thr_1co_text_reg/13/08.txt

1 line
481 B
Plaintext

\v 8 \v 9 \v 10 8 प्रेमको कभु अन्त नाए होत हए|अगमवणी बितकेखतम हुइ जए हए, भाषा बन्द हुइजए हए, ज्ञान टल जए हए| 9 हमर ज्ञान अधुरो हए, हमर अगमवणी अधुरी हए| 10 तव जब सिद्धता चाहिँ अए हए, अपूर्णता खतम हुइ जए हए|