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\v 30 30 तव राजा, हाकिम, बरनिकि और हुवाँ बैठन बारे जित्तो सबए उठे | \v 31 31 "तव बे निकरके अपनै अइसो कहत बात करी, ""जा आदमी प्राण दण्ड पानबारो औ कैद माफीको कोइ काम ना करी हए |" \v 32 32 "अग्रिपस फेस्ताससे कहि,"" जा कैसर ठीन बिन्ती ना करतो तव जा आदमीके छोड देनेसे फिर हुइतो |"