुत बुरा होने के लिए क्षमा कर दूँगा, और मैं उन पापों के विषय में कभी नहीं सोचूँगा जो उन्होंने किए हैं।’” +\p +\s5 +\v 35 यहोवा ही वह हैं जो दिन में सूरज को प्रकाश देने का कारण होते हैं, +\q2 और चँद्रमा और सितारों को रात के समय प्रकाश देने का कारण होते हैं। +\q1 वह समुद्र को हिलाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लहरें गरजती हैं। +\q1 उनका नाम स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा है +\q2 और वह यह कहते हैं: +\q1 +\v 36 “मैं अपने इस्राएली लोगों को स्थायी रूप से अस्वीकार नहीं करूँगा +\q2 इससे अधिक कि मैं ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले नियमों का त्याग करूँ। +\p +\s5 +\v 37 और यही वह है जो मैं कहता हूँ: +\q1 ‘कोई भी आकाश को नहीं माप सकता है +\q2 और कोई भी यह नहीं ढूँढ़ सकता कि पृथ्‍वी किस पर टिकी हुई है। +\q1 इसी प्रकार, मैं याकूब के वंशजों को अस्वीकार नहीं कर सकता +\q2 उन सब बुरे कार्यों के कारण जो उन्होंने किए हैं।’ +\q1 यह निश्चित है, क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है! +\p +\s5 +\v 38 मैं यहोवा, यह भी कहता हूँ कि ऐसा समय होगा जब यरूशलेम में सब कुछ मेरे लिए बनाया जाएगा, पूर्वोत्तर कोने में हननेल के गुम्मट से, पश्चिम में कोने के फाटक तक। +\v 39 श्रमिक गारेब पहाड़ी पर दक्षिण-पश्चिम में गोआ तक एक मापने वाली रस्सी रखेंगे। +\v 40 और वह पूरा क्षेत्र, जिसमें शवों और राख को फेंका जाता है किद्रोन घाटी और घोड़ा फाटक तक पूर्व के सब खेत, सब मेरे लिए अलग कर दिए जाएँगे। और यरूशलेम शहर पर कभी भी न तो अधिकार किया जाएगा और न ही नष्ट किया जाएगा।” + +\s5 +\c 32 +\p +\v 1 सिदकिय्याह के लगभग दस वर्षों तक यहूदा पर शासन करने के बाद, यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया, उस समय जब नबूकदनेस्सर लगभग अठारह वर्षों से बाबेल पर शासन कर रहा था। +\v 2 उसकी सेना ने यरूशलेम को घेर लिया था, और यिर्मयाह आँगन के एक बन्दीगृह क्षेत्र में था जहाँ राजा के महल के रक्षक रहते थे। +\s5 +\v 3 राजा सिदकिय्याह ने मुझे वहाँ रखा था। मैंने वहाँ होने वाली घटनाओं की भविष्यद्वाणी करता रहा। मैं कहता गया, “यहोवा कहते हैं कि वह इस शहर को जितने के लिए बाबेल के राजा की सेना को लाने वाले हैं। +\v 4 और बाबेल के सैनिक निश्चय ही राजा सिदकिय्याह को पकड़ लेंगे और बाबेल के राजा के सामने ले जाएँगे। +\v 5 तब उसके सैनिक सिदकिय्याह को बाबेल ले जाएँगे और जब तक मैं उसे दण्ड देने की व्यवस्था नहीं करता तब तक वह वहाँ रहेगा। और यदि वह बाबेल के सैनिकों से युद्ध करने का प्रयास करेगा, तो वह सफल नहीं होगा।” राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह से पूछा कि वह ऐसा क्यों कहता रहता है, परन्तु यहोवा ने कहा था कि ऐसा ही होगा। +\p +\s5 +\v 6 उस समय, यहोवा ने यिर्मयाह को एक और सन्देश दिया। उसने कहा, +\v 7 “तेरे चचेरे भाई हनमेल, तेरे चाचा शल्लूम का पुत्र, तेरे पास आएगा। वह तुझसे कहेगा, ‘अपने गृहनगर अनातोत में मेरा खेत मोल ले ले। क्योंकि तू मेरा निकट सम्बन्धी है, यह हमारे कानूनों में लिखा गया है इससे पहले कि मैं पूछूँ कि कोई और इसे मोल लेना चाहता है, उससे पहले इसे मोल लेने का अधिकार तुझे है।’” +\p +\s5 +\v 8 और जैसा यहोवा ने भविष्यद्वाणी की थी, मेरा चचेरा भाई हनमेल मुझे महल के आँगन में देखने आया। उसने कहा, “कृपया अनातोत में मेरा खेत मोल ले-ले, जहाँ बिन्यामीन के वंशज रहते हैं। यह हमारे कानूनों में लिखा गया है कि इससे पहले कि मैं किसी ओर से उसे मोल लेने को कहूँ उसे मोल लेने का अधिकार तेरा है।” जब उसने ऐसा कहा, मुझे पता था कि जो सन्देश मैंने प्राप्त किया वह वास्तव में यहोवा से था। +\p +\v 9 इसलिए, मैंने अनातोत में खेत मोल लिया। मैंने हनमेल को इसके लिए लगभग दो सौ ग्राम चाँदी का भुगतान किया। +\s5 +\v 10 मैंने उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए जिस पर यह लिखा गया था कि मैं इसे मोल ले रहा था, जबकि लोग देख रहे थे। तब मैंने चाँदी का वजन किया और उसे दिया। +\v 11 तब मैंने दस्तावेजों की दो प्रतियाँ लीं। एक को मुहरबन्द कर दिया और दूसरी को मुहरबन्द नहीं किया गया था। उन दोनों पर मोल ले की कीमत और शर्तें लिखी गई थीं। मैंने दोनों प्रतियाँ लीं +\v 12 और मैंने उन्हें नेरिय्याह के पुत्र बारूक को जो महसेयाह का पोता था, दिया। मैंने यह किया, जबकि मेरे चचेरे भाई हनमेल, अन्य गवाहों ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे, और यहूदा के अन्य पुरुष जो आँगन में थे, देख रहे थे। +\p +\s5 +\v 13 जब वे सब सुन रहे थे, तब मैंने बारूक से कहा, +\v 14 “स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, कहते हैं: ‘इस दस्तावेज की दोनों प्रतियाँ ले और उन्हें मिट्टी के पात्र में रख दे, कि उन्हें लम्बे समय तक बचाया जा सके। +\v 15 ऐसा इसलिए कर क्योंकि मैं यहोवा, जो स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान हूँ, वह ईश्वर जिनकी इस्राएली आराधना करते हैं, कहता हूँ: एक दिन लोग फिर से इस देश में सम्पत्ति के स्वामी बनेंगे, और वे घरों और दाख के बागों और खेतों को मोल लेंगे और बेचेंगे।’” +\p +\s5 +\v 16 जब मैंने बारूक को वह दस्तावेज दिए, तो मैंने यह कहकर यहोवा से प्रार्थना की: +\v 17 “हे यहोवा, आप मेरे परमेश्वर हैं! आपने आकाश और पृथ्‍वी को अपनी महान शक्ति से बनाया है। आपके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। +\v 18 आप हजारों लोगों को दिखाते हैं कि आप सदा उनके साथ अपनी वाचा के प्रति निष्ठावान रहेंगे, परन्तु लोग अपने माता-पिता के पापों के परिणामों को भोग रहें हैं। आप महान और शक्तिशाली परमेश्वर हैं। आप स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा हैं। +\s5 +\v 19 आप बुद्धिमान योजना बनाते हैं और आप शक्तिशाली कार्य करते हैं। आप देखते हैं कि लोग कैसे व्यवहार करते हैं, और आप उनके साथ जो करते हैं वे उसके योग्य हैं। +\v 20 आपने मिस्र में कई चमत्कार किए और आप यहाँ इस्राएल और संसार में हर स्थान में चमत्कार करते रहेंगे। आपने जो किया है उसके कारण, आप बहुत प्रसिद्ध हो गए हैं। +\v 21 आप हम इस्राएलियों के पूर्वजों को अनेक चमत्कारों और अपनी महाशक्तियों द्वारा मिस्र से बाहर लाए, जिससे हमारे शत्रुओं को भयभीत किया। +\s5 +\v 22 आपने हम इस्राएली लोगों को यह देश दिया था जिसे देने की आपने हमारे पूर्वजों से सच्ची प्रतिज्ञा की थी, यह देश जो बहुत उपजाऊ है। +\v 23 हमारे पूर्वजों ने यहाँ आकर इस देश पर विजय प्राप्त की और इसमें रहने लगे, परन्तु उन्होंने आपकी आज्ञा मानने से मना कर दिया या जो करने के लिए आपने उन्हें आज्ञा दी थी। इसके कारण, आपने उन्हें इन सब विपत्तियों का सामना करने के लिए विवश किया है। +\p +\s5 +\v 24 और अब, बाबेल की सेना ने हमारे शहर पर आक्रमण करने के लिए हमारे शहर की दीवारों पर पुश्ते बनाएँ हैं। हमारे शत्रुओं की तलवारों और अकाल और बीमारियों के कारण, वे इसे सरलता से जीत पाएँगे। जो आपने कहा वह अब हो गया है। +\v 25 और यह स्पष्ट है कि बाबेल की सेना शीघ्र ही इस शहर को जीत लेगी। तो अब, मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आपने मुझे इस खेत को चाँदी से मोल लेने के लिए क्यों कहा, जबकि लोग देख रहे थे। ऐसा लगता है कि मैं ऐसा करके अपना पैसा नष्ट कर रहा हूँ।” +\p +\s5 +\v 26 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 27 “मैं यहोवा हूँ, वह परमेश्वर जो संसार में हर जीवित प्राणियों पर शासन करता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो मेरे लिए करना कठिन हो। +\v 28 तो, मैं यही कहता हूँ: यह सच है कि मैं इस शहर को जीतने के लिए बाबेल की सेना और राजा नबूकदनेस्सर को सक्षम करूँगा। +\s5 +\v 29 बाबेल के सैनिक जो अब शहर के चारों ओर की दीवारों के बाहर हैं, इस शहर में प्रवेश करेंगे और इसे जला देंगे। वे उन सब घरों को जला देंगे जहाँ लोगों ने अपने घरों की छतों पर बाल के सम्मान में धूप जलाई और अन्य देवताओं के लिए दाखमधु चढ़ा कर मुझे क्रोधित किया है। +\p +\v 30 इस्राएल और यहूदा के एक ही राष्ट्र बनने के समय से लोगों ने निरन्तर बुरे कार्य किए हैं। उन्होंने अपने सब बुरे कर्मों से मुझे बहुत क्रोधित किया है। +\s5 +\v 31 जब से यह शहर बनाया गया था, तब से अब तक इस शहर के लोगों ने केवल उन्हीं कार्यों को किया है जिनसे मुझे बहुत क्रोध आता है। तो अब मैं इसे नष्ट कर दूँगा। +\v 32 इस्राएल और यहूदा के लोग, जिनमें उनके राजा, उनके अधिकारी, याजक, झूठे भविष्यद्वक्ताओं और यरूशलेम के अन्य सब लोग है उन्होंने कई पाप किए हैं, जिससे मैं क्रोधित हो गया हूँ। +\s5 +\v 33 मेरे लोग मुझसे दूर हो गए हैं और मेरे पास लौटने से मना कर दिया है। भले ही मैंने उन्हें कई बार सिखाया, परन्तु मैंने उन्हें जो कुछ सिखाया, उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया और वे मेरा आज्ञापालन नहीं करेंगे। +\v 34 उन्होंने अपनी घृणित मूर्तियों को मेरे भवन में भी स्थापित किया है और इसे अशुद्ध कर दिया है। +\v 35 उन्होंने यरूशलेम के बाहर हिन्नोम घाटी में बाल की पूजा करने के लिए पहाड़ियों के ऊँचे स्थानों पर बाल के स्थल बनाए हैं, और वहाँ वे अपने पुत्र और पुत्रियों को उनके देवता मोलेक के लिए त्याग करते हैं। मैंने उन्हें ऐसा भयानक कार्य करने का आदेश नहीं दिया। मैंने कभी ऐसी भयानक बात का आदेश नहीं दिया। और ऐसा करके उन्होंने यहूदा के सब लोगों को पाप करने का दोषी ठहराया है।” +\p +\s5 +\v 36 “परन्तु अब मैं इस नगर के विषय में कुछ और कहूँगा। तुम यरूशलेम के लोग कह रहे हो, ‘बाबेल के राजा की सेना इसे तलवारों से या अकाल या बीमारियों के कारण जीत जाएगी।’ परन्तु मैं इस्राएल का परमेश्वर यह कहता हूँ: +\v 37 ‘मैं निश्चय ही उन सब देशों से अपने लोगों को वापस लाऊँगा, जिनमें जाने के लिए मैं उन्हें विवश करूँगा क्योंकि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ। मैं उन्हें वापस इस शहर में लाऊँगा और उन्हें सुरक्षित रूप से यहाँ रहने दूँगा। +\s5 +\v 38 वे मेरे लोग होंगे, और मैं उनका परमेश्वर ठहरूँगा। +\v 39 मैं उन्हें सोचने और व्यवहार करने की एक विधि दूँगा, कि वे अपने और अपने वंश के भले के लिए मेरा सम्मान कर सकें। +\v 40 मैं उनके साथ एक वाचा बाँधूँगा जो सदा के लिए होगी: मैं उनकी भलाई करना बन्द नहीं करूँगा और वे सदा मेरा सम्मान करेंगे; वे मेरी आराधना करना कभी बन्द नहीं करेंगे। +\s5 +\v 41 मैं उनकी भलाई करने में प्रसन्न हूँ, और मैं निश्चय ही उन्हें इस देश में लौटने और यहाँ रहने में सक्षम करूँगा; मैं अपने सम्पूर्ण मन और मेरी सारी शक्ति के साथ ऐसा करूँगा।’ +\p +\v 42 और यह भी है जो मैं, यहोवा, कहता हूँ: ‘मैंने उन्हें इन सब विपत्तियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया है। इसी प्रकार, एक दिन मैं उनके लिए वह सब भलाई करूँगा जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की है। +\s5 +\v 43 यिर्मयाह तू ने यह खेत मोल ले कर भविष्यद्वाणी की है कि एक दिन लोग इस देश में खेतों को मोल लेंगे और बेचेंगे, जिसके विषय में तुम यरूशलेम के लोग अब कहते हो, “बाबेल के सैनिकों ने इसे नष्ट कर दिया है। अब यह उजाड़ हो गया है। यह एक देश है जहाँ अब एक भी लोग या पशु नहीं हैं।” +\v 44 परन्तु एक दिन लोग फिर से खेतों को मोल लेंगे और बेचेंगे। लोग उन क्षेत्रों को मोल लेने के विषय में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेंगे, और अन्य लोग उनके ऐसा करने के साक्षी होंगे। उस देश में जहाँ बिन्यामीन के वंशज यरूशलेम के पास के गाँवों में, यहूदा के अन्य नगरों में, पहाड़ी देश में और पश्चिम की तलहटी में और दक्षिणी यहूदिया जंगल में रहते हैं, ऐसा ही होगा। एक दिन मैं उन्हें फिर से समृद्ध कर दूँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।’” + +\s5 +\c 33 +\p +\v 1 जब यिर्मयाह को महल के आँगन में अभी भी बन्द किया हुआ था, तब यहोवा ने उसे यह दूसरा सन्देश दिया: +\v 2 “मैं, जिसने पृथ्‍वी बनाई, जिसने इसे बनाया और उसे उसके स्थान पर रखा, यरूशलेम के लोगों से कहता हूँ: ‘मेरा नाम यहोवा है। +\v 3 मुझे पुकारो और तब मैं तुम्हें वे महान और अद्भुत बातें बताऊँगा जिन्हें तुम पहले नहीं जानते थे।’ +\s5 +\v 4 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा यही कहते हैं, ‘इस नगर के लोगों ने अपने घरों, और राजा के महल के कुछ भागों को तोड़ दिया है, जिससे कि शहर के चारों ओर दीवारों को दृढ़ करने के लिए सामग्री मिल सके, कि बाबेल के सैनिक दीवारों पर बने पुश्तों पर चढ़ने के बाद दीवारों को तोड़ने में सक्षम न हों और निवासियों को अपनी तलवारों से मार न डालें। +\v 5 तुम बाबेल की सेना से युद्ध करने की आशा कर रहे हो, परन्तु होगा यह कि इस शहर के घर इस शहर के लोगों के शवों से भरे जाएँगे जिन्हें मैं मारने की अनुमति दूँगा क्योंकि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ। मैंने उन सब दुष्ट कार्यों के कारण उन्हें त्याग दिया है जो उन्होंने किए हैं। +\p +\s5 +\v 6 परन्तु, ऐसा समय आएगा जब मैं इस शहर के लोगों को स्वस्थ और बलवन्त बना दूँगा। मैं उन्हें समृद्ध और शान्ति प्राप्त करने योग्य कर दूँगा। +\v 7 मैं यहूदा और इस्राएल के लोगों को उन देशों से वापस लाऊँगा जिनमें उन्हें निर्वासित किया गया है। मैं उन्हें अपने नगरों का पुनर्निर्माण करने में सक्षम करूँगा। +\v 8 उन्होंने मेरे विरुद्ध जितने भी पाप किये हैं उनके सब पापों को भूल जाऊँगा और मेरा विद्रोह करने के उनके पाप को क्षमा करूँगा। +\v 9 जब ऐसा होता है, तब संसार के सब देश आनन्दित होंगे और वे मेरी स्तुति करेंगे और मेरा सम्मान करेंगे। वे इस शहर के लिए किए गए सब अच्छे कार्यों के विषय में सुनेंगे और इसके कारण, वे मुझे सम्मान देंगे, और वे थरथराएँगे क्योंकि मैंने इस शहर के लोगों को शान्ति और समृद्धि प्रदान की है।’ +\p +\s5 +\v 10 मैं, यहोवा, कहता हूँ: ‘तुमने कहा है कि यह एक ऐसा देश है जहाँ अब एक भी जन या पशु नहीं हैं। परन्तु यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों की सड़कों में जो अब पूरी तरह खाली हैं, +\v 11 एक दिन लोग फिर से आनन्दित होंगे और हँसेंगे। दूल्हा और दुल्हन फिर से आनन्द के गीत गाएँगे। और कई अन्य लोग भी आनन्द से गाएँगे जब वे उनके लिए किये गये मेरे कार्यों के कारण धन्यवाद देने के लिए मुझे भेंट चढ़ाने आएँगे। वे इस गीत को गाएँगे: +\q1 “हम आपको धन्यवाद देते हैं, हे यहोवा स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, +\q2 क्योंकि आप हमारे लिए भले हैं। +\q2 आप सदा के लिए अपनी वाचा को निष्ठापूर्वक पकड़े रहें।” +\p वे गाएँगे क्योंकि मैं इस देश के लोगों को समृद्ध कर दूँगा जैसे वे पहले थे।’ +\p +\s5 +\v 12 यह भूमि अब उजाड़ हो गई है। यहाँ रहने वाले कोई भी लोग या पशु नहीं हैं। परन्तु मैं, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा, यह कहता हूँ: ‘इस देश में फिर चारागाहें होंगी जहाँ चरवाहे अपनी भेड़ों की अगुवाई करेंगे +\v 13 चरवाहे फिर से अपनी भेड़ों को गिनेंगे, जब उनकी भेड़ें नगरों के बाहर, पश्चिमी तलहटी में, दक्षिणी यहूदा के जंगल में, जहाँ बिन्यामीन के वंशज रहते हैं, यरूशलेम के आस-पास और सबके बाहर यहूदा के सब नगरों के बाहर, पहाड़ी क्षेत्रों में चलेंगी।’ यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है। +\p +\s5 +\v 14 इसे सुनो! मैं यहोवा, यह कहता हूँ कि ऐसा समय आएगा जब मैं इस्राएलियों और यहूदा के लोगों के लिए उन सब भले कार्यों को करूँगा जो मैंने उनके लिए करने की प्रतिज्ञा की है। +\q1 +\v 15 उस समय मैं एक धर्मी व्यक्ति की नियुक्ति करूँगा जो राजा दाऊद का वंशज होगा। +\q2 पूरे देश में, वह वही करेगा जो भला और उचित है। +\q1 +\v 16 उस समय, यहूदा के लोगों को उनके शत्रुओं से बचाया जाएगा, +\q2 और यरूशलेम के लोग सुरक्षित रहेंगे। +\q1 और लोग कहेंगे कि शहर का नाम होगा ‘यहोवा ही वह है जो हमारे लिए उचित करते हैं।’ +\s5 +\v 17 और मैं, यहोवा, यह भी कहता हूँ: ‘राजा दाऊद के वंशज इस्राएल के लिए सदा के लिए शासन करेंगे। +\v 18 और ऐसे याजक होंगे जो लेवी के वंशज होंगे जो मेरे सामने खड़े होंगे और वेदी पर जलाए जाने वाले बलिदान चढ़ाएँगे।” +\p +\s5 +\v 19 तब यहोवा ने यिर्मयाह को यह सन्देश दिया: +\v 20 “मैं यहोवा, यही कहता हूँ: ‘तू निश्चय ही मेरी इस प्रतिज्ञा को रद्द नहीं कर सकता कि रात के बाद दिन आएगा। +\v 21 इसी प्रकार, तू राजा दाऊद के साथ की गयी प्रतिज्ञा को रद्द नहीं कर सकता, जिसने मेरी उत्तम सेवा की थी, कि यहूदा पर शासन करने के लिए सदा ही उसके वंशज होंगे। लेवी के वंशज जो याजक हैं और मेरी सेवा करते हैं, उनके साथ भी मेरी वाचा के लिए भी यह सच है। +\v 22 कोई भी आकाश में सितारों की गिनती नहीं कर सकता, और कोई भी समुद्र के किनारे रेत के किनकों को गिन नहीं सकता। इसी प्रकार, मैं दाऊद के वंशजों और लेवी के वंशजों की संख्या को बहुत कर दूँगा जो मेरे लिए कार्य करेंगे।” +\p +\s5 +\v 23 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 24 “निश्चय ही तू जानता है कि कुछ लोग कह रहे हैं, ‘यहोवा ने दो समूहों, यहूदा के लोगों और इस्राएल के लोगों को चुना, और बाद में उन्हें त्याग दिया।’ जो लोग यह कह रहे हैं वे मेरे लोगों को तुच्छ मान रहे हैं; वे कह रहे हैं कि इस्राएल अब एक राष्ट्र माना जाने योग्य नहीं है। +\s5 +\v 25 परन्तु मैं यह कहता हूँ: ‘मैं अपने लोगों को अति शीघ्र वैसे ही नहीं त्याग सकता जैसे मैं दिन और रात, आकाश और पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले नियमों को नहीं त्याग सकता। +\v 26 इसी प्रकार, मैं कभी दाऊद के वंशज या याकूब के अन्य वंशजों को त्याग नहीं दूँगा, और मैं सदा दाऊद के वंशजों को अब्राहम, इसहाक और याकूब के वंशजों पर सदा के लिए शासन करने की अनुमति दूँगा। मैं उन्हें अपने देश में वापस लाऊँगा, और मैं उन पर दया करूँगा।’” + +\s5 +\c 34 +\p +\v 1 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर उन सब साम्राज्यों की सेनाओं के साथ आया जिन पर वह शासन करता था और यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों के विरुद्ध युद्ध किया। उस समय, यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 2 “यहूदा के राजा सिदकिय्याह के पास जा, और उससे कह, ‘इस्राएल के परमेश्वर यहोवा यही कहते हैं: “मैं इस नगर को जीतने के लिए बाबेल के राजा की सेना को सक्षम करने वाला हूँ, और वे इसे जला देंगे। +\v 3 तू उनसे बच नहीं पाएगा; वे तुझे पकड़ लेंगे और बाबेल के राजा के पास ले जाएँगे। तू उससे मिलेगा और उसके साथ आमने-सामने बात करेगा; तब वे तुझे बाबेल ले जाएँगे।” +\p +\s5 +\v 4 परन्तु राजा सिदकिय्याह, सुन कि यहोवा ने क्या प्रतिज्ञा की है: “तू युद्ध में नहीं मारा जाएगा; +\v 5 तू शान्ति से मरेगा। जब तू मर जाएगा, तो लोग तुझे सम्मानित करने के लिए धूप जलाएँगे जैसे उन्होंने तेरे पूर्वजों के लिए किया था जो राजा बनने से पहले राजा थे। वे तेरे लिए शोक करेंगे, और कहेंगे, ‘हम बहुत दुखी हैं कि हमारा राजा मर चुका है!’ मैं, यहोवा, प्रतिज्ञा करता हूँ कि यह होगा।” ’” +\p +\s5 +\v 6 इसलिए मैंने यह सन्देश राजा सिदकिय्याह को दे दिया। +\v 7 उस समय बाबेल की सेना ने यरूशलेम और लाकीश और अजेका को घेरे हुई थी वे यहूदा के एकमात्र तीन शहर थे जिनके चारों ओर ऊँची दीवारें थीं जिन्हें अभी भी जीता नहीं गया था। +\p +\s5 +\v 8 राजा सिदकिय्याह ने यह आदेश दिया था कि लोगों को अपने दासों को मुक्त करना होगा। +\v 9 उसने आदेश दिया कि लोगों को अपने इब्री दासों, पुरुष और स्त्री दोनों को मुक्त करना होगा। किसी भी यहूदी व्यक्ति को अपने दास होने के लिए विवश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। +\s5 +\v 10 अधिकारियों और बाकी लोगों ने राजा के आदेशों का पालन किया था, +\v 11 परन्तु बाद में उन्होंने अपना मन बदल दिया। उन्होंने उन पुरुषों और स्त्रियों को विवश किया जिन्हें उन्होंने अपने दास होने से मुक्त कर दिया था। +\p +\s5 +\v 12 तब यहोवा ने उनसे कहने के लिए मुझे यह सन्देश दिया: +\v 13 “इस्राएल के परमेश्वर मुझ यहोवा ने बहुत पहले तुम्हारे पूर्वजों के साथ एक प्रतिज्ञा की थी, जब मैंने उन्हें मिस्र में दासत्व से मुक्ति दिलाई थी। +\v 14 मैंने उनसे कहा था कि अपने इब्री दासों से छः वर्षों तक कार्य करवाने के बाद उन्हें अपने सब इब्री दासों को मुक्त करना होगा। परन्तु मैंने जो कहा था उस पर तुम्हारे पूर्वजों ने कोई ध्यान नहीं दिया। +\s5 +\v 15 हाल ही में, तुमने मेरे आदेश का पालन किया और वह गलत करना बन्द कर दिया और सही किया। तुमने मेरे भवन में एक गम्भीर प्रतिज्ञा की है कि तुम अपने दासों को मुक्त करोगे, और फिर तुम उन्हें मुक्त कर दिया। +\v 16 परन्तु अब तुमने जो गम्भीर प्रतिज्ञा की थी उसका मान नहीं रखा है और तुमने जिन स्त्रियों और पुरुषों को मुक्त किया था, उन्हें वापस ला कर मैंने जो कहा था, उसकी अवमानना की है और कहा कि वे जहाँ चाहें वहाँ रह सकते हैं। अब तुमने उन्हें अपने दास बनने के लिए विवश किया है। +\p +\s5 +\v 17 इस कारण, मैं यहोवा, यही कहता हूँ: ‘क्योंकि तुमने अपने साथी इस्राएलियों को मुक्त करने की मेरी आज्ञा नहीं मानी है, इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं की तलवारों और अकाल और बीमारियों से नष्ट कर दूँगा। पृथ्‍वी के सब राष्ट्र भयभीत होंगे कि तुम्हारे साथ क्या होता है। +\v 18-19 क्योंकि तुम्हारे साथ अपनी प्रतिज्ञा में जो मैंने कहा है, उसकी तुमने उपेक्षा की है, मैं तुम्हारे साथ वैसा ही करूँगा जैसा तुमने बछड़ों को आधा-आधा काट कर किया था, तुमने यह दिखाने के लिए ऐसा किया था कि तुम निश्चय ही अपनी गम्भीर प्रतिज्ञा के अनुसार करोगे। मैं तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए सक्षम करूँगा, वे यहूदा के अधिकारियों और तुम यरूशलेम के अधिकारियों, और महल के अधिकारी, और तुम याजकों और सब सामान्य लोगों को मार डालेंगे। मैं ऐसा इसलिए करूँगा कि तुमने इस तथ्य को अनदेखा कर दिया है कि तुमने अपने दासों को मुक्त करने की प्रतिज्ञा की है। +\s5 +\v 20 मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें बन्दी बनाने में सक्षम करूँगा, और वे तुम्हें मार डालेंगे। और तुम्हारे शरीर गिद्धों और जंगली पशुओं के लिए भोजन होंगे। +\p +\v 21 मैं राजा सिदकिय्याह और उसके अधिकारियों को पकड़ने के लिए बाबेल के राजा की सेना को सक्षम करूँगा। यद्दपि बाबेल के राजा और उसकी सेना ने यरूशलेम को थोड़े समय के लिए छोड़ दिया है, +\v 22 मैं उन्हें फिर से बुलाऊँगा। इस बार, वे इस शहर के विरुद्ध लड़ेंगे और इसे जीत लेंगे और इसे जला देंगे। मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि यहूदा के सब नगर नष्ट हो जाएँ, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी वहाँ नहीं रहेगा।’” + +\s5 +\c 35 +\p +\v 1 कई वर्ष पहले, जब योशिय्याह का पुत्र यहोयाकीम यहूदा का राजा था, तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 2 “उस स्थान पर जा जहाँ रेकाब के वंशजों के परिवार रहते हैं। उन्हें अपने यहोवा के भवन में आमन्त्रित कर। जब वे आते हैं, उन्हें भीतरी कमरे में से एक में ले जा और उन्हें कुछ दाखरस दे।” +\p +\s5 +\v 3 इसलिए मैं याजन्याह और उसके सब भाइयों और पुत्रों को देखने गया जो रेकाब वंश का प्रतिनिधित्व करते थे। याजन्याह यिर्मयाह नाम के किसी अन्य व्यक्ति का पुत्र था, जो हबस्सिन्याह का पोता था। +\v 4 मैं उन्हें आराधनालय में ले गया, और हम उस कमरे में गए जहाँ यिग्दल्याह का पुत्र हानान का पुत्र जो एक भविष्यद्वक्ता था, रहता था। वह कमरा उस कमरे के बगल में था जो मन्दिर के प्रवेश द्वार के प्रभारी पुरुषों द्वारा उपयोग किया जाता था। यह उस कमरे से ऊपर था जो शल्लूम का पुत्र मासेयाह था, जो मन्दिर का द्वारपाल और शल्लूम का पुत्र था। +\p +\s5 +\v 5 मैंने उनके सामने दाखरस के पात्र और कटोरे रख दिए और पीने के लिए आग्रह किया, +\v 6 परन्तु उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा, “हम दाखरस नहीं पीते, क्योंकि हमारे पूर्वजों रेकाब के पुत्र योनादाब ने हमें आज्ञा दी थी, ‘तुम और तुम्हारे वंशजों को कभी दाखरस नहीं पीनी चाहिए। +\v 7 और तुम्हें घरों का निर्माण नहीं करना चाहिए या दाख के बाग या अन्य फसलें नहीं उगाना चाहिए। इसकी अपेक्षा, तुम्हें सदा तम्बू में रहना होगा। यदि तुम उन आदेशों का पालन करोगे, तो तुम सब इस देश में कई वर्षों तक रहोगे।’ +\s5 +\v 8 इसलिए हम उन सब बातों में उनका पालन करते हैं। हमने कभी दाखरस नहीं पीया है। हमारी पत्नियाँ और हमारे पुत्र और पुत्रियों ने भी कभी दाखरस नहीं पीया है। +\v 9 हमने घरों को भी नहीं बनाया या बागों या अन्य फसलों को नहीं लगाया है या खेतों में कार्य नहीं किया है। +\v 10 हम तम्बू में रहते हैं। हमने उन सब आज्ञाओं का पालन किया है जो हमारे पूर्वज योनादाब ने हमें दी हैं। +\v 11 परन्तु जब राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने इस देश पर आक्रमण किया, तो हमने कहा, ‘हमें बाबेल और अराम की सेनाओं से बचने के लिए यरूशलेम जाना होगा।’ तो, हम यरूशलेम आए और हम यहाँ रह रहे हैं।” +\p +\s5 +\v 12 तब यहोवा ने यह सन्देश मुझे दिया: +\v 13 “मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, जिसकी इस्राएली आराधना करते है, यह कहता हूँ: ‘जा और यरूशलेम के और यहूदा के अन्य स्थानों में लोगों से यह कह: “तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनते या मेरी आज्ञा मानने के विषय में क्यों नहीं सीखते हो? +\v 14 रेकाब के वंशज में अभी भी कोई दाखमधु नहीं पीता है, क्योंकि उनके पूर्वज योनादाब ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था। इसके विपरीत, मैंने तुमसे कई बार बात की है, परन्तु तुमने मुझे अनसुना कर दिया और मेरी आज्ञा मानने से मना कर दिया। +\s5 +\v 15 कई बार मैंने तुम्हारे लिए भविष्यद्वक्ताओं को भेजा। उन्होंने तुमसे कहा, ‘अपने दुष्ट व्यवहार से दूर हो जाओ, और उन कार्यों को करो जो तुम्हें करने चाहिए। अन्य देवताओं की उपासना करना बन्द करो, जिससे कि तुम इस देश में शान्तिपूर्वक रह सको जो मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया था।’ परन्तु तुम मेरी बातों पर ध्यान नहीं देते और न ही मेरा आज्ञापालन करते। +\v 16 योनादाब के वंशजों ने अपने पूर्वजों का आज्ञापालन किया है, परन्तु मैंने जो कहा है उस पर ध्यान देने से तुमने मना कर दिया है। +\p +\s5 +\v 17 इस कारण, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिस परमेश्वर की इस्राएल आराधना करता है, कहते हैं: ‘तुमने मेरी बात सुनने से मना कर दिया है और जब मैंने तुम्हें पुकारा तो तुमने उत्तर नहीं दिया। इसलिए, मैं यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों में सब लोगों पर विपत्तियाँ डालूँगा जिनके लिए मैंने कहा है कि मैं करूँगा।’ ” +\p +\s5 +\v 18 तब यिर्मयाह रेकाब वंश की ओर मुड़ा और कहा, “हे यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, यह कहते हैं: ‘तुमने अपने पूर्वज योनादाब से जो कहा है उसका पालन किया है। तुमने उसके सब निर्देशों का पालन किया है। +\v 19 इसलिए, यहोवा यही कहते हैं: “योनादाब के वंशज होंगे जो सदा मेरे लिए कार्य करेंगे।” + +\s5 +\c 36 +\p +\v 1 जब योशिय्याह का पुत्र यहोयाकीम लगभग चार वर्षों तक यहूदा का राजा रहा, तब यहोवा ने यह सन्देश मुझे दिया: +\v 2 “एक लपेटा हुआ पत्र ले और उसमें उन सब सन्देशों को लिख ले जो मैं इस्राएल, यहूदा और अन्य राष्ट्रों के विषय में तुझे तब से देता आ रहा हूँ। उन सब सन्देशों को लिख ले जो मैंने सबसे पहले दिया था जब योशिय्याह राजा था और अब तक दे रहा हूँ। +\v 3 जब यहूदा के लोग उन सब विपत्तियों के विषय में फिर से सुनें जिन्हें मैं उन पर डालने की योजना बना रहा हूँ, तो संभव है कि उनमें से प्रत्येक जन पश्चाताप करे। यदि वे ऐसा करते हैं, तो मैं उनके द्वारा किये गये दुष्ट कार्यों के लिए उन्हें क्षमा कर पाऊँगा।” +\p +\s5 +\v 4 तब यिर्मयाह ने नेरिय्याह के पुत्र बारूक को बुलाया। तब, जैसा कि यिर्मयाह ने उन सब सन्देशों को निर्देशित किया जिन्हें यहोवा ने उससे कहा था, उसने उन्हें एक लपेटा हुआ पत्र पर लिख दिया। +\v 5 तब यिर्मयाह ने उससे कहा, “मुझे यहाँ से निकल कर यहोवा के भवन में जाने की अनुमति नहीं है। +\v 6 इसलिए, उपवास के दिन तू भवन में जाना और उन सन्देशों को जिन्हें तू ने लिखा है, अर्थात् मैंने लिखवाया है। उन सब लोगों के लिए यहोवा के उन सन्देशों को पढ़ कर सुनाना, वहाँ जितने भी लोग, यहूदा के नगरों से आने वाले लोग भी आए हैं, उन्हें ऊँचे शब्द से पढ़ कर सुना देना। +\s5 +\v 7 संभव है कि वे अपने बुरे व्यवहार से दूर हो जाएँ और यहोवा से उनके प्रति दया का कार्य करने का अनुरोध करें। उन्हें ऐसा करना चाहिए, क्योंकि यहोवा उनके साथ बहुत क्रोधित हैं और उन्हें कठोर दण्ड देने की धमकी दी है।” +\p +\v 8 बारूक ने वही किया जिसे करने के लिए यिर्मयाह ने कहा था। वह आराधनालय गया और यहोवा के सब सन्देशों को पढ़ कर उन्हें सुना दिया। +\s5 +\v 9 उसने नौवे महीने में ऐसा किया, जिस दिन उनके अगुवों ने यह घोषणा की थी कि यरूशलेम के सब लोग और यहूदा के अन्य नगरों से वहाँ आए लोग यहोवा को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखें। ऐसा तब हुआ जब यहोयाकीम लगभग पाँच वर्ष तक राजा रह चुका था। +\v 10 बारूक ने सब लोगों के लिए लपेटे हुए पत्र पर लिखे सन्देशों को पढ़ा। जब वह आराधनालय में था, गमर्याह जिस कमरे में ठहरा हुआ था, तब उसने उन सन्देशों को पढ़ा। गमर्याह शापान का पुत्र था, जो पहले राजा का सचिव था। वह कमरा आराधनालय के प्रवेश द्वार के पास, ऊपरी आँगन के समीप था जिसे नया फाटक कहा जाता है। +\p +\s5 +\v 11 जब शापान के पोते और गमर्याह के पुत्र मीकायाह ने इन सन्देशों को यहोवा से सुना, +\v 12 वह महल में सचिव के कमरे में गया, जहाँ राजा के सब अधिकारी बैठक कर रहे थे। एलीशामा राजा का सचिव वहाँ था। शमायाह का पुत्र दलायाह, अकबोर का पुत्र एलनातान, गमर्याह, हनन्याह का पुत्र सिदकिय्याह और राजा के अन्य सब अधिकारी भी थे। +\s5 +\v 13 जब मीकायाह ने उन सन्देशों के विषय में बताया जो बारूक ने लोगों को पढ़ कर सुनाया था, +\v 14 अधिकारियों ने नतन्याह के पुत्र शेलेम्याह के पोते और कूशी के परपोते को भेजा, कि बारूक से कहे की आकर उन्हें भी सन्देश पढ़ कर सुनाए। अतः बारूक ने लपेटा हुआ पत्र लिया और उनके पास गया। +\v 15 उन्होंने उससे कहा, “कृपया बैठ जा और इसे हमें पढ़ कर सुना।” तो बारूक ने उनके आग्रह के अनुसार किया। +\p +\s5 +\v 16 उन सब सन्देशों को सुन कर वे डर गए थे। उन्होंने एक-दूसरे को देखा और फिर उन्होंने कहा, “हमें इन सन्देशों के विषय में राजा को बताना होगा!” +\v 17 तब उन्होंने बारूक से पूछा, “तुमने यह लपेटा हुआ पत्र कैसे प्राप्त किया? क्या यिर्मयाह ने तुम्हें इस पर सब सन्देश लिखवाएँ हैं?” +\p +\v 18 बारूक ने उत्तर दिया, “हाँ, यिर्मयाह ने मुझे लिखवाया है और मैंने उन्हें इस पर स्याही से लिखा।” +\p +\v 19 तब अधिकारियों ने बारूक से कहा, “तुझे और यिर्मयाह दोनों को छिप जाना चाहिए। किसी को मत बताओ तुम कहाँ हो!” +\p +\s5 +\v 20 उन्होंने राजा के सचिव एलीशामा के कमरे में लपेटा हुआ पत्र रख दिया। तब वे राजा के पास गए, जो आँगन में था और उन सब बातों को उसे सुनाया जो बारूक ने उन्हें पढ़ कर सुनाई थी। +\p +\v 21 तब राजा ने वह लपेटा हुआ पत्र लाने के लिए यहूदी को भेजा। यहूदी उसे एलीशामा के कमरे से ले आया और राजा को पढ़ कर सुनाया, जब राजा के सब अधिकारी वहाँ खड़े थे। +\v 22 यह ठण्ड के मौसम में था, और राजा महल के एक भाग में था जहाँ वह ठण्ड के मौसम में रहता था। वह गर्म होने के लिए आग के सामने बैठा था। +\s5 +\v 23 हर बार जब यहूदी तीन या चार स्तम्भ पढ़ लेता, तब राजा चाकू से उतना भाग काट देता और उसे आग में डाल देता। वह खण्ड के बाद खण्ड के साथ ऐसा ही करता जब तक कि वह लपेटा हुआ पत्र जला न दिया। +\v 24 न तो राजा और न ही उसके अधिकारियों ने दिखाया कि वे डरते थे कि परमेश्वर उन्हें दण्ड देंगे। उन्होंने यह दिखाने के लिए अपने कपड़े भी नहीं फाड़े कि उन्होंने जो किया है उसके लिए उन्हें खेद है। +\s5 +\v 25 एलनातान, दलायाह और गमर्याह ने राजा से विनती भी की कि वह उस लपेटे हुए पत्र को न जलाए, परन्तु उसने कोई ध्यान नहीं दिया। +\v 26 तब राजा ने अपने पुत्र यरहमेल, अज्रीएल का पुत्र सरायाह और अब्देल के पुत्र शेलेम्याह को आज्ञा दी कि बारूक और मुझको बन्दी बना लिया जाए। परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ रहे क्योंकि यहोवा ने हमें छिपा दिया था। +\p +\s5 +\v 27 राजा ने उस पुस्तक को जला दिया था जिस पर मैंने बारूक को सन्देश लिखाए थे, तब यहोवा ने मुझसे यह कहा: +\v 28 “एक और लपेटा हुआ पत्र ले और बारूक से कह कि उस पर फिर से सब कुछ लिखे, वही सब सन्देश जो उसने पहले वाले पत्र पर लिखे थे, जिन्हें राजा यहोयाकीम ने जला दिया था। +\v 29 तब राजा के पास जा और उससे कह, ‘यहोवा यह कहते हैं: तुमने लपेटा हुआ पत्र जला दिया क्योंकि उस पर जो लिखा था वह तुम्हें अच्छा नहीं लगा, कि बाबेल का राजा निश्चय ही अपनी सेना के साथ आएगा और इस देश को नष्ट करेगा और सब लोगों और पशुओं का नाश कर देगा। +\s5 +\v 30 अब मैं यहोवा, तेरे विषय में कहता हूँ, यहोयाकीम: तेरा कोई भी वंशज इस देश पर शासन नहीं करेगा। तेरा शव भूमि पर फेंक दिया जाएगा और दफनाया नहीं जाएगा; वह दिनों के समय गर्म सूरज के नीचे होगा और रात के समय ठण्ड से मारा जाएगा। +\v 31 मैं तुझे और तेरे परिवार और तेरे अधिकारियों को उनके पापों के लिए दण्ड दूँगा। और मैं यरूशलेम के लोगों और यहूदा के अन्य नगरों के लोगों पर वह सब विपत्तियाँ लाऊँगा जिनकी मैंने प्रतिज्ञा की है क्योंकि तुम सब मेरी बातों पर ध्यान नहीं देते हो।” +\p +\s5 +\v 32 तब यिर्मयाह ने एक और लपेटा हुआ पत्र लिया और उसने बारूक को फिर से वे सब सन्देश लिखवाए। उसने वह सब लिखा जो पहले वाले पत्र में लिखा था जिसे राजा यहोयाकीम ने आग में जला दिया था। परन्तु इस बार, यिर्मयाह ने उसमें और भी सन्देश जोड़े। + +\s5 +\c 37 +\p +\v 1 यहोयाकीम की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र यहोयाकीन राजा बना परन्तु तीन महीने तक ही रहा, उसके बाद राजा योशिय्याह का पुत्र सिदकिय्याह यहूदा का राजा बन गया। बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने उसे नया राजा नियुक्त किया। +\v 2 परन्तु राजा सिदकिय्याह और उसके महल के अधिकारियों और देश के अन्य लोगों ने उन सन्देशों पर ध्यान नहीं दिया जिन्हें यहोवा ने मुझे दिया था। +\p +\s5 +\v 3 हालाँकि, एक दिन राजा सिदकिय्याह ने शेलेम्याह के पुत्र यहूकल और मासेयाह के पुत्र सपन्याह को मेरे पास भेजा। उन्होंने मुझसे निवेदन किया कि हमारे देश के लिए हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करूँ। +\p +\v 4 उस समय यिर्मयाह को बन्दीगृह में नहीं डाला गया था, इसलिए वह कहीं भी और जब भी वह चाहता था, बिना बाधा आ जा सकता था। +\p +\v 5 उस समय, मिस्र के राजा होफरा की सेना यहूदा के दक्षिणी सीमा पर आई। जब बाबेल की सेना ने इसके विषय में सुना, तो उन्होंने यरूशलेम से अपना घेराव हटा कर मिस्र की सेना से युद्ध करने गई। +\p +\s5 +\v 6 तब यहोवा ने यह सन्देश मुझे दिया: +\v 7 “मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, यह कहता हूँ: यहूदा के राजा ने मुझे यह पूछने के लिए दूत भेजे हैं कि क्या होने जा रहा है। राजा से कह कि यद्दपि मिस्र के राजा की सेना उसकी सहायता करने के लिए आई है वह मिस्र लौटने वाली है। +\v 8 तब बाबेल की सेना यहाँ वापस आ जाएगी, इस शहर को जीत लेगी, और इसमें सब कुछ जला देगी। +\p +\s5 +\v 9 अतः यिर्मयाह ने तुम इस्राएलियों से कहा था: ‘तुम्हें यह सोच कर स्वयं को धोखा नहीं देना चाहिए, कि बाबेल की सेना चली गई है और वापस नहीं आएगी। वह सच नहीं है। +\v 10 और यहाँ तक कि यदि तेरे सैनिक तुम पर आक्रमण करने वाले बाबेल के सब सैनिकों को नष्ट कर पाएँ और केवल घायल सैनिकों को तम्बुओं में छोड़ दें तो वे घायल सैनिक अपने तम्बू से बाहर आ जाएँगे और इस शहर को जला देंगे।’” +\p +\s5 +\v 11 जब बाबेल की सेना ने यरूशलेम छोड़ दिया क्योंकि मिस्र की सेना निकट आ रही थी, +\v 12 यिर्मयाह ने शहर छोड़ना आरम्भ कर दिया। उसने उस क्षेत्र में जाने का विचार किया जहाँ बिन्यामीन के वंशज रहते हैं, कि मेरे परिवार से सम्पत्ति के मेरे भाग को लिया जा सके। +\v 13 परन्तु जब वह बिन्यामीन फाटक से बाहर निकल रहा था, तब रक्षकों के सरदार ने यिर्मयाह को पकड़ लिया और कहा, “तू हमें छोड़ कर बाबेल के सैनिकों के पास जा रहा है!” जिस व्यक्ति ने उसे पकड़ लिया वह शेलेम्याह का पुत्र और हनन्याह का पोता यिरिय्याह था। +\p +\s5 +\v 14 परन्तु यिर्मयाह ने विरोध किया और कहा, “यह सच नहीं है! मैं ऐसा करने का विचार नहीं कर रहा था!” परन्तु यिरिय्याह ने यिर्मयाह ने जो कहा, उस पर ध्यान नहीं दिया। वह यिर्मयाह को राजा के अधिकारियों के पास ले गया। +\v 15 वे उससे बहुत क्रोधित थे। उन्होंने रक्षकों को आज्ञा दी कि यिर्मयाह को मारें और फिर उसे उस घर में रख दें जहाँ राजा का सचिव योनातान रहता था। उन्होंने योनातान के घर को बन्दीगृह में बदल दिया था। +\p +\s5 +\v 16 उन्होंने यिर्मयाह को उस बन्दीगृह की एक बन्दीगृह में रखा, और वह कई दिनों तक वहाँ रहा। +\v 17 तब राजा सिदकिय्याह ने गुप्त रूप से एक सेवक भेजा, वह यिर्मयाह को महल में ले गया। वहाँ राजा ने उससे पूछा, “क्या तेरे पास यहोवा से कोई सन्देश है?” यिर्मयाह ने उत्तर दिया, “हाँ, सन्देश यह है कि तुझे बाबेल के राजा के हाथों में कर दिया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 18 तब यिर्मयाह ने राजा से पूछा, “मैंने तेरे विरुद्ध या तेरे अधिकारियों के विरुद्ध या इस्राएलियों के विरुद्ध क्या अपराध किया है, जिसके परिणामस्वरूप तू ने आदेश दिया है कि मुझे बन्दीगृह में रखा जाए? +\v 19 तेरे भविष्यद्वक्ताओं ने भविष्यद्वाणी की थी कि बाबेल के राजा की सेना तुझ पर या इस देश पर आक्रमण नहीं करेगी। उनके सन्देश क्यों पूरे नहीं हुए? +\v 20 हे महामहिम, मैं तुझसे विनती करता हूँ कि मेरा निवेदन सुन ले। मुझे योनातान सचिव के घर में उस बन्दीगृह में वापस न भेज, क्योंकि यदि तू ऐसा करेगा, तो मैं वहाँ मर जाऊँगा।” +\p +\s5 +\v 21 तब राजा सिदकिय्याह ने आज्ञा दी कि यिर्मयाह को वापस बन्दीगृह में नहीं डाला जाए। इसकी अपेक्षा, उसे महल के आँगन में रक्षकों की देखरेख में रखने की अनुमति दी। राजा ने यह भी आदेश दिया कि उसे प्रतिदिन ताजी रोटी दी जाए, जब तक कि शहर में कोई रोटी नहीं रह जाती है। इसलिए उन्होंने यिर्मयाह को उस आँगन में रखा और वह वहाँ रहा। + +\s5 +\c 38 +\p +\v 1 चार अधिकारी, मत्तान के पुत्र शपत्याह, पशहूर के पुत्र गदल्याह, शेलेम्याह के पुत्र यूकल और मल्किय्याह के पुत्र पशहूर ने सुना कि यिर्मयाह सब लोगों को क्या कह रहा था। +\v 2 वह उन्हें वह बता रहा था जो यहोवा कह रहे थे, “जो कोई यरूशलेम में रहता है वह मर जाएगा। वे अपने शत्रुओं की तलवारों से या अकाल से या बीमारियों से मारे जाएँगे। परन्तु जो लोग बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण करते हैं वे जीवित रहेंगे। वे भाग जाएँगे, वे मारे नहीं जाएँगे। +\v 3 यहोवा यह भी कहते हैं कि बाबेल के राजा की सेना निश्चय ही इस नगर को जीत लेगी।” +\p +\s5 +\v 4 तब वे अधिकारी राजा के पास गए और कहा, “यह मनुष्य, यिर्मयाह मार डाला जाना चाहिए! वह जो कह रहा है, उससे हमारे सैनिकों का साहस टूट रहा है जो शहर में रहते हैं। वह लोगों का साहस भी तोड़ रहा है। वह ऐसी बातें नहीं कह रहा है जिनसे हमारी सहायता हो; वह ऐसी बातें कह रहा है जो हमें पराजित करवाएँगी।” +\p +\v 5 राजा सिदकिय्याह ने कहा, “ठीक है, जो कुछ तुम चाहते हो उसके साथ करो; मेरे पास तुम्हें रोकने का अधिकार नहीं है।” +\p +\s5 +\v 6 इसलिए उन अधिकारियों ने यिर्मयाह को उसकी कोठरी से निकाला और उसे रस्सियों से आँगन में एक गड्ढे में उतार दिया। वह गड्ढ़ा मल्किय्याह का था, जो राजा का पुत्र था। उस गड्ढे में पानी नहीं था, परन्तु बहुत सी गीली मिट्टी थी, तो वह मिट्टी में गहरा डूब गया। +\p +\s5 +\v 7 परन्तु इथियोपिया के एक महल अधिकारी एबेदमेलेक ने किसी से सुना कि यिर्मयाह गड्ढे में है। उस समय राजा बिन्यामीन फाटक में लोगों के मामलों का निर्णय कर रहा था। +\v 8 एबेदमेलेक महल से बाहर गया और राजा से कहा, +\v 9 “हे महामहिम, उन मनुष्यों ने बहुत बुरा कार्य किया है। उन्होंने यिर्मयाह को गड्ढे में डाल दिया है। शहर में लगभग सारा भोजन समाप्त हो गया है, इसलिए कोई भी उसे भोजन नहीं दे पाएगा और जैसा परिणाम यह होगा कि वह भूख से मर जाएगा।” +\p +\s5 +\v 10 तब राजा ने एबेदमेलेक से कहा, “अपने साथ मेरे तीस लोगों को ले और यिर्मयाह को गड्ढे से बाहर खींच, कि वह मर न जाए!” +\p +\v 11 तब एबेदमेलेक ने उन तीस पुरुषों को लिया; वे महल के उस कमरे के नीचे के कमरे में गए जहाँ लोगों ने वस्तुएँ संग्रहित की थीं। वहाँ उन्होंने कुछ पुराने कपड़ों के चिथड़ों को लिया। और गड्ढे के पास चले गए। उन्होंने उन्हें रस्सी में रखा और रस्सी को मेरे पास उतार दिया। +\s5 +\v 12 तब एबेदमेलेक ने मुझे पुकार कर कहा, “रस्सी से घायल होने से बचाने के लिए, अपनी बगल के नीचे इन चिथड़ों को रख!” तो यिर्मयाह ने ऐसा ही किया। +\v 13 तब उन्होंने उसे गड्ढे से बाहर खींच लिया। तो वह आँगन में रहा जहाँ महल के सुरक्षाकर्मी थे। +\p +\s5 +\v 14 एक दिन राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह को बुलाया और उसे राजा के पास लाया गया, जो मन्दिर के प्रवेश द्वार पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने यिर्मयाह से कहा, “मैं तुझसे कुछ पूछना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तू मुझसे सच कहे और कुछ भी मत छिपाना।” +\p +\v 15 यिर्मयाह ने उत्तर दिया, “यदि मैं तुझे सच बताता हूँ, तो तू मुझे मार डालने की आज्ञा देगा। और यदि मैं तुझे अच्छी सलाह देता हूँ, तो तू मेरी बात पर ध्यान नहीं देगा।” +\p +\v 16 परन्तु राजा सिदकिय्याह ने गुप्त रूप से उससे प्रतिज्ञा की, “मुझे सच बता! और जैसा निश्चय ही यहोवा जीवित हैं, मैं तुझे मृत्यु दण्ड नहीं दूँगा और उन लोगों के हाथ में भी नहीं डालूँगा जो तुझे मारना चाहते हैं।” +\p +\s5 +\v 17 तब यिर्मयाह ने सिदकिय्याह से कहा, “स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, यह कहते हैं: ‘यदि तू बाबेल के राजा के अधिकारियों को आत्मसमर्पण कर दे, तू और तेरा परिवार को बचाया जाएगा और यह शहर जलाया नहीं जाएगा। +\v 18 परन्तु यदि तू उन्हें आत्मसमर्पण करने से मना करे, तो तू भाग नहीं पाएगा। और बाबेल की सेना इस शहर को जीत लेगी और इसे पूरी तरह जला देगी।’” +\p +\s5 +\v 19 राजा ने उत्तर दिया, “परन्तु मैं बाबेल के सैनिकों को आत्मसमर्पण करने से डरता हूँ, क्योंकि उनके अधिकारी मुझे यहूदा के लोगों के हाथों में दे सकते हैं जो पहले से ही बाबेल के सैनिकों के साथ हो चुके हैं, और यहूदा के लोग मेरे साथ दुर्व्यवहार करेंगे।” +\p +\s5 +\v 20 यिर्मयाह ने उत्तर दिया, “यदि तू मेरी बातों को मान कर यहोवा का आज्ञापालन करे, तो वे तुझे हमारे लोगों के हाथों में नहीं देंगे। तेरा भला ही होगा और तू जीवित रहेगा। +\v 21 परन्तु यदि तू आत्मसमर्पण करने से मना करे, तो मैं तुझे बताऊँगा कि यहोवा ने मुझे क्या बताया है। +\s5 +\v 22 तेरे महल में रहने वाली सब स्त्रियों को बाहर लाया जाएगा और बाबेल के राजा के अधिकारियों को दिया जाएगा। तब वे स्त्रियाँ तुझसे कहेंगी: +\q1 ‘तेरे मित्र थे जिन पर तू ने सोचा था कि तू भरोसा कर सकता है, +\q2 परन्तु उन्होंने तुझे धोखा दिया है और तुझे गलत निर्णय लेने का कारण बना दिया है। +\q1 अब ऐसा लगता है कि तू मिट्टी में फँस गया है, +\q2 और तेरे मित्रों ने तुझे त्याग दिया है।’ +\p +\v 23 शहर में से तेरी सब पत्नियों और बच्चों को बाबेल के सैनिकों के पास ले जाया जाएगा, और तू भी बच नहीं पाएगा। बाबेल के राजा के सैनिक तुझे पकड़ लेंगे और वे इस शहर को जला देंगे।” +\p +\s5 +\v 24 तब सिदकिय्याह ने यिर्मयाह से कहा, “किसी को मत बताना कि तू ने मुझे क्या कहा है, यदि तू किसी को बताएगा, तो राजा के अधिकारी तुझे मार सकते हैं। +\v 25 यदि मेरे अधिकारियों को पता चलता है कि मैंने तुझसे बात की है, तो संभव है कि वे तेरे पास आएँगे और कहेंगे, ‘हमें बता कि तू और राजा किस विषय में बात कर रहे थे। यदि तू हमें नहीं बताएगा, तो हम तुझे मार देंगे।’ +\v 26 यदि ऐसा होता है, तो बस उनसे कहना कि तू ने मुझसे विनती की है कि तुझे वापस योनातान के घर में अँधेरे में न भेजे, क्योंकि तू डर गया था कि यदि तू वहाँ फिर से रखा गया तो मर जाएगा।” +\p +\s5 +\v 27 और यही हुआ। राजा के अधिकारी यिर्मयाह के पास आए और पूछा कि राजा ने उसे क्यों बुलाया था। परन्तु उसने उनसे वही कहा जो राजा ने बताने के लिए कहा था। इसलिए उन्होंने यिर्मयाह से और प्रश्न नहीं पूछा, क्योंकि किसी ने भी नहीं सुना था कि राजा और यिर्मयाह ने एक-दूसरे से क्या बातें की थीं। +\p +\v 28 यिर्मयाह तब तक महल के आँगन में ही रहा, जब तक कि बाबेल की सेना ने यरूशलेम पर अधिकार नहीं कर लिया। + +\s5 +\c 39 +\p +\v 1 राजा सिदकिय्याह द्वारा लगभग नौ वर्षों तक यहूदा पर शासन करने के बाद राजा नबूकदनेस्सर उस वर्ष के दसवें महीने में अपनी सेना के साथ आया, और उन्होंने यरूशलेम को घेर लिया। +\v 2 डेढ़ वर्ष बाद, सिदकिय्याह के ग्यारहवें वर्ष के चौथे महीने में, बाबेल के सैनिकों ने शहर की दीवार को तोड़ दिया। और शीघ्रता से प्रवेश करके शहर पर अधिकार कर लिया। +\v 3 तब बाबेल के राजा के सब अधिकारी भीतर आए और बीच के फाटक में बैठे कि निर्णय लें कि वे शहर के साथ क्या करेंगे। इनमें राजा का मंत्री नेर्गलसरेसेर, समगर्नबो, सर्सकीम मुख्य प्रशासनिक अधिकारी और अन्य अनेक अधिकारी थे। +\p +\s5 +\v 4 जब राजा सिदकिय्याह और उसके सब सैनिकों ने देखा कि बाबेल की सेना शहर में घुस गई थी, तो वे भाग गए। वे अंधेरा होने तक प्रतीक्षा करते रहे। तब वे राजा के बगीचे की दो दीवारों के बीच के फाटक से होकर शहर से बाहर चले गए। तब उन्होंने यरदन के किनारे-किनारे मैदान की ओर दौड़ना आरम्भ कर दिया। +\p +\v 5 परन्तु बाबेल के सैनिकों ने राजा का पीछा किया और उन्होंने उसे यरीहो के पास मैदानों में पकड़ लिया। वे उसे बाबेल के राजा के पास ले गए, जो हमात में रिबला में था। वहाँ नबूकदनेस्सर ने अपने सैनिकों से कहा कि उन्हें सिदकिय्याह को दण्ड देने के लिए क्या करना चाहिए। +\s5 +\v 6 उन्होंने सिदकिय्याह को विवश किया कि देखे जब वे उसके पुत्रों और यहूदा के सब अधिकारियों को मार रहे हैं। +\v 7 तब उन्होंने सिदकिय्याह की आँखों को फोड़ दिया। और उसे पीतल की जंजीरों से बाँध कर बाबेल ले गए। +\p +\s5 +\v 8 इस बीच, बाबेल की सेना ने महल और यरूशलेम की अन्य सब इमारतों को जला दिया। और उन्होंने शहर की दीवारों को तोड़ दिया। +\v 9 तब राजा के अंगरक्षकों के प्रधानकप्तान नबूजरदान ने उन अन्य लोगों को बाबेल जाने के लिए विवश किया जो शहर में रहते थे और उन यहूदियों को भी जो बाबेल के सैनिकों के साथ हो गये थे। +\v 10 परन्तु उसने बहुत से गरीब लोगों को यहूदा में रहने की अनुमति दी और उन्होंने उन्हें दाख की बारी करने के लिए दाख की बारियाँ और खेत दिए कि उनकी देखभाल करें। +\p +\s5 +\v 11 राजा नबूकदनेस्सर ने पहले यिर्मयाह को खोजने के लिए रक्षकों के प्रधान, नबूजरदान से कहा। उसने कहा, +\v 12 “सुनिश्चित कर कि कोई भी उसे हानि न पहुँचाए। उसका ध्यान रख और जो भी वह तुझे करने के लिए अनुरोध करता है उसके लिए कर।” +\v 13 इसलिए वह और नबूसजबान, जो उनके मुख्य अधिकारियों में से एक था और राजा के सलाहकार नेर्गलसरेसेर और बाबेल के राजा के अन्य अधिकारियों +\v 14 ने कुछ लोगों को यिर्मयाह को महल के बाहर के आँगन से लाने के लिए भेजा। वे उसे गदल्याह के पास ले गए जो अहीकाम का पुत्र था और शापान का पोता था। तब गदल्याह यिर्मयाह को अपने घर ले गया और वह यहूदा में अपने लोगों के बीच रहा जिन्हें वहाँ रहने की अनुमति थी। +\p +\s5 +\v 15 परन्तु जब यिर्मयाह को महल के आँगन में अभी भी देखरेख में रखा गया था, तब यहोवा ने उसे यह सन्देश दिया: +\v 16 “इथियोपिया के अधिकारी एबेदमेलेक से यह कह: ‘स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिसकी इस्राएल आराधना करता है, कहते हैं: मैं इस शहर से वह सब करूँगा जिसके लिए मैंने कहा था कि मैं करूँगा मैं लोगों को समृद्धि के योग्य नहीं होने दूँगा, मैं उन पर विपत्तियाँ आने दूँगा और तू यरूशलेम को नष्ट होते देखेगा। +\s5 +\v 17 परन्तु मैं तुझे उन लोगों से बचाऊँगा जिनसे तू डरता है। मैं यहोवा, तुझसे यह प्रतिज्ञा करता हूँ! +\v 18 तू ने मुझ पर भरोसा किया, इसलिए मैं तुझे बचाऊँगा। तू अपने शत्रुओं की तलवार से नहीं मारा जाएगा। तू जीवित रहेगा। यह निश्चय ही होगा, क्योंकि मैंने, यहोवा ने यह कहा है।’ ” + +\s5 +\c 40 +\p +\v 1 बाबेल के सैनिकों ने यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों से यिर्मयाह और कई अन्य लोगों को पकड़ा। उन्होंने उन्हें बाबेल में ले जाने की योजना बनाई। इसलिए उन्होंने उसकी कलाई को जंजीरों से बाँधा और यरूशलेम के उत्तर में एक शहर रामा ले गए। जब वे वहाँ थे, यिर्मयाह को मुक्त कर दिया गया। और यह ऐसे हुआ है: +\v 2 राजा के रक्षक के प्रधानकप्तान नबूजरदान ने पाया कि यिर्मयाह वहाँ था। उसने यिर्मयाह को बुलाया और उससे कहा, “तेरे परमेश्वर यहोवा ने कहा है कि वह इस देश पर विपत्तियाँ डालेंगे। +\s5 +\v 3 और अब उन्होंने ऐसा होने का कारण उत्पन्न कर दिया है। उन्होंने वही किया है जो उन्होंने कहा था कि वह करेंगे, क्योंकि तुम लोगों ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया और उनका आज्ञापालन करने से मना कर दिया। +\v 4 परन्तु आज मैं तेरी कलाई से जंजीर खोलने जा रहा हूँ और तुझे छोड़ दूँगा। यदि तू मेरे साथ बाबेल आना चाहता है, तो यह ठीक होगा। मैं तेरी देख-भाल करूँगा। परन्तु यदि तू मेरे साथ नहीं आना चाहता, तो मत आ। यहाँ रह। देख, पूरा देश तेरे सामने है; तू जहाँ भी जाना चाहता है, उस भाग को चुन सकता है। जहाँ भी तू सोचता है कि वह सबसे अच्छा है, तू जा सकता है।” फिर उसने यिर्मयाह की कलाई से जंजीरें खोल दी। +\s5 +\v 5 उसने कहा, “यदि तू यहाँ रहने का निर्णय लेता है, तो गदल्याह के पास जा। बाबेल के राजा ने उसे यहूदा के अधिकारी के रूप में नियुक्त किया। तुझे उन लोगों के साथ रहने की अनुमति दी जाएगी जो शासन के अधीन है। परन्तु तू जो चाहता है कर सकता है।” +\p तब नबूजरदान ने यिर्मयाह को कुछ खाना और कुछ पैसे दिए और उसने उसे जाने की अनुमति दी। +\p +\v 6 वह मिस्पा में गदल्याह के पास लौट आया, और वह यहूदा में उन लोगों के साथ रहा जो अभी भी देश में बसे हुए थे। +\p +\s5 +\v 7 इस्राएली सैनिक जिन्होंने बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण नहीं किया था, वे ग्रामीण क्षेत्रों में घूम रहे थे। तब उनके अगुवों ने किसी को यह कहते हुए सुना कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को उन गरीब लोगों का अधिकारी नियुक्त किया था जो अभी भी यहूदा में हैं, जिन्हें बाबेल नहीं ले जाया गया है। +\v 8 तब वे मिस्पा में गदल्याह से बात करने गए। इन लोगों में थे; नतन्याह का पुत्र इश्माएल, कनान का पुत्र योहानान और योनातान, तन्हूमेत का पुत्र सरायाह, नतोपावासी एपै के पुत्र और माका के याजन्याह और उनके साथ रहने वाले सैनिक भी थे। +\s5 +\v 9 गदल्याह ने निष्ठापूर्वक प्रतिज्ञा की कि बाबेल के सैनिक उन्हें हानि नहीं पहुँचाएँगे। उसने कहा, “उनके लिए कार्य करने से डरो मत। इस देश में रहो और बाबेल के राजा के लिए कार्य करो। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारा भला ही होगा। +\v 10 जहाँ तक मेरी बात है, मैं यहाँ मिस्पा में रहूँगा और बाबेल के अधिकारियों के लिए तुम्हारा प्रतिनिधि होऊँगा जो हमारे साथ बात करने आएँगे। परन्तु तुमको अपने नगरों में वापस जाना चाहिए, और अपनी भूमि पर उत्पादित वस्तुएँ खाओ। अँगूर और गर्मियों के फल और जैतून को तोड़ो, दाखरस और जैतून का तेल बनाओ और उन्हें भर कर रखो।” +\p +\s5 +\v 11 तब जो यहूदी लोग मोआब, अम्मोन, एदोम और अन्य आस-पास के देशों से भाग गए थे, उन्होंने लोगों से सुना कि बाबेल के राजा ने कुछ लोगों को यहूदा में रहने की अनुमति दी है और उसने गदल्याह को उनका अधिकारी नियुक्त किया था। +\v 12 इसलिए वे यहूदा लौटने लगे। वे मिस्पा में गदल्याह से बात करने के लिए रुके। तब वे यहूदिया के विभिन्न स्थानों पर गए, और उन्होंने अँगूर और गर्मियों के फलों की एक बड़ी मात्रा में कटाई की। +\p +\s5 +\v 13 कुछ समय बाद, योहानान और इस्राएली सैनिकों के अन्य सब अगुवों ने जिन्होंने बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण नहीं किया था मिस्पा में गदल्याह के पास आए। +\v 14 उन्होंने उससे कहा, “क्या तू जानता है कि अम्मोनियों के राजा बालीस ने नतन्याह के पुत्र इश्माएल को तुझे मारने के लिए भेजा है?” परन्तु गदल्याह ने उनकी बातों पर विश्वास नहीं किया। +\p +\s5 +\v 15 बाद में योहानान ने गदल्याह से निजी तौर पर बात की। उसने कहा, “मुझे इश्माएल को गुप्त रूप से मारने की अनुमति दे। यह अच्छा नहीं होगा कि उसे यहाँ आने की अनुमति दी जाए और वह तेरी हत्या कर दे, यदि तू मारा गया तो उन सब यहूदियों का क्या होगा जो यहाँ लौट आए हैं? वे बिखर जाएँगे और यहूदा में रहने वाले अन्य लोग मारे जाएँगे!” +\p +\v 16 परन्तु गदल्याह ने योहानान से कहा, “नहीं, मैं तुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दूँगा। मुझे लगता है कि तू इश्माएल के विषय में झूठ बोल रहा है।” + +\s5 +\c 41 +\p +\v 1 नतन्याह का पुत्र इश्माएल राजा के परिवार का सदस्य था। वह राजा सिदकिय्याह के महत्वपूर्ण अधिकारियों में से एक था। उस वर्ष के सातवें महीने में, वह मिस्पा के पास दस अन्य लोगों के साथ गदल्याह से बात करने के लिए गया। जबकि वे एक साथ खा रहे थे, +\v 2 इश्माएल और अन्य दस लोग कूद गए, और अपनी तलवारों से उन्होंने गदल्याह को मार डाला—वह व्यक्ति जिसे बाबेल के राजा ने अपना अधिकारी नियुक्त किया था! +\v 3 इश्माएल और अन्य मनुष्यों ने उन सब यहूदियों और बाबेल के लोगों को भी मार डाला, जिनके सैनिक मिस्पा में गदल्याह के साथ पाए गए थे। +\p +\s5 +\v 4 अगले दिन, इससे पहले कि किसी को पता चले कि गदल्याह की हत्या कर दी गई है, +\v 5 शेकेम, शीलो और सामरिया के अस्सी पुरुष मिस्पा में यहोवा के भवन में आराधना करने आए। उन्होंने अपने दाढ़ी मुड़ा दी थी और अपने कपड़े फाड़े और स्वयं को काट दिया कि वे शोक कर रहे थे। वे वेदी पर जलाने के लिए अन्न-बलि और धूप लाए थे। +\s5 +\v 6 नतन्याह का पुत्र इश्माएल उनसे मिलने के लिए रोता हुआ शहर से बाहर गया। जब वह उन तक पहुँचा, तो उसने कहा, “आओ और देखें कि गदल्याह के साथ क्या हुआ है!” +\p +\v 7 परन्तु जैसे ही उन सब ने शहर में प्रवेश किया, वैसे ही इश्माएल और उसके लोगों ने उनमें से अधिकांश को मार डाला और उनके शवों को गड्ढे में फेंक दिया। +\s5 +\v 8 उनमें से केवल दस ही थे जिन्हें उन्होंने बचाया था। वे मारे नहीं गए थे क्योंकि उन्होंने इश्माएल से प्रतिज्ञा की थी कि यदि उन्हें जीवित रहने की अनुमति दी जाती है, तो वे उन्हें बहुत सारा गेहूँ और जौ और जैतून का तेल और शहद ला कर देंगे जिसे उन्होंने छिपा कर रखा है। +\v 9 जहाँ इश्माएल के पुरुषों ने उन लोगों के शवों को फेंक दिया था जिनकी उन्होंने हत्या कर दी थी, वह गहरा था जिसे राजा आसा के पुरुषों ने खोदा था कि यदि इस्राएल के राजा बाशा की सेना उन्हें घेर ले तो उन्हें शहर में पानी मिलेगा। इश्माएल के पुरुषों ने उस कुएँ को शवों से भर दिया। +\p +\s5 +\v 10 तब इश्माएल और उसके लोगों ने राजा की पुत्रियों और कुछ अन्य लोगों को पकड़ लिया जो मिस्पा में रक्षकों के सरदार नबूजरदान द्वारा छोड़े गए थे कि गदल्याह उनकी देखभाल करे। इश्माएल और उसके पुरुषों ने उन लोगों को लिया और अम्मोन क्षेत्र की ओर वापस जाना आरम्भ कर दिया। +\p +\s5 +\v 11 परन्तु कारेह के पुत्र योहानान और इस्राएली सैनिकों के अन्य सब अगुवे जिन्होंने बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण नहीं किया था, इस विषय में सुना कि नतन्याह के पुत्र इश्माएल और उसके लोगों ने क्या किया है। +\v 12 इसलिए वे तुरन्त उन्हें रोकने के लिए अपने सब पुरुषों के साथ गए। उन्होंने गिबोन शहर के पास बड़े कुंड पर उन्हें पकड़ा। +\s5 +\v 13 जब इश्माएल और उसके पुरुषों द्वारा पकड़े गए, उन सब लोगों ने योहानान और उसके साथ रहने वाले सैनिकों को देखा, तो आनन्द से चिल्लाए। +\v 14 इसलिए मिस्पा में पकड़े गए सब लोग बच निकले, और उन्होंने योहानान की सहायता करना आरम्भ कर दिया। +\s5 +\v 15 परन्तु नतन्याह का पुत्र इश्माएल और उसके आठ पुरुष भागे और अम्मोन क्षेत्र में चले गए। +\v 16 तब कारेह के पुत्र योहानान और उसके साथ रहने वाले लोगों ने उन सब लोगों को एकत्र किया जिन्हें उन्होंने गिबोन में बचाया था। उनमें सैनिकों और स्त्रियों और बच्चों और राजा के कुछ महल अधिकारी थे। ये सब वे लोग थे जिन्हें इश्माएल और उसके लोगों ने गदल्याह को मारने के बाद पकड़ लिया था। +\s5 +\v 17 वे उन्हें बैतलहम के पास गेरुत किम्हाम गाँव में ले गए। और वे सब मिस्र जाने के लिए तैयार थे। +\v 18 वे चिन्तित थे कि बाबेल के सैनिक उनके साथ क्या करेंगे जब उन्हें पता चलेगा कि इश्माएल ने गदल्याह को मार डाला है, जिसे बाबेल के राजा ने उनके अधिकारी के रूप में नियुक्त किया था। + +\s5 +\c 42 +\p +\v 1 तब कारेह के पुत्र योहानान और होशायाह के पुत्र याजन्याह और इस्राएलियों के सब अगुवों जिन्होंने बाबेल की सेना को आत्मसमर्पण नहीं किया था और कई अन्य लोग, जिनमें महत्वपूर्ण थे और महत्वहीन थे, मेरे पास आए। +\v 2 उन्होंने कहा, “कृपया हमारा अनुरोध सुन और हम सबके लिए हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना कर। यद्दपि हम पहले बड़ी संख्या में थे, तू देख सकता है कि अब हम केवल कुछ ही लोग हैं जो बच गए हैं। +\v 3 प्रार्थना कर कि हमारे परमेश्वर यहोवा हमें दिखाएँ कि हमें क्या करना चाहिए और हमें कहाँ जाना चाहिए।” +\p +\s5 +\v 4 मैंने उत्तर दिया, “ठीक है, मैं हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करूँगा, जैसा कि तुमने अनुरोध किया है, और मैं तुम्हें बताऊँगा कि वह क्या कहते हैं। मैं तुम्हें सब कुछ बताऊँगा।” +\p +\v 5 उन्होंने मुझे उत्तर दिया, “हम जानते हैं कि हमारा परमेश्वर यहोवा हमारे विरुद्ध एक विश्वासयोग्य साक्षी होगा यदि वह जो कुछ भी करने के लिए कहते हैं, वह करने से हम मना करते हैं। +\v 6 हम तुझसे अनुरोध करते हैं कि तू हमारे परमेश्वर यहोवा से पूछ कि हमें क्या करना चाहिए। जब वह उत्तर देते हैं, तो हम उनकी आज्ञा मानेंगे, चाहे हमें उनका कहना पसन्द हो या नहीं। हम ऐसा करेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि यदि हम उनकी आज्ञा मानेंगे तो हमारा भला ही होगा।” +\p +\s5 +\v 7 इसलिए मैंने यहोवा से प्रार्थना की और दस दिन बाद उन्होंने मुझे अपना उत्तर दिया। +\v 8 इसलिए मैंने कारेह के पुत्र योहानान और अन्य सब लोगों के अगुवों को बुलाया, जिनमें महत्वपूर्ण और महत्वहीन दोनों थे। +\v 9 मैंने उनसे कहा, “तुमने मुझे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को वह बताने के लिए कहा था जो तुम माँग रहे थे। यही वह है जो उन्होंने उत्तर दिया: +\v 10 ‘तुम्हें इस देश में रहना होगा। यदि तुम ऐसा करते हो, तो मैं तुम्हारे देश को दृढ़ता प्रदान करूँगा और निर्बल नहीं होने दूँगा। मैं तुम्हें समृद्ध होने का कारण दूँगा और फिर निर्वासित नहीं होने दूँगा। मैं उन विपत्तियों को रोकूँगा जिन्हें मैंने तुम पर आने दी थीं। +\s5 +\v 11 परन्तु अब बाबेल के राजा से मत डरो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हें अपनी शक्ति से बचाऊँगा। +\v 12 मैं उसे तुम्हारे प्रति दयालु करके तुम पर दया करूँगा। परिणामस्वरूप, वह तुम्हें अपने देश में रहने की अनुमति देगा।’ +\p +\s5 +\v 13 परन्तु यदि तुम हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा मानने से मना करते हो और यदि तुम कहते हो, ‘हम यहाँ नहीं रहेंगे; +\v 14 इसकी अपेक्षा, हम मिस्र जाएँगे। वहाँ हमें युद्ध का अनुभव नहीं होगा, हम अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार करने के लिए संकेत देने वाली तुरही नहीं सुनेंगे और हम भूखे नहीं रहेंगे।’ +\s5 +\v 15 अब सुनो! तुम लोग जो यहूदा में रहते हो! सुनों कि स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, वह कहते हैं, ‘यदि तुम मिस्र जाने का दृढ़ संकल्प करते हो, और यदि तुम वहाँ जाते हो और वहाँ रहते हो, +\v 16 तो तुम उन युद्धों और अकालों का अनुभव करोगे जिनसे तुम डरते हो और तुम सब मर जाओगे। +\v 17 यह सब तुम्हारे साथ होगा जो मिस्र जाने और वहाँ रहने के लिए दृढ़ हैं। तुम में से कुछ अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे जाएँगे और तुम में से कुछ अकाल और बीमारियों से मर जाएँगे। तुम में से कोई भी विपत्तियों से बच नहीं पाएगा जो मैं तुम पर लाऊँगा।’ +\p +\s5 +\v 18 और स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, वह यह भी कहते हैं: ‘क्योंकि मैं बहुत क्रोधित था, इसलिए मैंने यरूशलेम के सब लोगों को कठोर दण्ड दिया। जब तुम मिस्र जाओगे तो मैं वही कार्य करूँगा। परिणाम यह होगा कि लोग तुम्हें श्राप देंगे। वे तुम्हारे साथ जो हुआ है इसके कारण भयभीत होंगे। वे तुम्हारा उपहास करेंगे और तुम इस भूमि को कभी नहीं देख पाओगे।’ +\p +\v 19 यहूदा के लोगों का छोटा समूह जो अभी भी जीवित हैं, मेरी बात सुनो: यहोवा ने तुमसे कहा है, ‘मिस्र मत जाओ।’ तुम मत भूलना कि मैंने आज तुमको क्या चेतावनी दी है। +\s5 +\v 20 जब तुमने हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करने का मुझसे अनुरोध किया और उन्होंने जो भी कहा, उसका पालन करने के लिए तैयार होने का दावा किया, तो तुमने जीवन और मृत्यु की गलती की। +\v 21 इसलिए आज मैंने तुम्हें बताया है कि उन्होंने क्या कहा है, परन्तु मुझे पता है कि अब तुम हमारे परमेश्वर यहोवा की आज्ञा नहीं मानोगे, जैसा कि तुमने पहले उसका पालन नहीं किया है। +\v 22 तुम मिस्र जाना और वहाँ रहना चाहते हो। तो अब, तुम इस विषय में सुनिश्चित हो सकते हो: तुम सब वहाँ मर जाओगे। तुम में से कुछ अपने शत्रुओं की तलवार से मारे जाएँगे और अन्य लोग अकाल से या बीमारियों से मर जाएँगे।” + +\s5 +\c 43 +\p +\v 1 अतः मैंने लोगों को हमारे परमेश्वर यहोवा का सन्देश सुना दिया। +\v 2 परन्तु फिर कोरह के पुत्र योहानान और होशायाह के पुत्र अजर्याह और कुछ अभिमानी लोगों ने मुझसे कहा, “तू झूठ बोल रहा है! हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें यह नहीं बताया है कि हमें मिस्र नहीं जाना चाहिए! +\v 3 हमें लगता है कि नेरिय्याह के पुत्र बारूक ने तुमसे यह कहने का आग्रह किया है कि यदि हम यहाँ रहें, तो बाबेल के सैनिक हमें पकड़ लें और हमें मार दें या हमें बाबेल ले जाएँ।” +\p +\s5 +\v 4 तो योहानान और यहूदियों के सैनिकों के अन्य अगुवों और अन्य कई लोगों ने यहूदा में रहने के लिए यहोवा के आदेश का पालन करने से मना कर दिया। +\v 5 योहानान और अन्य सब अगुवों ने उन सब लोगों को एकत्र किया जो अन्य देशों से लौट आए थे, जिनमें वे बिखरे हुए थे। +\v 6 उन्होंने पुरुषों, स्त्रियों, बच्चों, राजा की पुत्रियों और उन सबको साथ लिया जिन्हें नबूजरदान ने गदल्याह के साथ छोड़ा था, और उन्होंने बारूक और मुझे भी लिया। +\v 7 उन्होंने यहोवा की आज्ञा मानने से मना कर दिया, और वे हमें तहपन्हेस शहर तक मिस्र ले गए। +\p +\s5 +\v 8 जब हम तहपन्हेस में थे, तब यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 9 “जब यहूदा के लोग तुझे देख रहे हैं, तब कुछ बड़ी चट्टानों को ले और उन्हें तहपन्हेस में राजा के महल के प्रवेश द्वार पर ईंट के चबूतरे के नीचे गाड़ दे। +\v 10 तब यहूदा के लोगों से कह, ‘स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा, जिसकी इस्राएल आराधना करता है, वह कहते हैं, “मैं बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर को जो मेरा कार्य करता है, बुलाऊँगा, कि अपनी सेना को ले कर मिस्र आ जाए। मैं इन पत्थरों पर उसका सिंहासन स्थापित करूँगा जिन्हें गाड़ने के लिए मैंने यिर्मयाह को कहा था। और नबूकदनेस्सर यह दिखाने के लिए वहाँ अपना तम्बू स्थापित करेगा कि वह मिस्र का राजा बन गया है। +\s5 +\v 11 जब उसकी सेना आती है, तो वे मिस्र पर आक्रमण करेंगे। तब वे जिनके लिए मैंने निर्णय ले लिया है, मर जाएँगे, जिनके लिए मैंने निर्णय लिया है कि तलवारों द्वारा मारे जाएँ वे तलवारों द्वारा मारे जाएँगे। +\v 12 नबूकदनेस्सर के सैनिक मिस्र के देवताओं के मन्दिरों को जला देंगे और उनकी मूर्तियों को स्मृति चिन्ह के रूप में ले जाएँगे। उसकी सेना मिस्र को एक चरवाहे के समान साफ कर देगी, जैसे वह अपने कपड़ों से जूँ साफ करता है और बिना हानि उठाए चली जाएगी। +\v 13 परन्तु वे जाने से पहले, उनके सूर्य देवता के मन्दिर के खम्भे उखाड़ कर फेंक देंगे और मिस्र के झूठे देवताओं के सारे मन्दिरों को जला देंगे।” + +\s5 +\c 44 +\p +\v 1 यह वह सन्देश है जिसे यहोवा ने मुझे यहूदियों के विषय में बताया जो उत्तरी मिस्र में रहते थे-मिग्दोल, तहपन्हेस और नोप में और दक्षिणी मिस्र के पत्रोस के क्षेत्र में: +\v 2 “मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान जिस परमेश्वर की इस्राएल आराधना करता है, कहता हूँ: तुमने उस विपत्ति को देखा जो मैंने यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों में लोगों पर डाली थी। ये नगरों अब नष्ट हो गए हैं और निर्जन हो गये +\v 3 ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके बहुत बुरे होने के कारण मैं उनसे बहुत क्रोधित था। उन्होंने अन्य देवताओं के लिए धूप जलाई और उनकी पूजा की। वे देवता जिन्हें तुम पहले नहीं जानते थे और तुम्हारे पूर्वजों को भी उनके विषय में पता नहीं था। +\s5 +\v 4 कई बार मैंने अपने भविष्यद्वक्ताओं को भेजा जिन्होंने मेरी सेवा की, उनसे कहने के लिए, ‘ऐसे घृणित कार्य न करो जिनसे मैं घृणा करता हूँ!’ +\v 5 परन्तु मेरे लोगों ने जो कुछ मैंने उनसे कहा, उस पर मेरा ध्यान नहीं दिया। वे अपने दुष्ट व्यवहार से दूर नहीं हुए, या अन्य देवताओं की पूजा करने के लिए धूप जलाना बन्द नहीं किया। +\v 6 इसलिए मैंने उन पर अपने बड़े क्रोध के परिणामों को डाला। मेरा दण्ड यरूशलेम की सड़कों पर और यहूदा के अन्य नगरों पर आग के समान गिरा। उसने उन नगरों को नष्ट कर दिया और खाली कर दिया और वे अभी भी वैसे ही हैं। +\p +\s5 +\v 7 इसलिए अब, मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, जिन परमेश्वर की आराधना इस्राएल करता है, तुमसे पूछते हैं: आप इन विपत्तियों का अनुभव क्यों कर रहे हो? तुम समझते क्यों नहीं हो कि तुम जो कर रहे हो, उसके कारण शीघ्र ही तुम में से कोई पुरुष या स्त्री या बच्चे नहीं बचेगा जो यहूदा से मिस्र आया हैं? +\v 8 तुम मुझे क्यों उत्तेजित कर रहे हो और मिस्र में जो मूर्तियों तुमने बनाई हैं उनके लिए धूप जलाने के द्वारा बहुत क्रोधित किया है? यदि तुम ऐसा करते रहोगे, तो तुम स्वयं को नष्ट कर दोगे और तुम स्वयं को ऐसा बना लोगे जिन्हें पृथ्‍वी पर सब जातियाँ श्राप देंगी और तुच्छ जानेंगी। +\s5 +\v 9 क्या तुम भूल गए हो कि मैंने तुम्हारे पूर्वजों को उन दुष्ट कार्यों के लिए दण्ड दिया था, जो उन्होंने किए थे और यहूदा के राजाओं और रानियों को उनके कर्मों का कैसा दण्ड दिया था और तुम्हें और तुम्हारी पत्नियों को भी उन पापों के लिए जो तुमने और यहूदा के अन्य नगरों की सड़कों पर किये थे? +\v 10 इस दिन तक तुमने स्वयं को नम्र नहीं किया है या मुझे सम्मानित नहीं किया है। तुमने उन नियमों और आदेशों का पालन नहीं किया है जिन्हें मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिए थे। +\p +\s5 +\v 11 इस कारण, मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान जिनकी इस्राएल आराधना करता है, कहता हूँ: मैं तुम सबको विपत्तियों में डालूँगा और यहूदा में हर एक का नाश करने का दृढ़ संकल्प लेता हूँ। +\v 12 तुम यहूदा के लोग बच गए जो मिस्र में आने और रहने के लिए दृढ़ थे। तो मैं यहाँ मिस्र में तुम सबको भी नाश करूँगा। तुम में से प्रत्येक जन मर जाएगा, जिसमें महत्वपूर्ण और महत्वहीन दोनों हैं। तुम में से कुछ अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे जाएँगे, कुछ अकाल से मर जाएँगे। तुम ऐसे लोग बन जाओगे जिन्हें दूसरे लोग श्राप देंगे, भयभीत होंगे और उपहास करेंगे। +\s5 +\v 13 मैं तुम्हें यहाँ मिस्र में भी दण्ड दूँगा जैसे मैंने यरूशलेम में दूसरों को दण्ड दिया था, जिनमें से कुछ अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे गए थे और कुछ अकाल या बीमारियों से मर गए थे। +\v 14 तुम में से कोई भी जो यहूदा से आया है और अब मिस्र में रहता है, तुम में से कोई भी मिस्र से बचने के किसी भी प्रयास में सफल नहीं होगा, तुम मिस्र में रहते हुए संख्या में नहीं बढोगे, और तुम सक्षम नहीं होगे कि यहूदा लौट जाओ, भले ही तुम यहूदा लौटने की इच्छा रखते हो, फिर भी तुम वहाँ रहने और अपने घर बनाने के लिए वापस नहीं जा सकोगे। तुम में से कोई भी यहूदा लौटने में सक्षम नहीं होगा, केवल तुम में से बहुत कम लोग बचने और ऐसा करने में सफल होंगे।” +\p +\s5 +\v 15 फिर उन लोगों का एक बड़ा समूह जिन्होंने उत्तरी मिस्र और दक्षिणी मिस्र में रहना आरम्भ किया था, जिसमें सब लोग जानते थे कि उनकी पत्नियाँ अन्य देवताओं के लिए धूप जला रही हैं और वहाँ उपस्थित सब स्त्रियों ने मुझसे कहा: +\v 16 “तू कह रहा है कि यहोवा ने तुझे सन्देश दिए हैं, परन्तु हम तेरे सन्देशों पर ध्यान नहीं देंगे! +\v 17 हम निश्चय ही वह सब कुछ करेंगे जो हमने कहा था कि हम करेंगे। हम स्वर्ग की रानी, हमारी देवी अशेरा की उपासना करने के लिए धूप जलाएँगे और हम उसके लिए दाखमधु चढ़ाएँगे, जैसे हम और हमारे पूर्वजों और हमारे राजाओं और उनके अधिकारियों ने सदा यरूशलेम और अन्य नगरों की सड़कों पर किया है यहूदा के नगरों में उस समय, हमारे पास बहुत सारा भोजन था और हम समृद्ध थे और हमें कोई चिन्ता नहीं थी। +\s5 +\v 18 परन्तु जब से हमने स्वर्ग की रानी को धूप जलाने और दाखमधु की भेंट चढ़ाना बन्द किया, तब से हम पर कई संकट आए और हमारे कुछ लोग हमारे शत्रुओं द्वारा मारे गए या भूख से मर गए।” +\p +\v 19 और स्त्रियों ने कहा, “इसके अतिरिक्त, हमने धूप जलाया और स्वर्ग की रानी को दाखमधु चढ़ाई और हमने उसे चढ़ाने के लिए उसकी मूर्ति के समान आटे के छोटे पुतले भी बनाए। परन्तु हमारे पति निश्चय ही जानते थे कि हम क्या कर रहे थे और उन्होंने इसको स्वीकार किया!” +\p +\s5 +\v 20 तब मैंने उन सब पुरुषों और स्त्रियों से कहा जिन्होंने मुझे उत्तर दिया था, +\v 21 “ऐसा मत सोचो कि यहोवा नहीं जानते थे कि तुम और तुम्हारे पूर्वज, तुम्हारे राजाओं और उनके अधिकारियों और यहूदा के अन्य सब लोग यरूशलेम और यहूदा के अन्य नगरों की सड़कों में मूर्तियों की उपासना करने के लिए धूप जला रहे थे! उन्हें इसके विषय में सब पता था! +\s5 +\v 22 ऐसा इसलिए था क्योंकि यहोवा अब तुम्हारे बुरे कर्मों और घृणित कार्यों को सहन नहीं कर सकते थे, उन्होंने तुम्हारे देश को ऐसा स्थान बना दिया जिसका नाम ले कर लोग किसी को श्राप देते हैं, एक देश जो नष्ट हो गया है और जिसमें कोई नहीं रहता है और तुम्हारा देश अभी भी ऐसा ही है। +\v 23 ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने मूर्तियों की उपासना करने के लिए धूप जलाई और यहोवा के विरुद्ध अन्य पाप किए जिसके कारण तुम पर वे सब विपत्तियाँ आ पड़ी थीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने उनका आज्ञापालन नहीं किया है या उनके नियमों और आदेशों और आज्ञाओं का पालन नहीं किया है।” +\p +\s5 +\v 24 तब यिर्मयाह ने उन सबसे कहा, स्त्रियों से भी, “यहूदा के सब लोग जो मिस्र में हैं, इस सन्देश को यहोवा से सुनें। +\v 25 स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा, जिन परमेश्वर की इस्राएल आराधना करता है, वह पुरुषों से कहते हैं: ‘तुम और तुम्हारी पत्नियों ने कहा है कि तुमने जो प्रतिज्ञा है वही करते रहोगे, कि जिसे तुम स्वर्ग की रानी कहते हो, उस देवी को धूप जलाओगे और दाखमधु डालोगे और तुमने अपने कार्यों से सिद्ध कर दिया है कि तुम्हारे मन में ऐसा करते रहने की इच्छा है। अतः चलो, ऐसा करते रहो, जैसी तुमने प्रतिज्ञा की है।’ +\p +\s5 +\v 26 परन्तु अब, यहूदा के सब लोग जो अब मिस्र में रह रहे हैं, इस सन्देश को यहोवा से सुनें। वह कहते हैं, ‘मैंने अपने महान नाम को ले कर गम्भीर घोषणा की है, कि शीघ्र ही मिस्र में रहने वाले यहूदा के तुम लोगों में से कोई भी मेरा नाम नहीं लेगा। तुम में से कोई भी नहीं होगा, जब तुम गम्भीरता से कुछ करने का प्रतिज्ञा करते हो, तो कभी भी यह कहें कि, “मैं निश्चय ही ऐसा करूँगा जैसे यहोवा जीवित हैं।” +\v 27 क्योंकि मैं देखता रहूँगा कि तुम्हारे साथ कभी अच्छा न हो वरन् तुम्हारा बुरा ही हो, तुम्हारी हानि ही हो। इस समय यहूदा के लोग जो यहाँ मिस्र में है, उनमें से हर एक जन शत्रुओं की तलवारों से या अकाल से मरेगा जब तक कि तुम सब समाप्त नहीं हो जाते हो। +\v 28 तुम में से केवल कुछ तलवार से नहीं मारे जाएँगे और यहूदा लौट पाएँगे। जब ऐसा होगा, तब जो लोग मिस्र आए थे वे जानेंगे कि किसके शब्द सच थे, उनके या मेरे।’ +\p +\s5 +\v 29 और यहोवा यह भी कहते हैं, ‘मैं ऐसा कुछ करूँगा जो तुम्हारे लिए सिद्ध करेगा कि जो कुछ मैंने कहा है वह होगा, और मैं तुम्हें इस स्थान में दण्ड दूँगा। +\v 30 मैं मिस्र के राजा होफरा को उसके शत्रुओं के हाथों पकड़वा दूँगा, जो उसे मारना चाहते हैं, जैसे मैंने यहूदा के राजा सिदकिय्याह को बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के सैनिकों द्वारा पकड़ा था।” + +\s5 +\c 45 +\p +\v 1 राजा योशिय्याह के पुत्र यहोयाकीम के राज्य के लगभग चौथे वर्ष में, नेरिय्याह के पुत्र बारूक ने यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता द्वारा लिखाए गए सब सन्देश लिख लिए थे। यिर्मयाह ने एक सन्देश दिया और उसने कहा, +\v 2 “इस्राएल के परमेश्वर के पास, बारूक, तेरे लिए एक सन्देश है। +\v 3 तू ने कहा है, ‘मेरे साथ भयानक घटनाएँ हो रही हैं! मैंने पहले से ही बहुत कष्ट उठाया है। और अब यहोवा ने मुझे कष्टों के अतिरिक्त, बहुत दुखी होने का कारण भी कर दिया है। मैं अपने कराहने से थक गया हूँ और मैं विश्राम करने में असमर्थ हूँ!’ +\p +\s5 +\v 4 परन्तु बारूक, यहोवा यही कहते हैं: ‘मैं इस देश को जिसे मैंने स्थापित किया है, नष्ट कर दूँगा। यह देश एक पेड़ के समान है जिसे मैंने लगाया और अब मैं इसे जड़ समेत उखाड़ दूँगा। +\v 5 तो, क्या तू चाहता है कि लोग तुझे विशेष सम्मान देने के लिए कार्य करें? ऐसी इच्छा मत रख। यह सच है कि मैं इन सब लोगों पर एक भयानक विपत्ति डालूँगा, परन्तु जहाँ भी तू जाएगा, मैं तेरी रक्षा करूँगा और तू मारा नहीं जाएगा।’” + +\s5 +\c 46 +\p +\v 1 ये वे सन्देश हैं जिन्हें यहोवा ने अन्य राष्ट्रों के विषय में यिर्मयाह को दिए थे। +\p +\v 2 राजा योशिय्याह के पुत्र यहोयाकीम के लगभग चार वर्षों तक यहूदा पर शासन करने के बाद, मिस्र के विषय में यह सन्देश यहोवा ने मुझे दिया। यह तब हुआ जब मिस्र के राजा नको की सेना फरात नदी के किनारे कर्कमीश में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना से पराजित हुई थी। +\p यही वह है जो यहोवा ने कहा: “मिस्र की सेना के अधिकारी अपने सैनिकों से कह रहे हैं, +\q1 +\v 3 ‘अपनी छोटी और बड़ी ढाल तैयार करो +\q2 और युद्ध में लड़ने के लिए बाहर चलो! +\q1 +\v 4 अपने घोड़ों पर काठी कसो, +\q2 और उनकी पीठ पर चढ़ जाओ। +\q1 युद्ध के लिए अपनी स्थिति लो; +\q2 अपना टोप पहनो। +\q1 अपने भाले को तेज करो, +\q2 और अपने कवच पहन लो!’ +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु मैं क्या देखता हूँ? +\q2 मैं देखता हूँ कि मिस्र के सैनिक भयभीत होकर भाग रहे हैं। +\q1 यहाँ तक कि उनके सबसे वीर यौद्धा भी भाग रहे हैं, +\q2 वे मुड़ कर पीछे भी नहीं देखते! +\q1 मैं यहोवा, कहता हूँ कि उनके सैनिक चारों ओर से भयभीत होंगे! +\q1 +\v 6 यहाँ तक कि सबसे तेज दौड़ने वाले भी भागने का प्रयास करेंगे, +\q2 परन्तु उनके योद्धाओं में जो सबसे महान है, वह भी नहीं बचेगा। +\q1 उत्तर में, फरात नदी के किनारे, +\q2 वे लड़खड़ाकर गिर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 7 यह कौन सा समूह है जो भूमि को ढाँक रहा है +\q2 जैसे नील नदी का पानी बाढ़ के समय भूमि को ढाँक लेता है और उसकी लहरें उमड़ती हैं? +\q1 +\v 8 यह मिस्र की सेना है +\q2 जो भूमि को बढ़ती हुई बाढ़ के समान ढाँक रही होगी, +\q1 और वे गर्व करेंगे कि वे पृथ्वी को ढाँक देंगे +\q2 और शहरों को और उन लोगों को नष्ट कर दोगे जो उनमें रहते हैं। +\q1 +\v 9 हे घोड़ों के सवारों, युद्ध करो! +\q2 हे रथों के चालकों, एक पागल व्यक्ति के समान रथ दौड़ाओ! +\q1 हे इथियोपिया और लूबी के योद्धाओं +\q2 जो अपनी-अपनी ढाल उठाते हो, +\q1 लूदिया के योद्धाओं +\q2 जो तीर चलाते हो, +\q1 तुम सब आओ! +\q1 +\s5 +\v 10 परन्तु, तुमको यह जानना होगा कि यह वह दिन है जब मैं, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा, अपने शत्रुओं से बदला लूँगा। +\q1 मेरी तलवार से मैं अपने शत्रुओं को तब तक मारूँगा जब तक कि मैं संतुष्ट न हो जाऊँ; +\q2 मेरी तलवार खून पीने वाले एक राक्षस के समान होगी जो पशुओं को मार कर उनका खून को पीती है जब तक कि वह और प्यासा न हो। +\q1 शत्रु सैनिक जो उत्तर में फरात नदी के तट पर मारे जाएँगे +\q2 वे मेरे लिए स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, प्रभु यहोवा के लिए बलिदान के समान होगा। +\q1 +\s5 +\v 11 तुम मिस्र के निर्दोष लोग, +\q2 दवा प्राप्त करने के लिए गिलाद के क्षेत्र में जाओ; +\q1 परन्तु यह व्यर्थ होगा कि उन सब दवाओं को लो; +\q2 तुम ठीक नहीं होगे। +\q1 +\v 12 अन्य राष्ट्रों में लोग सुनेंगे कि तुमको कैसे अपमानित किया गया है। +\q2 धरती पर लोग तुम्हें विलाप करते सुनेंगे। +\q1 तुम्हारे शक्तिशाली योद्धा एक-दूसरे से ठोकर खाते हैं +\q2 और वे सब एक साथ गिर जाते हैं।” +\p +\s5 +\v 13 तब यहोवा ने राजा नबूकदनेस्सर के विषय में यिर्मयाह को यह सन्देश दिया जब उसने अपनी सेना के साथ मिस्र पर आक्रमण करने की योजना बनाई: +\q1 +\v 14 “सम्पूर्ण मिस्र में इस सन्देश को ऊँचे शब्द में सुनाओ! +\q2 इसे मिग्दोल, नोप और तहपन्हेस के शहरों में भी घोषित कर! +\q1 ‘युद्ध के लिए अपनी स्थिति में हो जाओ; +\q2 अपने आपको बचाने के लिए तैयार हो जाओ, +\q2 क्योंकि तुम्हारे आस-पास हर किसी को मार दिया जाएगा।’ +\q1 +\s5 +\v 15 जिन लोगों की शक्ति पर तुम भरोसा करते हो, वे क्यों गिर गए? +\q1 वे खड़े नहीं हो सकते हैं, +\q2 क्योंकि यहोवा उन्हें मार गिराएँगे। +\q1 +\v 16 अन्य देशों के सैनिक एक-दूसरे से ठोकर खा कर गिरेंगे, +\q2 और फिर वे एक-दूसरे से कहेंगे, +\q1 “आओ उठो और अपने ही लोगों में, अपनी भूमि पर वापस चलो। +\q2 हम अपने शत्रुओं की तलवार से दूर हो जाएँ।” +\q1 +\v 17 मिस्र में वे कहेंगे, +\q2 “मिस्र का राजा जोर से बात करता है, +\q2 परन्तु जब हमारी सेना के पास हमारे शत्रुओं को हराने का अवसर था तब वे असफल हो गए।” +\q1 +\s5 +\v 18 मैं, राजा, जिसे स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान यहोवा कहा जाता है, +\q2 यह कहता हूँ: +\q1 ‘निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, मिस्र की सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना आ रही है। +\q2 वे बहुत ही शक्तिशाली होगी, +\q2 जैसे कि वे ताबोर पर्वत के समान ऊँची, +\q2 या भूमध्य सागर के समीप कर्मेल पर्वत के समान ऊँची। +\q1 +\v 19 तुम सब लोग जो मिस्र में रहते हो, +\q2 अपनी सम्पत्ति बाँधो और निकलने ले लिए तैयार रहो। +\q1 नोप नष्ट हो जाएगा; +\q2 यह खण्डहर हो जाएगा, और कोई भी लोग वहाँ नहीं रहेंगे। +\q1 +\s5 +\v 20 मिस्र एक सुन्दर युवा गाय के समान है, +\q2 परन्तु पूर्वोत्तर से एक शक्तिशाली राजा निश्चय ही आक्रमण करने के लिए आ रहा है +\q2 जैसे एक मक्खी गाय को काटती है। +\q1 +\v 21 मिस्र के किराए पर रखे गए सैनिक मिस्र के पैसे के कारण मोटे बछड़ों के समान हैं; +\q2 परन्तु वे भी मुड़ कर भाग जाते हैं; +\q1 वे वहाँ खड़े रह कर नहीं लड़ेंगे, +\q2 क्योंकि यह एक ऐसा दिन होगा जब मिस्र के लिए एक बड़ी विपत्ति आएगी, +\q2 वह दिन जब उनके लोगों को बहुत दण्ड दिया जाएगा। +\q1 +\v 22 मिस्र के सैनिक भाग जाएँगे, +\q2 जैसे एक साँप चुप चाप से फिसल कर निकलता है। +\q1 शत्रु की सेना आगे बढ़ेगी; +\q2 वे अपनी कुल्हाड़ियाँ लिए हुए आगे बढ़ेंगे +\q2 पेड़ों को काटने वाले पुरुषों के समान। +\q1 +\s5 +\v 23 मैं यहोवा, कहता हूँ कि वे मिस्र के सैनिकों को मार डालेंगे +\q2 जैसे कि वे जंगल से पेड़ों को काट रहे थे, +\q2 क्योंकि शत्रु सैनिक टिड्डियों के झुण्ड के समान असंख्य होंगे। +\q1 +\v 24 मिस्र के लोगों को अपमानित किया जाएगा; +\q2 उन पर पूर्वोत्तर के लोगों द्वारा विजय प्राप्त की जाएगी।’ +\p +\s5 +\v 25 मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, जिस परमेश्वर की आराधना इस्राएली करते हैं, यह कहता हूँ, ‘मैं आमोन को दण्ड दूँगा, जिस देवता की नगर के लोग उपासना करते हैं और मिस्र के अन्य सब देवताओं को दण्ड दूँगा। मैं मिस्र के राजा को और उन सबको जो उस पर भरोसा करते हैं, दण्ड दूँगा। +\v 26 मैं उनको उन लोगों के हाथों पकड़वा दूँगा जो उन्हें मार डालना चाहते हैं—बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर और उसके सेना के अधिकारी। परन्तु कई वर्षों बाद, लोग मिस्र में फिर से रहेंगे। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।’ +\q1 +\s5 +\v 27 परन्तु तुम इस्राएल के लोग जो मेरी सेवा करते हो, +\q2 इस समय निराश मत हो, +\q1 क्योंकि एक दिन मैं तुमको दूर के स्थानों से वापस लाऊँगा; +\q2 मैं तुम्हारे वंशजों को उस देश से लाऊँगा जहाँ उन्हें निर्वासित किया गया था। +\q2 तब तुम इस्राएली लोग फिर से शान्तिपूर्वक और सुरक्षित रहोगे, +\q2 और तुम्हें भयभीत करने के लिए कोई राष्ट्र नहीं होगा। +\q1 +\v 28 मैं यहोवा, तुम इस्राएल के लोगों से कहता हूँ जो मेरी सेवा करते हैं, +\q1 ‘डरो मत, +\q2 क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। +\q1 मैं उन राष्ट्रों को पूरी तरह नष्ट कर दूँगा जिनके बीच मैंने तुम्हें बिखराया है, +\q2 परन्तु मैं पूरी तरह से तुमसे छुटकारा नहीं पाऊँगा। +\q1 मैं तुम्हें दण्ड दूँगा, परन्तु मैं तुम्हें उतना ही दण्ड दूँगा जिसके तुम योग्य हो: +\q2 यदि मैंने तुम्हें बिलकुल दण्ड नहीं दिया तो यह गलत होगा।’ ” + +\s5 +\c 47 +\p +\v 1 यहोवा ने पलिश्ती लोगों के विषय में यिर्मयाह को एक सन्देश दिया। यह सन्देश उस समय दिया गया था जब मिस्र की सेना ने पलिश्तियों के गाजा शहर को जीत लिया था। +\p +\v 2 यहोवा ने यही कहा: +\q1 “पूर्वोत्तर से एक सेना आ रही है +\q2 जो बाढ़ के समान भूमि को ढाँक लेगी। +\q1 वे उस देश को और उसका सब कुछ नष्ट कर देंगे; +\q2 वे लोगों और शहरों को नष्ट कर देंगे। +\q1 लोग सहायता के लिए चिल्लाएँगे; +\q2 और देश में हर कोई शोक में विलाप करेगा। +\q1 +\s5 +\v 3 वे शत्रु के घोड़ों की टापों की आवाज सुनेंगे, +\q2 और वे अपने शत्रुओं के रथों के पहियों की गड़गड़ाहट सुनेंगे। +\q1 पुरुष भाग जाएँगे; +\q2 वे अपने बच्चों की सहायता करने के लिए नहीं रुकेंगे परन्तु +\q2 पूरी तरह से निर्बल और असहाय होगा। +\q1 +\v 4 यह पलिश्त के सब लोगों को नष्ट करने का समय होगा, +\q2 और शेष सैनिकों को सोर और सीदोन के शहरों में रहने वाले लोगों की सहायता करने में सक्षम होने से रोकने का समय। +\q1 मैं, यहोवा, पलिश्त के लोगों को नष्ट कर दूँगा, +\q2 जिनके पूर्वज बहुत पहले क्रेते द्वीप से आए थे। +\q1 +\s5 +\v 5 गाजा के लोग अपमानित होंगे; +\q2 वे अपने सिरों को मुँड़वा लेंगे कि उनकी लज्जा का संकेत हो। +\q1 अश्कलोन शहर के लोग चुप रहेंगे क्योंकि वे शोक करेंगे। +\q1 तुम सब जो भूमध्य सागर के तट पर रहते हो जो अभी भी जीवित हैं, +\q2 तुम कब तक शोक के कारण शरीर को काटते पीटते रहोगे?” +\q1 +\v 6 पलिश्ती के लोग कहते हैं, “हे यहोवा, आप हमारे शत्रुओं से कब कहेंगे कि हमें मारना बन्द करें? +\q2 उन्हें अपनी तलवार म्यान में रखने के लिए कहें और उन्हें वहीं रहने दें!” +\q1 +\v 7 परन्तु उनकी तलवारों के लिए वहाँ रहना सही नहीं होगा, +\q2 क्योंकि यहोवा ने उनके शत्रुओं को आज्ञा दी है कि कुछ और भी करें; +\q1 यहोवा अश्कलोन और समुद्र तट के अन्य शहरों में रहने वाले सब लोगों पर आक्रमण करने के लिए उनसे कहने की इच्छा रखते हैं। + +\s5 +\c 48 +\p +\v 1 यह मोआब के विषय में एक सन्देश है। यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, वह कहते हैं, +\q1 “नबो शहर के लिए भयानक घटनाएँ होंगी; +\q2 वह शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। +\q1 किर्यातैम शहर लज्जित होगा। यह गिर गया है! +\q2 संरक्षित किले नष्ट हो जाएँगे और इसके लोग लज्जित हो जाएँगे। +\q1 +\v 2 कोई भी मोआब के विषय में घमण्ड नहीं करेगा; +\q2 मोआब के शत्रु राजधानी शहर, हेशबोन को नष्ट करने की योजना बनाएँगे। +\q2 वे कहेंगे, ‘आओ, हम मोआब को अब राष्ट्र बना रहने न दें।’ +\q1 तुम भी, मदमेन! तुम भी चुप किए जाओगे; +\q2 शत्रु सेना तुम्हें मारने के लिए तुम्हारा पीछा करेंगी। +\q1 +\s5 +\v 3 होरोनैम के लोगों को चिल्लाते हुए सुनो; +\q2 वे विलाप कर रहे होंगे क्योंकि उनका शहर पूरी तरह नष्ट हो गया है। +\q1 +\v 4 मोआब पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा; +\q2 यहाँ तक कि छोटे बच्चे भी जोर से रोएँगे। +\q1 +\v 5 वे फूट-फूट कर रोएँगे +\q2 जब वे लूहीत पहाड़ी पर चढ़ रहे होंगे। +\q1 अन्य लोग होरोनैम के मार्ग पर विलाप करेंगे। +\q2 वे बहुत दुखी थे क्योंकि उनका शहर पूरी तरह नष्ट हो गया था। +\q1 +\s5 +\v 6 कोई उन्हें कहेगा, ‘भागो! +\q2 रेगिस्तान में छिप जाओ!’ +\q1 +\v 7 परन्तु तुमने उस पर भरोसा किया क्योंकि तुम धनवान और शक्तिशाली थे, कि तुम सुरक्षित रहोगे; +\q2 अतः तुम बन्दी बना लिए जाओगे। +\q1 तुम्हारा देवता कमोश और उसके सब पुजारी और अधिकारी +\q2 दूर के देशों में ले जाए जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 8 मोआब के सब नगर नष्ट हो जाएँगे; +\q2 उनमें से कोई भी नहीं बचेगा। +\q1 घाटियों और पठार पर सब शहर नष्ट हो जाएँगे, +\q2 क्योंकि यहोवा ने कहा है कि ऐसा होगा। +\q1 +\v 9 किसी को मोआब के सब लोगों को भागने में सहायता करनी चाहिए, +\q2 कि उनकी भूमि खाली हो जाए, +\q2 कि कोई भी उसमें रह न सके।” +\q1 +\v 10 यहोवा किसी को भी दण्ड दें जो उत्सुकता से वह नहीं करेगा जो वह चाहते हैं; +\q2 वह मोआब में लोगों को मारने के लिए जो भी अपनी तलवार का उपयोग करने से रुकेगा उस व्यक्ति को यहोवा श्राप दें। +\q1 +\s5 +\v 11 मोआब के लोग सदा सुरक्षित अनुभव करते हैं; +\q2 वे कभी निर्वासित नहीं किए गए हैं। +\q1 वे दाखमधु के समान हैं जो एक अच्छे पात्र में कई दिनों तक हाथ लगाए बिना छोड़ दी गई थी कि उसका स्वाद अच्छा हो जाए, +\q1 अतः अब उसकी सुगन्ध अच्छी है, +\q2 और उसका स्वाद भी अच्छा है। +\q1 +\v 12 परन्तु यहोवा कहते हैं कि ऐसा समय आएगा जब वह शत्रुओं को उस पर आक्रमण करने के लिए भेज देंगे; +\q1 वे मोआब के लोगों को ऐसा नाश करेंगे जैसे लोग भूमि पर दाखमधु डाल देते हैं +\q2 और फिर दाखमधु का पात्र तोड़ देते हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 तब मोआब के लोग अपने देवता कमोश से लज्जित होंगे कि उन्होंने उस पर भरोसा किया था, क्योंकि उससे उनको सहायता नहीं मिली थी, +\q2 जैसे इस्राएली लोग लज्जित थे क्योंकि बेतेल में उनके सोने के बछड़े की मूर्ति चूर-चूर कर दी गई थी। +\q1 +\v 14 मोआब के सैनिकों ने पहले कहा था, “हम योद्धा हैं; +\q2 हम युद्धों में वीरता से लड़े हैं!” +\q1 +\s5 +\v 15 परन्तु अब हमारे राजा, जिन्हें स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यहोवा कहा जाता है, कहते हैं कि मोआब देश और उसके सारे नगर नष्ट हो जाएँगे। +\q2 उनके श्रेष्ठ युवा पुरुषों की हत्या कर दी जाएगी। +\q1 +\v 16 मोआब शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। +\q2 वे शीघ्र ही विपत्तियों से घिर जाएँगे। +\q1 +\v 17 तुम लोग जो मोआब के पास के राष्ट्रों में रहते हो, +\q2 जो जानते हैं कि वह बहुत प्रसिद्ध है, +\q1 तुम्हें मोआब के लिए शोक करना चाहिए, +\q1 और कहना चाहिए, “इसकी भव्य शक्ति पूरी तरह समाप्त हो गई है।” +\q1 +\s5 +\v 18 तुम दीबोन शहर के लोग, सम्मानित होने के कारण गर्व महसूस करते हो, +\q2 धूल में बैठो जहाँ तुम्हें पानी के लिए प्यास लगेगी, +\q1 क्योंकि मोआब में अन्य स्थानों को नष्ट करने वाले लोग तुम्हारे शहर पर आक्रमण करेंगे +\q2 और तुम्हारे किले नष्ट कर देंगे। +\q1 +\v 19 तुम अरोएर शहर के लोग, +\q2 मार्ग पर खड़े हो जाओ और देखो। +\q1 उन पुरुषों और स्त्रियों से चिल्ला कर पूछो, जो मोआब से भाग रहे होंगे, +\q2 “वहाँ क्या हुआ है?” +\q1 +\v 20 वे उत्तर देंगे, +\q2 “मोआब नष्ट हो गया है और हम अपमानित हैं!” +\q1 तो रोओ और विलाप करो। +\q2 आमोन को सुनाओ कि मोआब नष्ट हो गया है। +\q1 +\s5 +\v 21 यहोवा मोआब के नगरों को दण्ड दे रहे हैं जो पठार पर हैं: +\q2 होलोन और यहस और मेपात, +\q2 +\v 22 दीबोन और नबो और बेतदिबलातैम, +\q2 +\v 23 किर्यातैम और बेतगामूल और बेतमोन, +\q2 +\v 24 करिय्योत और बोस्रा। +\q2 वह उन शहरों को दण्ड दे रहे हैं जो एक-दूसरे के निकट हैं और एक दूसरे के निकट के शहरों से दूर हैं। +\q1 +\v 25 यहोवा कहते हैं, “मोआब की शक्ति समाप्त हो जाएगी; +\q2 ऐसा लगता है कि यह एक टूटी हुई भुजा होगी। +\q1 +\s5 +\v 26 तुम मोआब के लोगों ने सोचा कि तुम मुझसे विद्रोह करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली थे; +\q2 तो अब मैं तुम्हें दाखमधु पिये हुए लोगों के समान लड़खड़ा दूँगा। +\q1 तुम मोआब के लोग अपनी ही उल्टी में लौटोगे +\q2 और ठट्ठे के पात्र होगे। +\q1 +\v 27 क्या तुमने इस्राएल के लोगों का उपहास नहीं किया था? +\q1 यद्यपि वे चोर थे, वे कभी पकड़े नहीं गए थे, +\q2 तुमने सिर हिला-हिला कर उनका उपहास किया, +\q1 और उन्हें तुच्छ जाना था? +\q1 +\s5 +\v 28 तुम मोआब में रहने वाले लोग, +\q2 तुम्हें अपने नगरों को खाली करके गुफाओं में जा कर रहना होगा। +\q1 कबूतरों के समान बनना होगा जो गुफाओं के प्रवेश द्वार में अपने घोंसले बनाते हैं।” +\q1 +\v 29 हम सब ने सुना है कि मोआब के लोग बहुत गर्व करते हैं; +\q2 वे बहुत घमण्डी और अभिमानी हैं। +\q1 +\s5 +\v 30 परन्तु यहोवा कहते हैं, “मैं इसके विषय में जानता हूँ, +\q2 परन्तु उनके लिए घमण्ड करना व्यर्थ है +\q2 क्योंकि यह कुछ भी पूरा नहीं करेगा। +\q1 +\v 31 तो अब मैं मोआब के लिए विलाप करूँगा; +\q2 मैं उसके सब लोगों के विषय में रोऊँगा कि वे जीवित रहने के लिए सहायता पा सकें। +\q2 मैं मोआब की पुरानी राजधानी कीरहेरेस शहर के लोगों के लिए भी विलाप करूँगा। +\q1 +\v 32 सिबमा शहर के लोगों, तुम्हारे पास बहुत सी दाख की बारियाँ हैं, और जब वे नष्ट हो जाएँगी तो मैं दुखी होऊँगा। +\q2 ऐसा लगता है कि तुम्हारी दाखलताओं की शाखाएँ मृत सागर में याजेर शहर में फैली हुई हैं, परन्तु मोआब के शत्रु तुम्हारे अँगूर और दाखमधु ले लेंगे! +\q1 +\s5 +\v 33 परन्तु अब मोआब में कोई भी आनन्दित या मगन नहीं होगा; +\q2 गर्मियों में पके हुए तुम्हारे फल और अँगूर शीघ्र ही नष्ट हो जाएँगे। +\q1 दाख के कुंड से अँगूर का रस नहीं आएगा, +\q2 तो कोई दाखमधु नहीं होगी। +\q1 लोग आनन्द से नहीं चिल्लाएँगे +\q2 जब वे अँगूरों को रौंदते हैं; +\q1 लोग चिल्लाएँगे, +\q2 परन्तु वे आनन्द से नहीं। +\q1 +\s5 +\v 34 इसकी अपेक्षा, उनकी चिल्लाहट का स्वर हेशबोन शहर से एलाले शहर और यहस गाँव तक जाएगी, +\q2 सोअर शहर से होरोनैम एग्लत-शलीशिया शहर तक। +\q1 यहाँ तक कि निम्रीम की धारा में पानी सूख जाएगा। +\q1 +\v 35 मैं यहोवा, कहता हूँ कि मैं उन लोगों का नाश कर दूँगा, +\q2 जो अपने देवताओं के लिए धूप जलाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 36 मैं मोआब के लोगों और कीरहेरेस के लिए विलाप करता हूँ +\q2 जैसे किसी ने बाँसुरी पर अंतिम संस्कार का गीत बजाया है, +\q2 क्योंकि उनकी सारी सम्पत्ति लोप हो जाएगी। +\q1 +\v 37 पुरुष अपने सिर और दाढ़ी मुँड़ाएँगे क्योंकि वे शोक कर रहे हैं। +\q2 वे सब अपने हाथों को चीर लेंगे और अपने कमर पर टाट पहनेंगे। +\q1 +\s5 +\v 38 मोआब में हर घर और नगर के बाजारों में लोग शोक करेंगे, +\q2 क्योंकि मैं मोआब को नष्ट कर दूँगा +\q2 जैसे किसी ने एक पुराने पात्र को तोड़ दिया है जिसे कोई भी अब और नहीं चाहता है। +\q1 +\v 39 मोआब पूरी तरह से भय के साथ बिखर जाएगा! +\q2 और तुम लोगों को ऊँचे स्वर से विलाप करते सुनोगे! +\q1 वे अपमानित होंगे। +\q2 मोआब एक ऐसा राष्ट्र बन जाएगा जिसका लोग ठट्ठा करते हैं। +\q1 आस-पास के देशों के लोग इस विषय में डरेंगे कि वहाँ क्या हुआ है। +\p +\s5 +\v 40 यही वह है, जो मैं यहोवा कहता हूँ: +\q1 ‘देखो! मोआब पर उसके शत्रु झपट रहे होंगे +\q2 जैसे उकाब किसी जानवर को घात करने को झपटता है। +\q1 +\v 41 इसके शहरों पर अधिकार कर लिया जाएगा, +\q2 इसके किले ले लिए जाएँगे। +\q1 यहाँ तक कि उनके योद्धा डरेंगे, +\q2 जैसे एक ऐसी स्त्री के समान जो जन्म देने वाली है। +\q1 +\s5 +\v 42 मोआब ने मुझ, यहोवा के सामने घमण्ड किया है, +\q2 तो वह नष्ट हो जाएगा। +\q1 +\v 43 मैं यहोवा, कहता हूँ कि तुम, मोआब के लोग डर जाओगे और गड्ढे और जाल में गिर जाओगे। +\q1 +\v 44 जो डरते हैं और भागने का प्रयास करते हैं वे गहरे गड्ढे में गिर जाएँगे। +\q2 जो कोई भी गड्ढे से निकलता है वह जाल में फँस जाएगा, +\q1 क्योंकि मैंने जो समय नियुक्त किया है, उस समय मैं उन्हें दण्ड दूँगा।’ +\q1 +\s5 +\v 45 लोग हेशबोन शहर तक भाग जाएँगे, +\q2 परन्तु वे आगे नहीं जा पाएँगे, +\q1 क्योंकि हेशबोन में आग जलेगी, +\q2 यह वह शहर है जहाँ राजा सीहोन बहुत पहले रहता था, +\q1 और वह मोआब के सब लोगों को जला देगी +\q2 जिन्होंने शोर करते हुए घमण्ड किया। +\q1 +\s5 +\v 46 तुम मोआब के लोग, भयानक घटनाएँ तुम्हारे साथ घटित होंगी! +\q2 तुम लोग जो आपने देवता कमोश की उपासना करते हो, तुम नष्ट हो जाओगे। +\q1 तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियों को पकड़ा जाएगा और दूसरे देशों में ले जाया जाएगा। +\q1 +\v 47 परन्तु एक दिन, मैं मोआब के लोगों को फिर से उनके देश लौटने में सक्षम करूँगा। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\p यिर्मयाह ने मोआब के विषय में भविष्यद्वाणी की उसका यह अन्त है। + +\s5 +\c 49 +\p +\v 1 यह सन्देश उन लोगों के विषय में है जो अम्मोन के वंशज हैं। यहोवा यह कहते हैं: +\q1 “बहुत सारे इस्राएली लोग चले गए हैं +\q2 कि गाद के गोत्र की भूमि पर अधिकार करें। +\q1 तो, मोलेक की उपासना करने वाले लोग उन शहरों में क्यों रह रहे हैं? +\q1 +\v 2 ऐसा समय आएगा जब मैं युद्ध की पुकार करूँगा +\q2 उनकी राजधानी रब्बा पर आक्रमण करने के लिए। +\q1 फिर यह खण्डहरों का ढेर बन जाएगा, +\q2 और आस-पास के सब शहरों को जला दिया जाएगा। +\q1 तब इस्राएल के लोग फिर से उस देश पर अधिकार कर लेंगे +\q2 जिसे अम्मोनियों ने उनसे ले लिया। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम हेशबोन शहर के लोगों विलाप करो, +\q2 क्योंकि आई शहर नष्ट हो जाएगा। +\q1 रब्बा शहर की स्त्रियों, रोओ; +\q2 टाट के कपड़े पहन कर अपना शोक प्रकट करो; +\q1 शहर की दीवारों के भीतर कोलाहल में आगे पीछे भागो, +\q2 क्योंकि तुमने मोलेक, उसके पुजारियों और अधिकारियों के साथ, निर्वासन में ले जाया जाएगा। +\q1 +\v 4 तुम अपनी अत्याधिक उपजाऊ घाटियों के विषय में घमण्ड करते हो, +\q परन्तु वे शीघ्र ही उजाड़ दी जाएँगी, +\q तुम विद्रोही लोग, तुमने अपनी धन-सम्पत्ति पर भरोसा रखा है +\q और तुमने कहा, “निश्चय ही कोई सेना हम पर आक्रमण नहीं कर पाएगी”, +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु यह सुनो: मैं, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा, +\q2 तुम्हारे लिए भय का कारण उत्पन्न करूँगा +\q1 तुम सबको अपने आस-पास के शत्रुओं के कारण अन्य देशों में भागने के लिए विवश होना पड़ेगा। +\q2 और कोई भी तुम्हें फिर से एक साथ लाने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 +\v 6 परन्तु एक दिन मैं अम्मोनियों को उनके देश लौटने में सक्षम करूँगा। +\q2 यह निश्चय ही होगा, क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\p +\s5 +\v 7 यह सन्देश एदोम के लोगों के विषय में है। यही वह है जो स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा, कहते हैं: +\q1 “ऐसा लगता है कि एदोम के तेमान क्षेत्र में अब कोई भी बुद्धिमान लोग नहीं रहे हैं! +\q2 कोई भी नहीं बचा है जो दूसरों को अच्छी सलाह दे सकता है। +\q2 बुद्धिमान लोग नहीं रहे। +\q1 +\v 8 तुम एदोम के दक्षिण में ददान शहर के लोग, +\q2 मुड़ कर भागो और गहरी गुफाओं में छिप जाओ, +\q1 क्योंकि मैं एदोम के सब लोगों पर विपत्तियाँ लाने वाला हूँ, +\q2 मैं तुम्हें दण्ड दूँगा! +\q1 +\s5 +\v 9 जो अँगूर तोड़ते हैं +\q2 वे सदा ही दाखलताओं पर कुछ छोड़ देते हैं। +\q1 जब चोर रात में आते हैं, +\q2 वे निश्चय ही उतना ही चुराते हैं जितना वे चाहते हैं। +\q1 +\v 10 परन्तु मैं एदोम में सब कुछ नष्ट कर दूँगा, और कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा, +\q2 और लोगों को छिपाने के लिए कोई स्थान नहीं होगा। +\q1 कई बच्चे, उनके सम्बन्धी और पड़ोसी मर जाएँगे, +\q2 और एदोम का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। +\q1 +\v 11 अनाथों को पीछे छोड़ दो क्योंकि मैं उनका ध्यान रखूँगा, +\q2 और विधवाएँ भी सहायता के लिए मुझ पर निर्भर रहेंगी।” +\p +\s5 +\v 12 और यह भी है जो यहोवा कहते हैं: “यदि जो पीड़ितों के योग्य नहीं वे पीड़ित होते हैं, तो तुम एदोम के लोगों को और अधिक भुगतना करना होगा! तुम दण्ड पाने से बच नहीं पाओगे। +\v 13 मैं यहोवा, मैं अपने नाम का उपयोग करके निष्ठापूर्वक प्रतिज्ञा करता हूँ, कि तुम्हारा मुख्य शहर बोस्रा एक ऐसा स्थान बन जाएगा जहाँ लोग भयभीत होंगे। यह खण्डहर का ढेर होगा। लोग इसका उपहास करेंगे और लोगों को श्राप देते समय इसका नाम लेंगे। पास के सब नगरों और गाँवों को सदा के लिए नष्ट कर दिया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 14 मैंने यह सन्देश यहोवा से सुना है: +\q1 “मैंने कई देशों में एक राजदूत भेजा है, +\q2 उनसे कहने के लिए कि एदोम पर आक्रमण करने के लिए इकट्ठा करने के लिए एकजुट हो जाओ। +\q2 उन्हें युद्ध के लिए तैयार होना चाहिए!” +\p +\v 15 और यहोवा एदोम के लोगों से कहते हैं, +\q1 “मैं तुम्हारे देश को अन्य देशों में बहुत ही महत्वहीन बना दूँगा। +\q2 वे सब तुम्हारे देश को तुच्छ मानेंगे। +\q1 +\s5 +\v 16 तुमने अन्य राष्ट्रों के लोगों को भयभीत किया है, +\q2 और तुम बहुत घमण्डी रहे हो, +\q2 परन्तु तुमने स्वयं को धोखा दिया है। +\q1 तुम चट्टानों की गुफाओं में रहते हो; +\q2 तुम सोचते हो कि तुम वहाँ सुरक्षित हो क्योंकि तुम वहाँ ऊँचे पर रहते हो। +\q1 परन्तु तुम अपने घरों को उकाब के घोंसलों जितना ऊँचा ही क्यों न बना लो, +\q2 मैं तुम्हें गिरा कर चकना चूर कर दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 17 एदोम एक ऐसा स्थान हो जाएगा जिसके विषय में लोग भयभीत होंगे; +\q2 उसके पास से निकलने वाले लोग डर कर लम्बी साँसे लेंगे +\q2 जब वे उसका विनाश देखेंगे। +\q1 +\v 18 एदोम पूरी तरह से सदोम और गमोरा के समान नष्ट हो जाएगा और आस-पास के शहरों को बहुत पहले नष्ट कर दिया गया है। +\q2 परिणामस्वरूप, कोई भी नहीं - एक भी व्यक्ति नहीं—जो कभी वहाँ रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 19 मैं एदोम के पास अकस्मात ही आ जाऊँगा जैसे शेर जंगल से निकलता है +\q2 और अच्छे चारागाहों में चर रही भेड़ों पर छलांग लगाता है। +\q1 मैं एदोम के लोगों को शीघ्र ही उनके देश से खदेड़ दूँगा। +\q2 और फिर मैं उनके लिए एक अगुवा नियुक्त करूँगा जिसे मैं चुनूँगा; +\q1 मैं ऐसा कर सकता हूँ क्योंकि मेरे जैसा कोई नहीं है जो मेरे द्वारा किए गए कार्यों पर आपत्ति उठाए। +\q2 कोई शासक मेरा विरोध नहीं कर सकता। +\q1 +\s5 +\v 20 सुनों कि मैंने तेमान और बाकी के एदोम के लोगों के साथ क्या करने की योजना बनाई है: +\q1 यहाँ तक कि छोटे बच्चों को भी घसीट कर ले जाया जाएगा, +\q2 और मैं वहाँ रहने वाले लोगों का सर्वनाश करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 21 जब एदोम नष्ट होगा, तब शोर बहुत बड़ा होगा, +\q2 परिणामस्वरूप पृथ्‍वी हिल जाएगी, +\q1 और लोगों का विलाप लाल सागर तक सुनाई देगा। +\q1 +\v 22 देखो! शत्रु सैनिक बोस्रा पर झपटेंगे +\q2 एक उकाब के समान अपने पंख फैलाते हुए जब वह किसी पशु को पकड़ने के लिए झपटता है। +\q1 उस दिन, एदोम के सबसे शक्तिशाली योद्धा भी डरेंगे +\q2 एक ऐसी स्त्री के समान जो जन्म देने वाली है।” +\p +\s5 +\v 23 यह सन्देश दमिश्क के विषय में है। यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “हमात और अर्पाद के आस-पास के शहरों में लोग लज्जित होंगे, +\q2 क्योंकि उन्होंने दमिश्क के विषय में बुरा समाचार सुना है। +\q1 वे बहुत चिन्तित और व्याकुल हैं, +\q1 जैसे एक बड़े तूफान में समुद्र होता है। +\q1 +\v 24 दमिश्क के लोग बहुत बलहीन हो गए हैं, +\q2 और वे सब भयभीत हो गए और भय में भाग गए। +\q1 लोग पीड़ित हैं और कष्ट में हैं +\q2 जैसा जन्म देने वाली एक स्त्री अनुभव करती है। +\q1 +\v 25 वह प्रसिद्ध शहर जिससे मैं पहले प्रसन्न था, मनुष्यों से रहित हो जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 26 उसके युवा लोग मार्गों में गिरेंगे। +\q2 इसके सैनिक सब एक ही दिन में मारे जाएँगे। +\q1 +\v 27 और मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, दमिश्क के चारों ओर की दीवारों को जलाने के लिए आग लगाऊँगा, +\q2 और राजा बेन्हदद के महलों को जला दिया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 28 यह केदार लोगों और हासोर के राज्य के विषय में एक सन्देश है कि बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर का आक्रमण होने वाला है। यहोवा ने कहा है: +\q1 “मैं एक सेना को केदार पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ाऊँगा +\q2 और यहूदा के पूर्व में रहने वाले लोगों को नष्ट करवा दूँगा। +\q1 +\v 29 शत्रु उनके तम्बू और भेड़-बकरियों को पकड़ लेंगे। +\q2 उनके तम्बुओं के पर्दे, उनके ऊँट, और उनकी सारी धन-सम्पत्ति ले ली जाएगी। +\q1 हर जगह लोग चिल्लाएँगे, +\q2 ‘हम भयभीत हैं क्योंकि हमारे चारों ओर भयानक घटनाएँ हो रही हैं!’ +\q1 +\s5 +\v 30 इसलिए मैं, यहोवा, कहता हूँ, ‘शीघ्र भाग जाओ! +\q2 तुम लोग जो हासोर में रहते हो, जा कर गहरी गुफाओं में छिप जाओ, +\q1 क्योंकि बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर अपनी सेना के साथ तुम पर आक्रमण करना चाहता है; +\q2 वह तुमको नष्ट करने की योजना बना रहा है! +\q1 +\v 31 परन्तु मैं नबूकदनेस्सर से कहता हूँ, +\q1 ‘जा और उस देश पर आक्रमण कर जिनके लोग सुरक्षित अनुभव करते हैं; +\q2 उनके पास ऐसे सहयोगी नहीं हैं जो उनकी सहायता करेंगे और उनके पास सलाखों के फाटकों वाली दीवारें भी नहीं हैं। +\q1 +\s5 +\v 32 तेरे सैनिक उनके ऊँट और अन्य पशुधन ले लेंगे। +\q2 मैं उन लोगों को हर दिशा में तितर-बितर कर दूँगा और वे बड़े शोक में होंगे। +\q1 मैं उन पर हर दिशा से विपत्तियाँ लाऊँगा। +\q1 +\v 33 हासोर एक ऐसा स्थान बन जाएगा जहाँ सियार रहते हैं, +\q2 और यह सदा के लिए त्याग दिया जाएगा। +\q1 कोई भी वहाँ फिर से नहीं रहेगा; +\q2 वहाँ कोई भी नहीं बसेगा।’” +\p +\s5 +\v 34 यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता ने यह सन्देश यहोवा से उस समय प्राप्त किया जब राजा सिदकिय्याह ने यहूदा पर शासन करना आरम्भ किया। +\p +\v 35 यही वह है जो यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, कहते हैं: +\q1 “एलाम के लोग प्रसिद्ध धनुर्धारी हैं; +\q2 इस प्रकार उन्होंने अपने देश को बहुत शक्तिशाली बना दिया है। +\q1 परन्तु मैं उनको नाश कर दूँगा। +\q1 +\v 36 मैं उनके शत्रुओं को हर दिशा से लाऊँगा +\q2 और वे उन सब दिशाओं में ही एलाम के लोगों को तितर-बितर करेंगे। +\q1 एलाम के लोग पृथ्‍वी पर हर देश में निर्वासित हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 37 क्योंकि मैं एलाम के लोगों से बहुत क्रोधित हूँ, +\q2 मैं उनके शत्रुओं को सक्षम करूँगा कि वे एलाम को चकना चूर कर दें; +\q2 मैं एलाम के लोगों पर बड़ी विपत्तियाँ डालूँगा। +\q1 मैं उनके शत्रुओं को प्रेरित करूँगा, जो उन्हें मारना चाहते हैं, कि उनका पीछा करके उन्हें तलवार से मारें +\q2 जब तक कि मैं उनका सर्वनाश न करवा दूँ। +\q1 +\v 38 मैं यहोवा, उनका न्याय करूँगा, +\q2 और फिर मैं उनके राजा और उसके अधिकारियों का नाश कर दूँगा। +\q1 +\v 39 परन्तु एक दिन, मैं एलाम के लोगों को अपनी भूमि पर लौट आने में सक्षम करूँगा। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 50 +\p +\v 1 यहोवा ने यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता को बाबेल और बाबेल देश के विषय में एक सन्देश दिया। +\p +\v 2 यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “सब राष्ट्रों के बीच एक सन्देश की घोषणा कर; +\q2 इसमें से कुछ भी मत छिपा; +\q1 संकेत का झण्डा उठा +\q2 यह घोषणा करने के लिए कि बाबेल पर अधिकार कर लिया जाएगा। +\q1 इसका मुख्य देवता मरोदक, जिसका दूसरा नाम बेल है, पूरी तरह से अपमानित होगा, +\q2 और अन्य सब मूर्तियों और प्रतिमाओं को चकना चूर किया जाएगा। +\q1 +\s5 +\v 3 एक राष्ट्र की सेना उत्तर से आकर बाबेल पर आक्रमण करेगी +\q2 और शहर को पूरा का पूरा नष्ट कर देगी, +\q1 परिणाम यह होगा कि कोई भी वहाँ फिर से नहीं रहेगा। +\q2 लोग और पशु दोनों भाग जाएँगे।” +\q1 +\v 4 “परन्तु मैं, यहोवा, कहता हूँ कि भविष्य में, जब ऐसा होने वाला है, +\q2 इस्राएल के लोग और यहूदा के लोग एक साथ होकर। +\q1 रोएँगे +\q2 और अपने परमेश्वर, मेरी आराधना करना चाहेंगे। +\q1 +\v 5 वे यरूशलेम के मार्गों के विषय में पूछेंगे, +\q2 और फिर वे उसकी ओर यात्रा करना आरम्भ कर देंगे। +\q1 वे एक-दूसरे से कहेंगे, +\q2 ‘हमें यहोवा के पास लौट जाना चाहिए!’ +\q2 वे मेरे साथ एक अनन्त वाचा बाँधेंगे जिसे वे कभी नहीं भूलेंगे। +\q1 +\s5 +\v 6 मेरे लोग खोई हुई भेड़ के समान हैं। +\q2 उनके अगुवों ने उन्हें छोड़ दिया है +\q2 ऐसे चरवाहों के समान जिन्होंने अपनी भेड़ों को पहाड़ियों और पर्वतों में भटकने के लिए छोड़ दिया है। +\q1 मेरे लोग भेड़ों के समान हैं +\q2 जो भेड़शाला लौटने का मार्ग नहीं जानती हैं। +\q1 +\v 7 उनके सब शत्रु जिन्होंने उन्हें पाया उन पर आक्रमण किया। +\q2 उन्होंने कहा, ‘हमने उन पर आक्रमण करके पाप नहीं किया, +\q1 क्योंकि उन्होंने यहोवा के विरुद्ध पाप किया; +\q2 वही तो हैं जो उनकी आवश्यकताएँ पूरी करते हैं; +\q1 वही तो हैं जिनका उन्हें निष्ठावान बने रहना चाहिए था; +\q2 वही तो हैं जिनसे उनके पूर्वजों ने आत्मविश्वास से सहायता करने की आशा बाँधी थी।’ +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु अब, मैं अपने लोगों के अगुवों से कहता हूँ, ‘बाबेल से निकल जाओ! +\q2 बाबेल देश छोड़ दो! +\q1 उन बकरों के समान व्यवहार करो जो झुण्ड के आगे-आगे चलते हैं; +\q2 मेरे लोगों को अपने देश में ले जाने की अगुवाई करो। +\q1 +\v 9 ऐसा करो क्योंकि मैं बाबेल के उत्तर से महान राष्ट्रों की एक सेना एकत्र करने जा रहा हूँ। +\q2 वे बाबेल पर आक्रमण करने के लिए एकजुट होंगी और जीत लेंगी। +\q1 उनके तीर कुशल योद्धाओं के होंगे +\q2 जो सदा अपने लक्ष्य पर मरते हैं। +\q1 +\v 10 बाबेल पर विजय प्राप्त की जाएगी, +\q2 और जो उसे जीतते हैं वे जो कुछ भी चाहते हैं उसे ले जाएँगे। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।’” +\q1 +\s5 +\v 11 “तुम बाबेल के लोगों जिन्होंने मेरे चुने हुए लोगों को लूट लिया, +\q2 इस समय तुम बहुत आनन्दित हो। +\q1 तुम घास के मैदान में एक बछड़े के समान आनन्द से कूदते हो, +\q2 और एक घोड़े के समान आनन्दित हो जब वह हिनहिनाता है। +\q1 +\v 12 परन्तु शीघ्र ही तेरे लोग जीत लिए जाने के कारण बहुत अपमानित होंगे। +\q2 तेरा देश सबसे महत्वहीन देश होगा; +\q2 यह जंगल, शुष्क भूमि और रेगिस्तानी मैदान होगा। +\q1 +\v 13 क्योंकि मैं यहोवा, बाबेल के लोगों से क्रोधित हूँ, +\q2 मैं तुम्हारे शहर को पूरी तरह से निर्जन कर दूँगा। +\q1 जो उसके पास से निकलेंगे वे भयभीत होंगे +\q2 और उसके विनाश के कारण वे लम्बी साँसे लेंगे। +\q1 +\s5 +\v 14 बाबेल के चारों ओर की सब जातियों, तुम +\q2 उस पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाओ! +\q1 अपने धनुर्धारियों से कहो कि उनके शत्रुओं पर तीर चलाएँ; +\q2 उन पर अपने सब तीर चलाओ, एक भी मत रोकना, +\q2 क्योंकि बाबेल के लोगों ने मुझ यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। +\q1 +\v 15 शहर के चारों ओर से बाबेल के लिए युद्ध की ललकार करो। +\q2 बाबेल के सैनिक आत्मसमर्पण करेंगे; +\q2 गुम्मटों और दीवारों को तोड़ दिया जाएगा। +\q1 मैं यहोवा, बाबेल के लोगों से बदला ले रहा हूँ, +\q2 और मैं बदला लेने के लिए तुम्हें कार्य में लूँगा। +\q2 बाबेल के लोगों के साथ वही करो जो उन्होंने दूसरों के साथ किया है! +\q1 +\s5 +\v 16 फसल उगाने वालों को बाबेल से दूर ले जाओ +\q2 और जो उपज काटते हैं उन्हें भी! +\q1 बाबेल पर आक्रमण करने वालों के द्वारा उठाई गई तलवारों के कारण, +\q2 अन्य देशों से बाबेल में आए लोगों को +\q2 सबको भाग जाना चाहिए; उन्हें अपने-अपने देशों में लौट जाना चाहिए।” +\q1 +\s5 +\v 17 “इस्राएली लोग भेड़ों के समान हैं +\q2 जो शेरों द्वारा तितर-बितर कर दी गई हैं। +\q1 पहले अश्शूर के राजा की सेना ने उन्हें पराजित किया। +\q2 तब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने उन्हें चकना चूर कर दिया। +\p +\v 18 इस प्रकार मैं, यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, जिस परमेश्वर की इस्राएली आराधना करते है, कहता हूँ: +\q1 ‘अब मैं बाबेल के राजा और उसके देश के लोगों को दण्ड दूँगा, +\q2 जैसे मैंने अश्शूर के राजा को दण्ड दिया था। +\q1 +\s5 +\v 19 और मैं इस्राएल के लोगों को अपने देश वापस लाऊँगा +\q2 जहाँ वे कर्मेल और बाशान के क्षेत्रों के खेतों में उगने वाली फसल को खाएँगे, +\q1 और एप्रैम और गिलाद के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग जितना चाहेंगे उतना भोजन पाएँगे। +\q1 +\v 20 उस समय, इस्राएल में और यहूदा में ऐसे लोग नहीं होंगे जो पाप करने के अब भी दोषी हैं, +\q2 क्योंकि मैं उन लोगों के छोटे समूह को क्षमा कर दूँगा जिन्हें मैं अब तक जीवित रखूँगा।’” +\q1 +\s5 +\v 21 “इसलिए, मैं यहोवा, बाबेल के शत्रुओं से कहता हूँ, ‘मरातैम के क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर +\q2 और बाबेल के पकोद के क्षेत्र में लोगों पर आक्रमण करो। +\q1 उन्हें मारने के लिए उनका पीछा करो और उनमें से प्रत्येक को पूरी तरह से नाश कर दो, +\q2 जैसा कि मैंने तुम्हें करने का आदेश दिया है। +\q1 +\v 22 पूरे देश में युद्ध की ललकार करो; +\q2 चिल्लाओ जब तुम महान विनाश कर रहे हो। +\q1 +\s5 +\v 23 बाबेल की सेना पृथ्‍वी पर सबसे शक्तिशाली हथौड़े के समान है, +\q2 परन्तु वह पूरी तरह से बिखर जाएगा। +\q1 बाबेल अन्य राष्ट्रों में भाग जाएगा।’ +\q1 +\v 24 बाबेल के लोगों, सुनो, +\q2 क्योंकि मैंने तुम्हारे जाने बिना तुम्हारे लिए फन्दा लगाया है; +\q1 तुम उस फन्दे में पकड़े जाओगे, +\q2 क्योंकि तुमने मेरे विरुद्ध युद्ध किया था। +\q1 +\s5 +\v 25 ऐसा लगता है कि मैंने वह स्थान खोला है जहाँ मैं हथियारों को संग्रहित करता हूँ, +\q2 और मैंने सब हथियार निकाल लिए हैं +\q2 उन लोगों के विरुद्ध उपयोग करने के लिए जिनके साथ मैं क्रोधित हूँ। +\q1 मुझ, यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान के पास करने के लिए बहुत कार्य है, +\q2 बाबेल के लोगों को दण्ड देने के लिए। +\q1 +\v 26 अतः, तुम बाबेल के शत्रु, दूर के देशों से आओ और उस पर आक्रमण करो। +\q2 उन स्थानों को तोड़ कर खोल दो जहाँ वे अनाज एकत्र करते हैं, +\q2 और मलबे का ऐसा ढेर लगा दो जैसे अनाज का ढेर। +\q1 सब कुछ पूरी तरह से नष्ट कर दो; +\q2 ऐसा कुछ न छोड़ो जो नष्ट नहीं किया गया है। +\q1 +\s5 +\v 27 उन सब युवा योद्धाओं को नष्ट करो जो बैल के समान शक्तिशाली हैं; +\q2 उन्हें वहाँ ले जाओ जहाँ तुम उन्हें मार दोगे। +\q1 यह उनके लिए भयानक होगा, +\q2 क्योंकि वह उनके दण्ड का समय होगा। +\q1 +\v 28 उन लोगों को सुनो जो भाग गए हैं और बाबेल से बच निकले हैं +\q2 जब वे यरूशलेम में बताते हैं कि मैं, यहोवा ने उन लोगों से बदला लिया है जिन्होंने यरूशलेम में मेरा भवन नष्ट किया था। +\q1 +\s5 +\v 29 बाबेल पर आक्रमण करने के लिए धनुर्धारियों को बुलाओ; +\q2 शहर को घेर लो +\q2 कि कोई भी बच कर न जाए। +\q1 बाबेल के लोगों के साथ वही करो जो उन्होंने दूसरों के साथ किया है, +\q2 क्योंकि उन्होंने मुझे, इस्राएली लोगों के पवित्र को अपमानित किया है। +\q1 +\v 30 बाबेल के युवा लोग सड़कों पर गिरेंगे; +\q2 उनके सब सैनिक एक दिन में मारे जाएँगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि मैंने, यहोवा ने इसे घोषित कर दिया है! +\q1 +\s5 +\v 31 मैं, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यहोवा, यह कहता हूँ: +\q2 ‘तुम अभिमानी लोगों, +\q1 अब समय आ गया है; +\q2 यह वह दिन है जब मैं तुम्हें दण्ड दूँगा। +\q1 +\v 32 तुम्हारा देश घमण्डियों से भरा है, +\q2 परन्तु तुम ठोकर खा कर गिरोगे, +\q1 और कोई भी तुम्हें फिर से नहीं उठाएगा। +\q1 मैं बाबेल के शहरों में आग लगा दूँगा +\q2 जो आस-पास की हर वस्तु को जला देगी।’ +\p +\s5 +\v 33 मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं का प्रधान, यह भी कहता हूँ: +\q1 ‘इस्राएल और यहूदा के लोगों का दमन किया गया था; +\q2 जिन्होंने उन्हें पकड़ लिया उन्होंने उन्हें सावधानी से चौकसी में रखा और उन्हें बाबेल छोड़ने की अनुमति नहीं दी। +\q1 +\v 34 परन्तु यहोवा शक्तिशाली हैं, और वह उन्हें मुक्त कर देंगे। +\q2 यहोवा स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान हैं; +\q1 वह अपने लोगों की रक्षा करेंगे +\q2 और उन्हें अपनी भूमि पर लौटने में सक्षम करते हैं जहाँ उन्हें शान्ति मिलेगी, +\q1 परन्तु बाबेल के लोगों को शान्ति नहीं मिलेगी। +\q1 +\s5 +\v 35 वह बाबेल के लोगों पर आक्रमण करने के लिए तलवार चलाने वाले शत्रु सैनिक भेजेंगे; +\q2 वे अधिकारियों और बुद्धिमान पुरुषों पर आक्रमण करेंगे +\q2 और बाबेल में रहने वाले अन्य सब लोगों पर। +\q1 +\v 36 वे उनके झूठे भविष्यद्वक्ताओं को तलवार से मार देंगे +\q2 और वे मूर्ख बन जाएँगे। +\q1 वे बाबेल के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं पर आक्रमण करेंगे, +\q2 और वे सब डर जाएँगे। +\q1 +\v 37 वे उनके घोड़ों और रथों पर आक्रमण करेंगे +\q2 और भाड़े के विदेशी सैनिक जो बाबेल की सेना में हैं, +\q2 और वे सब स्त्रियों के समान निर्बल हो जाएँगे। +\q1 वे बाबेल में सब मूल्यवान वस्तुएँ ले लेंगे +\q2 और उन्हें दूर ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 38 यहोवा धाराओं को शुष्क कर देंगे। +\q1 वह उन सब कार्यों को करेंगे क्योंकि बाबेल देश मूर्तियों से भरा है, +\q2 और उन भयानक मूर्तियों ने उन लोगों को जो उनकी उपासना करते हैं उन्हें बुद्धिहीन कर दिया है। +\q1 +\v 39 शीघ्र ही वहाँ केवल सियार और अन्य जंगली पशु रहेंगे; +\q2 और वह एक ऐसा स्थान होगा जहाँ शुतुर्मुर्ग रहते हैं। +\q1 लोग वहाँ कभी नहीं रहेंगे; +\q2 वह मनुष्यों के निवास योग्य कभी नहीं रहेगा। +\q1 +\v 40 यहोवा परमेश्वर बाबेल को नष्ट कर देंगे जैसे उन्होंने सदोम और गमोरा और आस-पास के नगरों को नष्ट कर दिया; +\q2 कोई भी वहाँ कभी नहीं रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 41 देखो! उत्तर से एक बड़ी सेना आएगी। +\q2 बाबेल के लोगों तुम पर आक्रमण करने के लिए कई राजाओं के साथ बहुत दूर से एक महान राष्ट्र हमले की तैयारी कर रहा है। +\q1 +\v 42 उनकी सेना के पास धनुष और तीर और भाले हैं; +\q2 वे बहुत क्रूर हैं, और किसी पर दया नहीं करते हैं। +\q1 जब वे अपने घोड़ों पर सवारी करते हैं, +\q2 घोड़ों की टापों की आवाज समुद्र की लहरों की गर्जन के समान है; +\q1 वे युद्ध गठन में सवारी कर रहे हैं +\q2 तुम पर आक्रमण करने के लिए, तुम बाबेल के लोगों पर। +\q1 +\s5 +\v 43 बाबेल के राजा ने उनका समाचार सुना, +\q1 “शत्रु आ रहा है।” +\q2 तो वह डर गया और निर्बल हो गया। +\q1 डर और पीड़ा ने उसे पकड़ लिया, +\q2 एक ऐसी स्त्री के समान जो बच्चे को जन्म दे रही है।” +\q1 +\s5 +\v 44 मैं यहोवा, बाबेल के पास आऊँगा जैसे शेर जंगल से निकलता है +\q2 और अच्छे चारागाह खाने में चरने वाली भेड़ों पर छलांग लगाता है। +\q1 मैं शीघ्र ही उनके देश से बाबेल के लोगों का पीछा करूँगा। +\q2 और फिर मैं उनके लिए एक अगुवा नियुक्त करूँगा जिसे मैं चुनूँगा; +\q1 मैं ऐसा करूँगा क्योंकि मेरे जैसा कोई नहीं है जो कह सकता है कि मैंने जो किया है वह सही नहीं है। +\q2 कोई शासक मेरा विरोध नहीं कर सकता। +\q1 +\s5 +\v 45 सुनों कि मैंने बाबेल शहर और शेष बाबेल के लोगों के साथ क्या करने की योजना बनाई है: +\q1 यहाँ तक कि छोटे बच्चों को भी घसीटा जाएगा, +\q2 और मैं वहाँ रहने वाले लोगों को पूरी तरह नष्ट कर दूँगा। +\q1 +\v 46 जब बाबेल नष्ट हो जाए, तो शोर बहुत जोर का होगा, +\q2 परिणाम यह होगा कि पृथ्‍वी हिल जाएगी, +\q1 और लोगों की चिल्लाहट अन्य राष्ट्रों के लोगों द्वारा सुनाई जाएगी।’” + +\s5 +\c 51 +\p +\v 1 यहोवा यही कहते हैं: +\q1 “मैं एक शक्तिशाली हवा के समान बाबेल को नष्ट करने के लिए एक सेना को प्रेरित करूँगा, +\q2 और लेबकामै में बाबेल के लोगों को भी नष्ट करने के लिए। +\q1 +\v 2 मैं बाबेल को नष्ट करने के लिए एक विदेशी सेना भेजूँगा +\q2 एक तेज हवा के समान जो भूसी को उड़ाती है। +\q1 विपत्ति के उस दिन +\q2 वे हर दिशा से आक्रमण करेंगे +\q1 +\s5 +\v 3 मैं उनसे कहूँगा, ‘बाबेल के धनुर्धारियों को अपने कवच पहनने या धनुष पर तीर चढ़ाने का समय न दे। +\q1 बाबेल के युवाओं को मत छोड़ो। +\q2 उनकी सेना को पूरी तरह से नष्ट कर दो।’ +\q1 +\v 4 बाबेल में उनके सैनिक मर जाएँगे; +\q2 सड़कों पर भालों से छेदे जाने के बाद वे मर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 5 मुझ यहोवा ने जो स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, जिनकी आराधना इस्राएल करता है, इस्राएल और यहूदा को त्याग नहीं दिया है। +\q2 भले ही उनका देश उन लोगों से भरा था जो इस्राएल के पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते थे, +\q2 मैं अब भी उनका परमेश्वर हूँ। +\q1 +\v 6 तुम इस्राएल और यहूदा के लोगों बाबेल से भाग जाओ! +\q2 बचने के लिए भागो! +\q1 वहाँ मत रहो कि जब बाबेल के लोगों को दण्ड दिया जाए तो मारे न जाओ! +\q1 वह समय होगा जब यहोवा बदला लेंगे; +\q2 वह उन लोगों के साथ वैसा ही करेंगे जिसके वे योग्य हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 बाबेल यहोवा के हाथ में एक सोने का कटोरा है, ऐसा कटोरा जो दाखमधु से भरा हुआ है +\q2 जिसने पूरे पृथ्‍वी पर लोगों को नशे में कर दिया जिन्होंने उसमें से थोड़ा भी पिया। +\q1 ऐसा लगता है कि राष्ट्रों के शासकों ने बाबेल से दाखमधु पी ली, +\q2 और यह उनके पागल बनने का कारण हो गया। +\q1 +\v 8 परन्तु बाबेल पर अकस्मात ही विजय प्राप्त की जाएगी। +\q2 अपने लोगों के लिए रोओ! +\q1 उन्हें उनके घावों के लिए दवा दो; +\q2 संभव है कि वे ठीक हो जाएँ।” +\q1 +\s5 +\v 9 हम विदेशियों ने उन्हें ठीक करने का प्रयास किया, +\q2 परन्तु अब वे ठीक नहीं हो सकते हैं। +\q1 तो हम उनकी सहायता करने का प्रयास नहीं करेंगे; हम उन्हें छोड़ देंगे, +\q2 और अपने देशों में लौट आएँगे, +\q1 क्योंकि ऐसा लगता है कि वे जो दण्ड भोग रहे हैं वह आकाश में बादलों तक पहुँचता है; +\q2 यह बहुत अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी इसका आँकलन नहीं कर सकता है। +\q1 +\v 10 यहोवा ने हमें निर्दोष ठहराया है; +\q2 इसलिए आओ हम यरूशलेम में हमारे परमेश्वर यहोवा के उन सब कार्यों का प्रचार करें जो उन्होंने हमारे लिए किया है। +\q1 +\s5 +\v 11 तुम शत्रु के सैनिकों, अपने तीरों को पैना करो! +\q2 युद्ध के लिए अपने तरकशों को भर लो, +\q1 क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे मादी और फारस के राजाओं को उकसाया है कि सेना ले कर बाबेल पर चढ़ाई करें और उसे नष्ट कर दें। +\q2 इसी प्रकार यहोवा उन विदेशियों से इसी प्रकार बदला लेंगे जिन्होंने यरूशलेम में उनके भवन में प्रवेश करके उसे अशुद्ध कर दिया था। +\q1 +\v 12 बाबेल की दीवारों के निकट युद्ध का झण्डा फहराओ! +\q2 चौकसी करने वालों की संख्या बढ़ाकर दृढ़ बनों, +\q1 और पहरेदारों को अपनी स्थिति में खड़े होने के लिए कहो! +\q1 अकस्मात आक्रमण करने की तैयारी करो, +\q2 क्योंकि यहोवा बाबेल के लोगों के साथ जो कुछ भी करने की योजना बना रहे हैं, उसे पूरा करने वाले हैं। +\q1 +\s5 +\v 13 बाबेल महान फरात नदी के पास एक शहर है, +\q2 एक शहर जिसमें कई समृद्ध लोग हैं, +\q1 परन्तु बाबेल के अन्त होने का समय है; +\q2 शहर के अस्तित्व का समय समाप्त हो गया है। +\q1 +\v 14 मैं यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान ने अपने नाम का उपयोग करके, निष्ठापूर्वक प्रतिज्ञा की है, +\q1 “तुम्हारे शहर शत्रुओं से भरे जाएँगे; +\q2 मैं उन्हें टिड्डियों के झुण्ड के समान करूँगा; +\q2 और जब वे तुम्हारे शहर को जीतते हैं तो वे विजयी नारा लगाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 15 यहोवा ने अपनी शक्ति से पृथ्‍वी बनाई; +\q2 उन्होंने इसे अपनी बुद्धि से स्थापित किया, +\q2 और उन्होंने अपनी समझ से आकाश को फैलाया। +\q1 +\v 16 जब वह जोर से बोलते हैं, तब आकाश में गर्जन होता है; +\q2 वह बादलों को पृथ्‍वी के हर भाग में बनाने का कारण बनता है। +\q1 वह वर्षा के साथ बिजली भेजते हैं +\q2 और हवाओं को अपने भण्डारगृहों से मुक्त करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 17 लोग एक पशु के समान मूर्ख हैं, और वे बहुत कम जानते हैं; +\q1 जो मूर्तियाँ बनाते हैं वे सदा निराश होते हैं, +\q2 क्योंकि उनकी मूर्तियाँ उनके लिए कुछ भी नहीं करती हैं। +\q1 वे जो मूर्तियाँ बनाते हैं वे वास्तविक परमेश्वर नहीं हैं; +\q2 वे निर्जीव हैं। +\q1 +\v 18 मूर्तियाँ निकम्मी हैं; वे उपहास करने के योग्य हैं; +\q2 एक ऐसा समय होगा जब वे सब नष्ट हो जाएँगी। +\q1 +\v 19 परन्तु इस्राएल के परमेश्वर उन मूर्तियों के समान नहीं है; +\q2 वह हैं जिन्होंने सब कुछ बनाया है; +\q1 हम, इस्राएल के गोत्र, उनके हैं; +\q2 उनका नाम यहोवा है, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान। +\q1 +\s5 +\v 20 यहोवा बाबेल की सेना के विषय में कहते हैं, +\q1 “तुम मेरे युद्ध के हथियारों और मेरे युद्ध के योद्धाओं के समान हो; +\q1 तेरी शक्ति से मैं राष्ट्रों को चकना चूर कर देता हूँ +\q2 और कई साम्राज्यों को नष्ट कर देता हूँ। +\q1 +\v 21 तेरी शक्ति से मैं अन्य राष्ट्रों की सेनाओं को बिखरा देता हूँ: +\q2 मैं उनके घोड़ों और उनके सवारों, उनके रथों और उनके रथ चालकों को नष्ट कर देता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 22 तेरी शक्ति से मैं पुरुषों और स्त्रियों को टुकड़े-टुकड़े कर देता हूँ, +\q2 बूढ़े लोग और बच्चे, +\q2 युवा पुरुषों और युवा स्त्रियों। +\q1 +\v 23 तेरी शक्ति से मैं चरवाहों और उनके भेड़ों के झुण्ड को तोड़ देता हूँ, +\q2 किसानों और उनके बैलों, +\q2 राज्यपाल और उनके अधिकारियों को भी।” +\p +\s5 +\v 24 परन्तु यहोवा यह भी कहते हैं, +\q1 “शीघ्र ही मैं तुम बाबेल के लोगों को और शेष बाबेल के लोगों को +\q2 यरूशलेम में किए गए तुम्हारे बुरे कार्यों का बदला दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 25 बाबेल एक महान पर्वत के समान है +\q2 जहाँ से डाकू पूरी पृथ्‍वी पर लोगों को लूटने के लिए आते हैं। +\q1 परन्तु मैं, हे यहोवा, बाबेल के लोगों का शत्रु हूँ। +\q2 मैं तुम्हें मारने के लिए अपना हाथ उठाऊँगा। +\q1 मैं तुम्हें चट्टानों से नीचे गिराऊँगा +\q2 और तुम्हें जले हुए मलबे का केवल एक बड़ा ढेर बना दूँगा। +\q1 +\v 26 तुम्हारा शहर सदा के लिए त्याग दिया जाएगा; +\q2 यहाँ तक कि तुम्हारे शहर के पत्थरों का फिर से भवनों के लिए उपयोग नहीं किया जाएगा। +\q2 तुम्हारा शहर पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।” +\q1 +\s5 +\v 27 राष्ट्रों से कहो कि युद्ध का झण्डा फहराएँ! +\q2 उन्हें युद्ध के लिए अपनी तुरही फूँकने के लिए कहो! +\q1 बाबेल के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अपनी सारी सेनाओं को एकत्र करो! +\q2 राष्ट्रों को बाबेल पर आक्रमण करने के लिए तैयार करें। +\q2 बाबेल के उत्तर से साम्राज्यों की सेनाओं को बुलाओ—अरारात, मिन्नी और अश्कनज से। +\q1 उनके लिए एक सेनापति नियुक्त करो, +\q1 और घोड़ों की एक बड़ी संख्या लाओ; +\q2 घोड़ों की एक बड़ी संख्या होनी चाहिए; वह विशाल संख्या टिड्डियों के झुण्ड के समान होगी। +\q1 +\v 28 अन्य राष्ट्रों की सेनाएँ तैयार करें, +\q2 सेनाओं का नेतृत्व मादी और फारस के राजाओं द्वारा किया जाएगा, +\q2 उनके राज्यपाल और उनके अधिकारी। +\q1 +\s5 +\v 29 जब वे बाबेल पर आक्रमण करते हैं, तो ऐसा होगा जैसे पृथ्‍वी हिलेगी और पीड़ा से लौटेगी, +\q2 क्योंकि सेनाएँ सब कुछ पूरा करेंगी जिसकी यहोवा ने बाबेल के लिए करने की योजना बनाई है। +\q1 उसका सर्वनाश करने की, +\q2 परिणाम यह होगा कि कोई भी वहाँ फिर से नहीं रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 30 जब उनके शत्रु आक्रमण करते हैं, तब बाबेल के सबसे शक्तिशाली योद्धा लड़ेंगे नहीं। +\q2 वे बिना किसी शक्ति के अपने बेड़ों में ही रहेंगे। +\q1 वे स्त्रियों के समान कायर होंगे। +\q2 शत्रु सैनिक शहर में इमारतों को जला देंगे +\q1 और शहर के द्वार के टुकड़ों को टुकड़ों में तोड़ देंगे। +\q1 +\v 31 सन्देशवाहक शीघ्रता से चले जाएँगे, एक के बाद एक, +\q2 राजा को बताने के लिए कि उसका शहर जीत लिया गया है। +\q1 +\v 32 जिन स्थानों पर लोग शहर से बचने के लिए नदी पार कर सकते हैं उन्हें रोक दिया जाएगा। +\q2 दलदल में शुष्क सरकण्डों में आग लगा दी जाएगी, +\q2 और बाबेल के सैनिक भयभीत होंगे। +\p +\s5 +\v 33 यह वही है जो यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, जिनकी इस्राएल आराधना करता है, कहते हैं; +\q1 “बाबेल भूमि पर गेहूँ के समान है जहाँ उसकी दाँवनी की जाएगी +\q2 पशुओं द्वारा रौंद कर। +\q2 अति शीघ्र उनके शत्रु बाबेल के शहर को रौंदेंगे।” +\q1 +\s5 +\v 34 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने आक्रमण किया और हम इस्राएलियों को कुचल दिया, +\q2 और हम में कोई सामर्थ्य नहीं है। +\q1 ऐसा लगता है कि उन्होंने हमें एक महान राक्षस के समान निगल लिया है +\q2 जो अपने पेट को हमारे सब स्वादिष्ट भागों से भर देता है, +\q2 और उसके बाद जो उसे अच्छा नहीं लगता, उसे उगल दिया। +\q1 +\v 35 इसलिए यरूशलेम के लोग यहोवा से कहते हैं, +\q1 “बाबेल के लोगों को पीड़ित करें +\q2 जैसे उन्होंने हमें पीड़ित किया! +\q1 हमारे लोगों की हत्या के लिए बाबेल के लोगों को दण्ड भोगने दें।” +\p +\s5 +\v 36 और यहोवा यरूशलेम के लोगों से यही उत्तर देते हैं: +\q1 “मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हारा मुकद्दमा लड़ूँगा, +\q2 और मैं तुम्हारा बदला लूँगा। +\q1 मैं बाबेल की नदी को सुखा दूँगा +\q2 और पानी के सब सोतों को भी। +\q1 +\v 37 बाबेल खण्डहरों का ढेर बन जाएगा, +\q2 एक ऐसा स्थान जहाँ सियार रहते हैं। +\q1 यह एक ऐसा स्थान बन जाएगा जिससे लोग भयभीत होंगे और उपहास करेंगे; +\q2 यह एक ऐसा स्थान होगा जहाँ कोई भी नहीं रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 38 बाबेल के लोग सब शेर के समान गरजेंगे; +\q2 वे शेरों के बच्चों के समान गुर्राएँगे। +\q1 +\v 39 परन्तु जब वे बहुत भूखे होंगे, +\q2 मैं उनके लिए एक अलग प्रकार की दावत तैयार करूँगा। +\q1 मैं उन्हें दाखमधु पिलाऊँगा जब तक वे बहुत नशे में न हो जाएँ, +\q2 परिणाम यह होगा कि वे सो जाएँगे। +\q1 परन्तु वे नींद से कभी जाग नहीं पाएँगे! +\q1 +\v 40 मैं उन्हें ऐसे स्थान पर लाऊँगा जहाँ उन्हें वध किया जाएगा, +\q2 जैसे कोई भेड़ के बच्चे या भेड़ या बकरी को बलि करने के लिए वध करने के स्थान में ले जाता है। +\q1 +\s5 +\v 41 सारी धरती पर लोग अब बाबेल का सम्मान करते हैं; +\q2 वे कहते हैं कि यह एक महान शहर है। +\q1 परन्तु वह एक ऐसा स्थान बन जाएगा जिसके विषय में सब राष्ट्रों के लोग भयभीत हैं। +\q1 +\v 42 बाबेल के शत्रु समुद्र की विशाल लहरों के समान शहर को ढकेंगे। +\q1 +\s5 +\v 43 बाबेल के नगर भयानक, शुष्क और रेगिस्तानी मैदान होंगे, +\q2 और यह एक ऐसी भूमि होगी जिसमें कोई भी नहीं रहता है +\q2 और कोई भी नहीं चलता है। +\q1 +\v 44 और मैं बेल को दण्ड दूँगा, वह देवता जिसकी बाबेल के लोग पूजा करते हैं, +\q2 और मैं लोगों को उन्होंने जो कुछ चोरी किया है उसे वापस देने के लिए विवश कर दूँगा। +\q1 अन्य राष्ट्रों के लोग बेल की पूजा करने के लिए नहीं आएँगे। +\q2 और बाबेल की दीवारें गिर जाएगी।” +\q1 +\s5 +\v 45 यहोवा यह भी कहते हैं, “मेरे लोग, बाबेल से निकल जाओ! +\q2 बचने के लिए भागो! +\q2 भागो, क्योंकि मैं, यहोवा, बाबेल के लोगों से बहुत क्रोधित हूँ, और मैं उनका नाश करूँगा! +\q1 +\v 46 निराश न हों और डरो मत +\q2 जब तुम समाचार सुनते हो की बाबेल में क्या हो रहा है। +\q1 लोग ऐसी झूठी बातें प्रतिवर्ष सुनाएँगे, +\q2 देश में हिंसक बातों के विषय में अफवाहें, +\q2 और एक दूसरे के विरुद्ध लड़ने वाले अगुवों के विषय में अफवाहें। +\q1 +\s5 +\v 47 परन्तु शीघ्र ही मेरे लिए बाबेल में नक्काशीदार मूर्तियों से छुटकारा पाने का समय होगा। +\q1 पराजित होने के कारण पूरे देश में लोग लज्जित होंगे, +\q2 और उनके सैनिकों के शव सड़कों पर पड़े रहेंगे। +\q1 +\v 48 तब स्वर्ग में सब स्वर्गदूत और पृथ्‍वी पर सब लोग आनन्दित होंगे, +\q2 क्योंकि उत्तर से सेनाएँ आएँगी जो बाबेल को नष्ट कर देगी। +\q1 +\v 49 जैसे बाबेल के सैनिकों ने इस्राएल के लोगों को मार डाला +\q2 और संसार भर में दूसरों को भी मार डाला, +\q2 बाबेल के लोगों को भी मार डाला जाना चाहिए। +\q1 +\s5 +\v 50 तुम इस्राएली लोग जो मारे नहीं गए, बाबेल से निकल जाओ! +\q2 प्रतीक्षा न करो! +\q1 भले ही आप इस्राएल से दूर एक भूमि में हैं, +\q2 यहोवा के विषय में सोचो और यरूशलेम के विषय में सोचो!” +\q1 +\v 51 इस्राएली लोग कहते हैं, +\q2 “हम लज्जित हैं। +\q1 हम पूरी तरह से अपमानित हैं, +\q2 क्योंकि विदेशियों ने यहोवा के भवन में प्रवेश किया है और इसे अशुद्ध कर दिया है।” +\q1 +\s5 +\v 52 यहोवा ने उत्तर दिया, “यह सच है, परन्तु शीघ्र ही ऐसा समय होगा जब मैं बाबेल में नक्काशीदार मूर्तियों को नष्ट कर दूँगा, +\q2 और पूरे बाबेल में घायल लोग होंगे जो चिल्लाएँगे। +\q1 +\v 53 भले ही बाबेल के चारों ओर की दीवारें आकाश तक ऊँची हों, +\q2 और यदि इसकी दीवारें अत्याधिक दृढ़ है, +\q1 मैं सेनाएँ भेजूँगा जो शहर को नष्ट कर देंगे। +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा ने यह कहा है।” +\q1 +\s5 +\v 54 बाबेल के लोगों को सहायता के लिए चिल्लाते हुए सुनो! +\q2 और बाबेल में नष्ट होने वाली वस्तुओं की आवाज सुनो! +\q1 +\v 55 यहोवा बाबेल को नष्ट कर देंगे। +\q2 वह शहर में कोलाहल को शान्त कर देंगे। +\q1 +\v 56 शत्रु सेना एक महान लहर के समान शहर के विरुद्ध उछल जाएगा। +\q2 वे शहर के शक्तिशाली सैनिकों को पकड़ लेंगे +\q2 और उनके हथियार तोड़ो। +\q1 ऐसा होगा क्योंकि यहोवा एक ऐसे ईश्वर है जो अपने शत्रुओं को न्यायसंगत दण्डित करते है; +\q2 वह उन्हें दण्ड देंगे क्योंकि वे योग्य हैं। +\p +\s5 +\v 57 यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, कहते हैं, +\q1 “मैं शहर के अधिकारियों और बुद्धिमान पुरुषों, सेना के प्रधानों और सैनिकों को नशे में हो जाने का कारण उत्पन्न करूँगा। +\q2 वे सो जाएँगे, +\q2 परन्तु वे फिर कभी जाग नहीं पाएँगे।” +\p +\v 58 यहोवा, स्वर्गदूतों की सेनाओं के प्रधान, यह भी कहते हैं, +\q1 “बाबेल के चारों ओर की मोटी दीवारें भूमि पर चपेट में आ जाएँगी। +\q2 शहर के द्वार जला दिया जाएगा। +\q1 अन्य देशों के लोग शहर को बचाने के लिए कठोर परिश्रम करेंगे, +\q2 परन्तु यह व्यर्थ हो जाएगा, +\q2 क्योंकि जो कुछ भी उन्होंने बनाया है वह आग से नष्ट हो जाएगा।” +\p +\s5 +\v 59 नेरिय्याह के पुत्र सरायाह और महसेयाह के पोते, राजा सिदकिय्याह का एक महत्वपूर्ण सेवक था। सिदकिय्याह द्वारा लगभग चार वर्षों तक यहूदा पर शासन करने के बाद, यिर्मयाह ने उसे एक सन्देश दिया। यह तब था जब सरायाह राजा के साथ बाबेल जाने वाला था। +\v 60 अब यिर्मयाह ने लपेटा हुए पत्र में उन सब विपत्तियों की एक सूची लिखी थी जो उन्होंने लिखा था, विपत्तियाँ जो शीघ्र ही बाबेल पर आने वाली हैं। +\s5 +\v 61 यिर्मयाह ने सरायाह से कहा, “जब तुम बाबेल में आओगे, तो इस लपेटा हुए पत्र पर जो कुछ भी लिखा है, उसे ऊँचे शब्द में पढ़ना। +\v 62 तब प्रार्थना करना, ‘हे यहोवा, आपने कहा था कि आप बाबेल को पूरी तरह से नष्ट करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप लोग और पशु वहाँ नहीं रहेंगे। आपने कहा था कि यह सदा के लिए उजाड़ हो जाएगा।’ +\s5 +\v 63 फिर, जब तू लपेटा हुए पत्र पर जो लिखा है उसे पढ़ना समाप्त कर लें, तो उसे भारी पत्थरों से बाँधे और इसे फरात नदी में फेंक दें। +\v 64 तब कहना, ‘वैसे ही, बाबेल और उसके लोग लोप हो जाएँगे और फिर कभी भी अस्तित्व में नहीं आएँगे, क्योंकि यहोवा उन विपत्तियों को लाएँगे।’” +\p यह यिर्मयाह के सन्देश का अन्त है। + +\s5 +\c 52 +\p +\v 1 सिदकिय्याह बीस वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बन गया। उसने यरूशलेम में ग्यारह वर्षों तक शासन किया। उसकी माँ हमूतल थी, जो यिर्मयाह नाम लिब्नावासी की पुत्री थी। +\v 2 सिदकिय्याह ने बहुत सी बातें की जो यहोवा कहते हैं कि बुरी है, जैसे उसके पिता यहोयाकीम ने किया था। +\v 3 यहाँ वर्णित घटनाएँ हुईं क्योंकि यहोवा यरूशलेम और यहूदा के अन्य स्थानों के लोगों से क्रोधित थे, और अन्त में उन्होंने उन्हें निर्वासित कर दिया और कहा कि वह अब उनके साथ कुछ नहीं करना चाहते थे। +\p तब सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया। +\s5 +\v 4 इसलिए, दसवें महीने के दसवें दिन, जब सिदकिय्याह लगभग नौ वर्षों तक शासन कर चुका था, तब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर अपनी पूरी सेना के साथ यरूशलेम पर आक्रमण करने के लिए आया। उन्होंने शहर को घेर लिया और शहर की दीवारों के ऊपर तक मलबे के पुश्ते बनाए कि वे शहर पर आक्रमण कर सकें। +\v 5 उन्होंने सिदकिय्याह के राज के लगभग ग्यारहवें वर्ष तक यरूशलेम को घेरे रखा। +\p +\s5 +\v 6 जब सिदकिय्याह उस ग्यारह वर्ष तक शासन कर रहा था, उस वर्ष के चौथे महीने के नौवे दिन, शहर में अकाल बहुत गम्भीर हो गया था, और लोगों के खाने के लिए और खाना नहीं था। +\v 7 तब बाबेल के सैनिकों ने शहर की दीवार के एक भाग को तोड़ दिया और सब इस्राएली सैनिक भाग गए। परन्तु शहर बाबेल के सैनिकों से घिरा हुआ था, इसलिए सिदकिय्याह और इस्राएली सैनिकों ने अंधेरा होने तक प्रतीक्षा की। तब उन्होंने राजा के बगीचे के पीछे दो दीवारों के बीच द्वार से होकर शहर छोड़ दिया। तब वे यरदन के किनारे-किनारे मैदान की ओर भाग गए। +\v 8 परन्तु बाबेल के सैनिकों ने राजा सिदकिय्याह का पीछा किया, और उन्होंने यरीहो के पास मैदानों में उसे जा पकड़ा। वह अकेला था क्योंकि उसके सब साथियों ने उसे छोड़ दिया था और बिखर गये थे। +\s5 +\v 9 बाबेल के सैनिक उसे बाबेल के राजा के पास ले गए, जो हमात के क्षेत्र में रिबला में था। वहाँ बाबेल के राजा ने अपने सैनिकों से कहा कि उन्हें सिदकिय्याह को दण्ड देने के लिए क्या करना चाहिए। +\v 10 उन्होंने सिदकिय्याह को विवश किया कि उसके पुत्रों और अन्य सब अधिकारियों की हत्या होते देखे। +\v 11 तब उन्होंने सिदकिय्याह की आँखों को फोड़ दिया। उन्होंने उसे पीतल की जंजीरों से बाँधा और उसे बाबेल ले गए। उन्होंने उसे बन्दीगृह में डाल दिया और वह उस दिन तक बना रहा जब तक वह मर गया। +\p +\s5 +\v 12 उस वर्ष के पाँचवें महीने के दसवें दिन, जब राजा नबूकदनेस्सर लगभग उन्नीस वर्ष तक शासन कर चुका था, तब राजा के अंगरक्षक और राजा के अधिकारियों के सरदार नबूजरदान यरूशलेम में पहुँचा। +\v 13 उसने अपने सैनिकों को यहोवा के मन्दिर, राजा के महल और यरूशलेम के सब घरों को जलाने का आदेश दिया। उन्होंने शहर की सब महत्वपूर्ण इमारतों को भी नष्ट कर दिया। +\v 14 तब उसने यरूशलेम के चारों ओर की दीवारों को तोड़ते समय बाबेल के सैनिकों की देखरेख की। +\s5 +\v 15 तब नबूजरदान को सबसे गरीब लोगों में से कुछ को बाबेल जाने के लिए विवश किया, उन इस्राएली लोगों को जिन्होंने कहा था कि वे बाबेल के राजा का साथ देंगे शेष कारीगर और यरूशलेम में रहने वाले अन्य लोग। +\v 16 परन्तु नबूजरदान ने कुछ गरीब लोगों को दाख की बारियों और खेतों की देखभाल करने के लिए यहूदा में रहने दिया। +\p +\s5 +\v 17 बाबेल के सैनिकों ने यहोवा के भवन के सामने जो पीतल के खम्भे और पीतल का हौद और दस कुर्सियों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और सारा पीतल बाबेल ले गए, +\v 18 वे अपने साथ हाँडियों को जिनमें होम-बलि की राख निकाली जाती थी, राख उठाने की फावड़ियाँ, दीपकों की बत्तियाँ बुझाने की कैंचियाँ, बलि के पशुओं का खून उठाने के कटोरे, धूपदान तथा भवन में बलि के समय कार्य आने वाले सब सामान आदि सब बाबेल ले गए, +\v 19 नबूजरदान ने अपने सैनिकों को छोटे कटोरे, धूप जलाने की थालियाँ, तसले, कटोरे, दीपदान, धूप की कटोरियाँ और दाखमधु उण्डेलने के पात्र आदि सब ले लेने का आदेश दिया उन्होंने शुद्ध सोने और चाँदी के सब सामान ले लिए। +\p +\s5 +\v 20 दो खम्भों का पीतल, “सागर” नामक पानी का बड़ा हौद और उसके नीचे की बैल की बारह मूर्तियाँ और पानी की गाड़ियाँ, वजन करने से अधिक थीं। मन्दिर के लिए उन वस्तुओं को उस समय बनाया गया था जब सुलैमान राजा था। +\v 21 खम्भों में से प्रत्येक 27 फूट लम्बा और 18 फूट घेरे का था। वे खोखले थे, और प्रत्येक की चादर 3 इंच मोटी थी। +\s5 +\v 22 प्रत्येक खम्भे के शीर्ष पर पीतल की कँगनी साढ़े सात फूट ऊँची थी और अनार के समान बनी पीतल की सजावट और जाली थी। +\v 23 खम्भों के शीर्ष पर अनार कुल सौ थे, जिनमें से 96 भूमि से देखे जा सकते थे। +\p +\s5 +\v 24 जब नबूजरदान बाबेल लौट आया, तो वह उसके साथ कैद के रूप में महायाजक सरायाह, और उसके सहायक याजक सपन्याह और अन्य तीन लोगों जो भवन के प्रवेश द्वार की रक्षा की। +\v 25 उसने कुछ अन्य लोगों को खोजा जो शहर में छिपे हुए थे। इसलिए उनमें से उसने यहूदा की सेना के एक सरदार, राजा के सात सलाहकारों, सेना के मुख्य सचिव, सेना के लिए सैनिकों की भर्ती के प्रभारी और साठ अन्य सैनिकों के प्रभारी थे। +\s5 +\v 26 नबूजरदान उन सबको बाबेल के राजा के पास ले गया, जो अभी भी रिबला में था। +\v 27 वहाँ हमात क्षेत्र में रिबला में, बाबेल के राजा ने आज्ञा दी कि सबको मार डाला जाए। +\p यहूदा के बहुत से लोगों को अपना देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। +\s5 +\v 28 उन लोगों की संख्या जिन्हें बन्दी बना लिया था और उस समय बाबेल भेजा गया था 3,023 थी, जब नबूकदनेस्सर लगभग सात वर्षों तक शासन कर रहा था। +\v 29 फिर, जब वह लगभग अठारह वर्ष तक शासन कर रहा था, तो उसके सैनिक 832 और लोगों को यरूशलेम से बाबेल ले गए। +\v 30 जब वह लगभग बीस वर्ष तक शासन कर रहा था, तब उसने नबूजरदान को यरूशलेम भेज दिया, और वह 745 और इस्राएली लोगों को बाबेल ले गया। वह कुल 4,600 इस्राएली थे जिन्हें बाबेल ले जाया गया था। +\p +\s5 +\v 31 यहूदा का राजा यहोयाकीन बाबेल में लगभग सैंतीस वर्ष तक बन्दीगृह में रहा, तब एवील्मरोदक बाबेल का राजा बन गया। वह यहोयाकीन के प्रति दयालु था और आदेश दिया कि उसे बन्दीगृह से मुक्त कर दिया जाए। वह उस वर्ष के बारहवें महीने के पच्चीसवें दिन था जब एवील्मरोदक राजा बना था। +\s5 +\v 32 वह सदा यहोयाकीन के प्रति दया से बात करता था और उसे अन्य सब राजाओं से अधिक सम्मानित पद दिया गया था राजा जिन्हें बाबेल में निर्वासित किया गया था। +\v 33 बन्दीगृह में पहने हुए कपड़े बदलने के लिए, यहोयाकीन को नए कपड़े दिए गए। उसने यहोयाकीन को पूरे जीवन प्रतिदिन उसके साथ खाने की अनुमति दी। +\v 34 हर दिन, बाबेल का राजा उसे आवश्यक वस्तुएँ मोल लेने के लिए उसे कुछ पैसे देता था। यह प्रबन्ध यहोयाकीन की मृत्यु तक बना रहा। \ No newline at end of file diff --git a/26-EZK.usfm b/26-EZK.usfm new file mode 100644 index 0000000..8aacf41 --- /dev/null +++ b/26-EZK.usfm @@ -0,0 +1,2768 @@ +\id EZK +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h यहेजकेल +\toc1 यहेजकेल +\toc2 यहेजकेल +\toc3 ezk +\mt1 यहेजकेल + + +\s5 +\c 1 +\p +\v 1-2 “मैं यहेजकेल जब तीस वर्ष का था, तब मैं बाबेल के दक्षिण में कबार नदी के पास इस्राएलियों के बीच रह रहा था। बाबेल के लोग हमें यहूदा के देश से यहाँ ले आए। उस वर्ष के चौथे महीने के पाँचवें दिन, ऐसा हुआ जैसे कि आकाश खुल गया और मैंने परमेश्वर की ओर से दर्शन देखे। +\p राजा यहोयाकीन के बन्धुआई में जाने के लगभग पाँच वर्ष बाद यह चौथे महीने का पाँचवाँ दिन था।” +\v 3 इसलिए परमेश्वर ने बूजी के पुत्र यहेजकेल याजक को बाबेल में सन्देश दिए, जिस समय वह कबार नदी के तट पर था, तब यहोवा की शक्ति उसमें समा गई थी। +\p +\s5 +\v 4 दर्शनों में से एक में, मैंने देखा कि उत्तर दिशा से एक बड़ी आँधी आ रही है। उसमें एक बड़ा बादल था, और उसमें बिजली निरन्तर चमक रही थी, और एक तीव्र प्रकाश से बादल घिरा हुआ था। जहाँ बिजली चमक रही थी, उसके बीच में पीतल के रंग की आग थी। +\v 5 तूफान के केंद्र में मैंने कुछ देखा जो चार जीवित प्राणियों जैसे दिखते थे। वे मनुष्यों के समान थे, +\v 6 परन्तु उनमें से प्रत्येक के चार चेहरे और चार पंख थे। +\s5 +\v 7 उनके पैर मनुष्य के पैरों के समान थे, परन्तु उनके पाँव बछड़ों के खुरों के समान चमकाए हुए पीतल के से थे। +\v 8 उनके शरीर के चारों ओर उनके पंखों के नीचे मनुष्यों के समान हाथ थे। +\v 9 जब वे चार प्राणी वहाँ खड़े थे, तब उन्होंने अपने पंखों को एक दूसरे से छू कर एक गोला बनाया। जब वे चलते थे तब वे सीधे-सीधे आगे जाते थे, मुड़ते नहीं थे। +\p +\s5 +\v 10 उन प्राणियों में से प्रत्येक के चार चेहरे थे। सामने की ओर एक चेहरा था जो मनुष्य के चेहरे जैसा दिखता था। दाहिनी ओर का चेहरा शेर के चेहरे जैसा दिखता है। बाईं ओर का चेहरा एक बैल के चेहरे जैसा दिखता था। पीछे का चेहरा एक उकाब के चेहरे जैसा दिखता था। +\v 11 प्रत्येक प्राणी के दो पंख ऊपर उठे हुए थे और उसके दोनों ओर के प्राणियों के पंखों को छूते थे। अन्य दो पंख उनके शरीर में सिमटे हुए थे। +\v 12 जिस दिशा में परमेश्वर का आत्मा, जिन्होंने उन्हें नियंत्रित किया हुआ था, उन्हें ले जाना चाहता था, वे सीधे चलते थे और चलते समय वे दिशा बदलते नहीं थे। +\s5 +\v 13 चारों प्राणी जलते हुए कोयलों या मशालों जैसे दिखते थे। प्राणियों के बीच एक तेज जलती हुई आग आगे पीछे होती थी, और उनके बीच में बिजली चमकती थी। +\v 14 प्राणी बहुत तेजी से आगे पीछे हो रहे थे, इसलिए वे बिजली की चमक जैसे दिखते थे। +\p +\s5 +\v 15 जब मैंने उन चारों जीवित प्राणियों पर दृष्टि की, तो मैंने उनमें से प्रत्येक के बगल में भूमि पर एक पहिया देखा। +\v 16 पहिये एक जैसे थे, और वे सभी फीरोजा रत्न के समान चमकते थे। प्रत्येक पहिया ऐसे लगता था जैसे एक पहिये के अन्दर दूसरा पहिया है। +\s5 +\v 17 जब वे चलते थे, तब वे चार दिशाओं में से एक में सीधे जाते थे जो किसी एक प्राणी के मुख के सामने थी वे चलते समय, किसी और दिशा में नहीं मुड़ते थे। +\v 18 उन पहियों के घेरे भव्य और डरावने थे, और उनमें अनेक आँखें थीं। +\p +\s5 +\v 19 वे जीवित प्राणी जब चलते थे, तो पहिये उनके साथ चलते थे। और जब प्राणी भूमि से ऊपर उठते थे, तो पहिये भी उठते थे। +\v 20 परमेश्वर का आत्मा, जिन्होंने उन प्राणियों को नियंत्रित किया हुआ था, जहाँ भी उन्हें ले जाना चाहता था, वे चले जाते थे; और पहिये उनके साथ जाते थे, क्योंकि उनकी आत्मा पहियों को नियंत्रित करती थी। +\v 21 जब प्राणी चलते थे, तब पहिये भी चलते थे। जब प्राणी रुक जाते थे, तब पहिये भी रुक जाते थे। जब भी प्राणी भूमि से ऊपर उठते थे, तब पहिये भी उनके साथ उठते थे। +\p +\s5 +\v 22 प्राणियों के सिर के ऊपर कुछ था जो गुम्मट जैसा दिखता था। वह बर्फ के समान चमकता था, और यह कमाल का था। +\v 23 गुम्मट के नीचे, प्राणियों ने अपने पंख फैलाए। प्रत्येक के पास दो पंख थे जो दोनों ओर के प्राणियों के पंखों को छूते थे, और अन्य दो पंख जो उनके अपने शरीर को ढाँकते थे। +\s5 +\v 24 जब वे प्राणी चलते थे, तब उनके पंखों से एक आवाज़ आती थी जो समुद्र की लहरों के उठने जैसी थी। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आवाज के समान भी सुनाई पड़ती थी, और आगे बढ़ती हुई एक विशाल सेना के शोर के समान सुनाई देती थी। जब वे प्राणी भूमि पर सीधे खड़े होते थे, वे अपने पंखों को नीचे कर लेते थे। +\v 25 जब वे अपने पंखों को नीचे किए हुए भूमि पर खड़े होते थे, तब उनके सिर के ऊपर के गुम्मट से एक आवाज आती थी। +\p +\s5 +\v 26 गुम्मट के ऊपर एक विशाल सिंहासन जैसा कुछ दिखता था जो एक विशाल नीलम से बना था। सिंहासन पर बैठा व्यक्ति वही था जो मनुष्य जैसा दिखता था। +\s5 +\v 27 मैंने देखा कि उसकी कमर के ऊपर वह धातु जैसा दिखता था जो चमक रहा था जैसे कि उसके भीतर बहुत गर्म आग थी। और मैंने देखा कि उसकी कमर के नीचे तीव्र प्रकाश था जिसने उसे घेरा हुआ था। +\v 28 यह वर्षा के दिन बादलों में मेघधनुष के समान चमकता था। +\p वह तीव्र प्रकाश यहोवा की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता था। जब मैंने इसे देखा, तो मैं भूमि पर मुँह के बल गिर गया, और मैंने उन्हें बोलते हुए सुना! + +\s5 +\c 2 +\p +\v 1 उसने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, खड़ा हो जा, मैं तुझसे बात करूँगा।” +\v 2 जब उन्होंने मुझसे बात की, तो परमेश्वर के आत्मा ने मुझमें प्रवेश किया और मुझे खड़े होने में समर्थ किया। तब मैंने उन्हें मुझसे बात करते सुना। +\p +\v 3 उन्होंने कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, मैं तुझे इस्राएली लोगों के पास भेजूँगा। वे ऐसे लोग हैं जो मुझसे दूर हो गए हैं और मुझसे विद्रोह कर चुके हैं। उनके पूर्वजों ने मुझसे विद्रोह किया, और ये लोग ही अब भी मुझसे विद्रोह कर रहे हैं। +\s5 +\v 4 जिन लोगों के पास मैं तुझे भेजूँगा वे बहुत हठीले हैं। परन्तु उनसे कहना, ‘यहोवा परमेश्वर तुमसे यह कहते हैं।’ +\v 5 और जब तू उनको मेरे सन्देश सुनाता हो, तो संभव है कि वे विद्रोही लोग उन सन्देशों पर ध्यान देंगे और सम्भवतः वे उन पर ध्यान न भी दें; परन्तु वे जान जाएँगे कि एक भविष्यद्वक्ता उनके बीच है! +\s5 +\v 6 और तू, हे मनुष्य के पुत्र, तुझे उनसे डरना नहीं है या जो वे कहते हैं उससे डरना नहीं है। उनके बीच में रहना ऊँटकटारों या बिच्छुओं के बीच में रहने जैसा होगा, परन्तु उनसे डरना मत। वे विद्रोही लोग हैं, परन्तु उन्हें तुझे डराने न देना। +\s5 +\v 7 उन्हें मेरा सन्देश सुनाना, परन्तु उनसे उस पर ध्यान देने की अपेक्षा न करना, क्योंकि वे बहुत विद्रोही हैं। +\v 8 परन्तु हे मनुष्य के पुत्र, जो कुछ मैं कहता हूँ, उस पर तुझे ध्यान देना है। वैसे विद्रोही मत बनना जैसे वे हैं। अब अपना मुँह खोल और जो मैं देता हूँ उसे खा।” +\p +\s5 +\v 9 फिर, जैसा कि मैंने देखा, मैंने उनका हाथ देखा जो मेरी ओर बढ़ा हुआ था। उनके हाथ में एक पुस्तक थी। +\v 10 उन्होंने पुस्तक को खोल दिया। इसके दोनों ओर शब्द लिखे थे जो दुख और शोक और परेशानी को व्यक्त करते थे। + +\s5 +\c 3 +\p +\v 1 उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, तेरे सामने रखी इस पुस्तक को खा ले। फिर जा और इस्राएलियों से बात कर।” +\v 2 इसलिए मैंने अपना मुँह खोला, और उन्होंने मुझे खाने के लिए वह पुस्तक दी। +\p +\v 3 तब उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, मैंने जो पुस्तक तुझे दी है उसे खा। उससे अपना पेट भर ले।” अतः मैंने उसे खा लिया, और मेरे मुँह में यह शहद के समान मीठी लगी। +\p +\s5 +\v 4 तब उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के लोगों के पास जा और उन्हें मेरा सन्देश सुना। +\v 5 जिन लोगों के पास मैं तुझे भेज रहा हूँ वे ऐसे लोग नहीं हैं जिनकी भाषा सीखना बहुत कठिन है, वह एक ऐसी भाषा नहीं है जिसे तू समझ नहीं सकता है। मैं तेरे ही इस्राएली लोगों के पास तुझे भेज रहा हूँ। +\v 6 मैं तुझे उन लोगों के पास भेज रहा हूँ जिनकी भाषा तू बहुत अच्छी तरह समझता है। यदि मैं तुझे उन लोगों के पास भेजता जिनकी भाषा तेरे लिए समझने में कठिन है, तो तू जो कहता वे उस पर ध्यान देते। +\v 7 परन्तु क्योंकि इस्राएली लोग मेरी बात सुनना नहीं चाहते हैं, वे तेरी बात भी सुनना नहीं चाहेंगे। वे नहीं सुनना चाहते हैं क्योंकि वे सब बहुत विद्रोही हैं। +\s5 +\v 8 परन्तु तू – मैं तुझे वैसा हठीला और कठोर होने में समर्थ कर दूँगा जैसे वे हैं। +\v 9 मैं तुझे सबसे कठोर पत्थर जैसे चकमक पत्थर के समान, दृढ़ बना दूँगा। अतः भले ही वे बहुत विद्रोही लोग हैं, उनसे डरना मत; उन्हें तुझे डराने भी न देना।” +\p +\s5 +\v 10 उन्होंने मुझसे यह भी कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, जो कुछ मैं कहता हूँ, उसे बड़ी सावधानी से सुन, और इसके विषय में सोचता रह। +\v 11 अपने साथी इस्राएलियों के पास जा जो बन्धुआ होने के बाद यहाँ हैं, और उनसे बात कर। उनसे कह, ‘यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं’ और फिर उन्हें मेरा सन्देश सुना, चाहे वे इसे सुनना चाहते हों या फिर चाहे वे अस्तित्व में ही न रहें।” +\p +\s5 +\v 12 तब दर्शन में परमेश्वर के आत्मा ने मुझे ऊपर उठा लिया, और मैंने मेरे पीछे एक बड़े भूकम्प की आवाज सुनी। (उस स्थान पर हमारे महिमामय यहोवा की स्तुति करो जहाँ स्वर्ग में वह रहते हैं!) +\v 13 मैंने चार जीवित प्राणियों के पंखों की एक दूसरे से टकराने की आवाज सुनी, और मैंने पहियों की आवाज भी सुनी जो उनके पास थे। यह भूकम्प के समान ऊँची आवाज थी। +\s5 +\v 14 आत्मा मुझे दूर ले गया। मैं अपने भीतर में बहुत कड़वा और क्रोधित था, और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूँ, जैसे कि यहोवा मुझ पर प्रबल हो रहे हैं। +\v 15 मैं उन बन्धुआ लोगों के पास आया जो बाबेल में कबार नदी के पास तेलाबीब के शहर में रहते थे। फिर मैं सात दिनों के लिए वहीं बैठ गया, जहाँ वे रहते थे। जो कुछ मैंने देखा था उसके विषय में मैं चकित था। +\p +\s5 +\v 16 उन सात दिनों के समाप्त होने के बाद, यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 17 “हे मनुष्य के पुत्र, मैं तुझे एक पहरेदार के समान नियुक्त कर रहा हूँ। इसलिए इन सन्देशों को सुन जो मैं तुझे दूँगा, और उन्हें चेतावनी देने के लिए उन सन्देशों को सुना। +\v 18 जब मैं कुछ दुष्ट लोगों के विषय में कहता हूँ, ‘वे निश्चित रूप से उनके पापों के कारण मर जाएँगे,’ यदि तू उन्हें चेतावनी नहीं देगा या उन्हें नहीं बताए कि वे अपने जीवनों को बचाना चाहते हैं तो उन्हें अपने दुष्ट व्यवहार का त्याग करना चाहिए, तो वे अपने पाप के कारण मर जाएँगे, और उसका तू उत्तरदायी होगा क्योंकि तू ने इसे रोकने के लिए कार्य नहीं किया था। +\v 19 परन्तु यदि तू दुष्ट लोगों को चेतावनी देता है और वे अपने दुष्ट व्यवहार का त्याग नहीं करते, तो वे अपने पापों के कारण मर जाएँगे, परन्तु तू मेरे दण्ड से अपने को बचा लेगा। +\p +\s5 +\v 20 इसी प्रकार, जब धर्मी लोग अपने धर्मी व्यवहार से मुड़ते हैं और बुरे कार्य करते हैं, और मैं उनके साथ बुरा व्यवहार करता हूँ, तो वे मर जाएँगे। परन्तु उन्हें चेतावनी देना तेरा कार्य है। यदि वे अपने पापी व्यवहार को नहीं रोकते हैं, तो वे अपने पापों के कारण मर जाएँगे। मैं उन धर्म के कार्यों के विषय में नहीं सोचूँगा जो उन्होंने पहले किए थे। परन्तु यदि तू ने उन्हें चेतावनी नहीं दी है, तो उनकी मृत्यु के लिए मैं तुझे उत्तरदायी ठहराऊँगा। +\v 21 परन्तु यदि तू धर्मी लोगों को पाप न करने की चेतावनी देता है, और वे पाप नहीं करते हैं; तो वे निश्चित रूप से जीवित रहेंगे क्योंकि उन्होंने तेरी चेतावनी पर ध्यान दिया, और मेरे दण्ड से तू अपने को बचा लेगा।” +\p +\s5 +\v 22 मुझे ऐसा लगा कि मैं यहोवा नियंत्रित हूँ, और उन्होंने मुझसे बात की और कहा, “उठ और मैदान में जा, और मैं वहाँ तुझसे बात करूँगा।” +\v 23 अतः मैं उठ गया और बाहर मैदान में चला गया। और मैंने वहाँ यहोवा की महिमा देखी, जैसे कि कबार नदी के पास मैंने महिमा देखी थी। और मैं भूमि पर मुँह के बल लेट गया। +\p +\s5 +\v 24 तब परमेश्वर के आत्मा ने मुझमें प्रवेश किया और मुझे सीधे खड़े होने में समर्थ किया। उन्होंने मुझसे कहा, “अपने घर में जा और इसके भीतर ही रह। +\v 25 लोग तुझे रस्सियों से बाँध देंगे, जिसके परिणामस्वरूप तू लोगों के बीच बाहर जाने में असमर्थ होगा। +\s5 +\v 26 भले ही वे बहुत विद्रोही लोग हैं, मैं तेरी जीभ को तेरे मुँह के तालू से चिपका दूँगा, जिसके परिणामस्वरूप तू बात करने में और उन्हें झिड़कने में असमर्थ होगा। +\v 27 परन्तु जब मैं तुझसे फिर से बात करूँगा, तब मैं तुझे बात करने और उन्हें यह बताने में समर्थ करूँगा, ‘यही है जो यहोवा परमेश्वर तुझे बता रहे हैं।’ जो मुझे सुनना चाहता है वह मुझे सुनेगा, परन्तु जो सन्देश को अनदेखा करता है वह नष्ट हो जाएगा, क्योंकि वे एक विद्रोही लोग हैं!” + +\s5 +\c 4 +\p +\v 1 यहोवा बातें करते रहे और कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, एक बड़ी मिट्टी की ईंट ले और उस पर रेखाएँ खोद जो यरूशलेम का प्रतिनिधित्व करती हैं। +\v 2 फिर शत्रु के सैनिकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसके चारों ओर आकृतियाँ बना जो इस शहर को लेने के लिए इसके चारों ओर पुश्ते बाँधेंगे और किलों का निर्माण करेंगे। इसके चारों ओर आकृतियाँ स्थापित कर जो चोट करने वाले हथियारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। +\v 3 फिर लोहे की थाली ले, और उसे अपने और शहर के चित्र के बीच में लोहे की दीवार के समान खड़ा कर दे। फिर शहर के चित्र की ओर अपना चेहरा कर। इसका अर्थ है कि शत्रु के सैनिक शहर पर आक्रमण करने के लिए इसे घेर लेंगे। यह इस्राएली लोगों के लिए एक चेतावनी होगी। +\p +\s5 +\v 4-5 फिर अपनी बाईं ओर लेट जा, और 390 दिनों के लिए इसी प्रकार रह। तू प्रतीकात्मक रूप से उत्तरी साम्राज्य, इस्राएल के पापों का दण्ड उठाएगा; तुझे उनके दण्ड के हर वर्ष के लिए एक दिन ऐसे लेटना होगा। +\p +\s5 +\v 6 उसके बाद, चालीस दिनों के लिए अपनी दाहिनी ओर लेटना। यह प्रतीक होगा कि दक्षिणी साम्राज्य, यहूदिया के लोगों को उनके पापों के लिए दण्ड दिया जाएगा, हर एक वर्ष के लिए एक दिन जो तू वहाँ लेटेगा। +\v 7 यरूशलेम के चित्र की ओर अपना चेहरा कर और अपनी बाँह को उघाड़ दे जैसे एक सैनिक करता है जो युद्ध में जाने के लिए तैयार होता है, और भविष्यद्वाणी करना कि शहर के साथ क्या होगा। +\v 8 तू हिलने डुलने में समर्थ नहीं होगा; यह ऐसा होगा मानों मैंने तुझे रस्सियों से बाँध लिया है कि तू एक ओर से दूसरी ओर तक नहीं हो सके जब तक कि तू यह प्रतीकात्मक कार्य पूरा नहीं कर लेता कि शहर कितने वर्षों तक घिरा होगा। +\p +\s5 +\v 9 ऐसा करने से पहले, तू कुछ गेहूँ, जौ, फलियाँ, मसूर, बाजरा, और कठिया गेहूँ लेना; और उन्हें मर्तबान में डाल दे, और उससे अपने लिए रोटी पकाना। यही है जो तू अपनी बाईं ओर लेटने के समय 390 दिनों तक खाएगा। +\v 10 तू प्रतिदिन लगभग दो सौ ग्राम रोटी खाएगा। +\v 11 हर दिन पूरे दिन भर में पीने के लिए लगभग डेढ़ लीटर पानी भी नाप लेना। +\s5 +\v 12 उस रोटी को ऐसे खाना जैसे तू जौ की एक रोटी खा रहा है। परन्तु रोटी सेंकने के ईंधन के लिए लोगों के देखते अपने स्वयं के सूखे गोबर का उपयोग करना। +\v 13 यह प्रतीक होगा कि इस्राएली लोगों को ऐसा ही भोजन खाने के लिए विवश किया जाएगा जो मेरे लिए अस्वीकार्य है जब वे उन राष्ट्रों में रह रहे हों जिनमें जाने के लिए मैं उन्हें विवश करूँगा।” +\p +\s5 +\v 14 तब मैंने कहा, “नहीं, हे यहोवा परमेश्वर! मुझे ऐसा करने के लिए विवश मत कीजिए! मैंने कभी भी स्वयं को आपके लिए अस्वीकार्य नहीं बनाया है। उस समय से जब मैं युवा था, मैंने कभी भी किसी भी ऐसे जानवर का माँस नहीं खाया जो मृत पाया गया था या जंगली जानवरों द्वारा मारा गया था। और मैंने कभी भी ऐसा माँस नहीं खाया जो आपके लिए अस्वीकार्य है।” +\p +\v 15 यहोवा ने उत्तर दिया, “इसी कारण से, मैं तुझे ईंधन के लिए मनुष्य गोबर की अपेक्षा गाय के सूखे गोबर का उपयोग करके अपनी रोटी सेंकने की अनुमति दूँगा।” +\p +\s5 +\v 16 तब उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, मैं यरूशलेम के भोजन की आपूर्ति को रुकवा दूँगा। तब लोग कम मात्रा में भोजन खाएँगे और थोड़ी मात्रा में पानी पीएँगे जो उनके अगुवे उन्हें खाने पीने की अनुमति देंगे, और जब वे ऐसा करते हैं वे बहुत परेशान और चिन्तित होंगे, +\v 17 क्योंकि पानी और भोजन बहुत दुर्लभ होगा। वे एक दूसरे को बहुत दुबला-पतला होते देखेंगे, और वे चिन्तित होंगे; परन्तु ऐसा इसलिए होगा कि उन्हें उनके द्वारा किए गए पापों के लिए दण्ड दिया जा रहा है।” + +\s5 +\c 5 +\p +\v 1 “तब, हे मनुष्य के पुत्र, जब तू उन कार्यों को करना आरम्भ करे, तो एक तेज तलवार लेना और अपने सिर और दाढ़ी को मूँड़ने के लिए नाई के उस्तरे के समान इसका उपयोग करना। तू उन मूँड़े गए बालों को तराजू पर रख कर, तीन बराबर भागों में बाँट देना। +\v 2 जब तेरे द्वारा प्रतीक रूप में दर्शाया गया शत्रु के घेराव का समय पूरा हो जाए, तब अपने बालों का एक तिहाई भाग शहर के उस चित्र के भीतर डाल कर जला देना और बालों का दूसरा तिहाई भाग शहर के चित्र के चारों ओर बिखरा कर तलवार से उसे मारना। यह प्रतीक होगा कि मैं यरूशलेम के लोगों को उनके शत्रुओं की तलवार से मार डालूँगा। फिर बालों का तीसरा भाग हवा में उड़ाकर तितर बितर कर देना। यह प्रतीक होगा कि यदि वे शहर से भाग भी जाएँगे, तो मैं उनके शत्रुओं को उनके पीछे भेजूँगा और तलवार से उन पर आक्रमण करवाऊँगा। +\s5 +\v 3 परन्तु अपने कुछ बाल अपनी आस्तीन में बाँध लेना। +\v 4 तब उन बालों में से कुछ ले कर आग में फेंक देना, और उन्हें जला देना। यह प्रतीक होगा कि आग यरूशलेम से फैल कर पूरे इस्राएल में विनाश ले आएगी। +\p +\s5 +\v 5 मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: यह चित्र यरूशलेम का प्रतिनिधित्व करेगा, एक ऐसा शहर जिसे मैंने राष्ट्रों के बीच में रखा है, जिसके आस-पास अन्य देश हैं। +\v 6 परन्तु यरूशलेम के दुष्ट लोग मेरे आदेशों का पालन करने के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, और वे दिखाते हैं कि वे आस-पास के देशों के लोगों से अधिक दुष्ट हैं। उन्होंने मेरे नियमों को त्याग दिया है और मेरे आदेशों का पालन करने से इन्कार कर दिया है। +\p +\s5 +\v 7 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: तुम, यरूशलेम के लोगों तुम अपने आस-पास के देशों के लोगों से अधिक विद्रोही हो गए हो; तुमने मेरे किसी भी नियम का पालन नहीं किया है। यहाँ तक कि तुमने अपने आस-पास के देशों के नियमों का पालन भी नहीं किया है! +\p +\v 8 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, यह कहता हूँ: मैं तुम यरूशलेम के लोगों का विरोध करता हूँ। मैं तुमको दण्ड दूँगा और अन्य देशों के लोग इसे देखेंगे। +\s5 +\v 9 तुम्हारी घृणित मूर्तियों और प्रथाओं के कारण, मैं तुम यरूशलेम के लोगों को ऐसा दण्ड दूँगा जैसा मैंने पहले कभी नहीं किया है और फिर कभी नहीं करूँगा। +\v 10 इसके परिणामस्वरूप, तुम्हारे माता पिता अपने बच्चों को खाएँगे, और बच्चे अपने माता पिता को खाएँगे, क्योंकि खाने के लिए कुछ नहीं होगा। मैं तुमको गम्भीर दण्ड दूँगा, और जो जीवित रह जाएँगे उन लोगों को मैं हर दिशा में तितर बितर कर दूँगा। +\s5 +\v 11 इसलिए, मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ! जैसा कि निश्चित रूप से मैं जीवित हूँ, क्योंकि तुमने मेरे मन्दिर को अपनी घृणित मूर्तियों से और तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले अन्य भयानक कार्यों से अशुद्ध कर दिया है, मैं अब तुमको आशीष नहीं दूँगा। मैं तुम पर करुणा नहीं करूँगा या तुम पर दया नहीं करूँगा। +\v 12 तुम्हारे लोगों में से एक तिहाई लोग विपत्ति का सामना करने से, या अकाल के कारण शहर में ही मर जाएँगे। तुम्हारे लोगों का एक तिहाई भाग शहर के बाहर अपने शत्रुओं की तलवार से मारा जाएगा। और एक तिहाई हर दिशा में तितर बितर किया जाएगा, परन्तु तुम्हारे शत्रु तब भी तुम्हारा पीछा करेंगे और तुमको अपनी तलवार से मार देंगे। +\p +\s5 +\v 13 तब मैं तुमसे और क्रोधित नहीं रहूँगा; तुमसे अपना बदला लेने के बाद मैं तुमको दण्ड देना समाप्त कर दूँगा। और जब मैं तुमको दण्ड देना समाप्त कर दूँगा, तब तुम जानोगे कि मुझ, यहोवा ने तुमसे बात की है क्योंकि मैंने तुमको अपने क्रोध में दण्ड देना समाप्त कर दिया है। +\p +\v 14 मैं तुम्हारा शहर एक खण्डहर बना दूँगा, जिससे कि तुम्हारे आस-पास के देशों के लोग इसके पास से आते-जाते समय इसे देखेंगे और तुम्हारा उपहास करेंगे। +\s5 +\v 15 वे तुमको तुच्छ जानेंगे और तुम्हारा उपहास करेंगे। जब मैं अपने बड़े क्रोध के कारण तुमको गम्भीर दण्ड दूँगा, तब वे भयभीत होंगे और तुम उनके लिए एक चेतावनी ठहरोगे। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मैं, यहोवा, यह कहता हूँ। +\v 16 और जब मैं तुम्हारी भोजन की आपूर्ति काट दूँगा और वहाँ अकाल पड़ने दूँगा, तब यह ऐसा होगा जैसे मैं तुमको अपने तीरों से मार रहा हूँ जो तुमको नष्ट कर देंगे। +\v 17 इसलिए मैं तुमको अकाल का सामना करने दूँगा, और मैं जंगली जानवरों को तुम पर और तुम्हारे बच्चों पर आक्रमण करने के लिए भेजूँगा, और तुम्हारे सब बच्चे मारे जाएँगे। तुम विपत्तियों और युद्धों का सामना करोगे, और मैं तुम्हारे शत्रुओं को तलवारों से तुम पर आक्रमण करने दूँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा, ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 6 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के पर्वतों की ओर मुड़, और भविष्यद्वाणी कर कि उनके साथ क्या होगा, और कह, +\v 3 ‘हे इस्राएल के पर्वतों, सुनो कि यहोवा तुमसे क्या कहते हैं! वह पर्वतों और ऊँची पहाड़ियों से और नालों और घाटियों से यह कहते हैं। वह कहते हैं: मैं शत्रु के सैनिकों को उन सभी पर्वतों की चोटियों को नष्ट करने के लिए तलवार ले कर भेजने वाला हूँ जहाँ तुम मूर्तियों की उपासना करते हो। +\s5 +\v 4 वे मूर्तियों की उपासना करने के लिए बनाई गई तुम्हारी सारी वेदियों को, और ज्योतिष के लिए उपयोग किए जाने वाले खम्भों को तोड़ देंगे और वे कई इस्राएलियों को उनकी मूर्तियों के सामने मार डालेंगे। +\v 5 उनके शव उनकी मूर्तियों के सामने पड़े रहेंगे, और उनकी हड्डियों को उनकी वेदी के चारों ओर बिखरा दिया जाएगा। +\s5 +\v 6 जहाँ भी तुम रहते हो, तुम्हारे नगरों को नष्ट कर दिया जाएगा और जहाँ पहाड़ियों पर मूर्तियों की उपासना की जाती है, उन स्थानों को नष्ट कर दिया जाएगा। तुम्हारी वेदियाँ पूरी तरह से टूट जाएँगी, और जो कुछ भी तुम्हारा होगा वह मलबे का ढेर बन जाएगा। +\v 7 तुम्हारे बहुत से लोग ठीक तुम्हारी आँखों के सामने मारे जाएँगे, और तब तुम जान जाओगे कि मैं यहोवा हूँ और मैं वह करता हूँ जो मैं कहता हूँ। +\p +\s5 +\v 8 परन्तु मैं तुम में से कुछ को जीवित रहने दूँगा। जब तुम्हारे शत्रु तुमको कई अन्य राष्ट्रों में तितर-बितर करेंगे तब वे मृत्यु से बच जाएँगे। +\v 9 जब ऐसा होता है, तब उन देशों में जिनमें जाने के लिए तुमको विवश किया गया है, तुम में से जो मृत्यु से बच निकले हैं, वे मेरे विषय में सोचेंगे। तुम स्मरण करोगे कि मैं बहुत दुखी था क्योंकि तुम मुझसे दूर हो गए, क्योंकि तुम मेरे प्रति सच्चे नहीं थे, और क्योंकि तुम अपनी मूर्तियों की उपासना करना चाहते थे। तुमने जो बुराई और घृणित कार्य किए हैं, उनके कारण तुम स्वयं से घृणा करोगे। +\v 10 और तुमको पता चलेगा कि मुझ, यहोवा, ने तुमको दण्ड दिया है। तुम जान लोगे कि जब मैंने तुमको दण्ड देने की धमकी दी थी, तो मेरा विचार निश्चय ही ऐसा करने का था। +\p +\s5 +\v 11 इसलिए हे यहेजकेल, मैं, यहोवा, तुझसे यही कहता हूँ: अपने हाथों को पीटो और अपने पैरों को पटको और जोर-जोर से रोओ यह दिखाने के लिए कि तुम परेशान हो, और चिल्लाओ कि इस्राएली लोगों के दुष्ट और घृणित व्यवहार के कारण उनके साथ क्या होगा। वे अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे जाएँगे, वे भूख से, और वे विपत्तियों से मर जाएँगे। +\v 12 जो यरूशलेम से दूर हैं, वे विपत्तियों से मर जाएँगे, जो यरूशलेम के निकट हैं, वे उनके शत्रुओं की तलवारों से मारे जाएँगे। जो लोग अभी भी जीवित हैं वे भूख से मर जाएँगे। इस तरह मैं उन्हें दण्ड दूँगा। +\s5 +\v 13 तुम्हारे कुछ लोगों के शव उनकी मूर्तियों के बीच, उनकी वेदियों के चारों ओर, हर ऊँची पहाड़ी पर और पर्वतों की चोटियों पर, हर बड़े पेड़ के नीचे – उन सब स्थानों पर जहाँ उन्होंने उनकी मूर्तियों का सम्मान करने के लिए धूप जलाया था, उनके चारों ओर पड़ी रहेंगी। जब ऐसा होता है तो तुमको समझ में आएगा कि मुझ, यहोवा, ने यह किया है। +\v 14 क्योंकि मैं अपनी शक्ति प्रदर्शित करूँगा और हर क्षेत्र को दक्षिण में दूर रेगिस्तान से उत्तर के दूर दिबला नगर तक, जहाँ वे तुम्हारे देश में रहते हैं, बंजर भूमि बना दूँगा। तब उनको यह पता चलेगा कि मुझ, यहोवा, ने यह किया है।’” + +\s5 +\c 7 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, मैं, यहोवा, तुम, इस्राएल के लोगों से यही कहता हूँ: सम्पूर्ण इस्राएल, उसकी सीमाओं के भीतर सब कुछ शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। +\s5 +\v 3 तुम इस्राएल के लोगों का अन्त आ गया है। मैं तुमको गम्भीर दण्ड दूँगा। मैं तुम्हारे द्वारा किए गए सब बुरे कार्यों के लिए तुम्हारा न्याय करूँगा, और तुम्हारे घृणित व्यवहार के लिए तुमको बदला दूँगा। +\v 4 मैं तुम पर करुणा नहीं करूँगा या तुम पर दया नहीं करूँगा। मैं तुमको तुम्हारे दुष्ट व्यवहार के लिए निश्चय ही दण्ड दूँगा। तब तुमको समझ में आएगा कि यह इसलिए हुआ है कि मुझ, यहोवा, ने यह किया है। +\p +\s5 +\v 5 यहोवा परमेश्वर यह भी कहते हैं: शीघ्र ही तुम भयानक विपत्तियों का सामना करोगे। +\v 6 यह इस्राएल का अन्त होगा; तुम्हारे देश का अन्त हो जाएगा! और तुम्हारा जीवन समाप्त हो जाएगा! +\v 7 यह तुम लोगों का अन्त होगा जो इस्राएल के देश में रहते हैं। समय आ गया है; वह दिन निकट है जब तुम नष्ट हो जाओगे। उस समय पर्वतों पर मूर्तियों की उपासना करने वाले लोग आनन्द नहीं मनाएँगे; वे घबराएँगे। +\s5 +\v 8 मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ और मैं तुम पर दण्ड उण्डेलने वाला हूँ। मैं तुम्हारे द्वारा किए गए सब बुरे कार्यों के लिए तुम्हारा न्याय करूँगा और तुम्हारे घृणित व्यवहार के लिए तुमको बदला दूँगा। +\v 9 मैं तुम पर करुणा नहीं करूँगा या दया नहीं करूँगा। मैं तुम्हारे दुष्ट व्यवहार के लिए तुमको निश्चय ही दण्ड दूँगा। तब तुम जान जाओगे कि यह मैं, यहोवा, हूँ जिसने तुमको दण्ड दिया है। +\p +\s5 +\v 10 तुम्हारे दण्ड का दिन निकट है! वह पहुँच चुका है! तुम्हारे अहंकार के कारण तुम पर विपत्तियाँ आई हैं। +\v 11 लोग हिंसक कार्य कर रहे हैं और अधिक बुरे कार्य कर रहे हैं। और उन लोगों से सम्बन्धित कुछ भी नहीं छोड़ा जाएगा, उनके पैसे में से भी कुछ भी नहीं, और कोई भी उनका सम्मान नहीं करेगा। +\s5 +\v 12 अब समय है; वह दिन आ पहुँचा है। जो लोग सामान मोल लेते हैं उन्हें आनन्द नहीं मनाना चाहिए कि उन्होंने सामान बहुत सस्ता मोल लिया है और जो लोग सामान बेचते हैं उन्हें दुखी नहीं होना चाहिए कि उन्हें सामान सस्ता बेचना पड़ा, क्योंकि यहोवा हर किसी को दण्ड देंगे। +\v 13 जो लोग अपनी सम्पत्ति बेचेंगे वे कभी भी उसे वापस मोल लेने में समर्थ नहीं होंगे – वे इसे देखने में भी समर्थ नहीं होंगे; क्योंकि उन्होंने पाप किया है, उनमें से कोई भी जीवित नहीं रह पाएगा। +\s5 +\v 14 तुम्हारे सरदार सेना को युद्ध के लिए तैयार होने के लिए तुरही फूँकेंगे, परन्तु कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दिखाएगा, क्योंकि मैं सब लोगों पर क्रोधित होऊँगा। +\p +\v 15 जब ये बातें होती हैं, तो तुम्हारे शत्रु अपनी तलवारें ले कर शहर के बाहर होंगे, और शहर के भीतर विपत्तियाँ और अकाल होंगे। शहर के बाहर खेतों में पकड़े गए लोग अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे जाएँगे, और जो लोग शहर में हैं वे अकाल से और विपत्तियों से मर जाएँगे। +\v 16 जो जीवित रह जाएँगे और बच जाएँगे वे पर्वतों पर भाग जाएँगे, और वे सब उनके पापों के कारण विलाप करेंगे, जैसे कबूतर विलाप करते हैं। +\s5 +\v 17 क्योंकि वे बहुत डरेंगे, सब लोगों के हाथ विकलांग और दुर्बल हो जाएँगे, और उनके घुटने निर्बल हो जाएँगे और सीधे खड़े भी नहीं हो पाएँगे। +\v 18 वे टाट से बने कपड़ों को पहनेंगे, और वे डर जाएँगे। उनके चेहरों से प्रकट होगा कि वे लज्जित हैं, और वे अपना दुख प्रकट करने के लिए सिर मुँड़ाएँगे। +\v 19 वे अपनी चाँदी को सड़कों पर फेंक देंगे, और उनके सोने को वे कूड़े के समान समझेंगे, क्योंकि उन्हें पता चलेगा कि जब यहोवा उन्हें दण्ड देते हैं तब उनका चाँदी और सोना उन्हें बचाने में समर्थ नहीं है। वे अपना पेट भरने के लिए भोजन नहीं मोल ले पाएँगे, क्योंकि बहुत सारा सोना और चाँदी रखना उन्हें पाप की ओर ले गया है। +\s5 +\v 20 उन्हें घमण्ड था, इसलिए उन्होंने अपने झूठे देवताओं की घिनौनी और घृणित मूर्तियों को बनाने के लिए अपने सुन्दर गहनों का उपयोग किया। इसलिए मैं उन्हें दिखाऊँगा कि ये सब वस्तुएँ कितनी घृणित और अस्वीकार्य हैं। +\v 21 मैं उन लोगों का चाँदी और सोना उन विदेशी लोगों को दूँगा जो तुम्हारे देश पर आक्रमण करेंगे और तुम्हारे बहुमूल्य खजाने को लूट कर ले जाएँगे। मैं वे वस्तुएँ दुष्ट लोगों को दूँगा, और जब वे उन वस्तुओं के साथ अपमानजनक कार्यों को करेंगे, तो मैं हस्तक्षेप नहीं करूँगा। +\v 22 मैं लुटेरों को उस मन्दिर में प्रवेश करने की अनुमति दूँगा जिससे मैं प्रेम करता हूँ और जिसकी मैं रक्षा करता हूँ, और वे इसे अपमानित करेंगे। +\p +\s5 +\v 23 जब तुम्हारे शत्रु तुमको दण्ड के रूप में पकड़ लेते हैं तो बाँधने के लिए जंजीरों को तैयार करो क्योंकि पूरे देश में लोग हत्या कर रहे हैं, और शहर में रहने वाले लोग हिंसक हो रहे हैं। +\v 24 इसलिए मैं इस्राएलियों के घरों को लेने के लिए उन जातियों की सेनाएँ लाऊँगा जिनके लोग बहुत दुष्ट हैं। मैं इस्राएली लोगों को बोध कराऊँगा कि उन्हें अब घमण्डी नहीं होना चाहिए। तुम्हारे शत्रु तुम्हारी उपासना के स्थलों को आराधना के लिए स्वीकार्य नहीं रहने देंगे। +\v 25 जब तुम्हारे शत्रु तुमको डराते हैं, तो तुम उनसे शान्ति स्थापित करने की माँग करोगे, परन्तु कोई शान्ति नहीं होगी। +\s5 +\v 26 तुम कई विपत्तियों का सामना करोगे, और तुम निरन्तर अन्य स्थानों पर आनेवाली विपत्तियों के विषय में अफवाहें सुनोगे। लोग भविष्यद्वक्ताओं से अनुरोध करेंगे कि अपने दर्शनों के विषय में बताएँ, परन्तु भविष्यद्वक्ताओं को कोई दर्शन नहीं मिलेगा। याजक अब लोगों को उन कानूनों को नहीं सिखाएँगे जिन्हें मैंने मूसा को दिया था। यहाँ तक कि बुद्धिमान वृद्ध लोगों के पास कोई उत्तर नहीं होगा। +\v 27 तुम्हारा राजा शोक करेगा, और उसका पुत्र आशा नहीं करेगा कि अब कुछ अच्छा होगा। पूरे देश में लोगों के हाथ थरथराएँगे। और मैं उनके साथ उनके दुष्ट व्यवहार के योग्य ही व्यवहार करूँगा। मैं उसी तरह उनका न्याय करूँगा और उनकी निन्दा करूँगा जैसे उन्होंने दूसरों का न्याय किया और उनकी निन्दा की। तब वे जान जाएँगे कि जो कुछ भी मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, के पास शक्ति है।” + +\s5 +\c 8 +\p +\v 1 छठे महीने के पाँचवें दिन, बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश ले जाने के लगभग छः वर्ष बाद, मैं अपने घर में यहूदा के अगुवों के साथ बैठा था जब मुझे लगा कि यहोवा परमेश्वर की उपस्थिति फिर से मुझ पर प्रबल होने लगी है। +\v 2 फिर एक दर्शन में मैंने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा जो एक पुरुष जैसा था, परन्तु उसकी कमर के नीचे उसका शरीर आग के समान था और उसकी कमर के ऊपर का उसका शरीर बहुत गर्म धातु के समान चमक रहा था। +\s5 +\v 3 उसने कुछ बढ़ाया जो हाथ जैसा लग रहा था और मेरे सिर के बालों से मुझे पकड़ लिया। आत्मा ने मुझे पृथ्‍वी से ऊपर उठा लिया, और दर्शन में परमेश्वर मुझे बाबेल से यरूशलेम ले गया। वह मुझे मन्दिर के भीतर, उत्तरी द्वार तक ले गया, जहाँ एक ऐसी मूर्ति थी जिसने यहोवा को बहुत घृणा दिलाई और क्रोधित किया। +\v 4 और मेरे सामने वहाँ परमेश्वर की बहुत उज्ज्वल रोशनी थी जिसकी पहले इस्राएली लोगों ने आराधना की थी। यह उस दर्शन के समान था जिसे मैंने मैदान में देखा था। +\p +\s5 +\v 5 परमेश्वर ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, उत्तर की ओर देख!” अतः मैंने देखा, और मैंने वेदी के पास के प्रवेश द्वार पर उस मूर्ति को देखा जिसने यहोवा को घृणा दिलाई और क्रोधित किया था। +\p +\v 6 उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, क्या तू देखता है कि इस्राएली लोग क्या कर रहे हैं? वे घृणित कार्य कर रहे हैं, ऐसे कार्य जिनके कारण मुझे मेरे मन्दिर को त्यागना होगा। परन्तु तू उन कार्यों को देखेगा जो और भी घृणित हैं।” +\p +\s5 +\v 7 तब वह मुझे आँगन के प्रवेश द्वार पर लाए। मैंने दृष्टि की और दीवार में एक छेद देखा। +\v 8 उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, यहाँ दीवार में खोदना।” अतः मैंने दीवार में खोद दिया, और मैंने भीतर एक द्वार देखा। +\p +\v 9 उन्होंने मुझसे कहा, “भीतर जा कर दुष्टता और घृणा के कार्य देख जो वे यहाँ कर रहे हैं!” +\s5 +\v 10 अतः मैं द्वार से होकर भीतर गया और दृष्टि की, और मैंने एक बड़े कमरे की सभी दीवारों पर, सभी प्रकार के प्राणियों के जो धरती पर रेंगते हैं और अन्य घृणित जानवरों के चित्रों को, और उन सब मूर्तियों के चित्रों को देखा जिनकी इस्राएल के लोग उपासना करते थे। +\v 11 उनके सामने इस्राएल के सत्तर पुरनिए खड़े थे। शापान का पुत्र याजन्याह उनके बीच खड़ा था। उनमें से प्रत्येक ने एक थाली पकड़ रखी थी जिसमें धूप जल रही थी, और जलती हुई धूप का सुगन्धित धुआँ उठ रहा था। +\p +\s5 +\v 12 परमेश्वर ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, देख, इस्राएली पुरनिए यहाँ अँधेरे में क्या कर रहे हैं, उनमें से प्रत्येक बनाई हुए प्रतिमाओं के साथ अपने-अपने कमरे में खड़े हैं, और अपनी मूर्तियों की उपासना कर रहे हैं! वे कह रहे हैं, ‘यहोवा हमें नहीं देखते हैं; यहोवा ने इस देश को त्याग दिया है।’” +\v 13 उन्होंने यह कहा, “परन्तु तू उन कार्यों को देखेगा जो और भी घृणित हैं!” +\p +\s5 +\v 14 फिर वह मुझे मन्दिर के बाहर के उत्तरी प्रवेश द्वार पर ले गए। मैंने वहाँ स्त्रियाँ बैठी देखीं, जो बाबेल के लोगों के देवता तम्मूज की मृत्यु के लिए शोक कर रही थीं। +\v 15 उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, क्या तू इसे देखता है? तू उन कार्यों को भी देखेगा जो इससे अधिक घृणित हैं!” +\p +\s5 +\v 16 फिर वह मुझे मन्दिर के भीतरी आँगन में ले गए। वहाँ मन्दिर के प्रवेश द्वार पर, ओसारे और वेदी के बीच, लगभग पच्चीस पुरुष थे। उनकी पीठ मन्दिर की ओर थी, और उनके चेहरे पूर्व की ओर थे; वे सूरज की उपासना करने के लिए झुक रहे थे क्योंकि यह पूर्व में उगता था। +\p +\s5 +\v 17 उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, क्या तू देखता है कि वे क्या कर रहे हैं? तेरी समझ में यहूदा के लोग जो कर रहे हैं वह क्या गम्भीर बात नहीं है कि वे यहाँ इन घृणित वस्तुओं की उपासना कर रहे हैं? परन्तु वे अन्य भयानक कार्यों को भी कर रहे हैं। वे अपने पूरे देश में हिंसा से कार्य कर रहे हैं, और निरन्तर मेरे क्रोध को उकसा रहे हैं। वे झूठी उपासना करके मेरा अपमान कर रहे हैं। +\v 18 इसलिए मैं उन्हें दिखाऊँगा कि मैं बहुत क्रोधित हूँ। मैं उन पर कृपा नहीं करूँगा या उन पर दया नहीं करूँगा। और यहाँ तक कि यदि वे सहायता करने के लिए मुझे चिल्ला चिल्लाकर पुकारने लगें, मैं उन पर ध्यान नहीं दूँगा।” + +\s5 +\c 9 +\p +\v 1 तब यहोवा ने ऊँचे शब्द से पुकार कर कहा, “तुम लोग जो इस शहर को दण्ड देने जा रहे हो, यहाँ अपने विनाश के साधन लाओ।” +\v 2 तब मैंने छः मनुष्यों को मन्दिर के उत्तर द्वार से आते देखा। प्रत्येक के हाथ में एक हथियार था। उनके साथ सफेद सनी का वस्त्र पहने हुए एक पुरुष था। वह अपने साथ एक बक्सा लिए हुए था जिसमें लिखने का सामान था। वे सब भीतर आए और पीतल की वेदी के पास खड़े हो गए। +\p +\s5 +\v 3 तब वह महिमा जो इस्राएल के परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक थी चार पंखों वाले प्राणियों से ऊपर उठ गई और मन्दिर के प्रवेश द्वार से चली गई, और यहोवा ने सनी का वस्त्र पहने हुए पुरुष को पुकारा, +\v 4 और उससे कहा, “सम्पूर्ण यरूशलेम में जा और उन लोगों के माथे पर चिन्ह डाल जो शहर में होने वाले घृणित कार्यों के कारण बहुत दुखी हैं।” +\p +\s5 +\v 5 जब मैं सुन रहा था, तब उन्होंने अन्य छः लोगों से कहा, “सफेद वस्त्र पहने हुए पुरुष का अनुसरण करो, और लोगों को मार डालो। उन पर दया नहीं करना या उनके साथ दया का व्यवहार नहीं करना। +\v 6 बूढ़े पुरुषों, युवा पुरुषों और स्त्रियों, बुजुर्ग स्त्रियों और बच्चों को घात करो; परन्तु उन लोगों में से किसी को भी हानि न पहुँचाओ जिनके माथे पर वह चिन्ह है। मेरे मन्दिर से आरम्भ करो।” अतः उन्होंने मन्दिर के सामने मूर्तियों की उपासना करने वाले प्राचीनों से नरसंहार आरम्भ किया। +\p +\s5 +\v 7 तब यहोवा ने उन पुरुषों से कहा, “तुम्हारे द्वारा मारे गए लोगों के शवों से आँगन को भर कर मन्दिर को अशुद्ध करो! अब आरम्भ करो!” अतः वे बाहर चले गए और पूरे शहर में लोगों की हत्या करना आरम्भ कर दिया। +\v 8 जब वे ऐसा कर रहे थे, मैं अकेला छोड़ दिया गया था। मैंने स्वयं को भूमि पर मुँह के बल गिरा दिया और रोने लगा, “हे यहोवा मेरे परमेश्वर, क्या आप यरूशलेम पर क्रोध बरसाकर इस्राएल के उन सब लोगों को नाश करने जा रहे हैं जो अभी भी जीवित हैं?” +\p +\s5 +\v 9 उन्होंने उत्तर दिया, “लोगों के पाप असंख्य और गम्भीर हैं! देश में हर स्थान में हत्या हुई है, और यह शहर उन लोगों से भरा है जो अन्याय से कार्य करते हैं। वे कहते हैं, ‘यहोवा ने इस देश को त्याग दिया है, और वह नहीं देखते कि हम क्या कर रहे हैं।’ +\v 10 इसलिए मैं उन पर कृपा नहीं करूँगा या उनके साथ दया का व्यवहार नहीं करूँगा। मैं उनके साथ वही बुरे कार्य करूँगा जो उन्होंने अन्य लोगों के साथ किए हैं।” +\p +\v 11 तब सनी का वस्त्र पहने हुए पुरुष ने वापस आकर कहा, “मैंने वह कर दिया है जिसको करने का आदेश आपने मुझे दिया था।” + +\s5 +\c 10 +\p +\v 1 तब मैंने चार पंख वाले प्राणियों के सिर के ऊपर एक गुम्मट जैसी दिखने वाली वस्तु के ऊपर कुछ देखा जो नीलमणि से बने सिंहासन जैसा दिखता था। +\v 2 यहोवा ने सनी का वस्त्र पहने हुए पुरुष से कहा, “पंखों वाले प्राणियों के नीचे के पहियों के बीच जा। जितने उठा सके उतने गर्म कोयले उठा, और उन्हें शहर में बिखरा दे।” और मेरे देखते-देखते, सफेद वस्त्र पहने हुए वह पुरुष चला गया। +\p +\s5 +\v 3 चार पंख वाले प्राणी मन्दिर के दक्षिण की ओर खड़े थे जब सफेद वस्त्र पहने हुए उस पुरुष ने प्रवेश किया था। फिर एक बादल ने मन्दिर के भीतरी आँगन को भर दिया। +\v 4 और यहोवा की महिमा सीधे पंख वाले प्राणियों के ऊपर से निकल कर मन्दिर के द्वार पर खड़ी हो गई। उसने पूरे मन्दिर को बादल से भर दिया और आँगन में सब कुछ यहोवा की महिमामय उपस्थिति के कारण उज्ज्वल था। +\v 5 मैंने मन्दिर के बाहर के आँगन में पंख वाले प्राणियों के पंखों द्वारा उत्पन्न की गई आवाज भी सुनी। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आवाज के समान बहुत प्रबल थी। +\p +\s5 +\v 6 जब यहोवा ने सनी का वस्त्र पहने हुए पुरुष को उन पंखों वाले प्राणियों से जलते हुए कोयले लेने की आज्ञा दी, तो वह पुरुष आँगन में गया और पहियों में से एक के पास खड़ा हो गया। +\v 7 तब उन पंखों वाले प्राणियों में से एक ने अपने हाथ को उस आग की ओर बढ़ाया जो उनके बीच थी। उसने कुछ कोयले उठाए और उन्हें सनी का वस्त्र पहने हुए पुरुष के हाथों में रख दिए, और उस पुरुष ने उन्हें ले लिया और चला गया। +\v 8 पंख वाले प्राणियों के पंखों के नीचे मनुष्य के हाथों जैसा कुछ दिखता था। +\p +\s5 +\v 9 तब मैंने पंख वाले प्राणियों के साथ चार पहियों को देखा। प्रत्येक पंख वाले प्राणियों के बगल में एक पहिया था। पहिये बहुत मूल्यवान पत्थरों के समान चमकते थे। +\v 10 सभी पहिये एक जैसे थे: हर एक के पास पहिया था जो दूसरे पहिये में जुड़ा हुआ था। +\v 11 जब भी वे चलते थे, तब वे सीधे उसी दिशा में चलते थे जिस दिशा में किसी एक पंख वाले प्राणी का मुँह होता था। पंखों वाले प्राणियों के उड़ने के समय पहिये किसी और दिशा में नहीं मुड़े। +\s5 +\v 12 उनके शरीर, उनकी पीठ और हाथ और पंख सब में अनेक, आँखें थीं। पहियों में भी अनेक आँखें थीं। +\v 13 मैंने सुना कि किसी ने उन्हें ‘घुमावदार पहिये’ कहा है। +\v 14 पंखों वाले प्रत्येक प्राणी के चार चेहरे थे। एक चेहरा एक बैल के चेहरे के समान था, एक चेहरा मनुष्य के चेहरे के समान था, एक चेहरा शेर के चेहरे के समान था, और एक चेहरा एक उकाब के चेहरे के समान था। +\p +\s5 +\v 15 तब पंख वाले प्राणी उठ खड़े हुए। वे वही जीवित प्राणी थे जिन्हें मैंने कबार नदी के पास देखा था। +\v 16 जब पंख वाले प्राणी चलते थे, तो पहिये उनके साथ चलते थे। जब पंख वाले प्राणी धरती से ऊपर उड़ने के लिए अपने पंख फैलाते थे, तो पहियों ने उन्हें नहीं छोड़ा, वे उनकी बगल में ही रहे। +\v 17 जब पंख वाले प्राणी रुक गए, तो पहिये रुक गए। जब पंख वाले प्राणी उड़ने लगे, तो पहिये उनके साथ उड़े, क्योंकि जीवित प्राणियों की आत्मा पहियों में थी। +\p +\s5 +\v 18 तब यहोवा की महिमा ने मन्दिर के प्रवेश द्वार को छोड़ दिया और पंखों वाले प्राणियों के ऊपर आकर रुक गई। +\v 19 मेरे देखते-देखते, पंख वाले प्राणियों ने अपने पंख फैलाए और उड़ने लगे, और पहिये उनके साथ चले गए। वे मन्दिर के पूर्व की ओर द्वार पर रुक गए, और परमेश्वर की महिमा, जिनकी इस्राएली आराधना करते थे, उनके ऊपर थी। +\p +\s5 +\v 20 ये वही चार जीवित प्राणी थे जिन्हें मैंने कबार नदी के पास देखा था, और मैंने जान लिया कि वे पंख वाले प्राणी थे। +\v 21 उनमें से प्रत्येक के चार चेहरे और चार पंख थे, और उनके पंखों के नीचे मनुष्य के हाथ जैसा कुछ था। +\v 22 उनके चेहरे उन चेहरों के समान थे जो मैंने कबार नदी पर देखे थे। उनमें से प्रत्येक सीधा आगे को उड़ा। + +\s5 +\c 11 +\p +\v 1 तब परमेश्वर के आत्मा ने मुझे उठा लिया और मुझे मन्दिर के पूर्व की ओर द्वार पर ले गया। द्वार पर पच्चीस पुरुष थे। उनमें से मैंने अज्जूर के पुत्र याजन्याह और बनायाह के पुत्र पलत्याह को देखा, जो लोगों के प्रधान थे। +\s5 +\v 2 यहोवा ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, ये यरूशलेम के नए अगुवे हैं जो बुरे कार्य करने की योजना बना रहे हैं और जो इस नगर में लोगों को गलत परामर्श दे रहे हैं। +\v 3 वे कहते हैं, ‘अभी घर बनाने का समय नहीं है, परन्तु जैसे माँस के टुकड़े ढके हुए बर्तनों में सुरक्षित रखे जाते हैं, वैसे ही हम उन बुराइयों से सुरक्षित रहेंगे जो दूसरों के साथ होंगी।’ +\v 4 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, उन भयानक बातों की भविष्यद्वाणी कर जो उनके साथ होंगी।” +\p +\s5 +\v 5 तब यहोवा का आत्मा मुझ पर आया और मुझे लोगों से कहने के लिए कहा, “यहोवा कहते हैं, ‘तुम इस्राएली लोग उन बातों को कहते हो, और मैं जानता हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो। +\v 6 तुमने इस शहर में कई लोगों को मारा है और उनके शवों से सड़कों को भर दिया है। +\p +\v 7 इस कारण यहोवा परमेश्वर कहते हैं, ‘जिन लोगों को तुमने यहाँ मार डाला है, उनके शव माँस के समान हैं और यरूशलेम पात्र है, परन्तु मैं तुमको इस शहर से निकाल दूँगा! +\s5 +\v 8 तुम शत्रु की तलवारों से मारे जाने से डरते हो, इसलिए मैं तुम्हारे साथ ऐसा ही होने दूँगा। +\v 9 मैं तुमको इस शहर से निकाल दूँगा और विदेशियों को इस योग्य कर दूँगा कि वे तुमको पकड़ें और दण्ड दें। +\v 10 वे तुमको तलवारों से मार डालेंगे; इस्राएल में तुमको दण्ड दिया जाएगा! तब वे लोग जान जाएँगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\s5 +\v 11 यह शहर ऐसा स्थान नहीं होगा जहाँ तुम एक ढके हुए पात्र में माँस के समान सुरक्षित होगे। तुम इस्राएल में जहाँ भी हों, मैं तुमको दण्ड दूँगा। +\v 12 तब तुम जान जाओगे कि, यह भविष्यद्वाणी मेरी अर्थात् यहोवा ही की है कि ऐसा होगा, क्योंकि तुमने मेरे आदेशों और आज्ञाओं का पालन नहीं किया है; इसकी अपेक्षा, तुमने आस-पास के देशों के लोगों के दुष्ट व्यवहार की नकल की है।” +\p +\s5 +\v 13 जब मैं यह भविष्यद्वाणी कर रहा था, तब बनायाह का पुत्र पलत्याह अकस्मात ही मर गया। तब मैं भूमि पर मुँह के बल गिर गया और जोर से रोने लगा, “हे यहोवा मेरे परमेश्वर, क्या आप इसी तरह के सब इस्राएली लोगों का ऐसे ही नाश करेंगे जो अभी भी जीवित हैं?” +\p +\s5 +\v 14 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया, +\v 15 “हे मनुष्य के पुत्र, जो लोग यरूशलेम में अभी भी हैं, वे तेरे सम्बन्धियों, तेरे वंश और अन्य इस्राएली लोगों के विषय में बात कर रहे हैं, जिन्हें बन्धुआ बनाया गया था और कह रहे हैं, ‘वे बाबेल में हैं, यहोवा से बहुत दूर हैं। उन्होंने यहाँ इस्राएल में उनकी सम्पत्ति को छोड़ दिया है, इसलिए उनकी सम्पत्ति अब हमारी है।’” +\p +\s5 +\v 16 इसलिए उनसे कह, “यहोवा परमेश्वर कहते हैं: यद्दपि मैंने उन्हें इस्राएल से बहुत दूर जाने दिया और उन्हें अन्य देशों में तितर बितर कर दिया, थोड़े समय के लिए मैं उन देशों में उनके लिए शरणस्थान बन गया हूँ जिनमें उन्हें ले जाया गया है।” +\p +\v 17 इसलिए उनसे यह भी कह, “यहोवा परमेश्वर कहते हैं: एक दिन मैं तुमको उन देशों में एकत्र करूँगा जिसमें तुमको ले जाया गया है और तुमको वापस इस्राएल में ले आऊँगा, और तुम फिर से अपने देश में रहोगे। +\p +\v 18 जब तुम अपने देश लौट आओगे, तब तुम उन सब अशुद्ध देवताओं की प्रतिमाओं से और घृणित मूर्तियों को त्याग दोगे। +\s5 +\v 19 मैं तुम इस्राएली लोगों को एक नया मन दूँगा और जब तुम इस्राएल लौट जाओगे तब मैं तुमको सोचने की एक नई विधि दूँगा। तुम हठीले नहीं आज्ञाकारी होंगे। +\v 20 जब मैं ऐसा करूँगा, तब तुम मेरे सब नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करोगे। तुम मेरे लोग होगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा। +\v 21 परन्तु उनके लिए जो लोग अपनी अपवित्र प्रतिमाओं और घृणित मूर्तियों की उपासना करने के लिए समर्पित हैं, जैसा उन्होंने किए है, उन बुरे कार्यों के कारण मैं उनको उनके योग्य ही दण्ड दूँगा।” यहोवा ने यही घोषित किया है। +\p +\s5 +\v 22 तब पंख वाले प्राणियों ने उनके बगल के अपने पहियों के साथ, अपने पंख फैलाए और हवा में उड़ गए, और यहोवा की उज्जवल चमक उनके ऊपर थी। +\v 23 वह प्रकाश शहर से दूर चला गया और पर्वत के ऊपर शहर के पूर्व में रुक गया। +\s5 +\v 24 दर्शन में जो मैं देख रहा था, उसमें परमेश्वर के आत्मा ने मुझे उठा लिया और मुझे बाबेल में बन्धुओं के पास वापस ले आया। फिर दर्शन समाप्त हो गया, +\v 25 और मैंने बन्धुओं को सब कुछ बताया जो यहोवा ने मुझे दर्शन में दिखाया था। + +\s5 +\c 12 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, तू उन लोगों के बीच रह रहा है जो बहुत विद्रोही हैं। उनके पास आँखें हैं, परन्तु वह नहीं देखते जो मैं चाहता हूँ कि वे देखें; उनके पास कान हैं, परन्तु वह नहीं सुनते हैं जो मैं चाहता हूँ कि वे सुनें, क्योंकि वे ऐसे ही विद्रोही लोग हैं। +\p +\s5 +\v 3 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, अपना सामान बाँध ले जैसे कि तू बन्धुआई में जा रहा है। फिर, दिन के समय, जब लोग देख रहे हों, एक अन्य जगह पर जाने के लिए तैयारी कर। भले ही लोग विद्रोही हैं, हो सकता है वे समझेंगे कि तू किस बात का संकेत दे रहा है। +\s5 +\v 4 दिन के समय, जब वे देख रहे हों, उस सामान को बाहर ला जिन्हें तू ले जाना चाहता है, और उन्हें बाँध। फिर शाम को, जब वे देख रहे हों, तो वह कर जो बन्धुआई में जाने की तैयारी करने वाले लोग करते हैं। +\v 5 घर की दीवार में खोद कर एक छेद कर और छेद में से अपना सामान निकाल। +\v 6 जब वे देख रहे हों उस सामान को एक बोरे में डाल कर अपने कंधे पर रख, और जब अंधेरा हो जाए तो चले जा। अपना चेहरा ढक कि तू रास्ते को न देख सके। मैं चाहता हूँ कि तू ऐसा करे क्योंकि मैं चाहता हूँ कि तू इस्राएली लोगों के लिए चेतावनी दे।” +\p +\s5 +\v 7 इसलिए मैंने वही किया जो यहोवा ने मुझे करने के लिए कहा था। तब दिन के समय मैं अपने घर से सामान बाहर लाया जैसे कि मैं बन्धुआई में जाने के लिए सामान बाँध रहा हूँ। फिर शाम को मैंने घर की दीवार में खुदाई की। फिर जब लोग देख रहे थे, तो मैंने अपने सामान के बोरे को कंधे पर रखा और निकल गया। +\p +\s5 +\v 8 अगली सुबह, यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया, +\v 9 “हे मनुष्य के पुत्र, क्या इस्राएल के विद्रोही लोगों ने तुझसे नहीं पूछा, ‘तू क्या कर रहा है?’ +\p +\v 10 इसलिए वापस जा और उनसे कह, ‘जो मैंने किया है वह यरूशलेम के राजा और इस्राएल के अन्य सब लोगों के विषय में है जो यहाँ हैं।’ +\s5 +\v 11 उन्हें बता, ‘मैंने जो किया वह तुम्हारे लिए एक चेतावनी है। मैंने तुम्हारे सामने जो किया है, वैसा ही उन्हें भी करना होगा। उन्हें पकड़ लिया जाएगा और दूसरे देश में जाने के लिए विवश किया जाएगा। +\v 12 जब अंधेरा हो जाएगा तब उनका राजा अपने सामान को अपने कंधे पर रखेगा और वह भागने का प्रयास करेगा। उसके कर्मचारी शहर की दीवार में एक छेद खोदेंगे, और वह इसमें से अपना सामान ले जाएगा। वह अपने चेहरे को ढँक लेगा कि उसे कोई पहचान न सके और वह भूमि को देख नहीं पाएगा। +\v 13 परन्तु ऐसा होगा मानों मैं उसको पकड़ने के लिए एक जाल फैलाऊँगा; शत्रु के सैनिक उसे पकड़ लेंगे, उसे अंधा कर देंगे, और उसे बाबेल शहर में ले जाएँगे जहाँ कसदी लोग रहते हैं। परन्तु वह यह देख नहीं पाएगा क्योंकि वह अंधा होगा; और वहाँ वह मर जाएगा। +\s5 +\v 14 मैं जो उसके साथ के सब लोगों को चारों दिशा में तितर बितर कर दूँगा – उसके सलाहकारों को और उसके सैनिकों को – और मैं उसके शत्रुओं को उनका पीछा करने के लिए प्रेरित करूँगा, उनकी तलवारें उन्हें मारने के लिए तैयार होंगी। +\p +\v 15 फिर, जब मैं उन्हें कई राष्ट्रों में तितर बितर कर दूँगा, तब वे जान जाएँगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा में शक्ति है। +\v 16 परन्तु मैं उनमें से कुछ को तलवार से मरने से, या भूख से मरने से, या बीमारी से मरने से बचाऊँगा कि वे अपने घृणित कार्यों का लेखा रख सकें, और वे जान जाएँगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 17 तब यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 18 “हे मनुष्य के पुत्र, जब तू अपना खाना खाए, तो घबरा, और अपना पानी पीते समय भय से थरथरा। +\s5 +\v 19 इस्राएली लोगों से यह कह: ‘यहोवा परमेश्वर उन लोगों के विषय में जो अब भी यरूशलेम में हैं, और इस्राएल के अन्य स्थानों में रहते हैं, यह कहते हैं। वे भी बहुत ही चिन्तित होंगे जब वे अपना खाना खाएँगे और अपना पानी पीएँगे, क्योंकि शीघ्र ही उनके देश में से सब कुछ दूर ले जाया जाएगा। ऐसा इसलिए होगा कि वहाँ रहने वाले लोग निरन्तर बहुत हिंसक कार्य करते हैं। +\v 20 जिन नगरों में लोग रहते हैं वे नष्ट हो जाएँगे, और भूमि बंजर हो जाएगी। तब तुम लोग जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 21 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 22 “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल में रहने वाले लोगों में यह कहावत है, ‘दिन जाते रहते हैं, और भविष्यद्वक्ता जो भविष्यद्वाणी करते हैं वह कभी पूरी नहीं होती।’ +\v 23 इसलिए उनसे कह, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: मैं यह सिद्ध करने जा रहा हूँ कि वे जो कहते हैं वह सही नहीं है, और वे इस्राएल में फिर कभी ऐसा नहीं कहेंगे।’ उनसे कह, ‘शीघ्र ही वह समय आएगा जब भविष्यद्वक्ताओं की भविष्यद्वाणी की हर बात पूरी होगी। +\s5 +\v 24 भविष्यद्वक्ता अब इस्राएली लोगों को झूठे दर्शन नहीं बताएँगे, या सिर्फ लोगों को प्रसन्न करने के लिए उन्हें भविष्यद्वाणियाँ नहीं सुनाएँगे। +\v 25 इसकी अपेक्षा, मैं, यहोवा, वह कहूँगा जो मैं लोगों से कहना चाहता हूँ, और जो मैं भविष्यद्वाणी करता हूँ वह शीघ्र ही पूरी होगा। तुम विद्रोही लोगों, मैं जो कुछ भी कहूँगा वह होगा, मैं वह सब कुछ होने दूँगा। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ।” +\p +\s5 +\v 26 यहोवा ने मुझे यह सन्देश भी दिया। उन्होंने कहा, +\v 27 “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएली लोग निरन्तर तेरे विषय में कह रहे हैं, ‘जो भी बातें वह दर्शन में देखता है वह शीघ्र नहीं घटेंगी। वे उन बातों के विषय में हैं जो अब से कई वर्षों के बाद भविष्य में घटित होंगी।’ +\p +\v 28 इसलिए उनसे कह, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: जिन बातों की मैंने भविष्यद्वाणी की है उनमें से किसी के होने में मैं अब देरी नहीं करूँगा। जो भी मैंने भविष्यद्वाणी की है वह शीघ्र ही पूरी होगी।” + +\s5 +\c 13 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, उन भविष्यद्वक्ताओं के विरुद्ध चेतावनी की भविष्यद्वाणी कर जो यरूशलेम में भविष्यद्वाणी कर रहे हैं। उनमें से कुछ उन बातों की भविष्यद्वाणी कर रहे हैं जिसकी उन्होंने स्वयं कल्पना की है। उनसे कह, ‘सुनो कि यहोवा क्या कहते हैं! +\v 3 वह कहते हैं, “उन दुष्ट भविष्यद्वक्ताओं के साथ भयानक बातें होंगी जो अपने स्वयं के विचारों का प्रचार करते हैं, उन्होंने मेरी ओर से कोई दर्शन नहीं देखे हैं। +\v 4 हे इस्राएली लोगों, तुम्हारे भविष्यद्वक्ता मरुस्थल में सियारों के समान हैं, वे दूसरों की हानि से खाने वाले सड़क के सफाई कर्मचारी हैं। +\s5 +\v 5 क्योंकि तुम उन्हें सुन रहे थे, तुमने अपने शहर की दीवारों को सुधार कर दरारें नहीं भरी कि वे दृढ़ हों। ऐसा करने की आवश्यकता थी कि जब मैं, यहोवा, तुम्हारे शत्रुओं को तुम पर आक्रमण करने के लिए भेजूँ तो दीवारें मजबूत हों। +\v 6 उन भविष्यद्वक्ताओं के दर्शन और भविष्यद्वाणियाँ झूठी हैं। वे कहते हैं, ‘यहोवा ने मुझे यह बताया।’ मैंने उन भविष्यद्वक्ताओं को मेरा भविष्यद्वक्ता होने के लिए तुम्हारे पास नहीं भेजा है, परन्तु तुम आशा करते हो कि उनकी भविष्यद्वाणी वास्तव में पूरी होगी! +\v 7 वे कहते हैं कि उन्होंने दर्शन देखे हैं, परन्तु वे दर्शन झूठे हैं, और जिन बातों की वे भविष्यद्वाणी करते हैं वे झूठी हैं। वे कहते हैं, ‘यहोवा ने मुझे यह बताया,’ परन्तु मैंने उन्हें कुछ भी नहीं बताया है! +\p +\s5 +\v 8 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: क्योंकि तुम भविष्यद्वक्ताओं ने वह कहा है जो झूठ है और क्योंकि तुम्हारे दर्शन झूठे हैं, मैं तुम्हारे विरोध में हूँ। +\v 9 मैं तुम सब भविष्यद्वक्ताओं पर आक्रमण करूँगा जो झूठ बोलते हैं कि तुमने दर्शन देखे हैं और उन बातों की भविष्यद्वाणी करते हैं जो झूठी हैं। मेरे लोगों के बीच तुम्हारे लिए कोई स्थान नहीं होगा, तुम्हारे नाम इस्राएली लोगों के अभिलेखों में लिखे नहीं जाएँगे, और तुम कभी भी इस्राएल वापस नहीं लौटेंगे। तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\p +\s5 +\v 10 वे मेरे लोगों को यह कहते हुए धोखा देते हैं, “हमारे लिए सब कुछ अच्छा ही होगा” जबकि अच्छा नहीं होगा। ऐसा लगता है कि वे लोगों के मन में यह डालते हैं कि वहाँ एक बहुत ठोस दीवार है जबकि वह ठोस नहीं है। +\v 11 इसलिए, उन भविष्यद्वक्ताओं से कह जिस दीवार को सफेदी करके ढाँक देते हैं वह निश्चित रूप से गिर जाएगी। बहुत भारी वर्षा होगी। मैं उसे गिराने के लिए बड़े-बड़े ओले भेजूँगा। उस पर बहुत तेज हवाएँ लगेंगी। +\v 12 जब दीवार गिर जाएगी, तब लोग निश्चय उन भविष्यद्वक्ताओं से कहेंगे, “सफेद चूने ने निश्चित रूप से दीवार को मजबूत नहीं बनाया!” +\p +\s5 +\v 13 इसलिए मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: क्योंकि मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ, मैं यरूशलेम को नष्ट करने के लिए शत्रु की सेना भेजूँगा। यह ऐसा होगा जैसे कि मैं तुमको नष्ट करने के लिए एक आँधी और ओले और भारी वर्षा भेजूँगा। +\v 14 तुम्हारे भविष्यद्वक्ताओं की झूठी भविष्यद्वाणियाँ एक ऐसी दीवार के समान हैं जिस पर उन्होंने चूना फेर दिया है, परन्तु मैं इसे तोड़ कर गिरा दूँगा, और इसे भूमि पर बिखरा दूँगा, जिसके कारण लोग इसकी नींव देख सकेंगे। जब दीवार गिर जाएगी तब तुम भी मारे जाओगे, और हर कोई यह जान लेगा कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\s5 +\v 15 इस तरह से मैं दिखाऊँगा कि मैं दीवार से और उन लोगों से बहुत क्रोधित हूँ जो इस पर चूना फेरते हैं। और मैं कहूँगा, “दीवार चली गई है और जिन लोगों ने इस पर चूना फेरा था, उन्हें मार दिया गया है।” +\v 16 वे वही भविष्यद्वक्ता हैं जिन्होंने भविष्यद्वाणी की थी कि यरूशलेम में रहने वाले लोगों का कल्याण ही होगा जबकि उनकी दशा अच्छी नहीं होगी। +\p +\s5 +\v 17 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, दिखा कि तू यरूशलेम की स्त्रियों से क्रोधित है, जो अपनी कल्पना की भविष्यद्वाणी करती हैं, और उनके विरुद्ध सच्ची भविष्यद्वाणी कर। +\v 18 उनसे कह, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: तुम स्त्रियों के साथ भयानक बातें होंगी जो अपनी कलाईयों पर तन्त्र मन्त्र के धागे बाँधती हो और लोगों को धोखा देने के लिए अपने सिरों पर रखने के लिए अलग-अलग आकारों के घूँघट बनाती हो। तुम क्या सोचती हो कि तुम लोगों को भविष्य की बातें बता कर धोखा दोगी, और अपने स्वयं के जीवन को बचा लोगी। +\s5 +\v 19 तुमने मेरे लोगों से कुछ मुट्ठी भर जौ और रोटी के कुछ टुकड़ों के लिए झूठ बोल कर मुझे अपमानित किया है। मेरे लोग झूठी बातों को सुनते हैं; और तुम स्त्रियाँ जो उनसे झूठ बोल रही हो, तुमने ऐसे लोगों को मारे जाने दिया है जो मरने के योग्य नहीं हैं, और उन लोगों को छोड़ दिया है जिनको जीवित नहीं रहना चाहिए।’ +\p +\s5 +\v 20 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, उन स्त्रियों से यही कहता हूँ: ‘मैं तुम्हारे तन्त्र मन्त्र के धागों से घृणा करता हूँ जिसके द्वारा तुम लोगों को धोखा देती हो जैसे लोग पक्षियों को जाल में फँसाते हैं। मैं उन धागों को तुम्हारी कलाई से तोड़ कर फेंक दूँगा, और मैं उन लोगों को जिन्हें तुमने धोखा दिया है अब तुम्हारे द्वारा और धोखा नहीं खाने दूँगा। +\v 21 मैं तुम्हारे घूँघटों को भी फाड़ डालूँगा और अपने लोगों को तुम्हारे द्वारा धोखा खाते रहने से बचाऊँगा, और अब वे तुम्हारे नियंत्रण में नहीं रहेंगे। तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\s5 +\v 22 तुमने उनसे झूठ बोल कर धर्मी लोगों को हतोत्साहित किया है जबकि मैंने उन्हें दुखी होने का कोई कार्य नहीं किया था। और तुमने दुष्ट लोगों को दुष्ट व्यवहार करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया है; अगर वे इससे दूर हो गए होते, तो वे जीवित रहते। +\v 23 इसलिए, अब तुम झूठ नहीं कहोगे कि तुमने दर्शन देखा है या लोगों को आनन्दित करने के लिए उनको झूठ नहीं बताओगे कि भविष्य में क्या होगा। मैं अपने लोगों को तुम्हारे द्वारा धोखा खाने से बचाऊँगा। और तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है।” + +\s5 +\c 14 +\p +\v 1 एक दिन इस्राएल के कुछ पुरनिए मेरे पास आए और मेरे सामने बैठ गए। +\v 2 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 3 “हे मनुष्य के पुत्र, ये लोग मूर्तियों की उपासना करते हैं, और वे मूर्तियों से पाप करने की प्रेरणा पाते हैं। इसलिए यदि वे मुझसे मार्गदर्शन खोजें तो क्या मुझे उनका उत्तर देना चाहिए? +\s5 +\v 4 परन्तु उनसे यह कहो: ‘यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं: जब कोई इस्राएली जन उन मूर्तियों की उपासना करना चाहता है जो उन्हें पाप करने के लिए प्रेरित करेंगी, और मार्गदर्शन के लिए किसी भविष्यद्वक्ता के पास जाता है, तो मैं, यहोवा, उसे वही उत्तर दूँगा जिसके वे योग्य हैं क्योंकि वे मूर्तियों की उपासना करते हैं। +\v 5 मैं ऐसा करूँगा जिससे कि इस्राएली लोग, जिन्होंने अपनी मूर्तियों की उपासना करने के लिए मुझे छोड़ दिया है, फिर से मेरी सच्ची आराधना करेंगे। +\p +\s5 +\v 6 इस कारण, इस्राएली लोगों से कह, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: पश्चाताप करो! अपनी मूर्तियों की उपासना करना त्याग दो, और अपने घृणित व्यवहार से मुक्ति पाओ! +\p +\s5 +\v 7 जब आप में से कोई भी इस्राएली जन या आपके बीच रहने वाला कोई भी विदेशी मुझसे दूर हो जाता है और मूर्तियों की उपासना करना आरम्भ करता है जिनसे उसे पाप करने की प्रेरणा मिलती है, और फिर वह किसी भविष्यद्वक्ता के पास जाता है कि मेरी इच्छा को जाने कि मैं उससे क्या चाहता हूँ कि वह करे, तो मैं स्वयं उसे उत्तर दूँगा। +\v 8 मैं दिखाऊँगा कि मैं उससे घृणा करता हूँ, और दूसरों की चेतावनी के लिए वह करता हूँ जो उसके साथ घटित होता है, और उसे एक ऐसा व्यक्ति बना देता हूँ जिसे लोग तुच्छ मानते हैं। मैं उसे अपने लोगों के साथ जुड़ने नहीं दूँगा। तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\p +\s5 +\v 9 और यदि किसी भविष्यद्वक्ता ने धोखा दिया है और झूठी भविष्यद्वाणी की है, भले ही मैंने उसे यह सन्देश देने की अनुमति दी है, मैं उससे छुटकारा पाऊँगा और उसे अपने इस्राएली लोगों में से हटा दूँगा। +\v 10 भविष्यद्वक्ता और वह जो उससे परामर्श खोजता है दोनों दोषी होंगे, और मैं उन दोनों को दण्ड दूँगा। +\v 11 फिर इस्राएली लोग अब मुझे त्यागे नहीं रहेंगे, और उनके पापों के कारण वे अब मेरे लिए अस्वीकार्य नहीं होंगे। वे मेरे लोग होंगे, और मैं उनका परमेश्वर होऊँगा। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ।” +\p +\s5 +\v 12 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 13 “हे मनुष्य, यदि किसी देश के लोग मुझे छोड़ कर मेरे विरुद्ध पाप करते हैं, और मैं उनकी भोजन आपूर्ति काट कर और उन पर अकाल भेज कर उन्हें दण्ड देता हूँ कि लोग और जानवर मर जाएँ, +\v 14 यहाँ तक कि यदि नूह, दानिय्येल और अय्यूब भी वहाँ हों, तो वे केवल धार्मिक होने के कारण ही स्वयं को बचा पाएँगे। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 15 या, यदि मैं पूरे देश में जंगली जानवर भेजता हूँ, और वे कई लोगों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें मार डालते हैं, कि उस देश में यात्रा करना बहुत खतरनाक हो और कोई भी उस देश से होकर यात्रा नहीं कर सके, +\v 16 निश्चित रूप से जैसे मैं जीवित हूँ, भले ही वे तीन पुरुष यदि उस देश में हों, फिर भी वे अपने पुत्रों या पुत्रियों को मरने से बचा नहीं पाएँगे। केवल वे तीन ही बचाए जाएँगे, और देश एक बंजर भूमि बन जाएगा। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 17 या, यदि मैं शत्रु के सैनिकों को लाता हूँ कि उनके सम्पूर्ण देश के लोगों और जानवरों को अपनी तलवारों से मारें, +\v 18 निश्चित रूप से जैसे मैं जीवित हूँ, भले ही वे तीन पुरुष उस देश में हों, फिर भी वे अपने पुत्रों या पुत्रियों को मरने से बचाने में समर्थ नहीं होंगे। वे केवल स्वयं को बचा पाएँगे। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 19 या, यदि मैं उस देश में एक महामारी भेजूँ और लोगों को और जानवरों को महामारी से मरने दूँ क्योंकि मैं उन लोगों से बहुत क्रोधित हूँ, +\v 20 निश्चित रूप से जैसे मैं जीवित हूँ, भले ही नूह, दानिय्येल और अय्यूब भी उस देश में हों, फिर भी वे अपने पुत्रों और पुत्रियों को बचा नहीं पाएँगे। वे केवल धर्मी होने के कारण स्वयं को बचा पाएँगे। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 21 इसलिए अब मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: मैं यरूशलेम के लोगों को बहुत गम्भीर दण्ड देने के लिए उन पर चार बातें घटित होने दूँगा। कुछ लोग और जानवर तलवारों से मारे जाएँगे, कुछ अकालों से मर जाएँगे, अन्यों पर जंगली जानवरों द्वारा आक्रमण किया जाएगा और वे मारे जाएँगे, और अन्य महामारी में मर जाएँगे। +\s5 +\v 22 परन्तु तुम्हारे कुछ लोग, युवा और बच्चे दोनों जीवित रहेंगे। हे यहेजकेल, वे तेरे पास आएँगे। और जब तू उनके घृणित व्यवहार और कार्यों को देखेगा, तो तुझे पता चलेगा कि यरूशलेम के लोगों पर उन महान विपत्तियों को डालने का मेरे पास उचित कारण हैं जिन्हें मैंने उन पर भेजा है। +\v 23 जब तू उनके कार्यों को देखेगा, जो वे करते हैं, तो तू जान लेगा कि मेरे पास उन पर होने वाली हर बात को करने के लिए बहुत उचित कारण थे। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही घोषणा करता हूँ।” + +\s5 +\c 15 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, एक अँगूर की लकड़ी निश्चित रूप से जंगल के पेड़ों की शाखाओं से अधिक उपयोगी नहीं है। +\v 3 यहाँ तक कि वस्तुओं को लटकाने के लिए उनसे खूँटी भी नहीं बनती है। +\v 4 और एक अँगूर की शाखा को आग में फेंक दिए जाने के बाद और आग दोनों सिरों को जला देती है और शाखा बीच में से झुलस जाती है, उसके बाद क्या यह किसी भी कार्य के लिए उपयोगी होगी? +\s5 +\v 5 नहीं; यदि वह जलाए जाने से पहले किसी भी कार्य के लिए उपयोगी नहीं थी, तो निश्चय ही आग से जलाने और झुलसा देने के बाद उससे कुछ भी उपयोगी वस्तु नहीं बनाई जा सकती है। +\p +\v 6 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: अँगूर की लकड़ी केवल आग में ईंधन के लिए उपयोगी है। इसी प्रकार, जो लोग यरूशलेम में रहते हैं वे निकम्मे हैं। +\s5 +\v 7 मैं उन्हें अस्वीकार कर दूँगा। यह ऐसा होगा मानों वे आग से बच निकले हैं, परन्तु फिर भी वहाँ एक आग होगी जो उन्हें जला देगी। और जब मैं उन्हें दण्ड दूँगा, तो तुम लोग जो जीवित रह जाओगे जान लोगे कि मुझ, यहोवा, ने यह किया है। +\v 8 मैं तुम्हारे देश को उजाड़ कर दूँगा क्योंकि तुम्हारे लोग मेरे प्रति सच्चे नहीं रहे हैं। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ।” + +\s5 +\c 16 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, यरूशलेम के लोगों को उनके घृणित व्यवहार के विषय में सूचित कर। +\v 3 उनसे कह, ‘यहोवा परमेश्वर यरूशलेम के लोगों से कहते हैं: ऐसा लगता है कि तुम एक स्त्री हो जिसका पिता एमोर लोगों के समूह से था और तुम्हारी माँ हित्ती लोगों के समूह से सम्बन्धित थी। +\s5 +\v 4 ऐसा लगता है कि जिस दिन तू पैदा हुई थी, तेरी गर्भनाल को काटा नहीं गया था, और तेरा शरीर पानी में नहीं धोया गया था या नमक से नहीं रगड़ा गया था और कपड़े की पट्टियों में नहीं लपेटा गया था, जैसा कि इस्राएली बच्चों के साथ हमेशा होता है। +\v 5 किसी ने भी तेरे लिए उन कार्यों को करके तुझ पर कृपा नहीं की या तुझ पर दया नहीं दिखाई। इसकी अपेक्षा, ऐसा लगता था कि उन्होंने तुझसे घृणा की थी। जैसे ही तू पैदा हुई थी, उन्होंने तुझे मरने के लिए मैदान में फेंक दिया। +\p +\s5 +\v 6 तब ऐसा हुआ कि मैं पास से होकर गया और तुझे देखा कि तू अपने खून में लेटी हुई हैं और लात मार रही हैं। और जब तू अपने खून में लेटी हुई लात मारती थी, मैंने तुझसे कहा, “मैं चाहता हूँ कि तू जीवित रहे!” +\v 7 मैंने तुझे बड़ा किया, जैसे खेतों में पौधे बढ़ते हैं; तू बड़ी हो गई और लम्बी हो गई और सभी नगीनों में सबसे मूल्यवान नगीने के समान हो गई। तू विकसित होकर एक सुन्दर स्त्री हुई, परन्तु तू तब भी पूरी तरह से नंगी थी। +\p +\s5 +\v 8 जब मैंने तुझे कई वर्षों बाद देखा, तो मानों कि मैंने प्रतीकात्मक रूप में तेरे ऊपर अपने बागे को फैला दिया कि मैं तुझसे विवाह करूँगा, जिसके परिणामस्वरूप तू अब नंगी नहीं थी। मैंने गम्भीर प्रतिज्ञा की थी कि मैं तुझसे विवाह करूँगा और तेरे साथ विवाह की वाचा बाँधी, और तू मेरी पत्नी हो गई। यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं। +\p +\s5 +\v 9 और फिर ऐसा हुआ कि मैंने तुझे नहलाया और तुझ पर से खून धोया और तेरे शरीर पर मलहम लगाया। +\v 10 ऐसा लगता था कि मैंने तुझे एक अच्छा सनी का बागा पहनाया और तुझे महँगे कपड़े दिए। मैंने तुझे एक कढ़ाई की हुई पोशाक पहनाई और तेरे पैरों में चमड़े की जूतियाँ पहनाईं। +\v 11 यह ऐसा था जैसे कि मैंने तेरी बाँहों पर कंगन और तेरी गर्दन में एक हार पहनाया। उन सब वस्तुओं पर बढ़िया नगीने जड़े हुए थे। +\v 12 मैंने तेरी नाक में सोने की नथ पहनाई और तेरे कानों में बालियाँ डाल दीं और तेरे सिर पर एक सुन्दर मुकुट रख दिया। +\s5 +\v 13 तो ऐसा लगता था कि तू ने सोने और चाँदी के गहने पहने थे। तेरे पास अच्छे सनी से और अन्य महँगे कपड़ों से बने वस्त्र थे, और कढ़ाई की हुई पोशाक थी। तू ने अच्छा आटा, शहद और तेल खाया। तू सबसे सुन्दर स्त्री थीं और मैंने तुझको रानी के रूप में परिवर्तित कर दिया था। +\v 14 तू बहुत सुन्दर थी, जिसके परिणामस्वरूप अन्य राष्ट्रों के लोगों ने तेरे विषय में सुना, क्योंकि वे जानते थे कि वह मैं, यहोवा परमेश्वर, ही हूँ जिसने तुझे बहुत सुन्दर बना दिया है। +\p +\s5 +\v 15 परन्तु ऐसा लगता है कि तू भूल गई थी कि मैंने तुझे सुन्दर बना दिया है और तू ने आने वाले हर एक व्यक्ति के साथ व्यभिचार करना आरम्भ कर दिया है, और उन सब ने तेरी सुन्दरता का स्वाद लिया। +\v 16 ऐसा लगता था कि तू ने ऊँचे स्थानों को सुन्दरता से सजाए जाने के लिए अपने कुछ कपड़े ले लिए थे, और यही वह स्थान है जहाँ तू उन पुरुषों के साथ सोई थीं। उन कार्यों को निश्चय ही कभी नहीं किया जाना चाहिए था! +\s5 +\v 17 तू ने उन सोने के और चाँदी के गहनों को ले लिया जो मैंने तुझे दिए थे, और तू ने अपने लिए पुरुष मूर्तियाँ बनवाईं, कि तू उनके साथ सोए। +\v 18 तू ने उन मूर्तियों को पहनाने के लिए अपने कढ़ाई किए हुए कुछ कपड़े ले लिए थे, और तू ने उन्हें सम्मानित करने के लिए उनके सामने तेल और धूप जलाया। +\v 19 और अच्छे आटे और जैतून का तेल और शहद जो मैंने तुझे खाने के लिए दिए थे, उनसे बनी हुई रोटी को तू ने उन मूर्तियों के लिए सुगन्धित बलिदान होने के लिए चढ़ाया। मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि यही हुआ है। +\p +\s5 +\v 20 और तू ने यहाँ तक कि अपने पुत्रों और पुत्रियों को भी ले लिया जो मेरे लिए समर्पित थे और उनके लिए चढ़ा दिया और मार डाला जैसे कि वे तेरे वेश्या बनने से कम महत्वपूर्ण थे। +\v 21 तू ने उन लोगों को मार डाला जो मेरे बच्चों के समान थे, और उनको इन झूठे देवताओं के लिए बलि चढ़ाने को दिया! +\v 22 उस सम्पूर्ण समय जब तू एक वेश्या के समान कार्य कर रही थीं और अन्य घृणित कार्य करती थीं, तब तू ने उस समय के विषय में नहीं सोचा था जब ऐसा लगता था कि तू बहुत ही युवा थीं, नंगी थीं, अपने ही खून में लेटी हुई थीं और मैदान में पड़ी हुई लात मार रही थी। +\p +\s5 +\v 23 इसलिए मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि तेरे साथ भयानक बातें होंगी। तेरे द्वारा किए गए सब बुरे कार्यों के अतिरिक्त, +\v 24 तुमने स्वयं एक ऊँची इमारत बनाई जिसमें तू मूर्तियों की उपासना करती है और तू ने प्रत्येक शहर के चौकों में मूर्तियों की उपासना करने के लिए जगह बनाई हैं। +\s5 +\v 25 हर सड़क के आरम्भ में तू ने मूर्तियों की उपासना के लिए एक ऊँची इमारत बनाई है, और लोगों को अपना सुन्दर शरीर दिखाया है, कि पास जाने वाले हर एक पुरुष के साथ सोने के लिए तैयार है, और इसलिए तू एक वेश्या जानी जाती थी और तेरी अनैतिकता के कारण तेरी प्रसिद्धि प्रतिदिन बढ़ती गई। +\v 26 ऐसा था जैसे कि तू मिस्र से आए पुरुषों के साथ सोई थी जो तेरे साथ सोने के लिए उत्सुक थे, वे पुरुष जो इस्राएल के पास रहते थे। तू ने मेरे क्रोध को भड़का दिया क्योंकि तू उनमें से अधिक से अधिक पुरुषों के साथ सोने के लिए उत्सुक हो गई थी। +\s5 +\v 27 इसलिए मैंने तुझे दण्ड दिया और तेरे शत्रुओं को तेरे देश के कुछ मार्गों पर अधिकार करने दिया। मैंने पलिश्त के तेरे लालची शत्रुओं को तुझे पराजित करने में समर्थ किया; और यहाँ तक कि वे तेरे अपमानजनक व्यवहार के कारण चौंक गए थे। +\v 28 ऐसा लगता था कि तू अश्शूर के सैनिकों के साथ सो गई थी, क्योंकि तू सदैव ही अधिक पुरुषों के साथ सोना चाहती थी। और उसके बाद, तू अभी भी संतुष्ट नहीं थी। +\v 29 इसलिए तू व्यापारियों से भरे देश, बाबेल के सैनिकों के साथ भी सोई, परन्तु यहाँ तक कि वे भी तुझे संतुष्ट नहीं कर पाए। +\p +\s5 +\v 30 मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि तू अपने जीवन को नष्ट कर रही है! जब तू ने उन सब कार्यों को किया, तो तू एक वेश्या के समान व्यवहार कर रही थी, जो उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए लज्जित नहीं है। +\v 31 परन्तु जब तू ने पर्वत पर शहर के चौकों में मूर्तियों की उपासना करने के लिए घरों को बनाया, तो तू वास्तव में वेश्या के समान नहीं थीं क्योंकि वेश्याएँ पैसा लेती हैं। तू ने जो किया उसके लिए तू ने पैसे लेने से इन्कार कर दिया! +\p +\s5 +\v 32 तू एक ऐसी स्त्री के समान है जो व्यभिचार करती है: तू अपने पति की अपेक्षा पराए पुरुषों के साथ सोना पसन्द करती है। +\v 33 वेश्याओं को पैसा दिया जाता है, परन्तु ऐसा लगता है कि तू अपने सभी प्रेमियों को उपहार देती है; तू उन्हें हर स्थान से आकर तेरे साथ सोने के लिए रिश्वत देती है। +\v 34 इसलिए यद्दपि तू एक वेश्या के समान कार्य करती है, तू वास्तव में अन्य वेश्याओं के विपरीत है! तू पुरुषों को साथ में सोने के लिए पैसे देती है, अपेक्षा इसके कि वे तुझे पैसा दें! +\p +\s5 +\v 35 इस कारण, हे यरूशलेम के लोगों, तुम जो एक वेश्या के समान हो, सुनो कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या कह रहे हैं! +\v 36 वह कहते हैं कि तुमने जो किया है, वह ऐसा है कि मानों तुमने अपने आस-पास उपस्थित हर किसी के लिए लालसा की है और उनके साथ और तुम्हारे द्वारा बनाई गई उन पुरुष मूर्तियों के साथ सोए हो, इस कारण से तुमने यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी उनके लिए बलि चढ़ा दिया है। +\v 37 इसलिए मैं जो करने जा रहा हूँ वह यह है कि मैं उन लोगों को एकत्र करूँगा जो तेरी समझ में तेरे प्रेमी हैं और जिनसे तुमने घृणा की है। मैं तुम पर आक्रमण करने के लिए उन्हें तुम्हारे चारों ओर एकत्र करूँगा, और जो मैं करूँगा वह यह है कि मैं तुम्हारे कपड़ों को उतरवा दूँगा, और जब तुम पूरी तरह से नंगे हो तो वे तुमको देखेंगे। +\s5 +\v 38 मैं तुमको उन स्त्रियों के समान दण्ड दूँगा जो व्यभिचार करती हैं और लोगों की हत्या करने वालों को दण्ड दिया जाता है। मैं तुमसे बदला लूँगा और तुमसे छुटकारा पाऊँगा क्योंकि मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ। +\v 39 मैं तुम्हारे शत्रुओं को, जिनके लिए तुमने सोचा था कि उन्होंने तुमसे प्रेम किया है, उन्हें तुम्हारी मूर्तियों के उपासना स्थलों के ऊँचे स्थानों को और मूर्तिपूजा की वेदियों को तोड़ने के लिए लाऊँगा। वे तुमको नंगा कर देंगे और तुम्हारे कपड़े और गहने ले लेंगे, और वे तुमको, स्वयं को, ढाँकने के लिए कुछ भी नहीं रहने देंगे। +\s5 +\v 40 वे तुम पर आक्रमण करने के लिए एक भीड़ लाएँगे, और वह भीड़ तुम पर पत्थर फेकेंगी और तलवारों से तुमको टुकड़े-टुकड़े कर देगी। +\v 41 वे तुम्हारे घरों को जला देंगे और तुमको दण्ड देंगे जब कई स्त्रियाँ देख रही होंगी। मैं उन्हें ऐसा करने दूँगा कि तुम इतना व्यभिचार करने और लोगों के साथ सोने के लिए भुगतान करने के लिए एक सबक सीख सको। +\v 42 तब मैं तुमसे क्रोधित नहीं रहूँगा। मैं ईर्ष्या करना बन्द कर दूँगा क्योंकि तुम्हारा दण्ड मुझे संतुष्ट कर देगा। +\p +\s5 +\v 43 तुम उन अद्भुत कार्यों को भूल गए हो जो मैंने पिछले वर्षों में तुम्हारे लिए किए थे। तुमने जो भी बुरे कार्य किए हैं, उसके कारण तुमने मुझे बहुत क्रोधित किया है। तुम्हारे द्वारा किए गए सभी घृणित कार्यों के अतिरिक्त, तुमने कई यौन सम्बन्धित पाप किए हैं। इसलिए मैं यहोवा परमेश्वर यह घोषणा करता हूँ कि उन कार्यों को करने के लिए मैं तुमको दण्ड दूँगा। +\p +\s5 +\v 44 जो लोग कहावतें कहना पसन्द करते हैं, वे तुम्हारे विषय में इस कहावत को कहेंगे: ‘पुत्रियाँ अपनी माँ के समान व्यवहार करती हैं।’ +\v 45 तुम अपनी माँ के समान हो; ऐसा लगता है जैसे कि उसने अपने पति और अपने बच्चों से घृणा की थी। तुम अपनी बहनों के समान हो, जिन्होंने अपने पतियों और अपने बच्चों को भी तुच्छ जाना। ऐसा लगता है कि तुम्हारा पिता एमोर लोगों के समूह से सम्बन्धित था और तुम्हारी माँ हित्ती लोगों के समूह से सम्बन्धित थी। +\s5 +\v 46 और ऐसा लगता है कि तुम्हारी बड़ी बहन सामरिया थी, और वह और उसकी पुत्रियाँ तुम्हारे उत्तर में रहती थीं, और ऐसा लगता है कि तुम्हारी छोटी बहन सदोम थी, और उसकी पुत्रियाँ तुम्हारे दक्षिण में रहती थीं। +\s5 +\v 47 तुमने न केवल उनके घृणित व्यवहार का अनुकरण किया, वरन् तुम शीघ्र ही उनसे अधिक पापी हो गए। +\v 48 मैं, यहोवा परमेश्वर, यह सच्ची घोषणा करता हूँ कि निश्चय जैसे मैं जीवित हूँ, जो लोग सदोम और अन्य आस-पास के शहरों में रहते थे, उन्होंने कभी भी ऐसे घृणित कार्यों को नहीं किया था जो तुम यरूशलेम में रहने वाले और यहूदा के अन्य स्थानों में रहने वाले लोगों ने किए हैं। +\p +\s5 +\v 49 ये सदोम में रहने वाले लोगों के पाप हैं, जो लोग उनके बीच तुम्हारी बहन के समान थे: वे घमण्ड से भरे हुए थे और सोचते नहीं थे कि उन्हें कभी दण्ड दिया जाएगा। उन्होंने गरीबों को अनदेखा किया था और अपने चारों ओर के लोगों को दुख दिया था। +\v 50 सदोम और आस-पास के शहरों के लोग घमण्ड करते थे और उन्होंने मेरी उपस्थिति में घृणित कार्यों को किया था, इसलिए जब मैंने देखा कि वे क्या कर रहे थे तो मैंने उनसे छुटकारा पा लिया। +\s5 +\v 51 सामरिया के लोगों ने तो तुम्हारे पापों के आधे पाप भी नहीं किए। उन्होंने जितने घृणित कार्य किए हैं, तुमने उससे अधिक घृणित कार्यों को किया है। तुमने सामरिया के लोगों को अपनी तुलना में अच्छा दिखने दिया है। +\v 52 तुम्हारे पाप उनके पापों से भी बुरे हैं, इसलिए वे तुमसे कम दुष्ट दिखाई देते हैं। इसलिए मैं तुमको उनसे अधिक दण्ड दूँगा। जिसके परिणामस्वरूप, तुम लज्जित और अपमानित होगे। +\p +\s5 +\v 53 परन्तु, एक दिन मैं सदोम और सामरिया और उनके समीप के शहरों के लोगों को फिर से समृद्ध कर दूँगा और मैं तुमको भी फिर से समृद्ध कर दूँगा। +\v 54 तुमने जो दुष्ट कार्य किए हैं, उससे तुम बहुत लज्जित हो जाओगे, और इससे उन शहरों के लोगों को प्रोत्साहित किया जाएगा। +\v 55 सदोम और सामरिया के लोग फिर से समृद्ध होंगे, और तुम और आस-पास के शहरों के लोग भी समृद्ध होंगे। +\s5 +\v 56 जब तुम घमण्ड करते थे, तब तुम सदोम के लोगों का उपहास करते थे, +\v 57 इससे पहले कि यह प्रकट हुआ कि तुम उससे अधिक दुष्ट थे। और अब एदोम के लोग और पलिश्त के लोग सब तुम्हारा अपमान करते हैं और तुमको तुच्छ मानते हैं। +\v 58 और तुम्हारे सभी अनैतिक व्यवहार और अन्य घृणित कार्यों के लिए तुमको दण्ड दिया जा रहा है। यहोवा तुमसे यही कह रहे हैं! +\p +\s5 +\v 59 मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: मैं तुमको दण्ड देता रहूँगा कि ऐसा दण्ड जिसके तुम योग्य हो, क्योंकि तुमने मेरी वाचा को तोड़ा है, तुमने उस गम्भीर वाचा को तुच्छ जाना है जिसका पालन करने की तुमने प्रतिज्ञा की थी। +\s5 +\v 60 परन्तु मैं तुम्हारे साथ बहुत पहले बाँधी गई वाचा को नहीं भूलूँगा और मैं तुम्हारे साथ एक वाचा बाँधूँगा जो सदा के लिए होगी। +\v 61 तब जो कुछ तुमने किया है तुम उसके विषय में सोचोगे, और जब तुम सदोम और सामरिया के लोगों का स्वागत करोगे, तब तुम उन बातों के विषय में लज्जित होगे, ये शहर तुम्हारी पुत्रियों के समान हैं, परन्तु उनके पास वह वाचा नहीं होगी जो मैं तुम्हारे साथ बाँधूँगा। +\s5 +\v 62 मैं तुम्हारे साथ अपनी वाचा बाँधूँगा, और तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\v 63 तब जब मैंने तुम्हारे सब पापों के लिए तुमको क्षमा कर दिया है, तो तुम अपने द्वारा किए गए सब पापों के विषय में सोचोगे और तुम लज्जित होगे। तुम फिर कभी उनके विषय में अहंकार नहीं करोगे, क्योंकि तुम अपमानित हो जाओगे।” मुझ, यहोवा परमेश्वर, ने ऐसा ही कहा है! यह परमेश्वर यहोवा की घोषणा है।” + +\s5 +\c 17 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, इस कहानी को इस्राएल के लोगों को एक उदाहरण के रूप में सुना। +\v 3 उनसे कह, ‘यहोवा कहते हैं: एक बड़ा उकाब जिसके दृढ़ पंख थे और कई रंगों वाले सुन्दर लम्बे पर थे उड़ कर लबानोन गया। उसने एक देवदार के पेड़ की चोटी को पकड़ लिया +\v 4 और उसे तोड़ दिया। तब उकाब उसे कनान में ले आया, एक ऐसा देश जिसमें कई व्यापारी थे, और उसे वहाँ के शहरों में से एक में लगा दिया। +\p +\s5 +\v 5 तब उस उकाब ने तुम्हारे देश से एक अंकुरित पौधा लिया और उसे एक उपजाऊ खेत में लगा दिया। उसने उसे ऐसे लगाया जैसे लोग एक मजनू का पेड़ पानी से भरी नदी के किनारे लगाते हैं। +\v 6 यह बढ़ गई और भूमि पर फैली हुई एक निचली दाखलता बन गई। उसकी शाखाएँ उकाब की ओर ऊपर बढ़ीं, परन्तु उसकी जड़ें नीचे भूमि में बढ़ती गईं। अतः वह एक अच्छी बेल हो गई और उसमें कई शाखाएँ और पत्तियाँ उग आईं। +\p +\s5 +\v 7 परन्तु एक और बड़ा उकाब था जिसके मजबूत पंख थे और सुन्दर पंख थे। और उस बेल की कुछ जड़ें उस उकाब की ओर बढ़ीं, और उसकी शाखाएँ भी उसकी ओर मुड़ गईं, वे आशा कर रही थीं कि उकाब उसके लिए इससे अधिक पानी लाएगा। +\v 8 यह इस तथ्य के उपरान्त हुआ कि वह बेल अच्छी मिट्टी में लगाई गई थी, वहाँ जहाँ बहुत सारा पानी था, जिसके परिणामस्वरूप उसमें शाखाएँ निकल आई थीं और अँगूर लगे थे और वह बहुत स्वस्थ बेल बन गई थी। +\p +\s5 +\v 9 जब तू लोगों को यह दृष्टान्त सुना चुके, तब उनसे कहना, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: वह दाखलता स्वस्थ बनी नहीं रहेगी। उसे अपनी जड़ों समेत उस उकाब के द्वारा खींच लिया जाएगा जिसने उसे लगाया था, और उसके सारे फल फेंक दिए जाएँगे और उसकी पत्तियाँ सूख जाएँगी। और उसे अपनी जड़ों से खींच कर उखाड़ने के लिए बलवन्त बाँहों वाले या बहुत सारे लोगों की आवश्यकता नहीं होगी। +\v 10 भले ही वह बेल लगाई गई है, वह निश्चय ही बढ़ती नहीं रहेगी। जब पूर्व से गर्म हवा इसके विरुद्ध चलेगी, तब वह जहाँ लगाई गई है वहाँ पूरी तरह से सूख जाएगी!” +\p +\s5 +\v 11 तब यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 12 “इन विद्रोही इस्राएली लोगों से पूछना, ‘क्या तुम जानते हो कि इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?’ उन्हें समझाना कि यह दर्शाता है कि बाबेल का राजा यरूशलेम में अपनी सेना के साथ गया और यहूदा के राजा और उसके अधिकारियों को पकड़ लिया, और उन्हें ले कर बाबेल वापस चला गया। +\s5 +\v 13 तब उसने राजा के निकट सम्बन्धियों में से एक को राजा नियुक्त किया, और उसके साथ एक समझौता किया, जिसमें उसे गम्भीरता से स्वामी भक्त रहने का वचन देने के लिए विवश किया जा रहा था। बाबेल का राजा यहूदा के अन्य महत्वपूर्ण नागरिकों को भी बाबेल में ले गया था, +\v 14 जिससे कि यहूदा का राज्य फिर से शक्तिशाली बनने में समर्थ न हो। बाबेल के राजा का विचार था कि यदि लोगों ने बाबेल के राजा के साथ किए गए समझौते का पालन नहीं किया तो यहूदा का राज्य अस्तित्व में नहीं रहेगा। +\s5 +\v 15 यहूदा के राजा ने अधिकारियों को मिस्र भेज कर बाबेल के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया कि घोड़ों और बड़ी सेना के साथ बाबेल की सेना से युद्ध करने के लिए वह उनसे अनुरोध कर सकें। परन्तु यहूदा का राजा निश्चय ही सफल नहीं होगा। वह शासक जो इस तरह विद्रोह करते हैं और गम्भीर समझौते का पालन करने से इन्कार करते हैं, वे कभी नहीं बचेंगे। +\p +\v 16 मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, यहूदा का राजा बाबेल में मर जाएगा, जिस नगर में बाबेल के राजा ने उसे यहूदा का राजा नियुक्त किया था। वह मर जाएगा क्योंकि उसने गम्भीर समझौते को तुच्छ जाना और उसने जो करने की प्रतिज्ञा की वह करने से इन्कार कर दिया। +\s5 +\v 17 मिस्र का राजा अपनी बड़ी विशाल सेना के साथ यहूदा के राजा की सहायता करने में समर्थ नहीं होगा: बाबेल के सैनिक शहर की दीवारों के विरुद्ध ढलान बना लेंगे और दीवारों पर चोट मारने के लिए साधन स्थापित करेंगे। वे यरूशलेम में प्रवेश करेंगे और उनके कई लोगों को मार देंगे। +\v 18 यहूदा के राजा ने सन्धि का मान न रख कर गम्भीर समझौते को तुच्छ जाना। उसने बाबेल के राजा के नियंत्रण में रहने का गम्भीर वचन दिया था, फिर भी उसने मिस्र से सहायता का अनुरोध करने के लिए अधिकारियों को भेजा। इसलिए बाबेल का राजा उसे दण्ड देगा, वह बच नहीं पाएगा। +\p +\s5 +\v 19 इस कारण मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, वैसे ही मैं यहूदा के राजा को बाबेल के राजा के साथ किए गए गम्भीर समझौते को अनदेखा करने के लिए और फिर इसका पालन करने से इन्कार करने के लिए दण्ड दूँगा, क्योंकि यह मेरी अपेक्षाओं का उल्लंघन करता है। +\v 20 ऐसा होगा जैसे मैं उसे पकड़ने के लिए एक जाल फैलाऊँगा, और वह उसमें पकड़ा जाएगा। उसे पकड़ कर बाबेल में ले जाया जाएगा और दण्ड दिया जाएगा क्योंकि उसने मुझसे विद्रोह किया था। +\v 21 उनके अधिकांश सैनिक जो भागने का प्रयास करेंगे, वे शत्रुओं की तलवारों से मार दिए जाएँगे, और जो जीवित रह जाते हैं वे सभी दिशाओं में तितर बितर होंगे। तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 22 यहोवा परमेश्वर यह भी कहते हैं: “यह ऐसा होगा जैसे कि मैं एक बहुत लम्बे देवदार के पेड़ के ऊपर से फुनगी लूँगा और उसे दूसरे स्थान में लगाऊँगा। मैं इसे एक बहुत ऊँचे पर्वत पर लगाऊँगा। +\v 23 यह ऐसा होगा जैसे कि मैं इसे इस्राएल के एक पर्वत पर लगाऊँगा, और यह बढ़ेगा और एक सुन्दर देवदार का पेड़ बन जाएगा। कई प्रकार के पक्षी उस पेड़ में अपने घोंसले बनाएँगे, और वे उसकी शाखाओं के नीचे छाया पाएँगे। +\s5 +\v 24 और यह ऐसा होगा जैसे कि खेत के सभी पेड़ जान जाएँगे कि मैं, यहोवा, ऊँचे पेड़ों से छुटकारा पाता हूँ और छोटे पेड़ों को बढ़ने दूँगा। मैं बड़े हरे पेड़ों को सूखने देता हूँ, और मैं सूखे पेड़ों को हरा बनने देता हूँ। +\p मुझ, यहोवा ने यह कहा है, और मैं निश्चय ही वह करूँगा जो मैंने कहा है कि मैं करूँगा। + +\s5 +\c 18 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “तुम लोग इस कहावत को कहते हो और कहते हो कि यह इस्राएल के विषय में है: +\q1 ‘माता पिता खट्टे अँगूर खाते हैं, +\q2 परन्तु उनके बच्चों के मुँह में बहुत खट्टा स्वाद होता है।’ +\p इसका अर्थ है कि तुम सोचते हो कि तुमको अपने पूर्वजों के पापों के लिए पीड़ित होना चाहिए। +\p +\s5 +\v 3 परन्तु मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ, जैसे निश्चय ही मैं जीवित हूँ, इसलिए तुम इस्राएली लोग अब इस कहावत को नहीं कहोगे। +\v 4 हर एक जन जो जीवित है वह मेरा है। इसमें बच्चे और उनके माता पिता भी हैं; वे सब मेरे हैं। और जो पाप करते हैं वे उनके पापों के कारण मर जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 5 इसलिए मान लो कि एक धर्मी व्यक्ति है, +\q2 एक ऐसा जन जो सदा निष्पक्ष और उचित कार्य करता है। +\q1 +\v 6 वह पर्वतों के शिखर पर मूर्तियों को बलि चढ़ाए माँस को नहीं खाता है; +\q2 वह मूर्तियों से सहायता का अनुरोध नहीं करता जैसे अन्य इस्राएली कर रहे हैं। +\q1 वह किसी और की पत्नी के साथ +\q2 या मासिक धर्म के समय स्त्री के साथ नहीं सोता है। +\q1 +\s5 +\v 7 वह लोगों से बुरा व्यवहार नहीं करता है; +\q2 यदि कोई व्यक्ति उससे पैसे उधार लेता है और उसे आश्वासन देने के लिए कुछ देता है कि वह पैसे वापस चुकाएगा, तो यह पुरुष सूर्य के ढलने से पहले उस व्यक्ति को वह वापस दे देता है। +\q1 वह लोगों को नहीं लूटता है। +\q2 वह भूखे लोगों को भोजन देता है। +\q2 वह कपड़ों की आवश्यकता से ग्रस्त लोगों को कपड़े देता है। +\q1 +\s5 +\v 8 जब वह लोगों को धन उधार देता है, +\q2 वह उनसे ब्याज नहीं लेता है। +\q1 वह उन कार्यों को नहीं करता है जो बुरे हैं। +\q2 वह सदा बातों को निष्पक्ष रूप से तय करता है। +\q1 +\v 9 वह मेरे सब नियमों का सच्चे मन से पालन करता है। +\q2 वह पुरुष वास्तव में धर्मी है; +\q1 वह जीवित रहेगा। +\q2 मैं, यहोवा परमेश्वर, यही प्रतिज्ञा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 10 परन्तु मान लीजिए कि किसी मनुष्य का एक पुत्र है जो हिंसा के कार्य करता है, जो लोगों की हत्या करता है और वह सब कार्य करता है, जिन्हें उसके पिता ने कभी नहीं किया है। +\v 11 वह पहाड़ियों पर मूर्तियों को बलि चढ़ाए माँस को खाता है। +\q1 वह अन्य लोगों की पत्नियों के साथ सोता है। +\q1 +\s5 +\v 12 वह गरीब और अभावग्रस्त लोगों के साथ बुरा व्यवहार करता है। +\q1 वह लोगों को लूटता है। +\q1 यदि कोई उसे आश्वासन देने के लिए कुछ देता है कि वह उस पैसे का भुगतान करेगा जो उसने उधार लिया है, तो वह दुष्ट व्यक्ति सूर्य के ढलने से पहले उसे वह वापस नहीं देता है। +\q1 वह मूर्तियों से सहायता चाहता है। +\q1 वह अन्य घृणित कार्यों को करता है। +\q1 +\v 13 जब वह धन उधार देता है, तो वह ब्याज लेता है। यदि तुमको लगता है कि मैं ऐसे व्यक्ति को जीवित रहने दूँगा, तो तुम निश्चय ही गलत हो। क्योंकि उसने उन सब घृणित कार्यों को किया है, इसलिए मैं निश्चित रूप से उसे मर जाने दूँगा, और यह उसकी स्वयं की गलती होगी। +\p +\s5 +\v 14 परन्तु मान लीजिए कि किसी मनुष्य का एक पुत्र है जो उन सब पापों को देखता है जो उसका पिता करता है, परन्तु वह स्वयं उन कार्यों को नहीं करता है। +\q1 +\v 15 वह पुत्र पहाड़ी पर मूर्तियों को बलि चढ़ाए माँस को नहीं खाता है। +\q2 वह मूर्तियों से सहायता का अनुरोध नहीं करता है। +\q1 वह अन्य लोगों की पत्नियों के साथ नहीं सोता है। +\q1 +\s5 +\v 16 वह लोगों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करता है। +\q2 यदि वह किसी को धन उधार देता है, तो उस व्यक्ति को उसे आश्वासन देने की आवश्यकता नहीं होती है कि वह पैसे वापस दे देगा। +\q1 वह किसी को भी नहीं लूटता है। +\q2 वह उन लोगों को भोजन देता है जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है। +\q2 वह उनको कपड़े देता है जिनको कपड़े की आवश्यकता होती है। +\q1 +\v 17 वह अपने पिता के समान पाप नहीं करता है, +\q2 और जब वह धन उधार देता है तो वह ब्याज नहीं लेता है। +\q1 वह सच्चाई से मेरे सब नियमों का पालन करता है। मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि वह व्यक्ति अपने पिता के पापों के लिए मर नहीं जाएगा; वह निश्चित रूप से जीवित रहेगा। +\s5 +\v 18 परन्तु मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि उसका पिता अपने किए गए पापों के लिए मर जाएगा, क्योंकि पिता ने धोखा दिया और लोगों को लूटा, और बुरे कार्य किए। +\p +\s5 +\v 19 यदि तुम पूछते हो, ‘किसी मनुष्य के पुत्र को अपने पिता के बुरे कार्यों के लिए पीड़ित क्यों नहीं होना चाहिए?’, मैं उत्तर दूँगा कि पुत्र ने वह किया जो निष्पक्ष और सही है और मेरे सब नियमों का पालन किया है, इसलिए वह निश्चित रूप से जीवित रहेगा। +\v 20 यह वे हैं जो पाप करते हैं जो उनके पापों के कारण मर जाएँगे। मैं लोगों को इसलिए दण्ड नहीं दूँगा कि उनके माता पिता ने पाप किए हैं, या क्योंकि उनके बच्चों ने पाप किया है। मैं उन लोगों को प्रतिफल दूँगा जो उचित जीवन जीते हैं, और मैं दुष्ट लोगों को दण्ड दूँगा, जो अनुचित जीवन जीते हैं। +\p +\s5 +\v 21 परन्तु यदि कोई दुष्ट व्यक्ति उन सब बुरे कार्यों को करना बन्द कर देता है जो उसने पहले किए थे, और यदि वह सच्चे मन से मेरे सब नियमों का पालन करना आरम्भ कर देता है, और यदि वही करता है जो उचित और सही है, तो वह निश्चित रूप से जीवित रहेगा; मैं उसे नहीं मारूँगा। +\v 22 मैं उसके द्वारा पहले किए गए पापों के लिए उसे दण्ड नहीं दूँगा। उस समय से हुए अच्छे कार्यों के कारण, मैं उसे जीवित रहने की अनुमति दूँगा। +\s5 +\v 23 मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि मैं निश्चित रूप से इस विषय में आनन्दित नहीं हूँ कि बुरे लोग मर रहे हैं। इसके बजाए, मैं आनन्दित होता हूँ जब वे दुष्ट कार्यों को करना त्याग देते हैं और जिसके परिणामस्वरूप वे जीवित रहते हैं। +\p +\s5 +\v 24 परन्तु यदि कोई धर्मी व्यक्ति सही कार्य करना त्याग देता है और पाप करना आरम्भ कर देता है और दुष्टों के समान घृणित कार्यों को करता है, तो मैं निश्चय ही उसे जीवित रहने नहीं दूँगा। मैं उन धर्म के कार्यों के विषय में नहीं सोचूँगा जो उसने पहले किए थे। क्योंकि उसने सच्चे मन से ऐसा नहीं किया जो मुझे प्रसन्न करता है, और उसके द्वारा किए गए सब पापों के कारण, वह निश्चय ही मर जाएगा। +\p +\s5 +\v 25 परन्तु तुम कहते हो कि मैं, यहोवा, निष्पक्षता से कार्य नहीं करता। तुम इस्राएली लोग, जो मैं कहता हूँ उसे सुनो: निश्चय ही ऐसा नहीं है कि जो मैं करता हूँ वह अनुचित है; जो तुम निरन्तर करते हो यह वही है जो उचित नहीं है। +\v 26 यदि कोई धर्मी व्यक्ति सही कार्यों को करने से दूर हो जाता है और पाप करता है, तो वह उन पापों को करने के कारण मर जाएगा। +\s5 +\v 27 परन्तु यदि कोई दुष्ट व्यक्ति दुष्ट कार्यों को करने से दूर हो जाता है और वही करता है जो न्यायपूर्ण और सही है, तो वह स्वयं को मरने से बचाएगा। +\v 28 क्योंकि उसने उन सब बुरे कार्यों के विषय में सोचा है जो उसने किए थे और उन्हें करने से दूर हो गया है, मैं निश्चय ही उसे जीने दूँगा। मैं उसे नहीं मारूँगा। +\s5 +\v 29 परन्तु तुम, इस्राएली कहते हो कि मैं निष्पक्षता से कार्य नहीं करता हूँ। तुम इस्राएल के लोगों, मैं सदा निष्पक्षता से कार्य करता हूँ। यह तुम ही हो जो दुष्टता के कार्य कर रहे हो। +\p +\v 30 इस कारण, हे इस्राएल के लोगों, मैं, यहोवा परमेश्वर, तुम में से प्रत्येक का न्याय तुम्हारे कार्यों के अनुसार करूँगा। पश्चाताप करो! अपने दुष्ट व्यवहार से दूर हो जाओ! तब तुम्हारे द्वारा किए गए गलत कार्यों के कारण मैं तुमको नष्ट नहीं करूँगा। +\s5 +\v 31 दुष्ट कार्यों को करना त्याग दो; नए रीति से सोचना आरम्भ करो। हे इस्राएल के लोगों, क्या तुम सचमुच चाहते हो कि मैं तुम्हें मार दूँ क्योंकि तुमने पाप किया है? +\v 32 मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि मैं तुम्हारी मृत्यु से प्रसन्न नहीं हूँ। इसलिए अपने पापों से दूर हो जाओ और जीवित रहो!” + +\s5 +\c 19 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझसे कहा, +\v 2 “हे यहेजकेल, दुखद अंतिम संस्कार का एक गीत गा जो इस्राएल के अगुवों के विषय में एक दृष्टान्त होगा। इस्राएली लोगों से कह, +\q1 ‘ऐसा लगता है कि तुम्हारी माँ एक वीर शेरनी थी +\q2 जिसने अन्य शेरों के बीच अपने शावकों का पालन पोषण किया। +\q1 +\v 3 उसने उनमें से एक को जानवरों का शिकार करना सिखाया, +\q2 और यहाँ तक कि वह लोगों को मारना और खाना भी सीख गया। +\q1 +\v 4 जब अन्य राष्ट्रों के लोगों ने उसके विषय में सुना, +\q2 उन्होंने उसे एक गड्ढे में फँसा लिया। +\q1 फिर उन्होंने अंकुड़ों का उपयोग किया कि +\q2 उसे घसीट कर मिस्र में ले जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 5 उसकी माँ ने उसके वापस आने की प्रतीक्षा की, +\q2 परन्तु शीघ्र ही उसने ऐसा होने की आशा छोड़ दी। +\q1 इसलिए उसने एक और शावक को बढ़ाया +\q2 वह भी बहुत भयंकर हो गया। +\q1 +\v 6 उसने अन्य शेरों के साथ जानवरों को मारने के लिए शिकार किया, +\q2 और यहाँ तक कि वह लोगों को मारना और खाना भी सीख गया। +\q1 +\v 7 उसने अपने पीड़ितों की विधवाओं से बुरा व्यवहार किया, +\q2 और उसने शहरों को नष्ट कर दिया। +\q1 जब वह जोर से दहाड़ा, +\q2 तो हर कोई डर गया था और अपने स्वामित्व वाली हर वस्तु को त्याग दिया। +\q1 +\s5 +\v 8 इसलिए अन्य राष्ट्रों के लोगों ने उसे मारने की योजना बनाई; +\q2 और कई स्थानों से पुरुष आए थे कि +\q1 उसके लिए जाल फैलाएँ। +\q2 उन्होंने उसे उसमें पकड़ा। +\q1 +\v 9 उन्होंने उसके माँस में अंकुड़ों को फँसा कर उसे खींचा और उसे एक लोहे के पिंजरे में डाल दिया, +\q2 तब वे उसे बाबेल के राजा के पास ले गए। +\q1 वहाँ उन्होंने उसे बन्द कर दिया कि उसकी आवाज़ का स्वर +\q2 कभी भी इस्राएल की पहाड़ियों पर गूँजता हुआ सुना न जा सके।’ +\q1 +\s5 +\v 10 ‘ऐसा लगता है कि तुम्हारी माँ +\q2 खून में उपजी एक दाखलता थी, +\q2 जो एक नदी के बगल में बढ़ रही थी। +\q1 वहाँ बहुत सारा पानी था, +\q2 इसलिए उसमें बहुत सारी शाखाएँ निकलीं थीं और बहुत सारे अँगूर उत्पन्न हुए थे। +\q1 +\v 11 वह दाखलता बढ़ने लगी और आस-पास के पेड़ों की तुलना में लम्बी हो गई; +\q2 हर कोई देख सकता था कि यह बहुत दृढ़ और स्वस्थ थी। +\q1 और वे शाखाएँ राजदण्ड बनाने के लिए अच्छी थीं जो राजाओं की शक्ति का प्रतीक होते हैं। +\q1 +\s5 +\v 12 परन्तु यहोवा बहुत क्रोधित हो गए, +\q2 इसलिए उन्होंने जड़ों सहित उस बेल को उखाड़ दिया +\q1 और उसे धरती पर फेंक दिया, +\q2 जहाँ रेगिस्तान से आती बहुत गर्म हवाओं ने उसके सब फल सुखा दिए। +\q1 वे दृढ़ शाखाएँ कुम्हला गईं और आग में जला दी गईं। +\q2 +\v 13 अब यहोवा ने उस दाखलता को गर्म, सूखे रेगिस्तान में लगाया है। +\q1 +\s5 +\v 14 आग ने उसके तने को जलाना आरम्भ कर दिया, +\q2 और फिर शाखाओं को जलाना आरम्भ कर दिया; +\q1 उसने सब अँगूर जला दिए। +\q2 अब एक भी दृढ़ शाखा नहीं बची है; +\q1 वे राजा के लिए कभी भी राजदण्ड नहीं बनेंगी।’ इस अंतिम संस्कार के गीत को बहुत दुखद रूप में गाया जाना चाहिए।” + +\s5 +\c 20 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश में ले जाए जाने के लगभग सात वर्ष बाद, उस वर्ष के पाँचवें महीने के दसवें दिन, कुछ इस्राएली पुरनिए मेरे पास पूछने के लिए आए कि क्या मेरे पास यहोवा की ओर से उनके लिए कोई सन्देश है। +\p +\s5 +\v 2 तब यहोवा ने मुझे उनके लिए एक सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 3 “हे मनुष्य के पुत्र, पुरनियों से बात कर और उन्हें बता कि प्रभु यहोवा यह कहते हैं: ‘तुम कहते हो कि तुम यह पूछने आए हो कि यदि मेरी ओर से कोई सन्देश है, परन्तु निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, मैं तुमको मेरी ओर से किसी सन्देश के लिए पूछने की अनुमति नहीं देता हूँ।’ +\p +\s5 +\v 4 यदि तू उन्हें चेतावनी देने को इच्छुक है, तो उन्हें उन घृणित कार्यों को स्मरण दिला जो उनके पूर्वजों ने किए थे। +\v 5 तब उनसे कह, ‘जिस दिन मैंने तुम इस्राएलियों को मेरे लोग होने के लिए चुना था, जिस समय तुम्हारे पूर्वज मिस्र में ही थे, मैंने उनके साथ एक गम्भीर शपथ खाई थी।’ मैंने उनसे कहा, ‘मैं यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ। +\v 6 मैं तुमको मिस्र से बाहर निकाल लाऊँगा और तुमको उस देश में ले जाऊँगा जिसे मैंने तुम्हारे लिए चुना है। यह संसार में सबसे उपजाऊ और सुन्दर भूमि है। +\s5 +\v 7 तुम में से प्रत्येक को घृणित मूर्तियों से छुटकारा पाना है जिनसे तुम प्रेम करते हो, और जिन मूर्तियों की उपासना करना तुमने मिस्र में सीखा है, और जिसके कारण तुमने मेरे लिए तुमको स्वीकार करना असम्भव बना दिया है। मैं, यहोवा तुम्हारा परमेश्वर, तुमसे यह कह रहा हूँ।’ +\p +\s5 +\v 8 परन्तु उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया। वे मुझ पर ध्यान नहीं देंगे। उन्होंने उन घृणित मूर्तियों से छुटकारा नहीं पाया जिनसे उन्होंने प्रेम किया; उन्होंने मिस्र में देखी गई मूर्तियों को अस्वीकार नहीं किया। इसलिए क्योंकि मैं उनसे क्रोधित था, मैंने कहा कि मैं उन्हें मिस्र में दण्ड दूँगा। +\v 9 परन्तु मेरी अपनी प्रतिष्ठा की खातिर, मैंने तुम्हारे लोगों के लिए कुछ करने का निर्णय लिया कि अन्य जातियाँ मुझ पर न हँसें और यह न कहें कि मुझमें कोई शक्ति नहीं थी। मैंने निर्णय लिया कि वे मुझे अपने लोगों को मिस्र से बाहर निकाल कर लाते हुए देखेंगे। +\s5 +\v 10 इस कारण मैंने तुम्हारे लोगों को मिस्र से बाहर निकाला और उन्हें जंगल में लाया। +\v 11 मैंने उन्हें अपने सारे नियम और आदेश दिए, कि वे उनका पालन करें, और जिसके परिणामस्वरूप वे लम्बे समय तक जीवित रहें। +\v 12 इसके अतिरिक्त, मैंने सब्त के दिनों को मेरे और उनके बीच एक यादगार बनाने के लिए स्थापित किया, जिससे कि वे जान सकें कि मैं यहोवा हूँ, वही जो उन्हें मेरे सम्मान के लिए अलग करता है। +\p +\s5 +\v 13 परन्तु इस्राएली लोगों ने जंगल में भी मुझसे विद्रोह किया। उन्होंने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया; और उन्हें त्याग दिया, यदि उन्होंने उनका पालन किया होता, तो वे लम्बे समय तक जीवित रहते, और उन्होंने सब्त के दिन को किसी अन्य दिन के समान कर दिया। इसलिए मैंने कहा कि मैं उन्हें जंगल में नष्ट कर दूँगा, क्योंकि इससे पता चलता है कि मैं उनसे बहुत क्रोधित था। +\v 14 परन्तु फिर से, इसलिए कि अन्य जातियाँ मुझ पर नहीं हँसें, मैंने उन जातियों को यह दिखाने के लिए कुछ करने का निर्णय लिया कि मैं अभी भी उतना ही शक्तिशाली था जब उन्होंने मुझे अपने लोगों को मिस्र से बाहर निकाल कर लाते देखा था। +\s5 +\v 15 मैंने जंगल में तुम्हारे लोगों से गम्भीर शपथ खाई कि मैं उन्हें उस देश में नहीं ले जाऊँगा जिसे मैंने उन्हें देने की प्रतिज्ञा की थी, वह देश जो संसार में सबसे उपजाऊ और सुन्दर देश था। +\v 16 मैंने यह शपथ खाई थी, क्योंकि उन्होंने मेरे सब नियमों को त्याग दिया और उनकी अवज्ञा की थी, और क्योंकि उन्होंने सब्त के दिन को किसी अन्य दिन के समान कर दिया था। और उन्होंने अपनी मूर्तियों की उपासना करने पर बल दिया। +\v 17 परन्तु मैंने अभी भी उन पर दया की, इसलिए मैंने उन्हें जंगल में नष्ट नहीं किया। +\s5 +\v 18 मैंने उनके बच्चों अर्थात् अगली पीढ़ी से कहा, ‘उन कार्यों को न करो जो तुम्हारे माता पिता सदा करते हैं। उनकी मूर्तियों की उपासना न करो और ऐसा करने से मेरे लिए तुमको स्वीकार करना असम्भव न बनाओ। +\v 19 मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ। सावधानीपूर्वक मेरे नियमों और आज्ञाओं का पालन करो। +\v 20 मेरे सब्त के दिनों का सम्मान करो, कि ऐसा करने से, यह तुमको स्मरण दिलाएगा कि तुम मेरे लोग हो। +\p +\s5 +\v 21 परन्तु उनके बच्चों ने भी मुझसे विद्रोह किया। उन्होंने मेरे नियमों का पालन करने की चिन्ता नहीं की, भले ही उनका पालन करने वाला कोई भी व्यक्ति लम्बे समय तक जीवित रहे; और उन्होंने सब्त के दिन को अन्य दिन के समान बना दिया। इसलिए फिर से मैंने कहा कि मैं उन सबको जंगल में मार डालूँगा, और इस प्रकार मैं क्रोधित होना बन्द कर दूँगा। +\v 22 परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया। मैंने एक बार और कुछ करने का निर्णय लिया कि अन्य जातियाँ, जो मुझे तुम्हारे लोगों को मिस्र से बाहर निकाल कर लाते हुए देख चुकी थीं, मुझ पर नहीं हँसेंगे और नहीं कहेंगे कि मैंने अपनी शक्ति खो दी है। +\s5 +\v 23 इसलिए मैंने जंगल में शपथ खाई कि मैं उन्हें कई जातियों में तितर बितर कर दूँगा, +\v 24 क्योंकि उन्होंने मेरे सब नियमों को त्याग दिया था और उनकी अवज्ञा की थी, और क्योंकि वे अन्य दिनों के समान सब्त के दिनों को मान रहे थे – और क्योंकि वे उन मूर्तियों की उपासना करने के लिए उत्सुक थे जिनकी उनके माता पिता ने उपासना की थी। +\s5 +\v 25 इसलिए मैंने उन्हें उन कानूनों का पालन करने दिया जो अच्छे नहीं थे, ऐसे कानून जो उन्हें लम्बे समय तक जीने में सहायता नहीं करेंगे। +\v 26 मैंने उन्हें उन कार्यों को करने दिया जिनके कारण मेरे लिए उन्हें स्वीकार करना असम्भव हो गया था: मैंने उनको अपने पहलौठे बच्चों को आग में बलि चढ़ाने दिया। मैंने उनको ऐसा करने दिया जिससे कि वे स्वयं ही भयभीत हों, और वे जान जाएँगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। +\p +\s5 +\v 27 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के लोगों से बात कर। उनसे यह कह, ‘यहोवा परमेश्वर तुमसे कहते हैं: यह एक रीति है जिसके कारण तुम्हारे पूर्वजों ने मुझसे दूर जा कर मुझे अपमानित किया।’ +\v 28 उसके बाद जब मैं उन्हें उस देश में लाया जिसे देने की शपथ खाई थी, हर बार जब उन्होंने एक ऊँची पहाड़ी या एक बड़ा हरा पेड़ देखा, तो उन्होंने वहाँ मूर्तियों को बलि चढ़ाई। उन्होंने उन्हें भेंटों को चढ़ाया, और इसने मुझे क्रोधित किया। उन्होंने उन मूर्तियों के लिए सुगन्धित धूप जलाई, और उन्हें दाखमधु की भेंट चढ़ाई। +\v 29 तब मैंने उनसे पूछा, ‘यह पहाड़ी की चोटी पर क्या स्थान है जहाँ तुम मूर्तियों की उपासना करने जाते हो?’ इसलिए उन्हें अभी भी बामा कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘पहाड़ की चोटी’। +\p +\s5 +\v 30 इस कारण, इस्राएल के लोगों से यह कह: ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: तुम अपने पूर्वजों की ऐसे कार्यों को करने की नकल क्यों करते हो जो मुझे तुमको स्वीकार करने में असमर्थ बनाते हैं? तुम वेश्याओं के समान कार्य करते हो, जो अन्य पुरुषों के लिए अपने पतियों को छोड़ देती हैं। इसी प्रकार, तुमने मुझे घृणित मूर्तियों की उपासना करने के लिए छोड़ दिया है। +\v 31 जब तुम अपने बच्चों को आग में चढ़ा देते हो, तो तुम मुझे तुमको स्वीकार करने में असमर्थ बनाते हो। यह वैसा ही है जब तुम अपनी मूर्तियों के लिए झुकते हो। हे इस्राएली लोगों, क्या मुझे तुमको किसी भी मामले में निर्देशित करने के लिए कहने की अनुमति देनी चाहिए? मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ कि निश्चित रूप से जैसे मैं जीवित हूँ, यदि तुम मुझसे पूछोगे तो मैं उत्तर नहीं दूँगा।’ +\p +\v 32 तुम कहते हो, ‘हम संसार की अन्य जातियों के समान बनना चाहते हैं। हम उनके समान लकड़ी और पत्थर से बनी मूर्तियों की आराधना करना चाहते हैं।’ परन्तु तुम जो चाहते हो वह कभी नहीं होगा।’ +\s5 +\v 33 मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ कि जैसे निश्चित रूप से मैं जीवित हूँ, मैं तुम पर शासन करने के लिए, और यह दिखाने के लिए कि मैं तुमसे क्रोधित हूँ अपनी महान शक्ति का उपयोग करूँगा। +\v 34 अपनी महान शक्ति के साथ मैं तुमको उन स्थानों से एकत्र करूँगा जहाँ मैंने तुमको तितर बितर किया है। +\v 35 मैं तुमको एक जंगल में लाऊँगा जो अन्य जातियों से घिरा हुआ है। वहाँ, मैं अपनी आँखों के सामने तुम्हारा न्याय करूँगा। +\s5 +\v 36 मैं तुमको दण्ड दूँगा, जैसा कि मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र के पास जंगल में दण्ड दिया था। +\v 37 मैं तुमको मेरे अधीन करूँगा; तुम्हारे साथ बाँधी गई वाचा का पालन करने के लिए मैं तुम्हें विवश करूँगा। +\v 38 मैं तुम्हारे बीच के उन लोगों को नष्ट कर दूँगा जो मुझसे विद्रोह करते हैं। हालाँकि मैं उन्हें बाबेल से बाहर लाऊँगा, जहाँ वे अभी रह रहे हैं, वे इस्राएल में प्रवेश नहीं करेंगे। तब तुम जानोगे कि यह मैं, यहोवा, हूँ जिसके पास वह करने की शक्ति है कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\p +\s5 +\v 39 तुम्हारे लिए इस्राएली लोगों, मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: तुम में से हर एक, अभी जाओ और अपनी मूर्तियों की उपासना करो। परन्तु उसके बाद में, तुम निश्चित रूप से मुझ पर ध्यान दोगे और तुम्हारी मूर्तियों के लिए चढ़ावे ले जा कर अब मुझे अपमानित नहीं करोगे। +\s5 +\v 40 मैं, यहोवा तुम्हारा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि वहाँ मेरी पवित्र पहाड़ी, सिय्योन पर, इस्राएल में उस ऊँची पहाड़ी पर, तुम मेरे लिए चढ़ावे ले कर आओगे, और मैं उन्हें स्वीकार करूँगा। मैं तुमसे अपेक्षा करूँगा कि भेंटें और चढ़ावे, और मेरे लिए अलग किए गए तुम्हारे बलिदानों को वहाँ ले कर आओ। +\v 41 जब मैं तुमको उन अन्य राष्ट्रों से बाहर लाऊँगा जिनमें तुम तितर बितर किए गए हो, तो मैं तुमको स्वीकार करूँगा जैसे कि तुम सुगन्धित धूप थे। मैं अन्य राष्ट्रों के लोगों को दिखाऊँगा कि मैंने स्वयं को पवित्र के रूप में अलग कर दिया है, कि मुझे सम्मानित किया जा सके। +\s5 +\v 42 तब, जब मैं तुमको इस्राएल देश में लाऊँगा, जिस देश को मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने के लिए प्रतिज्ञा की थी, तो तुम जानोगे कि मुझ, यहोवा, ने यह किया है। +\v 43 और वहाँ इस्राएल में तुम स्मरण रखोगे कि तुमने पहले अपने जीवन कैसे जीए थे, उन कार्यों के कारण जो तुमको मेरे लिए अस्वीकार्य बनाते थे, और तुम अपने द्वारा किए गए सभी बुरे कार्यों से घृणा करोगे। +\v 44 जब मैं अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए तुम इस्राएलियों के पक्ष में कार्य करता हूँ, न कि तुम्हारे बुरे कर्मों और भ्रष्ट व्यवहार के कारण, तुम इस्राएली लोग यह जान लोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है। यहोवा परमेश्वर यही घोषणा करते हैं।” +\p +\s5 +\v 45 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 46 “हे मनुष्य के पुत्र, दक्षिण की ओर मुड़ जा। उस सूखी भूमि के साथ, उस जंगल में क्या होगा इस विषय में प्रचार कर। +\v 47 इस्राएल के दक्षिणी जंगल से कह: इस सन्देश को सुनो जो यहोवा परमेश्वर तुम्हारे विषय में कह रहे हैं: मैं तुम्हारे बीच में एक आग जलाने वाला हूँ, और यह तुम्हारे सारे पेड़ों को जला देगी, हरे पेड़ और सूखे पेड़ दोनों को। उस जलती आग को कुछ भी बुझा नहीं पाएगा। और वह आग दक्षिण से उत्तर तक उस क्षेत्र में रहने वाले हर किसी के चेहरों को झुलसा देगी। +\s5 +\v 48 हर कोई देखेगा कि यह मैं, यहोवा हूँ, जिसने यह आग जलाई है, और कोई भी इसे बुझाने में समर्थ नहीं होगा।” +\p +\v 49 तब मैंने कहा, “हे यहोवा, मेरे परमेश्वर, जब मैं लोगों से ऐसी बातें कहता हूँ, तो वे मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं। वे मेरे विषय में कहते हैं, ‘वह केवल कहावतें कह रहा है।’” + +\s5 +\c 21 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, दक्षिण की ओर मुड़ जा। स्वयं को उसके विरुद्ध खड़ा कर। दक्षिण के विरुद्ध प्रचार कर और दक्षिणी यहूदिया के जंगल के विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर। +\v 3 उससे कह, ‘यहोवा कहते हैं: मैं तुम्हारे विरोध में हूँ, और ऐसा होगा जैसे मैं अपनी तलवार को म्यान से खींच कर तुम्हारे बीच के धर्मी और दुष्ट दोनों लोगों को मार डालूँगा! +\s5 +\v 4 इसलिए जो मैं तुम्हारे साथ करूँगा वह ऐसा होगा जैसे कि मैं अपनी तलवार अपनी म्यान से निकालता हूँ और तुमको मारता हूँ। मैं धर्मी लोगों और दुष्ट लोगों सहित सभी को मार डालूँगा। मैं दक्षिण से उत्तर तक सबसे छुटकारा पाऊँगा। +\v 5 तब सबको पता चलेगा कि ऐसा लगता है कि मुझ, यहोवा, ने अपनी तलवार से लोगों को मारा है, और मैं इसे फिर से म्यान में नहीं डालूँगा। +\p +\s5 +\v 6 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, चिल्ला! इस्राएली लोगों के सामने निराशा और दुख के साथ चिल्ला। +\v 7 और जब वे तुझसे पूछें, ‘तू क्यों चिल्ला रहा है?’ उन्हें बता कि यह उन समाचारों के कारण है जो वे शीघ्र ही सुनेंगे। हर कोई बहुत भयभीत होगा, और उनके हाथ अनियंत्रित रूप से थरथराएँगे, जबकि उनके घुटने पानी के समान दुर्बल हो जाएँगे। शीघ्र ही एक बड़ी विपत्ति आएगी। यहोवा परमेश्वर यही प्रतिज्ञा कर रहे हैं।” +\p +\s5 +\v 8 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 9 “हे मनुष्य के पुत्र, भविष्यद्वाणी कर और उनसे कह, ‘यहोवा कहते हैं: +\q1 मैं अपनी तलवार को धार लगाऊँगा +\q2 और इसे चमकाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 यह तेज होगी जिससे मैं कई लोगों को मार डालूँगा; +\q2 मैं इसे चमकाऊँगा कि यह बिजली के समान चमके। +\q1 यहूदा के लोग अपने राजा के राजदण्ड के विषय में आनन्द नहीं मनाएँगे, +\q2 क्योंकि वह उसके विरुद्ध आने वाली तलवार का विरोध नहीं करेगा। +\q1 +\v 11 इसलिए मैं तलवार को चमकाऊँगा, +\q2 और सही व्यक्ति तब इसे अपने हाथ में पकड़ेगा। +\q1 अब यह तेज है; अब यह चमकती है, +\q2 मारने वाले के उपयोग करने के लिए तैयार! +\q1 +\s5 +\v 12 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, रो और विलाप कर, +\q2 क्योंकि मैं इस्राएल के अगुवों सहित अपने लोगों को मारने के लिए, +\q2 अपनी तलवार का उपयोग करूँगा। +\q1 वह तलवार उन्हें और मेरे अन्य सभी लोगों को मार डालेगी; +\q2 मेरी तलवार उन सबको मार डालेगी, +\q1 इसलिए यह दिखाने के लिए अपनी छाती को पीट कि तू दुखी है। +\q1 +\v 13 मैं अपने लोगों का परीक्षण करने वाला हूँ, +\q2 और क्या होगा यदि राजदण्ड विरोध नहीं करता है? +\q2 मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 14 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, भविष्यद्वाणी कर; +\q2 अपने हाथों को यह दिखाने के लिए पटक कि जो कुछ घटित होने जा रहा है तू इसके विषय में बहुत दुखी है। +\q1 मेरी तलवार बार-बार मेरे लोगों पर वार करेगी; +\q1 यह तलवार कई लोगों को मारने के लिए है, +\q2 जब मैं उन पर हर ओर से आक्रमण करता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 15 इसलिए कि लोग बहुत डर जाएँगे +\q2 और यह कि बहुत से लोग मर जाएँगे, +\q1 मैंने शहर के हर फाटक पर सैनिकों को खड़ा कर रखा है, +\q2 लोगों को मारने के लिए तैयार। +\q1 मेरी तलवार बिजली के समान चमकेगी, +\q2 जैसे सैनिक लोगों को मार डालते हैं। +\q1 +\v 16 मैं अपनी तलवार को दाहिनी ओर से काटने के लिए कहूँगा +\q2 और फिर बाईं ओर से, +\q2 और प्रत्येक दिशा में घूमने को जब तक कि कोई भी जीवित न रहे। +\q1 +\v 17 तब मैं अपने हाथों से विजय की तालियाँ बजाऊँगा; +\q2 तब मैं और क्रोध में नहीं रहूँगा। +\q1 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा, ने यह कहा है।” +\p +\s5 +\v 18 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 19 “हे मनुष्य के पुत्र, बाबेल के राजा के लिए अपनी सेना के साथ चलने के नक्शे पर दो सड़कें बना। जब वे अपने देश से निकलते हैं, तो वे एक दिशासूचक के पास आएँगे जहाँ से एक ही सड़क उन दो सड़कों में विभाजित होगी। +\v 20 यदि वे उन सड़कों में से एक को लेते हैं, तो वे अम्मोन जाति की राजधानी रब्बा शहर पर आक्रमण करेंगे। यदि वे दूसरी सड़क लेते हैं, तो वे यहूदा और यरूशलेम आएँगे, एक ऐसा शहर जिसके चारों ओर दीवारें हैं। +\s5 +\v 21 जब बाबेल की सेना उस स्थान पर आती है जहाँ सड़क विभाजित होती है, तो सेना रुक जाएगी, जबकि राजा निर्णय लेने के लिए तन्त्र मन्त्र के अनुष्ठान करेगा कि कौन सी सड़क पर आगे जाना है। वह तीर फेंक देगा; तब वह अपनी मूर्तियों से परामर्श लेगा कि किस सड़क पर जाना है, और वह एक भेड़ के कलेजे में देखेगा। +\v 22 वह अपने दाहिने हाथ से यरूशलेम के नाम से चिन्हित तीर उठाएगा। तब वह अपने सैनिकों को यरूशलेम जाने का आदेश देगा। जब वे वहाँ पहुँचेंगे, तब वे दीवारों पर चोट मारने के लिए साधनों को लगाएँगे, और फिर राजा लोगों को मारने का आदेश उनको देगा। वे युद्ध की ललकार करेंगे, और वे शहर के फाटकों के विरुद्ध साधनों को लगाएँगे। वे शहर के चारों ओर की दीवारों के विरुद्ध एक मलबे के पुश्ते बाँधेंगे, और शहर के विरुद्ध दीवारों को दृढ़ करेंगे। +\v 23 यरूशलेम में रहने वाले लोग जिन्होंने बाबेल के राजा के साथ भक्ति की शपथ खाई है, वे चाहेंगे कि उन तन्त्र मन्त्र अनुष्ठानों को गलत होना चाहिए। वे चाहेंगे कि उसकी सेना उन पर आक्रमण नहीं करे। परन्तु वह उन्हें उन लोगों के विश्वासघात को स्मरण दिलाएगा जिनके वे दोषी हैं, और वह कहेगा कि उन्होंने उसके साथ किए गए समझौते का उल्लंघन किया है। +\p +\s5 +\v 24 इसलिए, इस्राएली लोगों को बता कि यहोवा कहते हैं: ‘तुम लोगों ने सबको यह देखने की अनुमति दी है कि तुम बाबेल के राजा के विरुद्ध स्पष्ट रूप से विद्रोह कर रहे हो, और ऐसा करके तुमने दिखाया है कि जो कुछ भी तुम करते हो वह पाप है। इसलिए वह तुमको पकड़ लेगा और बाबेल ले जाएगा।’ +\p +\s5 +\v 25 साथ ही, यहूदा के राजा से कहो, ‘तू इस्राएल का बहुत दुष्ट राजा है, यह तेरे मरने का समय है। यही समय है कि यहोवा तुझे दण्ड दें।’ +\v 26 और मैं, यहोवा परमेश्वर, यरूशलेम में तुम्हारे राजा के विषय में तुमसे यह कहता हूँ, ‘राजा की पगड़ी और उसका मुकुट उतार दो, क्योंकि अब बातें पहले जैसी नहीं होंगी। मैं उन लोगों को शक्ति दूँगा जिनके पास कोई शक्ति नहीं थी, और मैं उन लोगों को अपमानित करूँगा जिनके पास शक्ति थी। +\v 27 मैं बाबेल के लोगों को सब कुछ नष्ट करने दूँगा। कोई भी फिर से यहूदा का राजा नहीं होगा, जब तक कि वह व्यक्ति न आए जो राजा बनने योग्य है। तब मैं उसे राजा बनाऊँगा।’ +\p +\s5 +\v 28 और, हे मनुष्य के पुत्र, भविष्यद्वाणी कर और कह कि मैं, यहोवा परमेश्वर, अम्मोन जाति के विषय में यह कहता हूँ, कि मैं उन्हें कैसे अपमानित करूँगा: +\q1 ‘मेरे सैनिकों के पास तलवारें हैं +\q2 और उन्होंने कई लोगों को मारने के लिए उन तलवारों को बाहर खींच लिया है। +\q1 उन्होंने लोगों को मारने के लिए उन्हें चमकाया है, +\q2 कि बिजली के समान चमकें। +\q1 +\v 29 तुम्हारे अम्मोनियों के भविष्यद्वक्ताओं ने तुमको तुम्हारे साथ होने वाली घटनाओं के विषय में झूठे दर्शन सुनाए हैं, +\q2 और उन्होंने व्यर्थ के समारोह आयोजित किए हैं जो तुमको झूठे सन्देश देते हैं। +\q1 इसलिए तलवार उन दुष्ट लोगों की गर्दनों पर वार करेगी। +\q2 वह दिन आ गया है जब मुझे उन्हें दण्ड देना है, +\q2 क्योंकि वे मेरे प्रति सच्चे नहीं रहे हैं।’ +\q1 +\s5 +\v 30 परन्तु बाद में बाबेल के सैनिकों को अपनी तलवारें अपनी म्यानों में वापस रखनी पड़ेगी, +\q2 क्योंकि उनके शत्रुओं को मारने का उनका समय समाप्त हो जाएगा। +\q2 मैं बाबेल के इन लोगों का न्याय उसी देश में करूँगा जहाँ वे पैदा हुए थे। +\q1 +\v 31 मैं उन पर अपना दण्ड उण्डेल दूँगा। +\q1 क्योंकि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ, +\q2 मेरी साँस उन्हें आग के समान झुलसा देगी। +\q1 मैं क्रूर पुरुषों को उन्हें पकड़ने की अनुमति दूँगा, +\q2 ऐसे पुरुष जो लोगों की हत्या करने में निपुर्ण हैं। +\q1 +\s5 +\v 32 वे ईंधन के समान होंगे जो आग में डाला जाता है। +\q2 उनका खून उनके अपने ही देश में बह जाएगा। +\q1 कोई भी अब उन्हें स्मरण नहीं रखेगा। +\q2 निश्चय यही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा, ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 22 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, क्या तू यरूशलेम के लोगों को दोष देने के लिए तैयार है? यह हत्यारों से भरा एक शहर है। उनको उन सब घृणित कार्यों को स्मरण दिला जो उन्होंने किए हैं। +\v 3 तब कह, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं: लोगों को मार कर और स्वयं को अपवित्र करके, मूर्तियों को बना कर, तुम इस नगर के लोग अपने ऊपर ऐसा समय ले आए हो जो मेरे लिए तुमको नष्ट करने का है। +\s5 +\v 4 तुम निर्दोष लोगों की हत्या करके दोषी हो गए हो। तुमने अपने लिए मूर्तियाँ बना कर, मेरे लिए तुमको स्वीकार करना असम्भव कर दिया है। तुम अपना अन्त समय ला रहे हो। इसलिए मैं अन्य जातियों को तुम पर हँसने और तुम्हारी निन्दा करने दूँगा। +\v 5 तुम्हारे आस-पास के देशों के लोग और जो तुमसे दूर रहते हैं, वे तुम्हारा उपहास करेंगे, क्योंकि तुम्हारा शहर भ्रम से भरा है, और क्योंकि तुमने मेरे, तुम्हारे अपने परमेश्वर के लिए तुमको स्वीकार करना असम्भव कर दिया है। +\p +\s5 +\v 6 इस विषय में सोचो कि कैसे तुम्हारे हर एक इस्राएली राजा ने लोगों की हत्या करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया है। +\v 7 तुम्हारे लोग अपने माता पिता का सम्मान नहीं करते हैं; उन्होंने विदेशियों पर अत्याचार किया है; वे अनाथ और विधवाओं के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। +\v 8 तुम मेरे पवित्र स्थानों और प्रथाओं को तुच्छ मानते हो, और तुम सब्त के दिन को अन्य दिनों जैसा मानते हो। +\v 9 तुम में ऐसे लोग हैं जो दूसरों की हत्या के लिए झूठ बोलते हैं। वहाँ ऐसे लोग हैं जो पर्वतों की चोटियों पर जाते हैं और मूर्तियों को चढ़ाया गया भोजन खाते हैं, और वे सबके सामने बुरा व्यवहार करते हैं। +\s5 +\v 10 वहाँ ऐसे पुरुष हैं जो अपने पिता की पत्नी के साथ सोते हैं, और ऐसे पुरुष जो मासिक धर्म के समय स्त्रियों के साथ सोते हैं। +\v 11 वहाँ ऐसे पुरुष हैं जो किसी अन्य की पत्नी के साथ सोते हैं। तुम्हारे कुछ पुरुष अपने पुत्र की पत्नी के साथ या अपनी सगी बहनों के साथ या आधी बहनों के साथ सोते हैं। +\v 12 वहाँ तुम में ऐसे लोग भी हैं जो किसी को मार डाले जाने के लिए रिश्वत स्वीकार करते हैं। जब तुम लोगों को पैसे देते हो तो तुम ब्याज लेते हो। तुम लोगों को तुमको पैसे देने के लिए विवश करके धनवान बन जाते हो। और तुम, मुझ यहोवा को भूल गए हो। +\p +\s5 +\v 13 इसलिए मैं तुम्हारे अनुचित लाभ और तुम्हारे बीच रहने वाले हत्यारों पर अपनी मुट्ठी को हिला दूँगा। +\v 14 जब मैं तुमको दण्ड देना समाप्त कर दूँगा, तब तुम फिर साहसी नहीं रहोगे। मुझ, यहोवा, ने कहा है कि मैं तुम्हारे साथ ऐसा ही करूँगा, और मैं यह करूँगा। +\v 15 मैं तुमको कई जातियों में तितर-बितर कर दूँगा, और मैं तुम्हारे पापी व्यवहार को रोक दूँगा। +\v 16 जब अन्य देशों के लोग देखते हैं कि तुम अपमानित हो गए हो, तो तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 17 तब यहोवा ने मुझसे कहा, +\v 18 “हे मनुष्य के पुत्र, तेरे इस्राएली लोग मेरे लिए निकम्मे हो गए हैं। वे मेरे लिए धातु के जंग के समान हैं। वे बेकार ताम्बे, टीन, लोहे और सीसा के समान हैं जो बहुत ही गर्म भट्ठी में चाँदी के पिघल जाने के बाद बच जाता है +\v 19 इसलिए, मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: क्योंकि तुम सब धातु के जंग के समान हो गए हो, मैं तुमको यरूशलेम में एकत्र करूँगा। +\s5 +\v 20 लोग बहुत ही गर्म भट्ठी में चाँदी, तांबा, लोहा, सीसा, और टीन युक्त कच्ची धातु डालते हैं और अशुद्धियों को जलाने के लिए उन्हें उस तेज आग में पिघलाते हैं। इसी प्रकार, मैं तुमको यरूशलेम के अन्दर एकत्र करूँगा, और क्योंकि मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ, मैं जो करूँगा, वह वैसा ही होगा जैसे मैं तुमको पिघला रहा हूँ। +\v 21 यह ऐसा होगा जैसे मैं तुम पर एक गर्म साँस फूँक रहा हूँ जो दिखाता है कि मैं बहुत क्रोधित हूँ, और यह ऐसा होगा जैसे तुम पिघल जाओगे, +\v 22 तुम पिघल जाओगे जैसे कि भट्ठी में चाँदी पिघल जाती है, और तब तुम जानोगे कि मुझ, यहोवा, ने तुमको दण्ड दिया है।” +\p +\s5 +\v 23 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 24 “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएलियों से कह, ‘तुम यहोवा के लिए घृणित हो, उनके लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य हो। इसलिए यहोवा तुमसे क्रोधित हैं। तुम्हारे देश में वर्षा नहीं होगी। +\v 25 उनके अगुवे शेरों के समान हैं जो उन जानवरों को फाड़ कर दो भाग कर डालते हैं जिन्हें उन्होंने मारा है। अगुवे अपने लोगों को नष्ट करते हैं। वे लोगों के खजाने और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ चुराते हैं, और वे कई पुरुषों की हत्या करते हैं और उनकी पत्नियों को विधवा बनाते हैं। +\s5 +\v 26 उनके याजक मेरे नियमों का उल्लंघन करते हैं और यह कहकर कि उन वस्तुओं में कोई अंतर नहीं हैं जो पवित्र हैं और जो पवित्र नहीं हैं, और सब्त के दिनों में विश्राम करने के विषय में मेरे नियमों को अनदेखा करने के द्वारा वे मेरी पवित्र बातों का अपमान करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप, वे अब मेरा सम्मान नहीं करते हैं। +\v 27 उनके अधिकारी भेड़िये के समान हैं जो उन जानवरों को फाड़ कर दो भाग कर डालते हैं जिन्हें उन्होंने मारा है। वे अपने पैसे पाने के लिए लोगों की हत्या करते हैं। +\v 28 उनके भविष्यद्वक्ताओं ने यह कहते हुए उन पापों को ढाँकने का प्रयास किया है कि उन्हें परमेश्वर से दर्शन प्राप्त हुए हैं। वे कहते हैं, ‘यहोवा परमेश्वर ऐसा कहते हैं,’ जबकि मैंने उनसे कुछ नहीं कहा है। +\s5 +\v 29 इस्राएली लोग दूसरों को उन्हें पैसा देने के लिए विवश करते हैं, और वे लोगों को लूटते हैं। वे गरीब लोगों पर अत्याचार करते हैं, और वे उनके बीच रहने वाले विदेशियों से अदालतों में उनके साथ निष्पक्ष रूप से व्यवहार नहीं करने के द्वारा बुरा व्यवहार करते हैं। +\p +\s5 +\v 30 मैंने एक ऐसे पुरुष को ढूँढ़ने के लिए उन लोगों को देखा जो लोगों के लिए प्रार्थना करेगा और उनसे पश्चाताप करवाएगा कि मुझे उन्हें नष्ट करने की आवश्यकता न हो। परन्तु मुझे कोई नहीं मिला। +\v 31 इसलिए, क्योंकि मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ, मैं उन्हें उन सब दुष्ट कार्यों के लिए दण्ड दूँगा जो उन्होंने किए हैं। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा परमेश्वर, ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 23 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझसे कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, यरूशलेम और सामरिया के विषय में इस कहावत को सुन। एक बार दो स्त्रियाँ, एक ही माँ की पुत्रियाँ थीं। +\v 3 वे मिस्र में रहती थीं। और उस समय से जब वे युवा स्त्रियाँ थीं, वे वेश्या बन गईं। उस देश में, पुरुषों ने उनके स्तनों को प्रेम किया और उनकी युवा छातियों को सहलाया। +\v 4 बड़ी बहन ओहोला थी, और उसकी छोटी बहन ओहोलीबा थी। ऐसा लगता था कि वे बाद में मेरी पत्नियाँ बन गईं। बाद में उन्होंने पुत्रों और पुत्रियों को जन्म दिया। ओहोला सामरिया का प्रतिनिधित्व करती है, और ओहोलीबा यरूशलेम का प्रतिनिधित्व करती है। +\p +\s5 +\v 5 ओहोला ने वेश्या के समान कार्य किया, जबकि वह अभी भी मेरी पत्नी थी। वह उन लोगों के साथ सोना चाहती थी जिनसे वह प्रेम करती थी – अश्शूर के सैनिक। +\v 6 उनमें से कुछ सेना के अधिकारी और सरदार थे। वे सुन्दर बैंगनी वर्दी पहनते थे। वे सभी सुन्दर युवा पुरुष थे जो घोड़ों पर सवारी करते थे। +\v 7 उसने अश्शूर के सभी महत्वपूर्ण अधिकारियों के साथ वेश्या जैसा कार्य किया। मैं अब उसे मुझसे सम्बन्धित नहीं मान सकता था, क्योंकि वह उन पुरुषों की सभी मूर्तियों की आराधना कर रही थी जिनके साथ वह सोना चाहती थी। +\s5 +\v 8 जब वह मिस्र में एक युवा स्त्री थी, तब वह एक वेश्या बनने लगी, और उसने जवानों को अपने स्तनों को सहलाने और उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाने की अनुमति दी। जब वह बड़ी हो गई, तो उसने वेश्या का सा व्यवहार करना नहीं छोड़ा। +\p +\v 9 इसलिए मैंने अश्शूर के सैनिकों को उसे पकड़ने की अनुमति दी, जिनके साथ वह सोना चाहती थी। +\v 10 उन्होंने उसके सारे कपड़े उतार दिए। वे उसके पुत्रों और पुत्रियों को ले गए। और फिर उन्होंने उसे तलवार से मार डाला। अन्य स्त्रियों ने इस विषय में बात करना आरम्भ कर दिया कि वह किस प्रकार अपमानित हुई थी, और इस विषय में कि वह किस प्रकार पीड़ित होने योग्य थी। +\p +\s5 +\v 11 उसकी छोटी बहन ओहोलीबा ने वह सब देखा जो ओहोला के साथ हुआ, परन्तु वह भी एक वेश्या थी, और वह अपनी बड़ी बहन की इच्छा से भी अधिक पुरुषों के साथ सोना चाहती थी। +\v 12 ओहोलीबा भी अश्शूर के सैनिकों के साथ सोना चाहती थी। उनमें से कुछ सेना के अधिकारी और सरदार थे। वे सब सुन्दर वर्दी पहनते थे। वे सभी सुन्दर युवा पुरुष थे। और वे घोड़ों पर सवारी करते थे। +\v 13 मैंने देखा जो उसने किया जिसने मुझे उसे स्वीकार करने में असमर्थ कर दिया, बिलकुल उसकी बड़ी बहन के समान। +\p +\s5 +\v 14 परन्तु उसने और भी अधिक बुरे कार्य किए। उसने दीवारों पर बाबेल के पुरुषों के लाल रंग से बनाए गए चित्रों को देखा। +\v 15 चित्रों में पुरुषों की कमर के चारों ओर पटुका था और उनके सिर पर लम्बी पगड़ी थी। वे सब बाबेल के अधिकारियों के समान दिखते थे जो रथों में सवारी करते थे। +\s5 +\v 16 जैसे ही उसने उन चित्रों को देखा, वह उन पुरुषों के साथ सोना चाहती थी, और उसने उन्हें बाबेल में सन्देश भेजे। +\v 17 तब बाबेल के सैनिक उसके पास आए, उसके साथ बिस्तर पर लेट गए, और उसके साथ सो गए। तब वह उनके साथ घृणित हो गई और उनसे दूर हो गई। +\s5 +\v 18 परन्तु जब वह खुले में एक वेश्या के समान कार्य करती रही और स्वयं को दूसरों के लिए नंगी दिखाती रही, तो मैं उसके प्रति घृणा से भर गया और उसका त्याग कर दिया, जैसे मैंने उसकी बड़ी बहन को त्याग दिया था। +\v 19 परन्तु वह और भी अधिक अनैतिक हो गई, जैसे उसे स्मरण आया कि वह मिस्र में एक वेश्या बनने के लिए सीखने वाली एक युवा स्त्री थी। +\s5 +\v 20 वहाँ वह उन लोगों के साथ सोना चाहती थी जो उससे प्रेम करते थे, जिनके गुप्त अंग बहुत लम्बे थे, जैसे गधों के होते हैं, और जिनका प्रजनन वीर्यपात भी बहुत होता था, जैसे घोड़ों का होता है। +\v 21 इसलिए वह अनैतिक होने की इच्छा रखती थी जैसे वह तब थी जब वह युवा थी, जब मिस्र के पुरुषों ने उसकी छाती को सहलाया और उसके युवा स्तनों को प्रेम किया। +\p +\s5 +\v 22 ओहोलीबा तू यरूशलेम के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए, मैं, यहोवा, यही कहता हूँ: वे सैनिक जिन्होंने तुझसे प्रेम किया था, परन्तु जिनसे तू दूर हो गई क्योंकि तू उनके साथ घृणित हो गई थी – मैं उनको तुझ पर क्रोधित कर दूँगा। मैं उनको आकर तुझ पर हर ओर से आक्रमण करने दूँगा - +\v 23 बाबेल से और बाबेल के अन्य सब स्थानों से सैनिक, और पकोद, शो और कोआ से उनके सहयोगी, और अश्शूर की सारी सेना। हाँ, वे सभी सुन्दर युवा पुरुष, सेना के अधिकारी और सरदार हैं, जिन अधिकारियों की महान प्रसिद्धि है, वे सब घोड़ों पर सवारी कर रहे हैं। +\s5 +\v 24 उनकी विशाल सेना रथों में सवारी करते हुए और सेना की भोजन वस्तुओं की गाड़ी को खींचते हुए, तुम पर हथियारों के साथ आक्रमण करेगी। वे बड़ी और छोटी ढाल लिए हुए, और टोप पहने हुए, तुमको घेर लेंगे। मैं उन्हें तुमको पकड़ने और तुमको इस तरह से दण्ड देने की अनुमति दूँगा जैसे कि वे सदा अपने शत्रुओं को दण्ड देते हैं। +\v 25 क्योंकि मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूँ, इसलिए मैं उन्हें तुम्हारे साथ अत्याधिक क्रोध से कार्य करने दूँगा। वे तुम्हारी नाक को और कानों को काट लेंगे। फिर, जो लोग अभी भी जीवित हैं, उन्हें वे अपनी तलवार से मार देंगे। वे तुम्हारे पुत्रों और पुत्रियों को ले जाएँगे, और यह एक आग के समान होगा जो तुम्हारे वंशजों को जलाती है। +\s5 +\v 26 वे तुम्हारे कपड़े और तुम्हारे गहनों को उतार लेंगे, और वे उन्हें ले जाएँगे। +\v 27 इस प्रकार, मैं उन सब अनैतिक व्यवहारों को रोकूँगा जो मिस्र में तुम्हारे एक वेश्या बनने के बाद आरम्भ हुए। अब तुम उन कार्यों को करने की इच्छा नहीं करोगे; वरन् मिस्र में तुमने जो किया उसके विषय में अब तुम सोचोगे भी नहीं। +\p +\s5 +\v 28 मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: वे जिनसे तुम घृणा करते हो, वे जिनके साथ तुम घृणित बन गए और जिनसे तुम दूर हो गए – मैं उन्हें तुमको पकड़ने की अनुमति देने वाला हूँ। +\v 29 वे क्रूर होंगे; वे तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह ले जाएँगे। वे तुझको पूरी तरह नंगा छोड़ देंगे, और हर कोई देखेगा कि तुम वास्तव में एक वेश्या हो। +\s5 +\v 30 यह तेरे द्वारा किए गए कार्यों के कारण है कि तुझको इस प्रकार दण्ड दिया जाएगा; तू एक अनैतिक वेश्या रही है; तू अन्य राष्ट्रों के पुरुषों के साथ सोई है, और तू ने मुझे तुझको स्वीकार करना असम्भव बना दिया है, क्योंकि तू ने उनकी मूर्तियों की उपासना की है। +\v 31 तुमने सामरिया के लोगों के समान व्यवहार किया है, जो तुम्हारी बड़ी बहन के समान हैं। इसलिए मैं तुमको दण्ड दूँगा जैसे उन्हें दण्ड दिया गया था। +\p +\s5 +\v 32 मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: जब तू गहरे और बड़े प्याले से पीती है तो तू पीड़ित होगी। +\q1 यह ऐसा होगा जैसे तू उसी प्याले से पीएगी जिससे सामरिया के लोग पीते थे। +\q1 और ऐसा इसलिए है कि तू वह पीएगी जो उस प्याले में है, कई लोग तेरा तिरस्कार करेंगे और तेरा उपहास करेंगे, +\q2 क्योंकि जब तू उस प्याले से पीती है तो यह तुझे नशे में कर देगा और फिर तू उदासी से दूर हो जाएगी। +\q1 +\s5 +\v 33 जब तू बहुत नशे में हो जाती है, तो तू बहुत दुखी हो जाएगी, +\q2 क्योंकि जो उस प्याले में है वह पीना तुझे नष्ट कर देगा; हर कोई तुझे छोड़ देगा। +\q2 सामरिया के लोगों के साथ यही हुआ, जो तुम्हारी बहन जैसे हैं। +\q1 +\v 34 तू उस प्याले में भरा हुआ सारा तरल पीएगी; +\q2 तो तू उस प्याले को टुकड़ों में तोड़ देगी +\q2 और अपने स्तनों को काटने के लिए उन टुकड़ों का उपयोग करेगी क्योंकि तू बहुत दुखी होगी। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा, ने यह कहा है। +\p +\s5 +\v 35 इस कारण, मैं यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: क्योंकि तुम मुझे भूल गए हो और मुझे त्याग दिया है, तुम्हारे अनैतिक व्यवहार और वेश्या होने के लिए मुझे तुमको दण्ड देना ही होगा।” +\p +\s5 +\v 36 यहोवा ने मुझसे कहा, हे मनुष्य के पुत्र, ओहोला और ओहोलीबा के द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए उन दो शहरों के लोगों का न्याय कर। तुमको उन्हें उनके घृणित व्यवहार स्मरण दिलाना चाहिए। +\v 37 ऐसा लगता है कि उन्होंने व्यभिचार किया है और लोगों की हत्या कर दी है। वे मूर्तियों की उपासना करके मेरे साथ अविश्वासी रहे हैं। उन्होंने अपने स्वयं के बच्चों को भी आग में बलि चढ़ा दिया है, जो मेरे थे। +\s5 +\v 38 उन्होंने अन्य अपमानजनक कार्य किए हैं: उन्होंने मेरे मन्दिर को आराधना के लिए अस्वीकार्य स्थान कर दिया है, और वे सब्त के दिन को अन्य दिनों के समान मानते हैं। +\v 39 उसी दिन जब उन्होंने अपने बच्चों को अपनी मूर्तियों के लिए बलि चढ़ा दिया, वे मेरे मन्दिर में प्रवेश कर गए, जिससे मेरी आराधना करने के लिए यह एक अस्वीकार्य स्थान हो गया है। उन्होंने इन कार्यों को मेरे अपने घर में किया! +\p +\s5 +\v 40 उन्होंने दूर देशों में पुरुषों को सन्देश भेजे। और जैसे ही वे लोग आ रहे थे, दोनों बहनों ने उनके लिए स्वयं को नहलाया, अपनी भौहों पर रंग लगाया, और गहने पहन लिए। +\v 41 वे एक सुन्दर आसन पर बैठीं, उसके सामने एक मेज थी जिस पर उन्होंने धूप और जैतून का तेल रखा था जो मेरे लिए थे। +\p +\s5 +\v 42 शीघ्र ही उनके चारों ओर शोर करती एक भीड़ थी। भीड़ में अरब के रेगिस्तान से आए शेबा के लोग थे। उन्होंने उन दो बहनों की बाँहों पर कंगन पहनाए, और उन्होंने उनके सिरों पर सुन्दर मुकुट रखें। +\s5 +\v 43 तब मैंने उस स्त्री के विषय में कहा जो कई पुरुषों के साथ सो कर थक गई थी, ‘अब वे लोग उसके साथ ऐसा व्यवहार करेंगे जैसे कि वह एक वेश्या है, क्योंकि वह यही तो है।’ +\v 44 अतः वे उन दो स्त्रियों, ओहोला और ओहोलीबा के साथ सो गए, जैसे पुरुष वेश्याओं के साथ सोते हैं। +\v 45 परन्तु धर्मी लोग उन्हें दण्ड के दोषी ठहराएँगे, जैसे उन स्त्रियों को दण्ड दिया जाता है जो व्यभिचार करती हैं और जो दूसरों की हत्या करती हैं, क्योंकि वे स्त्रियाँ व्यभिचार करती हैं और वे दूसरों की हत्या करती हैं। +\p +\s5 +\v 46 इसलिए मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: सामरिया और यरूशलेम पर आक्रमण करने के लिए एक भीड़ को लाओ, और उस भीड़ को उन शहरों के लोगों को भयभीत करने दो; भीड़ को उन्हें लूटने की अनुमति दो। +\v 47 भीड़ उन्हें मारने के लिए उन पर पत्थरों को फेकेंगी; वे उन्हें अपनी तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर देंगे, वे उनके पुत्रों और पुत्रियों को मार डालेंगे, और वे उनके घरों को जला देंगे। +\p +\s5 +\v 48 इस प्रकार मैं उन्हें उनके अनैतिक व्यवहार से रोकूँगा। यह अन्य स्त्रियों को तुम यरूशलेम के लोगों के कार्यों का अनुकरण न करने की चेतावनी देगा। +\v 49 मैं तुम, यरूशलेम के लोगों को तुम्हारे अनैतिक व्यवहार और मूर्तियों की उपासना करने के लिए दण्ड दूँगा। तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।” + +\s5 +\c 24 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश में ले जाने के लगभग नौ वर्षों के बाद, उस वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन, यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, लिख कि यह किस महीने का दिन है। इस दिन बाबेल के राजा की सेना ने यरूशलेम को घेर लिया था। +\s5 +\v 3 बाबेल में रहने वाले उन विद्रोही इस्राएली लोगों को एक कहावत बता। उनसे यह कह: यहोवा परमेश्वर कहते हैं: +\q1 ‘खाना पकाने के बर्तन में पानी डालो +\q2 और बर्तन को आग पर रखो। +\q1 +\v 4 अपनी सबसे अच्छी भेड़ों में से एक के माँस के कुछ टुकड़ों को बर्तन में डाल दो: +\q2 पैर और कंधे को डाल दो, जो सबसे अच्छे टुकड़े हैं। +\q1 फिर उस बर्तन में सर्वोत्तम हड्डियाँ भरो। +\q1 +\v 5 आग पर लकड़ी रखो, +\q2 और उबलते पानी में हड्डियों और माँस को पकाओ।’ +\s5 +\v 6 ऐसा करो क्योंकि यहोवा यही कहते हैं: +\q1 ‘यरूशलेम के लिए भयानक बातें घटित होंगी; यह ऐसा शहर है जो हत्यारों से भरा है, +\q2 एक ऐसा शहर जो गले हुए ताम्बे के बर्तन के समान है, +\q2 और वह जंग हटाया नहीं जा सकता है। +\q1 माँस के टुकड़ों को बर्तन से बाहर निकालो, +\q2 परन्तु चुनाव मत करो कि कौन से टुकड़े निकालने हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 यरूशलेम में जिन लोगों की हत्या हुई थी, उनका खून अभी भी वहाँ है; +\q1 नंगी चट्टानों पर उनकी हत्या कर दी गई थी, +\q2 मिट्टी पर नहीं, जहाँ उनके खून को ढाँका जा सकता है। +\q1 +\v 8 परन्तु मैं वही हूँ जिसने मारे गए लोगों के खून को नंगी चट्टान पर पोत दिया, +\q2 जहाँ उनके खून को ढाँका नहीं जा सकता है; +\q2 मैंने ऐसा किया जिससे कि मैं इसे देख सकूँ और फिर क्रोधित होकर बदला ले सकूँ।’ +\s5 +\v 9 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: +\q1 ‘उस शहर के साथ भयानक बातें होगी जो हत्यारों से भरा है! +\q2 यह ऐसा होगा जैसे मैं भी आग में लकड़ी का ढेर डालूँगा। +\q1 +\v 10 इसलिए लकड़ी का ढेर करो +\q2 और आग लगा दो! +\q1 माँस को अच्छी तरह से पकाओ, +\q2 और इसके साथ कुछ मसालों को मिलाओ; +\q2 इसे तब तक पकाओ जब तक कि हड्डियाँ काली न हो जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 11 फिर आग के कोयलों पर खाली बर्तन को रख दो +\q2 जब तक कि बर्तन बहुत गर्म न हो जाए और तांबा चमकने न लगे, +\q1 कि गलने का कारण मिट न जाए। +\q1 +\v 12 ऐसा लगता है कि मैंने उस जंग से छुटकारा पाने का प्रयास किया, +\q1 परन्तु मैं इसे करने में समर्थ नहीं था, +\q2 यहाँ तक कि आग पर उस बर्तन को डाल कर भी नहीं। +\p +\s5 +\v 13 बर्तन में यह जंग तुम्हारे अनैतिक व्यवहार का प्रतिनिधित्व करता है। मैंने तुमको तुम्हारे दुष्ट व्यवहार से शुद्ध करने का प्रयास किया, परन्तु तुमने मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। इसलिए जब तक मैंने तुमको दण्ड नहीं दिया तब तक तुम अपने पाप के अपराध से शुद्ध नहीं होंगे और मैं अब क्रोधित नहीं हूँ। +\p +\s5 +\v 14 मुझ, यहोवा, ने यह कहा है कि मैं तुमको निश्चित रूप से दण्ड दूँगा। और यह समय मेरे लिए ऐसा करने का है। मैं अपना मन नहीं बदलूँगा; मैं तुमको दण्ड देने से पीछे नहीं हटूँगा, और मैं तुम पर दया नहीं करूँगा। मैं तुम्हारा न्याय करूँगा और तुमको दण्ड दूँगा क्योंकि तुम अपने पापी व्यवहार के लिए दण्ड पाने योग्य हो। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा परमेश्वर, ने यह कहा है।’” +\p +\s5 +\v 15 एक दिन यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 16 “हे मनुष्य के पुत्र, मैं तेरी पत्नी को एक बीमारी से अकस्मात ही उठा लूँगा, तेरी पत्नी, जिससे तू बहुत प्रेम करता है। परन्तु जब वह मर जाती है, तो यह न दिखाना कि तू दुखी है या शोक करे या रोए। +\v 17 चुप चाप कराहना; उसके लिए सबके सामने मत रोना। अपनी पगड़ी को अपने सिर के चारों ओर लपेट, और नंगे पैर होने की अपेक्षा, अपनी जूतियों को अपने पैरों में पहन। यह दिखाने के लिए कि तू दुखी है, अपने चेहरे के निचले भाग को न ढाँकना। और ऐसे भोजन को न खाना जो शोक करने वाले लोग सामान्यतः खाते हैं।” +\p +\s5 +\v 18 इसलिए एक सुबह मैंने सामान्य रूप से लोगों से बात की, और उस शाम मेरी पत्नी अचानक मर गई। अगली सुबह मैंने वह किया जो यहोवा ने मुझे करने के लिए कहा था। +\p +\s5 +\v 19 तब लोगों ने मुझसे पूछा, “तू जो कार्य कर रहा है वह हमें क्या दर्शाता है?” +\p +\v 20 मैंने उनको उत्तर दिया, “यहोवा ने मुझसे कहा है: +\v 21 ‘इस्राएलियों को बता कि मैं मन्दिर को नष्ट करने जा रहा हूँ, वह भवन जिस पर तुमको बहुत घमण्ड है, वह भवन जिसे देख कर तुम प्रसन्न होते हो। जब तुमको बाबेल में आने के लिए विवश किया गया था, तो तुम्हारे बच्चे जिन्हें तुम यरूशलेम में छोड़ आए हो – तुम्हारे शत्रु उनको मार देंगे। +\s5 +\v 22 जब ऐसा होता है, तो तुम ऐसा करोगे जैसा मैंने किया है: तुम अपने चेहरों के निचले भाग को नहीं ढाँकोगे, या उस प्रकार का खाना नहीं खाओगे जो शोक करने वाले लोग खाते हैं। +\v 23 तुम अपने सिर के चारों ओर अपनी पगड़ी लपेटोगे और अपनी जूतियों को अपने पैरों में पहनोगे। तुम शोक नहीं करोगे और न ही रोओगे, परन्तु तुम्हारे शरीर बहुत दुबले हो जाएँगे और धीरे-धीरे मर जाएँगे; मैं तुम्हारे पापों को कभी क्षमा नहीं करूँगा। और तुम एक दूसरे के लिए कराहोगे। +\v 24 यहेजकेल तुम्हारे लिए एक चेतावनी होगा, और तुमको वह करना होगा जो उसने किया है। जब ऐसा होता है, तब तुम जान लोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।’” +\p +\s5 +\v 25 तब यहोवा ने मुझसे कहा, हे मनुष्य के पुत्र, मैं शीघ्र ही उनके पवित्र मन्दिर को नष्ट कर दूँगा, जिसके लिए वे आनन्दित होते हैं और जिसका वे आदर करते हैं और जिसे देख कर वे प्रसन्न होते हैं, और मैं उनके पुत्रों और पुत्रियों से भी छुटकारा पाऊँगा। +\v 26 उस दिन, कोई यरूशलेम से बच कर निकल जाएगा और आकर तुमको बताएगा कि वहाँ क्या हुआ है। +\v 27 जब ऐसा होता है, तो फिर से तू बिना किसी बाधा के बोलने में समर्थ होगा। तुम दोनों आपस में बात करोगे। तू लोगों के लिए एक चेतावनी होगा; और वे जान लेंगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।” + +\s5 +\c 25 +\p +\v 1 कुछ समय बाद, यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, अम्मोनियों के निवासस्थान की ओर मुड़ जा, और उन भयानक बातों के विषय में भविष्यद्वाणी कर जो उनके साथ होंगी। +\s5 +\v 3 उनके विषय में कह, ‘यहोवा परमेश्वर, कहते हैं: जब यरूशलेम में मेरा मन्दिर नष्ट हो गया था, और जब इस्राएल का देश उजाड़ हो गया था, और जब यहूदा के लोगों को बाबेल में बन्धुआ कर दिया गया था, तब तुम आनन्दित होकर चिल्लाने लगे थे। +\v 4 इसलिए, मैं पूर्व में रहने वाले लोगों की एक सेना को आने और तुमको जीतने की अनुमति देने जा रहा हूँ। वे तुम्हारे देश में अपने तम्बू स्थापित करेंगे और वहाँ रहेंगे। वे फलों के पेड़ों से फल खाएँगे और तुम्हारे मवेशियों से दूध पीएँगे। +\v 5 मैं तुम्हारी राजधानी रब्बा को ऊँटों के लिए एक चारागाह बना दूँगा, और अम्मोन के शेष भाग को, जहाँ तुम्हारे लोग अब जीवित हैं, केवल भेड़ों के लिए एक विश्राम स्थान बना दूँगा। तब तुम जानोगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है। +\s5 +\v 6 मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: तुमने प्रसन्नता से अपने हाथों से तालियाँ बजाईं और अपने पैरों को पटका, और हँसे क्योंकि तुमने इस्राएल के लोगों को तुच्छ जाना था। +\v 7 इसलिए, मैं तुम्हारे विरुद्ध अपनी शक्ति का उपयोग करूँगा, और मैं अन्य राष्ट्रों को तुमको जीतने और तुम्हारी सम्पत्ति के समान तुमको ले जाने में समर्थ करूँगा। मैं तुमको पूरी तरह नष्ट कर दूँगा, और अब तुम राष्ट्रों में से एक नहीं रहोगे। जब ऐसा होता है, तब लोग जान लेंगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 8 यहोवा परमेश्वर यह भी कहते हैं: अम्मोन के दक्षिण में मोआब के लोग और मोआब के दक्षिण में सेईर के लोगों ने इस्राएल को तुच्छ जाना और कहा, “इस्राएल के लोग अन्य सभी राष्ट्रों के समान महत्वहीन हो गए हैं!” +\v 9 इस कारण मैं उन नगरों को नष्ट कर दूँगा जो मोआब की सीमाओं की रक्षा करते हैं, जो मोआब के सर्वोत्तम नगर बेत्यशीमोत, बालमोन और किर्यातैम से आरम्भ होते हैं। +\v 10 मैं मोआब को जीतने और अम्मोन को भी जीतने के लिए पूर्व से लोगों को समर्थ करूँगा। जिसके परिणामस्वरूप, उसी प्रकार से मैं अम्मोन को अन्य राष्ट्रों द्वारा स्मरण नहीं रहने दूँगा, +\v 11 मैं मोआब के लोगों को भी दण्ड दूँगा। जब ऐसा होता है, तो लोग जान लेंगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 12 यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं: “तुम एदोम के लोग यहूदा के लोगों से बदला लेने के दोषी हो। +\v 13 इस कारण मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: मैं एदोम के लोगों के विरुद्ध अपनी शक्ति का उपयोग करूँगा और मैं उनके मनुष्यों और पशुओं से छुटकारा पाऊँगा। मैं मध्य एदोम के तेमान क्षेत्र से दक्षिणी एदोम के ददान क्षेत्र तक की भूमि को नष्ट कर दूँगा, और उनके शत्रु उनके कई लोगों को मार देंगे। +\s5 +\v 14 इस्राएली लोग एदोम के लोगों से बदला लेने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करेंगे। वे एदोम के लोगों को दिखाएँगे कि मैं उनसे क्रोधित हो गया हूँ और मैं उन्हें दण्ड दूँगा। मैं एदोम के लोगों से बदला लूँगा। तब वे जान जाएँगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 15 यहोवा परमेश्वर कहते हैं: “पलिश्ती जाति लम्बे समय से यहूदा के लोगों से बदला लेने के लिए बहुत इच्छुक थी। वे बैर की भावना से यहूदा को नष्ट करना चाहते थे। +\v 16 इस कारण मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: मैं पलिश्ती लोगों के विरुद्ध अपनी शक्ति का उपयोग करने वाला हूँ। मैं करेत के लोगों के समूह से और जो भूमध्य सागर के तट पर रहने वाले लोग हैं उन सबसे छुटकारा पाऊँगा। +\v 17 मैं उनसे बहुत बड़ा बदला लूँगा और जिस प्रकार मैं उन्हें दण्ड दूँगा, उससे दिखाऊँगा कि मैं उनसे क्रोधित हूँ। और जब मैं उनसे बदला लूँगा, तब वे जान जाएँगे कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है।” + +\s5 +\c 26 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों के इस्राएलियों को अपने देश ले जाने के बाद यह लगभग ग्यारहवाँ वर्ष था, उस महीने के पहले दिन, यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने मुझसे कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, सोर शहर के लोग आनन्द से चिल्लाने लगे और उन्होंने यरूशलेम के विषय में कहा, ‘यरूशलेम, वह शहर है जिससे व्यापारी कई राष्ट्रों में गए थे, अब नष्ट हो गया है। अब पूरे संसार के लोग सामान मोल लेने और बेचने के लिए हमारे पास आएँगे। हम समृद्ध हो जाएँगे क्योंकि यरूशलेम अब नष्ट हो गया है!’ +\s5 +\v 3 इस कारण, मैं, यहोवा, यही कहता हूँ: ‘अब मैं तुम सोर के लोगों का शत्रु हूँ। मैं कई राष्ट्रों की सेनाओं को आकर तुम्हारे शहर पर आक्रमण करने दूँगा, जैसे समुद्र की लहरें किनारों पर चोट मारती हैं। +\v 4 उनके सैनिक सोर के चारों ओर दीवारों को नष्ट कर देंगे और उनकी गुम्मटों को तोड़ देंगे। शहर पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। तब वे मलबे को दूर कर देंगे और शहर को एक नंगी चट्टान बना देंगे। +\s5 +\v 5 समुद्र के बीच, तुम्हारे शहर का भाग जो एक द्वीप पर है एक ऐसा स्थान बन जाएगा जहाँ पुरुष उनके मछली पकड़ने के जाल को सूखने के लिए फैलाते हैं। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा परमेश्वर, ने यह भविष्यद्वाणी की है: कई राष्ट्रों के लोग तुम्हारे शहर का सारा मूल्यवान सामान उठा ले जाएँगे। +\v 6 सोर के पास के तट पर छोटे गाँवों में रहने वाले लोगों – तुम्हारे शत्रु तुमको अपनी तलवारों से मार डालेंगे। तब लोगों को पता चलेगा कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा परमेश्वर, में शक्ति है। +\p +\s5 +\v 7 यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ कि होने वाला है: उत्तर दिशा से, मैं संसार के सबसे शक्तिशाली राजा, बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर को उसकी सेना के साथ सोर पर आक्रमण करने के लिए ले कर आ रहा हूँ। वे घोड़ों और रथों को लाएँगे, और लोगों को जो घोड़ों की सवारी करते हैं और लोगों को जो रथों को चलाते हैं; यह एक विशाल सेना होगी। +\v 8 लड़ाई में किनारे के छोटे गाँवों में, उनके सैनिक अपनी तलवारों से कई लोगों को मार देंगे। तब वे सोर शहर के बाहर दीवारों का निर्माण करेंगे। वे दीवार के शीर्ष तक मलबे का पुश्ता बनाएँगे, और वे सब भूमि से मारे जाने वाले तीरों से स्वयं को बचाने के लिए ढाल पकड़ लेंगे। +\s5 +\v 9 राजा उन सैनिकों को निर्देशित करेगा जो दीवार पर चोट मारने के लिए साधनों का उपयोग करते हैं, और जो दीवारों के गुम्मटों को तोड़ने के लिए लोहे की सलाखों का उपयोग करेंगे। +\v 10 राजा के पास बड़ी संख्या में घोड़े होंगे, और उनके चलने से शहर को ढकने के लिए धूल उठेगी। यह ऐसा होगा जैसे घोड़ों, भोजन वस्तुओं की गाड़ियों और रथों के साथ जब वे शहर में वहाँ से प्रवेश करते हैं जहाँ शत्रु ने दीवारों को तोड़ दिया है तो उनके द्वारा किए गए शोर के कारण दीवारें काँपने लगेंगी। +\v 11 घोड़े उनके खुरों से शहर की सब सड़कों को रौंद देंगे। सैनिक अपनी तलवारों से लोगों को मार देंगे; वे उन स्मारकों को गिरा देंगे जो उनकी नष्ट करने की शक्ति का उत्सव मनाते हैं। +\s5 +\v 12 वे लोगों की सभी बहुमूल्य सम्पत्तियों को ले जाएँगे और व्यापारियों द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं को चुरा लेंगे। वे घरों की दीवारों को तोड़ देंगे और उनके अच्छे घरों को नष्ट कर देंगे। तब वे उन घरों की दीवारों के पत्थरों को और लकड़ी को और मलबे को समुद्र में फेंक देंगे। +\v 13 लोग अब ऊँची आवाज वाले गीत नहीं गाएँगे या अपनी वीणा नहीं बजाएँगे। +\v 14 वे शहर को एक नंगी चट्टान बना देंगे और केवल एक ऐसी जगह जहाँ पुरुष अपने मछली पकड़ने के जाल फैलाएँगे और शहर का फिर से निर्माण कभी नहीं किया जाएगा।’” ये बातें निश्चित रूप से घटित होंगी क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने घोषणा की है कि वे होंगी। +\p +\s5 +\v 15 यहोवा परमेश्वर सोर के लोगों के विषय में यह भी कहते हैं: जब सोर में रहने वाले लोग चिल्लाते हैं क्योंकि शत्रु ने उनको घायल कर दिया है, जब बहुत से लोग मर जाते हैं, और जब शत्रु शहर को नष्ट कर देते हैं, तब तट के पास रहने वाले लोग काँपेंगे क्योंकि वे डरते हैं। +\v 16 तब तट के पास के नगरों के सब राजा अपने सिंहासन से नीचे उतर आएँगे और अपने वस्त्र और उनके कढ़ाई वाले कपड़ों को एक ओर रख देंगे। वे डर जाएँगे, और काँपते हुए वे भूमि पर बैठ जाएँगे। सोर शहर के साथ जो हुआ है, उसके कारण वे चौंक जाएँगे। +\s5 +\v 17 तब वे शहर के विषय में एक दुखद गीत गाएँगे, इस प्रकार से: +\q1 ‘प्रसिद्ध शहर, जिसमें समुद्र में जाने वाले कई लोग रहते थे, +\q2 अब नहीं है! +\q1 उस शहर के लोगों के पास बहुत शक्ति थी जब वे समुद्र की यात्रा पर जाते थे, परन्तु अब वे समुद्र के तल में हैं; +\q2 वे उनके निकट रहने वाले सब लोगों को डराते थे। +\q1 +\v 18 परन्तु अब तट के पास रहने वाला हर कोई डर गया है क्योंकि शत्रु ने बड़े शहर को नष्ट कर दिया है। +\q2 ऐसा लगता है कि तट के किनारे की भूमि थरथरा रही थी; +\q1 समुद्र में द्वीपों पर लोग भयभीत हैं क्योंकि उस शहर का अस्तित्व अब नहीं है।’ +\p +\s5 +\v 19 यहोवा परमेश्वर यह भी कहते हैं: ‘जब मैं हर किसी को सोर शहर छोड़ने दूँगा, जैसे लोगों ने अन्य शहरों को छोड़ दिया है, जिनमें कोई भी जीवित नहीं रहता है, और जब मैं समुद्र की विशाल लहरों को ढाँकता हूँ, +\v 20 तब मैं उस नगर के लोगों को उन सबके साथ रहने के लिए लाऊँगा जो मर चुके हैं, जो बहुत पहले मर गए थे। मैं उन्हें पृथ्‍वी के नीचे के स्थान में रहने दूँगा जो पुराने खण्डहरों के समान हैं, उनके साथ जो पहले उस गड्ढे में उतर गए थे, और वे कभी भी पृथ्‍वी पर वापस नहीं आएँगे, जहाँ लोग जीवित हैं। +\v 21 मैं उन्हें भयानक रीति से मरने दूँगा, और यह उनका अन्त होगा। लोग उस शहर की खोज करेंगे, परन्तु वह अब अस्तित्व में नहीं रहेगा।” यही है जो यहोवा परमेश्वर घोषणा करते हैं कि होगा। + +\s5 +\c 27 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझसे यह कहा: +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, सोर के विषय में एक अंतिम संस्कार गीत गा। +\v 3 सोर शहर समुद्र के किनारे एक द्वीप पर है, और उनके व्यापारियों ने उन जातियों के साथ व्यापार किया जो कई समुद्र तटों के निकट में रहती हैं। यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं जो उन्हें बताना तेरे लिए आवश्यक है: +\q1 तुम सोर के लोगों ने कहा कि तुम्हारा शहर बहुत सुन्दर है। +\q1 +\s5 +\v 4 तुमने उसे नियंत्रित किया जो लोग मोल लेते और बेचते थे – वे लोग जो समुद्र के पास रहते थे। +\q2 वे लोग जो तुम्हारे शहर का निर्माण करते हैं, वे इसे बहुत सुन्दर बनाते हैं। +\q1 +\v 5 तुम और तुम्हारा शहर एक विशाल जहाज के समान था +\q2 जिसे तुमने हेर्मोन पर्वत पर उगने वाले सनोवर के पेड़ों से बनाया था। +\q1 तब तुमने जहाज के लिए एक मस्तूल बनाने को लबानोन से देवदार की लकड़ी ली। +\q1 +\s5 +\v 6 तुमने बाशान के क्षेत्र से बांज के पेड़ से चप्पू बनाए। +\q1 तुमने साइप्रस द्वीप से सनोवर की लकड़ी से जहाज की छत बनाई है, +\q2 और तुमने जहाज की छत को हाथी दाँत से ढाँक दिया। +\q1 +\v 7 तुमने मिस्र से बढ़िया कढ़ाई वाले सनी के कपड़े से पालियाँ बनाईं; +\q2 वे पालियाँ झण्डों के समान थीं जिसे लोग बहुत दूर से देख सकते थे। +\q1 +\s5 +\v 8 सीदोन और अर्वद के नगरों में से लोगों ने तुम्हारे चप्पुओं को चलाया; +\q2 जो जहाज चलाते थे वे सोर से अनुभवी नाविक थे। +\q1 +\v 9 गबल के अनुभवी कारीगर जहाज पर थे। उन्होंने तुम्हारे जहाजों की सीवनों को सन भर कर बन्द किया। +\q2 कई देशों के नाविक अपने जहाजों में तुम्हारे पास सामान मोल लेने और बेचने के लिए आए थे। +\q1 +\s5 +\v 10 जो लोग फारस, लूद और पूत के दूर के देश से आए थे वे तुम्हारी सेना में सैनिक थे। +\q1 उन्होंने अपनी ढालों को और टोपों को तुम्हारे शहर की दीवारों पर लटका दिया; +\q2 इसके कारण से कई लोगों ने तुम्हारे शहर की प्रशंसा की। +\q1 +\v 11 अर्वद और हेलेक के नगरों के लोग तुम्हारे नगर की दीवारों पर पहरेदार थे; +\q2 गम्‍मद शहर से पुरुष तुम्हारे गुम्मटों में थे। +\q1 उन्होंने भी अपनी ढालों को तुम्हारी दीवारों पर लटका दिया; +\q2 उन्होंने भी तुम्हारे शहर को बहुत सुन्दर बना दिया। +\p +\s5 +\v 12 तुम्हारे पास व्यापार करने की कई वस्तुओं के कारण, तर्शीश के लोगों ने उन व्यापारियों को भेजा जो चाँदी, लोहा, टीन लाए और तुम्हारे पास जो वस्तुएँ थीं उनका व्यापार करने लगे। +\p +\v 13 यूनान, तूबल और मेशेक के व्यापारी दासों और पीतल से बनी वस्तुओं को तुम्हारे साथ व्यापार करने के लिए लाए, उन वस्तुओं से जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\s5 +\v 14 तोगर्मा से पुरुषों ने कार्य करने वाले घोड़ों, युद्ध के घोड़ों और खच्चरों को ला कर उन वस्तुओं का व्यापार किया, जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\v 15 व्यापारी रुदुस द्वीप से तुम्हारे पास आए थे। +\q1 समुद्र के पास के कई देशों के लोग तुम्हारे साथ व्यापार किया करते थे; +\q2 वे हाथी दाँत और मूल्यवान काले आबनूस लकड़ी को तेरे साथ व्यापार करने के लिए लाए, उन वस्तुओं से जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\s5 +\v 16 क्योंकि तुम्हारे पास बेचने के लिए बहुत वस्तुएँ थीं, अराम देश के लोग तुम्हारे पास मूल्यवान फीरोजा पत्थर, बैंगनी कपड़े, कढ़ाई वाले कपड़े, बढ़िया सनी के कपड़े और मूँगे और माणिक से बने गहने लाए थे। +\p +\v 17 यहूदा और इस्राएल के लोग अम्मोन के मिन्नीत शहर से गेहूँ, अंजीर, शहद, जैतून का तेल, और मलहम को तुम्हारी वस्तुओं के बदले में व्यापार करने के लिए लाए। +\p +\v 18 क्योंकि तुम्हारे पास बेचने के लिए बहुत सारी वस्तुएँ थीं, दमिश्क शहर के लोग हेलबोन शहर से दाखमधु और विष के क्षेत्र से सफेद ऊन उन बहुत वस्तुओं से व्यापार करने के लिए लाए, जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\s5 +\v 19 दान के गोत्र के लोग और उज्जल के यूनानी पुरुष लोहे, मसाले, तज और यदि के बीजों से बने वस्तुओं को उन वस्तुओं के बदले व्यापार करने के लिए लाए, जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\v 20 दक्षिणी एदोम के ददान से व्यापारी आए थे जो काठी कंबल ला रहे थे उन वस्तुओं के बदले में व्यापार करने के लिए, जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\v 21 अरब के पुरुष और केदार के सब शासकों ने व्यापारियों को मेम्नों और मेढ़ों और बकरों के साथ उन वस्तुओं के बदले में व्यापार करने के लिए भेजा, जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\s5 +\v 22 अरब के शेबा और रामा के व्यापारी बहुत अच्छे मसाले और नगीने और सोना उन वस्तुओं के बदले में लाए, जो तुम्हारे पास थीं। +\p +\v 23 मेसोपोटामिया के हारान, कन्ने, एदेन, शेबा, अश्शूर और कलमद से पुरुष उनके सामान के साथ आए थे। +\s5 +\v 24 वे तुम्हारे साथ व्यापार करने के लिए सुन्दर वस्तुएँ लाए: नीले कपड़े, कढ़ाई वाले कपड़े, और कई रंगों वाला गलीचा जिसे लपेट कर रस्सी से बाँधा गया था। +\q1 +\v 25 तर्शीश के मालवाहक जहाजों ने उन सब वस्तुओं को उठाया जो तुमने बेची थीं; +\q2 तुम्हारे द्वीप के गोदाम उन सब वस्तुओं से भरे हुए थे और तुमको बहुत सम्मान मिला। +\q1 +\s5 +\v 26 जो लोग तुम्हारे जहाजों को चलाते हैं वे माल से भरे जहाजों को विशाल समुद्रों में ले गए। +\q2 परन्तु अब प्रचण्ड पूर्वी हवा ने उन जहाजों को तोड़ दिया है। +\q1 +\v 27 जहाजों पर जो कुछ भी था सब कुछ खो गया है +\q2 सारा बहुमूल्य माल और नाविकों और जहाज चालकों में से कई, +\q1 जहाज के कर्मचारी और व्यापारी और सैनिक। +\q1 जिस दिन वे जहाज टूटे थे, +\q2 उनके सारे कर्मचारी समुद्र के तल में डूब गए। +\q1 +\s5 +\v 28 तट के निकट के शहरों में रहने वाले लोग थरथरा गए +\q2 जब उन्होंने सुना कि तुम्हारे जहाज के चालक रोते हैं। +\q1 +\v 29 चप्पू चलाने वाले सब लोग जहाजों को छोड़ देंगे; +\q2 नाविक और चालक तट पर आएँगे और समुद्र तट पर खड़े होंगे। +\q1 +\v 30 जो तुम्हारे साथ घटित हुआ है, उसके कारण वे बड़े जोर से रोएँगे, +\q2 और वे फूट-फूट कर रोएँगे। +\q1 वे धूल को अपने सिर पर डालेंगे +\q2 और राख में चारों ओर लोटेंगे। +\q1 +\s5 +\v 31 वे यह दिखाने के लिए अपने सिरों को मूँड़ेंगे कि तुम्हारे साथ जो हुआ है, उसके कारण वे बहुत दुखी हैं, +\q2 और वे शोक करने के लिए अपने ऊपर टाट के वस्त्र डालेंगे। +\q1 वे तुम्हारे लिए बहुत फूट-फूट कर रोएँगे +\q2 और तुम्हारे लिए शोक करेंगे। +\q1 +\v 32 तुम्हारे साथ जो हुआ है, जब वे उसके लिए विलाप करेंगे और शोक करेंगे +\q2 तब वे अंतिम संस्कार के इस दुखद गीत को गाएँगे: +\q1 ‘निश्चय ही सोर जैसे शहर कभी नहीं थे, +\q2 जो अब चुप है, +\q2 समुद्र की लहरों से ढँका हुआ है।’ +\q1 +\v 33 सामान जिनका तुम्हारे व्यापारियों ने व्यापार किया था +\q2 वे ऐसी वस्तुएँ थीं जो कई देशों के लोगों को प्रसन्न करती थीं। +\q1 बहुत दूर के स्थानों के राजा धनवान हो गए +\q2 तुम्हारे साथ मोल लेने और बेचने के कमाए गए पैसे से। +\q1 +\s5 +\v 34 परन्तु अब तुम्हारा शहर समुद्र में एक टूटे हुए जहाज के समान है; +\q2 और इसमें सब कुछ टूटा हुआ है, और यह अब समुद्र के तल में है। +\q1 तुम्हारा सारा माल और तुम्हारे नाविक समुद्र के तल में डूब गए हैं। +\q1 +\v 35 समुद्र तट के निकट रहने वाले सब लोग चकित हो गए हैं +\q2 उसके कारण जो तुम्हारे साथ हुआ है। +\q1 उनके राजा बहुत भयभीत हैं; +\q2 जब वे देखते हैं तो वे भय से थरथराते हैं। +\q1 +\v 36 अन्य राष्ट्रों के व्यापारी अपने सिरों को हिलाते हैं +\q2 क्योंकि जो हुआ है उस पर विश्वास करना कठिन है; +\q1 अब तुम्हारा शहर लोप हो गया है, +\q2 और यह अब अस्तित्व में नहीं होगा।” + +\s5 +\c 28 +\p +\v 1 तब यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा: +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, सोर के राजा को मेरे, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह सन्देश दे: +\q1 ‘तू ने बहुत घमण्ड से दावा किया है कि तू एक देवता है, +\q2 और यह कि तू छुआ नहीं जा सकता है, क्योंकि तू समुद्र में एक द्वीप पर एक शहर में सिंहासन पर बैठता है! +\q1 तू डींग मारता है कि तू एक देवता है, +\q2 परन्तु सच तो यह है कि तू केवल एक पुरुष है, परमेश्वर नहीं। +\q1 +\v 3 तुझे लगता है कि तू दानिय्येल की तुलना में बुद्धिमान है, +\q2 और तुझे लगता है कि तू हर भेद को समझ सकता है। +\q1 +\s5 +\v 4 क्योंकि तू बुद्धिमान और व्यापार में चतुर था, तू बहुत धनवान बन गया है; +\q2 तू ने अपने खजाने के लिए बहुत अधिक सोना और चाँदी एकत्र किया है। +\q1 +\v 5 हाँ, यह सच है कि बुद्धिमानी से मोल ले कर और बेच कर, तू बहुत धनवान बन गया है; +\q2 और क्योंकि तू धनवान है, तू बहुत अहंकारी हो गया है। +\p +\s5 +\v 6 इसलिए, यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं, +\q1 क्योंकि तू सोचता है कि तू एक देवता के समान बुद्धिमान है, +\q2 +\v 7 वह तेरे देश पर आक्रमण करने के लिए एक विदेशी सेना लाएँगे, +\q2 एक सेना जो अन्य राष्ट्रों को डरा देती है। +\q1 वे तुझ पर आक्रमण करने के लिए अपनी तलवारें बाहर खींच लेंगे, +\q2 तू जो सोचता है कि तेरे पास अद्भुत ज्ञान है, +\q1 और वे तेरी सब सुन्दर वस्तुओं को नष्ट कर देंगे और उन्हें कुरूप बना देंगे। +\q1 +\s5 +\v 8 वे तुझे तेरी कब्र में ले जाएँगे; +\q1 तेरी मृत्यु हिंसक होगी +\q2 जैसे वे जो समुद्र में मर गए। +\q1 +\v 9 तब जो तुझे मार रहे होंगे उनसे तू निश्चय ही नहीं कहेगा +\q2 कि तू एक देवता है, +\q1 क्योंकि वे जान लेंगे कि तू देवता नहीं है; +\q2 तू केवल एक पुरुष है। +\q1 +\v 10 तू ऐसे मर जाएगा जैसे अन्य लोग मर जाते हैं, जो परमेश्वर के लिए स्वीकार्य नहीं हैं, +\q2 वे जिनको विदेशियों ने मार डाला। यह निश्चय ही होगा क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।’” +\p +\s5 +\v 11 यहोवा ने मुझे यह सन्देश भी दिया: +\v 12 “हे मनुष्य के पुत्र, सोर के राजा के विषय में एक दुखद गीत गा। उसे बता कि यहोवा परमेश्वर उससे यह कहते हैं: +\q1 ‘तू पूरी तरह से सिद्ध था, +\q2 अत्याधिक बुद्धिमान और सुन्दर। +\q1 +\v 13 तेरा जीवन बहुत अच्छा था, क्योंकि तू अदन में, मेरे सुन्दर बगीचे में था। +\q2 तेरे कपड़े कई प्रकार के बहुत मूल्यवान पत्थरों से सजाए गए थे— +\q1 माणिक, पुखराज, पन्ना, चन्द्रकान्त, गोमेद, सूर्यकान्त, नीलम, फीरोजा, और लहसनिए पत्थरों से। +\q2 उन पत्थरों को सोने के खाँचों में गढ़ा गया था +\q2 जिसे मैंने तेरे लिए तैयार किया था जिस दिन मैंने तुझे बनाया था। +\q1 +\s5 +\v 14 मैंने तुझे लोगों की रक्षा करने के लिए एक शक्तिशाली स्वर्गदूत बनने के लिए नियुक्त किया था। +\q1 मैंने तुझे अपने पवित्र पर्वत पर रखा था, +\q2 और तू अग्निमय पत्थरों के बीच चलता था। +\q1 +\v 15 तू ने जो कुछ भी किया है उसमें तू पूरी तरह से सही था +\q2 जिस दिन से तू बनाया गया था, +\q2 जब तक तू ने दुष्ट कार्यों को करना आरम्भ नहीं किया। +\q1 +\s5 +\v 16 तब तू सामान मोल लेने और बेचने में व्यस्त हो गया, +\q2 तू ने हिंसात्मक रूप से कार्य करना आरम्भ कर दिया, +\q2 और तू ने पाप किया है। +\q1 इसलिए मैंने तुझे अपमानित किया। +\q2 तू, वह स्वर्गदूत, जो लोगों की रक्षा करने के लिए था – मैंने तुझे मेरा पर्वत छोड़ने के लिए विवश किया; +\q2 मैंने तुझे उन अग्निमय पत्थरों को छोड़ने के लिए विवश किया। +\q1 +\v 17 तू बहुत घमण्डी था +\q2 क्योंकि तू बहुत आकर्षक था। +\q1 क्योंकि तू सुन्दर वस्तुओं से प्रेम करता था, +\q2 तू ने उन कार्यों को किया जो बुद्धिमान लोग नहीं करते हैं। +\q1 इसलिए मैंने तुझे धरती पर फेंक दिया, +\q2 और अन्य राजाओं को अनुमति दी कि तुझ पर हँसें। +\q1 +\s5 +\v 18 कई पापों को करने से +\q2 और बेईमानी से वस्तुओं को मोल ले कर और बेच कर, +\q2 तू ने उन स्थानों को मेरे लिए अस्वीकार्य कर दिया जहाँ लोगों ने मेरी आराधना की थी। +\q1 इसलिए मैं एक ऐसी आग उत्पन्न करूँगा जो तेरे शहर को जला देगी। +\q2 तेरा शहर पूरी तरह जला दिया जाएगा, +\q1 और जो लोग इसे देखे वे देखेंगे +\q2 कि शहर में जो बचा है वह केवल राख ही होगी। +\q1 +\v 19 वे सब लोग जो जानते थे कि तेरा शहर पहले कैसा था +\q2 वे डर जाएँगे। +\q1 अब तेरा शहर लोप हो जाएगा, +\q2 और यह अब अस्तित्व में नहीं होगा।’” +\p +\s5 +\v 20 तब यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 21 “हे मनुष्य के पुत्र, सीदोन शहर की ओर मुड़, और उन भयानक बातों की घोषणा कर जो इसके साथ होंगी। +\v 22 सीदोन के लोगों को यहोवा परमेश्वर की ओर से यह सन्देश दे। उन्हें बता: +\q1 ‘तुम हे सीदोन के लोगों, मैं तुम्हारा शत्रु हूँ। +\q2 मैं तुम्हारे साथ जो करूँगा उसके द्वारा, +\q1 मैं तुमको दिखाऊँगा कि मैं कितना महान हूँ, +\q2 और तुमको मालूम हो जाएगा कि यह यहोवा हैं जो तुमको दण्ड देते हैं और तुम्हारा सच्चा न्याय करते हैं। +\q2 तुमको मालूम हो जाएगा कि मैं तुमसे अलग हूँ, और यह कि मैं तुम्हारे साथ जो कुछ करता हूँ उससे मैं सम्मानित किया जाऊँगा! +\q1 +\s5 +\v 23 मैं तुम पर एक महामारी भेजूँगा, +\q2 और मैं तुम्हारी सड़कों पर शत्रुओं को आने और तुमको मारने के लिए भेजूँगा। +\q1 वे तुम पर हर दिशा से आक्रमण करेंगे, +\q2 और वे तुम्हारे शहर की दीवारों के भीतर तुम्हारे लोगों को मार डालेंगे। +\q1 तब सबको मालूम हो जाएगा कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है।’ +\p +\v 24 अब इस्राएली लोगों के पास रहने वाले लोग उन्हें चोट नहीं पहुँचाएँगे जैसे जंगली गुलाब और नोकीले काँटे लोगों को चोट पहुँचाते हैं। और तब इस्राएलियों को मालूम हो जाएगा कि जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की मुझ यहोवा, में शक्ति है।” +\p +\s5 +\v 25 और यहोवा परमेश्वर यह भी कहते हैं: “मैं उनको दूर के देशों से एकत्र करूँगा जहाँ मैंने उन्हें तितर बितर कर दिया है। और अन्य जातियाँ देखेंगी कि मैं अलग और सम्मानित किया गया हूँ, जब इस्राएल का घराना उस देश में अपने घरों को बनाता है जिसे मैंने अपने दास याकूब को दिया है! +\v 26 मेरे लोग इस्राएल में सुरक्षित रहेंगे; वे घरों का निर्माण करेंगे और दाख की बारियाँ लगाएँगे। और जब मैं उन आस-पास की जातियों को दण्ड दूँगा जो उन्हें तुच्छ मानती हैं, तो मेरे लोग जान जाएँगे कि मैं उनका परमेश्वर यहोवा ही हूँ, जिसने यह किया है।” + +\s5 +\c 29 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश में ले जाने के लगभग दस वर्ष बाद, उस वर्ष के दसवें महीने के बारहवें दिन, यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने मुझसे कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, मिस्र की ओर मुड़ और मिस्र के राजा और उसके सारे लोगों के साथ होने वाली भयानक बातों की घोषणा कर। +\v 3 राजा को मेरी ओर से आया यह सन्देश दे, क्योंकि मैं यहोवा परमेश्वर हूँ। +\q1 ‘हे फिरौन, मिस्र के राजा, यह जान ले, कि मैं, यहोवा, तेरा शत्रु हूँ। +\q2 तू एक महान राक्षस के समान है जो नील नदी की धाराओं में लेटा रहता है। +\q1 तू यह कहने का साहस करता है कि नील नदी तेरी है, +\q2 और तू ने इसे अपने लिए बनाया है। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु यह ऐसा होगा जैसे मैं तेरे जबड़ों में अंकुड़े डालूँगा +\q1 और तुझे बाहर भूमि पर खींच लूँगा, +\q2 मछली तेरी खाल पर चिपकी हुई होंगी। +\q1 +\v 5 मैं तुझे और उन सब मछलियों को रेगिस्तान में मरने के लिए छोड़ दूँगा; +\q2 तू भूमि पर गिर पड़ेगा, +\q1 और कोई भी तुझे दफन करने के लिए तेरे शव को नहीं उठाएगा, +\q2 क्योंकि मैं घोषणा करता हूँ कि तेरा शरीर जंगली जानवरों और पक्षियों के लिए भोजन होगा। +\s5 +\v 6 जब ऐसा होता है, तब मिस्र के सब लोग यह जान लेंगे कि यह मैं, यहोवा, हूँ जिसमें वह करने की शक्ति है जो वह कहता है कि करूँगा। +\p इस्राएली लोगों ने भरोसा किया था कि तू उनकी सहायता करेगा। परन्तु तू उनके हाथों में एक नरकट के लट्ठे के समान रहा है। +\v 7 और जब वे उस लट्ठे पर झुक गए, तो वह टूट गया और उनके कंधों को तोड़ दिया। जब वे तुझ पर झुके, तो तू उनके हाथ में टूट जाने वाले लट्ठे के समान था, और जिसके परिणामस्वरूप तू उनके पैरों को कुचलने लगा और उनके लिए खड़ा होना असम्भव कर दिया।’ +\p +\s5 +\v 8 इस कारण यहोवा परमेश्वर कहते हैं, ‘मैं मिस्र के शत्रुओं को तलवारों से उन पर आक्रमण करने के लिए लाऊँगा; वे मिस्र के लोगों और जानवरों को मार देंगे। +\v 9 मिस्र एक खाली रेगिस्तान बन जाएगा। तब मिस्र के लोगों को पता चलेगा कि यह मैं, यहोवा, हूँ जिसमें वह करने की शक्ति है जो वह कहते हैं, और वह मिस्र के लोगों को यह कहने के लिए दण्ड देंगे कि नील नदी उनकी है क्योंकि उन्होंने इसे बनाया है। +\v 10 मैं तुम्हारे और तुम्हारी नदियों के विरुद्ध हूँ, और मैं मिस्र को नष्ट कर दूँगा और उत्तर में मिग्दोल शहर से दक्षिण में सवेने तक, दक्षिण की ओर कूश की सीमा तक खाली रेगिस्तान बना दूँगा। +\s5 +\v 11 चालीस वर्ष तक कोई भी उस क्षेत्र से होकर नहीं आया जाया करेगा, और कोई भी वहाँ नहीं रहेगा। +\v 12 मिस्र बंजर हो जाएगा, और यह अन्य त्यागे गए राष्ट्रों से घिरा होगा। चालीस वर्षों तक मिस्र के शहर खाली होंगे और बिना लोग के होंगे, और आस-पास के देश भी ऐसे ही होंगे। मैं मिस्र के लोगों को दूर के देशों में तितर बितर कर दूँगा। +\p +\s5 +\v 13 परन्तु यहोवा परमेश्वर यह भी कहते हैं: ‘चालीस वर्षों का अन्त होने पर, मैं मिस्र के लोगों को फिर से घर लौटने दूँगा। +\v 14 मैं मिस्र के उन लोगों को वापस लाऊँगा जिनको उनके शत्रुओं ने पकड़ लिया था, और मैं उन्हें दक्षिण में पत्रोस के क्षेत्र में फिर से रहने की अनुमति दूँगा, जहाँ वे पहले रहते थे। परन्तु मिस्र एक बहुत महत्वहीन साम्राज्य बना रहेगा। +\s5 +\v 15 यह सब राष्ट्रों में से सबसे कम महत्वपूर्ण होगा; यह फिर से निकट के देशों से अधिक महान नहीं होगा। मैं मिस्र को बहुत अशक्त कर दूँगा, और वे फिर कभी अन्य राष्ट्रों पर शासन नहीं करेंगे। +\v 16 जब ऐसा होता है, तो इस्राएल के अगुवे अब मिस्र से उनकी सहायता करने के लिए पूछने के विषय में नहीं सोचेंगे। जब मैं मिस्र को दण्ड दूँगा, तो इस्राएलियों को स्मरण दिलाया जाएगा कि उन्होंने पहले यह भरोसा करके पाप किया था कि मिस्र उनकी सहायता कर सकता है। और इस्राएल के लोग यह जान लेंगे कि यहोवा परमेश्वर में वह करने की शक्ति है जो वह कहते हैं कि करेंगे।’” +\p +\s5 +\v 17 हम इस्राएली बन्दियों को बाबेल ले जाने के लगभग सत्ताईस वर्ष बाद, नए वर्ष के पहले दिन, यहोवा ने मुझे यह सन्देश दिया: +\v 18 “हे मनुष्य के पुत्र, बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने सोर के विरुद्ध बहुत कठिन युद्ध किया, जिसके परिणामस्वरूप उनके सिर उनके टोप के नीचे गन्जे हो गए, और उनके कंधे छिल गए। परन्तु नबूकदनेस्सर और उसकी सेना को सोर जीतने के उस अभियान में उनकी कड़ी परिश्रम का फल पाने के लिए कोई भी मूल्यवान वस्तु नहीं मिलीं। +\s5 +\v 19 इस कारण, यहोवा परमेश्वर कहते हैं कि वह मिस्र को जीतने के लिए राजा नबूकदनेस्सर की सेना को समर्थ करेंगे। वे वहाँ से सब मूल्यवान वस्तुओं को उठा कर ले जाएँगे, कि राजा उन्हें अपने सैनिकों को दे सके। +\v 20 यहोवा कहते हैं कि सोर के साथ उन्होंने जो किया है उसके प्रतिफल में वह उन्हें मिस्र को जीतने में समर्थ करेंगे, क्योंकि नबूकदनेस्सर और उसकी सेना उनके लिए कार्य कर रही थी, वे वही कर रहे थे जो वह उनसे चाहते थे कि वे करें, और वह कार्य सोर को नष्ट करना था।” +\p +\s5 +\v 21 यहोवा ने मुझसे कहा, “किसी दिन मैं इस्राएल को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाऊँगा। जब ऐसा होगा, तब जो कुछ तुम उनसे कहते हो, मैं उन्हें सुनने योग्य करूँगा। तब वे जान जाएँगे कि यह सब इसलिए हुआ है कि मुझ, यहोवा, ने यह किया होगा।” + +\s5 +\c 30 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, भविष्यद्वाणी कर कि मिस्र के साथ क्या होगा। कह कि मैं यहोवा परमेश्वर यही कहता हूँ: +\q1 ‘रोओ और विलाप करो, +\q2 क्योंकि जिस दिन भयानक बातें होगी वह दिन आने वाला है। +\q1 +\v 3 वह दिन निकट है, +\q2 जिस दिन मैं, यहोवा, लोगों को दण्ड दूँगा; +\q1 यह कई देशों के लिए तूफानी बादलों और विपत्ति से भरे दिन के समान होगा। +\q1 +\s5 +\v 4 एक शत्रु की सेना मिस्र पर अपनी तलवारों के साथ आक्रमण करने आएगी, +\q2 और कूश में रहने वाले लोगों के लिए बहुत परेशानी उत्पन्न हो जाएगी। +\q1 शत्रु की सेना मिस्र में कई लोगों को मार डालेगी; +\q2 वे सब मूल्यवान वस्तुएँ ले जाएँगे, +\q2 और यहाँ तक कि वे भवनों को तोड़ कर उनकी नींव तक गिरा देंगे। +\p +\v 5 कूश, लूबी, लूद के सैनिक और मिस्र देश के सब विदेशी लोग, मिस्र देश में रहने वाले यहूदी भी – वे सब युद्ध में मारे जाएँगे। +\p +\s5 +\v 6 यहोवा यही कहते हैं: +\q1 ‘यह सेना मिस्र के सहयोगियों को पराजित करेगी, +\q2 और जिस शक्ति पर मिस्र के लोगों को गर्व है, वह समाप्त हो जाएगी। +\q1 उत्तर में मिग्दोल शहर से दक्षिण में सवेने शहर तक, वे मिस्र के सहयोगियों के सैनिकों को मार देंगे। +\q2 यहोवा परमेश्वर यही घोषणा करते हैं। +\v 7 मिस्र के सहयोगियों के सैनिक चौंक जाएँगे, और उनका साथ देने वाले शहर नष्ट किए जाएँगे जो उजड़ी हुई पड़ोसी जातियों से घिरे हुए हैं। +\q1 +\s5 +\v 8 तब, जब मैं मिस्र में सब कुछ जला देता हूँ, +\q2 और जब मैं उनके शत्रुओं को उनके सब सहयोगियों को पराजित करने देता हूँ, +\q2 तब लोग जान लेंगे कि मुझ, यहोवा, में ऐसा करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\p +\v 9 उस समय, मैं कूश के लोगों को जो अब भी सोचते हैं कि वे सुरक्षित हैं, डराने के लिए नील नदी में नावों पर तेजी से जाने के लिए दूत भेजूँगा, जो अब भी सोचते हैं कि वे सुरक्षित हैं। जब वे सुनेंगे कि मिस्र नष्ट हो गया है तो वे भयभीत होंगे। यह शीघ्र ही होगा! +\p +\s5 +\v 10 मैं यहोवा परमेश्वर यही कहता हूँ: +\q1 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर की शक्ति से +\q2 मैं मिस्र में बहुत से लोगों को नष्ट कर दूँगा। +\q1 +\v 11 नबूकदनेस्सर और उसकी सेना, जिसके सैनिकों को किसी पर कोई दया नहीं आती है, +\q2 मिस्र को नष्ट करने के लिए आएँगे। +\q1 वे अपनी तलवारें बाहर निकालेंगे +\q2 और मिस्र को उन लोगों की लाशों से भर देंगे जिन्हें उन्होंने मारा है। +\q1 +\s5 +\v 12 मैं नील नदी की धाराओं को सुखा दूँगा, +\q2 और मैं मिस्र देश को दुष्ट पुरुषों को बेच दूँगा। +\q1 विदेशियों की शक्ति से +\q2 मैं उस भूमि को और जो कुछ भी उसमें है सबको नष्ट कर दूँगा। यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने कहा है कि यह होगा। +\p +\s5 +\v 13 यह भी है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: +\q1 मैं उनकी मूर्तियों को शत्रु द्वारा +\q2 मेम्फिस शहर में नष्ट करवा दूँगा। +\q1 अब मिस्र में कोई राजा नहीं होगा, +\q2 और मैं मिस्र देश में रहने वाले सब लोगों को डरा दूँगा। +\q1 +\v 14 मैं दक्षिणी मिस्र में पत्रोस के क्षेत्र से सब लोगों को विवश करूँगा कि वे उस स्थान को छोड़ दें। +\q2 मैं पूर्वोत्तर मिस्र के सोअन शहर में आग लगा दूँगा +\q2 और दक्षिणी मिस्र में थीब्ज़ शहर में लोगों को दण्ड दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 15 मैं उत्तरी मिस्र में पेलूसियम के किले में सैनिकों को दण्ड दूँगा, +\q2 और मैं थीब्ज़ में लोगों को नष्ट कर दूँगा। +\q1 +\v 16 मैं मिस्र को आग से जला दूँगा; +\q2 पेलूसियम में लोगों को घोर कष्ट भोगना होगा। +\q1 शत्रु थीब्ज़ को जीत लेंगे, +\q2 और मेम्फिस के लोगों पर निरन्तर भय छाया रहेगा। +\q1 +\s5 +\v 17 उत्तरी मिस्र में हेलीओपोलिस और बुबास्टिस के शहरों में शत्रु अनेक युवा पुरुषों को मार देंगे, +\q2 और जो लोग शेष रह जाते हैं उन्हें बाबेल जाना होगा। +\q1 +\v 18 पूर्वोत्तर मिस्र में तहपन्हेस शहर में यह विनाश का अन्धकारमय दिन होगा +\q2 जब मैं मिस्र की शक्ति का अन्त कर दूँगा; +\q2 वह देश अब शक्तिशाली नहीं रहेगा। +\q1 यह ऐसा होगा जैसे एक अंधियारे बादल ने मिस्र को ढाँप लिया है, +\q2 क्योंकि उसके गाँव के लोग बन्दी होकर बाबेल जाएँगे। +\q1 +\v 19 इस प्रकार मैं मिस्र को दण्ड दूँगा, +\q2 और लोग जान लेंगे कि मुझ, यहोवा, में ऐसा करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा।” +\p +\s5 +\v 20 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश में ले जाने के लगभग ग्यारह वर्ष बाद, यहोवा ने मुझे उस वर्ष के पहले महीने के सातवें दिन एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 21 “हे मनुष्य के पुत्र, मैंने नबूकदनेस्सर की सेना को मिस्र के राजा की सेना को पराजित करने में समर्थ किया है। ऐसा लगता है कि मानों मैंने मिस्र के राजा की बाँहों में से एक को तोड़ दिया है, और उस पर पट्टी नहीं बाँधी गई है कि वह ठीक हो सके, और उसे पट्टियों में बाँध कर नहीं रखा गया है कि ठीक हो जाने के बाद उसमें तलवार पकड़ने की शक्ति हो। +\s5 +\v 22 इस कारण, मैं, यहोवा, यह कहता हूँ: मैं मिस्र के राजा का शत्रु हूँ। मैं पूरी तरह से मिस्र की शक्ति को नष्ट कर दूँगा; वह ऐसा होगा कि जैसे मैंने राजा के दोनों हाथों को तोड़ दिया, अच्छे वाले को और टूटे हुए को, और तलवार को उसके हाथ से गिरा दूँगा। +\v 23 मैं मिस्र के लोगों को राष्ट्रों के बीच तितर बितर करूँगा। +\v 24 मैं बाबेल के राजा की बाँहों को दृढ़ करूँगा और उसके हाथ में तलवार दूँगा, और मैं मिस्र के राजा की बाँहों को तोड़ दूँगा, और वह बाबेल के राजा के सामने एक साधारण सैनिक के समान कराहेगा जो घायल हो गया है और मरने वाला है। +\s5 +\v 25 मैं बाबेल के राजा को दृढ़ और शक्तिशाली कर दूँगा, और मिस्र का राजा पूरी तरह से अशक्त हो जाएगा। जब ऐसा होगा, जब मैं बाबेल की सेना को शक्तिशाली बना दूँगा, तब वे मिस्र पर आक्रमण करने के लिए उस शक्ति का उपयोग करेंगे। +\v 26 मैं मिस्र के लोगों को राष्ट्रों के बीच तितर बितर करूँगा, और जब ऐसा होगा, तब लोग जान लेंगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। + +\s5 +\c 31 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश ले जाने के लगभग ग्यारह वर्ष बाद, उस वर्ष के तीसरे महीने के पहले दिन, यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, मिस्र के राजा और उसके सब कर्मचारियों से कह, +\q1 ‘तुम सोचते हो कि ऐसा कोई देश नहीं है जिसकी शक्ति तुम्हारे देश की शक्ति जितनी महान हो। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम सोचते हो कि तुम्हारा देश उतना महान है जितना अश्शूर था। +\q2 अश्शूर लबानोन में एक लम्बे देवदार के पेड़ के समान था; +\q1 इसमें बड़ी सुन्दर शाखाएँ थीं +\q2 जिसने जंगल में अन्य पेड़ों के लिए छाया प्रदान की। +\q1 वह बहुत लम्बा था; +\q2 उसकी चोटी बादलों तक पहुँचती थी। +\q1 +\v 4 गहरे सोतों से उसे पानी मिला, +\q2 जिसके परिणामस्वरूप देवदार का वह पेड़ लम्बा और हरा भरा हो गया। +\q1 तब उस पेड़ की जड़ से होकर पानी +\q2 खुले ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य पेड़ों के लिए नालियों में होकर जाता था। +\q1 +\s5 +\v 5 वह विशाल पेड़ बहुत लम्बा हो गया, +\q2 इसके चारों ओर के सब पेड़ों से अधिक ऊँचा। +\q1 इसकी शाखाएँ बहुत मोटी और लम्बी हो गईं +\q2 क्योंकि पेड़ की जड़ों को प्रचुर मात्रा में पानी मिल रहा था। +\q1 +\v 6 पक्षियों ने उसकी शाखाओं में अपने घोंसले बनाए, +\q2 और जंगली जानवरों ने उन शाखाओं के नीचे अपने बच्चों को जन्म दिया। +\q1 और ऐसा था कि मानों सब महान राष्ट्रों के लोग उस पेड़ की छाया में रहते थे। +\q1 +\v 7 वह वैभवशाली और सुन्दर था; +\q1 उसकी शाखाएँ चारों ओर फैली हुई थीं +\q2 क्योंकि पेड़ की जड़ें उस भूमि में थीं जहाँ उसे पानी की भरपूरी थी। +\q1 +\s5 +\v 8 मेरी अदन की वाटिका के देवदार भी उसके जैसे विशाल नहीं थे, +\q2 और सनोवर पेड़ों की शाखाएँ उस देवदार के पेड़ की शाखाओं के जैसी लम्बी और मोटी नहीं थीं। +\q1 और न ही, चिनार के पेड़ की शाखाएँ भी वैसी लम्बी और मोटी थीं। +\q2 मेरे बगीचे में कोई पेड़ उस देवदार के पेड़ के समान सुन्दर नहीं था। +\q1 +\v 9 क्योंकि मैंने उस वृक्ष को बहुत सुन्दर होने दिया +\q2 इसकी भव्य हरी शाखाओं के कारण, +\q1 अदन की वाटिका के वृक्षों द्वारा जिन देशों के अगुवों का प्रतिनिधित्व किया, वे सब उस पेड़ द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए देश से डाह करने लगे।’ +\p +\s5 +\v 10 इसलिए, मैं, यहोवा परमेश्वर, यह कहता हूँ: ‘वह पेड़, जो अश्शूर का प्रतिनिधित्व करता है, बहुत लम्बा हो गया; इसकी चोटी अन्य पेड़ों की तुलना में अधिक ऊँची थी, और वह बहुत घमण्डी हो गया क्योंकि यह बहुत लम्बा था। +\v 11 इसलिए, मैंने उसे जीतने के लिए, उसे नष्ट करने के लिए एक अन्य शक्तिशाली राष्ट्र को समर्थ किया कि वह नष्ट किया जाए जिसके वह योग्य है। मैंने उसे पहले से ही त्याग दिया है। +\s5 +\v 12 एक विदेशी सेना ने, जिसने अन्य राष्ट्रों के लोगों को भयभीत किया है, उसे काट दिया और छोड़ दिया। उसकी शाखाएँ पर्वतों पर और घाटियों में गिर गईं। उसकी कुछ शाखाएँ देश की सब घाटियों में टूटी पड़ी थीं। अन्य राष्ट्रों के सब लोग इसकी छाया के नीचे से निकल गए और उसे छोड़ दिया। +\s5 +\v 13 आकाश के पक्षी गिरे हुए पेड़ पर बस गए, और जंगली जानवर इसकी शाखाओं के बीच में रहने लगे थे। +\v 14 जिसके परिणामस्वरूप, कोई अन्य पेड़, यहाँ तक कि यदि पेड़ को बहुत पानी मिलता है, कभी भी इतनी बड़ी ऊँचाई तक नहीं बढ़ेगा, या अन्य पेड़ों की शाखाओं के ऊपर अपनी चोटी को उठाएगा। वे सब निश्चय ही मर जाएँगे और सड़ जाएँगे; वे मरे हुओं के स्थान में जाएँगे; वे कब्र में जाएँगे।’” +\p +\s5 +\v 15 यहोवा परमेश्वर कहते हैं: “जब वह बड़ा पेड़ काटा गया था, तो ऐसा लगता था कि मानों जिस सोते ने इसे पानी दिया था, उसने उसके कारण शोक किया क्योंकि मैंने सोते के भरपूर पानी को सुखा दिया। ऐसा लगता है जैसे कि मैंने लबानोन के पर्वतों को इसके लिए शोक करने दिया, और वहाँ के सब पेड़ रोने लगे। +\s5 +\v 16 मैंने अन्य जातियों के लोगों को थरथराया जब उन्होंने सुना कि वह पेड़ भूमि पर गिर गया – जब उन्होंने सुना कि अश्शूर नष्ट हो गया। अन्य सब जातियाँ भी लबानोन के, अच्छी तरह से पानी मिले हुए सुन्दर पेड़ों के समान थीं, परन्तु जब उस देवदार के पेड़ के द्वारा जिस राजा का प्रतिनिधित्व किया गया था उनके बीच पहुँचा, जहाँ वे मृत लोगों के समान थे, तब उन्हें सांत्वना मिली। +\s5 +\v 17 उस बड़े पेड़ की छाया में उगने वाले पेड़ों द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले लोग, देवदार के पेड़ का प्रतिनिधित्व करने वाले महान राष्ट्र के मित्र भी मर गए और वहाँ चले गए जहाँ मरे हुए लोग हैं। +\p +\v 18 यह दृष्टान्त तुम मिस्र के लोगों के लिए चेतावनी है। तुम सोचते हो कि कोई अन्य राष्ट्र नहीं है जो तुम्हारे जैसा महान और गौरवशाली है। परन्तु उन राष्ट्रों के साथ-साथ तुम्हारा राष्ट्र भी नष्ट हो जाएगा। तुम्हारे लोग वहाँ उन लोगों के बीच होंगे जो मेरी आराधना करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, ऐसे लोग जो अपने शत्रुओं की तलवारों से मारे गए हैं। मिस्र के राजा और उसके लोगों के साथ यही होगा।” यहोवा परमेश्वर ने वही घोषित किया है जो घटित होगा। + +\s5 +\c 32 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश ले जाने के लगभग बारह वर्ष बाद, उस वर्ष के बारहवें महीने के पहले दिन यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने मुझसे कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, मिस्र के राजा फिरौन के विषय में एक दुखद गीत गाओ। उसके लिए यह गाओ: +\q1 ‘तुम लोग सोचते हो कि तुम राष्ट्रों के बीच एक शेर के समान हो; +\q1 परन्तु तुम नदी में एक समुद्री राक्षस के समान हो +\q2 जो पानी में इधर उधर घूमते हुए, +\q2 अपने पैरों के साथ पानी का मंथन करता है +\q2 और सारे पानी को गन्दा करता है। +\p +\s5 +\v 3 परन्तु मैं, यहोवा परमेश्वर, तुमसे कहता हूँ +\q1 कि मैं तेरे ऊपर अपने जाल को फेंकने के लिए कई लोगों को भेजूँगा, +\q2 और तब वे तुझे खींचते हुए भूमि पर ले जाएँगे। +\q1 +\v 4 वे तुझे एक खेत में फेंक देंगे, जहाँ मैं तुझे तेरे भाग्य पर छोड़ दूँगा। +\q1 मैं पक्षियों को तुझ पर बैठने दूँगा, +\q2 और सब जंगली जानवर तेरे शव के माँस को तब तक खाएँगे जब तक कि उनके पेट भर न जाएँ। +\q1 +\s5 +\v 5 मैं ऐसा करूँगा कि वे तेरे माँस को पर्वतों पर तितर बितर करें +\q2 और घाटी को तेरे कीड़े लगे शरीर के भागों से भरने दूँगा। +\q1 +\v 6 मैं उन्हें भूमि को तेरे खून से भरने दूँगा, +\q2 और पर्वतों को भी; +\q2 वे नालियों को तेरे खून से भर देंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 जब मैं तेरा और तेरे वंशजों का नाश करूँगा, +\q2 तब मैं आकाश को ढाँक दूँगा और तारों को चमकने की अनुमति नहीं दूँगा। +\q1 मैं सूरज के सामने एक काला बादल ले आऊँगा, +\q2 और चाँद नहीं चमकेगा। +\q1 +\v 8 मैं आकाश के सितारों को अंधेरा कर दूँगा, +\q2 और तेरे सम्पूर्ण देश पर अंधेरा होगा; +\q2 यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा परमेश्वर ने यह कहा है। +\q1 +\s5 +\v 9 और मैं कई राष्ट्रों के लोगों को डरा दूँगा जब वे सुनेंगे कि मैंने तुझे कैसे नष्ट किया है, +\q2 उन देशों के लोग; +\q2 जिनको तू कभी जानता भी नहीं था। +\q1 +\v 10 तेरे साथ जो होगा, उसके कारण मैं कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दूँगा; +\q2 उनके राजा भयभीत होंगे और थरथराएँगे क्योंकि मैंने तुझे नष्ट कर दिया है, +\q2 जब मैंने तुझे मारने के लिए अपनी तलवार को उनके सामने लहराया। +\q1 उस समय जब तू मर जाएगा, +\q2 वे सबके सब थरथराएँगे, +\q2 इस डर से कि मैं उन्हें भी मार दूँगा। +\p +\s5 +\v 11 मैं, यहोवा परमेश्वर तुझ मिस्र को, बताता हूँ, +\q1 कि बाबेल के राजा की सेना की तलवारें तुम पर वार करेंगी। +\q1 +\v 12 मैं बाबेल के शक्तिशाली सैनिकों को +\q2 तुम्हारे उत्तम से उत्तम सैनिकों को मारने दूँगा - +\q2 बाबेल के सैनिक, जो अन्य देशों की तुलना में अधिक निर्दयी हैं। +\q1 वे मिस्र के लोगों के घमण्ड को तोड़ देंगे, +\q2 क्योंकि वे तुम्हारे बहुत लोगों को मार देंगे। +\q1 +\s5 +\v 13 मैं मिस्र के सारे मवेशियों को नष्ट कर दूँगा, +\q2 जो धाराओं के पास चरते हैं। +\q1 जिसके परिणामस्वरूप, उन धाराओं में फिर कभी पानी गन्दा नहीं होगा +\q2 उन लोगों और मवेशियों के कारण से जो उनमें चल रहे थे। +\q1 +\v 14 तब मैं मिस्र की धाराओं को फिर से शान्त होने की +\q2 और निर्मलता के साथ बहने की अनुमति दूँगा जैसे जैतून का तेल बहता है।” यहोवा परमेश्वर यही घोषणा करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 15 वह यह भी कहते हैं: “जब मैं मिस्र को खाली कर दूँगा, +\q2 जब मैं देश में बढ़ने वाली हर वस्तु को तोड़ देता हूँ, +\q1 और जब मैं वहाँ रहने वाले सब लोगों का नाश कर दूँगा, +\q2 तब लोग जान लेंगे कि मुझ, यहोवा, में ऐसा करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\p +\v 16 लोग मिस्र के विषय में एक विलापगीत गाएँगे। +\p कई जातियों की स्त्रियाँ इसे गाएँगी; +\q2 वे इसे मिस्र और उसके बहुत से लोगों के विषय में गाएँगी।” +\q2 यह निश्चित रूप से होगा क्योंकि यहोवा ने कहा है कि ऐसा होगा। +\p +\s5 +\v 17 उसी महीने के पन्द्रहवें दिन, यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\p +\v 18 “हे मनुष्य के पुत्र, मिस्र के बहुत से लोगों के विषय में विलाप कर, क्योंकि मैं उन्हें पृथ्‍वी के नीचे के स्थान पर भेजूँगा, जहाँ वे और अन्य शक्तिशाली राष्ट्रों के लोग होंगे। मैं उन्हें दूसरों के साथ, वहाँ उस स्थान पर नीचे भेजूँगा जहाँ मरे हुए लोग हैं। +\s5 +\v 19 उनसे कहो, ‘हे मिस्र के लोगों, तुम सोचते हो कि अन्य राष्ट्रों के लोगों की तुलना में तुम अधिक सुन्दर हो। परन्तु तुम भी उस स्थान पर उतरोगे जहाँ मरे हुए अधर्मी लोग हैं। +\v 20 कई अन्य लोगों के साथ तुम मर जाओगे जिनको उनके शत्रुओं ने मारा है। उनके शत्रुओं ने आक्रमण करना आरम्भ कर दिया है, और वे मिस्र के लोगों को बड़ी संख्या में घसीट कर ले जाएँगे। +\v 21 उस स्थान पर जहाँ मरे हुए लोग हैं, अन्य देशों के शक्तिशाली अगुवे तुम मिस्र के लोगों का और तुम्हारे सहयोगियों का उपहास करेंगे। वे कहेंगे कि तुम उनके साथ लेटने के लिए आए हो, उन अधर्मी लोगों के साथ जिनको उनके शत्रुओं ने मार डाला था। +\p +\s5 +\v 22 अश्शूर के मरे हुए लोग और उनकी मरी हुई सेना भी वहाँ होगी। वे उन मरे हुए अन्य लोगों से घिरे होंगे जिन्हें उनके शत्रुओं ने मार डाला था। +\v 23 उनकी कब्रें गहरे गड्ढे में होंगी, और उनकी सेना के मरे हुए सैनिक अपनी कब्रों के चारों ओर पड़े रहेंगे। उन सब लोगों के मरे हुए भी वहाँ होंगे, जिन्होंने बहुत से अन्य लोगों को डराया था, क्योंकि उनको भी उनके शत्रुओं ने मार डाला होगा। +\p +\s5 +\v 24 एलाम देश के बहुत से लोग भी, वहाँ होंगे, क्योंकि उनके शत्रुओं ने उन्हें मार डाला होगा। ये वे सैनिक थे जिनका अनेक स्थानों में लोग भय खाते थे। उस समय वे वहाँ धरती के नीचे उस गहरे गड्ढे में पड़े रहेंगे, और वे, वहाँ गए हुए अन्य लोगों के साथ, अपमानित होंगे। +\p +\v 25 एलाम देश के लोग और उनके दास उन लोगों के बीच पड़े रहेंगे जो हत्या किए गए थे, लोगों की एक बड़ी भीड़ की कब्रों से घिरे हुए। जब वे जीवित थे, उन्होंने अन्य राष्ट्रों के लोगों को भयभीत किया; परन्तु वे अधर्मी थे, और अब, क्योंकि उनके शत्रुओं ने उन्हें मार डाला, वे अपमानित किए हुए, उस गहरे गड्ढे में दूसरों के साथ पड़े रहेंगे। +\p +\s5 +\v 26 मेशेक और तूबल देशों के सब सैनिकों के मरे हुए भी अपने दासों की एक बड़ी भीड़ की कब्रों से घिरे हुए वहाँ होंगे। जब वे जीवित थे, उन्होंने भी कई स्थानों में लोगों को भयभीत किया हुआ था। वे खतनारहित लोग हैं जिनको उनके शत्रुओं ने मार डाला होगा। +\v 27 वे वहाँ उन खतनारहित योद्धाओं के पास में पड़े नहीं रहेंगे जो उनके शरीरों के ऊपर उनकी ढालों के साथ और उनके सिरों के नीचे उनकी तलवारों के साथ बड़े सम्मानित रूप से कब्र में चले गए हैं। जब वे जीवित थे, उन्होंने धरती पर कई लोगों को भयभीत किया हुआ था। +\p +\s5 +\v 28 हे मिस्र के राजा, मैं तुझे भी मार डालूँगा, और तू उन अन्य अधर्मी लोगों के साथ पड़ा रहेगा जिनको उनके शत्रुओं ने मार डाला होगा। +\p +\v 29 एदोम के लोग उनके राजाओं और अगुवों के साथ वहाँ होंगे। वे शक्तिशाली थे, परन्तु मैं उन्हें मार दूँगा। वे वहाँ उस स्थान में पड़े रहेंगे जहाँ अन्य अधर्मी लोग पड़े हैं। +\p +\s5 +\v 30 इस्राएल के उत्तर के देशों के सब शासक, सीदोन शहर के लोगों समेत, वहाँ होंगे। उनकी शक्ति के कारण, उन्होंने अन्य लोगों को भयभीत किया हुआ था, परन्तु वे वहाँ पड़े रहेंगे। वे अधर्मी थे, और वे उन लोगों के साथ वहाँ पड़े रहेंगे जिन्हें उनके शत्रुओं ने मार डाला होगा। वे, उन सबके साथ, जो गहरे गड्ढे में आते हैं, अपमानित किए जाएँगे। +\p +\s5 +\v 31 मिस्र का राजा और उसकी सारी सेना उन्हें देखेगी, और उन्हें अपने बहुत से लोगों की मृत्यु के विषय में सांत्वना मिलेगी, क्योंकि वे जानते हैं कि वहाँ अन्य बड़ी-बड़ी जातियाँ थीं जिनको उनके शत्रुओं ने मार दिया था। +\v 32 जब वह राजा जीवित था, तब मैंने उसे कई देशों में लोगों को डराने की अनुमति दी, परन्तु वह और उसकी बड़ी सेना उन अन्य अधर्मी लोगों के बीच होंगे जिनको उनके शत्रुओं ने मार दिया है।” यह सच में, निश्चय ही होगा क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने कहा है कि यह होगा। + +\s5 +\c 33 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, अपने साथी इस्राएलियों से बात कर और उनसे यह कह: ‘मान लो कि मैं एक देश पर आक्रमण करने के लिए शत्रु की सेना को लाता हूँ, और उस देश के लोग अपने स्वयं के लोगों में से एक को पहरेदार बनने के लिए चुनते हैं। +\v 3 और मान लो कि वह शत्रु सेना को देखता है, और वह हर किसी को चेतावनी देने के लिए तुरही बजाता है। +\v 4 यदि कोई तुरही सुनता है परन्तु ध्यान नहीं देता है, और यदि वह व्यक्ति शत्रु द्वारा मार दिया जाता है, तो अपनी मृत्यु के लिए वह व्यक्ति उत्तरदायी होता है। +\s5 +\v 5 यदि उसने ध्यान दिया, तो वह अपना स्वयं का जीवन बचा लेगा। परन्तु जैसा कि यह है, वह मर जाएगा, और यह उसकी स्वयं की गलती होगी। +\p +\v 6 अब मान लो कि पहरेदार शत्रु की सेना को आता हुआ देखता है और लोगों को चेतावनी देने के लिए तुरही नहीं बजाता है। फिर मान लो कि उसके लोगों में से एक शत्रु द्वारा मार दिया जाता है। वह व्यक्ति अपनी ही गलती के कारण मर जाएगा, परन्तु मैं इसके लिए उत्तरदायी पहरेदार को पकड़ूँगा। +\p +\s5 +\v 7 हे मनुष्य के पुत्र, तेरे लिए इस दृष्टान्त का अर्थ है। मैंने तुझे इस्राएलियों के लिए पहरेदार बनने के लिए नियुक्त किया है। इसलिए मैं जो कहता हूँ हमेशा उसे सुन, और लोगों को मेरी ओर से चेतावनी दे। +\v 8 जब मैं किसी दुष्ट व्यक्ति से कहता हूँ, ‘हे दुष्ट व्यक्ति, तू निश्चय अपने पापों के कारण मर जाएगा,’ तो उसे बताना तेरा उत्तरदायित्व है कि मैंने क्या कहा। यदि तू उस व्यक्ति को पापों से दूर हो जाने के लिए चेतावनी नहीं देता है, तो वह दुष्ट व्यक्ति अपने पापों के कारण मर जाएगा, परन्तु मैं उसकी मृत्यु के लिए तुझे उत्तरदायी ठहराऊँगा। +\v 9 परन्तु यदि तू उस दुष्ट व्यक्ति को चेतावनी देता है कि उसे अपने पापों से दूर हो जाना चाहिए, परन्तु वह ऐसा नहीं करता है, तो वह अपने पापों के कारण मर जाएगा, परन्तु तू अपना जीवन बचा लेगा। +\p +\s5 +\v 10 हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएलियों से कह, ‘यही है जो तुम सब कह रहे हो: “जो अपराध-बोध हमें परमेश्वर के नियमों की अवज्ञा और पाप करने के कारण हो रहा है, वह हमारे ऊपर भारी बोझ के समान हैं, और हमारे पाप हमें दुख पहुँचा रहे हैं, और हम धीरे-धीरे मर रहे हैं। अतः जीवित रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?” +\v 11 उनसे कह, ‘यहोवा परमेश्वर कहते हैं, “निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, मुझे प्रसन्नता नहीं होती जब दुष्ट लोग मरते हैं; मैं चाहूँगा कि वे अपने दुष्ट व्यवहार से दूर हो जाएँ और जीते रहें। इसलिए पश्चाताप करो! अपने बुरे व्यवहार से दूर हो जाओ! हे इस्राएली लोगों, क्या तुम सचमुच मरना चाहते हो?” +\p +\s5 +\v 12 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, अपने साथी इस्राएलियों से कह कि यदि अच्छे लोग मेरी अवज्ञा करना आरम्भ कर देते हैं, तो यह तथ्य कि वे पहले धर्मी थे, मुझे उन्हें दण्ड देने से नहीं रोकेगा। इसी प्रकार, यदि दुष्ट लोग अपने दुष्ट व्यवहार से दूर हो जाते हैं, तो वे अपने पूर्व के पापों के कारण मर नहीं जाएँगे। और यदि अच्छे लोग पाप करना आरम्भ करते हैं, तो मैं इस तथ्य को स्वीकार नहीं करूँगा कि वे अच्छे रहे हैं और अब मैं उन्हें दण्ड देने से नहीं रुकूँगा। +\v 13 यदि मैं उन लोगों को बताता हूँ जो वह करते हैं जो सही है कि जो भी अच्छे कार्य वे करते हैं उनके कारण वे निश्चय ही जीवित रहेंगे, परन्तु फिर यदि वे दूर हो जाते हैं और अपने सब अच्छे कर्मों पर घमण्ड करते हैं, तो मैं उन सब अच्छे कार्यों को अनदेखा कर दूँगा जो उन्होंने पहले किए थे। मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि जो बुरे कार्य उन्होंने किए हैं, उनके कारण वे मर जाएँगे। +\s5 +\v 14 लोगों को ये बातें बताते रहो: यदि मैं किसी दुष्ट व्यक्ति से कहता हूँ, ‘तुम अपने पापों के कारण निश्चय ही मर जाओगे,’ तो संभव है कि वह व्यक्ति बुराई करना बन्द कर दे और जो न्यायपूर्ण और सही कार्य है उसे करना आरम्भ कर दे। +\v 15 उदाहरण के लिए, उसने किसी अन्य व्यक्ति से जो कुछ आश्वासन के लिए लिया है वह उसे वापस लौटा सकता है कि उस व्यक्ति ने जो भी उधार लिया है उसे वापस भुगतान करेगा, या वह उन वस्तुओं को वापस कर सकता है जो उसने चोरी किए हैं, या वह उन कानूनों का पालन कर सकता है जो उनका पालन करने वाले लोगों को जीवित रहने में समर्थ करेंगे। यदि ऐसा होता है, तो वह निश्चय ही जीवित रहेगा; उसके पहले किए गए पापों के कारण वह मर नहीं जाएगा। +\v 16 मैं उन पापों को अनदेखा कर दूँगा जो उसने पहले किए थे; वह निश्चय ही जीवित रहेगा। +\p +\s5 +\v 17 लोगों को यह बता: कि वे कहते हैं कि जो मैं करता हूँ वह उचित नहीं है, परन्तु यह वास्तव में वह है जो वे करते हैं जो कि उचित नहीं हैं। फिर उन्हें इन बातों को भी बता: +\v 18 यदि कोई अच्छा व्यक्ति वह कार्य करना बन्द कर देता है जो अच्छा है और वह करना आरम्भ कर देता है जो बुरा है, तो यह उचित है कि उसे अपने पापों के कारण मर जाना चाहिए। +\v 19 और यदि कोई दुष्ट व्यक्ति अपने दुष्ट व्यवहार से दूर हो जाता है और वह करता है जो सही और उचित है, तो ऐसा करने के कारण उसके लिए जीवित रहना उचित है। +\v 20 लोगों को स्मरण दिला कि वे अभी भी कह रहे हैं कि मैं जो करता हूँ वह उचित नहीं है। वे जो कुछ भी चाहते हैं वे बात कर सकते हैं, परन्तु मैं उनमें से प्रत्येक को उसके लिए दण्ड दूँगा जो वे करते हैं। उन्हें यह बता दे।” +\p +\s5 +\v 21 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश में ले जाने के लगभग बारह वर्ष बाद, उस वर्ष के दसवें महीने के पाँचवें दिन, यरूशलेम से बच कर आने वाला एक व्यक्ति बाबेल में मेरे पास आया और कहा, “यरूशलेम पर अधिकार कर लिया गया है!” +\v 22 उस मनुष्य के पहुँचने से पहले की शाम को, यहोवा ने मुझे अपने वश में कर लिया था। इसलिए जब वह पुरुष पहुँचा, तो यहोवा ने मुझे फिर से बात करने में सक्षम किया; मुझे अब चुप रहने के लिए विवश नहीं किया गया था। +\p +\s5 +\v 23 तब यहोवा ने मुझे एक सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 24 “हे मनुष्य के पुत्र, जो लोग इस्राएल में खण्डहरों में रह रहे हैं, वे कह रहे हैं, ‘अब्राहम केवल एक ही व्यक्ति था, परन्तु यहोवा ने उससे प्रतिज्ञा की थी कि वह और उसके वंशजों के पास इस देश का अधिकार होगा। परन्तु हम बहुत हैं, इसलिए निश्चय ही यहोवा ने हमें इस देश का अधिकार दिया है।’ +\s5 +\v 25 इसलिए उनके पास एक सन्देश भेज और कह, ‘यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं: “तुम वह माँस खाते हो जिसमें अभी भी पशु का खून है। तुम अभी भी मूर्तियों की उपासना करते हो। और तुम अभी भी दूसरों की हत्या करते हो। इसलिए क्या यह देश तुम्हारा होना चाहिए? +\v 26 तुम जो चीजें चाहते हो उन्हें प्राप्त करने के लिए अपनी तलवारों का उपयोग करने पर भरोसा करते हो। तुम कई घृणित कार्य करते हो। तुम में से प्रत्येक जन अन्य पुरुष की पत्नी के साथ सोता है। इसलिए क्या तुम्हारे पास वास्तव में इस्राएल देश का अधिकार होना चाहिए?” +\p +\s5 +\v 27 यह सन्देश उनके पास भेज और उन्हें बता कि मैं, यहोवा परमेश्वर, उनसे यही कहता हूँ: ‘जैसे निश्चित रूप से मैं जीवित हूँ, जो यरूशलेम के खण्डहरों में रह गए हैं – उनके शत्रु उनको भी मार डालेंगे। और जो ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं – उनको जंगली जानवर मार डालेंगे। जो किलों और गुफाओं में रह रहे हैं वे बीमारी से मर जाएँगे। +\v 28 मैं तुम्हारे देश को एक उजाड़ बंजर भूमि बना दूँगा। अब तुमको एक शक्तिशाली देश होने पर गर्व नहीं होगा। इस्राएल के पर्वत बहुत उजाड़ हो जाएँगे, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी उनसे चलकर पार नहीं जाएगा।’ +\v 29 तब, जब मैं उनके देश को उन सब घृणित कार्यों के कारण जो उन्होंने किए हैं एक उजाड़ बंजर भूमि बना दूँगा, तो वे जान जाएँगे कि मुझ, यहोवा, में ऐसा करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा।” +\p +\s5 +\v 30 जहाँ तक तेरी बात है, हे मनुष्य के पुत्र, यहाँ बाबेल में तेरे साथी इस्राएली शहर की दीवार के पास या अपने घरों के द्वार पर खड़े हैं और तेरे विषय में एक दूसरे के साथ बातें कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, ‘आओ और उस सन्देश को सुनो जो यहोवा की ओर से आया है।’ +\v 31 मेरे लोग तेरे पास आते हैं जैसा कि अधिकतर उन्होंने किया है, और जो तू कहता है, उसे सुनने के लिए वे तेरे सामने बैठते हैं। परन्तु वे वह नहीं करते जो तू उनसे कहता है कि उन्हें करना है। उनके मुँह से वे कहते हैं कि वे मुझसे प्रेम करते हैं, परन्तु अपने भीतरी मनों में वे अन्याय के कार्य करके वस्तुओं को पाने के लिए उत्सुक हैं। +\s5 +\v 32 उनके लिए, तू केवल एक ऐसा व्यक्ति है जो उनके लिए सुन्दर गाने गाता है और एक संगीत वाद्य-यन्त्र को अच्छे से बजाता है। जो तू कहता है, वे सुनते हैं, परन्तु वे वह नहीं करते जो तू उन्हें करने के लिए कहता है। +\p +\v 33 जो भयानक घटनाएँ मैंने कही हैं कि वे निश्चय ही उनके साथ होंगी, वे सच में होंगी। और तब वे जान जाएँगे कि एक भविष्यद्वक्ता उनके बीच में है, और वह भविष्यद्वक्ता तू है।” + +\s5 +\c 34 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के अगुवों के विरुद्ध मेरा सन्देश सुना। उन्हें मेरे लोगों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे चरवाहे अपनी भेड़-बकरियों का ध्यान रखते हैं। उनसे कह कि मुझे, यहोवा परमेश्वर को, उनसे यह कहना है: ‘हे इस्राएल के चरवाहों, तुम्हारे साथ भयानक बातें घटित होंगी क्योंकि तुम केवल अपना ही ध्यान रखते हो। तुमको निश्चय ही मेरी भेड़ों का ध्यान रखना चाहिए। +\v 3 परन्तु तुम उन चरवाहों के समान हो जो मोटी भेड़ों को खा जाते हैं, जो उनके ऊन के लिए सबसे अच्छे जानवरों को मार देते हैं। तुम सच्चे चरवाहे नहीं हो। +\s5 +\v 4 तुमने बीमार भेड़ों का ध्यान नहीं रखा है; जो घायल हैं तुमने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया है। तुमने उस भेड़ की खोज नहीं की है जो भटक गई है। तुम बल और हिंसा के साथ उन पर शासन करते हो। +\v 5 क्योंकि तुमने उनकी देखभाल नहीं की है, मेरे लोग भेड़ों के समान दूर भटक गए हैं। और जब वे तितर बितर हैं, जंगली जानवर उन पर आक्रमण करते हैं और उन्हें मार देते हैं, और फिर उनका माँस खाते हैं। +\v 6 मेरे लोग ऊँची पहाड़ियों और पर्वतों पर भेड़ों के समान भटकते हैं। वे पूरे संसार में तितर बितर हैं, और कोई भी उनकी खोज नहीं कर रहा है। +\p +\s5 +\v 7 इसलिए, जिन्हें चरवाहों के समान व्यवहार करना है, मेरी बात सुनो जो मुझ, यहोवा परमेश्वर, को तुमसे कहना है। +\v 8 जैसा निश्चय ही मैं जीवित हूँ, मेरे लोग बिना चरवाहे की भेड़ों के झुण्ड के समान हैं, और जिसके परिणामस्वरूप ऐसा लगता है कि जंगली जानवरों ने मेरे लोगों पर आक्रमण किया है और उन्हें खा लिया है। तुम चरवाहों ने उनकी खोज नहीं की; इसकी अपेक्षा, तुम केवल अपने लिए भोजन प्राप्त करना चाहते थे। +\s5 +\v 9 इस कारण, तुम जो मेरे लोगों के चरवाहे बने हो, मेरी बात सुनो। +\v 10 मैं तुम अगुवों का विरोध कर रहा हूँ। मैं तुमको मेरे लोगों के साथ बुरा व्यवहार करने के लिए दण्ड दूँगा। मैं तुमको मेरे लोगों की देखभाल करने से हटा दूँगा; अब तुम उन्हें अनदेखा करके स्वयं ही नहीं खा पाओगे। मेरे लोगों को मैं तुमसे बचाऊँगा, और अब तुम उन्हें वध करने और उन्हें खाने में सक्षम नहीं होगे। +\p +\s5 +\v 11 मैं, यहोवा परमेश्वर, तुम अगुवों से कहता हूँ कि मैं स्वयं अपनी भेड़ों की खोज करूँगा और उनका ध्यान रखूँगा। +\v 12 जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों का ध्यान रखता है, मैं अपने लोगों को उन सब स्थानों से निकालूँगा जहाँ तुमने उन्हें तितर बितर किया है, जब वे विपत्तियों के कारण डर गए थे। +\v 13 मैं उन्हें उन देशों से वापस लाऊँगा और उनके स्वयं के देश में उन्हें फिर से एक साथ एकत्र करूँगा। मैं इस्राएल की पहाड़ियों पर, तराइयों में और इस्राएल के गाँवों में अपनी भेड़ों को अच्छी चारागाहों में ले जाऊँगा। +\s5 +\v 14 मेरी भेड़ें पर्वत पर अच्छे चारागाहों में चराई जाएँगी। वे अच्छे चारागाह के क्षेत्रों में बैठेंगी। +\v 15 मैं स्वयं अपने लोगों का ध्यान रखूँगा और उन्हें बैठने और विश्राम करने की अनुमति दूँगा। मैं, यहोवा परमेश्वर, यही प्रतिज्ञा करता हूँ। +\v 16 मैं उन लोगों की खोज करूँगा जो खो गए हैं; मैं उन लोगों को वापस लाऊँगा जो दूर भाग गए हैं। मैं उन लोगों पर पट्टी बाँधूँगा जो घायल हो गए हैं और उनको शक्ति दूँगा जो दुर्बल हैं। परन्तु मैं उन लोगों को नष्ट कर दूँगा जो मोटे और शक्तिशाली हैं। मैं अपनी भेड़ों, अर्थात् मेरे लोगों के प्रति निष्पक्ष रूप से कार्य करूँगा। +\p +\s5 +\v 17 और तुम्हारे लिए, हे मेरे लोगों, हे मेरी भेड़ों, मैं यहोवा परमेश्वर यही कहता हूँ: ‘मैं तुम में से प्रत्येक के बीच न्याय करूँगा; उन लोगों को जो शान्तिपूर्ण हैं मैं उन लोगों से अलग करूँगा जो क्रूर और शक्तिशाली हैं। +\v 18 हे अगुवों, तुम जो बलवन्त भेड़ों के समान हो दूसरों के साथ बुराई करते हो: यह बुरा है कि तुम अपने लिए सबसे अच्छा चारागाह रखो। यह और भी अधिक बुरा है कि तुम अपने पैरों से अच्छी घास को रौंद देते हो। यह बुरा है कि तुम स्वयं तो साफ पानी पीते हो। यह और भी अधिक बुरा है कि तुम शेष पानी को अपने पैरों से गन्दा कर देते हो। +\v 19 तुम मेरी भेड़ों को वह घास खाने के लिए विवश कर रहे हो जिसे तुमने रौंद दिया है और वह पानी पीने के लिए विवश कर रहे हो जिसे तुमने गन्दा कर दिया है! +\p +\s5 +\v 20 इस कारण, मैं, यहोवा परमेश्वर, तुमसे यही कहता हूँ: तुम जो एक मोटी भेड़ के समान हो और मेरे शेष लोग, जो एक दुबली पतली भेड़ के समान हैं, मैं स्वयं इनके बीच में न्याय करूँगा। +\v 21 तुम जो मोटी भेड़ों के समान हो, तुमने अपने कंधों और कूल्हों से दूसरों को दूर धकेल दिया है। तुम उन्हें अपने सींगों से मारते हो, जब तक कि तुम उनका पीछा करके उन्हें अच्छे चारागाह से दूर नहीं निकाल देते। +\s5 +\v 22 परन्तु मैं अपने लोगों को बचाऊँगा, और अब तुम उनकी चोरी नहीं करोगे। मैं एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति के बीच न्याय करूँगा। +\v 23 और मैं उनके लिए एक अगुवे को नियुक्त करूँगा, कोई ऐसा व्यक्ति जो राजा दाऊद के समान होगा, जिसने मेरी अच्छी सेवा की थी। वह अगुवा उनका ध्यान रखेगा और उनके चरवाहे के समान होगा। +\v 24 मैं, यहोवा, उनका परमेश्वर ठहरूँगा, और वह जो राजा दाऊद के समान है उनका राजा होगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा ने यह कहा है। +\p +\s5 +\v 25 मैं इस्राएल के लोगों के साथ एक वाचा बाँधूँगा। मैं उन्हें शान्ति देने की प्रतिज्ञा करूँगा। मैं इस्राएल में सब जंगली जानवरों से छुटकारा पाने का प्रतिज्ञा करूँगा, जिससे कि मेरे लोग जंगल में और वन में भी सुरक्षित रह सकें। +\v 26 मैं उन्हें आशीष दूँगा, और मैं अपने देश के सब पर्वतों को आशीष दूँगा, जहाँ वे मेरे भवन में मेरी आराधना करेंगे। मैं सही मौसम में वर्षा भेज कर उन्हें आशीष दूँगा; वह उनके लिए आशीषों की वर्षा करेंगे। +\v 27 फल के पेड़ फल उत्पन्न करेंगे, और भूमि फसलों का उत्पादन करेगी। और मेरे लोग अपने देश में सुरक्षित रहेंगे। जब मैं उन्हें उन लोगों से बचाता हूँ जिन्होंने उन्हें दास बना दिया, तो वे जान जाएँगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\s5 +\v 28 अन्य राष्ट्रों के सैनिक अब उनकी बहुमूल्य सम्पत्ति नहीं ले पाएँगे, और जंगली जानवर अब उन पर आक्रमण नहीं करेंगे। वे सुरक्षित रहेंगे, और कोई भी उन्हें नहीं डराएगा। +\v 29 मैं उनके देश को शान्ति दूँगा और उसे अच्छी फसलों का उत्पादन करने वाला बनाऊँगा। अब देश में अकाल नहीं पड़ेंगे, और अन्य राष्ट्रों में रहने वाले लोग अब उनका उपहास नहीं करेंगे। +\s5 +\v 30 तब वे जान जाएँगे कि मैं, उनका परमेश्वर यहोवा, उनकी सहायता कर रहा हूँ, और वे जान जाएँगे कि वे, इस्राएली लोग, मेरे लोग हैं। +\v 31 यह ऐसा होगा कि तुम, मेरे लोग, मेरी भेड़ें हो जिनकी मैं चिन्ता करता हूँ, और मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ। यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, घोषणा करता हूँ।’” + +\s5 +\c 35 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, एदोम की ओर मुड़ कर भविष्यद्वाणी कर कि उसके लोगों के साथ क्या होगा। उनसे यह कह: +\v 3 ‘तुम जो एदोम में सेईर पर्वत के निकट रहते हो, मैं तुम्हारा शत्रु हूँ। मैं तुमको मारने और तुम्हारे देश को नष्ट करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करूँगा। +\s5 +\v 4 मैं तुम्हारे नगरों को नष्ट कर दूँगा, और हर कोई उन्हें छोड़ देगा। जब ऐसा होता है, तो तुम जान लोगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\p +\v 5 तुम सदा इस्राएली लोगों के शत्रु रहे हो। जब उन पर महान विपत्ति आई थी, जब उनके शत्रुओं ने उन पर आक्रमण किया, जब मैं उनके द्वारा किए गए पापों के लिए उन्हें गम्भीर दण्ड दे रहा था तब तुम बहुत प्रसन्न थे। +\v 6 इसलिए, मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारी हत्या करने की अनुमति दूँगा। वे बार-बार तुम पर आक्रमण करेंगे। तुमने अन्य लोगों को मरते हुए देखने का आनन्द लिया, इसलिए मैं तुम्हारी हत्या कर दूँगा। +\s5 +\v 7 इसलिए मैं सबको सेईर पर्वत से बाहर कर दूँगा, और जो कोई भी इसमें प्रवेश करेगा या इसे छोड़ेगा मैं उसे नष्ट कर दूँगा। +\v 8 मैं तुम्हारे पर्वतों को मारे गए लोगों के शवों से भर दूँगा। जिन लोगों की तुम्हारे शत्रुओं ने हत्या कर दी है, वे तुम्हारी पहाड़ियों पर, तुम्हारी घाटियों में और तुम्हारी सब तराइयों में पड़ी रहेंगी। +\v 9 मैं तुम्हारे देश को सदा के लिए लोगों के बिना रहने वाला बना दूँगा। कोई भी तुम्हारे नगरों में फिर से नहीं रहेगा। जब ऐसा होगा, तब तुम जान लोगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\p +\s5 +\v 10 तुम्हारे लोगों ने कहा, ‘इस्राएल और यहूदा हमारा हो जाएगा। हम उनके क्षेत्र को ले लेंगे! तुमने ऐसा कहा भले ही मैं, यहोवा अभी भी वहाँ था और उनकी रक्षा कर रहा था। +\v 11 इसलिए, मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि निश्चय ही जैसे मैं जीवित हूँ, मैं तुमको मेरे लोगों से क्रोधित होने, उनसे ईर्ष्या करने और उनसे घृणा करने के लिए दण्ड दूँगा। और जब मैं तुमको दण्ड दूँगा, तो मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि इस्राएली जानें कि यह मैं ही हूँ जिसने तुमको दण्ड दिया है। +\s5 +\v 12 तब तुम जानोगे कि मुझ, यहोवा, ने इस्राएल देश के विषय में जो सब घृणित बातें तुमने कही हैं, उन सबको सुना है; तुमने कहा था कि देश नष्ट हो गया था, और तुम अपने लिए इस पर अधिकार कर सकते थे। +\v 13 तुमने मेरा अपमान किया; मैंने सब कुछ सुना जो तुमने मेरे विषय में कहा था। +\s5 +\v 14 इसलिए मैं, यहोवा परमेश्वर, जो कहता हूँ वह यह हैः तुम लोग जो एदोम में सेईर पर्वत पर और अन्य सब स्थानों में रहते हो, जब मैं सबको तुम्हारे देश से बाहर कर दूँगा, तब संसार में हर कोई आनन्दित होगा। +\v 15 तुम प्रसन्न थे जब इस्राएली लोगों का देश नष्ट हो गया था, इसलिए मैं बिलकुल वही कार्य तुम्हारे देश के साथ करूँगा। जब ऐसा होगा, तब लोग जान लेंगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा।” + +\s5 +\c 36 +\p +\v 1 यहोवा ने यहेजकेल से कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के पहाड़ी देश और पर्वतों को एक सन्देश दे जैसे कि वे लोग हैं। उनसे कह कि मेरे इस सन्देश को सुनें जो उनके लिए है। +\v 2 इस्राएल के शत्रु, उनके निकट रहने वाली जातियाँ हैं, अब अत्याधिक प्रसन्न हैं, क्योंकि वे कह रहे हैं कि यरूशलेम नष्ट हो गया है, इसलिए इस्राएल के प्राचीन पर्वत अब उनके अधीन होंगे। +\v 3 इसलिए, हे यहेजकेल, तू इस्राएल के पर्वतों से यह कहना कि मैं, यहोवा परमेश्वर, उनसे कह रहा हूँ: ‘अन्य राष्ट्रों की सेनाओं ने तुम पर हर दिशा से आक्रमण किया, और हर किसी ने तुमको छोड़ दिया है। वे विदेशी सेनाएँ अब तुम्हारे देश में हैं। उन्होंने तुम्हारे लोगों, इस्राएलियों के विषय में द्वेष की भावना से बातें कही हैं, और उन्होंने उनके विषय में सब प्रकार की झूठी बातें कही हैं। +\s5 +\v 4-6 इसलिए, हे इस्राएल के पर्वतों, तुम मेरी ओर से आए इस सन्देश को सुनो। मेरे, यहोवा परमेश्वर, के पास तुमसे कहने के लिए कुछ है, तुम पहाड़ियों और पर्वतों से, और तुम तराइयों और घाटियों से, और तुम नगरों और शहरों से जिनको शत्रुओं ने जला दिया है, जहाँ अब कोई भी नहीं रह रहा है, जहाँ से सब मूल्यवान वस्तुएँ शत्रु ले गए हैं, और जिनके लोगों का चारों ओर की जातियाँ उपहास कर रही हैं। “मैं, यहोवा परमेश्वर, यही घोषणा करता हूँ: मैं एदोम से और अन्य जातियों से बहुत क्रोधित हूँ; उन्होंने तुम्हारे इस्राएली लोगों का अपमान किया है और उनका सारा देश चारागाहों के रूप में ले लिया है। इसलिए यहेजकेल को तुम इस्राएल के देश से, पहाड़ियों और पर्वतों, नालों और घाटियों से मेरे लिए बात करनी है: मैं, यहोवा परमेश्वर, बहुत क्रोधित हूँ क्योंकि शत्रु ने तुमको अपमानित किया है। +\s5 +\v 7 इस कारण, मैं यहोवा परमेश्वर यही कहता हूँ: मैं गम्भीरता से यह घोषणा करता हूँ कि मैं तुम्हारे आस-पास के राष्ट्रों के लोगों को लज्जित कर दूँगा। +\p +\s5 +\v 8 परन्तु मैं तुम इस्राएल के पर्वतों से कहता हूँ कि मेरे इस्राएली लोगों के लिए तुम्हारे पेड़ों से फल की बड़ी फसल उग जाएगी, क्योंकि वे शीघ्र ही बाबेल से घर लौट आएँगे। +\v 9 मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए कार्य करूँगा, और मैं तुम्हारे प्रति दयालु रहूँगा। मैं किसानों को तुम्हारी भूमि में हल जोतने और बीज बोने में समर्थ करूँगा। +\s5 +\v 10 मैं उन लोगों की संख्या को बहुतायत से बढ़ने दूँगा जो वहाँ ऊपर तुम पर्वतों पर हैं और इस्राएल में जहाँ कहीं भी रहते हैं। लोग शहरों में रहेंगे और वहाँ घरों का फिर से निर्माण करेंगे जहाँ अभी केवल खण्डहर हैं। +\v 11 मैं लोगों और घरेलू जानवरों की संख्या को बढ़ने दूँगा। लोगों के कई बच्चे होंगे। मैं लोगों को वहाँ वैसे ही रहने के लिए समर्थ कर दूँगा जैसे वे पहले वहाँ रहते थे, और मैं उन्हें समृद्ध होने में समर्थ करूँगा जैसा उन्होंने पहले किया था। तब तुम जानोगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\v 12 मैं अपने इस्राएली लोगों को तुम्हारे पर्वतों से घूमने में समर्थ करूँगा। वे तुम्हारी भूमि के स्वामी होंगे; तुम सदा के लिए उनसे सम्बन्धित होगे। तुम सदा उनके खाने के लिए पर्याप्त भोजन उगाओगे, इसलिए वे फिर कभी भूखे नहीं होंगे और मर नहीं जाएँगे। +\p +\s5 +\v 13 मैं, यहोवा, तुम पर्वतों को यह बता रहा हूँ: यह सच है कि लोगों ने कहा है कि वे तुम पर की फसलों को नहीं बढ़ा सकते हैं, और इसलिए वे भूख से मर गए हैं। +\v 14 परन्तु अब यह नहीं होगा। +\v 15 अब अन्य जातियाँ तुम पर्वतों का उपहास नहीं करेंगी। अब वे तुम पर नहीं हँसेंगे; अब तुम पर्वत अपने देश को कभी भी पराजय से पीड़ित नहीं करोगे। मैं, यहोवा परमेश्वर, स्वयं ही तुमको यह बता रहा हूँ।’” +\p +\s5 +\v 16 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 17 “हे मनुष्य के पुत्र, जब इस्राएली लोग अपने ही देश में रह रहे थे, तो उन्होंने उसे उन कार्यों से अशुद्ध कर दिया था जो उन्होंने किए थे। उन्होंने इसे मेरे लिए अस्वीकार्य कर दिया। मैंने माना कि उनका व्यवहार मासिक धर्म के समय स्त्रियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले चिथड़ों के जैसा घृणित था। +\v 18 इसलिए मैंने उन्हें गम्भीर रूप से दण्ड दिया, क्योंकि उन्होंने कई लोगों की हत्या कर दी थी और क्योंकि उन्होंने वहाँ मूर्तियों की उपासना की थी। उन्होंने अपने सारे देश को मेरे लिए अस्वीकार्य कर दिया। +\s5 +\v 19 इसलिए मैंने उनके शत्रुओं को उन्हें अन्य देशों में तितर बितर करने दिया। मैंने उन्हें वही दण्ड दिया, जिस दण्ड के योग्य थे क्योंकि उन्होंने इतने सारे बुरे कार्य किए थे। +\v 20 उन देशों में वे जहाँ भी गए, उन्होंने अन्य लोगों में मेरा उपहास करवाया, जबकि उन्हें मेरे सम्मान का कारण होना चाहिए था। वे लोग कह रहे हैं, ‘इस्राएली यहोवा के हैं, परन्तु वह उनकी रक्षा करने के लिए पर्याप्त शक्ति नहीं रखते हैं। उन्हें उस देश को छोड़ना पड़ा जो उन्होंने उन्हें दिया था।’ +\v 21 इस्राएल के लोगों ने मुझे उन जातियों में अपमानित किया था, जिनमें उन्हें जाना पड़ा था, परन्तु इसकी अपेक्षा उन जातियों को मेरी आराधना करनी थी जिसके मैं योग्य हूँ। +\p +\s5 +\v 22 इसलिए, हे यहेजकेल, तू इस्राएलियों से यह कह कि मैं, यहोवा परमेश्वर, उनसे यह कह रहा हूँ: ‘हे इस्राएली लोगों, यह तुम्हारे लिए नहीं है कि मैं तुमको तुम्हारे शत्रुओं से बचाने जा रहा हूँ। इसकी अपेक्षा, मैं ऐसा करूँगा कि इन अन्य देशों में लोग परमेश्वर के रूप में मेरी आराधना करेंगे। जहाँ भी तुम गए हो, तुमने मुझे अपमानित करने के लिए अपना संभव प्रयास किया है। +\v 23 मैं दिखाऊँगा कि इन अन्य जातियों को परमेश्वर के रूप में मेरी आराधना करनी चाहिए, जबकि तुम्हारे व्यवहार को देख कर वे कभी भी इस बात को समझ नहीं पाएँगे। जब मैं उनके लिए सिद्ध कर दूँगा कि मैं शक्तिशाली हूँ और कुछ भी कर सकता हूँ, तब वे जान जाएँगे कि मैं उन सब बातों को पूरा करूँगा जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। और वे देखेंगे कि तुम मुझे ऐसे परमेश्वर के रूप में सम्मानित करते हो जो पवित्र है। +\p +\s5 +\v 24 मैं तुमको उन दूर के देशों से बाहर ले आऊँगा। मैं तुमको उन सब स्थानों से एकत्र करूँगा जहाँ तुमको जाना पड़ा था, और मैं तुमको अपने देश में वापस लाऊँगा। +\v 25 यह ऐसा होगा जैसे मानों मैं तुम्हारे ऊपर साफ पानी छिड़कूँगा, और फिर तुम शुद्ध हो जाओगे। मैं तुमको उन सब बातों से शुद्ध कर दूँगा जिनके कारण तुम मेरे लिए अस्वीकार्य हो गए थे, और मैं तुमसे मूर्तियों की उपासना बन्द करवा दूँगा। +\s5 +\v 26 मैं तुमको सोचने की एक बिलकुल नई रीति दूँगा। मैं तुमको हठीले होने से रोकने में समर्थ करूँगा, और मैं तुमको तुम्हारे भीतरी मन से मेरी आज्ञा मानने में समर्थ करूँगा। +\v 27 मैं अपनी आत्मा तुम्हारे भीतर रखूँगा और तुमको मेरे सब नियमों का ध्यानपूर्वक पालन करने में समर्थ करूँगा। +\v 28 तुम फिर उस देश में रहोगे जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया था। तुम मेरे लोग होगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा। +\s5 +\v 29 मैं तुमको उन सब बातों से मुक्त कर दूँगा जिनके कारण तुम मेरे लिए अस्वीकार्य हो गए थे। मैं तुम्हें भरपूर मात्रा में अन्न दूँगा, और मैं तुम पर फिर से अकाल नहीं भेजूँगा। +\v 30 मैं तुम्हारे फलों के पेड़ों को बहुत सारे फल और तुम्हारी भूमि को बहुत सारी अच्छी फसल पैदा करने दूँगा, जिसके परिणामस्वरूप अन्य देशों के लोग तुम्हारा उपहास नहीं करेंगे क्योंकि तुम्हारे पास पर्याप्त भोजन नहीं है। +\v 31 जब ऐसा होता है, तो तुम अपने पिछले बुरे व्यवहार और दुष्ट कर्मों के विषय में सोचोगे, और तुम अपने पापों और उन घृणित कार्यों के लिए स्वयं से क्रोधित होगे जो तुमने किए हैं। +\s5 +\v 32 परन्तु मैं, यहोवा परमेश्वर, तुमसे यह कहता हूँ: यह तुम्हारे लिए नहीं है कि मैं इन कार्यों को करूँ। तुम इस्राएली लोगों को अपने व्यवहार से लज्जित होना चाहिए। +\p +\v 33 मैं, यहोवा परमेश्वर, तुमसे यह भी कहता हूँ: उस समय जब मैं तुमको तुम्हारे सब पापों से शुद्ध करता हूँ, तो मैं तुमको अपने शहरों में फिर से रहने और घरों को बनाने के लिए समर्थ करूँगा जहाँ अब केवल खण्डहर हैं। +\v 34 जो लोग तुम्हारे देश से होकर जाते हैं, वे देखेंगे कि तुम एक बार फिर अपने देश में खेती कर रहे हो, और यह कि तुम्हारे लोग फिर से इसमें रह रहे हैं। +\s5 +\v 35 तब वे कहेंगे, “यह देश जो नष्ट हो गया था, अदन के बगीचे के समान बहुत उपजाऊ हो गया है। जो शहर खाली हो गया था और नष्ट होकर मलबे का ढेर हो गया था, अब उसमें चारों ओर घर हैं, और लोग उन शहरों में रह रहे हैं।” +\v 36 जब ऐसा होगा, तब जो लोग अब भी तुम्हारे आस-पास के देशों में बचे हुए हैं, उन्हें पता चलेगा कि यह मैं, यहोवा ही हूँ, जिसने तुमको उसे फिर से उस उजड़े हुए स्थान को बनाने में समर्थ किया, और फिर से उन खेतों में जहाँ कुछ नहीं था, फसल लगाने में समर्थ किया है। मुझ, यहोवा, ने कहा है कि ऐसा होगा, और मैं ऐसा होने दूँगा। +\p +\s5 +\v 37 यह भी है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ: फिर से मैं तुम्हारे लोगों की संख्या भेड़ों के समान बहुत अधिक होने की तुम्हारी प्रार्थना का उत्तर दूँगा। +\v 38 मैं उन्हें भेड़ों के झुण्डों के समान संख्या में बहुत अधिक कर दूँगा जो तुम्हारे नियमित त्यौहारों के समय यरूशलेम में चढ़ावों के लिए आवश्यक होंगी। जिन शहरों को अभी नष्ट कर दिया गया है वे लोगों से भर जाएँगे और तब तुम जान लोगे कि मुझ, यहोवा ने यह किया है।’” + +\s5 +\c 37 +\p +\v 1 एक दिन यहोवा ने मुझे एक और दर्शन दिया। दर्शन में मुझे परमेश्वर की शक्ति का मुझ पर बोध हुआ, और उनके आत्मा के द्वारा वह मुझे घाटी के बीच में ले गए। यह उन लोगों की हड्डियों से भरी हुई थी जो मारे गए थे। +\v 2 उन्होंने मुझे उन हड्डियों के बीच पीछे और आगे चलाया। मैंने देखा कि वहाँ बहुत सारी हड्डियाँ थीं, ऐसी हड्डियाँ जो बहुत सूखी हुई थीं। +\v 3 उन्होंने मुझसे पूछा, “हे मनुष्य के पुत्र, क्या तुझे लगता है कि ये हड्डियाँ फिर से जीवित मनुष्य बन सकती हैं?” +\p मैंने उत्तर दिया, “हे यहोवा मेरे परमेश्वर, केवल आप जानते हैं कि यह हो सकता है या नहीं।” +\p +\s5 +\v 4 तब उन्होंने मुझसे कहा, “इन हड्डियों को मेरी ओर से एक सन्देश सुना। उनसे कह, ‘तुम हे सूखी हड्डियों, यहोवा जो कहते हैं वह सुनो। +\v 5 यही है जो, यहोवा परमेश्वर, तुम हड्डियों से कहते हैं: मैं तुम में से हर एक में अपनी साँस डालूँगा, और तुम फिर से जीवित हो जाओगे। +\v 6 मैं तुम्हारी हड्डियों पर पट्टी बाँधूँगा और तुम्हारी हड्डियों को माँस से ढँक दूँगा। मैं माँस को त्वचा से ढकूँगा। तब मैं तुम्हारे भीतर साँस समवाऊँगा, और तुम जीवित हो जाओगे। जब ऐसा होगा, तब तुम जान लोगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा।’” +\p +\s5 +\v 7 इसलिए मैंने हड्डियों से बात की जैसा यहोवा ने मुझे बोलने का आदेश दिया था। जैसे कि मैं बोल रहा था, वहाँ एक शोर था, थरथराहट की आवाज थी, और हड्डियाँ एक साथ आईं, हड्डियाँ एक दूसरे से जुड़ रही थीं। +\v 8 जब मैं देख रहा था, मैंने देखा कि उनकी नसें आपस में बंध रही थीं और माँस उन्हें ढाँक रहा था, और फिर त्वचा ने माँस को ढाँक लिया, परन्तु वे साँस नहीं ले रहे थे। +\p +\s5 +\v 9 तब उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, मेरी ओर से हवा के लिए एक सन्देश सुना। हवा से कह, ‘हे हवा, यहोवा तुझसे कहते हैं, चारों दिशाओं से बह। इन लोगों में साँस डाल जो मारे गए हैं, कि वे फिर से जीवित हो सकें।’” +\v 10 इसलिए मैंने वह कह दिया जो कि उसने मुझे कहने का आदेश दिया था, और फिर साँस ने उनमें प्रवेश किया, और वे साँस लेने लगे। वे जीवित हो गए और एक विशाल सेना के समान खड़े हो गए। +\p +\s5 +\v 11 तब उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, ये हड्डियाँ सब इस्राएली लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं। लोग कहते हैं, ‘ऐसा लगता है जैसे मानों हमारी हड्डियाँ सूख गई हैं; हम अब कुछ भी अच्छे की आशा नहीं कर सकते; हमारा देश नष्ट हो गया है।’ +\v 12 इसलिए मेरे सन्देश को उन्हें सुना कर कह, ‘यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं: हे मेरे लोगों, यह ऐसा होगा जैसे कि मैं तुम्हारी कब्रों को खोलूँगा और तुम्हारी लाशों को फिर से जीवित होने दूँगा। मैं तुमको वापस इस्राएल लाऊँगा। +\s5 +\v 13 तब जब ऐसा होता है, तब तुम मेरे लोग यह जानोगे कि मुझ, यहोवा ने यह किया है। +\v 14 मैं अपनी आत्मा को तुम्हारे भीतर रखूँगा, और ऐसा होगा जैसे तुम फिर से जीवित हो जाओगे, और मैं तुमको फिर से अपने देश में रहने में समर्थ करूँगा। तब तुम यह जानोगे कि यह मैं, यहोवा, हूँ जिसने कहा था कि ऐसा होगा और जिसने ऐसा होने दिया है। यही है जो मैं, यहोवा, घोषणा करता हूँ।’” +\p +\s5 +\v 15 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने कहा, +\v 16 “हे मनुष्य के पुत्र, लकड़ी की छड़ी ले और उस पर लिख, ‘यह यहूदा और यहूदा के सब गोत्रों का प्रतिनिधित्व करती है।’ फिर एक और छड़ी ले और उस पर लिख, ‘यह इस्राएल और इस्राएल के सब गोत्रों का प्रतिनिधित्व करती है।’ +\v 17 फिर उनको एक साथ ऐसा जोड़ जैसे कि वे तेरे हाथ में एक बड़ी लकड़ी बन जाएँ। +\p +\s5 +\v 18 जब तेरे साथी इस्राएली तुझसे पूछें, ‘इस कार्य का क्या अर्थ है?’, +\v 19 उन्हें बता, ‘यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं: यहेजकेल के हाथ में लकड़ी का एक टुकड़ा इस्राएल और इस्राएल के सब गोत्रों का प्रतिनिधित्व करता है। मैं इसको लकड़ी के उस टुकड़े के साथ जोड़ रहा हूँ जो यहूदा का प्रतिनिधित्व करता है, कि इसे उसके हाथ में एक छड़ी बना सकूँ।’ +\v 20 तब, हे मनुष्य के पुत्र, लकड़ी के उन टुकड़ों को पकड़ जिन पर तू ने लिखा है, कि लोग उन्हें देख सकें। +\s5 +\v 21 लोगों से कह, ‘यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं: मैं तुम इस्राएली लोगों को उन देशों से बाहर निकाल लाऊँगा जिनमें जाने के लिए तुमको विवश किया गया था। मैं तुमको उन सब देशों से वापस ला कर तुम्हारे अपने देश में एकत्र करूँगा। +\v 22 और मैं तुमको फिर से इस्राएल के पर्वतों पर अपने देश में एक राष्ट्र बनने दूँगा। और तुम सब पर शासन करने के लिए एक राजा होगा। फिर कभी भी तुम दो राष्ट्र नहीं होगे या दो साम्राज्यों में विभाजित नहीं होगे। +\v 23 तब तुम मूर्तियों की और अपने देवताओं की घृणित प्रतिमाओं की उपासना करके स्वयं को अपवित्र नहीं करोगे, क्योंकि मैं तुमको पाप करना बन्द करने और मुझे अस्वीकार करना बन्द करने में समर्थ करूँगा। तुम मेरे लोग होगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा।’ +\p +\s5 +\v 24 वह राजा जो तुम्हारे वंशजों पर शासन करेगा वह सदा ही राजा दाऊद के परिवार से आएगा। दाऊद वह जन था जिसने मेरी अच्छी सेवा की थी। और वह उनके लिए एक चरवाहा जैसा होगा। वे मेरे सब नियमों का सावधानी से पालन करेंगे। +\v 25 वे उस देश में रहेंगे जो मैंने याकूब को दिया था, उसने भी मेरी अच्छी सेवा की थी; वे उस देश में रहेंगे जहाँ तुम्हारे पूर्वज रहते थे। वे और उनके बच्चे और उनके नाती पोते सदा के लिए वहाँ रहेंगे, और जो राजा दाऊद के समान होगा वह सदा के लिए उनका राजा होगा। +\s5 +\v 26 मैं उन्हें शान्ति देने के लिए उनके साथ एक वाचा बाँधूँगा; यह सदा की वाचा होगी और अटल होगी। मैं उन्हें फिर से वह देश दूँगा और उनकी जनसंख्या को बढ़ाऊँगा। और मैं अपने भवन को सदा के लिए उनके बीच रखूँगा। +\v 27 मेरा घर, जहाँ मैं रहता हूँ, उनके बीच में होगा; मैं उनका परमेश्वर होऊँगा, और वे मेरे लोग होंगे। +\v 28 तब, जब मेरा भवन फिर से वहाँ उनके बीच होगा, तब सब राष्ट्रों के लोग जान पाएँगे कि मुझ, यहोवा ने मेरे सम्मान के लिए इस्राएल को अलग किया है।” + +\s5 +\c 38 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझे एक और सन्देश दिया। उन्होंने मुझसे कहा, +\v 2 “हे मनुष्य के पुत्र, मुड़ जा और मागोग की ओर मुँह कर, वह देश जहाँ का राजा गोग है। वह मेशेक और तूबल के राष्ट्रों का शासक भी है। उसके साथ होने वाली भयानक घटनाओं के विषय में मेरे सन्देश की घोषणा कर। +\v 3 यह कह: ‘यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं: हे गोग, तुम जो मेशेक और तूबल पर शासन करते हो, मैं तुम्हारा शत्रु हूँ। +\s5 +\v 4 यह ऐसा होगा जैसे मानों मैं तुमको चारों ओर घुमा दूँगा और तुम्हारे जबड़ों में नकेल डालूँगा और तुमको इस्राएल में लाऊँगा – तुमको और तुम्हारी उस सारी सेना समेत, जिसमें तुम्हारे घोड़े और हथियार लिए हुए पुरुष जो उन घोड़ों की सवारी करते हैं, और बहुत से अन्य सैनिक जो बड़ी ढाल और छोटी ढाल लिए हुए हैं, वे सब तलवारें लिए हुए हैं। +\v 5 तुम्हारे सैनिकों में फारस, इथियोपिया और पूत की सेनाएँ भी हैं, वे सब ढाल लिए हुए और टोप पहने हुए हैं - +\v 6 साथ ही गोमेर के सब सैनिक और तोगर्मा की सेना – ये दोनों देश जो इस्राएल से दूर उत्तर में हैं। बहुत से देशों की सेनाएँ तुम्हारे साथ आएँगी।’ +\p +\s5 +\v 7 गोग को यह बता: ‘तैयार हो जा, और उन सब सैनिकों का सरदार बनने के लिए तैयार रह। +\v 8 भविष्य में एक समय, यहोवा तुमको इस्राएल पर आक्रमण करने के लिए उन सेनाओं का नेतृत्व करने का आदेश देगा, एक ऐसा देश जिसकी इमारतों को युद्धों में नष्ट हो जाने के बाद फिर से बनाया गया है। उनके लोगों को इस्राएल की उन पहाड़ियों पर फिर से रहने के लिए कई राष्ट्रों से वापस लाया गया है, जहाँ कोई भी लम्बे समय से नहीं रहा था। यहोवा इस्राएलियों को अन्य देशों से वापस लाएगा, और वे शान्ति से रहेंगे। +\v 9 तुम और कई राष्ट्रों की वे सारी सेनाएँ एक बड़े तूफान के समान आगे बढ़कर इस्राएल जाएँगी। तुम्हारी सेना एक विशाल बादल के समान होगी जो भूमि को ढाँक लेता है। +\p +\s5 +\v 10 परन्तु मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: उस दिन, तुम कुछ बहुत बुरा करने की योजना बनाओगे। +\v 11 तुम स्वयं से यह कहोगे: “मेरी सेना एक ऐसे देश पर आक्रमण करेगी जिसके गाँवों के पास चारों ओर दीवारें नहीं हैं। हम ऐसे लोगों पर आक्रमण करेंगे जो शान्तिपूर्ण हैं और सोचते हैं कि कोई भी उन्हें हानि नहीं पहुँचाएगा। उनके नगरों और गाँवों में फाटक और सलाखों वाली दीवारें नहीं हैं। +\v 12 इसलिए हमारे लिए इन लोगों पर आक्रमण करना सरल होगा। यह वे लोग हैं जो कई देशों से एक साथ वापस आए हैं जहाँ वे कई वर्षों से रहते थे, ऐसे लोग जो अभी अपने देश में अपने सब पशुओं और सम्पत्ति के साथ सुरक्षित रूप से रहते हैं। वे ऐसे देश में रह रहे हैं जो संसार के सबसे महत्वपूर्ण देशों के बीचों बीच में है। हमारे सैनिक उनकी मूल्यवान सम्पत्ति को दूर ले जाएँगे।” +\s5 +\v 13 तब शेबा और ददान के लोग और तर्शीश के व्यापारी आएँगे और तुमसे कहेंगे, “क्या तुम इस्राएलियों पर आक्रमण करने और उनका सारा चाँदी और सोना ले लेने के लिए अपने सब सैनिकों को एकत्र कर रहे हो? क्या तुम उनके पशुओं और उनकी अन्य सब मूल्यवान सम्पत्ति को ले लेने की योजना बनाते हो?” +\p +\s5 +\v 14 इसलिए, हे मनुष्य के पुत्र, गोग के विषय में मेरा सन्देश ले जा और उससे कह, ‘यहोवा परमेश्वर यह कहते हैं: उस समय, जब मेरे इस्राएल के लोग सुरक्षित रूप से रह रहे हों, तब तुम निश्चित रूप से उनके विषय में सोचोगे। +\v 15 तुम इस्राएल के दूर उत्तर के अपने स्थान से बहुत से अन्य राष्ट्रों की सेनाओं के साथ आओगे, एक बड़ी सेना के साथ, जिसमें सब घोड़ों की सवारी करने वाले हैं। +\v 16 तुम मेरे इस्राएली लोगों की ओर बढ़ोगे, और तुम्हारे सैनिक भूमि को एक विशाल बादल के समान ढाँक लेंगे। हे गोग, मैं तेरी सेना को उस देश पर आक्रमण करने के लिए लाऊँगा जो मेरा है, परन्तु मैं तेरे साथ जो करूँगा, वह अन्य राष्ट्रों के लोगों को दिखाएगा कि मैं पवित्र हूँ। +\p +\s5 +\v 17 मैं, यहोवा परमेश्वर, गोग से यही कहता हूँ: पिछले वर्षों में, जब मैंने अपने सेवकों, इस्राएल के भविष्यद्वक्ताओं को सन्देश दिए, तो वे सन्देश तुम्हारे विषय में थे। उस समय, उन्होंने कई वर्षों तक कहा कि अपने लोगों पर आक्रमण करने के लिए मैं तुम्हारी सेनाओं को लाऊँगा। +\v 18 इसलिए, यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, कहता हूँ कि होगा: जब तेरी सेना इस्राएल पर आक्रमण करेगी, तो मैं तुझसे बहुत क्रोधित हो जाऊँगा। +\s5 +\v 19 मैं क्रोधित हो जाऊँगा, और यह दिखाने के लिए कि मैं क्रोधित हूँ, इस्राएल में उस स्थान में एक बड़ा भूकम्प होगा, जहाँ तुम्हारी सेनाएँ होंगी। +\v 20 जो मैं करूँगा उसके कारण समुद्र की मछलियाँ, पक्षी, जंगली जानवर, और ऐसे जानवर जो भूमि पर रेंगते हैं, और धरती पर रहने वाले सब लोग घबरा जाएँगे। पर्वत गिर जाएँगे, चट्टानें टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगी, और हर स्थान की दीवारें भूमि पर गिर जाएँगी। +\s5 +\v 21 हे गोग, देश के सब पर्वतों पर जो मेरे हैं, मैं तेरे सैनिकों को एक दूसरे के विरुद्ध लड़वा दूँगा। +\v 22 मैं तुझको और तेरे सैनिकों को विपत्तियों से दण्ड दूँगा, और मैं उन्हें मार दूँगा। मैं तुझ पर और तेरी सेना पर जो कई देशों से आईं हैं, आकाश से भारी मात्रा में वर्षा, ओले और जलते हुए गन्धक को नीचे गिराऊँगा। +\v 23 इस प्रकार, मैं कई राष्ट्रों के लोगों पर यह प्रकट होने दूँगा कि मैं बहुत महान हूँ, और मैं उन्हें अपनी पवित्रता दिखाऊँगा। और वे देखेंगे कि मैं कौन हूँ और वे जान जाएँगे कि मैं यहोवा हूँ।” + +\s5 +\c 39 +\p +\v 1 यहोवा ने मुझसे कहा, हे मनुष्य के पुत्र, मेरी ओर से गोग के साथ होने वाली भयानक घटनाओं के विषय में कह। यह कह: ‘हे गोग, तू जो मेशेक और तूबल पर शासन करता है, मैं तेरा शत्रु हूँ। +\v 2 मैं तुझे चारों ओर घुमा दूँगा और तुझको और तेरी सेनाओं को इस्राएल के दूर उत्तर से लाऊँगा और तुझे युद्ध करने के लिए इस्राएल के पर्वतों पर भेजूँगा। +\v 3 जब तुम वहाँ हो, तो मैं तुम्हारे बाएँ हाथों से तुम्हारे धनुषों को छीन लूँगा और तुम्हारे तीरों को तुम्हारे दाहिने हाथों से गिरा दूँगा। +\s5 +\v 4 तुम और तुम्हारे साथ रहने वाले सब सैनिक इस्राएल के पर्वतों पर मर जाएँगे। मैं तुम्हारे शवों को उन पक्षियों का जो मरे हुओं का माँस खाते हैं, और जंगली जानवरों का भोजन होने के लिए दूँगा। +\v 5 तुम खुले मैदानों में मर जाओगे। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा परमेश्वर ने कहा है कि यह होगा। +\v 6 मैं मागोग में और उन सब लोगों के लिए जो अपने तट के पास के क्षेत्रों में सुरक्षित रहते हैं बहुत सी आग को जलाऊँगा, और वे जान जाएँगे कि मुझ, यहोवा, में वह करने की शक्ति है जो मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा। +\p +\s5 +\v 7 मैं अपने इस्राएली लोगों को यह जानने में समर्थ करूँगा कि मैं पवित्र हूँ। अब मैं उन्हें मेरा उपहास करने की अनुमति नहीं दूँगा, और अन्य देशों की जातियाँ जान लेंगी कि मैं, यहोवा हूँ, वह परमेश्वर जिसकी इस्राएल आराधना करता है और सम्मान करता है। +\v 8 वह दिन बड़ी तेजी से आ रहा है। मैं, यहोवा परमेश्वर, यह घोषणा करता हूँ कि ये बातें शीघ्र ही हो जाएँगी। +\p +\s5 +\v 9 उस समय, जो लोग इस्राएल के नगरों में रहते हैं वे बाहर निकल जाएँगे और मरे हुए सैनिकों के हथियारों को एकत्र करेंगे, और उनका उपयोग अपना भोजन पकाने को आग जलाने के लिए करेंगे। वे छोटी और बड़ी ढालों को, धनुषों और तीरों को, युद्ध के डण्डों को, और भालों को जला देंगे। सात वर्ष तक जलाने वाली लकड़ी के रूप में उपयोग करने के लिए पर्याप्त हथियार होंगे। +\v 10 उन्हें खेतों से जलाने वाली लकड़ी को एकत्र करने की आवश्यकता नहीं होगी या जंगलों में पेड़ों से लकड़ी काटने की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि वे हथियार जलाने वाली लकड़ी होंगे जिनकी उनको आवश्यकता होगी। और वे उन लोगों से मूल्यवान वस्तुएँ ले लेंगे जिन्होंने उनसे मूल्यवान वस्तुएँ ली थीं, और उन लोगों से उन वस्तुओं को चुरा लेंगे जिन्होंने उनसे वस्तुएँ चुरा ली थीं। यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, घोषणा करता हूँ कि होंगी। +\p +\s5 +\v 11 उस समय मैं मृत सागर के पूर्व की घाटी में, तुझ गोग और तेरे सैनिकों के लिए एक कब्रिस्तान तैयार करूँगा। वह कब्रिस्तान उस सड़क को बन्द कर देगा जिस पर आमतौर पर यात्री चलते हैं, क्योंकि तू, गोग और तेरी विशाल सेना के सब सैनिकों को वहाँ दफनाया जाएगा। इसलिए इसे हमोना गोग की घाटी का नाम दिया जाएगा। +\p +\s5 +\v 12 सात महीने तक इस्राएल के लोग तुम्हारे शवों को दफन करेंगे। उन सबको दफनाना आवश्यक होगा, कि किसी भी बिना दफनाए छोड़े गए शवों के कारण देश अशुद्ध न हो जाए। +\v 13 इस्राएल के सब लोग उन्हें दफनाने का कार्य करेंगे। जिस दिन मैं वह विजय प्राप्त करूँगा, उस दिन वे मुझे सम्मान देंगे और वे उस दिन को सदा स्मरण रखेंगे। +\p +\s5 +\v 14 उन सात महीनों के समाप्त होने के बाद, इस्राएली लोग बचे हुए शवों को दफनाने के लिए पूरे देश में जाने के लिए मनुष्यों को नियुक्त करेंगे, कि देश अशुद्ध न रहे। +\v 15 जब वे देश में जाते हैं, और उनमें से कोई मनुष्य हड्डी को देखता है, तो वह इसके पास एक चिन्ह लगा देगा। जब कब्रों की खुदाई करने वाले उन चिन्हों को देखते हैं, तो वे हड्डियों को उठाएँगे और उन्हें हमोना गोग की घाटी में दफन कर देंगे। +\v 16 वहाँ हमोना नाम का एक शहर होगा। और शवों को दफनाने के इस कार्य से, वे भूमि को शुद्ध करेंगे।’” +\p +\s5 +\v 17 यहोवा ने मुझसे कहा, हे मनुष्य के पुत्र, मैं, यहोवा परमेश्वर यही कहता हूँ: हर प्रकार के पक्षियों और जंगली जानवरों को बुला। उनसे कह, ‘हर जगह से एक साथ एकत्र होकर उस भोज में आओ जो यहोवा तुम्हारे लिए तैयार कर रहा है। यह इस्राएल के पर्वतों पर एक बड़ा भोज होगा। वहाँ तुम मनुष्यों का माँस खाओगे और उनका खून पीओगे। +\v 18 तुम शक्तिशाली सैनिकों का माँस खाओगे और राजाओं का खून पीओगे जैसे कि वे बाशान के क्षेत्र के मोटे जानवर थे – जैसे कि वे नर भेड़ें, मेम्ने, बकरियाँ और बैल थे। +\s5 +\v 19 उस भोज में जो यहोवा तुम्हारे लिए तैयार कर रहा है, तुम चर्बी खाओगे जब तक कि तुम्हारा पेट भर न जाए, और तुम खून पीओगे जब तक कि ऐसा न लगे कि तुम नशे में हो। +\v 20 यह ऐसा होगा जैसे मानों तुम एक मेज पर खा रहे हो जिसे मैंने तुम्हारे लिए लगाया है। तुम घोड़ों का और उनके सवारों का माँस, हर तरह के बलवन्त सैनिकों का माँस जितना चाहोगे उतना खाओगे। यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 21 ‘मैं सब जातियों के लोगों को दिखाऊँगा कि मैं शक्तिशाली हूँ, और सब जातियाँ देखेंगी कि मैं उन्हें कैसे दण्ड देता हूँ। +\v 22 उस समय, इस्राएली लोग जान जाएँगे कि उनके परमेश्वर मुझ, यहोवा, में, जो कुछ मैं कहता हूँ कि मैं करूँगा, वह करने की शक्ति है। +\s5 +\v 23 और अन्य देशों के लोगों को पता चलेगा कि इस्राएलियों को अन्य देशों में जाने के लिए इसलिए विवश होना पड़ा था कि उन्होंने मेरे प्रति विश्वासयोग्यता नहीं निभाने के कारण पाप किया था। मैं उनसे दूर हो गया, और मैंने उनके शत्रुओं को उन्हें पकड़ने और उनमें से बहुतों को मार डालने की अनुमति दी। +\v 24 मैंने उन्हें उनके घृणित व्यवहार और पापों के कारण दण्ड दिया जिसके वे योग्य थे और मैं उनसे दूर हो गया था। +\p +\s5 +\v 25 इसलिए, अब मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: अब मैं याकूब के वंशजों को बन्धुआई में से वापस ले आऊँगा; मैं सब इस्राएली लोगों पर दया करूँगा, और मैं यह भी सुनिश्चित करूँगा कि वे मेरा सम्मान करें। +\v 26 जब इस्राएली लोग अपने ही देश में वापस आ जाएँगे, तब वे अपने देश में सुरक्षित रहेंगे, उन्हें डराने के लिए कोई भी नहीं होगा। वे अपमानजनक और विश्वासघाती कार्यों को भूल जाएँगे जो उन्होंने पहले किए थे। +\v 27 जब मैं उन्हें उनके शत्रुओं के देशों से वापस ले आऊँगा और उन्हें इस्राएल में एक साथ एकत्र करूँगा, तो कई जातियों के लोग जान जाएँगे कि मैंने अपने लोगों के लिए जो किया है, उसके कारण मैं कितना पवित्र हूँ। +\s5 +\v 28 इस्राएलियों को पता चलेगा कि मुझ, यहोवा, ने यह किया है। उन्हें पता चलेगा कि मैंने ही उन्हें अन्य देशों में जाने के लिए विवश किया था, और फिर मैंने उन्हें अपने देश में एक साथ एकत्र भी किया। मैं उनमें से किसी को भी उन देशों में नहीं छोड़ूँगा। +\v 29 मैं अब उनसे दूर नहीं जाऊँगा; मैं इस्राएली लोगों को अपना आत्मा दूँगा। यह निश्चय ही होगा क्योंकि मुझ, यहोवा परमेश्वर, ने यह कहा है।” + +\s5 +\c 40 +\p +\v 1 बाबेल के लोगों द्वारा हम इस्राएलियों को उनके देश में ले जाने के लगभग पच्चीस वर्ष बाद, उस वर्ष के पहले महीने के दसवें दिन, यरूशलेम के नष्ट किए जाने के लगभग चौदह वर्ष बाद, यहोवा ने मुझे अपनी शक्ति से पकड़ लिया, और वह मुझे एक दर्शन में इस्राएल ले गए। +\v 2 उन्होंने मुझे एक बहुत ऊँचे पर्वत पर खड़ा किया। उस पर्वत के दक्षिण की ओर कुछ ऐसी इमारतें थीं जो किसी शहर के एक भाग के समान दिखती थीं। +\s5 +\v 3 जब वह मुझे वहाँ ले गए, तो मैंने एक पुरुष को देखा जो पीतल का सा बना हुआ दिखाई देता था। वह शहर के फाटक के भीतर खड़ा था, और वह अपने हाथ में एक सनी की डोरी और एक मापने वाली छड़ी पकड़े हुए था। +\v 4 उन्होंने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, जो कुछ मैं तुझे दिखाने जा रहा हूँ, उसे सावधानी से देख, और जो कुछ मैं कहता हूँ और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊँगा, उस पर ध्यान देना, क्योंकि यही कारण है कि परमेश्वर तुझे यहाँ लाए हैं। और तब जो कुछ भी तू ने यहाँ देखा है वह इस्राएली लोगों को बताना होगा।” +\p +\s5 +\v 5 दर्शन में मैंने देखा कि एक दीवार थी जिसने पूरी तरह से मन्दिर क्षेत्र को घेरा हुआ था। उस पुरुष के हाथ में मापने वाली छड़ी तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर लम्बी थी। उसने दीवार को माप लिया और यह तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर मोटी और तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर ऊँची थी। +\p +\v 6 तब वह मन्दिर के पूर्व की ओर मन्दिर की दीवार के फाटक पर गया। वह सीढ़ियों से चढ़ गया और मुख्य फाटक को माप लिया जो बाहर की ओर खुलता था; यह तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर गहरा था। +\v 7 इसके बाद, वहाँ मन्दिर के सुरक्षाकर्मियों के लिए कोठरियाँ थीं, प्रत्येक तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर लम्बी और गहरी थी। प्रत्येक कोठरी के बीच की दीवार की दूरी दो और तीन चौथाई मीटर थी। मुख्य फाटक जो भीतर की ओर खुलता था, जो मन्दिर के बरामदे की ओर ले जाता था, वह भी तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर गहरा था। +\p +\s5 +\v 8 फिर उसने बरामदे को माप लिया जो फाटक के बाद था; यह तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर लम्बा था। +\v 9 उसने गहराई को भी माप लिया, जो तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर थी। दोनों ओर के द्वारों के चौखट एक-एक मीटर मोटे थे। यह बरामदा मन्दिर के फाटक से जुड़ा हुआ मन्दिर के फाटक के भीतर की ओर था। +\v 10 पूर्व द्वार के भीतर द्वार के प्रत्येक किनारे पर पहरेदारों के लिए तीन कोठरियाँ थीं। उन सबकी एक ही लम्बाई और गहराई थी। और उनके बीच की दीवार की दूरी एक जैसी थी। +\p +\s5 +\v 11 फिर उसने फाटक की चौड़ाई को मापा; यह पाँच मीटर, चार सेन्टी मीटर चौड़ा था, और फाटक से प्रवेश मार्ग सात मीटर लम्बा था। +\v 12 कोठरियों के सामने चलने वाला स्थान एक नीची दीवार थी जो आधा मीटर ऊँची थी। प्रत्येक कोठरी सभी ओर से तीन मीटर, दो सेन्टी मीटर थी। +\v 13 तब उस पुरुष ने एक ओर की कोठरी की छत से ले कर, दूसरी ओर की कोठरी की छत तक मुख्य फाटक की चौड़ाई मापी। एक कोठरी के प्रवेश से दूसरे की दूरी साढ़े तेरह मीटर थी। +\s5 +\v 14 तब उस पुरुष ने दीवार को मापा जो कोठरियों को एक दूसरे से अलग करती थी; यह बत्तीस मीटर लम्बी थी। उन्होंने उन्हें फाटक के बरामदे तक माप दिया। +\v 15 फाटक के प्रवेश द्वार से दूर बरामदे के अन्त तक की दूरी सत्ताईस मीटर थी। +\v 16 सब कोठरियों की दीवारों में, और कोठरियों के बीच की भीतरी दीवारों में छोटी-छोटी खिड़कियाँ थीं। बरामदे के भीतर की ओर भी इसी के जैसी खिड़कियाँ थीं। कोठरियों के बीच चलने वाली दीवार को खजूर के पेड़ों की नक्काशी के साथ सजाया गया था। +\p +\s5 +\v 17 तब वह पुरुष मुझे मन्दिर के बाहरी आँगन में लाया। वहाँ मैंने कुछ कमरे और आँगन में एक पत्थर का फर्श देखा। वहाँ आँगन के सामने तीस कमरे थे। +\v 18 पत्थर का फर्श आँगन में चारों ओर था, और फाटक के प्रवेश द्वार के बराबर ही दीवारों से आँगन में फैला हुआ था। वह निचला फर्श था। +\v 19 तब उस पुरुष ने बाहरी द्वार और भीतरी आँगन के बीच, मन्दिर के बाहरी आँगन में दूरी को माप लिया; यह पूर्व की ओर चौवन मीटर थी, और उतनी ही दूरी आँगन के उत्तर की ओर थी। +\p +\s5 +\v 20 फिर उसने मापा कि उत्तर की ओर प्रवेश द्वार कितना लम्बा और कितना चौड़ा था, जो मन्दिर परिसर के बाहरी आँगन का प्रवेश द्वार था। +\v 21 उस मुख्य फाटक के प्रत्येक ओर पहरेदारों के लिए तीन कोठरियाँ थीं। मुख्य फाटक से उनके बरामदे के अन्त तक सत्ताईस मीटर था, और वे साढ़े तेरह मीटर चौड़े थे। +\s5 +\v 22 इसमें पूर्वी द्वार के जैसे ही खिड़कियाँ, बरामदा, पहरेदारों की कोठरियाँ, और खजूर के पेड़ की सजावट थी। पूर्वी द्वार के समान, इस पर और इसके बरामदे में जाने के लिए सात सीढ़ियाँ थीं। +\v 23 बाहरी आँगन से होकर उत्तरी द्वार से एक द्वार भीतरी आँगन की ओर खुलता था, जैसा कि पूर्व की ओर था। उस पुरुष ने उत्तरी द्वार से उस द्वार तक जो भीतरी आँगन की ओर खुलता था, दूरी को मापा; यह दूरी चौवन मीटर थी। +\p +\s5 +\v 24 तब वह मुझे दक्षिणी मुख्य फाटक से होते हुए भीतरी आँगन में लाया, और उसने प्रवेश द्वार को मापा। यह अन्य मुख्य फाटकों के माप के बराबर ही था। इसकी कोठरियाँ, कोठरियों के बीच इसकी दीवारें, और इसके प्रवेश कक्ष के माप दूसरी ओर के मापों के बराबर ही था। +\v 25 मुख्य फाटक और इसके बरामदे में दीवारों के साथ छोटी खिड़कियाँ थीं, जैसी दूसरी ओर थीं। मुख्य फाटक और इसके बरामदे का माप पच्चीस मीटर लम्बा और साढ़े तेरह मीटर चौड़ा था। +\s5 +\v 26 उस द्वार पर और उसके बरामदे तक जाने वाली वहाँ सात सीढ़ियाँ थीं। इसमें दीवारों पर खजूर के पेड़ की नक्काशी भी थी जो कमरे के बीच थी। +\v 27 बाहरी आँगन के दूसरी ओर दक्षिण द्वार से भीतरी आँगन में खुलने वाला एक द्वार था। उस पुरुष ने मुख्य फाटक से बाहरी आँगन के दक्षिण की ओर प्रवेश द्वार तक मापा; यह भी चौवन मीटर था। +\p +\s5 +\v 28 तब वह पुरुष दक्षिण प्रवेश द्वार से होकर मुझे भीतरी आँगन में ले गया, और उसने दक्षिण प्रवेश द्वार को मापा। इसका माप अन्य द्वारों के समान ही था। +\v 29 उसने उसकी कोठरियों को, इसकी दीवारों को और उसके बरामदे को उसी मापने वाले मानकों के साथ मापा जिसका वह उपयोग कर रहा था। फाटक और इसकी बरामदे में चारों ओर खिड़कियाँ थीं। फाटक और उसके बरामदे का माप सत्ताईस मीटर लम्बा और साढ़े तेरह मीटर चौड़ा था। +\v 30 भीतरी द्वार के बरामदे, जो भीतरी आँगन की ओर खुलते थे, लगभग साढ़े तेरह मीटर लम्बे और दो और तीन चौथाई मीटर चौड़े थे। +\v 31 बरामदे के प्रवेश द्वार का मुँह बाहरी आँगन की ओर खुलता था। खजूर के पेड़ों की नक्काशी से दीवारों को सजाया गया था, और इसके ऊपर ले जाने के लिए आठ सीढ़ियाँ थीं। +\p +\s5 +\v 32 तब वह पुरुष मुझे भीतरी आँगन के पूर्व की ओर ले गया, और उसने द्वार का माप लिया। इसका माप अन्य द्वारों के समान था। +\v 33 इसकी कोठरियों, दीवारों और बरामदे को दूसरों के समान ही मापा गया था। फाटक और उसके बरामदे में चारों ओर खिड़कियाँ थीं। फाटक और उसके बरामदे का माप सत्ताईस मीटर लम्बा और साढ़े तेरह मीटर चौड़ा था। +\v 34 उसके बरामदे का मुँह बाहरी आँगन की ओर खुलता था। खजूर के पेड़ों की नक्काशी से दीवारों को सजाया गया था, और इसके ऊपर ले जाने के लिए आठ सीढ़ियाँ थीं। +\p +\s5 +\v 35 फिर वह मुझे उत्तर की ओर प्रवेश द्वार तक ले गया और उसका माप लिया। इसका माप अन्य प्रवेश द्वारों के समान ही था। +\v 36 और उनकी कोठरियों और दीवारों के बीच और प्रवेश कक्ष की सब दीवारों में छोटी खिड़कियाँ थीं। इन सबका माप अन्य द्वारों के समान ही था। फाटक और इसकी बरामदे में चारों ओर खिड़कियाँ थीं। फाटक और इसकी बरामदे का माप सत्ताईस मीटर लम्बा और साढ़े तेरह मीटर चौड़ा था। +\v 37 इसके बरामदे का मुँह बाहरी आँगन की ओर था। खजूर के पेड़ों की नक्काशी से दीवारों को सजाया गया था, और इसके ऊपर ले जाने के लिए आठ सीढ़ियाँ थीं। +\p +\s5 +\v 38 प्रत्येक भीतरी प्रवेश द्वार में एक द्वार वाला कमरा था। वह वे कमरे थे जहाँ उन जानवरों के शवों को धोया जाता था जो वेदी पर पूरी तरह से जला दिए जाने के लिए थे। +\v 39 प्रत्येक बरामदे में चार मेज थीं, प्रत्येक ओर दो मेज। उन मेजों पर उन जानवरों को वध किया जाता था जो पूरी तरह से जला दिए जाने के लिए थे, साथ ही वे जानवर जो लोगों द्वारा किए गए पापों के चढ़ावे के लिए हैं, और ऐसे चढ़ावे जो अन्य लोगों के विरुद्ध पाप करने के लिए उनके अपराध को स्वीकार करते थे। +\s5 +\v 40 भीतरी आँगन के एकदम बाहर, उसके उत्तरी द्वार के ऊपर तक जाने वाली सीढ़ियों के बाईं ओर, दो मेज थीं, और सीढ़ियों के दाएँ ओर दो और मेज थीं। +\v 41 प्रत्येक भीतरी आँगन के द्वार के बाहर की ओर चार मेज थीं, और वहाँ भीतर की ओर भी चार मेज थीं। इन मेजों पर बलि चढ़ाने वाले जानवरों को वध किया जाता था। +\s5 +\v 42 वहाँ चढ़ावे की तैयारी के लिए कटे हुए पत्थर की चार मेज भी थीं जहाँ पूरी तरह से जला दिए जाने वाले पशुओं को वध किया जाता था, वे अस्सी सेन्टी मीटर लम्बे और आधा मीटर ऊँचे थे। याजक इन पत्थर की मेजों पर सब जानवरों का वध करने वाले औजारों को रखता था। +\v 43 चढ़ावे के लिए माँस उन पत्थर की मेजों पर रखा जाता था। वहाँ अंकुड़े थे जिन पर माँस को लटका दिया जाता था, प्रत्येक के दो दाँतों के साथ, प्रत्येक आठ सेंटीमीटर लम्बा, बरामदे की दीवारों में बाँधा हुआ। +\p +\s5 +\v 44 दो मुख्य फाटकों के बाहर, भीतरी आँगन की ओर, वहाँ उन लोगों के लिए कमरे थे जो आराधना के समय गीत गाया करते थे, एक उत्तर की ओर था और एक दक्षिण की ओर था। +\v 45 उस पुरुष ने मुझसे कहा, “जिस कमरे के द्वार का मुँह दक्षिण की ओर है वह मन्दिर में कार्य कर रहे याजकों के लिए है। +\s5 +\v 46 जिस कमरे के द्वार का मुँह उत्तर की ओर है वह उन याजकों के लिए है जो वेदी के कार्य पर प्रभारी हैं। वे सादोक के वंशज हैं; वे लेवी के एकमात्र वंशज हैं जिन्हें कार्य करते समय यहोवा के पास जाने की अनुमति है।” +\p +\v 47 फिर उसने आँगन को माप लिया; यह चौकोर, चौवन मीटर लम्बा और चौवन मीटर चौड़ा था। वेदी आराधनास्थल के सामने थी। +\p +\s5 +\v 48 फिर वह मुझे आराधनास्थल के बरामदे में लाया और प्रवेश द्वार के प्रत्येक द्वार के पल्लों को और उनकी दीवारों को चारों ओर से मापा; वे लगभग दो और तीन चौथाई मीटर चौड़ी थीं। द्वार का मार्ग सात मीटर चौड़ा था और इसकी हर ओर के भाग एक मीटर, साठ सेन्टी मीटर चौड़े थे। +\v 49 बरामदा ग्यारह मीटर चौड़ा था, और इसकी गहराई प्रत्येक ओर से छः मीटर थी। इसके ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ थीं, और बरामदे की प्रत्येक ओर खम्भे थे। + +\s5 +\c 41 +\p +\v 1 तब दर्शन में वह पुरुष मुझे आराधनालय के पवित्रस्थान में लाया और प्रवेश द्वार के दोनों ओर के द्वार के पल्लों को मापा; वे प्रत्येक तीन मीटर, बीस सेन्टी मीटर चौड़े थे। +\v 2 प्रवेश द्वार पाँच मीटर, चालीस सेन्टी मीटर चौड़ा था, और इसके प्रत्येक ओर की दीवारें दो मीटर, सत्तर सेन्टी मीटर लम्बी थीं। उसने पवित्रस्थान को भी मापा। वह बाईस मीटर चौड़ा और ग्यारह मीटर लम्बा था। +\p +\s5 +\v 3 तब उसने मन्दिर के भीतरी कमरे, परम पवित्रस्थान में प्रवेश किया, और प्रवेश द्वार के दोनों ओर की दीवारों को मापा; प्रत्येक दीवार एक मीटर चौड़ी थी। द्वार का मार्ग तीन मीटर, बीस सेन्टी मीटर चौड़ा था, और प्रवेश द्वार के दोनों ओर की दीवारें तीन मीटर, अस्सी सेन्टी मीटर लम्बी थीं। +\v 4 फिर उसने भीतरी कमरे का माप लिया; यह ग्यारह मीटर लम्बा और ग्यारह मीटर चौड़ा था। तब उसने मुझसे कहा, “यह परम पवित्रस्थान है।” +\p +\s5 +\v 5 फिर उसने मन्दिर की दीवार का माप लिया; यह तीन मीटर, बीस सेन्टी मीटर मोटी थी। मन्दिर की बाहरी दीवार के साथ कमरों की एक पंक्ति थी। उनमें से प्रत्येक कमरा दो मीटर चौड़ा था। +\v 6 वहाँ कमरों की तीन मंजिलें थीं, प्रत्येक मंजिल पर तीस कमरे थे। मन्दिर की दीवार के चारों ओर निकली हुई पट्टियाँ थीं जो ऊपरी कमरों को सहारा दिया करते थे। आराधनास्थल की दीवार में कोई अतिरिक्त सहारा नहीं बनाया गया था। +\v 7 भवन के आस-पास जो कोठरियाँ बाहर थीं, उनमें से जो ऊपर थीं, वे अधिक चौड़ी थीं; अर्थात् भवन के आस-पास जो कुछ बना था, वह जैसे-जैसे ऊपर की ओर चढ़ता गया, वैसे-वैसे चौड़ा होता गया; इस रीति, इस घर की चौड़ाई ऊपर की ओर बढ़ी हुई थी, और लोग निचली मंजिल के बीच से ऊपरी मंजिल को चढ़ सकते थे। +\p +\s5 +\v 8 मैंने देखा कि मन्दिर के चारों ओर एक छत थी। छत उन भाग वाले कमरों की नींव थी; यह तीन मीटर, बीस सेन्टी मीटर ऊँची थी। +\v 9 उन भाग वाले कमरों की बाहरी दीवार दो और तीन चौथाई मीटर चौड़ी थी। आराधनास्थल के चारों ओर उन कमरों के बीच एक खुली जगह थी। +\s5 +\v 10 वह खुली जगह याजकों के कमरों के निकट थी जो आँगन के चारों ओर थे; आराधनास्थल के चारों ओर दोनों ओर के कमरों की श्रृंखलाओं के बीच ग्यारह मीटर की दूरी थी। +\v 11 उन भाग वाले कमरों से दो द्वार एक ओर खुले क्षेत्र में थे; एक का मुँह उत्तर की ओर था और एक का मुँह दक्षिण की ओर था। यह खुला क्षेत्र दो और तीन चौथाई मीटर चौड़ा था। +\p +\s5 +\v 12 मन्दिर क्षेत्र के पश्चिमी किनारे पर एक बड़ी इमारत थी। यह अड़तीस मीटर चौड़ी थी, और इसकी दीवार दो और तीन चौथाई मीटर चौड़ी थी और उनचास मीटर लम्बी थी। +\p +\v 13 तब उस मनुष्य ने मन्दिर का माप लिया। यह चौवन मीटर लम्बा था, और मन्दिर का आँगन, जहाँ बड़ी इमारत थी, चौवन मीटर चौड़ा था। इमारत और इसकी दीवार का माप एक ही था। +\v 14 मन्दिर के पूर्व में मन्दिर के सामने का आँगन भी चौवन मीटर चौड़ा था। +\p +\s5 +\v 15 फिर उसने पश्चिम की ओर वाली इमारत का माप लिया। इसकी दीवारों सहित, यह भी चौवन मीटर लम्बी थी। +\p पवित्रस्थान की, परम पवित्रस्थान की, और बरामदे की बाहरी दीवारें, +\v 16 छोटी खिड़कियों के ऊपर और नीचे की, और सब मंजिलों पर छज्जों की भीतरी दीवारों को मापा – इन सबको लकड़ी के तख्तों से ढाँका गया था। +\v 17 मन्दिर के भीतर की सब दीवारों को पंख वाले प्राणियों और खजूर के पेड़ों की नक्काशी से सजाया गया था; पंख वाले प्राणियों के बीच में खजूर के पेड़ की नक्काशी थी। +\s5 +\v 18-19 प्रत्येक पंख वाले प्राणी के दो चेहरे थे। एक चेहरा एक मनुष्य का चेहरा था, और एक शेर का चेहरा था। उन आकृतियों को मन्दिर के भीतर की दीवारों पर नक्काशी करके बनाया गया था, और प्रत्येक चेहरा खजूर के पेड़ की नक्काशी को देखता था। +\v 20 फर्श से ले कर प्रवेश द्वार की ऊपरी दीवार तक सब पर करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे। +\p +\s5 +\v 21 मन्दिर के मुख्य कमरे के प्रवेश द्वार पर चौकोर थे, सब दिखने में एक समान थे। +\v 22 परम पवित्रस्थान के सामने एक लकड़ी की वेदी थी। यह चारों ओर से एक मीटर तथा ऊँचाई में एक मीटर, साठ सेन्टी मीटर थी। इसके किनारे और आधार और कोने सब लकड़ी के बने हुए थे। उस पुरुष ने मुझसे कहा, “यह वह मेज है जो यहोवा की उपस्थिति में है।” +\v 23 पवित्रस्थान और परम पवित्रस्थान में मुड़ने वाले द्वार थे। +\v 24 प्रत्येक द्वार में दो-दो मुड़ने वाले पल्ले थे। +\s5 +\v 25 इन द्वारों पर पंख वाले प्राणियों और खजूर के पेड़ों की नक्काशी थी। आराधनास्थल के सामने बरामदे पर लकड़ी की छत भी थी। +\v 26 बरामदे की दोनों ओर की दीवारों पर खिड़कियों के किनारों पर नक्काशीदार खजूर के पेड़ की आकृतियों के साथ छोटी खिड़कियाँ थीं। मन्दिर के चारों ओर के भाग वाले कमरों में भी छतें निकली हुई थीं। + +\s5 +\c 42 +\p +\v 1 फिर दर्शन में वह पुरुष मुझे उत्तर के द्वार के माध्यम से, भीतरी आँगन से बाहर ले गया। हमने बाहरी आँगन में प्रवेश किया और उन कमरों में आए जो उत्तरी बाहरी दीवार की ओर खुलते थे। +\v 2 उन कमरों के साथ वाली इमारत चौवन मीटर लम्बी और सत्ताईस मीटर चौड़ी थी। +\v 3 उस इमारत में कमरे थे जो भीतरी आँगन की ओर खुलते थे। उन कमरों और पवित्रस्थान, मुख्य मन्दिर के बीच की दूरी, ग्यारह मीटर थी। ये कमरे तीन मंजिलों पर बनाए गए थे। कमरों की प्रत्येक श्रृंखला के पास नीचे के कमरों की श्रृंखला के ऊपर एक रास्ता था। वहाँ ऐसे कमरे थे जहाँ से बाहरी आँगन का खुला क्षेत्र दिखाई देता था। +\s5 +\v 4 कमरों के एक ओर एक रास्ता था जो पाँच मीटर, चालीस सेन्टी मीटर चौड़ा था और चौवन मीटर लम्बा था। कमरों के सारे द्वार उत्तर दिशा की ओर थे। +\v 5 कमरों की प्रत्येक श्रृंखला उनके नीचे के कमरों की श्रृंखला से कम चौड़ा था, क्योंकि प्रत्येक ऊपरी श्रृंखला के सामने एक चलने वाला रास्ता था। +\v 6 ऊपरी मंजिल के कमरों में उनके सहारे के लिए कोई खम्भे नहीं थे जैसे आँगन में थे, क्योंकि उन कमरों को नीचे के कमरों की दीवारों द्वारा सहारा दिया गया था। +\s5 +\v 7 बाहरी दीवार कमरों के समानान्तर चलती थी, ये कमरे बाहरी आँगन की ओर खुलते थे; बाहरी दीवार का यह भाग सत्ताईस मीटर लम्बा था। +\v 8 बाहरी आँगन के साथ कमरों की पंक्ति सत्ताईस मीटर लम्बी थी, और उन कमरों की पंक्ति जो मन्दिर की ओर खुलते थे, चौवन मीटर लम्बी थी। +\v 9 नीचे की मंजिल का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर था जो बाहरी आँगन से आया था। +\p +\s5 +\v 10 पूर्व की ओर पर, बाहरी आँगन की बाहरी दीवार के साथ, मन्दिर के आँगन के साथ में, वहाँ भी कमरों की एक श्रृंखला थी। +\v 11 वहाँ उनके सामने एक चलने का रास्ता था। ये कमरे उत्तर की ओर वाले कमरों के समान थे। उनकी लम्बाई और चौड़ाई उन्हीं के समान थी, और उसी तरह के प्रवेश द्वार भी थे। +\v 12 दक्षिण की ओर वाले कमरों में द्वार भी थे जो कि उत्तर की ओर वालों के समान थे। बाहरी द्वार के साथ एक भीतरी मार्ग था; मार्ग में सब कमरों के द्वार थे। मार्ग के पूर्वी छोर पर एक बाहरी द्वार था जो इसमें आता था। +\p +\s5 +\v 13 तब उस पुरुष ने मुझसे कहा, “उत्तरी और दक्षिणी किनारे के कमरे जिनसे आराधनालय का पवित्रस्थान देखा जा सकता है, वे केवल यहोवा के विशेष उद्देश्यों के लिए हैं। यहाँ पर जो याजक यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाते हैं, वे उन भेंटों का अंश खाएँगे। क्योंकि यह कमरे विशेष हैं, उनका उपयोग यहोवा के लिए चढ़ाई गई भेंटों को रखने के लिए किया जाएगा: अन्न-बलि के लिए आटा, लोगों द्वारा किए गए पापों के निमित्त चढ़ाए जाने वाले बलिदानों के लिए, और उन बलिदानों के लिए जो लोग अपने पापों के लिए चढ़ाते हैं। +\v 14 जब याजक मन्दिर छोड़ देते हैं, तब उन्हें तुरन्त बाहरी आँगन में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सबसे पहले उन्हें उन कपड़ों को उतार देना होता है जिन्हें वे पवित्रस्थान में पहने हुए थे, क्योंकि वे कपड़े विशेष हैं, जो उनके कार्य के लिए आरक्षित हैं। मन्दिर के उन स्थानों में प्रवेश करने से पहले उन्हें अन्य कपड़े पहनना होगा जहाँ अन्य लोग एकत्र होते हैं।” +\p +\s5 +\v 15 जब वह पुरुष मन्दिर क्षेत्र को भीतर से मापने के कार्य को पूरा कर चुका, तब वह मुझे पूर्वी प्रवेश द्वार से होकर बाहर ले गया और आस-पास के सारे क्षेत्र को मापा। +\s5 +\v 16-19 उसने उस क्षेत्र के चारों ओर की दीवारों को माप लिया। उस क्षेत्र के चारों ओर दीवार थी जो कि प्रत्येक ओर दो सौ सत्तर मीटर लम्बी थी। +\s5 +\v 20 वह दीवार पवित्रस्थान को साधारण स्थान से अलग करती थी। + +\s5 +\c 43 +\p +\v 1 तब वह पुरुष मुझे पूर्व की ओर प्रवेश द्वार पर लाया। +\v 2 अकस्मात ही मैंने इस्राएल के परमेश्वर की महिमा को पूर्व से आते हुए देखा। उसके आने की आवाज एक तेज बहाव वाली नदी के गरजने के समान थी, और वह सब क्षेत्र उसकी महिमा से चमक गया। +\s5 +\v 3 मैंने इस दर्शन में जो देखा वह उसी के समान था जो मैंने मेरे पहले के दर्शनों में देखा था, पहला कबार नदी के निकट और बाद में जब परमेश्वर यरूशलेम को नष्ट करने आए थे। मैंने स्वयं को मुँह के बल भूमि पर गिरा दिया। +\v 4 यहोवा की महिमा ने पूर्वी प्रवेश द्वार से होकर मन्दिर में प्रवेश किया, +\v 5 और फिर आत्मा ने मुझे ऊपर उठा लिया और मुझे भीतरी आँगन में ले आया, जब यहोवा की महिमा ने मन्दिर को भर दिया। +\p +\s5 +\v 6 तब, जब वह पुरुष मेरे पास खड़ा था, मैंने सुना कि कोई मन्दिर के भीतर से मुझसे बात करता है। +\v 7 उन्होंने कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, यह मेरा मन्दिर है, वह स्थान जहाँ मैं अपने सिंहासन पर बैठता हूँ और जहाँ मैं अपने पैरों को विश्राम देता हूँ। यही वह स्थान है जहाँ मैं सदा के लिए इस्राएली लोगों के साथ रहूँगा। इस्राएली लोग और उनके राजा उनके मूर्तिपूजा के पहाड़ी क्षेत्रों में अन्य देवताओं की उपासना करके, या अपने पिछले राजाओं की निर्जीव मूर्तियों का निर्माण करके मुझे फिर कभी अपमानित नहीं करेंगे। +\v 8 तुम्हारे लोगों ने उनकी वेदियों को मेरी वेदियों के पास रखा, और उनके मन्दिरों के द्वार मेरे मन्दिर के द्वार के पास थे। उनके बीच में केवल एक दीवार थी। और उन्होंने मुझे उन घृणित कार्यों से अपमानित किया जो उन्होंने किए। इसलिए मैं क्रोध में था और उन्हें नष्ट कर दिया। +\s5 +\v 9 अब उन्हें मूर्तियों की इस घृणित उपासना को और राजाओं की मूर्तियों का सम्मान करने के इन अनुष्ठानों को बन्द करना होगा। यदि वे उन कार्यों को करना बन्द कर देते हैं, तो मैं हमेशा के लिए उनके बीच रहूँगा। +\p +\s5 +\v 10 हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएलियों के लिए वर्णन कर कि यह मन्दिर जो मैंने तुझे दर्शन में दिखाया है, वह किसके समान है जिससे कि वे अपने पापों से लज्जित होंगे। +\v 11 यदि वे उन सब बुरे कार्यों से लज्जित हैं जो उन्होंने किए हैं, तो उन सबको मेरे उस मन्दिरों के विषय में बता जो मैंने तुझे दिखाया है: इसकी बनावट, इसके निकास और प्रवेश, और इसके विषय में सब कुछ। और वहाँ मेरी आराधना करने के विषय में उन सब नियमों और विधियों को उन्हें बता। जब वे तुझे देख रहे होते हैं, तब इन सब बातों को लिख ले, कि वे उनका सच्चे मन से पालन करने में समर्थ हो सकें। +\p +\s5 +\v 12 और यह मन्दिर के विषय में सर्वोच्च नियम है: पर्वत की चोटी के सारे क्षेत्र को जहाँ मन्दिर को बनाया जाएगा शुद्ध और पवित्र रखा जाना होगा। +\p +\s5 +\v 13 ये वेदी के माप हैं, उसी प्रकार की मापने वाली छड़ी का उपयोग करके जिसको मन्दिर के क्षेत्र में उपयोग किया गया था: वहाँ वेदी के चारों ओर एक नाली है जो आधा मीटर गहरी और आधा मीटर चौड़ी है। वहाँ इसके चारों ओर एक कुर्सी है जो तेईस सेंटीमीटर चौड़ी है। यह शेष वेदी के लिए आधार तैयार करेगा। +\v 14 नाली का निचला भाग वेदी के चारों ओर निचले आधार से एक मीटर ऊँचा है। निचला आधार आधा मीटर चौड़ा है। उस किनारे से ऊपरी किनारे तक, यह दो मीटर का है। वह आधार भी आधा मीटर चौड़ा है। +\s5 +\v 15 वेदी के ऊपर भट्ठी दो मीटर और ऊँची है, और एक सींग जैसा उभार है जो चार कोनों में से प्रत्येक से निकलता है। +\v 16 वेदी के ऊपर का वह स्थान चौकोर है, हर ओर से साढ़े छः मीटर लम्बा है। +\v 17 ऊपरी किनारे जो भट्ठी की सीमा है, वह भी चौकोर हैं, जो प्रत्येक ओर सात मीटर, साठ सेन्टी मीटर लम्बा है, और चारों ओर एक कुर्सी है जो सत्ताईस सेंटीमीटर चौड़ी है। वेदी के नीचे आधा मीटर मापी हुई एक नाली है। वेदी के पूर्व की ओर ऊपर जाने की सीढ़ियाँ हैं।” +\p +\s5 +\v 18 तब उस पुरुष ने मुझसे कहा, “हे मनुष्य के पुत्र, यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं: जब वेदी बनाई जाए तब जलाए जाने वाले बलिदानों को चढ़ाने के लिए और वेदी के किनारों पर खून को छिड़कने के लिए नियम हैं: +\v 19 तुझे याजकों के पास एक युवा बैल को याजकों, लेवी के वंशजों, सादोक के कुल के पापों के लिए बलिदान होने के लिए ले कर आना है, जो मेरी सेवा करने के लिए वेदी के पास आते हैं। +\s5 +\v 20 तुझे बैल से कुछ खून लेना होगा और उसे वेदी के चारों उभारों और ऊपरी किनारे के चार कोनों पर और कुर्सी के चारों ओर लगाना होगा, तब जा कर मैं वेदी को स्वीकार करूँगा, और वेदी को ऐसा बनाऊँगा जो केवल मेरे लिए है। +\v 21 उस उद्देश्य के लिए नियुक्त किए गए मन्दिर क्षेत्र के भाग में तुझे मन्दिर के बाहर उस बैल को जला देना होगा। +\p +\s5 +\v 22 अगले दिन तुझे एक ऐसे बकरे को एक बलि के लिए चढ़ाना होगा जिसमें कोई दोष न हो, तब मैं वेदी को स्वीकार करूँगा। तब तुझे वेदी को फिर से शुद्ध करना होगा, जैसा कि तू ने बैल के साथ किया था जो बलि चढ़ाया था। +\v 23 जब तू यह सब कर लेता है, तब तुझे बिना किसी दोष वाले एक युवा बैल और एक मेढ़े को चढ़ाना होगा। +\v 24 तुझे उन्हें मुझ, यहोवा को चढ़ाना होगा। याजकों को उन पर नमक छिड़कना होगा और उन्हें वेदी पर मेरे लिए बलिदान के रूप में पूरी तरह से जला देना होगा। +\p +\s5 +\v 25 तब, सात दिनों तक हर दिन तुझे याजक के पास एक बकरा बलि चढ़ाए जाने के लिए ले कर आना होगा, तब मैं वेदी को स्वीकार करूँगा। तुझे एक युवा बैल और एक मेढ़ा भी बलि देना होगा, जो बिना कोई दोष के हो, जिसे याजक प्रदान करेंगे। +\v 26 सात दिनों तक याजक वेदी को पवित्र करेंगे, तब मैं वेदी को स्वीकार करूँगा। ऐसा करने के द्वारा वे मेरे सम्मान के लिए इसे अलग कर देंगे। +\v 27 उन सात दिनों के अन्त में, अगले दिन के आरम्भ होने के बाद, याजक मेरे साथ मेल करने के लिए पूरी तरह से जलाए जाने और चढ़ाने के लिए वेदी की भेंटें चढ़ाते रहेंगे। तब मैं तुमको स्वीकार करूँगा। यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, घोषणा करता हूँ।” + +\s5 +\c 44 +\p +\v 1 तब वह पुरुष मुझे मन्दिर के बाहरी प्रवेश द्वार पर वापस लाया, जो पूर्व की ओर खुलता था, परन्तु वह द्वार बन्द था। +\v 2 यहोवा ने मुझसे कहा, “यह द्वार बन्द रहना चाहिए। इसे किसी के द्वारा खोला नहीं जाना चाहिए; किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह बन्द रहना चाहिए क्योंकि मुझ, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने इसे मेरे लिए विशेष बनाया है जब मैं इससे होकर भीतर आया था। +\v 3 केवल इस्राएल के शासक को मेरी उपस्थिति में भोजन खाने के लिए इस प्रवेश द्वार के अन्दर बैठने की अनुमति दी जाएगी। उसे इस द्वार से होकर मन्दिर क्षेत्र में प्रवेश करना और निकलना होगा।” +\p +\s5 +\v 4 तब वह पुरुष मुझे उत्तरी प्रवेश द्वार से होकर मन्दिर के सामने लाया। मैंने दृष्टि की और देखा कि यहोवा की महिमा ने अपने मन्दिर को भर दिया, और मैंने स्वयं को मुँह के बल भूमि पर गिरा दिया। +\p +\v 5 यहोवा ने मुझसे कहा, हे मनुष्य के पुत्र, ध्यान से देख, और जो कुछ मैं तुझे मन्दिर के विषय में सब नियम बताता हूँ, उसे ध्यान से सुन। सावधानी से मन्दिर के प्रवेश द्वार और सब निकासों पर ध्यान दे। +\s5 +\v 6 विद्रोही इस्राएली लोगों से यह कह: ‘मैं, यहोवा परमेश्वर, यही कहता हूँ: हे इस्राएली लोगों, मैं अब उन घृणित कार्यों को सहन नहीं करूँगा जो तुम करते हो! +\v 7 जो भी घृणित कार्य तुम करते हो, उसके अतिरिक्त, तुम मेरे भवन में ऐसे विदेशी पुरुषों को लाए, जिनका खतना नहीं हुआ था और जो मेरा सम्मान करने के विषय में कुछ नहीं जानते थे। ऐसा करने से, तुमने मेरे भवन को मेरी आराधना करने के लिए मेरे निमित्त एक अस्वीकार्य स्थान बना दिया, जब तुमने भोजन और चर्बी और खून चढ़ाए, और तुमने तुम्हारे साथ बाँधी गई मेरी वाचा का उल्लंघन किया। +\s5 +\v 8 मेरी पवित्र वस्तुओं के सम्बन्ध में मैंने जो कुछ तुमको करने का आदेश दिया है, उसकी अपेक्षा, तुमने विदेशियों को मेरे मन्दिर का प्रभारी नियुक्त किया। +\v 9 परन्तु मुझ, यहोवा, ने यही कहा है: कोई विदेशी नहीं, कोई भी पुरुष नहीं जिसका खतना नहीं हुआ है, कैसे भी अधर्मी लोगों को मेरे मन्दिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, यहाँ तक कि उन विदेशियों को भी नहीं, जो तुम्हारे बीच में स्थायी रूप से रहते हैं। +\p +\s5 +\v 10 लेवी के कई वंशजों ने बहुत से इस्राएली लोगों के साथ मुझे छोड़ दिया, और मूर्तियों की उपासना करना आरम्भ कर दिया। मैं उन्हें उनके पाप के लिए दण्ड दूँगा। +\v 11 मैं उन्हें अपने मन्दिर में कार्य करने और मन्दिर के द्वार के प्रभारी होने की अनुमति दूँगा। वे उन जानवरों को मारने में समर्थ होंगे जो पूरी तरह से वेदी पर जलाए जाएँगे, और लोगों के लिए अन्य बलिदान जलाएँगे, और वे लोगों की सहायता करने में समर्थ होंगे। +\v 12 परन्तु क्योंकि उन्होंने लोगों को मूर्तियों की उपासना करने में सहायता की और मूर्तियों की उपासना करके इस्राएल के कई लोगों को पाप करने के लिए प्रेरित किया, मैं शपथ खाता हूँ कि मैं उन्हें उनके पाप के लिए दण्ड दूँगा। +\s5 +\v 13 वे याजक के रूप में सेवा करने के लिए मेरे निकट नहीं आएँ। उन्हें किसी भी पवित्र वस्तु या पवित्र चढ़ावे के निकट नहीं आना है। वे उन कार्यों से लज्जित होंगे जो उन्होंने किए थे, जिनमें वे दोषी हैं। +\v 14 परन्तु मैं अब भी उन्हें मन्दिर में कार्य के प्रभारी रखूँगा, और उन सब कार्यों को करने की अनुमति दूँगा जिन्हें वहाँ करने की आवश्यकता है। +\p +\s5 +\v 15 परन्तु लेवी और सादोक के वंश से निकले याजकों ने विश्वासयोग्यता के साथ मेरे मन्दिर में कार्य किया था जब दूसरे इस्राएलियों ने मुझे छोड़ दिया था। इसलिए उनको मेरे लिए कार्य करने के लिए मेरे निकट आना चाहिए। वे जानवरों की चर्बी और खून की बलि चढ़ाने के लिए मेरी उपस्थिति में खड़े होंगे। +\v 16 केवल वे अकेले हैं जिन्हें मेरे मन्दिर में प्रवेश करने की अनुमति है। केवल वे अकेले हैं जिन्हें मेरी सेवा करने के लिए मेरी वेदी के पास आने की अनुमति है और जो कुछ मैं उन्हें करने के लिए कहता हूँ। +\p +\s5 +\v 17 जब वे भीतरी आँगन के प्रवेश द्वार में प्रवेश करते हैं, तब उन्हें सफेद सनी की पोशाक पहननी होगी। उन्हें ऊन के बने कोई कपड़े नहीं पहनने हैं, जब वे भीतरी आँगन के द्वार पर या मन्दिर के अन्दर अपना कार्य करते हैं। +\v 18 उन्हें अपने सिर पर सनी की सफेद पगड़ी पहननी है और अपनी कमर के चारों ओर सनी का अंगोछा पहनना होगा। उन्हें ऐसा कुछ भी पहनना नहीं है जिससे उन्हें पसीना आए। +\s5 +\v 19 उनके बाहर आँगन में जाने से पहले जहाँ अन्य लोग हैं, उन्हें अपने पहने हुए कपड़ों को उतारना होगा और उन्हें पवित्र कमरे में छोड़ देना होगा, और अन्य कपड़ों को पहन लेना है कि लोग पवित्र कपड़ों को छूने से पवित्र न हो जाएँ। +\p +\s5 +\v 20 याजकों को अपने सिर के बालों को नहीं मूँड़ना है या होने दो कि उनके बाल लम्बे हो जाएँ; परन्तु उन्हें अपने बालों की छँटाई करते रहना है। +\v 21 याजकों को भीतरी आँगन में प्रवेश करने से पहले दाखमधु नहीं पीना है। +\v 22 इसके अतिरिक्त, याजकों को उन लोगों की विधवाओं से विवाह नहीं करना चाहिए जो याजक नहीं थे या ऐसी स्त्रियों से जो विवाह विच्छेदित हैं। उन्हें केवल कुँवारी से या अन्य याजकों की विधवाओं से विवाह करने की अनुमति है। +\s5 +\v 23 उन्हें लोगों को उन वस्तुओं के बीच अंतर करना सिखाना चाहिए जो पवित्र हैं और जो वस्तुएँ पवित्र नहीं हैं, और उन्हें सिखाएँ कि कैसे जानना है कि मेरे लिए क्या स्वीकार्य हैं और क्या स्वीकार्य नहीं हैं। +\p +\v 24 यदि लोगों के बीच विवाद होता है, तो याजक ही वे हैं जिनको न्यायधीशों के रूप में सेवा करनी है और मेरे नियमों के अनुसार मामलों का निर्णय लेना है। उन्हें पवित्र त्यौहारों के विषय में मेरे सब नियमों और आज्ञाओं का पालन करना होगा, और उन्हें मेरे सब्त के दिनों के साथ मेरे लिए विशेष दिन के जैसे व्यवहार करना होगा। +\p +\s5 +\v 25 याजकों को पिता या माँ या पुत्र या पुत्री या भाई या अविवाहित बहन के शव के पास जाने की अनुमति है। परन्तु उन्हें किसी और के शव के पास जा कर स्वयं को अशुद्ध नहीं करना है। +\v 26 यदि एक याजक अपने एक निकटतम सम्बन्धी के शव को छूता है, तो उसे फिर से मेरी सेवा करने के लिए स्वीकार्य होने के लिए अनुष्ठान करना होगा। उसके अनुष्ठान करने के बाद, उसे सात दिन प्रतीक्षा करनी होगी। +\v 27 फिर, जिस दिन वह मन्दिर में मेरी सेवा करने के लिए भीतर के आँगन में प्रवेश करता है, उसे पाप के अपने अपराध को हटाने के लिए एक भेंट देनी होगी। यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 28 याजक किसी भी भूमि के स्वामी नहीं होंगे। उनके पास केवल वही होगा जो मैं उनके लिए प्रदान करता हूँ। +\v 29 वे आटे से बने बलिदान, पाप के अपराध को दूर करने के लिए चढ़ावा, और वे चढ़ावे जो वे मेरी आवश्यकताओं से चूक जाने पर वे लाते हैं, इन सबको वे ही खाएँगे। इस्राएल में और सब कुछ जो भी मेरे लिए समर्पित है, वह याजकों से सम्बन्धित होगा। +\s5 +\v 30 प्रत्येक फसल के पहले भाग का सबसे अच्छा फल और अन्य सब विशेष उपहार याजकों से सम्बन्धित होंगे। तुमको उन्हें अपने पीसे हुए आटे का पहला भाग देना होगा, कि मैं तुम्हारे घर में रहने वाले लोगों को आशीष दूँ। +\v 31 याजकों को किसी भी ऐसे पक्षी या जानवर का माँस नहीं खाना है जो मृत पाया गया है या जंगली जानवरों द्वारा मार डाला गया है। + +\s5 +\c 45 +\p +\v 1 जब बारह गोत्रों में इस्राएल की भूमि बाँटी गई है, तो तुमको एक पवित्र क्षेत्र होने के लिए देश के एक भाग को यहोवा को अर्पण करना चाहिए। यह साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बा और सवा पाँच किलोमीटर चौड़ा होगा। यह सम्पूर्ण क्षेत्र यहोवा के लिए आरक्षित होगा। +\v 2 उस क्षेत्र का भाग, प्रत्येक पक्ष पर लगभग 270 मीटर लम्बा वर्ग एक मन्दिर क्षेत्र के चारों ओर खाली छोड़ा जाएगा। भूमि की एक अतिरिक्त पट्टी, लगभग सत्ताईस मीटर चौड़ी, मन्दिर क्षेत्र के चारों ओर खाली छोड़ी जाएगी। +\s5 +\v 3 पवित्र क्षेत्र के भीतर, एक भाग साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बा और सवा पाँच किलोमीटर चौड़ा मापो। यह वह स्थान होगा जहाँ आराधनास्थल है, और यह परम पवित्रस्थान है। +\v 4 यह उन याजकों के लिए जो मन्दिर में कार्य करते हैं, भूमि का पवित्र भाग होगा, जो उसकी सेवा करने के लिए यहोवा के निकट आते हैं। यह याजकों के घरों के साथ-साथ, आराधनालय के लिए, यहोवा के लिए बहुत विशेष स्थान होगा। +\v 5 एक क्षेत्र साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बा और सवा पाँच किलोमीटर चौड़ा मन्दिर में कार्य करने वाले लेवी के वंशजों के लिए होगा। वह क्षेत्र उनसे सम्बन्धित होगा, और वे वहाँ रहने के लिए नगरों का निर्माण कर सकते हैं। +\p +\s5 +\v 6 इस पवित्र क्षेत्र के साथ भूमि का एक भाग होगा जो साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बा और पौने तीन किलोमीटर चौड़ा हो। यह एक ऐसे शहर के लिए होगा जहाँ इस्राएल में कोई भी जीवित रह सके। +\p +\v 7 इस्राएल के शासक के पास मन्दिर के क्षेत्र और शहर के निकट बनाए गए क्षेत्र के हर ओर भूमि होगी। यह पश्चिम में उन क्षेत्रों के पश्चिमी छोर से ले कर और पूर्व में उन क्षेत्रों के पूर्वी छोर तक फैली होगी। राजा की भूमि के दूर पूर्व की और दूर पश्चिम की सीमाएँ उन अन्य क्षेत्रों की सीमाओं के समान मापी जाएँगी। +\s5 +\v 8 भूमि का यह भाग शासक से सम्बन्धित होगा। इसलिए शासकों के पास अब मेरे लोगों पर अत्याचार करने और उनकी भूमि चोरी करने का कोई बहाना नहीं होगा। वे लोगों के बीच बाँटने के लिए, प्रत्येक गोत्र के लिए इस्राएल में भूमि के शेष भागों को देंगे। +\p +\s5 +\v 9 यहोवा परमेश्वर यही कहते हैं: तुम इस्राएल के शासकों को हिंसक रूप से कार्य करना और लोगों पर अत्याचार करना बन्द कर देना होगा! तुमको वह करना है जो उचित और सही है। लोगों से भूमि लेना बन्द करो; उन्हें उनकी भूमि छोड़ने के लिए विवश करना बन्द करो! +\v 10 इसके अतिरिक्त, तुमको चीजों को मापने के लिए सटीक मापकों और सटीक कुप्पियों का उपयोग करना होगा। +\v 11 सूखी चीजों को मापने के लिए टोकरी और तरल पदार्थों को मापने के लिए कुप्पियाँ एक ही आकार की होनी चाहिए; प्रत्येक में बाईस लीटर आना चाहिए – जिसे एक एपा (सूखे माप के लिए) और एक बत (तरल माप के लिए) कहा जाना चाहिए। +\v 12 जब तुम चीजों का वजन करते हो, तो तुमको ऐसे बाटों का उपयोग करना चाहिए जिसे हर कोई सही स्वीकार करता है। शेकेल को बीस गेरा में बाँटा जाना है, और एक मीना साठ शेकेल के बराबर होगा। +\p +\s5 +\v 13 तुमको फसल के हर साठ मापों के लिए शासक को गेहूँ या जौ के एक माप को अवश्य देना होगा। +\v 14 तुमको हर सौ माप जैतून के तेल में से उसे एक माप देना होगा। +\v 15 साथ ही, यहोवा ने घोषणा की है कि तुमको हरियाली भरे चारागाहों में से हर दो सौ के झुण्ड में से अपनी एक भेड़ या बकरी जलाने वाली बलि, मेल करने वाली बलि, लोगों के प्रायश्चित के लिए बलि आदि विभिन्न बालियों के लिए लाना होगा।”यह परमेश्वर यहोवा का आदेश है।” +\s5 +\v 16 देश में रहने वाले इन सब लोगों को इस्राएल के शासक के पास इन भेंटों को लाने में सहभागी होना है। +\v 17 शासक को वेदी पर पूरी तरह से जला दिए जाने के लिए जानवरों को, अनाज से चढ़ाई गई भेंट के लिए आटा, और पवित्र त्यौहारों के लिए दाखरस जिनको यहोवा ने इस्राएली लोगों के लिए नियुक्त किया है – नए चाँद का उत्सव मनाने वाले त्यौहारों के लिए, और सब्त के दिनों के लिए भेंटों को प्रदान करना होगा। उसे लोगों के लिए परमेश्वर के लिए स्वीकार्य होने के लिए पशुओं, अनाज से बनी आटे की भेंटें, पूरी तरह से जलाए जाने के लिए भेंटें और यहोवा के साथ मित्रता की वाचा की भेंटें, लोगों के पापों के प्रायश्चित की भेंटों को प्रदान करना होगा।” +\p +\s5 +\v 18 यहोवा परमेश्वर ने यह भी घोषित किया है: “प्रत्येक वर्ष के पहले महीने के पहले दिन तुमको एक युवा बैल लेना होगा जिसमें कोई दोष नहीं हो और मन्दिर को शुद्ध करने के लिए उसे बलिदान करना होगा। +\v 19 याजक को लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिए चढ़ावे में से कुछ खून लेना होगा, और उसे मन्दिर के द्वार पर, वेदी के चारों ओर ऊपरी किनारे के चार कोनों पर और भीतरी आँगन के द्वारों पर उसे लगाना होगा। +\v 20 तुमको हर महीने के सातवें दिन किसी भी व्यक्ति के गलती से किए गए पाप या बिना जाने किए गए पाप के लिए भी वही करना होगा। ऐसा करके तुम मन्दिर को शुद्ध करोगे। +\p +\s5 +\v 21 प्रत्येक वर्ष के पहले महीने में, महीने के चौदहवें दिन, तुमको फसह के त्यौहार का उत्सव मनाना आरम्भ कर देना चाहिए। त्यौहार सात दिनों तक चलेगा। उस समय तुमको खमीर से बनी रोटी को नहीं खाना है। +\v 22 पहले दिन, शासक को अपने लिए और देश के अन्य लोगों के लिए एक बलि चढ़ाने के लिए एक बैल लाना होगा। +\s5 +\v 23 और उन सात दिनों में हर एक दिन उसे सात बैल और सात मेढ़े लाने होंगे जिनमें कोई दोष नहीं हो, कि वे यहोवा के लिए लोगों को स्वीकार करना सम्भव करने का बलिदान बनें। +\v 24 उसे प्रत्येक बैल के साथ एक भेंट के रूप में बाईस किलो आटा, और प्रत्येक मेढ़े के साथ भी उसी मात्रा में आटा लाना होगा, और आटे की प्रत्येक भेंट के साथ चार लीटर जैतून का तेल भी लाना होगा। +\p +\s5 +\v 25 त्यौहार मनाने के सात दिनों के समय जब इस्राएली लोग मिस्र से निकल आने के बाद तम्बुओं में रहते थे, जो हर वर्ष के सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से आरम्भ होता है, शासक को यहोवा के लिए लोगों को स्वीकार करना सम्भव करने के लिए चढ़ावे के लिए यह वस्तुएँ लानी होंगी, पूरी तरह से जलाए जाने के लिए भेंटें, अनाज से बने वस्तुओं की भेंटें, और चढ़ाने के लिए जैतून का तेल। + +\s5 +\c 46 +\p +\v 1 यही है जो यहोवा परमेश्वर ने घोषित किया है: ‘भीतर के आँगन का पूर्वी प्रवेश द्वार हर सप्ताह कार्य करने के छः दिन बन्द होना चाहिए, परन्तु सब्त के दिनों और उन दिनों पर जब एक नया चाँद होता है, मुख्य फाटक खुला होना चाहिए। +\v 2 शासक को मुख्य फाटक के प्रवेश कक्ष से होकर आँगन में प्रवेश करना होगा, और भीतरी आँगन के द्वार के किनारे खड़े होना होगा। तब याजकों को उस पशु को बलिदान करना होगा जिसे वेदी पर पूरी तरह से जला दिया जाएगा, और मेरे साथ मेल करने की प्रतिज्ञा करने के लिए उसकी भेंट भी होगी। शासक को भीतरी प्रवेश द्वार के मुख्य फाटक पर मेरी आराधना करनी होगी, और फिर उसे चले जाना होगा। परन्तु उस शाम तक फाटक बन्द नहीं होगा। +\s5 +\v 3 सब्त के दिनों और उन दिनों पर जब एक नया चाँद होता है, तब लोगों को भी इस द्वार के प्रवेश पर मेरी आराधना करनी होगी। +\v 4 जिस भेंट को शासक सब्त के दिन पूरी तरह जला दिए जाने के लिए लाता है, वह छः नर मेम्ने और एक मेढ़ा होना चाहिए, उनमें कोई दोष नहीं हो। +\v 5 वह मेढ़े के साथ जो भेंट देता है वह बाईस किलो आटा है, और मेम्ने के साथ जो आटा वह देता है, वह उतना ही होना चाहिए जितना वह चाहता है, हर बाईस लीटर आटे के लिए साथ में एक लीटर जैतून का तेल। +\s5 +\v 6 तब जब नया चाँद होता है, उसे एक युवा बैल, छः मेम्ने और एक मेढ़ा देना होगा, उनमें कोई दोष नहीं हो। +\v 7 उसे बैल के साथ बाईस लीटर आटा लाना होगा, मेढ़े के साथ भी उतनी ही मात्रा में आटा, और मेम्ने के साथ उतना आटा लाना होगा जितना वह चाहता है, हर बाईस लीटर आटे के लिए साथ में एक लीटर जैतून का तेल। +\v 8 जब शासक मन्दिर के क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो उसे फाटक और उसके प्रवेश कक्ष से प्रवेश करना होगा, और उसे उसी प्रकार बाहर जाना होगा। +\p +\s5 +\v 9 जब लोग त्यौहारों में मेरी आराधना करने आएँगे, जिनकी मुझ, यहोवा ने आज्ञा दी है, तो जो उत्तरी फाटक से होकर मन्दिर क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, उनको दक्षिणी फाटक से बाहर निकलना होगा। और दक्षिणी फाटक से होकर प्रवेश करने वाले लोगों को उत्तरी फाटक से होकर बाहर जाना होगा। लोगों को उस प्रवेश द्वार से होकर बाहर नहीं जाना है जिससे होकर उन्होंने प्रवेश किया; उनको विपरीत फाटक से होकर बाहर जाना होगा। +\v 10 जब लोग भीतर जाते हैं तब शासक को भी भीतर जाना होगा, और जब लोग बाहर जाते हैं तब बाहर जाना होगा। +\p +\s5 +\v 11 त्यौहारों के समय जो तुम मेरे लिए मानते हो, राजा को एक बैल या एक मेढ़े के साथ बाईस लीटर आटा देना होगा, और मेम्ने के साथ उतना जितना आटा वह देना चाहता है, हर बाईस लीटर आटे के लिए साथ में एक लीटर जैतून का तेल। +\v 12 जब शासक एक ऐसी भेंट देता है जो अनिवार्य नहीं है, चाहे वह पूरी तरह से जलाए जाने के लिए हो या मेरे साथ मेल का उत्सव मनाने की भेंट हो, तो उसके लिए पूर्वी द्वार को खोला जाना चाहिए। उसके बाद उसे अपनी भेंटों को देना होगा जैसे वह सब्त के दिनों में करता है। फिर वह बाहर जाएगा, और उसके बाहर जाने के बाद, उन्हें प्रवेश द्वार को बन्द करना होगा। +\p +\s5 +\v 13 प्रतिदिन सुबह, किसी को भी एक वर्ष का एक मेम्ना मेरे लिए चढ़ावा होने के लिए लाना होगा, जिसमें कोई दोष न हो, जिसे याजक पूरी तरह से जला देंगे। +\v 14 किसी को प्रतिदिन आटे की भेंट भी प्रदान करनी होगी। यह एक लीटर जैतून के तेल के साथ मिला हुआ साढ़े तीन लीटर आटा होना चाहिए। तुमको, मुझ, यहोवा, को आटा और जैतून के तेल की दैनिक भेंट चढ़ाना कभी बन्द नहीं करना है। +\v 15 मेम्ना और आटा और जैतून के तेल का चढ़ावा मेरे लिए भेंट होने को हर सुबह वेदी पर पूरी तरह जला दिए जाने के लिए देना होगा। +\p +\s5 +\v 16 यही है जो यहोवा परमेश्वर घोषित करते हैं: यदि शासक अपनी कुछ भूमि को अपने किसी एक पुत्र को स्थायी रूप से उसकी होने को देता है, तो वह अंततः उसके पुत्रों के वंशजों की होगी। +\v 17 परन्तु यदि वह अपनी कुछ भूमि अपने दासों में से किसी एक को देता है, तो दास को उस भूमि को जयन्ती के उत्सव के वर्ष तक रखने की अनुमति है। तब शासक को फिर से उस पर अधिकार करना होगा। परन्तु यदि शासक अपने पुत्रों को भूमि देता है, तो वह भूमि स्थायी रूप से उनकी होगी। +\v 18 शासक को ऐसी किसी भी भूमि को नहीं लेना है जो लोगों के स्वामित्व की है और उन्हें कहीं और रहने के लिए विवश नहीं करना है। जो भूमि वह अपने पुत्रों को देता है वह उसकी अपनी सम्पत्ति से होनी चाहिए, किसी और की सम्पत्ति से नहीं, कि मेरे किसी भी व्यक्ति को अपने स्वामित्व की सम्पत्ति से अलग नहीं किया जा सके।’” +\p +\s5 +\v 19 फिर, दर्शन में, वह पुरुष मुझे मुख्य फाटक के प्रवेश द्वार से होकर उत्तर की ओर वाले पवित्र कमरों के पास लाया, वह कमरे जो याजकों के थे, और उसने मुझे पश्चिमी छोर पर एक जगह दिखाई। +\v 20 उसने मुझसे कहा, “यह वह स्थान है जहाँ याजक उस माँस को पकाएँगे जो लोग तब भेंट चढ़ाते हैं, जब वे कुछ करने की शपथ खा कर यहोवा से चूक जाते हैं, और लोगों को परमेश्वर द्वारा स्वीकार्य होने के लिए भेंटें लाते हैं, और भेंट के रूप में लाए गए आटे की रोटी पकाएँगे। वे उन चीजों को अपने कमरे में पकाएँगे जिससे कि उन्हें बाहरी आँगन में ला कर पकाने से बच सकें, कि कोई उन्हें छू कर पवित्र न हो जाए।” +\p +\s5 +\v 21 तब वह पुरुष मुझे बाहरी आँगन में लाया और मुझे इसके चारों कोनों तक ले गया। मैंने प्रत्येक कोने में लगा क्षेत्र देखा; +\v 22 प्रत्येक क्षेत्र बाईस मीटर लम्बा और सोलह मीटर चौड़ा था। +\v 23 इन क्षेत्रों में से प्रत्येक के भीतर एक पत्थर का किनारा था, किनारे के नीचे चारों ओर आग जलाने के लिए स्थान थे। +\v 24 उस पुरुष ने मुझसे कहा, “ये रसोई हैं जहाँ मन्दिर में कार्य करने वाले लेवी के वंशज लोग उस बलिदान को पकाएँगे जो लोग लाते हैं।” + +\s5 +\c 47 +\p +\v 1 फिर दर्शन में, वह पुरुष मुझे मन्दिर के प्रवेश द्वार पर वापस लाया। वहाँ मैंने प्रवेश द्वार के नीचे से बाहर पानी को निकलते हुए और पूर्व की ओर बहते हुए देखा। पानी प्रवेश द्वार के दक्षिण की ओर, वेदी के दाहिने ओर बह रहा था। +\v 2 फिर वह मुझे उत्तरी द्वार से होकर बाहर लाया और मुझे उसके बाहरी भाग में पूर्वी द्वार तक ले गया। +\p +\s5 +\v 3 जब वह पुरुष पूर्व की ओर जा रहा था, मैंने देखा कि उसके हाथ में एक मापने वाली लकड़ी थी। उसने 540 मीटर को मापा और फिर पानी के बीच से मेरा नेतृत्व किया, पानी मेरे टखनों तक था। +\v 4 फिर उसने एक और 540 मीटर को माप लिया और पानी के बीच से मेरा नेतृत्व किया, पानी मेरे घुटनों तक था। फिर उसने एक और 540 मीटर का माप किया और पानी के बीच से मेरा नेतृत्व किया; पानी मेरी कमर तक था। +\v 5 फिर उसने एक और 540 मीटर का माप किया और पानी के बीच से मेरा नेतृत्व किया अब वह एक नदी थी जिसे मैं पार नहीं कर सका, क्योंकि पानी बहुत गहरा था; आगे बढ़ने के लिए मुझे तैरने की आवश्यकता होगी। +\s5 +\v 6 फिर उसने मुझसे पूछा, “हे मनुष्य के पुत्र, इस विषय में सावधानी से सोच।” फिर वह मुझे नदी के तट पर ले गया +\p +\v 7 और जिस दिशा से हम आए थे, उस दिशा की ओर वापस गए। वहाँ मैंने नदी के दोनों ओर बढ़ने वाले कई पेड़ों को देखा। +\v 8 उसने मुझसे कहा, “यह पानी पूर्व में बहता है और मृत सागर में जाता है। और जब पानी मृत सागर में प्रवेश करता है, तो यह ताजा रहता है और समुद्र के पानी को शुद्ध करता है और इसे फिर से ताजा बनाता है। +\s5 +\v 9 जहाँ भी नदी बहती है, वहाँ मछली के झुण्ड पानी में होंगे। मृत सागर में कई मछलियाँ होंगी, क्योंकि जो पानी इसमें बहता है वह नमक के पानी को ताजा पानी बना देता है। जहाँ भी नदी बहती है, इसके तट पर सब कुछ बढ़ेगा। +\v 10 मछुआरे मछली पकड़ने के लिए नदी के किनारे खड़े होंगे। पश्चिमी ओर एनगदी से एनएगलैम तक मछली पकड़ने के जाल फैलाने के लिए स्थान होंगे। विशाल सागर के समान वहाँ कई प्रकार की मछलियाँ होंगी। +\s5 +\v 11 परन्तु किनारे के दलदल और कीचड़ ताजा पानी नहीं होंगे; उन्हें नमक बनाने के लिए छोड़ा जाएगा। +\v 12 नदी के दोनों किनारों के पेड़ों पर कई प्रकार के फल उगेंगे। उनकी पत्तियाँ नहीं सूखेंगी, और उनमें सदा फल होंगे। वे हर महीने नए फल उत्पन्न करेंगे, क्योंकि मन्दिर से आने वाला पानी निरन्तर पेड़ों तक बहता है। उनका फल खाने के लिए अच्छा होगा और उनकी पत्तियाँ स्वस्थ करने के लिए अच्छी होंगी।” +\p +\s5 +\v 13 दर्शन में, यहोवा ने मुझसे यह भी कहा: “यहाँ इस्राएल के बारह गोत्रों और उन क्षेत्रों की सूची है जो प्रत्येक गोत्र को प्राप्त करना है। यूसुफ के वंशजों को दो भाग मिलेगा। +\v 14 सब गोत्रों के बीच भूमि को समान रूप से विभाजित करो। मैंने तुम्हारे पूर्वजों से शपथ खाने के लिए अपने हाथों को उठाया है कि मैं उन्हें इस देश को स्थायी रूप से उनका होने के लिए दे दूँगा। +\p +\s5 +\v 15 ये देश की सीमाएँ होंगी: +\q उत्तर की ओर, यह सड़क के साथ पूर्व में भूमध्य सागर से हेतलोन तक और फिर सदाद तक, +\v 16 बेरोता तक, और फिर सिब्रैम तक, जो दमिश्क और हमात के बीच की सीमा पर है। यह सीमा हसर्हत्तीकोन तक चली जाएगी, जो हौरान के क्षेत्र की सीमा पर है। +\v 17 यह सीमा भूमध्य सागर से ले कर हसरेनान तक उत्तर में हमात और दक्षिण में दमिश्क के बीच की सीमा तक फैली होगी। वह उत्तरी सीमा होगी। +\s5 +\v 18 पूर्व की ओर, सीमा हौरान और दमिश्क के बीच, दक्षिण में यरदन नदी के साथ गिलाद के क्षेत्र और इस्राएली क्षेत्र के बीच, मृत सागर के साथ तामार तक फैली होगी। वह पूर्वी सीमा होगी। +\v 19 दक्षिण की ओर, सीमा तामार से मरीबा कादेश के पास सोतों तक फैली होगी। तब यह मिस्र के झील के साथ विशाल सागर तक पश्चिम में विस्तार करेगी। वह दक्षिणी सीमा होगी। +\v 20 पश्चिम की ओर, सीमा उत्तर में लेबो हमात के समीप एक बिन्दु तक भूमध्य सागर होगी। +\p +\s5 +\v 21 तुमको इस देश को अपने बीच में, इस्राएल के गोत्रों में बाँट देना होगा। +\v 22 तुमको देश को अपने लिए और किसी भी विदेशी के लिए जो तुम्हारे बीच में रह रहा है और अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहा है स्थायी अधिकार के रूप में सौंपना होगा। तुमको उनको मूल जन्म से ही इस्राएली होने के समान मानना होगा, और उन्हें इस्राएल के गोत्रों में भूमि सौंपी जानी चाहिए। +\v 23 जहाँ भी विदेशी लोग रह रहे हैं, तुमको उन्हें स्थायी रूप से उनकी होने के लिए कुछ भूमि देनी होगी।’ यही है जो यहोवा परमेश्वर घोषणा करते हैं।” + +\s5 +\c 48 +\p +\v 1 यहाँ इस्राएल के गोत्रों और उस क्षेत्र की सूची है जिसे प्रत्येक गोत्र को प्राप्त करना है। इस्राएल की उत्तरी सीमा भूमध्य सागर से आरम्भ होगी और पूर्व में हेतलोन शहर, फिर लेबो हमात तक जाएगी, और हसरेनान तक आगे बढ़ेगी जो दमिश्क का दक्षिणी भाग है, और यह हमात तक रहेगी। प्रत्येक गोत्र को वह भूमि प्राप्त होगी जो इस्राएल की पूर्वी सीमा से पश्चिम में विशाल सागर तक फैली होगी। +\p दान के गोत्र को इस्राएल की उत्तरी सीमा के साथ भूमि प्राप्त होगी। +\p +\v 2 उनके क्षेत्र का दक्षिणी भाग आशेर के गोत्र के लिए होगा। +\p +\v 3 आशेर की भूमि का दक्षिणी क्षेत्र नप्ताली के गोत्र के लिए होगा। +\p +\s5 +\v 4 नप्ताली की भूमि का दक्षिणी क्षेत्र मनश्शे के गोत्र के लिए होगा। +\p +\v 5 मनश्शे की भूमि का दक्षिणी क्षेत्र एप्रैम के गोत्र के लिए होगा। +\p +\v 6 एप्रैम की भूमि का दक्षिणी क्षेत्र रूबेन के गोत्र के लिए होगा। +\p +\v 7 उनकी भूमि का दक्षिणी क्षेत्र यहूदा के गोत्र के लिए होगा। +\p +\s5 +\v 8 यहूदा की भूमि का दक्षिणी क्षेत्र एक ऐसा भाग होगा जिसे पूरा राष्ट्र मुझे दे देगा; तुम इसे विशेष उपयोग के लिए अलग कर दोगे। मन्दिर इस क्षेत्र के केंद्र में होगा। यह उतना ही लम्बा होगा जितना कि इस्राएल के एक गोत्र को सौंपी गई भूमि का कोई भी भाग है। +\p +\v 9 यह विशेष क्षेत्र साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बा और पाँच किलोमीटर और चार सौ मीटर चौड़ा होगा। यही है जो तुम यहोवा को दोगे। +\s5 +\v 10 इस विशेष क्षेत्र के भीतर, यह वस्तुएँ होंगी तुम जो याजकों को सौंपोगे: तुम उनको एक क्षेत्र सौंपोगे जो उत्तरी और दक्षिणी ओर से साढ़े तेरह किलोमीटर; पूर्वी और पश्चिमी ओर से पाँच किलोमीटर और चार सौ मीटर का होगा। यहोवा का भवन इस विशेष क्षेत्र के बीचों बीच में होगा +\v 11 भवन का क्षेत्र याजकों के लिए होगा, जो मेरे सम्मान के लिए अलग किए गए हैं, जो सादोक के वंशज हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने विश्वासयोग्य रह कर मेरी सेवा की और यहोवा से दूर नहीं गए जैसा कि लेवी के वंशजों ने किया। +\v 12 जब भूमि बाँट दी जाती है, तो तुम मेरे लिए उस विशेष क्षेत्र को मेरे लिए रखोगे, क्योंकि यह याजकों के लिए विशेष होगा; यह वह भूमि है जिसे तुम मेरे लिए बहुत विशेष मान कर व्यवहार करोगे। याजकों के क्षेत्र के साथ वह स्थान होगा जहाँ लेवी के अन्य वंशज रहेंगे। +\p +\s5 +\v 13 जिस भूमि को तुम लेवी के वंशजों को सौंपोगे वह उसी नाप की होगी जो याजक प्राप्त करेंगे। इसलिए एक साथ, भूमि के यह दो भाग साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बे और लगभग ग्यारह किलोमीटर चौड़े होंगे। +\v 14 इस विशेष भूमि में से, इस सबसे अच्छी भूमि में से, कोई भी भाग कभी नहीं बेचा जाए न ही इसका व्यापार में उपयोग किया जाए और न ही अन्य लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाए, क्योंकि यह यहोवा का है। यह उनके लिए अलग है। +\p +\s5 +\v 15 भूमि की एक और पट्टी साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बी और लगभग पौने तीन किलोमीटर चौड़ी विशेष क्षेत्र में रहने वाले अन्य लोगों के उपयोग के लिए दी जाएगी। वे घरों को बना सकते हैं और चारागाहों को ले सकते हैं, और इस क्षेत्र के बीच में एक शहर होगा। +\v 16 यह शहर चौकोर होगा, चारों ओर से सवा दो किलोमीटर का होगा। +\s5 +\v 17 इस विशेष क्षेत्र के भीतर शहर के चारों ओर एक खुला क्षेत्र होगा, जो प्रत्येक दिशा में लगभग 135 मीटर लम्बा होगा। +\v 18 शहर के बाहर खेती का क्षेत्र होगा जो पूर्व की ओर सवा पाँच किलोमीटर और पश्चिम की ओर सवा पाँच किलोमीटर होगा। जो लोग वहाँ कार्य करेंगे वे उन लोगों के लिए भोजन उत्पन्न करेंगे जो शहर में कार्य करते हैं। +\s5 +\v 19 जो लोग विभिन्न गोत्रों से शहर में कार्य करने के लिए आते हैं वे भी इस खेत में कार्य कर सकते हैं। +\v 20 यह पूरा विशेष क्षेत्र, जिसमें यहोवा के उपयोग के लिए दी गई भूमि और शहर भी आते हैं, वह एक चौकोर खण्ड होगा जो चारों ओर से साढ़े तेरह किलोमीटर लम्बा और चौड़ा होगा। +\p +\s5 +\v 21 पूर्व में और पश्चिम में भूमि का यह भाग यहोवा का क्षेत्र है और शहर के शासक का होगा। एक क्षेत्र पूर्व में इस्राएल की पूर्वी सीमा तक फैला होगा, और दूसरा पश्चिम में विशाल सागर तक फैला होगा। यहोवा का क्षेत्र, जिसमें मन्दिर है, वह बीचों बीच होगा। +\v 22 शासक से सम्बन्धित क्षेत्र उत्तर में यहूदा के गोत्र और दक्षिण में बिन्यामीन के गोत्र के बीच होगा। +\p +\s5 +\v 23 यहोवा के क्षेत्र के दक्षिण में, अन्य सभी गोत्रों को भूमि का एक भाग प्राप्त होगा जो इस्राएल की पूर्वी सीमा से पश्चिम में विशाल सागर तक फैला हुआ है। +\p यहोवा के क्षेत्र का दक्षिणी क्षेत्र बिन्यामीन के गोत्र के लिए होगा। +\p +\v 24 बिन्यामीन की भूमि का दक्षिणी देश शिमोन के गोत्र का होगा। +\p +\v 25 शिमोन की भूमि का दक्षिणी देश इस्साकार के गोत्र का होगा। +\p +\v 26 इस्साकार की भूमि का दक्षिणी देश जबूलून के गोत्र का होगा। +\p +\s5 +\v 27 जबूलून की भूमि का दक्षिणी देश गाद के गोत्र का होगा। +\p +\v 28 गाद की भूमि की दक्षिणी सीमा एनगदी से दक्षिण में मरीबा कादेश के सोतों तक और फिर मिस्र की नदी के किनारे पश्चिम में विशाल सागर तक फैली होगी। +\p +\v 29 यह उस देश का वर्णन है जिसे तुमको इस्राएल के गोत्रों को सौंपना होगा, क्योंकि यह उनके लिए स्थायी रूप से है।’ यही है जो मैं, यहोवा परमेश्वर, घोषणा करता हूँ। +\p +\s5 +\v 30 शहर के द्वार ये हैं: उत्तर दिशा में, जो दो किलोमीटर, चार सौ मीटर लम्बी भूमि है। +\v 31 वहाँ तीन द्वार होंगे। प्रत्येक द्वार का नाम इस्राएल के गोत्रों में से एक का नाम होगा। पहले वाले का नाम रूबेन के लिए, अगले का यहूदा के लिए, अगले का लेवी के लिए रखा जाएगा। +\p +\v 32 पूर्व दिशा में, भी सवा दो किलोमीटर लम्बी भूमि है, जिसके द्वारों के नाम यूसुफ, बिन्यामीन और दान पर होंगे। +\p +\s5 +\v 33 दक्षिण दिशा में, भी सवा दो किलोमीटर लम्बी भूमि है, जिसके द्वारों के नाम शिमोन, इस्साकार और जबूलून पर होंगे। +\p +\v 34 पश्चिम दिशा में, भी सवा दो किलोमीटर लम्बी भूमि है, जिसके द्वारों के नाम गाद, आशेर और नप्ताली पर होंगे। +\p +\v 35 शहर के चारों ओर की दूरी पौने दस किलोमीटर की होगी। +\p उस समय से, शहर का नाम “यहोवा वहाँ है” होगा। \ No newline at end of file diff --git a/27-DAN.usfm b/27-DAN.usfm new file mode 100644 index 0000000..151b633 --- /dev/null +++ b/27-DAN.usfm @@ -0,0 +1,768 @@ +\id DAN +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h दानिय्येल +\toc1 दानिय्येल +\toc2 दानिय्येल +\toc3 dan +\mt1 दानिय्येल + + +\s5 +\c 1 +\p +\v 1 राजा यहोयाकीम के यहूदा में लगभग तीन वर्षों तक शासन करने के बाद, बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर यरूशलेम में अपनी सेना के साथ आया और शहर को घेर लिया जिससे कि सेना के आक्रमण करने से पहले शहर निर्बल हो जाए। +\v 2 दो वर्ष बाद, यहोवा ने नबूकदनेस्सर के सैनिकों को यहोयाकीम पर विजय दी, जो यहूदा का राजा था। उन्होंने कुछ पवित्र वस्तुओं को भी ले लिया जो परमेश्वर के मन्दिर में थीं, और उन्हें शिनार देश में बाबेल ले गए। वहाँ नबूकदनेस्सर ने उन्हें अपने देवता के भण्डारगृह में रख दिया। +\p +\s5 +\v 3 तब नबूकदनेस्सर ने अपने महल के मुख्य अधिकारी अश्पनज को आज्ञा दी कि वह उन इस्राएली पुरुषों को ले कर आए जिन्हें वे बाबेल में लाए थे। यह वे पुरुष थे जो यहूदा के राजा के परिवार समेत महत्वपूर्ण परिवारों के थे। +\v 4 राजा नबूकदनेस्सर केवल वही पुरुष चाहता था जो बहुत स्वस्थ, सुन्दर, बुद्धिमान और शिक्षित हो तथा कई बातों को सीखने में सक्षम हो, और महल में कार्य करने के लिए उपयुक्त हो। वह उन्हें बाबेल की भाषा सिखाना चाहता था जिससे कि वे बाबेल के शास्त्रों को समझ सकें। +\v 5 राजा ने अपने सेवकों को आज्ञा दी, “उन्हें अच्छा, समृद्ध भोजन और दाखरस दो जो मुझे परोसा जाता है, उन्हें तीन वर्ष तक प्रशिक्षित करो और फिर वे मेरे दास बन जाएँगे।” +\p +\s5 +\v 6 जो इस्राएली पुरुष चुने गए, उनमें से दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह थे, जो सब यहूदा से आए थे। +\v 7 अश्पनज ने उन्हें बाबेल वाले नाम दिए। उसने दानिय्येल को बेलतशस्सर नाम दिया, उसने हनन्याह को शद्रक नाम दिया, उसने मीशाएल को मेशक नाम दिया, और उसने अजर्याह को अबेदनगो नाम दिया। +\p +\s5 +\v 8 परन्तु दानिय्येल ने निर्णय लिया कि वह उस प्रकार का भोजन नहीं खाएगा जो राजा खाता था, या उस दाखरस को नहीं पीएगा जो राजा पीता था, क्योंकि वह उसे धार्मिक संस्कार के अनुसार अशुद्ध कर देगा। इसलिए उसने राजा के अधिकारियों के मुखिया अश्पनज से अन्य भोजन खाने और पीने की अनुमति माँगी कि वह स्वयं को अशुद्ध न करे। +\v 9 परमेश्वर ने अश्पनज के मन में दानिय्येल के लिए दया और करुणा भर दी। मुख्य अधिकारी के मन में दानिय्येल के लिए बहुत सम्मान था। +\v 10 उसने दानिय्येल से कहा, “मेरे स्वामी राजा ने चुना है कि तुमको क्या खाना और पीना चाहिए। यदि तुम अन्य चीजें खाते हो और तुम अपनी उम्र के अन्य युवा पुरुषों की तुलना में पतले और दुर्बल हो जाते हो, तो वह अपने सैनिकों को मेरा सिर काटने का आदेश दे सकता है क्योंकि तुमने उसके निर्देशों का पालन नहीं किया है।” +\p +\s5 +\v 11 मुख्य अधिकारी ने दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह को उनका खाना और पेय देने के लिए एक दास को नियुक्त किया। दानिय्येल ने उससे बात की। +\v 12 उसने कहा, “कृपया अपने सेवकों को जाँच लो! और दस दिनों तक हमें केवल खाने के लिए सब्जियाँ और पीने के लिए पानी दो। +\v 13 दस दिनों के बाद, देखना कि हम स्वस्थ दिखते हैं या नहीं। यह भी देखना कि राजा के भोजन को खाने वाले लोग कैसे दिखते हैं। फिर तुम जो भी अच्छा सोचते हो वह हमारे साथ करना।” +\s5 +\v 14 मुख्य अधिकारी इस जाँच के लिए सहमत हो गया। उसने दस दिनों के लिए उन्हें वह भोजन दिया जो दानिय्येल ने अनुरोध किया था। +\p +\v 15 दस दिनों के बाद, उसने देखा कि वे उन सभी युवा पुरुषों की तुलना में स्वस्थ और उत्तम पोषित दिखते थे जो राजा द्वारा उनके लिए चुने गए भोजन को खा रहे थे। +\v 16 तब उसके बाद उसने राजा के विशेष भोजन और दाखरस को दूर कर दिया, और उसने केवल उन्हें खाने के लिए सब्जियाँ दीं। +\p +\s5 +\v 17 परमेश्वर ने इन चार युवा पुरुषों को ज्ञान और बाबेल के लोगों द्वारा लिखी और अध्ययन की कई चीजों का अध्ययन करने की क्षमता दी। उन्होंने दानिय्येल को दर्शनों और स्वप्नों के अर्थ को समझने की क्षमता भी दी। +\p +\v 18 तीन वर्षों के बाद, राजा ने एक दिन चुना तब जो प्रशिक्षण में थे वे उसके सामने आएँ। राजा के अधिकारियों के मुखिया अश्पनज ने उन सभी को नबूकदनेस्सर के सामने प्रस्तुत किया। +\s5 +\v 19 राजा ने उनसे बात की और जान लिया कि अन्य कोई भी युवक दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह के समान स्वस्थ नहीं थे। इसलिए वे राजा की सेवा के लिए एक साथ तैयार खड़े थे। +\v 20 प्रत्येक प्रश्न में ज्ञान और समझ की आवश्यकता होती है, राजा ने पाया कि इन पुरुषों ने उसे उसके जादूगरों और जिन्होंने मृतकों से बात करने का दावा किया था उनकी तुलना में दस गुणा अधिक प्रभावी ढंग से परामर्श दिया था। उसके पूरे साम्राज्य में इन चारों से श्रेष्ट कोई नहीं था। +\p +\v 21 दानिय्येल वहाँ साठ वर्षों से अधिक राजा की सेवा करते हुए कुस्रू के राजा बनने के पहले वर्ष तक बना रहा। + +\s5 +\c 2 +\p +\v 1 नबूकदनेस्सर के शासन के दूसरे वर्ष की एक रात, उसने स्वप्न देखा। उस स्वप्न ने उसे इतना चिन्तित कर दिया कि वह सो न सका। +\v 2 अगली सुबह उसने अपने सब जादूगरों को, वे जिन्होंने मरे हुओं के साथ बात करने का दावा किया था और वे जिन्होंने सितारों को देख कर सलाह दी थी और बुद्धिमान पुरुषों को बुलाया। उनके कौशल का परीक्षण करने के लिए, उसने माँग की कि वे उसे बताएँ कि उसने क्या स्वप्न देखा था। वे आए और राजा के सामने खड़े हो गए। +\s5 +\v 3 राजा ने कहा, “कल रात मैंने एक स्वप्न देखा था जो मुझे चिन्तित करता है और मैं जानना चाहता हूँ कि उस स्वप्न का क्या अर्थ है।” +\p +\v 4 सितारों का अध्ययन करने वाले पुरुषों ने राजा को उत्तर दिया, (यह भाग अरामी भाषा में लिखा गया है)। उन्होंने कहा, “हे राजा नबूकदनेस्सर, तू सदा जीवित रहे! हमें अपना स्वप्न बता और हम बताएँगे कि इसका क्या अर्थ है!” +\p +\s5 +\v 5 परन्तु राजा ने उनको उत्तर दिया, “मैंने निर्णय लिया है कि तुमको मुझे स्वप्न बताना होगा और साथ ही मुझे यह भी बताओ कि इसका क्या अर्थ है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो मैं तुम्हें टुकड़ों में काट दूँगा और तुम्हारे घरों को गोबर के ढेर में बदल दूँगा! +\v 6 परन्तु यदि तुम मुझे बताते हो कि मैंने क्या स्वप्न देखा और इसका क्या अर्थ है, तो मैं तुमको पुरस्कार दूँगा। मैं तुमको उपहार और पुरस्कार और बड़ा सम्मान दूँगा। इसलिए मुझे बताओ कि मैंने क्या स्वप्न देखा और इसका क्या अर्थ है।” +\p +\s5 +\v 7 उन्होंने फिर से उत्तर दिया, “हमें बता कि तू ने क्या स्वप्न देखा, और हम बताएँगे कि इसका क्या अर्थ है।” +\p +\v 8 राजा ने उत्तर दिया, “मुझे पता है कि तुम केवल अधिक समय पाने का प्रयास कर रहे हो क्योंकि तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे साथ वह करूँगा जो मैंने कहा है। +\v 9 यदि तुम मुझे नहीं बताते कि मैंने क्या स्वप्न देखा है, तो तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे साथ क्या करने की प्रतिज्ञा की है। मुझे लगता है कि तुम्हारा समय समाप्त होने से पहले तुम मुझसे झूठ और व्यर्थ की बातें करना चाहते हो। तो फिर, तुम्हारे पास केवल एक ही विकल्प है। मुझे मेरा स्वप्न बताओ, और मुझे पता चलेगा कि तुम मुझे बता सकते हो कि इसका क्या अर्थ है।” +\p +\s5 +\v 10 बुद्धिमानों ने राजा को उत्तर दिया, “पृथ्‍वी पर कोई भी नहीं है जो ऐसा कर सके जैसा तू कहता है! ऐसा कोई राजा, यहाँ तक कि एक महान और शक्तिशाली राजा भी नहीं है, जिसने कभी अपने ज्योतिषियों से या जो मृतकों के साथ बात करने का दावा करते हैं, या हमारे जैसे बुद्धिमान पुरुषों से ऐसा कुछ करने के लिए कहा है! +\v 11 जो तू हमें करने के लिए कह रहा है वह असम्भव है। केवल देवता ही तुझे बता सकते हैं कि तू ने क्या स्वप्न देखा है, और वे हमारे बीच नहीं रहते हैं!” +\p +\s5 +\v 12 जब राजा ने यह सुना तो वह बहुत क्रोधित हुआ, इसलिए उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि वे उन सब पुरुषों को मृत्यु दण्ड दें जो पूरे बाबेल में उनके ज्ञान के लिए जाने जाते थे। +\v 13 राजा के आदेश के अनुसार, वे मृत्यु दण्ड देने के लिए दानिय्येल और उसके साथियों को भी खोजने के लिए गए। +\p +\s5 +\v 14 राजा के रक्षकों का सरदार अर्योक, सैनिकों के साथ बाबेल में उन हर एक को मारने के लिए आया, जिन्हें बुद्धिमान माना जाता था। इसलिए दानिय्येल ने उससे बहुत बुद्धिमानी से और चतुराई से बात की। +\v 15 दानिय्येल ने सरदार अर्योक से पूछा, “राजा ने यह आदेश क्यों दिया है जिसे इतना शीघ्र किया जाना चाहिए?” इसलिए जो कुछ हुआ था उसे अर्योक ने दानिय्येल को बताया। +\v 16 दानिय्येल राजा से बात करने गया और राजा से मिलने का अनुरोध किया कि वह राजा को बता सके कि स्वप्न क्या था और उसका क्या अर्थ है। +\p +\s5 +\v 17 दानिय्येल अपने घर गया और जो कुछ हुआ था उसने अपने साथियों हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह को बताया। +\v 18 उसने उनसे परमेश्वर से, जो स्वर्ग में रहते हैं पूछने का आग्रह किया, कि वह उन्हें राजा के स्वप्न का भेद बता कर उनकी सहायता करें जिससे कि उन्हें और बाबेल में रहने वाले ज्ञान के लिए प्रसिद्ध अन्य पुरुषों को मार डाला न जाए। +\s5 +\v 19 उस रात परमेश्वर ने दानिय्येल को दर्शन दिया, और उस दर्शन में उसे भेद बताया गया। तब दानिय्येल ने परमेश्वर की स्तुति की +\v 20 यह कहकर, +\q1 “हम सदा सच्चे परमेश्वर के नाम की प्रशंसा करते हैं +\q2 क्योंकि वह सब ज्ञान और शक्ति के स्वामी हैं। +\q1 +\s5 +\v 21 वह समय को आगे बढ़ाते हैं, और वह ऋतुओं के स्वामी हैं। +\q2 वह जब चाहते हैं हर राजा को हटा देते हैं और नए राजाओं को उनके राज्य दे देते हैं। +\q1 वह कुछ को ज्ञान देते हैं, और लोग बुद्धिमान बन जाते हैं। +\q2 जो समझ रखते हैं उनको वह ज्ञान सिखाते हैं। +\q1 +\v 22 वह हम पर उन बातों को प्रकट करते हैं जो गहराई में हैं और छिपी हुई हैं। +\q2 वह ऐसा इसलिए कर सकते हैं क्योंकि वह सब कुछ जानते हैं जो अन्धकार हमसे छिपाता है, +\q2 और क्योंकि प्रकाश वहाँ से आता है जहाँ वह रहते हैं। +\q1 +\s5 +\v 23 हे परमेश्वर, जिनकी मेरे पूर्वजों ने आराधना की थी, +\q1 मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और मैं आपकी प्रशंसा करता हूँ +\q2 क्योंकि आपने मुझे बुद्धिमान बना दिया है और मुझे दृढ़ किया है। +\q2 आपने मुझे वह बताया है जो मेरे साथियों और मैंने हमें बताने के लिए आपको कहा था, +\q2 और आपने हम पर प्रकट किया है कि राजा क्या जानना चाहता है।” +\p +\s5 +\v 24 तब दानिय्येल अर्योक के पास गया, जिस पुरुष को राजा ने बाबेल में बुद्धिमान माने जाने वाले हर एक को मृत्यु दण्ड देने के लिए नियुक्त किया था। उसने उससे कहा, “उन बुद्धिमान पुरुषों को मत मारो। मुझे राजा के पास ले चलो और मैं उसे बताऊँगा कि उसके स्वप्न का क्या अर्थ है।” +\p +\s5 +\v 25 इसलिए अर्योक शीघ्र ही दानिय्येल को राजा के पास ले गया। उसने राजा से कहा, “मुझे उन पुरुषों में से एक मिला है जिन्हें हम यहूदा से लाए थे जो तुझे तेरे स्वप्न का अर्थ बता सकता है।” +\p +\v 26 राजा ने दानिय्येल से कहा (जिसका नाम अब बेलतशस्सर था), “क्या तू मुझे बता सकता है कि मैंने क्या स्वप्न देखा और इसका क्या अर्थ है?” +\p +\s5 +\v 27 दानिय्येल ने उत्तर दिया, “कोई भी सहायता करने वाला नहीं है, यहाँ तक कि जो बुद्धिमान होने का दावा करते हैं और जो मरे हुओं से परामर्श करने का दावा करते हैं। कोई भी जादूगर या ज्योतिषियों में से कोई भी सहायता नहीं कर सकता। इनमें से कोई भी तेरे स्वप्न के भेदों को खोज नहीं सकता है। +\v 28 परन्तु स्वर्ग में एक परमेश्वर हैं जो भेदों को प्रकट करते हैं, और उन्होंने तेरे स्वप्न में दिखाया है कि भविष्य में क्या होगा। अब मैं तुझे बताऊँगा कि तू ने क्या स्वप्न देखा और जिस स्वप्न को तू ने देखा जब तू अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। +\p +\s5 +\v 29 हे राजा, जब तू सो रहा था, तो तू ने भविष्य में होने वाली घटनाओं के विषय में स्वप्न देखा। वह जो भेदों को प्रकट करते हैं, उन्होंने तुझे दिखाया है कि क्या होने जा रहा है। +\v 30 ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं पृथ्‍वी पर किसी और की तुलना में बुद्धिमान हूँ कि मुझे इस रहस्यमय स्वप्न का अर्थ पता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर चाहते थे कि वह तुझे दर्शन उसमें छिपे हुए अपने गहरे विचारों को समझाएँ। +\p +\s5 +\v 31 हे राजा, तेरे स्वप्न में तू ने अपने सामने एक विशाल और भयानक मूर्ति देखी। वह बहुत चमक रही थी, और वह डरावनी और भयानक थी। +\v 32 मूर्ति का सिर शुद्ध सोने से बना था। उसकी छाती और बाँहें चाँदी से बनी थीं। उसका पेट और जाँघें पीतल से बने थे। +\v 33 उसके पैर लोहे से बने थे और उसके पाँव लोहे और मिट्टी के मिश्रण के थे। +\s5 +\v 34 जैसा तू ने देखा, किसी ने पर्वत से एक पत्थर को काटा, परन्तु वह कोई मनुष्य नहीं था जिसने उसे काटा। पत्थर नीचे गिर पड़ा और मूर्ति के पैर तोड़ दिए जो लोहे और मिट्टी के बने थे। उसने उन्हें चूर-चूर कर दिया। +\v 35 तब बाकी की मूर्ति गिर कर लोहे, मिट्टी, पीतल, चाँदी और सोने का बड़ा ढेर हो गई। मूर्ति के टुकड़े भूमि पर भूसे के उन कणों के समान छोटे-छोटे थे जहाँ उसे दाँवनी किया गया था, और हवा ने उन सभी छोटे टुकड़ों को दूर उड़ा दिया। वहाँ कुछ भी नहीं बचा था। परन्तु उस मूर्ति को चूर-चूर करने वाला पत्थर एक बड़ा पर्वत बन गया जिसने पूरी पृथ्‍वी को ढाँप लिया। +\p +\s5 +\v 36 जो तू ने स्वप्न देखा था वह यही था। अब हम तुझको बताएँगे कि इसका क्या अर्थ है। +\v 37 तू एक राजा है जो अन्य राजाओं पर शासन करता है। स्वर्ग में शासन करने वाले परमेश्वर ने तुझे उन पर शासन करने के लिए रखा है और तुझे महान शक्ति दी है और तुझे सम्मानित किया है। +\v 38 उसने तुझे सब लोगों पर शासक बनाया है इस कारण यहाँ तक कि पशु और पक्षी भी तेरे हैं। तू मूर्ति का सिर है, वह सिर सोने से बना है। +\p +\s5 +\v 39 तेरे साम्राज्य के समाप्त होने के बाद, एक और बड़े साम्राज्य का उदय होगा, परन्तु वह तेरे जैसा महान नहीं होगा। मूर्ति के चाँदी के अंग उसी साम्राज्य को दर्शाते हैं। तब एक तीसरा महान साम्राज्य होगा जिसका राजा पूरी पृथ्‍वी पर शासन करेगा। मूर्ति के पीतल के अंग उस तीसरे साम्राज्य को दर्शाते हैं। +\s5 +\v 40 उस साम्राज्य के समाप्त होने के बाद, एक चौथा महान साम्राज्य होगा। मूर्ति के लोहे के अंग उस साम्राज्य को दर्शाते हैं। उस साम्राज्य की सेना पिछले साम्राज्यों को चूर-चूर कर देगी, जैसे लोहा हर वस्तु को चूर-चूर कर देता है जिस पर वह चोट करता है। +\s5 +\v 41 जिस मूर्ति को तू ने देखा है उसके पैर और पैरों की उँगलियाँ लोहे और मिट्टी के मिश्रण के थे, यह दर्शाता है कि वह साम्राज्य जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं वह बाद में विभाजित हो जाएगा। +\v 42 उस साम्राज्य के कुछ भागों में लोहे के समान कठोर होंगे, परन्तु कुछ भाग एक साथ नहीं रहेंगे, जैसे लोहा और मिट्टी मिला हुआ होने पर एक साथ नहीं रहते हैं। +\v 43 मूर्ति में लोहे और मिट्टी के मिश्रण का अर्थ यह भी है कि यह साम्राज्य अलग हो जाएगा, क्योंकि विभिन्न जाति समूह एक साथ कार्य नहीं करेंगे, जैसे कि मिट्टी लोहे से चिपकती नहीं है। +\p +\s5 +\v 44 परन्तु जिस समय वे राजा शासन कर रहे होंगे, तब स्वर्ग में शासन करने वाले परमेश्वर एक ऐसा साम्राज्य स्थापित करेंगे जो कभी समाप्त नहीं होगा। कोई भी उसके राजा को पराजित नहीं कर सकेगा। वह उन सभी साम्राज्यों को पूरी तरह से नष्ट कर देगा, और उसका राज्य सदा के लिए रहेगा। +\v 45 यह उस पत्थर का अर्थ है जिसे किसी ने पर्वत से काटा था, वह पत्थर जो लोहे, पीतल, चाँदी और सोने से बने मूर्ति को छोटे-छोटे टुकड़े कर देगा। परमेश्वर, महान परमेश्वर, ने तुझे बताया है कि भविष्य में क्या होगा। उन्होंने जो स्वप्न तुझे दिखाया है वह सच हो जाएगा। इसका अर्थ सच है, जैसा कि मैंने तुझे बताया है।” +\p +\s5 +\v 46 तब राजा नबूकदनेस्सर दानिय्येल के सामने भूमि पर बहुत सम्मान के लिए लेट गया। उसने दानिय्येल के सम्मान में अपने लोगों को धूप जलाने और अनाज की भेंट जलाने का आदेश दिया। +\v 47 राजा ने दानिय्येल से कहा, “तेरे परमेश्वर ने इस स्वप्न का अर्थ मुझे बताने में तुझे सक्षम किया है, इसलिए अब मैं सच में जानता हूँ कि तेरे परमेश्वर अन्य सभी देवताओं से महान हैं, और सब राजाओं से बड़े राजा हैं। वह भेदों को प्रकट करते हैं; वह भेदों को ज्ञात करवाते हैं जिसे और कोई नहीं जान सकता था।” +\p +\s5 +\v 48 तब राजा ने दानिय्येल को कई उपहार दिए, और उसने उसे बाबेल के पूरे प्रान्त पर शासन करने के लिए भी नियुक्त किया। उसने उसे बाबेल के सब बुद्धिमान पुरुषों पर प्रधान बनाया। +\v 49 दानिय्येल ने बाबेल प्रान्त में प्रशासकों के रूप में महत्वपूर्ण पदों पर सेवा करने के लिए शद्रक, मेशक और अबेदनगो को नियुक्त करने के लिए राजा से कहा। परन्तु दानिय्येल राजा के महल में रहा और वहाँ राजा की सेवा की। + +\s5 +\c 3 +\p +\v 1 राजा नबूकदनेस्सर ने एक सोने की मूर्ति बनाई। यह सत्ताईस मीटर लम्बी और तीन मीटर चौड़ी थी। उसने इसे बाबेल प्रान्त में दूरा के मैदान में स्थापित किया। +\v 2 फिर उसने सभी प्रान्तीय प्रशासकों, क्षेत्रीय प्रधानों और स्थानीय अधिकारियों, परामर्शदाताओं, भण्डारियों, न्यायधीशों, न्यायाध्यक्षों और प्रान्त के सभी उच्च अधिकारियों को सन्देश भेजे। उसने उन्हें उस नई मूर्ति का उत्सव मनाने के लिए आने को कहा जो उसने उस देवता को सम्मान देने के लिए स्थापित की थी जिसका उसने प्रतिनिधित्व किया था। +\s5 +\v 3 जब वे सभी पहुँचे, तो वे सभी उस मूर्ति के सामने खड़े हो गये। +\p +\v 4 राजसी कर्मचारियों के एक व्यक्ति ने सबके लिए राजा के नए कानून को ऊँचे शब्द से पुकार कर कहा, “तुम लोग जो कई देशों से आते हो और जो कई भाषाएँ बोलते हो, सुनो कि राजा ने क्या आदेश दिया है! +\v 5 जब तुम नरसिंगे, बाँसुरी, सितार, सारंगी, वीणा, और शहनाई का शब्द सुनते हो, और जो संगीत वे बजाएँगे, तब तुमको भूमि पर लेट जाना है और राजा नबूकदनेस्सर ने जो सोने की मूर्ति खड़ी की है उसका सम्मान करना है। +\s5 +\v 6 जो भी ऐसा करने से मना करता है उसे तेज धधकती हुई आग में फेंक दिया जाएगा।” +\p +\v 7 इसलिए उन सभी लोगों ने जो कई जातियों और राष्ट्रों से एकत्र हुए थे, जो विभिन्न भाषाएँ बोल रहे थे, जब उन्होंने वाद्य-यन्त्रों को बजते हुए सुना, तो उन्होंने भूमि पर गिर कर उसकी आराधना की और मूर्ति के लिए प्रशंसा के शब्द कहे। +\p +\s5 +\v 8 परन्तु कुछ कसदी राजा के पास गए। +\v 9 उन्होंने उसे बताया, “हे राजा, तू कभी न मरे! +\v 10 तू ने यह आदेश दिया कि हर व्यक्ति जो उन वाद्य-यन्त्रों का शब्द सुनता है, उसे भूमि पर लेट कर उस सोने की मूर्ति का सम्मान करना चाहिए। +\s5 +\v 11 तू ने यह भी आदेश दिया है कि ऐसा करने से मना करने वाले किसी को भी धधकती आग में फेंक दिया जाएगा। +\v 12 यहूदा के कुछ पुरुष हैं जिन्हें तू ने बाबेल प्रान्त के अधिकारियों के तौर पर नियुक्त किया है जिन्होंने तेरे आदेश पर ध्यान नहीं दिया है। उनके नाम शद्रक, मेशक और अबेदनगो हैं। जिन्होंने तेरे देवताओं और तेरे द्वारा स्थापित सोने की मूर्ति की आराधना करने से मना कर दिया है।” +\p +\s5 +\v 13 जब नबूकदनेस्सर ने यह सुना, तो वह बहुत क्रोधित हो गया। उसने अपने सैनिकों को शद्रक, मेशक और अबेदनगो को ले कर आने का आदेश दिया। अतः वे उन्हें राजा के पास लाए। +\v 14 नबूकदनेस्सर ने उनसे कहा, “क्या तुमने यह निर्णय लिया है कि तुम मेरे देवताओं या सोने की मूर्ति की आराधना नहीं करोगे जो मैंने स्थापित की है? +\s5 +\v 15 मैं तुमको एक और अवसर दूँगा। जब तुम संगीत वाद्य-यन्त्रों का शब्द सुनो तो उस समय यदि तुम उस मूर्ति की आराधना करने के लिए झुकते हो जो मैंने स्थापित की है, तो ठीक है। परन्तु यदि तुम मना करते हो, तो तुमको एक धधकती आग में फेंक दिया जाएगा। फिर वह कौन देवता है जो तुमको मेरी शक्ति से बचा सकता है?” +\p +\s5 +\v 16 शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने उत्तर दिया, “हे नबूकदनेस्सर, हमें इस विषय में हमारे कार्यों के लिए तुझसे बचाव करने की आवश्यकता नहीं है। +\v 17 यदि हमें आग में फेंक दिया जाता है, तो हम जिस परमेश्वर की आराधना करते हैं वह हमें बचाने में सक्षम हैं। हमें तुझसे बचाने की शक्ति उनमें है। +\v 18 परन्तु यदि वह हमें नहीं बचाते है, तो भी हम तेरे देवताओं की आराधना नहीं करेंगे, और हम तेरे द्वारा स्थापित मूर्ति का सम्मान कभी नहीं करेंगे।” +\p +\s5 +\v 19 तब नबूकदनेस्सर बहुत क्रोधित हो गया। उसके चेहरे से शद्रक, मेशक और अबेदनगो के विरुद्ध बहुत क्रोध प्रकट हुआ। उसने आदेश दिया कि आग सामान्य से सात गुणा गर्म होनी चाहिए। +\v 20 ऐसा किए जाने के बाद, उसने अपने कुछ सबसे शक्तिशाली सैनिकों को शद्रक, मेशक और अबेदनगो को बाँधने का, और फिर उन्हें धधकती आग में फेंक देने का आदेश दिया। +\s5 +\v 21 जब सैनिकों ने उन्हें बाँध दिया और उन्हें भट्ठी में फेंक दिया, तब शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने अपने बागे, अपने अंगरखे, अपनी पगड़ियाँ और अपने अन्य कपड़े पहन हुए थे। +\v 22 क्योंकि राजा के आदेश तब दिए गए थे जब राजा बहुत क्रोधित था और बिना किसी देरी के पूरे किए गए थे, और क्योंकि आग बहुत गर्म थी, इसलिए आग से लपटें निकली और शद्रक, मेशक और अबेदनगो को आग में ऊपर ले कर गए सैनिकों को मार डाला। +\v 23 तब शद्रक, मेशक और अबेदनगो, बँधे हुए, जलती हुई आग में गिर गए। +\p +\s5 +\v 24 परन्तु जब नबूकदनेस्सर देख रहा था, तो वह चौंक गया था। वह कूद पड़ा और अपने सलाहकारों पर चिल्लाया, “क्या हमने तीन पुरुषों को नहीं बाँधा था और उन्हें आग में फेंक दिया था?” +\p उन्होंने उत्तर दिया, “हाँ, हे राजा, हमने ऐसा ही किया था।” +\p +\v 25 नबूकदनेस्सर चिल्लाया, “देखो! मैं चार लोगों को आग में देखता हूँ! वे रस्सियों से बँधे हुए नहीं हैं और वे चारों ओर घूम रहे हैं और आग उन्हें हानि नहीं पहुँचा रही है! वह चौथा व्यक्ति परमेश्वर के पुत्र के समान चमक रहा है!” +\p +\s5 +\v 26 नबूकदनेस्सर धधकती आग के निकट आया और चिल्लाया, “हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो, तुम लोग जो सर्वोच्च परमेश्वर की आराधना करते हो, वहाँ से निकल आओ! यहाँ आओ!” अतः वे बाहर आ गए और आग से दूर हो गए। +\p +\v 27 जब वे आग से बाहर निकल आए तब राजा के सभी अधिकारियों ने उन्हें देखा। आग ने उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई थी। उनके सिरों के बाल भी नहीं झुलसे थे, और उनके कपड़े भी नहीं जले थे। उन पर धुएँ की कोई गन्ध भी नहीं थी। +\p +\s5 +\v 28 तब नबूकदनेस्सर ने कहा, “हम सबको शद्रक, मेशक और अबेदनगो के परमेश्वर की स्तुति करनी चाहिए! उसने अपने स्वर्गदूतों में से एक को इन तीन लोगों को बचाने के लिए भेजा जो उसकी आराधना करते हैं और उस पर भरोसा रखते हैं। इन्होंने राजा के आदेश को नहीं माना और अपने परमेश्वर को छोड़ कर किसी अन्य परमेश्वर की आराधना करने से मना कर दिया, भले ही इसका मूल्य उनके लिए अपना जीवन होता। +\s5 +\v 29 इसलिए अब मैं यह आदेश दे रहा हूँ: ‘यदि किसी भी देश के लोग, या जो कोई अलग भाषा बोलते हैं, वे शद्रक, मेशक और अबेदनगो द्वारा आराधना किए जाने वाले परमेश्वर के विरुद्ध कुछ भी कहते हैं, तो वे टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएँगे और उनके घरों को तोड़ दिया जाएगा और कचरे का ढेर बना दिया जाएगा। यह आदेश इसलिए दिया गया है क्योंकि ऐसा कोई अन्य देवता नहीं है जो इस प्रकार से लोगों को बचा सके!” +\p +\v 30 तब राजा ने शद्रक, मेशक और अबेदनगो को बाबेल प्रान्त में ऊँचे महत्व वाले पदों को दिया। + +\s5 +\c 4 +\p +\v 1 नबूकदनेस्सर के शासन आरम्भ करने के कई वर्षों बाद, उसने इस सन्देश को अपने साम्राज्य में हर जाति, राष्ट्र और भाषा में भेजा। उसने लिखा, +\pi “मेरी इच्छा है कि सब कुछ तुम्हारे साथ बहुत अच्छा हो! +\pi +\v 2 मैं चाहता हूँ कि तुम उन सब बातों जान लो कि सर्वोच्च परमेश्वर ने अपनी शक्ति मुझे कैसे दिखाई है और उन्होंने मेरे लिए बहुत से अद्भुत कार्य कैसे किए हैं। +\q1 +\v 3 वह महान चमत्कार करते हैं जो उनकी शक्ति को प्रकट करते हैं; +\q2 वह आश्चर्यजनक कार्य करते हैं। +\q1 वह सदा राजा रहेंगे; +\q2 वह एक पीढ़ी से दूसरी तक बिना अन्त शासन करेंगे।” +\pi +\s5 +\v 4 मैं, नबूकदनेस्सर, बिना किसी चिन्ता के मेरे महल में रह रहा था, और मैं हर सुख का आनन्द ले रहा था। +\v 5 परन्तु एक रात मैंने एक स्वप्न देखा जिसने मुझे बहुत डरा दिया था। जब मैं अपने बिस्तर पर लेटा था मैंने उन दर्शनों को देखा जो मुझे भयभीत करते थे। +\v 6 इसलिए मैंने बाबेल में रहने वाले उन सभी को बुलाया जो बुद्धिमान थे कि वे आकर मुझे बता सकें कि मेरे स्वप्न का क्या अर्थ था। +\s5 +\v 7 वे सब पुरुष जिन्होंने तन्त्र मन्त्र के कार्य किए थे, वे लोग जिन्होंने मरे हुओं के साथ बात करने का दावा किया था, बुद्धिमान पुरुष, और जिन्होंने सितारों से भविष्यद्वाणियाँ की थीं, वे मेरे पास आए। मैंने उनको बता दिया कि मैंने क्या स्वप्न देखा था, परन्तु वे मुझे नहीं बता सके कि इसका क्या अर्थ था। +\v 8 अन्त में, दानिय्येल मेरे पास आया, और मैंने उसे बताया कि मैंने क्या स्वप्न देखा था। (मेरे अपने परमेश्वर का सम्मान करने के लिए उसका नाम बेलतशस्सर भी रखा गया था, और मुझे पता था कि पवित्र देवताओं की आत्मा उसमें रहती है)। +\pi +\v 9 मैंने उससे कहा, “हे बेलतशस्सर, तू मेरे सभी जादूगरों में सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे पता है कि पवित्र देवताओं की आत्मा तुझमें है और यह कि तू किसी भी भेद का अर्थ प्रकट कर सकता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो तेरे लिए बहुत कठिन हो। इसलिए मुझे बता कि मेरे स्वप्न का क्या अर्थ है। +\s5 +\v 10 जब मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था, तो मैंने यह स्वप्न देखा: मैंने पृथ्‍वी के बीच में एक बड़ा पेड़ बढ़ता हुआ देखा। +\v 11 वह पेड़ बहुत दृढ़ था और बहुत लम्बा हो गया था। ऐसा लगता था कि इसका शीर्ष आकाश तक पहुँच गया और संसार में हर कोई इसे देख सकता था। +\v 12 उसमें सुन्दर पत्तियाँ थीं, और उसमें मनुष्यों और सभी प्राणियों के खाने के लिए फल थे। जंगली पशु उसकी छाया में विश्राम करते थे और पक्षियों ने उसकी शाखाओं में घोंसले बनाए थे। सब जीवित प्राणियों को उस पेड़ से भोजन मिला था। +\pi +\s5 +\v 13 “जिस समय मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था, मैंने अपने स्वप्न में एक पवित्र स्वर्गदूत को स्वर्ग से नीचे आते हुए देखा। +\v 14 वह चिल्लाया, ‘उस पेड़ को काट दो, और उसकी शाखाओं को काट दो। उसकी सभी पत्तियों को झाड़ दो, और उसके फल को बिखरा दो। पेड़ की छाया में लेटे हुए पशुओं को और उसकी शाखाओं पर रहने वाले पक्षियों को दूर भगा दो। +\s5 +\v 15 परन्तु पेड़ का तना और जड़ें भूमि में छोड़ दो। तने के चारों ओर लोहे और पीतल का एक बाड़ा बाँध दो और उसके चारों ओर की घास के साथ उसे वहाँ रहने दो। +\pi +\v 16 उस पुरुष को पशुओं और पौधों के बीच खेतों में बाहर रहने के लिए भेज दो। हर सुबह उसके शरीर को नम करने के लिए आकाश से ओस गिरने दो। उसकी संवेदना को दूर करो और उसे सात वर्ष तक पशुओं सा मन दो। +\pi +\s5 +\v 17 ‘स्वर्ग में पवित्र लोगों ने एक आदेश सुनाया है। वे चाहते हैं कि सब यह जान लें कि सर्वोच्च परमेश्वर इस संसार के सभी साम्राज्यों पर शासन करते हैं। वही एकमात्र हैं जो लोगों को इन साम्राज्यों पर शासन करने के लिए चुनते हैं। वह कभी-कभी महत्वपूर्ण स्थानों पर महत्वहीन लोगों को रखते हैं।’ +\pi +\v 18 हे बेलतशस्सर, यही वह है जो मैं, राजा नबूकदनेस्सर ने स्वप्न में देखा। अब तू मुझे बताएगा कि स्वप्न का अर्थ क्या है। कोई और मुझे नहीं बता सकता है। मैंने अपने राज्य के सभी बुद्धिमान पुरुषों से मुझे यह बताने के लिए कहा कि इसका क्या अर्थ है, परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ थे। परन्तु तू मुझे बता सकता है क्योंकि पवित्र देवताओं की आत्मा तुझमें है।” +\pi +\s5 +\v 19 तब दानिय्येल ने, जिसे बेलतशस्सर नाम भी दिया गया था, कुछ समय के लिए कुछ भी नहीं कहा क्योंकि वह स्वप्न के अर्थ के विषय में बहुत चिन्तित था। तब राजा ने उससे कहा, “हे बेलतशस्सर, स्वप्न से या इसका जो अर्थ है उससे मत डर।” दानिय्येल ने राजा से कहा, “हे महोदय, मैं चाहता हूँ कि तेरे स्वप्न में भविष्यद्वाणी की जाने वाली घटनाएँ उन लोगों के साथ हों जो तुझसे घृणा करते हैं, और तेरे स्वप्न का अर्थ केवल तेरे शत्रुओं के लिए हो, न कि तेरे लिए। +\pi +\s5 +\v 20 अपने स्वप्न में तू ने एक बहुत दृढ़ और लम्बा पेड़ देखा। ऐसा लगता था कि वह आकाश तक पहुँच गया, और संसार में हर कोई उसे देख सकता था। +\v 21 उसकी सुन्दर पत्तियाँ थी, और उसने सब लोगों और प्राणियों के खाने के लिए बहुत फल उत्पन्न किये थे। जंगली पशु उस पेड़ की छाया में विश्राम करते थे, और पक्षियों ने उसकी शाखाओं पर घोंसले बनाए थे। +\v 22 हे राजा, वह पेड़ तू है! तू बहुत शक्तिशाली हो गया है। तेरी महानता बढ़ गई है और आकाश तक पहुँच गई है, और तू पूरे संसार में लोगों पर शासन करता है। +\pi +\s5 +\v 23 तब तू ने एक पवित्र स्वर्गदूत को स्वर्ग से नीचे आते देखा; उसने कहा, ‘उस पेड़ को काट दो, और उसकी शाखाओं को काट दो। उसकी सभी पत्तियों को झाड़ दो, और उसके फल बिखरा दो। परन्तु पेड़ का तना और उसकी जड़ें भूमि में छोड़ दो। तने के चारों ओर लोहे और पीतल का एक बाड़ा बना दो और उसके चारों ओर कि घास के साथ उसे वहाँ रहने दो। प्रत्येक सुबह इस व्यक्ति को नम करने के लिए, जिसे उस पेड़ द्वारा दर्शाया गया है, आकाश से ओस गिराओ। उसे सात वर्ष तक पशुओं के साथ खेतों में रहने दो।’ +\pi +\s5 +\v 24 हे राजा, तेरे स्वप्न का अर्थ यही है। यही है जो तेरे साथ होगा जिसे सर्वोच्च परमेश्वर ने घोषित किया है। +\v 25 तुझे अन्य मनुष्यों से दूर रहने के लिए विवश किया जाएगा। तू जंगली पशुओं के साथ खेतों में रहेगा। तू एक बैल के समान घास चरेगा, और हर सुबह आकाश से ओस तुझे गीला कर देगी। तू सात वर्ष तक इस प्रकार से जीएगा जब तक कि तू यह नहीं सीखता कि यह सर्वोच्च परमेश्वर हैं जो संसार के साम्राज्यों पर शासन करते हैं। वह उन लोगों को नियुक्त करते हैं जिन्हें वह उन पर शासन करने के लिए चुनते हैं। +\s5 +\v 26 परन्तु पेड़ का तना और उसकी जड़ों को भूमि में छोड़ दिया गया। इसका अर्थ यह है कि जब तू सीख लेगा कि यह परमेश्वर हैं जो सब कुछ पर और हर किसी पर सर्वोपरि हैं, तो तू अपने राज्य पर फिर से शासन करेगा। +\v 27 हे महाराज, कृपया जो मैं तुझे करने के लिए कह रहा हूँ वह कर। पाप करना बन्द कर और जो सही है वह कर। अपने बुरे व्यवहार से दूर हो जा। उन लोगों के लिए दया से कार्य कर जिनके साथ अन्य लोग बुरा व्यवहार कर रहे हैं। यदि तू ऐसा करता है, तो हो सकता है तुम समृद्ध हो जाए।” +\pi +\s5 +\v 28-29 ये सब बातें राजा नबूकदनेस्सर के साथ हुईं: बारह महीने बाद, वह बाबेल में अपने महल की छत पर टहल रहा था, +\v 30 और उसने शहर पर दृष्टि की और जो उसके आस-पास थे उनसे कहा, “मैंने इस महान शहर बाबेल को बनाया है जहाँ मैं शासन करता हूँ! मैंने लोगों को अपना सम्मान और महानता दिखाने के लिए अपनी ही शक्ति से इसे बनाया है।” +\pi +\s5 +\v 31 जैसे ही राजा ने कहना समाप्त किया वैसे ही स्वर्ग से एक आवाज आई और कहा, “हे राजा नबूकदनेस्सर, यह होना अवश्य है: अब तू इस राज्य का शासक नहीं होगा! +\v 32 तू मनुष्य समाज से दूर रहेगा। तू जंगली पशुओं के साथ खेतों में रहेगा, और तू एक बैल के समान घास चरेगा। तू सात वर्ष तक इस प्रकार जिएगा जब तक कि तू यह नहीं सीख जाता कि मैं, परमेश्वर, हूँ जो इस संसार के साम्राज्यों पर शासन करता है, और जिसे मैं उन पर शासन करवाना चाहता हूँ उसे मैं नियुक्त करता हूँ।” +\pi +\s5 +\v 33 उसी क्षण नबूकदनेस्सर के विषय में जो कुछ भी कहा गया था, वह सच हो गया। वह मनुष्यों से दूर कर दिया गया। उसने एक बैल के समान घास खाई, और आकाश से ओस ने उसे हर सुबह गीला किया। मेरे बाल एक उकाब के पंख जितने लम्बे हो गए, और मेरी उँगलियों के नाखून एक पक्षी के पंजे के समान बन गए। +\pi +\s5 +\v 34 उन सात वर्षों के समाप्त होने के बाद, मुझ, नबूकदनेस्सर, ने स्वर्ग की ओर देखा और स्वीकार किया कि परमेश्वर ने जो कहा वह सच था। तब मैं फिर से सोचने योग्य हो गया और मेरी भावनाएँ पहले के जैसी कर दी गई थी। मैंने परमेश्वर की स्तुति की और आराधना की, और मैंने उन एकमात्र का आदर किया, जो सदा के लिए जीवित हैं। +\q1 वह सदा शासन करते हैं; +\q2 उनकी शासकीय शक्ति एक सदाकालिन अधिकार है। +\q1 +\s5 +\v 35 वह संसार के सब लोगों को महत्वहीन मानते है। +\q1 उनके पास वह करने की शक्ति है जो वह चाहते हैं। +\q2 वह स्वर्ग में स्वर्गदूत की सेनाओं और पृथ्‍वी पर रहने वाले हम लोगों के साथ जैसा चाहते हैं वह करते हैं। +\q1 इसलिए कोई भी उन्हें सुधार नहीं कर सकता है; +\q2 कोई भी उन्हें चुनौती नहीं दे सकता है; +\q2 कोई भी उनसे कह नहीं सकता है, “आप इन कार्यों को क्यों कर रहे हैं?” +\pi +\s5 +\v 36 जब मैं फिर से सही ढंग से सोचने में सक्षम हो गया, तब मुझे दोबारा सम्मानित किया गया; और मेरे साम्राज्य की महिमा के लिए, मेरा वैभव और मेरे शासन की चमक मेरे राज्य में फिर से वापस लाई गई। मेरे सब मंत्री मेरे पास लौट आए, और मैं महान और कहीं अधिक शक्तिशाली बन गया जितना मैं पहले था। +\v 37 अब मैं, नबूकदनेस्सर, उन परमेश्वर की स्तुति और सम्मान करता हूँ, वह राजा जो स्वर्ग में शासन करते हैं। उनके सभी कार्य न्यायपूर्ण और सही हैं। और वह घमण्डी को विनम्र बनाने में सक्षम हैं। + +\s5 +\c 5 +\p +\v 1 कई वर्षों बाद, बेलशस्सर बाबेल का राजा बन गया। एक दिन उसने एक हजार सबसे महत्वपूर्ण लोगों को एक बड़ी दावत में आमन्त्रित किया, और उसने उन सबके सामने दाखरस पिया। +\v 2 जब वह पी रहा था, तो उसने आज्ञा दी कि उसके सेवक वह सोने और चाँदी के प्याले उसके पास ले कर आएँ जो उसके पिता नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम के आराधनालय से लिए थे। उसने ऐसा किया कि वह और उसके अधिकारी, उसकी पत्नियाँ, और उसकी रखैलियाँ उनसे पी सकें। +\s5 +\v 3 तब उसके सेवक वह सभी सोने के पात्र ले कर आए जो यरूशलेम के आराधनालय से लिए गए थे। तब राजा और उसके अधिकारियों और उसकी पत्नियों और उसकी रखैलियों ने उन पात्रों से दाखरस पिया। +\v 4 उन्होंने दाखरस पिया और अपनी मूर्तियों की उपासना की - ये मूर्तियाँ जो सोने और चाँदी, पीतल, लोहे, लकड़ी और पत्थर से बनी थीं। +\p +\s5 +\v 5 अचानक उन्होंने दीपक के पास से एक व्यक्ति के हाथ और ऊँगलियों को देखा। वह हाथ महल की दीवार पर लिख रहा था। जब वह लिख रहा था तब राजा ने हाथ को देखा। +\v 6 वह बहुत भयभीत हो गया, और उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसके घुटने हिलना आरम्भ हो गए और उसके पैर बहुत निर्बल हो गए और उसे सहारा नहीं दे सके। +\p +\s5 +\v 7 तब वह बाबेल में रहने वाले बुद्धिमान पुरुषों, ज्योतिषियों और जिन्होंने मरे हुओं से बात करने का दावा किया था उन सबको लाने के लिए अपने सेवकों पर चिल्लाया। उसने कहा, “मैं तुम में से किसी को भी महान सम्मान दूँगा जो इस लेखन को पढ़ सकता है और मुझे बता सकता है कि इसका क्या अर्थ है। मैं उस व्यक्ति को वैसा बैंगनी वस्त्र दूँगा जैसा मैं पहनता हूँ क्योंकि मैं राजा हूँ और मैं उसकी गर्दन के चारों ओर सोने की कंठमाला डालूँगा। मैं उन्हें अपने राज्य में तीसरा सबसे शक्तिशाली शासक बना दूँगा।” +\p +\s5 +\v 8 परन्तु जब वे सभी बुद्धिमान पुरुष भीतर आए, तो उनमें से कोई भी उस लेखन को पढ़ नहीं सका या उसे बता नहीं सका कि उसका क्या अर्थ है। +\v 9 इसलिए राजा बेलशस्सर और अधिक डर गया। उसका चेहरा बदल गया था और वह अलग दिखता था। उसके किसी भी अधिकारी को पता नहीं था कि वे उसकी सहायता कैसे कर सकते हैं। +\p +\s5 +\v 10 रानी उस स्थान पर आई जहाँ वे खा रहे थे। उसने सुना था कि राजा ने क्या कहा था और उसके कुलीन लोगों को यह नहीं पता था कि उसकी सहायता कैसे करें। उसने कहा, “हे राजा, तू सदा जीवित रहे! इस विषय में परेशान मत हो या इससे तेरा मुँह न बदले। +\s5 +\v 11 तेरे साम्राज्य में एक पुरुष है जिसमें पवित्र देवताओं का आत्मा है। जब नबूकदनेस्सर शासन कर रहा था, तो उसने पाया कि इस व्यक्ति ने कई बातों को समझा था और वह देवताओं के समान बुद्धिमान था। नबूकदनेस्सर ने उसे जादूगरों का, उनका जो मरे हुओं से बात करते थे, बुद्धिमान पुरुषों का और ज्योतिषियों का प्रधान नियुक्त किया था। +\v 12 उसका नाम दानिय्येल है, परन्तु राजा ने उसे बेलतशस्सर नाम दिया था। वह एक ऐसा व्यक्ति है जिस पर भरोसा किया जा सकता है। वह बहुत बुद्धिमान है और कई छिपी हुई बातें समझता है। वह स्वप्नों के अर्थ बताने, पहेलियों की व्याख्या करने और उन समस्याओं को हल करने में सक्षम हैं जिसे कुछ ही लोग हल कर सकते हैं। उसे यहाँ बुला और वह तुझे बताएगा कि इस लेख का क्या अर्थ है।” +\p +\s5 +\v 13 तब वे गए और दानिय्येल को ले कर आए। राजा ने उससे पूछा, “तू वह प्रसिद्ध दानिय्येल है, क्या तू नहीं है? – उनमें से एक जिनको मेरा पिता यहूदा से यहाँ लाया था। +\v 14 मैंने सुना है कि देवताओं का आत्मा तुझमें है और यह कि तू कई बातों को समझता है और उत्तम ज्ञान रखता है। +\s5 +\v 15 वहाँ ऐसे लोग थे जो अपने ज्ञान के लिए जाने जाते थे और जो मरे हुओं के साथ बात करते थे, और उन्होंने इस दीवार के लेख को पढ़ने का और मुझे यह बताने का प्रयास किया कि इसका क्या अर्थ है, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। +\v 16 किसी ने मुझे बताया कि तू समझा सकता है कि स्वप्नों का अर्थ क्या है और यह कि तू बातों को समझने योग्य बना सकता है जिसे दूसरे नहीं जान सकते हैं। यदि तू इन शब्दों को पढ़ सकता है और मुझे बता सकता है कि उनका क्या अर्थ है, तो मैं तुझको वैसा बैंगनी वस्त्र दूँगा जैसा मैं पहनता हूँ क्योंकि मैं राजा हूँ, और मैं तेरी गर्दन के चारों ओर एक सोने की कंठमाला डालूँगा, और राज्य में मैं तुझे तीसरा सबसे शक्तिशाली शासक बना दूँगा।” +\p +\s5 +\v 17 दानिय्येल ने राजा से कहा, “मैं तेरे उपहार नहीं चाहता हूँ। उन्हें अपने लिए रख और किसी अन्य व्यक्ति को पुरस्कार दे। दीवार पर जो लिखा है उसे मैं तेरे लिए पढ़ूँगा, परन्तु इसलिए नहीं कि तू मुझे कोई पुरस्कार देगा। +\p +\v 18 हे महाराज, सर्वोच्च परमेश्वर ने नबूकदनेस्सर को, जो मनुष्य तुमसे पहले राजा था, महान शासक बना दिया। उसे बहुत प्रशस्ति और सम्मानित किया गया था। +\v 19 क्योंकि परमेश्वर ने उसे बहुत महान बनाया, हर कोई - हर देश, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन सी भाषा बोलते थे - उससे डर गया था, और जो वह कर सकता था उससे वे सब थरथराए। उसने उन लोगों को मार डाला जिन्हें मारने का उसने आदेश दिया और उसने उन लोगों को जीवित रखा जिन्हें उसने जीवित रहने का आदेश दिया। उसने उन लोगों को सम्मानित किया जिन्हें उसने सम्मानित होने के लिए चुना, और उसने उन लोगों को अपमानित किया जिन्हें वह विनम्र करना चाहता था। +\s5 +\v 20 परन्तु जब वह बहुत घमण्डी और हठीला हो गया, तब वह शासन करने में असमर्थ हो गया। +\v 21 उसे मनुष्यों से दूर जाना पड़ा क्योंकि उसने अपनी बुद्धि खो दी थी। परमेश्वर ने उसकी बुद्धि पशुओं के समान कर दी थी। वह जंगली गधों के बीच रहता था। उसने बैल के समान घास खाई, और आकाश से ओस ने हर सुबह उसके शरीर को गीला किया। वह तब तक ऐसा रहा जब तक कि उसने नहीं जाना कि सर्वोच्च परमेश्वर ही एकमात्र ऐसे हैं जो इस संसार के साम्राज्यों पर शासन करते हैं और यह कि वह उन राज्यों पर शासन करने के लिए जिस किसी को भी चुनते हैं, उसे नियुक्त करते हैं। +\p +\s5 +\v 22 अब, हे बेलशस्सर, तू अपने पिता के स्थान पर राजा बन गया है। तू इन सभी बातों को जानता था, परन्तु तू ने स्वयं को विनम्र नहीं किया है। +\v 23 तू ने स्वयं को प्रभु के ऊपर रखा है जो स्वर्ग में शासन करते हैं। तू ने यरूशलेम में परमेश्वर के भवन से आए प्याले मँगवाए कि तू उन्हें दाखरस पीने के लिए उपयोग कर सके। तू और तेरे अधिकारी और तेरी पत्नियाँ और तेरी रखैलियाँ इन पात्रों से दाखरस पी रहे हैं और अपने देवताओं की बढ़ाई कर रहे हैं - सोने, चाँदी, पीतल, लोहे, लकड़ी और पत्थर के देवताओं की। वे देवता नहीं देख सकते हैं, वे नहीं सुन सकते हैं, और वे कुछ भी नहीं जानते हैं! परन्तु तुमने परमेश्वर को सम्मानित नहीं किया है, वे जो तुमको साँस देते हैं और जो तुम्हारे साथ होने वाली हर बात को नियंत्रित करते हैं। +\v 24 इसलिए परमेश्वर ने दीवार पर तुम्हारे लिए एक सन्देश लिखने के लिए यह हाथ भेजा। +\p +\s5 +\v 25 यह वह सन्देश है जो लिखा है: मने, मने, तकेल और ऊपर्सीन। +\p +\v 26 उन शब्दों का अर्थ यह है: +\q ‘मने’ का अर्थ है ‘गिना हुआ।’ इसका अर्थ है कि परमेश्वर उन दिनों की गिनती कर रहे हैं जिनमें तू शासन करेगा और उन्होंने निर्णय लिया है कि तू अब आगे शासन नहीं करेगा। +\q +\v 27 ‘मने’ का अर्थ है ‘भार’। परमेश्वर ने एक पैमाने पर तुझे वजन किया है, और तू उस वजन का नहीं है जितना तुझे होना चाहिए। +\q +\v 28 ‘पेरेस का अर्थ है ‘विभाजित।’ परमेश्वर ने तेरे राज्य को विभाजित कर दिया है। मादी लोगों द्वारा और फारस के लोगों द्वारा इस पर शासन किया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 29 तब बेलशस्सर ने वह किया जिसकी उसने प्रतिज्ञा की थी। उसने दानिय्येल को एक बैंगनी वस्त्र पहना दिया जैसा वह स्वयं पहने हुए था। उसने उसकी गर्दन के चारों ओर एक सोने की कंठमाला डाल दी, और उसने घोषणा की कि दानिय्येल राज्य का तीसरा सबसे शक्तिशाली शासक होगा। +\p +\v 30 परन्तु उसी रात मादी सैनिकों ने शहर में प्रवेश किया और बाबेल के राजा बेलशस्सर को मार डाला। +\v 31 मादी राजा दारा बाबेल का राजा बना जब वह बासठ वर्ष का था। + +\s5 +\c 6 +\p +\v 1 राजा दारा ने अपने राज्य को 120 प्रान्तों में विभाजित करने का निर्णय किया। उसने प्रत्येक प्रान्त पर शासन करने के लिए एक अधिकारी को नियुक्त किया। +\v 2 राजा ने तीन प्रशासक भी नियुक्त किए, जिनमें से एक दानिय्येल था। इन मुख्य प्रशासकों को प्रान्तीय राज्यपालों की देखरेख करनी थी और देखना था कि राजा के आदेशों का पालन किया जा रहा है या नहीं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजा के भण्डार से कुछ भी चोरी नहीं हुआ है। +\v 3 दानिय्येल एक बहुत ही सक्षम अगुवा और एक असाधारण व्यक्ति था, और उसने स्वयं को मुख्य प्रशासकों के बीच प्रतिष्ठित किया। राजा ने दानिय्येल को अपने सम्पूर्ण साम्राज्य पर नियुक्त करने की योजना बनाईं। +\s5 +\v 4 तब अन्य प्रशासक और अधिकारी ईर्ष्या करने लगे। इसलिए उन्होंने कुछ ऐसे उपाय खोजना आरम्भ कर दिए जिससे कि जब दानिय्येल राजा के लिए कार्य कर रहा हो तो वे उसके कार्य की निन्दा कर सकें। परन्तु दानिय्येल ने सदा अपना कार्य निष्ठापूर्वक और सच्चाई से किया। उन्हें निन्दा करने के लिए कुछ भी नहीं मिला। वह निष्ठावान था और कठिन परिश्रम करता था। +\v 5 उन्होंने दानिय्येल के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना आरम्भ किया, “दानिय्येल की निन्दा करने का एकमात्र उपाय यह है कि हमें उसके विरुद्ध उसकी अपने परमेश्वर के नियम के प्रति आज्ञाकारिता का उपयोग करना होगा।” +\p +\s5 +\v 6 इसलिए प्रशासकों और राज्यपालों ने एक समूह के रूप में राजा के पास जा कर अपनी योजना को रखा और कहा, “हे महाराज, तू सदा जीवित रहे! +\v 7 सभी मुख्य प्रशासक और क्षेत्रीय अधिकारी और प्रान्तीय अधिकारी और मंत्री और अन्य अधिकारी सभी सहमत हैं कि तुझे एक कानून बनाना चाहिए जिसे सभी को मानना होगा। हम चाहते हैं कि तू आदेश दे कि अगले तीस दिनों के लिए लोग केवल तुझसे प्रार्थना करें और तुझे छोड़ किसी और देवता या व्यक्ति से नहीं। यदि कोई किसी और से प्रार्थना करता है, तो उसे सिंहों की गुफा में फेंक दिया जाए। +\s5 +\v 8 क्योंकि मादी और फारसी देशों में बनाए गए कानूनों को बदला नहीं जा सकता है, इसलिए हम चाहते हैं कि तू राजा इस कानून को जारी कर और दस्तावेज पर अपने नाम का हस्ताक्षर कर।” +\v 9 अतः राजा दारा ने वह कानून जारी किया और दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। +\p +\s5 +\v 10 जब दानिय्येल को पता चला कि राजा ने उस कानून को लिखा और हस्ताक्षर किया है, तो वह घर गया, और ऊपर के कमरे में घुटने टेक कर प्रार्थना की। कमरे में एक खिड़की थी जो यरूशलेम की ओर खुलती थी और सब खिड़कियाँ खुली थीं। कोई भी देख सकता था कि वह प्रार्थना कर रहा था। वह प्रतिदिन दिन में तीन बार ऐसा किया करता था। +\v 11 अधिकारियों ने दानिय्येल के विरुद्ध अपने षड्यन्त्र को साकार किया, और उन्होंने उसे परमेश्वर से प्रार्थना करते और सहायता के लिए कहते हुए पाया। +\s5 +\v 12 इसलिए वे राजा के पास आए और उससे कहा, “क्या यह सच है कि तू ने यह एक कानून लिखा था कि अगले तीस दिनों के लिए लोग केवल तुझसे प्रार्थना करें, और यह कि यदि कोई व्यक्ति किसी और से, चाहे मनुष्य से या देवता से, प्रार्थना करता है तो वह सिंहों की गुफा में फेंक दिया जाएगा?” +\p राजा ने उत्तर दिया, “हाँ, यही वह कानून है जिसे मैंने लिखा था। यह मादी और फारसी देशों में एक कानून है जिसे बदला नहीं जा सकता है।” +\p +\s5 +\v 13 तब उन्होंने राजा से कहा, “वह पुरुष दानिय्येल, जो यहूदा से लाए गए पुरुषों में से एक हैं, वह तुझ पर या तेरे द्वारा हस्ताक्षर किए गए कानून पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। वह हर दिन अपने परमेश्वर से तीन बार प्रार्थना करता है!” +\v 14 जब राजा ने यह सुना, तो वह बहुत परेशान हुआ। उसने दानिय्येल को बचाने का रास्ता खोजने का प्रयास किया। उसने उस दिन के बाकी समय में सूर्य के डूबने तक दानिय्येल को बचाने के लिए मार्ग खोजने का कठिन प्रयास किया। +\p +\s5 +\v 15 शाम को, दानिय्येल के विरुद्ध षड्यन्त्र करने वालों में से कई ने राजा से कहा, “हे राजा, तू जानता है कि मादियों और फारसियों का नियम यह है कि राजा के आदेशों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है, और न ही कोई इसे बदल सकता है।” +\p +\s5 +\v 16 यह सुन कर, राजा ने आदेश दिया और उसके सेवक दानिय्येल को ले कर आए और उसे सिंहों की गुफा में फेंक दिया। उसे फेंकने से पहले, राजा ने दानिय्येल से कहा, “मुझे आशा है कि तेरा परमेश्वर, जिनकी तू हर समय आराधना करता है, तुझे बचाएँगे!” +\p +\s5 +\v 17 उन्होंने गड्ढे के प्रवेश द्वार पर एक विशाल पत्थर लुढ़का दिया। तब राजा ने अपनी हस्ताक्षर वाली अंगूठी से प्रवेश द्वार को मुहरबन्द कर दिया, और अन्य अधिकारियों ने भी प्रवेश द्वार को अपनी हस्ताक्षर वाली अँगूठियों से मुहरबन्द कर दिया, कि दानिय्येल के लिए कुछ भी नहीं किया जा सके। +\v 18 राजा अपने महल में लौट आया। उस रात उसने भोजन खाने से मना कर दिया। उसने किसी को भी उसका मनोरन्जन करने की अनुमति नहीं दी और उस रात वह सो नहीं पाया था। +\p +\s5 +\v 19 अगली सुबह भोर में ही, राजा उठा और शीघ्रता से उस गुफा के पास चला गया जहाँ सिंह थे। +\v 20 जब वह उसके पास आया, तो वह बहुत चिन्तित था। उसने बुरी तरह से डरते हुए पुकारा, “हे दानिय्येल, तू जो जीवित परमेश्वर की सेवा करता है! क्या तेरा परमेश्वर – जिनकी तू सदा आराधना करता है – तुझे सिंहों से बचाने में सक्षम हैं?” +\p +\s5 +\v 21 दानिय्येल ने उत्तर दिया, “हे राजा, तू सदा जीवित रहे! +\v 22 हाँ, मेरे परमेश्वर ने सिंहों के मुँह बन्द करने के लिए अपने स्वर्गदूत को भेजा और उन्होंने मुझे चोट नहीं पहुँचाई है! वह जानते हैं कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, और हे राजा, तू जानता है, मैंने कभी भी तेरे साथ कुछ भी गलत नहीं किया है!” +\p +\s5 +\v 23 राजा बहुत प्रसन्न हुआ, और उसने अपने सेवकों को दानिय्येल को गुफा से बाहर निकालने का आदेश दिया। जब उन्होंने ऐसा किया, तो उन्होंने देखा कि सिंहों ने उसको घायल नहीं किया था। परमेश्वर ने उसको संरक्षित किया क्योंकि वह उन पर भरोसा करता था। +\p +\s5 +\v 24 तब राजा ने आज्ञा दी कि जिन लोगों ने दानिय्येल पर आरोप लगाया था, उन्हें पकड़ लिया जाए और उन्हें उनकी पत्नियों और बच्चों के साथ सिंहों की गुफा में फेंक दिया जाए। जब उन्हें गुफा में फेंक दिया गया, तो सिंहों ने उन पर छलांग लगाई और गुफा में नीचे गिरने से पहले उनकी हड्डियों को चबा डाला। +\p +\v 25 तब राजा दारा ने यह सन्देश लिखा और उसे अपने साम्राज्य में सभी जातियों को, हर एक देश को और सभी लोगों को भेजा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कौन सी भाषा बोलते थे: +\pi “मेरी इच्छा है कि तुम्हारे साथ बहुत अच्छा हो! +\pi +\s5 +\v 26 मैं आज्ञा देता हूँ कि मेरे राज्य में सबको दानिय्येल जिनकी आराधना करता है, उन्हीं परमेश्वर से डरना चाहिए और उनका आदर करना चाहिए। +\q1 वह जीवित परमेश्वर हैं, +\q2 और वह सदा जीवित रहेंगे। +\q1 उनका राज्य कभी नष्ट नहीं होगा; +\q2 वह अन्त तक शासन करेंगे। +\q1 +\v 27 वह अपने लोगों को छुड़ाते हैं और बचाते हैं, +\q2 वह स्वर्ग में और पृथ्‍वी पर +\q2 सभी प्रकार के चिन्ह और चमत्कार करते हैं। +\q1 उन्होंने दानिय्येल को सिंहों की शक्ति से बचाया!” +\p +\s5 +\v 28 इसलिए दानिय्येल दारा और फारसी राजा कुस्रू के समय बहुत सफल रहा था। + +\s5 +\c 7 +\p +\v 1 बाबेल के राजा बेलशस्सर के पहले वर्ष में, दानिय्येल ने एक रात बिस्तर पर लेटे हुए स्वप्न देखा। उसने कुछ बातें देखीं जिन्हें अगली सुबह उसने लिख लिया था। जो उसने कहा वह यही है: +\p +\v 2 “मुझ, दानिय्येल, ने रात के समय एक स्वप्न देखा था। मेरे स्वप्न में मैंने देखा कि समुद्र के पानी में हलचल मचाते हुए, चारों दिशाओं से तेज हवाएँ बह रही थीं। +\v 3 तब मैंने चार बड़े पशुओं को समुद्र से बाहर आते देखा। वे चारों एक दूसरों से अलग थे। +\p +\s5 +\v 4 पहला सिंह जैसा दिखता था, परन्तु उसके पंख थे जैसे उकाब के पंख होते हैं। परन्तु मैंने देखा कि किसी ने उसके पंखों को तोड़ दिया और वह पशु वहाँ एक मनुष्य के समान खड़ा हुआ था। उसे मनुष्यों के समान बुद्धि दी गयी थी। +\p +\v 5 दूसरा पशु भालू जैसा दिखता था। वह झुका हुआ था और अपने दाँतों के बीच किसी जीव की तीन पसलियों को पकड़े हुए था। किसी ने उससे कहा, ‘खड़ा हो जा और कई लोगों को खा जा!’ +\p +\s5 +\v 6 तब मैंने अपने सामने तीसरे पशु को देखा। यह एक तेन्दुए जैसा दिखता था, परन्तु उसकी पीठ पर पक्षी के पंखों के समान चार पंख थे। उसके चार सिर थे और इसे लोगों पर शासन करने की शक्ति दी गई थी। +\p +\v 7 दर्शन में मैंने चौथे पशु को देखा। यह अन्य पशुओं की तुलना में अधिक शक्तिशाली और अधिक भयानक था। इसने अन्य प्राणियों को अपने बड़े-बड़े लोहे के दाँतों से चूर-चूर कर दिया और उनका माँस खा लिया। पशुओं के वह अंग जिनको वह अपने दाँतों से पीस नहीं पाया था, उन्हें उसने भूमि पर रौंद दिया। यह अन्य तीन पशुओं से अलग था। उसके सिर पर दस सींग थे। +\p +\s5 +\v 8 जब मैं उन सींगों को देख रहा था, तो मैंने देखा उस पशु के सिर पर एक छोटा सा सींग निकल आया। इसने अन्य सींगों में से तीन को तोड़ दिया। इस छोटे सींग में मनुष्य के समान आँखें और एक मुँह था जो बड़ी-बड़ी बातों का दावा करता था। +\p +\s5 +\v 9 फिर जब मैं देखता था, +\q1 तो न्यायधीशों के लिए सिंहासन स्थापित किए गए थे, +\q2 और परमेश्वर, वह एकमात्र जो सदा के लिए जीवित हैं, उन सिंहासनों में से एक पर बैठ गए। +\q1 उनके कपड़े बर्फ के समान सफेद थे, +\q2 और उनके बाल शुद्ध ऊन के समान सफेद थे। +\q1 उनका सिंहासन आग से जल रहा था, +\q2 और उसमें जो पहिए थे वह भी जल रहे थे। +\q1 +\s5 +\v 10 एक नदी में पानी के समान आग उनके सामने डाली गई। +\q1 वहाँ लाखों लोग उनकी सेवा कर रहे थे, +\q2 और उनके सामने दस करोड़ अन्य लोग खड़े हुए थे। +\q1 अदालत में सत्र बुलाया गया था, +\q2 और उन्होंने पुस्तकें खोली। +\p +\s5 +\v 11 जब मैं देख रहा था, तब मैं उस छोटे सींग को बहुत घमण्ड के साथ बोलते हुए सुन सकता था। मैं देखता गया वह चौथा पशु मारा गया। उसकी लाश को आग में फेंक दिया गया और पूरी तरह से जला दिया गया था। +\v 12 उन अन्य तीन पशुओं की शक्ति उनसे ले ली गई थी, परन्तु उन्हें एक निश्चित समय के लिए जीने की अनुमति दी गई। +\p +\s5 +\v 13 उस रात मैंने किसी व्यक्ति को भी जो मनुष्य के पुत्र जैसा दिखता था आते देखा, अर्थात्, उसके पास मनुष्य की आकृति थी। वह बादलों से घिरा हुआ निकट आ रहा था, और वह उनके पास आया था जो सदा के लिए जीवित हैं और उनके सामने सम्मान के साथ प्रस्तुत किया गया था। +\v 14 उसे संसार के सभी राष्ट्रों पर शासन करने का अधिकार दिया गया था; उसे राजसी सम्मान दिया गया था। वह सदा के लिए शासन करेगा - वह कभी शासन करना समाप्त नहीं करेगा। वह राज्य जिस पर वह शासन करता है वह कभी नष्ट नहीं होगा। +\p +\s5 +\v 15 मुझ, दानिय्येल, ने उस दर्शन में जो देखा था उससे मैं बहुत दुखी था; मैं बहुत परेशान था, मुझे नहीं पता था कि इसके विषय में क्या विचार करना है। +\v 16 मैं उन लोगों में से एक के पास गया जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े थे, और मैंने उससे इसका अर्थ बताने के लिए कहा। +\p +\s5 +\v 17 उसने कहा, ‘वह चार बड़े पशु चार राजाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पृथ्‍वी पर राज करेंगे। +\v 18 परन्तु परमेश्वर उनको जो उसके लोग हैं उस राज्य में सदा के लिए शासन करने के लिए सक्षम करेंगे।’ +\p +\s5 +\v 19 तब मैं इस विषय में और जानना चाहता था कि चौथे पशु ने किसका प्रतिनिधित्व किया था - वह पशु जो अन्य तीनों से अलग था, और पीतल के पंजों से सब कुछ चूर-चूर कर दिया था उस पर आक्रमण करने वालों के माँस को उसने अपने लोहे के दाँतों से खा लिया और उनके शरीर के उन अंगों को रौंद दिया था जिनको उसने नहीं खाया था। +\v 20 मैं उसके सिर के दस सींगों के विषय में और बाद में निकलने वाले सींग के विषय में भी जानना चाहता था, जिसने तीन अन्य सींगों से छुटकारा पा लिया था। मैं जानना चाहता था कि इसका अर्थ क्या था कि इसकी आँखें और मुँह था, जिससे वह बड़ी-बड़ी बातें करता था। अन्य सींगों की तुलना में वह सींग अधिक भयानक था। +\s5 +\v 21 जब मैं यह दर्शन देख रहा था, तब मैंने देखा कि इस सींग ने परमेश्वर के लोगों पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित किया। +\v 22 परन्तु फिर वह जो सदा के लिए जीवित हैं आए, और अपने लोगों के पक्ष में न्याय किया। तब यह परमेश्वर के लोगों के लिए शासन करने में सक्षम होने का समय था। +\p +\s5 +\v 23 तब उस व्यक्ति ने जो वहाँ खड़ा था, मुझसे कहा, ‘वह चौथा पशु एक साम्राज्य का प्रतिनिधित्व करता है जो पृथ्‍वी पर उपस्थित होगा; वह साम्राज्य अन्य सभी साम्राज्यों से अलग होगा। उस साम्राज्य की सेना पूरे संसार में लोगों को चूर-चूर कर देगी और उनके शरीरों को कुचल देगी। +\v 24 उसके दस सींग उन दस राजाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उस साम्राज्य पर एक के बाद एक शासन करेंगे। फिर एक और राजा निकलेगा। वह पिछले राजाओं से अलग होगा। वह उन तीन राजाओं को पराजित करेगा जिन्हें तीन सींगों द्वारा दर्शाया गया था जिनको उखाड़ दिया गया था। +\s5 +\v 25 वह परमेश्वर के विरुद्ध बातें कहेगा, और वह परमेश्वर के लोगों पर अत्याचार करेगा। वह पवित्र पर्वों के समयों को और उनके नियमों को बदलने का प्रयास करेगा। वह साढ़े तीन वर्षों तक उन्हें नियंत्रित करेगा। +\p +\v 26 परन्तु न्याय की सभा बुलाई जाएगी, और वे उसका राज्य छीन लेंगे और वह पूरा नष्ट हो जाएगा। +\s5 +\v 27 तब वह राज्य, शासन करने की शक्ति, और स्वर्ग के नीचे सब राज्यों की महानता उनके पवित्र लोगों को जो परमेश्वर के जन हैं, उन्हें दे दी जाएगी। उस राज्य पर वे शासन करेंगे वह एक ऐसा राज्य होगा जो सदा के लिए है, और सब राजा और शासक उनकी सेवा करेंगे और उनका आज्ञापालन करेंगे।’ +\p +\v 28 मैंने अपने दर्शन में यही देखा। मैं, दानिय्येल, भयभीत हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप मेरा चेहरा पीला हो गया। परन्तु मैंने किसी को उस दर्शन के विषय में नहीं बताया जो मैंने देखा था।” + +\s5 +\c 8 +\p +\v 1 तीसरे वर्ष जब बेलशस्सर बाबेल का राजा था; मुझ दानिय्येल ने एक और दर्शन देखा। +\v 2 उस दर्शन में मैं शूशन में था, जो एलाम प्रान्त में गढ़ वाला शहर था। मैं ऊलै नहर के पास में खड़ा था। +\s5 +\v 3 मैंने दृष्टि ऊपर की और नहर के पास एक मेढ़ा खड़ा देखा। उसके दो लम्बे सींग थे, परन्तु अन्त में बढ़ने वाला सींग पहले बढ़ने वाले से बड़ा था। +\v 4 मेढ़े ने जो कुछ भी पश्चिम में था और जो कुछ भी उत्तर में था और जो कुछ भी दक्षिण में था, उस पर अपने सींगों से टक्कर मारी। वहाँ ऐसे कोई पशु नहीं थे जो उसका विरोध करने में सक्षम थे, और न ऐसा कोई था जो उसे रोक सकता था। मेढ़ा जो करना चाहता था उसने वह किया और वह बहुत शक्तिशाली हो गया। +\p +\s5 +\v 5 जो मैंने देखा था उसके विषय में मैं सोच रहा था, तो मैंने एक बकरी को पश्चिम से आते देखा। वह बहुत शीघ्र देश भर में दौड़ गई; ऐसा लगता है कि उसके पैरों ने भूमि को छुआ नहीं। उस बकरी की आँखों के बीच एक बहुत बड़ा सींग था। +\v 6 वह दो सींगों वाले मेढ़े की ओर सीधे दौड़ गई, वह मेढ़ा जो कि नहर के किनारे खड़ा था, और वह बकरी उसकी ओर भयंकर क्रोध में दौड़ी। +\s5 +\v 7 बकरी ने मेढ़े को उग्रता से मारा और उसके दो सींग तोड़ दिए। बकरी ने मेढ़े को भूमि पर पटक दिया और उसको कुचल दिया। कोई भी मेढ़े को बकरी की शक्ति से बचा नहीं पाया था। +\v 8 बकरी बहुत शक्तिशाली हो गई। परन्तु जब उसकी शक्ति बहुत प्रबल थी, तो उसका बड़ा सींग टूट गया और चार अन्य सींग उसके स्थान पर उग आए। प्रत्येक ने आकाश में उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की चार हवाओं में से एक-एक की ओर संकेत किया। +\p +\s5 +\v 9 तब उन चार सींगों में से एक में छोटा सा सींग और उग आया। यह बहुत बड़ा हो गया और दक्षिण की ओर और फिर पूर्व की ओर और फिर उसने सुन्दर देश इस्राएल की ओर संकेत किया। +\v 10 वह सींग बहुत शक्तिशाली हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उसने स्वर्ग की सेना के कुछ सैनिकों और आकाश के कुछ सितारों पर आक्रमण किया। उसने उनमें से कुछ को पृथ्‍वी पर फेंक दिया और उनको कुचल दिया। +\s5 +\v 11 उसने स्वयं को स्वर्ग की सेना के सरदार के रूप में महान होने के लिए स्थापित किया, और उसने उनके पास से प्रतिदिन की भेंट के बलिदान हटा दिए, और उसने उनके मन्दिर को भी अशुद्ध कर दिया। +\v 12 विद्रोह के कारण, स्वर्ग की सेना डगमगा जाएगी, और निरन्तर होम-बलि हटा दी जाएगी। वह सच को भूमि पर फेंक देगा। बुरे कार्य करने में सफल हो जाएगा। +\p +\s5 +\v 13 तब मैंने दो स्वर्गदूतों को सुना जो एक-दूसरे से बात कर रहे थे। उनमें से एक ने पूछा, “इस दर्शन में जो बातें थीं, वह कितने समय तक होती रहेंगी? वह व्यक्ति जो परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करता है और मन्दिर को अशुद्ध करता है, वह कितने समय तक याजकों को बलि चढ़ाने से रोकने में सफल होगा? वह कितने समय तक मन्दिर और स्वर्ग की सेनाओं को कुचलेगा?” +\p +\v 14 दूसरे स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “यह 2,300 दिनों तक होता रहेगा। उन दिनों में लोगों को सुबह के समय या शाम के समय बलि चढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उसके बाद, मन्दिर शुद्ध हो जाएगा और फिर से स्थापित किया जाएगा।” +\p +\s5 +\v 15 जिस समय मैं, दानिय्येल, यह समझने का प्रयास कर रहा था कि दर्शन का क्या अर्थ है, अचानक एक स्वर्गदूत जो एक पुरुष जैसा दिखाई देता था, मेरे सामने खड़ा हो गया था। +\v 16 और मैंने एक व्यक्ति को ऊलै नहर के तटों के बीच यह कहकर पुकारते सुना, “हे गब्रिएल, जो दर्शन इसने देखा है उसका अर्थ इसे समझा दे!” +\p +\v 17 अतः गब्रिएल आया और मेरे पास खड़ा हो गया। मैं बहुत भयभीत हो गया था, और मैं भूमि पर गिर गया। परन्तु उसने मुझसे कहा, “हे पुरुष, यह समझना तेरे लिए आवश्यक है कि दर्शन में जो घटनाएँ तू ने देखीं हैं, वे अन्त के समय घटित होंगी।” +\p +\s5 +\v 18 जब वह बोल रहा था, मैं भूमि पर अपना चेहरा किए हुए एक गहरी नींद में पड़ गया। परन्तु गब्रिएल ने मुझ पर अपना हाथ रखा और मुझे उठा लिया कि मैं फिर से खड़ा हो सकूँ। +\p +\v 19 तब उसने कहा, “मैं तुझे यह दिखाने के लिए यहाँ आया हूँ कि उस समय क्या होगा जब परमेश्वर अपने भयानक क्रोध को प्रकट करेंगे। ये बातें उस समय घटित होंगी जिसे परमेश्वर ने अन्त के लिए निर्धारित किया है जो कि आ रहा है। +\s5 +\v 20 दो सींगों वाले उस मेढ़े के लिए जिसे तू ने देखा है, वे सींग मादी और फारसी साम्राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। +\v 21 जो बकरी तू ने देखी है वह यूनानी राज्य का प्रतिनिधित्व करती है, और उसकी आँखों के बीच उगने वाला सींग उसके पहले राजा का प्रतिनिधित्व करता है। +\s5 +\v 22 उन चार सींगों के लिए जो पहले सींग के टूटने के बाद उगे, वे उन चार साम्राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें वह पहला साम्राज्य विभाजित हो जाएगा। वे चार साम्राज्य उस पहले साम्राज्य के समान उतने शक्तिशाली नहीं होंगे। +\p +\v 23 परन्तु तब उन साम्राज्यों का अन्त समय आ जाएगा। यह उन दुष्ट अगुओं द्वार की गई उन सब बुराइयों के बाद होगा जिनकी अनुमति परमेश्वर उन्हें देंगे। तब उन साम्राज्यों में से एक राजा उठेगा जो बहुत घमण्डी होगा और बुराई करने में बहुत बुद्धिमान होगा। +\s5 +\v 24 वह बहुत शक्तिशाली हो जाएगा, परन्तु यह उसके स्वयं के द्वारा किए गए कार्यों के कारण नहीं होगा। वह कई स्थानों को नष्ट कर देगा, और वह जो कुछ भी करेगा उसमें वह सफल होगा। वह कई वीर सैनिकों और पवित्र लोगों से छुटकारा पाएगा। +\v 25 क्योंकि वह बहुत चालाक है, वह दूसरों को धोखा देने के द्वारा सफल होगा। वह बहुत अभिमानी हो जाएगा, और वह बिना चेतावनी दिए कई लोगों को नष्ट कर देगा। वह सबसे महान राजा परमेश्वर, के विरुद्ध भी विद्रोह करेगा, जो किसी भी मनुष्य शक्ति के बिना उसे नष्ट कर देंगे। +\p +\s5 +\v 26 ये शाम के समय के और सुबह के समय के वास्तविक दर्शन हैं। परन्तु उन्हें मुहरबन्द कर और इन दर्शन को दूसरों पर प्रकट न कर, क्योंकि उन बातों के होने से पहले कई वर्षों होंगे।” +\p +\s5 +\v 27 तब मुझ, दानिय्येल का बल चला गया और मैं कई दिनों तक दुर्बलता के कारण बिस्तर पर कमजोर पड़ा था। तब मैं उठ गया और राजा ने मुझे जो कार्य दिया था, वह करने के लिए लौट आया, परन्तु मैं उस दर्शन के विषय में चिन्तित था। कोई भी इसे समझ नहीं सकता था। + +\s5 +\c 9 +\p +\v 1 दारा के शासन के पहले वर्ष में (जो मादियों का वंशज और क्षयर्ष का पुत्र था, जिसने बाबेल के लोगों पर विजय प्राप्त की थी) - +\v 2 जिस पहले वर्ष में वह राजा था, मैं, दानिय्येल पवित्र पुस्तकों में यहोवा द्वारा यिर्मयाह को दिया गया यह सन्देश पढ़ रहा था कि यरूशलेम नष्ट हो जाएगा और सत्तर वर्षों के लिए नाश हो जाएगा। +\s5 +\v 3 इसे पढ़ने के बाद, मैंने मेरे परमेश्वर यहोवा से सहायता करने के लिए प्रार्थना और उपवास करके अनुरोध किया। मैंने अनाज के पुराने थैलों से बने कपड़ों को पहन लिया और राख में बैठ गया। +\p +\v 4 मैंने अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की, और जो पाप हमने किए हैं, उन्हें स्वीकार किया: +\pi “हे प्रभु, मैं आप से विनती करता हूँ, क्योंकि आप महान और शक्तिशाली हैं। आपने वह सब किया है जो आपने कहा था कि आप हमारे लिए करेंगे। आप उन लोगों से सच्चा प्रेम करते हैं जो आप से प्रेम करते हैं और आपके आदेश के कार्यों को करते हैं। +\s5 +\v 5 परन्तु हमने पाप किए हैं और ऐसे कार्य किए हैं जो गलत हैं। हमने दुष्टता के कार्य किए हैं, और हमने आपके विरुद्ध विद्रोह किया है। हम आपके आदेशों से दूर हो गए हैं और उनकी अवज्ञा की है। +\v 6 आपके भविष्यद्वक्ताओं ने आपकी ओर से, हमारे राजाओं से, हमारे अन्य शासकों से, हमारे पूर्वजों से और सभी इस्राएली लोगों से बात की, और आपके सन्देश सुनाए परन्तु हमने उनकी बात नहीं सुनी। +\pi +\s5 +\v 7 हे परमेश्वर, आप न्यायपूर्वक व्यवहार करते हैं। हम लज्जा से ढके हुए हैं। यह यहूदा के लोगों के लिए सच है जो यरूशलेम में रहते हैं और जो यहूदिया के अन्य स्थानों में रहते हैं। यह आपके यहूदी लोगों के विषय में भी सच है, जिनको आपने अन्य देशों में बिखेर दिया है क्योंकि हम आपके प्रति बहुत विश्वासघाती थे। +\v 8 हे यहोवा, हम और हमारे राजा और हमारे अन्य शासक और हमारे पूर्वज लज्जित हैं क्योंकि हमने आपके विरुद्ध पाप किए हैं। +\s5 +\v 9 यद्दपि हमने आपके विरुद्ध विद्रोह किया है, आप हमारे प्रति दया का व्यवहार करते हैं और आप हमें क्षमा करने के इच्छुक हैं। +\v 10 जब आपने अपने नियम अपने उन भविष्यद्वक्ताओं को दिए जो आपकी सेवा करते थे, और उन्होंने हमें उन नियमों के अनुसार अपने जीवन जीने के लिए कहा, तो हमने अपने परमेश्वर यहोवा की वाणी नहीं सुनी। +\v 11 सभी इस्राएलियों ने आपके नियमों का उल्लंघन किया है और हम उनसे दूर हो गए हैं और आपने हमें जो करने के लिए कहा था, वह करने से मना कर दिया है। क्योंकि हमने आपके विरुद्ध पाप किए हैं, आपने हम पर वे भयानक बातें भेजी हैं जिनके लिए आपके दास मूसा ने हमसे कहा था कि हमारे साथ होंगी यदि हमने आपके विरुद्ध पाप किए हैं। +\pi +\s5 +\v 12 आपने हमें और हमारे शासकों को चेतावनी दी थी कि आप एक बड़ी विपत्ति डाल कर यरूशलेम को गम्भीर दण्ड देंगे, एक ऐसी विपत्ति जो भयानक होगी, जिसका किसी भी शहर ने कभी भी अनुभव नहीं किया है, और आपने वह किया है जो आपने कहा था कि आप करेंगे। +\v 13 आपने हमें ठीक वैसे ही दण्ड दिया है जैसे मूसा ने लिखा था कि आप करेंगे। परन्तु हम अभी भी हमारे बुरे कर्मों से सच्चाई की ओर नहीं फिर गए हैं, या आप से दया के लिए विनती नहीं की है। +\v 14 इसलिए, हे यहोवा, क्योंकि हमने आपका आज्ञापालन नहीं किया, आप हमें दण्ड देने के लिए तैयार हुए, और फिर आपने हमें दण्डित किया, क्योंकि आप सदा धार्मिकता के कार्य करते हैं। +\pi +\s5 +\v 15 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, आप अपने लोगों को अपनी महान शक्ति से मिस्र से बाहर निकाल लाए, और ऐसा करके आपने उस समय से ले कर आज तक लोगों पर प्रकट किया कि आप महान हैं, भले ही हमने पाप किए हैं और दुष्ट कार्य किए हैं। +\v 16 परन्तु अब, क्योंकि जो कुछ भी आप करते हैं वह धार्मिकता है, हे परमेश्वर, हम आप से अनुरोध करते हैं कि अब आप यरूशलेम से अप्रसन्न न रहिए! यरूशलेम आपका शहर है, और वहाँ आपके पवित्र पर्वत पर आपका मन्दिर बनाया गया है। अब आस-पास के देशों में रहने वाले सब लोग हमारे पापों के कारण और हमारे पूर्वजों के बुरे कार्यों के कारण यरूशलेम को तुच्छ मानते हैं। +\pi +\s5 +\v 17 हे हमारे परमेश्वर, मैं, आपका दास, आप से मेरी प्रार्थना सुनने और मेरे अनुरोधों पर ध्यान देने के लिए कहता हूँ। अपने ही लिए, यरूशलेम में अपने पवित्रस्थान के प्रति कृपालुता से व्यवहार करें, उसे बाबेल की सेनाओं ने नष्ट कर दिया है। +\v 18 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुनिए। हमें देखिए और वह कीजिए जो आपको करना है। देखिए, यह शहर जो आपका है अब उजड़ गया है। हम आप से इसलिए प्रार्थना कर रहे हैं क्योंकि आप दयालु हैं, न कि इसलिए क्योंकि हमने धर्म के कार्य किए हैं। +\v 19 हे परमेश्वर, हमारी बात सुनिए! हे परमेश्वर, हमें क्षमा कर दीजिए! यह शहर और यह लोग आपके हैं। इसलिए हे परमेश्वर, मैं आप से विनती करता हूँ कि मैं जो कह रहा हूँ उस पर ध्यान दीजिए और अपने ही लिए, हमारी सहायता करने के लिए इसी समय कार्य कीजिए! +\p +\s5 +\v 20 मैंने प्रार्थना की और उन पापों को स्वीकार किया जो मैंने और मेरे लोगों ने किए थे, और मेरे परमेश्वर यहोवा से विनती करता रहा कि वह यरूशलेम में पवित्र पर्वत पर मन्दिर को फिर से स्थापित कर दें। +\v 21 जिस समय मैं प्रार्थना कर रहा था, तब गब्रिएल, जिस स्वर्गदूत को मैंने पहले दर्शन में देखा था, शाम को उस समय मेरे पास तेजी से उड़ कर आया जब याजकों ने बलिदान चढ़ाया था। +\s5 +\v 22 उसने मुझसे कहा, “हे दानिय्येल, मैं तुझे सक्षम करने के लिए तेरे पास आया हूँ कि तू स्पष्ट रूप से उस सन्देश को समझ सके जिसे परमेश्वर ने यिर्मयाह को दिया था। +\v 23 जब तू ने इस्राएल के प्रति दया के लिए परमेश्वर से विनती करना आरम्भ किया, तो उन्होंने तुझे देने के लिए मुझे एक सन्देश दिया। वह तुझसे बहुत प्रेम करते हैं, इसलिए उन्होंने तुझे यह सन्देश सुनाने के लिए मुझे भेजा है। इसलिए अब ध्यान दे कि तू यिर्मयाह पर प्रकट किये गये उनके सन्देश का अर्थ समझ सकें। +\p +\s5 +\v 24 परमेश्वर ने निर्णय लिया है कि तब तक 490 वर्ष होंगे जब तक कि वह तेरे लोगों और उस शहर को जो कि उनका है उनके पापों के अपराध से मुक्त न करें और उनके द्वारा किए गए बुरे कार्यों के लिए वे प्रायश्चित न करें। तब परमेश्वर हर किसी पर न्यायपूर्वक शासन करेंगे, और वह सदा के लिए ऐसा करेंगे। तू ने दर्शन में जो देखा और यिर्मयाह ने जो भविष्यद्वाणी की, वह सच हो जाएँगी, और पवित्र मन्दिर फिर से परमेश्वर को समर्पित होगा। +\p +\v 25 तुझे यह जानने और समझने की आवश्यकता है: इस बीच में उनचास वर्ष और उसके बाद 434 वर्ष होंगे जब एक राजा आदेश देगा कि यरूशलेम का फिर से निर्माण किया जाए, और जब वह अगुवा आता है, जिसे परमेश्वर चुनते हैं। तब यरूशलेम का फिर से निर्माण किया जाएगा, और इसमें सड़कें होंगी और इसके चारों ओर शहर की सुरक्षा करने के लिए खाई होगी, इस तथ्य के उपरान्त कि यह बड़ी परेशानी का समय होगा। +\s5 +\v 26 उन 434 वर्षों के बाद, जिस अगुवे को परमेश्वर ने चुना है, उसे मार दिया जाएगा, और सब कुछ उससे ले लिया जाएगा। उसके बाद, एक शक्तिशाली शासक की सेना द्वारा मन्दिर नष्ट कर दिया जाएगा। वह शहर और वह मन्दिर ऐसे नष्ट हो जाएँगे जैसे बाढ़ सब कुछ नष्ट कर देती हैं। जब ऐसा होता है, तो युद्ध और विनाश समाप्त हो जाएगा। +\s5 +\v 27 वह शासक लोगों के साथ एक वाचा बाँधेगा। वह सात वर्षों तक वही करेगा जो उसने करने का विचार किया था। परन्तु उस समय के आधा बीतने पर, वह याजकों को परमेश्वर को और अधिक भेंटें और बलिदान चढ़ाने से रोक देगा। इस शासक के इन घृणा के कार्यों को करने के बाद, कोई व्यक्ति परम पवित्रस्थान पर एक मूर्ति को रख कर मन्दिर को अशुद्ध करेगा। वह तब तक वहाँ रहेगी जब तक कि परमेश्वर उस व्यक्ति को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर देते जिसने इसे वहाँ रखा है।” + +\s5 +\c 10 +\p +\v 1 जब कुस्रू फारस का राजा था तब उसके तीसरे वर्ष में, परमेश्वर की ओर से एक सन्देश दानिय्येल (जिसे बेलतशस्सर नाम दिया गया था) को भेजा गया था, और वह सन्देश सच था। वह एक बड़े युद्ध के विषय में था, और दानिय्येल ने दर्शन में जो देखा था उसके कारण से वह सन्देश को समझ गया। +\p +\s5 +\v 2 “उस समय मैं, दानिय्येल यरूशलेम के साथ जो हुआ था उसके विषय में तीन सप्ताह तक उदास था। +\v 3 मैंने कोई स्वादिष्ट भोजन या कोई माँस नहीं खाया और न ही मैंने कोई दाखरस पिया था। मैंने उन तीन सप्ताहों के लिए अपने चेहरे या बालों पर कोई सुगन्धित तेल भी नहीं लगाया था। +\p +\s5 +\v 4 जब वे तीन सप्ताह पूरे हो गए, तब पहले महीने के चौबीसवें दिन, मेरे साथी और मैं हिद्देकेल नदी के तट पर खड़े थे। +\v 5 मैंने ऊपर दृष्टि की और वहाँ किसी को देखा जो सुन्दर सफेद कपड़े पहने था और शुद्ध सोने से बना कमरबन्द बाँधे हुए था। +\v 6 उसका शरीर एक बहुमूल्य फीरोजा पत्थर के समान चमकता था। उसका चेहरा बिजली की चमक के समान उज्ज्वल था। उसकी आँखें जलती मशाल के समान थीं। उसकी बाँहें और पैर चमकदार पीतल के समान चमकते थे। उसकी वाणी बहुत बड़ी भीड़ की गर्जन के समान बहुत प्रबल थी। +\p +\s5 +\v 7 केवल मैं, दानिय्येल, ही था जिसने इस दर्शन को देखा। मेरे साथ रहने वाले पुरुष कुछ भी नहीं देख पाए, परन्तु उन्हें अनुभव हुआ कि कोई वहाँ था, और वे भयभीत हो गए। वे भाग गए और स्वयं को छिपा लिया। +\v 8 इसलिए मैं अकेला इस असामान्य दर्शन को देखते हुए वहाँ रह गया था। मेरे पास कोई शक्ति नहीं थी। मेरा चेहरा बहुत पीला पड़ गया, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी मुझे पहचान नहीं पाया। +\v 9 मैंने वहाँ एक पुरुष को देखा, और जब मैंने उसे बोलते सुना, तो मैं भूमि पर गिर गया। मैं बेहोश हो गया, और मैं भूमि की ओर अपना चेहरा किए हुए वहाँ लेट गया। +\p +\s5 +\v 10 अचानक किसी ने मुझे अपने हाथ से पकड़ा और मुझे उठा लिया, जिसके परिणामस्वरूप मैं अपने हाथों और घुटनों पर था, परन्तु मैं अभी भी काँप रहा था। +\v 11 उस स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “हे दानिय्येल, परमेश्वर तुझसे बहुत प्रेम करते हैं। खड़ा हो जा और सुन जो मैं तुझसे कहने जा रहा हूँ क्योंकि परमेश्वर ने मुझे तेरे पास भेजा है।” जब उसने यह कहा, तो मैं खड़ा हो गया, परन्तु मैं अभी भी काँप रहा था। +\p +\s5 +\v 12 तब उसने मुझसे कहा, “हे दानिय्येल, डर मत। परमेश्वर ने तेरी प्रार्थना को पहले दिन से ही सुन लिया है कि जब तू ने दर्शन को समझने के लिए स्वयं को नम्र करने का दृढ़ संकल्प किया था। तेरी प्रार्थना के कारण मैं तेरे पास आया हूँ। +\v 13 फारस के राज्य पर शासन करने वाली दुष्ट आत्मा ने इक्कीस दिनों तक मेरा विरोध किया, और मुझे उस समय के लिए उन विभिन्न राजाओं के साथ रहना पड़ा जिन पर फारसी राजा शासन कर रहा था। परन्तु मीकाएल, जो परमेश्वर के मुख्य स्वर्गदूतों में से एक है, मेरी सहायता करने आया था। मैंने वहाँ उस दुष्ट आत्मा का विरोध करने के लिए उसे फारस में छोड़ दिया। +\s5 +\v 14 मैं यह समझने में तेरी सहायता करने आया हूँ कि भविष्य में इस्राएली लोगों के साथ क्या होगा। यह मत भूलना कि तू ने दर्शन देखा है वह भविष्य में होने वाली बातों के विषय में है, न कि उन बातों के विषय में जो अति शीघ्र होंगी।” +\p +\v 15 अभी वह यह कह ही रहा था, कि मैंने नीचे भूमि की ओर देखा और मैं कुछ भी कहने में असमर्थ था। +\s5 +\v 16 अचानक एक स्वर्गदूत ने, जो मनुष्य जैसा दिखता था, मेरे होंठों को छुआ। तब मैं बात करने में सक्षम था, और मैंने उससे कहा, “हे महोदय, मैंने यह दर्शन देखा है और मैं बहुत दुर्बल हो गया हूँ, जिसके परिणामस्वरूप मैं काँपना बन्द नहीं कर सकता हूँ। +\v 17 मैं केवल तेरा दास हूँ, और मैं तुझसे बात करने में सक्षम नहीं हूँ। मेरे पास कोई शक्ति नहीं बची है, और मेरे लिए साँस लेना बहुत कठिन है।” +\p +\s5 +\v 18 परन्तु उसने मुझे फिर से पकड़ लिया, और मुझे फिर से दृढ़ होने में सक्षम बनाया। +\v 19 उसने मुझसे कहा, “हे पुरुष, परमेश्वर तुझसे बहुत प्रेम करते हैं। इसलिए डर मत। मैं चाहता हूँ कि तेरा भला हो और तुझे प्रोत्साहित किया जाए।” जब उसने ऐसा कहा, तो मुझे भी शक्ति का अनुभव हुआ, और मैंने कहा, “हे महोदय, मुझे बता जो तू मुझसे कहना चाहता है। तू ने मुझे शक्ति का अनुभव करने में सक्षम बनाया है।” +\p +\s5 +\v 20-21 फिर उसने कहा, “क्या तू जानता है कि मैं तेरे पास क्यों आया हूँ? यह तुझ पर प्रकट करने के लिए है कि उस पुस्तक में क्या लिखा गया है जो परमेश्वर की सच्चाई बताती है। परन्तु अब मुझे बुरी आत्मा से लड़ने के लिए लौटना होगा जो फारस के राज्य पर शासन करती है। उसे पराजित करने के बाद, यूनान की रक्षा करने वाला बुरा स्वर्गदूत प्रकट होगा और मुझे उसे पराजित करना अवश्य है। मीकाएल, जो आप इस्राएली लोगों की रक्षा करता है, वह निश्चित रूप से मेरी सहायता करेगा, परन्तु मेरी सहायता करने के लिए कोई और नहीं है।” + +\s5 +\c 11 +\p +\v 1 मादी दारा के पहले वर्ष में, मैं स्वयं मीकाएल की सहायता करने और उसे प्रोत्साहित करने आया था। +\p +\v 2 जो मैं तुम पर अब प्रकट करने जा रहा हूँ वह वास्तव में होगा। फारस पर शासन करने के लिए एक के बाद एक, तीन और राजा होंगे। तब चौथा राजा होगा, जो दूसरों की तुलना में अधिक समृद्ध होगा। वह पैसे के द्वारा अपनी शक्ति प्राप्त करेगा। फिर वह यूनान के राज्य के विरुद्ध लड़ने के लिए सबको उत्तेजित करेगा। +\p +\s5 +\v 3 तब एक बहुत शक्तिशाली राजा उठ खड़ा होगा। वह एक बहुत बड़े साम्राज्य पर शासन करेगा, और वह वो सब कुछ करेगा जो वह करना चाहता है। +\v 4 परन्तु जब वह बहुत शक्तिशाली हो जाएगा, तब उसका राज्य चार भागों में विभाजित हो जाएगा। वे उसके वंशज नहीं होंगे, वे राजा शासन करेंगे, परन्तु वे उतने शक्तिशाली नहीं होंगे जितना वह था। उसका राज्य टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा और दूसरों को दे दिया जाएगा। +\s5 +\v 5 तब दक्षिण का राजा बहुत शक्तिशाली हो जाएगा। परन्तु उसकी सेना के सेनापतियों में से एक उससे भी अधिक शक्तिशाली हो जाएगा जितना वह है और वह भी एक शक्तिशाली शासक बन जाएगा। +\v 6 सही समय पर, वे एक समझौता करेंगे। समझौते को सुरक्षित करने के लिए दक्षिण के राजा की पुत्री उत्तर के राजा के पास आएगी। परन्तु वह अपनी शक्ति खो देगी और उसके पास कुछ भी नहीं बचेगा - वह और उसके लोग जो उसके साथ थे, और उसका पिता, साथ ही उत्तर का राजा भी और उसके बच्चे भी अलग कर दिया जाएँगे। +\p +\s5 +\v 7 इसके तुरन्त बाद, उसके सम्बन्धियों में से एक उसके स्थान पर सत्ता ले लेगा, और उसकी सेना उत्तर के राजा की सेना पर आक्रमण करेगी। वे सैनिकों के किले में प्रवेश करेंगे और उन्हें पराजित करेंगे। +\v 8 वे उनकी मूर्तियों और देवताओं को मिस्र में ले जाएँगे, और वे उनकी प्रतिमाएँ (धातु को एक आकृति में ढाल कर बनाई गई) और चाँदी और सोने से बने कई सामान ले लेंगे। फिर कई वर्षों तक उनकी सेना उत्तर के राजा की सेना पर आक्रमण नहीं करेगी। +\v 9 तब उत्तर के राजा की सेना दक्षिण के राजा के राज्य पर आक्रमण करेगी, परन्तु वह फिर अपने ही देश लौट आएगा। +\s5 +\v 10 यद्दपि, उसके पुत्र युद्ध करने के लिए तैयार होंगे, और वे एक बड़ी सेना का संगठन करेंगे। वह सेना दक्षिण की ओर बढ़ेगी और पूरे इस्राएल में भारी बाढ़ के समान फैल जाएगी। वे इस्राएल के दक्षिण में एक दृढ़ किले पर आक्रमण करेंगे। +\p +\s5 +\v 11 तब दक्षिण का राजा बहुत क्रोधित होकर, अपनी सेना के साथ उत्तर में आगे बढ़ेगा और एक बड़ी सेना के विरुद्ध लड़ेगा। उत्तर का राजा एक बड़ी सेना संगठित करेगा, परन्तु दक्षिण के राजा की सेना उनको पराजित कर देगी। +\v 12 दक्षिण का राजा बहुत अभिमानी हो जाएगा क्योंकि उसकी सेना बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को पराजित करेगी और अपने कई शत्रुओं को मार डालेगी। परन्तु वह सफल नहीं होगा। +\s5 +\v 13 उत्तर का राजा फिर से एक सेना इकट्ठी करेगा जो उसकी पहले की सेना से बड़ी होगी। कुछ वर्षों के बाद, उत्तर का राजा फिर से एक बड़ी सेना और युद्ध के लिए बहुत सारे उपकरणों के साथ आएगा। +\p +\s5 +\v 14 उस समय, बहुत से लोग दक्षिण के राजा के विरुद्ध विद्रोह करेंगे। एक निश्चित दर्शन को पूरा करने के लिए, तेरे इस्राएल देश के कुछ हिंसक लोग भी उसके विरुद्ध विद्रोह करेंगे, परन्तु वे सफल नहीं होंगे। +\s5 +\v 15 तब उत्तर का राजा अपनी सेना के साथ आएगा और शहर की दीवारों को जो पूर्ण सुरक्षित हैं मिट्टी का ढेर करेगा और वे उन दीवारों को तोड़ देंगे और शहर पर अधिकार कर लेंगे। दक्षिण के सैनिक जो उस शहर की रक्षा करने आए हैं, यहाँ तक कि सबसे अच्छी सेना भी लड़ने के लिए पर्याप्त दृढ़ नहीं होगी। +\v 16 अतः उत्तर का राजा दक्षिण के राजा के विरुद्ध जो चाहता है, वह करेगा, और कोई भी उसका विरोध करने में सक्षम नहीं होगा। वह इस्राएल के महिमामय देश पर अधिकार करेगा और उसके पास उसे नष्ट करने की शक्ति होगी। +\s5 +\v 17 तब उत्तर का राजा अपने राज्य से सब सैनिकों के साथ दक्षिण की ओर जाने का निर्णय करेगा। वह दक्षिण के राजा के साथ गठबन्धन करेगा और क्योंकि उसकी पुत्री उसे दक्षिण के राज्य को नष्ट करने में सहायता करेगी, वह उसे दक्षिण के राजा को उसकी पत्नी बनने के लिए देगा। परन्तु वह योजना असफल हो जाएगी। +\v 18 उसके बाद, उत्तर के राजा की सेना भूमध्य सागर के निकट के क्षेत्रों पर आक्रमण करेगी, और उसकी सेना उनमें से कई को जीत जाएगी। परन्तु किसी अन्य देश के अगुवे की सेना उन्हें पराजित करेगी और उसे अभिमानी होने से रोक देगी। वह उसका घमण्ड उसके विरुद्ध कर देगा। +\v 19 तब उत्तर का राजा अपने ही देश के किलों में लौट जाएगा। परन्तु वह पराजित होगा, और कोई भी उसे ढूँढ़ नहीं पाएगा। +\p +\s5 +\v 20 तब दूसरा व्यक्ति उसका स्थान ले लेगा। यह वही है जो महल की सुन्दरता को पूरा करने के लिए लोगों को कर देने के लिए विवश करेगा, परन्तु वह राजा थोड़े समय के बाद मर जाएगा। हालाँकि, उसकी मृत्यु का कारण लोगों का क्रोध या युद्ध नहीं होगा। +\p +\v 21 अगला राजा एक दुष्ट व्यक्ति होगा जिससे इसलिए घृणा की जाती है क्योंकि वह पिछले राजा का पुत्र नहीं है, और उसे राजा बनने का अधिकार नहीं होगा। परन्तु जब लोग उसकी अपेक्षा नहीं करेंगे तब वह बिना किसी आपत्ति के भीतर आएगा, और लोगों को धोखा दे कर वह राजा बन जाएगा। +\v 22 उसकी सेना आगे बढ़ेगी और वह हर एक सेना पर आक्रमण करेंगे जो उसका विरोध करेगी और उनके शत्रु बाढ़ के समान उनके सामने से मिटते चले जाएँगे। उनके शत्रु और याजकों का मुखिया मिट जाएगा। +\s5 +\v 23 अन्य राष्ट्रों के शासकों के साथ सन्धि बना कर, वह उन्हें धोखा देगा, और वह बहुत शक्तिशाली हो जाएगा, भले ही वह ऐसे राष्ट्र पर शासन करे, जिसमें बहुत से लोग नहीं हैं। +\v 24 अचानक उसकी सेना एक ऐसे प्रदेश पर आक्रमण करेगी जो बहुत धनवान है, और वे ऐसे कार्य करेंगे जो उसके पूर्वजों में से किसी ने भी नहीं किये थे: वे युद्ध में उन पराजित लोगों की सम्पत्तियों को ले लेंगे। तब राजा उन सम्पत्तियों को अपने मित्रों के बीच बाँट देगा। वह किले पर आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के लिए योजना भी बनाएगा, परन्तु केवल थोड़े समय के लिए। +\p +\s5 +\v 25 उत्तर का राजा दक्षिण के राजा की सेना पर आक्रमण करने के लिए एक बड़ी और शक्तिशाली सेना संगठित करेगा। दक्षिण का राजा एक विशाल और शक्तिशाली सेना के साथ युद्ध में उससे मिलेगा। हालाँकि, वह असफल हो जाएगा, और उसके विरुद्ध तैयार किये गये सब षड्यन्त्रों के कारण उसकी योजना सफल नहीं होगी। +\v 26 दक्षिण के राजा के सबसे विश्वसनीय मंत्री भी उससे छुटकारा पाने की योजना बनाएँगे। उनकी सेना हार जाएगी और उनके कई सैनिक मारे जाएँगे। +\v 27 तब ऐसे दो राजा जो दोनों उस क्षेत्र पर शासन करना चाहते हैं, वे एक ही मेज पर बैठ कर एक साथ बात करेंगे, परन्तु वे दोनों एक-दूसरे से झूठ बोलेंगे। उनमें से कोई भी वह प्राप्त नहीं करेगा जो वह चाहता है क्योंकि केवल परमेश्वर ही उनके कार्यों के परिणाम को भविष्य के उस समय पर होने देंगे, जो उन्होंने निर्धारित किया होगा। +\s5 +\v 28 उत्तर के राजा की सेना उनके देश में उन सभी मूल्यवान वस्तुओं को ले कर लौट आएगी जिन्हें उन्होंने लूट लिया है। राजा लोगों को उनके साथ बाँधी परमेश्वर की वाचा का पालन करना बन्द करवाने का प्रयास करेगा। वह वही करेगा जो वह इस्राएल में करना चाहता है, और फिर वह अपने देश लौट आएगा। +\p +\s5 +\v 29 जब वह समय आता है जिसे परमेश्वर ने नियुक्त किया है, तो उत्तर का राजा फिर से दक्षिण पर आक्रमण करेगा। परन्तु इस बार वह वैसे सफल नहीं होगा जैसे वह पहले हुआ था। +\v 30 कित्तीम से जहाज आएँगे और उसकी सेना का विरोध करेंगे और उसे डरा देंगे। इसलिए वह बहुत क्रोधित हो जाएगा, और अपनी सेना के साथ वह इस्राएल वापस आ जाएगा और आराधना को और कानून को नष्ट करने की खोज करेगा। राजा उन लोगों के लिए वरीयता और पक्ष दिखाएगा जिन्होंने इस्राएल के साथ परमेश्वर की पवित्र वाचा को त्याग दिया है। +\s5 +\v 31 उसके कुछ सैनिक मन्दिर को अशुद्ध करने के लिए कार्य करेंगे। वे याजकों को हर दिन बलि चढ़ाने से रोक देंगे, और वे मन्दिर में ऐसी घृणित वस्तु रखेंगे जो इसे जंगल के समान बना देगी। +\p +\v 32 उन लोगों को धोखा दे कर जिन्होंने इस्राएल के साथ परमेश्वर की वाचा को त्याग दिया है, वह उन्हें अपने समर्थक बनाने के लिए उन पर विजय प्राप्त करेगा। परन्तु जो लोग अपने परमेश्वर के प्रति समर्पित हैं वे दृढ़ता से उसका विरोध करेंगे। +\s5 +\v 33 इस्राएल के अगुओं के बीच पाए जाने वाले बुद्धिमान दूसरों को भी सिखाएँगे। परन्तु कुछ समय बीतने पर, वे लड़ाई में मारे जाएँगे, या जला कर मार दिए जाएँगे, या दास बनाए जाएँगे, या लूट लिए जाएँगे। +\p +\v 34 जिस समय परमेश्वर के लोगों को सताया जा रहा है, कुछ लोग उनकी थोड़ी सी सहायता करेंगे, हालाँकि उनमें से कुछ जो उनकी सहायता करेंगे, वे अच्छे कारणों से ऐसा नहीं करेंगे। +\v 35 उन बुद्धिमान अगुओं में से कुछ का इन बातों के भुगतने के बाद, परमेश्वर अपने लोगों को अपने लिए सबसे अच्छे लोग बनाएँगे। साथ ही, परमेश्वर ने भविष्य में एक समय निर्धारित किया है जब वह इन सब बातों को पूरा करेंगे। +\p +\s5 +\v 36 राजा जो चाहता है वह करेगा। वह घमण्ड करेगा और कहेगा कि वह किसी भी देवता से बड़ा है। यहाँ तक कि वह सबसे ऊँचे परमेश्वर का अपमान भी करेगा। उस समय तक वह जो चाहता है उसे करने में सक्षम होगा जब तक कि परमेश्वर यह दिखाने के लिए तैयार न हों कि वह उससे क्रोधित हैं, क्योंकि परमेश्वर ने जो आदेश दिया है, वह पूरा होगा। +\v 37 वह राजा उन देवताओं को अनदेखा कर देगा जिसकी उनके पूर्वजों ने आराधना की थी और उन देवताओं को जो स्त्रियों से प्रेम करते हैं। वह सब देवताओं को अनदेखा कर देगा क्योंकि वह उनसे भी बड़ा होने का ढोंग करेगा। +\s5 +\v 38 परन्तु वह किलों के देवता का सम्मान करेगा। वह एक देवता है जिसे उसके पूर्वजों ने सम्मान नहीं दिया था। वह उस देवता को सोने, चाँदी, गहने और अन्य महँगे उपहार देगा। +\v 39 वह दृढ़ किलों पर आक्रमण करने में उसकी सहायता करने के लिए दूसरे देश से लोगों को कार्य पर रखेगा जो एक अलग देवता की आराधना करते हैं। वह उन लोगों का बहुत सम्मान करेगा जो उसे उनका शासक बनने की अनुमति देते हैं। वह उनमें से कुछ को सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करेगा, और वह उनके बीच देश को विभाजित करके उन्हें पुरस्कृत करेगा। +\p +\s5 +\v 40 परन्तु जब शासन करने का उसका समय लगभग समाप्त हो जाएगा, तब दक्षिण के राजा की सेना आएगी, परन्तु उत्तर का राजा पहले आक्रमण करेगा। वह सेना अपने शत्रुओं के विरुद्ध बाढ़ के समान आगे बढ़कर युद्ध करेगी, और वे कई जहाजों के साथ आक्रमण करेंगे। +\v 41 वे इस्राएल के महिमामय देश पर आक्रमण करेंगे और बहुत से लोग गिरेंगे, परन्तु एदोम, मोआब और अम्मोनियों के जो लोग बचेंगे वे जीवित भाग जाएँगे। +\s5 +\v 42 वह अन्य देशों पर आक्रमण करेगा और उन्हें जीत लेगा। वह मिस्र के लोगों को भी पराजित करेगा। +\v 43 उत्तर की सेना सोने और चाँदी, और मिस्र की सम्पत्ति के भण्डारों को ले जाएगी। लूबी और इथियोपिया के लोग उत्तर के राजा की सेवा करेंगे। +\s5 +\v 44 परन्तु वह बहुत डर जाएगा जब वह समाचार सुनेगा कि पूर्व में और उत्तर में क्या हो रहा है। इसलिए वह बहुत क्रोधित हो जाएगा और अपनी सेना को उग्रता से लड़ने और अपने कई शत्रुओं को मारने के लिए भेज देगा। +\v 45 वह राजा भूमध्य सागर और यरूशलेम की पहाड़ी, मन्दिर के स्थान के बीच के क्षेत्र में अपने राजसी तम्बू को स्थापित करेगा। परन्तु कोई उसे वहाँ मार डालेगा, और उसकी सहायता करने के लिए कोई भी नहीं होगा।” + +\s5 +\c 12 +\p +\v 1 स्वर्गदूत ने मुझसे यह भी कहा, “उन बातों के होने के बाद, महान स्वर्गदूत मीकाएल, जो इस्राएली लोगों की रक्षा करता है, दिखाई देगा। फिर एक समय होगा जब बड़ी परेशानियाँ होंगी। वह परेशानियाँ किसी देश के आरम्भ होने के बाद से हुई किसी भी परेशानियों से अधिक होंगी। उस समय, आपके सभी लोग जिनके नाम पुस्तक में लिखे गए हैं, उन्हें बचाया जाएगा। +\v 2 मर चुके लोगों में से कई फिर से जीवित हो जाएँगे। उनमें से कुछ अनन्त जीवन में जीएँगे, और कुछ लज्जा और अनन्त घृणा में रहेंगे। +\s5 +\v 3 जो बुद्धिमान थे वे लोग आकाश के समान उज्जवल चमकेंगे। जिन लोगों ने दूसरों को धार्मिक रूप से जीने का मार्ग दिखाया है वे सदा के लिए सितारों के समान चमकेंगे। +\v 4 परन्तु तेरे लिए, हे दानिय्येल, उस पुस्तक को बन्द कर दे जिसमें तू लिख रहा है और अन्त के समय तक इसे मुहरबन्द कर। ऐसा होने से पहले, कई लोग कई बातों के विषय में और अधिक सीखते हुए यहाँ और वहाँ की यात्रा करेंगे।” +\p +\s5 +\v 5 जब उस स्वर्गदूत ने बोलना समाप्त किया, तो मुझ, दानिय्येल ने ऊपर दृष्टि की, और अचानक मैंने दो अन्य स्वर्गदूतों को देखा। एक नदी के उस किनारे खड़ा था जहाँ मैं था, और दूसरा स्वर्गदूत नदी के दूसरी ओर खड़ा था। +\v 6 उनमें से एक ने दूसरे को बुलाया जो सनी के कपड़े पहने हुए था और अब नदी के आगे की ओर खड़ा हुआ था, उसने पूछा “इन अद्भुत घटनाओं के अन्त तक कितना समय लगेगा?” +\p +\s5 +\v 7 जो सनी के कपड़े पहने हुए था और जो नदी के आगे की ओर खड़ा हुआ था, उसने आकाश की ओर अपना हाथ बढ़ाया और गम्भीरता से उस एकमात्र से प्रतिज्ञा को किया जो सदा के लिए जीवित हैं, “यह साढ़े तीन वर्ष होंगे, और जब परमेश्वर के पवित्र लोग और उनकी शक्ति अब टूटते-टूटते समाप्त हो जाएगी, तब ये सब बातें समाप्त हो जाएँगी।” +\p +\s5 +\v 8 जो उसने कहा मैंने वह सुना, परन्तु मुझे समझ में नहीं आया। इसलिए मैंने पूछा, “हे महोदय, जब ये बातें समाप्त होती हैं तो परिणाम क्या होगा?” +\p +\v 9 उसने उत्तर दिया, “हे दानिय्येल, तुझे अभी जाना होगा। मैं तेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता। अन्त के समय तक यह वचन बन्द और मुहरबन्द कर दिए गए हैं। +\s5 +\v 10 बहुत से लोग शुद्ध किए जाएँगे, और वे निर्मल हो जाएँगे, परन्तु दुष्ट लोग दुष्टता के कार्य करते रहेंगे। केवल बुद्धिमान लोग ही इन बातों को समझेंगे। +\v 11 उस समय से 1,290 दिन होंगे जब लोग हर दिन बलिदान चढ़ाने से रोके जाएँगे, अर्थात् उस समय से जब शत्रु मन्दिर में घृणित वस्तु ले कर आता है, जो इसे परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य जंगल के समान बना देगी। +\s5 +\v 12 परमेश्वर उन लोगों से प्रसन्न होंगे जो 1,335 दिनों के अन्त तक विश्वासयोग्य बने रहेंगे। +\p +\v 13 इसलिए अब मैं तुझसे कहता हूँ, कि जब तक पृथ्‍वी पर तेरा जीवन समाप्त न हो जाए तब तक सच्चे मन से परमेश्वर पर भरोसा रखे रह। तू मर जाएगा, परन्तु जब सब कुछ समाप्त हो जाएगा, तब तू परमेश्वर से अपना पुरस्कार प्राप्त करेगा।” \ No newline at end of file diff --git a/28-HOS.usfm b/28-HOS.usfm new file mode 100644 index 0000000..3c41707 --- /dev/null +++ b/28-HOS.usfm @@ -0,0 +1,1006 @@ +\id HOS +\ide UTF-8 +\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License +\h होशे +\toc1 होशे +\toc2 होशे +\toc3 hos +\mt1 होशे + + +\s5 +\c 1 +\p +\v 1 यहोवा ने यह सन्देश उन वर्षों के दौरान बेरी के पुत्र होशे को दिए जब उज्जियाह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह यहूदा के राजा थे, और जब योआश का पुत्र यारोबाम इस्राएल का राजा था। +\p +\v 2 जब यहोवा ने होशे भविष्यद्वक्ता के द्वारा पहली बार बात की, तो उन्होंने कहा, “जा और एक वेश्या से विवाह कर। उसके पहले से ही बच्चे होंगे क्योंकि उसने स्वयं को अन्य पुरुषों को दिया है। जब तू एक वेश्या से विवाह करता है, तो यह इस बात को दर्शाता है कि मेरे लोग कैसे मेरे साथ इतनी लज्जापूर्ण रीति से अविश्वसनीय रहे हैं। यह उन्हें दिखाएगा कि उन्होंने मुझे, उनके परमेश्वर को कैसे छोड़ दिया है।” +\s5 +\v 3 इसलिए होशे ने दिबलैम की पुत्री गोमेर से विवाह किया। वह गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया। +\p +\v 4 यहोवा ने होशे से कहा, “अपने बच्चे को यिज्रेल नाम दे, क्योंकि मैं शीघ्र ही राजा येहू के परिवार के सदस्यों को यिज्रेल शहर में की गई हत्याओं के लिए दण्ड दूँगा। मैं इस्राएल के राज्य को भी नाश कर दूँगा। +\v 5 उस दिन मैं यिज्रेल की घाटी में इस्राएल की सेना की युद्ध शक्ति को नष्ट कर दूँगा।” +\p +\s5 +\v 6 गोमेर शीघ्र ही फिर से गर्भवती हो गयी, और इस बार उसने एक पुत्री को जन्म दिया। तब यहोवा ने उससे कहा, “उसे लोरुहामा नाम दे, जिसका अर्थ है ‘दया नहीं’, क्योंकि अब मैं इस्राएल के लोगों पर दया नहीं दिखाऊँगा, और मैं उनके एक पाप के लिए भी उन्हें क्षमा नहीं करूँगा। +\v 7 परन्तु मैं यहूदा के लोगों पर दया करूँगा। मैं उन्हें बचाऊँगा, परन्तु घातक हथियारों, धनुष, तलवार या युद्ध से नहीं। मैं उन्हें सेनाओं द्वारा या बलवान घोड़ों और उन पर सवारी करने वालों द्वारा नहीं बचाऊँगा। इसकी अपेक्षा स्वयं, मैं यहोवा, उन्हें बचाऊँगा।” +\p +\s5 +\v 8 गोमेर लोरुहामा को दूध छुड़ाने के बाद, वह फिर से गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया। +\v 9 यहोवा ने कहा, “उसे लोअम्मी नाम दे, जिसका अर्थ है ‘मेरे लोग नहीं,’ क्योंकि हे इस्राएल, तुम मेरे लोग नहीं हो और अब मैं तुम्हें तुम्हारे परमेश्वर के रूप में नहीं बचाऊँगा। +\p +\s5 +\v 10 भविष्य में एक दिन, इस्राएल के लोग समुद्र की रेत के कणों जितने असंख्य होंगे। कोई भी उन्हें गिनने में सक्षम नहीं होगा। मैंने इस्राएल से कहा है, ‘तुम मेरे लोग नहीं हो,’ - परन्तु एक दिन मैं उनसे कहूँगा, ‘तुम वह लोग हो जिन्हें मैं बचाऊँगा और प्रेम करूँगा।’ +\v 11 उस दिन मैं यहोवा यहूदा के सभी लोगों को इकट्ठा करूँगा और उन्हें इस्राएल के सभी लोगों के साथ इकट्ठा करूँगा। वे अपने में से एक अगुवे का चुनाव करेंगे, और वे उस देश से बाहर निकलेंगे जिसमें उन्हें बन्धुआई में रखा गया था। उस दिन वे कहेंगे, ‘यिज्रेल का दिन महान है।’ (यिज्रेल का अर्थ है, ‘परमेश्वर अपने लोगों को अपनी भूमि में रोपते है।’) + +\s5 +\c 2 +\q1 +\p +\v 1 अपने इस्राएली पुरुष साथियों को कह, ‘तुम यहोवा के लोग हो,’ और अपनी इस्राएली स्त्री साथियों को कह, ‘यहोवा तुम पर दयालु है।’” +\q1 +\s5 +\v 2 यहोवा ने मुझसे कहा, “मैं चाहता हूँ कि तू इस्राएल पर दोष लगा जो मेरे लिए एक अविश्वासी पत्नी के समान हो गई है और जो तेरे लिए एक माता के समान है। +\q1 यह राष्ट्र अब मेरे लिए एक पत्नी के समान नहीं है, +\q2 और अब मैं उसके पति के समान नहीं हूँ। +\q1 इस्राएल को बताओ कि उसे वेश्या के समान व्यवहार करना बन्द कर देना चाहिए; उसे मूर्तियों की पूजा करना बन्द कर देना चाहिए। +\q2 इस्राएल को मूर्तियों की पूजा करना बन्द कर देना चाहिए। उसे ऐसी स्त्री के समान व्यवहार करना बन्द कर देना चाहिए जो अपने पति को छोड़ देती है और दूसरे पुरुषों के पास जाती है। +\q1 +\v 3 यदि वह रुकती नहीं है, +\q1 मैं उस पर से उसके कपड़े उतार दूँगा और उसे नंगा कर दूँगा जैसे वह पैदा हुई थी। +\q2 मैं उसे बंजर जंगल के समान सूखा और निर्जीव बना दूँगा; मैं उसे रेगिस्तान में प्यास से मरने वाली एक स्त्री के समान बना दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 4 मुझे उसके लोगों, इस्राएल के लोगों पर कोई दया नहीं होगी, +\q2 क्योंकि उनका देश एक वेश्या के समान है। +\q1 +\v 5 इस्राएल एक वेश्या के समान है; +\q2 वह ऐसी स्त्री के समान है जिसने इन बच्चों को अन्य पुरुषों के साथ लज्जापूर्ण कार्य करने से पैदा किया है। +\q1 इस्राएल ने इन मूर्तियों के पीछे भागने का निर्णय किया, इन अन्य देवताओं की पूजा करने के लिए, जिनसे उसे प्रेम है। +\q2 उसने सोचा कि यह वे देवता थे जिन्होंने उसे रोटी और पानी दिया था। +\q2 उसने सोचा कि यह वे देवता थे जिन्होंने उसे ऊन, सन के कपड़े और जैतून का तेल और पीने के लिए दाखरस भी दिया था। +\q1 +\s5 +\v 6 इसलिए मैं इस्राएल की सड़क को काँटे के साथ बाधित कर दूँगा, +\q1 और मैं उसके चारों ओर एक दीवार का निर्माण करूँगा, +\q2 कि वह जाने का मार्ग नहीं ढूँढ़ सके। +\q1 +\v 7 इस्राएल उसकी मूर्तियों के पीछे दौड़ेगी +\q2 परन्तु उसे वह नहीं मिलेंगे। +\q1 वह अपने झूठे देवताओं की खोज करेगी, +\q2 परन्तु उसे वह न मिलेंगे। +\q1 फिर, एक वेश्या के समान जो अपने पति के पास लौटना चाहती है, वह मुझसे कहेगी, ‘मैं आपके पास लौट आऊँगी, जिसे मैंने पहले प्रेम किया था, +\q2 क्योंकि मेरा जीवन तुम्हारे साथ अभी के तुलना में उत्तम था।’ +\q1 +\s5 +\v 8 लोग यह कहेंगे, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि यह मैं, यहोवा था, जिसने उन्हें अनाज, नया दाखरस और जैतून का तेल दिया था। +\q2 यह मैं था जिसने उन्हें बहुत चाँदी और सोना दिया था कि वे धनवान बन जाएँ। +\q1 परन्तु फिर उन्होंने उस सारे सोने और चाँदी को बाल की मूर्ति की पूजा में उपयोग करने के लिए प्रतिमाओं में ढाल दिया। +\q1 +\v 9 इस कारण मैं इस्राएल से उस सारे अनाज को ले लूँगा जो मैंने उन्हें दिया था। +\q2 जब गेहूँ की फसल कटाई करने के लिए तैयार है, तो मैं उन्हें इसे प्राप्त करने से रोकूँगा। +\q1 नया दाखरस जो मैंने उन्हें दिया, मैं इसे छीन ले जाऊँगा। +\q2 मैं उस सारे ऊन और सन के कपड़ों को छीन ले जाऊँगा जिन्हें मैंने उन्हें अपने लिए कपड़े बनाने के लिए दिए थे, +\q1 कपड़े जो उनके नग्नता को ढकते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 मैं इस्राएल के साथ ऐसे व्यवहार करूँगा जैसे एक आदमी अपनी पत्नी के साथ व्यवहार करता है जब वह उसे अन्य पुरुषों के साथ पाता है। +\q1 मैं उसे उसके प्रेमी के सामने नंगा कर दूँगा। +\q2 कोई भी उसे उस व्यवहार से बचाने में सक्षम नहीं होगा जो मैं उसके साथ करूँगा। +\q1 +\v 11 मैं इस्राएलियों को उनके उत्सवों को मनाना बन्द करवा दूँगा; +\q2 वे हर वर्ष अपने पर्वों को मनाना बन्द कर देंगे। +\q1 वे अब हर महीने के आरम्भ का उत्सव नहीं मनाएँगे। +\q2 वे अब सब्त के दिनों का उत्सव नहीं मनाएँगे। +\q1 वे अब पूरे वर्ष निर्धारित पर्वों को मनाने में सक्षम नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 12 मैं इस्राएल की सारी अँगूर की बेलों और सारे अंजीर के पेड़ों को नष्ट कर दूँगा। +\q2 ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्राएल ऐसी स्त्री के समान है जो कहती है, ‘ये वे चीजें थीं जो मेरे प्रेमी ने मुझे उपहार में दी थीं।’ +\q1 मैं, यहोवा, उन स्थानों को जंगल में बदल दूँगा, एक झाड़ी जिसमें कोई दाखलता नहीं बढ़ सकती है, +\q2 और जहाँ जंगली पशु वहाँ उगने वाले किसी भी फल को चर डालेंगे।’ +\q1 +\v 13 मैं इस इस्राएल नाम की स्त्री को दण्ड दूँगा क्योंकि उसने कई बार बाल की मूर्तियों की पूजा करने के लिए धूप जलाया था। +\q1 उसने स्वयं को अँगूठियों और गहनों से सजाया, जैसे कि एक वेश्या अपने प्रेमी के लिए स्वयं को सजाती है। +\q2 वह अपने प्रेमी के पीछे जाती है, जैसे इस्राएल बाल के पीछे चला गया है, उन झूठे देवताओं के जिनकी उसने पूजा की थी। +\q2 और वह मेरे विषय में भूल गई।” यहोवा यही कहते है। +\q1 +\s5 +\v 14 “मैं उसे जंगल में ले जाऊँगा और उसे बताऊँगा कि मैं उससे प्रेम करता हूँ। +\q मैं उसे फिर से प्रेम करने के लिए राजी करूँगा। +\v 15 मैं उसकी दाख की बारियाँ एक बार फिर उसे दे दूँगा, +\q2 और आकोर की घाटी में मैं एक बार और उसका आशा करने का कारण बनूँगा। +\q1 वह मुझे प्रेम और प्रसन्नता के साथ उत्तर देगी, जैसे यह पहले के दिनों में था जब आरम्भ में हमने एक दूसरे से प्रेम किया था, +\q1 जब मैंने उसे मुक्त कर दिया, और वह मिस्र से बाहर आई। +\q1 +\s5 +\v 16 उस समय, +\q2 इस्राएल मुझे पुकारेगा, ‘मेरे पति,’ जैसे एक स्त्री उसके मनुष्य पति से कहती है। +\q2 वह अब किसी देवता को नहीं पुकारेगी, ‘मेरे बाल’, परन्तु वह मुझे ‘मेरे पति’ के रूप में पुकारेगी। +\q1 +\v 17 मैं इस्राएल को उन बाल की छवियों के नाम बोलने की अनुमति नहीं दूँगा जिनकी वह उपासना करती थी। +\q2 मेरे लोग उस बाल और उसकी मूर्तियों के नाम भूल जाएँगे, और मेरे इस्राएली लोग फिर कभी उनकी उपासना नहीं करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 18 उस समय मैं उनके लिए एक वाचा बाँधूँगा: +\q2 यह सभी जंगली पशुओं और पक्षियों के साथ होगा, +\q2 और यहाँ तक कि भूमि पर रेंगने वाले छोटे पशुओं के साथ भी। +\q2 वे फिर कभी भी मेरे लोगों को हानि नहीं पहुँचाएँगे। +\q1 मैं युद्धों से लड़ने के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी हथियारों को हटाने का प्रतिज्ञा करूँगा, +\q2 धनुष और तीर, तलवारें, और हर युद्ध, मैं उन सबको दूर ले जाऊँगा और उन सभी को नष्ट कर दूँगा। +\q1 और मैं अपने सभी लोगों को आरामदायक शान्ति दूँगा; +\q2 वे अब और नहीं डरेंगे। +\q1 +\s5 +\v 19 इस्राएल, तू सदा के लिए मेरी पत्नी के समान हो जाएगी। +\q2 मैं स्वयं तुझसे जो सही है वह करने, और जो न्यायपूर्ण है उससे प्रेम करने का प्रतिज्ञा करता हूँ। +\q2 मैं तुझे प्रेम करने का और तुझे दया दिखाने का प्रतिज्ञा करता हूँ, भले ही तू इसके योग्य न हो। +\q1 +\v 20 मैं तेरे, इस्राएल के, साथ अपना प्रतिज्ञा पूरा करूँगा। मैं कभी तुझसे झूठ नहीं बोलूँगा; +\q2 और तुम मुझे जान लोगे, मेरा नाम यहोवा है। +\q1 +\s5 +\v 21 उस समय, +\q2 मैं तेरी सहायता करूँगा,” यहोवा कहते है। +\q1 “मैं आकाश को एक आदेश दूँगा, +\q2 और आकाश भूमि पर वर्षा उण्डेलेगा। +\q1 +\v 22 और भूमि अनाज, नया दाखरस और जैतून के पेड़ उपलब्ध कराएगी, और वे इस्राएल के लोगों के लिए बढ़ेंगे। +\q1 +\s5 +\v 23 उस समय, मैं इस्राएलियों का ध्यान रखूँगा +\q2 एक किसान पौधों के रूप में अपनी भूमि और अपनी फसलों का ध्यान रखता है। +\q1 मैं उन लोगों को अपना प्रेम दिखाऊँगा जिन्हें मैंने कहा था ‘मेरे लोग नहीं’। +\q2 और जिन्हें मैंने ‘मेरे लोग नहीं’ कहा था, +\q1 अब मैं एक नए नाम से पुकारूँगा, ‘तुम मेरे लोग हो’। +\q2 वे मुझसे कहेंगे, ‘आप हमारे परमेश्वर हो।’” + +\s5 +\c 3 +\p +\v 1 तब यहोवा ने मुझसे कहा, “जा और एक स्त्री से प्रेम कर, भले ही वह किसी और व्यक्ति द्वारा प्रेम की जाती है, और वह अपने पति से भी विश्वासघाती है। तू मेरे जैसा होगा, क्योंकि मैं इस्राएल के लोगों से प्रेम करता हूँ, भले ही वे अन्य देवताओं की उपासना करते हैं और उनके सम्मान में किशमिश की टिकिया खाते हैं।” +\p +\v 2 भले ही किसी अन्य व्यक्ति के स्वामित्व में, वह एक दास थी, मैंने उसे 170 ग्राम चाँदी, और 330 किलो जौ में मोल लिया। +\v 3 तब मैंने उससे कहा, “तू अब से मेरे साथ रहेगी। अब तू एक वेश्या नहीं रहेगी जो विभिन्न पुरुषों के साथ जाती है। तू किसी अन्य व्यक्ति की नहीं, केवल मेरी होगी, और मैं तेरे प्रति विश्वसनीय रहूँगा और मैं अपने सम्पूर्ण जीवन में तेरे साथ रहूँगा।” +\p +\s5 +\v 4 जब मैं इन चीजों को करता हूँ, यह दिखाता है कि इस्राएल के लोग लम्बे समय तक जीते रहेंगे और उनके ऊपर कोई राजा शासन नहीं करेगा। उनके पास कोई राजकुमार, कोई बलिदान या स्तम्भ उनके घरों में उपासना करने, एपोद या मूर्तियों के लिए नहीं होगा। +\v 5 कुछ समय बाद, इस्राएल के लोग यहोवा के पास लौट आएँगे; वे आशा करेंगे कि वह उन्हें वापस ग्रहण करेगा। वे आशा करेंगे कि दाऊद के वंशज में से एक उनके लिए फिर से राजा हो। अन्त के दिनों में, वे यहोवा का आदर करने के लिए उनके पास आएँगे और उनके प्रति उनकी भलाई के कारण उनके सामने थरथराएँगे। + +\s5 +\c 4 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा के पास तुम्हारे लिए जो सन्देश है उसे सुनो। +\q2 “हे इस्राएल के लोगों, यहोवा तुम पर आरोप लगा रहे है, तुम जो इस जगह में रहते हो।” +\q1 वह कहते है, “मुझे यहाँ ऐसा कोई भी नहीं मिला जो सच बोलता हो। +\q2 मैं किसी को भी नहीं देखता जो मुझसे प्रेम करता हो। +\q1 तुम में से कोई भी निष्ठापूर्वक नहीं कह सकता है कि वो मुझे जानता है। +\q1 +\v 2 तुम श्राप देते हो और झूठ बोलते हो, तुम मारते हो और चोरी करते हो, और तुम व्यभिचार करते हो। +\q1 तुमने हर कानून तोड़ दिया है, +\q2 और तुम एक के बाद एक हत्या करते हो। +\q1 +\s5 +\v 3 लोग जो कर रहे हैं, उसके कारण भूमि अब निर्जल है। +\q2 हर जीव जो यहाँ रहता है मर रहा है, +\q1 मैदान पर रहने वाले पशुओं से ले कर, +\q2 आकाश में उड़ने वाले पक्षियों तक; +\q1 यहाँ तक की समुद्र की मछलियाँ, वे भी मर रही हैं। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु तुमको इस परेशानी के लिए किसी और पर आरोप नहीं लगाना चाहिए। +\q2 तुम्हें किसी अन्य व्यक्ति को सही करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए; किसी के पास यह अधिकार नहीं है, क्योंकि हर कोई दोषी है। +\q1 और मैं याजकों पर भी आरोप लगा रहा हूँ। +\v 5 तुम याजक दिन के दौरान पाप करते हो +\q2 और तुम्हारे साथ के भविष्यद्वक्ता रात में पाप करते हैं। +\q1 मैं तुमसे प्रतिज्ञा करता हूँ, मैं इस्राएल को नष्ट कर दूँगा, जो तुम्हारे लिए एक माँ के समान है। +\q2 +\s5 +\v 6 मेरे लोग नाश हो रहे हैं क्योंकि तुम याजकों ने मुझे समझने से मना कर दिया है। +\q1 और तुम मुझे इतना छोटा क्यों समझते हो? क्योंकि तुमने उन चीजों को अस्वीकार कर दिया है जिनका मैंने तुमको निर्देश दिया था। +\q2 तो मैं तुमको याजक होने से अस्वीकार कर रहा हूँ। +\q1 देखो कि तुम क्या भूल गए हो, तुम उन निर्देशों को भूल गए हो जो मैं ने, तुम्हारे परमेश्वर ने तुमको दिए थे। +\q2 क्योंकि तुम मुझे भूल गए हो, मैं तुम्हारे बच्चों को भूल जाऊँगा। +\q1 +\v 7 तुम जितने अधिक लोग याजक बन जाते हो, +\q2 उतना अधिक तुम उन चीजों को करते हो जिन्हें मैंने मना किया है। +\q1 तुमने मुझे लज्जित होने के लिए छोड़ दिया है। +\q1 +\s5 +\v 8 जब अन्य लोग पाप करते हैं, तो वे मेरे पास बलिदान लाते हैं, जिनमें से कुछ तुम खाते हो। +\q2 इसलिए तुम चाहते हो कि लोग अधिक से अधिक पाप करें। +\q1 +\v 9 मैं तुम याजकों को दण्ड दूँगा जैसे मैं लोगों को दण्डित करता हूँ। +\q2 मैं तुम्हारे व्यवहारों के लिए तुम सभी को दण्ड दूँगा; +\q2 मैं तुम्हारे द्वारा किए गए सारे दुष्ट कर्मों के लिए तुम सभी को वापस भुगतान करवाऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 तुम सभी खाना खाओगे, परन्तु तुम्हें कभी भी पर्याप्त नहीं मिलेगा। तुम सदा भूखे रहोगे। +\q2 वे अन्य महिलाओं के साथ सोते रहेंगे, परन्तु महिलाएँ गर्भधारण नहीं करेंगी, +\q1 क्योंकि तुम सब ने मुझे, यहोवा को, छोड़ दिया है। +\q1 +\s5 +\v 11 तुम मना किये गए यौन कार्यों को करना, +\q2 और दाखरस और नए दाखरस को पीना पसन्द करते हो। +\q2 इन सभी चीजों ने गलत और सही को जानना तुम्हारे लिए असम्भव बना दिया है। +\q1 +\v 12 मेरे अपने लोग लकड़ी के टुकड़े से बनी मूर्ति से प्रार्थना करते हैं। +\q2 वे अपनी चलने वाली लाठी से उन्हें यह बताने के लिए पूछते हैं कि उन्हें किस दिशा में जाना चाहिए। +\q1 वे सदा यौन रीतियों से पाप करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने मेरी अर्थात् उस परमेश्वर की बात मानना बन्द कर दिया है, जिसकी उनको आराधना करनी चाहिए। +\q2 +\s5 +\v 13 वे पर्वतों की चोटी वाले उन स्थानों पर अन्य देवताओं की उपासना करते हैं जहाँ उन्होंने मूर्तियों की स्थापना की है। वे उन पहाड़ियों की चोटी पर उन मूर्तियों के लिए चढ़ावे को जलाते हैं, +\q1 उन सभी स्थानों पर, बांज वृक्षों, चिनार के वृक्षों और छोटे बांज वृक्षों की छाया में, जहाँ वे उन मूर्तियों की पूजा करते हैं। +\q2 क्योंकि ये पेड़ अच्छी छाया देते हैं। +\q1 तुम्हारे उदाहरण को देखते हुए, तुम्हारी पुत्रियों ने वेश्या बनने का निर्णय किया, +\q2 और तुम्हारी बहुओं ने व्यभिचार किया। +\q1 +\v 14 परन्तु मैं महिलाओं को वेश्यावृत्ति की ओर जाने के लिए दण्डित नहीं करूँगा, +\q1 या तुम्हारी बहुओं को जब वे व्यभिचार करती हैं। +\q2 यह पुरुष लोग ही हैं जो ठीक इसी प्रकार का कार्य कर रहे हैं। +\q1 पुरुष वेश्याओं के साथ सोते हैं, +\q2 और वे उन मूर्तियों के भवनों में बलि चढ़ाते हैं जहाँ वेश्याएँ होती हैं। +\q2 यह सच है, “एक जाति जो वैसे नहीं रहती है जैसा उनको सिखाया गया था, तो वे नाश हो जाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 15 इस्राएल, तू मुझे छोड़ कर मूर्तियों के पास गया है। +\q1 परन्तु मुझे आशा है कि यहूदा ऐसा कार्य नहीं करेगा। +\q2 हे यहूदा के लोगों, तुम गिलगाल में मत जाओ। मूर्तियों की उपासना करने के लिए वहाँ बेतावेन तक मत जाओ। +\q1 गम्भीर शपथ न खाओ, अपनी प्रतिज्ञाओं को अच्छा करने के लिए मुझे न पुकारो, और न अपनी वाचाओं में इन वचनों को जोड़ो, ‘यहोवा के जीवन की शपथ।’ +\v 16 इस्राएल एक युवा गाय के समान हठीला है। +\q2 क्या अब मैं उन्हें वैसे खिला सकता हूँ जैसे कि जब वे घास के मैदान में छोटे भेड़ के बच्चे थे? +\q1 +\s5 +\v 17 एप्रैम मूर्तियों में सम्मिलित होने के लिए चला गया है। +\q2 उन लोगों को अकेला छोड़ दो। +\v 18 जब वे अपने सभी नशीले पेय पीना समाप्त कर लेंगे +\q2 तब वे और भी अधिक यौन पापों को करेंगे। +\q2 उनके शासकों को इन लज्जापूर्ण कार्यों को करना अच्छा लगता है। +\v 19 कोई उन पर आक्रमण करेगा; वह एक बवण्डर के समान होगा जो उन्हें ऊपर उठाता है और उन्हें दूसरे स्थान पर उठा ले जाता है। +\q2 केवल तभी वे लज्जित होंगे क्योंकि उन्होंने मूर्तियों को बलिदान चढ़ाया था।” + +\s5 +\c 5 +\q1 +\p +\v 1 “हे याजकों, तुम सुनो। +\q2 हे इस्राएल के लोगों, तुम ध्यान दो। +\q1 और तुम राजा के परिवार के सदस्यों, तुमको भी सुनने की आवश्यकता है। +\q2 क्योंकि मैं तुम सभी को दण्डित करूँगा। +\q1 तुमने जो कार्य किया है वह मिस्पा में रहने वाले लोगों के लिए जाल के समान है। +\q2 तुमने जो कार्य किया है वह ताबोर पर्वत पर रहने वाले लोगों को पकड़ने के लिए बिछाए गए जाल के समान हो गया है। +\v 2 मेरे विरुद्ध विद्रोह करने वालों ने अब इतने सारे लोगों को मार डाला है कि वे उनके खून की गहराई में खड़े हैं। मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं उन सबको दण्ड दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 3 तुम, इस्राएल के केन्द्र एप्रैम में रहने वाले लोगों, मैं तुमको जानता हूँ। +\q2 हे इस्राएल के लोगों, मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि तुम किसके समान हो। +\q1 एप्रैम में रहने वाले लोगों, तुमने वेश्याओं के समान कार्य किया है। +\q2 हाँ, तुम इस्राएल में रहने वाले लोग अशुद्ध हो। +\q1 +\v 4 एप्रैम और इस्राएल ने जो किया है, उसके लिए वे मुझसे क्षमा माँगने में सक्षम नहीं हैं। +\q1 उन्होंने अविश्वासी और अनैतिक होने का चयन किया है, +\q2 और वे मुझे, यहोवा को, नहीं जानते।” +\q1 +\s5 +\v 5 इस्राएल गर्व में है; इस कारण से कि दूसरों को पता है कि वह कितनी दोषी है। +\q2 इस्राएलियों ने जो पाप किए हैं, वे उन्हें यहोवा के प्रति अविश्वासी बना रहे हैं। +\q2 यहूदा भी अविश्वासी बन रहा है। +\q1 +\v 6 वे आशा कर रहे हैं कि वे यहोवा को उन पर दया करने के लिए राजी कर लेंगे। +\q2 वे भेड़ और मवेशियों को उनके झुण्डों में से बलिदान चढ़ाने के लिए ला रहे हैं। +\q1 परन्तु वे पाएँगे कि यहोवा उन पर कोई दया नहीं करेंगे +\q2 क्योंकि उन्होंने उनकी सहायता करना बन्द कर दिया है; वह उन्हें अकेला छोड़ रहे हैं। +\q1 +\v 7 उन्होंने यहोवा से अपने किये गए वादे पूरे नहीं किए। +\q2 और उनके पास विदेशी महिलाओं द्वारा पैदा हुए बच्चे हैं। +\q1 इसलिए नए चँद्रमा वाले पर्वों के समय, +\q2 वे अपने जुते हुए खेतों के साथ नष्ट हो जाएँगे।” +\q1 +\s5 +\v 8 यहोवा कहता है, “गिबा के नगर में नरसिंगे फूँको। +\q2 रामा के शहर में तुरही फूँको। +\q1 बेतावेन शहर में एक युद्ध की ललकार करो। +\q2 हे बिन्यामीन गोत्र के लोगों, युद्ध में हमारी अगुवाई करो। +\q1 +\v 9 मैं एप्रैम के लोगों को दण्ड दूँगा और उनके नगर को मलबे के ढेर में बदल दूँगा। +\q2 यह इस्राएल के गोत्रों के लिए मेरा प्रतिज्ञा है, मैं तुम सबसे यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं ऐसा करूँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 यहूदा के अगुवे उन लोगों जैसे बुरे हैं जो सीमा के चिन्हों को बढ़ाकर खेत की भूमि चुराते हैं; +\q2 वे उस भूमि की चोरी करते हैं जो उनकी नहीं है। +\q1 मैं उन्हें ऐसे रीति से दण्ड दूँगा जो उन्हें नष्ट कर देगा। +\q1 +\v 11 एप्रैम को बहुत पीड़ा होगी; जब मैं उन्हें दण्डित करूँगा तो लोग नाश हो जाएँगे, +\q2 क्योंकि वे मूर्तियों की उपासना करना निर्धारित कर चुके थे। +\q1 +\s5 +\v 12 मैं एप्रैम को ऐसे नाश करूँगा जैसे एक कीड़ा ऊन को नष्ट कर देता है; +\q2 मैं यहूदा को ऐसे नाश करूँगा जैसे सड़ाहट लकड़ी को नष्ट कर देती है। +\q1 +\v 13 जब एप्रैम के लोगों ने महसूस किया कि वे कितने निर्बल थे, +\q2 तब उन्होंने अश्शूर के लोगों से सहायता माँगी। +\q1 जब यहूदा के लोगों को महसूस हुआ कि वे कितने कमजोर थे, +\q2 उन्होंने अश्शूर के महान राजा के पास दूत भेजे। +\q2 परन्तु वह तुम लोगों की सहायता नहीं कर सका; +\q1 वह तुम लोगों को फिर से मजबूत नहीं कर सका। +\q1 +\s5 +\v 14 मैं इस्राएल में रहने वाले एप्रैम के लोगों के लिए सिंह के समान बन जाऊँगा; +\q2 मैं यहूदा के लोगों के लिए एक युवा सिंह के समान बन जाऊँगा। +\q1 मैं उन्हें नष्ट कर दूँगा और उन्हें त्याग दूँगा; +\q1 मैं उन्हें उठा कर बहुत दूर ले जाऊँगा, +\q2 और कोई भी उन्हें बचाने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 +\v 15 तब मैं वापस वहाँ जाऊँगा जहाँ से मैं आया था; +\q2 वहाँ से मैं उनके द्वारा यह स्वीकार करने की प्रतीक्षा करूँगा कि उन्होंने पाप किया है; +\q1 मैं उनके आने की और उनका मुझसे सहायता माँगने की प्रतीक्षा करूँगा।” + +\s5 +\c 6 +\q1 +\p +\v 1 लोग कहते हैं, “आओ, हम यहोवा के पास लौट जाएँ। +\q1 उन्होंने हमारे माँस को टुकड़े-टुकड़े कर दिया है जैसे सिंह अपने शिकार को फाड़ देता है। +\q2 उन्होंने ऐसा किया, परन्तु वो हमारे घावों को ठीक करेगें। +\q1 उन्होंने हमें चोट पहुँचाई है और हमें गिरा दिया है, +\q2 परन्तु वो हमारे घावों का उपचार करेंगे और उन्हें बाँध देंगे कि वे ठीक हो जाएँगे। +\q1 +\v 2 दूसरे दिन के बाद वो हमारी शक्ति पुनर्स्थापित करेंगे; +\q2 और तीसरे दिन वो हमें उठा कर खड़ा करेंगे, +\q2 तब हम उनके निकट जीवित रहेंगे। +\q1 +\v 3 यहोवा को जानने का प्रयास करो; +\q2 उनके प्रति निष्ठावान बनने के लिए जो कुछ तुम कर सकते हो वह सब करो। +\q1 यह कल के सूर्योदय के समान निश्चित है +\q2 कि वो हमारे पास आएँगे; वो वर्षा के समान हमारे पास आएँगे, +\q1 जैसे वसन्त ऋतु में वर्षा हमारे खेतों में आती है।” +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु यहोवा कहते हैं, “हे एप्रैम के लोगों, मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूँ? +\q2 हे यहूदा गोत्र के लोगों, मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूँ? +\q1 तुम मुझे बस तब तक प्रेम करते हो जैसे कि दोबारा गायब होने से पहले सुबह बादल आते हैं। +\q2 तुम मुझे बस तब तक प्रेम करते हो जैसे कि गर्म सूरज के चमकने से पहले ओस रहती है। +\q1 +\v 5 मैंने अपने भविष्यद्वक्ताओं को तुम्हारे पास भेजा, +\q2 और ऐसा लगता था कि मैंने तुमको टुकड़ों में काट दिया था, जब उन्होंने उन सन्देशों को बोला जो मैंने उन्हें दिए थे। +\q1 जो उन्होंने तुमसे कहा था उससे तुम नाश हो गए थे। +\q2 ऐसा लगता था जैसे कि मैंने तुमको उन शब्दों से मार डाला था जो मैंने तुमसे बोले थे। +\q1 मैंने इस विषय में बात की कि मैं तुमको कैसे दण्ड दूँगा। +\q2 मैंने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा तुमसे कहा था कि मैं तुमसे क्रोधित था, और उन्होंने तुमको यह बताया।” +\q1 “हे यहोवा, आप ऐसा होने की आज्ञा दे कर उनको दण्डित करेंगे; +\q2 तेरे शब्द गिरती बिजली के समान हैं।” +\q1 +\s5 +\v 6 यहोवा कहते है, “मैं चाहता हूँ कि तुम सदा मेरे प्रति निष्ठावान रहो। +\q2 जितना मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे बलिदान चढ़ाओ उससे अधिक मैं यह चाहता हूँ। +\q1 कि तुम मुझे जान लो, वह मेरे लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है +\q2 उससे जब तुम मुझे चढ़ावा देते हो जिसे याजक वेदी पर जलाता है। +\q1 +\v 7 परन्तु पहले व्यक्ति, आदम की तरह, +\q2 वह वाचा जो उन्होंने मेरे साथ बाँधी थी और मैं, यहोवा ने, उनके साथ बाँधी थी, उन्होंने इसे तोड़ दिया। +\q2 जब उन्होंने ऐसा किया, वे मेरे प्रति निष्ठावान नहीं थे। +\q1 +\s5 +\v 8 गिलाद उन लोगों का एक शहर है जो दुष्ट कार्य करते हैं; +\q2 उस शहर की सड़कों पर हत्यारों के पैरों के चिन्ह हैं। +\q1 +\v 9 जैसे लुटेरों ने छिपने की और फिर उनके पास से किसी आने जाने वाले को लूटने की योजना बनाई है, +\q2 वैसे ही याजक भी हैं, वे लुटेरों के समान एक साथ दल बना कर योजनाएँ बनाते हैं, +\q1 और वे शेकेम के रास्ते में हत्या करते हैं। +\q2 वे भयानक अपराध करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 10 इस्राएल के लोगों में, मैंने एक भयानक बात देखी है, +\q2 एप्रैम के लोग हर जगह मूर्तियों की उपासना करते हैं। +\q1 इस्राएल के लोग जो कुछ भी वे कर चुके हैं, उसके कारण गन्दे हो गए हैं। +\q1 +\v 11 और यहूदा के लोगों, तुम्हारे लिए भी, +\q2 मैंने तुम्हारे लिए एक समय निर्धारित किया है जब मैं तुम्हारे बुरे लोगों से तुम्हारे अच्छे लोगों को अलग कर दूँगा। +\q1 बिलकुल जैसे कटाई के समय जब तुम सारी फसलों को काट लेते हो, +\q2 और तुम अच्छे को रख लेते हो और बुरे को फेंक देते हो, +\q1 हे यहूदा के लोगों, यही है जो तुम्हारे लिए आ रहा है। +\q1 वह वही दिन होगा जब मैं अपने लोगों की आशीष और उनके धन को एक बार फिर वापस ले आऊँगा।” + +\s5 +\c 7 +\q1 +\p +\v 1 जैसे ही मैं इस्राएल को ठीक करने का प्रयास करता हूँ, +\q2 लोग स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि वे पाप कर रहे हैं, +\q1 और सामरिया शहर में रहने वाले लोग एक ही कार्य दिखाते हैं। +\q2 वे अपनी मोल ले और बिक्री में झूठ बोलते हैं और धोखा देते हैं; +\q1 वे कानून विरोधी पुरुषों के समान हैं जो सड़कों पर चल रहे लोगों पर आक्रमण करते हैं। +\q1 +\v 2 परन्तु वे सोचने के लिए एक पल नहीं लेते कि मैं, यहोवा, जो कुछ भी वे करते हैं उसे देखता हूँ। +\q2 हर एक जगह जहाँ वे जाते हैं, वे बुराई करते हैं, +\q1 और मैं इस सबको देखता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 3 वे जो दुष्ट कार्य करते हैं, वे अपने राजा को प्रसन्न करने के लिए करते हैं, +\q2 और जब वे झूठ बोलते हैं तो राजा के अधिकारी आनन्दित होते हैं। +\q1 +\v 4 वे सभी यौनाचार रूप से अनैतिक हैं; +\q2 वे वासना से एक पकाने वाले के तन्दूर के समान जलते हैं जो बहुत जल रहा है; +\q1 एक बार जब वह उसमें आग लगा देता है, तो उसे उस पर और लकड़ी लगाने की आवश्यकता नहीं होती है, +\q1 जब तक कि वह रोटी सेंकने के लिए तैयार नहीं है। +\q1 +\v 5 राजा के पर्वों में, उसके अधिकारी अपमानजनक कार्यों को करते हैं क्योंकि वे दाखरस से नशे में हैं, +\q2 और राजा भी उनके साथ जुड़ जाता है जब वे मेरा मजाक बनाते हैं। +\q1 +\s5 +\v 6 परन्तु फिर इन ही अधिकारियों ने राजा की हत्या करने की योजना बनाने के विषय में तय किया। +\q2 वे पूरी रात शान्त रूप से क्रोध में हैं, +\q1 और सुबह में वे खुले तौर पर क्रोध में हैं। +\q1 +\v 7 वे सभी अधिकारी राजा पर इतना क्रोधित हो जाते हैं, +\q2 कि वे अपने सभी शासकों को मार डालें। +\q1 अन्त में, उनके सभी राजा मारे गए; +\q2 उनमें से एक ने भी मुझे, यहोवा को, सहायता करने के लिए नहीं पुकारा।” +\q1 +\s5 +\v 8 “इस्राएल अन्य लोगों के समूहों के साथ जुड़ता है, +\q2 परन्तु वे सभी लोग एक रोटी के समान हैं जो केवल एक ओर पकाई गई है; वे कमजोर हैं। +\q1 +\v 9 दूर से आए हुए लोगों ने इस्राएल की शक्ति को लूट लिया है। +\q2 राष्ट्र बहुत कमजोर हो रहा है, एक वृद्ध आदमी के समान जिसके बाल पक रहे हैं। +\q1 परन्तु राष्ट्र नहीं जानता कि वह कमजोर है। +\q1 +\s5 +\v 10 इस्राएल इतना घमण्डी है कि हर कोई इसे देखता है। +\q2 फिर भी, वे मेरे पास, उनके परमेश्वर यहोवा के पास वापस नहीं आएँगे। +\q1 वे उन पर दया करने के लिए मुझे मनाने का प्रयास नहीं करेंगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके साथ क्या होता है। +\q1 +\v 11 इस्राएल एक मूर्ख पक्षी, एक कबूतर के समान है, जिसे कोई भी सरलता से धोखा दे सकता है। +\q2 वह पहले मिस्र को पुकारता है, और फिर एक पक्षी की तरह, वह अश्शूर तक उड़ जाता है। +\q1 +\s5 +\v 12 परन्तु जब वे वहाँ जाने के रास्ते पर हैं, +\q2 मैं उन पर अपना जाल फैलाऊँगा, +\q2 मैं उन्हें नीचे ले आऊँगा जैसे एक शिकारी पक्षियों को हवा से जाल में नीचे ले आता है। +\q1 मैं उन सभी को एक साथ दण्ड दूँगा। +\q1 +\v 13 यह कितना भयानक होगा +\q2 मेरे लोगों के लिए, क्योंकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया है। +\q1 वे नष्ट हो जाएँगे +\q2 क्योंकि उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है। +\q1 मैं उन्हें बचाना चाहता था, +\q2 परन्तु वे मेरे विरुद्ध झूठ बोलते रहे। +\q1 +\s5 +\v 14 वे मेरी दुहाई नहीं देते हैं; वे मुझे अपने हृदय से नहीं पुकारते हैं; +\q2 वे केवल अपने बिस्तरों पर लेटे हुए हाय-हाय करते हैं और रोते हैं। +\q1 वे अपनी मूर्तियों से उनके अनाज और नया दाखरस माँगने के लिए एक साथ मिलते हैं। +\q2 उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया है। +\q1 +\v 15 भले ही मैंने उन्हें प्रशिक्षित किया और उन्हें मजबूत बनने में सहायता की, +\q2 अब भी वे मेरे विरुद्ध बुराई करने की योजना बना रहे हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 वे इधर उधर के रास्तों पर जाते हैं, परन्तु मेरे, सर्वोच्च परमेश्वर के पास, कभी नहीं आते। +\q2 वे एक ऐसे धनुष के समान हैं जो तीर नहीं चला सकता है। +\q1 उनके अधिकारी उनके शत्रुओं की तलवार से मारे जाएँगे; वे मर जाएँगे क्योंकि उन्होंने मुझे अपमानित किया है। +\q1 यही कारण है कि मिस्र के लोग उनका अपमान करेंगे।” + +\s5 +\c 8 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते हैं, “एक तुरही लो और इसे फूँको। +\q2 शत्रु मेरे लोगों पर झपटने को हो रहे हैं, +\q1 जैसे एक उकाब अपने शिकार पर झपटता है। +\q2 ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे लोगों ने उनके साथ मेरी वाचा को छोड़ दिया है +\q1 और मैंने जो कानून उन्हें दिया है उसका उल्लंघन किया है। +\q1 +\v 2 मेरे इस्राएल के लोग मुझे पुकार कर कहेंगे, +\q2 ‘हे हमारे परमेश्वर, हम तेरे प्रति निष्ठावान हैं।’ +\q1 +\v 3 परन्तु इस्राएल के लोगों ने जो अच्छा था उसे फेंक दिया है, +\q2 इसलिए उनके शत्रु उनका पीछा करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 4 इस्राएल ने अपने लिए राजा नियुक्त किए हैं, +\q2 परन्तु उन्होंने इसके विषय में मुझसे परामर्श नहीं किया। +\q1 उन्होंने अपने राजा चुने +\q2 बिना मुझसे पूछे कि उन्हें मैं मंजूरी दूँ। +\q1 उन्होंने अपना चाँदी और सोना लिया और उन्हें उन मूर्तियों में ढाल लिया जिसकी वे उपासना करते हैं, +\q2 परन्तु इसके परिणामस्वरूप लोग नष्ट हो जाएँगे।” +\v 5 भविष्यद्वक्ता कहता है, “हाँ, तुम सामरिया के लोगों, यहोवा ने तुम्हारी मूर्ति को अस्वीकार कर दिया है, एक बछड़े के रूप में बनाई गई मूर्ति को।” +\q1 यहोवा कहते हैं, “हो सकता है ये लोग कभी भी बुरे कार्यों को करने से निर्दोष नहीं होंगे। मैं उनसे बहुत क्रोधित हूँ। +\q2 +\s5 +\v 6 इसमें लज्जा की बात यह है कि यह मूर्ति इस्राएल से आई थी। एक शिल्पकार ने इसे बनाया था। +\q1 यह केवल एक मूर्ति है; यह सच्चा और जीवित परमेश्वर नहीं हो सकती है। +\q2 मैं यह सुनिश्चित कर दूँगा कि कोई इसे टुकड़ों में तोड़ दे। +\q1 +\v 7 ऐसा इसलिए है क्योंकि ये लोग बेकार के कार्य करते हैं, इसलिए कुछ भयानक उन्हें नष्ट कर देगा। +\q2 खेतों में खड़ी उनकी फसल कोई अनाज नहीं देंगी। +\q1 और यदि वह अनाज देते भी हैं, तो जो कुछ भी पैदा होता है विदेशी सैनिक वह सब खा जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 8 अन्य राष्ट्रों ने इस्राएल की शक्ति को नष्ट कर दिया है। +\q2 अब इस्राएल एक पुराने, टूटे हुए बर्तन के समान है जिसे कोई भी नहीं चाहता है। +\q1 +\v 9 उन्होंने अश्शूर के राजा से सहायता माँगी; +\q2 वे एक जंगली गधे के समान थे जो स्वयं ही इधर उधर घूमता रहता है। +\q1 इस्राएल के लोगों ने उन्हें बचाने के लिए अन्य राष्ट्रों को भुगतान करने का प्रयास किया है। +\q1 +\v 10 हालाँकि वे ऐसा करते हैं, +\q2 मैं शीघ्र ही उन्हें नष्ट करने के लिए इकट्ठा करूँगा। +\q2 वे गरीब बनने लगेंगे क्योंकि उन्हें अश्शूर के राजा को पैसा देना होगा। +\q1 +\s5 +\v 11 एप्रैम के लोगों ने कई वेदियों का निर्माण किया है जिन पर उन्हें उनके पापों के लिए बलिदान चढ़ाने हैं; +\q2 हालाँकि, ये वेदियाँ ऐसी जगह बन गई हैं जहाँ लोग मेरे विरुद्ध भयानक पाप करते हैं। +\q1 +\v 12 भले ही मैं इस्राएल के लोगों के लिए मेरे नियम दस हजार बार लिखूँ, +\q2 वे उनका पालन करने से मना कर देंगे। +\q1 वे कहेंगे कि उन्होंने कभी उनके विषय में नहीं सुना था। +\q1 +\s5 +\v 13 आओ, उन बलिदानों के विषय में सोचें जो वे मुझे देते हैं। +\q2 वे माँस का चढ़ावा देते हैं और फिर वे इसे खाते हैं; +\q1 परन्तु मैं, यहोवा, उन बलिदानों से प्रसन्न नहीं हूँ। +\q2 मैं उनके पापों के विषय में विचार करूँगा और उनके लिए लोगों को दण्ड दूँगा। +\q1 मैं उन्हें वापस मिस्र में भेज दूँगा। +\q1 +\v 14 और यह क्यों हुआ? +\q2 इस्राएल के लोग मुझे भूल गए हैं, उस परमेश्वर को जिसने उन्हें एक राष्ट्र बनाया। मेरा आदर करने की अपेक्षा, उन्होंने स्वयं के रहने के लिए विशाल घर बना लिए हैं। +\q1 और यहोवा की उपासना करने की अपेक्षा, यहूदा के लोगों ने सुरक्षा के लिए अपने शहरों के चारों ओर दीवारें बनाई हैं। +\q2 यह वही है जो मैं, यहोवा करूँगाः +\q1 मैं एक आग भेजूँगा जो उनके सभी महलों और उनके सभी गढ़ वाले शहरों को नष्ट कर देगी।” + +\s5 +\c 9 +\q1 +\p +\v 1 होशे यह कहता हैः हे इस्राएल, आनन्दित मत हो; अन्य लोगों के समूहों के समान उत्सव मत मनाओ। +\q2 तुम अपने परमेश्वर के साथ विश्वासघाती रहे हो। जो कुछ उसने तुमसे कहा है, तुमने वह करने से मना कर दिया है। +\q1 हर जगह जहाँ लोग अपने अनाज को बालों में से अलग करते हैं, +\q2 तुम उन मूर्तियों को अपने चढ़ावे और बलिदान देते हो। +\q1 तुम ऐसे पुरुषों के समान हो जो महिलाओं के साथ सोने के लिए पैसे देते हैं। +\q1 +\v 2 अब तुम्हारे पास तुम्हारे लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त अनाज या दाखरस नहीं होगा। +\q2 तुमको किसी भी नई दाखरस की कोई आशा नहीं होगी, क्योंकि दाखलताएँ तुमको निराश करेंगी। +\q1 +\s5 +\v 3 इस्राएल के लोग उस देश में नहीं रहेंगे जो यहोवा ने स्वयं चुना है। +\q2 इसकी अपेक्षा, वे एक दिन मिस्र वापस जाएँगे। +\q1 और अश्शूर में उन्हें उस तरह का खाना खाना पड़ेगा जिसे परमेश्वर ने उन्हें खाने के लिए मना किया था। +\q1 +\v 4 अब वे यहोवा को चढ़ाने के लिए दाखरस नहीं उण्डेलेंगे; +\q2 उनके बलिदान उसे बिलकुल आनन्दित नहीं करेंगे। +\q2 उनके बलिदान परमेश्वर के लिए ऐसे अस्वीकार्य होंगे जैसे वह भोजन जो लोग अंतिम संस्कार में खाते हैं; +\q1 और जो कोई भी वह खाना खाता है वह परमेश्वर के लिए अस्वीकार्य हो जाता है। +\q1 बिलकुल वही खाना वे सब खाएँगे; +\q2 वे इसे यहोवा के भवन में ला कर उसे चढ़ाने में सक्षम नहीं होंगे। +\q1 +\s5 +\v 5 वहाँ, अपने घर से दूर एक देश में, तुम उन पर्वों का उत्सव मनाने में सक्षम नहीं होओगे जिन्हें मनाने का यहोवा ने तुमको आदेश दिया था। +\q1 +\v 6 देखो, यदि तुम बच जाते हो और अश्शूरी तुमको नहीं मारते हैं, +\q2 मिस्र की सेना तुमको पकड़ लेगी। +\q2 तुम वहाँ मरोगे, और मोप शहर के लोग तुम्हें दफन करेंगे। +\q1 तुम्हारी चाँदी की सारी सम्पत्ति ढक जाएगी +\q1 और खो जाएगी जब रेगिस्तानी पौधे तुम्हारे घरों में उगते हैं और उसे ढाँप लेते हैं। +\q1 +\s5 +\v 7 अब परमेश्वर के लिए तुमको दण्डित करने का समय है; +\q2 वह समय आ गया है जिसमें परमेश्वर तुम्हारे द्वारा किए गए हर एक पाप के लिए तुमको वापस भुगतान करेगें। +\q2 और इस्राएल के सभी लोग यह जान लें कि ये बातें घटित होंगी। +\q1 इसलिए तुम्हारे झूठे भविष्यद्वक्ता मूर्ख हैं, +\q2 और जिन्हें तुम परमेश्वर से प्रेरित समझते थे वे वास्तव में पागल हैं। +\q1 ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने बहुत पाप किये हैं +\q2 और क्योंकि तुम यहोवा के शत्रु बन गए हो। +\q1 +\s5 +\v 8 सच्चे भविष्यद्वक्ता वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों की रक्षा करने के लिए नियुक्त किया है। +\q2 परन्तु जहाँ कहीं भी वे जाते हैं, दूसरे उनके लिए जाल बिछाते हैं; +\q2 यहाँ तक कि उनके परमेश्वर के भवन में भी, अन्य लोग उनसे घृणा करते है। +\q1 +\v 9 लोगों ने पाप करके स्वयं को अशुद्ध कर लिया है +\q2 जैसे कि इस्राएलियों ने बहुत पहले गिबा में किया था। +\q1 परमेश्वर उन दुष्ट कार्यों को नहीं भूलेंगे जो उन्होंने किये थे; +\q2 वह निश्चित रूप से उन्हें दण्डित करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा कहते हैं, “जब इस्राएल मुझे मिला था, तो यह जंगल में बढ़ने वाले अँगूरों को ढूँढ़ने वालों के जैसा था। +\q1 जब मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देखा, तो वे वर्ष में दिखाई देने वाले सबसे पहले अंजीर के समान थे, ऐसे अंजीर जो एक युवा अंजीर के पेड़ पर बढ़ रहे थे। +\q1 परन्तु जब वे पोर पर्वत पर आए, +\q2 उन्होंने स्वयं को पूरी तरह से उस घृणित बाल की मूर्ति को दे दिया, +\q2 और वे अपनी पसन्द की मूर्ति के समान घिनौने हो गए। +\q1 +\s5 +\v 11 एप्रैम का सम्मान एक पक्षी के समान है जो उड़ा जा रहा है। +\q1 मैं उनकी महिलाओं को ऐसा बना दूँगा कि वे जन्म नहीं दे सकें, कोई भी स्त्री गर्भवती नहीं होगी, और कोई भी गर्भ में बच्चे का गर्भधारण नहीं करेगी। +\q1 +\v 12 भले ही वे अपने आप से बच्चों का पालन पोषण न करें, +\q2 मैं उन्हें उनकी माँओं से ले लूँगा। +\q1 जो उनके साथ हो सकता है यह सबसे बुरा होगा, +\q2 जब मैं उन्हें छोड़ देता हूँ। +\q1 +\s5 +\v 13 मैंने इस्राएल के लोगों को देखा है; +\q2 वे सूर के समान थे; वे एक सुन्दर घास के मैदान में लगाए पेड़ के समान थे। +\q1 परन्तु उन्हें अपने बच्चों को अपने शत्रुओं के सामने ले जाना होगा, जो उन्हें मार देंगे।” +\q1 +\v 14 होशे कहता है, हे यहोवा, उन्हें दे-दे, +\q2 तुझे उनको क्या देना चाहिए? +\q1 उन्हें गर्भपात करने वाले गर्भ दे, +\q2 और होने दे कि उनकी माँओं के स्तनों में अपने बच्चों के लिए कोई दूध न हो। +\q1 +\s5 +\v 15 यहोवा कहते है, “मेरे लोगों द्वारा गिलगाल में किए गए सभी दुष्ट कार्यों के कारण, +\q2 वही जगह है जहाँ से मैंने उनसे घृणा करना आरम्भ कर दिया। +\q1 और उन सभी पापपूर्ण कर्मों के कारण जो उन्होंने किये हैं, +\q2 मैं उन्हें उनके निवासस्थान से बाहर निकाल दूँगा। +\q1 मैं उन्हें और प्रेम नहीं करूँगा; +\q2 उनके सभी अधिकारी मेरे विरुद्ध लड़ते हैं। +\q1 +\s5 +\v 16 एप्रैम एक दाखलता के समान है जो सूख गयी है +\q2 और कोई फल पैदा नहीं करती है। +\q1 यदि वे जन्म भी देते हैं, +\q2 मैं उन बच्चों को मार दूँगा जिन्हें वे प्रेम करते हैं।” +\q1 +\v 17 होशे कहता है, मेरे परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को अस्वीकार कर दिया है +\q2 क्योंकि उन्होंने उनका आज्ञापालन नहीं किया है, +\q1 और वे एक देश से दूसरे देश में भटकते फिरेंगे। + +\s5 +\c 10 +\q1 +\p +\v 1 इस्राएल एक बेल के समान है +\q2 जो अँगूर के कई गुच्छों का उत्पादन करती है। +\q1 परन्तु जैसे-जैसे उनके फल में वृद्धि हुई, वैसे-वैसे वे धनवान बन गए। +\q2 उस पैसे से उन्होंने अपनी मूर्तियों के सम्मान में अधिक पत्थर के खम्भे बनाए। +\q1 +\v 2 वे धोखेबाज हैं और उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है; +\q2 परन्तु समय आ गया है कि उन्हें अपने पापों के लिए भुगतान करना होगा। +\q1 यहोवा उनकी वेदियों को टुकड़ों में तोड़ देगा, +\q2 वे स्थान जहाँ उन्होंने अपनी मूर्तियों को बलिदान चढ़ाए हैं, +\q2 और वह उन खम्भों को नष्ट करने का प्रतिज्ञा करता है जिसके बगल में वे अपने झूठे देवताओं की उपासना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 वे कहते हैं, “अब हमारे पास कोई राजा नहीं है क्योंकि हमने यहोवा का आदर या सम्मान नहीं किया। +\q2 परन्तु भले ही यदि हमारे पास राजा होता, +\q2 राजा कैसे हमारी सहायता कर सकता था?” +\q1 +\v 4 इस्राएल के लोग झूठे प्रतिज्ञा करते और नकली वाचाएँ बाँधते हैं; +\q2 और क्योंकि उनके प्रतिज्ञा पूरे नहीं किये गए हैं, +\q1 उनका बिगड़ा हुआ न्याय लोगों को मारता है, जैसे कि एक खेत में विषैले धतूरे करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 5 बेतावेन में बछड़े की मूर्तियों के साथ जो हुआ, उसके कारण सामरिया के लोग डर से काँपते हैं। +\q2 उन मूर्तियों के साथ जो हुआ, उस पर वे लोग शोक करते हैं, +\q1 वैसा ही याजक ने भी किया जो उनकी सेवा करता था; +\q2 वे उन पर आनन्दित हुए थे और उनकी महिमा की प्रशंसा की थी, +\q1 परन्तु अब उन मूर्तियों को उनसे दूर ले जाया गया है। +\q1 +\v 6 उनकी मूर्तियों को अश्शूर ले जाया जाएगा +\q2 महान राजा के लिए एक उपहार होने के लिए। +\q1 इस्राएल के लोग अपमानित होंगे; +\q2 वे लज्जित होंगे +\q2 मूर्तियों से परामर्श करके प्राप्त सलाह में भरोसा करने के लिए। +\q1 +\s5 +\v 7 सामरिया का राजा मर जाएगा। +\q2 वह लकड़ी के एक छोटे टुकड़े के समान होगा जो एक धारा से दूर तैरता है। +\q1 +\v 8 पहाड़ियों के ऊँचे स्थान उनकी दुष्टता के लिए जाने जाते है, वेदियाँ जहाँ लोग मूर्तियों की उपासना करते थे, सब नष्ट हो जाएँगे। +\q2 काँटे और झाड़ियाँ बढ़ेंगी और सामरिया में उपस्थित सभी वेदियों को ढाँप लेंगी। +\q2 लोग पर्वतों से निवेदन करेंगे और कहेंगे, +\q1 “हमें छिपा लो।” +\q2 और पहाड़ियों से कहेंगे, “हम पर गिर पड़ो।” +\q1 +\s5 +\v 9 हे इस्राएल के लोगों, तुम गिबा के दिनों से पाप करते आ रहे हो; +\q2 ऐसा लगता है कि तुम तब से वहाँ रह रहे हो, क्योंकि तुम वैसा ही सोचते हो जैसा उन्होंने किया। +\q1 तुम बुरे कार्य करने वालों पर गिबा में शत्रु आक्रमण करेंगे। +\q1 +\s5 +\v 10 यहोवा कहते है, “जब मेरी इच्छा होगी, तो मैं उन्हें दण्ड दूँगा। +\q2 लोगों के समूह उनके विरुद्ध लड़ने के लिए एकत्र होंगे; +\q1 लोगों के वे समूह उन्हें पकड़ लेंगे और +\q2 उनके कई पापों के कारण उन्हें जंजीरों में बाँध देंगे। +\q1 +\v 11 एप्रैम एक सिखाए हुए बछड़े के समान है +\q2 जो अनाज को दाँवना, अनाज को भूसे से अलग करना पसन्द करता है, +\q1 और मैंने उसकी कोमल गर्दन पर भारी जुआ नहीं लगाया है। +\q2 परन्तु अब मैं एप्रैम को उस जूए के नीचे रखूँगा, +\q1 और यहूदा हल से जुताई करेगा। +\q2 और याकूब हेंगे से भूमि तोड़ेगा। +\q1 +\s5 +\v 12 अभी, हल से जुताई करो, और जो सही है वह करो, +\q2 और तुम निष्ठावान प्रेम के फल काटोगे। +\q1 बिना जुताई वाली भूमि को तोड़ने के लिए कड़ी परिश्रम करो, +\q2 क्योंकि अब तुम्हारे लिए यहोवा से तुम पर दया करने के लिए कहने का समय है, +\q1 कि वह आकर तुमको बचा सके क्योंकि वह वही कार्य करता है जो सही है। +\q1 +\v 13 तुमने दुष्टता से पाप किया है, और अब तुमको परिणाम भुगतना होगा। +\q2 तुमने झूठ कहा, और अब तुमको झूठ बोलने के परिणामों का सामना करना पड़ेगा। +\q1 तुमने अपनी क्षमता और ज्ञान पर भरोसा किया है, +\q2 और तुमने अपनी सेनाओं के सैनिकों पर भरोसा किया है। +\q1 +\s5 +\v 14 तुम्हारे लोगों के बीच में से युद्ध की आवाज होगी; +\q2 तुम्हारे सभी गढ़ वाले शहरों को नष्ट कर दिया जाएगा। +\q1 यह ऐसा होगा जब शल्मन ने युद्ध में बेतर्बेल को नष्ट कर दिया था, +\q2 जब माँओं ने अपने बच्चों को पकड़ रखा था तो उनकी हत्या हुई थी। +\q1 +\v 15 यही वह है जो तुम बेतेल शहर के लोगों के साथ होगा, +\q2 तुम्हारे द्वारा किए गए सभी बुरे कार्यों के कारण। +\q1 जब युद्ध सुबह आरम्भ होता है, +\q2 इस्राएल के राजा को नष्ट कर दिया जाएगा; शत्रु उसे मार डालेगा।” + +\s5 +\c 11 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते है, “जब इस्राएल का देश एक बच्चा था, तब मैंने उससे प्रेम किया। +\q2 वह मेरे लिए एक पुत्र के समान था, जिसे मैंने मिस्र से बुलाया था। +\q1 +\v 2 परन्तु जितना मैंने उन्हें बुलाया, +\q2 उतना अधिक वे दूर भाग गए। +\q1 एक दिन के बाद दूसरे दिन उन्होंने बाल नाम की मूर्तियों को अपने बलिदान चढ़ाए, +\q2 और उन्होंने उनको सम्मानित करने के लिए धूप जलाई। +\q1 +\s5 +\v 3 परन्तु यह मैं था जिसने उन्हें सब कुछ अच्छा करना सिखाया, जैसे एक पिता अपने पुत्र को चलना सिखाता है। +\q2 मैंने एक पिता की तरह, उन्हें उनकी छोटी बाँहों से पकड़ रखा था। +\q1 परन्तु वे समझ नहीं पाए कि वह मैं था जो उनकी देखभाल कर रहा था। +\q1 +\v 4 दया के साथ मैंने उनका मार्गदर्शन किया, मनुष्य दया की कोमलता के साथ मैंने उनका नेतृत्व किया। +\q2 मैं उन्हें इतना प्रेम करता था कि मैंने उन्हें निर्देशित किया और मेरे अपने हाथ से नेतृत्व किया। +\q1 एक हल खींचने वाले बैल के समान उन्होंने बहुत कठोर कार्य किया, परन्तु मैंने उनका जुआ हल्का बनाया और उसके वजन को उनके कंधों पर ढीला कर दिया, इसलिए उन्हें दर्द नहीं हुआ। +\q1 +\s5 +\v 5 परन्तु इस्राएल निश्चित रूप से मिस्र लौट आएगा, +\q2 और अश्शूर निश्चित रूप से उन पर शासन करेगा, +\q1 क्योंकि उन्होंने मेरे पास वापस आने और उनके परमेश्वर के रूप में मेरी आराधना करने से मना कर दिया। +\q1 +\v 6 उनके शत्रु तलवार से इस्राएल के शहरों पर आक्रमण करेंगे; +\q2 उनके शत्रु उन सलाखों को नष्ट कर देंगे जो उनके फाटकों को बन्द और सुरक्षित रखते थे। +\q2 उनके शत्रु इस्राएल के लोगों को नष्ट कर देंगे और उनके द्वारा बनाई गई सभी योजनाओं को नाश कर देंगे। +\q1 +\v 7 मेरे लोग मुझसे दूर जाने के लिए मन में ठान चुके हैं। +\q2 वे मुझे, सर्वोच्च परमेश्वर को पुकारने का ढोंग करते हैं, +\q2 परन्तु मैं किसी को भी उनकी सहायता करने की अनुमति नहीं दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 8 परन्तु तुम इस्राएल के लोगों, हे प्रिय इस्राएल, मैं तुमको नहीं त्याग सकता। +\q2 मैं तुमको तुम्हारे शत्रुओं के वश में नहीं करवा सकता। +\q1 मैं तुम्हारे प्रति कार्य नहीं करना चाहता जैसे मैंने अदमा के साथ कार्य किया है या तुमको सबोयीम के समान कर दूँ, +\q2 वे शहर जिन्हें मैंने सदोम के साथ नष्ट कर दिया था। +\q1 मैंने तुमको दण्डित करने के विषय में अपना मन बदल दिया है; +\q2 मैं आग्रहपूर्वक तुम पर दया करने का बड़ा अभिलाषी हूँ। +\q1 +\v 9 मैंने तुमको गम्भीर रूप से दण्डित नहीं करने का निर्णय किया है। +\q1 मैं तुम्हें नष्ट नहीं करना चाहता, मेरे इस्राएल के लोग, जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ। +\q2 मनुष्य सरलता से ऐसा करने का निर्णय करेंगे, +\q2 परन्तु मैं परमेश्वर हूँ, मनुष्य नहीं। +\q1 मैं वही पवित्र हूँ जो तुम्हारे बीच रहता है; +\q2 मैं तुमसे क्रोधित होकर तुम्हारे पास नहीं आऊँगा। +\q1 +\s5 +\v 10 वे मेरे आदेशों का अनुसरण करते हुए अपने जीवन जीते रहेंगे। +\q2 मैं सिंह के समान गरजूँगा करूँगा। +\q1 और जब मैं गर्जन करता हूँ, तो मेरे लोग सुनेंगे और थरथराएँगे। +\q2 वे दूर-दूर से मेरे पास वापस आ जाएँगे, +\q1 पश्चिम से वे मेरे पास वापस आ जाएँगे। +\q1 +\v 11 वे फड़फड़ाते हुए देश में आएँगे +\q2 मिस्र से आने वाले पक्षियों के झुण्ड के समान। +\q2 और कुछ कबूतरों के समान होंगे जो अश्शूर से उड़ते हैं। +\q1 मैं उन्हें इस्राएल के देश में, एक बार फिर अपने घरों में रहने दूँगा। +\q2 मैं, यहोवा ने यह प्रतिज्ञा की है।” +\q1 +\s5 +\v 12 “इस्राएल के लोग निरन्तर मुझसे झूठ बोलते रहे हैं। +\q2 परन्तु यहूदा के लोग अब भी मेरी बात मानते हैं और मेरे, एकमात्र पवित्र के, प्रति निष्ठावान हैं।” + +\s5 +\c 12 +\q1 +\p +\v 1 इस्राएल के लोग केवल बेकार के कार्य करते हैं; +\q2 वे केवल उन्हीं कार्यों को करते हैं जो उन्हें नष्ट कर देंगे। +\q2 वे अधिक से अधिक झूठ बोलते हैं; वे अधिक से अधिक हिंसा के कार्यों को करते हैं। +\q1 वे अश्शूर के साथ सन्धि करते हैं, +\q2 और वे मिस्र को जैतून का तेल भेजते हैं, +\q1 उन राष्ट्रों को उनकी रक्षा करने के लिए मनाने के लिए। +\q1 +\v 2 यहोवा भी यहूदा के लोगों पर अपनी वाचा को तोड़ने का आरोप लगा रहे है। +\q2 वह याकूब के उन वंशजों को जो उन्होंने किया है उसके लिए दण्डित करेंगे। +\q1 वह उन्हें वापस भुगतान करेंगे; वह उन्हें वो देंगे जिसके वे योग्य हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 जब याकूब अपनी माँ के गर्भ में था, तो उसने अपने भाई एसाव की एड़ी पकड़ ली क्योंकि वह अपने भाई की जगह लेना और पहलौठा पुत्र बनना चाहता था। +\q2 जब याकूब बड़ा हुआ, तो उसने परमेश्वर के साथ कुश्ती की। +\q1 +\v 4 जब स्वर्गदूत उसके सामने प्रकट हुआ, तो उसने उसके साथ संघर्ष किया और जीत गया। +\q2 याकूब ने स्वर्गदूत को पुकारा और स्वयं को आशीष देने के लिए उससे आग्रह किया। +\q1 याकूब ने बेतेल में यहोवा को पाया; +\q2 यह वहाँ था जब यहोवा ने उसके साथ बात की थी। +\q1 +\s5 +\v 5 यह स्वर्गदूतों की सेना के प्रधान, यहोवा है। +\q2 “यहोवा” वह नाम है जिसके द्वारा हमें उनकी आराधना करनी चाहिए। +\q1 +\v 6 अपने परमेश्वर की ओर फिरो। +\q2 उनकी वाचा का पालन करो और जो सही है वह करो। +\q1 कभी भी तुम्हारी सहायता करने के लिए अपने परमेश्वर पर भरोसा करना बन्द न करो। +\q1 +\s5 +\v 7 व्यापारी दुष्ट हैं; वे ऐसे पैमाने का उपयोग करते हैं जो गलत वजन और नाप देते हैं, +\q2 कि वे उनसे सामान मोल लेने वालों को उनके द्वारा धोखा दे सकें। +\q1 +\v 8 इस्राएल के लोग घमण्ड करते हैं, +\q2 “हम बहुत धनवान हैं, +\q1 और जितने धनवान हम अब हैं, हमने उससे भी अधिक धनवान बनने के तरीके खोज लिए हैं। +\q2 हमारी सभी मोल ले और बिक्री में, हम जो कुछ भी करते हैं उसमें कोई भी गलती नहीं देख सकता है।” +\q1 +\s5 +\v 9 परन्तु यहोवा कहते है, “मैं यहोवा हूँ, जिसकी तुमको आराधना करनी चाहिए; +\q2 मैं वही हूँ जो तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर निकाल लाया। +\q1 मैं तुमको बलपूर्वक तुम्हारे घरों से दूर कर दूँगा और तुमको फिर से तम्बू में रहने वाला कर दूँगा, +\q2 जिस प्रकार से तुम हर वर्ष कुछ दिनों के लिए तम्बू में रहते हो +\q1 जब तुम झोपड़ियों का पर्व मनाते हो। +\q1 +\v 10 कई बार मैंने भविष्यद्वक्ताओं से बात की और उन्हें तुमको देने के लिए सन्देश दिए; +\q2 और मैंने उन्हें तुम्हारे लिए कई दर्शन दिए, +\q2 और मैंने उन्हें दृष्टान्त दिए, तुमसे बात करने के लिए उन्हें दृष्टान्त दिए।” +\q1 +\s5 +\v 11 भविष्यद्वक्ता कहता है कि यदि यह सच है कि गिलाद के लोग दुष्ट हैं, +\q2 तो निश्चित रूप से वे भी बेकार हैं। +\q1 गिलगाल में वे बैल को मार देते हैं और उन्हें अपनी मूर्तियों को चढ़ाते हैं; +\q2 परन्तु इन वेदियों को नीचे खींच लिया जाएगा और उनके खेतों को पत्थरों के ढेर में बदल दिया जाएगा। +\q1 +\v 12 याकूब अराम देश में भाग गया; +\q2 उसने, जिसका नाम परमेश्वर ने बाद में बदल कर इस्राएल रख दिया, कई वर्षों तक वहाँ कार्य किया कि वह एक स्त्री से शादी कर सके। +\q2 उसने उससे शादी करने के लिए अपने मामा की भेड़ों का ध्यान रखा। +\q1 +\s5 +\v 13 यहोवा ने इस्राएल को मिस्र से बाहर निकाल लाने के लिए भविष्यद्वक्ता मूसा का उपयोग किया था, +\q2 और उन्होंने उस भविष्यद्वक्ता के द्वारा उनकी देखभाल की जिसने उनका नेतृत्व किया। +\q1 +\v 14 इस्राएल के लोगों ने यहोवा को बहुत क्रोधित कर दिया है; +\q2 उनके परमेश्वर कहते है कि वे कई लोगों की मृत्यु के दोषी हैं, और उनका अपराध उनके ऊपर बना रहता है। +\q2 वह उन्हें वापस भुगतान करेंगे क्योंकि उन्होंने अपने लज्जापूर्ण कर्मों से उन्हें अपमानित किया है। + +\s5 +\c 13 +\q1 +\p +\v 1 यहोवा कहते है, “जब इस्राएल के अगुओं ने बोला, तो लोग थरथराए; +\q2 उन्हें इस्राएल में सम्मानित किया गया था। +\q1 क्योंकि वे सभी बाल की उपासना करते थे, वे दोषी बन गए, +\q2 और वे मर गए। +\q1 +\v 2 अब वे अधिक से अधिक पाप करते हैं; +\q2 वे चाँदी से गढ़ कर धातु की आकृतियाँ बनाते हैं +\q1 उन्हें अपनी मूर्ति बनाने के लिए। +\q2 वे मूर्तियाँ केवल प्रतिमाएँ हैं जो बहुत चालाकी से बनाई गई हैं, +\q2 परन्तु उन प्रतिमाओं को केवल कारीगरों द्वारा ही बनाया जाता है। +\q1 परन्तु अन्य लोग देखते हैं +\q2 कि इस्राएल के लोग इन बछड़े की मूर्तियों को बलिदान चढ़ाते हैं और उन्हें चूम कर उनकी उपासना करते हैं। +\q1 +\s5 +\v 3 इसलिए इस्राएल के लोग ऐसे गायब हो जाएँगे +\q2 जैसे कि जितनी शीघ्र ही सुबह में बनने वाले बादल गायब हो जाते हैं, +\q1 जैसे कि जितनी शीघ्र ही सूर्य द्वारा सुखाए जाने पर ओस गायब हो जाती है। +\q2 वे भूसे के समान सरलता से गायब हो जाएँगे जैसे हवा उनको दाँवने के स्थान से दूर उड़ा ले जाती है। +\q2 चिमनी से निकलने वाले धुएँ के समान वे सरलता से गायब हो जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 4 परन्तु मैं यहोवा हूँ, जिसकी तुमको आराधना करनी है; +\q2 मैं वही हूँ जो तुम्हें मिस्र देश से बाहर निकाल लाया। +\q1 तुमको किसी और परमेश्वर की आराधना नहीं करनी है; तुमको केवल मेरी आराधना करनी है। +\q2 और कोई भी नहीं है जो तुमको बचा सकता है। +\q1 +\v 5 मैंने जंगल में तुम्हारा उत्तरदायित्व लिया, +\q2 एक रेगिस्तान में जहाँ पीने के लिए पानी नहीं था। +\q1 +\v 6 जब मैंने तुम्हारे लिए भोजन प्रदान कराया, +\q2 जितना तुम चाहते थे तुमने उतना खा लिया और संतुष्ट हो गए थे। +\q1 परन्तु जब तुम भूखे नहीं थे, तो तुम घमण्डी हो गए +\q2 और मेरे विषय में भूल गए। +\q1 +\s5 +\v 7 इसलिए मैं तुम पर सिंह के समान आक्रमण करूँगा; +\q2 मैं तुम पर एक तेन्दुए के समान आक्रमण करूँगा जो एक यात्री पर अचानक कूदने के लिए सड़क के बगल में प्रतीक्षा करता है। +\q1 +\v 8 मैं तुम्हारे विरुद्ध एक मादा भालू के समान आऊँगा जब कोई उनके शावकों को चुरा लेता है, +\q2 और मैं तुम्हारी छाती फाड़ डालूँगा। +\q1 एक सिंह के समान जो आक्रमण करता है— +\q2 एक जंगली पशु के रूप में तुमको चीर कर दो भाग कर दूँगा। +\q1 +\s5 +\v 9 तुम इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हें नष्ट कर दूँगा। +\q2 कोई भी तुम्हारी सहायता करने में सक्षम नहीं होगा। +\q1 +\v 10 अब तुम्हारे पास कोई राजा नहीं है +\q2 जो तुमको तुम्हारे किसी भी शहर में सुरक्षित कर सकता है। +\q1 अब तुम्हारे पास उन शासकों में से कोई भी नहीं है जिन्हें तुमने मुझसे तुम्हें देने के लिए कहा था। +\q1 +\v 11 जब मैंने तुम्हें राजा दिया, तो मैंने उसे तुम्हें इसलिए दिया क्योंकि मैं तुमसे क्रोधित था। +\q1 और क्योंकि मैं तुमसे क्रोधित था, इसलिए मैं तुम्हारे राजाओं को दूर ले गया। +\q1 +\s5 +\v 12 मैंने इस्राएल के लोगों द्वारा किए गए सभी दुष्ट कर्मों पर नजर रखी है; मैंने तुम्हारे सभी अपराध संचय किए हैं। +\q1 +\v 13 तुम पैदा होने के लिए तैयार एक बच्चे के समान हो, +\q2 परन्तु तुम मूर्ख हो, +\q1 क्योंकि तुम एक ऐसे बच्चे के समान हो जो पैदा होने से मना कर देता है। +\q1 +\s5 +\v 14 क्या मैं वास्तव में तुमको मरने से रोकूँगा? +\q2 क्या मैं तुम्हें मरने से बचाऊँगा? +\q1 नहीं। मैं तुम्हें मरने दूँगा +\q2 मैं तुम्हें नष्ट कर दूँगा। +\q2 मेरे पास तुम्हारे लिए कोई और करुणा नहीं बची है।” +\q1 +\s5 +\v 15 भविष्यद्वक्ता होशे कहता है: “भले ही तुम इस्राएल के लोग यहूदा के तुलना में समृद्ध हो, +\q2 वह दिन आ रहा है जब यहोवा तुमको नष्ट कर देंगे। +\q1 तुम विपत्ति का सामना करोगे। +\q2 तुम्हारे शत्रु तुमसे सब कुछ मूल्यवान लूट कर ले जाएँगे। +\q1 +\s5 +\v 16 सामरिया के लोग दोषी हैं क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह किया है। +\q2 उनके शत्रु उन्हें तलवार से मार देंगे। +\q1 वे उनके बच्चों को बहुत ऊँचाई से नीचे भूमि पर फेंक देंगे और उन्हें मार देंगे; +\q2 वे उनकी गर्भवती महिलाओं को चीर देंगे।” + +\s5 +\c 14 +\q1 +\p +\v 1 इस्राएल, अपने परमेश्वर यहोवा के पास लौट जाओ। +\q2 तुमने पाप किया है क्योंकि तुमने दुष्ट कार्य किये हैं। +\q1 +\v 2 इसलिए अब, यहोवा के पास लौट जाओ, और इस विषय में सोचो कि कैसे तुम उसके सामने अपने पापों को स्वीकार करोगे। +\q2 उससे यह कहो: +\q1 “हमारे सभी पापों को दूर कर, +\q2 और हमें स्वीकार कर; कृपया हम पर दयालु रह। +\q1 कृपया हमें वापस स्वीकार कर, कि हम अपने शब्दों और गीत के द्वारा तेरी प्रशंसा कर सकें। +\q1 +\s5 +\v 3 अश्शूर हमें बचा नहीं सकता है। +\q2 युद्ध में घोड़ों की सवारी करना हमारे लिए बेकार है। +\q1 हम फिर कभी दोबारा उन मूर्तियों को नहीं कहेंगे, ‘तुम हमारे देवता हो’ +\q2 जिन्हें हमने अपने हाथों से बनाया है। +\q2 यहाँ तक कि जिनके कोई पिता नहीं, वे बच्चे भी आप, यहोवा, की ओर देखते हैं और वे पाते हैं कि आप उनके प्रति दयालु है।” +\q1 +\s5 +\v 4 यहोवा कहते है, “मैं इन लोगों को मेरा आदर करने से रुक जाने के लिए क्षमा कर दूँगा; +\q2 मैं उन्हें बिना रुके प्रेम करूँगा, +\q2 क्योंकि मैंने उनसे क्रोधित न होने का निर्णय किया है। +\q1 +\v 5 मैं इस्राएल के लोगों की सहायता करूँगा जैसे ओस भूमि की सहायता करती है। +\q2 वे फूल की कली खिलने के समान समृद्ध होंगे। +\q2 वे लबानोन के देवदार के पेड़ के समान मजबूत हो जाएँगे। +\q2 +\v 6 वे उन पेड़ों के समान होंगे जिनकी शाखाएँ फैली हुई हैं। +\q1 वे जैतून के पेड़ के समान सुन्दर हो जाएँगे, +\q2 और वे लबानोन के सुगन्धित देवदार के पेड़ों के समान दूसरों को आनन्दित कर देंगे। +\q1 +\s5 +\v 7 वे लौट आएँगे और मेरे द्वारा इस्राएल को प्राप्त संरक्षण के अधीन रहेंगे; +\q2 मैं उन्हें कठिनाई से बचाऊँगा। +\q1 वे अच्छे से बढ़ने वाले खेत के अनाज की तरह, अच्छी तरह से बढ़ रही अँगूर की बेलों के समान सफल होंगे। +\q2 वे लबानोन देश में लोगों द्वारा पैदा की जाने वाली दाखरस के समान प्रसिद्ध हो जाएँगे। +\q1 +\v 8 तुम इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हें मूर्तियों की उपासना करने से पूरी तरह से रोकूँगा। +\q2 यह मैं, यहोवा हूँ, जो तुम्हारा ध्यान रखूँगा। कोई मूर्ति ऐसा नहीं कर सकती है। +\q1 मैं एक सनोवर के पेड़ के समान हूँ जो पूरे वर्ष ताजा रहता है और बढ़ता रहता है; +\q2 तुम्हारे सभी अच्छे उपहार मेरे पास से आते हैं।” +\q1 +\s5 +\v 9 हर बुद्धिमान व्यक्ति उन बातों को समझ लेगा जिनके विषय में मैंने लिखा है; +\q2 जिनके पास समझ है वे इन बातों का अध्ययन करेंगे और उन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देंगे। +\q1 जिस रीति से यहोवा चाहते है कि हमें जीना चाहिए वह सही है। +\q2 जो लोग सही कार्य करते हैं वे उन रीतियों से जीते हैं। +\q2 विद्रोही लोग, हालाँकि, पाप, उनका पालन करने में असमर्थ हैं। \ No newline at end of file diff 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