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\v 14 जौन आदमी आत्मिक नैयाँ, बो परमेश्वरको आत्माको बात ग्रहण ना करत हए । काहेकी बे बात बोके ताहिँ मूर्खता होतहँए, और बोके ना बुझ पात हए, काहेकी बे बात आत्मिक रितिसे मात्र चिनन् सिकत हए । \v 15 आत्मिक आदमी सबए बातको जाँच करत हए, पर बो कोइ आदमीसे ना जाँचैगो । \v 16 "काहेकी कौन प्रभुको मनके जानो हए? और कौन बाके सिखान सकैगो?” पर हमरसंग त ख्रीष्टको मन हए । " |