hi_tn-temp/jas/02/18.md

20 lines
2.3 KiB
Markdown
Raw Normal View History

2021-01-29 16:34:40 +00:00
# वरन कोई कह सकता है
याकूब एक काल्पनिक स्थिति का वर्णन कर रहा है जिसमें कोई 214-17 की उसकी शिक्षा पर आपत्ति व्यक्त कर रहा है। याकूब पद 20 में उसे “निकम्मे मनुष्य” कहता है। इसका काल्पनिक परिचर्चा का उद्देश्य उसके पाठकों को विश्वास और कर्म की समझ में मार्ग पर लाना है।
# “तुझे विश्वास है और मैं कर्म करता हूं।”
उसकी शिक्षा के संबंध में याकूब किसी की संभावित आपत्ति को व्यक्त करता है। “एक को विश्वास है और दूसरा भले काम करता है।”
# तू अपना विश्वास....दिखा
“मुझे” अर्थात याकूब को
# दुष्टात्मा भी विश्वास...थरथराते हैं।
दुष्टात्मा भी....थरथराते हैं। “भय से कांपते हैं।”
# हे निकम्मे मनुष्य, क्या तू यह भी नहीं जानता कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है?
हे निकम्मे मनुष्य, क्या तू यह भी नहीं जानता कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है? इस प्रभावोत्पादक प्रश्न द्वारा या याकूब की बात नहीं मानने वाले को झिड़का जा रहा है। आप इसका अनुवाद कर सकते हैं, “हे मूर्ख, क्या तू मेरी बात को सुनना नहीं चाहता कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है।”