thr_act_text_reg/08/20.txt

1 line
1.0 KiB
Plaintext

\v 20 " तव पत्रुस कहि, “तिर रुपैया तेरीसंग नष्ट हुइजाए, काहेकी परमेश्वरको बरदान रुपैयासे मोल ले सकत हयँ कहिके बिचार करत हए । \v 21 जाके बारेमे न त तेरो कोइ हिस्सा हए, काहेकी परमेश्वरके ठिन तेरो ह्रदय ठीक न है । \v 22 जहेकमारे तेरो अपनो जा दुष्टताको ताहिँ पश्चाताप कर और प्रभुके प्रार्थना चढा, और शायद तेरो ह्रदयको अइसो बिचार क्षमा हुईजाए । \v 23 23 "काहेकी मए देखत् हौ, तए दुष्टसे भरो हए, और अधर्मको बन्धनमे हए ।''