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\c 12 \v 1 1 भैया तुम, अब आत्मिक वरदानको बारेमे तुम अनजान होबाओ करके मेरो इच्छा नैयाँ| \v 2 2 तुमके पता हए, कि जब तुम अन्यजाति रहओ, तव कोइ न कोइ प्रकारसे प्रभावित हुइके तुम नमस्कन बारी मूर्तिघेन बहके रहौ| \v 3 3 "जहेमारे तुमके जा बात बुझो मए चाहत हौ, कि परमेश्वरको आत्मासे मस्कन कोइ ""येशू श्रापित होबए"" नाए कहत हए, तव पवित्र आत्मासे मात्र ""येशू नै प्रभु हए"" कहन सिकंगे| " |