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\v 19 पापमय स्वभावके काम प्रत्यक्ष हए जो जेही हयँ- व्यभिचार, अपवित्रता, लम्पटपना, \v 20 मूर्तिपुजा, मन्त्रतन्त्र, दुश्मनी, झैंझगडा, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थीपन, फूट, गुटबन्दी, \v 21 गुस्सा, पियक्कडपन, अशलील मोजमज्जा, और अइसी जौनके बारेम मए तुमके चेताउनी देतहौं, और अग्गु फिर दओ हौं। जौन-जौन अइसो काम करत् हएँ, बे परमेश्‍वरको राज्यके हकदार न बनेहँए ।